अध्याय - 159
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"आय हाय! समय नहीं है तेरे पास।" शालिनी ने आंखें फैलाई____"ज़्यादा बातें न कर मेरे सामने। मुझे पता है कि आज कल तू खाली बैठी जीजा जी के हसीन ख़यालों में ही खोई रहती है, बात करती है।"
उसकी बात सुन कर रागिनी झूठा गुस्सा दिखाते हुए उसे मारने के लिए दौड़ी तो शालिनी हंसते हुए भाग ली। उसके जाने के बाद रागिनी भी मंद मंद मुस्कुराते हुए घर के अंदर चली गई।
अब आगे....
अगले दो दिनों के भीतर ही हवेली में नात रिश्तेदार आ गए। मेरे ननिहाल वाले और चाची के मायके से भी आ गए। मेरे ननिहाल से नाना नानी और बड़े मामा मामी को छोड़ कर सभी आ गए जिनमें उनके बच्चे भी थे। उधर चाची के मायके से उनके बड़े भैया भाभी आए। उनके मझले भाई अवधराज नहीं आए। ऐसा शायद इस लिए कि जगताप चाचा को जो ज्ञान उन्होंने दिया था उसके चलते अब वो यहां किसी को अपना मुंह नहीं दिखाना चाहते थे। किंतु अपने बच्चों को ज़रूर भेज दिया था।
हवेली में एकदम भीड़ सी जमा हो गई थी। अंदर इंसान ही इंसान नज़र आने लगे थे। पिता जी के कहने पर मैंने सबके रहने की उचित व्यवस्था की जोकि इतनी बड़ी हवेली में कोई मुश्किल काम नहीं था। नीचे ऊपर के बहुत से कमरे खाली ही रहते थे। सबके आ जाने से एक अलग ही रौनक और चहल पहल नज़र आने लगी थी।
मेरे मझले मामा यानि अवधेश सिंह राणा और छोटे मामा यानि अमर सिंह राणा बैठक में पिता जी के पास बैठे हुए थे। मझले मामा का बेटा महेश सिंह राणा जोकि शादी शुदा था वो भी बैठक में ही था। इसके साथ ही चाची के बड़े भाई हेमराज सिंह भी बैठे हुए थे। उनकी पत्नी सुजाता अंदर मां लोगों के पास थीं। अमर मामा के लड़के लड़कियां भी अंदर ही थे।
छोटे मामा की दोनों बेटियां यानि सुमन और सुषमा जोकि उमर में कुसुम से क़रीब एक डेढ़ साल छोटी थीं वो अंदर कुसुम के साथ थीं और उनका छोटा किंतु इकलौता भाई विजय मां लोगों के पास बैठा हुआ था। मैं जब छोटा था तो अपने ननिहाल अक्सर जाया करता था और ज़्यादा समय तक वहीं रहता था लेकिन फिर जैसे जैसे बड़ा हुआ और मुझमें बदलाव आया तो मैंने वहां जाना कम कर दिया था।
मुझे भीड़ भाड़ वाला माहौल ज़्यादा पसंद नहीं था इस लिए मैं सबकी व्यवस्था करने के बाद चुपचाप अपने कमरे में पहुंच गया था। एकाएक ही हालात के बदलने से मेरे अंदर अजीब सा एहसास होने लगा था। बार बार यही ख़याल उभर आता कि अब बस कुछ ही दिनों में मेरा विवाह हो जाएगा और मैं भी शादी शुदा हो जाऊंगा। लोगों के एक ही बीवी होती है जबकि मेरी दो हो जाएंगी। एक तरफ रूपा और दूसरी तरफ रागिनी...हां अब तो भाभी को मुझे उनके नाम से पुकारना होगा। इस एहसास के साथ ही मेरे अंदर अजीब सी सिहरन दौड़ गई। पलक झपकते ही भाभी का खूबसूरत चेहरा आंखों के सामने उजागर हो गया।
उफ्फ! कितनी सुंदर हैं वो। जब भैया जीवित थे तब वो सुहागन थीं और सुहागन के रूप में उनकी सुंदरता देखते ही बनती थी। मैं यूं ही तो नहीं उनके सम्मोहन में फंस जाता था। मैंने अपने ख़यालों में फिर से उन्हें सुहागन के रूप में सजा हुआ देखा तो मेरे अंदर फिर से अजीब सी सिहरन दौड़ गई। बिजली की तरह ज़हन में ख़याल भी उभर आया कि सुंदरता की यही मूरत अब मेरी पत्नी बनने वाली है। विवाह के बाद मुझे उनके साथ पति की तरह ही पेश आना होगा। मैं सोचने लगा कि क्या मैं सहजता से ऐसा कर पाऊंगा? आख़िर वो अब तक मेरी भाभी थीं और उमर में भी मुझसे बड़ी थीं। आख़िर कैसे एक पति के रूप में मैं उनके साथ पेश आ पाऊंगा? रूपा के मामले में मुझे कोई फ़िक्र नहीं थी क्योंकि उसके मामले में मैं पहले से ही पूरी तरह सहज था। उसके साथ मैं पहले भी वो सब कुछ कर चुका था जो शादी के बाद पति पत्नी करते हैं लेकिन भाभी के बारे में तो मैंने कभी इस तरह की कोई कल्पना ही नहीं की थी। भाभी के रिश्ते में उनसे थोड़ा बहुत हंसी मज़ाक कर लेता था लेकिन उसमें भी मैं हमारे बीच की मर्यादा का सबसे ज़्यादा ख़याल रखता था।
मैं जैसे जैसे इस सबके बारे में सोचता जा रहा था वैसे वैसे मेरे अंदर बेचैनी और घबराहट सी पैदा होती का रही थी। मैं चाह कर भी खुद को सामान्य नहीं कर पा रहा था। ऐसा नहीं था कि मैं भाभी को अब अपनी पत्नी की नज़र से देखने और सोचने नहीं लगा था लेकिन जहां बात इसके आगे की आती थी वहां की बातें सोच कर मेरे जिस्म में सिहरन दौड़ने लगती थी और बड़ा अजीब सा लगने लगता था।
"क्या हाल है मेरे दूल्हे राजा?" अचानक कमरे में गूंज उठी किसी की आवाज़ से मैं उछल ही पड़ा। आंखें खोल कर देखा तो मेरे छोटे मामा अमर सिंह कमरे में दाख़िल हो कर मुझे ही देख रहे थे। चेहरे पर खुशी और होठों पर गहरी मुस्कान लिए जैसे वो मुझे चिढ़ाते से नज़र आए। छोटे मामा से मेरी खूब पटती थी।
"अरे! मामा ये आप हैं?" मैंने उठते हुए कहा____"अचानक से आपकी आवाज़ सुन कर मैं चौंक ही पड़ा था। आइए बैठिए।"
"वो तो मैं बैठूंगा ही।" मामा ने मुस्कुराते हुए कहा और फिर आ कर पलंग के किनारे पर बैठ गए। कुछ पलों तक मुझे ध्यान से देखते रहे फिर बोले____"अच्छा तो यहां अपने कमरे में अकेले पड़ा तू खुद को तैयार करने में जुटा हुआ है।"
"क...क्या मतलब है आपका?" मैं समझ तो गया लेकिन फिर भी अंजान बनते हुए पूछा।
"बेटा अच्छी तरह जानता हूं तुझे।" मामा ने घूरते हुए कहा____"मेरे सामने अंजान बनने की कोशिश मत कर। मुझे पता है कि तू आने वाले दिनों के लिए खुद को तैयार का रहा है। वैसे अच्छा ही है, तैयार करना भी चाहिए। आदमी जब एक बीवी के लिए खुद को तैयार करने की कोशिश करता है तो तेरे जीवन में तो दो दो बीवियां होंगी। ऐसे में तेरा खुद को तैयार करना उचित ही है। ख़ैर तो अब तक कितना तैयार कर लिया है तूने खुद को?"
