Hindi Antarvasna एक अनोखा बंधन - पुन: प्रारंभ


[color=rgb(65,]इक्कीसवाँ अध्याय: कोशिश नई शुरुआत की[/color]
[color=rgb(251,]भाग -7 (5)[/color]


[color=rgb(44,]अब तक आपने पढ़ा:[/color]

हमने रिक्शा किया और स्टेशन पहुँचे, मैंने ticket काउंटर से superfast की दो टिकेटें ली| टिकट ले कर मैंने पुछा की जयपुर की ट्रैन कब जाएगी तो काउंटर पर बैठा आदमी बोला की ये जो ट्रैन जा रही है ये ही जाएगी, इसके बाद अगली ट्रैन रात को आएगी! मैंने करुणा से दौड़ने को कहा क्योंकि ट्रैन धीरे-धीरे रेंगने लगी थी| मेरे हाथ में दो बैग थे पर फिर भी मैं करुणा से तेज भागा और सामान रख कर फटाफट चढ़ गया, करुणा अब भी स्टेशन पर दौड़ रही थी| वो बिना किसी मदद की तरह चढ़ नहीं पाती इसलिए मैंने अपना हाथ आगे बढ़ाया ताकि वो मेरा हाथ पकड़ ले, लेकिन उसे दौड़ कर बस पकड़ने की आदत थी तो उसने सावधानी से दौड़कर खुद ट्रैन पकड़ ली|

पूरी की पूरी ट्रैन खाली थी, मैंने सोचा की जब ट्रैन खाली ही है तो सफर आराम से किया जाए! मैं करुणा को लेकर AC वाले कोच की तरफ चल पड़ा, रास्ते में जो भी coaches आय सब या तो खाली थे या फिर उसमें इक्का-दुक्का लोग ही थे!

[color=rgb(255,]अब आगे:[/color]

ट्रैन
में कम लोग होना और साथ में लड़की, situation थोड़ी चिंता जनक थी पर अभी तक ये चिंता मेरे सर पर सवार नहीं हुई थी| हम थर्ड AC वाले कोच में पहुँचे, ये पूरा का पूरा कोच खाली था तो हमने कोच के बीचों बीच की सिंगल वाली बर्थ पर अपना समान रख दिया|

करुणा: मिट्टू हमारा पास तो reservation नहीं तो हम AC coach में कैसे?

करुणा ने घबराते हुए कहा| आजतक मैंने कभी भी बिना reservation के इस तरह ट्रैन में सफर नहीं किया था, पर उस वक़्त मैं कुछ ज्यादा ही उत्साहित था और इस situation को एक साहसिक कार्य (adventure) मान रहा था|

मैं: पूरी ट्रैन खाली है, हम कहीं भी बैठें किसे तकलीफ होगी?!

मैंने बात को हलके में लेते हुए कहा, पर अगले ही पल मुझे एहसास हुआ की पूरी ट्रैन खाली है और जो थोड़े बहुत यात्री हैं उनमें ज्यादातर आदमी ही हैं, कहीं कुछ गलत हो गया तो?! ये ख्याल मन में आते ही मुझे घबराहट होने लगी, मैंने एक नजर करुणा को देखा तो पाया की उसे मेरे साथ होने से कोई चिंता नहीं इसलिए वो ट्रैन की खिड़की से बाहर निश्चिंत हो कर देख रही है| अब ऐसे में अगर मैं घबरा जाता तो वो बेचारी रोने लगती, इसलिए मैंने अपने होंसले बुलंद किये और ऐसी कोई मुसीबत आई तो अपने आपको उससे लड़ने के लिए ख़ामोशी से मानसिक तैयारी करने लगा|

मेरे खामोश होने से करुणा के मन में डर भरने लगा और वो घबराते हुए बोली;

करुणा: मिट्टू.....इस पूरी ट्रैन...में हम...अकेले.... कोई आ रे तो?

करुणा ने डर के मारे काँपते हुए कहा|

मैं: Dear अभी अगले स्टेशन पर लोग जर्रूर चढ़ेंगे और फिर मैं हूँ न आपके साथ, तो फ़िक्र मत करो!

मैंने करुणा को हिम्मत बँधाई| मैंने करुणा क ध्यान भटकाने के लिए उसे अपने पर्स से पैसे निकाल कर संभालने के लिए दिए, मैंने अपने पर्स में बस 100-100 के दो नोट रखे और बाकी सब करुणा को दे दिए, ताकि TTE जब रिश्वत माँगे तो मैं उसे अपना पर्स खोल कर दिखा सकूँ और कम पैसे होने की दुहाई दे सकूँ! 15 मिनट बाद ही TTE साहब आ गए, उन्होंने हम दोनों को बैठे हुए देखा तो उन्होंने इसका कुछ और ही मतलब निकाला|

मैंने उन्हें अपनी सुपरफास्ट की टिकट दिखाईं तो वो हम दोनों के सामने सीट पर बैठ गए, मैं जानता था की बिना खाये-पीये वो छोड़ेंगे नहीं तो मैंने सीधा अपना पर्स निकाला| मैंने पर्स कुछ इस तरह से खोला की उन्हें ये दिख जाए की मेरे पास थोड़े ही पैसे हैं, मैंने वैसे ही पर्स खोले हुए उनकी तरफ देखा तो पाया वो पहले से ही मेरी तरफ देख रहे हैं|

TTE साहब: दे दो जो देना है!

अब उन्हें 100/- रुपये देता तो वो भड़क जाते इसलिए मैंने 200/- उन्हें दिए जो उन्होंने रख लिए| फिर हमारी टिकट के पीछे वही सीट नंबर लिख दिया जिस पर हम दोनों बैठे थे| टिकट मुझे देने के बाद वो बोले;

TTE साहब: घर से भाग कर जा रहे हो?

उन्होंने मुस्कुरा कर पुछा| उनकी ये बात सुन हम दोनों आँखें फाड़े उन्हें देखने लगे|

मैं: नहीं सर! इनकी joining के लिए श्री विजयनगर आये थे, कुछ कागज बनाने हैं तो इसलिए जयपुर अपने मामा जी के पास जा रहा हूँ|

मैंने जयपुर में मामा होने का बहाना इसलिए मारा क्योंकि मैंने उन्हें अपने पर्स में रखे सारे पैसे दे दिए थे, अब अगर मैं उन्हें कहता की हमें वापस दिल्ली जाना है तो वो पूछते की उसके पैसे कहाँ हैं?! उधर मेरी बात बिलकुल सीधी थी इसलिए TTE साहब समझ गए की हम दोनों घर से नहीं भागे हैं|

TTE साहब: कहाँ के रहने वाले हो आप दोनों?

उन्होंने बात शुरू करते हुए कह|

मैं: सर मैं अयोध्यावासी हूँ और ये (करुणा) केरला से हैं|

मैंने अपने अयोध्यावासी होने की बात बड़े गर्व से कही|

TTE साहब: अरे हम बाराबंकी से हैं! तुम तो हमारे पडोसी हुए!

वो हँसते हुए बोले और उठ कर चल दिए| चलते-चलते उन्होंने इशारे से मुझे अपने पास बुलाया, हम दोनों कोच के बाथरूम तक पहुँचे थे की वो मुझसे बोले;

TTE साहब: देखो इस ट्रैन में लोग कम हैं, इसलिए अपना और इस लड़की का ध्यान रखना!

उनकी ये बात मेरे लिए चेतावनी थी जिसे सुन कर मेरे कान खड़े हो गए थे!

मैं: तो सर आगे स्टेशन से कोई नहीं चढ़ेगा?

मैंने भोयें सिकोड़ कर परेशान होते हुए पुछा|

TTE साहब: नहीं, रास्ते में 1-2 जगह पर ही 2-4 मिनट का stoppage होगा, कुछ बुकिंग हैं पर सब स्लीपर या जनरल की हैं| Third AC और Second AC की कोई बुकिंग नहीं है, इसलिए यहाँ कोई अटेंडेंड भी नहीं हैं, ये ट्रैन अब जयपुर में ही भरेगी!

इतना कह वो चले गए और इधर मेरे दिमाग में चेतावनी का साईरन बजने लगा|

मैं आज रात जाग कर कैसे पहरेदारी करनी है ये सोचता हुआ करुणा के पास वापस लौटा, करुणा ने मुझसे पुछा की TTE साहब क्या कह रहे थे तो मैंने झूठ बोलते हुए कहा की वो हम उत्तर प्रदेश वालों की कुछ बात हो रही थी| करुणा मेरी बातों में आ गई और उसने कोई सवाल नहीं पुछा| रात के सात बजे थे और भूख लगी थी तो करुणा ने अपनी दीदी का दिया हुआ वही दही-चावल वाला खाना निकाल लिया| अब मरते क्या न करते, कुछ और तो खाने को मिलने वाला था नहीं इसलिए मैंने वही खाया|

खाना खा तो लिया लेकिन पानी बस आधा बोतल बचा था, वो भी कल रात का! पानी के लिए अगले स्टेशन का इंतजार करना था जो नजाने कब आये?! इधर इस ट्रैन ने बड़ी तेज रफ़्तार पकड़ी और AC इतनी तेज चलने लगा की करुणा को ठंड से कँप-कँपी होने लगी! हम दोनो उसी बर्थ पर अपनी पीठ टिका कर एक दूसरे की तरफ मुँह कर के बैठ गए, मेरी ठंड के प्रति प्रतिरोधकता करुणा के मुक़ाबले ज्यादा थी इसलिए मैं इस बढ़ी हुई ठंड को झेल पा रहा था, लेकिन करुणा शारीरिक तौर पर कमजोर थी इसलिए वो अपने दोनों हाथों से अपने दोनों बाजू रगड़ रही थी!

करुणा: ये AC कम नहीं हो सकते?

अब ट्रैन में कोई अटेंडेंट था नहीं और मैं भी थर्ड AC में पहलीबार सफर कर रहा था इसलिए मैं नहीं जानता था की AC कहाँ से कम होता है|

मैं: Actually dear इस ट्रैन में कोई attendant नहीं है, ये ट्रैन अब सीधा जयपुर रुकेगी!

मैंने करुणा को सच बताया पर TTE साहब की दी हुई चतवनी उसे नहीं बताई| ये सुन कर करुणा एक पल को तो घबरा गई, पर अगले ही पल उसके चेहरे पर एक सुकून भरी मुस्कान आ गई| वो उठी और मेरी गोद में सर रख कर अपनी दोनों टाँगें पेट से लगा कर सिकुड़ कर लेट गई| मेरी बाईं टाँग घुटने से मुड़ी हुई थी और दाईं टाँग बर्थ से नीचे लटक रही थी| उसके यूँ मेरी गोद में सर रखने से मेरे जिस्म में कुछ अजीब सा होने लगा था, ये एहसास वैसा नहीं था जब भौजी मुझे छूती थीं और न ही वैसा एहसास था जो मुझे रसिका भाभी द्वारा जबरदस्ती छूने से हुआ था! शायद मेरी 'बंद सोच' के कारन ये एहसास हो रहा हो, जिसके हिसाब से ये छुअन ठीक नहीं थी पर गलत भी नहीं थी!

इधर करुणा ठंड से थोड़ा काँप रही थी तो मैंने करुणा को गर्मी देने के लिए उसके दाएँबाजू को सहलाने की अनुमति माँगी;

मैं: Dear ..... आ ...आप को ठंड लग रही है....मैं आपकी ये बाजू सहलाऊँ...आपको शायद उससे गर्मी महसूस हो!

ये सब बोलते समय मेरा चेहरा लाल हो चूका था और आवाज में कंपन थी! करुणा ने एक नजर मुझे देखा और मुस्कुराते हुए हाँ में गर्दन हिलाई| मैंने दाहिने हाथ से उसकी दाईं बाजू पर हाथ फेरना शुरू किया, कुछ देर में उसे शायद थोड़ी गर्मी मिली तो वो सुकून से सोने लगी| उधर मुझे वो दिन याद आया जब भौजी को बुखार चढ़ा था, उस रात उन्हें अचानक से तेज बुखार चढ़ गया था और कैसे मैंने आनन-फानन में उन्हें अपने जिस्म की गर्माहट दी थी| वो दृश्य याद कर के एक पल को मेरे चेहरे पर मुस्कान आ गई पर फिर अगले ही पल भौजी का चेहरा आँखों के सामने आ गया जिसे देखते ही दिमाग में गुस्सा भरने लगा| मैंने सर को झटक कर वो ख्याल अपने दिमाग से निकाला और सर पीछे टिका कर खिड़की से बाहर देखने लगा| वो ट्रैन की छुक-छुक, कोच का सन्नाटा और दूर कहीं किसी घर का जलता हुआ बल्ब जिसमें से पीले रंग की रौशनी निकल रही थी| ये सब इतना मनमोहक था की इसे देख कर सुकून मिल रहा था, उन कुछ पलों के लिए मैं अपनी सभी चिंताओं से मुक्त हो गया था|

कुछ देर बाद मैंने घडी देखि तो अभी रात के 10 बजे थे, एक ही आसन में पिछले 45 मिनट से बैठे-बैठे पाँव में खून रुक रहा था| मैंने धीरे-धीरे अपनी बाईं टाँग को फैलाना चाहा, पर दिक्कत ये की मेरे टाँग फ़ैलाने से करुणा जाग जाती और मैं उसे कतई जगाना नहीं चाहता था| सबसे पहले मैंने अपनी दाईं टाँग उठा कर ऊपर रखी और धीरे-धीरे अपनी बाईं टाँग थोड़ी खोली, मेरे ऐसा करने से करुणा की नींद टूट गई| उसने अधखुली आँखों से मुझे देखा तो उसे मेरी समस्या समझ आई, उसने मुझे बाईं टाँग फैलाने की जगह तो दी, पर मेरे टाँग फैलाते ही वो फिर से अपना सर मेरी गोद में रख कर लेट गई| इस बार जब उसने दुबारा सर मेरी गोद में रखा तो वो मेरे 'उसके' बहुत करीब था, अब 'उसमें' दिमाग तो होता नहीं उसे जब किसी अनजान जिस्म का एहसास हुआ तो वो अपना सर उठाने लगा| अब अगर करुणा मुझे और 'उसे' देख लेती तो उसे लगता की मैं कोई ठरकी आदमी हूँ जिसे अपने ऊपर काबू ही नहीं! अपनी इज्जत बचाने के लिए मैंने अपने दोनों हाथों को बर्थ पर रखा और दोनों हाथों पर वजन डाल कर अपनी कमर को पीछे खींचा जिससे करुणा का सर खिसक कर थोड़ा नीचे हो गया| करुणा के सर और मेरे 'उसके' बीच दूरी आई और मैंने अपने मन को शांत करने के लिए लम्बी-लम्बी सांसें लेना शुरू कर दिया, तब कहीं जा कर 'वो' शांत हुआ!

कुछ देर बाद हमारी कोच जो की पूरी खाली थी और जिसकी सारी लाइट्स मैंने बंद कर रखी थीं ताकि अगर कोई देखे तो लगे की ये कोच locked है, उसमें एक आदमी घुसा उसने हमारे पीछे वाली सीट की लाइट जलाई| रौशनी होते ही मैंने पीछे पलट कर देखा तो वो आदमी आमने-सामने वाली बर्थ पर पैर फैला कर बैठा हुआ था| उसकी नजर पहले मुझ पर पड़ी और फिर करुणा पर, उसने भोयें सिकोड़ कर हमें देखा पर बोला कुछ नहीं| कुछ देर पहले जहाँ में सुकून से बैठा था, वहीं अब मेरा दिमाग डर के मारे तेजी से काम करने लगा था|

इधर करुणा का ठंड से बुरा हाल था, वो ठंड से काँपने लगी थी! ठंड के मारे उसकी आँख खुल गई और उसने दबी हुई आवाज में मुझसे कहा;

करुणा: मिट्टू.... आपका body कितना गरम है.... आप मेरा back (पीठ) rub कर रे तो मुझे ठंड कम लगते!

मैं करुणा की हालत समझ सकता था पर मेरा मन मुझे ऐसा करने से रोक रहा था, साला मन में कहीं भौजी के लिए प्यार दबा हुआ था जो अब भी मुझे रोके हुए था| 'She needs help!' दिमाग बोला तो मन करुणा की पीठ छूने के लिए मान गया, मैंने काँपते हुए अपने दाएँ हाथ से उसकी पीठ को छुआ तो सबसे पहले मेरी उँगलियों को उसकी ब्रा का स्ट्राप महसूस हुआ, मैंने घबरा कर एकदम से अपना हाथ पीछे खींच लिया| करुणा ने एकदम से मेरी ओर देखा और मेरे चेहरे पर आये घबराहट के भाव देख कर बोली;

करुणा: क्या हुआ मिट्टू?

अब मैं उसे क्या कहता इसलिए मैंने नकली मुस्कराहट लिए हुए न में गर्दन हिलाई|

करुणा को रौशनी का एहसास हुआ तो उसने उठ कर पीछे देखा तो पाया एक आदमी लेटा हुआ है और अपने फ़ोन में कुछ देख रहा है| उसे देख करुणा ने डरी हुई आँखों से मुझे देखा, जब करुणा उस आदमी को देख रही थी तब मैंने अपने चेहरे के हाव-भाव बदल लिए थे, इसलिए जब करुणा ने डरी हुई आँखों से मुझे देखा तो उसे मेरे चेहरे पर होंसले के भाव दिखे जिन्हें देख वो चिंतामुक्त हो कर फिर लेट गई| इधर मैंने हिम्मत कर के अपने दाएँ हाथ से दुबारा उसकी पीठ को छुआ और अपने हाथ को उसके ब्रा के स्ट्रैप्स से काफी ऊपर धीरे-धीरे फेरने लगा| पता नहीं मेरे हाथ फेरने का क्या असर हुआ, लेकिन करुणा फिर से चैन से सो गई! वहीं अब ठंड मुझ पर थोड़ा-थोड़ा असर दिखाने लगी थी, मेरे शरीर में झुरझुरी उठने लगी थी! मुझे लग रहा था की किसी भी वक़्त मेरी छींकें शुरू हो जाएँगी, अगर छींकें शुरू होतीं तो मेरी हालत बिगड़ती फिर न तो मैं खुद को संभाल पाता और न ही करुणा को! वो तो भगवान की कृपा थी की छींकें काबू में रहीं और तबियत खराब नहीं हुई|

लेकिन प्यास से मेरा गला सूखने लगा था, स्टेशन आया तो था पर करुणा को छोड़कर जाता कैसे?! कल रात से सो न पाने की वजह से बहुत जोर से नींद आ रही थी, पर करुणा की सुरक्षा करनी थी सो आँखें बंद नहीं हो रहीं थी| वहीं मुझे ट्रैन के AC पर भी बहुत गुस्सा आ रहा था, गुस्से से जल रहा दिमाग कह रहा था की आज के बाद कभी AC में सफर नहीं करूँगा! जल्दी से जयपुर आये तो मैं इस ठंडे बर्फ के गोदाम से बाहर निकलूँ, पर जयपुर अभी दूर था, मैंने अंदाजा लगाया की कम से कम सुबह के 2-3 बजे से पहले जयपुर नहीं आने वाला था| उधर करुणा चैन से सो रही थी, अब मैंने वही किया जो मैं अक्सर बोर होने पर करता था, मैंने अपने दिमाग के प्रोजेक्टर में नेहा की यादों की रील लगाई और गाँव में नेहा के संग बिताये दिनों को याद करने लगा| मेरी प्यारी बिटिया अबतक 8-9 साल की हो गई होगी, जाने कैसे दिखती होगी? जाने कौन सी क्लास में होगी और उसे अब कौन स्कूल ले जाता होगा? क्या उसे मैं याद हूँगा? क्या वो मुझे याद करती होगी? ये सारे सवाल एकदम से मुझे घेर कर खड़े हो गए| नेहा मेरी जिंदगी का वो हिस्सा था जो मेरे दिल के बहुत करीब था, मैं उस मासूम सी बच्ची को अपनी बेटी मान चूका था और उसके पास जाने को बहुत तड़पता था, पर उसकी माँ के कारन मैं उस निर्दोष को खुद से दूर रख कर खुद को सजा दे रहा था| कई बार मन में ख्याल आया की मैं गाँव जा कर उसे अपने साथ दिल्ली ले आऊँ और जिद्द कर के ही सही पर उसे गोद ले लूँ! लेकिन जानता था की इस सब के लिए एक तो बहुत देर हो चुकी थी और दूसरा कोई इसके लिए राजी नहीं होगा! नजाने कितनी ही गालियाँ देने का मन किया उस इंसान को जिस के कारन मैं ये तड़प महसूस कर रहा था, पर उसके लिए शायद अब भी कहीं प्यार था जो मेरे मुँह से वो गालियाँ बाहर नहीं आने दे रहा था!

खैर रात बीतने लगी और वो जो आदमी पीछे की बर्थ पर लेटा था वो चुपचाप लेटा रहा, सुबह के 2 बजे ट्रैन जयपुर पहुँची| मैंने करुणा का बाजू पकड़ कर उसे उठने को कहा, वो आँखें मलते हुए उठी और अधखुली आँखों से मुझसे बोली;

करुणा: जयपुर आ गए?

मैं: हाँ! (आह!)

