[color=rgb(251,]इकत्तीसवाँ अध्याय: घर संसार[/color]
[color=rgb(44,]भाग - 8(3)[/color]
[color=rgb(71,]अब तक अपने पढ़ा:[/color]
शाम को रेखा अपने घर चली गई और उसके जाने के बाद मेरी बिटिया मेरे गले लग कर ख़ुशी से बोली; "I love you पापा जी! रेखा को आपके द्वारा बनाया हुआ खाना बहुत अच्छा लगा, वो तो आपकी तारीफ करते नहीं थक रही थी| I'm proud of you पापा जी!" मेरी बेटी को आज अपने पापा पर बहुत गर्व हो रहा था इसलिए आज उसके मन में मेरे लिए कुछ अधिक ही प्यार छलक रहा था| जब मैं रात का खाना बना रहा था तब नेहा मेरी मदद करने आ गई, सब्जी काटने से ले कर रोटी बेलने ता नेहा ने मेरी बहुत मदद की| यहाँ तक की रात को खाना भी नेहा ने मुझे अपने हाथों से खिलाया| बाप-बेटी का ये प्यार देख संगीता को जलन हो रही थी और वो मुझे देखते हुए अपनी जलन जाहिर कर रही थी! जब रात में सोने का समय आया तो नेहा आज मुझसे लिपट कर सोइ और बजाए मुझसे कहानी सुनने के, उसने ही मुझे कहानी बना कर सुनाई|
[color=rgb(97,]अब आगे:[/color]
दो दिन बाद शाम को बच्चों ने फिर से घूमने जाने की जिद्द पकड़ ली, अब चूँकि मुझे कल दिन दोनों साइट का काम देखने जाना था इसलिए मैंने बच्चों को दोपहर को घुमाने ले जाने के लिए हाँ कह दी| अगले दिन सबको नाश्ता करा कर मैं साइट पहुँचा और काम का ब्यौरा लिया| 11 बजे मैं दूसरी साइट पर पहुँचा जहाँ मुझे संतोष मिला और उसने मुझे उस साइट के काम का सारा ब्यौरा दिया| तभी अचानक संतोष के गाँव से फ़ोन आ गया और बात काफी चिंताजनक थी, जिस वजह से संतोष को उसी वक़्त अपने गाँव निकलना पड़ा| संतोष के अचानक जाने से साइट का काम लटक जाता इसलिए मुझे मजबूरन साइट पर रुक कर सारा काम सँभालना था|
मैंने सोचा की मैं घर पर फ़ोन कर के बता दूँ की आज मुझे घर आने में देर होगी और बच्चों को सॉरी कह दूँ की आज उनका घूमने जाने का प्लान फिर से चौपट हो जायेगा| मैंने संगीता को फ़ोन मिलाया;
मैं: जान, मुझे यहाँ साइट पर काम सँभालना है इसलिए घर आने में लेट होगा...
इसके आगे मैं कुछ कह पाता उससे पहले ही मेरा फ़ोन बंद हो गया! मैंने अपना फ़ोन देखा तो वो काफी गर्म हो चूका था, दरसल आयुष ने सुबह गेम खेल कर बैटरी आधी कर दी थी तथा बाकी बची बैटरी फ़ोन के अंदर app खुले रह जाने के कारण हीटिंग होने से चुस गई थी! अब मेरे पास चार्जर तो था नहीं की मैं फ़ोन चार्ज कर लूँ इसलिए मैं जल्दी से काम निपटाने में लग गया ताकि घर जल्दी पहुँच सकूँ|
उधर घर पर मेरी आधी बात सुन कर संगीता को लगा की मुझे घर आने में लेट होगा, परन्तु बच्चों के बाहर जाने का प्लान कैंसिल नहीं होगा| मैं घर थोड़ा देर से आऊँगा मगर बच्चों का घूमने जाने का प्लान कैंसिल नहीं होगा, ये सोच कर ही बच्चे खुश थे| लेकिन होनी को कुछ और ही मंज़ूर था!
इधर साइट पर काम बढ़ गया था, माल आने में देर हो गई थी जिस वजह से पैड नहीं बाँधे जा सके! मुझे कैसे भी आज ये पैड बँधवाने थे ताकि लेंटर के काम में देरी न हो| लेबर से काम खिंचवाते-खिंचवाते पूरी रात लग गई और मैं घर नहीं जा पाया| उस पर मैंने गजब ये किया की मैं घर फ़ोन कर अपने ना आने की सूचना भी देना भूल गया!