"ऐसा कुछ नहीं है मामा।" मैंने अपनी झेंप को जबरन छुपाने की कोशिश करते हुए कहा____"क्या आपको सच में लगता है कि आपके भांजे को किसी बात के लिए तैयार करने की ज़रूरत है? आप तो जानते हैं कि औरतों के मामले में मैं बहुत आगे रहा हूं।"
"बिल्कुल जानता हूं भांजे और मानता भी हूं कि इस मामल में तू बहुत आगे रहा है।" मामा ने कहा____"लेकिन बेटा तुझे ये भी समझना चाहिए कि आम औरतों में और खुद की बीवी में धरती आसमान का फ़र्क होता है। आम औरतों के साथ तू कैसा भी बर्ताव कर के अपनी जान छुड़ा सकता है लेकिन अपनी बीवी से किसी कीमत पर जान नहीं छुड़ा सकता। इसी लिए कहता हूं कि इस मामले में तेरी बयानबाज़ी से कुछ नहीं हो सकता।"
"आप तो मुझे बेवजह डरा रहे हैं मामा।" मैंने अपने अंदर झुरझुरी सी महसूस की____"मैं भला क्यों अपनी बीवियों से जान छुड़ाने का सोचूंगा? बल्कि मैं तो खुद ही ये चाहूंगा कि वो मुझसे दूर न हों।"
"अच्छा ऐसा है क्या?" मामा ने आंखें फैला कर कहा____"फिर तो ये बड़ी अच्छी बात है। कम से कम इसी बहाने अब तू भी सही रास्ते पर आ जाएगा। सच कहूं तो मुझे बहुत खुशी हुई थी ये जान कर कि तेरा ब्याह होने वाला है लेकिन ये जान कर थोड़ी हैरानी भी हुई थी कि तेरा एक नहीं दो दो लड़कियों से ब्याह होने वाला है। तेरे नाना को भी बड़ी हैरानी हुई थी लेकिन फिर जब उन्होंने मामले की गंभीरता को समझा तो फिर वो यही कहने लगे कि ये अच्छा ही हो रहा है। इस तरह से कम से कम रागिनी बहू का जीवन भी फिर से संवर जाएगा। अन्यथा विधवा के रूप में बाकी का सारा जीवन गुज़ारना उसके लिए यकीनन हद से ज़्यादा कठिन होता।"
"ये सब तो ठीक है मामा।" मैंने थोड़ा बेचैन भाव से कहा____"लेकिन सच कहूं तो भाभी से विवाह होने की बात से मुझे बड़ा अजीब सा महसूस होता है। जिस दिन से मुझे इस बारे में पता चला है उसी दिन से जाने क्या क्या सोचते हुए खुद को समझाने की कोशिश कर रहा हूं कि आगे जो भी होगा उसका मैं सहजता से सामना कर लूंगा। मगर सच तो ये है कि अब तक मैं भाभी के लिए खुद को पूरी तरह से तैयार नहीं कर पाया हूं।"
"हां समझ सकता हूं।" मामा ने कहा____"लेकिन अब तो तुझे इसके लिए खुद को तैयार करना ही पड़ेगा। वैसे मैं तो यही कहूंगा कि तुझे इस बारे में ज़्यादा सोचना नहीं चाहिए। असल में कभी कभी ऐसा होता है कि हमें मौजूदा समय में किसी समस्या को सुलझाने का तरीका समझ में नहीं आता लेकिन जब वैसा समय आ जाता है तो सब कुछ बहुत ही सहजता से हो जाता है। इस लिए तू ये सब वक्त पर छोड़ दे। ये सोच कर कि जो होगा देखा जाएगा।"
"हम्म्म्म शायद आप सही कह रहे हैं।" मैंने सिर हिलाते हुए कहा____"और वैसे भी इसके अलावा मेरे पास कोई दूसरा रास्ता भी तो नहीं है। ख़ैर आप अपनी सुनाएं, मामी के साथ कैसी कट रही है जिंदगी?"
"क्या बताऊं भांजे?" मामा ने सहसा गहरी सांस ली____"बस यूं समझ ले कि किसी तरह कट ही रही है।"
"ऐसा क्यों कह रहे हैं आप?" मैं एकदम से चौंका____"सब ठीक तो है ना?"
"क्या ख़ाक ठीक है यार।" मामा ने जैसे खीझते हुए कहा____"साला बच्चे बड़े हो जाते हैं तो हम मर्दों को जाने कैसे कैसे समझौते करने पड़ते हैं। तेरी मामी को बहुत समझाता हूं लेकिन वो मूर्ख कुछ समझती ही नहीं है। मैंने बहुत सी ऐसी औरतों को देखा है जो ज़्यादा उमर हो जाने के बाद भी संभोग सुख का मज़ा लेती रहती हैं और एक तेरी मामी है कि साली अभी से खुद को बुड्ढी कहने लगी है।"
"फिर तो ये आपके लिए बड़ी भारी समस्या हो गई है।" मैंने चकित भाव से कहा____"ख़ैर अब आप क्या करेंगे?"
