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Maa Hisaab Ki Pakki Hain

सभी पाठकों को नमस्कार। मैंने इस कहानी में पतिव्रता होने का नाटक करने वाली मेरी माँ के बारे में लिखा है। अपनी पहचान छिपाने के लिए मैंने कहानी में किसी व्यक्ति या स्थान का नाम नहीं बताया है।

मेरे परिवार में केवल तीन लोग रहते हैं। पिताजी नौकरी करते हैं, माँ एक गृहिणी हैं और मैं जूनियर कॉलेज में पढ़ता हूँ। सुबह में कॉलेज, दोपहर में ट्यूशन क्लास जाकर शाम को मैं घर ०७: ०० बजे पहुँचता हूँ। पिताजी रात को ०८: ३० बजे तक घर आते हैं।

माँ अकेली घर में रहकर घर का काम करने के साथ-साथ टेलीविज़न देखती हैं। कम से कम मैं तो यही सोचा करता था। अभी कुछ दिन पहले, दोपहर का खाना खाने के बाद, मैं ट्यूशन क्लास जाने की तैयारी कर रहा था।

माँ हॉल रूम में सोफ़े पर बैठे टेलीविज़न पर सीरियल देख रही थी। मैं माँ को "ट्यूशन क्लास जाकर आता हूँ" ऐसे बोलकर उनके पीछे से निकल गया था। माँ भी टेलीविज़न पर अपनी नज़र गड़ाए मुझे "सँभलकर जाना" ऐसे बोली।

मैंने जब दरवाज़ा खोला तब मुझे याद आया कि मैंने अपना मोबाइल फ़ोन लिया ही नहीं था। मैंने दरवाज़ा बंद किया और अपने कमरे की ओर बढ़ने लगा था। अपने कमरे में आने से पहले मैंने माँ को टॉयलेट के अंदर घुसते हुए देखा था।

कमरे में पहुँचकर मैंने अपना मोबाइल फ़ोन उठाया और उसमें आए हुए ४ मैसेज को एक-एक करके पढ़ने लगा। मैं मैसेज पढ़कर अपने कमरे से निकल ही रहा था कि मैंने माँ को किसी से फ़ोन पर बातें करते हुए सुना।

माँ सोफ़े पर बैठे फ़ोन पर किसी से यह बात कह रही थी, "वह ट्यूशन क्लास चला गया है, तुम आकर दूध का हिसाब करो" ।

अगर माँ सिर्फ़ उतनी-सी बात फ़ोन पर कहती तो शायद मैं अपने ट्यूशन क्लास के लिए निकल जाता, लेकिन माँ की पूरी बात सुनकर मैंने अपने कदम पीछे ले लिए और कमरे में जाकर चुपचाप माँ को देखता रहा।

माँ की पूरी बात यह थी-".और एक बात, आते वक़्त कंडोम लेकर आना। पिछली बार भी तुमने बिना कंडोम के हिसाब किया था। अड़ोस-पड़ोस में भी ज़रा देखकर आना, ठीक है?" ।

माँ की बातें सुनकर मेरे पैरों तले ज़मीन ख़िसक गए थे। मैं अपने कमरे का दरवाज़ा थोड़ा खुला छोड़कर इंतज़ार कर रहा था। पंद्रह मिनट बाद, दरवाज़े की घंटी बजी थी। थोड़ी देर बाद मैंने देखा कि एक आदमी माँ को गोदी में उठाकर सोफ़े पर आकर बैठ गया।

वह आदमी और कोई नहीं बल्कि हमारे मोहल्ले में दूध बेचने वाले काका थे। काका की बीवी गर्भवती थी शायद इसलिए वह माँ के साथ गुलछर्रे उड़ाने आए थे। सोफ़े पर बैठे, काका माँ को सीने से लगाकर अपनी बातों से उकसाह रहे थे।

