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अब तक आपने पढा, हम दोनों नंगे हो चुके थे। भक्ती यानी मेरी प्रेमिका ने मेरे लंड को आजाद कर दिया था। अब आगे-

उसने एक ही झटके में मेरे लंड को आजाद कर दिया। लेकिन वो उसे देखकर एकदम देखती ही रही। फिर वो ऊपर आकर मेरे होठों पे अपने गर्म तपते हुए होंठ रख दिए। मैंने उसे वैसी ही हालात में नीचे करके मैं ऊपर आ गया, लेकिन मैंने हमारे होंठ अलग होने नही दिए। मेरे ऊपर आने से मेरा लौडा सीधा उसकी चुत पे दस्तक दे रहा था। अब मैंने उसका हाथ ले जाकर अपने लंड पे रख दिया। वो समझ गई, उसे क्या करना है और मेरे लन्ड को बड़े ही मस्त तरीके से सहलाने लगी। उसके हाथ का स्पर्श पाते ही मेरा लौडा और ज्यादा फूलने लगा।

मैंने उससे पूछा, "क्या तुम मेरे लौडे से प्यार करना चाहोगी?"

तो भक्ती बोली, "तुम जो बोलोगे वो मैं करूँगी, लेकिन अब रुका नही जाता। जल्दी से कुछ करो।"

इतना कहने के बाद उसने खुद ही मेरे लंड को अपनी चुत के दरवाजे पे रखा और अपनी कमर उचकाकर लंड लीलने की कोशिश करने लगी। लेकिन मैं नही चाहता था कि, इतनी आसानी से इसको लंड मिल जाये। तो मैंने उसका हाथ अपने लौडे से हटाकर उसकी चूचियों को अपने मुंह में भरके चूसने लगा। जिससे उसके अंदर की आग और जलने लगी। अब मुझसे भी रहना मुश्किल हो रहा था, तो मैंने अपना लंड हाथ में पकडकर उसकी चुत की दरार में घिसने लगा। और भक्ती अब भी बिच बिच में अपनी कमर उठाकर लण्ड लेने की कोशिश करती। मुझे उसकी इस बात पर हंसी आने लगी।

तभी उसने मुझे अपने तरफ खिंचकर अपने सीने से लगा लिया और मेरा लंड पकडकर अपनी चुत पे टिका दिया। मेरे हाथ कभी उसके बूब्स को मसलने में लग जाते तो कभी उसके चुतड़ों को सहला देते। अब मैंने भी न रुकते हुए, उसकी कमर को पकडकर, एक झटका मारा लेकिन लंड सटाक से फिसलकर बाहर आ गया। फिर मैंने अपने हाथ से उसे सेट किया और धीरे धीरे लंड से उसकी चुत पे थोड़ा दबाव बना दिया, जिससे मेरे लंड का अग्रभाग मतलब टोपा उसकी चुत के अंदर चला गया।

उसकी मुंह से एक जोर की चीख निकली, "आह..मार डाला..बाहर निकालो जल्दी.."

मैंने उतना लौडा उसकी चुत के अंदर रखकर उसे चूमना और सहलाना जारी रखा, जिससे उसका ध्यान दर्द की तरफ ना जाये। उसके थोडा नॉर्मल होते ही मैंने उसके होठों को अपने होठों से कैद कर लिया और एक और जोर का झटका दे मारा। अबकी बार मेरा आधा लन्ड उसकी चुत के अंदर था, उसका मुंह मैंने बन्द किये रखा था तब भी एक दबी दबी सी चीख निकल गई। और वो हाथ-पैर झटकने लगी, तो मैंने उसे अपने बाहुपाश में जकड़ लिया और एक और झटके के साथ अपना पूरा लंड उसकी चुत के अंदर डाल दिया।