"करूंगा नहीं बल्कि करने लगा हूं भांजे।" मामा ने कहा____"तू ही बता कि ऐसे में मैं इसके अलावा करता ही क्या कि अपनी भूख मिटाने के लिए बाहर किसी औरत के पास जाऊं? तेरी मामी को भी कहा था कि अगर वो इस बारे में मेरा साथ नहीं देगी तो मुझे बाहर किसी दूसरी औरत के साथ ये सब करना पड़ेगा।"
"तो क्या ये सुनने के बाद भी मामी को समझ नहीं आया?" मैंने हैरानी से पूछा।
"पहले तो गुस्सा हो रही थी।" मामा ने कहा____"कह रही थी कि मेरे अंदर ये कैसी गर्मी चढ़ी है कि मैं इतने बडे बड़े बच्चों का बाप हो जाने के बाद भी ये सब करने पर तुला हुआ हूं? मैंने उसे समझाया कि ये तो उसके लिए अच्छी बात है कि मैं अब भी उसे संभोग का सुख देना चाहता हूं वरना ऐसी भी औरतें हैं जो अपने पति से संभोग सुख पाने के लिए तरसती हैं और फिर वो मज़बूरी में ग़ैर मर्दों से संबंध बना लेती हैं।"
"फिर क्या कहा मामी ने?" मैंने उत्सकुता से पूछा।
"दो तीन दिनों तक बात ही नहीं की उसने।" मामा ने बताया____"मैं भी गुस्सा हो गया था इस लिए मैंने भी उसे मनाने का नहीं सोचा। जब उसे ही कुछ समझ नहीं आ रहा था तो मैंने भी सोच लिया कि अब उससे इस सबकी उम्मीद रखना ही बेकार है। उसके बाद मैंने वही किया जो करने का मैंने मन बना लिया था। तुझे तो पता ही है कि हमारे खेतों में काम करने वाली ऐसी औरतों की कमी नहीं है। मैंने उन्हीं में से एक को इशारा किया और फिर उसके साथ मज़ा किया। तब से यही चल रहा है।"
"और मामी को भी ये सब पता है?" मैंने बेयकीनी से पूछा।
"हां, मैंने बता दिया था उसको।" मामा ने कहा____"जब वो अपने से ही मुझसे बोलने लगी तो मैंने एक दिन उसे सब कुछ बता दिया। ये भी कहा कि अगर वो अब भी मेरे बारे में सोचेगी तो मैं बाहर की औरतों के साथ ये सब करना बंद कर दूंगा।"
"तो फिर क्या कहा मामी ने?" मैंने बड़ी उत्सुकता से पूछा।
"अभी तो कुछ नहीं कहा।" मामा ने कहा____"लेकिन लगता है कि मान जाएगी। ऐसा मैं इस लिए कह रहा हूं क्योंकि दो दिन पहले जब इस बारे में मैंने उसे बताया था तब उसने यही कहा था कि मैं बाहर ये सब करना बंद कर दूं।"
"इसका मतलब ये दो दिन पहले की बात है।" मैंने कहा____"और मामी के ऐसा कहने का शायद मतलब भी यही है कि वो अब आपका कहना मानेंगी।"
"लगता तो यही है।" मामा ने कहा____"लेकिन दो दिन से अभी तक उसने अपनी तरफ से कोई पहल नहीं की है।"
"हो सकता है कि वो खुद पहल करने में शर्म महसूस करती हों।" मैंने जैसे संभावना ज़ाहिर की____"एक काम कीजिए, आज रात आप यहीं पर हवेली के किसी कमरे में एक साथ सोइए। मैं आप दोनों के लिए ऐसी व्यवस्था कर दूंगा। उसके बाद कमरे में आप और मामी जम के मज़ा कीजिएगा।"
"योजना तो बढ़िया है तेरी।" मामा ने खुशी ज़ाहिर करते हुए कहा____"लेकिन यहां पर अगर किसी को पता चल गया तो क्या सोचेंगे सब हम दोनों के बारे में?"
"किसी के सोचने की फ़िक्र क्यों करते हैं आप?" मैंने मुस्कुराते हुए कहा____"सबको पता है कि मामी आपकी अपनी ज़ायदाद हैं। उनके साथ ये सब करना किसी के लिए कोई बड़ी बात कैसे हो जाएगी?"
"हां तू सही कह रहा है।" मामा का चेहरा चमक उठा था____"तो फिर ठीक है भांजे। तू आज रात हमारे लिए बढ़िया सा इंतज़ाम कर दे। मैं भी आज तेरी मामी के साथ इतने समय की पूरी कसर निकालूंगा। साली बहुत मना करती थी ना तो अब बताऊंगा उसे।"
"अपने जज़्बातों पर काबू रखिए मामा।" मैंने हंसते हुए कहा____"जो भी करना बड़े एहतियात से और बड़े प्यार से करना। ये नहीं कि आपकी करतूतों से बाकी सबको भी पता चल जाए कि ठाकुर अमर सिंह अपनी बीवी की चीखें निकाल रहे हैं।"
"मर्द को मज़ा भी तो तभी आता है भांजे।" मामा ने मुस्कुराते हुए कहा____"जब औरत उसके द्वारा पेले जाने से हलक फाड़ कर चीखे। रहम की भीख मांगे।"
"चीखने तक तो ठीक है मामा।" मैंने कहा____"लेकिन रहम की भीख मांगने वाली स्थिति अच्छी नहीं होती। वो स्थिति पाशविक होती है जोकि मर्दों को शोभा नहीं देती।"
"अरे वाह!" मामा ने हैरानी से मेरी तरफ देखा____"ये तू कह रहा है? बड़ी हैरानी की बात है ये तो। मतलब कमाल ही हो गया। हद है, तू तो सच में देव मानुष बन गया है मेरे भांजे।"
"देव मानुष तो नहीं।" मैंने जैसे संशोधन किया____"लेकिन हां एक अच्छा इंसान ज़रूर बनना चाहता हूं। अपने उस अतीत को भूल जाना चाहता हूं जिसमें मैंने जाने कैसे कैसे कुकर्म किए थे।"
"चल अच्छी बात है।" मामा ने मेरा कंधा दबाते हुए कहा____"मैं तो पहले भी तुझसे कहा करता था कि ये सब छोड़ दे लेकिन तब शायद तू ऐसी मानसिकता में ही नहीं था कि तेरे समझ में कुछ आता। ख़ैर अच्छा हुआ कि अब तेरी सोच बदल गई है और तू अच्छा इंसान बनने का सोचने लगा है। उम्मीद करता हूं कि भविष्य में तू जीजा जी से भी बड़ा इंसान बन जाएगा।"
"नहीं मामा।" मैंने अधीरता से कहा____"मैं कभी भी पिता जी से बड़ा या उनके जैसा नहीं बन पाऊंगा। ऐसा इस लिए क्योंकि उनका नाम शुरू से ही हर मामले में साफ और बेदाग़ रहा है। उन्होंने शुरू से ही हर किसी के साथ अच्छा बर्ताव किया था और सबके दुख दूर करते आए हैं। मैंने तो अपने अब तक के जीवन में ऐसे कोई नेक काम किए ही नहीं हैं बल्कि जो भी किया है बुरा ही किया है। इस लिए उनके जैसा इस जन्म में तो बन ही नहीं सकता। किंतु हां ये कोशिश ज़रूर रहेगी कि अब से जो भी करूं वो अच्छा ही करूं।"
कुछ देर और मामा से बातें हुईं उसके बाद दोपहर के खाने का समय हो गया तो हम दोनों कमरे से बाहर निकल गए। मामा से बातें कर के मुझे बहुत अच्छा महसूस हो रहा था।
