Hindi Antarvasna एक अनोखा बंधन - पुन: प्रारंभ


[color=rgb(44,]इकत्तीसवाँ अध्याय: घर संसार[/color]
[color=rgb(251,]भाग - 20 (3)[/color]


[color=rgb(71,]अब तक अपने पढ़ा:[/color]

शाम के समय जब बच्चे सो रहे थे तब संगीता ने आयुष की शादी करने की जिद्द को माँ से साझा किया तो माँ को खूब हँसी आई| जब आयुष सो कर उठा तो माँ उसे लाड करते हुए बोलीं; "बेटा, अभी तू छोटा है, अभी तेरा ध्यान पढ़ाई में और थोड़ा बहुत मौज-मस्ती करने में होना चाहिए| ये शादी-वादी की बात हम तब सोचेंगे जब तू बड़ा हो जायेगा!" आयुष को अपनी दादी जी की बात अच्छी लगी इसलिए वो खुश होते हुए अपनी दादी जी से लिपट गया|

[color=rgb(26,]अब आगे:[/color]

आयुष
तो जब बड़ा होता तब होता, अभी तो स्तुति की मस्तियाँ जारी थीं| स्तुति को अपने दोनों हाथों-पॉंव पर चलते देख आयुष को कुछ ज्यादा ही मज़ा आता था, वो अक्सर अपनी छोटी बहन की देखा-देखि अपने दोनों हाथों-पॉंव पर चलता तथा स्तुति का रास्ता रोक उसके सर से सर भिड़ा कर धीरे-धीरे स्तुति को पीछे धकेलने की कोशिश करता| दोनों बच्चों को यूँ एक दूसरे को पीछे धकेलते हुए देख माँ, मुझे और संगीता को बड़ा मज़ा आता, ऐसा लगता मानो हमारी आँखों के सामने एनिमल प्लेनेट (animal planet) चल रहा हो, जिसमें दो छोटी बकरियाँ एक दूसरे को पीछे धकेलने का खेल खेल रही हों!

ऐसे ही एक दिन की बात है, मैं शाम क लौटा तो दोनों भाई बहन सर से सर भिड़ाये एक दूसरे को पीछे धकेलने में लगे थे की तभी आयुष ने अपनी छोटी बहन से हारने का ड्रामा किया और मुझे भी अपने साथ ये खेल-खेलने को कहा| दोनों बच्चों को देख मेरे भीतर का बच्चा जाग गया और मैं भी अपने दोनों-हाथों-पाँव पर आ गया| "बेटा, हम है न रेलगाड़ी वाला खेल खेलते हैं|" मैंने उस दिन एक नए खेल का आविष्कार किया था और आयुष इस खेल के नियम जानने को उत्सुक था| मैंने आवाज़ दे कर नेहा को भी इस खेल से जुड़ने को बुलाया और सभी को सारे नियम समझाये|

चूँकि मेरा डील-डोल बच्चों के मुक़ाबले बड़ा था इसलिए मैं बच्चों की रेलगाडी का इंजन बना, मेरे पीछे लगी छोटी सी डाक वाली बोगी यानी के स्तुति, फिर लगा फर्स्ट क्लास स्लीपर का डिब्बा यानी आयुष और अंत में रेलगाड़ी को झंडी दिखाने वाले गार्ड साहब का डिब्बा यानी नेहा| इस पूरे खेल में नेहा की अहम भूमिका थी क्योंकि उसे ही मेरे पीछे लगी डाक वाली बोगी यानी के स्तुति को सँभालना था क्योंकि ये वाली बोगी बड़ी नटखट थी और इंजन को छोड़ अलग पटरी पर दौड़ सकती थी!

खेल शुरू हुआ और मैंने इंजन बनते हुए आगे-आगे अपने दोनों पाँवों और हाथों के बल चलना शुरू किया| जब मैं आगे चला तो स्तुति भी मेरे पीछे-पीछे खिलखिलाकर हँसते हुए चलने लगी, स्तुति के पीछे आयुष चलने लगा और अंत में गार्ड साहब की बोगी यानी नेहा भी चल पड़ी| अभी हमारी ये रेल गाडी माँ के कमरे से निकल बैठक की तरफ मुड़ी ही थी की नटखट स्तुति ने अलग पटरी पकड़ी और वो रसोई की तरफ घूमने लगी! स्तुति को रसोई की तरफ जाते हुए देख आयुष और नेहा ने हल्ला मचाना शुरू कर दिया; "पापा जी देखो, स्तुति दूसरी पटरी पर जा रही है!" बच्चों का शोर सुन मैंने स्तुति को अपने पीछे आने को कहा तो स्तुति जहाँ खड़ी थी वहीं बैठ गई और खिलखिलाकर हँसने लगी| स्तुति को अपने मन की करनी थी इसलिए मैंने स्तुति को ही इंजन बनाया और मैं उसके पीछे दूसरे इंजन के रूप में जुड़ गया|

मेरे, एक पुराने इंजन के मुक़ाबले स्तुति रुपी इंजन बहुत तेज़ था! उसे अपने पीछे लगे डब्बे खींचने का शौक नहीं था, उसे तो बस तेज़ी से दौड़ना पसंद था इसलिए स्तुति हम सभी को पीछे छोड़ छत की ओर दौड़ गई! पीछे रह गए हम बाप-बेटा-बेटी एक दूसरे को देख कर पेट पकड़ कर हँसने लगे! "ये कैसा इंजन है पापा जी, जो अपने डब्बों को छोड़ कर खुद अकेला आगे भाग गया!" नेहा हँसते हुए बोली| हम तीनों बाप-बेटा-बेटी ज़मीन पर बैठे हँस रहे थे की इतने में हमारा इंजन यानी की स्तुति वापस आ गई और हमें हँसते हुए देख अस्चर्य से हमें देखने लगी! ऐसा लगा मानो कह रही हो की मैं पूरा चक्कर लगा कर आ गई और आप सब यहीं बैठे हँस रहे हो?! "चलो भई, सब स्तुति के पीछे रेलगाडी बनाओ|" मैंने दोनों बच्चों का ध्यान वापस स्तुति के पीछे रेलगाड़ी बनाने में लगाया| हम तीनों (मैं, आयुष और नेहा) स्तुति के पीछे रेलगाड़ी के डिब्बे बन कर लग तो गए मगर स्तुति निकली बुलेट ट्रैन का इंजन, वो स्टेशन से ऐसे छूटी की सीधा छत पर जा कर रुकी| जबकि हम तीनों धीरे-धीरे उसके पीछे रेंगते-रेंगते बाहर छत पर आये|

अब छत पर माँ और संगीता पहले ही बैठे हुए थे इसलिए जब उन्होंने मुझे बच्चों के साथ बच्चा बन कर रेलगाड़ी का खेल खेलते हुए देखा तो दोनों सास-पतुआ बड़ी जोर से हँस पड़ीं! "पहुँच गई रेल गाडी प्लेटफार्म पर?!" माँ हँसते हुए बोलीं| फिर माँ ने मुझे अपने पास बैठने को कहा तो मैं स्तुति को गोदी में ले कर बैठ गया| मुझे घर आते ही बच्चों के साथ खेलते हुए देख संगीता मुझसे नाराज़ होते हुए माँ से मेरी शिकायत करते हुए बोली; "देखो न माँ, घर आते ही बिना मुँह-हाथ धोये भूखे पेट बच्चों के साथ खेलने लग गए!"

इधर माँ को मेरे इस बचपने को देख मुझ पर प्यार आ रहा था इसलिए वो मेरा बचाव करते हुए बोलीं; " बेटा, बच्चों का मन बहलाने के लिए कई बार माँ-बाप को उनके साथ खेलना पड़ता है| जब ये शैतान (मैं) छोटा था तो मुझे अपने साथ बैट-बॉल, चिड़ी-छक्का (badminton), कर्रम (carrom), साँप-सीढ़ी, लूडो और पता नहीं क्या-क्या खेलने को कहता था| अब इसके साथ कोई दूसरा खेलने वाला बच्चा नहीं था इसलिए मैं ही इसके साथ थोड़ा-बहुत खेलती थी|" माँ की बात सुन बच्चों की मेरे बचपने के किस्से सुनने की उत्सुकता जाग गई और माँ भी पीछे नहीं रहीं, उन्होंने बड़े मज़े ले-ले कर मेरे बचपन के किस्से सुनाने शुरू किये| मेरे बचपने का सबसे अच्छा किस्सा वो था जब मैं लगभग 2 साल का था और छत पर पड़े गमले में पानी डालकर, उसमें लकड़ी घुसेड़ कर मिटटी को मथने का खेल खेलता| जब माँ पूछतीं की मैं क्या कर रहा हूँ तो मैं कहता की; "मैं खिचड़ी बना रहा हूँ!" मेरे जवाब सुन माँ को बहुत हँसी आती| वो बात अलग है की मैं अपनी बनाई ये मिटटी की खिचड़ी न कभी खुद खाता था न माँ-पिताजी को खाने को कहता था!

खैर, स्तुति को बच्चों के साथ खेलने को छोड़ कर मैं जैसे ही उठा की स्तुति मेरे पीछे-पीछे अपने दोनों हाथों-पॉंव पर चलने लगी; "बेटा, मैं बाथरूम हो कर कपड़े बदलकर आ रहा हूँ|" मैंने स्तुति को समझाते हुए कहा| मुझे लगा था की स्तुति मेरी बात समझ गई होगी मगर मेरी लाड़ली को मेरे बिना चैन कहाँ पड़ता था?! इधर मैं बाथरूम में घुस कमोड पर बैठ कर शौच कर रहा था, उधर स्तुति रेंगते-रेंगते मेरे पीछे आ गई| वैसे तो बाथरूम का दरवाजा बंद था परन्तु दरवाजे पर से कुण्डी मैंने स्तुति के गलती से बाथरूम में बंद हो जाने के डर से हटवा दी थी इस कारण दरवाजा केवल उढ़का हुआ था| स्तुति खदबद-खदबद कर दरवाजे तक आई और दरवाजे के नीचे से आ रही रौशनी को देख स्तुति ने अपना हाथ दरवाजे के नीचे से अंदर की ओर खिसका दिया| जैसे ही मुझे स्तुति का छोटा सा हाथ नज़र आया मैं समझ गया की मेरी शैतान बिटिया मेरे पीछे-पीछे बाथरूम तक आ गई है!

"बेटा मैं छी-छी कर रहा हूँ, आप थोड़ी देर रुको मैं आता हूँ!" मैं बाथरूम के भीतर से मुस्कुराते हुए बोला| परन्तु मेरी बिटिया को कहाँ कुछ समझ आता उसने सोचा की मैं उसे अंदर बुला रहा हूँ इसलिए स्तुति बहुत खुश हुई| स्तुति ने अब तक ये सीख लिया था की दरवाजे को धक्का दो तो दरवाजा खुल जाता है इसलिए मेरी बिटिया बाथरूम का दरवाज़ा भीतर की ओर धकेलते हुए अंदर आ गई| मुझे कमोड पर बैठा देख स्तुति को बड़ा मज़ा आया और वो मेरे सामने ही बैठ कर हँसने लगी! "बेटा, आप बहार जाओ, पापा जी को छी-छी करनी है!" मैंने स्तुति को प्यार से समझाया मगर स्तुति कुछ समझे तब न?! वो तो खी-खी कर हँसने लगी! स्तुति को हँसते हुए देख मेरी भी हँसी छूट गई! मुझे हँसते हुए देख स्तुति को बहुत मज़ा आया और वो हँसते हुए मेरे नज़दीक आने लगी! अब मैं जिस हालत में था उस हालत में मैं स्तुति को अपने नज़दीक नहीं आने देना चाहता था इसलिए मैंने अपने दोनों हाथ स्तुति को दिखा कर रोकते हुए बोला; "नहीं-नहीं बेटा! वहीं रुको!" इस बार स्तुति ने मेरी बात मान ली और अपनी जगह बैठ कर ही खी-खी कर हँसने लगी!

उधर, संगीता चाय बनाने के लिए अंदर आई थी और बाथरूम से आ रही हम बाप-बेटी के हँसी-ठहाके की आवाज़ सुन वो बाथरूम में आ गई| मुझे कमोड पर हँसता हुआ सिकुड़ कर बैठा देख और स्तुति को बाथरूम के फर्श पर ठहाका लगा कर हँसते हुए देख संगीता भी खी-खी कर हँसने लगी! "जान, प्लीज स्तुति को बहार ले जाओ वरना अभी दोनों बच्चे यहाँ आ जायेंगे!" मैंने अपनी हँसी रोकते हुए कहा| "आजा मेरी लाडो!" ये कहते हुए संगीता ने स्तुति को उठाया और बाहर छत पर ले जा कर सबको ये किस्सा बताने लगी| जब मैं कपड़े बदलकर छत पर आया तो सभी हँस रहे थे| "ये शैतान की नानी किसी को चैन से साँस नहीं लेने देती!" माँ हँसते हुए बोलीं| स्तुति को कुछ समझ नहीं आया था मगर वो कहकहे लगाने में व्यस्त थी|

बच्चों को मैं हर प्रकार से खुश रख रहा था, उन्हें इतना लाड-प्यार दे रहा था जिसकी मैं कभी कल्पना भी नहीं की थी| परन्तु अभी भी एक सुख था जिससे मेरे बच्चे और मैं वंचित थे, लेकिन नियति ने मुझे और मेरे बच्चों को इस सुख को भोगने का भी मौका दे दिय| एक दिन की बात है, मैं और स्तुति अकेले रेलगाड़ी वाला खेल खेलने में व्यस्त थे जबकि दोनों बच्चे अपना-अपना होमवर्क करने में व्यस्त थे| मेरी और स्तुति की हँसने की आवाज़ सुन आयुष अपना आधा होमवर्क छोड़ कर आ गया, उसने मुझे स्तुति के साथ रेल गाडी वाला खेल खेलते हुए देखा तो पता नहीं अचानक आयुष को क्या सूझा की वो दबे पॉंव मेरे पास आया और मेरी पीठ पर बैठ गया! आयुष के मेरे पीठ पर बैठते ही एक पिता के मन में अपने बच्चों को घोडा बनकर सैर कराने की इच्छा ने जन्म ले लिया| "बेटा मुझे कस कर पकड़ना|" मैंने मुस्कुराते हुए कहा और धीरे-धीरे चलने लगा| मेरे धीरे-धीरे चलने से आयुष को मज़ा आने लगा और वो ख़ुशी से खिलखिलाने लगा| स्तुति ज़मीन पर बैठी हुई अपने बड़े भैया को मेरी पीठ पर सवारी करते देख बहुत प्रसन्न हुई और उसने मेरे पीछे-पीछे चलना शुरू कर दिया| हम तीनों बाप-बेटा-बेटी का हँसी-ठहाका सुन नेहा अपनी पढ़ाई छोड़ कर आई और ये अद्भुत दृश्य देख कर बहुत खुश हुई| जब मैंने नेहा को देखा तो मैंने उसे अपने पास बुलाया; "आयुष बेटा, अब आपकी दीदी की बारी|" मैंने कहा तो आयुष नीचे उतर गया और उसकी जगह नेहा मेरी पीठ पर बैठ गई|

जब नेहा छोटी थी और मैं गाँव में था, तब मैंने नेहा को अपनी पद्दी अर्थात अपनी पीठ पर लाद कर खेलता था, परन्तु आज मेरी पीठ पर घोड़े की सवारी करना नेहा को कुछ अधिक ही पसंद आया था| नेहा को एक चक्कर घुमा कर मैंने दोनों बच्चों से स्तुति को पकड़ कर मेरी पीठ पर बिठाने को कहा, ताकि मेरी बिटिया रानी भी अपने पापा जी की पीठ की सवारी कर ले| आयुष और नेहा दोनों ने स्तुति को दाहिने-बहिने तरफ से सँभाला और मेरी पीठ पर बिठा दिया| मेरी पीठ पर बैठते ही स्तुति ने मेरी टी-शर्ट अपनी दोनों मुट्ठी में जकड़ ली| जैसे ही मैं धीरे-धीरे चलने लगा स्तुति को मज़ा आने लगा और उसकी किलकारियाँ गूँजने लगी! स्तुति के लिए ये एक नया खेल था और उसे इस खेल में बहुत ज्यादा मज़ा आ रहा था|

स्तुति को मस्ती से किलकारियाँ मारते हुए देख दोनों भाई-बहन भी ख़ुशी से हँस रहे थे| पूरे घर में जब बच्चों की खिलखिलाहट गूँजी तो माँ और संगीता इस आवाज़ को सुन खींचे चले आये| दोनों सास-पतुआ मुझे घोडा बना हुआ देख और मेरी पीठ पर स्तुति को सवारी करते देख ठहाका लगाने लगे| पूरे घर भर में मेरी बिटिया रानी के कारण हँसी का ठहाका गूँजने लगा था|

उस दिन से बच्चों को मेरी पीठ पर सवारी करने का नियम बन गया| तीनों बच्चे बारी-बारी से मेरी पीठ पर सवारी करते और 'चल मेरे घोड़े टिक-टिक' कहते हुए ख़ुशी से खिलखिलाते| बच्चों को अपनी पीठ की सवारी करा कर मुझे मेहताने के रूप में तीनों बच्चों से पेट भर पप्पी मिलती थी जो की मेरे लिए सब कुछ था| घोड़ सवारी करने के बाद तीनों बच्चे मुझे ज़मीन पर लिटा देते और मुझसे लिपटते हुए मेरे दोनों गाल अपनी मीठी-मीठी पप्पियों से गीली कर देते| कई बार मुझे यूँ ज़मीन पर लिटा कर पप्पियाँ देने में तीनों बच्चों के बीच पर्तिस्पर्धा हो जाती थी|

ऐसे ही एक दिन की बात है, दोपहर का समय था और स्तुति सोइ हुई थी| मैं जल्दी घर पहुँचा था इसलिए थकान मिटाने के लिए कपड़े बदल कर स्तुति की बगल में लेटा था| स्तुति को देखकर मेरा मन उसकी पप्पी लेने को किया इसलिए मैंने स्तुति को गोल-मटोल गालों को चूम लिया| मेरे इस लालच ने मेरी बिटिया की नींद तोड़ दी और स्तुति जाग गई| मुझे अपने पास देख स्तुति करवट ले कर उठी और अपने दोनों हाथों-पाँवों पर चलते हुए मेरे पास आई तथा मेरी छाती पर चढ़ कर मेरे दाएँ गाल पर अपने छोटे-छोटे होंठ टिका कर मेरी पप्पी लेने लगी| अपनी मम्मी की तरह स्तुति को भी मेरे गाल गीले करने में मज़ा आता था इसलिए स्तुति बड़े मजे ले कर अपनी किलकारियों से शोर मचा कर मेरी पप्पी लेने लगी| स्तुति की किलकारियाँ सुन आयुष कमरे में दौड़ा आया और स्तुति को मेरी पप्पी लेता देख शोर मचाते हुए बाहर भाग गया; "दीदी...मम्मी...देखो स्तुति को...वो अकेले पापा जी की सारी पप्पी ले रही है!" आयुष के हल्ला मचाने से नेहा उसके साथ दौड़ती हुई कमरे में आई और स्तुति को प्यार से धमकाते हुए बोली; "शैतान लड़की! अकेले-अकेले पापा जी की सारी पप्पियाँ ले रही है!" इतना कह नेहा ने स्तुति को पीछे से गोदी में उठाया और उसे मुझसे दूर कर मेरे दाएँ गाल की पप्पी लेने लगी| वहीं, आयुष भी पीछे नहीं रहा उसने भी मेरे बाएँ गाल की पप्पी लेनी शुरू कर दी| अब रह गई बेचारी स्तुति जिसे उसी की बड़ी बहन ने उसी के पापा जी की पप्पी लेने से रोकने के लिए दूर कर दिया था|
जिस प्रकार संगीता मुझ पर हक़ जताती थी, नेहा मुझ पर हक़ जताती थी उसी प्रकार स्तुति भी मुझ पर अभी से हक़ जताने लगी थी| जब वो मेरी गोदी में होती तो वो किसी को भी मेरे आस-पास नहीं रहने देती थी| ऐसे में जब नेहा ने उसे पीछे से उठा कर मेरी पप्पी लेने से रोका तो स्तुति को गुस्सा आ गया! मेरी बिटिया रानी हार न मानते हुए अपने दोनों हाथों-पाँवों पर रेंगते हुए मेरे नज़दीक आई और सबसे पहले अपने बड़े भैया को दूर धकेलते हुए मेरे पेट पर चढ़ गई तथा धीरे-धीरे रेंगते हुए मेरे गाल तक पहुँची और फिर अपनी बड़ी दीदी को मुझसे दूर धकेलने की कोशिश करने लगी|

आयुष छोटा था और स्तुति को चोट न लग जाये इसलिए वो अपने आप पीछे हट गया था मगर नेहा बड़ी थी और थोड़ी जिद्दी भी इसलिए स्तुति के उसे मुझसे परे धकेलने पर भी वो चट्टान की तरह कठोर बन कर रही और मेरे दाएँ गाल से अपने होंठ भिड़ाये हँसने लगी| इधर जब स्तुति ने देखा की उसकी दीदी अपनी जगह से हट नहीं रही तो उसने अपना झूठ-मूठ का रोना शुरू कर दिया! ये झूठ-मूठ का रोना स्तुति तब रोती थी जब वो किसी का ध्यान अपने ऊपर केंद्रित करवाना चाहती हो|
खैर, स्तुति के रोने से हम सभी डरते थे क्योंकि एक बार स्तुति का साईरन बज जाता तो फिर जल्दी ये साईरन बंद नहीं होता था इसीलिए स्तुति का झूठ-मूठ का रोना सुन नेहा डर के मारे खुद दूर हो गई| अब स्तुति को उसके पापा जी के दोनों गाल पप्पी देने के लिए मिल गए थे इसलिए स्तुति ने मेरे दाएँ गाल पर अपने नाज़ुक होंठ टिकाये और मेरी पप्पी लेते हुए किलकारी मारने लगी| मेरी शैतान बिटिया रानी को आज अपनी इस छोटी सी जीत पर बहुत गर्व हो रहा था|
इधर, बेचारे आयुष और नेहा मुँह बाए स्तुति को देखते रहे की कैसे उनकी छोटी सी बहना इतनी चंट निकली की उसने अपने बड़े भैया और दीदी को अपने पापा जी से दूर कर कब्ज़ा जमा लिया!

उसी दिन से स्तुति ने मुझ पर अपना अधिपत्य स्थापित कर लिया था| कहने की जर्रूरत तो नहीं की स्तुति ने ये गुण अपनी मम्मी से ही सीखा था| जिस प्रकार संगीता मेरे ऊपर हक़ जमाती थी, अपनी प्रेगनेंसी के दिनों में हमेशा मेरा ध्यान अपने ऊपर खींचने की कोशिश करती थी, उसी प्रकार स्तुति भी बस यही चाहती की मैं बस उसी को लाड-प्यार करूँ| मेरी बिटिया रानी ने ये हक़ जमाने वाला गुण अपनी मम्मी से पाया था! उसके (स्तुति के) अलावा अगर मेरा ध्यान नेहा या आयुष की तरफ जाता तो स्तुति कुछ न कुछ कर के फौरन मेरा ध्यान अपने ऊपर खींचती|

ऐसे ही एक दिन की बात है, रविवार का दिन था और हम बाप-बेटी टी.वी. पर कार्टून देख रहे थे| मैं आलथी-पालथी मारकर सोफे पर बैठा था और स्तुति मेरी गोदी में बैठी थी| मेरा बायाँ हाथ स्तुति के सामने गाडी की सीटबेल्ट की तरह था ताकि कहीं स्तुति आगे की ओर न फुदके तथा नीचे गिर कर चोटिल हो जाये| वहीं मेरी चुलबुली बिटिया रानी कार्टून देखते हुए बार-बार मेरा ध्यान टी.वी. की ओर खींचती और अपने हाथ के इशारे से कुछ समझाने की कोशिश करती| अब मेरे कुछ पल्ले तो पड़ता नहीं था की मेरी बिटिया रानी क्या कहना चाह रही है परन्तु अपनी बिटिया की ख़ुशी के लिए मैं "हैं? अच्छा? भई वाह!" कह स्तुति की बातों में अपनी दिलचस्पी दिखाता|

ठीक तभी नेहा भी अपनी पढ़ाई खत्म कर के मेरे पास बैठ गई और कार्टून देखने लगी| नेहा को देख मैंने अपना दाहिना हाथ उठा कर नेहा के कँधे पर रख दिया| कुछ पल बाद जब स्तुति ने देखा की मेरा एक हाथ नेहा के कँधे पर है तो मेरी छोटी सी बिटिया रानी को जलन हुई और वो अपनी दीदी को दूर धकेलने लगी| अपनी छोटी बहन द्वारा धकेले जाने पर नेहा सब समझ गई और चिढ़ते हुए बोली; "छटाँक भर की है तू और मेरे पापा जी पर हक़ जमा रही है?! सुधर जा वरना मारब एक ठो तो सोझाये जैहो!" नेहा के मुँह से देहाती सुनना मुझे बड़ा अच्छा लगता था इसलिए मेरे चेहरे पर मुस्कान आ गई, वहीं अपनी बड़ी दीदी द्वारा धमकाए जाने पर स्तुति डर के मारे रोने लगी| अतः मुझे ही बीच में बोल कर सुलाह करानी पड़ी; "नहीं-नहीं बेटा! रोते नहीं है!" मैंने स्तुति को अपने गले लगा कर थोड़े लाड कर रोने से रोका और नेहा को मूक इशारे से शांत रहने को कहा|

स्तुति का रोना सुन माँ, आयुष और संगीता बैठक में आये तो नेहा ने सबको सारी बात बताई| नेहा की सारी बात सुन आयुष और संगीता ने भी स्तुति की शिकायतें शुरू कर दी;

आयुष: दादी जी, ये छोटी सी बच्ची है न बहुत तंग करती है मुझे! मैं अगर पापा के पास जाऊँ न तो ये मेरे बाल खींचने लगती है! मैं और पापा अगर छत पर बैट-बॉल खेल रहे हों तो ये वहाँ रेंगते हुए आ जाती है, फिर ये पापा जी की टांगों से लिपट कर हमारा खेल रोक देती है!

आयुष ने पहल करते हुए अपनी छोटी बहन की शिकायत की|

संगीता: मेरे साथ भी ये यही करती है माँ! रात को सोते समय ये मुझे दूर धकलने लगती है, मानो पूरा पलंग इसी का हो! इनकी (मेरी) गैरहाजरी में अगर मैं इस शैतान को खाना खिलाऊँ तो ये खाने में इतने ड्रामे करती है की क्या बताऊँ?! एक दिन तो इसने सारा खाना गिरा दिया था!

संगीता ने भी अपनी बात में थोड़ा नमक-मिर्च लगा कर स्तुति की शिकायत की|

नेहा: दादी जी, जब भी मैं पापा जी के पास कहानी सुनने जाती हूँ तो ये शैतान मुझे कहानी सुनने नहीं देती| बीच में "आवव ववव...ददद...आ" बोलकर कहानी सुनने ही नहीं देती, अगर इसे (स्तुति को) रोको तो ये मुझे जीभ दिखा कर खी-खी करने लगती है!

जब सब स्तुति की शिकायत कर रहे थे तो नेहा ने भी स्तुति की एक और शैतानी माँ को गिना दी!

मम्मी, बहन, भाई सब के सब एक नन्ही सी जान की शिकायत करने में लगे थे| ऐसे में बेचारी बच्ची का उदास हो जाना तो बनता था न?! स्तुति एकदम से खामोश हो कर मेरे सीने से लिपट गई| माँ ने जब स्तुति को यूँ चुप-चाप देखा तो वो माँ-बेटा-बेटी को चुप कराते हुए बोलीं;

माँ: अच्छा बस! अब कोई मेरी शूगी (स्तुति) की शिकायत नहीं करेगा|

संगीता, नेहा और आयुष को चुप करवा माँ ने स्तुति को पुकारा;

माँ: शूगी ...ओ शूगी!

अपनी दादी जी द्वारा नाम पुकारे जाने पर स्तुति अपनी दादी जी को देखने लगी| माँ ने अपनी दोनों बाहें खोल कर स्तुति को अपने पास बुलाया मगर स्तुति माँ की गोदी में नहीं गई, बल्कि उसके चेहरे पर अपनी दादी जी के चेहरे पर मुस्कान देख प्यारी सी मुस्कान दौड़ गई! मैं स्तुति को ले कर माँ की बगल में बैठ गया, माँ ने स्तुति का हाथ पकड़ कर चूमा और स्तुति का बचाव करने लग पड़ीं;

माँ: मेरी शूगी इतनी छोटी सी बच्ची है, उसे क्या समझ की क्या सही है और क्या गलत?! हाँ वो बेचारी मानु से ज्यादा प्यार करती है तो क्या ये उसकी गलती हो गई?! नेहा बेटा, तू तो सबसे बड़ी है और तुझे स्तुति को गुस्सा करने की बजाए उसे प्यार से समझना चाहिए| ये दिन ही हैं स्तुति के बोलना सीखने के इसलिए वो बेचारी कुछ न कुछ बोलने की कोशिश करती रहती है, अरे तुझे तो स्तुति को बोलना सीखना चाहिए|

और तू आयुष, अगर स्तुति तुझे और मानु को बैट-बॉल नहीं खेलने देती तो उसे भी अपने साथ खिलाओ| स्तुति बैटिंग नहीं कर सकती मगर बॉल पकड़ कर तो ला सकती है न?! फिर तुम दोनों बाप-बेटे उसके साथ कोई दूसरा खेल खेलो!

और तू संगीता बहु, छोटे बच्चे नींद में लात मारते ही हैं| ये मानु क्या कम था, अरे जब ये छोटा था तो तो नींद में मुझसे लिपट कर मुझे ही लात मार देता था| लेकिन जब बड़ा होने लगा तो समझदार हो गया और सुधर गया, उसी तरह स्तुति भी बड़ी हो कर समझदार हो जाएगी और लात मारना बंद कर देगी|

माँ ने एक-एक कर तीनों माँ-बेटा-बेटी को प्यार से समझा दिया था, जिसका तीनों ने बुरा नहीं माना| हाँ इतना जर्रूर था की तीनों प्यारभरे गुस्से से स्तुति को देख रहे थे| जब माँ ने तीनों को स्तुति को इस तरह देखते हुए पाया तो उन्होंने किसी आर्मी के जर्नल की तरह तीनों को काम पर लगा दिया;

माँ: बस! अब कोई मेरी शूगी को नहीं घूरेगा! चलो तीनों अपने-अपने काम करो, वरना तीनों को बाथरूम में बंद कर दूँगी!

माँ की इस प्यारभरी धमकी को सुन तीनों बहुत हँसे और कमाल की बात ये की अपनी मम्मी, बड़े भैया तथा दीदी को हँसता हुआ देख स्तुति भी खिलखिलाकर हँसने लगी!

[color=rgb(163,]जारी रहेगा भाग - 20 (4) में...[/color]
 

[color=rgb(44,]इकत्तीसवाँ अध्याय: घर संसार[/color]
[color=rgb(251,]भाग - 20 (4)[/color]


[color=rgb(71,]अब तक अपने पढ़ा:[/color]

माँ ने एक-एक कर तीनों माँ-बेटा-बेटी को प्यार से समझा दिया था, जिसका तीनों ने बुरा नहीं माना| हाँ इतना जर्रूर था की तीनों प्यारभरे गुस्से से स्तुति को देख रहे थे| जब माँ ने तीनों को स्तुति को इस तरह देखते हुए पाया तो उन्होंने किसी आर्मी के जर्नल की तरह तीनों को काम पर लगा दिया;

माँ: बस! अब कोई मेरी शूगी को नहीं घूरेगा! चलो तीनों अपने-अपने काम करो, वरना तीनों को बाथरूम में बंद कर दूँगी!

माँ की इस प्यारभरी धमकी को सुन तीनों बहुत हँसे और कमाल की बात ये की अपनी मम्मी, बड़े भैया तथा दीदी को हँसता हुआ देख स्तुति भी खिलखिलाकर हँसने लगी!

[color=rgb(26,]अब आगे:[/color]

स्तुति
के साथ दिन प्यार से बीत रहे थे और आखिर वो दिन आ ही गया जब मेरे द्वारा संगीता के लिए आर्डर किये हुए कपड़े साइट पर डिलीवर हुए| अपने उत्साह के कारण मैंने वो पार्सल एक कोने में जा कर खोल लिया और अंदर जो कड़पे आये थे उनका मुआयना किया, कपड़े बिलकुल वही थे जो मैंने आर्डर किये थे| चिंता थी तो बस एक बात की, क्या संगीता ये कपड़े पहनेगी? या फिर अपनी लाज-शर्म के कारण वो इन्हें पहनने से मना कर देगी?! "मेरा काम था कपड़े खरीदना, पहनना न पहनना संगीता के ऊपर है| कम से कम अब वो मुझसे ये शिकायत तो नहीं करेगी की मैं हमारे रिश्ते में कुछ नयापन नहीं ला रहा?!" मैं अपना पल्ला झाड़ते हुए बुदबुदाया| मेरी ये बात काफी हद्द तक सही थी, मैंने अपना कर्म कर दिया था अब इस कर्म को सफल करना या विफल करना संगीता के हाथ में था|

खैर, मैं कपड़ों का पैकेट ले कर घर पहुँचा तो मुझे दोनों बच्चों ने घेर लिया| आयुष और नेहा को लगा की इस पैकेट में मैं जर्रूर उनके लिए कुछ लाया हूँ इसलिए वो मुझसे पैकेट में क्या है उन्हें दिखाने की जिद्द करने लगे| अब बच्चों के सामने ये कपड़े दिखाना बड़ा शर्मनाक होता इसलिए मैं बच्चों को मना करते हुए बोला; "बेटा, ये आपके लिए नहीं है| ये किसी और के लिए है!" मैं बच्चों को समझा रहा था की इतने में संगीता आ गई और मेरे हाथ में ये पैकेट देख वो समझ गई की जर्रूर उसके लिए मँगाया हुआ गिफ्ट आ गया है इसलिए वो बीच में बोल पड़ी; "आयुष...नेहा...बेटा अपने पापा जी को तंग मत करो! ये लो 20/- रुपये और जा कर अपने लिए चिप्स-चॉकलेट ले आओ!" संगीता ने बड़ी चालाकी से बच्चों को चॉकलेट और चिप्स का लालच दे कर घर से बाहर भेज दिया|

बच्चों के जाने के बाद संगीता अपनी आँखें नचाते हुए मुझसे बोली; "आ गया न मेरा सरप्राइज?" संगीता की आँखों में एकदम से लाल डोरे तैरने लगे थे! वहीं संगीता को इन कपड़ों में कल्पना कर मेरी भी आँखों में एक शैतानी मुस्कान झलक रही थी!

अब चूँकि रात में हम मियाँ-बीवी ने रंगरलियाँ मनानी थी तो सबसे पहले हमें तीनों बच्चों को सुलाना था और ये काम आसान नहीं था! संगीता ने फौरन आयुष और नेहा को आवाज़ मारी और मेरी ड्यूटी लगते हुए बोली; "तीनों शैतानों को पार्क में खिला लाओ और आते हुए सब्जी ले कर आना|" संगीता की बात में छुपी हुई साजिश बस मैं जानता था और अपनी पत्नी की इस चतुराई पर मुझे आज गर्व हो रहा था!

बहार घूमने जाने की बात से दोनों बच्चे बहुत खुश थे और स्तुति वो तो बस मेरी गोदी में आ कर ही किलकारियाँ मारने में व्यस्त थी| हम चारों घर से सीधा पार्क जाने के लिए निकले, रास्ते भर स्तुति अपनी गर्दन घुमा-घुमा कर अपने आस-पास मौजूद लोगों, दुकानो, गाड़ियों को देखने लगी| हम पार्क पहुँचे तो नेहा खेलने के लिए चिड़ी-छक्का (badminton) ले कर आई थी तो दोनों भाई-बहन ने मिल कर वो खेलना शुरू कर दिया| वहीं हम बाप बेटी (मैं और स्तुति) पार्क की हरी-हरी घास पर बैठ कर आयुष और नेहा को खेलते हुए देखने लगे|

अपने आस-पास अन्य बच्चों को खेलते हुए देख और आँखों के सामने हरी-हरी घास को देख स्तुति का मन डोलने लग, उसने मेरी गोदी में से उतरने के लिए छटपटाना शुरू कर दिया| मैंने स्तुति को गोदी से उतार कर घास पर बिठाया तो स्तुति का बाल मन हरी- हरी घास को चखने का हुआ, अतः उसने अपनी मुठ्ठी में घास भर कर खींच निकाली और वो ये घास खाने ही वाली थी की मैंने उसका हाथ पकड़ लिया; "नहीं-नहीं बेटा! इंसान घास नहीं खाते!" मुझे अपना हाथ पकड़े देख स्तुति खिलखिला कर हँसने लगी, मानो कह रही हो की पापा जी मैं बुद्धू थोड़े ही हूँ जो घास खाऊँगी?!

मैं अपनी बिटिया रानी की हँसी में खोया था, उधर स्तुति ने अपना एक मन-पसंद जीव 'गिलहरी' देख लिया था| हमारे घर के पीछे एक पीपल का पेड़ है और उसकी डालें घर की छत तक आती हैं| उस पेड़ पर रहने वाली गिलहरी डाल से होती हुई हमारी छत पर आ जाती थी| जब स्तुति छत पर खेलने आने लगी तो गिलहरी को देख कर वो बहुत खुश हुई| गिलहरी जब अपने दोनों हाथों से पकड़ कर कोई चीज़ खाती तो ये दिर्श्य देख स्तुति खिलखिलाने लगती| गिलहरी देख स्तुति हमेशा उसे पकड़ने के इरादे से दौड़ पड़ती, लेकिन गिलहरी इतनी फुर्तीली होती है की वो स्तुति के नज़दीक आने से पहले ही भाग निकलती|

आज भी जब स्तुति ने पार्क में गिलहरी देखि तो वो मेरा ध्यान उस ओर खींचने लगी, स्तुति ने अपने ऊँगली से गिलहरी की तरफ इशारा किया और अपनी प्यारी सी, मुझे समझ न आने वाली जुबान में बोलने लगी| "हाँ बेटा जी, वो गिलहरी है!" मैंने स्तुति को समझाया मगर स्तुति को पकड़ने थी गिलहरी इसलिए वो अपने दोनों हाथों-पैरों पर रेंगती हुई गिलहरी के पास चल दी| मैं भी उठा और धीरे-धीरे स्तुति के पीछे चल पड़ा| परन्तु जैसे ही स्तुति गिलहरी के थोड़ा नज़दीक पहुँची, गिलहरी फट से पेड़ पर चढ़ गई!

मुझे लगा की स्तुति गिलहरी के भाग जाने से उदास होगी मगर स्तुति ने अपना दूसरा सबसे पसंदीदा जीव यानी 'कबूतर' देख लिया था! कबूतर स्तुति को इसलिए पसंद था क्योंकि कबूतर जब अपनी गर्दन आगे-पीछे करते हुए चलता था तो स्तुति को बड़ा मज़ा आता था| छत पर माँ पक्षियों के लिए पानी और दाना रखती थीं इसलिए शाम के समय स्तुति को उसका पसंदीदा जीव दिख ही जाता था|

खैर, पार्क में कबूतर देख स्तुति उसकी ओर इशारा करते हुए अपनी बोली में कुछ बोलने लगी, वो बात अलग है की मेरे पल्ले कुछ नहीं पड़ा! "हाँ जी बेटा जी, वो कबूतर है!" मैंने स्तुति की कही बात का अंदाज़ा लगाते हुए कहा मगर इतना सुनते ही स्तुति रेंगते हुए कबूतर पकड़ने चल पड़ी! कबूतर अपने दूसरे साथी कबूतरों के साथ दाना खा रहा था, परन्तु जब सभी कबूतरों ने एक छोटी सी बच्ची को अपने नज़दीक आते देखा तो डर के मारे सारे कबूतर एक साथ उड़ गए! सारे कबूतरों को उड़ता हुआ देख स्तुति जहाँ थी वहीँ बैठ गई ओर ख़ुशी से किलकारियाँ मारने लगी| मैं अपनी प्यारी सी बिटिया के इस चंचल मन को देख बहुत खुश हो रहा था, मेरी बिटिया तो थोड़ी सी ख़ुशी पा कर ही ख़ुशी से फूली नहीं समाती थी|

बच्चों का खेलना हुआ तो मन कुछ खाने को करने लगा| पार्क के बाहर टिक्की वाला था तो हम चारों वहाँ पहुँच गए| मैं, आयुष और नेहा तो मसालेदार टिक्की खा सकते थे मगर स्तुति को क्या खिलायें? स्तुति को खिलाने के लिए मैंने एक पापड़ी ली और उसे फोड़ कर चूरा कर स्तुति को थोड़ा सा खिलाने लगा| टिक्की खा कर लगी थी मिर्च इसलिए हम सब कुछ मीठा खाने के लिए मंदिर जा पहुँचे| मंदिर में दर्शन कर हमें प्रसाद में मिठाई और स्तुति को खिलाने के लिए केला मिला| मैंने केले के छोटे-छोटे निवाले स्तुति को खिलाने शुरू किये और स्तुति ने बड़े चाव से वो फल रूपी केला खाया|

मंदिर से निकल कर हम सब्जी लेने लगे और ये ऐसा काम था जो की मुझे और आयुष को बिलकुल नहीं आता था| शुक्र है की नेहा को सब्जी लेना आता था इसलिए हम बाप-बेटे ने नेहा की बात माननी शुरू कर दी| नेहा हमें बता रही थी की उसकी मम्मी ने हमें कौन-कौन सी सब्जी लाने को कहा है| आलू-प्याज लेते समय नीचे झुकना था और चूँकि स्तुति मेरी गोदी में थी इसलिए मैंने इस काम में आयुष को नेहा की मदद करने में लगा दिया| आयुष जब टेढ़े-मेढ़े आलू-प्याज उठता तो नेहा उसे डाँटते हुए समझाती और सही आलू-प्याज कैसे लेना है ये सिखाती| फिर बारी आई टमाटर लेने की, टमाटर एक रेडी पर रखे थे जो की मैं बिना झुकाये उठा सकता था| वहीं आयुष की ऊँचाई रेडी से थोड़ी कम थी इसलिए आयुष बस किनारे रखे टमाटरों को ही उठा सकता था; "बेटा, आपका हाथ टमाटर तक नहीं पहुँचेगा इसलिए टमाटर मैं चुनता हूँ| तबतक आप वो बगल वाली दूकान से 10/- रुपये का धनिया ले आओ|" मैंने आयुष को समझाते हुए काम सौंपा|

स्तुति को गोदी में लिए हुए मैंने थोड़े सख्त वाले टमाटर चुनने शुरू किये ही थे की नजाने क्यों लाल रंग के टमाटरों को देख स्तुति एकदम से उतावली हो गई और मेरी गोदी से नीचे उतरने को छटपटाने लगी| स्तुति बार-बार टमाटर की तरफ इशारा कर के मुझे कुछ समझना चाहा मगर मुझे कुछ समझ आये तब न?! अपनी नासमझी में मैंने एक छोटा सा टमाटर उठा कर स्तुति के हाथ में दे दिया ताकि स्तुति खुश हो जाए| वो छोटा सा टमाटर अपनी मुठ्ठी में ले कर स्तुति बहुत खुश हुई और टमाटर का स्वाद चखने के लिए अपने मुँह में भरने लगी| "नहीं बेटा!" ये कहते हुए मैंने स्तुति के मुँह में टमाटर जाने से रोक लिया और स्तुति को समझाते हुए बोला; "बेटा, ऐसे बिना धोये फल-सब्जी नहीं खाते, वरना आप बीमार हो जाओगे?!" अब इसे मेरा पागलपन ही कहिये की मैं एक छोटी सी बच्ची को बिना धोये फल-सब्जी खाने का ज्ञान देने में लगा था!

खैर, स्तुति के हाथ से लाल-लाल टमाटर 'छीने' जाने से स्तुति नाराज़ हो गई और आयुष की तरह अपना निचला होंठ फुला कर मेरे कंधे पर सर रख एकदम से खामोश हो गई| "औ ले ले, मेला छोटा सा बच्चा अपने पापा जी से नालाज़ (नाराज़) हो गया?" मैंने तुतलाते हुए स्तुति को लाड करना शुरू किया, परन्तु स्तुति कुछ नहीं बोली| तभी मेरी नज़र बाजार में एक गुब्बारे वाले पर पड़ी जो की हीलियम वाले गुब्बारे बेच रहा था| मैंने नेहा को चुप-चाप पैसे दिए और एक गुब्बारा लाने का इशारा किया| नेहा फौरन वो गुब्बारा ले आई और मैंने उस गुब्बारे की डोरी स्तुति के हाथ में बाँध दी| "देखो स्तुति बेटा, ये क्या है?" मैंने स्तुति का ध्यान उसके हाथ में बंधे गुब्बारे की तरफ खींचा तो स्तुति वो गुब्बारा देख कर बहुत खुश हुई| हरबार की तरह, स्तुति को गुब्बारा पकड़ना था मगर गुब्बारे में हीलियम गैस भरी होने के कारन गुब्बारा ऊपर हवा में में तैर रहा था| स्तुति गुब्बारे को पकड़ने के लिए अपने दोनों हाथ उठाती मगर गुब्बारा स्तुति के हाथ में बँधा होने के कारण और ऊपर चला जाता| स्तुति को ये खेल लगा और उसका सारा ध्यान अब इस गुब्बारे पर केंद्रित हो गया| इस मौके का फायदा उठाते हुए हम तीनों बाप-बेटा-बेटी ने जल्दी-जल्दी सब्जी लेनी शुरू कर दिया वरना क्या पता स्तुति फिर से किसी सब्जी को कच्चा खाने की जिद्द करने लगती!

जब तक हम घर नहीं पहुँचे, स्तुति अपने गुब्बारे को पकड़ने के लिए मेरी गोदी में फुदकती रही! घर पहुँच माँ ने जब मुझे तीनों बच्चों के साथ देखा तो वो संगीता से बोलीं; "ये तो आ गया?!" माँ की बात सुन संगीता मुझे दोषी बनाते हुए मुस्कुरा कर बोली; "इनके पॉंव घर पर टिकते कहाँ हैं! साइट से आये नहीं की दोनों बच्चों को घुमाने निकल पड़े, वो तो मैंने इनको सब्जी लाने की याद दिलाई वरना आज तो खिचड़ी खा कर सोना पड़ता!" संगीता की नजरों में शैतानी थी और मुझे ये शैतानी देख कर मीठी सी गुदगुदी हो रही थी इसलिए मैं खामोश रहा|

रात को खाना खाने के बाद आयुष और नेहा को शाम को की गई मस्ती के कारण जल्दी नींद आ गई| रह गई मेरी लाड़ली बिटिया रानी, तो वो अब भी अपने गुब्बारे को पकड़ने के लिए जूझ रही थी! स्तुति को जल्दी सुलाने के लिए संगीता ने गुब्बारा पकड़ कर स्तुति के हाथ में दिया मगर स्तुति के हाथ में गुब्बारा आते ही स्तुति ने अपनी नन्ही-नन्ही उँगलियाँ गुब्बारे में धँसा दी और गुब्बारा एकदम से फट गया!

गुब्बारा अचानक फटने से मेरी बिटिया दहल गई और डर के मारे रोने लगी! मैंने फौरन स्तुति को गोदी में लिया और उसे टहलाते हुए छत पर आ गया| छत पर आ कर मैंने धीरे-धीरे 'राम-राम' का जाप किया और ये जाप सुन स्तुति के छोटे से दिल को चैन मिला तथा वो धीरे-धीरे निंदिया रानी की गोदी में चली गई|

स्तुति को गोदी में लिए हुए जब मैं कमरे में लौटा तो मैंने देखा की संगीता बड़ी बेसब्री से दरवाजे पर नज़रें बिछाये मेरा इंतज़ार कर रही है| मैंने गौर किया तो पाया की संगीता ने हल्का सा मेक-अप कर रखा था, बाकी का मेक-अप का समान उसने बाथरूम में मुझे सरप्राइज देने के लिए रखा था| इधर मुझे देखते ही संगीता के चेहरे पर शर्म से भरपूर मुस्कान आ गई और उसकी नजरें खुद-ब-खुद झुक गईं|

मैं: तोहफा खोल कर देखा लिया?

मेरे पूछे सवाल के जवाब में संगीता शर्म से नजरें झुकाये हुए न में गर्दन हिलाने लगी|

मैं: क्यों?

मैंने भोयें सिकोड़ कर सवाल पुछा तो संगीता शर्माते हुए दबी आवाज़ में बोली;

संगीता: तोहफा आप लाये हो तो देखना क्या, सीधा पहन कर आपको दिखाऊँगी!

संगीता की आवाज़ में आत्मविश्वास नज़र आ रहा था और मैं ये आत्मविश्वास देख कर बहुत खुश था|

स्तुति के सोने के लिए संगीता ने कमरे में मौजूद दीवान पर बिस्तर लगा दिया था इसलिए मैंने स्तुति को दीवान पर लिटा दिया और संगीता को कपड़े पहनकर आने को कहा| जबतक संगीता बाथरूम में कपड़े पहन रही थी तब तक मैंने भी अपने बाल ठीक से बनाये और परफ्यूम लगा लिया| कमरे की लाइट मैंने मध्धम सी कर दी थी ताकि बिलकुल रोमांटिक माहौल बनाया जा सके|

उधर बाथरूम के अंदर संगीता ने सबसे पहले मेरे द्वारा मँगाई हुई लाल रंग की बिकिनी पहनी| ये बिकिनी स्ट्रिंग वाली थी, यानी के संगीता के जिस्म के प्रमुख अंगों को छोड़ कर उसका पूरा जिस्म दिख रहा था| मैं बस कल्पना कर सकता हूँ की संगीता को इसे पहनने के बाद कितनी शर्म आई होगी मगर उसके भीतर मुझे खुश करने की इच्छा ने उसकी शर्म को किनारे कर दिया|

बिकिनी पहनने के बाद संगीता ने मेरे द्वारा मँगाई हुई अंग्रेजी फिल्मों में दिखाई जाने वाली मेड (maid) वाली फ्रॉक पहनी! ये फ्रॉक संगीता के ऊपर के बदन को तो ढक रही थी, परन्तु संगीता का कमर से नीचे का बदन लगभग नग्न ही था| ये फ्रॉक बड़ी मुस्किल से संगीता के आधे नितम्बों को ढक रही थी, यदि थोड़ी सी हवा चलती तो फ्रॉक ऊपर की ओर उड़ने लगती जिससे संगीता का निचला बदन साफ़ दिखने लगता| पता नहीं कैसे पर संगीता अपनी शर्म ओर लाज को किनारे कर ये कपड़े पहन रही थी?!

