अध्याय - 149
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माहौल थोड़ा संजीदा सा हो गया था। कुछ देर और हम लोग वहां बैठे रहे उसके बाद जीप में बैठ कर चल दिए। दोपहर होने वाली थी, अतः मैंने जीप की रफ़्तार बढ़ा दी। जल्दी ही मैं रूपा को लिए उसके घर पहुंच गया। मेरे द्वारा हार्न दिए जाने पर रूपचंद्र जल्दी ही घर से बाहर निकला और भागता हुआ आया। उसके आने से पहले ही रूपा जीप से उतर गई थी। रूपचंद्र ने आ कर मुझे धन्यवाद कहा और फिर रूपा को ले कर चला गया। उसके जाने के बाद मैं भी हवेली की तरफ चल पड़ा।
अब आगे....
दूसरे दिन दोपहर के समय दादा ठाकुर अपने मुंशी किशोरी लाल के साथ बैठक में बैठे हुए थे। गौरी शंकर भी एक कुर्सी पर बैठा हुआ था। वो क़रीब बीस मिनट पहले ही आया था।
"आप क्या सोचने लगे ठाकुर साहब?" गौरी शंकर ने कहा____"मैं आपसे जानना चाहता हूं कि इस बारे में आपकी क्या सलाह है? जवाब में मैं उन्हें क्या कहूं?"
"हमारा ख़याल है कि इस बारे में तुम्हें ज़्यादा कुछ सोचना ही नहीं चाहिए।" दादा ठाकुर ने कहा____"वो लड़के वाले हैं इस लिए उनके मन का ही करना होगा और वैसे भी उनका कहना भी ग़लत नहीं है। रिश्ता जब पहले से ही तय था तो अब संबंध बनाने में देरी करने का कोई मतलब भी नहीं बनता।"
"यानि मैं उन्हें जवाब में ये कह दूं कि मुझे उनका सुझाव मंज़ूर है?" गौरी शंकर ने व्याकुल से लहजे में पूछा।
"बिल्कुल।" दादा ठाकुर ने सिर हिलाया____"और फिर जल्द से जल्द तुम्हें ब्याह की तैयारियां शुरू कर देनी चाहिए। वैसे भी घर की बड़ी बेटियों का ब्याह हो जाने के बाद ही छोटी बेटियों का नंबर लगेगा।"
"हां ये तो आपने सही कहा।" गौरी शंकर हल्के से मुस्कुराया____"मैं आज ही उन्हें अपनी मंजूरी की ख़बर भिजवा देता हूं। उसके बाद मुझे अपने पुरोहित जी से भी मिलना होगा और उनसे लग्न बनाने को कहना होगा।"
"हमारा ख़याल है कि ज़्यादा परेशानी वाली बात नहीं है।" दादा ठाकुर ने कहा____"एक महीने का समय ठीक रहेगा।"
"ए...एक महीना?" गौरी शंकर की आंखें फैलीं____"ठाकुर साहब इतने कम समय में क्या तैयारियां हो पाएंगी?"
"क्यों नहीं होंगी?" दादा ठाकुर ने कहा____"कहीं तुम ये तो नहीं सोच रहे कि ये सब तुम्हें अकेले ही करना पड़ेगा? अरे! भई तुम अब अकेले नहीं हो, हम भी तो तुम्हारे संबंधी ही बनने वाले हैं। वैसे भी तुम्हारी बेटियां हमारी बेटियां ही हैं। अतः उनके ब्याह की ज़िम्मेदारियां हमें भी तो लेनी हैं।"
"आपने ये कह दिया तो अब मैं सच में निश्चिंत हो गया हूं।" गौरी शंकर ने खुशी से कहा____"वरना सच में मैं ये सोच के घबराने सा लगा था कि अकेले सब कुछ कैसे कर सकूंगा?"
"फ़िक्र मत करो।" दादा ठाकुर ने कहा____"सब कुछ वक्त से पहले और बहुत अच्छे तरीके से हो जाएगा।"
"क्या चंदनपुर से कोई ख़बर आई ठाकुर साहब?" गौरी शंकर ने सहसा कुछ सोचते हुए पूछा____"मेरा मतलब है कि क्या रागिनी बहू वैभव के साथ ब्याह करने को राज़ी हो गईं?"
"वहां से इस बारे में अभी कोई ख़बर नहीं आई है गौरी शंकर।" दादा ठाकुर ने गहरी सांस ले कर कहा____"हम भी उसके राज़ी होने की ख़बर सुनने का बड़ी शिद्दत से इंतज़ार कर रहे हैं। हम जानते हैं कि रागिनी बहू के लिए इस रिश्ते को स्वीकार करना मुश्किल होगा लेकिन हमें यकीन है कि अंततः वो इस रिश्ते को स्वीकार कर लेगी। वो समझेगी कि ये सब हम उसके भले के लिए ही करना चाहते हैं और सबसे ज़्यादा इस लिए भी कि हम उसके जैसी बेटी को खोना नहीं चाहते। उसको फिर से उसी तरह खुश देखना चाहते हैं जैसे वो हमारे बेटे के जीवित रहते खुश रहा करती थी।"
"हलकान मत होइए ठाकुर साहब।" गौरी शंकर ने अधीरता से कहा____"मुझे भी भरोसा है कि रागिनी बहू इस रिश्ते को ज़रूर स्वीकार कर लेंगी। वैसे मुझे पता चला है कि वैभव को पता चल गया है इस बारे में।"
"हां।" दादा ठाकुर ने कहा____"वैसे उसको तो पता चलना ही था। हमें बस इस बात का डर था कि अनुराधा की वजह से वो इस रिश्ते के बारे में कोई बखेड़ा न खड़ा कर दे। ख़ैर अच्छा हुआ कि ऐसा कुछ नहीं हुआ। यकीनन ये तुम्हारी भतीजी के ही प्रयासों से संभव हुआ हैं। उसने बहुत ही अच्छी तरह से सम्हाला है उसको और उसके अंदर से हर उस विकार को निकाल कर दूर कर दिया है जिसके चलते वो किसी की कुछ सुन ही नहीं सकता था।"
"ये सब तो ठीक है ठाकुर साहब।" गौरी शंकर ने कहा____"लेकिन और भी अच्छा तब हो जाए जब वो सफ़ेदपोश पकड़ा जाए। जब तक वो पकड़ में नहीं आता तब तक किसी न किसी अनहोनी अथवा अनिष्ट की आशंका बनी ही रहेगी।"
गौरी शंकर की इस बात से दादा ठाकुर फ़ौरन कुछ बोल ना सके। अलबत्ता किशोरी लाल की तरफ ज़रूर देखा उन्होंने। किशोरी लाल ख़ामोशी से बैठा बातें सुन रहा था।
"वैसे तुम्हारी जानकारी के लिए हम बता देना चाहते हैं कि सफ़ेदपोश का अब हमें कोई ख़तरा नहीं है।" दादा ठाकुर ने गौरी शंकर से मुखातिब हो कर कहा____"हमारा मतलब है कि उसे कुछ समय पहले पकड़ लिया गया था।"
"क...क्या सच कह रहे हैं आप?" गौरी शंकर हैरत से बोल पड़ा____"स...सफ़ेदपोश को सच में पकड़ लिया है आपने? ये...ये कब हुआ? कैसे पकड़ा आपने उसे?"
"कुछ दिन पहले हमारे आदमियों ने उसके पकड़ लिए जाने की हमें ख़बर दी थी।" दादा ठाकुर ने गहरी सांस ले कर कहा____"ज़ाहिर है उसके बाद हम उससे मिले भी।"
"तो...तो क्या पता चला फिर?" गौरी शंकर ने एकदम उत्सुकता से पूछा____"कौन था वो और क्या आपने उससे पूछा कि ये सब क्यों कर रहा था वो?"