मैं धीरे से कराह उठा क्योंकि इतनी देर एक ही आसन में बैठने से मेरी दोनों टांगों में खून रुक सा गया था, मैंने फटाफट जूते पहने और तब मेरा ध्यान मेरी जीन्स पर गया जो थोड़ी सी गीली हो गई थी क्योंकि नींद में करुणा के मुँह से लार बह कर उस पर गिर गई थी! ये देख कर करुणा झेंप गई पर मैंने किसी तरह उसे embarrass नहीं होने दिया और सामान ले कर जल्दी से नीचे उतर गया| ट्रैन से बाहर आते ही बाहर का मौसम अंदर के मुक़ाबले उलट था, यहाँ गर्मी और उमस थी जिसने ठंड से काँप रहे बदन को गर्मी दी थी| मेरी नजर प्लेटफार्म पर बनी दूकान पर पड़ी और मैंने सबसे पहले दो बोतल पानी ली| एक बोतल मैंने करुणा को दी और दूसरी वाली मैं मुँह से लगा कर एक साँस में खींच गया! पूरी बोतल पीने के बाद मेरी प्यास को चैन मिला, फिर हम बाहर आये और साइकिल रिक्शा किया| रिक्षेवाले भैया को मैंने कहा की वो कोई ठीक-ठाक होटल ले जाए जहाँ हमें 1000-1200/- रुपये में कमरा मिल जाए| पिछलीबार हम जहाँ रुके थे उस होटल का नाम-पता मुझ याद नहीं था और न ही मुझमें अभी इतना सब्र था की मैं उसे ढूँढने में माथा-पच्ची करूँ, मुझे चाहिए था एक अच्छा होटल जहाँ मैं पसर कर सो सकूँ! रास्ते में एक 24/7 दवाई की दूकान पड़ी तो करुणा ने मुझे कहा की उसे pads लेने हैं, मैंने रिक्शे वाले को एक मिनट रुकने को कहा तो वो रुकने का कारन पूछने लगा, "दवाई लेनी है!" मैंने उबासी लेते हुए कहा| पर इस ससुर को कुछ ज्यादा ही चुल्ल थी, वो बोला; "भैया आप कहो तो आगे एक अस्पताल है, वहाँ ले चलूँ?!"

"नहीं भाई! बस सर दर्द की दवाई लेनी है!" मैंने नींद पूरी न होने के कारन चिढ़ते हुए कहा|

करुणा को गए हुए 5 मिनट हो गए थे और मुझे उसकी चिंता हो रही थी, मैं उतरने वाला ही हुआ था की करुणा आ गई| उसने मेरे चेहरे पर चिंता देख ली थी, सो वो मुस्कुरा कर बोली; "मेरा ब्रांड नहीं मिल रहा था!" ये कहकर वो हँसने लगी| मैं समझ गया की कल शाम को मैंने जो बेवकूफी भरी बात कही थी ये उसी का मजाक बना रही है इसलिए मैं शर्म से लाल हो कर खामोश रहा|

खैर हमें ठीक-ठाक होटल मिल गया, check in कर के मैं तो कपडे बदल कर लेट गया क्योंकि मेरे लिए अब जागना नामुमकिन था! मुझे कुछ होश नहीं था की मेरे सोने के बाद करुणा ने क्या किया और वो कब लेटी!

अगली सुबह मेरी आँख जल्दी खुल गई, मैंने घडी देखि तो मैं बस 4 घंटे सो पाया था! अब अगर मैं दुबारा सोता तो हमें उठाने वाला कोई नहीं था, इसलिए मैं उठ कर बैठ गया| मैंने ब्रश किया और टीवी चालु कर दिया, टीवी पर कोई गाना आ रहा था जिसे सुन कर करुणा भी जाग गई| मैं फेसवाश करने जा रहा था की करुणा उठ कर बैठ गई और मुझसे बोली;

करुणा: मिट्टू आप थोड़ा और सो लो, आप दो दिन से ठीक से सोया नहीं!

मैं: अगर मैं सो गया तो हम ऑफिस जाने में लेट हो जायेंगे|

मैं बाथरूम में घुसने वाला था की करुणा बोली की उसे पहले जाना है, तो मैं वापस पलंग पर बैठ गया और कार्टून देखने लगा| करुणा फ्रेश हो कर आई और हँसते हुए मुझसे बोली;

करुणा: मिट्टू कल जब मैं आपको pads के बारे में बोला तो आप shocked क्यों ता?

उसका सवाल सुन मैं फिर कल की ही तरह हैरान आँखें फाड़े उसे देखने लगा| जब मैं कुछ न बोला तो करुणा ने मुझे छेड़ना शुरू कर दिया;

करुणा: आप कभी pads देखा नहीं क्या?

उसने हँसते हुए कहा तो मेरी गर्दन स्वतः ही न में हिलने लगी| ये देख कर वो खूब खिलखिलाकर हँसी, उसकी ये हँसी देख मुझे बहुत शर्म आ रही थी और मेरे दोनों कान शर्म से सुर्ख लाल हो गए थे| मैं करुणा से नजर बचाते हुए बाथरूम में घुसा और वाशबेसिन के सामने खड़ा हो कर फेसवाश चेहरे पर लगाया| मैं मुँह धोने ही जा रहा था की करुणा बाथरूम का दरवाजा खोल कर मेरे पीछे मसुकुराते हुए खड़ी हो गई, उसके हाथों में कुछ था जो उसने अपने पीछे छुपा रखा था|

करुणा: मिट्टू..... आप कभी sanitary pad नहीं देखा न??? .... मैं आपको आज दिखाते....!

ये कहते हुए उसने एक सफ़ेद कलर का कागज मेरी आँखों के आगे खोलना शुरू किया, इधर मैं उसकी बात और अपने सामने sanitary pad का पैकेट खुलने को लेकर थोड़ा घबरा गया था! पैकेट खुला और करुणा वो pad मुझे दिखाते हुए बोली;

करुणा: देखो मिट्टू...कितना soft है....!

करुणा ने उस pad पर अपनी ऊँगली फिराते हुए कहा| वहीं मैं जिंदगी में पहली बार sanitary pad अपनी आँखों के सामने देख कर सन्न था! ये मेरे लिए एक अनोखी चीज थी और अनोखी चीज देख कर मनुष्य को उसको छूने का मन अवश्य करता है परन्तु मैं उसे छूने की हिम्मत नहीं जुटा पा रहा था| उसे देख कर ही पता लग रहा था की वो बहुत मुलायम होगा, पर उसे छूने से डर लग रहा था|

करुणा: Touch कर के देखो मिट्टू?!

ये कहते हुए करुणा ने वो pad मेरी ओर बढ़ा दिया, अब ये देख कर मैं बिलकुल हक्का-बक्का था! करुणा इसे इतना सरलता से ले रही थी मानो कोई आम बात हो! लड़कियों के बीच में क्या ये आम बात होती है?! मेरे ख्याल से तो नहीं!

मैं: पागल लड़की!

मैंने उसे प्यार से डाँटते हुए कहा तो करुणा खिलखिलाकर हँसने लगी| किसी तरह मैं और शर्म से पानी-पानी होने से बच गया था|

दोनों तैयार हुए, फिर मैंने ढंग का नाश्ता मँगाया ताकि कुछ अच्छा खाने को मिले और फिर हम ऑफिस पहुँचे| ऑफिस पहुँच कर पता चला की लाल सिंह जी और भंवर लाल जी दोनों ही ऑफिस में नहीं हैं, मैंने थोड़ी पूछताछ की तो पता चला की वे दोनों किसी मीटिंग के लिए गए हैं और कुछ देर में आएंगे| अब हमें बस इंतजार करना था, इतने में वहाँ एक चपरासी आंटी आईं और उन्होंने हमें बताया की केरला की रहने वाली एक मैडम नीचे काम करती हैं| मैंने इस बात को तवज्जो नहीं दी पर करुणा के मन में एक मल्लू मित्र से मिलने की आस जग गई, उसने मुझे कहा की नीचे चल कर उनसे मिल लेते हैं क्या पता कोई मदद ही कर दें! हम दोनों नीचे आये और वहाँ postal विभाग के कमरे में पहुँचे, वहाँ एक 35-40 साल की एक महिला बैठीं थीं जो देख कर south indian लग रहीं थीं| उन्होंने जैसे ही करुणा को देखा वो उससे मलयालम में बात करने लगीं, इधर करुणा भी ख़ुशी-ख़ुशी उनसे मलयालम में बात करने लगी| करुणा ने मलयालम भाषा में ही मेरा परिचय उनसे अपने best friend के रूप में कराया| करुणा ने जब उन्हें ये बताया की मुझे मलयालम नहीं आतीं तो उन्होंने हिंदी में मुझसे बात करनी शुरू कर दी| वो मुझसे तरह-तरह के सवाल पूछने लगीं, जैसे की मैं कहाँ से हूँ, क्या करता हूँ, शादी हुई या नहीं आदि| मुझसे बातों में उनका ऐसा मन लगा की वो करुणा को लगभग भूल ही गईं, जिससे करुणा का मुँह डब्बे जैसा बन गया! मैंने उसका ये डब्बे जैसा मुँह देखा तो मैंने उन मैडम का ध्यान करुणा की joining की तरफ मोड़ा और उन्हें सारी बात बताई| मैंने सोचा की क्यों न जबतक लाल सिंह जी आयें तब तक हम एप्लीकेशन लिख कर तैयार कर लें, तो मैंने उन्हीं मैडम से मदद माँगीं की वो हमारी एप्लीकेशन लिख दें| "मुझे हिंदी पढ़ना आता है, लिखना नहीं!" वो हँसते हुए बोलीं| मैंने सोचा की पिछली बार जिनसे लिखवाया था उन्हीं से लिखवा लेता हूँ पर वो लड़का आज नहीं आया था! मजबूरन मुझे ही एप्लीकेशन लिखनी थी, मैंने मैडम से दो सफ़ेद कागज लिए| मेरी लिखावट गन्दी थी इसलिए मैंने एक कागज पर application का rough draft लिख दिया और करुणा को उसे अच्छे से सुंदर तरीके से copy करने को कहा| जबतक करुणा कॉपी कर रही थी मैं हाथ बाँधे खड़ा था, उन मैडम ने मुझे प्यार से छेड़ते हुए कहा; "अरे मिस्टर दिल्ली, खड़े क्यों हैं? बैठ जाइये!" ये सुन मैं हँस पड़ा पर करुणा दाँत पीसते हुए मुझे देखने लगी| उसके चेहरे पर आया गुस्सा मैडम नहीं देख पाईं पर मैं देख कर समझ गया की करुणा को जलन हो रही है!

खैर करुणा ने पूरी application अच्छे से लिख कर तैयार कर दी, ठीक तभी लाल सिंह जी कुछ काम से नीचे आये और हमें देखते ही हैरान हुए| मैंने उन्हें सारी बात बताई और अपना एक एहसान लादने के लिए उन मैडम ने लाल सिंह जी से हमारी सिफारिश की; "लाल सिंह जी इनकी मदद कर दीजिये!" लाल सिंह जी हम दोनों को ले कर ऊपर आये, मैंने उन्हें हमारी लिखी हुई application दी जिसमें हमने सारे documents तैयार करने के लिए 1 महीने का वक़्त माँगा था| लाल सिंह जी ने बताया की ये application भंवर लाल जी द्वारा मंजूर होगी तभी हम जा सकते हैं, अब भंवर ला जी थे मीटिंग में जो 2 बजे तक चलनी थी| अब तब तक यहाँ बैठ कर बोर होने से अच्छा था की थोड़ा सैर-सपाटा किया जिससे करुणा का मूड भी ठीक हो जाए, कल से बेचारी परेशान थी, पहले मामा जी की मृत्यु, फिर नौकरी में अड़ंगा, फिर ट्रैन में ठंड से ठिठुरना!

मैं: सर अगर कोई दिक्कत न हो तो तबतक हम थोड़ा घूम आयें?

लाला सिंह जी: हाँ-हाँ! यहाँ रह कर भी तुम क्या करोगे?!

हम उनसे इजाजत ले कर निकले और बाहर से हवा महल के लिए ऑटो किया| जब मैं छोटा था तब पिताजी और माँ के साथ हवा महल और जल महल घूमा था, आज फिर वहाँ जा कर वही यादें ताजा होने वाली थीं| ऑटो चल पड़ा और इधर करुणा मेरे से सट कर बैठ गई, उसने मेरा दाहिना हाथ अपने दोनों हाथों से पकड़ लिया मानो मैं उसे छोड़कर कहीं जा रहा हूँ, साथ ही उसने अपना सर मेरे दाहिने कँधे पर रख दिया|

मुझे अब करुणा की छुअन की धीरे-धीरे आदत हो रही थी, इसलिए मैंने उसे कुछ नहीं कहा और चुपचाप बैठा रहा, पर अगले ही पल उसने कुछ ऐसा कहा जिसने मेरे मन में सवाल पैदा कर दिए|

"आप जिसका husband होते वो दुनिया का सबसे lucky wife होते!" करुणा भावुक हो कर बोली|

ये सुन कर मेरे मन में कोहराम छिड़ गया, दिमाग में बम फूटने लगे और दिल घबराने लगा! 'कहीं करुणा मुझसे प्यार तो नहीं करने लगी? अगर नहीं कर रही होती तो वो ये क्यों कहती?!' दिमाग में उठा कोतुहल शांत नहीं हो रहा था पर मन कह रहा था की; 'ऐसा कुछ नहीं है, उसने बस तेरी तारीफ की है| तू ज्यादा मत सोच और कुछ ऊल-जुलूल बोल कर इस दोस्ती का सत्यानाश मत कर! कम से कम उसकी नौकरी लगने तक तो शांत रह!' मन की बात सही थी, अगर मैं गलत साबित होता तो बेइज्जत्ती हो जाती इसलिए मैं खामोश रहा|

कुछ देर बाद हम हवा महल के पास उतरे, वहाँ लगी मार्किट को देख कर करुणा का मन वहाँ घूमने का करने लगा| हमने वहाँ पर कुछ दुकानें देखीं जहाँ पर artificial jewelry मिल रही थी| हमेशा से ही करुणा को झुमके खरीदने का शौक था, उसकी पतली लम्बी गर्दन पर झुमके बहुत फबते थे! करुणा ने मेरा हाथ पकड़ा और मुझे वहाँ खींच कर ले गई, एक-एक कर उसने झुमके try करने शुरू किये और हर झुमके को पहन कर वो मुझसे पूछती की ये कैसा है?! उसके चेहरे पर आई वो प्यारी सी मुस्कान मुझे बहुत अच्छी लगती थी, इसलिए मैं मन लगा कर उसे झुमके पसंद करने में मदद करने लगा| आखिर मैं मैंने एक बड़ा ही दिलकश झुमका ढूँढ कर निकाला, जिसे देखते ही करुणा की आँखों में ख़ुशी झलकने लगी, उसने जल्दी से उसे try किया और मुझे दिखाते हुए बोली; "मिट्टू...आप इतना अच्छा चीज कैसे ढूँढ़ते!" उसकी मुस्कराहट देख कर दिल गदगद हो गया और मैं उसके सवाल के जवाब में बस मुस्कुरा कर रह गया|

वो झुमका 800/- का था पर करुणा की उस मुस्कान के आगे कम था, मैंने पैसे दिए और हवा महल घूमने की टिकट लेने लगा| हवा महल के भीतर आ कर हम घूमने लगे और बहुत सारी फोटो खींचने लगे, इन सभी फोटो की एक ख़ास बात थी, वो ये की ये सभी फोटो selfie थीं जिसमें मैं और करुणा दोनों एक दूसरे के बहुत नजदीक थे| मुझे उसकी ये नजदीक अब अजीब नहीं लगती थी, क्योंकि मैं अपनी स्वेच्छा से उसे अपने नजदीक आने दे रहा था| घुमते-घुमते हम हवा महल में ऊपर पहुँचे और वहाँ से तसवीरें खींचने लगे, तभी करुणा एकदम से उदास हो गई, शायद उसे उसके मामा जी की याद आ गई थी| उस वक़्त वो मेरी एक फोटो ले रही थी जब मैंने उसके हाथ से अपना फ़ोन लिया और उसका ध्यान अपने ऊपर केंद्रित करते हुए बोला;

मैं: Dearrrrr ..... आप ऐसे उदास होते हो न...तो ...मुझे अच्छा नहीं लगता.....I know you must be missing mama जी but he's somewhere .and must be watching you from there.. Just imagine how he'd be feel seeing you so upset?! AND if you're worried about your job, I take that repsonisibility to get you this job. Now relax and smile for me!

मैंने प्यार से करुणा को समझाते हुए कहा| मेरी बातों का असर हुआ और करुणा के चेहरे पर एक मीठी सी विश्वास पूर्ण मुस्कान आ गई| उसने मुझसे फ़ोन लिया और हम दोनों की एक प्यारी सी selfie ली, उसे मुस्कुराते हुए देख मैं बेफिक्र हो गया|

हवा महल से निकल कर हम जल महल की ओर निकले, हमने ऑटो किया था और ऑटो में बैठे हुए करुणा ने फिर से मेरा दाहिना हाथ अपने दोनों हाथों के बीच पकड़ लिया तथा अपना सर मेरे कँधे पर रख दिया|

करुणा: वो.... आपको कैसे देख रा ता.... कैसे बात कर रा ता....?

करुणा गुस्से से दाँत पीसते हुए बुदबुदाई| उसकी ये बुदबुदाहट सुन मैं हैरान हुआ और गर्दन मोड़ कर उसे देखने लगा तो पाया की करुणा की आँखें पहले से ही मुझ पर टिकी हुई हैं| मेरी आँखों में सवाल थे की आखिर करुणा किस की बात कर रही है:

करुणा: वो औरत....ऑफिस वाला.... आप मेरा फ्रेंड है...और मेरे से बात करना छोड़ कर उससे क्यों बात कर रहा था?

करुणा की आवाज में जलन मैं साफ़ महसूस कर सकता था और इस जलन को महसूस कर मुझे हँसी आ रही थी|

मैं: मैंने क्या किया? वो खुद मुझसे बात कर रही थी!

मैंने अपनी सफाई दी|

करुणा: आपको क्या बोल रे..... हाँ ...मिस्टर दिल्ली.... हिम्मत तो देखो उसका....मेरा मिट्टू को मेरा सामने praise कर रे!

करुणा तुनक कर गुस्से से बोली|

करुणा: आप मेरा फ्रेंड है, समझा? मैं किसी के साथ आपको शेयर नहीं करते!

करुणा गर्व से बोली| पर तभी उसे एहसास हुआ की कहीं मैं उसकी बात का कोई गलत मतलब न निकालूँ इसलिए उसने बात कुछ इस तरह से मोड़ दी की मैं हँस पड़ा;

करुणा: मैं उसका state से है....मलयाली मैं है....मेरे को छोड़ कर आपको बात कर रे? ये ठीक है क्या?

उसकी एक राज्य (केरला) से होने की बात सुन कर मैं जोर से हँस पड़ा और उधर करुणा प्यार भरे गुस्से से मुझे देखने लगी|

खैर हम जल महल पहुँचे और वहाँ बाहर कुछ लोग प्लेट में मछलियों के खाने के लिए आटें की गोलियाँ बेच रहे थे| हमने वो आटें की गोलियाँ नहीं ली, बल्कि सीधा सीढ़ियों से उतर कर पानी के पास खड़े हो गए| वहाँ कुछ लोग मछलियों को वो गोलियाँ खिला रहे थे, ये देख कर मुझे याद आया की एक बार एक पंडित जी ने पिताजी से कहा था की मछलियों को खाना खिलाना पुण्य का काम होता है| ये पल याद आते ही मन में पुण्य करने की तीव्र इच्छा हुई, अपने लिए नहीं बल्कि करुणा के लिए ताकि उसे ये नौकरी जल्दी से जल्दी मिल जाए|

एक बूढी अम्मा से मैं एक प्लेट आटें की गोलियाँ ले आया, हम दोनों ने एक-एक कर गोलियाँ पानी में फेकने लगे| हम जहाँ भी गोली फेंकते वहाँ एक-दो मछलियाँ मुँह बाय आ जातीं, करुणा मछलियों को देख कर ख़ुशी से चहकने लगी और मुझे इशारे से बार-बार बताती की; "मिट्टू ...वो देखो...वो देखो...fish-fish ...!" उसका यूँ मछली देख कर बच्चों की तरह खुश हो जाना, ये दृश्य देख कर मेरे दिल में एक तरंग उठने लगी थी|

लेकिन जब मुझे उसकी ख़ुशी का असली कारन पता चला तो मेरे चेहरे पर जोरदार हँसी आ गई!

करुणा: मिट्टू...इतना सारा fish देख के मेरा मन सब को खाने का कर रे!

करुणा ख़ुशी से कूदते हुए बोली| उसकी बात सुन कर मैं पेट पकड़ कर हँसने लगा, मुझे यूँ हँसता हुआ देख करुणा की भी हँसी छूट गई|

मैं: पागल मैं इधर मछलियों को खाना खिलाकर पुण्य कमा रहा हूँ ताकि आपको ये job जल्दी मिले और आपको ये ही मछलियाँ खानी हैं? दुष्ट....पापन....!

ये कह कर मैं गला फाड़ कर हँसने लगा, उधर मेरी बात सुन करुणा भी हँसने लगी! अब वो थी तो south indian और वहाँ के लोगों को पसंद होती है मछली तो इसमें उस बेचारी की क्या गलती! खैर मैं जान गया था की करुणा को मछलियाँ देखना और खाना बहुत पसंद है तो मैंने उसकी ख़ुशी के लिए प्लेट में मौजूद सारी आटों की गोलियाँ एक साथ हवा में उछाली| सारी गोलियाँ एक साथ पानी में गिरीं और वहाँ ढेरों मछलियाँ एक साथ इकठ्ठा हो गईं, मछलियों का झुण्ड देख कर करुणा का चेहरा किसी सूरजमुखी की तरह खिल गया!

