#147
"फिर क्या हुआ " मैंने थोड़ी अधीरता से पूछा
रुडा- तुम्हे क्या लगता है वो सोना कहा होगा
रुडा मेरे मन की थाह लेना चाहता था .
मैंने ख़ामोशी से समाधी के पत्थर हटाये और वो मिटटी का कलश निकाल लिया
रुडा ने उसे देखा लौ की रौशनी में टिमटिमाती पीली चमक क्या ही कहने .
रुडा- ये कलश चेतावनी थी , पर किसे समझ थी चढ़ती उम्र बड़ी दुस्सहासी होती है . नियति की चेतावनी की इस पर ही मान जाओ आगे का पथ बड़ा कठिन होगा. पर किस को परवाह थी . कीमत, किसने सोचा होगा की क्या कीमत होगी उस चीज को लेने की जो तुम्हारी नहीं है .
मैं- और क्या थी वो कीमत
रुडा- बड़े बेसब्रे हो तुम कबीर. अभी तो बात बाकि है ये रात बाकी है . कौन समझ सकता है की कर्मो के लेख कैसे चुकाए जाते है . कीमत जरुरी नहीं थी की रूपये-पैसो में ही चुकाई जाये, हमारे मामले में वो कीमत थी रिश्ते जो टूटते गए. बिशम्भर को जैसे जूनून हो गया था . सुनैना और वो दोनों बहुत वक्त साथ बिताने लगे थे. उनके साथ दिन रात होकर भी उनके साथ बेगाना होने लगा था मैं. उन दोनों का जूनून हमारी दोस्ती की नींव कमजोर कर रहा था .
साथ होकर भी साथ नहीं रहना इस से बड़ा दर्द कोई नहीं . बेशक मैं और सुनैना प्रेम पथ पर चल रहे थे , पर इस सोने ने उस पथ को तहस नहस करना शुरू कर दिया था . एक दिन अचानक बिशम्भर गायब हो गया .
मेरे लिए ये नयी जानकारी थी .
मैं- गायब मतलब
रुडा- गायब , कोई खबर नहीं उसकी , मैंने और सुनैना ने दिन रात एक कर दिया कोई कोना नहीं , कोई दिशा नहीं जहाँ पर उसकी तलाश नहीं की . मेरे प्यार की जानकारी डेरे में हो गयी थी . और मेरे घर पर भी . दोनों तरफ के लोग गुस्सा थे. लोग कहा समझते उस समय की प्रेम क्या होता है . एक बिशम्भर की चिंता दूसरी फ़िक्र अपनी मोहब्बत को पाने की . पर ये तो शरूआत थी कहानी तो बहुत बाकि थी .
मैं- कैसी शुरुआत.
रुडा- सुनैना पेट से हो गयी . ख़ुशी तो बहुत थी की हमारे प्यार की निशानी इस दुनिया में आने वाली थी . पर परेशानी ये थी की उस प्यार को कोई भी नहीं समझ पा रहा था . मेरे बाप की झूठी शान मेरे पैरो का बंधन बन् रही थी पर मैंने वादा किया था सुनैना से की हाथ कभी नहीं छुटेगा उसके हाथ से. दिन बीत रहे थे . सबको मालूम हो गया था की सुनैना के पेट में मेरी औलाद पल रही है. डेरे वाले हमारे घर आये और इंसाफ की मांग करने लगे. कुंवारी लड़की का गर्भवती होना ऐसा पाप था जिसका कोई प्रयाश्चित नहीं था . लगा की जब सारे रास्ते बंद हो गए तब उम्मीद की लौ फूटी बिशम्भर लौट आया. हमारी ढाल बन कर खड़ा हुआ वो .
मैंने बाप की हवेली छोड़ दी. मामला बहुत गर्म था पर हम दिन काट रहे थे . एक रोज़ मेरा बाप आया और बोला की उसे मेरा और सुनैना का रिश्ता मंजूर है , मेरे लिए इस से बड़ी ख़ुशी और क्या होती. बाप ने मुझे किसी काम से बाहर भेजा. मैने मेरे लौटने तक सुनैना की जिम्मेदारी बिशम्भर को दी. पर जब मैं लौट कर आया तो ............
