#157

रमा की आँखों में इतनी हैरत थी की वो अगर फट भी जाती तो कोई बात नहीं थी.

रमा- नहीं ये नहीं हो सकता . असंभव है. तू सुनैना का बेटा नहीं हो सकता ये मुमकिन नहीं

मैं- तेरी सदा ये ही तो दिक्कत रही तू कभी समझ ही नहीं पायी . मैंने कहा मैं हु उसकी आत्मा का अंश, उसका वारिस . वारिस जिसे नियति ने चुना है . खुद सुनैना ने चुना है . जानती है रमा हक क्या होता है . हक़ कभी किसी को खुद से नहीं मिलता. उसके लिए काबिल होना पड़ता है . मैं आज तक हैरान परेशान था क्योंकि मैं आदमखोर के बारे में सोचत था पर आदमखोर तो बस एक पड़ाव था , ताकि सच को छिपाया जा सके. पर तुम लोगो का क्या ही कहना आदमखोर की आड़ में तुम लोगो ने अपना खेल खेला. प्र अब ये खेल बंद होगा . मैं करूँगा इसे बंद .

रमा- कोशिश करके देख लो.इतना आगे निकल आई हूँ की अपना हक़ लिए बिना पीछे लौटने का सवाल ही नहीं है .

मैं- हक़, उसके लिए काबिल होना पड़ता है मैंने तुझे अभी अभी बताया न, और तू तो इतनी काबिल है की तुने अपनी हवस और लालच में अपनी ही बहन की बलि चढ़ा दी.

रमा- रिश्तो की डोर बड़ी नाजुक होती है कुंवर , रिश्तो को खून से सींचा जाता पर खून ही जब खून को पहचानने से मना कर दे तो उस खून को ही साफ़ कर देना चाहिए मैंने बस वही किया.

मैं- उस डोर को तू कभी थाम ही न सकी मुर्ख औरत तू अब भी नहीं समझ पायी. मरते समय सुनैना भरोसा टूटने से इतना आहत थी की उसकी वेदना , उसकी करुना श्राप में बदल गयी . जिस सोने के लिए उसके अपनों ने उसके साथ धोखा किया , वो सोना तुम्हारी असीम चाहत बन कर रह गया. महावीर और अंजू को जन्म देते समय भी वो जानती थी की तुम उसकी औलादों का इस्तेमाल करोगे इस सोने को पाने के लिए इसलिए ही शायद राय साहब ने उन दोनों की परिवरिश की व्यवस्था की .

रमा- इतना सब कैसे जाना , जो कोई भी नहीं जान पाया .

मैं- बताऊंगा तुझे पर मेरे एक सवाल का जवाब दे तू आदमखोर का क्या रोल है इस कहानी में .

रमा- श्राप है वो , सुनैना ने चूँकि अपना वचन नहीं निभाया था वो सोने के अंतिम पथ को पार नहीं कर पाई थी . जब तक सोना अपने वारिस को पहचान नहीं लेता ये व्यवस्था टूट नहीं जाती रक्त से सींचा जाता रहेगा उस स्वर्ण आभा को . कोई ना कोई आदमखोर बन कर ये करता रहेगा पर यहाँ भी एक झोल हो गया .

मैं- आदमखोर खुद पर काबू नहीं रख पाया. तुम अपने हुस्न के जाल में फंसा कर शिकार ला रही थी . इस खेल में तुमने अपनी दो सहेलियों की और मदद ली पर फिर मामला बिगड़ गया. महावीर तुम्हारे लिए अड़चन बन गया और फिर शुरू हुई जंग . हक़ की जंग वो खुद को वारिस समझने लगा . सुनैना का बेटा होने की वजह से उसका ऐसा सोचना ठीक ही था . समस्या तब शुरू हुई जब आदमखोर का राज खुलता ही चला गया . माहवीर जब इस संक्रमण से ग्रस्त हुआ तब दो अलग कहानिया चल रही थी एक तुम्हारी और दूसरी छोटे ठाकुर की . महावीर दोनों कहानियो में शरीक था . उसकी और चाचा की दुश्मनी , चूत के चक्कर में साले सब बर्बाद हुए . उसने शायद गुस्से में चाचा को काट लिया हो . इसीलिए चाचा मर नहीं पाया था पर तुम लोगो ने उसका भी फायदा उठाया.

रमा- तुम्हारा बाप बहुत चाहता था अपने भाई को .

मैं- इस कहानी में साले सब एक दुसरे को चाह ही तो रहे है . किस किस्म की चाहत है ये जो सबको बर्बाद कर गयी. बाप चुतिया ने चाचा को कैदी बना कर रखा , उसका इस्तेमाल किया चंपा के ब्याह को बर्बाद करने में. समझ नही आता जब ब्याह को बर्बाद करना ही था तो ब्याह करवाने की क्या जरुरत थी .

रमा- राय साहब का उस घटना से कुछ लेना देना नहीं है.

मैं- तो किसका है .

रमा- नहीं जानती , अब ये खेल उस मुकाम पर पहुँच चूका है जहाँ पर कौन किस पर वार करे कौन जाने. पर अब जब तुम सब जानते हो मैं सब कुछ जानती हूँ तो फिर इस खेल को आज ही खत्म करना चाहिए. काश मैं पहले जान जाती .

मैं- समय बलवान............

आगे के शब्द चीख में बदल गए किसी ने पीछे से सर पर वार किया . सर्दी की रात में वैसे ही सब कुछ जमा हुआ था सर पर हुए वार ने एक झटके में ही पस्त कर दिया मुझे . मैं जमीं पर गिर गया. मैंने देखा पीछे हाथ में लोहे की छड लिए मेरा बाप खड़ा था .

""बहुत देर से बक बक सुन रहा था इसकी " पिताजी ने रमा से कहा.

बाप ने एक बार फिर से मुझ पर वार किया .

पिताजी- न जाने क्या दिक्कत थी इस न लायक की. इसके ब्याह को भी मान्यता दी सोचा की लुगाई के घाघरे में घुसा रहेगा पर इसकी गांड में कीड़े कुल्बुला रहे थे . मैंने सोचा था की किसानी में लगा रहेगा पर इसको तो जासूस बनना है . कदम कदम पर हमारे गुरुर को चुनोती देने लगा ये. हमारे टुकडो पर पलने वाला हमारे सामने सर उठा कर खड़ा होने की सोच रहा था ये .

