#147

"फिर क्या हुआ " मैंने थोड़ी अधीरता से पूछा

रुडा- तुम्हे क्या लगता है वो सोना कहा होगा

रुडा मेरे मन की थाह लेना चाहता था .

मैंने ख़ामोशी से समाधी के पत्थर हटाये और वो मिटटी का कलश निकाल लिया

रुडा ने उसे देखा लौ की रौशनी में टिमटिमाती पीली चमक क्या ही कहने .

रुडा- ये कलश चेतावनी थी , पर किसे समझ थी चढ़ती उम्र बड़ी दुस्सहासी होती है . नियति की चेतावनी की इस पर ही मान जाओ आगे का पथ बड़ा कठिन होगा. पर किस को परवाह थी . कीमत, किसने सोचा होगा की क्या कीमत होगी उस चीज को लेने की जो तुम्हारी नहीं है .

मैं- और क्या थी वो कीमत

रुडा- बड़े बेसब्रे हो तुम कबीर. अभी तो बात बाकि है ये रात बाकी है . कौन समझ सकता है की कर्मो के लेख कैसे चुकाए जाते है . कीमत जरुरी नहीं थी की रूपये-पैसो में ही चुकाई जाये, हमारे मामले में वो कीमत थी रिश्ते जो टूटते गए. बिशम्भर को जैसे जूनून हो गया था . सुनैना और वो दोनों बहुत वक्त साथ बिताने लगे थे. उनके साथ दिन रात होकर भी उनके साथ बेगाना होने लगा था मैं. उन दोनों का जूनून हमारी दोस्ती की नींव कमजोर कर रहा था .

साथ होकर भी साथ नहीं रहना इस से बड़ा दर्द कोई नहीं . बेशक मैं और सुनैना प्रेम पथ पर चल रहे थे , पर इस सोने ने उस पथ को तहस नहस करना शुरू कर दिया था . एक दिन अचानक बिशम्भर गायब हो गया .

मेरे लिए ये नयी जानकारी थी .

मैं- गायब मतलब

रुडा- गायब , कोई खबर नहीं उसकी , मैंने और सुनैना ने दिन रात एक कर दिया कोई कोना नहीं , कोई दिशा नहीं जहाँ पर उसकी तलाश नहीं की . मेरे प्यार की जानकारी डेरे में हो गयी थी . और मेरे घर पर भी . दोनों तरफ के लोग गुस्सा थे. लोग कहा समझते उस समय की प्रेम क्या होता है . एक बिशम्भर की चिंता दूसरी फ़िक्र अपनी मोहब्बत को पाने की . पर ये तो शरूआत थी कहानी तो बहुत बाकि थी .

मैं- कैसी शुरुआत.

रुडा- सुनैना पेट से हो गयी . ख़ुशी तो बहुत थी की हमारे प्यार की निशानी इस दुनिया में आने वाली थी . पर परेशानी ये थी की उस प्यार को कोई भी नहीं समझ पा रहा था . मेरे बाप की झूठी शान मेरे पैरो का बंधन बन् रही थी पर मैंने वादा किया था सुनैना से की हाथ कभी नहीं छुटेगा उसके हाथ से. दिन बीत रहे थे . सबको मालूम हो गया था की सुनैना के पेट में मेरी औलाद पल रही है. डेरे वाले हमारे घर आये और इंसाफ की मांग करने लगे. कुंवारी लड़की का गर्भवती होना ऐसा पाप था जिसका कोई प्रयाश्चित नहीं था . लगा की जब सारे रास्ते बंद हो गए तब उम्मीद की लौ फूटी बिशम्भर लौट आया. हमारी ढाल बन कर खड़ा हुआ वो .

मैंने बाप की हवेली छोड़ दी. मामला बहुत गर्म था पर हम दिन काट रहे थे . एक रोज़ मेरा बाप आया और बोला की उसे मेरा और सुनैना का रिश्ता मंजूर है , मेरे लिए इस से बड़ी ख़ुशी और क्या होती. बाप ने मुझे किसी काम से बाहर भेजा. मैने मेरे लौटने तक सुनैना की जिम्मेदारी बिशम्भर को दी. पर जब मैं लौट कर आया तो ............

कुछ पलो के लिए गहरा सन्नाटा छा गया .

मैं- और जब आप लौट कर आये तो .

रुडा- दुनिया बिखर चुकी थी . सुनैना पर हमला हुआ था समाज के ठेकेदारों ने उसे मार डाला.

रुडा के कहे ये शब्द , इन शब्दों में इतनी वेदना थी की मैंने अपने कलेजे को जलते हुए महसूस किया.

मैं- राय साहब ने अपना वचन नहीं निभाया सुनैना की रक्षा करने का.

रुडा- उसे जो ठीक लगा उसने वो किया

मैं- ऐसा क्या किया था पिताजी ने .

रुडा- जब सुनैना पर हमला हुआ तो उसे प्रसव वेदना शुरू हो गयी . बिशम्भर बहुत घबरा गया था . उसे हमला भी रोकना था और सुनैना को बचाना भी था . वो घायल थी और प्रसव की तकलीफ में भी . जब तक बिशम्भर उसके पास पहुंचा हालात और बिगड़ गए थे . उसने सुनैना का प्रसव करवाया , जरुरी इंतजाम नहीं थे, खून ज्यादा बह गया . सुनैना की मौत हो गयी . वो तो चली गयी पर अपनी निशानी छोड़ गयी .

मैं- अंजू

रुडा- अंजू . जो कभी नहीं समझ पायी की बाप होना क्या होता है .

मैं - फिर क्या हुआ

रुडा- एक रात डेरा तबाह हो गया. कैसे, किसने किया आज तक कोई नहीं जान पाया. एक रात क़यामत आई और अपने साथ डेरे को ले गयी.

मैं- उसी दौरान आपके पिता की भी मृत्यु हो गयी.

रुडा- कोई नहीं जान पाया वो कैसे मरे, इसी जंगल में लाश पायी गयी उनकी .

मैं-दो दोस्तों में दुरी आने की असली वजह क्या थी .

रुडा- लालच और हवस. विशम्भर जब से लौटा था वो पहले जैसा नहीं रहा था , वो मेरा दोस्त नहीं रहा था . रिश्ते-नाते उसके लिए बेगाने हो गए थे .उसे न जाने किस चीज की तलाश थी . अकेले रहने का कैसा जूनून था उसे. और फिर वो दौर आया जब आसपास के इलाके में लोग गायब हो ने लगे. ऐसा पहले कभी नहीं हुआ था . जंगल पहली बार सुरक्षित नहीं था . कुछ दिन गुजरते फिर कुछ दिन रक्त का तांडव मच जाता. मुझ पर गाँव की जिमेदारी थी , मैंने अपनी तरफ से पूरी कोशिश की . पर जिस बात ने मुझे सबसे जायदा परेशान किया हुआ था वो थी की जब जब मैं जंगल में घुमती मौत के पास पहुंचे को होता ही था तब तब बिशम्भर मिल जाता मुझे . एक समय के बाद मुझे भी लगने लगा था की बिशम्भर जानता था उस आफत के बारे में . वो कुछ तो मुझसे छिपा रहा था . हमारा झगडा इसी बात को लेकर हुआ था . ऐसा क्या था जो वो मुझसे छिपा रहा था . बताना नहीं चाहता था वो मुझसे.

मैं- क्या छिपा रहे थे वो आपसे .

रुडा- पता नहीं , पर उस झगडे के बाद जंगल शांत हो गया . बहुत साल वो शांत रहा पर इस साल से वो सब दुबारा होने लगा.

मैं- क्या आपको मालूम है की सोना कहा है.

रुडा-वो सोना नहीं श्राप है किसी को भी नहीं जानना चाहिए वो कहा है .

मै समझ गया रुडा जानता था उस जगह के बारे में .

मैं- आप तीनो की आलावा भी उस सोने की उपस्तिथि को कोई और भी जान गया था .

रुडा- जिसने भी वो सोना चुराया चैन नहीं पाया. कबीर, मैं तुमसे भी यही अपेक्षा करूँगा की तुम चाहे जो करना उस सोने का लालच मत करना.

मैं- बस दो सवाल और . पहला डेरा कहाँ था मुझे वो जगह देखनी है दूसरा सवाल रमा क पति को क्यों मारा आपने...................
 
#148

"इस तरह देखने की जरुरत नहीं है चौधरी साहब , जब सबके नकाब उतर रहे है तो आपका चेहरा कैसे बच जायेगा. माना की रात बहुत लम्बी हुई पर सुबह की एक किरण बहुत होती है रात के अँधेरे को चीरने के लिए. रमा के पति को क्यों मारा " मैंने सवाल किया.

रुडा- मैं, भला मैं क्यों मारूंगा उसे.

मैं- ये तो आप जानते है . मुझे तो बस इतना मालुम है की उसको आपने मारा क्यों मारा ये बता कर आप मेरी उत्सुकता खत्म कर सकते है .