कुछ पलो के लिए गहरा सन्नाटा छा गया .
मैं- और जब आप लौट कर आये तो .
रुडा- दुनिया बिखर चुकी थी . सुनैना पर हमला हुआ था समाज के ठेकेदारों ने उसे मार डाला.
रुडा के कहे ये शब्द , इन शब्दों में इतनी वेदना थी की मैंने अपने कलेजे को जलते हुए महसूस किया.
मैं- राय साहब ने अपना वचन नहीं निभाया सुनैना की रक्षा करने का.
रुडा- उसे जो ठीक लगा उसने वो किया
मैं- ऐसा क्या किया था पिताजी ने .
रुडा- जब सुनैना पर हमला हुआ तो उसे प्रसव वेदना शुरू हो गयी . बिशम्भर बहुत घबरा गया था . उसे हमला भी रोकना था और सुनैना को बचाना भी था . वो घायल थी और प्रसव की तकलीफ में भी . जब तक बिशम्भर उसके पास पहुंचा हालात और बिगड़ गए थे . उसने सुनैना का प्रसव करवाया , जरुरी इंतजाम नहीं थे, खून ज्यादा बह गया . सुनैना की मौत हो गयी . वो तो चली गयी पर अपनी निशानी छोड़ गयी .
मैं- अंजू
रुडा- अंजू . जो कभी नहीं समझ पायी की बाप होना क्या होता है .
मैं - फिर क्या हुआ
रुडा- एक रात डेरा तबाह हो गया. कैसे, किसने किया आज तक कोई नहीं जान पाया. एक रात क़यामत आई और अपने साथ डेरे को ले गयी.
मैं- उसी दौरान आपके पिता की भी मृत्यु हो गयी.
रुडा- कोई नहीं जान पाया वो कैसे मरे, इसी जंगल में लाश पायी गयी उनकी .
मैं-दो दोस्तों में दुरी आने की असली वजह क्या थी .
रुडा- लालच और हवस. विशम्भर जब से लौटा था वो पहले जैसा नहीं रहा था , वो मेरा दोस्त नहीं रहा था . रिश्ते-नाते उसके लिए बेगाने हो गए थे .उसे न जाने किस चीज की तलाश थी . अकेले रहने का कैसा जूनून था उसे. और फिर वो दौर आया जब आसपास के इलाके में लोग गायब हो ने लगे. ऐसा पहले कभी नहीं हुआ था . जंगल पहली बार सुरक्षित नहीं था . कुछ दिन गुजरते फिर कुछ दिन रक्त का तांडव मच जाता. मुझ पर गाँव की जिमेदारी थी , मैंने अपनी तरफ से पूरी कोशिश की . पर जिस बात ने मुझे सबसे जायदा परेशान किया हुआ था वो थी की जब जब मैं जंगल में घुमती मौत के पास पहुंचे को होता ही था तब तब बिशम्भर मिल जाता मुझे . एक समय के बाद मुझे भी लगने लगा था की बिशम्भर जानता था उस आफत के बारे में . वो कुछ तो मुझसे छिपा रहा था . हमारा झगडा इसी बात को लेकर हुआ था . ऐसा क्या था जो वो मुझसे छिपा रहा था . बताना नहीं चाहता था वो मुझसे.
मैं- क्या छिपा रहे थे वो आपसे .
रुडा- पता नहीं , पर उस झगडे के बाद जंगल शांत हो गया . बहुत साल वो शांत रहा पर इस साल से वो सब दुबारा होने लगा.
मैं- क्या आपको मालूम है की सोना कहा है.
रुडा-वो सोना नहीं श्राप है किसी को भी नहीं जानना चाहिए वो कहा है .
मै समझ गया रुडा जानता था उस जगह के बारे में .
मैं- आप तीनो की आलावा भी उस सोने की उपस्तिथि को कोई और भी जान गया था .
रुडा- जिसने भी वो सोना चुराया चैन नहीं पाया. कबीर, मैं तुमसे भी यही अपेक्षा करूँगा की तुम चाहे जो करना उस सोने का लालच मत करना.
मैं- बस दो सवाल और . पहला डेरा कहाँ था मुझे वो जगह देखनी है दूसरा सवाल रमा क पति को क्यों मारा आपने...................
