AntarvasnaX जवानी जानेमन

खैर जीवन वापस अपने ढर्रे पर लौट आया, माँ को झूठा आश्वासन दे कर बहला दिया और वही अपनी उदासीन जिंदगी जीने लगा, कभी कभी फरीदाबाद काम से जाना होता था, जब भी जाता तो एक आस रहती की शायद चन्द्रमा कहीं मिल जाये लेकिन मेरी क़िस्मत ऐसी कहा थी।

इस घटना के लगभग ३ महीने बीत गए थे, चन्द्रमा को एक पल के लिए भी नहीं भूल पाया था, जब भी चन्द्रमा की याद आती मेरे दिल में एक दर्द की टीस उठ जाती, अगर चन्द्रमा को दीपक की ओर से कोई धमकी मिल रही थी या किसी और कारण से दूर ही जाना था तो कम से कम एक बार मुझे बता तो देती शायद हम दोनों मिल कर कोई समाधान निकल लेते, ऐसे गायब हो जाना मेरी समझ से परे था, ज़रूरी नहीं था की मेरे पास उस की हर समस्या का समाधान हो लेकिन कम से कम जिस व्यक्ति से प्रेम हो उसको बता देने मात्र से ग़म थोड़ा हल्का हो जाता है लेकिन यहाँ तो कुछ भी नहीं था, मेरे दिमाग में ये विचार भी बार बार रहा था की शायद चन्द्रमा को मुझसे शादी नहीं करनी थी तो उसमे भी क्या समस्या थी, मैं तो उसकी हाँ और ना दोनों सुनने के लिए तैयार था, इधर मैंने सारे इंतिज़ाम कर रखे थे उस हरामी दीपक की खाल उतरवाने का बस चन्द्रमा एक इशारा भर कर देती तो शायद हम अभी एक खुशहाल जीवन जी रहे होते,

खैर दिसंबर का महीना था फरीदाबाद मेरा किसी काम से जाना हुआ, जब काम से फ्री हुआ तो दिन का लगभग ४ बज रहा था लेकिन ठंढ के दिन थे तो शाम जैसा मौसम हो रहा था, पहले तो मैंने सोचा की चन्द्रमा के मोहल्ले की ओर जाऊ लेकिन ठण्ड में बाइक पर यहाँ वहाँ घूमने की हिम्मत नहीं हो रही थी ऊपर से ठण्ड में बाइक चलाने के कारण मुझे ठण्ड लगने लगी थी, घर से चलते टाइम मैं अपने ग्लव्स भी पहनना भूल गया था, बाइक बिना ग्लोब्स के चलाने के कारण से मेरे हाथ भी ठंढे हो चले थे, कुछ देर की ड्राइविंग के बाद जब बाइक चलाना मुश्किल होने लगा तो हाईवे के पास बने एक छोटे से कॉफ़ी शॉप पर रुक गया,

ये कॉफ़ी शॉप शायद नया खुला था मैंने इससे पहले नहीं देखा था, और नए होने के कारण खाली पड़ा हुआ था, मैंने काउंटर पर जाकर अपने लिए एक कॉफी आर्डर की, आर्डर दे कर मैं एक खाली टेबल पर बैठ गया और अपना फ़ोन चलाते हुए कॉफ़ी का इन्तिज़ार करने लगा, कोई १० मिनट के बाद एक लड़की मेरा आर्डर लेकर आयी और टेबल पर रख कर चली गए गयी, मेरा धयान मोबाइल पर था इसलिए मैं उस लड़की की केवल एक झलक ही देख पाया, ये वो लड़की नहीं थी जिसने मेरा आर्डर लिया था, ये लड़की शायद किचन में काम करती थी या वेटर्स थी, सर्दी थी तो लड़की ने भी जैकेट और कैप पहना हुआ था इस कारण अनुमान लगाना मुश्किल था की इस लड़की को कहा देखा था, मैंने उस लड़की का विचार अपने दिमाग से झटका और वापस अपने मोबाइल में खो गया, मैंने मोबाइल चलते हुए अपनी कॉफ़ी ख़तम की और कॉफ़ी शॉप से बहार निकल आया, अंदर के गरम माहौल से बहार आने का मन नहीं हो रहा था लेकिन वहा बैठ कर खाली टाइम काटने से अच्छा था की मैं जल्दी से वापस अपने ऑफिस के लिए निकल जाऊ।

बहार तेज़ ठंडी हवा चल रही थी, ठंडी हवा का झोका चेहरे को लगा तो एक झुरझुरी सी पुरे शरीर में दौड़ गयी और फिर पता नहीं कैसे उसी घडी दिमाग के किसी कोने में घंटी बजी और मैं वापस दौड़ता हुआ शॉप में घुस गया, मैंने काउंटर पर जा कर उस लड़की को बुलाने के लिए कहा जिसने मुझे कॉफ़ी सर्वे की थी, काउंटर पर बैठी लड़की थोड़ा कंफ्यूज हुई लेकिन अंदर जाकर वो उस लड़की को बुला लायी, आमने आमने एक दूसरे को खड़ा देख कर हम दोनों ने एक दूसरे को पहचान लिया, मेरे सामने सांवली सलोनी मुस्कान अपने कमसिन होंटो पर प्यारी सी मुस्कान बिखेरती खड़ी थी। मुस्कान को सामने देख कर मुझे अपनी इन तीन महीनो की भागदौड़ सफल होती नज़र आयी, मुस्कान चन्द्रमा की सहेली और पड़ोसन दोनों थी, इसलिए चन्द्रमा का पक्का पता इस से मिलना कोई मुश्किल बात नहीं थी।

मैं : हेलो मुस्कान !
मुस्कान : हेलो समीर जी
मैं : ओह्ह तुमने पहचान लिया ?
मुस्कान : आपको कैसे भूल सकती हूँ, आप भी याद है और वो मक्डोनल्ड का बर्गर भी,
मैं : वाओ, गुड मेमोरी, मुस्कान यार अगर तुम फ्री हो तो क्या हम दोनों कुछ मिनट बात कर सकते है,
मुस्कान : अरे क्यों नहीं, इतना फॉर्मल होने की क्या ज़रूरत है, आख़िर हमारी जान पहचान बहुत पुरानी है

इतना बोल कर मुस्कान ने काउंटर पर बैठी लड़की की ओर देखा, उसने सर हिला कर हाँ कर दिया, शायद काउंटर पर बैठी लड़की मुस्कान की सीनियर थी, मैंने उसकी सीनियर को खुश करने की खातिर जल्दी जल्दी 2-४ चीज़ो का आर्डर किया और मुस्कान को लेकर एक खाली टेबल पर जाकर बैठ गया, पहले तो हम दोनों बैठकर इधर उधर की बात करने लगे फिर मैं अपने मैन पॉइंट पर आगया,

मैं : अच्छा मुस्कान ये बताओ तुम्हारी फ्रैंड के क्या हाल है आजकल ?
मुस्कान : कौन चन्द्रमा ?
मैं : हाँ और उसके अलावा और कौन सी फ्रेंड को जनता हूँ।
मुस्कान : क्यों आपको नहीं पता, वो तो आपकी पक्की दोस्त है ?
मैं : हाँ दोस्त तो है लेकिन मेरी उस दोस्त का कुछ दिनों से कुछ पता नहीं है अगर पता होता तो तुमसे क्यों पूछता ?
मुस्कान : अरे क्यों मज़ाक कर रहे हो, आपको सब पता है, अपने दिल की हर बात वो आपको ही बताती थी, जबसे आपसे उसकी जान पहचान ज़ायदा हुई उसने तो मुझसे बातें करना बिलकुल बंद ही कर दिया था,
मैं : मुस्कान, आई ऍम सीरियस यार, मुझे सचमे कुछ नहीं पता, कुछ महीने पहले मुझे उस से कुछ इम्पोर्टेन्ट बात करनी थी मैंने उसका फ़ोन मिलाया तो उसका फ़ोन स्विच ऑफ था, और फिर मुझे नहीं पता की कहा गायब हो गयी।
मुस्कान : ओह्ह कब की बात है ये ?
मैं : लगभग तीन महीने पहले की ,
मुस्कान : समीर जी आपको जितना मैं जानती हूँ उसके हिसाब से तो आप बहुत अच्छे इंसान है लेकिन मुझे नहीं पता की चंदू ने क्यों आपसे बात करना बंद कर दिया, ज़रूर कोई बात होगी जो चंदू आपको नहीं बताना चाहती है इसलिए मैं भी उसके बारे में कुछ नहीं बताउंगी उसके अलग आप जो पूछोगे मैं आपको बता सकती हूँ,
मुस्कान की बात सुन कर मुझे बहुत निराशा हुई लेकिन मैंने हार नहीं मानी, मैंने मुस्कान की बहुत मिन्नतें की लेकिन उसने मुझे एक बात भी नहीं बताई सिवाए इसके की चन्द्रमा ठीक है, जब मेरे बहुत मनाने पर भी मुस्कान नहीं मानी तब मुझे एक आईडिया आया और मैंने मुस्कान से कहा

मैं : ओके ठीक है मत बताओ लेकिन क्या तुम मेरा एक काम कर सकती हो ?
मुस्कान : हाँ बोलिये
मैं : तुम चन्द्रमा को कॉल लगाओ अपने फ़ोन से, मुझे नंबर भी मत दो बस फ़ोन लगाओ और बात करो,
मुस्कान : और अगर अपने फ़ोन छीन लिया तो ?
मैं : तुमने अभी कहा ना की मैं एक अच्छा इंसान हूँ तो मुझे अपनी अच्छाई साबित करने दो, मैं तुमसे फ़ोन नहीं छीनूँगा, बल्कि मैं तुम्हारे फ़ोन को हाथ भी नहीं लगाऊंगा बिना तुम्हारी पेर्मिशन के, इतस आ प्रॉमिस, अगर चन्द्रमा मुझसे बात करना चाहेगी तो ही मेरी बात कराना नहीं तो फ़ोन कट कर देना, मैं बिना एक शब्द बोले यहाँ से चला जाऊंगा।

मुस्कान मेरी बात की गहराई देख कर थोड़ा सीरियस हो गयी और जेब से फ़ोन निकल कर उसने चन्द्रमा को कॉल कर दिया।
कुछ देर घंटी बजने के बाद फ़ोन उठा और चन्द्रमा की मधुर आवाज़ मेरे कानो में पड़ी,

चन्द्रमा : हाँ बोल मुस्कान !
मुस्कान : हाँ चंदू क्या हाल है तेरे ?
चन्द्रमा : सब ठीक है तू बता इस टाइम कैसे कॉल किया ?
मुस्कान : अरे सुन यार एक बात थी
चन्द्रमा : हाँ बोल क्या है ?
मुस्कान : अरे पहले तू बता अकेली है या और कोई है तेरे साथ ?
चन्द्रमा : अकेली हूँ, बता ना क्या बात है क्यों इतने ड्रामे कर रही है ?
मुस्कान : अरे यार, पता है तुझे अभी कौन मिला मुझे ?
चन्द्रमा : हाँ कौन ?
मुस्कान : समीर जी मिले मुझे अपनी कॉफ़ी शॉप में,
चन्द्रमा : क्या? तूने बुलाया था क्या उनको ?
मुस्कान : अरे मैं क्यों बुलाऊंगी उनको, वो तो खुद यहाँ कॉफ़ी पीने आये थे तो उन्होंने पहचान लिया फिर जब मैंने भी उनको अपने सामने देखा तो पहचान गयी आखिर उन्होंने हम दोनों को इतनी मस्त पार्टी दी थी मक्डोनल्ड में
चन्द्रमा : तूने कुछ बताया क्या मेरे बारे में, सुन उनको कुछ भी मत बताना, बस जो मन आये बोल दे, कह दे की मर गयी चन्द्रमा।

अब मुझसे बर्दाश्त करना मुश्किल था, आखिर मैंने ऐसा क्या पाप किया था जो ये मुझसे बच रही है, मैंने अपना मुँह स्पीकर की ओर ले जा कर कहा

मैं : नहीं इसने कुछ नहीं बताया, लेकिन मैं इसके सामने बैठा हूँ और मैंने ज़बरदस्ती इस से कॉल करवाई है,
चन्द्रमा : समीर .......
मैं : चन्द्रमा, मुझे नहीं पता तुमको मुझसे क्या समस्या है एक तुम बिना कुछ बोले तो गायब हो गयी और अब जब मैंने तुम्हे ढूंढ रहा हूँ तो तुम मुस्कान से ऐसा बकवास झूट बुलवा रही हो
चंन्द्रमा : समीर मैं.........
मैं : शटअप ! बहुत बकवास सुन ली, कल दोपहर 3 बजे सम्राट रेस्टुरेंट में इन्तिज़ार करूँगा, तुम्हे जो कहना है वही कहना उसके बाद मेरा वादा है की मैं तुम्हे कभी डिस्टर्ब नहीं करूँगा, बस कल तुम अपनी ज़िन्दगी के बेशकीमती पलो में से कुछ मिनट निकल देना मेरे लिए फिर उसके बाद मैं तुम्हे ढूंढना तो क्या फरीदाबाद में कदम रखना भी छोड़ दूंगा। ये बात मैंने थोड़ा गुस्से से कही थी।

चन्द्रमा : ठीक है समीर जैसी आपकी इच्छा।

इतना बोल कर उसने फ़ोन कट कर दिया, मुस्कान बेचारी मेरी तरफ कंफ्यूज नज़रो से देख रही थी, मैंने उसको समझाया की वो चिंता ना करे ये मेरे और चन्द्रमा के बीच की बात है, मैं उसको भरोसा दिलाया की वो बिलकुल भी परेशान ना मैं उसको या चन्द्रमा को मेरे कारण किसी कीमत पर आंच नहीं आने दूंगा,

मुस्कान की नज़रो में मैं और चन्द्रमा केवल दोस्त थे लेकिन हमारी बात करने के तरीके से उसे भी अंदाज़ा हो गया था की ज़रूर मेरे और चन्द्रमा के बीच में दोस्ती से जयादा है, मैंने मुस्कान को कुछ नहीं बताया, और बात वापस घुमा कर उसकी लाइफ के बारे में ले आया, हमने बाते करते हुए अपना खाना ख़तम किया और फिर मैं मुस्कान का नंबर लेकर घर आगया, मैंने मुस्कान का नंबर केवल इसलिए लिया था की कल अगर कही चन्द्रमा फिर से गायब हो गयी तो मैं मुस्कान के द्वारा वापिस चन्द्रमा से संपर्क कर सकता था, अपना भरोसा जताने के लिए मैंने मुस्कान को अपना विजिटिंग कार्ड दे दिया जिसमे मेरे ऑफिस की डिटेल्स और बाकी के कोन्टक्ट नंबर्स थे।

अगली सुबह मैं सब काम छोड़ छाड़ कर फरीदाबाद जा पंहुचा, मैंने इस रेस्टुरेंट के इस लिए चुना था क्यूंकि ये रेस्टुरेंट एक रिहायशी होटल की बिल्डिंग में था, इसमें अधिकतर इसी होटल में रहने वाले कस्टमर ही आते थे, बाहर के लोगों का आना जाना कम होता था क्यूंकि इनके दाम बाकी रेस्टोरेंट्स की तुलना में बहुत ज़्यदा थे, दिन में ये रेस्टुरेंट बिलकुल खाली होता था क्यूंकि अक्सर होटल में रुकने वाले कस्टमर्स नाश्ता करके निकल जाते थे और फिर रात को ही वापस आते थे ,

रस्ते में मुझे ट्रैफिक मिल गया जिस कारण मैं थोड़ा लेट हो गया, जल्दी जल्दी मैं होटल के अंदर पंहुचा लेकिन शुक्र था की चन्द्रमा अभी तक नहीं आयी थी, मुझे ज़्यादा इन्तिज़ार नहीं करना पड़ा, मुश्किल से ५ मिनट ही हुए होंगे की चन्द्रमा रेस्टुरेंट में दाखिल हुई, मैंने जान बुझ कर एक कोने में शांत सी टेबल पर बैठा था जहा हम आराम से बैठ कर बिना किसी डिस्टर्बेंस के बात कर सकते थे,

मैंने जब चन्द्रमा को रेस्टुरेंट में खड़े देखा तो एक पल के लिए पहचान नहीं पाया, उसने वही कॉटन सूट पहना हुआ था जो मैंने उसको जयपुर में दिलवाया था, वही सफ़ेद कुर्ती, लाल शलवार और सर पर लाल चुन्नी, ठण्ड से बचने के लिए उसने एक शाल से शरीर को ढक रखा था, लेकिन पता नहीं क्यों चन्द्रमा के चेहरे पर एक अजीब सा सूनापन था, आँखों की चमक गायब थी, उसके गुलाबी होंटो पर लाल लिपस्टिक की एक मोटी सी परत चढ़ी हुई थी, शायद वज़न भी बढ़ गया था और बड़े अजीब तरीके से चलती हुई मेरे पास आयी।

उसके इस हालत में देख कर मुझे बड़ा अफ़सोस हुआ, वो मेरे सामने कर एक कुर्सी पर बैठ गयी, शायद बहुत दूर से चल कर आयी थी उसकी साँसे फूल रही थी, मैंने पानी का गिलास उसकी ओर बढ़ाया उसने चुपचाप पानी का गिलास उठा कर होंटो से लगा लिया और खाली गिलास टेबल पर रख कर मेरी ओर सवालिया नज़रो से देखने लगी,

हम दोनों कुछ देर ऐसे ही बैठे एक दूसरे की ओर देखते फिर चन्द्रमा ने नज़रे नीची कर ली, कुछ पल इन्तिज़ार कर उसने कुछ बोलने के लिए सर उठाया

इस से पहले चन्द्रमा कुछ बोलती, वेटर किसी भूत की तरह हमारे सर पर आकर खड़ा हो गया, मैंने पर्स से एक पांच सौ का नोट खींचा और उसकी ओर बढ़ा दिया, मैंने उसे अकेला छोड़ने के लिए कहा, वेटर नोट को अपनी जेब में ठूंसता हुआ भाग गया

मैं : हाँ तो बताओ क्या बोल रही थी तुम ?
चन्द्रमा : आप बताइये आपने ने क्यों बुलया है मुझे ?
मैं : मैंने बुलाया है ? ओह्ह हाँ मैंने इसलिए बुलाया है क्यूंकि किसी ने मुझसे कुछ वादा किया था, किसी ने कहा था की घर जा कर वो मेरे सवाल का जवाब देगी, लेकिन हुआ क्या ? हुआ ये की तुम बिना कुछ बोले गायब हो गयी, ऐसे गायब हो गयी जैसे मैंने तुम्हारे साथ कोई अत्याचार किया हो, या तुम्हारे साथ कोई गलत व्यवहार किया हो ?