करुणा: मिट्टू....मिट्टू....ये सब देख के मेरा मन पानी में कूद कर सबको पकड़ने का कर रे!

करुणा हँसते हुए बोली|

हम कुछ देर वहाँ खड़े रहे और हँसते रहे और बात करते रहे, करुणा जल महल के अंदर जाना चाहती थी पर वहाँ जाना मना था इसलिए हम अंदर जा नहीं पाए| हमने वहीं खड़े-खड़े ढेर सारी तसवीरें खींची, कुछ मेरी, कुछ करुणा की और हम दोनों की तो ढेर सारी selfies! जैसे ही हम चलने को हुए तो करुणा बोली की उसे एक अच्छे angle पर मेरे अकेले की फोटो लेनी है जो मैं facebook पर डाल सकूँ| करुणा ने मुझसे 2-4 अच्छे pose बनवा कर पहले तो फोटो खींची, अंत में उसने मुझे शारुख खान की तरह हाथ फैला कर खड़ा होने को कहा| मुझे लगा की उससे अच्छी फोटो आएगी तो मैं वो pose ले कर खड़ा हो गया, ऐसे खड़ा होने से मुझे थोड़ा अजीब लग रहा था और हँसी आ रही थी| तभी करुणा अचानक से मेरे नजदीक आई और कस कर अपनी बाहें मेरी पीठ के इर्द-गिर्द लपेट कर मेरे सीने से लग गई!

[color=rgb(51,]जारी रहेगा भाग 7(6) में...[/color]
 

[color=rgb(65,]इक्कीसवाँ अध्याय: कोशिश नई शुरुआत की[/color]
[color=rgb(251,]भाग -7 (6)[/color]

[color=rgb(44,]अब तक आपने पढ़ा:[/color]

जैसे ही हम चलने को हुए तो करुणा बोली की उसे एक अच्छे angle पर मेरे अकेले की फोटो लेनी है जो मैं facebook पर डाल सकूँ| करुणा ने मुझसे 2-4 अच्छे pose बनवा कर पहले तो फोटो खींची, अंत में उसने मुझे शारुख खान की तरह हाथ फैला कर खड़ा होने को कहा| मुझे लगा की उससे अच्छी फोटो आएगी तो मैं वो pose ले कर खड़ा हो गया, ऐसे खड़ा होने से मुझे थोड़ा अजीब लग रहा था और हँसी आ रही थी| तभी करुणा अचानक से मेरे नजदीक आई और कस कर अपनी बाहें मेरी पीठ के इर्द-गिर्द लपेट कर मेरे सीने से लग गई!

[color=rgb(255,]अब आगे:[/color]

"Thank you so much मिट्टू! आप मेरे लिए आज इतना सब किया, ताकि मैं वापस sad न हो जाऊँ! आप मेरा इतना ख्याल रखा, मुझे protect कर के रखा, मेरा इतना care किया, उसका लिए आपको बहुत सारा thank you!" करुणा भावुक हो कर बोली|

उसके मेरे गले लगते ही मेरा दिल बहुत जोर से धड़कने लगा, जिस दिल को भौजी ने तोड़ दिया था, जिस दिल से भौजी ने प्यार का आखरी कतरा तक निचोड़ लिया था आज फिर वही दिल जोर से धड़कने लगा था! इतने सालों में ये पहली बार था की भौजी के अलावा किसी पराई स्त्री ने मुझे इस तरह छुआ हो, ऐसी छुअन जो जिस्म पर नहीं बल्कि सीधा दिल को छू गई थी!

पर ये मन.....ये ससुरा किसी और को अपने करीब लाने से डरता था, घबराता था की; 'अगर फिर दिल टूट गया तो क्या होगा? जिसे दिल से इतना चाहा, अपनी पत्नी माना जब उसने मुझे अपने जीवन से निकाल फेंका, तो करुणा को मैं जानता ही कितना हूँ? कल को उसकी नौकरी लग जायेगी तो कौन कहाँ मिलता है? फिर ये मत भूल की उम्र, धर्म, रंग और उसकी बेवकूफियाँ!' मन की ये बेसर-पैर की बात सिर्फ और सिर्फ मुझे रोकने के लिए थीं ताकि मैं करुणा के प्यार न पड़ जाऊँ| दिमाग ने मन की बात सुनी और मेरे दिल को पकड़ कर बैठ गया ताकि वो करुणा के प्यार में न बह जाए, लेकिन मेरा दिल उस ओस की बूँद की तरह था जो ज़रा सा प्यार मिलते ही बह जाता था! दिमाग की लाख कोशिशों के बाद भी मेरे दोनों हाथ स्वतः ही चलने लगे और उन्होंने करुणा की पीठ के इर्द-गिर्द पकड़ बना ली| मेरे हाथों की गर्मी पा कर करुणा ने मुझे और कस कर अपनी बाहों में जकड़ लिया, इससे पहले की मैं कुछ बोलता करुणा ने एकदम से मुझे अपनी पकड़ से आजाद कर दिया| उसकी पकड़ छूटते ही मैंने भी अपने दोनों हाथों को उसकी पीठ से हटा लिया|

करुणा के चेहरे पर पहले जैसी मुस्कान थी जिसे देख कर मेरे दिल को सुकून मिलता था|

मैं: Dear that was.unexpected!

मैंने बात शुरू करते हुए कहा|

करुणा: बस आज ऐसे ही....मन किया आपको hug करना!

करुणा शर्माते हुए बोली|

मैं: अगर पहले बता रे तो मैं अच्छे से hug करता!

मैंने करुणा को छेड़ते हुए कहा|

करुणा: मैं कोई भी काम बता कर नहीं करते!

करुणा ने गर्व से अपनी गर्दन ऊँची करते हुए कहा|

मैं: कहने से भी कौन सा काम करते हो आप?!

मैंने करुणा का मजाक उड़ाते हुए कहा, जिसे सुन करुणा प्यारभरे गुस्से से मुझे देखने लगी|

हम वापस ऑफिस पहुँचे और सीधा लाल सिंह जी के सामने खड़े हो गए, उन्होंने हमें बताया की भंवर लाल जी हम से मिलना चाहते हैं| उनका नाम सुनते ही करुणा डर गई, वो जान गई थी की भंवर लाल जी से उसे डाँट पड़ेगी| हम दोनों बारी-बारी से भंवर लाल जी के कमरे में घुसे और हमारे पीछे ही लाल सिंह जी घुसे जिन्होंने हमारी application भंवर लाल जी की ओर सरका दी| Application देखते ही उन्होंने हम दोनों को जम कर डाँट लगाई की हम कितने लापरवाह हैं की joining के letter को ठीक से पढ़ा तक नहीं! मैंने उनसे माफ़ी माँगी और उन्हीं विश्वास दिलाया की आगे उन्हें कोई शिकायत का मौका नहीं दूँगा| खैर उन्होंने हमारी application पर दस्तखत किये और हम वापस होटल पहुँचे| हमारी दिल्ली की बस रात 10 बजे की थी और उसकी बुकिंग अभी नहीं हो सकती थी, इसलिए हमें बस स्टैंड 8 बजे तक पहुँचना था, तब तक आराम करने के लिए हम होटल में ही रुके रहे| मैंने टीवी चालु किया और पीठ टिका कर पलंग पर बैठ गया, तभी करुणा ने अपने पर्स से पैसे निकाले और मुझे देने लगी| उसके पास इतने पैसे देख कर मुझे हैरानी हुई, जब मैंने उससे पुछा की ये कहाँ से आये तो उसने बताया की उसकी दीदी ने दिए थे ताकि अभी तक मैंने जो पैसे खर्च किये थे वो मुझे लौटाए जा सकें| दिल्ली से श्री विजयनगर तक की बस टिकट के पैसे मैंने दिए थे, फिर करुणा के दीदी और जीजा की वपसी की बस टिकट भी मैंने कराई थी| मैंने करुणा को सारा हिसाब लिख कर दिया और उतने ही पैसे लिए जितने खर्च हुए थे|

मैंने ध्यान दिया तो पाया की करुणा के पर्स में सब पैसे बिखरे हुए पड़े थे, इन कुछ सालों में मुझे अपनी चीजें arrange कर के रखने की आदत पड़ गई थी इसलिए जब मैंने करुणा के पर्स की ऐसी हालत देखि तो मुझे बड़ा अजीब लगा| मैंने करुणा का पर्स ठीक करने के लिए उससे उसका पर्स माँगा, पहले सारा पर्स खाली किया तो उसके पर्स में मुझे tooth pick से ले कर ear bud तक सब कुछ मिला! पहले तो मैं बहुत हँसा और मुझे यूँ अपना मजाक उड़ाते देख करुणा प्यार भरे गुस्से से मुझे देखने लगी, फिर मैंने सारे नोट सीधे कर के करुणा के पर्स में रखे तथा उसकी Hospital ID को मैंने सबसे आगे रखी ताकि जर्रूरत पड़ने पर वो उसे जल्दी से निकाल सके| अब समय था उसे एक जर्रूरी बात समझाने का;

मैं: Dear अब मैं आपको बहुत जर्रूरी सबक बताने जा रहा हूँ, ये सबक मैंने बहुत पहले सीखा था|

ये कहते हुए मैंने एक 500/- रुपये का नोट लिया और करुणा को दिखाते हुए उसके पर्स में सबसे पीछे रख दिया|

मैं: ये नोट आपकी emergency के लिए है, इसे सिर्फ और सिर्फ emergency में इस्तेमाल करना|

करुणा ने मेरी ये बात बड़े ध्यान से सुनी जो कम से कम कुछ दिनों के लिए तो उसके दिमाग में बैठी रही!

अभी शाम के बस 4 बजे थे और तबतक यहाँ बैठ कर बोर होने से अच्छा था की बाहर से कुछ shopping की जाए| हम दोनों बाहर घूमने निकले, इस पूरे दौरान करुणा मेरी दाहिनी हथेली थामे रही| हम एक दूकान में पहुँचे जहाँ जयपुरी रजाई बेचीं जाती थी, ऐसी रजाई जो सर्दी में गर्माहट देती थी और गर्मी में ठंडक! रजाई और ठंडक सुनने में थोड़ा अजीब लगेगा पर वो रजाई वाक़ई में काम कर रही थी| करुणा को वहाँ नेहरू जैकेट दिखी और उसने वो मेरे लिए खरीदने की जिद्द पकड़ ली, मैंने बहुत कोशिश की उसे मना करने की पर वो नहीं मानी| अब दुकानदार को बेचना था माल तो उसने करुणा के साथ मुझ पर दबाव डालना शुरू कर दिया, जब मैं नहीं माना तो करुणा ने मुँह फुला लिया इसलिए मजबूरन मुझे जैकेट के लिए हाँ करनी पड़ी| मैंने भी करुणा के लिए एक रजाई ले ली ताकि joining के बाद उसे श्री विजयनगर में काम आ सके, यहाँ दिल्ली में तो उसकी दीदी का घर था पर वहाँ उसका ध्यान रखने वाला कोई नहीं था| इधर करुणा ने अपनी दीदी के लिए भी एक रजाई ले ली, सारा सामान ले कर हम होटल पहुँचे| थोड़ी देर आराम कर के, रात का खाना खा कर हम होटल से निकले और बस स्टैंड पहुँचे|

मैंने टिकट ली और हम बस में बैठ गए, बस AC चलने की वजह से बहुत ठंडी थी इसलिए करुणा ठंड से ठिठुरने लगी थी| उसने मेरे दाहिने हाथ को कस कर पकड़ लिया और उसी से लिपट गई| बस चल पड़ी और हेमशा की तरह करुणा चैन से सो गई, सुबह 4 बजे तक तो वो चैन से सोइ| लेकिन सवा चार बजे वो उठ गई और दबी हुई आवाज में से बोली; "मिट्टू...मेरा तबियत ठीक नहीं....मेरे को vomiting वाला फीलिंग हो रे!" करुणा की बात सुन कर मैं घबरा गया और सबसे पहले पॉलीथीन ढूँढने लगा| मैं हमेशा अपने बैग में extra पॉलीथीन रखता था, मैंने वो पॉलिथीन निकाल कर रेडी रखी ताकि अगर करुणा को जर्रूरत पड़े तो वो इस पॉलीथीन में उलटी कर सके| करुणा मेरे दाहिने कँधे पर सर रख कर सो गई और इधर मैं मन ही मन भगवान से प्रार्थना करने लगा की करुणा को उलटी न आये| भगवान का शुक्र है की करुणा को उलटी नहीं आई और हम सही-सलामत दिल्ली पहुँच गए| करुणा की तबियत अब भी खराब थी इसलिए मैंने जल्दी से कैब बुलाई और ड्राइवर को जल्दी चलने को कहा| कैब ड्राइवर ने गाडी ऐसी भगाई की बिना किसी भी सिग्नल पर रुके हम सीधा करुणा के घर पहुँचे|

करुणा का सारा सामान उसके घर के दरवाजे के बाहर रख कर मैं वापस जाने लगा तो करुणा ने मुझे रोक लिया और जबरदस्ती मुझे अंदर आने को कहा| इतने में करुणा का जीजा आ गया और उसने मुझे अंदर आने को कहा| जूते उतार कर मैं अंदर पहुँचा और ऐसे नाटक किया जैसे मैं यहाँ पहलीबार आया हूँ, करुणा मेरी जबरदस्त एक्टिंग देख कर बहुत खुश हुई तथा उसके चेहरे पर एक शैतानी मुस्कान आ गई| सुबह-सुबह का समय था और करुणा का जीजा नाश्ता बना रहा था, उसने मुझे हाथ-मुँह धो कर बैठने को कहा| मैं हाथ-मुँह धो कर जैसे ही बैठक में बैठा की इतने में एंजेल उठ कर मेरे पास आ गई, मुझे देखते ही वो मुस्कुराने लगी और दौड़ कर मेरे पास आ गई| मैंने पहले तो उसे अपने गले लगाया और फिर अपनी गोद में बिठा लिया, एंजेल ने सामने टेबल पर पड़ा पेन देखा तो इशारे से मुझे उसे उठाने को कहा| मैं जान गया की उसे परसों वाला खेल खेलना है, इसलिए मैंने पेन और पेपर दोनों उठाये और एंजेल का हाथ पकड़ कर उसका नाम पेन से लिखवाने लगा| अपना नाम लिखे जाने से एंजेल बहुत खुश थी और चहक रही थी| फिर मैंने उसका हाथ पकड़ कर उसकी मौसी करुणा का नाम लिखवाया और उसे इशारे से समझाने लगा की ये उसकी मौसी का नाम है| तभी करुणा fresh होकर आ गई और हम दोनों को हँसते हुए देख कर वो भी हँसने लगी, मैंने करुणा को वो कागज दिखाया जिसमें मैंने एंजेल से दोनों का नाम लिखवाया था| करुणा ने एंजेल को मलयालम में समझाया की ये उन दोनों का नाम है, इतने में करुणा का जीजा नाश्ता परोस लाया तथा उसने भी पेपर पर लिखा दोनों का नाम पढ़ लिया| उसने मुस्कुराते हुए अपनी बेटी से मलयालम में पुछा की ये नाम उसने लिखे हैं तो एंजेल ने मेरी तरफ इशारा कर दिया की ये नाम मैंने लिखवाये हैं| "अरे वाह!" करुणा का जीजा मेरी तारीफ करते हुए बोला|

करुणा ने एंजेल को अपनी गोदी में लिया और मुझे नाश्ता करने को कहा, मैंने करुणा की तबियत के बारे में पुछा तो उसने बताया की उसे अभी थोड़ा आराम है| करुणा की तबियत के बारे में सुन कर उसके जीजा ने भी थोड़ी हमदर्दी जताई और मुझे बताया की करुणा शारीरिक तौर पर कमजोर है| खैर मैंने अपना ध्यान खाने में लगाया, नाश्ते में करुणा के जीजा ने रोटी सब्जी बनाई थी जो बहुत स्वाद थी| 'आवाज चाहे जैसी हो, पर खाना बहुत स्वाद बनाता है!' मैं मन ही मन बोला| तभी करुणा का जीजा मेरे लिए चाय ले आया और मुझसे पूछने लगा की नाश्ता कैसा है, मैंने भी उसकी अच्छी-खासी तारीफ कर दी जिसे सुन वो बहुत खुश हुआ|

नाश्ता कर के मैं अपने घर पहुँचा, माँ-पिताजी का आशीर्वाद ले कर मैं नाहा-धो कर तैयार हुआ| माँ ने ऑडिट के बारे में पुछा तो मैंने संक्षेप में जवाब दे दिया क्योंकि उनसे ज्यादा झूठ बोलने का मन नहीं था| इधर पिताजी ने बात शुरू कर दी और मुझे बताया की गट्टू की शादी तय हो गई है और अगले महीने ही शादी है| इस शादी के रिश्ते के बारे में पिताजी को कोई खबर नहीं की गई थी, उन्हें तो केवल फ़ोन कर के तरीक बताई गई थी| शादी का नाम सुन कर मैं समझ गया की पिताजी गाँव जाने के लिए कहेंगे, मुझे हो गई थी गाँव जाने से नफरत क्योंकि मुझे भौजी का चेहरा नहीं देखना था|

मैं: मैं नहीं जाऊँगा, आप दोनों चले जाइये!

मैंने गुस्से में सच तो बोल दिया पर अब मुझे अपने गुस्से और सच को छुपाने के लिए बहना मरना था वरना पिताजी इस सच को कुरेदना शुरू कर देते|

मैं: मेरी कुछ दिल्ली की ऑडिट हैं और फिर साइट का काम भी निपटाना है ताकि आप जिस बड़े प्रोजेक्ट के बारे में बता रहे थे वो आराम से शुरू हो सके|

कुछ सेकण्ड्स में इतना बढ़िया बहाना बनाने के लिए मैंने अपने दिमाग को शाबाशी दी पर इसका कोई फायदा नहीं हुआ, उल्टा डाँट और सुननी पड़ी;

पिताजी: तुझे बड़ी चिंता है साइट की? कभी आता भी है साइट पर?

पिताजी के गुस्से को देख माँ को ही बीच-बचाव के लिए उतरना पड़ा;

माँ: अजी ये इसलिए नहीं जाना चाहता क्योंकि वहाँ न तो लाइट-पँखा है और न ही इसका इंटरनेट!

माँ की बात सुन पिताजी शांत होने के बजाए मुझि पर बरस पड़े और मुझे तकनीक आने से पहले जीवन जीने पर अच्छा खासा ज्ञान दे मारा! वो तो शुक्र है की माँ थीं, इसलिए किसी तरह से उन्होंने पिताजी को बातों में लगा कर मुझे बचा लिया वरना पिताजी बहुत झाड़ते!

खैर मैं दुबारा नाश्ता कर के पिताजी के साथ निकला, दिनभर काम संभाला और फिर शाम को दिषु से मिलना है बोल कर गोल हो गया| जब करुणा से मिला तो उसने बताया की उसकी बहन ने उसके पूरे गाँव भर में मेरे चर्चे कर दिए हैं, उसके परिवार में सब मेरे नाम से परिचित हो गए हैं और करुणा की माँ ने तो यहाँ तक कह दिया की करुणा मुझसे शादी कर ले! शादी की बात सुन कर मैं ऐसे डरा मानो मैंने कोई भूत देख लिया हो! इधर करुणा को मेरी टांग खींचने का मौका मिल गया, वो हँसते हुए मुझसे बोली;

करुणा: मिट्टू, आप मेरे को कल्याणम (शादी) करते!

उसका सवाल सुन मेरे मुँह से सीधा न निकला;

मैं: नहीं!

ये सुन कर करुणा प्यार भरा गुस्सा दिखाते हुए मुँह बनाने लगी और बोली;

करुणा: क्यों?

उसका क्यों सुन कर मुझे होश आया, दरअसल मेरे दिल को भले ही प्यार की जर्रूरत थी पर वो सिवाए भौजी के किसी और के पास नहीं जाना चाहता था| इतने साल बाद भी उसे बस भौजी का इंतजार था, उधर मुझे करुणा के सवाल का जवाब देना था तो मैंने थोड़ा मजाक करते हुए करुणा को उसकी गलती से अवगत कराया;

मैं: आपका भरोसा नहीं, सुहागरात में आप बोलो; 'I still love my Ex!'

ये सुन करुणा के चेहरे पर प्यार भरा गुस्सा आ गया और उसने प्यार से मेरे बाएँ बाजू पर घूसा मारा!

