Hindi Antarvasna एक अनोखा बंधन - पुन: प्रारंभ


[color=rgb(251,]इकत्तीसवाँ अध्याय: घर संसार[/color]
[color=rgb(44,]भाग - 8(3)[/color]


[color=rgb(71,]अब तक अपने पढ़ा:[/color]

शाम को रेखा अपने घर चली गई और उसके जाने के बाद मेरी बिटिया मेरे गले लग कर ख़ुशी से बोली; "I love you पापा जी! रेखा को आपके द्वारा बनाया हुआ खाना बहुत अच्छा लगा, वो तो आपकी तारीफ करते नहीं थक रही थी| I'm proud of you पापा जी!" मेरी बेटी को आज अपने पापा पर बहुत गर्व हो रहा था इसलिए आज उसके मन में मेरे लिए कुछ अधिक ही प्यार छलक रहा था| जब मैं रात का खाना बना रहा था तब नेहा मेरी मदद करने आ गई, सब्जी काटने से ले कर रोटी बेलने ता नेहा ने मेरी बहुत मदद की| यहाँ तक की रात को खाना भी नेहा ने मुझे अपने हाथों से खिलाया| बाप-बेटी का ये प्यार देख संगीता को जलन हो रही थी और वो मुझे देखते हुए अपनी जलन जाहिर कर रही थी! जब रात में सोने का समय आया तो नेहा आज मुझसे लिपट कर सोइ और बजाए मुझसे कहानी सुनने के, उसने ही मुझे कहानी बना कर सुनाई|

[color=rgb(97,]अब आगे:[/color]

दो
दिन बाद शाम को बच्चों ने फिर से घूमने जाने की जिद्द पकड़ ली, अब चूँकि मुझे कल दिन दोनों साइट का काम देखने जाना था इसलिए मैंने बच्चों को दोपहर को घुमाने ले जाने के लिए हाँ कह दी| अगले दिन सबको नाश्ता करा कर मैं साइट पहुँचा और काम का ब्यौरा लिया| 11 बजे मैं दूसरी साइट पर पहुँचा जहाँ मुझे संतोष मिला और उसने मुझे उस साइट के काम का सारा ब्यौरा दिया| तभी अचानक संतोष के गाँव से फ़ोन आ गया और बात काफी चिंताजनक थी, जिस वजह से संतोष को उसी वक़्त अपने गाँव निकलना पड़ा| संतोष के अचानक जाने से साइट का काम लटक जाता इसलिए मुझे मजबूरन साइट पर रुक कर सारा काम सँभालना था|

मैंने सोचा की मैं घर पर फ़ोन कर के बता दूँ की आज मुझे घर आने में देर होगी और बच्चों को सॉरी कह दूँ की आज उनका घूमने जाने का प्लान फिर से चौपट हो जायेगा| मैंने संगीता को फ़ोन मिलाया;

मैं: जान, मुझे यहाँ साइट पर काम सँभालना है इसलिए घर आने में लेट होगा...

इसके आगे मैं कुछ कह पाता उससे पहले ही मेरा फ़ोन बंद हो गया! मैंने अपना फ़ोन देखा तो वो काफी गर्म हो चूका था, दरसल आयुष ने सुबह गेम खेल कर बैटरी आधी कर दी थी तथा बाकी बची बैटरी फ़ोन के अंदर app खुले रह जाने के कारण हीटिंग होने से चुस गई थी! अब मेरे पास चार्जर तो था नहीं की मैं फ़ोन चार्ज कर लूँ इसलिए मैं जल्दी से काम निपटाने में लग गया ताकि घर जल्दी पहुँच सकूँ|

उधर घर पर मेरी आधी बात सुन कर संगीता को लगा की मुझे घर आने में लेट होगा, परन्तु बच्चों के बाहर जाने का प्लान कैंसिल नहीं होगा| मैं घर थोड़ा देर से आऊँगा मगर बच्चों का घूमने जाने का प्लान कैंसिल नहीं होगा, ये सोच कर ही बच्चे खुश थे| लेकिन होनी को कुछ और ही मंज़ूर था!

इधर साइट पर काम बढ़ गया था, माल आने में देर हो गई थी जिस वजह से पैड नहीं बाँधे जा सके! मुझे कैसे भी आज ये पैड बँधवाने थे ताकि लेंटर के काम में देरी न हो| लेबर से काम खिंचवाते-खिंचवाते पूरी रात लग गई और मैं घर नहीं जा पाया| उस पर मैंने गजब ये किया की मैं घर फ़ोन कर अपने ना आने की सूचना भी देना भूल गया!

उधर घर पर, शाम होते ही बच्चों ने मेरे घर न आने पर तूफ़ान खड़ा कर दिया| दोनों बच्चों ने धड़ाधड़ मुझे फ़ोन करना चालु कर दिया मगर मेरा फ़ोन तो स्विच ऑफ था, जिससे दोनों बच्चों का गुस्सा चरम पर पहुँच गया| अब चूँकि मेरी आखरी बात संगीता से हुई थी इसलिए बच्चों ने संगीता से तरह-तरह के सवाल पूछने शुरू कर दिए; "पापा जी कब आएंगे?" "आपकी उनसे क्या बात हुई थी?" "पापा जी ने क्या कहा था की वो कब तक आएंगे?" अब संगीता के पास जवाब हो तब तो वो बच्चों के सवालों का कोई जवाब दे! वो बेचारी बस बच्चों को थोड़ा इंतज़ार करने को कहती रही| जब रात हुई तो संगीता को भी चिंता हुई की आखरी मैं कहाँ हूँ इसलिए उसने संतोष को फ़ोन कर मेरा हाल-पता लिया| संतोष ने संगीता को सारी बात बताई की कैसे साइट पर काम फँसने की वजह से मैं आज रात शायद घर नहीं आ पाउँगा| संगीता ने ये बात जब बच्चों को बताई तो दोनों बच्चों का गुस्सा फट पड़ा! तब माँ ने किसी तरह बच्चों को बहलाया और खुद घुमाने ले जाने की बात कह बच्चों को खाना खाने के लिए मनाया| दाल-सब्जी सब मैंने बना ही दी थी, इसलिए दोपहर की तरह इस समय भी रोटी संगीता ने बाहर से मँगा ली|

अगली सुबह 6 बजे जब मैं घर पहुँचा तो मुझे माँ ने बच्चों के गुस्से के बारे में बताया| मैंने उस समय बच्चों के गुस्से को हल्के में लिया और मन ही मन बच्चों के जागते ही उन्हें आज घुमाने ले जाने की सोचने लगा| माँ नहाने गईं और संगीता ने मुझे चाय बना कर दी| चाय पीते हुए हम मियाँ-बीवी की थोड़ी चुहल-बाज़ी जारी थी की तभी बच्चे जाग गए| मेरी आवाज सुन दोनों बच्चे अपनी आँख मलते-मलते बाहर आये| जैसे ही मैंने बच्चों को देखा, मैंने हमेशा की तरह अपनी बाहें फैला कर दोनों बच्चों को गले लगने को बुलाया मगर मेरे रुष्ठ हुए बच्चे मेरे पास नहीं आये! गुस्से से भरे हुए दोनों बच्चों ने आगे जो कहा वो मेरे लिए बड़ा कष्टदाई था;

आयुष: नहीं....हम आपके पास नहीं आयेंगे!

आयुष अपना निचला होंठ फुलाये हुए गुस्से से बोला|

नेहा: आप झूठे हो!

नेहा गुस्से से ऊँची आवाज़ में बोली| आज पहलीबार नेहा मुझसे यूँ गुस्से से बोली थी और उसका ये गुस्सा देख मुझे बहुत दुःख हो रहा था| वहीं आयुष भी पीछे नहीं रहा, उसने अपनी दीदी द्वारा कहे शब्द (झूठे) को पकड़ लिया था;

आयुष: आपने हमसे झूठ बोला....हमें उल्लू बनाया!

दोनों बच्चों की बात सुन मेरा नाज़ुक सा दिल टूट गया और मेरे चेहरे पर बच्चों को देख कर आई मुस्कान मायूसी में बदल गई!

उधर संगीता ने जब बच्चों को यूँ मुझ पर आरोप लगाते हुए सुना तो उसे बहुत गुस्सा आया और वो एकदम से दोनों बच्चों पर चिल्लाई;

संगीता: आयुष...नेहा...बहुत बद्तमीज़ हो गए हो तुम दोनों! अपने पापा जी से ऐसे बात करते हैं?

संगीता का गुस्सा उसके आपे से बाहर हो गया था और उसने दोनों बच्चों को मारने के लिए हाथ हवा में उठा दिया था, तब मैंने संगीता को रोकते हुए कहा;

मैं: रहने दो जान! सब मेरी ही गलती है!

इतना कह मैं उठ कर कमरे में जाने लगा तो गुस्से में संगीता मुझ ही पर बरस पड़ी;

संगीता: और चढ़ाओ इन दोनों को अपने सर!

मैंने संगीता की बात का कोई जवाब नहीं दिया और अपने कमरे में आ गया|

इधर मैं अपने कमरे में घुसा था और उधर माँ ने संगीता की अंत में कही बात सुन ली थी| माँ ने जब सारा माज़रा संगीता से पुछा तो संगीता ने सब बता दिया| सब बात सुन माँ ने संगीता को मेरे पास अंदर भेजा ताकि वो अकेले में बच्चों को समझा सकें|

माँ: बच्चों, मेरे पास आओ|

माँ ने दोनों बच्चों को अपने पास बुलाया और दोनों को प्यार से समझाने लगीं;

माँ: बेटा, पता है तुम्हारा पापा क्यों कितनी मेहनत करता है? किसके लिए वो यूँ रात-रात भर जाग कर काम करवाता है?

माँ के पूछे सवाल का जवाब बच्चों ने न में सर हिला कर दिया|

माँ: तुम दोनों के लिए! वरना खुद सोचो की उसे क्या जर्रूरत है इतनी मेहनत करने की? इतना अच्छा घर है, छोटे-मोटे ठेकों से उसकी आमदनी भी हो जाती, लेकिन फिर तुम दोनों बच्चों की छोटी-छोटी जर्रूरतें कैसे पूरी होतीं? फिर तुम्हें पता भी है की कल तुम्हारा पापा क्यों घर नहीं आ पाया?

बच्चों ने फिर एक बार अपनी दादी जी के सवाल पर सर न में हिलाया|

माँ: कल साइट पर काम कर रहे तुम्हारे संतोष भैया के घर में एक समस्या पैदा हो गई इसलिए उसे फटाफट गाँव निकलना पड़ा! अब साइट पर कल पड़ना है लेंटर और अगर पैडिंग नहीं बँधती तो लेंटर पड़ने में एक दिन और बर्बाद होता! तुम्हें पता है एक दिन का नुक्सान कितना होता है? पूरे 10,000/- रुपये! अगर मानु तुम्हरें घुमाने ले जाता तो इतना बड़ा नुक्सान कौन भरता? फिर तुम दोनों जानते हो न की तुम्हारा पापा हमेशा तुम्हें खुश रखता है, तुम्हारी हर जिद्द पूरी करता है, अब अगर कभी वो तुम्हारी जिद्द पूरी न कर पाए तो तुम अपने पापा जी को ऐसे ताने मारोगे? 'झूठा' कहोगे अपने पापा जी को? क्या ये सब तुम्हें शोभा देता है? क्या यही सब सिखाया है हमने तुम दोनों को? तुम दोनों तो कितने अच्छे बच्चे हो न?!

माँ ने बच्चों को अच्छे से सारी बात समझाई थी| अपनी दादी जी की बात सुन दोनों बच्चों को मेरे साथ किये गए बुरे व्यवहार पर दोनों बच्चों को ग्लानि हो रही थी|

इधर कमरे के भीतर, मैं नहाने बाथरूम में घुस चूका था| नहा कर निकल मैंने सबके लिए फटाफट दाल-चावल बनाये और खुद बिना खाये ही साइट पर निकलने लगा| जब मैं घर से निकल रहा था तब दोनों बच्चे मुझे दुखी हो कर देख रहे थे, उनकी आँखों में मुझे ग्लानि साफ़ नज़र आ रही थी मगर बच्चों में मुझसे कुछ कहने की हिम्मत नहीं थी| मैंने भी बच्चों को कुछ नहीं कहा और उनकी बगल से होता हुआ निकल गया| जबकि बच्चे ये उम्मीद कर रहे थे की उन्हें यूँ उदास देख मैं उन्हें गले लगा लूँगा और माफ़ कर दूँगा, लेकिन मेरे इस तरह उखड़े व्यवहार करने से दोनों बच्चे और भी दुखी हो गए थे! वहीं मैं अपने बच्चों को उनकी जिंदगी का एक बहुत ही महत्वपूर्ण सबक सिखाना चाहता था, ऐसा सबक जिसे मैं प्यार से बच्चों को नहीं समझा सकता था इसलिए मेरा उनसे ये रुखा व्यवहार करना जर्रूरी था|

मैं अभी साइट पर पहुँचा था की माँ का फ़ोन आ गया, वो अपने पोता-पोती की पैरवी करना चाहतीं थीं, परन्तु मैंने माँ को बच्चों के विषय में बात करने का मौका ही नहीं दिया| माँ समझ गईं की में क्यों बच्चों के बारे में बात नहीं करना चाहता, माँ ने जानकार बात को और नहीं कुरेदा तथा मेरे खाना खाने की तरफ बात को मोड़ दिया| "माँ, मैं यहीं खाना खा लूँगा, आप मेरी चिंता मत करो| आप सब खाना खाइये, मैं रात 8 बजे तक आ जाऊँगा और फटाफट खाना बना दूँगा|" मैंने माँ को आश्वस्त करते हुए कहा| "बेटा, रात के खाने की चिंता न कर तू बस खाना खा कर मुझे फ़ोन कर दियो|" माँ मेरी चिंता करते हुए बोलीं| मैंने भी "जी माँ" कह कर माँ को आश्वस्त किया|

दोपहर को खाने के समय संगीता ने मुझे वीडियो कॉल किया क्योंकि उसे मेरे खाना खाने की चिंता थी| जबतक मैं ने संगीता को ढाबे पर बैठ कर खाना खाते हुए नहीं दिखाया, संगीता ने फ़ोन नहीं रखा| मैं खाना खा रहा हूँ इसकी खबर अपनी जासूस यानी संगीता से सुनकर ही माँ ने खाना खाया| यानी माँ ने ही संगीता को मेरे पीछे खाना खाने के लिए लगाया था! रात को जब मैं घर पहुँचा तो बच्चे फिर से मुझे आस लगाए मुझे देख रहे थे की मैं उन्हें गोद में उठा कर लाड करूँ और बिना उनके माफ़ी माँगें ही उन्हें माफ़ कर दूँ मगर मैं बच्चों को नज़रअंदाज़ करते हुए अपने कमरे में घुसा तथा नहा-धो कर रसोई में घुस गया|

बच्चे मुझसे माफ़ी तो माँगना चाहते थे मगर कुछ कहने की हिम्मत नहीं जुटा पा रहे थे और मैं उनके भीतर हिम्मत भरना चाहता था! रात को जब मैं खाना बना रहा था तब दोनों बच्चे एकदम चुप पढ़ाई करने में लगे थे, जबकि बाकी दिनों में बच्चे ख़ुशी से चहक रहे होते थे| माँ को घर में ये चुप्पी खटक रही थी, वो कुछ कहें उसके पहले ही संगीता ने अपनी बातों से माँ का ध्यान दूसरी ओर भटका दिया| संगीता ने जानबूझ कर अपनी बातों में बच्चों को शामिल किया और बच्चों को हँसा कर घर में हँसी की लहर गुँजवा दी! अगर संगीता ये चतुराई न दिखाती तो माँ आज शायद मुझे बच्चों को यूँ उदास रखने के लिए डाँट ही देती! लेकिन डाँट तो मुझे फिर भी पड़नी थी, आज नहीं तो कल सही!

अगले दिन की बात है, सुबह मैं सब को नाश्ता करा और दोपहर का खाना बना कर साइट के लिए निकलने वाला था की तभी दोनों बच्चे मेरे सामने कान पकड़े खड़े हो गए| दोनों बच्चों ने आज बड़ी हिम्मत बटोर कर मुझसे माफ़ी माँगने का इरादा किया था मगर मुझसे माफ़ी पाना बच्चों के लिए इतना आसान नहीं था! दोनों बच्चों ने कान पकड़े हुए एक साथ एक स्वर में बोले; "सॉरी पापा जी!" बच्चों की सॉरी सुन मेरे चेहरे पर कोई बदलाव नहीं आया, मेरा चेहरा अब भी फीका था और बच्चों के चेहरे ग्लानि से बोझिल!

"सॉरी किस लिए बोल रहे हो आप दोनों?" मैंने हाथ सामने की ओर बाँधते हुए दोनों बच्चों से बड़ी ही नरमी से सवाल पुछा| मेरा सवाल सुन दोनों बच्चों के चेहरे ग्लानि के कारण झुक गए क्योंकि उनके पास मेरे सवाल का कोई जवाब नहीं था| इधर मैं बच्चों से अपने सवाल के जवाब की उम्मीद लगाए बैठा था, लेकिन जब मैंने अपने बच्चों को निरुत्तर सर झुकाये हुए देखा तो मैं बिना कुछ कहे उनकी बगल से होता हुआ साइट के लिए निकल गया|

रात को जब मैं घर पहुँचा तो माँ ने मुझे अपने पास बुला लिया और मुझे अकेले में समझाने लगीं| दरअसल मेरी माफ़ी न मिलने से बच्चे उदास थे और सारा दिन दोनों बच्चों ने बड़े मायूसी से पढ़ते हुए काटा था| अब माँ को बच्चों की ये मायूसी खटक रही थी इसलिए उन्होंने मुझे समझाने के लिए अपने पास बुलाया था|

माँ: बेटा, गुस्सा अपनी लेबर पर निकालना ठीक होता है मगर यहाँ घर में...अपने बच्चों पर निकालना अच्छी बात नहीं! मैंने दोनों बच्चों को प्यार से समझा कर उन्हें उनकी गलती का एहसास दिला दिया है और वो दोनों तुझसे माफ़ी माँग चुके है, फिर तू उन्हें माफ़ क्यों नहीं करता?! तेरी वजह से दोनों बच्चे दो दिन से यूँ उदास बैठे हैं, ये अच्छी बात है?

माँ की बात सुन मैंने माँ को सारी बात इत्मीनान से बताई;

मैं: माँ...बच्चे मुझसे माफ़ी तो माँग रहे हैं लेकिन वो माफ़ी अपनी किस गलती के लिए माँग रहे हैं ये उन्हें पता ही नहीं?! अब वो (आयुष और नेहा) मुझसे आवाज ऊँची कर बात करने के लिए माफ़ी माँग रहे हैं? या मेरी बात पर विश्वास न करने पर माफ़ी माँग रहे हैं? या मुझे 'झूठा' कहने पर माफ़ी माँग रहे हैं? बिना सही कारण जाने मैं कैसे दोनों बच्चों को माफ़ कर दूँ?

मेरी आधी बात सुन माँ ने मुझे फिर समझाने की कोशिश करनी चाहि परन्तु मैंने माँ को रोकते हुए अपनी बात पूरी की जिससे माँ को समझ आया की मैं अपने बच्चों को आखिर कौन सी सीख देना चाहता हूँ;

मैं: माफ़ी माँगने का मतलब केवल सॉरी बोलना नहीं होता, बल्कि अपनी गलती स्वीकारना और उस गलती को फिर कभी न दोहराना होता है| मैंने आज तक जितनी भी गलतियाँ की हैं उनकी माफ़ी माँगते हुए मैंने अपनी गलती अवश्य स्वीकारी है और फिर वो गलती आगे न दोहराने का वादा भी आपसे किया है| मुझे भी अपने बच्चों से बस यही सुनना है की वो अपनी किस गलती के लिए शर्मिंदा हैं और क्या आगे वो ये गलती फिर दोहराएँगे या नहीं?!

मेरी पूरी बात सुन माँ समझ गईं की बच्चों को न माफ़ करने के पीछे आखिर मेरा असली उद्देश्य क्या है?

मैं: मुझे बस बच्चों को ये एहसास दिलाना है की गलती कर के केवल सॉरी बोल देने से सब ठीक नहीं हो जाता! जब तक आप अपनी गलती स्वीकार कर सच्चे मन से प्रायश्चित न कर लो, आपकी माँगी गई मौखिक माफ़ी का कोई लाभ नहीं होता! आप बच्चों को थोड़ा समय दो, जब उनकी अंतरात्मा कचोटेगी तो दोनों को समझ आने लगेगा की उनकी आखिर गलती क्या है?!

माँ ने मेरी बात सुन मेरी पीठ थपथपाई और मुस्कुराते हुए बोलीं;

माँ: शाब्बाश बेटा, मुझे जानकार ख़ुशी हुई की तो अपने बच्चों को उनकी जिंदगी का एक जर्रूरी सबक सीखा रहा है|

माँ के मेरी बात समझने से मेरा मन हल्का हो गया था, वरना मुझे भी लग रहा था की मैं अपने बच्चों के साथ थोड़ी ज्यादा ही ज़्यादती कर रहा हूँ!

रात को खाना खाते समय भी बच्चे उदास थे और आस लिए मेरी ओर देख रहे थे की मैं उन्हें बिना कुछ कहे ही माफ़ कर दूँ तथा अपने गले लगा कर लाड करूँ| लेकिन मैं जानबूझ कर बच्चों को नज़रअंदाज़ कर माँ और संगीता से बात करने में लगा हुआ था| जाहिर था की खुद को नज़रअंदाज किया जाना बच्चों को चुभ रहा था मगर दोनों बच्चों में हिम्मत नहीं थी की वो कुछ कह सकें इसलिए दोनों बच्चे सर झुकाये धीरे-धीरे अपना खाना खा रहे थे| खाना खाने के बाद बच्चे अपनी दादी जी के पास सो गए और इधर संगीता भी मुझे माँ की तरह समझाने लगी की मैं अपना गुस्सा थूक दूँ और बच्चों को लाड करूँ| मैंने संगीता को भी माँ की तरह सारी बात समझाई और बच्चों की जगह उसे ही थोड़ा लाड-प्यार कर बहलाया तथा अपने सीने से लगा कर सो गया|

अगली सुबह की बात है, मैं साइट पर निकलने को तैयार हो रहा था जब दोनों बच्चे अपनी सारी हिम्मत बटोर कर मेरे सामने खड़े हो गए| दोनों ने अपने-अपने कान पकड़े और रुनवासे होते हुए बोले;

आयुष: सॉरी पापा जी...मुझे माफ़ कर दीजिये...मैंने आपसे गंदी तरह से बात की!

ये कहते हुए आयुष का सर शर्म से झुक गया| आयुष छोटा था इसलिए उसमें इससे आगे कहने की हिम्मत नहीं थी| नेहा बड़ी थी इसलिए उसी ने हिम्मत कर के आयुष की बात पूरी की;

नेहा: I'm sorry पापा जी! आप हम दोनों (आयुष और नेहा) को माफ़ कर दीजिये! दिन रात एक कर आप हमारे लिए इतनी मेहनत करते हैं और हम आपकी बेकद्री करते हैं...आप से ऊँची आवाज़ में बात कर...आप पर शक़ कर...आपके लिए गंदे शब्द बोलते हैं.

इतना कह नेहा फफक कर रो पड़ी! तब आगे की बात आयुष ने सँभाली और आयुष रोते हुए बोला;

आयुष: हमें माफ़ कर दो पापा जी...हम...आ...आगे से कभी...ऐसे...ऐसे...जिद्द नहीं करेंगे.... कभी आप से....ऊँची....

इतना कहते हुए आयुष का रोना तेज़ हो गया|

अपने बच्चों को यूँ ग्लानि से सर झुकाये मुझसे माफ़ी माँगते हुए देख मैं अंदर से टूट गया! अपने दोनों घुटने टेक मैंने अपनी दोनों बाँहें फैला नम आँखों से अपने बच्चों को पुकारते हुए कहा;

मैं: बस मेरे बच्चों....बस...मैंने आप दोनों को माफ़ किया!

मैंने दिल से पाने बच्चों को माफ़ कर दिया था| उधर मेरी माफ़ी मिलते ही दोनों बच्चे आ कर मेरे गले से लिपट गए और जोर से रोने लगे!

मैं: बस मेरे बच्चों!

मुझसे भी आगे कुछ कहा नहीं जा रहा था| मन में उमड़ा प्यार का सागर छलक उठा और मैंने दोनों बच्चों को बार-बार चूम, दो दिन से एकत्र हुआ अपना सारा प्यार बच्चों पर उड़ेल दिया! बच्चे भी पीछे नहीं थे, दोनों मुझसे कस कर लिपटे हुए थे मानो, जैसे मुझे कहीं जाने ही न देना चाहते हों!

जब बच्चों का रोना थमा तब मैंने उन्हें प्यार से समझाते हुए कहा;

मैं: बेटा, मुझे आपका जिद्द करना, नाराज़ होना या मुझसे बात न करना ज़रा भी नहीं चुभा| लेकिन, जब आपने बिना सारी बात जाने मुझे झूठा कहा न तो मुझे बहुत दर्द हुआ! मैं आपसे इतना प्यार करता हूँ, तो क्या मुझे आपके सामने अपनी बात रखने का भी हक़ नहीं?! आपके संतोष भैया के घर में अचानक कुछ समस्या आ गई थी, जिसकी वजह से उन्हें अचानक गाँव जाना पड़ा! वहीं मेरा फ़ोन आयुष ने गेम खेल कर गर्म कर दिया था जिससे मैं आपको फ़ोन कर के कुछ भी बता नहीं पाया!

जब मैंने आयुष के मेरे मोबाइल पर गेम खेलने की बता कही तो नेहा को अपने भाई पर गुस्सा आ गया और उसने आयुष की पीठ में गुस्से से एक थपकी धर दी, शुक्र है की आयुष को ज्यादा दर्द नहीं हुआ वरना वो फिर से रोने लगता! मैंने अपना सर न में हिलाते हुए मूक इशारे से नेहा को आयुष को और मारने से रोका तथा अपनी बात आगे पूरी की;

मैं: बेटा, गलती सबसे होती है! मुझसे, आपकी मम्मी से, आपकी दादी जी से....लेकिन हमें अपनी गलती सच्चे मन से स्वीकारनी चाहिए और उसके बाद ही माफ़ी माँगनी चाहिए| बिना गलती स्वीकारे माँगी गई माफ़ी का कोई मोल नहीं होता, वो तो बस एक तरह की खाना-पूरी करने की बात हुई! कल जब आपने मुझसे सॉरी कहा था तब मैंने आपको यही बात समझाने के लिए सवाल पुछा था की आप आखिर माफ़ी क्यों माँग रहे हो?! थोड़ा समय लगा लेकिन अब देखो आपको अपनी गलती का एहसास हो ही गया| आपने मेरे सामने न केवल अपनी गलती स्वीकारी बल्कि अपनी गलती के लिए माफ़ी भी माँगी और दुबारा ये गलती न दोहराने का वादा भी किया|

मैंने अपनी बात पूरी कर बच्चों को प्यार से सीख दे दी थी और मेरे बच्चों ने भी ये सीख अपने पल्ले गाँठ बाँध ली थी| वहीं मेरी वादे की बात सुन दोनों बच्चों ने फिर से अपने कान पकड़ते हुए अपनी बात दुहरा दी की वो आज के बाद फिर कभी इस गंदी तरह से मुझसे या किसी से भी पेश नहीं आएंगे|

चलो अब सब कुछ ठीक हो चूका था तो मैं दोनों बच्चों को गोदी लिए हुए बैठक में आया जहाँ माँ और संगीता बैठे हुए थे| मेरी गोद में बच्चों को देख दोनों सास-पतुआ समझ गए की मैंने बच्चों को माफ़ कर दिया है इसीलिए तो दोनों सास-पतुआ के चेहरा पर सुकून की मुस्कान छलक रही थी|

मैं: माँ, हम तीनों बाप-बेटा-बेटी अभी घूमने जा रहे हैं|

मैंने बच्चों को गोदी में लिए हुए ही ऐलान किया| मेरा ये ऐलान सुन संगीता ने बीच में व्यवधान डाला क्योंकि जाहिर सी बात है की मैं उसे घुमाने नहीं ले जा रहा था;

संगीता: अरे, अभी तो आप साइट जा रहे थे!

मैं संगीता की बात में छुपी जलन महसूस कर चूका था मगर मेरे लिए इस वक़्त मेरे बच्चों की ख़ुशी जर्रूरी थी|

मैं: काम-धाम सब बाद में! आज तो बस बच्चों के साथ मस्ती करने का दिन है!

मैं जोश से भरते हुए बोला| मेरा जोश देख माँ हँस पड़ीं और संगीता से बोलीं;

माँ: तू तो जानती ही है मानु को, बच्चों की ख़ुशी के आगे इसे कुछ दिखता ही नहीं!

माँ की बात सुन संगीता मुझे उल्हना देने वाली थी मगर फिर चुप हो गई!

इधर दोनों बच्चों ने जब सुना की मैं काम छोड़ कर उन्हें घुमाने ले जा रहा हूँ तो दोनों बच्चे मना करने लगे;

नेहा: पापा जी, हम फिर कभी घूमने चले जायेंगे| आज आप साइट का काम सँभालो!

अपनी दीदी की बात सुन आयुष अपनी उँगलियों पर दिन गिनते हुए बोला;

आयुष: हाँ पापा जी, हम 4 दिन बाद जायेंगे!

मुझे नहीं पता था की आयुष ने ये चार दिन क्यों गिने थे, मैं तो बस बच्चों के घूमने जाने से मना करने की बात सुन उन्हें थोड़ा हैरान था!

मैं: बेटा, आज आपके संतोष भैया आ रहे हैं और वो आज का काम सँभाल लेंगे|

ये सुनते ही आयुष ख़ुशी से चिल्लाया! उधर नेहा को भी इत्मीनान था की घूमने जाने के कारण काम का नुक्सान नहीं होगा| तो यूँ पल भर में ही मेरे बच्चों का दिल खुश हो गया था|

उधर बच्चे तैयार हो रहे थे और इधर मेरी पत्नी की नाक पर प्यारा सा गुस्सा बैठा था की मैं उसे घुमाने नहीं ले जा रहा| संगीता अपना मुँह फुलाये कमरे में बैठी थी तो मुझे उसे मनाने का मौका मिल ही गया;

मैं: जान, अभी तुम्हारा यूँ घूमना सुरक्षित नहीं है वरना मैं तुम्हें छोड़ कर सिर्फ बच्चों को थोड़े ही घुमाने ले जाता?! एक बार डिलीवरी हो जाये फिर सिर्फ हम दोनों सब जगह घूमने चलेंगे|

मैंने संगीता को छोटे बच्चों की तरह बहलाते हुए कहा तब जा कर संगीता के चेहरे पर प्यारी सी मुस्कान आई|

संगीता: तो मेरे लिए क्या ले कर आओगे?

संगीता छोटे बच्चों की तरह अपनी टिमटिमाती आँखों से मुझे देखते हुए बोली|

मैं: मैं है न...जब वापस...आऊँगा न...तब न....तुम्हारे लिए...वो बड़ी वाली...अमूल की आइस-क्रीम ब्रिक...जो की बड़े से डिब्बे में आती है...वो ले कर आऊँगा!

आइस-क्रीम का नाम सुनते ही संगीता ऐसे खुश हुई जैसे छोटे बच्चे खुश होते हैं और अपनी इस ख़ुशी को जाहिर करने के लिए संगीता ने छोटे बच्चों की तरह ताली भी बजाई! संगीता का ये बचपना देख मैं उस पर मोहित हो गया और उसके चेहरे को अपने दोनों हाथो में ले उसके गुलाबी होठों का रसपान करने लगा| अभी बस मिनट भर हुआ होगा की आयुष के फुदकते हुए आने की आवाज आ गई और हम दोनों मियाँ-बीवी एकदम से अलग हो गए| आयुष के यूँ अचानक आ जाने से संगीता अपने प्यारभरे गुस्से से बोली;

संगीता: इन दोनों भूतों के होते हुए एक पल का चैन नहीं!

मैंने संगीता की बात को नज़रअंदाज़ किया और आयुष को गोदी में उठा कर उससे बात करने लगा|

गर्मी का मौसम था इसलिए हम बाप-बेटा-बेटी शेड्स (shades) और टोपी पहन कर, अच्छे से तैयार हो कर निकले| सबसे पहले हम पहुँचे क़ुतुब मीनार, बच्चों के लिए ये पहला अवसर था जब वो यहाँ घूमने आये हों इसलिए बच्चे बहुत उत्साहित थे| हमारे आगे एक फ़िरंगियों का झुण्ड था जिन्होंने एक गाइड बुक कर रखा था और वो गाइड उन घूमने आये फ़िरंगियों को इस जगह के बारे में जानकारी दे रहा था| हमने भी इस मुफ्त सुविधा का फायदा उठाया और उस झुण्ड में शामिल हो गए तथा मुफ्त में क़ुतुब मीनार के बारे में जानकारी हासिल करने लगे| आयुष के लिए ये जानकारी काम की नहीं थी इसलिए उसकी नजरें बस क़ुतुब मीनार को देखने में व्यस्त थीं, जबकि नेहा का सारा ध्यान उस गाइड की बात सुनने में था और वो इस जानकारी को अच्छे से याद भी कर रही थी ताकि स्कूल खुलने पर अपने दोस्तों को भी ये जानकारी बता सके|

क़ुतुब मीनार से निकले तो दोनों बच्चों को भूख लग आई थी इसलिए हमने पहले थोड़ी सी पेट-पूजा की और फिर हम इंडिया गेट पहुँचे| इंडिया गेट पहुँच कर हम सीधा पहुँचे अमर जवान ज्योति जहाँ हम तीनों बाप-बेटा-बेटी ने एक साथ अमर जवान ज्योति को देखते हुए सलूट किया| मैंने दोनों बच्चों को इस ऐतिहासिक जगह के बारे में खुद जानकारी दी और हम तीनों ने एक बार फिर शहीदों को नमन किया| शहीदों की शहादत के बारे में जान दोनों बच्चों के दिल में मेरी तरह देशभक्ति जाग चुकी थी! जब हमने अंतिमबार अमर जवान ज्योति को नमन किया तब तो हम तीनों के भीतर बसी देशभक्ति के कारण हमारे रोंगटे खड़े हो गए थे| शहीद स्थल से निकल हमने पहले आइस-क्रीम खाई, क्योंकि इस चिलचिलाती हुई गर्मी में आइस-क्रीम खाने से बढ़िया सुख कुछ और न था|

गर्मी बढ़ने लगी थी और अब हमें किसी ठंडी जगह की तलाश थी, इसलिए मैं बच्चों को ले चिड़िया घर के पास बोटिंग करने आ गया| बच्चों ने आजतक बोटिंग नहीं की थी इसलिए बोटिंग करने के नाम से ही दोनों बच्चे ख़ुशी से कूद रहे थे| "बेटा, बोट में बैठने के बाद बिलकुल शैतानी नहीं करनी है! बिलकुल कूदना या खड़े हो कर नाचना नहीं है, वरना बोट पलट भी सकती है! चुप-चाप अपनी जगह पर बैठना और धीरे-धीरे पेडल मारना है|" मैंने दोनों बच्चों को प्यार से हिदायत देते हुए कहा| दोनों बच्चों ने गंभीरता से मेरी बात सुनी और सर हाँ में हिला कर बात मानी भी| अपने साथ एक बोट चलाने वाले को ले कर हम चारों अपनी बोट के पास पहुँचे| आयुष उत्साह के मारे पहले जाना चाहता था मगर मैंने उसे रोका क्योंकि मुझे डर लग रहा था की कहीं आयुष बोट में एकदम से कूदा और बोट पलट गई तो?! पहले मैं बोट में उतरा और आयुष को गोदी में उठा कर बिठाया| बोट में हुई चहलकदमी से हमारी बोट थोड़ा हिल रही थी जिससे आयुष घबरा गया था! आयुष के चेहरे पर डर देख मैंने उसे समझाया; "बेटा, डरना नहीं है, आप बस चुप-चाप अपनी जगह बैठो|" मेरी बात मानते हुए आयुष चुपचाप अपनी जगह पर बैठ गया| फिर मैंने नेहा को गोदी में लिया और अपनी बगल वाली सीट पर बिठा दिया| बोट के हिलने से नेहा भी डरी हुई थी इसलिए उसने एकदम से मेरा बायाँ हाथ कस कर पकड़ लिया| मैं धीरे से नेहा की बगल में बैठ गया और अपने बाएँ हाथ को नेहा के बाएँ कंधे पर रख उसे अपने से सटा लिया| आयुष बेचारा नेहा के ठीक सामने बैठा था और थोड़ा डरा हुआ था, तभी उसकी बराबर में बोट चलाने वाले भैया बैठ गए तथा उन्होंने आयुष के डर को भाँपते हुए उसका मन भटका दिया; "आपको पता है, इस झील में मछलियाँ भी हैं!" आयुष ने आजतक मछलियाँ नहीं देखि थीं इसलिए मछलियों का नाम सुनते ही आयुष का डर छूमंतर हो गया!

बोट चलाने वाले भैया ने और मैंने मिलकर पेडल मारना शुरू किया तो दोनों बच्चों की भी इच्छा पेडल मारने की हुई| नेहा के पाँव फिर भी पेडल तक पहुँच गए थे मगर आयुष था छोटा और उसके छोटे-छोटे पाँव पेडल तक नहीं पहुँच रहे थे! आयुष को यूँ पेडल मारने के लिए जूझता हुआ देख हम सभी को हँसी आ रही थी, वहीं आयुष अपनी सीट के बिलकुल किनारे तक आ पहुँचा था! सीट के किनारे आने से आयुष के पाँव तो पेडल तक पहुँच गए थे मगर सामने बैठी नेहा को मस्ती को सूझ रही थी इसलिए जैसे ही आयुष के पाँव पेडल पर पहुँचे, नेहा ने एकदम से पेडल मारते हुए आयुष के हिस्से के पेडल को नीचे कर दिया! अपनी बहन द्वारा किये इस मज़ाक से आयुष चिढ गया और मुझसे शिकायत करने लगा; "देखो पापा जी, दीदी मुझे पेडल नहीं मारने दे रही!" जैसे ही आयुष ने शिकायत की वैसे ही नेहा ने आयुष के सामने वाला पेडल ऊपर कर दिया जिससे आयुष के पाँव बस बदल को छू सकते थे| हैरानी की बात है की बिना पेडल मारे, बस पेडल को छूने भर से ही आयुष खुश हो गया था!

खैर, पेडल करते हुए हमारी बोट एक किनारे पहुँची थी जहाँ एक आदमी आटें की गोलियाँ बेच रहा था, मैंने वो गोलियाँ खरीदीं और दोनों बच्चों को थोड़ी-थोड़ी दी| आयुष को लगा की ये गोलियाँ खाने के लिए हैं इसलिए वो गोली खाने जा रहा था की तभी मैंने उसे रोकते हुए कहा; "नहीं-नहीं बेटा! ये गोलियाँ आपके खाने के लिए नहीं हैं! ये गोलियाँ हमें मछलियों को चुगानी है|" मेरी बात सुन आयुष हैरानी से मुझे देखने लगा, क्योंकि उसे समझ नहीं आ रहा था की भला हम ये आटें की गोलियाँ मछलियों को क्यों खिला रहे हैं? "बेटा मछलियों को आटें की गोली चुगाने से, पंछियों को अनाज चुगाने से और चीटियों को आटा डालने से हमें पुण्य मिलता है इसलिए जब कभी आपको ये पुण्य करने का मौका मिले आपको इस मौका का लाभ अवश्य उठाना चहिये|" मैंने आयुष और नेहा को एक और सीख देते हुए कहा| नेहा तो झट से समझ गई की पुण्य क्या होता है मगर मेरा बेटा आयुष ये समझ नहीं पाया की आखिर पुण्य क्या होता है? उसके लिए तो मछलियाँ देखना और उन्हें ये आटें की गोलियाँ खिलाना जर्रूरी था इसलिए पुण्य क्या होता है ये सवाल आयुष ने घर पहुँच कर पूछने के लिए अपने मन में याद कर लिया तथा अपना सारा ध्यान झील में मछलियों को ढूँढने में लगा दिया|

बोट चलाने वाले भैया हमें झील के बीचों-बीच ले आये जहाँ की मछलियाँ थीं, अब दिक्कत ये की झील का पानी हरे रंग का था और उसमें कुछ भी देख पाना मुश्किल था| इधर आयुष को मछलियाँ देखनी थी इसलिए उसने मुझसे पूछना शुरू कर दिया की; "पापा जी, मछली कहाँ है?" आयुष मुझसे ये सवाल ऐसे पूछ रहा था जैसे मानो ये झील मेरी हो और मुझे पता हो की मछलियाँ कहाँ हैं? तभी बोट चलाने वाले भैया बोले; "आप एक आटें की गोली डालो और फिर देखो धीरे- धीरे कुछ मछलियाँ ऊपर आएँगी|" आयुष ने फट से 2-4 आटें की गोलियाँ झील के पानी में छोड़ी और 5 मिनट बाद हमें 1-2 मछलियाँ दिखाई देने लगीं| मछलियों को देख आयुष और नेहा बहुत खुश हुए और दोनों ख़ुशी से चहकने लगे; "पापा जी देखो" कहते हुए दोनों बच्चों ने मेरा ध्यान मछलियों पर लगा दिया| हम तीनों ने एक-एक कर मछलियों को आटें की गोलियाँ खिलानी शुरू कर दी, मछलियाँ कम थीं इसलिए हमारे चुगाई जा रही कुछ ही आटें की गोलियाँ मछलियाँ खातीं और बाकी गोलियाँ झील में लुप्त हो जातीं| जो गोलियाँ मछलियाँ खा लेतीं उससे दोनों बच्चे बहुत खुश होते और उत्साह तथा ख़ुशी से मुझसे कहते; "पापा जी, देखो मैंने मछली को गोली खिला दी!" बच्चों का ये बचपना देख मुझे बहुत मज़ा आता और मैं उन्हें बार-बार शब्बाशी देता|

बोटिंग कर हम तीनों बाप-बेटा-बेटी ने पिज़्ज़ा खाया और फिर संगीता के लिए आइस-क्रीम ले हम 5 बजे घर लौटे| मुझे और बच्चों को देखते है संगीता मुझे उल्हाना देते हुए माँ से बोली; "देख रहे हो माँ, आज बच्चों को घुमाने के चक्कर में हमारे खाना खाने की परवाह ही नहीं की गई! ये भी नहीं पुछा की हमने खाना खाया या नहीं?! बस लग गए अपनी मस्ती में सब!" संगीता के दिए उस उलहाने को सुन मैं मुस्कुराया और माँ को देखने लगा, तब माँ ने संगीता को बताया; "ऐसा नहीं है बहु, मानु ने फ़ोन किया था मुझे और पुछा था की हमने खाना खाया या नहीं?!" माँ की बात सुन संगीता थोड़ा शर्मिंदा हो गई और उसने शर्म से अपनी नजरें झुका लीं| मेरी पत्नी और शर्मिंदा न हो इसलिए मैंने उसके लिए लाई हुई आइस-क्रीम नेहा को देते हुए कहा; "बेटा, आप जा कर जल्दी से सभी के लिए आइस-क्रीम परोस लाओ|" नेहा फटाफट आइस-क्रीम परोसने गई और इधर मैं संगीता की बगल में बैठ गया| संगीता ने फौरन अपना सर मेरे कंधे पर रख दिया और चोरी से मेरा हाथ मींजते हुए मुझे मूक भाषा में सॉरी कहने लगी| अब मैं उससे नाराज़ थोड़े ही था जो उसे माफ़ न करता, मैंने भी धीरे से संगीता का हाथ मीस दिया और उसे चोरी-छुपे आँख मर दी! मेरे यूँ आँख मारने से संगीता के चेहरे पर एक कुटिल मुस्कान उभर आई जो की मेरी समझ से परे थी! इतने में नेहा सभी के लिए आइस-क्रीम परोस लाई और फिर शुरु हुआ बच्चों का आज की कहानी सुनाना जिसे हम सभी ने बड़े चाव से आइस-क्रीम खाते हुए सुना|

[color=rgb(163,]जारी रहेगा भाग - 9 में...[/color]
 

[color=rgb(251,]इकत्तीसवाँ अध्याय: घर संसार[/color]
[color=rgb(44,]भाग - 9(1)[/color]


[color=rgb(71,]अब तक अपने पढ़ा:[/color]

बोटिंग कर हम तीनों बाप-बेटा-बेटी ने पिज़्ज़ा खाया और फिर संगीता के लिए आइस-क्रीम ले हम 5 बजे घर लौटे| मुझे और बच्चों को देखते है संगीता मुझे उल्हाना देते हुए माँ से बोली; "देख रहे हो माँ, आज बच्चों को घुमाने के चक्कर में हमारे खाना खाने की परवाह ही नहीं की गई! ये भी नहीं पुछा की हमने खाना खाया या नहीं?! बस लग गए अपनी मस्ती में सब!" संगीता के दिए उस उलहाने को सुन मैं मुस्कुराया और माँ को देखने लगा, तब माँ ने संगीता को बताया; "ऐसा नहीं है बहु, मानु ने फ़ोन किया था मुझे और पुछा था की हमने खाना खाया या नहीं?!" माँ की बात सुन संगीता थोड़ा शर्मिंदा हो गई और उसने शर्म से अपनी नजरें झुका लीं| मेरी पत्नी और शर्मिंदा न हो इसलिए मैंने उसके लिए लाई हुई आइस-क्रीम नेहा को देते हुए कहा; "बेटा, आप जा कर जल्दी से सभी के लिए आइस-क्रीम परोस लाओ|" नेहा फटाफट आइस-क्रीम परोसने गई और इधर मैं संगीता की बगल में बैठ गया| संगीता ने फौरन अपना सर मेरे कंधे पर रख दिया और चोरी से मेरा हाथ मींजते हुए मुझे मूक भाषा में सॉरी कहने लगी| अब मैं उससे नाराज़ थोड़े ही था जो उसे माफ़ न करता, मैंने भी धीरे से संगीता का हाथ मीस दिया और उसे चोरी-छुपे आँख मर दी! मेरे यूँ आँख मारने से संगीता के चेहरे पर एक कुटिल मुस्कान उभर आई जो की मेरी समझ से परे थी! इतने में नेहा सभी के लिए आइस-क्रीम परोस लाई और फिर शुरु हुआ बच्चों का आज की कहानी सुनाना जिसे हम सभी ने बड़े चाव से आइस-क्रीम खाते हुए सुना|

[color=rgb(97,]अब आगे:[/color]

दिन
प्यार से बीत रहे थे और संगीता ख़ुशी से फूली नहीं समा रही थी और इसका पता हम उसके गोल-मटोल होने से पता लग रहा था| मेरे लाड-प्यार का असर संगीता पर खूब दिख रहा था! संगीता के गोल-मटोल गाल हमेशा लाल रहते थे, जब भी मैं रसोई में अकेला खाना बना रहा होता वो चुपके से पीछे से आ कर मुझे अपनी बाहों में भर लेती| मैं भी मौके का फायदा उठाते हुए फट से संगीता के दोनों गालों को प्यार से काट लेता! मेरे इस तरह संगीता के गाल काटना उसे बहुत पसंद था और हरबार उसकी सिसकी निकल जाती|

"चलो मैं न सही, आप ही मेरे गाल काट लीजिये!" संगीता ठंडी आह भरते हुए मुझसे शिकायत करते हुए बोली| मैं संगीता की मेरे गाल काटने की प्यास को महसूस कर सकता था पर मैं भी मज़बूर था क्योंकि दाढ़ी छोल देने से मैं बिलकुल बच्चा लगता| "तुमने बड़े मेरे गाल काटे हैं, अब मैं तुम्हारे गाल काटूँगा!" मैं संगीता की बात का जवाब इस मादक ढंग से देता की उसके चेहरे पर प्यारी सी मुस्कान आ ही जाती थी|

एक दिन डॉक्टर सरिता जी हमारे घर चाय पर आईं थीं, नेहा और आयुष चाय बना रहे थे, इधर हम चारों (मैं, माँ डॉक्टर सरिता और संगीता) बैठक में बैठे बात कर रहे थे| "नेहा में बहुत बदलाव आया है मानु, वो अब पहले की तरह डरी-सहमी नहीं रहती|" डॉक्टर सरिता ने जब नेहा की बात छेड़ी तो माँ ने उन्हें नेहा के जीवन में अभी तक आये सभी बदलावों के बारे में बताया| नेहा का स्कूल में प्रथम आना, PREFECT बनना, क्लास-मॉनिटर बनना, आस-पड़ोस में माँ के साथ जाना और पूजा तथा समारोह में बढ़-चढ़ कर हिस्सा लेना| ये सब सुन कर डॉक्टर सरिता को बहुत ख़ुशी हुई और उन्होंने हम सभी द्वारा नेहा को प्रोत्साहित करने की तारीफ की|

फिर बारी आई संगीता की और उसे देखते ही डॉक्टर सरिता समझ गईं की मैं उसका कितना अच्छे से ध्यान रख रहा हूँ;

डॉक्टर सरिता: वैसे मानना पड़ेगा मानु, तुमने संगीता का इन दिनों बहुत अच्छे से ख्याल रखा है| उसके (सनगीता के) चेहरे पर जो तेज झलक रहा है उससे ये साफ़ पता चलता है की तुम उसका कितना प्यार से ख्याल रख रहे हो|

जब डॉक्टर सरिता ने मेरी तारीफ की तो मैं शर्माने लगा और संगीता की ओर देखने लगा की जैसे मैं उसे शर्माने से बचता हूँ वो भी मेरी सहयता करे पर मेरी पत्नी को मेरी तारीफ कर मुझे शर्म से ललाम-लाल करने का स्वर्णिम मौका मिल गया था;

संगीता: अपने सही कहा सरिता जी! आयुष के पापा ने जितना ध्यान मेरा रखा है उतना कभी किसी ने नहीं रखा| जब आयुष पैदा होने वाला था तब मैं अपने मायके में थी, तब मेरी माँ ने भी मेरा इतना छे से ख्याल नहीं रखा! वहाँ तो मैं फिर भी थोड़ा-बहुत काम करती थी, लेकिन आयुष के पापा तो मुझे कुछ काम करने ही नहीं देते| आप देखो मेरा वजन कितना बढ़ गया है?! इतनी गोलू-मोलू तो मैं पिछली दो बार भी नहीं थी जितनी इस बार इन्होने मुझे बना दिया है!

