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Antarvasna, hindi sex kahani: मेरी जॉब को लगे हुए एक वर्ष से ऊपर हो चुका है और मैं अभी तक घर नहीं गया था मैं सोचने लगा कि कुछ दिनों के लिए मैं घर हो आता हूं। इसी बीच मैं कुछ दिनों के लिए अपने माता पिता से मिलने के बारे में सोचने लगा उनके पास भी मेरे पास आने का समय नहीं था क्योकि मेरे माता-पिता दोनों ही नौकरी करते हैं और उन लोगों के पास बहुत कम समय होता है। मैं बचपन से ही हमेशा अकेला रहा हूं कॉलेज के दौरान ही मेरी कैंपस प्लेसमेंट में सिलेक्शन हो जाने के बाद मैं जॉब करने के लिए चेन्नई आ गया। जब मैं चेन्नई आया तो चेन्नई में ही मैंने जैसे अपनी दुनिया बसा ली मेरे जितने भी दोस्त हैं वह सब मेरे परिवार की तरह ही हैं। मेरे सुख-दुख में उन्होंने हमेशा साथ दिया लेकिन मेरे माता पिता दोनों ही अपनी नौकरी के चलते मुझे कभी भी समय नहीं दे पाए इसलिए मैं उनसे दूर होता चला गया। उन्होंने कभी भी मेरे ऊपर इतना ध्यान नहीं दिया उन दोनों के बीच के झगड़ों से भी मैं हमेशा परेशान रहता था। मैं जब भी अपने कमरे में होता तो उस वक्त मुझे ऐसा लगता कि जैसे मेरे माता पिता कभी मेरी जिम्मेदारी को समझ ही नहीं पाए और उन्होंने मुझे वह प्यार कभी दिया ही नहीं जिसका मैं हकदार था।

मुझे कभी मेरे माता-पिता की तरफ से ना तो प्यार मिला और ना ही उन दोनों ने मेरे लिए कभी समय निकाला लेकिन काफी समय हो गया तो सोचा कुछ समय के लिए अपने घर हैदराबाद हो आता हूं। कुछ समय के लिए मैंने अपने ऑफिस से छुट्टी ले ली और मैं कुछ दिनों के लिए घर चला गया मैं जब घर गया तो उस वक्त घर में ताला लगा हुआ था मैंने अपना बैग अपने कंधे से उतार कर नीचे जमीन पर रखा और अपने घर का ताला खोला। जब मैंने अपने घर का ताला खोला तो मैं अंदर गया अंदर जाते ही मुझे मेरे बचपन के दिन याद आने लगी। मैं सोफे पर बैठा और यही सोचता रहा कि क्या कभी मुझे जीवन में किसी का साथ मिलेगा क्योंकि मैं हमेशा से ही अपने आप को बहुत अकेला महसूस करता आया हूं लेकिन जब से मैं चेन्नई गया हूं चेन्नई में मेरे दोस्तों ने मुझे बहुत संभाला है और मैं उन्हे ही अपना परिवार मानता हूं। उस दिन शाम के वक्त जब मेरे माता-पिता अपने ऑफिस से लौटे तो उन्होंने मुझसे पूछा कि बेटा तुम कब आए मैंने उन्हें कहा कि मैं तो सुबह ही आ गया था।