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दोपहर को थोड़ी देर आराम करने के बाद पिता जी और मझले मामा एक साथ किसी काम से बाहर चले गए जबकि बाकी लोग बैठक में बातें करने लगे। मैं भी बैठक में बैठा था और सबकी बातें सुन रहा था। अंदर सभी औरतें और लड़कियां काम में लगीं हुईं थी। ऐसा लग रहा था जैसे किसी को भी एक पल के लिए फुर्सत नहीं थी। कुछ औरतें गेंहू चावल और दाल साफ कर रहीं थी। हवेली के मुलाजिम हवेली को चमकाने में लगे हुए थे, कुछ हवेली के बाहर चारो तरफ की सफाई में लगे हुए थे।
अमर मामा दो बार मुझसे पूछ चुके थे कि आज रात मैंने उनका और मामी का हसीन मिलन कराने के लिए व्यवस्था की है या नहीं? मैंने मुस्कुराते हुए यही कहा कि वो फ़िक्र न करें। बच्चे बड़े हो रहे थे उनके फिर भी उनका अपना बचपना जैसे अभी तक नहीं गया था। मैंने उनसे कह तो दिया था कि वो फ़िक्र न करें लेकिन मैं खुद नहीं जानता था कि मैं सब कुछ करूंगा कैसे? कमरे का इंतज़ाम तो मैं बड़ी आसानी से कर सकता था लेकिन भीड़ भाड़ के माहौल में मामी को उनके पास पहुंचाना जैसे टेढ़ी खीर थी।
बहरहाल शाम तक दुनिया जहान की बातें चलती रहीं उसके बाद अंदर से एक नौकरानी सबके लिए चाय ले कर आ गई। हम सबने चाय पी। इस बीच सबने ये इच्छा जताई कि कुछ देर के लिए गांव घूम लिया जाए। मर्दों के पास फिलहाल के लिए जैसे कोई काम ही नहीं था। उधर पिता जी अभी तक नहीं आए थे।
मामा लोग गांव घूमने चले गए जबकि मैं हवेली के अंदर चला गया। मुझे समय रहते मामा का काम करना था लेकिन समझ नहीं आ रहा था कि कैसे करूं? मामी के पास जा कर उनसे खुल कर कुछ कह भी नहीं सकता था। यही सब सोचते हुए मैं अपने कमरे में लेटा हुआ था कि तभी मेरे कमरे का दरवाज़ा खुला और कुसुम के साथ मामा की लड़कियां आ गईं।
"आप यहां हैं और हम आपको बैठक में ढूंढने गए थे।" कुसुम ने आते ही कहा____"चलिए उठिए आपको बड़ी मां बुला रहीं हैं।"
"आप यहां अकेले कमरे में क्या कर रहे हैं भैया?" सुमन ने मेरे क़रीब आ कर कहा____"हम सबके साथ क्यों नहीं बैठते हैं?"
"वो इस लिए मेरी प्यारी बहना क्योंकि तेरे इस भैया को भीड़ भाड़ में रहना पसंद नहीं है।" मैंने बड़े स्नेह से उसकी तरफ देखते हुए कहा____"ख़ैर ये बता यहां तुम दोनों को अच्छा लग रहा है ना?"
"हां भैया।" सुषमा ने खुशी से कहा____"हमें यहां बहुत अच्छा लग रहा है। कुसुम दीदी से हमने बहुत सारी बातें की। दोनों बुआ से बातें की और हां छोटी बुआ के यहां से जो उनके भैया भाभी आए हैं उनसे भी बातें की।"
"ओह! तुम दोनों ने तो सबसे बातें कर ली और सबसे जान पहचान कर ली।" मैंने मुस्कुराते हुए कहा____"और अपने इस भैया से बातें करने का अब ध्यान आया है तुम दोनों को, हां?"
"वो हम लोग सबके पास बैठे बातें कर रहे थे न इस लिए आपसे मिलने का समय ही नहीं मिला हमें।" सुमन ने मासूमियत से कहा____"पर अब तो हम अपने भैया के पास आ ही गए ना?"
"चलो अच्छा किया।" मैंने कहा____"अच्छा अब तुम लोग जाओ। मैं भी जा कर देखता हूं कि मां ने किस लिए बुलाया है मुझे?"
थोड़ी ही देर में हम सब नीचे आ गए। मैं मां से मिला और पूछा कि किस लिए मुझे बुलाया है उन्होंने तो मां ने कहा कि मेरी मामियां मुझे पूछ रहीं थी इस लिए बुलाया। ख़ैर मैं दोनों मामियों से मिला। बड़ी मामी ने तो कुशलता ही पूछी किंतु छोटी मामी थोड़ा मज़ाकिया अंदाज़ से मुझे छेड़ने लगीं। सबके सामने मैं शर्माने लगा तो सब हंसने लगीं। कुछ देर बाद मैंने छोटी मामी से कहा कि मुझे उनसे ज़रूरी बात करनी है इस लिए क्या वो रात में मेरे कमरे में आ सकती हैं? मामी मेरी इस बात से राज़ी हो गईं। मैं मन ही मन ये सोच कर खुश हो गया कि चलो काम बन गया।
बहरहाल समय गुज़रा और रात हो गई। पिता जी आ गए थे। हम सब उनके साथ खाना खाने बैठे। आज काफी समय बाद हवेली में इस तरह की रौनक देखने को मिल रही थी। सब खुश थे, इसी हंसी खुशी में खाना ख़त्म हुआ और फिर सब बैठक में आ गए। बैठक में थोड़ी देर इस बारे में चर्चा हुई कि कल क्या क्या करना है उसके बाद सब सोने चले गए। मैं पहले ही अपने कमरे में पहुंच गया था। थोड़ी ही देर में छोटे मामा आ गए।
"अरे! भांजे तूने कुछ किया है या नहीं?" उन्होंने आते ही अपने मतलब की बात पूछी____"देख अब तो सोने का समय भी हो गया है और तूने अब तक अपनी मामी को मेरे पास नहीं भेजा।"
"फ़िक्र मत कीजिए मामा।" मैंने मुस्कुराते हुए कहा____"मैंने मामी को अपने कमरे में बुलाया है। वो आएंगी तो उन्हें किसी बहाने आपके पास भेज दूंगा। थोड़ा सबर कीजिए, आप तो ऐसे उतावले हो रहे हैं जैसे ये सब आप पहली बार करने वाले हैं।"
"अरे! पहली बार नहीं है मानता हूं।" मामा ने खिसियाते हुए कहा____"लेकिन साला लगता तो यही है कि तेरी मामी को पहली बार ही भोगने को मिलेगा। मुझे लगता है कि ऐसा इस लिए लग रहा है क्योंकि काफी समय हो गया उसके साथ मज़ा किए।"
"हां हां समझ गया मैं।" मैंने हल्के से हंसते हुए कहा____"अब आप जाइए। मामी खा पी कर ही आएंगी तब तक आपको इंतज़ार करना पड़ेगा।"
"अब तो इंतज़ार ही करना पड़ेगा भांजे।" मामा ने गहरी सांस ली____"बस तू बीच में धोखा मत करवा देना।"
मामा की इस बात पर मैं हंसा, जबकि वो बाहर निकल गए। मैंने ऊपर ही उनके लिए एक कमरे की व्यवस्था कर दी थी। अब बस इन्तज़ार था मामी के आने का। अगर वो मेरे कमरे में आएंगी तभी कुछ हो सकता था।
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"आय हाय! समय नहीं है तेरे पास।" शालिनी ने आंखें फैलाई____"ज़्यादा बातें न कर मेरे सामने। मुझे पता है कि आज कल तू खाली बैठी जीजा जी के हसीन ख़यालों में ही खोई रहती है, बात करती है।"
उसकी बात सुन कर रागिनी झूठा गुस्सा दिखाते हुए उसे मारने के लिए दौड़ी तो शालिनी हंसते हुए भाग ली। उसके जाने के बाद रागिनी भी मंद मंद मुस्कुराते हुए घर के अंदर चली गई।
अब आगे....
