Hindi Antarvasna एक अनोखा बंधन - पुन: प्रारंभ


[color=rgb(44,]इकत्तीसवाँ अध्याय: घर संसार[/color]
[color=rgb(251,]भाग - 13[/color]

[color=rgb(71,]अब तक अपने पढ़ा:[/color]

नेहा को लाड कर माँ ने मुझे भी प्यार से समझाते हुए कहा; "बेटा, तू भी गुस्सा कम किया कर| साइट पर जो तूने उस लेबर को सबक सिखा कर अपना गुस्सा निकाला था वो सही बात नहीं थी| दूसरों के पचड़ों में अधिक पड़ने से हमारे घर पर भी कोई मुसीबत आ सकती है| खैर, जो हो गया सो हो गया, आगे से मेरी बात का ध्यान रखिओ|" माँ को मुझसे इस मामले में कोई सफाई नहीं चाहिए थी, उन्हें बस मुझे एक सीख देनी थी जो मुझे मिल चुकी थी इसलिए मैंने बस अपना सर हाँ में हिला कर माँ की कही बात का मान रखा|

[color=rgb(26,]अब आगे:[/color]

दो
दिन बाद दिषु का फ़ोन आया; "अबे मेरी पार्टी कब दे रहा है?" दिषु मुझसे पार्टी ऐसे माँग रहा था मानो कोई कर्ज़ा माँग रहा हो! "तूने ही तो कहा था की मैं वापस आ कर फ़ोन करूँगा!" मैंने सारी बात दिषु पर डालते हुए कहा| "हाँ तो मैंने फ़ोन नहीं किया तो तू नहीं कर सकता था?! तेरे हाथ में मेहँदी लगी है?!" दिषु अपना झूठ गुस्सा दिखाते हुए बोला| "अच्छा ठीक है, अब आ गया न तू, तो बता कब चाहिए पार्टी?" मैंने हँसते हुए पुछा तो दिषु ने आज रात के लिए कहा|

दिषु को आज रात की पार्टी की हाँ कह मैं माँ से बात करने पहुँचा| जब मैंने माँ को दिषु को पार्टी देने की बात कही तो माँ समझ गईं की हमारी पार्टी में पीना-खाना होगा इसलिए माँ का चेहरा थोड़ा फीका पड़ गया| "आप चिंता न करो माँ, मैं नहीं पियूँगा| सिर्फ दिषु को पिला दूँगा और मैं कुछ नॉन-वेज खा लूँगा|" मैंने पिताजी से कभी न पीने का वादा किया था और मैं अपने उस वादे पर अटल रहना चाहता था| वहीं माँ अपने बेटे के दिल को समझती थीं, वो मुझे कभी किसी चीज़ के लिए तरसाना नहीं चाहतीं थीं इसलिए अपने दिल पर पत्थर रख कर माँ मुझे पीने की इजाजत देते हुए बोलीं; "बेटा मैं जानती हूँ की तेरा भी मन पीने-खाने का करता होगा..." माँ की इतनी बात सुन मैंने माँ की बात काटते हुए उन्हें पिताजी से किया अपना वादा याद दिला दिया; "नहीं माँ, मैंने पिताजी से वादा किया था..." जैसे ही मैंने इस वादे का जिक्र किया माँ ने मेरी बात काट दी; "वो वादा तूने जिससे किया था वो इंसान तो हमें छोड कर चला गया न?! तो क्या अहमियत रह गई उस वादे की?! तू जवान है और इस उम्र में ये सब पीने-खाने का तेरा मन जर्रूर करता होगा| मैंने आजतक तुझे कभी किसी चीज़ के लिए तरसाया नहीं है और जबतक मैं जिन्दा हूँ तू तरसेगा भी नहीं| तेरा मन करे पीने का तो तू पी लियो मगर पिछलीबार की तरह मत पियो की तू आपे से बाहर हो जाए और घर में कलेश कर दे तथा मोहल्ले में हमारी बदनामी हो|" माँ ने मुझे पीने की छूट दे दी थी, परन्तु मेरा मन मुझे फिर भी पीने की आज्ञा नहीं दे रहा था!

"थैंक यू माँ की आप मुझे समझते हुए पीने की आज़ादी एक जिम्मेदारी के साथ दे रहे हो मगर मैं पी कर अपने बच्चों के सामने नहीं आ सकता! मैं नहीं चाहता की मेरे बच्चे कभी मुझे नशे में देखें या उन्हें पता चले की मैं शराब पीता हूँ|" मैंने माँ को धन्यवाद कहते हुए अपने न पीने का कारण बताया, जिसे सुन माँ का सीना गर्व से फूला नहीं समाया| माँ ने मेरी पीठ थपथपाई और मुझे आशीर्वाद देते हुए बोलीं; "जीता रह मेरा बेटा! मुझे आज तुझ पर बहुत गर्व हो रहा है!" माँ को इस बात की बहुत ख़ुशी थी की मैं अपनी इस नशे की आदत पर काबू पाए हुए हूँ| तब उन्हें ये नहीं पता था की उनका बेटा छत पर छुपकर सिगरेट पीता है|

जहाँ एक तरफ माँ ने मुझे पीने की आज़ादी दे दी थी वहीं संगीता माँ की बातों से हैरान थी की भला एक माँ अपने बेटे को पीने की आज़ादी ऐसे कैसे दे सकती है? जब मैं कमरे में स्तुति को लाड कर रहा था तब संगीता ने मुझसे इसी मुद्दे पर बात शुरू की;

संगीता: जानू, माँ का आपको यूँ ड्रिंक करने की इजाजत देना मुझे समझ नहीं आया?

संगीता ने बिना बात घुमाये सीधा सवाल पुछा|

मैं: जान, माँ-बाप को हमेशा केओस (chaos) और आर्डर (order) के बीच एक संतुलन बना कर चलना होता है| जब बच्चा किशोरावस्था से जवानी में कदम रखता है तो माँ-बाप को उसके साथ सोच-समझ कर बर्ताव करना चाहिए| यदि उस बच्चे पर हम हद्द से ज्यादा पाबंदियाँ लगाते हैं, उसे मौज-मस्ती करने से रोकते हैं तो एक न एक दिन घुटन के मारे उस बच्चे का मन बगावत कर बैठता है! फिर वो बच्चा झूठ बोल कर या चोरी-छुपे वही काम करता हैं जिसके लिए उसे मना किया जाता है| मुझ पर भी पिताजी द्वारा शुरू से बहुत सारी पाबंदियाँ लगाई गईं थीं जिस कारण मैं यूँ छुप-छुप कर और झूठ बोल कर शराब पीने लगा था.

ये कहते हुए मैंने संगीता को उसके बिछोह में पिताजी की एरिस्टोक्रेट (aristocrat) वाली बोतल से छुप कर शराब पीना और फिर उस बोतल में पानी मिला देना वाला किस्सा तथा ऑफिस या दिषु के साथ पी कर घर लौटने वाले किस्से संक्षेप में सुनाये|

मैंने उदाहरण सहित संगीता को मेरे द्वारा बनाई हुई केओस (chaos) और आर्डर (order) की थ्योरी (theory) समझाई| मुझे लगा था की संगीता को मेरे इन किस्सों को सुन हँसी आएगी मगर वो तो गंभीर हो गई थी क्योंकि एक बार फिर वो उन पुरानी बातों को याद कर मुझसे अलग रहने के अपने लिए गलत फैसले पर पछताने लगी| संगीता फिर से ग्लानि के सागर में न डूबे इसलिए मैंने फौरन बात का रुख बदला;

मैं: पिछले साल मेरे जन्मदिन पर जब माँ को मेरे पीने का सच पता चला तो उन्हें बहुत दुःख हुआ की उनका बेटा शराब पीने लगा है| कहीं मैं फिर से माँ की चोरी छिप-छिप कर पीने न लगूँ इसके लिए ही माँ ने मुझे अधिक न पीने की जिम्मेदारी दे कर थोड़ा बहुत पीने की इजाज़त दे दी| अब जब माँ को पता रहेगा की मैं उनकी इजाजत से पी रहा हूँ तो उन्हें कोई डर नहीं रहेगा की उनका बेटा किसी गलत संगत में पड़कर बिगड़ चूका है|

संगीता को अपने सवाल का जवाब मिल चूका था और अब समय था संगीता का मेरे ऊपर अपना पहला बम फोड़ने का;

संगीता: जानू, एक बात बताऊँ.माँ को पता है की आप पहले भी कई बार शराब पी कर घर आये हो!

ये सुनते ही मैं आँखें फाड़े संगीता को देखने लगा| माँ मेरे पीने के बारे में शुरू से जानती थीं ये जानकार मेरे पाँव तले ज़मीन खिसक गई! उस समय मेरे मन में दो सवाल घूम रहे थे;

१. माँ को मेरे पीने के बारे में कब और कैसे पता चला? और

२. उन्होंने आज तक मुझे मेरे पीने को ले कर कुछ कहा क्यों नहीं?

ताज़्जुब की बात ये है की उस वक़्त मेरे दिमाग ने ये नहीं सोचा की भला संगीता को ये बात कैसे पता?

संगीता: जब चन्दर यहाँ घुस आया था और मुझे जान से मारने की कोशिश की थी, उसी रात माँ ने मुझे ये बात बताई थी की वो पहले से ही आपके पीने के बारे में जानती थीं, वो कुछ कहतीं इसलिए नहीं थीं क्योंकि आप चुप चाप आ कर सो जाते थे, कोई ड्रामेबाज़ी नहीं करते थे|

मुझे अपने सवालों का केवल आधा जवाब मिला था, बाकी का जवाब तो केवल माँ ही दे सकतीं थीं| मैं मन ही मन सोचने लगा की मैं माँ से ये बात कैसे पूछूँगा की इतने में संगीता ने मेरे ऊपर अपना दूसरा बम फोड़ दिया;

संगीता: और मुझे ये भी मालूम है की मेरी प्रेगनेंसी के दिनों में जबसे हम गाँव से लौटे थे तभी से आप छत पर छुप-छुप कर सिगरेट पीते हो!

इस दूसरे धमाके से मैं कुछ घबरा गया था और आँखें फाड़े संगीता को देखते हुए ये समझने की कोशिश कर रहा था की वो मेरे सिगरेट पीने की बात जानकार इतने दिन खामोश कैसे रही? क्यों आखिर उसने मुझे रोका या टोका नहीं?

संगीता: गाँव से आने के बाद आप एकदम से अकेले पड़ गए थे, घर तथा कारोबार की सारी जिम्मेदारी एकदम से आप पर आ गई थी| ऐसे में आपको चाहिए था की आप मुझसे बात करते, मेरा साथ माँगते तो मैं आपके कँधे से कंधा मिलाकर जिम्मेदारियाँ उठाती, लेकिन आपने नशे का सहारा लिया!

ये कहते हुए संगीता मुझसे नाराज़ हो गई|

संगीता: मैं कुछ इसलिए नहीं कहती थी क्योंकि मैं खुद को आपको सहारा देने में असमर्थ समझती थी| मुझे डर लगता था की अगर बिना आपके मुझसे कुछ कहे अगर मैंने आपको सँभालने की कोशिश की तो कहीं आप एकदम से टूट न जाओ, क्योंकि कहीं अगर आप टूट जाते तो मुझ में आपको और पूरे घर को सँभालने की क्षमता नहीं थी| मेरे कारण आप पहले ही शराब पीना शुरू कर चुके थे इसलिए आपका ध्यान सिगरेट पीने पर न जाए, सिगरेट पीना आपकी आदत न बन जाए उसके लिए मैं अपने जतन करती रहती थी| मेरा वो बचपना दिखाना, बच्चों को आपके पीछे लगाना ये सब मैं जानबूझ कर करती थी ताकि आप सिगरेट पीने से दूर रहें|

संगीता भावुक होते हुए बोली| मुझे अपनी नाराज़ ओर भावुक हो चुकी प्रेयसी को मनाना था इसलिए मैंने संगीता के दोनों कँधे थामे ओर उसकी आँखों में देखते हुए बोला;

मैं: जान, मैंने सिगरेट पीना इसलिए शुरू किया था क्योंकि पिताजी के एकदम से हमारे परिवार को यूँ मझधार में छोड़ देना मेरा नाज़ुक दिल बर्दाश्त नहीं कर पा रहा था| रह-रह कर मुझे मेरे पिताजी के साथ बिताये मेरे बचपने के दिन याद आते थे ओर उन मीठी यादों के याद आते ही मेरा दिमाग गुस्से से भर जाता और मेरी अंतरात्मा मुझसे बस एक ही सवाल पूछती की आखिर क्यों मेरे पिताजी ने अपना ये छोटा सा सुखी परिवार तोडा?! क्या मैंने चन्दर की हत्या कर पाप किया था जिसकी सज़ा मुझे पिताजी के मुझे छोड़कर जाने के रूप में मिली?! मेरे दिमाग में उतपन्न हुए इन विचारों ने ही मुझे बेचैन कर रखा था, अंततः मैंने सिगरेट पीना शुरू किया|

लेकिन वो तुम्हार प्यार ही था जिसने मुझे कभी इस नशे की लत नहीं पड़ने दी| हफ्ते में 2-3 बार से ज्यादा मैंने कभी सिगरेट नहीं पी| फिर स्तुति के पैदा होने के बाद मुझे इतनी खुशियाँ मिली की मेरा मन फिर कभी सिगरेट पीने का हुआ ही नहीं|

मेरे सिगरेट नहीं पीने की बात सुन, संगीता का चेहरा एकदम से खिल गया था| उसे इत्मीनान हो चूका था की मैं इस नशे की लत को त्याग चूका हूँ| फिर अपनी बातों में जब मैंने सिगरेट की लत न पड़ने का श्रेय संगीता को दिया था उससे तो संगीता को अपने ऊपर बहुत नाज़ हो रहा था|

मैं: अच्छा ज़रा एक बात तो बताओ, सिगरेट पीने के बाद मैं च्युइंग गम (chewing gum) खाता था, रात के समय जब तुम सो जाती थी तब सिगरेट पीने के बाद मैं ब्रश कर लेता था| मेरी इतनी सावधानियाँ बरतने के बाद भी तुम्हें पता कैसे चला की मैं सिगरेट पीता हूँ?

मेरे पूछे सवाल के जवाब में संगीता मुस्कुराते हुए बोली;

संगीता: आपके जिस्म की महक से! एक रात जब आप सिगरेट पी कर नीचे आये और ब्रश कर के लेटे तब मेरी नींद टूट गई और मैं आपसे लिपट गई| उस समय मुझे आपके जिस्म से सिगरेट की बू आ गई और मुझे शक होने लगा की कहीं आप सिगरेट तो नहीं पीते?! उसके बाद मैंने आप पर नज़र रखनी शुरू की और एक रात जब आप मेरे सोने के बाद छत पर गए तो मैं भी आपके पीछे-पीछे दबे पाँव छत पर पहुँची तथा आपको टंकी के ऊपर बैठ कर सिगरेट पीते हुए देखा| ये दृश्य देख पहले तो मन किया की वहीं खड़ी रहूँ और चिल्ला कर आपसे पूछूँ की बिना मेरी आज्ञा के आपकी हिम्मत कैसे हुई सिगरेट पीने की? लेकिन फिर अगले ही पल मन में ख्याल आया की आप बिना किसी कारण के नशे को हाथ नहीं लगाते इसलिए मैंने शांत मन से उस वजह को खोजना शुरू किया और कुछ दिनों बाद मुझे आपके सिगरेट पीने का कारण समझ आ गया|

संगीता की सूझबूझ से भरी बातें सुन मुझे उस पर प्यार आ रहा था और अपनी की हुई बेवकूफियों पर हँसी भी आ रही थी|

मैं: मेला सोना बाबू तो बड़ा होशियार है?!

मैंने संगीता की प्यारभरी तारीफ करते हुए कहा और उसे अपने गले लगा लिया| मेरी प्यारभरी तारीफ सुन संगीता बहुत खुश हुई और मुझे अपनी बाहों में कस कर बोली;

संगीता: मैं बहुत स्मार्ट हूँ!

स्तुति को गोदी में लिए हुए मैं टहल रहा था की मुझे माँ टी.वी. देखते हुए मिलीं| मेरे लिए माँ से बात करने का ये अच्छा मौका था इसलिए मैं स्तुति को गोदी में लिए हुए माँ के पास बैठ गया|

मैं: माँ, आपसे कुछ पूछना था|

मैंने माँ का ध्यान अपनी ओर खींचते हुए बात शुरू की| माँ ने टी.वी. की आवाज़ कम की और मेरी तरफ देखने लगीं|

मैं: माँ, आपको कब पता चला की मैं शराब पीता हूँ?

मेरा सवाल सुनते ही माँ हँस पड़ीं और बोलीं;

माँ: मैं तेरी माँ हूँ, तुझे पैदा किया है तो तेरी रग-रग से वाक़िफ़ हूँ मैं| लगभग 25 साल तेरे पिताजी के साथ उन्हें शराब पीते हुए देखा है तो शराब की महक पहचानना, शराब पीये हुए व्यक्ति की बातें और हरकतें पहचानना जान गई हूँ| जब तू नौकरी करता था, तब एक दिन तूने शनिवार को कहा था की तू ऑफिस पार्टी में जा रहा है| मैं तभी समझ गई थी की ऑफिस की पार्टी है तो जर्रूर पीना-खाना होगा! जब तू पार्टी के बाद घर लौटा तो तेरे हाव-भाव से मैं भाँप गई थी की तू पी कर घर लौटा है| जो बात मुझे अच्छी लगी वो ये थी की तूने तेरे पिताजी की तरह बहक जाने की हद्द तक नहीं पी थी, तेरी आँखों में मैंने शर्म और बिना मुझे बताये पीने का पछतावा देख मुझे अच्छा लगा था इसीलिए मैंने तुझे कुछ नहीं कहा| तेरे दिल में हमेशा पी कर घर आने का डर होता था की कहीं मैंने तेरी ये चोरी पकड़ ली तो तू कितनी डाँट खायेगा और यही डर तुझे अधिक पीने नहीं देता था| तेरा ये डर खत्म न हो इसीलिए मैं तुझे कुछ नहीं कहती थी क्योंकि अगर ये बात मेरे सामने खुल जाती तो तू बिना डरे पीता जैसे की तूने अपने पिछले जन्मदिन पर पी थी|

लेकिन मुझे गर्व है अपने बेटे पर की उसने चोरी पकड़े जाने पर और बिगड़ने के बजाए अपने माँ-पिताजी के मान-सम्मान के लिए पीने से ही तौबा कर ली| आज भी जब मैंने तुझे पीने की इजाजत दी, तब भी तू बच्चों के डर के मारे पीने से मना कर रहा है क्योंकि तू बच्चों के दिल में बसी एक आदर्श पिता की छबि को खराब नहीं करना चाहता|

ये कहते हुए माँ ने मेरे सर पर हाथ रख आशीर्वाद दिया| हम माँ-बेटे का ये प्यार देख कर मेरी बिटिया स्तुति बड़ी खुश थी और उसके चेहरे पर एक प्यारी सी मुस्कान फैली हुई थी|

शाम को 7 बजे मैं दिषु के साथ पार्टी जाने के लिए तैयार हो रहा था, आयुष को इस बारे में कुछ नहीं पता था इसलिए वो अपनी आँखें बड़ी कर के मुझे तैयार होते हुए देख रहा था| संगीता ने बच्चों को सीख दी थी की जब भी कोई घर से बाहर जा रहा हो तो उसे टोकते नहीं हैं, अपनी मम्मी की दी गई इस सीख को ध्यान में रखते हुए आयुष अपनी आँखों में सवाल लिए हुए उत्सुक हो मुझे देख रहा था| जब मेरी नज़र आयुष पर पड़ी तो मैं उसके मन में उठे प्रश्न का जवाब देते हुए बोला;

मैं: बेटा, मैं आपके दिषु चाचू के साथ बाहर जा रहा हूँ|

मैंने जानबूझ कर आयुष को पार्टी में जाने के बारे में नहीं बताया क्योंकि मुझे डर था की आयुष भी साथ चलने की जिद्द करेगा| लेकिन मैं भूल गया था की मेरा बेटा बहुत तेज़ है वो बिना मेरे पार्टी का जिक्र किये ही सब समझ गया;

आयुष: आप दिषु चाचू के साथ पार्टी में जा रहे हो न?!

आयुष की बात सुन पहले तो मुझे थोड़ा अचम्भा हुआ, लेकिन फिर याद आया की रात को केक काटने के बाद दिषु का फ़ोन आया था और उससे पार्टी करने की बात मैंने बच्चों के सामने ही की थी इसलिए आयुष को ये सब पता था| खैर, इससे पहले की मैं आयुष के सवाल का जवाब दूँ आयुष ख़ुशी से कूदने लगा;

आयुष: मैं भी चलूँगा!...मैं भी चलूँगा!...मैं भी चलूँगा!

जिस ख़ुशी, जोश और उत्साह से आयुष कूद रहा था उसे देख कर मुझे बड़ा आनंद आ रहा था तथा मेरी हँसी नहीं रुक रही थी| वहीं आयुष को भी यक़ीन हो गया था की वो मेरे साथ जायेगा इसलिए आयुष का कूदना और तेज़ हो गया था!

मैं: बेटा...आप नहीं जा सकते!

मैंने जैसे-तैसे अपनी हँसी रोकी और आयुष को समझाने की कोशिश की मगर मेरे मना करते ही आयुष ने एकदम से अपना मुँह फुला लिया!

आयुष: क्यों?

आयुष अपना निचला होंठ फुला कर अपना प्यारभरा गुस्सा दिखाते हुए पूछने लगा|

मैं: बेटा ये बड़ों की पार्टी है, इसमें बच्चे नहीं जाते!

मैं आयुष को समझाते हुए बोला| ठीक तभी नेहा आ गई, उसने सारी बात सुन ली थी इसलिए वो भी आयुष को अपना तर्क दे कर समझाने लगी;

नेहा: जब हमने पार्टी की थी, तब हमने दिषु चाचू को बुलाया था?

नेहा ने जब तर्क के रूप में ये सवाल आयुष से पुछा तो आयुषह अपना सर न में हिलाने लगा|

नेहा: तो फिर दिषु चाचू को जो पार्टी मिल रही है उसमें तू क्यों जा रहा है? मुझे देख, मैंने कहा की मैं जाऊँगी?!

नेहा ने अपना उदहारण दे कर आयुष को समझाना चाहा मगर आयुष अपना सर न में हिलाने लगा और आकर मेरी टाँगों से लिपट गया|

आयुष: मैं भी जाऊँगा!

मैंने आयुष को गोदी उठाया और उसके गाल को चूम उसे बहलाने लगा;

मैं: बेटा, मैं है न आपके लिए चॉकलेट लाऊँगा!

ये आयुष को बहलाने का सबसे आसान तरीका था मगर आज तो आयुष पर ये तरीका भी फ़ैल था! आयुष अपना सर न में हिलाते हुए मेरे कँधे पर सर रख कर लिपट गया, मानो वो मुझे अकेले जाने ही नहीं देगा|

मैं अपने बेटे के आगे हार मानने लगा था लेकिन तभी नेहा ने अपनी दादी जी और अपनी मम्मी को सारी बात बता दी| तो एक अकेले आयुष को मनाने के लिए पूरा महिला मोर्चा साथ आ गया;

संगीता: ओ..ले..ले मेरा बेटा! मेरे पास आ!

ये कहते हुए संगीता ने अपनी बाहें खोलीं और आयुष को अपने पास बुलाया| अपनी मम्मी की ममता देख आयुष अपनी मम्मी की गोदी में चला गया| संगीता ने पहले आयुष के गाल की पप्पी ली और फिर उसे प्यार से समझाते हुए बोली;

संगीता: बेटा, बड़े लोगों की पार्टी है न अलग होती है, उसमें है न बच्चे नहीं जाते!

संगीता ने मेरे द्वारा दिया हुआ तर्क ही आयुष को बड़े प्यार से दिया मगर आयुष हाज़िर जवाबी से बोला;

आयुष: क्यों मम्मी? जब बच्चों की पार्टी में बड़े आ सकते हैं तो बड़ों की पार्टी में हम बच्चे क्यों नहीं जा सकते?

आयुष की हाज़िर जवाबी देख माँ मुस्कुराते हुए मुझसे बोलीं;

माँ: बिलकुल तेरे (मुझ) पर गया है!

माँ के इस प्यारभरे उलहाने और अपने बेटे की हाज़िर जवाब देख मेरे चेहरे पर गर्वपूर्ण मुस्कान आ गई|

इधर आयुष के हाज़िर जवाबी से पूछे सवाल ने सबके तर्कों की हवा निकाल दी थी| मैं, नेहा और संगीता हार चुके थे, अब बस एक माँ थीं जो आयुष को समझा सकती थीं| माँ ने आयुष को अपनी गोदी में बुलाया और उसे प्यार से समझाते हुए बोलीं;

माँ: देखो बेटा, इस तरह जिद्द नहीं करते| तू तो मेरा अच्छा पोता है न, मेरा सबसे समझदार पोता! आज अपने पापा को जाने दे और मैं है न तुझे कल इससे भी अच्छी जगह पार्टी खिलाने ले जाऊँगी|

माँ ने आयुष की तारीफ कर उसे बहला लिया था| जैसे ही आयुष थोड़ा नर्म पड़ने लगा की माँ ने मुझे आदेश दे दिया;

माँ: और तू सुन ले, आते समय मेरे पोते के लिए कोई स्वाद चीज़ ले कर आइयो, वरना घर में घुसने नहीं दूँगी|

माँ का आदेश सुन मैंने घबराने का बेजोड़ अभिनय किया और हाँ में सर हिलाने लगा| मुझे यूँ माँ के सामने घबराते हुए देख आयुष को हँसी आ गई और वो अपनी दादी जी से लिपट गया|

अब संगीता को लेना था इस बात पर रस तो वो ललचाई हुई सी बोली;

संगीता: ये सही है माँ, ये (मैं) आज पार्टी जा रहे हैं| कल आप दोनों दादी-पोता पार्टी में जाओगे! रह गए हम माँ-बेटी, हमें कौन पार्टी ले जाएगा?

संगीता की बातों का मतलब समझते हुए माँ आयुष से बोलीं;

माँ: बेटा, अपनी मम्मी और दीदी को भी ले जाना है कल पार्टी या फिर हम दोनों दादी-पोता ही जाएँ?!

अपनी दादी जी के सवाल पर आयुष बड़े जोश से बोला;

आयुष: दादी जी, हम सब जायेंगे!

आयुष के इस तरह सबको अपने साथ ले जाने की बात पर माँ को उस पर बहुत प्यार आया और उन्होंने आयुष के दोनों गाल चूम उसे आशीर्वाद दिया|

कुछ समय बाद दिषु और मैं एक क्लब में पहुँचे और मैंने उसे घर में घटी इस घटना के बारे में बताया तो वो ठहाका लगा कर हँसने लगा; "सही तो कह रहीं थीं आंटी जी, बेटा बिलकुल बाप पर गया है!" दिषु की बात सही थी, आयुष की लगभग सारी आदतें मेरी जैसी थीं जिसका मुझे बहुत गर्व था|

बहरहाल दिषु को लगी थी पीने की तलब इसलिए मैंने उसके लिए Ballentine's मँगवाई, मैं तो पीने वाला था नहीं इसलिए मैंने बस दिषु के लिए विथ आइस (with ice) का आर्डर दिया| जब दिषु ने देखा की मैं नहीं पी रहा तो उसने मेरे साथ जबरदस्ती शुरू कर दी, वही उसका "भाई नहीं है" वाला डायलाग शुरू हो गया| "यार, मैं पी कर बच्चों के सामने नहीं जाना चाहता इसीलिए मैं नहीं पी रहा|" मैंने अपने न पीने की वजह बताई तो दिषु एकदम से बोला की मैं पी कर अपने घर न जा के उसके साथ उसके दोस्त के घर चलूँ| "साले तेरी छबि पहले ही संगीता के सामने बदनाम है! पिछले साल याद है न तेरा क्या प्लान था..." ये कहते हुए मैंने दिषु को बताया की कैसे संगीता को दिषु का पिछले साल का सारा प्लान पता चल गया था| "आज अगर मैं घर नहीं पहुँचा तो संगीता को लगेगा की आज भी हम दोनों 'बैंग-बैंग' कर रहे हैं और फिर कल मुझे घर से निकाल दिया जाएगा!" बैंग-बैंग से मेरा मतलब आप सब समझ ही गए होंगें?! (घपा-घप) मेरी बात सुन दिषु को बहुत हँसी आई और उसने मेरे संगीता के डरने को लेकर बहुत खिंचाई की!

रात 11 बजे जब मैं घर लौटा तो देखा की आयुष सोफे पर अपनी छोटी बहन को गोदी में ले कर बैठा मेरा ही इंतज़ार कर रहा है| अपने दोनों बच्चों को मेरा इंतज़ार करते हुए देख मुझे हैरानी हुई| जब मैंने संगीता से पुछा तो उसने बताया की माँ ने कल दोनों बच्चों के स्कूल की छुट्टी करवा दी है| "पापा जी, मेरे लिए क्या लाये?" आयुष ख़ुशी से भरते हुए बोला| आयुष के सवाल को सुन कर मैं हँस पड़ा, मेरा खाने का शौक़ीन बेटा इतनी देर रात तक सिर्फ इसलिए जाग रहा था क्योंकि उसे मेरे द्वारा बाहर से लाया हुआ कुछ खाना था| "चिकन लॉलीपॉप" ये कहते हुए मैंने संगीता को एक पॉलीथीन दी और परोस कर लाने को कहा| इधर चिकन लॉलीपॉप का नाम सुन आयुष बहुत खुश हुआ, उसने कभी चिकन लॉलीपॉप नहीं खाया था मगर कुछ नई चीज़ खाने का उत्साह उसमें भरपूर था| जब तक संगीता चिकन लॉलीपॉप परोस कर लाई तबतक मैं कपड़े बदल कर नेहा को गोदी में ले कर आ गया| नेहा बेचारी आधी नींद में थी और मैं उसे चिकन लॉलीपॉप खिलाने के लिए जगा रहा था!

मेरे आने से घर में चहल-पहल बढ़ गई थी इसलिए माँ भी जाग गईं और बाहर बैठक में आ गईं| "तुम सारे के सारे मिल कर मुझे सोने नहीं दोगे न?!" माँ ने हम सभी को प्यारभरी डाँट लगाई| "दादी जी, मेरे पास आओ!" आयुष ख़ुशी से चीखा और अपनी दादी जी को जबरदस्ती अपने पास बिठा लिया| इतने में संगीता एक प्लेट में चिकन लॉलीपॉप परोस कर ले आई, संगीता के हाथ में प्लेट देख माँ समझ गईं की आखिर इतनी रात गए सब जगे क्यों हुए हैं?! "अच्छा तो ये सारी कारिस्तानी इस शैतान की है?!" माँ ने आयुष की पीठ में प्यारभरी थपकी मारते हुए कहा जिसपर आयुष खिलखिलाकर हँसने लगा|

आयुष ने जोश-जोश में पहला पीस उठाया और एक छोटी सी बाईट ली| आयुष को चिकन लॉलीपॉप बहुत पसंद आया और उसने अपनी ये ख़ुशी अपनी गर्दन दाएँ-बाएँ हिला कर ज़ाहिर की| आयुष की देखा-देखि नेहा ने भी पहला पीस खाया और स्वाद खाने की ख़ुशी से अपनी गर्दन दाएँ-बाएँ हिलाने लगी| माँ ने अपने पोता-पोती को यूँ ख़ुशी से सर हिलाते हुए देखा तो उनके दिल को भी बहुत ख़ुशी हुई| मौका देख कर आयुष ने अपनी दादी जी को भी चिकन का एक पीस खिलाना चाहा मगर माँ ने खाने से मना कर दिया, अब आयुष कहाँ पीछे रहता उसने भी जिद्द पकड़ी और आखिर माँ को थोड़ा सा पीस खिला दिया| जैसे ही माँ ने वो पीस खाया, माँ भी बच्चों की नक़ल करते हुए ख़ुशी से अपना सर दाएँ-बाएँ हिलाने लगीं| माँ का ये बचपना देख हम सभी हँस पड़े और माँ को भी हँसी आ गई| रात के ग्यारह बज रहे थे और हमारा पूरा परिवार हँसी के ठाहके लगा रहा था|

"ये सही है माँ, मेरे कहने से तो अपने कभी चिकन नहीं खाया! आपके पोते ने एक बार क्या कहा आपने फट से चिकन खा लिया!" मैं माँ से शिकायत करते हुए बोला| मेरी शिकायत का जवाब देते हुए माँ, आयुष को लाड करते हुए बोलीं; "मेरा लाडला पोता मुझे जो खाने को कहेगा मैं खाऊँगी!" अपनी दादी जी की कही बात से आयुष को खुद पर गर्व हो रहा था और वो ख़ुशी से चहकते हुए अपनी दादी जी से लिपट गया|

चिकन लॉलीपॉप खाते हुए माँ ने दोनों बच्चों को मेरे बचपन का एक रोचक किसा सुनाया; "जैसे तू (आयुष) आधी रात को ये खाने के लिए जाग रहा था न, वैसे ही तेरा पापा भी शैतान था! एक रात मानु ने खाना नहीं खाया था, अब उसे आधी रात को लगी भूख तो मानु ने सोचा की वो खाये क्या?! तब उसे याद आया की रसोई में रखे थे प्रियागोल्ड वाले बिस्कुट और तेरे पापा का मन था क्रीम वाले बिस्कुट खाने का, फिर पता है तेरे पापा ने क्या किया? उसने अलमारी से बिस्कुट निकाले और फ्रिज से मक्खन निकाला| अब मक्खन काटने के लिए चाक़ू तो था नहीं मानु के पास तो पता है उसने क्या किया? उसने अपने दाँतों से मक्खन काटा और बिस्कुट पर रख कर खाने लगा|

मैं और तेरे दादा जी सोये पड़े थे और हमें घर में हुई इस वारदात का पता ही नहीं था| अगली सुबह जब मैं उठी और ब्रेड मक्खन बनाने के लिए मक्खन निकाला तो मुझे मक्खन की टिक्की पर तेरे पापा के (मेरे) दाँतों के निशान दिखाई दिए| पहले तो मुझे शक हुआ की कहीं ये दाँतों के निशान चूहे के तो नहीं?! फिर मैंने सोचा की चूहा कैसे फ्रिज खोल कर घुसेगा? हो न हो ये तेरे पापा जी की ही खुराफात है! जब मैंने तेरे पापा से पुछा की उसने रात को मक्खन खाया था तो तेरा पापा एकदम से अनजान बनते हुए बोला; 'मुझे नहीं पता माँ!' मैंने ये बात तुम्हारे दादा जी को बताई तो उनकी हँसी रुकी ही नहीं! उन्होंने तेरे पापा को अपने पास बुलाया और प्यार से पुछा तब जा कर तेरे पापा ने सारा सच कहा|" मेरी ये प्यारी सी शैतानी सुन मेरे बच्चों को बहुत मज़ा आया और वो खी-खी कर हँसने लगे! संगीता को मेरी बचपन की ये शरारत सुन कर मुझ पर बहुत प्यार आ रहा था और वो आँखों ही आँखों में अपना ये प्यार मुझे जता रही थी|

"अच्छा चलो भई सोना नहीं है!" मैंने दोनों बच्चों से कहा तो दोनों बच्चे समझ गए की मैं अपना मज़ाक उड़ाए जाने से उन्हें रोकने के लिए सोने का बहाना कर रहा हूँ| "मैं पापा के पास सोऊँगा!" आयुष मुझसे लिपटते हुए बोला| आयुष की देखा-देखि नेहा भी मेरे से लिपट गई| बच्चों की माँग सुन संगीता मुस्कुराई और स्तुति को ले कर माँ के कमरे में चली गई, इधर बच्चे भी ख़ुशी से कूदते हुए मेरे कमरे में चले गए| "शाब्बाश बेटा!" माँ ने मेरी पीठ थपथपाई| ये शब्बाशी माँ ने मुझे इसलिए दी थी क्योंकि मैं क्लब जा कर भी शराब का एक क़तरा पीये बिना घर आया था|
[color=rgb(163,]जारी रहेगा भाग - 14 में...[/color]
 

[color=rgb(44,]इकत्तीसवाँ अध्याय: घर संसार[/color]
[color=rgb(251,]भाग - 14[/color]


[color=rgb(71,]अब तक अपने पढ़ा:[/color]

"अच्छा चलो भई सोना नहीं है!" मैंने दोनों बच्चों से कहा तो दोनों बच्चे समझ गए की मैं अपना मज़ाक उड़ाए जाने से उन्हें रोकने के लिए सोने का बहाना कर रहा हूँ| "मैं पापा के पास सोऊँगा!" आयुष मुझसे लिपटते हुए बोला| आयुष की देखा-देखि नेहा भी मेरे से लिपट गई| बच्चों की माँग सुन संगीता मुस्कुराई और स्तुति को ले कर माँ के कमरे में चली गई, इधर बच्चे भी ख़ुशी से कूदते हुए मेरे कमरे में चले गए| "शाब्बाश बेटा!" माँ ने मेरी पीठ थपथपाई| ये शब्बाशी माँ ने मुझे इसलिए दी थी क्योंकि मैं क्लब जा कर भी शराब का एक क़तरा पीये बिना घर आया था|

[color=rgb(26,]अब आगे:[/color]

अगले
दिन मेरे छोटे साहबजादे की ख़ुशी के लिए मैं सभी को एक लाइव शो वाले रेस्टोरेंट में खाना खिलाने ले गया| गाने सुनते हुए सभी ने खाना खाया और सभी को बहुत मज़ा भी आया| आयुष तो गाने सुनते हुए नाच रहा था, वहीं नेहा हम सभी की वीडियो तथा फोटो खींच रही थी|

स्तुति धीरे-धीरे बड़ी हो रही थी, सारा दिन सोने वाली मेरी बिटिया रानी अब जागती रहती थी और अपनी आंखें बड़ी कर के सभी को पहचानने की कोशिश करती रहती थी| लगभग सारा दिन स्तुति मेरी गोदी में रहती और मेरी गोदी में होते हुए अपनी आँखें बड़ी कर के मुझे देखती रहती| जब मैं स्तुति को यूँ मुझे देखते हुए पाता तो मेरे भीतर एक पिता का प्यार बाहर आता और मैं स्तुति के मस्तक को चूम लेता| मेरे उस चुंबन से मेरी बेटी खुश हो जाती और के मुख से ख़ुशी की किलकारी निकल जाती|

धीरे-धीरे पूरे घर में मेरी प्यारी बिटिया की किलकारियाँ गूँजने लगीं थीं और स्तुति की किलकारियों से मेरा घर जीवित हो उठा था| बच्चे जब स्कूल चले जाते तो मेरी बिटिया की किलकारियाँ घर में एक नई जान फूँक देतीं थीं| अपनी पोती की किलकारियाँ सुन माँ फौरन स्तुति को अपनी गोदी में लेने को आ जातीं लेकिन मेरी शैतान बिटिया मेरी गोदी से अपनी दादी जी की गोदी में जाती ही नहीं थी! माँ उसे बहुत लाड कर बुलाती मगर मज़ाल है मेरी बिटिया रानी अपनी दादी जी की गोदी में चली जाए! "शैतान लड़की! अब आइयो मेरे पास, मैंने नहीं लेना तुझे गोदी!" माँ अपना प्यारभरा गुस्सा दिखाते हुए बोलतीं जिस पर मेरी बिटिया के मुख से फिर किलकारी निकल जाती|

चूँकि अब स्तुति अधिकतर जागती रहती थी तो आयुष भी बहुत खुश था| मेरी अनुपस्थिति में आयुष जब स्तुति को गोदी में ले कर बैठता तो स्तुति आँखें बड़ी कर के अपने भाई को देखती रहती| स्तुति के इस तरह देखने पर आयुष उससे बातें करने लगता, अब स्तुति को कितना समझ आता ये कह नहीं सकते लेकिन स्तुति के मुख से किलकारियाँ ज़र्रूर निकलने लगती थीं| आयुष को अपनी बहन की ये किलकारियाँ सुनना बहुत अच्छा लगता था और वो खुश हो कर और बातें बनाने लगता|

इधर नेहा भी अपनी छोटी बहन को लाड करती थी मगर वो कभी स्तुति को गोदी में नहीं लेती| स्तुति जब बिस्तर पर लेटी जाग रही होती तो नेहा उसके पास बैठ जाती और आयुष की ही तरह उससे बातें करती रहती| नेहा को डर था की अगर उसने स्तुति को गोदी में लिया और स्तुति ने उस पर सुसु-पॉटी कर दी तो नेहा को नहाना पड़ेगा, बस इसीलिए वो स्तुति को गोदी नहीं लेती थी| वहीं स्तुति अपनी दीदी को भी आँखें बड़ी कर के देखती और उसके मुख से किलकारियाँ निकलने लगतीं| दोनों बहनों का ये प्यार भी बड़ा अनोखा था, बिना स्पर्श के ही दोनों अपने दिल की बातें ब्यान कर लेते थे|

मेरे जन्मदिन वाली रात हुए काण्ड के बाद से मेरे और संगीता के बीच जिस्मानी दूरी आ गई थी| जिस्मानी दूरी से मेरा मतलब है की हम दोनों के बीच सेक्स को ले कर दूरी आ गई थी| संगीता इसलिए कुछ नहीं कहती थी क्योंकि उसे डर था की अगर उसने इस मामले में कोई पहल की तो मुझे मेरे जन्मदिन वाली रात याद आ जाएगी और मैं उससे फिर नाराज़ हो जाऊँगा| वहीं दूसरी तरफ मैं अलग ही प्लानिंग किये बैठा था! 3 महीनों में हमारी शादी की पहली सालगिरह आने वाली थी और मेरे अनुसार हमारे मिलन के लिए उस दिन से उपयुक्त कोई दिन नहीं था! मैंने अपनी इस सालगिरा के लिए मन ही मन पूरी तैयारी कर ली थी| एक बात का मुझे खास ध्यान रखना था और वो था संगीता के मन में हमारे पुनः मिलन की चिंगारी रुपी आग, हमारी शादी की सलगिरा आने तक जलाये रखना|

उधर संगीता होठों पर प्यास और आँखों में आस लिए मुझे देखती ताकि मैं उसके दिल की हालत समझूँ तथा उस पर दया कर उसे प्यार करूँ मगर मैं संगीता की प्यास को देख कर भी अनदेखा करता था| उसके प्यासे अधरों की जगह उसके मस्तक को चूम कर मैं संगीता के भीतर प्रेम अगन को और भड़का दिया करता था! बेचारी संगीता मन मसोस कर रह जाती और चेहरे पर नकली मुस्कान लिए मुझसे लिपट जाती, जबकि मन ही मन वो मेरे निष्ठुर होने पर मुझे कोसती रहती थी!

खैर, जब संगीता को मुझसे प्यार नहीं मिला तो उसने वो प्यार स्तुति में खोजना शुरू कर दिया| मेरी गोल-मटोल बिटिया के रसभरे गाल देख कर संगीता का दिल मचल उठता और व अपनी ही बेटी के गाल हल्के से काट लेती! स्तुति को इस तरह के प्यार की आदत नहीं थी इसलिए वो तुरंत ही छटपटाने लगती जिससे संगीता के प्यार में व्यवधान उतपन्न होता| "एक तेरे पापा हैं जिन्हें मेरा ख्याल ही नहीं और एक तू है जो मुझे प्यार करने नहीं देती! मैं आखिर जाऊँ तो जाऊँ कहाँ?" संगीता अपनी ही बेटी से प्यारभरी शिकायत करती, जिसपर मेरी बिटिया खिलखिला कर हँस पड़ती! अपना मज़ाक उड़ाए जाने पर संगीता को प्यारभरा गुस्सा आता और वो स्तुति के पूरे चेहरे को चूमना शुरू कर देती!

लेकिन केवल स्तुति के छोटे-छोटे गालों को धीरे से काटकर संगीता की प्रेम अगन शांत नहीं होती थी क्योंकि स्तुति के दोनों गालों का छेत्रफल कम था और संगीता के होठों का छेत्रफल बड़ा था, अतः संगीता ने अगला निशाना स्तुति के दोनों छोटे-छोटे हाथों को बनाया| स्तुति को दूध पिलाते हुए संगीता मेरी बिटिया रानी की हथेली अपने मुँह में भर लेती! अब मेरी बिटिया का ध्यान होता था दूध पीने पर वो अपनी मम्मी के इस प्यार पर अपनी कोई प्रतिक्रिया नहीं देती| वहीं संगीता को अपनी बिटिया की छोटी सी हथेली को मुँह में भरने में नजाने क्या आनंद आता था?!

एक दिन मैंने संगीता की ये हरकत पकड़ ली और उससे पूछने लगा; "अरे भई मेरी बिटिया का हाथ काहे खावत हो? घर म खाये का नाहीं पायो का?" मेरी देहाती सुन संगीता हँस पड़ी और स्तुति का हाथ मुँह से निकालते हुए बोली; "क्या करूँ फिर? ये छेतान (शैतान) मुझे गाल काटने नहीं देती!" संगीता मुझसे स्तुति की शिकायत करते हुए बोली| "तो ठीक ही तो है! मेरी लाड़ली बिटिया के नाज़ुक गाल काटते हुए तुम्हें लाज़ नहीं आती?!" मैने संगीता को छेड़ते हुए पुछा तो संगीता के चेहरे पर प्यार भरा गुस्सा आ गया; "आप तो दाढ़ी छोलते (काटते) नहीं हो, वो दोनों शैतान (आयुष और नेहा) भी बड़े हो गए, ये महारानी (स्तुति) भी मुझे अपने गाल काटने नहीं देती तो आखिर मैं गाल काटूँ किसके? माँ के?" संगीता अपना प्यार भरा गुस्सा दिखाते हुए बोली और स्तुति, जो की दूध पी चुकी थी उसे मेरी गोदी में दे कर भुनभुनाती हुई रसोई में चली गई!

अपनी भार्या को मनाने के लिए मैं उसके पीछे रसोई में स्तुति को गोदी में लिए पहुँचा तथा पीछे से ही संगीता के दाएँ गाल पर धीरे से काटते हुए बोला; "(दाढ़ी) काट दूँगा!" मेरी दाढ़ी काटने की बात सुन संगीता के चेहरे पर मुस्कान खिल गई और वो खुश होते हुए बोली; "कब?" संगीता की ये ख़ुशी देख मुझे उसे चिढ़ाने का मन किया; "जिस दिन मेरी लाड़ली बिटिया ने कह दिया की पापा जी दाढ़ी काट दो, मैंने उसी वक़्त दाढ़ी काट देनी है!" मैंने स्तुति के मस्तक को चूमते हुए कहा| मेरे किये इस मज़ाक से संगीता बिदक गई और चिढ़ते हुए बोली; "मतलब की ये मुई दाढ़ी कभी नहीं काटोगे!" इतना कहते हुए संगीता ने मुझे परे धकेला और बाहर चली गई!

तो कुछ इस तरह से हम मियाँ-बीवी की ये प्यारभरी नोक-झोंक जारी रहती थी|

इधर साइट पर सरयू ने काम छोड़ दिया क्योंकि उसे एक अच्छी जगह नौकरी मिल गई थी| सरयू के अचानक काम छोड़ने से दूसरी साइट पर काम सँभालने वाला कोई नहीं था| उस साइट पर लेंटर पड़ने की तैयारी हो रही थी इसलिए मुझे ही उस साइट का काम संभालना था| अब दिक्कत इस बता की थी की मेरा मन अपनी बिटिया को छोड़कर जाने का कर ही नहीं रहा था| "बेटा जी...कल से है न...मुझे सुबह साइट पर जाना है!" मैंने स्तुति से बात करनी शुरू की| अब पता नहीं मेरी बिटिया को कितना समझ आया या फिर मेरे गंभीर हो कर बात कहने से, मेरी बिटिया उदास हो गई तथा लगभग रोने को हुई! "न-न मेरा बच्चा! रोना नहीं, आपके पापा जी रात को जल्दी घर आ जायेंगे!" मैंने स्तुति को बहलाते हुए कहा तथा उसे रोने नहीं दिया|

अगले दिन से मैंने साइट का काम सँभालाना शुरू किया| लेंटर की तैयारियाँ शुरू हुईं तो मैं उसमें ऐसा फँसा की मैं सुबह बच्चों के जागने से पहले घर से निकलता था और रात को बच्चों के सोने के बाद घर लौटता था| दोनों बच्चे मेरी शक्ल देखने को तरस गए थे मगर दोनों बच्चे समझदार थे इसलिए मुझसे नाराज़ नहीं थे| दिन के समय जब मैं साइट पर होता तो बच्चे मुझे फ़ोन कर या वीडियो कॉल कर ही खुश हो जाते थे| वहीं मेरी लाड़ली बिटिया रानी को मेरे घर लौटने के बाद, नींद में सोते हुए प्यार मिल जाया करता था|

बहरहाल, मेरे घर पर न रहने से स्तुति किसी के सँभाले नहीं सँभलती थी| जब वो रोती तो उसे चुप करवाना किसी के बस की बात नहीं थी| संगीता और माँ, मेरी बिटिया को खूब लाड करते मगर मज़ाल है मेरी बिटिया चुप हो जाए! रो-रो कर स्तुति घर में तूफ़ान मचा देती थी! जब स्तुति का रोकर कोटा पूरा हो जाता तो वो अपने आप चुप हो जाती, ये देख कर माँ कहतीं; "इत्ती सी है तू...लेकिन रोती इतना है की...तौबा-तौबा!" माँ प्यार से स्तुति के गाल खींचते हुए कहतीं, जिस पर मेरी शैतान बिटिया मुस्कुराने लगती| जब घर में खाना बन रहा होता तब कुकर की सीटी की आवाज़ सुन स्तुति रोने लगती, फिर तो स्तुति का रोना बच्चों के घर लौटने तक जारी रहता! जैसे ही दोनों बच्चे घर लौटते तो संगीता उन दोनों की ड्यूटी लगा देती; "चलो शैतानो, सँभालो अपनी छोटी बहन को!" अपनी मम्मी का आदेश मिलते ही आयुष सबसे पहले आगे आता और स्तुति को अपनी गोदी में ले कर उसे चुप कराने की कोशिश करता; "चुप हो जा स्तुति...मैं आपका बड़ा भाई हूँ न!" आयुष प्यार से स्तुति को मनाने की कोशिश करता मगर स्तुति चुप हो तब न! अगली बारी आती नेहा की मगर वो स्तुति के सुसु करने के डर से स्तुति को गोदी ही नहीं लेती! "चुप कर जा अब! नेहा चिढ़ते हुए स्तुति से बोलती और अपने कमरे में जा कर पढ़ने लगती| रात में बच्चों के सोने के बाद जब मैं घर पहुँचता तो कई बार मुझे स्तुति जागती हुई मिलती| मुझे देखते ही मेरी प्यारी बिटिया की किलकारियाँ निकलने लगीं; "अले मेला प्याला-प्याला बच्चा! पापा का इंतज़ार करके जाग रहा है?" मैं तुतलाते हुए बोला और स्तुति को गोदी ले कर लाड करने लगता| अब पता नहीं स्तुति सच में मेरे इंतज़ार में जागती थी या फिर वो दिन में सो लेती थी इसलिए जागती थी|
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बहरहाल स्तुति का ये रोने का कार्यक्रम अगले तीन दिन तक चला और चौथे दिन संगीता का गुस्सा आसमान पर जा पहुँचा| लेंटर पड़ना था तो मैं रात को घर नहीं गया था, जब सुबह मैं नहाने-धोने घर पहुँचा तो संगीता मेरे ऊपर रासन-पानी ले कर बरस पड़ी!

संगीता: ये मेरा घर है कोई सराये नहीं है, जहाँ आप रात को आते हो और तड़के सुबह निकल जाते हो!

संगीता गुस्से से मुझपर चीखी| आमतौर पर मुझे संगीता के इस तरह मुझ पर चीखने पर गुस्सा आता था मगर आज मुझे उस पर प्यार आ रहा था|

मैं: जान! लेंटर पड़ना है तो उसकी तैयारी चल रही है...

मैं मुस्कुराते हुए संगीता को समझाते हुए बोला पर संगीता मेरी बात सुनने से पहले ही मुझ पर बरस पड़ी;

संगीता: मेरे से पुछा था आपने? या मुझे बताया था की लेंटर पड़ रहा है, मैं बिज़ी हूँ तुम घर सँभाल लो?! ये बात मुझे बताना जिम्मेदारी नहीं थी आपकी? आपकी लाड़ली बेटी यहाँ रोये जा रही है, किसी के चुप कराने से चुप नहीं हो रही और आप हो की अपने काम में लगे पड़े हो!

संगीता का गुस्सा चरम पर था और इस समय मेरे चुप रहने में ही भलाई थी इसलिए मैंने आगे अपनी कोई सफाई नहीं दी तथा एकदम से चुप हो, सर झुकाये बैठा रहा| ये सर झुका कर खड़े होने का टोटका पिताजी पर अक्सर चल जाय करता था, किसे पता था की संगीता पर भी ये टोटका चल जायेगा?!

संगीता: कितने दिन और काम चलेगा?

संगीता गरजते हुए मुझसे पूछने लगी| मेरे सर झुका कर बैठने से संगीता के गुस्से में थोड़ी कमी आई थी, बस वो ये बात मुझ पर जाहिर नहीं करना चाह रही थी वरना फिर मैं अपनी सफाई देने लग पड़ता|

मैं: 5 दिन|

मैंने सर झुकाये हुए संक्षेप में जवाब दिया|

संगीता: 3 दिन का टाइम है आपके पास, जो काम निपटना है निपटाओ और उसके बाद सँभालो अपनी लाड़ली को!

संगीता मुझे हुक्म देते हुए बोली और फिर कमरे से बाहर चली गई|

संगीता के जाने ले बाद माँ कमरे में आईं, उन्होंने बाहर खड़े हो कर सारी बात सुन ली थी| "देख बेटा, बहु की नाराज़गी जायज है!" माँ मुझसे बोलीं और फिर स्तुति जो की उनकी गोदी में रो रही थी उसे मेरी गोदी में सौंपते हुए बोलीं; "ये जो है न तेरी लाड़ली बिटिया, ये तेरे बिना किसी से चुप नहीं होती! रो-रो कर हम सभी के सर में दर्द कर देती है ये!" दरअसल माँ ने स्तुति को नहलाया था और नहाने के बाद से ही स्तुति रो रही थी| जैसे ही मेरी गोदी में स्तुति आई तो धीरे-धीरे स्तुति का रोना कम होने लगा| "मेरी लाड़ली बिटिया रो-रो कर सब को परेशान करती है?! मेरी प्यारी सी शैतान बिटिया!" मैंने स्तुति को लाड करना शुरूकिया तो स्तुति के चेहरे पर मुस्कान आ गई और उसकी किलकारियाँ शुरू हो गईं| "ये देख इस शैतान को, तेरी गोदी में जाते ही चुप हो गई और हम यहाँ इसे लाड कर-कर के परेशान हो जाते हैं मगर ये चुप होने का नाम ही नहीं लेती|" माँ मुझसे अपनी पोती की शिकायत करते हुए बोलीं|

"मुझे संगीता के गुस्से का ज़रा भी बुरा नहीं लगा माँ, बल्कि मुझे तो उसके गुस्से को देख कर अच्छा लगा की वो (संगीता) हम सभी पर इतना हक़ जमाती है!" मैंने स्तुति के मस्तक को चूमते हुए कहा| मेरी बात से माँ को तसल्ली हो गई की हम दोनों मियाँ-बीवी के बीच कोई मन-मुटाव उतपन्न नहीं हुआ है| "और मेरी प्यारी बिटिया रानी, आप है न अपनी मम्मी, दादी जी और भैया-दीदी को तंग मत किया करो| जब वो आपको चुप करायें तो चुप हो जाया करो!" मैंने स्तुति के गाल सहलाते हुए समझाया, जिसके जवाब में स्तुति के मुख से "जी पापा जी" रुपी किलकारी निकली| उधर माँ ने जब हम बाप-बेटी की ये बचकानी बातचीत सुनी तो उनके चेहरे पर मुस्कान आ गई|

अब घर से संगीता द्वारा अंतिम चेतावनी मिली थी तो मैंने काम जल्दी निपटाना शुरू कर दिया| शाम होने को आई थी और संगीता को मेरे ऊपर किये अपने गुस्से के कारण पछतावा हो रहा था इसलिए उसने कुछ सामान घर लाने के बहाने से मुझे फ़ोन किया, परन्तु समस्या ये की मेरा फ़ोन मिला नहीं इसलिए संगीता ने संतोष को फ़ोन किया| संतोष से बात करते हुए संगीता को पता चला की सरयू ने काम छोड़ दिया है और सारे काम का बोझ मेरे ऊपर आ पड़ा है, जिस कारण मैं घर रात देर से आता था| ये बात जानकार संगीता को ग्लानि होने लगी की उसने बिना मेरी बात पूरी सुने ही मुझे झाड़ दिया!!