रुडा- उसे एक बिमारी थी , वही बीमारी जो तुमको है . जरुरत से ज्यादा जानने की बिमारी. उसकी गांड में एक कीड़ा कुलबुला रहा था . ये जंगल इसमें कुछ भी छिपाना ना मुमकिन है उस चूतिये का लालच . क्या ही कहे . रमा की कीमत चाहिए थी उसे और कीमत क्या मांगी उसने हिस्सेदारी हम से हिस्सेदारी. हम से कबीर. हमारे टुकडो पर पलने वाले हमारे बराबर बैठने की बात करे लगे थे . सोना चाहिए था उसको , सोना . साला दो कौड़ी का नौकर हमने उसे सोना दिया. सदा के लिए सुला दिया उसे.

मैं-पर कोई था जिसने उस क़त्ल को होते हुए देखा.

रुडा- आंह ,जैसा हमने कहा ये दुनिया चुतियो से भरी है . महावीर . उसको भी यही बीमारी थी जो तुमको है दुसरो के मामलो में नाक घुसना , क्या कमी थी उसको . जवान था मौज करता. पर उसे जंगल का सच जानना था वो सच जिसे छुपाते छुपाते हमारी जुती घिस गयी . न जाने लोग क्यों नहीं समझते की जिन्दगी कोआज में जीना चाहिए . जब मैं तुमको देखता हूँ न तो मुझे कभी भी तुम नहीं दिखे कबीर, मैंने हमेशा महावीर को देखा. किसी ने तुम्हे नहीं बताया होगा पर मैं तुम्हे बताता हूँ वो तुम सा ही था . उसके सीने में दिल था जो धडकता था अपने लोगो के लिए.

सवाल बहुत करता था वो . मैंने क्या नहीं दिया उसे पर उस चूतिये को शौक था ऊँगली करने का . न जाने कैसे उसने सोने के राज को मालूम कर लिया था . चलो ठीक था इतना भी हमारे बाद हमारी औलादों को ही काम आता वो .

मैं ख़ामोशी से रुडा को देख रहा था कुछ पल पहले वो मुझे दर्द भरी कहानी सूना रहा था और मेरे एक सवाल ने उसके चेहरे पर पुते रंग को बहाना शुरू कर दिया था

मैं- महावीर को सोना नहीं चाहिए था कभी भी .

रुडा- सही समझे तुम . जानता था की तुम समझोगे इस बात को

मैं- महावीर की दिलचस्पी कभी नहीं थी सोने में. उसे तलाश थी किसी की

रुडा- उसे तलाश थी कातिल की

मैं- सुनैना के कातिल की . मुझे लगा ही था . मैंने सोचा था इस बारे में पर कड़ी अब जाकर जुडी है . कड़ी थी सुनैना और उसके बच्चे उस रात सुनैना को एक नहीं दो औलाद पैदा हुई थी . महावीर सुनैना का बेटा था .

न जाने क्यों मेरे पैरो तले जमीं खिसकने लगी थी . क्योंकि इस सच ने तमाम लोगो को कटघरे में खड़ा कर दिया था . महावीर को साजिश के तहत मारा गया था तो उस साजिश में भैया, भाभी और अंजू भी शामिल थे. इतना कमजोर मैंने पहले कभी नहीं महसूस किया था खुद को. सच के आखिर कितने रूप हो सकते है

रुडा- सच , कबीर, सच , अपने आप में अनोखा अप्रतिम . सच से खूबसूरत कुछ नहीं सच से घिनोना कुछ नहीं. महावीर को मालूम हो गया था की उसकी माँ का कातिल कौन है . रिश्तो के बोझ से दबा वो बदहवास भटक रहा था और फिर उसने मुझे रमा के पति को मारते हुए देखा, उसका सब्र टूट गया. और ना चाहते हुए भी मुझे वो फैसला लेना पड़ा जिसकी वजह से आज हम दोनों यहाँ पर है .

मैं- महावीर के क़त्ल का फैसला

रुडा- क्या करे, दुनियादारी असी ही चीज है

मैं- पर कैसे. उसे तो ...

"उसे तो किसी और ने घायल किया था . जंगल में घायल पड़ा था वो . कमजोर सांसे लड़ रही थी जिन्दगी से . गोलियों के घाव गहरे थे . उसी दोपहर उसकी और मेरी लड़ाई हुई थी . बदहवासी , बेखुदी में बस वो निशा को पुकारे जा रहा था . वो उसे बताना चाहता था कुछ

मैं- क्या बताना चाहता था .

रुडा- डायन , महावीर के अंतिम शब्द डायन थे.जानता है कबीर कोई भी आज तक उसके कातिल को क्यों नहीं तलाश कर पाया.

मैं- क्योंकि कोई नही जानता की उसका कातिल उसका बाप है.

मेरे ये शब्द मेरे गले की फांस बन गए, मेरी आँखों से आंसू बह चले. बेशक महावीर मेरा कुछ नहीं लगता था पर फिर भी मेरे मन में संवेदना थी उसके लिए. एक पल के लिए मेरे और रुडा के दरमियान बर्फ सी जम गयी . इन्सान से घटिया और कोई जानवर नहीं . मैं दो पल के लिए अपने ख्यालो में खो गया और जब होश आया तो मेरे बदन में कुछ नुकीला सा घुस चूका था . दर्द को मैंने बस महसूस किया . कुछ बोल नहीं पाया.

"जानता है महावीर के कातिल को कोई भी नहीं तलाश कर पाया क्योंकि कोई जान ही नहीं पाया . तूने जाना अब तू भी नहीं रहेगा. ये राज तेरे साथ ही दफन हो जायेगा " रुडा ने चाकू को दुबारा से मेरे पेट में घुसेदा.

मैं कुछ भी नहीं बोल पाया अचानक से हुए हमले ने मुझे स्तब्ध कर दिया था . मैं समाधी के पत्थरों पर गिर गया .

रुडा- जैसा मैंने कहा दुनिया चुतियो से भरी है , तू उन चुतियो का सरदार है . क्या नहीं मिल रहा था तुझे. यहाँ तक निशा भी दी तुझे सोचा की उसके साथ जी लेगा तू पर तुझे तो सच जानना था , देख सच , सच ये है की तू मरने वाला है तेरी लाश कहाँ गायब हो गयी कोई नहीं जान पायेगा.

रुडा ने अबकी बार मेरे सीने पर धार लगाई चाक़ू की . और मेरी आवाज गले से बाहर निकली.

"निशा " मेरे होंठो से ये ही पुकार निकली.

रुडा- कैसा अजीब इतीफाक है न ये, तू भी निशा को ही पुकार रहा है . मोहब्बत भी साली क्या ही होती है हम तो कभी समझ ही नहीं पाए इस बला को . हमें तो चुदाई से ही फुर्सत ना मिली और तुम हो के साले मरने को मर रहे हो फिर भी इश्क का भूत नहीं उतर रहा.

"मैं नहीं मरूँगा रुडा , मुझे जीना है मेरी जान के साथ मुझे जीना है निशा के साथ . " मैंने पूरी ताकत लगाई और रुडा को अपने ऊपर से हटाने की कोशिश करने लगा. पर कामयाब नहीं हो पाया.

रुडा ने दो थप्पड़ मारे मुझे और बोला-बस जल्दी ही तू इस दर्द से आजाद होकर हमेशा के लिए सो जाएगा.

रुडा के मजबूत हाथ मेरा गला दबाने लगे . मैं हाथ पाँव तो पटक रहा था पर जोर नहीं चल रहा था और जब लगा की सांसो की डोर अब टूट ही गयी . मेरे मन के अन्दर सोया जानवर जाग ही गया था की तभी मैंने रुडा पर अपने सियार को छलांग लगाते हुए देखा. और अगले ही पल रुडा की पीठ पर एक जोर का लट्ठ पड़ा . रुडा जमीं पर गिर गया .
 
#149

"तुमने सोचा भी कैसे की मेरे होते हुए तुम कबीर को नुक्सान पहुंचा पाओगे,बाबा . तुमने कबीर पर नहीं मेरी आत्मा पर वार किया है, कबीर मेरा गुरुर है जिन्दगी है मेरी और कोई भी मेरी जिन्दगी मुझसे छीन ले ये मैं होने नहीं दूंगी. आज नहीं कल नहीं कभी भी नहीं." निशा ने लगातार रुडा पर लट्ठ से वार किये.

पेट पर हाथ रखे मैं उठा , और जाकेट को कस कर पेट के जख्म पर बान्ध लिया.

निशा- सोचा था की कम से कम तुमने मुझे समझा पर तुम , तुम तो सबसे घटिया निकले . अपने हाथो से मेरी मांग का सिंदूर उजाड़ दिया तुमने. पर आज नहीं आज तुमको अपने पापो का हिसाब देना होगा . आठ साल मैं भटकती रही ,सोचती रही की कौन होगा वो जिसने मेरे जीवन में अँधेरा कर दिया पर काश , काश मैं पहले ही समझ पाती की दिए तले हो अँधेरा होता है

मैं- रुक जा निशा

निशा- आज नहीं कबीर , आज रुकी तो फिर खुद को कभी माफ़ नहीं कर पाउंगी कबीर .

मैं- इसे माफ़ी नहीं देनी निशा,इसे तू जो चाहे सजा दे पर कुछ सवाल है जिनके जवाब अभी बाकि है

निशा- जवाब तो मांगूंगी ही मैं .