उधर घर पर, शाम होते ही बच्चों ने मेरे घर न आने पर तूफ़ान खड़ा कर दिया| दोनों बच्चों ने धड़ाधड़ मुझे फ़ोन करना चालु कर दिया मगर मेरा फ़ोन तो स्विच ऑफ था, जिससे दोनों बच्चों का गुस्सा चरम पर पहुँच गया| अब चूँकि मेरी आखरी बात संगीता से हुई थी इसलिए बच्चों ने संगीता से तरह-तरह के सवाल पूछने शुरू कर दिए; "पापा जी कब आएंगे?" "आपकी उनसे क्या बात हुई थी?" "पापा जी ने क्या कहा था की वो कब तक आएंगे?" अब संगीता के पास जवाब हो तब तो वो बच्चों के सवालों का कोई जवाब दे! वो बेचारी बस बच्चों को थोड़ा इंतज़ार करने को कहती रही| जब रात हुई तो संगीता को भी चिंता हुई की आखरी मैं कहाँ हूँ इसलिए उसने संतोष को फ़ोन कर मेरा हाल-पता लिया| संतोष ने संगीता को सारी बात बताई की कैसे साइट पर काम फँसने की वजह से मैं आज रात शायद घर नहीं आ पाउँगा| संगीता ने ये बात जब बच्चों को बताई तो दोनों बच्चों का गुस्सा फट पड़ा! तब माँ ने किसी तरह बच्चों को बहलाया और खुद घुमाने ले जाने की बात कह बच्चों को खाना खाने के लिए मनाया| दाल-सब्जी सब मैंने बना ही दी थी, इसलिए दोपहर की तरह इस समय भी रोटी संगीता ने बाहर से मँगा ली|
अगली सुबह 6 बजे जब मैं घर पहुँचा तो मुझे माँ ने बच्चों के गुस्से के बारे में बताया| मैंने उस समय बच्चों के गुस्से को हल्के में लिया और मन ही मन बच्चों के जागते ही उन्हें आज घुमाने ले जाने की सोचने लगा| माँ नहाने गईं और संगीता ने मुझे चाय बना कर दी| चाय पीते हुए हम मियाँ-बीवी की थोड़ी चुहल-बाज़ी जारी थी की तभी बच्चे जाग गए| मेरी आवाज सुन दोनों बच्चे अपनी आँख मलते-मलते बाहर आये| जैसे ही मैंने बच्चों को देखा, मैंने हमेशा की तरह अपनी बाहें फैला कर दोनों बच्चों को गले लगने को बुलाया मगर मेरे रुष्ठ हुए बच्चे मेरे पास नहीं आये! गुस्से से भरे हुए दोनों बच्चों ने आगे जो कहा वो मेरे लिए बड़ा कष्टदाई था;
आयुष: नहीं....हम आपके पास नहीं आयेंगे!
आयुष अपना निचला होंठ फुलाये हुए गुस्से से बोला|
नेहा: आप झूठे हो!
नेहा गुस्से से ऊँची आवाज़ में बोली| आज पहलीबार नेहा मुझसे यूँ गुस्से से बोली थी और उसका ये गुस्सा देख मुझे बहुत दुःख हो रहा था| वहीं आयुष भी पीछे नहीं रहा, उसने अपनी दीदी द्वारा कहे शब्द (झूठे) को पकड़ लिया था;
आयुष: आपने हमसे झूठ बोला....हमें उल्लू बनाया!
दोनों बच्चों की बात सुन मेरा नाज़ुक सा दिल टूट गया और मेरे चेहरे पर बच्चों को देख कर आई मुस्कान मायूसी में बदल गई!
उधर संगीता ने जब बच्चों को यूँ मुझ पर आरोप लगाते हुए सुना तो उसे बहुत गुस्सा आया और वो एकदम से दोनों बच्चों पर चिल्लाई;
संगीता: आयुष...नेहा...बहुत बद्तमीज़ हो गए हो तुम दोनों! अपने पापा जी से ऐसे बात करते हैं?
संगीता का गुस्सा उसके आपे से बाहर हो गया था और उसने दोनों बच्चों को मारने के लिए हाथ हवा में उठा दिया था, तब मैंने संगीता को रोकते हुए कहा;
मैं: रहने दो जान! सब मेरी ही गलती है!
इतना कह मैं उठ कर कमरे में जाने लगा तो गुस्से में संगीता मुझ ही पर बरस पड़ी;
संगीता: और चढ़ाओ इन दोनों को अपने सर!
मैंने संगीता की बात का कोई जवाब नहीं दिया और अपने कमरे में आ गया|
इधर मैं अपने कमरे में घुसा था और उधर माँ ने संगीता की अंत में कही बात सुन ली थी| माँ ने जब सारा माज़रा संगीता से पुछा तो संगीता ने सब बता दिया| सब बात सुन माँ ने संगीता को मेरे पास अंदर भेजा ताकि वो अकेले में बच्चों को समझा सकें|
माँ: बच्चों, मेरे पास आओ|
माँ ने दोनों बच्चों को अपने पास बुलाया और दोनों को प्यार से समझाने लगीं;
माँ: बेटा, पता है तुम्हारा पापा क्यों कितनी मेहनत करता है? किसके लिए वो यूँ रात-रात भर जाग कर काम करवाता है?
माँ के पूछे सवाल का जवाब बच्चों ने न में सर हिला कर दिया|
माँ: तुम दोनों के लिए! वरना खुद सोचो की उसे क्या जर्रूरत है इतनी मेहनत करने की? इतना अच्छा घर है, छोटे-मोटे ठेकों से उसकी आमदनी भी हो जाती, लेकिन फिर तुम दोनों बच्चों की छोटी-छोटी जर्रूरतें कैसे पूरी होतीं? फिर तुम्हें पता भी है की कल तुम्हारा पापा क्यों घर नहीं आ पाया?
बच्चों ने फिर एक बार अपनी दादी जी के सवाल पर सर न में हिलाया|
माँ: कल साइट पर काम कर रहे तुम्हारे संतोष भैया के घर में एक समस्या पैदा हो गई इसलिए उसे फटाफट गाँव निकलना पड़ा! अब साइट पर कल पड़ना है लेंटर और अगर पैडिंग नहीं बँधती तो लेंटर पड़ने में एक दिन और बर्बाद होता! तुम्हें पता है एक दिन का नुक्सान कितना होता है? पूरे 10,000/- रुपये! अगर मानु तुम्हरें घुमाने ले जाता तो इतना बड़ा नुक्सान कौन भरता? फिर तुम दोनों जानते हो न की तुम्हारा पापा हमेशा तुम्हें खुश रखता है, तुम्हारी हर जिद्द पूरी करता है, अब अगर कभी वो तुम्हारी जिद्द पूरी न कर पाए तो तुम अपने पापा जी को ऐसे ताने मारोगे? 'झूठा' कहोगे अपने पापा जी को? क्या ये सब तुम्हें शोभा देता है? क्या यही सब सिखाया है हमने तुम दोनों को? तुम दोनों तो कितने अच्छे बच्चे हो न?!
