सोलह साल के बाद मिले भी तो पुत्र के लिए सिर्फ बेरूखी ही दिखने को मिली । अपने पुत्र के आगे एक ऐसी लड़की को तवज्जो दिया जो रिश्ते में उनके कुछ नहीं लगती । सिर्फ सरपरस्ती में थी वो उनकी ।
और जब सच्चाई का पता चला तो उन्हें अपना पुत्र उनके जैसे ही लगा .... मतलब एक बेहतरीन इंसान ।

ऐसे व्यक्ति को क्या कहें !
सोलह साल तक अपने परिवार की कोई परवाह तक नहीं की ।
अपनी जिम्मेदारियों से पल्ला झाड़ा ।
रूद्रपुर गांव में कत्लेआम मचाया ।
पुत्र से ज्यादा रीना पर अपना प्रेम दर्शाया ।आंख और कान के बिल्कुल ही कच्चे निकले वो ।
अर्जुन सिंह का चरित्र अगर इतना ही पाक साफ है तो उन्होंने अपने घर में चल रहे सालों से हवश लीला को समाप्त करने की कोशिश क्यों नहीं की ?

अर्जुन सिंह को भले ही महान किरदार के रूप में आप प्रदर्शित कर रहे हैं आप फौजी भाई लेकिन उनके दामन पर भी दाग तो है ..... कहानी में अब तक की उनकी भुमिका के अनुसार ।

इसके पहले शिवाले में जो कुछ हुआ वह भी काफी अचरज भरा हुआ था । आखिर यह सब हो कैसे रहा है और क्यों हो रहा है ?

रीना इस कहानी की सबसे प्रमुख किरदार है जो हर बार अपने क्रिया कलापों से हमें चौंका जा रही है । कौन है यह कमसिन बाला ? क्या सम्बन्ध है उसका शिवाले से ? किसकी संतान है वो ? अश्व मानवों का संहार करने वाली लड़की कोई मामूली लड़की नहीं हो सकती ।
मुझे तो बिल्कुल ही नहीं लगता कि वो मनीष की धर्म पत्नी बनने वाली है । इतने विलक्षण शक्तियों से परिपूर्ण लड़की की जोड़ी एक साधारण लड़के से हो ही नहीं सकती ।

मनीष के लिए अगर कोई परफेक्ट मैच है तो वो मीता है जो हर कदम पर उसके साथ खड़ी दिखाई देती है ।

बहुत ही बेहतरीन अपडेट था फौजी भाई । बहुत सारे सस्पेंस क्रिएट हो गए हैं । लगता है अब इन पर से पर्दा उठने वाला है ।

आउटस्टैंडिंग एंड अमेजिंग एंड ब्रिलिएंट अपडेट ।
 
#68

हम दोनों उसी समय जब्बर से मिलने के लिए चले गए . पर अफ़सोस वो कहीं बाहर गया हुआ था . निरासा से भरे हुए कदमो से वापिस लौटना कठिन था .

मीता-क्या बता सकता है ये जब्बर हमें

मैं- कोई ऐसी बात जो हमारे काम में आये, उसे लगता है की बाबा ने उसकी बहन का इस्तेमाल किया , इस घटना से पहले इनकी मजबूत दोस्ती थी .

मीता- बाबा ऐसी ओछी हरकत कभी नहीं करेंगे.

मैं- जब्बर के पास क्या मालूम कुछ ठोस सबूत हो .

मीता- पर न जाने कहाँ गया है ये जब्बर

मैं- कोई न , आज नहीं तो कल मिल ही जायेगा.

ढलती शाम में मैंने मीता का हाथ पकड़ा और हम दोनों नहर की पुलिया पर बैठ गए.

मीता- ऐसे मत देखा कर मुझे तू

मैं- तू ही बता कैसे देखू तुझे.

मीता- ये नजरे सीधा दिल पर जाकर लगती है

मैं- तो इसमें मेरा क्या कसूर , तू दोष दिल को दे

मीता- दिल भी तेरा ही है न

मैं- दिल अपना प्रीत पराई

मीता- वो क्यों भला

मैं- सब कुछ तेरे सामने ही है . एक तरह तू है एक तरफ रीना है . मैं न उसे छोड़ सकता हूँ न तुझे.

मीता- पर किसी दिन तो ये निर्णय लेना ही होगा न

मैं- मैं उस दिन भी दोनों में से किसी को नहीं छोडूंगा.

मीता- क्या तू मुझसे भी मोहब्बत करता है

मैं- ये त्रिकोण एक दिन मेरी जान ले जायेगा.

मीता- वैसे तू चाहे तो मेरा साथ छोड़ सकता है

मैं- इतना खुदगर्ज़ नहीं मैं, पल पल मेरे साथ तू खड़ी है और तू कहती है की तेरा साथ छोड़ दूँ.

मीता- हाथ थाम भी तो नहीं पायेगा तू .

ढलती शाम ने उसका सांवला चेहरा दमक रहा था सुनहरे सोने सा. मैंने उसके चेहरे को अपने हाथो में लिया और बोला- श्याम से पहले सदा राधा का नाम आया है .

मीता- जो प्यार कर गए वो लोग और थे .

मैं- हम भी तो प्यार ही कर रहे है .

मीता- ये कैसा प्यार है , चल मैं मान भी गयी इस त्रिकोण के लिए तो भी रीना नहीं मानेगी, मैं लिख कर देती हूँ तुझे. उसके दिल में तेरे लिए जो प्यार है . वो हद से गुजर जाएगी पर तुझे किसी और का नहीं होने देगी.

मैं- तो तुम दोनों देख लेना, मैं बहुत थक गया हूँ, मैं सोना चाहता हूँ

मीता और मैं थोड़ी देर बाद कुवे पर आ गए. मैंने कपडे उतारे और पानी की हौदी में कूद गया . ठन्डे पानी ने मेरे वजूद को अपने अन्दर समेट लिया. मीता ने चारपाई बाहर लाकर पटक दी और चाय बनाने लगी. इस पानी की हौदी में मुझे बड़ा आराम मिलता था , इसके अन्दर ही मेरा दिमाग ठीक से काम करता था , कुछ बेहतरीन विचार मुझे यही पर आये थे . गर्दन तक पानी में डूबे मैं बस जब्बर के बारे में ही सोच रहा था . आखिर वो क्या बात थी , जब्बर की बहन के बारे में मुझे पड़ताल करनी थी . क्या अतीत था उसका. मैं बहुत ज्यादा थका था तो मैंने बिस्तर पकड़ लिया. पर नसीब के जब लौड़े लगे हो तो नींद भी साली बेवफा हो जाती है . बरसात की बूंदों ने मेरी नींद तोड़ दी. मैंने देखा की मीता चारपाई पर नहीं थी, मैंने उसे कमरे में देखा वो वहां पर भी नहीं थी.

मैंने दो चार बार उसे आवाज दी पर कोई जवाब नहीं आया. थोडा परेशां हो गया मैं ऐसे बिना बताये वो कहीं नहीं जाती थी . हाल के दिनों में जो घटनाये हुई थी थोडा घबराना तो मेरा लाजमी था. सबसे पहला ख्याल दिल में बस यही आया की कहीं वो शिवाले पर तो नहीं गयी. मैंने एक पतली सी चादर ओढ़ी और हाथ में एक लकड़ी लेकर बरसात में ही रुद्रपुर की तरफ चल दिया.

मैंने देखा की खंडित शिवाले का मलबा इधर-उधर बिखरा हुआ था . पर देहरी पर एक छोटा सा दीपक जल रहा था . न जाने क्यों मेरे होंठो पर मुस्कराहट सी आ गयी.कहने को तो ये जगह कुछ भी नहीं थी पर अपने अन्दर न जाने क्या समेटे हुई थी.न जाने क्या कहानी थी जिसे वक्त की रेत अपने अंदर दफ़न कर ही नहीं पा रही थी .

मैं आगे बढ़ कर देवता के स्थान पर पहुंचा तो अचम्भे से मैं हैरान रह गया , मेरी आँखों ने मुझे धोखा देना चाहा . देवता का प्रांगन दियो से रोशन था . पर जैसे ही मैंने पैर वापिस किया दहलीज से घुप्प अँधेरा छ गया , पैर आगे बढ़ाते ही शिवाला रोशन होने लगा. मैंने दो तीन बार करके देखा. ये धोखा नहीं था.

"तुम अन्दर आ सकते हो " किसी औरत ने मुझे आवाज दी.

बेशक मैं घबराया हुआ था पर मैं सावधान था . मैं जरा भी नहीं हिला.

"तुम्हे डरने की जरुरत नहीं है ." अन्दर से फिर आवाज आई.

हिचकिचाते हुए मैं दहलीज को पार करके अन्दर चला गया .

"अपनी सारी परेशानियों को इनके पास छोड़ दो. शिव सबके है , तुम्हारे भी है तुम्हे भी देख रहे है वो " उसने कहा और मुझे बैठने का इशारा किया.

मैं बस उस औरत को देखे जा रहा था , उसके चेहरे पर ऐसा तेज था की ये तमाम दिए न भी होते तो भी ये शिवाला रोशन हो जाता. उसके चांदी से बाल .ठोड़ी के निचे तीन टिल. हाथो में चांदी के कड़े. बड़ा प्रभावशाली व्यक्तित्व था उसका.

"कौन है आप " मैंने हाथ जोड़ कर उसका परिचय पूछा.