"फिर क्या हुआ " मैंने थोड़ी अधीरता से पूछा
रुडा- तुम्हे क्या लगता है वो सोना कहा होगा
रुडा मेरे मन की थाह लेना चाहता था .
मैंने ख़ामोशी से समाधी के पत्थर हटाये और वो मिटटी का कलश निकाल लिया
रुडा ने उसे देखा लौ की रौशनी में टिमटिमाती पीली चमक क्या ही कहने .
रुडा- ये कलश चेतावनी थी , पर किसे समझ थी चढ़ती उम्र बड़ी दुस्सहासी होती है . नियति की चेतावनी की इस पर ही मान जाओ आगे का पथ बड़ा कठिन होगा. पर किस को परवाह थी . कीमत, किसने सोचा होगा की क्या कीमत होगी उस चीज को लेने की जो तुम्हारी नहीं है .
मैं- और क्या थी वो कीमत
रुडा- बड़े बेसब्रे हो तुम कबीर. अभी तो बात बाकि है ये रात बाकी है . कौन समझ सकता है की कर्मो के लेख कैसे चुकाए जाते है . कीमत जरुरी नहीं थी की रूपये-पैसो में ही चुकाई जाये, हमारे मामले में वो कीमत थी रिश्ते जो टूटते गए. बिशम्भर को जैसे जूनून हो गया था . सुनैना और वो दोनों बहुत वक्त साथ बिताने लगे थे. उनके साथ दिन रात होकर भी उनके साथ बेगाना होने लगा था मैं. उन दोनों का जूनून हमारी दोस्ती की नींव कमजोर कर रहा था .
साथ होकर भी साथ नहीं रहना इस से बड़ा दर्द कोई नहीं . बेशक मैं और सुनैना प्रेम पथ पर चल रहे थे , पर इस सोने ने उस पथ को तहस नहस करना शुरू कर दिया था . एक दिन अचानक बिशम्भर गायब हो गया .
मेरे लिए ये नयी जानकारी थी .
मैं- गायब मतलब
रुडा- गायब , कोई खबर नहीं उसकी , मैंने और सुनैना ने दिन रात एक कर दिया कोई कोना नहीं , कोई दिशा नहीं जहाँ पर उसकी तलाश नहीं की . मेरे प्यार की जानकारी डेरे में हो गयी थी . और मेरे घर पर भी . दोनों तरफ के लोग गुस्सा थे. लोग कहा समझते उस समय की प्रेम क्या होता है . एक बिशम्भर की चिंता दूसरी फ़िक्र अपनी मोहब्बत को पाने की . पर ये तो शरूआत थी कहानी तो बहुत बाकि थी .
मैं- कैसी शुरुआत.
रुडा- सुनैना पेट से हो गयी . ख़ुशी तो बहुत थी की हमारे प्यार की निशानी इस दुनिया में आने वाली थी . पर परेशानी ये थी की उस प्यार को कोई भी नहीं समझ पा रहा था . मेरे बाप की झूठी शान मेरे पैरो का बंधन बन् रही थी पर मैंने वादा किया था सुनैना से की हाथ कभी नहीं छुटेगा उसके हाथ से. दिन बीत रहे थे . सबको मालूम हो गया था की सुनैना के पेट में मेरी औलाद पल रही है. डेरे वाले हमारे घर आये और इंसाफ की मांग करने लगे. कुंवारी लड़की का गर्भवती होना ऐसा पाप था जिसका कोई प्रयाश्चित नहीं था . लगा की जब सारे रास्ते बंद हो गए तब उम्मीद की लौ फूटी बिशम्भर लौट आया. हमारी ढाल बन कर खड़ा हुआ वो .
मैंने बाप की हवेली छोड़ दी. मामला बहुत गर्म था पर हम दिन काट रहे थे . एक रोज़ मेरा बाप आया और बोला की उसे मेरा और सुनैना का रिश्ता मंजूर है , मेरे लिए इस से बड़ी ख़ुशी और क्या होती. बाप ने मुझे किसी काम से बाहर भेजा. मैने मेरे लौटने तक सुनैना की जिम्मेदारी बिशम्भर को दी. पर जब मैं लौट कर आया तो ............