मैं गुस्से में लगभग चीखता हुआ चन्द्रमा के सवाल पर उलट पड़ा, तीन महीनो से जिस टेंशन से गुज़रा था उनका आज मैं अपनी चुभती बातो से चन्द्रमा के ह्रदय को छलनी करके बदला ले लेना चाहता था,

चन्द्रमा : क्या जवाब देती आपको ?
मैं : वही जवाब जो मैंने तुमसे जयपुर में देवी के मंदिर में पूछा था , वो जवाब जो था तुम्हारे मन में ? अगर तुमको मुझसे शादी नहीं करनी थी तब भी बता सकती थी, मैं कोई ज़बरदस्ती तो नहीं कर रहा था तुमसे, तुम मना कर देती तो क्या मैं तुमको उठा कर ले जाता ?
चन्द्रमा : यही तो प्रॉब्लम थी समीर, आप मुझे उठा के भी नहीं ले जा सकते थे, अगर मैं चाहती तब भी नहीं ले जा सकते थे आप मुझे, इसलिए कुछ बोलने से अच्छा मैं आपसे दूर होने को समझा और आपसे सारे सम्बन्ध तोड़ लिए।
मैं : ओह्ह हाँ सम्बन्ध तोड़ लिया तुम वो भी बिना बताये, अगर सम्बन्ध ही तोडना था तो एक कॉल कर देती बोल देती की आज के बाद अपनी शकल मत दिखाना, तुम कह के तो देखती चन्द्रमा, तुम्हारे लिए तो मैं ज़िन्दगी छोड़ सकता था, तुम्हारे लिए खुद को क़ुर्बान कर सकता था लेकिन तुम मुझे मौका तो देती, एक बार बता कर तो देखती शायद कोई रास्ता निकल आता लेकिन तुमने मुझे इतना बताने के काबिल भी नहीं समझा ,
चन्द्रमा : आपको क्या लगता है ये मेरे लिए आसान था ? जितना आपके लिए मुश्किल है उसका दस गुना मेरे लिए मुश्किल है लेकिन मेरे पास इस मुश्किल से निकलने का कोई दूसरा रास्ता नहीं था इसलिए मैंने अपनी जीवन की सच्चाई को क़बूल कर लिया, समीर जी हम जैसी लड़कियों की किस्मत में आप जैसे अच्छे इंसान नहीं होते, ऐसा केवल फिल्मो में या कहानियों में ही होता है असली ज़िन्दगी में हम जैसी लड़कियों को ईशवर के भरोसे जीवन काटना होता है
मैं : लेकिन चन्द्रमा, मैंने झूट नहीं कहा था, ना तुमको कोई धोखा दे रहा था, तुमको क्या लगा था की मैंने जो शादी की बात की थी वो केवल फ़िल्मी बात थी तुम्हारा जिस्म पाने के लिए ? अगर तुमको विश्वास नहीं है तो अभी चलो किसी भी मंदिर में बुला लो अपने घरवालों को मैं अभी इसी समय सबके सामने तुमसे शादी करने के लिए तैयार हूँ ?
चन्द्रमा : काश की ऐसा हो पता लेकिन ये संभव नहीं है ?
मैं : क्यों संभव नहीं है ? तुम बस हाँ बोलो और फिर देखो कैसे असंभव को संभव बनता हुआ
चन्द्रमा : क्यूंकि आप एक बियाहता से शादी नहीं कर सकते, मेरी शादी दीपक से हो चुकी है
मैं : व्हाट डा फ़क ? ये कैसे सम्भव है
चन्द्रमा : संभव है समीर, सब संभव है
इतना कह कर चन्द्रमा ने अपनी चुन्नी को सर पर से सरका दिया, उसकी मांग में लाल रंग का सिंदूर साफ़ नज़र आरहा था, उसकी मांग में किसी और का सिन्दूर था, मेरी आँखों के सामने अँधेरा सा छा गया, लगा किसी ने मेरे दिल के ऊपर कांच का टुकड़ा रख कर एक हथोड़े से कांच के टुकड़े कर दिए हो और उस कांच के हज़ारो टुकड़े मेरे दिल को चीरते हुए दिल अंदर तक समां गए हो जो हर सांस के साथ दर्द की लहरे पैदा कर रहे थे। बड़ी मुश्किल से मैंने खुद को संभाला और टूटी हुई आवाज़ में पूछा
मैं : ये कब हुआ ? कैसे हुआ ?

चन्द्रमा : समीर मैंने आपको उस रात सब बता दिया था यहाँ तक की अपनी माँ और दीनू की कहानी भी, आपको मेरी माँ की कहानी का अंत तो बता दिया लेकिन मैं आपको अपनी कहानी का अंत बताने की हिम्मत नहीं जुटा पायी,

मेरा विश्वास करो समीर की उस रात मैंने आपसे जो भी कहा सच कहा उसमे कुछ भी झूट नहीं था बस मैंने आपको ये नहीं बताया था की जब उस रात पापा और रमेश हमारे घर से भाग कर अपने घर चले गए लेकिन अगले दिन रमेश ने मेरे पापा को अपने घर से भगा दिया, पापा के पास और कोई ठिकाना नहीं था वो इधर उधर भटक रहे थे तब उनको कही से दीपक टकरा गया, दीपक और पापा एक दूसरे को अच्छे से जानते थे क्यंकि घर के खरीदने के टाइम दीपक ही डीलर के साथ पापा से मिलने आता था, फिर जब दीपक को पता चला की पापा किसी कारण से घर नहीं जा रहे है तो उसने अपने किसी जानकार के मकान में पापा को रहने के लिए जगह दिला दी और उनके खाने पीने की व्यवस्था कर दी।

उस दिन दिवाली वाली रात जब दीपक ने मेरे साथ ज़बरदस्ती करने की कोशिश की और नाकामयाब रहा तो उस रात गुस्से में दीपक पापा के पास जा पंहुचा, उस रात दीपक पापा के पास उनको घर से निकालने पंहुचा था लेकिन दिवाली का दिन होने के कारण पापा को ज़रूरत से ज़्यदा शराब मिल गयी थी और वो नशे में धुत पड़े हुए थे, दीपक गुस्से में तो था ही उसने पापा को नशे में देखा तो गालिया देना लगा, गुस्से में ही दीपक ने कुछ उल्टा सीधा मेरे बारे में बोला तो पापा भी मेरा नाम सुन कर नशे में ही गालिया देने लगे, पापा को मुझे गाली देते सुनकर दीपक को थोड़ा शक हुआ तो उसने धीरे धीरे करके पापा से उगलवाना चालू कर दिया, पापा को नशे में पता नहीं चला और उन्होंने शरू से लेकर अंत तक सारी बात दीपक को बता दी, दीपक ने भी चालाकी से पापा की सारी बात मोबाइल में वीडियो बना कर रिकॉर्ड कर ली,

जब दीपक को ये सब बातें पता लग गयी तब वो एक दिन उसी कंपनी में आया जहा आपने मुझे नौकरी दिलवाई थी, उसने मुझे वो वीडियो दिखाई और धमकी दी की अगर अब मैंने उसको कुछ भी करने से रोका तो वो वीडियो वायरल कर देगा, मैं जानती थी की वो ऐसा कर सकता है इसलिए डर गयी, मेरे पास उसकी बात मानने के अलावा और कोई चारा नहीं था, अगर दीपक मेरे और पापा की वीडियो वायरल कर देता तो मैं और मेरी माँ जीते जी मर जाते, समाज में जो थोड़ी बहुत इज़्ज़त थी वो भी मिटटी में मिल जाती और हम किसी को मुँह दिखने के लायक नहीं रहते, मैंने दीपक की बात मान ली लेकिन दादी की डेथ का बहाना बनाकर उस से कुछ समय रुकने के लिए कहा, दीपक भी समझ गया था की अब मैं पूरी तरह से उसके चुंगुल में हूँ इसलिए मान गया, लेकिन इसी बीच में दीपक की बहन कोमल के चक्कर का भंडाफुट गया, कोमल अपने भाई के कमरे में अपने प्रेमी के साथ सेक्स करते हुए पकड़ी गयी, उसको सेक्स करते हुए दीपक के चाचा ने पकड़ा था तो बात छुपी हुई नहीं रही, पूरा परिवार इकठ्ठा हो गया,

दीपक और उसकी माँ ने कोमल को सबके सामने कमरे बंद करके खूब मारा तो गुस्से में उसने भी अपने भाई का भांडा अपने नातेदारों के सामने फोड़ दिया और जिस जिस लड़की के साथ दीपक के सम्बन्ध थे उसने माँ और नातेदार के सामने सब की पोल खोल दी, उसमे एक नाम मेरा भी था, जब दीपक की माँ का लगा की कहीं अब बेटी के साथ उनका बेटा भी बदनाम ना हो जाये तो उन्होंने जल्दी से मेरा नाम लेकर सब को बताया की वो मुझे जानती है और मुझे वो अपनी बहु बनाना चाहती है।

इस घटना के बाद नातेदारों में दीपक के परिवार की बहुत बेइज़्ज़ती हुई, लेकिन फिर भी उन्होंने किसी तरह से समझा बुझा कर नातेदारों को मना लिया और अपने गांव जो की कानपूर के पास था वहाँ कोमल को ले जाकर उसकी शादी कर दी, लेकिन शादी में जाने से पहले दीपक ने उस वीडियो का इस्तेमाल मेरा जिस्म पाने की बजाये मुझसे शादी करने के लिए किया, आखिर दीपक को अपने परिवार की इज़्ज़त जो बचानी थी, वीडियो के दबाव में मैंने दीपक के साथ कोर्ट मेर्रिज कर ली, शादी का प्रोग्राम उसने एक महीने के बाद का रखा और फिर अपनी बहन कोमल को गांव लेकर चला गया और वहाँ जा कर उसकी शादी गांव के ही किसी युवक से कर दी,

दीपक से कोर्ट मर्रिज के अगले दिन मैंने अपनी जॉब से रिजाइन कर दिया, इसी बीच आपसे बात हुई पहले तो मेरा मन नहीं था कुछ भी करने का क्यूंकि मैं मज़बूरी में दीपक से शादी कर रही थी अपनी ख़ुशी से नहीं, लेकिन फिर मैंने मन में थाना की चाहे जो भी हो मैं दीपक को अपना जिस्म तो दे सकती हूँ लेकिन उसको अपना कुंवारा जिस्म नहीं दूंगी और फिर मैं आपके साथ जयपुर आगयी, जयपुर में आकर अपने जिस तरह से मेरा ख्याल रखा और अपनी इच्छा से ऊपर अपने मेरी ख़ुशी को वैल्यू दी उसने मेरे दिल में आपका सम्मान बहुत ऊपर कर दिया, उस रात जब अपने मुझे छुआ और मैं नींद से घबरा कर जागी तब पता नहीं मन में कौन सी इच्छा जागी और मैंने आपको सब बात बता दी, आप से शेयर करके ऐसा लगा जैसे मेरा सारा बोझ हल्का हो गया हो और फिर अपने जब अपने मुँह से सच्चाई क़बूल कर ली उस ट्रिप की पीछे की तो मेरा आप पर विश्वास और बढ़ गया और फिर मैंने भी खुल कर आपके साथ सेक्स का मज़ा लिया, मैं जानती थी की आपके साथ मेरे सब राज सुरक्षित है, आप कभी मुझे दीपक की तरह ब्लैकमेल या परेशान नहीं करेंगे इसलिए मैंने बेजिझक वो सब कुछ किया जो मेरे मन में इच्छा थी,

बस एक बात की उम्मीद नहीं की थी मैंने और वो की आप मुझे इस तरह से परपोज़ कर देंगे, उस दिन मैंने मंदिर में भगवन से यही माना था की भले चाहे कागज़ो में या मेरे गले में मंगलसूत्र डालने वाला व्यक्ति दीपक है लेकिन मैंने आपको अपना पति मान कर ही अपना कुँवारापन आपको सौंपा था, लेकिन जब आपने शादी की इच्छा मंदिर में जाता दी तो मैं मन मेबहुत खुश हुई थी लेकिन दिमाग में ये बात क्लियर थी की मैं मन से भले आपको अपना पति मान लू लेकिन असल में दीपक ही मेरा पति रहेगा,

जयपुर से वापस आने के कई दिन तक मैं हिम्मत जुटती रही आपको सच बताने का लेकिन हिम्मत नहीं हो पायी इतने में दीपक गांव से लौट आया और वो और उसकी माँ शादी की तैयारियों में लग गए, मैंने शादी में फेरो से पहले दीपक की माँ के सामने एक ही शर्त राखी थी की मेरे पापा के जाने के बाद अगर मेरी माँ अकेली हो गयी तो वो मेरे साथ रहेगी, दीपक और उसकी माँ दोनों ने सहमति लिखित में दी फिर मैंने दीपक के साथ शादी के फेरे ले लिए।

शादी के लिए गांव जाने से पहले मैंने वो मोबाइल सिम के साथ नदी में फेक दिया था मैं नहीं चाहती थी की मेरे जीवन की काली छ्या आप पड़े, मुझे डर था की कहीं दीपक को अगर भनक लग गयी की मैंने अपना कुँवारापन आपको दिया है तो वो बेकार में आपके परेशान करता, बस समीर मुझसे ये गलती हुई की मैंने आपको आखिरी बार अलविदा नहीं कहा, ,मैं आपको अलविदा कहने की हिम्मत नहीं जुटा पायी, मुझे लगा था की इतनी बड़ी दुनिया है उसीकी भीड़ में खो जाउंगी, लेकिन मुझे नहीं पता था की आप मुझे ढूंढते ढूंढते मुस्कान तक पहुंच जायेंगे और मैं मुजरिम की तरह आपके सामने खड़ी होउंगी , चन्द्रमा चुप हो गयी शायद उसकी बात ख़तम हो चुकी थी,

मैं अवाक् उसकी कहानी सुन रहा था।

मैं : चन्द्रमा अगर तुमको दीपक से ही शादी करनी थी तो मुझे प्रेम ही क्यों किया और अगर ये मजबूरी थी अगर तुम मुझे पहले बता देती तो शायद मैं तुम्हारी कोई हेल्प करता। मेरे पास बहुत से रस्ते थे चन्द्रमा तुम्हे इस जंजाल से निकालने के लिए, काश चन्द्रमा तुमने मुझे अपना कुँवारापन देने के बजाये विश्वास दिया होता तो आज तुम्हारी मांग में दीपक के नाम का नहीं मेरे नाम का सिंदूर होता।

चन्द्रमा : समीर मैं आपको क्या बताती और ये मत भूलो समीर की जयपुर जाने से पहले तक आप केवल मुझे भोगना चाहते थे, ये आपका प्यार तो जयपुर में जाएगा मेरे लिए और आपने मुझे परपोज़ किया, अगर मैंने आपको उस से पहले बताती तो आप मेरा विश्वास नहीं करते।
मैं : बस यही चूक गयी तुम चन्द्रमा, हाँ ये सच है की मैं जयपुर तुमको सेक्स करने के लिए लेकर गया था, लेकिन प्यार तो मुझे उस दिन तुमसे हो गया था जिस दिन मक्डोनल्ड्स में तुम मेरी आँखों में खो गयी थी, अगर उस दिन तुम्हारे साथ मुस्कान ना होती तो उसी दिन मैं तुमसे अपने दिल की बात कह देता।
चन्द्रमा : बस जो मेरे भाग्य में था समीर वही हुआ, अब तुम्हारा दिल दुखने के लिए मुझे माफ़ कर दो और मुझे भूल जाओ
मैं : तुम्हारे लिए शायद आसान होगा चन्द्रमा लेकिन मेरे लिए, (मैंने दृढ़ता से कहा )चन्द्रमा तुम मेरा प्यार थी, हो और रहोगी
चन्द्रमा : (घबरा गयी, उसे लगा की मैं कोई ज़बरदस्ती करूँगा ) समीर मेरा विश्वास करो मेरे गले में मंगलसूत्र किसी और के नाम का है अब हमारे बीच कुछ नहीं हो सकता (इतना कह कर उसने अपने गले से मंगलसूत्र को खींच कर बहार निकला अपनी बात साबित करने के लिए)

पता नहीं क्यों उसके गले में किसी और का मंगलसूत्र देख कर मेरे अंदर गुस्से की एक आग सी जल उठी, अचानक से इस बातचीत से मेरा मन उखड गया, आखिर मैं लड़ किस बात के लिए रहा था, जो मेरा होकर भी मेरा ना हुआ भला उस से क्या लड़ना, मैं लड़ाई उसी दिन हार गया था जिस दिन चन्द्रमा ने मेरे परपोज़ का सीधा जवाब नहीं दिया था, हारी हुई जंग लड़ना मूर्खता थी, मैं अपनी सीट से उठ गया, चन्द्रमा भी उठने से पहले अपना मांगसूत्र ठीक करने लगी अचानक मेरी नज़र उसके गली में पड़ी तुलसी माला पर पड़ी, वो मेरी तुलसी माला थी जो होटल में नहाते समय चन्द्रमा ने मेरे गले से निकाली थी,

मैं : ये तो मेरी तुलसी माला है
चन्द्रमा : हां, ये मैंने आपकी निशानी मान कर पहन ली थी,
मैं : जब मैं ही नहीं तुम्हारी ज़िन्दगी तो फिर मैं क्या और मेरी निशानी क्या ?

मैंने आगे की ओर झुका और एक झटके से तुसली माला को पकड़ कर खींच दिया, तुसली माला के दाने ज़मीन पर टूट कर बिखर गए मैं उन्ही तुसली माला को अपने कदमो के नीचे रौंदता हुआ रेस्टुरेंट से बाहर निकल आ गया,

बाहर बहुत ठण्ड हो चली थी पता नहीं क्यों आज शाम में ही घना कोहरा छाया हुआ था, मैंने बाइक स्टार्ट की, दिल में एक बहुत तेज़ दर्द भरी टीस उठी, मैंने बाइक की रफ़्तार तेज़ कर दी और कोहरे की धुंध में घुसता चला गया, शायद खुद को इस धुंध में सदा के लिए खो देना चाहता ताकि फिर कोई चन्द्रमा मुझे ढूंढ ना सके।


[color=rgb(255,]समाप्त

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समीर गुस्से से उठ कर चला गया था चन्द्रमा उसी तरह अपनी सीट पर सर झुकाये किसी पत्थर की तरह बैठी रही, पीछे की सीट से एक महिला उठी और चन्द्रमा के अपने गले से लगा लिया, चन्द्रमा की आँखों से आंसुओं की एक धारा बह निकली, उस महिला ने चन्द्रमा के आसु पोंछे और दिलासा देने लगी, फिर चन्द्रमा को छोड़ कर ज़मीन पर बैठ गयी और ज़मीन पर पड़े तुलसी दानो को एक एक करके उठाने लगी,

चन्द्रमा : रहने दो माँ इनको कोई ज़रूरत नहीं
सरिता : लेकिन बेटी, ये तुम्हारे समीर की आखिरी निशानी है
चन्द्रमा : (शाल हटा कर अपने गर्भ को सहलाती हुई) मेरे पास उस की सबसे बड़ी निशानी है माँ, आपके नसीब में दीनू का प्यार कुछ समय के लिए रहा लेकिन समीर का प्यार मेरे साथ आजीवन रहेगा।

सरिता तुलसी के बीज को ज़मीन पर ऐसे छोड़ कर उठ गयी फिर आगे बढ़ कर चन्द्रमा को संभाला और रेस्टुरेंट से निकल बाहर आगयी बाहर हवा चल पड़ी थी और कोहरा छट रहा था, तेज़ हवा ने बादलों को को उडा दिया था और साफ़ सुथरे आसमान में चौदहवी का चाँद खुल कर अपनी छठा बिखेर रहा था, दोनों माँ बेटी एक दूसरे को संभाले हुए जगमगाती रौशनी में समाती चली गयी ।


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दिन के १२ बजे है और समीर अपने कंप्यूटर पर कुछ कर रहा है, तभी उसका फ़ोन बजने लगता है
समीर : हेलो
कॉलर : हेलो सर पहचाना ?
समीर : नहीं आप कौन ?
कॉलर : मैं आपकी दोस्त मुस्कान.................
 