माँ ने बच्चों को अच्छे से सारी बात समझाई थी| अपनी दादी जी की बात सुन दोनों बच्चों को मेरे साथ किये गए बुरे व्यवहार पर दोनों बच्चों को ग्लानि हो रही थी|
इधर कमरे के भीतर, मैं नहाने बाथरूम में घुस चूका था| नहा कर निकल मैंने सबके लिए फटाफट दाल-चावल बनाये और खुद बिना खाये ही साइट पर निकलने लगा| जब मैं घर से निकल रहा था तब दोनों बच्चे मुझे दुखी हो कर देख रहे थे, उनकी आँखों में मुझे ग्लानि साफ़ नज़र आ रही थी मगर बच्चों में मुझसे कुछ कहने की हिम्मत नहीं थी| मैंने भी बच्चों को कुछ नहीं कहा और उनकी बगल से होता हुआ निकल गया| जबकि बच्चे ये उम्मीद कर रहे थे की उन्हें यूँ उदास देख मैं उन्हें गले लगा लूँगा और माफ़ कर दूँगा, लेकिन मेरे इस तरह उखड़े व्यवहार करने से दोनों बच्चे और भी दुखी हो गए थे! वहीं मैं अपने बच्चों को उनकी जिंदगी का एक बहुत ही महत्वपूर्ण सबक सिखाना चाहता था, ऐसा सबक जिसे मैं प्यार से बच्चों को नहीं समझा सकता था इसलिए मेरा उनसे ये रुखा व्यवहार करना जर्रूरी था|
मैं अभी साइट पर पहुँचा था की माँ का फ़ोन आ गया, वो अपने पोता-पोती की पैरवी करना चाहतीं थीं, परन्तु मैंने माँ को बच्चों के विषय में बात करने का मौका ही नहीं दिया| माँ समझ गईं की में क्यों बच्चों के बारे में बात नहीं करना चाहता, माँ ने जानकार बात को और नहीं कुरेदा तथा मेरे खाना खाने की तरफ बात को मोड़ दिया| "माँ, मैं यहीं खाना खा लूँगा, आप मेरी चिंता मत करो| आप सब खाना खाइये, मैं रात 8 बजे तक आ जाऊँगा और फटाफट खाना बना दूँगा|" मैंने माँ को आश्वस्त करते हुए कहा| "बेटा, रात के खाने की चिंता न कर तू बस खाना खा कर मुझे फ़ोन कर दियो|" माँ मेरी चिंता करते हुए बोलीं| मैंने भी "जी माँ" कह कर माँ को आश्वस्त किया|
दोपहर को खाने के समय संगीता ने मुझे वीडियो कॉल किया क्योंकि उसे मेरे खाना खाने की चिंता थी| जबतक मैं ने संगीता को ढाबे पर बैठ कर खाना खाते हुए नहीं दिखाया, संगीता ने फ़ोन नहीं रखा| मैं खाना खा रहा हूँ इसकी खबर अपनी जासूस यानी संगीता से सुनकर ही माँ ने खाना खाया| यानी माँ ने ही संगीता को मेरे पीछे खाना खाने के लिए लगाया था! रात को जब मैं घर पहुँचा तो बच्चे फिर से मुझे आस लगाए मुझे देख रहे थे की मैं उन्हें गोद में उठा कर लाड करूँ और बिना उनके माफ़ी माँगें ही उन्हें माफ़ कर दूँ मगर मैं बच्चों को नज़रअंदाज़ करते हुए अपने कमरे में घुसा तथा नहा-धो कर रसोई में घुस गया|
बच्चे मुझसे माफ़ी तो माँगना चाहते थे मगर कुछ कहने की हिम्मत नहीं जुटा पा रहे थे और मैं उनके भीतर हिम्मत भरना चाहता था! रात को जब मैं खाना बना रहा था तब दोनों बच्चे एकदम चुप पढ़ाई करने में लगे थे, जबकि बाकी दिनों में बच्चे ख़ुशी से चहक रहे होते थे| माँ को घर में ये चुप्पी खटक रही थी, वो कुछ कहें उसके पहले ही संगीता ने अपनी बातों से माँ का ध्यान दूसरी ओर भटका दिया| संगीता ने जानबूझ कर अपनी बातों में बच्चों को शामिल किया और बच्चों को हँसा कर घर में हँसी की लहर गुँजवा दी! अगर संगीता ये चतुराई न दिखाती तो माँ आज शायद मुझे बच्चों को यूँ उदास रखने के लिए डाँट ही देती! लेकिन डाँट तो मुझे फिर भी पड़नी थी, आज नहीं तो कल सही!
अगले दिन की बात है, सुबह मैं सब को नाश्ता करा और दोपहर का खाना बना कर साइट के लिए निकलने वाला था की तभी दोनों बच्चे मेरे सामने कान पकड़े खड़े हो गए| दोनों बच्चों ने आज बड़ी हिम्मत बटोर कर मुझसे माफ़ी माँगने का इरादा किया था मगर मुझसे माफ़ी पाना बच्चों के लिए इतना आसान नहीं था! दोनों बच्चों ने कान पकड़े हुए एक साथ एक स्वर में बोले; "सॉरी पापा जी!" बच्चों की सॉरी सुन मेरे चेहरे पर कोई बदलाव नहीं आया, मेरा चेहरा अब भी फीका था और बच्चों के चेहरे ग्लानि से बोझिल!