संगीता ने मेरी तारीफों के पुल्ल बाँधते हुए कहा| अब मुझे अपनी तारीफ सुनने से आ रही थी शर्म तो मैंने संगीता की बजाए माँ को ताकना शुरू किया ताकि कम से कम वो ही मुझे और शर्माने से बचायें पर मेरी माँ भी अपनी बहु का साथ देते हुए बोलीं;

माँ: बिलकुल बच्चों की तरह मानु संगीता का ख्याल रखता है!

माँ ने थोड़े शरारती ढंग से कहा था जिससे मैं और संगीता दोनों शर्माने लगे थे| ठीक तभी आयुष बिस्कुट और नमकीन की प्लेट पकड़े हुए आ गया जिससे सबका ध्यान हम मियाँ-बीवी से हट कर उस पर लग गया तथा हम मियाँ-बीवी शर्म से पानी-पानी होने से बच गए|

बच्चों की गर्मियों की छुट्टियाँ बड़े आराम से कट रही थीं| कभी-कभी हम तीनों बाप-बेटा-बेटी का मन घूमने का होता तो कभी हम दोनों मियाँ-बीवी मिल कर बच्चों का हॉलिडे होमवर्क पूरा करवाने में लग जाते| आयुष को मिले हॉलिडे होमवर्क में उसे चिड़िया का एक घोंसला बनाना था जिसे बनाने में संगीता ने मदद की| आयुष पार्क से तिनके बिन लाया और संगीता ने बड़ी मेहनत से एक छोटा सा घोंसला बना कर तैयार किया| संगीता मुझे अपने द्वारा बनाया हुआ घोंसला बड़े गर्व से दिखाती थी| दरसल ये उसका मूक इशारा था की कैसे उसने अपने प्यार से हमारे इस परिवार रुपी घोंसले को बाँध रखा है और मैं संगीता के इस मूक इशारे को समझ कर उस पर गर्व करने लगता| वहीं नेहा को पाचनतंत्र का एक मॉडल बनाना था, चित्रकारी का सारा काम माँ-बेटी ने मिलकर किया और फिर उस चित्रकारी में बल्ब और तार लगाने का काम मैंने किया| 3 फुट का वो मॉडल बन कर तैयार हुआ तो नेहा ख़ुशी से फूली नहीं समाई|

वहीं, जैसे ही जुलाई का महीना आया, बच्चों के स्कूल खुल गए| मुझे याद है जब मेरे स्कूल खुलते थे तो मुझे बड़ा दुःख होता था क्योंकि मुझे स्कूल जाना पसंद नहीं था| जबकि मेरे बच्चे स्कूल खुलने के नाम से ही बड़े खुश थे क्योकि स्कूल खुलते ही दोनों को अपने-अपने बनाये मॉडल टीचर जी को दिखाने को मिलते और टीचर से शब्बाशी तथा पूरे नंबर मिलते| स्कूल के पहले दिन मैं दोनों बच्चों को खुद स्कूल छोड़ने गया क्योंकि बच्चो के बनाये मॉडल स्कूल वैन में टूटने का खतरा था| स्कूल पहुँच, गाडी पार्क कर मैंने नेहा का मॉडल उठाया क्योंकि वो मॉडल बहुत बड़ा था और भारी था| नेहा ने आयुष का मॉडल यानी के चिड़िया का घोंसला उठा रखा था| अब आयुष को हो रही थी चिंता की अगर उसका ये मॉडल टूट गया तो?! इसलिए आयुष बार-बार अपनी दीदी से कह रहा था; "दीदी, सँभाल कर!" आयुष के यूँ बार-बार डराने से नेहा चिढ गई और उससे बोली; "तू खुद क्यों नहीं उठा लेता?!" अपनी दीदी की डाँट सुन आयुष बजाए डरने के, खी-खी कर हँसने लगा!

खैर, हम तीनों सबसे पहले आयुष की क्लास पहुँचे और आयुष तथा उसके मॉडल को टीचर जी के टेबल पर रख बाप-बेटी नेहा की क्लास की ओर चल पड़े| जबतक हम नेहा की क्लास पहुँचते तब तक सुबह की प्रार्थना सभा की घंटी बज गई थी| नेहा ने अपना बैग अपनी सीट पर रखा ओर मुझे कोने में बनी अलमारी के ऊपर अपना मॉडल रखने को कहा| नेहा का मॉडल रख मैं निकल ही रहा था की मुझे नेहा की क्लास टीचर जी मिल गईं, मैंने उनसे नमस्ते की तथा नेहा के मॉडल को दिखाते हुए बोला; "Mam मैं वो नेहा का मॉडल रखने आया था|" नेहा की क्लास टीचर जी ने मॉडल देखा तथा नेहा की तारीफ की| अपनी क्लास टीचर के सामने नेहा ने मुझे पप्पी दी और "bye-bye" कह नेहा अपनी PREFECT की ड्यूटी निभाने निकली| नेहा के जाने के बाद मैंने उसकी क्लास टीचर जी से उस मुद्दे पर बात की जिसके लिए मैं आज स्कूल ख़ास कर के आया था|

नेहा की क्लास टीचर जी से बात कर मैं स्कूल से निकला, घर पहुँच मैंने किसी से भी मेरी नेहा की क्लास-टीचर से हुई बात का जिक्र नहीं किया| अब चूँकि बच्चे घर पर नहीं थे तो मेरा सारा ध्यान संगीता पर लगा हुआ था| संगीता भी कम नहीं थी, जैसे ही माँ इधर-उधर होतीं वो फ़ट से मेरे पास आ जाती और हम दोनों की चुहलबाजी शुरू हो जाती! हमारे ये छोटे-मोटे प्रेम मिलाप या अठखेलियाँ माँ के चोरी-छुपे होते थे, यदि माँ को हमारे इस प्यारे से खेल के बारे में पता चल जाता तो शायद हम दोनों को ही डाँट पड़ जाती या फिर माँ डॉक्टर सरिता के सामने ये सब बता कर हम दोनों को शर्मिंदा कर देतीं!

दोपहर को जब बच्चे स्कूल से लौटे तो दोनों ख़ुशी के मारे चहक रहे थे! अपनी स्कूल वैन से उतरते ही दोनों बच्चे मेरी गोद में चढ़ गए और मेरे गाल अपनी पप्पियों से गीले करते रहे| घर पहुँच कर खाना खाते समय दोनों बच्चों ने हमें अपने आज के दिन के बारे में बताया| बच्चों को उनके मॉडल और हॉलिडे होमवर्क पूरा करने पर पूरे नंबर मिले थे तथा क्लास के बच्चों के सामने प्रशंसा हुई थी सो अलग! खाना खाने के बाद बच्चों ने मुझे और संगीता को अपने साथ जबरदस्ती सोने पर मज़बूर किया| बच्चे तो जल्दी सो गए मगर संगीता ने मुझे सोने नहीं दिया, उसे चाहिए था मेरा प्यार जो की बच्चों की मौजूदगी में मिल नहीं सकता था इसलिए संगीता ने लेटे-लेटे ही मुझे उकसाना शुरू कर दिया| मैं कुछ पल तो संगीता की शरारतें सहता रहा और जब सहा नहीं गया तो मैं उठा और संगीता को अपने साथ ले कर बच्चों के कमरे में आ गया जहाँ हमें किसी की चिंता नहीं थी|

आधा जुलाई बीता तो संगीता का नौवाँ महीना शुरू हो गया| इस समय संगीता का घर से बाहर निकलना बंद हो चूका था| काम तो मैं वैसे ही उसे कोई करने नहीं देता था इसलिए दिनभर संगीता बस आराम ही करती थी जिससे उसकी टांगों में थोड़ा दर्द और पाँव में थोड़ी सूजन आ गई थी| मैंने संगीता को तेल से मालिश करना चाहा तो वो मुझे मना करने लगी; "कतई नहीं! पति तो परमेश्वर होता है, उससे अपने पाँव स्पर्श करवा कर मुझे नर्क में थोड़े ही जाना है!" मैंने संगीता को बहुत समझना चाहा मगर वो नहीं मानी, आखिर मैंने किसी मालिश वाली आंटी से उसकी मालिश करवाने की पेशकश की तो संगीता उस पर भी मुझे मना करते हुए बोली; "बिलकुल नहीं, मुझे किसी बाहर वाली औरत से अपने पाँव की मालिश नहीं करवानी!" घूम फिर कर हम वापस उसी बिंदु पर आ गए थे की आखिर संगीता की टाँगों की मालिश कौन करेगा?

मुझे संगीता का ये बचपना थोड़ा गुस्सा दिला रहा था मगर मैं कुछ कहूँ उसके पहले ही संगीता मुस्कुराते हुए बोली; "आप चिंता क्यों करते हो? हमारे पास दो मालिशिये (मालिश करने वाले) हैं तो सही!" ये कहते हुए संगीता ने फौरन दोनों बच्चों को आवाज़ मारी; "मेरे प्यारे-प्यारे बच्चों, तनिक हियाँ आवो!" संगीता ने इतने प्यार से बच्चों को पुकारा की दोनों बच्चे एकदम से प्रकट हो गए! फिर संगीता ने नेहा से तेल की शीशी लाने को कहा, नेहा तुरंत तेल की शीशी ले आई| अब नेहा समझदार थी इसलिए वो सब समझ गई थी पर आयुष को कुछ समझ नहीं आ रहा था की उसकी मम्मी ने आखिर उसे इतने प्यार से आवाज़ दे कर क्यों बुलाया है? वो बेचारा कभी मुझे देखता और कभी अपनी मम्मी को, इस आस में की हम दोनों में से कोई उसे कुछ बताये तो सही|

नेहा जैसे ही तेल कि शीशी ले कर आई संगीता ने बड़े प्यार से बच्चों को बहलाते हुए अपना काम निकाला; "बेटा, मेरे है न पाँव में थोड़ा दर्द होता है! अब मैं तो तेल से अपनी मालिश कर नहीं सकती, न ही मैं आपकी दादी जी से कह सकती हूँ क्योंकि वो मेरी माँ हैं और माँ से मैं अपने पाँव स्पर्श नहीं करवा सकती| आपके पापा जी को भी मैं मेरे पाँव की मालिश करने को नहीं कह सकती क्योंकि एक पत्नी कभी अपने पति से अपने पाँव स्पर्श नहीं करवाती! बचे बस आप दोनों, आप दोनों सबसे छोटे हो इसलिए आपको तो वैसे भी अपनी मम्मी की सेवा करनी चाहिए क्योंकि माँ के चरणों में ही तो स्वर्ग होता है और माँ की सेवा करने से आपको बहुत पुण्य भी मिलेगा| तो आज से आयुष रोज़ शाम को मेरे पाँव की मालिश करेगा और नेहा मेरी टाँगों की मालिश करेगी!" संगीता ने बड़े प्यार और बड़ी ही चतुराई से दोनों बच्चों को ये जिम्मेदारी सौंपी थी| बच्चे अपनी मम्मी की बातों में आ गए और ख़ुशी-ख़ुशी अपनी मम्मी की सेवा में लग गए| पहले नेहा संगीता की कमरे के भीतर अकेले में घुटने से ले कर पिंडली तक तेल की मालिश करती, उसके बाद आयुष अंदर जाता और टखने तथा पाँव के पंजों में अपने छोटे-छोटे हाथों से धीरे-धीरे मालिश करता| आयुष कहीं ऊब न जाए इसलिए संगीता उसे अपनी बातों में लगा लेती थी जिससे आयुष का मन मालिश करने में लगा रहता था| मैं भी बच्चों की ख़ुशी के लिए उन्हें मालिश करने के वेतन के रूप में चिप्स और चॉकलेट ला कर दे दिया करता जिससे बच्चों में अपनी मम्मी की सेवा करने में अधिक उत्सुक रहते|

खैर, दिन प्यार से बीत रहे थे और फिर वो दिन नज़दीक आ गया जिसके लिए मैं कब से इंतज़ार कर रहा था| 22 जुलाई का दिन था और अगले दिन नेहा का जन्मदिन था, मैंने आज के दिन की तैयारी जब से बच्चों के स्कूल खुले थे तब ही से शुरू कर दी थी| बच्चों के स्कूल जाने के बाद मैंने माँ और संगीता को अपने सारे सरप्राइज के बारे में बताया| मेरा सरप्राइज सुन माँ और संगीता ख़ुशी-ख़ुशी मेरा साथ देने के लिए मान गए थे|

दोपहर को जब बच्चे स्कूल से लौटे तो हम सबने उनके साथ वैसे ही बात की जैसे हम पहले बात करते थे, हमने बच्चों को ज़रा सा भी शक नहीं होने दिया की कल नेहा का जन्मदिन है ये हमें पता है और हमने जन्मदिन की क्या-क्या तैयारी की है?! बच्चों के लिए आज का दिन बिलकुल आम दिन जैसा ही था इसलिए उन्हें न तो कल के बारे में कुछ याद था न ही क्या तैयारियाँ हुई हैं इसका कोई शक!

रात को खाना खा कर सोने की बारी आई तो दोनों बच्चों ने फटाफट अपनी दादी जी के पलंग पर अपना कब्ज़ा स्थापित कर लिया! इधर माँ कमरे में जाएँ उससे पहले ही मैंने माँ से कहा; "माँ, नेहा को जन्मदिन की मुबारकबाद सबसे पहले मैं दूँगा! मेरे बाद आप दोनों मुबारकबाद दे सकते हो!" मुझे नेहा को जन्मदिन की मुबारकबाद सबसे पहले देने की कुछ अधिक ही उत्सुकता थी और मेरी इस उत्सुकता को मेरा बचपना समझ माँ तथा संगीता की हँसी छूट गई!

हम मियाँ-बीवी अपने कमरे में आ कर लेट गए मगर नींद तो हम दोनों को आने से रही| जहाँ एक तरफ मेरा व्याकुल मन घड़ी में बारह बजने की राह देख रहा था, वहीं संगीता का मन मेरे पहलु में लेट मुझसे चुहलबाज़ी करने का था| संगीता ने मेरी तरफ करवट ली तथा अपना हाथ मेरे सीने पर रखते हुए बोली; "मुझे कहानी सुनाओ!" संगीता ने इतने भोलेपन से कहा की मैं हँस पड़ा! मैंने संगीता की ओर करवट ली तथा उसका सर थपथपाते हुए उसे प्यारी सी कहानी सुनाई जिसे सुनते-सुनते संगीता को नींद आ गई|

मेरी नज़रें घड़ी की सुइयों पर टिकी थीं की कब बारह बजे और मैं अपनी लाड़ली को गोदी में उठा कर जन्मदिन की बधाई दूँ! टिक-टिक करते हुए घड़ी की सुइयों ने रात के 11:55 बजाए और मैं उठ कर खड़ा हो गया ताकि जैसे ही घडी में 11:59 हों मैं माँ के कमरे की तरफ चल पडूँ| आखिर घड़ी को मुझ पर तरस आया और उसने जल्दी से 11:59 बजा दिए, मैं भी सीधा माँ के कमरे की तरफ चल पड़ा| माँ के दरवाजे पर पहुँच कर मैंने घड़ी देखि तो अभी 12 बजने में 50 सेकंड बाकी थे| मैं दबे पाँव माँ के कमरे में घुसा और नेहा जिस तरफ लेटी थी उस तरफ आ कर खड़ा हो गया| मैंने फिर घड़ी देखि तो अभी 40 सेकंड बाकी थे! मुझसे और इंतज़ार नहीं हो रहा था इसलिए मैंने नेहा को गोदी में उठा लिया| मेरी गोदी में आते ही नेहा को नींद में ही मेरे जिस्म का एहसास हो गया और वो कुनूमाते हुए मुझसे लिपट गई| मैंने नेहा के सर को चूमा और फिर बड़े प्यार से नेहा को पुकारा; "नेहा...मेरा बच्चा" इतने सुनते ही नेहा कुनमुनाई और नींद से जागने की कोशिश करने लगी| नेहा उस वक़्त गहरी नींद में थी इसलिए उसे जागने में थोड़ा समय लग रहा था वरना तो वो मेरी आवाज़ सुनते ही जाग जाती|

इधर घड़ी में पूरे 12 बज चुके थे यानी अगला दिन...अगली तरीक यानी की 23 जुलाई आ चुकी थी! "नेहा...मेरी प्यारी गुड़िया....मेरी लाड़ली बिटिया....happy birthday मेरा बच्चा!" मैंने नेहा के मस्तक को चूमते हुए कहा| जब मैंने नेहा को जन्मदिन की मुबारकबाद दी तो नेहा ने झट से अपनी आँखें खोल दी! मैंने भी उसी वक़्त कमरे की लाइट जला दी ताकि मैं अपनी गुड़िया का ख़ुशी से चमकता हुआ मुखड़ा देख सकूँ| "आज मेरा जन्मदिन है पापा जी?" नेहा मेरी आँखों में देखते हुए हैरान होते हुए पूछने लगी, क्योंकि उसे ज़रा भी याद नहीं था की आज उसका जन्मदिन है| जिस बच्चे के जन्मदिन पर उसे किसी ने मुबारकबाद न दी हो, उसे अचानक से कोई मुबारकबाद दे तो उसका हैरान होना जायज बात है!

"हाँ जी, बेटा जी! आज 23 जुलाई है और आज मेरी लाड़ली बिटिया का जन्मदिन है!" मैंने नेहा को यक़ीन दिलाते हुए कहा ताकि उसे ये न लगे की उसके साथ कोई मज़ाक हुआ है| मेरी बात सुन नेहा का चेहरा ख़ुशी से खिल गया और उसने मेरे दोनों गालों पर अपनी मीठी-मीठी पप्पी दी| "मेरी बेटी को आज का दिन बहुत-बहुत मुबारक हो! मेरी बिटिया रानी जुग-जुग जिए, ख़ुशी से हमेशा चहकती रहे और उसे दुनिया की सारी खुशियाँ उसे मिले!" मैंने नेहा को प्रेम सहित आशीर्वाद देते हुए कहा|

"अरे बाप-बेटी का प्यार हो गया हो तो मुझ बुढ़िया को भी अपनी पोती को मुबारकबाद देने दो!" माँ जो अभी तक चुप-चाप हम बाप-बेटी का ये लाड-प्यार देख रहीं थीं वो उठ कर बैठते हुए बोलीं| मैंने नेहा को अपनी गोदी से उतारा तो नेहा फौरन अपनी दादी जी के पास पहुँची और उनके पाँव छू आशीर्वाद लिया| माँ ने नेहा को आशीर्वाद दिया तथा उसके मस्तक को चूमते हुए बोलीं; "मेरी बिटिया खूब पढ़े, खूब लिखे और हमेशा हँसती-खेलती रहे|"

इतने में पीछे से संगीता अपनी आँख मलते हुए आ गई और दरवाजे पर से बोली; "happy birthday मेरी लाड़ो!" अपनी मम्मी की आवाज़ सुनते ही नेहा पलटी और फुदकते हुए अपनी मम्मी के पाँव छू कर आशीर्वाद ले संगीता की कमर से लिपट गई|

अपनी मम्मी से आशीर्वाद पा नेहा मेरे पास लौटी और मेरे पाँव छू कर मेरी गोदी में चढ़ी गई| कमरे में आवाज़ होने से आयुष भी जाग गया और अपनी आँखें मलते हुए हम सभी को देखने लगा, उसे कुछ समझ नहीं आ रहा था इसलिए वो अपना सर खुजलाते हुए सोच रहा था की सब लोग रात में क्यों जगे हैं| "तेरी दीदी का जन्मदिन है|" माँ आयुष के सर पर हाथ रखते हुए बोलीं तो आयुष एकदम से खड़ा हुआ और पलंग पर ख़ुशी से कूदते हुए; "happy birthday to you दीदी."वाला गाना गाने लगा| हम माँ-बेटा-बहु भी आयुष के गाने में साथ देने लगे और हमने नेहा के लिए पूरा happy birthday वाला गाना गा दिया| नेहा को इतने प्यार की उम्मीद नहीं थी इसलिए उसकी आँखें नम हो गई थीं| हैप्पी बर्थडे वाला गाना पूर्ण होने पर नेहा ने अपने दोनों हाथ जोड़कर, सर झुका कर हम सभी को धन्यवाद दिया|

अब मुबारकबाद देना पूर्ण हो चूका था, तो अब बारी थी आयुष के सबसे जर्रूरी सवाल की; "तो आज स्कूल की छुट्टी है न पापा जी?" आयुष के पूछे सवाल को सुन हम सब हँस पड़े और माँ ने हँसते हुए अपना सर हाँ में हिलाते हुए आज बच्चों के स्कूल की छुट्टी का ऐलान किया| "तो पापा जी, जैसे मेरे जन्मदिन पर हम सब घूमने गए थे वैसे आज हम घूमने कहाँ जायेंगे?"आयुष ने उत्साह और उमंग में भरते हुए अपना सवाल पुछा था| आयुष को लग रहा था की जैसे उसके जन्मदिन पर मैंने बाहर घूमने और पार्टी का इंतज़ाम किया था वैसे ही आज भी हम घूमने जायेंगे| "नहीं बेटा जी, इस बार हम सब घूमने नहीं जा सकते|" मैंने थोड़ा निराश होते हुए आयुष के सवाल का जवाब दिया| मेरा जवाब सुन आयुष और नेहा थोड़ा मायूस होने लगे थे| "बेटा, आप जानते ही हो की आपकी मम्मी माँ बनने वाली हैं और ऐसे में उनका बाहर घूमने जाना खतरे से खाली नहीं है| इस बार हम ऐसा करते हैं की हम तीनों (यानी मैं, आयुष और नेहा) घूमने चलते हैं और रात को बाहर से खाना मँगा लेंगे! अगले साल आप दोनों बच्चों के स साथ आपकी छोटी बहन या छोटा भाई भी होगा और फिर हम खूब धूम-धाम से जश्न मनाएंगे!" मुझे लगा था की मेरी बात सुन दोनों बच्चे निराश होंगे मगर मेरे बच्चे तो बहुत खुश थे|

"कोई बात नहीं पापा जी, हम अगले साल मेरे छोटे भाई या बहन को साथ ले कर घूमने चलेंगे!" नेहा मेरे चेहरे को अपने दोनों हाथ में लेते हुए बोली| मेरी बेटी को इस बात का जरा भी बुरा नहीं लग रहा था की उसका जन्मदिन हम आयुष के जन्मदिन की तरह धूम-धाम से नहीं मना पाएंगे| "तो बेटा, कल सुबह-सुबह आप दोनों तैयार रहना क्योंकि सबसे पहले हम तीनों मंदिर जायेंगे!" मैंने दोनों बच्चों के कँधों पर हाथ रखते हुए कहा| "फिर?" आयुष उत्सुक हो कर मुझे देखते हुए बोला| "बेटा, फिर जहाँ आपकी दीदी कहेंगी वहाँ हम तीनों घूमने जायेंगे!" मैंने घूमने जाने की सारी जिम्मेदारी नेहा पर डाल दी थी जिससे नेहा बड़ी खुश थी|

रात बहुत हो रही थी और अब सोने की बरी थी| दोनों बच्चे आ कर मेरे से लिपट गए और एक साथ रट लगाते हुए बोले; "पापा जी हम आपके पास सोयेंगे!" बच्चों की बात सुन संगीता हँस पड़ी और बोली; "तुम लोग जाओ अपने पापा जी के पास सोने, मैं तो यहाँ माँ के पास कहानी सुनते हुए सोऊँगी!" संगीता बड़ी अदा से इतराते हुए बोली| बच्चों ने दिखाया अपनी मम्मी को ठेंगा और मेरी गोदी में चढ़ गए! मैं दोनों बच्चों को गोदी में लिए हुए अपने कमरे में आया और गोदी लिए हुए ही मैं पलंग पर लुडख गया! बच्चों ने पहले तो मुझे गुदगुदी करनी शुरू की और मुझे हँसा-हँसा के पेट में दर्द कर दिया| फिर दोनों बच्चों ने "कहानी-कहानी" की रट लगा दी और मुझे पलंग के बीच लिटा कर मुझसे कस कर लिपट गए! अब मुझे 1 नहीं 2 कहानी सुनाने पड़ी, तब जा कर कहीं बच्चे सोये!

अगली सुबह मैंने जल्दी से बच्चों को उठाया और तैयार कर के अपने साथ दिल्ली के प्रसिद्द मंदिरों के दर्शन करने ऑटोरिक्षा कर निकल पड़ा| बच्चों को ले कर जल्दी घर से निकलने का एक बहुत बड़ा कारण था! खैर, मंदिर दर्शन करने के बाद हमने प्रसाद खाया और फिर मैंने नेहा से पुछा; "तो बेटा जी, अब कहाँ चलना है?" मेरा सवाल सुन नेहा फ़ट से बोली; "साइंस मियूज़ियम!" जैसे ही नेहा ने साइंस मियूज़ियम का नाम लिया, आयुष ने एकदम से अपना सर पीट लिया! ये दृश्य इतना मज़ाकिया था की मैं अपना पेट पकड़ कर हँसने लगा! "क्या दीदी, हम आज घूमने निकले हैं और आपको आज के दिन भी पढ़ाई करनी है!" आयुष मुँह फुलाते हुए बोला| आयुष की बात सुन मैंने आयुष को बहलाया और उसके सर को चूमते हुए बोला; "बेटा, आज आपकी दीदी का जन्मदिन है तो जहाँ वो कहेंगी वहाँ हम जायेंगे!" आयुष आधे मन से ही सही मगर मान गया तभी नेहा, आयुष का मन रखने के लिए बोली; "अच्छा ठीक है, साइंस मियूज़ियम के बाद हम चिड़ियाघर जाएंगे! अब तो खुश?!" नेहा की बात सुन आयुष ख़ुशी से कूद पड़ा!

"पापा जी, बड़े दिन हुए हम मेट्रो में नहीं घूमे!" नेहा बड़ी प्यारी आवाज़ में माँग करते हुए बोली| आयुष ने आजतलक बस अपने दोस्तों से मेट्रो का नाम सुना था मगर वो कभी मेरे साथ मेट्रो में नहीं घुमा था इसलिए जैसे ही नेहा ने मेट्रो का नाम लिया आयुष की आँखें टिमटिमाने लगीं| मैंने नज़दीकी मेट्रो स्टेशन के लिए ऑटो किया और हम तीनों बाप- बेटा-बेटी मेट्रो स्टेशन पहुँचे| अभी मैं ऑटो वाले को पैसे दे ही रहा था की नेहा ने आयुष को मेट्रो में क्या-क्या होता है ये सब खड़े-खड़े ही समझना शुरू कर दिया| आयुष भी मुँह खोले बड़ी हैरानी से नेहा की बात सुन रहा था और मन ही मन कल्पना कर रहा था की मेट्रो कैसी होती होगी?

जब नेहा का समझना हो गया तब मैंने दोनों बच्चों को अपने दोनों हाथों की एक-एक ऊँगली पकड़ाई तथा मेट्रो की लिफ्ट की तरफ प्रस्थान किया| लिफ्ट के पास पहुँच कर नेहा ने फ़ट से लिफ्ट का बटन दबाया, आयुष ये देख बड़ा हैरान हुआ की उसकी दीदी को इतना सब कैसे पता है?! लिफ्ट आई और हम तीनों बाप-बेटा-बेटी ने अंदर प्रवेश किया, इस बार नेहा ने आयुष को कह नीचे जाने का बटन दबवाया| लिफ्ट का बटन दबा कर आयुष को बड़ी खशी हुई और वो अपनी ख़ुशी व्यक्त करने के लिए ताली बजाने लगा|

जैसे ही हम लिफ्ट से नीचे आये और लिफ्ट का दरवाजा खुला तो आयुष को लोगों का भीड़-भडाका दिखा, जिससे आयुष थोड़ा घबरा गया था| तभी लाउड स्पीकर पर विभिन्न तरह की अनाउंसमेंट होने लगीं जिसे सुन आयुष ये ढूँढने लगा की आखिर ये आवाज़ आ कहाँ से रही है?! नेहा ने बड़ी बहन होने का दायित्व सँभाला और अपने छोटे भाई आयुष को मेट्रो के बारे में सब बताने लगी| मेट्रो में घुसते समय सुरक्षा जाँच कहाँ होती है, मेट्रो में प्रवेश करने के गेट कैसे खुलते और बंद होते हैं तथा मेट्रो ट्रैन कहाँ आती है| अपनी बड़ी बहन द्वारा दी जा रही जानकारी आयुष बड़े ध्यान और मन लगा कर सुन रहा था| मैं भी नेहा को मेरे द्वारा दिया हुआ ज्ञान आयुष को देते हुए गर्व से देख रहा था| जब नेहा ने आयुष को सब समझा दिया तब मैंने दोनों बच्चों को अपने दोनों हाथों की एक-एक ऊँगली पकड़ाई और टिकट काउंटर की तरफ चल पड़ा|

मेरे पास तो मेट्रो का कार्ड था इसलिए मैंने केवल बच्चों के लिए ही दो टिकट ली| बच्चों के लिए ली हुई टिकट मैंने नेहा और आयुष को दी, नेहा ने तो टिकट संभाल कर अपने पास रख ली मगर आयुष मेट्रो की टिकट यानी प्लास्टिक के सिक्के को उल्ट-पलट कर देखने लगा| आयुष को समझ नहीं आ रहा था की ये किस तरह की टिकट है? आयुष के चेहरे पर सवाल देख नेहा ने उसे प्यार से समझाया; "मेट्रो में ऐसी ही टिकट मिलती है| तुझे ये टिकट सँभाल कर रखनी है क्योंकि अगर ये टिकट खो गई न तो तू यहीं मेट्रो में रह जायेगा!" नेहा की बात सुन आयुष डर गया और मेरी ओर देखने लगा की क्या उसकी बहन सच बोल रही है?! "बेटा अगर ये टिकट खो गई तो हमें बहुत बड़ा जुर्माना देना पड़ेगा इसलिए आपको ये टिकट बहुत सँभाल कर रखनी है|" मैंने आयुष को समझाते हुए कहा| आयुष को डर था की उससे ये टिकट न खो जाए इसलिए उसने फौरन अपनी टिकट मुझे वापस दे दी; "पापा जी, ये टिकट आप सँभालो, मुझसे खो गई तो?!" आयुष की बात सुन मैं मुस्कुराया और उसकी टिकट अपने पास रख ली|

अब समय था सुरक्षा जाँच का इसलिए नेहा मुझे बता कर महिलाओं वाली कतार में लग गई| आयुष ने कई बार मॉल या सिनेमा घर में सुरक्षा जाँच करवाई थी इसलिए आयुष मेरे साथ बिना डरे खड़ा हुआ था| नेहा की सुरक्षा जाँच पहले हो गई थी और वो मेट्रो में प्रवेश करने वाले मशीनी गेट पर खड़ी हम बाप-बेटे का इंतज़ार कर रही थी| जैसे ही मैं और आयुष अपनी सुरक्षा जाँच करवा कर निकले, नेहा ने आयुष को मशीनी गेट से पार जाने का तरीका सिखाया| आयुष ने मुझसे अपनी टिकट ली और नेहा के बताये हुए तरीके से मशीन से अपनी टिकट छुआई, जैसे ही गेट खुला आयुष दौड़ता हुआ पार निकल गया क्योंकि आयुष को डर था की कहीं मशीन का गेट अचानक बंद हो गया तो वो आधा अंदर और आधा बाहर रह जायेगा! आयुष अपनी बड़ी बहन नेहा के साथ गेट के उस पर खड़ा मेरे अंदर आने की प्रतीक्षा कर रहा था| अब मेरे पास था मेट्रो का कार्ड और वो कार्ड मेरे बटुए में था| मैंने अपना बटुआ निकाला और मशीन से छुआया तो गेट खुल गया| आयुष को ये देख कर कुछ समझ नहीं आया और वो आँखें फाड़े मुझे देखने लगा| मैंने आयुष को अपना मेट्रो कार्ड दिखाया और समझाया की ये कार्ड कैसे काम करता है| टिकट के मुक़ाबले ये कार्ड काफी बड़ा था यानी के आयुष इसे आसानी से सँभाल सकता था इसलिए आयुष ने कहा की मैं उसे भी ऐसा कार्ड दिला दूँ ताकि वो भी आगे से कार्ड का इस्तेमाल कर सके| "ठीक है बेटा, मैं आप दोनों के लिए एक-एक कार्ड ले दूँगा|" मैंने दोनों बच्चों को अपने दोनों हाथों की एक-एक ऊँगली पकड़ाते हुए कहा|

हम तीनों बाप-बेटा-बेटी सीढ़ियों से नीचे बने प्लेटफार्म पर आ रहे थे| जैसे-जैसे हम सीढ़ियाँ उतर रहे थे वैसे-वैसे मेट्रो में होने वाली चल-पहल तेज़ होती जा रही थी| मेट्रो ट्रैन आ-जा रहीं थीं, लोग मेट्रो में चढ़-उतर रहे थे और ये दृश्य देख आयुष दंग था! वो बार-बार मेरा ध्यान मेट्रो ट्रैन की तरफ खींचने के लिए ऊँगली से इशारे कर रहा था| आयुष के मन में पैदा हुई जिज्ञासा को समझ नेहा उसे समझाते हुए बोली; "आयुष, तुझे पता है ट्रैन के अंदर है न AC होता है और पूरी ट्रैन अंदर से बहुत ठंडी-ठंडी होती है! और है न हम लोग ट्रैन चलाने वाले ड्राइवर अंकल को भी देख सकते हैं! मैं पिछलीबार जब मेट्रो में आई थी न तब मैंने ड्राइवर अंकल जी को bye-bye किया था!" नेहा की ये बात सुन आयुष का भी मन ट्रैन के ड्राइवर को देखने का था इसलिए मैं दोनों बच्चों को प्लेटफार्म के अंत में ले आया जहाँ ट्रैन का इंजन लगता है| ठीक तभी एक ट्रैन आ कर लगी और ट्रैन के ड्राइवर साहब को देख आयुष बहुत खुश हुआ और हाथ हिला कर ड्राइवर साहब को "bye-bye अंकल जी" कहा| ड्राइवर साहब ने भी केबिन के भीतर से ही आयुष को हाथ हिला कर bye कहा| इस छोटी सी बात-चीत से आयुष ख़ुशी से खिल गया था, उसे खुद पर गर्व हो रहा था की ड्राइवर अंकल ने उसे bye कहा!

इतने में दूसरे प्लेटफार्म पर हमारी ट्रैन आ गई, "आयुष देख हमारी ट्रैन आ गई!" नेहा ने आयुष का ध्यान ट्रैन की ओर खींचते हुए कहा| अपनी दीदी की बात सुन आयुष ने हमारी ट्रैन की तरफ दौड़ना चाहा लेकिन ऐन वक़्त पर मैंने उसका हाथ पकड़ लिया और उसे दौड़ने नहीं दिया! आयुष के इस बचपने पर नेहा को एकदम से गुस्सा आ गया; "मैंने बोला था न तुझे की मेट्रो के अंदर दौड़ते-भागते नहीं हैं! समझ नहीं आती तुझे? अभी गिर जाता तो?" अपनी दीदी की डाँट सुन आयुष ने फौरन अपने कान पकड़े ओर बोला; "सॉरी दीदी! आगे से मैं ऐसे नहीं दौडूँगा!" आयुष की माफ़ी सुन नेहा ने उसे माफ़ कर दिया ओर फिर से समझाने लगी; "अगर ये ट्रैन निकल जाती तो कोई बात नहीं होती, 10 मिनट में दूसरी आ जाती है, इसलिए मेट्रो में ट्रैन पकड़ने के लिए कभी जल्दीबाजी नहीं करते!" नेहा की बात सुन आयुष ने फिर से सॉरी कहा| बच्चों की इस बातचीत में हमारी ये ट्रैन निकल गई और दूसरी ट्रैन आने तक मैंने आयुष को अपनी गोदी में बिठाया तथा उसे मेट्रो के नियम-कानून समझाने लगा|

10 मिनट बाद हमारी दूसरी ट्रैन आई तो दोनों बच्चों ने मेरे दोनों हाथों की एक-एक ऊँगली पकड़ी तथा हमने ट्रैन में प्रवेश किया| चूँकि हमने आखरी डिब्बे में प्रवेश किया था इसलिए हमें बैठने के लिए जगह आराम से मिल गई| मैं तो आराम से सीट पर बैठ गया मगर आयुष और नेहा सीट पर खड़े होकर शीशे से बाहर देखने लगे| तभी ट्रैन में अनाउंसमेंट होने लगी और नेहा वो अनाउंसमेंट सुन आयुष को सब समझाने लगी| AC की ठंडक, अपने-आप खुलते-बंद होते दरवाजे देख और अनाउंसमेंट सुनते हुए बच्चों का सफर बड़े मज़े से बातें करते हुए कट रहा था| आयुष के मन में मेट्रो को ले कर जितनी उत्सुकता थी, जितने सवाल थे उन सभी का निवारण मेरी बिटिया नेहा ख़ुशी से कर रही थी|

आखिर हमारी मंज़िल आ ही गई और हम ट्रैन से उतर गए, ट्रैन से उतरते ही आयुष को एस्कलेटर नज़र आया और उसका मन एस्कलेटर पर जाने का किया| तभी अनाउंसमेंट हुई की एस्कलेटर पर छोटे बच्चों का हाथ पकड़ कर रखें इसलिए आयुष और नेहा ने फट से मेरा हाथ पकड़ लिया| मुझे ये देख कर ख़ुशी हुई की मेरे बच्चे हर तरह के नियम-कानून की इज़्ज़त करते हैं तथा पूरी निष्ठा से उन नियम-कानून का पालन भी करते हैं|

हमने मज़े से एस्कलेटर की सवारी की और ऊपर मेट्रो के बाहर आ गए| अब हमारा पहला पड़ाव था साइंस मियूज़ियम तो टिकट ले कर हम तीनों बाप-बेटा-बेटी ने प्रवेश किया| भीतर पहुँच कर नेहा ख़ुशी से उछल पड़ी और आस-पास लिखी जानकारी तथा वैज्ञानिकों के नाम और उनके द्वारा की गई खोज के बारे में पढ़ने लगी| काफी चीजें नेहा के काम की नहीं थीं मगर नेहा में जिज्ञासा इतनी थी की वो सब कुछ सीखना चाहती थी| वहीं बेचारा आयुष बुरी तरह से ऊब गया था, उस बेचारे ने अभी तक स्कूल में साइंस नहीं पढ़ी थी तो उसे यहाँ क्या ही समझ आना था! मैंने आयुष को गोदी में लिया और उसे लाड कर उसका मन बहलाने लगा| जबकि नेहा पूरी आज़ादी से आगे-आगे चलते हुए सब देख और पढ़ रही थी|

घूमते-घूमते हम पहुँचे एक मॉडल के सामने जिसमें की human digestive system बनाया हुआ था| वो मॉडल देख नेहा मुझसे बोली; "देखो पापा जी, ऐसा ही मॉडल हमने बनाया था!" अब चूँकि ये मॉडल खाने-पीने से जुड़ा था इसलिए आयुष की दिलचस्पी इसमें जाग गई थी, उसने जब इस मॉडल के बारे में पुछा तो नेहा ने ख़ुशी-ख़ुशी आयुष को सब समझाया| अब आयुष को कितना समझ आया कितना नहीं ये तो मैं नहीं जानता!

कुछ मिनट बाद हम घुमते हुए astronomy वाले हॉल में पहुँचे| इस हॉल में अंतरिक्ष से जुडी जानकारी और मॉडल थे| आयुष की नज़र स्पेस सूट (space suit) के मॉडल पर पड़ी और वो मुझे उस तरफ खींच कर ले गया| मैंने दोनों बच्चों को अंतरिक्ष तथा space suit के बारे में जानकारी दी तो दोनों बच्चों को बहुत हैरानी हुई| नेहा तो फिर भी अंतरिक्ष के बारे में थोड़ा बहुत पढ़ चुकी थी मगर उसने अपनी आँखों के सामने स्पेस सूट पहली बार देखा था इसलिए उसका हैरान होना लाज़मी था| जबकि आयुष को अंतरिक्ष के बारे में कुछ नहीं पता था और जब मैंने उसे ये सब जानकारी दी तो आयुष की हैरानी दिलचस्पी में तब्दील हो गई; "पापा जी, मैं भी बड़ा हो कर एस्ट्रोनॉट (astronaut) बनूँगा और स्पेस में जाऊँगा!" आयुष बड़े जोश से बोला| इधर नेहा को आयुष की बात सुनकर बहुत हँसी आई और वो आयुष का मज़ाक उड़ाते हुए बोली; "जनता भी है की अस्ट्रॉनॉट बनने के लिए कितना पढ़ना पड़ता है? आया बड़ा अस्ट्रॉनॉट बनने!" जब नेहा ने आयुष का मज़ाक उड़ाया तो आयुष मुँह बनाने लगा और मुझसे शिकायत करने लगा| "बेटा, अस्ट्रॉनॉट बनने के लिए पढ़ना तो बहुत पड़ता है! तो...हम ऐसा करेंगे की मैं और नेहा मिलकर आपको पढ़ाएंगे, फिर तो आप पक्का अस्ट्रॉनॉट बन जाओगे!" मैंने आयुष का मन रखने के लिए कहा तो आयुष खुश हो गया और ख़ुशी से मुझसे लिपट गया| मेरा बेटा ज़रा सा बहलाने से ही खुश हो जाता था और मुझे ये देख कर बहुत ख़ुशी होती थी|

साइंस मियूज़ियम घूम कर हम बाहर निकले और सबसे पहले हमने लस्सी पी| लस्सी पी कर आयुष ने नेहा को याद दिलाते हुए कहा; "दीदी, अब तो हम चिड़ियाघर जायेंगे न?" आयुष का सवाल सुन नेहा ने उसके गाल खींचें और सर हाँ में हिलाने लगी| तो हमारा अगला पड़ाव आया और हमने टिकट खरीदकर चिड़ियाघर में प्रवेश किया| चिड़ियाघर में अलग-अलग तरह के जानवर देख बच्चे बहुत खुश थे| हालाँकि शेर को देख कर बच्चे थोड़ा डर गए थे मगर मैंने दोनों बच्चों के कँधे पर हाथ रख उन्हें हिम्मत दी तो बच्चे फिर से चहकने लगे| तभी बच्चों ने शेर का एक बच्चा देखा जो की बच्चों को देख रहा था| बच्चे उस शेर के बच्चे को देख कर इतने मोहित हुए की वो बोले;

आयुष: पापा जी, हम इसको घर ले कर चलते हैं!

आयुष मज़ाक करते हुए बोला|

नेहा: चुप! पापा जी, हम इसे कुछ खाने को दें?

बच्चों की बात सुन मैं हँस पड़ा और उन्हें समझाते हुए बोला;

मैं: बेटा, चिड़ियाघर में जानवरों को कुछ भी खिलाने की मनाही होती है| दरअसल, ये जानवर जंगल में रहने वाले हैं और ये ऐसे ही कुछ भी नहीं खा सकते| इन्हें चिड़ियाघर के कर्मचारी एक उपयुक्त खुराक देते हैं, जैसे की जानवर जंगल में खाते हैं ताकि इनकी तबियत पर कोई बुरा असर न पड़े|

मैंने बच्चों को समझाया तो जैसे-तैसे बच्चे मान गए वरना शयद बच्चे आज जिद्द कर के उस शेर के बच्चे को चिप्स और चॉकलेट खिला कर ही मानते!
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चिड़ियाघर से निकलते-निकलते दोपहर हो गई थी और अब भूख लग आई थी इसलिए हमने अच्छे से रेस्टोरेंट में पेट भर कर खाना खाया| खाना खा कर अब बच्चे घर वापस जाना चाहते थे, लेकिन मैं बच्चों को अभी घर ले कर नहीं जाना चाहता था! "बेटा, आपको अंतरिक्ष के बारे में जानने की इतनी उत्सुकता है तो दिल्ली में एक जगह है: नेहरू प्लानटेरियम (planetarium)! वहाँ एक ख़ास तरह का शो दिखाते हैं जो आपको बहुत पसंद आएगा|" मेरी बात सुन बच्चों को ज़रा भी शक नहीं हुआ की मैं उन्हें घर आखिर क्यों नहीं ले जा रहा, वो तो घूमने की बात सुनकर ख़ुशी से कूद पड़े थे!