इस बार का वार बहुत जोर से मेरे घुटने की हड्डी पर लगा.

मैं - तो ये है राय साहब के नकाब की सच्चाई.

पिताजी- दुनिया में सच और झूठ जैसा कुछ भी नहीं होता चुतिया नंदन

मैं- चंपा को क्यों फंसाया फिर

पिताजी- वो साली खुद आई थी मेरे पास. उसकी गांड में आग लगी थी . उसे बिस्तर पर कोई ऐसा चाहिए था जो उसे रौंद सके उसकी इच्छा हमने पूरी की .

पिताजी ने एक बार फिर मुझ पर वार किया , इस बार मैंने छड़ी को पकड़ लिया और पिताजी को धक्का दिया . रमा बीच में आई मैंने खींच कर एक लात मारी उसके पेट में वो सिरोखे के टूटे टुकडो पर जाकर गिरी. पिताजी ने मेरी गर्दन को पकड़ लिया और मारने लगे मुझ को.

मैं- इतना भी मत गिरो राय साहब , की बची कुची शर्म भी खत्म हो जाये.

पिताजी- अब हम तुम जिस मुकाम पर आ गए है कुछ बचा ही नहीं है .रिश्तो की डोर न हमारे लिए कभी थी ना आगे होगी.

मैं- अपने सर पर बाप की हत्या का पाप नहीं लेना चाहता मैं

पिताजी- पर मुझे कोई गम नहीं तुझे मारने में .

पिताजी ने मुझे उठा कर पटका, झटका इतनी जोर का था की हड्डिया कडक ही उठी मेरी.

मैं- एक बार फिर कहता हूँ मैं पिताजी

पिताजी ने पास पड़ा एक पत्थर उठा कर मेरी तरफ फेंका.
 
#158

"मैंने सुना था की बाप जो बेटे के कंधो पर जाते है वो स्वर्ग जाते है पर मेरा बाप स्वर्ग नहीं जाएगा , जो पाप किये है तुमने उसका फल यही भुगतना होगा,तुम्हारे पापो को मिटाने के लिए नियति ने शायद मुझे ही चुना है " मैंने उस पत्थर से बचते हुए कहा.

कहने को कुछ नहीं था इस खंडहर ने इस जंगल ने इतना कुछ देखा था आज थोडा और देख लेंगे तो क्या फर्क पड़ेगा. रमा ने लोहे की बड़ी सी चेन मेरे गले में फंसा दी और मुझे खींचने लगी. उसकी आँखों में ज़माने भर की क्रूरता थी. आंखे चमक रही थी लालच की रौशनी में ये जानते हुए भी की अँधेरा बाहें फैलाये हुए उनका इंतज़ार कर रहा था . मैं बेडियो से खुद को छुड़ाने की कोशिश कर रहा था , जबकि पिताजी के पास पूरा मौका था मुझे काबू करने का.

"इसका ताजा खून ही वो चाबी है " रमा बोली

मैं- इतना सस्ता नहीं मेरा खून की दो कौड़ी की रंडी उसे छीन लेगी.

मैंने पूरा जोर लगाते हुए बेडि को आगे की तरफ खींचा और साथ ही रमा को भी उठा लिया . हवा में घुमते हुए मैंने वही बेल रमा की पीठ पर खींच कर दे मारी. अब मुकाबला था दो का एक से. राय साहब भी ताकत में किसी तरह से कम नहीं था . उनकी फड़कती भुजाये मुझे पीस देना चाहती थी .

पिताजी के उस जोरदार मुक्के ने मुझे तारे ही दिखा दिए थे , सँभालने से पहले ही पिताजी ने मुझे कंधे से उठाया और सीढियों पर दे मारा. कड़क की आवाज से पुराने पत्थरों को तिड़कते हुए देखा मैंने. अगले ही पल रमा ने उछल कर मेरे सीने पर अपना घुटना दे मारा. वार इतना गहरा था की मेरे अन्दर सोये जानवर तक को धक्का लगा. वो गुर्रा उठा. उन्माद में मैंने रमा को बाजुओ से पकड़ा और उसके कंधे को उखाड़ दिया .

"aaahhhhhhhhhh "

"राम्म्म्मम्म्म्म " रमा और पिताजी दोनों ही चीख उठे. रमा फर्श पर गिर गयी उसका खून लबालब बहने लगा. उसका हाथ मेरे हाथ में थरथरा रहा था . ताजा रक्त की गंध जैसे ही मेरे नथुनों से टकराई मेरे अन्दर का वो आदमखोर बेकाबू होने लगा. रमा के खून में कोई तो बात थी , शायद सुनैना की बहन होने के नाते वो जानवर उस खास गंध को पहचान रहा था . मेरे घुटने कांप रहे थे. सीने में आग लग गयी थी . मैंने अपनी जैकेट उतार फेंकी. सीने को मसलने लगा. प्यास के मारे हाल बुरा था मुझे पानी चाहिए था पानी की जरुँर्ट थी मुझे. सब कुछ छोड़ कर मैं बहार भागा पर राय साहब ने मेरा पैर पकड़ लिया और मुझे वापिस से फर्श पर पटक दिया.

"तू नहीं बनेगा वो " निशा के कहे शब्द मेरे कानो में गूंजने लगे.

"भागने की क्या जल्दी है तुझे , तेरा अंत इसी तहखाने में लिखा है " राय साहब ने लोहे की छड का नुकीला हिस्सा मेरे पैर में घुसा दिया.

"जाने दो मुझे " अपने आप से जूझते हुए मैंने कहा .

"मार डालो इसे "दर्द से तड़पती रमा ने चिल्ला कर कहा.

मैं- भोसड़ी की , मैं यहाँ रहा तो वो अनर्थ हो जायेगा जो तू सोच भी नहीं सकती .

पिताजी का अगला वार पैर के आर पार हो गया. और मेरा सब्र टूट गया . एक झटके से मैंने वो छड अपने पैर से निकाली और रमा की तरफ दे मारी. पलक झपकते ही रमा के बदन के आर पार निकल गयी वो . रमा की आँखे फटी की फटी रह गयी .

