Thriller kahani मोड़... जिंदगी के

[color=rgb(184,]#9 And they meet....[/color]

अमर उछल कर अनामिका को अपने आगोश में ले कर रोड के एक साइड लुढ़क जाता है, और तभी वो वैन एकदम नजदीक से अमर की बांह पर रगड़ बनाते हुए निकल जाती है।

अमर और अनामिका एक दूसरे से लिपटे हुए रोड के किनारे बनी ढलान से लुढ़क कर नीचे आ जाते हैं। और दोनो एक दूसरे की आंखों में को से जाते हैं। तभी आस पास के लोग उनके तरफ आते हैं, जिनकी आवाजें सुन कर दोनो को होश आता है।

अमर की बांह पर गहरी खरोंचों के निशान आ जाते है और शर्ट की बाजू भी फट जाती है। अनामिका ये देख कर घबरा जाती है, और अमर से उसका हाल पूछती है। अमर कहता है कि वो ठीक है, और वो अनामिका से पूछता है की चोट तो नही लगी? रोड के किनारे पर घास होने से दोनो में से किसी को और कोई चोट नहीं आती है। दोनो वापस होटल के अंदर आते हैं।

आज अमर को अनामिका की आंखों में अपने लिए कुछ अलग सा दिखा, मगर वो उसे अपने नाम से मिला कर ज्यादा ध्यान नहीं देता उस पर। घर आ कर अनामिका फर्स्ट एड बॉक्स ले कर उसके घाव को साफ करती है।

रमाकांत जी अमर का हाल चाल लेते हैं और अमर से पूछते हैं कि ये कैसे हुआ, इस बार अमर झूठ बोल देता है की शायद उस गाड़ी का ब्रेक फेल हो गया था। अमर नही चाहता था कि उसके कारण इन लोगो को तकलीफ हो।

शाम को रमाकांत जी अमर को स्टडी में बुलाते है, वहां पर एक लड़का पहले से बैठा होता है।

रमाकांत जी: अमर, ये सूरज है, हमारे शेफ का भाई। इसका घाटी के उस पार वाले गांव में कैफे है जिसमे यहां आने वाले अक्सर ब्रेक लेते हैं। सूरज क्या यही हैं वो??

सूरज: जी साहब, ये वही हैं। लेकिन मेरी इनसे ऐसी कोई बात नही हुई थी कि ऐसा कुछ पता चले कि ये कहां से आ रहे थे।

रमाकांत जी: अच्छा, चलो ठीक है फिर तुम जाओ। और कोई काम है या वापस जाओगे।

सूरज: साहब वो जो पास में नया होटल बन रहा है, वहां भैया ने बात की है शायद, अब कैफे से उतनी कमाई होती नही, मेरी शादी भी तय हो चुकी है, इसीलिए देखता हूं कुछ वहां पर।

रमाकांत जी: ठीक है तुम जाओ।

उसके जाने के बाद, रमाकांत जी ने अपने टेबल पर रखे हुए एक पर्स को अमर की तरफ बढ़ते हुए कहा, "ये तुम्हारा है, देख लीजिए शायद कुछ मिल जाय जिससे कुछ पता चल सके। ये तुम सूरज के कैफे में छोड़ आए थे।"

अमर: आपने नही देखा?

रमाकांत जी, अब ये तुम्हारा ही है, और तुम खुद यहीं हो तो खुद ही देख लो।

अमर उस पर्स को खोल कर देखता है, उसमे बस कुछ पैसे होते हैं, और अमर की एक फोटो, और कुछ भी नही।

अमर: इसमें तो कुछ भी नही है।

रमाकांत जी: ओह बैडलक अगेन। ठीक है देखते है और क्या किया जा सकता है।

रात को अमर बेड पर बैठा उसी पर्स को देख रहा होता है, अपनी फोटो को जब वो ध्यान से देखता है तो उसे लगता है कि ये फोटो मुड़ी हुई है और बस सामने उसका चेहरा दिख रहा है। अमर उस फोटो को बाहर निकलता है और खोलने पर उसे दिखता है कि उस फोटो में उसके साथ मोनिका है और दोनो इस तरह से हैं उस फोटो में जैसे दोनो एक दूसरे के करीबी हों। ये देख अमर सोच में पड़ जाता है कि "क्या वो मोनिका का प्रेमी, या पति है क्या?? उसे रमाकांत जी को ये बता देना चाहिए?? लेकिन उनको मोनिका से ज्यादा मतलब है नही, और वो तो ये जनता भी नही की वो और मोनिका साथ में हैं या नहीं।"

इसी उधेड़बुन में अमर की आंख लग जाती है।

सुबह अनामिका उसे उठाने आती है, आज वो आसमानी रंग के सूट में बहुत प्यारी दिख रही होती है, और उसकी आंखों में एक चमक सी होती है। उसे देख अमर के दिल को बड़ा सुकून आता है, मगर तभी उसका दिमाग उसे फोटो वाली बात याद दिलाता है, जिसको याद कर के वो तुरंत अपनी नजरें अनामिका से हटा लेता है।ये देख अनामिका को थोड़ा दुख होता है।
दोपहर को बाहर गार्डन में अनामिका कुछ काम कर रही होती है, और अमर उधर जाता है, पवन वहीं पर खेल रहा होता है। अमर पवन की ओर चला जाता है, जिसे देख अनामिका फिर चिढ़ जाती है।

तभी एक होटल का स्टाफ अनामिका के पास आता है, और गलती से गार्डन की एक क्यारी में उसका पैर पद जाता है। जिसे देख अनामिका बहुत जोर से उसके ऊपर चिल्लाती है। उसका चिल्लाना सुन कर पवन बहुत डर जाता है, और रमाकांत जी आ कर अनामिका को अंदर ले जाते हैं।

पवन: आज दीदी को बहुत दिन के बाद ऐसे गुस्से में देखा है, और वो भी गार्डेनिंग के समय, जबकि इसी गार्डेनिंग से तो उनका गुस्सा शांत हुआ था।

अमर ये सुन कर सोच में पड़ जाता है कि क्या उसके बर्ताव से ऐसा हो रहा है अनामिका के साथ? मगर वो भी तो मजबूर था जब तक उसे अपने और मोनिका के बारे में पूरी सच्चाई ना पता चल जाए तब तक वो कैसे अनामिका के बारे में कुछ सोच पता, वैसे भी उसके कारण इस घर के लोगों की जान पर भी बन आई है।

वो फैसला लेता है कि वो ये घर छोड़ कर कहीं और चला जायेगा, और घर क्या, वो ये कस्बा भी छोड़ देगा, ताकि यहां पर लोग सुरक्षित रहें। और मोनिका तो शहर में ही है, मतलब वो भी वहीं से आया है।

रात को सबके सोने के बाद, अमर चुपके से घर से बाहर निकल जाता है, और अंदाज से एक ओर बढ़ने लगता है, कुछ आगे जाने पर उसे एक पान की दुकान दिखाई देती है, वहां से वो बस स्टैंड का पूछ कर वहां के लिए निकल जाता है।

बस स्टैंड पर पहुंचने पर उसे बताया जाता है की शहर की बस 1 घंटे बाद मिलेगी। वो बस स्टैंड पर ही बैठ जाता है। तभी उसे लगता है की सामने वाली दुकान पर वही काले कोट वाला शख्स खड़ा सिगरेट पी रहा है।

अमर चुपके से उसके नजरों से बच कर एक कोने में खड़ा हो कर उसको देखने लगता है, कुछ देर बाद वो आदमी एक ओर बढ़ जाता है, अमर चुपके से उसका पीछा करने लगता है। एक पुराने और छोटे से घर के बाहर पहुंच कर वो आदमी उसको खोलने लगता है, तभी अमर को एक नुकीला सा लोहे का चालू जैसा दिखता है जिसे उठा कर अमर उस आदमी की पीठ पर लगा कर......
 
[color=rgb(184,]#10 The Artist.....[/color]

अमर ने उस चाकू नुमा लोहे के टुकड़े को उस आदमी की पीठ से लगा कर कहा

"चुपचाप दरवाजा खोल कर अंदर चलो"

वो आदमी शांति से दरवाजा खोल कर अंदर आता है, अमर उसके साथ में अंदर दाखिल होता है और अंदर आते ही उस आदमी से उसका हथियार देने को कहता है। कमरे में एक छोटा सा बल्ब जल रहा होता है और बहुत ही धीमी रोशनी होती है। दोनो मुश्किल से ही एक दूसरे का चेहरा अच्छे से देख पा रहे होते हैं।

वो आदमी चुपचाप से अपना खंजर और एक पिस्तौल अमर के हवाले देता है, और अमर के कहने पर कमरे के एक कोने में खड़ा हो जाता है।

अमर: कौन हो तुम, और मुझे क्यों मारना चाहते हो?

वो आदमी थोड़ा आश्चर्य से: क्या मतलब, तुम मुझे नही जानते

अमर: मैं किसी को नही जानता, मेरी यादाश्त चली गई है।

वो आदमी: चल मुझे ना बना, मैं तेरी रग रग से वाकिफ हूं। तू कुछ भी कर सकता है, एक्टिंग भी।

अमर: मैं सच कह रहा हूं, मुझे सच में कुछ याद नही, प्लीज मुझे बता दो मैं कौन हूं?

वो आदमी थोड़ा सोचते हुए: तू एक आर्टिस्ट हैं।

अमर: हैं? मतलब क्या? और आर्टिस्ट को जान से कौन मरना चाहता है।

वो आदमी: तू सच में मुझे नही पहचानता??

अमर: कितनी बार बोलूं एक ही बात। मुझे कुछ भी याद नही, सिवाय मेरे एक्सीडेंट के।

वो आदमी: हम्म्म। फिर तो कोई समस्या नही है, बेकार में तेरे पीछे पड़ा था।

अमर: मतलब?

वो आदमी: सुन, तेरा नाम कुमार है जैसा हम जानते है, असली नाम नही मालूम, तू खुद को एक आर्टिस्ट कहता था, पास असल में तू एक कॉन्ट्रैक्ट किलर है।

अमर: क्या? और तुझे कैसे पता ये सब?

वो आदमी: मैं और तू दोनो सिंडिकेट के लिए काम करते हैं, तू कुमार, में रघु। तू सबसे बेस्ट है पूरे सिंडिकेट में, तेरे काम करने का तरीका ऐसा है कि आज तक तेरा नाम कहीं भी पुलिस रिकॉर्ड के नही है। तू मर्डर को ऐसा बना देता था कि वो या तो एक्सीडेंट लगे या सुसाइड, कई बार तो प्राकृतिक मौत भी बना देता था तू। तेरा रेट सबसे ज्यादा है सिंडिकेट में। और सबसे ज्यादा डिमांड भी तेरा ही होता है।

अमर: ऐसा है तो फिर मेरी जान के पीछे क्यों पड़े हो?

रघु: क्योंकि तुमने सिंडिकेट का नियम तोड़ने की कोशिश की है।

अमर: क्या मतलब?

रघु: सिंडिकेट का नियम है कि कोई भी हत्या आपसी रंजिश के चलते नही होगी, बिना कॉन्ट्रैक्ट के कोई भी हत्या की सोच भी नही सकता, खुद का कोई मैटर है तो सिंडिकेट में ग्राहक बन कर आना होता है।

अमर: तो मैंने किसकी हत्या कर दी?

रघु: की नही, पर करने जा रहे थे। यहां तुम उसी काम के लिए आए थे, पर यादाश्त के चक्कर में भूल गए लगता है। मुझे लगा हॉस्पिटल वगैरा सब तुम्हारे प्लान का हिस्सा है।

अमर: पर यहां मैं किसकी हत्या करने आया था? एक मिनट।

अमर अपना पर्स निकाल कर रघु को मोनिका की फोटो दिखाया है।

अमर: इसी पहचानते हो?