औरत- मैं एक डोर हूँ जो बंधी हूँ इस शिवाले से

उसने एक थाली निकाली जो खाने से भरी थी . उसने रोटी का एक टुकड़ा तोडा और बोली- बेटे, खाना खाओ.

न जाने क्या बात थी उसमे, मैं ना कह नहीं पाया. उन कुछ निवालो से ही मेरा पेट भर गया. ऐसा अहसास मुझे पहले कभी नहीं हुआ था . न जाने क्यों मेरी आँखों से बहकर आंसू उसकी हथेली को भिगोने लगे.

"ये आंसू किसलिए भला " उसने मुस्कुराते हुए कहा .

मैं- कभी माँ के हाथ से ऐसे खा नहीं पाया. बरसो से दबी इच्छा आंसू बन कर बह चली.

औरत -समझती हूँ . एक बेटे के लिए माँ का क्या महत्व होता है . ये सब नसीब का खेल है , मिलन है जुदाई है तकदीरो के लेख को भला कौन समझ पाया है .

मैं- इस शिवाले की कहानी क्या है क्या आप मुझे बतायेंगी. जब से मेरे कदम यहाँ पड़े है मेरी जिन्दगी बदल गयी है .

औरत- ये खुशकिस्मती है तुम्हारी . शिवाले की क्या कहानी भला. जिन्दगी के तमाम रंग है शिवाले में सुख है दुःख है .

इस से पहले वो कुछ और कहती वो तमाम दिए बुझने लगे. वो औरत मेरे पास आई मेरे माथे को चूमा और बोली- अतीत के पन्ने मत पलटना , जो है वो आज है और आने वाला कल है .

इस से पहले मैं कुछ कहता शिवाले में घुप्प अँधेरा छा गया . जब तक मेरी आँखे देखने लायक हुई वहां पर कुछ भी नहीं था .
 
#

झटके से मेरी आँख खुली तो मैंने पाया की बदन पसीने से तरबतर था . सांय सांय हवा चल रही थी , मीता मेरे पास सो रही थी . मेरे सीने पर हाथ रखे. तो क्या मैं सपने में था, मैंने सपने में उसे देखा था . मुझे यकीन नहीं हो रहा था , मैं उठ बैठा, पीछे पीछे मीता की आँख भी खुल गयी .

मीता- क्या हुआ .

मैंने मीता को अपने सपने के बारे में बताया .

मीता- कभी कभी जेहन पर ख्याल ज्यादा हावी हो जाते है . थोडा पानी पी लो और फिर से सोने की कोशिश करो

मैं- सपना नहीं था वो , मैं था वहां पर मीता मैं था . ये किसी तरह का संदेसा था

मीता- समझती हूँ . तुम्हारी जिन्दगी में सबसे ज्यादा कमी माँ की ही रही है इसलिए तुमने वो रूप देखा सपने में .

मैं- वो बात नहीं है मीता.

मीता- तो क्या बात है .

मैं- उसने मुझसे कहा की अतीत के पन्ने पलटने की कोशिश मत करना, जो हैं वो आज है और आने वाला कल है .

मीता- अपना कल सुनहरा होगा मनीष

मैंने उसके माथे को चूमा और उसे अपने आगोश में भर लिया. एक तरफ मैं मीता के साथ था दूसरी तरफ मुझे रीना की बड़ी याद आती थी . उस से बात करना चाहता था , उसे सीने से लगाना चाहता था पर जो ग़लतफ़हमी की दिवार उसने खड़ी की थी , क्या वो मेरी सुनेगी अब. क्या उसे मालूम है की जो मरी है वो उसकी असली माँ नहीं है . क्या होगा जब उसे उसके अस्तित्व के सवालो से सामना करना पड़ेगा. अगले दिन मैं रुद्रपुर गया .मुझे दो काम करने थे यहाँ पर.

सबसे पहले मैं शिवाले पर गया . जहाँ मेरा सामना पृथ्वी से हो गया .

पृथ्वी- तू यहाँ

मैं- क्यों तेरे बाप का शिवाला है क्या

पृथ्वी- पूरा रुद्रपुर ही मेरे बाप का है , ये जो शिवाले की हालत हुई है इसमें कही न कही तेरा हाथ भी है

मैं- तू अपनी खैर मना, कहीं तेरी हालत भी ऐसी न हो जाये.

पृथ्वी- कोशिश करके देख ले

मैं- दिल तो बहुत करता है मेरा पर अभी तेरे मरने का समय हुआ नहीं है जितने भी दिन है जी ले उनको

पृथ्वी- दिन तो अब तेरे बाप के बचे है गिनती के, मुझे मालूम है की वो लौट आया है . बचपन से मुझे इसी दिन का इंतज़ार था . पहले तेरे बाप को मारूंगा.कितनी ख़ुशी होगी जब उसकी राख तुझे भेजूंगा

मैं- कोशिश करके देख ले. तू मुझसे न जीत पा रहा वो तो मेरा बाप है

मेरी बात तीर की तरह पृथ्वी को चुभी.

मैं- खैर, फिलहाल मुझे यहाँ पर कुछ काम है तू निकल

पृथ्वी- मैं क्यों जाऊ ये मेरी धरती है

मैं- तो मत जा ,मुझे मेरा काम करने दे. मुझे देखना है की इसे दुबारा बनाने में क्या लगेगा.

पृथ्वी- तुझे इस खंडहर शिवाले में इतनी क्या दिलचस्पी है..

मै जानता था की ये गधे का बच्चा मुझे मेरा काम नहीं करने देगा तो मैं वहां से वापिस हो लिया अब पृथ्वी के जाने के बाद ही वहां जाना उचित रहता. थोड़ी दूर चलने के बाद मुझे एक पेड़ के निचे गाड़ी खड़ी दिखी पहली नजर में मुझे लगा की इस गाड़ी को मैंने कहीं तो देखा है तो मैं उस तरफ चल दिया. घनी झाड़ियो पर बनी पगडण्डी से होते हुए मैं और आगे की तरफ बढ़ा. आसपास काफी गहरे पेड़ थे, कुछ दूर और जाने पर मैंने देखा की एक पुराना कमरा था जिसकी हालत अब खस्ता थी. पास में ही कुछ खेती के औजार पड़े थे.

आसपास कोई दिख नहीं रहा था पर गाडी थी तो कोई न कोई होना भी चाहिए था. बड़ी सावधानी से मैंने खुद को छिपाया और आस पास देखने लगा. थोड़ी देर बाद मैंने दो लोगो को आते देखा . एक आदमी और दूसरी औरत. आदमी को मैंने तुरंत पहचान लिया वो दादा ठाकुर था पर उस औरत को नहीं क्योंकि उसने घूँघट ओढा था . वो दोनों आकर पम्प पर बने चबूतरे पर बैठ गए. औरत का हाथ ददा ठाकुर के हाथ में था .

तो ये समझ सकते है की एक दुसरे के करीब थे वो. मैं उनकी बाते सुनने की कोशिश करने लगा.

औरत- अर्जुन लौट आया है

दादा- मालूम हुआ मुझे, उसका लौटना शंका पैदा कर रहा है

औरत- किसी न किसी दिन तो उसे लौटना ही था .

ददा- लगा था की कहीं मर खप गया होगा वो .

औरत- उसकी ख़ामोशी डर पैदा कर रही है

दद्दा- मेरी परेशानी अर्जुन नहीं उसका बेटा हैं, नाक में दम किया हुआ है उसने, पृथ्वी और उसमे ठनी हुई है. तुम तो जानती ही हो पृथ्वी के सिवा हमारा और कोई नहीं

औरत- नादाँ है वो. वैसे भी तुम पृथ्वी को समझाओ की आग से खेलना छोड़ दे वो . पृथ्वी ने ऐलान किया है की वो उसकी माशूका से ब्याह करेगा

दद्दा- यही तो मेरी फ़िक्र है , उस लड़की के लिए मनीष ने शिवाले को खून से रंग दिया था उसकी आँखों में जूनून है .

औरत- संध्या से बात करके देखो

दद्दा- बात की थी उससे मैंने, वो गुस्से में थी . उसका भी यही कहना है की पृथ्वी की वजह से मनीष उसको दोष देता है .

औरत- इन सब बातो के बिच ये ना भूलो की उस लड़की को अर्जुन ने अपनी सरपरस्ती में लिया था

ददा- इसका मतलब समझ रही हो.

औरत- इसका सिर्फ एक ही मतलब है की शायद वो लड़की ही हमारी तलाश है. यदि वो तुम्हारे घर की बहु बनी तो समझ रहे हो न मैं क्या कह रही हूँ .

ददा-उसके लिए मनीष को मरना होगा.

औरत- उसके चारो तरफ इतने दुश्मन होते हुए भी आजतक उसका बाल नहीं उखड़ा. कोई तो है उसके साथ जो उसे कवच दे रहा है

ददा- दिलेर सिंह को जब मारा गया तब भी मनीष के साथ एक लड़की थी ऐसा बताया था हवालदार ने मुझे

औरत- जब्बर तलाश रहा है उस लड़की को

ददा- उसे क्या दिलचस्पी है उस लड़की में

औरत- उसे लगता है की वो लड़की ..............................

ददा- क्या

औरत- उसे लगता है की वो लड़की उस रस्ते पर चलने की चाबी है .