"सॉरी किस लिए बोल रहे हो आप दोनों?" मैंने हाथ सामने की ओर बाँधते हुए दोनों बच्चों से बड़ी ही नरमी से सवाल पुछा| मेरा सवाल सुन दोनों बच्चों के चेहरे ग्लानि के कारण झुक गए क्योंकि उनके पास मेरे सवाल का कोई जवाब नहीं था| इधर मैं बच्चों से अपने सवाल के जवाब की उम्मीद लगाए बैठा था, लेकिन जब मैंने अपने बच्चों को निरुत्तर सर झुकाये हुए देखा तो मैं बिना कुछ कहे उनकी बगल से होता हुआ साइट के लिए निकल गया|
रात को जब मैं घर पहुँचा तो माँ ने मुझे अपने पास बुला लिया और मुझे अकेले में समझाने लगीं| दरअसल मेरी माफ़ी न मिलने से बच्चे उदास थे और सारा दिन दोनों बच्चों ने बड़े मायूसी से पढ़ते हुए काटा था| अब माँ को बच्चों की ये मायूसी खटक रही थी इसलिए उन्होंने मुझे समझाने के लिए अपने पास बुलाया था|
माँ: बेटा, गुस्सा अपनी लेबर पर निकालना ठीक होता है मगर यहाँ घर में...अपने बच्चों पर निकालना अच्छी बात नहीं! मैंने दोनों बच्चों को प्यार से समझा कर उन्हें उनकी गलती का एहसास दिला दिया है और वो दोनों तुझसे माफ़ी माँग चुके है, फिर तू उन्हें माफ़ क्यों नहीं करता?! तेरी वजह से दोनों बच्चे दो दिन से यूँ उदास बैठे हैं, ये अच्छी बात है?
माँ की बात सुन मैंने माँ को सारी बात इत्मीनान से बताई;
मैं: माँ...बच्चे मुझसे माफ़ी तो माँग रहे हैं लेकिन वो माफ़ी अपनी किस गलती के लिए माँग रहे हैं ये उन्हें पता ही नहीं?! अब वो (आयुष और नेहा) मुझसे आवाज ऊँची कर बात करने के लिए माफ़ी माँग रहे हैं? या मेरी बात पर विश्वास न करने पर माफ़ी माँग रहे हैं? या मुझे 'झूठा' कहने पर माफ़ी माँग रहे हैं? बिना सही कारण जाने मैं कैसे दोनों बच्चों को माफ़ कर दूँ?
मेरी आधी बात सुन माँ ने मुझे फिर समझाने की कोशिश करनी चाहि परन्तु मैंने माँ को रोकते हुए अपनी बात पूरी की जिससे माँ को समझ आया की मैं अपने बच्चों को आखिर कौन सी सीख देना चाहता हूँ;
मैं: माफ़ी माँगने का मतलब केवल सॉरी बोलना नहीं होता, बल्कि अपनी गलती स्वीकारना और उस गलती को फिर कभी न दोहराना होता है| मैंने आज तक जितनी भी गलतियाँ की हैं उनकी माफ़ी माँगते हुए मैंने अपनी गलती अवश्य स्वीकारी है और फिर वो गलती आगे न दोहराने का वादा भी आपसे किया है| मुझे भी अपने बच्चों से बस यही सुनना है की वो अपनी किस गलती के लिए शर्मिंदा हैं और क्या आगे वो ये गलती फिर दोहराएँगे या नहीं?!
मेरी पूरी बात सुन माँ समझ गईं की बच्चों को न माफ़ करने के पीछे आखिर मेरा असली उद्देश्य क्या है?
मैं: मुझे बस बच्चों को ये एहसास दिलाना है की गलती कर के केवल सॉरी बोल देने से सब ठीक नहीं हो जाता! जब तक आप अपनी गलती स्वीकार कर सच्चे मन से प्रायश्चित न कर लो, आपकी माँगी गई मौखिक माफ़ी का कोई लाभ नहीं होता! आप बच्चों को थोड़ा समय दो, जब उनकी अंतरात्मा कचोटेगी तो दोनों को समझ आने लगेगा की उनकी आखिर गलती क्या है?!
माँ ने मेरी बात सुन मेरी पीठ थपथपाई और मुस्कुराते हुए बोलीं;
माँ: शाब्बाश बेटा, मुझे जानकार ख़ुशी हुई की तो अपने बच्चों को उनकी जिंदगी का एक जर्रूरी सबक सीखा रहा है|
माँ के मेरी बात समझने से मेरा मन हल्का हो गया था, वरना मुझे भी लग रहा था की मैं अपने बच्चों के साथ थोड़ी ज्यादा ही ज़्यादती कर रहा हूँ!
रात को खाना खाते समय भी बच्चे उदास थे और आस लिए मेरी ओर देख रहे थे की मैं उन्हें बिना कुछ कहे ही माफ़ कर दूँ तथा अपने गले लगा कर लाड करूँ| लेकिन मैं जानबूझ कर बच्चों को नज़रअंदाज़ कर माँ और संगीता से बात करने में लगा हुआ था| जाहिर था की खुद को नज़रअंदाज किया जाना बच्चों को चुभ रहा था मगर दोनों बच्चों में हिम्मत नहीं थी की वो कुछ कह सकें इसलिए दोनों बच्चे सर झुकाये धीरे-धीरे अपना खाना खा रहे थे| खाना खाने के बाद बच्चे अपनी दादी जी के पास सो गए और इधर संगीता भी मुझे माँ की तरह समझाने लगी की मैं अपना गुस्सा थूक दूँ और बच्चों को लाड करूँ| मैंने संगीता को भी माँ की तरह सारी बात समझाई और बच्चों की जगह उसे ही थोड़ा लाड-प्यार कर बहलाया तथा अपने सीने से लगा कर सो गया|
अगली सुबह की बात है, मैं साइट पर निकलने को तैयार हो रहा था जब दोनों बच्चे अपनी सारी हिम्मत बटोर कर मेरे सामने खड़े हो गए| दोनों ने अपने-अपने कान पकड़े और रुनवासे होते हुए बोले;
आयुष: सॉरी पापा जी...मुझे माफ़ कर दीजिये...मैंने आपसे गंदी तरह से बात की!