रघु: मोनिका... इसी के चक्कर में तो तू बदल गया यार, इतना की वो कुमार जो कभी नियम से परे जा कर कोई काम नहीं किया आज सिंडिकेट के सबसे बड़े नियम को तोड़ने चला था।

अमर: पूरी बात बताओ।

रघु: तू सिंडिकेट का सबसे काबिल हत्यारा है, और लोग तुम्हारे से काम करवाने के मुंह मांगे रेट देते हैं। ये सब करीब 6 या 7 महीने पहले शुरू हुआ था। जब तुझे एक कॉन्ट्रैक्ट मिला था इसी तरफ का, उस काम के आने के बाद ही तेरी मुलाकात इस मोनिका से हुई, तुम दोनो एक दूसरे के काफी नजदीक आ गए। इतना की दोनो शादी करना चाहते थे। ऐसे तो तेरी जिंदगी में कई माशूकाएं थी, पर ये कुछ अलग ही थी, इससे मिलने के बाद तूने काम भी कम कर दिया, और अभी पिछले महीने किसी को ये बोला की तुझे अपना कोई काम करना है इसीलिए अभी कुछ दिन तू सिंडिकेट का काम नहीं करेगा अब, और शायद बाद में सिंडिकेट भी छोड़ देगा। बस इसी कारण मुझे तेरे पीछे लगाया गया। वैसे भी मेरा और तेरा ही सबसे ज्यादा साथ था। अपुन दोनो सबसे अच्छा दोस्त था, कई काम एक साथ किया था अपुन।

अमर: इसी तरफ किसका काम था, और किसकी हत्या की थी मैने।

रघु: भाई सिंडिकेट में सेक्रेसी के चलते किसका काम है और किसकी हत्या होनी है ये बातें बस सिंडिकेट के ऊपर के सदस्यों, काम लेने वालों और काम देने वालों को ही पता होती हैं।

अमर: पर तुझे ही क्यों चुना इस काम के लिए? मतलब मुझे मारने के लिए।

रघु: मुझसे ज्यादा कोई नही जानता तेरे को, इसीलिए बस।

अमर: तुझे पता यहां किस काम आ आया था मैं? और यहां आया ये कैसे पता?

रघु: सही से तो नही पता लेकिन अपना काम ही क्या है आखिर? उसी लिए से होगा तू। तेरी मोबाइल की लोकेशन ट्रेस हुई थी, बल्कि सिंडिकेट वाले सबकी करतें है, पर एक्सीडेंट के बाद वो गायब है। बस वही ढूंढते हुए आया इधर।

अमर: ये मोनिका और मेरी मुलाकात कैसे हुई पता है तुमको?

रघु: ज्यादा नही पता, लेकिन इतना पता है कि वो तेरे काम के बारे में जानती थी पहले से, अब कैसे तो उसके 2 ही कारण हो सकते हैं, या तो वो खुद किसी का कॉन्ट्रैक्ट ले कर आई हो, या फिर उसे किसी ने बताया हो इस बारे में।और दूसरी बात के चांस कम ही हैं। क्योंकि कॉन्ट्रैक्ट देने वाला भी हमारे सर्विलांस में रहता है कुछ समय तक।

अमर: फिर तुमने अनामिका को मारने की कोशिश क्यों की?

रघु: अनामिका? अच्छा वो जो उस दिन तुम्हारे साथ थी। मैं तो तुझे ही मार रहा था, उसको नही, वो बस साथ में थी तेरे तो हमारे काम में ये सब तो चलते रहता है, वो क्या बोलते हैं उसको अंग्रेजी में... कोलेट्रल डैमेज।

अमर: तो अब आगे क्या??

रघु: देख तू मेरा भाई है, अगर जो तू वादा कर की आगे ऐसा कुछ नही करेगा और अपनी जिंदगी बदल देगा, यादाश्त वापस आने पर भी, तो ये तेरा मेरा सीक्रेट, वहां जा कर मैं बोल दूंगा की तुझे मार दिया।

अमर कुछ सोच कर; मैं वादा करता हूं, मुझे भी अच्छी जिंदगी ही जीनी है, ऐसी गुनाहों वाली नही।

रघु: ठीक है, लेकिन तू यहीं रहना, बाहर तुझे कोई और देख लिया तो मेरी जान भी संकट में आ जाएगी, और सिंडिकेट वाले किसी को भी नही छोड़ते।

अमर: अच्छा, फिर मैं चलता हूं।

रघु: मेरा हथियार तो दे।

अमर: ताकि तू मुझे पीछे से मार सके?

रघु: बस क्या भाई?? ऐसा कुछ नही है।

अमर: रुक यहीं तू।

इतना बोल कर अमर घर से बाहर निकलता है और दरवाजा बाहर से बंद कर देता, पास में एक कचरे वाले ड्रम में सारे हथियार डाल कर आगे बढ़ जाता है। इसके दिमाग में विचारों की आंधियां चल रही होती हैं।

"क्या मैं एक हत्यारा हूं, और अगर जो हत्यारा हूं तो क्या यहां मैं किसी के हत्या के इरादे से आया था? क्या मोनिका के कहने पर?? क्या मैं अनामिका की हत्या करने आया था?? क्या उसके मां बाप और उसके पति अमर का एक्सीडेंट भी तो....


यही सब सोचते हुए अमर उर्फ कुमार का सर घूमने लगता है और वो बेहोश हो कर गिर जाता है....
 
[color=rgb(184,]#11 Who is she??....[/color]

सुबह अमर की आंख रमाकांत जी के बिस्तर पर खुलती है, वो चारो तरफ देखता है और उसकी नजर अनामिका पर पड़ती है जो शायद उसके जागने का इंतजार करते करते पास पड़े सोफे पर सो जाती है, अमर को प्यास लगी होती है तो वो पास पड़े जग से ग्लास में पानी डालने की कोशिश करता है और ग्लास इसके हाथ से फिसल जाता है। ग्लास गिरने की आवाज सुन कर अनामिका उठ जाती है और जल्दी से ग्लास उठा कर पानी भर कर अमर की ओर बढ़ा देती है। अमर की नजरें अनामिका से मिलती है जिसमे चिंता और गुस्सा दोनो दिखता है उसे।

अनामिका: आप कहां जाने की कोशिश कर रहे थे?

अमर थोड़ा झिझकते हुए: वो दरअसल मैं आप सब से दूर जाना चाहता था तक मेरे कारण आप लोग की जान मुसीबत में न पड़े। वैसे भी आप लोग को मेरे कारण इतनी तकलीफ हो रही है, बिना जान पहचान के आप लोगो ने इतनी मदद की है मेरी।

अनामिका थोड़ा उलहाना भरे लहेजे से: "अच्छा जी जान पहचान नहीं है?" और बड़ी अदा से अपनी एक भौं उचका दी, और कमरे से बाहर चली गई।

उसका यूं भौं उचकाना अमर के दिल पर एक छाप छोड़ गया...

थोड़ी देर के बाद रमाकांत जी और अनामिका कमरे में आए।

रमाकांत जी: कहां जा रहे थे अमर, वो भी इस हालत में?

इससे पहले अमर कुछ बोलता, अनामिका बीच में शिकायत से बोली: "दादाजी ये हम सब को छोड़ कर जा रहे थे, क्योंकि इनके हिसाब से हम सब को इनसे तकलीफ हो रही है, और ये हमारे लगते भी कौन हैं आखिर??"

"ये हमारे लगते भी कौन हैं" पर ज्यादा जोर दिया था अनामिका ने, जिसे सुन कर रमाकांत जी हल्के से मुस्कुराए।

रमाकांत जी: क्या ये सही बात है अमर?

अमर: जी दादाजी, ऐसा कुछ नही है, पर मैं कब तक आप लोग पर बोझ बना रहूंगा?

रमाकांत जी थोड़ी नाराजगी से: ऐसे क्यों बोलते हो तुम? कोई बोझ नहीं हो तुम हम पर, तुम मेरे लिए अमर के जैसे ही हो। बस नाम ही नही दिया तुमको उसका। और जब तक सही नही हो जाते तब तक कहीं जाने की सोचना भी नही।चलो बाहर नाश्ता कर लो।

अमर: माफी चाहता हूं दादाजी, मैं आप लोग को और परेशान नहीं करना चाहता था, लेकिन मेरे जाने से आप लोग को बुरा लगेगा ये नही जानता था। आगे आ ऐसा कभी नही होगा।

ये सुन कर रमाकांत जी और अनामिका दोनो के चेहरे पर खुशी आ जाती है। एक ओर जहां अनामिका के चेहरे पर थोड़ी शर्म की लाली भी होती है, रमाकांत जी के आंखो में एक निश्चिंतित्ता।

नाश्ते के टेबल पर चारो लोग बैठे थे।

अमर: दादाजी मैं यह कैसे आया?

रमाकांत जी: चंदन ले कर आया तुमको, उसके घर के बाहर तुम।बेहोश हुए थे।

अमर: ओह, अच्छा हुआ की दोस्त के घर के बाहर ही गिरा। वरना कौन मेरा दुश्मन है कुछ पता ही नही।

रमाकांत जी ने उसके हाथ पर अपना हाथ रखते हुए संतावना दी और कहा, "धीरे धीरे सब ठीक होगा अमर, चिंता मत करो। और अब तो खुश हो, तुम्हारा एक परिवार भी है।

तभी पीछे से आवाज आती है, "और मेरे जैसा दोस्त!"

सभी पीछे मुड़ कर देखते हैं तो डॉक्टर चंदन खड़ा होता है।

रामकांत जी: अरे चंदन बेटा, आओ आओ नाश्ता तो करोगे नही तुम?

चंदन: क्यों अंकल? आपको पता है की जब भी मुझे यहां आना होता है तो मैं एक दिन पहले ही खाना छोड़ देता हूं, ताकि अच्छे से खा सकूं। और खा कर भी आऊंगा तब भी अनु के हाथ का खाना तो छोड़ नही सकता ना?

ये बोलते हुए चंदन आ कर अमर के साथ वाली कुर्सी पर बैठ जाता है, और अनामिका उसे प्लेट में नाश्ता लगा कर देते हुए, "ले भूक्खड़"

चंदन: ओहो आज तो चंडी देवी का मूड बहुत सही है? क्या बात है दादाजी??

रमाकांत जी: मुझे क्या पता चंदन, ये मौसम से है या किसी के आने से?

चंदन: आज तो सब बदल गए लगता है, क्यों पवन?

पवन बस मुस्कुरा देता है।

चंदन: अच्छा ये अमर का जादू है। समझ गया भाई, तू तो जादूगर निकला।

सब हंस पड़ते है ये सुन कर।

थोड़ी देर ऐसे ही हंसी मजाक चलता रहता है, फिर चंदन अपने हॉस्पिटल निकल जाता है, और अमर अनामिका के साथ बाहर गार्डन में आ जाता है, रमाकांत जी और पवन होटल की तरफ चले जाते हैं।

अनामिका गार्डन में पौधों की देख भाल कर रही होती है और अमर उसको देखता रहता है, अनामिका पास आ कर उसको पौधों की तरफ ले जाने लगती है, मगर अमर घबरा जाता है। अनामिका उससे कारण पूछती है तो अमर कल वाली घटना बता देता है, जिसे सुन कर अनामिका जोर से हस्ते हुए कहती है, " वो बेचारा तो आपके कारण डांट खा गया था।

अमर: मतलब?

अनामिका: आप कल मुझे कितना इग्नोर क्यों कर रहे थे?

अमर: मैं... बस उसी कारण से जिससे मैं कल रात को घर छोड़ कर जाने वाला था।
अनामिका: तो अब क्या फैसला लिया आपने?

अमर: यहां से जाने के कोई वजह ही नही रही अब।

अनामिका थोड़ा शरमाते हुए: और रुकने की....