असल में करुणा के मन में मेरे लिए बस दोस्तों वाला प्यार था, उसने कभी मुझसे न तो प्यार किया और न ही कभी मुझसे उस प्यार की उम्मीद की थी| मेरा मन भी मुझे करुणा के प्यार में पड़ने से रोक रहा था, उससे प्यार न करने की मेरे पास बहुत सी वजहें थीं और मेरे लिए वो सब वजहें काफी थीं|

खैर 2-4 दिन निकले और मैं उम्मीद करने लगा की करुणा के कागज़-पत्तर बन रहे होंगे इसलिए मैं खामोश बैठा था, पर पाँचवें दिन उसने बताया की उसकी दीदी उसकी कोई भी मदद नहीं कर रही| अब मुझे ही आगे बढ़ कर जिम्मेदारी उठानी पड़ी, मैंने उसे कहा की वो अपनी माँ से कहे की वो उसका मूल निवास पत्र बनवा दें बाकी के सारे कागज़ मैं यहीं बनवा देता हूँ| करुणा ने अपनी माँ को फ़ोन कर के अपने मूल निवास पत्र बनवाने के काम पर लगा दिया, इधर मैं करुणा को ले कर एक stamp paper वाले के पास पहुँचा और सबसे पहले उसका affidavit बनवाया|

मैंने करुणा से कहा की वो अपने हॉस्पिटल में पूछे की वहाँ किसी की जान पहचान का कोई सरकारी डॉक्टर है, जो उसका medical certificate बना दे? करुणा ने अपने हॉस्पिटल में कुछ डॉक्टरों से इस बारे में पुछा तो एक की जान पहचान निकल आई और उसने सोमवार को करुणा को अपने दवाखाने बुलाया| वहीं मैंने करुणा की police verification का पता किया, तो पता चला की उसके लिए हमें करुणा के घर के नजदीकी पुलिस स्टेशन जाना होगा| मैं करुणा को ले कर उसी शाम को पुलिस स्टेशन पहुँचा, आज से पहले मैं कभी पुलिस स्टेशन नहीं गया था इसलिए अंदर जाने से थोड़ा डर लग रहा था, करुणा का भी यही हाल था पर जिम्मेदारी मेरे सर थी तो हिम्मत मुझे ही दिखानी थी| हम दोनों पुलिस स्टेशन में घुसे तो पता चला की हम गलत पुलिस स्टेशन में आये हैं, पुलिस वेरिफिकेशन के लिए दूसरा ओफिस है| क्योंकि देर हो रही थी तो हम वहाँ से बाहर आ गए और दूसरे ऑफिस जाने का काम अगले दिन के लिए रखा|

करुणा: आपका साथ रहते हुए देखो मैं पुलिस स्टेशन भी आ गया!

करुणा मुस्कुराते हुए मुझे छेड़ने लगी|

मैं: मैंने बोला ता मेरे साथ रहने को!

मैंने करुणा की बात का उसी के अंदाज में जवाब दिया तो वो प्यार भरे गुस्से से मुझे देखने लगी|

अगले दिन हम दूसरे पुलिस स्टेशन पहुँचे और पुलिस वेरिफिकेशन के बारे में पुछा तो उन्होंने हमें एक फॉर्म दे दिया, मैं वहीं करुणा को ले कर बैठ गया तथा फॉर्म पढ़ने लगा ताकि अगर कुछ पूछना हो तो अभी पूछ लिया जाए| उस फॉर्म में हमें करुणा के आधार कार्ड की कॉपी लगानी थी, इतने साल रहने के बाद करुणा के पास सिवाए उसके हॉस्पिटल की ID के अलावा और कुछ नहीं था! गुस्सा तो बहुत आया पर करुणा को डाँट कर क्या होता, गलती उसकी और उसकी बहन दोनों की थी जो एक नंबर के लापरवाह थे| मैंने करुणा से दो दिन का समय माँगा ताकि मैं कोई जुगाड़ बिठा सकूँ, कुछ पूछ-ताछ के बाद एक जगह का पता चला जहाँ आधार कार्ड बना कर हाथों हाथ दिए जाते थे| मैंने करुणा से कहा की अगले दिन हमें 11 बजे आधार कार्ड बनवाने जाना होगा तथा वो मुझे आधे रास्ते में मिलेगी|

लेकिन अगले दिन काण्ड हो गया, सुबह-सुबह ही करुणा की उसकी बहन से मुझे ले कर बहुत लड़ाई हो गई! मैं सुबह साइट पर था जब मुझे एक अनजान नंबर से फ़ोन आया, मैंने कॉल उठाया तो एक डॉक्टर की आवाज आई जिसने मुझे बताया की करुणा जब से आई है तब से रोये जा रही है, उस ने मुझे करुणा का ध्यान रखने के लिए बुलाया| करुणा के रोने की बात सुन कर मैं अचभित हुआ और पिताजी से दिषु के ऑफिस जा रहा हूँ बोल कर निकल लिया| मैंने करुणा को कई बार कॉल किया पर उसका फ़ोन बीजी आ रहा था, मुझे उसकी बहुत चिंता हो रही थी इसलिए मैंने ऑटो किया और सीधा उसके हॉस्पिटल पहुँचा| हॉस्पिटल के बाहर से मैंने करुणा को फिर फ़ोन किया ताकि उसे कह सकूँ की वो बाहर आये पर उसका कॉल अब भी बीजी था, हारकर मैंने उसी डॉक्टर को फ़ोन मिलाया और उनसे करुणा को नीचे भेजने को कहा पर वो बोले की करुणा रोते हुए किसी से बात कर रही है इसलिए मुझे ही ऊपर आना होगा| मैं nursing room में पहुँचा तो करुणा की हालत देख कर दंग रह गया, रो-रो कर बेचारी का हाल बुरा था! मुझे देखते ही उसने इशारे से 2 मिनट रुकने को कहा, अपनी बात निपटा कर वो और रोने लगी| मैं उसे सांत्वना देने उसके नजदीक पहुँचा तो करुणा उठी और एकदम से मेरे गले लग गई तथा और जोर से रोने लगी| मैं करुणा की पीठ सहलाते हुए उसे शांत करने लगा की तभी करुणा की साथ nurses आ गईं और उन्होंने आपस में बात करना शुरू कर दिया;

नर्स: मिट्टू इतना decent man है और इसका बहन ऐसा बोलते!

ये सुन कर मैं जान गया की मेरे कारण ही दोनों बहनों में लड़ाई हुई है, पर आखिर कहा क्या करुणा की बहन ने?

मैं: चलो, आधार कार्ड बनवाना है|

मैंने बात शुरू करते हुए कहा, ताकि करुणा को हॉस्पिटल से बाहर लाऊँ और विस्तार से बात पूछ सकूँ, पर करुणा का मन अब फट चूका था;

करुणा: नहीं, मैं कुछ नहीं बनवाते!

करुणा गुस्से से बोली| मैं उसे समझना चाहता था, पर उसके लिए न तो ये सही जगह थी और न ही सही वक़्त था|

मैं: ठीक है, चलो कुछ खा कर आते हैं|

करुणा मेरा मतलब समझ गई और अपनी साथी नर्स को बोल कर मेरे साथ चल पड़ी|

मैं जनता था की करुणा ने सुबह से कुछ नहीं खाया होगा इसलिए मैंने बाहर से एक choco pie ली और उसे खाने को दी, उसने बहुत न नुकुर की पर मैंने जबरदस्ती उसे खाने को कहा| मैंने आधार कार्ड बनवाने जाने के लिए ऑटो किया, करुणा ने जाने से मना किया तो मैंने उसे समझाते हुए कहा;

मैं: Dear अपनी दीदी की साथ हुई लड़ाई की वजह से अपनी जिंदगी खराब मत करो, वो तो चाहती ही है की आप उसके घर में नौकरानी की तरह पड़ी रहो और घर के काम करती रहो!

मेरी बात करुणा के दिमाग में घुसी तो वो शांत हो गई, ऑटो में बैठते ही करुणा ने हमेशा की तरह अपना सर मेरे कँधे पर रख दिया तथा मेरे दाएँ हाथ को अपने दोनों हाथों से थाम लिया| शायद मेरे करीब आने से उसके दिल को चैन मिलता होगा!

हम आधार कार्ड बनने वाली जगह पहुँचे तो वहाँ बहुत बड़ी कतार थी, मैंने जिनसे इस जगह का पता लिया था उन्हीं के नाम को ले कर मैं सबसे आगे पहुँचा| वहाँ एक लड़का कंप्यूटर के सामने बैठा था, उसने मुझसे applicant का address proof माँगा| जैसे ही मैंने करुणा की ओर देखा तो उसने मुझे 1 स्टाम्प पेपर देते हुए कहा;

करुणा: ये मेरा दीदी का rent agreement का कॉपी है, इसमें मैं witness है!

मैं पहले तो आँखें फाड़े देखता रहा की आखिर ये किस तरह का address proof है? इधर कंप्यूटर के सामने बैठे लड़के ने मुझसे दुबारा address proof माँगा तो मैंने वही rent agreement की कॉपी उस लड़के को दे दी| फिर मैंने शर्मिंदा होते हुए उसे खुद बताया की आखरी पन्ने में witness के दस्तखत जिसके हैं वही applicant है| कागज देख के उसने साफ़ कह दिया की ये कागज नहीं चलेगा तो मैंने उसे समझना शुरु कर दिया;

मैं: भैया दरअसल ये Lessee की ही बहन हैं और उसी के साथ पिछले 5 साल से रहती है|

तब जा कर वो लड़का माना और उसने अपने कंप्यूटर पर करुणा का सारा ब्यौरा उससे पूछ-पूछ कर भरा, उसके बाद उसने करुणा के fingerprints scan करवाए, फिर उसका retinal scan हुआ और अब बारी आई करुणा की तस्वीर खींचने की| एक तो वो बेकार से कैमरा और उस पर करुणा का जो सुबह से रो-रो कर बुरा हाल था उसके कारन उसकी सूरत एकदम बिगड़ी हुई थी| जब वो लड़का करुणा की तस्वीर ले रहा था तो मैंने करुणा को मुस्कुराने का इशारा किया पर करुणा ने मेरे उस इशारे देखा ही नहीं, जिस कारन उसकी इतनी गन्दी तस्वीर आई की मानो वो किसी का मातम मना रही हो!

उस लड़के ने करुणा का ऑनलाइन फॉर्म भर के जमा कर दिया तथा हमें कल आधार कार्ड लेने आने को कहा, मैंने उसे पैसे दिए और करुणा को ले कर बाहर आ गया| दोपहर होने को आई थी और हम दोनों ही भूखे थे, मैंने करुणा से प्यार से पुछा की वो क्या खायेगी तो वो किसी बच्चे की तरह बुदबुदाते हुए बोली;

करुणा: छोला-भटूरा!

आलू के परांठें के बाद अगर करुणा को कुछ पसंद था तो वो थे छोले-भठूरे और इसके बाद राजमा चावल! भले ही वो दक्षिण भारत से थी पर उसकी पसंद केवल उत्तर प्रदेश के व्यंजन थे! मैं करुणा को अभी तक नेहरू प्लेस, लाजपत नगर के छोले-भठूरे खिलाये थे जो उसे बहुत पसंद थे, पर इन दोनों जगह में बैठ कर खाने का प्रबंध नहीं था, इसलिए मैं करुणा को ऐसे रेस्टुरेंट में लाया जहाँ बैठ कर खान खा सकते थे| हम रेस्टुरेंट पहुँचे और मैंने दो प्लेट छोले भठूरे का आर्डर दे दिया| वेटर खाने का आर्डर ले कर गया तो करुणा ने मुझसे बात शुरू की;

करुणा: आपको पता मेरा दीदी से लड़ाई क्यों हुआ?

करुणा ने मुझसे सवाल किया, जिसके जवाब में मैंने न में सर हिलाया|

करुणा: वो मुझे बहुत गन्दा-गन्दा बोल रा ता! वो बोलते की मैं किस-किस के साथ, कहाँ-कहाँ सो रे और उसका घर गंदा कर रे! वो बोला की मैं और आप एक साथ......सेक्स....किया!

करुणा ने सिसकते हुए कहा| उसकी बात सुन कर मुझे बहुत गुस्सा आया, उसकी दीदी मुझसे मिली थी, मेरे घर वालों को जानती थी और उसके बाद भी उसने मुझ पर इतना गन्दा इल्जाम लगाया! अगर वो मुझे नहीं जानती, मेरे घर वालों से नहीं मिली होती और तब वो ये कहती तो मैं समझ सकता की एक अनजान पर कोई कैसे भरोसा करे पर मेरे से मिलने के बाद वो मुझ पर ऐसा आरोप कैसे लगा सकती थीं?!

मैं: Dear I'm sorry to say this but आपकी दीदी का दिल बहुत गन्दा है, तभी न वो आप पर भरोसा करती हैं और न ही मुझ पर! वो मुझसे मिलीं थीं, तकरीबन एक पूरा दिन हमारे साथ थीं और उस पूरे दिन में मैंने जरा भी अजीब व्यवहार नहीं किया! लेकिन मुझे उनसे कोई बैर नहीं, बुरा लग रहा है तो इस बात का की वो आपको, अपनी सगी बहन को ऐसा कैसे कह सकती हैं?

मैंने करुणा को होंसला देना शुरू किया की वो इस बात को दिल से न लगाए और जल्द से जल्द अपनी मम्मा से अपना मूल निवास पत्र बनवाये ताकि वो यहाँ से जल्दी से जल्दी निकले| यहाँ से दूर रह कर वो खुश रहेगी वरना उसकी दीदी उसे ताने मार-मार के उसका जीना हराम कर देगी! करुणा का मन शांत करवा कर मैंने उसे खाना खिलाया और उसे उसके हॉस्पिटल छोड़ा| आज शाम को मिलना नहीं था क्योंकि आधा दिन मैं उसी के साथ था, हमारी अगली मुलाक़ात कल होनी थी|

अगले दिन मैं करुणा के साथ आधार कार्ड लेने पहुँचा, उस लड़के ने पुछा की हम print out लेंगे या प्लास्टिक के कार्ड पर लैमिनेट करवाना चाहेंगे? मैंने उसे कहा की वो प्लास्टिक के कार्ड पर लैमिनेट कर दे, जब उस लड़के ने करुणा का आधार कार्ड प्लास्टिक पर लैमिनेट कर के दिया तो करुणा के चेहरे पर मुस्कान आ गई, पर जैसे ही उसने आधार कार्ड में अपनी फोटो देखि तो वो छोटे बच्चे की तरह मुँह बना कर रोने लगी!

करुणा: मिट्टू....मेरा...फोटो...इतना गन्दा क्यों आते?! मैं काले है इसलिए न?!

करुणा के बच्चे की तरह रोने से पहले तो मुझे हँसी आई और मैंने हँसते हुए उसे कल का दिन याद दिलाया;

मैं: कल मैंने आपको कितने इशारे किये की smile करो, पर आपने सुना ही नहीं तो ऐसी तस्वीर आनी ही थी!

खैर हँसी मजाक खत्म हुआ तो मैं उसे ले कर पुलिस स्टेशन आया जहाँ हमने उसके आधार कार्ड की कॉपी लगाई, पर अब हमें चाहिए थी दो पासपोर्ट साइज फोटो जो की करुणा के पास नहीं थीं! मुझे अब करुणा की इस लापरवाही की आदत पड़ गई थी, मैं जान गया था की उसका कुछ नहीं हो सकता और जबतक मैं साथ हूँ मुझे ही सब देखना होगा| मैं उसे ले कर एक फोटोग्राफर के पास पहुँचा और करुणा को बालों का बन बनाने को कहा ताकि उसकी सूंदर और लम्बी गर्दन अच्छे से दिखे| फिर फोटोग्राफर ने उसकी एक ढंग की फोटो निकाली, फोटो कंप्यूटर में transfer कर के मुझे खुद फोटो ग्राफर के साथ बैठना पड़ा और करुणा के चेहरे को ठीक करवाना पड़ा| जब फोटोग्राफर ने फोटो print की तो अपनी ये तस्वीर देख कर करुणा बहुत खुश हुई,

करुणा: ये फोटो तो मैं frame करवा के रखते!

तब उसका ध्यान उसकी लम्बी गर्दन पर गया जिसे देख वो बोली;

करुणा: मिट्टू...मेरा neck देखा...wow.... इसलिए आप मेरे को bun बनाने को बोला न?!

मैंने मुस्कुरा कर हाँ में सर हिलाया|

करुणा: मैं इतना fair है क्या?

मैंने फोटोग्राफर के साथ बैठ कर करुणा के skin tone को थोड़ा fair किया था जिसे देख कर करुणा थोड़ा हैरान थी|

मैं: Face wash करके थोड़ा makeup करोगे तो ऐसे ही दिखोगे|

करुणा: सच मिट्टू?

मैंने हाँ में सर हिला कर कहा|

खैर हमने पुलिस स्टेशन लौट कर पुलिस वेरफिकेशन का फॉर्म जमा किया, हमें ये बताया गया की पुलिस वेरिफिकेशन का सर्टिफिकेट ऑनलाइन generate होगा जिसे हम 2-3 दिन बाद download कर सकते हैं| अब बस करुणा का मेडिकल सर्टिफिकेट बनाना रह गया था जो पिछले कुछ दिनों से डॉक्टर के पास समय न होने से टल रहा था! सुबह-सुबह करुणा का फ़ोन आया और उसने बताया की medical certificate के लिए आज जाना है| मुझे सुबह से ही बहुत छींकें आ रहीं थीं पर मैं फिर भी मैं करुणा से मिलने पहुँचा, जब उसने मेरी बुरी हालत देखि तो बहुत चिंता करने लगी| करुणा ने बहुत कहा की वो मुझे घर छोड़ देगी ताकि मैं आराम करूँ पर मैं जिद्द पर अड़ गया की आज कैसे भी उसका ये medical certificate का काम पूरा करना है|हम एक सरकारी दवाखाने पहुँचे, करुणा का medical certificate पहले से ही तैयार रखा था, डॉक्टर ने करुणा से थोड़ी बातें की और इस बीच मैं बाहर खड़ा रहा| चूँकि छींकों से मेरा हाल बुरा था तो करुणा ने डॉक्टर को मुझे चेक करने को कहा और मुझे अंदर बुलाया, वो मुझे चेक करते उससे पहले ही मैं बोल पड़ा;

मैं: Thank you sir! पर मैं पहले ही दवाई ले रहा हूँ!

मैंने हाथ जोड़ कर उनसे निवेदन किया| डॉक्टर ने मुझे आराम करने को कहा और फिर हम दोनों वहाँ से निकल लिए|

दवाखाने से main सड़क कुछ दूर थी तो हम पैदल चल पड़े, पैदल चलने से जिस्म में गर्मी आई और मेरी छींकें बंद हो गई| लंच का समय हो चूका था और पास ही में एक पार्क था तो करुणा मेरा हाथ पकड़ कर मुझे वहाँ ले गई| दोपहर का समय था और पार्क पूरा खाली था, पेड़ की छौँ तले हम दोनों एक बेंच पर बैठ गए| करुणा ने अपना बैग खोला और उसमें से एक टिफ़िन निकाला, टिफ़िन खुलते ही मुझे इडली नजर आई! इडली देखते ही मेरे मुँह में पानी आ गया और मैंने खाने के लिए हाथ बढ़ाया, तभी करुणा ने टिफ़िन पीछे खींच लिया और बोली;

करुणा: मैं खिलाते!

ये कहते हुए उसने इडली को साम्बार में डूबा कर मेरे होठों के आगे कर दिया| उसका यूँ मुझे किसी बच्चे की तरह खाना खिलाना मुझे बहुत अच्छा लगता था और उन कुछ पलों के लिए मैं बच्चा बन जाता था|

मैं: Medical certificate बनने की ख़ुशी में ये खाने को मिलना था और आप मुझे घर भेज रहे थे?!

मैंने करुणा को प्यार भरे गुस्से से देखते हुए कहा| मेरा ये प्यार भरा गुस्सा करुणा को बहुत प्यारा लगता था, जिसे देख वो हमेशा खिलखिलाकर हँसने लगती थी|

इडली खा कर हम करुणा के हॉस्पिटल की तरफ चल दिए, हमें चलते हुए 5 मिनट होने को आये थे पर कोई ऑटो मिल ही नहीं रहा था तो हम बातें करते हुए गर्मी में चलने लगे| उन दिनों मैंने एक मलयालम फिल्म देखि थी; 'उस्ताद होटल' तो हम दोनों उसी की बात करने लगे| बातों-बातों में मैंने करुणा से पुछा की उसे कोई मलयालम गाना पूरा आता है, तो वो बोली की उसे कोई गाना पूरा नहीं आता| ये सुनते ही मैं बड़े गर्व से अपनी शेखी बघारते हुए बोला की मुझे इस फिल्म का सबसे मुश्किल गाना पूरा मुँहजबानी आता है, करुणा को मेरी बात पर विश्वास नहीं हुआ तो मैंने उसे वो पूरा गाना गा कर सुनाया| एक उतर भारत का रहने वाला पूरा मलयालम गाना याद कर ले तो ये किसी अस्चर्य से कम की बात नहीं होती, ठीक वही हाल करुणा का था| करुणा बीच सड़क पर चलते हुए रुक गई और मुँह बाए मुझे घूर रही थी;

करुणा: मिट्टू....आप को तो पूरा गाना आता है?

