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[color=rgb(44,]कभी कभी जिंदगी के ही नही रास्ते के मोड़ भी जिंदगी बदल देते हैं...........[/color]
 
ये मेरी आज तक की पहली कोशिश है, और ये कहानी किस और कहानी से इंस्पायर्ड है जो मैने कोई 10 साल पहले पढ़ी थी। और वो भी अधूरी थी।

आशा है आप सबको ये कुछ पसंद आयेगी।

तो एक नए मोड़ से शुरू करते हैं.....
 
[color=rgb(184,]#1 The Accident....[/color]

जंगल के बीचों बीच एक काली गाड़ी पूरी रफ्तार से चली जा रही थी, जिसे कोई 26- 27 साल का का एक हैंडसम सा आदमी चला रहा था। तभी उसका फोन बजता है।

आदमी: हां बस 3 से 4 घंटे में।पहुंच जाऊंगा। और पहुंचते ही कॉल करता हूं, होटल की बुकिंग है, उसका नाम याद नही, कहीं रुक कर बताता हूं।

फोन पर: .......

आदमी: हां पता है, सब कुछ इसी काम पर निर्भर करता है, हमारी आने वाली पूरी जिंदगी इस से जुड़ी है, काम खतम करूंगा जल्द ही। फिर आ कर मिलता हूं।

और फोन कट जाता है, शायद जंगल में सिग्नल की कोई दिक्कत होती है।

फिर उसका हाथ ने जेब से एक कार्ड निकाला जो किसी होटल का लग रहा था। जिसपर एक बड़ी सी हवेली की फोटो बने थी और लिखा था...

[color=rgb(255,]"Woods Villa"[/color]
[color=rgb(255,]Outer hill Road[/color]
[color=rgb(255,]Hameerpur[/color]

शाम के 4 बज रहे थे और उसे भूख सी लग रही थी। थोड़ा आगे जाने पर एक बस्ती जैसी दिखाई दी, उसमे एक कैफे था।

गाड़ी बाहर खड़ी करके वो अंदर गया, काउंटर पर एक 18 साल का लड़का बैठा था। लड़के ने उसका स्वागत किया और एक टेबल तक ले गया। वहां बैठने के बाद आदमी ने मेनू देख कर एक कॉफी और सैंडविच का आर्डर किया।

कोई 20 मिनिट के बाद उसके टेबल पर ऑर्डर सर्व हो चुका था। खाते खाते उसकी बात कैफे वाले लड़के से होने लगी, और उसने कैफे वाले लड़के से हमीरपुर के रास्ते के बारे में पूछा।

कैफे वाले लड़के ने बताया की यहां से अभी कोई 2 घंटे कम से कम लगेंगे, और रास्ता सही है, लेकिन...

"लेकिन क्या??"

"हमीरपुर से पहले घाटी पड़ती है और उसका आखिरी वाला मोड़ बहुत खतरनाक है, अक्सर धुंध रहती है वहां शाम के वक्त, और कई एक्सीडेंट हो चुके हैं वहां, वैसे भी अभी 5 बजने वाले है और एक घंटे में ही अंधेरा घिर जायेगा। तो जरा सम्हाल कर गाड़ी चलाएगा।"

"हम्म्, और कुछ?"

"नही, और सब सही है, बस वहां पर जरा सतर्क रहिएगा। फिर उस मोड़ से 5 किलोमीटर बाद शहर की आबादी शुरू हो जाती है।"

"अच्छा। चलो ठीक है ध्यान रखूंगा। कितने पैसे hue तुम्हारे?"

लड़का बिल लेकर आता है, और आदमी ने अपने पर्स से उसे पैसे दे कर वाशरूम की तरफ निकल गया, जो कैफे के दरवाजे के पास में ही था। फिर 5 मिनट बाद वो बाहर निकल कर अपनी गाड़ी में बैठ कर अपनी मंजिल की ओर बढ़ जाता है। उसके जाते समय कैफे वाला लड़का उसे नही दिखता, शायद वो और कस्टमर्स का ऑर्डर लेने अंदर की तरफ चला गया था। बाहर अंधेरा छाने लग था।

समय शाम के 6:30, गाड़ी हमीरपुर की घाटी को लगभग पार कर ही चुकी थी और मौसम साफ था, कुछ 2 या 3 मोड़ और थे, कि तभी उसका फोन फिर से बजा।

आदमी: हां डार्लिंग, बोला था न की पहुंचते ही कॉल करूंगा, अभी बस पहुंचने वाला ही हूं।

फोन: ......

आदमी: हां बस कल से ही इस काम में लग जाऊंगा, और जितनी जल्दी होगा उसको खत्म करके वापस आता हूं। आखिर हम दोनो की जिंदगी का सवाल जुड़ा है इस काम से। बस डार्लिंग कुछ दिनो की बात है, फिर हम साथ होंगे और अच्छी जिंदगी बिताएंगे क्योंकि इस काम के बाद ही तो पैसे आयेंगे अपने पास।

फोन: ......

आदमी: हां डार्लिंग, Love... आआ ओह नो...

और एक जोर का धमाका होता है....

गाड़ी एक मोड़ पर एकदम से अनियंत्रित हो कर खाई की तरफ ढलान पर मुड़ जाती है और एक पत्थर से टकरा जाती है। लड़के का सर जोर से स्टीयरिंग से टकरा कर खून से लथपथ हो जाता है, और उसका होश खोने लगता है, गलती से उसका पैर एक्सीलेटर पर लगता है और गाड़ी पत्थर से छूट कर उलट कर खाई की ओर फिसलने लगती है, और लड़का बेहोश हो जाता है।

कुछ देर बाद लड़के को जरा सा होश आता है, और वो निकलने की कोशिश करता है, मगर वो कामयाब नही होता। उसकी गाड़ी खाई के एकदम किनारे किसी तरह से बस अटकी हुई होती है, जो उसके बाहर निकलने की कोशिश से हिलने लगती है। तभी उसके कान में एक आवाज आती है।

"हाथ दो अपना"


वो एक तरफ देखता है तो बाहर रोशनी में उसे कोई खड़ा दिखता है, चेहरा नही दिखता लेकिन कंधे के पीछे लहराते बाल, और उसकी ओर बढ़ता एक हाथ जिसपर लंबे नाखून थे वो उसे दिखता है। आदमी अपना हाथ उस ओर बढ़ा देता है और फिर से बेहोश हो जाता है......
 