अमर बिना कुछ बोले अनामिका का हाथ थाम लेता है।

शाम के समय दोनो गार्डन में घूम रहे होते हैं की तभी बाहर रोड से एक गाड़ी निकलती है, जिसमे अमर को एक लड़की दिखती है और वो लड़की......
 
[color=rgb(184,]#12 The assault....[/color]

और उस गाड़ी में शायद मोनिका थी, गाड़ी होटल के गेट की तरफ बढ़ रही थी, और साथ साथ अमर के दिल की धड़कन भी, वो वापस अपनी उन गुनाहों की गलियों में नही जाना चाहता था, और सबसे बड़ी बात, अनामिका उसके दिल में जगह बना चुकी थी, और मोनिका शायद कहीं भी नही थी, बल्कि ये जानने के बाद की उसने अनामिका को धमकी दी थी, अमर के दिल में मोनिका के प्रति नफरत सी हो गई थी। लेकिन आप अपने अतीत से कब तक पीछा छुड़ा सकते हैं। लेकिन अमर आज तो कम से कम ये नही चाहता था।

गाड़ी आगे बढ़ते हुए होटल के गेट से आगे बढ़ गई और अमर ने एक चैन के सांस ली। मोनिका ने भी शायद उसे नही देखा था। बाकी रात भी शांति से निकल गई।

अगली सुबह अनामिका ने अमर को उठाया और बोला की सबको मंदिर जाना है इसीलिए जल्दी से तैयार होने को कहा।

अमर कुछ देर में तैयार हो कर बाहर आता है और सारे लोग गाड़ी में बैठ कर मंदिर निकल जाते हैं। वहां रमाकांत जी ने अमर के लिए पूजा रखी थी। पूजा के बाद वो सब वापस से घर आते हैं और अमर अनामिका के साथ कुछ देर होटल का थोड़ा बहुत काम देखता है।

दोपहर के खाने के बाद रमाकांत जी अमर को ले कर स्टडी में चले जाते हैं, और अमर से बात करने लगते हैं।

रमाकांत जी: अमर मुझे तुमसे कुछ बात करनी है, उम्मीद है तुम बुरा नही मानोगे।

अमर: क्या बात कर रहे है दादाजी, आपकी कोई बात का में बुरा नही मानूंगा। अब आप ही लोग तो मेरे सब कुछ हैं।

रमाकांत जी: अनु के बारे में है ये। क्या वो तुमको पसंद है?

अमर: शायद.... बल्कि हां अनु मुझे पसंद है, बहुत पसंद है।

रमाकांत जी: मुझे पता है अमर, फिर भी मैं अपनी बच्ची के लिए तुमसे 2 बातें पूछना चाहता हूं।

अमर: जी जरूर पूछिए।

रमाकांत जी: पहला तो ये कि अनु एक विधवा है, उसके बाद भी क्या तुम उसके साथ आगे बढ़ने को तैयार हो? और दूसरी बात कि हो सकता हो कि तुम्हारी पिछली जिंदगी में तुम्हारा कोई प्यार हो, लेकिन अभी तो वो सामने नही आया है, लेकिन आगे कहीं तुमको कुछ ऐसा याद आए तो....?

अमर: देखिए दादाजी, मेरी पिछली जिंदगी में जो कोई भी है या था, उसे अब तक तो मेरी कोई खोज खबर लेने थी ना, लेकिन आज 10 दिन होने आए कोई नही आया। और दूसरी, अनु का पास्ट मेरे लिए कोई मायने नहीं रखता। सच कहूं आपसे तो होश में आते ही सबसे पहले मेरी नजर अनु पर ही पड़ी थी, और उसी समय से वो मेरे दिल में बस गई।

रमाकांत जी: अच्छा लगा जान कर, लेकिन अमर मैं एक बात अच्छी तरह से बता देना चाहता हूं, अनु अपनी जिंदगी में कई दुख झेल चुकी है, लेकिन डॉक्टर ने साफ बोला कि अब वो एक और इमोशनल झटका शायद ही बर्दास्त कर पाए। और बेटा अब मैं भी बूढ़ा हो चुका हूं, पता नही कितने और दुख देखने को मिलेंगे मुझे। इसीलिए मैं तुमसे बस इतना कहना चाहता हूं कि अनु के साथ आगे बढ़ने से पहले तुम अच्छी तरह से सोच विचार कर लो।

अमर: आपकी बात से मैं इत्तेफाक रखता हूं। और सच मानिए आगे बढ़ने से पहले मैं भी अच्छी तरह सोच विचार करूंगा।

फिर दोनो लोग होटल की तरफ चल देते हैं। रिसेप्शन पर अमर अनामिका के साथ बैठ जाता है। तभी उसे होटल के गेट पर मोनिका की झलक दिखती है, मगर वो अंदर नही आती। अमर बहार की तरफ जाता है तो वहां कोई नहीं होता। अमर थोड़ा बाहर की तरफ बढ़ता है तो एक लड़का उसे एक चिट्ठी ला कर देता है।

अमर चिट्ठी खोल कर पढ़ता है, उसमे बस इतना ही लिखा होता है, "रात 11 बजे बाहर घर के गार्डन में।"

अमर उस चिट्ठी को अपनी जेब में रख कर वापस से अपने कमरे में चला जाता है, और बाकी का दिन ऐसा ही बीत जाता है। रात 11 बजे वो उठ कर दबे पांव बाहर निकलता है।

गार्डन की तरफ निकलते हुए उसकी नज़र एक तबके पर रखे एक तार के टुकड़े पर जाती है, जिसे वो पता नही क्या सोच कर उठा लेता है।

बाहर निकलते ही उसे एक कोने में खड़ी मोनिका दिखती है, वो उसकी तरफ बढ़ता है।

अमर: मोनिका...

मोनिका पीछे मुड़ कर, थोड़ा गुस्से में: तो आखिर उस चुड़ैल अनामिका ने तुम्हे फसा ही लिया??

अमर: मोनिका, जैसा तुम समझ रही हो वैसा नही है।

मोनिका: तो फिर कैसा है? तुम आखिर आ ही गए ना दादाजी की बात में।


और ये बोलते हुए हुए पीछे की ओर मुड़ कर वापस जाने लगती है, तभी अमर उस तार को अपने दोनो हाथों में ले कर उसकी गर्दन पर कस देता है.......
 
[color=rgb(184,]#13 The device......[/color]

अमर ने उस तार से मोनिका का गला घोटना चालू कर दिया, वो कोई 1 मिनट छटपटा कर शांत पड़ गई, तभी पेड़ की ओट से रघु निकल कर आया, और मोनिका के शरीर को अमर से छुड़ा कर खुद के हाथो में ले लिया। मोनिका लाश के मानिंद उसकी बाहों में झूल रही थी।

रघु ने आस पास देखा तो उसे एक बहुत बड़ी खाली बोरी दिखी, रघु ने अमर को इशारा करके उसे उठवाया और मोनिका की लाश को उसके अंदर डाल कर बोरी का मुंह बंद कर दिया।

रघु: ये क्या किया तूने??

अमर: मुझे खुद कुछ नही पता कि ये सब कैसे हुआ? मैं तो बस उसे डराना चाहता था।

रघु: अरे यार! चलो कोई बात नही, ये बात बस तेरे और मेरे बीच में रहेगी, मैं इसको ठिकाने लगा देता हूं, तू चिंता न कर। और अच्छा ही हुआ, क्योंकि एक यही थी जिससे तुझे खतरा था।

अमर: मगर तू यहां क्या कर रहा है?

रघु: मैं तो वापस जा रहा था, लेकिन कल इसको मैने इसी टाउन में आते देखा तो पीछा करने लगा इसका, क्योंकि मुझे तेरी चिंता थी।

अमर: अब क्या करूं मैं?

रघु: बोला तो भूल जा इसको अब, वैसे भी ये पहाड़ी इलाका है, ठिकाने लगाने में कोई रिस्क नहीं है। वैसे एक बात बोलूं?

अमर: क्या?

रघु: ये आज तक का सबसे खराब हत्या है तेरी, एकदम नौसिखिए की तरह, not the Kumar's style.

अमर: भाई मैं वो सब भूल चुका हूं, ये कैसे किया मुझे वो भी नही पता।

रघु: चल मैं निकलता हूं अब, ये तेरी अच्छी जिंदगी में एकमात्र कांटा बची थी, तूने निकल फेका इसे, अब आराम से रह, सिंडिकेट वालों को तो मैं सम्हाल ही लूंगा।

ये बोल कर रघु उस बोरी को उठा कर दीवाल तक ले जाता है, और उछला कर दीवार के उस तरफ फेक देता है, फिर खुद कूद कर चला जाता है।

अमर भी अपने कमरे में वापस आ जाता है, और किसी तरह नींद के आगोश में चला जाता है।

अगली सुबह उसकी नींद जल्दी ही खुल जाती है, तो वो बाहर आ कर देखता है कि रमाकांत जी बाहर मॉर्निंग वॉक पर निकलने वाले होते हैं, अमर उनसे अनामिका के बारे में पूछता है।

रमाकांत जी: बेटा वो उस दिन के बाद कुछ ज्यादा ही सोती है, शायद दवाइयों के कारण, मैं भी ज्यादा जोर नही देता।

अमर: मैं उसको उठाऊं क्या?

रमाकांत जी: जरूर, ये भी कोई पूछने की बात है?

अमर अनामिका के कमरे में जाता है तो अनामिका और पवन दोनो सो रहे होते हैं, अमर पहले पवन को उठता है और उसे कहता है कि अनामिका को उठा दे।

पवन: भैया मुझे जोर की सुसु आई है, दीदी को आप ही उठाइए।

ये बोल कर पवन बाथरूम में भाग जाता है, और अमर कुछ असमंजस में अनामिका को कंधे से हल्के से हिला कर जगाने की कोशिश करता है, और उसका नाम धीरे से बुलाता है। अनामिका नींद में उसकी ओर करवट लेते हुए उसका हाथ पकड़ लेती है और, "अरे अमर, कितना परेशान करते हो तुम, ना रात को जल्दी सोने देते हो और सुबह जल्दी उठा कर जोगिंग करवाने लगते हो।"

अमर असमंजस में थोड़ा जोर से कहता है, "अनामिका प्लीज उठ जाओ।"

थोड़ी तेज आवाज सुन कर अनामिका आंखे खोल कर देखती है, और अमर को सामने पा कर थोड़ा झेप जाते है, और शर्मसे नजरे नीची करते हुए उसका हाथ छोड़ देती है, और जल्दी से बाथरूम की ओर जाती है, तभी पवन भी बाहर आ जाता है। अमर और पवन बाहर लिविंग रूम में आ कर उसका इंतजार करने लगते हैं। कुछ देर बाद तीनों वॉक के लिए निकल जाते हैं, अनामिका कहती है कि वो अपने पति की मौत के बाद पहली बार वॉक पर आई है, और अमर का हाथ पकड़ लेती है।

ऐसे ही हसीं खुशी दोपहर बीत जाती है। दोपहर में होटल का मैनेजर आनंद आ जाता है, आनंद एक ऊंचे कद का स्मार्ट सा युवक था जो लगभग अमर की ही उम्र का था। उसके आने से सब लोग निश्चनित हो जाते है होटल के कामों से। अनामिका अमर को कार में बैठा कर वहीं उस मोड़ के पास ले जाती है।

अनामिका: यहीं पर तुम्हारी कार का एक्सीडेंट हुआ था।

अमर: वैसे एक बात पूछूं?

अनामिका: हां जरूर।

अमर: आप उस शाम यहां क्या कर रही थीं?

अनामिका कुछ उदास होते हुए: में अक्सर शाम यहीं बिताती हूं, उस दिन सबका एक्सीडेंट भी यहीं पर हुआ था ना।

अमर: उसका हाथ पकड़ कर कहता है: अनु एक वादा करो मुझे।

अनामिका: क्या?

अमर: अब से कभी तुम अपनी बुरी यादों को याद नही करेगी।

अनामिका: अच्छा, और बदले में मुझे क्या मिलेगा?