ददा- असंभव , ऐसा नहीं हो सकता

औरत- उस रात शिवाले में चोरी हुई , तुम, जब्बर, सुनार और अर्जुन तुम चारो शिवाले में थे .अर्जुन गायब हो गया . रह गए तुम तीन . क्या हुआ था उस रात

दद्दा- नहीं मालूम मुझे मालूम हुआ था की अर्जुन मेरे बेटे के खून का प्यासा है उसे रोकने के लिए जब तक मैं शिवाले पहुंचा अर्जुन उसे मार चूका था . खून से सने उसके चेहरे को आज भी भुला नहीं पाया मैं. मैं उसे रोक सकता था . उसके बाद अर्जुन गायब हो गया अपने साथ उस राज को भी ले गया की मेरे बेटे को क्यों मारा उसने.

औरत- पर चोरी तो तुमने भी की थी न

दद्दा- तुम्हे भी ऐसा लगता है मेरे बेटे का क़त्ल हुआ था उस रात , उसकी लाश के टुकड़े उठा रहा था मैं , मुझे नहीं मालूम था की उसी समय सुनार और जब्बर वहां चोरी कर रहे थे .

मेरी दिलचस्पी इस औरत में अचानक से बढ़ गयी थी . ये बहुत कुछ जानती थी इसे हत्थे चढ़ाना बड़ा जरुरी था अब. मैं चाहता था की वो दोनों और बाते करे पर तभी ददा ठाकुर उठ खड़ा हुआ और बोला- मुझे अब जाना होगा. मैं सम्पर्क में रहूँगा तुम्हारे .

दद्दा ठाकुर अपने रस्ते हो लिया और वो औरत दूसरी तरफ जाने लगी. मैं दबे पाँव उसके पीछे हो लिया आज चाहे जो कुछ भी हो जाए मुझे मालूम करना ही था की ये कौन है . जो करना था मुझे अभी करना था पर इससे पहले की मैं कुछ कर पाता .........................
 
#71

इस से पहले की काकी कुछ जवाब दे पाती, अचानक से हवाओ का रुख बदलने लगा. आस पास सब काला काला होने लगा. साँसे भारी, बहुत भारी सी होने लगी. एक पल को ऐसे लगा की कोई दौड़ कर हमारे सामने से गुजरा है और जब वो कुहासा हटा तो मैंने देखा की काकी की बेजान लाश धरती पर पड़ी है . पुरे बदन में पसीने और खौफ ने कब्ज़ा कर लिया . मेरे सामने काकी बस कुछ लम्हे पहले जिन्दा थी और अब उसकी लाश पड़ी थी .

बिना सोचे समझे मैं उस काली छाया के पीछे भागा. बस हल्का सा ही छू पाया था उसे की वो छाया पलटी. उसकी आँखे, वो गहरी काली आँखे अपने अन्दर जहाँ भर का अँधेरा लिए . वो मेरी आँखों में देख रही थी . मेरी सोचने समझने की शक्ति शून्य होते जा रही थी . उस छाया ने मेरे सीने पर हाथ रखा और बदन में खलबली मच गयी .

ऐसा लगा की मेरा खून वो निचोड़ रही थी. काकी को मारने के बाद वो छाया अब मेरा अंत भी करने ही वाली थी की अचानक से वो चीख पड़ी . उसकी कर्कश चीख ने मेरी अंतरात्मा तक को हिला कर रख दिया. उसने मुड कर मेरी तरफ देखा और फिर अचानक से सब कुछ ठीक हो गया .

पर क्या सच में सब ठीक हो गया था . मेरे पास काकी की लाश पड़ी थी . और मैं बेहद कमजोरी महसूस कर रहा था . आँखों के आगे सितारे नाच रहे थे .

जैसे तैसे करके मैं अपने ठिकाने पर पंहुचा और मीता को सब कुछ बताया मीता ने मेरी छाती की जांच की .

मीता- मैं संध्या को बुला कर लाती हूँ

मीता ने एक कम्बल मेरे ऊपर डाला और तुरंत अपना झोला उठा कर वहां से चली गयी . मैंने आँखे बंद करने की कोशिश की पर वो खौफनाक काली आँखे मुझे चैन नहीं लेने दे रही थी . जब्बर की लुगाई की हत्या हो गयी थी देर सवेर ये बात भी मालूम हो ही जानी थी और तब जो कोहराम मचेगा उसकी अलग चिंता थी.

खैर, चाची आई और उसने मेरी जांच की. उसने मेरी आँखों में न जाने क्या देखा चाची के चेहरे पर एक मुर्दानगी सी आते देखा मैंने

चाची ने पूरी कहानी सुनी मुझसे और बोली- वो जो भी थी खून का स्वाद ले गयी तुम्हारा. खून की तलब उसे फिर से लाएगी तुम्हारे पास. ये नहीं होना चाहिए था बिलकुल नहीं होना चाहिए था .

कमरे में अजीब सी ख़ामोशी छाई हुई थी . जो मुझे पागल कर रही थी .

मैं- क्या शै थी वो चाची

चाची- यही समझने की कोशिश कर रही हूँ.

मीता- खून पीना शुभ नहीं है

चाची- सही कहा तुमने लड़की. पर मैं इस शै को समझ नहीं पा रही हूँ. . वो जो भी थी एक मिनट , मनीष उसने तुम्हे कही से काटा तो नहीं था , मेरा मतलब अपने होंठ या दांत तुमसे लगाये हो .

मैं- नहीं बस उसने अपना हाथ मेरे सीने पर रखा था .

चाची- फ़िलहाल के लिए मैं तुम्हारे गले में ये धागा बाँध रही हूँ पर मैं ज्यादा आश्वस्त नहीं हूँ . कुछ और उपाय करना होगा.

मीता- कैसा उपाय.

चाची- मुझे रुद्रपुर जाना होगा अभी , एक काम करो तुम दोनों भी मेरे साथ चलो

चाची ने हमें साथ लिया और चाची की गाडी में बैठ कर हम दोनों रुद्रपुर की तरफ चल दिए . गाड़ी सीधा हवेली पर जाकर रुकी जो हमारे लिए एक और आश्चर्य था .

मैं- चाची तुम जाओ अन्दर मैं यही रुकता हूँ, वहां पृथ्वी होगा मैं नहीं चाहता की कोई तमाशा हो .

चाची- क्या तुम्हे ऐसा लगता है

हम तीनो हवेली के अन्दर आये, चाची के कदम रखते ही वहां पर हलचल मच गयी. सब लोग चाची को देख कर खुश हो गए पर चाची के चेहरे पर कोई भाव नहीं था . चाची सीढिया चढ़ते हुए ऊपर की तरफ दौड़ी हम उसके पीछे पीछे किसी को कुछ समाझ नही आ रहा था . गलियारे से होते हुए हम उस कमरे की तरफ बढे जो कभी चाची का होता था दरवाजा बंद था मतलब वो अन्दर थी. हम वही खड़े थे की अचानक से मेरा ध्यान उस चीज पर गया और मैं मीता का हाथ पकडे उसे उस बड़ी सी तस्वीर के पास ले आया जो किसी और की नहीं बल्कि मीता की ही थी .

"असंभव " मीता ने बस इतना ही कहा .

मैं- जो है तेरे सामने है .

मीता- पर कैसे , मैंने तो आज इस हवेली में कदम रखा है फिर कैसे

""ये तस्वीर इसकी नहीं है मनीष " चाची ने हमारे पास आते हुए कहा .

मेरी धड़कने बहुत बढ़ गयी थी . ऐसा लग रहा था की मैं कही पागल ही न हो जाऊ.

मैं- तो कौन है ये .

चाची- ये मेरी तस्वीर है .

चाची ने जो बम फोड़ा था मेरे दिमाग की चूले हिल कर रह गयी थी .

मैंने एक नजर मीता पर डाली और एक नजर चाची पर .

मीता- मैं संध्या की भतीजी हूँ , जिसे हवेली ने ठुकरा दिया.

संध्या- नहीं ये सच नहीं है .

मीता- तो फिर क्या है सच

इस से पहले की संध्या चाची कुछ कह पाती मेरे सीने में जैसे भूचाल आ गया . दर्द के मारे हड्डिया कड़कने लगी. आँखों की कटोरिया बाहर आने को हो गयी . मेरी चीखो ने हवेली को सर पर उठा लिया .

मीता- मनीष , क्या हो रहा है ये

मीता की आँखों से आंसू मेरे सीने पर गिरने लगे. चाची भी मेरी इस हालत को समझ नहीं पा रही थी .

"मनीष, मनीष, " मीता मुझे संभालने की पूरी कोशिश कर रही थी .

"रीना, रीना खतरे में है " मेरे होंठो से बस इतना निकल पाया.
 
#72

भरी दोपहर में ही मौसम बदलने लगा था , काले बादलो की घटा ने आसमान संग आँख-मिचोली खेलनी शुरू कर दी थी .ऐसा लगता था की रात घिर आई हो. ये घिरता अपने अन्दर आज न जाने किसे सामने वाला था . हवेली से बाहर आकर मैंने मौसम का हाल देख कर अपने दुखते सीने पर हाथ रख लिया. मैं जानता था की रीना कहाँ होगी . मैंने चाची की गाडी ली और सीधा शिवाले पर पहुँच गया .

वहां जाकर जो मेरी आँखों ने देखा , मैं जानता तो था की पृथ्वी ये गुस्ताखी करेगा पर आज ही करेगा ये नहीं सोचा था . पृथ्वी जैसे सपोले को मुझे बहुत पहले कुचल देना चाहिए था . मैंने देखा अपने लठैतो की आड़ में पृथ्वी ने रीना को अगवा कर लिया था. उसके चेहरे की वो हंसी मेरे कलेजे को अन्दर तक चीर गयी .