निशा ने पलक झपकते ही रुडा के पाँव को तोड़ दिया. जंगल में उसकी चीख गूंजने लगी.

"चीख, कभी इस जंगल में महावीर की चीखे सुनी होंगी आज ये जंगल उसके कातिल की चीख सुनेगा. तेरे कर्म आज तुझे वही पर ले आये है . चिंता मत कर तुझे इतनी आसान मौत नहीं दूंगी मैं " निशा ने उस पर थूका और मेरे पास आई मुझे अपने आगोश में भर लिया मरजानी ने .

निशा- सोच तो लिया होता सरकार तेरे पीछे एक जिन्दगी और है तुझे कुछ हो जायेगा तो मेरा क्या होगा . जीना है मुझे तेरे साथ .

मैं- तुझसे वादा किया है मेरी जान . ये जन्म अगला जनम हर जन्म मेरी जान जीना तेरे साथ मरना तेरी बाँहों में .

निशा- रो पडूँगी अगर मरने की बात की तो .

निशा न मेरा जख्म देखा और बोली- तेरे छिपे हुए रूप के बारे में सोच जख्म पर असर होगा

मैं- जानता हूँ पर ये बता तू यहाँ कैसे पहुँच गयी .

निशा- जासूस छोड़ रखा है तेरे पीछे. इतना तो जान गयी थी की तू परेशां है पर क्यों ये नहीं जान पायी और शुक्र है ये सही समय पर मुझे यहाँ ले आया .

निशा ने सियार की तरफ देखा . जो लपक कर हम दोनों से लिपट गया .

मैं- तो जब सुनैना से प्यार वाली कहानी झूठी है तो अब बताओ की असल में उसके साथ हुआ क्या था .

रुडा- बहुत सुन्दर थी वो , मादकता से भरा ऐसा जाम . स्वर्ग से जैसे कोई अप्सरा ही उतर आई हो . बंजारों की लड़की का ऐसा सौन्दर्य अपने आप में अनोखा था. जो भी देखे उसे देखता ही रह जाए. उसे हर कोई पाना चाहता था पर वो भरोसा करती थी हम दोनों पर और उसका वही भरोसा उसका श्राप बन गया . कब वो हम दोस्तों के बीच की खाई बन गयी मालूम ही नहीं हुआ. सब सही था, अगर वो पेट से ना होती . पर उस से भी माहत्वपूर्ण उसने सोना तलाश लिया था . दिक्कत सिर्फ ये थी की सोना वो निकाल सकती थी . चाह कर भी उस से पीछा नहीं छुड्वाया जा सकता था . पर न जाने क्यों बिशम्भर का मन बदल गया . वो टूटती डोर को थामना चाहता था . पर न जाने कैसे वो जान गया की वो षड्यंत्र मैंने ही रचा था . बहुत झगडा हुआ उसका और मेरा. उसकी गोद में दो नवजात थे , मैं उनको रस्ते से हटा देना चाहता था पर वो नहीं माना. मुर्ख था वो . सारी उम्र जिसने किसी रिश्ते की लिहाज नहीं किया ना जाने क्यों वो उन दो नवजातो का मोह नहीं छोड़ पा रहा था

मैं- इतनी ही नफरत थी तो क्यों पाला तुमने, क्यों नाम दिया उनको अपना .

रुडा- मज़बूरी मेरी मज़बूरी. लालच .सौदा जो बिशम्भर ने मुझसे किया था .

निशा-कैसा सौदा.

रुडा- उसने सौदा किया की यदि मैं इन दोनों को पालू तो वो सारा सोना मुझे दे देगा.

मैं- राय साहब खुद सम्पन्न थे उनके लिए क्या मुश्किल था दो बच्चो का पालन पोषण फिर उन्होंने ये सौदा क्यों किया.

रुडा- आज तक नहीं समझ पाया मैं ये बात

मैं- चाचा जरनैल से क्या पंगा था तुम्हारा .

रुडा- उसे लगता था की रमा पर उसका हक़ था वो चुतिया नहीं जानता था की रमा तो कब से हमारी थी .

मैं-उसकी मौत में किसका हाथ था .

रुडा- नहीं जानता , उसकी मौत हुई ये भी तुमने ही बताया

बाते बहुत हद तक साफ़ थी . खंडहर एक ऐसी जगह थी जहाँ पर राय साहब और रुडा अपनी हवस मिटाते थे. वो तमाम सामान इन दोनों का ही था , इनोहोने ही ऐसी वयवस्था बनाई की वहां पर कोई परिंदा भी पर ना मार सके. पर अय्याशी में खलल पड़ा जब महावीर का लगाव हुआ उस जगह से , महावीर ने ही वो जगह अभिमानु और प्रकाश को बताई होगी. जिनका प्रयोग बाद में उन्होंने किया. कविता और सरला उस जगह के बारे में कभी नहीं जान पाई क्योंकि वो कभी गयी ही नहीं और रमा ने उस जगह के बारे में कबी नहीं बताया क्योंकि मैंने उस से हमेशा पूछा की चाचा ने उसे कहा चोदा , चाचा की अय्याशी बस कुवे तक ही सिमित रही .

"अपने ही हाथो से तूने मेरा हाथ कबीर के हाथ में देकर दुआ की थी मेरी नयी जिन्दगी के लिए और अपने ही हाथो से तू मेरे नसीब की लकीर मिटा देना चाहता था . क्यों " निशा ने कहा

रुडा- मैं पीछा छुड़ाना चाहता था तुझसे. मुझ अलग की ये ही सही रहेगा क्योंकि कबीर जिस तरह से अपनी खोजबीन में लगा हुआ था मैं जानता था की देर सबेर ये अतीत का वो पन्ना तलाश लेगा जो खून से रंगे है .

निशा - तूने बहुत जवाब दिए बस इतना बता जब वो मरा तो उसने क्या कहा था .

रुडा- उसने तेरा नाम लिया था .
 
#150


"क्या कहा था उसने मरने से पहले "निशा ने चीखते हुए रुडा के सर पर लट्ठ मारा . चीखती रही वो मारती रही. बरसो से उसके मन में भरा दर्द आज क्रोध बन कर बह रहा था . मेरे सामने वो कत्ल कर रही थी पर मैंने उसे रोका नहीं, ये दर्द, ये गम बह जाना चाहिए था .निशा जब थमी तो मैंने उसे अपने सीने से लगा लिया. कुवे पर आकर मैंने उसे खून साफ़ करने को कहा. मैंने अपने जख्म को देखा. ऐतिहत के लिए मैंने उस पर पट्टी बाँध ली. घर जाने को अब समय भी नहीं था . हम लोग वही पर सो गए.

"उठ भी जाओ , चाय लो " निशा ने मुझे जगाते हुए कहा. मैंने कप लिया उसके हाथ से और बाहर कुवे की मुंडेर पर आकर बैठ गया . महावीर का कातिल, खंडहर के कमरों का रहस्य खुल गया था . पर अभी भी काफी सवाल बाकी थे. कहानी में रुडा का पक्ष जान लिया था अब बारी थी राय साहब के नकाब उतारने की. जब मैं जानता था की महावीर वो आदमखोर नहीं था तो फिर भैया-भाभी-अंजू ने क्यों जोर देकर कहा की महावीर ही था इस बात की पुष्टि करनी थी . अब किसी पर भी यकीन नहीं करना था ये साले सब एक दुसरे से जुड़े थे , सब झूठे थे.

"क्या सोच रहे हो " निशा ने मेरे पास बैठते हुए कहा.

मैं- हमें शहर जाना होगा अंजू के घर .

निशा- वहां पर क्यों

मैं- अंजू के बारे में तुम कितना जानती हो. कल रात के बाद अब लगता है की उसकी सकशियत सिर्फ ये नहीं है की वो अमीर जमींदार की बेटी है . वो कुछ और भी है . राय साहब ने महावीर और अंजू को अपने संरक्षण में लिया तो क्यों लिया , आखिर क्यों चाहते थे वो की ये दोनों बच्चे बड़े हो जिए इस दुनिया में .

निशा- जहाँ भी चलना है चल पर अबसे मैं तुझे एक पल भी अकेला नहीं छोडूंगी

मैं-हाय मेरी जान

मैंने निशा को अपनी बाँहों में उठाया और कमरे में लेकर घुस गया .

घर पहुंचे तो भाभी आँगन में ही थी. हमें देख कर बोली- कहाँ थी जोड़ी रात भर .

मैं- कुवे पर थे . हमको ये घर कहाँ रास आता है .

भाभी- बता कर जाया करो जहाँ भी जाना हो .

मैं- नाहा कर आता हूँ

भाभी- निशा यहाँ आओ

भाभी निशा को लेकर अन्दर चली गयी . मैं जब नहा कर आया तो देखा की चाची, निशा और भाभी बाते कर रही थी ..

चाची- कबीर, वो मालूम कर न सरला क्यों नहीं आ रही . मैंने कल भी बुलावा भेजा था पर वो आई नहीं.

मैं-वो नहीं आएगी उसने काम करने से मना कर दिया . ब्याह वाले दिन जो हुआ उसके बाद डर गयी वो.