रात को जब मैं घर पहुँचा तो संगीता की आँखें नम दिखीं| मैंने माँ के चोरी उसकी आँखों के नम होने का कारण पुछा तो संगीता रुनवासी होकर बोली; "आई ऍम सॉरी! मैंने बिना पूरी बात जाने आपको डाँटा!" मैंने संगीता को अपने गले लगाया और उसके सर को चूमते हुए बोला; "लेकिन जान मुझे तुम्हारे डाँटने का बुरा लगा ही नहीं! मुझे तो ख़ुशी हुई ये देख कर की तुम किस तरह मुझ पर और हमारे इस घर पर हक़ जमाती हो!" मेरी बात सुन संगीता को इत्मीनान हुआ की मैं उससे नाराज़ नहीं हूँ| फिर उसने मेरी लाड़ली को मेरी गोदी में दिया और बोली; "आप अपनी लाड़ली को लाड करो तबतक मैं आपका खाना लगाती हूँ!" अपनी लाड़ली को गोदी में ले कर मेरी भूख-प्यास सब शांत हो गई थी, बस आँखें थीं जो की अपनी बेटी को लाड करने के लिए प्यासी हो चलीं थीं|

खैर, संगीता ने खाना परोस दिया था मगर मेरा ध्यान तो स्तुति को लाड करने पर था इसलिए संगीता मुझे खुद अपने हाथों से खिलाने लगी| माँ ने जब ये दृश्य देखा तो उनके चेहरे पर भी मुस्कान खिल गई; "ये देखो, पापा अपनी बेटी को लाड करने में व्यस्त है और खाना पत्नी खिला रही है!" माँ के किये मज़ाक पर हम तीनों हँस पड़े!

खाना खा कर सोने का समय हो रहा था, स्तुति मेरी गोदी में सो चुकी थी इसलिए उसे मैंने माँ को सौंप दिया; "माँ, आप दोनों सास-पतुआ साथ सो जाओ और मैं चला अपने बच्चों के पास सोने|" स्तुति को प्यार कर मेरा मन अब अपने बच्चों को प्यार करने का था| माँ मेरी बात समझ गईं इसलिए स्तुति को ले कर वो अपने कमरे में चलीं गईं| इधर मैं कपड़े बदलकर बच्चों के कमरे में आया और दोनों बच्चों के बीच लेट गया| जैसे ही दोनों बच्चों को मेरी मौजूदगी का एहसास हुआ, दोनों जाग गए और मुझे अपने सामने देख कर बहुत खुश हुए! "पापा जी" कहते हुए आयुष मेरे ऊपर कूद पड़ा और मेरे से लिपट गया| वहीं नेहा ने मेरे मस्तक को चूमा और बोली; "वी मिस्ड यू सो मच! (We missed you so much!) इतना कह नेहा भी आयुष की तरह मुझसे लिपट गई|

"आई मिस्ड यू टू (I missed you too) मेरे बच्चों!" मैंने दोनों बच्चों को अपनी बाहों में कसते हुए कहा और उनके सर चूम लिए| बस फिर क्या था मेरे सीने से लग दोनों बच्चों ने हँसी-ठहाका लगाना शुरू किया और कहानी सुनते हुए सो गए|

अगला दिन और स्तुति की प्यार भरी मस्ती...

दोपहर का समय था, मैं साइट पर काम संभाल रहा था और इधर घर पर बच्चे स्कूल से लौटे थे| मुझसे फ़ोन पर बात कर दोनों बच्चों ने खाना खाया और फिर आराम करने लगे, वहीं मेरी बिटिया भी दूध पी कर आराम कर रही थी| 5 बजे मेरी बिटिया रानी ने सुसु किया जिस कारण उसकी नींद में खलल पड़ गया, दिन के समय हम स्तुति को डायपर नहीं पहनाते थे इसीलिए मेरी बिटिया के सुसु करने से उसकी रुलाई छूट गई! कपड़े बदलने के बाद बड़ी मुश्किल से स्तुति चुप हुई, पर तबतक आयुष उठ चूका था| अब आयुष के भीतर बड़े भाई का प्यार जाग चूका था इसलिए वो स्तुति को गोदी में ले कर कार्टून देखने बैठ गया| स्तुति को गोदी लेने के चक्कर में आयुष ने स्तुति के पेट पर कुछ दबाव डाल दिया, नतीजन स्तुति ने अपने भैया पर छी-छी कर दी!

सबसे पहले आयुष को आई बदबू तो आयुष अपनी नाक सिकोड़ते हुए स्तुति से बोला; "आपने 'पद्दु' मारी?!" आयुष के इस सवाल पर स्तुति के मुख से किलकारी निकलने लगी| आयुष को लगा की स्तुति की ये किलकारी उसके 'पद्दु' शब्द कहने पर निकली है, जबकि स्तुति की इस किलकारी का असली मतलब था की; 'भैया मैंने आपके ऊपर छी-छी कर दी है!' मेरा सीधा-साधा बेटा असली सच से अनजान, अपनी छोटी बहन को खुश देख कर बहुत खुश हो रहा था|

लगभग मिनट भर बाद आयुष को अपनी बाँह पर गर्म-गर्म एहसास हुआ! जब आयुष ने अपनी बाँह को देखा तो उसने पाया की उसके हाथ पर पीला-पीला बदबूदार कुछ लगा हुआ है! अब आयुष को समझते देर न लगी की ये पीली-पीली बदबूदार चीज़ पॉटी है| जैसे ही आयुष को पता चला की उसकी बाँह पर उसकी अपनी छोटी बहन ने पॉटी कर दी है तो वो एकदम से मुँह बिदका कर चीखा; "छी!!!!!! टट्टी!!! मम्मी!!! दादी जी!!!" आयुष हाय-तौबा मचाते हुए चिलाया तो माँ और संगीता दौड़े-दौड़े आये| जब उन्होंने ये प्यारा दृश्य देखा तो बजाए आयुष की मदद करने के दोनों सास-पतुआ खिलखिलाकर हँसने लगे| अपनी मम्मी और दादी जी की हँसी- ठहाका सुन नेहा भी भीतर वाले कमरे से बाहर आ गई, उसने भी जब अपने छोटे भाई को अपनी छोटी बहन की पॉटी से सना हुआ देखा तो उसने भी दहाड़े मार-मार कर हँसना शुरू कर दिया| नेहा इस वक़्त स्तुति के इस कारनामे से इतना खुश थी मानो स्तुति ने फिल्मफेर जीत लिया हो!

इधर मदद की बजाए अपना मज़ाक उड़ाए जाने से आयुष बहुत गुसा हुआ और अपनी मम्मी, दादी जी तथा बहन को नाक पर गुस्सा लिए देखने लगा! "अब पता चला कैसा लगता है?! उस दिन तुझे बड़ी हँसी आ रही थी न, जब स्तुति ने मेरे ऊपर सुसु कर दिया था, अब कैसा लग रहा है जब स्तुति ने तेरे ऊपर पॉटी कर दी तो?! और लेगा स्तुति को गोदी में?" नेहा आयुष का मज़ाक उड़ाते हुए बोली| अपनी दीदी के दिए ताने को सुन बेचारे आयुष की रुलाई छूट गई और साथ ही अपने बड़े भैया को रोता हुआ देख बेचारी स्तुति भी रोने लगी!

आखिर माँ ने स्तुति को आयुष की गोदी से लिया और संगीता आयुष को बहलाते हुए बाथरूम ले गई| स्तुति तो जल्दी चुप हो गई मगर बेचारा आयुष रोते-रोते नहाया! नहा-धो कर नए कपड़े पहनकर आयुष ने मुझे फ़ोन किया और अपनी छोटी बहन की शिकायत की; "पापा जी...स्तुति ने मेरे ऊपर छी-छी कर दी!" आयुष की आवाज़ में बच्चों वाला गुस्सा था जिससे मुझे हँसी आ रही थी मगर मेरे हँसने से आयुष मुझसे नाराज़ हो जाता इसलिए मैंने अपनी हँसी दबाई और आयुष को सहानुभूति देते हुए बोला; "अरे रे-रे! आप ने नहाई की?" मेरी सहानुभूति से आयुष लगभग रुआँसा हो गया और बोला; "हाँ जी पापा जी! लेकिन मैं है न अब से कभी भी स्तुति को गोदी नहीं लूँगा!" आयुष बच्चों वाले गुस्से से बोला|

"अच्छा-अच्छा बेटा जी, मत लेना आप स्तुति को गोदी! मुझे घर आने दो फिर मैं स्तुति को समझाऊँगा की वो ऐसे आप पर और नेहा पर बारिश (सुसु) और ओला-वृष्टि (छी-छी) न किया करे!" मैंने बात बड़े ही मज़ाकिया अंदाज़ में की जिससे आयुष की हँसी छूट गई!

रात को जब मैं घर पहुँचा तो आयुष आ कर मुझसे लिपट गया, आयुष की ख़ुशी के लिए मैंने उसे उसकी मनपसंद चॉकलेट और आज हुए काण्ड के लिए सांत्वना दी; "बेटा, मैं खाना खा कर स्तुति को समझाता हूँ| वो है न आगे से आपके ऊपर सुसु-पॉटी नहीं करेगी!" मेरी आयुष को दी जा रही सांत्वना सुन माँ, नेहा और संगीता को बहुत हँसी आई, वहीं सभी को हँसते हुए देख आयुष अपनी नाक पर गुस्सा ले कर उन्हीं देखने लगा|

मेरे खाना खाने तक आयुष मेरे पास ही बैठा ताकि कहीं मैं स्तुति को समझाये बिना ही न सो जाऊँ| खाना खा कर मैंने आयुष के सामने स्तुति को गोदी में लिया और उसे समझाते हुए बोला; "बेटा जी, आप इतने प्यारे-प्यारे हो, इतने गोलू-मोलू हो तो फिर आप अपने बड़े भैया को क्यों सताते हो? ऐसे अपने बड़े भैया पर पॉटी करना अच्छी बात थोड़े ही है?! आगे से है न आप अपने बड़े भैया पर सुसु-पॉटी मत करना...ठीक है?" मैं इस समय स्तुति को ऐसे समझा रहा था जैसे किसी बड़े बच्चे को समझाया जाता है| वहीं मेरी बिटिया रानी को कहाँ कुछ समझ आ रहा था, वो तो अपने पापा को अपने सामने देख कर खुश थी और इसी ख़ुशी को व्यक्त करने के लिए स्तुति के मुख से किलकारियाँ निकलने लगी थी|

आयुष ने जब अपनी छोटी बहन की किलकारियाँ और मुस्कान देखि तो वो मुझसे शिकायत करने लगा; "देखो पापा जी, स्तुति हँस रही है! वो आपकी बात नहीं मान रही!" आयुष की शिकायत सुन मैं उसे समझाते हुए बोला; "नहीं बेटा, स्तुति आपसे सॉरी कह रही है!" मैने आयुष को बहलाते हुए कहा मगर आयुष अपना निचला होंठ फुलाये हुए स्तुति से बोला; "मेरी आपसे कुट्टी!" ये कहते हुए आयुष नाराज़ हो कर जाने लगा| अब मुझे करानी थी दोनों भाई-बहन के बीच सुलाह इसलिए मैंने आयुष का हाथ पकड़ उसे रोका| मैं दोनों भाई-बहन के बीच शांतिवार्ता शुरू करूँ उसके पहले ही नेहा कमरे में आई और उसने आग में घी डालने का काम कर दिया; "स्तुति, मैं आपकी बड़ी बहन हूँ न तो आप मेरी बात सुनो| आप है न आयुष पर जी भर कर सुसु-पॉटी करो| जब आयुष सो रहा होगा न तब मैं आपको गोदी ले कर उसके पास ले जाऊँगी, तब है न आप आराम से आयुष के मुँह पर पॉटी करना| जब आयुष खाना खा रहा होगा, तब है न मैं आपको गोदी ले कर जाऊँगी और आप है न आयुष की पीठ पर पॉटी कर देना! आयुष के खिलोने हमेशा इधर-उधर पड़े रहते हैं तो आप उन पर भी पॉटी करना! आयुष अपने कपड़े तह नहीं लगाता, तो उसके सारे कपड़ों पर आप पॉटी कर देना!" नेहा अपनी छोटी बहन को पॉटी करने की कोई मशीन समझती थी, तभी तो वो स्तुति से इतनी सारी पॉटी करने को कह रही थी! वहीं स्तुति को पता नहीं अपनी दीदी की बातों में क्या रस मिल रहा था की उसकी किलकारियाँ अधिक तेज़ हो गईं थीं|

इधर आयुष ने जब अपनी बड़ी बहन नेहा की ये बातें सुनी तो वो और चिढ गया; "दीदी!" आयुष नाक पर गुस्सा लिए हुए चिल्लाया| "क्यों...? अब पता चला मुझे कैसा लगता था जब तु छोटा था और मेरे ऊपर सुसु-पॉटी कर देता था! मैं खाना खा रही हूँ, पढ़ रही हूँ, लेकिन तू खेत में से चिल्ला कर कहता था की दीदी मेरी छी-छी धोओ! अब तू देखता जा बच्चू, न मैंने तुझसे स्तुति की पॉटी साफ़ करवाई तो मेरा नाम नेहा नहीं!" नेहा ने आयुष को उसके बालपन में की मस्ती के लिए डाँट लगाते हुए कहा| "सॉरी दीदी!" आयुष अपने दोनों कान पकड़ते हुए रुनवासा हो कर बोला परन्तु नेहा ने आयुष को सबक सिखाने की कसम खा ली थी इसलिए वो अपनी कसम से टस से मस न हुई! आयुष ने बड़ी माफियाँ मांगीं मगर मज़ाल है नेहा उसे माफ़ कर दे?!

अब मैं, जो की अपनी हँसी दबाये हुए दोनों भाई-बहन की लड़ाई देख रहा था, सुलाह कराने के लिए बीच में बोला; ""नेहा बिटिया..." मेरे नेहा को आज बिटिया बोलते ही नेहा की आँखें ख़ुशी के मारे टिमटिमाने लगीं| "आयुष तब बहुत छोटा था, उसे नहीं पता था की उसके आपको बार-बार पॉटी धोने के लिए बुलाने से आपको बुरा लगता है| प्लीज आयुष को मेरे लिए माफ़ कर दो!" जिस तरह नेहा ने मुझे अपना वास्ता दे कर अपनी मम्मी को माफ़ी दिलवाई थी, उसी तरह मैंने भी अपना वास्ता दे कर आयुष को माफ़ करने की अर्जी नेहा के समक्ष रखी| नेहा मुझसे बहुत प्यार करती थी इसलिए मेरी रखी आयुष को माफ़ करने की अर्जी उसने तुरंत मान ली; "आगे से तूने कभी मुझे तंग किया न, तो तुझे कुर्सी से बाँध दूँगी और स्तुति को तेरे सर पर बिठा कर पॉटी करवाऊँगी!" नेहा ने आयुष को धमकाते हुए माफ़ कर दिया था| उधर आयुष को माफ़ी मिली तो वो फिर से मुस्कुराने लगा|

मेरी बिटिया आज मेरे मुख से अपने लिए बिटिया शब्द सुन कर बहुत खुश थी इसलिए आज रात नेहा और स्तुति मेरे साथ सोये| आयुष को अपनी दादी जी से अधिक लाड मिलता था इसलिए वो, माँ और संगीता एक साथ सोये|
[color=rgb(163,]जारी रहेगा भाग - 15(1) में...[/color]
 

[color=rgb(44,]इकत्तीसवाँ अध्याय: घर संसार[/color]
[color=rgb(251,]भाग - 15(1)[/color]


[color=rgb(71,]अब तक अपने पढ़ा:[/color]

मेरी बिटिया आज मेरे मुख से अपने लिए बिटिया शब्द सुन कर बहुत खुश थी इसलिए आज रात नेहा और स्तुति मेरे साथ सोये| आयुष को अपनी दादी जी से अधिक लाड मिलता था इसलिए वो, माँ और संगीता एक साथ सोये|

[color=rgb(26,]अब आगे:[/color]

अगले
तीन दिन के भीतर ही मैंने लेंटर पड़ने का काम निपटा दिया जिससे मेरा रात को घर देर से आने का काम खत्म हो गया| अब मैं सुबह 10 बजे निकलता था और शाम 5 बजे तक घर लौट आता था| ओवरटाइम कराने की जर्रूरत नहीं थी इसलिए 7 बजते-बजते संतोष भी काम समेट कर अपने घर चला जाता था|

मेरे काम में व्यस्त न होने से तीनों बच्चे बहुत खुश थे| आयुष को अपने साथ गेम खेलने वाला एक साथी मिल गया था इसलिए आयुष बहुत खुश था| वहीं मेरी बिटिया नेहा इसलिए खुश थी क्योंकि उसे रोज़ रात को मुझसे कहानी सुनते हुए सोने का सुखद अवसर मिलने लगा था| जबकि मेरी बिटिया रानी स्तुति की ख़ुशी इसलिए थी की उसे अब मेरी गोदी में अधिक से अधिक समय बिताने को मिल रहा था|

दिन पर दिन स्तुति बड़ी हो रही थी और उसी के साथ उसकी प्यारी-प्यारी जिद्द भी बढ़ती जा रही थी| अभी तक रात में सोते समय स्तुति पीठ के बल सोती थी और मैं अपना हाथ उसके ऊपर हवा में किसी सीटबेल्ट की तरह उठा कर रखता था, लेकिन अब मेरी बिटिया को मेरे सीने से लग कर सोने का मन था| मैंने स्तुति का बिस्तर कुछ मोटा बिछाया ताकि स्तुति मेरे बराबर की ऊँचाई पर लेट सके| अब स्तुति मेरी तरफ करवट ले कर मेरी टी-शर्ट को अपनी मुट्ठी में जकड़ लेती और आराम से सोती| स्तुति के इस तरह से मुझ पर अधिकार जमाने से मेरा मन बहुत खुश होता और मैं भी स्तुति के सर को बार-बार चूम कर उसे कहानी सुनाने लगता| अब स्तुति को कहाँ कहानी समझ आती थी, वो तो यूँ मुझसे लिपटकर सोने से ही खुश हो जाती थी|

धीरे-धीरे मेरी बिटिया रानी की जिद्द अपने रंग दिखाने लगी थी| मेरी गैरहाजरी में संगीता दोपहर को स्तुति को दूध पिला कर सुला देती थी वरना स्तुति मेर गोदी के बिना रोने लगती थी, नतीजन रात को स्तुति को सोने में समय लगता था| जब तक स्तुति सो नहीं जाती थी वो मेरी गोदी में कब्ज़ा जमाये रहती और अपनी छोटी-छोटी आँखों को बड़ा कर मुझे देख किलकारियाँ मारने लगती| सुबह उठते ही स्तुति को मेरी गोदी चाहिए होती थी, वरना वो रोना शुरू कर देती थी! अब मुझे करनी होती थी घर में पूजा, लेकिन मेरी नटखट बिटिया मेरी गोदी से उतरे तब न! "बाबू, मैं पूजा कर लूँ फिर आपको प्यारी करूँगा!" मैंने स्तुति को बहलाते हुए कहा मगर मेरी बिटिया नहीं मानी और अपनी टिमटिमाती आँखों से मुझे देखते हुए कुछ बोलने की कोशिश करने लगी| स्तुति क्या कह रही थी ये मैं नहीं जानता मगर उसकी बोली का मैंने ये मतलब निकाला; "नहीं पापा जी, आप मेरे पास रहो!"

अपनी लाड़ली बिटिया की बात से मेरा मन पिघल गया, लेकिन पूजा तो करनी थी इसलिए मैंने स्तुति को गोदी ले कर ही पूजा करने का फैसला किया| स्तुति को अपने सीने से लिपटाये मैं नहाया और फिर स्तुति को अपने सीने से लगाए हुए पूजा करने लगा| चूँकि स्तुति मेरी गोदी में थी इसलिए मेरा बायाँ हाथ स्तुति को सँभालने में व्यस्त था और अपने दाएँ हाथ का प्रयोग कर मैंने बड़ी मुश्किल से मंदिर में दीपक जलाया| "भगवान जी, मेरी गुड़िया मुझे अकेले पूजा नहीं करने देना चाहती थी इसीलिए आज मैं पहलीबार अपनी बिटिया स्तुति को गोदी में ले कर प्रर्थना कर रहा हूँ| अगर मुझसे पूजा करने में कोई भूल-चूक हो जाए तो मुझे माफ़ करियेगा|" मैंने भगवान जी से प्रर्थना की जो की संगीता ने सुन ली तथा माँ ये बात माँ के कानों तक ये बात पहुँचा भी दी|

मेरी पूजा सम्पन्न होने के बाद मैं स्तुति को गोदी में लिए चाय पी रहा था जब माँ मेरी टाँग खींचते हुए बोलीं; "तो आज बाप-बेटी ने मिलकर पूजा की है!" माँ ने उल्हना देते हुए बात शुरू की| "मेरी प्यारी बिटिया को मेरे बिना चैन नहीं मिलता इसलिए अब से रोज़ हम बाप-बेटी ऐसे ही पूजा करेंगे|" मैंने स्तुति की तरफ देखते हुए कहा| स्तुति ने जब मेरी बात सुनी तो मेरी बिटिया के चेहरे पर मुस्कान आ गई और ख़ुशी के मारे स्तुति के मुख से किलकारियाँ निकलने लगी| अपनी बिटिया की किलकारियाँ सुन मैं एकदम से अपनी बिटिया पर मोहित हो गया| मैं स्तुति के दोनों हाथ चूमते हुए बोला; "मेली प्याली-प्याली बिटिया!" मेरी तुतला कर कही बात से स्तुति को जोश आया और उसने अपने दोनों हाथों से मेरी दाढ़ी के बाल पकड़ लिए! उन दिनों मेरी दाढ़ी थोड़ी बढ़ी हुई थी इसलिए स्तुति अपनी छोटी सी मुट्ठी में मेरी दाढ़ी पकड़ कर चहक रही थी! नजाने स्तुति को मेरी दाढ़ी के बाल पकड़ने में क्या मज़ा आ रहा था की स्तुति की किलकारियाँ हर पल बढ़ती जा रही थीं!

माँ ने जब ये दृश्य देखा तो वो हँसते हुए बोलीं; "लगता है मेरी शूगी (स्तुति) को तेरी दाढ़ी भा गई!" माँ ने हम बाप-बेटी के इस अनोखे प्यार की तारीफ की थी मगर ये तारीफ सुन संगीता को जलन होने लगी और उसने बिना कुछ सोचे-समझे माँ के सामने ही अपना सर पीट लिया! माँ ने जब संगीता को सर पीटते देखा तो वो उत्सुक होते हुए बोलीं; "क्या हुआ बहु?" माँ का सवाल सुन संगीता को अपनी बेवकूफी समझ आई| अपनी जलन छुपाने की बजाए संगीता ने जो अपना सर पीट कर अपनी जलन जाहिर की थी ये बात अब छुपा पाना संगीता के लिए मुश्किल था, फिर भी जैसे-तैसे संगीता बात बनाते हुए माँ से बोली; "वो माँ...क्या है न...मैंने इन्हें कितनी बार कहा है की दाढ़ी मत रखा करो, दाढ़ी में आप...'डाकू' जैसे लगते हो! और...और स्तुति आपकी दाढ़ी से डरजाती होगी...लेकिन ये हैं की मानते ही नहीं थे!" संगीता ने कहीं का ईंट, कहीं का रोड़ा जोड़ कर अपनी बात बनाई थी और मुझे संगीता को ये जोड़-तोड़ करते देख आ रही थी हँसी! उधर पता नहीं कैसे माँ संगीता की बातों में आ गई और उसी का पक्ष लेते हुए मुझे प्यारभरी डाँट लगाते हुए बोलीं; "बहु सही तो कह रही है! तुझे इतनी बार कहा की ये दाढ़ी साफ़ कर दे लेकिन तू है की अपना चेहरा इस दाढ़ी से ढक कर 'आंतकवादी' बना घूमता रहता है!"

बीवी द्वारा डाकू और माँ द्वारा आंतकवादी कहे जाने पर मुझे बहुत हँसी आई, अपनी इसी हँसी में मैंने गलती से अपना सर पीछे की ओर खींचा जिससे स्तुति की दोनों मुठ्ठी में कैद मेरी दाढ़ी के बाल खिंच गए! बाल-खींचने से चेहरे की मासपेशी में एक मीठा दर्द उठा जिससे मेरी 'आह' निकल गई! मेरी ये आह सुन कर दादी (मेरी माँ), मम्मी (संगीता) और मेरी बेटी को बड़ा मज़ा आया तथा तीनों की हँसी-ठहाका गूँजने लगा| "अपने पापा जी के दाढ़ी के सारे बाल खींच ले!" माँ, स्तुति को उकसाते हुए बोलीं| "हाँ-हाँ सारे बाल नोच दे इनके!" माँ की देखा-देखि, संगीता भी स्तुति को उकसाते हुए बोली| जहाँ माँ की बातों में मज़ाक था वहीं संगीता की बातों में मेरी दाढ़ी से उसकी ईर्षा साफ़ झलक रही थी| वहीं मेरी बिटिया रानी को जैसे अपनी मम्मी और अपनी दादी जी की बात समझ आ गई थी तभी तो स्तुति ने अपनी मुठ्ठी और कस ली थी|

मुझे अपनी दाढ़ी स्तुति की पकड़ से छुड़ानी थी इसलिए मैंने झुक कर स्तुति के माथे को चूमना शुरू कर दिया, स्तुति का ध्यान भटका और उसके हाथों की मेरी दाढ़ी पर पकड़ छूट गई! "मेली गुड़िया मेला साथ छैतानी कलटी है!" मैंने तुतला कर स्तुति के गाल सहलाते हुए कहा तो मेरी बिटिया खिलखिलाकर हँसने लगी|

उस दिन से स्तुति घर में कुछ अधिक ही सक्रिय रहने लगी| स्तुति ने घर के सभी सदस्यों का चेहरा तथा आवाज़ अपने मन-मस्तिष्क में बिठा ली थी, उसने जैसे सोच लिया था की उसे किसके साथ क्या और कितनी मस्ती करनी है| मेरे साथ होते हुए स्तुति की नज़र हमेशा मेरी दाढ़ी पर रहती थी, वो हमेशा मेरी दाढ़ी पकड़ने की कोशिश करती रहती थी| अपने बड़े भैया आयुष के साथ होते हुए स्तुति का ध्यान बस अपने भैया की गोदी में जा कर सुसु-पॉटी करने का रहता| अपनी बड़ी बहन नेहा दीदी के साथ होते हुए स्तुति थोड़ी जिज्ञासु हो जाती थी| दरअसल जिस तरह मैं नेहा को पहलीबार अपनी गोदी में ले कर पढ़ रहा था, वैसे ही नेहा स्तुति के पास अपनी दोनों कोहनियाँ टिका कर बैठती और साइंस के लेसन (lesson) दोहराती जिसे सुन कर स्तुति को बड़ा मज़ा आता| कभी-कभी तो लगता था की स्तुति जर्रूर बड़ी हो कर एस्ट्रोनॉट बनेगी!

शाम को जब मैं घर लौटा तो अपने साथ स्तुति के लिए एक बेबी कैरियर (baby carrier) ले आया| उस समय बेबी कैरियर इतनी आसानी से नहीं मिलता था, एक बड़ी महँगी दूकान से मैंने इम्पोर्टेड पीस करीब ढाई हज़ार में खरीदा था| घर आ कर जब मैंने ये बेबी कैरियर पहना और स्तुति को उसमें बिठाया तो माँ, संगीता तथा बच्चों को बहुत हैरानी हुई! स्तुति उस बेबी कैरियर में बैठ कर बड़े आराम से मेरे सीने से लिपटी हुई थी| नेहा ने जैसे ही मुझे बेबी कैरियर पहने देखा तो वो एकदम से बोली; "पापा जी, आप तो बिलकुल कंगारू जैसे दिख रहे हो!" नेहा ने मज़ाक किया जिस पर माँ और संगीता ने बड़ी जोर से ठहाका लगाया! "बेटा, ये बेबी कैरियर मैं इसलिए लाया हूँ ताकि सुबह स्तुति को गोदी ले कर मैं आराम से पूजा कर सकूँ|" मैंने जब बेबी कैरियर खरीदने का तर्क दिया तो सभी को हैरानी हुई की अपनी बिटिया की एक छोटी सी ख़ुशी के लिए मैं क्या-क्या खरीद लाता हूँ! 'तो कल से छोटी 'पंड़ताईंन' भी पूजा करेंगी!" माँ ने स्तुति को मजाकिया ढंग से पंड़ताईंन कहा जिस पर सभी ने जोरदार ठहाका लगाया|

इतने में आयुष अपनी प्लास्टिक की बॉल ले आया और स्तुति को देते हुए बोला; "आप बोलिंग (bowling) करो, मैं बैटिंग करूँगा!" आयुष की ये प्लास्टिक की बॉल स्तुति के हाथ से बड़ी थी इसलिए बेचारी स्तुति चाह कर भी बोल नहीं पकड़ पा रही थी! लेकिन फिर भी स्तुति की नजरें इस पीले रंग की प्लास्टिक की बॉल पर टिकी हुई थीं| नजाने वो कौन सी चुंबकीय शक्ति थी की स्तुति की नजरें इस बॉल पर से हट ही नहीं रहीं थीं! "बेटू, ये बॉल है और इसे ऐसे फेंकते हैं!" मैंने स्तुति को बॉल फेंक कर दिखाया| बॉल को दूर जाते देख स्तुति को बड़ा मज़ा आया और उसके मुख से प्यारभरी किलकारी निकलने लगी| अपनी छोटी बहन को यूँ खुश देख आयुष को ऐसा जोश आया की उसने अपनी प्लास्टिक की बॉल दिवार पर मारना और फिर बॉल लपकना शुरू कर दिया| स्तुति को अपने बड़े भाई को यूँ उछल-कूद करते देख बड़ा मज़ा आ रहा था और वो ख़ुशी से चहके जा रही थी|

अपनी छोटी बहन को मुझसे लाड पाते देख नेहा को कभी-कभी थोड़ी जलन होती थी| वो मुझसे अपनी इस जलन को छुपाने की भरपूर कोशिश करती थी, परन्तु फिर भी मैं नेहा की जलन ताड़ ही जाता था| मैं स्तुति को सहारा ले कर बिठा देता तथा स्तुति का ध्यान आयुष के बॉल फेकने-लपकने पर लगा देता| फिर मैं नेहा को आवाज़ दे कर अपने पास बुलाता और छोटे बच्चों की तरह नेहा को गोदी ले कर उसके मस्तक को चूमता| मेरे इस थोड़े से प्यार से नेहा खुश हो जाती और उसकी जलन काफूर हो जाती! दिन के समय जब स्तुति सो रही होती तब मैं घर आ कर नेहा को अपनी गोदी में बिठा कर खाना खिलाता और फिर स्तुति का ध्यान रखने की जिम्मेदारी दे कर निकल जाता| स्तुति और नेहा के बीच प्यार का तालमेल बिठाना मैंने सीख लिया था जिससे घर में शान्ति फैली हुई थी|

अगले दिन सुबह-सुबह स्तुति की नींद खुल गई और उसने सीधा मेरी दाढ़ी के बाल अपनी मुट्ठी में जकड़ लिए, जिससे मेरी नींद खुल गई! स्तुति किलकारी मारते हुए मुझे देख रही थी, मानो कह रही हो की उठो पापा जी! मैंने सबसे पहले स्तुति के मस्तक को चूमा और फिर दोनों बाप-बेटी गर्म-गर्म पानी से नहाये| बेबी कैरियर पहन, स्तुति को उसमें बिठा कर जब मैं पूजा करने पहुँचा तो देखा की मेरे दोनों बच्चे उत्साहित होकर मंदिर के आगे अपने हाथ जोड़े मेरा ही इंतज़ार कर रहे हैं! बच्चों का पूजा-पाठ में उत्साह देख मैंने दोनों के सर चूम कर उन्हें आशीर्वाद दिया| फिर शुरू हुई पूजा, इधर मैं और नेहा मंत्र बोल रहे थे और उधर स्तुति मंदिर में जल रही ज्योत और मेरे हाथों में अगरबत्ती देख किलकारी मारने में व्यस्त थी| 1-2 बार स्तुति ने मंदिर में जला रही ज्योत और मेरे हाथ में मौजूद अगरबत्ती पकड़नी चाहि मगर हाथ छोटे होने के कारण स्तुति की ये इच्छा पूरी न हो पाई, लेकिन आज मेरी बिटिया को पूजा करने में मज़ा बहुत आया था|

पूजा कर के जब हम चारों, बाप-बेटा और दोनों बेटी पीछे मुड़े तो देखा की दोनों सास-पतुआ मुस्कुरा रहे हैं! "छोटी पंड़ताईंन जी तनिक आशीर्वाद दे दो!" संगीता ने हाथ जोड़ते हुए स्तुति के आगे मस्तक झुकाया तो स्तुति ने एकदम से संगीता के बाल पकड़ लिए! स्तुति की मुठ्ठी में बाल आते ही स्तुति ने बाल खींचने शुरू कर दिए, उधर संगीता; "आह...माँ!" कहते हुए झूठ-मूठ का कराही| दोनों माँ-बेटी के बीच बालों की खींचा-तानी शुरु हो गई जिसे देख मुझे बहुत मज़ा आया; "कल मेरी बिटिया को मेरी दाढ़ी के बाल नोचने को बहुत उकसा रही थी न, अब भुगतो!" मैंने संगीता को प्यारभरा ताना मारा| फिर मैंने स्तुति को उकसाते हुए कहा; "खींच बेटा, जोर से खींच अपनी मम्मी के बाल!" स्तुति को मेरी बात समझ आई या नहीं ये नहीं पता मगर स्तुति ने अपनी मम्मी के बाल खींचने जारी रखे!

इधर नेहा को अपनी मम्मी पर तरस आ रहा था इसलिए उसी ने स्तुति की मुठ्ठी से अपनी मम्मी के बाल छुड़वाए| अपनी बड़ी बेटी को अपना पक्ष लेता देख संगीता को नेहा पर बहुत प्यार आया और उसने नेहा को अपने गले लगाते हुए मुझे जीभ चिढ़ाई! संगीता के इस तरह जीभ चिढ़ाने का मतलब था की भले ही छोटी बिटिया शैतान हो, लेकिन बड़ी बिटिया बहुत समझदार है संगीता को और अपनी मम्मी से बहुत प्यार करती है| अब मुझे संगीता की ये खुशफैमी दूर करनी थी की नेहा उससे अधिक प्यार करती है इसलिए मैंने नेहा को पुकारा; "मेरा बच्चा, मेरे पास नहीं आएगा?" मेरा इतना कहना था की नेहा अपनी मम्मी से छिटक कर दूर हुई और दौड़ती हुई आ कर मेरे से लिपट गई| नेहा के मेरे गले लगते ही मैंने संगीता को जीभ चिढ़ा कर उसे दिखा दिया की मेरे बच्चे सिर्फ और सिर्फ मुझसे प्यार करते हैं|

नेहा मेरे गले लगी थी तो स्तुति को बालों से भरा हुआ नया सर दिखा और स्तुति ने अपने हाथ बढ़ा कर अपनी बड़ी दीदी के बाल पकड़ने चाहे मगर मैंने स्तुति के छोटे से हाथों को रोक लिया और उसे समझते हुए बोला; "बेटा, अभी दीदी को स्कूल जाना है| जब वो वापस आएँगी न तब आप उनके बाल पकड़ कर खींचना!" मेरे प्यार से समझाने का असर स्तुति पर हुआ और वो मसूड़े दिखा कर हँसने लगी|

दिन धीरे-धीरे गुज़र रहे थे और मेरे बनाये प्लान के तहत मैं संगीता को मिलन की आस महसूस करवा कर अच्छे से तड़पा रहा था| हमारी शादी की सालगिरह से एक दिन पहले की बात है, बच्चों के स्कूल की छुट्टी थी और मैंने भी काम से आज छुट्टी कर रखी थी| सुबह होते ही रोज़ की तरह मैंने और तीनों बच्चों ने मिलकर पूजा की, फिर मैंने तीनों बच्चों तथा माँ को अपनी बातों में इस कदर लगाया की मैंने संगीता को एकदम से दरकिनार कर दिया, मानो जैसे वो इस घर में हो ही न!

पहले तो संगीता को बुरा नहीं लगा और उसने खुद को घर के काम-काज में व्यस्त कर लिया| लेकिन दोपहर होते-होते संगीता को यूँ अलग-थलग किया जाना चुभने लगा था इसलिए संगीता को मुझपर अब गुस्सा आने लगा था| अब संगीता मुझपर अपना गुस्सा तो ज़ाहिर नहीं कर सकती थी इसलिए संगीता ने सबसे पहले बर्तनों पर अपना गुस्सा निकाला| एक-एक कर संगीता ने बर्तनों को धोने की बजाए पटकना शुरू किया तो रसोई से बर्तनों के धड़ाम-धुड़ुम की आवाज़ आने लगी| मैं समझ गया की मेरा प्लान काम कर रहा है और संगीता को गुस्सा चढ़ रहा है! फिर बारी आई बेचारे बच्चों की जिनपर उनकी मम्मी के गुस्से की बिजली गिरी! "आयुष...नेहा...आज छुट्टी है तो सारा दिन मस्तीबाज़ी चलेगी तुम्हारी?! चलो...उठो...कमरा साफ़ करो!" संगीता ने रसोई से दहाड़ लगाई तो दोनों बच्चे लेफ्ट-राइट करते हुए हड़बड़ा कर उठे और अपनी मम्मी के डर से अपना कमरा साफ़ करने में जुट गए! बच्चे साफ़-सफाई में नलगे तो मैंने माँ का ध्यान स्तुति और अपनी बातों में लगा दिया| संगीता के गुस्से की तीसरी बिजली गिरी शाम को जब उसने स्तुति को दूध पिला कर मुझे सौंपा; "ये लो...सम्भालो अपनी लाड़ली को और खबरदार जो मुझसे बात की तो! जा कर अपने बच्चों और माँ से बात करो!" इतना कह संगीता भुनभुनाती हुई रसोई में चली गई| मैं संगीता को गुस्से से तपाना चाहता था, उतना तपा चूका था|

रात के खाने के बाद संगीता रसोई समेट कर फट से सो गई, इधर मैंने माँ और बच्चों को अपनी बातों में ऐसा उलझाया की किसी को भी संगीता की गैरमूजदगी का पता ही नहीं लगा! करीब 10 बजे माँ ने सभी को सोने का आदेश दिया और तब उन्होंने गौर किया किया की संगीता गायब है! "बहु कहाँ है?" माँ ने जब संगीता के बारे में पुछा तो मैंने बात बनाते हुए कहा; "वो थक गई थी इसलिए जल्दी सो गई!"

आयुष, स्तुति और नेहा को ले कर मैं बच्चों वाले कमरे में पहुँचा| मैं पलंग के बीचों बीच लेटा, मेरे सीने से लिपटी हुई स्तुति, मेरे दायीं तरफ नेहा और बाईं तरफ आयुष, तीनों बच्चे कस कर मुझसे लिपटे हुए थे| जैसे ही मैंने कहानी सुनानी शुरू की स्तुति की किलकारियाँ शुरू हो गईं, ऐसा लगता था मानो मेरी बजाए वो कहानी सुनाना चाहती हो! "कहानी पापा जी सुनाएंगे, आप बस चुपचाप सुनो!" नेहा बड़ी बहन होते हुए स्तुति को प्यारभरी डाँट लगाते हुए बोली मगर स्तुति पर इसका कोई असर नहीं पड़ा| उसने अपनी बड़ी बहन नेहा की बजाए, अपने बड़े भाई आयुष की तरफ गर्दन घुमाई और फिर से किलकारियाँ मारने लगी|

खैर, कहानी सुनते हुए आयुष और नेहा के साथ-साथ स्तुति भी सो गई| मैं बड़ी सावधानी से उठा और स्तुति को ले कर माँ के कमरे में दबे पाँव पहुँचा| माँ गहरी नींद में थीं इसलिए स्तुति को मैंने धीरे से माँ के पास लिटा कर कंबल ओढ़ा दिया| फिर मैं अपने कमरे में पहुँचा और बाथरूम में घुस कर मैंने सालों बाद रेजर उठाया और अपनी सारी दाढ़ी साफ़ कर दी! पूरा आधा घंटा लगा मुझे अपनी पूरी दाढ़ी साफ़ करने में और जब अपनी सूरत आईने में देखि तो मेरी हँसी छूट गई! दाढ़ी साफ़ होते ही मेरा गोल-मटोल छोटे बच्चे जैसा चेहरा सामने आया| मैंने दाढ़ी के बाल इतनी बारीकी से साफ़ किये थे की मेरे गाल किसी छोटे बच्चे की तरह मुलायम हो गए थे! रात के साढ़े ग्यारह हुए थे और संगीता को दिया जाने वाला सरप्राइज लगभग तैयार था!

हम दोनों मियाँ-बीवी के प्रेम-मिलाप को काफी महीने हो गए थे इसलिए मुझे आज रात को अपने किये जाने वाले प्रदर्शन (performance) पर संदेह हो रहा था! मुझे लग रहा था की मैं बीच रास्ते में दम तोड़ दूँगा, जिससे संगीता मझधार में रह जाएगी! उस प्रेम मिलाप का फायदा क्या हुआ जिसमें आप अपने अनुरागी को संतुष्टि ही न प्रदान कर पाओ!

शक का ये कीड़ा मेरे भीतर बहुत पहले कुलबुलाने लगा था इसीलिए मैंने इस समस्या का भी हल निकाल लिया था| मैं केवल आज रात के लिए विशेषकर शिलाजीत की गोली ले कर आया था| इस एक गोली को लेने के लिए मैंने काफी चक्कर लगाए थे और अंत में इसे अपने घर से 20 किलोमीटर दूर दवाई की दूकान से खरीदकर लाया था|

मैंने फौरन गोली खाई और बिस्तर की ओर चल पड़ा| बिना कोई अधिक हल-चल किये मैं बिस्तर पर लेटा| मेरा उद्देश्य आज संगीता को सबसे पहले अपने नरम-नरम गाल का स्पर्श करवा कर खुश करना था| संगीता मेरी तरफ पीठ कर के लेटी थी इसलिए मैंने संगीता के एकदम नज़दीक पहुँचा| दिर मैंने संगीता के दाएँ गाल पर अपना बायाँ गाल स्पर्श करवाते हुए संगीता को अपनी बाहों में भर लिया|

[color=rgb(163,]जारी रहेगा भाग - 15(2) में...[/color]
 

[color=rgb(44,]इकत्तीसवाँ अध्याय: घर संसार[/color]
[color=rgb(251,]भाग - 15(2)[/color]


[color=rgb(71,]अब तक अपने पढ़ा:[/color]

मैंने फौरन गोली खाई और बिस्तर की ओर चल पड़ा| बिना कोई अधिक हल-चल किये मैं बिस्तर पर लेटा| मेरा उद्देश्य आज संगीता को सबसे पहले अपने नरम-नरम गाल का स्पर्श करवा कर खुश करना था| संगीता मेरी तरफ पीठ कर के लेटी थी इसलिए मैंने संगीता के एकदम नज़दीक पहुँचा| दिर मैंने संगीता के दाएँ गाल पर अपना बायाँ गाल स्पर्श करवाते हुए संगीता को अपनी बाहों में भर लिया|

[color=rgb(26,]अब आगे:[/color]

परन्तु
जैसे ही मेरे बाएँ गाल ने संगीता के दाएँ गाल को छुआ, संगीता के बदन में बिजली दौड़ पड़ी और वो एकदम से मुझसे छिटक कर उठ खड़ी हुई! संगीता ने डर के मारे फौरन कमरे की लाइट जलाई और अपनी उखड़ी हुई साँसों से मुझे देखने लगी! संगीता का यूँ डर कर मुझसे छिटक कर दूर हो जाना जाना जायज था| दरअसल संगीता मेरे जिस्म के हर स्पर्श को जानती थी, भले ही वो कितनी गहरी नींद में सो रही हो लेकिन मेरे आलिंगन या मेरे स्पर्श को पहचान जाती थी| परन्तु आज संगीता ने मेरे कोमल गाल का स्पर्श कई सालों बाद महसूस किया था इसलिए संगीता को लगा की किसी अनजान मर्द ने उसके जिस्म को छुआ है, यही कारण था की संगीता एकदम से घबरा गई थी!

कमरे में उजाले होने पर जब संगीत ने मुझे देखा तो उसकी जान में जान आई! इधर मैं संगीता के डर और उस डर की वजह को समझ चूका था इसलिए संगीता की घबराहट दूर करने के लिए मैंने अपनी बाहें खोल कर संगीता को अपने पहलु में आने का मूक निमंत्रण दिया, बिना देर किये संगीता मेरी बाहों में सिमट गई! संगीता इस समय बहुत घबराई हुई थी इसलिए उसके दिल की धड़कन असामान्य थी| संगीता के दिल की धड़कन सामान्य करने के लिए मैंने अपनी बाहों को संगीता के इर्द-गिर्द कस लिया| मेरी बाहों के कसाव से संगीता के दिल को इत्मीनान मिला और उसकी धड़कन सामान्य हो गई| "शादी की पहली सालगिरह मुबारक हो जान!" मैंने संगीता के सर को चूमते हुए कहा| हमारी शादी की सालगिरह की बधाई पा कर संगीता का दिल बहुत खुश हुआ; "आपको भी ये दिन बहुत-बहुत मुबारक हो जानू!" संगीता मेरी आँखों में देखते हुए बोली|

मौखिक बधाई दी जा चुकी थी, अब बारी थी इस दिन को ख़ुशी से मनाने की| संगीता को अपनी बाहों में भरे हुए, मेरे होंठ धीरे-धीरे संगीता के होठों की तरफ बढ़ चले| उधर मुझसे ज्यादा उतावली संगीता थी इसलिए संगीता ने तुरंत मेरे होठों को अपनी गिरफ्त में ले लिया! हमारा प्रेम-मिलाप प्रारम्भ हो चूका था और इस बार इस चुंबन की तीव्रता पहले के मुक़ाबले कुछ अधिक ही तीव्र थी! संगीता का दाहिना हाथ मेरे दाढ़ी रहत गाल पर पहुँचा तो संगीता की ख़ुशी का ठिकाना न रहा| संगीता ने एकदम से मेरे दाहिने गाल पर हमला बोल दिया तथा अपने मोतियों से सफ़ेद दाँत मेरे गाल पर गड़ा दिए! "ससससस आह!" मैं मीठे दर्द को महसूस कर कराहा| परन्तु संगीता पर मेरी कराह का कोई असर नहीं हुआ, बल्कि वो तो किसी भूखी शेरनी की तरह मेरे नरम गाल पर टूट पड़ी! "ससस...जान...सुबह...मेरे गाल पर तुम्हारे दाँतों के निशान.आज रात की कहानी ब्यान करेंगे! क्या कहोगी तुम जब बच्चे और माँ इन निशानों ले बारे में सवाल करेंगे?" मेरी बात सुन संगीता एकदम से रुकी और मेरी आँखों में देखते हुए बोली; "आपके इन मुलायम गालों को काटने के लिए मैंने बहुत साल इंतेज़ार किया है! कल चाहे माँ मुझे कितना ही डांटें, लोग आपका मज़ाक उड़ायें...आई (I)...डोंट (don't)...गिव (give)...आ (a)...फ़क (fuck)!" संगीता दाँत पीसते हुए बोली| संगीता इस समय बहुत उग्र हो गई थी, मेरे गाल उसके लिए स्वादिष्ट व्यंजन थे जिसे आज ये भूखी शेरनी छोड़ना नहीं चाहती थी|

संगीता ने मेरे दोनों गालों को काट-काट कर लाल कर दिया था| मुझे इस दौरान पीड़ा तो हुई मगर मज़ा उससे कई ज्यादा आया! इधर मेरे द्वारा खाई हुई जोश वर्धक गोली ने अपना असर दिखाना शुरू कर दिया था| मेरे हृदय की गति तेज़ हो गई थी, जुबान प्रेम के लिए प्यासी हो चली थी तथा जिस्म के निचले हिस्से में ऐसी कसावट आई थी की लगता था मेरा कच्छा फट जायेगा! मुझे गज़ब का जोश आया और पहले मैंने अपने तथा बाद में संगीता के सारे कपड़े एक-एक कर निकाल फेंके! बिना कपड़ों के हमारे नंगे जिस्म जब एक दूसरे के सम्पर्क में आये तो मन में प्रेम मिलन की अगन और भी तेज़ हो गई!

फिर एक बार गाल कटाई का दौर शुरू हुआ जो की पिछलीबार से कुछ ज्यादा ही तीव्र था! जहाँ संगीता का निशाना मेरे गाल थे, मेरे निशाने पर संगीता की गर्दन थी! संगीता की सुराहीदार गर्दन आज मुझे कुछ ज्यादा ही आकर्षक लग रही थी इसलिए उसपर अपने दाँत गड़ाए बिना मेरा मन नहीं मानने वाला था| जैसे ही मैंने अपने पैने दाँत संगीता की गर्दन पर गड़ाए, उसने तेष में आ कर मेरी पीठ में अपने नाखून धँसा दिए! मुझे एक मीठे दर्द का एहसास हुआ लेकिन मेरा सारा ध्यान संगीता की गर्दन पर केंद्रित था| संगीता की गर्दन पर दाँत गड़ा कर मैं उसकी गर्दन के माँस को अपने मुँह में भर कर चूस रहा था! संगीता की कामुकता मेरी इस क्रिया से बढ़ने लगी थी और उसने मुझे प्रोत्साहन देने के लिए अपने दाएँ हाथ की उँगलियों को मेरे बालों में चलाना शुरू कर दिया था तथा अपने बाएँ हाथ को संगीता मेरे कूल्हों पर रख अपने ऊपर दबाव डालने को प्रेरित कर रही थी|

संगीता की गर्दन का भोग लगा कर मैं नीचे की ओर सरका तथा रुई से मुलायम सफ़ेद पहाड़ों तक पहुँचा| इन पहाड़ों को देखते ही मेरे भीतर प्यास धधक उठी और मैंने उन पहाड़ों की चोटियों पर मौजूद भूरे रंग के फल को अपने मुख में भर लिया! मेरी खुशकिस्मती थी की इस फल में मीठा-मीठा दूध मौजूद था|

जब मैं छोटा था तब इस फल को मैंने दूध मिलने की उम्मीद में चखा था परन्तु तब इन फलों में दूध नहीं आता था| लेकिन आज जब मुझे इन फलों में दूध का स्वाद मिला तो जैसे मेरी एक अधूरी इच्छा पूरी हो गई!

उधर पहले मेरे होठों के स्पर्श और फिर जीभ के स्पर्श को महसूस कर संगीता का कामुक मन शांत हो गया था| संगीता ने बड़े प्यार से अपने दोनों हाथ मेरे सर पर रखे और अपनी उँगलियाँ धीरे-धीरे मेरे बालों में चलाने लगी| मन तो मेरा बहुत था की मैं आज इस मधुर दूध की बूँद-बूँद पी जाऊँ लेकिन मेरा मन मुझे रोकते हुए बोला; "बुद्धू...इस दूध पर तेरी बिटिया (स्तुति) का हक़ है और तू अपनी बिटिया का हक़ मारना चाहता है?!" मन की बात मानते हुए मैं रुक गया और संगीता के बदन पर धीरे-धीरे नीचे की ओर घिसकने लगा| उधर संगीता का मन नहीं चाहता था की मैं उसका ये मधुर दूध पीना छोड़ूँ इसलिए वो मुझे नीचे खिसकने से रोक रही थी, परन्तु परिस्थिति ऐसी थी की संगीता बोल कर अपनी ये इच्छा व्यक्त नहीं कर सकती थी| मैं भी संगीता के मन में उठी इन हिलोरों को समझ रहा था मगर मेरा अंतर्मन मुझे अपनी बेटी के हिस्से का दूध पीने से रोक रहा था!

खैर, मैं संगीता की इच्छा को दरकिनार करते हुए निचे पहुँच चूका था| अब समय था उस अमृत कलश के अमृत को चखने का जिसके लिए मैं लगभग 3 महीने से तरसा था| अपनी लपलपाती जीभ से मैंने इस मधु भंडार पर आक्रमण कर दिया और जितनी गहराई नाप सकता था उतनी गहराई अपनी जीभ से नापता गया! उधर मेरी जीभ के लपलपाने से संगीता का जिस्म किसी नागिन की तरह ऐंठने लगा और उसके मुख से कामुक सिसकारियाँ निकलने लगीं; "ससस....आह.....ममम....उनननन....हमम...ननन!" जो कामाग्नि संगीता के भीतर कुछ देर पहले थोड़ा शांत हुई थी वो दुगनी हो कर धधकने लगी थी! संगीता ने तुरंत मेरे बालों को अपनी मुठ्ठी में जकड़ लिया और अपनी कमर ऊपर की ओर उचका कर मेरे मुँह से सटाने लगी! कुछ मिनटों में संगीता लगभग चरम पर पहुँच चुकी थी, परन्तु उसकी इच्छा अपने मधु को यूँ मेरे मुख के भीतर ज़ाया कर जंग हारने की नहीं थी| संगीता तो आज मुझे इस काम-युद्ध में परास्त करना चाहती थी, अब वो क्या जाने की मैंने इस काम-युद्ध को जीतने के लिए छल रच रखा है!