खैर जीवन वापस अपने ढर्रे पर लौट आया, माँ को झूठा आश्वासन दे कर बहला दिया और वही अपनी उदासीन जिंदगी जीने लगा, कभी कभी फरीदाबाद काम से जाना होता था, जब भी जाता तो एक आस रहती की शायद चन्द्रमा कहीं मिल जाये लेकिन मेरी क़िस्मत ऐसी कहा थी।

इस घटना के लगभग ३ महीने बीत गए थे, चन्द्रमा को एक पल के लिए भी नहीं भूल पाया था, जब भी चन्द्रमा की याद आती मेरे दिल में एक दर्द की टीस उठ जाती, अगर चन्द्रमा को दीपक की ओर से कोई धमकी मिल रही थी या किसी और कारण से दूर ही जाना था तो कम से कम एक बार मुझे बता तो देती शायद हम दोनों मिल कर कोई समाधान निकल लेते, ऐसे गायब हो जाना मेरी समझ से परे था, ज़रूरी नहीं था की मेरे पास उस की हर समस्या का समाधान हो लेकिन कम से कम जिस व्यक्ति से प्रेम हो उसको बता देने मात्र से ग़म थोड़ा हल्का हो जाता है लेकिन यहाँ तो कुछ भी नहीं था, मेरे दिमाग में ये विचार भी बार बार रहा था की शायद चन्द्रमा को मुझसे शादी नहीं करनी थी तो उसमे भी क्या समस्या थी, मैं तो उसकी हाँ और ना दोनों सुनने के लिए तैयार था, इधर मैंने सारे इंतिज़ाम कर रखे थे उस हरामी दीपक की खाल उतरवाने का बस चन्द्रमा एक इशारा भर कर देती तो शायद हम अभी एक खुशहाल जीवन जी रहे होते,

खैर दिसंबर का महीना था फरीदाबाद मेरा किसी काम से जाना हुआ, जब काम से फ्री हुआ तो दिन का लगभग ४ बज रहा था लेकिन ठंढ के दिन थे तो शाम जैसा मौसम हो रहा था, पहले तो मैंने सोचा की चन्द्रमा के मोहल्ले की ओर जाऊ लेकिन ठण्ड में बाइक पर यहाँ वहाँ घूमने की हिम्मत नहीं हो रही थी ऊपर से ठण्ड में बाइक चलाने के कारण मुझे ठण्ड लगने लगी थी, घर से चलते टाइम मैं अपने ग्लव्स भी पहनना भूल गया था, बाइक बिना ग्लोब्स के चलाने के कारण से मेरे हाथ भी ठंढे हो चले थे, कुछ देर की ड्राइविंग के बाद जब बाइक चलाना मुश्किल होने लगा तो हाईवे के पास बने एक छोटे से कॉफ़ी शॉप पर रुक गया,

ये कॉफ़ी शॉप शायद नया खुला था मैंने इससे पहले नहीं देखा था, और नए होने के कारण खाली पड़ा हुआ था, मैंने काउंटर पर जाकर अपने लिए एक कॉफी आर्डर की, आर्डर दे कर मैं एक खाली टेबल पर बैठ गया और अपना फ़ोन चलाते हुए कॉफ़ी का इन्तिज़ार करने लगा, कोई १० मिनट के बाद एक लड़की मेरा आर्डर लेकर आयी और टेबल पर रख कर चली गए गयी, मेरा धयान मोबाइल पर था इसलिए मैं उस लड़की की केवल एक झलक ही देख पाया, ये वो लड़की नहीं थी जिसने मेरा आर्डर लिया था, ये लड़की शायद किचन में काम करती थी या वेटर्स थी, सर्दी थी तो लड़की ने भी जैकेट और कैप पहना हुआ था इस कारण अनुमान लगाना मुश्किल था की इस लड़की को कहा देखा था, मैंने उस लड़की का विचार अपने दिमाग से झटका और वापस अपने मोबाइल में खो गया, मैंने मोबाइल चलते हुए अपनी कॉफ़ी ख़तम की और कॉफ़ी शॉप से बहार निकल आया, अंदर के गरम माहौल से बहार आने का मन नहीं हो रहा था लेकिन वहा बैठ कर खाली टाइम काटने से अच्छा था की मैं जल्दी से वापस अपने ऑफिस के लिए निकल जाऊ।

बहार तेज़ ठंडी हवा चल रही थी, ठंडी हवा का झोका चेहरे को लगा तो एक झुरझुरी सी पुरे शरीर में दौड़ गयी और फिर पता नहीं कैसे उसी घडी दिमाग के किसी कोने में घंटी बजी और मैं वापस दौड़ता हुआ शॉप में घुस गया, मैंने काउंटर पर जा कर उस लड़की को बुलाने के लिए कहा जिसने मुझे कॉफ़ी सर्वे की थी, काउंटर पर बैठी लड़की थोड़ा कंफ्यूज हुई लेकिन अंदर जाकर वो उस लड़की को बुला लायी, आमने आमने एक दूसरे को खड़ा देख कर हम दोनों ने एक दूसरे को पहचान लिया, मेरे सामने सांवली सलोनी मुस्कान अपने कमसिन होंटो पर प्यारी सी मुस्कान बिखेरती खड़ी थी। मुस्कान को सामने देख कर मुझे अपनी इन तीन महीनो की भागदौड़ सफल होती नज़र आयी, मुस्कान चन्द्रमा की सहेली और पड़ोसन दोनों थी, इसलिए चन्द्रमा का पक्का पता इस से मिलना कोई मुश्किल बात नहीं थी।

मैं : हेलो मुस्कान !
मुस्कान : हेलो समीर जी
मैं : ओह्ह तुमने पहचान लिया ?
मुस्कान : आपको कैसे भूल सकती हूँ, आप भी याद है और वो मक्डोनल्ड का बर्गर भी,
मैं : वाओ, गुड मेमोरी, मुस्कान यार अगर तुम फ्री हो तो क्या हम दोनों कुछ मिनट बात कर सकते है,
मुस्कान : अरे क्यों नहीं, इतना फॉर्मल होने की क्या ज़रूरत है, आख़िर हमारी जान पहचान बहुत पुरानी है

इतना बोल कर मुस्कान ने काउंटर पर बैठी लड़की की ओर देखा, उसने सर हिला कर हाँ कर दिया, शायद काउंटर पर बैठी लड़की मुस्कान की सीनियर थी, मैंने उसकी सीनियर को खुश करने की खातिर जल्दी जल्दी 2-४ चीज़ो का आर्डर किया और मुस्कान को लेकर एक खाली टेबल पर जाकर बैठ गया, पहले तो हम दोनों बैठकर इधर उधर की बात करने लगे फिर मैं अपने मैन पॉइंट पर आगया,

मैं : अच्छा मुस्कान ये बताओ तुम्हारी फ्रैंड के क्या हाल है आजकल ?
मुस्कान : कौन चन्द्रमा ?
मैं : हाँ और उसके अलावा और कौन सी फ्रेंड को जनता हूँ।
मुस्कान : क्यों आपको नहीं पता, वो तो आपकी पक्की दोस्त है ?
मैं : हाँ दोस्त तो है लेकिन मेरी उस दोस्त का कुछ दिनों से कुछ पता नहीं है अगर पता होता तो तुमसे क्यों पूछता ?
मुस्कान : अरे क्यों मज़ाक कर रहे हो, आपको सब पता है, अपने दिल की हर बात वो आपको ही बताती थी, जबसे आपसे उसकी जान पहचान ज़ायदा हुई उसने तो मुझसे बातें करना बिलकुल बंद ही कर दिया था,
मैं : मुस्कान, आई ऍम सीरियस यार, मुझे सचमे कुछ नहीं पता, कुछ महीने पहले मुझे उस से कुछ इम्पोर्टेन्ट बात करनी थी मैंने उसका फ़ोन मिलाया तो उसका फ़ोन स्विच ऑफ था, और फिर मुझे नहीं पता की कहा गायब हो गयी।
मुस्कान : ओह्ह कब की बात है ये ?
मैं : लगभग तीन महीने पहले की ,
मुस्कान : समीर जी आपको जितना मैं जानती हूँ उसके हिसाब से तो आप बहुत अच्छे इंसान है लेकिन मुझे नहीं पता की चंदू ने क्यों आपसे बात करना बंद कर दिया, ज़रूर कोई बात होगी जो चंदू आपको नहीं बताना चाहती है इसलिए मैं भी उसके बारे में कुछ नहीं बताउंगी उसके अलग आप जो पूछोगे मैं आपको बता सकती हूँ,
मुस्कान की बात सुन कर मुझे बहुत निराशा हुई लेकिन मैंने हार नहीं मानी, मैंने मुस्कान की बहुत मिन्नतें की लेकिन उसने मुझे एक बात भी नहीं बताई सिवाए इसके की चन्द्रमा ठीक है, जब मेरे बहुत मनाने पर भी मुस्कान नहीं मानी तब मुझे एक आईडिया आया और मैंने मुस्कान से कहा

मैं : ओके ठीक है मत बताओ लेकिन क्या तुम मेरा एक काम कर सकती हो ?
मुस्कान : हाँ बोलिये
मैं : तुम चन्द्रमा को कॉल लगाओ अपने फ़ोन से, मुझे नंबर भी मत दो बस फ़ोन लगाओ और बात करो,
मुस्कान : और अगर अपने फ़ोन छीन लिया तो ?
मैं : तुमने अभी कहा ना की मैं एक अच्छा इंसान हूँ तो मुझे अपनी अच्छाई साबित करने दो, मैं तुमसे फ़ोन नहीं छीनूँगा, बल्कि मैं तुम्हारे फ़ोन को हाथ भी नहीं लगाऊंगा बिना तुम्हारी पेर्मिशन के, इतस आ प्रॉमिस, अगर चन्द्रमा मुझसे बात करना चाहेगी तो ही मेरी बात कराना नहीं तो फ़ोन कट कर देना, मैं बिना एक शब्द बोले यहाँ से चला जाऊंगा।

मुस्कान मेरी बात की गहराई देख कर थोड़ा सीरियस हो गयी और जेब से फ़ोन निकल कर उसने चन्द्रमा को कॉल कर दिया।
कुछ देर घंटी बजने के बाद फ़ोन उठा और चन्द्रमा की मधुर आवाज़ मेरे कानो में पड़ी,

चन्द्रमा : हाँ बोल मुस्कान !
मुस्कान : हाँ चंदू क्या हाल है तेरे ?
चन्द्रमा : सब ठीक है तू बता इस टाइम कैसे कॉल किया ?
मुस्कान : अरे सुन यार एक बात थी
चन्द्रमा : हाँ बोल क्या है ?
मुस्कान : अरे पहले तू बता अकेली है या और कोई है तेरे साथ ?
चन्द्रमा : अकेली हूँ, बता ना क्या बात है क्यों इतने ड्रामे कर रही है ?
मुस्कान : अरे यार, पता है तुझे अभी कौन मिला मुझे ?
चन्द्रमा : हाँ कौन ?
मुस्कान : समीर जी मिले मुझे अपनी कॉफ़ी शॉप में,
चन्द्रमा : क्या? तूने बुलाया था क्या उनको ?
मुस्कान : अरे मैं क्यों बुलाऊंगी उनको, वो तो खुद यहाँ कॉफ़ी पीने आये थे तो उन्होंने पहचान लिया फिर जब मैंने भी उनको अपने सामने देखा तो पहचान गयी आखिर उन्होंने हम दोनों को इतनी मस्त पार्टी दी थी मक्डोनल्ड में
चन्द्रमा : तूने कुछ बताया क्या मेरे बारे में, सुन उनको कुछ भी मत बताना, बस जो मन आये बोल दे, कह दे की मर गयी चन्द्रमा।

अब मुझसे बर्दाश्त करना मुश्किल था, आखिर मैंने ऐसा क्या पाप किया था जो ये मुझसे बच रही है, मैंने अपना मुँह स्पीकर की ओर ले जा कर कहा

मैं : नहीं इसने कुछ नहीं बताया, लेकिन मैं इसके सामने बैठा हूँ और मैंने ज़बरदस्ती इस से कॉल करवाई है,
चन्द्रमा : समीर .......
मैं : चन्द्रमा, मुझे नहीं पता तुमको मुझसे क्या समस्या है एक तुम बिना कुछ बोले तो गायब हो गयी और अब जब मैंने तुम्हे ढूंढ रहा हूँ तो तुम मुस्कान से ऐसा बकवास झूट बुलवा रही हो
चंन्द्रमा : समीर मैं.........
मैं : शटअप ! बहुत बकवास सुन ली, कल दोपहर 3 बजे सम्राट रेस्टुरेंट में इन्तिज़ार करूँगा, तुम्हे जो कहना है वही कहना उसके बाद मेरा वादा है की मैं तुम्हे कभी डिस्टर्ब नहीं करूँगा, बस कल तुम अपनी ज़िन्दगी के बेशकीमती पलो में से कुछ मिनट निकल देना मेरे लिए फिर उसके बाद मैं तुम्हे ढूंढना तो क्या फरीदाबाद में कदम रखना भी छोड़ दूंगा। ये बात मैंने थोड़ा गुस्से से कही थी।

चन्द्रमा : ठीक है समीर जैसी आपकी इच्छा।

इतना बोल कर उसने फ़ोन कट कर दिया, मुस्कान बेचारी मेरी तरफ कंफ्यूज नज़रो से देख रही थी, मैंने उसको समझाया की वो चिंता ना करे ये मेरे और चन्द्रमा के बीच की बात है, मैं उसको भरोसा दिलाया की वो बिलकुल भी परेशान ना मैं उसको या चन्द्रमा को मेरे कारण किसी कीमत पर आंच नहीं आने दूंगा,

मुस्कान की नज़रो में मैं और चन्द्रमा केवल दोस्त थे लेकिन हमारी बात करने के तरीके से उसे भी अंदाज़ा हो गया था की ज़रूर मेरे और चन्द्रमा के बीच में दोस्ती से जयादा है, मैंने मुस्कान को कुछ नहीं बताया, और बात वापस घुमा कर उसकी लाइफ के बारे में ले आया, हमने बाते करते हुए अपना खाना ख़तम किया और फिर मैं मुस्कान का नंबर लेकर घर आगया, मैंने मुस्कान का नंबर केवल इसलिए लिया था की कल अगर कही चन्द्रमा फिर से गायब हो गयी तो मैं मुस्कान के द्वारा वापिस चन्द्रमा से संपर्क कर सकता था, अपना भरोसा जताने के लिए मैंने मुस्कान को अपना विजिटिंग कार्ड दे दिया जिसमे मेरे ऑफिस की डिटेल्स और बाकी के कोन्टक्ट नंबर्स थे।

अगली सुबह मैं सब काम छोड़ छाड़ कर फरीदाबाद जा पंहुचा, मैंने इस रेस्टुरेंट के इस लिए चुना था क्यूंकि ये रेस्टुरेंट एक रिहायशी होटल की बिल्डिंग में था, इसमें अधिकतर इसी होटल में रहने वाले कस्टमर ही आते थे, बाहर के लोगों का आना जाना कम होता था क्यूंकि इनके दाम बाकी रेस्टोरेंट्स की तुलना में बहुत ज़्यदा थे, दिन में ये रेस्टुरेंट बिलकुल खाली होता था क्यूंकि अक्सर होटल में रुकने वाले कस्टमर्स नाश्ता करके निकल जाते थे और फिर रात को ही वापस आते थे ,

रस्ते में मुझे ट्रैफिक मिल गया जिस कारण मैं थोड़ा लेट हो गया, जल्दी जल्दी मैं होटल के अंदर पंहुचा लेकिन शुक्र था की चन्द्रमा अभी तक नहीं आयी थी, मुझे ज़्यादा इन्तिज़ार नहीं करना पड़ा, मुश्किल से ५ मिनट ही हुए होंगे की चन्द्रमा रेस्टुरेंट में दाखिल हुई, मैंने जान बुझ कर एक कोने में शांत सी टेबल पर बैठा था जहा हम आराम से बैठ कर बिना किसी डिस्टर्बेंस के बात कर सकते थे,

मैंने जब चन्द्रमा को रेस्टुरेंट में खड़े देखा तो एक पल के लिए पहचान नहीं पाया, उसने वही कॉटन सूट पहना हुआ था जो मैंने उसको जयपुर में दिलवाया था, वही सफ़ेद कुर्ती, लाल शलवार और सर पर लाल चुन्नी, ठण्ड से बचने के लिए उसने एक शाल से शरीर को ढक रखा था, लेकिन पता नहीं क्यों चन्द्रमा के चेहरे पर एक अजीब सा सूनापन था, आँखों की चमक गायब थी, उसके गुलाबी होंटो पर लाल लिपस्टिक की एक मोटी सी परत चढ़ी हुई थी, शायद वज़न भी बढ़ गया था और बड़े अजीब तरीके से चलती हुई मेरे पास आयी।

उसके इस हालत में देख कर मुझे बड़ा अफ़सोस हुआ, वो मेरे सामने कर एक कुर्सी पर बैठ गयी, शायद बहुत दूर से चल कर आयी थी उसकी साँसे फूल रही थी, मैंने पानी का गिलास उसकी ओर बढ़ाया उसने चुपचाप पानी का गिलास उठा कर होंटो से लगा लिया और खाली गिलास टेबल पर रख कर मेरी ओर सवालिया नज़रो से देखने लगी,

हम दोनों कुछ देर ऐसे ही बैठे एक दूसरे की ओर देखते फिर चन्द्रमा ने नज़रे नीची कर ली, कुछ पल इन्तिज़ार कर उसने कुछ बोलने के लिए सर उठाया

इस से पहले चन्द्रमा कुछ बोलती, वेटर किसी भूत की तरह हमारे सर पर आकर खड़ा हो गया, मैंने पर्स से एक पांच सौ का नोट खींचा और उसकी ओर बढ़ा दिया, मैंने उसे अकेला छोड़ने के लिए कहा, वेटर नोट को अपनी जेब में ठूंसता हुआ भाग गया

मैं : हाँ तो बताओ क्या बोल रही थी तुम ?
चन्द्रमा : आप बताइये आपने ने क्यों बुलया है मुझे ?
मैं : मैंने बुलाया है ? ओह्ह हाँ मैंने इसलिए बुलाया है क्यूंकि किसी ने मुझसे कुछ वादा किया था, किसी ने कहा था की घर जा कर वो मेरे सवाल का जवाब देगी, लेकिन हुआ क्या ? हुआ ये की तुम बिना कुछ बोले गायब हो गयी, ऐसे गायब हो गयी जैसे मैंने तुम्हारे साथ कोई अत्याचार किया हो, या तुम्हारे साथ कोई गलत व्यवहार किया हो ?

मैं गुस्से में लगभग चीखता हुआ चन्द्रमा के सवाल पर उलट पड़ा, तीन महीनो से जिस टेंशन से गुज़रा था उनका आज मैं अपनी चुभती बातो से चन्द्रमा के ह्रदय को छलनी करके बदला ले लेना चाहता था,

चन्द्रमा : क्या जवाब देती आपको ?
मैं : वही जवाब जो मैंने तुमसे जयपुर में देवी के मंदिर में पूछा था , वो जवाब जो था तुम्हारे मन में ? अगर तुमको मुझसे शादी नहीं करनी थी तब भी बता सकती थी, मैं कोई ज़बरदस्ती तो नहीं कर रहा था तुमसे, तुम मना कर देती तो क्या मैं तुमको उठा कर ले जाता ?
चन्द्रमा : यही तो प्रॉब्लम थी समीर, आप मुझे उठा के भी नहीं ले जा सकते थे, अगर मैं चाहती तब भी नहीं ले जा सकते थे आप मुझे, इसलिए कुछ बोलने से अच्छा मैं आपसे दूर होने को समझा और आपसे सारे सम्बन्ध तोड़ लिए।
मैं : ओह्ह हाँ सम्बन्ध तोड़ लिया तुम वो भी बिना बताये, अगर सम्बन्ध ही तोडना था तो एक कॉल कर देती बोल देती की आज के बाद अपनी शकल मत दिखाना, तुम कह के तो देखती चन्द्रमा, तुम्हारे लिए तो मैं ज़िन्दगी छोड़ सकता था, तुम्हारे लिए खुद को क़ुर्बान कर सकता था लेकिन तुम मुझे मौका तो देती, एक बार बता कर तो देखती शायद कोई रास्ता निकल आता लेकिन तुमने मुझे इतना बताने के काबिल भी नहीं समझा ,
चन्द्रमा : आपको क्या लगता है ये मेरे लिए आसान था ? जितना आपके लिए मुश्किल है उसका दस गुना मेरे लिए मुश्किल है लेकिन मेरे पास इस मुश्किल से निकलने का कोई दूसरा रास्ता नहीं था इसलिए मैंने अपनी जीवन की सच्चाई को क़बूल कर लिया, समीर जी हम जैसी लड़कियों की किस्मत में आप जैसे अच्छे इंसान नहीं होते, ऐसा केवल फिल्मो में या कहानियों में ही होता है असली ज़िन्दगी में हम जैसी लड़कियों को ईशवर के भरोसे जीवन काटना होता है
मैं : लेकिन चन्द्रमा, मैंने झूट नहीं कहा था, ना तुमको कोई धोखा दे रहा था, तुमको क्या लगा था की मैंने जो शादी की बात की थी वो केवल फ़िल्मी बात थी तुम्हारा जिस्म पाने के लिए ? अगर तुमको विश्वास नहीं है तो अभी चलो किसी भी मंदिर में बुला लो अपने घरवालों को मैं अभी इसी समय सबके सामने तुमसे शादी करने के लिए तैयार हूँ ?
चन्द्रमा : काश की ऐसा हो पता लेकिन ये संभव नहीं है ?
मैं : क्यों संभव नहीं है ? तुम बस हाँ बोलो और फिर देखो कैसे असंभव को संभव बनता हुआ
चन्द्रमा : क्यूंकि आप एक बियाहता से शादी नहीं कर सकते, मेरी शादी दीपक से हो चुकी है
मैं : व्हाट डा फ़क ? ये कैसे सम्भव है
चन्द्रमा : संभव है समीर, सब संभव है
इतना कह कर चन्द्रमा ने अपनी चुन्नी को सर पर से सरका दिया, उसकी मांग में लाल रंग का सिंदूर साफ़ नज़र आरहा था, उसकी मांग में किसी और का सिन्दूर था, मेरी आँखों के सामने अँधेरा सा छा गया, लगा किसी ने मेरे दिल के ऊपर कांच का टुकड़ा रख कर एक हथोड़े से कांच के टुकड़े कर दिए हो और उस कांच के हज़ारो टुकड़े मेरे दिल को चीरते हुए दिल अंदर तक समां गए हो जो हर सांस के साथ दर्द की लहरे पैदा कर रहे थे। बड़ी मुश्किल से मैंने खुद को संभाला और टूटी हुई आवाज़ में पूछा
मैं : ये कब हुआ ? कैसे हुआ ?