चाची- समझती हूँ . पर ये मंगू भी न जाने कहाँ गायब है न घर पे आया न यहाँ पे आया. कोई बताता भी नहीं किस काम गया है वो . पता नहीं क्यों ऐसा लगता है की सब कामचोर हो गए है .

मैं- आ जायेगा चाची, वैसे भी कई कई दिन वो गायब रहता है गया होगा यही कहीं, खैर, मैं मालूम करूँगा.

मैं- अंजू न दिख रही .

भाभी- वो तो कल ही शहर लौट गयी.

चोबारे में आईने के सामने खड़ा मैं कपडे बदल रहा था मेरे सीने में लटकता चांदी का लाकेट झूल रहा था .माहवीर का ये लाकेट कुछ तो कहना चाहता था मुझसे. अंजू के अनुसार उसने गोलिया मारी थी उसे. अक्सर हम उन चीजो से दूर भागते है जिनके लिए हमारे मन में पश्चाताप होता है , हम पश्चाताप की कोई निशानी नहीं रखते तो फिर क्या वजह थी जो अंजू इस लाकेट को पहनती थी जो हर पल उसे महावीर की याद दिलाता अपने किये कर्म की याद दिलाता. क्या कारण था फिर अंजू का ये लाकेट पहनने का.

क्या था ये लाकेट, क्या कहानी थी इसकी. इस लाकेट ने मुझे खंडहर के छिपे कमरे दिखाए थे क्या पता ये लाकेट कुछ ऐसा भी जानता हो जो छिपा हो.

"सच बड़ा अनोखा होता है , सच बड़ा घिनोना होता है " रुडा के कहे शब्द मैंने सीने में उतरते महसूस किये. महावीर इसलिए मरा की वो कुछ जान गया था , सच पर कैसा सच किसका सच. मैंने कपडे पहने और तुरंत निचे आया और भाभी के पास गया सीधा- मैं भैया की गाडी चाहिए मुझे

भाभी- इसमें पूछने की क्या जरुरत .

मैं- आज तक उसे कभी हाथ नहीं लगाया न

भाभी- चाबी खूँटी पर होगी वैसे कहाँ जाने का सोचा है .

मैं- निशा को घुमा कर लाना चाहता हूँ

भाभी- एक मिनट रुको जरा

भाभी अन्दर गयी और नोटों की गड्डी लेकर आई.

मैं- इसकी जरुरत नहीं

भाभी- रख लो.

भाभी ने मेरे सर पर हलके से हाथ मारा और बोली- नई शुरुआत है जिन्दगी की रात को समय से लौट जाया करो.

मैंने निशा को इशारा किया और हम लोग गाँव से बाहर निकल गए.

निशा- कहाँ

मैं- वहां जहा बहुत पहले जाना चाहिए था .बंजारों के डेरे पर.

निशा- डेरा तो बरसो पहले तबाह हो गया.

मैं- तबाही के निशान ही तो देखने है सरकार. अभी भी कुछ ऐसा है जो छिपा है

निशा- तू छोड़ क्यों नहीं देता ये जिद, तू कहे तो हम यहाँ से दूर चले जाएँगे . एक छोटा सा घर कहीं और बसा लेंगे जहाँ कोई नहीं होगा. कोई अतीत नहीं , होगा तो बस आने वाला खूबसूरत कल.

मैं- यहाँ से कहाँ जायेंगे सरकार. इस मिटटी में जिए है इसी में मरेंगे . तेरे कहने से गाँव छोड़ दूंगा पर दिल से कैसे निकाल पाऊंगा इसको . किसान हूँ यहाँ की मिटटी को पसीने से सींचा है . जहाँ भी जायेंगे इस मिटटी की महक साथ रहेगी .

निशा-क्यों है तू ऐसा.

मैं- नियति जाने .

मैंने गाड़ी की रफ़्तार और तेज कर दी. जल्दी से जल्दी हम उस जगह पर जाना चाहते थे जहाँ डेरा होता था कभी और जब हम वहां पर पहुंचे तो .......................
 
#151

जब हम वहां पर पहुंचे तो वहां के हालात देख कर कहना मुश्किल था की एक बस्ती होती थी वहां पर. वक्त की बेरहमी ने उजाड़ दिया था सब कुछ. सामने था तो बस कुछ कच्ची मिटटी के घर जो बस नाम के रह गए थे .आबादी का तो कोई सवाल ही नहीं था. पर फिर भी एक उम्मीद थी दिल के किसी कोने में

निशा- कुछ भी तो नहीं यहाँ पर सिवाय इस बियाबान के

मैं- बियाबान होना ही इसे खास बनाता है निशा.

निशा- तुमको क्यों है इतनी दिलचस्पी

मैं- क्यों ना हो निशा, इस सोने से अब हम लोग भी जुड़े है कहीं न कहीं. रुडा ने कहा था की पिताजी एक रोज अचानक से गायब हो गए थे और वो बहुत दिन बाद लौटे थे. कहाँ थे वो इतने दिन. वो कुछ ढूंढ रहे थे , क्या . मुझे लगता है की सुनैना पिताजी के जायदा करीब थी. और उसने केवल सोना ही नहीं तलाश किया था उस सोने के साथ कुछ और भी था , कुछ ऐसा जिसने इन सब की जिदंगी बदल दी.

निशा- ऐसा क्या हो सकता है .

मैं- श्राप , निशा . वो सोना श्रापित था . कैसे ये तो नहीं जानता पर उस सोने ने सबसे पहले सुनैना को खाया और फिर दोनों दोस्तों को . और फिर उन सबको जिस जिस ने उनका लालच किया. महावीर ने सिर्फ सुनैना का अतीत ही नहीं जाना था बल्कि उस वजह को भी जान गया था जिसके लिए ये सब हुआ था .

निशा- तुमको पूरा यकीन है इस बात का .

मैं- निशा, अक्सर हमने कितने किस्से-कहानिया सुनी है , कुछ झूठी कुछ सच्ची . अब देखो न जंगल खुद अपनी कहानी सुना रहा है की नहीं. कितनी कहानियो में हमने सुना है की भूत-प्रेत किसी को वहां मिले वहां मिले ऐसे ही कहानिया एक पीढ़ी से दूसरी तक आती-जाती रहती है पर यहाँ इस कहानी में सच था वो सोना पर उसे सुनैना ने कैसे हासिल किया वो सोना किसका था उसे हासिल करने की क्या कीमत चुकाई और क्या थी वो कीमत.

निशा- बात तो सही कही तुमने पर कैसे मालूम होगा.

मैं- तलाशी करेंगे , इतिहास ने जब यहाँ बुला ही लिया है तो सबूत भी वो देगा अगर किसी ने सबूत छोड़ा होगा तो .

मैं और निशा बस्ती के हर एक हिस्से की गहराई से जांच करने लगे. कुछ घंटे बीत गए धुल मिटटी में सने हम लोग थकने लगे थे पर हाथ कुछ नहीं आया . और फिर निशा को एक मिटटी की संदूकची मिली . हमने उसे खोला तो कुछ चान्दी के आभूषण थे उसमे . उसके निचे एक लाल कपडा था मिटटी से सना हुआ धुल झाडी तो कुछ और मिला. एक तस्वीर थी श्वेत-श्याम तस्वीर जो जंगल में खींची गयी थी .

निशा- काफी पुरानी है ये तो

मैं- इसे रख लो .

डेरे की भोगोलिक स्तिथि को जांचने लगा. कल्पना करने लगा की जब ये आबाद होगा तो कैसा होगा और यहाँ से खंडहर कितनी दूर होगा भला. मैंने मिटटी में एक नक्सा सा बनाया और तमाम सम्भावनाये देखने लगा. रुडा-सुनैना-बिशम्भर त्रिदेव , तीन टुकड़े, त्रिकोण . त्रिकोण ओह तो ये था वो सुराग . मैंने अपने गले से चांदी का लाकेट उतारा और उसे उस नक़्शे पर रख दिया.

"चांदी शीतल है ये तुम्हे काबू में रखेगी " अंजू के ये शब्द मेरे कानो में जैसे गूँज पड़े. जंगल में सबसे शीतल क्या था जल और जल था उस तालाब में .

मैं- निशा हमें और कहीं चलना होगा .

निशा- कहाँ कबीर.

मैं- तू जान जाएगी.

मैंने गाडी कुवे की पगडण्डी पर खड़ी की और निशा के साथ खंडहर पर पहुँच गए.

निशा- एक बार फिर यहाँ

मैं-यही पर छिपा है वो राज़ , ये कहानी जंगल में शुरू हुई खत्म भी यही पर होगी मेरी सरकार. ये पानी , ये तालाब निशा मेरी जान तूने बहुत देखा इसे मैने बहुत देखा इसे पर वो तली में पड़ा सोना , एक छलावा था . उफ्फ्फ काश मैं क्यों नहीं पहचान पाया इस जाल को .