ये कहते हुए आयुष का सर शर्म से झुक गया| आयुष छोटा था इसलिए उसमें इससे आगे कहने की हिम्मत नहीं थी| नेहा बड़ी थी इसलिए उसी ने हिम्मत कर के आयुष की बात पूरी की;
नेहा: I'm sorry पापा जी! आप हम दोनों (आयुष और नेहा) को माफ़ कर दीजिये! दिन रात एक कर आप हमारे लिए इतनी मेहनत करते हैं और हम आपकी बेकद्री करते हैं...आप से ऊँची आवाज़ में बात कर...आप पर शक़ कर...आपके लिए गंदे शब्द बोलते हैं.
इतना कह नेहा फफक कर रो पड़ी! तब आगे की बात आयुष ने सँभाली और आयुष रोते हुए बोला;
आयुष: हमें माफ़ कर दो पापा जी...हम...आ...आगे से कभी...ऐसे...ऐसे...जिद्द नहीं करेंगे.... कभी आप से....ऊँची....
इतना कहते हुए आयुष का रोना तेज़ हो गया|
अपने बच्चों को यूँ ग्लानि से सर झुकाये मुझसे माफ़ी माँगते हुए देख मैं अंदर से टूट गया! अपने दोनों घुटने टेक मैंने अपनी दोनों बाँहें फैला नम आँखों से अपने बच्चों को पुकारते हुए कहा;
मैं: बस मेरे बच्चों....बस...मैंने आप दोनों को माफ़ किया!
मैंने दिल से पाने बच्चों को माफ़ कर दिया था| उधर मेरी माफ़ी मिलते ही दोनों बच्चे आ कर मेरे गले से लिपट गए और जोर से रोने लगे!
मैं: बस मेरे बच्चों!
मुझसे भी आगे कुछ कहा नहीं जा रहा था| मन में उमड़ा प्यार का सागर छलक उठा और मैंने दोनों बच्चों को बार-बार चूम, दो दिन से एकत्र हुआ अपना सारा प्यार बच्चों पर उड़ेल दिया! बच्चे भी पीछे नहीं थे, दोनों मुझसे कस कर लिपटे हुए थे मानो, जैसे मुझे कहीं जाने ही न देना चाहते हों!
जब बच्चों का रोना थमा तब मैंने उन्हें प्यार से समझाते हुए कहा;
मैं: बेटा, मुझे आपका जिद्द करना, नाराज़ होना या मुझसे बात न करना ज़रा भी नहीं चुभा| लेकिन, जब आपने बिना सारी बात जाने मुझे झूठा कहा न तो मुझे बहुत दर्द हुआ! मैं आपसे इतना प्यार करता हूँ, तो क्या मुझे आपके सामने अपनी बात रखने का भी हक़ नहीं?! आपके संतोष भैया के घर में अचानक कुछ समस्या आ गई थी, जिसकी वजह से उन्हें अचानक गाँव जाना पड़ा! वहीं मेरा फ़ोन आयुष ने गेम खेल कर गर्म कर दिया था जिससे मैं आपको फ़ोन कर के कुछ भी बता नहीं पाया!
जब मैंने आयुष के मेरे मोबाइल पर गेम खेलने की बता कही तो नेहा को अपने भाई पर गुस्सा आ गया और उसने आयुष की पीठ में गुस्से से एक थपकी धर दी, शुक्र है की आयुष को ज्यादा दर्द नहीं हुआ वरना वो फिर से रोने लगता! मैंने अपना सर न में हिलाते हुए मूक इशारे से नेहा को आयुष को और मारने से रोका तथा अपनी बात आगे पूरी की;
मैं: बेटा, गलती सबसे होती है! मुझसे, आपकी मम्मी से, आपकी दादी जी से....लेकिन हमें अपनी गलती सच्चे मन से स्वीकारनी चाहिए और उसके बाद ही माफ़ी माँगनी चाहिए| बिना गलती स्वीकारे माँगी गई माफ़ी का कोई मोल नहीं होता, वो तो बस एक तरह की खाना-पूरी करने की बात हुई! कल जब आपने मुझसे सॉरी कहा था तब मैंने आपको यही बात समझाने के लिए सवाल पुछा था की आप आखिर माफ़ी क्यों माँग रहे हो?! थोड़ा समय लगा लेकिन अब देखो आपको अपनी गलती का एहसास हो ही गया| आपने मेरे सामने न केवल अपनी गलती स्वीकारी बल्कि अपनी गलती के लिए माफ़ी भी माँगी और दुबारा ये गलती न दोहराने का वादा भी किया|
मैंने अपनी बात पूरी कर बच्चों को प्यार से सीख दे दी थी और मेरे बच्चों ने भी ये सीख अपने पल्ले गाँठ बाँध ली थी| वहीं मेरी वादे की बात सुन दोनों बच्चों ने फिर से अपने कान पकड़ते हुए अपनी बात दुहरा दी की वो आज के बाद फिर कभी इस गंदी तरह से मुझसे या किसी से भी पेश नहीं आएंगे|
चलो अब सब कुछ ठीक हो चूका था तो मैं दोनों बच्चों को गोदी लिए हुए बैठक में आया जहाँ माँ और संगीता बैठे हुए थे| मेरी गोद में बच्चों को देख दोनों सास-पतुआ समझ गए की मैंने बच्चों को माफ़ कर दिया है इसीलिए तो दोनों सास-पतुआ के चेहरा पर सुकून की मुस्कान छलक रही थी|
मैं: माँ, हम तीनों बाप-बेटा-बेटी अभी घूमने जा रहे हैं|
मैंने बच्चों को गोदी में लिए हुए ही ऐलान किया| मेरा ये ऐलान सुन संगीता ने बीच में व्यवधान डाला क्योंकि जाहिर सी बात है की मैं उसे घुमाने नहीं ले जा रहा था;
संगीता: अरे, अभी तो आप साइट जा रहे थे!