बहरहाल, मेरे द्वारा लाये ये कामुक कपड़े पहन कर संगीता ने होठों पर मेरी पसंदीदा रंग यानी के चमकदार लाल रंगी की लिपस्टिक लगाई| बालों का गोल जुड़ा बना कर संगीता शर्म से लालम लाल हुई बाथरूम से निकली|

इधर मैं पलंग पर आलथी-पालथी मारे बाथरूम के दरवाजे पर नजरें जमाये बैठा था| जैसे ही संगीता ने दरवाजा खोला मेरी नजरें संगीता को देखने के लिए प्यासी हो गईं| प्यास जब जोर से लगी हो और आपको पीने के लिए शर्बत मिल जाए तो जो तृष्णा मिलती है उसकी ख़ुशी ब्यान कर पाना मुमकिन नहीं! मेरा मन इसी सुख को महसूस करने का था इसलिए मैंने संगीता के बाथरूम के बाहर निकलने से पहले ही अपनी आँखें मूँद ली|

संगीता ने जब मुझे यूँ आँखें मूँदे देखा तो वो मंद-मंद मुस्कुराने लगी| मेरे मन की इस इच्छा को समझते हुए संगीता धीरे-धीरे चल कर मेरे पास आई और लजाते हुए बोली; "जानू" इतना कह संगीता खामोश हो गई| संगीता की आवाज़ सुन मैंने ये अंदाजा लगा लिया की संगीता मेरे पास खड़ी है|

मैंने धीरे-धीरे अपनी आँखें खोलीं और मेरी आँखों के आगे मेरे द्वारा तोहफे में लाये हुए कपड़े पहने मेरी परिणीता का कामुक जिस्म दिखा! सबसे पहले मैंने एक नज़र भर कर संगीता को सर से पॉंव तक देखा, इस वक़्त संगीता मुझे अत्यंत ही कामुक अप्सरा लग रही थी! संगीता को इस कामुक लिबास में लिपटे हुए देख मेरा दिल तेज़ रफ़्तार से दौड़ने लगा था| चेहरे से तो संगीता खूबसूरत थी ही इसलिए मेरा ध्यान इस वक़्त संगीता के चेहरे पर कम और उसके बदन पर ज्यादा था|

इन छोटे-छोटे कपड़ों में संगीता को देख मेरे अंदर वासना का शैतान जाग चूका था| मैंने आव देखा न ताव और सीधा ही संगीता का दाहिना हाथ पकड़ कर पलंग पर खींच लिया| संगीता इस अचानक हुए आक्रमण के लिए तैयार नहीं थी इसलिए वो सीधा मेरे ऊपर आ गिरी| उसके बाद जो मैंने अपनी उत्तेजना में बहते हुए उस बेचारी पर क्रूरता दिखाई की अगले दो घंटे तक मैंने संगीता को जिस्मानी रूप से झकझोड़ कर रख दिया!

कमाल की बात तो ये थी की संगीता को मेरी ये उत्तेजना बहुत पसंद थी! हमारे समागम के समाप्त होने पर उसके चेहरे पर आई संतुष्टि की मुस्कान देख मुझे अपनी दिखाई गई उत्तेजना पर ग्लानि हो रही थी| "जानू..." संगीता ने मुझे पुकारते हुए मेरी ठुड्डी पकड़ कर अपनी तरफ घुमाई| "क्या हुआ?" संगीता चिंतित स्वर में पूछने लगी, परन्तु मेरे भीतर इतनी हिम्मत नहीं थी की मैं उससे अपने द्वारा की गई बर्बरता के लिए माफ़ी माँग सकूँ|

अब जैसा की होता आया है, संगीता मेरी आँखों में देख मेरे दिल की बात पढ़ लेती है| मेरी ख़ामोशी देख संगीता सब समझ गई और मेरे होठों को चूमते हुए बड़े ही प्यारभरी आवाज़ में बोली; "जानू, आप क्यों इतना सोचते हो?! आप जानते नहीं क्या की मुझे आपकी ये उत्तेजना देखना कितना पसंद है?! जब भी आप उत्तेजित होते हो कर मेरे जिस्म की कमान अपने हाथों में लेते हो तो मुझे बहुत मज़ा आता है| मैं तो हर बार यही उम्मीद करती हूँ की आप इसी तरह मुझे रोंद कर रख दिया करो लेकिन आप हो की मेरे जिस्म को फूलों की तरह प्यार करते हो! आज मुझे पता चल गया की आपको उत्तेजित करने के लिए मुझे इस तरह के कपड़े पहनने हैं इसलिए अब से मैं इसी तरह के कपड़े पहनूँगी और खबरदार जो आगे से आपने खुद को यूँ रोका तो!" संगीता ने प्यार से मुझे चेता दिया था|

संगीता कह तो ठीक रही थी मगर मैं कई बार छोटी-छोटी बातों पर जर्रूरत से ज्यादा सोचता था, यही कारण था की मैं अपनी उत्तेजना को हमेशा दबाये रखने की कोशिश करता था| उस दिन से संगीता ने मुझे खुली छूट दे दी थी, परन्तु मेरी उत्तेजना खुल कर बहुत कम ही बाहर आती थी|

दिन बीते और नेहा का जन्मदिन आ गया था| नेहा के जन्मदिन से एक दिन पहले हम सभी मिश्रा अंकल जी के यहाँ पूजा में गए थे, पूजा खत्म होने के बाद खाने-पीने का कार्यक्रम शरू हुआ जो की रात 10 बजे तक चला जिस कारण सभी थक कर चूर घर लौटे और कपड़े बदल कर सीधे अपने-अपने बिस्तर में घुस गए| आयुष अपनी दादी जी के साथ सोया था और नेहा जानबूझ कर अकेली अपने कमरे में सोई थी| रात ठीक बारह बजे जब मैं नेहा को जन्मदिन की मुबारकबाद सबसे पहले देने पहुँचा तो मैंने पाया की मेरी लाड़ली बेटी पहले से जागते हुए मेरा इंतज़ार कर रही है| मुझे देखते ही नेहा मुस्कुराते हुए बिस्तर पर खड़ी हो गई और अपनी दोनों बाहें खोल कर मुझे गले लगने को बुलाने लगी| मैंने तुरंत नेहा को अपने सीने से लगा लिया और उसके दोनों गालों को चूमते हुए उसे जन्मदिन की बधाई दी; "मेरे प्यारे-प्यारे बच्चे को, जन्मदिन की ढेर सारी शुभकामनायें! आप खूब पढ़ो और बड़े हो कर हमारा नाम ऊँचा करो! जुग-जुग जियो मेरी बिटिया रानी!" मुझसे बधाइयाँ पा कर और मेरे नेहा को 'बिटिया' कहने से नेहा का नाज़ुक सा दिल बहुत खुश था, इतना खुश की उसने अपनी ख़ुशी व्यक्त करने के लिए ख़ुशी के आँसूँ बहा दिए| "आई लव यू पापा जी!" नेहा भरे गले से मेरे सीने से लिपटते हुए बोली|

"आई लव यू टू मेरा बच्चा!" मैंने नेहा के सर को चूमते हुए कहा तथा नेहा को अपनी बाहों में कस लिया| मेरे इस तरह नेहा को अपनी बाहों में कस लेने से नेहा का मन एकदम से शांत हो गया और उसका रोना रुक गया|

रात बहुत हो गई थी इसलिए मैं नेहा को अपने सीने से लिपटाये हुए लेट गया पर नेहा का मन सोने का नहीं बल्कि मुझसे कुछ पूछने का था;

नेहा: पापा जी...वो...मेरे दोस्त कह रहे थे की उन्हें मेरे जन्मदिन की ट्रीट (ट्रीट) स्कूल में चाहिए!

नेहा ने संकुचाते हुए अपनी बात कही| मैं नेहा की झिझक को जानता था, दरअसल नेहा को अपनी पढ़ाई के अलावा मेरे द्वारा कोई भी खर्चा करवाना अच्छा नहीं लगता था इसीलिए वो इस वक़्त इतना सँकुचा रही थी|

मैं: तो इसमें घबराने की क्या बात है बेटा?

मैंने नेहा के सर पर हाथ फेरा और नेहा को प्यार से समझाते हुए बोला;

मैं: बेटा, जब बच्चे बड़े हो जाते हैं तो उन्हें अपने दोस्तों को यूँ मम्मी-पापा के साथ घर की पार्टी में शामिल करवाना अजीब लगता है| हमारे सामने आप बच्चे खुल कर बात नहीं कर पाते, हमसे शर्माते हुए आप सभी न तो जी भर कर नाच पाते हो और न ही खा पाते हो|

जब मैं बड़ा हो रहा था तो मैं भी अपने जन्मदिन पर आपके दिषु भैया के साथ मैक डोनाल्ड (Mc Donald) में जा कर बर्गर खा कर पार्टी करता था| कभी-कभी मैं आपके दादा जी से पैसे ले कर स्कूल की कैंटीन में अपने कुछ ख़ास दोस्तों को कुछ खिला-पिला कर पार्टी दिया करता था| आप भी अब बड़े हो गए हो तो आपके दोस्तों का यूँ आपसे पार्टी या ट्रीट माँगना बिलकुल जायज है| कल सुबह स्कूल जाते समय मुझसे पैसे ले कर जाना और जब आपका लंच टाइम हो तब आप आयुष तथा अपने दोस्तों को उनकी पसंद का खाना खिला देना|

मेरे इस तरह प्यार से समझाने का असर नेहा पर हुआ तथा नेहा के चेहरे पर प्यारभरी मुस्कान लौट आई|

नेहा: तो पापा जी, स्कूल से वापस आ कर मेरे लिए क्या सरप्राइज है?

नेहा ने अपनी उत्सुकता व्यक्त करते हुए पुछा|

मैं: शाम को घर पर एक छोटी सी पार्टी होगी, फिर रात को हम सब बाहर जा कर खाना खाएंगे|

मेरा प्लान अपने परिवार को बाहर घूमने ले जाने का था, फिर शाम को केक काटना और रात को बाहर खाना खाने का था, परन्तु नेहा ने जब अपनी छोटी सी माँग मेरे सामने रखी तो मैंने अपना आधा प्लान कैंसिल कर दिया|

मेरी बिटिया नेहा अब धीरे-धीरे बड़ी होने लगी थी और मैं उसे जिम्मेदारी के साथ-साथ उसे धीरे-धीरे थोड़ी बहुत छूट देने लगा था|

अगली सुबह माँ स्तुति को गोदी में ले कर मुझे और नेहा को जगाने आईं| सुबह-सुबह नींद से उठते ही स्तुति मुझे अपने पास न पा कर व्यकुल थी इसलिए वो रो नहीं रही थी बस मुझे न पा कर परेशान थी| जैसे ही स्तुति ने मुझे अपनी दीदी को अपने सीने से लिपटाये सोता हुआ देखा, वैसे ही स्तुति ने माँ की गोदी से उतर मेरे पास आने के लिए छटपटाना शुरू कर दिया| स्तुति को मेरे सिरहाने बिठा कर माँ चल गईं, मेरे सिरहाने बैठते ही स्तुति ने अपने दोनों हाथों से मेरे सर को पकड़ा और अपने होंठ मेरे मस्तक से चिपका दिए तथा मेरी पप्पी लेते हुए मेरा मस्तक गीला करने लगी|

अपनी बिटिया रानी की इस गीली-गीली पप्पी से मैं जाग गया और बड़ी ही सावधानी से स्तुति को पकड़ कर अपने सीने तक लाया| मेरे सीने के पास पहुँच स्तुति ने अपनी दीदी को देखा और स्तुति ने मुझ पर अपना हक़ जताते हुए नेहा के बाल खींचने शुरू कर दिए| "नो (No) बेटा!" मैंने स्तुति को बस एक बार मना किया तो स्तुति ने अपनी दीदी के बाल छोड़ दिए| नेहा की नींद टूट चुकी थी और वो स्तुति द्वारा इस तरह बाल खींच कर जगाये जाने से गुस्सा थी!

"स्तुति बेटा, ऐसे अपनी दीदी और बड़े भैया के बाल खींचना अच्छी बात नहीं| आपको पता है, आज आपकी दीदी का जन्मदिन है?!" मैंने स्तुति को समझाया तथा उसे नेहा के जन्मदिन के बारे में पुछा तो स्तुति हैरान हो कर मुझे देखने लगी| एक पल के लिए तो लगा जैसे स्तुति मेरी सारी बात समझ गई हो, लेकिन ये बस मेरा वहम था, स्तुति के हैरान होने का कारण कोई नहीं जानता था|

" चलो अपनी नेहा दीदी को जन्मदिन की शुभकामनायें दो!" मैंने प्यार से स्तुति को आदेश दिया तथा स्तुति को नेहा की पप्पी लेने का इशारा किया| मेरा इशारा समझ स्तुति ने अपने दोनों हाथ अपनी दीदी नेहा की तरफ देखते हुए फैलाये| नेहा वैसे तो गुस्सा थी मगर उसे मेरी बता का मान रखना था इसलिए उसने स्तुति को गोदी ले लिया| अपनी दीदी की गोदी में जाते ही स्तुति ने नेहा के दाएँ गाल पर अपने होंठ टिका दिए और अपनी दीदी की पप्पी ले कर मेरे पास लौटने को छटपटाने लगी| नेहा ने स्तुति को मेरी गोदी में दिए तथा बाथरूम जाने को उठ खड़ी हुई| जैसे ही नेहा उठी की पीछे से माँ आ गईं और नेहा के सर पर हाथ रखते हुए उसे आशीर्वाद देते हुए बोलीं; "हैप्पी बर्डी (बर्थडे) बेटा! खुश रहो और खूब पढ़ो-लिखो!" माँ से बर्थडे शब्द ठीक से नहीं बोला गया था इसलिए मुझे इस बात पर हँसी आ गई, वहीं नेहा ने अपनी दादी जी के पॉंव छू कर आशीर्वाद लिया और ख़ुशी से माँ की कमर के इर्द-गिर्द अपने हाथ लपेटते हुए बोली; "थैंक यू दादी जी!"

दोनों दादी-पोती इसी प्रकार आलिंगन बद्ध खड़े थे की तभी दोनों माँ-बेटे यानी आयुष और संगीता आ धमके| सबसे पहले अतिउत्साही आयुष ने अपनी दीदी के पॉंव छुए और जन्मदिन की मुबारकबाद दी और उसके बाद संगीता ने नेहा के सर पर हाथ रख उसे आशीर्वाद देते हुए जन्मदिन की शुभकामनायें दी|

"तो पापा जी, आज स्कूल की छुट्टी करनी है न?!" आयुष ख़ुशी से कूदता हुआ बोला क्योंकि उसके अनुसार जन्मदिन मतलब स्कूल से छुट्टी लेना होता था मगर तभी नेहा ने आयुष की पीठ पर एक थपकी मारी और बोली; "कोई छुट्टी-वुत्ती नहीं करनी! आज हम दोनों स्कूल जायेंगे और लंच टाइम में तू अपने दोस्तों को ले कर मेरे पास आ जाइओ!" नेहा ने आयुष को गोल-मोल बात कही| स्कूल जाने के नाम से आयुष का चेहरा फीका पड़ने लगा इसलिए मैंने आयुष को बाकी के दिन के बारे में बताते हुए कहा; "बेटा, आज शाम को घर पर छोटी सी पार्टी होगी और फिर हम सब खाना खाने बाहर जायेंगे|" मेरी कही बात ने आयुष के फीके चेहरे पर रौनक ला दी और वो ख़ुशी के मारे कूदने लगा|

दोनों बच्चे स्कूल जाने के लिए तैयार हुए, मैंने नेहा को 1,000/- रुपये सँभाल कर रखने को दिए, नेहा इतने सरे पैसे देख अपना सर न में हिलाने लगी| "बेटा, मैं आपको ज्यादा पैसे इसलिए दे रहा हूँ ताकि कहीं पैसे कम न पड़ जाएँ| ये पैसे सँभाल कर रखना और सोच-समझ कर खर्चना, जितने पैसे बचेंगे वो मुझे घर आ कर वापस कर देना|" मैंने नेहा को प्यार से समझाते हुए पैसे सँभालने और खर्चने की जिम्मेदारी दी तब जा कर नेहा मानी|

स्कूल पहुँच नेहा ने अपने दोस्तों के साथ लंच में क्या खाना है इसकी प्लानिंग कर ली थी इसलिए जैसे ही लंच टाइम हुआ नेहा अपनी क्लास के सभी बच्चों को ले कर कैंटीन पहुँची| तभी वहाँ आयुष अपनी गर्लफ्रेंड और अपने दो दोस्तों को ले कर कैंटीन पहुँच गया| नेहा और उसके 4-5 दोस्त बाकी सभी बच्चों के लिए कैंटीन से समोसे, छोले-कुलचे और कोल्डड्रिंक लेने लाइन में लगे| पैसे दे कर सभी एक-एक प्लेट व कोल्ड्रिंक उठाते और पीछे खड़े अपने दोस्तों को ला कर देते जाते| चौथी क्लास के बच्चों के इतने बड़े झुण्ड को देख स्कूल के बाकी बच्चे बड़े हैरान थे| जिस तरह से नेहा और उसके दोस्त चल-पहल कर रहे थे उसे देख दूसरी क्लास के बच्चों ने आपस में खुसर-फुसर शुरू कर दी थी| किसी बड़ी क्लास के बच्चे ने जब एक ही क्लास के सारे बच्चों को यूँ झुण्ड बना कर खड़ा देखा तो उसने जिज्ञासा वश एक बच्चे से कारण पुछा, जिसके जवाब में उस बच्चे ने बड़े गर्व से कहा की उसकी दोस्त नेहा सबको अपने जन्मदिन की ट्रीट दे रही है| जब ये बात बाकी सब बच्चों को पता चली तो नेहा को एक रहीस बाप की बेटी की तरह इज्जत मिलने लगी|

परन्तु मेरी बेटी ने इस बात का कोई घमंड नहीं किया, बल्कि नेहा ने बहुत सोच-समझ कर और हिसाब से पैसे खर्चे थे| मेरी बिटिया ने अपनी चतुराई से अपने दोस्तों को इतनी भव्य पार्टी दे कर खुश कर दिया था और साथ-साथ पैसे भी बचाये थे|

दोपहर को घर आते ही नेहा ने एक कागज में लिखा हुआ सारा हिसाब मुझे दिया| पूरा हिसाब देख कर मुझे हैरानी हुई की मेरी बिटिया ने 750/- रुपये खर्च कर लगभग 35 बच्चों को पेटभर नाश्ता करा दिया था| सभी बच्चे नेहा की दरियादिली से इतना खुश थे की सभी नेहा की तारीफ करते नहीं थक रहे थे| मेरी बिटिया रानी ने अपने दोस्तों पर बहुत अच्छी धाक जमा ली थी जिस कारण नेहा अब क्लास की सबसे चहेती लड़की बन गई थी जिसका हर कोई दोस्त बनना चाहता था|

मेरी डरी-सहमी रहने वाली बिटिया अब निडर और जुझारू हो गई थी| स्कूल शुरू करते समय जहाँ नेहा का कोई दोस्त नहीं था, वहीं आज मेरी बिटिया के इतने दोस्त थे की दूसरे सेक्शन के बच्चे भी नेहा से दोस्ती करने को मरे जा रहे थे! ये मेरे लिए वाक़ई में बहुत बड़ी उपलब्धि थी!

शाम को घर में मैंने एक छोटी सी पार्टी रखी थी, जिसमें केवल दिषु का परिवार और मिश्रा अंकल जी का परिवार आमंत्रित था| केक काट कर सभी ने थोड़ा-बहुत जलपान किया और सभी अपने-अपने घर चले गए| रात 8 बजे मैंने सभी को तैयार होने को कहा और हम सभी पहुँचे फिल्म देखने| स्तुति आज पहलीबार फिल्म देखने आई थी और पर्दे पर फिल्म देख कर स्तुति सबसे ज्यादा खुश थी| समस्या थी तो बस ये की स्तुति अपने उत्साह को काबू नहीं कर पा रही थी और किलकारियाँ मार कर बाकी के लोगों को तंग कर रही थी! "श..श..श!!" नेहा ने स्तुति को चुप रहने को कहा मगर स्तुति कहाँ अपनी दीदी की सुनती वो तो पर्दे को छूने के लिए उसकी तरफ हाथ बढ़ा कर किलकारियाँ मारने लगी|
"बेटू...शोल (शोर) नहीं करते!" मैंने स्तुति के कान में खुसफुसा कर कहा| मेरे इस तरह खुसफुसाने से स्तुति के कान में गुदगुदी हुई और वो मेरे सीने से लिपट कर कुछ पल के लिए शांत हो गई| फिर तो जब भी स्तुति शोर करती, मैं उसके कान में खुसफुसाता और मेरी बिटिया मेरे सीने से लिपट कर कुछ पल के लिए खामोश हो जाती|

फिल्म देखने का सुख मुझे छोड़ कर सभी ने लिया था, पर देखा जाए तो मेरे लिए असली सुख अपनी छोटी बिटिया रानी के साथ खेलना था| फिल्म खत्म हुई रात साढ़े 10 बजे और अब लगी थी भूख इसलिए हम मॉल में बने हुए रेस्टोरेंट में खाना खाने बैठ गए| जिस रेस्टोरेंट में हम आये थे ये बहुत महँगा था जिस कारण यहाँ की साज-सज्जा बहुत बढ़िया थी| हम सभी एक फॅमिली टेबल पर बैठे और खाना आर्डर करने का काम दादी-पोता-पोती ने किया| मैं स्तुति को गोदी में ले कर बैठा था की तभी एक वेटर स्तुति के बैठने के लिए छोटे बच्चों की कुर्सी ले आया| कुर्सी अपने सामने लगवा कर मैंने स्तुति को उस आरामदायक कुर्सी पर बिठाया, तो मेरी बिटिया रानी ख़ुशी से किलकारियाँ मारने लगी| "बड़े ठाठ हैं इस शैतान के!" संगीता आँखें तार्रेर कर बोली जिसके जवाब में स्तुति अपनी मम्मी को जीभ दिखा कर चिढ़ाने लगी| माँ-बेटी की ये जुगलबंदी देख मैं, माँ और दोनों बच्चे हँसने लगे| खैर, हम सभी ने खाना खाया और स्तुति को भी आज पहलीबार 2 (छोटी) चम्मच गुलाब जामुन खाने को मिला| अपने पापा जी की ही तरह स्तुति को भी ये मीठा-मीठा स्वाद बहुत पसंद आया था|

[color=rgb(163,]जारी रहेगा भाग - 20 {5(i)} में...[/color]
 

[color=rgb(44,]इकत्तीसवाँ अध्याय: घर संसार[/color]
[color=rgb(251,]भाग - 20 {5(i)}[/color]


[color=rgb(71,]अब तक अपने पढ़ा:[/color]

फिल्म देखने का सुख मुझे छोड़ कर सभी ने लिया था, पर देखा जाए तो मेरे लिए असली सुख अपनी छोटी बिटिया रानी के साथ खेलना था| फिल्म खत्म हुई रात साढ़े 10 बजे और अब लगी थी भूख इसलिए हम मॉल में बने हुए रेस्टोरेंट में खाना खाने बैठ गए| जिस रेस्टोरेंट में हम आये थे ये बहुत महँगा था जिस कारण यहाँ की साज-सज्जा बहुत बढ़िया थी| हम सभी एक फॅमिली टेबल पर बैठे और खाना आर्डर करने का काम दादी-पोता-पोती ने किया| मैं स्तुति को गोदी में ले कर बैठा था की तभी एक वेटर स्तुति के बैठने के लिए छोटे बच्चों की कुर्सी ले आया| कुर्सी अपने सामने लगवा कर मैंने स्तुति को उस आरामदायक कुर्सी पर बिठाया, तो मेरी बिटिया रानी ख़ुशी से किलकारियाँ मारने लगी| "बड़े ठाठ हैं इस शैतान के!" संगीता आँखें तार्रेर कर बोली जिसके जवाब में स्तुति अपनी मम्मी को जीभ दिखा कर चिढ़ाने लगी| माँ-बेटी की ये जुगलबंदी देख मैं, माँ और दोनों बच्चे हँसने लगे| खैर, हम सभी ने खाना खाया और स्तुति को भी आज पहलीबार 2 (छोटी) चम्मच गुलाब जामुन खाने को मिला| अपने पापा जी की ही तरह स्तुति को भी ये मीठा-मीठा स्वाद बहुत पसंद आया था|

[color=rgb(26,]अब आगे:[/color]

बच्चे
अक्सर अपने माँ-बाप, अपने बड़ों को देख कर कुछ नया सीखते हैं| आयुष मेरी देखा-देखि बॉडी स्प्रे (body spray) लगाना, अच्छे से बाल बनाना, शेड्स (shades) यानी धुप वाले चश्मे पहनना आदि सीख गया था| वहीं नेहा ने अपनी मम्मी को थोड़ा बहुत मेक-अप करते हुए देख फेस पाउडर, आँखों में काजल लगाना, बिंदी लगाना, लिपस्टिक लगाना सीख लिया था| अब जब दोनों बच्चे अपने मम्मी-पापा जी से कुछ न कुछ सीख रहे थे तो स्तुति कैसे पीछे रहती?!

एक दिन की बात है, पड़ोस में पूजा रखी गई थी तथा हम सभी को आमंत्रण मिला था| माँ और आयुष तो तैयार हो कर पहले निकल गए, रह गए बस हम मियाँ बीवी, नेहा और स्तुति| चूँकि मुझे साइट से घर लौटने में समय लगना था इसलिए संगीता मेरी दोनों बेटियों के साथ घर पर मेरा इंतज़ार कर रही थी| "तुम नहा-धो कर तैयार हो जाओ मैं तबतक घर पहुँच जाऊँगा|" मैंने फ़ोन कर संगीता को तैयार होने को बोला| कुछ समय बाद संगीता नहा कर तैयार हो चुकी थी तथा आईने के सामने बैठ कर अपने चेहरे पर थोड़ा सा फेस-पाउडर लगा रही थी| नेहा और स्तुति दोनों पलंग पर बैठे अपनी मम्मी को साज-श्रृंगार करते हुए देख रहे थे| नेहा ने अपनी मम्मी को पहले भी श्रृंगार करते हुए देखा था इसलिए वो इतनी उत्सुक नहीं थी, लेकिन स्तुति इस समय बहुत हैरान थी| वो बड़े गौर से अपनी मम्मी को फेस-पाउडर लगाते हुए देख रही थी| फिर संगीता ने अपने गुलाबी होठों पर हलके गुलाबी रंग की लिपस्टिक लगाई, स्तुति ने जब ये दृश्य देखा तो उसका छोटा सा मुँह खुला का खुला रह गया| अंत में संगीता ने अपने माथे पर बिंदी लगाई और इस पाल मेरी बिटिया स्तुति के अस्चर्य की सीमा नहीं थी! अपनी मम्मी के माथे पर लगी बिंदी को देख मेरी बिटिया अचानक ही उतावली हो कर अपनी मम्मी के माथे की तरफ ऊँगली कर अपनी बोली-भाषा में कुछ कहने लगी|
अब स्तुति की ये भाषा केवल वही जानती थी इसलिए माँ-बेटी (नेहा और संगीता) के कुछ पल्ले नहीं पड़ा| ठीक तभी मैं घर पहुँचा और मुझे देख कर स्तुति ने मेरी गोदी में आने के लिए अपने दोनों हाथ पंख के समान खोल दिए| मेरी गोदी में आ, स्तुति बार-बार अपनी मम्मी की तरफ इशारा करने लगी मगर मैंने स्तुति की कही बात का गलत अंदाजा लगाया; "मम्मी ने डाँटा आपको?! मैं आपकी मम्मी जी को डाटूँगा!" मैंने बात बनाते हुए स्तुति को बहलाना चाहा मगर स्तुति अब भी संगीता के मस्तक की ओर इशारा कर रही थी|

वहीं, संगीता मेरी बात सुन प्यारभरे गुस्से में बोली; "मैंने नहीं डाँटा आपकी लाड़ली को! ये शैतान हमेशा कुछ न कुछ नया हंगामा करती रहती है!" इतना कह संगीता अपना मुँह टेढ़ा कर बाहर चली गई| मैं जानता था की स्तुति जब भी कुछ नया देखती है तो वो इसी तरह मेरा ध्यान उस ओर खींचती है, परन्तु इस बार उसे क्या नया दिखा इसका मुझे इल्म नहीं था| मैं स्तुति को गोदी में लिए लाड करने लगा ताकि स्तुति का ध्यान उस चीज़ पर से हट जाए| कुछ मिनट स्तुति को यूँ टहलाने के बाद मैं स्तुति से बोला; "बेटा, आप और आपकी दीदी तो पूजा में जाने के लिए तैयार हो गए, मैं भी नहा-धो कर तैयार हो जाऊँ?" मैंने स्तुति को बहलाते हुए सवाल पुछा था मगर पीछे से नेहा ने जवाब दिया; "पापा जी, आप जाइये तैयार होने| मैं हूँ न स्तुति का ध्यान रखने के लिए|" नेहा की बता सुन मैंने उसके सर पर हाथ रख आशीर्वाद दिया तथा स्तुति को उसकी गोदी में छोड़ने लगा पर मेरी लाड़ली बिटिया अपनी दीदी की गोदी में जाने से मना करने लगी| "बेटु, पापा जी को तैयार होना है, बस 5 मिनट में मैं नहा कर आ जाऊँगा|" मैंने स्तुति को प्यारभरा आश्वसन दिया तब कहीं जा कर स्तुति मानी और अपनी दीदी की गोदी में गई| स्तुति परेशान न हो इसके लिए मैं बाथरूम में गाना गाते हुए नहाने लगा, मेरी आवाज़ सुन स्तुति को ये इत्मीनान था की मैं उसे अकेला छोड़ कर कहीं नहीं जा रहा|

मेरे बाथरूम में नहाने जाते ही नेहा ने स्तुति को पलंग पर बिठाया और खुद जा कर आईने के सामने अपनी मम्मी का फेस पाउडर अपने चेहरे पर लगाने लगी| स्तुति ने जब अपनी दीदी को मेक-अप करते देखा तो वो उत्साह से भर गई और अपनी दीदी को "आ...आ.." कह कर बुलाने लगी| नेहा ने मुड़ कर स्तुति की ओर देखा तो वो समझ गई की स्तुति की उत्सुकता क्या है| नेहा फेस पाउडर ले कर स्तुति के पास आई और थोड़ा सा फेस पाउडर स्तुति के चेहरे पर लगाने लगी| ठीक तभी मैं नहाकर बाहर निकला और नेहा को स्तुति को फेस पाउडर लगाते हुए देख चुपचाप खड़ा हो गया| स्तुति बिना हिले-डुले अपनी दीदी को अपने चेहरे पर फेस पाउडर लगाने दे रही थी और मैं स्तुति को इस कदर स्थिर बैठा हुआ देख हैरान था|

जब नेहा ने स्तुति को फेस पाउडर लगा दिया, तब उसकी नज़र मुझ पर पड़ी और नेहा हँसने लगी| मैंने स्तुति को गोदी में उठाया और उसके मस्तक को चूम बोला; "मेरी छोटी बिटिया तो बड़ी प्यारी लग रही है!" अपनी तारीफ सुन स्तुति शर्माने लगी और मेरे सीने से लिपट गई| इधर मेरी नज़र पड़ी नेहा पर जो की अपनी तारीफ सुनने का इंतज़ार कर रही थी| "मेरी बिटिया रानी बहुत सुन्दर लग रही है!" मैंने नेहा की तारीफ की तो नेहा एकदम से बोली; "एक मिनट पापा जी!" इतना कह नेहा आईने के पास गई और अपनी मम्मी के बिंदियों के पैकेट में से बिंदी चुनने लगी| स्तुति अपनी दीदी की बात सुन बड़े गौर से नेहा को देखने लगी मानो वो भी देखना चाहती हो की उसकी दीदी आखिर करने क्या वाली हैं?!

नेहा ने अपने लिए एक बिंदी खोज निकाली और आईने में देखते हुए अपने माथे के बीचों बीच बिंदी लगा कर मेरे पास फुदकती हुई आ गई| "अरे वाह! मेरा बच्चा तो और भी सुन्दर दिखने लगा|" मैंने नेहा के गाल पर हाथ फेरते हुए कहा|

उधर स्तुति ने अपनी दीदी के माथे पर बिंदी देखि तो उसने अपनी ऊँगली से बिंदी की ओर इशारा करना शुरू किया| इस बार मैं स्तुति की बात समझ गया और बोला; "मेरी बिटिया को भी बिंदी लगानी है?!" ये कहते हुए मैं आईने के पास पहुँचा और संगीता की बिंदियों के ढेर में से स्तुति के लिए एक छोटी सी-प्यारी सी बिंदी ढूँढने लगा| मुझे इतनी सारी बिंदियों में से बिंदी खोजते हुए देख स्तुति का मन मचल उठा और वो मेरी गोदी से निचे उतरने को मचलने लगी| अगर मैं स्तुति को नीचे उतार देता तो वो सारी बिंदियाँ अपनी मुठ्ठी में भरकर खा लेती!

अंततः मैंने स्तुति के लिए एक बहुत छोटी सी बिंदी ढूँढ निकाली थी; "मिल गई..मिल गई!" मैंने ये बोलकर स्तुति का ध्यान अपनी ऊँगली के छोर पर एक छोटी सी बिंदी की तरफ स्तुति का ध्यान खींचते हुए शोर मचाया| नेहा ने उस बिंदी के पीछे से पॉलिथीन निकाली और मुझे दी तथा मैंने वो बिंदी बड़ी सावधानी से स्तुति के मस्तक के बीचों-बीच लगा दी| आईने में स्तुति ने अपने मस्तक पर बिंदी लगी हुई देखि तो वो बहुत खुश हुई और अपने मसूड़े दिखा कर खिलखिलाकर हँसने लगी|

आईने में हम तीनों (मेरा, नेहा और स्तुति) का प्रतिबिम्ब बहुत ही प्यारा दिख रहा था| मैंने नेहा के दाएँ कंधे पर अपना दायाँ हाथ रख उसे अपने से चिपका कर खड़ा कर लिया और अपनी दोनों बेटियों की ख़ूबसूरती की प्रशंसा करते हुए बोला; "मेरी दोनों लाड़ली बेटियाँ बहुत-बहुत सुन्दर लग रहीं हैं| आपको मेरी भी उम्र लग जाए! आप दोनों इसी प्रकार ख़ुशी से खिलखिलाते रहो!" पता नहीं क्यों पर उस पल मैं एकदम से भावुक हो गया था| शायद अपनी दोनों बेटियों को यूँ अपने साथ देख दिल दोनों बच्चियों को खो देने से डर गया था!

इतने में पीछे से संगीता आ गई और मुझे यूँ स्तुति को गोदी में लिए हुए तथा नेहा को खुद से चिपकाए आईने में देखता हुआ देख उल्हाना देते हुए बोली; "सारा प्यार अपनी इन दोनों लड़कियों पर लुटा देना, मेरे लिए कुछ मत छोड़ना!" संगीता की बात सुन मैं मुस्कुराया और उसे भी अपने गले लगने को बुलाया| हम मियाँ-बीवी और दोनों बेटियाँ, एक साथ गले लगे हुए बहुत ही प्यारे लग रहे थे| आज भी जब वो दृश्य याद करता हूँ तो आँखें ख़ुशी के मारे नम हो जाती हैं|

स्तुति को किसी की नज़र न लगे इसके लिए मैंने खुद स्तुति के कान के पीछे काला टीका लगा दिया तथा हम चारों पूजा में सम्मलित होने मंदिर पहुँचे| बिंदी लगाए हुए स्तुति बहुत प्यारी लग रही थी, इतनी प्यारी की पूजा में मौजूद हर एक व्यक्ति की नज़र स्तुति पर टिकी हुई थी|

वहीं मंदिर में आ कर स्तुति का चंचल मन एकदम शांत हो गया था| हमेशा किलकारियाँ मारती हुई मेरी लाड़ली इस समय चेहरे पर मुस्कान लिए हुए अपने आस-पास मौजूद लोगों को देख रही थी| पूजा सम्पन्न हुई और मंत्रोचारण सुन स्तुति पंडित जी को बड़ी गौर से देखने लगी| पूजा खत्म हुई तो स्त्रियाँ मिल कर हारमोनियम, ढोलक और घंटी आदि बजाते हुए भजन गाने लगीं| स्तुति ने जब ये वादक यंत्र देखे तो वो मेरा ध्यान उस तरफ खींचने लगी| मैं स्तुति को गोदी लिए हुए सभी स्त्रियों के पास पहुँचा तो स्तुति ने एक आंटी जी के हाथ में घंटी देखि और वो उस घंटी की आवाज़ की तरफ आकर्षित होने लगी|

माँ बताती थीं की जब मैं स्तुति की उम्र का था तो मैं घंटी की आवाज़ सुन घबरा जाता था, परन्तु मुझे सताने के उद्देश्य से पिताजी जानबूझकर घंटी बजाते और जैसे ही मेरा रोना शुरू होता वो घंटी बजाना बंद कर देते! जब मैं बोलने लायक बड़ा हुआ तो मैंने घंटी को 'घाटू-पाटू' कहना शुरु कर दिया और धीरे-धीरे मेरा घंटी के प्रति डर खत्म हो गया|

माँ द्वारा बताई उसी बात को याद कर मेरे चेहरे पर मुस्कान आ गई| एक तरफ जहाँ मैं अपने छुटपन में घंटी से डरता था, वहीं मेरी बिटिया रानी इतनी निडर थी की वो घंटी की तरफ आकर्षित हो रही थी| बहरहाल, स्तुति की नजरें घंटी पर टिकी थी और जब घंटी बजाने वाली आंटी जी ने स्तुति को घंटी पर नजरें गड़ाए देखा तो उन्होंने वो घंटी स्तुति की ओर बढ़ा दी| स्तुति ने फट से घंटी पकड़ ली, स्तुति को घंटी भा गई थी और स्तुति घंटी बजाने को उत्सुक थी मगर उसे घंटी बजाने आये तब न?! मैंने स्तुति की व्यथा समझते हुए उसका हाथ पकड़ कर धीरे-धीरे गोल-गोल घुमा कर घंटी बजाई तो स्तुति ख़ुशी से फूली नहीं समाई|

उधर अपनी छोटी पोती को यूँ भजन में हिस्सा लेते देख माँ का दिल बहुत प्रसन्न था| वहीं दूसरी तरफ बाकी महिलाएं भी एक छोटी सी बच्ची को पूजा-पाठ में यूँ हिस्सा लेते देख माँ से स्तुति की तारीफ करने में लगी थीं|

स्तुति का पहला जन्मदिन नज़दीक आ रहा था और मैं इस दिन की सारी प्लानिंग पहले से किये बैठा था| मेरे बुलावे पर भाईसाहब सहपरिवार स्तुति के जन्मदिन के 3 दिन पहले ही आ गए| अनिल की नौकरी के चलते उसे छुट्टी नहीं मिल पाई थी| अनिल की कमी सभी को खली खासतौर पर संगीता को लेकिन संगीता ने अनिल से कोई शिकायत नहीं की|

खैर, भाभी जी ने घर पहुँचते ही स्तुति को गोदी लेना चाहा मगर मेरी नटखट बिटिया अपनी मामी जी के पास नहीं गई, ऐसे में भाभी जी का नाराज़ होना जायज था; "ओ लड़की! पिछलीबार कहा था न की मेरे बुलाने पर चुपचाप आ जाना वरना मैं तुझसे बात नहीं करुँगी!" भाभी जी ने स्तुति को प्यारभरी डाँट लगाई मगर स्तुति ने अपनी मामी जी की डाँट को हँसी में उड़ाते हुए भाभी जी को जीभ चिढ़ाई! "चलो जी! ये लड़की मेरी गोदी में नहीं आती, तो हम यहाँ रह कर क्या करें!" ये कहते हुए भाभी जी अपना झूठ-मूठ का गुस्सा दिखाते हुए उठ खड़ी हुईं| अपनी मामी जी को नाराज़ देख आयुष और नेहा हाथ जोड़े हुए आगे आये; "मामी जी, मत जाओ!" आयुष बड़े प्यार से बोला|

"मामी जी, छोडो इस शैतान लड़की को! आपके पास आपके भांजा-भांजी भी तो हैं, हम दोनों आपकी सेवा करेंगे|" नेहा अपनी मामी जी की कमर से लिपटते हुए बोली| अपनी भांजी की बातें सुन और भांजे का प्रेम देख भाभी जी पिघल गईं और वापस सोफे पर बैठ दोनों बच्चों को अपने गले लगा कर स्तुति को चिढ़ाते हुए बोलीं; "ये हैं मेरे प्यारे-प्यारे भांजा-भांजी! मैं इनके लिए रुकूँगी, इनको लाड-प्यार करुँगी, इनको अच्छी-अच्छी चीजें खरीद कर दूँगी! लेकिन इस नकचढ़ी लड़की (स्तुति) को कुछ नहीं मिलेगा!" भाभी जी स्तुति को चिढ़ाते हुए बोलीं ताकि स्तुति उनकी गोदी में आ जाए मगर मेरी नटखट बिटिया ने अपनी बड़ी मामी जी को अपनी जीभ दिखा कर चिढ़ाया और मेरे सीने से लिपट कर खिलखिलाने लगी|

"हाय राम! ये चुहिया तो मुझे ही जीभ चिढ़ा रही है!" भाभी जी प्यारभरे गुस्से से बोलीं जिसपर हम सभी ने जोरदार ठहाका लगाया| "आयुष और नेहा ही अच्छे हैं, कम से कम ये मेरा मज़ाक तो नहीं उड़ाते!" भाभी जी ने आयुष और नेहा की तारीफ की ही थी की पीछे से संगीता बोल पड़ी; "इनकी बातों में मत आओ भाभी, ये बातें बनाना इन दोनों शैतानों ने इनसे (मुझसे) सीखा है|" संगीता आँखों से मेरी ओर इशारा करते हुए बोली| "स्तुति शरारतों मं उन्नीस है तो ये दोनों (आयुष और नेहा) बीस हैं!" इतना कहते हुए संगीता ने तीनों बच्चों की शिकायतों का पिटारा खोल दिया; "परसों की बात है, मैं नहाने जा रही थी इसलिए मैंने आयुष को स्तुति के साथ खेलने को कहा| माँ तब टी.वी. देख रहीं थीं, नेहा पढ़ाई कर रही थी और ये दोनों भाई बहन (आयुष और स्तुति) खेलने में लगे थे| तभी माँ ने आयुष से पीने के लिए पानी माँगा, आयुष पानी लेने रसोई में गया तो ये शैतान की नानी (स्तुति) उसके पीछे-पीछे रसोई में आ गई| इधर रसोई में, आयुष ने पानी का गिलास उठाते-उठाते आटें की कटोरी गिरा दी! आटा फर्श पर फ़ैल गया और इस शैतान की नानी को खेलने के लिए नई चीज़ मिल गई| इसने आव देखा न ताव फट से फर्श पर फैले आटे में अपने हाथ लबेड लिए और आटा अपने साथ-साथ पूरे फर्श पर पोत दिया!

आयुष जब अपनी दादी जी को पानी दे कर लौटा तो उसने स्तुति को आटे में सना हुआ देखा| बजाए स्तुति को गोदी ले कर दूर बिठा कर आटा झाड़ने के, ये उस्ताद जी तो स्तुति के साथ आटे में अपने हाथ सान कर स्तुति के गाल पोतने में लग गए! और ये शैतान की नानी भी पीछे नहीं रही, ये भी अपने आटे से सने हुए हाथ आयुष के गाल पर लगाने लगी! ये दोनों शैतान भाई-बहन आधे घंटे तक फर्श पर बैठे हुए एक दूसरे को आटे से रगड़-रगड़ कर होली खेल रहे थे!" संगीता के सबसे पहले आयुष और स्तुति की शैतानोयों का जिक्र करने पर सब हँस पड़े थे, लेकिन सबसे ज्यादा नेहा हँस रही थी| अब जैसा की होता है, नेहा की हँसी संगीता को नहीं भाइ और उसने नेहा की शिकायतें शुरू कर दी; "तू ज्यादा मत हँस! ये लड़की भी कम नहीं है, इसने तो अपनी ही बहन के चेहरे पर मेक-अप टुटोरिअल्स (make-up tutorials) ट्राई (try) करने शुरू कर दिए! मेरा आधा फेस पाउडर, इस लड़की (नेहा) ने स्तुति को पोत-पोत कर खत्म कर दिया! पूरी लिपस्टिक स्तुति के गालों और पॉंव की एड़ी पर घिस-घिस कर लाल कर-कर के खत्म कर दी! मैं नहाने गई नहीं की दोनों बहनों का ब्यूटी पारलर खुला गया और मेक-अप पोत-पोत कर स्तुति को ब्यूटी क्वीन (beauty queen) बनाने लग गई!" जैसे ही संगीता ने मेरी लाड़ली बिटिया को ब्यूटी क्वीन कहा मेरी हँसी छूट गई और मुझे हँसता हुआ देख संगीता को सबसे मेरी शिकायत करने का मौका मिल गया; "और ई जो इतना खींसें निपोरत हैं, ई रंगाई-पुताई इनका सामने होवत रही और ई दुनो बहिनो (नेहा और स्तुति) को रोके का छोड़ कर खूब हँसत रहे!

ई स्तुति, घर का कउनो कोना नाहीं छोड़िस सब का सब कोना ई सैतान आपन चित्रकारी से रंग दिहिस! और बजाए ऊ (स्तुति को) का रोके-टोके का, ई (मैं) स्तुति संगे बच्चा बनी के ऊ का उत्साह बढ़ावत हैं!" संगीता ने देहाती में जी भर कर मेरी और बच्चों की शिकायत की मगर उसकी शिकयतें सुन कर किसी को गुस्सा नहीं आया, बल्कि सभी ठहाका लगा कर हँसने लगे|

जब सब हँस रहे थे तो स्तुति भी खिलखिलाकर हँसने लगी| अब जब स्तुति हँस रही थी तो मैंने इसका फायदा उठाते हुए स्तुति को उसकी नानी जी की गोदी में बिठा दिया| फिर बारी-बारी स्तुति ने सभी की गोदी की सैर की तथा सभी को अपनी मीठी-मीठी पप्पी लेने दी, सबसे मिलकर मेरी बिटिया फिर मेरी गोदी में लौट आई और मुझसे लिपट गई|

स्तुति के जन्मदिन की सारी बातें हम स्तुति के सामने ही बड़े आराम से कर रहे थे क्योंकि स्तुति को कुछ कहाँ समझ में आना था, उसके लिए तो उसके जन्मदिन का ये सरप्राइज क़ायम ही रहने वाला था|

अब चूँकि विराट घर पर आ गया था तो आयुष नेहा तथा स्तुति को खेलने के लिए एक और साथी मिल गया था|

जब मैं तीसरी कक्षा में था तब हम सभी लड़कों को क्रिकेट खेलना बहुत अच्छा लगता था, समस्या ये थी की बाहर ग्राउंड पर बड़े बच्चों का कब्ज़ा था और हमारे पास खेलने के लिए न तो क्रिकेट बैट था और न ही बॉल! ऐसे में इस समस्या का तोड़ हम सभी ने मिल कर निकाला| हमारा ज्योमेट्री बॉक्स (geometry box) बना हमारा क्रिकेट बैट, फिर हमने बनाई बॉल और वो भी कागज को बॉल का आकार दे कर तथा उस पर कस कर रबर-बैंड (rubber band) बाँध कर| कागज की इस बॉल के बड़े फायदे थे, एक तो इस बॉल के खोने का हमें कोई दुःख नहीं होता था, क्योंकि हम बॉल के खोने पर तुरंत दूसरी बॉल बना लेते थे| दूसरा हम इस बॉल को कभी भी बना सकते थे| एक ही समस्या थी और वो ये की ये बॉल फेंकने पर टप्पा नहीं खाती थी मगर इसका भी हल हमने ढूँढ निकाला, हमने इस कागज की बॉल के ऊपर हम बच्चे जो घर से एल्युमीनियम फॉयल (aluminum foil) में खाना रख कर लाते थे वही फॉयल हम इस बॉल पर अच्छे से लपेट कर रबर-बैंड बाँध देते थे| इस जुगाड़ से बॉल 1-2 टप्पे खा लेती थी| ग्राउंड में हम अपने इस जुगाड़ से बने बैट-बॉल से खेल कर अपनी किरकिरी नहीं करवाना चाहते थे इसलिए हमने क्लास के अंदर ही खेलना शुरू कर दिया| फ्री पीरियड मिला नहीं, या फिर लंच हुआ नहीं और हम सब लग गए क्लास में क्रिकेट खेलने!

अब चूँकि मेरे दोनों बच्चे (आयुष और नेहा) घर से बाहर खेलने नहीं जाते थे इसलिए मैंने सौगात में उन्हें अपने बचपन का ये खेल घर के भीतर ही खेलना सीखा दिया था| अब जब विराट आया हुआ था तो चारों बच्चों ने मिलकर बैठक में ये खेल खेलना शुरू कर दिया| आयुष, नेहा और विराट को तो बैटिंग-बॉलिंग मिलती थी मगर स्तुति बेचारी को बस सोफे के नीचे से बॉल निकलने को रखा हुआ था| बॉल सोफे के नीचे गई नहीं की सब लोग स्तुति को बॉल लेने जाने को कह देते| मेरी बेचारी बिटिया को सोफे के नीचे से बॉल निकालना ही खेल लगता इसलिए वो ख़ुशी-ख़ुशी ये खेल खेलती|

इधर सबकी मौजूदगी में मुझ पर रोमांस करने का अजब ही रंग चढ़ा हुआ था| किसी न किसी बहाने से मैं संगीता के इर्द-गिर्द किसी चील की भाँती मंडराता रहता| ऐसे ही एक बार, माँ और मेरी सासु माँ बैठक में बच्चों के साथ बैठीं टीवी देखने में व्यस्त थीं| भाईसाहब घर से बाहर कुछ काम से गए थे और भाभी जी नहाने गईं थीं, मौका अच्छा था तो मैंने संगीता को रसोई में दबोच लिया| मेरी बाहों में आते ही संगीता मचलने लगी और आँखें बंद किये हुए बोली; "घर में सब मौजूद हैं और आप पर रोमांस हावी है?! कोई आ गया तो?" संगीता के सवाल के जवाबा में मैंने उसे अपनी बाहों से आज़ाद किया तथा मैं स्लैब के सामने खड़ा हो गया और संगीता को अपने पीछे खींच लिया| अब संगीता के दोनों हाथ मेरी कमर पर जकड़े हुए थे और मैं स्लैब पर आगे की ओर झुक कर आलू काटने लगा| मैंने ये दाव इसलिए चला था ताकि अगर कोई अचानक रसोई में आये तो उसे ये लगे की मैं सब्जी काट रहा हूँ|

मुझे यूँ काम करते देख संगीता को भी ठीक उसी तरह रोमांस छूटने लगा जैसे मुझे छूट रहा था इसलिए उसके दोनों हाथ मेरे हाथों के ऊपर आ गए और वो मेरी गर्दन पर अपने दाँत गड़ा बैठी! "सससस" की सिसकी ले कर मैंने संगीता को उत्तेजित कर दिया था मगर हमारा रोमांस आगे बढ़ता उससे पहले ही भाभी जी आ गईं और उन्होंने हम दोनों को इस तरह खड़े हुए देख लिया!