"इस बारे में तुम हमसे ना ही पूछो तो बेहतर है गौरी शंकर।" दादा ठाकुर ने एकाएक गंभीर हो कर कहा____"हालाकि हम जानते हैं कि तुम्हें इस बारे में ना बताना ठीक नहीं है। आख़िर अब तुम हमारे अपने ही हो किंतु यकीन मानो इस संबंध में कुछ भी बताना मानो हमारे लिए बहुत ही मुश्किल है।"
"अगर ऐसी बात है तो जाने दीजिए ठाकुर साहब।" गौरी शंकर ने कहा____"मैं खुद भी वो सब जानने का इच्छुक नहीं हूं जिसे बताना आपके लिए मुश्किल हो। मेरे लिए तो इतना जान लेना ही जैसे बड़ी बात हो गई है कि सफ़ेदपोश पकड़ लिया गया है और अब उससे कोई ख़तरा नहीं है। सच कहूं तो मैं भी आपकी तरह सफ़ेदपोश के ना पकड़े जाने से बेहद चिंतित था। आख़िर वो वैभव का जानी दुश्मन था, उस वैभव का जिससे मेरी भतीजी प्रेम करती है और जिसके साथ उसका ब्याह होने वाला है। ख़ैर अब जबकि सब कुछ ठीक हो गया है तो मैं भी इस बात से चिंता मुक्त हो गया हूं।"
कुछ देर बाद गौरी शंकर चला गया। दादा ठाकुर अंदर ही अंदर इस बात से ग्लानि सी महसूस करने लगे थे कि उन्होंने गौरी शंकर को सफ़ेदपोश का सच नहीं बताया। इस ग्लानि के चलते उनके चेहरे पर गहन पीड़ा के भाव भी उभर आए थे।
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"कुंदनपुर किस लिए गए थे आप?" दादा ठाकुर अपने कमरे में आ कर जब पलंग पर लेट गए तो सुगंधा देवी ने पूछा____"क्या ख़ास तौर पर मेनका के भाई अवधराज से मिलने गए थे आप?"
"कई दिनों से जाने का सोच रहे थे।" दादा ठाकुर ने कहा____"लेकिन समय ही नहीं मिल रहा था। असल में हम वहां जा कर अवधराज से पूछना चाहते थे कि जिस मकसद से उसने अपने बहनोई को ये सब करने का पाठ पढ़ाया था उससे क्या हासिल हो गया उसे? क्या उसके पाठ पढ़ाए जाने से उसकी बहन को वो खुशियां मिलीं जिनके लिए उसके बहनोई ने उसके सिखाने पर ये सब किया था?"
"तो क्या आपने वहां जा कर सच में ये सब उससे पूछा?" सुगंधा देगी ने हैरानी से उनकी तरफ देखते हुए पूछा।
"पूछने के लिए ही तो गए थे हम।" दादा ठाकुर ने कहा____"अतः बिना पूछे कैसे वापस आ जाते?"
"बड़ी अजीब बातें कर रहे हैं आप।" सुगंधा देवी ने बेयकीनी से कहा____"ख़ैर तो आपके पूछने पर क्या कहा उसने?"
"क्या कहता?" दादा ठाकुर ने कहा____"हमें वहां देखते ही वो समझ गया था कि उसका भेद खुल चुका है हमारे सामने। उसके बाद जब हमने सबके सामने उससे ये सारे सवाल किए तो सिर झुका लिया उसने। एक बात और, इस सारे खेल में सिर्फ उसी बस का हाथ था। हमारे कहने का मतलब है कि हमारे भाई जगताप को ऐसा करने का ज्ञान देने वाला सिर्फ वही था। उसके बाकी घर वालों को इस बारे में कुछ भी पता नहीं था। कल जब हमने सबके सामने उससे ये सब पूछा था तो बाकी घर वाले भाड़ सा मुंह फाड़े देखते रह गए थे उसे। किसी को यकीन ही नहीं हो रहा था कि ये सब होने की असल वजह क्या थी। उसके बाकी घर वाले तो यही समझते थे कि जगताप की हत्या हमसे दुश्मनी रखने वालों ने की थी। यानि साहूकार और चंद्रकांत ने। वो तो इस बात की कल्पना भी नहीं कर सकते थे कि अवधराज ने अपने बहनोई को क्या करने का ज्ञान दिया था। ये भी कि उसके ज्ञान देने पर हमारे भाई ने क्या क्या किया और फिर जगताप की हत्या के बाद वही सब करने का बीड़ा उनकी बहन बेटी ने उठा लिया था।"
"ये सब जानने के बाद उसके बाकी घर वालों ने क्या फिर उसे कुछ नहीं कहा?" सुगंधा देवी ने जिज्ञासा से पूछा।
"पहले तो सबके पैरों तले से ज़मीन ही सरक गई थी।" दादा ठाकुर ने कहा____"किसी को यकीन ही नहीं हो रहा था कि हमने जो बताया वो सच है। उसके बाद उन लोगों ने अवधराज से पूछना शुरू किया। अवधराज की चुप्पी ने सबको यकीन दिला दिया। उसके बाद सबकी हालत ख़राब हो गई। बहुत बुरा भला कहा उन लोगों ने अवधराज को और वो ख़ामोशी से सिर झुकाए खड़ा रहा। पश्चाताप से जल रहा था वो। सबके सामने फूट फूट कर ये कहते हुए रो पड़ा कि उसकी वजह से आज उसकी बहन विधवा बनी बैठी है। उसी की वजह से आज ये स्थिति बन गई है।"
"बुरी नीयत से किए कर्मों का फल बुरा ही मिलता है।" सुगंधा देवी ने गहरी सांस ले कर कहा____"उसको अपने बहन और बहनोई के लिए हवेली की सारी संपत्ति और ज़मीन जायदाद चाहिए थी लेकिन मिला क्या? ख़ैर उसके बाद क्या हुआ?"
"होना क्या था?" दादा ठाकुर ने कहा____"और अब भला हो भी क्या सकता था? सब बहुत दुखी थे किंतु हम उन सबको ये कह कर आए हैं कि जब तक हमारे छोटे भाई के दोनों बच्चों की पढ़ाई चल रही है तब तक हम सच्चे दिल से और पूरी ईमानदारी से इस हवेली में रहते हुए उनके लिए वो सब करेंगे जो उनके लिए बेहतर होगा। जिस दिन दोनों बच्चों की पढ़ाई पूरी हो जाएगी उस दिन हम ये हवेली और सारी ज़मीन जायदाद उनकी बहन बेटी यानी मेनका को सौंप देंगे और हम अपने परिवार को ले कर कहीं दूसरी जगह चले जाएंगे।"
"ये...ये क्या कह रहे हैं आप?" सुगंधा देवी ने बुरी तरह चौंकते हुए कहा____"आपने उनसे ऐसा क्यों कहा?"
"क्योंकि हमारा छोटा भाई यही तो चाहता था और इसी चाहत में तो वो अपनी जान भी गंवा कर चला गया।" दादा ठाकुर ने सहसा दुखी हो कर कहा____"मरने के बाद भी अगर उसकी ये चाहत पूरी न हुई तो उसकी आत्मा को शांति नहीं मिलेगी। इसी लिए हमने उनसे ऐसा कहा और सच कहें तो हम खुद भी यही चाहते हैं। इतना कुछ होने के बाद अब ज़रा भी किसी चीज़ का मोह नहीं रहा हमें। बस यही मन करता है कि इस सबको छोड़ कर कहीं ऐसी जगह चले जाएं जहां दूर दूर तक कोई न हो, कोई छल कपट न हो, सिर्फ शांति हो।"
"मन तो हमारा भी यही करता है ठाकुर साहब।" सुगंधा देवी ने कहा____"लेकिन फिर ये ख़याल आता है कि ऐसे में हमारे बेटे का क्या होगा? बेटे के साथ साथ उनका क्या होगा जो हमारे बेटे के जीवन में उसकी पत्नियां बन कर आने वाली हैं? अपनी तरह उन्हें भी दरबदर कर देना क्या उचित होगा?"
"हम मानते हैं कि ऐसा करना उचित नहीं होगा सुगंधा।" दादा ठाकुर ने कहा____"लेकिन हम ये भी जानते हैं कि वो हमारे हर फ़ैसले का सम्मान करेंगे और वही करेंगे जो हम चाहेंगे। बाकी ऊपर वाले की इच्छा।"
सुगंधा देवी कुछ कह न सकीं। मन में तरह तरह के विचारों का मानों तूफ़ान सा आ गया था। कुछ देर तक वो दादा ठाकुर को देखती रहीं उसके बाद उनके बगल में लेट गईं।
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"ये सुन कर तो बड़ी राहत महसूस हुई कि सफ़ेदपोश पकड़ लिया गया था।" फूलवती ने सोचने वाले अंदाज़ में कहा____"लेकिन ये जान कर बड़ा अजीब लग रहा है कि दादा ठाकुर ने तुम्हें इस बारे में कुछ बताया क्यों नहीं? आख़िर ऐसी क्या वजह हो सकती है इसके पीछे?"
