AntarvasnaX जवानी जानेमन

पंडित रामशरण निष्ठुर , निर्दयी और एक वाहियात बाप के रोल मे अवश्य ही नजर आए पर उनकी बेटी सरिता भी कोई अच्छी चरित्र की लड़की बनकर न निकली।
इसके अलावा भाभी जी जो इस कहानी की सूत्रधार बनी फ्लैशबैक उजागर कर रही है , उन्होने भी एक अच्छे पारिवारिक शुभचिंतक का रोल्स अदा नही किया।
काश , सरिता की कथित प्रेम कहानी को उसी वक्त पंडित को बता दिया होता जब इस प्रेम कहानी को शुरू हुए दो चार दिन ही हुए थे , तो शायद ऐसी विकट परिस्थिति पैदा न होती।
उन्होने सरिता के साथ साथ पंडित रामशरण के साथ भी गलत किया।
प्रेम के बिल्कुल खिलाफ मे नही हूं। लेकिन प्रेम आत्मा से किया हुआ हो। पर उस प्रेम को मै कभी सही भी नही ठहरा सकता जहां शारीरिक सेक्सुअल आकर्षण पैदा हो रहा हो।
सरिता मैडम किसी भी लड़के से प्रेम करे , वो हैसियत मे मेल नही खाता हो , जात पात मे अंतर खाता हो , या धर्म का रोड़ा हो , लेकिन प्रेम शारीरिक समागम नही मांगता । प्रेम वासनात्मक नही होता । प्रेम समाज मे जिल्लत भरी उपहास नही मांगता। प्रेम खुलेआम सेक्सुअल सम्बन्ध बनाना नही मानता। और यह सब सरिता मैडम ने सहर्ष , खुशी से किया । यह जानते हुए किया कि उसके पिता की समाज मे क्या हैसियत है , क्या धर्म है और क्या औकात है ।

पंडित रामशरण को भी मै एक पिता के नजरिए से उनका व्यवहार कतई स्वीकार नही कर सकता। कैसे कोई बाप अपने जवान संतान पर हाथ उठा सकता है ! कैसे कोई बाप अपनी बेटी को बेरहमी से मारपीट सकता है ! और वह भी एक बार नही बल्कि कई बार , हर दिन , हर समय । ऐसा व्यक्ति पिता नही हो सकता । ऐसे व्यक्ति संवेदनशील नही होते । ऐसे लोग के लिए फेमिली फर्स्ट नही होता । ऐसे लोग समाज के दकियानूसी सोच के मरीज होते है।
अगर उन्हे इतना ही बुरा लग रहा था तो वो अपनी बेटी से रिश्ता तोड़ लेते। उसे अपने वसीयत से बेदखल कर देते। उसके साथ हर तरह का सम्बन्ध खतम कर लेते।
लेकिन लड़की को बुरी तरह प्रताड़ित करना , चोटिल करना , बुरी तरह जख्मी करना किसी भी एंगल से जायज नही था।
वैसे मै सेकड़ो ऐसी सच्ची कहानी बता सकता हूं जहां शादी-ब्याह मे धर्म का रोड़ा नही आया । उनमे कुछ का वैवाहिक जीवन सफल है तो कुछ का असफल । अगर धर्मान्तरण और झूठ की बुनियाद न हो तो ऐसी शादी सफल भी हो सकती है।
और जहां तक बात पंडित और राजपूत को निर्दयी या अत्याचारी दिखाने की बात है , भाई हंड्रेड पर्सेंट सत्य है कि एक वक्त था जब इनकी तुती चलती थी । कुछ अत्याचारी भी हुए और कुछ सदाचारी भी।
यह कोई नई बात नही है। पावर और बड़ा कास्ट लोगो को कभी-कभार अहंकारी एवं निरंकुश भी बना देता था।

बहुत ही बेहतरीन अपडेट भाई।
आउटस्टैंडिंग एंड अमेजिंग अपडेट।
 
सप्ताह बीता तो सरिता और दीनू की चर्चा काम होने लगी लेकिन पंडित जी के अपमान करने वालो की जीभ बंद नहीं हुई, हमारा समाज सदा से ऐसा ही रहा है, किसी की गलती पर किसी और को जिम्मेदार ठहरना, सरिता के दीनू से हुए प्रेम में ना तो पंडित जी का हाथ था और ना पंडिताइन का कोई दखल था लेकिन समाज की नज़रो में पंडित जी गुनहगार थे

ऐसा नहीं था की समाज को नहीं पता था की सारी गलती सरिता और दीनू की है लेकिन अगर किसी बेदाग़ चरित्र वाले व्यक्ति के ऊपर एक छोटा सा भी दाग लग जाये तो वो चर्चा का कारण होता है, गलती जितनी सरिता की थी उस से काम दीनू की भी नहीं थी लेकिन उपहास दीनू के परिवार का कोई नहीं उड़ा रहा था क्यूंकि उसके परिवार का कोई रुतबा तो था नहीं, उपहास उसी का उड़ाया जाता है जिसका समाज में कोई सम्मान हो या कोई रुतबा, और उपहास उड़ने वाले भी जायदातर अपनी जाती वाले हे थे, जिनको पंडित जी ने कभी मुँह न लगाया या कोई महत्व्व भी न दिया हुआ हो वो आज पंडित जी और उनके परिवार पर कटाक्ष करके अपने पुराने बदले चुकता कर रहे थे।

पंडित जी इस गांव के लिए नए नहीं थी वो हर व्यक्ति की नस नस से भलीभांति परिचित थे लेकिन वो बस चुप थे जितना अधिक वो इन बातो पर प्रतिक्रिया देते बात उतनी बढ़ती और उतना ही लोगो को मौका मिलता इस विषय पर चर्चा करने का। जो भी हो इस घटना ने पंडित जी को अंदर से रोग लगा दिया था, उसके चेरे पर नज़र आने वाला तेज़ अब मंद पद गया था और ऐसा लग रहा था मानो एक एक दिन वर्षो के बराबर हो, इस घटना के 3-४ सप्ताह में ही मानो अपनी आयु से 10-१५ साल ज़ायदा बूढ़े हो गए हो,

एक तो वैसे भी उन्होंने बहुत देरी से शादी की थी, शादी देरी सी की तो संतान भी देरी से हुई, जब सरिता पैदा हुई थी तो उनका मन उतना अधिक प्रसन्न नहीं हुआ था उनकी चाहत थी की बेटा होता लेकिन ये सब तो भगवान के हाथ था, लेकिन जैसे जैसे सरिता बड़ी होने लगी तो बेटी के प्रति उनका प्रेम बढ़ता गया, पंडित जी बहुत गंभीर और अपनी भावनाओ को अपने अंदर रखने वाले व्यक्ति थे इसलिए वो बहुत कम अपना प्रेम सरिता के प्रति प्रकट करते लेकिन जब जब पंडिताइन सरिता को पंडित जी गोद में डाल देती तो पंडित जी का मन अंदर ही अंदर फूल सा खिल उठता, वो घंटो उसके अपनी गोद में लिए निहारते रहते आखिर उनका अपना खून था भला प्रेम क्यों ना उमड़ता लेकिन प्रेम करना अलग था और प्रेम को दिखाना अलग था, इसलिए बहुत से लोगो को लगता था की शायद पंडित जी सरिता से उतना प्रेम नहीं करते जितना एक पिता को अपनी पुत्री से करना चाहिए था, इस बात का एहसास सरिता को भी हुआ जैसे जैसे वो बड़ी हुई, सारी दुनिया की तरह उसके मन में भी यही भावनाये पनपने लगी थी की शायद उसके पिता उसको नहीं मानते, इस आग में घी डालने का काम तब हुआ जब शम्भू पैदा हो गया, शम्भी सरिता के जनम के 10-११ साल के बाद पैदा हुआ था, पंडित जी की बेटे के प्रति जो चाहत थी जब वो पूरी हुई तो पंडित जी उसे छुपा नहीं पाए और अपन सारा प्यार शम्भू पर उंडेल दिया। जब सरिता ने अपने पिता को शम्भू पर प्यार लुटाते देखा तो उसका विश्वास पक्का हो गया की उसके पिता को उसकी उतनी परवाह नहीं है जितनी उसके छोटे भाई की है,

दूसरी ओर पंडिताइन थी पंडिताइन बहुत ही आदर्शवादी और धार्मिक परिवार से आयी थी इसलिए बचपन से ही वो धर्म कर्म में लींन रहती इसलिए उनका भी धयान सरिता पर उतना नहीं था जितना होना चाहिए था। शायद यही सब कारन था की सरिता दीनू के प्रति दीवानी हो गयी थी, शायद वो प्यार जो उसे चाहिए था वो प्यार उसे दीनू के रूप में मिल गया और फिर उसे किसी कोई परवाह ही ना रही।

पंडित जी ने विचार विमर्श करके सरिता की शादी का फैसला ले लिया और बिरादरी में उसके लिए सुयोग वर देखने लगे, लेकिन लड़की अगर एक बार बदनाम हो जाये तो फिर सुयोग वर मिलना तो दूर दुबियाहता और विधुर भी दूर भागते नज़र आये, किसी तरह से पंडित जी ने एक दो वर ढूंढ निकाले लेकिन सरिता ने सबके सामने मुँह पर ही इंकार कर दिया, उसकी इस हरकत ने पंडित जी रही सही कमर भी तोड़ दी।