"तुम दोनों न..." इतना कहते हुए भाभी जी ने अपना प्यार भरा गुस्सा हमें दिखाया| भाभी जी की आवाज़ सुन हम दोनों मियाँ-बीवी एकदम से सकपका गए और मैंने संगीता के बचाव में झूठ बोल दिया; "वो भाभी जी...वो...संगीता मुझे आलू काटना सीखा रही थी!" मेरा ये बेसर-पैर का झूठ सुन भाभी जी जोर से हँस पड़ीं और मेरे कान खींचते हुए बोलीं; "देवर जी, कमसकम झूठ तो ठीक से बोला करो! इतना बढ़िया खाना बनाते हो और कह रहे हो की तुम्हें आलू काटना नहीं आता?!" मैं अगर वहाँ और रुकता तो भाभी जी मेरी अच्छे से खिंचाई कर देतीं इसलिए मैं दुम दबाकर वहाँ से भाग आया|

मैं तो अपनी जान ले कर भाग निकला था, रह गई बेचारी संगीता अकेली भाभी जी के साथ इसलिए भाभी जी उसे समझाने लगीं; "संगीता, देख मानु अभी जवान है और जवानी में खून ज्यादा उबलता है! तेरी अब वो उम्र नहीं रही...तेरे अब तीन बच्चे हो गए हैं तो अब ज़रा अपने आप को काबू में रखा कर! तू काबू में नहीं रहेगी तो मानु कैसे खुद को काबू में रखेगा?!" भाभी जी ने संगीता को प्यार से समझाया था मगर उनकी कही बात संगीता के दिल को चुभ गई थी! भाभी जी ने बातों ही बातों में हम मियाँ-बीवी के बीच 10 साल के अंतर् होने की बात संगीता को याद दिला कर उसका जी खट्टा कर दिया था!

मैं उस वक़्त स्तुति के कपड़ों के बारे में पूछने रसोई में जा रहा था जब मैंने भाभी जी की सारी बात सुनी| मैं समझ गया था की भाभी जी की बातों से संगीता का दिल दुःखा होगा मगर मैं इस वक़्त भाभी जी से कुछ कहने की स्थिति में नहीं था क्योंकि शायद मेरी कही बात भाभी जी को चुभ जाती! मैं चुपचाप कमरे में चला गया और संगीता का मूड कैसे ठीक करना है उसके बारे में सोचने लगा|

रात होने तक मुझे संगीता से अकेले में बात करने का कोई मौका नहीं मिला| रात को जैसे ही सबने खाना खाया, मैं स्तुति को टहलाने के लिए छत की ओर चल दिया| छत की ओर जाते हुए मैंने संगीता को मूक इशारा कर छत पर आने को कहा मगर संगीता ने मुझसे नज़रें चुराते हुए गर्दन न में हिला दी| "तुम्हें मेरी कसम!" मैंने दबी आवाज़ में संगीता की बगल से होते हुए कहा तथा संगीता को अपनी कसम से बाँध कर छत पर बुला लिया| "क्या हुआ जान?" मैंने बड़े प्यार से सवाल पुछा जिसके जवाब में संगीता सर झुकाये गर्दन न में हिलाने लगी| "भाभी जी की बातों को दिल से लगा कर दुखी हो न?" मेरी कही ये बात सुन संगीता मेरी आँखों में देखने लगी| मेरी आँखों में देखते ही संगीता की आँखें नम हो गई| "आजा मेरा बच्चा!" ये कहते हुए मैंने संगीता को अपने सीने से लगा लिया| इस समय स्तुति मेरी गोदी में थी और संगीता मेरे सीने से लग कर सुबकने लगी थी| स्तुति ने जब महसूस किया की उसकी मम्मी रो रहीं हैं तो उस छोटी सी बच्ची ने अपनी मम्मी के सर पर हाथ रख दिया तथा अपनी बोली-भाषा में कुछ बोल कर मेरा ध्यान अपनी मम्मी की तरफ खींचने लगी| उस पल मुझे लगा जैसे मेरी स्तुति बिटिया सब कुछ समझती हो!

"बस-बस मेरी जान! और रोना नहीं!" मैंने संगीता के सर को चूमते हुए कहा| संगीता मेरे सीने से अलग हुई और अपने आँसूँ पोछने लगी| "जान, दुनिया कुछ भी कहे उससे हमें कुछ फर्क नहीं पड़ना चाहिए न?! अगर तुम इसी तरह लोगों की बातें दिल से लगाओगी तो न तुम खुश रह पाओगी और न मैं!" मेरी अंत में कही बात सुन कर संगीता घबरा गई| वो खुद तो दुःख-दर्द बर्दाश्त कर सकती थी मगर वो मुझे कभी दुखी नहीं कर सकती थी| "सोली (sorry) जान!" संगीता अपने कान पकड़ते हुए छोटे बच्चों की तरह तुतला कर बोली| अपनी मम्मी को यूँ तुतला कर बोलते देख स्तुति बहुत खुश हुई और उसने किलकारियाँ मारनी शुरू कर दी| मैंने भी संगीता को फिर से अपने गले लगा लिया और हम तीनों मियाँ-बीवी-बेटी इसी तरह गले लगे हुए खड़े रहे|

कुछ समय बाद मैंने संगीता को छेड़ते हुए कहा; "रात 2 बजे तैयार रहना!" मेरी बातों में छुपी शरारत भाँपते हुए संगीता मुझसे दूर हो गई और अपने होठों पर हाथ रखते हुए मुझे अस्चर्य से भरकर देखने लगी| वो जानती थी की इतनी रात को अगर मैं उसे बुला रहा हूँ तो मुझे उससे क्या 'काम' लेना है?!

"क्या हुआ? ऐसे क्यों देख रही हो?" मैंने अनजान बनते हुए सवाल पुछा| मुझे लगा था की मेरी बात से संगीता और शर्माएगी मगर वो तो अपनी शर्म छोड़कर बोली; "ठीक है! लेकिन आप भाभी से उनकी कही बात के बारे में कोई बात नहीं करोगे|" संगीता के मेरी बात मान जाने से मैं खुश तो था मगर ऊसके द्वारा मुझे भाभी जी से बात करने पर रोकने पर मैं असमंजन में था| "प्लीज जानू!" संगीता ने थोड़ा जोर लगा कर कहा तो मैंने उसकी बात मान ली और ख़ुशी-ख़ुशी सर हाँ में हिला दिया| भाभी जी, संगीता और मेरे प्यार के बारे में कुछ नहीं जानती थीं, ऐसे में मेरा उनसे कुछ भी कहना शायद उनको बुरा लग सकता था जिससे स्तुति के जन्मदिन में विघ्न पड़ जाता|

खैर, आज रात दो बजे का जुगाड़ हो गया था और क्या जुगाड था वो! रात के सन्नाटे में हम दोनों प्रेमी सबसे नजरें छुपाते हुए ऊपर वाली छत पर पहुँचे| वहाँ टंकी के नीचे चुहलबाज़ी करने के लिए काफी जगह थी, ऊपर से रात के इस पल में कोई हमें देखने वाला भी नहीं था| अब जब हमें किसी का भय नहीं था तो प्रेम का वो तूफ़ान उठा की हम दोनों ही पसीने से लथ-पथ हो गए| आज के इस प्रेमपसंग में कुछ अलग ही आनंद था, शायद खुले आसमान के तले प्रेम समागम करने की उत्तेजना का असर था!

थक कर जब हम कुछ पल के लिए साँस ले रहे थे तब संगीता मेरे सीने पर सर रखते हुए बोली; "जानू...आज सबसे छुप कर छत पर आते समय ऐसा लग रहा था मानो मैं कोई 18 साल की युवती हूँ जो अपने प्रेमी से मिलने चोरी-छुपे छत पर आ रही हो!" संगीता की बता ने मुझे आज फिर गाँव में हमारे छिप-छिप कर मिलने की याद दिला दी, जिस कारण मेरे दिल में प्यारी सी गुदगुदी उठी; "मेरे लिए तो तुम हमेशा अठरह की बाली उम्र की रहोगी!" ये कहते हुए मैंने संगीता के सर को चूम लिया| मेरी प्यारभरी बात का असर संगीता पर खुमारी बन कर छाने लगा और इस मौके का लाभ उठा कर हमने फिर एक बार प्रेम समागम किया!

[color=rgb(163,]जारी रहेगा भाग - 20 {5(ii)} में...[/color]
 

[color=rgb(44,]इकत्तीसवाँ अध्याय: घर संसार[/color]
[color=rgb(251,]भाग - 20 {5(ii)}[/color]


[color=rgb(71,]अब तक अपने पढ़ा:[/color]

खैर, आज रात दो बजे का जुगाड़ हो गया था और क्या जुगाड था वो! रात के सन्नाटे में हम दोनों प्रेमी सबसे नजरें छुपाते हुए ऊपर वाली छत पर पहुँचे| वहाँ टंकी के नीचे चुहलबाज़ी करने के लिए काफी जगह थी, ऊपर से रात के इस पल में कोई हमें देखने वाला भी नहीं था| अब जब हमें किसी का भय नहीं था तो प्रेम का वो तूफ़ान उठा की हम दोनों ही पसीने से लथ-पथ हो गए| आज के इस प्रेमपसंग में कुछ अलग ही आनंद था, शायद खुले आसमान के तले प्रेम समागम करने की उत्तेजना का असर था!

थक कर जब हम कुछ पल के लिए साँस ले रहे थे तब संगीता मेरे सीने पर सर रखते हुए बोली; "जानू...आज सबसे छुप कर छत पर आते समय ऐसा लग रहा था मानो मैं कोई 18 साल की युवती हूँ जो अपने प्रेमी से मिलने चोरी-छुपे छत पर आ रही हो!" संगीता की बता ने मुझे आज फिर गाँव में हमारे छिप-छिप कर मिलने की याद दिला दी, जिस कारण मेरे दिल में प्यारी सी गुदगुदी उठी; "मेरे लिए तो तुम हमेशा अठरह की बाली उम्र की रहोगी!" ये कहते हुए मैंने संगीता के सर को चूम लिया| मेरी प्यारभरी बात का असर संगीता पर खुमारी बन कर छाने लगा और इस मौके का लाभ उठा कर हमने फिर एक बार प्रेम समागम किया!

[color=rgb(26,]अब आगे:[/color]

स्तुति
के जन्मदिन से एक दिन पहले की बात है, दोपहर को खाना खाने के लिए मैं साइट पर से निकल चूका था| इधर घर में मेरी स्तुति बिटिया को खाना खिलाया जाना था, परन्तु मेरी बिटिया मेरे और माँ के अलावा किसी के भी हाथ से खाना नहीं खाती थी| अब माँ और मेरी सासु माँ मंदिर गए थे पंडित जी से बात करने इसलिए स्तुति को खाना खिलाने की जिम्मेदारी भाभी जी ने अपने सर ले ली| एक कटोरी में सेरेलक्स बना कर भाभी जी स्तुति को खिलाने बैठक में पहुँची| स्तुति तब बैठक के फर्श पर बैठी अपनी गेंद के साथ खेल रही थी, जैसे ही उसने अपनी मामी जी को अपनी तरफ आते देखा स्तुति अपने दोनों हाथों-पाओं पर रेंगती हुई भागने लगी| वहीं भाभी जी ने जब देखा की स्तुति उनसे दूर भगा रही है तो वो हँसते हुए बोलीं; "स्तुति... बेटा रुक जा! खाना खा ले" मगर स्तुति अपनी मामी जी की सुने तब न, वो तो खदबद-खदबद माँ के कमरे की तरफ भाग रही थी| ऐसा नहीं था की स्तुति बहुत तेज़ भाग रही थी और भाभी जी उसे पकड़ नहीं सकती थीं, बल्कि भाभी जी तो एक छोटे से बच्चे के साथ पकड़ा-पकड़ी खेलने का लुत्फ़ उठा रही थीं|

आखिर भागते-भागते स्तुति माँ के कमरे में पहुँच गई और सीधा अपनी मन पसंद जगह यानी माँ के पलंग के नीचे जा छुपी! "ओ नानी! बाहर आजा!" भाभी जी ने स्तुति को पलंग के नीचे से निकलने को कहा मगर मेरी बिटिया ने अपनी मामी जी की बात को हँसी में उड़ा दिया और खिलखिलाकर हँसने लगी! जब भाभी जी के बुलाने पर भी स्तुति पलंग के नीचे से नहीं निकली तो भाभी जी ने आवाज़ दे कर भाईसाहब, विराट, नेहा, आयुष और संगीता को मदद के लिए बुलाया| सभी लोग पलंग को घेर कर खड़े हो गए और स्तुति को बाहर आने के लिए तरह-तरह के प्रलोभन देने लगे| भाईसाहब स्तुति को प्यार से पुकार रह थे, तो नेहा स्तुति को प्यारभरी डाँट से बाहर आने को कह रही थी, वहीं आयुष अपनी बॉल ले आया और स्तुति को ललचा कर बाहर आने को कहने लगा| विराट को कुछ समझ नहीं आया तो उसने अपना हाथ पलंग के नीचे बैठी स्तुति की तरफ बढ़ा दिया| लेकिन विराट का हाथ देख स्तुति और अंदर को खिसक गई! कहीं स्तुति चोटिल न हो जाए इसलिए कोई भी पलंग के नीचे नहीं जा रहा था, सब बाहर से ही स्तुति को आवाज़ दे कर पुकार रहे थे| वहीं दूसरी तरफ, स्तुति सभी की आवाज़ सुन रही थी मगर वो बस खिलखिलाकर हँस रही थी और सभी को अपनी प्यारी सी जीभ दिखा कर चिढ़ा रही थी|

वहीं, संगीता सबसे पीछे खड़ी, हाथ बाँधे अपनी बेटी द्वारा सभी को परेशान करते हुए देख कर हँसे जा रही थी| ठीक तभी मैं घर पहुँचा और संगीता ने दरवाजा खोलते हुए मुझसे स्तुति की शिकायत कर दी; "जा के देखिये अपनी लाड़ली को!" इतना कहते हुए संगीता ने माँ के कमरे की तरफ इशारा किया| मैं माँ के कमरे में पहुँचा तो देखा की सभी लोग पलंग को घेर कर अपने घुटनों के बल झुक कर स्तुति को बाहर निकलने को कह रहे हैं मगर मेरी लाड़ली बिटिया किसी की नहीं सुन रही! "आ गए जादूगर साहिब!" संगीता ने सबका ध्यान मेरी तरफ खींचते हुए कहा| वहीं मुझे देखते ही भाभी जी उठ खड़ी हुईं और मुझसे शिकायत करते हुए बोलीं; "जैसे ही मैं स्तुति को सेरेलक्स खिलाने आई, ये नानी जा के पलंग के नीचे छुप गई!" भाभी जी की बात सुन मैं मुस्कुराया और स्तुति को पुकारते हुए बोला; "मेरा बच्चा!" मेरी आवाज़ सुन स्तुति ने पलंग के नीचे से झाँक कर मुझे देखा और मुझे देखते ही स्तुति खदबद-खदबद करती हुई अपने दोनों हाथों-पाओं पर मेरे पास दौड़ आई| मैंने स्तुति को अपनी गोदी में उठाया और उसके मस्तक को चूमते हुए बोला; "मेरा बच्चा सबको तंग करता है?!" मेरे पूछे इस सवाल के जवाब में स्तुति शर्मा गई और मुझसे लिपट कर किलकारियाँ मारने लगी|

"भाभी जी, ये शैतान सिर्फ इनके या माँ (मेरी) के हाथ से ही खाना खाती है| बड़ी नखड़ेलू है ये शैतान!" संगीता हँसते हुए बोली| भाभी जी ने स्तुति को अपना प्यारभरा गुस्सा दिखाते हुए सेरेलक्स की कटोरी मुझे दी| मैंने स्तुति को उसकी ख़ास कुर्सी पर बिठाया और एक कटोरी में सेरेलक्स और बना लाया| इस समय सभी की नजरें हम बाप-बेटी (मुझ पर और स्तुति) पर थीं, सभी जानना चाहते थे की मैं स्तुति को कैसे खाना खिलाता हूँ?!

मैंने सेरेलक्स की दोनों कटोरी स्तुति के सामने रखी और एक चम्मच से स्तुति को खिलाने लगा| स्तुति एक चम्मच खाती और फिर अपना दायाँ या बायाँ हाथ सेरेलक्स की कटोरी में डाल कर अपनी मुठ्ठी में सेरेलक्स उठा कर मुझे खिलाती| मुझे खाना खिलाना स्तुति ने अपने बड़े भैया और दीदी से सीखा था| तो इस तरह शुरू हुआ हम बाप-बेटी का एक दूसरे को खाना खिलाना| ये दृश्य इतना मनोरम था की भाईसाहब, भाभी जी और विराट इस दृश्य को बड़े प्यार से देख रहे थे| जब स्तुति का खाना और मुझे खिलाना हो गया तो भाभी जी मुझसे बोलीं; "मुझे नहीं पता था की तुम इतने छोटे हो की अभी तक छोटे बच्चों का खाना खाते हो!" भाभी जी ने मज़ाक करते हुए कहा जिस पर सभी ने जोर से ठहाका लगाया|

माँ और सासु माँ के लौटने पर हम सभी खाना खाने बैठ गए| बाकी दिन तो मैं स्तुति को गोदी लिए रहता था और मुझे खाना आयुष तथा नेहा मिल कर खिलाते थे, परन्तु आज दोनों बच्चे अपनी नानी जी को खाना खिलाने में व्यस्त थे इसलिए मैंने स्तुति को डाइनिंग टेबल के ऊपर मेरे सामने बिठा दिया और मैं अपने हाथ से खाना खाने लगा| अब स्तुति को सूझी मस्ती तो उसने मेरी प्लेट में अपने दोनों हाथों से कभी रोटी तो कभी सब्जी उठाने की कोशिश शुरू कर दी| "नहीं बेटा, अभी आपको दाँत नहीं आये हैं, जब दाँत आ जायेंगे तब खाना|" मैंने स्तुति को समझाया| मेरे समझाने पर स्तुति खिलखिलाकर हँसने लगी और बार-बार मेरी थाली में 'हस्तक्षेप' करने लगी! मैंने स्तुति को व्यस्त करने के लिए उसका ध्यान बँटाने लगा| डाइनिंग टेबल पर सारा खाना ढका हुआ था और अभी तक स्तुति ने बर्तन के ऊपर से ढक्क्न हटाना नहीं सीखा था| बस एक सलाद की प्लेट थी जो की खुली पड़ी थी, लाल-लाल टमाटर और खीरे को देख स्तुति का मन मचल उठा और उसने सलाद वाली प्लेट की तरफ अपना हाथ बढ़ा दिया| अगले ही पल स्तुति ने अपनी छोटी सी मुठ्ठी में खीरे का एक स्लाइस उठा लिया और मुझे दिखाने लगी की 'देखो पापा जी, मैंने सलाद उठा ली!' स्तुति की मस्ती को देखते हुए मैं मुस्कुरा दिया और सर हाँ में हिलाते हुए स्तुति को खीरा खाने का इशारा किया| स्तुति ने आव देखा न ताव, उसने सीधा वो खीरे का स्लाइस अपने मुँह में भर लिया| अब अगर स्तुति के दाँत होते तब तो वो खा पाती न?! स्तुति तो बस आधे खीरे के स्लाइस को अपने मुँह में भरकर अपने मसूड़ों से काटने की कोशिश करने लगी, जब वो स्लाइस नहीं कटा तो स्तुति ने उस स्लाइस को चूसना शुरू कर दिया और जब सारा रस उसने चूस लिया तो अपना झूठा स्लाइस मेरी थाली में डाल दिया|

संगीता ने जब स्तुति की ये हरकत देखि तो वो गुस्सा हो गई; "ऐ लड़की! ये क्या कर रही है! थाली में अपना झूठा डाल रही है!" संगीता ने स्तुति को डाँटा जिससे मेरी बिटिया घबरा गई| खाने को ले कर संगीता का टोकना मुझे हमेशा ही अखरा है इसलिए मैंने संगीता को गुस्से से देखा और अपने हाथ पोंछ कर स्तुति को गोदी में ले लिया| "कोई बात नहीं बेटा! ये लो आप टमाटर खाओ|" ये कहते हुए मैंने सलाद की प्लेट में से टमाटर का एक स्लाइस उठा कर स्तुति के हाथ में दिया| लाल-लाल टमाटर देख स्तुति का ध्यान बंट गया और वो नहीं रोई, स्तुति ने अपने दोनों हाथों से टमाटर के स्लाइस को पकड़ा और उसका रस निचोड़ने लगी| अच्छे से टमाटर का रस निचोड़ कर स्तुति ने वो टुकड़ा मुझे दे दिया जिसे मैंने स्तुति को दिखाते हुए खा लिया| मुझे टमाटर खाता हुआ देख स्तुति बहुत खुश हुई और अपनी किलकारियाँ मारने लगी|

खाना खाने के बाद संगीता ने मुझसे अपने किये व्यवहार की माफ़ी माँगी और मैंने भी संगीता को माफ़ करते हुए उसे प्यार से समझा दिया; "स्तुति छोटी सी बच्ची है, उसे क्या समझ की थाली में झूठा डालते हैं या नहीं?! आगे से बेकार में यूँ मेरी लाड़ली को डाँट कर डराया मत करो!" संगीता ने कान पकड़ कर मुझसे पुनः माफ़ी माँगी और साथ-साथ स्तुति को भी सॉरी बोला!

अगले दिन स्तुति का जन्मदिन था और आज रात मुझे स्तुति को सबसे पहले जन्मदिन की बधाई देने की उत्सुकता थी| दिन में सोने के कारण स्तुति करीब 10 बजे तक जागती रही और इधर-उधर दौड़ते हुए खिलखिलाती रही| दो दिन से स्तुति अपनी मामी जी, बड़े मामा जी, नानी जी और विराट भैया को देख रही थी इसलिए वो बिना नखरा किये सबकी गोदी में खेल रही थी| साढ़े दस हुए तो सभी बच्चों को नींद आने लगी तथा मेरी ड्यूटी सभी बच्चों को कहानी सुना कर सुलाने की लगी| बच्चों के कमरे में मैं, विराट, आयुष, नेहा और स्तुति लेट गए| जैसे ही मैंने कहानी सुनानी शुरू की, स्तुति ने अपनी बोली भासा में किलकारियाँ मारते हुए कहानी के बीच अपनी दखलंदाज़ी शुरू कर दी| स्तुति का ध्यान भटकाने के लिए मैं स्तुति की ठुड्डी को सहला देता जिससे स्तुति को गुदगुदी होती और वो खिलखिलाकर हँसते हुए मुझसे लिपट जाती|

खैर, कहानी खत्म होते-होते सभी बच्चे सो गए थे| समस्या ये थी की मैं चाहता था की स्तुति जागती रहे ताकि मैं उसे उसके पहले जन्मदिन की बधाई दे कर उसे लाड-प्यार कर सकूँ| परन्तु अपनी इस इच्छा के लिए मैं स्तुति की नींद नहीं खराब करना चाहता था इसलिए मैंने स्तुति को अपने सीने से लिपटाये हुए पीठ के बल लेट गया| मेरी नजरें घड़ी पर टिकी थी की कब बारह बजे और मैं स्तुति को उसके जन्मदिन की सबसे पहली पप्पी दूँ! जैसे ही रात के बारह बजे मैंने स्तुति के सर को चूमा और धीरे से खुसफुसा कर; "हैप्पी बर्थडे मेरा बच्चा" कहा| पता नहीं कैसे पर स्तुति नींद में भी मेरी इस पप्पी को महसूस करने लगी और उसके चेहरे पर प्यारी सी मुस्कान खिल गई! अपनी बिटिया की इस मुस्कान को देख मैं उस पर मोहित हो गया और स्तुति के सर को चूमते हुए जागता रहा| दरअसल मैं उम्मीद कर रहा था की स्तुति जागेगी और मैं उसकी पप्पी ले कर उसे जन्मदिन की बधाई दूँगा|

स्तुति तो जागी नहीं अलबत्ता मुझे सुबह के 3 बजे झपकी लग गई और मैंने एक बहुत ही प्यारा सा ख्वाब देखा| इस ख्वाब में मैं और स्तुति एक हरे-भरे बगीचे में थे और स्तुति मेरी ऊँगली थाम कर चल रही थी, "पापा जी" कहते हुए स्तुति मुझसे बात कर रही थी तथा मैं स्तुति की बातों में खोया हुआ था| इधर घड़ी ने बजाये सुबह के 5 और मेरी बिटिया सबसे पहले जाग गई| स्तुति ने जब देखा की वो मेरे सीने पर सो रही है तो मेरी बिटिया खिसकते-खिसकते मेरे चेहरे के पास पहुँची और मेरे बाएँ गाल पर अपने प्यारे-प्यारे होंठ रख "उम्म्म" का स्वर निकालते हुए मुझे गुड मॉर्निंग वाली पप्पी दी| स्तुति की आदत थी की वो मुझे पप्पी देते हुए अपनी लार से मेरा गाल गीला कर देती थी, नींद में जब मैंने अपने गालों पर नमी महसूस की तो मैं एकदम से जाग गया!

"मेला प्याला-प्याला बच्चा जाग गया?!" ये कहते हुए मैंने स्तुति को अपने दोनों हाथों से पकड़ अपने चेहरे के सामने उठाया और उसके मस्तक को चूमते हुए बोला; "बेटा, आज है न आपका जन्मदिन है! आज से ठीक एक साल पहले आपने मुझे पूरा 9 महीना इंतज़ार करवाने के बाद आप मुझे मिले थे| आपको पहलीबार अपनी गोदी में ले कर मेरा छोटा सा दिल ख़ुशी से भर उठा था| मेरे सीने से लग कर आपके नाज़ुक से दिल को चैन मिला था और जब मैंने आपके नन्हे से दाहिने हाथ को चूमा था न तो अपने झट से मेरी ऊँगली अपनी मुठ्ठी में जकड़ ली थी! उस पल से हम बाप-बेटी का एक अनोखा रिश्ता...एक अनोखा बंधन बँध गया था| न मैं आपके बिना अपनी जिंदगी की कल्पना कर सकता हूँ और न ही आप मेरे बिना रह सकते हो|" स्तुति ने आज मेरी बातें बड़े ध्यान से मेरी आँखों में देखते हुए सुनी| उधर मैं स्तुति के पैदा होने के दिन को याद कर भाव विभोर हो रहा था, स्तुति से मेरे पहले मिलन की उस वेला को पुनः याद कर मेरे रोंगटे खड़े हो रहे थे| यदि मैं अधिक भाव विभोर हो जाता तो मेरी बिटिया रानी रो पड़ती इसलिए मैंने स्तुति के प्यारी-प्यारी आँखों को गौर से देखा और मेरे चेहरे पर मुस्कान आ गई| "मेरे प्यारु बेटू, आपको आज के दिन की बहुत-बहुत मुबारकबाद! आपको मेरी भी उम्र लग जाए! आप धीरे-धीरे बड़े होना और इसी तरह अपनी प्यारी सी मुस्कान से मुझे हँसाते रहना| खूब पढ़ना, खूब खेलना और अपनी मस्तियों से सभी को खुश करना| आपका जीवन खुशियों से भरा हुआ हो और आपकी जिंदगी में ये खुशियों से भरा हुआ दिन हर साल आये! आई लव यू मेरा बच्चा!" मैंने स्तुति को दिल से बधाई देते हुए कहा| मेरे द्वारा अंत में आई लव यू कहने से मेरी बिटिया के चेहरे पर मनमोहक मुस्कान फ़ैल गई और स्तुति ने आज पहलीबार कुछ बोलने की कोशिश की; "अव्व...ववव...व्वू!" स्तुति आई लव यू कहना चाह रही थी मगर चूँकि वो बोल नहीं सकती थी इसलिए वो इन शब्दों को गुनगुनाने की कोशिश कर रही थी|

इधर जब मैंने स्तुति को मुझे आई लव यू कहते हुए सुना तो मुझे अपने कानों पर विश्वास नहीं हुआ! मैं एकदम से उठ बैठा और स्तुति को अपने सीने से लगा कर ख़ुशी से भर उठा! "मेरा प्यारा बच्चा! आज आपने मुझे आई लव यू कह कर मुझे अबतक का सबसे अच्छा तोहफा दिया है!" मेरी लाड़ली बिटिया ने आज सुबह मेरे द्वारा देखा गया सपना की स्तुति मुझसे बात कर रही है, आई लव यू गुनगुना कर पूरा कर दिया था|

स्तुति को गले से लगाए हुए मैं उठा और कमरे से बाहर आ गया| कमरे से बहार आते ही मेरी बिटिया चहकने लगी और उसकी किलकारियाँ घर में गूँजने लगी| स्तुति की किलकारी सबसे पहले माँ और मेरी सासु माँ ने सुनी, माँ ने मुझे अपने पास बुलाया और स्तुति के मस्तक को चूम कर जन्मदिन की बधाई दी; "मेरी लाड़ली शूगी को जन्मदिन की ढेर सारी मुबारकबाद! जल्दी-जल्दी बड़े हो जाओ और पढ़-लिख कर हमारा नाम रोशन करो!" माँ ने अपनी बधाई में स्तुति को जल्दी से बड़ा होने को कहा था जबकि मैंने स्तुति से धीरे-धीरे बड़ा होने को कहा था, इन दोनों बधाइयों से स्तुति उलझन में पड़ गई थी की वो किसकी बात माने; मेरी या फिर अपनी दादी जी की! "क्या माँ, मैं चाहता हूँ की स्तुति धीरे-धीरे बड़ी हो ताकि मुझे उसके बचपन को जीने का पूरा मौका मिले और आप हो की स्तुति को जल्दी बड़ा होने को कह रहे हो?!" मैं मुँह फुलाते हुए माँ से प्यारभरी शिकायत करते हुए बोला| मेरी बचकानी शिकायत सुन माँ ने मेरे गाल पर हाथ फेरा और मुझे समझाते हुए बोलीं; "पगले, लड़कियाँ लड़कों के मुक़ाबले जल्दी बड़ी हो जाती हैं| तेरे कहने भर से थोड़े ही स्तुति खुद को बड़ा होने से रोक लेगी?!" माँ की बात सही थी मगर मेरा बावरा मन माने तब न!

खैर, माँ के बाद मेरी सासु माँ ने भी स्तुति को जन्मदिन की बधाई दी तथा स्तुति के गाल चूमते हुए बोलीं; "हमार मुन्ना (यानी मेरी) खतिर हमेसा नानमुन बने रहेओ ताकि मानु तोहका जी भरकर प्यार कर सके|" मेरी सासु माँ ने मेरे मन की बधाई स्तुति को दी तो मेरा चेहरा फिर से खिल गया|

धीरे-धीरे सभी लोग जागते गए और एक-एक कर स्तुति की पप्पी ले कर उसे जन्मदिन की बधाई देने लगे| रह गए थे तो दोनों बच्चे जिन्हें जगाने मुझे जाना पड़ा; "बेटा...उठो" मेरे इतना कहते ही नेहा झट से उठ बैठी और मेरी गोदी में स्तुति को देख ख़ुशी से झूमती हुई स्तुति की पप्पी ले कर बोली; "हैप्पी बर्थडे स्तुति! गॉड ब्लेस्स यू!" अपनी दीदी से जन्मदिन की बधाई पा कर स्तुति बहुत खुश हुई और अपने मसूड़े दिखा कर हँसने लगी| इधर कहीं मेरी बिटिया नेहा अकेला न महसूस करे इसलिए मैंने स्तुति के साथ-साथ उसे भी अपने सीने से लगा लिया| स्तुति की किलकारी सुन आयुष जाग गया और आँख मलते-मलते पलंग पर खड़ा हो गया| आयुष ने स्तुति की पप्पी ले कर उसे बधाई देनी चाही मगर स्तुति ने अपने बड़े भैया को पप्पी देने से मना करते हुए मुँह मोड़ लिया! "पापा जी, देखो स्तुति मुझे पप्पी नहीं दे रही!" आयुष अपनी छोटी बहन की शिकायत करते हुए बोला|

इतने में नेहा बड़ी हाज़िर जवाबी से स्तुति का पक्ष लेते हुए बोली; "इतना लेट क्यों उठा? लेट उठा है न इसलिए स्तुति की सारी पप्पी हमने ले ली और तेरे लिए कुछ नहीं बचा!" नेहा ने आयुष को चिढ़ाते हुए कहा तो आयुष ने अपना मुँह फुला लिया! आयुष को ऐसा लग रहा था मानो उसके सामने हम सब ने उसकी मनपसंद चाऊमीन खा ली हो और उस बेचारे को देखने को बस खाली प्लेट नज़र आ रही हों! आयुष का मुँह फूला हुआ देख नेहा खूब हँसी और उसकी पीठ पर थपकी मारते हुए बोली; "अच्छा जा कर पहले मुँह धो कर आ! स्तुति बासी मुँह किसी को अपनी मीठी-मीठी पप्पी नहीं देती|" अपनी दीदी की बात सुन आयुष बिजली की रफ्तार से दौड़ा और ब्रश कर के आ गया| मैं स्तुति को गोदी में ले कर नीचे झुका और आयुष ने अपनी छोटी बहन के दाएँ गाल को चूमते हुए उसे जन्मदिन की प्यारभरी बधाई दी; "स्तुति, आपको जन्मदिन मुबारक हो! मैं आपका बड़ा भाई हूँ न, तो आज के दिन मैं आपके सारे काम करूँगा| आपको कुछ भी चाहिए हो तो मुझे बताना!" आयुष को अपने बड़े भाई होने पर बहुत गर्व था और वो आज अपने भाई होने का दायित्व निभाना चाहता था|

"बड़ा आया बड़ा भाई!" नेहा मुँह टेढ़ा करते हुए बोली और कमरे से जाते-जाते आयुष की पीठ पर एक मुक्का धर गई!

हम सभी चाय-नाश्ता कर के तैयार हुए तथा मैंने सभी के एक साथ जाने के लिए किराए पर इन्नोवा (Innova) गाडी मँगाई| गाडी बहुत बड़ी थी और मैंने आजतक इतनी बड़ी गाडी नहीं चलाई थी, कहीं मैं गाडी ठोक न दूँ इसके लिए मैंने भाईसाहब को गाडी चलाने को कहा| भाईसाहब की बगल में भाभी जी बैठीं थी और उनके पीछे माँ, संगीता और मेरी सासु माँ बैठे| मैं, मेरी गोदी में स्तुति, नेहा, आयुष और विराट सबसे पीछे सिकुड़ कर बैठे| सबसे पीछे बैठ कर हम पाँचों ने खूब धमा-चौकड़ी मचाई| करीबन पौने घंटे बाद हम सभी अपने गंतव्य स्थान यानी के एक अनाथ आश्रम पहुँचे| आज स्तुति के जन्मदिन के दिन हम स्तुति के हाथों उन बच्चों के लिए भोजन की सामग्री लाये थे जिनके सर पर परिवार का साया नहीं होता| गाडी खड़ी कर मैंने, भाईसाहब ने, आयुष, नेहा और विराट ने मिल कर खाने की सामग्री यानी आटा, दाल, सब्जी, मसाले, मिठाई, तेल, घी आदि गाडी से निकाल कर आश्रम की रसोई में रखे| इस आश्रम के प्रबंधक से माँ और मैं, आज की दिन की सेवा के लिए पहले ही बात कर चुके थे|

सभी खाने की सामग्री रखने के बाद हम प्रबंधक जी के साथ एक हॉल में पहुँचे जहाँ प्रबंधक जी ने सभी बच्चों से हमारा तार्रुफ़ करवाया| आश्रम में बच्चे आयुष की उम्र से ले कर विराट की उम्र के बीच के थे तथा सभी बच्चे बड़े ही सभ्य थे| जब सभी बच्चों को पता चला की आज स्तुति का जन्मदिन है तो सभी ने एक स्वर में स्तुति के लिए 'हैप्पी बर्थडे टू यू' का गाना गाया| इतने सारे बच्चों को गाना गाते देख स्तुति बड़ी खुश हुई और किलकारियाँ मार कर सभी बच्चों के साथ गाना गाने की कोशिश करने लगी| संगीता और भाभी जी ने जब स्तुति को; "अव्व्व...वववूऊ" कर के गाना गाते सूना तो दोनों आस्चर्यचकित रह गईं| तब मैंने उन्हें आज स्तुति के मुझे आई लव यू कहने के बारे में बताया, जिस पर भाभी चुटकी लेते हुए बोलीं; "ले संगीता, अब तो स्तुति मानु को आई लव यू कहने लगी! अब तेरा क्या होगा?!" भाभी जी ने केवल मज़ाक किया था मगर संगीता को इस बात से मीठी सी जलन होने लगी थी, तभी उसने स्तुति के गाल खींचते हुए खुसफुसा कर कहा; "खबरदार जो मेरे पति पर इस तरह हक़ जमाया तो! तेरे पापा होंगें बाद में, पहले तो मेरे पति हैं!" चूँकि स्तुति मेरी गोदी में थी इसलिए मैंने संगीता की सारी बात सुन ली थी और मेरे चेहरे पर खुद पर दो लोगों द्वारा हक़ जमाने की बात सुन गर्वपूर्ण मुस्कान तैरने लगी थी|

आश्रम से निकल कर हम घर के लिए निकले परन्तु इस यात्रा को दिलचस्प बनाने के लिए मैंने मेट्रो से जाने की बात रखी| मेरी सासु माँ, विराट, भाभी जी और संगीता ने आज तक मेट्रो से सफर नहीं किया था इसलिए उन्हें पहलीबार मेट्रो घुमाना तो बनता था| हमने तीन ऑटो किये और नज़दीकी मेट्रो स्टेशन पहुँचे| मेट्रो स्टेशन पहुँचते ही आयुष और नेहा ने चौधरी बनते हुए कमान सँभाली, अब देखा जाए तो दोनों बच्चे स्कूल में PREFECT और क्लास मॉनिटर थे तो दोनों ने हम सभी को अपनी क्लास के बच्चे समझ लिफ्ट में कैसे जाना है समझना शुरू कर दिया| लिफ्ट में हम सब दो झुण्ड में घुसे, पहले झुण्ड का नेतृत्व आयुष ने किया और दूसरे झुण्ड का नेतृत्व नेहा ने किया| मेरी सासु माँ, विराट और भाभी जी के लिए लिफ्ट का अनुभव नया था इसलिए वो इस छोटी सी यात्रा से थोड़े घबराये हुए थे| वो तो आयुष और नेहा उनके साथ थे इसलिए दोनों बच्चों ने अपनी नानी जी तथा अपनी बड़ी मामी जी को डरने नहीं दिया, बल्कि उन्हें लिफ्ट कैसे चलती है ये समझाने लगे|

नीचे मेट्रो स्टेशन के भीतर पहुँच कर नेहा ने सभी को एक जगह खड़े रहने को कहा तथा मेरी ड्यूटी सभी की टिकट लाने के लिए लगा दी| जबतक मैं सबकी टिकट ले कर आया तब तक दोनों बच्चों ने मेट्रो में कैसे सफर करना है ये सब बातें एक टीचर की तरह बाकी सब को समझाईं| जब मैं टिकट ले कर लौटा तो नेहा ने घर की सभी महिलाओं को अपने साथ ले कर महिलाओं की जहाँ सुरक्षा जाँच हो रही थी उस कतार में लग गई| बचे हम पुरुष तो हमें आयुष का कहा मानना था इसलिए हम सब आयुष के पीछे पुरुष सुरक्षा जाँच की कतार में लग गए| मैं सबसे आखिर में खड़ा था और मेरी गोदी में थी स्तुति, जब मेरी सुरक्षा जाँच का नंबर आया तो स्तुति को देख गार्ड साहब मुस्कुरा दिए; "बेटा, आप तो गलत लाइन में लग गए!" गार्ड साहब ने स्तुति से मज़ाक करते हुए कहा| आयुष ने जब देखा की स्तुति नेहा के साथ जाने की बजाए मेरे साथ है तो वो गार्ड साहब से बोला; "अंकल जी, ये मेरी छोटी बहन है और आज इसका जन्मदिन है| ये पापा जी के शिव किसी की गोदी में नहीं रहती इसलिए प्लीज मेरी छोटी बहन को माफ़ कर दीजिये|" आयुष ने हाथ जोड़ते हुए गार्ड साहब से अपनी छोटी बहन की वक़ालत की| एक छोटे से बच्चे को यूँ हाथ जोड़ कर विनती करते देख गार्ड साहब मुस्कुरा दिया और बोले; "कोई बात नहीं बेटा, हम बिटिया की सुरक्षा जाँच माफ़ कर देते हैं|" ये कहते हुए गार्ड साहब ने मेरी नाम मात्र की सुरक्षा जाँच की और हमें जाने दिया| गार्ड साहब की उदारता देख आयुष ने उन्हें हाथ जोड़कर धन्यवाद कहा जिसपर गार्ड साहब ने आयुष को "खुश रहो बेटा" कहा|

सभी की सुरक्षा जाँच हुई और हम सभी एक झुण्ड बना कर मेट्रो के आटोमेटिक (automatic) गेट के सामने खड़े हो गए| आयुष और नेहा ने एक बार फिर कमान सँभाली और सभी को मेट्रो की टिकट के इस्तेमाल से गेट कैसे खोलते हैं ये सिखाया| सबसे पहले नेहा ने अपनी नानी जी की हथेली में मेट्रो का टिकट दिया और उनका हाथ पकड़ कर मशीन से छुआ दिया| जैसे ही मशीन ने टिकट को पढ़ा (read किया), गेट अपने आप खुल गये| मेरी सासु माँ इस अचम्भे को देखने में व्यस्त थीं की तभी पीछे से आयुष चिल्लाया; "जल्दी करो नानी जी, वरना गेट बंद हो जायेगा!" अपने नाती की बात सुन मेरी सासु माँ जल्दी से गेट के उस पार चली गईं| फिर बारी आई मेरी माँ की, मेरी माँ मेरे साथ 1-2 बार मेट्रो में गई थीं परन्तु उन्हें अब भी मेट्रो के इस गेट से डर लगता था इसलिए नेहा ने ठीक अपनी नानी जी की ही तरह अपनी दादी जी का हाथ पकड़ कर मेट्रो की टिकट मशीन से स्पर्श करवाई, जैसे ही गेट खुला माँ सर्रर से उस पार हो गईं! फिर बारी आई भाभी जी की और उन्होंने अभी जो देख कर सीखा था उसे ध्यान में रखते हुए वे भी बहुत आसानी से पार हो गईं| अगली बारी थी संगीता की मगर वो जाने से घबरा रही थी और बार-बार मेरी तरफ ही देख रही थी इसलिए मैंने विराट की पीठ पर हाथ रख उसे आगे जाने का इशारा किया| आयुष ने आगे आ कर अपने विराट भैया को एक बार सब समझाया, विराट समझदार था इसलिए वो भी फट से पार हो गया| विराट के जाने के बाद नेहा भी गेट से पार हो गई| अब बारी आई भाईसाहब की और उन्होंने घबराने का बेजोड़ अभिनय किया ताकि उनका भाँजा उन्हें एक बार फिर से सब समझाये| आयुष ने अपने बड़े मामा जी को छोटे बच्चों की तरह समझाया, ये दृश्य इतना प्यारा था की सभी लोग मुस्कुरा रहे थे|

भाईसाहब के गेट से पार होते ही आयुष अपनी मम्मी से बोला; "चलो मम्मी, अब आपकी बारी!" अब संगीता को जाना था मेरे साथ इसलिए वो थोड़ा चिढ़ते हुए बोली; "तुझे बड़ी जल्दी है! तू ही जा, मैं बाद में आती हूँ!" आयुष ने अपनी मम्मी को जीभ दिखा कर चिढ़ाया और फुर्र से गेट के पार हो गया| आयुष की जीभ चिढ़ाने का संगीता पर कोई असर नहीं हुआ, वो तो बस आँखों में प्रेम लिए मुझे देख रही थी| मैंने संगीता के हाथ में उसकी टिकट दी और उसका हाथ पकड़ कर मशीन से स्पर्श करवाया तथा संगीता को उत्तेजित करने के इरादे से उसका हाथ पकड़ कर धीरे से मीस दिया! "ससस" करते हुए संगीता सीसियाई और आँखों ही आँखों में मुझे उलहाने देते हुए गेट से पार हो गई| अब केवल मैं बचा था और मेरे मन में भरा था बचनपना, मैंने स्तुति का ध्यान मशीन की तरफ खींचा और अपना पर्स मशीन से स्पर्श करवाया| अचानक से मशीन ने गेट खोला तो स्तुति हैरान हो गई, फिर जैसे ही मैं गेट से पार हुआ तो गेट पुनः बंद हो गया| स्तुति ने जब गेट बंद होते हुए देखा तो वो अस्चर्य से भर गई और मेरा ध्यान उस गेट की तरफ खींचने लगी| स्तुति की उत्सुकता देख, मैं अपनी सालभर की बिटिया को मेट्रो के गेट खुलने और बंद होने की प्रक्रिया के बारे में बताने लगा|

उधर मेरे दोनों बच्चे सभी को एस्केलेटर्स से नीचे कैसे उतरते हैं ये समझाने लगे| भाभी और मेरी सासु माँ को एस्केलेटर्स से उतरने में डर लग रहा था, यहाँ तक की मेरी माँ जो की एक बार मेरे साथ एस्केलेटर्स की सैर कर चुकी हैं वो भी घबरा रहीं थीं| "आप अब बिलकुल मत घबराओ, आपकी साड़ियाँ एस्केलेटर्स में नहीं फसेंगी क्योंकि ये मशीन बनाई ही इस तरह गई है की इसके बीच किसी भी प्रकार का कपड़ा नहीं फँस सकता|" मैंने तीनों महिलाओं को आश्वस्त किया और दो-दो की जोड़ियाँ बनाने लगा| "(सासु) माँ भाईसाहब को एस्केलेटर्स इस्तेमाल करना आता है इसलिए आप भाईसाहब के साथ उतरियेगा| भाभी जी, आप के साथ संगीता होगी, उसे मैंने एस्केलेटर्स पर कैसे चढ़ते-उतरते हैं ये सीखा रखा है और माँ आप मेरे साथ मेरा हाथ पकड़ कर रहना आपको बिलकुल डर नहीं लगेगा|" मैंने अपनी माँ का हाथ थमाते हुए उन्हें आश्वस्त करते हुए कहा| सबसे पहले मैं और माँ एस्केलेटर्स के पास पहुँचे, माँ का ध्यान अब भी अपनी साडी के एस्केलेटर्स पर फँसने पर था इसलिए मैंने माँ को पुनः आश्वस्त किया; "माँ, साडी पर ध्यान मत दो| आप बस मेरा हाथ थामे रहो और जब मैं कहूँ तब अपने बायें हाथ से एस्कलेटर की बेल्ट थामते हुए अपना दाहिना पैर आगे रखना|" मैंने माँ को समझा दिया था मगर मेरी माँ फिर भी घबरा रहीं थीं| 4-5 कोशिशों के बाद आखिर माँ मेरे साथ एस्केलेटर्स पर सवार हो ही गईं| मैं, मेरी गोदी में स्तुति और माँ, हम तीनों जैसे ही एस्केलेटर्स पर सवार हुए की स्तुति ने ख़ुशी के मारे चिल्लाना शुरू कर दिया| स्तुति आज पहलीबार मेट्रो में आई थी इसलिए नई-नई चीजें, नए-नए अनुभव महसूस कर स्तुति सबसे ज्यादा खुश थी|

हम तीनों माँ- बेटा-बेटी (स्तुति) नीचे पहुँचे तो हमारे पीछे-पीछे भाभी जी और संगीता भी एस्केलेटर्स पर सवार हो कर नीचे आ गए, एस्केलेटर्स की सवारी भाभी जी को बहुत अच्छी लगी थी जो की उनके चेहरे पर एक बच्चे की मुस्कान के रूप में दिख रही थी| फिर आये भाईसाहब और उनका हाथ थामे मेरी सासु माँ, नीचे पहुँच सासु माँ ने चैन की साँस ली और अपने कान पकड़ते हुए बोलीं; "हमार तौबा, हमार बाप की तौबा! हम दुबारा ई मसीन (एस्केलेटर्स) पर न चढ़ब! हम तो ऊ.ऊ का होत है...ऊ मशीन जो ऊपर से नीचे लाइ रही?! (लिफ्ट) ऊ मसीन मा ही जाब!" मेरी सासु माँ द्वारा कही बात को सुन हमें बड़ी हंसी आई और हम ठहाका लगा कर हँसने लगे!