पृथ्वी- मुझे मालूम था तू जरुर आएगा. न जाने कैसा बंधन है इस से तेरा दर्द इसे होता है चीखता तू है . मैंने बहुत विचार किया सोचा फिर सोचा की इसके लिए तुझे अपनी जान देनी होगी

मैं- रीना के लिए एक तो क्या हजार जान कुर्बान है

पृथ्वी- क़ुरबानी तो तुझे देनी ही है पर अभी के अभी तूने मुझ अम्रृत कुण्ड को देखने का रहस्य नहीं बताया तो मैं रीना को मार दूंगा

मैं- किसका रहस्य , जरा दुबारा तो कहना

पृथ्वी की बात मेरे सर के ऊपर से गयी .

"हरामजादे , मजाक करता है मुझसे " पृथ्वी ने खींच कर रीना को थप्पड़ मारा

"पृथ्वी , इस से पहले की की अनर्थ हो जाये , छोड़ दे रीना को वर्ना सौगंध है महादेव की मुझे तेरी लाश तक उठाने वाला कोई नहीं बचेगा " मैंने फड़कती भुजाओ को ऊपर करते हुए कहा .

बीस तीस लठैत तुरंत मेरे सामने आ गए.

मैं- हट जाओ मेरे रस्ते से , आज मैं कुछ नहीं सोचूंगा. चाहे इस दुनिया में आग लग जाए . हटो बहनचोदो

मैंने एक लठैत के पैर पर लात मारी और उसकी लाठी छीन ली .और मारा मारी शुरू हो गयी .

"इस को आज जिन्दा नहीं छोड़ना है " पृथ्वी चिल्लाया और उसने फिर से रीना को थप्पड़ मारा

पृथ्वी- खोल उस अमृत कुण्ड का दरवाजा हरामजादी .

इधर मैं उन लठैतो से पार पाने की कोशिश कर रहा था पर उनकी संख्या ज्यादा थी इस बार पृथ्वी ने पुरी योजना बनाई हुई थी . एक लठैत की लाठी मेरे सर पर पड़ी और कुछ पलो के लिए मेरे होश घबरा गए और यही पर वो मुझ पर हावी हो गए. लगातार पड़ती लाठिया मुझे मौका नहीं दे रही थी . सर से बहता खून मुझे पागल कर रहा था .

"मनीष " ये मीता की आवाज थी जो यहाँ आन पहुंची थी .

मीता ने आव देखा न ताव और तुरंत ही उन लठैतो से भीड़ गयी . जैसे तैसे करके उसने मुझे उठाया तब तक संध्या चाची भी वहां पहुँच गयी .

"पृथ्वी ये क्या पागलपन है " चाची ने गुस्से से कहा

पृथ्वी- ये पागलपन तुम्हे तब नहीं दिखा बुआ जब अर्जुन से मेरे पिता को मार दिया. जब इसने मेरे दोस्तों को मार दिया .

संध्या- उनको अपने कर्मो की सजा मिली . उनकी नियति में यही था .

पृथ्वी- क्या थे उनके कर्म, जिस पर हमारा दिल आया उसके साथ थोड़े मजे ले लिए तो क्या गलती हुई भला. ये तो हमारे शौक है

संध्या- हर किसी की इज्जत उतनी ही है जितना मेरी या तेरी माँ की है या हवेली की किसी और दूसरी औरत की है

पृथ्वी- तुम तो मुझे ये पाठ मत पढाओ बुआ , वो तुम ही थी जो दुश्मनों की गोद में जाकर बैठ गयी थी .

संध्या- अपनी औकात मत भूल पृथ्वी, तू भी मेरा ही बेटा है ये याद रख तू और कोशिश कर की मैं भी न भूल पाऊ इस बात को

पृथ्वी- हमें तो तुम उसी दिन ही भुला गयी थी बुआ, जिस दिन तुम दुस्मानो के घर गयी .

संध्या- तो ठीक है , अब किसी रिश्ते नाते की बात नहीं होगी. किसी नाते की कोई दुहाई नहीं दी जाएगी. जिस लड़की को तूने अगवा किया है , ये लड़का जो घायल है ये मेरी औलादे है और इनके लिए मैं किस हद से गुजर जाऊंगी तू सोच भी नहीं सकता. जब तूने अमृत कुण्ड के बारे में मालूम कर लिया है तो उस सच के बारे में भी मालूम कर लिया होता. अगर तेरी रगों में सच्चा खून होता तो तू ये घ्रणित कार्य कभी नहीं करता .

"मनीष मेरे बेटे, मैं तुझसे कह रही हूँ, इसी समय इस दुष्ट पृथ्वी का सर धड से अलग कर दे. " चाची ने क्रोध से फुफकारते हुए कहा.

मीता ने तुरंत ही एक लठैत की गर्दन तोड़ दी . पर तभी "धांय " गोली की जोरदार आवाज गूंजी और ऐसा लगा की किसी ने मेरे कंधे को उखाड़ कर फेंक दिया हो . क्या मालूम वो गोली मुझे छू कर गुजरी थी या फिर कंधे में धंस गयी थी . क्योंकि उसके बाद जो कुछ भी हुआ वो किसी जलजले से कम नहीं था .

"मनीष ...... " ये रीना की वो चीख थी जिसने वहां मोजूद हर शक्श के कानो की चूले हिला दी.

"दद्दा ठाकुर " रीना ने गहरी आँखों जो अब पूरी तरह से काली हो चुकी थी नफरत से दद्दा ठाकुर की तरफ देखा जो कंधे पर बन्दूक लिए हमारे बीच आ चूका था . पर वो नहीं जानता था की उसके कदम उसे मौत की दहलीज पर ले आये थे. रीना ने एक लात पृथ्वी की छाती पर मारी . हैरत के मारे पृथ्वी बस देखता रह गया और बिजली की सी तेजी से रीना ददा ठाकुर की तरफ बढ़ी और उसके हाथ को उखाड़ दिया.

"आईईईईईईईईईईइ " दद्दा की चीखे शिवाले में गूंजने लगी . पर वो मरजानी नहीं रुकी. जब उसका मन भरा तो वहां मोजूद लठैतो को मैंने धोती में मूतते देखा. दादा ठाकुर की लाश के टुकड़े इधर उधर बिखरे हुए थे. उसके गर्दन को रीना ने अपने होंठो से लगाया और ताजे गर्म खून को किसी शरबत की तरफ पीने लगी.

"मेरी जान है वो , मेरे होते हुए कैसे मार देगा तू उसे, " रीना ने ददा की लाश से सवाल किया वो तमाम लठैत तुरंत ही वहां से भाग लिए. रह गए मैं रीना, मीता , चाची और पृथ्वी.

अचानक से बाज़ी पलट गयी थी . रीना ने अपने क्रोध में सब तहस नहस कर दिया था . सामने बाप की लाश पड़ी थी पर चाची के चेहरे पर जरा भी शिकन नहीं थी .

"मैं कभी नहीं चाहती थी ये दिन आये पृथ्वी , मैंने जितना चाह इस रण को टालना चाहा . मैंने तुझे कदम कदम पर माफ़ किया पर अब और नहीं " इतना कह कर रीना जैसे ही पृथ्वी की तरफ बढ़ी, किसी ने उसका रास्ता रोक लिया और अगले ही पल रीना हवा में उड़ते हुए शिवाले की टूटी दिवार पर जा गिरी.....
 
#73

जिस बाज़ी को मैंने अपने हिस्से में पलटते हुए देखा था रीना पर हुए इस हमले ने पल भर में ही हम सबको अहसास करवा दिया की ये बिसात इतनी जल्दी ख़तम नहीं होने वाली. वो काला साया जिसने उस दिन जब्बर की पत्नी को मारा था , जिसने मेरी छाती पर हाथ रख कर मेरी नसों से लहू निचोड़ने की कोशिश की थी अचानक से उसने शिवाले में आकर रीना को दूर पटक दिया था .

आसमान में घुमड़ती काली घटाओ ने रोना शुरू कर दिया था ,आकाश जैसे फटने लगा था . बारिश शुरू हो गयी थी . वो काला साया लहराते हुए मेरी तरफ बढ़ा. मेरे दिमाग ने जैसे काम करना बंद कर दिया था . मैंने उन गहरी काली आँखों के अँधेरे को अपने दिल में उतरते हुए महसूस किया. इस से पहले की वो कुछ अनिष्ट कर देती चाची अचानक से हमारे बीच आ गयी .

"दूर हट मेरे बेटे से " चाची ने उस साए को जैसे धक्का सा दिया . वो साया फुफकार उठा.

"बीच में मत आ संध्या " साए ने पहली बार कुछ कहा और हम समझ गए की ये कोई औरत ही थी .

चाची- तो फिर चली जा वापिस

साया- जाने के लिए नहीं लौटी मैं . इस लड़के का लहू चख लिया मैंने अद्भुद है , इसका स्वाद , इसका स्वाद जाना पहचाना है .भा गया है ये इसे लेकर जाउंगी मैं

"मनीष की आन बन कर मैं खड़ी हूँ , देखती हूँ तुझे भी और तेरे जोर को भी " रीना ने मेरे पास आकार कहा.

रीना ने अपनी आँखों से मुझे आश्वस्त किया .