सरिता के घर से भागने वाली घटना को तीन चार महीना होने को आया था, होली आगयी थी, पंडित जी के घर में हमेशा होली का त्यौहार खूब धूम धाम से मानता था लेकिन इस बार उतनी धूम से नहीं मना, होली की छुट्टी में दीनू अपने घर आया, सब दिवाली की मस्ती में थे पता नहीं किसके द्वारा सरिता ने दीनू तक सन्देश पहुंचाया की होली वाली रात को दीनू किसी प्रकार से सरिता के घर की छत पर पहुंच गया, तयोहार की कारन पंडिताइन ने बेटी को थोड़ी छूट दे दी थी जिसका उसने पूरा फ़ायदा उठाया था, लेकिन सरिता और दीनू की किस्मत ख़राब थी किसी पडोसी ने उनको छत पर देख लिया और चोर समझ कर हल्ला मचा दिया, जैसे तैसे दीनू भगा लेकिन गांव के 2-४ लड़को ने पकड़ लिया और दीनू की पिटाई कर दी, ये तो शुक्र था की गांव वालो ने छत पर उसके साथ सरिता को नहीं देखा वरना उस दिन दीनू का बचना मुश्किल होता ,

भले गांव वालो ने दोनों को साथ नहीं देखा लेकिन पंडित जी समझ गए की ये ज़रूर सरिता की ही हरकत है क्यूंकि उन्होंने शाम से ही सरिता को बहाने से छत आते जाते कई बार देखा था , अब पानी सर से ऊँचा हो चूका था अब उनके अंदर और बढ़नी सहने की शक्ति नहीं थी, उन्होंने सरिता को मार मार के अधमरा कर दिया था फिर भी उसके सर से दीनू का भूत नहीं उतार पाए थे, इस से आगे तो यही बचता था की या तो वो खुद अपने हाथो सरिता को गाला घोंट कर मार दे और फांसी चढ़ जाये या आत्महत्या कर ले।

उन्ही दिनों रमेश जिसके घर में सरिता को मैंने छुपा कर रखा था गांव आया, जब उसको सरिता और दीनू के बारे में पता चला, रमेश सदा का लफंगा और दारुबाज था, जब उसने सरिता के बारे में सुना तो उसकी लार टपक गयी लेकिन वो शादी शुदा तो उसका कुछ हो नहीं सकता था, फिर वो कुछ दिन में गांव लौटा और इस बार उसके साथ में तेरा पिता था, दखने से ही पता चलता था की रमेश और तेरा पिता एक ही प्रजाति के है, रमेश ने तेरे पिता के बारे में सरिता से बात करने के लिए बोला लेकिन मैंने टाल दिया, लेकिन रमेश ने किसी तरह राधा की माँ को लालच दे कर पंडित जी के पास संदेसा भेज दिया।

पंडित जी के पास और कोई चारा नहीं था, तेरा बाप उनकी ना जाती का था और ना बिरादरी का और ना ही रख रखाव में उनके सामान था लेकिन वो इस गांव से बहुत दूर का रहने वाला था जहा से सरिता का वापस दीनू तक पहुंचना संभव नहीं था, पंडित जी ने ज़ायदा सोचना ठीक नहीं समझा और पंडिताइन के थोड़े बहुत विरोध को दरकिनार कर ज़बरदस्ती सरिता की शादी तेरे पिता जी से कर दी। गांव के 10-१५ लोग ही थे शादी में, सरिता ने इस विवाह का भरकस विरोध किया लेकिन पंडित जी ने एक ना सुनी, रमेश ने भी तेरे पिता को जम कर पिला राखी थी इस लिए उसे कुछ समझ नहीं आया और ऊपर से भाषा के कारन भी उसको आधी बात पल्ले नहीं पड़ती थी , वो तो बस इसी में खुश था की उसे एक कमसिन जवान लड़की मिल रही थी सरिता के रूप में। रमेश ने इस शादी के लिए पंडित जी से अच्छे खासे पैसे ऐंठे थे, सुना था की उसने तेरे बाप से भी पंडित जी के नाम पर काफी पैसे लूट लिए थे।

विदाई के समय तक सरिता मानो पत्थर हो चुकी थी शायद उसके आंसू सुख चुके थे, पंडिताइन ने सरिता को गले लगाना चाहा तो उसने झटक दिया बस जाते जाते मेरे पास कुछ पल के लिए रुकी और गंभीर लेकिन खुदरी आवाज़ में बोली " काकी मेरे माँ बाप मेरी शादी करके आज आज़ाद हो गए, आज से ना मैं इनकी ना ये मेरे, मैं तो इनके लिए उसी दिन मर गयी थी जिसदिन नदी में डूबी थी लेकिन मेरे लिए ये आज मरे है, बस एक कृपा कारना दीनू मिले तो बता देना, मैं वापस आयूंगी, जब वापस आउंगी उस दिन के बाद केवल उसी के होक रहूंगी" ।

पंडित जी और बिरादरी के कुछ लोग मेरे पीछे ही खड़े थे सब ने सरिता की बात सुनी और हैरत से मुँह खोले देखते रहे , ये बात किसी ने नहीं सोची थी, अगर सरिता शादी के बाद अपने पति से डाइवोर्स लेकर आती है तो उसे कोई माई का लाल दीनू के साथ रहने से नहीं रोक सकता,
अब तक सब इस बात को लेकर निश्चिन्त थे की चलो अब शादी के बाद ये दीनू वाला अध्याय ख़तम हुआ लेकिन ये तो अमर बेल जैसा खेल हो गया था।

सरिता बयाह कर रमेश के घर चली गयी वह २ दिन के बाद उसकी गाड़ी थी दिल्ली के लिए, अगले दिन मैं किसी काम से पंडित जी के घर गयी तो वहा उन्ही बिरादरी वालो की फिर से बैठक चल रही थी ये 4-५ वही लोग थे जो सरिता की बरामदगी वाले दिन पंडित जी से मीटिंग कर रहे थे, मैं बात पंडियाएँ से कर रही थी लेकिन मेरा धयान बार बार उसी बैठक की ओर जा रहा था, बैठक में कुछ ज़ायदा ही गंभीर मुद्दा था पंडित जी बार बार किसी बात के लिए ना बोल रहे थे लेकिन उनमे से एक जवान जोशीला लड़का बार बार कोई बात मनवाने की कोशिश कर रहा था, पता नहीं क्यों मुझे अजीब सा एहसास हो रहा था मैं वह ज़यादा देर रुक नहीं पायी और घर वापस आगयी,

अगले दिन शान शाम को दीनू को माँ यही चावल और गुड़ के लड्डू ले कर आयी, आज दीनू गांव आया था और खुशखबरी लाया था की आज से उसके बाप को पुरे होटल के कपडे धुलाई का काम मिल गया था, मैं उसकी ख़ुशी में खुश थी लेकिन मैंने साथ ही चेताया की किसी तरह अपने बेटे को संभल के रखे, कल ही सरिता की शादी हुई है और वो उसके घर से २ कदम की दुरी पर ही रह रही है, कोई ऊंच नीच ना हो जाए, भगवान ना करे अगर कुछ गड़बड़ हुई तो इस बार बात हद से ज़ायदा बिगड़ जाएगी। वैसे भी बस बीच में एक दिन की और बात है फिर तो सरिता जीवन भर के लिए चली जाएगी , मैंने उसको सरिता की चेतावनी वाली बात नहीं बताई थी, दीनू की माँ मुझसे वादा करके गयी की वो रात में अपने बेटे को घर से बहार नहीं निकलने देगी और कल सुबह मुँह अँधेरे ही शहर भेज देगी।

पता नहीं क्यों फिर भी मुझे चैन नहीं पड़ा और मैं रात में ही पंडित जी के घर पहुंच गयी , मैंने उनको दीनू के गांव में आने का बताया, साथ ही मैंने उनको समझाया की वो आज अपने बाप को काम मिलने की ख़ुशी में आया है लेकिन पंडित जी मेरी बात नहीं माने उनको पूरा विश्वास था की दीनू सरिता को भागने आया है, उन्होंने मुझ घर वापिस भेज दिया और अपने दो लठैत बुला कर मेरे साथ कर दिए, पंडित जी ने उनको रमेश के घर की रखवाली का जिम्मा दिया था, मेरे पीछे पीछे ही पंडित जी ने तीसरे लठैत को भेज कर बिरादरी वालो को बुला भेजा जिन के साथ पिछले दिन बैठक चल रही थी।

सारी रात मैं सो नहीं पायी बार बार लगता था की शायद अब कोई दुघटना हुई, राम राम करते हुए सुबह हुई लेकिन सब शांत था, मैंने ईश्वर का शुक्र मनाया और बाकी कामो में अपना दिन गुज़ार दिया, शाम होने के बाद मैं अपना खाना बना रही थी की तभी एक शोर सुंई दिया, और गांव के कुछ लड़के और मरद भागते दौरते दिखाई दिए, मेरा दिल धक् से रह गया, किसी उन्होनी की आशंका ने मेरा सर चकरा दिया, मैंने जैसे तैसे खाना उतार कर कमरे में रखा और ताला लगा कर घर से निकली,

शोर रमेश के माकन की ओर से आ रहा था, रात का समय था तो अँधेरा था, मैं अँधेरे में ही आवाज़ की दिशा की ओर चल दी, जैसे जैसे आगे बढ़ रही थी शोर बढ़ता जा रहा था, मैं रमेश के दरवाजे पर पहुंची लेकिन ये शोर रमेश के यहाँ से नहीं उसके अगले माकन यानि सुम्मु के घर से आरहा था, मैंने धड़कते दिल के साथ सुम्मु के घर की ओर भागी, देखा सुम्मु के दरवाजे पर भीड़ थी, लोग कुछ बोल रहे थे लेकिन उस समय मुझे कुछ सुनाई नहीं दे रहा था,