मैंने तुरंत पानी में गोता लगा दिया. ठंडा पानी जैसे मुझे मार ही गया . एक बार बाहर आकर मैंने फेफड़ो में हवा भरी और दुबारा से तली की तरफ चला गया . मैंने निशा को अपने पीछे आते महसूस किया . सोना आज भी शान से वैसे ही पड़ा था . पर उसमे मेरी कोई दिलचश्पी नहीं थी . साँसों को हवा की जरुरत थी पर अब दिल में उमंग थी और कहते है न कोशिश करने वालो की कोई हार नहीं होती. उस बड़े से झूलते त्रिकोण को मैंने जोर लगा कर घुमाया और गजब हो गया. अपने साथ थोडा सा पानी लिए मैं अब जमीं पर खड़ा था ठोस काले पत्थरों का ये फर्श एक और गुप्त तहखाना था इस खंडहर का . बनाने वाले ने भी क्या गजब ही चीज बनाई थी ये.

"इस खंडहर को समझना मुश्किल है " मेरे पीछे आती निशा ने कहा .

कुछ देर लगी हमें इस कमरे को समझने में पर जब समझा तो बहुत कुछ समझ आ गया . त्रिदेव तीन दोस्तों की कहानी , ये कहानी अगर शुरू हुई होगी तो इसी तहखाने से शुरू हुई होगी. कमरे के बीचो बीच एक स्टैंड था पत्थर कर जिस पर एक सरोखा रखा था जिसमे पानी नहीं था ताजा रक्त था .खून की महक को मैंने पल भर में पहचान लिया था . न जाने क्यों मेरी तलब बढ़ सी गयी उस खून को चखने की .

निशा- नहीं कबीर वो विचार त्याग दो . तुम वो नहीं हो तुम कभी नहीं बनोगे वो .

निशा ने मेरे हाथ को पकड़ लिया.

निशा- ताजा खून

मेरे दिमाग में सब कुछ तेजी से भाग रहा था . जंगल में हुई हत्याए . इसी खून के लिए हुई थी कोई तो था जिसकी प्यास इस खून से बुझाई जा रही थी . कोई तो था जो इस खून का इस्तेमाल कर रहां था पर कौन . कौन होगा वो मैं सोच ही रहा था की एक आवाज की वजह से हम दोनों कोने में छिप गए और मशाल लिए जो उस कमरे में आया .................
 
#152

मैने और निशा ने राय साहब को कमरे में आते हुए देखा . इस रायसाहब और उस रायसाहब जिसे मैं जानता था दोनों में फर्क सा लगा मुझे. ये इन्सान कुछ थका सा था. उसके चेहरे पर कोई तेज नहीं था. धीमे कदमो से चलते हुए वो सरोखे के पास आये और उस रक्त को देखा जिसकी खुसबू मुझे पागल किये हुए थी. पिताजी ने अपनी कलाई आगे की और पास में रखे चाकू से घाव किया ताजा रक्त की धार बह कर सरोखे में गिरने लगी. सरोखे में हलचल हुई और फिर मैंने वो देखा जो देख कर भी यकीन के काबिल नहीं था . सरोखा खाली होने लगा.

कलाई से रक्त की धार तब तक बहती रही जब तक की सरोखा फिर से भर नहीं गया. पिताजी ने फिर अपने हाथ पर कुछ लगाया और जिन कदमो से वापिस आये थे वो वैसे ही चले गए. मेरा तो दिमाग बुरी तरह से भन्ना गया था . मैं और निशा सरोखे के पास आये और उसे देखने लगे.

निशा- इसका मतलब समझ रहे हो तुम

मैं- सोच रहा हूँ की रक्त से किसे सींचा जा रहा है . पिताजी किस राज को छिपाए हुए है आज मालूम करके ही रहूँगा

मैंने सरोखे को देखा , रक्त निचे गया था तो साफ़ था की इस कमरे के निचे भी कुछ है . छिपे हुए राज को जानने की उत्सुकता इतनी थी की मैंने कुछ नहीं सोचा और सीधा सरोखे को ही उखाड़ दिया , निचे घुप्प अँधेरा था , सीलन से भरी सीढियों से होते हुए मैं और निशा एक मशाल लेकर निचे उतरे और मशाल की रौशनी में बदबू के बीच हमने जो देखा, निशा चीख ही पड़ी थी . पर मैं समझ गया था. उस चेहरे को मैं पहचान गया था . एक बार नहीं लाखो बार पहचान सकता था मैं उस चेहरे को . लोहे की अनगिनत जंजीरों में कैद वो चेहरा. मेरी आँखों से आंसू बह चले . जिन्दगी मुझे न जाने क्या क्या दिखा रही थी .

"चाचा " रुंधे गले से मैं बस इतना ही कह पाया. लोहे की बेडिया हलकी सी खडकी .

"चाचे देख मुझे , देख तो सही तेरा कबीर आया है . तेरा बेटा आया है . एक बार तो बोल पहचान मुझे अपने बेटे से बात कर " रो ही पड़ा मैं. पर वो कुछ नहीं बोला. बरसो से जो गायब था , जिसके मरने की कहानी सुन कर मैंने जिस से नफरत कर ली थी वो इन्सान इस हाल में जिन्दा था . उसके अपने ही भाई ने उसे कैदी बना कर रखा हुआ था

"चाचे , एक बार तो बोल न , कुछ तो बोल देख तो सही मेरी तरफ " भावनाओ में बह कर मैं आगे बढ़ा उसके सीने से लग जाने को पर मैं कहाँ जानता था की ये अब मेरा चाचा नहीं रहा था . जैसे ही उसको मेरे बदन की महक हुई वो झपटा मुझ पर वो तो भला हो निशा का जिसने समय रहते मुझे पीछे खीच लिया .

चाचा पूरा जोर लगा रहा था लोहे की उन मजबूत बेडियो की कैद तोड़ने को पर कामयाबी शायद उसके नसीब में नहीं थी. उसकी हालात ठीक वैसी ही थी जैसी की कारीगर की हो गयी थी .

निशा- कबीर , समझती हूँ तेरे लिए मुश्किल है पर चाचा को इस कैद से आजाद कर दे.

मैं उसका मतलब समझ गया .

मैं- क्या कह रही है तू निशा .

निशा- जानती हूँ ये बहुत मुश्किल है अपने को खोने का दर्द मुझसे ज्यादा कोई क्या समझेगा पर चाचा के लिए यही सही रहेगा कबीर यही सही रहेगा. अब जब तू जानता है की चाचा किस हाल में जिन्दा है . इस हकीकत का रोज सामना करना कितना मुश्किल होगा . इसे तडपते देख तुम भी कहाँ चैन से रह पाओगे. चाचा की मिटटी समेट दो कबीर . बहुत कैद हुई आजाद कर दो इनको.

मैं- नहीं होगा मुझसे ये

निशा- करना ही होगा कबीर करना ही होगा.

बेशक ये इन्सान जैसा भी था पर किसी अपने को मारने के लिए बहुत हिम्मत चाहिए थी और निशा की कही बात सच थी राय साहब के इसे यहाँ रखने के जो भी कारण हो पर सच तो ये था की नरक से बदतर थी उसकी सांसे .

गले में पड़े लाकेट की चेन को इधर उधार घुमाते हुए मैं सोच रहा था आखिर इतना आसान कहा था ये फैसला लेना मेरे लिए और तभी खट की आवाज हुई और वो लाकेट में से एक चांदी का चाक़ू निकल आया . ये साला लाकेट भी अनोखा था . कांपते हाथो से मैंने चाकू पकड़ा और मेरी नजरे चाचा से मीली. पीली आँखे हाँ के इशारे में झपकी. क्या ये मेरा वहम था मैंने अपनी आँखे बंद की और चाकू चाचा के सीने में घुसा दिया. वो जिस्म जोर से झटका खाया और फिर शांत हो गया . शरीर को आजाद करके मैं ऊपर लाया और लकडिया इकट्ठी करने लगा. अंतिम-संस्कार का हक़ तो था इस इंसान को .

जलती चिता को देखते हुए मैं रोता रहा . पहले रुडा और अब ये दोनों ने तमाम कहानी को फिर से घुमा दिया था . तमाम धारणाओं , तमाम संभावना ध्वस्त हो गयी थी . एक बार फिर मैं शून्य में ताक रहा था . मैं ये भी जानता था की बाप को जब मालूम होगा की ये मेरा काम है तो उसके क्रोध का सामना भी करना होगा पर एक सवाल जिसने मुझे हद से जायदा बेचैन कर दिया था अगर चाचा यहाँ पर था तो कुवे पर किसका कंकाल था .
 
#153

निशा- दो बाते हो सकती है या तो राय साहब अपने भाई से बहुत प्यार करते थे या फिर वो हद नफरत करते थे जो सब जानते हुए भी उसे कैद किये हुए थे.

मैं- सहमत हूँ . पर अभी ख्यालो से बाहर आने का समय है . बहुत हुआ परिवार का , रिश्तेनातो का चुतियापा अब इस किस्से को खत्म करना है मेरी आने वाली जिन्दगी सकून के साथ जीनी है मुझे. और इस सकून को जो भी कीमत चुकानी पड़े, परवाह नहीं करूँगा मैं. चल मेरे साथ .

निशा- अब कहाँ

मैं- जान जाएगी

कुवे पर आते ही मैंने उस गड्ढे को खोदना शुरू किया जहाँ पर चाची ने दावा किया था की वो कंकाल चाचा का था . मैंने उन हड्डियों को निकाला और एक थैले में भर लिया. शहर जाने से पहले मैंने कपडे बदलने का सोचा , जब मैं कपडे उतार रहा था तो मेरी नजर उस जगह पर पड़ी जहाँ वो तस्वीरे रखी थी मैंने पर अब वो तस्वीरे वहां नहीं थी .