चन्द्रमा : समीर मैंने आपको उस रात सब बता दिया था यहाँ तक की अपनी माँ और दीनू की कहानी भी, आपको मेरी माँ की कहानी का अंत तो बता दिया लेकिन मैं आपको अपनी कहानी का अंत बताने की हिम्मत नहीं जुटा पायी,

मेरा विश्वास करो समीर की उस रात मैंने आपसे जो भी कहा सच कहा उसमे कुछ भी झूट नहीं था बस मैंने आपको ये नहीं बताया था की जब उस रात पापा और रमेश हमारे घर से भाग कर अपने घर चले गए लेकिन अगले दिन रमेश ने मेरे पापा को अपने घर से भगा दिया, पापा के पास और कोई ठिकाना नहीं था वो इधर उधर भटक रहे थे तब उनको कही से दीपक टकरा गया, दीपक और पापा एक दूसरे को अच्छे से जानते थे क्यंकि घर के खरीदने के टाइम दीपक ही डीलर के साथ पापा से मिलने आता था, फिर जब दीपक को पता चला की पापा किसी कारण से घर नहीं जा रहे है तो उसने अपने किसी जानकार के मकान में पापा को रहने के लिए जगह दिला दी और उनके खाने पीने की व्यवस्था कर दी।

उस दिन दिवाली वाली रात जब दीपक ने मेरे साथ ज़बरदस्ती करने की कोशिश की और नाकामयाब रहा तो उस रात गुस्से में दीपक पापा के पास जा पंहुचा, उस रात दीपक पापा के पास उनको घर से निकालने पंहुचा था लेकिन दिवाली का दिन होने के कारण पापा को ज़रूरत से ज़्यदा शराब मिल गयी थी और वो नशे में धुत पड़े हुए थे, दीपक गुस्से में तो था ही उसने पापा को नशे में देखा तो गालिया देना लगा, गुस्से में ही दीपक ने कुछ उल्टा सीधा मेरे बारे में बोला तो पापा भी मेरा नाम सुन कर नशे में ही गालिया देने लगे, पापा को मुझे गाली देते सुनकर दीपक को थोड़ा शक हुआ तो उसने धीरे धीरे करके पापा से उगलवाना चालू कर दिया, पापा को नशे में पता नहीं चला और उन्होंने शरू से लेकर अंत तक सारी बात दीपक को बता दी, दीपक ने भी चालाकी से पापा की सारी बात मोबाइल में वीडियो बना कर रिकॉर्ड कर ली,

जब दीपक को ये सब बातें पता लग गयी तब वो एक दिन उसी कंपनी में आया जहा आपने मुझे नौकरी दिलवाई थी, उसने मुझे वो वीडियो दिखाई और धमकी दी की अगर अब मैंने उसको कुछ भी करने से रोका तो वो वीडियो वायरल कर देगा, मैं जानती थी की वो ऐसा कर सकता है इसलिए डर गयी, मेरे पास उसकी बात मानने के अलावा और कोई चारा नहीं था, अगर दीपक मेरे और पापा की वीडियो वायरल कर देता तो मैं और मेरी माँ जीते जी मर जाते, समाज में जो थोड़ी बहुत इज़्ज़त थी वो भी मिटटी में मिल जाती और हम किसी को मुँह दिखने के लायक नहीं रहते, मैंने दीपक की बात मान ली लेकिन दादी की डेथ का बहाना बनाकर उस से कुछ समय रुकने के लिए कहा, दीपक भी समझ गया था की अब मैं पूरी तरह से उसके चुंगुल में हूँ इसलिए मान गया, लेकिन इसी बीच में दीपक की बहन कोमल के चक्कर का भंडाफुट गया, कोमल अपने भाई के कमरे में अपने प्रेमी के साथ सेक्स करते हुए पकड़ी गयी, उसको सेक्स करते हुए दीपक के चाचा ने पकड़ा था तो बात छुपी हुई नहीं रही, पूरा परिवार इकठ्ठा हो गया,

दीपक और उसकी माँ ने कोमल को सबके सामने कमरे बंद करके खूब मारा तो गुस्से में उसने भी अपने भाई का भांडा अपने नातेदारों के सामने फोड़ दिया और जिस जिस लड़की के साथ दीपक के सम्बन्ध थे उसने माँ और नातेदार के सामने सब की पोल खोल दी, उसमे एक नाम मेरा भी था, जब दीपक की माँ का लगा की कहीं अब बेटी के साथ उनका बेटा भी बदनाम ना हो जाये तो उन्होंने जल्दी से मेरा नाम लेकर सब को बताया की वो मुझे जानती है और मुझे वो अपनी बहु बनाना चाहती है।

इस घटना के बाद नातेदारों में दीपक के परिवार की बहुत बेइज़्ज़ती हुई, लेकिन फिर भी उन्होंने किसी तरह से समझा बुझा कर नातेदारों को मना लिया और अपने गांव जो की कानपूर के पास था वहाँ कोमल को ले जाकर उसकी शादी कर दी, लेकिन शादी में जाने से पहले दीपक ने उस वीडियो का इस्तेमाल मेरा जिस्म पाने की बजाये मुझसे शादी करने के लिए किया, आखिर दीपक को अपने परिवार की इज़्ज़त जो बचानी थी, वीडियो के दबाव में मैंने दीपक के साथ कोर्ट मेर्रिज कर ली, शादी का प्रोग्राम उसने एक महीने के बाद का रखा और फिर अपनी बहन कोमल को गांव लेकर चला गया और वहाँ जा कर उसकी शादी गांव के ही किसी युवक से कर दी,

दीपक से कोर्ट मर्रिज के अगले दिन मैंने अपनी जॉब से रिजाइन कर दिया, इसी बीच आपसे बात हुई पहले तो मेरा मन नहीं था कुछ भी करने का क्यूंकि मैं मज़बूरी में दीपक से शादी कर रही थी अपनी ख़ुशी से नहीं, लेकिन फिर मैंने मन में थाना की चाहे जो भी हो मैं दीपक को अपना जिस्म तो दे सकती हूँ लेकिन उसको अपना कुंवारा जिस्म नहीं दूंगी और फिर मैं आपके साथ जयपुर आगयी, जयपुर में आकर अपने जिस तरह से मेरा ख्याल रखा और अपनी इच्छा से ऊपर अपने मेरी ख़ुशी को वैल्यू दी उसने मेरे दिल में आपका सम्मान बहुत ऊपर कर दिया, उस रात जब अपने मुझे छुआ और मैं नींद से घबरा कर जागी तब पता नहीं मन में कौन सी इच्छा जागी और मैंने आपको सब बात बता दी, आप से शेयर करके ऐसा लगा जैसे मेरा सारा बोझ हल्का हो गया हो और फिर अपने जब अपने मुँह से सच्चाई क़बूल कर ली उस ट्रिप की पीछे की तो मेरा आप पर विश्वास और बढ़ गया और फिर मैंने भी खुल कर आपके साथ सेक्स का मज़ा लिया, मैं जानती थी की आपके साथ मेरे सब राज सुरक्षित है, आप कभी मुझे दीपक की तरह ब्लैकमेल या परेशान नहीं करेंगे इसलिए मैंने बेजिझक वो सब कुछ किया जो मेरे मन में इच्छा थी,

बस एक बात की उम्मीद नहीं की थी मैंने और वो की आप मुझे इस तरह से परपोज़ कर देंगे, उस दिन मैंने मंदिर में भगवन से यही माना था की भले चाहे कागज़ो में या मेरे गले में मंगलसूत्र डालने वाला व्यक्ति दीपक है लेकिन मैंने आपको अपना पति मान कर ही अपना कुँवारापन आपको सौंपा था, लेकिन जब आपने शादी की इच्छा मंदिर में जाता दी तो मैं मन मेबहुत खुश हुई थी लेकिन दिमाग में ये बात क्लियर थी की मैं मन से भले आपको अपना पति मान लू लेकिन असल में दीपक ही मेरा पति रहेगा,

जयपुर से वापस आने के कई दिन तक मैं हिम्मत जुटती रही आपको सच बताने का लेकिन हिम्मत नहीं हो पायी इतने में दीपक गांव से लौट आया और वो और उसकी माँ शादी की तैयारियों में लग गए, मैंने शादी में फेरो से पहले दीपक की माँ के सामने एक ही शर्त राखी थी की मेरे पापा के जाने के बाद अगर मेरी माँ अकेली हो गयी तो वो मेरे साथ रहेगी, दीपक और उसकी माँ दोनों ने सहमति लिखित में दी फिर मैंने दीपक के साथ शादी के फेरे ले लिए।

शादी के लिए गांव जाने से पहले मैंने वो मोबाइल सिम के साथ नदी में फेक दिया था मैं नहीं चाहती थी की मेरे जीवन की काली छ्या आप पड़े, मुझे डर था की कहीं दीपक को अगर भनक लग गयी की मैंने अपना कुँवारापन आपको दिया है तो वो बेकार में आपके परेशान करता, बस समीर मुझसे ये गलती हुई की मैंने आपको आखिरी बार अलविदा नहीं कहा, ,मैं आपको अलविदा कहने की हिम्मत नहीं जुटा पायी, मुझे लगा था की इतनी बड़ी दुनिया है उसीकी भीड़ में खो जाउंगी, लेकिन मुझे नहीं पता था की आप मुझे ढूंढते ढूंढते मुस्कान तक पहुंच जायेंगे और मैं मुजरिम की तरह आपके सामने खड़ी होउंगी , चन्द्रमा चुप हो गयी शायद उसकी बात ख़तम हो चुकी थी,

मैं अवाक् उसकी कहानी सुन रहा था।

मैं : चन्द्रमा अगर तुमको दीपक से ही शादी करनी थी तो मुझे प्रेम ही क्यों किया और अगर ये मजबूरी थी अगर तुम मुझे पहले बता देती तो शायद मैं तुम्हारी कोई हेल्प करता। मेरे पास बहुत से रस्ते थे चन्द्रमा तुम्हे इस जंजाल से निकालने के लिए, काश चन्द्रमा तुमने मुझे अपना कुँवारापन देने के बजाये विश्वास दिया होता तो आज तुम्हारी मांग में दीपक के नाम का नहीं मेरे नाम का सिंदूर होता।

चन्द्रमा : समीर मैं आपको क्या बताती और ये मत भूलो समीर की जयपुर जाने से पहले तक आप केवल मुझे भोगना चाहते थे, ये आपका प्यार तो जयपुर में जाएगा मेरे लिए और आपने मुझे परपोज़ किया, अगर मैंने आपको उस से पहले बताती तो आप मेरा विश्वास नहीं करते।
मैं : बस यही चूक गयी तुम चन्द्रमा, हाँ ये सच है की मैं जयपुर तुमको सेक्स करने के लिए लेकर गया था, लेकिन प्यार तो मुझे उस दिन तुमसे हो गया था जिस दिन मक्डोनल्ड्स में तुम मेरी आँखों में खो गयी थी, अगर उस दिन तुम्हारे साथ मुस्कान ना होती तो उसी दिन मैं तुमसे अपने दिल की बात कह देता।
चन्द्रमा : बस जो मेरे भाग्य में था समीर वही हुआ, अब तुम्हारा दिल दुखने के लिए मुझे माफ़ कर दो और मुझे भूल जाओ
मैं : तुम्हारे लिए शायद आसान होगा चन्द्रमा लेकिन मेरे लिए, (मैंने दृढ़ता से कहा )चन्द्रमा तुम मेरा प्यार थी, हो और रहोगी
चन्द्रमा : (घबरा गयी, उसे लगा की मैं कोई ज़बरदस्ती करूँगा ) समीर मेरा विश्वास करो मेरे गले में मंगलसूत्र किसी और के नाम का है अब हमारे बीच कुछ नहीं हो सकता (इतना कह कर उसने अपने गले से मंगलसूत्र को खींच कर बहार निकला अपनी बात साबित करने के लिए)

पता नहीं क्यों उसके गले में किसी और का मंगलसूत्र देख कर मेरे अंदर गुस्से की एक आग सी जल उठी, अचानक से इस बातचीत से मेरा मन उखड गया, आखिर मैं लड़ किस बात के लिए रहा था, जो मेरा होकर भी मेरा ना हुआ भला उस से क्या लड़ना, मैं लड़ाई उसी दिन हार गया था जिस दिन चन्द्रमा ने मेरे परपोज़ का सीधा जवाब नहीं दिया था, हारी हुई जंग लड़ना मूर्खता थी, मैं अपनी सीट से उठ गया, चन्द्रमा भी उठने से पहले अपना मांगसूत्र ठीक करने लगी अचानक मेरी नज़र उसके गली में पड़ी तुलसी माला पर पड़ी, वो मेरी तुलसी माला थी जो होटल में नहाते समय चन्द्रमा ने मेरे गले से निकाली थी,

मैं : ये तो मेरी तुलसी माला है
चन्द्रमा : हां, ये मैंने आपकी निशानी मान कर पहन ली थी,
मैं : जब मैं ही नहीं तुम्हारी ज़िन्दगी तो फिर मैं क्या और मेरी निशानी क्या ?

मैंने आगे की ओर झुका और एक झटके से तुसली माला को पकड़ कर खींच दिया, तुसली माला के दाने ज़मीन पर टूट कर बिखर गए मैं उन्ही तुसली माला को अपने कदमो के नीचे रौंदता हुआ रेस्टुरेंट से बाहर निकल आ गया,

बाहर बहुत ठण्ड हो चली थी पता नहीं क्यों आज शाम में ही घना कोहरा छाया हुआ था, मैंने बाइक स्टार्ट की, दिल में एक बहुत तेज़ दर्द भरी टीस उठी, मैंने बाइक की रफ़्तार तेज़ कर दी और कोहरे की धुंध में घुसता चला गया, शायद खुद को इस धुंध में सदा के लिए खो देना चाहता ताकि फिर कोई चन्द्रमा मुझे ढूंढ ना सके।


[color=rgb(255,]समाप्त

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समीर गुस्से से उठ कर चला गया था चन्द्रमा उसी तरह अपनी सीट पर सर झुकाये किसी पत्थर की तरह बैठी रही, पीछे की सीट से एक महिला उठी और चन्द्रमा के अपने गले से लगा लिया, चन्द्रमा की आँखों से आंसुओं की एक धारा बह निकली, उस महिला ने चन्द्रमा के आसु पोंछे और दिलासा देने लगी, फिर चन्द्रमा को छोड़ कर ज़मीन पर बैठ गयी और ज़मीन पर पड़े तुलसी दानो को एक एक करके उठाने लगी,

चन्द्रमा : रहने दो माँ इनको कोई ज़रूरत नहीं
सरिता : लेकिन बेटी, ये तुम्हारे समीर की आखिरी निशानी है
चन्द्रमा : (शाल हटा कर अपने गर्भ को सहलाती हुई) मेरे पास उस की सबसे बड़ी निशानी है माँ, आपके नसीब में दीनू का प्यार कुछ समय के लिए रहा लेकिन समीर का प्यार मेरे साथ आजीवन रहेगा।

सरिता तुलसी के बीज को ज़मीन पर ऐसे छोड़ कर उठ गयी फिर आगे बढ़ कर चन्द्रमा को संभाला और रेस्टुरेंट से निकल बाहर आगयी बाहर हवा चल पड़ी थी और कोहरा छट रहा था, तेज़ हवा ने बादलों को को उडा दिया था और साफ़ सुथरे आसमान में चौदहवी का चाँद खुल कर अपनी छठा बिखेर रहा था, दोनों माँ बेटी एक दूसरे को संभाले हुए जगमगाती रौशनी में समाती चली गयी ।


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दिन के १२ बजे है और समीर अपने कंप्यूटर पर कुछ कर रहा है, तभी उसका फ़ोन बजने लगता है
समीर : हेलो
कॉलर : हेलो सर पहचाना ?
समीर : नहीं आप कौन ?
कॉलर : मैं आपकी दोस्त मुस्कान.................
 