कुछ पलो के लिए गहरा सन्नाटा छा गया .
मैं- और जब आप लौट कर आये तो .
रुडा- दुनिया बिखर चुकी थी . सुनैना पर हमला हुआ था समाज के ठेकेदारों ने उसे मार डाला.
रुडा के कहे ये शब्द , इन शब्दों में इतनी वेदना थी की मैंने अपने कलेजे को जलते हुए महसूस किया.
मैं- राय साहब ने अपना वचन नहीं निभाया सुनैना की रक्षा करने का.
रुडा- उसे जो ठीक लगा उसने वो किया
मैं- ऐसा क्या किया था पिताजी ने .
रुडा- जब सुनैना पर हमला हुआ तो उसे प्रसव वेदना शुरू हो गयी . बिशम्भर बहुत घबरा गया था . उसे हमला भी रोकना था और सुनैना को बचाना भी था . वो घायल थी और प्रसव की तकलीफ में भी . जब तक बिशम्भर उसके पास पहुंचा हालात और बिगड़ गए थे . उसने सुनैना का प्रसव करवाया , जरुरी इंतजाम नहीं थे, खून ज्यादा बह गया . सुनैना की मौत हो गयी . वो तो चली गयी पर अपनी निशानी छोड़ गयी .
मैं- अंजू
रुडा- अंजू . जो कभी नहीं समझ पायी की बाप होना क्या होता है .
मैं - फिर क्या हुआ
रुडा- एक रात डेरा तबाह हो गया. कैसे, किसने किया आज तक कोई नहीं जान पाया. एक रात क़यामत आई और अपने साथ डेरे को ले गयी.
मैं- उसी दौरान आपके पिता की भी मृत्यु हो गयी.
रुडा- कोई नहीं जान पाया वो कैसे मरे, इसी जंगल में लाश पायी गयी उनकी .
मैं-दो दोस्तों में दुरी आने की असली वजह क्या थी .
रुडा- लालच और हवस. विशम्भर जब से लौटा था वो पहले जैसा नहीं रहा था , वो मेरा दोस्त नहीं रहा था . रिश्ते-नाते उसके लिए बेगाने हो गए थे .उसे न जाने किस चीज की तलाश थी . अकेले रहने का कैसा जूनून था उसे. और फिर वो दौर आया जब आसपास के इलाके में लोग गायब हो ने लगे. ऐसा पहले कभी नहीं हुआ था . जंगल पहली बार सुरक्षित नहीं था . कुछ दिन गुजरते फिर कुछ दिन रक्त का तांडव मच जाता. मुझ पर गाँव की जिमेदारी थी , मैंने अपनी तरफ से पूरी कोशिश की . पर जिस बात ने मुझे सबसे जायदा परेशान किया हुआ था वो थी की जब जब मैं जंगल में घुमती मौत के पास पहुंचे को होता ही था तब तब बिशम्भर मिल जाता मुझे . एक समय के बाद मुझे भी लगने लगा था की बिशम्भर जानता था उस आफत के बारे में . वो कुछ तो मुझसे छिपा रहा था . हमारा झगडा इसी बात को लेकर हुआ था . ऐसा क्या था जो वो मुझसे छिपा रहा था . बताना नहीं चाहता था वो मुझसे.
मैं- क्या छिपा रहे थे वो आपसे .
रुडा- पता नहीं , पर उस झगडे के बाद जंगल शांत हो गया . बहुत साल वो शांत रहा पर इस साल से वो सब दुबारा होने लगा.
मैं- क्या आपको मालूम है की सोना कहा है.
रुडा-वो सोना नहीं श्राप है किसी को भी नहीं जानना चाहिए वो कहा है .
मै समझ गया रुडा जानता था उस जगह के बारे में .
मैं- आप तीनो की आलावा भी उस सोने की उपस्तिथि को कोई और भी जान गया था .
रुडा- जिसने भी वो सोना चुराया चैन नहीं पाया. कबीर, मैं तुमसे भी यही अपेक्षा करूँगा की तुम चाहे जो करना उस सोने का लालच मत करना.
मैं- बस दो सवाल और . पहला डेरा कहाँ था मुझे वो जगह देखनी है दूसरा सवाल रमा क पति को क्यों मारा आपने...................