मुठ की फुव्वार मिली झरने में

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नमस्कार दोस्तों

मैं सुधीर आज फिर आपको एक मनमोहक कहानी सुनाने जा रहा हूँ जोकि मैंने अपनी एक सहेली के साथ झील के किनारे झाडियों में चुदाई की थी | मेरी सहेली का नाम स्वर्णा था और वो बहुत ही ऊँचे खानदान की लड़की थी | हम दोनों कॉलेज में एक साथ ही पढ़ रहे थे और कॉलेज की तरफ से ही हम एक झील के किनारे सभी बच्चों और अश्यापकों के साथ घूमने भी गए थे | च्यूंकि हमारे रिश्ते और आपसी सम्बन्ध बहुत ही अच्छे थे इसीलिए हम पूरे सफर में एक दूसरे के साथ बैठे और इतने रोमांटिक मौसम में जब मुझे रोमांस करने का जी करता तो मैं उसके हाथ पर कभी - कभार उसके हाथ पर भी अपनी उँगलियाँ फेर लेता | वो मेरी किसी भी हरकत का पहले से ही कोई विरोध नहीं करती थी पर मैं ही ना जाने क्यूँ उसके साथ आगे नहीं क्चुह करता था | हम वहाँ का सारा सैर सपता एक साथ ही कर रहे थे और एक साथ एंड ले रहे थे |

जब अध्यापक ने हम सबो वहाँ झेल से आते बहते झरने के पास खेलने को छोड़ दिया तो मैं और स्वर्णा वहीँ पहले कुछ देर मस्ती करने लगे | कुछ ही देर में उसे मैंने पानी से बिलकुल भीगो दिया जिससे उसके कॉलेज के कपड़े अब बिलकुल गीले हो चुके थे | मैं मज़े में आ चूका था और उसे वहीँ धुप के बहाने अंडा ही झाडियों में गया और अंडा र्खुल्ली जगह में वो अपने कपड़े सुखाने लगी जिपर मैंने उसे कुर्ती को उतारने को ही कह दिया | पहले तो वो कुछ शरमाई और अचानक से उसने अपनी कुर्ती को उतार ही दिया और मैं उससे गोरे बदन को देखकर हैरान ही रह गया | वो कहने लगी की"क्यूँ रे .. चिपकने का मन का रहा है मुझसे ??" जिसपर मैंने गर्दन हिलाकर हामी भरी और उसके करीब आ गया |

वो बोली के कर ले जो तुझे मन आये जिसपर मुझे विश्वास नहीं हुआ और मैंने एक हाथ से उसके स्तनों को दबाता हुआ उसके होठों का रस चूसने लगा | अब तो वो भी मुझे सहयोग कर रहो थी और मैं झट से उसकी समीज को भी उतार उसके चुचों को चूसने लगा | मेरी उत्तेजना बढ़ी तो मैंने अपनी शर्ट - पैंट खोल उसकी सलवार को खोल नीचे गिरा दिया और उससे लिपट कर अपने लंड का जोर उसकी चुत के उप्पर ही देने लगा | मैं अपनी उँगलियों से उसके चूचकों के चारों और घुमा रहा था और वो चड्डी में से लंड को निकाल अपनी हथेली में पकडे हुए उसके साथ मुठी मार रही थी | मैंने अब उसके पैंटी को नीचे खींचते हुए अपने लंड को उससे हथेली से छुठाकर उसकी चुत पर टिकर अंदर को देने लगा |

उसकी हवा टाईट इतने में ही हो गयी पर मैंने अब उसकी टांग को उठाये उसकी चुत में अपने लंड को घुसाने लगा जिसपर वो भी मछली की तरह तडपती हुई अपनी चुत के भाग हो हिलाने लगी | मैंने वहीँ झाडियों में उसकी चुत को ठोक - बजाकर चोदा और हाथ से झाडियों का सहारा भी लिए रखा | मेरा लंड अब आराम से उसकी चुत में आर - पार हुए जा रहा था और अचनक मैं झड़ने को हुए तो मैंने दूसरी और जाकर उप्पर से अपने लंड की पिचकारी छोड़ दी जोकि सीधा झरने में जाकर गिरी | मैं उससे वहीँ लिपटने लगा और कुछ देर बाद मज़े लेते हुए वापस चल पड़े |
 
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