[color=rgb(184,]#2 Lost Memory....[/color]

हस्पताल के बिस्तर पर उस आदमी को होश आता है, वो आंख खोल कर आस पास देखता है तो उसे पास में एक कुर्सी पर बैठी एक साफ रंग और औसत नैन नक्शा की लगभग 25 साल की एक लड़की दिखाई देती है। आदमी की हाथ पैर और सर पर पट्टियां बंधी होती हैं।

उसे होश में आता देख वो उठ कर बाहर चली जाती है, और कुछ ही देर में कमरे में एक डॉक्टर और एक नर्स आते हैं, डॉक्टर कोई 28 साल का युवा था जिसकी नाक पर एक सुनहरे फ्रेम का चश्मा था, उसने आते ही आदमी की नब्ज चेक की, और नर्स को इशारा किया।

नर्स ने आगे बढ़ कर आदमी की आंखे चेक की, एक उंगली दाएं बाएं करके उसकी देखने को कहा, पूरी तरह संतुष्ट होने पर नर्स ने डॉक्टर की तरफ देख कर हां में गर्दन हिलाई।

डॉक्टर ने आगे बढ़ कर आदमी से कहा, अब आप कैसा महसूस कर रहें है??

मेरा सर भारी भारी सा लगता है और मन कर रहा है आंखे बंद करके फिर सो जाऊं, ये सुन कर डॉक्टर ने नर्स को फिर से एक इशारा किया, और नर्स ने एक इंजेक्शन लगा दिया।

डॉक्टर: "अभी आप आराम से सो जाइए और दिमाग और शरीर पर ज्यादा जोर ना डालिए, आपको आज 5 दिन बाद होश आया है और कोई स्ट्रेस न ले तो बेहतर होगा।"

इंजेक्शन के लगने के 15 20 मिनिट के अंदर उसे दुबारा से नींद आ गई, इस दौरान उसके दिमाग में बस उस मोड़ पर हुए हादसे की यादें ताजा हो गईं।

अगले दिन सुबह उसकी नींद फिर खुली और सुबह के जरूरी कामों को उसने एक कंपाउंडर की मदद से निपटाया। तभी वही डॉक्टर उसके कमरे में आया, और उस आदमी से बोला

"अब आप पूरी तरह से सही है, बस आपका पैर सही होने में कम से कम 1 महीना लगेगा और कमजोरी जाने में 5 से 7 दिन और लगेंगे।"

"डॉक्टर मुझे यहां कौन लाया था?"

"आपको यहां अनामिका जी ले कर आई थी।"

"क्या वो वही हैं जो कल मेरे होश में आने पर यहां बैठी थी?"

"जी वो वही थीं, आपके होश में आने पर अपने घर चली गई, वो लगभग रोज ही यहां सुबह से शाम तक रहती थीं। वैसे आप बताइए अपने बारे में कुछ, क्या नाम है आपका, कहां से हैं आप?"

ये सुनते ही उस आदमी को झटका लगा कि उसे तो ये सब कुछ याद ही नहीं था, उसकी याद में बस इतना ही था कि वो किसी से बात करते हुए कार चला रहा था और उस मोड़ पर उसकी गाड़ी अचानक से अनियंत्रित हो कर खाई की तरफ गिरने लगी थी।

आदमी: डॉक्टर मुझे ये सब कुछ याद नहीं आ रहा है, मेरा नाम या मेरा घर कहां है वो कुछ भी।


डॉक्टर आश्चर्य से उसकी तरफ देखते हुए....
 
[color=rgb(184,]#3 what is in the name....[/color]

डॉक्टर आश्चर्य से उस आदमी को देखते हुए अपना फोन निकल कर किसी को कॉल करता है

"हेलो, डॉक्टर सिद्धार्थ से बात हो सकती है क्या??"

फोन:....

"जी जैसा मैंने आपको उस एक्सीडेंट वाले पेसेंट के बारे में बताया था, उसे कुछ भी याद नही है, और आश्चर्य की बात है की सर पर ऐसी कोई बड़ी चोट नहीं है।"

फोन:.......

"जी मैं अभी एमआरआई और बाकी के टेस्ट्स करवाता हूं, आप जल्दी आने की कोशिश करिए।"

डॉक्टर: आपके कुछ टेस्ट्स करवाने में हैं जल्दी से, तब तक सीनियर न्यूरो कंसलटेंट डॉक्टर सिद्धार्थ भी आ जायेंगे, आप परेशान न हो, सब सही होगा, सिस्टर इनको जल्दी से लैब में ले कर चलिए।"

कोई 2 घंटे बाद उसी कमरे में डॉक्टर सिद्धार्थ सारी रिपोर्ट्स को देखते हुए, "आपके सर पर तो ऊपरी तौर पर कोई बड़ी चोट के निसान नही है, लेकिन शायद एक्सीडेंट के सदमे से आपकी यादाश्त पर एक झटका लगा है, जो आपके घरेलू वातावरण में जाने से कुछ समय बाद सही हो जायेगा।"

आदमी: पर डॉक्टर, मुझे तो कुछ याद भी नहीं है, मेरा घर कहां है ये भी नही, तो मैं घर जाऊंगा कैसे??

सिद्धार्थ: अब इसमें तो आपकी मदद बस पुलिस ही कर सकती है, हालांकि एक एक्सीडेंट के तौर पर आपका केस पुलिस के पास गया होगा जरूर, तो आप उनसे मदद के सकते हैं, डॉक्टर चंदन आपकी मदद करेंगे इसमें।

डॉक्टर चंदन: जी दरअसल इनको अनामिका जी ले कर आई थी तो इसीलिए रमाकांत अंकल के कारण मैंने पुलिस को इनफॉर्म नही किया था, एक्सीडेंट उनके सामने ही हुआ था, गाड़ी के अनियंत्रित होने से, तो ऐसी कोई बात नही थी, फिर भी मैं एक बार उनसे बात करता हूं।

डॉक्टर सिद्धार्थ: अच्छा, फिर तो सही किया पुलिस को न बता कर, वरना बेकार में अनामिका बिटिया से पुलिस पूछताछ करती। वैसे बात करो, क्योंकि अब तो पुलिस की जरूरत है।

डॉक्टर चंदन: जी बिलकुल, आइए मैं आपको बाहर तक छोड़ कर आता हूं।

और दोनो डॉक्टर कमरे से निकल जाते हैं। थोड़ी देर में डॉक्टर चंदन वापस आते हुए।

"वैसे मेरा नाम चंदन मित्रा है, और अब जब आपको आपका नाम नही पता, तो चलिए आज से आपको हम लोग अमर बुलाते हैं। क्योंकि आप मौत को मात दे कर आए है।"

आदमी मुस्कुराते हुए: "जी बेहतर, कम से कम कोई तो बुलाया जाने वाला नाम होना ही चाहिए ना। अमर ही सही है।"

डॉक्टर: " सही है, आप आराम करिए तब तक, और मैं जरा रमाकांत अंकल से बात कर लेता हूं। वैसे एक बात और, आपको यहां लगभग एक हफ्ते ही रहे हैं, लेकिन अभी तक न तो आपकी खबर लेने कोई आया है, ना ही कोई ऐसी खबर है कि शहर में कोई मिसिंग है, तो आप इस शहर के तो नही लगते हैं। और अगर जो बाहर कहीं से हैं तो अब तक तो कोई न कोई पुलिस में आपके गुम होने की खबर तो करता?"

