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यह मेरी एक सच्ची कहानी है, जो मेरे साथ पिछले साल हुई थी। इस कहानी ने मेरी सोच ही बदल कर रख दी और मुझे मेरे प्यार से भी मिला दिया। अब मैं ज्यादा समय ना लेते हुए सीधे कहानी पे आता हूँ। इस कहानी में मैं नाम बदलकर लिख रहा हूँ, पात्रों की जानकारी गोपनीय रखने के लिए।

पिछले साल गर्मी की छूट्टियों में घर जाने के लिए मुझे ट्रैन में टिकट नही मिला, घर जाने की तारीख पक्की नही थी इसलिए पहले से रिजर्वेशन भी नही किया था। तो मैंने जनरल बोगी में जाने का मन बना लिया और स्टेशन के लिए निकल गया। मैंने सोचा अभी के लिए जनरल बोगी में बैठ लेते है, थोडी देर बाद टीटी से बात करके जगह ले लूंगा। लेकिन, ये किसे पता था इसी सफर में मुझे मेरा प्यार मिल जाएगा।

तो जनरल बोगी पहले से ही पूरी भरी हुई थी और वहाँ चढने तक की जगह नही बची थी, ऊपर से मेरे पास दो बैग थे। तो मैंने सोचा कि, जनरल बोगी में जगह तो मिलने से रही, टीटी के आने तक स्लीपर बोगी में ही बैठ जाता हूं। तो मैं स्लीपर बोगी में चढ गया, बहुत ढूंढने पर मुझे एक पूरी सीट खाली मिली। तो मै अपना सामान वहीं पर रखकर बैठ गया। मुझे लगा कि, वहां का यात्री आया नही होगा।
बैठे बैठे मुझे नींद आने लगी, तो मैं वहीँ खिडकी के सहारे सो गया।
फिर एक स्टेशन आया, जिसमे काफी सारे यात्री और चढे, और कोई आकर मुझे जगा रहा था। मैं तो गहरी नींद में था। मैंने जैसे ही आँखे खोली, मुझे लगा कि मैं साक्षात कोई सपना देख रहा हूँ। और सपने में मुझे मेरी रानी मिल गई है। हाँ, बिलकुल उसका वो हसीन चेहरा, सुर्ख लाल होंठ, मक्खन से मुलायम गाल, सुराहीदार गर्दन, उसकी आँखे नीली थी जिसे देखकर लगता हो कि पूरी कायनात इन आँखों में समा चुकी है। इसी के साथ उसके कुछ बाल जो उडकर बार बार उसके चेहरे पे आ जाते थे, उसकी खुबसूरती पे चार चाँद लगा रहे थे। मैं उसे एकटक देखे जा रहा था, जिससे उसे लगा कि मैं अभी भी नींद में हूँ। तो उसने मुझे फिर से उठाने के लिए अपने हाथों से हिलाया। उसके नाजुक हाथों का स्पर्श पाते ही मुझे करंट सा लगा। मैं उसकी सीट पर बैठा था और वो मुझे उठा रही थी।

तो मैंने उसे अपना हाल बताकर पूछा कि, "अगर आपको ऐतराज ना जो तो क्या टीटी आने तक मैं यहाँ बैठ सकता हूँ ?"

उसने जो कहा ये सुनकर मैं तो बहुत खुश हुआ। उसने कहा, "मेरी एक दोस्त भी मेरे साथ आनेवाली थी, तो हम दोनों ने साथ में टिकट बुक करवाया था। लेकिन कुछ वजह से वो नही आ पाई, तो अगर आपके पास सीट नही है तो आप उसकी सीट पर बैठ सकते है।"

मुझे और क्या चाहिए था, मैंने झट से हाँ कह दिया। उसके दोस्त की सीट मिडल बर्थ पर थी, ठीक उसी के ऊपर। तो दिन में मुझे उसके साथ ही बैठना था। मैं उसकी बगल में ही बैठ गया। फिर ऐसे ही नॉर्मल बातें चलती रही। बातों बातों में पता चला वो मेरे गांव के पास वाले शहर से थी। और हम दोनों का अंतिम स्टेशन एक ही था। मतलब मैं उस हसीना के साथ अगले 13 घंटे तक रहनेवाला था। इन्ही सब बातों में मैंने उससे नाम पूछा तो उसने बडे ही अजीब तरीके से नाम बताया, "मैं वो हूँ, जो भगवान को याद करते ही मन में आ जाती है, इसे समझ लो और मेरा नाम जान लो।"

मैंने ढेर सारे नाम ले लिए, लेकिन उनमें उसका नाम नही था। जैसे पूजा, आरती, श्रद्धा और आखिर में मैंने जैसे ही बोला भक्ती तो उसने हंसकर हाँ बोल दिया। उसकी वो हंसने की अदा मुझे उसका और दीवाना बनाये जा रही थी।

मैंने तो उसे देखते ही उसे पटाने की मन में ठान ली थी। तो अब मैं सोचने लगा कि, इसे पटाया कैसे जाये। मुझे ना तो कुछ समझ आ रहा था और ना ही कोई आईडिया दिमाग में आ रहा था। तो मैंने ऐसे ही इधर उधर की बातें करना चालु रखा। उसे बातों के बीच में थोडा थोडा हसा भी देता था, तो वो भी मुझसे धीरे धीरे खुलने लगी थी, लेकिन वो अपनी मर्यादा के बाहर कुछ नही बोल रही थी। फिर मैंने उसे उसके कॉलेज के बारे में बातें करना शुरू कर दी। तो मुझे पता चला उसकी और मेरी ब्रांच एक ही थी, बस कॉलेज अलग था और भक्ती मुझसे एक साल छोटी थी। तो इस पर हमारी बहुत बातें चली, उसके कॉलेज के टीचर लोगों से लेकर के भविष्य में क्या करना है, कैसे करना है सब कुछ। इस विषय में मैंने उसे अपने कुछ प्लान बताये और उसने उसके प्लान बताये। और इसी बातों में वो मुझसे थोडा इम्प्रेस लगने लगी थी।