मैं किसी तरह भीड़ को चीरती हुई सुम्मु के आंगन में पहुंची, लालटेन की मंद रौशनी में देखा दीनू का बेजान शरीर जमीन पर था और उसकी माँ चांदनी उसके शरीर से लिपटी दहाड़े मार मार कर रो रही है, सुम्मु दीनू के पैरो के पास बैठा एक तक अपने मुर्दा बेटे के बेजान चेहरे को तक रहा था मानो उसमे जीवन की कोई कोई लालिमा तलाश कर रहा हो। लेकिन दीनू दुनिया से बहुत दूर जा चूका था, मेरी आँखों से भी आंसू की धरा बाह चली थी, अभी कुछ साल पहले ही तो मैंने उसको उसकी माँ के कोख से निकलने के बाद सबसे पहली बार गोद में लिया था, जब कोख से निकला था तो बिलकुल ऐसे ही शिथिल था जैसे आज है, एक बार तो डर लगा था की कही मुर्दा बच्चा तो नहीं पैदा हुआ लेकिन जैसे ही मैंने उसके कोमल चूतड़ों पर चुटकी काटी थी अचानक से रो पड़ा था, रोते रोते मैं यही सोच रही थी की काश वैसा ही चमत्कार आज हो जाये मैं फिर से दीनू को चूंटी काटू और ये फिर से रो जाये फिर से ज़िंदा खड़ा हो जाये।

लेकिन ऐसे चमत्कार कहानियों में होते है हकीकत में नहीं , चांदनी का रोना नहीं थम रहा था, उसका इकलौता बेटा आज उसके सामने मुर्दा पड़ा हुआ था भला किस माँ का सीना ना फट जाता, उसका रोना देख कर वह खड़े सभी लोगो को रोना आरहा था, चांदनी की रोने की आवाज़ नयी बियाहता सरिता के कानो तक भी पहुंची और वो भी दौड़ती भागती सुम्मु के घर आपहुची, दीनू को मारा देख कर सरिता मानो काठ की हो गयी, उसके जैसे अपनी आँखों पर विश्वास ही नहीं हो रहा था, उसका वो प्यार जिसके लिए उसने घर बार, माँ बाप सब छोड़ दिया, सारे सुख चैन त्याग दिया आज वही प्यार उसको छोड़ कर दुनिया से चला गया था उसकी तो मानो दुनिया ही उजाड़ गयी थी, चांदनी सरिता को अपने पास रोते देख कर अपने सीने से लगा लिया और फिर जो उन दोने ने दहाड़े मार मार कर रोई है तो क्या मर्द क्या औरत वह खड़े हर वयक्ति की आँखों में आंसू थे,

मैंने पास खड़े लोगो से पूछा तो पता चला की आज सुबह मुँह अँधेरे ही उसकी माँ ने दीनू को घर से चलता कर दिया था, लेकिन अचानक अगले गांव से किसी ने दीनू की पानी में तैरती लाश देखी, उन्होंने उसे बहार निकला तो पहचान गए, दीनू इसी नदी के किनारे पला बढ़ा था ये नदी ही तो उसकी रोज़ी रोटी थी आज इसी नदी में उसकी जान चली गयी थी, लोगो ने कहा दीनू नदी में डूब कर मर गया लेकिन ये बात विश्वास से परे थे, वो दीनू जो बाढ़ में उफनती नदी में भी तैर सकता था, वो ही दीनू जिसने उसी उफनती नदी से सरिता को बचाया था और आज वही दीनू एक शांत नदी में डूब के मर गया, ये अविश्वसनीय बात थी लेकिन इसको मानाने के अलावा कोई चारा नहीं था , सरिता रो रही थी और साथ साथ ही अपने बाप को कोस रही थी उसको पूरा विश्वास था का की उसका दीनू डूबा नहीं है उसे डूबा कर मारा गया है,

सारी रात सब दीनू को घर जमा रहे हे फिर सुबहे में कोई दूसरे गांव से एक मुल्ला जी को ले आया और सुबह होते होते दीनू को मट्टी में दफ़न कर दिया गया, किसी ने देखा नहीं ना दीनू को डूबता न डुबाते, बहुत लोगो ने पंडित जी की ओर ऊँगली उठाई लेकिन कोई सुबूत तो था नहीं, वैसे भी उन दिनों लोग पुलिस से ज़ायदा ही डरते थे तो किसी ने पुलिस में खबर भी नहीं की, अगले दिन मैं दीनू के घर से किसी तरह से सरिता को खींच कर ले आयी, उसने अपने शादी की चूड़ियों को तोड़ डाला था माथे का सिन्दूर और बिन्दया को मिटा दिया था कोई देखता तो यही सोचता की दीनू की विधवा पत्नी है,

मैंने रमेश के घर पंहुचा कर रमेश को सरिता का धयान रखने के लिए बोल दिया था, रमेश को सब पता था इसलिए सतर्क था, शाम के टाइम पंडित जी रमेश के घर आये पंडिताइन के साथ लेकिन सरिता ने घर बंद कर लिया और उनके लाख आवाज़ देने पर भी उसने दरवाज़ा नहीं खोला, पंडिताइन को वही छोड़ कर पंडित जी दीनू के घर गए शोक सवेदना के लिए लेकिन वहा का माहौल देख कर बहार ही रुक गए, तब तक मैं भी वह जा पहुंची थी, पंडित जी ने सुम्मु से कुछ कहाँ चाहा लेकिन सुम्मु ने उनके हाथ जोड़ लिए, पंडित जी सुम्मु के हाथ पकड़ने की कोशिश की तो सुम्मु एक कदम पीछे हैट गया, आज से पहले उसकी कभी हिम्मत नहीं हुई पंडित जी की ओर देखने तक की लेकिन आज उसने अपना हाथ जोड़ कर सर के ऊपर उठाया और भर्रायी आवाज़ में पंडित जी की ओर देखते हुए बोला " बस मालिक माफ़ कर दीजिये, अब कुछ नहीं बचा मेरे पास आपकी सेवा के लिए "। इतना कह कर दीनू वापिस अपने घर में चला गया और पंडित जी उलटे पैर अपने घर चले आये , अगले दिन मैंने किसी तरह समझा बुझा कर सरिता को तेरे बाप के साथ भेजा, वो जाने के लिए तैयार नहीं थी लेकिन अब उसका गांव में था ही कौन, मन मार कर तेरी माँ उस दिन तेरे बाप के साथ चली गयी और आज तक नहीं लौटी, उस घटना के बाद आज तू आयी है।

इतना कह कर काकी ने कहानी पूरी की, हम दोनों की आँखों में आंसू थे, मैंने कभी सपने में भी नहीं सोचा था की मेरी माँ की कहानी इतनी दुःखदायी होगी, कहा अबतक मैं अपने जीवन की घटनाओ से परेशान था और कहा मेरी माँ का दुःख।

मैंने काकी से पूछा : क्या नाना जी ने दीनू को मरवाया था ?
काकी : पता नहीं बिटिया, कभी किसी ने इस बारे में बात नहीं की और ना कभी किसी ने पंडित जी के मुँह से सुना, बहुत से लोग मानते है की पंडित जी ने ही करवाया है लेकिन मुझे ऐसा लगता है की इसके पीछे उन बिरादरी वालो का हाथ है जो बार बार सरिता के विषय में बैठक कर रहे थे , मैंने उस बैठक के बारे में कभी किसी को नहीं बताया क्यूंकि मैंने खुद उनकी बात नहीं सुनी थी, केवल शक के आधार पर मैं इतनी बड़ी बात किसी से कह नहीं सकती थी,

मैं : सुम्मु काकी का नाम चांदनी है ?
काकी : हाँ, लेकिन बहुत कम लोग ही उसे चांदनी बुलाते है
मैं : और मैं चन्द्रमा, क्या माँ ने मेरा नाम चांदनी काकी के नाम पर रखा है ?
काकी : अब ये तो तेरी माँ को ही पता होगा बिटिया उसी से पूछना।

हम अभी बात कर ही रहे थे की इतने में राधा आती नज़र आयी, जल्दी से हम दोनों ने अपने आंसू पोंछे और ठीक हो कर बैठ गए , हम तीनो ने ठंढा पिया और फिर मैं मामा के घर वापिस आगयी।
 
अपडेट तो इमोशनल था ही पर सरिता देवी और दीनू की अधूरी प्रेम कहानी उससे भी अधिक इमोशनल थी।
कुछेक अपडेट पहले मैने कहा था कि इस प्रेम कहानी का विलेन पंडित जी थे लेकिन सरिता देवी भी कुछ हद तक कसूरवार थी । लेकिन इस अपडेट के बाद सरिता देवी से ज्यादा मै पंडित रामशरण जी को अधिक दोषी मानता हूं।

शायद इस प्रेम स्टोरी का फेल्योर होना अंतर्जातीय प्रेम संबंध था। पंडित रामशरण इस बात को हजम न कर सके कि उनकी पुत्री एक मुस्लिम लड़के से इश्क करने लगी है।
हिन्दुस्तान मे अंतर्जातीय विवाह सिर्फ दो प्रतिशत का है। पहले भी कहा था इन विवाह मे कुछ सफल भी होते है और कुछ असफल भी। लेकिन यह भी सत्य है कि अपने ही कास्ट की अरेंज मैरेज और लव मैरेज वाली शादियां भी हंड्रेड पर्सेंट सक्सेस नही होती।
इसमे कोई शक नही कि सरिता ने दिलो - जान से मोहब्बत किया। शायद अपने परिवार की अनवरत उपेक्षा उसे दीनू के करीब ले गई।
दीनू की हत्या , एक ऐसे लड़के की हत्या जो अभी ढंग से बालिग भी न हुआ हो , एक ऐसे लड़के की हत्या जो अपने मां-बाप का एकमात्र संतान रहा हो , एक ऐसे लड़के की हत्या जिसे गांव वाले सरल स्वभाव के मानते आए हों...इसलिए जायज नही ठहराया जा सकता कि वो मुस्लिम था और एक हिन्दु लड़की से इश्क कर बैठा ।
हिन्दुस्तान का कानून हर किसी को अपने वैवाहिक पार्टनर चुनने को आजादी देता है।
यह बात अलग है कि उनकी वैवाहिक लाइफ सफल होती है या असफल !
मुझे सरिता देवी से हमदर्दी है लेकिन दीनू की मौत का बेहद - बेहद अफसोस है।
पंडित रामशरण जैसे पिता को जिन्दा रहते हुए ही पिंडदान कर देना चाहिए। इनकी वजह से कई जिन्दगी तबाह हुई। एक शख्स की हत्या तक हुई।
सरिता देवी की बेरूखी अपने मां-बाप के लिए स्पष्ट उजागर होती है।

