[color=rgb(184,]#8 He Strikes again....[/color]
तभी पीछे से रमाकांत जी आ कर अमर को चुप रहने का इशारा करते हैं और अनामिका का हाथ पकड़ कर उसके कमरे की तरफ ले जाते हैं। अमर आश्चर्य चकित सा देखता रहता है, उसे ऐसा लगता है कि अनामिका जैसे नींद में हो इस समय।
थोड़ी देर बाद रमाकांत जी अनामिका के कमरे से बाहर निकलते हैं और अमर से कहते हैं, "अब सब सही है, तुम सो जाओ, मैं सुबह तुमसे बात करता हूं।"
अमर कमरे में वापस आ जाता है, अभी घटी हुई घटनाओं के कारण उसे नींद नहीं आ रही होती। तभी उसकी नजर बेडसाइड में रखे लैंडलाइन फोन पर जाती है, जो शायद एक ही कनेक्शन का एक्सटेंशन था, उसे उठा कर कान से लगा लेता है। दूसरी तरफ से शायद लाइन चालू थी, और उसे रमाकांत जी का स्वर सुनाई देता है।
रमाकांत जी: चंदन आज 2 महीने बाद फिर से अनामिका को दौरा पड़ा था। बात बिगड़ने के पहले ही मैंने उसे दवा दे कर सुला दिया। इतने दिनो बाद ऐसा क्यों हुआ वो भी अचानक?
चंदन: अचानक नही अंकल, शायद अमर के घर आने से उसकी यादें उस पर हावी हो रही हैं, इसमें मेरी भी गलती है कि मैंने उस आदमी को वो नाम से दिया जिसके कारण अनामिका की ये हालत हो गई है।
रमाकांत जी: पर बेटा ऐसे कैसे चलेगा, अमर कोई वही एक तो था नहीं दुनिया में अकेला, ऐसे तो उसका जीना भी मुश्किल हो जायेगा? जब तक मैं जिंदा हूं तब तक तो ठीक, पर मेरे बाद क्या? पवन अभी छोटा है, और मोनिका अनामिका के प्रति क्या रवैया रखती है ये तो तुमको पता ही है।
चंदन: जी अंकल, समझता हूं, इसका एक ही उपाय है, अनामिका की जिंदगी में किसी का आना। और जब तक वो खुद किसी को अपनी जिंदगी में लाना नही चाहेगी कोई स्थाई उपाय नहीं है दवाइयों के अलावा। अंकल अभी एक 2 दिन उसे आराम करने दीजिएगा, और हो सके तो अमर और उसका आमना सामना कम से कम ही हो तो फिलहाल अच्छा है।
रमाकांत जी: ठीक है बेटा, आप सो जाओ आप, सुबह एक बार आ कर देख जाना।
फिर फोन काटने की आवाज आती है, और वो भी रिसीवर को क्रेडल पर वापस रख देता है। उसकी नींद उड़ चुकी थी वो वार्तालाप सुन कर, इसीलिए वो उठ कर कमरे में ही टहलने लगता है, तभी वो एक और अलमारी के सामने खड़ा हो कर उसे खोलता है और उसके अंदर देखने लगता है। उसमे भी कुछ लड़कियों के कपड़े और उनके इस्तेमाल की चीजें रखी होती हैं। अलमारी के ऊपर वाले खाने में उसे कुछ कागज जैसे दिखते हैं, वो इनको हाथ लगाता है तो उसे कोई मोटी सी डायरी जैसी चीज महसूस होती है, वो उसे उतरता है तो वो एक छोटा सा एलबम होता है। उसमे शायद किसी छोटे से फंक्शन की फोटो होती हैं। जिसमे रमाकांत जी और पवन भी दिखते हैं उसे, एक अधेड़ उम्र के आदमी और औरत भी दिखते हैं जो शायद अनामिका और पवन के मां बाप हैं, और एक अनामिका के उम्र की लड़की भी होती है जिसका चेहरा हर फोटो में चाकू या ब्लेड से बिगड़ा हुआ होता है। कुछ देर उस एल्बम को देख कर अमर उसे वापस अलमारी में रख कर सोने चला जाता है।
सुबह रमाकांत जी अमर को उसके कमरे में उठाने आते हैं और कहते है कि रेडी हो जाओ फिर साथ में नाश्ता करते हैं।
थोड़ी देर में अमर बहार आता है तो रमाकांत जी उसे ले कर अपनी स्टडी में ले जाते हैं, जहां पर नाश्ता लगा हुआ था। वो अमर को बैठने कहते हैं और खुद एक दूसरी कुर्सी पर बैठ जाते हैं।
रमाकांत जी: अमर तुम कल रात के बारे में शायद कुछ पूछना चाहते हो क्या??
