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(Bhabhi Sang Meri Antarvasna Part-7)

अब तक आपने पढ़ा..
भाभी और मैं अब योनि और लिंग की लड़ाई का खेल खेलने वाले हो गए थे।
अब आगे..

मेरे लिंग को साफ करने के बाद भी भाभी ने उसे छोड़ा नहीं बल्कि ऐसे ही धीरे-धीरे लिंग को सहलाती रहीं। भाभी ने मेरा हाथ जो कि मेरे व भाभी के बीच था.. उसे सीधा करके अपने सिर के नीचे दबा लिया और अपने उभारों को मेरी बगल से चिपका दिया। भाभी के चूचुक कठोर हो गए थे.. जो कि मुझे चुभते से महसूस हो रहे थे।

भाभी ने फिर से अपनी नंगी जाँघ मेरी जाँघों पर घिसना शुरू कर दिया और साथ ही वो मेरे गालों पर भी हल्के-हल्के चूमने लगी थीं।
मेरे लिंग में अब कठोरता आने लगी थी, मैंने अपनी गर्दन घुमाकर भाभी की तरफ चेहरा कर लिया.. जिससे भाभी की गर्म साँसें मेरी साँसों में समाने लगी।

भाभी के मुँह से अब भी मेरे वीर्य की हल्की गंध आ रही थी। भाभी ने मेरे गालों की बजाए अब मेरे होंठों को चूमना शुरू कर दिया। मैंने करवट बदल कर भाभी की तरफ मुँह कर लिया और भाभी का साथ देने के लिए उनके होंठों को चूमने लगा।

मेरे करवट बदलने के कारण भाभी ने मेरे लिंग को छोड़ दिया और मेरी कमर में हाथ डालकर मुझे जोरों से अपनी बाँहों में भींच लिया। इससे भाभी के उभार मेरे सीने से दब गए और मेरा उत्तेजित लिंग भाभी की नंगी जाँघों के बीच लग गया।

भाभी मेरे होंठों को चूमते हुए हल्की-हल्की सी 'आहें..' भरने लगी थीं.. साथ ही उनका हाथ भी मेरे कूल्हों से लेकर मेरे सिर तक घूम रहा था।

मैं भी एक हाथ से भाभी के भरे हुए मखमली नितम्बों व जाँघों सहलाने लगा। मेरा साथ मिलते ही भाभी ने मुझे जोरों से भींच लिया था और जोरों से मेरे होंठों को चूमने-चाटने लगीं.. जिससे मेरा दम सा घुटने लगा। मैं खुद को छुड़ाने की कोशिश करने लगा.. मगर भाभी ने अपनी एक जाँघ मेरी जाँघों पर रख कर मुझे जोरों से दबा लिया।

भाभी के मेरी जाँघ पर जाँघ रखने से उनकी दोनों जाँघें अलग हो गईं और मेरा उत्तेजित लिंग ठीक भाभी की योनि पर लग गया।

मैंने भी भाभी की जाँघ को पकड़ कर अपनी कमर तक चढ़ा लिया और पीछे से उनके नितम्बों के बीच से हाथ डालकर भाभी की योनि को सहलाने लगा। भाभी की योनि कामरस से भीग कर तर हो गई थी।

मुझसे अब सब्र नहीं हो रहा था इसलिए मैं अपने लिंग को पकड़ कर धीरे से भाभी की योनि में डालने की कोशिश करने लगा.. मगर कामयाब नहीं हो सका क्योंकि एक तो मैं इस खेल का नया खिलाड़ी था.. इसलिए मेरा लिंग सही से योनिद्वार पर नहीं लग रहा था और दूसरा भाभी की योनि इतनी गीली हो गई थी कि मेरा लिंग योनि की दोनों फांकों के बीच बार-बार फिसल रहा था।

इसी कोशिश में मैं अपना लिंग भाभी की योनि पर रगड़ रहा था कि तभी भाभी मेरे गालों को चूमने के लिए थोड़ा सा ऊपर हुईं.. और जैसे ही वो ऊपर हो कर नीचे होने लगीं.. उसी पल मेरे लिंग का सुपारा ठीक योनिद्वार के होंठों के बीच फँस सा गया। लिंग का सुपारा भाभी की योनि की फांकों में फंसा ही था कि भाभी ने 'इईईई.. श्श्शशश..' करके जोरों से मेरे कूल्हों को भींच लिया।

मगर अगले ही पल फिर से मेरा लिंग योनिद्वार से निकल गया। मैंने भी हार नहीं मानी। मैं फिर से अपनी कोशिश में जुट गया.. मगर कामयाब नहीं हो सका।
इस दौरान एक-दो बार फिर से मेरा लिंग योनिद्वर पर लगा भी.. मगर चिकनाई की वजह से वो बार-बार फिसल रहा था।

जब मैं कामयाब नहीं हो सका तो भाभी ने करवट बदल कर मुझे अपने ऊपर खींच लिया और अपनी जाँघें फैलाकर मुझे अपनी दोनों जाँघों के बीच भींच में दबा लिया।