बहुत ही खूबसूरत और इमोशनल अपडेट भाई।
आउटस्टैंडिंग एंड अमेजिंग।
 
हाँ ये ऐसा हो सकता था लेकिन मेरे विचार से ऊंच नीच और अमीर गरीब वाले कॉन्टेक्स्ट में एक बड़ा इशू ये था की चन्द्रमा का पापा अमीर नहीं है और ना ही पंडित जी की जाति की बराबरी का है , अगर सरिता और दीनू के प्यार का एंगल न होता तो पंडित जी किसी कीमत पर सरिता का हाथ चन्द्रमा के पिता के हाथ में ना देते,

चन्द्रमा का पिता जाति में नीचे है
गरीब भी है
शराबी भी है
सरिता की तुलना में दुगुना उम्र का है
भाषा रहन सहन सब बिलकुल अलग है
और भी बहुत से पॉइंट्स है, सरिता एक अच्छे परिवार की पढ़ी लिखी और अमीरी में पाली बढ़ी लड़की है, अगर दीनू में से दूसरे धरम वाला एंगल हटा दे तो दीनू सरिता की पिता से १० गुना अच्छा है, उसकी सरकारी नौकरी है भले निचली श्रेणी की ही क्यों न हो, अपने बाप को धुलाई का कॉन्ट्रैक्ट दिलवाया है उसने इसका मतलब है की वो ज़िम्मेदार है और परिवार को सुख भी पहुंचने की कोशिश कर रहा था, अच्छे दिल का है तभी सरिता को डूबने से बचाया और बचाने के बाद किसी इनाम और सम्मान का लालच भी नहीं करता और जैसे ही लगता है की सरिता ठीक है वो उस टूटे हुए बांध की ओर चला जाता है।

जिस सोच के साथ मैंने इन पत्रों को लिखा है उसको संजू भाई ने बहुत ही अच्छे शब्दों में व्याख्या की है, ये पात्र मेरे ज़रूर है है लेकिन जितनी गहराई से संजू भाई ने एक्सप्लेन किया है शायद मैं खुद उतने अच्छे तरीके से एक्सप्लेन नहीं कर सकता।

सब पाठको का बहुत धन्यवाद् कहानी को पढ़ने का ओर चर्चा करने का , चर्चा करने से मुझे और कुछ सीखने के लिए मिलेगा और शायद भविष्य में फिर कोई सुंदर कहानी लिखने का हौसला प्राप्त होगा
 
आप ने कहानी की रूप रेखा , विषय काफी अच्छी तरह सोच समझ कर की है। सबकुछ सिलसिलेवार और परफेक्ट तरीके से चल रहा है।
मै कल करीब पांच घंटे ट्रेवलिंग पर था और हर वक्त मेरी आंखो के सामने दीनू की मौत और सरिता देवी की दुखद भरी कहानी नाच रही थी। हर वक्त दीनू की मां का वो सीन्स नजर आ रहा था जब वो अपने एकलौते पुत्र के शव से लिपटे बिलख बिलख कर रो रही थी । मुझे वो सीन्स भी याद आ रहा था जब दीनू की मां और सरिता एक दूसरे से लिपटकर करूण स्वर मे विलाप कर रही थी । मुझे काकी जी की वो बात भी याद आ रही थी कि काश इस लड़के को एक बार फिर से चिकोटी काटु और वो रोते हुए फिर से जाग जाए ।

रामशरण जी के लिए एक बात कहना चाहता हूं -
ऊपर वाले ने तो इंसान बनाया था पर धरती पर रहने वालों ने जात- पात , ऊंच-नीच और मजहब बनाकर इनके बीच एक गहरी खाई पैदा कर दी।
कुछ लोग की गलती को पुरे कौम की गलती समझा जाने लगता है। नुक्स किस मे नही होते ! हर आदमी गुनाहगार है। हर आदमी चाहे वो कितना ही समर्थ क्यों न हो किसी दूसरे आदमी का सहारा चाहता है। गुण और अवगुणों के बीच तालमेल बना रहे तो जिन्दगी जिन्दगी है वरना नरक ।
अपनी औलाद मे आप को अगर अवगुण दिखाई दिए है तो उनमे गुण भी जरूर होंगे। आज सरिता ने आपको शिकायत का मौका दिया है तो कभी उसने आपको तारिफी निगाहों का हकदार बनकर भी जरूर दिखाया होगा। यही जिन्दगी है रामशरण जी ।
कोई आदमी मुक्कमल तौर पर राक्षस नही होता। कोई आदमी मुक्कमल तौर पर देवता नही होता। आप खुद अपने गिरहबान मे झांककर देखिए , क्या आप मे नुक्स नही है ! क्या आपने अपने जिंदगी मे कोई भूल नही की ?
क्या आप पसंद करेंगे कि एक दिन ऐसा आए जब आप अपनी बेटी की याद मे अपने विशाल कोठी मे इसकी तारिक दिवारों से अपना सिर टकरा रहे हों ! और आप की दाद फरियाद सुनने के लिए आपकी बेटी मौजूद न हो ! "
 
घर वापिस आगयी थी लेकिन अभी तक मेरे दिमाग में बस और माँ और दीनू की कहानी ही घूम रही थी, बुधिया काकी ने जिस तरह से कहानी डिटेल में बताई थी लगा रहा था जैसे कोई फिल्म देखी हो। उस पुरे दिन मेरा मूड उखड़ा उखड़ा रहा, मामा मामी को भी आभास हो गया था की मैं काकी से सारा कच्चा चिटठा सुन कर आयी हूँ वो दोनों भी चुप चुप से थे, अब इसमें हम में से गलती किसी की भी नहीं थी फिर भी हम सब किसी मुजरिम जैसे खामोश थे, रात में सोने के लिए जब मैं अपने रूम में जाने लगी तब मामा ने आवाज़ दी
मैं : जी मामा
मामा : कल हम सब शहर चलेंगे घूमने के लिए, तुम भी तैयार हो जाना टाइम से ही, वहा अपनी दुकान भी देख लेना और हमारा शहर भी
मैं : ठीक है मामा जी
मामा : और हाँ पुरानी बातों को दिल से नहीं लगते, बस खुश रहो बेटा
मैं : जी मामा जी (बोलकर अपने कमरे में आगयी )

राम में ठीक से नींद नहीं आयी, आँख बंद करती तो खुद को देखती और एक अजनबी चेहरे को जैसे मैं सरिता हूँ और वो अजनबी चेहरा दीनू , वो दीनू जिसको मैंने आजतक देखा भी नहीं था, लेकिन फिर आँख खुल जाती और मैं जाग कर खुद से सवाल करने लगती "क्या मैं दीनू की बेटी हूँ ? क्या दीनू ही मेरा असली बाप है ? क्या इसी कारन माँ ने मेरा नाम चांदनी काकी के नाम पर रखा है ? चांदनी काकी भी शायद मुझे अपनी पोती समझती है तभी तो वो बोल रही थी की मैं अगर उनके घर खाना खा लू तो उनको ख़ुशी होगी ? पता नहीं क्यों मेरे दिल के किसी कोने में ये त्रीव इच्छा हो रही थी की दीनू ही मेरा पिता हो, काम से काम ये बोझ तो काम हो जायेगा की मेरे साथ कुकर्म करने वाला व्यक्ति मेरा असली बाप तो नहीं था।
ऐसे ही हज़ारों सवाल मेरे दिमाग में उठ रहे थे और हर सवाल का जवाब ढूंढते ढूंढते सुबह हो गयी, अधूरी नींद के कारण सिर भारी था, इतने में राधा चाय लेके कर मेरे कमरे में आगयी, आज मामी ने राधा को जल्दी बुलया था, चाय पीने से थोड़ा सर हल्का हुआ तो मैं नहाने चलगी गयी, नहाने से बहुत आराम मिला और थोड़ी देर में तैयार हो कर बहार आयी तो देखा मामा और मामी भी तैयारी कर रहे थे, मैंने मामी की हेल्प करी बच्चों को तैयार करने में और लगभग १० बजे तक हम सब मामा की गाड़ी में बैठ कर शहर निकल गए

सोनपुर छोटा सा शहर है गंगा के किनारे बसा हुआ है, हमने घर में नाश्ता नहीं किया था तो सबसे पहले मामा हमे शहर के एक नामी रेस्त्रो में लेकर गए वहा हम सब ने नाश्ता किया, बाहर निकलने के कारण सब का मूड अच्छा ही था, शहर की चमक दमक ने कल रात वाला दर्द हल्का कर दिया था, नाश्ते के बाद हम सब मामा की दुकान पर पहुंचे, खूब बड़ी दुकान थी शोरूम जैसी बस फर्क इतना था की छोटे शहर के हिसाब से बानी हुई थी, ये शोरूम लेडीज़ सूट और साड़ियों का था और दूसरा थोड़ी दूर पर जेंट्स और बच्चों का , देख कर लग रहा था की मामा ने काम अच्छा जमा रखा है,