[color=rgb(163,]जारी रहेगा भाग - 9(2) में...[/color]
 

[color=rgb(251,]इकत्तीसवाँ अध्याय: घर संसार[/color]
[color=rgb(44,]भाग - 9(2)[/color]


[color=rgb(71,]अब तक अपने पढ़ा:[/color]

चिड़ियाघर से निकलते-निकलते दोपहर हो गई थी और अब भूख लग आई थी इसलिए हमने अच्छे से रेस्टोरेंट में पेट भर कर खाना खाया| खाना खा कर अब बच्चे घर वापस जाना चाहते थे, लेकिन मैं बच्चों को अभी घर ले कर नहीं जाना चाहता था! "बेटा, आपको अंतरिक्ष के बारे में जानने की इतनी उत्सुकता है तो दिल्ली में एक जगह है: नेहरू प्लानटेरियम (planetarium)! वहाँ एक ख़ास तरह का शो दिखाते हैं जो आपको बहुत पसंद आएगा|" मेरी बात सुन बच्चों को ज़रा भी शक नहीं हुआ की मैं उन्हें घर आखिर क्यों नहीं ले जा रहा, वो तो घूमने की बात सुनकर ख़ुशी से कूद पड़े थे!

[color=rgb(97,]अब आगे:[/color]

मैं
बच्चों को ले कर नेहरू प्लैनेटेरियम पहुँचा और उन्हें वो ख़ास शो दिखाया| एक बड़े से गोल हॉल में हम सब बैठे थे और हॉल की छत पर हमें लेज़र लाइट्स तथा छोटे-छोटे बल्ब की रौशनी की सहायता से हमें हमारे सौर्यमंडल के बारे में जानकारी दी गई| नेहा को काफी कुछ समझ आ रहा था जबकि आयुष को कुछ ज्यादा समझ नहीं आया मगर वो इस अनोखे शो को देख कर बहुत खुश था| आयुष के मन में अंतरिक्ष को ले कर जिज्ञासा जन्म ले चुकी थी इसलिए अपनी जिज्ञासा की शान्ति हेतु ऑडिटोरियम से बाहर निकलते ही आयुष मुझसे तरह-तरह के सवाल पूछ रहा था| मैंने सबसे पहले घर जाने के लिए एक कैब बुक की और बच्चों की चोरी संगीता को फ़ोन कर घर में हो रही नेहा की सरप्राइज पार्टी का जायज़ा लिया|

जब कैब आ गई तो उसमें बैठते ही मैंने आयुष के मन में उठे सवालों का जवाब देना शुरू किया| आयुष के कुछ सवालों का जवाब नेहा देती थी और बाकी के सवालों का जवाब मैं देता था|

मुझे ये देख कर गर्व हो रहा था की एक और बात जो हम बाप-बेटे को जोड़ती थी वो थी अंतरिक्ष के बारे में जानने की हमारी रुचि| जब मैं छोटा था तो मुझे भी अंतरिक्ष के बारे में पढ़ना अच्छा लगता था, लेकिन जब बड़ा होने लगा और पढ़ाई कठिन होती गई तो ये रुचि कहीं गायब हो गई थी मगर मेरे बेटे ने अपने सवालों द्वारा आज फिर से मेरे मन में रुचि जगा दी थी!

बहरहाल, हम घर पहुँच चुके थे और दोनों बच्चे अपनी दादी जी तथा मम्मी को अपनी आज की दिनचर्या बताने को आतुर थे| उन्हें क्या पता की घर पर दोनों के लिए एक बहुत बड़ा सरप्राइज तैयार बैठा है!

मेरे प्लान के अनुसार मैंने जिस दिन बच्चों के स्कूल खुले थे उसी दिन नेहा की क्लास टीचर जी से नेहा के जन्मदिन पर दिए जाने वाले सरप्राइज की बात कर ली थी| नेहा की क्लास टीचर जी से मैंने बहुत अनुरोध कर सारे बच्चों के घर के नंबर ले लिए थे और सभी बच्चों के घर फ़ोन कर नेहा के जन्मदिन पर घर आने के लिए आमंत्रण दे दिया था| साथ ही मैंने नेहा की क्लास टीचर जी को भी बहुत जोर देकर नेहा के जन्मदिन की पार्टी में आने के लिए मना लिया था| आयुष के कुछ गिने-चुने दोस्त भी नेहा के जन्मदिन पर अपने घर वालों के साथ आने के लिए तैयार हो गए थे| आयुष की क्लास टीचर जी नहीं आ पाईं थीं क्योंकि वो व्यस्त थीं| इसके साथ ही अपने साले साहब यानी अनिल को भी नेहा के जन्मदिन वाले दिन सुबह-सुबह घर पहुँचने का आदेश मैं दे चूका था, तभी तो मैं बच्चों को सुबह-सुबह मंदिर ले जाने के बहाने से ले कर निकला था! मेरे और बच्चों के घर से निकलने के 10 मिनट बाद ही अनिल घर पहुँच गया था|

भाईसाहब (संगीता केबड़े भैया), मेरी सासु माँ, भाभी जी और विराट ने फ़ोन पर एक-एक कर नेहा से बात की तथा उसे जन्मदिन की बधाई दी| कहने की जर्रूरत तो नहीं पर उन्हें याद नहीं था की आज नेहा का जन्मदिन है, वो तो मैंने ही बच्चों की चोरी भाईसाहब को फ़ोन कर के बताया था| जब सब ने नेहा को आशीर्वाद दे दिया था तब जा कर सब ने आयुष से बात की वरना आयुष तो लगभग नाराज़ ही हो गया था की कोई उससे बात ही नहीं कर रहा!

उधर हमारे घर पर, हमारे घर की बड़ी सी छत पर बुफे टेबल लग चुका था| चाऊमीन, छोले भठूरे से ले कर नान, दाल-मखनी और बटर चिकन तक का सारा इंतज़ाम हो चुका था| पूरी छत को अच्छे से सजाने, गुब्बारे, लाइटें आदि लगाने का काम संतोष और अनिल की देख-रेख में अच्छे से सम्पन्न हो चुका था| बच्चों के बैठने के लिए कुर्सियाँ तथा टेबल सबसे ऊपर वाली छत पर लगाए जा चुके थे और बड़ों के लिए बैठने का इंतज़ाम नीचे वाली छत पर किया जा चुका था|

हमारी छत इतनी बड़ी नहीं थी की Dj की व्यवस्था की जा सके क्योंकि आधे से ज्यादा छत तो बुफे और टेबल-कुर्सियों ने घेर ली थी इसलिए हमें एक काम चलाऊ Dj चाहिए था जो की थोड़ी सी जगह में अपना काम कर सके! तो Dj का काम दिषु ने अपने सर लिया, उसने दोनों छतों पर स्पीकर लगा दिए थे तथा बच्चों की पसंद के अनुसार गानों की लिस्ट बना ली थी|

सबसे जर्रूरी चीज़ यानी की जन्मदिन का केक मैंने तीन मंजिला बनवाया था| ये मेरा बचपन से एक सपना था की एक बार तो मैं एक बहु-मंजिला केक काटूँ, अब मेरी तो उम्र केक काटने वाली थी नहीं इसलिए मैंने अपना ये सपना नेहा के जरिये पूरा करने की सोची थी|

इन सब के अलावा दोनों बच्चों के लिए मैंने ख़ास कपड़े बनवाये थे| आयुष को क्रिश बहुत पसंद था इसलिए उसके लिए मैंने उसी के नाप का क्रिश का सूट बनवाया था| वहीं नेहा जब भी अपनी दादी जी को साडी पहने देखती तो वो अपनी दादी जी से कहती की उसे भी साडी पहननी है| तब माँ, नेहा को प्यार से समझाती कि उसके नाप की साडी नहीं मिलती| अपनी बेटी की यही ख्वाइश पूरी करने के लिए मैंने ख़ास नेहा के माप की एक georgette की साडी बनवाई जिस पर चिकनकारी जैसी कारीगिरी की गई थी| माँ के लिए हम मियाँ-बीवी ने मिलकर साडी पसंद की थी, माँ ने बहुत मना किया मगर जब संगीता ने आयुष की तरह अपना निचला होंठ फुलाया तो माँ एकदम से पिघल गईं तथा साडी के लिए मान गईं|

अब समय आ गया था मेरे इस सरप्राइज को उजागर करने का मगर जरा अलग अंदाज़ में! हम तीनों बाप-बेटा-बेटी ने घर के प्रमुख द्वार पर प्रवेश किया था की सीढ़ी चढ़ने के नाम से हाय-तौबा मचाते हुए आयुष बोला; "पापा जी, हमका कनिया (गोदी) लेइ लो, हम थक गेन!" आयुष के मुँह से गाँव की भाषा सुन कर मैं और नेहा जोर से हँस पड़े! आज पहलीबार आयुष ने मुझसे गाँव की भाषा में बात की तो ओर मुझे ये बोली सुन आयुष पर अधिक प्यार आ रहा था! मैंने आयुष को गोदी ले लिया तथा नेहा को आगे सीढ़ी चढ़ने को कहा| जैसे ही नेहा सीढ़ी चढ़ने लगी मैंने फ़ट से अपना फ़ोन निकाला और संगीता को मिस कॉल मार दी जिससे वो सभी मेहमानों को सतर्क कर दे की हमारी बर्थडे गर्ल यानी की नेहा पहुँचने वाली है|

नेहा आगे-आगे सीढ़ी चढ़ रही थी और मैं नेहा के ठीक पीछे आयुष को गोदी में लिए हुए सीढ़ी चढ़ रहा था| हमारे घर में प्रवेश करने से पहले लोहे की एक बड़ी सी ग्रिल आती है, उसे पार कर सामने की ओर जो दरवाजा है वो घर में खुलता है तथा बाईं ओर का दरवाजा छत पर खुलता है| नेहा ने जब लोहे की ग्रिल खोली तो उसे घर के दरवाजे पर ताला नज़र आया, नेहा को लगा की उसकी दादी जी और मम्मी छत पर बैठे होंगे इसलिए नेहा सीधा छत की ओर मुड़ गई| मैंने भी जल्दी से आयुष को गोद से उतारा तथा नेहा के एकदम पीछे खड़ा हो गया| अभी नेहा ने छत का दरवाजा खोला ही था की छत पर मौजूद सभी लोग तथा नेहा के पीछे खड़ा मैं, हम सब बड़ी जोर से एकसाथ चिलाये; "SURPRISE!!!!!"

ये शोर सुन और अपनी आँखों के सामने सब लोगों को देख नेहा चौंक गई! उस बेचारी को न तो यक़ीन हो रहा था की उसके जन्मदिन पर इन सारे लोग आये हैं और न ही ये समझ आ रहा था की ये सब आखिर हुआ कैसे इसलिए नेहा मेरी ओर हैरत भरी नजरों से देख रही थी| मैं फ़ौरन घुटने टेक कर बैठा और नेहा के चेहरे को अपने हाथों में लेते हुए बोला; "आज मेरी लाड़ली बेटी का जन्मदिन है तो मैं ऐसे कोरे-कोरे आपका जन्मदिन थोड़े ही मनाता?!" मेरी बात सुन नेहा को यक़ीन होने लगा था की सब लोग यहाँ उसी के जन्मदिन की ख़ुशी मनाने आये हैं, तभी तो नेहा के चेहरे पर ख़ुशी अपनी छटा बिखेर रही थी| "आपको क्या लगा की आपका पापा इतने कंजूस है की आपको 2-3 जगह घुमायेगा, बाहर से खाना खिलाया और हो गया आपका जन्मदिन मनाना! अरे आपके पापा ने तो आज के दिन के लिए 1 महीना पहले से सारी तैयारियाँ कर रखी थीं!" नेहा जानती थी की मैं उससे सबसे ज्यादा प्यार करता हूँ और मैं उसके लिए कुछ भी कर सकता हूँ, लेकिन नेहा के जन्मदिन की जो तैयारियाँ मैंने की थीं उसकी अपेक्षा नेहा ने कभी नहीं की थी! शायद यही कारण थी की इतनी सारी खुशियाँ एक साथ पा नेहा का मन भर आया और उसकी आँखों में ख़ुशी के आँसूँ छलक आये|

"Awwww मेरा बच्चा! रोते नहीं! आज मेरी गुड़िया का जन्मदिन है और आज मेरी गुड़िया एक बूँद आँसूँ नहीं बहायेगी वरना इतने सारे लोग जो आये हैं वो क्या कहेंगे?!" मैंने नेहा के आँसूँ पोछे और उसके माथे को चूमा| नेहा के चेहरे पर प्यारी सी मुस्कान छलक आई थी मगर उसके दिल में थोड़ा सा डर अब भी था| दरअसल, अपने जन्मदिन पर इतने सारे लोगों के आने की कामना नेहा ने कभी नहीं की थी इसलिए अपनी आँखों के सामने इतने सारे लोगों को देख नेहा थोड़ा घबरा रही थी की वो कैसे इतने सारे लोगों का सामना करेगी?! मैंने नेहा के मन में पनपे इस डर को महसूस कर लिया था क्योंकि आज भी मैं इस डर से जूझता हूँ|

मैंने आयुष को अपने पास बुलाया, वो बेचारा अभी तक चुपचाप खड़ा हुआ सब देख-सुन रहा था| मैंने नेहा का हाथ पकड़ा और नेहा को आयुष का हाथ पकड़ने को कहा| फिर हम तीनों बाप-बेटा-बेटी ने एकसाथ छत पर प्रवेश किया| मैं बच्चों के साथ इसलिए था क्योंकि मुझे भी अपने इस डर का सामना बच्चों के साथ मिल कर करना था|

जैसे ही हम तीनों बाप-बेटा-बेटी छत में दाखिल हुए हमें सबसे पहले अनिल मिला| अनिल ने नेहा को गोदी में उठाते हुए उसके मस्तक को चूमते हुए जन्मदिन की बधाई दी और नेहा ने "थैंक यू छोटे मामा जी" कहा| जब अनिल ने नेहा को गोदी से उतारा तो आयुष भी गोदी लिए जाने के लिए अपने हाथ खोल कर खड़ा हो गया| अनिल ने आयुष को भी गोद में ले कर थोड़ा लाड किया और आयुष के मस्तक को चूम आशीर्वाद दिया|

फिर हम तीनों बाप-बेटा-बेटी पहुँचे मिश्रा अंकल जी के पास जो की अपने पूरे कुटुम्भ के साथ आये थे| मैंने अंकल जी और आंटी जी के पाँव छू कर आशीर्वाद लिया, मेरी देखा देखि बच्चों ने भी अपने दादा-दादी जी के पाँव छू कर आशीर्वाद लिया| मुझे तो बस आशीर्वाद मिला था मगर दोनों बच्चों को मिश्रा अंकल जी, आंटी जी, उनके दमाद और बेटी द्वारा खूब लाड-प्यार मिला|

फिर आगे आया दिषु और उसने एकदम से दोनों बच्चों को गोदी में उठा लिया| अपने चाचू की गोदी में जा कर दोनों बच्चे ख़ुशी से चहक रहे थे और उन कुछ पलों के लिए नेहा के मन से डर भाग गया था| दिषु से प्यार पा कर हम दिषु के माता-पिता के पास पहुँचे और वहाँ भी बच्चों को आशीर्वाद तथा लाड-प्यार मिला|

फिर हम तीनों बाप-बेटा-बेटी पहुँचे बच्चो के एक झुण्ड के पास| नेहा की क्लास के सारे बच्चे आये थे तथा एक झुण्ड बना कर खड़े थे| इस झुण्ड में 30 बच्चे थे और नेहा को देखते ही झुण्ड ने नेहा को चारों ओर से घेर लिया और सभी ने एक-एक कर नेहा को "हैप्पी बर्थडे नेहा" कहा| मैं और आयुष झुण्ड के बाहर रह गए थे इसलिए मैं आयुष का हाथ पकड़ उसे उसकी मम्मी के पास ले आया जहाँ की सभी स्त्रियों का झुण्ड बैठा था|

माँ, संगीता, आयुष की ख़ास दोस्त यानी की उसकी गर्लफ्रेंड की मम्मी तथा आयुष के परम मित्र की दादी जी एक साथ बैठे थे| जैसे ही आयुष ने अपनी गर्लफ्रेंड की मम्मी को देखा वो समझ गया की उसकी गर्लफ्रेंड भी अवश्य आई होगी! अब आयुष खुद तो नहीं पूछ सकता था की उसकी गर्लफ्रेंड कहाँ है इसलिए आयुष अपनी टिमटिमाती आँखों से मुझे देखने लगा की मैं ही उसकी सहयता करूँ| "आयुष की मम्मी, आयुष के दोस्त कहाँ हैं?" जैसे ही मैंने संगीता से ये सवाल पुछा वो एकदम से हँस पड़ी, क्योंकि वो जानती थी की ये सवाल मैंने आयुष की ओर से पुछा है| वहीं आयुष भी समझदार था, वो जानता था की उसकी मम्मी क्यों हँस रही है इसलिए आयुष अपनी नाक पर प्यार भरा गुस्सा लिए अपनी मम्मी को घूरने लगा ताकि वो उसका मज़ाक उड़ाना बंद करे| आखिर संगीता को आयुष पर दया आ गई और उसने बताया की आयुष के सब दोस्त नेहा के लिए तोहफा लेने नेहा की क्लास टीचर जी के साथ मार्किट गए हैं| इधर मैंने आयुष की गर्लफ्रेंड की मम्मी तथा आयुष के परम् मित्र की दादी जी को हाथ जोड़ कर धन्यवाद दिया की वो समय निकाल कर हमारी ख़ुशी में सम्मिलित होने आईं| मेरी देखा-देखि आयुष ने भी उनके पाँव छू कर आशीर्वाद लिया तथा अपनी दादी जी की गोदी में बैठ कर अपने दोस्तों के आने का इंतज़ार करने लगा| तभी नेहा अपने दोस्तों से मिल कर मेरे पास आई और सभी के पाँव छू कर आशीर्वाद लेने लगी| इतने में नेहा की क्लास टीचर जी और आयुष के सभी दोस्त आ गए| नेहा ने फौरन अपनी क्लास टीचर जी के पाँव छू कर आशीर्वाद लिया और उन्होंने भी नेहा को आशीर्वाद देते हुए जन्मदिन की बधाई दी| फिर बारी आई आयुष के दोस्तों की और उन्होंने नेहा को घेर कर " हैप्पी बर्थडे दीदी" कहना शुरू कर दिया तथा नेहा ने सभी को मुस्कुराते हुए "थैंक यू" कहा|

समय काफी हो रहा था इसलिए नेहा को बच्चों के साथ छोड़ मैं अनिल, दिषु और संतोष से केक के बारे में पूछने लगा| नेहा के जन्मदिन का केक अभी तक नहीं आया था इसलिए मैंने अपनी गाडी की चाभी अनिल को दी तथा उसे और संतोष को खुद जा कर केक लाने को कहा| जब तक केक आता तब तक हम सब को तैयार होना था इसलिए मैंने इशारे से संगीता को दोनों बच्चों को और खुद तैयार होने को कहा|

आज का दिन मेरी बिटिया का दिन था और मैं नहीं चाहता था की इस दिन किसी भी इंतज़ाम में कोई भी कमी हो, अतः मैं खुद सारे इंतज़ाम का जायजा लेने लगा| जब मैं सभी इंतज़ाम का जायजा ले रहा था तभी पता चला की बच्चों के मनोरंजन के लिए मैंने एक जादूगर को बुलाया था जो की अभी तक आया ही नहीं था| मैंने फोन कर जादूगर के मैनेजर से पुछा तो पता चला की जादूगर साहब थोड़ी देर में आ रहे हैं| मैंने सोचा जबतक वो आएंगे तब तक हम केक ही काट लेंगे|

मैं कैटरिंग वाले से खाने के बारे में पूछ रहा था की तभी साइट से सरयू का फ़ोन आया और उसने बताया की हमारा चलता हुआ काम दो मिस्त्रियों की लड़ाई के कारण बंद हो गया है! ये सुन कर मुझे बहुत गुस्सा आया और मैं फ़ोन ले कर एक कोने में गया तथा उस मिस्त्री को चार गालियाँ सुनाई; "सुन बे भोस्डिके, तेरा हिसाब कल मुझसे ले जाइयो और आज के बाद तू या तेरा ये साथी मेरी साइट के आस-पास दिखा न तो तेरी गांड फाड़ दूँगा!" इतना कह मैंने फ़ोन काट दिया तथा अपना गुस्सा शांत करने लगा, आज मेरी बिटिया का जन्मदिन था और मैं आज का दिन मेरे गुस्से के कारण खराब नहीं करना चाहता था| शुक्र है की मैं सबसे दूर खड़ा हो कर बात कर रहा था और किसी ने मेरी बात नहीं सुनी थी वरना रंग में भंग पड़ जाता|

उधर नेहा और आयुष दोनों तैयार हो चुके थे तथा दोनों साथ-साथ बाहर छत पर आये| आयुष अपनी काले रंग की क्रिश वाली ड्रेस में बिलकुल छोटा क्रिश लग रहा था| वहीं गुलाबी रंग की साडी पहने हुए तथा थोड़ा मेक-अप किये हुए नेहा किसी राजकुमारी से कम नहीं लग रही थी| दोनों बच्चों को यूँ सजा-सँवरा देख सभी लोग बड़े खुश थे तथा बच्चों की तारीफ करने में लगे थे| वहीं मेरे बच्चे शर्माते हुए भीड़ में मुझे ढूँढ रहे थे| मैं पीछे से बच्चों के पास पहुँचा तो दोनों बच्चे मुझसे लिपट गए और ख़ुशी से चहकते हुए बोले;

आयुष: पापा जी, ये तो मेरे फेवरेट सुपरहीरो की ड्रेस है!

आयुष ने मेरे गाल पर पप्पी देते हुए कहा|

मैं: आप हमेशा कहते थे न की आपको क्रिश अच्छा लगता है इसलिए मैंने आपके लिए ये ड्रेस बनवाई|

मैंने आयुष के गाल चूमते हुए कहा| आयुष अपनी इस सुपरहीरो वाली ड्रेस में बहुत जच रहा था और उसकी ख़ुशी उसके चेहरे से झलक रही थी|

मैं: मेरा बेटा आज बहुत हैंडसम लग रहा है!

मैंने आयुष को आशीर्वाद देते हुए कहा तो आयुष शर्म से लालम-लाल हो गया|

नेहा: पापा जी, आप ने मेरे लिए साडी बनवाई?

नेहा शर्माते हुए बोली|

मैं: मेरी बिटिया अगर मुझे नहीं बताएगी की उसे साडी पहनने का मन है तो क्या मुझे...अपनी बिटिया के पापा को पता नहीं चलेगा?

मेरी बात सुन नेहा के चेहरे पर गर्वपूर्ण मुस्कान आ गई की उसके पापा जी बिना उसके कुछ कहे ही उसकी सारी खुशियाँ पूरी कर देते हैं|

मैं: मेरी बिटिया है न.आज बहुत सुन्दर लग रही है...बिलकुल कहानियों वाली राजकुमारी जैसी!

मैंने नेहा के माथे को चूमते हुए उसकी तारीफ की| अपनी तारीफ सुन नेहा ऐसे शरमाई...ऐसे शरमाई की क्या कहूँ! मैंने नेहा को शर्म से बचाने के लिए उसे अपने गले लगा लिया तथा उसे थोड़ा लाड-प्यार करने लगा|

वहीं बच्चों के पीछे खड़ी मेरी पत्नी संगीता को मेरे द्वारा खुद को नज़रअंदाज़ किया जाना रास ना आया और वो बुदबुदाते हुए बोली; "सारा लाड-प्यार इन दोनों शैतानों को ही कर लो, मेरे लिए कुछ न बचाना! इतना सज-धज कर खड़ी हूँ लेकिन जनाब का सारा ध्यान तो बस अपने बच्चों पर ही है!" मैंने संगीता की बात सुन ली थी इसलिए मैं उठ कर खड़ा हुआ और संगीता को नज़रभर कर देखा| संगीता ने अपनी पसंद की एक साडी खरीदी थी जिसके बारे में उसने मुझे कुछ नहीं बताया था क्योकि वो मुझे सरप्राइज देना चाहती थी| सुनहरे रंग की साडी और उस पर की गई कारीगरी में मेरी पत्नी बहुत सुन्दर लग रही थी| फिर आज तो संगीता ने हल्का-हल्का मेक-अप भी किया था तथा कमर में मेरे द्वारा दी हुई करधनी भी पहनी थी| बालों का जुड़ा बना कर उसमें संगीता ने गजरा भी बाँधा हुआ था| संगीता की सुंदरता देख मैं उसकी तारीफ करने ही वाला था की संगीता ने मुझे प्यार से डाँट दिया; "बस-बस! जा कर जल्दी से तैयार हो कर आओ, केक भी काटना है!" संगीता की प्यारी सी डाँट सुन मैं मुस्कुराये बिना न रह पाया और जल्दी से तैयार होने चला गया|

अब सबके लिए कपड़े खरीदने वाला मैं, अपने लिए कपड़े ख़रीदना ही भूल गया था मगर मेरी पत्नी नहीं भूली थी| शर्ट-पैंट और आसमानी रंग का ब्लैज़र मेरी पत्नी ने मेरे लिए पहले ही खरीद रखा था, जब मैं ये कपड़े पहन कर बाहर आया तो दिषु ने एकदम से गाना लगा दिया; 'अज़ीमोंशान शहंशाह'! ये गाना जब भी हम दोनों दोस्त सुनते थे तो हमारी हँसी छूट जाती थी इसलिए जैसे ही दिषु ने ये गाना बजाया हम दोनों दोस्त जोर से हँस पड़े! दिषु ने मेरे कपड़ों की तारीफ की तो मैंने संगीता की तरफ इशारा करते हुए कहा; "तेरी भाभी ने पसंद किया है!" ये सुनते ही संगीता के चेहरे पर गर्वपूर्ण मुस्कान फ़ैल गई| उधर दिषु भी कम नहीं था, वो भी संगीता की तारीफ करते हुए बोला; "वो तो मुझे पता ही है की इतना अच्छा ब्लैज़र भाभी जी ने ही पसंद किया होगा, वरना तू तो वही घिसा-पिटा काले रंग का ब्लैज़र पहनता!" दिषु भी संगीता की तारीफ करने लग जिससे संगीता शर्माने लगी|
[color=rgb(163,]जारी रहेगा भाग - 9(3) में...[/color]
 

[color=rgb(251,]इकत्तीसवाँ अध्याय: घर संसार[/color]
[color=rgb(44,]भाग - 9(3)[/color]


[color=rgb(71,]अब तक अपने पढ़ा:[/color]

सबके लिए कपड़े खरीदने वाला मैं, अपने लिए कपड़े ख़रीदना ही भूल गया था मगर मेरी पत्नी नहीं भूली थी| शर्ट-पैंट और आसमानी रंग का ब्लैज़र मेरी पत्नी ने मेरे लिए पहले ही खरीद रखा था, जब मैं ये कपड़े पहन कर बाहर आया तो दिषु ने एकदम से गाना लगा दिया; 'अज़ीमोंशान शहंशाह'! ये गाना जब भी हम दोनों दोस्त सुनते थे तो हमारी हँसी छूट जाती थी इसलिए जैसे ही दिषु ने ये गाना बजाया हम दोनों दोस्त जोर से हँस पड़े! दिषु ने मेरे कपड़ों की तारीफ की तो मैंने संगीता की तरफ इशारा करते हुए कहा; "तेरी भाभी ने पसंद किया है!" ये सुनते ही संगीता के चेहरे पर गर्वपूर्ण मुस्कान फ़ैल गई| उधर दिषु भी कम नहीं था, वो भी संगीता की तारीफ करते हुए बोला; "वो तो मुझे पता ही है की इतना अच्छा ब्लैज़र भाभी जी ने ही पसंद किया होगा, वरना तू तो वही घिसा-पिटा काले रंग का ब्लैज़र पहनता!" दिषु भी संगीता की तारीफ करने लग जिससे संगीता शर्माने लगी|

[color=rgb(97,]अब आगे:[/color]

अब
केक काटने का समय हो रहा था इसलिए अनिल और संतोष मिलकर नेहा का बहुमंजिला केक उठा कर लाये तथा छत के बीचों-बीच लगे टेबल पर रख दिया| इतना बड़ा केक देख कर सभी बच्चे दंग रह गए थे! तभी आयुष का best friend बोला; "अंकल जी, ये तो कुतुबमीनार जैसा लम्बा केक है!" उस बच्चे की बात सुन सभी ने जोर का ठहाका लगाया|

वहीं इतना बड़ा केक देख मेरी बिटिया रानी बहुत खुश थी| नेहा मेरी कमर के इर्द-गिर्द अपने हाथ लपेट कर लिपट गई और ख़ुशी से चहकते हुए; "थैंक यू पापा जी" बोली|

टेबल पर केक रखने से केक की ऊँचाई दोनों बच्चों से भी ऊँची थी| ये देख मैंने नेहा के लिए एक कुर्सी मँगाई, जिस पर खड़ी हो कर नेहा आराम से केक काट सके| वहीं बेचारा आयुष गर्दन ऊपर कर केक को देख रहा था इसलिए मैंने आयुष को गोदी में उठा लिया जिससे आयुष को केक ठीक से दिखाई देने लगा| अब जाहिर सी बात है की इतना बड़ा केक देख कर आयुष के मुँह में पानी आना ही था इसलिए वो मेरे कान में खुसफुसाते हुए बोला; "पापा जी, ये सारा केक मैं खाऊँगा!" आयुष ने मज़ाक करते हुए कहा| आयुष की बात सुन मेरी हँसी छूट गई और मेरे साथ-साथ आयुष भी हँसने लगा| सबकी नज़र हम बाप-बेटे पर टिकी थी की भला हम दोनों क्यों हँस रहे हैं| अब मुझे कुछ तो जवाब देना था इसलिए मैंने आयुष की किरकिरी होने से बचाने के लिए बात बनाते हुए कहा; "आयुष कह रहा है की जल्दी केक काटो, भूख लगी है!" मेरी बात सुन सबसे पहले दिषु बोला; "ये तो सही बात है! यहाँ सबसे समझदार बस आयुष है जिसे सबकी भूख की पड़ी है वरना मानु को तो कोई परवाह ही नहीं!" दिषु की बात ने सभी को हँसा दिया था और वहीं आयुष को गर्व हो रहा था की मैंने उसकी किरकिरी होने से बचा लिया था|

इधर, नेहा कुर्सी पर खड़ी थी और केक काटने को तैयार थी मगर उसे डर लग रहा था की वो केक काटे कैसे? कहीं अगर केक गलत काट गया तो सब हँसेंगे?! इसलिए नेहा आस भरी नज़रों से मेरी ओर देखने लगी की मैं उसकी सहायता करूँ| मैं आयुष को गोदी लिए हुए नेहा के बगल में खड़ा हुआ और उसकी पीठ पर अपना हाथ रख उसे हिम्मत दी| मेरे बराबर खड़े होने से नेहा में आत्मविश्वास जागने लगा था और वो केक काटने के लिए तैयार थी|

मैंने दिषु को इशारा किया तो उसने स्पीकर पर 'हैप्पी बर्थडे टू यू' वाला गाना बजाय| वहीं मैंने नेहा को मोमबत्तियाँ बुझाने का इशारा किया तो नेहा ने तुरंत बीचों-बीच की मोमबत्ती छोड़कर सारी मोमबत्तियाँ बुझा दी|

(ये हमारे घर का एक रिवाज़ है की हम बीचों-बीच की मोमबत्ती को छोड़कर सारी मोमबत्तियाँ बुझाते हैं| मुझे नहीं पता की इस रिवाज़ के पीछे क्या तथ्य है, मुझे तो बस केक खाने से मतलब होता था!)

खैर, नेहा के मोमबत्तियाँ बुझाते ही हम सब ने ताली बजाते हुए 'हैप्पी बर्थडे टू नेहा' गाना गाया| सबसे ज्यादा जोश में तो आयुष था जो की मेरी गोदी में चढ़ा हुआ था और जोर से "हैप्पी बर्थडे टू यू दीदी" गाये रहा था| आयुष छोटा था मगर समझदार बहुत था, उसने नेहा के मोमबत्तियाँ बुझाते समय ज़रा भी दखलंदाजी नहीं की थी, वो तो बस ताली बजा कर अपनी ख़ुशी व्यक्त करने में लगा था|

उधर हम सभी को यूँ "हैप्पी बर्थडे टू यू नेहा" गाना गाते देख नेहा बहुत खुश थी और उसका ख़ुशी से खिला हुआ चेहरा दमक रहा था तथा मैं अपनी बेटी को यूँ ख़ुशी से दमकता हुआ देख मन ही मन भगवान जी से उसके अच्छे भविष्य की प्रार्थना कर रहा था|

मोमबत्तियाँ तो नेहा ने बुझा दी थीं, अब बारी थी केक काटने की और इस कार्य में नेहा को मेरी मदद की जर्रूरत थी| मैंने टेबल पर पड़ा केक काटने का चाक़ू उठाया और आयुष के दाहिने हाथ में दिया| आयुष को लगता था की केक सिर्फ वही काटता है जिसका जन्मदिन होता है इसलिए आयुष के चेहरे केक काटने वाला चाक़ू पकड़ने की झिझक दिख रही थी| मैंने आयुष के चेहरे पर आई ये झिझक नहीं देखि थी क्योंकि मेरा ध्यान इस वक़्त नेहा पर था| मैंने नेहा को केक काटने वाला चाक़ू पकड़ने का इशारा किया तो नेहा ने आयुष के हाथ के ऊपर ही अपना हाथ रखते हुए चाक़ू पकड़ लिया| अब सबसे अंत में मैंने अपना दाहिना हाथ दोनों बच्चों के हाथ पर रख चाक़ू पकड़ा और हम तीनों ने मिलकर केक काटा| चूँकि मेरा हाथ सबसे ऊपर था इसलिए मैं चाक़ू को सही दिशा दिखा कर केक सही से काट रहा था|

केक काट कर पहला टुकड़ा नेहा ने अपनी दादी जी को खिलाया और उनका आशीर्वाद लिया| फिर बारी आई संगीता की जो की बड़ी बेसब्री से केक खाने का इंतज़ार कर रही थी! संगीता के चेहरे पर ये बचपना देख हर कोई मुस्कुरा रहा था! संगीता को भी जब अपने बचपने का एहसास हुआ तो वो एकदम से शर्मा गई और माँ के पीछे जा कर छुप गई! "मम्मी?" नेहा ने संगीता को पुकारा और अपने हाथ से केक खिलाया| संगीता के शर्माने के चक्कर में समय लग रहा था तो आयुष बेचारा बेसब्र जपो रहा था|

"दीदी...पापा जी को भी केक खिलाओ!" आयुष जल्दी मचाते हुए बोला| आयुष के जल्दी मचाने का कारण था की आयुष को भी केक खाना था और जब तक मैं केक नहीं खा लेता उस बेचारे को केक खाने को नहीं मिलता! नेहा केक का तीसरा टुकड़ा ले कर मेरे पास आई तो मैंने थोड़ा सा केक खाया और बाकी का केक नेहा को खिला दिया| केक का चौथा टुकड़ा नेहा ने जानबूझ कर बड़ा काटा और आयुष के पास पहुँची| आयुष अपना मुँह जितना बड़ा खोल सकता था उतना बड़ा खोल कर उसने केक खाया| जितना केक आयुष नहीं खा पाया वो केक आयुष ने अपनी बहन नेहा को खिलाया तथा सबके सामने नेहा के पाँव छू कर आशीर्वाद लिया| एक छोटे से बच्चे को अपनी दीदी के पाँव छूते देख सभी बहुत खुश थे और बच्चों को हमारे द्वारा दिए गए नेक संस्कारों के लिए हमारी तारीफ कर रहे थे|

केक काटने के बाद कैटरिंग करने वाले ने बुफे चालु कर दिया था| वहीं माँ और संगीता सभी के लिए केक काटकर सभी के लिए प्लेट में परोस रहे थे तथा हम बाप-बेटा-बेटी सभी को वो प्लेटें खुद परोस रहे थे| नेहा एक प्लेट ले कर अपने छोटे मामा जी के पास पहुँची और अपने हाथ से अनिल को केक खिलाने लगी| दरअसल जब केक कट रहा था तब अनिल जादूगर को लेने गया था इसलिए जैसे ही अनिल आया नेहा उसे खुद अपने हाथ से केक खिलाने चल पड़ी|

वहीं आयुष भी केक की एक प्लेट ले आकर संतोष के पास पहुँचा और उसे अपने हाथ से केक खिलाया| "मेरा केक कहाँ है भई?" दिषु अपनी कमर पर दोनों हाथ रखे हुए पूछने लगा| "इधर है चाचू!" नेहा केक की प्लेट उठाते हुए चिल्लाई और आयुष को अपने साथ ले कर अपने दिषु चाचू के पास पहुँची| फिर दोनों बच्चों ने मिलकर अपने दिषु चाचू को अपने हाथों से केक खिलाया| ये दृश्य देख संगीता चुटकी लेते हुए बोली; "देर से ही सही मगर दिषु भैया को अपने दोनों भतीजा-भतीजी के हाथों केक खाने को मिला, भई आपकी तो चाँदी हो गई!" संगीता की बात सुन दिषु हँस पड़ा और दोनों बच्चों को अपने गले लगा लिया|

सभी बच्चे और मेहमान केक खा रहे थे और ठीक तभी जादूगर ने अपना खेल शुरू किया| कभी जादूगर अपनी हाथ की सफाई से हवा में से कागज के फूल निकालता, तो कभी सिक्के को हवा में गायब करता, तो कभी जेब से रंग-बिरंगे रुमाल की बनी हुई लड़ी निकालता! बच्चे इस जादूगर के खेल को देख कर बहुत खुश थे और ख़ुशी से तालियाँ बजा रहे थे| अपनी अंतिम ट्रिक के लिए जादूगर ने बर्थडे गर्ल यानी नेहा को बुलाया| जादूगर ने अपने सर पर पहनी बड़ी सी टोपी उतारी और नेहा को दिखाते हुए बोला; "आप मेरी टोपी में हाथ डाल कर देखो की इसमें कुछ है तो नहीं?" नेहा ने ठीक वैसा ही किया और सर न में हिला कर जादूगर से बोली; "इसमें कुछ नहीं है अंकल जी|" नेहा की बात सुन जादूगर ने अपना हाथ हवा में हिलाया और कुछ मंत्र पढ़ने लगा| सभी लोग बड़े उत्सुक हो कर जादूगर को देख रहे थे और मन ही मन सोच रहे थे की अब क्या होने वाला है| कुछ सेकंड बाद जादूगर ने अपनी टोपी के भीतर हाथ डाला और उसमें से एक सफ़ेद रंग का खरगोश निकाला और नेहा को दिया| खरगोश को देख सभी लोग हैरान हुए और सभी ने तालियाँ बजानी शुरू कर दीं|

उधर नेहा उस खरगोश को देख कर बड़ी खुश हुई और सभी को वो खरगोश दिखाने लगी| तभी आयुष अपनी कुर्सी से उठा और अपनी दीदी के पास दौड़ गया तथा नेहा के हाथों से उस सफ़ेद खरगोश ले कर अपनी गर्लफ्रेंड को ला कर दिखाने लगा| सभी बच्चों का मन अब उस सफ़ेद खरगोश में लग गया था इसलिए सभी बच्चों ने उस नन्हे से जानवर को घेर लिया| कुछ देर पहले आने जन्मदिन पर आये इतने सारे लोगों को देख जो हाल नेहा का था वही हाल अब उस बेचारे जानवर का था!

जादूगर का कार्यक्रम खत्म हुआ तो वो अपना सफ़ेद खरगोश तथा सभी बच्चों से विदा ले कर चल दिया| मैंने सभी बच्चों की एक रेल गाडी बनाई तथा उन्हें ऊपर वाली छत पर ले आया| "बच्चों, आप सभी यहाँ आराम से बैठो और बातें करो, आप सभी का खाना ऊपर आ रहा है|" मेरी बात सुन सभी बच्चों ने कुर्सियाँ पकड़ ली और अपने-अपने झुण्ड बना कर बातें करने लगे| आयुष और उसकी गर्लफ्रेंड के लिए मैंने सबसे कोने का एक टेबल 'रिज़र्व' कर रखा था, मैंने आयुष को वो टेबल दिखाया तो आयुष समझ गया की उसके लिए ये ख़ास व्यवस्था मैंने ही की है! "थैंक यू पापा जी!" आयुष धीमी आवाज़ में बोला और अपनी गर्लफ्रेंड के साथ जा कर उस टेबल पर बैठ गया| बच्चों की निगरानी करने के लिए मैंने संतोष और अनिल को ऊपर ही बिठा दिया था| अनिल ने जैसे ही एक टेबल पर आयुष और उसकी गर्लफ्रेंड को अकेले बैठे देखा वो मुझसे बोला; "जीजू, ये क्या हो रहा है? ये आयुष की गर्लफ्रेंड है क्या?" अनिल हँसते हुए बोला|

"इन दोनों 'लव बर्ड्स' (love birds) का ख़ास ख्याल रखना की इन्हें कोई तंग न करने पाए|" मैंने अनिल को आँख मारते हुए कहा तो अनिल जोर से हँस पड़ा| ऊपर वाली छत से नीचे आकर मैंने कैटरर वाले को ऊपर खाना पहुँचाने को कहा तो उसने फौरन अपने 3 लड़कों को ऊपर छत पर बैठे बच्चों तक खाना पहुँचाने में लगा दिया|

इधर नीचे वाली छत पर दिषु ने अपना Dj वाला काम सँभाला और गाने बजाने शुरू कर दिए| बाकी मेहमानों ने भी बुफे का आनंद लेना शुरू कर दिया था, सभी अपनी प्लेट ले कर अपनी पसंद का खाना खाने में लगे थे| संगीता ने जब मुझे देखा तो मुझे गुपचुप इशारे से अपने पास बुलाया| मैं सभी से नज़र बचाते हुए उसके पास पहुँचा तो उसने एकदम से मेरा हाथ पकड़ मुझे अपने पास बिठा लिया| संगीता की पकड़ कठोर थी जो की उसके मन में आये मीठे से गुस्से को दर्शा रही थी| दरअसल, सुबह से मैंने उसे ज़रा भी समय नहीं दिया था, ऊपर से संगीता जो इतना सजी-धजी बैठी थी मैंने उसकी ज़रा भी तारीफ नहीं की थी| मैं अब और संगीता को गुस्सा नहीं दिलाना चाहता था इसलिए मैं उससे एकदम सट कर बैठ गया|

अब संगीता की एक ख़ास कमजोरी है, वो ये की वो मुझसे कभी नाराज़ नहीं रह सकती! संगीता के मन में मेरे द्वारा नज़रअंदाज़ किये जाने का गुस्सा तो था मगर वो अपना ये गुस्सा व्यक्त नहीं कर पा रही थी| उसने मुझे अपने पास जबरदस्ती बिठा तो लिया मगर आगे वो कहे क्या, ये उसे समझ नहीं आ रहा था| संगीता को मनाने के लिए अब मुझे ही कुछ करना था इसलिए मैं उठा और दिषु को समझाने लगा की उसे आगे कौन-कौन से गाने बजाने हैं|

इधर जैसे ही मैं संगीता के पास से उठा वो एकदम से गुस्सा हो गई और अपनी नाक पर प्यारा सा गुस्सा लिए हुए सीधे कुछ खाने के लिए उठ खड़ी हुई| संगीता को जब भी मुझ पर गुस्सा अत है वो सीधा कुछ खाने की सोचती है! दिषु ने संगीता को मुझसे नाराज़ होते हुए देख लिया था इसलिए मामले की नज़ाक़त को समझते हुए दिषु ने तुरंत गाना लगा दिया और मैं गाने के बोल गाते हुए किसी हीरो की तरह संगीता के पास आया;

"हाँ शहर में दूसरी कोई [वह वह हाय]

नहीं कोई तुझसी बिलल्लो [अरि बिल्लो बोल बिल्लो]

जो भी देखे यही पूछे [क्या पूछे]

है यह किसकी बिल्लो?" ये पंक्तियाँ गाते हुए मैंने संगीता की तारीफ करनी शुरू की;

"हर अदा तेरी जगाती है क़यामत कोई,

हर कदम पर तू गिरति चले बीजली बिल्लो!" मेरे इन चार पंक्तियों के गाने से छत पर मौजूद सभी लोगों का ध्यान हम मियाँ-बीवी पर आ गया था| वहीं संगीता बेचारी की हालत ऐसी थी की वो तो शर्म के मारे लाल टमाटर हो गई थी! नज़रें शर्म से झुकाये हुए वो सभी से नज़र चुरा रही थी और इधर मेरा मन संगीता को यूँ सजा-सँवरा देख बावरा हो चूका था इसलिए मैंने गाने के बोल गाने जारी रखे;

"इश्क़ करके तुझसे दीवाना बेताब हुआ बर्बाद हुआ आ आ आ आ

भूल गया अपना भी नाम जब नाम तेरा इसे याद हुआ" इसके आगे की पंक्तियाँ संगीता को गानी चाहिए थी मगर वो तो बस लजाये जा रही थी|

"लचकती बाहों के इस गुलशन में,

फूलों जैसे इस तन में,

हो पागल ही करदे ऐसी खुशबू है,

चमकती आँखों की इन तारों में,

होठों के गुलज़ारों में,

ओ दीवाना करदे ऐसा जादू है!" ये पंक्तियाँ गाते हुए मैं संगीता के इर्द-गिर्द घूमने लगा, तथा संगीता की सुंदरता का बखान करने लगा, जिससे संगीता का शर्म के मारे बुरा हाल था! वो बेचारी खुद को कोस रही थी की क्यों वो मुझसे नाराज़ हुई! आखिर थोड़ी हिम्मत कर संगीता ने नज़र उठा कर मुझे देखा और आँखों ही आँखों में मुझे उल्हाना देने लगी की क्यों मैं उसे यूँ गाना गा कर सबके सामने सता रहा हूँ?! ठीक तभी गाने में ये पंक्तियाँ आईं और मैंने धर्मेंद्र की तरह नाचने की कोशिश करते हुए गाना शुरू किया;

"हो बिल्लो रानी

हो बिल रानी कहो तो अभी जान दे दूँ,

हो बिल रानी कहो तो अभी जान दे दूँ,

हो बिल रानी कहो तो अभी जान दे दूँ,

हो बिल रानी कहो तो अभी जान दे दूँ" संगीता आँखें बड़ी कर के मुझे रोकना चाह रही थी मगर मैं उसकी बातों को नज़रअंदाज किये अपनी मस्ती में मस्त था|

इतने में गाने का वो अंतरा आ गया जो की संगीता के पूछे सवाल के लिए एकदम उपयुक्त जवाब था, तो मैं भी शुरू हो गया गाने के वो बोल गाने में;

"की अब तक तुम्हरी समझ में आई न,

घूम लिहो चाहे सब दुनिया,

ए हुमसा प्रेमी न मिलहि तुमका कभी,

की बिल्लो धक् धक् ऐ मन धडकत है,

तन म अग्नि भड़कात है,

जब जब लगावत हो तुम ठुमका कहीं!" जब मैंने इन पंक्तियों को गा कर अपना गुणगान किया की संगीता को मुझसे अच्छा प्रेमी नहीं मिल सकता तो संगीता के चेहरे पर गर्वपूर्ण मुस्कान आ ही गई!