"हां काका।" रूपचंद्र मानों खुद को बोलने से रोक न सका____"दादा ठाकुर ने सफ़ेदपोश के बारे में भला क्यों आपको कुछ नहीं बताया? अब तो हम उनके अपने ही हैं और उनके बेटे वैभव से रूपा का ब्याह होने के बाद तो हमारा उनसे एक अटूट रिश्ता भी बन जाएगा। ऐसे में अगर वो सफ़ेदपोश के बारे में आपको बता भी देते तो क्या हो जाता?"
"शायद कोई ऐसी बात है जिसे वो बताना नहीं चाहते थे।" गौरी शंकर ने कहा____"उनकी बातों से तो यही प्रतीत हुआ था। सफ़ेदपोश के बारे में ज़िक्र होते ही वो एकदम से बेहद गंभीर और संजीदा हो गए थे।"
"बड़ी अजीब बात है।" फूलवती ने कहा____"जो रहस्यमय व्यक्ति उनके बेटे की जान का दुश्मन बना हुआ था उसके पकड़ लिए जाने की बात उन्होंने हमसे छुपाई और तुम्हारे पूछने पर उन्होंने कुछ बताया भी नहीं। क्या तुम्हें नहीं लगता कि ऐसा कर के उन्होंने कहीं न कहीं हमें ये एहसास दिला दिया है कि हम अब भी उनके लिए पराए हैं और वो अभी भी हम पर पूर्ण रूप से भरोसा नहीं करते हैं?"
"वैसे इसमें उनकी कोई ग़लती भी तो नहीं है भौजी।" गौरी शंकर ने गहरी सांस ली____"हमने जो कुछ उनके साथ किया है उसके चलते क्या आपको लगता है कि इतना जल्दी वो हम पर इस क़दर भरोसा करने लगेंगे कि वो हमें अपनी कोई बहुत ही व्यक्तिगत बातें बताने लगें?"
"मैं मानती हूं कि हम पर वो इतना जल्दी इतना ज़्यादा भरोसा नहीं कर सकते।" फूलवती ने कहा____"लेकिन सवाल है कि सफ़ेदपोश के बारे में तुम्हें बताने में क्या समस्या थी उन्हें? भला ऐसा क्या था सफ़ेदपोश में कि उन्होंने तुम्हें उसके बारे में बताया नहीं?"
गौरी शंकर ख़ुद भी जाने कितनी ही देर से इस सवाल के जवाब को सोचने समझने की कोशिश कर रहा था। जब से वो हवेली से आया था तभी से सोच रहा था लेकिन कुछ समझ नहीं आया था उसे। ये अलग बात है कि उसके मन में कई तरह की आशंकाएं उठ रहीं थी।
"सफ़ेदपोश उनके बेटे का जानी दुश्मन था गौरी।" फूलवती ने कहा____"ज़ाहिर है ऐसे व्यक्ति के पकड़े जाने से दादा ठाकुर को सफलता के साथ साथ बेहद खुशी भी हुई होगी। उनके जैसा व्यक्ति अपने सबसे बड़े ख़तरे के पकड़े जाने पर पूरे गांव वालों को ख़बर करता कि उन्होंने उस सफ़ेदपोश को पकड़ लिया है जो अब तक उनके बेटे की जान का दुश्मन बना हुआ था। इतना ही नहीं जिस तरह से सफ़ेदपोश के बारे में दूर दूर तक सबको पता था उसके चलते उसके पकड़े जाने पर भी ये बात जंगल में लगी आग की तरह हर जगह फैल जाती मगर ऐसा कुछ नहीं हुआ। सफ़ेदपोश को उन्होंने कई दिनों पहले पकड़ लिया था और अभी तक इस बारे में गांव में किसी को पता ही नहीं चला है। क्या ये सोचने वाली बात नहीं है कि उन्होंने ऐसे ख़तरनाक व्यक्ति के बारे में सबसे क्यों छुपाया और तो और तुम्हारे पूछने पर भी उन्होंने उसके बारे में तुम्हें कुछ नहीं बताया....क्यों?"
"शायद बदनामी हो जाने की वजह से।" रूपचंद्र ने जैसे संभावना ब्यक्त की।
"किस तरह की बदनामी?" फूलवती ने चौंक कर पूछा।
"सच पता चल जाने की बदनामी।" गौरी शंकर सहसा कहीं खोए हुए से लहजे में बोल पड़ा था।
"क...क्या मतलब?" फूलवती और रूपचंद्र एक साथ चौंके।
"मुझे ऐसा लग रहा है कि सफ़ेदपोश कोई ऐसा व्यक्ति रहा होगा जिसके पकड़े जाने पर अब वो उसका सच नहीं बताना चाहते हैं।" गौरी शंकर ने अजीब भाव से कहा____"वरना ऐसे ख़तरनाक व्यक्ति के बारे में सबको बताने में उन्हें क्या आपत्ति हो सकती थी? एक बात और, उन्होंने उसके बारे में जब मुझे कुछ नहीं बताया तो यकीनन महेंद्र सिंह को भी नहीं बताया होगा।"
"ये सब तो ठीक है।" रूपचंद्र कुछ ज़्यादा ही उत्सुक और व्याकुल सा हो कर बोला____"पर अब सवाल ये है कि ऐसा वो कौन व्यक्ति रहा होगा जो सफ़ेदपोश बना हुआ था और जिसका सच पता चलने के बाद दादा ठाकुर बाकी किसी को भी उसके बारे में बताना नहीं चाहते हैं?"
"कहीं वो सफ़ेदपोश उनका अपना ही तो कोई न रहा होगा?" फूलवती ने चौंकने वाले अंदाज़ से संभावना ज़ाहिर करते हुए कहा।
"ह...हां शायद।" गौरी शंकर के मस्तिष्क में मानों बिजली चमकी____"बिल्कुल ऐसा ही हो सकता है और यकीनन यही वजह हो सकती है उनके द्वारा सफ़ेदपोश के बारे में कुछ भी न बताने की। वो शायद किसी भी सूरत में ये नहीं चाहते हैं कि किसी को उसके बारे में पता चले। शायद यही वजह है कि इतने दिनों के बाद भी किसी को सफ़ेदपोश के पकड़ लिए जाने की भनक तक नहीं लग पाई है।"
"हाय राम!" फूलवती ने आश्चर्य से आंखें फाड़ कर कहा____"मुझे तो अब यकीन सा होने लगा है कि यही बात हो सकती है। मेरा मतलब है कि वाकई में सफ़ेदपोश उनका अपना ही कोई था।"
"लेकिन कौन?" रूपचंद्र बोल पड़ा____"दादा ठाकुर के अपनों में से ऐसा वो कौन हो सकता है जो सफ़ेदपोश बना हुआ था? इससे भी बड़ा सवाल ये है कि अगर वाकई में उनका अपना ही कोई सफ़ेदपोश था तो क्यों था? आख़िर वो ये सब क्यों कर रहा था?"
"सफ़ेदपोश का संबंध दादा ठाकुर के बेटे वैभव से ही नहीं बल्कि चंद्रकांत से भी जुड़ा हुआ नज़र आया था।" गौरी शंकर ने सोचने वाले अंदाज़ से कहा____"उसने चंद्रकांत को उसके बेटे के हत्यारे के बारे में बताया था जिसके चलते चंद्रकांत ने अपनी बहू को मार डाला था। इस मामले में दादा ठाकुर और महेंद्र सिंह दोनों ही इस निष्कर्ष पर पहुंचे थे कि सफ़ेदपोश ने चंद्रकांत को उसके बेटे के हत्यारे के बारे में जो कहानी सुनाई थी वो झूठ थी। यानि सफ़ेदपोश ने अपने किसी मकसद के चलते ही ये सब किया था अथवा करवाया था। अब सवाल ये है कि सफ़ेदपोश ने चंद्रकांत को उसके बेटे के हत्यारे के बारे में झूठी कहानी सुना कर उससे अपनी ही बहू को क्यों मरवा डाला? आख़िर ऐसा कर के क्या हासिल हो गया था उसे?"
"अगर ये मान कर चलें कि सफ़ेदपोश दादा ठाकुर के अपनों में से ही कोई था।" रूपचंद्र ने सोचने वाले अंदाज़ में कहा____"तो शायद ये समझना आसान ही है कि सफ़ेदपोश ने चंद्रकांत के साथ ऐसा क्यों किया था?"