अमर: जी दादाजी, आखिर वो क्या था?
रमाकांत जी: अनामिका एक मेंटल कंडीशन से गुजर रही है जिसे PTSD यानी की पोस्ट ट्राउमेटिक स्ट्रेस डिसऑर्डर कहते हैं, जिसमे जब कोई व्यक्ति किसी दुर्घटना से गुजरता है तो उसकी यादें उसको बार बार परेशान करती हैं। अनामिका के पति अमर की मौत उसी मोड़ पर हुई थी जहां पर तुम्हारी गाड़ी का एक्सीडेंट हुआ था।
अमर: अनामिका का पति??
रमाकांत जी: हां अमर, उसके पति का ही नाम अमर था, इसीलिए वो तुमसे थोड़ा खींची खींची रहती है, क्योंकि तुम्हारा रखा हुआ नाम उसे उसकी याद दिलाता है। बेचारी बच्ची को कितना सहना पड़ा है इस छोटी सी जिंदगी में।
अमर: जी....?
रमाकांत जी: अमर मेरा एक ही बेटा था, अभिनव, उसकी शादी नाविका से हुई थीं, दोनो की लव मैरिज थी, मेरी तो सहमति थी, मगर नाविका के घर वाले इसके खिलाफ थे, जाती अलग होने के कारण। खैर दोनो शादी करके यहां रहने चले आए, और इस समय मैं अपनी पोस्टिंग में असम में था। शादी के एक साल बाद अनामिका का जन्म हुआ था। बहुत प्यारी बच्ची थी, उस समय कुछ गलती के कारण नाविका खतरे में आ गई और जीवित नही रही मेरी पत्नी जीवित थी, और मेरी रिटायरमेंट भी ज्यादा समय नहीं था, तो वो यहीं आ कर अनामिका को सम्हालने लगी थी। मेरे बेटे ने ही इस हवेली को होटल में बदला था और इस हिस्से को भी उसी ने बनवाया था। कुछ समय बाद, मेरी रिटायरमेंट से कुछ एक महीना पहले मेरी पत्नी की मृत्यु भी हार्ट अटैक से हो गई।
अमर: ओह ये तो बहुत ही दुखद हुआ।
रमाकांत जी:" हां, वो तो है। इस घटना के बाद मैं भी यहां चला आया, मगर हम दो बाप बेटों के बस का नही था अनामिका को अकेले पालना, और फिर अभिनव की उम्र भी कोई ज्यादा नही थी, तो मैंने ही जोर दे कर उसकी शादी मोना से करवा दी, मोना मेरे दोस्त की बेटी थी, जिसका भी तलाक हो चुका था। मोना एक बहुत अच्छी मां साबित हुई, वो अनामिका को अपनी ही बेटी मानती थी। कुछ समय के बाद उसको भी एक लड़की हुई, जिसका नाम मोनिका रखा गया। और कुछ और साल बाद एक बेटा, पवन, जो करीब 10 साल छोटा था अनामिका से। मोनिका शुरू में तो बहुत अच्छी बेटी थी, मगर जब वो कुछ बड़ी हुई तो उसकी एक मौसी का उस पर बहुत प्रभाव पड़ा, उसने मोनिका के कान भरने शुरू कर दिए की अनामिका उसकी सौतेली बहन है, फिर भी तेरी मां उसे ज्यादा मानती है और तेरी कोई औकात नही उसके सामने वगैरा वगैरा। छोटी बच्ची के मन पर ये बात हमेशा के लिए छप गई, और वो अनामिका से लगभग नफरत करने लगी, हालांकि मोना और अभिनव ने कभी भी किसी बच्चों में कोई अंतर नही किया था, फिर भी उसे हमेशा यही लगता कि उसके मां बाप उसे अनामिका से न सिर्फ कम मानते थे बल्कि उस पर ध्यान भी कम देते थे। वो यहां पर कम ही आती थी, होस्टल से छुट्टी होने पर जहां अनामिका यहां आती वहीं मोनिका अपनी उसी मौसी के पास चली जाती। धीरे धीरे वो अनामिका से नफरत करने लगी। फिर एक साल पहले जब अनामिका की पढ़ाई खत्म हो गई तो उसके मां बाप ने उसकी शादी अपने एक दोस्त के लड़के अमर के साथ तय कर दी। इसी बीच मोनिका की पढ़ाई भी पूरी हो गई, और उसने शहर में ही एक नौकरी कर ली, उसकी संगत भी बहुत बुरी हो गई थी, सिगरेट शराब तो उसके लिए आम बात थी, बाकी भी पता नही क्या क्या, उसके कई लड़के भी दोस्त थे, अब क्या ही बोलूं, कुल मिला कर कहा जाय तो वो लड़की पूरी तरह से हाथ से निकल चुकी है।"