[काका:] अरे जानेमन, मैं तो कंडोम लाना ही भूल गया। लेकिन तू चिंता मत कर। पिछली बार की तरह इस बार भी मैं तेरे मुँह में रस निकाल दूँगा।

[माँ:] (हस्ते हुए) .चलो अब बातें मत करो और जल्दी से अपना काम करो। मुझे घर का काम भी करना है।

मैंने देखा कि काका माँ की चूत को रगड़ रहे थे और माँ काका के काले लौड़े को पकड़कर हिला रही थी। इसलिए माँ खिसिया रही थी। माँ इतनी मस्त और गरम हो चुकी थी कि वह ज़ोर से सिसकियाँ लेने लगी थी।

फिर माँ ने अपने होंठ काका के होंठों से लगाकर उनकी चुम्मियाँ लेने लगी। वह काका के काले लौड़े को पकड़कर ज़ोर-ज़ोर से हिला रही थी। काका ने हवस के मारे गरम होकर माँ की मैक्सी उतार दी और उसकी लटकती चूचियाँ दबाने लगे।

माँ की मोटी लटकती चूचियों को पकड़कर एक दूसरे के साथ दबाते हुए काका उन्हें अपने हाथों से मसल रहे थे। कुछ देर बाद, माँ उठकर खड़ी हो गई और अपनी सफ़ेद ब्रा और काली पैंटी को उतारकर अपनी चूत की पँखुड़ियों को फ़ैलाने लगी।

काका ने माँ की कमर को पकड़ा और उसे अपने मुँह के पास खींच लिया। काका माँ के पैरों के बिच में अपना हाथ घुसाकर उसकी चूत को घिस रहे थे। माँ जोश में आकर काका के हाथ के ऊपर अपनी गाँड़ को घिसने लगी।

थोड़ी देर बाद, काका ने माँ के चुत्तड़ों को फैलाया और अपनी ज़ुबान को उसकी गाँड़ की छेद के अंदर घुसा दिया। माँ आगे झुककर काका के मुँह पर अपनी चर्बीदार गाँड़ दबा रही थी।

काका अच्छी तरह से उसकी गाँड़ की छेड़ के अंदर अपनी ज़ुबान को अंदर-बाहर करके चाट रहे थे। काका ने अपने हाथों से माँ की गोल-मटोल चूचियाँ पकड़कर उन्हें दबाने लगे। वह अपनी ज़ुबान से माँ की गाँड़ की दरार चाटने लगे थे।

उत्साहित होकर माँ अपनी गाँड़ काका के मुँह पर झूला रही थी। कुछ देर बाद, काका सोफ़े पर लेट गए और माँ उनके मुँह पर अपनी चौड़ी गाँड़ रखकर बैठ गई।

माँ अपनी गाँड़ को काका के मुँह पर दबा रही थी जिसकी वज़ह से काका का काला लौड़ा पूरी तरह तनकर खड़ा हो गया था। माँ ने आगे की तरफ़ झुककर काका के काले लौड़े को पकड़ा और उसे हिलाने लगी। काका माँ की चूत को अपनी ज़ुबान से चाट रहे थे।

जब काका माँ की पँखुड़ियों को फैलाकर उसे चूसने लगे तब माँ सिसकियाँ लेते हुए काका के काले लौड़े को तेज़ी से हिलाकर चूसने लगी थी। थोड़ी देर बाद, माँ पलटकर काका के ऊपर लेट गई। काका और माँ एक दूसरे के होंठों को ज़ोर-ज़ोर से चूसने लगे।

माँ की चूचियाँ दबाते हुए काका उसे उकसाह रहे थे। माँ ने अपने हाथ को नीचे ले जाकर काका के काले लौड़े को पकड़ लिया और उसे सहलाने लगी।

काका के काले लौड़े की नोक को अपनी चूत की दरार पर कुछ देर रगड़कर माँ ने काले लौड़े को अपनी चूत के अंदर घुसा दिया। काका माँ के चुत्तड़ों को पकड़कर उसे अपने काले लौड़े पर ऊपर-निचे करने लगे।