"उम्...ननन...जा...नू...प्लीज...रुको..." संगीता ने मुझे रोका और अपने ऊपर आने का इशारा किया| गोली के असर से मेरे कामदण्ड में आई सख्ती से मुझे पीड़ा होने लगी थी इसलिए मैं तो पहले से ही कोई नर्म-गर्म और गीली जगह तलाश रहा था| जब संगीता ने मुझे अपने ऊपर आने का इशारा किया तो मैंने तुरंत संगीता की इस इच्छा को मान लिया|

अपना निशाना लगाते हुए मैंने भेदन कार्य बड़े प्यार से आरम्भ किया| प्रेम-मिलाप के समय संगीता के चेहरे पर एक भी दर्द की लकीर दिखती तो मैं तड़प उठता था इसीलिए मैंने आज इतने महीनों बाद भेदन कार्य बिलकुल ऐसे आरम्भ किया जैसे किसी कुँवारी लड़की के साथ किया जाता हो| मेरे अनुमान के हिसाब से आज के इस भेदन कार्य में कोई परेशानी नहीं आनी चाहिए थी, परन्तु जब मैंने आधा रास्ता तय किया तो मुझे मेरे कामदण्ड पर थोड़ा कसाव महसूस हुआ और उधर संगीता के चेहरे पर दर्द की शिकन पड़ने लगी! "आह हहह्म्मम्ननन!" संगीता आँखें मूंदें हुए दर्द से कराही जिससे मैंने अपनी गाडी पर एकदम से ब्रेक लगा दिए! जब संगीता ने महसूस किया की भेदन कार्य रुक चूका है तो उसने आँख खोल कर मुझे देखा और मेरे चेहरे पर तड़प देख कर मुस्कुराई; "कुछ नहीं होगा मुझे!" संगीता ने लजाते हुए कहा और अपनी बाहें खोल कर मुझे अपने नग्न जिस्म से लिपटने का इशारा किया| मैं संगीता के जिस्म से लिपट गया मगर अपने कामदण्ड को ज़रा भी नहीं हिलाया| मैं चाहता था की एक बार संगीता इसकी थोड़ी 'अभ्यस्त' हो जाए तभी मैं गाडी आगे की ओर ले जाऊँ!

दूसरी तरफ संगीता में सब्र थोड़ा कम था, वो जानती थी की उसकी पीड़ा देख कर ही मैंने गाडी पर ब्रेक लगा राखी है इसलिए संगीता ने खुद गाडी चलाने की ठानी| हमारे इस प्रेम-मिलाप के हाईवे पर स्तुति नाम का टोल-नाका था जो किसी भी वक़्त प्रकट हो कर हमारी गाडी को रोक देता और संगीता अपने गुस्से में फिर क्या करती ये उसे भी नहीं पता था इसीलिए संगीता को थोड़ी जल्दी थी|

संगीता ने धीरे से करवट बदली और मुझे अपने ऊपर से, अपने नीचे ले आई| मैंने जब संगीता की ये मंशा समझी तो मैंने सोचा की संगीता अपने जिस्म की हद्द जानती है इसलिए वो भेदन कार्य को ठीक से सँभाल सकती है| संगीता ने सबसे पहले मेरे भीतर जल रही कामाग्नि को और तीव्र करने के लिए अपने बाल खोल दिए और मेरी छाती पर दोनों हाथ रख मुझे बड़े ही मादक ढंग से जीभ चिढ़ाई! संगीता की गुलाबी जीभ देख कर मेरे मुँह में पानी आया और मैंने संगीता की जीभ अपने दाँतों में जकड़ने के लिए उठना चाहा मगर संगीता ने अपने दोनों हाथों से मेरी छाती पर वज़न डालकर मुझे उठने नहीं दिया!

मुझे तड़पाते हुए संगीता ने धीरे-धीरे अपनी कमर को बलखाना शुरू किया तथा धीरे-धीरे मेरे कामदण्ड को अपने 'मधुभंडार' में जकड़ना शुरू किया| संगीता मुझे अच्छे से तड़पाते हुए मेरे कामदण्ड को धीरे-धीरे निगल रही थी| एक पल के लिए तो मेरा मन बोल उठा; "बड़ी गलती कर दी नीचे आ कर मैंने, इससे अच्छा तो मैं ऊपर ही रहता!" लेकिन अब पछताए होत क्या जब चिड़िया चुग गई खेत?! अब तो सारी कमान संगीता के हाथ में थी, सिवाए तड़पने के मैं कर भी क्या सकता था?!

कुछ पल बाद जब मेरे कामदण्ड ने संगीता के 'मधुपुर' में अपनी जगह बना ली तो संगीता साँस लेने के लिए गर्दन पीछे की ओर तानकर बैठ गई| दरअसल संगीता अपनी 'उसको' मेरे कामदण्ड का अभ्यस्त कर रही थी! वहीं संगीता के भीतर मेरा कामदण्ड उपद्रवी हो गया था तथा अपने ठुमके मार-मार कर संगीता को उल्हना दे रहा था की वो जल्दी से इस प्रेम-मिलन की गाडी को आगे बढाए| वहीं संगीता को अपने भीतर जब इन ठुमको का एहसास हुआ तो संगीता ने धीरे-धीरे गति पकड़नी शुरू की| तीन बच्चों की माँ होने के कारण, मेरा ये मानना था की संगीता को कोई पीड़ा नहीं होनी चाहिए, उसके भीतर तो केवल सुख का संचार होना चाहिए| लेकिन हो इसके एकदम उल्ट रहा था, मेरा कामदण्ड संगीता के भीतर बिलकुल कसा हुआ था और जैसे ही संगीता ने धीरे-धीरे अपनी गति बढ़ाई, घर्षण से संगीता के भीतर मीठा-मीठा दर्द पैदा हो चूका था| "ससस...आह....हम्मममम...आह..ह्ह्हम्महम्ण!!!" की कराह संगीता के मुख से निकलने लगी| संगीता की ये कामुक सिसकारियाँ सुन मेरे मन में हिलोरें उठ रहीं थीं, जबकि संगीता को थोड़ी-थोड़ी पीड़ा हो रही थी|

संगीता की इस पीड़ा का इलाज मुझे ही करना था, मैंने अपनी बाहें खोल संगीता को आलिंगन का इशारा किया| उधर संगीता को मेरे गले लगने से ज्यादा चाव मेरे मुलायम गालों को काट खाने का था| संगीता मेरे सीने से लगी तो सबसे पहले उसके दोनों मुलायम पहाड़ों ने मेरे सीने में कामुकता के कारण धारदार फल मेरे सीने में गड़ा दिया! फिर संगीता ने सीधा मेरे बाएँ गाल पर अपने दाँत गड़ा कर मेरे गाल को चुभलाने लगी! कुछ ही पल में संगीता के निचले अंग ने अपनी सहूलत के लिए चिकना द्रव्य छोड़ दिया ताकि घर्षण कम हो सके| जैसे ही मुझे अपने कामदण्ड पर थोड़ा गिलापन महसूस हुआ मैंने संगीता को अपनी बाहों में कस कर अपनी कमर को ऊपर की ओर चलाते हुए जोश दिखाना शुरू कर दिया|

कुछ देर पहले संगीता को हो रही पीड़ा अब सुख में बदल चुकी थी और मुझे उकसाने के लिए संगीता के मुख से कामुक सिसकारियाँ तेज़ होने लगी थीं| संगीता की इन कामुक सिसकारियों ने मेरे भीतर नई ऊर्जा भर दी थी, नतीजन मेरी गति तेज़ हो चली थी| कुछ ही पलों में संगीता अपने मुक़ाम पर पहुँच गई और भभराते हुए अपने स्खलन को प्राप्त हुई! महीनों बाद आज संगीता का ये पहला स्खलन था इसलिए संगीता एकदम से निढाल हो कर पड़ गई!

संगीता को छकाने पर मुझे खुद पर घमंड हो रहा था लेकिन मैं अब भी प्यासा था| स्खलन के बाद संगीता अक्सर ढीली पड़ जाती थी, उसके भीतर प्रेम-मिलाप की ऊर्जा पुनः पैदा होने में थोड़ा समय लगता था| संगीता के भीतर पुनः प्रेम की अगन जलाने के लिए मैंने संगीता की गर्दन पर धीरे से दाँत गड़ा दिए और अपनी जीभ से चुभलाने लगा! मेरी इस हरकत का असर संगीता के जिस्म पर दिखने लगा| कुछ पल दम लेने के बाद संगीता मेरी आँखों में देखने लगी, मैंने गौर किया तो पाया की संगीता की आँखों में फिर से प्यास छलकने लगी थी| मैंने धीरे से करवट बदली और संगीता को अपने नीचे ले आया| संगीता मेरा इरादा समझते हुए धीमे से मुस्कुराई और हमारे इस प्रेम की ट्रैन को हरी झंडी दिखा दी| घर्षण कम था इसलिए मैंने धीरे-धीरे गति बढ़ाई और जैसे ही ट्रैन आउटर पार हुई मैंने हमारे प्रेम की ट्रैन में जोश रुपी कोयला झोंक दिया और कुछ ही पलों में ट्रैन फुल स्पीड पर पहुँच गई!

गोली का असर अब बड़े जोर पर था और मुझे कैसे भी अपने गंतव्य स्थान अर्थात अपने चरम पर पहुँचना था, लेकिन गोली का असर कुछ ज्यादा ही तेज़ था जो मेरी मंजिल को मुझसे खींच कर दूर ले जा रहा था, मेरे और मेरी मंज़िल के बीच में बेचारी संगीता पीसती जा रही थी| जहाँ मैं अपने पहले स्खलन को तरस रहा था वहीं संगीता अपने दूसरे स्खलन पर पहुँच गई थी! "हाय....माँ.....हम्म्म!" संगीता अपने स्खलन पर पहुँच कर कराही| ट्रैन तेज़ भगाने के चक्कर में मैंने संगीता पर थोड़ी अधिक ही बर्बरता दिखा दी थी जिस कारण संगीता अपनी कराह रुपी लाल झंडी दिखा कर मुझे ट्रैन रोकने का इशारा कर रही थी| संगीता की दशा पर तरस खाते हुए मैंने हमारे प्रेम की ट्रैन पर इमरजेंसी ब्रेक लगा दी|

दिसम्बर का महीना शुरू हुआ था और सर्दी पड़ने लगी थी| रज़ाई के भीतर नंगे बदन होते हुए जो वर्जिश हम कर रहे तह उससे हम दोनों के बदन पसीने से भीग चुके थे| मैंने अपनी सांसें दुरुस्त की क्योंकि ट्रैन तेज़ी से भगाने के चक्कर में मेरी अपनी सांसें भी फूल चुकी थीं| वहीं संगीता बेचारी अपनी तेज़ हो चली सांसों को काबू करते हुए मुझे देख कर मुस्कुरा रही थी| करवाचौथ के बाद से ये दूसरा मौका था जब मैं हमारे प्रेम-मिलाप के समय इतना उग्र हो गया था| हैरानी की बात थी की संगीता को मेरे उग्र होने पर बहुत मज़ा आ रहा था| मेरी सीधी-साधी बीवी को मेरे बेरहमी दिखा कर प्यार करने का स्टाइल अधिक भाता था!

जब संगीता की सांसें दुरुस्त हुईं तो उसने अपनी बाहें खोलते हुए मुझे अपने आलिंगन में कस लिया और मुझे पुनः अपने काम को शुरू करने को कहा| संगीता का इशारा मिलते ही मैंने फिर से गाडी भगाई और ऐसी भगाई की गाडी तभी रुकी जब मेरा स्खलन पूर्ण हुआ! पिछले घंटेभर की मेहनत के बाद जब स्खलन हुआ तो मैं भरभरा कर स्खलित हुआ और एकदम से संगीता को अपनी बाहों में कुछ अधिक ज़ोर से कस लिया!

हाँफता हुआ मैं संगीता के ऊपर से लुढ़कने लगा, परन्तु संगीता ने मुझे अपनी बाहों में कस लिया और अपने ऊपर से हटने नहीं दिया| मुझे पता ही नहीं चला की मेरे स्खलन के साथ ही संगीता भी स्खलित हो चुकी है!

रात के बजे थे 2 और थकावट के कारण मुझे अब बड़ी जोर की नींद आ रही थी, लेकिन देवी जी का मन बात करने का था इसलिए संगीता मेरे सीने पर सर रख लेटी और बोली;
संगीता: आपने बड़ा प्यारा सरप्राइज दिया मुझे!

संगीता मेरे नरम-नरम गाल पर हाथ फेरते हुए बोली|

संगीता: और एक बात बताऊँ, मैं हमारी शादी की सालगिरह को भूली नहीं थी| मुझे लगा था की आप आज सुबह सबसे हमारी शादी की सालगिरह कैसी मनानी है इस विषय पर प्लानिंग करोगे, लेकिन जब आपने मुझे एकदम से नज़रंदाज़ किया तो मुझे लगा की आप हमारी शादी की सालगिरह भूल गए इसलिए मुझे बहुत गुस्सा आया| मैं बुद्धू ये भूल गई थी की आपके सरप्राइज देने के ढंग निराले होते हैं!

ये कहते हुए संगीता ने धीरे से अपना सर पीट लिया! मैं इस वक़्त सोना चाहता था लेकिन संगीता की प्यार भरी बातें मुझे सोने नहीं दे रहीं थीं| इधर संगीता को मेरे मुख से कोई जवाब नहीं सुनना था, उसे तो केवल आज दिनभर से जो वो किसी से बात नहीं कर पाई थी, वो बातें मुझसे कर के अपना कोटा पूरा करना था!

संगीता: जब आपने उस समय अपने गाल का स्पर्श मेरे गाल पर करवाया तो मैं बहुत डर गई थी! ऐसा लगा मानो किसी परपुरुष ने मुझे छुआ हो इसीलिए मैं छिटक कर आपसे दूर हो गई थी! वो तो जब मैंने कमरे की लाइट जलाई और आपको देखा तो मेरी जान में जान आई| संगीता अपना डर व्यक्त करते हुए थोड़ी गंभीर हो गई थी| दरअसल उसे चन्दर के साथ बिताये उन दर्द भरे दिनों की याद गई थी|

इधर मैं संगीता को आज के दिन किसी भी डर या दुःख को याद कर के परेशान नहीं होने देना चाहता था इसलिए मैंने तुरंत संगीता को अपनी बाहों में कस लिया और उसके सर को चूमते हुए बोला;

मैं: जान, मैं सब समझता हूँ| अब छोडो इस बात को और चलो सो जाते हैं|

मैंने संगीता का ध्यान भटकाते हुए कहा| संगीता का ध्यान तो भटका परन्तु किसी और दिशा में;

संगीता: अच्छा जानू, एक बात तो बताओ...उस टाइम जब आप वो...

इतना कहते हुए संगीता रुक गई क्योंकि संगीता को आगे अपनी बात कहने में शर्म आ रही थी| दरअसल संगीता पूछना चाह रही थी की जब मैं उसके दोनों पहाड़ों की चोटी पर मौजूद फल का रस पी रहा था तो संगीता के आग्रह करने पर भी मैं क्यों रुका| मैं संगीता के इस सवाल से अनजान था इसलिए मैंने अपना ध्यान सोने पर लगाया| संगीता भी शर्म के मारे कुछ नहीं कह सकती थी इसलिए वो भी बिना कुछ कहे मुझसे लिपट कर सो गई|

अगली सुबह मेरी आँख जल्दी खुल गई और मेरे उठते ही मेरा कामदण्ड भी जाग गया| अब सुबह-सुबह पहलु में आपकी परिणीता हो और आपके भीतर रोमांस न जागे ऐसा तो हो नहीं सकता?! संगीता नग्न अवस्था में अब भी मेरी बाहों में थी इसलिए मैंने मौके का फायदा उठाते हुए अपने कामदण्ड को भेदन कार्य में लगा दिया| अभी आधा रास्ता तय हुआ था की संगीता की जाग खुल गई, मुझे अपने ऊपर झुका हुआ देख संगीता के चेहरे पर मुस्कान फ़ैल गई; "आप न बड़े शैतान हो!" संगीता मुझे प्यारभरा उल्हाना देते हुए बोली| फिर संगीता ने अपने दोनों हाथों का हार मेरे गले में डाल दिया और मुझे अपने से चिपका लिया| प्यार का बवंडर फिर उठा और 6 बजे जा कर ये बवंडर थमा| जब ये बवंडर थमा तो संगीता मुझे उल्हाना देते हुए बोली; "आपकी सुबह तो मज़ेदार हो गई मगर मेरी तो हालत खराब कर दी न आपने! अब सोओ आराम से!" संगीता थोड़ा पिनकते हुए उठी और फटाफट तैयार होकर बच्चों को जगाने चली गई|

[color=rgb(163,]जारी रहेगा भाग - 16 में...[/color]
 

[color=rgb(251,]इकत्तीसवाँ अध्याय: घर संसार[/color]
[color=rgb(44,]भाग - 16[/color]


[color=rgb(71,]अब तक अपने पढ़ा:[/color]

अगली सुबह मेरी आँख जल्दी खुल गई और मेरे उठते ही मेरा कामदण्ड भी जाग गया| अब सुबह-सुबह पहलु में आपकी परिणीता हो और आपके भीतर रोमांस न जागे ऐसा तो हो नहीं सकता?! संगीता नग्न अवस्था में अब भी मेरी बाहों में थी इसलिए मैंने मौके का फायदा उठाते हुए अपने कामदण्ड को भेदन कार्य में लगा दिया| अभी आधा रास्ता तय हुआ था की संगीता की जाग खुल गई, मुझे अपने ऊपर झुका हुआ देख संगीता के चेहरे पर मुस्कान फ़ैल गई; "आप न बड़े शैतान हो!" संगीता मुझे प्यारभरा उल्हाना देते हुए बोली| फिर संगीता ने अपने दोनों हाथों का हार मेरे गले में डाल दिया और मुझे अपने से चिपका लिया| प्यार का बवंडर फिर उठा और 6 बजे जा कर ये बवंडर थमा| जब ये बवंडर थमा तो संगीता मुझे उल्हाना देते हुए बोली; "आपकी सुबह तो मज़ेदार हो गई मगर मेरी तो हालत खराब कर दी न आपने! अब सोओ आराम से!" संगीता थोड़ा पिनकते हुए उठी और फटाफट तैयार होकर बच्चों को जगाने चली गई|

[color=rgb(26,]अब आगे:[/color]

मेरी
आरज़ू पूरी हो चुकी थी इसलिए मैं अपने कपड़े पहन कर आराम से सो गया, लेकिन मेरी नींद कुछ ही देर में स्तुति के रोने के कारण टूट गई| स्तुति की नींद मेरी नामौजूदगी के कारण टूटी थी इसलिए स्तुति ने रो-रो कर कोहराम मचा दिया था| संगीता मेरी प्यारी बिटिया को अपनी गोदी में ले मेरे पास लाई ताकि मैं स्तुति को लाड कर चुप करवाऊँ| जैसे ही संगीता, स्तुति को ले कर कमरे के द्वार पर पहुँची, वैसे ही अपनी बेटी का रोना सुन मैं एकदम से उठ बैठा|

संगीता ने स्तुति को मेरी ओर बढ़ाया मगर मुझे देखते ही मेरी बेटी का रोना थम गया! स्तुति अपनी रोने से भीगी आँखों को बड़ा कर के मुझे देखना शुरू कर दिया था! उसे समझ नहीं आ रहा था की ये अनजान आदमी कौन है जो उसे गोदी लेने के लिए बाहें फैलाये बैठा है?

दरअसल, रात में जो मैंने अपनी अपनी दाढ़ी साफ़ की थी उस कारण मेरी प्यारी बिटिया मुझे पहचान नहीं पा रही थी! इधर रात में और सुबह की गई 'मेहनत' के कारण मैं ये भूल चूका था की दाढ़ी काटने से मेरी सूरत बदल चुकी है इसलिए स्तुति मुझे पहचान नहीं रही और मेरी गोदी में नहीं आ रही| हाँ मुझे थोड़ी हैरानी हो रही थी की स्तुति मुझे यूँ आँखें बड़ी कर के क्यों देख रही है?! "मेरा बच्चा" मैंने स्तुति को पुकारा तथा अपनी गोदी में आने के लिए प्यारभरा आग्रह किया| आज पहलीबार मुझे स्तुति को गोदी लेने के लिए इस तरह आग्रह करना पड़ रहा था| उधर मेरी बेचारी बिटिया रानी अब भी आँखें बड़ी किये मुझे देख रही थी और पहचानने की कोशिश कर रही थी| अब सोचने वाली बात है, अगर आपने 6 महीने लगा कर एक सवाल का जवाब याद किया हो और परीक्षा वाले दिन वो सवाल ही बदल दिया जाए तो आपका क्या हाल होगा? वही हाल बेचारी स्तुति का भी था! बेचारी नन्ही सी जान ने इतने मुश्किल से आँखें बड़ी कर के मुझे रोज़-रोज़ देख कर मेरा चेहरा अपने मन-मस्तिष्क में बिठाया था मगर मेरे दाढ़ी साफ़ करते ही मेरी सूरत बदल गई तथा मेरी बिटिया भर्मित हो गई थी!

जब स्तुति मेरी गोदी में नहीं आई तो मैंने सोचा की कुछ तो गड़बड़ है जो स्तुति मेरी गोदी में नहीं आ रही| स्तुति की नज़रें मेरे चेहरे पर थी इसलिए स्तुति की नजरों का पीछा करते हुए मैंने अपने गालों को छुआ और तब मुझे याद आया की मैंने कल रात को अपनी दाढ़ी साफ़ कर दी थी! बिटिया की माँ को खुश करने के चक्कर में, मैंने अपनी बिटिया को दुखी कर दिया था!

"बेटा...मैं हूँ...आपका पापा" मैंने स्तुति का ध्यान अपनी ओर खींचते हुए पुकारा तो मुझे एक अनजान आदमी समझ घबरा कर स्तुति रो पड़ी! मुझसे कभी अपने बच्चों के आँसूँ नहीं देखे जाते थे इसलिए मैं चिंतित हो कर संगीता को देखने लगा| मेरी चिंता समझ संगीता, स्तुति को समझाने लगी; "बेटा...ये आपके पापा हैं..." संगीता ने स्तुति को समझाते हुए बात शुरू की मगर स्तुति ने घबराकर और जोर से रोना शुरू कर दिया था|

मुझसे स्तुति का रोना बर्दाश्त नहीं हुआ और मैंने जबरन स्तुति को गोदी में लिया तथा उसके दाहिने हाथ में अपनी ऊँगली पकड़ा दी| "बेटा, सॉरी मैंने बिना आपसे पूछे अपनी दाढ़ी काट दी! आगे से मैं कभी अपनी दाढ़ी नहीं काटूँगा! हफ्ते दस दिन में मेरी दाढ़ी फिर उग जाएगी और आप मेरी दाढ़ी से फिर खेल पाओगे!" मैंने स्तुति को बहलाते हुए कहा और स्तुति को लाड कर उसके सर को चूमने लगा|

मेरे सीने से लग, मेरी ऊँगली थाम और मेरी आवाज़ को पहचानते हुए स्तुति के दिल को इत्मीनान आ रहा था की मैं उसका पापा ही हूँ इसलिए स्तुति धीरे-धीरे चुप हो गई| जब मैंने संगीता की तरफ देखा तो वो आँखों में प्यारभरा गुस्सा ले कर मुझे देख रही थी| दरअसल, स्तुति को चुप कराने के लिए मैंने कभी दाढ़ी न काटने की बात कही थी, जिससे संगीता मुझसे नाराज़ हो गई थी! "ये दाढ़ी मैंने बस आज, हमारी शादी की सालगिरह पर तुम्हें खुश करने के लिए काटी थी| ये मत सोचना की मैं अब कभी दाढ़ी नहीं उगाऊँगा!" मैंने संगीता को प्यार से समझाया और स्तुति के सर को चूमने लगा|

इतने में आयुष कमरे में प्रकट हुआ और उसकी नज़र सबसे पहले पड़ी मेरे नंगे गालों पर जिस पर उसकी मम्मी के दाँतों के निशान पड़े थे! "पापा जी, आपकी दाढ़ी कहाँ गई? और ये आपके गाल पर निशान कैसे हैं?" आयुष का सवाल सुन, संगीता की शर्म के मारे हालत खराब हो गई और वो मुँह छुपा कर कमरे से बाहर दौड़ गई| "बेटा ये निशान आपकी छोटी बहन ने बनाये हैं!" मैंने संगीता की करनी का सारा दोष अपनी निर्दोष बिटिया पर डालते हुए प्यारा सा झूठ बोला| स्तुति कुछ बोल तो सकती नहीं थी, जो वो कहती की मैं निर्दोष हूँ, लेकिन आयुष बहुत जिज्ञासु था इसलिए आयुष तुरंत सवाल करते हुए बोला; "लेकिन पापा जी, स्तुति के दाँत तो है ही नहीं?" अपने बेटे के इस होशियारी से भरे सवाल को सुन शर्माने की बारी मेरी थी!

हर बार की तरह मुझे शर्म से बचाने के लिए मेरी बेटी नेहा प्रकट हो गई, मेरे गाल देख नेहा सारा हाल समझ गई| "चुप कर! जा कर स्कूल के लिए तैयार हो!" नेहा ने बड़ी बहन होते हुए आयुष को डाँट लगाई| अपनी दीदी की डाँट सुन आयुष ने मेरे गाल पर सुबह की गुड मॉर्निंग वाली पप्पी दी और स्कूल के लिए तैयार होने को दौड़ गया| आयुष के जाने के बाद नेहा आयुष की शिकायत करते हुए बोली; "इस बुद्धू को बता करने की ज़रा भी तमीज़ नहीं!" नेहा, आयुष पर थोड़ा गुस्सा होते हुए बोली| "कोई बात नहीं बेटा, मेरी लाज रखने के लिए मेरी प्यारी-प्यारी बिटिया जो है!" मैंने नेहा की तारीफ की तो मेरी लाजवंती बिटिया आ कर मुझसे लिपट गई| सच में मेरी प्यारी बिटिया नेहा बहुत समझदार थी और हमेशा मुझे शर्मिंदा होने से बचा लेती थी| नेहा ने भी मुझे सुबह की गुड मॉर्निंग वाली पप्पी दी और मेरे गालों पर अपनी मम्मी द्वारा बनाये निशानों को देख खिलखिलाती हुई बहार दौड़ गई| मेरी बिटिया को आज मेरी ये दशा देख कर बहुत मज़ा आया था!

अब कमरे में बस हम बाप-बेटी रह गए थे, स्तुति मेरी गोदी में जाग रही थी और अपनी आँखें बड़ी कर के मुझे ही देख रही थी, मानो मेरा ये नया चेहरा याद कर रही हो| मैंने स्तुति का छोटा सा हाथ पकड़ कर अपने नरम-नरम गाल पर स्पर्श करवाया तो स्तुति के चेहरे पर मुस्कान खिल गई| अब चूँकि मेरे गालों पर बालों की परत नहीं थी तो ऐसे में अपनी लाड़ली बिटिया की पहली पप्पी तो बनती थी| मैं अपना गाल जब स्तुति के गुलाब की पंखुड़ियों जैसे होठों के सामने लाया, तो स्तुति ने अपने एक हाथ से मेरा कान पड़ा और दूसरे हाथ से मेरी नाक पकड़ी तथा अपने होंठ मेरे गाला से भिड़ा दिए| मेरे गाल पर अपने होंठ भिड़ा कर स्तुति को बड़ा मज़ा आया और स्तुति के मुख से ख़ुशी की किलकारियाँ फूटने लगीं!

इतने में पीछे से संगीता आ गई और स्तुति को मेरे गाल पर पप्पी करते देख खुश होते हुए बोली; "अब तो स्तुति को भी आपके मुलायम गाल पसंद हैं, देखो कितने प्यार से आपको पप्पी दे रही है!" संगीता जानती थी की अगर उसने कहा की मैं दाढ़ी न उगाऊँ तो मैं उसकी बता नहीं मानूँगा इसलिए संगीता ने स्तुति को आगे किया क्योंकि मैं स्तुति की ख़ुशी के लिए कुछ भी करता| "तुम न अपनी पसंद मेरी लाड़ली बिटिया पर मत थोपो! है न स्तुति बेटा?" मैंने संगीता को प्यार से चेताया और अंत में स्तुति से सवाल पुछा जिसके जवाब में स्तुति के मुख से किलकारियाँ निकलने लगीं| अपनी बिटिया की किलकारियाँ सुन संगीता की नाक पर प्यारा सा गुस्सा आ बैठा और संगीता भुनभुनाती हुई बाहर चली गई!

इस डर से की माँ मेरे गालों पर संगीता के काटने के निशान न देख लें मैं सुबह से मैं कमरे में छुपा बैठा था और मैं माँ से मिलने बाहर नहीं निकला था| अंततः माँ ही मुझे पुकारती हुई कमरे में आईं, माँ को कमरे में देख मैंने उनसे थोड़ी दूरी बनाई तथा स्तुति को इस तरह गोदी में लिया की मेरा एक गाल छुप गया| उधर माँ की नज़र पड़ी मेरे दाढ़ी रहित गालों पर और माँ दरवाजे पर से ही बोलीं; "अरे वाह! आखिर तूने दाढ़ी काट ही दी!" शुक्र है की दूरी होने के कारण माँ मेरे गालों की दुर्दशा नहीं देख पाईं| फिर माँ ने देखा की स्तुति मेरे नरम गाल पर अपने होंठ टिकाये हुए है; "अच्छा...तो ये दाढ़ी तूने अपनी बिटिया की पप्पी पाने के लिए काटी है!" माँ मुझे प्यारभरा उल्हाना देते हुए बोलीं| अब मैं क्या जवाब देता, मैं तो बस मुस्कुरा कर टहलते हुए माँ से दूर रहा ताकि माँ मेरे गाल पर बने दाँतों के निशान न देख लें|

पीछे से दोनों बच्चे आ गए, नेहा कमरे के हालात देख कर कुछ-कुछ समझ गई थी इसलिए नेहा ने अपनी समझदारी दिखाते हुए बात बनाई; "दादी जी, हमारी स्कूल वैन आ गई होगी| प्लीज चलो न हमें छोड़ने!" मेरी बजाए माँ के साथ स्कूल जाने में आयुष को अधिक लालच था क्योंकि माँ आयुष को चॉकलेट खरीदकर देती थीं| मैं नेहा की चपलता समझ गया और मुस्कुराते हुए नेहा को मूक धन्यवाद दिया|

माँ और बच्चे निकले तो मैं स्तुति को गोदी में लिए हुए संगीता के पास पहुँचा; "ये जो कल तुमने रात को मेरे मना करने के बावजूद मेरे गालों पर 'चित्रकारी'' बनाई है न, अगर माँ ने ये 'चित्रकारी' देख ली तो दोनों को डाँट पड़ेगी इसलिए अब तुम्हें कैसे भी कर के माँ को मुझसे दूर अपनी बातों में व्यस्त रखना है|" मैंने संगीता को हिदायत दी और अपने कमरे में लौट आया| जबतक बच्चे स्कूल से लौट नहीं आये तबतक संगीता ने माँ को अपनी बातों में उलझाए रखा| मैं भी तबतक खाली नहीं बैठा, स्तुति को अपनी गोदी में ले कर घर में माँ से दूर घूमता रहा, कभी स्तुति को नहलाता, उसकी तेल मालिश करता, साइट पर फ़ोन कर काम का जायज़ा लेता, कभी स्तुति के साथ खेलने लगता|

जैसे ही बच्चे स्कूल से लौटे, दोनों दौड़ते हुए मेरे पास आये और मुझसे लिपट गए| स्तुति अब सो चुकी थी इसलिए मैंने दोनों बच्चों को गोदी लिया और खूब लाड-प्यार किया| नेहा तो मेरी गोदी से उतरी और नहाने चली गई मगर आयुष मुझसे लिपटा रहा| माँ ने जब मुझे आयुष को गोदी लिए हुए देखा तो वो बोलीं; "हे भगवान! आयुष तो हूबहू तेरे जैसा दिखता है!" दरअसल दाढ़ी काटने के बाद मेरा असली चेहरा सामने आया था और हम बाप-बेटे को इस तरह कोई भी अगर देखता तो यही कहता की हम दोनों एक जैसे दिखते हैं| बाप-बेटे होने का इससे बड़ा सबूत क्या हो सकता था की मेरा बेटा हूबहू मेरे जैसा दिखता है| इधर माँ की बात सुन हम बाप-बेटा एक दूसरे को देखने लगे; "पापा जी, मैं तो बिलकुल आपके जैसा दिखता हूँ!" आयुष बड़े गर्व से बोला और मेरे गाल पर पप्पी दी| किसी भी बच्चे को कहा जाए की वो बिलकुल अपने माँ-बाप जैसा दिखता है तो उस बच्चे को खुद पर बहुत गर्व होता है, यही गर्व इस समय आयुष महसूस कर रहा था|

दोपहर का खाना खाने के बाद माँ ने सभी को बैठक में बैठने को कहा, अब मुझे अपनी दशा माँ से छुपानी थी इसलिए मैं स्तुति को गोदी में लिए टहलने लगा| माँ ने जब मुझे बैठने को कहा तो मैंने बहाना बनाते हुए कहा; "मैं टहलूँगा नहीं तो स्तुति जाग जाएगी| आप बात शुरू करो!" माँ ने आखिर बात शुरू की; "आज तुम दोनों की शादी की सालगिरह है इसलिए शाम को हम सब मंदिर जायेंगे| फिर वापसी में हम सब खाना खाने किसी अच्छी सी जगह जायेंगे!" माँ ने जब अपने द्वारा बनाया हुआ प्लान बताया तो बच्चे बहुत खुश हुए, लेकिन मेरे और संगीता के चेहरे पर बारह बज गए!

सुबह से मैं घर में छुपा हुआ था ताकि अपने गालों की दुर्दशा सबसे छुपा सकूँ, परन्तु जब माँ ने बाहर जाने की बात कही तो मैं समझ गया की अब मेरा ये राज़ सबके सामने खुल जायेगा| मैं और संगीता इस डर से सहम गए थे और एक दूसरे की शक़्लें देख रहे थे| उधर माँ ने जब हम दोनों मियाँ-बीवी को एक दूसरे की शक़्लें ताकते हुए देखा तो उन्होंने इसका कुछ अलग ही मतलब निकाला;

माँ: तुम्हारे शादी की सालगिरह और तुम्हें ही याद नहीं?!

माँ ने भोयें सिकोड़ते हुए पुछा तो हम दोनों मियाँ-बीवी के सर झुक गए| अब उन्हें क्या पता की हम दोनों ने अपनी शादी की सालगिरह कल रात ही मना ली!

आयुष: दादी जी, शादी की सालगिरह क्या होती है?

आयुष ने बीच में बोलकर अपना सवाल पूछ माँ का ध्यान भटका दिया| माँ ने आयुष को शादी की सालगिरह का मतलब समझाया दिया और इसी के साथ माँ द्वारा बुलाई गई ये सभा समाप्त हुई!

माँ तो बच्चों को ले कर सोने चली गईं और इधर मैं और संगीता इस सोच में पड़ गए की मेरे गालों पर बने दाँतों के निशान मिटायें कैसे? संगीता ने अपने दाहिने हाथ के अंगूठे से मेरे दाहिने गाल पर रगड़ना शुरू किया परन्तु इसका अधिक फायदा नहीं हुआ| "जानू, मेरे पास थोड़ा सा मेकअप का सामान है, उसे आपके गाल पर लगा कर निशान छुपा कर देखूँ?" संगीता उत्साहित होते हुए बोली| गौर करने वाली बात ये है की संगीता को मेकअप करना आता नहीं था, उसने आजतक बस फेस-पाउडर ही लगाया था!

'मुझे माफ़ करो मैडम जी! कल रात पहले ही आपने ये 'चित्रकारी' की है, अब मेकअप कर के मेरे चेहरे को ऑक्शन में बिकने वाली पेंटिंग मत बनाओ!" मैंने संगीता के आगे हाथ जोड़ते हुए कहा| मेरी बात से संगीता ने अपना निचला होंठ फुलाया और प्यारभरे गुस्से से मुझे देखने लगी| इधर मैंने अपना बेसर-पैर का आईडिया लगाया और बाथरूम में घुस चेहरे पर फेसवाश लगा कर दोनों गाल रगड़ने लगा| 10 मिनट की रगड़ाई के बाद निशान कुछ कम हुए परन्तु मेरे गाल रगड़ने के कारण लाल हो गए! संगीता ने जब मेरे दोनों गाल लाल देखे तो वो हैरान रह गई, परन्तु मेरे डर के मारे कुछ नहीं बोली|

शाम को हम सभी तैयार हुए और घर से सीधा मंदिर के लिए निकले| रास्ते में माँ, संगीता और दोनों बच्चे सबसे आगे थे, जबकि हम बाप-बेटी (मैं और स्तुति) पीछे आराम से चल रहे थे| स्तुति आज पहलीबार यूँ मेरी गोदी में बाहर निकली थी इसलिए अपने आस-पास इतने सारे लोगों को देख, शोर-शराबा सुन बहुत उत्सुक थी| मंदिर पहुँच हम सभी ने आरती में हिस्सा लिया और आरती समाप्त होने के बाद जब मैं स्तुति को पंडित जी का आशीर्वाद दिलवा रहा था तब माँ ने मेरे गालों की दुर्दशा नज़दीक से देख ली| "ये क्या हुआ तेरे दोनों गालों को? ये लाल-लाल निशान कैसे हैं?" माँ ने भोयें सिकोड़ते हुए सवाल पुछा| मैं कुछ जवाब दूँ उससे पहले ही संगीता बोल पड़ी; "स्तुति के नाखून बड़े हो गए हैं, दाढ़ी न होने से दिन भर ये शैतान इनके (मेरे) गालों को नोच रही थी!" संगीता ने सारा दोष बेचारी स्तुति के सर मढ़ते हुए कहा| अब अगर मेरी बिटिया अपनी मम्मी की बात समझ पाती और बोल पाती तो वो अभी बोल पड़ती; 'झूठ क्यों बोल रही हो मम्मी, करनी सारी आपकी और दोष मुझ बेचारी के सर मढ़ रही हो!' लेकिन मेरी लाड़ली कुछ समझी नहीं, वो तो मंदिर में लगी भगवान की प्रतिमा देखने में व्यस्त थी| माँ भी उस वक़्त खुशियों में व्यस्त थीं इसलिए उन्होंने भी संगीता की बातों पर ज्यादा ध्यान नहीं दिया|

खाना खा के आखिर हम सब घर लौटे, इतने में दिषु का फ़ोन आ गया और उसने हम दोनों मियाँ-बीवी को आज के दिन की बधाई दी| दरअसल दिषु दिल्ली से बाहर था और अभी-अभी घर पहुँचा था इसलिए वो इतनी देर से बधाई दे रहा था| "कोई बात नहीं भैया!" संगीता बीच में बोली और हमारी बात खत्म हुई| बच्चे तो माँ के पास सो गए, रह गए हम मियाँ-बीवी और स्तुति| स्तुति दिन में सोइ थी इसलिए अभी स्तुति ने करनी थी मस्ती, मेरे गालों पर हाथ फिराते हुए स्तुति की किलकारियाँ गूँजने लगी थी| अब संगीता का मन था प्रेम-मिलाप का मगर स्तुति सोये तब न?! "सो जा मेरी माँ! कितना हल्ला करेगी अब?!" संगीता ने स्तुति के आगे हाथ जोड़ते हुए प्यार भरे गुस्से से कहा| अब स्तुति को कहाँ कुछ समझ आना था, उसने तो बस अपनी मम्मी की कही बात पर खिखिलाकर हँसना शुरू कर दिया| अपनी बेटी के मज़ाक उड़ाने पर संगीता को प्यारभरा गुस्सा आ गया और वो स्तुति से बोली; "अच्छा...अब आना मेरे पास दूध पीने! अपने पापा जी से कहिओ की वो ही तुझे दूध पिलाएँ!" इतना कह संगीता मुँह फुला कर, पलंग पर आलथी-पालथी मारकर बैठ गई| इधर मेरी प्यारी बिटिया आज फुल मूड में थी, स्तुति की किलकारियाँ खत्म होने का नाम ही नहीं ले रहीं थीं! ऐसा लगता था मानो स्तुति को अपनी मम्मी का मज़ाक उड़ाने में बहुत मज़ा आ रहा है|

बड़ी मुश्किल से स्तुति को गोदी में लिए हुए लाड करके मैंने सुलाया, उधर जबतक स्तुति सो नहीं गई तब तक संगीता मुँह फुलाये पलंग पर आलथी-पालथी मार के बैठी रही| स्तुति को सुला कर मैंने पलंग पर अपनी जगह लिटाया और फिर शुरू हुआ हमारा प्रेम-मिलाप| संगीता का सारा ध्यान मेरे गाल पर ही था मगर इस बार वो मेरे गालों पर जोर से नहीं काट रही थी| हर बार मेरे गाल काटने के बाद संगीता काटी हुई जगह पर अपनी हथेली से साथ के साथ रगड़ भी रही थी| मुझे याद है, यही टोटका संगीता तब भी अपनाती थी जब मैं गाँव में था| खैर, इस बार प्रेम-मिलाप अधिक लम्बा नहीं चला क्योंकि स्तुति की नींद सुसु करने के कारण खुल गई थी इसलिए जल्दी-जल्दी में सब 'काम' निपटा कर हम सो गए!

उस दिन से हमारी ये प्रेम-मिलाप की गाडी निरंतर चल पड़ी, सबसे मज़े की बात ये थी की हमारा ये प्रेम-माँ की चोरी से होता था और हमें भी इस तरह चोरी-छुपे प्रेम करने में बड़ा मज़ा आता था|

शादी की सालगिरह के बाद दिन ऐसे बीते की संगीता का जन्मदिन नज़दीक आ गया| मैं उस दिन के लिए कोई खुराफाती आईडिया सोचूँ, उससे पहले ही संगीता ने मुझे चेता दिया; "खबरदार जो आपने इस बार आपने मेरे जन्मदिन वाले दिन मुझे जलाने के लिए कोई काण्ड किया तो! मुझे मेरे जन्मदिन पर क्या चाहिए ये मैं बताऊँगी!" आगे संगीता ने जो माँग रखी उसे सुन कर मेरे तोते उड़ गए!
[color=rgb(163,]जारी रहेगा भाग - 17 में...[/color]
 

[color=rgb(44,]इकत्तीसवाँ अध्याय: घर संसार[/color]
[color=rgb(251,]भाग - 17[/color]


[color=rgb(71,]अब तक अपने पढ़ा:[/color]

शादी की सालगिरह के बाद दिन ऐसे बीते की संगीता का जन्मदिन नज़दीक आ गया| मैं उस दिन के लिए कोई खुराफाती आईडिया सोचूँ, उससे पहले ही संगीता ने मुझे चेता दिया; "खबरदार जो आपने इस बार आपने मेरे जन्मदिन वाले दिन मुझे जलाने के लिए कोई काण्ड किया तो! मुझे मेरे जन्मदिन पर क्या चाहिए ये मैं बताऊँगी!" आगे संगीता ने जो माँग रखी उसे सुन कर मेरे तोते उड़ गए!

[color=rgb(26,]अब आगे:[/color]

संगीता
: मुझे न...वो ट्राय (try) करना है!

संगीता शर्म से सर झुकाते हुए अपनी साडी का पल्लू अपनी ऊँगली पर लपेटते हुए बोली|

मैं: क्या ट्राय करना चाहती हो?

मैंने भोयें सिकोड़ कर पुछा| संगीता ने जब 'ट्राय' करने की बात कही तो मैं समझ गया की जर्रूर संगीता का मन जरूर कुछ नया करने का है मगर क्या ये मैं समझ नहीं पा रहा था|

संगीता: वो...

संगीता नजरें झुकाये हुए बोली और फिर अपनी बात अधूरी छोड़ कर अपने पॉंव के अँगूठे से फर्श कुरेदने लगी| संगीता को इस तरह लजाते हुए देख मैं समझ गया की जर्रूर कोई खुराफात संगीता के मन में पक रही है!

मैं: कुछ बताओ भी?

मैंने जिज्ञासु होते हुए पुछा|

संगीता: वही...

संगीता शर्माए जा रही थी और बातों को गोल-गोल घुमाने की कोशिश कर रही थी| घुमा-फिरा कर बात कहना कोई इन औरतों से सीखे!

संगीता: वही!

संगीता ने अपनी आँखें गोल नचाते हुए कहा| संगीता की इस बात में मैंने शरारत भाँप ली थी, लेकिन उसके बात साफ़-साफ़ न कहने से मैं बेसब्र हुआ जा रहा था|

मैं: यार साफ़-साफ़ बोलो न क्या चाहिए?

मैंने थोड़ा चिढ़ते हुए कहा, आखिर एक आदमी कब तक जलेबी सी गोल बात को समझने की कोशिश करता?! मुझे बेसब्र देख संगीता ने अपने फ़ोन में कुछ टाइप किया और फ़ोन मेरी तरफ घुमा दिया|

"Fifthbase" (ANAL SEX) संगीता के मोबाइल में लिखे इन शब्दों को पढ़ मेरी आँखें फटी की फटी रह गईं! मोबाइल में ये शब्द पढ़ कर जब मैंने संगीता की तरफ देखा तो वो लाजवंती बनी सर झुकाये खड़ी थी!

मैं: ये...तुम्हें...ये ट्राय करना है?

मैंने लड़खड़ाती हुई जुबान से संगीता से प्रश्न किया| मेरा सवाल सुन संगीता ने नजरें उठाईं और मेरी नजरों से मिलाते हुए बोली;

संगीता: हाँ!

इस एक शब्द को कहते हुए संगीता के दोनों गाल लालम-लाल हो चुके थे| शर्म की ये लालिमा हर पल बढ़ रही थी और संगीता के पूरे चेहरे को अपनी गिरफ्त में ले रही थी|

संगीता की ये माँग सुन कर मैंने अपना सर पीट लिया और कुर्सी पर बैठ कर सोचने लगा| मुझे शुरू से ही सम्भोग के इस प्रकार से नफरत रही है, कारण है स्त्री के दूसरे द्वार को भेदन के समय उसे होने वाला दर्द असहनीय होता है| अब मुझे तो संगीता के चेहरे पर हलकी सी दर्द की लकीर देख कर ही चिंता होने लगती थी तो मैं भला इस 'काम' को करने के बारे में सोचना भी नहीं चाहता था| दूसरी बात ये की मुझे इस क्रिया से शुरू से ही घिन्न आती थी तो मैं स्वार्थी हो कर ये क्रिया करना ही नहीं चाहता था|

वहीं संगीता ने जब मेरी ये प्रतिक्रिया देखि तो उसने सोचा की गया उसका प्लान पानी में इसलिए संगीता ने मुझे मनाने के लिए अपने तर्क लगाने शुरू कर दिए;

संगीता: पति-पत्नी के जीवन में कुछ न कुछ नयापन अवश्य होना चाहिए वरना दोनों जल्दी ही ऊब जाते हैं|
मैं संगीता की सारी होशियारी जानता था इसलिए मैंने संगीता को अपनी बातों में उलझा कर भर्मित करने की सोची;

मैं: तो क्या तुम मुझसे ऊब चुकी हो?

मैंने भोयें सिकोड़ कर संगीता की बात बीच में काटते हुए कहा| मेरे पूछे इस सवाल से बेचारी संगीता हड़बड़ा गई और बोली;

संगीता: नहीं-नहीं, मेरा वो मतलब नहीं था| आप मुझे गलत समझ रहे हो, मेरा कहने का मतलब था की हमारे प्रेम-मिलाप के समय हमें कुछ न कुछ नया ट्राय करते रहना चाहिए!

संगीता अपनी बात को स्पष्ट करते हुए बोली|

मैं: क्या जर्रूरत है कुछ नया लाने की, सब कुछ ठीक से चल तो रहा है?!

मैंने संगीता को उलझाने के लिए उसकी कही बात को खींचना चाहा|

संगीता: सब ठीक चल रहा है मगर मैं कुछ नयापन चाहती हूँ!

संगीता चिढ़ते हुए बोली क्योंकि मैं उसे उसकी बात पूरी करने ही नहीं दे रहा था|

संगीता: आप ही ने मुझे पोर्न देखने की आदत लगाई थी न, उन्हीं दिनों मैंने 'ये' वाला पोर्न भी देखा था और अब मुझे ये ट्राय करना है!

संगीता नाराज़ होते हुए बोली| संगीता ने बड़ी चालाकी से अपनी ये इच्छा पैदा होने का सारा दोष मेरे सर पर मढ़ दिया था| मैं ये तो जानता था की संगीता को पोर्न देखना सीखा कर मैंने अपने ही जीवन में एक बम प्लांट कर दिया है जो टिक-टिक कर कभी न कभी मेरे मुँह पर ही फटेगा मगर ये बम इतनी जोर से फटेगा की मेरी ही फटने लगेगी इसका मुझे नहीं पता था!

अब जब सारा दोष मेरे सर मढ़ा जा चूका था तो समय था संगीता को प्यार से समझाने का;

मैं: जान समझने की कोशिश करो, मुझे 'वो' पसंद नहीं!

मैं आगे कुछ कहता उससे पहले ही संगीता मेरी बात काटते हुए बोली;

संगीता: आपने आजतक कभी 'वो' ट्राय किया है?

संगीता भोयें सिकोड़ कर मुझसे बोली, मैंने तुरंत अपनी गर्दन न में हिलाई|

संगीता: तो फिर एक बार ट्राय करने में क्या हर्ज़ है?

संगीता थोड़ा चिढ़ते हुए बोली|

मैं: क्योंकि इट विल बी वैरी पेनफुल फॉर यू एंड आई कांट सी यू इन पैंन! (It will be very painful for you and I can't see you in pain!)

मैंने एकदम से अपनी भड़ास निकालते हुए कहा| मेरी बात सुन संगीता के चेहरे पर प्यारभरी मुस्कान आ गई क्योंकि वो जानती थी की मेरे उसे बार-बार मना करने का कारण क्या है?! उसे बस मेरे मुँह से यही बात सुननी थी|

संगीता: जानू, मुझे कुछ नहीं होगा! थोड़ा बहुत दर्द तो होता ही है न?!

संगीता ने मुझे प्यार से समझाना चाहा और बात को बड़े हलके में लिया|

मैं: थोड़ा नहीं, बहुत दर्द होगा!

मैंने भोयें चढ़ाते हुए कहा|

संगीता: नहीं होगा! मैंने सारी रिसर्च कर रखी है| मुझे सब पता है!

संगीता बड़े आत्मविश्वास से बोली| मैं अपनी कोई दलील देता उससे पहले ही संगीता मुझे हुक्म देते हुए बोली;

संगीता: आई वांट माय बर्थडे प्रेजेंट एंड यू आर गोइंग तो गिव इट टू मि! (I want my birthday present and you are going to give it to me!)

संगीता मुझे हुक्म देते हुए बोली और उठ कर चली गई| वो मुझसे नाराज़ नहीं थी बस अपनी जिद्द पर अड़ी थी|

मैं संगीता की जिद्द को जानता था, वो एक बार अपनी जिद्द पर अड़ जाती थी तो फिर पीछे नहीं हटती थी|

'शादी के बाद पतियों की कहाँ चलती है|' इसी बात को सोचते हुए मैंने हार मान ली और अपना ध्यान स्तुति के साथ खेलने में लगा दिया| हाँ मन ही मन मैं ये जर्रूर उम्मीद कर रहा था की संगीता के सर पर से ये भूत अपने आप उतर जाए|

संगीता के जन्मदिन से एक दिन पहले की बात है, मैं स्तुति को ले कर बैठक में बैठा कार्टून देख रहा था जब दोनों बच्चे आ कर मेरे अगल-बगल बैठ गए| "पापा जी, कल मम्मी का जन्मदिन है!" आयुष खुश होते हुए बोला| तभी नेहा उसकी बात काटते हुए बोली; "पापा जी को सब पता है, तुझे याद दिलाने की कोई जर्रूरत नहीं| पापा जी ने तो कल के दिन मम्मी को सरप्राइज देने की प्लानिंग भी कर ली होगी|" नेहा जानती थी की जन्मदिन को ले कर मैं बहुत उत्सुक रहता हूँ और उसे विश्वास था की मैंने पहले ही कल के दिन की तैयारी कर रखी है|

"बेटा जी, इस बार हम आपकी मम्मी को सरप्राइज नहीं दे पाएंगे, क्योंकि आपकी मम्मी जी को न केवल अपना जन्मदिन याद है बल्कि उन्होंने मुझे साफ़ कहा है की मैं उन्हें तड़पाने के लिए कोई प्लानिंग नहीं कर सकता|" मैंने थोड़ा निराश होते हुए कहा| मेरी बातों से तीनों बच्चे निराश हो गए थे, लेकिन आयुष थोड़ा ज्यादा निराश था क्योंकि उसे केक खाने को नहीं मिलने वाला था| "बेटा, निराश नहीं होते| मम्मी ने सरप्राइज देने से मना किया है न पार्टी करने से तो मना नहीं किया न?!" ये कहते हुए मैंने तीनों बच्चों को अपना सारा प्लान बताया| स्तुति को भले ही कुछ समझ न आता हो मगर वो मेरी बातें बड़ी गौर से सुनती थी और मुस्कुरा कर अपनी हामी भी भर देती थी|

रात को खाना खा कर सोने की बरी आई तो दोनों बच्चे मुझसे कहानी सुनते हुए माँ के पास सो गए| जब मैं कमरे में आया तो संगीता के चेहरे पर शैतानी मुस्कान थी, ये मुस्कान इसलिए थी क्योंकि आज संगीता की इच्छा पूरी होने वाली थी! संगीता ने आँखों के इशारे से मुझे जल्दी से बिस्तर पर आने को कहा, लेकिन मेरी गोदी में थी स्तुति और उसकी मस्तियाँ जारी थीं! "जल्दी से सुलाओ इस शैतान को और जल्दी से पलंग पर आओ!" संगीता मुझे प्यार से डाँटते हुए बोली| अपनी मम्मी की प्यारभरी डाँट सुन कर स्तुति को जैसे मज़ा आ गया था इसलिए स्तुति की किलकारियाँ गूँजने लगीं| इधर मेरा मकसद स्तुति को जगाये रखना था इसलिए मैंने स्तुति के साथ खेलना शुरू कर दिया| कभी मैं स्तुति के हाथों को चूमता तो कभी स्तुति के पैरों को| कभी अपने होंठ गोल कर आवाज़ निकालता, ये देख स्तुति मेरे गोल होंठों को पकड़ने के लिए अपने हाथ उठा देती| मेरे गालों पर थोड़े-थोड़े बाल आने लगे थे और स्तुति को मेरे गालों पर हाथ फेरने में बड़ा मज़ा आता था इसलिए स्तुति मेरे दोनों गालों पर अपने हाथ फेरने लगी तथा बीच-बीच में मेरे गालों को अपनी छोटी सी मुठ्ठी में कैद करने की कोशिश करने लगी|

रात के पौने बारह बजे तक संगीता नाक पर प्यारा सा गुस्सा ले कर मेरा स्तुति के साथ ये खेल देखती रही और जब उसका सब्र जवाब दे गया तो वो चिढ़ते हुए बोली; "सब जानती हूँ! ये सब आप जानबूझ कर रहे हो ताकि आपको मेरी इच्छा पूरी न करनी पड़े!" इतना कह संगीता मुँह फेर कर लेट गई| घड़ी में बारह बजने में अभी 15 मिनट थे और मैं संगीता को अभी से नाराज़ नहीं करना चाहता था| मैं स्तुति को गोदी ले कर संगीता के पास पहुँचा और संगीता के मस्तक को चूमते हुए बोला; "जान, तुम्हारी हर ख्वाहिश पूरी करना मेरा धर्म है! अभी तक बारह नहीं बजे हैं, तुम्हारे जन्मदिन का दिन नहीं चढ़ा है| थोड़ा इंतज़ार करो, तुम्हारी इच्छा अवश्य पूरी होगी|" मेरी बात सुन संगीता के चेहरे पर मुस्कान आ गई, उसने ये गुस्सा बस इसलिए किया था ताकि मैं उसे मनाने आऊँ| संगीता लेटे हुए ही मेरी तरफ सरकी तथा हमारे होंठ एक दूसरे से मिल गए| हम दोनों ने धीरे-धीरे एक दूसरे के होठों को बस एक बार ही चखा था की मेरी प्यारी बिटिया जो अभी तक खामोशी से सब देख रही थी उसे ये सब पसंद नहीं आया और उसने अपनी मम्मी की लट के बाल पकड़ कर खींचने शुरू कर दिए! आज पहलीबार मेरी बिटिया ने मुझ पर अपना हक़ जमाया था और अपने पापा जी को अपनी मम्मी से छीन लिया था| स्तुति द्वारा बाल खींचे जाने से संगीता की नाक पर झूठ-मूठ का गुस्सा आ गया; "शैतान!" संगीता ने स्तुति को प्यार से डराना चाहा मगर स्तुति को अपनी मम्मी का ये झूठा गुस्सा देख हँसी आ गई| "पहले नेहा आप पर हक़ जमाती थी, फिर आयुष जमाने लगा और अब ये चुहिया भी आप पर हक़ जमाने लगी!" संगीता बुदबुदाई और दूसरी तरफ मुँह कर के लेट गई|

स्तुति के इस तरह मेरे ऊपर हक़ जमाने से मुझे उस पर बहुत प्यार आ रहा था और मैं बार-बार स्तुति के मस्तक को चूम रहा था| जब मैं थक गया तो स्तुति ने मेरे गाल चूमने की मूक प्रस्तुति की, मैंने फौरन अपने गाल स्तुति के गुलाबी होठों के आगे कर दिए| मेरे गाल पर पप्पी करने का जितना जोश संगीता में था उतना ही जोश मेरी बेटी स्तुति में भी था| स्तुति ने अपने एक हाथ से मेरी नाक पकड़ी और दूसरे हाथ से मेरा कान पकड़ा तथा अपने प्यारे-प्यारे होंठ मेरे गाल से भिड़ा दिए| मेरे गाल से अपने होंठ भिड़ा कर स्तुति के मुख से किलकारियाँ निकलने लगीं, मानो कह रही हो; 'देखो पापा जी, मैंने आपको पप्पी की!'