ये कहते हुए करुणा ताली बजाने लगी| मैं अपनी तारीफ सुनकर गदगद हो गया और गर्दन अकड़ कर चलने लगा|

दो दिन बाद मैंने online चेक किया और करुणा का police verification certificate download कर के करुणा को मेल कर दिया ताकि वो उसका print ले कर रख ले| अब बस उसका एक मूल निवास पत्र रह गया था, लेकिन उसका भी हमें ज्यादा इंतजार नहीं करना पड़ा क्योंकि 3 दिन बाद करुणा की मम्मा ने वो document courier कर दिया| सारे कागज तैयार थे तथा हम श्री विजयनगर जाने की सोच रहे थे की लाल सिंह जी का फ़ोन आया और उन्होंने सारे documents के बारे में पुछा, करुणा ने उन्हें बताया की सब documents तैयार हैं और हम 1-2 दिन में श्री विजयनगर निकल रहे हैं| लाल सिंह जी ने हमें सबसे पहले जयपुर बुलाया क्योंकि हमें वहाँ से नया joining लेटर लेना था तथा करुणा के सारे documents की एक कॉपी जमा करनी थी|

[color=rgb(51,]जारी रहेगा भाग 7(7) में...[/color]
 

[color=rgb(97,]इक्कीसवाँ अध्याय: कोशिश नई शुरुआत की[/color]
[color=rgb(251,]भाग -7 (7)[/color]


[color=rgb(44,]अब तक आपने पढ़ा:[/color]

दो दिन बाद मैंने online चेक किया और करुणा का police verification certificate download कर के करुणा को मेल कर दिया ताकि वो उसका print ले कर रख ले| अब बस उसका एक मूल निवास पत्र रह गया था, लेकिन उसका भी हमें ज्यादा इंतजार नहीं करना पड़ा क्योंकि 3 दिन बाद करुणा की मम्मा ने वो document courier कर दिया| सारे कागज तैयार थे तथा हम श्री विजयनगर जाने की सोच रहे थे की लाल सिंह जी का फ़ोन आया और उन्होंने सारे documents के बारे में पुछा, करुणा ने उन्हें बताया की सब documents तैयार हैं और हम 1-2 दिन में श्री विजयनगर निकल रहे हैं| लाल सिंह जी ने हमें सबसे पहले जयपुर बुलाया क्योंकि हमें वहाँ से नया joining लेटर लेना था तथा करुणा के सारे documents की एक कॉपी जमा करनी थी|

[color=rgb(255,]अब आगे:[/color]

करुणा
अपनी दीदी से गुस्सा थी, एक तो उन्होंने करुणा पर गन्दा इल्जाम लगाया था की वो चरित्रहीन है और दूसरा उन्होंने करुणा के documents बनवाने में एक ढेले की मदद नहीं की थी| जब मैंने करुणा से कहा की वो अपनी दीदी को बता दे की सारे documents तैयार हैं और joining के लिए हमें ज्यादा देर नहीं करनी चाहिए तो करुणा गुस्से से बोली;

करुणा: उनको बोलना कोई जर्रूरत नहीं, हम दोनों अकेले जाते!

करुणा गुस्से में थी इसलिए वो दिमाग से नहीं सोच रही थी, मैंने उसे समझाते हुए कहा;

मैं: Dear दिमाग से सोचो, बिना बताये जाएंगे तो आपकी दीदी और गन्दा सोचेगी, फिर वो ये अपनी गंदगी सब तरफ फैला देगी! उन्हें तो कोई शर्म-हया हैं नहीं, बदनामी आपकी होगी और साथ-साथ आपके मम्मा की भी!

करुणा: उसे कोई फर्क नहीं पड़ते! इतना दिन में उसने मुझसे पुछा तक नहीं की कौन सा documents ready हो रे?! तो मैं उससे क्यों पूछूँ?

करुणा गुस्से से बोली|

मैं: वो बेवकूफ है, आप तो नहीं?! वो नहीं पूछती न सही, आप उसे बता कर अपना फ़र्ज़ पूरा कर दो| अगर आपकी दीदी साथ चलने से मना करती है तो अपनी मम्मी को बता दो की आपकी दीदी मना कर रही है इसलिए आप मेरे साथ जा रहे हो|

जैसे-तैसे करुणा मान गई और उसने अपनी दीदी से बात की पर उसकी दीदी ने जाने से साफ़ मना कर दिया| करुणा ने मुझे मैसेज कर के बताया की उसकी दीदी ने कह दिया है की वो मेरे साथ जाए, मैंने करुणा से अपनी मम्मी और मौसी से ये सब बताने को कहा ताकि कल को कोई करुणा के चरित्र पर ऊँगली न उठा सके|

करुणा ने बात कर के जब मुझे हरी झंडी दी तो मैंने घर में फिर से वही ऑडिट का बहाना मारा परन्तु इस बार 4-5 दिन रूकने का बहाना मारा| इतने दिन रुकने की बात सुनते ही पिताजी बोले की उन्हें गट्टू की शादी के लिए गाँव जाना है! मेरे और पिताजी के एक साथ जाने से माँ घर पर अकेली हो जातीं, इतने सालों में आज तक कभी ऐसा नहीं हुआ की माँ को घर पर अकेला रहना पड़ा हो| मेरा जाना पिताजी के जाने से ज्यादा जर्रूरी था क्योंकि करुणा की मेरे जाने से जिंदगी सँवरनी थी, जबकि गट्टू की शादी पिताजी के न जाने से भी हो ही जाती! मैंने माँ से कहा की वो भी शादी में हो आयें पर माँ का मन शादी में जाने का नहीं था, इसलिए पिताजी ने मुझ पर दबाव डालना शुरू किया की मैं यहीं रुक जाऊँ| अब मुझे कुछ न कुछ जुगाड़ फिट करना था तो मैंने माँ से अकेले में बात की;

मैं: माँ आप यहाँ अकेले कैसे रहोगे? मुझे भी आने में कितने दिन लगें पता नहीं, आप चले जाओ शादी में सम्मिलित होने के बहाने आप भी कुछ घूम फिर लोगे|

मैंने माँ से बात शुरू करते हुए कहा|

माँ: बेटा तू नहीं होगा वहाँ तो मुझे चिंता लगी रहेगी|

माँ ने मेरे सर पर हाथ फेरते हुए कहा|

मैं: माँ हूँगा तो मैं यहाँ भी नहीं! ऑफिस का काम जर्रूरी है वरना मैं जाने से मना कर देता और यहीं आपके पास रहता|

माँ: वहाँ जा कर सब पूछेंगे की लड़का क्यों नहीं आया तो मैं क्या कहूँगी?

माँ ने तर्क करते हुए कहा|

मैं: आप कह देना की मैं ऑफिस के काम से दिल्ली से बाहर गया हूँ|

माँ: नहीं बेटा, मुझसे नहीं कहा जायेगा ये सब!

माँ ने हाथ खड़े करते हुए कहा तो मुझे अब उन्हें प्रलोभन देना पड़ा;

मैं: आप और पिताजी गाँव वो झडझड करती हुई रोडवेज की बस से थोड़े ही जाओगे? आप दोनों तो जाओगे Super Deluxe Volvo से!

ये सुन माँ हैरानी से मुझे देखने लगीं, क्योंकि वो नहीं जानती थीं की Volvo बस कौनसी होती है? मैंने अपना फ़ोन निकाला और उस बस की फोटो माँ को दिखाते हुए कहा;

मैं: ये देखो माँ! मैं जयपुर ऐसी ही बस में गया था, ये बस इतनी आरामदायक होती है की सफर का पता ही नहीं चलता| फिर ये low floor होती है, मतलब इसमें चढ़ने और उतरने के लिए आपको तकलीफ नहीं होती| बस की सीटें बहुत आरामदायक होती हैं और पीछे की ओर मुड़ जातीं हैं जिससे आप सोते-सोते जाओ|

मैंने एक-एक कर माँ को उस बस की सभी खूबियाँ गिनानी शुरू कर दी| माँ ने मेरी सारी बातें बड़े इत्मीनान से सुनी ओर फिर वो सवाल पुछा जो हर माँ अपने बेटे से पूछती है;

माँ: इसकी टिकट तो बहुत महँगी होगी?

माँ का सवाल सुन मैं झट से बोला;

मैं: आपसे तो महँगी नहीं हो सकती न? आजतक पिताजी ने हमें रोडवेज बस में सफर कराया है, अब जब मैं कमाने लगा हूँ तो अब तो मुझे अपनी माता-पिता को आराम से यात्रा कराने दो?!

ये कहते हुए मैंने माँ को दोनों टिकट का printout दिखाया|

मैं: ये देखो आप दोनों की टिकट पहले से बुक कर दी मैंने| अब आप मना करोगे तो एक टिकट बर्बाद जाएगी!

मेरी इस आखरी चाल का माँ के पास कोई तोड़ नहीं था क्योंकि अब अगर वो मना करतीं तो एक तो पैसों का नुक्सान होता और दूसरा पिताजी मुझे बहुत सुनाते| एक माँ अपने बेटे को कैसे सुनने देती इसलिए वो मान गईं पर फिर भी एक आखरी कोशिश करते हुए उन्होंने मुझे emotional blackmail किया;

माँ: ठीक है बेटा, पर अगर तू साथ होता तो कितना अच्छा होता!

मैं करुणा की नौकरी के लिए बाध्य था इसलिए मैंने तपाक से जवाब दिया;

मैं: मैं साथ होता तो बस में आप और मैं साथ बैठते, फिर पिताजी को किसी दूसरे आदमी के साथ सीट पर बैठना पड़ता! बाद में वही गलती निकालते और कहते की मजा नहीं आया!

मेरा बचपना देख माँ हँस पड़ीं और मेरे सर पर हाथ फेरते हुए चली गईं| 'चलो इसी बहाने माँ को Volvo में सैर कराने की एक ख्वाइश तो पूरी हुई!' मैं मन ही मन बोला|

शाम को जब माँ ने पिताजी को बताया की वो भी साथ जा रहीं हैं तो पिताजी बड़े खुश हुए, फिर मैंने उन्हें volvo की टिकट दी तो वो हैरानी और गुस्से से मुझे देखने लगे| तब माँ ने आगे बढ़ कर मुझे उनके गुस्से से बचाते हुए कहा;

माँ: लड़का कमा रहा है, हमें महँगी बस में यात्रा करा कर अपना फ़र्ज़ पूरा कर रहा है|

माँ की गर्व से कही बात सुन कर पिताजी शांत हो गए और मैं डाँट खाने से बच गया|

माँ और पिताजी की बस कल दोपहर की थी और हम दोनों की (करुणा और मेरी) बस मैंने परसों दोपहर की बुक की थी, उसका कारन ये था की मैं नहीं चाहता था की करुणा की बहन रात में सफर करने पर कोई सवाल उठाये| माँ ने अपना सामान बाँधना शुरू किया और मुझे इतने दिन बाहर रहने पर हमेशा की तरह वही सारी हिदायतें दी| इसी के साथ मुझे उन्हें तीन टाइम फ़ोन कर के अपना हाल-चाल बताने के लिए भी कहा, मैंने उनकी सारी हिदायतें अपने पल्ले बाँध ली| चूँकि माँ-पिताजी को दोपहर में जाना था तो रात का खाना और अगले दिन के दोपहर का खाना माँ ने बना कर तैयार कर दिया|

अगले दिन दोपहर को मैं खुद माँ-पिताजी को ले कर बस स्टैंड पहुँचा और बस में बिठाया| माँ-पिताजी ने जब बस अंदर से देखि तो वो बड़े खुश हुए, बस में AC चालु था और सीटें आराम दायक थीं| मैंने पिताजी को सीट पीछे करने का तरीका बताया जिससे वो आराम से बैठ सकें, फिर माँ की सीट भी मैंने पीछे की ओर मोड़ दी जिससे माँ बड़े आराम से बैठीं| बस चलने को हुई तो पिताजी ने मुझसे पानी की बोतल लाने को कहा, मैं नीचे उतरा ओर पानी की बोतल के बजाए चिप्स और बिस्किट ले आया| पानी की बोतल न लाने पर पिताजी डाँटने वाले हुए थे की मैं बोल पड़ा;

मैं: पानी आपको बस में ही मिलेगा|

ये सुन कर पिताजी बड़े हैरान हुए और माँ के चेहरे पर मुस्कराहट आ गई|बस चलने वाली थी तो मैंने माँ-पिताजी का आशीर्वाद लिया और उन्हें पहुँचते ही फ़ोन करने को कहा|

मैं घर पहुँचा और अपना समान पैक करने लगा, शाम को माँ का फ़ोन आया और उन्होंने बड़ी ख़ुशी-ख़ुशी अपनी यात्रा के बारे में बताया| पिताजी भी आज बड़े खुश थे और अपने पैर फैला कर सीट पर बड़े आराम से सो रहे थे| रात में पिताजी ने फ़ोन किया और बस की आरामदायक सीट की तारीफ करने लगे| अगले दिन सुबह समय से माँ-पिताजी लखनऊ उतर गए और वहाँ से झडझड करती हुई दूसरी बस ने उन्हें गाँव उतारा| इधर मैं खाना खा कर घर की सफाई कर के करुणा को लेने उसके घर की ओर चल पड़ा|

करुणा ने मुझे बस स्टैंड से pick करने को कहा था क्योंकि अगर मैं उसके घर जाता तो उसकी बहन बवाल खड़ा कर देती| मैं समय से बस स्टैंड पहुँच गया पर करुणा हरबार की तरह लेट आई| उसे जल्दी बुलाने के लिए मैंने बीकानेर हाउस के लिए ऑटो कर लिया ताकि उस पर जल्दी आने का दबाव बना सकूँ| 10 मिनट तक करुणा का इंतजार करते हुए तो अब ऑटो वाला भी थक गया था और मुझसे शिकायत करने लगा था, मैं उसे बस ये ही कह कर टाल रहा था की लड़की है तैयार होने में समय तो लगेगा ही!

10 मिनट बाद जब करुणा आई तो उसके चेहरे पर एक अजब मुस्कान थी, हाथों में एक बैग था जो उसके सामान से फटने तक भरा हुआ था! बैग इतना भरा था की करुणा को उसे उठाने में परेशानी हो रही थी, इसलिए मैंने जा कर उससे वो बैग लिया और ला कर ऑटो में रखा| ऑटो चला तो करुणा मुस्कुराते हुए मुझसे बोली;

करुणा: मिट्टू...आप जानता..मैं क्यों हँस रा ता?

करुणा का सवाल सुन मैंने न में गर्दन हिलाई|

करुणा: मुझे ऐसे feeling आ रे था की आप मेरे को घर से बगहा (भगा) कर ले जा रे!

ये बोलकर करुणा खिलखिलाकर हँसने लगी, वहीं मैं समझ नहीं पाया की ये लड़की सच में पागल तो नहीं जो घर से भगाने की बात इतने धड़ल्ले से कर रही है?! तभी मुझे कुछ साल पहले का मेरा बचपना याद आया; 'कम तो तू भी नहीं था, याद है भौजी को भगाने की बात इतनी आसानी से सोच ली थी तूने?!' दिमाग की ये बात सुनते ही मैं एकदम से खामोश हो गया| मेरी ख़ामोशी देख करुणा को लगा की उसने मुझे दुःख पहुँचाया है, इसलिए उसने मुझसे माफ़ी माँगी|

मैं: Dear आपकी कोई गलती नहीं है, दरअसल कुछ याद आ गया था|

ये कह कर मैंने बात टाल दी और करुणा का मन किसी और बात में लगा दिया| तभी करुणा ने मुझे बताया की उसकी मम्मा को मुझसे बात करनी है, ये सुन कर मुझे थोड़ा अजीब सा लगा और मैं मन ही मन सोचने लगा की भला उन्हीं मुझसे क्या बात करनी होगी?!

खैर हम बीकानेर हाउस पहुँचे और अपनी बस का इंतजार करने लगे, कुछ देर बाद जब बस लगी तो हम दोनों ने अपना सामान रखा और बस में बैठ गए| करुणा ने मुझे याद दिलाया की उसकी मम्मा को मुझसे बात करनी है तो मैंने उसे कॉल मिलाने को कहा| अब दिक्कत ये थी की न तो करुणा की मम्मा को हिंदी या अंग्रेजी आती थी और न मुझे मलयालम! इसका रास्ता करुणा ने निकाला, उसने फ़ोन में लगाए हेडफोन्स और एक हिस्सा मुझे दिया तथा दूसरा हिस्सा उसने अपने कान में डाला| करुणा की मम्मा जो भी मलयालम में बोलतीं, करुणा उसका मेरे लिए हिंदी में अनुवाद करती, फिर मैं जो हिंदी में बोलता वो उसे मलयालम में अपनी मम्मा के लिए मलयालम में अनुवाद करती|

करुणा की माँ: मिट्टू बेटा तुम जो अपने बीजी टाइम से मेरी बेटी के लिए समय निकाल रहे हो, उसका ध्यान रख रहे हो, उसके सारे documents तुमने बनवाये, उस सब के लिए तुम्हारा बहुत-बहुत धन्यवाद|

करुणा की माँ ने जब मिट्टू बेटा कह कर बात शुरू की तो मुझे हँसी आ गई और करुणा मेरी हँसी देख कर सब समझ गई|

मैं: आंटी जी, करुणा मेरी बहुत अच्छी दोस्त है और मैं बस अपनी दोस्ती का फ़र्ज़ निभा रहा हूँ|

करुणा की माँ: बेटा देखो, उसका ध्यान रखना उसकी joining के बाद किसी हॉस्टल में उसके रहने का इंतजाम कर देना|

करुणा की माँ ने चिंता जताते हुए कहा|

मैं: आंटी जी आप चिंता मत कीजिये, मैंने हॉस्टल की एक लिस्ट तैयार कर रखी है| Joining के बाद मैं करुणा के रहने का इंतजाम कर के आपको फ़ोन कर के सब बता दूँगा|

मैंने आंटी जी को आश्वस्त करते हुए कहा|

करुणा अपने साथ में मायोनीज़ से बना मेरा मन पसंद सैंडविच लाइ थी जो हमने दोपहर के खाने में खाया और साथ में ब्लैक कॉफ़ी| मैंने आजतक ब्लैक कॉफ़ी नहीं पी थी तो आज जब पहलीबार ब्लैक कॉफ़ी पी तो वो दूध वाली से ज्यादा अच्छी लगी! हम दिल्ली से बाहर पहुँचे तो करुणा ने ऑटो में मेरी ख़ामोशी का कारन पुछा;

करुणा: मिट्टू मैं आपको कुछ पूछ रे तो आप बताते?

करुणा ने संकुचाते हुए पुछा तो मैंने मुस्कुरा कर हाँ में गर्दन हिलाई|

करुणा: आप ऑटो में चुप क्यों ता?

करुणा ने इतने प्यार से पुछा की मुझसे झूठ नहीं बोला गया और मैंने उस सब बात बताई;

मैं: दरअसल मैंने एक बार किसी से घर से भगाने की बात कही थी|

मेरी बात सुन कर करुणा की जिज्ञासा जाग गई और उसने पुछा;

करुणा: वही लड़की न, जिस से आप प्यार किया ता?

मैंने हाँ में सर हिला कर जवाब दिया| करुणा के मन में मेरे और भौजी के प्यार के बारे में जिज्ञासा देख मैंने उसे भौजी के बीमार होने की कहानी सुनाई जिसे सुन कर करुणा आँखें फाड़े मुझे देखने लगी|

करुणा: मिट्टू... आप तो...gentleman है! अभी पता चला मैं क्यों आपके साथ safe feel करते? आपका मन में मैंने अपने लिए कभी कुछ गलत feel नहीं किया, इसलिए मैं आप पर इतना trust करते!

करुणा ने बड़े गर्व से कहा|

अब चूँकि हमने बस दोपहर में की थी तो हमें जयपुर पहुँचते-पहुँचते रात के 1 बज गए| करुणा को बड़ी जोर से नींद आई थी और वो जानती थी की अभी होटल भी ढूँढना है इसलिए वो थोड़ी चिड़चिड़ी हो गई थी| किस्मत से मैं इसबार अपने साथ उस राधास्वामी होटल का कार्ड ले आया था, मैंने फ़ोन निकाला और उन्हें बताया की मैं बस स्टैंड पर खड़ा हूँ| होटल वाले फ्री pickup और drop देते थे जो मुझे उस दिन पता चला, 5 मिनट में एक टाटा सूमो हमारे सामने खड़ी थी| ड्राइवर ने हमारा सामान रखा और हमें होटल पहुँचाया, receptionist हमें देखते ही पहचान गया और उसने हमें होटल का रजिस्टर दिया ताकि हम दोनों अपनी डिटेल भर दें|

Receptionist: सर एक छोटी सी प्रॉब्लम है, कोई कमरा खाली नहीं है सुबह 6 बजे एक रूम का checkout होना है, तब तक आप दोनों को मैं Honeymoon Suite दे देता हूँ!

Honeymoon Suite का नाम सुन कर मेरी जान हलक में आ गई, वहीं करुणा को ये सब समान्य लग रहा था| मैंने किसी तरह अपने जज्बात छुपाये और सामान्य दिखने का दिखावा करने लगा| होटल के एक लड़के ने हमारा सामान उस 'Honeymoon Suite' में रखा और उसके बाद हम दोनों कमरे में दाखिल हुए| उस कमरे को देखते ही हम दोनों के माथे पर पसीना आ गया! कमरे के बीचों बीच एक Igloo था और उस Igloo के अंदर दिल की shape का पलंग था! बेड पर लाल रंग की मुलायम चादर बिछी हुई थी, उस Igloo के अंदर लाल रंग की लाइट जल रही थी, अगल-बगल दो छोटी-छोटी खिड़कियाँ थीं और कमरे में जबरदस्त ठंडा AC चल रहा था! कुल मिला कर कहें तो कमरे का माहौल पूरी तरह से रोमांटिक था, पर इस कमरे में मौजूद दोनों इंसान दोस्ती के रिश्ते से बँधे थे जो अपने पाक रिश्ते को गन्दा नहीं करना चाहते थे!

करुणा मुझसे नजरें चुराते हुए बाथरूम में घुस गई और इधर मैं पास ही पड़े सोफे पर बैठ गया| जैसे ही मैं सोफे पर बैठा तो पता चला की वो बेंत का बना हुआ था और बस दिखावे का ही सोफे था| उसपर पड़ा cushion मेरे कुल्हें में चुभ रहा था, लेकिन मैंने सोच लिया की चाहे जो हो मैं इसी सोफे पर सोऊँगा, फिर चाहे पीठ ही क्यों न अकड़ जाए!