खैर जीवन वापस अपने ढर्रे पर लौट आया, माँ को झूठा आश्वासन दे कर बहला दिया और वही अपनी उदासीन जिंदगी जीने लगा, कभी कभी फरीदाबाद काम से जाना होता था, जब भी जाता तो एक आस रहती की शायद चन्द्रमा कहीं मिल जाये लेकिन मेरी क़िस्मत ऐसी कहा थी।

इस घटना के लगभग ३ महीने बीत गए थे, चन्द्रमा को एक पल के लिए भी नहीं भूल पाया था, जब भी चन्द्रमा की याद आती मेरे दिल में एक दर्द की टीस उठ जाती, अगर चन्द्रमा को दीपक की ओर से कोई धमकी मिल रही थी या किसी और कारण से दूर ही जाना था तो कम से कम एक बार मुझे बता तो देती शायद हम दोनों मिल कर कोई समाधान निकल लेते, ऐसे गायब हो जाना मेरी समझ से परे था, ज़रूरी नहीं था की मेरे पास उस की हर समस्या का समाधान हो लेकिन कम से कम जिस व्यक्ति से प्रेम हो उसको बता देने मात्र से ग़म थोड़ा हल्का हो जाता है लेकिन यहाँ तो कुछ भी नहीं था, मेरे दिमाग में ये विचार भी बार बार रहा था की शायद चन्द्रमा को मुझसे शादी नहीं करनी थी तो उसमे भी क्या समस्या थी, मैं तो उसकी हाँ और ना दोनों सुनने के लिए तैयार था, इधर मैंने सारे इंतिज़ाम कर रखे थे उस हरामी दीपक की खाल उतरवाने का बस चन्द्रमा एक इशारा भर कर देती तो शायद हम अभी एक खुशहाल जीवन जी रहे होते,

खैर दिसंबर का महीना था फरीदाबाद मेरा किसी काम से जाना हुआ, जब काम से फ्री हुआ तो दिन का लगभग ४ बज रहा था लेकिन ठंढ के दिन थे तो शाम जैसा मौसम हो रहा था, पहले तो मैंने सोचा की चन्द्रमा के मोहल्ले की ओर जाऊ लेकिन ठण्ड में बाइक पर यहाँ वहाँ घूमने की हिम्मत नहीं हो रही थी ऊपर से ठण्ड में बाइक चलाने के कारण मुझे ठण्ड लगने लगी थी, घर से चलते टाइम मैं अपने ग्लव्स भी पहनना भूल गया था, बाइक बिना ग्लोब्स के चलाने के कारण से मेरे हाथ भी ठंढे हो चले थे, कुछ देर की ड्राइविंग के बाद जब बाइक चलाना मुश्किल होने लगा तो हाईवे के पास बने एक छोटे से कॉफ़ी शॉप पर रुक गया,

ये कॉफ़ी शॉप शायद नया खुला था मैंने इससे पहले नहीं देखा था, और नए होने के कारण खाली पड़ा हुआ था, मैंने काउंटर पर जाकर अपने लिए एक कॉफी आर्डर की, आर्डर दे कर मैं एक खाली टेबल पर बैठ गया और अपना फ़ोन चलाते हुए कॉफ़ी का इन्तिज़ार करने लगा, कोई १० मिनट के बाद एक लड़की मेरा आर्डर लेकर आयी और टेबल पर रख कर चली गए गयी, मेरा धयान मोबाइल पर था इसलिए मैं उस लड़की की केवल एक झलक ही देख पाया, ये वो लड़की नहीं थी जिसने मेरा आर्डर लिया था, ये लड़की शायद किचन में काम करती थी या वेटर्स थी, सर्दी थी तो लड़की ने भी जैकेट और कैप पहना हुआ था इस कारण अनुमान लगाना मुश्किल था की इस लड़की को कहा देखा था, मैंने उस लड़की का विचार अपने दिमाग से झटका और वापस अपने मोबाइल में खो गया, मैंने मोबाइल चलते हुए अपनी कॉफ़ी ख़तम की और कॉफ़ी शॉप से बहार निकल आया, अंदर के गरम माहौल से बहार आने का मन नहीं हो रहा था लेकिन वहा बैठ कर खाली टाइम काटने से अच्छा था की मैं जल्दी से वापस अपने ऑफिस के लिए निकल जाऊ।

बहार तेज़ ठंडी हवा चल रही थी, ठंडी हवा का झोका चेहरे को लगा तो एक झुरझुरी सी पुरे शरीर में दौड़ गयी और फिर पता नहीं कैसे उसी घडी दिमाग के किसी कोने में घंटी बजी और मैं वापस दौड़ता हुआ शॉप में घुस गया, मैंने काउंटर पर जा कर उस लड़की को बुलाने के लिए कहा जिसने मुझे कॉफ़ी सर्वे की थी, काउंटर पर बैठी लड़की थोड़ा कंफ्यूज हुई लेकिन अंदर जाकर वो उस लड़की को बुला लायी, आमने आमने एक दूसरे को खड़ा देख कर हम दोनों ने एक दूसरे को पहचान लिया, मेरे सामने सांवली सलोनी मुस्कान अपने कमसिन होंटो पर प्यारी सी मुस्कान बिखेरती खड़ी थी। मुस्कान को सामने देख कर मुझे अपनी इन तीन महीनो की भागदौड़ सफल होती नज़र आयी, मुस्कान चन्द्रमा की सहेली और पड़ोसन दोनों थी, इसलिए चन्द्रमा का पक्का पता इस से मिलना कोई मुश्किल बात नहीं थी।

मैं : हेलो मुस्कान !
मुस्कान : हेलो समीर जी
मैं : ओह्ह तुमने पहचान लिया ?
मुस्कान : आपको कैसे भूल सकती हूँ, आप भी याद है और वो मक्डोनल्ड का बर्गर भी,
मैं : वाओ, गुड मेमोरी, मुस्कान यार अगर तुम फ्री हो तो क्या हम दोनों कुछ मिनट बात कर सकते है,
मुस्कान : अरे क्यों नहीं, इतना फॉर्मल होने की क्या ज़रूरत है, आख़िर हमारी जान पहचान बहुत पुरानी है

इतना बोल कर मुस्कान ने काउंटर पर बैठी लड़की की ओर देखा, उसने सर हिला कर हाँ कर दिया, शायद काउंटर पर बैठी लड़की मुस्कान की सीनियर थी, मैंने उसकी सीनियर को खुश करने की खातिर जल्दी जल्दी 2-४ चीज़ो का आर्डर किया और मुस्कान को लेकर एक खाली टेबल पर जाकर बैठ गया, पहले तो हम दोनों बैठकर इधर उधर की बात करने लगे फिर मैं अपने मैन पॉइंट पर आगया,

मैं : अच्छा मुस्कान ये बताओ तुम्हारी फ्रैंड के क्या हाल है आजकल ?
मुस्कान : कौन चन्द्रमा ?
मैं : हाँ और उसके अलावा और कौन सी फ्रेंड को जनता हूँ।
मुस्कान : क्यों आपको नहीं पता, वो तो आपकी पक्की दोस्त है ?
मैं : हाँ दोस्त तो है लेकिन मेरी उस दोस्त का कुछ दिनों से कुछ पता नहीं है अगर पता होता तो तुमसे क्यों पूछता ?
मुस्कान : अरे क्यों मज़ाक कर रहे हो, आपको सब पता है, अपने दिल की हर बात वो आपको ही बताती थी, जबसे आपसे उसकी जान पहचान ज़ायदा हुई उसने तो मुझसे बातें करना बिलकुल बंद ही कर दिया था,
मैं : मुस्कान, आई ऍम सीरियस यार, मुझे सचमे कुछ नहीं पता, कुछ महीने पहले मुझे उस से कुछ इम्पोर्टेन्ट बात करनी थी मैंने उसका फ़ोन मिलाया तो उसका फ़ोन स्विच ऑफ था, और फिर मुझे नहीं पता की कहा गायब हो गयी।
मुस्कान : ओह्ह कब की बात है ये ?
मैं : लगभग तीन महीने पहले की ,
मुस्कान : समीर जी आपको जितना मैं जानती हूँ उसके हिसाब से तो आप बहुत अच्छे इंसान है लेकिन मुझे नहीं पता की चंदू ने क्यों आपसे बात करना बंद कर दिया, ज़रूर कोई बात होगी जो चंदू आपको नहीं बताना चाहती है इसलिए मैं भी उसके बारे में कुछ नहीं बताउंगी उसके अलग आप जो पूछोगे मैं आपको बता सकती हूँ,
मुस्कान की बात सुन कर मुझे बहुत निराशा हुई लेकिन मैंने हार नहीं मानी, मैंने मुस्कान की बहुत मिन्नतें की लेकिन उसने मुझे एक बात भी नहीं बताई सिवाए इसके की चन्द्रमा ठीक है, जब मेरे बहुत मनाने पर भी मुस्कान नहीं मानी तब मुझे एक आईडिया आया और मैंने मुस्कान से कहा

मैं : ओके ठीक है मत बताओ लेकिन क्या तुम मेरा एक काम कर सकती हो ?
मुस्कान : हाँ बोलिये
मैं : तुम चन्द्रमा को कॉल लगाओ अपने फ़ोन से, मुझे नंबर भी मत दो बस फ़ोन लगाओ और बात करो,
मुस्कान : और अगर अपने फ़ोन छीन लिया तो ?
मैं : तुमने अभी कहा ना की मैं एक अच्छा इंसान हूँ तो मुझे अपनी अच्छाई साबित करने दो, मैं तुमसे फ़ोन नहीं छीनूँगा, बल्कि मैं तुम्हारे फ़ोन को हाथ भी नहीं लगाऊंगा बिना तुम्हारी पेर्मिशन के, इतस आ प्रॉमिस, अगर चन्द्रमा मुझसे बात करना चाहेगी तो ही मेरी बात कराना नहीं तो फ़ोन कट कर देना, मैं बिना एक शब्द बोले यहाँ से चला जाऊंगा।

मुस्कान मेरी बात की गहराई देख कर थोड़ा सीरियस हो गयी और जेब से फ़ोन निकल कर उसने चन्द्रमा को कॉल कर दिया।
कुछ देर घंटी बजने के बाद फ़ोन उठा और चन्द्रमा की मधुर आवाज़ मेरे कानो में पड़ी,

चन्द्रमा : हाँ बोल मुस्कान !
मुस्कान : हाँ चंदू क्या हाल है तेरे ?
चन्द्रमा : सब ठीक है तू बता इस टाइम कैसे कॉल किया ?
मुस्कान : अरे सुन यार एक बात थी
चन्द्रमा : हाँ बोल क्या है ?
मुस्कान : अरे पहले तू बता अकेली है या और कोई है तेरे साथ ?
चन्द्रमा : अकेली हूँ, बता ना क्या बात है क्यों इतने ड्रामे कर रही है ?
मुस्कान : अरे यार, पता है तुझे अभी कौन मिला मुझे ?
चन्द्रमा : हाँ कौन ?
मुस्कान : समीर जी मिले मुझे अपनी कॉफ़ी शॉप में,
चन्द्रमा : क्या? तूने बुलाया था क्या उनको ?
मुस्कान : अरे मैं क्यों बुलाऊंगी उनको, वो तो खुद यहाँ कॉफ़ी पीने आये थे तो उन्होंने पहचान लिया फिर जब मैंने भी उनको अपने सामने देखा तो पहचान गयी आखिर उन्होंने हम दोनों को इतनी मस्त पार्टी दी थी मक्डोनल्ड में
चन्द्रमा : तूने कुछ बताया क्या मेरे बारे में, सुन उनको कुछ भी मत बताना, बस जो मन आये बोल दे, कह दे की मर गयी चन्द्रमा।

अब मुझसे बर्दाश्त करना मुश्किल था, आखिर मैंने ऐसा क्या पाप किया था जो ये मुझसे बच रही है, मैंने अपना मुँह स्पीकर की ओर ले जा कर कहा

मैं : नहीं इसने कुछ नहीं बताया, लेकिन मैं इसके सामने बैठा हूँ और मैंने ज़बरदस्ती इस से कॉल करवाई है,
चन्द्रमा : समीर .......
मैं : चन्द्रमा, मुझे नहीं पता तुमको मुझसे क्या समस्या है एक तुम बिना कुछ बोले तो गायब हो गयी और अब जब मैंने तुम्हे ढूंढ रहा हूँ तो तुम मुस्कान से ऐसा बकवास झूट बुलवा रही हो
चंन्द्रमा : समीर मैं.........
मैं : शटअप ! बहुत बकवास सुन ली, कल दोपहर 3 बजे सम्राट रेस्टुरेंट में इन्तिज़ार करूँगा, तुम्हे जो कहना है वही कहना उसके बाद मेरा वादा है की मैं तुम्हे कभी डिस्टर्ब नहीं करूँगा, बस कल तुम अपनी ज़िन्दगी के बेशकीमती पलो में से कुछ मिनट निकल देना मेरे लिए फिर उसके बाद मैं तुम्हे ढूंढना तो क्या फरीदाबाद में कदम रखना भी छोड़ दूंगा। ये बात मैंने थोड़ा गुस्से से कही थी।

चन्द्रमा : ठीक है समीर जैसी आपकी इच्छा।

इतना बोल कर उसने फ़ोन कट कर दिया, मुस्कान बेचारी मेरी तरफ कंफ्यूज नज़रो से देख रही थी, मैंने उसको समझाया की वो चिंता ना करे ये मेरे और चन्द्रमा के बीच की बात है, मैं उसको भरोसा दिलाया की वो बिलकुल भी परेशान ना मैं उसको या चन्द्रमा को मेरे कारण किसी कीमत पर आंच नहीं आने दूंगा,

मुस्कान की नज़रो में मैं और चन्द्रमा केवल दोस्त थे लेकिन हमारी बात करने के तरीके से उसे भी अंदाज़ा हो गया था की ज़रूर मेरे और चन्द्रमा के बीच में दोस्ती से जयादा है, मैंने मुस्कान को कुछ नहीं बताया, और बात वापस घुमा कर उसकी लाइफ के बारे में ले आया, हमने बाते करते हुए अपना खाना ख़तम किया और फिर मैं मुस्कान का नंबर लेकर घर आगया, मैंने मुस्कान का नंबर केवल इसलिए लिया था की कल अगर कही चन्द्रमा फिर से गायब हो गयी तो मैं मुस्कान के द्वारा वापिस चन्द्रमा से संपर्क कर सकता था, अपना भरोसा जताने के लिए मैंने मुस्कान को अपना विजिटिंग कार्ड दे दिया जिसमे मेरे ऑफिस की डिटेल्स और बाकी के कोन्टक्ट नंबर्स थे।

अगली सुबह मैं सब काम छोड़ छाड़ कर फरीदाबाद जा पंहुचा, मैंने इस रेस्टुरेंट के इस लिए चुना था क्यूंकि ये रेस्टुरेंट एक रिहायशी होटल की बिल्डिंग में था, इसमें अधिकतर इसी होटल में रहने वाले कस्टमर ही आते थे, बाहर के लोगों का आना जाना कम होता था क्यूंकि इनके दाम बाकी रेस्टोरेंट्स की तुलना में बहुत ज़्यदा थे, दिन में ये रेस्टुरेंट बिलकुल खाली होता था क्यूंकि अक्सर होटल में रुकने वाले कस्टमर्स नाश्ता करके निकल जाते थे और फिर रात को ही वापस आते थे ,

रस्ते में मुझे ट्रैफिक मिल गया जिस कारण मैं थोड़ा लेट हो गया, जल्दी जल्दी मैं होटल के अंदर पंहुचा लेकिन शुक्र था की चन्द्रमा अभी तक नहीं आयी थी, मुझे ज़्यादा इन्तिज़ार नहीं करना पड़ा, मुश्किल से ५ मिनट ही हुए होंगे की चन्द्रमा रेस्टुरेंट में दाखिल हुई, मैंने जान बुझ कर एक कोने में शांत सी टेबल पर बैठा था जहा हम आराम से बैठ कर बिना किसी डिस्टर्बेंस के बात कर सकते थे,

मैंने जब चन्द्रमा को रेस्टुरेंट में खड़े देखा तो एक पल के लिए पहचान नहीं पाया, उसने वही कॉटन सूट पहना हुआ था जो मैंने उसको जयपुर में दिलवाया था, वही सफ़ेद कुर्ती, लाल शलवार और सर पर लाल चुन्नी, ठण्ड से बचने के लिए उसने एक शाल से शरीर को ढक रखा था, लेकिन पता नहीं क्यों चन्द्रमा के चेहरे पर एक अजीब सा सूनापन था, आँखों की चमक गायब थी, उसके गुलाबी होंटो पर लाल लिपस्टिक की एक मोटी सी परत चढ़ी हुई थी, शायद वज़न भी बढ़ गया था और बड़े अजीब तरीके से चलती हुई मेरे पास आयी।

उसके इस हालत में देख कर मुझे बड़ा अफ़सोस हुआ, वो मेरे सामने कर एक कुर्सी पर बैठ गयी, शायद बहुत दूर से चल कर आयी थी उसकी साँसे फूल रही थी, मैंने पानी का गिलास उसकी ओर बढ़ाया उसने चुपचाप पानी का गिलास उठा कर होंटो से लगा लिया और खाली गिलास टेबल पर रख कर मेरी ओर सवालिया नज़रो से देखने लगी,

हम दोनों कुछ देर ऐसे ही बैठे एक दूसरे की ओर देखते फिर चन्द्रमा ने नज़रे नीची कर ली, कुछ पल इन्तिज़ार कर उसने कुछ बोलने के लिए सर उठाया

इस से पहले चन्द्रमा कुछ बोलती, वेटर किसी भूत की तरह हमारे सर पर आकर खड़ा हो गया, मैंने पर्स से एक पांच सौ का नोट खींचा और उसकी ओर बढ़ा दिया, मैंने उसे अकेला छोड़ने के लिए कहा, वेटर नोट को अपनी जेब में ठूंसता हुआ भाग गया

मैं : हाँ तो बताओ क्या बोल रही थी तुम ?
चन्द्रमा : आप बताइये आपने ने क्यों बुलया है मुझे ?
मैं : मैंने बुलाया है ? ओह्ह हाँ मैंने इसलिए बुलाया है क्यूंकि किसी ने मुझसे कुछ वादा किया था, किसी ने कहा था की घर जा कर वो मेरे सवाल का जवाब देगी, लेकिन हुआ क्या ? हुआ ये की तुम बिना कुछ बोले गायब हो गयी, ऐसे गायब हो गयी जैसे मैंने तुम्हारे साथ कोई अत्याचार किया हो, या तुम्हारे साथ कोई गलत व्यवहार किया हो ?

मैं गुस्से में लगभग चीखता हुआ चन्द्रमा के सवाल पर उलट पड़ा, तीन महीनो से जिस टेंशन से गुज़रा था उनका आज मैं अपनी चुभती बातो से चन्द्रमा के ह्रदय को छलनी करके बदला ले लेना चाहता था,

चन्द्रमा : क्या जवाब देती आपको ?
मैं : वही जवाब जो मैंने तुमसे जयपुर में देवी के मंदिर में पूछा था , वो जवाब जो था तुम्हारे मन में ? अगर तुमको मुझसे शादी नहीं करनी थी तब भी बता सकती थी, मैं कोई ज़बरदस्ती तो नहीं कर रहा था तुमसे, तुम मना कर देती तो क्या मैं तुमको उठा कर ले जाता ?
चन्द्रमा : यही तो प्रॉब्लम थी समीर, आप मुझे उठा के भी नहीं ले जा सकते थे, अगर मैं चाहती तब भी नहीं ले जा सकते थे आप मुझे, इसलिए कुछ बोलने से अच्छा मैं आपसे दूर होने को समझा और आपसे सारे सम्बन्ध तोड़ लिए।
मैं : ओह्ह हाँ सम्बन्ध तोड़ लिया तुम वो भी बिना बताये, अगर सम्बन्ध ही तोडना था तो एक कॉल कर देती बोल देती की आज के बाद अपनी शकल मत दिखाना, तुम कह के तो देखती चन्द्रमा, तुम्हारे लिए तो मैं ज़िन्दगी छोड़ सकता था, तुम्हारे लिए खुद को क़ुर्बान कर सकता था लेकिन तुम मुझे मौका तो देती, एक बार बता कर तो देखती शायद कोई रास्ता निकल आता लेकिन तुमने मुझे इतना बताने के काबिल भी नहीं समझा ,
चन्द्रमा : आपको क्या लगता है ये मेरे लिए आसान था ? जितना आपके लिए मुश्किल है उसका दस गुना मेरे लिए मुश्किल है लेकिन मेरे पास इस मुश्किल से निकलने का कोई दूसरा रास्ता नहीं था इसलिए मैंने अपनी जीवन की सच्चाई को क़बूल कर लिया, समीर जी हम जैसी लड़कियों की किस्मत में आप जैसे अच्छे इंसान नहीं होते, ऐसा केवल फिल्मो में या कहानियों में ही होता है असली ज़िन्दगी में हम जैसी लड़कियों को ईशवर के भरोसे जीवन काटना होता है
मैं : लेकिन चन्द्रमा, मैंने झूट नहीं कहा था, ना तुमको कोई धोखा दे रहा था, तुमको क्या लगा था की मैंने जो शादी की बात की थी वो केवल फ़िल्मी बात थी तुम्हारा जिस्म पाने के लिए ? अगर तुमको विश्वास नहीं है तो अभी चलो किसी भी मंदिर में बुला लो अपने घरवालों को मैं अभी इसी समय सबके सामने तुमसे शादी करने के लिए तैयार हूँ ?
चन्द्रमा : काश की ऐसा हो पता लेकिन ये संभव नहीं है ?
मैं : क्यों संभव नहीं है ? तुम बस हाँ बोलो और फिर देखो कैसे असंभव को संभव बनता हुआ
चन्द्रमा : क्यूंकि आप एक बियाहता से शादी नहीं कर सकते, मेरी शादी दीपक से हो चुकी है
मैं : व्हाट डा फ़क ? ये कैसे सम्भव है
चन्द्रमा : संभव है समीर, सब संभव है
इतना कह कर चन्द्रमा ने अपनी चुन्नी को सर पर से सरका दिया, उसकी मांग में लाल रंग का सिंदूर साफ़ नज़र आरहा था, उसकी मांग में किसी और का सिन्दूर था, मेरी आँखों के सामने अँधेरा सा छा गया, लगा किसी ने मेरे दिल के ऊपर कांच का टुकड़ा रख कर एक हथोड़े से कांच के टुकड़े कर दिए हो और उस कांच के हज़ारो टुकड़े मेरे दिल को चीरते हुए दिल अंदर तक समां गए हो जो हर सांस के साथ दर्द की लहरे पैदा कर रहे थे। बड़ी मुश्किल से मैंने खुद को संभाला और टूटी हुई आवाज़ में पूछा
मैं : ये कब हुआ ? कैसे हुआ ?