उधर संगीता भोयें सिकोड़े हम बाप-बेटी का ये लाड देख रही थी और आँखों ही आँखों में मुझे हड़का रही थी; 'आना मेरे पास, फिर बताती हूँ आपको!' थी तो ये संगीता की बिलकुल खोखली धमकी मगर मैं फिर भी डरने का अभिनय कर रहा था और आँखों के इशारे से स्तुति के मस्ती करने का बहना दे कर अपने आपको निर्दोष साबित कर रहा था|

जैसे ही घडी में 11:59 संगीता मुझे किसी मास्टरनी की तरह आदेश देते हुए बोली; "चुप-चाप लेट जाओ अब! मेरा जन्मदिन वाला दिन शुरू होने वाला है!" संगीता का आदेश सुन मैं किसी आज्ञाकारी विद्यार्थी की तरह एकदम से बिस्तर पर लेट गया| मैंने स्तुति को हम दोनों मियाँ-बीवी के बीच में लिटाया, इससे पहले की संगीता पूछे की मैंने स्तुति को हम दोनों के बीच में क्यों लिटाया है मैंने तुरंत संगीता के होठों को अपनी गिरफ्त में ले लिया| मैं जानता था की मेरे पास समय की कमी है इसलिए मैंने अपने चुंबन को छोटा रखा और चुंबन तोड़ते हुए संगीता की आँखों में देखते हुए बोला; "जन्मदिन बहुत-बहुत मुबारक हो जान! तुम्हें मेरी भी उम्र लग जाए!" मेरे मुख से बधाई पा कर संगीता बहुत खुश हुई थी परन्तु मेरे चुंबन इतना जल्दी तोड़ने से वो थोड़ी नाराज़ भी थी! इससे पहले की संगीता मेरे होठों को अपनी गिरफ्त में दुबारा ले पाए, दोनों बच्चे "हैप्पी बर्थडे मम्मी!" चिल्लाते हुए कमरे में घुसे और संगीता के ऊपर कूद पड़े! मैंने फुर्ती दिखाते हुए एकदम से स्तुति को अपनी गोदी में उठाया तथा थोड़ा किनारे सरक गया ताकि बच्चे आराम से अपनी मम्मी को आज के दिन की मुबारकबाद दे सकें|

दोनों बच्चों ने अपनी मम्मी को अपने नीचे दबा दिया था तथा दोनों गालों को चूम-चूम कर बधाई देने लगे| बच्चों का ऐसा बचपना देख कर संगीता को बहुत हँसी आ रही थी और वो बच्चों को रोकना चाहा रही थी; "अच्छा-अच्छा...बस-बस..." मगर बच्चे माने तब न, नेहा और आयुष ने मिल कर अपनी मम्मी का गाल चूम-चूम कर गीला कर दिया था| सच बात बोलूँ तो इस समय मुझे भी वही जलन हो रही थी जो संगीता को होती थी जब वो मुझे बच्चों को पप्पी करते हुए देखती थी| मेरा मन चाह रहा था की मेरे बच्चे मुझे इसी तरह चूमें और प्यार करें! लेकिन मेरे पास स्तुति थी तो मैंने स्तुति के होठों के पास अपने गाल कर दिए, स्तुति ने फौरन मेरे नाक-कान पकड़ कर मेरे गालों को अपनी पप्पी से गीला करना शुरू कर दिया|

उधर जब दोनों बच्चों ने अपनी मम्मी के गाल अपनी पप्पियों से अच्छी तरह से गीला कर दिए तब मैं स्तुति को ले कर संगीता के नज़दीक पहुँचा| "बेटा, आज आपकी मम्मी का जन्मदिन है, चलो अपनी मम्मी को पप्पी दो!" मैंने तुतलाते हुए स्तुति से कहा तो स्तुति अपनी ख़ुशी व्यक्त करते हुए अपने मसूड़े दिखा कर हँसने लगी| मैंने स्तुति को संगीता के गाल दिखाये तो स्तुति ने बिलकुल मेरे गालों की तरह संगीता के गालों को अपनी पप्पी से गीला कर दिया!

अब पप्पियों का आदान-प्रदान हो चूका था इसलिए मैं स्तुति को ले कर उठ गया| जैसे ही मैं दरवाजे तक पहुँचा की संगीता परेशान हो कर मुझे रोकते हुए बोली; "आप कहाँ चल दिए?" संगीता के सवाल में उसकी अपनी इच्छा पूरी करवाने की बेसब्री थी| "अरे भई, आज तुम्हारा जन्मदिन है तो बच्चे तुम्हारे पास सोयेंगे न?!" मैंने मुस्कुरा कर जानबूझ कर संगीता को छेड़ते हुए कहा| संगीता समझ गई की मैं उसे छेड़ रहा हूँ इसलिए वो भी नाक पर प्यारा सा गुस्सा ले कर बोली; "मुझे कहाँ इन शैतानों के साथ छोड़े जा रहे हो?! ये दोनों शैतान मुझे सोने नहीं देंगे!"

"ये तुम जानो और तुम्हारे दोनों शैतान जाने, मैं तो अपनी लाड़ली के साथ सोऊँगा?!" मैंने संगीता को सताते हुए कहा और दोनों बच्चों को चिढ़ाने के लिए स्तुति के गाल चूमने लगा| "और मेरे गिफ्ट का क्या?" संगीता भोयें सिकोड़ कर प्यारभरे गुस्से से बोली| "वो कल रात को मिलेगा!" इतना कह मैं हँसता हुआ कमरे से बाहर निकल गया| मैं जानता था की मेरे इस छोटे से मज़ाक पर संगीता भड़क जाएगी और बच्चों के सोते ही मेरे पास आएगी इसलिए मैं स्तुति को ले कर बच्चों के कमरे में लेट गया|

मैंने स्तुति को लोरी सुनाई जिसे सुनते हुए स्तुति आराम से सो गई| फिर मैं दबे पॉंव माँ के कमरे में घुसा और स्तुति को माँ की बगल में धीरे से लिटा कर वापस बच्चों के कमरे में आ कर लेट गया| मैं जानता था की अपनी इच्छा पूरी करवाने के लिए संगीता बहुत उतावली है और वो चैन से सोने वाली नहीं| संगीता मुझे ढूँढ़ते हुए कहीं माँ के कमरे में न घुसे इसलिए मैंने बच्चों के कमरे में जीरो वॉट का बल्ब पहले ही जला दिया था|

रात के सवा एक हुए थे और संगीता ने बच्चों को अत्यधिक लाड कर सुला दिया था| फिर संगीता दबे पॉंव उठी और मुझे ढूँढ़ते हुए बच्चों वाले कमरे में आ गई| मैंने जो अपनी चपलता दिखाते हुए बच्चों को आगे कर खुद को संगीता से दूर किया था उस पर संगीता को प्यारा सा गुस्सा आया था मगर जब संगीता ने मुझे कमरे में अकेले लेटे हुए अपना इंतज़ार करते हुए देखा तो संगीता का ये प्यारा सा गुस्सा काफूर हो गया|

"आप मुझे बहुत सताते हो!" संगीता मेरी बगल में लेटते हुए बोली| संगीता के हाथ में कुछ था जिसे संगीता ने तकिये के नीचे सरका दिया था| "तुम्हीं से सीखा है की अपनी प्रेयसी को थोड़ा तड़पाना चाहिए, इतनी आसानी से उसे सब कुछ दे दिया जाए तो प्रेयसी सर पर चढ़ जाती है!" मैंने संगीता की तरफ करवट लेते हुए कहा| मैंने संगीता की आँखों में देखा तो पाया की उसकी आँखों में प्यास से ज्यादा उतावलापन है, तभी तो संगीता ने अपनी नाइटी के नीचे कुछ नहीं पहना था!

संगीता ने आव देखा न ताव, उसने सीधा मेरे होठों पर हमला कर दिया, मेरे होठों को गिरफ्त में लेते हुए संगीता के दोनों हाथ मेरे कुर्ते के भीतर पहुँच गए| चोरी-छुपे प्यार करने में समय की कमी एक बहुत बड़ी बाधा थी इसलिए मैंने जल्दी से अपना कुर्ता निकाल फेंका| फिर बारी आई मेरे पजामे और मेरे कच्छे की जिसे संगीता ने इस कदर खींच कर निकाला मानो कोई मक्की (भुट्टा) छील रही हो! संगीता ने पहनी थी सिर्फ नाइटी जिसे उसने एक ही बार में निकाल फेंका|

संगीता ने तकिये के नीचे से वेसिलीन जेली निकाली और काफी भारी मात्रा में मेरे कामदण्ड पर चुपड़ने लगी, मेरे कामदण्ड को स्पर्श करते हुए संगीता के चेहरे पर अपनी इच्छा पूरी होने की विजयी मुस्कान खिली हुई थी| मेरे कामदण्ड पर वेसिलीन जेली अच्छे से चुपड़ने के बाद संगीता ने अच्छी मात्रा में जेली अपने जिस्म के उस हिस्से पर लगाई जिस पर आज कहर बरपाया जाना था!

तजुर्बे की कमी और संगीता के अति-उतावलेपन में संगीता एक भारी गलती करने जा रही थी| इस क्रिया को प्रारम्भ करने से पहले संभोग पूर्व क्रीड़ा अर्थात फोरप्ले (foreplay) करना अनिवार्य होता है, ताकि दोनों जिस्मों में पर्याप्त कामुकता जगी हो! अपनी आतुरता के कारण संगीता ये अहम् बात भूल चुकी थी, लेकिन मुझे इस बारे में ध्यान था| हालाँकि मुझे ये क्रिया (anal sex) नपसंद है पर मैंने इसके बारे में कुछ एडल्ट वेबसाइट्स पर मौजूद कहानियों में पढ़ रखा था| गाँव में अपना कुंवारापन संगीता को सौंपने से पहले मैंने दिषु से एक सस्ती सी किताब ली थी जिसमें मैंने एक कहानी पढ़ी थी, उस कहानी में इस क्रिया पर काफी विस्तार से बताया गया था| आज समय था मेरे मस्तिष्क में अर्जित उस ज्ञान का उपयोग करने का| वहीं संगीता मेरी ओर पीठ कर के अश्व रुपी आसन जमा चुकी थी|

"जान, ऐसे नहीं.करवट ले कर लेटो वरना तुम्हें बहुत ज्यादा दर्द होगा!" मैंने संगीता को समझाते हुए कहा| मेरी बात सुन संगीता मेरी तरफ मुस्कुरा कर देखने लगी| संगीता की इस मुस्कान का कारण ये था की कहाँ तो मैं संगीता को इस क्रिया के लिए मना कर रहा था और कहाँ मैं उसे आराम से क्रिया करने का आसन सीखा रहा था! संगीता के इस तरह मुस्कुरा कर मुझे देखने से मेरा चेहरा शर्म से लाल हो गया था क्योंकि मेरी बात संगीता को मेरे इस क्रिया को करने में इच्छुक होने का गलत संकेत दे रही थी, पहले तो मैंने सोचा की मैं संगीता की ये गलतफैमी दूर कर दूँ, लेकिन मेरे कुछ कहने से संगीता का मूड खराब हो जाता इसलिए मैंने मुस्कुरा कर बात खत्म कर दी|

बहरहाल संगीता मेरी ओर पीठ कर के करवट ले कर लेट गई| मैं भी संगीता से सट कर लेट गया| मैंने आहिस्ते से अपने दाहिने हाथ को संगीता की कमर से होते हुए उसके मुलायम पहाड़ों को दबोच कर बारी-बारी धीरे से सहलाने लगा ताकि संगीता के बदन में कामुकता की अगन दहका सकूँ| फिर मैंने संगीता की गर्दन पर पीछे से अपने होंठ टिका दिए, मेरे गीले होठों के स्पर्श से संगीता की सिसकारी छूट गई; "ससस!" संगीता मेरा मकसद समझ रही थी इसलिए वो मेरा साथ देते हुए मेरे हाथ की मध्यमा ऊँगली को अपने मुख में भर अपनी जीभ से चुभला रही थी| इधर मैंने धीरे से संगीता की गर्दन पर अपने दाँत गड़ा दिए तथा अपनी जीभ से संगीता की गर्दन को गोल-आकार में सहलाने लगा|

करीब 5 मिनट के भीतर ही हम दोनों की दिल की धड़कनें गति पकड़ने लगीं थीं| मैंने अपने दाएँ हाथ से संगीता की दाहिनी टाँग उठाई तो संगीता को लगा की उसकी इच्छा अब पूरी होने वाली है मगर मैंने संगीता के दूसरे द्वार की बजाए, मधु भंडार के भीतर अपने कामदण्ड को प्रवेश करा दिया| जैसे ही मैंने आधारास्ता तय किया की तभी संगीता गर्दन मोड़ कर मुझे देखने लगी! उसकी आँखों में शिकायत थी, कुछ वैसी ही शक़यत जो आपको होती है जब टैक्सी वाला आपके बताये हुए दाएँ मोड़ पर मुड़ने की बजाए बाएँ मोड़ पर मुड़ जाए!

"थोड़ा सब्र करो जान!" मैंने नकली मुस्कान के साथ कहा| दरअसल मेरा मन उस दूसरे द्वार को भेदने का था ही नहीं, मैं तो इस मधु भंडार का दीवाना था! संगीता ने सोचा की उसकी इच्छा पूरी होने से पहले अगर मैं अपना थोड़ा शौक पूरा कर रहा हूँ तो क्या दिक्कत है?! संगीता पुनः करवट ले कर लेटी रही और मेरा सहयोग देती रही, परन्तु वो इस बात का ख़ास ध्यान रख रही थी की मेरी गाडी अधिक तेज़ न भागने पाए वरना फिर मैं जल्दी थक जाता और वीरगति को प्राप्त हो कर मैदान से बाहर हो जाता|

जब मेरे भीतर जोश उबाले मारता और मेरी गति तेज़ होने लगती तो संगीता अपनी दोनों टाँगों को कस कर बंद कर लेती, जिससे मेरे कामदण्ड का दम घुटने लगता और मुझे ना चाहते हुए भी अपनी गति धीमी करनी पड़ती| वहीं मेरी इस इच्छा का मान रखते हुए संगीता ने भले ही मुझे थोड़ी छूट दे दी थी मगर वो बेचारी खुद पर काबू करने में लगी हुई थी की कहीं वो जल्दी से चरम पर पहुँच स्खलित न हो जाए, क्योंकि अगर संगीता चरम पर पहुँच जाती तो वो खुद को स्खलित होने से न रोक पाती और फिर संगीता की इच्छा आज उसके जन्मदिन पर पूरी नहीं होती!

करीब 15 मिनट बीते होंगे और संगीता का सब्र अब जवाब दे चूका था, उसे अब अपनी इच्छा पूरी करवानी थी| संगीता ने कुनमुनाते हुए मुझसे मूक शिकायत की कि मैं और समय व्यर्थ न करूँ| अपनी परिणीता की इस शिकायत ने मुझे थोड़ा नाराज़ कर दिया था क्योंकि मेरा मन ये 'वहशियाना क्रिया' करने का कतई नहीं था, लेकिन संगीता की इस शिकायत ने मुझे मज़बूर कर दिया था|

मैंने अपने कामदण्ड को पकड़ बड़े बेमन से बाहर निकाला| इससे पहले मैं आगे बढ़ूँ संगीता ने फौरन करवट मेरी तरफ ली तथा फिर से मेरे कामदण्ड पर वेसिलीन जेली चुपड़ दी और एक बार फिर मेरी तरफ पीठ कर के करवट ले कर लेट गई| मैंने अपने कामदण्ड को पकड़ कर संगीता के दूसरे द्वार का रास्ता दिखाया मगर तजुर्बे की कमी होने के कारण मुझे द्वार नहीं मिला और मेरा निशाना सही नहीं लगा| जब आपका मन किसी काम को करने का न हो तो जिस्म भी आपका साथ नहीं देता, वही हाल मेरा था| मैं बेमन से ये कोशिश कर रहा था इसलिए दूसरीबार भी मैं द्वार नहीं खोज पाया|

आखिर संगीता को ही पहल करनी पड़ी और उसने मेरे कामदण्ड को पकड़ कर अपना दूसरा द्वार दिखाया| द्वार मिला तो मैंने पहली कोशिश बड़ी सम्भल कर की और भेदन कार्य आरम्भ करते हुए थोड़ा सा ही धक्का लगाया| अभी भेदन कार्य शुरू ही हुआ था की दर्द की सीत्कार संगीता के मुख से फुट पड़ी; "आह!" संगीता की ये दर्द भरी कराह सुन मैं रुक गया| मुझे रुका हुआ देख संगीता ने अपना दायाँ हाथ पीछे किया और मेरे दाएँ कूल्हे पर प्यारभरी चपत लगाई| ये चपत बिलकुल वैसी थी जैसे की घोड़े वाला घोड़े को आगे चलने के लिए उसके कूल्हे पर थपकी देता है|

अपने मालिक यानी संगीता का आदेश पा कर मैंने इस बार थोड़ा सा दम लगा कर भेदन कार्य पूरा करने के लिए थोड़ा दम लगा कर धक्का लगाया| वेसिलीन जेली की चिकनाई के कारण मेरा कामदण्ड भीतर की ओर फिसल गया और मैंने एक ही बार में लगभग आधा रास्ता तय कर लिया| लेकिन ये आधा रास्ता तय करते ही हम दोनों मियाँ-बीवी का हाल बुरा हो गया! मेरे कामदण्ड के भीतर प्रवेश करने से संगीता के जिस्म में दर्द की बिजली दौड़ गई! इस असहनीय दर्द के कारण संगीता ने अपने कूल्हों को मुझसे दूर कर एकदम से अपनी दोनों टाँगें आपस में जकड़ लीं, जिससे संगीता के दूसरे द्वार ने मेरे कामदण्ड को कुछ अधिक जोर से जकड़ लिया! अब संगीता दर्द के कारण चिल्ला तो सकती नहीं थी इसलिए उसने मेरे दाहिने हाथ की गादी पर अपने दाँत गड़ा कर कचकचा कर काट लिया!

हथेली पर संगीता के काटने का दर्द और मेरे कामदण्ड को संगीता के दूसरे द्वार ने जो एकदम से कस लिया था उससे मेरे कामदने के भीतर जलन पैदा हो चुकी थी जिससे मेरा बुरा हाल हो चूका था| भेदन कार्य अभी आधा ही हुआ था और अभी से मुझे गुस्सा और पछतावा दोनों हो रहे थे! अगर मैं गलत नहीं तो संगीता को भी यही दोनों भावनायेँ महसूस हो रहीं होंगीं!

'लोग कुल्हाड़ी पैर पर मारते हैं, मैंने तो साला पैर ही कुल्हाड़ी पर दे मारा!' मैं मन ही मन बुदबुदाया! उधर मुझसे ज्यादा दर्द संगीता को हो रहा था और उसकी आँखों से तो आँसूँ भी निकलने लगे थे जो की बहते हुए मेरे हाथ पर गिर रहे थे| "ससस.ससस...मैंने कहा था न की बहुत दर्द होगा!" मैंने संगीता को दोष देते हुए कहा, ठीक उसी तरह जैसे पत्नियाँ अपने पति को कोई गलती करने पर दोष देती हैं|

मेरी बात सुन संगीता ने अपने आँसूँ पोछे और अपनी कराह दबाते हुए बोली; "क...कोई बता नहीं...थोड़ी देर रुको फिर बाकी का 'काम' पूरा करो!" संगीता की बात सुन मैं दंग रह गया| "जान, तुम्हें अभी आधे काम में इतना दर्द हो रहा है, पूरा काम करूँगा तो कल तुम्हारी तबियत खराब हो जाएगी!" मैंने संगीता को समझना चाहा मगर संगीता ने आज तक मेरी सुनी है जो अब सुनेगी, वो तो अपनी जिद्द पर अड़ी रही; "कुछ नहीं होगा! फिनिश व्हाट यू स्टार्टेड! (Finish what you started!)" संगीता मुझे आदेश देते हुए बोली|

आदेश मिला था तो मैंने धीरे-धीरे 'काम' शुरू किया ताकि संगीता को पहले मेरे आधे कामदण्ड की आदत पड़ जाए| संगीता ने भी धीरे-धीरे अपने द्वार को ढेला किया जिससे मेरे कामदण्ड पर दबाव कम हुआ| हालात की नज़ाक़त को देखते हुए मैं इस वक़्त इतना सम्भल-सम्भल कर अपनी कमर चला रहा था की संगीता को और मुझे कम से कम पीड़ा हो|

करीब 10 मिनट में संगीता थोड़ी अभ्यस्त हो गई थी और मुझे आगे बढ़ने के लिए कहने लगी; "जानू...थोड़ा और!!!" अपनी प्रेयसी की इच्छा मानते हुए मैंने धीरे-धीरे भेदन कार्य आगे बढ़ाया| हाँ मैं इस बात का पूरा ध्यान रख रहा था की कहीं फिसलन होने के कारण मैं एक ही बार में जड़ तक संगीता के भीतर न उतर जाऊँ, क्योंकि यदि ऐसा होता तो संगीता दर्द से चीख पड़ती!

धीरे-धीरे मैंने आखिर पूरी गहराई तय कर ही ली, संगीता का इस वक़्त दर्द से बुरा हाल था| दर्द के मारे संगीता ने अपन दूसरे द्वार का मुख फिर से सिकोड़ लिया था जिससे मेरा कामदण्ड एकबार फिर कैद हो चूका था तथा मैं भी दर्द महसूस कर रहा था! संगीता की सांसें भारी हो चुकीं थीं तथा आँखें फिर से पनिया गई थीं| मैं भले ही अपने दर्द से जूझ रहा था मगर मुझे सबसे ज्यादा चिंता संगीता की थी| संगीता को दर्द से आराम दिलाने के लिए मुझे उसके बदन में कामुकता पुनः जगानी थी ताकि संगीता का ध्यान दर्द पर से हट जाए|

मैंने अपनी कमर को एक जगह स्थिर रखा और अपने दाएँ हाथ से संगीता के मुलायम पहाड़ों को धीरे-धीरे मींजने लगा| एक हाथ से ये काम कर पाने में थोड़ी दिक्कत थी इसलिए मैंने दूसरा हाथ संगीता की गर्दन के नीचे से आगे की ओर बढ़ा दिया, अब मेरे दोनों हथेलियों ने संगीता के मुलायम पहाड़ों को दबोच लिया था और मैं लय बद्धतरीके से दोनों पहाड़ों को मींस रहा था| कुछ समय बाद आखिर मेरी मेहनत रंग लाई और संगीता के दर्द से ठंडे पड़े शरीर में कामुकता की अग्नि की चिंगारी फूट पड़ी| धीरे-धीरे संगीता के बदन ने अपनी प्रतिक्रिया देनी शुरू की और संगीता के मुख से आनंद की एक मीठी सी सिसकी फूट पड़ी; "स्स्स्सस्स्स्स!!!"

कुछ पल बाद संगीता ने अपनी कमर से पीछे की ओर ठुमका लगा कर मुझे अपनी मूक स्वविकृति दी की मैं हमारी प्यार की गाडी में पहला गियर लगा कर गाडी आगे की ओर बढ़ाऊँ| संगीता ने अपन द्वार को कुछ ढीला किया ताकि मुझे अंदर-बाहर होने में आसानी हो, इधर मैंने धीरे-धीरे लय बद्ध तरीके से अपनी कमर आगे-पीछे करनी शुरू की| कुछ ही पलों में संगीता के मुख से संतुष्टि रुपी सिसकियाँ निकलने लगीं, मतलब की संगीता की पीड़ा अब सुखद एहसास में बदल चुकी थी!

पहले गियर में गाडी काफी देर से चल रही थी, मुझे वैसे ही ये कार्य करने का मन नहीं था इसलिए मैं अब ऊबने लगा था| उधर संगीता को अपने आनंद को अगले पड़ाव पर ले जाना था इसलिए उसने अपना दाहिना हाथ पीछे कर मेरे कूल्हों पर फिर चपत लगाई| संगीता का इशारा समझ मैंने अपनी गति बढ़ाई और अपनी कमर को थोड़ा तेज़ी से चलाने लगा| अगले कुछ ही पलों में संगीता के भीतर कामज्वर अपने अंतिम पड़ाव पर पहुँच गया और संगीता भरभरा कर स्खलित हो गई! अब चूँकि संगीता स्खलित हुई थी इसलिए मैंने कुछ पल रुक कर साँस लेने की सोची|

परन्तु मात्र 10 मिनट में संगीता अपने स्खलन से उबर गई और अपनी कमर पीछे की ओर मेरे कामदण्ड पर मारने लगी| मेरा मन इस क्रिया को समाप्त करने का था इसलिए संगीता का इशारा पाते ही मैंने एकदम से अपनी गति बढ़ाई! मैं कोई बर्बरता नहीं दिखा रहा था, मैं तो बस इस क्रिया को जल्द से जल्द समाप्त करना चाहता था| करीब 15 मिनट बीते होंगे की संगीता अपने दूसरे स्खलन पर पहुँच गई और हाँफते हुए निढाल हो गई| मैं उस वक़्त अपने स्खलन के बहुत नज़दीक था परन्तु मैं इस दूसरे द्वार में कतई स्खलित नहीं होना चाहता था इसलिए मैंने अपना कामदण्ड बाहर निकाल लिया और हाथ से हिला कर अपने स्खलन प्राप्त किया! संगीता कुछ समझ पाती उससे पहले ही उसे अपने कूल्हों पर मेरे कामरस का एहसास हुआ, जिससे वो सब समझ गई की मैंने अपना स्खलन संगीता के भीतर करने की बजाए बाहर किया है!

आमतौर पर हमारे प्रेम-मिलाप के बाद मैं अपने कामदण्ड की धुलाई किये बिना ही अलसा कर सो जाता हूँ मगर आज मुझे घिन्न सी आ रही थी इसलिए मैं तुरंत ही बाथरूम में घुस कर अपने कामदण्ड को साफ़ करने लगा| ठंडे-ठंडे पानी ने जब मेरे कामदण्ड को छुआ तो जो कुछ पल पहले दर्द हो रहा था उस दर्द को राहत मिली| मैंने अपने इस दर्द को संगीता से छुपाने की सोची क्योंकि अगर संगीता को पता चलता की उसकी इच्छा पूरी करने में मुझे पीड़ा हुई है तो संगीता खुद को दोष देते हुए ग्लानि महसूस करने लगती|

जब मैं बाथरूम से बाहर निकला तो देखा की संगीता पीठ के बल लेटी सुस्ता रही है| संगीता के चेहरे पर परम् संतुष्टि के निशान थे, कुछ वैसे ही निशान जो प्रेम-मिलाप के बाद मेरे चेहरे पर आते थे| मैंने घड़ी देखि तो रात के दो बज रहे थे, मैंने तुरंत अपने कपड़े पहने और संगीता की नाइटी उठा कर संगीता को देते हुए कहा; "जान, ये नाइटी पहन लो और आराम से सो जाओ| मैं बच्चों के पास सोने जा रहा हूँ|" मेरी बात सुन संगीता ने मेरा हाथ पकड़ लिया और चिढ़ते हुए बोली; "जब देखो बच्चों के पास जा रहा हूँ कहते हो! आज मेरा जन्मदिन है, चुपचाप मुझे अपनी बाहों में ले कर सो जाओ वरना मैं आपसे बात नहीं करुँगी!" संगीता के इस तरह मुझे आदेश देने पर मुझ हँसी आ गई| आज पत्नी जी का जन्मदिन था और आज के दिन उन्हें नाराज़ करना जायज नहीं था! मैंने पहले संगीता को उठा कर बिठाया और उसे नाइटी पहना कर मैं उसी के साथ लेट गया| संगीता ने अपने दोनों हाथों का फंदा मेरे जिस्म के इर्द-गिर्द बनाया और मुझसे कस कर लिपट गई ताकि कहीं मैं उसे सोता हुआ छोड़ कर न चला जाऊँ| थकावट मुझे भी थी, उसपर संगीता के मुझे अपनी बाहों में जकड़ने से मेरा मन अब बस सोने का कर रहा था| मैंने संगीता के मस्तक को चूमा और उसे अपनी बाहों में कस कर सो गया|

अगली सुबह 6 बजे मुझे नेहा और आयुष ने चुपचाप जगाया, मैंने धीरे से संगीता की पकड़ से खुद को छुड़ाया तथा अपने आज के प्लान पर काम करने लगा| एक तो आज संगीता का जन्मदिन था इसलिए आज संगीता से घर का कोई भी काम करवाना मुझे अच्छा नहीं लग रहा था और दूसरा, कल रात जो दर्दभरी क्रिया की गई थी उसके बाद संगीता से काम कर पाना मुश्किल हो जाता इसलिए मैंने बच्चों के साथ मिल कर ये प्लान पहले ही बना लिया था की आज के दिन संगीता बस आराम करेगी तथा घर के सारे काम हम बाप-बेटा-बेटी मिल कर करेंगे| मैं और बच्चे दबे पॉंव कमरे से बाहर आये, बाहर आते ही आयुष ने अपना सवाल दाग दिया; "पापा जी, मम्मी तो रात में हमारे पास सोईं थीं, फिर मम्मी इधर कैसे आईं?" आयुष का सवाल सुन मैं झेंप गया और जवाब सोचने लगा| इतने में नेहा मेरा बचाव करते हुए बोली; "आज मम्मी का जन्मदिन है और हमें पापा जी की मदद करनी है, न की फालतू के सवाल पूछ कर समय बर्बाद करना है| चुपचाप रसोई में जा और चायदानी में 4 कप पानी डाल, मैं और पापा जी अभी आ रहे हैं!" नेहा ने आयुष को बिलकुल अपनी मम्मी की तरह हुक्म देते हुए कहा| अपनी दीदी का हुक्म सुन आयुष रसोई में दौड़ गया और चायदानी में नापकर पानी डालने लगा|

आयुष के जाने के बाद मैंने नेहा को गोद में उठाया और उसके मस्तक को चूमते हुए बोला; "मेरी सयानी बिटिया!" मेरे मुँह से अपनी तारीफ सुन मेरी बिटिया शर्मा गई और मेरे कँधे पर अपना मुख छुपा लिया| मुँह-हाथ धो कर हम बाप-बेटा-बेटी ने मिलकर चाय बनाई और सबसे पहले चाय देने के लिए माँ के पास पहुँचे| माँ ने जब हम तीनों को चाय का कप उठाये देखा तो माँ हँस पड़ीं; "तो आज एक नहीं तीनों खानसामों ने मिलकर रसोई सँभालनी है?!" माँ की बात सुन हम तीनों हँस पड़े|

फिर हम तीनों चाय ले कर संगीता के पास पहुँचे, सबसे पहले आयुष ने अपनी मम्मी के गाल पर गुडमॉर्निंग वाली पप्पी दी पर संगीता की नींद नहीं टूटी| फिर बारी आई नेहा की और नेहा ने भी आयुष की तरह अपनी मम्मी के दूसरे गाल पर पप्पी दी, परन्तु इस बार भी संगीता नहीं जागी| अंत में मैंने कोशिश की और मैंने संगीता के दाएँ गाल पर पप्पी दी और तब जा कर संगीता की नींद टूटी और वो कुनमुनाई! मुझे अपनी आँखों के सामने देख संगीता के चेहरे पर मादक मुस्कान तैरने लगी| संगीता का मन ललचाया और उसने मेरे होठों को चूमने के लिए आगे बढ़ना चाहा मगर मैंने आँखों के इशारे से संगीता को बच्चों की तरफ देखने को कहा| बच्चों को देख संगीता के चेहरे पर प्यारा सा गुस्सा आ गया, उसने जब उठ कर बैठने की कोशिश की तब उसके चेहरे पर दर्द की एक लकीर उभर आई!

कल रात जो ताबड़तोड़, धमाकेदार, धुआँदार जन्मदिन मनाया गया था उसका दर्द अब संगीता को परेशान करने लगा था| संगीता ये दर्द मुझसे छुपाना चाह रही थी क्योंकि वो जानती थी की उसे दर्द में देख मैं दुखी हो जाऊँगा| लेकिन संगीता चाहे कितनी कोशिश करे, मैं तो उसका दर्द महसूस कर ही चूका था और मेरे चेहरे पर भी चिंता की लकीरें पड़ने लगी थीं| मुझे चिंतित देख संगीता नक़ली मुस्कान लिए हुए आँखों ही आँखों में बोली; 'कुछ नहीं हुआ, आप चिंता मत करो!' इतना कह संगीता उठ कर बैठी| मैं कुछ कहता उसके पहले ही माँ कमरे में आ गईं और बोलीं; "जन्मदिन मुबारक हो बहु! जुग-जुग जियो बेटा!' माँ ने संगीता के सर पर हाथ रखते हुए आशीर्वाद सहित जन्मदिन की मुबारकबाद दी| संगीता ने भी माँ के पॉंव छू कर आशीर्वाद लिया| "अरे बहु, तू यहाँ बच्चों के कमरे में क्यों सोई? ये दोनों शैतान तो तेरे कमरे में सोने गए थे?!" माँ ने भोयें सिकोड़ कर ये सवाल पुछा तो संगीता ने बड़ी चपलता से आयुष को दोषी बना दिया; "ये है न शैतान! रात में सोते हुए मुझे लात मार रहा था इसलिए मैं उठ कर यहाँ बच्चों के कमरे में सो गई!" संगीता ने नाक पर प्यारा सा गुस्सा लिए आयुष की तरफ देखते हुए कहा| मेरा भोला-भाला बेटा अपनी मम्मी के झूठी बात को सच मान बैठा और कान पकड़ कर सॉरी बोलने लगा| मैंने आयुष को गोदी लिया और उसका बचाव करते हुए बोला; "बेटा, जब मैं छोटा था न तो मैं भी कभी-कभी माँ को लात मारता था| लेकिन जब मैं बड़ा हुआ तो ये आदत छूट गई|" मेरी बात सुन आयुष को इत्मीनान हुआ और वो फिर से चहकने लगा|

हम सब ने चाय पी और फिर हम तीनों बाप-बेटा-बेटी रसोई में नाश्ते की तैयारी करने लगे| संगीता ने बहुत कहा की वो नाश्ता बना लेगी मगर हम तीनों अपनी जिद्द पर अड़े रहे और घुस गए रसोई में| उधर संगीता को मुँह धोना था इसलिए वो बाथरूम जाने के लिए उठी, परन्तु समस्या ये की संगीता से ठीक से चला नहीं जा रहा था| मैं कुछ सामान लेने रसोई से बाहर निकला तो मैंने संगीता को लंगड़ाते हुए देखा| ठीक तभी हम दोनों मियाँ-बीवी की नजरें मिलीं और मैंने चिंतित होते हुए एकदम से अपना सर पीट लिया! अपनी एक ख़ुशी को पाने के लिए संगीता ने ये दर्द मोल ले लिया था! मुझे अपना सर पीटते हुए देख संगीता को हँसी आ गई और वो खिलखिलाते हुए बाथरूम में घुस गई|

नाश्ते में मैंने संगीता का मनपसंद अंडे का आमलेट बनाया और माँ के लिए बेसन का आमलेट अर्थात चीला बनाया| नाश्ता करने के बाद मैंने संगीता को दर्द से आराम के लिए चुपके से एक गोली दी तथा आराम करने को कहा|

कुछ देर बाद भाईसाहब का फ़ोन आया और वो संगीता को उसके जन्मदिन की मुबारकबाद देते हुए काफी भावुक हो गए थे| आज कई सालों बाद भाईसाहब अपने लाड़ली बहन को जन्मदिन की बधाई फ़ोन पर दे रहे थे, वही हाल संगीता का भी था वो भी अपने भाईसाहब के बधाई देने पर रुनवासी हो गई थी| जब संगीता छोटी थी तब उसके जन्मदिन के दिन भाईसाहब उसे एक टॉफ़ी ला कर देते थे और गोदी में ले कर दूसरे गाँव तक टहला लाते थे| उन प्यारे दिनों को याद कर दोनों भाई-बहन रुनवासे हो गए थे| मैंने संगीता को अपने गले लगा कर रोने नहीं दिया तथा स्तुति को दूध पिलाने का काम दे संगीता का ध्यान भटकाते हुए रसोई में आ गया| फिर हम बाप-बेटा-बेटी ने मिलकर खाना बनाना शुरू किया| जब आटा गूँदने के बारी आई तो आयुष उत्साहित हो कर बोला की वो भी आटा गूंदेगा| अब मुझे सूझी थी मस्ती इसलिए मैंने परात उठाई और ज़मीन पर रख दी, फिर हम तीनों बाप-बेटा-बेटी परात के इर्द-गिर्द अपने घुटने टेक कर बैठ गए| मैंने दोनों बच्चों की तरफ देखा और इशारा किया, हम तीनों ने अपने-अपने दाहिने हाथ आटे में साने और लगे आटा गूँदने! शुरू-शुर में हम तीनों के हाथ आटे से सन गए और हम तीनों ने खी-खी कर हँसना शुरू कर दिया| हमारी हँसी-ठहाका सुन संगीता और माँ रसोई में आये और ये अध्भुत दृश्य देख दोनों सास-पतुआ की भी हँसी छूट गई!

"तू शैतानी से बाज़ नहीं आएगा, अपने साथ दोनों बच्चों को भी मिला लिया!" माँ ने मेरी पीठ पर प्यारी सी थपकी मारते हुए कहा| उधर मुझे और अपने भैया-दीदी को आटा गूंदते हुए देख मेरी बिटिया स्तुति ने संगीता की गोदी से छटपटाना शुरू कर दिया| "ये लो, इस शैतान को भी आटा गूँदना सिखाओ अब!" संगीता ने स्तुति को मेरी गोदी में दे दिया, मैं आलथी-पालथी मारकर बैठ गया और स्तुति को भी अपने सीने से लगा कर बिठा लिया| स्तुति ने अपने नज़दीक आटा देखा तो उसने अपने दोनों हाथ आटे को पकड़ने के लिए बढ़ा दिए| तभी आयुष ने भी शैतानी करते हुए थोड़ा सा आटा स्तुति के हाथ में लगा दिया, स्तुति ने फट से आटे से सने अपने हाथ को अपने मुँह की तरफ घुमाया तो नेहा ने झपट कर स्तुति का हाथ पकड़ लिया और उसे समझाने लगी; "अभी आप छोटे हो, कच्चा आटा खाओगे तो पेट खराब होगा!" ये कहते हुए नेहा ने स्तुति के हाथों से आटा छुड़ाया और कपड़े से स्तुति के हाथ साफ़ कर दिए| गौर करने वाले बात ये थी की स्तुति ने आज अपनी दीदी की बात बड़े ध्यान से सुनी और मानी भी थी| फिर नेहा ने आयुष को डाँट लगाई; "तू बुद्धू है क्या जो इतनी छोटी सी बच्ची के हाथ में आटा लगा दिया?! तुझे पता नहीं स्तुति हर चीज़ अपने मुँह में ले लेती है?! कच्चा आता खा कर वो बीमार पड़ जाती तो?!" आयुष को अपनी गलती का एहसास हुआ और उसने फौरन अपने कान पकड़ कर माफ़ी माँग ली, नेहा ने भी बड़ी बहन होते हुए आयुष को माफ़ कर दिया|

शाम को हम बाप-बेटा-बेटी जा कर एक बढ़िया सा केक ले कर आये| तबतक दिषु भी घर आ चूका था और वो संगीता के लिए गिफ्ट में साडी लाया था| "अबे साले! तूने मेरे जन्मदिन पर तो मुझे कभी गिफ्ट नहीं दिया और संगीता को उसके जन्मदिन पर साडी गिफ्ट दे रहा है?!" मैंने दिषु के मज़े लेते हुए कहा| मेरे पूछे सवाल पर दिषु हँसते हुए बोला; "तूने मुझे चिकन बना कर खिलाया कभी, जो मैं तुझे गिफ्ट दूँ?! भाभी ने अगले संडे को मेरे लिए चिकन बनाना है इसलिए एक गिफ्ट तो बनता है|" जैसे ही दिषु ने चिकन का नाम लिया, आयुष ख़ुशी के मारे कूदने लगा|

खैर, संगीता के द्वारा केक काटा गया और केक का सबसे बड़ा टुकड़ा आयुष ने खाया, बेचारे ने सुबह से बहुत मेहनत जो की थी| पार्टी कोई बहुत बड़ी नहीं थीं, बस मैं, माँ, दोनों बच्चे, संगीता और दिषु ही थे| बाहर से खाना मँगा लिया था तो पेट भरकर सबने खाना खाया और इसी के साथ हमारी पार्टी खत्म हुई|

सोने के समय संगीता का मन मुझे आज पूरे दिन की गई मेहनत का मेहनताना देने का था| फिर कल रात मैंने केवल संगीता की इच्छा पूरी की थी इसलिए आज रात संगीता का मन मेरी इच्छा पूरी करने का भी था| लेकिन मैं इतना स्वार्थी नहीं था, मुझे पता था की संगीता का दर्द अभी खत्म नहीं हुआ है इसलिए मैंने संगीता को समझाते हुए कहा; "जान, पहले अपनी बिगड़ी हुई चाल दुरुस्त करो वरना तुम माँ से खुद भी डाँट खाओगी और मुझे भी डाँट खिलवाओगी!" मेरी बात पर संगीता अपना निचला होंठ दबा कर मुस्कुराने लगी| अंततः आज की रात कोई हँगामा नहीं हुआ, हम दोनों प्रेमी बस एक दूसरे से लिपट कर आराम से सोये|

[color=rgb(163,]जारी रहेगा भाग - 18 में...[/color]
 

[color=rgb(44,]इकत्तीसवाँ अध्याय: घर संसार[/color]
[color=rgb(251,]भाग - 18[/color]


[color=rgb(71,]अब तक अपने पढ़ा:[/color]

सोने के समय संगीता का मन मुझे आज पूरे दिन की गई मेहनत का मेहनताना देने का था| फिर कल रात मैंने केवल संगीता की इच्छा पूरी की थी इसलिए आज रात संगीता का मन मेरी इच्छा पूरी करने का भी था| लेकिन मैं इतना स्वार्थी नहीं था, मुझे पता था की संगीता का दर्द अभी खत्म नहीं हुआ है इसलिए मैंने संगीता को समझाते हुए कहा; "जान, पहले अपनी बिगड़ी हुई चाल दुरुस्त करो वरना तुम माँ से खुद भी डाँट खाओगी और मुझे भी डाँट खिलवाओगी!" मेरी बात पर संगीता अपना निचला होंठ दबा कर मुस्कुराने लगी| अंततः आज की रात कोई हँगामा नहीं हुआ, हम दोनों प्रेमी बस एक दूसरे से लिपट कर आराम से सोये|

[color=rgb(26,]अब आगे:[/color]

किसी
ने सही कहा है की शेर के मुँह में एक बार खून लग जाए तो उसे फिर माँस चाहिए ही चाहिए| यही हाल संगीता का था, अपने जन्मदिन पर संगीता ने जो नया स्वाद चखा था उसे संगीता ने हमारे प्रेम-मिलाप में शामिल कर लिया था| बच्चे स्कूल गए नहीं, माँ घर से मंदिर के लिए निकली नहीं की संगीता की आँखों में लाल डोरे तैरने लगते थे| एक बार तो हद्द हो गई, संगीता ने मुझे फ़ोन कर घर झूठे बहाने से घर बुलाया और मेरे घर आते ही प्रेम-मिलाव तथा अपनी ये दूसरी वाली माँग रखी| पहले तो मुझे गुस्सा आया लेकिन फिर मैंने सोचा की स्वार्थ तो मेरा भी पूरा हो रहा है इसलिए काहे को गुस्सा करना, मौके का भरपूर फायदा उठाया जाए! तो कुछ इस तरह से हम दोनों मियाँ-बीवी का छुपते-छुपाते प्रेम-मिलाप जारी था|

समय का पहिया धीरे-धीरे आगे की ओर घूम रहा था और मेरे बच्चे धीरे-धीरे बड़े होते जा रहे थे| मैंने और संगीता ने जो अपनी छोटी सी प्यारी सी दुनिया बसाई थी वो फल-फूल रही थी| हम दोनों मियाँ-बीवी के प्यार का मीठा सा फल...हमारी लाड़ली बिटिया स्तुति बड़ी होती जा रही थी| हलाँकि मैं कभी नहीं चाहता था की मेरी बिटिया इतनी जल्दी बड़ी हो क्योंकि मेरा मन स्तुति की मस्तियों को देखने से भरता ही नहीं था| प्रतिदिन अपनी लाड़ली बिटिया को देख मेरा दिल यही कहता की काश समय यहीं थम जाए और मेरी बिटिया कभी बड़ी हो ही न| मैं सारा दिन उसे यूँ गोदी में ले कर खिलाऊँ और रात होने पर अपने सीने से लिपटाये सो जाऊँ| लेकिन समय कभी नहीं ठहरता, धीरे-धीरे वो आगे बढ़ता ही रहता है|

जैसे-जैसे स्तुति बड़ी हो रही थी, वैसे-वैसे स्तुति अपने आस-पास मौजूद लोगों के साथ अधिक से अधिक समय गुजारते हुए कुछ न कुछ नया सीखती जा रही थी| मेरी गैरहाजरी में जब स्तुति माँ की गोदी में होती तो माँ स्तुति को जीभ चिढ़ा कर उसके साथ खेल रही होती| अपनी दादी जी को जीभ चिढ़ाते हुए देख स्तुति ने भी अपनी नन्ही सी जीभ बाहर निकालनी सीख ली थी| एक दिन मैं स्तुति को गोदी में लिए हुए उससे बात कर रहा था, बात क्या कर रहा था मैं तो स्तुति को जल्दी-जली बड़ा होने से मना कर रहा था| तभी स्तुति ने एकदम से अपनी नन्ही सी जीभ बाहर निकलते हुए मुझे दिखाई|

ये दृश्य देख मेरा दिल एकदम से पिघल गया और मेरे मुख से; "awwwww मेला प्याला बच्चा" निकला| स्तुति की नन्ही सी जीभ इतनी प्यारी थी की मेरा दिल जैसे मेरे बस में ही नहीं था, मन करता था की स्तुति ऐसे ही मुझे अपनी जीभ दिखा कर खिलखिलाती रहे| मोह में बहते हुए मैंने स्तुति की ठुड्डी सहलाई तो स्तुति को बड़ा मज़ा आया और उसकी हँसी घर में गूँजने लगी|

इतने में संगीता कमरे में आई और बाप-बेटी का ये मोह देख समझ गई की मुझे स्तुति की नन्ही सी जीभ देख कर बहुत प्यार आ रहा है| संगीता को देख मैंने फिर से स्तुति की ठुड्डी सहलाई तो स्तुति ने फिर से अपनी जीभ बाहर निकाली; "मेरी प्यारी बिटिया को तो देखो, कैसे वो मुझे अपनी नन्ही सी जीभ दिखा कर चिढ़ा रही है?!" मैंने संगीता का ध्यान स्तुति की तरफ खींचा तो संगीता मुस्कुराते हुए बोली; "ये इस शैतान ने माँ से सीखा है| माँ स्तुति को गोदी में खिलाते हुए जीभ चिढ़ाती हैं और माँ को जीभ चिढ़ाते हुए देख स्तुति बहुत खिलखिलाती है|" उस दिन मुझे पता चला की मेरी नन्ही सी बिटिया इतनी सयानी हो गई है की वो धीरे-धीरे हम सभी से कुछ न कुछ सीखती जा रही है|

केवल माँ ही नहीं स्तुति अपने भैया और दीदी से भी एक नई चीज़ सीख चुकी थी| स्तुति के सुसु-पॉटी कर देने के डर से आयुष और नेहा उसे गोदी में नहीं उठाते थे, वे स्तुति के साथ तभी खेलते थे जब स्तुति किसी की गोदी में होती या फिर पलंग पर पीठ के बल लेटी होती| धीरे-धीरे दोनों भाई-बहन का ये डर खत्म होने लगा और एक दिन आयुष ने अपनी छोटी बहन से वादा माँगा; "स्तुति, मैं और दीदी आपके साथ एक शर्त पर खेलेंगे, आप हम दोनों पर सुसु-पॉटी नहीं करोगे तब!" आयुष इतने आत्मविश्वास से स्तुति से बता कर रहा था मानो स्तुति सब समझती हो| आयुष की बात सुन स्तुति क्या जवाब देती, वो तो चेहरे पर मुस्कान लिए अपने भैया को देख रही थी| तभी नेहा भी आयुष की तरह छोटी बच्ची बन गई और आयुष की कही बात को दुहराते हुए तुतला कर स्तुति से पूछने लगी; "बोलो स्तुति, आप हमारे ऊपर सुसु-पॉटी नहीं करोगे न?" नेहा ने अपनी गर्दन में हिलाते हुए स्तुति से सवाल पुछा| अब स्तुति को कहाँ कुछ समझ आता, उसने तो बस अपनी दीदी को गर्दन में हिलाते हुए देखा और उसे ये देख कर बड़ा मज़ा आया| नतीजन, स्तुति ने अपनी गर्दन अपनी दीदी की देखा देखि एक बार 'न' में हिलाई|

एक छोटी सी बच्ची के गर्दन न में हिलाने से आयुष और नेहा को बड़ा मज़ा आया और दोनों बच्चों को ये विश्वास हो गया की स्तुति उन पर सुसु-पॉटी नहीं करेगी| बस उस दिन से दोनों भाई-बहन ने स्तुति को गोदी में ले कर खेलना शुरू कर दिया और खेल-खेल में ही स्तुति को गर्दन 'न' और 'हाँ' में हिलाना सीखा दिया| फिर तो जब भी हम स्तुति से गर्दन हाँ या न में हिला कर बात करते तो स्तुति हमारी नक़ल करते हुए अपनी गर्दन हाँ या न में हिलाने लगती|

बाप के गुण बच्चों में आते ही हैं, जिस तरह मुझे अपनी माँ का दूध पीना कुछ ज्यादा ही पसंद था उसी तरह स्तुति को भी अपनी मम्मी का दूध पीना कुछ ज्यादा ही पसंद था| समस्या ये थी की दूध ज्यादा बनता था और स्तुति का छोटा सा पेट जल्दी भर जाता था, अब इस अत्यधिक दूध का क्या किया जाए?

एक दिन शाम के समय मैं घर पहुँचा तो संगीता स्तुति को दूध पीला रही थी| मुझे देख स्तुति का पेट जैसे एकदम से भर गया और वो दूध पीना छोड़ कर मेरी गोदी में आ गई| मेरी गोदी में आ स्तुति ने सबसे पहले मेरी कमीज को अपनी मुठ्ठी में भींच लिया और खिलखिलाने लगी| संगीता ने जब ये दृश्य देखा तो वो मुझसे स्तुति की शिकायत करते हुए बोली; "देख लो अपनी लाड़ली को, दूध पूरा पिए बिना ही आपके पास चली गई|" मेरा मन स्तुति को अपनी गोदी में ले कर प्रसन्न था, फिर भी मैंने स्तुति को दूध पीने के लिए समझाया; "बेटा, दूधधु पूरा नहीं पियोगे तो आपका ये छोटा सा पेटू भरेगा नहीं फिर आपको मेरे साथ खेलने की ताक़त कैसे मिलेगी?!" स्तुति ने बात बड़े ध्यान से सुनी मगर उसका पेट दूध पीने से भर गया था, अब तो उसका मन मेरे साथ खेलने का था| हम बाप-बेटी ने संगीता की शिकायत सुन कर भी अनसुनी कर दी थी इसलिए संगीता को प्यारभरा गुस्सा आने लगा था|

इतने में माँ कमरे में आ गईं और संगीता ने उनसे हम दोनों बाप-बेटी की शिकायत कर दी; "देखो न माँ इन दोनों को, ये बाहर से आते ही बिना कुछ खाये-पीये अपनी बेटी के साथ खेलने लग गए और ये शैतान भी आधा दूध पी कर इनकी गोदी में खेलने चली गई!" अपनी बहु की शिकायत सुन माँ मुस्कुराईं और बोलीं; "बेटा, मेरी शूगी (स्तुति) का पेट भर गया होगा, तभी ये मानु की गोदी में गई| खाली पेट बच्चे चिड़चिड़े हो जाते हैं और बिना दूध पिए वो किसी के पास नहीं जाते|" माँ की कही बात बिलकुल सही थी, स्तुति का पेट भरा गया था तभी तो उसकी किलकारियाँ गूँज रही थीं|

उस वक़्त तो माँ के सामने संगीता कुछ नहीं बोली लेकिन बाद में संगीता मुझसे फिर से शिकायत करने लगी; "सुनिए जी, आप अपनी लाड़ली बेटी को समझाओ की वो सारा दूध पिया करे! आधा दूध पीती है और फिर मुझे सीने में जलन होती है!" संगीता ने जानती थी की एक छोटी सी बच्ची को ये बात समझाना नामुमकिन है मगर फिर भी उसने ये बात इसलिए की थी ताकि वो मुझे दूध पीने के लिए प्रेरित कर सके| अब मैं क्रूर बुद्धि संगीता की बात समझा नहीं, मुझे लगा वो मज़ाक कर रही है इसलिए मैंने भी स्तुति से मज़ाक करते हुए कहा; "बेटा, मम्मी को तंग करना अच्छी बात नहीं, पूरा दूधधु पीया करो!" स्तुति को मेरी बात समझ आने से रही इसलिए वो बस खिखिलाकर अपने मसूड़े दिखा कर हँसने लगी|

उधर संगीता ने जब देखा की उसका बुद्धू पति उसकी बता समझा नहीं है तो संगीता नाराज़ हो गई| जब मैंने संगीता की ओर देखा तो पाया की वो अपनी भोयें सिकोड़ कर मुझे गुस्से से देख रही है| मैं समझ गया की मुद्दा गंभीर है, यदि मैंने कुछ भी बेवकूफाना बात की तो संगीता नाराज़ हो जाएगी इसलिए मैं डर के मारे खामोश हो गया| संगीता अपना गुस्सा मुझ पर निकालना नहीं चाहती थी इसलिए वो भुनभुनाती हुई कमरे से बाहर चली गई| संगीता के जाने के बाद मैंने फिर एक बार स्तुति को प्यार से समझाया; "बेटा, आपकी मम्मी गुस्सा हो गई हैं! आप प्लीज सारा दूध पिया करो, वरना आपके साथ-साथ मुझे भी डाँट पड़ेगी|" ये मेरा अबोधपना था की मैं एक छोटी सी बच्ची से बात कर उसे समझा रहा था, ऐसी बच्ची जो मेरी कही कोई बात समझती ही नहीं, उसे तो केवल मेरी गोदी में कहकहे लगाना पसंद है|

कुछ समय बाद मैं संगीता को मनाने के लिए अकेला रसोई में पहुँचा| संगीता को पीछे से अपनी बाहों में भर मैंने संगीता के गाल को धीरे से काटा, अब जैसा की होता है संगीता मेरे स्पर्श से ही मचलने लगी थी| संगीता आँखें बंद कर के मेरी बाहों में मचल रही थी, मैंने संगीता के गुस्सा शांत होने का फायदा उठाते हुए उससे बड़े प्यार से बात शुरू की; "जान, तुम कुछ कह रही थी न की स्तुति दूध पूरा नहीं पीती जिससे तुम्हें कष्ट होता है...तो मैं तुम्हारे लिए एक ब्रैस्ट पंप ला दूँ..." मेरी बात अभी पूरी भी नहीं हुई थी की संगीता का गुस्सा फ़ूट पड़ा! उसने गुस्से से मेरे दोनों हाथों को झटका और मेरे ऊपर बरस पड़ी; "ब्रैस्ट पंप से दूध निकाल कर क्या करूँ? उस दूध की खीर बनाऊँ या चाय बनाऊँ?!" संगीता मुझ पर गुस्से से गरजी और भुनभुनाती हुई रसोई से बाहर चली गई| मैं रसोई में खड़ा अपना सर खुजाते हुए सोचने लगा की आखिर मैंने ऐसा क्या कह दिया की संगीता इस तरह भड़क गई?!