डॉक्टर के जाने के बाद अमर सोच में डूब गया।

"मुझे कुछ याद नहीं है, और डॉक्टर कह रहे है कि कोई मुझे ढूंढने भी नही आया, इसका मतलब तो यही है कि शायद मेरा कोई नही है इस दुनिया में। लेकिन मैं हूं कौन??"

"पुलिस की मदद लूं या नहीं? कहीं मैं किसी गलत राह का कोई आदमी न होऊं जिसकी पुलिस तलाश कर रही हो, और पुलिस की मदद ले।कर कहीं बुरा न फस जाऊं।"

इसी उधेड़बुन में अमर की आंख फिर से लग जाती है।

कुछ देर बाद उसकी नींद डॉक्टर चंदन के उठाने से खुलती है। उसके साथ में वही लड़की होती है जो सूनी नजरों से अमर की ओर देख रही होती है।

चंदन: अमर जी, रमाकांत उनके तो कही बाहर रहने के कारण तो आ नही पाए, लेकिन उन्होंने अनामिका जी को भेज है, आपसे बात करने।

अमर मुस्कुराते हुए: जी अनामिका जी, कैसी है आप? आपका बहुत बहुत धन्यवाद जो आपने मेरी जान बचाई। पता नही मैं आपका ये अहसान कैसे चुकाऊंगा?

अनामिका: जी ये तो मेरा फर्ज था, इसमें अहसान की कोई बात नही है, बताइए, चंदन कह रहे थे कि कुछ बात करनी है आपको?

चंदन: दरअसल अनामिका अमर की यादाश्त को चुकी है, और इसको कुछ भी याद नही कि ये कौन है या इसका घर कहां है, तो इसमें पुलिस की मदद लगेगी, और मैने तुम लोग के चलते अभी तक पुलिस को इनफॉर्म नही किया है, तो उसी के सिलसिले में बात करनी थी।

अनामिका: चंदन अगर जो इसमें पुलिस की मदद लगनी है तो आप पुलिस को इनफॉर्म कर दीजिए, मुझसे जो बन पड़ेगा मैं कर लूंगी। बस इनकी मदद हो जानी चाहिए।

चंदन: फिर ठीक है, मैं पुलिस को इनफॉर्म कर देता हूं।

अमर: डॉक्टर जरा मुझे कुछ समय दीजिए पुलिस को इनफॉर्म करने से पहले।

चंदन: वो क्यों भला??

अमर: असल में मुझे लगता नही कि पुलिस कोई खास मदद कर पाएगी, क्योंकि अगर जो मेरा कोई इस दुनिया में होता तो अब तक मुझे ढूंढता इस शहर में आ गया होता। वैसे मेरा फोन कहां है? क्योंकि मुझे याद है की एक्सीडेंट के समय मैं गाड़ी में किसी से बात कर रहा था। अनामिका जी क्या आपको पता है??

अनामिका: जैसे ही मैंने आपको गाड़ी के बाहर खींचा, आपकी गाड़ी खाई में गिर गई थी, और आस पास तो मुझे फोन नही दिखा आपका शायद गाड़ी के साथ खाई में चला गया।

अमर: ओह, वही एक उम्मीद थी, देखते है फिर कैसे पता चलता है।

फिर सभी बाहर निकल जाते हैं।

अमर सोचते हुए: "मुझे पुलिस के अलावा किसी और तरीके से पता करना होगा अपने बारे में, कही किसी चक्कर में न फस जाऊं पुलिस की मदद ले कर। डॉक्टर चंदन से खुल कर बात करता हूं।"

तभी उसे बाहर से आवाज सुनाई देती है।


अनामिका: चंदन तुमने वो ही नाम क्यों रखा, तुम्हे तो सब पता है ना........
 
[color=rgb(184,]#4 The Shadow...[/color]

चंदन: "अनु देखो जो बीत गया उसका क्या तुम जिंदगी भर शोक मनाओगी? सब भूल कर आगे क्यों नही बढ़ती तुम?"

अनामिका: "चंदन मैंने बहुत कोशिश कर ली, अब मुझसे नही होता, मेरी जिंदगी उस वाकए के बाद वहीं रुक गई है। और फिर भी तुम्हे यही नाम मिला?"

चंदन: "वो कौन सा तुम्हारे घर रहने आ रहा है? तुम यहां आना ही नही, बस।"

अनामिका:"ठीक है, अब मैं चलती हूं, अगर जो पुलिस की जरूरत पड़ती है तो बताना मुझे।"

ये बातें सुन कर अमर के दिमाग में एक बार अनामिका का चेहरा घूम जाता है, शक्ल से वो कोई खास आकर्षक नही थी, पर उसकी आंखे जो बहुत सूनी होने के बावजूद भी अमर को अपनी ओर आकर्षित करती महसूस हो रही थी। उसे शायद कोई बहुत बड़ा दुख है जो अमर को अभी नही मालूम था।

तभी डॉक्टर चंदन वापस से उसके कमरे में आता हैं।

चंदन: अमरजी, क्या मैं पूछ सकता हूं की आप पुलिस की हेल्प क्यों नही लेना चाहते?

अमर: देखिए डॉक्टर...

चंदन: यू कैन कॉल में चंदन, अपना दोस्त ही समझिए, वैसे भी आपको अभी मेरे सिवा और कोई बात करने वाला नही मिलेगा। तो बिना झिझक आप अपनी परेशानी बताएं।

अमर मुस्कुराते हुए: चंदन जी शुक्रिया मेरा दोस्त बनने के लिए। कम से कम अब कोई मेरा अपना तो हुआ कहने के लिए।

चंदन: अरे वैसी कोई बात नही अमर जी, वैसे भी मेरा पेशा ही है लोगों से घुल मिल कर बात करने का, और दूसरा इस शहर में मेरा भी कोई अच्छा दोस्त नही है अभी तक, बस इसीलिए।

अमर: ये तो अच्छी बात है कि आप मुझे अपना अच्छा दोस्त मानते हैं। देखिए चंदन जी, मुझे लगता है कि मैं इस दुनिया में अकेला ही हूं, वरना अगर जो कोई मेरा होता तो अब तक ढूंढने आ ही जाता। और मुझे एक डर और भी है।

चंदन: वो क्या??

अमर: जैसा मुझे अपनी पिछली जिंदगी के बारे में कुछ भी नही मालूम, मुझे डर है कि कहीं मैं जुर्म की दुनिया में काम करने वाला कोई व्यक्ति न होऊं। क्योंकि अगर ऐसा हुआ तो पुलिस मुझे सजा दिलवा देगी, और मैं जिसे कुछ पता ही नही, अपनी बेगुनाही कैसे साबित करूंगा। हो सकता है कि मैने कई गुनाह किए हो, मगर बिना जाने उनकी सजा कैसे काट सकता हूं??