अगले दो दिनों के भीतर ही हवेली में नात रिश्तेदार आ गए। मेरे ननिहाल वाले और चाची के मायके से भी आ गए। मेरे ननिहाल से नाना नानी और बड़े मामा मामी को छोड़ कर सभी आ गए जिनमें उनके बच्चे भी थे। उधर चाची के मायके से उनके बड़े भैया भाभी आए। उनके मझले भाई अवधराज नहीं आए। ऐसा शायद इस लिए कि जगताप चाचा को जो ज्ञान उन्होंने दिया था उसके चलते अब वो यहां किसी को अपना मुंह नहीं दिखाना चाहते थे। किंतु अपने बच्चों को ज़रूर भेज दिया था।
हवेली में एकदम भीड़ सी जमा हो गई थी। अंदर इंसान ही इंसान नज़र आने लगे थे। पिता जी के कहने पर मैंने सबके रहने की उचित व्यवस्था की जोकि इतनी बड़ी हवेली में कोई मुश्किल काम नहीं था। नीचे ऊपर के बहुत से कमरे खाली ही रहते थे। सबके आ जाने से एक अलग ही रौनक और चहल पहल नज़र आने लगी थी।
मेरे मझले मामा यानि अवधेश सिंह राणा और छोटे मामा यानि अमर सिंह राणा बैठक में पिता जी के पास बैठे हुए थे। मझले मामा का बेटा महेश सिंह राणा जोकि शादी शुदा था वो भी बैठक में ही था। इसके साथ ही चाची के बड़े भाई हेमराज सिंह भी बैठे हुए थे। उनकी पत्नी सुजाता अंदर मां लोगों के पास थीं। अमर मामा के लड़के लड़कियां भी अंदर ही थे।
छोटे मामा की दोनों बेटियां यानि सुमन और सुषमा जोकि उमर में कुसुम से क़रीब एक डेढ़ साल छोटी थीं वो अंदर कुसुम के साथ थीं और उनका छोटा किंतु इकलौता भाई विजय मां लोगों के पास बैठा हुआ था। मैं जब छोटा था तो अपने ननिहाल अक्सर जाया करता था और ज़्यादा समय तक वहीं रहता था लेकिन फिर जैसे जैसे बड़ा हुआ और मुझमें बदलाव आया तो मैंने वहां जाना कम कर दिया था।
मुझे भीड़ भाड़ वाला माहौल ज़्यादा पसंद नहीं था इस लिए मैं सबकी व्यवस्था करने के बाद चुपचाप अपने कमरे में पहुंच गया था। एकाएक ही हालात के बदलने से मेरे अंदर अजीब सा एहसास होने लगा था। बार बार यही ख़याल उभर आता कि अब बस कुछ ही दिनों में मेरा विवाह हो जाएगा और मैं भी शादी शुदा हो जाऊंगा। लोगों के एक ही बीवी होती है जबकि मेरी दो हो जाएंगी। एक तरफ रूपा और दूसरी तरफ रागिनी...हां अब तो भाभी को मुझे उनके नाम से पुकारना होगा। इस एहसास के साथ ही मेरे अंदर अजीब सी सिहरन दौड़ गई। पलक झपकते ही भाभी का खूबसूरत चेहरा आंखों के सामने उजागर हो गया।
उफ्फ! कितनी सुंदर हैं वो। जब भैया जीवित थे तब वो सुहागन थीं और सुहागन के रूप में उनकी सुंदरता देखते ही बनती थी। मैं यूं ही तो नहीं उनके सम्मोहन में फंस जाता था। मैंने अपने ख़यालों में फिर से उन्हें सुहागन के रूप में सजा हुआ देखा तो मेरे अंदर फिर से अजीब सी सिहरन दौड़ गई। बिजली की तरह ज़हन में ख़याल भी उभर आया कि सुंदरता की यही मूरत अब मेरी पत्नी बनने वाली है। विवाह के बाद मुझे उनके साथ पति की तरह ही पेश आना होगा। मैं सोचने लगा कि क्या मैं सहजता से ऐसा कर पाऊंगा? आख़िर वो अब तक मेरी भाभी थीं और उमर में भी मुझसे बड़ी थीं। आख़िर कैसे एक पति के रूप में मैं उनके साथ पेश आ पाऊंगा? रूपा के मामले में मुझे कोई फ़िक्र नहीं थी क्योंकि उसके मामले में मैं पहले से ही पूरी तरह सहज था। उसके साथ मैं पहले भी वो सब कुछ कर चुका था जो शादी के बाद पति पत्नी करते हैं लेकिन भाभी के बारे में तो मैंने कभी इस तरह की कोई कल्पना ही नहीं की थी। भाभी के रिश्ते में उनसे थोड़ा बहुत हंसी मज़ाक कर लेता था लेकिन उसमें भी मैं हमारे बीच की मर्यादा का सबसे ज़्यादा ख़याल रखता था।
मैं जैसे जैसे इस सबके बारे में सोचता जा रहा था वैसे वैसे मेरे अंदर बेचैनी और घबराहट सी पैदा होती का रही थी। मैं चाह कर भी खुद को सामान्य नहीं कर पा रहा था। ऐसा नहीं था कि मैं भाभी को अब अपनी पत्नी की नज़र से देखने और सोचने नहीं लगा था लेकिन जहां बात इसके आगे की आती थी वहां की बातें सोच कर मेरे जिस्म में सिहरन दौड़ने लगती थी और बड़ा अजीब सा लगने लगता था।
"क्या हाल है मेरे दूल्हे राजा?" अचानक कमरे में गूंज उठी किसी की आवाज़ से मैं उछल ही पड़ा। आंखें खोल कर देखा तो मेरे छोटे मामा अमर सिंह कमरे में दाख़िल हो कर मुझे ही देख रहे थे। चेहरे पर खुशी और होठों पर गहरी मुस्कान लिए जैसे वो मुझे चिढ़ाते से नज़र आए। छोटे मामा से मेरी खूब पटती थी।
"अरे! मामा ये आप हैं?" मैंने उठते हुए कहा____"अचानक से आपकी आवाज़ सुन कर मैं चौंक ही पड़ा था। आइए बैठिए।"
"वो तो मैं बैठूंगा ही।" मामा ने मुस्कुराते हुए कहा और फिर आ कर पलंग के किनारे पर बैठ गए। कुछ पलों तक मुझे ध्यान से देखते रहे फिर बोले____"अच्छा तो यहां अपने कमरे में अकेले पड़ा तू खुद को तैयार करने में जुटा हुआ है।"
"क...क्या मतलब है आपका?" मैं समझ तो गया लेकिन फिर भी अंजान बनते हुए पूछा।
"बेटा अच्छी तरह जानता हूं तुझे।" मामा ने घूरते हुए कहा____"मेरे सामने अंजान बनने की कोशिश मत कर। मुझे पता है कि तू आने वाले दिनों के लिए खुद को तैयार का रहा है। वैसे अच्छा ही है, तैयार करना भी चाहिए। आदमी जब एक बीवी के लिए खुद को तैयार करने की कोशिश करता है तो तेरे जीवन में तो दो दो बीवियां होंगी। ऐसे में तेरा खुद को तैयार करना उचित ही है। ख़ैर तो अब तक कितना तैयार कर लिया है तूने खुद को?"