अमर: जिंदगी भर की खुशी देने की कोशिश करूंगा।

और अनामिका को गले से लगा लेता है।

अनामिका उसे एक छोटे से टीले पर ले कर जाती है, और दोनो वहां बैठ जाते हैं।

अनामिका: "जानते हैं आप, अमर और मैं शादी होने के पहले कई बार इसी जगह पर मिलते थे। और इसी टीले पर बैठ कर हमने कई कसमें और वादे किए थे एक दूसरे से। लेकिन..."

अमर: मैं आ गया हूं ना। अब कोई चिंता नहीं करो अनु।

इसी तरह की बातें करते करते शाम।घिर आई और दोनो वापस विला में आ जाते हैं।

रात को जब अमर सोने आता है तो उसे पास वाला टेलीफोन पर फिर से ध्यान जाता है, तो वो सोचता है कि क्यों न इसी से अनामिका से बात की जाय। वो जैसे ही फोन उठता है तो उसमे कोई डायल टोन नही होता, तो वो उसके तार को पकड़ कर देखने लगता है, वो तार कटा हुआ था, और देख कर लग रहा था की किसी ने जान बूझ कर काटा हो, मगर इन 4-5 दिनो में तो कोई आया भी नही, फिर कैसे, और उस दिन तो उसने इस पर दादाजी और चंदन की बात सुनी थी।


अमर फोन के नीचे वाली ड्रॉवर खोलता है तो उसके हाथ में एक पेचकस आता है, और उसके हाथ खुद ब खुद इस फोन को खोलने लगते हैं, जैसे वो इन चीजों को पहले भी कर चुका है। फोन के अंदर उसे एक काले रंग की डिब्बी जैसी कोई डिवाइस दिखती है.....
 
[color=rgb(184,]#15 Flashback..... (Part 1)[/color]

**** शहर की सबसे व्यस्त मार्केट में गोपाल की एक छोटी सी मगर काफी विख्यात कपड़े की दुकान थी, उनके और उनकी पत्नी गायत्री के 2 बच्चें थे, बड़ा लड़का आनंद जोकि होटल मैनेजमेंट का कोर्स करके हमीरपुर के एक होटल में मैनेजर था, और छोटी बेटी अनामिका, जो अभी कॉलेज में फाइनल ईयर की छात्रा थी। अनामिका पिता की दुकान में उनकी मदद भी करती थी समय समय पर।

अनामिका ऐसे देखने में एक साधारण रूप रंग वाली पर आकर्षक युवती थी, पर फिर भी अपने कॉलेज में वो बहनजी के रूप में जानी जाती थी, खास कर लड़कियों में। क्योंकि वो देखने में भले ही आकर्षक हो, लेकिन खुद को हमेशा साधारण मानते हुए बहुत ही अनाकर्षक जिंदगी जीती थी, ना युवतियों जैसे पहनना ओढ़ना, ना ज्यादा लड़कों से बात करना और न ही कभी कोई मस्ती करना, बस घर, कॉलेज और दुकान, बस इतनी सी ही जिंदगी जीती थी वो। इन सब के बावजूद अनामिका अपने काम में बहुत ईमानदार और खरी थी। पढ़ाई, घर और दुकान के कामों में उसका कोई सानी नहीं था। खैर उसकी सबसे अच्छी मित्र दीप्ति के प्रेम में पड़ने के बाद उसके भी अरमान कुछ जाग उठे थे और उसने भी कुछ आकर्षक पहनने की कोशिश की। मगर उसकी इन हरकतों का सबसे पहला मजाक दीप्ति ने ही उड़ाया।

दीप्ति: क्या अनु, अब तू भी क्या बहनजी हो कर भी ये सब पहनना चाहती है?

अनामिका: हां दीपू, तुझे प्यार में देख मेरा भी मन ये सब का होने लगा है।

दीप्ति: रहन दे बहनजी, तू कुछ भी पहन, रहेगी सबकी बहनजी ही। कोई न तुझे घास डालेगा। कर लेना किसी क्लर्क से शादी वो भी मम्मी पापा के कहने पर,, हहाहा...

साथ में बैठी सारी सहेलियां भी उसी और में हसने लगती हैं। अनामिका चिढ़ कर रोते हुए घर चली जाती है, घर पहुंचते ही उसे पता चलता है कि उसके पापा ने दुकान पर बुलाया है। अनामिका वैसे ही दुकान चली जाती है।

दुकान पहुंचते ही उसके पापा किसी काम से निकल जाते हैं, और अनामिका दुकान के ग्राहकों और स्टाफ को सम्हालने लगती है। तभी उसकी दुकान में 2 औरतें आती हैं, एक कोई 50 साल की और दूसरी 28 साल की दोनो शादीसुदा थी। दोनो ने कई तरह के कपड़े देखे और पसंद करके किनारे करने लगीं, तभी छोटी वालों औरत में बड़ी वाली के कान में कुछ कहा और बड़ी वाली ने घूम कर अनामिका को देखा, और मुस्कुराई। थोड़ी देर में दोनो जब उसके पास बिल करवाने आई तो बड़ी वाली ने उससे पूछा, "बेटी भाईसाब नही है क्या?"

अनामिका: जी आंटीजी वो जरा काम से गए है थोड़ी देर में आ जाएंगे।

औरत: अच्छा तो हम बाद में आ कर ही बिल करवा लेते हैं, आप समान साइड रखवा दो। वैसे नाम क्या है आपका?

अनामिका: जी अनामिका, और आप मुझसे बड़ी है तो प्लीज मुझे आप न बोलिए। और पापा को शायद देर हो जाय, आप बिल करवा लीजिए, बाद में कभी आ कर पापा से मिल लीजिएगा। बाकी डिस्काउंट वगैरा तो मैं भी देख लूंगी, उसकी चिंता आप।ना करें, पापा के साथ मिल कर ये दुकान मैं भी मैनेज करती हूं तो मुझे भी सब पता है।

वो औरत: बहुत अच्छा है बेटा, आप तो बहुत होशियार हैं, आप बिल कर दीजिए, हम फिर कभी आ कर आपके पापा से मिल लेंगे।

अनामिका: आंटीजी फिर आप?

वो औरत: "ओह सॉरी बेटा, अच्छा ये मेरा कार्ड लो और पापा से कहना की एक बार मुझेसे बात कर लें। और तुम बिलिंग करो तब तक।" ये कहते हुए इस औरत ने अपना कार्ड अनामिका को से दिया। और कहा: "बाय द वे, मेरा नाम सुमित्रा राजदान है, और ये मेरी बहु निधि।"

सुमित्रा राजदान, किशन राजदान की बहु, किशन राजदान शहर के सबसे बड़े इंडस्ट्रियल और बिजनेस टायकून। को सिर्फ शहर में ही नही बल्कि पूरे देश के अमीर लोगों में गिने जाते थे। उनके इकलौते बेटे रवि की पत्नी थी वो।रवि और सुमित्रा के 2 बेटे थे, आकाश और पृथ्वी। निधि आकाश की पत्नी।

गोपाल जी जैसे ही वापस आते हैं, अनामिका उनकी सुमित्रा का कार्ड देते हुए कहती है की उनसे बात कर ले। गोपाल जी राजदान का कार्ड देखते ही घबरा जाते हैं, और अनामिका से पूछते है कि,"बेटा आपने इनको अच्छे से तो ट्रीट किया था न, कोई गड़बड़ तो नही हुई न?"

अनामिका: नही पापा, सब तो सही ही था, हो सकता हो उनको ज्यादा डिस्काउंट चाहिए हो इसीलिए आपसे बात करना चाहती हों।

गोपाल जी,कुछ सोचते हुए: नही बेटा आज तक तो इन लोगों ने कोई डिस्काउंट नही मांगा है। ठीक है बात करके देखते हैं।

गोपाल जी ने तुरंत उस कार्ड में लिखे नंबर पर डायल किया, और उधर से सुमित्रा जी ने की फोन उठाया।

सुमित्रा जी: हेलो, क्या आप गोपाल जी बोल रहे है?

गोपाल: जी बहनजी, मैं गोपाल। जैसे ही दुकान पहुंचा बच्ची ने बोला आपसे बात करने। क्या कुछ गलती हो गई है हम लोगों से?

सुमित्रा, हंसते हुए: अरे नही भाई साब, गलती नही, बल्कि बड़ा अच्छा काम किया है आपने और आपकी पत्नी ने।

गोपाल: जी मैं कुछ समझ नही? और मेरी पत्नी से आप कब मिली?

सुमित्रा: भाईसाब, मिली नही, पर आप मिलवाएंगे नही क्या? कल संडे है, अगर जो आप फ्री हों तो आप और बहनजी एक बार हमारे घर आ कर चाय पी लीजिए।

गोपाल असमंजस में: जी जरूर आ जाऊंगा शाम को 4 बजे।

अगले दिन शाम को गोपाल, अपनी पत्नी गायत्री और अनामिका के साथ राजदान निवास पहुंचते है, वो हवेली नही बल्कि महल जैसा था, तीनों लोग ऑटो से उतरते हैं, और जैसे ही गेटकीपर को अपना नाम बताए हैं, वो बड़ी इज्जत के साथ उनका अभिवादन करता है, और अंदर इंटरकॉम से सूचना देता है। कुछ देर में एक बटलर जैसा आदमी आता है और तीनों को आदरपूर्वक अंदर की तरफ ले जाता है। तीनों उसरघर के लिविंग रूम में पहुंचते है जिसकी सजावट किसी 5 स्टार होटल की तरह थी।

वहां अंदर किशन जी के साथ रवि और सुमित्रा तीनों के स्वागत में मौजूद थे।

किशन जी: आइए गोपाल जी, बैठिए कैसे है आप सब?

गोपाल ने किशन जी के पैर छूते हुए: जी हम सब अच्छे हैं, आप बताइए हम सबको एक साथ क्यों याद किया?

किशन जी: और पहले बैठिए और चाय नाश्ता करिए, बात करने को तो पूरी उम्र पड़ी है... हाहह।
सब हंसते हुए बैठ जाते हैं, सुमित्रा खुद अपने हाथो से सबको चाय दे ही रही होती है कि आकाश और निधि भी आ जाते हैं।

निधि: मम्मी आप बैठिए, मैं करती हूं।

तब तक अनामिका भी उठ कर उसकी मदद करने लगती है, जिसे देख किशन जी खुश हो जाते हैं।

कुछ देर बाद, किशन जी: गोपाल जी, और गायत्री जी, आपने अपनी बेटी को बड़ी अच्छी शिक्षा दी है। और हम सब आपकी बेटी का हाथ अपने पृथ्वी के लिए मांगना चाहते हैं, अगर आपको एतराज न हो तो?

गोपाल और गायत्री ये सुनते ही चौंक जात हैं, और खुशी से अनामिका की ओर देखते है जो शर्मा कर नीचे देख रही होती है।

गोपाल जी: ये तो हमारी खुशकिस्मती होगी किशन जी, लेकिन क्या ये मुमकिन है? कहां पृथ्वी जी और कहां अनामिका?

