लंड का बनारसी रांड के साथ कांड : क्लासिक कहानी

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जलपरी सरीखी रंडी में भाव भी थे, लंड लेने का अंदाज भी था

वो बनारसी रांड अपनी मस्त गांड लेकर जब मटकती है तो लंड के होश चटकाती जाती है। मचलते हुए गांड की गोलाईयों के दो फांके नदी के लहरों की तरह एक दूसरे पर चढते और जगह छोड़ते इतने लय में दिखते हैं कि बस ऐसा लगता है कि इस प्रलय में चाहे कितने भी लंड हों सबको निगल जाएंगे। ऐसा नहीं कि इस लंड नाशक सुन्दरी की सिर्फ पीछे का नजारा ही लंड को हिलाने वाला है, पर सच तो ये है कि इस लावण्या की जवानी एक कभी भी न सूखने वाली सदाबहार नदी के पानी की तरह है। ऐसा पानी जो कि कहीं न कहीं, कभी न कभी और किसी न किसी रस्ते से निकल ही जाता है।

कहने का मतलब कि सुगंधा रानी की जवानी के प्रवाह को कोई रोक नहीं सकता था। उसके मस्त मस्त नैनों में भरी वासना, गोल और अक्षत सुन्दरी जैसे स्तन में भरा रस, गुलाबी और सुर्ख कोमल होटों पर लगा गुलाबजल और मोती से ढुलकने वाले आंसू जिस समय वह प्रेमी को फांसने के लिए अभिनय करती, यह पूरा व्यक्तितव एक दम जादुई था।

वजह थी कि यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर्स से लेकर कालेज के लड़के और बिजनेस मैन से लेकर पत्रकारों तक सुगंधा रानी के हुस्न के दीवाने थे। पर वो दीवानी थी सिर्फ और सिर्फ अठारह साल के लंडों की। उसे बस एक बार एक लंड का शिकार करना होता था। वो दुबारा कोई लन्ड चखती नहीं और न कोई लंड उसे दुबारा चखने का सौभाग्य पा सका।

और इतनी जानकारी होने के बाद मैंने जब कालेज में नाम लिखाया तो मंडुवाडीह मुहल्ले में उस सुन्दरी के मकान के आसपास ही कमरा लेने का फैसला किया। एक बार चोदने को मिल जाए यह रांड तो इसकी गांड मारकर मैं धन्य हो जाउं। ऐसा लंड जिसने कभी सुगंधा को चोदा उसने दुबारा किसी चूत को पाने की तमन्ना न की। ऐसा मजा था। ऐसा बताया था यूनिवर्सिटी के सीनियर छात्रों ने जिनको किसी न किसी दीवाने से पता चला था।

मेरे पढाई और कैरियर का मकसद बदल देने वाली रंडी सुगंधा एक रांड थी, वह शायद बच्चा पैदा करने में असमर्थ थी और इसीलिए उसके पति ने उसको छोड़ दिया था। जबसे उसे घर से निकाला, वो कोठे पर आकर बैठी अपना कोठा, न कोई दलाल, न बिचौलिया। अपने मन से अपने ग्राहकों को चुनना और उनसे मनचाही कीमत पर सेक्स करना। मनचाही कीमत पर मनचाहा सेक्स। हां उसके साथ सेक्स करने वालों ने सेक्स के वो रंग देखे थे जो कि बस आप सिर्फ अपने खयालों में देख सकते है।, यहां तक कि पोर्न फिल्मों में भी नहीं।

जी हां। इसी ताकझांक में अपने लंड में सांडे का तेल लगाता, शिलाजीत खाता और अपना पौरुष वर्धन करता हुआ मैं व्यायामशालों में जाकर अपना पराक्रम वर्धन करता रहा। मैं एक सौष्ठव और पराक्रमी पुरुष माना जाता था। उस दिन मैने अपना तकदीर आजमाने का सोचा और फिर बालों में चमेली का तेल लगा कर धोती गांठ कर कमर से नीचे। सीना ताने मैं सुगंधा के कोठे के नीचे खड़ा था। शाम का वक्त था, वो नुमाइश पर निकलती थी, ये देखने कि शहर में लंडों की फौज निकल रही है कि नही।

घर के दरवाजे पर आते ही मैने अदब से सलाम किया। "सलाम सुगंधा जी!" मेरी तरफ सुगंधा ने देखा और हमारी नजरें बस एक दूसरे पर टंक गयीं। उसने मेरा हाथ पकड़ा और अंदर खींच लाई। शुक्र है आज मुझे ज्यादा दूर न जाना पड़ा, आज तो बहार मेरे पास खुद चलके आई है। उसकी मस्त मस्त आंखों में वासना के डोरे तैरने लगे थे। मै अपने तकदीर पर मुग्ध था और फिर जब उसने मेरी धोती में हाथ डाला तो मेरा लंड एक लौह स्तम्भ की भांति तन गया। मेरे हाथ खुद ब खुद उसके स्तन की तरफ चले गये और उसके होटों को मेर होटों ने अपने उपर रख लिया। मधुशाला के नशे की तरह घुलते चले गये उसके अधर मेरे अधरों पर और जब हमें होश आया तो हम दोनों एक दूसरे को निर्वस्त्र कर चुके थे।

