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(Jiju Ka Pyar Aur Meri Chut Chudai)

लेखिका- रीता शर्मा
सहयोगी- कामिनी सक्सेना
मैं अपनी दीदी के यहाँ कुछ दिनों के लिये गई थी। दीदी की नई-नई शादी हुई थी. अभी जीजू में और दीदी में नया-नया जोश भी था। दीदी और जीजू का कमरा ऊपर था। नीचे सिर्फ़ एक बैठक और बैठक थी। मैं बैठक में ही सोती थी।

शाम को हम तीनों ही झील के किनारे घूमने जाया करते थे। मेरे चूतड़ थोड़े से भारी हैं और कुछ पीछे उभरे हुए भी हैं. मेरे सफ़ेद टाईट पैन्ट में चूतड़ बड़े ही सेक्सी लगते हैं। मेरे चूतड़ों की दरार में घुसी पैन्ट देख कर किसी का भी लण्ड खड़ा हो सकता था. फिर जीजू तो मेरे साथ ही रहते थे और कभी-कभी मेरे चूतड़ों पर हाथ मार कर अपनी भड़ास भी निकाल लेते थे। उनकी ये हरकत मेरी शरीर को कँपकँपा देती थी।

झील के किनारे वहीं एक दुकान के बाहर कुर्सियाँ निकाल कर हम बैठ जाते थे और कोल्ड-ड्रिंक के साथ झील की ठंडी हवा का भी आनन्द लेते थे। दीदी की अनुपस्थिति में जीजू मुझसे छेड़छाड़ भी कर लिया करते थे, और मैं भी जीजू को आँखों में इशारा करके मज़ा लेती थी। मुझे ये पता था कि जीजू मुझ पर भी अपनी नजर रखते हैं। मौका मिला तो शायद चोद भी दें। मैं उन्हें जान-बूझ कर के और छेड़ देती थी।

घर आ कर हम डिनर करते थे. फिर जीजू और दीदी जल्दी ही अपने कमरे में चले जाते थे। लगभग दस बजे मैं अकेली हो जाती थी. और कम्प्यूटर पर कुछ-कुछ खेलती रहती थी।

ऐसे ही एक रात को मैं अकेली रूम में बोर हो रही थी. नींद भी नहीं आ रही थी. तो मैं घर की छत पर चली आई। ठन्डी हवा में कुछ देर घूमती रही, फिर सोने के लिये नीचे आई। जैसे ही दीदी के कमरे के पास से निकली मुझे सिसकरियों की आवाज आई। ऐसी सिसकारियाँ मैं पहचानती थी. जाहिर था कि दीदी चुद रही थी. मेरी नज़र अचानक ही खिड़की पर पड़ी. वो थोड़ी सी खुली थी। जिज्ञासा जागने लगी। दबे कदमों से मैं खिड़की की ओर बढ़ गई . मेरा दिल धक से रह गया.

दीदी घोड़ी बनी हुई थी और जीजू पीछे से उसकी गाँड चोद रहे थे। मुझे सिरहन सी उठने लगी। जीजू ने अब दीदी के बोबे मसलने चालू कर दिये थे. मेरे हाथ स्वत: ही मेरे स्तनों पर आ गये. मेरे चेहरे पर पसीना आने लगा. जीजू को दीदी की चुदाई करते पहली बार देखा तो मेरी चूत भी गीली होने लगी थी। इतने में जीजू झड़ने लगे. उसके वीर्य की पिचकारी दीदी के सुन्दर गोल गोल चूतड़ों पर पड़ रही थी.

मैं दबे पाँव वहाँ से हट गई और नीचे की सीढ़ियां उतर गई। मेरी साँसें चढ़ी हुई थीं। धड़कनें भी बढ़ी हुई थीं। दिल के धड़कने की आवाज़ कानों तक आ रही थी।मैं बिस्तर पर आकर लेट गई. पर नींद ही नही आ रही थी। मुझे रह-रह कर चुदाई के सीन याद आ रहे थे। मैं बेचैन हो उठी और अपनी चूत में ऊँगली घुसा दी. और ज़ोर-ज़ोर से अन्दर घुमाने लगी। कुछ ही देर में मैं झड़ गई।

दिल कुछ शान्त हुआ। सुबह मैं उठी तो जीजू दरवाजा खटखटा रहे थे। मैं तुरन्त उठी और कहा,' दरवाजा खुला है.।'

जीजू चाय ले कर अन्दर आ गये। उनके हाथ में दो प्याले थे। वो वहीं कुर्सी खींच कर बैठ गये।
'मजा आया क्या.?'
मैं उछल पड़ी. क्या जीजू ने कल रात को देख लिया था
'जी क्या. किसमें. मैं समझी नहीं.?' मैं घबरा गई.