किशन जी: गोपाल जी, अगर जो आप हैसियत की बात कर रह हैं, तो वो आनी जानी चीज है, हैसियत से बढ़ कर संस्कार होते हैं, जो आपने अपनी बेटी में कूट कूट कर भरा है।

गोपाल: पर फिर भी, एक बार कम से कम पृथ्वी जी से तो पूछ लेते।

आकाश: चाचाजी, हमारे परिवार के सारे फैसले दादाजी ही लेते हैं, और हम में से किसी को कोई भी ऐतराज नहीं होता उस पर, दादाजी बड़े हैं और सबका भला ही चाहते हैं।

गोपाल: जी हमारी तरफ से तो कोई ऐतराज नहीं है, लेकिन फिर भी मैं चाहूंगा कि एक बार दोनो मिल कर इसका फैसला लें।

किशन जी: ये आपने अच्छी बात की, कम से कम इसी बहाने हमें अनामिका बिटिया की इच्छा का पता चल जायेगा। अगले रविवार को दोनो मिल लेंगे, अभी तो पृथ्वी का के सिलसिले में बाहर गया है।

फिर कुछ देर के बाद तीनों घर लौट आते हैं।

किशन राजदान के घर में कोई कमी नही थी, लेकिन वो अपने उसूलों के बहुत पक्के थे, और घर पर उनका एकछत्र राज था, बिना उनके घर में एक पत्ता भी नही हिलता था तो बाकी के फैसले भी उनकी मर्जी बिना नहीं होते थे। हालांकि उन्होंने कभी किसी बच्चे की पढ़ाई पर कोई ज्यादा दबाव नही डाला था, लेकिन एक बात साफ थी की 25 साल तक जो मर्जी करो, पर उसके बाद घर का बिजनेस ही सम्हालना है, और शादी तो बिना उनकी मंजूरी के नही होगी। शादी के मामले में उनका बस यही मानना था की पैसा नही लड़की के संस्कार मायने रखते थे। सुमित्रा खुद एक साधारण घर से आती थी, मगर वो एक पढ़ी लिखी महिला थी, और खुद किशन राजदान ने उनको एक शादी में देखकर अपने बेटे के लिए पसंद किया था। ऐसे ही निधि, जो की एक डॉक्टर थी, और राजदान के ही एक हॉस्पिटल में नौकरी कर रही थी, उसको रवि और सुमित्रा ने पसंद किया था। दोनो सास बहू किशन जी के विचारो से मेल खाती थी, मतलब परिवार को भी ले कर चलना, और जरूरत पड़ने पर बिजनेस भी सम्हालना।

उधर दूसरी तरफ एक दूसरे शहर के एक आलीशान होटल के एक रूम में एक लड़का और एक लड़की पूरे नंगे एक दूसरे को चूमते चाटते हुए बिस्तर पर गुत्थम गुत्था होते हैं।

लड़की: "ओह पृथ्वी, यू आर सो फकिंग हॉट एंड स्ट्रॉन्ग यार। आज तक मैं जितने भी लड़कों के साथ रही हूं उनमें से सबसे बड़ा और देर तक टिकने वाला मुझे यही मिला है।" ये कहते हुए इस लड़की ने पृथ्वी के लंड को पकड़ कर जोर से मसल दिया।

पृथ्वी उत्तेजना से करहाते हुए: "ओह मोनिका, यू टू अरे हॉट एंड वेट हेयर।" और वो मोनिका की योनि को चाटने लगता है।

दोनो 69 की पोजिशन में एक दूसरे को मौखिक सुख दे रहे होते हैं, तभी दोनो एक साथ अपने चरम पर पहुंच जाते हैं और एक दूसरे के मुंह में ही स्खलित हो जाते हैं।

थोड़ी देर बाद दोनो एक दूसरे की बाहों में बिस्तर लेते हुए बात कर रहे होते हैं।

पृथ्वी: मोनिका आई रियली लव यू, यू अरे वन एंड ओनली गर्ल इन माय लाइफ।

मोनिका: आई लव यू टू पृथ्वी। रियली। मैं बहुत से रिलेशन में रही हूं पृथ्वी, लेकिन जो तुम्हारे साथ महसूस हुआ वो पहले कभी नही। आई फील कंप्लीट एंड सिक्योर इन योर आर्म्स।

ये कहते हुए दोनो एक गहरे चुम्बन में खो जाते है, पृथ्वी का हाथ मोनिका के उन्नत उरेजों को मसलने लगता है, और मोनिका फिर से उसके उभरते हुए लंड को हाथ में ले कर ऊपर नीचे करने लगती है। कुछ देर बाद पृथ्वी मोनिका को पीठ के बल लेटा कर अपने लंड को उसकी योनि पर सेट करता है और एक हल्का सा धक्का लगाता है, मोनिका की हल्की सी चीख निकल जाती है, "आ आ आह, धीरे जानू, तुम्हार बहुत बाद है, मेरी तो जान ही निकल देता है हर बार, ये तो मैं पहले से वर्जिन नही हूं, वरना पता नही तुम की हाल करते मेरा। आह डार्लिंग आराम से हां, अब डालो अंदर।" पृथ्वी एक और धक्का लागत है और खुद कुछ हुंकारते हुए अपनी आंखें बंद कर लेता है, " आह जान कितनी तंग हो तुम नीच से, इतनी बार करने के बाद भी मुझे थोड़ा दर्द हो जात है।"

फिर थोड़ी देर बाद दोनो लयबद्ध तरीके से एक दूसरे की रफ्तार के बराबर धक्के लगाने लगते है। और कोई 10 मिनट बाद एक दूसरे में स्खलित हो कर शांत पड़ जाते हैं।

पृथ्वी राजदान, किशन राजदान का छोटा पोता, पेशे से एक इंजीनियर था और भारतीय सेना में SSC के द्वारा 5 साल अपनी सर्विस भी दे चुका था, शरीर और दिमाग से चुस्त और तंदुरुस्त था वो। ऐसा नहीं था की किशन जी ने कभी अपने बेटे या पोतों को लव मैरिज के लिए मना किया था, लेकिन उनका बस ये कहना था कि जो भी लड़की घर में बहु बन कर आए वो संकरी और पढ़ी लिखी हो, ऐसा न हो कि पढ़ने लिखने के चक्कर में दूसरों का मान सम्मान भी न करे, और घर के कामों से भी परहेज हो उसे।

वहीं दूसरी ओर मोनिका, जो राजदान ग्रुप में ही सीनियर ऑडिट ऑफिसर थी, एक बहुत ही चालक और एंबिशियस लड़की थी और उसके ख्वाब बहुत अमीर होने के थे। ऐसा नही था की वो पृथ्वी से प्यार नही करती थी, लेकिन वो उसके पैसों से ज्यादा प्यार करती थी।

2 दिन बाद जब पृथ्वी वापस लौटता है तो उसकी भाभी अनामिका के बारे में उसे बता देती है। ये सुन कर पृथ्वी थोड़ा सोच में पड़ जात है, और अपने भाई से बात करने की सोचता है।

ऑफिस में किशन जी उसको बुलाते हैं जहां रवि और आकाश दोनो मौजूद होते हैं।

किशन जी: पृथ्वी, कैसा रहा सब?

पृथ्वी: जी सब अच्छे से निपट गया, ऑडिट टीम ने एक्यूजेशन में बहुत हेल्प की जिससे हम सही वैल्यू लगा पाए।

किशन जी: चलो बहुत अच्छा की सब सही से हो गया, और तुम टीम से जुड़ने में भी कामयाब हुए। अच्छा भाभी से बात हुई तुम्हारी?

पृथ्वी: जी दादाजी।

किशन जी: पृथ्वी मैने, और तुम्हारी मां ने पसंद किया है अनामिका को, बहुत अच्छी लड़की है, जैसी अपने परिवार को चाहिए, लेकिन मैं एक बार तुमसे जानना चाहता हूं कि कोई है तो नही तुम्हारी लाइफ में, है तो बता दो, बस इतना याद रखना कि परिवार में वही आएगी जो परिवार के साथ चल पाएगी, वरना कोई ऐसी हो जो परिवार ना निभा पाए तो तुम दोनो अकेले ही सब मैनेज करना पड़ेगा।

पृथ्वी: कुछ सोचते हुए: कोई नही दादाजी।

किशन जी: तो फिर सन्डे को किसी अच्छे रेस्टुरेंट में टेबल बुक कर के तुम और अनामिका मिल लो।
पृथ्वी: जी दादाजी।
और सब लोग अपने अपने केबिन में चले जाते हैं। पृथ्वी अपने भाई के पीछे उसके केबिन में आता है।

पृथ्वी: मुझे आपसे बात करनी है,भैया।

आकाश: बोलो भाई, वैसे अगर जो अनामिका से शादी न करने के बारे में है तो भाई, मेरा भी वही कहना है जो दादाजी का है, और वैसे ट्रिप पर जो किया वो मुझे पता है। मोनिका एक बहुत एंबिशियस लड़की है, कोई प्यार व्यार नही है उसको।

पृथ्वी: ऐसा नही है भैया, वो मुझे आहूत प्यार करती है।

आकाश: फिर तो तुम घर और बिजनेस छोड़ ही दो, क्योंकि वो परिवार में रहने लायक तो नही है। बाकी मैं तो यही कहूंगा की हम सब की बात मान लो।

ये सुन कर पृथ्वी और परेशान हो जाता है। और इस बात को वो मोनिका से डिस्कस करने की सोचता है। अगले दिन दोनो फिर से एक होटल के कमरे में होते हैं।

मोनिका जल्दी से उसकी पैंट उतार कर अंडरवियर से उसके लंड को आजाद कर देती है, और मुंह में भर लेती है।

पृथ्वी, सिसकारी भरते हुए: मोनिका, एक बात करनी है, जरूरी।

मोनिका मुंह ऊपर उठाते हुए, "क्या है पृथ्वी, अभी ज्यादा डिस्टर्ब न करो।"

पृथ्वी: बहुत जरूरी है, अपनी लाइफ के बारे में।

मोनिका उसे सोफे पर बैठा देती है और उसकी आंखो मे झांकते हुए पूछती है," बोलो?"

पृथ्वी उसे सारी बातें बता देता है और ये भी की मोनिका से शादी होने पर दोनो को घर परिवार और बिजनेस तीनों से हाथ धोना पड़ेगा।

मोनिका सोचते हुए वापस नीचे जाती है और फिर से मुंह को काम में लगा देती है, पृथ्वी जो शांत हो रहा था, एकदम से फिर उत्तेजित हो जाता है। और उसके बालों में उंगली फेरने लगता है। थोड़ी देर में ही दोनो एक दूसरे के अंदर समा चुके थे।

अपने संसर्ग के बाद दोनो बेड पर लेटे हुए वाइन पी रहे थे, तभी मोनिका ने कहा, "पृथ्वी तुम अनामिका से शादी कर लो।"

पृथ्वी: और तुमको भूल जाऊं?

मोनिका: ये किसने कहा, देखो मुझसे शादी करके तो तुम पूरी तरह से फकीर हो जाओगे, पर अगर जो तुम अभी अनामिका से शादी कर लो, और कुछ ऐसा करो कि तुम दोनो का तलाक हो जाय एक साल के अंदर, तब तो तुम दबाव डाल कर मुझसे शादी कर ही सकते हो।

पृथ्वी ये सुनते ही: नही मोनिका, मैं ऐसे कैसे किसी की जिंदगी बरबाद कर सकता हूं, इससे तो अच्छा है की हम दोनो मिल कर अपना अलग जहां बसाए।

मोनिका: पृथ्वी, ये सब कहना आसान है पर करना बहुत मुश्किल, क्या तुम अपने ये ऐश आराम छोड़ कर एक साधारण जिंदगी बिता लोग?? पूछो जरा खुद से, और एक साल बाद तो तुम उस लड़की के तलाक देते समय अच्छी खासी एलोमोनी दे देना, उसका भी भला हो जायेगा। और एक बात जब भी उससे मिलो तो ये न लगे की वो तुमको पसंद नही, वरना वो ये बात तुम्हारे घर में बता सकती है।

पृथ्वी सोच में पड़ जाता है...

सन्डे को अनामिका और पृथ्वी अकेले में मिलते है। वो अनामिका को देख कर निराश नहीं होता। दोनो ने कुछ देर अकेले में कई तरह की बातें की, उसे अनामिका एक सुलझी हुई लड़की लगी। रिजेक्ट करने का कोई कारण नहीं था।

धीर धीरे शादी की बातें आगे बढ़ने लगी, आनंद किसी कारण से घर नही आ पा रहा था, अनामिका ने उसे फोन किया।

अनामिका: हेलो भैया, कैसे हैं आप?