तो उसने बोला, "अब से हमेशा टच में रहेंगे, जब भी मुझे कोई प्रॉब्लम होगी तो मैं तुमसे पूछ सकती हूँ। अगर तुम्हे कोई दिक्कत होगी तो अभी बोल दो।"

मुझे भी तो यही चाहिए था, तो मैंने भी उसे कहा, "ठीक है, मुझे क्या दिक्कत हो सकती है। जब भी बोलोगी बन्दा हाजिर हो जायेगा।"

ये बात सुनते ही भक्ती की हंसी निकल गई। और वो बहुत खुश लग रही थी। तो मैंने उससे पूछा, "बन्दा तो हाजिर हो जाएगा लेकिन बन्दे को पता भी होना चाहिए ना कि, आप उसे कब याद करोगी। और ये पता तभी चल सकता है जब मेरा मोबाइल नम्बर आपके पास हो।"

इस पर भक्ती ने अपना मोबाइल निकालकर मुझसे अपना नम्बर माँगा, तो मैंने भी अपना नम्बर बोल दिया। उसने मेरे फोन पे मिस्ड कॉल दे दिया और मुझे भी उसका नम्बर सेव करने को बोला। इस तरह से हमारे नम्बर एक दूसरे के पास आ गए। अब तक रात हो चली थी, तो हम डिनर करके सो गए अपनी अपनी सीट पे। सुबह सुबह के चार बजे ट्रेन हमारे स्टेशन पहुँचने वाले थे, नींद तो मेरे आँखों से कोसो दूर थी।

मैं बस उसे चोदने के सपने देख रहा था। उसे कैसे पटाया जाए, यही मै सोचे जा रहा था। तभी मेरे मन मे उसे देखने का ख्याल आया। तो मैंने सोचा, क्यों न इसे थोडी देर अपनी आंखों से उसे चोदने का खयाल मेरे मन मे घर करने लगा।

थोडी देर बाद मैं सीट से नीचे उतरकर उसे देखने लगा। जैसे ही मैं नीचे उतरके उसे देखने लगा, उसके उरोज मुझे बुला रहे थे। वो बहुत ही टाइट थे, और उसने सिर्फ टी-शर्ट पहनी हुई थी। तो इस वजह से उसके चुचे और भी नुकीले से दिखाई दे रहे थे। उन्हें देखकर मै एकदम मंत्रमुग्ध सा हो गया था। ऐसा लग रहा था, जैसे पूरी दुनिया यही थम गई हो।

तभी अचानक उसने अपनी आँखे खोलकर मुझसे पूछा, "तुम यहाँ क्या कर रहे हो?"

मुझे ऐसे अचानक सवाल पूछे जाने से पता नही कैसे लेकिन मैंने बोल दिया, "तुम्हे अपने आँखों में समाकर रखना चाहता हूँ।"

यह मैंने बोल तो दिया लेकिन उसके तुरंत बाद मुझे अहसास हुआ कि, मुझे ऐसा नही बोलना चाहिए था। लेकिन अब बोलने के बाद मैं क्या कर सकता था, तो मैं बस वैसे ही बूत बनके वहीं खडा रहा। तो उसने मुझसे कहा, "ये क्या बोल रहे हो, आओ बैठो इधर।"

उसके पास बैठते ही मैंने बोला, "I Love You भक्ती, मैं तुझसे प्यार करने लगा हूँ। जब तुझे देखा था, तब सब नॉर्मल था लेकिन बातों बातों में पता नही कब मेरे मन में तेरे लिए फीलिंग्स जागने लगी। और अब कल सुबह के बाद पता नही फिर कब देखूंगा इसलिए मैं बस तुम्हे जी भर के देखना चाहता था।"

ये सब मैंने एक ही साँस में बोल दिया और उसकी तरफ देखने लगा। वो मेरे इतना कुछ कहने के बाद शॉक में थी। तो मैंने उसके हाथों को पकडकर उसे हिलाया, तो उसने बोला, "मुझे लगता है शायद मैं भी तुमसे प्यार करने लगी हूँ। और अगर तुम आज कुछ नही कहते तो मैं ही कल सुबह तुमसे कह देती।"

मेरी तो मन मांगी मुराद पूरी हो गई। इतना सुनते ही मैंने उसके हाथों को अपने हाथ में लेकर सहलाया और फिर बारी बारी से उसके दोनों हाथों को चूम लिया। फिर थोडी देर के लिए हम वैसे ही एक दूसरे की आँखों में आँखे डालकर एक-दूसरे से बात कर रहे थे। मैं वहां ज्यादा आगे बढ भी नही सकता था, तो मैंने वहां कुछ करना ठीक भी नही समझा। मैं बस उसकी सीट पे बैठा उसके हाथ अपने हाथों में लिए उसकी आँखों में देखकर बातें किये जा रहा था। आखिर सुबह हुई और हम अपने मंजिल तक पहुंच चुके थे। तो विदाई लेने से पहले मैंने उसे एक बार हग किया और तभी उसके कान में कहा, "तुमसे जल्द ही अकेले में मिलना चाहता हूँ, तुम मिलोगी ना ?"

भक्ती ने भी हंसकर कहा, "अब तो मिलना ही पडेगा।"

तो इस तरह से हमने जल्द ही मिलने का वादा करके एक-दूसरे से विदा ले ली।
 
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