चंदन: बात तो आपकी सही है, पुलिस को इन्वॉल्व करना खतरनाक हो सकता है, हो सकता ही इससे आपका कोई दुश्मन हो जो आपके लिए खतरा बन जाय। चलिए मैं पर्सनल लेवल पर कुछ कोशिश करता हूं।

अमर: थैक्यू दोस्त।

चंदन: अरे दोस्त भी बोलते हो और थैंक्यू भी। चलो आप आराम करो, मैं जाता हूं अभी।

अगले दिन अमर कंपाउंडर की मदद से कॉरिडोर में टहल रहा होता है, कि तभी उसे ऐसा लगता है कि रोड के उस तरफ एक पेड़ के पीछे से कोई उसे देख रहा है। अमर उस ओर देखने लगता है पर कोई दिखता नही, उसे लगता है कि कोई वहम हुआ है उसको। फिर बाकी का दिन वैसे ही बीत जाता है।


रात के 3 बजे कुछ आवाज से अमर की नींद खुलती है और वो रूम में चारो तरफ देखने लगता है, मगर उसे कोई दिखता नही। वो फिर से सोने की कोशिश करता है, तभी उसको लगता है की उसके सिरहाने पर कोई खड़ा है। हैरत से वो पलटकर देखता है तो कोई लंबा सा साया उसे दिखता है, जिसके हाथ के एक खंजर होता है, और वो साया खंजर ऊपर उठा कर......
 
[color=rgb(184,]#5 The Woods Villa....[/color]

उस साए ने खंजर का वार अमर की ओर किया, और अमर ये देखते ही झटके से एक तरफ को करवट लेते हुए गिरा और जोर से चिल्लाया: "बचाओ......"

उसकी आवाज सुन कर हस्पताल में हलचल मच जाती है, ड्यूटी स्टाफ उसके कमरे में अंदर आते हैं और देखते हैं कि अमर के बिस्तर पर एक बड़ा सा खंजर गड़ा हुआ होता है। अमर ने अगर जो छलांग ना लगाई होती तो उसकी मौत निश्चित थी। मगर कमरे में कोई भी ऐसा नहीं दिखता जिस पर शक किया जा सके।

थोड़ी देर में डॉक्टर चंदन भी वहां आ जाते हैं और अमर का हाल चाल पूछते हैं। अमर ने चंदन को कल जो उसे महसूस हुआ था वो बता दिया।

चंदन: ये तो वाकई में आश्चर्य की बात है, लेकिन हॉस्पिटल में तो कोई भी आ जा सकता है, यहां तो तुम खतरे में रहोगे, वैसे भी अब तुमको हॉस्पिटल की कोई जरूरत है नही।

अमर: पर में जाऊंगा कहां? कहने के नाम पर मेरे अपने में बस तुम ही एक हो जिसको मैं अपना दोस्त कह सकता हूं।

चंदन: हां लेकिन मैं खुद एक कमरे के फ्लैट में रहता हूं वो भी अकेले, और मेरा घर तो जहां है वहां कोई सुरक्षा के इंतजाम नहीं है। वहां रहना भी खतरे से खाली नही है।

अमर: फिर मैं कहां जाऊंगा, और इस हॉस्पिटल का बिल? वो।कैसे भरूंगा?

चंदन: उसकी चिंता मत करो, रमाकांत अंकल ने सब पेमेंट कर दी है पहले ही। उनसे ही बात करता हूं सुबह होते ही, वही कुछ कर सकते हैं।

सुबह 10 बजे, डॉक्टर चंदन के रूम में।

अनामिका: चंदन, दादाजी ने मुझे कहा है की उसे होटल के एक रूम में रुकवाने के लिए।

चंदन: पर अंकल खुद क्यों नही आए?

अनामिका: उनके घुटनों में कल रात से दर्द बहुत बढ़ा हुआ है, इसीलिए उन्होंने मुझे भेजा है, आनंद भी आजकल छूटी पर है।

चंदन: अनु तुमको कोई दिक्कत तो नही उसे वहां रखने पर?

अनामिका: चंदन उसे तो होटल के एक रूम में ही रहना है न, और वैसे भी वहां स्टाफ के लोग उसकी देखभाल करेंगे, मेरा उसे कौन सा मिलना जुलना होगा ज्यादा।

चंदन: ठीक है फिर मैं उसके डिस्चार्ज पेपर बनवा देता हूं और सिस्टर को कह देता हूं उसको रेडी करवाने।

अनामिका: हां ये कुछ कपड़े है, उसको दे देना, अभी तो वो हॉस्पिटल के कपड़ों में ही होगा, और उसका तो कोई सामान है भी नही।

चंदन: अनु, ये उसी के कपड़े है न??

अनामिका: हां चंदन, अब रखे रखे खराब ही हो रहे थे, और इसके पास कुछ है भी नही, कद काठी में दोनो एक जैसे ही हैं लगभग तो आ जायेंगे उसको।

चंदन: चलो अच्छा है, तुम कुछ कोशिश कर तो रही ही आखिर। तुम बैठो, मैं सब फॉर्मेलिटी पूरी करवा कर उसे लेके आता हूं।

कुछ देर बाद चंदन वापस रूम में आया और पीछे पीछे एक।व्हील चेयर पर अमर को लाया गया। अमर ने अनामिका को देखते ही मुस्कुरा कर पूछा।

"कैसी है आप?"

"जी ठीक हूं।"

अनामिका, अमर को देखते ही थोड़ी सा उदास हो जाती है जो अमर की आंखों से छुपा नहीं रहता।

चंदन: अमर, अनामिका आपको अपने होटल ले जाने आई है, रमाकांत अंकल ने कहा है आप वहां सुरक्षित रह सकते हैं।

अमर: अरे ये तो अच्छा है, मैं रमाकांत जी का ये आभार कैसे चुकाऊंगा, वैसे भी उन्होंने मुझ जैसे अनजान के लिए इतना कुछ पहले ही कर दिया है।

अनामिका: ये सब कोई आभार की बात नही है, जैसा दादाजी ने किया वो कोई भी अच्छा इंसान दूसरे इंसान के लिए करता। आप ये सब न सोचें और अपने स्वास्थ्य पर ध्यान दें। वैसे भी सुबह जैसा हुआ है, लगता है कोई आपकी जान के पीछे भी पड़ा है।

अमर: जी लगता तो ऐसा ही है।

चंदन: अब आप लोग निकालिए। अनामिका मैं अमर को गाड़ी तक छोड़ देता हूं, साथ में एक वॉकिंग स्टिक भी है, जिसकी सहायता से अब अमर थोड़ा बहुत चल सकता है, लेकिन ज्यादा चल फिर नही करनी है अमर अभी तुमको समझे।

अमर और अनामिका गाड़ी में बैठ कर चल देते हैं, 20 मिनिट के बाद गाड़ी एक बड़े गेट के अंदर जाती है, जिसके अंदर एक बहुत बड़ी हवेली बनी होती है, और गेट के बगल में एक बोर्ड लगा था


"The Woods Villa".......
 