आनंद: अच्छा हूं गुड़िया, तू बता, मिस्टर राजदान के क्या हाल हैं?

अनामिका: वो अच्छे है भैया, आप बताइए, मेरी होने वाली भाभी कैसी हैं??

आनंद: वो बहुत अच्छी है और पीछे खड़ी अपनी बारी का इंतजार कर रही है तुझेसे बात करने के लिए

अनामिका जानती थी कि उसके भैया आनंद और होटल मालिक की लड़की पूर्वी का रिलेशनशिप चल रहा है, और दोनो ही संजीदा है शादी के लिए, बस आनंद के परिवार को नही पता था इस बारे में कुछ, पर पूर्वी के परिवार वाले सहमत थे इस रिश्ते से और आनंद को अपने बेटे की तरह मानते थे।

इधर अनामिका के दोस्तों को जब पता चला कि उसकी शादी पृथ्वी राजदान से तय हो गई है तो सबको बहुत आश्चर्य हुआ, दीप्ति ने तो अनामिका से ये तक कह दिया कि पक्का पृथ्वी में कोई कमी होगी जिसके लिए तेरी शादी उससे हो रही है, आस पड़ोस वाले भी कुछ ऐसा ही खुसुर फुसुर कर रहे थे, सब कोई अनामिका की किस्मत से जल रहे थे।

उधर मोनिका रोज पृथ्वी को नए नए आइडिया देती थी की कैसे वो अनामिका की गलती बता कर उससे तलाक ले सकता है। पृथ्वी का दिल अभी भी इस बात की गवाही नहीं दे रहा था, बार बार उसका मन होता था कि वो अनामिका या किशन जी को सब सच बता कर इस शादी से तौबा कर ले, मगर मोनिका उसको ये करने से रोकने के सारे हथकंडे अपना रही थी।

ऐसे ही धीरे धीरे शादी का दिन नजदीक आ गया, शादी के 3 दिन पहले जब आनंद को आना था, उसी के दिन पहले पूर्वी और उसके माता पिता की मृत्यु एक एक्सीडेंट में हो जाती है। और आनंद का आना टल जात है।

पृथ्वी के दिल पर ये बोझ रोज उसकी नींद उड़ा रहा था। कल उसकी शादी है और वो इस बात को हजम नही कर पा रहा था की वो किसी की जिंदगी बरबाद करने जा रहा है। उसकी दुविधा समाप्त हों का नाम नही ले रही थी।

शादी वाले दिन तक वो और मोनिका मिलते रहे इस कारण से वो किसी से कुछ बोल भी नहीं पा रहा था। लेकिन शादी के समय जब जयमाल होने वाला था, वो टॉयलेट जाने के बहाने उठा, और....
 
[color=rgb(184,]#16 Flashback..... (Part 2)[/color]

और फिर वो वापस शादी के लिए लौटा ही नही, चारो तरफ उसको ढूंढा गया, मगर वो ऐसे गायब हुआ जैसे ' गधे के सर से सींग'। इधर अनामिका के घर में अफरा तफरी मच गई, रिश्तेदार और परिवार के लोग तरह तरह की बातें बनाने लगे। उसकी सहेलियां भी उनका ही साथ देने लगी।

[color=rgb(41,]"देखा भाग गया न, बोली थी तेरे को कि किसी चक्कर में फसा कर राजदान परिवार को फसाया हैं इन बाप बेटी ने।"[/color]


[color=rgb(41,]"पक्का पहले से संबंध बना कर ब्लैकमेल करके शादी कर रहे होंगे।"........[/color]

गोपाल जी बहुत परेशान थे, उनकी तो दुनिया ही लूट गई थी। इतने बड़े घराने में लड़की का रिश्ता होने वाला था ये सोच सोच कर वो अपने को संसार का सबसे खुशनसीब बाप समझ रहे थे, हालांकि किशन जी ने किसी भी तरह के दहेज लेने से मना किया था, लेकिन उनके भी कुछ अरमान तो थे ही, और वो भी इतना अच्छा रिश्ता देख कुचलें मारने लगे थे। दोनो घर की हैसियत को मिलने के चक्कर में गोपाल जी और गायत्री ने अपनी सारी जमा पूंजी दांव पर लगा दी थी। खैर पैसे तो आते जाते हैं, लेकिन इज्जत, उसका क्या? शादी टूटने में गलती चाहे जिसकी हो इज्जत तो लड़की और उसके घर की ही जाती है न, लड़के वाले तो खैर। वैसे भी जब सामने इतनी अमीर लोग सामने हों तो फिर कहना ही क्या।

उधर किशनजी को जैसे ही पृथ्वी की गुमशुदगी का पता चला वैसे ही उन्होंने अपने सारे कॉन्टैक्ट्स से उसका पता लगवाने की कोशिश की, मगर इनको असफलता ही हाथ लगी। वो भले ही अमीर थे लेकिन गोपाल जी की परेशानी उनसे नही छिपी थी, मगर वो किस मुंह से उनके सामने जाते? आखिर थक हार कर वो बारात बिना शादी किए ही वापस ले गए।

अंत में गोपाल जी परिवार समेत अपने घर को लौट आए। आते ही अनामिका अपने कमरे में।बंद हो गई और रिश्तेदार सब गोपाल और गायत्री को भला बुरा बोल कर अपने अपने घर को निकल गए। मारे शर्म और दुख के वो दोनो भी अपने कमरे में बंद हो गए।

सुबह अनामिका बाहर आ कर देखती है तो पूरा घर खाली होता है, जहां रात तक हर्षोल्लास से पूरा घर गूंज रहा था, वहीं अब मरघट जैसा सन्नाटा भाएं भाएं कर रहा था। अनामिका ने अपने मां बाप के कमरे के दरवाजे को खटखटाया, मगर कोई जवाब नही आया। वो काफी देर तक दरवाजा पिटती रही पर कोई नतीजा नहीं निकला, अब उसका मन अनेक तरह को आशंकाओं से भर उठा, और उसने अपने पड़ोस वाले अंकल को आवाज दे कर सारी बात बताई, वो कुछ लोगों के साथ घर आ कर दरवाजा तोड़ देते हैं, जहां पलंग पर दोनो पति पत्नी मृत अवस्था में मिलते है, दोनो की जान हार्ट अटैक की वजह से गई थी। आनन फनान में आस पड़ोस के लोग अंतिम क्रियाकर्म की तैयारी करते है।

तभी थोड़ी देर में आनंद घर आता है और आपने मां बाप दोनो की अर्थी देख उसके पैरों तले जमीन खिसक जाती है, वो बेचारा जहां एक तरफ अपने प्यार पूर्वी और उसके मां बाप की चिता को आग दे कर बहन की डोली को कंधा देने अपने घर आया था, मगर यहां तो उसको अपने ही मां बाप की अर्थी उसके कंधे के राह देख रही थी। कल की आप धापी में कोई इसको फोन भी नही कर पाया था।

अनामिका जो कल से अब तक आपने आपको संयत करके बैठी थी, आनंद को देखते ही उसके जज्बातों का बांध टूट गया और वो आनंद को देख कर ही बिलख कर बेहोश हो गई।

उधर राजदान निवास में आकाश पृथ्वी को मोनिका के घर से पकड़ कर लाता है और किशन जी के सामने खड़ा कर देता है। उसको देखते ही किशन जी का गुस्सा फूट पड़ता है और वो उसको थप्पड़ मार देते है, और उसको घर से बाहर निकल देते हैं। उधर आकाश भी मोनिका को नोटिस थमा देता है, क्योंकि पृथ्वी ने उसको सारी बात बता दी थी, लेकिन फिर भी उसे पृथ्वी पर बहुत गुस्सा था। उसने साफ साफ पृथ्वी की कोई भी मदद करने से मना कर दिया था क्योंकि वो पहले ही पृथ्वी को चेता चुका था, मगर फिर भी पृथ्वी ने कभी भी किसी से कुछ कहना उचित नही समझा और दोनो परिवारों की इज्जत को भरे बाजार में उछाल दिया था।

किशन जी को जैसे ही गोपाल और गायत्री के मृत्यु की खबर लगती है वो पूरे परिवार सहित उनके घर पहुंच कर आनंद और अनामिका को सांत्वना देने की कोशिश करते हैं, उनको गोपाल के द्वारा सब कुछ गिरवी पर रख देने की बात भी पता चलती है, और वो आनंद को पैसे की पेशकश करते है। पर आनंद उनको अपने घर से भगा देता है। अनामिका गंभीर अवसाद में चली गई थी, और उसका इस शहर में रहना खतरे से खाली नही था। आनंद ने रमाकांत जी, उसके होटल के मालिक और पूर्वी के दादाजी, से बात की, क्योंकि अब उसका इस दुनिया में उनके अलावा कोई नही था जो साथ देता।

रमाकांत जी दोनो को अपने पास बुला लेते हैं, और अनामिका को अपनी पोती पूर्वी की तरह ही मानने लगते हैं, पवन को भी एक बड़ी बहन मिल जाती है। रामाकांतजी उसका बेहतर इलाज करवाते है। जिससे कुछ हो समय में अवसाद से बाहर आ जाती है।


उधर पृथ्वी अब मोनिका के साथ रहने लगता है और कुछ छोटे मोटे काम करने लगता है, किशन जी के प्रभाव के कारण दोनो को शहर में कोई अच्छी जगह पर काम नही मिलता, फिर एक दिन मोनिका को मुंबई की एक कंपनी में जॉब मिल जाती है, और पृथ्वी को एक होटल ग्रुप में, जिनका नया होटल हमीरपुर में ही बन रहा होता है उसमे ज्वाइनिंग मिल जाती है। मोनिका मुंबई निकल जाती है और पृथ्वी हमीरपुर में उसी होटल में ज्वाइन करने आ रहा होता है जब उसका एक्सीडेंट हो जाता है।
 
[color=rgb(184,]#17 The Con Man....[/color]


प्रेजेंट टाइम.....

पृथ्वी की आंख हॉस्पिटल के बेड पर खुलती है, सामने अनामिका बैठी होती है, उसको देखते ही पृथ्वी ग्लानि से भर उठता है और अनामिका से हाथ जोड़ कर क्षमा मांगने लगता है।

अनामिका: पृथ्वी, ये काम तुमको शादी तय होते ही कर लेना चाहिए था, अगर जो कर लेते तो आज इस तरह तुम अपराधी बने न बैठे होते।

तभी आनंद कमरे में आता है और कहता है, "गलती जब समझ में आ जाए प्रायश्चित कर लेना चाहिए, उससे जो गया है वो तो वापिस नही आयेगा पर कम से कम कुछ लोगों के दुख कम तो होते। और अपना आचरण ऐसा रखना चाहिए की ऐसी नौबत ही न आए की किसी के सामने आई हाथ जोड़ कर क्षमा मांगनी पड़े।

पृथ्वी सोचते हुए: एक बात बताइए, एक्सीडेंट में तो मैं मौत के मुंह में था, मुझ मर जाने देना था न आप लोग को, मुझ बचाया क्यों?

आनंद कुछ बोलता उसके पहले ही अनामिका बोली: मर जाने देते तो तुमको ये सब सबक कैसे मिलता?