"बहुत बढ़िया " मैंने खुद से कहा. तस्वीरे गायब होना मुझे इशारा था की कोई तो है जो मुझ पर निगाह रखे हुए है .

"चल निशा " मैंने गाड़ी में बैठने का इशारा किया उसे.

निशा- कहाँ

मैं- शहर

मैं सीधा गाड़ी लेकर उस डॉक्टर के पास गया . मैं हड्डियों की जांच करवाना चाहता था . चूँकि डॉक्टर वो काम के काबिल नहीं था पर उसने कहा की उसकी जानकारी है थोडा समय दो वो करवा देगा. फिर मैं राज बुक स्टोर पर गया .

मालिक- अब क्या चाहिए तुमको

मैंने जेब से वो तस्वीर निकाली जो डेरे में मिली थी मुझे. उसने वो तस्वीर देखि और फिर मेरे मुह की तरफ देखने लगा.

मैं- इतना जानना है की आज ये तस्वीर बनाई जाये तो इसमें मोजूद ये लोग कैसे लगेंगे.

मालिक- भाई , ये काम तो चित्रकार कर सके है . रुक मैं तुझे करके देता हु कुछ जुगाड़. उस स्टोर वाले ने मुझे एक पता दिया जहाँ पर हमे एक तस्वीरे बनाने वाला मिला मैंने उसे पैसे दिए और सम्भंवाना बताई. उसने समय जरुर लिया पर काम कर दिया . यदि ये तस्वीर आज खिंचाई जाये तो कैसी दिखेगी ये सोच कर मैं हैरान जरुर था.

डॉक्टर के जानकार दुसरे डॉक्टर से मालूम हुआ की हड्डिया थी तो किस पुरुष की ही पर ज्यादा जानकारी के लिए और समय की जरुरत थी .फिलहाल के लिए मेरा इतनी जानकारी से काम चल सकता था . गाँव वापिस जाने से पहले मैंने गाडी एक जगह पर और घुमाई, अंजू की हवेली. हमेशा की तरह दरवाजे पर नौकरनी थी .

मैं- अंजू से मिलना है

नौकरानी- वो तो नहीं है यहाँ पर .

ये कैसे हो सकता था वो यहाँ नहीं थी घर पर नहीं थी तो फिर कहा थी वो .

निशा- कोई बात नहीं हमें हवेली देखनी है

नौकरानी- आप ऐसे अन्दर नहीं आ सकते.

उसकी बात पूरी होने से पहले निशा ने उसकी गर्दन पकड़ ली

"जितनी है उतनी ही रह , हमें हमारा काम करने दे जरुरी है ये . " निशा ने उसे धक्का दिया और हम अन्दर घुस गए

सबसे पहले मैंने उसी तस्वीर को देखा , उसे देखा और फिर अपनी जेब से निकाल कर उस तस्वीर को देखा . फिर मैंने पूरा घर छान मारा पर कुछ भी संदिग्ध नहीं निकला कुछ भी ऐसा नहीं जो जरा भी शक पैदा करे.

निशा- आखिर तुम्हे तलाश किस चीज की है

मैं- सच की मेरी जान . अंजू कुछ तो छिपा रही है क्या ये मैं नहीं जानता .

निशा- कंकाल में दिलचस्पी क्यों

मैं- कविता के पति का कंकाल था वो , ऐसा मैं मानता हूँ. सम्भावना ये है की रोहताश को भी रस्ते से हटा दिया गया हो और जब ये बात कविता जान गयी तो उसे भी मार दिया गया.

निशा- पर कौन होगा वो.

मैं- कोई भी हो सकता है , राय साहब, रुडा. प्रकाश यहाँ पर मैं सोचता हूँ की रुडा के भी कविता के साथ सम्बन्ध थे .

निशा-एक बात और जिस पर विचार किया जाना चाहिए

मैं- क्या

निशा- हो सकता है की अभिमानु को भी मालूम हो चाचा के बारे में , वैध की मदद लेने का ये भी एक कारण हो सकता है की कैसे भी करके वो चाचा को ठीक करना चाहता हो .

मैं- नहीं

निशा- क्यों नहीं

मैं- क्योंकि अभिमानु भैया ने मदद की थी चाचा की लाश को छुपाने में

निशा- नजरो का धोखा भी हो सकता है . इसे ऐसे समझो की हमले के बाद भी महावीर जिन्दा था उसे रुडा ने मारा. तो मान लो की विशेष परिस्तिथियों में चाचा भी जिन्दा हो जिसे बाद में वहां से निकाल लिया गया हो और इत्तेफाक से उसी जगह पर कातिल ने कविता के पति को गाड दिया हो.

मैं- इत्तेफाक कुछ हल्का शब्द नहीं है इस कहानी में

निशा- हो सकता है पर विचार करने में क्या बुराई है . देख कबीर , इस जंगल में हम सब अपने अपने मकसद से भटक रहे थे पर सिर्फ एक तू ही था जो जंगल में आता था क्योंकि तू प्यार करता है इसे. और प्यार सबसे बड़ी शक्ति होता है .

मैं- अगर तेरी बात मान लू तो दो धारणा बनती है एक अभिमानु भैया ने चाची से धोखा किया या फिर अगर राय साहब ने किया ये काम तो फिर उन्होंने सब जानते हुए चाची या भैया के खिलाफ कोई कार्यवाही नहीं की .

"मैं उसे वहां छिपाती जहाँ वो सबके सामने तो होता पर उसे देख कोई नहीं पाता " ना जाने क्यों ये शब्द बार बार मेरे जेहन में गूंजते थे.

भाभी ने कहा की वो आदमखोर है , उन्होंने कहा की महावीर आदमखोर था पर वो नहीं था या फिर था जो निशा नहीं जानती हो . सुनैंना की दो औलाद महावीर और अंजू . मेरी जेब में तस्वीर . कुवे से गायब तस्वीरे कौन ले गया और सबसे बड़ी बात चंपा ने राय साब और अपने ही भाई से सम्बन्ध क्यों बनाये. वापसी में मैंने गाड़ी फिर से कुवे की पगडण्डी पर खड़ी की और एक बार फिर मेरी मंजिल खंडहर थी जहाँ मुझे याकिन था की चाचा की चिता की राख इतनी आसानी से ठंडी नहीं हुई होगी.
 
#154


कुछ चीजे साफ़ हो गयी थी . जंगल में जो भी क़त्ल हुए थे वो रक्त के लिए हुए थे कातिल जो भी रहा हो . पहले मैंने सोचा था की सोने की खान का राज खुल ना जाये पर सच तो ये था की रक्त की तृष्णा , रक्त चाहिए था चाचा की प्यास के लिए. खंडहर खामोश था कुछ लकडियो में जान बाकी थी जो चटक रही थी . एक बार फिर हम तहखाने में गए पर जैसा हमने छोड़ा था सब वैसा ही था .

मैं- हो न हो निशा सुनैना ने सोना खोजने की योजना को यही मूर्त रूप दिया होगा या फिर यही से उसने अपने टोने किये होंगे. और यही पर उसने सोने की कीमत चुकाई होगी.

निशा- कैसे मालूम हो की वो कीमत क्या थी .

मैं- वो कीमत श्राप थी . आदमखोर का श्राप . सोने की कीमत थी जिदंगी . अब ये श्राप किसका था क्यों था और ये सोना जो सुनैना ने चुराया, मेरी बात समझना चुराया उसका मालिक कौन था .

निशा- तुम किवंदितियो की बात कर रहे हो .

मैं- नहीं, मैं कहानी के उस पन्ने को तलाश रहा हूँ जो छिपा है . कहानी निशा, पुराने समय में मानो किसी ने भी ये सोना यहाँ पर छुपाया होगा. हो सकता है ये किसी लूट का हिस्सा हो. कोई भी रहा हो उसने अगर ये सोना छिपाया तो उसने कोई इंतजाम भी किया होगा उसकी सुरक्षा का .

निशा- कोई टोटका

मैं- ऐसा ही समझ लो और जब सोना सुनैना ने उठाया तो उसकी सुरक्षा जाग्रत हुई होगी.

निशा-कैसे मालुम हो ये सुनैना से जुड़ा कोई भी तो नहीं

मैं- है कोई ,

निशा- राय साहब

मैं- उसके आलावा भी कोई एक .

निशा- तो फिर देर किस बात की

मैं- अब कोई देर नहीं . अब तक इन लोगो ने हमसे खेला है अब हम खेलेंगे .

घर आने के बाद निशा भाभी के पास गयी . मैंने मौका देख कर चाची को पकड़ लिया और उसके होंठ चूसने लगा.

चाची- बहु आ गयी अब भी चाची ही चाहिए तुझे

मैं- तेरे जैसी कहाँ है वो मेरी जान . आज रात को आऊंगा तेरे पास

चाची- पागल है क्या निशा जाग गयी तो .

मैं- नहीं जागेगी पर तेरी जरुर लूँगा.

मैंने चाची की चूत को अपनी मुट्ठी में भर लिया . चाची कसमसाने लगी .