रमा " पिताजी चीख पड़े और इस बार ये चीख को मामूली नहीं थी . मैंने वो देखा जो देखने के लिए मजबूत कलेजा चाहिए था . पिताजी एक पल को झुके और अगले ही पल उस तहखाने में तूफ़ान आ गया . जो वार मुझ पर हुआ था वो किसी इन्सान का नहीं था बल्कि उस जानवर का था जिसने गाँव की माँ चोद रखी थी . दिवार के सहारे वाले खम्बे पर गिरने से पहले मैंने देखा की वो आदमखोर दौड़ कर रमा के पास गया और उसे अपनी गोद में उठा लिया. रमा का बेजान शरीर झूल गया आदमखोर की बाहों में .

कुछ पल आदमखोर रमा को देखता रहा और फिर उसने अपने होंठ रमा के ताजे रक्त पर अलग दिए और उसे पीने लगा. फिर उसने झटके से रमा की लाश को फेंक दिया जैसे परवाह ही नहीं हो और मेरी तरफ लपका. मैंने भरकस कोशिश की पर आदमखोर की शक्ति बहुत ज्यादा थी . और उसका उन्माद मेरी जान लेने को आतुर. बदन तार तार ही हो गया था उम्मीद टूटने लगी थी और फिर वो हुआ जो मैं कभी नहीं चाहता था , कभी नहीं.

मेरी आत्मा पर बोझ गिर गया . बदन के हर हिस्से को टूटते हुए मैंने महसूस किया . मेरा परिवर्तन हो रहा था . मैंने बहुत रोकने की कोशिश की पर शायद वो जानवर जान गया था की अब नहीं तो फिर कभी नहीं, क्योंकि फिर कुछ बचना ही नहीं था . अपने अंतर्मन से जूझते हुए मैं पूरी कोसिस कर रहा था की मैं वो ना बनू पर इस बार , इस बार नियति मेरे साथ नहीं थी.

चीखते हुए मैं वो बन गया जो मैं नहीं था , कभी नहीं था . राय साहब बने आदमखोर की उन आंखो में मैंने चमक सी देखि और फिर मामला आरपार का हो गया . लम्बे नुकीले नाखून एक दुसरे के बदन को चीर रहे थे , नुकीले दांत एक दुसरे के मांस को फाड़ देना चाहते थे. कभी वो हावी कभी मैं . इस रात ने इतना तो तय कर दिया था की इस तहखाने से अगली सुबह हम में से कोई एक ही देखेगा. ये ऐसी जंग थी जिसमे क्रूरता ही जितने वाली थी मेरे अन्दर का जानवर ये बात बहुत अच्छे से जानता था . उसने राय साहब के पैरो को पकड़ा और एक झटके में मोड़ दिया. गुर्राहट भरी चीख खंडहर में गूँज उठी . राय साहब पीछे जाकर गिरे. मैं उनकी छाती के ऊपर खड़ा था मेरी उंगलिया उस गर्दन को उखाड़ ही फेंकने वाली थी की मैंने अपनी पकड़ ढीली कर दी . अपने अन्दर के जानवर को काबू कर लिया मैंने.

कबीर के रूप में आते ही मैंने वो लोहे की बेल उठाई और राय साहब के गले में लपेट दी

मैं- इतनी आसान मौत कैसे होगी राय साहब , इतनी सस्ती जान तो नहीं न . याद करो वो दिन जब आपने लाली को फांसी का फरमान का समर्थन किया था . कहते है की कर्मो का फल यही इसी धरा पर चुकाना पड़ता है , समय आ गया है . मैंने बेल को ऊपर फंसे हुक में फेंका और अपने बाप को लटका दिया. पर मेरे हाथ जरा भी नहीं कांपे. . पर वो राय साहब था इतनी आसानी से कैसे मर जाता . तब मैंने गले से वो लाकेट उतारा और उसे चाकू बनाते हुए राय साहब के सीने के आर पार कर दिया . उन्होंने डकार सी ली और फिर सब शांत हो गया .

पर अभी भी कुछ करना बाकि था . मैंने वो लाकेट लिया उसे उस राख की बनी तस्वीर में घुसा दिया . और जैसे भूकम्प सा ही आ गया खंडहर कांपने लगा भरभरा कर गिरने लगा. मैं बहार की तरफ दौड़ा. जंगल की ताजा हवा ने जैसे नया जीवन दिया मुझे. पल भर में ही सब कुछ तबाह हो गया रह गया तो मैं और वो मलबा जिसमे मेरी यादे भी दफन हो गयी थी .
 
#159

एक कहानी का अंत हो गया था जिसमे राय साहब थे रमा थी और उनकी हवस थी . सोने को या तो उसका वारिस ही ले सकता था . वारिस के अलावा जो भी उसे लेगा दुर्भाग्य जकड लेगा उसे अपने पाश में . राय साहब ने श्राप चुना . आदमखोर बन कर वो रक्त से सींच कर उस सोने का उपयोग करते रहे. इसी सोने के लिए उन्होंने रुडा से दोस्ती तोड़ी. चाचा ने जब सोना इस्तेमाल किया तो वो भी बर्बाद हो गए. रमा वैसे तो बर्बाद ही थी पर राय साहब के संरक्षण की वजह से सुरक्षित रही . मंगू खान में गया और मारा गया. परकाश मारा गया . अब मुझे भी कुछ राज मरते दम तक सीने में दफ़न करके रखने थे.

"निशा, " कुवे पर जाकर मैंने उसे पुकारा पर कोई जवाब नहीं आया .

मैंने फिर पुकारा बार बार पुकारा पर कोई जवाब नहीं मिला . दिल किसी अनहोनी की आशंका से धडक उठा . अगर वो यहाँ नहीं तो फिर कहा. क्यों मैंने उसे अकेला छोड़ा क्यों. बदहवासी में मैं घर पहुंचा तो गली

सुनसान पड़ी थी . हमेशा की तरह घर का गेट खुला पड़ा था . घर में अँधेरा था मैंने बत्तिया जलाई . सब शांत था . मेरी धड़कने बढ़ी थी .

"चाची, भाभी , निशा " मैंने आवाज लगाई पर कोई जवाब नहीं आया . ऐसा बार बार हुआ . घर पर कोई भी नहीं था . कहाँ गए सब लोग मैंने खुद से सवाल किया. मैं सीढिया चढ़ते हुए भाभी के चोबारे की तरफ गया और दरवाजे पर ही मेरे कम ठिठक गए. कमरे का नजारा देख कर मेरा कलेजा मुह को आ गया . अन्दर चंपा की लाश पड़ी थी . रक्त की धारा मैं जंगल में बहा कर आया था , रक्त की धारा मेरे साथ घर तक आ गयी थी . मैंने हाथ लगा कर देखा बदन में गर्मी थी, मतलब ज्यादा समय नहीं हुआ था चंपा को मरे हुए.