"ऐसा कुछ नहीं है मामा।" मैंने अपनी झेंप को जबरन छुपाने की कोशिश करते हुए कहा____"क्या आपको सच में लगता है कि आपके भांजे को किसी बात के लिए तैयार करने की ज़रूरत है? आप तो जानते हैं कि औरतों के मामले में मैं बहुत आगे रहा हूं।"
"बिल्कुल जानता हूं भांजे और मानता भी हूं कि इस मामल में तू बहुत आगे रहा है।" मामा ने कहा____"लेकिन बेटा तुझे ये भी समझना चाहिए कि आम औरतों में और खुद की बीवी में धरती आसमान का फ़र्क होता है। आम औरतों के साथ तू कैसा भी बर्ताव कर के अपनी जान छुड़ा सकता है लेकिन अपनी बीवी से किसी कीमत पर जान नहीं छुड़ा सकता। इसी लिए कहता हूं कि इस मामले में तेरी बयानबाज़ी से कुछ नहीं हो सकता।"
"आप तो मुझे बेवजह डरा रहे हैं मामा।" मैंने अपने अंदर झुरझुरी सी महसूस की____"मैं भला क्यों अपनी बीवियों से जान छुड़ाने का सोचूंगा? बल्कि मैं तो खुद ही ये चाहूंगा कि वो मुझसे दूर न हों।"
"अच्छा ऐसा है क्या?" मामा ने आंखें फैला कर कहा____"फिर तो ये बड़ी अच्छी बात है। कम से कम इसी बहाने अब तू भी सही रास्ते पर आ जाएगा। सच कहूं तो मुझे बहुत खुशी हुई थी ये जान कर कि तेरा ब्याह होने वाला है लेकिन ये जान कर थोड़ी हैरानी भी हुई थी कि तेरा एक नहीं दो दो लड़कियों से ब्याह होने वाला है। तेरे नाना को भी बड़ी हैरानी हुई थी लेकिन फिर जब उन्होंने मामले की गंभीरता को समझा तो फिर वो यही कहने लगे कि ये अच्छा ही हो रहा है। इस तरह से कम से कम रागिनी बहू का जीवन भी फिर से संवर जाएगा। अन्यथा विधवा के रूप में बाकी का सारा जीवन गुज़ारना उसके लिए यकीनन हद से ज़्यादा कठिन होता।"
"ये सब तो ठीक है मामा।" मैंने थोड़ा बेचैन भाव से कहा____"लेकिन सच कहूं तो भाभी से विवाह होने की बात से मुझे बड़ा अजीब सा महसूस होता है। जिस दिन से मुझे इस बारे में पता चला है उसी दिन से जाने क्या क्या सोचते हुए खुद को समझाने की कोशिश कर रहा हूं कि आगे जो भी होगा उसका मैं सहजता से सामना कर लूंगा। मगर सच तो ये है कि अब तक मैं भाभी के लिए खुद को पूरी तरह से तैयार नहीं कर पाया हूं।"
"हां समझ सकता हूं।" मामा ने कहा____"लेकिन अब तो तुझे इसके लिए खुद को तैयार करना ही पड़ेगा। वैसे मैं तो यही कहूंगा कि तुझे इस बारे में ज़्यादा सोचना नहीं चाहिए। असल में कभी कभी ऐसा होता है कि हमें मौजूदा समय में किसी समस्या को सुलझाने का तरीका समझ में नहीं आता लेकिन जब वैसा समय आ जाता है तो सब कुछ बहुत ही सहजता से हो जाता है। इस लिए तू ये सब वक्त पर छोड़ दे। ये सोच कर कि जो होगा देखा जाएगा।"
"हम्म्म्म शायद आप सही कह रहे हैं।" मैंने सिर हिलाते हुए कहा____"और वैसे भी इसके अलावा मेरे पास कोई दूसरा रास्ता भी तो नहीं है। ख़ैर आप अपनी सुनाएं, मामी के साथ कैसी कट रही है जिंदगी?"
"क्या बताऊं भांजे?" मामा ने सहसा गहरी सांस ली____"बस यूं समझ ले कि किसी तरह कट ही रही है।"
"ऐसा क्यों कह रहे हैं आप?" मैं एकदम से चौंका____"सब ठीक तो है ना?"
"क्या ख़ाक ठीक है यार।" मामा ने जैसे खीझते हुए कहा____"साला बच्चे बड़े हो जाते हैं तो हम मर्दों को जाने कैसे कैसे समझौते करने पड़ते हैं। तेरी मामी को बहुत समझाता हूं लेकिन वो मूर्ख कुछ समझती ही नहीं है। मैंने बहुत सी ऐसी औरतों को देखा है जो ज़्यादा उमर हो जाने के बाद भी संभोग सुख का मज़ा लेती रहती हैं और एक तेरी मामी है कि साली अभी से खुद को बुड्ढी कहने लगी है।"
"फिर तो ये आपके लिए बड़ी भारी समस्या हो गई है।" मैंने चकित भाव से कहा____"ख़ैर अब आप क्या करेंगे?"