आनंद: एक्सीडेंट जब हुआ तब मैं और अनु वहीं थे, हम अक्सर वहां पर जाते हैं, पूर्वी और मां पापा का एवीडेंट वहीं हुआ था। हम दोनो तुम्हे बचाने गए वहां, हमको देखने से पहले ही तुम बेहोश हो चुके थे। मुझे जैसे ही पता चला की तुम ही पृथ्वी राजदान हो, मैं तुमको बचाने सीना करने लगा, मगर अनामिका ने तुमको बचाने के लिए मनाया मुझे। पहले तो हम कुछ करना ही नही चाहते थे, मगर जैसे ही पता चला कि तुम्हारी यादाश्त चली गई है, हम सब ने ये ड्रामा रचा। तुमको हम कोई शारीरिक नुकसान नही पहुंचाना चाहते थे, बस ये अहसास दिलवाना था की जब किसी पर गुजरती है तो कैसा लगता है। जब कोई किसी अपने को को सेट है तो क्या महसूस हॉट है। और ऐसा ना इसीलिए हुआ की तुम एक बुजदिल इंसान हो, जो अपने स्वार्थ के कारण किसी की जिंदगी से खेलने से भी नही चुकता।

पृथ्वी: सही बात है भैया लेकिन मैं कभी भी दिल से नही चाहता था अनामिका की जिंदगी बरबाद करना, मुझे तो बस वो मोनिका भड़का रही थी।

आनंद: क्यों तुम्हारी खुद की कोई अकल नही है क्या, जब मोनिका की बात गलत लगी तुमको तो कैसे मान ली उसकी बात, और अगर जो वो गलत लगी तो प्रतिकार क्यों नही किया? हां किया ना, जब सब बातें हाथ से निकल चुकी थी तुम्हारे। अरे जी दौलत के चक्कर में तुम दोनो ने मेरे पूरे परिवार के जिंदगी खत्म कर दी आज उसी दौलत के बिना हो न?

पृथ्वी: आप सही कह रहे हैं भैया, मेरी बुजदिली के कारण तीन जाने चली गई हैं, अगर जो मेरा मुंह समय पर खुल जाता तो ये सब कुछ नही होता।

आनंद: 2 ही जाने गई हैं पृथ्वी, मोनिका जिंदा है। पर वो अब शायद ही तुमसे मिलना चाहेगी।

पृथ्वी: आश्चर्य से, पर उसे तो मैंने मार दिया था न, और वैसे वो रघु कौन था?

आनंद: मुझे ठीक से देखो पृथ्वी, मैं ही रघु हूं। और तुम्हारे वार से वो मरी नहीं बस बेहोश ही हुई थी। उसके होश में आने पर मैंने उसे सब सच्चाई बता दी, पर उसने कहा की वो तुमसे मिलने नही आई थी, बल्कि मुंबई में जिस कंपनी में काम करती है, उन्हें ही यहां के उसी होटल का ऑडिट मिला था जिसमे तुम ज्वाइन करने वाले थे, इसीलिए वो आई थी, और जब आई थी तो बस तुम्हारी खोज खबर लेना चाहती थी। बस हमारे होटल में आते ही उसने तुमको और अनामिका को साथ देख लिया, तो उसे लगा कि तुम दोनो वापस से साथ हो गए हो, और उसके दादाजी का मतलब रमाकांत जी नही बल्कि किशन जी, यानी की तुम्हारे दादाजी थे।

पृथ्वी: मगर वो मुझे ढूंढने क्यों नही आई, एक्सीडेंट के समय तो। मैं उससे ही बात कर रहा था।

आनंद: तुम बात उससे कर रहे थे, लेकिन उसी समय वो अपनी उस कंपनी के सीईओ के लड़के के साथ अफेयर में आ चुकी थी, अपनी आदत से वो बाज नहीं आ सकती, इसीलिए वो अब तुमसे मिलना भी नही चाहती।

[color=rgb(255,]यहां से कहानी पृथ्वी के दृष्टिकोण से चलेगी।[/color]

[color=rgb(65,]ये सुन कर मुझे कोई खास अहसास नही हुआ, मोनिका के प्रति मेरे दिल में जो भी था, शायद उस मोड़ के बाद खतम ही हो चुका था, लेकिन उसका ऐसे मुंह फेर लेने से कुछ तो दुख हुआ मुझे,[/color]

[color=rgb(65,]जिसके भरोसे मैने अपनी पूरी जिंदगी खराब कर ली वो अब मुझसे कोई वास्ता नहीं रखना चाहती थी। ये कैसा मोड़ आया जिंदगी में मेरे, एक समय मैं इस देश क्या इस जहां का सबसे खुशनसीब आदमी था, जिसके पास बेशुमार दौलत थी, भरा पूरा परिवार था, सब का प्यार था मेरे नसीब में, लेकिन मेरी पल की बुजदिली ने सब छीन लिया। आज के समय मेरे पास कुछ भी नही था। ना घर, ना परिवार ना पैसे न नौकरी...

इन्ही विचारों के झंझावात में मैं खो सा गया था, तभी कमरे में रमाकांत जी आए।

पृथ्वी बेटा, ले लो अपने डॉक्युमेंट्स जो पर्स में थे, और तुम्हारा फोन। और हां फिलहाल डॉक्टर ने तुमको डिस्चार्ज कर दिया है, तो अब तुम कहां जाना चाहते हो, हम इंतजाम कर देते हैं।

मैने कतर दृष्टि से उनकी ओर देखा, मेरी आंखों में देखते ही उन्होंने मुस्कुराते हुए कहा, "आनंद, फिलहाल इनको अपने होटल में ही एक कमरा दो।"

आनंद: पर दादाजी?

रमाकांत जी: बोला ना मैने।

आनंद: जी बेहतर दादाजी।

आनंद और अनामिका बाहर चले गए, रामकनत जी मेरे पास आ कर बैठे, और मेरे सर पर हाथ फेरते हुए,"फिलहाल तुम मेरे साथ चलो, कुछ बात भी करनी है, और तुमसे कुछ काम भी है।"

फिर हम दोनो भी विला आ गए, मेरे रुकने का इंतजाम आनंद ने उसी रूम में करवाया था जिसमे मैं पहली बार रुका था। बाकी दिन ऐसे ही बीता, सुबह हों पर मैं जैसे ही बालकनी में आए तो वहां मुझे अनामिका और पवन खेलते हुए दिखे, पता नही क्यों अनामिका को देख दिल में एक हलचल सी हुई।

नाश्ते के लिए दादाजी ने मुझे फिर से अपनी स्टडी में बुलाया।

रमाकांत जी: आओ पृथ्वी हैव सम।

मैं बैठते हुए: जी दादाजी, बताइए क्या बात करनी थी आपको।

रमाकांत जी: बेटा मैं तुम्हारी दुविधा समझता हूं, तुम यही सोच रहे हो ना कि अब आगे कैसे क्या करना है?

"जी दादाजी, समझ नही आ रहा कहां से शुरू करें अब, ऐसे मोड़ पर आ चुका हूं की सब तरफ अंधेरा ही दिख रहा है।"

रमाकांत जी: इस अंधेरे से तुम्हे बस तुम्हारा परिवार ही निकल सकता है पृथ्वी। अपना फोन उठाओ और अपने दादाजी से बात करके पहले तो क्षमा मांगो, और पूरी बात बताओ। मैं हूं साथ तुम्हारे।

उन्होंने मेरे हाथ पर हाथ रख कर मुझे आश्वाशन दिया। मैने भी कुछ साहस बटोरते हुए मैंने दादाजी को फोन लगाया।

"हेलो दादाजी।"

.....

"दादाजी मैं आपका पृथ्वी, दादाजी, में बहुत पछता रहा हूं आज दादाजी, आपका कहना ना मान कर अपने पैरों पर कुल्हाड़ी मारी है दादाजी, मैं बहुत शर्मिंदा हूं अपनी उस हरकत पर दादाजी। ही सके तो मुझे माफ कर दीजिए। मैं आप सब का गुनहगार हूं।"

ये कहते ही मैं फफक कर रो पड़ा।

"बेटा, रो नही, मुझे सब पता है, रमाकांत जी ने मुझे सब बता दिया है, बेटा अगर जो आप अपनी हरकत को गलत मानते हैं तो हम सब आपको माफ कर देंगे, लेकिन पहली माफी आपको अनामिका और आनंद से मांगनी है।"

"मैने सबसे पहले उनसे ही माफी मांगी है दादाजी, और उन्होंने मुझे माफ कर दिया है दादाजी। बहुत बड़ा दिल है दोनो भाई बहन का।"

"फिर तो हम सब भी आपको माफ करते हैं बेटा, आप घर आइए जितनी जल्दी हो सके। और जरा रमाकांत जी से बात करवाओ।"

"जी दादाजी" मैने फोन रमाकांत जी की ओर बढ़ा दिया। दोनो में कुछ बात हुई उसके बाद रमाकांत जी ने मेरा फोन मुझे वापस किया।

रमाकांत जी: लो बेटा अपना फोन। और कल आप घर को निकल जाना, मैं होटल की कोई गाड़ी से दूंगा आपको।

"जी धन्यवाद दादाजी, आप लोग का मुझ पर बहुत आभार है, पता नही मैं कैसे चुकाऊंगा उसको।"

"बेटा आप सही राह पर चलो, बाकी किसी बात की चिंता न करो।"

"जी दादाजी, एक बात पूछूं?"
"बिलकुल"

"क्या अनामिका मुझसे शादी कर सकती है?"

"आप लेट हो बेटा, हमने उसकी शादी चंदन से पहले ही तय कर दी है। बड़ा प्यारा लड़का है वो, बहुत प्यार करता है वो अनामिका को। दोनो साथ मे खुश हैं।"

ये सुन कर दिल मे एक ठेस सी लगी, मगर ऊपर से मैं उनकी बात सुन कर मुस्कुरा दिया।

"अच्छा लगा सुन कर, चंदन वाकई में एक अच्छा लड़का है।"

फिर कुछ इधर उधर की बातें हुई और मैं कुछ देर बाद बहन निकल गया। थोड़ी देर बाद मेरे कदम हॉस्पिटल की ओर चल दिए, और वहां मैं चंदन के रूम की को चल पड़ा।

तभी मुझे दूर से उसके कमरे से एक नर्स बाहर निकलती दिखी, जो अपने कपड़े सही कर रही थी, मुझे कुछ अजीब सा लगा, फिर भी मैं उसके रूम के बाहर पहुंचा, और वहां वो किसी से फोन पर बात कर रहा था.......[/color]
 
[color=rgb(184,]#18 The mission...[/color]

चंदन: हेलो जानेमन, क्या हाल है?

........

चंदन: हां जानेमन, लेकिन एक दिक्कत हो गई है। जिसे मैं उस बूढ़े की पोती समझ रहा था, वो तो उसके मैनेजर की बहन निकली। जायदाद के चक्कर में मैं उससे प्यार का नाटक कर बैठा, अब क्या किया जाए, कुछ समझ नही आ रहा अभी।

.......

चंदन: नही भाग के कहां जाऊंगा, ये जॉब भी तो बड़ी मुश्किल से मिली है, फिलहाल अभी ऐसे ही रहने दो, कुछ सोचते हैं इस बारे में।

.......

चंदन: हां बाबा, आई लव यू टू, एंड अल्सो मिसिंग द थिंग इनसाइड योर लेग टू मच।

पृथ्वी ये सुन कर सन्नाटे में आ जाता है, और उल्टे पांव वापस लौट जाता है। उसके समझ में नहीं आ रहा था कि ये क्या था आखिर? उसका एक मन कहता था कि जा कर सबको सच बता दे, मगर दूसरा मन तुरंत माना करता कि वो लोग तेरा विश्वास नही करेंगे तो अनामिका की जिंदगी कैसे बचाएगा? वो एक पार्क में बैठ कर यही सब सोच रहा होता है कि तभी उसके फोन पर उसकी भाभी निधि का फोन आता है।

पृथ्वी: हेलो, भाभी, मुझे माफ कर दीजिए। मैने आप सब का दिल दुखाया है।

निधि: अरे पृथ्वी, माफी मांगने की कोई जरूरत नही है, आप घर आओ आपस अब बस, वैसे भी आपने इन दिनों में बहुत झेल लिया है।

पृथ्वी: भाभी, आना तो चाहता हूं, पर आपकी देवरानी को ले कर।

निधि: मतलब फिर कोई पसंद आ गई आपको?