चन्द्रमा : समीर मैंने आपको उस रात सब बता दिया था यहाँ तक की अपनी माँ और दीनू की कहानी भी, आपको मेरी माँ की कहानी का अंत तो बता दिया लेकिन मैं आपको अपनी कहानी का अंत बताने की हिम्मत नहीं जुटा पायी,

मेरा विश्वास करो समीर की उस रात मैंने आपसे जो भी कहा सच कहा उसमे कुछ भी झूट नहीं था बस मैंने आपको ये नहीं बताया था की जब उस रात पापा और रमेश हमारे घर से भाग कर अपने घर चले गए लेकिन अगले दिन रमेश ने मेरे पापा को अपने घर से भगा दिया, पापा के पास और कोई ठिकाना नहीं था वो इधर उधर भटक रहे थे तब उनको कही से दीपक टकरा गया, दीपक और पापा एक दूसरे को अच्छे से जानते थे क्यंकि घर के खरीदने के टाइम दीपक ही डीलर के साथ पापा से मिलने आता था, फिर जब दीपक को पता चला की पापा किसी कारण से घर नहीं जा रहे है तो उसने अपने किसी जानकार के मकान में पापा को रहने के लिए जगह दिला दी और उनके खाने पीने की व्यवस्था कर दी।

उस दिन दिवाली वाली रात जब दीपक ने मेरे साथ ज़बरदस्ती करने की कोशिश की और नाकामयाब रहा तो उस रात गुस्से में दीपक पापा के पास जा पंहुचा, उस रात दीपक पापा के पास उनको घर से निकालने पंहुचा था लेकिन दिवाली का दिन होने के कारण पापा को ज़रूरत से ज़्यदा शराब मिल गयी थी और वो नशे में धुत पड़े हुए थे, दीपक गुस्से में तो था ही उसने पापा को नशे में देखा तो गालिया देना लगा, गुस्से में ही दीपक ने कुछ उल्टा सीधा मेरे बारे में बोला तो पापा भी मेरा नाम सुन कर नशे में ही गालिया देने लगे, पापा को मुझे गाली देते सुनकर दीपक को थोड़ा शक हुआ तो उसने धीरे धीरे करके पापा से उगलवाना चालू कर दिया, पापा को नशे में पता नहीं चला और उन्होंने शरू से लेकर अंत तक सारी बात दीपक को बता दी, दीपक ने भी चालाकी से पापा की सारी बात मोबाइल में वीडियो बना कर रिकॉर्ड कर ली,

जब दीपक को ये सब बातें पता लग गयी तब वो एक दिन उसी कंपनी में आया जहा आपने मुझे नौकरी दिलवाई थी, उसने मुझे वो वीडियो दिखाई और धमकी दी की अगर अब मैंने उसको कुछ भी करने से रोका तो वो वीडियो वायरल कर देगा, मैं जानती थी की वो ऐसा कर सकता है इसलिए डर गयी, मेरे पास उसकी बात मानने के अलावा और कोई चारा नहीं था, अगर दीपक मेरे और पापा की वीडियो वायरल कर देता तो मैं और मेरी माँ जीते जी मर जाते, समाज में जो थोड़ी बहुत इज़्ज़त थी वो भी मिटटी में मिल जाती और हम किसी को मुँह दिखने के लायक नहीं रहते, मैंने दीपक की बात मान ली लेकिन दादी की डेथ का बहाना बनाकर उस से कुछ समय रुकने के लिए कहा, दीपक भी समझ गया था की अब मैं पूरी तरह से उसके चुंगुल में हूँ इसलिए मान गया, लेकिन इसी बीच में दीपक की बहन कोमल के चक्कर का भंडाफुट गया, कोमल अपने भाई के कमरे में अपने प्रेमी के साथ सेक्स करते हुए पकड़ी गयी, उसको सेक्स करते हुए दीपक के चाचा ने पकड़ा था तो बात छुपी हुई नहीं रही, पूरा परिवार इकठ्ठा हो गया,

दीपक और उसकी माँ ने कोमल को सबके सामने कमरे बंद करके खूब मारा तो गुस्से में उसने भी अपने भाई का भांडा अपने नातेदारों के सामने फोड़ दिया और जिस जिस लड़की के साथ दीपक के सम्बन्ध थे उसने माँ और नातेदार के सामने सब की पोल खोल दी, उसमे एक नाम मेरा भी था, जब दीपक की माँ का लगा की कहीं अब बेटी के साथ उनका बेटा भी बदनाम ना हो जाये तो उन्होंने जल्दी से मेरा नाम लेकर सब को बताया की वो मुझे जानती है और मुझे वो अपनी बहु बनाना चाहती है।

इस घटना के बाद नातेदारों में दीपक के परिवार की बहुत बेइज़्ज़ती हुई, लेकिन फिर भी उन्होंने किसी तरह से समझा बुझा कर नातेदारों को मना लिया और अपने गांव जो की कानपूर के पास था वहाँ कोमल को ले जाकर उसकी शादी कर दी, लेकिन शादी में जाने से पहले दीपक ने उस वीडियो का इस्तेमाल मेरा जिस्म पाने की बजाये मुझसे शादी करने के लिए किया, आखिर दीपक को अपने परिवार की इज़्ज़त जो बचानी थी, वीडियो के दबाव में मैंने दीपक के साथ कोर्ट मेर्रिज कर ली, शादी का प्रोग्राम उसने एक महीने के बाद का रखा और फिर अपनी बहन कोमल को गांव लेकर चला गया और वहाँ जा कर उसकी शादी गांव के ही किसी युवक से कर दी,

दीपक से कोर्ट मर्रिज के अगले दिन मैंने अपनी जॉब से रिजाइन कर दिया, इसी बीच आपसे बात हुई पहले तो मेरा मन नहीं था कुछ भी करने का क्यूंकि मैं मज़बूरी में दीपक से शादी कर रही थी अपनी ख़ुशी से नहीं, लेकिन फिर मैंने मन में थाना की चाहे जो भी हो मैं दीपक को अपना जिस्म तो दे सकती हूँ लेकिन उसको अपना कुंवारा जिस्म नहीं दूंगी और फिर मैं आपके साथ जयपुर आगयी, जयपुर में आकर अपने जिस तरह से मेरा ख्याल रखा और अपनी इच्छा से ऊपर अपने मेरी ख़ुशी को वैल्यू दी उसने मेरे दिल में आपका सम्मान बहुत ऊपर कर दिया, उस रात जब अपने मुझे छुआ और मैं नींद से घबरा कर जागी तब पता नहीं मन में कौन सी इच्छा जागी और मैंने आपको सब बात बता दी, आप से शेयर करके ऐसा लगा जैसे मेरा सारा बोझ हल्का हो गया हो और फिर अपने जब अपने मुँह से सच्चाई क़बूल कर ली उस ट्रिप की पीछे की तो मेरा आप पर विश्वास और बढ़ गया और फिर मैंने भी खुल कर आपके साथ सेक्स का मज़ा लिया, मैं जानती थी की आपके साथ मेरे सब राज सुरक्षित है, आप कभी मुझे दीपक की तरह ब्लैकमेल या परेशान नहीं करेंगे इसलिए मैंने बेजिझक वो सब कुछ किया जो मेरे मन में इच्छा थी,

बस एक बात की उम्मीद नहीं की थी मैंने और वो की आप मुझे इस तरह से परपोज़ कर देंगे, उस दिन मैंने मंदिर में भगवन से यही माना था की भले चाहे कागज़ो में या मेरे गले में मंगलसूत्र डालने वाला व्यक्ति दीपक है लेकिन मैंने आपको अपना पति मान कर ही अपना कुँवारापन आपको सौंपा था, लेकिन जब आपने शादी की इच्छा मंदिर में जाता दी तो मैं मन मेबहुत खुश हुई थी लेकिन दिमाग में ये बात क्लियर थी की मैं मन से भले आपको अपना पति मान लू लेकिन असल में दीपक ही मेरा पति रहेगा,

जयपुर से वापस आने के कई दिन तक मैं हिम्मत जुटती रही आपको सच बताने का लेकिन हिम्मत नहीं हो पायी इतने में दीपक गांव से लौट आया और वो और उसकी माँ शादी की तैयारियों में लग गए, मैंने शादी में फेरो से पहले दीपक की माँ के सामने एक ही शर्त राखी थी की मेरे पापा के जाने के बाद अगर मेरी माँ अकेली हो गयी तो वो मेरे साथ रहेगी, दीपक और उसकी माँ दोनों ने सहमति लिखित में दी फिर मैंने दीपक के साथ शादी के फेरे ले लिए।

शादी के लिए गांव जाने से पहले मैंने वो मोबाइल सिम के साथ नदी में फेक दिया था मैं नहीं चाहती थी की मेरे जीवन की काली छ्या आप पड़े, मुझे डर था की कहीं दीपक को अगर भनक लग गयी की मैंने अपना कुँवारापन आपको दिया है तो वो बेकार में आपके परेशान करता, बस समीर मुझसे ये गलती हुई की मैंने आपको आखिरी बार अलविदा नहीं कहा, ,मैं आपको अलविदा कहने की हिम्मत नहीं जुटा पायी, मुझे लगा था की इतनी बड़ी दुनिया है उसीकी भीड़ में खो जाउंगी, लेकिन मुझे नहीं पता था की आप मुझे ढूंढते ढूंढते मुस्कान तक पहुंच जायेंगे और मैं मुजरिम की तरह आपके सामने खड़ी होउंगी , चन्द्रमा चुप हो गयी शायद उसकी बात ख़तम हो चुकी थी,

मैं अवाक् उसकी कहानी सुन रहा था।

मैं : चन्द्रमा अगर तुमको दीपक से ही शादी करनी थी तो मुझे प्रेम ही क्यों किया और अगर ये मजबूरी थी अगर तुम मुझे पहले बता देती तो शायद मैं तुम्हारी कोई हेल्प करता। मेरे पास बहुत से रस्ते थे चन्द्रमा तुम्हे इस जंजाल से निकालने के लिए, काश चन्द्रमा तुमने मुझे अपना कुँवारापन देने के बजाये विश्वास दिया होता तो आज तुम्हारी मांग में दीपक के नाम का नहीं मेरे नाम का सिंदूर होता।

चन्द्रमा : समीर मैं आपको क्या बताती और ये मत भूलो समीर की जयपुर जाने से पहले तक आप केवल मुझे भोगना चाहते थे, ये आपका प्यार तो जयपुर में जाएगा मेरे लिए और आपने मुझे परपोज़ किया, अगर मैंने आपको उस से पहले बताती तो आप मेरा विश्वास नहीं करते।
मैं : बस यही चूक गयी तुम चन्द्रमा, हाँ ये सच है की मैं जयपुर तुमको सेक्स करने के लिए लेकर गया था, लेकिन प्यार तो मुझे उस दिन तुमसे हो गया था जिस दिन मक्डोनल्ड्स में तुम मेरी आँखों में खो गयी थी, अगर उस दिन तुम्हारे साथ मुस्कान ना होती तो उसी दिन मैं तुमसे अपने दिल की बात कह देता।
चन्द्रमा : बस जो मेरे भाग्य में था समीर वही हुआ, अब तुम्हारा दिल दुखने के लिए मुझे माफ़ कर दो और मुझे भूल जाओ
मैं : तुम्हारे लिए शायद आसान होगा चन्द्रमा लेकिन मेरे लिए, (मैंने दृढ़ता से कहा )चन्द्रमा तुम मेरा प्यार थी, हो और रहोगी
चन्द्रमा : (घबरा गयी, उसे लगा की मैं कोई ज़बरदस्ती करूँगा ) समीर मेरा विश्वास करो मेरे गले में मंगलसूत्र किसी और के नाम का है अब हमारे बीच कुछ नहीं हो सकता (इतना कह कर उसने अपने गले से मंगलसूत्र को खींच कर बहार निकला अपनी बात साबित करने के लिए)

पता नहीं क्यों उसके गले में किसी और का मंगलसूत्र देख कर मेरे अंदर गुस्से की एक आग सी जल उठी, अचानक से इस बातचीत से मेरा मन उखड गया, आखिर मैं लड़ किस बात के लिए रहा था, जो मेरा होकर भी मेरा ना हुआ भला उस से क्या लड़ना, मैं लड़ाई उसी दिन हार गया था जिस दिन चन्द्रमा ने मेरे परपोज़ का सीधा जवाब नहीं दिया था, हारी हुई जंग लड़ना मूर्खता थी, मैं अपनी सीट से उठ गया, चन्द्रमा भी उठने से पहले अपना मांगसूत्र ठीक करने लगी अचानक मेरी नज़र उसके गली में पड़ी तुलसी माला पर पड़ी, वो मेरी तुलसी माला थी जो होटल में नहाते समय चन्द्रमा ने मेरे गले से निकाली थी,

मैं : ये तो मेरी तुलसी माला है
चन्द्रमा : हां, ये मैंने आपकी निशानी मान कर पहन ली थी,
मैं : जब मैं ही नहीं तुम्हारी ज़िन्दगी तो फिर मैं क्या और मेरी निशानी क्या ?

मैंने आगे की ओर झुका और एक झटके से तुसली माला को पकड़ कर खींच दिया, तुसली माला के दाने ज़मीन पर टूट कर बिखर गए मैं उन्ही तुसली माला को अपने कदमो के नीचे रौंदता हुआ रेस्टुरेंट से बाहर निकल आ गया,

बाहर बहुत ठण्ड हो चली थी पता नहीं क्यों आज शाम में ही घना कोहरा छाया हुआ था, मैंने बाइक स्टार्ट की, दिल में एक बहुत तेज़ दर्द भरी टीस उठी, मैंने बाइक की रफ़्तार तेज़ कर दी और कोहरे की धुंध में घुसता चला गया, शायद खुद को इस धुंध में सदा के लिए खो देना चाहता ताकि फिर कोई चन्द्रमा मुझे ढूंढ ना सके।


[color=rgb(255,]समाप्त

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समीर गुस्से से उठ कर चला गया था चन्द्रमा उसी तरह अपनी सीट पर सर झुकाये किसी पत्थर की तरह बैठी रही, पीछे की सीट से एक महिला उठी और चन्द्रमा के अपने गले से लगा लिया, चन्द्रमा की आँखों से आंसुओं की एक धारा बह निकली, उस महिला ने चन्द्रमा के आसु पोंछे और दिलासा देने लगी, फिर चन्द्रमा को छोड़ कर ज़मीन पर बैठ गयी और ज़मीन पर पड़े तुलसी दानो को एक एक करके उठाने लगी,

चन्द्रमा : रहने दो माँ इनको कोई ज़रूरत नहीं
सरिता : लेकिन बेटी, ये तुम्हारे समीर की आखिरी निशानी है
चन्द्रमा : (शाल हटा कर अपने गर्भ को सहलाती हुई) मेरे पास उस की सबसे बड़ी निशानी है माँ, आपके नसीब में दीनू का प्यार कुछ समय के लिए रहा लेकिन समीर का प्यार मेरे साथ आजीवन रहेगा।

सरिता तुलसी के बीज को ज़मीन पर ऐसे छोड़ कर उठ गयी फिर आगे बढ़ कर चन्द्रमा को संभाला और रेस्टुरेंट से निकल बाहर आगयी बाहर हवा चल पड़ी थी और कोहरा छट रहा था, तेज़ हवा ने बादलों को को उडा दिया था और साफ़ सुथरे आसमान में चौदहवी का चाँद खुल कर अपनी छठा बिखेर रहा था, दोनों माँ बेटी एक दूसरे को संभाले हुए जगमगाती रौशनी में समाती चली गयी ।


[color=rgb(255,]--------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------[/color]


दिन के १२ बजे है और समीर अपने कंप्यूटर पर कुछ कर रहा है, तभी उसका फ़ोन बजने लगता है
समीर : हेलो
कॉलर : हेलो सर पहचाना ?
समीर : नहीं आप कौन ?
कॉलर : मैं आपकी दोस्त मुस्कान.................
 
खैर जीवन वापस अपने ढर्रे पर लौट आया, माँ को झूठा आश्वासन दे कर बहला दिया और वही अपनी उदासीन जिंदगी जीने लगा, कभी कभी फरीदाबाद काम से जाना होता था, जब भी जाता तो एक आस रहती की शायद चन्द्रमा कहीं मिल जाये लेकिन मेरी क़िस्मत ऐसी कहा थी।

इस घटना के लगभग ३ महीने बीत गए थे, चन्द्रमा को एक पल के लिए भी नहीं भूल पाया था, जब भी चन्द्रमा की याद आती मेरे दिल में एक दर्द की टीस उठ जाती, अगर चन्द्रमा को दीपक की ओर से कोई धमकी मिल रही थी या किसी और कारण से दूर ही जाना था तो कम से कम एक बार मुझे बता तो देती शायद हम दोनों मिल कर कोई समाधान निकल लेते, ऐसे गायब हो जाना मेरी समझ से परे था, ज़रूरी नहीं था की मेरे पास उस की हर समस्या का समाधान हो लेकिन कम से कम जिस व्यक्ति से प्रेम हो उसको बता देने मात्र से ग़म थोड़ा हल्का हो जाता है लेकिन यहाँ तो कुछ भी नहीं था, मेरे दिमाग में ये विचार भी बार बार रहा था की शायद चन्द्रमा को मुझसे शादी नहीं करनी थी तो उसमे भी क्या समस्या थी, मैं तो उसकी हाँ और ना दोनों सुनने के लिए तैयार था, इधर मैंने सारे इंतिज़ाम कर रखे थे उस हरामी दीपक की खाल उतरवाने का बस चन्द्रमा एक इशारा भर कर देती तो शायद हम अभी एक खुशहाल जीवन जी रहे होते,

खैर दिसंबर का महीना था फरीदाबाद मेरा किसी काम से जाना हुआ, जब काम से फ्री हुआ तो दिन का लगभग ४ बज रहा था लेकिन ठंढ के दिन थे तो शाम जैसा मौसम हो रहा था, पहले तो मैंने सोचा की चन्द्रमा के मोहल्ले की ओर जाऊ लेकिन ठण्ड में बाइक पर यहाँ वहाँ घूमने की हिम्मत नहीं हो रही थी ऊपर से ठण्ड में बाइक चलाने के कारण मुझे ठण्ड लगने लगी थी, घर से चलते टाइम मैं अपने ग्लव्स भी पहनना भूल गया था, बाइक बिना ग्लोब्स के चलाने के कारण से मेरे हाथ भी ठंढे हो चले थे, कुछ देर की ड्राइविंग के बाद जब बाइक चलाना मुश्किल होने लगा तो हाईवे के पास बने एक छोटे से कॉफ़ी शॉप पर रुक गया,