"करूंगा नहीं बल्कि करने लगा हूं भांजे।" मामा ने कहा____"तू ही बता कि ऐसे में मैं इसके अलावा करता ही क्या कि अपनी भूख मिटाने के लिए बाहर किसी औरत के पास जाऊं? तेरी मामी को भी कहा था कि अगर वो इस बारे में मेरा साथ नहीं देगी तो मुझे बाहर किसी दूसरी औरत के साथ ये सब करना पड़ेगा।"
"तो क्या ये सुनने के बाद भी मामी को समझ नहीं आया?" मैंने हैरानी से पूछा।
"पहले तो गुस्सा हो रही थी।" मामा ने कहा____"कह रही थी कि मेरे अंदर ये कैसी गर्मी चढ़ी है कि मैं इतने बडे बड़े बच्चों का बाप हो जाने के बाद भी ये सब करने पर तुला हुआ हूं? मैंने उसे समझाया कि ये तो उसके लिए अच्छी बात है कि मैं अब भी उसे संभोग का सुख देना चाहता हूं वरना ऐसी भी औरतें हैं जो अपने पति से संभोग सुख पाने के लिए तरसती हैं और फिर वो मज़बूरी में ग़ैर मर्दों से संबंध बना लेती हैं।"
"फिर क्या कहा मामी ने?" मैंने उत्सकुता से पूछा।
"दो तीन दिनों तक बात ही नहीं की उसने।" मामा ने बताया____"मैं भी गुस्सा हो गया था इस लिए मैंने भी उसे मनाने का नहीं सोचा। जब उसे ही कुछ समझ नहीं आ रहा था तो मैंने भी सोच लिया कि अब उससे इस सबकी उम्मीद रखना ही बेकार है। उसके बाद मैंने वही किया जो करने का मैंने मन बना लिया था। तुझे तो पता ही है कि हमारे खेतों में काम करने वाली ऐसी औरतों की कमी नहीं है। मैंने उन्हीं में से एक को इशारा किया और फिर उसके साथ मज़ा किया। तब से यही चल रहा है।"
"और मामी को भी ये सब पता है?" मैंने बेयकीनी से पूछा।
"हां, मैंने बता दिया था उसको।" मामा ने कहा____"जब वो अपने से ही मुझसे बोलने लगी तो मैंने एक दिन उसे सब कुछ बता दिया। ये भी कहा कि अगर वो अब भी मेरे बारे में सोचेगी तो मैं बाहर की औरतों के साथ ये सब करना बंद कर दूंगा।"
"तो फिर क्या कहा मामी ने?" मैंने बड़ी उत्सुकता से पूछा।
"अभी तो कुछ नहीं कहा।" मामा ने कहा____"लेकिन लगता है कि मान जाएगी। ऐसा मैं इस लिए कह रहा हूं क्योंकि दो दिन पहले जब इस बारे में मैंने उसे बताया था तब उसने यही कहा था कि मैं बाहर ये सब करना बंद कर दूं।"
"इसका मतलब ये दो दिन पहले की बात है।" मैंने कहा____"और मामी के ऐसा कहने का शायद मतलब भी यही है कि वो अब आपका कहना मानेंगी।"
"लगता तो यही है।" मामा ने कहा____"लेकिन दो दिन से अभी तक उसने अपनी तरफ से कोई पहल नहीं की है।"
"हो सकता है कि वो खुद पहल करने में शर्म महसूस करती हों।" मैंने जैसे संभावना ज़ाहिर की____"एक काम कीजिए, आज रात आप यहीं पर हवेली के किसी कमरे में एक साथ सोइए। मैं आप दोनों के लिए ऐसी व्यवस्था कर दूंगा। उसके बाद कमरे में आप और मामी जम के मज़ा कीजिएगा।"
"योजना तो बढ़िया है तेरी।" मामा ने खुशी ज़ाहिर करते हुए कहा____"लेकिन यहां पर अगर किसी को पता चल गया तो क्या सोचेंगे सब हम दोनों के बारे में?"
"किसी के सोचने की फ़िक्र क्यों करते हैं आप?" मैंने मुस्कुराते हुए कहा____"सबको पता है कि मामी आपकी अपनी ज़ायदाद हैं। उनके साथ ये सब करना किसी के लिए कोई बड़ी बात कैसे हो जाएगी?"
"हां तू सही कह रहा है।" मामा का चेहरा चमक उठा था____"तो फिर ठीक है भांजे। तू आज रात हमारे लिए बढ़िया सा इंतज़ाम कर दे। मैं भी आज तेरी मामी के साथ इतने समय की पूरी कसर निकालूंगा। साली बहुत मना करती थी ना तो अब बताऊंगा उसे।"
"अपने जज़्बातों पर काबू रखिए मामा।" मैंने हंसते हुए कहा____"जो भी करना बड़े एहतियात से और बड़े प्यार से करना। ये नहीं कि आपकी करतूतों से बाकी सबको भी पता चल जाए कि ठाकुर अमर सिंह अपनी बीवी की चीखें निकाल रहे हैं।"
"मर्द को मज़ा भी तो तभी आता है भांजे।" मामा ने मुस्कुराते हुए कहा____"जब औरत उसके द्वारा पेले जाने से हलक फाड़ कर चीखे। रहम की भीख मांगे।"
"चीखने तक तो ठीक है मामा।" मैंने कहा____"लेकिन रहम की भीख मांगने वाली स्थिति अच्छी नहीं होती। वो स्थिति पाशविक होती है जोकि मर्दों को शोभा नहीं देती।"
"अरे वाह!" मामा ने हैरानी से मेरी तरफ देखा____"ये तू कह रहा है? बड़ी हैरानी की बात है ये तो। मतलब कमाल ही हो गया। हद है, तू तो सच में देव मानुष बन गया है मेरे भांजे।"
"देव मानुष तो नहीं।" मैंने जैसे संशोधन किया____"लेकिन हां एक अच्छा इंसान ज़रूर बनना चाहता हूं। अपने उस अतीत को भूल जाना चाहता हूं जिसमें मैंने जाने कैसे कैसे कुकर्म किए थे।"
"चल अच्छी बात है।" मामा ने मेरा कंधा दबाते हुए कहा____"मैं तो पहले भी तुझसे कहा करता था कि ये सब छोड़ दे लेकिन तब शायद तू ऐसी मानसिकता में ही नहीं था कि तेरे समझ में कुछ आता। ख़ैर अच्छा हुआ कि अब तेरी सोच बदल गई है और तू अच्छा इंसान बनने का सोचने लगा है। उम्मीद करता हूं कि भविष्य में तू जीजा जी से भी बड़ा इंसान बन जाएगा।"
"नहीं मामा।" मैंने अधीरता से कहा____"मैं कभी भी पिता जी से बड़ा या उनके जैसा नहीं बन पाऊंगा। ऐसा इस लिए क्योंकि उनका नाम शुरू से ही हर मामले में साफ और बेदाग़ रहा है। उन्होंने शुरू से ही हर किसी के साथ अच्छा बर्ताव किया था और सबके दुख दूर करते आए हैं। मैंने तो अपने अब तक के जीवन में ऐसे कोई नेक काम किए ही नहीं हैं बल्कि जो भी किया है बुरा ही किया है। इस लिए उनके जैसा इस जन्म में तो बन ही नहीं सकता। किंतु हां ये कोशिश ज़रूर रहेगी कि अब से जो भी करूं वो अच्छा ही करूं।"
कुछ देर और मामा से बातें हुईं उसके बाद दोपहर के खाने का समय हो गया तो हम दोनों कमरे से बाहर निकल गए। मामा से बातें कर के मुझे बहुत अच्छा महसूस हो रहा था।