संगीता को यूँ मुस्कुराता हुआ देख मुझे जोश आ गया और मैंने दिषु को दूसरा गाना लगाने को कहा| संगीता के हाथ में खाने की प्लेट थी, मैंने वो प्लेट उसके हाथों से ले कर एक तरफ रख संगीता के दोनों हाथों को पकड़ उसकी आँखों में बड़े प्यार से देखने लगा| ठीक तभी गाने की ये पंक्तियाँ आईं;

"तुमको पाया है तो जैसे खोया हूँ,

कहना चाहूँ भी तो तुमसे क्या कहूँ,

तुमको पाया है तो जैसे खोया हूँ,

कहना चाहूँ भी तो तुमसे क्या कहूँ,

किसी जुबाँ में भी वो लफ्ज़ ही नहीं,

के जिन में तुम हो क्या तुम्हें बता सकूँ|

मैं अगर कहूँ तुम सा हसीन
क़ायनात में नहीं है कहीं
तारीफ़ ये भी तो सच है कुछ भी नहीं!" ये पंक्तियाँ सुन संगीता फिर से लजाने लगी तथा मेरे सीने में अपना चेहरा छुपाने लगी| मैंने इस मौके का फायदा उठाया और अपना दायाँ हाथ संगीता की कमर पर रख दिया तथा संगीता का दायाँ हाथ पाने बायें हाथ में ले कर couple dance करने की मुद्रा इख्तियार की| संगीता जान गई की मैं अब उसे नाचने के लिए कहूँगा इसलिए संगीता अपना चेहरे मेरे सीने में छुपाये हुए ही धीरे-धीरे मेरे कदम से कदम मिलाते हुए थिरकने लगी| संगीता की ये लाज-हया देख मुझे उस पर बहुत प्यार आ रहा था और मेरे प्यार को व्यक्त करने वाली गाने की पंक्तियाँ आ चुकी थीं;

"शोखियों में डूबी ये अदायें,

चेहरे से झलकी हुई हैं,

जुल्फ़ की घनी घनी घटायें,

शान से ढलकी हुई हैं,

लहराता आँचल है जैसे बादल,

बाहों में भरी है जैसे चाँदनी,

रूप की चाँदनी|

मैं अगर कहूँ,

ये दिलकशी है नहीं कहीं, ना होगी कभी,

तारीफ़ ये भी तो सच है कुछ भी नहीं!

तुमको पाया है तो जैसे खोया हूँ." मेरे द्वारा गाये ये बोल संगीता की तारीफ कर रहे थे और मेरे मुँह से अपनी तारीफ सुन संगीता अब जा कर बहुत प्रसन्न हुई थी!

गाने के आगे की पंक्तियाँ आ पातीं उससे पहले ही नेहा मेरे पास आ गई| दरअसल इतनी देर से मुझे अपने पास न देख नेहा व्याकुल हो गई थी इसलिए वो मुझे खोजती हुई नीचे आ गई| जब नेहा ने मुझे अपनी मम्मी के साथ इस तरह धीरे-धीरे डांस करे हुए देखा तो उसे भी प्यारी सी जलन हुई, ठीक वैसी ही जलन जैसी संगीता को होती है जब वो मुझे बच्चों को लाड-प्यार करते हुए देखती है| "पापा जी...मैं भी!" नेहा ने ख़ुशी से अपना हाथ ऊपर उठाया और कूदने लगी| नेहा की आवाज़ से हम दोनों प्रेमियों का ध्यान भंग हुआ और मेरी संगीता पर से पकड़ ढीली हुई, जिसका फायदा उठाते हुए संगीता फ़ौरन माँ के पास चली गया तथा अपना चेहरा अपने दोनों हाथों से ढक कर शर्माने लगी| संगीता की जगह अब नेहा ने ले ली थी, लेकिन एक दिक्कत थी! नेहा छोटी थी इसलिए मुझे झुक कर उसके साथ डांस करना पड़ रहा था| कुछ सेकंड में गाने के वो बोल आये जिन्हें गाये बिना मेरा मन नहीं मानने वाला था| मैंने नेहा के साथ डांस करते हुए संगीता की तरफ मुँह किया और गाने के बोल संगीता की ओर देखते हुए गाये;

"मैं अगर कहूँ हमसफ़र मेरी,

अप्सरा हो तुम, या कोई परी,

तारीफ ये भी तो, सच है कुछ भी नहीं!

तुमको पाया है तो जैसे खोया हूँ,

कहना चाहूँ भी तो तुमसे क्या कहूँ,

किसी ज़ुबाँ में भी वो लफ्ज़ ही नहीं,

के जिन में तुम हो क्या तुम्हें बता सकूँ!" जैसे ही मैंने ये बोल बोले संगीता फिर से शर्मा गई और माँ के कँधे पर सर रख मुझे मुस्कुराते हुए देखने लगी|

इधर गाना खत्म हो चूका था मगर नेहा का मन मेरे साथ डांस करने का कर रहा था इसलिए उसने अपने दिषु चाचू से फ़रियाद की; "चाचू....प्लीज...एक गाना मेरे और पापा जी के लिए बजाओ न?!" अपनी भतीजी की बात सुन दिषु ने फौरन गाना ढूँढा और ' काला चश्मा' (ओरिजिनल वाला) बजा दिया| गाने के बोल के अनुसार दिषु ने अपनी जेब से काला चश्मा निकाल कर नेहा को दिया जिसे नेहा ने बड़े शान से पहना| मुझे अच्छे से डांस करना तो आता नहीं था इसलिए मेरे डांस में जो कमी थी वो कमी नेहा के डांस ने पूरी की| मैं पूरी कोशिश कर रहा था की नेहा के साथ कदम से कदम मिला सकूँ मगर मेरी बिटिया को डांस के काफी अच्छे स्टेप्स आते थे और मैं उसके आगे पिछड़ रहा था| मुझे यूँ नेहा के साथ डांस में पिछड़ता देख दिषु को बड़ा मज़ा आ रहा था इसलिए उसने एक के बाद एक पंजाबी गाने बजाए| नेहा तो हर गाने के अनुसार अपने स्टेप्स बदल रही थी मगर मैं अपने वही बासी स्टेप्स दोहरा रहा था| वैसे अगर मैंने पी होती फिर तो शायद मैं ऐसे स्टेप्स बनाता की बेचारी नेहा पिछड़ जाती, लेकिन बच्चों की पार्टी में पीना सही बात नहीं थी! वहीं दूसरी तरफ नेहा मुझे डांस करते-करते ही नए स्टेप्स सिखाने की कोशिश कर रही थी मगर मैं बैल बुद्धि on the job training से कहाँ इतनी जल्दी सीख पाता?! जब मैंने डांस में हार मान कर रुकना चाहा तो नेहा मुझे अपने साथ डांस करने को खींच लाई तथा सिखाने लगी की मुझे कैसे नाचना है||

उधर ऊपर छत पर जितने बच्चे थे वो भी एक-एक कर नीचे आ गए थे और हम बाप-बेटी के साथ डांस करने लगे थे| दिषु में अब किसी Dj की आत्मा आ गई थी तभी तो वो एक से बढ़कर एक डांस वाले गाने बजाए जा रहा था| वहीं आयुष अपनी गर्लफ्रेंड का हाथ पकड़े मेरे पास आ पहुँचा और मुझे अपने साथ डांस करने को बोला| अब मुझे अपने बेटे की इज्जत उसकी गर्लफ्रेंड के सामने रखनी थी इसलिए मैंने दिषु को 'Gasolina' (by daddy yankee) बजाने को कहा| ये गाना मेरे किशोरावस्था के समय बहुत प्रसिद्ध गाना था, समझ मुझे आज तक नहीं आया मगर मुझे इस गाने का signature step अच्छे से आता था इसीलिए मैंने आयुष की गर्लफ्रेंड के ऊपर अपना स्टाइल जमाने के लिए ये गाना बजवाया था| जैसे ही मैंने इस गाने पर नाचना शुरू किया सभी बच्चे मुझे बड़े गौर से देखने लगे, उन्हें मेरा ये सिग्नेचर स्टेप करना बड़ा भा गया था और सभी मेरी नकल करने लगे थे| अब मैं एक ही स्टेप बार-बार कर अपनी किरकिरी नहीं करवाना चाहता था इसलिए मैंने फौरन गाना बदलवाया और सुखबीर का 'ओहो-ओहो' बजवाया| इस गाने के स्टेप्स मुझे और दिषु को आते थे इसलिए मैं दिषु को भी खींच कर अपने साथ बच्चों के पास ले आया| सुखबीर के स्टेप्स आसान थे और हम दोनों दोस्तों ने अपने बचपन से गाना मुँह-जुबानी याद कर रखा था इसलिए हमारा डांस देख बच्चे हैरान थे| ख़ास कर वो स्टेप्स जिसमें हमें उकड़ूँ हो कर बैठ कर स्टेप करना था, वो स्टेप करते समय हम दोनों ने अपनी पैंट टखनों तक चढ़ाई क्योंकि हमें डर था की इस स्टेप को करते हुए कहीं हमारी पैंट पीछे से न फट जाए!

हम दोनों का ये डांस देख सारे बच्चो ने हम दोनों को घेर लिया और हम सब ने जोरदार डांस किया| बीच-बीच में आयुष और नेहा भी हमारे साथ ताल से ताल मिलाते जिसे देख सारे बच्चे एक तरफ हो जाते| फिर गाने का कोई स्टेप ऐसा आता जिसे हम सब मिलकर करते, हम सबको यूँ synchronize steps करते देख सभी तालियाँ बजाने लगे जिससे हमारा जोश और बढ़ता जा रहा था| कुछ भी कहो मगर बच्चों के साथ बच्चा बन कर डांस करने में मज़ा बड़ा आया! खैर लगभग 1 घंटा डांस कर अब मेरी और दिषु की बैंड बज गई थी, गर्मी के दिन थे तो हम दोनों दोस्त पसीना-पसीना हो गए थे इसलिए हम दोनों कुर्सी ले कर एक तरफ बैठ गए| मुझे बैठा देख आयुष मुझे फिर से नचाना चाहता था मगर मैंने उससे माफ़ी माँगते हुए कहा; "बेटा, मैं थक गया! आप जा कर अपनी गर्लफ्रेंड के साथ डांस करो और जैसे मैंने सिखाया था न वैसे करना!" मेरी बात सुन आयुष ने फट से अपना सर हाँ में हिलाना शुरू कर दिया|

दरअसल, कुछ दिनों पहले की बात है, माँ घर पर नहीं थीं और दोनों बच्चे सो रहे थे| मैं और संगीता थोड़ा रोमांटिक हो गए थे, अब हम प्यार तो कर नहीं सकते थे इसलिए हम दोनों गले लगे हुए टी.वी. पर आ रहे एक रोमांटिक गाने को सुन धीरे-धीरे थिरक रहे थे| तभी आयुष जाग गया और उसने हमें यूँ डांस करते देख लिया, अब आयुष के मन में जगी जिज्ञासा की ऐसे डांस कैसे करते हैं इसलिए मैंने आयुष को गोदी में उठाया तथा couple dance का पोज़ बना कर धीरे-धीरे डांस करना सिखाया| आयुष को ये डांस इतना पसंद आया की वो मेरे कान में खुसफुसा कर बोला; "पापा जी, मैं ऐसे अपनी दोस्त के साथ डांस कर सकता हूँ?" अब चूँकि आयुष को एक लड़की के साथ डांस करना था वो भी अपनी गर्लफ्रेंड के साथ तो मैंने उसे इस डांस के कुछ ख़ास टिप्स दिए जैसे की लड़की की कमर पर हाथ कैसे रखते हैं, लड़की का हाथ किस तरह पकड़ते हैं तथा पैर आगी-पीछे किस लय में करते हैं| मैं नहीं चाहता था की आयुष की गर्लफ्रेंड के सामने आयुष का मज़ाक बने इसीलिए मैंने ये ख़ास टिप्स आयुष को दिए थे| उस समय मेरी नज़रों में आयुष समस्त मर्द ज़ात का प्रतिनिधित्व कर रहा था और उसका मज़ाक उड़ना मतलब सम्पूर्ण मर्द ज़ात का मज़ाक उड़ना! आयुष ने मेरे सिखाये हुए ये स्टेप्स अच्छे से कंठस्थ कर लिए थे और आज समय आ गया था आयुष की परीक्षा देने का!

इधर दिषु ने हम बाप-बेटों की बात सुन ली थी और उसके चेहरे पर शरारत भरी हँसी फ़ैल गई थी! दिषु को कोई कपल डांस वाला गाना नहीं मिला तो उसने 'desert rose by Sting' ही बजा दिया|

उधर आयुष ने अपनी गर्लफ्रेंड के कान में जाने क्या कहा वो फट से डांस करने को तैयार हो गई| दोनों बच्चों ने बिलकुल मेरे सिखाये स्टेप्स के अनुसार एक दूसरे को थामा और गाने पर धीरे-धीरे थिरकने लगे|




दोनों बच्चे इतने प्यारे लग रहे थे की सभी लोगों का ध्यान उन दोनों लव बर्ड्स पर था| आयुष की गर्लफ्रेंड की मम्मी ने तो अपना फ़ोन निकाला और दोनों बच्चों के डांस का वीडियो बनाने लगी| वहीं संगीता भी पीछे नहीं रही और उसने भी वीडियो बनानी शुरू कर दी| आयुष और उसकी गर्लफ्रेंड ठीक उसी तरह थिरक रहे थे जैसे कुछ देर पहले मैं और संगीता थिरक रहे थे| कोई भी कह सकता था की आयुष को ये डांस स्टेप मैंने ही सिखाये हैं| आयुष की गर्लफ्रेंड की मम्मी ने संगीता को छेड़ने के मकसद से जानबूझ कर खुसफुसाते हुए पुछा की आयुष को ये डांस किसने सिखाया तो संगीता ने अपनी नजरों से मेरी ओर इशारा करते हुए जवाब दिया| मैंने दोनों महिलाओं की बात तो नहीं सुनी मगर जब दोनों मुझे देख कर मुस्कुरा रहीं थीं तो मैं सब समझ गया की माज़रा क्या है| उधर सभी बच्चों का नाचना हो गया था तथा वे सभी फिर से खाना खाने बैठ चुके थे| वहीं डांस पूर्ण होने पर आयुष और उसकी गर्लफ्रेंड शर्माने लगे थे इसलिए दोनों अपनी-अपनी मम्मी के पास दौड़ गए|

खैर, नाचना-गाना सम्पन्न हुआ तथा हम सभी ने डट कर खाना भी खाया, इस सब में पता ही नहीं चला की कब रात के साढ़े आठ बज गए| सभी मेहमानों ने एक-एक कर विदा ली तथा जाते-जाते नेहा को पुनः आशीर्वाद और उसके लिए लाये ख़ास गिफ्ट भी दिए| नेहा ने अपने से बड़े सभी मेहमानो के पाँव छुए तथा हाथ जोड़कर थैंक यू कहा| जो नेहा की उम्र के बच्चे थे या उससे छोटे बच्चे थे उन्हें नेहा ने गले लग कर थैंक यू कहा| कैटरर वाला भी अपना सारा समान बटोर कर साढ़े नौ तक चला गया था|

कुछ देर पहले जो घर भरा-भरा लग रहा था वो सभी मेहमानों के जाने के बाद खाली लगने लगा था| मुझे ख़ुशी इस बात की थी कीनेहा का ये जन्मदिन हमेशा-हमेशा के लिए एक प्यारी सी याद बन कर मेरे दिल में रह गया था| ऐसी याद जिसे आज पुनः याद कर मेरा दिल भर आया|
[color=rgb(163,]जारी रहेगा भाग - 10 में...[/color]
 

[color=rgb(251,]इकत्तीसवाँ अध्याय: घर संसार[/color]
[color=rgb(44,]भाग - 10[/color]


[color=rgb(71,]अब तक अपने पढ़ा:[/color]

कुछ देर पहले जो घर भरा-भरा लग रहा था वो सभी मेहमानों के जाने के बाद खाली लगने लगा था| मुझे ख़ुशी इस बात की थी कीनेहा का ये जन्मदिन हमेशा-हमेशा के लिए एक प्यारी सी याद बन कर मेरे दिल में रह गया था| ऐसी याद जिसे आज पुनः याद कर मेरा दिल भर आया|

[color=rgb(97,]अब आगे:[/color]

मेहमानों
को विदा कर मैं घर लौटा तो नेहा आ कर मुझसे लिपट गई| नेहा का ये पहला जन्मदिन था जो की बहुत धूम धाम से मनाया गया था और नेहा इस ख़ुशी को बर्दाश्त नहीं कर पा रही थी| आज नेहा को मुझ पर इतना प्यार आ रहा था की पूछो मत! मैंने नेहा को गोद में उठाया और उसके मस्तक को चूमा, वहीं नेहा ने मेरे दोनों गालों की पप्पी ली और बड़े प्यार से बोली; "आई लव यू पापा जी!" इतना कह नेहा मेरे गले लग गई|

"आई लव यू टू मेरा बच्चा!" मैंने नेहा को अपनी बाहों में कसते हुए कहा| मेरे गले लगे हुए नेहा का प्यारा सा दिल बहुत खुश था और उसकी ये ख़ुशी देख मेरा दिल भी ख़ुशी के मारे तेज़ी से धड़कने लगा| वहीं माँ मुस्कुराते हुए हम बाप-बेटी को यूँ गले लगे हुए देख रहीं थीं| मेरी माँ मेरे मन में नेहा के प्रति अपार प्यार को जानती थीं और उन्हें ये प्यार देख कर बहुत ख़ुशी होती थी|

"पापा जी, गिफ्ट्स खोलते हैं?" आयुष ख़ुशी से कूदते हुए बोला| जन्मदिन आज नेहा का था, गिफ्ट्स भी सारे नेहा के लिए आये थे मगर नेहा से ज्यादा खुश आयुष था| उसे इस बात से कोई लेना देना नहीं था की गिफ्ट्स किस के लिए आये हैं, उसे तो बस गिफ्ट्स खोलने का चाव था! मैं नेहा को गोदी में ले कर सोफे पर बैठ गया जहाँ की गिफ्ट्स का पहाड़ बना हुआ था| इतने में संगीता भी फ़ट से मेरे पास आ कर बैठ गई क्योंकि उसे भी जानना था की नेहा को क्या-क्या गिफ्ट्स मिले हैं| मिलना संगीता को कुछ नहीं था मगर गिफ्ट्स खुलते हुए देखने का उत्साह उसमें आयुष से बीस ही होगा, उन्नीस नहीं!

नेहा मेरी गोदी से उतरी और आयुष के साथ मिल कर एक-एक कर गिफ्ट्स खोलने लगी| नेहा को जो गिफ्ट मिले थे उनमें अधिकतर खेलने वाली गुड़िया थीं, कोई बड़ी कोई छोटी| मिश्रा अंकल जी ने तो पूरा डॉल हाउस नेहा को गिफ्ट किया था| नेहा के 3 दोस्तों ने तो नेहा को 3 maths geometry box गिफ्ट दिए थे! Geometry box देख मुझे मेरा बचपन का जन्मदिन याद आ गया| जब मैं छठी कक्षा में था तब एक मेरे जन्मदिन पर मुझे 2 geometry box मिले थे जिनका इस्तेमाल मैंने सालभर बाद सीखा था! नेहा के एक दोस्त ने नेहा को वो क्लच वाली पेंसिल दी थी, आयुष को लगा ये पेन है मगर जब नेहा ने उसे ये पेंसिल इस्तेमाल कर के दिखाई तो आयुष कहने लगा की उसे भी ऐसी एक पेंसिल चाहिए! आयुष का बचपना देख सभी मुस्कुराने लगे थे की तभी संगीता भी बचपना दिखाते हुए बोली; "मुझे भी ये वाली पेंसिल चाहिए!" संगीता की बचकानी बात सुन आयुष को लगा की उसे मिलने वाली पेंसिल कहीं उसकी मम्मी को न मिल जाए इसलिए दोनों माँ-बेटे के बीच "मुझे चाहिए" कहते हुए बहस छिड़ गई| संगीता के बच्चे बन कर आयुष से बहस करने का आनंद हम सभी ने लिया और हम सब खूब हँसे|

बहरहाल, अनिल नेहा के लिए भाईसाहब, भाभी जी, अपनी और नेहा की नानी जी की तरफ से गिफ्ट लाया था| अनिल ने अपना बैग खोल सभी द्वारा भेजे हुए गिफ्ट नेहा को दिए| अनिल की तरफ से नेहा के लिए एक इनसाइक्लोपीडिया था तथा एक कैलकुलेटर था| भाईसाहब, मेरी सासु माँ और भाभी जी की तरफ से नेहा के लिए 4 जोड़ी कपड़े थे| नेहा ये सभी गिफ्ट्स देख बहुत खुश थी और उसने गाँव फ़ोन करके सभी को धन्यवाद दिया|

अब बारी आई माँ की तो उन्होंने नेहा को एक कागज़ दिया और बोलीं; "मेरी गुड़िया के लिए ये FD ताकि जब मेरी गुड़िया बड़ी हो तो वो खूब पढ़े और उसकी पढ़ाई में कोई कमी न रहे|" अपनी दादी जी से ये गिफ्ट पा कर नेहा बहुत खुश हुई और उसने अपनी दादी जी के पाँव छू कर उनका आशीर्वाद लिया|

सब ने नेहा को गिफ्ट दिया था सिवाए संगीता के इसलिए हम सभी की नज़र अब संगीता पर टिकी थी की भला वो नेहा को कौन सा गिफ्ट देने वाली है| संगीता ने जब सबको खुद को ताकते हुए पाया तो वो बड़े ही मज़ाकिया अंदाज़ में बोली; "क्या? मैंने पैदा कर तो दिया न नेहा को? अब इससे ज्यादा मुझसे कोई काम नहीं होता!" संगीता की बात सुन हम सभी ने बड़ी जोर का ठहाका लगाया|

सभी ने नेहा को गिफ्ट दिए थे मगर बेचारे आयुष को कोई गिफ्ट नहीं मिला था| हालांकि आयुष को इससे कोई फर्क नहीं पड़ रहा था, वो तो अपनी बहन की खुशियों में ही खुश था मगर एक बाप का दिल अपने बेटे को खाली हाथ बैठा नहीं देख सकता था| मैं उठा और आयुष के लिए लिया हुआ गिफ्ट ले कर आया; "आयुष बेटा, मेरे पास आओ|" मैंने आयुष को बुलाया तो वो फुदकता हुआ मेरे पास आ गया| मैंने आयुष को उसकी पसंद का गिफ्ट यानी हॉट व्हील्स का ट्रैक सेट दिया| आयुष को इस गिफ्ट की ज़रा भी उम्मीद नहीं थी इसलिए वो अपना गिफ्ट पा कर ख़ुशी से फूला नहीं समाया और मेरी गोदी में चढ़ मेरे दोनों गाल अपनी पप्पियों से गीले कर दिए! फिर दोनों बच्चों ने हम सब के सामने मिलकर ट्रैक सेट जोड़ा और गाडी से खेलने लगे|

रात बहुत हो रही थी और सुबह बच्चों ने स्कूल जाना था इसलिए माँ ने सभी को सोने का आदेश दिया| नेहा अपनी दादी जी के पास सो गई, आयुष अपने छोटे मामा जी के साथ अपने कमरे में सोया और हम दोनों मियाँ-बीवी अपने कमरे में आ गए| नेहा का जन्मदिन इतनी ख़ुशी से मना कर मेरा आज कुछ अधिक ही प्रसन्न था इसलिए कपड़े बदल कर जैसे ही हम मियाँ-बीवी लेटे, मैंने सबसे पहले संगीता के होठों को चूमा और फिर उसकी कोख को चूमते हुए अपने होने वाले बच्चे से बोला; "बेटा जी, आप जल्दी से मुझसे मिलने आ जाओ न? देखो आपके पापा जी कितना बेसब्री से आपका इंतज़ार कर रहे हैं! अब और कितना इंतज़ार करवाओगे आप मुझे?" मेरी ये बेसब्री देख संगीता को बहुत हँसी आ रही थी और वो अपने होठों पर हाथ रख खुद को हँसने से रोकना चाह रही थी मगर उसका पेट हँसी आने के कारण ऊपर-नीचे हो कर थिरक रहा था जिससे मैं जान गया की संगीता मेरी बातों पर हँस रही है! परन्तु मुझे संगीता की हँसी से कोई फर्क नहीं पड़ रहा था, मैं तो अपने होने वाले बच्चे से फ़रियाद करने में लगा था; "आपको पता है आज आपकी दीदी का जन्मदिन हमने कितने जोर-शोर से मनाया?! आप यहाँ होते तो आज हम आपका जन्मदिन भी खूब ज़ोर शोर से मनाते! आपको ढेर सारे बढ़िया-बढ़िया गिफ्ट मिलते, आपको केक खाने को मिलता, आप और मैं एक साथ डांस करते!" मैं अपने होने वाले बच्चे को तरह-तरह के प्रलोभन देते हुए बोला| ये मेरा बचपना ही था की, जो बच्चा पैदा नहीं हुआ उसे जल्दी से पैदा होने के लिए प्रलोभन दे रहा था! संगीता को मेरा ये बचपना देख और भी हँसी आ रही थी इसलिए जब उससे अपनी हँसी बर्दाश्त नहीं हुई तो वो खिलखिलाकर हँस पड़ी!

मेरा बचपना आगे बढ़ता उससे पहले ही संगीता मुझे रोकते हुए बोली; "अच्छा बस! सिक्का खत्म हो गया, आगे बात करने के लिए दूसरा सिक्का डलेगा!" संगीता की बातों का अर्थ था की जैसे पुराने जमाने में हम टेलीफोन मशीन में 1 रुपये का सिक्का डालकर बात करते थे और 1 मिनट पूरा होने पर पुनः सिक्का डालना होता था वरना फ़ोन काट जाता था, ठीक वैसे ही मैंने संगीता के होठों पर जो प्यारा सा चुंबन रूपी सिक्का डाला था उसका स्वाद संगीता की जुबान पर खत्म हो चूका था, अब अगर मुझे अपने होने वाले बच्चे से आगे बात करनी थी तो पहले मुझे उसे एक और चुंबन देना था! संगीता की बात से मेरी और मेरे बच्चे की बातों में खलल पड़ गया था इसलिए मैंने संगीता को बच्चों की तरह लाड-प्यार किया तथा आज की धमा-चौकड़ी के कारण हुई थकान ने हम दोनों को जल्दी सुला दिया|

नए मेहमान को देखने की मेरी लालसा दिन प्रतिदिन बढ़ती जा रही थी| जब भी मुझे समय मिलता मैं संगीता की कोख को चूमता और आने वाले नए मेहमान से बातें करने लगता| जिस तरह से संगीता को यक़ीन था की आने वाला मेहमान लड़की होगी वैसे ही मेरा भी पितृ मोह मुझे ये यक़ीन दिलाता जा रहा था की नया मेहमान लड़की ही होगी| धीरे-धीरे मैंने संगीता की कोख पर हाथ रख, आँखें मूँद कर कल्पना करनी शुरू कर दी थी की मेरी बिटिया कैसी दिखती होगी| मुझे शुरू से ही ऐसी मीठी कल्पना करना पसंद है और मेरी इसी कल्पना में मेरी बिटिया रानी बड़ी होती जा रही थी और मैं उसे बहुत लाड-प्यार कर रहा था|

वहीं माँ के सामने हम दोनों मियाँ-बीवी लड़की पैदा होने के बारे में कोई बात नहीं करते क्योंकि माँ को हमारा इस तरह से अटखलें लगाना...आस लगाना अच्छा नहीं लगता था| वो कहतीं की; "लड़का हो या लड़की, सब भगवान की देन है| बेकार की आस बाँधना और बाद में आस टूटने पर दिल टूटने से अच्छा है की कुछ मत सोचो! बच्चा लड़का हो या लड़की, लाड तो हम उसे बराबर ही करेंगे!" माँ की ये नसीहत सुन हम दोनों मियाँ-बीवी ने अपनी लड़की पैदा होने की उत्सुकता माँ के सामने दबा ली|

संगीता के साथ-साथ मुझ में भी एक बचपना जाग गया था और वो था अपनी होने वाली बिटिया को ठीक से गोदी लेने की उत्सुकता! दरअसल मैंने कभी नवजात शिशु को गोद नहीं लिया था| मेरा मानना था की एक नवजात शिशु बहुत नाज़ुक होता है और ऐसे में मेरे कठोर हाथों के स्पर्श से या मेरे ठीक से बच्चे को गोदी न लेने पर बच्चे को चोट लग सकती थी या फिर कहीं बच्चे को गिरा न दूँ इसलिए भी मैंने कभी किसी नवजात शिशु को गोद नहीं लिया| लेकिन अब जब मेरी जिंदगी में मेरी बिटिया रानी आने वाली है, तो ऐसा तो हो नहीं सकता था की मैं उसे गोदी न लूँ इसलिए मुझे अपनी बिटिया को ठीक से गोदी लेना सीखना था| जब मैंने ये बात माँ और संगीता को बताई तो दोनों सास- पतुआ ने मिलकर मेरी खूब खिल्ली उड़ाई! उनके अनुसार ये मेरा बेकार का डर था; "अरे छोटा सा बच्चा क्या बहुत भारी होता है जो तुझसे नहीं सँभलेगा? उसको भी वैसे ही गोदी लेना होता है जैसे तू आयुष और नेहा को गोदी लेता है|" माँ मुझे प्यार से झिड़कते हुए बोलीं| माँ की बात सुन संगीता खूब हँसी, वहीं मैं संगीता की हँसी देख कर हैरान था, क्योंकि कमसकम उसे तो मेरा ये जूनून समझना चाहिए! उधर माँ की बात भी काफी हद्द तक सही थी मगर मैं एक होने वाला पिता था जो की पहले ही अपने होने वाले बच्चे को ले कर सतर्क था और मेरे अनुसार थोड़ी अधिक सतर्कता बरतने में कोई खराबी नहीं थी!

माँ के सामने ने तो संगीता ने बात हँसी में उड़ा दी मगर बाद में उसने मुझे हमारे होने वाले बच्चे को गोदी लेने की सही ट्रैनिग दी| संगीता माँ थी और उसने आयुष और नेहा को सँभाला था इसलिए उससे उपयुक्त अध्यापक मेरे लिए कोई और नहीं हो सकता था| मुझे ठीक से समझ आये इसलिए संगीता बच्चों के कमरे में गई और नेहा के खिलौनों में से एक गुड़िया ले आई| ये गुड़िया लगभग एक नवजात शिशु के आकार की थी जिससे संगीता मुझे सोदाहरण सहित समझाने लगी|

मैं अभी तक बच्चों (आयुष और नेहा) को एक हाथ की सहायता से गोदी कुछ इस प्रकार लेता था की बच्चों का सर मेरे कंधे पर होता था मगर एक नवजात शिशु को इस प्रकार गोदी नहीं लिया सकता था| एक नवजात बच्चे को हमेशा दोनों हाथों की सहायता से गोद लिया जाता है तथा गोदी लेते समय बच्चे का सर कहीं इधर-उधर न लुढ़क जाए इसलिए हमें एक हाथ से बच्चे के सर को हेमशा सहारा दे कर रखना होता है| इसके अलावा, जब बच्चा दूध पी लेता है तो उसका विशेष ख्याल रखना होता है, गोद लेने से उसके पेट पर पड़े हल्के से दबाव से बच्चा उलटी कर देता है| ये सब बातें जब मुझे पता चलीं तो मेरे मन में बच्चे को चोटिल करने का डर अधिक बढ़ गया! तब संगीता ने मेरा डर भगाया और मुझे नेहा की गुड़िया को गोद में ले कर अच्छे से अभ्यास करने को कहा| अब मैं ठहरा मेहनतकश विद्यार्थी, अपनी गुरु की बात मानते हुए मैंने उस गुड़िया को अपनी बिटिया रानी मानते हुए बड़ी सावधानी से गोदी में उठाया और संगीता के बताये तरीके से गुड़िया के सर को सहारा देते हुए अपने सीने से लगा कर खड़ा हो गया| मेरी ये पहली कोशिश बहुत अच्छी थी जिससे संगीता ने खुश हो कर ताली बजा दी! संगीता से प्रोत्साहन पा कर मेरे मन में आत्मविश्वास पैदा होने लगा और मन में बैठा अपनी बिटिया को चोटिल करने का डर काफूर हो गया!

बहरहाल, धीरे-धीरे वो दिन नज़दीक आ ही गया जब मेरी बिटिया मेरी इस दुनिया में आने वाली थी| मेरे बिटिया के मेरी दुनिया में आने से एक दिन पहले ही मैं संगीता को अस्पताल ले आया और डॉक्टर सरिता जी से चेक-अप करवाया| उन्होंने मुझे बताया की: "सब कुछ ठीक है मानु, कोई घबराने की बात नहीं है| मेरे अंदाजे से 24 घंटे में संगीता को प्रसव पीड़ा शुरू हो जाएगी|" इतना सुनना था की मैंने एकदम से संगीता को इसी वक़्त अस्पताल में भर्ती करने की जिद्द पकड़ ली! मुझे संगीता की बहुत चिंता थी और टी.वी. पर मैंने आज तक जितने सीरियल और फिल्में देखीं थीं उन सभी में हेरोइन को जब प्रसव पीड़ा होती है तभी कुछ न कुछ काण्ड होता है| या तो अस्पताल जाते समय गाडी का एक्सीडेंट होता है, या फिर अस्पताल पहुँचने में देरी हो जाती है या फिर हीरो के अस्पताल पहुँचते-पहुँचते हेरोइन माँ बन चुकी होती है! इन सीरियल और फिल्मों को देख कर बनी मेरी इसी दकियानूसी सोच के कारण मैं घबराया हुआ था और संगीता को इसी वक़्त अस्पताल में भर्ती करवाना चाहता था|

मेरी जिद्द देख संगीता ने मुझे बहुत समझाया की हम उसकी प्रसव पीड़ा शुरू होने पर ही अस्पताल आएं मगर मैं नहीं माना| आखिर डॉक्टर सरिता ने मेरे इस बचपने को देख मुस्कुरा कर अस्पताल में संगीता को भर्ती करने की हाँ कह दी| मैंने फौरन संगीता को अस्पताल में भर्ती करवा दिया तथा संगीता के लिए अलग कमरा ले लिया| अब माँ को ये बात सीधा बताता तो मार खाता इसलिए मैंने बात थोड़ा घुमा कर कही; "माँ, डॉक्टर सरिता जी ने कहा है की 24 घंटे के भीतर ही हमारे घर नया मेहमान आ जायेगा, कहीं हमें अस्पताल में अधिक इंतज़ार न करना पड़े इसलिए हमें संगीता को अभी भर्ती करवा देना चाहिए|" मैंने अपनी चपलता दिखाते हुए डॉक्टर सरिता का नाम लेते हुए सारी बात उनपर डाल दी, वो तो बाद में मेरी ऐसी-तैसी हुई!

खैर, बच्चे स्कूल में थे और माँ घर पर अकेलीं तो वो भी अस्पताल आ गईं| अब किसी को तो खाना बनाना था इसलिए मैं अकेला घर आया और फटाफट खाना बना कर तैयार किया| इतने में 1 बज गया और बच्चों के घर आने का समय हो गया| मैंने माँ को फ़ोन कर बता दिया की मैं बच्चों को खाना खिला कर और दोनों सास-पतुआ का खाना ले कर अस्पताल आऊँगा| बच्चे स्कूल से आये तो मैंने उन्हें उनकी मम्मी के बारे में सारी बात बताई, नेहा तो सब समझ गई मगर आयुष को कुछ समझ नहीं आया, वो तो इस बात से खुश था की उसका छोटा भाई या बहन आने वाली है जिसके साथ उसने खूब खेलना है!

बच्चों को खाना खिला और अपना, माँ तथा संगीता का खाना ले कर मैं अस्पताल पहुँचा| बच्चे जैसे ही कमरे में घुसे उन्होंने सीधा संगीता के पलंग पर कब्ज़ा कर लिया| नेहा ने तो बस अपनी मम्मी का हाल-चाल पुछा मगर आयुष की जुबान पर एक ही सवाल था; "मेरा छोटा भाई या बहन कहाँ है?" आयुष के सवाल का जवाब हम में से किसी के पास नहीं था क्योंकि हम उस छोटे से बच्चे को क्या समझाते की बच्चा पैदा होने में समय लगता है, वो कोई गेम नहीं जिसे हम इंटरनेट से डाउनलोड कर लें! अब इस हालात में माँ ने वही किया जो सभी माँ-बाप करते हैं जब उनका बच्चा कोई ऐसा सवाल पूछता है जिसका जवाब उनके पास नहीं होता; "चुप कर! इधर आ कर बैठ जा चुप-चाप!" आयुष की जिज्ञासा शांत नहीं हुई थी इसलिए वो उत्सुक हो कर मुझे देखने लगा की मैं ही उसकी इस जिज्ञासा का निवारण करूँ| "बेटा, कल तक इंतज़ार करो!" इतना कहते हुए मैंने आयुष की जिज्ञासा को कुछ पल के लिए शांत कर दिया था|

मैंने खाना परोसा और हम तीनों (मैं, माँ और संगीता) ने खाना खाया, बच्चे उस दौरान अपनी मम्मी के पलंग पर चढ़ कर आलथी-पालथी मारकर बैठे थे तथा अपना कार्टून देखने में व्यस्त थे| कोई अगर कमरे में आता और ये दृश्य देखता तो यही कहता की हमने अस्पताल के कमरे को एक पिकनिक मनाने वाला स्थान बना दिया था| कौन कह सकता था की यहाँ हमने संगीता को भर्ती करवाया है?!

रात हुई तो माँ ने कहा की मैं बच्चों के साथ घर जाऊँ और वो यहाँ संगीता के पास रात में रुकेंगी मगर मैं यहाँ माँ को कष्ट में रात काटने कैसे देता इसलिए मैंने जबरदस्ती माँ को बच्चों के साथ भेज दिया| संगीता के लिए रात का खाना अस्पताल से मिला था जबकि मेरा खाना मुझे बाहर से खरीद कर खाना पड़ा| उधर घर पर दाल-सब्जी सब बनी हुई थी बस माँ को रोटी बनानी थी| खाना खा कर सोने की बारी आई तो संगीता कहने लगी की मैं घर चला जाऊँ और सुबह जल्दी आ जाऊँ मगर मैं नहीं माना| मुझे वैसे भी कौन सा नींद आनी थी, मैं तो अपनी होने वाली बेटी को मिलने के लिए व्याकुल था!

अगली सुबह सुबह 8 बजे ही माँ दोनों बच्चों के साथ अस्पताल आ गईं| दोनों बच्चों को स्कूल की बजाए माँ के साथ देख मैं हैरान हुआ और तब माँ ने बताया; "ये जो तेरी बेटी है न, ये बहुत तेज है! इसने आयुष को स्कूल से छुट्टी करने की पट्टी पढ़ाई और दोनों शैतानों ने मिल कर स्कूल न जाने की जिद्द पकड़ ली! अब मैं अकेली पढ़ गई और हार मानकर इन्हें यहाँ ले आई|" माँ ने मुझसे बच्चों की प्यारभरी शिकायत की, दोनों बच्चे आ कर मेरी टाँगों से लिपट गए और खी-खी कर हँसने लगे| "शैतानों...माँ को तंग करते हो! घर आने दो मुझे फिर तुम दोनों को सीधा करती हूँ!" संगीता ने बच्चों को प्यार से डाँटा मगर बच्चों पर इसका कोई असर नहीं पड़ा वो तो अपनी मम्मी को जीभ चिढ़ा कर हँसने लगे|

माँ को संगीता के पास बिठा, मैं बच्चों को अपने साथ ले कर अस्पताल की कैंटीन पहुँचा ताकि सबके लिए कुछ नाश्ता खरीद कर लाऊँ| इस समय चूँकि बस हम तीनों ही थे तो बच्चे मुझसे खुल कर बात कर सकते थे;

आयुष: पापा जी, आज मेरा छोटा भाई या बहन आएगी न?

आयुष बड़ी आस लिए हुए मुझसे पूछने लगा| उसे देख कर ऐसा लगता था की अगर मैंने 'नहीं' कहा तो उसका प्यारा सा दिल टूट जाएगा|

मैं: हाँ जी बेटा जी!

मैंने आयुष एक सर पर हाथ फेरते हुए कहा|

आयुष: फिर तो मैं है न उसके साथ खूब खेलूँगा, उसे कहानियाँ सुनाऊँगा, उसे चॉकलेट खिलाऊँगा और है न...

आयुष जोश से भरते हुए बोले जा रहा था, उसके भीतर अपने छोटे भाई या छोटी बहन से मिलने की इतनी ख़ुशी थी जिसका कोई अंत नहीं| आयुष आगे कुछ कहता उससे पहले ही नेहा उसे चुप कराते हुए बोली;

नेहा: चुप कर! छोटे बच्चे थोड़े ही न खेलते हैं, वो तो बस सोते हैं!

नेहा की बात पर आयुष को विश्वास नहीं हुआ तो वो अपनी दीदी से ही सवाल पूछने लगा;

आयुष: आपको कैसे पता?

आयुष थोड़ा नाराज़ होते हुए बोला|

नेहा: जब तू पैदा हुआ था, तब तू भी बस सोता रहता था और केँ-केँ कर के रो कर मेरा सर दर्द करता था|

नेहा ने मुँह बनाते हुए कहा| आयुष जब पैदा हुआ तो नेहा ने उसे गोद में खिलाया था, अब आयुष को ये बात कैसे पता होती इसलिए वो अपनी दीदी की बात पर विश्वास ही नहीं कर रहा था| मैं चाहता तो बीच में पड़ कर आयुष को सब समझा सकता था मगर मुझे तो बच्चों की इस नोक-झोंक में बड़ा मज़ा आ रहा था!

आयुष: मैं नहीं रोता, मैं तो अच्छा बच्चा हूँ!

आयुष अपनी तारीफ खुद करते हुए बोला तो नेहा को उस पर गुस्सा आ गया;

नेहा: तू तो इतना छोटा सा था...

ये कहते हुए नेहा ने अपने दोनों हाथों की सहयता से बताया की आयुष कितना बड़ा था जब वो पैदा हुआ|

नेहा: ...तुझे कैसे याद होगा की तू रोता था या नहीं! मुझे पता है तू कितना रोता था खिलाया तो मैंने तुझे है अपनी गोदी में! सारा दिन बस या तो सोता था या दूध पीता था या फिर लेटे-लेटे रोता था! बड़ा आया अच्छा बच्चा! हुँह!

नेहा चिढ़ते हुए मुँह टेढ़ा करते हुए बोली| आयुष खुद को हमेशा अच्छा बच्चा मानता था इसलिए उसे अपनी दीदी की किसी बात पर यक़ीन नहीं हो रहा था| अब मुझे बीच में पड़ना था वरना दोनों बच्चे लड़ने लगते;

मैं: आयुष बेटा, जब बच्चे पैदा होते हैं न तो वो बहुत छोटे होते हैं| फिर वो धीरे-धीरे बड़े होने लगते हैं! जब आप पैदा हुए तब आप भी बहुत छोटे से थे, लेकिन अब देखो आप धीरे-धीरे कितने बड़े और समझदार हो गए!

मैंने आयुष की तारीफ करते हुए उसे बात समझाई तो आयुष मेरी बात समझ गया|

अब चूँकि यहाँ आयुष के बचपन की बता चल रही थी तो मैंने नेहा से पुछा की आयुष जब छोटा था तो वो कैसा था? ये सवाल मैंने इसलिए पुछा था क्योंकि जब आयुष पैदा हुआ तो माइए उसे नहीं देखा था इसलिए मुझे जानना था की आयुष पैदा होने के समय कैसा दिखता था और नेहा उसे कैसे सँभालती थी?! मेरे पूछे इस सवाल के जवाब में नेहा ने मुँह बिदकाते हुए सारी बात बताई;

नेहा: क्या बताऊँ पापा जी! ये बुद्धू न सारा-सारा दिन रोता रहता था| मम्मी इसे सुला कर मुझे इसके पास बैठ कर पढ़ने को कह जाती थीं मगर ये बुद्धू लड़का मुझे पढ़ने नहीं देता था! मम्मी के जाते ही ये जाग जाता और रोने लगता! मैं इसे गोदी में ले कर चुप कराने की कोशिश करती मगर ये मेरे कान में ही जोर-जोर से चिल्लाते हुए रोने लगता! एक दिन तो मैं इसे चुप करवाने के लिए गोदी में ले कर घूम रही थी की इसने मेरे ऊपर सुसु कर दिया! जब मैंने मम्मी से कहा की ये देखो आयुष ने क्या किया तो मम्मी बजाए मेरी मदद करने के खी-खी कर हँसने लगीं! फिर एक दिन की बात थी की मम्मी ने इसे नहलाया तो ये रोने लगा, मम्मी ने मुझे इसे चुप कराने को कहा और खुद नहाने लगीं| मैं इसे गोदी ले कर घूमती रही मगर ये बुद्धू लड़का चुप ही नहीं हो रहा था! ये नंगा-पुंगा मेरी गोदी में था की तभी नजाने इसे क्या सूझा की इसने इतनी बदबूदार पाद मारी और मेरे ऊपर पॉटी कर दी! जब मुझे मेरे हाथ पर कुछ गर्म-गर्म महसूस हुआ, तब पता चला की इस गंदे लड़के ने तो मेरे ऊपर पॉटी कर दी!

ये कहते हुए नेहा ने मुँह बिदकाया और इधर हम बाप-बेटे की जोरदार हँसी छूट गई! जब हम बाप-बेटे हँसे तो नेहा प्यार भरे गुस्से से हम दोनों को देखने लगी, हमने जैसे-तैसे अपनी हँसी रोकी और नेहा ने अपनी बात आगे पूरी की;

नेहा: मुझे गुस्से तो बहुत आया मगर मैं क्या कर सकती थी, ये बुद्धू था भी छोटा इसलिए मैंने इसे मम्मी को दिया और खुद रगड़-रगड़ कर नहाई! उस दिन से मैं इसे जब भी गोद में उठाती तो कभी अपने से नहीं चिपकाती, हमेशा इसे गोदी में ले कर अपने से दूर रखती ताकि अगर ये पॉटी करे तो, पॉटी मेरे ऊपर गिरने की बजाए नीचे ज़मीन पर गिरे!