ये कॉफ़ी शॉप शायद नया खुला था मैंने इससे पहले नहीं देखा था, और नए होने के कारण खाली पड़ा हुआ था, मैंने काउंटर पर जाकर अपने लिए एक कॉफी आर्डर की, आर्डर दे कर मैं एक खाली टेबल पर बैठ गया और अपना फ़ोन चलाते हुए कॉफ़ी का इन्तिज़ार करने लगा, कोई १० मिनट के बाद एक लड़की मेरा आर्डर लेकर आयी और टेबल पर रख कर चली गए गयी, मेरा धयान मोबाइल पर था इसलिए मैं उस लड़की की केवल एक झलक ही देख पाया, ये वो लड़की नहीं थी जिसने मेरा आर्डर लिया था, ये लड़की शायद किचन में काम करती थी या वेटर्स थी, सर्दी थी तो लड़की ने भी जैकेट और कैप पहना हुआ था इस कारण अनुमान लगाना मुश्किल था की इस लड़की को कहा देखा था, मैंने उस लड़की का विचार अपने दिमाग से झटका और वापस अपने मोबाइल में खो गया, मैंने मोबाइल चलते हुए अपनी कॉफ़ी ख़तम की और कॉफ़ी शॉप से बहार निकल आया, अंदर के गरम माहौल से बहार आने का मन नहीं हो रहा था लेकिन वहा बैठ कर खाली टाइम काटने से अच्छा था की मैं जल्दी से वापस अपने ऑफिस के लिए निकल जाऊ।

बहार तेज़ ठंडी हवा चल रही थी, ठंडी हवा का झोका चेहरे को लगा तो एक झुरझुरी सी पुरे शरीर में दौड़ गयी और फिर पता नहीं कैसे उसी घडी दिमाग के किसी कोने में घंटी बजी और मैं वापस दौड़ता हुआ शॉप में घुस गया, मैंने काउंटर पर जा कर उस लड़की को बुलाने के लिए कहा जिसने मुझे कॉफ़ी सर्वे की थी, काउंटर पर बैठी लड़की थोड़ा कंफ्यूज हुई लेकिन अंदर जाकर वो उस लड़की को बुला लायी, आमने आमने एक दूसरे को खड़ा देख कर हम दोनों ने एक दूसरे को पहचान लिया, मेरे सामने सांवली सलोनी मुस्कान अपने कमसिन होंटो पर प्यारी सी मुस्कान बिखेरती खड़ी थी। मुस्कान को सामने देख कर मुझे अपनी इन तीन महीनो की भागदौड़ सफल होती नज़र आयी, मुस्कान चन्द्रमा की सहेली और पड़ोसन दोनों थी, इसलिए चन्द्रमा का पक्का पता इस से मिलना कोई मुश्किल बात नहीं थी।

मैं : हेलो मुस्कान !
मुस्कान : हेलो समीर जी
मैं : ओह्ह तुमने पहचान लिया ?
मुस्कान : आपको कैसे भूल सकती हूँ, आप भी याद है और वो मक्डोनल्ड का बर्गर भी,
मैं : वाओ, गुड मेमोरी, मुस्कान यार अगर तुम फ्री हो तो क्या हम दोनों कुछ मिनट बात कर सकते है,
मुस्कान : अरे क्यों नहीं, इतना फॉर्मल होने की क्या ज़रूरत है, आख़िर हमारी जान पहचान बहुत पुरानी है

इतना बोल कर मुस्कान ने काउंटर पर बैठी लड़की की ओर देखा, उसने सर हिला कर हाँ कर दिया, शायद काउंटर पर बैठी लड़की मुस्कान की सीनियर थी, मैंने उसकी सीनियर को खुश करने की खातिर जल्दी जल्दी 2-४ चीज़ो का आर्डर किया और मुस्कान को लेकर एक खाली टेबल पर जाकर बैठ गया, पहले तो हम दोनों बैठकर इधर उधर की बात करने लगे फिर मैं अपने मैन पॉइंट पर आगया,

मैं : अच्छा मुस्कान ये बताओ तुम्हारी फ्रैंड के क्या हाल है आजकल ?
मुस्कान : कौन चन्द्रमा ?
मैं : हाँ और उसके अलावा और कौन सी फ्रेंड को जनता हूँ।
मुस्कान : क्यों आपको नहीं पता, वो तो आपकी पक्की दोस्त है ?
मैं : हाँ दोस्त तो है लेकिन मेरी उस दोस्त का कुछ दिनों से कुछ पता नहीं है अगर पता होता तो तुमसे क्यों पूछता ?
मुस्कान : अरे क्यों मज़ाक कर रहे हो, आपको सब पता है, अपने दिल की हर बात वो आपको ही बताती थी, जबसे आपसे उसकी जान पहचान ज़ायदा हुई उसने तो मुझसे बातें करना बिलकुल बंद ही कर दिया था,
मैं : मुस्कान, आई ऍम सीरियस यार, मुझे सचमे कुछ नहीं पता, कुछ महीने पहले मुझे उस से कुछ इम्पोर्टेन्ट बात करनी थी मैंने उसका फ़ोन मिलाया तो उसका फ़ोन स्विच ऑफ था, और फिर मुझे नहीं पता की कहा गायब हो गयी।
मुस्कान : ओह्ह कब की बात है ये ?
मैं : लगभग तीन महीने पहले की ,
मुस्कान : समीर जी आपको जितना मैं जानती हूँ उसके हिसाब से तो आप बहुत अच्छे इंसान है लेकिन मुझे नहीं पता की चंदू ने क्यों आपसे बात करना बंद कर दिया, ज़रूर कोई बात होगी जो चंदू आपको नहीं बताना चाहती है इसलिए मैं भी उसके बारे में कुछ नहीं बताउंगी उसके अलग आप जो पूछोगे मैं आपको बता सकती हूँ,
मुस्कान की बात सुन कर मुझे बहुत निराशा हुई लेकिन मैंने हार नहीं मानी, मैंने मुस्कान की बहुत मिन्नतें की लेकिन उसने मुझे एक बात भी नहीं बताई सिवाए इसके की चन्द्रमा ठीक है, जब मेरे बहुत मनाने पर भी मुस्कान नहीं मानी तब मुझे एक आईडिया आया और मैंने मुस्कान से कहा

मैं : ओके ठीक है मत बताओ लेकिन क्या तुम मेरा एक काम कर सकती हो ?
मुस्कान : हाँ बोलिये
मैं : तुम चन्द्रमा को कॉल लगाओ अपने फ़ोन से, मुझे नंबर भी मत दो बस फ़ोन लगाओ और बात करो,
मुस्कान : और अगर अपने फ़ोन छीन लिया तो ?
मैं : तुमने अभी कहा ना की मैं एक अच्छा इंसान हूँ तो मुझे अपनी अच्छाई साबित करने दो, मैं तुमसे फ़ोन नहीं छीनूँगा, बल्कि मैं तुम्हारे फ़ोन को हाथ भी नहीं लगाऊंगा बिना तुम्हारी पेर्मिशन के, इतस आ प्रॉमिस, अगर चन्द्रमा मुझसे बात करना चाहेगी तो ही मेरी बात कराना नहीं तो फ़ोन कट कर देना, मैं बिना एक शब्द बोले यहाँ से चला जाऊंगा।

मुस्कान मेरी बात की गहराई देख कर थोड़ा सीरियस हो गयी और जेब से फ़ोन निकल कर उसने चन्द्रमा को कॉल कर दिया।
कुछ देर घंटी बजने के बाद फ़ोन उठा और चन्द्रमा की मधुर आवाज़ मेरे कानो में पड़ी,

चन्द्रमा : हाँ बोल मुस्कान !
मुस्कान : हाँ चंदू क्या हाल है तेरे ?
चन्द्रमा : सब ठीक है तू बता इस टाइम कैसे कॉल किया ?
मुस्कान : अरे सुन यार एक बात थी
चन्द्रमा : हाँ बोल क्या है ?
मुस्कान : अरे पहले तू बता अकेली है या और कोई है तेरे साथ ?
चन्द्रमा : अकेली हूँ, बता ना क्या बात है क्यों इतने ड्रामे कर रही है ?
मुस्कान : अरे यार, पता है तुझे अभी कौन मिला मुझे ?
चन्द्रमा : हाँ कौन ?
मुस्कान : समीर जी मिले मुझे अपनी कॉफ़ी शॉप में,
चन्द्रमा : क्या? तूने बुलाया था क्या उनको ?
मुस्कान : अरे मैं क्यों बुलाऊंगी उनको, वो तो खुद यहाँ कॉफ़ी पीने आये थे तो उन्होंने पहचान लिया फिर जब मैंने भी उनको अपने सामने देखा तो पहचान गयी आखिर उन्होंने हम दोनों को इतनी मस्त पार्टी दी थी मक्डोनल्ड में
चन्द्रमा : तूने कुछ बताया क्या मेरे बारे में, सुन उनको कुछ भी मत बताना, बस जो मन आये बोल दे, कह दे की मर गयी चन्द्रमा।

अब मुझसे बर्दाश्त करना मुश्किल था, आखिर मैंने ऐसा क्या पाप किया था जो ये मुझसे बच रही है, मैंने अपना मुँह स्पीकर की ओर ले जा कर कहा

मैं : नहीं इसने कुछ नहीं बताया, लेकिन मैं इसके सामने बैठा हूँ और मैंने ज़बरदस्ती इस से कॉल करवाई है,
चन्द्रमा : समीर .......
मैं : चन्द्रमा, मुझे नहीं पता तुमको मुझसे क्या समस्या है एक तुम बिना कुछ बोले तो गायब हो गयी और अब जब मैंने तुम्हे ढूंढ रहा हूँ तो तुम मुस्कान से ऐसा बकवास झूट बुलवा रही हो
चंन्द्रमा : समीर मैं.........
मैं : शटअप ! बहुत बकवास सुन ली, कल दोपहर 3 बजे सम्राट रेस्टुरेंट में इन्तिज़ार करूँगा, तुम्हे जो कहना है वही कहना उसके बाद मेरा वादा है की मैं तुम्हे कभी डिस्टर्ब नहीं करूँगा, बस कल तुम अपनी ज़िन्दगी के बेशकीमती पलो में से कुछ मिनट निकल देना मेरे लिए फिर उसके बाद मैं तुम्हे ढूंढना तो क्या फरीदाबाद में कदम रखना भी छोड़ दूंगा। ये बात मैंने थोड़ा गुस्से से कही थी।

चन्द्रमा : ठीक है समीर जैसी आपकी इच्छा।

इतना बोल कर उसने फ़ोन कट कर दिया, मुस्कान बेचारी मेरी तरफ कंफ्यूज नज़रो से देख रही थी, मैंने उसको समझाया की वो चिंता ना करे ये मेरे और चन्द्रमा के बीच की बात है, मैं उसको भरोसा दिलाया की वो बिलकुल भी परेशान ना मैं उसको या चन्द्रमा को मेरे कारण किसी कीमत पर आंच नहीं आने दूंगा,

मुस्कान की नज़रो में मैं और चन्द्रमा केवल दोस्त थे लेकिन हमारी बात करने के तरीके से उसे भी अंदाज़ा हो गया था की ज़रूर मेरे और चन्द्रमा के बीच में दोस्ती से जयादा है, मैंने मुस्कान को कुछ नहीं बताया, और बात वापस घुमा कर उसकी लाइफ के बारे में ले आया, हमने बाते करते हुए अपना खाना ख़तम किया और फिर मैं मुस्कान का नंबर लेकर घर आगया, मैंने मुस्कान का नंबर केवल इसलिए लिया था की कल अगर कही चन्द्रमा फिर से गायब हो गयी तो मैं मुस्कान के द्वारा वापिस चन्द्रमा से संपर्क कर सकता था, अपना भरोसा जताने के लिए मैंने मुस्कान को अपना विजिटिंग कार्ड दे दिया जिसमे मेरे ऑफिस की डिटेल्स और बाकी के कोन्टक्ट नंबर्स थे।

अगली सुबह मैं सब काम छोड़ छाड़ कर फरीदाबाद जा पंहुचा, मैंने इस रेस्टुरेंट के इस लिए चुना था क्यूंकि ये रेस्टुरेंट एक रिहायशी होटल की बिल्डिंग में था, इसमें अधिकतर इसी होटल में रहने वाले कस्टमर ही आते थे, बाहर के लोगों का आना जाना कम होता था क्यूंकि इनके दाम बाकी रेस्टोरेंट्स की तुलना में बहुत ज़्यदा थे, दिन में ये रेस्टुरेंट बिलकुल खाली होता था क्यूंकि अक्सर होटल में रुकने वाले कस्टमर्स नाश्ता करके निकल जाते थे और फिर रात को ही वापस आते थे ,

रस्ते में मुझे ट्रैफिक मिल गया जिस कारण मैं थोड़ा लेट हो गया, जल्दी जल्दी मैं होटल के अंदर पंहुचा लेकिन शुक्र था की चन्द्रमा अभी तक नहीं आयी थी, मुझे ज़्यादा इन्तिज़ार नहीं करना पड़ा, मुश्किल से ५ मिनट ही हुए होंगे की चन्द्रमा रेस्टुरेंट में दाखिल हुई, मैंने जान बुझ कर एक कोने में शांत सी टेबल पर बैठा था जहा हम आराम से बैठ कर बिना किसी डिस्टर्बेंस के बात कर सकते थे,

मैंने जब चन्द्रमा को रेस्टुरेंट में खड़े देखा तो एक पल के लिए पहचान नहीं पाया, उसने वही कॉटन सूट पहना हुआ था जो मैंने उसको जयपुर में दिलवाया था, वही सफ़ेद कुर्ती, लाल शलवार और सर पर लाल चुन्नी, ठण्ड से बचने के लिए उसने एक शाल से शरीर को ढक रखा था, लेकिन पता नहीं क्यों चन्द्रमा के चेहरे पर एक अजीब सा सूनापन था, आँखों की चमक गायब थी, उसके गुलाबी होंटो पर लाल लिपस्टिक की एक मोटी सी परत चढ़ी हुई थी, शायद वज़न भी बढ़ गया था और बड़े अजीब तरीके से चलती हुई मेरे पास आयी।

उसके इस हालत में देख कर मुझे बड़ा अफ़सोस हुआ, वो मेरे सामने कर एक कुर्सी पर बैठ गयी, शायद बहुत दूर से चल कर आयी थी उसकी साँसे फूल रही थी, मैंने पानी का गिलास उसकी ओर बढ़ाया उसने चुपचाप पानी का गिलास उठा कर होंटो से लगा लिया और खाली गिलास टेबल पर रख कर मेरी ओर सवालिया नज़रो से देखने लगी,

हम दोनों कुछ देर ऐसे ही बैठे एक दूसरे की ओर देखते फिर चन्द्रमा ने नज़रे नीची कर ली, कुछ पल इन्तिज़ार कर उसने कुछ बोलने के लिए सर उठाया

इस से पहले चन्द्रमा कुछ बोलती, वेटर किसी भूत की तरह हमारे सर पर आकर खड़ा हो गया, मैंने पर्स से एक पांच सौ का नोट खींचा और उसकी ओर बढ़ा दिया, मैंने उसे अकेला छोड़ने के लिए कहा, वेटर नोट को अपनी जेब में ठूंसता हुआ भाग गया

मैं : हाँ तो बताओ क्या बोल रही थी तुम ?
चन्द्रमा : आप बताइये आपने ने क्यों बुलया है मुझे ?
मैं : मैंने बुलाया है ? ओह्ह हाँ मैंने इसलिए बुलाया है क्यूंकि किसी ने मुझसे कुछ वादा किया था, किसी ने कहा था की घर जा कर वो मेरे सवाल का जवाब देगी, लेकिन हुआ क्या ? हुआ ये की तुम बिना कुछ बोले गायब हो गयी, ऐसे गायब हो गयी जैसे मैंने तुम्हारे साथ कोई अत्याचार किया हो, या तुम्हारे साथ कोई गलत व्यवहार किया हो ?

मैं गुस्से में लगभग चीखता हुआ चन्द्रमा के सवाल पर उलट पड़ा, तीन महीनो से जिस टेंशन से गुज़रा था उनका आज मैं अपनी चुभती बातो से चन्द्रमा के ह्रदय को छलनी करके बदला ले लेना चाहता था,

चन्द्रमा : क्या जवाब देती आपको ?
मैं : वही जवाब जो मैंने तुमसे जयपुर में देवी के मंदिर में पूछा था , वो जवाब जो था तुम्हारे मन में ? अगर तुमको मुझसे शादी नहीं करनी थी तब भी बता सकती थी, मैं कोई ज़बरदस्ती तो नहीं कर रहा था तुमसे, तुम मना कर देती तो क्या मैं तुमको उठा कर ले जाता ?
चन्द्रमा : यही तो प्रॉब्लम थी समीर, आप मुझे उठा के भी नहीं ले जा सकते थे, अगर मैं चाहती तब भी नहीं ले जा सकते थे आप मुझे, इसलिए कुछ बोलने से अच्छा मैं आपसे दूर होने को समझा और आपसे सारे सम्बन्ध तोड़ लिए।
मैं : ओह्ह हाँ सम्बन्ध तोड़ लिया तुम वो भी बिना बताये, अगर सम्बन्ध ही तोडना था तो एक कॉल कर देती बोल देती की आज के बाद अपनी शकल मत दिखाना, तुम कह के तो देखती चन्द्रमा, तुम्हारे लिए तो मैं ज़िन्दगी छोड़ सकता था, तुम्हारे लिए खुद को क़ुर्बान कर सकता था लेकिन तुम मुझे मौका तो देती, एक बार बता कर तो देखती शायद कोई रास्ता निकल आता लेकिन तुमने मुझे इतना बताने के काबिल भी नहीं समझा ,
चन्द्रमा : आपको क्या लगता है ये मेरे लिए आसान था ? जितना आपके लिए मुश्किल है उसका दस गुना मेरे लिए मुश्किल है लेकिन मेरे पास इस मुश्किल से निकलने का कोई दूसरा रास्ता नहीं था इसलिए मैंने अपनी जीवन की सच्चाई को क़बूल कर लिया, समीर जी हम जैसी लड़कियों की किस्मत में आप जैसे अच्छे इंसान नहीं होते, ऐसा केवल फिल्मो में या कहानियों में ही होता है असली ज़िन्दगी में हम जैसी लड़कियों को ईशवर के भरोसे जीवन काटना होता है
मैं : लेकिन चन्द्रमा, मैंने झूट नहीं कहा था, ना तुमको कोई धोखा दे रहा था, तुमको क्या लगा था की मैंने जो शादी की बात की थी वो केवल फ़िल्मी बात थी तुम्हारा जिस्म पाने के लिए ? अगर तुमको विश्वास नहीं है तो अभी चलो किसी भी मंदिर में बुला लो अपने घरवालों को मैं अभी इसी समय सबके सामने तुमसे शादी करने के लिए तैयार हूँ ?
चन्द्रमा : काश की ऐसा हो पता लेकिन ये संभव नहीं है ?
मैं : क्यों संभव नहीं है ? तुम बस हाँ बोलो और फिर देखो कैसे असंभव को संभव बनता हुआ
चन्द्रमा : क्यूंकि आप एक बियाहता से शादी नहीं कर सकते, मेरी शादी दीपक से हो चुकी है
मैं : व्हाट डा फ़क ? ये कैसे सम्भव है
चन्द्रमा : संभव है समीर, सब संभव है
इतना कह कर चन्द्रमा ने अपनी चुन्नी को सर पर से सरका दिया, उसकी मांग में लाल रंग का सिंदूर साफ़ नज़र आरहा था, उसकी मांग में किसी और का सिन्दूर था, मेरी आँखों के सामने अँधेरा सा छा गया, लगा किसी ने मेरे दिल के ऊपर कांच का टुकड़ा रख कर एक हथोड़े से कांच के टुकड़े कर दिए हो और उस कांच के हज़ारो टुकड़े मेरे दिल को चीरते हुए दिल अंदर तक समां गए हो जो हर सांस के साथ दर्द की लहरे पैदा कर रहे थे। बड़ी मुश्किल से मैंने खुद को संभाला और टूटी हुई आवाज़ में पूछा
मैं : ये कब हुआ ? कैसे हुआ ?