हम सब तो नीचे आ गए थे, रह गए थे तो तीनों बच्चे; "मानु, ये तीनों कहीं गिर न जाएँ?" भाभी जी तीनों बच्चों की चिंता करते हुए बोलीं|

"चिंता न करो भाभी जी, आयुष और नेहा बहुत समझदार हैं| देखना वो दोनों विराट का हाथ पकड़े आते होंगें|" मैंने अपने दोनों बच्चों की तारीफ की जिसपर संगीता चुटकी लेते हुए बोली; "हाँ भाभी, इन दोनों को इन्होने ऐसी ट्रेनिंग दी है की अगर इन दोनों शैतानों को अकेला छोड़ दिया जाए तो भी दोनों अकेले घर आ जाएँ|" संगीता की टिपण्णी सुन भाभी जी हँस पड़ीं और मेरी पीठ थपथपाने लगीं|

आखिर तीनों बच्चे एस्कलेटर पर धीरे-धीरे नीचे आने लगे और अपने भैया और दीदी को एस्केलेटर्स से नीचे आते देख स्तुति ने ख़ुशी से खिलखिलाना शुरू कर दिया| हम सब मेट्रो के आखरी वाले डिब्बे के सामने जो बैठने की जगह बनी होती है वहाँ जा कर बैठ गए| एक बार फिर आयुष और नेहा ने मिल कर सभी को मेट्रो ट्रैन में कैसे चढ़ना-उतरना है ये समझाना शुरू कर दिया| दोनों बच्चों की ज्ञान से भरी बातें सुन सासु माँ, भाभी जी और भाईसाहब बहुत खुश हुए और दोनों बच्चों की तारीफ करने लगे| अपनी तारीफ सुन दोनों बच्चे आ कर मुझसे लिपट गए और मुझे सारा श्रेय देते हुए बोले; "ये सब हमें पापा जी ने सिखाया है!" नेहा बोली, मैंने भी एक अध्यापक की तरह गर्व करते हुए बारी-बारी से मेरे छात्रों...यानी अपने बच्चों को आशीर्वाद देते हुए प्यार किया|

हमारी ट्रैन आने तक बच्चे सभी को अपनी बातों में लगाए हुए थे और पीछे स्टेशन पर जो ट्रैन आ रहीं थीं उसके बारे में बता रहे थे| इधर मेरी लाड़ली बिटिया मेट्रो ट्रैन देख कर उत्साह से भरी हुई थी, वो बार-बार ट्रैन देख कर मेरी गोदी से उतरने के लिए छटपटाने लगती| आखिर मैं स्तुति को ले कर पीछे खड़ी मेट्रो ट्रैन के पास पहुँचा ताकि स्तुति मेट्रो ट्रैन को नज़दीक से देख सके| मेट्रो ट्रैन के नज़दीक पहुँचते ही स्तुति को लोग नज़र आये और उसने सभी को छूने के लिए अपना हाथ आगे बढ़ा दिया, लेकिन सभी जल्दी में थे इसलिए कुछ लोगों ने स्तुति को नज़रअंदाज़ किया तो कुछ ने हाथ हिला कर स्तुति को बाय (bye) कहा|
इतने में हमारी ट्रैन आ गई और जैसा की होता है, आखरी वाला डिब्बा लगभग खाली था| हम सभी सँभाल कर ट्रैन में चढ़े, आयुष उत्साही था तो उसने सबसे पहले सीट पकड़ी मगर वो अनजाने में महिलाओं तथा वृद्ध लोगों के लिए आरक्षित सीट पर बैठ गया! "आयुष! उठ वहाँ से, वो जगह दादी जी और नानी जी के लिए है!" नेहा ने आयुष को डाँट लगाई| आयुष को अपनी गलती का एहसास हुआ और वो कान पकड़ते हुए नेहा से बोला; "सॉरी दीदी!" इतना कह आयुष ने अपनी दादी जी और नानी जी का हाथ पकड़ उन्हें उस सीट पर बिठाया तथा उनकी बगल में बैठ गया| नेहा ने आयुष को प्यार से समझाते हुए कहा; "ट्रैन में ये सीट केवल बड़े लोगों और लेडीज के लिए होती है| दुबारा ऐसी गलती करेगा न तो बाकी सब से मार खायेगा|" अपनी दीदी की दी हुई सीख समझ आयुष ने एक बार फिर सॉरी कहा|

ट्रैन में चल रहे AC की हवा, अपने आप खुलते बंद होते मेट्रो ट्रैन के दरवाजे और बार-बार हो रही अलग-अलग घोषणा सुन कर सभी हैरान थे, नेहा ने अपनी समझदारी दिखाते हुए सभी को समझाया की ये सारी घोषणाएं यात्रियों की जानकारी के लिए की जाती हैं तथा AC ट्रैन में इसलिए लगा है क्योंकि ट्रैन की खिड़कियाँ खुलती नहीं हैं ऐसे में किसी को गर्मी न लगे इसलिए AC चलाये जाते हैं और मेट्रो के दरवाजे ट्रैन चलाने वाले ड्राइवर साहब खोलते-बंद करते हैं|

वहीं मेरी सबसे छोटी लाड़ली बिटिया मेट्रो ट्रैन में आने के बाद से कुछ अधिक ही प्रसन्न थी| स्तुति मेरी गोदी से उतरने को छटपटा रही थी इसलिए मैं स्तुति को ले कर खिड़की की तरफ मुड़ गया और स्तुति को शीशे के नज़दीक कर दिया| शीशे से बाहर स्टेशन को देखना, गुजरती हुई दूसरी ट्रेनों को देखना और अन्य यात्रियों को देख स्तुति बहुत खुश हुई और किलकारियाँ मार कर मेरा ध्यान खींचने लगी| मेरे भीतर का भी बच्चा जाएगा और मैंने भी बच्चा बनते हुए स्तुति से तुतलाते हुए बात करनी शुरु कर दी| मेरे यूँ बच्चा बन जाने से स्तुति को बड़ा मज़ा आया और वो खिलखिलाकर हँसने लगी|

बहरहाल, हमारा स्टेशन आया और हम सभी मेट्रो ट्रैन से उतरे| अब फिर ऊपर चढ़ना था और मेरी सासु माँ ने एस्केलेटर्स पर जाने से साफ़ मना कर दिया| मेरी माँ ने भी अपनी समधन का साथ दिया और लिफ्ट से जाने की माँग की| मैंने तीनों बच्चों को माँ और मेरी सासु माँ के साथ लिफ्ट से जाने को कहा| बाकी बचे हम चार यानी मैं, संगीता, भाभी जी और भाईसाहब तो हम सब एस्केलेटर्स से ऊपर पहुँचे|

ऑटो कर हम सभी घर पहुँचे और बिना देर किये सभी लोग हवन की तैयारियों में लग गए| बैठक के बीचों बीच की जगह खाली कर सभी के बैठने के लिए आसनी बिछा दी गई| चूँकि मेरी माँ और सासु माँ ज़मीन पर नहीं बैठ सकतीं थीं इसलिए उनके लिए कुर्सियाँ लगा दी गई| कुछ ही समय में पंडित जी पधारे तो मैंने स्तुति को पंडित जी से मिलवाया, पंडित जी ने स्तुति के सर पर हाथ रख आशीर्वाद दिया; "जुग-जुग जियो मुन्नी!"

हवन के लिए सबसे आगे हम चारों यानी मैं, मेरी गोदी में स्तुति, मेरी दाईं तरफ नेहा और बाईं तरफ आयुष बैठे| हवन शुरू हुआ और पहले सभी को कलावा बाँधा गया, जब स्तुति के हाथ में कलावा बाँधा गया तो मेरी बिटिया अस्चर्य से अपने हाथ पर कलावा बँधते हुए देखने लगी| फिर स्तुति को लगाया गया टीका और स्तुति को इसमें भी बड़ा मज़ा आया| इधर पंडित जी ने हवन सामग्री मिलाने का काम बताया तो आयुष और नेहा आगे आये तथा पंडित जी द्वारा दिए निर्देशों का पालन करते हुए हवन सामग्री मिलाने लगे| अपने बड़े भैया और दीदी को हवन सामग्री मिलाते देख स्तुति को बड़ी जिज्ञासा हुई की आखिर ये हो क्या रहा है? अपनी बढ़ती जिज्ञासा के कारण स्तुति ने मेरी गोदी से उतरने के लिए मचलना शुरू कर दिया, अब यदि मैं स्तुति को छोड़ देता तो वो सीधा हवन सामग्री में अपने हाथ डालकर हवन सामग्री चखती इसलिए मुझे स्तुति का ध्यान बँटाना था| मैं स्तुति को ले कर घर के मंदिर के पास पहुँचा और मंदिर से घंटी निकाल कर स्तुति को दे दी| पीतल की चमकदार घंटी को देख सबसे पहले स्तुति ने उसे अपने मुँह में ले कर चखा, परन्तु जब उसे पीतल का स्वाद अच्छा नहीं लगा तो स्तुति मुँह बनाते हुए मुझे देखने लगी| मैंने स्तुति का हाथ पकड़ उसे घंटी बजाना सिखाया, घंटी की आवाज़ सुन स्तुति प्रसन्न हो गई और अपने हाथ झटकते हुए घंटी बजाने की कोशिश करने लगी| जब मैं स्तुति को ले कर बैठक में लौटा तो उसे घंटी बजाते देख भाभी जी मुस्कुराते हुए बोलीं; "तुम दोनों की अलग पूजा चल रही है क्या?" भाभी जी की बात सुन पंडित जी समेत हम सभी हँस पड़े|

अंततः पंडित जी ने हवन आरम्भ किया| जैसे ही पंडित जी ने मंत्रोचारण शुरू किया मेरी मस्ती करती हुई छोटी बिटिया एकदम से शांत हो गई और बड़े गौर से पंडित जी को देखने लगी| हवन कुंड में अग्नि प्रज्वलित की गई और अग्नि को देख स्तुति एक बार फिर अस्चर्य से भर गई! पंडित जी ने मुझे हवन कुंड में घी डालने का काम दिया तथा घर के बाकी सदस्यों को धीरे-धीरे हवन कुंड में हवन सामग्री डालने का काम दिया| "मेरे स्वाहा बोलने पर आप सभी लोग स्वाहा बोलते हुए हवन-सामग्री डालियेगा और मानु बेटा, तुम्हें मेरे स्वाह बोलने पर थोड़ा सा घी डालना होगा|" पंडित जी सभी को समझाते हुए बोले| मेरे हाथ में था एक ताम्बे का बड़ा सा चम्मच और स्तुति को ये चम्मच देख कर हैरत हो रही थी, स्तुति को खुश करने के लिए मैंने स्तुति का हाथ अपने हाथ में लिया और फिर स्तुति के नन्हे से हाथ में चम्मच पकड़ा दिया| चूँकि स्तुति का हाथ मेरे काबू में था इसलिए स्तुति मस्ती नहीं कर सकती थी|

जब मैं स्कूल में पढता था तब हमारे स्कूल में हफ्ते में एक बार हवन अवश्य होता था, ऐसे में शास्त्री जी द्वारा बोले जाने वाले कई मंत्र मैंने कंठस्त कर लिए थे| आज जब पंडित जी ने उन्हीं मंत्रों का उच्चारण किया तो मैंने भी पंडित जी के साथ-साथ वही मन्त्र दोहराये| मुझे मंत्र दोहराते हुए देख मेरी माँ को छोड़ सभी स्तब्ध थे| मेरी माँ मेरे मंत्रोचारण के गुण के बारे में जानती थीं क्योंकि घर में जब हवन होता था तब मैं पंडित जी के साथ मंत्र दोहराता था इसीलिए मेरी माँ को अस्चर्य नहीं हो रहा था| वहीं मेरी छोटी बिटिया रानी अपनी गर्दन मेरी तरफ घुमा कर मुझे मंत्रोचारण करते हुए बड़े गौर से देख रही थी| उधर मेरी बड़ी बिटिया नेहा को तो अपने पापा जी को पंडित जी के साथ मंत्रोचारण करते देख गर्व हो रहा था|

बहरहाल, हवन जारी था और आयुष तथा नेहा बड़े जोश से " स्वाहा" बोलते हुए हवन कुंड में हवन सामग्री डाल रहे थे| घर के बाकी सदस्य दोनों बच्चों का उत्साह देख मुस्कुरा रहे थे और स्वाहा बोलते हुए हवन कुंड में हवन सामग्री डाल रहे थे| वहीं हम बाप-बेटी ख़ुशी-ख़ुशी स्वाहा बोलते हुए हवन कुंड में घी डाल रहे थे| कमाल की बात ये थी की मेरी बिटिया रानी घी डालने के कार्य को करते हुए बहुत खुश थी, उसने इस कार्य को करते हुए ज़रा भी शरारत या मस्ती नहीं की थी|

हवन समाप्त हुआ तो सभी को प्रसाद मिला और हमेशा की तरह प्रसाद लेने के लिए आयुष सबसे आगे था| पंडित जी जब मुझे प्रसाद दे रहे थे तो स्तुति ने अपना हाथ आगे कर दिया इसलिए पंडित जी ने लड्डू स्तुति के हाथ में रख दिया| लाडू पा कर स्तुति बहुत खुश थी और इसी ख़ुशी में स्तुति ने अपनी मुठ्ठी कस ली जिससे लड्डू टूट कर मेरे हाथ में गिर गया! जो थोड़ा सा लड्डू स्तुति के हाथ में था उसे मेरी बिटिया ने 'घप्प' से खा लिया और लड्डू का जो हिस्सा मेरे हाथ में गिरा था वो मैंने खा लिया| स्तुति को लाडू का स्वाद बहुत पसंद आया और वो ख़ुशी से अपने मसूड़े दिखा कर हँसने लगी| दरअसल, स्तुति के लिए बिना किसी की बात सुने 'गप्प' से चीज़ खा लेना शरारत थी, जबकि हमारे लिए ये स्तुति का बालपन था जिसे देख कर हम सभी मोहित हो जाते थे|

पंडित जी के जाने के बाद सभी बैठ कर आराम कर रहे थे, इधर मेरी बिटिया रानी ने आज सुबह से जो मस्ती की थी उसके कारण उसे नींद आ रही थी| स्तुति इतनी थकी हुई थी की आधा सेरेलक्स खा कर ही सो गई| हम सभी ने भी खाना खाया और शाम के समारोह की तैयारी में लग गए| शाम 5 बजे मेरी लाड़ली बिटिया सो कर उठी और सीधा मेरी गोदी में आ गई| बारी-बारी से सब तैयार हुए और स्तुति को तैयार करने की जिम्मेदारी मैंने ली| गुलाबी रंग की जाली वाले फ्रॉक पहना कर, माथे पर छोटी सी बिंदी लगा कर, हाथ में चांदी का कड़ा पहना कर और बालों में दो छोटी-छोटी चोटियाँ बना कर मैं स्तुति को गोदी में लिए हुए निकला| स्तुति की सुंदरता देख मेरी माँ ने सबसे पहले स्तुति को काला टीका लगाया और स्तुति के हाथ चूमते हुए बोलीं; "मेरी लाड़ली को किसी की नज़र न लगे!" अपनी दादी जी के द्वारा हाथ चूमे जाने से स्तुति शर्मा गई और मेरे सीने से लिपट गई|

हम सभी तैयार हो कर बैंक्वेट हॉल (banquet hall) के लिए निकले क्योंकि वहीं तो स्तुति के जन्मदिन का समारोह रखा गया था| पूरा बैंक्वेट हॉल रंग-बिरंगे गुबारों से सजा हुआ था, बाहर गार्डन में बुफे तैयार था| बैंक्वेट हॉल में मौजूद Dj धड़ाधड़ गाने बजाए जा रहा था| बच्चों के खेल-कूद के लिए एक हवा भरा हुआ मिक्की माउस का किला था जिस पर बच्चे चढ़ कर फिसल सकते थे| बच्चों की पसंद की कॉटन कैंडी और मैजिक शो की भी व्यवस्था की गई थी| जैसे ही हम पहुँचे तो बैंक्वेट हॉल के मैनेजर ने हमें सारी तैयारियाँ दिखाईं|

धीरे-धीरे सारे मेहमान आने लगे और पूरा बैंक्वेट हॉल भर गया| आयुष और नेहा के सारे दोस्त अपने मम्मी-पापा जी के साथ आये थे, मिश्रा अंकल जी सपरिवार आये थे, दिषु भी अपनी परिवार के साथ आया था| मेरे साथ काम करने वाले कुछ ख़ास लोग भी मेरी बेटी के जन्मदिन में सम्मिलित होने आये थे| यहाँ तक की माधुरी भी सपरिवार सहित आई थी!

माधुरी को देख संगीता हैरान थी, संगीता को हैरान देख माधुरी बोली; "भाभी जी, आपने तो बुलाया नहीं इसलिए मैं ही बेशर्म बन कर आ गई|" संगीता समझती थी की मैंने ही माधुरी को न्योता दिया होगा इसलिए संगीता ने बड़ी ही हाज़िर जवाबी से जवाब दिया; "अपनों को कहीं न्योता दिया जाता है?!" संगीता की हाज़िर जवाबी देख माधुरी बहुत खुश हुई|

माधुरी अपने पति और बेटे जो की उम्र में स्तुति से कुछ महीना ही बड़ा होगा के साथ आई थी| "हेल्लो वंश जी|" माधुरी के बेटे का नाम वंश था, जैसे ही मैंने वंश से हाथ मिलाने के लिए अपना हाथ आगे बढ़ाया की वंश ने मेरी गोदी में आने के लिए अपनी दोनों बाहें फैला दी| स्तुति तब अपनी मम्मी की गोदी में थी इसलिए मैंने वंश को गोदी ले लिया| तब मुझे नहीं पता था की वंश को गोदी ले कर मैं अपनी बिटिया रानी की नज़र में कितनी बड़ी गलती करने जा रहा हूँ! उसपर मेरी मैंने एक और गलती की, वंश को लाड करते हुए मैंने उसके मस्तक को चूम लिया!

अपने पापा जी को दूसरे बच्चे को गोदी में लिए हुए पप्पी करते देख स्तुति जल भून कर राख हो गई और मेरी गोदी में आने के लिए अपनी मम्मी की गोदी में छटपटाने लगी| जब मैंने स्तुति को यूँ बेचैन होते हुए देखा तो मुझे मेरी गलती का आभास हुआ| मैंने वंश को अपनी माँ की गोदी में दिया और फट से स्तुति को गोदी में लिया| मेरी गोदी में आते ही स्तुति ने अपनी मुट्ठी में मेरी कमीज जकड़ ली और अपना गुस्सा मुझे महसूस करवाने लगी! मैं स्तुति को टहलाने के बहाने से कुछ दूर ले आया और स्तुति से माफ़ी माँगते हुए बोला; "बेटा जी, मुझे माफ़ कर दो! लेकिन मैंने थोड़े ही वंश को गोदी लिया, मैं तो बस उससे हाथ मिलाना चाहता था, अब वही मेरी गोदी में आना चाहता था तो मैं उसे कैसे मना करता?!" मैंने स्तुति के सामने अपनी सफाई रखी|

मेरी बिटिया अपनी मम्मी की तरह नहीं थी, स्तुति ने मेरी पूरी बात सुनी और मुझे माफ़ करते हुए फिर से खिलखिलाने लगी| हम बाप-बेटी सबके पास वापस लौटे तो देखते क्या हैं की माँ ने वंश को खेलने के लिए स्तुति की मनपसंद लाल रंग की बॉल दे दी! अपनी बॉल को दूसरे बच्चे के पास देख स्तुति को गुस्सा आने लगा और वो वंश से बॉल छीनने को आतुर हो गई| माँ ने जब स्तुति को इस तरह मेरी गोदी से उतरने को मचलते देखा तो माँ मुझसे बोलीं; "बेटा, शूगी को यहाँ वंश के साथ बिठा दे, दोनों बच्चे साथ खेल लेंगे|" स्तुति का केक आने में समय था इसलिए टेबल पूरी तरह खाली था| मैंने स्तुति को वंश की बगल में टेबल पर बिठा दिया तथा मैं सबके साथ बातों में लग गया|

उधर मेरी बिटिया रानी ने जब अपनी मनपसंद बॉल को दूसरे बच्चे के मुख में देखा तो उसे गुस्सा आने लगा| "आए" कहते हुए स्तुति ने अपनी बोली भासा में वंश को पुकारा मगर वंश का ध्यान बॉल को कुतरने में लगा था| स्तुति को अनसुना किया जाना पसंद नहीं था इसलिए स्तुति अपने दोनों हाथों-पॉंव पर रेंगते हुए वंश की तरफ बढ़ने लगी| वंश के पास पहुँच स्तुति ने अपने दाहिने हाथ से वंश के हाथों से बॉल छीननी चाही मगर वंश बॉल लिए हुए दूसरी तरफ मुड़ गया|

वंश की प्रतिक्रिया पर स्तुति को और भी गुस्सा आने लगा इसलिए वो वंश को मारने के इरादे से आगे बढ़ी| ठीक उसी समय मैं दोनों बच्चों को देखने के लिए पलटा और मैंने देखा की स्तुति अपना दाहिना हाथ उठाये वंश पर हमला करने जा रही है! मैंने एकदम से भागते हुए स्तुति को पीछे से पकड़ कर गोदी में उठा लिया| मेरी गोदी में आ कर भी स्तुति अपनी बॉल वंश से वापस लेने के लिए छटपटा रही थी!

"चलो बेटा, हम घुम्मी कर के आते हैं!" ये बोलते हुए मैं स्तुति को अपनी गोदी में लिए हुए दूर आ गया| "बेटा, वंश आपका दोस्त है और दोस्तों को मारते नहीं हैं! छोटा बच्चा है, वो नहीं जनता की वो आपकी बॉल से खेल रहा है! माफ़ कर दो उसे बेटा प्लीज!" मैंने स्तुति को प्यार से समझाया| फिर स्तुति का मन बहलाने के लिए मैं उसे बुफे के पास ले आया, यहाँ स्तुति के खाने के लिए बस सलाद और फ्रूट चाट ही थी| मैंने एक दोने में 2-4 फल व सलाद लिए और स्तुति को खाने के लिए दिए| स्तुति अपने हाथों से फल या सलाद का एक पीस उठाती और अपने मुँह में रख रस चूसती और जब वो सारा रस चूस लेती तो वो फल या सलाद का टुकड़ा मुझे खिला देती! स्तुति को मेरे साथ देख कई लोग स्तुति को जन्द्मिन की बधाई देने आये, जो लोग उम्र में बड़े होते वो स्तुति को आशीर्वाद देते और छोटे बच्चे स्तुति से हाथ मिला कर उसे हैप्पी बर्थडे कहते| इसी तरह सबसे मिलते मिलाते हम बाप-बेटी दूर एक कोने में पहुँचे जहाँ एक पेड़ लगा था और पेड़ पर गिलहरी उछल-कूद कर रही थी| स्तुति को अपना मनपसंद जानवर दिखा तो स्तुति का ध्यान भटक गया और वो गिलहरी को देख किलकारियाँ मारने लगी|

हम बाप-बेटी लगभग आधे घंटे से गायब थे और केक काटने का समय हो रहा था इसलिए हमें ढूंढने के लिए नेहा ने Dj वाले के माइक से घोषणा की; "बर्थडे गर्ल स्तुति और पापा जी, जहाँ कहीं भी हैं फौरन स्टेज पर आइये!" नेहा ने ये घोषणा ठीक उसी तरह की जैसे की रेलवे स्टेशन पर होती है इसीलिए नेहा की ये घोषणा सुन सभी लोगों ने जोरदार ठहाका लगाया| वहीं स्तुति ने जब अपना नाम स्पीकर पर सुना तो स्तुति बहुत खुश हुई, मैं स्तुति को लेकर अंदर आ रहा था की तभी स्तुति ने गुब्बारा देखा और उसने मुझसे गुब्बारे की तरफ इशारा कर माँगा| मैंने गुब्बारा स्तुति की कलाई में बाँध कर लटका दिया, कलाई में गुब्बारा बँधे होने से स्तुति उस गुब्बारे को देख सकती थी मगर पकड़ कर फोड़ नहीं सकती थी|

खैर, मैं स्तुति को लेकर स्टेज पर पहुँचा तो माँ चिंता करते हुए बोलीं; "कहाँ गायब हो गया था तू?" माँ को चिंता करते देख मैं मुस्कुराया और उन्हें बाद में सब बताने का इशारा किया|

स्तुति के जन्मदिन का केक टेबल पर रखा जा चूका था| सफ़ेद रंग का केक और उसमें लगी रंग-बिरंगी मोमबत्तियाँ देख कर स्तुति बहुत खुश हुई| स्तुति के हाथ में प्लास्टिक का चाक़ू पकड़ा कर मैंने केक काटा और केक कटते ही सभी मेहमानों ने 'हैप्पी बर्थडे टू यू' वाला गीत गाते हुए ताली बजानी शुरू कर दी| सभी लोगों को एक साथ गाते और ताली बजाते देख स्तुति बहुत खुश हुई और "ददद" कहते हुए गाने लगी|

मैंने एक छोटी चमची से स्तुति के लिए चींटी के अकार का केक का टुकड़ा काटा और स्तुति को अपने हाथों से खिलाया| मीठे-मीठे केक का स्वाद स्तुति को भा गया और स्तुति और केक खाने के लिए अपने दोनों हाथ बढ़ा कर केक की ओर झपटने लगी| तभी एक-एक कर घर के सभी सदस्यों ने मेरी देखा-देखि छोटी चमची से स्तुति को केक खिला उसे आशीर्वाद दिया| पार्टी शुरू हुई और सभी को केक सर्व किया गया, सभी लोग खाने-पीने में मशगूल हो गए थे| इधर मेरी बिटिया मेरी गोदी में खेल रही थी, शायद स्तुति को डर था की अगर वो मेरी गोदी से उतरी तो मैं फिर से वंश को गोदी ले लूँगा! उधर Dj ने बड़े शानदार गाने बजाए और आयुष तथा नेहा ने मुझे अपने साथ डांस करने को खींचना शुरू कर दिया| स्तुति को गोदी लिए हुए मैं डांस करने जा पहुँचा, सभी बच्चों को नाचते हुए देख स्तुति का मन भी नाचने को कर रहा था| मैंने स्तुति को कमर से पकड़ कर खड़ा किया तो स्तुति ने सबकी देखा देखि अपने हाथ-पॉंव एक साथ हवा में चलाने शुरू कर दिए| स्तुति के लिए यही डांस था और उसे यूँ डांस करते देख सभी बच्चे एक तरफ हो गए और तालियाँ बजाते हुए स्तुति का उत्साह बढ़ाने लगे| अपनी छोटी बहन को नाचते हुए देख आयुष और नेहा ने अपनी बहन का हाथ पकड़ा तथा स्तुति के साथ कदम से कदम मिला कर नाचने लगे|

नाच-गा कर हम थक गए थे इसलिए मैं स्तुति को ले कर आराम करने लगा| मेरे कुर्सी पर बैठते ही मेरी बिटिया रानी मेरे सीने से लिपट गई और मुस्कुराते हुए मुझे देखने लगी| स्तुति जब बहुत खुश हो जाती थी तो वो अक्सर मुझसे लिपट कर मुस्कुराते हुए मुझे देखने लगती थी| स्तुति की इस प्रतिक्रिया का असली कारण मुझे कभी समझ नहीं आया, परन्तु मेरा मन कहता था की मेरी बेटी मुझसे इतना प्यार करती है की वो इतनी सारी खुशियाँ पा कर मुझे आँखों ही आँखों में धन्यवाद दे रही है| "मेरे प्यारे बेटू, पापा जी को थैंक यू थोड़े ही बोलते हैं! पापा जी को आई लव यू बोलते हैं|" मैंने स्तुति की ठुड्डी सहलाते हुए कहा| मेरी बात सुन स्तुति तुरंत अपनी बोली भासा में बोली; "आवववउउउ!" ये कहते हुए स्तुति ख़ुशी से खिलखिलाने लगी| उधर, अपनी बिटिया के मुख से आई लव यू सुन मेरा मन खुशियों से भर उठा!

कुछ ही देर में मैजिक शो शुरू होने वाला था इसलिए मैं स्तुति को ले कर सबसे आगे बैठ गया| जादूगर की कलाकारी स्तुति को कुछ ख़ास पसंद नहीं आई मगर जैसे ही जादूगर ने अपनी टोपी में से खरगोश निकाला, मेरी बिटिया मेरी गोदी में बैठे हुए फुदकने लगी| मैं स्तुति को ले कर जादूगर के पास पहुँचा ताकि स्तुति खरगोश को नज़दीक से देख सके| अपनी आँखों के सामने सफ़ेद रंग का खरगोश देख स्तुति का मन मचल उठा और वो उस जानवर को पकड़ने के लिए अपने दोनों हाथ आगे बढ़ाने लगी| मैंने स्तुति का हाथ पकड़ स्तुति को खरगोश के ऊपर हाथ फेरना सिखाया| 1-2 बार हाथ फेर कर स्तुति ने अपनी मुठ्ठी में खरगोश की खाल जकड़ ली, कहीं खरगोश स्तुति को काट न ले इसलिए मैंने स्तुति के हाथ से बेचारे खरगोश की खाल को छुडवाया| मेरी बिटिया का दिल अब इस खरगोश पर आ गया था इसलिए स्तुति उसे पुनः पकड़ने को जिद्द करने लगी| मैंने नेहा को बहुत समझाया मगर स्तुति की नज़र उस खरगोश पर से हट ही नहीं रही थी, अतः मैंने जादूगर को ही खरगोश को गायब करने को कहा| जादूगर ने अपनी छड़ी को गोल घुमाया और खरगोश को गायब कर दिया| स्तुति का पसंददीदा जानवर जब गायब हुआ तो स्तुति उदास हो गई, अब स्तुति को फिर से हँसाना था इसलिए मैंने अपना फ़ोन निकाल कर कैमरा चालु कर स्तुति को दिखाया| फ़ोन में अपनी और मेरी छबि देख स्तुति फिर से खुश हो गई और अपने दोनों हाथ बढ़ा कर फ़ोन पकड़ना चाहा| मैंने फ़ोन स्तुति को दिया तो स्तुति ने पहले तो फ़ोन को अच्छे से दबाया फिर सीधा उसे अपने मुँह में डालकर खाने की कोशिश करने लगी| अपनी बिटिया के बचपने को देख मैं हंस पड़ा और स्तुति के गाल चूमते हुए माँ के पास लौट आया| स्तुति के मुख से फ़ोन निकलवाने के लिए मैंने स्तुति को केक खाने को दिया| परन्तु तबतक मेरा फ़ोन स्तुति की लार से भीगने के कारन बंद हो चूका था!

बहरहाल स्तुति का ये पहला जन्मदिन सबके लिए यादगार था| सभी मेहमानों ने जाते हुए स्तुति को एक बार पुनः बधाई दी और सबके जाने के बाद हम सभी घर लौट आये|
 

[color=rgb(255,]अंतिम अध्याय: प्रतिकाष्ठा[/color]
[color=rgb(147,]भाग - 1[/color]


[color=rgb(124,]अब तक आपने पढ़ा:[/color]

स्तुति का ये पहला जन्मदिन सबके लिए यादगार था| सभी मेहमानों ने जाते हुए स्तुति को एक बार पुनः बधाई दी और सबके जाने के बाद हम सभी घर लौट आये|

[color=rgb(243,]अब आगे:[/color]


समय का चक्का घूम रहा था और मेरे बच्चे अब बड़े होने लगे थे| झूठ नहीं कहूँगा पर मैंने बहुत कोशिश की कि ये समय आगे न बढे मगर समय किसी के रोके थोड़े ही रुकता है!

स्तुति बड़ी होती जा रही थी और घर के सभी लोग स्तुति के मुख से पहला शब्द सुनने को उत्सुक थे, हर कोई स्तुति के मुख से अपना नाम सुनना चाहता था| माँ स्तुति को लाड करते हुए कहतीं; "शूगी...बेटा बोल दादी जी" मगर स्तुति कुछ बोलने की बजाए माँ की आँखों में देखते हुए मुस्कुराती रहती|

नेहा जब स्तुति के साथ खेल रही होती तो वो स्तुति से कहती; "स्तुति, बोल दीदी" मगर मेरी लाड़ली बिटिया अपनी दीदी की बात का जवाब देने के बजाए खेलने में ध्यान देती| आयुष को भी स्तुति के मुख से अपने लिए 'बड़े भैया' सुनना था मगर स्तुति हमेशा अपने भैया के साथ खेलते समय दूर भागती रहती|

इधर मैं चाहता ही नहीं था की मेरी बिटिया रानी बड़ी हो इसलिए मैंने कभी स्तुति से मुझे पापा कह कर बुलाने की जिद्द नहीं की| मेरा मन तो स्तुति की बोली-भासा सुन कर ही प्रसन्न हो जाता था| जब मैं साइट से लौटता तो स्तुति आ कर मेरी गोदी में बैठ जाती और मुझसे आज दिन भर की गई सारी मस्ती की कहानी अपनी बोली-भासा में कहने लगती| मैं स्तुति की बोली में ऐसा खो जाता की बिना पलकें झपकाये अपनी बिटिया को देखता रहता| जब स्तुति की राम कहानी खत्म होती तो वो हँसने लगती और मेरे सीने से लग जाती| "बेटू, आपने आज दिनभर मस्ती कर ली न, तो अब पापा जी को प्यारी-प्यारी पप्पी दो!" इतना सुनते ही स्तुति अपना गाल आगे कर देती और मैं उसकी मीठी-मीठी पप्पी ले कर ऐसे आवाज़ निकालता मानो मैंने बहुत सारा खाना खा लिया हो! मेरी इस प्रतिक्रिया से स्तुति को बहुत मज़ा आता और वो खिलखिला कर हँसने लगती| तब मैं नहीं जानता था की मेरे इस तरह से खुद को पापा बोलने से मेरी होशियार बिटिया रानी अपने आप पापा बोलना सीख जाएगी!

मैंने सुना था की छोटे बच्चे के मुख से निकलने वाला पहला शब्द होता है 'माँ' मगर स्तुति का मुझसे मोहबंधन ऐसा था की उसके मुख से पहला शब्द माँ नहीं निकला!

शनिवार का दिन था और मुझे सुबह से छींकें आ रहीं थीं, मेरी तबियत को ध्यान में रखते हुए माँ ने मुझे काम पर जाने से मना कर दिया| मेरी छींकों की आवाज़ सुन शुरू-शुरू में तो स्तुति को बहुत मज़ा आया और वो खिलखिला कर हँसने लगी, परन्तु जब स्तुति ने मेरी आँखों में छींकने के कारन आये आँसूँ देखे तो स्तुति भावुक हो गई तथा स्तुति अपने दोनों हाथों-पैरों के बल चलते हुए मेरे नज़दीक आने लगी| मैंने जब स्तुति को अपने पास आते देखा तो मैंने तुरंत रुमाल से अपना चेहरा साफ़ किया और स्तुति को अपने सीने से लगा लिया|

एक तरफ स्तुति मेरे सीने से लगी थी तो दूसरी तरफ मेरी छींकें रुकने का नाम नहीं ले रहीं थीं| स्तुति मेरी छींकों से दहल न जाए इसलिए मैं अपनी छींकें रोकने में लगा था| मैंने अपने जिस्म की पूरी ताक़त झोंक दी और अपने होंठ दबा कर बंद कर लिए ताकि मेरी छींकों की आवाज़ मेरे मुख से न निकले| परन्तु छींक आने पर आवाज़ भले ही न निकलती हो मगर मेरा पेट और सीना हिल जाता था| मेरे जिस्म में उठी ये कम्पन मेरी बिटिया भी महसूस कर रही थी और उसका नाज़ुक सा दिल सहमा हुआ था!

इतने में माँ और संगीता मेरी चिंता करते हुए कमरे में आ पहुँचे| हम बाप-बेटी को इस तरह गले लगे देख और मुझे अपनी छींकें रोकते हुए देख माँ का दिल चिंता करने लगा| माँ ने संगीता को पानी गर्म करने जाने को कहा और उन्होंने स्तुति को मेरी गोदी से ले लिया| मुझसे दूर जाने पर स्तुति छटपटाने लगी और अपनी दादी जी की पकड़ से छूटने का प्रयास करने लगी| "न...नहीं...बेटा! मैं हूँ यहीं पर, मैं कहीं नहीं जा रहा|" मैंने जैसे तैसे अपनी छींकों को दबाते हुए कहा| इधर मेरी माँ ने स्तुति को लाड कर बहलाना शुरू कर दिया; "शूगी...शूगी बेटा...अभी ठीक हो जायेगा तेरा पापा! चिंता नहीं करते..." माँ ने स्तुति को समझना चाहा मगर स्तुति अब भी माँ की गोदी से उतरने को छटपटा रही थी| इतने में संगीता पानी गर्म कर ले आई, मैंने तुरंत चादर ओढ़ कर भाप लेनी शुरू की तो मेरी बिटिया मेरा चेहरा न देख पाने से और भी व्याकुल हो गई माँ की गोदी से उतरने के लिए चिल्लाने लगी|

मैंने आँख बंद कर नाक और मुँह से जल्दी-जल्दी और गहरी साँसें लेनी शुरू कर दी ताकि जल्दी से भाँप ले कर मैं अपनी लाड़ली के तड़पते दिल को अपने सीने से लगा कर शांत कर सकूँ|

मुश्किल से 10 मिनट भाँप ले कर मैं लेट गया और माँ ने स्तुति को मेरे सीने पर लिटा दिया| मेरे सीने से लिपट कर मेरी बिटिया को चैन मिला और स्तुति के मुख से सुकून की किलकारियाँ निकलने लगीं| मुझे आराम करने को कह माँ और संगीता चले गए, लेकिन मेरी बिटिया को करनी थी मुझसे बातें इसलिए स्तुति उठ कर मेरे पेट पर बैठ गई और अपनी बोली-भासा में बोलने लगी| अपनी बातें मुझे समझाने के लिए स्तुति कभी अपने हाथ की उँगलियाँ दिखाने लगती तो कभी मेरी दाढ़ी की ओर इशारा कर कुछ कहती| स्तुति की बातों से मेरा मन बहल रहा था मगर लगातार छींकें आने से मुझे थकावट हो गई थी जिससे मुझे नींद आ रही थी| "बेटा, पापा जी को नीनी आ रही है, पापा थोड़ी देर सो जाएँ?!" मैंने अपनी सोने की इजाजत स्तुति से माँगी तो स्तुति के मुख से अचानक से ऐसा शब्द निकला जिसे सुन मेरी आँखें खुली की खुली रह गईं और वो शब्द था "पापा"!!!

स्तुति कुछ-कुछ शब्द का मतलब समझने लगी थी, जैसे निनी का मतलब सोना, मम-मम का मतलब पानी पीना, नहाई-नहाई का मतलब नहाना और दूधधु का मतलब दूध पीना| जब मैंने अपनी बात में 'नीनी' शब्द कहा तो स्तुति समझ गई की मैं उसे सोने के लिए कह रहा हूँ इसलिए स्तुति मेरे सीने पर सर रख कर लेट गई और उसी समय उसके मुख से ये शब्द निकला; "पा...पा"!!! स्तुति ने धीमी आवाज़ में शब्द तोड़ कर बोला था|

इधर, जैसे ही मैंने स्तुति के मुख से ये शब्द सुना मेरी ख़ुशी का ठिकाना नहीं रहा| अपनी बिटिया रानी के मुख से 'पापा' शब्द सुन मैं अपनी सारी शरीरिक पीड़ा एक पल में भूल बैठा| मैंने स्तुति को अपने दोनों हाथों से पकड़ ऊपर की ओर उठाया और स्तुति से बोला; "बेटा, अभी आपने मुझे पापा कहा न?" मेरे पूछे इस सवाल के जवाब में स्तुति मुस्कुराने लगी और अपना दाहिना हाथ अपने मुँह पर रख शर्माने लगी| "बेटू...बोलो न प्लीज!" मैंने एक और बार स्तुति से मुझे पापा कह कर बुलाने की गुज़ारिश की तो स्तुति ने मेरी ये इच्छा पूरी कर दी; "पा...पा"!!!

अपनी बिटिया के मुँह से पापा सुन मेरा मन खुश हो गया, ऐसा लगा मानो मेरी बहुत बड़ी इच्छा मेरी बिटिया ने पूरी कर दी हो! "मेरा बच्चा! मेरा लाल! मेरी बीटिया रानी! आई लव यू बेटा! आपने आज अपने पापा जी को इतनी ख़ुशी दी है........ मैं आपको बता नहीं सकता मैं आज कितना खुश हूँ!" मैंने स्तुति के मस्तक को बार-बार चूमते हुए कहा| जिस तरह मुझे सभी को सरप्राइज देना पसंद था, वैसे ही मेरी बिटिया रानी अचानक से, मुझसे भी बढ़िया-बढ़िया सरप्राइज मुझे दे कर मेरी जिंदगी खुशियों से भर देती थी, कभी अपने जन्मदिन वाले दिन मुझे आई लव यू कह कर तो आज मुझे अचानक से पापा कह कर|

बहरहाल मेरे बार-बार पप्पी लेने से मेरी लाड़ली बिटिया खिलखिलाकर हँसने लगी थी, स्तुति की हँसी से भरी किलकारियाँ सुन संगीता कमरे में आई और मुझे स्तुति की पप्पी लेते देख वो नाराज़ हो गई; "चैन नहीं हैं न दोनों बाप-बेटी को! आपको आराम करने को कहा था और आप इस शैतान के साथ खेलने लग गए!" संगीता की डाँट सुन कर भी हम बाप-बेटी को कोई फर्क नहीं पड़ा, हम दोनों तो खिलखिलाकर हँसने लगे थे| हमारे संगीता की बात न मानने से संगीता नाराज़ हो गई और गुस्से से मेरे पास आई|

जब मैंने संगीता को यूँ गुस्से से लाल देखा तो मैंने उसे सारी बात बताई; "जान, मेरी बिटिया ने आज मुझे पहलीबार पापा कहा है इसलिए मैं ख़ुशी के मारे बावरा हो गया हूँ!" मैंने स्तुति के गाल चूमते हुए कहा| संगीता को मेरी बात सुन मेरे दिल के जज़्बात समझ में आय और उसके चेहरे पर अपनी बेटी द्वारा मुझे पापा कहने पर गर्वपूर्ण मुस्कान तैरने लगी| अपना प्यार व्यक्त करने के लिए संगीता ने झुक कर स्तुति के सर को चूम लिया| "मेरी नटखट लाडो! थैंक यू!" संगीता ने हमारी लाड़ली बिटिया को ये थैंक यू इसलिए कहा था क्योंकि स्तुति ने अपनी मम्मी की एक इच्छा पूरी कर दी थी| "जुग-जुग जियो मेरी लाड़ली बिटिया, तूने आज मेरे मन की मुराद पूरी कर दी!" संगीता ने स्तुति को आशीर्वाद देते हुए कहा| स्तुति को जब एक साथ अपने पापा जी और मम्मी का प्यार मिला तो स्तुति ख़ुशी से खिलखिलाने लगी|

दोपहर को जब दोनों बच्चे स्कूल से लौटे और उन्हें मेरी तबियत खराब होने के बारे में पता चला तो दोनों बच्चे सीधा मेरे सीने से लिपट कर भावुक हो गए! आयुष का बाल मन फिर भी इतना चिंतित नहीं था जितना चिंतित मेरी बिटिया नेहा थी| मेरे सीने से लिपटे हुए नेहा के दिल की धड़कन डर के मारे तेज़ हो गई| "मैं ठीक हूँ बेटा|" मैंने दोनों बच्चों के सर चूमते हुए कहा| मेरी बात सुन आयुष के मन को इत्मीनान आया और वो फिर से मुस्कुराने लगा मगर नेहा का नाज़ुक मन अब भी घबराया हुआ था| "मेरा बच्चा! चिंता मत करो, मैं बिलकुल स्वस्थ हूँ| वो तो थोड़ी सी छींकें आ गई थीं बस|" मैंने नेहा के सर पर हाथ फेरते हुए कहा ताकि मेरी बिटिया का मन शानत हो जाए मगर नेहा के मन को इतनी जल्दी इत्मीनान नहीं मिलने वाला था|
डर से उतपन्न हुए गुस्से ने नेहा को अपनी गिरफ्त में ले लिया और वो अपनी मम्मी के ऊपर ही बरस पड़ी; "पापा जी की तबियत ठीक नहीं थी तो आपने मुझे स्कूल फ़ोन कर के क्यों नहीं बताया? पापा जी को कुछ हो जाता तो?" नेहा के गुस्से को देख संगीता...एक माँ आज फिर डर गई थी!

"बेटा, गुस्सा नहीं करते| मैंने ही आपकी मम्मी को मना किया था की वो आपको स्कूल में फ़ोन न करें क्योंकि अगर आपको स्कूल में फ़ोन करते तो आप घबरा जाते और फिर आपका मन पढ़ाई में कैसे लगता? और यहाँ कौन है जो आपको स्कूल से घर ले कर आता?