रात होने तक संगीता का गुस्सा पूरे शबाब पर था, बस एक माँ थीं जिनके सामने संगीता अपना गुस्सा छुपा लेती थी वरना तो मेरी और दोनों बच्चों को संगीता ने अपना गुस्सा निकालने के लिए बात-बात पर टोकना शुरू कर दिया था| रात को मैंने दोनों बच्चों को कहानी सुना कर जल्दी सुला दिया और स्तुति को ले कर मैं अपने कमरे में आ गया| स्तुति को लगी थी भूख इसलिए संगीता उसे गोदी में ले कर दूध पिलाने लगी| दूध पीते-पीते मेरी गुड़िया रानी सो गई तो संगीता ने स्तुति को बिस्तर के बीचों-बीच लिटा दिया और बाथरूम चली गई| मैंने स्तुति के मस्तक को चूम उसे गुड नाईट कहा तथा मैं संगीता के बाथरूम से बाहर आने का इंतज़ार करने लगा ताकि उसे प्यार से मना सकूँ|

दस मिनट बाद संगीता बाथरूम से निकली मगर बिना कुछ कहे दूसरी तरफ मुँह कर के लेट गई| संगीता का दिमाग रुपी लोहा बहुत ज्यादा गरम है ये सोच कर मैंने चुप रहने में ही भलाई समझी, कहीं कुछ मैंने कहा और संगीता फिर से भड़क गई तो खामखा झगड़ा हो जाता!

कुछ देर शान्ति से सोने के बाद संगीता के मुख से कराह निकलने लगी| संगीता की कराह सुन मैं फौरन उठ बैठा और कमरे की लाइट जलाई| मैंने देखा की संगीता अपने सीने पर हाथ रख कर कराह रही है, मैं समझ गया की छाती में दूध भरा होने के कारण ही संगीता को जलन हो रही होगी| अब मुझे क्या पता की ये सब संगीता की सोची-समझी चाल है! "जान, डॉक्टर के पास चलें?" मैंने घबराते हुए पुछा तो संगीता मुझे फिर से घूर कर देखने लगी| वो बेचारी आस लगाए बैठी थी की उसका बुद्धू पति सब समझ जाएगा और स्वयं दूध पीने का आग्रह कर अपनी पत्नी को इस जलन से छुटकारा दिलाएगा, लेकिन मैं ठहरा जड़बुद्धि!

संगीता तिलमिला कर उठ कर बैठी और गुस्से से दाँत पीसते हुए मुझसे बोली; "अस्पताल ले जा कर हज़ारों रुपये फूँक सकते हो, लेकिन खुद दूध पी कर मुझे इस दर्द से आराम नहीं दे सकते?!" संगीता की झाड़ सुन मैं किसी मासूम बच्चे की तरह घबरा गया और अपनी पत्नी के हुक्म की तामील करने के लिए सज्य हो गया| संगीता ने जब मुझे नरम पड़ते देखा तो उसके मन में ख़ुशी की फुलझड़ी जलने लगी| वो फौरन उठ कर बैठी और स्तुति को गोदी मे ले कर बिस्तर के दूसरे छोर पर लिटा दिया| फिर वो बिस्तर के बीचों बीच लेट गई और मुझे अपने बगल में लेटने का इशारा किया| मैं थोड़ा नीचे खिसक कर लेटा ताकि मेरे होंठ सीधा संगीता के पयोधर (स्तन) के सामने हो| इस समय मेरी मंशा केवल और केवल अपनी पत्नी को दर्द से आजादी दिलाने की थी, वहीं संगीता का दिल इस वक़्त अपनी जीत की ख़ुशी में कुलाचें भर रहा था| मेरी सीधी-साधी दिखने वाली पत्नी ने ऐसा जाल फैलाया था की मैं बावला बुद्धू पोपट संगीता के फैलाये जाल में बड़ी आसानी से फंस गया था|

संगीता, जिसने की पहले ही सारी तैयारी कर रखी थी, उसने फौरन अपना दायाँ पयोधर मेरे होठों के आगे परोस दिया| मैंने भी बिना कुछ सोचे समझे स्तन्याशय (उरोज) के मुख के ऊपर लगे कुच (चुचुक) को अपने होठों के भीतर भर लिया और लगा दूध पीने| धीरे-धीर मैंने अपनी जीभ और मुँह के ऊपर वाले तालु के बीच संगीता के कुच को दबा कर चुभलाना शुरू किया, नतीजन मधुर-मधुर दूध मेरे मुख में आने लगा तथा उस मधुर दुग्ध का स्वाद मेरी जुबान पर आहिस्ते-आहिस्ते घुलने लगा| मिनट भर पहले जो अपनी पत्नी को दर्द से मुक्त कराने की इच्छा थी वो इच्छा अब कहीं खो गई थी, रह गई थी तो बस इस मधुर रस को पूरा पीने की इच्छा!

उधर संगीता के मुख से भी आनंद की मधुर सीत्कारें निकलने लगीं थीं; "हम्म...स..हनन!!!" संगीता के दोनों हाथों ने मेरे सर पर पकड़ बना ली थी और संगीता अपने हाथों के दबाव से मेरा सर अपने स्तन्याशय पर दबा रही थी| वो चाह रही थी की मैं मुँह जितना बड़ा खोल सकूँ उतना खोल कर उसके पूरे स्तन्याशय को अपने मुख में भर लूँ, परन्तु मुझे तो जेवल दुग्धपान करना था इसलिए मैं धीरे-धीरे लगा हुआ था| अंततः मुझे उत्तेजित करने के लिए संगीता मेरे बालों में अपनी उँगलियाँ चलाने लगी| एक बार फिर संगीता की युक्ति काम कर गई और मेरे जिस्म में वासना की एक चिंगारी फूटी! मैंने अपने बाएँ हाथ को संगीता की कमर पर से ले जाते हुए, उसकी पीठ पर फिराना शुरू कर दिया| "ससस" संगीता के मुख से एक मादक सिसकारी फूटी जिसे सुन मैं होश में आया! मुझे याद आया की मैं यहाँ अपनी पत्नी का दर्द कम करने आया था न की वासना की आग में जलने!

मैंने खुद को सँभाला और धीरे-धीरे संगीता के दाएँ पयोधर का सारा दूध खत्म कर मैं हटने लगा तो संगीता ने प्यारभरे गुस्से से मुझे देखा तथा अपना बाएँ पयोधर की तरफ इशारा करते हुए बोली; "इसका दूध कौन पियेगा?" संगीता मुझे इस वक़्त बिलकुल किसी स्कूल की मास्टरनी जैसी लग रही थी और मैं उसका एक उदंड छात्र था जिससे वो ब्लैकबोर्ड पर सवाल हल करने को कह रही थी!

अब मास्टरनी जी का आदेश था इसलिए मैंने बाएँ पयोधर पर अपने मुँह लगा दिया और धीरे-धीरे दूध पीना जारी रखा| मुझे लग रहा था की दूध पीने से केवल मुझे ही आनंद प्राप्त हो रहा होगा मगर मुझसे ज्यादा आनंद तो संगीता को प्राप्त हो रहा था क्योंकि संगीता के दोनों हाथों का दबाव मेरे सर पर अब भी बना हुआ था और उसकी उँगलियाँ अब भी मेरे बालों में विचरण करते हुए अपना जादू चला रहीं थीं, संगीता की ये प्रतिक्रिया साफ़ दर्शाती थीं की मुझे स्तनपान करवा कर उसके दिल में कैसी हिलोरें उठ रहीं हैं|

जब मैंने दोनों पयोधरों का दूध निचोड़ कर खत्म कर दिया तो संगीता ने मेरा चेहरा अपने दोनों स्तन्याशय के बीच दबा दिया| मुझे भी अपने चेहरे पर संगीता के ठंडे-ठंडे उरोजों का स्पर्श अच्छा लग रहा था, मन शांत था इसलिए मैं भी बिना कुछ बोले संगीता से लिपटा रहा|

अब देखा जाए तो इस समय हम दोनों को सो जाना चाहिए था मगर संगीता का मन बातें करने का था| कुछ पल आराम करने के बाद संगीता ने बात शुरू की;

संगीता: जानू...आपको याद है, एक बार गाँव में आपने मेरा दूध पीने की इच्छा जाहिर की थी?

संगीता का सवाल सुन मुझे उस प्यारे दिन की याद आ गई जब संगीता गौने के बाद घर आई थी और हमारे बीच मेरे माँ का दूध पीने को ले कर बात शुरु हुई थी|

मैं: हम्म!

मैंने आँखें मूंदें हुए उन दिनों को याद करते हुए जवाब दिया|

संगीता: तब मैंने आपको खाना बनाते समय गोदी में ले कर दूध पिलाया था मगर तब मुझे दूध नहीं आता था| आपकी इतनी सी इच्छा पूरी न कर पाने पर मुझे बहुत बुरा लगा था| फिर जब नेहा पैदा हुई तो मेरा मन आपकी इस अधूरी इच्छा को पूरा करने का था, परन्तु क़िस्मत ने हमें मिलने नहीं दिया और जब मिलाया भी तो मुझे दूध आना बंद हो चूका था इसलिए आपकी ये इच्छा एकबार फिर अधूरी रह गई| तब आप भले ही अपनी ये इच्छा भूल गए थे मगर मुझे अच्छे से याद थी|

फिर जब पिछलीबार हम गाँव में मिले और हमने एक दूसरे को अपना सर्वस्व सौंप दिया, तब आप ने अपत्यक्ष रूप से अपनी ये इच्छा जाहिर की थी और मैंने आपको कहा था की जब आयुष पैदा होगा और मुझे दूध आएगा तब मैं आपको जर्रूर दूध पिलाऊँगी, लेकिन मेरी बेवकूफी भरे फैसले ने आपको एक बार फिर इस सुख को भोगने से वंचित कर दिया! फिर जब स्तुति पेट में आई तो मैंने सोच लिया की चाहे जो हो इस बार तो मैं आपकी ये इच्छा पूरी कर के रहूँगी| आपके जन्मदिन वाली रात जब आप मेरा दूध पी रहे थे तो मैं आपको बता नहीं सकती की मुझे कितना चैन, कितना सुकून मिल रहा था की मैं आपकी इच्छा पूरी कर रही हूँ, परन्तु उस दिन आपने बस थोड़ा ही दूध पीया जिससे मुझे लगा की आप अपनी इच्छा दबा रहे हो| तब से मैं मौके ढूँढ रही थी की आप से इस बारे में बात कर सकूँ पर क्या करूँ, अपनी शर्म के आगे मुझसे कुछ कहा ही नहीं जाता था| लेकिन आप भी मेरे मन की व्यथा नहीं समझ रहे थे? वैसे तो मेरे दिल में उठी हर इच्छा को आप भांप लेते हो, फिर इस बार कैसे चूक गए? अरे यहाँ तक की मैंने आपसे साफ़-साफ़ भी कहा की स्तुति पूरा दूध नहीं पीती है, इसका मतलब था की बचा हुआ दूध आप पी लो लेकिन जनाब तो ब्रैस्ट पंप लाने को तैयार हो गए! एक साथ तीन-तीन साइट सँभालने वाला इतना समझदार व्यक्ति अपनी पत्नी के साफ़ इशारे को कैसे नहीं समझ पाया?

संगीता की बातों में प्यारा सा गुस्सा झलकने लगा था| वहीं मुझे अपने इस कदर बुद्धू होने पर हँसी आ रही थी पर मैं अपनी हँसी दबाये हुए था!

संगीता: चलो मेरे मन की बात नहीं समझ पाए, कोई बात नहीं! लेकिन अपनी इच्छा क्यों मार रहे थे आप? मैं जानती हूँ की आपका कितना मन था दूध पीने का, फिर क्यों आपने मुझसे नहीं कहा? अपनी पत्नी से कैसी शर्म?

जब संगीता ने ये बात कही तो मुझे बड़ी शर्म आई की संगीता ने कितनी आसानी से मेरे मन में छिपी दूध पीने की इच्छा को पकड़ लिया था! खैर, शर्म के मारे मैंने चुप रहना ठीक समझा और संगीता के सवाल से बचना चाहा|

उधर संगीता को अपने इस सवाल का जवाब तो चाहिए ही था इसलिए उसने करवट ले कर मुझे अपने नीचे दबाया तथा मेरी आँखों में देखते हुए बोली;

संगीता: जवाब दो?

संगीता की आवाज में प्यार और जिज्ञासा का मिला-जुला रूप दिख रहा था इसलिए मैंने शर्माते हुए जवाब दिया;

मैं: वो...न...मेरा मन कह रहा था की मैं अपनी बिटिया के हिस्सा का दूध पी कर उसका हक़ मार रहा हूँ!

ये कहते हुए मेरी नजरें झुक गईं| मेरी कही इस बात ने मुझे अपनी बेटी के हिस्सा का दूध पीना का दोषी बना कर ग्लानि का बोध करा दिया था|

जैसे ही संगीता को मेरे मन में पनपी ग्लानि का पता चला उसने मेरी ठुड्डी पकड़ ऊपर की ओर उठाई और मेरी नजरों स नजरें मिलाते हुए बोली;

संगीता: क्यों ऐसी फज़ूल की बातें सोचते हो? अगर आपके दूध पीने से स्तुति भूखी रहती तब मैं आपकी ये बात मान भी लेती, लेकिन यहाँ तो स्तुति के दूध पीने के बाद दूध बच जाता है जिसे मैं आपको पिलाना चाह रही हूँ| तो इसमें क्या बुराई है?

संगीता ने तर्क के साथ मुझे बात समझाई थी और ये बात मेरे पल्ले भी पड़ गई थी|

मैं: ठीक है जान, लेकिन मेरी भी एक शर्त है| पहले स्तुति दूध पीयेगी और फिर जो दूध बचेगा वो मैं पीयूँगा!

मेरी भोलेपन से भरी बात सुन संगीता मुस्कुराने लगी और बोली;

संगीता: ठीक है जानू!

ये कहते हुए संगीता ने मेरे होठों से अपने होंठ मिला दिए| फिर शुरू हुआ रसपान का दौर जो की प्रेम-मिलाप पर जा कर खत्म हुआ| मेरा पेट भरा था और संगीता की आत्मा संतुष्ट थी इसलिए हम दोनों को चैन की नींद आई|

[color=rgb(163,]जारी रहेगा भाग - 19 में...[/color]
 

[color=rgb(44,]इकत्तीसवाँ अध्याय: घर संसार[/color]
[color=rgb(251,]भाग - 19[/color]


[color=rgb(71,]अब तक अपने पढ़ा:[/color]

मैं: ठीक है जान, लेकिन मेरी भी एक शर्त है| पहले स्तुति दूध पीयेगी और फिर जो दूध बचेगा वो मैं पीयूँगा!

मेरी भोलेपन से भरी बात सुन संगीता मुस्कुराने लगी और बोली;

संगीता: ठीक है जानू!

ये कहते हुए संगीता ने मेरे होठों से अपने होंठ मिला दिए| फिर शुरू हुआ रसपान का दौर जो की प्रेम-मिलाप पर जा कर खत्म हुआ| मेरा पेट भरा था और संगीता की आत्मा संतुष्ट थी इसलिए हम दोनों को चैन की नींद आई|

[color=rgb(26,]अब आगे:[/color]

सर्दी
के दिनों की रातें लम्बी होती हैं और जब आपके पहलु में आपका सनम हो तो कौन कम्बख्त सुबह उठता है?! ऊपर से माँ ने भी अधिक सर्दी होने पर किसी को भी कमरे से बाहर निकलने से मना कर रखा था| माँ सुबह जल्दी उठतीं और टी.वी. पर भजन देख थोड़ी खबरें देखने लगतीं, खबरों में उनकी रूचि केवल मौसम की जानकरी सुनने की होती थी ताकि वो ये निर्णय ले पाएँ की आज मुझे और बच्चों को घर से बाहर निकलने देना है या नहीं?! जिस दिन सुबह सर्दी अधिक होती, कोहरा अधिक होता, बारिश हो रही होती तो माँ बच्चों के स्कूल की छुट्टी करवा देतीं और उन्हें रज़ाई में अपने पास चिपका कर सोने को कहतीं| एक-दो बार नेहा ने कहा भी की उसे स्कूल जाना है परन्तु बारिश होने के कारण माँ ने उसे जाने से मना कर दिया; "बेटा, बारिश में भीग जाओगे तो बीमार पड़ जाओगे| पहले सेहत, बाद में पढ़ाई|" माँ ने नेहा को समझाया और उसे जबरदस्ती अपने से लिपटा कर लेट गईं| माँ के इस तरह अचानक स्कूल की छुट्टी करवा देने से आयुष को बड़ा मज़ा आता था, वो अपनी दादी जी के स्कूल जाने से मना करने से इतना खुश होता की वो माँ से कस कर लिपट जाता और चैन से 10 बजे तक सोता रहता|

इधर मुझे भी 10 बजे से पहले स्तुति को कमरे से बाहर लाने के लिए माँ ने सख्त मनाही कर रखी थी क्योंकि कमरे से बाहर आते समय सुबह की सर्द हवा लगने से स्तुति बीमार हो सकती थी| जब थोड़ी बहुत धुप निकलती, तभी स्तुति को कमरे से बहार निकलने की इजाजत थी वरना अगर मौसम ठंडा रहता तो 24 घंटे स्तुति वाले कमरे में हीटर चला कर रखा जाता जिससे स्तुति को ठंडी न महसूस हो| अब चूँकि सर्दी की रातें बड़ी होती थीं इसलिए स्तुति भूख लगने के कारण अक्सर सुबह जल्दी उठ जाती और कुनमुना कर आवाज कर मुझे जगा देती| संगीता उसे दूध पिलाती और दूधधु पी कर स्तुति मुझसे लिपट जाती| फिर हम बाप-बेटी के कहकहों की आवाजें घर में गूँजने लगतीं| कई बार हमारी कहकहों की आवाज़ सुन नेहा मेरे पास दौड़ आती और हम तीनों लिपट कर खिलखिला कर हँसने लगते| हम तीनों के हँसने से संगीता की नींद खराब हो जाती थी इसलिए वो उठ कर या तो चाय बनाने लगती या फिर माँ के पास जा कर सो जाती|

स्तुति का मेरे साथ मोह इतना था की जबतक वो जाग रही होती तबतक वो मेरी गोदी में ही रहती| मैं कहीं उसे गोदी से उतार न दूँ इसलिए स्तुति अपनी छोटी सी मुठ्ठी में मेरा स्वेटर पकड़ लेती या फिर मेरी ऊँगली थामे रहती| अब मुझे जाना होता था साइट पर तो मैं स्तुति को सुला कर फिर निकलता, लेकिन सोते समय भी स्तुति होशियारी दिखाते हुए मेरी ऊँगली कस कर पकड़ लेती थी| बड़ी मुश्किल से मैं स्तुति की मुठ्ठी से अपनी ऊँगली छुड़ाता और काम पर निकलता|

जब स्तुति जागती और मुझे अपने पास न पाती तो वो रोने लगती| एक नन्ही सी बच्ची के रोने से सारा घर दहल जाता था, संगीता कितना ही लाड-दुलार करती की स्तुति चुप हो जाए लेकिन कोई असर नहीं| माँ स्तुति को ले कर छत पर टहला लातीं मगर स्तुति फिर भी चुप नहीं होती, वो तो तभी चुप होती थी जब वो रोते-रोते थक जाती थी|

ऐसे ही एक दिन की बात है, रविवार का दिन था और मुझे काम पर निकलना था इसलिए मैं स्तुति को लाड कर सुलाना चाहता था मगर मेरी बिटिया रानी को जैसे एहसास हो गया था की मैं उसे सुला कर काम पर निकल जाऊँगा इसलिए वो सो ही नहीं रही थी| मुझे देखते हुए स्तुति अपनी नन्ही सी जीभ बाहर निकाल कर मेरा मन मोहने में लगी थी| ऐसा लगता था मानो वो कह रही हो की 'पापा जी मैं भी देखती हूँ आप मुझे कैसे सुलाते हो?' जब घंटे भर तक कोशिश करने के बाद भी स्तुति नहीं सोई तो माँ मुस्कुराते हुए बोलीं; "आज काम पर मत जा!" परन्तु साइट पर लेबर को पैसे देने थे इसलिए मेरा जाना जर्रूरी था, जब मैंने ये बात माँ को बताई तो माँ बोलीं की स्तुति को अपने साथ ले जा| स्तुति को घर से बाहर ले जाकर सँभालना मुश्किल था क्योंकि स्तुति के साथ होने से मेरा मन काम में नहीं लगता, मैं उसे गोदी में ले कर टहलते-टहलते कहीँ निकल जाता|

इधर स्तुति की मस्तियाँ जारी थीं, उसे क्या मतलब था की उसके पापा जी साइट पर जाएँ या नहीं?! हार मानते हुए मैंने सोचा की आज साइट पर नहीं जाता इसलिए स्तुति को अपने गले लगा मैं एक आरामदायक कुर्सी पर आँखें बंद कर के चुप-चाप बैठ गया| अपनी बिटिया का प्रेम देख कर मेरा मन इस वक़्त बहुत प्रसन्न था और प्रसन्न मन होने के कारण मुख से पहला नाम भगवान जी का निकला; "राम"! भगवान जी का नाम होठों पर आते ही मैंने धीरे-धीरे जाप शुरू कर दिया; "राम-राम...राम-राम...राम-राम"! भगवान जी के नाम का जाप करते हुए मैंने दाएँ-बाएँ हिलना शुरू कर दिया था| आज यूँ अपनी बिटिया को गोदी में लिए हुए भगवान जी के नाम का जाप करने से मुझे एक अलग प्रकार की शान्ति अनुभव हो रही थी|

उधर मेरे इस तरह भगवान जी के जाप करने का असर स्तुति पर भी दिखने लगा था| राम-राम के जाप को सुन मेरी बिटिया का मन बड़ा प्रसन्न हुआ और वो मुझसे लिपटे हुए धीरे-धीरे निंदिया रानी कीगोदी में चली गई| आधे घंटे बाद मैं भगवान जी के नाम का जाप करते हुए असल दुनिया में लौटा, मुझे ख्याल आया की मुझे तो साइट पर जाना था! तब मैंने गौर किया तो पाया की स्तुति मेरे सीने से लिपटी हुई सो चुकी है| स्तुति के इस तरह भगवान जी का नाम सुनते हुए सो जाने से मुझे बहुत प्रसन्ता हुई| मैंने धीरे से स्तुति को माँ के पास लिटाया और उन्हें संक्षेप में सारी घटना बताई, मेरी बात सुन माँ को भी बहुत ख़ुशी हुई और वो बोलीं; "मेरी शूगी बड़ी हो कर बहुत धार्मिक होगी, देख लियो!" माँ को इस वक़्त स्तुति पर बहुत गर्व हो रहा था की इतनी छोटी सी बच्ची केवल भगवान जी के नाम का जाप को सुन कर शान्ति सो गई!

मैं फटाफट काम पर निकला ताकि स्तुति के जागने से पहले घर लौट आऊँ मगर ट्रैफिक में फँसने के कारण मैं साइट पर देर से पहुँचा| अभी मैं लेबर को पैसे दे ही रहा था की घर से फ़ोन आ गया| दरअसल स्तुति की नींद खुल गई थी और मुझे अपने पास न पा कर उसने रोना शुरू कर दिया था| जब माँ, आयुष, संगीता और नेहा ने एक-एक कर स्तुति को चुप कराने में असफल हुए तो नेहा ने एक तरकीब निकाली| उसने स्तुति को बिस्तर पर तकियों से बना हुआ 'राज़ सिंहासन' बना कर बिठाया और मुझे वीडियो कॉल मिला दिया|

"पापा जी, ये गन्दी बच्ची बस रोये जा रही है! आप इसे चुप कराओ!" नेहा अपनी छोटी बहन स्तुति से नाराज़ होते हुए बोली और फ़ोन की स्क्रीन स्तुति की तरफ कर दी| स्तुति तकियों का सहारा ले कर बैठी थी और रो-रो कर उसने अपना चेहरा खराब कर लिया था| "Awwww मेरा छोटा सा प्यारा सा बच्चा! रोते नहीं बेटा..." मैंने स्तुति को चुप कराने के लिए कहा| फ़ोन में से आती हुई मेरी आवाज़ सुन स्तुति का ध्यान फ़ोन पर केंद्रित हो गया| मेरा चेहरा फ़ोन स्क्रीन पर देख स्तुति का रोना रुक गया, स्तुति को लगा जैसे मैं उसके सामने ही हूँ इसलिए उसने मुझे अपनी बाहों में कसने के लिए अपनी दोनों बाहें फैला दी| इधर मैंने जब फ़ोन पर अपनी बिटिया को यूँ बाहें फैलाये देखा तो मेरी इच्छा स्तुति को गोदी में ले कर लाड करने की हुई मगर मैं तो इस वक़्त घर से दूर था!

उधर स्तुति फ़ोन की स्क्रीन पर मुझे देखते हुए किलकारियाँ मारने लगी, मानो कह रही हो की 'पापा जी मुझे गोदी ले लो!' "Awww मेरा बच्चा...मैं थोड़ी देर में घर आ रहा हूँ...फिर आपको गोदी ले कर खूब सारी पारी (प्यारी) करूँगा!" मैंने स्तुति को समझना चाहा मगर स्तुति को कहाँ कुछ समझ आता वो तो बस मुझे पकड़ने के लिए अपनी दोनों बाहें फैलाये आगे की ओर झुक रही थी| स्तुति कहीं सामने की ओर लुढ़क न जाए इसलिए नेहा ने फ़ोन स्तुति के हाथों के नज़दीक पकड़ लिया| जैसे ही फ़ोन स्तुति के हाथों के पास आया, स्तुति ने अपने दोनों हाथों से फ़ोन पकड़ा और मुझे पप्पी करने के इरादे से फ़ोन की स्क्रीन पर अपने होंठ चिपका दिए!

स्तुति के फ़ोन की स्क्रीन को पप्पी देने से मुझे अपनी स्क्रीन पर कुछ नज़र नहीं आ रहा था, बस स्तुति की साँसों की आवाज और उसके मुख से निकलने वाली प्यारी-प्यारी आवाज़ सुनाई दे रही थी| उधर नेहा ने जब अपनी छोटी बहन को फ़ोन को पप्पी करते देखा तो वो खिलखिला कर हँसने लगी| "अले मेला बच्चा...पापा जी को फ़ोन पर पप्पी दे रहा है?!" मैंने इधर से तुतलाते हुए बोला| स्तुति को मेरे इस तरह तुतलाने कर बात करने पर बड़ा मज़ा आता था, अभी भी जब उसने मेरी आवाज़ सुनी तो उसने और जोर से फ़ोन की स्क्रीन को चूमना शुरू कर दिया| अपने पापा जी को फ़ोन पर पप्पी देने के चक्कर में स्तुति की लार रुपी प्यार फ़ोन के स्पीकर और हैडफ़ोन जैक के जरिये, फ़ोन के भीतर पहुँच गई और फ़ोन एकदम से बंद हो गया! शुक्र है की स्तुति को करंट या चोट नहीं आई थी!

करीब मिनट भर जब फ़ोन से कोई आवाज़ नहीं आई तो नेहा ने स्तुति की पकड़ से फ़ोन जबरदस्ती छुड़ाया और देखा तो फ़ोन स्तुति की लार से गीला होकर बंद हो चूका है! उधर जैसे ही नेहा ने स्तुति के हाथ से फ़ोन खींचा गया, स्तुति ने फिर से रोना शुरू कर दिया| नेहा ने अपनी दादी जी, माँ और आयुष को बुला कर पूरी घटना सुनाई तो सभी ने हँसी का ठहाका लगाया| बड़ा ही अजीब दृश्य था, एक तरफ मेरी बेचारी बिटिया अपने पापा जी के वियोग में रो रही थी, तो दूसरी तरफ परिवार के बाकी जन उसकी अबोध हरकतों पर हँस रहे थे!

जब सब का हँसना हो गया तो संगीता ने स्तुति को गोदी में लिया और उसे प्यारभरी डाँट लगाते हुए बोली; "शैतान लड़की! अपने पापा जी को पप्पी देने के चक्कर में तूने मेरा फ़ोन खराब कर दिया! अब जा कर इसे ठीक करवा कर ला!" अपनी मम्मी की प्यारी सी डाँट सुन स्तुति ने और जोर से रोना शुरू कर दिया! तब माँ ने स्तुति को गोदी में लिया और बड़ी मुश्किल से चुप करवा कर सुला दिया|

इधर मैंने फटाफट काम निपटाया और मैं घर के लिए निकल पड़ा| तीन बजे मैंने घर में घुसते ही स्तुति को पुकारा, मेरी आवाज सुन स्तुति जाग गई और मुझे बुलाने के लिए उसकी किलकारियाँ घर में गूँजने लगीं| मैं दौड़ते हुए अपने कमरे में घुसा और स्तुति को देखा तो वो अपनी बाहें उठाये मुझे आस भरी नजरों से देख रही थी की मैं उसे गोदी में लूँ और लाड-प्यार करूँ| "आजा मेरा बच्चा!" कहते हुए मैंने स्तुति को गोदी में लिया और उसके पूरे चेहरे को चूमने लगा| मेरी गोदी में आ कर स्तुति खिलखिलाने लगी और मेरे बाएँ गाल पर अपनी मीठी-मीठी पप्पी दे मेरा गाल गीला करने लगी|

इतने में संगीता कमरे में आई और मुझे अपना फ़ोन देते हुए बोली; "मेरा फ़ोन आपकी लाड़ली ने खराब कर दिया है! इसे ठीक करवा कर लाओ वरना दोनों बाप-बेटी को खाना नहीं दूँगी!" संगीता मुझे प्यारभरा आदेश देते हुए बोली| संगीता का प्यारा सा आदेश सुन मैं हँस पड़ा और स्तुति को गर्म कपड़े पहना कर संगीता का फ़ोन ठीक करवाने चल पड़ा| घर के पास फ़ोन ठीक करने की एक दूकान थी जिसे एक वृद्ध अंकल जी चलाते थे, मैंने उन्हें फ़ोन दिया तो उन्होंने फ़ोन की खराबी का कारण पुछा; " वीडियो कॉल के दौरान मेरी लाड़ली बिटिया ने मुझे फ़ोन पर इतनी प्यारी-प्यारी पप्पी दी की फ़ोन बंद हो गया!" मेरी बात सुन अंकल जी ने स्तुति को देखा और हँस पड़े| अंकल जी ने फ़ोन खोला और कुछ पार्ट सुखा कर फ़ोन चालु कर दिया| जब मैंने पैसे पूछे तो वो मुस्कुराते हुए बोले; "अरे इतनी प्याली-प्याली बिटिया से प्यारी सी गलती हो गई तो उसके पैसे थोड़े लेते हैं?!" अंकल ने स्तुति के गाल पर हाथ फेरा और अपनी उँगलियाँ चूम ली| मुझे अंकल जी का पैसे न लेना अच्छा नहीं लगा रहा था इसलिए मैंने स्तुति के हाथों से अंकल जी को पैसे दिलवाये तब जा कर उन्होंने माँ लक्ष्मी का आशीर्वाद समझ कर पैसे लिए| घर आ कर मैंने ये बात माँ को बताई तो माँ स्तुति के सर पर हाथ रखते हुए बोलीं; "हमारी लाड़ली बिटिया इतनी प्यारी है की इसे देखते ही सामने वाले का दिल पिघल जाता है| भगवान बुरी नज़र से बचाये मेरी शूगी को!" माँ ने स्तुति को आशीर्वाद दिया और उसके सर से बलायें वारीं|

इधर आज की घटना को देख आयुष ने अपना दिमाग लड़ा कर भविष्य में मेरी गैरहाजरी में स्तुति को कैसे चुप कराना है इसका जुगाड़ लगा लिया था| चूँकि स्तुति बस मुझे देख कर ही चुप होती थी इसलिए आयुष आज पूरा दिन मेरी फोटो फ्रेम की हुई तस्वीर ढूँढने में लगा था| हाल-फिलहाल में मेरी कोई भी ऐसी तस्वीर फोटो फ्रेम नहीं कराई गई थी इसलिए स्टोर रूम में खोज-बीन कर आयुष ने मेरे बचपन की फोटो फ्रेम की हुई तस्वीर ढूँढ निकाली| आयुष ने वो फोटो ला कर स्तुति को दिखाई और बोला: "ये देखो स्तुति, पापा जी की फोटो!" अपने बड़े भैया की बात सुन स्तुति का ध्यान फोटो पर केंद्रित हो गया, परन्तु स्तुति उस फोटो में मुझे देख पहचान न पाई| आँखों में सवाल लिए हुए स्तुति उस फोटो को देख रही थी, अपनी छोटी बहन की उलझन दूर करने के लिए आयुष ने इशारे से स्तुति को समझना चाहा की ये फोटो पापा जी की है लेकिन स्तुति कुछ नहीं समझी! तभी आयुष ने अपनी तरकीब लड़ाई और मेरी तस्वीर के गाल पर पप्पी की| स्तुति ने जब अपने बड़ी भैया को ये करते हुए देखा तो उसे बड़ा मज़ा आया और वो ख़ुशी से किलकारियाँ मारने लगी| आयुष ने तस्वीर स्तुति के होठों के आगे की तो स्तुति ने तस्वीर अपने नन्हे-नन्हे हाथों से पकड़ी और अपने होंठ तस्वीर से लगा कर पप्पी देने लगी| तभी आयुष ने शोर मचा कर सभी को इकठ्ठा किया और सभी को ये प्यारा दृश्य दिखाया| सभी ने स्तुति को मेरी तस्वीर की पप्पी लेते हुए देखा तो सभी ने एक-एक कर स्तुति के सर को चूम कर अपना आशीर्वाद दिया|

आयुष की ये युक्ति अच्छी थी परन्तु हरबार काम नहीं करती थी, जब स्तुति का मूड अच्छा होता तभी वो मेरी तस्वीर की पप्पी ले कर चुप हो जाती वरना स्तुति का रोना जारी रहता था|

अगले दिन जब मैं तैयार हो कर आया तो मुझे देख जैसे स्तुति मेरी सारी चाल समझ गई, वो जान गई थी की अब मैं उसे सुला कर काम पर चला जाऊँगा इसलिए स्तुति मेरी गोदी में आकर भी चैन नहीं ले रही थी| वो बार-बार कुछ न कुछ खेलने में मेरा ध्यान भटका रही थी| "मेरा प्याला बच्चा, जानबूझ कर मुझे काम पर जाने नहीं दे रहा न?!" मैंने स्तुति की ठुड्डी पकड़ कर कहा तो स्तुति ने मुझे अपनी जीभ दिखाई, मानो वो अपनी होशियारी पर नाज़ कर रही हो| मैं स्तुति को गोदी में लिए हुए माँ के पास आया और उन्हें अपना प्यारभरा आदेश देते हुए बोला; "माँ, जल्दी से आप दोनों सास-पतुआ तैयार हो जाओ! हम चारों साइट पर जा रहे हैं!" मेरी बात सुन माँ हँस पड़ीं और स्तुति के गाल खींचते हुए बोलीं; "ये शैतान लड़की मुझे चैन से बैठने नहीं देगी!" माँ के इस प्यारभरे उलहाने का मतलब था की चूँकि स्तुति मेरी गोदी से उतर नहीं रही इसलिए हम तीनों को साइट पर जाना पड़ रहा है|

स्तुति के लिए गाडी में जाने के लिए मैं एक ख़ास कुर्सी मैं गाडी में पहले ही लगा चूका था| जैसे ही स्तुति को मैंने उस गद्देदार कुर्सी पर बिठाया स्तुति की किलकारियाँ गाडी में गूँजने लगीं| अब मुझे चलानी थी गाडी इसलिए मैं आगे बैठा था, मुझसे इतनी सी दूरी भी स्तुति से बर्दाश्त नहीं हुई और उसने अपने दोनों हाथ मेरी गोदी में आने के लिए बढ़ाते हुए कुनमुना शुरू कर दिया| "बेटा मैं गाडी चलाऊँगा, आप पीछे बैठो आराम से|" मैंने स्तुति को तुतला कर समझाया| 10 मिनट लगे स्तुति को ये भरोसा दिलाने में की मैं उसके साथ ही गाडी में जा रहा हूँ| जब गाडी चली तो संगीता ने पीछे बैठे हुए स्तुति का ध्यान खिड़की से बाहर देखने में लगा दिया| पूरे रास्ते स्तुति की किलकारियाँ गाडी में गूँजती रहीं और उसकी इन किलकारियों में डूब हम सभी बहुत प्रसन्न थे|

जब हम साइट पर पहुँचे तो स्तुति को मेरी गोदी में देख लेबर ने "छोटी मलकिन" कह शोर मचाया और हमें घेर लिया| स्तुति आज पहलीबार साइट पर आई थी इसलिए सभी ने लड्डू की माँग की| विधि की विडंबना देखो, जिस बच्ची के आने की ख़ुशी में लड्डू मँगाए गए थे, वही बेचारी बच्ची वो लड्डू नहीं खा सकती थी! लेबर लड्डू खा कर स्तुति को आशीर्वाद दे रही थी, फिर मैंने स्तुति को आगे करते हुए सारी लेबर को आज का काम सौंप दिया; "आपकी छोटी मलकिन कह रहीं हैं की आज सारी चुनाई का काम पूरा हो जाना चाहिए वरना वो दुबारा आपसे मिलने नहीं आएँगी!" इतना सुनना था की सारी लेबर हँस पड़ी| "भैया, आप चिंता न करो| आज चुनाई का काम पूरा किये बिना हम में से कोई घर घर नहीं जाएगा| और तो और आपको आज हमें ओवरटाइम भी नहीं देना पड़ेगा!" लेबर दीदी सभी लेबरों की तरफ से बोलीं| दीदी की बात सुन सभी लेबरों ने एक सुर में हाँ में हाँ मिलाई और काम पर लग गई|

इतने में मिश्रा अंकल जी आ गए, वो दरअसल कुछ काम से निकले थे रास्ते में मेरी गाडी देखि तो वो मुझसे मिलने आ गए| जब उन्होंने पूरे परिवार को देखा और खासकर स्तुति को मेरी गोदी में देखा तो वो मुस्कुराते हुए स्तुति से बोले; "अरे हमारी बिटिया रानी काम देखने आई है?" मिश्रा अंकल जी की बात सुन स्तुति खिलखिला कर हँस पड़ी| तभी संगीता ने बीच में बोलकर स्तुति की शिकायत अंकल जी से कर दी; "ये शैतान इनको काम पर जाने नहीं देती! सारा टाइम इनकी गोदी में चढ़ी रहती है!" स्तुति के बारे में शिकायत सुन मिश्रा अंकल जी मुस्कुराये और अपनी बिटिया के छुटपन की बातें बताते हुए बोले; "बहु, लड़कियाँ होवत ही हैं बाप की लाड़ली! हमार मुन्नी जब दुइ साल की रही तो ऊ बहुत शैतान रही! जब हम काम से बाहर जाए लागि, ऊ हमार जूता-चप्पल छुपाये देत रही! ओकरे आगे तो हमार स्तुति बिटिया तो बहुत प्यारी है!" मिश्रा अंकल जी स्तुति के गाल को छू अपनी ऊँगलियाँ चूमते हुए बोले|

मिश्रा अंकल जी ने बातों-बातों में स्तुति के मुंडन के बारे में पुछा| दरअसल हमारे गाँव के नियम के अनुसार, बच्चा पैदा होने के सालभर के भीतर मुंडन करवाना अनिवार्य होता है| अभी घर में किसी ने स्तुति के मुंडन पर कोई चर्चा नहीं की थी परन्तु मैं अपना मन पहले ही बना चूका था; " अंकल जी, मेरी लाड़ली बिटिया का मुंडन हम मार्च-अप्रैल के महीने में हरिद्वार में करवाएंगे|" मैं जोश से भरते हुए बोला| मेरा बचपने और जोश से भरी बात उन सब मुस्कुरा दिए| अंकल जी ने मेरी पीठ थपथपाई और अपने घर निकल गए|

हम चारों भी घर के लिए निकले परन्तु बच्चों के स्कूल छूटने का समय हो रहा था इसलिए हम सब सीधा बच्चों के स्कूल पहुँचे| बच्चों के स्कूल की छुट्टी होने में 5-7 मिनट बचे थे इसलिए मैं स्तुति को गोदी में लिए हुए गाडी के बाहर खड़ा हो गया| मैंने स्तुति को अपना स्कूल दिखाया और बड़े गर्व से बोला; "बेटा, आपको पता है...आपके पापा जी इसी स्कूल में पढ़े हैं| आप भी जब बड़े होंगे न तो आप भी इसी स्कूल में पढोगे|" मेरी गर्व से भरी बात सुन स्तुति को पता नहीं कैसा लगा की उसने स्कूल की तरफ अपना दायाँ हाथ बढ़ा दिया, मानो वो स्कूल पर अभी से अपना हक़ जमा रही हो!

बच्चों के स्कूल की घंटी बजी तो सारे बच्चे अपना स्कूल बैग टांगें दौड़ते हुए बाहर निकले| स्तुति ने जब इतने सारे बच्चों को दौड़ लगा कर अपनी तरफ आते हुए देखा तो उसे बहुत मज़ा आया और उसकी किलकारियाँ शुरू हो गईं| वो हर बच्चे की तरफ अपना दायाँ हाथ बढ़ा रही थी, मानो सभी को ताली दे रही हो| इतने में आयुष और नेहा अपना स्कूल बैग टांगें, हाथ पकड़े हुए बाहर आये| आयुष की नज़र मुझ पर पड़ी और वो अपनी दीदी को खींच कर मेरे पास ले आया| स्तुति मेरी गोदी में थी इसलिए मैं उकड़ूँ हो कर नीचे बैठा तथा तीनों बच्चों को जैसे-तैसे अपने गले लगा लिया| फिर मैंने बच्चों को गाडी की तरफ इशारा किया जहाँ उन्हें उनकी मम्मी और दादी जी बैठे हुए नज़र आये| इस छोटे से प्यारभरे सरप्राइज से दोनों बच्चे बहुत खुश हुए और हम सभी हँसते-खेलते घर पहुँचे|

दिन प्यार से बीत रहे थे और मेरी प्यारी बेटी नेहा भी अब जिम्मेदार होती जा रही थी, उसके भीतर मुझे खोने का डर अब काफी कम हो चूका था| माँ दोनों बच्चों को अपनी निगरानी में थोड़ी-थोड़ी जिम्मेदारियाँ दे कर भविष्य के लिए तैयार करती जा रहीं थीं| आस-पास की दूकान से सामान लेने के लिए माँ ने बच्चों को भेजना शुरू कर दिया था तथा वापस आने पर माँ दोनों बच्चों से किसी बनिए की तरह हिसाब लेतीं| बच्चे भी बड़े जागरूक थे, वो फट से पूरा हिसाब माँ को समझाते थे| नेहा ने मुझे हिसाब लिखते हुए देखा था इसलिए उसने भी लिख कर माँ को हिसाब देने शुरू कर दिया था| ऐसा नहीं था की मेरी माँ कंजूस थीं, वो तो बस बच्चों को ज़िन्दगी में पैसों को सँभालना सीखा रहीं थीं| बच्चों की लगन देख माँ बच्चों को इनाम में कभी आइस-क्रीम तो कभी चॉकलेट देतीं, जिससे बच्चों का उत्साह बढ़ता था|

जब भी घर में मेहमान आते तो माँ नेहा को अपने पास बिठातीं ताकि नेहा बातें कैसे की जाती हैं सीख सके| गाँव-देहात में बड़े, बच्चों को बातों में शामिल नहीं करते क्योंकि बच्चों को बात करने का सहूर नहीं होता| लेकिन मेरी बेटी नेहा बातें समझने और करने में बड़ी कुशल थी| वो पूरी बात सुनती थी और बड़े अदब से जवाब देती थी| माँ के इस तरह से हर बात में उसे शामिल करने से नेहा के भीतर आत्मविश्वास बढ़ता जा रहा था|

हर महीने जब घर का बजट बनता, तो माँ ख़ास कर नेहा को हिसाब-किताब में शामिल करतीं और उसे ही पंसारी का सारा सामान लिखने को कहतीं| एक-आध बार नेहा से हिसाब में गलती हुई तो नेहा ने सर झुका कर अपनी गलती स्वीकार की, माँ ने नेहा को डाँटा नहीं बल्कि उसके सर को चूमते हुए उसे उसकी गलती दुरुस्त करने का मौका दिया|

इसी तरह से एक बार नेहा के एक दोस्त के घर में जन्मदिन की पार्टी थी और नेहा को निमंत्रण मिला था| नेहा पार्टी में जाना तो चाहती थी परन्तु अकेले जाने से डरती थी इसलिए वो आस भरी नजरों से मुझे देख रही थी की मैं उसके साथ चलूँ| जाने को मैं उसके साथ जा सकता था परन्तु फिर नेहा का डर खत्म नहीं होता इसलिए मैंने काम में व्यस्त होने का बहना बनाया| मेरे न जाने से नेहा निराश हो गई और उसने पार्टी में न जाने का निर्णय ले लिया| "बेटा, इस तरह अकेले पार्टी में जाने के डर से भागोगे तो आगे चल कर कहीं अकेले घूमने कैसे जाओगे?" मेरे पूछे सवाल से नेहा चिंतित हो गई| मैंने नेहा को अपना उदाहरण दे कर समझाया; "बेटा, आप तो इतने छोटे हो कर कहीं अकेले जाने से डर रहे हो! मैं तो जब 18 साल का हो गया था तब भी कहीं अकेले जाने से डरता था! हर जगह मैं या तो आपके दिषु चाचू या फिर आपके दादा जी के साथ जाता था| लेकिन फिर मुझे एक दिन मेरे बॉस ने ऑडिट के लिए ग़ाज़ियाबाद जाने का आदेश दिया| तब मैं भी आप ही की तरह अकेले जाने से घबरा गया था, अब अगर मैं अपना ये डर आपके दादा जी को बताता तो वो गुस्सा करते इसलिए मैंने खुद हिम्मत इकठ्ठा की और अकेले ऑडिट पर गया| शुरू-शुरू में डर लगा था लेकिन फिर ऑफिस में बाकी लोगों के साथ होने से मेरा डर जल्दी ही खत्म हो गया| आपको जो डर अभी लग रहा है ये बस कुछ समय के लिए है, एक बार आपने अपनी कमर कस ली तो देखना ये डर कैसे छू मंतर हो जायेगा!" मैंने नेहा के भीतर पार्टी में अकेले जाने का आत्मविश्वास जगा दिया था| "बेटा, ऐसा नहीं है की पार्टी में जा कर आपको कुछ ख़ास करना होता है| आप वहाँ सबसे उसी तरह पेश आओ जैसे यहाँ सब के साथ आते हो| वहाँ जो आपके दोस्तों का ग्रुप होगा, उस ग्रुप में जुड़ जाना| कोई अंकल-आंटी आपसे मिलें तो हाथ जोड़कर उन्हें प्यार से नमस्ते कहना| इसके अलावा और कुछ ख़ास थोड़े ही होता है पार्टी में?!" मैंने नेहा के इस डर को लगभग खत्म कर दिया था| फिर नेहा का होंसला बढ़ाने के लिए मैं उसे और स्तुति को ले कर एक अच्छी सी दूकान में पहुँचा और वहाँ हमने नेहा की दोस्त के जन्मदिन की पार्टी के लिए थोड़ी शॉपिंग की| मैंने नेहा को एक सुन्दर से फ्रॉक खरीदवाई और अच्छे सैंडल दिलवाये, साथ ही में मैंने नेहा को टाँगने वाला एक छोटा सा पर्स भी खरीदवाया| नए और सुन्दर कपड़े पहनने से नेहा का आत्मविश्वास कई गुना बढ़ गया था| नेहा के दोस्त को जन्मदिन पर दिए जाने वाला गिफ्ट भी बहुत ख़ास और महँगा था, जिससे नेहा बहुत खुश थी| हम बाप बेटी की इस शॉपिंग का थोड़ा फायदा स्तुति ने भी उठाया| वो जिस भी खिलोने के प्रति आकर्षित होती मैं वो खिलौना खरीद लेता| फिर स्तुति को मैंने कई सारी फ्रॉक दिखाईं, स्तुति जिस भी रंग पर अपना हाथ रख देती मैं उस रंग की 2-4 फ्रॉक खरीद लेता| शॉपिंग कर थक के हम तीनों घर लौटे, स्तुति के लिए खरीदे हुए कपड़े और खिलोने देख माँ हँसते हुए बोलीं; "इतनी छोटी सी बच्ची के लिए इतने कपड़े खरीद लाया तू?!" तब नेहा मेरा बचाव करते हुए बोली; "ये सब इस शैतान लड़की ने किया है दादी जी! ये ही खिलोने और कपड़े पसंद करती थी, पापा जी तो बस पैसे देते थे!" नेहा ऐसे कह रही थी मानो स्तुति खुद चल कर दूकान गई और सारा सामान खरीद लाइ हो और मैंने बस पैसे दिये हों! नेहा को मेरा बचाव करता देख माँ हँस पड़ीं और उसके सर पर हाथ रखते हुए बोलीं; "अपने पापा की चमची!" एक तरह से सच ही था, नेहा मेरे बचाव में बोलने के लिए हमेशा तैयार रहती थी|

शाम को नेहा जब अपनी नई फ्रॉक और पर्स टाँग कर निकली तो उसे देख कर मैंने सीटी बजा दी! मेरी सीटी सुन नेहा शर्मा गई और आ कर मेरी कमर से अपने हाथ लपेट कर छुपने लगी| माँ ने भी नेहा की तारीफ की और उसे आशीर्वाद दिया| आयुष ने जब नेहा को देखा तो वो अपनी दीदी के पास आया और बोला; "दीदी आप बहुत प्रीटी (pretty) लग रहे हो!" इतना कह आयुष अपनी मम्मी का परफ्यूम उठा लाया और जबरदस्ती नेहा को लगा दिया| फिर बारी आई संगीता की, नेहा को फ्रॉक पहने देख संगीता की आँखें चमकने लगी थीं| बजाये नेहा की तारीफ करने के संगीता आँखें नचाते हुए मुझसे खुसफुसा कर बोली; "मेरे लिए भी एक ऐसी ही फ्रॉक ला दो न!" संगीता की बातों में शरारत महसूस कर मेरे चेहरे पर मुस्कान आ गई| मैंने उस एक क्षण में संगीता को फ्रॉक पहने कल्पना कर ली थी और उस क़ातिल कल्पना से मेरे जिम के रोंगटे खड़े होने लगे थे इसलिए हर पल मेरी मुस्कान अर्थपूर्ण मुस्कान में तब्दील होती जा रही थी| हम दोनों मियाँ-बीवी ने मन ही मन हमारे प्रेम-मिलाप में नया तड़का लगाने के लिए नई रेसिपी मिल गई थी!