चन्द्रमा : समीर मैंने आपको उस रात सब बता दिया था यहाँ तक की अपनी माँ और दीनू की कहानी भी, आपको मेरी माँ की कहानी का अंत तो बता दिया लेकिन मैं आपको अपनी कहानी का अंत बताने की हिम्मत नहीं जुटा पायी,

मेरा विश्वास करो समीर की उस रात मैंने आपसे जो भी कहा सच कहा उसमे कुछ भी झूट नहीं था बस मैंने आपको ये नहीं बताया था की जब उस रात पापा और रमेश हमारे घर से भाग कर अपने घर चले गए लेकिन अगले दिन रमेश ने मेरे पापा को अपने घर से भगा दिया, पापा के पास और कोई ठिकाना नहीं था वो इधर उधर भटक रहे थे तब उनको कही से दीपक टकरा गया, दीपक और पापा एक दूसरे को अच्छे से जानते थे क्यंकि घर के खरीदने के टाइम दीपक ही डीलर के साथ पापा से मिलने आता था, फिर जब दीपक को पता चला की पापा किसी कारण से घर नहीं जा रहे है तो उसने अपने किसी जानकार के मकान में पापा को रहने के लिए जगह दिला दी और उनके खाने पीने की व्यवस्था कर दी।

उस दिन दिवाली वाली रात जब दीपक ने मेरे साथ ज़बरदस्ती करने की कोशिश की और नाकामयाब रहा तो उस रात गुस्से में दीपक पापा के पास जा पंहुचा, उस रात दीपक पापा के पास उनको घर से निकालने पंहुचा था लेकिन दिवाली का दिन होने के कारण पापा को ज़रूरत से ज़्यदा शराब मिल गयी थी और वो नशे में धुत पड़े हुए थे, दीपक गुस्से में तो था ही उसने पापा को नशे में देखा तो गालिया देना लगा, गुस्से में ही दीपक ने कुछ उल्टा सीधा मेरे बारे में बोला तो पापा भी मेरा नाम सुन कर नशे में ही गालिया देने लगे, पापा को मुझे गाली देते सुनकर दीपक को थोड़ा शक हुआ तो उसने धीरे धीरे करके पापा से उगलवाना चालू कर दिया, पापा को नशे में पता नहीं चला और उन्होंने शरू से लेकर अंत तक सारी बात दीपक को बता दी, दीपक ने भी चालाकी से पापा की सारी बात मोबाइल में वीडियो बना कर रिकॉर्ड कर ली,

जब दीपक को ये सब बातें पता लग गयी तब वो एक दिन उसी कंपनी में आया जहा आपने मुझे नौकरी दिलवाई थी, उसने मुझे वो वीडियो दिखाई और धमकी दी की अगर अब मैंने उसको कुछ भी करने से रोका तो वो वीडियो वायरल कर देगा, मैं जानती थी की वो ऐसा कर सकता है इसलिए डर गयी, मेरे पास उसकी बात मानने के अलावा और कोई चारा नहीं था, अगर दीपक मेरे और पापा की वीडियो वायरल कर देता तो मैं और मेरी माँ जीते जी मर जाते, समाज में जो थोड़ी बहुत इज़्ज़त थी वो भी मिटटी में मिल जाती और हम किसी को मुँह दिखने के लायक नहीं रहते, मैंने दीपक की बात मान ली लेकिन दादी की डेथ का बहाना बनाकर उस से कुछ समय रुकने के लिए कहा, दीपक भी समझ गया था की अब मैं पूरी तरह से उसके चुंगुल में हूँ इसलिए मान गया, लेकिन इसी बीच में दीपक की बहन कोमल के चक्कर का भंडाफुट गया, कोमल अपने भाई के कमरे में अपने प्रेमी के साथ सेक्स करते हुए पकड़ी गयी, उसको सेक्स करते हुए दीपक के चाचा ने पकड़ा था तो बात छुपी हुई नहीं रही, पूरा परिवार इकठ्ठा हो गया,

दीपक और उसकी माँ ने कोमल को सबके सामने कमरे बंद करके खूब मारा तो गुस्से में उसने भी अपने भाई का भांडा अपने नातेदारों के सामने फोड़ दिया और जिस जिस लड़की के साथ दीपक के सम्बन्ध थे उसने माँ और नातेदार के सामने सब की पोल खोल दी, उसमे एक नाम मेरा भी था, जब दीपक की माँ का लगा की कहीं अब बेटी के साथ उनका बेटा भी बदनाम ना हो जाये तो उन्होंने जल्दी से मेरा नाम लेकर सब को बताया की वो मुझे जानती है और मुझे वो अपनी बहु बनाना चाहती है।

इस घटना के बाद नातेदारों में दीपक के परिवार की बहुत बेइज़्ज़ती हुई, लेकिन फिर भी उन्होंने किसी तरह से समझा बुझा कर नातेदारों को मना लिया और अपने गांव जो की कानपूर के पास था वहाँ कोमल को ले जाकर उसकी शादी कर दी, लेकिन शादी में जाने से पहले दीपक ने उस वीडियो का इस्तेमाल मेरा जिस्म पाने की बजाये मुझसे शादी करने के लिए किया, आखिर दीपक को अपने परिवार की इज़्ज़त जो बचानी थी, वीडियो के दबाव में मैंने दीपक के साथ कोर्ट मेर्रिज कर ली, शादी का प्रोग्राम उसने एक महीने के बाद का रखा और फिर अपनी बहन कोमल को गांव लेकर चला गया और वहाँ जा कर उसकी शादी गांव के ही किसी युवक से कर दी,

दीपक से कोर्ट मर्रिज के अगले दिन मैंने अपनी जॉब से रिजाइन कर दिया, इसी बीच आपसे बात हुई पहले तो मेरा मन नहीं था कुछ भी करने का क्यूंकि मैं मज़बूरी में दीपक से शादी कर रही थी अपनी ख़ुशी से नहीं, लेकिन फिर मैंने मन में थाना की चाहे जो भी हो मैं दीपक को अपना जिस्म तो दे सकती हूँ लेकिन उसको अपना कुंवारा जिस्म नहीं दूंगी और फिर मैं आपके साथ जयपुर आगयी, जयपुर में आकर अपने जिस तरह से मेरा ख्याल रखा और अपनी इच्छा से ऊपर अपने मेरी ख़ुशी को वैल्यू दी उसने मेरे दिल में आपका सम्मान बहुत ऊपर कर दिया, उस रात जब अपने मुझे छुआ और मैं नींद से घबरा कर जागी तब पता नहीं मन में कौन सी इच्छा जागी और मैंने आपको सब बात बता दी, आप से शेयर करके ऐसा लगा जैसे मेरा सारा बोझ हल्का हो गया हो और फिर अपने जब अपने मुँह से सच्चाई क़बूल कर ली उस ट्रिप की पीछे की तो मेरा आप पर विश्वास और बढ़ गया और फिर मैंने भी खुल कर आपके साथ सेक्स का मज़ा लिया, मैं जानती थी की आपके साथ मेरे सब राज सुरक्षित है, आप कभी मुझे दीपक की तरह ब्लैकमेल या परेशान नहीं करेंगे इसलिए मैंने बेजिझक वो सब कुछ किया जो मेरे मन में इच्छा थी,

बस एक बात की उम्मीद नहीं की थी मैंने और वो की आप मुझे इस तरह से परपोज़ कर देंगे, उस दिन मैंने मंदिर में भगवन से यही माना था की भले चाहे कागज़ो में या मेरे गले में मंगलसूत्र डालने वाला व्यक्ति दीपक है लेकिन मैंने आपको अपना पति मान कर ही अपना कुँवारापन आपको सौंपा था, लेकिन जब आपने शादी की इच्छा मंदिर में जाता दी तो मैं मन मेबहुत खुश हुई थी लेकिन दिमाग में ये बात क्लियर थी की मैं मन से भले आपको अपना पति मान लू लेकिन असल में दीपक ही मेरा पति रहेगा,

जयपुर से वापस आने के कई दिन तक मैं हिम्मत जुटती रही आपको सच बताने का लेकिन हिम्मत नहीं हो पायी इतने में दीपक गांव से लौट आया और वो और उसकी माँ शादी की तैयारियों में लग गए, मैंने शादी में फेरो से पहले दीपक की माँ के सामने एक ही शर्त राखी थी की मेरे पापा के जाने के बाद अगर मेरी माँ अकेली हो गयी तो वो मेरे साथ रहेगी, दीपक और उसकी माँ दोनों ने सहमति लिखित में दी फिर मैंने दीपक के साथ शादी के फेरे ले लिए।

शादी के लिए गांव जाने से पहले मैंने वो मोबाइल सिम के साथ नदी में फेक दिया था मैं नहीं चाहती थी की मेरे जीवन की काली छ्या आप पड़े, मुझे डर था की कहीं दीपक को अगर भनक लग गयी की मैंने अपना कुँवारापन आपको दिया है तो वो बेकार में आपके परेशान करता, बस समीर मुझसे ये गलती हुई की मैंने आपको आखिरी बार अलविदा नहीं कहा, ,मैं आपको अलविदा कहने की हिम्मत नहीं जुटा पायी, मुझे लगा था की इतनी बड़ी दुनिया है उसीकी भीड़ में खो जाउंगी, लेकिन मुझे नहीं पता था की आप मुझे ढूंढते ढूंढते मुस्कान तक पहुंच जायेंगे और मैं मुजरिम की तरह आपके सामने खड़ी होउंगी , चन्द्रमा चुप हो गयी शायद उसकी बात ख़तम हो चुकी थी,

मैं अवाक् उसकी कहानी सुन रहा था।

मैं : चन्द्रमा अगर तुमको दीपक से ही शादी करनी थी तो मुझे प्रेम ही क्यों किया और अगर ये मजबूरी थी अगर तुम मुझे पहले बता देती तो शायद मैं तुम्हारी कोई हेल्प करता। मेरे पास बहुत से रस्ते थे चन्द्रमा तुम्हे इस जंजाल से निकालने के लिए, काश चन्द्रमा तुमने मुझे अपना कुँवारापन देने के बजाये विश्वास दिया होता तो आज तुम्हारी मांग में दीपक के नाम का नहीं मेरे नाम का सिंदूर होता।

चन्द्रमा : समीर मैं आपको क्या बताती और ये मत भूलो समीर की जयपुर जाने से पहले तक आप केवल मुझे भोगना चाहते थे, ये आपका प्यार तो जयपुर में जाएगा मेरे लिए और आपने मुझे परपोज़ किया, अगर मैंने आपको उस से पहले बताती तो आप मेरा विश्वास नहीं करते।
मैं : बस यही चूक गयी तुम चन्द्रमा, हाँ ये सच है की मैं जयपुर तुमको सेक्स करने के लिए लेकर गया था, लेकिन प्यार तो मुझे उस दिन तुमसे हो गया था जिस दिन मक्डोनल्ड्स में तुम मेरी आँखों में खो गयी थी, अगर उस दिन तुम्हारे साथ मुस्कान ना होती तो उसी दिन मैं तुमसे अपने दिल की बात कह देता।
चन्द्रमा : बस जो मेरे भाग्य में था समीर वही हुआ, अब तुम्हारा दिल दुखने के लिए मुझे माफ़ कर दो और मुझे भूल जाओ
मैं : तुम्हारे लिए शायद आसान होगा चन्द्रमा लेकिन मेरे लिए, (मैंने दृढ़ता से कहा )चन्द्रमा तुम मेरा प्यार थी, हो और रहोगी
चन्द्रमा : (घबरा गयी, उसे लगा की मैं कोई ज़बरदस्ती करूँगा ) समीर मेरा विश्वास करो मेरे गले में मंगलसूत्र किसी और के नाम का है अब हमारे बीच कुछ नहीं हो सकता (इतना कह कर उसने अपने गले से मंगलसूत्र को खींच कर बहार निकला अपनी बात साबित करने के लिए)

पता नहीं क्यों उसके गले में किसी और का मंगलसूत्र देख कर मेरे अंदर गुस्से की एक आग सी जल उठी, अचानक से इस बातचीत से मेरा मन उखड गया, आखिर मैं लड़ किस बात के लिए रहा था, जो मेरा होकर भी मेरा ना हुआ भला उस से क्या लड़ना, मैं लड़ाई उसी दिन हार गया था जिस दिन चन्द्रमा ने मेरे परपोज़ का सीधा जवाब नहीं दिया था, हारी हुई जंग लड़ना मूर्खता थी, मैं अपनी सीट से उठ गया, चन्द्रमा भी उठने से पहले अपना मांगसूत्र ठीक करने लगी अचानक मेरी नज़र उसके गली में पड़ी तुलसी माला पर पड़ी, वो मेरी तुलसी माला थी जो होटल में नहाते समय चन्द्रमा ने मेरे गले से निकाली थी,

मैं : ये तो मेरी तुलसी माला है
चन्द्रमा : हां, ये मैंने आपकी निशानी मान कर पहन ली थी,
मैं : जब मैं ही नहीं तुम्हारी ज़िन्दगी तो फिर मैं क्या और मेरी निशानी क्या ?

मैंने आगे की ओर झुका और एक झटके से तुसली माला को पकड़ कर खींच दिया, तुसली माला के दाने ज़मीन पर टूट कर बिखर गए मैं उन्ही तुसली माला को अपने कदमो के नीचे रौंदता हुआ रेस्टुरेंट से बाहर निकल आ गया,

बाहर बहुत ठण्ड हो चली थी पता नहीं क्यों आज शाम में ही घना कोहरा छाया हुआ था, मैंने बाइक स्टार्ट की, दिल में एक बहुत तेज़ दर्द भरी टीस उठी, मैंने बाइक की रफ़्तार तेज़ कर दी और कोहरे की धुंध में घुसता चला गया, शायद खुद को इस धुंध में सदा के लिए खो देना चाहता ताकि फिर कोई चन्द्रमा मुझे ढूंढ ना सके।


[color=rgb(255,]समाप्त

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समीर गुस्से से उठ कर चला गया था चन्द्रमा उसी तरह अपनी सीट पर सर झुकाये किसी पत्थर की तरह बैठी रही, पीछे की सीट से एक महिला उठी और चन्द्रमा के अपने गले से लगा लिया, चन्द्रमा की आँखों से आंसुओं की एक धारा बह निकली, उस महिला ने चन्द्रमा के आसु पोंछे और दिलासा देने लगी, फिर चन्द्रमा को छोड़ कर ज़मीन पर बैठ गयी और ज़मीन पर पड़े तुलसी दानो को एक एक करके उठाने लगी,

चन्द्रमा : रहने दो माँ इनको कोई ज़रूरत नहीं
सरिता : लेकिन बेटी, ये तुम्हारे समीर की आखिरी निशानी है
चन्द्रमा : (शाल हटा कर अपने गर्भ को सहलाती हुई) मेरे पास उस की सबसे बड़ी निशानी है माँ, आपके नसीब में दीनू का प्यार कुछ समय के लिए रहा लेकिन समीर का प्यार मेरे साथ आजीवन रहेगा।

सरिता तुलसी के बीज को ज़मीन पर ऐसे छोड़ कर उठ गयी फिर आगे बढ़ कर चन्द्रमा को संभाला और रेस्टुरेंट से निकल बाहर आगयी बाहर हवा चल पड़ी थी और कोहरा छट रहा था, तेज़ हवा ने बादलों को को उडा दिया था और साफ़ सुथरे आसमान में चौदहवी का चाँद खुल कर अपनी छठा बिखेर रहा था, दोनों माँ बेटी एक दूसरे को संभाले हुए जगमगाती रौशनी में समाती चली गयी ।


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दिन के १२ बजे है और समीर अपने कंप्यूटर पर कुछ कर रहा है, तभी उसका फ़ोन बजने लगता है
समीर : हेलो
कॉलर : हेलो सर पहचाना ?
समीर : नहीं आप कौन ?
कॉलर : मैं आपकी दोस्त मुस्कान.................
 
आज दुनिया 21 वीं सदी मे प्रवेश कर गई है । टेक्नोलॉजी और शिक्षा के माध्यम से लोग विकसित होने का दम्भ भरने लगे है । लेकिन समाज मे औरतों की दशा आज भी पुरानी सदी की जैसी ही है।
स्त्री को प्रेम करने का अधिकार नही होता। अंतर्जातीय सम्बन्ध जोड़ने पर दंड स्वरूप उसे सरेआम मौत के घाट उतार दिया जाता है। दो समुदाय की लड़ाई मे औरतें अक्सर पीस जाती है। इन्हें नग्न करके सरेआम परेड कराया जाता है । इनकी आबरू लूट ली जाती है। इन्हे कत्ल कर दिया जाता है।
यहां तक कि दो देश के युद्ध मे भी इनके साथ हैवानियत भरा आचरण किया जाता है।
अगर कोई औरत शिक्षित हो गई और सर्विस ज्वाइन कर ली तो वे सड़कों पर , मेट्रो मे , आफिस मे अलग तरह की मानसिक हिंसा और प्रताड़ना की शिकार होती है। उनकी उपलब्धियों को नकारा जाता है। उनके तरक्की को संदिग्ध भरी नजरों से देखा जाता है । उनके चरित्र पर उंगलियां उठाई जाती है । उन्हे उपभोग की वस्तु की तरह देखा जाता है।
नारी का जीवन उसके जन्म से पहले ही संघर्षों से भरा हुआ है। सबसे पहले तो जन्म लेने के लिए संघर्ष । अगर समझदार एवं दयालु माता पिता मिल गए तो इस संसार मे आंखे खोलने का सौभाग्य प्राप्त होता है अन्यथा कोख ही उसकी कब्रगाह बन जाती है। उसका बचपन मां-बाप और भाईयों के कठोर अनुशासन और प्रतिबंध मे गुजरता है। विवाह के बाद हसबैंड की सहचरी बनकर नही वरन सारे परिवार की दासी और सेविका बनकर समय गुजरता है।
कभी दहेज की सूली पर चढ़ा दी जाती है तो कभी बलात्कारी का शिकार बन जाती है।

इस कहानी मे सरिता देवी और चन्द्रमा की अवस्था लगभग ऐसी ही थी। यहां तक की सरिता देवी के मरहूम सौतन की भी।

मुझे सुमित्रानंदन पंत जी की एक कविता याद आ रहा है--
" मुक्त करो नारी को मानव , युगबंदिनी नारी को ,
युग युग की निर्मम कारा को , जननी सखि प्यारी को । "

लेकिन चन्द्रमा से मुझे काफी शिकायत भी है । उसने समीर पर ठीक से भरोसा नही किया । उसने समीर से वह बात छुपा ली जो समीर को सबसे अधिक जानना चाहिए था । वो कितनी भी प्रॉब्लम मे थी लेकिन समीर के पास उसका समाधान था , बाहुबल के जोर से भी और कानून के जरिए भी ।
उसकी दूसरी सबसे बड़ी गलती थी कि वो ब्लैकमेल का शिकार हुई । वो भी एक ऐसा ब्लैकमेल जो उसका बाल भी बांका न कर सकता था । उसके पिता और उसके दोस्त ने उसे बलात्कार करने की कोशिश जरूर की थी लेकिन वो कामयाब न हो पाए थे। वो बिल्कुल गंगा की तरह पवित्र थी। अतः ऐसी छोटी चीज के लिए उसे कोई भी समझौता नही करना चाहिए था ।

दरअसल प्रेम के मामले मे उसे अपनी मां से सबक लेना चाहिए था । उसकी मां ने अपने प्रेम के लिए अपने रसूखदार मां-बाप से बगावत कर दी थी।

मुझे लगता है , अभी भी कोई देर नही हुआ है । वो अपने हसबैंड से तलाक लेकर समीर के साथ शादी कर सकती है । मुझे हंड्रेड पर्सेंट विश्वास है समीर , चाहे कैसी भी परिस्थिति हो , चन्द्रमा को अपना लेगा ।

आप की यह कहानी वास्तव मे बहुत खुबसूरत कहानी थी । इस कहानी को " रोमांस कैटेगरी " मे होना चाहिए था ।
आप की यह कहानी बरसो तक रीडर्स के दिल और दिमाग मे बसी रहेगी ।

अंत मे यही कहूंगा , आप की यह कहानी , मेरे शब्दों मे , जगमग जगमग थी ।
 
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