फिर मेरी तबियत इतनी भी खराब नहीं थी की आपको स्कूल से बुलाया जाए| यहाँ आपकी दादी जी थीं, आपकी मम्मी थीं और आपकी छोटी बहन स्तुति भी तो थी न?!" संगीता को बचाने के लिए मैंने जानबूझ कर झूठ बोला था| वहीं जब मैंने स्तुति का नाम लिया तो नेहा भोयें सिकोड़ कर मुझे देखने लगी; "आपकी छोटी बहन स्तुति कह रही थी की; 'पापा जी दीदी ने मुझे आपका ख्याल रखने की जिम्मेदारी दी है इसलिए आप जल्दी से ठीक हो जाओ|' इतना कह आपकी छोटी बहन मेरे छींकने से से ठंडे पड़े सीने से लिपट गई और मुझे अपने सीने से गर्मी दे कर मुझे स्वस्थ कर दिया|" मैंने बातें बनाते हुए कहा जिससे आख़िरकार नेहा के चेहरे पर मुस्कान आ ही गई| मेरी बिटिया का गुस्सा शांत हुआ और उसने स्तुति की पप्पी लेते हुए उसे थैंक यू कहा|

खैर, अब चूँकि स्तुति थोड़ा-थोड़ा बोलने लगी थी इसलिए पूरा परिवार अब स्तुति से कुछ न कुछ बुलवाने में जुट गया| आयुष और नेहा स्तुति के साथ खेलते समय उससे दीदी, भैया, बैट, बॉल, एप्पल (apple) आदि जैसे शब्द बुलवाने की कोशिश करते, तो माँ स्तुति को अपनी गोदी में बिठा कर कहतीं; "मेरी शूगी.बोल मेरा नाम शूगी है!" लेकिन अपनी दादी जी की बात सुन स्तुति को हँसी आ जाती और वो खिलखिला कर हँसने लगती| माँ ने अपनी पोती को बतेहरे लालच दिए मगर स्तुति बस हँस कर बात टाल जाती! मेरी बिटिया स्तुति बड़ी मन मौजी थी, जब उसका मन करता वो तभी ही बोलती थी, किसी के बुलवाने पर स्तुति नहीं बोलती थी|

खैर, चूँकि स्तुति बहुत छोटी थी इसलिए स्तुति पूरे शब्द नहीं बोल पाती थी| इस समस्या का हल स्तुति ने अपने अनुसार निकाला| मेरी लाड़ली ने हम सभी को ख़ास नाम दे दिए, जिसे बोलना स्तुति के लिए आसान था| मेरी माँ यानी अपनी दादी जी को स्तुति "दाई" कहती, अपनी बड़ी दीदी नेहा को "दीद्दा" कहती, अपने बड़े भैया आयुष को "भा" कहती और अपनी मम्मी को स्तुति "मम" कह कर बुलाती| मुझे यानी अपने पापा जी को स्तुति ने एक बड़ा प्यारा सा नाम दे दिया था; "पपई"!!! दरअसल, स्तुति अपनी नेहा दिद्दा को हमेशा मुझे पापा जी कहता हुआ देखती- सुनती थी, अब स्तुति से पूरा शब्द बोला नहीं जाता था इसलिए स्तुति ने इन दो शब्दों को जोड़ कर "पपई"...एक नया शब्द बना लिया था| मैं घर पहुँचा नहीं की स्तुति "पपई...पपई" कहती हुई अपने दोनों हाथों-पैरों के बल चलते हुए मेरे पास आ जाती| फिर वही अपनी बोली-भासा और जो नए शब्द स्तुति ने सीखे थे उन्हें दोहराते हुए स्तुति अपनी दिनचर्या सुनाने लगती|

हमारे अलावा स्तुति का पसंदीदा शब्द था "ची" यानी चिड़िया| छत पर खेलते हुए स्तुति जब भी चिड़िया को देखती तो वो; "ची...ची" कर सभी का ध्यान उस चिड़िया की ओर खींचने लगती| स्तुति के पसन्दीदा दो जानवर यानी कबूतर का नाम स्तुति ने "गर्रर" रखा था क्योंकि कबूतर हमेशा 'गुंटूर-गु' करता था और गिलहरी को "इल्ली" कह कर बुलाती|

स्तुति के साथ-साथ मेरे दोनों बच्चे बड़े होते जा रहे थे और उसी के साथ थोड़े शैतान भी होते जा रहे थे| स्कूल से आ कर आयुष सीधा खेलने लग जाता और नेहा कभी अपनी मम्मी का तो कभी अपनी दादी जी का फ़ोन ले कर अपनी सहेली से बात करने लग जाती| संगीता खाना खाने को कहते-कहते थक जाती मगर दोनों बच्चे उसकी एक न सुनते| अब जाहिर है की इस बात पर संगीता को बहुत गुस्सा आता और वो दोनों बच्चों पर चिल्लाने लगती| फिर जब मैं शाम को घर लौटता तो संगीता दोनों बच्चों की शिकायत मुझसे करने लगती| अब मैं ठहरा नरम दिल का व्यक्ति, ऊपर से दोनों बच्चों की शिकायतें सुन मुझे मेरा बचपन याद आ जाता| जब मैं दोनों बच्चों की उम्र का था तब मैं भी माँ की नहीं सुनता था और अपने खिलौनों से खेलन लगता था|

इधर मुझसे बच्चों की शिकायतें कर संगीता ये अपेक्षा रखती थी की मैं दोनों बच्चों को डाँट लगाऊँ, लेकिन मुझसे अपने बच्चों को डाँटा जाता ही नहीं था इसलिए मैं दोनों बच्चों को अपने सामने बिठा कर प्यार से समझाता की वो ऐसा न करें| बच्चे मेरी बात मानते थे और कुछ दिन तक वो स्कूल से आते ही पहले खाना खाते फिर खेलने-कूदने लग जाते|

संगीता को बच्चों के प्रति मेरा ये नरम व्यवहार पसंद नहीं था इसलिए वो मुझसे नाराज़ हो जाती; "लाड-प्यार कर के सर पर चढ़ा लो दोनों को, फिर जब ये बिगड़ जायेंगे न तब मेरे पास मत आना!" संगीता मुझे सुनाते हुए बोलती और भुनभुनाती हुई रसोई में चली जाती| अब अपनी पत्नी को मनाना था इसलिए मैं संगीता के पीछे-पीछे रसोई में पहुँच जाता और प्यार-मोहब्बत से चुहलबाज़ी करते हुए संगीता को मना ही लेता| लेकिन मेरी ये चालाकी हर बार नहीं चलती थी, कभी-कभी संगीता का गुस्सा जल्दी शांत नहीं होता था और वो माँ के पास मेरी शिकायत ले कर पहुँच जाती| मेरे बच्चों के आगे नरम पड़ने की बात सुन माँ हँस पड़तीं और संगीता से कहतीं; "तू भी किसके पास शिकायत ले कर पहुँच जाती है! ये लड़का (मैं) जब नेहा और आयुष की उम्र का था तो ये भी इन दोनों शैतानों जैसा था| इतने समय से बच्चे इसके साथ रह रहे हैं तो इसके (मेरे) गुणों के साथ अवगुण भी तो सीखेंगे न?!" ये कहते हुए माँ सभी को मेरे बचपन की शैतानियाँ गिनाने लगतीं| मेरे बचपन की शैतानियाँ सुन संगीता का गुस्सा खत्म हो जाता और उसके चेहरे पर मुस्कान आ जाती| तो कुछ इस तरह से संगीता का गुस्सा शांत हो जाया करता था|

हमारे घर के पास जो मंदिर था वहाँ के पंडित जी अपने कुछ श्रद्धालुओं को भगवान जी के दर्शन करवाने ले जा रहे थे, जाहिर था की माँ भी जाना चाहतीं थीं परन्तु उन्हें अकेले भेजूँ कैसे? मेरी साइट का काम लटका हुआ था इसलिए मेरा जाना नामुमकिन था, संगीता मेरे कारण नहीं जा सकती थी इसलिए मैंने दोनों बच्चों को माँ के साथ जाने के लिए पुछा| जैसे ही बच्चों को मंदिर जाने का पता चला, दोनों बच्चे ख़ुशी से नाचने लगे|

अगली सुबह 5 बजे मैं, माँ और बच्चों को मंदिर छोड़ने जा रहा था की तभी स्तुति जाग गई तथा साथ चलने के लिए ज़िद्द करते हुए "पपई...पपई" की रट लगाने लगी| हम सब मंदिर जाते तो संगीता अकेली घर रहती इसलिए माँ ने संगीता को भी मंदिर साथ चलने को कहा| हम सभी मंदिर पहुँचे तो पाया की वहाँ पहले से ही एक प्राइवेट बस खड़ी है जो सभी श्रद्धालुओं को ले कर निकलने वाली थी| माँ और दोनों बच्चों को उनकी सीट पर बिठा मैंने नेहा को सारी जिम्मेदारी सौंपते हुए कहा; "बेटा, आपको अपना, आपकी दादी जी का और आयुष का ख्याल रखना है| हर समय माँ और आयुष का हाथ थामे रहना और मुझे फ़ोन कर पल-पल की खबर देते रहना|" मेरे द्वारा दी गई जिम्मेदारी नेहा ने बड़े गर्व से ली और मेरे गाल पर पप्पी करते हुए बोली; "पापा जी, आप बिलकुल चिंता मत करना| मैं आपको फ़ोन कर के सब बताती रहूँगी|" अपनी बिटिया के मुख से जिम्मेदारी वाली बातें सुन मैं पूरी तरह निश्चिन्त हो गया था|

माँ और बच्चों को आज रात 11 बजे लौटना था और तबतक घर पर केवल मैं, संगीता और स्तुति ही थे| मंदिर से घर लौटते समय संगीता थोड़ा रोमांटिक होते हुए बोली; "जानू, आज कितना अच्छा मौका है हमारे पास! घर पर सिवाए हम दोनों के कोई नहीं, तो क्यों न इस मौके का फायदा उठाया जाए और..." इतना कह संगीता शर्मा गई और उसने अपनी बात अधूरी छोड़ दी| "हम दोनों अकेले कैसे? अरे भई हमारी बिटिया रानी स्तुति भी तो है!" मैंने संगीता को छेड़ने के मकसद से कहा तो संगीता का मुँह बन गया! "इससे अच्छा तो मैं भी चली जाती, फिर सँभालते रहते अपनी लाड़ली बिटिया रानी को!" संगीता गुस्से में बुदबुदाई| संगीता को लगा था की मैंने उसकी बात नहीं सुनी मगर मैं उसकी बात सुन चूका था और मुझे बहुत ज़ोर से हँसी आ रही थी! मुझे हँसता हुआ देख संगीता जल-भून गई और बोली; "खी-खी कर हँसते रहो आप! मेरा ज़रा भी ख्याल न करना!" संगीता मुझे ताना मारते हुए बोली| अब संगीता को और तपाना सही नहीं था इसलिए मैंने उसे अपना प्लान बताते हुए कहा; "जान, साइट का ज़र्रूरी काम लटका हुआ है इसलिए तुम्हें घर छोड़ कर मैं अभी साइट निकल जाऊँगा और सारा काम निपटा कर मैं शाम 4-5 बजे तक लौट आऊँगा| तुम तब तक ऐसा करना की स्तुति के साथ खेलते रहना और उसे दोपहर में सोने मत देना| रही खाने की बात तो वो बाहर से मँगा कर खा लेना| तुम्हारे स्तुति के साथ खेलने से स्तुति जल्दी थक जाएगी और जब मैं घर पहुँचूँगा तो मेरी गोदी में आते ही स्तुति झट से सो जाएगी! फिर हम मियाँ-बीवी के पास कमसकम 6-7 घंटे होंगे, प्यारभरी बातें करने के लिए! इतने में तुम्हारा मन भर जायेगा न?!" मेरा पूरा प्लान सुन संगीता के चेहरे पर कटीली मुस्कान आ गई और उसने शर्मा कर सर हाँ में हिलाते हुए अपनी रज़ामंदी दे दी|

"जानू, क्यों न हम अपनी इस डेट (date) को थोड़ा और रोमांटिक बनाएँ?" संगीता ने उत्साह से भरते हुए मुझसे पुछा, जिसके जवाब में मैंने ख़ुशी-ख़ुशी अपना सर हाँ में हिला दिया| "मैं हमारे लिए खाना-बना कर तैयार रखूँगी, फिर न हम कैंडल लाइट डिनर (candle light dinner) करंगे और साथ में जो आप दिषु भैया के लिए वाइन (wine) ले कर आये थे उसे पीते हुए प्यारभरी बातें करेंगे| मेरा न बड़ा मन है वाइन पीने का!" संगीता बड़े उत्साह से बोली| दरअसल, चूँकि मेरा गुड़गांव आना-जाना था और गुड़गांव में शराब दिल्ली के मुक़ाबले सस्ती होती है इसलिए दिषु ने मुझसे एक वाइन की बोतल और एक जैक डैनिएल्स व्हिस्की (Jack Daniels whiskey) मँगवाई थी| अब वो ससुर अभी तक ये बोतल लेने नहीं आया था और संगीता को इन बोतलों के बारे में पता था| अपनी आँखों के सामने बोतलें देख संगीता के मन में वाइन पीने का लालच पैदा हो गया था|

खैर, इतने समय से फिल्में देख-देख कर संगीता के दिमाग में कैंडल लाइट डिनर और वाइन पीने का कीड़ा घुस गया था, ऊपर से जब घर में ही वाइन पड़ी हो तो किसका मन नहीं डोलेगा?! "जान, तुम वाइन नहीं पी सकती क्योंकि तुम्हें स्तुति को दूध पिलाना होता है| स्तुति बड़ी हो जाए और दूध पीना छोड़ दे तब हम बाहर डेट पर चल कर वाइन पीयेंगे| अभी के लिए तुम खाना बाहर से मँगा लेना और हम कैंडल लाइट डिनर के साथ प्यारभरी बातें करेंगे|" मैंने बड़े प्यार से संगीता को समझाया|

मेरे संगीता को वाइन पीने के लिए मना करने के दो बहुत ही अहम कारण थे, पहला ये की मेरा मानना था की माँ के नशा करने पर उस नशे का असर माँ के दूध पर होता है जो की छोटे बच्चे के स्वस्थ के लिए हानिकारक होता और दूसरा ये की माँ-बाप का नशा करना उनके बच्चों पर बुरा प्रभाव डालता और उन्हें भी नशे की ओर बढ़ने के लिए प्रेरित करता| मैं अपने बच्चों को ऐसी कोई भी गलत सीख नहीं देना चाहता था इसीलिए मैं संगीता को पीने से मना कर रहा था| एक बार स्तुति बड़ी हो जाती तो मैं संगीता को घुमाने के बहाने अकेले दिल्ली से बाहर ले जाता और वहाँ हम दोनों मियाँ-बीवी बेरोक-टोक अपने सारे शौक पूरे करते!

बहरहाल, मेरे द्वारा वाइन पीने के लिए मना करने पर संगीता मुझसे बहस करने लगी; "कुछ नहीं होगा जानू, आप बेकार इतनी फ़िक्र करते हो! अरे वाइन शराब थोड़े ही है जो इससे नशा होता हो! अरे वाइन तो मीठी-मीठी होती है! यहाँ तक की डॉक्टर कहते हैं के खाने के बाद थोड़ी सी रेड वाइन पीने से चेहरे पर झुर्रियाँ नहीं पड़तीं और उम्र भी बढ़ती है|" संगीता इस समय बड़े आत्मविश्वास से बोल रही थी, मानो उसने पहले वाइन पी रखी हो इसलिए मेरे मन में शक का कीड़ा कुलबुलाने लगा; "तुम्हें कैसे पता की वाइन मीठी होती है? तुमने कब पी?" मैंने भोयें सिकोड़ कर सवाल पुछा तो संगीता फट से बोली; "मैंने फिल्मों में देखा है|" संगीता अकड़ते हुए बोली, मानो फिल्मों में जो दिखाया जा रहा हो वो सब सच ही होता है!

"जान, पहली बात तो ये की वाइन में अल्कोहल (alcohol) होती है और अधिक पीने से वाइन का नशा चढ़ जाता है| और इससे पहले की तुम पूछो की मुझे कैसे पता तो मैं तुम्हें बता दूँ की मैंने वाइट वाइन पी थी और उसे पीने के बाद मुझे नशा भी हुआ था| तब मैंने खुद को कैसे सँभाला था ये मैं जनता हूँ|" मैंने संगीता को समझाते हुए बात शुरू की| मैंने जानबूझ कर संगीता को मेरे और करुणा के पार्क में वाइट वाइन पी कर भंड होने की बात नहीं बताई वरना संगीता का खून जलने लगता!

"दूसरी तथा सबसे जर्रूरी बात, तुम्हारे वाइन पीने का असर तुम्हारे दूध पर पड़ेगा और फिर स्तुति वो दूध पी कर बीमार पड़ जाएगी| बच्चे को स्तनपान कराने के दिनों में माँ जो भी कुछ खाती-पीती है उसका असर उसके दूध पर पड़ता है तथा यही दूध बच्चे को बीमार या कुपोषित भी कर सकता है इसलिए जब तक स्तुति दूध पीना नहीं छोड़ देती तब तक तुम कोई नशा नहीं करोगी| एक बार स्तुति दूध पीना छोड़ दे तब मैं तुम्हारे सारे शौक पूरे कर दूँगा|" मैंने अपनी बात गंभीर होते हुए कही थी जिसे डरते हुए संगीता ने मान लिया था| संगीता कहीं डरी सहमी न रहे इसलिए मैंने संगीता का मूड बनाते हुए कहा; "आज रात फिर वही कपड़े पहन कर तैयार रहना!" मैंने संगीता को आँख मारते हुए कहा| 'वही कपड़ों' से मेरा तातपर्य था वो ख़ास कपड़े जो मैंने संगीता के लिए मँगवाये थे! मेरी बात सुन आखिर संगीता के चेहरे पर शैतानी भरी मुस्कान आ गई|

भले ही हमने आज रोमांस करने की प्लानिंग कर ली थी मगर क़िस्मत को कुछ और ही मंज़ूर था!

[color=rgb(97,]जारी रहेगा भाग - 2 में...[/color]
 

[color=rgb(255,]अंतिम अध्याय: प्रतिकाष्ठा[/color]
[color=rgb(147,]भाग - 2[/color]


[color=rgb(163,]अब तक आपने पढ़ा:[/color]

भले ही हमने आज रोमांस करने की प्लानिंग कर ली थी मगर क़िस्मत को कुछ और ही मंज़ूर था!

[color=rgb(243,]अब आगे:[/color]

स्तुति
और संगीता को घर छोड़ मैं साइट के लिए निकलने लगा तो स्तुति "पपई..पपई" कह मुझे अपने मोहपाश में जकड़ने लगी| "बेटू, अभी पापा जी को काम पर जाना है| मैं है न शाम को जल्दी घर आऊँगा, तब तक आप अपनी मम्मी के साथ खेलना| आज वो सारा दिन आपके साथ खेलेंगी और अगर वो आपके साथ न खेलें तो मुझे बताना मैं आपकी मम्मी को डाँट लगाऊँगा!" मैंने तुतलाते हुए स्तुति को समझाया तो स्तुति किसी तरह मान गई और अपनी मम्मी की गोदी में चली गई|

मैं जल्दी से साइट पहुँचा और समय से पहले काम शुरू करवा दिया ताकि शाम को घर जल्दी निकल सकूँ| आज की मिलन की वेला को ले कर हम दोनों मियाँ-बीवी बहुत उत्सुक थे, हम दोनों ही की नजरें घड़ी पर थीं की कब दिन खत्म हो और हमारा मिलन हो सके| लेकिन होनी को कुछ और ही मंज़ूर था!

दस बजे नेहा ने मुझे फ़ोन किया और अपने सकुशल गंतव्य स्थान पहुँचने के बारे में जानकारी दी| पूरे रास्ते आयुष अपनी दादी जी के पास बैठा था और अपनी बातों से माँ का दिल बहला रहा था| वहीं नेहा की सीट बाहर की ओर थी तो वो आयुष के ज्यादा बोलने पर उसे टोक रही थी| "पापा जी, अब है न हम दर्शन करने जा रहे हैं तो मैं आपको दर्शन करने के बाद फ़ोन करुँगी|" नेहा बोली और मैंने उसे फ़ोन पर ही पप्पी देते हुए आशीर्वाद दिया|

नेहा का फ़ोन कटा ही था की भाईसाहब का फ़ोन आ गया, उन्होंने बताया की उनकी मुँह बोली मामी जी हमारे घर आ रहीं हैं| दरअसल उनकी मामी जी की ट्रैन रात 10 बजे की थी और तबतक वो स्टेशन पर रुक कर क्या करतीं इसलिए मेरी सासु माँ ने उन्हें हमारे घर जा आराम करने को कहा था| "भाईसाहब, मैं तो गुड़गांव वाली साइट पर हूँ| घर पर संगीता और स्तुति ही हैं, माँ तथा दोनों बच्चे यात्रा के लिए गए हैं और रात 11 बजे तक आ जायेंगे| तबतक संगीता है मामी जी का ध्यान रखने के लिए|" मेरी बात सुन भाईसाहब बोले की वो संगीता को फ़ोन कर के मामी जी के आने की सूचना दे देंगे|

संगीता की मुँह बोली मामी जी के आने से हमारा रोमांस का प्लान चौपट हो गया था और मैं जानता था की संगीता को अब बहुत गुस्सा आएगा| ठीक 10 मिनट बाद संगीता का फ़ोन आया और वो गुस्से से बोली; "मैंने कहा था न की आज साइट मत जाओ, लेकिन आपको तो बस काम की पड़ी है! लो हो गया न सारा प्लान चौपट!"

"जान, प्लान मैंने चौपट नहीं किया है! प्लान तुम्हारी मुँह बोली मामी जी ने किया है, अब भुगतो उन्हें!" मैंने खींसें निपोरते हुए कहा| मेरी बात से संगीता जल-भून गई और उसने फ़ोन काट दिया|

इन मामी जी के बारे में एक बात बता दूँ, मैं इनसे अपने ससुर जी के अंतिम संस्कार के समय मिला था और तभी से इन मामी जी का स्वभाव मुझे काफी अजीब लगा था| अपनी सासु माँ से जब मैंने इनके बारे में पुछा तो मुझे पता चला की इनके पति की मृत्यु हो गई है तथा ये तब से थोड़ी खुले विचारों वाली हैं| खुले विचारों से मेरा मतलब है की इन्हें पीने-खाने और अपनी खातिरदारी करवाने का बहुत शौक है! रुपये-पैसे की कोई कमी नहीं है इसलिए मामी जी घूब घूमती-घामती हैं|

हमारे गाँव देहात में औरतें शराब नहीं पीतीं, परन्तु कुछ स्त्रियाँ जिनका सुहाग उजड़ गया हो वो ही शराब आदि के चक्कर में पड़ती हैं| और एक ख़ास बात, संगीता की इन मामी जी से बहुत बनती थी| सासु माँ बता रहीं थीं की ये मामी जी संगीता को बहुत लाड-प्यार करती थीं, ये घर आईं नहीं की संगीता इनकी आव-भगत में लग जाती थी|

दोपहर 12 बजे तक मामी जी ढूँढ़ते-ढूँढ़ते हमारे घर पहुँच गईं थीं और संगीता ने उनकी काफी आव-भगत भी की| वहीं अपने सामने एक अनजान चेहरे को देख स्तुति हैरान-परेशान थी| मामी जी ने कितनी ही बार स्तुति को पुकारा मगर स्तुति अपने हाथों-पैरों के बल चलते हुए उनसे दूर भाग जाती|

दोपहर दो बजे तक दोनों मामी-भाँजी ने खाना खा लिया था तथा स्तुति को भी दूध पिला कर संगीता ने हमारे कमरे में सुला दिया था| दोनों मामी-भाँजी ने करनी थी अपने पुराने दिनों की यादें ताज़ा इसलिए दोनों स्त्रियाँ बच्चों के कमरे में लेट गए| मामी जी ने मज़ाक-मज़ाक में संगीता से पीने-पाने की बात की तो संगीता ने मामी के प्रेम में बहते हुए उन्हें मेरे द्वारा लाइ हुई वाइन की बोतल दिखा दी| अब मामी जी ने कभी वाइन तो पी नहीं थी इसलिए वो वाइन पीने को ललचा गईं| शीशे के गिलास में संगीता ने उन्हें थोड़ी सी वाइन डालकर दी, जैसे ही मामी जी ने एक घूँट वाइन पी उन्हें वाइन मीठी-मीठी लगी और उसका स्वाद उन्हें भा गया| फिर क्या था, मामी जी ने संगीता को भी थोड़ी सी वाइन पीने को कह दिया; "चल मुन्नी, तुहुँ तनिक हमरे साथे पी ले! ये मा नसा नाहीं है, ई तो बहुत मीठ-मीठ है!" मामी जी ने बड़े प्यार से आग्रह किया| अब संगीता का तो पहले से ही वाइन पीने का मन था उस पर जब उसकी प्रिय मामी जी ने ही उसे अपने साथ पीने को कहा तो उसने फट से अपनी मामी जी की बात मान ली और अपने लिए वाइन ग्लास में डाल ली| एक घूँट पीते ही संगीता को वाइन का चस्का लग गया| संगीता को लगा की जिसका स्वाद मीठा हो, भला वो कैसे नशा चढ़ायेगी इसीलिए उसने जानबूझ कर मेरे मना करने के बावजूद भी वाइन पी|

मामी-भाँजी की जोड़ी ने मिलकर पूरी वाइन की बोतल खत्म कर दी थी, जिसमें मेरे अनुसार सबसे ज्यादा वाइन संगीता ने ही पी होगी! मामी जी तो बच्चों वाले कमरे में ही पसर के सो गईं और संगीता हमारे कमरे में आ कर सो गई|

शाम 5 बजे मैं घर पहुँचा और मैंने घंटी बजाई मगर किसी ने दरवाजा नहीं खोला| मैं करीब 5 मिनट तक बाहर खड़ा दरवाजा खुलने का इंतज़ार करता रहा मगर किसी ने दरवाजा नहीं खोला| दरवाजा न खुलने से मुझे चिंता हो रही थी, मैंने संगीता को फ़ोन किया तो उसका फ़ोन बजता रहा मगर संगीता ने फ़ोन नहीं उठाया| संगीता के फ़ोन न उठाने से मेरे मन में बुरे-बुरे ख्याल आने लगे थे इसलिए मैंने अपनी ही चाभी से दरवाजा खोला| दरवाज़ा खोल जब मैं घर में दाखिल हुआ तो मैंने पाया की पूरे घर में शान्ति फैली है| माँ के कमरे के दरवाजे पर कुण्डी लगी थी और बच्चों का कमरा खुला हुआ था| मैं बच्चों के कमरे की तरफ बढ़ा तो मैंने देखा की वहाँ मामी जी सो रहीं हैं| मैं चुप-चाप दबे पॉंव अपने कमरे की तरफ मुड़ गया, दरवाजे पर पहुँच मैंने देखा की संगीता मस्त घोड़े बेच कर सो रही है और पलंग के बीचों-बीच वाइन की खाली बोतल खड़ी है! वाइन की खाली बोतल देख मेरे मन में जो पहला ख्याल आया वो ये था; 'कहीं संगीता ने मेरे मना करने के बावजूद वाइन तो नहीं पी ली?' ये ख्याल मन में आते ही मेरा दिमाग गुस्से से भरने लगा| मैंने कमरे में प्रवेश किया तो देखा की स्तुति दीवान पर सो रही है| मेरी बिटिया की मौजूदगी में वाइन की बोतल खुली पड़ी है इस बात से मुझे और भी गुस्सा आने लगा था|

मैं तेज़ी से संगीता के पास आया और गुस्से से उसे पुकारा: "संगीता....संगीता?" मगर मेरे पुकारने का संगीता पर कोई असर ही नहीं हुआ| गुस्से में आ कर मैंने संगीता का हाथ पकड़ उसे एकदम से उठा कर बिठाना चाहा मगर संगीता से बैठा ही न जाए! वो तो किसी कटे पेड़ की तरह फिर से बिस्तर पर फ़ैल गई! "संगीता?" मैं बहुत जोर से चीखा जिससे संगीता को थोड़ा होश आया| अधखुली आँखों से संगीता ने मुझे देखा तो डर के मारे उसकी हालत पतली होने लगी| बड़ी मुश्किल से सहारा लेते हुए संगीता ने उठने की कोशिश की और उठ कर बैठ गई| संगीता को यूँ नशे में झूमते हुए देख मेरा गुस्सा बढ़ता ही जा रहा था|

उठ कर बैठने के बाद संगीता ने अपने दोनों हाथों से अपनी आँखें मलनी शुरू की ताकि उसे मेरी शक्ल साफ़ नज़र आये| "ज...जानू?" संगीता ने अपने पी कर भंड होने की स्थिति को छुपाने की कोशिश की| इस वक़्त मेरा गुस्सा अपने चरम पर था और मेरा अपने ऊपर कोई काबू नहीं था! मेरे मना करने के बाद भी संगीता ने मेरी बात की अवहेलना करते हुए वाइन पी थी! न केवल संगीता ने मेरी बात को अहमियत नहीं दी बल्कि उसने हमारी बेटी के बारे में तक नहीं सोचा था!

जैसे ही संगीता ने मुझे जानू कह कर बुलाया, मेरा खुद पर से काबू छूट गया और मैंने एक जोरदार तमाचा संगीता के बाएँ गाल पर धार दिया! नशे का असर संगीता पर बहुत तेज़ था, उससे तो बैठा भी नहीं जा रहा था इसलिए जैसे मेरा तमाचा उसके गाल पर पड़ा, संगीता पलंग पर मुँह के बल जा गिरी! नशे की खुमारी में संगीता से दुबारा उठा नहीं गया और वो मुँह के बल पड़ते ही फिर से सो गई!

आज मैंने पहलीबार संगीता पर हाथ उठाया था पर मुझे संगीता पर हाथ उठाने का ज़रा भी अफ़सोस नहीं हो रहा था, आ रहा था तो बस गुस्सा! मैंने स्तुति को गोद में उठाया और छत पर आ गया| दो पल के लिए मैंने अपना गुस्सा शांत किया और ठंडे दिमाग से आगे के बारे में सोचने लगा|

संगीता के वाइन पीने से उसका दूध मेरी बिटिया के लिए दूषित हो गया था इसलिए मुझे पहले स्तुति के लिए दूध का इंतज़ाम करना था, अतः मैंने फ़ोन निकाल गूगल पर रिसर्च शुरू कर दी| स्तुति की उम्र के बच्चों को माँ के दूध के अलावा 'फार्मूला' दिया जाता था मगर ये फार्मूला था क्या ये मुझे समझ नहीं आया! मैंने दवाई वाले दूकान में फ़ोन कर इसके बारे में पुछा तो उस आदमी ने मुझे फार्मूला क्या होता है और इसे बच्चे को कैसे देते हैं इसकी संक्षेप में जानकारी दी| मैंने स्तुति के लिए ये 'फार्मूला' मँगवा लिया, साथ ही बच्चों की दूध की एक बोतल और गाये का दूध भी|

रात 7 बजे स्तुति जाग गई और खुद को मेरी गोदी में पा कर बहुत खुश हुई! "पपई" कहते हुए स्तुति ख़ुशी से चिल्लाई और अपनी बातें कहनी शुरू कर दी| अपनी बिटिया की हँसी-ठिठोली भरी बातें सुन मैं संगीता की गुस्ताखी भूल बैठा और अपनी बिटिया को लाड-प्यार करने में व्यस्त हो गया| कुछ देर में स्तुति को भूख लगी तो स्तुति ने "पपई..पपई" कह अपने पेट की तरफ इशारा कर मुझे भूख लगने के बारे में बताया| स्तुति को गोदी में लिए हुए मैं रसोई में आया और फल धो कर काट कर मींज लिए| स्तुति ने लगभग आधा केला खाया होगा की उसका पेट भर गया और उसने मुझे अपने नन्हे-नन्हे हाथों से खिलाना शुरू कर दिया| दोपहर में साइट पर मैंने चाय पी थी और तब से ले कर अब तक मैं भूखा था| अपनी बिटिया को लाड करते हुए मैं अपनी इस भूख के बारे में भूल गया था मगर मेरी बिटिया ने मेरी भूख महसूस कर ली थी| तभी तो स्तुति मुझे बड़े चाव से फल खिला रही थी और खिलखिला कर हँस रही थी| पता नहीं क्यों पर आज मुझे अपनी बिटिया में मेरी माँ नज़र आ रही थी, वही प्यार से खाना खिलाना...वही मेरे खाने से मना करने पर जबरदस्ती खिलाना नहीं तो रूठ जाना!

मैं अपनी बेटी द्वारा खाना खिलाये जाने का सुख भोग ही रहा था की मामी जी उठ कर बाहर बैठक में आ गईं|

मामी जी: तू कइहाँ आयो मुन्ना?

मामी जी ने पुछा तो मैंने बहुत संक्षेप में जवाब देते हुए कहा;

मैं: जी 5 बजे|

मामी जी: संगीता कहाँ है?

जैसे ही मामी जी ने संगीता का नाम लिया, मेरे भीतर गुस्सा भरने लगा|

मैं: उसने ज्यादा पी ली इसलिए अभी तक सो रही है!

मैंने मामी जी से नजरें फेरते हुए कहा और स्तुति के हाथ-मुँह पोंछने लगा| मामी जी को अच्छे से महसूस हो गया था की मुझे संगीता और उनका यूँ शराब पीना पसंद नहीं आया इसलिए वो भी मुझसे नजरें चुराने लगीं|

मैं: मामी जी, आपके लिए खाना मँगा दिया है, बस आने वाला होगा|

मेरी बात सुन मामी जी कुछ नहीं बोलीं| जब खाना आ गया तो मैंने उनके लिए खाना परोस दिया| मामी जी ने खाना खाते हुए मुझसे बात करने के इरादे से कहा;

मामी जी: ई मुन्नी (स्तुति) हमरे लगे नाहीं आवत रही, हम बुलाई तो ई दूर भाग जावत रही!

मामी जी की बात सुन मैंने फिर बड़े संक्षेप में जवाब दिया;

मैं: आपको आज पहलीबार देखा है इसलिए आप से डरती है|

इतना कहते हुए मैंने स्तुति को गोदी से नीचे उतार कर खेलने में लगा दिया| मामी जी जान चुंकीं थीं की मैं उनसे नाराज़ हूँ इसलिए उन्होंने आगे कोई बात नहीं की| जब रात के 9 बजे तो मामी जी घबराते हुए बोलीं;

मामी जी: वो...मुन्ना...हमका जाए का है....?!

मैं मामी जी की बात समझ गया की उन्हें रेलवे स्टेशन जाना है और वो इस चिंता में हैं की यहाँ से स्टेशन जाएँ कैसे? मैंने अपना फ़ोन निकाल तुरंत उनके लिए टैक्सी बुक कर दी;

मैं: चिंता मत कीजिये मामी जी, मैंने रेलवे स्टेशन तक के लिए टैक्सी बुक कर दी है, अभी 5 मिनट में आ जाएगी|

अंततः मेरी बात से मामी जी चिंता मुक्त हो गईं|

जब टैक्सी आई तो मैंने मामी जी को टैक्सी के बारे में बताया, मम्मी जी ने अपने बटुए से 10/- का नोट निकाला और स्तुति के हाथ में थमाना चाहा मगर मेरी बिटिया इतनी समझदार थी की उसने नॉट लिया ही नहीं, बल्कि वो तो मुझसे लिपट कर अपनी नानी जी से छुपने लगी|

मैं: मामी जी, आपका आशीर्वाद ही काफी है|

मैंने नकली मुस्कान के साथ कहा तथा उनके पॉंव छुए| मामी जी ने मुझे और स्तुति दोनों को आशीर्वाद देते हुए कहा;

मामी जी: जीते रहो!

हम तीनों नीचे आये, मैंने टैक्सी का दरवाजा खोला और मामी जी से बोला;

मैं: माफ़ करना मामी जी, मैं आपको स्टेशन छोड़ने नहीं आ सकता...

मैंने इतना कहा ही था की मामी जी बोल पड़ीं;

मामी जी: कउनो बात नाहीं मुन्ना, हम समझित है!

मामी जी को लगा की चूँकि संगीता इस वक़्त नशे में धुत्त है इसलिए मैं उनके साथ नहीं जा रहा, जबकि असल बात ये थी की अगर मैं मामी जी के साथ रेलवे स्टेशन जाता तो पूरे रास्ते मैं अपने गुस्से के कारण कुछ नहीं बोलता जिससे उन्हें चुभन होती इसीलिए मैं नहीं जाना चाहता था| खैर, चूँकि मामी जी ने अपनी बात कह मेरी अधूरी बात पूरी कर दी थी इसलिए मैं झूठ बोलने से बच गया था| चलने से पहले मामी जी ने मुझसे राम-राम की जिसके जवाब में मैंने तथा स्तुति के कह मुख से ("मम-मम") भी उन्हें राम-राम कह दी|

हम बाप-बेटी ऊपर आ गए और टी.वी. देखने लगे| स्तुति को दूध पिलाने का समय हो गया था इसलिए मैंने स्तुति के लिए फार्मूला वाला दूध बनाया| दूध की बोतल में दूध भर मैं स्तुति के पास आया| स्तुति ने आजतक दूध वाली बोतल नहीं देखि थी इसलिए स्तुति की नजरें इस अनोखी चीज़ पर टिकी थीं| ""बेटू...आज आपको यही दूध पीना होगा|" ये कहते हुए मैंने स्तुति को बोतल दी| स्तुति ने बोतल तो ले ली मगर उसे समझ नहीं आया की इस बोतल का करना क्या है? मैं भी बुद्धू, स्तुति को दूध की बोतल दे कर ये उम्मीद कर रहा था की वो खुद से दूध पी लेगी!

खैर, मुझे जल्दी ही अपनी बेवकूफी का एहसास हुआ और मैंने मुस्कुराते हुए अपना सर पीट लिया! मुझे यूँ सर पीटते देख स्तुति को बड़ा मज़ा आया और वो हँसने लगी| मैं स्तुति को गोदी में ले कर बैठा और दूध की बोतल उसके होठों से लगाई, स्तुति ने दूध की बोतल का निप्पल मुँह में लिया और धीरे-धीरे दूध पीने लगी| स्तुति को उसकी माँ के होते हुए भी बोतल से दूध पिलाना मुझे अच्छा नहीं लग रहा था मगर मैं स्तुति को संगीता के शराब पीने के कारण दूषित हो चूका दूध नहीं पिलाना चाहता था| "बेटू, आपको कुछ दिन यही दूध पीना पड़ेगा|" इतना कहते हुए मैंने स्तुति के हाथ को चूमा तो स्तुति मुस्कुराने लगी| इस मुस्कुराहट का मतलब था की मेरी बिटिया ने अपने पिता की ये अर्जी हँसी-ख़ुशी स्वीकार ली थी!

कुछ देर बाद नेहा का फ़ोन आया और उसने बताया की सब आधे घंटे में मंदिर पहुँच रहे हैं| "ठीक है बेटा जी, आपको लेने मैं और स्तुति आ रहे हैं|" ये कहते हुए मैंने फ़ोन स्पीकर पर कर स्तुति के हाथ में दे दिया, स्तुति ने जब फ़ोन पर अपनी दीदी की आवाज़ सुनी तो उसने अपनी बोली भासा में बातें करना शुरू कर दी| नेहा बस में बैठी बोर हो रही थी इसलिए वो भी स्तुति के साथ ऐसे बात करने लगी मानो उसे स्तुति की सारी बात समझ आ रही हो! नेहा को इतनी देर फ़ोन पर बात करते देख माँ और आयुष को उत्सुकता हुई की आखिर नेहा इतनी बात किससे कर रही है| जब नेहा ने बताया की फ़ोन पर स्तुति है तो माँ ने फ़ोन माँगा और फिर शुरू हुई दादी-पोती की बातें| स्तुति ने अपनी दादी जी की आवाज़ पहचान ली थी इसलिए स्तुति ने "दाई" कहते हुए अपनी बोली भासा में बातें शुरू कर दी| फिर आई आयुष की बारी और आयुष की आवाज़ पहचानते ही स्तुति फ़ोन पर ही ख़ुशी के मारे चिल्लाने लगी| स्तुति क्या कह रही थी ये आयुष को समझ नहीं आ रहा था इसलिए वो अपनी बातें करने में लगा था; "स्तुति, मैं न आपके लिए चॉकलेट ला रहा हूँ!" आयुष ख़ुशी से भरते हुए बोला| स्तुति चॉकलेट क्या है जानती थी इसलिए चॉकलेट का नाम सुन स्तुति ख़ुशी से किलकारियाँ मारने लगी| जब तक हम दोनों बाप-बेटी मंदिर नहीं पहुँचे तब तक स्तुति बोलती रही, कभी अपनी दादी जी से बात करती, कभी अपने बड़े भैया आयुष से बात करती तो कभी अपनी नेहा दीदी से बात करती| मैं हैरान था की मेरी बिटिया रानी इतना कैसे बोल लेती है?!

बहरहाल, मैं और स्तुति समय से पहले मंदिर पहुँच गए थे इसलिए हम गाडी में बैठ कर बस आने का इंतज़ार करने लगे| जब बस आई तब नेहा ने फ़ोन काटा और मैं स्तुति को गोदी ले कर गाडी से उतरा| सबसे पहले उतरा आयुष और ख़ुशी से उछलता हुआ मेरी टांगों से लिपट गया; "अले मेला बच्चा! खूब मस्ती की न आपने?!" मैंने आयुष को भी स्तुति के साथ गोदी में उठा लिया और उसे लाड करते हुए पूछने लगा| इतने में नेहा बस से माँ का हाथ पकड़े हुए उतरी, मुझे देख कर भी नेहा ने अपनी दादी जी का हाथ नहीं छोड़ा| जब माँ बस से उतर गईं तब नेहा अपनी दादी जी का हाथ पकड़े हुए मेरे पास आई और सीधा मुझसे लिपट गई| "मेरी समझदार बीटिया! मुझे नाज़ है मेरी बिटिया पर, आपने आज अपना, अपने छोटे भाई का और अपनी दादी जी का ख्याल रखा|" मैंने नेहा के सर को चूमते हुए कहा| हम सभी गाडी में बैठे और इस बार स्तुति माँ की गोदी में बैठी चहक रही थी| "बहु कहाँ है?' माँ ने संगीता के बारे में पुछा तो मैंने आधा सच कहा; "वो सो गई थी!" मैंने माँ से नजरें चुराते हुए कहा| माँ को शक हो गया था की कुछ गड़बड़ है और वो आगे कुछ पूछतीं उससे पहले ही मैंने उन्हें संगीता की मुँह बोली मामी जी के आने के बारे में बता कर व्यस्त कर दिया| माँ समझ गई थीं की कुछ तो माज़रा है जो मैं उनसे छुपा रहा हूँ, परन्तु बच्चों की मौजूदगी का लिहाज़ कर माँ ने आगे कुछ नहीं पुछा|

घर पहुँच मैं गाडी पार्क कर रहा था जब माँ ने दोनों बच्चों की ड्यूटी लगाते हुए कहा; "चलो बेटा, आप दोनों चल कर घर का दरवाजा खोलो! तब तक हम ऊपर आते हैं|" माँ की बात सुन आयुष और नेहा मुझसे घर की चाभी ले कर आपस में दौड़ लगाते हुए सीढ़ियाँ चढ़ने लगे|

"अब बता बेटा, क्या छुपा रहा है तू मुझसे?" माँ ने मुझसे सीधा सवाल पुछा| मैं माँ से झूठ नहीं बोलना चाहता था इसलिए मैंने उन्हें सब सच बता दिया| सारी बात सुन माँ को बहुत हैरानी हुई और साथ में थोड़ा दुःख भी हुआ| "सुबह जब बहु उठेगी तब मैं बात करती हूँ उससे|" माँ को हो रहे दुःख को महसूस कर मेरा संगीता पर गुस्सा और भड़क रहा था|

"ठीक है माँ! लेकिन आप संगीता से कह देना की वो मुझसे और मेरे बच्चों से दूर रहे!" मैं गुस्से से अपने दाँत पीसते हुए बोला और स्तुति को माँ की गोदी से ले कर ऊपर आ गया| इस बार संगीता ने ऐसी गलती की थी की माँ भी उसका बचाव नहीं कर सकतीं थीं इसीलिए माँ कुछ नहीं बोलीं|

इधर ऊपर दोनों बच्चे अपनी मम्मी को ढूँढ़ते हुए कमरे में जा पहुँचे| शुक्र है की मैंने वाइन की खाली बोतल पहले ही छुपा दी थी वरना दोनों बच्चों को पता चल जाता की उनकी मम्मी ने शराब पी है! संगीता पेट के बल पड़ी नशे के कारण गहरी नींद में डूबी हुई थी इसलिए उसे कौन आया और कौन गया कुछ नहीं पता था| आयुष और नेहा दोनों पलंग पर चढ़ कर अपनी मम्मी को जगाने में लगे थे मगर संगीता उठी ही नहीं! संगीता के मुख से वाइन की हलकी सी दुर्गंध आ रही थी, जिसे सूँघ नेहा का शक़्क़ी दिमाग दौड़ने लगा था|

जब मैं स्तुति को ले कर ऊपर पहुँचा तो मुझे देख आयुष ने आवाज लगाई; "पापा जी, मम्मी उठ नहीं रहीं?" मैं आयुष के सवाल का जवाब दूँ उससे पहले मैंने नेहा को देखा जो की अपनी गर्दन झुकाये कुछ सोचने में लगी थी! "बेटा, आपकी मम्मी बहुत थकी हुई हैं इसलिए सो रही हैं| आप चलो मेरे साथ, हम सोते हैं|" मैंने दोनों बच्चों को बहलाते हुए कहा| आयुष तो मेरी बातों में आ गया मगर नेहा को शक होने लगा था|

माँ घर का दरवाजा बंद कर अपने कमरे में गईं और उनके पीछे-पीछे मैं भी बच्चों के साथ आ गया| "दादी जी, आज है न आयुष आपके साथ सोयेगा और हम दोनों बहनें (नेहा और स्तुति) पापा जी के साथ सोयेंगे|" नेहा एकदम से बोली| नेहा की बात से मैं समझ गया की उसके छोटे से मन में क्या उथल-पुथल मची हुई है, परन्तु माँ को नेहा के भीतर उठे सवालों का नहीं पता था इसलिए उन्होंने नेहा की बात मान ली और कपड़े बदल कर दोनों दादी-पोता लेट गए|

इधर हम तीनों बैठक में आ कर बैठ गए|

नेहा: पापा जी, मम्मी ने ड्रिंक (drink) की है न?

नेहा अपना शक पक्का करने के लिए मुझसे पूछने लगी| मैं नेहा को सच नहीं बताना चाहता था मगर मेरी बेटी इतनी होशियार थी की वो कैसे न कैसे अपने सवाल का जवाब ढूँढ लेती और फिर उसकी नज़र में मैं भी झूठ बन जाता इसलिए मैंने नेहा को सब सच बताया;

मैं: हाँ जी बेटा|

इतना कहते हुए मैंने नेहा को भी सारा सच कह सुनाया|

मैं: बेटा, लेकिन मुझे वादा करो की आप ये बात किसी को नहीं बताओगे वरना आपकी मम्मी की बहुत बदनामी होगी| सुबह जब आपकी मम्मी उठेंगी तो आपकी दादी जी उनसे बात करेंगी|

नेहा: मैं वादा करती हूँ पापा जी, मैं हमारे घर की बातें किसी को नहीं बताऊँगी|

इतना कह नेहा मेरे गले लग गई|

मैं: मेरा प्यारा बच्चा!

मैंने नेहा के सर को चूमते हुए गर्व से कहा|

बच्चों के कमरे में मामी जी और संगीता द्वारा की गई वाइन पार्टी की महक भरी पड़ी थी, मैं नहीं चाहता था की बच्चे उस महक को सूंघें इसलिए मैंने बैठक में ही सोने का फैसला किया| सोफे की गद्दियाँ जोड़कर मैंने स्तुति के सोने के लिए गद्दा बनाया, तथा नेहा और अपने लिए मैंने 2-3 चादरें तेह लगाकर थोड़ा नरम बिस्तर बना मैं अपने दोनों हाथ पंख के समान खोलअपनी दोनों बेटियों के बीच में लेट गया| मेरे बीच में लेटते ही मेरी दोनों बेटियाँ मुझसे लिपट गईं और ख़ुशी से कहकहे लगाने लगीं| इस पल अपनी दोनों बेटियों का प्यार पा मेरा मन बिलकुल शांत था इसलिए मैंने अपनी प्यारी-प्यारी बेटियों को मीठी-मीठी कहानी बना कर सुनाई और लाड करते हुए सो गया|

[color=rgb(97,]जारी रहेगा भाग - 3 में...[/color]
 

[color=rgb(255,]अंतिम अध्याय: प्रतिकाष्ठा[/color]
[color=rgb(147,]भाग - 3 (1)[/color]


[color=rgb(163,]अब तक आपने पढ़ा:[/color]

बच्चों के कमरे में मामी जी और संगीता द्वारा की गई वाइन पार्टी की महक भरी पड़ी थी, मैं नहीं चाहता था की बच्चे उस महक को सूंघें इसलिए मैंने बैठक में ही सोने का फैसला किया| सोफे की गद्दियाँ जोड़कर मैंने स्तुति के सोने के लिए गद्दा बनाया, तथा नेहा और अपने लिए मैंने 2-3 चादरें तेह लगाकर थोड़ा नरम बिस्तर बना मैं अपने दोनों हाथ पंख के समान खोलअपनी दोनों बेटियों के बीच में लेट गया| मेरे बीच में लेटते ही मेरी दोनों बेटियाँ मुझसे लिपट गईं और ख़ुशी से कहकहे लगाने लगीं| इस पल अपनी दोनों बेटियों का प्यार पा मेरा मन बिलकुल शांत था इसलिए मैंने अपनी प्यारी-प्यारी बेटियों को मीठी-मीठी कहानी बना कर सुनाई और लाड करते हुए सो गया|

[color=rgb(251,]अब आगे:[/color]

रात
के तीन बजे संगीता की नींद खुली, कमरे में अँधेरा और सन्नाटा फैला था इसलिए संगीता डर के मारे उठ बैठी! कमरे के इस सन्नाटे में संगीता को अपने पी कर धुत्त हो कर किये काण्ड का आभास हुआ| संगीता ने जब अपने पी कर भंड होने का वाक़्या याद किया तो उसे समझ आया की उसने वाइन पीने के लालच में मेरे द्वारा बाँधी गई लक्ष्मण रेखा पार कर दी थी! इस बात को याद करते ही उसके मन में मेरे गुस्सा होने का डर घर कर गया|

फिर अगले ही पल संगीता को अपने बाएँ गाल तथा जबड़े पर दर्द महसूस हुआ, जब ये दर्द महसूस हुआ तो संगीता को मेरे द्वारा उसे थप्पड़ मारना याद आया और उस पल को याद कर संगीता का शरीर डर के मारे काँप गया! आजतक जब भी मैं संगीता पर गुस्सा हुआ हूँ, मैं उस पर चिल्लाया हूँ मगर आजतक कभी मैंने उस पर हाथ नहीं उठाया था| परन्तु इस बार मेरे संगीता पर हाथ उठाने से संगीता समझ गई थी की उसने मेरे दिल को बहुत चोटिल किया है!

जिस व्यक्ति से आप बहुत प्यार करते हो और उसी का दिल आप दुख दो तो आपकी अंतरात्मा आपको चैन नहीं लेने देती, दिल बेचैन हो जाता है! संगीता का भी इस वक़्त यही हाल था|

मैंने आजतक जब भी अपनी हद्द से ज्यादा पी है तो मेरे भीतर ग्लानि भर जाती है| ऐसा लगता है मानो 'अधिक' शराब पीने से मैं अशुद्ध हो चूका हूँ और मैं किसी को छू कर अशुद्ध न कर दूँ इसीलिए सवेरे उठ कर मैं सबसे पहले नहाता था ताकि अपने आपको शुद्ध कर सकूँ|

संगीता को भी इस समय यही ग्लानि महसूस हो रही थी इसलिए उसने रात 3 बजे नहाने का फैसला किया| बाथरूम में घुस जैसे ही संगीता ने आईने में अपना चेहरा देखा तो उसे उसके बायें गाल पर मेरे द्वारा थप्पड़ मारने पर छपी उँगलियों के निशान दिखे| अपने गाल को सहलाते हुए संगीता को समझ आ गया की आखिर क्यों उसके बाएँ जबड़े में दर्द हो रहा था!

खैर, संगीता नहाई और मुझसे माफ़ी माँगने के लिए मुझे ढूँढती हुई बच्चों के कमरे में पहुँची| मुझसे इस समय माफ़ी माँगने का फायदा ये था की कहीं माँ और बच्चे नींद से जाग न जाएं इसलिए मैं संगीता पर गुस्से से नहीं चीखता तथा संगीता को जल्दी माफ़ी मिल सकती थी| लेकिन संगीता एक बहुत बड़े भुलावे में जी रही थी!

मुझे ढूँढ़ते हुए संगीता बच्चों के कमरे में पहुँची, कमरे का दरवाजा खुला था इसलिए बाहर से ही संगीता को बिस्तर खाली दिखा, संगीता को लगा की मैं जर्रूर माँ के कमरे में हूँगा इसलिए वो दबे पॉंव माँ के कमरे में पहुँची| माँ के कमरे का दरवाजा बंद नहीं था, केवल उढ़का हुआ था| बड़ी सावधानी से संगीता ने दरवाजा खोला और अंदर बिस्तर पर देखा तो दादी-पोता आराम से सो रहे थे| अगर मैं बच्चों के कमरे में नहीं सोया था, माँ के कमरे में नहीं सोया था तो अब केवल एक ही कमरा शेष था और वो था बैठक वाला कमरा| संगीता दबे पॉंव बैठक के दरवाजे पर पहुँची और धीरे से दरवाजा खोलना चाहा मगर दरवाजा मैंने पहले ही अंदर से बंद कर रखा था!