"कोई है क्या " जोर ही चिल्लाया मैं .

"कबीर " एक घुटी सी आवाज मेरे कानो में पड़ी . ये आवाज रसोई की तरफ से आई थी . मैं वहां गया तो मेरा दिल ही टूट गया . आँखों से आंसू बह चले , कभी सोचा नहीं था की ये देखूंगा मैं . रसोई के फर्श पर भाभी पड़ी थी . बहुत हलके से आँखे खुली थी उनकी. हलके से गर्दन हिला कर उन्होंने मुझे पास बुलाया. दौड़ते हुए मैं लिपट गया भाभी से .

मै- कैसे हुआ ये किसने किया भाभी ये सब . मैं आ गया हूँ कुछ नहीं होगा आपको कुछ नहीं होगा. मैं इलाज के लिए अभी ले चलूँगा आपको . मैंने भाभी को उठाया पर उन्होंने कस कर मेरा हाथ थाम लिया.

भाभी- देर हो गयी है कबीर . वो ले गए उसे .

मैं- कौन भाभी

भाभी- नहीं बचा पाई उसे, धोखा हुआ .देर हो गयी कबीर

मैं- कुछ देर नहीं हुई भाभी मैं आ गया हूँ सब ठीक कर दूंगा

भाभी- निशा को ले गए वो .

भाभी के शब्दों ने मेरे डर को हकीकत में बदल दिया .

मैं- कौन थे वो भाभी

भाभी ने अपने कांपते हाथो से अपने गले में पड़े मंगलसूत्र को तोडा और मुझे दे दिया. मैंने अपनी आँखे मींच ली भाभी ने हिचकी ली और मेरी बाँहों में दम तोड़ दिया. कयामत ही गुजर गयी थी मुझ पर . प्रेम वफ़ा, रिश्ते-नाते सब कुछ बेमानी थे इस परिवार के आगे. मैंने कदम घर से आगे बढाए मैं जानता था की मंजिल कहाँ पर होगी. लाशो के बोझ से मेरे कदम बोझिल जरुर थे पर डगमगा नहीं रहे थे . निशा और भाभी पर हुआ ये वार मेरे दिल में इतनी आग भर गया था की अगर मैं दुनिया भी जला देता तो गम नहीं था.

मैं सोने की खान में पहुंचा मशालो की रौशनी में चमकती उस आभा से मुझे कितनी नफरत थी ये बस मैं ही जानता था . मैंने रक्त से सनी निशा को देखा को तडप रही थी , लटके हुए . उसके बदन से टपकता लहू निचे एक सरोखे में इकट्ठा हो रहा था .

"कबीर " बोझिल आँखों से मुझे देखते हुए वो बस इतना ही बोली

मैं- कुछ मत बोल मेरी सरकार . मैं आ गया हूँ जिसने भी ये किया है मुझे कसम है तेरे बदन से गिरी एक एक बूंद की, सूद समेत हिसाब लूँगा.

मैं निशा के पास गया और उसे कैद से आजाद किया . अपनी बाँहों में जो लिया उसे दुनिया भर का करार आ गया मुझे .

"सब कुछ योजना के मुताबिक ही हुआ था कबीर , मैंने अंजू को धर भी लिया था पर फिर किसी ने मुझ पर वार किया और होश आया तो मैं यहाँ पर कैद में थी " निशा बोली

मैं- कुछ मत बोल मेरी जान . मैं आ गया हूँ न सबका हिसाब हो गा . भाभी और चंपा को भी मार दिया गया है . चाची न जाने कहाँ है . और मैं जान गया हूँ की अंजू के साथ इस काण्ड में कौन शामिल है .

निशा- अभिमानु

मैं- हाँ निशा वो अभिमानु जिसकी मिसाले दी जाती है . भाभी को मार कर जो पाप किया है मैंने बरसो पहले अपनी माँ को खोया था आज फिर से मैंने अपनी माँ को खोया है मुझे कसम है निशा रहम नहीं होगा . तुझे छूने की हिम्मत कैसे हुई उनकी .

मैं निशा को वहां से बाहर लेकर गया . कुवे के कमरे में रखी मरहम पट्टी से उसके जख्मो को थोडा बहुत ढका. आसमान में तारो को देखते हुए मैं सोच रहा था की ये रात साली आती ही नहीं तो ठीक रहता पर जैसा मैंने पहले कहा आज की रात क़यामत की रात थी , मैं निशा के जख्मो को देख ही रहा था की एक चीख ने मेरी आत्मा को हिला दिया .
 
#160

इस रात से मुझे नफ़रत ही हो गयी थी . बहन की लौड़ी अभी और ना जाने क्या दिखाने वाली थी .वो चीख मुझे बहुत कुछ बता रही थी . उस चीख ने मेरे कानो में जैसे पिघला हुआ शीशा ही घोल दिया हो . निशा को छोड़ कर मैं हाँफते हुए उस तरफ दौड़ा जहाँ से चीख आ रही थी . ये चीख , ये चीख मेरे भाई की थी .

यहाँ पर एक बार फिर सम्भावना ने मुझे धोखा दे दिया था . भाभी ने जब अपना मंगलसूत्र उतार कर मुझे दिया तो मैंने समझा था की भैया ने ही मार दिया उनको पर सच्चाई अब मेरी आँखों के सामने थी. ऐसा सच जिस पर मुझे यकीन नहीं हो रहा था , जब मैं दोराहे पर पहुंचा तो मैंने देखा की अंजू ने भैया का गला रेत दिया है , भैया अपने गले को पकडे हुए तडप रहे थे .

"अंजू हरामजादी तूने ये क्या किया " मैं चीखते हुए उसकी तरफ दौड़ा .

अंजू- बड़ी देर कर दी मेहरबान आते आते . हम तो तरस गए थे दीदार को तुम्हारे.

"भैया को छोड़ दे अंजू वर्ना तू सोच भी नहीं सकती क्या होता तेरे साथ " मैंने कहा

अंजू- मैं क्या छोडू ये खुद ही दुनिया छोड़ देगा थोड़ी देर में .

मैं- मेरे भाई को कुछ भी हुआ न तो मैं आग लगा दूंगा

अंजू- आग तो मैंने लगाइ देख सब कुछ जल तो रहा है .