मैं संगीता की बात में छुपी जलन महसूस कर चूका था मगर मेरे लिए इस वक़्त मेरे बच्चों की ख़ुशी जर्रूरी थी|
मैं: काम-धाम सब बाद में! आज तो बस बच्चों के साथ मस्ती करने का दिन है!
मैं जोश से भरते हुए बोला| मेरा जोश देख माँ हँस पड़ीं और संगीता से बोलीं;
माँ: तू तो जानती ही है मानु को, बच्चों की ख़ुशी के आगे इसे कुछ दिखता ही नहीं!
माँ की बात सुन संगीता मुझे उल्हना देने वाली थी मगर फिर चुप हो गई!
इधर दोनों बच्चों ने जब सुना की मैं काम छोड़ कर उन्हें घुमाने ले जा रहा हूँ तो दोनों बच्चे मना करने लगे;
नेहा: पापा जी, हम फिर कभी घूमने चले जायेंगे| आज आप साइट का काम सँभालो!
अपनी दीदी की बात सुन आयुष अपनी उँगलियों पर दिन गिनते हुए बोला;
आयुष: हाँ पापा जी, हम 4 दिन बाद जायेंगे!
मुझे नहीं पता था की आयुष ने ये चार दिन क्यों गिने थे, मैं तो बस बच्चों के घूमने जाने से मना करने की बात सुन उन्हें थोड़ा हैरान था!
मैं: बेटा, आज आपके संतोष भैया आ रहे हैं और वो आज का काम सँभाल लेंगे|
ये सुनते ही आयुष ख़ुशी से चिल्लाया! उधर नेहा को भी इत्मीनान था की घूमने जाने के कारण काम का नुक्सान नहीं होगा| तो यूँ पल भर में ही मेरे बच्चों का दिल खुश हो गया था|
उधर बच्चे तैयार हो रहे थे और इधर मेरी पत्नी की नाक पर प्यारा सा गुस्सा बैठा था की मैं उसे घुमाने नहीं ले जा रहा| संगीता अपना मुँह फुलाये कमरे में बैठी थी तो मुझे उसे मनाने का मौका मिल ही गया;
मैं: जान, अभी तुम्हारा यूँ घूमना सुरक्षित नहीं है वरना मैं तुम्हें छोड़ कर सिर्फ बच्चों को थोड़े ही घुमाने ले जाता?! एक बार डिलीवरी हो जाये फिर सिर्फ हम दोनों सब जगह घूमने चलेंगे|
मैंने संगीता को छोटे बच्चों की तरह बहलाते हुए कहा तब जा कर संगीता के चेहरे पर प्यारी सी मुस्कान आई|
संगीता: तो मेरे लिए क्या ले कर आओगे?
संगीता छोटे बच्चों की तरह अपनी टिमटिमाती आँखों से मुझे देखते हुए बोली|
मैं: मैं है न...जब वापस...आऊँगा न...तब न....तुम्हारे लिए...वो बड़ी वाली...अमूल की आइस-क्रीम ब्रिक...जो की बड़े से डिब्बे में आती है...वो ले कर आऊँगा!
आइस-क्रीम का नाम सुनते ही संगीता ऐसे खुश हुई जैसे छोटे बच्चे खुश होते हैं और अपनी इस ख़ुशी को जाहिर करने के लिए संगीता ने छोटे बच्चों की तरह ताली भी बजाई! संगीता का ये बचपना देख मैं उस पर मोहित हो गया और उसके चेहरे को अपने दोनों हाथो में ले उसके गुलाबी होठों का रसपान करने लगा| अभी बस मिनट भर हुआ होगा की आयुष के फुदकते हुए आने की आवाज आ गई और हम दोनों मियाँ-बीवी एकदम से अलग हो गए| आयुष के यूँ अचानक आ जाने से संगीता अपने प्यारभरे गुस्से से बोली;
संगीता: इन दोनों भूतों के होते हुए एक पल का चैन नहीं!