दरअसल, मैं संगीता की होशियारी जानता था इसलिए मैंने जानबूझ कर कमरे का दरवाजा अंदर से बंद कर रखा था| संगीता का मन ग्लानि से भरा हुआ था और उसे बस मुझसे माफ़ी चाहिए थी इसलिए संगीता ने हिम्मत कर के एक बार दरवाजा खटखटाया| इधर कमरे के भीतर, मैंने दरवाजे पर खटखटाये जाने की आवाज़ सुन ली थी मगर मैं जानबूझ कर ढीठ बन कर लेटा रहा| इधर कमरे के बाहर, संगीता में दूसरी बार दरवाजा खटखटाने की हिम्मत नहीं थी इसलिए वो रुनवासी हो कर हमारे कमरे में लौट गई|

नींद आ नहीं रही थी इसलिए समय पार करने के लिए संगीता ने बच्चों और हमारे कमरे में नई चादर बिछाई तथा सुबह होने का इंतज़ार करने लगी| ठीक 5 बजे संगीता चाय बनाने घुसी और चाय ले कर माँ के कमरे में पहुँची| बाकी दिन जब संगीता सुबह चाय ले कर माँ के पास आती थी तो माँ को चाय दे कर माँ का आशीर्वाद लेती थी, माँ भी संगीता के सर पर हाथ रख मुस्कुराते हुए उसे आशीर्वाद देतीं| परन्तु आज जब संगीता चाय ले कर आई तो माँ के चेहरे पर कोई मुस्कान नहीं थी| माँ के चेहरे पर मुस्कान न देख संगीता समझ गई की माँ को सब पता है इसलिए संगीता ने चाय टेबल पर रखी और सीधा माँ के पॉंव में जा गिरी; "माँ...मुझे माफ़ कर दो! मुझसे बहुत बड़ी गलती हो गई! मैंने..." संगीता आगे कुछ कहे उससे पहले ही माँ ने संगीता के दोनों कँधे पकड़ उसे उठाया और अपने सामने बिठा कर समझने लगी; "बहु, जो हुआ वो कतई सही नहीं था! तू सबसे पहले एक माँ है और एक माँ को अपनी जर्रूरतों...अपनी इच्छाओं से पहले अपने बच्चों के बारे में सोचना होता है| शूगी (स्तुति) अभी साल भर की हुई है और ऐसे में उसे अब भी तेरे दूध की जर्रूरत है, लेकिन तेरे शराब पीने से तेरा दूध स्तुति को नुक्सान पहुँचा सकता है| मैं मानती हूँ की तेरा मन होगा शराब पीने का मगर बेटा, अपनी जुबान के स्वाद पर हमारा काबू होना बहुत जर्रूरी होता है न?! इंसान को अपनी इच्छाओं पर काबू रखना सीखना चाहिए क्योंकि इच्छाएँ कभी खत्म नहीं होतीं|

फिर तू दूर क्यों जाती है, मानु को देख.क्या उसका मन नहीं करता शराब पीने का? लेकिन वो केवल अपने बच्चों के लिए नहीं पीता, क्योंकि वो जानता है की उसे शराब पीता हुआ देख उसके बच्चों पर गलत प्रभाव पड़ेगा|" माँ ने बड़े आराम से संगीता को बात समझाई थी|

"मुझे माफ़ कर दीजिये माँ, मैं आगे से फिर ये गलती कभी नहीं दोहराऊँगी!" संगीता ने माँ के आगे हाथ जोड़ कर माफ़ी माँगते हुए कहा|

"ठीक है बहु, ये तेरी पहली गलती थी इसलिए मैं तुझे माफ़ कर रही हूँ| दुबारा फिर तूने कभी ऐसा किया न तो मुझसे मार खायेगी तू!" माँ ने मुस्कुराते हुए संगीता को माफ़ कर दिया था तथा अपने प्यार से उसे आगे दुबारा ये गलती करने पर मिलने वाली सजा के बारे में भी चेता दिया था|

माँ की माफ़ी पा संगीता ने मानो आधी जंग जीत ली थी, अब उसे केवल मुझसे माफ़ी माँगनी थी और उसके लिए उसे अब माँ का सहारा लेना था; "माँ...वो...वो भी (यानी मैं) बहुत गुस्सा होंगें न?" संगीता ने डरते हुए माँ से मेरे बारे में सवाल पुछा|

संगीता का सवाल सुन माँ ने एक गहरी साँस छोड़ी और संगीता को कल रात के मेरे गुस्से के बारे में बताने लगीं; "मानु का गुस्सा तो तू जानती ही है न?! ऊपर से इस बार उसने तुझ पर हाथ छोड़ दिया था तो अंदाजा लगा ले की उसे कितना गुस्सा आया होगा|

तू मेरी बात ना मानती, तो मैं तुझे कुछ न कहती मगर तूने मानु की बात न मानने की जो गलती की है उससे मानु का गुस्सा उसके सर पर चढ़ा हुआ है| कल रात जब मैं घर आई तो उसने मुझे साफ़-साफ़ कह दिया की 'संगीता से कह देना की मुझसे और मेरे बच्चों से दूर रहे!' कल रात उसका ये गुस्सा देख कर तो एक पल को मैं भी डर गई थी|" माँ ने जब संगीता को मेरे गुस्से से अवगत कराया तो संगीता डर के मारे काँपने लगी, तब अपनी बहु को हिम्मत देते हुए माँ बोलीं; "तू चिंता न कर बहु, जब मानु का गुस्सा शांत होगा तो वो ठंडे दिमाग से सोचेगा और तुझे माफ़ कर देगा|" माँ ने संगीता को आश्वासन देते हुए कहा जिससे संगीता की चिंता कुछ कम हुई|

इधर माँ के कमरे के दरवाजे के पास छुप कर मैंने दोनों सास-पतुआ की बातें सुन ली थीं| जितना हलके में संगीता मुझे और मेरे गुस्से को ले रही थी उससे मेरा गुस्सा बढ़ ही रह था, कम नहीं हो रहा था|

मैं चुपचाप अपने कमरे में आ कर नहाया और पूजा करने घर के मंदिर में पहुँचा तो देखा की संगीता मुझसे पहले ही पूजा कर चुकी है| शायद कल रात पीने के कारण संगीता के मन में पैदा हुई ग्लानि ने उसे आज पहले पूजा करने के लिए प्रेरित किया था|

पूजा कर जैसे ही मैं हटा की देखता क्या हूँ की संगीता मेरे सामने सर पर पल्ला किये सर झुकाये डरी-सहमी खड़ी है| उसके भीतर कुछ कहने की शक्ति नहीं थी इसलिए वो सीधा मेरे पाँव छूने झुकी मगर मैं बिना कुछ कहे उसकी बगल से निकल गया| मेरी इस प्रतिक्रिया से संगीता का दिल तो बहुत दुख मगर वो कुछ कह नहीं पाई और सह गई!

मैं बच्चों के पास जा रहा था की माँ ने मुझे हमारे कमरे के भीतर से आवाज़ दे कर अपने पास बुलाया;

माँ: बेटा, तू स्तुति और नेहा बैठक के फर्श पर क्यों सोये?

मैं: बच्चों के कमरे में वाइन की बू आ रही थी और सारा बिस्तर तहस-नहस हो चूका था| मैं थका हुआ था इसलिए मुझ में इतनी हिम्मत नहीं थी की मैं बच्चों का कमरा साफ़-सुथरा करूँ...

मैं आगे कुछ कहता उससे पहले ही माँ मेरी बात काटते हुए बोलीं;

माँ: अरे बेटा, तो मेरे पास आ कर सो जाता?!

मैं: एक पलंग पर हम पाँचों कैसे सोते? आपके कमरे में भी मुझे फर्श पर सोना पड़ता इसलिए मैंने सोचा की बैठक में ही सो जाता हूँ|

माँ: बेटा फोल्डिंग वाली चारपाई है न हमारे पास, वो क्यों नहीं निकाली तूने?

मैं: माँ वो ऊपर वाली छत पर रखी है, अब कौन उसे ऊपर से उतारे झाड़े-पोंछें...

मैंने मुँह बनाते हुए कहा| दरअसल हम माँ-बेटे की बात संगीता पीछे खड़े हो कर सुन रही थी और संगीता की मौजूदगी से मुझे चिढ हो रही थी इसीलिए मैं माँ के सवालों से थोड़ा चिढ़ा हुआ था| माँ मेरी चिढ समझ गईं और उन्होंने बात खत्म कर दी;

माँ: अच्छा ठीक है बेटा, चल बैठ मेरे पास|

ये कहते हुए माँ ने मुझे अपने पास बिठाया और मेरा गुस्सा शांत करने लगीं;

माँ: बेटा, ज़िन्दगी में कई बार इंसान को लालच का सामना करना पड़ता है| लालच एक ऐसी बला है जो अच्छे खासे इंसान को पथ-भ्रमित कर देता है| कल जो कुछ हुआ, वो नहीं होना चाहिए था और इसमें संगीता की इतनी ही गलती है की उसे वाइन पीने का लालच आ गया था|

जब माँ ने संगीता का बचाव करने के लिए लालच शब्द का जिक्र किया तो मुझे ये माँ का संगीता के प्रति अत्यधिक झुकाव लगा और मैं चिढ़ते हुए बोल पड़ा;

मैं: आप जो लालच की परिभाषा दे रहे हो उसमें व्यक्ति को अपने लालच का परिणाम नहीं मालूम होता| लेकिन यहाँ मैंने संगीता को अच्छे से चेता दिया था की उसके वाइन पीने से मैं तो नाराज़ हूँगा ही, साथ में मेरी बेटी स्तुति को मिलने वाली दूध दूषित हो जायेगा| अगर इतने खुले शब्दों में कही हुई बात का भी कोई जानबूझ कर मान न रखे तो इसका क्या मतलब होता है ये आप ही बताइये?

मैंने गुस्से में संगीता की ओर देखते हुए माँ से सवाल पुछा| अब जैसा की होता है, माँ फिर से संगीता के बचाव में लग गईं;

माँ: बेटा, लालच इंसान की अक्ल पर पत्थर डाल देता है|

माँ ने बात गोलमोल कर मुझे भटकाना चाहा मगर मैं बिलकुल नहीं भटका और माँ की बात का उत्तर देते हुए बोला;

मैं: वाइन न हो गई अमृत हो गया की उसे पीने के लालच में मेरी बात को दरकिनार कर दिया गया, यहाँ तक की मेरी बेटी के दूध पीने की बात को ताख पर रख दिया गया! आप जितना मर्ज़ी संगीता का बचाव कर लो, जितने मर्ज़ी तर्क दे दो मगर सच ये है की संगीता हमेशा अपनी ख़ुशी या गुस्से के आगे मेरी बात को ताख पर रख देती है| मुझे वादा करके तोड़ देने में संगीता को कुछ ज्यादा ही मज़ा आता है|

मैं गुस्से में बोला और मेरा ये गुस्सा देख संगीता दहल गई तथा उसने डर के मारे रोना शुरू कर दिया| संगीता के आँसूँ देख माँ एकदम से पिघल गईं और संगीता को अपने गले से लगा उसके सर पर हाथ फेरते हुए मुझसे.अपने बेटे से ही अकड़ कर बोलीं;

माँ: हो गई गलती संगीता से! माफ़ कर दे उसे! आगे से नहीं करेगी ऐसा ...

जैसे ही माँ ने फिर संगीता का बचाव किया, मैं एकदम से उनकी बात काटते हुए बोला;

मैं: गलती एक बार होती है माँ...बार-बार नहीं! पूछो 'इससे' की इसने गाँव में मुझसे कभी शराब न पीने का वादा किया था की नहीं? लेकिन अपने किये हुए वादे याद रहते हैं कभी 'इन्हें'?

मैं आज इतना गुस्से में था की आज संगीता के लिए पहली बार मेरे मुँह से 'इससे' और 'इन्हें' जैसे शब्द निकले थे|

उधर मेरे गर्म तेवर देख माँ को भी गुस्सा आ गया और वो मुझे ही चुप करवाते हुए बोलीं;

माँ: अच्छा बस! हो गई गलती बहु से, माफ़ कर दे उसे!

माँ गुस्से में मुझ पर बरस पड़ीं और मुझे संगीता को माफ़ करने का आदेश देने लगीं| ऐसा लगता था मानो वो मुझे संगीता को माफ़ करने को नहीं मुझसे कर्ज़ा वापस माँग रही हों!

मैं: नहीं माँ, मेरी बात ना मानने...मुझे किया हुआ वादा तोड़ने के लिए मैं शायद संगीता को माफ़ कर भी देता लेकिन उसकी वजह से जो मेरी बिटिया को डब्बे का दूध पीना पड़ा उसके लिए मैं उसे कभी माफ़ नहीं कर सकता!

मैं गुस्से में बोला और उठ खड़ा हुआ| मेरा गुस्सा देख माँ समझ गईं की जबतक मेरे सर पर गुस्से का भूत सवार है मैं उनकी बात नहीं मनाऊँगा इसलिए उन्होंने मुझे भावुक करते हुए बड़े आराम से पुछा;

माँ: तो क्या तू बहु से सारी उम्र बता नहीं करेगा?

माँ ने ये सवाल केवल मेरा मन टटोलने के लिए पुछा था की, क्या मैं उनके संगीता का वास्ता देने पर भी शांत नहीं हूँगा?

मैं: नहीं! और अपनी बहु से कह देना की वो मुझसे और मेरे बच्चों से दूर रहे!

मैं अपनी गुस्से की आग में जलते हुए बोला और छत पर अपना दिमाग ठंडा करने के लिए चला आया| गुस्से से अँधा व्यक्ति किसी की नहीं सुनता, यही कारण था की मैं इस वक़्त अपने गुस्से में अँधा हो माँ की बात नहीं मान रहा था|

मैं तो गुस्से में बाहर छत पर आ गया था, उधर कमरे के भीतर मेरे गुस्से से डर के मारे संगीता का रो-रो कर बुरा हाल था| माँ ने बड़ी मुश्किल से संगीता को लाड कर हिम्मत रखने का दिलासा दे कर चुप कराया| अब मेरा गुस्सा शांत करना था तो उसका रास्ता माँ ने अपनी चतुराई दिखाते हुए खोज निकाला| मेरा गुस्सा केवल मेरे बच्चे शांत कर सकते थे इसलिए माँ ने मेरी दुखती रग़ यानी स्तुति को जगाया| स्तुति को गोदी में ले कर माँ छत पर पहुँची, मैं इस समय अपने दोनों हाथ बाँधे सामने सड़क की ओर देख रहा था| माँ की तरफ मेरी पीठ थी इसलिए माँ ने स्तुति को गोदी से उतार कर फर्श पर छोड़ दिया| मुझे देख मेरी लाड़ली बिटिया अपने दोनों हाथों-पॉंव पर रेंगते हुए आई और सीधा मेरा दायाँ पैर पकड़ लिया|

जैसे ही स्तुति ने मेरे पॉंव को छुआ मैं चौंक गया और स्तुति को अपनी टांग से लिपटा हुआ देख मैं अपना सारा गुस्सा भुला बैठा! "अले.मेरा प्यारा बच्चा जाग गया?!" मैंने स्तुति को गोदी में उठाते हुए उसके गाल चूमते हुए कहा| मेरी गोदी में आ कर स्तुति चहकने लगी और उसकी किलकारियाँ गूँजने लगी| "पपई...पपई...दिद्दा!" स्तुति ने अपनी बड़ी दीदी का नाम ले शिकायत करते हुए घर के अंदर जाने का इशारा किया| जब भी स्तुति को कोई डाँटता था तो वो मेरे घर आने पर, मेरी गोदी में चढ़ उस शक़्स का नाम ले कर बता देती थी की उसे किसने डाँटा है इसीलिए जब स्तुति ने दिद्दा कहा तो मैं समझ गया की जर्रूर नेहा ने स्तुति को डाँटा है|

मैं स्तुति को लाड करते हुए घर के भीतर आया और गलती से नेहा का नाम पुकारने के बजाए "दिद्दा" कह कर पुकारा| मेरे द्वारा 'दिद्दा' पुकारने पर नेहा खिलखिलाते हुए बाहर आई| जब मैंने नेहा को हँसते हुए देखा तो मुझे एहसास हुआ की मैंने गलती से अपनी बेटी को दिद्दा कह कर पुकारा है, नतीजन मैं भी हँस पड़ा!

उधर मेरे मुख से दिद्दा सुनना, स्तुति को कुछ अधिक ही पसंद आया था इसलिए उसने मसूड़े दिखा कर हँसना शुरू कर दिया| मेरे मुख से दिद्दा शब्द माँ और संगीता ने भी सुना था इसलिए दोनों सास-पतुआ थोड़ा सा रस लेने के लिए मुस्कुराते हुए आ गईं| "तो स्तुति की दिद्दा (नेहा) ई बताओ, काहे हमार छोट बिटिया का डाँटत हो?" मैंने अपनी हँसी रोकते हुए नेहा से देहाती में सवाल पुछा| एक शहरी लड़के के मुख से देहाती सुनने में बड़ी हँसी आती है, यही हाल उस वक़्त माँ, संगीता और नेहा का था| तीनों मेरी देहाती सुन कर खिलखिलाकर हँसे जा रहे थे| अरे और तो और, स्तुति को भी मेरे मुख से ये बोली भाषा सुनने में बहुत मज़ा आया था और वो भी मेरी गोदी में कहकहे लगा रही थी!

"पापा जी, हम आराम से सोवत रहन, लेकिन ई 'पिद्दा' हमार कान मा जोर से चिल्लईस और हम डर के मारे जाग गईं! एहि से हम ई का तनिक डाँट दिहिन!" नेहा ने मुँह बिगाड़ते हुए स्तुति को चिढ़ाया और उसका नाम 'पिद्दा' रख दिया| जिस प्रकार स्तुति ने अपनी दीदी का नाम 'दिद्दा' रखा था वैसे ही नेहा ने स्तुति को चिढ़ाने के लिए उसका नाम 'पिद्दा' रख दिया था|

खैर, नेहा ने मेरे देहाती में पूछे सवाल का जवाब देहाती में दिया, जिसका आनंद स्तुति ने हँस कर भरपूर उठाया|

वहीं, नेहा ने जब स्तुति को पिद्दा कहा तो मुझे जोरदार हँसी आई और मेरे साथ-साथ स्तुति, माँ और संगीता भी हँसने लगे| उस एक पल के लिए अपनी दोनों बेटियों के बीच की मीठी-मीठी तक़रार देख मैं सब भूल चूका था और दिल से हँस रहा था|

"अले ले-ले!!! हमार छोट बिटिया इतनी शरारती है?!" मैं अपनी टूटी-फूटी देहाती में बोला, जिसका मज़ाक सभी ने उड़ाया!

जिस घर में कुछ मिनट पहले गुस्से और तनाव का माहौल था, उसी घर में मेरे बच्चों के कारण फिर से हँसी गूँज गई थी!

जब सबका हँसना हो गया तो मैं स्तुति को समझाते हुए बोला; "बेटा, इस तरह किसी के भी कान में नहीं चिल्लाना चाहिए! ऐसे कान में चिल्लाने से किसी को चोट लग सकती है| आपको अगर अपनी दिद्दा को तंग करना है तो ऐसे करो की आपकी दीदी को चोट न लगे!" स्तुति ने मेरी बात बड़े गौर से सुनी, अब उसे कितनी समझ आई ये मुझे नहीं पता|

हमारी हँसी की गूँज सुन आयुष जाग गया और आँख मलते हुए मेरे पास आया| मैंने आयुष को भी स्तुति की तरह गोदी में उठा लिया और आयुष मेरे कँधे पर सर रख पुनः सोने लगा| "चलो बच्चों, सब तैयार हो जाओ, हम सब मंदिर जायेंगे|" माँ अचानक से बोलीं और नेहा को तैयार होने भेजा| आयुष चूँकि अभी नींद से जगा था इसलिए वो कुनमुना रहा था| कल रात से मेरा मन खराबा था और मंदिर जा कर मेरे दिल को शांति मिलती इसलिए मैं दोनों बच्चों को ले कर बाथरूम में आ गया| सबसे पहले मैंने आयुष को ब्रश करने को कहा तथा स्तुति को टब में बिठा कर पानी भरने लगा| नल से गिर रहे पानी को देख स्तुति मस्ती करने लगी तथा पानी मेरे ऊपर उड़ाने लगी|

अपनी लाड़ली बिटिया को मस्ती करते देख, मेरे भीतर का छोटा बच्चा जाग गया और मैंने भी स्तुति पर पानी उड़ाना शुरू कर दिया| ठीक तभी आयुष ब्रश कर के आया और वो भी मेरे साथ इस पानी उड़ाने के खेल में लग गया|

आधा घंटा लगा कर हम तीनों बाप- बेटा-बेटी नाहाये और तैयार हुए| हम तीनों को तैयार देख माँ प्यार भरा तना मारते हुए बोलीं; "तुम तीनों को तो औरतों से भी ज्यादा समय लगता है तैयार होने में!" माँ की कही ये बात सुन संगीता मुँह छुपा कर हँसने लगी, पता नहीं क्यों पर मुझे उसकी ये हँसी ज़रा भी नहीं भाई!

हम सभी गाडी से मंदिर पहुँचे और दर्शन कर माँ पंडित जी से मेरी शिकायत करते हुए बोलीं; "पंडित जी, मेरे लड़के का दिमाग बहुत जल्दी गर्म हो जाता है! इसके लिए कोई पूजा-हवन की जा सकती है?" माँ ने केवल मेरी टाँग खींचने के उद्देश्य से पंडित जी से बात शुरू की थी मगर पंडित जी तो सीधा ही रत्न जड़ित अँगूठियाँ माँ को बेचने लगे!

खैर, किसी को अंगूठी पसंद आई हो या नहीं मगर स्तुति को रंग-बिरंगी अँगूठियाँ देख कर बड़ा मज़ा आया और वो अँगूठियाँ पकड़ने के चक्कर में मेरी गोदी से उतरने को छटपटाने लगी| स्तुति का अंगूठियों की तरफ आकर्षण देख आयुष बोला; "ये अँगूठियाँ बच्चे नहीं पहनते|" आयुष ने स्तुति को समझते हुए कहा मगर स्तुति को कुछ समझ आये तब न, उसकी आँखें तो केवल अंगूठियों पर गड़ी थीं!

शुक्र है माँ ने कोई अंगूठी नहीं खरीदी और हम सभी मंदिर से घर लौट आये| घर पहुँचते ही मुझे संतोष का फ़ोन आ गया और कुछ हिसाब-किताब करने के लिए मुझे साइट पर बुलाने लगा| अब मेरा मन संगीता के कारण उखड़ा हुआ था और मैं घर पर रह कर संगीता को देखते हुए अपना खून नहीं जलाना चाहता था इसलिए मैंने अपने साथ-साथ बच्चों को भी साइट पर ले जाने का फैसला कर लिया| "मेरे साथ कौन साइट पर चलना चाहता है?" मैंने तीनों बच्चों से सवाल पुछा, जिसके जवाब में आयुष और नेहा ने एक साथ अपने हाथ उठा दिए| जब स्तुति ने अपने भैया-दीदी को हाथ उठाये हुए देखा तो उसने भी देखा-देखि में अपना हाथ उठा दिया|

माँ ने जब तीनों बच्चों को यूँ हाथ उठाये हुए देखा तो वो समझ गईं की मैं आखिर क्यों बच्चों को अपने साथ साइट पर ले जाना चाहता हूँ| आयुष और नेहा तो बड़े थे इसलिए माँ को उनके मेरे साथ साइट पर जाने की कोई चिंता नहीं थी मगर स्तुति छोटी थी तथा उसके दूध पीने को ले कर माँ चिंता कर रहीं थीं; "बेटा, इन दोनों शैतानों (आयुष और नेहा) को साथ ले जा मगर स्तुति को घर छोड़ कर जा|" माँ ने जैसे ही स्तुति को घर छोड़कर जाने की बात कही तो मैं भोयें सिकोड़ते हुए माँ से बोला; "क्यों माँ?"

"बेटा, वो छोटी सी बच्ची तेरे साथ साइट पर क्या करेगी? उसे थोड़ी-थोड़ी देर में भूख लग जाती है तो वो दूध कैसे पीयेगी? हाँ संगीता को साथ ले जा रहा है तो ठीक है!" माँ ने बात खुल कर कही तथा बातों ही बातों में संगीता को मेरे साथ भेजने की तैयारी कर ली| परन्तु, मैं संगीता से दूर रहना चाहता था इसलिए मैंने माँ के सामने अपना तर्क फौरन प्रस्तुत कर दिया; "स्तुति कल की ही तरह डब्बे वाला दूध पीयेगी| मैं उसका दूध बनाने का सारा सामान अपने साथ ले जाऊँगा और स्तुति को जैसे ही भूख लगेगी मैं उसके लिए दूध बना दूँगा|" मेरी स्तुति को डब्बे का दूध पिलाने की बात, माँ को बहुत चुभी और उनके चेहरे पर गुस्से के भाव आने लगे| मेरी माँ ये मानती हैं की एक माँ का कर्तव्य होता है की वो अपने बच्चे को दूध पिलाये, यदि कोई माँ ऐसा नहीं करती तो वह दोषी है...पापन है! आज कल की मायें जो अपने फिगर (figure) को ध्यान रखते हुए अपने बच्चों को दूध पिलाना छोड़ देती हैं, ऐसी माओं से मेरी माँ सख्त नफरत करती हैं|

खैर, माँ को मेरी कही बात बहुत चुभी थी परन्तु वो मुझे बच्चों के सामने नहीं डाँटना चाहतीं थीं इसलिए उन्होंने दोनों बच्चों को जबरदस्ती दूसरे कपड़े पहनने को भेज दिया तथा मुझे डाँटने लगीं; "बस मानु! तेरा गुस्सा एक तरफ है और एक छोटी सी बच्ची को उसकी माँ द्वारा दूध पिलाने का हक़ तू एक माँ से नहीं छीन सकता!"

"माँ, आप भी जानते हो की संगीता के कल शराब पीने से उसका दूध मेरी बेटी के लिए ज़हर बन चूका है! ऐसे में क्या आप चाहते हो की संगीता मेरी बेटी स्तुति को अपना ज़हरीला दूध पिलाये?" मैंने गुस्से में अपना सवाल दागा| माँ के गुस्से के आगे मेरा गुस्सा कम हो गया था परन्तु मेरा मन शांत नहीं हुआ था|

"बेटा, संगीता ने कल दोपहर को खाया-पीया था और आज तो दूसरा दिन निकल आया है! तू क्यों इतना सोचता है?" गुस्से का जवाब गुस्से से देना माँ की आदत नहीं थी इसीलिए माँ थोड़ा नरम पड़ते हुए बोलीं|

इधर जब मैंने अपनी माँ को नरम पड़ते देखा तो मैंने भी अपना स्वर धीमे किया; "शराब का असर कम से कम 72 घंटे तक शरीर में रहता है इसलिए अगले तीन दन तक मैं स्तुति को उसकी माँ का दूध पीने नहीं दे सकता|" मैंने अपनी बात साफ़-साफ़ शब्दों में कह दी थी, इसके आगे मैं कुछ भी नहीं कहना चाहता था इसलिए मैं स्तुति को ले कर अपने कमरे में आ गया| "मुझे माफ़ करना बेटा मैं आपको आप ही की मम्मी के दूध पीने से वंचित कर रहा हूँ! लेकिन यक़ीन मानो, वो दूध आपके स्वास्थ्य के लिए नुकसानदायक है| कुछ दिन बाद आप फिर से अपनी मम्मी का दूध पी सकोगे|" मैंने अपनी छोटी सी बच्ची स्तुति से माफ़ी माँगते हुए उसे अपने दिल की बात समझाई, परन्तु मुझे नहीं लगता मेरी बिटिया रानी कुछ समझी थी| बल्कि, मुझे यूँ भावुक देख स्तुति एक पल को भावुक हो गई और मुझे हँसाने के लिए स्तुति ने मेरे दोनों गालों पर अपने नन्हे-नन्हे हाथ रख मेरी नाक को चूम लिया! मेरी बिटिया की इस एक पप्पी ने मेरा मन प्रसन्नता से भर दिया और मैं स्तुति के मस्तक को चूम गाना गुनगुनाने लगा|

मैं जोखम उठाना पसंद नहीं करता और यदि कभी जोखम उठाना भी पड़े तो मैं ये जोखम सूझ-बूझ तथा केवल अपनी जान पर उठाता हूँ, अपने बच्चों या अपनी माँ की जान पर मैं कभी किसी भी प्रकार का जोखम नहीं उठाता| यही कारण था की मैं स्तुति को उसकी माँ का दूषित दूध पिलाने का जोखम नहीं उठाना चाहता था| है तो ये मेरी बेवकूफी ही मगर कभी-कभी मैं अपनी रूढ़िवादी सोच के आगे किसी की नहीं सुनता!

हम चारों तैयार हो कर निकलने लगे तो माँ ने हमें नाश्ते के लिए रोकना चाहा, लेकिन एक बार फिर मैंने उनकी बात को टाल दिया; "हम सब बाहर खा लेंगे!" बच्चों का ख्याल कर माँ ने मुझे कुछ नहीं कहा परन्तु मुझे गुस्से से देखते हुए मुझे हुक्म अवश्य दे दिया; "दोपहर को खाना घर में खाना वरना चारों को घर से निकाल दूँगी!" माँ ने मुझे चेतावनी दी थी मगर आयुष और नेहा के लिए ये खोखली धमकी थी जिसपर मेरे दोनों बच्चे खिलखिलाकर हँसने लगे|

हम चारों गाडी में बैठ अपनी मंज़िल की ओर चल पड़े| आयुष मेरे बराबर में बैठा था और मेरे मोबाइल को गाडी से कनेक्ट कर गाने बजाने में व्यस्त था| वहीं पीछे बैठी मेरी दोनों बिटिया गाने सुन कर अपनी-अपनी आवाज़ में गा रहीं थीं| नेहा अपनी मीठी आवाज़ में गाना गुनगुना रही थी तो स्तुति "आ...द..द..द..आ..द.आ" का अपना अलग ही सुर छेड़ रही थी! जब स्तुति ने देखा की उसकी दीदी उससे सुरीला गाना गा रही हैं तो उसने अपनी दीदी को तंग करते हुए बीच में बोलना शुरू कर दिया; "दिद्दा...दिद्दा...दिद्दा"! अब नेहा को ये दखलनदाजी पसंद नहीं थी इसलिए वो चिढ गई; "चैन नहीं है न तुझे?" अपनी दिद्दा को चिढ़ा कर स्तुति को बड़ा मज़ा आया और स्तुति ने अपने मसूड़े दिखा कर हँसना शुरू कर दिया|

हम आधे रास्ते भी नहीं पहुँचे थे की स्तुति को भूख लग आई और उसने; "पपई..पपई..दूधधु" कह कर अपनी भूख से मुझे अवगत कराया| मैंने गाडी एक दूकान के पास रोकी और नेहा को पैसे देते हुए बोला; "बेटा, आप अपने, आयुष और मेरे लिए कुछ खाने को ले कर आओ तब तक मैं स्तुति का दूध बना देता हूँ|" नेहा पैसे ले कर सामने की दूकान से खाने-पीने को कुछ लेने गई और इधर मैं पिछली सीट पर स्तुति की बगल में बैठ उसका दूध बनाने लगा|

आयुष मुझे दूध बनाते हुए बड़े गौर से देखने लगा तथा उसके मन में एक सवाल पनप चूका था| इतने में नेहा हम तीनों के लिए समोसे ले आई, नेहा आगे ड्राइविंग सीट पर बैठी और दोनों भाई-बहन ने समोसे खाने शुरू कर दिए| इधर स्तुति का दूध बन गया था तो मैंने स्तुति को उसकी फीडिंग बोतल पीने के लिए दे दी| समोसे खाते हुए आयुष ने अपने मन में उठा सवाल मुझसे पूछ ही लिया; "पापा जी, स्तुति ये वाला दूध क्यों पी रही है? वो तो मम्मी का दूध पीती है न?" आयुष का सवाल सुन मैं निरुत्तर हो चूका था| यदि मैं उसे सच बता देता तो आयुष के मन में अपनी मम्मी की छबि खराब हो जाती इसलिए मैं कोई झूठ सोचने लगा|

हमेशा की तरह नेहा मेरी स्थिति समझ गई और आयुष को टोकते हुए बोली; "रोज़-रोज़ तुझे एक ही चीज खाने को दी जाए तो तू बोर हो जायेगा न? वैसे ही स्तुति मम्मी का दूध पीते-पीते बोर हो गई है इसलिए पापा जी उसे कुछ नया टेस्ट करवा रहे हैं|" नेहा ने बड़ी होशियारी से झूठ बोलते हुए सारी बात सँभाली थी| मैंने नेहा के सर पर हाथ रख उसे आशीर्वाद दिया तथा हम चारों ने गाडी में बैठे हुए मज़े से नाश्ता किया|

नाश्ता कर हमारी सवारी साइट के लिए निकल पड़ी, पेट भरा था इसलिए हम चारों ने खूब हल्ला मचाया और पूरे रास्ते गाना गुनगुनाते हुए हम साइट पहुँचे| मेरे साथ तीनों बच्चों को देख लेबर बहुत खुश हुई और सभी ने आ कर हमें घेर लिया| इतने सारे लोगों को देख मेरी गोदी में बैठी स्तुति उत्साह से खिलखिलाने लगी| "छोटी मालकिन...छोटे मालिक" की रट लगते हुए सारी लेबर लड्डू खाने की माँग करने लगी तो मैंने सबके लिए लड्डू मँगवा दिए|

अब दोनों बच्चों (आयुष और नेहा) को करनी थी मेरी मदद इसलिए वो मुझसे काम माँगने लगे| मैंने आयुष को सीमेंट की बोरी गिनने में लगा दिया और नेहा को बिल देते हुए टोटल चेक करने को कहा| मैंने ये दोनों काम बच्चों को बेमतलब ही दिए थे ताकि दोनों बच्चे व्यस्त रहें और उन्हें खुद पर गर्व हो की वो काम मेरी मदद कर रहे हैं|

इधर स्तुति को भी मेरी मदद करनी थी इसलिए वो मेरी गोदी से उतरने को छटपटाने लगी| स्तुति को मेरी गोदी में छटपटाते देख लेबर दीदी बोलीं; "अरे आप तो हमार छोटी मालकिन हो, आप थोड़े ही काम करिहो! काम तो हम सभाएँ करब!" स्तुति को "छोटी मालकिन" शब्द भा गया था इसलिए वो ये शब्द सुन मुस्कुराने लगी और कुछ पल के लिए शांत हो शर्माने लगी|

जितनी देर में साइट पर था, उतनी देर स्तुति मेरी गोदी में चैन से नहीं रही| मैं अगर संतोष के साथ हिसाब-किताब रहा होता तो स्तुति बार-बार मेरा ध्यान अपनी तरफ खींचने लगती| कभी अपनी गर्दन इधर-उधर घुमा कर कुछ न कुछ नया देखते हुए चिलाने लगती तो कभी मेरी गोदी से नीचे मिटटी में उतरने को छटपटाती| "मेरी शैतान बिटिया, एक पल मुझे काम नहीं करने देगी न?!" मैंने स्तुति की ठुड्डी सहलाते हुए कहा तो स्तुति को गुदगुदी हुई और वो खिलखिलाते हुए मुझसे लिपट गई|

[color=rgb(97,]जारी रहेगा भाग - 3(2) में...[/color]
 

[color=rgb(255,]अंतिम अध्याय: प्रतिकाष्ठा[/color]
[color=rgb(147,]भाग - 3 (2)[/color]


बहरहाल, हम चारों दोपहर के खाने के समय तक घर लौट आये और घर आते ही दोनों बच्चों ने मेरी की गई मदद का बखान अपनी दादी जी से कर दिया| मेरी गैरहाजरी में माँ ने संगीता को समझा कर, जबतक मेरा गुस्सा शांत न हो तब तक मुझसे दूर रहने को कहा था| मैंने साइट पर जाने से पहले कहा था की 3 दिन तक स्तुति अपनी माँ का दूध नहीं पीयेगी इसलिए माँ ने अगले तीन दिन तक के लिए संगीता को मेरा दिल कैसे जीतना है ये सीखा-पढ़ा दिया था|

दोपहर का खाना खा हम सभी आराम कर रहे थे| स्तुति सो चुकी थी इसलिए मैं अपने कमरे में कंप्यूटर पर कुछ काम कर रहा था| माँ और नेहा सो गए थे, परन्तु आयुष को नींद नहीं आ रही थी इसलिए वो मेरे पास आ गया| मेरा मोबाइल ले आयुष पलंग पर बैठ गेम खेलने लगा की तभी संगीता कमरे में आ गई| "आयुष बेटा, मुझे आपसे कुछ बात करनी है|" संगीता ने पलंग पर बैठते हुए कहा तो आयुष ने मोबाइल एक तरफ रख दिया| "बेटा, I'm sorry!" संगीता के मुख से सॉरी सुन आयुष असमंजस में पड़ गया और अपनी मम्मी से सीधा सवाल किया; "आप मुझे सॉरी क्यों कह रहे हो मम्मी?" संगीता जब भी जल्दबाज़ी में कोई तरकीब लड़ाती है तो वो हमेशा फँस जाती है, इस बार भी आयुष के इस सवाल ने संगीता को फँसा दिया था, बेचारी मुझे मनाने के लिए बच्चों को सॉरी बोलना चाहती थी मगर उसने ये नहीं सोचा की जब बच्चे उसके सॉरी बोलने का कारण पूछेंगे तो वो क्या जवाब देगी?!

खैर, मैं नहीं चाहता था की आयुष को सच पता चले अतः मैंने ही बीच में बोल कर बात सँभाली; "बेटा, आपकी मम्मी आपको आये दिन डाँटती रहती है न उसी के लिए आपकी मम्मी आपको सॉरी बोल रहीं हैं|" मेरी बात सुन आयुष पलंग पर खड़ा हुआ और संगीता के दोनों गालों पर अपने हाथ रखते हुए बड़े प्यार से बोला; "मम्मी, मैं गलती करता हूँ तभी तो आप डाँटते हो! फिर पापा जी कहते हैं की माँ-बाप की डाँट में हमारी भलाई छुपी होती है और आप जितना डाँटते हो उससे ज्यादा प्यार भी तो करते हो न?! आप मेरे लिए कितना स्वाद खाना बनाते हो और मेरी मन पसंद चॉकलेट खरीद कर देते हो!" आयुष के मुख से इतनी प्यारी बात सुन संगीता का दिल भर आया और उसने आयुष को अपने गले लगा लिया| इधर अपने बेटे की बात सुन मुझे आयुष पर गर्व हो रहा था की आयुष मेरी सिखाई बातें दिल से याद रखता है|

शाम के समय मैं और माँ छत पर बैठे चाय पी रहे थे तथा दोनों भाई-बहन (आयुष और स्तुति) छत पर खेल रहे थे| नेहा घर के भीतर अपनी पढ़ाई करने में व्यस्त थी तो संगीता उसे दूध बना कर देने गई| आज सुबह से ही नेहा ने मेरी तरह अपनी मम्मी से दूरी बनाई हुई थी, जिससे संगीता समझ गई थी की नेहा को कल उसके शराब पीने के बारे में पता चल गया है| चूँकि नेहा अकेली थी इसलिए संगीता ने उससे माफ़ी माँगने की सोची; "बेटा, I'm sorry!" संगीता ने अपने दोनों कान पकड़ते हुए माफ़ी माँगी और ये उम्मीद करने लगी की उसकी बेटी उसे माफ़ कर देगी| लेकिन मेरी बिटिया रानी का गुस्सा बहुत तेज़ था, आखिर उसने ये गुस्सा अपनी माँ से अनुवांशिक तौर पर जो पाया था!

"आपको पता है न की मैंने शुरू से उस आदमी (चन्दर) को कई बार शराब पीते हुए देखा है? और वो शराब पी कर आप से कितना लड़ता था, डाँटता था, मारता था...यहाँ तक की मुझे भी डाँटता-मारता था! आप अच्छे से जानते हो की मुझे शराब से कितनी नफरत है और ये जानते हुए भी आपने कल शराब पी?!

कल रात मंदिर से लौटने के बाद जब मैं आपको जगा रही थी, तभी मैंने शराब की महक सूँघ ली थी मगर मेरा मन नहीं मान रहा था की आपने शराब पी है| मेरे मन में पनपे शक को भाँपते हुए पापा जी आपको बचाने के लिए झूठ बोल रहे थे| वो तो अकेले में जब मैंने उन्हें अपनी कसम से बाँधा तब जा कर उन्होंने सच कहा|

पापा जी ने आपको मना किया था न की आपको शराब नहीं पीनी है लेकिन आपने तो उनकी बात तक को तवज्जो नहीं दी! जिनसे आप इतना प्यार करने का दावा करते हो, जब आपने उन्हीं की कही बात को नहीं माना तो मेरा ख्याल कहाँ ही आया होगा आपको!" नेहा अपनी मम्मी को ताना मारते हुए बोली|

इधर छत पर खेलते-खेलते स्तुति को भूख लग आई थी, अतः स्तुति ने "पपई...भुकु" कह कर मेरा ध्यान अपने ऊपर खींचा| मैं स्तुति को गोदी ले कर रसोई में जा रहा था जब मैंने नेहा के गुस्से में कहे शब्द सुने| "नेहा बेटा!" मैंने थोड़ी सख्त आवाज़ में नेहा को पुकारा तो दोनों माँ-बेटी मुझे देखने लगे| मुझे स्तुति को गोदी लिए हुए देख दोनों जान गए की मैंने सारी बात सुन ली है| उधर, मेरे नेहा के पुकारने और मेरी आवाज़ में सख्ती महसूस कर नेहा को अपनी गलती का आभास हुआ और उसने तुरंत अपनी मम्मी को कान पकड़ कर सॉरी कहा; "मुझे माफ़ कर दो मम्मी! मुझे आपसे इस तरह बात नहीं करनी चाहिए थी|" इतना कह नेहा सर झुकाये हुए उठी और अपना दूध का गिलास ले कर मुझे सॉरी बोलते हुए छत पर चली गई|

नेहा द्वारा कही बातें संगीता के दिल को तार-तार कर चुकी थीं और वो अपना सर झुकाये सुबक रही थी! संगीता की ये हालत देख मुझे तरस आ रहा था मगर मेरा गुस्सा मुझे कुछ कहने या करने नहीं दे रहा था| मैं स्तुति को लिए हुए रसोई में पहुँचा और स्तुति को फ्रूट काट कर खिलाने लगा| तभी नेहा अपना दूध का खाली गिलास रखने रसोई में आई| मैंने सोचा की यही सही समय है नेहा को समझाने का;

मैं: बेटा, आप बहुत छोटे हो और छोटे बच्चे अपने माँ-बाप से यूँ आवाज़ ऊँचीं कर के बात नहीं करते| ये शिष्टाचार नहीं है!

नेहा ने मेरी बात सर झुकाये हुए सुनी| नेहा का यूँ सर झुकाना उसके अपराध को स्वीकरना था|

नेहा: पापाजी, मम्मी क्यों जानबूझ कर आपको दुःख देती हैं? अगर आपने उनकी भलाई के लिए उन्हें बात समझाई तो उन्होंने क्यों आपकी बात को यूँ दरकिनार कर दिया? क्या ये गलत नहीं है?

नेहा सर झुकाये हुए बोली| मैंने नेहा की ठुड्डी पकड़ ऊपर को उठाई और समझाते हुए बोला;

मैं: बेटा, आपकी मम्मी क्यों मुझे जानबूझ कर चोट पहुँचाती हैं, अपने वादे पर क्यों अटल नहीं रहती, क्यों मेरी बातों को अहमियत नहीं देती ये सब तो मुझे नहीं पता| हाँ मुझे ये जर्रूर पता है की मेरे बच्चे मेरी सारी बातें मानते हैं, मेरी द्वारा सिखाई शिष्टाचार वाली बातें हमेशा याद रखते हैं और मेरे लिए ये ही काफी है|

नेहा को मेरा जवाब उसकी मम्मी का बचाव करना लगा इसलिए नेहा एकदम से बोली;

नेहा: मैं, आयुष और स्तुति आपकी बात इसलिए मानते हैं क्योंकि आप हमें इतना प्यार करते हो| फिर मम्मी क्यों नहीं आपकी बातें मानती? क्यों अपनी ख़ुशी को आपकी ख़ुशी से सबसे ज्यादा अहमियत देती हैं?

नेहा इस समय बिलकुल वयस्कों की तरह बात कर रही थी| उसने शुरू से मेरा और संगीता का प्यार देखा था, वो जानती थी की मैं किस हद्द तक संगीता को प्यार करने तक जा सकता था| जबकि संगीता का मेरे लिए प्यार नेहा को कभी समझ नहीं आता था, एक पल तो संगीता मुझे पाने के लिए सभी से लड़ जाती थी तो दूसरे ही पल वो मुझसे ऐसी बेरुखी से पेश आती थी मानो मैं कोई अनजान हूँ!

खैर, नेहा इतनी सी उम्र में ही अपनी माँ को आँकने लगी थी और उसकी नज़र में उसकी माँ का मेरे लिए प्यार हमेशा ही कम पड़ता था! मैं नहीं चाहता था की नेहा अभी से मेरे लिए अपनी मम्मी के प्यार को कम आंकें क्योंकि इससे नेहा की नज़र में संगीता की छबि खराब हो जाती!

मैं: बेटा, अभी आप छोटे हो और आपको अभी से अपने मम्मी-पापा को या उनके प्यार को आँकना नहीं चाहिए| आगे से आप कभी भी अपनी मम्मी से यूँ गुस्से से या ऊँची आवाज़ में बात नहीं करोगे और न ही कभी अपनी मम्मी को किसी भी प्रकार का ताना मारोगे|

संगीता ने जो किया था उसे देखते हुए नेहा की जिज्ञासा और उसके तर्कों का जवाब देना मेरे लिए मुश्किल था इसलिए मैंने बात को समाप्त कर दिया|

खैर, अपनी बात के अंत में मैंने नेहा को ऊँगली को 'न' के इशारे में हिला कर कहा था| अब जाहिर है की स्तुति को मेरा ये इशारा करना पसंद आ गया था इसलिए उसने भी अपनी ऊँगली और गर्दन न में हिलाते हुए "no...no...no" कह खुद को सबसे सयानी साबित कर दिया|

दरअसल स्तुति ने "no...no...no" कहना अपनी दादी जी से सीखा था| मेरी माँ को अंग्रेजी के केवल दो ही शब्द आते थे; "shut-up" और "no", अब माँ ने कभी स्तुति की किसी शरारत को रोकने के लिए उसे no कहा होगा जिसे स्तुति ने याद कर लिया था|

स्तुति के अपनी दीदी को "no...no...no" कहने पर मुझे और नेहा को बड़ा मज़ा आया और हम दोनों बाप-बेटी जोर से हँस पड़े|

कुछ देर बाद दिषु का फ़ोन आया और उसने बताया की वो घर आ रहा है| सूरज देवता छुप चुके थे और हम सभी अब भी छत पर बैठे थे| मैं अपने तीनों बच्चों के साथ खेल रहा था और दोनों सास-पतुआ मेरा बचपना देख बातें करने में लगे थे|

इतने में दिषु घर पहुँच गया और सीधा छत पर आ गया, उसकी गोदी में एक छोटा सा puppy था| "आंटी जी, मम्मी-पापा कुछ दिन के लिए बाहर गए हुए हैं और मुझे आज रात को काम से बाहर जाना है| तो क्या मैं अपने puppy को आपके यहाँ परसों रात तक छोड़ दूँ? ये आप सभी को बिलकुल तंग नहीं करेगा, ये काटता नहीं है, इसे मैंने जर्रूरी सुइयाँ लगवा दी हैं और ये बाथरूम भी घर के बाहर जा कर करता है|" दिषु एक साँस में बोल गया| दरअसल माँ को पालतू जानवर रखना पसंद नहीं था इसीलिए दिषु अपने puppy के बारे में सारी सफाई दे रहा था|

दिषु की बात सुन माँ मुस्कुराईं और बोलीं; "ठीक है बेटा, कोई बात नहीं|" माँ की रज़ामंदी मिलते ही दिषु खुश हो गया मगर उससे भी ज्यादा खुश तो तीनों बच्चे थे| दिषु ने जैसे ही उस छोटे से puppy को नीचे ज़मीन पर छोड़ा तीनों बच्चों ने उस पप्पी को घेर लिया| एक छोटे puppy को तीन बच्चों ने घेर लिया था इसलिए बेचारा घबरा गया और तीनों बच्चों से अपनी जान छुड़ाने को छत पर भागने लगा| नेहा और आयुष बड़े थे और फुर्तीले भी इसलिए उन्होंने बेचारे puppy का पीछा करना शुरू कर दिया, वहीं बेचारी स्तुति सबसे पीछे अपने हाथों-पॉंव पर चलते हुए बेचारे puppy को पकड़ने की कोशिश करने लगी थी|

बच्चे व्यस्त थे तो दिषु ने मुझे इशारे से जैक डैनिएल्स की बोतल माँग ली, मैं उसे ले कर अपने कमरे में आया और उसे बोतल दे दी| दिषु ने संगीता का उतरा हुआ चेहरा देख लिया था इसलिए उसने मुझसे कारण पुछा| मैंने दिषु को सारी बात बताई तो वो मुझे समझाते हुए बोला; "माफ़ कर दे यार भाभी को, हो गई उनसे गलती!" परन्तु मैं इतनी जल्दी पिघलने वाला नहीं था इसलिए मैंने बात ही बदल दी|

उधर संगीता रसोई में दिषु के लिए कुछ बनाने जा रही थी जब उसने हमारी बातें सुनी| मैं तो कमरे से बाहर आ गया परन्तु दिषु अपनी भाभी जी को समझाने के लिए रुक गया; "भाभी जी, मानु को अपनी बात अनसुनी की जाना पसंद नहीं| जब हम छोटे थे और स्कूल में थे तो मैं खेल-कूद तथा मस्ती में आगे रहता था इसलिए मेरे नंबर कम आते थे| तब मानु मुझे हिम्मत बँधाता था और पढ़ने के लिए प्रेरित करता था| जब हमारे यूनिट टेस्ट (unit test) होते थे तब वो पढ़ाई करने को ले कर मेरे पीछे पड़ जाता था, परन्तु कई बार मैं अपने कॉलोनी के बच्चों के साथ क्रिकेट खेलने में लग जाता और पढ़ाई नहीं करता था| ऐसे में मेरे फ़ैल होने पर मानु मुझे बहुत सुनाता था और मुझसे कट्टी कर लेता था| उसका ये गुस्सा शांत होने में समय लगता था और तब तक मैं उससे माफ़ी माँगता रहता, उसे ललचाने के लिए उसकी मन पसंद मैगी बनवा कर घर से लाता था| जब उसका गुस्सा शांत होता तो वो अपने आप मुझसे बात करने लगता था|

अब ये (मैं) बड़ा हो चूका है और इसका गुस्सा भी बढ़ चूका है| कुछ भी करो मगर इसके गुस्से को कभी न्योता मत दो क्योंकि अब ये अपने गुस्से पर काबू नहीं रख पाता| मैं परसों रात को आऊँगा तो एक बार फिर मानु को प्यार से समझाता हूँ|" संगीता की इस समय हालत ऐसी थी की उसे जो कोई भी उम्मीद बँधाता, संगीता एकदम से खुश हो जाती थी, अतः अपने देवर की बँधाई उम्मीद से संगीता के दिल को कुछ करार मिला|

खैर, दिषु निकलने लगा तो आयुष ने puppy का नाम पुछा; "ये मुझे मेरे घर के बाहर घूमता हुआ मिला था, अब मेरे पास मानु जैसा दिमाग तो है नहीं की मैं इसका कोई बढ़िया सा नाम रखूँ इसलिए मैंने इसका नाम 'puppy' ही रख दिया| बच्चों को ये नाम पसंद आ गया और दोनों बच्चे "puppy...puppy" कह उसे नन्हे से puppy को बुलाने लगे| दिषु ने दोनों बच्चों को puppy के खाने-पीने और बाथरूम जाने के समय के बारे में सब बताया जिसे नेहा ने अच्छे से समझ अपने पल्ले बाँध लिया|

दिषु तो चला गया मगर मैं इस puppy को देख थोड़ा-थोड़ा घबरा रहा था| हालाँकि दिषु ने कहा था की ये puppy काटेगा नहीं मगर मेरा बचपन का डर मुझे डराए जा रहा था| अब मैं अपना ये डर किसी से साझा तो कर नहीं सकता था इसलिए मैंने सोच लिया की मैं इस puppy से जितना हो सके उतना दूर रहूँगा|

रात को खाने के समय तक तीनों बच्चे उस बेचारे puppy के पीछे दौड़ते रहे| जब खाना बना तो सबसे पहले उस puppy को दूध-रोटी एक बर्तन में परोसी गई तथा पप्पी धीरे-धीरे खाने लगा, वहीं आयुष और नेहा टकटकी बाँधे उस बेचारे puppy को खाना खाते हुए देखने लगे| आयुष तो इतना उत्साही था की वो puppy को और रोटी परोसना चाहता था, लेकिन नेहा ने उसे समझाया की अधिक खाने से puppy का पेट खराब हो सकता है, तब जा कर मेरा उत्साही बेटा माना|

चलो भई, puppy ने तो खाना खा लिया अब बारी थी हम सबके खाने की| मैं अपनी लाड़ली स्तुति बिटिया को सेरेलक्स बना कर खिला रहा था की तभी puppy आ कर हमारे सामने बैठ गया और स्तुति को खाते हुए देखने लगा| अब मुझे ये अच्छा नहीं लग रहा था की मेरी बिटिया खाना खाये और एक बेचारा जानवर बैठ कर देखे इसलिए दया करते हुए मैंने एक कटोरी में थोड़ा सा सेरेलक्स उस पप्पी को डाल कर दिया| Puppy को सेरेलक्स पसंद आ गया और वो मज़े से खाने लगा| इधर स्तुति ने जब उस पप्पी को खाते हुए देखा तो वो ख़ुशी से खिलखिलाते हुए puppy को देखने लगी|

हम सभी खाना खा कर सोने जा रहे थे की नेहा ने कुछ पुराने कपड़ों को तह लगा कर puppy के लिए मुलायम सा गद्दा बना दिया| बच्चों का उस puppy से इतना मोह बन गया था की नेहा ने ये गद्दा मेरे कमरे में ही बिछा दिया और पप्पी उस गद्दे पर आ कर आराम से लेट भी गया! 'ये रात में पलंग पर तो नहीं चढ़ जायेगा न?' मैं मन ही मन खुद से सवाल पूछने लगा, तभी मेरे दिमाग ने मुझे तर्क दे कर समझाया की इतना छोटा सा जानवर भला मेरे ऊँचे पलंग पर कैसे चढ़ेगा? फिर भी अपने मन की तसल्ली करने के लिए मैंने पलंग के आस-पास से कुर्सी, स्टूल आदि हटा दिए ताकि कहीं ये पप्पी उन पर चढ़ कर पलंग पर न कूद पड़े|

मैं, आयुष, नेहा और स्तुति मेरे कमरे में सोये तथा संगीता मेरे डर के मारे माँ के कमरे में सोई| अगली सुबह ठीक 4 बजे अलार्म बजा और नेहा जाग गई| अलार्म की आवाज़ से मैं भी जाग गया था और उठ कर नेहा को देख रहा था| नेहा आँख मलते हुए उठी और घर का दरवाजा तथा छत का दरवाजा खोल कमरे में लौटी| अलार्म की आवाज़ और नेहा के द्वारा की गई चहल-पहल से puppy जाग गया था| "Puppy, चलो छत पर सुसु-पॉटी कर लो!" नेहा ने puppy के सर पर हाथ फेरते हुए कहा| Puppy ने नेहा की बात मानी और उसके पीछे-पीछे छत पर चला गया| कुछ देर टहलने के बाद puppy ने अपना नित्य-कर्म निपटाया और वापस अंदर भाग आया| इधर नेहा 4-5 पॉलिथीन अपने हाथ पर लपेट उस puppy की छी-छी साफ़ करने लगी तथा पानी डालकर अच्छे से छत को साफ़ कर कमरे में आ गई| "शाबाश मेरा बच्चा!" मैंने नेहा को गोदी में उठा कर उसके मस्तक को चूम लेट गया|

माँ सुबह 5 बजे उठ जाती हैं और बैठक में बैठ वो टी.वी. पर प्रवचन तथा भजन सुनती हैं| आज जब माँ ने टी.वी. चालु किया तो puppy आवाज़ का पीछा करते-करते वहाँ जा पहुँचा| माँ को पालतू जानवर पसंद नहीं इसलिए जब उन्होंने puppy को दरवाजे पर खड़ा देखा तो उन्होंने उसे प्यारे से चेतावनी दे डाली; "खबरदार! अंदर नहीं आना!" बेचारा puppy माँ की धमकी सुन चौखट पर ही मुँह लटका कर बैठ गया|

जैसे ही सुबह के 6 बजे, आयुष सबसे पहले जाग गया और अपने नए दोस्त puppy को ढूँढता हुआ बैठक में पहुँचा, Puppy को गोदी ले कर आयुष उसे लाड करने लगा| माँ ने जब आयुष को यूँ puppy के साथ खेलते देखा तो वो बोलीं; "बेटा, चलो स्कूल के लिए तैयार हो जाओ|" अब आयुष का मन स्कूल जाने का था नहीं, उसे तो बस अपने दोस्त के साथ खेलना था इसलिए आयुष अपने दोस्त को गोदी में लिए हुए मेरे पास आया| मैं अब भी नेहा को अपने सीने से लिपटाये सो रहा था की तभी आयुष ने पप्पी को मेरे मुँह के आगे किया और बोला; "पापा जी"| आयुष की आवाज़ सुन जैसे ही मैंने आँख खोली, मैंने अपने सामने उस puppy को देखा और उसे देख मैं एकदम से डर गया! डर के मारे मेरे चौंकने से नेहा की जाग खुल गई और उसने जब puppy का चेहरा इतने नज़दीक देखा तो उसने आयुष को पीछे धकेलते हुए कहा; "इसे क्या हमारे मुँह पर रखेगा?" नेहा थोड़ा गुस्से में उठी और आयुष को डाँटने लगी; "वैसे तो तुझसे से सुबह उठा जाता है नहीं, लेकिन आज जनाब की आँख फट से खुल गई?!" आयुष ने मुस्कुराते हुए अपनी दीदी की डाँट खाई और फिर मुझसे फ़रियाद करते हुए बोला; "पापा जी, आज स्कूल नहीं जाना| आज मैं सारा दिन puppy के साथ खेलूँगा!" वैसे तो आयुष की फ़रियाद सुन मैं पिघल जाया करता था मगर अभी जो आयुष ने शैतानी की थी उससे मैं थोड़ा घबराया हुआ था| मैं आयुष के सवाल का कुछ जवाब दूँ, उसके पहले ही नेहा ने आयुष की क्लास लगा दी; "कोई छुट्टी नहीं करनी! कल पूरा दिन छुट्टी की थी न हमने, रोज़-रोज़ क्लास का मॉनिटर ही छुट्टी करेगा तो बाकी बच्चों पर क्या असर पड़ेगा? और तेरी गर्लफ्रेंड...वो बेचारी क्या कहेगी? कहेगी की मेरा बॉयफ्रेंड तो नानमुन (छोटा बच्चा) है...कूकूर संगे खेलत है!" नेहा ने आयुष की गर्लफ्रेंड का नाम ले उसकी मर्दानगी को ललकारा था इसलिए आयुष स्कूल जाने के लिए मान ही गया|

स्कूल जाने से पहले आयुष ने puppy को नाश्ता कराया और उसे "बाय-बाय" कह स्कूल चला गया| बच्चों के जाने के बाद स्तुति जागी और मेरी गोदी में चढ़ कर खिलखिलाने लगी| फिर स्तुति ने puppy को देखा और उसे पकड़ने के लिए लालहित हो गई| तभी संगीता बाल्टी में पानी और साबुन ले कर आई और puppy से बोली; "चलो puppy जी, नहाई कर लो|" जैसे ही puppy ने संगीता के हाथों में पानी की बालटी देखि वो समझ गया की क्या होने वाला है इसलिए वो डर के मारे सीधा छत पर दौड़ गया! संगीता बेचारी उसके पीछे दौड़ी मगर puppy पकड़ में आये तब न, भागते-भागते puppy घर में वापस आया और मेरे पलंग के नीचे दुबक गया! इस पूरी भागा-दौड़ी का सबसे ज्यादा मज़ा स्तुति ने खिलखिलाकर हँसते हुए लिया|

संगीता के पास घर के और भी काम थे इसलिए उसने हार मानते हुए दिषु को फ़ोन किया तथा उसे सब बात बताई| संगीता की बात सुन दिषु हँस पड़ा और बोला; "कोई बात नहीं भाभी जी, आप उसका नहाना रहने दो|" दोनों देवर भाभी की बात मेरे और स्तुति के सामने स्पीकर पर हो रही थी इसलिए स्तुति ने आखिर अपने नए दोस्त का नाम जान ही लिया| अब स्तुति से puppy शब्द बोला नहीं जाता था इसलिए उसने उस puppy को अपना ही नाम दे दिया; "अप्पी"!!!