इधर मम्मी हैं न, वो मुझे तंग करने से बाज़ नहीं आईं! जब ये शैतान बड़ा हुआ तो इसकी पॉटी धोने की ड्यूटी उन्होंने मेरी लगा दी.

ये कहेत हुए नेहा ने फिर मुँह बिदका लिया!

नेहा: .अब मरते क्या न करते मुझे इसकी पॉटी धोनी पड़ी क्योंकि अगर नहीं धोती तो मम्मी मुझे मारती! लेकिन अभी बात खत्म नहीं हुई, इस गंदे लड़के ने मुझे और भी तंग करना शुरू कर दिया| मैं जैसे ही स्कूल से अति ये शैतान मेरे पास दौड़ता हुआ आता और कहता; 'दीदी मुझे छी-छी जाना है! जब मैं बुलाऊँ तो आ कर मेरी छी-छी धोई कर देना!' ये सुन कर मुझे बड़ा गुस्सा आता था और एक दो बार में इसे डाँटा भी मगर ये मानता ही नहीं था! एक बार तो इस बुद्धू लड़के ने हद्द ही कर दी, मैं खाना खा रही थी जब ये कुएँ के पास वाले खेत में से चिल्लाने लगा; 'दीदी, छी-छी...धोई!' उस वक़्त मुझे इतना गुस्सा आया की मैं इसे मारने जाने वाली हुई थी की तभी बड़ी दादी जी उठीं और उसकी पॉटी धोई! सच कहती हूँ पापा जी, इसने बुद्धू ने मुझे बहुत सताया है!

नेहा गुस्से बोली और आयुष को गुस्से से देखने लगी| मैं नेहा का गुस्सा समझ रहा था, आयुष की बदमाशियों की वजह से नेहा को छोटे बच्चों से चिढ हो गई थी! वहीं आयुष को अपनी शैतानियाँ सुन कर बहुत हँसी आ रही थी और वो खी-खी कर हँस रहा था| कहीं नेहा उसे मार न दे इसलिए मैंने ही नेहा का गुस्सा शांत करते हुए कहा;

मैं: जो हो गया सो हो गया बेटा, लेकिन अब जब आपकी छोटी बहन या छोटा भाई आएगा न तो आपको ये सब काम करने की जर्रूरत नहीं पड़ेगी, ये सब काम मैं करूँगा| आप तो बस अपने छोटी बहन या छोटे भाई को प्यार करना, उसके साथ जी भर कर खेलना|

मेरे दिए इस आश्वसन से नेहा बहुत खुश हुई की कम से कम उसे इस बार तो एक छोटे बच्चे की पॉटी साफ़ नहीं करनी पड़ेगी!

घड़ी में बजे थे सुबह के 11 और उस वक़्त हम सब कमरे में बैठे हँसी-मज़ाक कर रहे थे की तभी अचानक से संगीता के पेट में दर्द शुरू हो गया| ये कोई आम पेट दर्द नहीं बल्कि प्रसव पीड़ा थी! संगीता को यूँ पीड़ा में देख मैं घबरा गया और सीधा नर्स को बुलाने दौड़ा पर नर्स ने कहा की इस वक़्त लेबर रूम खाली नहीं है तथा हमें कुछ समय इंतज़ार करना होगा| यदि मुझे दर्द हो रहा होता तो मैं थोड़ा इंतज़ार भी कर लेता लेकिन मैं संगीता को पीड़ा में तड़पते हुए नहीं देख सकता था| मैंने अपना फ़ोन निकाला और सीधा डॉक्टर सरिता को फ़ोन कर सारा हाल सुनाया| सरिता जी ने फौरन अस्पताल फ़ोन किया और संगीता को लेबर रूम में ले जाने का हुक्म दिया| मैं भी इधर दौड़ता हुआ संगीता के पास लौटा तो देखा की दर्द से उसका बुरा हाल है और वो जोर-जोर से करहा रही है! माँ उसके सिरहाने खड़ीं उससे हिम्मत बँधाने में लगीं हैं, वहीं दोनों बच्चे अपनी मम्मी को इस तरह पीड़ा से करहाते हुए देख सहमे से खड़े हैं| जैसे ही मैं कमरे में आया दोनों बच्चे आ कर मुझसे लिपट गए और सिसकने लगे|

"बस बेटा, रोते नहीं!" मैंने दोनों बच्चों के सर पर हाथ रख उन्हें हिम्मत बँधाई तथा संगीता के नज़दीक आया| मुझे देख संगीता ने मेरा दायाँ हाथ कस कर पकड़ लिया! प्रसव पीड़ा के कारण उतपन्न हुई पीड़ा हर पल बढ़ती जा रही थी, नतीजन मेरे दायें हाथ पर संगीता के हाथ का दबाव बढ़ता जा रहा था! मुझसे संगीता की ये पीड़ा नहीं देखि जा रही थी और नर्स के अभी तक न आने के कारण बहुत गुस्सा आ रहा था| मैं नर्स को बुलाने जा ही रहा था की तभी नर्स एक व्हीलचेयर ले कर आई| मैंने संगीता को सहारा दे कर उठाया और व्हीलचेयर पर बिठा दिया|

जब नर्स व्हीलचेयर को धकेलते हुए लेबर रूम की तरफ ले जा रही थी तब संगीता ने मेरा हाथ कस कर पकड़ रखा था| जैसे ही लेबर रूम नज़दीक आया नर्स ने संगीता से कहा; "आपका हस्बैंड अंदर नहीं जा सकते!" ये सुन कर संगीता बहुत दुखी हुई क्योंकि वो चाहती थी की जब उसकी डिलीवरी हो रही हो तो मैं उसकी बगल में खड़ा रहूँ! संगीता ने बिना डरे नर्स से मिन्नत करते हुए कहा; "प्लीज सिस्टर...प्लीज इन्हें भी चलने दो!" परन्तु नर्स ने संगीता को प्यार से समझाया; "उदर (उधर) आपका साथ और भी लेडिस (महिलायें) होते और आपका हस्बैंड को देख कर वो गुस्सा हो सकता इसलिए हम उनको नहीं ले जा सकता!" देखा जाए तो नर्स की बात सही थी, हमारे देश में अभी तक पश्चिमी देश का ये father can be present during delivery वाला चोंचला अभी तक शुरू नहीं हुआ था! लेकिन संगीता ने फिल्मों में ये सब देखा था इसीलिए वो हट कर रही थी| "जान, जिद्द मत करो! प्लीज जाओ, मैं यहीं बाहर खड़ा हूँ|" मैंने संगीता को प्यार से समझाया तो वो आधे मन से मान गई|

संगीता लेबर रूम के भीतर गई और इधर बाहर हम सभी बैठ कर इंतज़ार करने लगे| बच्चे बहुत डरे हुए थे इसलिए दोनों बच्चे मुझसे लिपटे हुए थे| अब डरा तो मैं भी हुआ था मगर मुझे अपने बच्चों का ये डर दूर करना था| "बेटा सब ठीक हो जायेगा!" मैंने दोनों बच्चों के सर चूमते हुए कहा| तभी माँ ने मुझे याद दिलाया की मैं अपने ससुराल में फ़ोन कर के बता दूँ की हम सब यहाँ अस्पताल में हैं| माँ के निर्देश अनुसार मैंने वैसा ही किया और भाईसाहब तथा अनिल को फ़ोन कर सब बताया| अनिल दिल्ली आना चाहता था मगर मैंने उसे शाम तक मेरे फ़ोन का इंतज़ार करने को कहा|

इधर लेबर रूम के बाहर इंतज़ार करते-करते दोपहर के डेढ़ बज गए थे| बच्चे भूखे थे मगर अपनी मम्मी को न देख पाने की चिंता में कुछ नहीं बोल रहे थे| "बेटा, चलो कुछ खा लो|" मैं दोनों बच्चों को गोदी ले कर खड़ा होते हुए बोला मगर बच्चों ने साफ़ मना कर दिया और गर्दन न में हिलाते हुए मुझसे लिपट गए| "नहीं बेटा, ऐसे भूखे नहीं रहते! चलो मेरे साथ|" माँ दोनों बच्चों से बोलीं और दोनों बच्चों को अपने पास बुलाया| बच्चे अपनी दादी के पास तो गए मगर वो कुछ भी खाने से मना कर रहे थे| "तुम्हारा पापा खायेगा तब तो खाओगे न?" माँ ने बच्चों को बहलाते हुए पुछा मगर बच्चे अब भी खामोश रहे| "माँ, आप सब खाओ मैं बाद में खाऊँगा|" मैंने खाना खाने से मना करते हुए कहा| माँ ने मुझे बहुत समझाया परन्तु मैं अपनी जिद्द पर अड़ा रहा; "नहीं माँ, जब तक मैं संगीता को नहीं देख लेता मुझसे कुछ भी नहीं खाया जायेगा|" इतना कह मैं अस्पताल की कैंटीन से माँ और बच्चों के खाने के लिए सैंडविच तथा चाय ले आया| "माँ, खा लो क्योंकि अगर आपने नहीं खाया तो बच्चे भी नहीं खाएंगे|" ये कहते हुए मैंने माँ और बच्चों को सैंडविच तथा चाय दे दिया| बच्चे मुझे न नहीं कह सकते थे इसलिए उन्होंने अपनी दादी जी के साथ चाय तथा सैंडविच खा लिया|

दोपहर के तीन बजे थे और तबतक हम सब अस्पताल के लेबर रूम के बाहर ही बैठे थे| बच्चों की आँख लग गई थी और वो अपनी दादी जी की गोदी में सर रख कर सो गए थे| वहीं मैं बेसब्र हुआ इधर से उधर चक्कर काट रहा था इस आस में की कब लेबर रूम का दरवाजा खुले और संगीता बाहर आये| इस वक़्त मुझे अपने होने वाले बच्चे से ज्यादा चिंता संगीता की थी क्योंकि मैं उसे किसी भी कीमत पर खोना नहीं चाहता था! मेरे मन में नकारात्मक ख्याल भर चुके थे परन्तु मेरा दिल हार न मानते हुए इन नकारात्मक विचारों से अकेला लड़ रहा था| जब मन में भरी नकारात्मक ऊर्जा मुझ पर हावी होने लगती तो संगीता का प्यार मेरे दिल में उतर कर जोश दिलाता; 'कुछ नहीं होगा मेरी संगीता को!' मेरे दिल के भीतर से आवाज़ आई और मेरे मन में बसा डर हार गया| मुझे अपने प्यार पर पूरा विश्वास था इसलिए अब आँखें संगीता और मेरे होने वाले बच्चे को देखने के लिए लालहित हो गईं थीं|

मैं मन ही मन भगवान जी का स्मरण करता रहा और उनसे अपनी पत्नी तथा होने वाले बच्चे की खुशहाली माँग रहा था| जल्द ही भगवान जी ने मेरी सुन ली और लेबर रूम से एक नर्स निकल कर आई तथा मेरा नाम पुकारा; "मनु मौर्या?" जैसे ही नर्स ने मेरा नाम लिया मैं बिजली की रफ्तार से उसकी तरफ दौड़ा| "मुबारक हो, लड़की पैदा हुई है!" नर्स ख़ुशी से बोली| इतना सुनते ही मेरी ख़ुशी का ठिकाना नहीं रहा और मेरे चेहरे पर ख़ुशी की फुलझड़ियाँ अपनी छटा बिखेरने लगीं| उधर पीछे खड़ी माँ ने जब ये खबर सुनी तो उनकी भी ख़ुशी का ठिकाना नहीं रहा! माँ ने फौरन नर्स को हज़ार रुपये इनाम स्वरुप दिए तथा मुझे अपने गले लगा कर आशीर्वाद देते हुए बोली; "हमारे घर लक्ष्मी जी आईं हैं!" माँ का मेरी बिटिया को लक्ष्मी कहना मेरे दिल को छू गया था और मेरी आँखें ख़ुशी से नम हो गईं थीं|

इधर अपनी छोटी बहन के पैदा होने की खबर सुन दोनों बच्चे भी ख़ुशी से कूदने लगे थे| गौर करने वाली बात ये है की दोनों बच्चों की ख़ुशी के अलग-अलग कारण थे, नेहा इसलिए खुश थी की हमारे घर में एक नया सदस्य आ गया है जिसे वो खूब प्यार कर सकती है, वहीं आयुष इसलिए खुश था की अब उसे कोई बड़े भैया कह कर पुकारेगी जिस पर वो अपनी धौंस जमा सकेगा! ख़ुशी से कूदते-कूदते दोनों बच्चे आ कर मुझसे लिपट गए तथा एक साथ बोले; "पापा जी, हमारी छोटी बहन आ गई?!!"

"हाँ जी बेटा, आपकी छोटी बहन यानी मेरी छोटी बिटिया इस दुनिया में आ गई!" मैंने दोनों बच्चों के सर चूमते हुए कहा| बच्चों के सर चूम मैंने नर्स से संगीता के बारे में पुछा तो नर्स ने बताया की वो अभी संगीता को दूसरे कमरे में शिफ्ट करने वाले हैं|

अब मेरा हाल यूँ था की मैं अपनी बिटिया रानी को देखने के साथ-साथ, संगीता को भी देखने के लिए बेचैन हो रहा था| आखिर कुछ समय बाद संगीता को लेबर रूम से निकाला गया| संगीता इस समय बेहोश थी और उसे यूँ बेहोश देख मैं चिंतित था क्योंकि मेरी कल्पना के अनुसार संगीता इस समय होश में मुस्कुराती हुई लेबर रूम से निकलनी चाहिए थी| खैर मैं, माँ और दोनों बच्चे संगीता की स्ट्रेचर के पीछे-पीछे कमरे में पहुँचे| मैं संगीता के सिरहाने खड़ा हो कर उसके सर पर हाथ फेर रहा था ताकि उसे होश आये और मैं उसे हमारा सपना पूरा होने की बधाई दे सकूँ| उधर दोनों बच्चे अपनी मम्मी को यूँ बेहोश देख कर सहम गए थे| तभी डॉक्टर सरिता आईं और दोनों बच्चों को हिम्मत बँधाते हुए बोलीं; "बच्चों, घबराते नहीं हैं! आपकी मम्मी बस आराम कर रहीं हैं, अभी थोड़ी देर में उठा जाएँगी|" अपनी डॉक्टर आंटी जी की बात सुन बच्चों को इत्मीनान हुआ की जल्दी ही उनकी मम्मी जाग जायेंगीं|

इधर मेरे चेहरे पर अब भी संगीता को ले कर चिंता झलक रही थी| मुझे संगीता के सर पर हाथ फेरते हुए देख डॉक्टर सरिता जी बोलीं; "चिंता मत करो मानु, संगीता की डिलीवरी बिलकुल नार्मल हुई है| तुमने इतने प्यार से जो उसका ख्याल रखा था उस वजह से डिलीवरी के समय कोई समस्या नहीं आई| बच्ची और संगीता दोनों एकदम स्वस्थ हैं!" मुझे ये जानकार तसल्ली तो हुई की संगीता की डिलीवरी के समय कोई परेशानी उतपन्न नहीं हुई मगर मेरे दिल को करार तब आता जब मैं संगीता को होश में देख लेता|

इतने में पीछे से नर्स मेरी प्यारी बिटिया को गोदी में ले कर आ गई| उसे देख माँ और बच्चे सीधा नर्स को घेर कर खड़े हो गए| सबसे पहले माँ ने नर्स की गोदी से मेरी बिटिया को लिया तथा उसके मस्तक को चूमते हुए बोलीं; "अले ले-ले...मेलि गुड़िया रानी...मेलि शुगी (female parrot)!!!" माँ की आवाज़ सुनते ही मेरी बिटिया रानी ने रोना शुरू कर दिया! उसका ये रोना सुन आयुष ने फौरन अपने कान बंद कर लिए और मुझसे शिकायत करते हुए बोला; "पापा ये तो बहुत जोर से रो रही है!" आयुष की बात सुन सभी हँस पड़े| "तुझे देख कर रो रही है!" नेहा ने आयुष को ताना मरते हुए कहा जिस पर एक बार फिर सभी ने ठहाका लगाया| अब जाहिर है की सब आयुष पर हँस रहे थे तो उसका मुँह फूलना ही था!

"दादी जी?" नेहा ने अपनी दादी जी का ध्यान अपनी ओर खींचा ताकि वो भी अपनी छोटी बहन को एक नज़र भर कर देख सके| माँ ने थोड़ा झुकते हुए नेहा को उसकी छोटी बहन का मुखड़ा दिखाया तो नेहा ने फौरन अपनी छोटी बहन के गाल को चूम पप्पी ली| अब बारी थी आयुष की और वो थोड़ा बेसब्र हो रहा था; "दादी जी, मुझे भी अपनी छोटी बहन को देखना है|" आयुष आतुर होते हुए बोला तो माँ ने और झुक कर आयुष को उसकी छोटी बहन दिखाई| आयुष ने बिना सोचे समझे ही अपनी छोटी बहन को गोद लेना चाहा मगर माँ ने उसे समझाया; "बेटा, तू अपनी छोटी बहन को गिरा देगा! तू बाद में गोदी लेना, पहले तेरे पापा की बारी है|" अपनी दादी जी की बात सुन आयुष कुछ नहीं बोला और अपनी बहन को गोदी लेने की इच्छा को काबू कर लिया|

इधर मैं अपनी माँ को मेरी लाड़ली बिटिया रानी को गोदी में लिए हुए अपने पास आते हुए देख रहा था| मेरी नजरें मेरी बिटिया रानी पर टिकी थीं और ऐसा लगता था मानो समय समान्य की बजाए बहुत ही धीरे-धीरे बीत रहा हो| माँ और मेरे बीच मुश्किल से 3 कदम का फासला था मगर मेरा दिमाग मुझे ये फासला 300 मील का दिखा रहा था| मेरी तरफ आता हुआ माँ का हर एक कदम मुझे इतना धीरे लग रहा था की लगता था मानो किसी ने समय एकदम से रोक दिया हो|

मुझसे ये दूरी बर्दाश्त नहीं हो रही थी इसलिए मैं अपनी बाहें फैलाए माँ की ओर चल पड़ा परन्तु मेरा एक कदम पूरा हो उससे पहले ही माँ मेरी बिटिया को गोदी में लिए हुए नज़दीक आ गईं तथा मेरी बिटिया को मेरी ओर बढ़ाया| मेरी नज़रें पहले से ही मेरी बिटिया रानी पर टिकी थीं, उसके अलावा मुझे न ही कुछ दिखाई दे रहा था और न ही सुनाई दे रहा था| मैंने बड़ी सावधानी से अपनी बिटिया रानी को गोदी में लिया और एकदम से अपने सीने से लगा लिया| मेरे मन के भीतर अपनी बिटिया को अपने सीने से लगाने की प्रबल इच्छा ने मुझे अपनी बिटिया का मुखड़ा तक नहीं देखने दिया था, आखिर एक पिता अपनी बिटिया का इतने महीनों से बेसब्री से इंतज़ार जो कर रहा था!

इधर, मेरी बिटिया जैसे ही मेरे सीने से लगी की मेरी आँखें स्वतः ही बंद हो गईं! इतने समय से जो मेरा मन व्याकुल था उसे अब जा कर शान्ति मिली थी| मेरा बेचैन दिल अपनी बिटिया को पा कर शांत हुआ तथा मेरी धड़कन समान्य होने लगीं| दिल में जो अपनी बेटी को पाने की प्यास थी वो ऐसी बुझी की लगता था मानो मैंने मीठ और शीतल जल पी लिया हो! बाहें जो अपनी बेटी को गोदी लेने के लिए इतने महीनों से मचल रहीं थीं उन्हें अब जा कर आराम मिला था| अपनी बिटिया को यूँ गले लगा कर मेरे सीने में जो पिता के प्रेम की अगन थी वो अब और भी अधिक तेज़ हो गई थी तथा इन कुछ क्षणों में ही मैंने अपनी बिटिया को दिए जाने वाले लाड-प्यार तक की कल्पना कर ली थी| अपनी बिटिया को यूँ अपने सीने से चिपकाए मुझे एहसास हुआ की जैसी गर्माहट मेरे बदन में मौजूद है वैसी ही आँच मुझे मेरी बिटिया के जिस्म से निकल रही है, यानी हम बाप-बेटी के जिस्म का तापमान लगभग एक सा था! दरअसल मेरी बिटिया का जिस्म भी मेरे जिस्म की तरह गर्म था तथा ये वो पहली बात थी जो की मुझे और मेरी बिटिया को जोड़ती थी|

मेरे शरीर के अधिकतर अंगों को अपनी बिटिया को गले लगा कर मोक्ष मिल चूका था मगर मेरे अधर अपनी बेटी को चूमने के लिए लालहित हो रह थे और आँखें अपनी बिटिया का जी भर कर दीदार करने को व्याकुल थीं! ये ऐसी तृष्णा थी जो की हर पल तेज़ होती जा रही थी| अतः मैंने अपनी आँख खोली तो पाया की अपने पापा के सीने से लगने के बाद मेरी प्यारी बिटिया का रोना थम चूका है तथा वो अपनी अधखुली आँखों से मुझे देख रही है| मेरी बिटिया के मस्तक पर एक मध्धम सा तेज था जिसे देख मुझे लगता था मानो वो तेज़ हर पल बढ़ता जा रह है| अपनी बेटी के इस तेज को देख मेरी धड़कनो की गति बढ़ रही थी|

मेरी बिटिया रानी बिलकुल गोलू-मोलू थी! उसके गोल-गोल गुलाबी गाल ऐसे थे मानों कोई गुलाब का फूल हो! उसकी छोटी सी-प्यारी सी नाक जिसे देख कर लगता था मानो शहतूत का मीठा फल हो! मेरी बिटिया रानी की अधखुली आँखें देख कर लगता था मानो आसमान में कहीं दूर कोई सितारा टिमटिमा रहा हो! वो छोटे से नाज़ुक होंठ जिनसे मैं अपने लिए 'पापा जी' सुनने को अभी से लालहित था उन्हें देख ऐसा लगता था मानो कोई नाज़ुक सी कोमल सी कली हो जिसपर अभी तक सूर्य की चमक नहीं पड़ी इसलिए वो कली अब भी सिकुड़ कर चुपचाप बैठी है! एक प्यारी सी ठुड्डी जो की आधे चन्द्रमा के समान गोल थी| अंत में मेरी बिटिया के छोटे-छोटे हाथ-पाँव देख कर लगता था की मानो नेहा की कोई गुड़िया हो! अपनी बिटिया की ये सुंदरता देख मैं मोहित हो गया था और मेरे अधर अपनी बिटिया का चुंबन लेने को थरथराने लगे थे|

उधर मेरे सीने से दूर होने पर मेरी बिटिया को मेरी कमी महसूस होने लगी थी और उसके चेहरे पर मुझे गंभीरता की महीन रेखा खींचती हुई दिखाई देने लगीं| कहीं मेरी बेटी फिर से रोने न लगे इसलिए मैंने फौरन अपनी बिटिया के मस्तक को चूम लिया| मेरे इस प्यारभरे चुंबन से मेरी बिटिया के चेहरे पर आईं वो गंभीरता की महीन रेखाएँ फौरन गायब हो गईं| खैर, अपनी बिटिया की एक पप्पी से मेरा मन भर जाता ऐसा तो हो ही नहीं सकता था न?! उधर मेरी प्यारी बिटिया को भी अपने पापा जी की ली हुई पप्पी बहुत पसंद आई थी तभी तो उसके चेहरे पर सुकून की एक लकीर खींच गई थी इसलिए अब तो एक और पप्पी बनती थी! मैंने पुनः अपनी बेटी के मस्तक को चूमा और प्यार से उसके कान में खुसफुसाया; "मेरी बिटिया ने मुझे बहुत इंतज़ार करवाया है, इसलिए आप है न जल्दी-जल्दी बड़े मत होना क्योंकि मुझे आपका पूरा बचपन जीना है!" मेरो खुसफुसाहट सुन मेरी बिटिया के चेहरे पर पुनः मुस्कान की एक महीन रेखा खिंच आई| चूँकि मैंनेअपनी बिटिया के कान में खुसफुसाया था इसलिए कोई मेरी बात नहीं सुन पाया था| वहीं मेरी खुसफुसाहट से मेरी बिटिया को कान में गुदगुदी महसूस हो रही थी इसलिए मेरी बिटिया का दाहिना हाथ उसके कान के पास यानी मेरे होठों के आगे आ पहुँचा| अपनी बेटी के नन्हे से हाथ को देख मेरा मन उसे चूमने का किया इसलिए मैंने अपने दाहिने हाथ की तीन उँगलियों (अंगूठा, तर्जनी और मध्यमा ऊँगली) से अपनी बिटिया के छोटे से दाहिने हाथ को पकड़ा तथा अपने होठों से छुआया|

जैसे ही मेरी बिटिया को अपने दाहिने हाथ की हथेली में मेरी तर्जनी ऊँगली महसूस हुई, उसने कस कर अपनी मुठ्ठी बंद कर ली जिससे मेरी तर्जनी ऊँगली मेरी बिटिया की मुट्ठी में कैद हो गई| ये हम पिता-पुत्री का पहला स्पर्श था और क्या मधुरम स्पर्श था! मेरी बिटिया की मेरी ऊँगली पर ये पकड़ मेरी रूह तक ने महसूस की थी! मेरी ऊँगली थाम कर मेरी बिटिया निश्चिंत हो गई थी, उसे इस समय कोई डर...कोई भय नहीं था! वहीं अपनी बिटिया के इस प्रथम स्पर्श से मेरे अंदर अलग ही बदलाव आये थे, मैं खुद को बहुत भाग्यशाली समझ रहा था! ऐसा लगता था मानो मैंने इस दुनिया में सब कुछ पा लिया हो, मेरे जीवन में आज जा कर एक ठहराव आया था| ऐसा ठहराव जिसके आगे की मेरे मन में कोई कामना नहीं थी, कोई इच्छा नहीं थी!

अपनी बिटिया के इस स्पर्श को मैं अपने दिल की गहराई में उतार लेना चाहता था इसलिए मेरी आँखें एक बार फिर बंद हो गईं! वहीं संगीता जिसे होश आ गया था वो ख़ामोशी से, चेहरे पर प्यारी सी मुस्कान लिए एक पिता-पुत्री के इस मोह को देख कर मन ही मन खुद पर गर्व कर रही थी| आज संगीता ने मुझे जो ख़ुशी दी थी उसकी दुनिया में किसी भी ख़ुशी से तुलना नहीं की जा सकती थी| मुझे एक बेटी का बाप बना कर संगीता ने आज अपना पत्नी धर्म पूरा कर दिया था!

[color=rgb(163,]जारी रहेगा भाग - 11(1) में...[/color]
 

[color=rgb(251,]इकत्तीसवाँ अध्याय: घर संसार[/color]
[color=rgb(44,]भाग - 11 (1)[/color]


[color=rgb(71,]अब तक अपने पढ़ा:[/color]

जैसे ही मेरी बिटिया को अपने दाहिने हाथ की हथेली में मेरी तर्जनी ऊँगली महसूस हुई, उसने कस कर अपनी मुठ्ठी बंद कर ली जिससे मेरी तर्जनी ऊँगली मेरी बिटिया की मुट्ठी में कैद हो गई| ये हम पिता-पुत्री का पहला स्पर्श था और क्या मधुरम स्पर्श था! मेरी बिटिया की मेरी ऊँगली पर ये पकड़ मेरी रूह तक ने महसूस की थी! मेरी ऊँगली थाम कर मेरी बिटिया निश्चिंत हो गई थी, उसे इस समय कोई डर...कोई भय नहीं था! वहीं अपनी बिटिया के इस प्रथम स्पर्श से मेरे अंदर अलग ही बदलाव आये थे, मैं खुद को बहुत भाग्यशाली समझ रहा था! ऐसा लगता था मानो मैंने इस दुनिया में सब कुछ पा लिया हो, मेरे जीवन में आज जा कर एक ठहराव आया था| ऐसा ठहराव जिसके आगे की मेरे मन में कोई कामना नहीं थी, कोई इच्छा नहीं थी!

अपनी बिटिया के इस स्पर्श को मैं अपने दिल की गहराई में उतार लेना चाहता था इसलिए मेरी आँखें एक बार फिर बंद हो गईं! वहीं संगीता जिसे होश आ गया था वो ख़ामोशी से, चेहरे पर प्यारी सी मुस्कान लिए एक पिता-पुत्री के इस मोह को देख कर मन ही मन खुद पर गर्व कर रही थी| आज संगीता ने मुझे जो ख़ुशी दी थी उसकी दुनिया में किसी भी ख़ुशी से तुलना नहीं की जा सकती थी| मुझे एक बेटी का बाप बना कर संगीता ने आज अपना पत्नी धर्म पूरा कर दिया था!

[color=rgb(97,]अब आगे:[/color]

"बेटा
..." माँ के पुकारने पर मैं अपने ख्यालों की दुनिया से बाहर आया| सबसे पहले मैंने अपनी बिटिया रानी को देखा जो की अपनी आँखें मूंदें निदिया रानी की गोदी में बड़े आराम से सो रही थी| फिर मेरी नज़र संगीता पर पड़ी जो की मुझे देखते हुए गर्व से मुस्कुरा रही थी| हम पति-पत्नी की कोई बात हो पाती उससे पहले ही माँ बीच में बोलीं; "बेटा, बिटिया को संगीता को दे-दे ताकि वो बिटिया को दूध पिला दे|" माँ की बात सुन मेरा मन अपनी बिटिया को खुद से दूर करने का कतई नहीं था, परन्तु मेरी बिटिया भूखी होगी ये सोच कर ही मैं अपनी बिटिया को ले कर संगीता की तरफ बढ़ा| "माँ, मैंने मुन्नी को दूध पिला दिया था, तभी तो इनकी गोदी में आराम से सो रही है|" संगीता मेरी ओर देखते हुए मुस्कुरा कर बोली| दरअसल संगीता जान गई थी की मेरा मन अपनी बिटिया को खुद से दूर करने का नहीं है इसलिए संगीता ने मेरी ख़ुशी के लिए ये कहा था| इधर संगीता की बात सुन मैंने उसे आँखों ही आँखों में धन्यवाद कहा क्योंकि उसकी वजह से हम बाप-बेटी अब अलग नहीं होने वाले थे|

खैर, संगीता को रात 7 बजे तक अस्पताल से छुट्टी मिलनी थी और माँ को घर जा कर पूजा करनी थी इसलिए उन्होंने दोनों बच्चों को साथ चलने के लिए कहा| नेहा तो अपनी दादी जी के साथ जाने के लिए मान गई मगर आयुष नहीं माना; "दादी जी, मैं अपनी छोटी बहन के पास रहूँगा|" आयुष का यहाँ रुकने का ख़ास कारण जानकर हम सभी को हँसी आई|

"आयुष बेटा, आप यहाँ रहोगे तो आपकी दादी जी की पूजा की तैयारी करने में कौन मदद करेगा? आप सबसे जिम्मेदार हो न?" मैंने आयुष को जिम्मेदार कहा तो आयुष किसी सैनिक की तरह उठा और एकदम से अपनी दादी जी के साथ खड़ा हो गया; "दादी जी, मैं आपकी मदद करूँगा!" आयुष की बात सुन माँ उसके सर पर हाथ फेरने लगीं और बोलीं; "शाब्बाश बेटा!"

सब घर निकल चुके थे तथा इधर अस्पताल के कमरे में बस हम तीनों मियाँ-बीवी और हमारी लाड़ली बिटिया रह गए थे| मेरी बिटिया तो मेरी गोदी में बड़े आराम से सो रही थी तो हम मियाँ-बीवी को आराम से बात करने का मौका मिल गया:

मैं: जान, थैंक यू सो मच! (Thank you so much!) तुमने आज मुझे जो सुख दिया है उसके लिए तुम्हें शुक्रिया कहने के लिए मेरे पास शब्द नहीं हैं| आज अपनी बिटिया को गोदी में ले कर मेरा जीवन पूर्ण हो गया!

ये शब्द एक पिता को मिली सम्पूर्ण संतुष्टि के बाद मेरे अंतर्मन की गहराई से निकले थे| लेकिन मेरी पत्नी ने मेरी बात का गलत मतलब निकाला और मुझे प्यार से डाँटते हुए बोली;

संगीता: काहे का थैंक यू बोल रहे हो मुझे? मैंने कोई एहसान नहीं किया आप पर जिसके लिए आप मुझे थैंक यू बोल रहे हो! पाप हुआ था मेरे हाथों, जो मैंने आयुष के जन्म के समय आपको आपके बेटे से दूर रखा और आयुष के लालन-पालन करने का सुख आपसे बिना कुछ पूछे छीन लिया| भले ही उस समय मेरा इरादा नेक था लेकिन मेरा फैसला सरासर गलत था! अपने किये उसी पाप को सुधारने के लिए मैं आपके बच्चे की माँ बनना चाहती थी ताकि जो सुख आपको आयुष के जन्म के समय न मिला वो अब मिले| तो खबरदार जो आपने मुझे कभी थैंक यू कहा तो, घर घामेंम कर देब!

(घर घामेंम कर देब : ये एक तरह का मुहावरा है जो की हमारे गाँव में किसी को प्यारभरी तड़ी देने के लिए इस्तेमाल किया जाता है| अब इसका सही मतलब मुझे नहीं पता मगर 'घाम' का मतलब होता है धुप| बाकी आप सभी पाठकगण खुद ही समझदार हैं तो इस मुहावरे का अर्थ अपने अनुसार समझ लीजिये|)

खैर, संगीता की ये प्यारी सी डाँट सुन मैं मुस्कुरा दिया और संगीता को समझाते हुए बोला;

मैं: जान, तुम क्यों पुरानी बातें कुरेद रही हो?! जो हुआ वो पुरानी बात थी और उसके लिए मैंने तुम्हें दिल से माफ़ भी कर दिया था| मेरे कहने का असली मतलब था की तुमने मुझे मेरी बिटिया से मिलवा कर मुझे जो आत्मिक संतुष्टि प्रदान की है उसके लिए मैं तुम्हारा शुक्रगुज़ार हूँ|

लेकिन संगीता मेरी बात नहीं मानी और बार-बार पुरानी बातें दुहराती रही| मुझे आज का दिन पुरानी बातें याद कर के दुखी नहीं होना था इसलिए मैंने बात खत्म करते हुए कहा;

मैं: अच्छा बाबा, मुझसे गलती हो गई जो मैंने तुम्हें थैंक यू कहा, मुझे माफ़ कर दो!

मेरे हार मान लेने से संगीता बिलकुल छोटे बच्चों की तरह खुश हो गई और खी-खी कर हँसने लगी|

करीब साढ़े 6 बजे हमें अस्पताल से छुट्टी मिल गई और हम घर के लिए निकले| हमारे घर पहुँचने तक माँ ने पूजा की सारी तैयारियाँ कर ली थीं| यही नहीं माँ ने मेरे ससुराल, दिषु के घर तथा मिश्रा अंकल जी के घर भी फ़ोन कर के इस खुशखबरी की सूचना दे दी थी| जबकि मैं अपनी बिटिया के प्रेम में सब कुछ भूल बैठा था!

मैं और संगीता घर की चौखट पर खड़े थे की तभी माँ ने मुझे हमारी बिटिया को संगीता को देने को कहा ताकि माँ दोनों माँ-बेटी की आरती उतार सकें| अब समस्या ये थी की मेरी बिटिया रानी ने मेरे दाहिने हाथ की तर्जनी ऊँगली अब भी कस कर पकड़ रखी थी| जब मैं संगीता को हमारी बिटिया देने लगा तो मेरी बिटिया रानी ने मेरी ऊँगली नहीं छोड़ी, नतीजन माँ को ऐसे ही पूजा करनी पड़ी! पूजा के बाद संगीता ने बिटिया को मेरी गोदी में पुनः दे दिया|

हम सभी सीधा हमारे कमरे में पहुँचे, माँ ने संगीता को आराम करने को कहा तथा नेहा को चाय बनाने को कहा| चाय पीते हुए मेरी बिटिया के नामकरण पर बात होने लगी तो मैं एकदम से बोला; "माँ, नाम तो मैंने पहले ही सोच रखा है: स्तुति!" मैंने बड़े गर्व से माँ को ये नाम सुझाया| माँ को मेरे द्वारा दिया हुआ ये नाम बहुत अच्छा लगा और उनके चेहरे पर इस नाम को सुन कर एक मीठी सी मुस्कान तैरने लगी| माँ को मुस्कुराते देख संगीता ने बरसों पुराना एक राज़ माँ के सामने खोल दिया; "माँ, आपको पता नहीं लेकिन जब आयुष मेरी कोख में आया था न तब मैंने इनसे पुछा था की हम बच्चे का नाम क्या रखेंगे तो इन्होने मुझे दो नाम सुझाये थे: 'लड़का हुआ तो आयुष और लड़की हुई तो स्तुति'! इतने पावन नाम सुन कर तो मेरा दिल भर आया था|" संगीता की बात सुन माँ को पहले तो थोड़ा अस्चर्य हुआ लेकिन फिर उन्हें हम मियाँ-बीवी का प्यार समझ आया और उनके चेहरे पर मुस्कान तैरने लगी| दरअसल संगीता को हम पति-पत्नी के बीच की ये बात माँ के सामने नहीं कहनी चाहिए थी, पर वो पगली जोश और उत्साह में बहते हुए बोल पड़ी थी|

इधर मेरी बिटिया के लिए नाम तो सोचा जा चूका था परन्तु समस्या ये थी की माँ से 'स्तुति' बोला नहीं जा रहा था! माँ ने हमारे सामने बतेहरी कोशिश की मगर वो ये नाम नहीं ले पाईं| मैं नहीं चाहता था की मेरी बिटिया को दिया हुआ ये नाम बदला जाए इसलिए मैंने एक रास्ता निकाला; "माँ, आप है न स्तुति को 'सु' कह कर बुलाना|" माँ को मेरा ये सुझाव मज़ाकिया लगा था परन्तु मेरी ख़ुशी के लिए वो मान ही गईं; "मैं तो बिटिया को 'शुगी' कह कर बुलाऊँगी!" शुगी शब्द का अर्थ होता है मादा तोता और ये नाम सभी को भा गया था| तो कुछ इस तरह से माँ ने मेरी बिटिया स्तुति को बुलाने के लिए एक नाम दे दिया था| अब चूँकि ये नाम माँ ने दिया था तो इस नाम पर केवल माँ का हक़ था, उनके अलावा कोई भी स्तुति को इस नाम से नहीं बुला सकता था|

बिटिया के नाम का फैसला हुआ तो माँ ने बताया की कल रात तक गाँव से भाईसाहब, मेरी सासु माँ, भाभी जी और विराट घर आ रहे हैं| अनिल बेचारा घर नहीं आ पा रहा था क्योंकि उसने एक नई नौकरी पकड़ी थी| साथ ही कल सुबह मिश्रा अंकल जी अपने सहपरिवार के साथ आने वाले थे तथा दिषु और उसका परिवार भी कल सवेरे हमें मुबारकबाद देने आने वाले थे|

रात होने लगी थी और अब मुझे खाना बनाना था इसलिए मैंने धीरे से अपनी बिटिया स्तुति के हाथों से अपनी ऊँगली छुड़ाई| लेकिन जैसी ही मेरी ऊँगली आज़ाद हुई स्तुति की नींद में विघ्न पड़ गया और वो जाग गई तथा जागते ही स्तुति ने रोना शुरू कर दिया! ये दृश्य देख कर हम सभी को हैरानी हुई की कैसे स्तुति ने सबसे पहले मुझसे...यानी अपनी पिता से कुछ घंटों के भीतर ही लगाव बना लिया था| मैंने फौरन स्तुति को गोदी में लिया तथा उसे अपनी ऊँगली पकड़ाते हुए दुलार करने लगा| मेरे दुलार से स्तुति का रोना रुका नहीं अपितु थोड़ा कम अवश्य हो गया था| माँ ने जब पिता-पुत्री का ये मोह देखा तो माँ बोलीं; "बेटा तू रहने दे क्योंकि तेरे हिलने भर से बिटिया रोने लगती है| मैं ही फटाफट दाल-चावल बनाती हूँ|" ये मेरी बिटिया की अनजाने में की गई पहली शैतानी थी जिस कारण आज माँ को खाना बनाना पड़ रहा था|

खैर माँ खाना बनाने गईं तो नेहा भी उनकी मदद के लिए फुदकती हुई चली गई, इधर मेरी बिटिया को भूख लगी थी तो संगीता उसे दूध पिलाने लगी, पर दूध पीते हुए भी मेरी बिटिया ने अपने पापा जी की ऊँगली नहीं छोड़ी! ये दृश्य देख संगीता हँस पड़ी और बुदबुदाते हुए बोली; "पहले दो थे अब ये तीसरी भी आ गई!" संगीता की बात का अर्थ था की अभी तक उसे मेरा प्यार पाने के लिए केवल दो बच्चों से लड़ना पड़ता था, लेकिन अब स्तुति के आने के बाद संगीता को एक और प्रतिद्व्न्दी मिल गई थी! संगीता को भले ही लग रहा था की मैंने उसकी बुदबुदा कर कहि हुई बात नहीं सुनी मगर मैंने उसकी ये बात सुन ली थी और इस बात से मेरे चेहरे पर मुस्कान आ गई थी!

इधर आयुष बड़े गौर से अपनी छोटी बहन को दूध पीते हुए देख रहा था| संगीता ने जब आयुष को यूँ गौर से स्तुति को दूध पीते हुए देखा तो वो उससे पूछने लगी; "इतना गौर से क्या देख रहा है बेटा?" अपनी मम्मी के पूछे इस सवाल एक जवाब में आयुष बड़े जोश से बोला; "मम्मी, स्तुति मुझसे बात कब करेगी?" आयुष के इस बचकाने सवाल पर संगीता हँस पड़ी और आयुष को बहलाते हुए बोली; "अभी तो आई है, अभी वो देखेगी की तू कितना अच्छा बच्चा है, फिर तुझसे बात करेगी!" अपनी मम्मी की बात सुन आयुष को यक़ीन हो गया की स्तुति उससे तभी बात करेगी जब वो अच्छा बच्चा बन कर दिखायेगा| एक अच्छा बच्चा बनने की डगर पर चलते हुए आयुष फट से उठ खड़ा हुआ और हमें सुनाते हुए बोला; "मम्मी, मैं जा कर दादी जी की मदद करता हूँ|" आयुष का उत्साह बढ़ाने के लिए मैंने उसे शब्बाशी दी और आयुष अपनी दादी जी के पास मदद करने के लिए रसोई में दौड़ गया|

रात को हम सबने खाना हमारे कमरे में ही खाया| जब हम खाना खा रहे थे तब स्तुति सो चुकी थी परन्तु उसने मेरी ऊँगली अब भी कस कर पकड़ी हुई थी| मेरा दायाँ हाथ स्तुति के कब्जे में होने के कारण मुझे खाना नेहा ने अपने हाथ से खिलाया| अब माँ को ये दृश्य देख कर कुछ अलग ही आनंद आ रहा था इसलिए खाना खाते हुए भी वो मुस्कुरा रहीं थीं| वहीं आयुष की जुबान पर सवाल था; "दादी जी, स्तुति ने पापा की ऊँगली क्यों पकड़ रखी है?" आयुष का सवाल जायज था मगर इसका सही जवाब किसी के पास नहीं था| स्तुति के मेरी ऊँगली पकड़े रखने का कोई तर्क नहीं था, इसे प्राकृतिक क्रिया कहें या फिर भावनात्मक क्रिया ये हम में से किसी को नहीं मालूम था| लेकिन आयुष के सवाल का जवाब तो देना था इसलिए मैंने थोड़ा गोल-मोल जवाब दिया; "बेटा, आपकी छोटी बहन को मेरी ऊँगली पकड़ने से सुरक्षित महसूस होता है इसीलिए वो मेरी ऊँगली पकड़े हुए है|" मेरा जवाब सुन आयुष को अचम्भा हुआ की भला ये कैसे मुमकिन है इसलिए वो पूछने लगा की; "लेकिन स्तुति को डर किस बात का है?" अब इस सवाल का जवाब मेरे पास नहीं था पर नेहा के पास अवश्य था; "जैसे मैं सपना देख कर डर जाती थी और पापा जी की गोदी में जाने से चुप हो जाती थी, वैसे ही स्तुति को भी डर लगता होगा इसीलिए वो पापा जी की ऊँगली पकड़े हुए है|" नेहा के जवाब से आयुष को संतुष्टि मिल गई थी| अब आयुष को अपनी छोटी बहन को यक़ीन दिलाना था की उसे डरने की कोई जर्रूरत नहीं है इसलिए आयुष मेरे पास आया और सो रही अपनी बहन से बोला; "आपको डरने की कोई जर्रूरत नहीं है| आपका बड़ा भाई यहाँ है, आपको कोई भी दिक्कत हो न तो मुझे बताना!" आयुष ने खुद को बड़ा भाई कहते हुए इतना अभिमान किया था माना वो कोई वयस्क हो!