चाची अभी जा तू

मैं- नहीं रहने दे तेरे पास

चाची- तेरे पास ही तो हूँ , पर तुझे सब्र रखना होगा कभी मौका हुआ तो मना नहीं करुँगी.

तभी कुछ आहट हुई तो हम अलग हो गए. भाभी थी .

भाभी- पूरा दिन ही घूमते रहे आज

मैं- बस यूँ ही

भाभी- हाँ ठीक है न . ये ही तो दिन है

मैंने भाभी को साइड में आने का इशारा किया

भाभी- अरे कबीर, ऊपर से कुछ सामान लाना है जरा आओ

हम दोनों चोबारे की तरफ चल दिए.

भाभी- क्या बात है .

मैं- आपने एक बार कहा था की अंजू परिवार की सबसे बिगडैल लड़की है .

भाभी- अब क्यों पूछना है तुमको

मैं- आपने ऐसा क्यों कहा था .

भाभी- मैंने अंजू को किसी ऐसे के साथ देखा था जो कोई नहीं सोच सकता था .

मैं- महावीर , आपने उसके साथ देखा था न अंजू को आपतिजनक अवस्था में

भाभी- नहीं ,

मैं- तो फिर कौन

भाभी- रमा का पति . कैसे क्यों ये मैं नहीं जानती पर मैने दोनों को देखा था . अंजू को कच्ची उम्र से ही ये चस्का लग गया था पर जैसे जैसे उसको समझ आई अब वो बदल गयी है.

मैं- पक्का बदल गयी है न

भाभी- देख वो सदा से स्वछन्द रही है उसके साथ हुए हादसे के बाद तो वो बहुत बदली है

मैं- रमा के पति के अलावा कोई और

भाभी- एक दो नौकर थे जिनको फूफा ने मरवा दिया था .

मैं- क्या इसी बात का बदला लेने के लिए रमा की बेटी के साथ ज्यादती हुई .

भाभी- मैं नहीं जानती उस बारे में .

मैं- ब्याह वाली रात मैंने असली आदमखोर की गंध महसूस की थी टेंट में . अगर वो आप नहीं थी तो फिर कौन था .

भाभी- नहीं जानती मैंने बताया तो था

मैं- एक बार मुझे आपको उस रूप में देखना है

भाभी- तुझे मेरी बात का यकीन नहीं

मैं- मैंने आज तक खूबसूरत आदमखोर नहीं देखा .

भाभी- उस रूप में आई तो मुझे रक्त की तलब होगी तुंरत

मैंने अपनी कलाई आगे की .

भाभी- नहीं मानेगा

मैंने ना में गर्दन हिलाई . भाभी दो कदम रख कर कमरे में थोड़ी सी अन्दर हुई और पलक झपकते ही मेरे सामने वो सच था . मैंने अपनी कलाई भाभी के नुकीले दांतों पर लगाई पर अगले ही पल मेरे सामने फिर से नंदिनी खड़ी थी

भाभी- मेरा खुद पर काबू है कबीर . और तेरा रक्त पीना पड़े वो दिन आएगा तो मैं उस से पहले ही मरना पसंद करुँगी.

भाभी ने मेरे सर पर हाथ फेरा .

"सच खूबसूरत होता है सच घिनोना होता है " रुडा के शब्द मेरे मन में गूंजने लगे. एक संक्रमण ने भाभी के अस्तित्व को बदल कर रख दिया था . मैं इतना तो समझ गया था की महावीर इस बीमारी को बाहर से नहीं लाया था . कुछ भी करके मुझे सुनैना का इतिहास जानना था और उसके लिए अब मुझे अपने मोहरे का इस्तेमाल करना था . अगले दिन गाँव भर मे ये चर्चा फ़ैल गयी की छोटे ठाकुर लौट आये है . उनको इलाके में देखा गया. अफवाह में बड़ी शक्ति होती है . हमारे घर तक भी बात पहुंचनी ही थी . जीवन में पहली बार मैंने चाची के चेहरे पर पीलापन देखा , चिंता की लकीरे देखि . पूरा दिन उधेड़बुन में बीता और रात को जब हम कुवे पर घात लगाये हुए थे हमने पायल की झंकार सुनी ..........................
 
#155


इंतज़ार कितना लम्बा हो सकता है मैंने उस रात जाना . मेरे दिल में निशा की चिंता भी थी उसे अकेले कुवे पर छोड़ना ठीक था या नहीं दिल में थोड़ी घबराहट भी थी . एक एक पल मेरे सब्र का इम्तिहान ले रहा था पर खंडहर खामोश था इतना खामोश की मैं अपनी सांसो की आवाज भी सुन सकता था . रात बहुत बीत गयी थी पर साला कोई भी नहीं आया . मैंने जेब से वो तस्वीर निकाली और उसे गौर से देखने लगा. उसे उस पेंटर के बनाए अनुमान से मिलाने की कोशिश करने लगा पर साला दिमाग काम नहीं कर रहा था . मुझसे कुछ तो छूट रहा था .

मैंने खंडहर के उस तहखाने को समझने की कोशिश की , न जाने क्यों मुझे लग रहा था की ये तस्वीर कुछ तो छिपाए हुए है .

"तो यहाँ तक पहुँच ही गए तुम कुंवर " आवाज मेरे पीछे से आई थी . मैंने पलट कर देखा रमा खड़ी थी .

मैं- शुक्र है कोई तो आया . वर्ना इस तन्हाई ने जीना मुश्किल किया हुआ था मेरा

रमा- जीना तो मुश्किल ही होता है कुंवर

मैं- इतना मुश्किल भी नहीं था पर तुम सब ने इतना चुतियापा फैलाया हुआ है की मेरा जीना मुश्किल ही हुआ है .

रमा- तुमने वो कहावत तो सुनी होगी न कुंवर की जितनी चादर हो उतना ही पैर पसारना चाहिए पर तुम, तुमने तो शामियाना ही बना लिया . क्या नहीं था , क्या नहीं है तुम्हारे पास जो चाहा तुमने पाया सुख किस्मत वालो को मिलता है तुमने सुख की जगह अपने नसीब में दर्द चुना.तुम समझ ही नहीं पाए की कब अतीत की तलाश करते करते तुम खुद अतीत का हिस्सा बन गए हो.

मैं- वापिस लौटने के लिए ही मैंने वो अफवाह फैलाई थी .

रमा- खुद को जासूस समझते हो क्या तुम . तुमने क्या सोचा था तुम जाल फेंक दोगे और कबूतर फंस जायेगा. जो जिन्दगी तुम जी रहे हो न वो जिन्दगी वो दौर मेरी जुती की नोक पर है. बहुत विचार किया फिर सोचा चलो बच्चे की उत्सुकता मिटा ही देती हूँ . वर्ना चाल बड़ी बचकानी थी तुम्हारी . तुम को क्या लागत है . छोटे ठाकुर इतने साल गायब रहे और तुम कल के लौंडे तुम , तुम बीते हुए कल को एक झटके में सामने लाकर खड़ा कर दोगे .

रमा ने दो मशाल और जलाई . तहखाने का हरा फर्श सुनहरी लौ में चमकने लगा.

मैं- तुम शुरू से जानती थी की चाचा के गायब होने की क्या वजह थी . तुम भी शामिल थी उस राज को छिपाने में .

रमा- अब हर कोई तुम्हारे जैसा चुतिया तो नहीं होता न कुंवर. तुम्हे क्या लगता है किसमे इतनी हिम्मत थी जो राय साहब के भाई को गायब कर देता.

मैं- तो शुरू करते है फिर. बताओ शुरू से ये कहानी कैसे शुरू हुई.

रमा---- क्या करेगा कुंवर तू जान कर

मैं-अब तुम भी यहाँ हो हम भी यहाँ है और ये रात बाकी है .

रमा- चलो अगर तुम्हारी यही इच्छा है तो .

मैं- जंगल में तीन नहीं चार लोग थे . इस कहानी में हमेशा से चार लोग थे न

रमा- जान गए तुम

मैंने वो श्वेत श्याम तस्वीर रमा के हाथ में रख दी. रमा ने उस पर हलके से हाथ फेरा .

रमा- अक्सर आसमान में उड़ते परिंदों को ये गुमान हो जाता है की धरती पर खड़े लोग तो कीड़े-मकोड़े है . पर वो ये नहीं जानते कुंवर, की शिकारी का एक वार परिंदे की उड़ान खत्म कर देता है. एक पल में अर्श से फर्श पर आ गिरते है गुरुर की उड़ान वाले.

मैं-क्यों किया ये सब तुमने

रमा- मैंने क्या किया कुछ भी नहीं . मैं तो जी ही रही थी न . क्या चाहती थी मैं कुछ भी तो नहीं . कुछ भी नहीं कुंवर. पर मुझे क्या मिला तिरस्कार, घर्णा और उपहास उड़ाती वो नजरे.