साया- तू दो कौड़ी की छोकरी तू , तेरी ये हिमाकत की तू मेरे सामने खड़ी हो . पहले मैं तेरे रक्त से ही अपनी तृष्णा शांत करुँगी

बरसती घटाओ के बीच उस टूटे शिवाले में ये जो भी हो रहा था शुक्र है की उसे देखने के लिए कोई कमजोर दिल का प्राणी वहां नहीं था . उस साए ने अपनी जगह खड़े खड़े ही रीना की बाहं मरोड़ी . पर रीना ने भी प्रतिकार किया और उस साए को सामने पत्थरों के फर्श पर पटक दिया. साया जोर से चिंघाड़ करने लगा. उसकी आवाज जैसे धडकनों को खोखला कर रही थी .

पर वो साया बलशाली था , रीना के पीछे सरकते कदम ये बता रहे थे की वो उस से पार नहीं पा पायेगी की तभी मीता ने रीना के हाथ को थाम लिया और आँखों से इशारा किया . दोनों में न जाने क्या बात हुई उन्होंने क्या समझा पर दोनों के होंठ कुछ बुदबुदाने लगे और फिर एक तेज रौशनी का धमाका हुआ और वो साया शिवाले की दिवार से जा टकराया . उसकी चीख फिर से गूंजी.

पर फुर्ती से सँभालते हुए उसने मलबे में पड़ी कड़ी के टुकड़े को उठा कर मीता पर दे मारा . नुकीला टुकड़ा मीता की जांघ को चीर गया वो एक तरफ गिर पड़ी. चाची मीता को सँभालने के उसकी तरफ दौड़ी और उसी पल वो साया रीना के पास पहुंचा गया . उसने रीना के गले को ऐसे पकड़ा की जैसे उसका गला घोंट रही हो . पर फिर मैंने देखा की उसने रीना के गले से वो हीरे वाला धागा निकाल लिया.

"हा हा हा , तभी मैं सोचु की ताकत क्यों मुझे जानी पहचानी लग रही है , मुर्ख लड़की तो ये था तेरी शक्ति का राज " उस साए ने हँसते हुए वो लाकेट अपने गले में पहन लिया . कुछ देर के लिए सब कुछ थम सा गया . ऐसी ख़ामोशी छा गयी की जरा सी आवाज भी दिल का दौरा ला दे. और फिर वो चीख पड़ी ..

"अर्जुन, अर्जुन,,,,,,,,,,, " इतनी जोर डर चीख थी वो की मैंने अपने कान से खून बहते हुए महसूस किया. वो जैसे पागल ही हो गई थी . कभी इधर भागे कभी उधर भागे उसकी आँखे और अँधेरी होने लगी . इतनी अँधेरी की जैसे वो सब कुछ निगल जायेगी. उसने रीना के गले को पकड लिया और उसे मारने लगी. रीना की चीखो ने मुझे पागल ही कर दिया था . मैं गुस्से से उसकी तरफ बढ़ा पर बीच में मीता आ गयी उसने एक सुनहरी डोर निकाली और उस साये को बाँधने की कोशिश करने लगी. वैसा ही चाची ने किया.

साए ने फुफकारते हुए कहा- खेल खेलना चाहती हो तुम . चलो ये खेल ही सही .

वो अकेली थी तीन त्रिदेवियो के सामने , तभी मेरी नजर पृथ्वी पर पड़ी जिसे होश आ गया था और वो दद्दा ठाकुर की बन्दूक उठा कर रीना पर निशाना लगा ही रहा था की मैंने एक बड़ा सा पत्थर उठा कर उसके हाथो पर दे मारा. बन्दूक उसके हाथो से गिर गयी और मैंने उसे धर लिया. पृथ्वी से गुथ्तम गुत्था होते हुए मैंने देखा की . शिवाले में वैसा ही धुआ उठा जैसा की तब था जब रीना ने अश्वमानव मारे थे .

पृथ्वी- आज या तो तू नहीं या मैं नहीं .

मैं- मुर्ख, तुझे अंदाजा भी नहीं है की यहाँ पर क्या हो रहा है

पृथ्वी- तेरी वजह से मेरे दादा मारे गए . तुझे नहीं छोडूंगा.

पृथ्वी ने मुझे लात मारी .मेरा ध्यान पृथ्वी से ज्यादा रीना , मीता की तरफ था इसी का फायदा उठाते हुए पृथ्वी ने मुझे दिवार से लगा दिया जिस पर गडी कील मेरे सीने में धंस गयी . मैं दर्द से दोहरा हो गया . वो लगातार मुझे दिवार की तरफ धकेल रहा था ताकि कील और अन्दर घुस जाए. प्रतिकार करते हुए मैंने अपना पैर पीछे किया और उसके पंजे पर मारा जैसे ही वो लडखडाया मैंने उसे धर लिया.

"बहुत फडफडा लिया तू हरामजादे, तेरे पापो को मैंने बहुत कोशिश की माफ़ करने की ये जानते हुए भी की तूने मेरी जान पर हाथ डाला मैं तुझे मारना नहीं चाहता था पर तेरी तक़दीर में ये ही लिखा था " कहते हुए मैंने पृथ्वी की गर्दन मरोड़ दी. वो चीख भी नहीं पाया. टूटी सहतीर सा लहरा कर गिरा वो .

तभी रौशनी का एक धमाका हुआ और तीन साए शिवाले में इधर उधर जाकर गिरे, रीना मीता और चाची खून से लथपथ धरती पर पड़े अपनी सांसो की डोर को थामने की कोशिश कर रही थी . वो साया मेरी तरफ बढ़ा और मुझे घसीट लिया.

उसने अपने चेहरे को मेरे सीने की तरफ झुकाया और मैंने पहली बार उस को देखा. वो खूबसूरत चेहरा . इस से पहले की वो अपने होंठ मेरे बदन पर लगा कर मेरा खून पी पाती. .उस आवाज ने जैसे मेरे बदन में शक्ति का संचार कर दिया .

"बस मंदा बस बहुत हुआ "

उस साए ने पलट कर देखा उसके सामने अर्जुन सिंह खड़ा था .............
 
#74

"वक्त का पहिया घूमते हुए फिर से यही पर आकर रुक गया है अर्जुन, देखो जरा अपने आस पास मैं हूँ तुम हो और ये बरसता सावन " मंदा ने कहा .

अर्जुन- बच्चो को जाने दे मंदा . तुझे जो कहना है मुझसे कह, जो करना है मेरे साथ कर .

मंदा- किया तो तुमने था मुझे बर्बाद.

अर्जुन- तो फिर ख़तम कर इस किस्से को, इस दर्द से तू भी आजाद हो और मुझे भी कर. तुझे लगता है की मैं तेरा गुनेहगार हूँ तो ये ही सही . तेरा हक़ है मुझ पर दे सजा मुझे

मंदा- तेरे सामने तेरे वंश को ख़तम करुँगी मैं , इस से बेहतर सजा क्या होगी तेरे लिए अर्जुन, याद कर वो दिन जब मैं तडपी थी , आज तू तडपेगा तूने छल किया मेरे साथ ,

इस से पहले की बाबा कुछ कहते चाची बीच में बोल पड़ी- मंदा , तेरी आँखों पर पर्दा पड़ा है तुझे तेरे दर्द, तेरे बदले के सिवाय कुछ नहीं दिख रहा है .क्रोध में इस कदर अंधी हुई है तुझे की आज तक चैन नहीं मिला दिल पर हाथ रख कर देख और फिर कह जिस इन्सान पर तू इल्जाम लगा रही है , जिस इन्सान के प्रति तू इतनी नफरत लिए है की तू आगे नहीं बढ़ पाई.

मंदा- तुझसे तो मैं बाद निपट लुंगी. तू क्या जाने इसने मेरे साथ क्या किया था .

संध्या- तू ही बता फिर, आज इस शिवाले में तू भी है मैं भी हूँ हम सब है , तू ही बता मंदा आखिर उस रात क्या हुआ था , आखिर क्यों सब कुछ बर्बाद हो गया .

अर्जुन- संध्या तुम इन तीनो को लेकर यहाँ से जाओ

मंदा- कोई कहीं नहीं जाएगा. शुरू तुमने किया था अर्जुन ख़तम मैं करुँगी . अपने भाई से बढ़कर मैंने तुम्हे माना था . मेरी राखी के धागे को तुमने इतना कमजोर कर दिया तुमने की सब बर्बाद कर दिया तुमने. मेरे प्रतिशोध की अग्नि आज तुम्हे, तुम्हारे वंश को सब को ख़तम कर देगी.

मंदा की छाया का रूप बदलने लगा. वो धुआ धुआ होने लगी और जब वो धुआ छंटा तो हमारे सामने एक बेहद सुंदर औरत खड़ी थी . इतनी सुन्दर की उसके रूप को देखना ही आँखों को गुस्ताखी लगे. पर उसके चेहरे पर दुनिया भर का क्रोध था . आँखे अँधेरे से भी काली. मंदा ने मुझ पर अपने नुकीले नाखूनों से वार किया जो मेरी पीठ को उधेड़ गए.

रीना- मंदा , तुम जो भी हो मैं फिर तुमसे कहती हूँ मनीष की आन हूँ मैं , प्रीत की डोर बाँधी है मैंने उस से और मेरे प्रेम की डोर इतनी कमजोर नहीं की तेरे जैसी ऐरी गैरी कोइ भी तोड़ दे.

मंदा- बहुत बोलती है तू , पहले तेरा ही इलाज करती हूँ मैं

मंदा ने न जाने क्या किया रीना के बदन में आग लगने लगी. लपटों में घिरने लगी वो . मीता उसे बचाने की कोशिश करने लगी तो मंदा ने उसे भी धर लिया .