इधर आयुष की कही इस बात पर नेहा को उसकी टाँग खींचने का मौका मिल गया था; "अँधेरे में बाथरूम जाने में डरता है और खुद को बड़ा भाई कहता है! (हुँह!)" नेहा ने जब आयुष का मज़ाक उड़ाया तो सभी हँस पड़े और आयुष अपने प्यार भरे गुस्से से अपनी दीदी को देखने लगा| कहीं दोनों भाई-बहन लड़ न पड़ें इसलिए मुझे ही आयुष का पक्ष लेना पड़ा; "अभी आयुष छोटा है, जब बड़ा हो जायेगा तो नहीं डरेगा|" मेरे इतना कहने भर से आयुष का चेहरा फिर से खिल गया|

खाने खाने के बाद आई सोने की बारी| अब समस्या ये की मुझे जाना था बाथरूम क्योंकि जब से मेरी बिटिया मेरी गोदी में आई थी, मैं तब से अपना बाथरूम रोक कर बैठा था, ऊपर से घर आने के बाद से मैंने कपड़े नहीं बदले थे| मेरी दशा समझते हुए संगीता ने स्तुति को मेरी गोदी से लिया और मैंने इस बार बड़ी सावधानी से अपनी ऊँगली छुड़ा ली| इससे पहले की स्तुति की नींद टूटे मैंने फटाफट सारे काम निपटाए और पलंग पर आ गया| शुक्र है की मेरी बिटिया की नींद में कोई ख़लल नहीं पड़ा था| संगीता ने स्तुति को पलंग के बीचो-बीच लिटाया था और हम दोनों मियाँ-बीवी उसके अगल-बगल लेटे हुए थे| संगीता थकी हुई थी इसलिए उसे लेटते ही नींद आ गई मगर मेरी नजरें बस मेरी बिटिया पर चिपकी हुई थीं| मैंने धीरे से स्तुति के दाहिने हाथ में अपने दाहिने हाथ की तर्जनी ऊँगली पकड़ा दी| जैसे ही स्तुति को मेरी ऊँगली का एहसास अपनी छोटी सी हथेली में हुआ, उसने फट से अपनी मुठ्ठी भींच ली जिससे मेरी ऊँगली उसकी हथेली में कैद हो गई! अपनी बेटी की नींद में दी हुई इस प्रतिक्रिया पर मुझे प्यार आ गया और मैंने स्तुति के मस्तक को चूम लिया|

रात 1 बजे स्तुति की नींद टूटी क्योंकि एक तो उसे भूख लगी थी और दूसरा स्तुति ने सुसु कर दिया था| मैंने संगीता को प्यार से उठाया, स्तुति को चुप कराते हुए संगीता उसे दूध पिलाने लगी| इधर मैं स्तुति का बिस्तर बदलने लगा ताकि दूध पीने के बाद स्तुति सूखे बिस्तर पर सो सके| स्तुति को सुलाते-सुलाते रात के ढाई बज गए थे इसलिए संगीता की सुबह नींद नहीं खुली|

मैं जानत था की स्तुति उठते ही मुझसे लिपट जाएगी और फिर मैं घर का कोई काम नहीं कर पाउँगा इसलिए मैंने सुबह जल्दी उठ कर सारे काम निपटाने शुरू कर दिए| संगीता के जागते-जागते मैंने माँ और बच्चों को चाय-नाश्ता करा दिया था|

उधर कमरे के भीतर संगीता जाग चुकी थी| स्तुति के पैदा हुए कुछ घंटे बीत चुके थे मगर हम में से किसी ने भी पिताजी को खबर नहीं की थी| जहाँ एक तरफ मुझे किसी को खबर करना याद नहीं था, वहीं माँ को याद तो था मगर उन्होंने जानबूझ कर पिताजी को इत्तला नहीं करने का फैसला लिया था| इधर संगीता को लग रहा था की स्तुति के जन्म की खुशखबरी सुनकर पिताजी का दिल पिघल जायेगा और वो हमारे पास पुनः लौट आएंगे| दिल में उमंग लिए की स्तुति के जन्म के कारण हमारा परिवार पुनः एक हो जायेगा संगीता ने पिताजी को फ़ोन मिलाया| वहीं पिताजी ने बिना देखे की किस का कॉल है, उन्होंने फ़ोन उठा लिया;

संगीता: पाँयलागी पिताजी!

संगीता की आवाज़ सुन पिताजी को अस्चर्य हुआ की भला संगीता ने कैसे उन्हें कॉल किया?!

पिताजी: जीते रहो बहु!

पिताजी बड़ी सादी आवाज़ में कहा, जो की दर्शाता था की उनके दिल में अब हम सबके लिए जज़्बात मर चुके थे|

संगीता: पिताजी, आपको खुश खबरि देनी थी! आप एक प्यारी सी गुड़िया के दादा बन गए हैं!

संगीता ने पूरे उत्साह से पिताजी को ये खबर सुनाई|

पिताजी: मुबारक हो बहु!

इस बार पिताजी की आवाज़ में ख़ुशी झलक रही थी परन्तु उनकी इस ख़ुशी पर अपने भाईसाहब द्वारा लगाई लगाम थी| वो खुश तो थे परन्तु अपनी ख़ुशी को दबाये हुए थे|

संगीता: पिताजी, जो हुआ उसे भूल कर आ जाइये और अपनी पोती को अपने गले लगा लीजिये!

संगीता पिताजी से विनती करते हुए बोली|

पिताजी: नहीं बहु! अब मानु से मेरा कोई वास्ता नहीं रहा! मैं खुश हूँ की लड़की पैदा हुई है और मैं उसके लिए यहीं से अपना आशीर्वाद भेज रहा हूँ|

पिताजी की आवाज़ में पुनः खुश्की लौट आई थी|

संगीता: आपका इनसे (मुझसे) कोई वास्ता नहीं...ठीक है! लेकिन मेरी छोटी सी बच्ची का क्या कसूर है? क्या उसे अपने दादा जी के प्यार पाने का हक़ नहीं? आप अपनी ही पोती से उसके दादा जी के लाड-प्यार का हक़ छीनना चाहते हैं?!

संगीता के प्रश्न को सुन पिताजी निरुत्तर हो गए थे| जब उन्हें कोई जवाब नहीं मिला तो उन्होंने सारा दोष मेरे सर मढ़ दिया;

पिताजी: बहु, सवाल मुझ से नहीं अपने पति से पूछ, उसी के कारण मैं यहाँ गाँव में हूँ!

संगीता आगे कुछ कहती उससे पहले ही पिताजी ने फ़ोन काट दिया|

पिताजी का रुखा व्यवहार अभी तक या तो माँ ने झेला था या फिर मैंने| परन्तु जब संगीता ने पिताजी का ये रुखा व्यवहार देखा तो उसे बहुत दुःख हुआ और वो सिसकने लगी| ठीक उसी समय मैं संगीता के लिए चाय ले कर कमरे में आया और संगीता को यूँ सिसकते हुए देख चौंक गया| मुझे देख संगीता ने मेरा हाथ पकड़ मुझे अपने पास बिठाया और सब सच बताया| "तुम्हें क्या जर्रूरत थी पिताजी को फ़ोन करने की?" मैंने प्यार से संगीता को अपने गले लगाते हुए पुछा| "पिताजी के लिए मैं ही दोषी हूँ और उनकी ये सोच कभी नहीं बदलेगी इसलिए हमारी बिटिया को रस्सी का पुल्ल बना कर पिताजी को हमारे परिवार से जोड़ना बंद कर दो|" मैंने संगीता को प्यार से समझाते हुए कहा|

मैं संगीता को चुप ही करवा रहा था की इतने में स्तुति जाग गई और रोने लगी| मैंने फौरन स्तुति को गोदी में उठाया और उसे चुप कराने के लिए उसकी दाहिनी हथेली में अपनी दाएँ हाथ की तर्जनी ऊँगली थमा दी| मेरी ऊँगली का स्पर्श महसूस होते ही स्तुति का रोना कम हो गया और स्तुति का बाकी का रोना संगीता के दूध पिलाने से बंद हो गया| हम तीनों कमरे से बाहर आये और संगीता ने माँ को सारी बात बताई| माँ ने भी संगीता को वही बात समझाई जो मैंने उसे कमरे के भीतर समझाई थी| हम आगे और बात कर पाते उससे पहले ही बच्चे आ गए तथा अपनी छोटी बहन की पप्पी लेने लगे इसलिए माँ ने बात आगे नहीं बढ़ाई| तभी दिषु अपने परिवार के साथ अपनी छोटी भतीजी से मिलने आ गया| हर बार की तरह इस बार भी दिषु मुझसे नाराज़ था क्योंकि मैंने उसे स्तुति के जन्म की खबर नहीं दी थी| "मुबारक हो भाभी जी! मेरी प्यारी-प्यारी भतीजी कहाँ है?" दिषु ने जानबूझ कर केवल संगीता को बधाई दी और मेरे उसके सामने स्तुति को गोद में लिए होने के बावजूद सवाल संगीता से पुछा| मैंने तुरंत स्तुति को दिषु की गोदी की तरफ बढ़ाया तो वो अपने नकली गुस्से से मुझे देखने लगा| "भाई, मुझे भी मुबारकबाद दे दे!" मैंने मुस्कुराते हुए कहा तो दिषु एकदम से तिलमिलाते हुए बोला; "तुझे काहे की मुबारकबाद दूँ बे! तूने थोड़े ही मुझे फ़ोन कर के बताया था की मैं चाचा बन गया!"

"सॉरी भाई! लेकिन अपनी बिटिया को पा कर मुझे कुछ सुध-बुध ही नहीं रही| मैंने तुझे क्या, किसी को भी फ़ोन कर के ये खुशखबरी नहीं दी, सभी को खुशखबरी माँ ने ही दी है|" मैंने अपनी सफाई दी परन्तु दिषु कहाँ इतनी आसानी से मानने वाला था, अतः संगीता को ही मेरी पैरवी करनी पड़ी; "माफ़ कर दीजिये दिषु भैया, इन्होने बड़ा इंतज़ार किया है अपनी बिटिया के लिए और जब वो मिली तो ये सच्ची सब कुछ भूल गए थे|" संगीता की बात सुन दिषु को विश्वास हुआ और उसने मुझे माफ़ कर दिया| हम दोनों भाइयों की ये नोक-झोंक देख माँ और दिषु के माता-पिता को बड़ा आनंद आ रहा था| बहरहाल सभी ने स्तुति को गोदी में ले कर लाड-प्यार किया तथा अपना आशीर्वाद दिया|

[color=rgb(163,]जारी रहेगा भाग - 11(2) में...[/color]
 

[color=rgb(251,]इकत्तीसवाँ अध्याय: घर संसार[/color]
[color=rgb(44,]भाग - 11 (2)[/color]


[color=rgb(71,]अब तक अपने पढ़ा:[/color]

"सॉरी भाई! लेकिन अपनी बिटिया को पा कर मुझे कुछ सुध-बुध ही नहीं रही| मैंने तुझे क्या, किसी को भी फ़ोन कर के ये खुशखबरी नहीं दी, सभी को खुशखबरी माँ ने ही दी है|" मैंने अपनी सफाई दी परन्तु दिषु कहाँ इतनी आसानी से मानने वाला था, अतः संगीता को ही मेरी पैरवी करनी पड़ी; "माफ़ कर दीजिये दिषु भैया, इन्होने बड़ा इंतज़ार किया है अपनी बिटिया के लिए और जब वो मिली तो ये सच्ची सब कुछ भूल गए थे|" संगीता की बात सुन दिषु को विश्वास हुआ और उसने मुझे माफ़ कर दिया| हम दोनों भाइयों की ये नोक-झोंक देख माँ और दिषु के माता-पिता को बड़ा आनंद आ रहा था| बहरहाल सभी ने स्तुति को गोदी में ले कर लाड-प्यार किया तथा अपना आशीर्वाद दिया|

[color=rgb(26,]अब आगे:[/color]

स्तुति
कभी दिषु की गोद में होती तो कभी दिषु के पिताजी की गोदी में तो कभी दिषु की मम्मी जी की गोदी में, इतनी गोदियों में घूमने के बाद भी मेरी बिटिया को चैन नहीं मिल रहा था| उसका रोना तो बस मेरी गोदी में आ कर, मेरे दाहिने हाथ की तर्जनी ऊँगली अपनी छोटी सी मुठ्ठी में जकड़ने के बाद ही थमता था| दिषु और उसका परिवार ये दृश्य देख कर बहुत अचम्भित थे की कैसे केवल मैं ही स्तुति को सँभाल पाता हूँ|

आखिर कुछ समय बाद दिषु और अंकल-आंटी जी हमसे विदा ले कर चले गए| अब समय था स्तुति को नहलाने का परन्तु मेरी बिटिया नींद में होते हुए भी मेरी ऊँगली जकड़े हुए थे| माँ ने मुझे आदेश दिया की मैं स्तुति को संगीता को सौंप दूँ ताकि संगीता मेरी बिटिया को नहला दे| बड़ी सावधानी से मैंने स्तुति को संगीता की गोदी में सौंपा|

अब मैं आपको बता दूँ की हमारे गाँव में छोटे बच्चों को कैसे नहलाया जाता है| स्त्रियाँ ज़मीन पर दोनों पैर सीधे फैला कर बैठतीं हैं तथा बच्चे के सर को दोनों पाँव के पंजों पर रख लिटाया जाता है| गर्मियाँ हों तो बच्चे को ठंडे पानी से और यदि सर्दियाँ हों तो गुनगुने पानी से नहलाया जाता है| नहलाने के बाद बच्चे को इसी प्रकार लिटा कर तेल भी लगाया जाता है| लेकिन पता नहीं मुझे ये दृश्य क्यों अमानवीय लगता था?! मेरे अनुसार छोटे बच्चे को जिसे हम इतना प्यार करते हैं उसे अपने पाँव पर इस प्रकार नहलाना उचित नहीं था|

अब ज़ाहिर है की स्तुति को भी ऐसे ही नहलाया जाना था| लेकिन इससे पहले स्तुति का नहलाना शुरू होता मैं तुरंत गुनगुना पानी ले आया ताकि मेरी बिटिया को ठंडे पानी के सम्पर्क में आने से कोई कष्ट न हो| मेरी सतर्कता देख संगीता मुस्कुरा दी और उसने स्तुति को नहलाना शुरू किया| जैसे ही स्तुति के शरीर पर पानी का स्पर्श हुआ मेरी बिटिया जाग गई और रोने लगी| उसका रोना देख मेरे कलेजा धक् सा रह गया! मुझसे अपनी बिटिया का ये रोना नहीं देखा जा रहा था और मेरे चेहरे पर चिंता की लकीर खिंच आईं थीं| मेरा मन संगीता को रोकने का था मगर स्तुति को नहलाया जाना जर्रूरी था इसलिए मैं चुप चाप अपना मन मार के खड़ा था! संगीता ने जब मेरे चहरे पर चिंता देखि तो वो मुझे प्यार से समझाते हुए बोली; "आप जा कर खाना बना लो तबतक मैं स्तुति को नहला कर तेल लगा देती हूँ| फिर आप इसे गोदी में ले कर लाड-प्यार करना|" संगीता की बात सुन मैं तुरंत रसोई में घुसा और खाना बनाने लगा| खाना बनाने के दौरान मेरा पूरा ध्यान स्तुति पर लगा हुआ था| मेरी बिटिया की रोने की आवाज़ सुन कर मेरा खाना बनाने में मन ही नहीं लग रहा था|

मैं रोटी बना रहा था जब संगीता कमरे से निकली| "मैंने स्तुति को दूध पिला कर सुला दिया है| आप इसे सँभालो मैं रोटी बनाती हूँ|" संगीता स्तुति को मेरी ओर बढ़ाते हुए बोली, परन्तु मैं अपनी बिटिया को छूता उससे पहले ही माँ आ गईं ओर संगीता को प्यार से डाँटते हुए बोलीं; "नहीं बहु! कम से कम एक महीने तक तू रसोई में नहीं जाएगी! पता है न बच्चा पैदा करने में कितनी तकलीफ होती है, ऐसे में कमसकम एक महीना तुझे आराम करना है|"माँ की ये प्यारभरी डाँट दिखाती थी की मेरी माँ जानती हैं की एक बच्चा पैदा करने के बाद स्त्री को किस शरीरिक पीड़ा से गुजरना पड़ता है, जबकि मैं इस मामले में बिलकुल अनविज्ञ था! खैर संगीता को प्यार से डाँट माँ ने मुझे ले कर एक मज़ाकिया बात भी कह डाली; "फिर हमने ये (मैं) ख़ानसामा (खाना बनाने वाला) किस लिए रखा है?! पैसे देते हैं तो काम भी पूरा लेंगे न?!" माँ की इस बात पर संगीता को हँसी आ गई|

दोपर को खाने के समय हम सभी डाइनिंग टेबल पर बैठे थे| मेरे हाथ में चूँकि स्तुति थी तो मुझे खाना दोनों भाई-बहन (आयुष ओर नेहा) ने खिलाया| खाना खा कर हम सब बैठक में बैठे स्तुति के नामकरण और मुंडन के विषय पर बात कर रहे थे| इधर दोनों बच्चों को आ रही थी नींद इसलिए दोनों बच्चे मेरी एक-एक जांघ पर सर रख कर सोफे पर लेटे हुए थे| शाम 4 बजे मिश्रा अंकल जी अपने सहपरिवार के साथ स्तुति को आशीर्वाद देने आये| एक बार फिर मेरी बिटिया ने सभी की गोदी की सैर की जिससे उसकी नींद में खलल पड़ गया और वो रोने लगी| अंत में मेरी गोदी में आ कर मेरी ऊँगली थामकर मेरी बिटिया चुप हुई| ये दृश्य देख सभी को हम बाप-बेटी के ऊपर प्यार आने लगा|

शाम 7 बजे तो भाईसाहब के गाँव से आने का समय हुआ और मैं उन्हें लेने के लिए बस स्टैंड निकलने लगा| तभी दोनों बच्चों ने साथ चलने की जिद्द पकड़ी और मैंने ख़ुशी-ख़ुशी उनकी जिद्द का मान भी रखा| हम बाप-बेटा-बेटी बस स्टैंड पहुँचे और बस के आने का इंतज़ार करने लगे|

कुछ ही समय में बस आ गई, सबसे पहले निकले भाईसाहब और उन्होंने मुझे सीधा अपने गले लगाकर आशीर्वाद दिया| मुझे उनके पाँव छू आशीर्वाद लेने का मौका ही नहीं मिला| फिर निकली मेरी सासु माँ, मैंने उनके पाँव छू आशीर्वाद लिया| सासु माँ ने मेरे मस्तक को चूम मुझे बधाई दी और सर पर हाथ रख आशीर्वाद दिया| फिर मैं मिला भाभी से और मैं उनके पाँव छूता उससे पहले ही उन्होंने मुझे रोक दिया और मेरे दोनों गाल खींचते हुए मज़ाक करते हुए बोलीं; "अरे मैं तुम से 6 महीने बड़ी हूँगी, मेरे पाँव काहे छू रहे हो!" भाभी का मज़ाक सुन भाईसाहब हँसते हुए बोले; "अरे 6 महीने कहाँ, तुम तो कल ही पैदा हुई हो!" भाईसाहब ने भाभी जी की टाँग खींची जिस पर हम सभी खूब हँसे| अंत में मिला विराट जो "नमस्ते फूफा जी" कहते हुए मेरे पाँव छूने वाला था की मैंने उसे रोक दिया और सीधा गले लगा कर उसे आशीर्वाद देते हुए बोला; "अरे भई, पाँव नहीं गले मिलो यार!'

उधर बच्चे बारी-बारी से अपने बड़े मामा जी, ममी जी, और नानी जी के पाँव छू कर आशीर्वाद ले रहे थे तथा उनसे लाड-दुलार पा रहे थे| सबका मिलना हुआ तो हम सभी घर पहुँचे और घर पहुँचते ही सभी ने स्तुति को गोदी में ले कर लाड करना शुरू कर दिया| मेरी बिटिया एक बार फिर सभी की गोदी में सैर कर रही थी और रोये जा रही थी| "भाभी, ये शैतान (स्तुति) किसी से चुप नहीं होगी! इसे तो बस ये (मैं) ही चुप करवा सकते हैं!" संगीता ने लजाते हुए भाभी जी से कहा| संगीता की बातें सुन सभी उत्सुकता से मुझे देखने लगे| भाभी जी ने मुझे स्तुति को दिया और मैंने झट से अपनी ऊँगली स्तुति के हाथों में पकड़ाई और उसके मस्तक को बार-बार चूमते हुए लाड करना शुरू किया| मिनट भर नहीं हुआ होगा की मेरी बिटिया का रोना थम गया और वो पुनः सो गई!

सासु माँ: देखत हो समधन जी, मुन्ना और बिटिया कतना मोहात हैं! मिनट नाहीं लगिस और बिटिया चुपाये गइस!

मेरी सासु माँ हम बाप-बेटी के प्यार की तारीफ करते हुए बोलीं|

भाभी जी: एक बात बताऊँ मानु, छोटा बच्चा सबसे पहले अपनी माँ से रिश्ता बनाता है क्योंकि माँ ही बच्चे को इस दुनिया में लाती है| लेकिन यहाँ बिटिया का तुमसे मोह बढ़ाना, तुम्हारे स्पर्श के एहसास से चुप हो जाना बताता है की तुम दोनों का रिश्ता कितना गहरा है! एक माँ के रिश्ते से भी ज्यादा गहरा!

भाभी जी की कही ये बात कल रात आयुष के पूछे सवाल का उपयुक्त जवाब था| इधर भाभी जी की कही इस बात ने मेरे दिल में घर कर लिया था, मैं मन ही मन इस बात की ख़ुशी मना रहा था की मेरा मेरी बेटी से इतना अनोखा बंधन बन चूका है!

रात के खाने के समय हो रहा था और खाना मैंने बस स्टैंड जाने से पहले ही बना कर तैयार कर दिया था| चूँकि मेरी गोदी में स्तुति थी तो खाना परोसने का काम विराट, आयुष और नेहा ने मिल कर किया| मटर-पनीर, गोभी मसाला, रायता, रोटी और चावल देख कर सभी (मेरी सासु माँ, भाईसाहब और भाभी जी) दंग रह गए क्योंकि उन्होंने इतने स्वादिष्ट खाने की कामना नहीं की थी| "ई सब तू बनाया है मुन्ना?" मेरी सासु माँ हैरान होते हुए बोलीं| दरअसल मेरी सासु माँ जानती थीं की पिछले कई महीनों से मैं ही चूल्हा-चौका सँभाल रहा था परन्तु मैं 8 लोगों के लिए इतना सारा खाना अकेला बना सकता हूँ इसकी उन्हें आशा नहीं थी| इधर, सासु माँ के पूछे इस सवाल से मेरे चेहरे पर मुस्कान आ गई; "माँ (मेरी सासु माँ) मैं अकेले ही सारा काम थोड़े ही करता हूँ?! आयुष है, नेहा है और (मेरी) माँ भी तो हैं| सब मेरी थोड़ी-थोड़ी मदद करते हैं, मैं तो बस खाना पकाने का काम करता हूँ|" मैंने बड़ी हलीमी से मुझे मिलने वाली सारी तारीफ बच्चों और माँ में बाँट दी ताकि मुझे कम शर्माना पड़े! वहीं मेरी शर्म समझते हुए भाभी जी को मेरी टाँग खिंचाई करने का मौका मिल गया; "चलो मैंने न सही मगर मनु भैया ने तो मुझे अपने हाथ का खाना आज बना कर खिला दिया!" भाभी के किये मज़ाक पर हम सभी हँस पड़े|

भाभी जी से मेरा देवर-भाभी का रिश्ता कुछ ज्यादा ही मसखरा स्थापित हुआ था| उन्हें बात-बात पर मेरी टाँग खिंचाई करना अच्छा लगता था और वो हमेशा कोई न कोई मौका ढूँढती थीं की वो मेरी टाँग खिंचाई कर सकें| खाना खाते समय जैसे ही भाभी जी ने पहला निवाला खाया वो अचम्भित होते हुए मुझे देखने लगीं और बोलीं; "भई अगर मुझे रोज़ ऐसा स्वाद खाना खाने को मिले तो मैं तो कभी रसोई में घुसूँ ही न!" भाभी जी ने ये बात कहते हुए संगीता को कोहनी मारी जिस पर संगीता मुझे देखते हुए मुस्कुराने लगी| भाभी जी की बात सुन मेरी सासु माँ और भाईसाहब भी मेरे बनाये खाने की तारीफ करने लगे| "अरे आभायें तू खायो ही का है, मानु जउन तिगड़म लगाए के खाना बनावत है ऊ देखियो तो ऊँगली चाटत रही जैहो! जैन मेर का खाना मानु बनावत है ऊ खाये के तो तोहार ससुर जी, जे कभौं हमरे हाथे के बिना केहू और के हाथ का खाना नाहीं खावत रहे वोऊ मानु की तारीफ करत रहे!" मेरी सासु माँ मेरे बनाये खाने का बखान करते हुए भाभी जी से बोलीं| "सच अम्मा?! पिताजी ने मानु के हाथ का खाना खाया था?" भाईसाहब हैरान होते हुए सासु माँ से पूछने लगे, तो माँ ने उन्हें उस बार की कहानी सुनाई जब वो और ससुर जी पहलीबार एकसाथ दिल्ली आये थे|

"फिर तो मुझे भी खाना बनाना सीखा देना मानु भैया|" भाभी मुझे छेड़ते हुए बोलीं| "कभी-कभी तुक्के से अच्छा खाना बना लेता हूँ!" मैंने शर्माते हुए कहा तो भाभी जी मुझे छेड़ते हुए बोलीं; "अच्छा जी? चलो फिर ये तुक्के मारना मुझे भी सीखा देना!"

खाना खाने के बाद सोने की बारी थी और सोने का इंतज़ाम कुछ इस प्रकार था; भाभी जी, संगीता और मेरी लाड़ली स्तुति हमारे कमरे में सोने वाले थे तथा उसी कमरे में नेहा एक फोल्डिंग चारपाई पर सोने वाली थी| मैं, भाईसाहब और विराट बच्चों वाले कमरे में सोने वाले थे, विराट का बिस्तरा एक फोल्डिंग चारपाई के रूप में लगाया गया था| मेरी माँ, सासु माँ और आयुष, माँ के कमरे में सोने वाले थे|

आधी रात बीती होगी की मेरी लाड़ली जाग गई और रोने लगी| संगीता ने नेहा को उठाया और मुझे बुलाने को कहा| नेहा आँख मलते हुए मेरे पास आई और धीरे से मुझे जगाया| नेहा को देख मैं कुछ पूछता उससे पहले ही मुझे स्तुति के रोने की आवाज़ आ गई| मैं फौरन उठ कर नेहा के साथ कमरे में आ गया| स्तुति के रोने के कारण भाभी जी भी जाग गईं थीं, मुझे देखते ही वो फिर मेरी खिंचाई करते हुए बोलीं; "लो भैया, सँभालो अपनी लाड़ली को! कितना लाड किया इसे मगर ये है की चुप होने का नाम ही नहीं लेती| कहती है पापा जी की ऊँगली पकड़ाओ मुझे!" मैंने मुस्कुराते हुए अपनी लाड़ली को गोदी में लिया और उसे अपनी ऊँगली पकड़ा कर पुचकारने लगा; "Awww मेला बच्चा!! ओ ले ले...बस...बस मेरा बच्चा....पापा हैं यहाँ पर!" मैंने थोड़ा सा स्तुति को लाड किया और उसका रोना कम होने लगा| धीरे-धीरे मेरी लाड़ली चुप हो गई और अपनी आँखें बंद कर आराम से सो गई| स्तुति के चुप होते ही भाभी जी बोलीं; "अब इसे अपने साथ ही ले जाओ वरना फिर जाग जाएगी और हमारी नींद खराब करेगी!" भाभी जी जानती थीं की मेरी मि महसूस कर स्तुति फिर जाग जाएगी इसलिए उन्होंने ये सुझाव दिया था| मैं स्तुति को अपने साथ ले जा ही रहा था की संगीता एकदम से बोली; "स्तुति के रोने से भैया की नंद खराब हुई तो?" संगीता का प्रश्न सुन भाभी जी एकदम से बोलीं; "तो होने दो, हमें क्या करना है? ये (मैं) जाने और तुम्हारे भैया जाने, कमसकम हमारी नींद तो खराब नहीं होगी न!" भाभी जी मज़ाकिया अंदाज़ में बोलीं और फ़ट से लेट गईं| भाभी जी के मज़ाक को सुन हम दोनों मियाँ-बीवी हँस पड़े| मैं अपनी लाड़ली बिटिया को ले बच्चों वाले कमरे में आ गया और संगीता आराम से सो गई| मेरा साथ था इसलिए मेरी बिटिया की नींद में कोई व्यवधान नहीं पड़ा और वो आराम से सोती रही|

अगली सुबह मैं जल्दी उठा और बच्चों को स्कूल के लिए तैयार करने लगा| तभी भाभी जी भी उठीं और उन्होंने बच्चों के लिए दूध तथा नाश्ता बना कर तैयार किया| मैंने उन्हें बहुत मना किया की वो आराम करें मगर भाभी जी मेरे साथ मज़ाक करते हुए बोलीं; "क्यों मेरी सेवा कर के मुझे पाप का भागी बना रहे हो?!" भाभी जी की बात सुन सासु माँ भी उन्हीं के साथ हो गईं; "और का? भौजाई होवत काहे लिए है?" सासु माँ के मज़ाक में कही बात पर हम सभी खूब हँस पड़े|

बच्चों के स्कूल जाने के बाद हम सभी बैठक में बैठे चाय पी रहे थे जब माँ ने स्तुति के नामकरण और मुंडन का विषय उठाया| नामकरण का नाम सुनते ही सासु माँ, भाभी जी और भाईसाहब ने अपनी तरफ से नाम सुझाने शुरू कर दिए;

सासु माँ: 'गँगा' ई नाम मुन्नी खतिर ठीक रही" का कहत हो?

सासु माँ मेरी माँ से बोलीं|

भाईसाहब: नाहीं अम्मा, हम बताई...रितिका नाम सही लागि| जब विराट पैदा भय वाला रहा तब हम सोचें रहन की अगर लड़की भई तो रितिका नाम रखब|

भाईसाहब ने नाम सुझाया तो भाभी जी भी पीछे नहीं रहीं और उनकी बात काटते हुए बोलीं;

भाभी जी: नाहीं-नाहीं! हमार भाँजी का नाम सोनिया रखो और घर का नाम पिंकी!

सभी के सुझाव सुन मेरी माँ मुस्कुराईं और मेरी तरफ इशारा करते हुए सबसे बोलीं;

माँ: नाम तो मानु पाहिले से सोच राखिस है!

माँ स्तुति नाम बोल नहीं पातीं थी इसलिए उन्होंने मुझे सभी को ये नाम बताने का इशारा किया;

मैं: स्तुति!

ये नाम सभी को अच्छा लगा और सभी मेरी तारीफ करने लग पड़े;

भाईसाहब: वाह मानु, नाम तो बड़ा ही पवित्र है!

भाभी जी: हाँ बिलकुल पंडितों जैसा नाम रखा है मानु ने|

भाभी जी ने थोड़ा मज़ाक करते हुए मेरी पीठ थपथपाई| वहीं सासु माँ से ये नाम बोला नहीं जा रहा था;

सासु माँ: सु...सूती (स्तुति)!

भाईसाहब: सूती नहीं अम्मा.स्तुति!

भाईसाहब ने सासु माँ की नाम बोलने में मदद की मगर सासु माँ से ये नाम बोला ही नहीं गया|

सासु माँ: नाम तो बहुते नीक है लेकिन हम से बोला नाहीं जात!

सासु माँ थोड़ा चिंतित होते हुए बोलीं| तब मेरी माँ ने उनसे अपने द्वारा रखा हुआ नाम साझा किया;

माँ: हमहूँ से नहीं बोला जात, एहि से हमरे खतिर हम एक ठो बिटिया का नाम रख दिहिन: 'शुगी"! तुहुँ ई नाम से आपन नातिन का बुलायो, बाकी इन सब का ऊ नाम (स्तुति) से बुलाये दिहो!

सासु माँ को ये नाम बड़ा प्यारा लगा और वो माँ के दिए हुए इस नाम से सहमत होते हुए बोलीं;

सासु माँ: ई सही है, हम दुनो दादी-नानी मुन्नी का 'शुगी' कह कर बुलाब|

सासु माँ की इस बात पर हम सभी हँस पड़े| सच कहूँ तो मेरी माँ और सासु माँ ने मेरा दिया हुआ ये नाम केवल मेरा स्तुति से मोह देखते हुए स्वीकारा था| यदि ये नाम किसी और ने सुझाया होता तो ये नाम कभी नहीं स्वीकारा जाता|

खैर, अब चूँकि भाभी जी रसोई सँभाल रहीं थीं तो मैं बाहर के काम सँभाल सकता था| लेकिन मेरा मन अपनी बिटिया से दूर जाने को नहीं होता था| भाभी जी मेरी व्यथा समझ रहीं थीं इसलिए उन्होंने भाईसाहब को मेरे साथ साइट देखने जाने का बहाना कर आगे कर दिया| अब भाईसाहब को कैसे मना करता इसलिए मैं बेमन से मान गया और उनके साथ साइट के लिए निकला| रास्ते भर हमारी बातें होती रहीं जिससे मेरा ध्यान थोड़ा भटक गया था, इन्हीं बातों में पता चला की भाईसाहब का दिल्ली आना-जाना रहता था| हम साइट पहुँचे तो मैंने सबसे पहले संगीता को फ़ोन कर अपनी बिटिया का हाल-चाल पुछा| संगीता ने मेरे जाने के बाद स्तुति को नहलाया था इसलिए मेरी बिटिया रो रही थी और कुछ देर पहले ही चुप हो कर सोइ थी| ये बात जानकार मुझे दुःख हुआ की जब मेरी बिटिया रो रही थी, जब उसे उसके पापा जी की सबसे ज्यादा जर्रूरत थी मैं वहाँ नहीं था! फटाफट दोनों साइट के काम निपटा कर मैं भाईसाहब को ले कर बच्चों के स्कूल पहुँचा| जल्द ही बच्चों के स्कूल की छुट्टी हुई और दोनों बच्चे अपना बस्ता टाँगे गेट से बाहर निकले, उनकी नज़र हमारी गाडी पर पड़ी तो दोनों ख़ुशी से फूले नहीं समाये और सीधा हमारे पास दौड़ते हुए आये|

बच्चों को ले कर मैं घर पहुँचा और हाथ-मुँह धो कर सबसे पहले अपनी सो रही बिटिया से मिला| मैं अपने दोनों कान पकड़ उससे माफ़ी माँगी; "सॉरी बेटा जी, जब आप रो रहे थे तब मैं घर पर नहीं था!" मेरा ये बचपना देख मेरी माँ और सासु माँ हँस पड़े और मुझे समझाने लगे की धीरे-धीरे स्तुति का नहाने के समय रोना बंद हो जायेगा तथा मैं इतनी छोटी सी बात पर न घबरा जाऊँ| उनकी बात सही भी थी पर मैं ठहरा अति सतर्क पिता जिसे अपनी बिटिया की कुछ अधिक ही चिंता थी| स्तुति के ज़रा से रोने भर से मेरे दिमाग में तरह-तरह के साईरन बजने लगते थे|

शाम को माँ ने पंडित जी को नामकरण करने के लिए शुभ महूर्त निकालने के लिए बुलाया था| पंडित जी को हमने स्तुति नाम पहले ही बता दिया था जो की उनके अनुसार बिटिया के लिए उपयुक्त था| पंडित जी ने नामकरण का शुभ महूरत दो दिन के बाद का निकाल दिया क्योंकि उनका कहना था की वह दिन सबसे शुभ है| अब मैं तो पहले से ही अतिउत्साहित पिता हूँ तो मैंने उस दिन की सारी तैयारी शुरू कर दी| ये समारोह बहुत बड़ा नहीं था, बस कुछ करीबी लोग ही आने वाले थे|

दो दिन फट से बीत गए और आखिर वो शुभ दिन आ ही गया जब मेरी बिटिया का नामकरण होना था| पंडित जी ने विधिवत पूजा-जाप आदि किया और मेरे द्वारा रखा हुआ नाम मेरी बिटिया को दे दिया गया| पूजा के बाद खाना-पीना हुआ जिसमें सबसे आगे आयुष था! उसने ही सबको एक-एक कर खाना परोसा था| मेहमानों में दिषु और उसका परिवार तथा मिश्रा अंकल जी अपने सपरिवार सहित आये थे| मैंने सभी को मेरी सासु माँ, भाईसाहब और भाभी जी से मिलवाया| सभी ने मिल कर इस दिन को एक त्यौहार की तरह हर्ष और उल्लास से मनाया|

स्तुति के नामकरण के दूसरे दिन भाईसाहब को गाँव जाना था| विराट का स्कूल था और भाईसाहब को अपना कारोबार भी संभालना था| हम बड़े तो ये बात समझते थे परन्तु आयुष और नेहा नहीं मान रहे थे| वो इन कुछ दिनों में ही सबसे घुल-मिल गए थे इसलिए वो सभी को जबरदस्ती रोक रहे थे| "हम सब स्तुति के मुंडन पर फिर आएंगे!" भाईसाहब ने दोनों बच्चों को फिर आने का वादा किया तब जा कर बच्चे माने| परन्तु फिर भी आयुष ने अपने बड़े मामा जी को प्यार से चेता दिया; "अगर आप सब नहीं आये न तो मैं, दीदी और स्तुति आपसे बिलकुल बात नहीं करेंगे!" आयुष की ये प्यारभरी धमकी सुन सासु माँ अपने दोनों हाथ अपने गाल पर रखते हुए डरने का नाटक करते हुए बोलीं; "अरे दादा रे दादा! अब तो हम जर्रूर अइबे नाहीं तो हमार नाती-नातिन हमसे नाराज़ भय तो हम कहके लगे जाब!"

उधर भाभी जी को आयुष से चुटकी लेनी थी इसलिए उन्होंने भी लगे हाथों आयुष को प्यारभरी धमकी दे डाली; "आयुष बाबू, अगर आप हम से मिलने गाँव नहीं आये न तो मैं आपसे बात करना बंद कर दूँगी|" इतना सुनना था की आयुष जा कर अपनी मामी जी की गोदी में चढ़ गया और हाजिर जवाबी से बोला; "ममी जी, मैं तो कितना छोटा हूँ, कहीं अकेले आ-जा नहीं सकता| आप है न मुझे लेने दिल्ली आ जाना और मैं आपके साथ गाँव चलूँगा! फिर बाद में मुझे छोड़ने भी दिल्ली आना और यहाँ मेरे साथ रहना|" आयुष की हाजिर-जवाबी देख भाभी जी ने उसके गाल चूम आशीर्वाद दिया|

तो कुछ इस तरह से हमने सासु माँ, भाईसाहब, भाभी जी और विराट को हँसी-ख़ुशी विदा किया| उनकी ट्रैन रात की थी इसलिए उन्हें स्टेशन छोड़ने मैं अकेला गया तथा ट्रैन में बिठा कर ही घर लौटा|

[color=rgb(163,]जारी रहेगा भाग - 11(3) में...[/color]
 

[color=rgb(251,]इकत्तीसवाँ अध्याय: घर संसार[/color]
[color=rgb(44,]भाग - 11 (3)[/color]


[color=rgb(71,]अब तक अपने पढ़ा:[/color]

तो कुछ इस तरह से हमने सासु माँ, भाईसाहब, भाभी जी और विराट को हँसी-ख़ुशी विदा किया| उनकी ट्रैन रात की थी इसलिए उन्हें स्टेशन छोड़ने मैं अकेला गया तथा ट्रैन में बिठा कर ही घर लौटा|

[color=rgb(26,]अब आगे:[/color]

मेरी बिटिया पूरे 1 महीने की हो गई थी और ये पूरा एक महीना मैंने स्तुति को एक-एक सेंटीमीटर बढ़ते हुए देखा| घर से बाहर का काम मैं अक्सर फ़ोन पर ही संभालता था क्योंकि अपनी बिटिया को घर छोड़ कर बाहर जाने का मन ही नहीं करता था| जब भी घर से बाहर का कोई जर्रूरी काम होता तो मैं उसी वक़्त बाहर निकलता जब मेरी बिटिया सो रही होती और उसके जागने से पहले ही घर लौट आता|

स्तुति के नहाने के लिए मैंने छोटे बच्चों के लिए मिलने वाला एक छोटा सा नहाने वाला टब खरीद लिया| स्तुति अब भी नहाते समय रोती थी, मुझ लग रहा था की शायद संगीता मेरी बिटिया को ठीक से नहीं नहलाती होगी इसलिए मैंने सोचा की क्यों न मैं ही मेरी बिटिया को एक बार नहलाऊँ?! स्तुति को नहलाने का फैसला कर मैंने सारी तैयारी शुरू की| स्तुति के कपड़े, तेल, साबुन, शैम्पू, क्रीम आदि सब मैंने बिस्तर पर ऐसे सजा के रख दिए ताकि जर्रूरत पड़ने पर मैं फटाफट हर चीज को इस्तेमाल कर सकूँ| संगीता उस समय माँ के साथ बैठक में बैठी बात कर रही थी जब मैं स्तुति को गोदी में लिए हुए बाथरूम में घुसा|

मैंने गीजर चालु किया तथा गर्म और ठंडे पानी का बिलकुल सही मिश्रण बाल्टी में बनाया| बाल्टी में पानी गिरने की आवाज़ से स्तुति जाग चुकी थी और अपनी अधखुली नजरों से मुझे देख रही थी| मैं बाथरूम के फर्श पर आलथी-पालथी मरकर बैठ गया तथा अपनी बिटिया को देखते हुए बोला; "बेटा, आज है न मैं आपको नहलाऊँगा!" पता नहीं मेरी बात स्तुति को कितनी समझ में आई, परन्तु उसके चेहरे पर एक प्यारी सी मुस्कान अवश्य खिल गई! अपनी बिटिया की इसी मुस्कान को उसकी स्वीकृति समझ मैं बहुत खुश हुआ|

मैंने स्तुति को कुछ इस तरह गोदी में लिया की उसका पूरा शरीर मेरे दाहिने हाथ पर आराम कर सके| फिर मैंने गुनगुना गर्म पानी स्तुति के ऊपर डालने के बजाये अपने सर पर डाला| धीरे-धीरे पानी मेरे सर पर से बहता हुआ स्तुति पर पड़ा तो स्तुति को कोई समस्या नहीं हुई| उसके चेहरे पर आई मुस्कान अब भी बनी हुई थी| "Awww मेला बेबी!" ये कहते हुए मैंने स्तुति के मस्तक को चूमा तो स्तुति की पहली किलकारी निकली!

मैंने धीरे-धीरे अपने ऊपर पानी डालना शुरू किया तथा वो पानी बहते हुए स्तुति पर गिरने लगा| अब बारी थी स्तुति को साबुन लगाने की इसलिए मैंने स्तुति को धीरे से टब में लिटाया और अपनी उँगलियों से धीरे-धीरे स्तुति को मलने लगा| मेरी गर्म उँगलियों के एहसास के कारण ही मेरी बिटिया शांत थी| जब स्तुति के चेहरे पर साबुन लगाने की बारी आई तो मेरी लाड़ली बिटिया ने हिलना शुरू कर दिया| चूँकि स्तुति के शरीर पर साबुन लगा था इसलिए स्तुति को उठाते हुए उसके फिसलने का खतरा था अतः मैंने बड़ी सावधानी से स्तुति को गोदी में उठाया| धीरे-धीरे मैंने पानी अपने सर पर डालना शुरू किया जो की धीरे-धीरे स्तुति के ऊपर गिरने लगा| हलके हाथों से मैंने स्तुति के शरीर पर से सारा साबुन छुड़ाया| फिर बड़ी सावधानी से मैंने स्तुति के चेहरे पर साबुन लगाया तथा पानी से धोया|

अपनी बिटिया को नहलाने के चक्कर में मैं बाथरूम का दवा बंद करना भूल गया था, जिसका भरपूर फायदा उठाते हुए संगीता मुझे बाथरूम के बाहर खड़ी हो कर स्तुति को नहलाते हुए देख रही थी| जैसे ही मैं स्तुति को गोदी में लिए हुए बाहर आने के लिए उठा संगीता मुझे देख मुस्कुराते हुए बोली; "कपड़े पहन कर बच्चे को कौन नहलाता है? और-और ये स्तुति को नहलाने का क्या तरीका है? देखो आपने अपने सारे कपड़े गीले कर लिए!" संगीता मुझे प्यार से डाँटते हुए बोली| अपनी बिटिया को नहलाने के जूनून में मैं अपने कपड़े उतारना ही भूल गया था! खैर, संगीता के पूछे सवाल के जवाब में अगर मैं कहता की मैंने स्तुति को इसलिए नहलाया क्योंकि संगीता को नहलाना नहीं आता तो संगीता मुझ पर रासन-पानी ले कर चढ़ जाती इसलिए मैंने चपलता दिखाते हुए बात बनाई और बोला; "तुम रोज़ नहलाती हो तो मेरी बिटिया रोती है, मैंने सोचा एकदिन मैं उसे नहला कर देखूँ! मुझे भी तो पता चले की आखिर वो रोती क्यों है?" मेरी बात सुन संगीता प्यारभरे गुस्से से मुझे देखने लगी| "अब तो मेरी कोई जर्रूरत नहीं रह गई इस घर में?!" संगीता मुझे उल्हाना देते हुए बोली| संगीता की बात सुन मैं मुस्कुराने लगा जिससे संगीता का प्यारभरा गुस्सा भड़क गया!

तभी संगीता की नज़र पड़ी स्तुति पर जो की बहुत शांत थी और उसके चेहरे पर एक प्यारी सी मकान बनी हुई थी| "तो पापा जी ने नहलाया इसलिए आज आपकी रोने की आवाज़ नहीं आई?! फिर तो अब से आप पापा जी के साथ नहाओगे?" मैं नहीं जानता स्तुति को क्या समझ आया पर वो अपनी मम्मी की बात सुन किलकारी मारने लगी| स्तुति को किलकारी मारते देख संगीता की नाक पर प्यारभरा गुस्सा आ गया|

मैं स्तुति को तौलिये से पोंछ कर तेल लगा रहा था की माँ और संगीता कमरे में आ गए| मुझे स्तुति की मालिश करते देख माँ मेरी पीठ थपथपाते हुए बोलीं; "शाब्बाश बेटा! लेकिन बेटा ऐसे कपड़े पहन कर स्तुति को नहलायेगा तो तू बीमार पड़ जाएगा|" मुझे शब्बाशी दे माँ ने संगीता से मज़ाक करते हुए कहा; "चल भई तेरा एक काम कम हुआ!" माँ की बात सुन संगीता हँस पड़ी और बोली; "ठीक है माँ, मैं रसोई सँभालती हूँ!"

संगीता के रसोई सँभालने से मैं अब सारा ध्यान स्तुति पर लगा सकता था| सिवाए दूध पीने जाने के मैं स्तुति को अपनी आँखों से कभी ओझल नहीं होने देता था| जब वो सो रही होती तो मैं बिस्तर पर पेट के बल लेट अपनी दोनों कोहनियाँ टेके स्तुति को सोते हुए देखता रहता| जब स्तुति जाग रही होती तो अध्खुली आँखों से मुझे देखती रहती, ऐसा लगता मानो वो मुझसे कुछ कहना चाहती हो! मेरी गोदी में होते हुए स्तुति हमेशा शांत रहती और कई बार उसकी किलकारियाँ घर में गूँजती रहतीं|

स्तुति पर मेरा सारा ध्यान केंद्रित होने से आयुष और नेहा पर से मेरा ध्यान हट गया था| आयुष तो फिर भी मेरी देखा-देखि स्तुति के पास रहता और स्तुति से खेलने की कोशिश करता रहता मगर नेहा...वो अब थोड़ा खामोश रहने लगी थी| उसे मिलने वाला प्यार अब स्तुति को मिलने लगा था जिससे नेहा ये सोचने में लगी थी की वो ऐसा क्या करे की मेरा ध्यान उस पर पुनः आ जाए और उसे वो प्यार फिर से मिलने लगे| नेहा ने कई बार कोशिश की, कि वो मुझसे इस बारे में बात करे मगर नेहा में हिम्मत नहीं थी की वो मुझसे पूछे की क्यों मैं आजकल उसकी जगह स्तुति को लाड-प्यार कर रहा हूँ?! वहीं आयुष इस मामले में होशियार था, उसे प्यार माँगने की जर्रूरत नहीं होती थी, वो तो प्यार ढूँढ लिया करता था| उसे पता था की मैं स्तुति को लाड करा रहा हूँ तो आयुष मेरे पास आ कर बैठ जाता और स्तुति के साथ-साथ उसे भी मेरा लाड-प्यार मिल जाता| नेहा ये सब दूर से होता हुआ देखती थी मगर वो ये उम्मीद करती थी की मैं उसके पास आऊँ और उसे लाड-प्यार करूँ|

ऐसे ही एक दिन की बात है, दोपहर का समय था और सभी आराम कर रहे थे| संगीता, आयुष और माँ, माँ के कमरे में लेटे हुए थे| मैं और स्तुति अकेले हमारे कमरे में थे, स्तुति सो रही थी और मैं पेट के बल लेटा हुआ अपनी दोनों कोहनियाँ टिकाये स्तुति को सोते हुए देख रहा था| स्तुति का छोटा सा पेट साँस लेते समय ऊपर-नीचे हो रहा था और मुझे ये दृश्य देख कर आनंद आ रहा था| तभी वहाँ नेहा आ पहुँची और चौखट पर खड़ी हो कर मुझे देखने लगी| मेरी पीठ दरवाजे की ओर थी इसलिए मैं उसे देख नहीं पाया| कुछ मिनट बाद जब मैं उठा तो मेरी नज़र नेहा पर पड़ी जो की दरवाजे पर खड़ी हुई मुझे देख रही थी| नेहा के चेहरे पर सवाल था जो वो पूछने से घबरा रही थी| उन कुछ क्षणों में मुझे नेहा की मनोस्थिति समझ आ गई!