मैं- तुम जलती थी उस से

रमा- मैं जलती थी उस से. मैं. मैं उसकी छाया थी पर गुरुर के नशे में डूबी उसकी आँखे कभी मुझे समझ ही नहीं पायी. उसे बहुत घमंड था रुडा और राय साहब के साथ त्रिकोण बनाया उसने. डेरे की सबसे काबिल थी वो . उसने वो कर दिखाया जो किसी ने सोचा भी नहीं था . उसने कहानी, किवंदिती को सच करके दिखा दिया पर वो ये नहीं जानती थी की लोभ, लालच का मोल चुकाने की औकात नहीं थी उसकी.

रमा ने एक मशाल ली और दिवार पर जमी लताओं में आग लगा दी. जब लपटे थमी तो मैंने वो देखा , जो समझना बहुत मुश्किल था राख से बनी वो तस्वीर मेरे सीने में आग सी लग गयी . लगा की मैं आदमखोर बनने वाला ही हूँ पर मैंने रोका खुद को

रमा- बड़े बुजुर्गो ने हमेशा चेतावनी दी कुंवर की चाहे कुछ भी हो जाये उस स्वर्ण का लालच कभी न करना जो तुम्हारा ना हो . सोना इस दुनिया की सबसे अभिशप्त धातु. इसका मोह , इन्सान को फिर इन्सान नहीं रहने देता उसे जानवर बना देता है .

सुनैना राय साहब और रुडा ने इसी तहखाने में बैठ कर वादा किया था की अगर किवंदिती सच हुई तो वो सोने का कभी लालच नहीं करेंगे . उसे देखेंगे और वापिस कर देंगे. पर मोह कुंवर मोह. सोने की आभा ने उनके मन में लालच का बीज सींच दिया. सुनैना ने वो ही गलती की जो अभिमानु ने की थी , चक्रव्यूह के अंतिम चरण को वो नहीं भेद पाया था सुनैना भी नहीं भेद पायी तब सामने आया इस सोने का मालिक . इन्सान बड़ा नीच किस्म का जानवर है , तब सुनैना ने एक सौदा किया

मैं- कैसा सौदा

रमा- उसने अपनी आत्मा का टुकड़ा गिरवी रख दिया
 
#156

कुछ देर तहखाने में ख़ामोशी छाई रही और मैं समझने की कोशिश करने लगा की आत्मा के टुकड़े को कोई कैसे गिरवी रख सकता है.

मैं- क्या ये मुमकिन है

रमा-निर्भर करता है की तुम इसे कैसे समझते हो

मैं- तुम इसे कैसे समझती हो रमा और यदि आत्मा का टुकड़ा गिरवी था तो फिर टूटी आत्मा से सुनैना ने शरीर कैसे त्याग दिया.

रमा- मैं इसे कैसे समझती हूँ . मैं नहीं समझ पायी. राय साहब नहीं समझ पाए रुडा नहीं समझ पाया. अगर हम में से कोई भी इसे समझ पाता तो आज वो सोना यूँ नहीं पड़ा होता लावारिस हालत में

मैं- लालच , क्या मिला तुम सब को ये लालच करके रमा . तुमने अपनी ही बहन से धोखा दिया . मैं हमेशा सोचता था की तुम , तुम इतनी महत्वपूर्ण क्यों हो इस पूरी कहानी में . ऐसा क्या छिपा था जो सामने होकर भी नहीं दिख रहा था , वो तुम थी रमा. वो तुम्हारा रिश्ता था सुनैना से. वो जानती थी तुम सब के मन के लालच को . तुम सबकी ये हवस पूरी न हो जाये इसलिए उसने अपनी आत्मा के टुकड़े को गिरवी रखा या फिर मैं कहूँ उसने उसे कहीं छुपा दिया .

तुम , तुम कभी भी उस जैसी नहीं बन पायी क्योंकि तुम्हारे मन में द्वेष था , घृणा थी . तुम हमेशा सुनैना बनना चाहती थी .

रमा- तुमको सच में ऐसा लगता है . मैं बहुत बेहतर थी उस से .

मैं- पर तुम उस चीज को नहीं समझ पायी . तुमने पूरी उम्र लगा दी ये खोजने में की इस सोने को कैसे हासिल किया जाये. पर तुम कामयाब नहीं रही जानती हो क्यों .

रमा के चेहरे पर अस्मंस्ज देख कर न जाने क्यों मुझे बड़ी ख़ुशी हुई.

मैं- जिस दिन मैंने राय साहब के बाद मंगू को तुझ पर चढ़ते देखा था न मैं उसी दिन जान गया था की तू, तू इस जिस्म का उपयोग किस हद तक कर सकती है . चूत , चूत का नशा इन्सान की सबसे बड़ी कमजोरी जो काम कोई नहीं कर पाए इस छोटे से छेद में वो ताकत होती है . तुम लोगो ने हमेशा मुझे झूठी कहानी सुनाई, मुझे हर बार भटकाया की मैं अतीत की उस डोर को ना तलाश कर सकू. पर तुम्हारी ये बात ही की तुम्हे कोई नहीं पकड़ पायेगा तुम पर भारी पड़ गयी . तुमने सोचा होगा की हम इस चूतिये को भटका रहे थे पर तुम नहीं जानती थी की मैं क्या तलाश कर रहा था .

रमा की आँखों को मैंने फैलते हुए देखा .

मैं- रमा मैं उस कड़ी को तलाश रहा था जो मुझे इस कहानी से जोडती है . जानती है तु कभी भी सुनैना की आत्मा के टुकड़े को क्यों नहीं ढूंढ पायी . क्योंकि तू जानती ही नहीं थी वो क्या है .

रमा - क्या था वो

मैं- बताऊंगा पर उस से पहले और थोड़ी बाते करनी है . वैसे कुंवे पर तूने चाल सही चली थी पर तोड़ करके बैठा था मैं. तेरा दांव इस लिए फेल हुआ रमा क्योंकि तू ये तो जानती थी की चाचा की कहानी क्या है पर तू इस कहानी का एक माहत्वपूर्ण भाग नहीं जानती थी . तू ये नहीं जानती थी उस रात चाचा पर किसी ने हमला करके लगभग उसकी जान ही ले ली थी . उसने चाचा को मरा समझ कर दफना दिया था पर जीने की लालसा बहुत जिद्दी होती है रमा. वो बेचारा कच्ची मिटटी को हटा कर बाहर निकल आया पर उसे क्या मालुम था की काश उस रात वो मर जाता तो कितना सही रहता . कल जब मैंने चाचा को संक्रमित रूप में देखा तो मैं सोचने पर मजबूर हो गया की अगर ये यहाँ था तो किसने किसने वहां पर कंकाल छुपाया होगा. किस्मत बहुत कुत्ती चीज होती है रमा. देख तूने कंकाल को ठीक उसी गड्ढे में छिपाया जहाँ पर कोई तुझसे पहले चाचा को दफना गया .

चूत के जोर के दम पर तूने दुनिया ही झुका ली थी . पर तू समझ नहीं पायी की हवस के परे इस शक्ति और होती है . तूने चढ़ती जवानी की दहलीज को पार करते तीन दोस्तों को अपने हुस्न के जाल में फंसा लिया .तूने तीनो को वो ही कहानी सुनाई जो मुझे सुनाई थी वो तेरे जाल में फंस भी गए पर महावीर के पास एक चीज थी जिसने मुझे वो सच दिखाया जो वक्त की धुल में ढका हुआ था . महावीर के पास एक कैमरा था रमा जिस से वो चोरी छिपे तस्वीरे खींचता था . मुझे वो तस्वीरे मिली जो छिपा दी गयी थी उन्ही तस्वीरों में मुझे वो मिला जिसकी तलाश थी मुझे. मुझे सच मिला वो सच जो महावीर ने ढूंढा था .

रमा- तेरे जैसा था वो , उसको भी इतनी ही चुल थी अतीत को तलाश करने की एक वो ही था जिसने वो तरीका तलाश लिया था जिस से की सोने के मालिक को काबू कर सकते थे . उसने ही सबसे पहले जाना था की वो कौन था . और यही बात उसके मरने की वजह बन गयी .

मैं- पर तू उसके बारे में एक चीज नहीं जानती थी रमा की वो आदमखोर था . और अगर वो आदमखोर बना तो ये रास्ता उसने खुद ही चुना होगा क्योंकि वो भी मेरी तरह इस कहानी के मूल की तलाश में था . वो सोना नहीं चाहता था . महावीर को जहाँ तक मैंने समझा है वो खुद को सुनैना की आत्मा का टुकड़ा समझता था .

मेरी बात सुन कर रमा की आँखे हैरत से भर गयी .

मैं- पर नहीं , वो नहीं था . वो कभी भी नहीं था

रमा- तो फिर कौन था .

मैं- तूने कभी समझा ही नहीं रमा ,की हवस के आगे एक शक्ति और होती है और वो होती है प्रेम . बेशक सुनैना के गर्भ में पल रही संतान को अपनाने की हिम्मत रुडा में नहीं थी पर सुनैना ने प्रेम के उस रूप को चुना जिसे मात्रत्व कहते है . माँ, दुनिया की सबसे शक्तिशाली योद्धा होती है . मैं हमेशा सोचता था की इस जंगल से मुझे इतना लगाव क्यों है . क्यों, क्योंकि मैं इस जंगल का अंश हूँ . मैं हूँ सुनैना की आत्मा का वो टुकड़ा . मैं हूँ वो सच जिसे कोई नहीं जानता .
 
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