माँ की गाँड़ की दरार में अपनी उँगलियाँ फसाकर काका उसे उत्तेजित करने लगे। माँ ने अपनी चूची को काका के मुँह में भर दिया, जिसे काका आवाज़े निकालकर चूसने लगे थे।

हवस के कारण माँ अपनी चूत को काका के काले लौड़े पर उछालने लग गई और हलके से चीख़ना शुरू कर दिया। माँ काका के ऊपर बैठ गई और अपनी चूत को उनके काले लौड़े पर ज़ोर-ज़ोर से उछालने लगे। काका माँ की चूचियों को पकड़कर दबा रहे थे।

काका ने माँ के निप्पल को पकड़कर खींचा था जिसकी वज़ह से माँ ज़ोर से चिल्ला उठी थी। माँ ने काका को एक थप्पड़ मारा और मुस्कुराने लगी।

कुछ देर बाद, काका सोफ़े पर बैठ गए और माँ के पैर फैलाकर उसे अपनी गोद में बिठा दिया था। माँ की गाँड़ को पकड़कर उसे अपने काले लौड़े पर ऊपर-निचे उछालकर चोदने लगे।

चुदाई के वक़्त, माँ की चूचियाँ काका की छाती से घिस रही थी जिससे काका उत्तेजित होकर ज़ोर-ज़ोर से माँ को अपने काले लौड़े पर उछालने लगे थे। कुछ देर और तेज़ी से चुदाई करने के बाद, काका ने मुद्रा बदल दी।

काका ने माँ को सोफ़े के ऊपर उल्टा लेटा दिया और उसके ऊपर चढ़कर लेट गए थे। माँ की गाँड़ की छेद में थूक लगाकर काका ने उसके अंदर अपनी उँगलियाँ घुसाई।

उँगलियों से माँ की गाँड़ की छेद को चौड़ा करके काका उसपर अपने काले लौड़े की नोक को घिसने लगे थे। धीरे से माँ की गाँड़ में अपना काला लौड़ा घुसाकर काका धक्के मारने लगे।

माँ ने अपनी एक टाँग ज़मीन पर रखकर फैला दिया जिसकी वजह से काका उसकी अच्छी तरह से गाँड़ चुदाई कर पा रहे थे। काका जोश में आकर माँ के पिठ पर लेट गए और ज़ोर-ज़ोर से उसकी गाँड़ में अपना काला लौड़ा घुसाने लगे।

अपने हाथ से माँ की चूत को ज़ोर-ज़ोर से रगड़ते हुए काका ने माँ की चीख़ें निकाल दी। माँ पलटने की कोशिश कर रही थी, लेकिन काका ने उसपर अपना पूरा वज़न डालकर उसे दबा दिया था।

काका माँ की गाँड़ पर अपने काले लौड़े को ज़ोर-ज़ोर से पटकने लगे थे जिसकी वजह से 'पच-पच' करके आवाज़ आने लगी थी। थोड़ी देर बाद, ज़ोर-ज़ोर से अपने काले लौड़े को माँ की गाँड़ की छेद के अंदर घुसाने के बाद, काका ने अपना काला लौड़ा बाहर निकाल दिया।

सोफ़े के पास खड़े होकर काका अपने काले लौड़े को हिला रहे थे। माँ काका के काले लौड़े के सामने अपना मुँह रखकर बैठी थी। माँ और इंतज़ार न करते हुए, उसने काका के काले लौड़े को अपने मुँह में डालकर चूसना शुरू किया।

कुछ देर बाद, काका ने अपने काले लौड़े का पानी माँ के मुँह के अंदर निकाल दिया। माँ उसे पूरा पीकर सोफ़े पर बैठ गई। काका अपने कपड़े पहनते हुए माँ से बोले, "चलो इस महीने का तुम्हारा दूध का हिसाब बराबर हो गया" ।
 
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