"मेरा बच्चा" ये कहते हुए मैंने अपनी बाहें खोलीं और नेहा को गले लगने को बुलाया| मेरी खुली बाहें देखते ही नेहा दौड़ पड़ी और मेरे सीने से लग गई| मेरे सीने से लग नेहा के तड़पते दिल को आखिरकर चैन मिला| "मेरा बच्चा दरवाजे पर खड़ा हुआ क्या कर रहा था?" ये सवाल मैंने जानबूझ कर नेहा से पुछा था ताकि वो अपने मुँह से सब सच कह सके| लेकिन मेरी बेटी मुझसे सच कहने में डर रही थी और ख़ामोशी से मेरे सीने से लगी हुई खुद को रोने से रोक रही थी| जब नेहा ने कोई जवाब नहीं दिया तो मैंने ही उसके मन में उठे सवाल का जवाब देना सही समझा|

नेहा बहुत ही नाज़ुक बच्ची थी, उसे कई बार बातें घुमा-फिर के प्यार से समझानी पड़ती थीं|

मैं: बेटा आपको पता है की आप और मैं पहलीबार कब मिले थे?

मेरे पूछे सवाल के जवाब में नेहा फ़ट से बोली;

नेहा: जब मैं और मम्मी दिल्ली आये थे और आपने मुझे जाते समय आइस-क्रीम खिलाई थी|

ये कहते हुए नेहा के चेहरे पर मुस्कान आ गई थी| नेहा की बात उसके अनुसार सही थी, लेकिन उसे याद नहीं था की उसकी और मेरी पहली मुलाक़ात होने के समय वो बहुत छोटी थी|

मैं: नहीं बेटा जी!

मैंने मुस्कुराते हुए कहा तो नेहा अस्चर्य से मुझे देखने लगी|

मैं: बेटा, आप और मैं पहलीबार तब मिले थे जब आप स्तुति से कुछ महीने बड़े थे| आपकी मम्मी तब पहलीबार हमारे घर आईं थीं और आप उनकी गोदी में थे|

ये बात सुन नेहा की आँखें हैरानी से बड़ी हो गईं| दरअसल, नेहा को मेरे साथ बिताया हर पल अच्छे से याद था और उसे यक़ीन ही नहीं हो रहा था की भला उसे वो पल कैसे याद नहीं?!

मैं: आप तब बहुत छोटे थे, इसीलिए आपको याद नहीं|

मैंने नेहा के मन में उठे सवाल को भाँपते हुए जवाब दिया|

मैं: मैंने आपको पहलीबार अपनी गोदी में लिया तो आप अपनी छोटी आँखें बड़ी कर के मुझे देखने और पहचानने की कोशिश कर रहे थे| मैंने आपके छोटे से हाथ को चूमा तो अपने भी स्तुति की तरह मेरी ऊँगली पकड़ ली थी!

ये सुन कर नेहा के चेहरे पर आई मुस्कान कई हज़ार गुना बढ़ गई, उसे इस वक़्त खुद पर गर्व हो रहा था की अपने भाई-बहन से भी पहले उसने मुझसे रिश्ता बनाया था|

मैं: मैं उस वक़्त अभी जो आपकी उम्र है उस हिसाब से कुछ 4 साल बड़ा हूँगा इसलिए आपको गोदी में ले कर मैं आप ही से पूछ रहा था की आपका नाम क्या है? मेरे इस सवाल का जवाब आपकी मम्मी ने दिया; 'नेहा'! आपका नाम इतना प्यारा था की मुझे आप पर बहुत प्यार आ रहा था| कुछ देर बाद जब आपकी मम्मी और आपकी दादी जी चाय बना रहे थे तब मैं आपको ले कर अपने कमरे में आ गया| अगले दिन मेरा इंग्लिश का क्लास-टेस्ट था इसलिए मैं आपको गोदी में लिए हुए क्लास-टेस्ट के लिए पढ़ रहा था| मैं अपना लेसन (lesson) बोल-बोल कर याद कर रहा था और मेरे द्वारा बोले जा रहे अंग्रेजी के शब्द सुनकर आप मुस्कुराये जा रहे थे|

जब मैंने ये बात नेहा को बताई तो वो इस दृश्य की कल्पना करने लगी; जब मैं छोटा था और पढ़ रहा था तथा मेरी गोदी में नेहा मुस्कुरा रही थी|

इधर जब मैंने नेहा के चेहरे पर ये मुस्कान देखि तो मुझे यक़ीन हो गया की नेहा का मन अब प्रासना हिअ और अब मैं उसे उसके मन में पैदा हुई दुविद्या को तर्क सहित समझा सकता हूँ|

मैं: बेटा, जब आपको कोई परेशानी होती है तो आप हमें बताते हो न?

मेरे पूछे सवाल के जवाबा में नेहा बड़े आत्मविश्वास से बोली;

नेहा: हाँ जी, पापा जी|

मैं: लेकिन स्तुति इतनी छोटी है, ऊपर से अभी वो बोल भी नहीं सकती तो वो हमें कैसे बताएगी की उसे कोई परेशानी हो रही है?

मेरे पूछे इस सवाल पर नेहा सोच में पड़ गई की भला एक छोटी सी बच्ची कैसे हमें अपनी परेशानी के बारे में बता सकती है?

मैं: स्तुति बस रो के ही हमें अपनी परेशानी के बारे में इशारा कर सकती है न?!

मैंने नेहा से पूछे सवाल का जवाब स्वयं देते हुए कहा| मेरे दिए जवाब से नेहा भी इत्तेफ़ाक़ रखती थी इसलिए उसने अपना सर हाँ में हिलाया|

मैं: अब ये बताओ की क्या मैं.आपका पापा कभी आपको रोते हुए देख सकता हूँ?

मेरे इस सवाल के जवाब में नेहा ने फ़ौरन अपना सर न में हिलाया क्योंकि वो जानती थी की मैं कभी उसे रोते हुए नहीं देख सकता|

मैं: फिर ये बताओ की मैं आपकी छोटी बहन को कैसे रोते हुए देख सकता हूँ? वो तो बेचारी अभी कुछ बोल भी नहीं सकती?!

मेरे ये छोटे-छोटे सवाल-जवाब से नेहा को सारी बात समझ आने लगी थी और कहीं न कहीं उसे अपने मन में पीडा हुई दुविधा के लिए बुरा भी लगने लगा था| नेहा की आँखों में प्रायश्चित देख मैंने उसे प्यार से सारी बात अपने पूछे सवालों के सारांश के रूप में समझानी शुरू कर दी;

मैं: बेटा, आपकी बहन अभी छोटी है इसीलिए उसे इस समय अधिक से अधिक प्यार की जर्रूरत है| फिर आपने देखा न की कैसे वो सिर्फ तभी चुप होती है जब वो मेरी गोदी में आती है?

मैंने नेहा का चेहरा अपने दोनों हाथों में पकड़ा और उसे पूरे आत्मविश्वास से समझएते हुए बोला| वहीं मेरे पूछे सवाल के जवाब में नेहा अपनी गर्दन छोटे से बच्चे की तरह हाँ में हिलाने लगी|

मैं: बेटा, यही कारण है की मेरा ध्यान स्तुति पर अधिक होता है! लेकिन इसका मतलब ये नहीं है की मैं आपसे प्यार नहीं करता! या फिर स्तुति आपके हिस्से का प्यार आपसे छीन रही है! बल्कि इस समय तो आपको...एक बड़ी बहन होने के नाते उसे अधिक से अधिक प्यार करना चाहिए|

आपने आयुष को देखा है न, वो कैसे अपनी छोटी बहन के साथ घुलने-मिलने की कोशिश करता है, वैसे ही आप भी कोशिश करो| जब मैं स्तुति को गोदी में ले कर बहला रहा हूँ, तब आप भी आयुष के साथ मेरे पास आ जाया करो| फिर है न आप, मैं और आयुष मिलकर स्तुति को लाड-प्यार करेंगे|

मेरी सारी बात सुन अखिर नेहा के चेहरे पर प्यारी सी मुस्कान आ ही गई, वो मेरी सारी बात बहुत अच्छे से समझ गई थी और उसे यक़ीन हो गया था की मैं उससे अब भी बहुत प्यार करता हूँ| नेहा एक बार पुनः मेरे गले लग कर ग्लानि भरे स्वर में बोली;

नेहा: सॉरी पापा जी! मैंने आपको गलत समझा!

नेहा को ग्लानि इस बात की हो रही थी की उसने अपने पापा के प्यार पर संदेह किया| इधर मैं नहीं चाहता था की मेरी बेटी अधिक ग्लानि महसूस करे इसलिए मैं नेहा को गोदी में ले कर कमरे में टहलने लगा तथा आज कई दिनों बाद नेहा को स्तुति की तरह ही लाड-प्यार कर सुला दिया|

स्तुति 1 महीने की हो गई थी मगर बेचारे आयुष को अपनी छोटी बहन को गोदी लेने का मौका ही नहीं मिला था| घर में हमेशा आयुष को कोई न कोई स्तुति को गोदी लेने से रोकता रहता था क्योंकि हम सभी को डर था की कहीं आयुष स्तुति को गिरा न दे| आयुष का दिल न टूटे इसलिए माँ उसे हमेशा ये कह कर बहला देतीं की; "स्तुति थोड़ा बड़ी हो जाए, फिर तू गोदी ले लेना|" अपनी दादी जी की ये बात सुनते-सुनते आयुष का धीरज जवाब देने लगा था| एक दिन की बात है, दोपहर का समय था और मैं कुछ काम निपटाने बाहर गया था| नेहा अपना होमवर्क करने में व्यस्त थी और दोनों सास-पतुआ पड़ोस में गईं थीं| आयुष जाग रहा था और चूँकि घर में कोई बड़ा नहीं था इसलिए आयुष को अपनी छोटी बहन से बात करने का अच्छा मौका मिल गया था| "स्तुति?" आयुष ने सो रही स्तुति को पुकारा मगर स्तुति नहीं जागी| "मुझे है न आपको गोदी में उठाना है, लेकिन दादी जी कहती हैं की जब तक आप बड़े नहीं होते मैं आपको गोदी नहीं उठा सकता! तो आप है न जल्दी-जल्दी बड़े हो जाओ फिर है न मैं आपको गोदी ले कर खूब घुमाऊँगा|" विधि की विडंबना तो देखिये, जहाँ एक तरफ एक पिता चाहता था की उसकी बेटी कभी बड़ी न हो ताकि मैं उसका सारा बचपन जी सकूँ, वहीं दूसरी तरफ बेटा चाहता था की उसकी बहन जल्दी से बड़ी हो जाए ताकि आयुष उसे गोदी में उठा सके|

मैं अचानक उसी समय घर पहुँचा जिस समय आयुष अपनी छोटी बहन से बात कर रहा था और मैंने आयुष की सारी बात सुन ली थी| आयुष की पीठ चूँकि मेरी तरफ थी इसलिए वो मुझे देख नहीं पाया था| मैंने पीछे से जा कर आयुष को गोदी में उठा लिया और उसे लाड करते हुए बोला; "बेटा आपको अपनी छोटी बहन को गोदी उठाना है?" ये सुनते ही आयुष ने अपना सर हाँ में हिलाना शुरू कर दिया|

मैंने हाथ-मुँह धोये, कपड़े बदले और आयुष को साथ ले कर स्तुति की बगल में बैठ गया| मुझे ये सुनिश्चित करना था की आयुष जब अपनी छोटी बहन को गोदी में ले तो वो उसे गिरा न दे इसीलिए मैंने आयुष को अपनी गोदी में बिठाया ताकि यदि स्तुति उसके हाथ से गिरे भी तो स्तुति को मैं पकड़ लूँ और उसे चोट न आये| मैंने धीरे से स्तुति को उठाया और आयुष की गोदी में लिटाया| आयुष ने हेमशा बड़े गौर से मुझे स्तुति को उठाते हुए देखा था इसलिए आयुष जनता था की उसे स्तुति को कैसे गोदी में उठाना है| "पापा जी देखो, मैंने स्तुति को गोदी में उठाया है?" आयुष ख़ुशी से चहकते हुए बोला| उसे ये नहीं पता था की मेरे दोनों हाथ ठीक उसके हाथों के नीचे हैं, ताकि अगर कहीं आयुष के हाथ से स्तुति छूटे तो मैं उसे तुरंत पकड़ लूँ| शुक्र है की आयुष ने बहुत अच्छे से स्तुति को सँभाला था|

हम बाप-बेटा ऐसे ही बैठे थे तथा सो रही स्तुति से अपनी-अपनी बातें कर रहे थे| कुछ देर बाद माँ और संगीता घर पहुँचे, मेरी गोदी में आयुष तथा आयुष की गोदी में स्तुति को देख चकित हुए| "दादी जी देखो...मैंने स्तुति को गोदी लिया है!" आयुष ख़ुशी से चहकते हुए बोला| आयुष इतना खुश था मानो उसने बहुत बड़ा कारनामा किया हो| "हाँ-हाँ देख रही हूँ! सँभाल कर पकड़ना स्तुति को!" माँ आयुष को चेताते हुए बोलीं| तभी संगीता ने माँ को इशारा कर मेरे हाथों को देखने के लिए कहा जो की आयुष के हाथों के नीचे सहारा देने के लिए मौजूद थे| माँ सब समझ गईं और मुस्कुराते हुए मुझसे बोलीं; "तू बहुत शैतान हो गया है!" माँ का मुझे ये उल्हाना देने का मतलब था की मैं बच्चों को लाड-प्यार कर अपने सर चढ़ा लेता हूँ| वहीं जब आयुष ने अपनी दादी जी को मुझे 'शैतान' कहते हुए सुना तो वो खी-खी कर हँसने लगा| आयुष की हँसी सुन नेहा कमरे में आई और ये दृश्य देख कर आयुष को डाँटने लगी; "तुझे मना किया था न की स्तुति को गोदी में नहीं लेना, मगर तू है की बाज़ नहीं आता!" ये कहते हुए नेहा नज़दीक आई और स्तुति को गोदी लेने की कोशिश करने लगी मगर आयुष ने अपनी बड़ी बहन को अपनी छोटी बहन नहीं सौंपी! "नहीं...नहीं" आयुष बोला और स्तुति को नेहा से दूर करने लगा| दोनों भाई-बहन में जंग छिड़ चुकी थी और इस जंग के कारण मचे हो-हल्ले से स्तुति की नींद टूट गई और वो रोने लगी| स्तुति को रोता हुआ देख नेहा आयुष पर बरस पड़ी; "देख तूने रुला दिया न स्तुति को!" इधर आयुष भी अपने बचाव में बोला; "मैंने कुछ नहीं किया, आपने किया है! आपने रुलाया है स्तुति को!" ये कहते हुए आयुष स्तुति को चुप कराने की कोशिश करने लगा| "लाओ बेटा" ये कहते हुए मैंने आयुष के हाथों से स्तुति को लिया और थोड़ा सा दुलार कर स्तुति को चुप करा दिया|

कुछ दिन बाद की बात है, मैं घर पर नहीं था और स्तुति रो रही थी| जब किसी से स्तुति नहीं सँभली तो नेहा ने उसे चुप कराने की सोची| नेहा ने स्तुति को गोदी में लिया और उसे मेरी ही तरह दुलार करने लगी मगर स्तुति चुप नहीं हुई अलबत्ता स्तुति ने अपनी बड़ी बहन नेहा पर सुसु कर दिया! "छी!!! गन्दी बच्ची!" नेहा स्तुति पर चीखी और उसे अपनी मम्मी को दे कर नहाने बाथरूम में घुस गई! नेहा के इस तरह चीखने पर माँ और संगीता को खूब हँसी और उन्होंने जोरदार ठहाका लगाया| नेहा नाहा-धो कर निकली तो देखा की उसकी दादी जी और मम्मी हँसे जा रहे हैं इसलिए नेहा अपनी नाक पर प्यारा सा गुस्सा ले कर स्तुति को देखते हुए बोली; "आज के बाद मेरी गोदी में मत आइयो!" इतना कह नेहा भुनभुनाती हुई अपने कमरे में जा कर पढ़ने लगी|

कुछ समय बाद जब मैं घर आया तो मैंने पाया की संगीता, स्तुति को गोदी में ले कर उसे शब्बाशी दे रही है; "शाब्बाश मेरी बेटी! आज अपने जैसे अपनी दीदी पर सुसु किया न, वैसे ही एक बार अपने भाई के ऊपर भी सुसु कर देना!" संगीता की बात सुन मैं हँस पड़ा और उसे टोकते हुए बोला; "अरे भई क्यों मेरी बेटी को शैतानियाँ सीखा रहे हो?!" ये कहते हुए मैंने स्तुति को गोदी लिया और उसके मस्तक को चूम स्तुति को लाड करने लगा| नेहा को पता चल गया था की मैं घर आ चूका हूँ इसलिए वो अपनी छोटी बहन की शिकायत करने मेरे पास आ पहुँची| "पापा जी, इस गन्दी बच्ची ने मेरे ऊपर सुसु कर दिया!" नेहा नाक पर प्यारा सा गुस्सा लिए हुए बोली| नेहा की बात सुन मुझे हँसी आ रही थी मगर मैंने अपनी हँसी दबाई और बात बनाते हुए बोला; "बेटा, माफ़ कर दो स्तुति को! अभी छोटी है, बड़ी होगी न तो आपको सॉरी बोल देगी| अभी के लिए हम ऐसा करते हैं की हम हैं न स्तुति से कहते हैं की वो एकबार आयुष पर भी सुसु कर दे!" मेरी मज़ाक में कही ये बात सुन नेहा एकदम से खुश हो गई और स्तुति से बोली; "मैं तुझे एक शर्त पर माफ़ करुँगी, तुझे है न आयुष पर भी सुसु करना होगा?" एक नन्ही सी बच्ची पर अपने ही भाई के ऊपर सुसु किये जाने का दबाव बनाया जा रहा था तो स्तुति का रोना तय था!

"नहीं-नहीं मेरा बच्चा! अभी सुसु नहीं करना है, बाद में करना| अभी आप चुप हो जाओ|" मैंने स्तुति को पुचकारते हुए कहा और उसे लाड कर चुप करवाया| अंततः आयुष पर स्तुति का सुसु करने का प्रोग्राम कुछ दिनों के लिए टल गया|

[color=rgb(163,]जारी रहेगा भाग - 11 {4(1)} में...[/color]
 

[color=rgb(251,]इकत्तीसवाँ अध्याय: घर संसार[/color]
[color=rgb(44,]भाग - 11 {4(1)}[/color]


[color=rgb(71,]अब तक अपने पढ़ा:[/color]

"बेटा, माफ़ कर दो स्तुति को! अभी छोटी है, बड़ी होगी न तो आपको सॉरी बोल देगी| अभी के लिए हम ऐसा करते हैं की हम हैं न स्तुति से कहते हैं की वो एकबार आयुष पर भी सुसु कर दे!" मेरी मज़ाक में कही ये बात सुन नेहा एकदम से खुश हो गई और स्तुति से बोली; "मैं तुझे एक शर्त पर माफ़ करुँगी, तुझे है न आयुष पर भी सुसु करना होगा?" एक नन्ही सी बच्ची पर अपने ही भाई के ऊपर सुसु किये जाने का दबाव बनाया जा रहा था तो स्तुति का रोना तय था!

"नहीं-नहीं मेरा बच्चा! अभी सुसु नहीं करना है, बाद में करना| अभी आप चुप हो जाओ|" मैंने स्तुति को पुचकारते हुए कहा और उसे लाड कर चुप करवाया| अंततः आयुष पर स्तुति का सुसु करने का प्रोग्राम कुछ दिनों के लिए टल गया|

[color=rgb(97,]अब आगे:[/color]

दिन
हँसी-ख़ुशी से गुजर रहे थे और दिन इतनी तेज़ी से बीते की मेरा जन्मदिन नज़दीक आ गया| अब मेरा नज़दीक जन्मदिन आया तो मेरे जन्मदिन को ले कर माँ-बेटा-बेटी में खुसर-फुसर तेज़ हो गई| दोपहर के समय जब मैं और स्तुति मेरे कमरे में होते तब संगीता दोनों बच्चों को ले कर माँ के कमरे में बैठ कर मेरे जन्मदिन की प्लानिंग करने लग जाती| अब मेरे जन्मदिन के लिए तीनों ने क्या प्लानिंग की थी इसका मुझे कोई इल्म न था| ऐसे ही एक दिन की बात है;

संगीता: तुम दोनों पहले अपना आईडिया (idea) बताओ फिर मैं अपना आईडिया बताती हूँ|

संगीता ने बात शुरू करते हुए दोनों बच्चों से पुछा| आयुष छोटा था और उसकी प्लानिंग खाने पर से शुरू हो कर मेरे साथ सोने पर खत्म होती, नेहा ये बात जानती थी इसलिए उसने आयुष को कुछ बोलने नहीं दिया और खुद ही चौधरी बनते हुए बोली;

नेहा: रात को ठीक बारह बजे मैं और आयुष एकसाथ पापा जी को पप्पी कर के जगायेंगे और उन्हें हैप्पी बर्थडे कहेंगे| फिर पापा जी से केक कटवाएंगे और हम सब मज़े से रात को केक खाकर सो जायेंगे| आप और स्तुति दादी जी के पास सोना तथा हम दोनों मिलकर पापा जी को कहानी सुनाएंगे और उनके साथ सोयेंगे| सुबह हम सब मंदिर जायेंगे और वहाँ से हम फन एंड फ़ूड विलेज एम्यूजमेंट पार्क (fun n food village amusement park) घूमने जायँगे| वहाँ बहुत सारे झूले हैं और इस बार आप (संगीता) भी हमारे साथ झूलों पर बैठ सकते हो| फिर वहीं खाना खा कर शाम तक हम वापस आएंगे|

नेहा का प्लान अच्छा तो था परन्तु उस पूरे प्लान में सारा समय मैं और बच्चे ही एक साथ थे, संगीता को मेरे साथ समय बिताने के लिए कोई जगह नहीं दी गई थी| संगीता इसी का विरोध करते हुए बोली;

संगीता; अच्छा...तो मतलब की तुम दोनों सारा दिन अपने पापा जी को घेरे रहोगे!

संगीता ने ये बात आँखें तार्रेर कर कही, जिस पर नेहा हँस पड़ी!

संगीता: बड़ी आई अपने पापा जी के साथ समय बिताने वाली! अब सुनो जो मैं कह रही हूँ वो ही होगा| रात बारह बजे सबसे पहले मैं तुम्हारे पापा जी को हैप्पी बर्थडे कहूँगी और उसके बाद तुम दोनों अपने पापा जी को हैप्पी बर्थडे कहोगे...

संगीता के मन में रात बारह बजे मुझे जन्मदिन की बधाई देने का एक ख़ास प्रोग्राम था जिसे वो बच्चों से साझा नहीं करना चाहती थी| वहीं संगीता की आधी बात सुनते ही आयुष एकदम से बीच में बोल पड़ा;

आयुष: मम्मी, हम पापा जी को सबसे पहले विश (wish) क्यों नहीं कर सकते?

आयुष बड़ी मासूमियत से बोला| आयुष के पूछे सवाल से संगीता निरुत्तर हो गई थी, अब वो कैसे आयुष को समझाती की आखिर मुझे जन्मदिन की बधाई देने का पहला हक़ उसका क्यों है?!

संगीता: क्योंकि मैं तुम दोनों से बड़ी हूँ...

संगीता ने वही तर्क दिया जो कोई भी बड़ा व्यक्ति बच्चों को देता है|

आयुष: तो इस हिसाब से सबसे बड़ीं तो दादी जी हैं, फिर तो सबसे पहले उन्हें पापा जी को विश (wish) करना चाहिए|

आयुष ने हाज़िर जवाबी से अपनी मम्मी से तर्क किया| वहीं आयुष का ये तर्क सुन संगीता घबरा गई की कहीं अगर आयुष ने माँ को मुझे सबसे पहले बधाई देने के लिए मना लिया तो संगीता का सरप्राइज खराब हो जायेगा!

संगीता: क...क्योंकि मैं...मैं तेरे पापा जी की दोस्त हूँ और दोस्त सबसे पहले बधाई देते हैं|

संगीता ने जैसे-तैसे अपना पहले दिया हुआ तर्क वापस लिया और नया तर्क पेश करते हुए बोलीं| लेकिन वो ये भूल गई की मेरा बेटा बड़ा हाज़िर जवाब है!

आयुष: लेकिन पापा जी के दोस्त तो दिषु चाचू हैं!

आयुष का तर्क सुन संगीता ने अपना सर पीट लिया और उससे बोली;

संगीता: तेरे पास हर तर्क का जवाब है न?!

अपनी मम्मी को सर पीटते देख और बातें सुन दोनों बच्चे खी-खी कर हँसने लगे| अब संगीता को अपना मज़ाक उड़ाया जाना पसंद नहीं था इसलिए उसने दोनों बच्चों को प्यार से हड़का दिया;

संगीता: बस-बस! अब मुँह बंद करो और जो मैं कह रही हूँ वो सुनो!

इतना कह संगीता ने प्यारभरे गुस्से से दोनों बच्चों को देखा और अपनी बात आगे बढ़ाई;

संगीता: तुम्हारे पापा जी को पहले मैं जन्मदिन की बधाई दूँगी और उसके बाद जब मैं तुम्हें बुलाने आऊँ तब तुम आ कर बधाई दोगे| फिर हम केक काटेंगे और रात को सोते समय तुम दोनों अपने पापा जी के पास सोओगे! सुबह हम मंदिर और घूमने जायेंगे और वापस आ कर हम तीनों मिल कर तुम्हारे पापा जी के लिए घर पर पिज़्ज़ा बनाएंगे| फिर रात को सोने के समय तुम दोनों और स्तुति अपनी दादी जी के पास सोओगे!

संगीता ने अपनी बात बड़े कड़े शब्दों में कही थी ताकि बच्चे उसकी बात का विरोध न करें मगर बच्चे बस संगीता की आधी बात से ही सहमत थे!

आयुष: मम्मी हम घर में पिज़्ज़ा बनाएंगे?

आयुष का ध्यान बस पिज़्ज़ा खाने पर अटक गया था जबकि नेहा का सारा ध्यान केवल दोनों रात मेरे साथ सोने पर था!

नेहा: चुप कर!

नेहा आयुष को चुप कराते हुए बोली और अपनी मम्मी से मेरे साथ सोने को ले कर भाव-ताव करने लगी;

नेहा: बाकी सब तो ठीक है मम्मी लेकिन, पापा जी को सबसे पहले विश (wish) हम दोनों (आयुष और नेहा) करेंगे और दोनों रात हम ही पापा जी के साथ सोयेंगे, आप दादी जी के साथ दो दिन सो जाना!

नेहा ने बड़ी सरलता से अपनी बात कही मगर संगीता इस बात पर अड़ गई की मेरे जन्मदिन वाली रात को वो मेरे साथ ही सोयेगी| दोनों माँ-बेटी में मुझे ले कर खूब जम कर भाव-ताव हुआ, ऐसा लगता था मानो अनाज मंडी में दो व्यापारी भाव-ताव कर रहे हैं| नेहा हमेशा मानती थी की मैं उसे सबसे ज्यादा प्यार करता हूँ इसीलिए वो मेरे प्यार पाने के लिए जिद्द कर रही थी, वहीं संगीता की जिद्द का कारण था की लगभग 6 महीने होने को आये थे और हम दोनों पति-पत्नी के बीच जिस्मानी दूरी बानी हुई थी तथा मेरे जन्मदिन वाली रात संगीता ये दूरी खत्म करना चाहती थी! अपने इसी प्लान को संगीता ने मेरे ऊपर हक़ का रूप दिया और अपनी ही बेटी से बहस करने लग पड़ी| उधर आयुष बेचारा इस समय मूक दर्शक बना अपनी बहन और मम्मी को बहस करते हुए देख रहा था| न वो अपनी बहन के खिलाफ जा सकता था और न ही अपनी मम्मी के इसलिए उसने चुप रहना ही बेहतर समझा|

इधर जब नेहा अपनी जिद्द से नहीं हिली तो संगीता ने ही उसे अंतिम धमकी दे डाली;

संगीता: देखो बेटा, जितना मिल रहा है न उतने में खुश रहो वरना मेरे साथ ज्यादा रंगबाज़ी दिखाओगे न तो जो मिल रहा है वो भी नहीं मिलेगा!

संगीता ने आँखें तार्रेर कर नेहा को हड़का दिया| अपनी मम्मी की ये धमकी सुन नेहा कहाँ हार मानती, वो फिर से बहस करने वाली हुई थी की आयुष ने अपनी दीदी को शांत करवाते हुए कहा;

आयुष: ठीक है मम्मी!

जब आयुष ने अपनी बहन की ओर से जवाब दिया तो नेहा घूर कर उसे देखने लगी| वहीं सनगीता यूँ खुश हुई मानो उसने कोई जंग जीत ली हो!

राज्य सभा में मेरे जन्मदिन पर धमाल करने का ये प्रस्ताव पारित होने के बाद संगीता ये प्रस्ताव ले कर सीधा मैडम प्रेजिडेंट यानी के माँ के पास पहुँची ताकि वो भी अपनी सहमति दे दें ओर ये बिल पारित हो जाए| इधर संगीता के जाते ही नेहा आयुष पर बरस पड़ी;

नेहा: तुझे मैंने चुप रहने को कहा था न, तू बीच में क्यों बोला?

आयुष: दीदी, मम्मी से बहस करोगी तो आपके साथ-साथ मुझे भी मार पड़ती| हम सीधा पापा जी को मक्खन लगाएंगे, वो अपने आप मम्मी को समझा देंगे!

आयुष ने अपने दिमाग का इस्तेमाल करते हुए रास्ता निकाला था और अपने भाई की चपलता को देख नेहा को उस पर गर्व हो रहा था;

नेहा: आजकल तू बड़ा दिमाग लगाने लगा है!

नेहा मुस्कुराते हुए आयुष की तारीफ करते हुए बोली जिस पर आयुष शर्मा गया!

दोनों बच्चे ख़ुशी से फुदकते हुए माँ के पास पहुँचे ओर दोनों बच्चों के मुख पर ये ख़ुशी देख संगीता को संदेह होने लगा की जर्रूर दाल में कुछ काला है वरना कुछ देर पहले नाराज़ हुई नेहा एकदम से कैसे हँस सकती है?! परन्तु इस समय संगीता के लिए समस्या कुछ और थी इसलिए उसने अपना ध्यान जयादा बच्चों पर नहीं जाने दिया| दरअसल संगीता का सारा प्लान सुन माँ हमारे साथ जाने से मना कर रहीं थीं, उनका कहना था की वो एम्यूजमेंट पार्क में झूले झूल कर क्या करेंगी?! जैसे ही संगीता ने बच्चों को देखा उसने फ़ौरन माँ की शिकायत बच्चों से कर दी;

संगीता: आयुष-नेहा, देखो आपकी दादी जी घूमने जाने से मना कर रहीं हैं|

संगीता के इस बचपने को देख माँ को हँसी आ गई की वो एक दादी की शिकायत उनही के पोता-पोती से कर रही है| इधर आयुष अपनी मम्मी की बात सुन अपनी दादी जी से एकदम से नाराज़ हो गया और अपना निचला होंठ फुला कर अपनी दादी जी को देखते हुए बोला;

आयुष: आप नहीं जाओगे तो मैं भी नहीं जाऊँगा!

आयुष की देखा-देखि नेहा भी उसी के साथ हो गई और अपने भाई के सुर में सुर मिलाते हुए बोली;

नेहा: मैं भी नहीं जाऊँगी, स्तुति भी नहीं जायेगी, मम्मी भी नहीं जाएँगी और पापा जी भी नहीं जायेंगे!

अपने पोता-पोती को नाराज़ देख माँ उन्हें समझाते हुए बोलीं;

माँ: बच्चों, मैं बुढ़िया हो गई हूँ मैं थक जाऊँगी और मेरी वजह से तुम सब भी नहीं घूम पाओगे.

माँ ने अपनी ओर से तर्क दे कर अपना पीछा छुड़ाना चाहा मगर बच्चे कहाँ मानते?! दोनों बच्चों ने अपनी दादी जी के साथ ही तर्क-वितर्क करना शुरू कर दिया;

आयुष: आपके तो बाल भी सफ़ेद नहीं हुए तो आप बूढ़े कैसे हुए?

नेहा: और दादी जी आप थक जाओगे तो मैं और आयुष मिलकर आपके पैर दबा देंगे| फिर घर आ कर मैं आपके पैरों की मालिश कर दूँगी जिससे आपकी सारी थकान दूर हो जाएगी|

अपने पोता-पोती के तर्क को सुन माँ हँस पड़ीं, वो जानती थीं की दोनों बच्चे उन्हें साथ ले जाए बिना हार नहीं मानेंगे इसलिए माँ ने हार मान ली;

माँ: अच्छा ठीक है बच्चों, मैं चलूँगी!

माँ के हाँ करते ही आयुष उनकी गोदी में चढ़ गया और उन्हें बताने लगा की एम्यूजमेंट पार्क में कौन-कौन से झूले होंगे|

इधर मैं अपने घर में की गई मेरे जन्मदिन की प्लानिंग से अंजान था| हाँ मुझे इतना याद था की मेरा जन्मदिन आने वाला है और मुझे ये भी अंदाजा था की संगीता और बच्चे मुझे अवश्य कोई सरप्राइज देंगे परन्तु वो सरप्राइज क्या होने वाला है, इस बात पर मैंने कोई सोच-विचार नहीं किया था|

उधर कुछ पल पहले जो दोनों बच्चे हँसते-खेलते माँ के कमरे में आये थे उसे ले कर संगीता ने अपना दिमाग दौड़ाना शुरू कर दिया था! एक माँ आखिर अपने बच्चों की सारी खुराफात जानती है इसीलिए संगीता को अंदेसा हो गया था की दोनों बच्चों के मन में क्या खुराफात चल रही होगी! 'सिवाए अपने पापा को इमोशनल ब्लैकमेल करने के ये दोनों और कर भी क्या सकते हैं?! ठीक है बच्चों, सौ सुनार की और एक लोहार की! आने दो इनका (मेरा) जन्मदिन, मैंने भी अपने मन की न कर ली तो कहना!' संगीता मन ही मन बुदबुदाई और उसने दृढ़ निस्चय कर लिया की वो मेरे जन्मदिन वाली रात मेरे साथ ही सो कर रहेगी|

मेरे जन्मदिन से एक दिन पहले की बात है, सुबह जब मैंने दोनों बच्चों को उठाया तो दोनों बच्चे मुझे देख कर खी-खी कर हँसने लगे?! मैं कुछ पूछ पाता उससे पहले ही दोनों बच्चों ने मुझे सुबह की गुड मॉर्निंग वाली पप्पी दी और स्कूल जाने के लिए तैयार होने चले गए| मैं सर खुजाता हुआ सोच रहा था की आखिर मेरे दोनों बच्चे मुझे देख कर खी-खी क्यों कर रहे थे?!

बच्चे खुद स्कूल के लिए तैयार हो कर मेरे पास आये और मेरे दोनों गालों पर पप्पी दे कर अपनी छोटी बहन के गाल गीले करने लगे| अपनी बहन और भाई की पप्पी से स्तुति की नींद खुल गई और वो रोने लगी! "नहीं...नहीं...रोना मत...हम और पप्पी नहीं लेंगे!" नेहा बोली और स्तुति को मेरी गोदी में दे अपनी दादी जी के पास भाग गई| मैं नेहा का ये अजीब बर्ताव और अपनी बेटी स्तुति के रोने के बीच भ्रमित हो गया!

दोपहर को जब बच्चे स्कूल से आये तब भी दोनों बच्चे मुझे देख कर खी-खी कर रहे थे, मैं उनसे कुछ पूछते उससे पहले ही संगीता बीच में आ गई और दोनों बच्चों को कपड़े बदलने जाने को कह बात घुमा दी! अब मुझे थोड़ा-थोड़ा शक हो रहा था मगर मैं संगीता से कुछ पूछूँ उससे पहले ही संगीता खाना परोसने के बहाने से चली गई| "देख रहो हो बेटा, आपकी मम्मी और आपके भाई-बहन कुछ तो खिचड़ी पका रहे हैं!" मैंने स्तुति से कहा तो मेरी बिटिया के चेहरे पर मुस्कान आ गई, मानो वो भी अपनी मम्मी और अपने भाई-बहन की प्लानिंग से वाक़िफ़ हो! "मेला बेबी जानता है की आपके मम्मी और भाई-बहन ने क्या खिचड़ी पकाई है? अपने पापा जी को नहीं बताओगे?!" मैंने स्तुति के गाल चूमते हुए तुतला कर पुछा तो मेरी लाड़ली बिटिया की एक किलकारी निकली! जिसका मैंने ये मतलब निकाला की मेरी बिटिया मेरा मज़ाक उड़ा रही हो!

रात को खाना खाने के समय तक सब कुछ सामान्य रहा, संगीता दोनों बच्चों पर नज़र रखे हुए थी की कहीं बच्चे अपने जोश में आ कर मुझे सारा सरप्राइज न बता दें| नेहा तो फिर भी बात छुपाना जानती थी मगर आयुष अतिउत्साही था, उसके पेट में बात टिक पाना मुश्किल था| जैसे ही आयुष मेरे आस-पास मंडराता, संगीता उसे किसी न किसी बहाने से अपने पास बुला लेती| वहीं मेरा ध्यान दोनों बच्चों पर न जाए इसलिए उसने मुझे स्तुति के साथ व्यस्त कर दिया| शायद स्तुति भी अपनी मम्मी की चालाकी जानती थी तभी तो आज वो मुझे कहीं जाने ही नहीं देती थी| जब भी मैं बाथरूम जाने की कोशिश करता या फ़ोन उठाता, मेरी लाड़ली बिटिया रोने लगती और अपनी बिटिया के जरा से रोने से मैं बाथरूम जाने का या फ़ोन उठाने का ख्याल त्याग कर उसे लाड करने लगता|

रात को खाना खा कर सोते समय आयुष मेरे पास आया और पूछने लगा; "पापा जी, आप कितने बजे सोते हो?" उसका ये सवाल सुन मैं सोच में पड़ गया की भला उसके सवाल का कारन क्या है, लेकिन तभी पीछे से नेहा आ गई और आयुष की पीठ पर मुक्का मारते हुए बोली; "चुप कर, पापा जी को आराम करने दे! खबरदार जो तूने पापा जी की नींद खराब की तो?" नेहा की बातों से मेरा ध्यान भटक गया और मुझे लगने लगा की आयुष ये सवाल इसलिए पूछ रहा ताकि वो रात में किसी भी समय मेरे पास आ कर सो सके| "कोई बात नहीं बेटा, अगर आपका मन हो तो मेरे पास आ कर सो जान!" मैंने आयुष के सर पर हाथ फेरते हुए कहा| संगीता ने पीछे से बात सुन ली थी इसलिए वो प्यार से दोनों बच्चों को हड़काते हुए बोली; "खबरदार जो रात में दोनों कमरे में आये और मेरी नींद खराब की तो! स्तुति बीच में सोती है और उसके सोते हुए तुम दोनों में से कोई भी बीच में सोने आया तो वो रोने लगेगी!" संगीता ने बड़ी चालाकी से स्तुति का बहाना दे कर बात का रुख ऐसे मोड़ा की मैं माँ-बेटा-बेटी की चलके भाँप ही नहीं पाया!

खैर, बच्चों को शुभ रात्रि बोल मैं स्तुति को ले कर अपने कमरे में आ गया| स्तुति इस समय जाग रही थी और उसकी आँखें मुझ पर टिकी हुई थीं, मानो कह रही हो की पापा जी मुझे लोरी गा कर सुनाओ| मैंने आज तक स्तुति को कभी लोरी गा कर नहीं सुलाया था, मैं तो उसे गोदी में ले कर धीरे-धीरे दाएँ-बाएँ हिलता था तथा स्तुति के मस्तक को चूम कर ही उसे सुला दिया करता था| आज जब मेरे मन ने कहा की मेरी बिटिया को लोरी सुननी है तो मैंने उसे राऊडी राठौर पिक्चर में जो एक लोरी थी वो गा कर सुनाई;

"चंदनिया छुप जाना रे,

छन भर को लुक जाना रे,

निंदिया आँखों में आए,

बिटिया मेरी मेरी सो जाए!" मैंने गाने की ये प्रथम पंक्तियाँ बड़ी धीमी आवाज़ में गईं जिससे मेरी बिटिया के चेहरे पर मुस्कान की एक लकीर उभर आई| मेरे मन ने अपनी बिटिया की इस मुस्कान का मतलब ये निकाला की मेरी बिटिया को ये लोरी पसंद आ रही है इसलिए मैंने पूरी लोरी गा कर स्तुति को सुला दिया|

स्तुति को सुला कर मेरी नज़र संगीता पर पड़ी तो वो मुझे उल्हाना देते हुए बोली; कभी मुझे भी लोरी गा कर सुना दिया करो!" संगीता की बात सुन मेरी हँसी छूट गई; "उसके लिए तुम्हें अपनी सारी लाज-शर्म छोड़ कर मेरी गोदी में आना होगा और मुझे खूब प्यार करना होगा|" मैंने संगीता की बात का जवाब नटखट अबदाज़ में दिया तो संगीता शर्मा गई!

आमतौर पर हम दोनों मियाँ-बीवी को सोते हुए अक्सर 11-12 बज जाते थे परन्तु आज साढ़े 9 बजे ही संगीता थकने का बहाना कर सोने लगी| मुझे संगीता की चालाकी समझ नहीं आई और मैं ये विश्वास कर बैठा की मेरी पत्नी आज सच-मुच थकी हुई है| बिटिया पहले ही सो चुकी थी और अब पत्नी भी सो गई थी तो मैं जाग कर क्या करता| मैं भी आँखें मूँद कर लेटा रहा और कुछ पल बाद मुझे नींद आ ही गई|

चूँकि स्तुति मेरी ऊँगली पकड़े सोइ थी इसलिए मैं स्तुति की तरफ बाईं करवट ले कर सो रहा था| रात के 11:59 होने तक संगीता एक ही करवट लेटी थी परन्तु वो सोइ नहीं थी| जैसे ही 11:59 हुए संगीता उठी और धीरे से मेरे नजदीक आई| उसका निशाना मेरे होंठ थे इसलिए संगीता ने एकदम से मेरे होंठों पर हमला कर दिया| धीरे-धीरे उसने मेरे दोनों होठों का रस निचोड़ना शुरू कर दिया| मैं उस वक़्त गहरी नींद में था परन्तु अपने ऊपर हो रहे इस हमले को मेरा शरीर अवश्यम हसूस कर रहा था| मेरे दिमाग ने इस हमले को एक हसीन स्वप्न का रूप दे दिया जिसमें मैं और संगीता छत पर एक दूसरे की बाहों में खोये थे| नींद में मधुर सपना देखते हुए मेरे होंठों ने भी अपनी प्रतिक्रिया देनी शुरू कर दी थी| मेरे लिए तो ये ऐसा सपना था जो खत्म ही नहीं होना चाहिए था| परन्तु जैसे ही संगीता ने अपनी अरुंधति (जीभ) से प्रहार किया तो मेरी नींद एकदम से खुल गई!

कमरे में मध्धम सी रौशनी थी इसलिए जैसे ही मेरी आँख खुली मुझे संगीता का चेहरा नज़र आया| उस वक़्त मुझे जोश आ गया और मैं पूरे जोश में संगीता का साथ देने लगा| मेरा जोश महसूस कर संगीता जान गई की मेरी नींद खुल गई है, यानी की अब वो मुझे जन्मदिन की बधाई दे सकती है| संगीता ने एकदम से ये चुंबन तोड़ दिया और मेरी आँखों में देखते हुए बोली; "हैप्पी बर्थडे जानू!" संगीता ने मुस्कुराते हुए कहा और पुनः मेरे होठों पर कब्ज़ा स्थापित कर लिया| इधर मैं भी इस तरह जन्मदिन की बधाई दिए जाने से अत्यधिक प्रसन्न था और संगीता का शुक्रियादा अदा किये बिना ही उसके साथ होठों का रसपान करने में लगा हुआ था| हमारा प्यार अगले चरण पर पहुँचे उससे पहले ही हमारी रोमांस की गाडी में बच्चों द्वारा इमरजेंसी ब्रेक लगा दिया गया!