मैं भैया को छुड़ाने के लिए अंजू तक पहुचता उस से पहले ही अंजू ने भैया की गर्दन को काट दिया . मुझे तो जैसे दौरा ही पड़ गया . मेरी आँखों के सामने मेरे भाई को मार दिया गया था .

"क्यों , क्यों किया तूने ऐसा अंजू," मैंने आंसू भरी आँखों से पूछा

अंजू- सोच रही हूँ कहाँ से शुरू करू कहाँ खत्म करू

मैं- खत्म तो तुझे मैं करूँगा यही इसी जगह पर

अंजू- कोशिश करके देख ले . पर चल तू भी क्या याद करेगा पर पहले मुझे तुझसे जानना है की ऐसा क्या था जो तू जान गया और मैं अनजान रही .

मैं- सच . वो सच जो कभी तू समझ ही नहीं पायी . तू सुनैना की बेटी होकर भी अपनी माँ को समझ नहीं पायी. तूने अपनी माँ की इमानदारी को नहीं चुना तूने रुडा, राय साहब की मक्कारी को चुना. मेरी कोई बहन नहीं थी मैंने तुझे वो दर्जा दिया पर तू नागिन निकली जिस भाई ने तुझे स्नेह दिया तूने उसको डस लिया . नंदिनी भाभी ने क्या बिगाड़ा था तेरा . एक झटके में तूने मुझसे वो आंचल छीन लिया जिसकी छाँव में मैं पला था .

अंजू- बंद कर ये ड्रामे, ये रोने धोने का नाटक. मैं सिर्फ तुझसे एक सवाल का जवाब चाहती हूँ .जो काम मेरी माँ नहीं कर पायी वो मैं पूरा करुँगी.

मैं- चुतिया की बच्ची है तू, सब कुछ तेरे पास ही तो था वो लाकेट जो तूने मुझे दिया था उसे कभी तू पहचान ही नहीं पायी . वो लाकेट एक ऐसी व्यवस्था थी , वो लाकेट उसे राह दिखाता जिसका मन सच्चा होता. जिसे स्वर्ण का लालच नहीं होता. तूने अपनी गांड खूब घिसी , जंगल का कोना कोना छान मारा पर तुझे घंटा भी नहीं मिला . क्योंकि तू लायक ही नहीं थी .

मैंने पास पड़ा एक लकड़ी का टुकड़ा उठाया और अंजू की तरफ लपका पर वो शातिर थी , मेरे वार को बचा गयी . अंजू ने पिस्तौल की गोली चलाई मेरी तरफ पर उसका निशाना चूका, जंगल में आवाज दूर तक गूँज उठी . मैने तुरंत एक पत्थर उठा कर अंजू पर निशाना लगे पिस्तौल हाथ से गिरते ही मैंने उसे धर लिया . दो चार रह्पते लगाये उसे और धरती पर पटक दिया.

मैं- इतना तो सोच लेती , कोई तो है जो तेरी खाल खींच लेगा. कोई तो होगा जिसके आगे तेरी एक न चलेगी. मैंने खीच कर लात मारी अंजू के पेट में . खांसते हुए वो आगे को सरकी .

मैं- चिंता मत कर तुझे ऐसे नहीं मारूंगा. तूने मुझसे वो छीन लिया जो मेरे लिए बहुत अजीज था . तुझे वो मौत दूंगा की पुश्ते तक कांप जाएगी . आज के बाद दगा करने से पहले सौ बार सोचा जायेगा.

मैं आगे बढ़ा और अंजू के पैर को पकड़ते हुए उसकी चिटली ऊँगली को तोड़ दिया .

"आईईईईईइ " जंगल में अंजू की चीख गूँज उठी .

मैं- जानना चाहती है न तू मैंने क्या जाना , सुन मैंने मोहब्बत को जाना . मोहब्बत था वो राज . इश्क था वो सच जो मैंने जाना जो मैंने समझा. वो लाकेट तेरी माँ की अंतिम निशानी तुझे चुन लेता उसने महावीर को भी चुना था पर तू समझ ही नहीं पायी . चाबी हमेशा तेरे साथ थी और बदकिस्मती भी .सोना एक लालच था जिसे कभी पाया ही नहीं जा सकता था . जो भी इसे पाने की कोशिश करता वो कैद हो कर रह जाता ऐसी कैद जो थी भी और नहीं भी . इस सोने को इस्तेमाल जरुर किया जा सकता था पर उसके लिए वो बनना पड़ता जो कोई नहीं चाहेगा . आदमखोर बन कर लाशो से सींचना पड़ेगा जितना सोना तुम लोगे उतने बराबर का रक्त रखो . इस सोने का कभी कोई मालिक नहीं हुआ ये सदा से शापित था , जिसे सुनैना ने मालिक समझा वो भी कोई कैदी ही था जिसने न जाने कब जाने अनजाने सोने की चाहत में सौदा किया होगा . अपनी आजादी का मतलब ये ही था की उसकी सजा कोई और काट ले मतलब समझी तू .

मैंने अंजू की अगली ऊँगली तोड़ी.

मैं- जितना मर्जी चीख ले . इस दर्द से तुझे आजादी नहीं मिलेगी . मौत इतनी सस्ती नहीं होगी तेरे लिए.

"कौन था वो " अंजू ने कहा

इस से पहले की मैं कुछ भी कह पाता , बदन को एक जोर का झटका लगा और चांदी का एक भाला मेरी पीठ से होते हुए सीने के दाई तरफ पार हो गया. मैं ही क्या मेरे अन्दर का जानवर तक दहक उठा बदन में आग सी लग गयी. मांग जैसे जलने लगा . बड़ी मुश्किल से मैंने पलट कर देखा और जिसे देखा फिर कुछ देखने की इच्छा ही नहीं रही .
 
#161

धीमे कदमो से चलते हुए वो मेरे पास आई .

मैं- क्यों

"क्या करे , तुम हो की मानते ही नहीं . कितने इशारे दिए तुमको की मत पड़ो इस चक्कर में जितना तुमको दूर करने का प्रयास किया उतना ही तुम्हे जूनून चढ़ा सच जानने का वो सच जिसे ज़माने से छिपाते हुए मैं आज तक आई थी . वो सच जिसने मुझे भी भुला दिया था की मैं कौन हूँ तुमने बेचैन कर दिया मुझे. आज खंडहर को नष्ट करके तुमने मजबूर कर दिया मुझे ये सब करने को सच कहूँ तो कबीर मेरा जरा भी मन नहीं था तुम्हे यु मारने का पर क्या करू " चाची ने मुझसे कहा और अंजू के पास पहुँच गयी .