[color=rgb(184,]#6 The Shadow returns......[/color]

उस होटल की पहली मंजिल पर उसका कमरा था, जिसमे बाहर की तरफ एक बालकनी थी, जहां से बाहर की सड़क साफ साफ दिखती थी, और इस सड़क से कोई भी साफ साफ देख सकता था की बालकनी में कौन खड़ा है।

कमरा काफी आरामदायक था और जरूरत की लगभग सारी चीजें जो एक होटल के कमरे में होनी चाहिए मौजूद थी। सुबह के 11 बजे थे और अनामिका उसको होटल के एक स्टाफ की मदद से कमरे में पहुंचा कर वापस जा चुकी थी।

अमर कमरे में आराम करते हुए सोच में डूब गया

"आखिर में मैं हूं कौन? कोई ऐसा जिसके कई दुश्मन हैं जो जान से मरना चाहते हैं या जुर्म की से मेरा वास्ता है जिस कारण वो लोग मुझे रास्ते से हटाना चाहते हैं। जो भी हो, फिलहाल तो अपनी जान बचाना ज्यादा जरूरी है। ये अनामिका और उसके दादाजी भी कितने अच्छे लोग है, एक तो मेरी जान भी बचाई, हॉस्पिटल का खर्चा भी खुद ही किया और अब मेरी जान की हिफाजत भी कर रहें हैं, वो भी बिना कोई जान पहचान के, जिंदगी भी कैसे कैसे मोड़ ले कर आई है। अगर जो मेरे कोई अपने है भी तो उनको कोई परवाह भी नही, और यहां जो मुझे जानते भी नहीं वो इतनी मदद कर रहे हैं, वो भी बिना किसी स्वार्थ के। अनामिका भी कितनी प्यारी लगती है, लेकिन उसकी आंखो का वो सूनापन देख कर दिल में दुख होता है, पता नही कौन सा दर्द समेटे बैठे है वो अपनी जिंदगी में.....

इसी तरह सोच विचार करते करते उसे नींद आ जाती है। 1 बजे के करीब उसके कमरे का फोन बजता है और लाइन पर अनामिका होती है।

अनामिका: अमर जी, आपको दादाजी ने दोपहर के खाने पर बुलाया है, आप तैयार हो जाइए मैं आपको लेने आ जाती हूं।

अमर: अरे अनामिका जी आप क्यों आइएगा, मैं किसी होटल के स्टाफ के साथ आ जाऊंगा।

अनामिका: कोई बात नही है अमर जी, मैं तो वैसे भी अभी होटल के रिसेप्शन पर ही हूं, मैनेजर आज कल छूटी पर है, तो हम लोग ही मैनेज कर रहे है, और मुझे भी तो जाना ही है ना खाना खाने।

अमर: अच्छा, फिर मैं जल्दी से रेडी होता हूं।

15 मिनट बाद अमर लिफ्ट से नीचे आता है, और रिसेप्शन पर अनामिका को बैठे देखता है। वो उसी एक सादे सलवार सूट में एकदम साधारण से मेकअप के साथ बैठी हुई थी, आंखो में वैसा ही सूनापन जो अमर को देखते ही और बढ़ गया था।

अनामिका उसे देख कर उसको अपने केबिन की तरफ ले जाती है, और उसी केबिन से अंदर के दरवाजे से होटल के पीछे बने अपने घर ले जाती है।

दरवाजे से अंदर जाते ही 2 सीढियां उतार कर एक आलीशान सा लिविंग एरिया होता है जिसमे 2 तरफ सोफे लगे होते हैं एक तरफ कोने में वो दरवाजा जिससे अमर और अनामिका अंदर आते है और दरवाजे से लगी हुई वॉल यूनिट जिसमे कई तरह के सजावटी सामान रखे होते हैं, उसी दीवाल के साथ वाली दीवाल में घर का मुख्य दरवाजा होता है और सामने वाले सोफे के पीछे एक बड़ा सा हाल दिखाई देता है जो शायद डाइनिंग रूम था। उसके चारो तरफ दरवाजे ही दरवाजे दिख रहे थे, शायद 7 या 8 दरवाजे थे। हवेली का ये हिस्सा नया बना लग रहा था, शायद आगे के हिस्से में होटल बनाने और घर के लोगों के रहने के लिए ही इसे बनवाया गया हो।

सामने वाले सोफे पर एक 65 - 70 साल के रोबीले इंसान बैठे होते हैं जिनका व्यक्तित्व देख कर लगता है वो कभी सेना में रह चुके हों।

अनामिका: "दादाजी!! चलिए खाना खा लेते हैं।"

उसके लहजे में ऐसा था कि वो जल्दी से खाना खा कर अमर को विदा करना चाहती हो।

रमाकांत जी (दादाजी): बेटा आपको भूख लगी है क्या? वैसे भी अभी खाना तैयार होने में कुछ देर है, आइए अमर जी, इधर बैठिए, में रमाकांत गुप्ता, अनामिका का दादा।

अमर: आपसे मिल कर बहुत खुशी हुई सर। और आपका ये जो आभार है मेरे ऊपर इसका शुक्रिया करने के लिए में खुद आपसे मिलना चाहता था। इतने अहसान है आप दोनो के मुझ पर कि उनकी कैसे चुकाऊंगा वो मेरी समझ में नहीं आ रहा।

रमाकांत: अरे बेटा आप मुझे सर ना कहो, बल्कि चाहो तो दादाजी ही कह सकते हो। और कोई अहसान वाली बात नही है, हमने बस उतना ही किया है जितना एक इंसान दूसरे इंसान के।लिए करता है।

अमर: ये तो आपका बड़ापन है, दादाजी, वरना आज कल के जमाने में किसी के लिए कौन कुछ करता भी है।

रमाकांत: अच्छा ये सब छोड़ो, और कुछ बातें करते हैं, ये अहसान वगैरा की बात ठीक होने के बाद करना।

तभी अनामिका आ कर, "चलिए खाना लग गया है।"

सब लोग डाइनिंग टेबल पर आते हैं, वहां पर एक 15 साल।का लड़का भी बैठा होता है, जिसका परिचय रमाकांत जी अपने पोते पवन के रूप में करवाते हैं।

फिर खाना खा कर अमर वापस होटल के कमरे में आ जाता है, और पूरा दिन ऐसे ही बीत जाता है।

अगले दिन सुबह अमर नहा धो कर नाश्ता करके बालकनी में धूप सेंकने जाता है, कुछ देर बाद उसे सड़क के पर एक पेड़ के नीचे एक आदमी दिखाई देता है जो काला ओवरकोट, काली कैप और काले ही चश्मे में होता है, उसको देखते ही अमर को उस दिन हॉस्पिटल वाले साए की याद आ जाती है और वो उसी को ध्यान से देखने लगता है।

वही उस आदमी की नजर जैसे ही अमर पर पड़ती है वो एक कुटिल मुस्कान से मुस्कुराते हुए अमर की तरफ अपना एक हाथ हिलाता है, अमर के देखने पर वो अपना एक हाथ अपनी गर्दन पर फेरते हुए दूसरे हाथ से अपना कोट किनारे करके एक वैसा ही खंजर अमर को दिखाता है.......
 