मैंने संगीता की बात को नज़रअंदाज़ किया और आयुष को गोदी में उठा कर उससे बात करने लगा|
गर्मी का मौसम था इसलिए हम बाप-बेटा-बेटी शेड्स (shades) और टोपी पहन कर, अच्छे से तैयार हो कर निकले| सबसे पहले हम पहुँचे क़ुतुब मीनार, बच्चों के लिए ये पहला अवसर था जब वो यहाँ घूमने आये हों इसलिए बच्चे बहुत उत्साहित थे| हमारे आगे एक फ़िरंगियों का झुण्ड था जिन्होंने एक गाइड बुक कर रखा था और वो गाइड उन घूमने आये फ़िरंगियों को इस जगह के बारे में जानकारी दे रहा था| हमने भी इस मुफ्त सुविधा का फायदा उठाया और उस झुण्ड में शामिल हो गए तथा मुफ्त में क़ुतुब मीनार के बारे में जानकारी हासिल करने लगे| आयुष के लिए ये जानकारी काम की नहीं थी इसलिए उसकी नजरें बस क़ुतुब मीनार को देखने में व्यस्त थीं, जबकि नेहा का सारा ध्यान उस गाइड की बात सुनने में था और वो इस जानकारी को अच्छे से याद भी कर रही थी ताकि स्कूल खुलने पर अपने दोस्तों को भी ये जानकारी बता सके|
क़ुतुब मीनार से निकले तो दोनों बच्चों को भूख लग आई थी इसलिए हमने पहले थोड़ी सी पेट-पूजा की और फिर हम इंडिया गेट पहुँचे| इंडिया गेट पहुँच कर हम सीधा पहुँचे अमर जवान ज्योति जहाँ हम तीनों बाप-बेटा-बेटी ने एक साथ अमर जवान ज्योति को देखते हुए सलूट किया| मैंने दोनों बच्चों को इस ऐतिहासिक जगह के बारे में खुद जानकारी दी और हम तीनों ने एक बार फिर शहीदों को नमन किया| शहीदों की शहादत के बारे में जान दोनों बच्चों के दिल में मेरी तरह देशभक्ति जाग चुकी थी! जब हमने अंतिमबार अमर जवान ज्योति को नमन किया तब तो हम तीनों के भीतर बसी देशभक्ति के कारण हमारे रोंगटे खड़े हो गए थे| शहीद स्थल से निकल हमने पहले आइस-क्रीम खाई, क्योंकि इस चिलचिलाती हुई गर्मी में आइस-क्रीम खाने से बढ़िया सुख कुछ और न था|
गर्मी बढ़ने लगी थी और अब हमें किसी ठंडी जगह की तलाश थी, इसलिए मैं बच्चों को ले चिड़िया घर के पास बोटिंग करने आ गया| बच्चों ने आजतक बोटिंग नहीं की थी इसलिए बोटिंग करने के नाम से ही दोनों बच्चे ख़ुशी से कूद रहे थे| "बेटा, बोट में बैठने के बाद बिलकुल शैतानी नहीं करनी है! बिलकुल कूदना या खड़े हो कर नाचना नहीं है, वरना बोट पलट भी सकती है! चुप-चाप अपनी जगह पर बैठना और धीरे-धीरे पेडल मारना है|" मैंने दोनों बच्चों को प्यार से हिदायत देते हुए कहा| दोनों बच्चों ने गंभीरता से मेरी बात सुनी और सर हाँ में हिला कर बात मानी भी| अपने साथ एक बोट चलाने वाले को ले कर हम चारों अपनी बोट के पास पहुँचे| आयुष उत्साह के मारे पहले जाना चाहता था मगर मैंने उसे रोका क्योंकि मुझे डर लग रहा था की कहीं आयुष बोट में एकदम से कूदा और बोट पलट गई तो?! पहले मैं बोट में उतरा और आयुष को गोदी में उठा कर बिठाया| बोट में हुई चहलकदमी से हमारी बोट थोड़ा हिल रही थी जिससे आयुष घबरा गया था! आयुष के चेहरे पर डर देख मैंने उसे समझाया; "बेटा, डरना नहीं है, आप बस चुप-चाप अपनी जगह बैठो|" मेरी बात मानते हुए आयुष चुपचाप अपनी जगह पर बैठ गया| फिर मैंने नेहा को गोदी में लिया और अपनी बगल वाली सीट पर बिठा दिया| बोट के हिलने से नेहा भी डरी हुई थी इसलिए उसने एकदम से मेरा बायाँ हाथ कस कर पकड़ लिया| मैं धीरे से नेहा की बगल में बैठ गया और अपने बाएँ हाथ को नेहा के बाएँ कंधे पर रख उसे अपने से सटा लिया| आयुष बेचारा नेहा के ठीक सामने बैठा था और थोड़ा डरा हुआ था, तभी उसकी बराबर में बोट चलाने वाले भैया बैठ गए तथा उन्होंने आयुष के डर को भाँपते हुए उसका मन भटका दिया; "आपको पता है, इस झील में मछलियाँ भी हैं!" आयुष ने आजतक मछलियाँ नहीं देखि थीं इसलिए मछलियों का नाम सुनते ही आयुष का डर छूमंतर हो गया!
बोट चलाने वाले भैया ने और मैंने मिलकर पेडल मारना शुरू किया तो दोनों बच्चों की भी इच्छा पेडल मारने की हुई| नेहा के पाँव फिर भी पेडल तक पहुँच गए थे मगर आयुष था छोटा और उसके छोटे-छोटे पाँव पेडल तक नहीं पहुँच रहे थे! आयुष को यूँ पेडल मारने के लिए जूझता हुआ देख हम सभी को हँसी आ रही थी, वहीं आयुष अपनी सीट के बिलकुल किनारे तक आ पहुँचा था! सीट के किनारे आने से आयुष के पाँव तो पेडल तक पहुँच गए थे मगर सामने बैठी नेहा को मस्ती को सूझ रही थी इसलिए जैसे ही आयुष के पाँव पेडल पर पहुँचे, नेहा ने एकदम से पेडल मारते हुए आयुष के हिस्से के पेडल को नीचे कर दिया! अपनी बहन द्वारा किये इस मज़ाक से आयुष चिढ गया और मुझसे शिकायत करने लगा; "देखो पापा जी, दीदी मुझे पेडल नहीं मारने दे रही!" जैसे ही आयुष ने शिकायत की वैसे ही नेहा ने आयुष के सामने वाला पेडल ऊपर कर दिया जिससे आयुष के पाँव बस बदल को छू सकते थे| हैरानी की बात है की बिना पेडल मारे, बस पेडल को छूने भर से ही आयुष खुश हो गया था!