"क्या मतलब है तुम्हारा?" गौरी शंकर ने आशंकित भाव से उसे देखा।
"मुझे अब समझ आ रहा है काका कि सफ़ेदपोश कौन रहा होगा।" रूपचंद्र सहसा उत्साहित भाव से बोल पड़ा____"शायद दादा ठाकुर का छोटा भाई।"
"ये...ये क्या कह रहे हो तुम?" गौरी शंकर के साथ साथ फूलवती भी बुरी तरह चौंकी।
"हां काका।" रूपचंद्र उत्साहित भाव से ही बोला____"अगर वाकई में सफ़ेदपोश दादा ठाकुर का ही कोई अपना था तो चंद्रकांत से उसका संबंध भी समझ में आ जाता है। आप लोगों ने चंद्रकांत और उसके बेटे के साथ मिल कर मझले ठाकुर यानि जगताप और दादा ठाकुर के बड़े बेटे अभिनव की हत्या की थी। दादा ठाकुर ने बदले के रूप में हमसे तो बदला ले लिया लेकिन चंद्रकांत से नहीं ले सके।"
"इस हिसाब से तो दादा ठाकुर को ही सफ़ेदपोश होना चाहिए।" गौरी शंकर ने उलझन भरे से कहा____"जगताप ठाकुर कैसे हो सकता है सफ़ेदपोश? वो तो हमारे द्वारा मार ही दिया गया था, जबकि उसके मरने के बाद भी सफ़ेदपोश देखा गया था।"
"दादा ठाकुर सफ़ेदपोश इस लिए नहीं हो सकते क्योंकि इस सारे मामले के शुरू होने से पहले किसी की हत्या नहीं हुई थी।" रूपचंद्र ने कहा____"वैसे भी छोटे ठाकुर और अभिनव की हत्या के बाद दादा ठाकुर ने बदले में जो किया वो खुले आम किया था। अगर वो सफ़ेदपोश होते तो उन्हें खुले आम ऐसा करने की क्या ज़रूरत थी? वो छुप कर भी हमारा खात्मा कर सकते थे। जबकि उन्होंने ऐसा नहीं किया, बल्कि खुले आम किया और इस चक्कर में उन्हें अपना मुखिया वाला पद भी गंवा देना पड़ा। इसी से स्पष्ट है कि सफ़ेदपोश वो नहीं बल्कि उनके भाई थे।"
"हैरत की बात है।" गौरी शंकर ने जैसे बड़ी मुश्किल से इस बात को हजम करने की कोशिश करते हुए कहा____"सबसे पहले तो सवाल यही उठता है कि जगताप ठाकुर सफ़ेदपोश क्यों बना होगा और उसने किस वजह से अपने ही बड़े भाई और उसके बेटे का दुश्मन बन गया होगा? दूसरे उसकी हत्या हो जाने के बाद भी सफ़ेदपोश कैसे देखा जाता रहा?"
"आज के युग में राम भरत जैसे भाई नहीं पाए जाते काका।" रूपचंद्र ने कहा____"आज के युग की सच्चाई ये है कि रिश्ते नातों के लिए कोई कुर्बान नहीं होता। संभव है कि छोटे ठाकुर ने सारी धन दौलत को हथिया लेने का सोचा रहा हो और इसी वजह से उन्होंने सफ़ेदपोश का रूप धारण किया रहा हो। खुल कर तो वो कुछ कर नहीं सकते थे इस लिए उन्होंने इस तरह का रास्ता अपनाया होगा। उसके बाद उनकी हत्या हो जाने के चलते सफ़ेदपोश का रूप उनके ही किसी अपने ने धारण कर लिया होगा।"
"यकीन तो नहीं हो रहा।" गौरी शंकर ने कहा____"लेकिन जाने क्यों कहीं न कहीं तुम्हारी इन बातों पर यकीन करने का मन भी कर रहा है। बहरहाल, अगर ऐसा ही रहा होगा तो वाकई में ये बड़े ही आश्चर्य की बात है। अगर इस तरीके से सोचा जाए तो कहीं न कहीं सच में ये आभास होता है कि ऐसा ही कुछ रहा होगा। अब सवाल ये है कि अगर वाकई में सफ़ेदपोश जगताप ही था तो वो ख़ुद कैसे मौत का शिकार हो गया? क्या उसे हमारी योजनाओं के बारे में ज़रा भी भनक न लगी रही होगी? दूसरे, उसकी मौत के बाद उसकी जगह सफेदपोश कौन बना होगा?"
"उनके दोनों बेटे तो हो नहीं सकते।" रूपचंद्र ने कहा____"क्योंकि वो दोनों बेहतर शिक्षा प्राप्त करने के लिए विदेश में हैं तो अब बचती हैं उनकी धर्म पत्नी और बेटी। कुसुम में इतना साहस और क्षमता नहीं है कि वो सफ़ेदपोश बन कर कोई ख़तरनाक काम कर सके। अब बचीं मझली ठकुराईन तो संभव है कि वो ही जगताप चाचा के बाद सफ़ेदपोश बन गईं रहीं हों।"
"क्या सच में वो सफ़ेदपोश के रूप के ऐसे ख़तरनाक काम कर सकती हैं?" फूलवती ने हैरत से देखते हुए कहा।
"जगताप की हत्या के बाद।" गौरी शंकर ने कुछ सोचते हुए कहा____"दादा ठाकुर ने हमारे अपनों का नर संघार किया था। उसके बाद मामला ठंडा सा पड़ गया था। कुछ दिनों बाद मुरारी के छोटे भाई जगन की मौत हुई और फिर रघुवीर की। जगन को तो ख़ैर वैभव ने गोली मार दी थी लेकिन रघुवीर की हत्या एक रहस्य बन गई थी जोकि अब भी बनी हुई है। रघुवीर की हत्या के बाद उसकी बीवी रजनी की हत्या उसके ही ससुर ने की और नाम जुड़ा सफ़ेदपोश का।"
"मुझे तो लगता है काका कि रघुवीर की हत्या भी सफ़ेदपोश ने ही की होगी।" रूपचंद्र ने तपाक से कहा____"अगर मझली ठकुराईन ही सफ़ेदपोश बनी होंगी तो यकीनन उन्होंने ही रघुवीर की हत्या की होगी। आख़िर उनके पति की हत्या में उसका भी तो हाथ था।"
"हां अब तो मुझे भी ऐसा ही लगता है।" गौरी शंकर ने सिर हिलाया____"लेकिन मेरी समझ में ये नहीं आ रहा कि अगर सफ़ेदपोश के रूप में अपने पति का बदला लेने के लिए मझली ठकुराईन ने ही रघुवीर की हत्या की थी तो फिर उसने चंद्रकांत के हाथों रजनी को क्यों मरवा डाला? रजनी का तो कोई दोष ही नहीं था, बल्कि असली दोषी तो चंद्रकांत था। उसने चंद्रकांत को क्यों नहीं मार डाला?"
"शायद उसके हाथों बहू को मरवा कर वो चंद्रकांत को दुख और संताप में डुबा देना चाहती थीं।" फूलवती ने जैसे संभावना ब्यक्त की____"जैसा कि ऐसा करने के बाद वो हो भी गया था।"
"हां शायद यही हो सकता है।" गौरी शंकर ने सिर हिलाया।
"तो इसका मतलब ये हुआ कि अब हम जान चुके हैं कि सफ़ेदपोश कौन था?" रूपचंद्र ने कहा____"और क्यों उसके पकड़ लिए जाने की बात दादा ठाकुर ने आपसे ही नहीं बल्कि हर किसी से छिपाई? यानि वो नहीं चाहते कि किसी को उनके घर की इतनी बड़ी हैरतअंगेज
बात पता चले?"
"हां शायद इसी लिए उन्होंने मुझे इस बारे में नहीं बताया।" गौरी शंकर को जैसे अब पूर्ण रूप से मान लेना पड़ा। वो मन ही मन इस रहस्योद्घाटन से बड़ा चकित था____"ख़ैर जो भी हो लेकिन अब हमें भी इस बात को अपने तक ही रखना चाहिए। हमारी बेटी उनकी होने वाली बहू है। आने वाले समय में वो भी उन्हीं के परिवार का हिस्सा बन जाएगी। अतः इस संगीन बात को छुपा के रखना ही बेहतर होगा। मैं नहीं चाहता कि इससे उसकी आने वाली पीढ़ियों पर कोई असर हो।"
"हां सही कहा तुमने।" फूलवती ने कहा____"जो हो गया उसे भुला देना ही बेहतर है। हमें ये भी नहीं भूलना चाहिए कि आज दादा ठाकुर की वजह से ही हमारी बेटियों का ब्याह होने वाला है और लोगों के बीच हम सर उठा कर चलने के क़ाबिल बने हैं।"
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माहौल थोड़ा संजीदा सा हो गया था। कुछ देर और हम लोग वहां बैठे रहे उसके बाद जीप में बैठ कर चल दिए। दोपहर होने वाली थी, अतः मैंने जीप की रफ़्तार बढ़ा दी। जल्दी ही मैं रूपा को लिए उसके घर पहुंच गया। मेरे द्वारा हार्न दिए जाने पर रूपचंद्र जल्दी ही घर से बाहर निकला और भागता हुआ आया। उसके आने से पहले ही रूपा जीप से उतर गई थी। रूपचंद्र ने आ कर मुझे धन्यवाद कहा और फिर रूपा को ले कर चला गया। उसके जाने के बाद मैं भी हवेली की तरफ चल पड़ा।
अब आगे....