"अमर एक बहुत ही अच्छा लड़का था, दोनो इस शादी से खुश भी बहुत थे। शादी के 6 महीने बाद, एक बार दोनो यहां आए हुए थे और पवन की छुट्टियां होने वाली थी। तो अभिनव और मोना उसे लेने जाने वाले थे, और अमर को शहर में कोई काम निकल आया, तो वो तीनो ही गाड़ी में पवन को लेने चले गए, यहां मैं और अनामिका ही थे। थोड़ी ही देर बाद खबर आई की उसी मोड़ पर उनका एक्सीडेंट हो गया और तीनो की मौत हो गई। इस एक्सीडेंट के बाद अनामिका एकदम टूट गई, उसे सही होने में 4 महीने लगे। इसी बीच मोनिका ने आ कर अपना हिस्सा मांगा मेरी प्रॉपर्टी में, उसे 2 हिस्से चाहिए थे, एक अपना और एक पवन का, उसके हिसाब से वो और पवन ही अपने मां बाप के बच्चे थे, और चूंकि अनामिका की शादी हो गई थी इसीलिए उसे कुछ भी नही मिलना चाहिए, मैंने साफ साफ बोल दिया कि होंगे तो 3 ही होंगे, मेरी प्रॉपर्टी है ये, हां कोई नही रहा तब 2 हिस्से हो सकते हैं। मोनिका की मुझसे खूब बहस हुई, अंत में मोनिका गुस्से में अनामिका को देख लेना की धमकी दे कर चली गई।"
अमर: अनामिका को क्या होता था, और कल रात??
रमाकांत जी: उसे दौरे पड़ते थे, वो रात को दुल्हन की तरह सज कर अमर का इंतजार करती और उसकी फोटो देख कर खूब रोती चिल्लाती थी, सम्हालना मुश्किल होता था, गुस्सा उसकी नाक पर रहता, और कभी कभी गुस्से में कई लोगों से मार पीट भी कर लेती थी। चंदन की दवाइयों से सही हुई 2 महीने से कुछ नही हुआ, लेकिन कल पता नही कैसे?
अमर: क्या मेरे कारण?
रमाकांत जी: हो सकता है।
अमर: तो क्या मैं कहीं और चला जाऊं?
रमाकांत जी: नही बेटा, मैं उसको समझाऊंगा, उसे आखिर अपने इस डर से बाहर निकलना जरूरी है, और वो दवाई से नही होगा, उसे खुद ही करना पड़ेगा।
अमर: पर फिर भी?
रमाकांत जी: पर वर कुछ नही, जब तक तुम पूरी तरह से सही नही होते, तब तक तो नही।
उसके बाद दोनों स्टडी के बाहर निकल जाते है, अनामिका आज पूरा दिन अपने कमरे में ही रहती है।
अमर के दिल में अनामिका के प्रति एक फिक्र की भावना जन्म लेने लगती है, और वो अभी के लिए अनामिका से बच कर ही रहने की कोशिश करता है।
ऐसे ही 2 3 दिन बीत जाते हैं, और अनामिका अपने कामों में लग जाती है। अमर उसको दूर से ही देखता रहता है, लेकिन दोनो की कोई बात नही होती। अब वो बहुत हद तक ठीक हो चुका था, और बिना वॉकिंग स्टिक के ही आराम से चल लेता था।
एक दिन अमर बहार लॉन में टहल रहा होता है तभी उसे वो आदमी (साया) फिर से सड़क पर दिखाई देता है, और उसी समय अनामिका भी बाहर की तरफ जा रही होती है। अमर दोनो पर नजर रखते हुए बाहर की ओर आता है, अनामिका उस आदमी के दूसरी तरफ जाने लगती है, अमर उस आदमी की ओर देखता है, और दोनो की नजर मिलती है। वो आदमी अनामिका की तरफ देख कर मुस्कुराता है, और पास खड़ी एक वैन की ओर बढ़ता है।
ये देख अमर अनामिका की ओर भागता है, और उसको आवाज देता है। अनामिका ये देख घबरा जाती है। साया वैन को अनामिका की तरफ मोड़ कर पूरी स्पीड से आगे बढ़ा देता है और.....