खैर, पेडल करते हुए हमारी बोट एक किनारे पहुँची थी जहाँ एक आदमी आटें की गोलियाँ बेच रहा था, मैंने वो गोलियाँ खरीदीं और दोनों बच्चों को थोड़ी-थोड़ी दी| आयुष को लगा की ये गोलियाँ खाने के लिए हैं इसलिए वो गोली खाने जा रहा था की तभी मैंने उसे रोकते हुए कहा; "नहीं-नहीं बेटा! ये गोलियाँ आपके खाने के लिए नहीं हैं! ये गोलियाँ हमें मछलियों को चुगानी है|" मेरी बात सुन आयुष हैरानी से मुझे देखने लगा, क्योंकि उसे समझ नहीं आ रहा था की भला हम ये आटें की गोलियाँ मछलियों को क्यों खिला रहे हैं? "बेटा मछलियों को आटें की गोली चुगाने से, पंछियों को अनाज चुगाने से और चीटियों को आटा डालने से हमें पुण्य मिलता है इसलिए जब कभी आपको ये पुण्य करने का मौका मिले आपको इस मौका का लाभ अवश्य उठाना चहिये|" मैंने आयुष और नेहा को एक और सीख देते हुए कहा| नेहा तो झट से समझ गई की पुण्य क्या होता है मगर मेरा बेटा आयुष ये समझ नहीं पाया की आखिर पुण्य क्या होता है? उसके लिए तो मछलियाँ देखना और उन्हें ये आटें की गोलियाँ खिलाना जर्रूरी था इसलिए पुण्य क्या होता है ये सवाल आयुष ने घर पहुँच कर पूछने के लिए अपने मन में याद कर लिया तथा अपना सारा ध्यान झील में मछलियों को ढूँढने में लगा दिया|
बोट चलाने वाले भैया हमें झील के बीचों-बीच ले आये जहाँ की मछलियाँ थीं, अब दिक्कत ये की झील का पानी हरे रंग का था और उसमें कुछ भी देख पाना मुश्किल था| इधर आयुष को मछलियाँ देखनी थी इसलिए उसने मुझसे पूछना शुरू कर दिया की; "पापा जी, मछली कहाँ है?" आयुष मुझसे ये सवाल ऐसे पूछ रहा था जैसे मानो ये झील मेरी हो और मुझे पता हो की मछलियाँ कहाँ हैं? तभी बोट चलाने वाले भैया बोले; "आप एक आटें की गोली डालो और फिर देखो धीरे- धीरे कुछ मछलियाँ ऊपर आएँगी|" आयुष ने फट से 2-4 आटें की गोलियाँ झील के पानी में छोड़ी और 5 मिनट बाद हमें 1-2 मछलियाँ दिखाई देने लगीं| मछलियों को देख आयुष और नेहा बहुत खुश हुए और दोनों ख़ुशी से चहकने लगे; "पापा जी देखो" कहते हुए दोनों बच्चों ने मेरा ध्यान मछलियों पर लगा दिया| हम तीनों ने एक-एक कर मछलियों को आटें की गोलियाँ खिलानी शुरू कर दी, मछलियाँ कम थीं इसलिए हमारे चुगाई जा रही कुछ ही आटें की गोलियाँ मछलियाँ खातीं और बाकी गोलियाँ झील में लुप्त हो जातीं| जो गोलियाँ मछलियाँ खा लेतीं उससे दोनों बच्चे बहुत खुश होते और उत्साह तथा ख़ुशी से मुझसे कहते; "पापा जी, देखो मैंने मछली को गोली खिला दी!" बच्चों का ये बचपना देख मुझे बहुत मज़ा आता और मैं उन्हें बार-बार शब्बाशी देता|
बोटिंग कर हम तीनों बाप-बेटा-बेटी ने पिज़्ज़ा खाया और फिर संगीता के लिए आइस-क्रीम ले हम 5 बजे घर लौटे| मुझे और बच्चों को देखते है संगीता मुझे उल्हाना देते हुए माँ से बोली; "देख रहे हो माँ, आज बच्चों को घुमाने के चक्कर में हमारे खाना खाने की परवाह ही नहीं की गई! ये भी नहीं पुछा की हमने खाना खाया या नहीं?! बस लग गए अपनी मस्ती में सब!" संगीता के दिए उस उलहाने को सुन मैं मुस्कुराया और माँ को देखने लगा, तब माँ ने संगीता को बताया; "ऐसा नहीं है बहु, मानु ने फ़ोन किया था मुझे और पुछा था की हमने खाना खाया या नहीं?!" माँ की बात सुन संगीता थोड़ा शर्मिंदा हो गई और उसने शर्म से अपनी नजरें झुका लीं| मेरी पत्नी और शर्मिंदा न हो इसलिए मैंने उसके लिए लाई हुई आइस-क्रीम नेहा को देते हुए कहा; "बेटा, आप जा कर जल्दी से सभी के लिए आइस-क्रीम परोस लाओ|" नेहा फटाफट आइस-क्रीम परोसने गई और इधर मैं संगीता की बगल में बैठ गया| संगीता ने फौरन अपना सर मेरे कंधे पर रख दिया और चोरी से मेरा हाथ मींजते हुए मुझे मूक भाषा में सॉरी कहने लगी| अब मैं उससे नाराज़ थोड़े ही था जो उसे माफ़ न करता, मैंने भी धीरे से संगीता का हाथ मीस दिया और उसे चोरी-छुपे आँख मर दी! मेरे यूँ आँख मारने से संगीता के चेहरे पर एक कुटिल मुस्कान उभर आई जो की मेरी समझ से परे थी! इतने में नेहा सभी के लिए आइस-क्रीम परोस लाई और फिर शुरु हुआ बच्चों का आज की कहानी सुनाना जिसे हम सभी ने बड़े चाव से आइस-क्रीम खाते हुए सुना|
[color=rgb(163,]जारी रहेगा भाग - 9 में...[/color]