चाची- और तू मुर्ख लड़की , अच्छी भली जिन्दगी चल रही थी न तेरी तुझे क्या जरुरत थी इन विरानो में भटकने की , इस जवानी को तूने जाया किया किसी का बिस्तर गर्म करती पर नहीं तुझे भी तेरी माँ की तरह चुल लगी है. तुम लोगो ने जंगल को पता नहीं क्या समझ रखा है . मुह उठा कर जब देखो चले आते हो दिन हो या रात . ये नहीं सोचते की दुनिया में और भी लोग है जिनको शांति चाहिए . हर जगह तुम बस घुसते ही चले आ रहे हो . और लोग जाये तो कहाँ जाये. इन विरानो को तुमने अपनी अय्याशियों को अड्डा ही बना लिया .

खंडहर की शांति पहले तू तुम्हारे माँ बापों ने भंग की फिर तुम लोग खड़े हो गए. करे तो क्या करे .

चाची ने हाथ पकड कर अंजू को उठाया और अपने लबो को अंजू के लबो पर रख दिए. एक जोरदार चुम्बन लेने के बाद चाची ने अंजू को छोड़ा और बोली-एक बातबताओ , खंडहर के सच को जान कर क्या करोगे तुम .

मैं क्या कहता भाले ने मेरी शक्ति कम कर दी थी .

अंजू- मैं सोने के मालिक को देखना चाहती थी . मैं देखना चाहती थी उस आग को जिसने सब कुछ झुलसा दिया .

चाची- झूठ मत बोल . तेरे मन को पढ़ रही हूँ मैं . तुझे लालच था सोने से ज्यादा पाने का पर तू ये नहीं जानती की तू क्या पाना चाहती थी . और तू कबीर रिश्तो का बोझ इतना भी ना उठाना चाहिए की रिश्ते बोझ बन जाये . परिवार को थाम कर रखने की हसरत ने तुझे इतना झुका दिया की फिर तू कुछ भी देख नहीं पाया कुछ भी समझ नहीं पाया. कितने इशारे दिए तुझे की शांति से रह ले जी अपनी जिन्दगी पर तू नहीं माना तुझ को भी वही बिमारी की खंडहर का सच क्या है , ले देख ले खंडहर का सच क्या है . मैं हूँ खंडहर का सच , मैं हूँ वो जो तुम सब के सामने तो था पर कोई देख नहीं पाया . मैं हूँ सोने की मालिक , नहीं ये ठीक नहीं होगा मैं हूँ सोने की कैदी जिसने तुम्हारे माँ-बापों के चुतियापे की वजह से अपनी कैद से मुक्ति पाई. लालच इंसानी फितरत का गुण . एकांत बरसो से आदत थी उस एकांत की . कभी सोचा नहीं था की कैद से आजादी मिलेगी पर फिर तीन दोस्त उस खंडहर में आने लगे. जोश से भरे . घंटो फिर दिन रात वही पर डेरा डाले रहते वो लोग. उनकी दखलंदाजी खास पसंद नहीं थी पर फिर सुनैना ने उस चीज को पहचान लिया जो छिपी थी सोना. लालच ने आकर्षित कर लिया उनको . सुनैना जान गयी की वहां पर कोई चौथा भी है . उसे जूनून था किवंदिती को सच करने का . मुझे आजादी चाहिए थी . हमने एक सौदा किया सारा सोना उसका और बदले में मैं यहाँ से आजाद हो जाउंगी. उसने हाँ भर ली मैंने कायदे से सब कुछ उसे सौंप दिया पर जब शर्त उसके सामने आई तो उसके कदम डगमगा गए. इंसानों की थूक कर चाटने की आदत जो ठहरी. पर वो अकेली नहीं थी उसके साथ था बिशम्भर जो सोने के लिए कुछ भी करने को तैयार था मैंने उसे लालच दिया उसने लालच लिया . आदमखोर मेरी कैद का प्रथम रक्षक था जो छिपा हुआ था बरसो से जंगल में पर बिशम्भर ने उसका शिकार किया पर बदले में उसे क्या मिला वो खुद संक्रमित हो गया . और फिर सिलसिला शुरू हुआ . महावीर ने मेरा सच जान लिया था . वो उत्सुक था वो जानता था की एक आदमखोर ही मेरा सामना कर सकता था सुनैना के लाकेट ने उसे राह दिखाए महावीर ने सब जानते हुए भी मेरा आह्वान किया पर वो नहीं जानता था की मेरा असली रूप क्या है . वो ये नहीं जानता था की मैं आजाद थी . पर संगती का असर , रमा को चुदते देख उसके मन में भी हिलोरे जाग गयी . उसने रेणुका पर नजर डाली पर वो ये नहीं जानता था की रेणुका तो रेणुका है ही नहीं वो मैं थी जिसने रेणुका का रूप ले लिया था . रेणुका को तो एक रात नशे में चूर रमा के पति ने ही मार दिया था . खैर मैं गलत नहीं मानती उस बात को , जब छोटा ठाकुर रमा को चोद सकता था तो रमा का पति क्यों नही चोद सकता था ठाकुर की पत्नी को .

ये मेरे लिए और एक नया खुलासा था , मेरे सामने रेणुका चाची की जगह जो थी वो रेणुका थी ही नहीं .

"कौन , कौन हो फिर तू " मैंने बड़ी मुशकिल से कहा.

चाची- मैं ही तो हूँ वो जिसका जिक्र तुम मुझसे ही किया करते थे कबीर . मैं ही हूँ इस जंगल का सच मैं , मैं हूँ वो जिसका जिक्र कोई नहीं करता मैं हूँ जंगल की रानी. मैं हूँ वो जो तुझे चाहने लगी थी .मैं हूँ वो जो रोएगी तेरे जाने के बाद.
 
#162


"जिस डायन की कहानियो से आज भी गाँव के लोग खौफ खाते है मैं हूँ वो डायन " चाची ने इतना कहा और खीच कर एक थप्पड़ अंजू को मारा जिसका चेहरा अँधेरे में भी डर से सुर्ख हो चला था .