करुणा को बाथरूम में गए हुए 10 मिनट हो चुके थे इसलिए मैंने मौके का फायदा उठा कर अपनी जीन्स उतार के पजामा पहन लिया, फिर मैंने हमारा समान एक तरफ कर सोफे पर सोने लायक जगह बना ली| तभी मन में ललक जगी की एक बार honeymoon वाले पलंग पर लेट कर तो देखूँ की कैसा लगता है? अपनी यही लालसा पूरी करने के लिए मैं उस Igloo में घुसा और पलंग पर पसर कर लेट गया, लेटने के बाद पता चला की ये गद्दा तो उस बेंत के सोफे के मुक़ाबले बहुत मुलायम था! आखिर बेमन से मैं फटाफट पलंग से उठा क्योंकि करुणा अब किसी भी वक़्त बाहर आ सकती थी, वो मुझे ऐसे लेटे हुए देखती तो पता नहीं क्या सोचती?! मैं वापस आ कर उस बेंत वाले सोफे पर लेट गया| जैसे ही उस पर लेटा तो पीठ को ऐसा लगा मानो मैं किसी खुरदरी जमीन पर लेट गया हूँ! इस वक़्त मेरा मन सोने का था इसलिए मैंने सोफे पर करवटें बदलनी शुरू कर दी ताकि किसी करवट तो चैन मिले और मैं सो सकूँ| तभी करुणा बाथरूम से बाहर निकली और मुझे यूँ सोफे पर करवटें बदलते देख उसे हैरानी हुई|

करुणा: मिट्टू...उदर क्यों सो रे?

करुणा की आवाज सुन मैंने उसकी ओर करवट ले कर देखा और बोला;

मैं: तो कहाँ सोऊँ?

मैंने हैरान होते हुए पुछा|

करुणा: पागल वो सोफे comfortable नहीं होगा, इदर आ कर सो जाओ!

करुणा हक़ जताते हुए बोली| उसकी बात सही थी इसलिए मैं उठा और igloo में घुसा, मैंने दाईं तरफ के पलंग का किनारा पकड़ लिया| मेरे घुसने के बाद करुणा igloo में घुसी और पलंग के बाईं तरफ लेट गई|

दोनों के दिलों में एक अजीब से बेचैनी थी, ये पलंग, कमरे का माहौल हम दोनों को awkward महसूस करवा रहा था, इसीलिए दोनों खामोश थे| कमरे में फ़ैली इस awkward भरी ख़ामोशी को तोड़ने के लिए करुणा ने टीवी चालु किया और गाने लगा दिए| अब मुझे आ रही थी नींद और टीवी की आवाज में मैं सो नहीं सकता था;

मैं: Dear सो जाओ, सुबह होने वाली है|

करुणा ने ये टीवी मुझसे बात शुरू करने के लिए किया था, जब मैंने उसे सोने को कहा तो करुणा को बात करने का मौका मिल गया|

करुणा: आप उस सोफे पे सो रा ता तो आपको पता मेरे को कितना awkward feel हुआ!

करुणा शिकायत करते हुए बोली|

मैं: अगर आप मुझे इस igloo में सोते हुए देखते तो awkward नहीं लगता? आपको awkward feel न हो इसलिए तो मैं उस लकड़ी के सोफे पर लेटा था|

मैंने अपनी सफाई देते हुए कहा, जिसे सुन कर करुणा के चेहरे पर मुस्कान आ गई|

करुणा: एक बात सच बताना मिट्टू, आपको कुछ feel नहीं हो रे?

करुणा ने अपने चेहरे पर एक नटखट मुस्कान लिए हुए पुछा|

मैं: बहुत अजीब महसूस हो रहा है!

ये सुन कर करुणा हँस पड़ी और बोली;

करुणा: और कुछ feel नहीं हो रे?

मैं उसका मतलब समझ गया और नटखट अंदाज में जवाब दिया;

मैं: I'm in complete control!

ये सुन कर करुणा जोर से हँस पड़ी और हँसते हुए पेट के बल मेरी ओर मुँह कर के लेट गई|

मैं: अब सो जाओ!

मैंने दूसरी ओर करवट ले ली और सिकुड़ कर सोने लगा|

सुबह ठीक 6 बजे होटल का एक स्टाफ हमें उठाने आया और उसने दरवाजा खटखटाया, मैं उस वक़्त गहरी नींद में था इसलिए मुझे उठने में समय लगा| बेचारा वो आदमी 2-3 मिनट तक दरवाजा भड़भड़ाता रहा तब जा कर मैं आँखें मलता हुआ उठा| उसने मुझे इशारे से बताया की सामने का कमरा खाली हो गया है और हम उसमें अपना समान शिफ्ट कर सकते हैं| मैंने आ कर करुणा को उठाया जो अभी तक घोड़े बेच कर सो रही थी| हमने अपना समान उठाया और दूसरे कमरे में आ कर फिर सो गए, सुबह ठीक 8 बजे मैं उठ बैठा और फटाफट तैयार हुआ| मैंने करुणा के कान के पास ताली बजा कर उठाया, वो उठी और मुस्कुराते हुए मुझे देखने लगी|

मैं: जल्दी से तैयार हो जाओ लेट हो रहा है|

मेरी बात सुन कर भी करुणा पर कोई फर्क ही नहीं पड़ा और वो उसी तरह मुस्कुराते हुए मुझे देखती रही|

मैं: Dear क्यों हँस रहे हो?

मेरी बात सुन कर करुणा मुस्कुराते हुए बोली;

करुणा: कोई believe करते की हम दोनों honeymoon suite में ता और फिर भी हम अच्छा से दोस्त की तरह रहा, एक सेकंड के लिए भी हमारा मन में कुछ गलत नहीं आया!

करुणा की बात सच थी क्योंकि आजकल की दुनिया में कौन मान सकता था की एक लड़का और लड़की, honeymoon suite में एक रात बिताएँ, लेकिन फिर भी दोनों के जिस्म में एक पल को भी सेक्स की चिंगारी न भड़की हो?!

मैं: Dear अगर मैंने कभी कहानी लिखी तो ये बात उसमें जर्रूर लिखूँगा!

मैंने मुस्कुराते हुए कहा| वहीं करुणा मेरी बात सुन कर हँस पड़ी और बोली;

करुणा: उसमें ये मत लिखना की हम कुछ नहीं किया, उसमें लिखना की हम बहुत कुछ किया वरना कोई believe नहीं करते!

किस ने सोचा था की मैं सच में उस दिन का जिक्र अपनी कहानी में करूँगा?!

[color=rgb(51,]जारी रहेगा भाग 7(8) में...[/color]
 

[color=rgb(65,]इक्कीसवाँ अध्याय: कोशिश नई शुरुआत की[/color]
[color=rgb(251,]भाग -7 (8)[/color]


[color=rgb(44,]अब तक आपने पढ़ा:[/color]

करुणा: कोई believe करते की हम दोनों honeymoon suite में ता और फिर भी हम अच्छा से दोस्त की तरह रहा, एक सेकंड के लिए भी हमारा मन में कुछ गलत नहीं आया!
करुणा की बात सच थी क्योंकि आजकल की दुनिया में कौन मान सकता था की एक लड़का और लड़की, honeymoon suite में एक रात बिताएँ, लेकिन फिर भी दोनों के जिस्म में एक पल को भी सेक्स की चिंगारी न भड़की हो?!
मैं: Dear अगर मैंने कभी कहानी लिखी तो ये बात उसमें जर्रूर लिखूँगा!
मैंने मुस्कुराते हुए कहा| वहीं करुणा मेरी बात सुन कर हँस पड़ी और बोली;
करुणा: उसमें ये मत लिखना की हम कुछ नहीं किया, उसमें लिखना की हम बहुत कुछ किया वरना कोई believe नहीं करते!

[color=rgb(255,]अब आगे:[/color]

तैयार हो कर नाश्ता कर के हम जल्दी ऑफिस पहुँच गए, लाल सिंह जी आज वो मिठाई खाने के मूड में थे इसलिए उन्होंने पहले ही करुणा का नया joining letter तैयार कर रखा था| Letter हमें देते हुए उन्होंने चाय-पीने की माँग की, चाय पीने का नाम सुन मैं जान गया की वो बिना कुछ लिए मानेंगे नहीं| मैंने करुणा को इशारा किया तो उसने अपने पर्स से 500/- रुपये का एक नोट निकाला, अब लाल सिंह जी कोई चपरासी तो थे नहीं जो 500/- रुपये से खुश हो जाते इसलिए 500/- रुपये का एक नोट देख उनका मुँह बन गया| मैंने अपने पर्स से 500/- का एक नोट निकाला और करुणा के नोट के साथ मिला कर उनकी हथेली में रख कर उनकी मुट्ठी बंद करते हुए कहा;

मैं: सर अभी कमा नहीं रही, जब कमाएगी तब आपके पास फिर आएंगे|

करुणा को रिश्वत देना कतई पसंद नहीं था, इसलिए वो पैसे देने में उसका खून जल रहा था| ऑफिस से निकलते समय उसने अपना लाल सिंह जी पर का गुस्सा निकालते हुए कहा;

करुणा: इतना greedy लोग है ये, जरा भी शर्म नहीं इनको! मैं कोई पैसा वाला तो है नहीं, पैसा ही होते तो मैं यहाँ क्यों जॉब करने आता!

मैं: Dear सरकारी काम ऐसे ही होते हैं, अगर हम पैसे नहीं देते तो अगलीबार कुछ काम पड़ता तो ये आदमी काम लटका देता|

मैंने करुणा को समझाते हुए कहा|

करुणा: अगलीबार क्या काम होते?

करुणा ने हैरान होते हुए पुछा|

मैं: यार ये आपका head office है, कोई भी छोटा-मोटा काम निकल सकता है| छोड़ो ये सब बातें और बताओ की क्या खाना है?

मैंने करुणा का ध्यान खाने की तरफ लगाया, अब उसे खाना था चिकन-मटन और बाहर आ कर मुझे डर था की कहीं गलती से हम ऊँट का माँस न खा लें, इसलिए मैंने थोड़ी पूछताछ की तथा उस बजार में पहुँचा जहाँ अच्छा nonveg मिलता था| यहाँ पर एक काफी बड़ी दूकान थी पर इस वक़्त खाली थी, मैं और करुणा दूकान की पहली मंजिल पर बैठ गए| तभी वहाँ पर एक अफ़ग़ानी परिवार मियाँ-बीवी और एक बच्चा लंच करने आया| सब के सब गोर-चिट्टे, मियाँ ने पठानी सूट पहना था और बच्चे ने भी वैसा ही सूट पहना था, बीवी ने बुरखा पहना था जो की फिलहाल सामने की ओर से खुला था|

करुणा का रंग काला था इसलिए अपने सामने गोर-गोर लोगों को देख कर उसके मन में हीन भावना (inferiority complex) पैदा हुई|

करुणा: ये लोग इतना गोरा कैसे होते?

मैं: Dear ख़ूबसूरती अंदर की अच्छी होती है, बाहरी खूबसूरती को इतना मोल नहीं देना चाहिए|

मैंने बात खत्म करते हुए कहा| खाना order करने का समय था तो करुणा ने चिकन चंगेजी, बुर्रा मटन और नान मँगाए| मैंने nonveg खाना तो शुरू कर दिया था पर मैं उसे खाने के तौर-तरीके में निपुण नहीं हुआ था, आज भी मैं अपने दोनों हाथों की मदद से nonveg खता हूँ| जब खाना परोसा गया तो अचानक ही करुणा के मन में अपने दोस्त के लिए अंतहीन प्यार जाग गया, उसने बड़े प्यार से मुझे कहा;

करुणा: मिट्टू आपको मैं खिलाते!

उसका ये प्यार देख कर मुझे बहुत अच्छा लगा पर आज थोड़ा अजीब भी लग रहा था, जिसका कारन था हमारा बाहर होना| करुणा ने धीरे-धीरे मुझे अपने हाथ से खिलाना शुरू किया, वो गर्म-गर्म नान के कौर को मुटून की gravy में डुबाती और मटन का एक छोटा टुकड़ा अपने हाथ से तोड़कर नान में लपेट कर मुझे खिलाती|

कुछ मिनट बाद मेरी नजर पड़ी उस अफ़ग़ानी परिवार पर जो हमारे सामने की टेबल पर खाना खा रहा था, वहाँ बैठी बीवी की नजर हम दोनों पर थी और वो करुणा को मुझे खिलाते हुए देख कर खुश हो रही थी| शायद उसे लग रहा होगा की हम दोनों प्रेमी युगल हैं जो एक दूसरे से बहुत प्यार करते हैं| अब मुझे कुछ-कुछ शर्म आ रही थी क्योंकि हम दोनों के (करुणा और मेरे) बीच 'ऐसा' कुछ नहीं था, इसलिए मैंने करुणा से कहा की मैं खा लूँगा और साथ ही मैंने उसे इशारे से ये भी बताया की सामने वाली टेबल पर बैठी औरत हम दोनों को देख रही है|

करुणा: जब से वो आया तब से आप ही को देख रे!

करुणा ने जलन भरी आवाज से चिढ़ते हुए कहा| अब मैं समझ गया की अचानक उसके दिल में इतना प्यार कैसे आ गया|

करुणा: एक husband है, बच्चा है फिर मेरा friend को क्यों देख रे?

करुणा झुंझुला कर बोली|

मैं: Relax यार! आपका friend उसे sexy लग रहा होगा, इसलिए इतना देख रही है!

मैंने करुणा से मजाक करते हुए कहा|

करुणा: हेल्लो! आपको sexy मैं बनाया, ठीक है!

करुणा बड़े गर्व से बोली| देखा जाए तो सच ही था करुणा से मिलने के बाद ही मैंने अपना dressing sense बदला था, उससे मिलने से पहले तो मैं बस तड़प-तड़प कर दिन काट रहा था!

खाना खाते समय करुणा ने मुझे बहुत ही दिलचस्प बात बताई, जिसे सुन कर मैं पेट पकड़ कर हँसने लगा था|

करुणा: मेरा मम्मा को मेरा जीजा बिलकुल पसंद नहीं!

मैं: क्यों?

मैंने दिलचस्पी लेते हुए पुछा|

करुणा: Actually, मेरा दीदी ने love marriage किया, पर मुझे पता था की दीदी किससे कल्याणम (शादी) कर रे| जब मैं अपना जीजा से मिला न तो मुझे ये आदमी बिलकुल अच्छा नहीं लगा, इतना पतला आदमी ऊपर से ऐसा ladies वाला आवाज वाला! छी! मैं दीदी को बोला की ये आदमी अच्छा नहीं है इसको कल्याणम मत कर पर वो सुना नहीं और मुझे डाँट दिया| कल्याणम के बाद जब ये दोनों मम्मा से मिला तो मेरा मम्मा जीजा को देखते ही दीदी से बोला; "तेरे को इतना पतला आदमी ही मिला? ये तो बिलकुल 'पाटा' जैसा है, जरा सा हवा आ रे तो ये उड़ जाते!"

करुणा के मुँह से 'पाटा' शब्द सुन कर मेरे मन में उसका अर्थ जानने की जिज्ञासा हुई|

मैं: पाटा मतलबा?

करुणा: कॉकरोच!

ये शब्द सुन कर हम दोनों ठहाका मार के हँस पड़े! करुणा की माँ अपने जमाई को कॉकरोच कहती है ये सुन कर मेरी हँसी रुक ही नहीं रही थी और मुझे हँसता हुआ देख करुणा की हँसी नहीं रुक रही थी| हमदोनों को यूँ पागलों की तरह हँसता हुआ देख वो अफ़ग़ानी परिवार हमें घूर-घूर कर देख रहा था|

खैर खाना हो चूका था सामान बँध चूका था, हमने होटल से checkout किया और बस स्टैंड पहुँच कर मैंने श्री विजयनगर की टिकट ली| श्री विजयनगर तक जाने वाली बस स्लीपर बस थी और करुणा ने कहा था की मैं एक double sleeper बुक करूँ, इसलिए मैंने double sleeper ली| हम बस में बैठे और बस चल पड़ी, कुछ देर बाद माँ का फ़ोन आया तथा उन्होंने मेरा हाल-चाल पुछा| जब माँ ने दोपहर के खाने के बारे में पुछा तो मैंने उन्हें बताया की मैंने दबा कर nonveg खाया है, ये सुन कर माँ हँस पड़ीं क्योंकि उन्हें विश्वास ही नहीं हो रहा था की मैंने शहर से बाहर ऐसा कुछ खाया होगा|

कुछ देर बाद जैसे ही बस ने अपनी रफ़्तार पकड़ी तो हमारा उस स्लीपर में लेट पाना दूभर हो गया, बस जब भी मोड़ लेती तो लगता की हम दोनों फिसल कर गिर जाएंगे| कई बार बस तीव्र मोड़ लेती तो मेरा जिस्म करुणा की तरफ फिसलने लगता, मेरा जिस्म उससे छू न जाये इसलिए मुझे बहुत ध्यान रखना पड़ता था, तथा कुछ न कुछ पकड़ कर अपने जिस्म को करुणा की ओर जाने से रोकना पड़ता| दिन का समय था तो बस की खिड़की के बाहर हम कुछ इमारतें या दूसरी गाड़ियाँ देख पा रहे थे, लेकिन इसमें इस बार मजा बिलकुल नहीं आ रहा था| आज पहलीबार मैं मना रहा था की ये सफर जल्दी से जल्दी खत्म हो क्योंकि इस तंग जगह में मुझसे न तो ठीक से लेटा जा रहा था और न ही ठीक से बैठा जा रहा था| हमारे पास कुछ चिप्स और बिस्किट थे जिन्हें खाते हुए रात हुई, रात होते ही करुणा तो चैन से सो गई पर मैं बस के झटकों को सहते हुए अपने जिस्म को करुणा के जिस्म से छूने से बचाते हुए जागता रहा| रात करीब डेढ़ बजे बस ने हमें श्री विजयनगर उतारा, बस से उतर कर मैंने अंगड़ाई लेते हुए अपने अंजर-पंजर सीधे किये|

पूरे बस स्टैंड पर सन्नाटा पसरा हुआ था और करुणा को डर लगने लगा था, इसी कारन करुणा ने मेरा दायाँ हाथ पकड़ लिया| हम बाहर आये तो बाहर हमें एक ऑटो वाला मिला, मैंने उससे होटल के बारे में पुछा तो वो हमें साथ ले कर अपने कमीशन वाले होटल ले गया पर रात इतनी थी की कहीं कोई कमरा नहीं था, जहाँ था भी तो उन्होंने एक लड़का और लड़की को देने से मना कर दिया था| ऑटोवाले ने मुझे कहा की मुझे झूठ बोलना होगा की हम दोनों शादीशुदा हैं तभी कहीं कमरा मिलेगा, मैंने करुणा को ये बात बताई तो उसने मुस्कुराते हुए हाँ कर दी| इस तरह का झूठ मैं पहली बार नहीं बोल रहा था, अयोध्या में जब मैं और भौजी एक रात रुके थे तब भी हम एक पति पत्नी की तरह रुके थे| पर तब मैं भौजी से प्यार करता था इसलिए उनके साथ ये झूठ बोलने में बिलकुल डर नहीं लग रहा था, लेकिन करुणा से मेरा सिर्फ दोस्ती का रिश्ता था और इसी कारन मैं इस झूठ से बहुत डरा हुआ था| जब receptionist ने नाम पुछा तो मैंने काँपती हुई आवाज में हम दोनों का नाम बताया;

मैं: मानु मौर्या और करुणा मौर्या!

ये कह कर मैंने receptionist से नजरें चुरा ली, वहीं करुणा अपने आप को पूरी तरह सामान्य दिखा रही थी|

Receptionist: आप दोनों शादीशुदा है न?

उसने किसी अध्यापक की तरह सवाल किया, तो मैंने नकली आत्मविश्वास दिखाते हुए हाँ में गर्दन हिलाई| फिर उसने हम दोनों की ID माँगी, हमने अपनी ID दी तो उसने एक नजर भर कर दोनों को देखा और फिर ID स्कैन करने लगा| उसका यूँ हमें देखना मुझे खटकने लगा था और मेरे दिल में झूठ बोलने को ले कर जो डर था वो मुझ पर हावी होने लगा| दिल ने अचानक ही मनहूस बातें सोचना शुरू कर दिया की कुछ ही देर में ये आदमी पुलिस को फ़ोन कर के बुलाएगा और हम दोनों को हवालात पहुँचा देगा! पुलिस हमसे क्या क्या सवाल पूछेगी मैंने उन सभी सवालों की गणना करना शुरू कर दिया और मन ही मन उन सवालों का जवाब सोचने लगा|

Receptionist ने हमें हमारा कमरा दिखाया और कमरे में पहुँच कर मैंने गहरी साँसें लेनी शुरू कर दी| करुणा ने जब मुझे ऐसे देखा तो वो घबरा गई;

करुणा: क्या हुआ मिट्टू?

मैं: यार मैंने आजतक ऐसा झूठ नहीं बोला!

करुणा मेरी पीठ पर हाथ फेरते हुए बोली;

करुणा: कोई बात नहीं मिट्टू, कुछ नहीं होते! आप tension मत लो!

उसने तो कह दिया की tension मत लो पर मेरी तो हालत खराब थी|

मैं: Dear to be on a safe side, अगर कोई पूछे तो कहना की हमने love marriage की है और हमारी शादी 2 महीने पहले हुई है|

मेरी आदत थी अपने झूठ को fool proof बनाने की, इसीलिए मैंने फटाफट से झूठ सोच कर करुणा को बताया, जिसे सुन कर करुणा हँस पड़ी और ख़ुशी-ख़ुशी मेरे झूठ में सम्मलित हो गई| मैंने झूठ तो सोच लिया था पर अगर ये झूठ बोलते तो पुलिस ऐसे ही थोड़े छोड़ देती? वो तो और सवाल पूछती और फिर कुरेदते-कुरेदते वो हमारे घर तक पहुँच जाती, फिर ये बताने की जर्रूरत तो नहीं की घर में क्या तांडव होता!

