महबूबा की चूत पर बरती सख्ती

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मैं मुस्कान से महोब्बत करता था ऐसा उसे लगता था पर असल बात तो यह थी की मैं उसकी कामुक मुस्कान यानी गुलाबी चूत पर मरता था | मेरे उसके साथ प्यार को एक साल हो चूका था पर मैं कभी चुम्मा चाटी से उसके साथ आगे नहीं बढ़ पाया था और बस किसी भी तरह चुदाई के पद पर लाकर ठोक - बजाके चोदना ही चाहता था | वो हमेशा मुझे कहा करती थी आगर मुझे उससे चुम्मा चाटी के आगे जाना है तो वो सिर्फ शादी के बाद जो न मुझे मंज़ूर था और न ही मेरे लंड ही मेरे तैनात हो चुके लंड को | मुस्कान भोली थी और सेक्स को लेकर समझदार भी थी पर शयद वो अपनी बदन की खूबसूरती को नहीं जानती थी तो सिर्फ चुदाई के लिए बन था और वासना को ही समझ था |

मैं एक दिन पुरे मुड में था की आज कैसे भी मुस्कान को चोदना ही है और मैंने उस दिन उसे अपने कॉलोनी के पिछवाड़े में बुलाया जहाँ हमें कोई भी नहीं देख सकता था | कुछ देर हम यूँही हाथ - पकड़कर बात कर रहे थे जहन मैं धीर - धीरे रोमांटिक होता उसके गालों को चूम और फिर धीरे - धीरे उसके होठों को चूम लिया | मैं खूब भी गरमा चूका था और उसे अपनी बाहों में लेते हुए मैं उसे कह दिया की उसे हमारा प्यार का वास्ता की मुझे आगे बढ़ने से नहीं रोकेगी . . ! ! मैं मुस्कान की जाँघों को सहलाते हुए उसके होठों को चूसने लगा और एक दम शांत रही बस अपनी आँखें मीचे और मैं आगे बढ़ता हुआ उसकी कुर्ती को उतार दिया | मैं मुस्कान के चुचों को बारी - बारी चूसने लगा जिसपर मुस्कान एकदम मदहोश होती चली गयी |

कुछ देर बाद मैंने मुस्कान की सलवार को भी उतार नंगी कर दिया और नीचे से उसकी चूत की फांकों में ऊँगली भी करने लगा | अब मैंने उसे वहीँ झाडियों में गिरा दिया और उसकी चूत पर अपने मुंह के थूक लगाकर अपने लंड को जोश में बहार निकाल लिया | अब झट से बिना कोई चूक किओये मैंने अपना लंड को मुस्कान की चूत में अंदर देने लगा जिसपर उसकी एकदम से चींखें लगी पर बीतते वक्त के साथ हौले - हौले उसकी चूत में लंड अंदर गया तो धीर - धीरे मज़ा आने लगा | मैंने अब होश गंवाते हुए मैंने खूब मस्त तरीके से चोदना चालु कर दिया जिसपर ज़ोरों की सिसकियाँ लेती हुयी मुझे सहयोग दे रही थी |

अब मैं उसपर निढाल लेटे हुए उसके मुंह को अपने दोनों हाथों से दबाए नीचे से अपने लंड की सख्ती बरत रहा था और वो मेरे लंड के सभी वारों को अपनी चूत में बसाए जा रही थी | मुस्कान की रोशन मुस्कान अब कामुक मुस्कान में बदलती जा रही थी और उसके चेहरे पर भी हवस का खौफनाक रूप मुझे दिखायी दे रहा था | मेरी महबूबा अब मेरी सेक्स की प्यास भुजा रही थी जिसे मैं अपने वीर्य के झड़ने पर समझा और उस दिन मुझे उसे सेक्स के लिए कभी मनाने की ज़रूरत नहीं पड़ी क्यूंकि वो हमेशा ही अपनी चूत पिलवाने के लिए तैयार जो रहा करती थी |
 
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