उनके लिए जैसे कोई खुशी की बात थी ही नहीं लेकिन फिर भी कुछ दिन मैं उनके साथ रहना चाहता था मुझे लगा था कि शायद वह लोग मुझे अब तो समय देंगे लेकिन मैं अपनी जगह बिल्कुल गलत था मुझे उन्होंने बिल्कुल भी समय नहीं दिया। मेरे माता-पिता हर रोज की तरह अपने ऑफिस चले जाया करते थे मैं अपने घर पर करीब एक हफ्ते तक रहा एक हफ्ते में मैं काफी अकेला था मैं अपने घर पर ही रहा मैं कहीं भी बाहर नहीं जाता था। मैंने सोचा क्या मुझे चेन्नई वापस चले जाना चाहिए फिर मैं एक दिन चेन्नई वापस लौट आया जब मैं चेन्नई वापस लौटा तो मैं अपने फ्लैट में ही था तभी मेरे दोस्त विजय का फोन आया और वह मुझे कहने लगा कि रोशन तुम कहां पर हो। मैंने उसे कहा मैं तो अपने फ्लैट में हूं वह मुझे कहने लगा कि तुम तो मुझे कह रहे थे कि मैं कुछ दिनों के लिए घर जा रहा हूं मैंने विजय को कहा कि मैं कुछ दिनों के लिए घर गया था और आज ही मैं लौटा हूं। विजय मुझे कहने लगा कि ठीक है मैं तुम्हारे पास आता हूं विजया मेरे पास आया, विजय हमारी सोसाइटी में ही रहता है और विजय हमेशा ही मुझसे मिल लिया करता था। जब विजय मेरे पास मिलने के लिए आया तो वह मुझे कहने लगा आज तुम काफी उदास दिखाई दे रहे हो मैंने उससे कहा नहीं ऐसी तो कोई भी बात नहीं है लेकिन विजय ने मुझसे कहा देखो मुझसे तुम कुछ भी मत छुपाओ मुझे यह बात पता है कि तुम काफी उदास हो। मैंने विजय को कहा कि मैं बहुत ज्यादा उदास हूं क्योंकि मैं जब घर गया तो मुझे लगा कि मेरे माता-पिता से मुझे बहुत प्यार व सम्मान मिल पाएगा लेकिन मेरे माता-पिता के पास जैसे समय ही नहीं था और कुछ दिनों बाद ही मैं वापस लौट आया। विजय मुझे कहने लगा तुम यह बात छोड़ो और शाम को तुम हमारे घर पर आ रहे हो मैंने विजय से कहा क्या शाम को आज तुम्हारे घर पर आना जरूरी है। वह कहने लगा कि हां तुम्हें शाम को मेरे घर पर आना है लेकिन विजय ने मुझे कुछ भी नहीं बताया था कि वह मुझे घर पर क्यों बुला रहा है मैंने भी सोचा कि शाम के वक्त मैं विजय के घर पर चला जाता हूं क्योंकि मेरे जीवन में विजय बहुत महत्व था। मैं शाम के वक्त विजय के घर पर चला गया और जब मैं शाम के वक्त विजय के घर पर गया तो मैंने देखा विजय के घर पर कुछ और लोग भी आए हुए हैं।

जब मेरी नजर विजय पर पड़ी तो मैंने विजय से पूछा विजय तुमने मुझे आज बताया नहीं कि आज तुमने मुझे यहां क्यों बुलाया है। विजय ने मुझे बताया कि आज विजय के मम्मी पापा की शादी को 30 वर्ष पूरे हो चुके हैं और विजय ने घर पर एक छोटी सी पार्टी रखी थी और उसमें विजय के कुछ जानने वाले आए हुए थे। मैं जब विजय के माता-पिता को देख रहा था तो मैं सोचने लगा कि जैसे मेरे माता-पिता ने तो कभी मुझे वह खुशी दी ही नहीं है। विजय के मम्मी पापा से मुझे हमेशा बहुत ही प्यार और सम्मान मिला उन लोगों ने हमेशा से ही मुझे अपने बेटे की तरह से माना है। उस दिन मैं और विजय साथ में बैठे हुए थे तो मैंने विजय से कहा विजय तुम कितने खुश नसीब हो जो तुम्हें इतनी खुशियां मिली तुम्हारा परिवार कितना अच्छा है। विजय मुझे कहने लगा देखो रोशन मेरे मम्मी पापा भी तुम्हें अपने बेटे की तरह ही मानते हैं और तुम तो जानते ही हो कि वह लोग तुम्हारे हमेशा कितनी बात किया करते हैं। मैंने विजय को कहा हां विजय तुम यह तो ठीक कह रहे हो।