चाची- और तुजे क्या लगा , तू हरामजादी तेरा एक लंड से मन भर ही नहीं रहा था तू कुतिया अलग ही किस्म की रांड तूने घोर पाप किया , अभिमानु और नंदिनी से धोखा किया . जिनके आंचल में खेल कर तू बड़ी हुई तूने उनको ही मौत दी . तेरे जैसी के कारण आगे से ज़माने में बहन-बेटियों पर विश्वास नहीं करेंगे लोग.

चाची ने अंजू को पीटना शुरू किया . मैं बापने होश संभालने की कोशिश कर रहा था . मैंने भाले को कस कर पकड़ा और उसे अपने बदन से अलग करने की कोशिश करने लगा. मेरे अपने ही घर में डायन रहती थी ये बात कोई भी नहीं समझ पाया था .

"छोड़ दो अंजू को " मैंने कराहते हुए कहा

चाची- वाह रे इन्सान तेरी फितरत न्यारी, तू अभ्भी इसे छोड़ने की गुहार लगा रहा था . इस से पूछ तो ले की इसने नंदिनी को क्यों मारा , उस नंदिनी को जिसका दर्जा सबसे ऊपर था तेरे लिए. मैं बताती हूँ तुझे. नंदिनी और अभिमानु ने आदमखोर का तोड़ तलाश लिया था , जो संक्रमण महावीर की वजह से नंदिनी को लगा था उस से निजात पा सकती थी वो अंजू को ये बात बता चल गयी ये उस से वो तोड़ चाहती थी ताकि अपने असली यार को ठीक कर सके , और कौन था इसका यार तेरा चाचा , बड़ी आसानी से इसने सबलोगो का चुतिया काट दिया . जब ये रंगे हाथ चुदते हुए पकड़ी गयी तो इसने बलात्कार वाली कहानी गढ़ ली. इसकी वजह से ही रेणुका ने झगडा किया और उन्माद में जरनैल ने उसे मार दिया. रमा की बेटी को भी इसकी वजह से ही मरना पड़ा क्योंकि उसने इसकी चुदाई देख ली थी . अपने आप का दामन साफ़ रखने के लिए जरनैल और इसने उस फूल को कुचल दिया . तब मैंने उसे उसके किये की सजा दी पर नहीं जानती थी की वो कमबख्त संक्रमित था . बिशम्भर ने संभाल लिया उसे. छिपा लिया . ये हरामजादी इसने ही अभिमानु और नंदिनी को भड़काया , अभिमानु नंदिनी के संक्रमित होने से भड़का हुआ था , मौका देख कर इसने अपने ही भाई को मार दिया क्योंकि उसने इसे खंडहर का राज बताने से मना कर दिया वो जानता था की ये नीच किस्म की है . पर आज इसका किस्सा भी खत्म हो जायेगा.

चाची ने एक झटके से अंजू के सीने में अपना हाथ डाल दिया और उसका दिल बाहर निकाल लिया . खून से लतपथ ह्रदय चाची के हाथ में तड़पने लगा. ऐसी क्रूरता मैंने पहले कभी नहीं देखि थी . फिर वो चलते हुए मेरे पास आई.

चाची- तू सबसे सरल था सबसे अनोखा , मैं हैरान थी कितना मान किया तूने अपनी चाची का , उस से सम्बन्ध भी बनाये तो मान के साथ . पर कबीर तुझे क्या पंचायत थी , खंडहर का सच जान गया था तू . तूने उसे ही नष्ट कर दिया. खंडहर के नष्ट होते ही मैं समझ गयी थी , बेशक तेरे परिवार के चुतियापने की वजह से मैं उस कैद से आजाद हो सकी पर मेरी भी अपनी सीमाए है , मेरी शक्ति का केंद्र ही वो खंडहर था . मैं कमजोर हो गयी हूँ , मेरे अस्तित्व पर संकट आ गया है एक ही रास्ता है जो मुझे बचा सकता है तेरा रक्त पान . ये दुनिया बड़ी मादरचोद है कबीर और मैं भी इस दुनिया का ही हिस्सा हूँ . अपने अस्तित्व के लिए मुझे ये काम करना ही होगा .

चाची ने अपने होंठ मेरे टपकते गर्म लहू से लगाये ही थे की ....

"कबीर , " ये निशा की चीख थी जो वहां आ पहुंची थी .

चाची - बढ़िया, तू भी आ गयी . किस्मत वाली है तू जो जोड़े से मरोगे . बरसो तक तुम्हारे किस्से सुनाये जायेंगे . मैं सोच ही रही थी की तुम कहाँ रह गयी बहुरानी . थोडा सा इंतज़ार कर पहले मैं तेरे खसम को मार दू फिर तुझे भी आजादी दूंगी .

निशा- अगर मेरे कबीर को कुछ भी हुआ न तो मेरा वादा है तुझसे वो करुँगी जो तूने सोचा भी नहीं होगा. तू जो भी है जैसी भी है मुझे परवाह नहीं, कबीर मेरी वो ख़ुशी है जो किस्मत वालो को मिलती है और मुझसे मेरी ख़ुशी कोई भी छीन ले ये मैं हरगिज नहीं होने दूंगी.

चाची- अच्छा ये बात है तो फिर बचा ले इसे हम भी देखे इसक का जोर

निशा- काश तू समझ पाती ,

निशा ने एक पत्थर उठा कर चाची की तरफ फेंका जो सीधा उसके सर पर जाकर लगा. सर फूट गया खून बहने लगा. चाची ने अपनी ऊँगली खून से सानी और उसे होंठो से लगा लिया. बिजली की रफ़्तार से वो निशा के पास पहुंची और उसे एक लात मारी . निशा दूर जाकर गिरी. मैं तडप उठा. चाची एक बार फिर निशा के पास पहुंची और फिर से मारा उस को. मेरे लिए निशा पर वार सहना बर्दाश्त के बाहर था . मैंने अपनी हिम्मत समेटी और भाले को बहार करने की कोशिश करने लगा . पर वो पीछे सरक नहीं रहा था . दूसरी तरफ निशा एक डायन से टक्कर ले रही थी . मैंने तब दूसरा विचार किया बची कुची शक्ति लगाकर मैंने मैंने भाले को आगे की तरफ खींचना शुरू किया और मुझे कामयाबी भी मिली. असीम दर्द के बावजूद मैंने भाले को खींच फेंका. धरती पर गिरते ही मैंने फेफड़ो में ताज़ी हवा को महसूस किया

मैं- बस डायन बस. बहुत हुआ .