दूसरे दिन दोपहर के समय दादा ठाकुर अपने मुंशी किशोरी लाल के साथ बैठक में बैठे हुए थे। गौरी शंकर भी एक कुर्सी पर बैठा हुआ था। वो क़रीब बीस मिनट पहले ही आया था।
"आप क्या सोचने लगे ठाकुर साहब?" गौरी शंकर ने कहा____"मैं आपसे जानना चाहता हूं कि इस बारे में आपकी क्या सलाह है? जवाब में मैं उन्हें क्या कहूं?"
"हमारा ख़याल है कि इस बारे में तुम्हें ज़्यादा कुछ सोचना ही नहीं चाहिए।" दादा ठाकुर ने कहा____"वो लड़के वाले हैं इस लिए उनके मन का ही करना होगा और वैसे भी उनका कहना भी ग़लत नहीं है। रिश्ता जब पहले से ही तय था तो अब संबंध बनाने में देरी करने का कोई मतलब भी नहीं बनता।"
"यानि मैं उन्हें जवाब में ये कह दूं कि मुझे उनका सुझाव मंज़ूर है?" गौरी शंकर ने व्याकुल से लहजे में पूछा।
"बिल्कुल।" दादा ठाकुर ने सिर हिलाया____"और फिर जल्द से जल्द तुम्हें ब्याह की तैयारियां शुरू कर देनी चाहिए। वैसे भी घर की बड़ी बेटियों का ब्याह हो जाने के बाद ही छोटी बेटियों का नंबर लगेगा।"
"हां ये तो आपने सही कहा।" गौरी शंकर हल्के से मुस्कुराया____"मैं आज ही उन्हें अपनी मंजूरी की ख़बर भिजवा देता हूं। उसके बाद मुझे अपने पुरोहित जी से भी मिलना होगा और उनसे लग्न बनाने को कहना होगा।"
"हमारा ख़याल है कि ज़्यादा परेशानी वाली बात नहीं है।" दादा ठाकुर ने कहा____"एक महीने का समय ठीक रहेगा।"
"ए...एक महीना?" गौरी शंकर की आंखें फैलीं____"ठाकुर साहब इतने कम समय में क्या तैयारियां हो पाएंगी?"
"क्यों नहीं होंगी?" दादा ठाकुर ने कहा____"कहीं तुम ये तो नहीं सोच रहे कि ये सब तुम्हें अकेले ही करना पड़ेगा? अरे! भई तुम अब अकेले नहीं हो, हम भी तो तुम्हारे संबंधी ही बनने वाले हैं। वैसे भी तुम्हारी बेटियां हमारी बेटियां ही हैं। अतः उनके ब्याह की ज़िम्मेदारियां हमें भी तो लेनी हैं।"
"आपने ये कह दिया तो अब मैं सच में निश्चिंत हो गया हूं।" गौरी शंकर ने खुशी से कहा____"वरना सच में मैं ये सोच के घबराने सा लगा था कि अकेले सब कुछ कैसे कर सकूंगा?"
"फ़िक्र मत करो।" दादा ठाकुर ने कहा____"सब कुछ वक्त से पहले और बहुत अच्छे तरीके से हो जाएगा।"
"क्या चंदनपुर से कोई ख़बर आई ठाकुर साहब?" गौरी शंकर ने सहसा कुछ सोचते हुए पूछा____"मेरा मतलब है कि क्या रागिनी बहू वैभव के साथ ब्याह करने को राज़ी हो गईं?"
"वहां से इस बारे में अभी कोई ख़बर नहीं आई है गौरी शंकर।" दादा ठाकुर ने गहरी सांस ले कर कहा____"हम भी उसके राज़ी होने की ख़बर सुनने का बड़ी शिद्दत से इंतज़ार कर रहे हैं। हम जानते हैं कि रागिनी बहू के लिए इस रिश्ते को स्वीकार करना मुश्किल होगा लेकिन हमें यकीन है कि अंततः वो इस रिश्ते को स्वीकार कर लेगी। वो समझेगी कि ये सब हम उसके भले के लिए ही करना चाहते हैं और सबसे ज़्यादा इस लिए भी कि हम उसके जैसी बेटी को खोना नहीं चाहते। उसको फिर से उसी तरह खुश देखना चाहते हैं जैसे वो हमारे बेटे के जीवित रहते खुश रहा करती थी।"
"हलकान मत होइए ठाकुर साहब।" गौरी शंकर ने अधीरता से कहा____"मुझे भी भरोसा है कि रागिनी बहू इस रिश्ते को ज़रूर स्वीकार कर लेंगी। वैसे मुझे पता चला है कि वैभव को पता चल गया है इस बारे में।"
"हां।" दादा ठाकुर ने कहा____"वैसे उसको तो पता चलना ही था। हमें बस इस बात का डर था कि अनुराधा की वजह से वो इस रिश्ते के बारे में कोई बखेड़ा न खड़ा कर दे। ख़ैर अच्छा हुआ कि ऐसा कुछ नहीं हुआ। यकीनन ये तुम्हारी भतीजी के ही प्रयासों से संभव हुआ हैं। उसने बहुत ही अच्छी तरह से सम्हाला है उसको और उसके अंदर से हर उस विकार को निकाल कर दूर कर दिया है जिसके चलते वो किसी की कुछ सुन ही नहीं सकता था।"
"ये सब तो ठीक है ठाकुर साहब।" गौरी शंकर ने कहा____"लेकिन और भी अच्छा तब हो जाए जब वो सफ़ेदपोश पकड़ा जाए। जब तक वो पकड़ में नहीं आता तब तक किसी न किसी अनहोनी अथवा अनिष्ट की आशंका बनी ही रहेगी।"
गौरी शंकर की इस बात से दादा ठाकुर फ़ौरन कुछ बोल ना सके। अलबत्ता किशोरी लाल की तरफ ज़रूर देखा उन्होंने। किशोरी लाल ख़ामोशी से बैठा बातें सुन रहा था।
"वैसे तुम्हारी जानकारी के लिए हम बता देना चाहते हैं कि सफ़ेदपोश का अब हमें कोई ख़तरा नहीं है।" दादा ठाकुर ने गौरी शंकर से मुखातिब हो कर कहा____"हमारा मतलब है कि उसे कुछ समय पहले पकड़ लिया गया था।"
"क...क्या सच कह रहे हैं आप?" गौरी शंकर हैरत से बोल पड़ा____"स...सफ़ेदपोश को सच में पकड़ लिया है आपने? ये...ये कब हुआ? कैसे पकड़ा आपने उसे?"
"कुछ दिन पहले हमारे आदमियों ने उसके पकड़ लिए जाने की हमें ख़बर दी थी।" दादा ठाकुर ने गहरी सांस ले कर कहा____"ज़ाहिर है उसके बाद हम उससे मिले भी।"
"तो...तो क्या पता चला फिर?" गौरी शंकर ने एकदम उत्सुकता से पूछा____"कौन था वो और क्या आपने उससे पूछा कि ये सब क्यों कर रहा था वो?"