'वो बाद में. आज तुम्हारी दीदी को दो दिन के लिए भोपाल हेड-क्वार्टर जाना है. अब आपको घर सँभालना है.'
'हम लड़कियाँ यही तो करती हैं ना. फिर और क्या-क्या सँभालना पड़ेगा.?' मैंने जीजू पर कटाक्ष किया।
'बस यही है और मैं हूँ. सँभाल लेगी क्या.?' जीजू भी दुहरी मार वाला मज़ाक कर रहे थे.

'जीजू. मजाक अच्छा करते हो.!' मैंने अपनी चाय पी कर प्याला मेज़ पर रख दिया। मैंने उठने के लिए बिस्तर पर से जैसे ही पाँव उठाए, मेरी स्कर्ट ऊपर उठ गई और मेरी नंगी चूत उन्हें नज़र आ गई।

मैंने जान-बूझ कर जीजू को एक झटका दे दिया। मुझे लगा कि आज ही इसकी ज़रूरत है। जीजू एकटक मुझे देखने लगे. मुझे एक नज़र में पता चल गया कि मेरा जादू चल गया। मैंने कहा,'जीजू. मुझे ऐसे क्या देख रहे हो.'
'कुछ नही. सवेरे-सवेरे अच्छी चीजों के दर्शन करना शुभ होता है.!' मैन तुरंत जीजू का इशारा समझ गई. और मन ही मन मुस्कुरा उठी।

'आपने सवेरे-सवेरे किसके दर्शन किये थे?' मैंने अंजान बनते हुए पूछा. लगा कि थोड़ी कोशिश से काम बन जायेगा। पर मुझे क्या पता था कि कोशिश तो जीजू खुद ही कर रहे थे।

दीदी दफ्तर से आकर दौरे पर जाने की तैयारी करने लगी. डिनर जल्दी ही कर लिया. फिर जीजू दीदी को छोड़ने स्टेशन चले गये। मैंने अपनी टाईट जीन्स पहन ली और मेक अप कर लिया। जीजू के आते ही मैंने झील के किनारे घूमने की फ़रमाईश कर दी।

वो फ़िर से कार में बैठ गये. मैं भी उनके साथ वाली सीट पर बैठ गई। जीजू मेरे साथ बहुत खुश लग रहे थे। कार उन्होंने उसी दुकान पर रोकी, जहाँ हम रोज़ कोल्ड-ड्रिंक लेते थे। आज कोल्ड-ड्रिंक जीजू ने कार में ही मंगा ली।

'हाँ तो मैं कह रहा था कि मजा आया था क्या?' मुझे अब तो यकीन हो गया था कि जीजू ने मुझे रात को देख लिया था।
'हां. मुझे बहुत मज़ा आया था.' मैंने प्रतिक्रिया जानने के लिए तीर मारा.
जीजू ने तिरछी निगाहों से देखा. और हँस पड़े- 'अच्छा. फिर क्या किया.'
'आप बताओ कि अच्छा लगने के बाद क्या करते हैं.' जीजू का हाथ धीरे धीरे सरकता हुआ मेरे हाथों पर आ गया। मैंने कुछ नही कहा. लगा कि बात बन रही है।

'मैं बताऊँगा तो कहोगी कि अच्छा लगने के बाद आईस-क्रीम खाते हैं.' और हँस पड़े और मेरा हाथ पकड़ लिया। मैं जीजू को तिरछी नजरों से घूरती रही कि ये आगे क्या करेंगे। मैंने भी हाथ दबा कर इज़हार का इशारा किया।
हम दोनों मुस्कुरा पड़े। आँखों आँखों में हम दोनों सब समझ गये थे. पर एक झिझक अभी बाकी थी। हम घर वापस आ गये।