हम दोनों साथ में बैठ कर बात कर ही रहे थे कि तभी विजय की मां आई और वह कहने लगी कि तुम दोनों खाना खा लो और फिर हम दोनों खाना खाने लगे। खाना खाने के करीब एक घंटे बाद मैं भी अपने फ्लैट में वापस लौट आया था। कुछ समय बाद मेरे सामने वाले फ्लैट में एक परिवार रहने आया। जब पहली बार मैंने एक लड़की को देखा तो मैं उसके पीछे पागल हो गया और मैं महिमा को देखकर जैसे उसमें अपनी खुशियों को ढूंढने लगा था। मुझे यह बात नहीं मालूम थी कि जब महिमा और मेरे बीच पहली बार बात होगी तो उसके बाद हम दोनों की बातें इतनी आगे बढ़ जाएंगे कि हम दोनों एक दूसरे से मिले बिना रहे ही नहीं पाएंगे। महिमा को मैंने अपने बारे में सब कुछ बता दिया था उसे अब मेरे बारे में सब कुछ मालूम था इस वजह से हम दोनों की नजदीकियां और भी बढ़ने लगी। मैं अपनी खुशियों को महिमा में ही देखने लगा था क्योंकि महिमा ही जैसे मेरे लिए इस दुनिया में सब कुछ थी। एक दिन महिमा मेरे फ्लैट में आई तो उस दिन मैं और महिमा साथ में बैठे हुए थे हालांकि उससे पहले भी महिमा मेरे पास कई बार आ चुकी थी उसके माता-पिता को यह बात बिल्कुल भी पसंद नहीं थी लेकिन ना जाने क्यों महिमा को मैं अपना बनाना चाहता था। मैंने जब महिमा से बात की तो महिमा ने भी इस बात के लिए सहमति जताई और हम दोनों एक दूसरे की बाहों में थे। हम दोनों जब एक दूसरे की बाहों मे थे तो मुझे बहुत ही अच्छा लग रहा था मैंने महिमा के नरम और पतले होठों को काफी देर तक अपने होंठो में लेकर चूसा। महिमा इतनी ज्यादा उत्तेजित हो चुकी थी कि महिमा मुझे कहने लगी मैं बिल्कुल नहीं रह पा रही हूं मैंने भी महिमा के बदन से कपड़े उतारे और उसकी पैंटी और ब्रा को उतारकर जब महिमा का गोरा बदन मेरे सामने था तो मैं सिर्फ उसके बदन को देखता रहा, उसे मैंने अपनी बाहों में ले लिया। मैंने अब उसके स्तनों को अपने मुंह में लेकर चूसना शुरू किया तो उसके निप्पल खड़े होने लगे थे और वह मुझे कहने लगी मुझे बहुत ही ज्यादा अच्छा लग रहा है।

महिमा की चूत को जब मैंने चाटना शुरू किया तो महिमा की चूत से निकलता हुआ पानी इतना बढने लगा कि वह अपने आपको बिल्कुल रोक ना सकी और अपने दोनों पैरों को खोलने लगी मेरे लिए यह एक अलग फीलिंग थी। मैंने उसकी चूत को बहुत देर तक चाटा मैं पहली बार किसी लड़की के साथ सेक्स करने वाला था इसलिए मैं इस बात से बहुत ज्यादा खुश हो गया था, मैंने महिमा की चूत को चाटकर पूरी तरीके से गिला बना दिया था। मैंने अब महिमा की चूत पर लंड रगडना शुरू किया तो महिमा की चूत के अंदर तक मेरा लंड जा चुका था और उसकी चूत के अंदर मेरा लंड जाते ही वह जोर से चिल्लाई और मुझे कहने लगी मेरी चूत से बहुत ज्यादा खून निकल रहा है। मैंने उसे कहा महिमा मुझे बहुत मजा आ रहा है वह अपने पैरों के बीच में मुझे जकडने की कोशिश करने लगी।

मैंने भी उसके स्तनों को चूसना शुरू किया तो उसकी गर्मी और भी अधिक बढ़ने लगी और वह पूरी तरीके से मचलने लगी थी मेरे अंदर की गर्मी भी इस कदर बढ़ चुकी थी कि मेरे अंदर से अब बहुत ही ज्यादा पसीना बाहर की तरफ आने लगा था। हम दोनों अपने बदन की गर्मी को शायद झेल नहीं पा रहे थे इसी वजह से हम दोनों के शरीर मे गरमाहट बढने लगी। मेरा लंड जब महिमा की टाइट चूत के अंदर बाहर हो रहा था तो मुझे और भी ज्यादा मजा आ रहा था। मेरा लंड जब महिमा की चूत के अंदर होता तो मैं बहुत ही ज्यादा खुश हो जाता और जिस प्रकार से महिमा की चूत के अंदर मेरा लंड हो रहा था तो मैंने कहा आज तो मजा ही आ गया। महिमा मुझे कहने लगी मजा तो मुझे भी आ गया और कुछ ही क्षणों बाद मेरा वीर्य पतन महिमा की चूत के अंदर हो चुका था हम दोनों बहुत ही ज्यादा थक चुके थे।
 
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