"ये अनर्थ मत मर मंदा , "अर्जुन ने मंदा के आगे हाथ जोड़ दिए पर उसका कलेजा नहीं पसीजा

संध्या- अब बस एक रास्ता है इसे रोकने का वर्ना ये दोनों को मार देगी.

अर्जुन- नहीं .

संध्या- कब तक चुप रहेंगे आप. जो बोझ आपके दिल पर है आज वक्त आ गया है उसे उतारने का. आप चुप रह सकते है पर मैं बोलूंगी आज और मुझे कोई नहीं रोकेगा.

चाची मंदा की तरफ मुखातिब हुई और बोली- मंदा तू चाहे तो इन दोनों को मार दे पर ये याद रखना इनके बदन से टपकता लहू तेरा ही है. इनकी चिताओ से उठता धुआं तेरा ही होगा.

अचानक से मंदा के हाथ रुक गए रीना और मीता धडाम से निचे गिरी "क्या कहा तूने " मंदा ने कांपती आवाज में पूछा

संध्या- ये दोनों तेरी ही बेटिया है मंदा .

चाची ने ऐसा धमाका कर दिया था जिसने की शिवाले को हिला कर रख दिया .

"मुझे बोलने दीजिये जेठजी , आज ये राज जो आप बरसो से अपने सीने में दबाये हुए है आज खोलना ही होगा वर्ना ये न जाने क्या अनर्थ कर बैठेगी. जिसको तू अपना गुनेहगार समझती है उसकी सरपरस्ती में ही तेरी बेटिया आज देख कैसे सर उठा कर खड़ी है.मुझे लगा था तू इन्हें पहचान जायेगी पर आँखों पर पड़े परदे ने अपने ही खून को नहीं पहचाना " चाची ने कहा.

मैंने देखा की रीना और मीता के चेहरे पर हवाइया उड़ रही थी . झटका तो मुझे भी लगा था पर पिछले कुछ महीनो में जो भी देखा था जो भी बीता था तो इसे भी मान लिया .

मंदा- मेरी बेटिया ........

अर्जुन- यही सच है मंदा, ये दोनों बच्चिया तेरे आँगन के ही फूल है . तू चाहे मुझे जो भी दोष दे पर मैंने राखी के हर फर्ज को निभाया . आज भी हालात ऐसे हो गए की ना चाहते हुए भी मुझे ये राज़ खोलना पड़ रहा है मंदा. वर्ना जीते जी मैं तेरी रुसवाई कभी नहीं होने देता.

बरसती बूंदों के बीच उभरती रात अपने साथ अजीब सी बेचैनी ले आई थी .

अर्जुन- मुझे मालूम हो गया था की तू बलबीर (पृथ्वी का पिता ) के प्यार में पड़ गयी थी . कब तू उसे अपना मानने लग गयी थी . पर मंदा तुझे ये नहीं मालूम था की वो बस तेरा इस्तेमाल कर रहा है . उसके लिए तू कुछ नहीं थी सिवाय एक खिलोने के जिस से उसका मन भरने लगा था .

अर्जुन- तुझे अपनी बहन माना था तो मेरा कलेजा जलता था की जब तुझे सच का मालूम होगा तो तू कैसे सह पाएगी ये सब इसलिए एक रात मैं बलबीर से मिलने रुद्रपुर गया . मैंने उसके पैरो में अपनी पगड़ी रख दी , मैं चाह कर भी जब्बर को ये नहीं बता सकता था की हमारी बहन के साथ कितना बड़ा खिलवाड़ हुआ है . पर बलबीर के मन में कुछ और ही था उसने मुझसे एक सौदा किया बदले में तुझसे ब्याह करने का वचन भी दिया उसने मुझे .
 
#75

"कैसा सौदा " पूछा मैंने

अर्जुन- बलबीर को अमृत कुण्ड देखना था .

"अमृत कुण्ड " इस बार हम तीनो ही एक साथ बोल पड़े.

बाबा ने गहरी नजरो से हमें देखा और फिर बोले- अमृत कुण्ड एक किवंदिती है सच है या झूठ कोई नहीं जानता, मैंने बलबीर से कहा की मुझे भला कैसे मालूम होगा इसके बारे में पर उसे लगता था की मेरे शब्द खोखले थे .

संध्या-शिवाले की रहस्यमई दुनिया

अर्जुन-मेरे पास मेले तक का समय था . पर मन में परेशानी बहुत थी जब्बर अक्सर मुझसे पूछता मैं बस टाल देता. समय को जैसे पंख लग गए थे जब जब मैं तुम्हारा चेहरा देखता मेरे अन्दर का भाई रो पड़ता. मुझे बस ये डर रहता की फूल सी हमारी बहन का दिल जब टूटेगा तो उसके आंसुओ में कही हम बह न जाये. फिर मैंने वो फैसला लिया जो शायद मेरे जीवन की सबसे बड़ी भूल थी मैंने बलबीर के प्रस्ताव को मान लिया.

मीता- पर कैसे, कहानिया भला कैसे सच हो सकती है .

अर्जुन- ठीक वैसे ही जैसे की तुम सच हो खैर,मैंने बलबीर से कहा की जैसे ही वो मंदा से सगाई करता है मैं उसकी इच्छा पूरी करूँगा पर उस धूर्त को मेरी जुबान पर भरोसा नहीं था .जब मैंने मेले में बलि की परम्परा को समाप्त किया तो बलबीर को मुझसे जलन और बढ़ गयी . मुझे ये बिलकुल नहीं मालूम था की उसके कुटिल मन में क्या है . उस रात उस क़यामत की रात , बहुत सी घटनाये एक साथ हुई. जिसने हम सब की जिंदगियो के रुख मोड़ दिए. मुझे बलबीर पर शंका थी , जब मैं उस रात जब्बर के घर गया तो मालूम हुआ की मंदा मेले से लौटी नहीं तो मैं रुद्रपुर की तरफ चल दिया मुझे एक काम और था वहां . जब मैं शिवाले से थोड़ी दूर पहुंचा तो देखा की अँधेरे में एक स्त्री की करुण कराहे गूँज रही थी . मेरा माथा ठनका और जब मैंने देखा तो मेरी आँखों में ऐसा क्रोध समाया की वो हुआ जो होकर ही रहता.

मैं- क्या हुआ था बाबा उस रात

बाबा ने एक नजर मंदा को देखा जिसकी आखो में पानी था और फिर बोले- बलबीर ने मंदा को अपने चेले-चापटो को परोस दिया था नशे में चूर उन लोगो ने वो किया जो किसी के साथ भी नहीं होना चाहिए था . ग्यारह लाशो के बाद मैंने मंदा को देखा जो नशे में बेसुध अपना सब कुछ गँवा बैठी थी मैं परेशां, किसी से कुछ कह नहीं सकता . किसको बताऊ ये दुःख . जब्बर को नहीं नहीं वो कुछ कर बैठेगा. मेरा कलेजा कमजोर हो गया .

"मंदा, मेरी बहन होश कर " मैंने बेसुध मंदा को जगाने की कोशिश की .

"होश कर मंदा मैं हूँ अर्जुन " मैंने उसे कहा

"अर्जुन भैया ,तुम हो " मंदा बस इतना ही कह पाई और बेहोश हो गयी .

मेरे दिल पर एक ऐसा बोझ आ गया था जो उतारे न उतारे, कहाँ लेकर जाऊ कहाँ जाकर छिपाऊ अपनी बहन की रुसवाई. जब कुछ न सूझा तो मैं मंदा को हमारी बावड़ी में ले गया और इसे वहां पर छुपा दिया. दो- तीन दिन गुजर गए . गाँव में खबर उड़ने लगी की मंदा गायब है . जब्बर की परेशानी देखि नहीं गयी मुझसे पर मैं उसे बता भी नहीं सकता था . अन्दर ही अन्दर घुटने लगा मैं. तो हार कर मैंने तुम्हारी माँ को सारी बात बताई वो मंदा को देखने आई. तब मालूम हुआ की बलबीर ने मंदा को शापित करवा दिया था . वो जानता था की मंदा के लिए मैं अमृत कुण्ड को जरुर खोलूँगा. दम्भी बलबीर ये नहीं जानता था की सृष्टी के अपने नियम है . मंदा की हालत मुझसे देखि नहीं जा रही थी . हम दोनों पति पत्नी उसकी तीमारदारी कर रहे थे . पर तभी न जाने कैसे मंदा के बारे में बड़े चौधरी को मालूम हो गया . जब मैं तांत्रिक जिसने मंदा को शापित किया था उसकी तलाश में गया हुआ था तो पीछे से बड़े चौधरी बावड़ी वाली जमीन पर आ पहुंचे . और उस दिन मंदा , उस दिन तुम्हे मुझसे नफरत हो गयी क्योंकि नशे में बड़े चौधरी ने जो घर्नित कार्य तुमसे किया तुम्हे लगा की मैंने तुम्हारा बलात्कार किया. तुम्हारे अवचेतन मन में ये बात बैठ गयी की जिस अर्जुन को तुमने भाई से बढ़ कर माना उसने तुम्हारी आबरू लूट ली पर वो दरिंदा बड़े चौधरी थे. तुम्हारे अन्दर जो नफरत उस पल हुई उसने तुम्हे पोषित कर दिया. जब मैं तांत्रिक को लेकर पहुंचा तो मुझे सब मालूम हुआ तुम्हारी कसम मंदा मैंने अपने बाप को भी वही सजा दी जो मैंने बलबीर और उसके चेलो को दी थी .