लंड को लोहा कर देती उसकी जवानी

मैने देखा, वो पूरी जलपरी थी, एक दम एकहरे बदन की जिसपे कि हल्का मांसल लेप उसे आजकल की किसी भी हीरोइन से बेहतर साबित करता है। वो रंडी नहीं थी पर प्यार करने में वो आपसे बराबरी का हक मानती थी। वो गिरकर प्यार नहीं करती थी, हां आपको अपने प्रियतम की तरह प्यार देती थी। उसने अपना होट मेरे होटों से अलग करते हुए मुझे सनसनी देते हुए नीचे की तरफ रुख किया। उसके होट मेरे गले पर थे। हल्के दांतों से स्पर्श करते हुए उसने एक चुम्बन लिया तो सिहरन सी दौड़ गयी मेरे दिमाग में। लंड तो महरौली का लौह स्तम्भ पहले ही हो चुका था, उसने अपना होट गले से नीचे मेरे सीने पर फिसलाया, और मेरे वक्षस्थल पर दो उभारों को हल्के से काटते हुए मुझे पागल कर दिया। उसकी छुअन में गजब का सिहरन और रोमांच था, कुछ कुछ तिलस्मी, ऐसा जैसे कि आपको कोई महिला नहीं, कोई परी या जादुई शख्शियत छू रही हो।

और कहर तो तब टूटा जब वो मेरे लंड पर अपने होटों को सटाने लगी। एक दम चार सौ चालीस वोल्ट का करंट दौड़ा अंदर को और इससे पहले कि मैं अपना लन्ड हटाता उसने अपने मुह में लेकर उसे निगल लिया। ऐसा लग रहा था कि उसके मुह में कोई ऐसा रस भरा है जिसमें मेरा लंड घुल जाएगा। आह्ह!! उसके निरंतर चूसने से और मेरे लंड के अन्दर की हवा और पानी जो भी था, उसे बाहर खींचकर वो किसी पम्प की तरह मेरे लंड से इतना ज्यादा आनंद दे रही थी कि लगता था कि अभी मैं झड़ जाउंगा उस्के मुह में ही।

और फिर एक मस्त मुखमैथुन का मजा देकर उसने जाने कितनी ही देर तक मेरे शिश्न से एक प्रिय खिलौने की तरह छेड़छाड़ और खिलवाड़ किया। और फिर वो वक्त भी आया जब उस हसीना ने मेरे लिए अपने जन्नत का दरवाजा खोल दिया। पर क्या यह उचित था कि उस दरवाजे को, सबसे बेहतरीन चूत को जिसे देखने के लिए मैने चार सालों तक तैयारी की थी, उसे मैं यूं हीं चोद देता। मैने अपने होटों को उसके गुलाबी कोंपलों पर रखा। भूरे बालों पर अपनी नाक को रगड़ता हुआ मैने उसकी भगनाशा को हल्के से दबाया। चूत के फांकों पर अपने होटों का दबाव बढाते हुए मैने अंदर की हवा को चूसने के अंदाज में चुस्कियां लगानी शुरु कर दीं। ऐसा लगा जैसे कि पुरानी व्हिस्की पी रहा हूं। कामोत्तेजक, कामोन्मादक चूत रस मेरे नथुनों में घुसता हुआ मुझे एक अलग प्रकार की शक्ति दे गया। एक ऐसा विश्वास, ऐसी ताकत जिसने मेरे लंड में भर दी एक नयी उर्जा, नया उत्थान और नया जोश।

मैने अब इस कामरस को पीकर उस सुन्दरी के अंदर प्रवेश किया। आह्ह, उसकी प्रतिक्रिया, उसका लय, उसका अंदाज उसकी कामुक आहें, और प्यार का वो आखिरी विस्फोट जब हम कई मिनटों तक अचेत पड़े रहे? क्या मैं वो सब भूल सकता हूं? क्या मेरा लंड भूल सकता है वो समागम, अंदाज और प्यार। इन सब सवालों के जवाब अपने लंड की कलम से आगे आपको मेरी कहानियों में मिलते रहेंगे। आपकी प्रतिक्रिया अवश्य दें और आपके लंड को अगर किसी रांड की चूत मारने का मौका मिला तो अवश्य बताएं।
 
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