[color=rgb(184,]#7 Bride of the Night.....[/color]

खंजर देखते ही अमर डर से पीछे हटता है और किसी तरह कमरे का दरवाजा खोल कर बाहर जाने की कोशिश करने लगता है, उसकी कमजोरी और पैर की चोट के कारण उसको बहुत जद्दोजहद करना पड़ता है, मगर किसी तरह वो दरवाजा खोल देता है और चिल्लाते हुए बेहोश हो जाता है।

होटल स्टाफ उसकी आवाज सुन कर उसके कमरे की तरफ आता है, और उसे बेहोश देख कर तुरंत अनामिका को बताता है। अनामिका उसकी बेहोशी की बात सुन कर फौरन चंदन को फोन लगती है और अपने दादाजी को भी बताती है।

20 मिनट के बाद उसके कमरे में डॉक्टर चंदन आते हैं, और एक इंजेक्शन अमर को लगा देते हैं। थोड़ी देर के बाद अमर को होश आता है। और वो देखता है कि उसके कमरे में चंदन, रमाकांत जी और अनामिका होते हैं।

रमाकांत जी: क्या हुआ बेटा, स्टाफ के लोग बता रहे थे कि तुम चिल्लाते हुए कमरे के बाहर आ रहे थे और बेहोश हो गए? क्या कोई डरावना सपना देख लिया था क्या?

अमर: नही दादाजी, मुझे बालकनी में सड़क के उस तरफ वही साया दिखाई दिया जिसने हॉस्पिटल में मेरे ऊपर हमला किया था, वो वहां से भी मुझे चाकू दिखा कर मारने का इशारा कर रहा था, इसी से में घबरा गया और जल्दी जल्दी में दरवाजा खोलने की कोशिश की और बेहोश हो गया।

चंदन: मेंटल और फिजिकल स्ट्रेस की वजह से आप बेहोश हुए हैं अमर जी। अभी आपका शरीर बहुत कमजोर है और आपको ज्यादा स्ट्रेस नही लेना चाहिए।

रमाकांत जी: लेकिन चंदन बेटा, अब कोई किसी को जान से मरने की धमकी दे रहा हो तो स्ट्रेस होना स्वाभाविक ही है ना।

चंदन: जी अंकल वो तो है ही, वैसे मुझे लगता है कि पुलिस को सब बता कर सुरक्षा ले लेनी चाहिए।

रमाकांत जी: बात तो तुम्हारी सही है चंदन, लेकिन हम तो ये भी नही पता कि कोई अमर की जान के पीछे क्यों पड़ा है, और वो एक आदमी है या और ज्यादा लोग है? कही ऐसा ना हो हम पुलिस को बताएं और हमले और बढ़ जाय।

चंदन: फिर हम क्या करना चाहिए अंकल?

रमाकांत जी: फिलहाल तो हम यही कर सकते है कि मैं सिक्योरिटी और बढ़वा देता हूं, और अमर को पीछे अपने घर में शिफ्ट करवा देता हूं, उधर का हिस्सा बाहर से नही दिखाई देता तो कोई भी नही जान सकता कि अमर यह पर है।

अनामिका (थोड़ा नाराजगी में): पर दादाजी ऐसे किसी को भी घर के अंदर रखना सही है क्या? वैसे भी हम इनके बारे में जानते ही क्या हैं?

रमाकांत जी: बेटी वो हमारा मेहमान है, और उसकी सुरक्षा भी अभी हमारी ही जिम्मेदारी है।

अनामिका: पर अंदर किस कमरे में रुकवाएंगे? कोई कमरा भी तो रहने लायक नही है अभी?

रमाकांत जी: क्यों? एक तो है ही।

अनामिका: पर वो तो उसका है न?

रमाकांत जी: हैं तो क्या हुआ, अभी तो खाली ही है। तुम सही करवाओ उसे, तब तक मैं अमर को वहा ले कर आता हूं।

अनामिका अनमने भाव से वहां से चली जाती है।

कुछ समय बाद अमर रमाकांत जी के घर के एक कमरे में था, उस कमरे में एक बेड और कुछ अलमारियां थी, और एक दीवार पर एक लड़की की तस्वीर लगी थी, सुंदर सा चेहरा, नाक में रिंग, छोटे बाल, स्कर्ट टॉप पहने हुए सुडौल काया की मालकिन थी। तस्वीर से वो कद काठी में अनामिका के बराबर ही थी।

उसे देख कर अमर को ऐसा लगा की वो इसे जनता है शायद, उसकी ओर देखते हुए रमाकांत जी अमर से कहते है।

"ये मेरे छोटी पोती और अनामिका और पवन की बहन, मोनिका। दूसरे शहर में जॉब करती है और यहां बहुत कम ही आती है।

अमर: ओह अच्छा।

रमाकांत जी कमरे के बाहर जाते हुए: थोड़ी देर में खाना खाने बाहर आ जाना।

कुछ देर बाद अमर बहार खाना खाने आता है, टेबल पर रमाकांत जी, पवन और अनामिका बैठे होते हैं। पवन अमर को देखते ही उसे नमस्ते करता है, और अमर भी मुस्कुरा कर जवाब देता है। अनामिका उसे देख कर भी अनदेखा कर देती है। अमर जब अनामिका की तरफ देखता है तो उसे उसके चेहरे पर गुस्सा दिखाई देता है।

खाना खा कर वो वापस अपने कमरे में चला जाता है। और बाकी का दिन ऐसे ही बीत जाता है। रात का खाना खा कर अमर अपने रूम वापस आता है, और सोने की कोशिश करता है, लेकिन उसे नींद नहीं आती, तो वो उठ कर कमरे में इधर उधर टहलने लगता है, फिर वो एक अलमारी को खोल कर उसमे देखता है तो वहां उसे कुछ लड़कियों के कपड़े दिखते हैं, वो इनको ऐसे ही देखने लगता है और ध्यान देता है की ये सारे कपड़े वेस्टर्न आउटफिट थे और बहुत रिवीलिंग थे, ऐसा लगता था की उसे पहनने वाली बहुत ही खुले विचारों की होगी।

तभी उसे बाहर हॉल की तरफ से कुछ आहट सी आती है तो वो डरते हुए कमरे का दरवाजा खोल कर देखना है तो उसे अपने कमरे के बाहर अनामिका खड़ी दिखाई देती है।

वो पूरे दुल्हन के लिबास में खड़ी थी और काफी आकर्षक दिख रही थी, लेकिन उसकी आंखो में वैसा ही सूनापन होता है.....
 