"इस बारे में तुम हमसे ना ही पूछो तो बेहतर है गौरी शंकर।" दादा ठाकुर ने एकाएक गंभीर हो कर कहा____"हालाकि हम जानते हैं कि तुम्हें इस बारे में ना बताना ठीक नहीं है। आख़िर अब तुम हमारे अपने ही हो किंतु यकीन मानो इस संबंध में कुछ भी बताना मानो हमारे लिए बहुत ही मुश्किल है।"
"अगर ऐसी बात है तो जाने दीजिए ठाकुर साहब।" गौरी शंकर ने कहा____"मैं खुद भी वो सब जानने का इच्छुक नहीं हूं जिसे बताना आपके लिए मुश्किल हो। मेरे लिए तो इतना जान लेना ही जैसे बड़ी बात हो गई है कि सफ़ेदपोश पकड़ लिया गया है और अब उससे कोई ख़तरा नहीं है। सच कहूं तो मैं भी आपकी तरह सफ़ेदपोश के ना पकड़े जाने से बेहद चिंतित था। आख़िर वो वैभव का जानी दुश्मन था, उस वैभव का जिससे मेरी भतीजी प्रेम करती है और जिसके साथ उसका ब्याह होने वाला है। ख़ैर अब जबकि सब कुछ ठीक हो गया है तो मैं भी इस बात से चिंता मुक्त हो गया हूं।"
कुछ देर बाद गौरी शंकर चला गया। दादा ठाकुर अंदर ही अंदर इस बात से ग्लानि सी महसूस करने लगे थे कि उन्होंने गौरी शंकर को सफ़ेदपोश का सच नहीं बताया। इस ग्लानि के चलते उनके चेहरे पर गहन पीड़ा के भाव भी उभर आए थे।
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"कुंदनपुर किस लिए गए थे आप?" दादा ठाकुर अपने कमरे में आ कर जब पलंग पर लेट गए तो सुगंधा देवी ने पूछा____"क्या ख़ास तौर पर मेनका के भाई अवधराज से मिलने गए थे आप?"
"कई दिनों से जाने का सोच रहे थे।" दादा ठाकुर ने कहा____"लेकिन समय ही नहीं मिल रहा था। असल में हम वहां जा कर अवधराज से पूछना चाहते थे कि जिस मकसद से उसने अपने बहनोई को ये सब करने का पाठ पढ़ाया था उससे क्या हासिल हो गया उसे? क्या उसके पाठ पढ़ाए जाने से उसकी बहन को वो खुशियां मिलीं जिनके लिए उसके बहनोई ने उसके सिखाने पर ये सब किया था?"
"तो क्या आपने वहां जा कर सच में ये सब उससे पूछा?" सुगंधा देगी ने हैरानी से उनकी तरफ देखते हुए पूछा।
"पूछने के लिए ही तो गए थे हम।" दादा ठाकुर ने कहा____"अतः बिना पूछे कैसे वापस आ जाते?"
"बड़ी अजीब बातें कर रहे हैं आप।" सुगंधा देवी ने बेयकीनी से कहा____"ख़ैर तो आपके पूछने पर क्या कहा उसने?"
"क्या कहता?" दादा ठाकुर ने कहा____"हमें वहां देखते ही वो समझ गया था कि उसका भेद खुल चुका है हमारे सामने। उसके बाद जब हमने सबके सामने उससे ये सारे सवाल किए तो सिर झुका लिया उसने। एक बात और, इस सारे खेल में सिर्फ उसी बस का हाथ था। हमारे कहने का मतलब है कि हमारे भाई जगताप को ऐसा करने का ज्ञान देने वाला सिर्फ वही था। उसके बाकी घर वालों को इस बारे में कुछ भी पता नहीं था। कल जब हमने सबके सामने उससे ये सब पूछा था तो बाकी घर वाले भाड़ सा मुंह फाड़े देखते रह गए थे उसे। किसी को यकीन ही नहीं हो रहा था कि ये सब होने की असल वजह क्या थी। उसके बाकी घर वाले तो यही समझते थे कि जगताप की हत्या हमसे दुश्मनी रखने वालों ने की थी। यानि साहूकार और चंद्रकांत ने। वो तो इस बात की कल्पना भी नहीं कर सकते थे कि अवधराज ने अपने बहनोई को क्या करने का ज्ञान दिया था। ये भी कि उसके ज्ञान देने पर हमारे भाई ने क्या क्या किया और फिर जगताप की हत्या के बाद वही सब करने का बीड़ा उनकी बहन बेटी ने उठा लिया था।"
"ये सब जानने के बाद उसके बाकी घर वालों ने क्या फिर उसे कुछ नहीं कहा?" सुगंधा देवी ने जिज्ञासा से पूछा।
"पहले तो सबके पैरों तले से ज़मीन ही सरक गई थी।" दादा ठाकुर ने कहा____"किसी को यकीन ही नहीं हो रहा था कि हमने जो बताया वो सच है। उसके बाद उन लोगों ने अवधराज से पूछना शुरू किया। अवधराज की चुप्पी ने सबको यकीन दिला दिया। उसके बाद सबकी हालत ख़राब हो गई। बहुत बुरा भला कहा उन लोगों ने अवधराज को और वो ख़ामोशी से सिर झुकाए खड़ा रहा। पश्चाताप से जल रहा था वो। सबके सामने फूट फूट कर ये कहते हुए रो पड़ा कि उसकी वजह से आज उसकी बहन विधवा बनी बैठी है। उसी की वजह से आज ये स्थिति बन गई है।"
"बुरी नीयत से किए कर्मों का फल बुरा ही मिलता है।" सुगंधा देवी ने गहरी सांस ले कर कहा____"उसको अपने बहन और बहनोई के लिए हवेली की सारी संपत्ति और ज़मीन जायदाद चाहिए थी लेकिन मिला क्या? ख़ैर उसके बाद क्या हुआ?"
"होना क्या था?" दादा ठाकुर ने कहा____"और अब भला हो भी क्या सकता था? सब बहुत दुखी थे किंतु हम उन सबको ये कह कर आए हैं कि जब तक हमारे छोटे भाई के दोनों बच्चों की पढ़ाई चल रही है तब तक हम सच्चे दिल से और पूरी ईमानदारी से इस हवेली में रहते हुए उनके लिए वो सब करेंगे जो उनके लिए बेहतर होगा। जिस दिन दोनों बच्चों की पढ़ाई पूरी हो जाएगी उस दिन हम ये हवेली और सारी ज़मीन जायदाद उनकी बहन बेटी यानी मेनका को सौंप देंगे और हम अपने परिवार को ले कर कहीं दूसरी जगह चले जाएंगे।"
"ये...ये क्या कह रहे हैं आप?" सुगंधा देवी ने बुरी तरह चौंकते हुए कहा____"आपने उनसे ऐसा क्यों कहा?"
"क्योंकि हमारा छोटा भाई यही तो चाहता था और इसी चाहत में तो वो अपनी जान भी गंवा कर चला गया।" दादा ठाकुर ने सहसा दुखी हो कर कहा____"मरने के बाद भी अगर उसकी ये चाहत पूरी न हुई तो उसकी आत्मा को शांति नहीं मिलेगी। इसी लिए हमने उनसे ऐसा कहा और सच कहें तो हम खुद भी यही चाहते हैं। इतना कुछ होने के बाद अब ज़रा भी किसी चीज़ का मोह नहीं रहा हमें। बस यही मन करता है कि इस सबको छोड़ कर कहीं ऐसी जगह चले जाएं जहां दूर दूर तक कोई न हो, कोई छल कपट न हो, सिर्फ शांति हो।"
"मन तो हमारा भी यही करता है ठाकुर साहब।" सुगंधा देवी ने कहा____"लेकिन फिर ये ख़याल आता है कि ऐसे में हमारे बेटे का क्या होगा? बेटे के साथ साथ उनका क्या होगा जो हमारे बेटे के जीवन में उसकी पत्नियां बन कर आने वाली हैं? अपनी तरह उन्हें भी दरबदर कर देना क्या उचित होगा?"
"हम मानते हैं कि ऐसा करना उचित नहीं होगा सुगंधा।" दादा ठाकुर ने कहा____"लेकिन हम ये भी जानते हैं कि वो हमारे हर फ़ैसले का सम्मान करेंगे और वही करेंगे जो हम चाहेंगे। बाकी ऊपर वाले की इच्छा।"
सुगंधा देवी कुछ कह न सकीं। मन में तरह तरह के विचारों का मानों तूफ़ान सा आ गया था। कुछ देर तक वो दादा ठाकुर को देखती रहीं उसके बाद उनके बगल में लेट गईं।
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"ये सुन कर तो बड़ी राहत महसूस हुई कि सफ़ेदपोश पकड़ लिया गया था।" फूलवती ने सोचने वाले अंदाज़ में कहा____"लेकिन ये जान कर बड़ा अजीब लग रहा है कि दादा ठाकुर ने तुम्हें इस बारे में कुछ बताया क्यों नहीं? आख़िर ऐसी क्या वजह हो सकती है इसके पीछे?"