कुछ देर वहा बैठ कर मामा ने हमे वह काम करने वाले एक लड़के के साथ घूमने के लिए भेज दिया, जिसने हमे सारा शहर घुमाया और फिर जब दिन ढलने लगा तब हम सब वापिस मामा की दुकान पर लौट आये। दिन का खाना किसी ने नहीं खाया था बस बहार की चाट पकोड़ियों से पेट भर गया था, मामा ने खाना मगवाया लेकिन किसी ने हाथ भी नहीं लगाया, फिर मैंने मामी को सुझाया की खाना पैक करा लेते है और घर पर गर्म करके खा लेंगे, इतना मेहगा खाना ख़राब करने का क्या फ़ायदा, और साथ में रात का खाना भी नहीं बनाना पड़ेगा। सब को ये आईडिया अच्छा लगा, मामा ने खाना पैक करा लिया और साथ कुछ मिठाई भी , जब चलने का समय होने लगा तो मामा मेरा हाथ पकड़ कर शोरूम में ले गए और मुझसे कपडे पसंद करवाने लगे , मैंने बहुत मना किया लेकिन मामा नहीं माने और ३ बढ़िया कीमती सूट मेरे लिए पैक करा दिया, मामा ने एक सुन्दर और खूब महंगी साड़ी भी पैक कराई और वो अपनी पास रख ली।

शाम में हम सब घर आगये, बच्चे दिन भर घूम कर थक गए थे इसलिए आते ही सो गए, मैं भी अपने कमरे में जा कर अपने कपडे बदल आयी और फिर मामा जी की चाय लेकर उनको देने के लिए उनके कमरे में चली गयी , देखा तो मामा कागज पत्तर फैलाये कुछ हिसाब किताब कर रहे थे , नानी के देहांत के कारण मामा ने ठीक से हिसाब किताब नहीं देखा था इसलिए आजकल उसी में लगे रहते थे , मैं चाय रख कर चुप चाप जाने लगी लाभ मामा ने अजवाज़ दे कर रोक लिया और मुझे उनके सामने पड़ी कुर्सी पर बैठने का इशारा किया , मैं भी बिना कुछ बोले उनके सामने बैठ गए, मामा जल्दी जल्दी कागज को समेटने लगे फिर उनको पास खड़ी अलमारी में रख कर आराम से तक लगा कर बैठ आगये और चाय का कप उठा कर चाय का घूंट भरने लगे , मैं चुप चाप उनको देख आरही थी , मामा जी ने चाय का कप नीचे रखा और मेरी और देख कर पूछा
मामा : तो गुड़िया यहाँ आकर कैसा लगा ?
मैं : अच्छा लगा मामा जी, पहली बार कहीं इतनी दूर आगयी हूँ तो सब अच्छा लग रहा है
मामा : किसी प्रकार की कोई दिक्कत या कोई असुविधा तो नहीं है बेटा ?
मैं : नहीं मामा जी, इतना सुख सुविधा तो है यहाँ इस से ज़ायदा क्या चाहिए और आपको तो पता ही की जैसे परिवेश में हम रहते है उसकी तुलना में तो ये सवर्ग जैसा है ,
मामा : नहीं अब ऐसा भी नहीं है सब भगवान् की कृपा है और बाबू जी की छोड़ी हुई संपत्ति है, मैं तो बस इनको संभल रहा हूँ
मामा : देखो बेटा मैं जनता हूँ की दीदी के अतीत के बारे में तुम्हे कुछ पता चल गया है , मैं नहीं चाहता था की ये बातें तुमको अभी पता लगे, तुम अभी बच्ची हो, 2-४ साल में थोड़ा परिपक्क होती तो तुमको इन बातों की ज़ायदा समझ होती ,
मैं : कोई बात नहीं मामा जी आखिर एकदिन पता चलना था तो अच्छा हुआ की पता चल गया,
मामा : हाँ चलो कोई बात नहीं जो होता है अच्छे के लिए ही होता है, मैं बस तुमको यही बताना चाह रहा था की तुमने जो भी सुना होगा अब उस पर मिटटी डालो और आगे बढ़ो , ज़ादा गलत सही में मत उलझो, इतने दिनों के बाद ये परिवार फिर से एक जुट होने की ओर है तो मैं बस ये चाहता हूँ की तुम इसे अपना ही घर समझो और जब मन करे आओ जाओ जो मन करे वो करो, इस घर पर दीदी और तुम्हारा भी उतना ही अधिकार है जितना मेरा। माँ और बाबूजी के जाने के बाद अब इस दुनिया में केवल दीदी ही है जो मेरे परिवार का असली हिस्सा है बाकि तो सब नातेदार और मिलने वाले है लेकिन असली परिवार तो हम सब ही है ना बेटा।

मैं चुपचाप सर झुकाये मामा जी की बातें सुन रही थी , मामा जी वास्तव में अच्छे इंसान है और वो वाक़ई में मम्मी से बहुत स्नेह करते है, वो बहुत देर तक मुझे समझते रहे बात बात में मैंने आखिर मामा जी को टोक ही दिया
मैं : मामा जी क्या सच में नाना जी ने दीनू को मरवाया था ?
मामा : (पहले तो एक दम चुप, फिर बोले ) सच कहु तो उस समय मैं खुद बहुत छोटा था तो असली बात का तो मुझे भी नहीं पता लेकिन जब मैं बड़ा हुआ और लोगो से ये चर्चा सुनी तो मुझे भी विश्वास नहीं हुआ, बाबूजी से पूछने की कभी हिम्मत नहीं हुई और मां बेचारी को इन बातों का ज़ायदा कुछ ज्ञान ही नहीं था , फिर भी अपने अंतिम समय में बाबूजी ने कभी कभी इमोशनल हो जाया करते थे और और रोते हुए कहते थे की उन्होंने खुद अपने हाथो से अपना घर बर्बाद कर दिया। कभी किसी बिरादरी वाले ने भी खुल कर कुछ नहीं बोला की किसने किया है, अगर मैं मान भी लू की दीनू की हत्या हुई है तो फिर जहा तक मेरा विचार है की इसमें पिता जी की मुख्य भूमिका नहीं होगी क्यूंकि मुझे नहीं लगता की बाबू जी किसी की जान ले सकते थे। बाकी तो बा भगवान ही जाने

मैं और भी बहुत कुछ पूछना चाहती थी लेकिन मुझे अच्छा नहीं लगा लगा क्यंकि मामा के चेहरे से पता चल रहा था की वो अपने पिता के विषय में ज़ायदा चर्चा नहीं करना चाह रहे , मैंने मामा को अपनी वापसी की टिकट बुक करना का बोल कर अपने कमरे में सोने आगयी।

सुबह जब तक मैं तैयार हो कर बहार आयी तब तक मामा जी शहर जा चुके थे उनको आज कही जल्दी जाना था, आज का दिन मैंने चाँदनी काकी के घर जाने का सोच रखा था, एक दो दिन में मेरी वापसी हो सकती थी इसलिए मैंने आज ही चांदनी काकी से मिलने का प्लान बना लिया, घर से काम ख़तम करके जब राधा चलने को हुई तो मैं उसके साथ चल दी, मैं चंदानी काकी के घर अकेले नहीं जाना चाहता थी, मैंने बुधिया काकी को साथ लेके जाने का सोचा था,

बढ़िया काकी वही मिली, मुझे काकी के पास छोड़ कर राधा अपने घर भाग गयी, मैंने काकी को अपने आने का मकसद बताया लेकिन काकी की बात सुन कर बहुत निराशा हुई , पता चला की चांदनी काकी अपने भाई के घर गयी है , अब कुछ हो नहीं सकता था तो वहीँ बुधिया काकी के पास बैठी रही , काकी ने बहुत साड़ी बातें और बताई माँ और दीनू के बारे में , इन्ही सब में दिन ढल गया तो मैं घर वापस आगयी।

शाम में मामा आये तो उन्होंने निकल कर एक टिकट मुझे पकड़ा दिया, टिकट एक दिन के बाद की थी। अगले दिन मामा ने मेरी खूब खातिरदारी की क्यंकि अगले दिन दोपहर को मेरी ट्रैन थी, मैं रात में जब पैकिंग कर रही थी तब मामा मामी मेरे पास आये, उनके हाथ में वही कीमती साड़ी वाला थैला था, मामा ने वो साडी का पैकेट मुझे देते हुए बोला के ये रख लो दीदी के लिए है हमारी तरफ से। मैंने मामा को समझाया की माँ नहीं मानेगी लेकिन मामा ने एक नहीं सुनी और मुझे वो साड़ी का पैकेट लेना पाड़ा।

अगले दिन सुबह मामा मुझे स्टेशन लेके जाने वाले थे लेकिन मैंने उनको मना कर दिया क्यूंकि मामा के पास आजकल टाइम कम था और मैं नहीं चाहती थी की मामा को मेरे कारण देरी हो , मामा ने उसी ऑटो वाले को बुला कर समझाया और जाते जाते मुझे कुछ पैसे पकड़ा कर चले गए, मैं टाइम से काफी पहले ही स्टेशन के लिए निकल गयी, पहुंचने में ज़ायदा टाइम नहीं लगा और फिर एक कुली से पूछ कर उसी प्लेटफॉर्म पर बैठ गयी जहा ट्रैन आने वाली थी, मैंने उस ऑटो वाले को भी वापस भेज दिया था क्यूंकि ट्रैन आने में अभी काफी टाइम था, प्लेटफार्म पर कुछ खास भीड़ नहीं थी मैं अकेली चपचाप मोबाइल चलते हुए ट्रैन का इन्तिज़ार करने लगी , कोई 10-१५ मिनट गुज़रे होंगे की एक महिला मेरे पास आकर बैठ गयी, मेरा सारा धयान अपने फ़ोन पर था, मैं दीपक के बकवास भरे मैसेज पढ़ रही थी जो उसने मुझे भेज रखे थे , फ़ोन देखते देखते मुझे ऐसा एहसास हुआ जैसे पास बैठी महिला मेरी ओर ही देख रही हो, मैंने मोबाइल बंद किया और सीधी हो कर जब पास बैठी उस महिला को देखा तो मुझे मुँह से अरे निकल गया
 