पूरा लौडा अंदर जाते ही वो बहुत बुरी तरह से कसमसाने लगी, लेकिन बेचारी मेरी पकड से छूट नही पाई। फिर मैंने थोडी देर लंड को वैसे ही चुत के अंदर रखा, और उसे चूमने लगा, अब धीरे धीरे लंड भी चुत के भीतर अपने लिए जगह बना रहा था और उसका भी दर्द अब मजे में बदलने लगा था। उसके निप्पल को पकडकर मैं कभी खिंच देता तो कभी मुंह में भरकर काट देता, जिससे वो बहुत जल्द ही अपनी कमर हिलाने लग गई।

जैसे ही मैंने देखा कि, वो भी कमर हिला रही है, तो मैंने भी धीरे धीरे हिलना शुरू किया। इसके साथ ही मैंने बहुत हल्के हल्के झटके लगाने शुरू किये, जिसमे मैं बस थोड़ा सा लिंग बाहर निकालता और फिर से उसे उसकी चुत में भर देता। उसकी चुत काफी कसी हुई थी, ऐसा लग रहा था जैसे उसकी चुदाई पहली बार हो रही हो। लेकिन मुझे झिल्ली फटने का अहसास तो हुआ ही नही, फिर मैंने सोचा मुझे क्या करना है।

मुझे इतनी मस्त हसीना मिली है, वो ही काफी है और वैसे भी उसकी चुत इतनी कसी हुई थी कि, लग रहा हो मैं ही उसे पहली बार चोद रहा हूँ। धीरे धीरे मैंने अपने धक्कों की गती बढा दी और अब मेरे लगाए गए हर एक धक्के के साथ उसकी सिसकारियां बढती ही जा रही थी। मैं बिच बिच में कभी उसके होंठ चुसता तो कभी उसके चूचों को मुंह में भर लेता और निप्पल को काट लेता।

मैंने उसे इसी पोजिशन में उसकी गर्दन पर न जाने कितने लव बाइट्स भी दिए होंगे। थोडी ही देर में लंड महाशय ने चुत में अपनी जगह बना ली थी और अब आराम से अंदर बाहर जा रहे थे।

और अब भक्ती भी मुझसे पुरे मजे लेकर अपनी चुत चुदवा रही थी, तो मैंने पोजिशन बदलने का सोचा। मैंने भक्ती को उसकी पीठ पकडकर उठाया, जिससे लंड उसकी चुत से बाहर न निकल जाए।

अब हम दोनों बैठे हुए थे, उसने अपने दोनों पैर मेरी पीठ के इर्द गिर्द बांध लिए और मेरे लंड पे उछल उछल कर कूदने लगी। इस पोजिशन में सबसे खास बात यह थी कि, उसके बूब्स सीधा मेरे मुंह के सामने आ रहे थे। तो मुझे नीचे झुकने की जरूरत नही थी। और मैं जैसे ही उन्हें चूसने लगता वो मेरे मुंह को और दबा देती। और तभी भक्ती ने अचानक बोला, "यार मैं झड़ने वाली हूँ, तेज तेज धक्के मारो।"

उसके इतना कहते ही मैंने उसे एक ही झटके में नीचे गिरा दिया और एक पैर उठाकर अपने कंधे पे ले लिया। और इस पोजीशन में लगा मैं उसको लगातार जोर जोर से धक्के लगाने। चुदाई से बहुत पहले से ही मेरा लंड खडा था और इतनी कसी हुई चुत मिलने की वजह से वो भी अपना लावा उगलने को हो गया। तो मैंने उसे बोला, "मैं भी आनेवाला हूँ, अपना माल कहाँ निकालूं?"