[color=rgb(184,]#8 He Strikes again....[/color]

तभी पीछे से रमाकांत जी आ कर अमर को चुप रहने का इशारा करते हैं और अनामिका का हाथ पकड़ कर उसके कमरे की तरफ ले जाते हैं। अमर आश्चर्य चकित सा देखता रहता है, उसे ऐसा लगता है कि अनामिका जैसे नींद में हो इस समय।

थोड़ी देर बाद रमाकांत जी अनामिका के कमरे से बाहर निकलते हैं और अमर से कहते हैं, "अब सब सही है, तुम सो जाओ, मैं सुबह तुमसे बात करता हूं।"

अमर कमरे में वापस आ जाता है, अभी घटी हुई घटनाओं के कारण उसे नींद नहीं आ रही होती। तभी उसकी नजर बेडसाइड में रखे लैंडलाइन फोन पर जाती है, जो शायद एक ही कनेक्शन का एक्सटेंशन था, उसे उठा कर कान से लगा लेता है। दूसरी तरफ से शायद लाइन चालू थी, और उसे रमाकांत जी का स्वर सुनाई देता है।

रमाकांत जी: चंदन आज 2 महीने बाद फिर से अनामिका को दौरा पड़ा था। बात बिगड़ने के पहले ही मैंने उसे दवा दे कर सुला दिया। इतने दिनो बाद ऐसा क्यों हुआ वो भी अचानक?

चंदन: अचानक नही अंकल, शायद अमर के घर आने से उसकी यादें उस पर हावी हो रही हैं, इसमें मेरी भी गलती है कि मैंने उस आदमी को वो नाम से दिया जिसके कारण अनामिका की ये हालत हो गई है।

रमाकांत जी: पर बेटा ऐसे कैसे चलेगा, अमर कोई वही एक तो था नहीं दुनिया में अकेला, ऐसे तो उसका जीना भी मुश्किल हो जायेगा? जब तक मैं जिंदा हूं तब तक तो ठीक, पर मेरे बाद क्या? पवन अभी छोटा है, और मोनिका अनामिका के प्रति क्या रवैया रखती है ये तो तुमको पता ही है।

चंदन: जी अंकल, समझता हूं, इसका एक ही उपाय है, अनामिका की जिंदगी में किसी का आना। और जब तक वो खुद किसी को अपनी जिंदगी में लाना नही चाहेगी कोई स्थाई उपाय नहीं है दवाइयों के अलावा। अंकल अभी एक 2 दिन उसे आराम करने दीजिएगा, और हो सके तो अमर और उसका आमना सामना कम से कम ही हो तो फिलहाल अच्छा है।

रमाकांत जी: ठीक है बेटा, आप सो जाओ आप, सुबह एक बार आ कर देख जाना।

फिर फोन काटने की आवाज आती है, और वो भी रिसीवर को क्रेडल पर वापस रख देता है। उसकी नींद उड़ चुकी थी वो वार्तालाप सुन कर, इसीलिए वो उठ कर कमरे में ही टहलने लगता है, तभी वो एक और अलमारी के सामने खड़ा हो कर उसे खोलता है और उसके अंदर देखने लगता है। उसमे भी कुछ लड़कियों के कपड़े और उनके इस्तेमाल की चीजें रखी होती हैं। अलमारी के ऊपर वाले खाने में उसे कुछ कागज जैसे दिखते हैं, वो इनको हाथ लगाता है तो उसे कोई मोटी सी डायरी जैसी चीज महसूस होती है, वो उसे उतरता है तो वो एक छोटा सा एलबम होता है। उसमे शायद किसी छोटे से फंक्शन की फोटो होती हैं। जिसमे रमाकांत जी और पवन भी दिखते हैं उसे, एक अधेड़ उम्र के आदमी और औरत भी दिखते हैं जो शायद अनामिका और पवन के मां बाप हैं, और एक अनामिका के उम्र की लड़की भी होती है जिसका चेहरा हर फोटो में चाकू या ब्लेड से बिगड़ा हुआ होता है। कुछ देर उस एल्बम को देख कर अमर उसे वापस अलमारी में रख कर सोने चला जाता है।

सुबह रमाकांत जी अमर को उसके कमरे में उठाने आते हैं और कहते है कि रेडी हो जाओ फिर साथ में नाश्ता करते हैं।

थोड़ी देर में अमर बहार आता है तो रमाकांत जी उसे ले कर अपनी स्टडी में ले जाते हैं, जहां पर नाश्ता लगा हुआ था। वो अमर को बैठने कहते हैं और खुद एक दूसरी कुर्सी पर बैठ जाते हैं।

रमाकांत जी: अमर तुम कल रात के बारे में शायद कुछ पूछना चाहते हो क्या??

अमर: जी दादाजी, आखिर वो क्या था?

रमाकांत जी: अनामिका एक मेंटल कंडीशन से गुजर रही है जिसे PTSD यानी की पोस्ट ट्राउमेटिक स्ट्रेस डिसऑर्डर कहते हैं, जिसमे जब कोई व्यक्ति किसी दुर्घटना से गुजरता है तो उसकी यादें उसको बार बार परेशान करती हैं। अनामिका के पति अमर की मौत उसी मोड़ पर हुई थी जहां पर तुम्हारी गाड़ी का एक्सीडेंट हुआ था।

अमर: अनामिका का पति??

रमाकांत जी: हां अमर, उसके पति का ही नाम अमर था, इसीलिए वो तुमसे थोड़ा खींची खींची रहती है, क्योंकि तुम्हारा रखा हुआ नाम उसे उसकी याद दिलाता है। बेचारी बच्ची को कितना सहना पड़ा है इस छोटी सी जिंदगी में।

अमर: जी....?