जीजू अपने कमरे में जा चुके थे. मैं निराश हो गई. सब मज़ाक में ही रह गया। मैं अनमने मन से बिस्तर पर लेट गई। रोज की तरह आज भी मैंने बिना पैन्टी के एक छोटी सी स्कर्ट पहन रखी थी. मैंने करवट ली और पता नही कब नींद आ गई. रात को अचानक मेरी नींद खुल गई. जीजू हौले से मेरे बोबे सहला रहे थे. मैं रोमांचित हो उठी. मन ने कहा. हाय! काम अपने आप ही बन गया. मैं चुपचाप अनजान बन कर लेटी रही.

जीजू ने मेरी स्कर्ट ऊंची कर दी और नीचे से नंगी कर दिया। पंखे की हवा मेरे चूतड़ों पर लग रही थी। जीजू के हाथ मेरे चिकने चूतड़ों पर फ़िसलने लगे. जीजू धीरे से मेरी पीठ से चिपक कर लेट गये. उनका लण्ड खड़ा था. उसका स्पर्श मेरी चूतड़ों की दरार पर लग रहा था. उसके सुपाड़े का चिकनापन मुझे बड़ा प्यारा लग रहा था।

उसने मेरे बोबे जोर से पकड़ लिए और लण्ड मेरी गाँड पर दबा दिया। मैंने लण्ड को गाँड ढीली कर के रास्ता दे दिया. और सुपाड़ा एक झटके में छेद के अन्दर था।

'जीजू. हाय रे. मार दी ना. मेरी पिछाड़ी को.' मेरे मुख से सिसकारी निकल पड़ी। उसका लण्ड गाँड़ की गहराईयों में मेरी सिसकारियों के साथ उतरता ही जा रहा था।
'रीता. जो बात तुझमें है. तेरी दीदी में नहीं है.' जीजू ने आह भरते हुए कहा।

लण्ड एक बार बाहर निकल कर फिर से अन्दर घुसा जा रहा था। हल्का सा दर्द हो रहा था। पर पहले भी मैं गाँड चुदवा चुकी थी। अब जीजू ने अपनी ऊँगली मेरी चूत में घुसा दी थी. और दाने के साथ मेरी चूत को भी मसल रहे थे. मैं आनन्द से सराबोर हो गई। मेरी मन की इच्छा पूरी हो रही थी. जीजू पर दिल था. और मुझे अब जीजू ही चोद रहे थे।

'मत बोलो जीजू बस चोदे जाओ. हाय कितना चिकना सुपाड़ा है. चोद दो आपकी साली की गाँड को.' मैं बेशर्मी पर उतर आई थी.

उसका मोटा लण्ड तेजी से मेरी गाँड में उतराता जा रहा था. अब जीजू ने बिना लण्ड बाहर निकाले मुझे उल्टी लेटा कर मेरी भारी चूतड़ों पर सवार हो गये। और हाथों के बल पर शरीर को ऊँचा उठा लिया और अपना लण्ड मेरी गाँड पर तेजी से मारने लगे. उनका ये फ्री-स्टाईल चोदना मुझे बहुत भाया।

'राजू. मेरी चूत का भी तो ख्याल करो. या बस मेरी गाँड ही मारोगे.' मैंने जीजू को घर के नाम से बुलाया।

'रीता. मेरी तो शुरू से ही तुम्हारी गाँड पर नजर थी. इतनी प्यारी गाँड. उभरी हुई और इतनी गहरी. हाय मेरी जान.'

जीजू ने लण्ड बाहर निकाल लिया और चूत को अपना निशाना बनाया.