अपने पास में चांदनी काकी को बैठा देख कर मैं चौंक गयी थी, हैरत में नमस्ते करना भूल ही गयी थी,
मैं : काकी आप यहाँ कैसे ?
चांदनी काकी : तुमसे मिलने आयी हूँ, पता चला था की तुम मिलने आयी थी मेरे घर
मैं : (अचकचा के) जी वापिस घर जाने वाली थी तो सोचा जाते जाते आपसे मिल लू
चांदनी : हाँ बेटी लेकिन शायद मेरे भाग्य में नहीं था तुम्हारा मेरे घर में आना, कल एक बार मैंने सोचा की जाऊ मिलने तुमसे लेकिन तुमको तो पता है ना बिटया की तुम्हारे घर हमारा आना जाना नहीं है सो इसलिए तुम्हारे काका को लेकर स्टेशन आगयी, ये ऊपर वाले का शुक्र है की स्टेशन पर तुम अकेली आयी, अगर तुम्हारे परिवार का कोई होता तो फिर नहीं मिल पाते.
मैं : अरे तो इसमें क्या हुआ आप आ जाती मिलने, मैं कौन सा उन से डरती हूँ, मेरा जिस से मन करेगा उस से मिलूंगी, मुझे कौन रोक सकता है भला।
चांदनी : नहीं ऐसा नहीं बोलते, अच्छा ये रखो (कह कर उन्होंने एक थैला मेरी ओर सरका दिया )
मैं : ये क्या है ? मुझे नहीं चाहिए कुछ।
चांदनी : ये तुम्हारे लिए नहीं है, ये सरिता के लिए है उसकी अमानत मेरे पास पड़ी थी न जाने कब से, ये अपनी माँ को दे देना
ये सुन कर मैं चुपचाप थैला थाम लिया, फिर काकी ने एक और छोटा थैला पकड़ाया, इसमें मेरे लिए रस्ते का खाना था, जल्दीबाज़ी में ना मामी ने खाने का सोचा था और ना मैंने, यही बात होती है बड़े और वृद्ध लोगो में की वो आगे तक का सोच कर चलते है, मैंने दोनों थैले संभल लिए और काकी से बातें करते करते ट्रैन का इन्तिज़ार करने लगी , जब तक मैं और काकी बातें कर रहे थे तब तक सुम्मु काका थोड़ी दूर पर बने पल की सीढ़ियों पर तक लगाए बैठा रहा था, उन्होंने अभी तक मुझे कोई बात नहीं की थी, बस कभी कभी मेरी ओर देखते और मुझे भी उनकी ओर देखता पा कर झट से नज़र घुमा लेते। कुछ देर में ट्रैन आगयी तो मैंने भी काकी के गले लग कर उनको अलविदा कहा और अपना सामान उठाने लगी के इतने में सुम्मु काका ने मेरे बैग को उठा कर मेरे डिब्बे के गेट तक पंहुचा दिया , ट्रैन में चढ़ने वाले लोग बहुत कम थे इसलिए कोई दिक्कत परेशानी नहीं हुई, मैंने हाथ हिला कर उनको बाई किया और अपनी सीट कर आ गयी। मैंने झाँक कर खिड़की से देखा, चांदनी
काकी दीनू काका का हाथ थामे धीरे धीरे स्टेशन से बाहर की ओर जा रहे थे। ट्रैन अब स्टेशन छोड़ चुकी थी मैं अपनी बर्थ पर बिस्तर सेट करके लेट गयी और दिल्ली पहुंचने का इन्तिज़ार करने लगी

मैंने रास्ते से ही दीपक को कॉल करके अपने आने का बता दिया था लेकिन उसकी बातों से लगा की वो सुबह ७ बजे मुझे लेने आने से बच रहा है, मैंने भी दबाव नहीं डाला, मुझे कौन सा उसके आने से कोई ख़ुशी मिलने वाली थी, मैंने तो उसको कॉल बस इसीलिए किया था क्यंकि वापिस आकर आखिर मुझे जॉब वही करनी थी जब तक कोई और जॉब नहीं मिल जाती। खैर रास्ता आराम से कटा और मैं अगली सुबह दिल्ली आगयी , सुबह का टाइम होने के कारन कोई खास भीड़ नहीं थी, स्टेशन से निकलते टाइम मेरे से आगे आगे एक जोड़ा जा रहा था, जवान जोड़ा था, दोनों बाहर से आये नज़र आरहे थे शायद मेरी वाली ही ट्रैन से उतरे थे , लगभग साथ ही हम स्टेशन के बाहर आये, मुझे पता था की दीपक लेने नहीं आएगा इसीलिए मैंने सोचा की मेट्रो से चली जाउंगी लेकिन रस्ते में एक जगह ट्रैन चेंज करनी पड़ती और मैं समान के कारन ज़ायदा भाग दौड़ नहीं करना छह रही थी, नई दिल्ली स्टेशन से फरीदाबाद के डायरेक्ट ऑटो नहीं मिलते और अगर कोई गलती से मिलता भी है तो आने पौने दाम मांगता था, मैं वह कड़ी सोच ही रही थी की क्या करूँ की तभी उस जोड़े में जो लड़की थी और मेरे नज़दीक आकर एड्रेस पूछने लगी, उसके हाथ में एक पेपर था और उस पर हिंदी में एड्रेस लिखा था ,

मैंने अड्रेस देखा तो पहचान गयी की ये एड्रेस तो हमारे फरीदाबाद का ही था, मैंने उनको समझाया लेकिन उनको समझ नहीं आया, तो मैंने उनको बोला की मैं भी वही जा रही हूँ और वो चाहे तो हम टैक्सी कर सकते है और टैक्सी का भाड़ा शेयर कर लेंगे, वो तैयार हो गए क्यूंकि उन दोनों में से किसी को भी दिल्ली के रास्तो की जानकारी नहीं थी, मैं टैक्सी बुक की और उनके साथ फरीदाबाद आगयी।

रस्ते में हुई बातचीत से पता चला की दोनों मुस्लिम है और दोनों ने भाग कर शादी की है, लड़के की नौकरी सऊदी अरब में लग गयी थी और वो जाने से पहले राबिया से शादी करना चाहता था लेकिन लड़के साजिद का परिवार राजी नहीं हुआ तो दोनों ने भाग कर शादी कर ली, शादी के बाद साजिद और राबिया को उम्मीद थी की माँ बाप मान जायेंगे लेकिन हुआ इसके उल्टा, दोनों परिवार ने उनके इस प्यार और शादी को नकार दिया और गोरखपुर, जहा ये दोनों किराये पर कमरा ले कर रहते थे वह जा कर खूब हंगामा किया, रातो रात उन दोनों के भागना पड़ा, फरीदाबाद में लड़के का एक दोस्त रहता था वो भी साजिद के साथ सौदी अरब नौकरी पर जाने वाला था तो उसने उनको फरीदाबाद बुला लिया था, उनका प्लान ये था की कुछ दिन तीनो साथ रहेंगे और अगले महीने दोनों लड़के अरब के लिए निकल जायेंगे , यहाँ राबिया को कोई जनता नहीं था तो वो यहाँ बिना किसी डर के अकेली रह सकती थी।

उनका एड्रेस आने पर मैंने उनके ड्राप किया, जब वो पैसे देने लगे तो मैंने मना कर दिया, मेरा मन नहीं मान रहा था उनसे पैसे लेने का, पता नहीं किस हालत में घर से भाग कर आये थे, मुझे उनके पास कुछ खास सामान भी नहीं नज़र आरहा था, हमे अपने नंबर एक दूसरे को दिए और फिर मैं टैक्सी से अपने घर आगयी,

मम्मी ने दरवाजा खोला, मुझे देखा तो गले से लगा लिया, पता नहीं क्यों उनके गले लग कर रोना आगया, पापा वाली घटना जो मां के यहाँ जा कर मैं लगभग भूल गयी थी फिर से याद आने लगी, मैंने मुझे पकडे पकडे दादी के पास ले कर आयी, देखा तो दादी बिस्तर में लेती लम्बी लम्बी सांसे ले रही थी, दादी की तबियत ज़्यदा ख़राब थी, आहट सुन कर उन्होंने आँखे खोल कर मुझे देखा और इशारे से अपने पास बुला कर अपने सीने से लगा लिया , थोड़ी देर में जब सब शांत हो कर बैठे तब मम्मी ने बताया की दादी की तबियत ज़ायदा ख़राब रहने लगी है और पापा भी पता नहीं कहा गायब है वो घर में होते तो दादी को अच्छा लगता। मैं चुप रही, क्या बोलती की उनके कारन ही तो दादी बीमार है, अगर उन्होंने ढंग से एक बेटे और एक बाप की ज़िम्मेदारी उठायी होती तो आज ना दादी के हालत होती और न मुझे इस छोटी उम्र में दीपक जैसे घटिया आदमी के पास नौकरी करनी पड़ती , जब भी मुझे पापा की करतूत याद आती तब तब मन करता की काश दीनू ही मेरा बाप होता , दीनू मरते मरते भी अपने माँ बाप के लिए सरकारी कॉन्ट्रैक्ट दिला कर चला गया और यहाँ मेरा बाप है जो उसने शायद ही कभी जीवन में दादी के हाथ पर दस रूपये भी रखे हो, खैर अब हो भी क्या सकता था हम जैसे ने जीवन भर एडजेस्ट ही किया है तो यहाँ भी एडजस्ट ही करना था ,