रमाकांत जी: अमर मेरा एक ही बेटा था, अभिनव, उसकी शादी नाविका से हुई थीं, दोनो की लव मैरिज थी, मेरी तो सहमति थी, मगर नाविका के घर वाले इसके खिलाफ थे, जाती अलग होने के कारण। खैर दोनो शादी करके यहां रहने चले आए, और इस समय मैं अपनी पोस्टिंग में असम में था। शादी के एक साल बाद अनामिका का जन्म हुआ था। बहुत प्यारी बच्ची थी, उस समय कुछ गलती के कारण नाविका खतरे में आ गई और जीवित नही रही मेरी पत्नी जीवित थी, और मेरी रिटायरमेंट भी ज्यादा समय नहीं था, तो वो यहीं आ कर अनामिका को सम्हालने लगी थी। मेरे बेटे ने ही इस हवेली को होटल में बदला था और इस हिस्से को भी उसी ने बनवाया था। कुछ समय बाद, मेरी रिटायरमेंट से कुछ एक महीना पहले मेरी पत्नी की मृत्यु भी हार्ट अटैक से हो गई।

अमर: ओह ये तो बहुत ही दुखद हुआ।

रमाकांत जी:" हां, वो तो है। इस घटना के बाद मैं भी यहां चला आया, मगर हम दो बाप बेटों के बस का नही था अनामिका को अकेले पालना, और फिर अभिनव की उम्र भी कोई ज्यादा नही थी, तो मैंने ही जोर दे कर उसकी शादी मोना से करवा दी, मोना मेरे दोस्त की बेटी थी, जिसका भी तलाक हो चुका था। मोना एक बहुत अच्छी मां साबित हुई, वो अनामिका को अपनी ही बेटी मानती थी। कुछ समय के बाद उसको भी एक लड़की हुई, जिसका नाम मोनिका रखा गया। और कुछ और साल बाद एक बेटा, पवन, जो करीब 10 साल छोटा था अनामिका से। मोनिका शुरू में तो बहुत अच्छी बेटी थी, मगर जब वो कुछ बड़ी हुई तो उसकी एक मौसी का उस पर बहुत प्रभाव पड़ा, उसने मोनिका के कान भरने शुरू कर दिए की अनामिका उसकी सौतेली बहन है, फिर भी तेरी मां उसे ज्यादा मानती है और तेरी कोई औकात नही उसके सामने वगैरा वगैरा। छोटी बच्ची के मन पर ये बात हमेशा के लिए छप गई, और वो अनामिका से लगभग नफरत करने लगी, हालांकि मोना और अभिनव ने कभी भी किसी बच्चों में कोई अंतर नही किया था, फिर भी उसे हमेशा यही लगता कि उसके मां बाप उसे अनामिका से न सिर्फ कम मानते थे बल्कि उस पर ध्यान भी कम देते थे। वो यहां पर कम ही आती थी, होस्टल से छुट्टी होने पर जहां अनामिका यहां आती वहीं मोनिका अपनी उसी मौसी के पास चली जाती। धीरे धीरे वो अनामिका से नफरत करने लगी। फिर एक साल पहले जब अनामिका की पढ़ाई खत्म हो गई तो उसके मां बाप ने उसकी शादी अपने एक दोस्त के लड़के अमर के साथ तय कर दी। इसी बीच मोनिका की पढ़ाई भी पूरी हो गई, और उसने शहर में ही एक नौकरी कर ली, उसकी संगत भी बहुत बुरी हो गई थी, सिगरेट शराब तो उसके लिए आम बात थी, बाकी भी पता नही क्या क्या, उसके कई लड़के भी दोस्त थे, अब क्या ही बोलूं, कुल मिला कर कहा जाय तो वो लड़की पूरी तरह से हाथ से निकल चुकी है।"
"अमर एक बहुत ही अच्छा लड़का था, दोनो इस शादी से खुश भी बहुत थे। शादी के 6 महीने बाद, एक बार दोनो यहां आए हुए थे और पवन की छुट्टियां होने वाली थी। तो अभिनव और मोना उसे लेने जाने वाले थे, और अमर को शहर में कोई काम निकल आया, तो वो तीनो ही गाड़ी में पवन को लेने चले गए, यहां मैं और अनामिका ही थे। थोड़ी ही देर बाद खबर आई की उसी मोड़ पर उनका एक्सीडेंट हो गया और तीनो की मौत हो गई। इस एक्सीडेंट के बाद अनामिका एकदम टूट गई, उसे सही होने में 4 महीने लगे। इसी बीच मोनिका ने आ कर अपना हिस्सा मांगा मेरी प्रॉपर्टी में, उसे 2 हिस्से चाहिए थे, एक अपना और एक पवन का, उसके हिसाब से वो और पवन ही अपने मां बाप के बच्चे थे, और चूंकि अनामिका की शादी हो गई थी इसीलिए उसे कुछ भी नही मिलना चाहिए, मैंने साफ साफ बोल दिया कि होंगे तो 3 ही होंगे, मेरी प्रॉपर्टी है ये, हां कोई नही रहा तब 2 हिस्से हो सकते हैं। मोनिका की मुझसे खूब बहस हुई, अंत में मोनिका गुस्से में अनामिका को देख लेना की धमकी दे कर चली गई।"

अमर: अनामिका को क्या होता था, और कल रात??

रमाकांत जी: उसे दौरे पड़ते थे, वो रात को दुल्हन की तरह सज कर अमर का इंतजार करती और उसकी फोटो देख कर खूब रोती चिल्लाती थी, सम्हालना मुश्किल होता था, गुस्सा उसकी नाक पर रहता, और कभी कभी गुस्से में कई लोगों से मार पीट भी कर लेती थी। चंदन की दवाइयों से सही हुई 2 महीने से कुछ नही हुआ, लेकिन कल पता नही कैसे?

अमर: क्या मेरे कारण?

रमाकांत जी: हो सकता है।

अमर: तो क्या मैं कहीं और चला जाऊं?

रमाकांत जी: नही बेटा, मैं उसको समझाऊंगा, उसे आखिर अपने इस डर से बाहर निकलना जरूरी है, और वो दवाई से नही होगा, उसे खुद ही करना पड़ेगा।

अमर: पर फिर भी?

रमाकांत जी: पर वर कुछ नही, जब तक तुम पूरी तरह से सही नही होते, तब तक तो नही।

उसके बाद दोनों स्टडी के बाहर निकल जाते है, अनामिका आज पूरा दिन अपने कमरे में ही रहती है।

अमर के दिल में अनामिका के प्रति एक फिक्र की भावना जन्म लेने लगती है, और वो अभी के लिए अनामिका से बच कर ही रहने की कोशिश करता है।

ऐसे ही 2 3 दिन बीत जाते हैं, और अनामिका अपने कामों में लग जाती है। अमर उसको दूर से ही देखता रहता है, लेकिन दोनो की कोई बात नही होती। अब वो बहुत हद तक ठीक हो चुका था, और बिना वॉकिंग स्टिक के ही आराम से चल लेता था।

एक दिन अमर बहार लॉन में टहल रहा होता है तभी उसे वो आदमी (साया) फिर से सड़क पर दिखाई देता है, और उसी समय अनामिका भी बाहर की तरफ जा रही होती है। अमर दोनो पर नजर रखते हुए बाहर की ओर आता है, अनामिका उस आदमी के दूसरी तरफ जाने लगती है, अमर उस आदमी की ओर देखता है, और दोनो की नजर मिलती है। वो आदमी अनामिका की तरफ देख कर मुस्कुराता है, और पास खड़ी एक वैन की ओर बढ़ता है।

ये देख अमर अनामिका की ओर भागता है, और उसको आवाज देता है। अनामिका ये देख घबरा जाती है। साया वैन को अनामिका की तरफ मोड़ कर पूरी स्पीड से आगे बढ़ा देता है और.....
 
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