डायन ने मुझे देखा और निशा को छोड़ दिया.

डायन- अब आएगा मजा

वो मेरी तरफ लपकी और मैंने उसकी भुजाओ को थाम लिया. चांदी का असर कम होते ही मेरा ताप बढ़ने लगा . मैंने डायन के पेट में घुटना मारा और उसके झुकते ही अपनी कोहनी उसकी पीठ में दे मारी. पर तुरंत ही वो संभली और मेरे सीने पर वार किया उसने . उसके अगले वार को मैंने हवा में ही रोका और उसे एक पेड़ के तने पर दे मारा. डायन को जोर से अलग था ये वार उसने चिंघाड़ मारी और उसका रूप बदलने लगा.

कयामत क्या होती है मैंने उस पल देखि थी , अँधेरी रात में डायन का असली रूप मेरी आँखों के सामने थे . दमकते स्वर्ण की आभा लिए डायन वैसी तो बिलकुल नहीं थी जैसा हम सुनते आये थे पर क्रूरता उस से कही जायदा था . आँखों में उन्माद लिए वो मेरी तरफ बढ़ी पर मैंने उसे पकड लिया. इस बार मेरी पकड़ को अन्दर तक उसने महसूस किया और मैंने प्रहार किया उस पर डायन अन्दर तक तडप कर रह गयी . उसने आश्चर्य से मेरी तरफ देखा .पर मैंने उसे मौका नहीं दिया

मैं- दुनिया में दो लोग ही थे जो मेरे लिए हद से जायदा कीमती थे उनमे से एक थी मेरी चाची, तूने उसका रूप लेकर छला मुझे. वो बेचारी कब हमें छोड़ कर चली गयी हमें तो मालूम भी नहीं हुआ . जंगल के किस कोने में उस का शरीर दफन है मैं कभी नहीं जान पाऊंगा. उसके रूप में बेशक तू थी और तू भी जानती है की मैंने उस नाते को कैसे निभाया था . सब कुछ भुला कर मैं तुझे माफ़ भी कर देता पर तूने निशा पर वार करके वो हद पार कर दी जिसके किसी किनारे पर मेरी माफ़ी थी . तूने भी एक गलती की तू भी समझ नहीं पायी कबीर को . तुझे भी दुनिया की तरह लगा की कबीर चुतिया है पर कबीर सर झुकाना जानता है तो सर काटना भी जानता है .

डायन- आ फिर देखे जरा , रात अभी बहुत बाकी है आने वाला उजाला देखते है किसके नसीब में है , ये कहानी कौन सुनाएगा तू या मैं देखते है .

डायन ने अपनी उंगलिया मेरी पीठ के भाले वाले जख्म में घुसा दी, उसकी लम्बी होती उंगलियों को मैंने अपने दिल की तरफ बढ़ते देखा . पूरा जोर लगाकर मैंने उसका हाथ मरोड़ा और उस को धक्का दिया. डायन ने फुर्ती दिखाई और मेरी पीठ पर बैठ गए मेरा गला घोंठने लगी. और तब वो हुआ जो डायन ने कभी नहीं सोचा था मेरे अन्दर का आदमखोर बाहर आया. मुझे रूप बदलते हुए देख कर डायन घबराई नहीं बल्कि उसके होंठो पर कुटिल मुस्कान आ गयी .

डायन- देख नियति के खेल को . काश मैं पहले इस सच को जानती , तो कब का जीत चुकी होती इस बाजी को पर अभी भी कौन सी देर हुई है . आज की रात यादगार रात होगी .

वो टूट पड़ी मुझ पर , कभी मैं हावी कभी वो . मैंने एक पुरे पेड़ को उखाड़ कर उसे उसके निचे ले लिया पर वो घाघ थी उसने मुझे काबू कर लिया. एक समय के बाद मेरी साँस उखड़ने लगी थी और वो छाने लगी मुझ पर . पस्त कर दिया उसने मुझे .

डायन- कबीर, कबीर. अब मान भी जा मुझे हराना तेरे बस का नहीं . तेरे आदमखोर को मार कर मैं स्वछन्द हो जाउंगी इस निश्छल रक्त को पीकर मैं अपने अस्तित्व को सुरक्षित कर लुंगी फिर कोई नहीं सामने होगा मेरे. सबसे श्रेष्ट सबसे अनोखी . .........

"आक्क्कक्क्क " आगे के शब्द डायन के हलक में अटक कर रह गए थे मैंने देखा वो ही चांदी का भाला डायन के सीने के आर पार हो गया था .

"मैंने तुझसे कहा था सब कुछ करना पर मेरे सुहाग की तरफ मत देखना , बड़ी मुश्किल से पाया मैंने दुबारा जिन्दगी को . मैंने कहा था न अब फिर कभी मैं डाकन नहीं बनूँगी, नहीं बनूँगी मैं. तूने सोचा भी कैसे की तू मेरी आँखों के सामने मेरे सुहाग को मिटा देगी. " निशा ने कहा .

निशा- नियति ने तुझे मौका दिया था माँ बनने का , क्या नहीं था तेरे पास , नंदिनी जैसी बेटी दो बेटे जो तेरी सुरत देखे बिना कभी पानी तक को हाथ नहीं लगाते थे, नियति ने तुझे चाची के रूप में दुनिया की सबसे खूबसूरत नेमत सौंपी तुझे माँ का दर्जा दिया. पर तू समझ नहीं पायी . माँ तो अपनी औलादों के लिए इश्वर तक के सामने खड़ी हो जाती है और तू तू माँ के मर्म को समझ ही नहीं पायी अपने अस्तित्व के लिए तू उसको मिटा देना चाहती थी जिसने तुझे खुदा जैसा दर्जा दिया .

निशा ने आगे बढ़ कर भाले को थोडा सा खींचा और फिर से डायन के दिल के आर पार कर दिया .

डायन का शरीर राख बन कर झड़ने लगा और रह गयी तो गहरी काली रात जो अपने साथ सब कुछ खत्म कर गयी थी . निशा ने मेरी बाहें थामी और आँखों में आंसू लिए हम लोग गाँव की तरफ चल पड़े..........

"एक नया सवेरा पुकार रहा है हमें " निशा ने बस इतना कहा और मैंने उसे आगोश में भींच लिया. न कुछ उसके पास था कहने को ना कुछ मेरे पास था कहने को .
 
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