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ग्लास में दारु उड़ेल के मैंने जैसे ही जाम को ऊपर उठाया मेरी नजर इस आंटी जी के ऊपर गए बिना नहीं रह पाई. बदन के भराव के हिसाब से वो कुछ 40 साल की लग रही थी. नशीली आँखें, चौड़ा सीना, पीछे दो मटके रख दिए हो वैसी गांड और वो बियर के ग्लास को अपने होंठो से लगा रही थी. मैं पिया हुआ जरुर था लेकिन मैं उन लोगों में से हूँ जिनके होश पिने के बाद सही रहते हैं. रोज शाम को मैं इसी बार में दारु पिने आता था लेकिन इस आंटी जी को मैंने आज से पहले कभी नहीं देखा था. और वैसे भी इंडिया के अंदर लड़की या औरत का शराब के ठेके पे आना थोडा अजीब हैं. लेकिन क्यूंकि यह बार के साथ रेस्टोरेंट भी हैं यहाँ कितनी बार औरतें अपने पति के साथ आती हैं. खाने के बाद पति लोग दारु पैक जो करवाते हैं घर ले जाने के लिए.

आंटी जी के इशारे

देखा दारु के नशे में मैंने अपना परिचय तो आप लोगों को दिया ही नहीं. मेरा नाम वीर हैं और मैं कानपुर, युपी से बिलोंग करता हूँ. और जॉब की वजह से मेरी किस्मत मुझे यहाँ मुंबई ले आई हैं. मैं शादीसुदा हो के भी कुंवारा हूँ. नौकरी छोड़ के बीवी के पास जा नहीं सकता और बीवी को यहाँ लाके दोनों का खर्च उठाने में मेरी फट जायेंगी. इसलिए मैंने बिच का रास्ता निकाला हुआ हैं. बीवी वहीँ कानपुर में बाबूजी और माँ के साथ रहती हैं. मैं यहाँ अकेला रह के पैसे बचाता हूँ और उन्हें भेजता हूँ. छठ पूजा पे साल में एकबार जाता हूँ और हफ्ते के अंदर बीवी को इतना चोदता हूँ की उसके चलने के होश भी नहीं रहते हैं..!

अरे आंटी जी की कहानी सुनने आये हो या मेरी दुःखभरी दास्ताँ. आंटी जी बियर पीते हुए मुझे देख रही थी और मैं भी ग्लास की आड़ में उसे देख लेता था. मेरे दोस्त मंगेश ने एकबार बताया था की कभीकबार औरतें मर्दों के शिकार पे निकलती हैं और फिर उन्हें अपने घर ले जाके चूत, और गांड मरवाती हैं. लेकिन सच में मैं उस वक्त आंटी को ले के ऐसा कुछ नहीं सोच रहा था. तभी मेरे टेबल पे बैठा हुआ वो मद्रासी अन्ना उठ खड़ा हुआ और लडखडाते हुए काउंटर पे चला गया. आंटी जी ने एक पल भी नहीं व्यय किया और उसने अपने मटके टेबल के साथ वाली कुर्सी पे धर दिए. मैं अभी भी व्हिस्की की कडवाहट को गले में भर रहा था. सिंग के दाने को उठा के जबान पे रखा ही था की आंटी जी धीरे स्वर में बोली, "चलोगे?"

मैंने इधर उधर देखा की साला आंटी ही बोली या कोई और.

फिर वही आवाज आंटी जी की और से आई, "चलोगे या नहीं?"

मैंने खात्री कर ली थी की आंटी ही बुला रही थी मुझे. मैंने उसकी और देखा और वो बियर की चुस्की अपने गले में भर रही थी. मैंने धीरे से कहा, "जगह हैं, और मैं एक फूटी कौड़ी भी नहीं दूंगा तुम्हें."

आंटी जी ने मुहं बनाया और बोली, "तेरी शकल देख के ही लगता हैं की तू छोटी बात करेंगा. तू मुझ से ले लेना पैसे जितने चाहियें. जगह इतनी बड़ी नहीं हैं लेकिन दो लोगों के लिए ठीक हैं."

वैसे मुझे भी पता हैं की ऐसे समय पैसो की बात नहीं करते हैं लेकिन दोस्तों यह मुंबई हैं. यहाँ के लोग इतने चालू होते ही की हगते हुए इंसान को भी गांड की हिफाजत करनी पड़ती हैं. मैं नहीं चाहता था की वो एक रंडी हो जो मार्केटिंग का नया स्टाइल ले के बार में आई हो. आंटी जी ने मुझे धीरे से कहा की पहले वो जायेंगी और फिर मैं बिल दे के उसके पीछे निकलूं. साथ में निकलने से किसी को शक हो सकता था. इतना कह के आंटी जी उठी और आधा बियर उसने टेबल पे ही छोड़ दिया. वो काउंटर पे गई और मैंने पानी के बचाव के लिए वो आधा बियर एक ही घूंट में पी लिया.

रस्ते से लिया कंडोम

आंटी जी ने पैसे चुकाएं और वो बहार निकली. मैंने व्हिस्की की बोतल की दो आखरी बुँदे भी पेग में निकाली और पेग को मुहं से लगा के सारे पैसे वसूल कर लिए. अभी तक मुझे नहीं पता था की यह आंटी कौन है और वो मुझे क्यूँ बुला रही हैं. लेकिन उसके चालचलन से लग रहा था की वो एक प्यासी आंटी हैं जो अपनी चूत मरवाने के लिए ही किसी को ढूंढ रही हैं. ऐसी आंटी जी के एक दो अनुभव मेरे मुंबई के ही एक दो दोस्तों को हुए थे जब कोई भाभी और आंटी ने उन्हें घर ले जा के चुदवाया था. अजीब हैं लेकिन चूत और पेट सब कुछ करवाता हैं भाई.

मैंने बहार आके देखा की आंटी जी एक गाडी के पास खड़ी थी. गाडी की आगे की सिट पे एक ड्राईवर सफ़ेद युनिफोर्म में था और आंटी ने अपनी गांड को गाडी के दरवाजे के सहारे टिकाया हुआ था. मेरे आते ही आंटी ने पीछे का दरवाजा खोला और वो खुद अंदर जा बैठी. उसने अंदर से hin मुझे इशारा किया की मैं भी अंदर आऊं. मैंने हिम्मत की और अंदर घुसा. मेरे अंदर आते ही दरवाजा फट से बंध हुआ और आंटी ने ड्राईवर से कहा, "रमेश गाडी को घर की और ले लो. रास्ते में मेडिकल से सामान भी ले आना."

रमेश ने गाडी को दे मारा और रस्ते में मेडिकल से उसने कुछ पेकेट लिए और वो पीछे आंटी को दिए. मैंने देखा की उसमे एक दवाई का छोटा बॉक्स था और कुछ कंडोम के पैकेट्स थे. आंटी जी के इरादे मुझे उतने अच्छे नहीं लग रहे थे. रमेश ने गाडी को 5 मिनिट में एक बड़े से घर के बहार लगाया, मैंने अंदाजा लगाया की वो चर्चगेट का एरिया था. आंटी गाडी के निचे उतरी और चलने लगी. जब मैं निचे नहीं उतरा तो उसने मुड़ के मुझे पीछे आने का इशारा किया. मैं समझ गया की यह आंटी जी आज मेरे वीर्य को अपनी चूत में ले के ही मानेंगी...!
 
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