'जान. चूत तैयार है ना. लो. ये गया. हाय इतनी चिकनी और गीली.' और उसका लण्ड पीछे से ही मेरी चूत में घुस पड़ा. एक तेज मीठी सी टीस चूत में उठी. चूत की दीवारों पर रगड़ से मेरे मुख से आनन्द की सीत्कार निकल गई।

'हाय रे. जीजू मर गई. मज़ा आ गया. और करो.।' जीजू का लण्ड गाँड मारने से बहुत ही कड़ा हो रहा था. जीजू के चूतड़ खूब उछल-उछल कर मेरी चूत चोद रहे थे। मेरी चूचियाँ भी बहुत कठोर हो गईं थीं।

मैंने जीजू से कहा,'जीजू. मेरी चूचियाँ जोर से मसलो ना. खींच डालो.!' जीजू तो चूचियाँ पहले से ही पकड़े हुए थे. पर हौले-हौले से दबा रहे थे. मेरे कहते ही उन्हें तो मज़ा आ गया. जीजू ने मेरी दोनो चूचियाँ मसल के, रगड़ के चोदना शुरू कर दिया। मेरी दोनों चूतड़ों की गोलाईयाँ उसके पेडू से टकरा रहीं थीं. लण्ड चूत में गहराई तक जा रहा था. घोड़े की तरह उसके चूतड़ धक्के मार-मार कर मुझे चोद रहे थे।

मेरे पूरे बदन में मीठी-मीठी लहरें उठ रहीं थीं. मैं अपनी आँखों को बन्द करके चुदाई का भरपूर आनन्द ले रही थी। मेरी उत्तेजना बढ़ती जा रही थी. जीजू के भी चोदने से लग रहा था कि मंज़िल अब दूर नहीं है। उसकी तेजी और आहें तेज होती जा रही थी. उसने मेरी चूचक जोर से खींचने चालू कर दिये थे.

मैं भी अब चरम सीमा पर पहुँच रही थी। मेरी चूत ने जवाब देना शुरू कर दिया था. मेरे शरीर में रह-रह कर झड़ने जैसी मिठास आने लगी थी। अब मैं अपने आप को रोक ना सकी और अपनी चूत और ऊपर दी. बस उसके दो भरपूर लण्ड के झटके पड़े कि चूत बोल उठी कि बस बस. हो गया।

'जीजूऽऽऽऽऽ बस.बस. मेरा माल निकला. मै गई. आऽऽईऽऽऽअऽ अऽऽऽआ.' मैंने ज़ोर लगा कर अपनी चूचियाँ उससे छुड़ा ली. और बिस्तर पर अपना सर रख लिया. और झड़ने का मज़ा लेने लगी. उसका लण्ड भी आखिरी झटके लगा रहा था। फिर.. आह्. उसका कसाव मेरे शरीर पर बढ़ता गया और उन्होंने अपना लण्ड बाहर खींच लिया।

झड़ने के बाद मुझे चोट लगने लगी थी. थोड़ी राहत मिली. अचानक मेरे चूतड़ और मेरी पीठ उसके लण्ड की फ़ुहारों से भीग उठी. जीजू झड़ने लगे थे. रह-रह कर कभी पीठ पर वीर्य की पिचकारी पड़ रही थी और अब मेरे चूतड़ों पर पड़ रही थी। जीजू लण्ड को मसल-मसल कर अपना पूरा वीर्य निकाल रहे थे।

जब पूरा वीर्य निकल गया तो जीजू ने पास पड़ा तौलिया उठाया और मेरी पीठ को पौंछने लगे.'

रीता. तुमने तो आज मुझे मस्त कर दिया' जीजू ने मेरे चेहरे को किस करते हुए कहा. मैं चुदने की खुशी में कुछ नहीं बोली. पर धन्यवाद के रूप में उन्हें फिर से बिस्तर पर खींच लिया. मुझे अभी और चुदना था.

इतनी जल्दी कैसे छोड़ देती. दो तीन दौर तो पूरा करती. सो जीजू के ऊपर चढ़ गई. जीजू को लगा कि पूरी रात मज़े करेंगे. जीजू अपना प्यार का इकरार करने लगे.

'मेरी रानी. तुम प्यारी हो. मैं तो तुम पर मर मिटा हूँ. जी भर कर चुदवा लो. अब तो मैं तुम्हारा ही हूँ.' और दुगुने जोश से उन्होंने मुझे अपनी बाँहों में कस लिया.
मैं आज तो रात-भर स्वर्ग की सैर करने वाली थी.
 
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