मैंने वहा से लाया सारा सामान मम्मी और दादी के सामने रख दिया बस चांदनी काकी वाला झोला नहीं खोला, माँ का कुछ खास इंट्रेस्ट नहीं था लेकिन दादी ने एक एक चीज़ खोल कर देखा और तारीफ की, फिर मामा की दी हुई लाल साड़ी उठा कर दादी ने माँ को दे दी, माँ लेने में हिचकिचा रही थी लेकिन फिर भी उन्होंने दादी की बात मान ली और चपचाप साड़ी ले कर अपने कमरे में चली गयी। थोड़ी देर बाद जब मैं फ्रेश हो कर आयी तो देखा दादी सो रही थी शायद मम्मी ने उनको दवाई दे दी थी, मैंने चांदनी काकी वाला झोला उठाया और मम्मी के कमरे में चली गयी, मम्मी बिस्तर बैठी कपडे निकल रही थी शायद नहाने जाने वाली थी , मैंने चांदनी काकी वाला झोला मम्मी के बेड पर रख दिया, मम्मी ने मेरी और देखा जैसे पूछ रही हो ये क्या है ?
मैं : मम्मी ये आपकी अमानत है
मम्मी : कहा से मिला ? किसने दिया ?
मैं : मम्मी ये चांदनी काकी ने दिया है ये आपकी अमानत है
मम्मी : ओह्ह तो तुम्हे चांदनी अम्मा मिल गयी थी ?
मैं : हाँ और बुधिया काकी भी
मम्मी : ओह्ह फिर इसका मतलब तुम्हे सब पता चल गया ?
मैं : हम्म
(मम्मी ने हाथ बढ़ा कर थैला उठा लिया और खोलने लगी, मेरा मन तो कर रहा था देखने का की आखिर चांदनी काकी ने क्या भेजा है लेकिन ये मेरी माँ का पर्सनल मामला था तो मैं कमरे से बाहर जाने लगी लेकिन मम्मी ने रोक लिया और मेरे सामने ही थैला खोलने लगी
मम्मी : नहीं चन्द्रमा देखती जाओ की इसमें क्या क्या है, जब तुम्हे सब पता चल गया है तो ये भी देख लो
इतना बोल कर माँ ने थैला खोल दिया।
 
मम्मी के कहने पर मैं रुक गयी थी, मम्मी ने थैला खोला तो उसमे से पॉलीथिन में पैक एक लाल रंग का लहंगा चोली थी, एक जोड़ी चांदी की पायल , एक सोने की नाथ और एक सोने का मंगलसूत्र, और साथ में एक चिट्ठी भी थी, मा ने चिट्ठी उठा कर मेरी ओर बढ़ा दी और उस लगा चोली को खोल कर देखने लगी, मैंने चिट्ठी खोली और पढ़ना स्टार्ट किया, मैं चिट्ठी ऊँची आवाज़ में पढ़ रही थी जिससे माँ भी सुन सके,

" प्यारी बेटी सरिता,
आशा है की तुम कुशल होगी, ये तुम्हारी अमानत मेरे पास बरसो से रखी हुई थी, मैंने सोचा था की कभी तुम गाँव आओगी तो तुमको दूंगी लेकिन समय ऐसा पलटा की ना तुम वापस गांव आयी ना तुम्हारी कोई खबर, दो दिन पहले चन्द्रमा को देखा तो चौंक गयी लगा वापस पुराने दिन लौट आये हो और मेरे सामने वही पुराने समय वाली सरिता हो, मन बहुत किया की उसको अपने सीने से लगाती लकिन हिम्मत नहीं हो पायी, तुम होती तो बेधड़क लगा लेती, तुम भली भांति जानती हो की मुझे तुम्हारे और दीनू के प्रेम की जानकारी नहीं थी इसलिए मैंने हमेशा तुमको अपनी बेटी के जैसा समझा और प्यार किया, मेरे और बुधिया काकी के जीवन में भगवान ने बेटे और बेटी का प्रेम नहीं दिया इसीलिए मेरा दीनू अपनी अभागिन माँ को जीते जी मरे सामान छोड़ कर चला गया और टीम सदा के लिए कहीं दूर जा कर खो गयी, हम दोनों को भगवान ने इकलौते बेटे दिए और फिर उनको दूर कर दिया, भगवान ऐसा दुःख किसी को ना दे,

दीनू के जाने के बाद उसकी कंपनी से जो सामान वापस आया था उसमे ये लेहंगा चोली और मंगल सूत्र था मैं जानती हूँ के दीनू ने ये तुम्हारे लिए ही लिया होगा और शायद तुमको देने का मौका नहीं मिल पाया, मैंने उसी दिन से संभल के रख दिया था क्यंकि ये तुम्हारी अमानत थी, ये चांदी की पाजेब और सोने की नाथ मेरी शादी में मिली थी तुम्हारे काका की माँ की ओर से, अगर तुम मेरी बेटी या बहु होती तो इन पर अधिकार तुम्हारा ही होता, मेरे लिए तुम ही मेरी बेटी और बहु हो इसीलिए इसे मेरी और से मेरी आखिरी निशानी मान कर रख लेना।

दीनू के दिलाये काम से घर में पैसा और समृद्धि तो आयी लेकिन वो पैसा किस काम का जो औलाद के बिना हो, माँ बाप की असली दौलत उसके बच्चे होते है, दीनू की बहुत याद आती है, बस भगवान अब हम दोनों पर दया करे और अपने पास बुला ले ताकि एक बार फिर से अपने बेटे को देख पाऊँ।

मुझे आशा है की तुम अपने जीवन में खुश और सुखी होगी, भगवान तुम्हे हर प्रकार के दुःख से दूर रखे, चन्द्रमा को देखा के अच्छा लगा ईशवर उसका जीवन सुखी करे, बस तुमसे एक ही विनती है की अगर जाने अनजाने में मुझसे कोई गलती हुई हो तो माफ़ करना।

तुम्हारी चांदनी अम्मा

मैंने चिट्ठी ख़तम करके वापिस मोड़ा और माँ की ओर बढ़ा दिया, देखा माँ की आँखों से आंसुओ के माला बाह रही थी और वो लाल लहंगा चोली अपनी छाती से लगा रखा था, मैं कुछ पल वैसे ही खड़ी रही, समझ नहीं आरहा था की क्या कह कर उनको चुप कराऊँ इसलिए बिना कुछ बोले कमरे से बहार आगयी।

दिन ऐसी ही निकल गया दादी की तबियत ठीक नहीं हो रही थी इसलिए उनसे भी ज़्यदा बात चीत नहीं हो पायी। अगले दिन से मैंने जॉब पर जाना स्टार्ट कर दिया, वहा का माहौल थोड़ा बदला बदला सा था, मैंने नोटिस किया की दीपक का धयान मुझपर कम था और एक नयी आयी लड़की पर ज़यादा था, विभा नाम था उस लड़की का, बिहार की रहने वाली थी, सुन्दर छरहरे शरीर वाली लड़की थी और बहुत चंचल, लड़को को रिझा कर काम निकलना जानती थी, खैर मुझे क्या लेना देना था मुझे अपने काम से मतलब था, लेकिन शाम में वही हुआ सबके निकलते ही दीपक बाइक लेकर मेरे इन्तिज़ार में खड़ा था, मुझे देख कर बाइक पर बैठे का इशारा किया और जैसे ही मैं बैठी बाइक उड़ा कर चल दिया ,

कुछ दूर चल कर उसने बाइक उसी रेस्टुरेंट पर रोकी जहाँ हम अक्सर मिलते थे, वह बैठ कर वो मुझसे मामा के यहाँ की डिटेल्स पूछने लगा, मैंने दो चार मोटी मोटी बातें करके बात ख़तम कर दी, उसने भी चलते चलते वही अपने अधिकार ज़माने वाला डायलाग दुहराया और मउका देख कर जबरदस्ती एक किस मेरे होटों पर कर डाली, ये नई बात थी, अब तक उसने जबरदस्ती ऐसा नहीं किया था लेकिन मैं कुछ जयादा बोल नहीं पायी, ये रूटीन कुछ दिन चला और फिर दिवाली का समय आगया, मेरी काफी छुट्टियां थी फिर भी दीपक के कारन मेरी परफॉरमेंस ठीक थाक थी इसलिए मुझे बोनस और गिफ्ट के लिए हमारे मालिक ने दिवाली दिन पूजा के लिए बुलाया, ज्यादा लोग नहीं थे बस खास खास स्टाफ ही था,

पूजा के बाद मालिक ने हमारे गिफ्ट हमको बांटे और चाभी दीपक को पकड़ा कर निकल गया, दीपक की जिम्मेदारी थी की वो शाम में ऑफिस में पूजा का दिया जलाएगा। सबके जाने के बाद दीपक ने मुझे रोक लिया, मेरा मन नहीं था लेकिन मजबूरी में रुकना पड़ा क्यूंकि मैंने गलती से दीपक को सच बता दिया था की हम दिवाली नहीं मना रहे नानी के निधन के कारन ,

दोपहर में दीपक मुझे दिल्ली घूमाने ले गया और वही हमने खाना पीना खाया और शाम होने से पहले हम ऑफिस वापस आगये, मैंने मम्मी को कॉल करके बता दिया था इसलिए मुझे घर की कोई खास चिंता नहीं थी।