शिवाले में गहरी शांति पसर गयी थी . बरसात का तेज शोर इस घिनोने सच के आगे कम पड़ गया था . तांत्रिक के कहने पर मैं तुम्हे शिवाले में ले गया पर उस दिन एक कहानी और लिखी जा रही थी . वहां पर कुछ लोग और थे जिनमे से दो मेरे अजीज दोस्त और एक ददा ठाकुर था . मेरे दोस्त वहां पर देवता का श्रृंगार चुराने आये थे . ददा ठाकुर वहां पर बलबीर की मौत का राज तलाश कर रहा था और मैं तुम्हे बचाने की कोशिश कर रहा था . न जाने कैसे गाँव वालो को ये खबर हो गयी की शिवाले में चोर है तो पूरा गाँव टूट पड़ा. अफरा तफरी में ददा ठाकुर सुनार से टकरा गया सुनार ने गहनों की एक पोटली ददा पर फेक दी . जबबर भागते हुए उस तरफ आ निकला जहाँ मैं मंदा के साथ था . अँधेरे में उसने मुझे और मंदा को देख लिया उसके मन में ये बात घर कर गयी की मंदा को मैंने ख़राब किया है . गाँव वालो ने जब्बर, सुनार , और ददा को चोर समझ लिया .मैं नहीं चाहता था की गाँव वालो को मंदा के बारे में मालूम हो तो मैं उन्हें शांत करवाने जा रहा था की मैंने देखा की रस्ते में गहने पड़े है मैंने उन्हें वापिस शिवाले में रखने के लिए उठा लिया तब तक गाँव वाले आ गए और चोरो की लिस्ट में एक नाम और जुड़ गया . उस रात जो भी हुआ मुझे परवाह नहीं थी मुझे मंदा की फ़िक्र थी पर तांत्रिक नाकाम हो गया . उसने मुझे वो सच बताया जिसने मेरे लिए और बड़ी परेशानी कर दी. मंदा गर्भवती थी .शायद ये ही वो बात रही होगी जो बताने के लिए वो उस रात बलबीर के पास गयी थी . तब मेरी मदद संध्या ने की . अपने तंत्र की मदद से उसने ऐसी व्यवस्था की ताकि मंदा के पेट में पल रही निशानी तो सुरक्षित रहे कम से कम

पर समस्या एक और थी मंदा के गर्भ में दो भ्रूण थे .
 
#76


संध्या- मीता तुम वो तस्वीर देख कर चौंक गयी क्योंकि उसमे तुमने खुद को देखा जबकि वो मैं थी इसका कारण ये था की मैंने तुमको अपने गर्भ में पोषित किया था .

बाबा- पर समस्या अभी और थी रीना को कैसे बचाया जाये और तब मैंने किसी ऐसे को तलाश किया और ये काम भी हो गया पर मंदा के अवचेतन मन में मेरे प्रति नफरत बढती जा रही थी ये बात तांत्रिक ने मुझे बता दी थी . पर इस से पहले की हम कुछ उपाय कर पाते मंदा ने प्राण त्याग दिए चूँकि वो प्रतिशोध से पोषित थी तो उसके कहर को रोकने के लिए मैंने किसी खास से मदद मांगी और मंदा की रूह को शिवाले में कैद कर दिया. वो हीरा और धागा चाबी थे तुम्हारी यादो के, तुम्हारे आजाद होने का तुम्हारी आत्मा कमजोर रहे इसलिए हमने उनके तीन टुकड़े किया ताकि तुम शांत रहो पर नसीब देखो मनीष के हाथ वो धागे और वो हीरा लग गया. मेरी चेतावनी को नजरंदाज करके इसने वो लाकेट बनाया दरअसल इसने आत्मा के दो टुकडो को एक कर दिया.ऐसा होते ही मंदा की बेचैनी बढ़ने लगी वो बस आजाद होना चाहती थी . आत्मा के प्यासे टुकडो ने गाँव के लोगो का खून पीना शुरू कर दिया . ये कहानी मुझे यहाँ तक मालूम है पर तुमने सुनार को क्यों मारा ये मैं चाह कर भी पता नहीं कर पाया

मंदा- क्योनी सुनार भी शामिल था मेरी बर्बादी में, बड़े चौधरी के साथ उसने भी मेरी इज्जत लूटी थी .

मंदा के इस खुलासे ने हम सबको हिला कर रख दिया मैंने सोचा साला पहले ही मर गया वर्मैंना मैं उसे मार देता. देखा मंदा की आँखों से बेहिसाब आंसू बह रहे थे , एक प्रेतनी होकर भी ऐसा व्यवहार .वो मीता और रीना के पास गयी उनको अपने सीने से लगा लिया और दहाड़ मार कर रोने लगी. रोती ही रही . फिर वो बाबा के पास आई और अपना सर बाबा के पांवो में रख दिया . उसने गले से वो लाकेट उतरा और बाबा के हाथ में रख दिया. बाबा ने उसके सर पर हाथ रखा और बोले- मुक्त हो जाओ मंदा,मुझे भी इस बोझ से मुक्त करो . तुम जो जिन्दगी नहीं जी पायी इन बच्चो को जीने दो .

मंदा रीना और मीता के पास गयी और बोली- सदा इनके सानिध्य में रहना ,

मंदा के बदन में शोले भड़काने लगे और कुछ ही देर में वहां पर बस राख ही पड़ी थी . दोनों लडकिया भाग कर संध्या चाची के गले लग गयी . बाबा ने संध्या चाची को लडकियों के साथ घर जाने को कहा रह गए हम दोनों.

बाबा- कहानी खतम हुई.

मैं- दुनिया के लिए बाबा मेरे लिए नहीं .

बाबा- क्या मतलब है तेरा

मैं- मुझे वो बाते भी जाननी है जो अधूरी है

बाबा-क्या

मैं- मुझे अमृत कुण्ड में दिलचस्पी नहीं है , मैं ये जानना चाहता हूँ की मेरी माँ को किसने मारा. दूसरी बात मैं जानता हूँ की मेरी माँ ने रीना को अपने गर्भ में रखा था . आपने ये बात छिपा ली थी पर मैं समझ गया था .

बाबा- मीता और रीना की परवरिश ऐसे ही करनी थी .

मैं- मुझे मेरी माँ के कातिल से मतलब है मैं जानना चाहता हूँ की मेरी माँ कौन थी उसने किसने मारा

बाबा- सोलह साल से मैं उसके कातिल को तलाश कर रहा हूँ.

मैंने बाबा की आँखों में अपनी आँखे डाली और बोला- क्या आप सच कह रहे है .

बाबा ने मेरे सर पर अपना हाथ रख दिया .

मैं- ठीक है बस एक सवाल और ताई के साथ ताऊ ने किसको देखा था जो वो ताई से इतनी नफरत करने लगा.

बाबा- तुम्हारे दादा को .

मैं- मैंने भी यही सोचा था .

बाबा- रात बहुत भारी है हमें चलना चाहिए

मैं- अब तो मेरे साथ रहोगे न

बाबा- मैं हमेशा तुम्हारे साथ था हर पल तुम्हारे साथ .

मैं-जब्बर को लगता था की मीता मंदा की लड़की है इसलिए वो तलाश कर रहा था उसे

बाबा- जब्बर जाने

मैं-जब आप रूप बदल कर आये थे खेत में तो मैंने पहचान लिया था आपको . पर वो हांडी राख वाली कैसा इशारा था आपका मैं समझ नहीं पाया

बाबा- वो मेरा नहीं , मंदा के संकेत थे , बावड़ी वाली जगह ही थी जहाँ पर मंदा में प्रतिशोध की भावना आई थी, वो सन्देश था की शिवाले में से मंदा को आजाद किया जाये मंदा को लगा की वहां पर उसकी आत्मा का टुकड़ा था पर चूँकि वहां पर मीता तुम्हारे साथ लगातार थी तो मंदा समझ नहीं पाई.

मैं- मुझे मेरी माँ से मिलना है

बाबा- वो जा चुकी है

मैं- मैंने जिसे देखा था सपने में मेरी माँ ही थी वो , वो ही उसका चेहरा था मैं समझ गया हूँ

बाबा ने कुछ नहीं कहा बस मुझे घर ले आये सुबह जब मैं जागा तो देखा की बाबा हमेशा की तरह नहीं थे. मीता और रीना भी अपने घावो की मरहम पट्टी कर रही थी . अब चूँकि हम तीनो के रिश्ते अजीब से थे तो मुझे कुछ तो कहना ही था .

मैं- मेरी बात सुनो , हालात जो भी रहे हो सच ये है की हम तीनो एक ही डोर है

रीना- तुम्हे कुछ कहने की जरुरत नहीं हम दोनों इस बारे में फैसला कर चुकी है

मैं- क्या भला

वो दोनों कुछ नहीं बोली बस चुपचाप आकार मेरे सीने से लग गयी .धडकनों ने दिल का फैसला सुना दिया था मने उनको अपनी बाँहों में भर लिया. थोड़ी देर बाद मैं निचे गया चाची के पास

मैं- बस एक बात पूछनी है

चाची- क्या

,मैं- तुम अपने मांस का भोग किसे देती थी .

चाची- वो एक समझौता है

मैं- कैसा समझौता

चाची- तुम्हे मालूम ही है की तंत्र-मन्त्र में मेरी गहरी दिलचस्पी थी. मुझसे एक भूल हुई थी . तो महीने में एक बार मुझे वैसा करना पड़ता है

मैं- बाबा जानते है न इस बात को

चाची- उन्होंने की मेरी जान बचाई थी इस समझोते को करवाके

मैं- कैसा समझोता मैं फिर पूछता हूँ

चाची- यही की मेरे प्राण तभी सलामत रहेंगे जब मैं अपना मांस अर्पण करुँगी. चूँकि सृष्टी अपने नियमो से बंधी है तो मैंने ये मान लिया

मैं- तो उस रात तुम वहां क्या मांग रही थी .