पृथ्वी: भाभी कोई नही, बस आप की पसंद ही मुझे भी पसंद आ गई।

निधि: और वाह! लेकिन क्या अब वो लोग मानेंगे, खास कर अनामिका तुमको अपनाएगी क्या अब?

पृथ्वी: भाभी उसकी शादी तय हो गई है, पर वो लड़का बहुत गड़बड़ लगता है मुझे।

निधि: तुम मिले क्या?

पृथ्वी: मिला, वो भी इनके साथ शामिल था। मगर आज मैं उसकी सच्चाई से वाकिफ हुआ हूं।

निधि: क्या हुआ?

पृथ्वी उसे सारी बात बता देता है।

निधि: ये तो बहुत गलत हो जाएगा उस बेचारी के साथ। तुम सब बता क्यों नही देते उन लोगों को?

पृथ्वी: कौन विश्वास करेगा मेरी बात का, जब मैं खुद उसको एक बार धोखा दे चुका हूं। फिर भी एक कोशिश करके देखता हूं।

निधि: हां एक कोशिश तो करो, बाकी जैसी ऊपर वाले की इच्छा।

पृथ्वी: "हां भाभी बोल कर देखता हूं।" मन में,"पर सब ऊपर वालें के भरोसे नहीं छोडूंगा।"

थोड़ी देर बाद वो आनंद के केबिन में होता है।

पृथ्वी: आनंद भाई, आपने मुझे माफ कर दिया न?

आनंद: अरे भाई हमने भी तो तुम्हारे साथ ऐसा गंदा खेल खेला, हिसाब बराबर। अब कभी ये माफी वाली बात बीच में मत लाना। आओ बैठो, घर कब निकल रहे हो?

पृथ्वी: जी कल शायद निकल जाऊं, आज बस आप सब से बात करना चाहता हूं।

आनंद: हां बोलो, माफी वाली बात छोड़ कर। हाहहा...

पृथ्वी भी हंसते हुए: जी भाई जी, अब वो बात नही करूंगा कभी, पर एक बात बतानी है आपको, कैसे बोलूं ये समझ नही आ रहा।

आनंद: अनामिका के बारे में?

पृथ्वी: जी उसी के बारे में।

आनंद संजीदा होते हुए: देखो पृथ्वी, दादाजी ने मुझे सब बता दिया है, और चंदन की बात रहने भी दो तब भी ना मैं और न ही अनामिका अब इस तरह का कोई रिश्ता तुमसे नही रखना चाहेंगे।

ये सुन कर पृथ्वी का चेहरा उतर जाता है।

पृथ्वी: मैं अपनी बात नही कर रहा, मुझे चंदन कुछ गडबड लग रहा है, मैं बस वही बताने आया था आपको। ये मत समझिए की मेरे मन में अब को जज्बात है अनामिका के लिए उसके चलते ये बोल रहा हूं, लेकिन चंदन एक बहुत गड़बड़ लड़का है। अनामिका के लिए सही नही होगा।

आनंद: हो गया तुम्हारा? चंदन के बारे में तुम मुझसे ज्यादा जानते हो क्या? उसी के वजह से अनामिका अपने अवसाद से बाहर आई, और उसी ने आगे बढ़ कर उसका हाथ मांगा था। तो हम उसे कैसे गलत मान लें, वो भी तुम्हारे कहने पर?

पृथ्वी ये सुन कर चुप हो जाता है और उठ कर बाहर चला जाता है। बाहर उसे अनामिका दिखती है, दोनो एक दूसरे को देख कर नजरें चुराने लगते हैं। रमाकांत जी ये देख लेते हैं, और वो पृथ्वी को अपनी को बुलाते हैं।

रमाकांत जी: पृथ्वी, एक बात पूछनी थी तुमसे? क्या तुम सच में अनामिका के लिए श्योर हो?

पृथ्वी: जी दादाजी, लेकिन... वैसे एक बात मैं आपसे बोलना चाहते हूं, चंदन के बारे में।

रमाकांत जी: वो बाद में, पहले मेरी बात सुनो, अभी भी तुम अपनी बात सही से और सही समय पर कहना नही सीख पाए शायद?

पृथ्वी: मतलब?

रमाकांत जी: अपनी बात बताने के लिए सही जगह और सही समय बनाना सीखो सोल्जर।


पृथ्वी चौंकते हुए: बिलकुल मेजर,मिशन ऑन नाउ......
 
[color=rgb(184,]#19 The new deal .......[/color]

फिर पृथ्वी बाहर चला जाता है, और किसी को फोन लगता है।

कुछ देर बाद आनंद पृथ्वी को बुलाता है

आनंद: पृथ्वी, तुम्हारी टैक्सी बाहर खड़ी है, अब तुम का सकते हो अपने घर।

पृथ्वी: ok भैया, थोड़ी देर में निकलता हूं।

और फिर उसे बाहर तक भेजने सब लोग आते है, दादाजी के गले लगते हुए, "आपकी जरूरत पड़ सकती है।" रमाकांत जी उसका कंधा थपथपा देते हैं। आनंद के आगे वो हाथ जोड़ कर, "सुबह वाली बात के लिए भी माफ कर दीजिए।" आनंद मुस्कुरा देता है। चंदन के गले लग कर वो उसे बधाई देता है। और पवन के सर को सहला कर, "होस्टल आना तो मुझे बता देना, वहां हम मस्ती करेंगे।"

और अनामिका को देख कर आंखे झुका देता है। अनामिका की आंखों में एक नमी सी दिखाई देती है, जो रमाकांत जी को भी दिख जाती है। फिर पृथ्वी गाड़ी में बैठ कर निकल जाता है।

थोड़ी देर के बाद चंदन भी अपने हॉस्पिटल के लिए निकलता है, और बाहर आते ही उसकी नजर एक बीएमडब्ल्यू कार पर जाती है जिसे एक सुंदर सी लड़की ड्राइव कर रही होती है, चंदन की आंखों में एक कुटिल से चमक आ जाती है।

अगले दिन चंदन के हॉस्पिटल में होता है कि एक नर्स उसे आ कर बताती है कि होटल ग्रीन लेमन से कॉल आया है, एक गेस्ट को चोट लग गई है, और किसी को बुलाया गया है, चंदन कहता है कि किसी नर्स को भेज दो।

नर्स: मैनेजर ने खास कर किसी डॉक्टर को ही बुलाया है।

चंदन ये सुन कर अपना बैग ले कर निकल जाता है।

होटल ग्रीन लेमन में।

मैनेजर: आइए डॉक्टर, उनका रूम ऊपर है, और एक बात, वो बहुत ही इंपॉर्टेंट गेस्ट है हमारे लिए। ऐसा समझ लीजिए इस होटल की नई मालकिन हैं वो।

चंदन: ओके मैं पूरा खयाल रखूंगा।

अंदर जाते ही बेड पर वही कल वाली लड़की एक शॉर्ट स्कर्ट और स्किन टाइट टॉप में बैठी होती है, और उसके चेहरे पर दर्द की रेखा होती है।

चंदन: हेलो मैडम, मैं डॉक्टर चंदन हूं।

लड़की: हेलो डॉक्टर, मेरे दाएं घुटने में चोट लग गई है, बहुत दर्द है, प्लीज कुछ कीजिए जल्दी।

चंदन: आप लेट जाइए फिर मैं देखता हूं।

वो लड़की बेड पर लेट जाती है, चंदन के सामने उसकी मंसल जांघें झांकने लगते है और उसके निचले अंग में एक हलचल सी होने लगती है। वो उसके घुटने को देखता है और थोड़ी देर बाद, "आपको तो बहुत चोट आई है, लगता है हॉस्पिटल लेकर चलना पड़ेगा, कुछ दिन आराम की जरूरत है आपको, और यहां शायद मुश्किल हो।"

वो लड़की: जैसा आप सही समझें, वैसे मेरा नाम कोमल खुराना है।

चंदन: ओह आप खुराना ग्रुप की वाइस प्रेसिडेंट हैं ना?

कोमल: जी हां, यहां इसी होटल की डील के लिए आई थी, कल शाम को वॉक करते हुए पैर फिसल गया था, कल तो कुछ नही पता चला, आज सुबह से तो उठा भी नही जा रहा है।

चंदन: जी शायद लिगामेंट में कुछ हुआ हो, हॉस्पिटल चल कर ही टेस्ट करके देखते हैं, एंबुलेंस आने वाली ही है। By the way, I'm Doctor Chandan Mitra.

कोमल: So kind of you doctor.

चंदन: you can call me Chandan only. हम हमउम्र ही हैं।

कोमल मुस्कुरा कर: ok चंदन।

तभी नर्स एक व्हीलचेयर लेकर रूम में आ जाती है।

हॉस्पिटल में, चंदन कोमल के रूम में आते हुए।

कोमल जी आपको बस एक मोच आई है 2 से 3 दिन में सही हो जानी चाहिए, तब तक आप यहां ही रहें।

कोमल: ओह that is a good news, वरना तो मुझे लगा की 2 3 हफ्ते गए मेरे। काम भी इतना पेंडिंग है, ऊपर से इस होटल की डील भी इसी वीक तक फाइनल करनी है।

चंदन: अरे कुछ ऐसा भी होता तो हम कुछ करते ना। चिंता मत करिए।

कोमल: So nice of you Candan, and thankyou.

चंदन: अरे इसमें थैंक्यू की क्या बात है, वैसे भी हम तो अब दोस्त हैं ना?

कोमल: अरे क्यों नही, वैसे भी यहां कोई तो होना चाहिए अपना कहने वाला।

चंदन: अच्छा तो अभी तो मैं चलता हूं, थोड़ी देर में आके आपसे मिलूंगा फिर। बाय!

इसी तरह अगले 2 दिन तक दोनो मिलते हैं और उनकी बात चीत थोड़ी आगे बढ़ती है। तीसरे दिन कोमल को डिस्चार्ज करके चंदन अपनी गाड़ी में उसे छोड़ने होटल तक जाता है।

चंदन: अच्छा कोमल अब आप जाइए अपने कमरे में, मैं चलता हूं अब।

कोमल: चंदन आज होटल की डील फाइनल हो जायेगी, शाम को पार्टी है आपको भी आना है, और किसी को आप लाना चाहते है तो लेते आइएगा।

चंदन: मैं तो आ जाऊंगा, पर साथ किसे लाऊंगा? मेरा यहां है ही कौन?

कोमल: "अच्छा ऐसा क्या?" ये बोल कर वो मुस्कुरा दी।

चंदन: मतलब आपके अलावा।

कोमल हंसते हुए उसे जाने की बोलती है।

शाम को पार्टी में चंदन एक खूबसूरत सा बुके लेकर आता है और कोमल को होटल खरीदने की बधाई देता है।

कोमल: अरे इसकी क्या जरूरत थी?

चंदन: इतना बड़ा काम किया है, जरूरत क्यों नही, और वैसे भी खूबसूरत लोगों को खूबसूरत चीजें गिफ्ट करते रहना चाहिए।

कोमल: फ्लर्ट कर रहे हो?

चंदन: नही तारीफ कर रहा हूं। और चांस भी मार रहा हूं हहाह...

कोमल भी हंसते हुए उसे ड्रिंक ऑफर करती है, उसके बाद दोनो डांस भी करते हैं। पार्टी देर रात तक चलती है, और कोमल और चंदन बहुत करीब आ जाते हैं इस दौरान। रात को कोमल बहुत पी लेती है और उसे चला भी नहीं जाता है। चंदन उसे उसके कमरे तक छोड़ने जाता है, जहां कोमल उसे पकड़ कर रूम के अंदर ले जाती है।

कोमल, उसके गले लगते हुए: चंदन आई थिंक आई स्टार्टेड तो लाइक यू।

चंदन, मुस्कुराते हुए उसको अपने से अलग करते हुए: कोमल अभी आप सो जाओ, अभी आपने बहुत पी रखी है। और ये बोल कर चंदन कमरे से बाहर चला जाता है.....
 
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