ऑफिस पहुंच कर मैंने रंगोली बनायीं और दीपक ने दिए और लाइट्स लगायी सब काम से फ्री होकर मैं वाशरूम चली गयी क्यूंकि अब घर जाने का समय हो गया था, मैंने गेट बंद नहीं किया था क्यंकि मुझे केवल मुँह हाथ धोना था और अपनी हालत ठीक करनी थी की इतने में पीछे से दीपक आगया, मैं हाथ धोने के लिए वाशबेसिन पर झुकी हुई थी दीपक ने पीछे से मेरी कमर पकड़ी और और मेरी गांड की दरार में अपना लुण्ड फसा दिया, मैं एक दम से चौंक कर सीढ़ी हुई तो उसने झट से अपने हाथ फिसला आकर मेरी चूचियों तक पहुचाये और उन्होंने दोनों हाथो में दबोच लिए, मैं उसकी इस हरकत से एक दम मचल सी गयी और और खुद को छुड़ाने की कोशिश करने लगी लेकिन कहाँ मैं पतली दुबली लड़की और कहा हट्टा कठा दीपक उसने मुझे किसी बच्ची की जैसे दबोचे दबोचे दीवार से लगाया और मेरे सामने आकर अपने लुण्ड को कपडे के ऊपर से ही चूत पर सेट करके धक्के लगाने लगा, मैं बोखला गयी और उस के चुंगुल से छूटने की पूरी जदोजहद कर रही थी लेकिन उसकी पकड़ बड़ी मज़बूत थी और उसके हाथ कभी मेरे चूचियों को रगड़ रहे थे और कभी दूसरे हाथ से मेरे चूतड़ों को मसल रहा था की तभी अचानक वाशरूम की लाइट एक चिंगारी के साथ बंद हो गयी, शायद लोड ज़्यदा पड़ गया था, ऐसा होते ही वाशरूम में अँधेरा च गया और अचानक मुझे ऐसा लगा की इस वक़्त मेरे जिस्म को नोचने वाला दीपक नहीं बल्कि मेरा बाप और रमेश है, ऐसा मन में आते है अचानक मेरे मुँह से डरावनी चीखे निकलने लगी वैसी ही जैसी अभी आपके टच करने से निकली थी और फिर मैंने अँधेरे में पागलो जैसे हाथ पैर चलना शरू कर दिया, मेरी चीखो और हाथ पैर चलने वाली हरकतों से दीपक भी घबरा गया और और मुझे छोड़ कर वाशरूम से बहार भाग गया ,

बहुत देर तक मैं वही वाश रूम में दीवार से लगी रोटी रही फिर शायद बहार से दीपक ने कुछ किया तो वाशरूम की लाइट जल गयी, मैंने उठ कर खुद को ठीक किया और बहार निकल आयी, दीपक बहार ही खड़ा था, मुझे उसको देख कर घिन्न आरही थी और अंदर से रोना भी की ये भी बिलकुल मेरे पापा जैसे निकला, अपने जिस्म की भूख मिटने के लिए इतना पागल हुआ जा रहा था की एक बार मुझसे पूछा तक नहीं और ना ही मेरी हाँ का इन्तिज़ार किया, लेकिन मैं कर क्या सकती थी वापिस उसी के साथ घर आ गयी लेकिन अब मेरे मन में दीपक के लिए पहले से अधिक नफरत थी और मैंने सोच लिया था की अब जल्दी ही इस से पीछा छुड़ाना है ,

दीवाली पर पापा नहीं आये तो मम्मी को थोड़ी चिंता हुई, उनको तो अभी तक कुछ पता था नहीं लेकिन मुझे और दादी को कोई चिंता नहीं थी, आज दादी कुछ ठीक लग रही थी, रात में मैंने और दादी ने खूब बातें की मैंने रात में ही दादी को काट छांट कर माँ और दीनू के बारे में भी बता दिया, दादी को कुछ खास फरक नहीं पड़ा था सुन कर, फिर भी उन्होंने इतना कह ही दिया की अच्छा होता अगर सरिता की शादी दीनू से हो जाती, उसका जीवन शायद कुछ अच्छा गुज़रता, ये बातें करते करते हम दोनों सो गए, सुबह थोड़ा लेट सो कर उठी तो देखा दादी सो रही है तो मैं मम्मी के कमरे की ओर चली गयी, देखा श मम्मी नाहा धो कर मंदिर जाने की तैयारी कर रही है, मुझे चाय पकड़ा कर मम्मी ने दादी को चाय पिलाने का बोला और वो पूजा की थाली सजाने लगी, मैं कमरे में आकर दादी को जैसे ही जगाने के लिए हिलाया तो डर से काँप गयी और ज़ोर से चीख मार कर मम्मी को आवाज़ दी, देखा दादी का शरीर ठंढा पड़ा हुआ था, दादी दुनिया छोड़ कर जा चुकी थी, मैं दहाड़े मार मार कर रोने लगी मम्मी भी रो रही थी, शोर सुन कर पडोसी भी आगये पूरा घर भर गया,

किसी ने रमेश तक खबर पहुचायी और फिर पापा कई दिन के बाद घर लौटे, दोपहर बाद दादी की अन्तेय्ष्टि कर आये। दो दिन पापा ने कोई दारू नहीं पि, मुझे लगा दादी के जाने के दुःख ने उनको गलती का एहसास करा दिया हो लेकिन मैं गलत ही निकली, तीसरे दिन जब वो अस्थि विसर्जन के लिए गए तो वापिस नशे में धुत लौटे , खैर जैसे तैंसे तेरहवी हुई और मैं वापिस ऑफिस जाने लगी।
 
जॉब पर अब दीपक का धयान मुझ पर कम रहता था तो मुझे शांति रहती लेकिन साथ ही अकेलापन भी था, रात में दादी का खली बीएड देख कर रोना आता था, फिर एक दिन मेरे पास नया कलिंग के लिए डाटा आया, बड़ा बकवास डाटा था, कोई ढंग से बात ही नहीं करता था और अगर कोई करता तो ड्यूल मीनिंग बातें करने लगता, दो दिन ऐसी ही चला, बहुत ज़्यदा अपसेट थी, मैंने अगला जो नो मिलाया वो आपका था आपने जिस ढंग से बात की तो पता नहीं क्यों आपकी आवाज़ सुन कर अपनापन सा लगा, अपने जितनी शांति से मेरी बात सुनी और जो भी बोला उस से एक अजीब सा लगाव महसूस हुआ, मन किया की और बातें करू लेकिन फॉर्मल बात करके फ़ोन रख दिया, उस दिन के बाद अगले पुरे सप्ताह तक जब भी कॉल करती मन में आता की दूसरी ओर कॉल पिक करने वाला व्यक्ति आप हो लेकिन ऐसा मुमकिन नहीं था फिर जब एक सप्ताह बाद मैंने हिम्मत करके कॉल किया और आपने पहचान लिया तो मेरी ख़ुशी का कोई ठिकाना नहीं था, पता नहीं दोनों बार जब भी आपसे बात हुई तो लगा जैसे मैं अपने सारे दुःख भूल गयी हूँ, सारा दिन आपकी आवाज़ ही दिल दिमाग में गूंजती रही।

इधर दीपक का मूड भी बदल रहा था उस दिन की घटना के बाद उसने वापिस फिर से कोई ऐसी वैसी हरकत नहीं की थी, बस शाम को पीछे बिठा कर घर तक ले जाता और बदले मुझे उसके साथ चिपक कर बैठना होता था, एक दिन ऐसे ही खाली बैठी थी की मेरा फ़ोन बजा काल राबिया का था, हाल पूछने के बाद उसने बताया की साजिद का दोस्त अरब चला गया है और साजिद अगले महीने जाने वाला है, लेकिन मालिक माकन ने उनको मकान खाली करने के लिए बोला है इसलिए कोई मकान ढूंढ रही है और मेरी हेल्प मांग रही थी,मैंने उसको आश्वासन दिया की मैं कुछ ना कुछ हेल्प ज़रूर करुँगी ,

मेरे घर के एक दो किलोमीटर दूर पर एक मोहल्ला था जहा कुछ मुस्लिम परिवार रहते थे, एक संडे मैं टाइम निकल कर वह गयी और वहा से एक दो डीलर्स का नंबर लेकर राबिया को दे दिया, वहा उसकी बात बन गयी और एक साफ़ सुथरा २ रूम सेट उनको सस्ते रेट में किराये पर मिल गया, मैं वहा की लोकल थी इसलिए मैंने उनको सही मार्किट से घर में काम आने वाली चीज़े सस्ते दाम पर दिला दी, दोनों बहुत आभारी थे, दोनों ही बार बार बहन कह रहे थे तो मैंने साजिद को भाई बना लिया और राबिया को भाभी ताकि कोई कन्फूसिओं न रहे , राबिया पेट से थी फिर भी उसने मेरा खूब सत्कार किया, उनका कोई था नहीं यहाँ पर इसलिए मेरी खूब आओ भगत कर रहे थे, मुझे भी कुछ देर के लिए घर की टेंशन से छुटकारा मिला था।

जब मैं उनको सामान दिलाने के लिए मार्किट गयी थी तभी वह मुझे अपनी एक स्कूल की फ्रैंड एक कास्मेटिक की शॉप पर काम करती दिखी, उसने बताया की दस हज़ार की सैलरी मिलती है काम ठीक है, बस ४बाजे से ७ बजे तक ज़ायदा काम काम करना पड़ता है बाकि मालिक भी ठीक आदमी है और इनको एक और सेल्स गर्ल की तलाश है। मुझे ये सुन कर ठीक लगा, मन में सोच लिया की कॉल सेंटर की डेली की झिकझिक और दीपक से छुटकारे का ये आसान तरीका है, वह से जॉब छोड़ देती हूँ और इसके यहाँ कर लेती हूँ, मैंने शॉप ओनर से बात की और उनसे अगले मन्थ से ज्वाइन करने के लिए कहा तो वो मान गए, मैंने अपना मंथ वह पूरा किया और रिजाइन कर दिया, रिजाइन करने से पहले आपका नो अपने पर्सनल मोबाइल में सेव किया और आपको कॉल भी कर दी, अब मैं वह से आज़ाद थी तो बेधरक हो कर आपसे बातें कर सकती थी, वहा आपके फ़ोन नंबर के साथ साथ आपका एड्रेस और ऐज भी था, लेकिन मुझे इन बातों से ज़ायदा कुछ लेना देना नहीं था मैं तो बस आपसे बातें करना चाहती थी और आपकी आवाज़ सुन्ना चाहती थी इसलिए किसी न किसी बहाने से आपको कॉल कर लेती थी।
 
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