चाची-कुछ बातो को राज़ ही रहने दो

मैं- रीना जब नहारविरो से लड़ रही थी तो वो अमृत कुण्ड को ही खोलना चाह रही थी न .

चाचीने एक गहरी साँस ली और बोली- मंदा को अमृत की चाह थी उसने सोचा होगा की उस से वो अपना शरीर पुनह प्राप्त कर लेगी और रीना के गले में लाकेट के रूप में मंदा की आत्मा का एक टुकड़ा था . तो वो रीना से वो काम करवा रही थी .

मैं- क्या तुम्हारी भी इच्छा थी अमृत-कुण्ड देखने की

चाची - नहीं क्योंकि मैंने जीवन के अंतिम सत्य को देख लिया है

उसके बाद मैंने चाची से और कुछ नहीं पूछा. कुछ दिन यूँ ही गुजर गए . मैंने जब्बर को सब बात बता दी. हमने मंदा के लिए पूजा की . दिन एस ही बीत रहे थे अपने वादे के अनुसार हर शाम बाबा मुझसे मिलने आते. हम डूबता सूरज को देखते हुए बाते करते. मीता और रीना के रूप में मेरे पास दुनिया की सबसे बेहतरीन दोस्त और प्रेमिकाए थी पर मुझे चैन नहीं था . ऐसे ही एक बेचैन रात में जब मैं पानी पीने के लिए उठा तो देखा की कम्बल ओढ़े बाबा कही जा रहे है तो मुझे शक सा हुआ

दबे पाँव मैं भी उनके पीछे पीछे हो लिया बाबा के कदम शिवाले पर जाकर थमे . वो ठीक उसी जगह पर थे जहाँ चाची ने अपने मांस का भोग दिया था जहाँ पर रीना ने नहारविरो को मारा था पर आज उस मैदान में खाली जमीन नहीं थी . वहां पर एक काला महल था . जो चाँद की रौशनी में चमक रहा था . महल के ठीक सामने एक पानी की बावड़ी थी जिसके पत्थर के किनारों पर पीठ किये कोई बैठी थी .....

"आ गये तुम " बाबा की तरफ बिना देखे उसने कहा .

बाबा ने अपने हाथो में पहने चांदी के मोटे कड़ो को एक दुसरे से टकराया . उसने पलट कर बाबा को देखा .... चाँद की रौशनी में मैंने उसकी सूरत देखि ... और देखता रह गया .

"असंभव,,,,,,,,, ये नहीं हो सकता " मेरे होंठो से बस इतना निकला और आसमान में चाँद को बादलो ने अपने आगोश में भर लिया .अँधेरे ने सब कुछ लील लिया..............
 
इस कहानी के बारे में क्या ही कहूं, दिल अपना प्रीत पराई के बाद ये दूसरी कहानी है जिसने दिल को छू ही नहीं लिया बल्कि रूह तक में समा गई है। फ़ौजी भाई, सोचा नहीं था कि इतना जल्दी ये कहानी समाप्त हो जाएगी और दिल धक्क से रह जाएगा किंतु एक दिन तो ये होना ही था। रहस्य, रोमांच, कौतूहल और उत्सुकता का ये धागा हम सबके गले में वैसा ही पड़ गया था जैसा रीना के गले में पड़ा था। लाजवाब लेखनी, लाजवाब कल्पना और बेहद ही सुंदर शब्दों द्वारा पिरोया गया कहानी का हर डायलॉग और हर दृश्य....अद्भुत।

अर्जुन सिंह की जो छवि हमारे ज़हन में बन गई थी वो उससे अलग ही निकला। अक्सर जो दिखता है वो सच नहीं होता और ये बात अर्जुन सिंह के क़िरदार से साबित भी हो गई। अतीत में ये जो कुछ भी हुआ था वो तो नियति का ही खेल था जिसमें मंदा के साथ इतना बड़ा अन्याय और अत्याचार हुआ था। ये अलग बात है कि नियति के खेल में जहां मंदा जैसी लड़की का सब कुछ लुट गया वहीं अर्जुन सिंह जैसे अच्छे इंसान और भाई पर ऐसा घिनौना लांछन भी लग गया कि उसने अपनी मुंह बोली बहन को बर्बाद किया था। ख़ैर ऊपर बैठे विधाता के खेल निराले हैं, हम सब तो उसके हाथ की कठपुतलियां हैं।

एक तरफ अर्जुन सिंह का पिता तो दूसरी तरफ दद्दा ठाकुर का बेटा बलवीर जिसने ऐसे कर्मकाण्ड की बुनियाद रखी थी। ज़ाहिर है जब इस तरह का कुकर्म किसी के साथ होगा तो ऐसे बुरे कर्म का फल भी किसी न किसी रूप में भोगने को मिलेगा ही। इस कहानी में ये जान कर हैरत हुई कि मीता और रीना दोनों ही मंदा की बेटियां थीं और आपस में सगी बहनें थीं। दोनों की पैदाइश भी अलग तरह से हुई जो कि हैरतंगेज बात है। मीता का तो समझ में आया किंतु रीना कैसे पैदा हुई क्योंकि मंदा तो कदाचित जीवित ही न बची थी?

मंदा ने प्रतिशोध लिया और जिस जिस ने उसके साथ बुरा किया था उसे उसने जहन्नुम भेज दिया, अंततः अर्जुन सिंह और संध्या के द्वारा उसे ये सच भी पता चला कि अर्जुन सिंह ने उसके साथ कभी कुछ बुरा नहीं किया था बल्कि उसने तो वो काम किया था जो आज के युग में कोई किसी के लिए नहीं कर सकता। उसने घिनौना इल्ज़ाम अपने सिर ले लिया और उसकी बेटियों को जीवित रखा। खुद सोलह साल उसने सब कुछ त्याग कर अज्ञातवास की तरह गुजारे किंतु न तो उसने कभी मंदा के चरित्र पर दाग़ लगने दिया और न ही उसकी बेटियों का भविष्य अंधकारमय होने दिया। पृथ्वी का चरित्र भी अपने बाप बलवीर की तरह ही घटिया था जिसका उसे दण्ड मिला। मेरा खयाल है कि अब शायद ही उसके वंश में कोई ऐसा बचा हो जो दद्दा ठाकुर की वंश बेल को आगे बढ़ा सके। ख़ैर अर्जुन सिंह और संध्या के द्वारा सच का पता चल जाने पर मंदा का क्रोध शांत हुआ और उसके मन से अर्जुन सिंह के प्रति गुस्सा और प्रतिशोध की भावना ख़त्म हो गई। अंततः उसे उस भयानक योनि और बंधन से मुक्ति गई।

मनीष को रीना और मीता दोनों का ही प्रेम मिल गया। हालाकि मीता एक तरह से संध्या की बेटी भी हुई और उस नाते वो मनीष की बहन हुई। किंतु ज़ाहिर है प्रेम के आगे ये सब बेमतलब ही है। वैसे भी किसी को अब इस रिश्ते से कोई आपत्ती नहीं थी। ख़ैर मनीष को भी इतने दुखों और संघर्षों के बाद खुशियां मिल गई जिसका वो वाकई में हकदार था।

कहानी तो समाप्त हो गई किंतु इस दृश्य को पढ़ कर ऐसा प्रतीत हुआ जैसे अभी भी कुछ शेष रह गया है। शुरू से सवालों के साथ उसके जवाबों की उम्मीद में ही रहे थे और आख़िर में भी कुछ सवाल हमारे लिए प्रसाद के रूप में थमा दिया आपने। अब ये उत्सुकता बनी ही रहेगी कि वो औरत कौन थी जिससे अर्जुन सिंह इस तरह मिलने गया? जिस मैदान में कुछ नहीं था वहां पर काला महल कैसे और क्यों नज़र आने लगा? ये सब बातें ऐसी हैं जो चीख चीख कर बता रही हैं कि कहानी का कुछ तो अंश अभी भी शेष है। उम्मीद है या तो इन सवालों के जवाब मिलेंगे या फिर शेष बचे हुए इस अंश को विस्तार से पढ़ने का हमें मौका मिलेगा। या फिर ऐसा भी हो सकता है कि ये अंत एक नई कहानी की शुरुआत का इशारा कर रहा हो। अगर ऐसा है तो यकीनन ये हम सबके लिए खुशी की बात होगी क्योंकि ऐसी लेखनी और ऐसी कहानी को पढ़ने के लिए हम सब पूरी शिद्दत से तैयार रहने वाले हैं।

बहुत ही खूबसूरत कहानी लिखी है फ़ौजी भाई आपने। ऐसी कहानियां पढ़ने से ही खुशी और सुकून प्राप्त होता है। हमेशा यही ख्वाईश रहती है कि ऐसी कहानियां हमेशा लिखी जाएं और हम इन्हें पढ़ कर एक अलग ही तरह का रोमांच महसूस करें। मैं ईश्वर से यही प्रार्थना करता हूं कि आप हमेशा स्वस्थ और सलामत रहें और अपनी खूबसूरत लेखनी के द्वारा हमें ऐसी अद्भुत कहानियों का लुत्फ उठाने का सौभाग्य प्रदान करते रहें।
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