भाभी का मखमली नंगा शरीर अब मेरे नीचे था, उनके दोनों उभार मेरी छाती से दबे हुए थे और मेरा लिंग ठीक भाभी की योनि पर था।

मगर, अब भी मेरा लिंग सही से योनिद्वार में नहीं जा रहा था और मैं ऐसे ही योनि की दोनों फांकों के बीच लिंग को घिस रहा था। तभी भाभी ने मेरे लिंग को पकड़ कर योनिद्वार के होंठों से लगा लिया और मेरे हमले का इन्तजार करने लगी।

बाहर से ही मैं अपने लिंग पर उनकी योनि की तपिश महसूस कर रहा था। मैंने भी अब देरी नहीं की और एक जोर को धक्का लगा दिया।
भाभी का योनिद्वार कामरस से भीग कर चिकना था और भाभी भी इसके लिए तैयार थीं.. जिससे एक ही झटके में मेरा आधे से ज्यादा लिंग भाभी की योनि में समा गया।

भाभी के मुँह से 'इईईई.. श्श्शशश.. उम्म्ह. अहह. हय. याह. अआहह..' की आवाज निकल गई। भाभी ने अपने पैरों व हाथों को समेटकर मेरे शरीर को जोरों से भींच लिया और बड़े ही प्यार से मेरे गालों को चूम लिया जैसे कि मैंने बहुत बड़ा और गर्व का काम किया हो।

एक बार मैंने अपने लिंग को थोड़ा सा बाहर खींचा। मैंने फिर से एक धक्का और लगा दिया.. इस बार लगभग मेरा पूरा लिंग भाभी की योनि की गहराई में उतर गया।
फिर से भाभी के मुँह से 'इईईई.. श्श्श्श्शशश.. अआहह..' की आवाज निकल गई।

भाभी ने फिर मेरे गालों को चूम लिया और दोनों हाथों से मुझे अपनी बाँहों में भरकर जोरों से भींच लिया जिससे भाभी के उरोज मेरी छाती तले पिस से गए।
अब लगभग मेरा पूरा लिंग भाभी की योनि में था और मैं अपने लिंग पर योनि की गर्माहट को महसूस कर रहा था।

यह दूसरा अवसर था.. जब मेरा लिंग भाभी की योनि में था। इस अहसास को मैं बयान नहीं कर सकता कि मुझे कैसा मस्त लग रहा था।

मैं भी अब रुका नहीं बल्कि मैंने धीरे-धीरे अपने शरीर को आगे-पीछे करके धक्के लगाने शुरू कर दिए। मेरा लिंग भाभी की योनि में अन्दर-बाहर होने लगा और साथ ही मेरी छाती से दबे भाभी के दोनों उरोज भी चटनी की तरह मसले जाने लगे। मेरे प्रत्येक धक्के के साथ भाभी 'अआआह.. अआआह..' की आवाज करने लगीं।

भाभी ने अब अपने पैरों को मेरी जाँघों के ऊपर किया और फिर अपने पैरों को मेरे पैरों में इस तरह से फँसा लिया कि अब मैं चाह कर भी भाभी के ऊपर से उठ नहीं सकता था।

भाभी ने मुझे जोरों से भींच लिया था और मेरी गर्दन व गालों को चूमने लगीं। भाभी का साथ देने के लिए मैंने भी उनके होंठों को मुँह में भर लिया और धीरे-धीरे उन्हें चूसने लगा।

भाभी ने अब मेरे होंठों को चूसना शुरू कर दिया, उन्होंने पहले की तरह ही अपनी जीभ मेरे मुँह में डाल दी और मेरे पूरे मुँह में अपनी जीभ घुमाने लगीं। मैं उनकी जीभ को होंठों के बीच दबाकर जोरों से चूसने लगा मगर इस बार मैंने अपनी जीभ भाभी के मुँह में डालने की गलती नहीं की.. बस भाभी की ही जीभ को चूसता रहा।

जब मैंने अपनी जीभ भाभी के मुँह में नहीं दी.. तो भाभी ने दोनों हाथों से मेरे सिर को पकड़ लिया और बुरी तरह से मेरे होंठों को चूसने लगीं। मुझे तो वो अब चूमने का मौका ही नहीं दे रही थीं.. बल्कि खुद ही मुझे चूम-चाट रही थीं।

उत्तेजना के वश धीरे-धीरे अपने आप ही मेरे धक्कों की गति बढ़ गई.. जिससे भाभी के मुँह से फिर सिसकारियां निकलनी शुरू हो गईं। भाभी का मुँह मेरे होंठों से बन्द था.. मगर फिर भी वो मेरे होंठों को चूसते हुए 'हुहुह.. हूहूहूहहह.. हुहुह..' की आवाज करने लगीं।

भाभी के दोनों पैर अब मेरे कूल्हों पर आ गए और वो अपनी एड़ियों से मेरे कूल्हों को दबाकर धक्का लगाने लगीं.. साथ ही उनके दोनों हाथ भी मेरी पीठ को पकड़ कर मुझे आगे-पीछे करने लगे।