उसने बोला, "यह मेरी पहली चुदाई है, और मैं तुम्हारे वीर्य को अपने अंदर तक महसूस करना चाहती हूँ। तुम मेरे अंदर ही निकाल दो।"

मैंने फिर उसकी कमर को पकडा और तेज तेज धक्के लगाने शुरू किये। तभी उसका बदन अकडने लगा, और वो झडने लगी, अचानक उसकी चुत से कामरस बहने से मेरे लण्ड ने भी अब अपनी पिचकारी उसकी चुत में छोड दी। उस समय मेरे लंड ने ढेर सारी पिचकारियाँ मारी और इतना वीर्य पहले कभी नही छोड़ा था, जिसे लेकर मैं खुद हैरान था। इतनी हसीन लडकी चोदने के बाद थोडा ज्यादा वीर्य तो लौडा छोडेगा ही।

इस तरह से हम दोनों एक साथ झड गये और मैं बिना अपना लंड बाहर निकाले उसी के ऊपर सो गया, और उसने भी मुझे कसके एक हग दिया और आराम से लेट गई।

चुदाई का एक दौर खत्म हो चूका था, और हम दोनों थक कर वैसे ही नंगे एक दूसरे के आलिंगन में लेटकर आराम कर रहे थे। हम दोनों को समय का पता भी नही था और तभी अचानक से दरवाजा खुलने की आवाज से हम दोनों की आँख खुली। और अचानक से भक्ती की दोस्त रूपा कमरे का दरवाजा खोलकर अंदर आ गई।

हम दोनों बेड पर नंगे ही अवस्था में लेटे हुए थे, उसे देखकर हम दोनों ही अपने कपडे लेने के लिए जल्द से उठ गए, लेकिन कपडे लेने से पहले ही वो अंदर घुसती हुई चली आई। उसके सामने हम दोनों ही नंगे थे और अपने कपडे के लिए हम इधर उधर देख रहे थे।

रूपा जैसे ही कमरे के अंदर घुसी और उसने हमें देखा, वो उसी जगह पर बूत बन कर रुक गई। उसे शायद उम्मीद नही थी, हम दोनों ऐसी हालत में उसके सामने होंगे। फिर उसने सॉरी बोला और वो कमरे के बाहर निकल गई। उसके जाते ही हमने अपने कपडे उठाये और पहनने लगे। तभी मुझे एक शरारत सूझी, और मै भक्ती के पास चला गया। भक्ती मुझे पास आता हुआ देखकर बेड के पास गई, और उसने अपने कपडे बेड पर रख दिए और मुझसे बोली, "क्या हुआ मेरे राजा? मन नही भरा क्या?"

मै उसे बोला, "तू चीज ही इतनी मस्त है कि एक बार खाने के बाद छोडने का मन ही नही करता।"

फिर वो बोली, "अभी बाहर चलते है। पता नही रूपा क्यों आई थी?"

मैंने बोला, "अब नही तो फिर कब मौका मिलेगा हमें?"

तो वो बोली, "हम अभी और 3 दिनों के लिए यहाँ रुकने वाले है। तो इन 3 दिनों में मैं पूरी तुम्हारी हूँ। तो जब तुम चाहो, जो चाहो वो कर सकते हो।"

यह सुनकर मैं बहुत खुश हुआ। और मैंने तुरंत घर पे कॉल करके बोल दिया कि, "मैं मेरे दोस्तों के साथ घूमने जा रहा हूँ, और दो-तीन दिनों बाद लौटूंगा।"

फिर मैंने भक्ती को एक कीस किया और अपने कपडे पहन के हम बाहर निकलने लगे। तभी भक्ती अपना मोबाइल ढूंढने लगी, लेकिन उसको मिला नही। फिर उसने मेरे मोबाइल से उसके नम्बर पे कॉल किया तो हॉल से मोबाइल बजने की आवाज आई। तो हम दोनों हॉल में आ गए, और उसका मोबाइल टेबल पर रखा हुआ था। और वहां कोई दिखाई नही दे रहा था। हम दोनों को छोडकर भी पांच और लोग थे, लेकिन कोई भी हॉल में नही था।

थोडी ही देर में रूपा टॉयलेट से बाहर आई, और उसने हमें बोला, "चलो तुम दोनों पहले फ्रेश हो जाओ। कुछ बाते करनी है।"
आगे क्या हुआ यह अगले अंक में लिखूंगा।

यह कहानी कैसी लगी बताइए। धन्यवाद।
 
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