मैं नेहा और स्तुति गाडी से निकले, स्तुति पीछे अपनी कुर्सी पर बैठी चहक रही थी और आगे हम बाप-बेटी गाना गुनगुना रहे थे| जब नेहा की दोस्त का घर आया तो नेहा को हिम्मत देने के लिए मैंने उसके सर को चूमा और नेहा की पीठ थपथपाते हुए बोला; "मेरा शेर बच्चा! बिलकुल घबराना नहीं है| ये लो मेरा फ़ोन, जब पार्टी खत्म हो तब मुझे फ़ोन कर देना|" मैंने नेहा को अपना दूसरा फ़ोन दिया| नेहा के भीतर बहुत आत्मविश्वास इकठ्ठा हो गया था इसलिए वो गाडी से उतरी और मुझे bye कह कर पार्टी में शामिल हो गई|

रात को जब नेहा पार्टी से लौटी तो नेहा ख़ुशी के मारे चहक रही थी| आज सभी बच्चों ने नेहा की फ्रॉक की तारीफ की थी और सभी बड़ों ने नेहा की तमीज़दारी की बहुत तारीफ की थी| नेहा ने पार्टी के सारे किस्से हमें मजे ले कर सुनाये| हमें ये देख कर बहुत ख़ुशी हुई की नेहा के भीतर एक नया आत्मविश्वास पैदा हो चूका है|

दिसंबर बीता...जनवरी बीता और आ गया आयुष का जन्मदिन| अपने जन्मदिन को ले कर आयुष ख़ासे उत्साह से भरा हुआ था| इस बार आयुष का जन्मदिन हमने घर पर न मना कर बाहर रेस्टोरेंट में मनाया| सबसे पहले आयुष ने अपना केक काटा और हम सभी को बारी-बारी खिलाया| फिर खाने में सब बच्चों ने पिज़्ज़ा मँगाया और सभी ने बड़े मज़े ले कर खाया| आज स्तुति भी बहार आई थी तो अपने आस-पास इतने सारे बच्चे और लोगों को देख वो ख़ुशी से चहक रही थी| एक मीठी सी समस्या थी और वो ये की हम सभी को खाते हुए देख स्तुति का मन भी खाने का था| जब भी मैं कुछ खा रहा होता तो स्तुति अपना हाथ बढ़ा कर खाने को पकड़ने की कोशिश करती| इस समस्या का हल नेहा ने अपनी चतुराई से निकाला, वो स्तुति का ध्यान किसी अन्य वस्तु पर लगाती और चुपके से मुझे पिज़्ज़ा का एक टुकड़ा खिला देती| मुझे अपनी छोटी सी बच्ची को यूँ तरसना अच्छा नहीं लग रहा था मगर अभी स्तुति को कुछ भी खिलाना सही नहीं था| "बेटा, अगले महीने से मैं आपको थोड़ा-थोड़ा खिलाना शुरू करूँगा, तब तक मुझे माफ़ कर दो!" मैंने स्तुति को प्यार से समझाया| स्तुति को शायद मेरी बात समझ आ गई थी इसलिए वो मुस्कुरा कर मुझे देखने लगी|

बच्चों की वार्षिक परीक्षा नज़दीक आ चुकी थी इसलिए दोनों बच्चों ने मन लगा कर पढ़ाई करनी शुरू कर दी थी| नेहा पर आयुष को पढ़ाने का अधिक दबाव न पड़े इसलिए आयुष को पढ़ाने का काम मैंने अपने सर ले लिया| दिक्कत ये की जब मैं आयुष को पढ़ा रहा होता, स्तुति मेरी गोदी में होती थी और उसे अपने बड़ी भैया की किताब देख कर पन्ने फाड़ने का उत्साह आ जाता था| तब मैं स्तुति को पीठ टिका कर बिठा देता और आयुष की रफ़ कॉपी फाड़ने के लिए दे देता, स्तुति इस कॉपी को कभी मुँह में ले कर देखती तो कभी कॉपी के पन्ने अपनी मुठ्ठी में पकड़ फाड़ने की कोशिश करती|

स्तुति को व्यस्त कर मैं आयुष को पढ़ाने लग जाता और उसका ध्यान स्तुति की ओर भटकने नहीं देता| मेरे पढ़ाने के ढंग से आयुष को बड़ा मज़ा आता था क्योंकि मैं बीच-बीच में खाने-पीने के उदहारण देता रहता था जिससे आयुष की पढ़ाई में रूचि बनी रहती थी| हाँ एक बस गणित ऐसा विषय था जिससे मेरी हमेशा फटती थी इसलिए आयुष को गणित पढ़ाते समय मुझे एक बार खुद सब पढ़ना पड़ता था|

जब परीक्षायें शुरू हुईं तो बच्चों का प्रदर्शन अतुलनीय था| नेहा के सारे पेपर अच्छे हुए थे और उसे पूर्ण विश्वास था की वो इस बार अव्वल आएगी| वहीं आयुष भी पीछे नहीं था, उसके भी सारे पेपर फर्स्ट-क्लास हुए थे और उसे भी पूर्ण यक़ीन था की वो भी अपनी क्लास में अव्वल आएगा|

बच्चों की परीक्षायें खत्म होने तक मौसम में काफी बदलाव आया था, गर्मी बढ़ने लगी थी और यही सही समय था हरिद्वार जाने का| फिर मेरे ससुर जी की भी बर्सी आ गई थी तो हरिद्वार में एक पंथ दो काज़ हो सकते थे: स्तुति के मुंडन के साथ-साथ ससुर जी की बर्सी की भी पूजा करवाई जा सकती थी| मैंने भाईसाहब से फ़ोन पर बात कर सारा कार्यक्रम पक्का कर लिया| तय दिन पर हम सभी घर से हरिद्वार के लिए निकले| स्तुति की आज पहली लम्बी यात्रा थी इसलिए स्तुति के आराम का ख्याल रखते हुए मैंने 1AC यानी एग्जीक्यूटिव क्लास की टिकट करवाई| मुश्किल से 4 घंटे की यात्रा थी मगर फिर भी मुझे 1AC की टिकट करवानी पड़ी| घर से निकलते ही स्तुति का चहकना चालु हो गया था, जब हम रेलवे स्टेशन पहुँचे तो वहाँ हो रही अनाउंसमेंट सुन कर तो स्तुति ऐसे किलकारी मारने लगी मानो उसका मन अपनी अनाउंसमेंट करने का हो| हमारी ट्रैन प्लेटफार्म पर लगी तो एक-एक कर हम सभी अपनी-अपनी सीट पर बैठ गए| स्तुति की ख़ुशी देखते हुए खिड़की वाली सीट पर पूरे रास्ते मैं बैठा, स्तुति ने शीशे वाली खिड़की पर अपने दोनों हाथ जमाये और बाहर देखते हुए खिखिला कर हँसने लगी| वहीं आयुष भी पीछे नहीं रहा, वो अपनी कुर्सी से उठ खड़ा हुआ और स्तुति की देखा-देखि अपने दोनों हाथ खिड़की से चिपका कर स्तुति को खिड़की के बाहर की हर चीज़ इशारे कर के दिखाने तथा समझाने लगा| पूरे रास्ते दोनों भाई-बहन (आयुष और स्तुति) की चटर-पटर चलती रही| अब नेहा को दोनों की चटर-पटर से गुस्सा आ रहा था इसलिए वो आयुष को डाँटते हुए बोली; "तू चुप-चाप नहीं रह सकता?! सारा टाइम बकर-बकर करता रहता है!" आयुष पर अपनी दीदी की डाँट का कोई असर नहीं पड़ा, उसने अपनी दीदी को जीभ चिढ़ाई| अपने बड़े भैया की देखा-देखि स्तुति ने भी नेहा को अपनी नन्ही सी जीभ दिखा दी! नेहा गुस्से से तमतमा गई और आयुष को मारने के लिए उठी की मैंने बीच में आ कर आयुष की ओर से माफ़ी माँग नेहा को शानत किया तथा उससे बातें कर उसका ध्यान भंग कर दिया|

हरिद्वार में मैंने सभी के रहने की व्यवस्था पहले ही कर दी थी| भाईसाहब, सासु माँ, भाभी जी, विराट और अनिल हमसे पहले पहुँचे थे और अपने-अपने कमरों में आराम कर रहे थे| हरिद्वार पहुँच कर हम सभी सीधा होटल पहुँचे जहाँ हम सभी से मिले| सब ने एक-एक कर स्तुति को गोदी में लेना चाहा मगर स्तुति किसी की गोदी में जाए तब न?! "मुन्नी, हमरे लगे न आइहो तो हम तोहसे न बोलब!" मेरी सासु माँ अपनी नातिन को प्यार से चेताते हुए बोलीं| अब स्तुति का मन माने तब न, वो तो बस मुझसे लिपटी हुई थी| बड़ी मुश्किल से मैंने स्तुति को समझाया और अपनी सासु माँ की गोदी में दिया, लेकिन अपनी नानी जी की एक पप्पी पा कर ही स्तुति मेरे पास लौट आई| जब भाभी जी की बारी आई तो उन्होंने जबरदस्ती स्तुति को अपनी गोदी में लिया और उसे प्यार से धमकाते हुए बोलीं; "सुन ले लड़की, अपनी मामी जी के पास रहना सीख ले वरना मारूँगी दो खींच के!" अपनी मामी जी की प्यारभरी धमकी सुन स्तुति घबरा गई और जोर से रोने लगी|

अब स्तुति के रोने का फायदा उठाया छोटे मामा जी अर्थात अनिल ने| वो आज पहलीबार स्तुति को गोदी में उठा रहा था इसलिए अनिल के भीतर मामा बनने का प्यार उमड़ रहा था| "छोडो मामी जी को, आपके छोटे मामा जी है न आपको प्यार करने के लिए|" अनिल ने स्तुति को लाड करते हुए कहा| स्तुति चुप तो हुई मगर अनिल को अनजाना समझ छटपटाने लगी| "अरे हमका...आपन मामी का चीन्ह के हमरी गोदी में नाहीं टिकी तो तोहार गोदी मा कैसे टिकी?!" भाभी जी ने अनिल को उल्हाना देते हुए कहा| वहीं भाईसाहब और विराट ने स्तुति के रोने के डर से उसे गोदी ही नहीं लिया, वे तो बस स्तुति के हाथों को चूम कर अपने मन की संतुष्टि कर के रह गए|

स्तुति को लाड-प्यार करने के बाद सबने मिलकर आयुष और नेहा को दुलार किया, स्तुति के मुक़ाबले दोनों भाई-बहन (आयुष और नेहा) सबसे बड़ी अच्छी तरह से मिले तथा सबके पॉंव छू कर आशीर्वाद लिया|

वो रात हम अभी ने आराम किया और अगली सुबह तड़के ही सब नहा-धो कर ससुर जी की बर्सी की पूजा करने पहुँच गए| पूजा समाप्त हुई और हमने मंदिरों में दर्शन किये तब तक घड़ी में 10 बज गए थे| अब समय था स्तुति का मुंडन करवाने का, हमारे गाँव में माँ बच्चे को गोदी में ले कर बैठती है तब मुंडन किया जाता है| लेकिन यहाँ मेरी लाड़ली मेरे सिवा किसी की गोदी में नहीं जाती थी इसलिए मुंडन के समय मैं स्तुति को गोदी में लिए हुए बैठा था| अब चूँकि हम सब घर से बाहर आये थे तो मेरी बिटिया का चंचल मन इधर-उधर भटक रहा था, जिस कारण स्तुति कभी इधर गर्दन घुमा कर देखती तो कभी उधर| अब नाऊ ठाकुर को उस्तरा चलाने में हो रही थी कठनाई इसलिए मैंने स्तुति का ध्यान अपने ऊपर केंद्रित करने के लिए उससे तुतला कर बात करनी शुरू की, इतने में नेहा ने आगे बढ़ कर स्तुति के दोनों गालों पर हाथ रख उसे गर्दन घुमाने से रोक लिया| अभी नाऊ ठाकुर ने उस्तरा स्तुति के बालों से छुआया भी नहीं था की एक पिता का डर सामने आया; "भैया जी, थोड़ा ध्यान से कीजियेगा!" मेरे डर का मान रखते हुए नाऊ ठाकुर ने मुझे आश्वस्त किया; "अरे साहब, तनिको चिंता नाहीं करो|"

मैंने और नेहा ने बहुत ध्यान से स्तुति का मन बातों में लगाए रखा ताकि स्तुति रोने न लगे| उधर नाऊ ठाकुर ने बड़े कुशल कारीगर की तरह स्तुति के सर के सारे बाल मुंड दिए| मेरी बिटिया रानी बड़ी बहादुर थी, उसने अपने मुंडन के समय एक आँसूँ नहीं बहाया, उसे तो पता ही नहीं चला की उसके बाल साफ़ हो चुके हैं! मुंडन समाप्त होने के बाद गँगा जी में डुबकी लगाने का समय था| हमारे घर की सभी महिलायें, घाट के उस हिस्से में चली गईं जहाँ बाकी महिलायें नहा रहीं थीं| बचे हम सब मर्द और स्तुति तो हम कच्छे पहने हुए गँगा जी में डुबकी लगाने आ पहुँचे|

आयुष आज पहलीबार नदी में डुबकी लगाने जा रहा था इसलिए वो बहुत उत्साहित था, अनिल को सूझी शरारत तो उसने आयुष को अपने पिछली बार नदी में लगभग बह जाने का किस्सा सुना कर डरा दिया| पिछलीबार जब हम ससुर जी का अस्थि विसर्जन करने आये थे तब अनिल लगभग बह ही जाता अगर मैंने उसे थाम न लिया होता| इस डरावने किस्से को सुन आयुष घबरा गया और रुनवासा हो गया| "बेटा, घबराते नहीं हैं! मैं हूँ, आपके बड़े मामा जी हैं, विराट भैया हैं तो आपको कुछ नहीं होगा| हम जैसे कहें वैसे करना और पानी में उतरने के बाद कोई मस्ती मत करना|" मैंने आयुष को हिम्मत बँधाते हुए कहा| जैसे-तैसे हिम्मत कर आयुष मान गया| आयुष को हिम्मत दिलाने के लिए पहले मैं और स्तुति सीढ़ियों से उतर कर पानी में पहुँचे| पहाड़ के ठंडे पानी में पैर पढ़ते ही मेरी कँपकँपी छूट गई! अब जब मुझे पानी इतना ठंडा लग रहा था तो बेचारी मेरी बिटिया रानी का क्या हाल होता?! मुझे पानी में खड़ा हो कर सोचता हुआ देख भाईसाहब सीढ़ी पर खड़े हो कर बोले; "मानु, जल्दी से स्तुति को डुबकी लगवा दो!" भाईसाहब की आवाज़ सुन मैं अपनी सोच से बाहर निकला और सर न में हिलाते हुए बोला; "पानी बहुत ठंडा है भाईसाहब, स्तुति बीमार पड़ जायेगी|" इतना कह में नीचे झुका और चुल्लू में गँगा जी का जल ले कर स्तुति के हाथ-पाँव-मुँह धुलवा दिए तथा पानी से बाहर आ गया| भाईसाहब ने बहुत कहा की एक डुबकी से कुछ नहीं होगा मगर मैंने उन्हें समझाते हुए कहा; "भाईसाहब, स्तुति को आजतक मैंने गुनगुने पानी से ही नहलाया है| इस ठंडे पानी से स्तुति बीमार हो जाएगी|" इतने में पानी देख कर मेरी बिटिया ख़ुशी के मारे अपने हाथ-पॉंव चलाने लगी थी| स्तुति बार-बार पानी की ओर अपना हाथ बढ़ा कर कुछ कहना चाहा रही थी मगर स्तुति की बोली-भाषा मेरी समझ में नहीं आई! कुछ सेकंड अपने दिमाग पर जोर डालने के बाद मैं आखिर समझ ही गया की स्तुति क्या कहना चाहती है| मैं स्तुति को लिए हुए नीचे झुका और गँगा मैया के बह रहे जल में स्तुति को अपना दायाँ हाथ डुबाने का मौका दिया| गँगा मैय्या के पावन और शीतल जल में अपना हाथ डूबा कर स्तुति को ठंडे पाने का एहसास हुआ इसलिए उसने फ़ट से अपना हाथ पानी के बाहर खींच लिया तथा अपनी हथेली पर पानी को महसूस कर खिलखिलाकर हँसने लगी! मेरी बिटिया रानी ने गँगा मैय्या के पॉंव छू कर आशीर्वाद ले लिया था और वो ख़ुशी से फूली नहीं समा रही थी|

मैंने स्तुति को समझाते हुए कहा; "बेटा, आप अपने बड़े मामा जी के पास रुको तबतक मैं डुबकी लगा लूँ|" इतना कह मैंने स्तुति को भाईसाहब की गोदी में दिया| पता नहीं कैसे पर स्तुति भाईसाहब की गोदी में चली गई, मैं भी फ़ट से पानी में दुबारा उतरा और गँगा माँ का नाम लेते हुए 7 डुबकी लगाई| मुझे पानी में देख आयुष को जोश आ गया और वो भी धीरे-धीरे सीढ़ी उतरते हुए अपने दोनों हाथ खोले खड़ा हो गया| मैंने आयुष को गोदी में लिया और आयुष से बोला; "बेटा मैं अभी आपकी नाक पकडूँगा ताकि डुबकी लगाते समय पानी आपकी नाक में न घुस जाए| आप अपनी आँखें बंद रखना और 1-2 सेकंड के लिए अपनी साँस रोकना ताकि पानी कहीँ आपके मुँह में न चला जाए|" आयुष ने सर हाँ में हिला कर मुझे अपनी सहमति दी| मैंने आयुष की नाक पकड़ी और पहली डुबकी लगाई| आयुष के लिए डुबकी लगाने का पहला मौका था इसलिए पहली डुबकी से आयुष थोड़ा घबरा गया था| "बेटा, डरना नहीं है| आप आँख बंद करो और मन में भगवान भोलेनाथ का नाम लो| मैं धीरे-धीरे 4 डुबकी और लगाऊँगा|" मेरी बता सुन आयुष ने अपनी हिम्मत दिखाई और आँखें बंद कर भगवान भोलेनाथ को याद करने लगा| मैंने धीरे-धीरे 4 डुबकी पूरी की और इस दौरान आयुष को ज़रा भी डर नहीं लगा|

आयुष को गोदी में ले कर मैं बाहर निकलने लगा की विराट सीढ़ी पर खड़ा हो कर बोला, "फूफा जी, मुझे और चाचा जी को भी डुबकी लगवा दो!" विराट की बात सुन मैंने और भाईसाहब ने जोरदार ठहाका लगाया| खैर, दोनों चाचा-भतीजा मेरे दाएँ-बाएँ खड़े हो गए| मैंने दोनों का हाथ थामा और दोनों से बोला; "एक हाथ से अपनी नाक बंद करो और उठक-बैठक के अंदाज में फटाफट 7 डुबकी लगाना!" मैं किसी शाखा के इंस्ट्रक्टर की तरह बोला| हम तीनों गहरे पानी में नहीं गए थे, हाथ पकड़े हुए हम तीनों ने उठक-बैठक करते हुए 7 डुबकी लगा ली और आखिरकर हम पानी से बाहर आ गए| हम तीनों पानी पोंछ रहे थे जब आयुष ने अपने छोटे मामा जी का मज़ाक उड़ाना शुरू कर दिया; "छोटे मामा जी, आप इतने बड़े हो फिर भी पानी में डुबकी लगाने से डरते हो!" अपने छोटे भाँजे द्वारा अनिल की सरेआम अच्छी किरकिरी हो गई थी इसलिए बेचारा मुस्कुराते हुए अपना चेहरा छुपाने में लगा था|

बहरहाल भाईसाहब ने भी डुबकी लगाई और हम सभी खाना खा कर होटल वापस आ गए| स्तुति दूध पी कर सो गई थी इसलिए दोनों बच्चों ने घूमने की जिद्द की| माँ और सासु माँ थक गईं थीं इसलिए उन्होंने करना था आराम, बचे हम सब जवान लोग तो हम घूमने निकल पड़े| भाईसाहब का कहना था की हम सब चलकर मंदिर का चक्कर लगा लेते हैं, लेकिन मेरे पास जबरदस्त आईडिया था; "भाईसाहब मंदिर तो माँ के साथ दुबारा घूम लेंगे! अभी हम सब चलते हैं और कुछ मजेदार खाते-पीते हैं|" मेरा आईडिया भाभी जी और संगीता को बहुत पसंद आया; "ये की न आपने जवानों वाली बात!" भाभी जी, भाईसाहब को जलाने के लिए मेरी पीठ थपथपाते हुए मेरी तारीफ करने लगीं| "अब लगता है गलत आदमी से शादी कर ली मैंने!" भाभी जी ने भाईसाहब को प्यारा सा ताना मरते हुए कहा| भाभी जी की कही बात पर सभी ने जोरदार ठहाका लगाया, ये ऐसा ठहाका था की आस-पास के सभी लोग हमें ही देख रहे थे!

चूँकि हम दोपहर का खाना खा कर घूमने निकले थे इसलिए मैंने सभी को जबरदस्ती पैदल चलाया जिससे खाना हज़म हो जाए और थोड़ी भूख लग आये| हम सभी पहुँचे देवपुरा और यहाँ पहुँच कर सबसे पहले हमारी नज़र पड़ी चाट की दूकान पर, चाट देखते ही भाभी जी और संगीता के मुँह में पानी आ गया| "भाभी जी, चलो चाट से ही श्री गणेश करते हैं, लेकिन ध्यान रहे पेट भर कर मत खाना! अभी हमें हरिद्वार की मशहूर आलू-पूड़ी, कचौड़ी, समोसा, कुल्फी और फालूदा भी खाने हैं|" मैंने भाभी जी और संगीता दोनों को समझाया| फिर मैंने सभी के लिए अलग-अलग चाट आर्डर की ताकि सभी को अलग-अलग ज़ायके का मज़ा आया| महिलाओं को चाट कितनी पसंद होती है ये मैंने उस दिन देखा जब नन्द (नंद)-भाभी ने मिलकर सभी तरह की चाट चख मारी! चलते-चलते हमारा अंतिम पड़ाव था कुल्फी की दूकान, कुल्फी देख कर दोनों स्त्रियों की आँखें ऐसे चमकने लगीं मानों दोनों ने खजाना पा लिया हो! आयुष और नेहा भी पीछे नहीं थे, वो दोनों भी कुल्फी खाने के लिए चहक रहे थे| हम तीनों (मैं, अनिल और भाईसाहब) का पेट भरा था इसलिए हमने बस एक-एक चम्मच कुल्फी खाई, वहीं नंद-भौजाई और बच्चों ने मिलकर 5 प्लेट कुल्फी साफ़ कर दी!

खा-पी कर, घूम-घाम कर शाम को हम सब होटल लौटे तो पता चला की स्तुति ने रो-रो कर तूफ़ान खड़ा कर रखा है! मैंने स्तुति को फौरन गोदी में लिया और उसकी पीठ थपथपा कर चुप कराने लगा| स्तुति को गोदी में लिए हुए मैं होटल की छत पर आ गया और वहाँ से स्तुति को चिड़िया आदि दिखा कर बहलाने लगा| आखिर स्तुति चुप हुई लेकिन वो अब चहक नहीं रही थी, शायद वो मुझसे गुस्सा थी की मैं उसे छोड़ कर घूमने चला गया था|

बाकी सब माँ और सासु माँ के कमरे में बैठे बात कर रहे थे इसलिए मैं स्तुति को ले कर अपने कमरे में आ गया| मैंने स्तुति को मनाने की बहुत कोशिश की मगर स्तुति गुस्सा ही रही! तभी मुझे हमारे गाँव में बच्चों के साथ खेले जाने वाला एक खेल याद आया| मैं बिस्तर पर पीठ के बल लेट गया और अपने दोनों पॉंव जोड़ कर अपने पेट से भिड़ा दिए| मेरे पॉंव के दोनों पंजे आपस में जुड़े थे और उन्हीं पंजों पर मैंने स्तुति को बिठाया तथा स्तुति के दोनों हाथों को थाम कर मैंने हमारे गाँव में गाया जाने वाला गीत गाते हुए अपने दोनों पॉंव को आगे-पीछे कर स्तुति को धीरे-धीरे झूला-झुलाने लगा;
"खनन-मनन दो कौड़ी पाइयाँ,

कौड़ी लेकर गँगा बहाइयाँ,

गँगा माता बारू दिहिन,

बारू ले कर भुजाऊआ को दिहिन,

भुजाऊआ हमें लावा दिहिन,

लावा-लावा बीन चवावा,

ठोर्री ले घसियारिया को दिहिन,

घसियारिया हमका घास दिहिन,

घास ले के गैया का दिहिन,

गैया हमका दूध दिहिन,

दूध ले के राजा को दिहिन,

राजा हमका घोड़ दिहिन,

घोड़ चढ़े जाइथ है,

पान-फूल खाइथ है,

पुराण भीत गिराइत है,

नवी भीत उठाईथ है,

तबला बजाइथ है,

ऐ पुलुलुलुलु!!!!" गीत के अंत में जब मैंने 'पुलुलुलुलु' कहा तो मैंने अपने दोनों पॉंव ऊपर की ओर उठाये जिससे स्तुति भी ऊपर उठ गई| इस गीत को सुन मेरी बिटिया रानी को बहुत मज़ा आया और उसने खिलखिलाकर हँसना शुरू कर दिया| अंततः मेरी बेटी का गुस्सा खत्म हो गया था और वो अब फिर से ख़ुशी से चहक रही थी|

रात को खाना केवल माँ और सासु माँ ने ही खाया, हम सब के तो पेट भरे हुए थे इसलिए हम बस उनके पास बैठे बातें करने में व्यस्त थे| होटल लौट कर हम सभी अपने-अपने कमरों में जा रहे थे जब भाभी जी ने माँ और सासु माँ को छोड़ बाकी सभी को अपने कमरे में बुलाया| माँ और सासु माँ थके थे इसलिए वो तो अपने कमरे में जा कर सो गए, बाकी बचे हम सभी भाभी जी के कमरे में घुस गए| पहले हम सभी का हँसी-मज़ाक चला, जब रात के 10 बजे तो दोनों बच्चों ने कहानी सुनने की जिद्द की| मैं दोनों बच्चों को उनके अनिल और विराट के कमरे में ले जाकर कहानी सुना कर सुलाना चाहता था, लेकिन भाभी जी मुझे रोकते हुए बोलीं; "अरे भई, मुझे भी कहानी सुनाओ!" भाभी जी मज़ाक करते हुए बोलीं मगर बच्चों को ये बात सच लगी और दोनों बच्चे जा कर अपनी मामी जी से लिपट गए तथा मुझे कथाकार बना दिया| अब मैंने भी भाभी से मज़ाक करते हुए पुछा; "बोलो भाभी जी, कौन सी कहानी सुनाऊँ?" मेरा सवाल सुन भाभी जी हँस पड़ीं और बोलीं; "कोई भी कहानी सुना दो!" भाभी जी हँसते हुए बोलीं| इतने में दोनों बच्चों एक साथ चिल्लाये; "पापा जी, कढ़ी-फ़्लोरी!" भाभी जी ने ये कहानी सुनी हुई थी, फिर भी वो मुझे छेड़ते हुए बोलीं; "ये कहानी तो मैंने भी नहीं सुनी! सुनाओ भई, यही कहानी सुनाओ हमें!" भाभी जी बच्चों की तरह जिद्द करते हुए बोलीं|

भाईसाहब और अनिल सोफे पर कहानी सुनने के लिए आराम से बैठ गए| विराट कुर्सी पर बैठ गया, संगीता तथा भाभी जी पलंग के दोनों सिरों पर लेट गए, बचे दोनों बच्चे तो वो अपनी मम्मी और मामी जी के बीच में लेट चुके थे| मैं और मेरी गोदी में स्तुति, हम बाप-बेटी आलथी-पालथी मारे पलंग पर बैठे थे|

आमतौर पर मैं कढ़ी-फ़्लोरी की कहानी बिलकुल सादे ढंग से सुनाता था, परन्तु आज मुझे सभी का मनोरंजन करना था इसलिए मैंने कहानी के पात्रों के नाम बड़े रोचक रखे!

"तो इससे पहले की मैं कहानी शुरू करूँ, आप सभी को कहानी सुनने के दौरान 'हम्म' कहना होगा!" मैंने एक कड़क अध्यापक की तरह कहा जिसपर सभी ने एक साथ "हम्म" कहा|

"तो हमारी कहानी कढ़ी फ़्लोरी के नायक यानी हीरो का नाम है आयुष|" जैसे ही मैंने आयुष का नाम लिया सभी को बहुत हँसी आई, क्योंकि इस कहानी में आयुष क्या-क्या गुल खिलाने वाला था ये सब पहले से जानते थे| "तो...आयुष को है न खाने-पीने का बहुत शौक था| खाना चाहे घर पर बनाया हुआ हो या बाहर बाजार का, आयुष उसे बड़े चाव से खाता था| आयुष के पिताजी शहर में नौकरी करते थे और आयुष अपनी मम्मी; श्रीमती संगीता देवी जी के साथ गाँव में रहता था|" मैंने संगीता को छेड़ने के लिए जानबूझ कर उसका नाम कहानी में जोड़ा था| जैसे ही मैंने संगीता का नाम कहानी में लिया की सभी की नजरें संगीता की तरफ घूम गई| सभी के चेहरों पर मुस्कान थी और संगीता मुझे आँखों ही आँखों में उल्हाना दे रही थी की भला मैंने इस कहानी में उसका नाम क्यों जोड़ा?!

"आयुष की उम्र शादी लायक हो गई थी और शादी के बाद लड़का खाने-पीने के बजाये काम-धाम में मन लगाएगा ये सोचकर संगीता देवी ने आयुष की शादी कर दी| बड़े धूम-धाम, बाजे-गाजे से शादी हुई और अगली सुबह बहु पगफेरा डालने अपने मायके चली गई| इधर आयुष के भीतर कोई बदलाव नहीं आया, वो तो बस खाने-पीने में ही ध्यान लगाता था| कभी चाऊमीन तो कभी पिज़्ज़ा, उसे बस खाने से मतलब था|" जैसे ही मैंने चाऊमीन और पिज़्ज़ा का नाम लिया, आयुष के मुँह में पानी आ गया और वो अपने होठों पर जीभ फिराने लगा|

"शादी हुए महीना होने को आया था पर संगीता देवी जी की बहु अभी तक अपने ससुराल नहीं आई थी| संगीता देवी ने आयुष से बड़ा कहा की वो अपने ससुराल जा कर अपनी पत्नी को लिवा लाये ताकि चूल्हा-चौका बहु को सौंप कर संगीता देवी आराम करे, लेकिन आलसी आयुष 'कल जाऊँगा' कह कर बात टाल देता!" जब मैंने आयुष को आलसी कहा तो नेहा खी-खी कर हँसने लगी क्योंकि आयुष थोड़ा बहुत आलसी तो था ही! खैर, आयुष का अपने मजाक उड़ाए जाने पर गुस्सा नहीं आया बल्कि वो तो मुस्कुरा रहा था|

"इधर संगीता देवी के इंतज़ार की इंतेहा हो गई थी, सो एक दिन संगीता देवी ने अपने बेटे को हड़का दिया; 'कल अगर तू बहु को घर ले कर नहीं आया न तो मैं तुझे खाना नहीं दूँगी!' अब जब खाना न मिलने की धमकी मिली तो आयुष बेचारा घबरा गया और बोला; 'ठीक है मम्मी, आप कल रास्ते के लिए खाना बाँध देना मैं चला जाऊँगा ससुराल!' बेटे की हाँ सुन, संगीता देवी को इत्मीनान आया की कम से कम उनकी बहु घर आ जाएगी और उन्हें घर के चूल्हे-चौके से छुट्टी मिलेगी|

अगली सुबह संगीता देवी जल्दी उठीं और अपने बेटे की खाने की आदत को जानते हुए आयुष के लिए 50 पूड़ियाँ और आलू की सब्जी टिफिन में पैक कर दी| टिफ़िन और अपनी मम्मी का आशीर्वाद ले कर आयुष अपने ससुराल के लिए निकल पड़ा| अब जैसा की आप सभी जानते हैं, आयुष को खाने का कितना शौक था इसलिए जैसे ही आयुष चौक पहुँचा उसे भूख लग आई! आयुष अपनी ससुराल जाने वाली बस में चढ़ा और खिड़की वाली सीट पर बैठ उसने अपना टिफ़िन खोल कर खाना शुरू कर दिया| बस अभी आधा रास्ता भी नहीं पहुँची थी की आयुष ने 50 की 50 पूड़ियाँ साफ़ कर दी, अब आगे का रास्ता खाली पेट आयुष कैसे तय करता इसलिए वो बस रुकवा कर उतर गया और दूसरी बस पकड़ कर घर पहुँच गया| जब संगीता देवी ने देखा की उनका बेटा खाली हाथ घर लौटा है तो उन्होंने अचरज भरी निगाहों से आयुष को देखते हुए सवाल पुछा; ' तू वापस क्यों आ गया?'

'खाना खत्म हो गया था मम्मी, अब भूखे पेट आगे का रास्ता कैसे तय करता इसलिए मैं वापस आ गया!' आयुष अपनी मम्मी को खाली टिफ़िन देते हुए बोला| आयुष की बात सुन संगीता देवी को गुस्सा तो बहुत आया मगर वो क्या करतीं?! उन्होंने सोचा की अगले दिन दुगना खाना बाँध दूँगी, फिर देखती हूँ कैसे वापस आता है?!

तो अगली सुबह संगीता देवी जी और जल्दी उठीं और आज 100 पूड़ियाँ तथा आलू की सब्जी टिफ़िन में भर कर आयुष को देते हुए बोलीं; 'ये ले और आज वापस मत आइयो!' अपनी मम्मी की डाँट सुन आयुष घबरा गया और आशीर्वाद ले कर अपने ससुराल की ओर निकल पड़ा| जैसे ही आयुष चौक पहुँचा उसे भूख लग आई, फिर क्या था बस में बैठते ही आयुष ने खाना शुरू कर दिया| बस आधा रास्ता पहुँची होगी की आयुष का खाना खत्म हो गया नतीजन आयुष अगली बस में चढ़कर फिर घर लौट आया| आयुष को खाली हाथ देख संगीता देवी को बड़ा गुस्सा आया मगर वो कुछ कहें उससे पहले आयुष स्वयं ही बोला; 'मम्मी मैं क्या करता, खाना ही खत्म हो गया!' इतना कह आयुष वहाँ से रफू-चक्कर हो गया ताकि मम्मी की डाँट न खानी पड़े|

अब संगीता देवी जी का दिमाग गुस्से से गर्म हो चूका था, उन्हें कैसे भी आयुष को सीधे रास्ते पर लाना था| उन्होंने एक योजना बनाई और कुम्हारन के पास पहुँची तथा वहाँ से एक सुराही खरीद लाईं| इस सुराही का मुँह शुरू में खुला था और बाद में तंग हो जाता था| अगली सुबह संगीता देवी जी ने जल्दी उठ कर खीर बनाई और सुराही को लबालब भर कर आयुष को देते हुए बोलीं; 'आज अगर तू ये बोल कर खाली हाथ लौटा की खाना खत्म हो गया था, तो तुझे खूब पीटूँगी और तेरा खाना-पीना सब बंद कर दूँगी!' अपनी मम्मी की डाँट सुन आयुष घबरा गया और अपनी मम्मी जी का आशीर्वाद ले कर अपने ससुराल की ओर चल पड़ा|

आयुष को खीर बड़ी पसंद थी और खीर खाने का उसका एक अलग अंदाज़ भी था| वो अपने दाहिने हाथ की तीन उँगलियों से खीर उठा कर खाता था और अंत में सारा बर्तन चाट-पोंछ कर साफ़ कर देता था| हरबार की तरह, जैसे ही चौक आया आयुष ने अपने दाहिने हाथ की तीन उँगलियों से खीर खानी शुरू कर दी| बस आधा रास्ता पहुँची तो सुराही में खीर कम हो चुकी थी, आयुष खीर खाने में ऐसा मग्न था की उसने ध्यान नहीं दिया और अपना दाहिना हाथ सुराही में और नीचे की ओर सरका दिया. नतीजन आयुष का हाथ सुराही में जा फँसा! आयुष को जब एहसास हुआ की उसका हाथ सुराही में फँस चूका है तो उसका डर के मारे बुरा हाल हो गया, उसने बड़ी कोशिश की परन्तु उसका हाथ बाहर ही न निकले! 'अब अगर मैं घर वापस गया तो मम्मी कहेगी की खाना खत्म नहीं हुआ तो तू घर कैसे वापस आ गया?! फिर खाना-पीना तो बंद होगा ही, मम्मी की मार खानी पड़ेगी सो अलग!' आयुष बेचारा बहुत डरा हुआ था इसलिए उसने सोचा की वो अपने ससुराल जाएगा, वहीं उसके साले-साहब उसकी मदद करेंगे|

बस ने आयुष के ससुराल से लगभग 1 किलोमीटर पहले उतार दिया, यहाँ से आयुष को पैदल जाना था| रात के आठ बज गए थे और अंधरिया रात (आमावस की रात) होने के कारण आयुष को कुछ ठीक से नहीं दिख रहा था| आयुष सँभल-सँभल कर चलते हुए अपने ससुराल से करीब 100 कदम दूर पहुँचा और कुछ सोचते हुए रुक गया| 'अगर हाथ में सुराही फँसाये सुसराल गया तो सभी बहुत मज़ाक उड़ाएंगे! ये सुराही मिटटी की बनी है तो ऐसा करता हूँ इस सुराही को किसी ठूँठ (अर्थात आधा कटा हुआ पेड़) पर पटक कर तोड़ देता हूँ|' ये सोच आयुष अंधरिया रात में कोई ठूँठ ढूँढने लगा|

बदकिस्मती से उस वक़्त आयुष का ससुर बाथरूम (सुसु) जाने के लिए घर से दूर आ कर बैठा हुआ था| आयुष ने जब अपने ससुर जी को यूँ बैठे हुए देखा तो उसे लगा की ये कोई ठूँठ है इसलिए आयुष ने बड़ी जोर से अपना दाहिना हाथ अपने ससुरजी के सर पर पटक मारा! 'अरे दादा रे!!!! मरी गयन रे! के मार डालिस हमका?!' आयुष के ससुर जी दर्द के मारे जोर से चिल्लाये!" जैसे ही मैंने "अरे दादा रे" कराहते हुए कहा, सभी लोगों ने एक साथ जोरदार ठहाका लगाया, यहाँ तक की स्तुति भी खिलखिलाकर हँस पड़ी!

"अपने ससुर जी की अँधेरे में करहाने की आवाज़ सुन आयुष जान गया की उसने अपने ही ससुर जी के सर पर सुराही दे मारी है इसलिए वो डर के मारे दूसरी दिशा में दौड़ गया! इधर आयुष के ससुर जी अपना सर सहलाते हुए अब भी कराह रहे थे| कुछ सेकंड बाद सुराही में जो खीर भरी हुई थी वो आयुष के ससुर जी के सर से बहती हुई ससुर जी के होठों तक पहुँची, आयुष के ससुर जी ने अपनी जीभ बाहर निकाल कर जब खीर को चखा तो उन्हें खीर का स्वाद बड़ा पसंद आया! 'ग़ाज गिरी तो गिरी, पर बड़ी मीठ-मीठ गिरी!' आयुष के ससुर जी खीर की तारीफ करते हुए बोले|" मैंने आयुष के ससुर जी की कही बात बेजोड़ अभिनय कर के कही जिसपर एक बार फिर सभी ने ठहाका लगाया|

"खैर, आयुष के ससुर जी अपना सर सहलाते हुए घर लौट गए और उन्होंने अपने साथ हुए इस काण्ड को सबको बताया| परन्तु कोई कुछ समझ नहीं पाया की आखिर ये सब हुआ कैसे?! इधर बेचारा आयुष दुविधा में फँसा हुआ था की वो इतनी रात को कहाँ जाए? अपने घर जा नहीं सकता था और ससुराल में अगर किसी को पता चल गया की उसने ही अपने ससुर जी के सर पर सुराही फोड़ी है तो सभी उसे मार-पीट कर भगा देंगे! 'इतनी अंधरिया रात में जब मुझे ये नहीं पता चला की ससुर जी बैठे हैं तो उन्हें कैसे पता चलेगा की उनके सर पर सुराही फोड़ने वाला मैं था?' आयुष ने मन ही मन सोचा और अपने ससुराल जा कर अनजान बनने का अभिनय करने की सोची| आयुष ने रुमाल से अपना हाथ पोंछा जिस पर खीर लगी हुई थी और रुमाल वहीं झाडी में फेंक कर अपने ससुराल की ओर बढ़ चला|

ससुराल में आयुष की बड़ी आव-भगत हुई, नहाने को गुनगुना पानी दिया गया, खाने में स्वाद-स्वाद चाऊमीन बना कर खिलाई गई| किसी ने भी आयुष को उसके ससुर जी पर जो ग़ाज गिरी थी उसके बारे में नहीं बताया| अगली सुबह आयुष अपनी सासु माँ से बोला; 'अम्मा, हम आपन दुल्हिन का लिवाये खतिर आयन हैं| तू ऊ का हमरे साथै आभायें पठए दिहो!'" जब मैंने 'दुल्हिन' शब्द कहा तो आयुष शर्मा कर लालम-लाल हो गया, जिसका सभी ने बड़ा आनंद लिया|

"'बिटवा, आज और कल भरे रुक जातेओ तो हम परसों तोहरे साथै मुन्नी का पठय देइत!' आयुष की सासु माँ आयुष को समझाते हुए बोलीं मगर आयुष जानता था की अगर वो आज रात अपने ससुराल में रुका तो घर जा कर उसे अपनी मम्मी से बहुत डाँट पड़ेगी इसलिए उसने आज ही अपनी दुल्हिन को ले जाने की जिद्द पकड़ी| 'बिटवा, कल मुन्नी के मामा आवत हैं, ऊ से भेटाये ले फिर मुन्नी का परओं भेज देब!' आयुष की सासु माँ बड़े प्यार से आयुष को समझाते हुए बोलीं| अब आयुष बेचारा अपनी ससुर माँ को कैसे मना करता, वो मान गया और बोला; 'ठीक है अम्मा, फिर हम आपन घरे जाइथ है| तू परओं हमार दुल्हिन का पठय दिहो!' इतना कह आयुष चलने को हुआ की उसकी सासु माँ उसे रोकते हुए बोलीं; 'अरे पाहिले कछु खाये तो लिहो, फिर चला जायो!' इतना कह वो स्वयं रसोई में घुसीं और आयुष के लिए एक ख़ास चीज़ बनाई, ऐसी चीज़ जो आयुष ने पहले कभी नहीं खाई थी|

इधर आयुष भी नहा-धो कर तैयार हो गया और खाना खाने के लिए अपना आसन जमा लिया| आयुष की सासु माँ ने बड़े प्यार से आयुष के लिए खाना परोसा कर दिया, आयुष ने जब अपनी थाली देखि तो उसमें उसे चावल और एक पीली-पीली तरी में दुबे हुए कुछ पकोड़े जैसा कुछ नज़र आया| अब आयुष को पहले से ही नए-नए तरह के खाने का चस्का था इसलिए उसने बिना कुछ पूछे खाना शुरू कर दिया| पहला कौर खाता ही आयुष को खाने का स्वाद भा गया और आयुष ने पेट भरकर खाना खाया| खाना खा कर आयुष अपनी सासु माँ से बोला; 'अम्मा, ई कौन चीज है...बहुत स्वाद रही?!' आयुष का सवाल सुन आयुष की सासु माँ हँस पड़ीं और बोलीं; 'ई का कढ़ी-फ़्लोरी कहत हैं!' आयुष को ये नाम बड़ा भा गया था और वो खुश होते हुए अपनी सासु माँ से पूछने लगा; 'अम्मा, हमार दुल्हिन ई...कढ़ी-फ़्लोरी बनावा जानत है न?' आयुष का भोलेपन से भरा हुआ सवाल आयुष की सासु माँ मुस्कुराईं और हाँ में सर हिलाने लगीं|

आयुष की दुल्हिन तो परसों आती मगर आयुष को आज रात ही कढ़ी-फ़्लोरी खानी थी इसलिए आयुष उतावला हो कर फ़ट से अपने घर की तरफ दौड़ पड़ा| कहीं वो इस स्वाद चीज़ का नाम न भूल जाए इसलिए आयुष ने इस नाम को रट्टा मारना शुरू कर दिया; 'कढ़ी-फ़्लोरी...कढ़ी-फ़्लोरी' रटते हुए वो बस में बैठा और पूरे रास्ते यही नाम रटता रहा|

शाम होने को आई थी और आयुष का बड़ी जोर की भूख लगी थी, लेकिन उसने सोच लिया था की आज वो घर जा कर अपनी मम्मी यानी संगीता देवी से कढ़ी-फ़्लोरी बनवा कर ही खायेगा! लेकिन आयुष के नसीब में आज कुछ अधिक ही सबर करना लिखा था| बस आयुष के घर से करीब 2 किलोमीटर पहले ही खराब हो कर बंद पड़ गई| खड़े रह कर दूसरी बस का इंतज़ार करने से अच्छा था की आयुष पैदल ही घर की ओर निकल पड़ा और रास्ते भर आयुष ने "कढ़ी-फ़्लोरी" रटना नहीं छोड़ा था|

लगभग आधा किलोमीटर चलने के बाद रास्ते में एक छोटा सा तलाब पड़ा, तलाब में बस पिंडलियों तक पानी था इसलिए तलाब पार करना कोई बहुत बड़ी चुनौती नहीं थी| आयुष ने अपना पजामा मोड़कर घुटनों तक चढ़ाया और धीरे-धीरे सँभल कर तलाब पार करने लगा| तलाब के बीचों-बीच पहुँच कर थोड़ी फिसलन थी इसलिए खुद को सँभालने के चक्कर में आयुष 'कढ़ी-फ़्लोरी' रटना भूल गया! तलाब पार कर जब आयुष को ध्यान आया की उसे घर जा कर अपनी मम्मी से क्या ख़ास बनवा कर खाना है तो उसे उस स्वाद खाने का नाम याद ही ना आये! आयुष ने अपने दिमाग पर बहुत जोर डाला मगर उसे ये नाम याद ही नहीं आया! तलाब किनारे खड़ा हुआ परेशान आयुष अपना सर खुजा कर उस स्वाद खाने का नाम याद करने लगा! तभी वहाँ से एक आदमी गुज़र रहा था, उसने आयुष को परेशान खड़ा तलाब की ओर ताकते देखा तो उसने आयुष से आ कर उसकी परेशानी का सबब पुछा| आयुष बेचारा इतना परेशान था की वो बता ही न पाए की वो क्यों परेशान है, वो तो बस तलाब की ओर ताकते हुए याद करने की कोशिश कर रहा था| 'अरे, तलाब मा कछु हैराये (खो) गवा है का?' उस आदमी ने पुछा तो आयुष ने हाँ में सर हिला दिया| उस आदमी को लगा की जर्रूर कोई कीमती चीज़ है जो तलाब में गिर गई होगी इसलिए उसके मन में लालच जाग गया; 'अच्छा...अगर हम खोज लेइ तो हमका आधा देबू?' उस आदमी ने अपना लालच प्रकट करते हुए कहा| आयुष ने जैसे ही सुना की ये आदमी उसकी मदद कर रहा है, उसने फौरन अपना सर हाँ में हिला दिया| आयुष की हाँ पा कर वो आदमी अपनी धोती घुटनों तक चढ़ा कर तलाब में कूद पड़ा और पूरी शिद्दत से उस खोई हुई चीज़ को ढूँढने लगा| अब कोई चीज़ तलाब में गिरी हो तब तो मिले न?!

पूरे एक घंटे तक वो आदमी तलाब के अंदर गोल-गोल घूमता रहा और झुक कर पानी के भीतर हाथ डाल कर टोह लेता रहा की शायद कोई कीमती चीज उसकी उँगलियों से छू जाए! आखिर घंटे भर थक कर उस आदमी ने हार मान ली और तलाब के बीचों-बीच से चिल्लाया; "अरे अइसन का खो गवा रहा, ससुर पानी मा गोल-गोल घूमी के कढ़ी बन गई मगर तोहार ऊ चीज़ नाहीं मिलत!" जैसी ही उस आदमी के मुँह से 'कढ़ी' शब्द निकला, आयुष को 'कढ़ी-फ़्लोरी' शब्द याद आ गया और वो ख़ुशी से चिल्लाया; 'मिलगई...मिलगई...मिलगई...मिलगई!!!' कहीं फिर से आयुष ये नाम न भूल जाए वो ख़ुशी से चिल्लाते हुए अपने घर की तरफ दौड़ पड़ा| जब उस आदमी ने देखा की आयुष उसे आधा इनाम दिए बिना ही भागा जा रहा है तो वो आदमी भी आयुष के पीछे दौड़ पड़ा| 'कहाँ जात हो? हमार आधा हिस्सा दिहो!' वो आदमी चिलाते हुए आयुष के पीछे दौड़ा पर आयुष ने उसकी बात न सुनी और अपनी धुन में नाम रटते हुए सरपट घर की ओर दौड़ता रहा|
संगीता देवी जी घर के आंगन में अपनी चारपाई बिछा रहीं थीं जब आयुष दौड़ता हुआ घर पहुँचा| 'म...म...मम्मी..क..कढ़ी..फ..फ़्लोरी...बनाओ...जल्दी!' आयुष हाँफते हुए बोला और घर के भीतर भाग गया| बाहर संगीता देवी हैरान-परेशान 'आयुष...आयुष' चिल्लाती रह गईं! इतने में वो आदमी दौड़ता हुआ आया और संगीता देवी से बड़े गुस्से में बोला; 'क...कहाँ है...तोहार लड़िकवा कहाँ है? ऊ का कछु तालाब मा हैराये गवा रहा, हम कहिन की हमका आधा देबू तो हम ढूँढ देब और तोहार लड़िकवा हाँ भी कहिस लेकिन जबतक हम ढूँढी, तोहार लड़िकवा आपन चीज़ पाई गवा और हमका आधा दिए बिना ही दौड़ लिहिस! हम कहित है, ऊ का एहि लागे बुलाओ और हमार आधा हिस्सा दिलवाओ नाहीं तो हम आभायें पुलिस बुलाइथ है!' पुलिस की धमकी सुन संगीता देवी ने घबराते हुए अपने सुपुत्र को आवाज़ दी; "आयुष! बाहिरे आ जल्दी!" अपनी मम्मी के गुस्से से भरी आवाज़ सुन आयुष बहार आया और उस आदमी को देख हैरान हुआ| ' तालाब मा का हैराये गवा रहा?' संगीता देवी ने कड़क आवाज़ में सवाल पुछा तो आयुष ने डर के मारे सारा सच कह डाला; 'वो...मम्मी मैंने है न आज अपने ससुराल में पहलीबार कढ़ी-फ़्लोरी खाई जो मुझे बड़ी स्वाद लगी| मैं सारा रास्ता कढ़ी-फ़्लोरी..कढ़ी-फ़्लोरी रटता हुआ घर आ रहा था की तालाब में पॉंव फिसलते समय मैं कढ़ी-फ़्लोरी कहना भूल गया! मैं तालाब किनारे खड़ा हो कर वही शब्द याद करने में लगा था की तभी ये अंकल जी आये और बोले की तुम्हारा जो खो गया है वो मैं ढूँढ दूँ तो मुझे आधा दोगे?! मैं कढ़ी-फ़्लोरी शब्द याद करने में इतना खो गया था की मैंने हाँ कह दी| जब अंकल जी ने घंटा भर लगा कर ढूँढने के बाद तालाब में खड़े हो कर कहा की ऐसा क्या खो गया है तालाब में, खोजते-खोजते कढ़ी बन गई, तो मुझे ये शब्द याद आ गया और मैं घर दौड़ता हुआ आ गया|' आयुष की जुबानी सारी बात सुन संगीता देवी और उस आदमी ने अपना-अपना सर पीट लिया!

आयुष की भोलीभाली बातें सुन संगीता देवी या उस आदमी को गुस्सा नहीं आ रहा था, बल्कि उन्हें तो इस भोलेभाले बच्चे आयुष पर प्यार आ रहा था इसलिए किसी ने आयुष को नहीं डाँटा| संगीता देवी ने फटाफट कढ़ी-फ़्लोरी बनाई और उस आदमी तथा आयुष को भर पेट खिलाई|

कहानी समाप्त!" मैंने कहानी पूर्ण होने की घोषणा की तो सभी ने तालियाँ बजा कर मेरा अभिवादन किया|

[color=rgb(163,]जारी रहेगा भाग - 20 (1) में...[/color]
 

[color=rgb(44,]इकत्तीसवाँ अध्याय: घर संसार[/color]
[color=rgb(251,]भाग - 20 (1)[/color]


[color=rgb(71,]अब तक अपने पढ़ा:[/color]

मैंने कहानी पूर्ण होने की घोषणा की तो सभी ने तालियाँ बजा कर मेरा अभिवादन किया|

[color=rgb(26,]अब आगे:[/color]

कहानी
सुनाते-सुनाते रात के 12 बज गए थे और अब आ रही थी सबको नींद| भाभी जी, संगीता और दोनों बच्चे उसी कमरे में सो गए थे| मैं, स्तुति और भाईसाहब अपने कमरे में आ कर सो गए तथा दोनों चाचा-भतीजा अपने कमरे में सो गए|

अगली सुबह तीनों बच्चों को छोड़कर सब उठ चुके थे| सभी माँ और सासु माँ वाले कमरे में बैठे बातें कर रहे थे जब भाभी जी ने मेरी कल रात सुनाई हुई कहानी की तारीफ करनी शुरू कर दी| माँ और मेरी सासु माँ को जिज्ञासा हुई की मैंने कौन सी कहानी सुनाई थी तो भाभी जी ने चौधरी बनते हुए कल रात वाली मेरी कहानी सभी को पुनः सुना दी| भाभी जी के मुख से मेरी कहानी सुन कर माँ और सासु माँ को बहुत हँसी आई तथा दोनों माओं ने मेरे सर पर हाथ रख मुझे आशीर्वाद दिया|

आज शाम को हम सभी ने वापस चलाए जाना था इसलिए हम सभी तैयार हो कर फिर से घूमने निकल पड़े| सबसे पहले हमने माँ मनसा देवी की यात्रा करनी थी और इस यात्रा को ले कर मैं कुछ ज्यादा ही उत्साहित था| मेरे उत्साहित होने का कारण था रोपवे (ropeway) अर्थात उड़नखटोले की सैर! उड़नखटोले की टिकट ले कर हम सभी लाइन में खड़े थे, सासु माँ, संगीता, भाभी जी, अनिल, विराट, आयुष, नेहा और स्तुति सभी उड़नखटोले को ऊपर-नीचे आते-जाते देख अस्चर्य से भरे हुए थे| माँ चूँकि उड़नखटोले पर एक बार पहले भी बैठ चुकीं थीं इसलिए वो अपना अनुभव मेरी सासु माँ, भाभी जी, अनिल और संगीता को बता रहीं थीं| वहीं विराट, आयुष और नेहा की अपनी अलग बातें चला रहीं थीं की आखिर ये उड़नखटोला चलता कैसे होगा?! मैं, और भाईसाहब खामोश खड़े थे क्योंकि हम दोनों ही अपने-अपने जीवन में ये यात्रा पहले कर चुके थे| जब उड़नखटोले में बैठने का हमारा नंबर आया तो मैंने चौधरी बनते हुए सबसे पहले माँ, भाभी जी, संगीता और सासु माँ को एक साथ पहले बैठने को कहा| अब संगीता का मन मेरे साथ उड़नखटोले में बैठने को था मगर उड़नखटोले में एक बार में केवल 4 ही लोग बैठ सकते थे, ऊपर से संगीता के मेरे साथ होने से दोनों बच्चे ठीक से मस्ती नहीं कर पाते इसलिए मैंने संगीता को जानबूझ कर माँ के साथ भेज दिया, मेरे इस फैसले के लिए संगीता ने अपनी आँखों से बहुतु कोसा और उल्हना दिया, इधर मैं भी मुस्कुरा कर संगीता के जले पर नमक छीडकता रहा!

संगीता वाला उड़नखटोला अपनी मंज़िल की ओर चल पड़ा था और उसकी जगह दूसरा उड़नखटोला आ खड़ा हुआ था| "भाईसाहब, मैं ओर बच्चे इसमें चले जाएँ?!" मेरे भीतर का बच्चा उत्साह में बाहर आते हुए बोला| मेरा उत्साह देख भाईसाहब मुस्कुराये और बच्चों से बोले; "बेटा उड़नखटोले में बैठने के बाद कोई मस्ती नहीं करना!" नेहा ने लाइन में खड़े हुए दिवार पर लिखी सारी सावधानियाँ पहले ही पढ़ ली थीं इसलिए वो सबकी जिम्मेदारी लेते हुए बोली; "बड़े मामा जी, मैंने दिवार पर लिखी सारी सावधानियाँ पढ़ ली हैं इसलिए आप ज़रा भी चिंता मत करो|" नेहा को जिम्मेदारी उठाते देख भाईसाहब ने उसे आशीर्वाद दिया तथा मुझे आँखों के इशारे से सब बच्चों का ध्यान रखने को बोले|

सबसे पहले उड़नखटोले में आयुष बैठा क्योंकि उसे बैठने का कुछ अधिक ही उत्साह था, उसके बाद विराट उसकी बगल में बैठ गया| फिर घुसी नेहा और उसके बगल में मैं तथा मेरी गोदी में स्तुति आराम से बैठ गए| जब हमारा उड़नखटोला चला तो जो मनमोहक कुदरती नज़ारा हमें दिखा उसे देख कर हम सभी बहुत खुश हुए| स्तुति ने जब उड़नखटोले से बाहर का दृश्य देखा तो वो इतना खुश हुई की क्या कहूँ?! आयुष, नेहा और विराट से ज्यादा स्तुति ख़ुशी से किलकारियाँ मार रही थी! वहीं आयुष और नेहा भी पीछे नहीं थे, दोनों मेरा ध्यान नीचे पेड़-पौधों या अन्य उड़नखटोलों की तरफ खींच रहे थे| एक अकेला पिता और उसके तीनों बच्चे अपने पिता का ध्यान अपनी तरफ खींचने में लगे थे...कितना मनमोहक दृश्य था!