हम दोनों ने कपडे बदले और लेट गए, पर मुझे चैन नहीं मिल रहा था और मैं बस करवटें बदल रहा था|

करुणा: मिट्टू टेंशन मत लो, सब ठीक होते!

करुणा ने मेरे कँधे पर हाथ रखते हुए कहा|

मैं: यार पिछले 24 घंटों में जो हो रहा है, उससे थोड़ा डरा हुआ हूँ| पहले honeymoon suite में रात गुजरना और अब नकली पति-पत्नी बन कर इस होटल में रुके हैं!

ये सुन करुणा मुस्कुराने लगी और बोली;

करुणा: May be destiny कुछ point कर रे!

करुणा की ये बात सुन कर मेरी आँखें फ़ैल गईं और मैं घूरकर उसे देखने लगा|

करुणा: मैं मजाक कर रहा था dear, क्यों इतना tension ले रे!

करुणा ठहाका लगाते हुए बोली|

किसी तरह मैं सो गया और सुबह जल्दी उठ गया, सुबह जल्दी उठने का भी एक कारन था| वो ये था की मुझे करुणा से अपना morning wood छुपाना था! अगर करुणा सुबह उठ कर पाजामे में अकड़ा हुआ मेरा उभार देख लेती तो हमारे दोस्ती के रिश्ते को तार-तार कर देती! भौजी से मिलने के बाद ही मुझे अपने सुबह के morning wood का एहसास हुआ था और तब मैं यही सोचता था की ये भौजी के प्रति मेरे शारीरिक समर्पण के कारन होता है| कोई 'ये' देख कर मुझ पर शक न करने लगे इसलिए मैं अपने morning wood को हमेशा छुपाता था| अगर मैं भौजी के इतने नजदीक नहीं गया होता तो शायद मुझे कभी morning wood के बारे में पता ही नहीं चलता|

नाहा धो कर दोनों तैयार हुए और नाश्ता करने निकले, नाश्ता हमने करुणा का मन पसंद यानी छोले-भठूरे खाये| दिल्ली वाला स्वाद तो नहीं आया पर कमसकम पेट तो भर गया, फिर करुणा के हॉस्पिटल जाते समय रास्ते में मंदिर के सामने रुक कर मैंने भगवान से प्रार्थना की कि करुणा को आज joining मिल जाये, पर होनी कुछ और ही लिखी थी!

हम दोनों सीधा उन साहब के पास पहुँचे जिन्होंने पिछलीबार हमें पूरे कागज लाने को कहा था, मैंने सारे कागज़ उनके सामने रख दिए| उन्होंने सारे कागज़ बारीकी से देखने शुरू किये, सबसे पहले उन्होंने मूल निवास पत्र देखा और उसे एक तरफ रख दिया| फिर उनकी नजर पड़ी affidavit पर, उसे देखते ही वो बोले की ये दिल्ली का affidavit है और यहाँ नहीं चलेगा| अस्पताल से कुछ दूर पर कचेहरी है जहाँ पर हमें नया affidavit बनवाना होगा| अगला कागज जो उन्होंने उठाया वो था police verification, ये कागज उनके अनुसार ठीक था तो उसे उन्होंने मूल निवास पात्र के साथ रख दिया| अंतिम कागज था करुणा का medical certificate जिसे देखते ही वो बोले की ये certificate हमें यहाँ के सरकारी अस्पताल से बनवाना होगा और जब तक हम दोनों पूरे कागज़ नहीं लाते वो joining नहीं देंगे| ये सुन कर करुणा हताश हो गई और उसकी मायूसी उसके चेहरे पर दिखने लगी| करुणा को नौकरी दिलवाना मेरी जिम्मेदारी थी इसलिए मैंने खुद को मजबूत किया और उन साहब से उस सरकारी अस्पताल का पता पुछा जहाँ ये medical certificate बनना था| उन साहब ने बताया की आज शनिवार है और अगर मैं जल्दी कागज ले आऊँ तो आज ही से joining मिल जाएगी| मैंने करुणा को साथ लिया और तेजी से बाहर निकला, बाहर लोगों से पूछते-पूछते हम कचहरी पहुँचे| कचहरी का दृश्य देख कर मैं तो हैरान रह गया, परिसर में घुसते ही वहाँ काली छतरियों का अम्बार लगा हुआ था जिसके नीचे वकील बैठे थे| इक्का-दुक्का लोगों के पास मैंने laptop देखे बाकी के सब लोग typewriter पर काम कर रहे थे| यहाँ वकीलों का बड़ा रसूख था, दिल्ली की तरह नहीं जहाँ साकेत कोर्ट में घुसते ही वकील घेर लेते हैं! यहाँ बेचारे भोले-भाले लोग वकीलों के आगे-पीछे घूम रहे थे, यहाँ पर सारा काम शुद्ध हिंदी में किया जा रहा था जो मेरे लिए नई बात थी! मैं जिधर भी नजर दौड़ता वहाँ वकील बिजी थे, ऐसे में मैंने एक वृद्ध वकील साहब को देखा| मेरी नजर उन पर पड़ते ही उन्होंने मुझे अपने पास बुलाया, हम दोनों उनके पास पहुँचे और उन्हें सब बताया| उन्होंने typewriter पर करुणा का affidavit टाइप करना शुरू किया, आज पता नहीं क्यों उस typewriter की खटर-पटर सुन कर बड़ा अच्छा लगा रहा था, मन कर रहा था की मैं ही टाइप करना शुरू कर दूँ!

वकील साहब वृद्ध थे इस कारन उनकी टाइपिंग की गति कम थी जिस कारण करुणा को कोफ़्त हो रही थी, वो मेरे कान में खुसफुसाते हुए बोली;

करुणा: आपको ये अपप्पन (वृद्ध) के अलावा कोई और नहीं दिखते!

करुणा की बात सही तो थी पर मुझे उन वकील साहब की वृद्ध दशा देख कर उनसे सहानुभूति हो रही थी| शुक्र है की affidavit ज्यादा बड़ा नहीं लिखना था वरना वकील साहब उसे लिखने में आधा दिन लगा देते, 20 मिनट में affidavit तैयार हुआ तो करुणा ने उसे sign किया फिर मैंने उस affidavit को notary और attest दोनों करवा लिया|

कचहेरी से निकल कर हम चौक पर पहुँचे और सरकारी अस्पताल तक के लिए सवारी की| हमने एक sharing ऑटो किया जिसमें मुझे ड्राइवर के बगल में बैठना पड़ा और करुणा को पीछे महिलाओं के साथ बैठना पड़ा| आधे घंटे बाद आखिर वो सरकारी अस्पताल आया, वहाँ उतर कर पूछते-पूछते हम अस्पताल के मुख डॉक्टर साहब से मिले| उन्हें भी मैंने सारी बात बताई, उन्होंने करुणा से उसकी बीमारियों के बारे में पुछा| करुणा ने उन्हें बताया की उसे कोई बिमारी नहीं है, उन्होंने एक कागज पर कुछ जाँच लिख दी और कहा की मैं बाहर से पर्ची बनवा कर ये सब जाँच करवा कर रिपोर्ट उन्हें ला कर दूँ| हम दोनों बाहर पर्ची बनवाने आये तो वहाँ बहुत लम्बी लाइन थी, आदमियों की अलग और औरतों की अलग| जो बात मैं नहीं जानता था वो ये की आदमियों की लाइन में सिर्फ आदमियों की पर्ची बनती थी और औरतों की लाइन में सिर्फ औरतों की पर्ची| मैंने करुणा को औरतों वाली लाइन में लगाया और मैं खुद मर्दों वाली लाइन में लग गया, किस्मत से मेरा नंबर जल्दी आ गया तो मैंने पर्ची बनाने वाले को करुणा के नाम की पर्ची बनाने को कहा| पर्ची बनाने वाला आदमी शायद बहरा था क्योंकि उसने करुणा नहीं करण नाम की पर्ची बना कर मुझे दे दी, मैं भी हड़बड़ी में था क्योंकि पीछे वाले धक्का-मुक्की कर रहे थे इसलिए मैंने भी नाम ठीक से नहीं पढ़ा| मैंने करुणा को जब वो पर्ची दी तो वो अपना नाम पढ़ कर हँस पड़ी और तब मुझे पता चला की नाम लिखने में गड़बड़ हुई है| मैंने करुणा को कहा की जब डॉक्टर उसके जाँच की रिपोर्ट बनाये तो वो अपना नाम ठीक से लिखवाये वरना बहुत बड़ी गड़बड़ हो जाती|

जो पहली जाँच हमें करवानी थी वो थी कान की, मैं करुणा को ले कर उस कमरे में पहुँचा तो पाया की वहाँ कोई है ही नहीं! आस-पास पूछते हुए ENT वाले डॉक्टर साहब मिले, मैंने उन्हें सारी बात बताई तो उन्होंने अपना writing pad उठाया और दो मिनट में बिना करुणा की कोई जाँच किये अपनी report लिख कर हमें दे दी| अगला नंबर था एक general physician जिसे करुणा का ECG, BP और Sugar चेक करनी थी| उनके कमरे के बाहर पहले से ही लाइन लगी थी, मैंने करुणा को साथ लिया और धड़धड़ाते हुए कमरे में घुस गया| उन्हें भी मैंने करुणा की सारी बात बताई तथा उनसे निवेदन किया की वो पहले करुणा को देख लें ताकि आज उसकी joining हो जाए| उन्होंने नर्स को बुला कर करुणा के सभी check up करने को कहा जिसमें करुणा खुद से ही मदद कर रही थी| 5 मिनट में सारे टेस्ट कर के डॉक्टर साहब ने अपनी report लिख कर हमें फारिग कर दिया| अंतिम जाँच थी आँखों की जिसके लिए हमें ऊपर जाना पड़ा, ऊपर की मंजिल बिलकुल भूलभुलैया जैसी थी, वो तो शुक्र है की मुझे रास्ता याद था वरना हम तो हॉस्पिटल में ही खो जाते| आँखों वाले डॉक्टर साहब भी बहुत व्यस्त थे, वो तो मैंने उनसे निवेदन किया तो उन्होंने करुणा को कुर्सी पर बिठा कर शब्द पढ़ने को कहे जिसे करुणा ने फुल स्पीड में पढ़ दिया| उन्होंने भी करुणा की report लिख कर हमें चलता कर दिया, सारी reports ले कर हमें बड़े डॉक्टर साहब के पास आते-आते दोपहर के 12 बज गए| उनकी छुट्टी का समय हो गया था इसलिए वो अपनी कुर्सी से उठ चुके थे, मैंने और करुणा ने उनसे बड़ी मिन्नत की कि वो बस दो मिनट रुक कर हमें करुणा का medical certificate दे दें पर वो नहीं माने और हमें सोमवार को आने का बोलकर बाहर चले गए|

सुबह से हमारी इतनी भाग दौड़ के बाद भी करुणा को आज joining नहीं मिली थी, इसे सोच-सोच कर करुणा ने हार मान ली और वो टूट के रोने लगी| मैंने आगे बढ़ कर करुणा को सम्भाला और उसे अस्पताल से बाहर लाया, उसे पीने के लिए पानी दिया तथा उससे खाने के लिए पुछा तो करुणा ने सर न में हिला कर खाने से मना कर दिया| मैंने sharing ऑटो किया जिसमें हम दोनों आमने-सामने बैठे, करुणा की आँखों से अब भी आँसूँ निकल रहे थे और उसे यूँ रोता हुआ देख मुझे बुरा लग रहा था|

करुणा: वो डॉक्टर जानबूझ कर report नहीं दिया! वो दो मिनट रुक नहीं सकता था?

करुणा गुस्से से बोली| उसका गुस्सा देख बगल में बैठी एक गाँव की औरत हैरानी से उसे देखने लगी|

मैं: यार जो होना था वो हो चूका है, आपके रोने से कुछ बदलने वाला नहीं|

मैंने करुणा को समझाते हुए कहा|

करुणा: दो मिनट रुक कर हमारा help कर रे तो God उसको bless करते, पर वो हमें attitude दिखा कर गया!

करुणा का गुस्सा जायज था पर मुझे उसके इस गुस्से से बाहर निकालना था| खाने का समय था और मैं जानता था की खाना खा कर उसका गुस्सा कम होगा, इसलिए मैं उसे ले कर सीधा एक रेस्टुरेंट पहुँचा जहाँ हमने खाना खाया| खाने के दौरान भी करुणा उस डॉक्टर को curse किये जा रही थी और मैं उसे शांत करने में लगा हुआ था|

खाना खा कर जब हम बाहर निकले तो मुझे वो होटल दिखा जहाँ हम पिछलीबार रुके थे, मैंने वहाँ जा कर पुछा की हमें यहाँ कमरा मिलेगा तो receptionist मुझे पहचान गया और हाँ में गर्दन हिलाई| मैंने उसे अपनी ID दी और कमरा ले लिया वो भी बिना पति-पत्नी का बहाना किये| फिर मैं कल रात हम जिस होटल में रुके थे वहाँ आया और अपना समान उठा कर पैसे दे कर वापस इस होटल लौट आये| अब जा कर मुझे चैन की साँस लेना का मौका मिला था, मेरे सर पर अब कोई बोझ नहीं था और मैं पूरी तरह निश्चिन्त था|

[color=rgb(51,]जारी रहेगा भाग 7(9) में...[/color]
 

[color=rgb(97,]इक्कीसवाँ अध्याय: कोशिश नई शुरुआत की[/color]
[color=rgb(251,]भाग -7 (9)[/color]


[color=rgb(44,]अब तक आपने पढ़ा:[/color]

खाना खा कर जब हम बाहर निकले तो मुझे वो होटल दिखा जहाँ हम पिछलीबार रुके थे, मैंने वहाँ जा कर पुछा की हमें यहाँ कमरा मिलेगा तो receptionist मुझे पहचान गया और हाँ में गर्दन हिलाई| मैंने उसे अपनी ID दी और कमरा ले लिया वो भी बिना पति-पत्नी का बहाना किये| फिर मैं कल रात हम जिस होटल में रुके थे वहाँ आया और अपना समान उठा कर पैसे दे कर वापस इस होटल लौट आये| अब जा कर मुझे चैन की साँस लेना का मौका मिला था, मेरे सर पर अब कोई बोझ नहीं था और मैं पूरी तरह निश्चिन्त था|

[color=rgb(255,]अब आगे:[/color]

सुबह की दौड़-भाग से मैं थक गया था, इसलिए में बिस्तर पर पड़ते ही आँखें मूँद कर सोने लगा| वहीं करुणा ने अपनी मम्मा को फ़ोन कर के मलयालम में सारा हाल सुनाया, जिसे सुन कर करुणा की माँ ने उस डॉक्टर को पेट भर कर गालियाँ दी| अब हमारे पास सिवाए सोमवार तक इंतजार करने के और कोई चारा नहीं था| जब करुणा की बात अपनी मम्मा से खत्म हुई तो मैंने उससे पुछा की उसने अपनी मम्मा को क्या-क्या बताया, मेरी उत्सुकता ये जानने में थी की करुणा ने हम दोनों के ठहरने के बारे में क्या बोला है|

करुणा ने बताया की उसने अपनी मम्मा से कहा है की medical certificate monday को मिलेगा और तब तक हम दोनों एक होटल में दो कमरों में रह रहे हैं| उसने दो कमरों में रहने की बात इस तरह से कही थी की उसकी माँ को ये पता भी रहे की हम दोनों अलग-अलग रह रहे हैं और ऐसा भी न लगे की करुणा झूठ बोल रही है!

हमने अपने कपडे बदले और पलंग पर टेक लगा कर बैठ गए, करुणा ने टीवी चलाया और वो हिंदी फिल्म देखने लगी| मैं कल रात से ठीक से सोया नहीं था इसलिए मेरी आँख लग गई और जब मेरी आँख खुली तो अँधेरा हो चूका था|

करुणा बोली की उसे ice cream खानी है, उसकी ये ख्वाइश सुन कर मैं हँस पड़ा क्योंकि उसने किसी बच्चे की तरह गाल फुला कर कहा था| मैंने मुँह धोया और हम कमरा लॉक कर के नीचे आ गए, हमें नीचे देख receptionist ने रात के खाने के बारे में पुछा| करुणा ने वहाँ रखा हुआ menu कार्ड उठाया और देखने लगी, हमने पाँच मिनट ले कर खाने का आर्डर दिया और होटल से बाहर आ गए| बाहर आते ही करुणा ने मेरा दायाँ हाथ अपने दोनों हाथों से पकड़ लिया| ये बहुत ही छोटा शहर था तो यहाँ ice cream हमें ढूँढ़नी पड़ी! दो दूकान में पूछते हुए हम तीसरी दूकान की ओर चल पड़े, रास्ते भर मैंने अभी तक एक भी लड़की नहीं देखि थी, मुझे तो लग रहा था की इस शहर में सिर्फ मर्द ही रहते हैं, इनके बीच करुणा कैसे रहेगी मुझे इसकी चिंता होने लगी थी| रास्ते में जो कोई भी आदमी दिखता था वो हम दोनों को बड़ा घूर के देखता था, मैंने अभी तक किसी को खुद को यूँ घूरते नहीं देखा था पर करुणा की नजरें सब को देख रहीं थीं, जिस कारण करुणा बहुत ही असहज महसूस कर रही थी और थोड़ी डरी हुई थी|

आखिर हम ice cream वाली दूकान पर पहुँचे, बाहर की ओर दूकान वाले ने दो लम्बे fridge रखे थे जिसके भीतर ice cream भरी हुई थी| करुणा उस फ्रिज के सामने खड़ी हो कर शीशे से अंदर झाँक कर देखने लगी की कौन-कौन सी ice क्रीम वहाँ पर रखी है| मैंने इशारे से दूकान वाले लड़के को बुलाया और उससे पुछा की कौन-कौन से brand हैं तो उसने बताय की उनके पास बस amul की ही ice क्रीम है, फिर उसने मुझे fridge में रखे flavors के बारे में बताया| करुणा को चाहिए था बस strawberry flavor वाला कप तो मैंने उसे वो दिलवाया, मैंने अपने लिए mango वाली कुल्फी ली| करुणा ने अपनी strawberry वाली ice cream चखी तो वो उसे कुछ ख़ास पसंद नहीं आई, किसी बच्चे की तरह उसने अपना कप मुझे दिया और मेरी वाली कुल्फी ले कर चखी|

करुणा: मिट्टू....उम्म्म...आपका choice (पसंद) इतना अच्छा क्यों?

करुणा को मेरी mango वाली कुल्फी बहुत पसंद आई|

करुणा: आप मेरा वाला ice cream खाओ, मैं ये खाते!

ये कहते हुए करुणा हँसने लगी, कुछ पल पहले उसके मन में जो डर बसा हुआ था वो अब उड़न छू हो चूका था| वहीं मैं उसके चेहरे पर आई हँसी को देख कर खुश हो गया था|

Ice cream खाते हुए तथा बात करते हुए हम वापस अपने होटल की तरफ चल दिए, करुणा ने अपने बाएँ हाथ से मेरा दायाँ हाथ पकड़ रखा था| कुछ देर बाद माँ का कॉल आया तो मैंने करुणा को चुप रहने को कहा और मैं माँ से बात करने लगा| माँ के पीछे से मुझे गाने-बाजे और लोगों की चहल-पहल सुनाई दे रही थी| माँ ने पुछा की मैं कैसा हूँ और मैंने कुछ खाया-पीया या नहीं? मैंने उन्हें बताया की खाने का आर्डर दे दिया है और कुछ देर बाद खाना आ जाएगा| अब माँ क्या जाने की यहाँ उनका लड़का एक अनजान शहर में रात को एक लड़की के साथ घूम रहा है जिसने उसका हाथ पकड़ रखा है|

माँ से बात करने के बाद करुणा मुस्कुराते हुए पूछने लगी की मम्मा कैसी हैं?

मैं: माँ पूछ रहीं थीं की मैं कैसा हूँ और क्या कर रहा हूँ? अब उन्हें कैसे बताऊँ की मैं यहाँ आपका हाथ पकड़ कर सड़क पर घूम रहा हूँ!