"अप्पी...अप्पी...अप्पी" की रट लगाते हुए स्तुति puppy को पकड़ने अपने दोनों हाथों-पैरों के बल दौड़ पड़ी| वहीं, वो बेचारा puppy स्तुति से घबराते हुए पूरे घर में दौड़ने लगा| उस puppy को स्तुति का भय ऐसा था मानो स्तुति कोई शिकारी हो और वो puppy को अभी खा जाएगी!

बहरहाल, इन दोनों की इस पकड़ा-पकड़ी में मुझे चिंता हो रही थी की कहीं वो puppy स्तुति को काट न ले इसलिए मैं स्तुति को पकड़ने के लिए उसके पीछे भाग रहा था| 5 मिनट की भागम-भाग के बाद स्तुति ने हार मान ली और थक कर ज़मीन पर बैठ गई| अगर स्तुति बोल सकती तो अवश्य कहती; "तुझे मेरे साथ नहीं खेलना तो जा भाड़ में!"

मैंने स्तुति को गोदी में उठाया और उसके कपड़े झाड़ते हुए उसे समझाने लगा; "बेटा, छोडो अप्पी को| वो अभी घर में नया है और आपको जानता नहीं इसलिए आप से घबरा रहा है| आप मेरे साथ खेलो|" अब इसे विधि की विडंबना ही कहेंगे की जिसे खुद कुत्ते से डर लग रहा था वो खुद कुत्ते की मानसिकता अपनी छोटी सी बच्ची को समझाने में लगा था!

उधर बेचारे puppy को मैं बड़ा पसंद आया था क्योंकि पूरे घर में बस एक मैं था जो की उसके पीछे अभी तक नहीं पड़ा था| आयुष और नेहा बेचारे को गोदी लेने के लिए उसके पीछे भागते थे, संगीता उसे नहलाने के लिए उस बेचारे के पीछे भागती थी, माँ ने तो बेचारे puppy को कमरे के अंदर आने से ही मना कर दिया था| और तो और मेरी छोटी बिटिया स्तुति बेचारे puppy के पीछे ऐसे भागती थी मानो उसे दबोच कर खा ही जाएगी! एक बस मैं था जिसने अनजाने में कल रात उसे थोड़ा सा सेरेलक्स खाने को दिया था और अभी कुछ देर पहले बेचारे की जान स्तुति से बचाई थी| यही कारण था की उस puppy की नज़र में मैं ही सबसे उपयुक्त दोस्त था| लेकिन वो बेचारा क्या जाने की मेरी पहले ही उससे फटती है!

बेचारा puppy आ कर मेरी बगल में चुप-चाप बैठ गया और मुझे स्तुति को बोतल से दूध पिलाते हुए देखने लगा| हम बाप-बेटी की नजरें एक दूसरे पर टिकी थीं इसलिए हमें पता ही नहीं था की puppy हमारी बगल में बैठा है| माँ ने जब उस puppy को मेरे बगल में बैठे देखा तो वो संगीता से मज़ाक करते हुए बोलीं; "ये कूकूर जरूर मानु का पिछले जन्म का दोस्त है तभी तो मानु की बगल में एकदम चुपचाप बैठा है|" माँ की बात सुन संगीता मुँह छुपाते हुए हँसने लगी| इधर कूकूर का नाम सुनते ही हम बाप-बेटी एक साथ मुड़े तो देखा puppy बड़े आराम से बैठा हमें देख रहा है| Puppy को अपने इतना नज़दीक देख स्तुति ने दूध की बोतल छोड़ दी और सीधा puppy को पकड़ने को छटपटाने लगी|

Puppy हमारे इतने नज़दीक था की मुझे डर था की वो स्तुति को काट न ले इसलिए मैंने स्तुति को जबरदस्ती पकड़े रखा और स्तुति का मन लगाने के लिए उसकी मन पसंद बॉल उसे दे दी| अब स्तुति को खेलना था puppy के साथ इसलिए स्तुति ने बॉल फेंक दी| जैसे ही puppy ने बॉल को देखा वो फौरन बॉल पकड़ने दौड़ा और बॉल अपने दाँतों में पकड़ कर मेरे पास ला कर छोड़ दी| मुझे समझ आ गया था की puppy को क्या खेल पसंद है इसलिए मैंने फिर से बॉल स्तुति के हाथ में दे दी, स्तुति ने फिर बॉल फेंकी और puppy फिर से बॉल मेरे पास पकड़ लाया| अब तो स्तुति भी खेल समझ गई थी इसलिए उसने बॉल फेकना शुरू कर दिया| कुछ इस तरह से हम तीनों ने खेलना शुरू कर दिया|

बहरहाल, दोनों बच्चों के स्कूल से आने तक ये खेल चलता रहा| खाना खा कर दोनों बच्चों ने मिलकर puppy को जबरदस्ती लाड-प्यार करना शुरू कर दिया| बेचारा puppy बच्चों से बचने के लिए मेरे पास आ जाता लेकिन दोनों बच्चे उसका पीछा नहीं छोड़ते!

अगले दिन शाम तक तीनों बच्चों ने puppy के साथ बहुत समय गुज़ारा और उसका अच्छे से ख्याल भी रखा| मैं साइट पर काम से आया हुआ था और मुझे रात घर पहुँचने में देर हो गई, तबतक दिषु घर आ कर puppy को अपने साथ ले जा चूका था| मैं जानता था की puppy के जाने से तीनों बच्चे उदास होंगें इसलिए मैं तीनों बच्चों को खुश करने के लिए कुछ ख़ास चीजें ले कर घर लौटा|

मेरे इंतज़ार में अब तक किसी ने खाना नहीं खाया था इसलिए सबसे पहले हम सबने खाना खाया और उसके बाद मैं सभी को ले कर छत पर आ गया|

मैं: मैं आप सभी को एक खुशखबरी देना चाहता हूँ|

मेरी बात सुनते ही सभी के चेहरे ख़ुशी से चमकने लगे, यहाँ तक की स्तुति भी मुस्कुराने लगी थी|

मैं: आज मैंने दो फ्लैट की एडवांस बुकिंग की है|

मैं ख़ुशी से झूमते हुए बोला| मेरी बात सुन दोनों बच्चों ने ख़ुशी से ताली बजानी शुरू कर दी, वहीं स्तुति ने जब अपनी दीदी और बड़े भैया को ताली बजाते हुए देखा तो उसने भी ताली बजानी शुरू कर दी|

माँ: मुबारक हो बेटा! इसी तरह कामयाबी की सीढ़ी चढ़ता जा!

माँ मेरी पीठ थपथपाते हुए बोली|

संगीता: मुबारक हो जी!

संगीता बड़े प्यार से बोली| आज उसकी ये प्यारभरी बोली सुन मेरे दिल में एक झुनझुनी सी उठी! पिछले तीन दिनों से मेरे दिल पर जो गुस्सा चढ़ा बैठा था वो अब जा कर नीचे उतरने लगा था|

मैं: थैंक यू!

मैंने बड़े संक्षेप में जवाब दिया क्योंकि इससे ज्यादा कह कर मैं संगीता को ये नहीं दिखाना चाहता था की मेरा गुस्सा पूरी तरह खत्म हो चूका है|

आयुष: पापा जी, एडवांस बुकिंग क्या होती है?

आयुष मेरी ख़ुशी से खुश तो था मगर उसे एडवांस बुकिंग का मतलब नहीं पता था| मैंने आयुष को पूरा मतलब समझाया तो पूरा मतलब जानकार आयुष मेरे गले लग गया|

नेहा: पापा जी, फिर तो कल हम सुबह मंदिर जायेंगे|

नेहा की बात माँ को बहुत पसंद आई और उन्होंने सुबह मंदिर जाने का फैसला सुना दिया|

मैं: ठीक है बेटा, सुबह हम सबसे पहले मंदिर जायेंगे लेकिन अभी मेरे पास आप सभी के लिए कुछ ख़ास है|

कुछ ख़ास का नाम सुनते ही दोनों बच्चे जिज्ञासु हो कर मुझे देखने लगे|

आयुष: क्या ख़ास है पापा जी?

मैं: बेटा, उसके लिए आप सभी को अपनी आँखें बंद करनी होगी और जबतक मैं न कहूँ तबतक कोई आँखें नहीं खोलेगा|

मैंने सबको आदेश दिया तथा स्तुति को गोदी में लिए हुए नीचे गाडी तक आया| गार्ड साहब के साथ मिलकर सारा सामान ले कर मैं छत पर आया| मेरे वापस आने तक किसी ने अपनी आँख नहीं खोली थी|

आयुष और स्तुति का तोहफा आकार में सबसे बड़े थे इसलिए मैंने उन्हें घर के दरवाजे के पीछे छुपा दिया| एक थैले में नेहा, माँ और संगीता का तोहफा ले कर मैं सभी के सामने बैठ गया|

मैं: अब सब अपनी आँखें खोलो|

मेरी बात सुन सभी ने अपनी आँखें खोल ली और उत्सुकता में भरे हुए मुझे देखने लगे| मैंने सबसे पहले माँ का तोहफा निकाला और माँ को देते हुए उसे तोहफा खोल कर देखने को कहा|

माँ: अरे बेटा, मेरे लिए क्यों ये सब ले कर आता है!

माँ थोड़ा चिढ़ते हुए बोलीं| दरअसल माँ के लिए मैं सलवार सूट का कपड़ा और मेटल बँगलेस (metal bangles) लाया था|

मैं: माँ, कबतक ये साड़ियाँ और ये काँच की चूड़ियाँ पहनोगे? पिताजी ने तो आपको कभी सूट पहनने नहीं दिया, अब कम से कम मेरी ख़ुशी के लिए तो पहना करो?

मैंने माँ को थोड़ा सा प्यारभरा ब्लैकमेल किया और माँ के चेहरे पर मुस्कान आ गई|

माँ: ठीक है बेटा, तेरी ख़ुशी के लिए सब पहनूँगी|

माँ मुझे आशीर्वाद देते हुए मुस्कुरा कर बोलीं|

मैं: कल के कल ही संगीता के साथ जा कर इसे सिलवाने दे देना वरना मैं आपसे नाराज़ हो जाऊँगा|

मेरी खोखली धमकी सुन माँ हँस पड़ीं और कल जाने के लिए मान गईं|

अब बारी थी संगीता के तोहफे की और उसके लिए मैं एक बाँधनी की साडी तथा राजस्थानी डिज़ाइन का हार (necklace) लाया था, ये हार सोने-चांदी का नहीं बल्कि हैंडमेड था जो की मैंने दिल्ली हाट से खरीदा था| भले संगीता से गुस्सा सही मगर उसके लिए तोहफा मैं बहुत चुन कर लाया था| जब मैं संगीता को तोहफा दे रहा था तो संगीता बहुत खुश थी और उसे लग रहा था की मैंने उसे माफ़ कर दिया है|

संगीता: थैंक यू जी!

संगीता बड़ी अदा के साथ शर्माते हुए बोली| हम दोनों के चेहरे पर आई ये छोटी सी मुस्कराहट देख माँ समझ गईं की हमारे बीच सब कुछ सामान्य होने जा रहा है|

माँ: चल भई, कल हम दोनों जा कर अपने-अपने कपड़ों का माप दे आएंगे|

माँ संगीता से बोलीं और कल दर्जी के पास जाने का समय तय करने लगीं|

मैं: अरे अभी रुको! पहले बच्चों का तोहफा तो देख लो?! अपने-अपने तोहफे पा कर आप दोनों तो मेरे बच्चों को भूल गए!

मैंने माँ और संगीता को प्यार से ताना मारा|

माँ: अरे दादा रे! चलो, अब सब चुप! अब हम तीनों बच्चों के तोहफे देखेंगे|

माँ ने मज़ाक करते हुए कहा|

अब बारी आई थी नेहा के तोहफे की और ये बात नेहा भी जानती थी की अब उसी को तोहफा मिलेगा| मैंने नेहा को एक रंग-बिरंगे कागज़ से लिपटा हुआ एक गत्ते का डिब्बा दिया| नेहा ने बड़ी सावधानी से कागज उतारा और जब उसने गत्ते के डब्बे पर छपे हुए मोबाइल फ़ोन की तस्वीर देखि तो वो जान गई की उसे तोहफे में मोबाइल फ़ोन मिला है| नेहा एकदम से उठी और फ़ोन लिए हुए मुझसे लिपट कर सिसकने लगी|

मैं: बस मेरा बच्चा! अब आप बड़े हो गए हो, जिम्मेदार हो गए हो तो अब मैं आपको थोड़ी सी जिम्मेदारी और दे रहा हूँ|

मैंने नेहा को लाड करते हुए कहा| दरअसल, नेहा बड़ी हो रही थी और उसकी उम्र में सभी बच्चों के पास उनके अपने मोबाइल फ़ोन थे| मेरी बेटी मुझसे अपनी इस जर्रूरत पर पैसे खर्चा नहीं करवाना चाहती थी इसीलिए वो कभी अपनी मम्मी तो कभी अपनी दादी जी के फ़ोन से अपने दोस्तों से फ़ोन पर बात करती थी|

नेहा ने मेरे दोनों गालों पर पप्पी दी और मुझे थैंक यू बोलते हुए फिर से मेरे गले लग गई|

मैं: बेटा, ये फ़ोन ज्यादा महँगा नहीं है क्योंकि अभी आप महँगा फ़ोन सँभालने लायक बड़े नहीं हुए हो| पहले आप इस फ़ोन को सँभालना सीखो, इस फ़ोन के खर्चे सँभालना सीखो फिर बाद में मैं आपको महँगा फ़ोन ला दूँगा|

मेरी बात सुन नेहा ने बड़े जोर-शोर से ये जिम्मेदारी अपने सर ले ली|

मैं: बेटा, आपको इस फ़ोन के रिचार्ज के लिए महीने का 300/- रूपये खर्च आपकी जेब खर्ची के साथ मिलेगा और आपको इसी खर्चे में पूरा महीना काटना होगा| न मैं, ना आपकी मम्मी और न ही आपकी दादी जी आपको इन 300/- से अधिक कोई पैसा देंगे|

मैंने साफ़ शब्दों में नेहा को उसके मोबाइल का महीने का बजट उसे समझा दिया था|

नेहा: ठीक है पापा जी, मैं इस बजट का पूरा ख्याल रखूँगी|

नेहा ने ख़ुशी-ख़ुशी अपनी ज़िम्मेदारी उठाई|

नेहा ने अपना नया फ़ोन डब्बे से निकाला और सबसे पहले अपनी दादी जी को दिखाया, माँ ने नेहा को आशीर्वाद देते हुए फ़ोन सँभाल कर रखने की सलाह दी| फिर नेहा ने फ़ोन अपनी मम्मी को दिखाया, संगीता ने भी माँ की ही तरह नेहा को आशीर्वाद दिया और अपनी तरफ से फ़ोन चलाने की सलाह देने लगी|

नेहा को नया फ़ोन मिला था और सभी ने ये फ़ोन देखा था, सिवाए स्तुति के इसलिए स्तुति को गुस्सा आने लगा था| स्तुति मेरी गोदी से नीचे उतरने को छटपटाने लगी, परन्तु अगर मैं स्तुति को नीचे उतार देता तो वो नेहा का फ़ोन हाथ में लेने के लिए ज़िद्द करती इसलिए मैं स्तुति को बहलाने लगा मगर स्तुति की नज़र टिकी हुई थी अपनी दीदी के नए फ़ोन पर! "दिद्दा...दिद्दा...द...द..." कहते हुए स्तुति अपनी दिद्दा नेहा से फ़ोन माँगने लगी|

"बेटा, स्तुति को फ़ोन मत देना वरना वो गिराकर तोड़ देगी!" माँ नेहा को इशारा करते हुए बोलीं ताकि नेहा अपना फ़ोन तुरंत छुपा ले| इधर मेरी छोटी बिटिया फ़ोन अपने हाथ में लेने को छटपटा रही थी|

मैं स्तुति की इस जिद्द के बारे में जानता था इसलिए मैंने इसका उपाए पहले ही सोच रखा था| "अच्छा ये लो...ये लो आपका नया मोबाइल फ़ोन!" ये कहते हुए मैंने थैले में से एक खिलौने वाला फ़ोन निकाल कर स्तुति को दिया| चमकीले रंग वाला खिलौने का फ़ोन देख स्तुति खुश हो गई और उसने फौरन उस फ़ोन को अपने मुँह में रख चख कर देखा! फ़ोन चखने के बाद मैंने स्तुति को फ़ोन के बटन दिखाए और उन्हें दबाने को कहा| एक-एक कर स्तुति ने खिलौने वाले फ़ोन के बटन दबा कर देखे और फ़ोन से निकलने वाली रौशनी तथा अलग-अलग आवाजें सुन स्तुति बहुत खुश हुई और खिलखिलाने लगी|

स्तुति अपने फ़ोन के साथ व्यस्त हो गई थी, इधर नेहा ने अपना फ़ोन आयुष को दिखाते हुए कहा; "अगर तुझे मेरा नंबर अपने दोस्तों को देना है तो दे दियो लेकिन ये फ़ोन टूटना नहीं चाहिए और न ही तू अपने दोस्तों से बात कर के सारे पैसे खत्म करेगा वरना तुझे डंडे से पीटूँगी!" नेहा ने बड़ी बहन होते हुए अपने फ़ोन को इस्तेमाल करने का हक़ आयुष को दिया था तथा उसे सावधानी बरतने की भी चेतावनी दे दी थी|

[color=rgb(97,]जारी रहेगा भाग - 3(3) में...[/color]
 

[color=rgb(255,]अंतिम अध्याय: प्रतिकाष्ठा[/color]
[color=rgb(147,]भाग - 3 (3)[/color]

दोनों भाई-बहन नए फ़ोन में व्यस्त हो गए थे तो मैंने ही आयुष के तोहफे की सबको याद दिलाई;

मैं: आयुष का तोहफा किसी को नहीं देखना क्या?

मेरी बात सुन सभी मुझे आँखें बड़ी कर के अस्चर्य से देखने लगे, दरअसल सबको लगा था की मैं बस यही तोहफे लाया हूँ| खैर, मैंने स्तुति को माँ की गोदी में बिठाया और सभी को फिर से आँखें मूंदने का आदेश दिया| स्तुति को छोड़ सभी ने मेरा आदेश माना और अपनी-अपनी आँखें मूँद ली| मैं घर के अंदर आया और आयुष का तोहफा, यानी की उसकी नई साईकिल उठा कर छत पर लाया|

मैं: अब सब लोग अपनी आँखें खोलो|

मेरे इतना कहते ही सबसे पहले आयुष ने आँखें खोली और अपनी नई साईकिल देख ख़ुशी से कूदने लगा! इस समय आयुष ख़ुशी से फूला नहीं समा रहा था और उसे यूँ प्रसन्न देख हम सभी के दिलों का अजब सा सुकून मिल रहा था|

ख़ुशी से कूदते हुए आयुष मेरे पास आया और मैंने उसे गोदी में उठा लिया, मेरे गालों पर अपनी मीठी-मीठी पप्पी करते हुए आयुष मुझे थैंक यू बोला| मैंने भी आयुष के सर पर हाथ फेरते हुए उसे आशीर्वाद दिया तथा उसे गोदी से उतार उसे उसकी साईकिल के बारे में समझाने लगा;

मैं: बेटा, अभी आपको साईकिल चलानी नहीं आती इसलिए अभी आपकी साईकिल में ये ट्रेनिंग व्हील्स (training wheels) लगे हैं| इनकी सहायता से आप साईकिल चलाना सीखते हुए गिरोगे नहीं| जब आपको साइकिल बैलेंस करनी आ जायेगी तो मैं इन्हें निकाल दूँगा|

दूसरी और सबसे जर्रूरी बात, आप अपनी साईकिल मेरे बिना पूछे कभी नीचे नहीं ले जाओगे| आपको ये साईकिल केवल छत पर ही चलानी है| शाम को जब मैं घर लौटूँगा तो हम सब सैर करने के लिए पार्क जायेंगे जहाँ आप खुल कर अपनी साईकिल चला सकते हो|

मेरी दोनों बातें आयुष ने अपने पल्ले बाँध ली थीं| अब समय था आयुष को उसकी साईकिल चलाने देने का, मैंने साईकिल पीछे से पकड़ ली और आयुष हैंडल पकड़ते हुए अपनी साईकिल की गद्दी पर बैठ गया| आयुष के साईकिल पर बैठते ही संगीता, माँ, नेहा तथा स्तुति, साईकिल को घेर कर खड़े हो गए|

माँ: अरे भई वाह, आयुष की नई साईकिल तो बहुत बढ़िया है|

माँ ने जैसे ही आयुष की साईकिल की तारीफ की आयुष एकदम से बोला;

आयुष: दादी जी, अब से मैं आपको अपनी साईकिल पर बिठा कर छत पर घुमाऊँगा|

आयुष की बचकानी बात सुन सभी हँस पड़े| दरअसल, आयुष की साईकिल में पीछे किसी के भी बैठने की जगह नहीं थी मगर मेरा बेटा इतना उत्साही था की उसका बस चलता तो हम सभी को अपनी साईकिल के पीछे बिठा लेता!

संगीता: ये सही कहा बेटा तूने! तू अपनी साईकिल पर बिठा कर माँ को छत पर घुमा दियो और मुझे साईकिल पर बिठा कर सब्जी लेने चलिओ|

संगीता ने मज़ाक करते हुए कहा मगर मेरे बेटे ने इस बात को सच मान लिया और ख़ुशी-ख़ुशी अपनी मम्मी को अपनी साईकिल पर बिठा कर सब्जी लाने जाने को तैयार हो गया|

मैं: अच्छा बेटा, अब अपनी साईकिल चलाओ तो सही|

मैंने आयुष को साईकिल चलाने की याद दिलाई मगर आयुष ने आजतक कभी साईकिल नहीं चलाई थी इसलिए वो गिरने के डर से डरा हुआ था| मैंने आयुष की मदद के लिए साईकिल पीछे से पकड़ी और आयुष को धीरे-धीरे पेडल मारने को कहा| मेरी बात मानते हुए आयुष ने धीरे-धीरे पेडल मारा और मैंने साईकिल का हैंडल सीधा पकड़ा ताकि कहीं आयुष साईकिल इधर-उधर न टकरा दे! मिनट भर नहीं हुआ होगा की आयुष को साईकिल चलाने का आत्मविश्वास आने लगा और मैंने चुप-चाप साईकिल छोड़ दी|

छत का पूरा एक चक्कर काट कर आयुष हमारे पास लौटा और साईकिल से उतर कर मेरी टांगों से लिपट कर थैंक यू कहने लगा| "दीदी, अब आपकी बारी|" आयुष ने नेहा को अपनी साईकिल पर बैठने को कहा मगर नेहा को साईकिल से गिरने का भय अधिक था इसलिए वो डर के मारे न में सर हिलाने लगी|

हरबार मेरी बिटिया मेरी इज्जत बचाने आगे आती थी इसलिए इस बार मैं नेहा का डर छुपाने के लिए आगे आया; "बेटा, ये साईकिल नेहा के लिए छोटी है| उसकी टांगें पेडल मारते हुए हैंडल से लड़ेंगी, ये साईकिल सिर्फ आप चलोगे|" मैंने बात बनाते हुए आयुष को समझाया| चूँकि, मैंने नेहा के डर को भाँपते हुए बात को अच्छे से सँभाला था इसलिए नेहा आ कर मेरी कमर से लिपट गई|

उधर माँ की गोदी में बैठी स्तुति नई साईकिल देख कर चलाना चाहती थी इसलिए वो माँ की गोदी से उतरकर साईकिल पर बैठने को छटपटाने लगी| "ओ नानी, तू कहाँ बैठेगी साईकिल पर?" माँ हँसते हुए स्तुति से बोली मगर स्तुति का मन अपने बड़े भैया की चमचमाती हुई साईकिल पर आ गया था इसलिए उसका छटपटाना जारी रहा| मैंने माँ की गोदी से स्तुति को लिया और उसे थामे हुए साईकिल की गद्दी पर बिठा दिया| साईकिल पर बैठ न तो स्तुति के पैर पेडल तक पहुँचते और न ही उसके नन्हे-नन्हे हाथ हैंडल तक पहुँचते| अब ऐसी साईकिल का क्या फायदा जिसे आप चला नहीं सकते, यही सोचते हुए स्तुति का मन साईकिल पर से ऊब गया और वो साईकिल से उतरने को छटपटाने लगी, स्तुति का ये बालपन देख सभी हँस पड़े; "कहा था न माँ ने की तू साईकिल पर बैठ कर क्या करेगी?!" संगीता ने स्तुति का मज़ाक उड़ाया तो स्तुति नाराज़ हो कर मुझसे लिपट गई|

अब मुझे सभी को अंतिम सरप्राइज देना था इसलिए मैंने स्तुति को माँ की गोदी में देते हुए एक बार फिर से सभी को आँखें बंद करने का आदेश दिया| इसलिएमेरी बात सुन सभी हैरान थे की आज मैं कितने तोहफे लाया हूँ जो की खत्म होने का नाम ही नहीं लेते!

मैं फिर एक बार घर के भीतर गया और वहाँ से स्तुति के लिए लाया हुआ बेबी वॉकर (baby walker) ले आया| "अब सब आँखें खोलिये|" मेरी बात सुन सभी ने झट से आँखें खोली और स्तुति का बेबी वॉकर देख सभी खुश हुए| मैंने माँ की गोदी से स्तुति को लिया तथा उसे वॉकर में बिठा दिया| स्तुति को उसका नया वॉकर बहुत पसंद आया था और अपनी ख़ुशी वो व्यक्त करने के लिए स्तुति ने मसूड़े दिखा कर हॅंसना शुरू कर दिया| "ये बहुत अच्छा किया तूने बेटा! मैं खुद तुझे कहने वाले थी की स्तुति के लिए एक वॉकर ले आ|" माँ मेरी पीठ थपथपाते हुए बोलीं| इधर अपना नया वॉकर पा कर स्तुति अतिउत्साहित थी| मैंने स्तुति को वॉकर के इस्तेमाल से चलना सिखाया मगर स्तुति को सीधे खड़े हो कर चलने की आदत नहीं थी इसलिए स्तुति को मज़ा आये उसके लिए मैंने वॉकर को धीरे-धीरे आगे की तरफ खींचना शुरू कर दिया| जब वॉकर चलने लगा तो स्तुति ने अपनी टांगें ऊपर की ओर उठा लीं और वॉकर की सवारी का आनंद उठाने लगी|

जितना आनद स्तुति वॉकर में बैठ कर उठा रही थी उतना ही आनंद हम सभी को स्तुति की किलकारियाँ सुन कर आ रहा था| इसी आनंद का लाभ उठाने के लिए मेरे बाद दोनों बच्चों ने भी स्तुति के वॉकर को धीरे-धीरे धक्का देते हुए पूरी छत पर घुमाने लगे|

खैर, अब सभी को तोहफे देने का कार्यक्रम समाप्त हो चूका था| कहने की जर्रूरत तो नहीं की सभी को अपने-अपने तोहफे बहुत पसंद आये थे| रात बहुत हो रही थी इसलिए अब सोने का समय था, तो अपने तीनों बच्चों को अपने साथ लिए हुए मैं कमरे में आया| आज की गई मस्ती का असर था की तीनों बच्चे आधी कहानी सुनते-सुनते सो गए|

बच्चे तो सो गए मगर मेरा मन आज कुछ उदास था| इतने दिनों से मैं जो संगीता के लिए गुस्सा पाले बैठा था, वो गुस्सा अब खत्म हो चूका था| ऐसा नहीं था की संगीता से गुस्सा हो कर मुझे मज़ा आ रहा था, बल्कि उससे नाराज़ रह कर मेरे दिल को उसकी कमी महसूस होने लगी थी, वो तो मुझे बच्चों का सहारा था जिनसे लाड-प्यार कर मैं संगीता के प्यार की कमी को पूरा कर लेता था|

मैं ये भी जानता था की मेरे खुद को और स्तुति को संगीता से दूर रखने से न केवल उसके दिल को चोट पहुँच रही है बल्कि उसे शरीरिक पीड़ा भी हो रही है! संगीता का जिस्म अपनी बेटी के लिए दूध बनाता था मगर मेरे स्तुति को ये दूध न पीने देने से संगीता को शरीरिक पीड़ा हो रही थी जिसे वो सभी से छुपा रही थी| अब चूँकि हम दोनों के दिल कनेक्टेड हैं तो मैं उसकी इस पीड़ा को महसूस कर रहा था मगर फिर भी जानबूझ कर उसे पीड़ा दे रहा था ताकि वो अपने किये पाप से सबक ले और भविष्य में दुबारा ये पाप भूल से भी न दोहराये!

संगीता की कमी को महसूस कर मेरा दिल बेचैन हो रहा था इसलिए मैं उठ कर छत पर आ गया और कुछ पल ताज़ी हवा खा अपना मन शांत करने लगा| कुछ देर छत पर टहलने के बाद मैं वापस कमरे में लौट आया मगर नींद अब भी नहीं आई, मैंने सोचा की क्यों न समय का सदुपयोग करते हुए कुछ हिसाब-किताब ही कर लिया जाए| अपना लैपटॉप और डायरी ले कर मैं बच्चों के कमरे में आ गया ताकि मेरी खटर-पटर से बच्चों की नींद न खराब हो|

रात के 2 बजे थे और मेरी ही तरह संगीता को नींद नहीं आ रही थी इसलिए मुझसे माफ़ी माँगने का पक्का इरादा कर संगीता उठी| संगीता मुझसे माफ़ी माँगने हमारे कमरे की तरफ जा रही थी की तभी उसने बच्चों के कमरे से रौशनी आती देखि| संगीता ने कमरे का दरवाजा खोला तो उसने मुझे हिसाब-किताब करते पाया| मुझे देखते ही संगीता ने आव देखा न ताव वो सीधा मेरे पॉंव से लिपट गई और फूट-फूट कर रोने लगी!

संगीता को अपने पॉंव से लिपटे देख मैंने तुरंत अपना लैपटॉप एक तरफ रख दिया और संगीता के हाथों से अपने पॉंव छुड़वाये| संगीता ने मेरे पॉंव तो छोड़ दिए परन्तु मेरे आगे हाथ जोड़े हुए वो रोती हुई बोली; "प्लीज जानू...मुझे माफ़ कर दीजिये! मुझसे आपकी ये बेरुखी नहीं देखि जाती, मैं मर जाऊँगी!

मुझसे बहुत बड़ा पाप हुआ जो मैंने आपकी बात नहीं मानी! मुझे बस एक मौका दे दो...बस एक आखरी बार मुझे माफ़ कर दो! अगर मैंने फिर कभी ऐसी कोई गलती की तो आप चाहे जो वो सजा देना...मैं उफ़फ न करुँगी!" संगीता की आँखों में पश्चाताप दिख रहा था और मैं उसे अब और पीड़ा नहीं देना चाहता था इसलिए मैंने संगीता को माफ़ करते हुए उसे अपने सीने से लगा लिया|

"बस...बस जान! मैंने तुम्हें माफ़ कर दिया!" मैंने संगीता के सर पर हाथ फेरते हुए कहा जिससे संगीता का रोना थमने लगा| इस वक़्त हम दोनों ही बात करने की स्थिति में नहीं थे, हमारी खामोशी ही सब कुछ कह रही थी| मैं और संगीता बच्चों वाले पलंग पर एक दूसरे की बाहों में समा गए| हमारे दिल आज जा कर एक साथ धड़क रहे थे और ये एहसास बड़ा ही मनोरम था|

कुछ पल खामोश रहने के बाद संगीता मेरे होठों को चूमते हुए बोली; "जानू, मैं आपके बिना एकदम से अधूरी हो जाती हूँ! मेरा मन मेरे काबू में नहीं रहता और ऊल-जुलूल चीजें सोचने लगता है| कई बार मैंने आपसे माफ़ी माँगने आने की सोची मगर आपके गुस्से से डरती थी! आज भी आपके मारे उस थप्पड़ को याद कर मेरी रूह काँप जाती है!" संगीता फिर से भावुक हो रही थी|

"जान, मैं मानता हूँ की आजकल मेरा गुस्सा मेरे काबू में नहीं रहता| जब मैंने तुम्हें नशे में धुत्त देखा तो मेरा गुस्सा मेरे सर पर जा चढ़ा और मैंने गुस्से में तुम पर हाथ उठा दिया!... वैसे ईमानदारी से कहूँ तो मेरा तुम पर ये हाथ उठाना जायज़ था क्योंकि तुम्हें एक सबक सिखाना जर्रूरी था| छोटे बच्चे जब समझाने से नहीं समझते तो माता-पिता को कठोर बन कर उन पर हाथ उठा कर उन्हें जिंदगी भर के लिए सबक सिखाना पड़ता है| वही मैंने भी किया, अब से जब भी तुम शराब देखोगी तो तुम्हें मेरा मारा हुआ वो थप्पड़ याद आएगा और तुम फिर ये पाप कभी नहीं करोगी|" मैंने संगीता के बाएँ गाल को सहलाते हुए कहा| संगीता को मेरा पहलु समझ आया और वो मुस्कुराते हुए अपना सर हाँ में हिलाते हुए बोली; "वादा करती हूँ जान की आज के बाद मैं कभी शराब को हाथ नहीं लगाऊँगी|" अब जैसा की होता है, संगीता का ये वादा जल्द ही टूटा लेकिन इस वादे के टूटने का कसूरवार मैं था|

"वैसे जानू, एक बात बताऊँ| जब मैं आयुष और नेहा के साथ दिल्ली आई थी और आप मुझसे गुस्सा थे तब मने आपको मनाने के लिए कहा था की चाहे तो मुझे मार लो लेकिन मुझे माफ़ कर दो| तब मुझे नहीं पता था की आप इतनी जोर से थप्पड़ मारते हो वरना मैं कभी न कहती की मुझे मार लो! पता है, आपके एक थप्पड़ ने मेरा जबड़ा हिला दिया था, आपकी पाँचों उँगलियाँ मेरे गाल पर छप गई थीं! सुबह जब मैंने अपनी ये हालत देखि तो मैं और भी डर गई थी की कहीं आपने मुझे फिर से सूत दिया तो मैं क्या करुँगी?!" संगीता मुझसे मज़ाक करते हुए बोली| संगीता की बात सुन मैं हँस पड़ा और उसके मस्तक को चूमते हुए बोला; "तुम्हें सूतने वाला काम अभी तक तुम नहीं किया! जब करोगी तब की तब देखि जाएगी!" मैंने मज़ाक में कहा था जिस पर संगीता खी-खी कर हँसने लगी!

आगे चल कर हमारी ज़िन्दगी में वो मोड़ भी आया जब संगीता ने बहुत बड़ा पाप किया थाऔर तब क्या हुआ उसका जिक्र इस अध्याय में नहीं बल्कि कहानी के अंत में होगा|

रात गहरी होती जा रही थी और एक दूसरे के पहलु में लेटे हुए हम दोनों को ईमान डोलने लगा था इसलिए अगला पड़ाव था प्रेम समागम| इस प्रेम समागम ने अभी तक जो हमारे बीच दूरियाँ आई थीं थीं उन्हें मिटा दिया था|

प्रेम समागम से हुई थकावट से संगीता बिना कपड़े पहने ही सो गई थी| इधर, मैंने अपने कपड़े पहने और मैं हमारे कमरे से स्तुति को गोदी में ले कर संगीता के पास लिटा संगीता को चादर ओढ़ा दी| कुछ देर बाद जब स्तुति को नींद में अपनी मम्मी की मौजूदगी का एहसास हुआ तो उसने स्वतः ही संगीता के स्तन को अपने मुख में ले दूध पीना शुरू कर दिया| इस समय संगीता इस कदर थकी हुई थी की उसे ये पता ही नहीं था की उसका दूध स्तुति पी रही है| संगीता इस समय एक मधुर सपना देख रही थी जिसमें में मैं उसका दूध पी रहा था| इधर मैं अपने कमरे में लौट आया और बिस्तर पर लेटते ही प्यारी सी नींद में खो गया| इतने दिनों बाद मुझे अपनी पत्नी का प्यार मिला था इसलिए आज बहुत गहरी नींद आई|

अगली सुबह मुझे नींद से जगाया मेरी प्यारी बिटिया की पप्पी ने! स्तुति के जागते ही उसने "पपई...पपई" की रट लगाते हुए झूठ-मूठ का रोना शुरू कर दिया था इसलिए संगीता स्तुति को मेरी बगल में लिटा कर चली गई| मुझे देखते ही स्तुति का रोना बंद हो गया, स्तुति अपने घुटनों के बल मेरा सहारा ले कर खड़ी हुई और मेरी पप्पी ले कर मुझे पुकारने लगी| "हाँ मेरा बच्चा...मैं जाग गया!" मैं स्तुति को अपने सीने से लगाते हुए बोला| मेरी सीने से लगते ही स्तुति की किलकारियाँ गूँजने लगी| ठीक तभी संगीता कमरे में आई और प्यार भरे गुस्से से बोली; "कल रात अपने मेरे साथ धोका क्यों किया?" संगीता का सवाल सुन मैं भोयें सिकोड़ कर उसे देखने लगा की भला मैंने कौन सा धोका कर दिया उसके साथ?! मुझे यूँ असमंजस में देख संगीता बोली; "मुझे लगा की आप दूध पी रहे हो मगर आप तो इस शैतान को मेरे पास छोड़ गए! वो तो जब मैं सुबह उठी तो मैंने स्तुति को देखा और तब मुझे पता चला की सारी रात ये शैतान दूध पी रही थी!" संगीता की पूरी बात सुन मैं हँस पड़ा और बोला; "इतने दिनों से तुमने स्तुति को दूध नहीं पिलाया था इसलिए मैंने सोचा की..." लेकिन मेरी बात पूरी हो पाती उससे पहले ही स्तुति बीच में बोल पड़ी; "पपई...मम-मम...दूधधु!" स्तुति का मतलब था की उसे कल रात दूध पीने में बड़ा मज़ा आया| तो कुछ इस तरह मेरी बिटिया ने मेरी बात अपनी प्यारभरी बात कह कर पूरी कर दी|

बच्चों के स्कूल जाने का समय हो रहा था इसलिए हम बाप-बेटी ने मिलकर आयुष और नेहा को जगाया| मैंने नेहा के मस्तक को चूम कर उसे उठाया और मेरी देखा देखि स्तुति ने अपने बड़े भैया के गाल पर गीली-गीली पप्पी करते हुए आयुष को जगाया| नेहा तो मेरी पप्पी लेने से एकदम जाग गई थी मगर आयुष अभी भी कुनमुना रहा था इसलिए स्तुति ने "भा..भा" कहते हुए शोर मचाना शुरू कर दिया जिससे आयुष चिढ कर उठा| "आजा मेरा बच्चा!" कहते हुए मैंने आयुष को गोदी में लिया और उसे स्तुति की तरह लाड-प्यार कर बहलाने लगा, जिससे आयुष का चेहरा फिर से खिल गया!

दोनों बच्चे जाग गए थे की तभी संगीता कमरे में आई और मुझे पानी का गिलास देते हुए नाश्ते के बारे में पूछने लगी| हम दोनों मियाँ-बीवी पहले की तरह मुस्कुरा कर बात कर रहे थे और हमें यूँ खुश देख नेहा समझ गई की मैंने संगीता को माफ़ कर दिया है| जबसे मैं संगीता से नाराज़ हुआ था तभी से नेहा ने भी अपनी मम्मी से किनारा कर लिया था| वो तो उसे अपनी दादी जी का डर था जिस वजह से नेहा अपनी मम्मी से थोड़ा बहुत बात कर लेती थी| लेकिन अब जब हम दोनों मियाँ-बीवी के बीच सबकुछ पहले जैसा हो गया था तो नेहा का मन अपनी मम्मी से माफ़ी माँगने को कचोट रहा था|

"आयुष, जा कर जल्दी से ब्रश कर फिर मुझे नहाना है|" नेहा ने जानबूझ कर आयुष को बहाना बना कर कमरे से बाहर भेजा ताकि जब वो अपनी मम्मी से माफ़ी मांगें तो आयुष सवाल न करने लगे| आयुष के जाते ही संगीता भी कमरे से जाने वाली थी की तभी नेहा बोली; "मम्मी...एक मिनट!" नेहा के रोकने पर संगीता रुक गई और नेहा को देखने लगी| संगीता की आँखों में नेहा के लिए किसी प्रकार गुस्सा नहीं था, उसके मन में नेहा के लिए वैसे ही प्यार था जैसे पहले होता था|

नेहा पलंग से उतरी और अपनी मम्मी के पाँव छूते हुए बोली; "मुझे माफ़ कर दीजिये मम्मी, मैंने आप से अकड़ कर ऊँची आवाज़ में बात की...आपको ताने मारे! आपके प्यार को कम आँका..." इतना कहते हुए नेहा भावुक हो गई थी और उसकी आँखों से आँसूँ बह निकले थे| संगीता ने नेहा को आगे कुछ कहने का मौका ही नहीं दिया और उसे अपने गले लगा कर बोली; "कोई बात नहीं बेटा, मैं आपका गुस्सा समझ सकती हूँ! आप अपने पापा जी से इतना प्यार करते हो की उन्हें दुखी देख गुस्सा हो जाते हो| फिर आपने जो कुछ भी कहा वो गलत थोड़े ही था, मैं हूँ ही मुरख जो अपनी बेवकूफियों से आपके पापा जी को गुस्सा दिला देती हूँ!" संगीता बातें बनाते हुए नेहा से बोली ताकि नेहा का मन बहल जाए और वो ग्लानि न महसूस करे| परन्तु मेरी बिटिया बड़ी सयानी थी, वो अपनी माँ की तरकीब समझ गई और अपने आँसूँ पोछते हुए बोली; "नहीं मम्मी, आप मेरी माँ हो और अगर माँ-बाप गलती करते हैं तो बच्चों को उन्हें प्यार से समझाना चाहिए न की उन पर गुस्से से चिल्लाना चाहिए| आगे से आप जब भी कोई गलती करोगे तो मैं आपको प्यार से समझाऊँगी, यूँ आप पर गुस्से से बरस नहीं पड़ूँगी|" नेहा अभी से जानती थी की उसकी मम्मी भविष्य में फिर कोई न कोई मूर्खता करेगी इसलिए नेहा ने आगे से अपना दिमाग ठंडा रखने की बात कही थी| लेकिन भविष्य में एक ऐसी घटना घटी जिस कारण नेहा ने फिर से अपना आपा खो दिया! वो घटना क्या थी ये आपको कहानी के अंत में पता चलेगा|

बहरहाल, संगीता ने अपनी बिटिया को माफ़ कर दिया था और मुझे ये देख कर ख़ुशी हो रही थी की मेरी बिटिया मेरे द्वारा समझाई गई बातें अपने आचरण में बहुत अच्छे से उतार लेती है|

दोनों बच्चे ख़ुशी-ख़ुशी स्कूल जाने को तैयार हुए तथा मैं साइट पर जाने को तैयार हुआ| शाम को जब मैं साइट से लौटा तो मेरी शैतान बिटिया स्तुति मेरी गोदी में चढ़ गई और अपनी दादी जी की तरफ ऊँगली से इशारा करते हुए बोली; "पपई...दाई!" स्तुति ने अपनी दादी जी के डाँटने की शिकायत मुझसे की थी और वो चाहती थी की मैं उसकी दादी जी को डाँट लगाऊँ| अब मेरी लाड़ली बिटिया क्या जाने की उसके पापा जी की खुद उसकी दादी जी से फटती है, वो क्या उन्हें डाटेंगे?!