"हां काका।" रूपचंद्र मानों खुद को बोलने से रोक न सका____"दादा ठाकुर ने सफ़ेदपोश के बारे में भला क्यों आपको कुछ नहीं बताया? अब तो हम उनके अपने ही हैं और उनके बेटे वैभव से रूपा का ब्याह होने के बाद तो हमारा उनसे एक अटूट रिश्ता भी बन जाएगा। ऐसे में अगर वो सफ़ेदपोश के बारे में आपको बता भी देते तो क्या हो जाता?"
"शायद कोई ऐसी बात है जिसे वो बताना नहीं चाहते थे।" गौरी शंकर ने कहा____"उनकी बातों से तो यही प्रतीत हुआ था। सफ़ेदपोश के बारे में ज़िक्र होते ही वो एकदम से बेहद गंभीर और संजीदा हो गए थे।"
"बड़ी अजीब बात है।" फूलवती ने कहा____"जो रहस्यमय व्यक्ति उनके बेटे की जान का दुश्मन बना हुआ था उसके पकड़ लिए जाने की बात उन्होंने हमसे छुपाई और तुम्हारे पूछने पर उन्होंने कुछ बताया भी नहीं। क्या तुम्हें नहीं लगता कि ऐसा कर के उन्होंने कहीं न कहीं हमें ये एहसास दिला दिया है कि हम अब भी उनके लिए पराए हैं और वो अभी भी हम पर पूर्ण रूप से भरोसा नहीं करते हैं?"
"वैसे इसमें उनकी कोई ग़लती भी तो नहीं है भौजी।" गौरी शंकर ने गहरी सांस ली____"हमने जो कुछ उनके साथ किया है उसके चलते क्या आपको लगता है कि इतना जल्दी वो हम पर इस क़दर भरोसा करने लगेंगे कि वो हमें अपनी कोई बहुत ही व्यक्तिगत बातें बताने लगें?"
"मैं मानती हूं कि हम पर वो इतना जल्दी इतना ज़्यादा भरोसा नहीं कर सकते।" फूलवती ने कहा____"लेकिन सवाल है कि सफ़ेदपोश के बारे में तुम्हें बताने में क्या समस्या थी उन्हें? भला ऐसा क्या था सफ़ेदपोश में कि उन्होंने तुम्हें उसके बारे में बताया नहीं?"
गौरी शंकर ख़ुद भी जाने कितनी ही देर से इस सवाल के जवाब को सोचने समझने की कोशिश कर रहा था। जब से वो हवेली से आया था तभी से सोच रहा था लेकिन कुछ समझ नहीं आया था उसे। ये अलग बात है कि उसके मन में कई तरह की आशंकाएं उठ रहीं थी।
"सफ़ेदपोश उनके बेटे का जानी दुश्मन था गौरी।" फूलवती ने कहा____"ज़ाहिर है ऐसे व्यक्ति के पकड़े जाने से दादा ठाकुर को सफलता के साथ साथ बेहद खुशी भी हुई होगी। उनके जैसा व्यक्ति अपने सबसे बड़े ख़तरे के पकड़े जाने पर पूरे गांव वालों को ख़बर करता कि उन्होंने उस सफ़ेदपोश को पकड़ लिया है जो अब तक उनके बेटे की जान का दुश्मन बना हुआ था। इतना ही नहीं जिस तरह से सफ़ेदपोश के बारे में दूर दूर तक सबको पता था उसके चलते उसके पकड़े जाने पर भी ये बात जंगल में लगी आग की तरह हर जगह फैल जाती मगर ऐसा कुछ नहीं हुआ। सफ़ेदपोश को उन्होंने कई दिनों पहले पकड़ लिया था और अभी तक इस बारे में गांव में किसी को पता ही नहीं चला है। क्या ये सोचने वाली बात नहीं है कि उन्होंने ऐसे ख़तरनाक व्यक्ति के बारे में सबसे क्यों छुपाया और तो और तुम्हारे पूछने पर भी उन्होंने उसके बारे में तुम्हें कुछ नहीं बताया....क्यों?"
"शायद बदनामी हो जाने की वजह से।" रूपचंद्र ने जैसे संभावना ब्यक्त की।
"किस तरह की बदनामी?" फूलवती ने चौंक कर पूछा।
"सच पता चल जाने की बदनामी।" गौरी शंकर सहसा कहीं खोए हुए से लहजे में बोल पड़ा था।
"क...क्या मतलब?" फूलवती और रूपचंद्र एक साथ चौंके।
"मुझे ऐसा लग रहा है कि सफ़ेदपोश कोई ऐसा व्यक्ति रहा होगा जिसके पकड़े जाने पर अब वो उसका सच नहीं बताना चाहते हैं।" गौरी शंकर ने अजीब भाव से कहा____"वरना ऐसे ख़तरनाक व्यक्ति के बारे में सबको बताने में उन्हें क्या आपत्ति हो सकती थी? एक बात और, उन्होंने उसके बारे में जब मुझे कुछ नहीं बताया तो यकीनन महेंद्र सिंह को भी नहीं बताया होगा।"
"ये सब तो ठीक है।" रूपचंद्र कुछ ज़्यादा ही उत्सुक और व्याकुल सा हो कर बोला____"पर अब सवाल ये है कि ऐसा वो कौन व्यक्ति रहा होगा जो सफ़ेदपोश बना हुआ था और जिसका सच पता चलने के बाद दादा ठाकुर बाकी किसी को भी उसके बारे में बताना नहीं चाहते हैं?"
"कहीं वो सफ़ेदपोश उनका अपना ही तो कोई न रहा होगा?" फूलवती ने चौंकने वाले अंदाज़ से संभावना ज़ाहिर करते हुए कहा।
"ह...हां शायद।" गौरी शंकर के मस्तिष्क में मानों बिजली चमकी____"बिल्कुल ऐसा ही हो सकता है और यकीनन यही वजह हो सकती है उनके द्वारा सफ़ेदपोश के बारे में कुछ भी न बताने की। वो शायद किसी भी सूरत में ये नहीं चाहते हैं कि किसी को उसके बारे में पता चले। शायद यही वजह है कि इतने दिनों के बाद भी किसी को सफ़ेदपोश के पकड़ लिए जाने की भनक तक नहीं लग पाई है।"
"हाय राम!" फूलवती ने आश्चर्य से आंखें फाड़ कर कहा____"मुझे तो अब यकीन सा होने लगा है कि यही बात हो सकती है। मेरा मतलब है कि वाकई में सफ़ेदपोश उनका अपना ही कोई था।"
"लेकिन कौन?" रूपचंद्र बोल पड़ा____"दादा ठाकुर के अपनों में से ऐसा वो कौन हो सकता है जो सफ़ेदपोश बना हुआ था? इससे भी बड़ा सवाल ये है कि अगर वाकई में उनका अपना ही कोई सफ़ेदपोश था तो क्यों था? आख़िर वो ये सब क्यों कर रहा था?"
"सफ़ेदपोश का संबंध दादा ठाकुर के बेटे वैभव से ही नहीं बल्कि चंद्रकांत से भी जुड़ा हुआ नज़र आया था।" गौरी शंकर ने सोचने वाले अंदाज़ से कहा____"उसने चंद्रकांत को उसके बेटे के हत्यारे के बारे में बताया था जिसके चलते चंद्रकांत ने अपनी बहू को मार डाला था। इस मामले में दादा ठाकुर और महेंद्र सिंह दोनों ही इस निष्कर्ष पर पहुंचे थे कि सफ़ेदपोश ने चंद्रकांत को उसके बेटे के हत्यारे के बारे में जो कहानी सुनाई थी वो झूठ थी। यानि सफ़ेदपोश ने अपने किसी मकसद के चलते ही ये सब किया था अथवा करवाया था। अब सवाल ये है कि सफ़ेदपोश ने चंद्रकांत को उसके बेटे के हत्यारे के बारे में झूठी कहानी सुना कर उससे अपनी ही बहू को क्यों मरवा डाला? आख़िर ऐसा कर के क्या हासिल हो गया था उसे?"
"अगर ये मान कर चलें कि सफ़ेदपोश दादा ठाकुर के अपनों में से ही कोई था।" रूपचंद्र ने सोचने वाले अंदाज़ में कहा____"तो शायद ये समझना आसान ही है कि सफ़ेदपोश ने चंद्रकांत के साथ ऐसा क्यों किया था?"