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दोपहर को थोड़ी देर आराम करने के बाद पिता जी और मझले मामा एक साथ किसी काम से बाहर चले गए जबकि बाकी लोग बैठक में बातें करने लगे। मैं भी बैठक में बैठा था और सबकी बातें सुन रहा था। अंदर सभी औरतें और लड़कियां काम में लगीं हुईं थी। ऐसा लग रहा था जैसे किसी को भी एक पल के लिए फुर्सत नहीं थी। कुछ औरतें गेंहू चावल और दाल साफ कर रहीं थी। हवेली के मुलाजिम हवेली को चमकाने में लगे हुए थे, कुछ हवेली के बाहर चारो तरफ की सफाई में लगे हुए थे।
अमर मामा दो बार मुझसे पूछ चुके थे कि आज रात मैंने उनका और मामी का हसीन मिलन कराने के लिए व्यवस्था की है या नहीं? मैंने मुस्कुराते हुए यही कहा कि वो फ़िक्र न करें। बच्चे बड़े हो रहे थे उनके फिर भी उनका अपना बचपना जैसे अभी तक नहीं गया था। मैंने उनसे कह तो दिया था कि वो फ़िक्र न करें लेकिन मैं खुद नहीं जानता था कि मैं सब कुछ करूंगा कैसे? कमरे का इंतज़ाम तो मैं बड़ी आसानी से कर सकता था लेकिन भीड़ भाड़ के माहौल में मामी को उनके पास पहुंचाना जैसे टेढ़ी खीर थी।
बहरहाल शाम तक दुनिया जहान की बातें चलती रहीं उसके बाद अंदर से एक नौकरानी सबके लिए चाय ले कर आ गई। हम सबने चाय पी। इस बीच सबने ये इच्छा जताई कि कुछ देर के लिए गांव घूम लिया जाए। मर्दों के पास फिलहाल के लिए जैसे कोई काम ही नहीं था। उधर पिता जी अभी तक नहीं आए थे।
मामा लोग गांव घूमने चले गए जबकि मैं हवेली के अंदर चला गया। मुझे समय रहते मामा का काम करना था लेकिन समझ नहीं आ रहा था कि कैसे करूं? मामी के पास जा कर उनसे खुल कर कुछ कह भी नहीं सकता था। यही सब सोचते हुए मैं अपने कमरे में लेटा हुआ था कि तभी मेरे कमरे का दरवाज़ा खुला और कुसुम के साथ मामा की लड़कियां आ गईं।
"आप यहां हैं और हम आपको बैठक में ढूंढने गए थे।" कुसुम ने आते ही कहा____"चलिए उठिए आपको बड़ी मां बुला रहीं हैं।"
"आप यहां अकेले कमरे में क्या कर रहे हैं भैया?" सुमन ने मेरे क़रीब आ कर कहा____"हम सबके साथ क्यों नहीं बैठते हैं?"
"वो इस लिए मेरी प्यारी बहना क्योंकि तेरे इस भैया को भीड़ भाड़ में रहना पसंद नहीं है।" मैंने बड़े स्नेह से उसकी तरफ देखते हुए कहा____"ख़ैर ये बता यहां तुम दोनों को अच्छा लग रहा है ना?"
"हां भैया।" सुषमा ने खुशी से कहा____"हमें यहां बहुत अच्छा लग रहा है। कुसुम दीदी से हमने बहुत सारी बातें की। दोनों बुआ से बातें की और हां छोटी बुआ के यहां से जो उनके भैया भाभी आए हैं उनसे भी बातें की।"
"ओह! तुम दोनों ने तो सबसे बातें कर ली और सबसे जान पहचान कर ली।" मैंने मुस्कुराते हुए कहा____"और अपने इस भैया से बातें करने का अब ध्यान आया है तुम दोनों को, हां?"
"वो हम लोग सबके पास बैठे बातें कर रहे थे न इस लिए आपसे मिलने का समय ही नहीं मिला हमें।" सुमन ने मासूमियत से कहा____"पर अब तो हम अपने भैया के पास आ ही गए ना?"
"चलो अच्छा किया।" मैंने कहा____"अच्छा अब तुम लोग जाओ। मैं भी जा कर देखता हूं कि मां ने किस लिए बुलाया है मुझे?"
थोड़ी ही देर में हम सब नीचे आ गए। मैं मां से मिला और पूछा कि किस लिए मुझे बुलाया है उन्होंने तो मां ने कहा कि मेरी मामियां मुझे पूछ रहीं थी इस लिए बुलाया। ख़ैर मैं दोनों मामियों से मिला। बड़ी मामी ने तो कुशलता ही पूछी किंतु छोटी मामी थोड़ा मज़ाकिया अंदाज़ से मुझे छेड़ने लगीं। सबके सामने मैं शर्माने लगा तो सब हंसने लगीं। कुछ देर बाद मैंने छोटी मामी से कहा कि मुझे उनसे ज़रूरी बात करनी है इस लिए क्या वो रात में मेरे कमरे में आ सकती हैं? मामी मेरी इस बात से राज़ी हो गईं। मैं मन ही मन ये सोच कर खुश हो गया कि चलो काम बन गया।
बहरहाल समय गुज़रा और रात हो गई। पिता जी आ गए थे। हम सब उनके साथ खाना खाने बैठे। आज काफी समय बाद हवेली में इस तरह की रौनक देखने को मिल रही थी। सब खुश थे, इसी हंसी खुशी में खाना ख़त्म हुआ और फिर सब बैठक में आ गए। बैठक में थोड़ी देर इस बारे में चर्चा हुई कि कल क्या क्या करना है उसके बाद सब सोने चले गए। मैं पहले ही अपने कमरे में पहुंच गया था। थोड़ी ही देर में छोटे मामा आ गए।
"अरे! भांजे तूने कुछ किया है या नहीं?" उन्होंने आते ही अपने मतलब की बात पूछी____"देख अब तो सोने का समय भी हो गया है और तूने अब तक अपनी मामी को मेरे पास नहीं भेजा।"
"फ़िक्र मत कीजिए मामा।" मैंने मुस्कुराते हुए कहा____"मैंने मामी को अपने कमरे में बुलाया है। वो आएंगी तो उन्हें किसी बहाने आपके पास भेज दूंगा। थोड़ा सबर कीजिए, आप तो ऐसे उतावले हो रहे हैं जैसे ये सब आप पहली बार करने वाले हैं।"
"अरे! पहली बार नहीं है मानता हूं।" मामा ने खिसियाते हुए कहा____"लेकिन साला लगता तो यही है कि तेरी मामी को पहली बार ही भोगने को मिलेगा। मुझे लगता है कि ऐसा इस लिए लग रहा है क्योंकि काफी समय हो गया उसके साथ मज़ा किए।"
"हां हां समझ गया मैं।" मैंने हल्के से हंसते हुए कहा____"अब आप जाइए। मामी खा पी कर ही आएंगी तब तक आपको इंतज़ार करना पड़ेगा।"
"अब तो इंतज़ार ही करना पड़ेगा भांजे।" मामा ने गहरी सांस ली____"बस तू बीच में धोखा मत करवा देना।"
मामा की इस बात पर मैं हंसा, जबकि वो बाहर निकल गए। मैंने ऊपर ही उनके लिए एक कमरे की व्यवस्था कर दी थी। अब बस इन्तज़ार था मामी के आने का। अगर वो मेरे कमरे में आएंगी तभी कुछ हो सकता था।