विराट कहीं अकेला महसूस न करे इसलिए मैं उससे एक दोस्त बनकर बात कर रहा था| आखिर हम पहाड़ी पर बने मंदिर पहुँचे और उड़नखटोले से उतर कर बाहर आये जहाँ सारी महिलाएँ खड़ीं थीं| मुझे देख संगीता की नाक पर प्यारभरा गुस्सा आ बैठा था की आखिर क्यों मैं उसके साथ उड़नखटोले में न बैठकर बच्चों के साथ बैठकर ऊपर आया?! खैर, जब भाईसाहब और अनिल ऊपर आये तब हम सभी ने श्रद्धा पूर्वक मनसा माता जी के दर्शन किये तथा नीचे जाने के लिए फिर से उड़नखटोले के पास लाइन में खड़े हो गए| इस बार संगीता ने अपनी चपलता दिखाई और स्तुति को लाड करने के बहाने से मेरी गोद से ले लिया| संगीता जानती थी की मैं स्तुति के बिना नहीं रह पाउँगा इसलिए मुझे संगीता के साथ ही उड़नखटोले से नीचे जाना पड़ेगा| अपनी बनाई योजना को और पुख्ता करने के लिए उसने दोनों बच्चों को इशारे से अपने पास बुला लिया तथा नेहा को इशारा कर मेरे साथ खड़ा रहने को कहा| जैसे ही हमारा नंबर आया, उड़नखटोले में पहले सासु माँ बैठीं, फिर माँ बैठीं, फिर भाभी जी बैठीं और तभी संगीता ने विराट की पीठ थपथपाते हुए कहा; "बैठो बेटा|" अपनी बुआ की बात मानते हुए विराट जा कर अपनी मम्मी की बगल में बैठ गया तथा उड़नखटोला नीचे की ओर चल पड़ा| अगली बारी हमारी थी, जैसे ही उड़नखटोले का दरवाजा खुला, संगीता दोनों बच्चों से बोली; "चलो-चलो बेटा, जल्दी से बैठ जाओ!" संगीता ने ऐसे जल्दी मचाई की मानो ये नीचे जाने वाला आखरी उड़नखटोला हो! इधर मैं, अनिल और भाईसाहब, संगीता का ये बचपना देख कर मुस्कुरा दिए तथा हमें मुस्कुराता हुआ देख संगीता ने लजाते हुए अपना चेहरा घुमा लिया|

खैर, हम दोनों मियाँ-बीवी खटोले में बैठे और हमारा ये उड़नखटोला नीचे की ओर चल पड़ा| नीचे जाते समय संगीता को डर लगा इसलिए स्तुति को मेरी गोदी में दे कर वो मुझसे लिपट गई| "जब हम ऊपर आ रहे थे, तब भी मुझे डर लगा था लेकिन मेरा डर भगाने वाला कोई नहीं था| आपको सच्ची मेरा ख्याल नहीं आता न, आपकी एक पत्नी है जिसे उड़नखटोले में अकेले कितना डर लगता होगा?" संगीता खुसफुसा कर मुझसे शिकायत करते हुए बोली| "सॉरी जान!" मैंने अपना एक कान पकड़ते हुए कहा, जिसके जवाब में संगीता मुस्कुराने लगी|

उड़नखटोले में हम धीरे-धीरे नीचे आ रहे थे और उधर मेरे तीनों बच्चों ने ख़ुशी से शोर मचाना शरू कर दिया था| जहाँ एक तरफ स्तुति कुछ बोलने की कोशिश में किलकारियाँ मार रही थी, वहीं आयुष और नेहा मिलकर "आई लव यू पापा जी" चिल्ला रहे थे| बच्चों के शोर की आड़ में संगीता ने भी मेरे कान में खुसफुसाते हुए "आई लव यू जानू" कहा| इस मनमोहक मौके का लाभ उठाते हुए मैंने भी खुसफुसा कर "आई लव यू टू जान" कहते हुए संगीता के मस्तक को चूम लिया|

बहरहाल हम सब नीचे आ चुके थे, पहले तो हमने खाना खाया और फिर घाट पर बैठ कर आराम किया| दोनों बच्चों को पानी में करनी थी मस्ती इसलिए हम चारों (मैं, नेहा, आयुष और स्तुति बिलकुल आखरी वाली सीढ़ी पर पानी में पैर डालकर बैठ गए| हम तीनों बाप-बेटा-बेटी ठंडे-ठंडे पानी में कुछ ही देर पैर रख पाए फिर हम आलथी-पालथी मार कर बैठ गए| गँगा मैय्या के जल को देख कर स्तुति का मन पानी में जाने का था, इसलिए मैंने थोड़ा सा पानी चुल्लू में लिया और स्तुति के पॉंव पर छिड़क दिया जिससे मेरी बिटिया को बहुत आनंद आया और उसने ख़ुशी से कहकहे लगाना शुरू कर दिया|

इतने में पानी में हमें कुछ मछलियाँ दिखीं, एक-आध तो हमारे पॉंव के पास भी आ गई| मछली देख कर तीनों बच्चे बहुत खुश हुए, आयुष ने मुझसे मछली पकड़ने को कहा तो स्तुति ने खुद ही मछली पकड़ने को अपने हाथ पानी की ओर बढा दिए! "बेटा, आप अपनी नर्सरी की पोएम (poem) भूल गए?! अगर मैंने मछली पकड़ पानी से बाहर निकाली तो वो बेचारी मर जाएगी!" मैंने आयुष को समझाते हुए कहा| मेरी बात सुन आयुष को मछली जल की रानी है पोएम याद आ गई और वो मेरी बात समझ गया|; "नहीं पापा जी, आप मछली को मत पकड़ो| हम ऐसे ही मछलियाँ देखते हैं!" आयुष की बात सुन मैंने उसके सर को चूम उसे तथा नेहा को अपने से सटा कर बिठा लिया|

शाम हो रही थी और अब सब को होटल छोड़ना था इसलिए हम सब अपना समान ले कर रेलवे स्टेशन पहुँच गए| सासु माँ की गाँव जाने वाली ट्रैन हमसे पहले आई थी इसलिए हम सब ने पहले सासु माँ, भाभी जी, अनिल, विराट और भाईसाहब को विदा किया| सभी ने स्तुति को गोदी में ले कर लाड किया और उसके छोटे-छोटे हाथों में पैसे थमाए| स्तुति ने इस बार कोई नखरा नहीं किया और सभी का प्रेम तथा आशीर्वाद लिया| फिर बारी आई बच्चों की, उन्हें भी अपने मामा-मामी, नानी और भैया का प्यार, आशीर्वाद तथा पैसे मिले| इधर विराट और मैं किसी दोस्त की तरह गले मिले और मैंने उसकी जेब में कुछ पैसे रख उसे खामोश रहने का इशारा कर दिया| माँ और संगीता ने भी विराट को आशीर्वाद तथा उसकी जेब में चुप-चाप पैसे रख दिए| अंत में मैं भाईसाहब से गले मिला और सभी को मैंने ट्रैन में बिठा दिया| कुछ देर बाद हमारी ट्रैन आ गई, सामान रख हम सभी अपनी-अपनी जगह बैठ गए| आज दिन भर की मस्ती से तीनों बच्चे थके हुए थे इसलिए तीनों मेरे साथ बैठे हुए सो गए| उधर सास-पतुआ भी सो गए थे, एक बस मैं था जो जागते हुए अपने सामान और परिवार की पहरेदारी कर रहा था| घर आते-आते 11 बज गए थे और सबको लग आई थी भूख, इतनी रात गए क्या खाना बनता इसलिए संगीता ने सभी के लिए मैगी बनाई| सभी ने बैठ कर मैगी खाई और कपड़े बदल कर सो गए|

कुछ दिन बीते और दोनों बच्चों के रिजल्ट आने का दिन आ गया| जब मैं स्कूल में पढता था तभी से रिजल्ट से एक दिन पहले मेरी बहुत बुरी फटती थी! मुझे कभी अपनी की गई मेहनत पर विश्वास नहीं होता था, हर बार यही डर लगा रहता था की मैं जर्रूर फ़ैल हो जाऊँगा और पिताजी से मार खाऊँगा! अपने इसी डर के कारण एक दिन पहले सुबह से ही मैं भगवान जी के आगे अपने पास होने की अर्ज़ी लगा देता था| जबकि मेरे दोनों बच्चे एक दिन पहले से ही ख़ुशी से चहक रहे थे, उन्हें अपनी की गई मेहनत पर पूर्ण विश्वास था की वे अवश्य अच्छे नम्बरों से पास हो जायेंगे|

अगले दिन पूरा परिवार तैयार हो कर बच्चों का रिजल्ट लेने स्कूल पहुँचा| सबसे पहले सम्मान समारोह हुआ जिसमें सभी अव्वल आये बच्चों को ट्रोफियाँ दी गईं, सबसे पहले आयुष का नाम पुकारा गया और आयुष ख़ुशी-ख़ुशी स्टेज की तरफ दौड़ा| इधर पीछे खड़े हो कर स्तुति को कुछ नज़र नहीं आ रहा था इसलिए मैं स्तुति को ले कर सबसे आगे आ गया, जब आयुष को प्रिंसिपल मैडम ने ट्रॉफी दी तो मैंने आयुष की तरफ इशारा करते हुए स्तुति से कहा; "देखो बेटा, आपके बड़े भैया को क्लास में फर्स्ट आने पर ट्रॉफी मिल रही है|" स्तुति को क्या पता की ट्रॉफी क्या होती है, वो तो अपने बड़े भैया को देख कर ही खुश हो गई थी तथा खिलखिला कर हँसने लगी| प्रिंसिपल मैडम से अपनी ट्रॉफी ले कर आयुष दौड़ता हुआ मेरे पास आया और अपनी ट्रॉफी स्तुति को देते हुए बोला; "ये मेरी ट्रॉफी आप सँभालो, मैं बाद में आप से ले लूँगा|" स्तुति अपने बड़े भैया की ट्रॉफी पा कर बहुत खुश हुई और फ़ट से आयुष की ट्रॉफी अपने मुँह में लेनी चाहिए की तभी आयुष एकदम से स्तुति को रोकते हुए बोला; "नहीं-नहीं! ये ट्रॉफी है टॉफी नहीं, इसे खाते नहीं हैं!" अब जिस ट्रॉफी को आप खा नहीं सकते वो स्तुति के किस काम की? शायद यही सोचते हुए स्तुति ने अपने बड़े भैया की ट्रॉफी मुझे दे दी|

उधर स्टेज पर प्रिंसिपल मैडम ने नेहा का नाम पुकारा और नेहा आत्मविश्वास से भर कर स्टेज पर पहुँची| प्रिंसिपल मैडम के पॉंव छू कर अपनी ट्रॉफी ली तथा दौड़ती हुई मेरे पास आई| "मेरा प्यारा बच्चा! आई ऍम सो प्राउड ऑफ़ यू!" मैंने नीचे झुक कर नेहा को अपनी बाहों में कसते हुए कहा| नेहा को भी आज खुद पर बहुत गर्व हो रहा था की उसने मेरा नाम ऊँचा किया है| वहीं स्तुति को भी अपनी दीदी को बधाई देनी थी इसलिए उसने अपनी बोली-भासा में कुछ कहा जिसका मतलब नेहा ने ये निकाला की स्तुति उसे बधाई दे रही है; "थैंक यू स्तुति!" नेहा ने स्तुति के हाथ को चूमते हुए कहा तथा अपनी लाइन में पुनः जा कर खड़ी हो गई|

बच्चों का सम्मान समारोह पूर्ण हुआ और हम सभी ने दोनों बच्चों की रिपोर्ट कार्ड दोनों बच्चों की क्लास में जा कर ली| अपने बड़े भैया और दीदी की क्लास देख कर स्तुति को बहुत मज़ा आया| यही नहीं जब आयुष और नेहा ने स्तुति को बताया की वो कहाँ बैठते हैं तो मैंने स्तुति को उसी जगह बिठा कर एक फोटो भी खींच ली| अपने बड़े भैया और दीदी की जगह बैठ कर स्तुति को बड़ा आनंद आया और अपने इस आनंद का ब्यान स्तुति ने किलकारी मार कर किया|

अब चूँकि स्तुति स्कूल में पहलीबार आई थी तो उसे स्कूल-दर्शन कराना जर्रूरी था| मैं स्तुति को गोदी में लिए अकेला चल पड़ा और पूरा स्कूल घुमा लाया| मेरा ये बचपना देख माँ बोलीं; "अरे पहले शूगी को बड़ी तो हो जाने दे, अभी से क्यों उसे स्कूल घुमा रहा है?!"

"अभी से इसलिए घुमा रहा हूँ ताकि अपने स्कूल के पहले दिन स्तुति रोये न|" मैंने स्तुति के गाल चूमते हुए कहा| मेरा ये बचपना देख सभी को हँसी आ गई|

हम सभी का अगला पड़ाव मंदिर और फिर बाहर कहीं खाने-पीने का था, हम स्कूल से बाहर की ओर निकले रहे थे की तभी हमें आयुष की गर्लफ्रेंड और उसकी मम्मी मिल गए| अपनी होने वाली नन्द (नंद) यानी स्तुति को देख आयुष की गर्लफ्रेंड ने स्तुति को गोदी लेना चाहा, परंतु स्तुति अपनी होने वाली भाभी से मुँह फेर कर मुझ से लिपट गई| तब एक अच्छे भाई और होने वाले पति के नाते आयुष आगे आया तथा स्तुति से अपनी होने वाले पत्नी का तार्रुफ़ कराया; "स्तुति...ये मेरी बेस्ट फ्रेंड है| आप इनकी गोदी में चले जाओ न?!" आयुष ने इतने प्यार से स्तुति से कहा की मेरी छोटी सी बिटिया का दिल पिघल गया और वो अपनी होने वाली भाभी की गोदी में चली गई| अपनी छोटी सी प्यारी सी होने वाली नन्द को गोदी में ले कर मेरी होने वाले बहु ने दुलार करना शुरू किया ही था की स्तुति मेरी गोदी में वापस आने के लिए छटपटाने लगी| अपनी होने वाली भाभी जी की गोदी में जा कर स्तुति ने अपने बड़े भैया की अर्जी का मान किया था परन्तु अब स्तुति को अपने पापा जी की गोदी में वापस आना था| मेरी होने वाली बहु ने अपनी होने वाली नन्द की एक पप्पी ली और फिर मेरी गोदी में दे दिया|

बहरहाल हम सब मंदिर में प्रर्थना कर घर खा-पी कर घर लौटे| भाईसाहब, भाभी जी, मेरी सासु माँ, अनिल और विराट ने बच्चों को फ़ोन कर उनके पास होने पर बधाई दी| फिर वो दिन आया जब बच्चों की नई किताबें और कपड़े आने थे| अपने बड़े भैया और दीदी की नई किताबें और कपड़े देख कर सबसे ज्यादा स्तुति खुश हुई, स्तुति की ये ख़ुशी हम सभी की समझ से परे थी| स्तुति बार-बार अपने दोनों हाथ किताबों को पकड़ने के लिए बढ़ा रही थी| अब आयुष और नेहा को अपनी नई किताबों की चिंता थी क्योंकि उन्हें लग रहा था की अगर किताबें स्तुति के हाथ आईं तो स्तुति उन किताबों को फाड़ देगी इसलिए वो किताबें स्तुति की नजरों से छुपाने में लगे थे| माँ दोनों बच्चों की चिंता समझ रहीं थीं इसलिए उन्होंने मुझे आदेश देते हुए कहा; "इस शैतान की नानी को छत पर घुमा ला, तबतक हम किताबें और कपड़े यहाँ से हटा देते हैं वरना ये शैतान की नानी आज सब किताबें फाड़ देगी!" मैं स्तुति को छत पर टहलाने ले आया और बच्चों ने अपनी किताबें-कापियाँ और कपड़े अपने कमरे में रख दिए| जब स्तुति सो गई तब मैंने और दोनों बच्चों ने मिलकर किताबों-कापियों पर कवर चढ़ाये| साथ ही नेहा ने अपनी एक पुरानी रफ कॉपी मुझे दी और बोली; "पापा जी, ये कॉपी आप शैतान स्तुति को देना ताकि वो इसे जी भर कर नोच-खाये!" आगे चलकर नेहा की इस रफ कॉपी को स्तुति ने चैन से नहीं रहने दिया| कभी वो कॉपी खोल कर उसमें लिखे शब्द समझने की कोशिश करती, कभी अपने मन-पसंद कॉपी के पन्ने को पप्पी दे कर गीला कर देती तो कभी गुस्से में आ कर कॉपी के पन्ने को अपनी छोटी सी मुठ्ठी में भरकर फाड़ देती!

दिन बीत रहे थे और अब मेरी बिटिया रानी को कुछ-कुछ अन्न खिलाना शुरू करने का मौका आ गया था| इसके लिए सबसे पहले मैंने मंदिर में पहले पूजा कराई, पूजा के बाद हमें भगवान जी के चरणों को स्पर्श करा कर प्रसाद दिया गया, उस प्रसाद में केला भी शामिल था| घर आ कर स्तुति को मैंने सोफे पर पीठ टिका कर बिठाया तथा मैं स्तुति के ठीक सामने घुटने टेक कर बैठ गया| जैसे ही मैंने केला छीलना शुरू किया, स्तुति ने फ़ट से केले को पकड़ना चाहा| "अरे अभी नहीं स्तुति! पहले पापा जी को केला छीलने तो दो, फिर खाना|" नेहा ने स्तुति को समझाया| इधर मुझे डर था की कहीं केले का बड़ा कौर खाने से स्तुति को कोई तकलीफ न हो इसलिए मैंने केला छील लिया और चींटी के आकार का केले का टुकड़ा स्तुति को खिलाया| केले का पहला कौर खा स्तुति को मीठा-मीठा स्वाद आया और उसने अगला टुकड़ा खाने के लिए अपना मुख पुनः खोल दिया| अगला कौर माँ ने खिलाया तथा स्तुति के सर को चूम आशीर्वाद दिया| फिर बारी आई संगीता की और उसने भी स्तुति को छोटा सा कौर खिला कर लाड किया| आयुष और नेहा की बारी आई तो दोनों बहुत उत्साहित हुए| बारी-बारी कर दोनों बच्चों ने स्तुति को केले का एक-एक कौर खिलाया और स्तुति की पप्पी ले कर कूदने लगे|

ऐसा नहीं था की केवल हम सब ही स्तुति को कुछ खिला कर खुश हो रहे थे, स्तुति भी हमारे हाथों केला खा कर बहुत खुश थी और अपने मसूड़े दिखा कर हँस रही थी| उस दिन से स्तुति ने अपनी मम्मी के दूध के अलावा थोड़ा-थोड़ा खाना शुरू किया| स्तुति को स्वादिष्ट खाना खिलाने के लिए मैं तरह-तरह के फल लाता था, सेरेलैक के नए-नए स्वाद भरे डिब्बे लता था| मेरा बचपना इतना बढ़ गया था की मैं स्तुति को आराम से बिठा कर खिला सकूँ इसके लिए मैं फिल्मों में दिखाई जाने वाली बच्चों की कुर्सी ले आया| जब मैं स्तुति को उस कुर्सी पर बिठा कर सेरेलैक खिला रहा था तब माँ हँसते हुए संगीता से बोलीं; "लो भई बहु, अब तो हमारी शूगी बहुत बड़ी हो गई...देखो शूगी कुर्सी पर बैठ कर खाना खाने लगी है!" माँ की कही बात पर हम सभी ने ज़ोर का ठहाका लगाया|

उधर कुर्सी पर बैठ कर स्तुति को खाने में मज़ा आता था क्योंकि अब उसके दोनों हाथ खाली होते थे और वो कभी चम्मच तो कभी सेरेलैक वाली कटोरी को पकड़ने की कोशिश करती रहती| मैं स्तुति का मन भटकाने के लिए कोई स्वचालित खिलौना उसके सामने रख देता जिससे स्तुति खुश हो कर हँसने लगती, स्तुति का ध्यान खिलोने की तरफ होने से मेरा सारा ध्यान स्तुति को खाना खिलाने में लग जाता| सेरेलैक के नए-नए फ्लावर्स से स्तुति को खाने में बहुत मज़ा आता था और वो खाने में कोई नखरा नहीं करती थी| कभी-कभी मैं फलों को मींज कर भी स्तुति को खिलाता जो की स्तुति को बहुत पसंद था|

और एक मज़े की बात थी वो था स्तुति का खाना खाते समय पूरा चेहरा सन जाना| कई बार स्तुति अपने होठों पर लगी हुई कोई चीज अनजाने में अपने हाथों से अपने पूरे चेहरे पर फैला देती| ये दृश्य देख इतना मनमोहक होता था की मेरी रूह प्रसन्न हो जाती तथा मुझे हँसी आ जाती और मुझे हँसता हुआ देख स्तुति भी हँसने लगती!

इधर नेहा और आयुष भी थोड़े-थोड़े शरारती होते जा रहे थे| मेरी अनुपस्थति में स्कूल से आ कर आयुष सीधा खेलने लग जाता और नेहा अपनी दादी जी का फ़ोन ले कर अपनी सहेली से गप्पें लड़ाने लग जाती| संगीता को दोनों को बार-बार खाने के लिए कहना पड़ता तब जा कर कहीं दोनों भाई-बहन के कानों पर जूँ रेंगती! अपनी इस मौज-मस्ती के अलावा दोनों भाई-बहन ने अपने मन-पसंद खाना न बनने पर मैगी, चाऊमीन या पिज़्ज़ा खाने की रट लगानी शुरू कर दी| एक-आध बार तो माँ बच्चों की जिद्द मान लेती थीं मगर जब ये जिद्द हर हफ्ते होने लगी तो माँ ने भी बच्चों को समझाते हुए मना करना शुरू कर दिया| जब बच्चों की मम्मी और दादी जी ने बाहर से खाना मँगवाने के लिए मना किया तो बच्चों ने मेरा मुँह ताकना शुरू कर दिया| मैं बच्चों के मन पसंद खाना न बनने पर बहार से खाने की इच्छा को जानता था क्योंकि मैंने भी अपने बचपने में ऐसी जिद्द की थीं, वो बात अलग है की मेरी ये जिद्द देख पिताजी हमेशा मुझे झिड़क दिया करते थे ये कह कर की; "ऐसा खाना लोगों को नसीब नहीं होता और तेरे नखड़े हैं!" पिताजी के डर से मैं चुप-चाप करेला, काली दाल, परमाल, सीताफल, अरबी आदि जो की मुझे नपसंद थी, खा लिया करता था| यही कारण था की मैं बच्चों की मनोस्थिति देख कर उनसे हमदर्दी रखते हुए पिघलने लगता था| लेकिन इससे पहले की मैं बाहर से खाना मँगाने के लिए हाँ कहूँ, माँ और संगीता मुझे आँखें बड़ी कर के देखने लगते! अगर मेरे मुँह से बच्चों के लिए हाँ निकल जाती तो दोनों सास-पतुआ रासन-पानी ले कर मेरे ऊपर चढ़ जाते, फिर तो बाहर का खाना छोड़ो मुझे घर का खाना भी नसीब नहीं होता! संगीता और माँ के गुस्से के अलावा, मेरे बच्चों के पक्ष न लेने पर बच्चे भी मुझसे नाराज़ हो सकते थे!

मुझे कैसे भी कर के माँ की डाँट और बच्चों के गुस्से से बचना था और इसका एक ही रास्ता था, वो ये की खुद को दोनों बच्चों की आँखों में निसहाय दिखाया जाए! "ऐसा करते हैं की वोटिंग कर लेते हैं!" वोटिंग से कोई हल निकलना था नहीं, होना वही था जो माँ और संगीता चाहते परन्तु इस रास्ते से बच्चों के सामने मेरी माँ के खिलाफ न जाने की विवशता साफ़ सामने आ जाती| उधर मेरा ये बचकाना ख्याल सुन माँ नाराज़ हो गईं मगर वो मुझे डांटें उससे पहले संगीता ने माँ को रोक दिया और इशारों ही इशारों में माँ से कुछ कहा जिसे मैं या बच्चे समझ नहीं पाए|

"तो जिस-जिस को चाऊमीन या पिज़्ज़ा खाना है वो हाथ उठाये|" मैंने चुनाव प्रक्रिया को शुरू करते हुए कहा| आयुष और नेहा ने बड़े जोश से अपना हाथ उठाया, अब दोनों बच्चों की नज़र मेरे ऊपर ठहरी थी की मैं भी उनका साथ देते हुए हाथ उठाऊँ! वहीं माँ और संगीता मुझे घूर कर देखने लगे ताकि मैं अपना हाथ न उठाऊँ! खुद को बचाने के लिए मैंने दोनों बच्चों को आँखों के इशारे से उनकी मम्मी और दादी जी को देखने को कहा ताकि वो ये समझ जाएँ की मैंने हाथ क्यों नहीं उठाया है| दोनों बच्चों ने जब अपनी मम्मी और दादी जी को मुझे घूरते हुए देखा तो दोनों बेचारे सहम गए! इतने में संगीता बोली; "जो चाहते हैं की आज हम घर में बना हुआ करेला और उर्द की दाल-रोटी खायें, वो हाथ उठायें|" संगीता के बात पूरी करते ही माँ और संगीता ने अपना हाथ ऊपर उठाया तथा दोनों बच्चों ने अपना विरोध दर्शाते हुए हाथ नीचे कर लिया|

अब स्थिति ये थी की बाहर से खाने वाले और घर का खाना खाने वालों के वोट बराबर-बराबर थे तथा मेरा वोट ही निर्णायक वोट था| बच्चे चाहते थे की मेरा वोट उनक पक्ष में पड़े ताकि वो जीत जाएँ और बाहर से खाना आये, वहीं माँ चाहतीं थीं की मैं उनके पक्ष में वोट डालूँ ताकि घर में बना हुआ खाना खाया जाए! मेरे द्वारा निकाला हुआ ये रास्ता मेरे ही गले की फाँस बन गया था! बच्चों के गुस्से के आगे, माँ के डर का पलड़ा भरी था इसलिए मैंने बेमन से अपना हाथ उठाया| मेरे हाथ उठाते ही चुनाव का फैसला माँ और संगीता के हक़ में हो गया तथा संगीता ने बच्चों की तरह ताली बजाते हुए अपनी जीत की ख़ुशी मनाई| तब मुझे समझ आया की ये सब संगीता की चाल थी, उसने जानबूझ कर ये एक तरफा चुनाव होने दिए थे क्योंकि वो जानती थी की माँ के डर के आगे मैं उसके खिलाफ जा ही नहीं सकता|

वहीं बच्चे बेचारे अपनी ही मम्मी द्वारा ठगे गए थे इसलिए दोनों मायूस हो कर मुझसे लिपट गए| "कोई बात नहीं बेटा, आज नहीं तो फिर कभी बाहर से खा लेना|" मैंने बच्चों के सर चूमते हुए कहा| बच्चों को खाना स्वाद लगे इसके लिए मैंने टमाटर भूनकर एक चटपटी सी चटनी बनाई तथा अपने हाथों से बच्चों को ये खाना खिलाया|

उस दिन से जब भी बच्चे बहार से खाने की माँग करते तो संगीता चौधरी बनते हुए वोटिंग की माँग रख देती तथा बच्चे इस एक तरफा खेल में सदा हार जाते! स्कूल में अपनी सोशल स्टडीज की किताब में नेहा ने वोटिंग के बारे में काफी पढ़ रखा था, वो समझ गई की अगर उसे अपने पसंद का खाना मँगवाना है तो उसे राजनीति के इस खेल में अपनी मम्मी को हराना होगा| नेहा तो चुनाव का ये खेल समझ गई थी लेकिन आयुष कुछ नहीं समझा था इसलिए नेहा उसे समझाते हुए बोली; "जिस टीम में ज्यादा लोग होंगें, वो ही टीम जीतेगी|" नेहा ने उदाहरण दे कर आयुष को समझाया तब जा के आयुष को अपनी मम्मी का ये चुनावी खेल समझ आया| बहरहाल, चुनाव जीतने के लिए नेहा को बहुमत चाहिए था इसलिए अपना बहुमत बनाने के लिए नेहा और आयुष मिलकर सोचने लगे;

  • बच्चे जानते थे की उनकी दादी जी के डर के चलते मैं कभी भी बच्चों के पक्ष में वोट नहीं डालूँगा इसलिए मेरा वोट तो बच्चों को को कभी नहीं मिलता!
  • आयुष ने अपना सुझाव रखा की क्यों न किसी बाहर के व्यक्ति, जैसे दिषु चाचा या नेहा-आयुष के दोस्तों से उनके पक्ष में वोट डालने को कहा जाए, लेकिन बाहर से किसी व्यक्ति को वोट डालने के लिए बुलाने पर संगीता मतदान करने वाले व्यक्ति के दूसरे राज्य (अर्थात घर) के होने का बहाना कर के वोट खारिज करवा देती!
  • नेहा ने पेशकश की कि बाहर के व्यक्ति न सही, परिवार के सदस्यों से तो वो अपने पक्ष में वोट डलवा ही सकती है, जैसे बड़े मामा जी, छोटे मामा जी, विराट भैया, बड़ी मामी जी और नानी जी| परन्तु आयुष नेहा को याद दिलाते हुए बोला की उसकी मम्मी के डर से न तो बड़े मामा जी और न ही छोटे मामा जी फ़ोन के जरिये अपना वोट बच्चों के पक्ष में डालेंगे| रही बात विराट भैया, बड़ी मामी जी और नानी जी की तो वो कभी संगीता के खिलाफ जा ही नहीं सकते!

इतना सोचने के बाद भी जब नेहा को हार ही मिली तो उसने लगभग हार ही मान ली थी की तभी आयुष बोला; "दीदी, हम स्तुति को अपने साथ मिला लेते हैं न!" आयुष ने तो केवल अपनी दीदी का मन हल्का करने को मज़ाक में कहा था लेकिन नेहा ने आयुष की बात पकड़ ली! स्तुति का नाम याद आते ही नेहा ने जबरदस्त योजना बना ली, ऐसी योजना जिसके आगे उसकी मम्मी की चपलता धरी की धरी रह जाती!

स्कूल से घर आ कर दोनों बच्चों ने अपनी छोटी बहन को गोदी लिया और खेलने के बहाने अपने कमरे में चलने को कहा| शुरू-शुरू में स्तुति जाने से मना कर रही थी लेकिन नेहा ने उसे अपनी नई किताब दिखा कर ललचाया और गोदी में ले कर चल पड़ी| मेरी भोली-भाली बिटिया रानी को उसी के भाई-बहन बुद्धू बना रहे थे! खैर, तीनों बच्चे गए तो संगीता को मेरे साथ रोमांस का चांस मिल गया, माँ तो वैसे ही आराम कर रहीं थीं इसलिए हम दोनों मियाँ-बीवी ने इस मौके का भरपूर फायदा उठाया!

उधर बच्चों के कमरे के भीतर, नेहा ने स्तुति को ट्रेनिंग देनी शुरू की; "स्तुति, आप अच्छे बच्चे हो न?!" नेहा ने स्तुति से अपना सवाल हाँ में सर हिलाते हुए पुछा तो स्तुति ने अपनी दीदी की देखा-देखि हाँ में अपना सर हिलाया| "तो फिर आप अपनी बड़ी दीदी और बड़े भैया का साथ दोगे न?!" नेहा ने फिर हाँ में सर हिलाते हुए स्तुति से पुछा जिसके जवाब में एक बार फिर स्तुति ने अपनी दीदी की देखा-देखि हाँ में सर हिलाया| "आज रात को न हम मम्मी से पिज़्ज़ा खाने के लिए जिद्द करेंगे, तब मम्मी वोटिंग करने को कहेंगी और आपको हमारा साथ देते हुए हाथ उठाना है|" नेहा ने अपना हाथ उठा कर स्तुति को हाथ उठाना सिखाया| स्तुति के पल्ले कुछ नहीं पड़ा था, वो तो बस अपने बड़े भैया और दीदी का ध्यान अपने ऊपर केंद्रित होने से ही बहुत खुश थी| आयुष और नेहा ने मिलकर करीब एक घंटे तक स्तुति को हाथ उठाना सिखाया और आखिरकार दोनों भाई-बहन की मेहनत सफल हो गई|

रात हुई और संगीता ने खाने में बनाये आलू-परमाल की सब्जी तथा चने की दाल, बस रोटी बननी बाकी थी| तभी नेहा और आयुष अपने हाथ पीछे बाँधे पूरे आतमविह्वास से खड़े हो गए और अपनी मम्मी से बोले; "मम्मी जी, हमारे लिए खाना मत बनाना, हमने आज पिज़्ज़ा खाना है|" नेहा ने बात शुरू करते हुए कहा| नेहा की बात में आत्मविश्वास देख संगीता को अस्चर्य हुआ क्योंकि आज से पहले बच्चे जब भी कुछ खाने की माँग रखते तो उनकी आवाज में नरमी होती थी परन्तु आज ऐसा लगता था मानो बच्चे पिज़्ज़ा नहीं जायदाद में से अपना हक़ माँग रहे हों!

संगीता ने रोटी बनाने के लिए तवा चढ़ाया था परन्तु बच्चों की बात सुन उसने गैस बंद कर दी और सोफे पर माँ की बगल में बैठते हुए पुनः अपनी चाल चलते हुए बोली; "ठीक है, आओ वोटिंग कर लेते हैं!" संगीता को खुद पर जर्रूरत से ज्यादा आत्मविश्वास था, वो जानती थी की वोटिंग शुरू होते ही बच्चे हार जायेंगे और फिर बच्चों को आलू-परमल खाने ही पड़ेंगे! वो नहीं जानती थी की इस बार उसकी बेटी ने उसकी चाल को नाकाम करने का ब्रह्मास्त्र तैयार कर रखा है|

खैर, जैसे ही संगीता ने वोटिंग की बात कही वैसे ही दोनों बच्चे मेरे अगल-बगल खड़े हो गए| बच्चों का ये आत्मविश्वास देख मैं और माँ हैरान थे क्योंकि हमें लगा था की इस एक तरफा खेल से बच्चे ऊब गए होंगें! "जिसे पिज़्ज़ा खाना है, हाथ ऊपर उठाये!" संगीता ने किसी नेता की तरह आवाज बुलंद करते हुए कहा| अपनी मम्मी की बात सुनते ही आयुष न फ़ट से अपना हाथ ऊपर उठा दिया| वहीं नेहा ने स्तुति की तरफ देखा और उससे नजरें मिलाते हुए अपना हाथ धीरे-धीरे उठाया| स्तुति ने जब अपनी दीदी को हाथ उठाते हुए देखा तो उसने भी जोश में अपना हाथ उठा दिया! स्तुति को हाथ उठाते देख मैं, माँ और संगीता चौंक पड़े! "चुहिया...तेरे तो दाँत भी नहीं निकले, तू पिज़्ज़ा खायेगी!" संगीता प्यारभरा गुस्सा लिए स्तुति से बोली जिस पर स्तुति ने अपने मसूड़े दिखा कर हँसना शुरू कर दिया| इधर मैं और माँ समझ गए की बच्चों ने स्तुति को सब सिखाया-पढ़ाया है इसलिए हम माँ-बेटे मंद-मंद मुस्कुरा रहे थे|

"पापा जी, आप स्तुति के खिलाफ वोटिंग करोगे?" नेहा ने अपना निचला होंठ फुलाते हुए पुछा| ये नेहा के प्लान का हिस्सा था, वो स्तुति को आगे रखते हुए मेरा वोट अपने पक्ष में चाहती थी! नेहा के पूछे सवाल और स्तुति का जोश से भरा हुआ देख मैं पिघल गया और मैंने अपना हाथ बच्चों के पक्ष में उठा दिया! मेरा हाथ हवा में देख माँ मुझे प्यार से डाँटते हुए बोलीं; "ओ लड़के!"

"माँ, जरा मेरी बिटिया रानी को देखो और खुद ही बताओ की क्या आप अपनी पोती के खिलाफ वोट कर सकते हो?!" मैंने स्तुति को गोदी में लिया और माँ को स्तुति का भोला सा चेहरा दिखाते हुए पुछा| स्तुति की किलकारियाँ सुन माँ का दिल भी पिघल गया और वो भी बच्चों की तरफ हो गईं| बेचारी संगीता अकेली पड़ गई थी और उसकी नाक पर मेरे प्रति प्यारभरा गुस्सा आ बैठा था क्योंकि वो मैं ही था जिसने सबसे पहले संगीता की पार्टी छोड़ बच्चों की पार्टी में शामिल हो गया था तथा माँ को भी मैंने ही बच्चों की पार्टी में शामिल करवाया था|

"घर का भेदी, लंका ढाये!" संगीता बुदबुदाते हुए मेरी बगल से निकली| संगीता के इस बुदबुदाने को सुन मुझे हँसी आ गई, मुझे यूँ हँसता हुआ देख माँ ने मेरी हँसी का कारण पुछा तो मैंने बात बनाते हुए कहा की; "वो.बेचारी संगीता हार गई इसलिए मुझे हँसी आ गई!"

संगीता ने गुस्से में आ कर पिज़्ज़ा खाने से मना कर दिया था इसलिए मैंने केवल माँ और बच्चों के लिए पिज़्ज़ा मँगाया तथा मैंने संगीता के साथ आलू-परमल खाये| बच्चों ने संगीता को पिज़्ज़ा खिलाने की कोशिश की मगर संगीता ने गुस्से में पिज़्ज़ा नहीं खाया, मैं पिज़्ज़ा खा लेता मगर इससे संगीता का गुस्सा और धधक जाता!

खाना खा कर मैंने दोनों बच्चों को अपने अगल-बगल बिठाया और उन्हें प्यार से घर का खाना खाने के बारे में समझाया; "बेटा, रोज़-रोज़ बाहर का खाना नहीं खाना चाहिए वरना आपको बड़ा होने के लिए जो पोषक तत्व चाहिए वो कैसे मिलेंगे?! आप जानते हो आपकी मम्मी कितनी मेहनत से रसोई में खड़ी हो कर खाना बनाती हैं, अच्छा लगता है आप बाहर से खाना मँगवा कर उनकी सारी मेहनत बर्बाद कर दो?! फिर ये भी देखो की यूँ रोज़-रोज़ बाहर से खाना खाने से आपकी सेहत पर कितना बुरा असर पड़ता है! चाऊमीन, पिज़्ज़ा, बर्गर, छोले भठूरे आदि सब मैदे से बनते हैं और इनमें तरह-तरह के तेल आदि पड़ते हैं जो की रोज़ खाये जाएँ तो हमारी सेहत खराब होती है| महीने में एक-आध बार बाहर से खाना मँगवाना, या फिर कोई ख़ास ख़ुशी हो तब ही हमें खाना मँगवाना चाहिए इससे सेहत अच्छी रहती है| बाकी दिनों में आपकी मम्मी इतना स्वाद-स्वाद खाना बनाती हैं हमें वो खाना चाहिए| जो सब्जियाँ आपको नहीं पसंद उन्हें अब से मैं स्वाद बनाऊँगा, जिससे आपको बाहर से खाना मँगाने की जर्रूरत ही न पड़े! ठीक है बच्चों?!" मैंने बच्चों को बड़े प्यार से समझाया तथा दोनों बच्चों ने मेरी बात का मान रखते हुए ख़ुशी से अपना सर हाँ में हिलाया| बच्चों को सुला कर मैं अपने कमरे में आया तो मैंने देखा की संगीता का गुस्सा कुछ ठंड हुआ है, बाकी गुस्सा ठंडा करने के लिए मुझे हम दोनों मियाँ-बीवी के जिस्मों को गर्म करना था!

घर का माहौल फिर से शांत और खुशनुमा हो गया था| जिस दिन घर में वो सब्जियाँ बननी होती जो बच्चों को नपसंद हैं तो एप्रन पहन कर मैं रसोई में घुस जाता और खूब तड़का लगा कर उन सब्जियों को स्वाद बनाता| बच्चों को मेरे हाथ का बना खाना वैसे ही पसंद था इसलिए जब मैं उनकी नपसंद की हुई दाल-सब्जी बना कर उन्हें अपने हाथ से खिलाता तो बच्चे ख़ुशी-ख़ुशी खा लेते|

इधर अपने बड़े भैया और बड़ी दीदी की देखा-देखि मेरी बिटिया रानी भी शैतान हो गई थी! एक दिन की बात है, दोपहर का खाना खा कर हम सभी माँ के कमरे में बैठे बात कर रहे थे, तीनों बच्चे तो सो गए बचे हम माँ-बेटा और संगीता| गर्मियाँ शुरू हो गईं थीं और मुझे आ रही थी नींद इसलिए मैं अपने कमरे में आ कर केवल पजामा पहने सो गया| शाम को जब स्तुति जागी तो उसने मुझे अपने पास न पाकर कुनमुनाना शुरू कर दिया| स्तुति रो न पड़े इसलिए संगीता उसे गोदी में मेरे पास ले आई और मेरी बगल में लिटा कर खुद खड़ी हो कर कपड़े तहाने लगी| इधर मैं दाईं करवट यानी संगीता की तरफ करवट कर के लेटा था और मेरी बगल में लेटी हुई स्तुति को नजाने क्या मस्ती सूझी की उसने मेरी तरफ करवट ली| चूँकि मैं कमर से ऊपर नग्न अवस्था में था इसलिए स्तुति की नज़र पड़ी मेरे निप्पलों पर! थोड़ा खिसकते हुए स्तुति मेरे नजदीक आई और मेरे दाएँ निप्पल पर अपने गीले-गीले होंठ लगा कर दूध पीने की कोशिश करने लगी!

जैसे ही मुझे मेरे दाएँ निप्पल पर कुछ गीला-गीला महसूस हुआ मेरी आँख खुल गई! स्तुति को अपने निप्पल पर मुँह लगा कर दूध पीता हुआ देख मैंने फौरन स्तुति को पकड़ कर खुद से दूर किया और हँसते हुए बोला; "नहीं-नहीं बेटा! मुझे दूधधु नहीं आता, आपकी मम्मी जी को आता है!" मुझे मुस्कुराता हुआ देख स्तुति को बड़ा मज़ा आया और वो खिलखिलाकर हँसने लगी! उधर मेरी बात सुन संगीता को समझ आया की स्तुति मेरा दूध पीने की कोशिश कर रही थी इसलिए संगीता अपना पेट पकड़ कर हँसने लगी और स्तुति की होंसला अफ़ज़ाई करते हुए बोली; "शाबाश बेटा! पापा जी का ही दूधधु पियो!" अपनी मम्मी की बात सुन स्तुति अपने दोनों हाथ मेरी तरफ बढ़ा दिए मानो वो मेरे दोनों निप्पल पकड़ कर दूध पीना चाहती हो! "मेरा शैतान बच्चा!" ये कहते हुए मैंने संगीता से कहा की वो स्तुति को दूध पिला दे मगर स्तुति को दूध पीना ही नहीं था, वो तो बस मेरे साथ मस्ती कर रही थी!

अभी तक तो मेरी बिटिया रानी हम सबकी गोदी में बैठ कर राज करती थी, लेकिन जैसे ही स्तुति ने अपने दोनों हाथों-पैरों पर धीरे-धीरे रेंगना शुरू किया, हम सभी के लिए आफत आ गई! सबसे पहले तो मैंने दिवार में जितने भी बिजली के स्विच-सॉकेट नीचे की ओर लगे थे उन्हें मैंने उ बंद करवाया ताकि कहीं अनजाने में स्तुति सॉकेट में अपनी ऊँगली न डाल दे और उसे करंट न लग जाए| फिर मैंने हमारे घर के सारे दरवाजों की चिटकनियाँ निकलवा दी, ताकि कहीं गलती से स्तुति कोई दरवाजा धक्का दे कर बंद कर दे तो दरवाजा लॉक न हो जाए! बस घर का मुख्य दरवाजा और माँ के बाथरूम का दरवाजा ही थे जिनमें ऊपर की ओर चिटकनी लगी थी जहाँ स्तुति का हाथ पहुँच ही नहीं सकता था|

जबतक मैं घर पर होता, संगीता को चैन रहता था क्योंकि स्तुति मेरे साथ खेलने में व्यस्त रहती लेकिन जैसे ही मैं घर से गया नहीं की स्तुति अपने दोनों हाथों ओर पैरों के बल रेंगते हुए पूरे घर में घूमने लगती| पूरे घर में स्तुति की दो मन पसंद जगह थीं, एक थी माँ के पलंग के नीचे और दूसरी थी रसोई| जब भी संगीता खाना बना रही होती स्तुति उसके पीछे पहुँच जाती और कभी संगीता की साडी खींच कर तो कभी चिल्ला कर अपनी मम्मी का ध्यान अपनी ओर खींचती| "आ गई मेरी नानी!" संगीता अपना सर पीटते हुए कहती| अपनी मम्मी को अपना सर पीटता हुआ देख स्तुति को बहुत मज़ा आता और वो खिखिलाकर हँसने लगती| संगीता की समस्या ये थी की स्तुति को जिज्ञासा होती थी की उसकी मम्मी आखिर कर क्या रही है इसलिए स्तुति रसोई के फर्श पर बैठ कर शोर मचाती थी| संगीता मेरी बिटिया की ये जिज्ञासा नहीं समझ पाती थी इसलिए वो चिड़चिड़ी हो जाती और स्तुति को उठा कर माँ की गोदी में दे देती| लेकिन स्तुति माँ की गोदी में छटपटाने लगती और माँ की गोदी से नीचे उतरने की जिद्द करती| जैसे ही माँ ने स्तुति को नीचे उतारा नहीं की स्तुति सीधा रसोई की तरफ खदबद (अपने दोनों हाथों-पैरों पर तेज़ी से चलना) दौड़ जाती! स्तुति का रसोई के प्रति आक्रषण माँ को थोड़ा-थोड़ा समझ आने लगा था| स्तुति रसोई में अधिकतर तब ही जाती थी जब संगीता रोटी बना रही होती थी| जब माँ को ये बात समझ में आई तो उन्होंने संगीता को समझाया; "बेटा, मानु जब छोटा था तो वो भी मेरे-मेरे पीछे रसोई में आ जाता था| उसे मुझे रोटियाँ बनाते हुए देखना अच्छा लगता था| मैं कई बार कच्चे आटे से बनी हुई चिड़िया या हवाई जहाज बना कर उसे देती तो वो उस चिड़िया या हवाई जहाज से रसोई के फर्श पर बैठ कर खेलने लगता| जब धीरे-धीरे मानु बड़ा होने लगा तो उसने एक दिन कहा की मम्मी मैं भी रोटी बनाऊँ? तो मैंने आखिर में उसे एक रोटी बनाने को दी, लेकिन उसके हाथ थे छोटे-छोटे और बेलन बड़ा इसलिए बेचारा रोटी नहीं बना पता था| तब तेरे ससुर जी ने मानु को एक छोटा सा चकला-बेलना ला कर दिया और तब से मानु ने मेरी देखा-देखि रोटी बनानी शुरू की| वो बात अलग है न उससे तब रोटी गोल बनती थी और न अब बनती है! खैर, उसकी बनाई ये आड़ी-टेढ़ी रोटी तेरे ससुर जी खाते थे या फिर मैं और हमें ये रोटी कहते देख मानु को बहुत ख़ुशी होती थी| वो रोज़ रोटी बनाना चाहता था मगर मैं उसे डाँट-डपट कर भगा देती थी क्योंकि उसे रोटी बनाने में बहुत समय लगता था और मुझसे गर्मी में खड़े हो कर उसकी रोटी बनने का इंतज़ार नहीं होता था!

फिर जब मानु करीब 3 साल का हुआ तो उसने मुझे सताने के लिए एक और शरारत खोज निकाली| जब मैं रोटी बना रही होती तो वो पीछे से दबे पॉंव आता और कटोरी में रखा घी पी कर भाग जाता! जब मैं रोटी सेंक कर उस पर घी लगाने को कटोरी उठाती तो देखती क्या हूँ की घी तो सब साफ़ है! फिर मैं उसे बहुत डाँटती, लेकिन ये लाड़साहब कहाँ सुनते हैं! ऐसे ही एक दिन तेरे ससुर जी सर्दी के दिनों में छत पर सरसों का साग और मक्की की रोटी बना रहे थे| ज़मीन पर ईंटों का चूल्हा बना, तवा चढ़ा कर तेरे ससुर जी रोटी बेल रहे थे की तभी मानु पीछे से रेंगता हुआ आया और घी वाली कटोरी का सारा घी पी कर भाग गया! जब तेरे ससुर जी रोटी में घी लगाने लगे तो घी खत्म देख वो बड़े हैरान हुए, तब मैंने उन्हें बताया की ये सब उन्हीं के लाड़साहब की करनी है तो तेरे ससुर जी बहुत हँसे! 'बमास (बदमाश) इधर आ!' तेरे ससुर जी ने हँसते हुए मानु को अपने पास बुलाया और उसे प्यार से समझाया की यूँ असली घी अधिक पीने से वो बीमार पड़ जायेगा, तब जा कर मानु की ये शैतानी बंद हुई!" माँ के मुख से मेरे बचपन के मजेदार किस्से सुन संगीता को बहुत हँसी आई| वहीं स्तुति ने भी अपने पापा जी के ये किस्से सुने थे मगर उसे समझ कुछ नहीं आया, वो तो बस सब को हँसता हुआ देख हँस रही थी|

ऐसा नहीं था की केवल मुझ में ही बचपना भरा था, बचपना तो मेरी माँ के भीतर भी बहुत था तभी तो उन्होंने मुझे साइट पर फ़ोन कर स्तुति के लिए चकला-बेलन लाने को कहा ताकि माँ स्तुति को रोटी बनाना सीखा सकें! शाम को जब स्तुति के लिए चकला-बेलना, छोटे-छोटे बर्तन, गैस-चूल्हा इत्यादि ले कर मैं घर आया तो नेहा की आँखें ये खिलोने देख कर नम हो गई| नेहा को ये छोटे-छोटे खिलोने देख कर उसका छुटपन याद आ गया था, वो दिन जब नेहा छोटी सी थी और मैं गाँव में आया था, तब नेहा अपने मिटटी से बने बर्तनों में मेरे लिए झूठ-मूठ का खाना पकाती तथा मैं चाव से खाने का अभिनय करता| आज उन मधुर दिनों को याद कर मेरी बेटी नेहा की आँखें नम हो गई थीं| "आजा मेरा बच्चा!" ये कहते हुए मने अपनी बाहें खोलीं और नेहा दौड़ती हुई आ कर मेरे सीने से लग गई| आयुष को अपनी दीदी का यूँ भावुक होना समझ नहीं आया इसलिए वो सवालिया नजरों से हम दोनों बाप-बेटी को यूँ खामोश गले लगे हुए देख रहा था| "बेटा, जब आपकी दीदी छोटी थीं न तब गाँव में वो मेरे साथ घर-घर खेलती थीं| आपकी दीदी के पास मिटटी के बर्तन थे और वो उन पर मेरे लिए खाना बनाती थी| आज उन्हीं दिनों को याद कर के आपकी दीदी भावुक हो गईं|" मैंने आयुष के मन में उठे सवाल का जवाब दिया| मेरी बात सुन आयुष जोश में आ कर नेहा के साथ मेरे गले लग गया जिससे नेहा का ध्यान बँट गया और वो नहीं रोई|

हम तीनों बाप-बेटा-बेटी गले लगे थे तो स्तुति को आया प्यारा सा गुस्सा, वो भी अपनी मम्मी की तरह मुझ पर हक़ जमाती थी| "स्तुति ने मेरी तरफ अपने हाथ फैलाये और खुद को गोदी लेने को कहने के लिए अपनी बोली-भाषा में कुनमुनाने लगी| मैंने दोनों बच्चों को एक मिनट रुकने को कहा तथा स्तुति को अपनी गोदी में उठा लिया, स्तुति को एक हाथ से सँभाल कर मैंने आयुष और नेहा को फिर से मेरे गले लगने को कहा| दोनों बच्चे आ कर मुझसे लिपट गए, लेकिन स्तुति को अपने पापा जी को अपने बड़े भैया और बड़ी दीदी के साथ बाँटना अच्छा नहीं लगता था इसलिए उसने अपनी दीदी और अपने भैया के बाल खींचने शुरू कर दिए! जब स्तुति ने नेहा के बाल खींचे तो नेहा ने पहले तो अपने बाल स्तुति की पकड़ से छुड़ाए और फिर स्तुति के कूल्हों पर प्यारी सी चपत लगाते हुए बोली; "चुहिया!" इतना कह नेहा स्तुति के लिए लाये हुए खिलोने पैकेट से निकलने लगी| स्तुति के लिए नए खिलोने देख कर आज मेरा मन बच्चों के साथ खेल-खेलने का कर रहा था| मैंने नेहा को सारे खिलोने अच्छे से धो कर लाने को कहा| फिर मैं, आयुष और नेहा डाइनिंग टेबल की कुर्सी खींच कर बैठ गए तथा स्तुति को हमने डाइनिंग टेबल के ऊपर बिठा दिया| नेहा ने झूठ-मूठ की गैस जलाई और उन छोटे-छोटे बर्तनों में खाना बनाने का अभिनय करने लगी| स्तुति को ये खेल समझ नहीं आ रहा था परन्तु वो अपनी दीदी को खाना बनाने का अभिनय करते हुए बड़ी गौर से देख रही थी| खेल को थोड़ा सा और असली बनाने के लिए उन खाली बर्तनों में स्तुति को खिलाये जाने वाले फल को मींज कर डाल दिया| जब खाना बना तो नेहा ने हम सभी के लिए छोटी-छोटी प्लेटों में मींजे हुए फल खाने के रूप में परोस दिए| जब मैंने स्तुति को उसकी छोटी सी प्लेट उठा कर दी तो स्तुति बहुत खुश हुई और उसने आज पहलीबार अपने हाथ से प्लेट में मींजे हुए फलों के मिश्रण को अपने हाथों से उठाया और खाया| स्तुति को ये खेल पसंद आ गया था इसलिए रोज़ शाम को हम चारों मिल कर ये खेल खेलने लगे|

[color=rgb(163,]जारी रहेगा भाग - 20 (2) में...[/color]
 

[color=rgb(44,]इकत्तीसवाँ अध्याय: घर संसार[/color]
[color=rgb(251,]भाग - 20 (2)[/color]


[color=rgb(71,]अब तक अपने पढ़ा:[/color]

हम तीनों बाप-बेटा-बेटी गले लगे थे तो स्तुति को आया प्यारा सा गुस्सा, वो भी अपनी मम्मी की तरह मुझ पर हक़ जमाती थी| "स्तुति ने मेरी तरफ अपने हाथ फैलाये और खुद को गोदी लेने को कहने के लिए अपनी बोली-भाषा में कुनमुनाने लगी| मैंने दोनों बच्चों को एक मिनट रुकने को कहा तथा स्तुति को अपनी गोदी में उठा लिया, स्तुति को एक हाथ से सँभाल कर मैंने आयुष और नेहा को फिर से मेरे गले लगने को कहा| दोनों बच्चे आ कर मुझसे लिपट गए, लेकिन स्तुति को अपने पापा जी को अपने बड़े भैया और बड़ी दीदी के साथ बाँटना अच्छा नहीं लगता था इसलिए उसने अपनी दीदी और अपने भैया के बाल खींचने शुरू कर दिए! जब स्तुति ने नेहा के बाल खींचे तो नेहा ने पहले तो अपने बाल स्तुति की पकड़ से छुड़ाए और फिर स्तुति के कूल्हों पर प्यारी सी चपत लगाते हुए बोली; "चुहिया!" इतना कह नेहा स्तुति के लिए लाये हुए खिलोने पैकेट से निकलने लगी| स्तुति के लिए नए खिलोने देख कर आज मेरा मन बच्चों के साथ खेल-खेलने का कर रहा था| मैंने नेहा को सारे खिलोने अच्छे से धो कर लाने को कहा| फिर मैं, आयुष और नेहा डाइनिंग टेबल की कुर्सी खींच कर बैठ गए तथा स्तुति को हमने डाइनिंग टेबल के ऊपर बिठा दिया| नेहा ने झूठ-मूठ की गैस जलाई और उन छोटे-छोटे बर्तनों में खाना बनाने का अभिनय करने लगी| स्तुति को ये खेल समझ नहीं आ रहा था परन्तु वो अपनी दीदी को खाना बनाने का अभिनय करते हुए बड़ी गौर से देख रही थी| खेल को थोड़ा सा और असली बनाने के लिए उन खाली बर्तनों में स्तुति को खिलाये जाने वाले फल को मींज कर डाल दिया| जब खाना बना तो नेहा ने हम सभी के लिए छोटी-छोटी प्लेटों में मींजे हुए फल खाने के रूप में परोस दिए| जब मैंने स्तुति को उसकी छोटी सी प्लेट उठा कर दी तो स्तुति बहुत खुश हुई और उसने आज पहलीबार अपने हाथ से प्लेट में मींजे हुए फलों के मिश्रण को अपने हाथों से उठाया और खाया| स्तुति को ये खेल पसंद आ गया था इसलिए रोज़ शाम को हम चारों मिल कर ये खेल खेलने लगे|

[color=rgb(26,]अब आगे:[/color]

आज
होली के उपलक्ष्य में स्तुति की पहली होली का किस्सा सुना देता हूँ;

स्तुति लगभग 7 महीने की थी और होली का पर्व आ गया था| ये स्तुति की हमारे साथ पहली होली थी इसलिए मैं आज के दिन को ले कर बहुत उत्सुक था| बच्चों की परीक्षा हो चुकी थी और रिजल्ट आने में तब बहुत दिन बचे थे| बच्चों के लिए मैं पिचकारी, गुब्बारे, गुलाल और रंग बड़े चाव से लाया था| स्तुति बहुत छोटी थी इसलिए हमें उसे रंगों से बचाना था क्योंकि स्तुति की आदत थी की कोई भी चीज हो, सस्बे पहले उसे चख कर देखना इसलिए माँ ने दोनों बच्चों को सख्त हिदायत दी की वो स्तुति पर रंग न डालें| बच्चों ने अपना सर हाँ में हिला कर अपनी दादी जी की बात का मान रखा| चूँकि स्तुति मेरे अलावा किसी से सँभलती नहीं इसलिए मैं बच्चों के साथ होली नहीं खेल सकता था, बच्चों को मेरी कमी महसूस न हो उसके लिए मैंने दिषु को घर बुला लिया था|

खैर, दिषु के आने से पहले हम सभी गुलाल लगा कर शगुन कर रहे थे| सबसे पहले माँ ने हम सभी को गुलाल से टीका लगाया और हमने माँ के पॉंव छू कर उनका आशीर्वाद लिया| जब स्तुति को गुलाल लगाने की बारी आई तो स्तुति हम सभी के चेहरों पर गुलाल का तिलक लगा देख कर गुलाल लगवाने के लिए ख़ुशी से छटपटाने लगी| "हाँ-हाँ बेटा, तुझे भी गुलाल लगा रही हूँ!" माँ हँसते हुए बोलीं तथा एक छोटा सा तिलक स्तुति के मस्तक पर लगा उसके दोनों गाल चूम लिए| स्तुति कहीं गुलाल को अपने हाथों से छू वो हाथ अपने मुँह को न लगा दे इसलिए मैंने स्तुति के माथे पर से गुलाल का तिलक पोंछ दिया|

अब बारी थी माँ को गुलाल लगाने की, हम सभी ने बारी-बारी माँ को तिलक लगाया तथा माँ ने हम सभी के गाल चूम कर हमें आशीर्वाद दिया| अब रह गई थी तो बस स्तुति और माँ को आज स्तुति के हाथों गुलाल लगवाने का बड़ा चाव था, परन्तु वो स्तुति का गुलाल वाले हाथ अपने मुँह में ले बीमार पड़ने का खतरा नहीं उठाना चाहती थीं| अपनी माँ की इस प्यारी सी इच्छा को समझ मैंने स्तुति का हाथ पकड़ गुलाल वाले पैकेट में डाल दिया तथा स्तुति का हाथ पकड़ कर माँ के दोनों गालों पर रगड़ दिया| जितनी ख़ुशी माँ को अपनी पोती से गुलाल लगवाने में हो रही थी, उतनी ही ख़ुशी स्तुति को अपनी दादी जी को गुलाल लगाने में हो रही थी| भई दादी-पोती का ये अनोखा प्यार हम सभी की समझ से परे था!