बच्चों को भी मुझे जन्मदिन की मुबारकबाद देनी थी इसलिए उन्होंने दरवाज़ा खटखटाना शुरू कर दिया था| दरवाजे पर हो रही दस्तक सुन संगीता थोड़ा गुस्से में मुझसे अलग हुई और उसने झट से दरवाजा खोला, परन्तु बच्चो के चेहरे पर मुझे जन्मदिन की बधाई देने की ख़ुशी देख उसका गुस्सा फुर्र हो गया और उसने प्यार से बच्चों को उल्हाना देते हुए कहा; "तूम दोनों शैतानों को एक पल का चैन नहीं है न?! बोला था न मैं बुलाने आऊँगी तब आना!" संगीता की बात की परवाह किये बिना दोनों बच्चे खिलखिलाते हुए कमरे में घुसे| आयुष पलंग पर चढ़ कर मेरे ऊपर कूदा तो नेहा मेरी दाहिनी तरफ खड़ी हो गई| नेहा ने बड़ी बहन होने का फ़र्ज़ निभाते हुए पहले आयुष को मुझे जन्मदिन की बधाई देने का मौका दिया| "हैप्पी बर्थडे पापा जी!" आयुष ख़ुशी से चहकते हुए बोला और मेरे दोनों गालों पर पप्पी दे कर मुझसे लिपट गया| "Thank you बेटा जी!" ये कहते हुए मैंने आयुष का सर चूम लिया| अब आयुष हटा तो नेहा मेरे सीने से लग गई और बोली; "हैप्पी बर्थडे पापा जी!" इतना कहते हुए नेहा भावुक हो गई थी और कहीं वो रो न पड़े इसलिए मैंने उसे अपनी बाहों में जकड़ लिया; "Awwww मेरा बच्चा! थैंक यू सो मच! (Thank you so much!)" मेरी बाहों में आ, मेरा कसाव महसूस कर, मेरे जिस्म की ऊष्मा को महसूस कर मेरी बेटी का दिल सँभल गया और वो नहीं रोई|

आयुष ने जब अपनी बहन को भावुक देखा तो उसने माहौल को खुशनुमा करने के लिए सभी का ध्यान केक खाने की तरफ घुमा दिया; "पापा जी...चलो अभी केक भी काटना है!" ये कहते हुए आयुष मेरा हाथ पकड़ मुझे खींचने लगा| वहीं स्तुति को जब मेरी ऊँगली अपनी मुठ्ठी में महसूस नहीं हुई तो वो कुनमुनाने लगी, पर इससे पहले वो जागे मैंने स्तुति को गोदी में लिया तथा अपनी ऊँगली उसे थमा दी| "स्तुति को भी केक खाना है!" आयुष अपने बालपन में बोला| "चुप कर, छोटे बच्चे केक थोड़े ही न खाते हैं! वो तो बस दूध पीते हैं|" नेहा ने अपने छोटे भाई को डाँट लगाते हुए कहा| हम सब माँ के पास बैठक में पहुँचे तो मैंने देखा की टेबल पर मेरे जन्मदिन का केक रखा है| तभी माँ आगे आईं और मैंने उनके पाँव छू कर आशीर्वाद लिया| माँ ने मेरे मस्तक को चूम मुझे गले लगाया और बोलीं; "जुग-जुग जियो मेरे बेटा! जन्मदिन की ढेरों बधाइयाँ! तुझे मेरी भी उम्र लग जाए और तू यूँ ही हँसता-मुस्कुराता रहे!" मुझे आशीर्वाद देते-देते माँ भावुक हो गईं थीं, अतः एकबार फिर आयुष ने अपने बालपन से सभी को हँसा दिया; "दादी जी, भूख लगी है! केक काटें?"

मोमबत्तियाँ बुझा कर मैंने केक काटा, जैसे ही मैं पहला टुकड़ा माँ को खिलाने लगा की माँ हँसते हुए बोलीं; "पहले इस छोटे शैतान (आयुष) को खिला! जब से बहु केक लाई है ये शैतान पीछे पड़ा हुआ है!" माँ की कही बात सुन आयुष हाज़िर जवाबी से बोला; "दादी जी, मैं तो सबसे आखिर में सबसे बड़ा केक का पीस खाऊँगा!" आयुष की ललचाई बात सुन हम सभी हँस पड़े तथा मैंने केक का पहले टुकड़ा माँ को खिलाया| फिर बारी आई संगीता की और उसमें भी बचपना कम न था, उसने एक ही बारी में 'घप्प' से पूरा केक का टुकड़ा खा लिया और आयुष को ठेंगा दिखा कर हँसने लगी| फिर बारी आई नेहा की, जब मैंने उसे केक खिलाया तो उसने बस आधा टुकड़ा खाया और बाकी का आधा टुकड़ा उसने मुझे खिला पाँव छू कर मेरा आशीर्वाद लिया| सबसे आखिर में बारी आई आयुष की और उसे मैंने सबसे बड़ा टुकड़ा काट कर खिलाया| आयुष ने बहुत कोशिश की कि वो पूरा टुकड़ा एक बार में खा ले मगर आयुष का मुँह संगीता के मुँह के मुकाबले था छोटा इसलिए आधा टुकड़ा केक खाते ही आयुष का मुँह पूरा भर गया| बाकी बचा टुकड़ा आयुष ने मुझे खिलाया और मेरा आशीर्वाद लिया|

उधर संगीता को उसके जन्मदिन पर मेरे द्वारा की गई मस्ती का बदला लेना था इसलिए उसने मुझे केक खिलाने के लिए एक पीस काटा| मैं अपनी पत्नी की इस शरारत से अनजान था इसलिए मैंने केक खाने के लिए मुँह खोल दिया| उधर मेरी पत्नी के चेहरे पर एकदम से शैतानी मुस्कान आ गई और उसने वो केक का पीस मुझे खिलाने के बजाए मेरे चेहरे पर मल दिया! संगीता की ये शैतानी देख माँ समेत दोनों बच्चों ने हँसना शुरू कर दिया| वहीं मैं भी संगीता की इस शैतानी पर हँस दिया और उसे खुद को अच्छे से केक लगाने का मौका दिया| संगीता ने बड़े अच्छे से मेरे पूरे चेहरे पर, मेरी दाढ़ी में और मेरी नाक तक पर केक चुपड़ दिया! जहाँ कहीं केक लगना रह जाता वहाँ पर केक नेहा और आयुष मिल कर लगाने लगते| अगले दो मिनट तक माँ-बेटा-बेटी ने मिलकर मेरे चेहरे की पुताई की और जब तीनों को चैन पड़ गया की मेरा चेहरा पूरी तरह से सफ़ेद हो चूका है तब तीनों रुके!

"लगा लिया सारा केक या अभी कुछ बाकी है?" मैंने हँसते हुए पुछा तो दादी-माँ-बेटा-बेटी एक साथ ठहाका लगाने लगे| "तूने भी बहु के जन्मदिन वाले दिन केक लगा कर उसके गाल सफ़ेद कर दिए थे तो आज बहु ने अपना बदला ले लिया!" माँ हँसते हुए बोलीं| तभी संगीता अपनी कमर पर दोनों हाथ रखते हुए बड़े गर्व से बोली; "कहा था न मेरा टाइम आएगा तो केक रगड़-रगड़ कर गाल सफ़ेद कर दूँगी!"

"तो अब साफ़ भी कर दो?" मैंने संगीता को आँख मारते हुए माँ के सामने छेड़ा जिससे संगीता शर्म से लाल हो गई! मैं बाथरूम से मुँह धो कर आया और संगीता से कल के प्रोग्राम के बारे में पुछा तो उसने नेहा की तरफ इशारा कर दिया| "पापा जी, कल है न हम सब पहले मंदिर जायेंगे और फिर वहाँ से फन एंड फ़ूड विलेज एम्यूजमेंट पार्क जाएंगे|" नेहा ख़ुशी से उत्साहित होते हुए बोली| नेहा ने मुझे बस इतना ही प्लान बताया, घर वापस आए कर पिज़्ज़ा बनाने का प्लान उसने मुझे नहीं बताया| "अरे वाह! मेरी लाड़ली बेटी ने सारा प्लान बनाया है, फिर तो बड़ा मज़ा आएगा|" मैंने नेहा की तारीफ की तो नेहा शर्मा गई और मुझसे आ कर लिपट गई| "अच्छा जी, बेटी ने प्लानिंग की तो उसकी तारीफ कर दी और मैं जो केक लाई उसकी तो कोई तारीफ नहीं की?" संगीता मुझे उल्हाना देते हुए बोली| अपनी बहु की बात सुन माँ भी संगीता की तरफ हो गईं: "वैसे केक तो बहुत स्वाद आया था!" जब माँ ने केक की तारीफ की तो मुझे भी संगीता की तारीफ करनी पड़ी; "स्वाद तो बहुत था केक! है न आयुष बेटा?" मैंने आयुष का सहारा लेते हुए संगीता के लाये केक की तारीफ की तो संगीता की नाक पर प्यारभरा गुस्सा आ गया और वो आँखें बड़ी कर के मुझे देखने लगी की मैंने सीधे-सीधे संगीता की तारीफ करने की बजाए आयुष का सहारा क्यों लिया?!

इतने में दिषु का फ़ोन आ गया, वो बेचारा मुझे जन्मदिन की बधाई देने के लिए नींद से उठा था; "हैप्पी बर्थडे यारा!" दिषु बोला और मुझे जन्मदिन की बधाई दी| "थैंक यू भाई! लेकिन तेरी आवाज़ बहुत भारी सुनाई दे रही है, तबियत तो ठीक है न?" मैंने थोड़ा चिंतित होते हुए पुछा तो दिषु बोला; "सब ठीक है भाई! वो दरअसल मैं 12 बजे का अलार्म लगाना भूल गया था! मैं मस्त सो रहा था की तभी सपने में मैंने देखा की तू मुझे जन्मदिन की पार्टी दे रहा है, तभी मुझे तुझे जन्मदिन की बधाई देना याद आया और मैं हड़बड़ा कर एकदम से उठ बैठा!" दिषु ने जब सपने में पार्टी खाने की बात की तो मैं हंस पड़ा और मेरे साथ दिषु भी हँस पड़ा| "अच्छा ये सब छोड़ और ये बता की घर पर क्या हो रहा है? क्या प्लान है सबका? और मेरी पार्टी कब दे रहा है?" दिषु ने सवालों की झड़ी लगा दी| "भाई, अभी तो हम सब ने केक काटकर खाया है| कल का प्रोग्राम मेरी लाड़ली बेटी नेहा ने बनाया है तो कल तेरे से मिल पाना मुश्किल है| हाँ परसों को मिलते हैं और तुझे तेरी पार्टी भी दे दूँगा!" मैंने दिषु को सारी बात बताई तो उसे सब बात जानकार ख़ुशी हुई| जब मैं दिषु को पार्टी देने की बता कर रहा था तो एक पल के लिए संगीता की आँखें बड़ी हो गई थीं, शायद उसे पिछले साल की वो रात याद आ गई थी जब अपने जन्मदिन वाली रात मैं नशे में धुत्त घर लौटा था| वहीं माँ ने मेरे दिषु को पार्टी देने की बता पर कुछ नहीं कहा, क्यों इसका पता मुझे बाद में चला|

खैर, रात बहुत हो चली थी इसलिए माँ ने सभी को सोने का आदेश दिया, मैं और मेरे पीछे-पीछे दोनों बच्चे कमरे में आ गए| स्तुति को बिस्तर पर लिटा कर जैसे ही मैं लेटा की दोनों बच्चे एकदम से मुझसे लिपट गए तथा खी-खी कर खिलखिलाने लगे| तभी संगीता अपनी नाक पर प्यारा सा गुस्सा ले कर आई और स्तुति को गोदी में ले कर कमरे से बाहर जाने लगी| मैंने जैसे ही संगीता को यूँ जाते देखा तो मैं बेचैन हो उठा और उससे पूछने लगा; "तुम कहाँ जा रही हो?" मेरी इस बेचैनी का कारण था की कुछ समय पहले संगीता ने जिस प्रेमपूर्ण चुंबन से मेरे भीतर प्रणय मिलन की लालसा जगाई थी उसे मैं बच्चों के सोने के उपरान्त पूरा करना चाहता था, परन्तु संगीता के इस तरह नाक पर गुस्सा लिए कमरे से जाने से उस क्रिया में व्यवधान उतपन्न हो गया था|

उधर मेरी बेचैनी देख कर भी संगीता को मुझ पर दया नहीं आई और वो अपने प्यारभरे गुस्से से मुझे उल्हाना देते हुए बोली; "आप बाप-बेटा-बेटी सोओ यहाँ, मैं चली माँ के पास सोने!" मैं जानता था की संगीता के इस झूठे गुस्से का क्या कारण है, उसका मन भी मेरे साथ सो कर प्रणय करने का था मगर बच्चों की उपस्थ्ति में ये नामुमकिन था इसीलिए उसने मुझे बच्चों के मेरे साथ सोने का उल्हाना दिया था|

संगीता तो स्तुति को ले कर माँ के पास सोने चली गई, इधर मैं अपना मन मारकर लेटा रहा| आखिर एक पिता और पति के दायित्व में से मैंने पिता का दायित्व निभाने का फैसला जो लिया था| उधर दोनों बच्चों को मेरे साथ लिपटकर सोने से जैसे सबकुछ मिल गया था तभी तो दोनों खिलखिला रहे थे| आपने बच्चों की हँसी सुन मैं अपने पति होने के दायित्व को एकदम से भूल बैठा और दोनों बच्चों को कहानी सुनाते हुए मीठी नींद सो गया|

अगली सुबह सभी नहा-धोकर मंदिर के लिए निकले| आज पहलीबार मेरी बिटिया रानी घर से गाडी में निकल रही थी इसलिए मैं अतिउत्साहित था| माँ सबसे आगे बैठीं थीं तथा उनकी गोदी में मेरी बिटिया रानी थी| संगीता और बच्चे जानबूझ कर पीछे बैठे थे, उसका कारण ये था की माँ बहुत कम ही मेरे साथ गाडी में कहीं जातीं थीं इसलिए उनका आगे बैठना जायज था| वहीं माँ को आगे बैठने या न बैठने से कोई फर्क नहीं पड़ता था परन्तु संगीता का कहना था की माँ जब भी गाडी में जाएँ वो हमेशा आगे बैठें|

मंदिर पहुँच माँ ने मेरे नाम से पूजा करवाई| पूजा होने के समय सबसे आगे आयुष और नेहा थे तथा दोनों अपनी आँखें मूंदें, हाथ जोड़े बड़े प्यारे लग रहे थे| उनके पीछे माँ, मैं और संगीता खड़े थे, मेरी गोदी में मौजूद स्तुति जाग रही थी और आज पहलीबार बड़ी शान्ति से मंदिर में भगवान जी को देख रही थी| पूजा संपन्न कर हमें प्रसाद मिला जो की हम बाप-बेटे ने बड़े चाव से खाया| फिर हम सब फन एंड फ़ूड विलेज एम्यूजमेंट पार्क के लिए निकले और पूरे रास्ते दोनों बच्चों ने शोर-शराबा कर सभी का मन लगाए रखा| दोनों बच्चे अपनी दादी जी को आयुष के जन्मदिन पर की गई मस्ती के बारे में बड़े चाव से सुना रहे थे, माँ भी कम नहीं थीं वो भी बिलकुल बच्ची बन कर अपने पोता-पोती की बातें सुनने में लगीं थीं|

[color=rgb(163,]जारी रहेगा भाग - 11 {4(2)} में...[/color]
 

[color=rgb(251,]इकत्तीसवाँ अध्याय: घर संसार[/color]
[color=rgb(44,]भाग - 11 {4(2)}[/color]

[color=rgb(71,]अब तक अपने पढ़ा:[/color]

मंदिर पहुँच माँ ने मेरे नाम से पूजा करवाई| पूजा होने के समय सबसे आगे आयुष और नेहा थे तथा दोनों अपनी आँखें मूंदें, हाथ जोड़े बड़े प्यारे लग रहे थे| उनके पीछे माँ, मैं और संगीता खड़े थे, मेरी गोदी में मौजूद स्तुति जाग रही थी और आज पहलीबार बड़ी शान्ति से मंदिर में भगवान जी को देख रही थी| पूजा संपन्न कर हमें प्रसाद मिला जो की हम बाप-बेटे ने बड़े चाव से खाया| फिर हम सब फन एंड फ़ूड विलेज एम्यूजमेंट पार्क के लिए निकले और पूरे रास्ते दोनों बच्चों ने शोर-शराबा कर सभी का मन लगाए रखा| दोनों बच्चे अपनी दादी जी को आयुष के जन्मदिन पर की गई मस्ती के बारे में बड़े चाव से सुना रहे थे, माँ भी कम नहीं थीं वो भी बिलकुल बच्ची बन कर अपने पोता-पोती की बातें सुनने में लगीं थीं|

[color=rgb(26,]अब आगे:[/color]

आखिर
हम सभी अपने गंतव्य स्थान यानी फन एंड फ़ूड विलेज एम्यूजमेंट पार्क (fun n food village amusement park) पहुँच गए| बच्चों की बातों में कब समय बीता ये पता ही नहीं चला, गाडी पार्क कर मैंने सभी की टिकट ली और हम सभी ने एम्यूजमेंट पार्क में प्रवेश किया| इतने सारे झूले देखते ही दोनों बच्चे ख़ुशी से कूदने लगे और पहले किस झूले पर जाना है उस पर बहस करने लगे| सबसे पहले बारी आई जायंट व्हील (giant wheel) पर झूला झूलने की, परन्तु एक समस्या थी और वो ये की हम स्तुति को ले कर किसी भी झूले पर नहीं बैठ सकते थे| झूले पर झूलने से मेरी छोटी सी बच्ची की तबियत खराब हो सकती थी इसलिए हम स्तुति को ले कर किसी भी झूले पर नहीं जा सकते थे| "बेटा, स्तुति को हम झूलों पर नहीं झूला सकते इसलिए आप सब जाओ और झूलो तब तक मैं यहाँ स्तुति के साथ बैठता हूँ|" मेरी बात सुन बच्चों का मन फीका होने लगा था, अपने पोता-पोती की ख़ुशी का ख्याल करते हुए माँ बोलीं; "बेटा, तू जा कर बच्चों के साथ इस झूले पर झूल कर आ, मैं यहाँ बैठती हूँ स्तुति के साथ|" माँ आज तक जायंट व्हील पर नहीं बैठीं थीं इसलिए मैंने उन्हें और बच्चों को समझाया; "बच्चों, आपकी दादी जी आजतक इस झूले पर नहीं बैठीं इसलिए आप सब जाओ| जब रोलर कोस्टर (roller coaster) पर जाने की बारी आएगी न तब मैं आपके साथ चलूँगा और माँ स्तुति का ध्यान रखेंगी| ऐसे ही जब हम की दूसरे झूले पर जायेंगे तब आपकी मम्मी स्तुति का ध्यान रखेंगी और हम सब झूल कर आएंगे|" मेरा सुझाया हुआ ये रास्ता बच्चों को जचा और उन्होंने अपनी दादी जी का हाथ पकड़ उन्हें अपने साथ जायंट व्हील की तरफ खींच ले गए|

बच्चे उधर झूल रहे थे और इधर मैं और स्तुति आराम से बैठे हुए सबको देख रहे थे| स्तुति आज पहलीबार घर से बाहर आई थी इसलिए बाहर का शोर-गुल सुन वो कुछ अधिक ही प्रसन्न थी| "मेले बच्चे को घर से बाहर आ कर मज़ा आ रहा है न?" मैंने तुतलाते हुए स्तुति से पुछा तो उसके चेहरे पर मुस्कान खिल गई|

उधर आयुष जायंट व्हील के सबसे ऊपर पहुँचते ही नीचे देख कर चिल्लाने लगा; "पापा...पापा जी देखो!" आयुष को चिल्लाते हुए देख मैंने हाथ हिला कर उसे सावधानी से बैठने को कहा| फिर मैंने अपना फ़ोन निकाला और सबकी जायंट व्हील पर बैठे हुए फोटो खींची और वो फोटो स्तुति को दिखाने लगा| अब स्तुति को क्या समझ आता वो तो बस मेरा फ़ोन देख कर ही मुस्कुरा रही थी|

कुछ पल बाद सब जायंट व्हील से उतर कर आये और बच्चों ने मुझे अपने जायंट व्हील पर हुए अनुभव को बड़े मज़े से सुनाना शुरू कर दिया| जब भी बच्चे अपने अनुभव सुनाते थे तो हम सभी बच्चे बन जाते थे और बच्चों की बातों का आनंद लेते थे|

आयुष: पापा जी, दादी जी है न इतनी ऊँचाई पर जा कर डर गईं थीं, तब मैंने दादी जी का हाथ पकड़ कर उन्हें डरने नहीं दिया|

आयुष ने अपने बाहदुर होने की बात बड़े गर्व से कही, वहीं माँ ने अपने पोते की बहादुरी पर नाज़ करते हुए कहा;

माँ: मेरा पोता बहुत बहादुर है, उसने मेरा हाथ पकड़ कर मुझे ज़रा भी डरने नहीं दिया| भई मैं तो अब अपने पोते के साथ ही झूले में बैठूँगी!

जब माँ ने आयुष की तारीफ की तो आयुष को खुद पर बड़ा गर्व हुआ| फिर नेहा ने मुझे जायंट व्हील के ऊपर से ली गई तसवीरें दिखाई, उन तस्वीरों में से एक तस्वीर हम बाप-बेटी की भी थी, हालाँकि ये तस्वीर इतनी क्लियर नहीं थी| मैंने भी सब को नीचे बैठ कर ली गई तसवीरें दिखाई जिससे सभी को पता चला की नीचे बैठ कर हम बाप-बेटी (यानी मैं और स्तुति) भी मस्ती कर रहे थे|

हम सब चलते हुए पहुँचे रोलर कोस्टर के पास| मैं और माँ मेरे बचपन में एक बार रोलर कोस्टर में बैठे थे, रोलर कोस्टर देख माँ को वो दिन याद आ गया और वो एकदम से घबराते हुए बोलीं; "बेटा ये वाला झूला बहुत डरावना है इसलिए तुम सब जाओ, मैं नहीं बैठूँगी इसमें!" माँ को इस तरह घबराते हुए देख आयुष ने उन्हें हिम्मत दी; "दादी जी, मैं हूँ न आपके साथ! मैं आपको ज़रा भी डरने नहीं दूँगा|" आयुष का उत्साह देखते हुए माँ उसे समझाने लगीं; "बेटा, जब तेरा पापा छोटा था न तब मैं और तेरा पापा एक साथ ऐसे ही एक झूले पर बैठे थे| ये झूला इतनी तेज़ भागा की मेरा तो डर के मारे बुरा हाल हो गया था| उसी दिन से मैंने कसम खा ली की मैं इस झूले में कभी नहीं बैठूँगी|" माँ ने जब अपना डर बच्चों को बताया तो दोनों बच्चे खी-खी कर हँसने लगे! बहरहाल, माँ के डर का ख्याल रखते हुए मैंने स्तुति को माँ की गोदी में छोड़ा और मैं बच्चों के साथ रोलर कोस्टर वाली लाइन में लग गया| आयुष के जन्मदिन वाले दिन संगीता माँ बनने वाले थी इसलिए उसे रोलर कोस्टर पर बैठने को नहीं मिला था इसलिए आज संगीता भी बच्चों की तरह रोलर कोस्टर पर बैठने को बहुत उत्सुक थी| लगभग 20 मिनट के इंतज़ार के बाद हमारी बारी आई और हम चारों रोलर कोस्टर पर बैठने लगे| संगीता जानती थी की दोनों बच्चे मेरे साथ बैठने की जिद्द करेंगे इसलिए उसने चालाकी दिखाते हुए दोनों बच्चों को सबसे पहले एक साथ बिठा दिया तथा मेरा हाथ पकड़ कर एकदम से बच्चों के पीछे वाली सीट पर बैठ गई| बच्चे अपने साथ हुए इस छल को देख कर अपनी मम्मी से नाराज़ हो गए थे तो अब मेरा काम उन्हें मनाने का था; "बेटा, आप तो पहले इस झूले पर बैठ चुके हो मगर आपकी मम्मी का ये पहलीबार मौका है न, तो वो डर रहीं हैं| मैं साथ बैठूँगा तो आपकी मम्मी नहीं डरेंगी|" मैंने बच्चों को समझाया तो जैसे-तैसे बच्चे मान गए|

आखिर रोलर कोस्टर चल पड़ा, शुरुआत बहुत धीमे थी इसलिए संगीता को कोई डर नहीं लगा, लेकिन जैसे ही रोलर कोस्टर ने अपनी रफ़्तार पकड़ी और वो तेज़ी से ऊपर नीचे होने लगा तो संगीता की डर के मारे जान निकलने लगी! डर के मारे संगीता की चीख निकली और उसने एकदम से मेरा हाथ पकड़ लिया और आँखें बंद कर ली| ऐसा नहीं था की मुझे डर नहीं लग रहा था मगर संगीता का डर देख मुझे हँसी आ रही थी! वहीं आगे बैठे हुए दोनों बच्चों को ज़रा सा भी भी डर नहीं लग रहा था, वो तो बस ख़ुशी से चीखे जा रहे थे|

जब रोलर कोस्टर रुका तो संगीता की डर के मारे आँखें भीग गई थीं| "अरे मेरा छोटा बच्चा डर गया था!" मैंने संगीता को छोटे बच्चे की तरह लाड करते हुए अपनी बाहें फैलाईं तो संगीता बच्चों की तरह मेरे सीने से लिपट गई और बोली; "मैं दुबारा इस झूले में नहीं बैठूँगी!" संगीता तुतलाते हुए मेरे सीने में अपना चेहरा छुपाते हुए बोली| अपनी मम्मी को यूँ डरा हुआ देख आयुष को बड़ा मज़ा आए रहा था और वो जोर-जोर से हँस कर अपनी मम्मी के डरने का मज़ाक उड़ा रहा था| नेहा ने जब अपने भाई को अपनी मम्मी का यूँ मज़ाक उड़ाते देखा तो उसने आयुष की पीठ पर एक घूसा धर दिया और अपनी मम्मी को हिम्मत बँधाते हुए बोली; "मम्मी आप चिंता मत करो, आप दुबारा ऐसी डरावनी राइड (ride) पर मत बैठना|" अपनी बेटी द्वारा दी गई हिम्मत से संगीता के चेहरे पर मुस्काना आ गई और उसने नेहा के सर पर हाथ रख कर आशीर्वाद दिया|

माँ के पास लौट आयुष ने सबसे पहले अपनी मम्मी के डर के बारे में बढ़ा-चढ़ा के बताना शुरू किया, परन्तु माँ को संगीता के डर पर हँसी नहीं आई बल्कि वो तो उसे सहानुभूति देते हुए बोली; "डर मत बहु, आगे से हम दोनों सास-पतुआ फिर कभी उस झूले में नहीं बैठेंगे|" माँ ने संगीता को बच्चों की तरह लाड करते हुए कहा|

एक के बाद एक हम बहुत से झूलों में बैठे परन्तु हम में से कोई न कोई स्तुति को सँभाले हुए रुकता ही था| जब दोपहर में खाने का समय हुआ तो संगीता ने सभी के लिए उनकी पसंद का खाना मँगाया| खाना खा कर बच्चों ने उत्साह से अपनी दादी जी को अगले झूले पर जाने के लिए खींचना शुरू किया परन्तु माँ थक गईं थीं इसलिए वो मना करने लगीं| तब नेहा एकदम से आगे आई और अपनी दादी जी के पाँव दबाने लगी| माँ अपने पोता-पोती की जिद्द को जानती थीं इसलिए वो आखिर मान ही गईं|

मस्ती कर अंततः हम सभी शाम को 6 बजे थक कर घर पहुँचे| "दिन भर मस्ती कर ली न दोनों ने, तो अब अपनी दादी जी के पाँव दबाओ!" संगीता दोनों बच्चों को आदेश देते हुए बोली| दोनों बच्चों ने अपनी दादी जी को पाँव सोफे पर रख कर बैठने को कहा और अपने छोटे-छोटे हाथों से माँ के पाँव दबाने लगे, उधर संगीता कपड़े बदल कर रसोई में घुस गई| मैं जानता था की सभी थके हुए हैं इसलिए मैंने संगीता को रोकना चाहा; "सब थके हुए हैं इसलिए खाना बनाना छोडो, मैं रात को बाहर से कुछ मँगा लूँगा!"

"बिलकुल नहीं! आज आपके लिए कुछ ख़ास बनने जा रहा है|" संगीता मेरी बात का काट करते हुए बोली| कुछ ख़ास बनने के नाम से ही मेरे चेहरे पर मुस्कान और मुँह में पानी आ गया था| मैंने संगीता से जब पुछा की क्या ख़ास बन रहा है, उस पर संगीता मेरी ही नकल करते हुए बोली; "सब अभी बता दूँ? तनिक धीरज धरो!" संगीता द्वारा अपनी नकल किये जाने पर मैं मुस्कुरा दिया और चुपचाप अपनी जगह बैठा रहा| "नेहा, बेटा तू मेरी आ कर मदद कर दे और आयुष तू दादी जी का पैर दबाना जारी रख| माँ आप भी ज़रा इस शरारती पर नज़र रखना कहीं ये सारा सरप्राइज खोल न दे!" संगीता ने नेहा और आयुष को आदेश दिया तथा माँ को आयुष पर नज़र रखने का काम दे दिया|

माँ-बेटी रसोई में घुसीं तो मैंने आयुष से ख़ास चीज़ के बारे में पुछा मगर आयुष अपनी मम्मी के डर से कुछ नहीं बोला| मैंने आयुष को खूब लालच दिया की मैं उसे चॉकलेट खिलाऊँगा, चाऊमीन खिलाऊँगा मगर आयुष ने मेरी शिकायत अपनी दादी जी से कर दी; "दादी जी, देखो..." इतना कह कर आयुष चुप हो गया तो माँ ने ही मुझे प्यार भरी डाँट लगाई; "जब बनेगा तब पता चल जायेगा! अब चुप-चाप स्तुति के साथ खेल|" माँ की प्यारी सी डाँट सुन मैंने स्तुति से ही बात करनी शुरू कर दी; "बेटा आपको पता है न की आपकी मम्मी क्या ख़ास बना रही हैं?" मेरे पूछे सवाल के जवाब में स्तुति मुझे टुकुर-टुकुर देखने लगी, ऐसा लगता था मानो वो भी अनजान बनते हुए मुझसे ये राज़ छुपा रही हो| "मेरा बच्चा मेरे से बात छुपा रहा है?" मैंने स्तुति के गाल चूमते हुए कहा तो मेरी बिटिया रानी के चेहरे पर हँसी की महीन रेखा खिंच गई!

"पापा जी, एक हिंट (hint) देती हूँ| आपने ये घर पर बनी हुई 'चीज़' कभी नहीं खाई|" नेहा ने 'चीज़' (cheese) शब्द पर बहुत जोर देकर कहा| अब देखा जाए तो मेरी बेटी ने मुझे बहुत अच्छा हिंट दिया था मगर मैं मूर्ख ही उसका हिंट समझ ही नहीं पाया| मैंने मन ही मन खूब सारी अटखलें लगाईं, अटखलें तो सही साबित नहीं हुईं मगर इन अटखलों ने मेरे पेट में भूख जगा दी थी| जब मेरा पेट भूख के कारण गुर्राया तो ये गुर्राहट मेरी बिटिया ने सुन ली और इस गुर्राहट को महसूस कर उसे बहुत मज़ा आया और उसने अपनी मुट्ठी में मेरी ऊँगली कस ली! मेरी बेटी की इस प्रतिक्रिया से ख़ुशी के मारे मेरे दिल की धड़कन तेज़ हो गई!

करीब घंटे भर बाद मेरा इंतज़ार खत्म हुआ और वो ख़ास चीज़ बन कर तैयार हुई| संगीता ने इस बात का बड़ा ध्यान रखा था की मैं कहीं इस ख़ास चीज़ की खुशबु न सूँघ लूँ, तभी तो उसने रसोई का एग्जॉस्ट फैन (exhaust fan) चला रखा था| संगीता ने बड़ी खास रणनीति के तहत नेहा को बैठक में मेरे पास भेजा और खुद उस ख़ास चीज़ को सजाने लगी| इधर बैठक में नेहा अपने हाथ में एक कपड़ा और रुई ले कर मेरे पास आई और मुझसे बोली; "पापा जी, आँखें बंद करो और जबतक मैं न कहूँ आप कुछ नहीं बोलोगे|" नेहा ने बड़े प्रेमपूर्वक मुझे आदेश दिया| अपनी बेटी के हुक्म की तामील करते हुए मैं आँखें बंद किये हुए चुप-चाप बैठ गया| नेहा ने वो पट्टी मेरी आँखों पर बाँधी तथा रूई मेरी नाक में लगा दिया जिससे मैं उस ख़ास चीज की खुशबु न सूँघ लूँ| "जबतक मैं न कहूँ आप है न नाक से साँस नहीं लोगे, आपको मुँह से साँस लेनी है|" नेहा मुझे किसी अध्यापिका की तरह आदेश देते हुए बोली| माँ ने जब मेरी नाक में रुई देखि तो वो नेहा से इसका कारण पूछने लगीं; "दादी जी, पापा जी की नाक है न बहुत तेज़ है! वो है न ख़ास चीज़ की खुशबु सूँघ कर पहले ही जान जायेंगे की हमने क्या बनाया है इसीलिए मैंने पापा जी की नाक में रुई लगाई है ताकि उन्हें कोई खुशबु न आये|" अपनी पोती का बचपना देख माँ हँस पड़ीं और नेहा को वो ख़ास चीज़ लाने को कहा|

संगीता रसोई के भीतर से वो ख़ास चीज़ यानी के पिज़्ज़ा एक प्लेट में परोस कर लाई और मेरे सामने टेबल पर रख दिया| अपनी बेटी का आदेश मानते हुए मैं मुँह से साँस ले रहा था इसलिए मैं पिज़्ज़ा की खुशबु नहीं सूँघ पाया था जिस कारण संगीता का ये सरप्राइज खराब नहीं हुआ| "पापा जी, मैं पट्टी खोल रही हूँ मगर आप है न अपनी आँख तभी खोलोगे जब मैं कहूँगी!" नेहा मुझे नया आदेश देते हुए बोली, मैंने भी एक अच्छे विद्यार्थी होने का सबूत देते हुए अपना सर हाँ में हिलाया| नेहा ने मेरी आँखों पर से पट्टी खोली और बड़े प्यार से बोली; "अब आप आंखें खोलो|" भूख से चूहों ने मेरे पेट में कबड्डी खेलनी शुरू कर दी थी इसलिए मैंने तुरंत आँख खोल दी!

आँख खोल कर मैंने देखा की सामने टेबल पर प्लेट में पिज़्ज़ा रखा हुआ है और उस पिज़्ज़ा के बीचों-बीच मोमबत्ती जल रही है| "पिज़्ज़ा.वाओ!!! (WOW!!!)" मेरे भीतर मौजूद बच्चा ख़ुशी से चहका| पिज़्ज़ा मैंने बहुत बार खाया था मगर घर पर बना पिज़्ज़ा मैं आज पहलीबार देख रहा था| मैंने अपनी नाक से रुई निकाली और एक लम्बी साँस अपने भीतर खींची ताकि मैं घर पर बने पिज़्ज़ा की खुशबु को अपने पेट तक पहुँचाऊँ| घर में बनाये इस पिज़्ज़ा की खुशबु बिलकुल बाजार के पिज़्ज़ा जैसी खुशबु जैसी थी, हाँ रूप-रंग में थोड़ा फर्क था| "पापा जी, पहले मोमबत्ती बुझाओ और फिर टेस्ट करो!" मेरी बेटी उत्साह से भरते हुए बोली| दरअसल उसे भी अपनी मम्मी की तरह जानना था की उनकी की गई मेहनत क्या रंग लाई है?

मैंने मोमबत्ती बुझाई और पिज़्ज़ा का एक स्लाइस उठा कर खाया तो ख़ुशी की मारे मेरी आँखें बड़ी हो गईं! "ममम....वा....वाह भई....ज्वा...जवाब नहीं इस पिज़्ज़ा का!" मैं भरे मुँह से किसी तरह पिज़्ज़ा की तारीफ करते हुए बोला| मेरी की गई तारीफ से दोनों माँ-बेटी को खुद पर गर्व होने लगा की उन्होंने कितना स्वाद पिज़्ज़ा बनाया है| फिर नेहा ने मुझे घर पर पिज़्ज़ा बनाने की सारी विधि बताई जिसे सुन कर मैंने दोनों माँ-बेटी की फिर से तारीफ की| वहीं आयुष बेचारा पिज़्ज़ा खाने के लिए बेसब्र हो रहा था; "मम्मी मुझे भी भूख लगी है!" आयुष अपने छोटे से पेट पर हाथ फेरते हुए बोला| संगीता ने फटाफट दादी-पोता के लिए पिज़्ज़ा बनाया, इधर मैं और नेहा मिलकर पिज़्ज़ा खा रहे थे| अंत में संगीता अपने लिए भी पिज़्ज़ा बना कर ले आई और हम सभी ने चटखारे लेते हुए पिज़्ज़ा खाया|

पिज़्ज़ा खा कर अब सोने की बारी थी, नेहा ने आयुष को एक गुपचुप इशारा किया जो की मैंने देख लिया था| आयुष एकदम से मेरी गोदी में आ कर मुझसे लिपट गया, इतने में नेहा भी मेरी बगल में बैठते हुए मेरे सीने से लिपट गई| दोनों बच्चों ने मिलकर अपने दोनों हाथों से मुझे अपने मोहपाश में जकड़ लिया था| अब मेरे लिए इस मोहपाश को तोड़ पाना नामुमकिन था इसलिए मैं दोनों बच्चों को एक साथ गोदी ले कर अपने कमरे में आ गया| संगीता ने जब देखा की दोनों बच्चे मुझसे लिपटे हुए हैं और मैं अपना सारा प्यार बच्चों पर लुटा रहा हूँ तो वो जान गई की गया उसका प्लान कूड़े में! नाक पर असली गुस्सा लिए संगीता कमरे में आई और गुस्से में अपना तकिया उठाने लगी| तभी मैंने बच्चों की चोरी संगीता को आँख मार कर थोड़ा धीरज रखने का इशारा किया| दरअसल नेहा की चालाकी मैं भाँप चूका था इसलिए मैंने अपनी बेटी की चालाकी का काट करने के लिए मैंने भी अपना प्लान बना लिया था| बच्चों के सोने के पश्चात मैं और संगीता बच्चों वाले कमरे में बेरोक-टोक अपनी 'प्रेम-क्रीड़ा' कर सकते थे! संगीता मेरे आँख मारने से ये बात आधी समझ गई थी और बाकी आधी बात मुझे उसे बोलकर समझानी थी| संगीता ने अपना गुस्सा थूका और चेहरे पर मुस्कान लिए हुए बड़े प्यार से बोली; "जानू, जरा सुनिए तो?!" संगीता इतने प्यार से इसलिए बोली थी की कहीं बच्चों को हमारे प्लान पर शक न हो जाये|

मैंने दोनों बच्चों को बिस्तर पर लेटने को कहा और संगीता के पास पहुँचा; "मैं जल्दी से बच्चों को सुला देता हूँ, फिर हम दोनों बच्चों वाले कमरे में..." मैंने खुसफुसाकर कहा तथा जानबूझकर अपनी बात अधूरी छोड़ दी| संगीता मेरी बात सुन बहुत खुश हुई और बच्चों को सुनाने के मकसद से बोली; "मैं और स्तुति माँ के कमरे में सोयेंगे, अगर स्तुति रोई तो मैं आपके पास ले आऊँगी!" संगीता ने ये बात अपनी आँखें नचाते हुए कही थी| मेरे भोले-भाले बच्चे अपनी मम्मी की बात नहीं समझे थे, वो तो बस इसी बात से खुश थे की आज उन्हें अपने पापा जी के साथ सोने को मिल रहा है| "पापा जी नी-नी आ रही है!" नेहा बोली और मुझे अपने पास बुलाने के लिए उसने अपनी दोनों बाहें फैलाईं| नेहा ने अपनी मम्मी की जिद्द पर अपनी जिद्द की जीत पर गर्व करते हुए कहा| अपनी बेटी के इस बचपने को देख मैं हँस पड़ा और नेहा को गोदी ले कर उसके गाल चूमते हुए बोला; "मेरी बेटी बहुत होशियार है!" मेरी बात सुन नेहा समझ गई की मैं उसकी और आयुष की सारी चालाकी भाँप चूका हूँ! मेरे द्वारा यूँ उसकी चालाकी पकड़े जाने पर नेहा को हँसी आ गई और वो खी-खी कर मेरे गाल चूमते हुए बोली; "आई लव यू पापा जी!" मैंने भी नेहा के मस्तक को चूमते हुए कहा; "आई लव यू टू मेरा बच्चा!" इतने में आयुष बोल पड़ा; "पापा ये आईडिया (idea) मेरा था!" आयुष अपनी नाक पर प्यारा सा गुस्सा ले कर बोला| आयुष का ये गुस्सा इसलिए था की उसके रात में मेरे साथ सोने के आईडिया का सारा श्रेय नेहा को मिल रहा था| "Awwww मेरा बच्चा! मेरा छोटा सा बच्चा तो बहुत तेज़ हो गया?" मैंने आयुष की तारीफ की तथा नेहा के साथ उसे भी गोदी ले कर लाड करने लगा|

अब मुझे अपने बच्चों को जल्दी सुलाना था इसलिए मैंने दोनों बच्चों को अपने सीने से चिपका कर कहानी सुनाई, बच्चे आज की मस्ती से थके हुए थे इसलिए जल्दी ही कहानी सुन कर सो गए| मैंने बड़ी सावधानी से खुद को बच्चों की गिरफ्त से छुड़ाया और दबे पाँव कमरे से बाहर निकला| बिना कोई आवाज़ किये मैं बच्चों के कमरे में घुसा, पर मैं कमरे की लाइट जलाऊँ उससे पहले ही संगीता ने पीछे से आ कर मुझे अपनी बाहों में जकड़ लिया! "सससस" संगीता सीसियाई और अपनी बाहें मेरे सीने पर कस लीं ताकि कहीं मैं उससे छूट कर भाग न जाऊँ! मैं धीरे से संगीता की तरफ मुड़ा और उसे अपनी बाहों में भर कर उसके मस्तक को चूमा| "कितना इंतज़ार किया है मैंने आज के दिन का!" संगीता मेरे सीने को चूमते हुए खुसफुसाई| "आपको मुझ पर ज़रा सा भी तरस नहीं आता न?! सारा टाइम बस बच्चों की ख़ुशी ही दिखाई देती है आपको!" संगीता मुझे उल्हाना देते हुए बोली| अब मैं अपनी कोई सफाई दूँ उससे पहले ही संगीता मुझे प्यारभरी सजा देते हुए मेरे सीने पर अपने दाँत गड़ा दिए|

"जान, प्यार करने का मन मेरा भी था मगर नेहा की चालाकी देख उसका दिल तोड़ने का मन नहीं हुआ! बच्ची है, थोड़ा उसे भी खुश होने देना चाहिए न?! फिर तुम भी जानती हो की हमें यूँ चोरी-छुपे मिलने और प्यार करने में कितना मज़ा आता है?! तो देखा जाए तो एक तरह से इतने महीनों बाद हमारा यूँ संगम होना ही सही था!" मैंने अपनी सफाई देते हुए कहा| संगीता समझ गई की मैं भी संगीता की ही तरह दोनों बच्चों की होशियारी भाँप चूका था| खैर ये वक़्त बातें नहीं बल्कि प्यार करने का था; "जानती हूँ, लेकिन अब बातें नहीं! बातें तो हम दिनभर कर सकते हैं, अब वो करते हैं जिसके लिए हम आये हैं!" संगीता लजाते हुए बोली| संगीता के यूँ लजाने से मैं उसका दीवाना हो गया था, मैंने फौरन संगीता को अपनी बाहों से आज़ाद किया तथा कमरे का दरवाजा अंदर से बंद किया|

पूनम की रात थी और कमरे में हल्की सी रौशनी आ रही थी, उसपर रात का सन्नाटा था| कमरे के भीतर दो जवान दिल एक होने के लिए धड़क रहे थे| दरवाजा बंद कर मैं संगीता के नज़दीक आया तो सबसे पहले हमारे अधरों का मिलन हुआ| 6 महीने से इतना करीब होते हुए भी हम दोनों जिस्मानी रूप से बहुत दूर थे इसलिए हमारे भीतर प्यास इतनी थी की मौका मिलते ही हम दोनों एक दूसरे पर टूट पड़े!

जल्द ही चुंबन से होते हुए हम प्रेम के अगले पड़ाव पर पहुँच गए| हमने एक दूसरे के बदन से कपड़े नोच-नोच कर फेकने शुरू कर दिए| फिर कब हम दोनों पलंग पर लेटे हुए गुथम-गुत्था हुए इसका पता ही नहीं चला| लेकिन होनी को हमारा ये प्रेम मिलन मंज़ूर नहीं था, शायद महूरत ठीक नहीं था या फिर हमारा ये प्रेम मिलन होने में थोड़ा और समय लगना था|

प्रेम मिलाप में भेदन कार्य आरम्भ होने ही वाला था की तभी अचानक मेरी बिटिया रानी रोने लगी| स्तुति के अचानक रोने का मतलब था की अब माँ जाग जाएँगी और माँ के जागते ही उन्हें पता लग जायेगा की संगीता बिस्तर पर नहीं है, फिर माँ उसे ढूँढती हुई कमरे से बाहर आतीं तथा हम दोनों मियाँ-बीवी को यूँ कमरे में इस समय...इस हालत में देख डाँटती!

इधर जैसे ही संगीता ने स्तुति के रोने की आवाज़ सुनी वो सतर्क हो गई| संगीता को हमारे प्रेम मिलाप के समय किसी भी प्रकार का व्यवधान नपसंद था| इतिहास गवाह है की आज तक जिस किसी ने भी हमारे प्रेम मिलाप में व्यवधान डाला है उसे संगीता ने नहीं छोड़ा! माधुरी तो याद ही होगी आप सभी को, याद है न संगीता ने कैसे उसे झाड़ा था! बहरहाल, जैसे ही संगीता ने स्तुति का रोना सुना उसके मुँह से कुछ ऐसा निकला जिसे सुन कर मेरा खून खौल गया; "इस हरामजादी को चैन नहीं!" ये कहते हुए संगीता मेरे ऊपर से हटी|

संगीता के मुँह से अपनी बेटी के लिए ऐसी गंदी गाली सुन मेरे तन बदन में आग लग गई| उसने मेरी बेटी...मेरे खून को हराम का कहा था इसलिए अब संगीता की खैर नहीं थी| "संगीता" मैं गुस्से से चिल्लाया और एकदम से उठ कर खड़ा हुआ| "तेरी हिम्मत कैसे हुई मेरी बेटी...मेरे खून को इतनी गन्दी गाली देने की?" मेरे मुँह से गाली निकलने वाली थी मगर मैंने खुद को रोका क्योंकि मैं अपनी ही पत्नी को गाली दे कर उसी के जैसा नहीं बनना चाहता था| कमरे की लाइट जला मैं संगीता के नज़दीक पहुँचा, मेरी गरज और गुस्सा देख संगीता डर के मारे थर-थर काँप रही थी| "इस गाली का मतलब भी जानती हो?" मैंने संगीता को घूर कर देखते हुए कहा और कमरे से बाहर निकल गया| मेरा गुस्सा देख संगीता डर के मारे थरथरा गई थी, उसमें मुझसे कुछ कहने की या अपनी सफाई देने की हिम्मत नहीं थी इसलिए संगीता सर झुकाये निर्वस्त्र खड़ी रही|

कमरे से बाहर आ कर मैंने अपन बनियानी और पजामा पहना तथा माँ के कमरे में प्रवेश किया| स्तुति के रोने से माँ भी जाग गईं थी और वो अपनी कोशिश करते हुए स्तुति को चुप कराने की कोशिश कर रहीं थीं| मुझे देख माँ बोलीं; " शुगी (स्तुति) ने सुसु कर दिया था, लगता है बहु शुगी को डायपर (diaper) पहनाना भूल गई थी|" मैंने माँ की बात का कोई जवाब नहीं दिया और स्तुति को गोदी में ले कर अपने कमरे में आ गया| स्तुति के कपड़े बदल उसे लाड कर मैंने चुप कराया तथा अपने सीने से लगा कर सारी रात जागते हुए कटी|

[color=rgb(163,]जारी रहेगा भाग - 12 में...[/color]
 
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