"क्या मतलब है तुम्हारा?" गौरी शंकर ने आशंकित भाव से उसे देखा।
"मुझे अब समझ आ रहा है काका कि सफ़ेदपोश कौन रहा होगा।" रूपचंद्र सहसा उत्साहित भाव से बोल पड़ा____"शायद दादा ठाकुर का छोटा भाई।"
"ये...ये क्या कह रहे हो तुम?" गौरी शंकर के साथ साथ फूलवती भी बुरी तरह चौंकी।
"हां काका।" रूपचंद्र उत्साहित भाव से ही बोला____"अगर वाकई में सफ़ेदपोश दादा ठाकुर का ही कोई अपना था तो चंद्रकांत से उसका संबंध भी समझ में आ जाता है। आप लोगों ने चंद्रकांत और उसके बेटे के साथ मिल कर मझले ठाकुर यानि जगताप और दादा ठाकुर के बड़े बेटे अभिनव की हत्या की थी। दादा ठाकुर ने बदले के रूप में हमसे तो बदला ले लिया लेकिन चंद्रकांत से नहीं ले सके।"
"इस हिसाब से तो दादा ठाकुर को ही सफ़ेदपोश होना चाहिए।" गौरी शंकर ने उलझन भरे से कहा____"जगताप ठाकुर कैसे हो सकता है सफ़ेदपोश? वो तो हमारे द्वारा मार ही दिया गया था, जबकि उसके मरने के बाद भी सफ़ेदपोश देखा गया था।"
"दादा ठाकुर सफ़ेदपोश इस लिए नहीं हो सकते क्योंकि इस सारे मामले के शुरू होने से पहले किसी की हत्या नहीं हुई थी।" रूपचंद्र ने कहा____"वैसे भी छोटे ठाकुर और अभिनव की हत्या के बाद दादा ठाकुर ने बदले में जो किया वो खुले आम किया था। अगर वो सफ़ेदपोश होते तो उन्हें खुले आम ऐसा करने की क्या ज़रूरत थी? वो छुप कर भी हमारा खात्मा कर सकते थे। जबकि उन्होंने ऐसा नहीं किया, बल्कि खुले आम किया और इस चक्कर में उन्हें अपना मुखिया वाला पद भी गंवा देना पड़ा। इसी से स्पष्ट है कि सफ़ेदपोश वो नहीं बल्कि उनके भाई थे।"
"हैरत की बात है।" गौरी शंकर ने जैसे बड़ी मुश्किल से इस बात को हजम करने की कोशिश करते हुए कहा____"सबसे पहले तो सवाल यही उठता है कि जगताप ठाकुर सफ़ेदपोश क्यों बना होगा और उसने किस वजह से अपने ही बड़े भाई और उसके बेटे का दुश्मन बन गया होगा? दूसरे उसकी हत्या हो जाने के बाद भी सफ़ेदपोश कैसे देखा जाता रहा?"
"आज के युग में राम भरत जैसे भाई नहीं पाए जाते काका।" रूपचंद्र ने कहा____"आज के युग की सच्चाई ये है कि रिश्ते नातों के लिए कोई कुर्बान नहीं होता। संभव है कि छोटे ठाकुर ने सारी धन दौलत को हथिया लेने का सोचा रहा हो और इसी वजह से उन्होंने सफ़ेदपोश का रूप धारण किया रहा हो। खुल कर तो वो कुछ कर नहीं सकते थे इस लिए उन्होंने इस तरह का रास्ता अपनाया होगा। उसके बाद उनकी हत्या हो जाने के चलते सफ़ेदपोश का रूप उनके ही किसी अपने ने धारण कर लिया होगा।"
"यकीन तो नहीं हो रहा।" गौरी शंकर ने कहा____"लेकिन जाने क्यों कहीं न कहीं तुम्हारी इन बातों पर यकीन करने का मन भी कर रहा है। बहरहाल, अगर ऐसा ही रहा होगा तो वाकई में ये बड़े ही आश्चर्य की बात है। अगर इस तरीके से सोचा जाए तो कहीं न कहीं सच में ये आभास होता है कि ऐसा ही कुछ रहा होगा। अब सवाल ये है कि अगर वाकई में सफ़ेदपोश जगताप ही था तो वो ख़ुद कैसे मौत का शिकार हो गया? क्या उसे हमारी योजनाओं के बारे में ज़रा भी भनक न लगी रही होगी? दूसरे, उसकी मौत के बाद उसकी जगह सफेदपोश कौन बना होगा?"
"उनके दोनों बेटे तो हो नहीं सकते।" रूपचंद्र ने कहा____"क्योंकि वो दोनों बेहतर शिक्षा प्राप्त करने के लिए विदेश में हैं तो अब बचती हैं उनकी धर्म पत्नी और बेटी। कुसुम में इतना साहस और क्षमता नहीं है कि वो सफ़ेदपोश बन कर कोई ख़तरनाक काम कर सके। अब बचीं मझली ठकुराईन तो संभव है कि वो ही जगताप चाचा के बाद सफ़ेदपोश बन गईं रहीं हों।"
"क्या सच में वो सफ़ेदपोश के रूप के ऐसे ख़तरनाक काम कर सकती हैं?" फूलवती ने हैरत से देखते हुए कहा।
"जगताप की हत्या के बाद।" गौरी शंकर ने कुछ सोचते हुए कहा____"दादा ठाकुर ने हमारे अपनों का नर संघार किया था। उसके बाद मामला ठंडा सा पड़ गया था। कुछ दिनों बाद मुरारी के छोटे भाई जगन की मौत हुई और फिर रघुवीर की। जगन को तो ख़ैर वैभव ने गोली मार दी थी लेकिन रघुवीर की हत्या एक रहस्य बन गई थी जोकि अब भी बनी हुई है। रघुवीर की हत्या के बाद उसकी बीवी रजनी की हत्या उसके ही ससुर ने की और नाम जुड़ा सफ़ेदपोश का।"
"मुझे तो लगता है काका कि रघुवीर की हत्या भी सफ़ेदपोश ने ही की होगी।" रूपचंद्र ने तपाक से कहा____"अगर मझली ठकुराईन ही सफ़ेदपोश बनी होंगी तो यकीनन उन्होंने ही रघुवीर की हत्या की होगी। आख़िर उनके पति की हत्या में उसका भी तो हाथ था।"
"हां अब तो मुझे भी ऐसा ही लगता है।" गौरी शंकर ने सिर हिलाया____"लेकिन मेरी समझ में ये नहीं आ रहा कि अगर सफ़ेदपोश के रूप में अपने पति का बदला लेने के लिए मझली ठकुराईन ने ही रघुवीर की हत्या की थी तो फिर उसने चंद्रकांत के हाथों रजनी को क्यों मरवा डाला? रजनी का तो कोई दोष ही नहीं था, बल्कि असली दोषी तो चंद्रकांत था। उसने चंद्रकांत को क्यों नहीं मार डाला?"
"शायद उसके हाथों बहू को मरवा कर वो चंद्रकांत को दुख और संताप में डुबा देना चाहती थीं।" फूलवती ने जैसे संभावना ब्यक्त की____"जैसा कि ऐसा करने के बाद वो हो भी गया था।"
"हां शायद यही हो सकता है।" गौरी शंकर ने सिर हिलाया।
"तो इसका मतलब ये हुआ कि अब हम जान चुके हैं कि सफ़ेदपोश कौन था?" रूपचंद्र ने कहा____"और क्यों उसके पकड़ लिए जाने की बात दादा ठाकुर ने आपसे ही नहीं बल्कि हर किसी से छिपाई? यानि वो नहीं चाहते कि किसी को उनके घर की इतनी बड़ी हैरतअंगेज
बात पता चले?"
"हां शायद इसी लिए उन्होंने मुझे इस बारे में नहीं बताया।" गौरी शंकर को जैसे अब पूर्ण रूप से मान लेना पड़ा। वो मन ही मन इस रहस्योद्घाटन से बड़ा चकित था____"ख़ैर जो भी हो लेकिन अब हमें भी इस बात को अपने तक ही रखना चाहिए। हमारी बेटी उनकी होने वाली बहू है। आने वाले समय में वो भी उन्हीं के परिवार का हिस्सा बन जाएगी। अतः इस संगीन बात को छुपा के रखना ही बेहतर होगा। मैं नहीं चाहता कि इससे उसकी आने वाली पीढ़ियों पर कोई असर हो।"
"हां सही कहा तुमने।" फूलवती ने कहा____"जो हो गया उसे भुला देना ही बेहतर है। हमें ये भी नहीं भूलना चाहिए कि आज दादा ठाकुर की वजह से ही हमारी बेटियों का ब्याह होने वाला है और लोगों के बीच हम सर उठा कर चलने के क़ाबिल बने हैं।"