मुझमें भी अब जोश आ गया और मैंने अपनी गति बढ़ा दी। भाभी भी अब जोरों से मेरे कूल्हों व पीठ को दबाकर मुझे आगे-पीछे करने लगीं.. इसी के साथ अब उनके नितम्ब भी ऊपर-नीचे होने लगे थे।

भाभी बहुत अधिक उत्तेजित हो गई थीं, भाभी जोरों से सिसकारियां भरते हुए पागलों की तरह मेरे होंठों को चूमने चाटने लगीं। वो मेरे होंठों के साथ-साथ अब मेरे गालों को भी जोरों से नोंचने की हद तक चूमते हुए काटने सी लगीं.. जैसे कि मेरे होंठों व गालों को खा ही जाएंगी। भाभी के काटने से बचने के लिए मैं भाभी के उरोजों पर से उठ गया।

मैंने अपने हाथों के सहारे अपनी छाती व मुँह को ऊपर उठा लिया। बस मेरे पेट के नीचे का ही भाग अब भाभी के ऊपर उनकी योनि में धक्के लगाने के लिए था। नीचे की तरफ से भी मैं अब अपने घुटनों पर हो गया.. जिससे कि मुझे तेजी से धक्के मारने में आसानी हो गई।

मैं किसी पहलवान की तरह दण्ड पेलने की मुद्रा में भाभी की योनि में तेजी से धक्के लगाने लगा। भाभी का मुँह अब आजाद हो गया था इसलिए वो अब जोर-जोर से सिसकारियां लेने लगीं।
भाभी के पैर अब मेरी कमर पर आ गए और हाथ मेरे कूल्हों पर पहुँच गए, वो मेरे कूल्हों को पकड़कर मुझे जोरों से दबाने लगीं।

मैं अब अपनी पूरी ताकत से धक्के लगा रहा था। मेरा पूरा लिंग भाभी की योनि के बाहर आता और फिर मेरी पूरी ताकत के साथ योनि की गहराई में उतर जाता.. जिससे भाभी जोरों से 'इईईई.. श्श्श्श्शशश.. अआआ.. ह्ह्हह.. इईईई.. श्श्श्शश.. अआआ.. ह्ह्ह..' कर रही थीं।

मेरा व भाभी के शरीर पसीने लथपथ हो गए थे और हमारी साँसें भी उखड़ने लगी थीं।

फिर अचानक से भाभी की योनि में सँकुचन सा हुआ और वो 'इईई.. श्श्श्श्शशश.. अआहहह..' करके मुझसे लिपट गईं।

भाभी के हाथ मेरी पीठ पर और दोनों पैर मेरी कमर पर कस गए। भाभी ने एक और लम्बी 'आह..' भरते हुए मुझे जोरों से भींच लिया और उनकी योनि ने मेरे लिंग को योनिरस से नहला दिया।

भाभी अपने चरम को पा चुकी थीं.. मगर मैं अब भी प्यासा ही था.. इसलिए मैं धक्के लगाता रहा। योनिरस से भीगकर मेरा लिंग और भी आसानी से योनि के अन्दर-बाहर होने लगा।
कुछ देर तो भाभी ऐसे ही मुझसे लिपटी रहीं.. मगर फिर वो मुझे रोकने लगीं। शायद उन्हें दिक्कत हो रही थी मगर मैं रूका नहीं और धक्के लगाता रहा क्योंकि मैं भी अपनी मँजिल के करीब ही था।

भाभी को भी शायद अहसास हो गया था कि इस हालत में मेरा रुकना मुमकिन नहीं होगा.. इसलिए उन्होंने अपने शरीर को ढीला छोड़ दिया और मुझे अपने मुकाम पर पहुँचाने के लिए मेरी कमर को सहलाने लगीं।

कुछ ही देर में मैं चर्मोत्कर्ष पर पहुँच गया, मैंने तीन-चार जोरदार धक्के लगाए और फिर भाभी के शरीर से लिपट गया। भाभी से लिपट कर मैं हल्के-हल्के धक्कों के साथ उनकी योनि को अपने वीर्य से सींचने लगा।

भाभी ने भी मुझे जोरों से भींचकर मेरा साथ दिया। उस रात को चार बार इस खेल का दौर चला और रात भर मैंने भाभी को जगाए रखा।

इसके बाद तो रोजाना ही मेरे व भाभी के बीच ये खेल चलने लगा। जब भैया छुट्टी पर घर आते.. तभी मैं दूसरे कमरे में सोता.. नहीं तो भाभी के कमरे में ही सोता और हमारे बीच इस खेल का दौर चलता रहता। मुझे उम्मीद है कि आपको मेरी कहानी पसंद आई होगी।

आप सभी का धन्यवाद जो आप मेरे साथ बने रहे और आनन्द उठाया।
आपके मेल का स्वागत है।
 
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