अपनी दादी जी को गुलाल लगा कर ख़ुशी चहक रही थी| अगला नंबर संगीता का था मगर आयुष और नेहा ख़ुशी से फुदकते हुए आगे आ गए और एक साथ चिल्लाने लगे; "पापा जी, हमें स्तुति से रंग लगवाओ!" मैंने एक बार फिर गुलाल के पैकेट में स्तुति का हाथ पकड़ कर डाला और स्तुति ने इस बार अपनी मुठ्ठी में गुलाल भर लिया| फिर यही हाथ मैंने दोनों बच्चों के चेहरों पर बारी-बारी से रगड़ दिया! इस बार भी स्तुति को अपने बड़े भैया और दीदी के गाल रंगने में बड़ा मज़ा आया! फिर बारी आई संगीता की; "सुन लड़की, थोड़ा सा रंग लगाइयो वरना मारूँगी तुझे!" संगीता ने स्तुति को प्यार भरी धमकी दी जिसे स्तुति ने हँस कर दरकिनार कर दिया! मैंने जानबूझ कर संगीता को स्तुति के हाथों थोड़ा रंग लगवाया क्योंकि आज संगीता को रंगने का हक़ बस मुझे था! अंत में बारी थी मेरी, स्तुति को अपना सारा प्यार रंग के रूप में मेरे ऊपर उड़ेलना था इसलिए स्तुति की मुठ्ठी में जितना गुलाल था उसे मैंने स्तुति के हाथों अपने चेहरे पर अच्छे से पुतवा लिया! अपने पापा जी के पूरे चेहरे पर रंग लगा कर स्तुति बहुत खुश हुई और किलकारियाँ मार कर हँसने लगी| "शैतान लड़की! अपने पापा जी का सारा चेहरा पोत दिया, अब मैं कहाँ रंग लगाऊँ?!" संगीता नाक पर प्यारा सा गुस्सा ले कर बोली पर स्तुति को कहाँ कुछ फर्क पड़ता था उसे तो सबके चेहरे रंग से पोतने में मज़ा आ रहा था|

मैं बच्चों को या संगीता को रंग लगाता उससे पहले ही दिषु आ गया और दिषु को देख स्तुति को पोतने के लिए एक और चेहरा मिल गया! "ले भाई, पहले अपनी भतीजी से रंग लगवा ले!" मैंने स्तुति का हाथ फिर गुलाल के पैकेट में डाला और स्तुति ने अच्छे से अपने दिषु चाचू के चेहरे पर रंग पोत दिया| "बिटिया रानी बड़ी शैतान है! मेरा पूरा चेहरा पोत दिया!" दिषु हँसते हुए बोला| अब वो तो स्तुति को रंग लगा नहीं सकता था इसलिए वो माँ का आशीर्वाद लेने चल दिया| इधर मैंने स्तुति का हाथ अच्छे से धुलवाया और स्तुति को माँ की गोदी में दिया| फिर मैंने पहले दोनों बच्चों को अच्छे से रंग लगाया तथा बच्चों ने भी मेरे गालों पर रंग लगा कर मेरा आशीर्वाद लिया|

गुलाल का पैकेट ले कर मैं संगीता के पहुँचा तो संगीता प्यार भरे गुस्से से बुदबुदाते हुए बोली; "मुझे नहीं लगवाना आपसे रंग! मेरे रंग लगाने की कोई जगह बची है आपके चेहरे पर जो मैं आपको रंग लगाने दूँ?!" संगीता की इस प्यारभरी शिकायत को सुन मैं मुस्कुराया और संगीता को छेड़ते हुए बोला; "हमरे संगे फगवा खेरे बिना तोहार फगवा पूर हुई जाई?" मेरी बात सुन संगीता के चेहरे पर शर्म भरी मुस्कान आ गई और वो मुझसे नजरें चुराते हुए रसोई में चली गई| मैंने भी सोच लिया की पिछलीबार की तरह इस बार भी मैं संगीता को रंग कर रहूँगा, फिर चाहे मुझे कुछ भी करना पड़े!

संगीता रसोई में गई और इधर दिषु ने अपने दोनों हाथों में रंग लिया और मेरे पूरे चेहरे और बालों में चुपड़ दिया! जवाब में मैंने भी रंग लिया और दिषु के चेहरे और बालों में रंग चुपड़ने लगा| हम दोनों दोस्तों को यूँ एक दूसरे को रंग से लबेड़ते हुए देख बच्चों को बहुत मज़ा आ रहा था| वहीं बरसों बाद यूँ एक दूसरे को रंग लबेड़ते हुए देख हम दोनों दोस्तों को भी बहुत हँसी आ रही थी| जब हमने एक दूसरे की शक्ल रंग से बिगाड़ दी तब हम अलग हुए और हम दोनों न मिलकर दोनों बच्चों को निशाना बनाया| दिषु अपने छोटे से भतीजे आयुष के पीछे दौड़ा तो मैं नेहा को रंग लगाने के लिए दौड़ा| हम चारों दौड़ते हुए छत पर पहुँचे, आयुष ने अपनी पिचकारी में पानी भर अपने दिषु चाचू को नहलाना शुरू किया| इधर नेहा भागते हुए थक गई थी इसलिए मैंने अपनी बिटिया को गोदी में उठाया और पानी से भरी बाल्टी में बिठा दिया! नेहा आधी भीग गई थी इसलिए नेहा ने बाल्टी के पानी को चुल्लू में उठा कर मेरे ऊपर फेंकना शुरू कर दिया| उधर दिषु पूरा भीग चूका था मगर फिर भी उसने आयुष को पकड़ लिया और उसके चेहरे और बालों को अच्छे से रंग डाला!

बच्चों ने आपस में मिल कर अपनी एक टीम बनाई और इधर हम दोनों दोस्तों ने अपनी एक टीम बनाई| बच्चे हमें कभी पिचकारी तो कभी गुब्बारे मारते और हम दोनों दोस्त मिलकर बच्चों के ऊपर गिलास या मघ्घे से भर कर रंग डालते! हम चारों के हँसी ठहाके की आवाज़ भीतर तक जा रही थी, स्तुति ने जब ये हँसी-ठहाका सूना तो वो बाहर छत पर आने के लिए छटपटाने लगी| हारकर माँ स्तुति को गोदी में ले कर बाहर आई और दूर से हम चारों को होली खेलते हुए स्तुति को दिखाने लगी| हम चारों को रंगा हुआ देख स्तुति का मन भी होली खेलने को था इसलिए वो माँ की गोदी से निचे उतरने को छटपटाने लगी| अब हमें स्तुति को रंगों से दूर रखना था इसलिए मैंने तीनों चाचा-भतीजा-भतीजी को रंग खेलने को कहा तथा मैं स्तुति को गोदी ले कर उसके हाथों से खुद को रंग लगवाने लगा| स्तुति को मुझे रंग लगाने में बड़ा माज़ा आ रहा था इसलिए मैंने उसके दोनों हाथों से अपने गाल पुतवाने शुरू कर दिए|

इतने में संगीता पकोड़े बना कर ले आई और हम सभी को हुक्म देते हुए बोली; "चलो अब सब रंग खेलना बंद करो! पहले पकोड़े और गुजिया खाओ, बाद में खेलना|" संगीता के हुक्म की तामील करते हुए हम सभी हाथ धो कर ज़मीन पर ही आलथी-पालथी मार कर एक गोला बना कर बैठ गए| मैं स्तुति को केला खिलाने लगा तथा नेहा मुझे अपने हाथों से पकोड़े खिलाने लगी|

खा-पी कर हम सभी फिर से होली खेलने लगे| घर के नीचे काफी लोग हल्ला मचाते हुए होली खेल रहे थे तथा कुछ लोग घर के नीचे से गुज़र भी रहे थे| दिषु ने दोनों बच्चों को गुब्बारे भरने में लगा दिया तथा खुद निशाना लगाने लग गया| चूँकि मेरी गोदी में स्तुति थी इसलिए मैं रंग नहीं खेल रहा था, मैंने सोचा की चलो क्यों न स्तुति को भी दिखाया जाए की होली में गुब्बारे कैसे मारते हैं इसलिए मैं स्तुति को ले कर दिषु के बराबर खड़ा हो नीचे जाने वाले लोगों पर गुब्बारे मारते हुए स्तुति को दिखाने लगा| दिषु का निशाना लगे न लगे पर स्तुति को गुब्बारे फेंकते हुए देखने में बड़ा मज़ा आ रहा था| अपनी बेटी को खुश करने के लिए मैंने आयुष को एक गुब्बारे में थोड़ा सा पानी भर कर लाने को कहा| गुब्बारे में थोड़ा पानी भरा होने से गुब्बारा जल्दी फूटता नहीं बल्कि किसी गेंद की तरह थोड़ा उछलने लगता था| मैंने ये गुब्बारा स्तुति को दिया ताकि वो भी खेल सके, लेकिन मेरी अबोध बच्ची को वो लाल-लाल गुब्बारा फल लगा जिसे वो अपने मुँह में भरना चाह रही थी; "नहीं बेटा! इसे खाते नहीं, फेंकते हैं|" मैंने स्तुति को रोकते हुए समझाया|

स्तुति ने समझा की जो चीज़ खा नहीं सकते उसका क्या काम इसलिए उसने गुब्बारा नीचे फेंक दिया! गुब्बारा नीचे तो गिरा मगर फूटा नहीं, बल्कि फुदकता हुआ कुछ दूर चला गया| ये दृश्य देख स्तुति मेरी गोदी से नीचे उतरने को छटपटाई| जैसे ही मैंने स्तुति को नीचे उतारा वो अपने दोनों हाथों और पैरों के बल रेंगते हुए गुब्बारे के पास पहुँची तथा गुब्बारे को फिर उठा कर फेंका| तो कुछ इस तरह से स्तुति ने गुब्बारे से खेलना सीख लिया और वो अपने इस खेल में मगन हो गई| लेकिन थोड़ी ही देर में स्तुति इस खेल से ऊब गई और उसने गुब्बारे को हाथ में ले कर कुछ ज्यादा जोर से दबा दिया जिस कारण गुब्बारा उसके हाथ में ही फूट गया! गुब्बारा फूटा तो स्तुति ने गुब्बारे के वियोग में रोना शुरू कर दिया! "औ ले ले ले...मेरा बच्चा! कोई बात नहीं बेटा!" मैंने स्तुति को गोदी में ले कर लाड करना शुरू किया| स्तुति होली खेल के थक गई थी और ऊपर से उसके कपड़े भी मेरी गोदी में रहने से गीले तथा रंगीन हो गए थे इसलिए मैं उसे ले कर संगीता के पास आ गया|

"खेल लिए बिटिया के संग रंग!" संगीता गुस्से में मुँह टेढ़ा करते हुए बोली| स्तुति को बिस्तर पर लिटा कर संगीता उसके कपड़े बदलने लगी की तभी मैंने उसे पीछे से अपनी बाहों में भर लिया और अपने गालों पर लगा हुआ रंग उसके गाल से रगड़ कर लगाने लगा| "उम्म्म...छोडो न...घर में सब हैं!" संगीता झूठ-मूठ का दिखावा करते हुए बोली, जबकि असल में वो खुद नहीं चाहती थी की मैं उसे छोड़ूँ| "याद है जान, पिछले साल तुमने मुझे कैसे हुक्म देते हुए प्यार करने को कहा था?!" मैंने संगीता को पिछले साल की होली की याद दिलाई जब स्तुति कोख में थी और संगीता ने मुझे प्रेम-मिलाप के लिए आदेश दिया था|

मेरी बात सुनते ही संगीता को पिछले साल की होली याद आ गई और उसके दिल की धड़कन तेज़ हो गई! "लेकिन जानू, घर में सब हैं!" संगीता का मन भी प्रेम-मिलाप का था मगर उसे डर था तो बस घर में दिषु, दोनों बच्चों और माँ की मौजूदगी का| "तुम जल्दी से स्तुति को सुलाओ और तबतक मैं बाहर छत पर सब को काम में व्यस्त कर के आता हूँ|" इतना कह मैं छत पर पहुँचा और दिषु को इशारे से अलग बुला कर सारी बात समझाई; "भाई, तेरी मदद चाहिए! कैसे भी कर के तू माँ और बच्चों को अपने साथ व्यस्त कर ले!" इतना सुनते ही दिषु के चेहरे पर नटखट मुस्कान आ गई और वो मेरी पीठ थपथपाते हुए खुसफुसा कर बोला; "जा मानु, जी ले अपनी जिंदगी!" दिषु की बात सुन मैं हँस पड़ा और माँ तथा बच्चों से नजरें बचाते हुए कमरे में आ गया|

संगीता ने स्तुति को थपथपा कर सुला दिया था, मुझे देखते ही संगीता दबे पॉंव बाथरूम में घुस गई| इधर मैं भी दबे पॉंव संगीता के पीछे-पीछे बाथरूम में घुसा और दरवाजा चिपका कर उसके आगे पानी से भरी बाल्टी रख दी ताकि कोई एकदम से अंदर न आ जाए| बाथरूम में पहुँच मैंने सबसे पहले अपनी जेब से गुलाल का पैकेट निकाला| गुलाल का पैकेट देख संगीता समझ गई की अब क्या होने वाला है इसलिए वो मुझे रोकते हुए बोली; "एक मिनट रुको!" इतना कह उसने अपने सारे कपड़े निकाल फेंके तथा मेरे भी कपड़े निकाल फेंके| दोनों मियाँ बीवी नग्न थे और इस तरह छुप-छुप के प्यार करने तथा यूँ एक दूसरे को नग्न देख हमारे भीतर अजब सा रोमांच पैदा हो चूका था! अब मेरा चेहरा तो पहले से ही पुता हुआ था इसलिए मुझसे गुलाल ले कर संगीता ने मेरे सीने पर गुलाल मल दिया तथा बड़ी ही मादक अदा से अपने होंठ काटते हुए मुझसे दबी हुई आवाज़ में बोली; "फगवा मुबारक हो!"

अब मेरी बारी थी, मैंने गुलाल अपने दोनों हाथों में लिया और संगीता के गाल पर रगड़ उसके वक्ष तथा पेट तक मल दिया! संगीता के जिस्म को स्पर्श कर मेरे भीतर उत्तेजना धधक चुकी थी, वहीं मेरे हाथों के स्पर्श से संगीता का भी उत्तेजना के मारे बुरा हाल था! अपनी उत्तेजना शांत करने के लिए हम एक दूसरे से लिपट गए और अपने दोनों हाथों से एक दूसरे के जिस्मों को सहलाने लगे| हमारे बदन पर लगा हुआ रंग हमारे भीतर वासना की आग भड़काए जा रहा था! हमारे एक दूसरे के बदन से मिलते ही प्रेम की अगन दहक उठी और प्रेम का ऐसा बवंडर उठा की उत्तेजना की लहरों पर सवार हो आधे घंटे के भीतर ही हम अपने-अपने चरम पर पहुँच सुस्ताने लगे!

"अच्छा...अब आप बाहर जाओ, मैं नहा लेती हूँ!" संगीता लजाते हुए बोली| संगीता के यूँ लजाने पर मेरा ईमान फिर डोलने लगा, मैंने उसके होठों को अपने होठों में कैद कर लिया! वहीं संगीता भी किसी बेल की तरह मुझसे लिपट गई और मेरे चुंबन का जवाब बड़ी गर्मजोशी से देने लगी| अगर घर में किसी के होने का ख्याल नहीं होता तो हम दोनों शायद एक दूसरे को छोड़ते ही नहीं! करीब 5 मिनट बाद संगीता ने मेरी पकड़ से अपने लब छुड़ाए और अपनी सांसें दुरुस्त करते हुए चुपचाप मुझे देखने लगी| संगीता की आँखें गुलाबी हो चली थीं और मेरे नीचे वाले साहब दूसरे राउंड के लिए पूरी तरह तैयार थे| संगीता की नजरें जब मेरे साहब पर पड़ी तो उसके बदन में सिहरन उठी, बेमन से अपनी इच्छा दबाते हुए संगीता बोली; "जानू...बाहर सब हैं..." इतना कह संगीता चुप हो गई| मैं संगीता का मतलब समझ गया इसलिए संगीता के दाएँ गाला को सहलाते हुए बोला; "ठीक है जान, अभी नहीं तो बाद में सही!" इतना कह मैं अपने कपड़े उठाने वाला था की संगीता ने मुझे पीछे से अपनी बाहों में जकड़ लिया और बोली; "10 मिनट में निपटा सकते हो तो जल्दी से कर लेते हैं!" ये कहते हुए संगीता की दिल की धड़कन तेज़ हो गई थी क्योंकि उसके भीतर भी वही कामाग्नि धधक रही थी जो मेरे भीतर धधक रही थी| "दूसरे राउंड में ज्यादा टाइम लगता है, ऐसे में कहीं बच्चे हमें ढूँढ़ते हुए यहाँ आ गए तो बड़ी शर्मिंदगी होगी!" मैंने संगीता के हाथों से खुद को छुड़ाते हुए कहा| मेरी बात सुन संगीता ने बच्चों की तरह मुँह फुला लिया और बुदबुदाते हुए बोली; "फटाफट करते तो सब निपट जाता!" संगीता के इस तरह बुदबुदाने पर मुझे हँसी आ गई और मैं कपड़े पहन कर छत पर आ गया|

माँ ने जब मुझे देखा तो वो पूछने लगीं की मैं कहाँ गायब था तो मैंने झूठ कह दिया की स्तुति को सुला कर मैं नीचे सबको होली मुबारक कहने चला गया था|

इधर संगीता नहा-धो कर तैयार हो गई और रसोई में पुलाव बनाने लगी| करीब डेढ़ बजे तक खाना बन गया था इसलिए संगीता छत पर आ गई और हम सभी से बोली; "अच्छा बहुत खेल ली होली, चलो सब जने चल कर खाना खाओ|" आयुष को लगी थी बड़ी जोर की भूख इसलिए अपनी मम्मी का आदेश सुन सबसे पहले वो अपनी पिचकारी रख कर नहाने दौड़ा| इधर दिषु ने हमसे घर जाने की इजाजत माँगी तो संगीता नाराज़ होते हुए बोली; "रंग तो लगाया नहीं मुझे, कम से कम मेरे हाथ का बना खाना तो खा लो|"

"भाभी जी, हमारे में आदमी, स्त्रियों के साथ होली नहीं खेलते| तभी तो मैंने न आपको रंग लगाया न नेहा को रंग लगाया| आजतक जब भी मैं होली पर यहाँ आया हूँ तो आंटी जी (मेरी माँ) ने ही मुझे तिलक लगाया है और मैं केवल उनके पॉंव छू कर आशीर्वाद लेता हूँ|" अब देखा जाए तो वैसे हमारे गाँव में भी पुरुष महिलाओं के साथ होली नहीं खेलते थे, लेकिन देवर-भाभी और पति-पत्नी के आपस में होली खेलने पर कोई रोक नहीं थी! लेकिन दिषु के गॉंव में नियम कठोर थे इसलिए मैंने उसे कभी किसी लड़की के साथ होली खेलते हुए नहीं देखा| वो बात अलग है की साला होली खेलने के अलावा लड़कियों के साथ सब कुछ कर चूका था...ठरकी साला!
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खैर, दिषु की बात का मान रखते हुए दोनों देवर-भाभी ने रंग नहीं खेला मगर संगीता ने दिषु को बिना खाये जाने नहीं दिया| जब तक बच्चे नाहा रहे थे तबतक संगीता ने दिषु को खाना परोस कर पेट भर खाना खिलाया| दिषु का खाना हुआ ही था की आयुष तौलिया लपेटे हुए मेरे पास आया और अपना निचला होंठ फुलाते हुए बोला; "पापा जी, मेरे चेहरे पर लगा हुआ रंग नहीं छूटता!" आयुष के आधे चेहरे पर गहरा गुलाबी रंग लगा हुआ था, जिसे देख हम सभी हँस पड़े! " बेटा, अभी मैं नहाऊँगा न तो मैं छुड़वा दूँगा|" मैंने आयुष को आश्वस्त करते हुए कहा| इधर दिषु खाना खा चका था इसलिए उसने माँ का आशीर्वाद लिया तथा आयुष को गोदी में ले कर जानबूझ कर अपने चेहरे पर लगा हुआ रंग उसके चेहरे से रगड़ कर फिर लगा दिया! "चाचू...आपने मुझे फिर से रंग लगा दिया!" आयुष प्यारभरी शिकायत करते हुए बोला|

"हाँ तो क्या हुआ, अभी फिर से पापा जी के साथ नाहा लियो!" संगीता बोली| दिषु सबसे विदा ले कर निकला और हम बाप-बेटे बाथरूम में नहाने घुसे| हम बाप-बेटे जब भी एक साथ नहाने घुसे हैं, हमने नहाने से ज्यादा नहाते हुए मस्ती की है| आज भी मैंने अपनी मस्ती को ध्यान में रखते हुए अपने फ़ोन में फुल आवाज़ में गाना लगा दिया: ठंडे-ठंडे पानी से नहाना चाहिए! "ठंडे ठंडे पानी से नहाना चाहिये

गाना आये या ना आये गाना चाहिये

ओ पुत्तरा

ठंडे ठंडे पानी से..." मैंने गाना आरम्भ किया तो आयुष ने जोश में भरते हुए मेरा साथ देना शुरू कर दिया और बाल्टी किसी ढोलक की तरह बजाने लगा|

"बेटा बजाओ ताली, गाते हैं हम क़व्वाली

बजने दो एक तारा, छोड़ो ज़रा फव्वारा

ये बाल्टी उठाओ, ढोलक इससे बनाओ" जैसे ही मैंने गाने के ये बोल दोहराये आयुष ने शावर चालु कर जोर-जोर से बाल्टी को ढोलक समझ बजानी शुरू कर दी|

चूँकि बाथरूम का दरवाजा खुला था इसलिए संगीता को हम बाप-बेटे के गाने की आवाज़ साफ़ आ रही थी इसलिए वो भी इस दृश्य का रस लेने के लिए बाथरूम के दरवाजे पर खड़ी हो गई और गाने के सुर से सुर मिलाते हुए बोल दुहराने लगी;

"बैठे हो क्या ये लेकर, ये घर है या है थिएटर

पिक्चर नहीं है जाना, बाहर नहीं है आना" संगीता को हम बाप-बेटे के गाने में शामिल होते हुए देख हम दोनों बाप-बेटे का मज़ा दुगना हो गया| तभी गाने के बोल आये जिन्हें पीछे से आ कर नेहा ने गाया;

"मम्मी को भी अंदर बुलाना चाहिये" नेहा को गाने का शुरू से ही शौक रहा है इसलिए जैसे ही नेहा ने गाने के ये बोल दुहराए हम दोनों बाप-बेटों ने भी गाने की अगली पंक्ति दोहरा दी;

"तेरी, मम्मी को भी अंदर बुलाना चाहिये" कोरस में बाप-बेटों को गाते हुए देख संगीता प्यार से मुँह टेढ़ा करते हुए गाने के अगले बोल बोली;

"गाना आये या ना आये गाना चाहिये. धत्त" ये संगीता का हम दोनों बाप-बेटों को उल्हना देना था मगर हम बाप-बेटों ने एक सुर पकड़ लिया था इसलिए हम गाने की पंक्ति बड़े जोर से दोहरा रहे थे;

"अरे गाना आये या ना आये गाना चाहिये" अभी गाना खत्म नहीं हुआ था और संगीता जान गई थी की अब यहाँ हम बाप-बेटों ने रंगोली (रविवार को दूरदर्शन पर गानों का एक प्रोग्राम आता था|) का प्रोग्राम जमाना है इसलिए वो प्यारभरा नखरा दिखा कर मुड़ कर जाने लगी| तभी मैंने आयुष को उसकी मम्मी को पकड़ कर बाथरूम में लाने का इशारा किया| आयुष अपनी मम्मी को पकड़ने जाए, उससे पहले ही नेहा ने अपनी मम्मी का हाथ पकड़ा और बाथरूम में खींच लाई| संगीता खुद को छुड़ा कर बाहर भागे उससे पहले ही मैंने उसकी कलाई थाम ली और गाने के आगे के बोल दोहराये;

" तुम मेरी हथकड़ी हो, तुम दूर क्यों खड़ी हो

तुम भी ज़रा नहालो, दो चार गीत गा लो

दामन हो क्यों बचाती, अरे दुख सुख के हम हैं साथी" ये कहते हुए मैंने संगीता को अपने गीले बदन से चिपका लिया| परन्तु बच्चों की मौजूदगी का लिहाज़ कर संगीता ने खुद को मेरी पकड़ से छुड़ाया और गाने के आगे के बोल दोहराने लगी;

"छोड़ो हटो अनाड़ी, मेरी भिगो दी साड़ी

तुम कैसे बेशरम हो, बच्चों से कोई कम हो" संगीता मुझे अपनी साडी के भीग जाने का उल्हाना देते हुए बोली| लेकिन संगीता के इस प्यारभरे उलहाने को समझ आयुष बीच में गाने के बोल दोहराते हुए बोला;

"मम्मी को तो लड़ने का बहाना चाहिये" आयुष के ऐसा कहते ही मेरी तथा नेहा की हँसी छूट गई, उधर संगीता के चेहरे पर प्यारभरा गुस्सा आ गया| उसने आयुष के सर पर प्यार से थपकी मारी और बोली; "चुप बे शैतान!" जैसे ही संगीता ने आयुष को प्यार भरी थपकी मारी आयुष आ कर मुझसे लिपट गया| मैंने हाथ खोल कर नेहा को भी अपने पास बुलाया तथा दोनों बच्चों को अपने से लिपटाये हुए बच्चों के साथ कोरस में गाने लगा; "मम्मी को तो लड़ने का बहाना चाहिये!" हम तीनों को यूँ गाते देख संगीता के चेहरे पर मुस्कान आ गई और वो गाने की पंक्ति मेरे तथा बच्चों के साथ लिपट कर गाने लगी; "गाना आये या ना आये गाना चाहिये!"

फिर गाने में आया आलाप जिसे मैंने संजीव कुमार जी की तरह आँखें बंद कर के खींचा| अपने इस अलाप के दौरान मैं संगीता का हाथ पकड़े हुए था इसलिए संगीता खुद को छुड़ाने के लिए गाने के बोल दोहराने लगी;

"लम्बी ये तान छोड़ो,

तौबा है जान छोड़ो" मगर मैंने बजाए संगीता का हाथ छोड़ने के, बच्चों की परवाह किये बिना उसे कस कर खुद से लिपटा और दिवार तथा अपने बीच दबा कर गाने के बोल दोहराता हुआ बोला;
"ये गीत है अधूरा,

करते हैं काम पूरा" यहाँ काम पूरा करने से मेरा मतलब था वो प्रेम-मिलाप का काम पूरा करना जो पहले अधूरा रह गया था| वहीं मेरी गाने के बोलों द्वारा कही बात का असली अर्थ समझते हुए संगीता मुझे समझते हुए बोली;

"अब शोर मत करो जी,

सुनते हैं सब पड़ोसी" यहाँ पडोसी से संगीता का तातपर्य था माँ का| अपने इस गाने-बजाने के चक्कर में मैं भूल ही गया था की माँ घर पर ही हैं तथा वो हमारा ये गाना अवश्य सुन रही होंगी| "हे कह दो पड़ोसियों से" मैंने संगीता की आँखों में देखते हुए गाने के बोल कहे| जिसके जवाब में संगीता बोली; "क्या?"

"झाँकें ना खिड़कियों से" इतना कहते हुए मैंने बाथरूम का दरवाजा बंद कर दिया ताकि बाहर बैठीं माँ तक हमारी आवाज़ न जाए| लेकिन माँ का ध्यान आते ही संगीता को खाना परोसने की छटपटाहट होने लगी;

"दरवाज़ा खटखटाया, लगता है कोई आया" संगीता गाने के बोलों द्वारा बहाना बनाते हुए बोली|

"अरे कह दो के आ रहे हैं, साहब नहा रहे हैं" मैंने भी गाने के बोलों द्वारा संगीता के बहाने का जवाब दिया|

उधर बच्चे अपनी मम्मी-पापा जी का या रोमांस देख कर अकेला महसूस कर रहे थे इसलिए दोनों ने अपनी मम्मी को पकड़ मुझसे दूर खींचना शुरू कर दिया तथा गाने के आगे के बोल एक कोरस में गाने लगे;

"मम्मी को तो डैडी से छुड़ाना चाहिये

अब तो मम्मी को डैडी से छुड़ाना चाहिये" बच्चों ने जब अपनी मम्मी को मुझसे दूर खिंचा तो मैंने संगीता के साथ-साथ दोनों बच्चों को भी अपने से लिपटा लिया और शावर के नीचे पूरा परिवार भीगते हुए "गाना आये या ना आये गाना चाहिये" गा रहा था|

गाना खत्म होते-होते हम चरों भीग चुके थे मगर इस तरह एक साथ शावर के नीचे भीगने से संगीता और नेहा नाराज़ नहीं थे| हम बाप-बेटा ने बाथरूम का दरवाजा बंद कर नहाना शुरू किया और उधर माँ-बेटी कमरे में अपने कपड़े बदल कर माँ के पास पहुँच गए| मैंने फेसवाश और साबुन से रगड़-रगड़ कर आयुष के चेहरे पर से रंग काफी हद्द तक उतार दिया था| आयुष को नहला कर मैंने पहले भेजा तथा मैं नहा कर कपड़े पहन कर जब खाना खाने पहुँचा तो माँ मज़ाक करते हुए बोलीं; "तू नहा रहा था या सबको नहला रहा था?!" माँ की बात का जवाब मैं क्या देता इसलिए चुपचाप अपना मुँह छुपाते हुए खाना खाने लगा|

खाना खिला कर मैंने बच्चों को सुला दिया ताकि बाथरूम में बचा हुआ काम पूरा किया जाए| माँ भी आराम कर रहीं थीं इसलिए हमने इस मौके का भरपूर फायदा उठाया| जो काम संगीता सुबह 10 मिनट में पूरा करवाना चाह रही थी वो काम पूरा घंटे भर चला| काम तमाम कर हम सांस ले रहे थे की तभी स्तुति जाग गई और अपने दोनों हाथों-पैरों पर रेंगते हुए मेरे सीने पर चढ़ कर मुझसे लिपट गई|

बच्चों के स्कूल खुल गए थे और स्कूल के पहले दिन ही बच्चों को स्कूल में वैक्सीन लगने का लेटर मिला| बच्चों को वैक्सीन लगवा ने से बहुत डर लग रहा था इसलिए दोनों बच्चे बहुत घबराये हुए थे| माँ ने जब अपने पोता-पोती को घबराते हुए देखा तो वो दोनों का डर भगाते हुए बोलीं; "बच्चों डरते नहीं हैं, अपने पापा जी को देखो...जब मानु स्कूल में था तो उसे भी सुई (वैक्सीन) लगती थी और वो बिना डरे सुई लगवाता था| सिर्फ स्कूल में ही नहीं बल्कि क्लिनिक में भी जब मानु को सुई लगी तो वो कभी नहीं घबराया और न ही रोया| यहाँ तक की डॉक्टर तो तुम्हारे पापा जी की तारीफ करते थे की वो बाकी बच्चों की तरह सुई लगवाते हुए कभी नहीं रोता या चीखता-चिल्लाता!" माँ की बात सुन दोनों बच्चे मेरी तरफ देखने लगे और मुझसे हिम्मत उधार लेने लगे|

अगले दिन बच्चों को स्कूल में वैक्सीन लगी और जब दोपहर को बच्चे घर लौटे तो आयुष दर्द के मारे अपनी जाँघ सहला रहा था| आयुष को कुछ ख़ास दर्द नहीं हो रहा था, ये तो बस उसका मन था जो उसे सुई का दर्द इतना बढ़ा-चढ़ा कर महसूस करवा रहा था| "Awww मेरा बहादुर बेटा!" मैंने आयुष को अपने पास बुलाया और उसका मनोबल बढ़ाने के लिए कहा तथा आयुष को अपने गले लगा कर उसको लाड करने लगा| मेरे जरा से लाड-प्यार से आयुष का दर्द छूमंतर हो गया और वो ख़ुशी से खिलखिलाने लगा|

आयुष और नेहा को तो वैक्सीन लग चकी थी, अब बारी थी स्तुति की| अभी तक मैं, माँ और संगीता, स्तुति को वैक्सीन लगवाने के लिए आंगनबाड़ी ले जाते थे| स्तुति को सुई लगते समय माँ और संगीता भीतर जाते थे तथा मुझे बाहर रुकना पड़ता था| स्तुति को सुई लगते ही वो रोने लगती और उसे रोता हुआ सुन मेरा दिल बेचैन हो जाता| जैसे ही संगीता रोती हुई स्तुति को ले कर बाहर आती मैं तुरंत स्तुति को अपनी गोदी में ले कर उसे चुप कराने लग जाता|

इस बार जब हम स्तुति को वैक्सीन लगवा कर लाये तो उसे रात को बुखार चढ़ गया| अपनी बिटिया को बुखार से पीड़ित देख मैं बेचैन हो गया| स्तुति रोते हुए मुझे अपने बुखार से हो रही पीड़ा से अवगत करा रही थी जबकि मैं बेबस हो कर अपनी बिटिया को चुप कराने में लगा था| मुझे यूँ घबराते हुए देख माँ मुझे समझाते हुए बोलीं; "बेटा, घबरा मत! छोटे बच्चों को सुई लगने के बाद कभी-कभी बुखार होता है, लेकिन ये बुखार सुबह होते-होते उतर जाता है|" माँ की बात सुन मेरे मन को इत्मीनान नहीं आया और वो पूरी रात मैं जागता रहा| सुबह जब मेरी बिटिया उठी तो उसका बुखार उतर चूका था इसलिए वो चहकती हुई उठी| अपनी बिटिया को खुश देख मेरे दिल को सुकून मिला और मैं स्तुति को गुदगुदी कर उसके साथ खेलने लगा|

मैं एक बेटे, एक पति और एक पिता की भूमिका के बेच ताल-मेल बनाना सीख गया था| दिन के समय मैं एक पिता और एक बेटे की भूमिका अदा करते हुए अपने बच्चों तथा माँ को खुश रखता और रात होने पर एक पति की भूमिका निभा कर अपनी परिणीता को खुश रखता|

रात को बिस्तर पर हम दोनों मियाँ-बीवी हमारे प्रेम-मिलाप में कुछ न कुछ नयापन ले ही आते थे| ऐसे ही एक दिन मैं अपने फेसबुक पर दोस्तों की फोटो देख रहा था जब मैंने क्लबफैक्ट्री की ऐड देखि जिसमें एक लड़की 2 पीस बिकिनी में खड़ी थी! ये ऐड देख कर मेरे मन ने संगीता को उन कपड़ों को पहने कल्पना करना शुरू कर दिया| मैंने उस ऐड पर क्लिक किया और ढूँढ़ते-ढूँढ़ते मुझे एक चाइनीज़ लड़की को अंग्रेजी फिल्मों में दिखाई जाने वाली मैड (maid) फ्रॉक (frock) पहने हुए दिखी| "यही तो मैं ढूँढ रहा था!" मैं ख़ुशी से चिल्लाया और फौरन उस फ्रॉक तथा 2 पीस बिकिनी को आर्डर कर दिया| आर्डर करने के बाद मुझे पता चला की इसे तो चीन से यहाँ आने में 15-20 दिन लगेंगे! अब कुछ नहीं कर सकते थे क्योंकि ये ड्रेस ऑनलाइन कहीं नहीं मिल रही थी और किसी दूकान में खरीदने जाने की मेरी हिम्मत नहीं थी!

शाम को घर लौट मैंने संगीता को अपने प्लान किये सरप्राइज के बारे में बताते हुए कहा; "जान, मैंने हमारे लिए एक बहुत ही जबरदस्त सरप्राइज प्लान किया है, ऐसा सरप्राइज जिसे देख कर तुम बहुत खुश होगी! लेकिन उस सरप्राइज को आने में लगभग महीने भर का समय लगेगा और जब तक वो सरप्राइज नहीं आ जाता हम दोनों को जिस्मानी तौर पर एक दूसरे से दूरी बनानी होगी| जिस दिन मैं वो सरप्राइज घर लाऊँगा उसी रात को हम एक होंगें|" मेरी बात सुन संगीता हैरान थी, उसे जिज्ञासा हो रही थी की आखिर मैं उसे ऐसा कौन सा सरप्राइज देने जा रहा हूँ जिसके लिए उसे पूरा एक महीना इंतज़ार करना होगा?!

अब एक छत के नीचे होते हुए हम दोनों में एक दूसरे से दूर रहने का सब्र थोड़ा कम था इसलिए संगीता थोड़ा चिढ़ते हुए बोली; "अगर आपका ये सरप्राइज 30 दिन में नहीं आया या फिर मुझे आपका ये सरप्राइज पसंद नहीं आया, तो आप सोच नहीं सकते की मैं आपको मुझे यूँ महीना भर तड़पाने की क्या सजा दूँगी!" संगीता की बातों में उसका गुस्सा नज़र आ रहा था, वहीं उसके इस गुस्से को देख मैं सोच में पड़ गया था की अगर मेरे आर्डर किये हुए कपड़े नहीं आये तो संगीता मेरी ऐसी-तैसी कर देगी!

खैर, अब चूँकि हमें एक महीने तक सब्र करना था इसलिए मैंने अपना ध्यान बच्चों में लगा लिया और संगीता माँ के साथ कपड़े खरीदने में व्यस्त हो गई| चूँकि मेरा पूरा ध्यान बच्चों पर था तो बच्चे बहुत खुश थे पर सबसे ज्यादा स्तुति खुश थी| मेरे घर पर रहते हुए स्तुति बस मेरे पीछे-पीछे घूमती रहती| अगर मैं कंप्यूटर पर बैठ कर काम कर रहा होता तो स्तुति रेंगते हुए मेरे पॉंव से लिपट जाती तथा 'आ' अक्षर को दुहराते हुए मेरा ध्यान अपनी तरफ खींचती| अगर मैं कभी स्तुति को गोदी ले कर फ़ोन पर बात कर रहा होता तो स्तुति चिढ जाती तथा फ़ोन काटने को कहती क्योंकि मेरी बिटिया चाहती थी की मेरा ध्यान केवल उस पर रहे!

गर्मियों का समय था इसलिए स्तुति को मैंने टब में बिठा कर नहलाना शुरू कर दिया| नहाते समय स्तुति की मस्ती शुरू हो जाती और वो पानी में अपने दोनों हाथ मार कर छप-छप कर सारा पानी मुझ पर उड़ाने लगती| मुझे भिगो कर स्तुति को बहुत मज़ा आता और वो खिखिलाकर हँसने लगती| नहाते समय मुझे भिगाने की आदत स्तुति को लग चुकी थी इसलिए मेरी अनुपस्थिति में जब संगीता, स्तुति को नहलाती तो स्तुति पानी छप-छप कर पानी अपनी मम्मी पर उड़ाती और संगीता को भिगो देती| स्तुति द्वारा भिगोया जाना मुझे तो पसंद था मगर संगीता को नहीं इसलिए जब स्तुति उसे भिगो देती तो संगीता उसे डाँटने लगती! घर आ कर स्तुति मेरी गोदी में चढ़ कर अपनी मम्मी की तरफ इशारा कर के मूक शिकायत करती और अपनी बिटिया को खुश करने के लिए मैं झूठ-मूठ संगीता को डाँट लगाता तथा संगीता के कूल्हों पर एक थपकी लगाता| मेरी इस थपकी से संगीता को बड़ा मज़ा आता और वो कई बार अपने कूल्हे मुझे दिखा कर फिर थपकी मारने का इशारा करती| नटखट संगीता...हर हाल में वो मेरे साथ मस्ती कर ने का बहाना ढूँढ लेती थी!!!!

अब जब माँ इतनी मस्तीखोर है तो बिटिया चार कदम आगे थी| हिंदी वर्णमाला के पहले अक्षर 'अ' को खींच -खींच कर रटते हुए स्तुति सारे घर में अपने दोनों पॉंव और हाथों पर रेंगते हुए हल्ला मचाती रहती| जैसे ही मैं घर आता तो मेरी आवाज सुन स्तुति खदबद-खदबद करते हुए मेरे पास आ जाती| जब स्तुति को खाना खिलाने का समय होता तो स्तुति मुझसे दूर भागती और माँ के पलंग के नीचे छुप जाती! माँ के पलंग के नीचे छुप कर स्तुति मुझे अपनी जीभ दिखा कर चिढ़ाती की मैं उसे पलंग के नीचे नहीं पकड़ सकता! "मेरा बच्चा, मेरे साथ शैतानी कर रहा है?!" ये कहते हुए मैं अपने दोनों हाथों और घुटनों पर झुकता तथा स्तुति को पकड़ने के लिए पलंग के नीचे घुस जाता| मुझे अपने साथ पलंग के नीचे पा कर स्तुति मेरे गले से लिपट जाती और खी-खी कर हँसने लगती|

ऐसे ही एक दिन शाम के समय मैं घर पहुँचा था की संगीता मुझे काम देते हुए बोली; "आपकी लाड़ली की बॉल हमारे पलंग के नीचे चली गई है, जा कर पहले उसे निकालो, सुबह से रो-रो कर इसने मेरी जान खा रखी है!" अपनी बिटिया की ख़ुशी के लिए मैं उसकी मनपसंद बॉल निकालने के लिए ज़मीन पर पीठ के बल लेट गया और अपना दायाँ हाथ पलंग के नीचे घुसेड़ कर बॉल पकड़ने की कोशिश करने लगा| इतने में स्तुति ने मेरी आवाज़ सुन ली थी और वो रेंगते हुए मेरे पास आ गई, मुझे ज़मीन पर लेटा देख स्तुति को लगा की मैं सो रहा हूँ इसलिए स्तुति रेंगते हुए मेरे सीने पर चढ़ मुझसे लिपट गई| "बेटा, मैं आपकी बॉल पलंग के नीचे से निकाल रहा हूँ|" मैंने हँसते हुए कहा, परंतु मेरे हँसने से मेरा पेट और सीना ऊपर-नीचे होने लगा जिससे स्तुति को मज़ा आने लगा था इसलिए स्तुति ने कहकहे लगाना शुरू कर दिया| हम बाप-बेटी को ज़मीन पर लेटे हुए कहकहे लगाते देख संगीता अपनी कमर पर दोनों हाथ रखते हुए अपना झूठा गुस्सा दिखाते हुए बोली; "घर में एक शैतान कम है जो आप भी उसी के रंग में रंगे जा रहे हो?!" संगीता की बातों का जवाब दिए बिना मैं स्तुति को अपनी बाहों में भरकर ज़मीन पर लोटपोट होने लगा|

इधर आयुष बड़ा हो रहा था और उसके मन में जिज्ञासा भरी पड़ी थी| एक दिन की बात है माँ और नेहा मंदिर गए थे और घर में बस आयुष, मैं, स्तुति और संगीता थे| हम बाप-बेटा-बेटी सोफे पर बैठे कार्टून देख रहे थे जब आयुष शर्माते हुए मुझसे अपनी गर्लफ्रेंड के बारे में बात करने लगा;

आयुष: पापा जी...वो...फ..फलक ने है न... उसने आज मुझे कहा की वो मुझे पसंद करती है!

ये कहते हुए आयुष के गाल लालम-लाल हो गए थे!

मैं: Awwww....मेरा हैंडसम बच्चा! मुबारक हो!

मैंने आयुष को मुबारकबाद देते हुए कहा और उसके सर को चूम लिया| मेरे लिए ये एक आम बात थी मगर आयुष के लिए ये मौका ऐसा था मानो उसकी गर्लफ्रेंड ने उसे आई लव यू कहा हो! मेरी मुबारकबाद पा कर आयुष शर्माने लगा परन्तु मुझे आयुष का यूँ शर्माना समझ नहीं आ रहा था इसलिए मेरे चेहरे पर सवालिया निशान थे| खैर, आयुष के शर्माने का कारण क्या था वो उसके पूछे अगले सवाल से पता चला;

आयुष: तो...पापा जी...हम दोनों (आयुष और फलक) अब शादी करेंगे न?

आयुष का ये भोला सा सवाल सुन मुझे बहुत हँसी आई लेकिन मैं आयुष पर हँस कर उसे शर्मिंदा नहीं करना चाहता था इसलिए अपनी हँसी दबाते हुए मैंने आयुष को अपनी गोदी में लिया और उसे प्यार से समझाते हुए बोला;

मैं: बेटा, आप अभी बहुत छोटे हो इसलिए आपकी अभी शादी नहीं हो सकती| लड़कों को कम से कम 21 साल का होना होता है उसके बाद वो अपनी जिम्मेदारी उठाने लायक होते हैं और तभी उनकी शादी की जाती है|

इस समय सबसे जर्रूरी बात ये है बेटा जी की फलक आपकी सबसे अच्छी दोस्त है| ये सब शादी, प्यार-मोहब्बत सब तब होते है जब आप बड़े हो जाओगे, अभी से ये सब सोचना अच्छी बात नहीं है| आपकी उम्र इस वक़्त आपकी दोस्त के साथ खेलने-कूदने, मस्ती करने की है| आपको पता है, एक लड़की दोस्त होने का क्या फायदा होता है?

मैं बुद्धू छोटे से आयुष को किसी बड़े बच्चे की तरह समझ तार्किक तरह से समझा रहा था, जबकि मुझे तो उसे छोटे बच्चों की तरह समझाना था! बहरहाल, मेरे अंत में पूछे सवाल से आयुष जिज्ञासु बनते हुए अपना सर न में हिलाने लगा;

मैं: एक लड़की दोस्त होने से आपके मन में लड़कियों से बात करने की शर्म नहीं रहती| जब आप बड़े हो जाओगे तो आप लड़कियों से अच्छे से बात कर पाओगे| आपको पता है, जब मैं छोटा था तब मेरी कोई लड़की दोस्त नहीं थी इसलिए जैसे-जैसे मैं बड़ा होने लगा मुझे लड़कियों से बात करने में शर्म आने लगी, डर लगने लगा| वो तो आपकी मम्मी जी थीं जिनके साथ मैंने जो थोड़ा बहुत समय व्यतीत किया उससे मैं लड़कियों से बात करना सीख गया| फलक से बात कर आप अपने इस डर और झिझक पर विजयी पाओगे|

मैंने अपनी क्षमता अनुसार आयुष को समझा दिया था और आयुष मेरी बातें थोड़ी-थोड़ी समझने लगा था, परन्तु आयुष को मुझसे ये सब सुनने की अपेक्षा नहीं थी| वो तो चाहता था की मैं उसे छोटे बच्चों की तरह लाड-प्यार कर समझाऊँ!

खैर, मैंने आयुष को फलक से दोस्ती खत्म करने को नहीं कहा था, मैंने उसे इस उम्र में 'प्यार-मोहब्बत सब धोका है' इस बात की ओर केवल इशारा कर दिया था!
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फिलहाल के लिए आयुष ने मुझसे कोई और सवाल नहीं पुछा, मैंने भी उसका ध्यान कार्टून में लगा दिया| कुछ देर बाद जब मैं स्तुति को गाना चला कर नहला रहा था तब आयुष अपनी मम्मी से यही सवाल पूछने लगा;

आयुष: मम्मी...वो न...मुझे आपसे...कुछ पूछना था!

आयुष को यूँ शर्माते हुए देख संगीता हँस पड़ी और उसके सर पर हाथ फेरते हुए बोली;

संगीता: पूछ मेरे लाल|

आयुष: वो मम्मी...फलक है न...उसने न कहा की वो मुझे पसंद करती है!

इतना कहते हुए आयुष के गाल शर्म के मारे लाल हो गए|

संगीता: अच्छा?! अरे वाह!!

संगीता ने हँसते हुए आयुष को गोदी में उठाते हुए कहा|

आयुष: तो मम्मी...अब हमें शादी करनी होगी न?

आयुष का ये बचकाना सवाल सुन संगीता खूब जोर से हँसी, इतना जोर से की मुझे बाथरूम के अंदर स्तुति को नहलाते हुए संगीता की हँसी सुनाई दी|

वहीं, अपनी मम्मी को यूँ ठहाका मार कर हँसते देख आयुष को गुस्सा आ रहा था, अरे भई एक बच्चा अपने मन में उठा सवाल पूछ रहा है और मम्मी है की ठहाका मार कर हँसे जा रही है?!

जब संगीता को एहसास हुआ की आयुष गुस्सा हो गया है तो उसने आयुष को रसोई की स्लैब पर बिठाया और उसे प्यार से समझाते हुए बोली;

संगीता: बेटा, शादी के लिए अभी तू बहुत छोटा है| एक बार तू बड़ा हो जा फिर मैं, जिससे तू कहेगा उससे शादी कराऊँगी| अभी तेरी शादी करवा दी तो तेरे साथ-साथ मुझे तेरी दुल्हन का भी पालन-पोषण करना पड़ेगा और इस उम्र में मुझसे इतना काम नहीं होता! जब तू बड़ा हो जायगा तबतक तेरी दुल्हन भी बड़ी हो जाएगी और तेरी शादी के बाद वो चूल्हा-चौका सँभालेगी, तब मैं आराम करुँगी!

संगीता ने मज़ाक-मज़ाक में आयुष को जो बात कही, वो बात आयुष को मेरी समझाई बात के मुक़ाबले बहुत अच्छी लगी इसलिए उसने ख़ुशी-ख़ुशी ये बात स्वीकार ली और फिलहाल के लिए शादी करने का अपना विचार त्याग दिया! मेरी बात का अर्थ समझने के लिए आयुष को थोड़ा बड़ा होना था, उसकी उम्र के हिसाब से संगीता की बात ही उसे प्यारी लग रही थी|

शाम के समय जब बच्चे सो रहे थे तब संगीता ने आयुष की शादी करने की जिद्द को माँ से साझा किया तो माँ को खूब हँसी आई| जब आयुष सो कर उठा तो माँ उसे लाड करते हुए बोलीं; "बेटा, अभी तू छोटा है, अभी तेरा ध्यान पढ़ाई में और थोड़ा बहुत मौज-मस्ती करने में होना चाहिए| ये शादी-वादी की बात हम तब सोचेंगे जब तू बड़ा हो जायेगा!" आयुष को अपनी दादी जी की बात अच्छी लगी इसलिए वो खुश होते हुए अपनी दादी जी से लिपट गया|

[color=rgb(163,]जारी रहेगा भाग - 20 (3) में...[/color]
 
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