खैर, स्तुति की शिकायत सुन मेरे चेहरे पर मुस्कान आ गई थी| फिर जब मैंने माँ की तरफ देखा तो वो अपने हाथ बाँधे, चेहरे पर मुस्कान लिए मुझे देख रहीं थीं| वो जानना चाहतीं थीं की क्या मैं अपनी बिटिया की ख़ुशी के लिए अपनी ही माँ को डाँट सकता हूँ?

"बेटा, आपकी दाई (दादी जी) मेरी मम-मम (माँ) हैं और एक बेटा कभी अपनी माँ को नहीं डाँट सकता| दूसरी बात, अगर आपकी दादी जी ने आपको डाँटा है तो जर्रूर आपने कोई शैतानी की होगी वरना आपकी दादी जी तो आपको कितना प्यार करती हैं|" मैंने स्तुति को बड़े प्यार से समझाया|

"पहले इस पिद्दा ने सारा सेरेलक्स फर्श पर गिरा कर फैला दिया| जब मम्मी पोछा ले कर साफ़ करने लगीं तो ये पोछे वाली बाल्टी को पकड़ कर गिराने वाली थी, तभी दादी जी ने इसे थोड़ा सा डाँटते हुए कहा की; 'ओ लड़की! बैठ जा चुपचाप एक जगह!' बस इतना सुनते ही इस पिद्दा ने रोना शुरू कर दिया|" नेहा ने मुझे सारी बात विस्तार से बताई|

"Hawww!!! आप तो बहुत शैतान हो बेटा!" मैंने स्तुति के गाल खींचते हुए कहा तो स्तुति शर्माने लगी| "बेटा, दादी जी अगर आपको कभी डाँट दें तो उनकी डाँट में जर्रूर आपकी भलाई छुपी होगी इसलिए अपनी दादी जी से कभी नाराज़ नहीं होते|" मैंने स्तुति की नाक से अपनी नाक लड़ाते हुए कहा तो मेरी बिटिया खिलखिला कर हँसने लगी|

जब मैंने स्तुति को समझा दिया तो माँ बोलीं; "आजा मेरी शूगी, मेरे पास आ|" माँ ने बड़े प्यार से स्तुति को अपने पास बुलाया तथा स्तुति अपनी नाराज़गी भूल फट से उनकी गोदी में चली गई| स्तुति को लाड करते हुए माँ मुझसे बोलीं; "जब भी ये शैतान तुझसे किसी की शिकायत करती है तो तू सबको प्यार से डाँट देता है, मुझे तो लगा था की तू आज मुझे भी डाँटेगा और मैं तेरे कान खीचूँगी मगर तूने तो मुझे कुछ कहा ही नहीं|" माँ मुस्कुराते हुए बोलीं|

"ये घर आपका है और आप ही के घर में रहते हुए आपको डाँटता तो आप तो मुझे घर से ही निकल देते|" मैंने मज़ाक करते हुए कहा| मेरी बात सुन सभी ने जोर से ठहाका लगाया, यहाँ तक की स्तुति भी खिलखिलाकर हँसने लगी मानो वो मेरी कही सारी बात समझ गई हो|

उस दिन से स्तुति एक बात समझ गई थी की इस घर में केवल उसकी दादी जी की ही चलती है, एक वही हैं जो सभी को डाँट कर चुप करा सकती हैं| बस फिर क्या था, अगर संगीता, नेहा या आयुष उसे (स्तुति को) जरा भी डाँटते या उसके साथ खेलने से मना करते तो स्तुति सीधा अपनी दादी जी के पास शिकायत ले कर पहुँच जाती| माँ को अपनी पोती की शिकायत सुन कर मज़ा आता और वो प्यार से तीनों माँ-बेटा-बेटी को डाँट देतीं|

वहीं अगर आयुष, नेहा और संगीता माँ के पास स्तुति की शरारत की फ़रियाद ले कर आते तो माँ स्तुति का बचाव करते हुए बोलतीं; "माफ़ कर दो मेरी शूगी को!" इतना सुनते ही तीनों माँ-बेटा-बेटी का मुँह बंद हो जाता था|

स्तुति की शैतानियाँ बढ़ने लगी थीं, उसकी एक ख़ास शैतानी जिससे वो रोज़ संगीता को तंग करती थी वो था नहाने के समय छुप जाना| जब भी संगीता रोटी बना कर स्तुति को नहलाने के लिए पुकारती मेरी लाड़ली बिटिया छुप जाया करती| स्तुति इस कदर होशियार हो गई थी की वो अपनी मम्मी को रोटी बनाते हुए देख कर ही समझ जाती थी की अब उसकी मम्मी उसे नहलाने आने वाली हैं इसलिए वो फट से छुप जाय करती थी|

दरअसल, स्तुति को नहाते समय पानी में मस्ती करना पसंद था| उसकी ये मस्ती केवल मैं ही सह पाता था क्योंकि मेरे भीतर स्तुति जैसा ही बचपना भरा हुआ था, जबकि माँ या संगीता जब स्तुति को नहलाते तो उन्हें अपने कपड़े गीले होने से बचाने होते थे इसलिए वो स्तुति को पानी में ज़रा भी मस्ती नहीं करने देते थे| यही कारण था की मेरी नटखट शरारती बिटिया रानी कभी अपनी दादी जी तो कभी अपनी मम्मी से छुपती फिरती थी| एक दिन की बात है, जब मैं शाम को घर लौटा तो संगीता ने स्तुति की इस शरारत से मुझे अवगत कराया| "मैं अभी आता हूँ|" कह मैं तुरंत घर से निकला और इस समस्या का बड़ा ही प्यारा सा हल ले कर लौटा|

स्तुति को गोदी में लिए हुए मैं बाहर छत पर आया और स्तुति को मैंने माँ के सामने टेबल पर बिठा दिया| फिर मैंने स्तुति के पॉंव में काले धागे से बनी दो-दो घुंघरुओं वाली पायल स्तुति को पहना दी| स्तुति को अपनी ये पायल पसंद आ गई थी, बल्कि स्तुति ने तो घुंघरुओं को अपनी उँगलियों से हिला कर आवाज़ सुन चहकना शुरू कर दिया था| "ये लो, अब से स्तुति जब भी कहीं छुपेगी तो उसके घुंघरओं की आवाज़ से आपको पता चल जायेगा की मेरी शैतान बिटिया कहाँ छुपी है|" मैं माँ से बोला| माँ और संगीता को मेरी युक्ति बहुत पसंद आई और दोनों ने मिल कर मेरी तारीफ भी की|

उसी दिन से मेरी इस तरकीब के कारण स्तुति की शैतानी पर लगाम लग गई थी| वैसे स्तुति को पायल पहनाने का सबसे बड़ा फायदा मुझे हुआ था, जब भी मैं साइट से थक कर या किसी चिंता को अपने सर लिए घर लौटता तो अपनी बिटिया की पायल की मधुर छम-छम आवाज़ सुन मेरा मन एकदम से शांत हो जाया करता था और मैं स्तुति को गोदी में ले कर उसे लाड-प्यार करने लगता जिससे मेरा मन प्रसन्नता से भर जाता|

[color=rgb(97,]जारी रहेगा भाग - 4 में...[/color]
 

[color=rgb(255,]अंतिम अध्याय: प्रतिकाष्ठा[/color]
[color=rgb(147,]भाग - 4[/color]

अब तक अपने पढ़ा:

उसी दिन से मेरी इस तरकीब के कारण स्तुति की शैतानी पर लगाम लग गई थी| वैसे स्तुति को पायल पहनाने का सबसे बड़ा फायदा मुझे हुआ था, जब भी मैं साइट से थक कर या किसी चिंता को अपने सर लिए घर लौटता तो अपनी बिटिया की पायल की मधुर छम-छम आवाज़ सुन मेरा मन एकदम से शांत हो जाया करता था और मैं स्तुति को गोदी में ले कर उसे लाड-प्यार करने लगता जिससे मेरा मन प्रसन्नता से भर जाता|


अब आगे:


बच्चों का बचपना जारी था वहीं नियति ने मेरे साथ एक अलग ही खेल खेलना था|

मिश्रा अंकल जी ने मेरी ही साइट से लगभग 1 किलोमीटर दूर एक प्लाट खरीदा था, जिसका काम उनके दामाद के जिम्मे था इसलिए कई बार हमारा मिलना हो जाता था| इस साइट में मिश्रा अंकल जी के दामाद के चाचा जी निवेशक थे या यूँ कह लो की वे मिश्रा अंकल जी के बिज़नेस पार्टनर थे| मेरी उनसे प्रथम भेंट तब हुई थी जब मिश्रा अंकल जी ने मेरे प्लाट के नज़दीक अपना नया प्लाट खरीदा था और उन्होंने मुझे इस प्लॉट का ठेका देने के लिए बुलाया था| मिश्रा अंकल जी ने उन महाशय के सामने मेरी और मेरे काम की बड़ी तारीफ की, लेकिन मेरी तारीफ उन महाशय जी को पसंद नहीं आई और उन्होंने मेरे अधिक मुनाफ़ा कमा अपना अलग प्लाट खरीदने पर तंज कसते हुए कहा; "काम तो मुन्ना का देख कर ही पता चल रहा है, आपके साथ काम करते-करते अपना खुद का प्लाट खरीद काम करने लगा है|" उन महाशय की बात का अर्थ था की मैंने मिश्रा अंकल जी के दिए हुए ठेकों में हेरा-फेरी की है और उसी मुनाफे से मैं आज मिश्रा अंकल जी के बराबर खड़ा होने की जुर्रत कर रहा हूँ! मुझे उन महाशय का यूँ मेरा तिरस्कार करना बहुत चुभा, वहीं मिश्रा अंकल जी को भी ये बात बहुत चुभी परन्तु उन्हें निभानी थी रिश्तेदारी इसलिए वो मेरी ईमानदारी की सफाई देने लगे; "अरे नहीं भाईसहाब, हमारा मुन्ना बहुत मेहनती है| आजतक उसने मेरे साथ एक पैसे का गबन नहीं किया| जब भी मैं उसे अपनी साइट का काम देता हूँ तो वो पूरा बजट जिसमें उसका मुनाफ़ा साफ़ लिखा होता है, वो मुझे लिख कर देता है इसलिए मुझे पहले ही पता होता है की मुन्ना कितना कमा रहा है|" मुझे मिश्रा अंकल की मेरे पक्ष में दी गई ये सफाई अच्छी नहीं लगी इसलिए मैंने भी नकली मुस्कान के साथ उन महाशय से साफ़ कह दिया; "सर जी, उम्र में कच्चा हूँ मगर सफलता की मीनार चढ़ने के लिए मैं बेईमानी की लिफ्ट का इस्तेमाल नहीं करता| रही मुनाफे की बात, तो जब इंसान के सर पर पड़ती है तो आटा-दाल का पता चल जाता है|" मेरा दिया ये जवाब उन महाशय को बहुत चुभा और उनके तेवर एकदम से गर्म हो गए| वो आगे कुछ कहें उससे पहले ही मैंने मिश्रा अंकल जी के सामने अपने दोनों हाथ जोड़कर विनम्रतापूर्वक कहा; "अंकल जी, आपकी नई साइट का काम मैं नहीं ले पाऊँगा क्योंकि मेरी साइट पर लेंटर पड़ना है| आप ये ठेका अपने दामाद को ही दीजियेगा|" मेरी बात सुन मिश्रा अंकल जी समझ गए की मुझे उनके समधी की बात का कितना बुरा लगा है इसलिए वो मुझे मनाने के लिए बोले; "अरे नाहीं मुन्ना, अइसन नाहीं कहा जात है!..." इसके आगे मिश्रा अंकल जी कुछ कहते उससे पहले ही मैंने नकली मुस्कान के साथ अपनी गर्दन न में हिला दी और केवल उन्हें नमस्ते कह अपने घर लौट आया|
बाद में मिश्रा अंकल जी ने एक बार मुझसे मिल कर मुझे प्यार से समझाया परन्तु मैं अपने फैसले पर अटल रहा| दरअसल मैं उन महाशय को दिखाना चाहता था की ठेकेदारी कोई मज़ाक नहीं है, जिस दयानदारी, जिस ईमानदारी और जिम्मेदारी से मैं काम उठाता था, वैसा काम उनका भतीजा कर ही नहीं सकता था|

खैर, इस बात को कुछ समय हो गया था और मिश्रा अंकल जी के नए प्लाट पर काम शुरू हो गया था| इस नए प्लाट का ठेका मिश्रा अंकल जी ने उन्हीं महाशय के किसी रिश्तेदार को दिया जो की बहुत ही उल्टा व्यक्ति था| एक दिन वो मेरी साइट पर आया और मुझे सस्ता माल दिलवाने का लालच देने लगा, उससे बात कर मुझे पता चला की वो माल मुझे ब्लैक में माल बेचने वालों से खरीदवा रहा था| ये माल न केवल गुणवत्ता में घटिया था बल्कि अवैध खनन माफिया से जुड़ा हुआ था इसलिए मैंने उस आदमी को ये माल लेने से साफ़ मना कर दिया!

मुझे अपना ये प्रोजेक्ट जल्दी से पूरा करना था इसलिए मैंने सभी लेबर और कारीगरों की लगाम खींच कर रखी थी| कारपेंटर...पेंटर...राज मिस्त्री...सभी की नकेल मैंने खींच कर ओवरटाइम करवाना शुरू कर दिया था| ऐसे ही एक रात मैं लेबर से ओवरटाइम खिंचवाते-खिंचवाते भूल गया की रात के 10 बज चुके हैं| लेबर की छुट्टी कर मैं घर को निकल ही रहा था की तभी मिश्रा अंकल जी का फ़ोन आया| जब मैंने फ़ोन उठाया तो अंकल जी मुझे काफी घबराये हुए से लगे और आगे उन्होंने जो कहा उससे मुझे कुछ अप्रिय घटित होने का अंदेसा हो गया; "मुन्ना, हमार गाडी का डैशबोर्ड मा तमन्चा धरा है, ऊ का लेइ के हमार साइट पर जल्दी आवो!" अंकल जी खुसफुसाते हुए बोले और एकदम से फ़ोन काट दिया|

अंकल जी की बात सुन मैंने फौरन गाडी भगाई और अंकल जी की साइट पर पहुँचा| अंकल दिए आदेश को मानते हुए मैं उनकी गाडी के पास पहुँचा| मुझे लगा था की शायद अंकल जी की गाडी लॉक होगी मगर जैसे ही मैंने पैसंजर साइड की तरफ का दरवाजा खोला गाडी एकदम से खुल गई| मैंने बिना कुछ सोचे-समझे फटाफट अंकल जी की गाडी के डैशबोर्ड को खोला तो देखा उसमें पुरानी फिलमों में दिखाया जाने वाला वो छोटा सा काले रंग का रिवाल्वर पड़ा है| मैंने वो रिवाल्वर निकाला और उसे हाथ में लेते ही मुझे कुछ अजीब सा महसूस हुआ| उस रिवाल्वर का वजन महसूस कर जैसे मुझे एक नशा सा चढ़ गया| चन्दर पर कट्टा चलाने के बाद ये पहला मौका था की मैंने कोई हथियार उठाया हो, शायद यही कारण था की मुझे इस रिवाल्वर को हाथ में ले कर 'पूर्ण' होने का एहसास हुआ| उस जादुई एहसास में बहते हुए मैंने बड़े स्टाइल से रिवाल्वर अपनी जीन्स की पिछली जेब में खोंस लिया और बिना किसी डर के मिश्रा अंकल जी के पास चल पड़ा|

मिश्रा अंकल जी की साइट पर बुनियाद भरी गई थी और बेसमेंट बनाने के लिए अभी केवल कॉलम खड़े किये गए थे| कुछ सीढ़ियाँ उतरते ही प्लाट के बीचों बीच एक टेबल रखा था जिसकी एक ओर 3 आदमी बैठे थे जो की शक्ल और हाव-भाव से असमाजिकतत्व लग रहे थे तथा टेबल की दूसरी ओर मिश्रा अंकल जी अकेले बैठे हुए थे| मुझे अंधेरे में से आते हुए देख उन तीन आदमियों में से एक उठ खड़ा हुआ और गरजते हुए बोला; "कौन है?" उस आदमी का सवाल सुन मिश्रा अंकल जी मुड़े और अँधेरे में मेरे साया देख बोले; "हमार मुन्ना है|"

मैं मिश्रा अंकल जी के पास पहुँच गया था और अपने हाथ पीछे बाँधे खड़ा था| वो तीनों आदमी मुझे घूर कर देख रहे थे की भला मैं यहाँ करने क्या आया हूँ?! इधर कट्टा मेरी जेब में होने से मुझ में अलग ही आत्मविश्वास भरा पड़ा था, तभी तो मैं इतने खतरनाक आदमियों के सामने बिना डरे एकदम से खामोश खड़ा था|

"बैठो मुन्ना!" अंकल जी ने मुझे अपने बराबर बैठने को कहा| उस पल नजाने मेरे दिमाग पर क्या भूत सवार हुआ की मैं उन तीनों आदमियों की ओर देखते हुए बड़ा अकड़ कर बोला; "अंकल जी, आप तो जानते हैं की मैं अगर बैठूँगा तो मुझे 'ये' बाहर निकालनी पड़ेगी|" मैंने रिवाल्वर अपनी जीन्स की पीछे वाली जेब से निकाल कर उन तीनों को दिखाते हुए कहा|

मेरी बात सुन मिश्रा अंकल जी थोड़ा डर गए थे, वहीं उन तीनों आदमियों में से एक की हालत ये रिवाल्वर देख कर खराब हो गई थी| बाकी बचे दो सख्ते में थे की ये लौंडा कितना टेढ़ा है की रिवाल्वर ऐसे दिखा रहा है मानो कोई मोबाइल फ़ोन हो! "तो आपन सुरक्षा के लिए बॉडीगार्ड बुलाये हो मिश्रा!" उन तीन आदमियों में से एक आदमी खोखली हँसी हँसते हुए बोला|

अब मुझे उन तीनों आदमियों को डराना था इसलिए मैं भी खोखली हँसी हँसते हुए बोला; "बॉडीगार्ड साथ में आता है, सबसे आखिर में नहीं! फिर अंकल जी तो यहाँ आपसे बिज़नेस की बात करने आये हैं, मारकाट करने थोड़े ही आये हैं?! क्यों अंकल जी?" मैं इस वक़्त घमंड में चूर था ओर ऐसे बात कर रहा था मानो कोई बहुत बड़ा तुर्रमखाँ हूँ!

खैर, अंकल जी को मेरा ये घमंडी हो कर बात करने का अंदाज़ पसंद आ गया था और अब तो वो भी मेरे सुर में सुर मिलाने लगे थे; "और क्या?" इतना कह मिश्रा अंकल जी भी झूठ-मूठ की हँसी हँसने लगे|

"खैर, ई लो तोहार पइसवा! अब हमार-तोहार हिसाब पूर हुई गवा|" मिश्रा अंकल जी नक़ली मुस्कान के साथ बोले और पैसे से भरा हुआ एक बैग टेबल पर रख दिया| उन तीनों आदमियों में से बीच में बैठे आदमी की नज़र मुझ पर गड़ी हुई थी, उसे मेरे ये तेवर पसंद नहीं आ रहे थे इसलिए वो मुझसे पंगा लेते हुए बोला; "तमंचा केवल घुमावा जानत हो की चलावा भी आवत है?"

"एक का उड़ाए भी चुकेन है!" मैंने भोयें सिकोड़ कर उस आदमी को देखते हुए कहा| मेरी आवाज़ में आत्मविश्वास छलक रहा था जिससे वो आदमी ये जान गया था की मैं उसके सामने हवाबाज़ी नहीं कर रहा|

"अच्छा रहय दिहा!" उन तीनों में से जो सबसे समझदार आदमी था वो बीच में बैठे आदमी से बोला और पैसे गिनने लगा| जब तक सारे पैसे गिने नहीं गए तब तक वो बीच में बैठा आदमी मुझे घूरता रहा, वहीं मैं भी अपनी भवें सिकोड़ कर उस आदमी को घूर रहा था|

आखिर, पूरे पैसे गिन लिए गए और जो आदमी सबसे समझदार था वो बोला; "पइसवा पूरा है! तो हम सभाएं चलित है, फिर कभी कउनो काम हो तो बताया!" वो आदमी मुस्कुराते हुए बोला| तीनों आदमी बैग उठा अपनी गाडी में बैठ निकल गए थे और उनके जाने के बाद अंकल जी ने मुझे सारी बात विस्तार से बताई; "ई सब हमार दामाद के चाचा का करा-धरा है! ऊ गदहा की वजह से हमार 5 लाख बर्बाद गवा! ससुर ब्लैक मा माल उठाईस और फिर हम ही का ब्लैकमेल करे खतिर ई तीनों गुंडा का हमार पीछे लगाए दिहिस! हमका कहिस की एक आदमी आवे वाला है एहि से हम आपन तमंचा आपन संगे नाहीं रखेन, लेकिन जब हम नीचे उतरें तो पाएन की हियाँ तो तीन-तीन गुंडा बैठा हैं! एहि से हम तोहका चुपाये से फोन किहिन और हियाँ बुलायेंन! अगर आज तू हियाँ नाहीं आयो होतेयो तो ई तीनों हमका लूट के हियाँ गाड़ के भागे वाले रहे! आज तू हमार जान बचायो है मुन्ना!" मिश्रा अंकल जी बहुत भावुक हो गए थे इसलिए मैंने बात घुमाई और बोला; "ये आपकी रिवाल्वर अंकल जी| अब चलिए घर चलते हैं, रात बहुत हो गई है|"

गाडी चलाते हुए मैंने अपना फ़ोन देखा तो पाया की संगीता की बहुत सारी मिस्ड कॉल (missed call) हैं| मैंने संगीता को फ़ोन किया तो वो काफी परेशान थी, मैंने उसे आश्वस्त करने के लिए झूठ बोला की साइट पर काम ज्यादा खिंच गया था इसलिए इतनी देर हो गई| तब जा कर संगीता के बेचैन मन को शान्ति मिली|

रात पौने बारह बजे मैं घर पहुँचा, संगीता ने दरवाजा खोला और प्यारभरे गुस्से से बोली; "आज आपकी क्लास लगने वाली है!" संगीता की बात सुन मैं समझ गया की माँ आज मुझे अवश्य 4 बातें सुनाएंगी इसलिए मैं माँ के कमरे की तरफ बढ़ा| "वहाँ कहाँ जा रहे हो? आपकी क्लास आप ही की लाड़ली स्तुति लगाएगी!" संगीता की बात सुन मुझे अचरज हुआ की मेरी लाड़ली बिटिया इतनी रात तक जगी है?! "हमार मुन्नी का काहे जगाये रखयो है?" मेरी देहाती सुन संगीता मुस्कुराने लगी और मुझे सुनाते हुए बोली; "ऊ शैतान, केहू की सुनत है?" भई संगीता की बात तो सही थी, मेरी लाड़ली थी मन मौजी!

खैर, संगीता की बात को हलके में लेते हुए मैं मुस्कुराया और हमारे कमरे में दाखिल हुआ| जैसे ही मैं कमरे में दाखिल हुआ तो मैंने देखा की मेरी बिटिया रानी बिस्तर के बीचों बीच बैठी है तथा उसके चारों तरफ खिलोने बिखरे पड़े हैं! ऐसा लगता था मानो मेरे देर से घर आने का सारा गुस्सा मेरी लाड़ली ने अपने खिलौनो पर निकाला है!

"आजा मेरा बच्चा!" ये कहते हुए मैंने अपनी दोनों बाहें फैलाईं और स्तुति को अपनी गोदी में आने को निमंत्रण दिया| बाकी दिन तो मेरी बाहें खोलते ही स्तुति मेरी गोदी में दौड़ी आती थी मगर आज मेरी बिटिया मुझसे 'गुच्छा' थी!

अपना निचला होंठ फुलाये, भोयें सिकोड़े और नाक पर प्यारा सा 'गुच्छा' लिए स्तुति मुझे देख रही थी| अपनी बिटिया का ये गुस्से वाला रूप मैंने पहले कभी नहीं देखा था इसलिए बजाये डरने के, मुझे थोड़ी हँसी आ रही थी! मैंने एक बार और कोशिश करते हुए स्तुति को अपनी गोदी में आने को बुलाया मगर स्तुति गुच्छे में थी इसलिए वो अपना सर न में हिलाते हुए "no..no..no" कह रही थी! तब मुझे नहीं पता था की संगीता मेरे पीछे खड़े हो कर स्तुति को गर्दन न में हिलाने का इशारा कर रही थी| दरअसल ये सब लगाई-बुझाई संगीता की ही थी!

अब मुझे कैसे भी अपनी लाड़ली को मनाना था इसलिए मैंने वही फार्मूला अपनाये जो मैं संगीता को मनाने के लिए अपनाता हूँ|

"रूठ ना जाना तुम से कहूँ तो,

मैं इन आँखों में जो रहूँ तो,

तुम ये जानो या ना जानो,

तुम ये जानो या ना जानो,

मेरे जैसा 'पापा' तुम पाओगे नहीं,

याद करोगे मैं जो ना हूँ तो,

रूठ न जाना...." जैसे ही मैंने इस गाने की पंक्तियाँ गुनगुनाई, मेरी बिटिया के चेहरे पर मुस्कान अपनी छटा बिखेरने लगी| वहीं, जब मैंने कहा की मेरे जैसा पापा तुम पाओगे नहीं तो मेरी बिटिया अपने दोनों हाथों-पॉंव पर चलते हुए मेरे पास आ गई तथा मेरी गोदी में आ कर ख़ुशी से कहकहाने लगी|

हम बाप-बेटी का प्यार देख संगीता के चेहरे पर प्यार भरी जलन की लकीर खिंच आई और उसने स्तुति के कूल्हों पर धीरे से थपकी मारते हुए कहा; "दल बदलू!! इतना सिखाया-पढ़ाया तुझे लेकिन तूने सब गुड़-गोबर कर दिया!" संगीता की बात सुन मुझे सारे क्षाड़ियंत्र का पता लगा और मैं संगीता से प्यारभरे गुस्से से बोला; "अच्छा, तो तुम ही हो जो मेरी बिटिया के कान भर रही हो? बताओ, मेरे ही विधायक को मेरे ही खिलाफ भड़का कर तुम मेरी ही सरकार गिराने में लगी हो? भई वाह, अच्छी राजनीति करती हो!"

"तो और क्या करूँ मैं? मेरे लिए तो आपके पास टाइम है नहीं इसलिए आपको लाइन पर लाने के लिए मैंने तिगड़म लड़ाने शुरू कर दिए| आयुष और नेहा को जब मैं पट्टी पढ़ाने लगी की वो आपको देर रात तक काम न करने दें तो वो दोनों मुझे ही समझाने लगे की आप काम नहीं करोगे तो घर कैसे चलेगा?! बताओ...इत्ते भर के हैं और अपनी ही माँ को घर चलाने के बारे में सीखा रहे हैं!

फिर मैंने इस शैतान को पट्टी पढ़ाई और ये लड़की मेरी बातों में आ भी गई लेकिन अपने पापा जी का ज़रा सा प्यार मिला नहीं और ये लड़की फट से पिघल गई!" संगीता की फ़रियाद सुन मैं मुस्कुराया और उसे अपने पास बुला उसका हाथ थामकर बोला; "ज़रा एक बार, प्यार से मुझसे कहतीं तो मैं क्या तुम्हारी नहीं सुनता?" मेरी बात सुन संगीता लजाने लगी और मुझसे लिपट गई| संगीता की ये शर्म इस बात का प्रतीक थी की उसे मेरे खिलाफ की गई राजनीति पर शर्म आ रही थी|

खैर, संगीता ने मेरे लिए खाना परोसा और मेरे साथ-साथ स्तुति ने भी खाना खाया, स्तुति के खाने से मेरा मतलब था सलाद खाना| जब सोने की बारी आई तो स्तुति मेरी तरफ करवट ले कर लेट गई और मुझसे अपनी बोली-भासा में बात करने लगी| स्तुति की चटर-पटर सुन संगीता उसके कूल्हे पर प्यारभरी चपत लगाते हुए बोली; "खुद तो शाम को सो चुकी है और अब सारी रात अपनी बातों से हमें सोने नहीं देगी न?" अपनी मम्मी की इस प्यार भरी डाँट को सुन स्तुति खिलखिलाकर हँसने लगी, वहीं मैंने स्तुति को अपनी बाहों में जकड़ लिया और उसे सुलाने के लिए कहानी सुनाने लगा|

अगली सुबह मुझे उठने में देर हो गई थी, उधर माँ ने दोनों बच्चों को स्कूल के लिए जगा दिया था| अब नेहा तो फट से स्कूल के लिए तैयार होने लगी, लेकिन मेरे बेटे को अभी और सोना था इसलिए वो मेरे पास चला आया| मैं इस वक़्त पीठ के बल लेटा था इसलिए आयुष सीधा मेरी छाती पर चढ़ मुझसे लिपट गया| इधर मैंने भी आयुष को अपनी बाहों में जकड़ लिया और दोनों बाप-बेटे फिर से सो गए|

माँ ने जब आयुष को स्कूल के लिए तैयार होते हुए नहीं देखा तो वो आयुष को ढूँढ़ते हुए मेरे कमरे में पहुँची| हम बाप-बेटे को सोता हुआ देख पहले तो माँ मुस्कुराईं, लेकिन फिर बाद में उन्होंने आयुष को सर पर हाथ फेरते हुए उसे जगाया| "चल बेटा, स्कूल के लिए तैयार हो जा, फिर मैं तुझे चॉकलेट खिलाऊँगी!" सुबह-सुबह चॉकलेट का लालच मिलते ही आयुष तेजी से उठा और तैयार होने भागा|

दोनों बच्चे स्कूल के लिए तैयार हो कर, मुझे सुबह की गुड मॉर्निंग वाली पप्पी ले और दे कर स्कूल चलाए गए| अब चूँकि मैं और स्तुति देर से सोये थे इसलिए हम देर से जागे| चाय-नाश्ता करने के बाद माँ ने मेरी कल रात देर से आने को ले कर अच्छे से क्लास लगाई और फिर संगीता को ले कर सब्जी लेने चली गईं| घर पर इस समय बस हम बाप-बेटी थे, स्तुति तो बैठक के फर्श पर बैठी खेल रही थी वहीं मैं भी स्तुति के सामने फर्श पर बैठा कल रात को मिश्रा अंकल जी के साथ हुई घटना को याद कर अपनी सोच में गुम हो गया|

हर कदम सोच-विचार के उठाने वाला मैं कल रात उस रिवाल्वर को देखते ही एकदम से गैरजिम्मेदार हो गया था! न मुझे अपनी चिंता थी, न अपने बच्चों की और न ही अपने परिवार की चिंता थी! ऊपर से मैं उस रिवाल्वर को अपने हाथ में लेते ही घमंडी हो गया था, मानो मैं कोई बहुत बड़ा तुर्रमखाँ हूँ! जब वो आदमी मुझे घूर कर देख रहा था तो बजाए डरने के, मैं तो उसे ही ललकार रहा था! 'कहीं उस आदमी के ऊपर सनक सवार हो जाती और वो मुझे गोली मार देता तो मेरे परिवार का क्या होता?' मन में सवाल कौंधा तो मेरी अंतरात्मा मुझे धिक्कारने लगी!

मैं आँखें खुली रख कर अपनी गहन चिंता में मग्न था, वहीं मेरे सामने खेल रही स्तुति मुझे यूँ खामोश देख कर चिंतित हो गई थी| स्तुति ने मुझे दो तीन बार पुकारा मगर मेरे कानों तक मेरी बिटिया की आवाज़ पहुँची ही नहीं! अपने पापा जी से कोई जवाब न पा कर स्तुति परेशान हो गई और अपने दोनों हाथों-पॉंव पर चलते हुए मेरे पास आई| मेरे सामने बैठ स्तुति ने मुझे एक बार फिर पुकारा; "पपई?" मगर मैंने इस बार भी अपनी बिटिया की आवाज़ नहीं सुनी|

स्तुति चिंतित हो गई और मेरे घुटने को पकड़ कर खड़े होने की कोशिश करने लगी| जब स्तुति ने मेरे घुटने को पकड़ खड़ा होना शुरू किया तो मैं अपनी विचारों की दुनिया से बाहर आया और स्तुति को अपने इतने नज़दीक पा कर हैरान हुआ| फिर मैंने गौर किया तो पाया की मेरी लाड़ली मेरा सहारा ले कर खड़ी हो रही है| मैंने तुरंत स्तुति को सहारा दिया और उसे खुद अपने पाँव पर खड़ा होने के लिए प्रेरित करने लगा; "शाबाश मेरा बच्चा!" मेरा प्रोत्साहन पा कर स्तुति का जोश बढ़ गया और वो आखिर अपने पॉंव पर खड़ी हो ही गई! "शाब्बाश मेरी बिटिया रानी!" मैंने स्तुति को होंसला अफ़ज़ाई की तो स्तुति को कुछ अधिक ही आत्मविश्वास आ गया और उसने एक कदम चलने की कोशिश की|

मेरी बिटिया की चलने की ये पहली कोशिश नाकामयाब रही और एक कदम पूरा चलने से पहले ही स्तुति का संतुलन खराब हो गया मगर मेरी बिटिया गिरे उसके पहले ही मैंने स्तुति को थाम लिया तथा अपने गले से लगा कर उसे लाड करने लगा; "मेरा बहादुर बच्चा! आज मेरा बच्चा पहलीबार अपने आप खड़ा हुआ है! I'm so proud of you मेरा बच्चा!" मेरा लाड पा कर मेरी बिटिया बहुत प्रसन्न हुई और बोली; "पापा जी" इतना कह मेरी लाड़ली शर्मा गई तथा मेरे सीने से लग गई| मेरी बिटिया ने आज मुझे एक साँस में "पापा जी" कहा था और ये सुन मेरा दिल ख़ुशी से भर गया; "मेरा बच्चा...मेरा सोनू-मोनू बेटू! आपने आज मुझे पपई की जगह पापा जी कहा?! मेरी नटखट प्यारी गुड़िया!" मैं स्तुति के मस्तक को चूमते हुए बोला| मेरे स्तुति के मस्तक को बार-बार चूमने से मेरी मूँछ और दाढ़ी स्तुति के मस्तक से रगड़ रहे थे जिससे स्तुति को गुदगुदी हो रही थी अतः स्तुति खिलखिलाकर हँस रही थी!

स्तुति का मन अपने पॉंव पर खड़े हो कर चलने का था इसलिए मैं स्तुति का उत्साह बढ़ाते हुए उसे सहारा दे कर चलाने लगा| स्तुति मेरा हाथ पकड़ कर सहारा लेती और खड़ी होती फिर वो धीरे-धीरे डगमगाते हुए चलने की कोशिश करती, अपनी इस कोशिश में स्तुति कई बार गिरने को होती लेकिन मैं उसे एकदम से सँभाल लेता| इस गिरने के एहसास को महसूस कर स्तुति डरती नहीं ब्लकि उसके लिए तो ये कोई खेल था इसलिए स्तुति मुस्कुराती रहती और अपनी चलने की कोशिश जारी रखती|

जहाँ हम वयस्क बार-बार हार का मुँह देख निराश हो कर कोशिश करना छोड़ देते हैं, वहीं छोटे बच्चे हार न मानते हुए उसी जोश से अपनी कोशिश जारी रखते हैं|

कुछ समय बाद माँ और संगीता सब्जी ले कर लौटे तथा हम बाप-बेटी का ये चलने का खेल चुपचाप देखने लगे| जब मेरी नज़र माँ पर पड़ी तो मैं जोश से भरते हुए बोला; "देखो माँ, मेरी लाड़ली बिटिया अपने पॉंव पर चल रही है!"

दरअसल मैंने स्तुति को किसी कठपुतली की तरह सहारा दे कर खड़ा किया था और स्तुति मेरे ही सहारे अपना पैर आगे बढ़ा रही थी| ये दृश्य देख माँ और संगीता बहुत खुश हुए और स्तुति की तारीफ करने लगे;

माँ: ये सब जो स्तुति की मालिश करते हैं न, उसी का नतीजा है की मेरी शूगी खुद से चलने लगी है वरना आमतौर पर बच्चे इतनी जल्दी चलना नहीं सीखते|

माँ उम्र में तजुर्बेकार थीं और जानती थीं की छोटे बच्चों की मालिश करने से उनकी हड्डियाँ मज़बूत होती हैं इसीलिए उन्होंने स्तुति के खड़े हो कर चलने का श्रेय मालिश को दिया| वहीं आज सुबह जो मुझे माँ से देर रात घर आने को ले कर डाँट पड़ी थी, उसे ध्यान में रखते हुए संगीता मुझे मक्खन लगाना चाहती थी इसलिए उसने सारा श्रय मुझे देते हुए कहा;

संगीता: वो तो है माँ, लेकिन ये जो स्तुति के लिए वॉकर लाये थे न उससे स्तुति अपने पॉंव पर चलने को प्रेरित हुई है|

संगीता की बात सुन माँ समझ गईं की वो मुझे मक्खन लगा रही है इसलिए माँ हँस पड़ीं|

इधर मेरी बिटिया रानी भी कम नहीं थी उसने हँसते हुए कहा; "पा..पा..ई!" जिसका मतलब माँ ने ये निकाला की स्तुति भी अपने चलने का श्रेय मुझे दे रही है| "बड़ी आई पापा जी की चमची!" माँ ने स्तुति की नाक पकड़ कर खींचते हुए उल्हाना दिया, जिस पर हम सभी ने ज़ोर का ठहाका लगाया|

दोपहर को बच्चे स्कूल से लौटे तो मैंने उन्हें स्तुति के अपने पॉंव पर खड़ा होने और चलने की बात बताई| दोनों बच्चों को स्तुति की उपलब्धि के बारे में सुन बहुत ख़ुशी हुई लेकिन उससे ज्यादा ख़ुशी उन्हें हुई मीठा खाने से! दरअसल हमारे लिए ये ख़ुशी का मौका था और मुँह मीठा करना तो बनता था इसलिए इसी ख़ुशी में हम सब ने मिलकर रसमलाई खाई| तीनों बच्चों को रसमलाई कुछ ज्यादा ही पसंद आई थी इसलिए आज तो घर में चोरी होनी थी!

दोपहर को माँ और संगीता बैठक में बैठे टी.वी. देख रहे थे तथा मैं अपने तीनों बच्चों को ले कर कमरे में सो रहा था| थोड़ी देर में नेहा और आयुष जाग गए, स्तुति को नींद आ नहीं रही थी इसलिए वो चुपचाप लेटी हुई अपनी गुड़िया के बाल कुरेदने में लगी हुई थी| स्तुति ने जब अपनी दीदी और भैया को जागते हुए देखा तो उसके मुख से किलकारी निकली जिससे मेरी नींद खुल गई!

"श..श..श...श" कहते हुए नेहा ने अपने होठों पर ऊँगली रख स्तुति को चुप रहने का इशारा किया| अपनी दीदी की बात मानते हुए स्तुति एकदम से खामोश हो गई, फिर नेहा ने स्तुति को गोदी में उठाया और तीनों भाई-बहन कमरे से बाहर आ गए| मुझे उत्सुकता हुई की आखिर तीनों बच्चे यूँ चुप-चाप कहाँ जा रहे हैं इसलिए मैं भी दबे पॉंव बच्चों के पीछे चल पड़ा| तीनों बच्चे फ्रिज के पास आ कर खड़े हो गए और आपस में खुसफुसा कर बात करने लगे| स्तुति को कुछ समझ नहीं आ रहा था मगर उसकी उत्सुकता ऐसी थी मानो उसने ही सब कुछ करना हो?!

नेहा ने स्तुति को फर्श पर बिठा दिया और उसे बैठक में जाने का इशारा किया| अपनी दीदी का इशारा मिलते ही स्तुति खदबद-खदबद कर बैठक में पहुँच गई और "दाई" कहते हुए माँ की गोदी में चढ़ गई| स्तुति को देख दोनों सास-पतुआ का ध्यान भटक गया जिसका फायदा उठाते हुए नेहा ने धीरे से फ्रिज खोला और कटोरी में एक रस-मलाई का पीस निकाल लिया| वो कटोरी आयुष को थमा, नेहा बैठक में आई और स्तुति के साथ खेलने का बहाना कर उसे अपने साथ वापस फ्रिज के पास ले आई| फिर तीनों भाई-बहन ने मिलकर वो एक रस-मलाई का पीस तीन हिस्सों में बाँटा और खा कर, कटोरी धो कर वापस रसोई में रख दी|

अपने ही घर में छुपकर, बच्चों द्वारा प्लान की गई रस-मलाई की ये हाइस्ट (heist) देख कर मुझे बड़ा मज़ा आया और मैं मन ही मन अपने बच्चों पर फक्र करने लगा| मुझे अपने बचपन का वो दिन याद आया जब मैं रसोई से हॉर्लिक्स या पाउडर वाले दूध के डब्बे से चोरी-छुपे खाया करता था| दोपहर को जब माँ सो रही होती तो मैं चुपके से उठ कर रसोई में जाता और चम्मच भर हॉर्लिक्स या पाउडर वाला दूध खा कर वापस आ कर सो जाता| समस्या ये थी की हॉर्लिक्स या पाउडर वाला दूध हमेशा मेरे मुँह के तालु में चिपक जाता था और मुझे कभी अपनी जीभ की नोक तो कभी अपनी ऊँगली से उस पाउडर को तालु पर से खुरच कर निकालना पड़ता था| तालु पर से पाउडर खुरच कर मैं खा लेता था और ऐसे ही सो जाता था| जब माँ उठतीं तो उन्हें मेरी ठुड्डी पर पाउडर के निशान या फिर कई बार रसोई के फर्श पर पाउडर पड़ा हुआ दिखता जिससे माँ मेरी शरारत समझ जातीं और मुझे टोकते हुए बोलतीं; "जब तुझे हॉर्लिक्स वाला दूध पीने को देती हूँ तब तो तू पीने से नखरे करता है और बाद में चुपचाप चम्मच भर पाउडर खा लेता है! ये क्या बात हुई?" माँ के टोकने पर मुझे हँसी आ जाती और मैं दाँत दिखा कर हँसने लगता| मेरे इस व्यवहार पर माँ मुझे मारने के लिए हाथ तो उठातीं मगर मारती नहीं बल्कि हँस कर मुझे रसोई से भगा देतीं| मुझे सुधारने के लिए माँ ने हॉर्लिक्स या पाउडर वाले दूध का डिब्बा छुपाना शुरू कर दिया मगर मैं इतना तेज़ था की मैं डिब्बा ढूँढ ही लेता था!

अपने इस बचपन की याद को आज मैंने अपनी आँखों के सामने घटित होते हुए देखा था जिससे मेरा मन अतिप्रसन्न था|

मैं चुपचाप वापस आ कर लेट गया और सोने का अभिनय करने लगा| 2 मिनट बाद मेरे तीनों शरारती बच्चे भी आ गए और जिस प्रकार पहले लेटे थे वैसे ही लेट गए ताकि कहीं मुझे शक न हो की तीनों बच्चों ने क्या प्यारभरी शरारत की है|

रात को जब हम सब खाना खा रहे थे तब संगीता ने माँ से रस-मलाई की बात छेड़ी;

संगीता: माँ आपको पता है, आज दोपहर को मैंने जितनी रस-मलाई रखी थी उसमें से थोड़ी सी रस-मलाई कम हो गई!

संगीता नेहा की तरफ देखते हुए बोली| नेहा को रस-मलाई कितनी पसंद है ये हम सभी जानते थे इसलिए रस-मलाई अगर कम हुई है तो सबसे पहला शक नेहा पर ही जाता|

माँ: हाँ तो इसी ने खाई होगी!

माँ मेरी तरफ इशारा करते हुए बोलीं| बेचारी मेरी माँ सोच रही थी की उनका बेटा अब भी शरारती है!

खैर, जैसे ही रस-मलाई की चोरी की बात चली तो आयुष और नेहा के कान खड़े हो गए| दोनों बच्चे थोड़ा डरे हुए थे की कहीं उनकी चोरी पकड़ी गई तो उन्हें डाँट न पड़ जाए| इधर जब माँ ने रस-मलाई की चोरी का आरोप मुझ पर लगाया तो संगीता बोलने वाले हुई थी की ये चोरी नेहा ने की है, लेकिन मैं बीच में बोल पड़ा;

मैं: जी मैंने ही रस-मलाई खाई थी!

मैंने मुस्कुराते हुए बच्चों की चोरी अपने सर ले ली| मेरे इलज़ाम अपने सर लेने से आयुष ने चैन की साँस ली मगर नेहा सोच में पड़ गई थी, नेहा को यक़ीन हो गया था की मैं तीनों बच्चों की चोरी के बारे में जनता हूँ इसलिए नेहा को लग रहा था की मैं उससे नाराज़ हूँ!

खाना खाने के बाद नेहा आयुष को अपने साथ ले कर मेरे पास आई| दोनों बच्चों ने अपने कान पकड़े और मुझसे माफ़ी माँगते हुए बोले;

आयुष: सॉरी पापा जी!

आयुष ने सॉरी बोलते हुए बात शुरू की|

नेहा: हमें माफ़ कर दीजिये पापा जी, हमने फ्रिज में से रस-मलाई चुराई!

नेहा सर झुकाये हुए बोली| मेरे दोनों बच्चों को उनकी की गई हरकत पर पछतावा हो रहा था, लेकिन वो नहीं जानते थे की वे व्यर्थ ही पछता रहे हैं;

मैं: बेटा, आपने अगर चोर-छुपे रस-मलाई खाई तो इसमें सॉरी बोलने वाली क्या बात है?

मैंने बात को हल्के में लेते हुए कहा मगर तभी आयुष बोला;

आयुष: पापा जी, हमने पहलीबार चोरी नहीं की...

इतना कह आयुष चुप हो गया और उसका सर शर्म से झुक गया|

नेहा: हम तीनों ने पहले भी रसोई से कभी क्रीम वाले बिस्किट, कभी आइस-क्रीम तो कभी मिठाई चुरा कर खाई है|

नेहा सर झुकाये हुए बोली| बच्चों का ये सच सुन मैंने कल्पना करनी शुरू कर दी की मेरे नटखट बच्चे कैसे-कैसे ये चोरियाँ की होंगी और अपनी इसी कल्पना के कारण मैं हँस पड़ा! मुझे यूँ हँसते हुए देख आयुष और नेहा हैरान थे की बजाए मैं उन्हें समझाने के यूँ अपना पेट पकड़ कर हँस रहा हूँ?!

मैं: बेटा, आपने अगर अपने ही घर में कोई चीज़ छुपकर खाई तो इसमें डरने, घबराने या शर्माने वाली कोई बात नहीं| छोटे बच्चों की ये शरारतें बहुत प्यारी होती है और माँ-बाप उन्हें इसके लिए गुस्सा नहीं करते| हाँ, किसी भी चीज की 'अति' नहीं करनी चाहिए, ज्यादा मीठा खाने से आप बीमार हो सकते हो इसलिए कभी इतना मत खा लेना की बीमार पड़ जाओ|

आपको पता है, कृष्ण भगवान जी तो अपने ही घर में माखन चुरा कर खाते थे, क्या वो कभी डरते थे? यशोदा मैय्या कृष्ण भगवान जी को माखन खाने से थोड़े ही रोकतीं थीं, उन्हें केवल चिंता होती थी की कृष्ण जी अधिक माखन खाने से बीमार न पड़ जाएँ| लेकिन कृष्ण भगवान जी नटखट थे, वो अपने दोस्तों के साथ मिल कर अपने घर के साथ-साथ आस-पड़ोसियों के घर से भी माखन चुरा कर खाया करते थे|

मैंने कृष्ण भगवान जी का उदाहरण दे कर अपने बच्चों को समझाया| बच्चे मेरी बात समझ गए थे, बस वो अपनी तुलना भगवान जी से किये जाने को ले कर थोड़े हैरान थे!

आयुष: पापा जी, कृष्णा जी तो भगवान हैं और हम तो इंसान हैं!

आयुष का जिज्ञासु मन बोला|

मैं: बेटा, बच्चे भी भगवान जी का ही रूप होते हैं क्योंकि आपका मन एकदम पाक साफ़ होता है, आपके मन में किसी भी प्रकार की बदला लेने की, किसी का बुरा करने जैसी अन्य बुराइयाँ नहीं होतीं|

मैंने आयुष की जिज्ञासा शांत की, ये जवाब सुन दोनों बच्चे चिंता मुक्त हो गए थे इसलिए मैंने अपने तीनों बच्चों को अपनी बाहों में भर लिया और बारी-बारी उनके सर को चूमते हुए लाड करने लगा|

अब जैसा की होता है, संगीता ने मुखबरी करते हुए सब बातें छुपकर सुन ली थी और हमेशा की तरह ये बातें माँ के कानों तक पहुँचा दी थी| माँ ने हम चारों को अपने पास बुलाया और तीनों बच्चों को समझाने लगी तथा मेरे बचपन की खाने-पीने की चोरी के किस्से मज़े ले कर सुनाने लगीं| मेरे बचपन के किस्से सुन कर सभी को मज़ा आ रहा था मगर स्तुति कुछ अधिक ही खिलखिलाकर हँस रही थी! "नानी, तुझे बड़ी हँसी आ रही है!" संगीता स्तुति के कूल्हों पर प्यारभरी चपत लगाते हुए बोली, जिसपर स्तुति ने और जोर से कहकहे लगाना शुरू कर दिया|

अगली सुबह बच्चों के स्कूल जाने के बाद मिश्रा अंकल जी का फ़ोन आया और उन्होंने माँ को सपरिवार शाम को अपने फार्महाउस पर रखी पार्टी में आमंत्रित किया| माँ को पार्टी में जाने का अधिक चाव नहीं था इसलिए वो जाने से मना करने लगीं, तब फ़ोन मिश्रा आंटी जी ने सँभाला और माँ को पार्टी में आने के लिए विवश कर ही दिया|


गौर करने वाली बात ये है की मैंने अभी तक अपने परिवार को परसों रात हुए काण्ड के बारे में नहीं बताया था और इसे ले कर बवाल होना तय था!

[color=rgb(97,]जारी रहेगा भाग - 5 में...[/color]
 
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