मैंने हँसते हुए कहा और मेरी ये बात सुन कर करुणा भी हँस पड़ी|

हम होटल पहुँचे तो खाना आ चूका था, हमने खाना खाया और लेट गए| करुणा ने टी.वी. चालु किया, कुछ देर तक मैंने देखा फिर मुझे नींद आने लगी तो मैं सो गया| करुणा ने भी टी.वी. बंद किया और दूसरी ओर करवट ले कर सो गई| अगले दिन रविवार था इसलिए करुणा सोना चाहती थी, पर मैं आज के दिन करुणा के लिए हॉस्टल ढूँढना चाहता था| बड़ी मुश्किल से मैंने करुणा को जगाया और उसे हॉस्टल ढूँढने जाने को तैयार किया| मैं दिल्ली से ही अपने साथ हॉस्टल की एक लिस्ट बना कर लाया था, उसमें मैंने हॉस्टल की फीस और पते दोनों लिखे थे| मैंने लिस्ट निकाली और हॉस्टल का पता पूछने लगा, पूछते-पूछते हम उस जगह तो पहुँचे जहाँ का पता मेरे पास था पर वहाँ पर अब कोई हॉस्टल नहीं था! दरअसल इंटरनेट से मिले सभी पते 2 साल पुराने हो चले थे इसीलिए वहाँ कोई भी हॉस्टल नहीं था| मैंने आस-पास लेडीज हॉस्टल के बारे में पूछना शुरू किया तब जा कर हमें कुछ जगह मिलीं|

हम पहली जगह पहुँचे तो वहाँ पर एक सरदारनी आंटी जी का घर था| आंटी जी घर के आँगन में खड़ीं washing machine में कपडे डाल रहीं थीं, तथा उनकी कमर पर किरपान लटकी हुई थी| उस किरपान को देखते ही मैं समझ गया की वो सरदारनी हैं| उनके घर में करीब 5-7 लड़कियाँ रहतीं थीं, वो असल में हॉस्टल नहीं बल्कि Girls PG था| वहाँ जा कर मैंने करुणा के बारे में बताया तो आंटी जी ने दो लड़कियों को आवाज मारी और मुझे बिठा कर सब समझाने को कहा| जब वो दो लड़कियाँ आईं तो मैं तो बस उन्हें देखता ही रह गया, क्या बला की खूबसूरत लड़कियाँ थी! दूध सा गोरा रंग, पंजाबी सूट पहने हुए जिसमें दुपटा नहीं था, आवाज में मिठास लिए वो मुझसे बात करने लगीं| आज सालों बाद मेरे अंदर छुपा एक कुंवारा लड़का साँस लेने बाहर निकला था! मैंने उन्हें अपने तथा करुणा के बारे में जानकारी दी और कुछ इस ढंग से दी की मैं बात को ज्यादा से ज्यादा लम्बा खींच सकूँ| उनसे बात करते समय मेरे लहजे में कोई शैतानी नहीं थी, बल्कि मासूमियत भरी पड़ी थी|

मैं ये नहीं जानता था की करुणा मेरा बदला हुआ मिजाज देख और पढ़ रही है! उन लड़कियों ने मुझे हॉस्टल की फीस, खाना-पीना तथा रहने के नियम-कानून बताये| उस हॉस्टल में रहने वाली सभी लड़कियाँ कॉलेज में पढ़ने वालीं थीं, तथा आंटी जी के नियम-कानून बड़े सख्त थे! अब दिक्कत ये थी की करुणा की तनख्वा कम थी और हॉस्टल की फीस ज्यादा! मैंने सरदारनी आंटी जी से इस बारे में बात की तो वो कम पैसों के लिए मान गईं, फिर उन्होंने करुणा से बात की और उसे प्यार से डाँटते हुए कहा;

आंटी जी: कुड़िये तू कमजोर है! तू मेरे कोल रहेगी ते मैं तैनू खूब खवनवानगी!

ये सुन आस पास मौजूद लड़कियाँ बाहर आईं और हँस पड़ीं|

जब मेरी नजर उन सब लड़कियों पर पड़ी तो मैं तो दंग रह गया; 'ओ तेरी! सारी खूबसूरत लड़कियाँ तो यहाँ बंद हैं तभी कल रात को कोई दिखी नहीं!' मेरे दिल से आवाज आई| मैंने आंटी जी का नंबर लिया और हम बाहर आ गए, बाहर आते ही करुणा ने मेरे बाजू पर मुक्का मारा और पिनकते हुए बोली;

करुणा: मैं पतला है तो इसमें उन आंटी को क्या हो रे?

तब मैंने करुणा को समझाया की वो उसका मजाक नहीं उड़ा रहीं थीं, बल्कि अपना प्यार दिखाते हुए कह रहीं थीं की वो करुणा का अच्छे से ख्याल रखेंगी|

खैर मैंने वहाँ और किसी हॉस्टल या PG की खोज की तो एक जगह और मिली, हम वहाँ पहुँचे तो वो घर किसी दीदी का था| वो divorcee थीं, उनके घर में उनके आलावा दो लड़कियाँ रहतीं थीं| मैंने घर के अंदर एक हौंडा बाइक खड़ी देखि, मैंने उसकी ओर इशारा करते हुए पुछा तो उन्होंने बताया की उनका भाई भी वहीं रहता है| उस घर में अपने खाना करुणा को खुद बनाना था जो की करुणा को नहीं जचा| जबकि मेरा ध्यान अभी भी उस लड़के और उसकी बाइक पर अटक गया था, एक लड़के की मौजूदगी में मुझे करुणा की सुरक्षा की चिंता हो रही थी|

दीदी हमें एक कमरे में ले कर गईं जहाँ एक सुंदर सी लड़की पलंग पर लेट कर किताब पढ़ रही थी| करुणा कमरा देखने लगी और मैं चोर नजरों से उस लड़की को देखने लगा| वो लड़की बड़े उखड़े स्वभाव की थी, हम तीनों कमरे में मौजूद थे और वो बड़े आराम से पसर कर लेटी हुई थी, उसने उठ कर बैठने तक की जहमत नहीं दिखाई! पर मुझे क्या, मैंने तो उसे देख कर 'नैन सुख' लिया और दीदी से शाम तक सोच कर बताने का बोल कर बाहर निकलने लगा| दीदी ने मुझे रोक कर मेरा नंबर लिया और miss call मार के अपना नंबर मुझे दे दिया, ताकि कल आने से पहले मैं उन्हें call कर दूँ|

कुछ दूर आ कर मैंने हॉस्टल की और छानबीन की तो पता चला की यहाँ कोई और हॉस्टल PG है ही नहीं! वहीं करुणा से धुप में घूमना दूभर हो रहा था तो उसने वापस होटल चलने को कहा, होटल के रास्ते में रुक कर मैंने पानी की बोतल ली और दुकानदार से PG के बारे में पुछा तो उसने एक घर की ओर इशारा किया की वहाँ पर कमरा मिल जायेगा| करुणा ने मेरी दुकानदार से हुई बात सुन ली थी और वो अब सिर्फ होटल जाना चाहती थी| मैंने उसे समझाते हुए कहा;

मैं: Dear एक-दो दिन की बात होती तो मैं आपके साथ ही रुकता, पर ये आपकी जिंदगी का सवाल है! थोड़ी कोशिश कर लेने दो, क्या पता कोई अच्छा घर मिल जाए?!

मैंने करुणा को उम्मीद बँधाते हुए समझाया, बेमन से ही सही वो मान गई| जब हम उस घर में दाखिल हुए तो वहाँ एक पति-पत्नी रहते थे और वो कमरा किराए पर देना चाहते थे, पर जो किराया वो माँग रहे थे वो दे पाना हमारे बजट में नहीं था|

आखिरकर हम होटल लौट आये, सबसे पहले मैंने खाने का आर्डर दिया और नहाने के लिए अपने कपडे निकाले| उधर करुणा ने अपनी मम्मा को कॉल मिला कर उन्हें आज हमारी हॉस्टल ढूँढने की बात बताई| मुझे लगा था की उसकी मम्मा हॉस्टल के बारे में जानकारी लेंगी की उसका मालिक कौन है, कितनी दूर है, खाने-पीने का क्या हिसाब है, पर उसकी माँ ने ये फैसला मेरे ऊपर छोड़ते हुए कहा; "मिट्टू से कहो की वो देखे की कौन सा हॉस्टल ठीक रहेगा|" मैं ये तो जानता था की करुणा की बहन को करुणा की कोई परवाह नहीं, पर उसकी माँ का भी वही हाल था!

मैं नहाने जाने लगा तो करुणा बोली की उसके पास मुल्तानी मिटटी का face pack है, तथा वो चाहती है की हम दोनों वो pack लगाएँ | मैंने मना किया तो करुणा मुझे छेड़ते हुए बोली;

करुणा: ये लगा रे तो आप और गोरा हो जाते, फिर यहाँ का गोरी-गोरी लड़की के साथ आप compatible लगते!

करुणा की बात सुन कर मुझे समझ आया की उसने मुझे हॉस्टल ढूँढ़ते समय ''नैन सुख'' लेते हुए देख लिया था| अब चोरी पकड़ी गई थी तो सोचा की कबुल करने में क्या दिक्कत है?

मैं: यार सच में कल रात जब हम बाहर घूम रहे थे तो मुझे लगा की यहाँ बस आप ही एक लड़की हो, पर आज जितनी खूबसूरत लड़कियाँ देखीं उतनी तो मैंने दिल्ली में नहीं देखि थी!

मेरी बात सुन कर करुणा खिलखिलाकर हँस पड़ी| फिर हमारी आज देखि सभी लड़कियों पर चर्चा शुरू हुई, ये चर्चा कोई अभद्र चर्चा नहीं थी बस कपडे पहनने के ढंग और बाहरी ख़ूबसूरती तक ही सीमित थी| देखने वाली बात ये थी की मुझसे ज्यादा करुणा ने उन लड़कियों को "ताड़ा" था!

मैं: आप पक्का लड़की हो न? कहीं आपके "system" में कुछ गड़बड़ तो नहीं?

मैंने करुणा की टाँग खींचते हुए पुछा तो वो ठहाका मार कर हँस पड़ी|

करुणा: मैं लड़की ही है, बस beauty को appreciate करते!

करुणा हँसते हुए बोली|

मैं: पता नहीं, मुझे तो आप पर full doubt है!

मुझे करुणा की टाँग खींचने का सुनहरा मौका मिल गया और अगले 10 मिनट तक मैंने उसकी खूब टाँग खींची|

पता नहीं कैसे करुणा ने मुझे face pack के लिए मना लिया, face pack लगाते समय करुणा ने मुझे बताया की इसे लगाने के बाद मैं 'हँस' नहीं सकता| मुझे लगा की करुणा मजाक कर रही है पर जब उसने वो face pack मुझे लगाया और वो सूखा तो मुझसे मेरे चेहरे की मासपेशियाँ हिलानी मुश्किल हो गईं! अब बारी थी करुणा की मेरी टाँग खींचने की, उसने रह-रह कर वो सारी बातें याद दिलाईं जिन्हें याद कर के मैं हँसने पर मजबूर हो गया, पर जैसे ही मैं हँसता मेरे चेहरे की मासपेशियाँ खींचने लगतीं! मेरी ये हालत देख कर करुणा को बहुत मजा आ रहा था पर अब मेरी बरी थी! मैंने उसे भरभर के चिढ़ाया और उसे हँसने पर इतना मजबूर कर दिया की, करुणा को मुझे कुछ देर पहले हँसाने के लिए मुझसे माफ़ी माँगनी पड़ी!

हम दोनों ने face pack लगाया हुआ था और एक दूसरे को देख-देख कर हमें बहुत हँसी आ रही थी, हमारी इसी हँसी के कारन हमारा face pack चटक गया| अब समय था इसे धोने का तो हम दोनों ही बाथरूम में घुसे, पहले करुणा ने अपना मुँह धोया और उसके चेहरे पर वाक़ई में दमक आ गई थी| अब मेरी बारी थी मुँह धोने की, पर दिक्कत ये की करुणा ने ये face pack मेरे पूरे चेहरे पर लगाया था, मतलब की उसने मेरी दाढ़ी के ऊपर भी ये face पैक लगा दिया था! जब मैंने मुँह धोना शुरू किया तो सारा face pack washbasin में भर गया और नाली choke हो गई! मैंने आँखें बंद कर रखी थी इसलिए मुझे बाथरूम में नल ढूँढने में खासी मशक़्क़त हो रही थी| मैंने करुणा को आवाज दी और उसने मेरा हाथ पकड़ कर मुझे शावर के नीचे खड़ा किया और एकदम से शावर चालु कर दिया| ठंडा पानी पड़ते ही मैं एकदम से काँप गया, जैसे-तैसे मैंने अपना मुँह साफ़ किया और फिर आँख खोली तो पाया की मैं पानी से तरबतर करुणा के सामने खड़ा हूँ|

मैं: ओ पागल लड़की! बाहर जा, मुझे नहाने दे!

मैंने प्यार से करुणा को डाँटते हुए कहा| नहा धो कर मैंने अपनी टी-शर्ट तथा पजामा धोया और दूसरे कपडे पहनकर बाहर आया| अपने innerwear को मैंने साबुन लगा कर थोड़ी देर के लिए छोड़ दिए थे, जब मैं अपने कपडे बाहर रख कर वापस आया तो करुणा मेरे innerwear धो रही थी| मैंने उसे बहुत मना किया और अपना कच्छा उसके हाथ से छीनना चाहा तो करुणा ने झटके से मेरा कच्छा खींच कर अपनी कमर के पीछे छुपा लिया| अब मैं उससे ज्यादा जबरदस्ती नहीं कर सकता वरना मुझे करुणा के और नजदीक जाना होता जो ठीक नहीं होता!

करुणा: आपको क्या प्रॉब्लम है, अगर मैं आपका underwear धो रे तो?

करुणा कुछ गुस्से से बोली|

मैं: Dear अच्छा नहीं लगता, मैं लड़का हूँ और अच्छा नहीं लगता की आप मेरा इस्तेमाल किया हुआ "innerwear" धोओ!

मैंने करुणा को समझाना चाहा पर उसने मेरी बात सिरे से नकार दी और बोली;

करुणा: आप मेरा friend है और friend का कपडा धो रे तो कुछ नहीं होता!

करुणा मेरे innerwear धो कर नहाने लगी और मैं बाहर कमरे में बैठा टी.वी. देखने लगा, 5 मिनट बाद करुणा ने बाथरूम से सिर्फ अपनी गर्दन बाहर निकाली और बोला की मैं बालकनी में देखूँ क्योंकि करुणा को लग रहा था की हमारे बगल वाले कमरे में रुका कोई आदमी बाथरूम के अंदर झाँक रहा है| मैंने बालकनी में देखा तो वहाँ कोई नहीं था, मैंने कमरे में आकर करुणा को बताया की बाहर कोई नहीं है, तब जा कर वो चैन से नहाई|

करुणा नहा कर आई और हमने खाना खाया, खाना खा कर पलंग पर पीठ टिका कर बैठ गए| टी.वी. पर कुछ आ नहीं रहा था तो करुणा ने मुझसे कहा की मैं अपने फ़ोन पर एक मलयालम फिल्म लगाऊँ| मैंने एक comedy फिल्म लगाई और हम दोनों वही देखते हुए हँसने लगे, कुछ देर बाद करुणा मेरे कँधे पर सर रख कर लेट गई| शाम होने तक हमने वो फिल्म देखि और इस दौरान हम बहुत-बहुत हँसे!

शाम हुई, हमने चाय पी और अँधेरा होने पर हम घूमने निकले| घुमते-घुमते मैंने करुणा से हॉस्टल के बारे में बात शुरू की, आज जो हमने हॉस्टल की छानबीन की थी उस हिसाब से मुझे आंटी जी वाला PG ठीक लग रहा था| एक तो वहाँ सुंदर-सुंदर लड़कियाँ थीं, दूसरा वहाँ पर कोई आदमी नहीं था और तीसरा हॉस्टल और करुणा के हॉस्पिटल के बीच मुश्किल से 10 मिनट का रास्ता था| करुणा को भी वही जगह ठीक लगी थी, मैंने सोच लिया था की कल joining मिलने के बाद करुणा का सारा समान वहीं शिफ्ट करवा दूँगा|

हम घूम कर होटल लौटे तो रात के लिए खाने का आर्डर देना था, पर आज करुणा का मन कुछ स्पेशल खाने का था तो उसने 'Lamb Biryani' का आर्डर दिया| सच कहूँ तो मेरा मन बिरयानी खाने का बिलकुल नहीं था क्योंकि इतने कम समय में मैं Hardcore Non-vegetarian नहीं बना था, पर मैं अगर खाने से मना करता तो बेचारी करुणा भी नहीं खा पाती इसलिए मैं मान गया पर साथ में मैंने कचुम्भर सलाद का आर्डर भी दे दिया| हम कमरे में वापस आये तो करुणा ने Lamb Biryani की गाथा सुनानी शुरू कर दी और मैं बस ये गाथा ध्यान से सुनने का दिखावा करता रहा| जब खाना आया तो वो एक aluminium foil में पैक था, करुणा ने बड़े उत्साह से पैक खोला और जो सामने था उसे देख कर मैं स्तब्ध रह गया! काली gravy में लिपटे हुए उन चावलों को देख मुझे उबकाई आ रही थी| चम्मच से मैंने lamb का एक पीस उठाया और उसे चख कर देखा तो वो कुछ ठीक था पर चावल खाने से मुझे घिन्न आ रही थी! करुणा शायद अभी तक मेरे अंदर की घिन्न देख नहीं पाई थी तभी उसने चावल का एक कौर मुझे खिलाने को अपना हाथ मेरे होठों के आगे लाई| अब मरते क्या न करते मैंने वो कौर खा लिया, मुँह में वो कौर जाते ही मिर्ची का इतनी जोरदार झटका लगा की मैं पानी पीने के लिए भागा! करुणा ने भी एक कौर खा कर देखा और उसे भी तेज मिर्ची का एहसास हुआ| पर खाना तो बर्बाद कर नहीं सकते थे, किस तरह से मैंने 3-4 कौर खाये उसके बाद मैंने हाथ जोड़ दिए और अपनी कचुम्भर सलाद खा कर पेट भर लिया| करुणा ने बड़ी मुस्किल से आधी बिरयानी खाई, उसके बाद उससे भी नहीं खाया गया|

बर्तन कमरे के बाहर रख कर हम सो गए, सुबह फटाफट मैं उठा और नहा-धो कर तैयार हुआ| करुणा उठी और तैयार हो कर आ गई, हम जल्दी से उस सरकारी अस्पताल पहुँचे जहाँ से हमें करुणा का medical certificate लेना था| हम तो समय से पहुँच गए थे पर वो बड़े डॉक्टर साहब लेट आये| उनके आने तक करुणा ने अपनी माँ को फ़ोन किया और सब बातें बताने लगी| कुछ देर बाद जब बड़े डॉक्टर साहब आये तब उन्होंने हमें करुणा का medical certificate दिया, वो certificate ले कर हम दोनों सीधा joining के लिए पहुँचे| वहाँ पहुँच कर देखा तो वहाँ भी साहब गायब थे, आधा घंटा तो हमने इंतजार किया फिर मैं करुणा को उनके कमरे में बिठा कर उन साहब को ढूँढने निकला| वो साहब मुझे ऑफिस के पीछे चाय-सुट्टा पीते हुए मिले, मुझे देख उन्होंने सिगरेट बुझाई और मेरे साथ कमरे में लौटे| करुणा के सारे कागज़ देख कर वो करुणा से बोले;

साहब: सारे कागज ठीक है, तुम्हारी joining मैं आज से ही दे रहा हूँ! तुम्हारी posting घरसाना में है तो अभी जा कर वहाँ रिपोर्ट करो|

घरसाना का नाम सुन कर मुझे याद आया की करुणा को पोस्टिंग तो वहाँ मिली थी! मैं हैरानी से करुणा को देखने लगा, मेरी ये हैरानी साहब जी ने देख ली और मुझे रास्ता बताते हुए बोले;

साहब: घरसाना यहाँ से करीब डेढ़ घंटा दूर है, यहाँ से राजस्थान रोडवेज की बस जाती है| जल्दी चले जाओ वरना बस छूट जाएगी!

मैंने करुणा को साथ लिया और बस स्टैंड पहुँचा, बस स्टैंड पहुँचने तक मैं सोच में पड़ गया| श्री विजय नगर से घरसाना रोज बस से जाना ये सोच कर मैं बहुत चिंता मैं था| रोज यूँ डेढ़ घंटे का रास्ता अकेले सफर करना करुणा के बस की बात नहीं थी, ऊपर से मुझे उसकी सुरक्षा की भी बहुत चिंता हो रही थी| मैंने सोचा की चलो एकबार घरसाना पहुँच कर वहाँ पर ही करुणा के रुकने का कोई इंतजाम कर दूँगा|

[color=rgb(51,]जारी रहेगा भाग 7(10) में...[/color]
 

[color=rgb(97,]इक्कीसवाँ अध्याय: कोशिश नई शुरुआत की[/color]
[color=rgb(251,]भाग -7 (10)[/color]


[color=rgb(44,]अब तक आपने पढ़ा:[/color]

करुणा के सारे कागज़ देख कर वो करुणा से बोले;
साहब: सारे कागज ठीक है, तुम्हारी joining मैं आज से ही दे रहा हूँ! तुम्हारी posting घरसाना में है तो अभी जा कर वहाँ रिपोर्ट करो|
घरसाना का नाम सुन कर मुझे याद आया की करुणा को पोस्टिंग तो वहाँ मिली थी! मैं हैरानी से करुणा को देखने लगा, मेरी ये हैरानी साहब जी ने देख ली और मुझे रास्ता बताते हुए बोले;
साहब: घरसाना यहाँ से करीब डेढ़ घंटा दूर है, यहाँ से राजस्थान रोडवेज की बस जाती है| जल्दी चले जाओ वरना बस छूट जाएगी!
मैंने करुणा को साथ लिया और बस स्टैंड पहुँचा, बस स्टैंड पहुँचने तक मैं सोच में पड़ गया| श्री विजय नगर से घरसाना रोज बस से जाना ये सोच कर मैं बहुत चिंता मैं था| रोज यूँ डेढ़ घंटे का रास्ता अकेले सफर करना करुणा के बस की बात नहीं थी, ऊपर से मुझे उसकी सुरक्षा की भी बहुत चिंता हो रही थी| मैंने सोचा की चलो एकबार घरसाना पहुँच कर वहाँ पर ही करुणा के रुकने का कोई इंतजाम कर दूँगा|

[color=rgb(255,]अब आगे:[/color]

करुणाका तो पता नहीं पर मैं आज बहुत सालों बाद रोडवेज की बस में सफर करने वाला था| हम बस स्टैंड पर पहुँचे ही थे की एक बस आ कर लगी और कंडक्टर ने 'घरसाना' का नाम लिया| हम बस में चढ़े तो देखा की वो बस लगभग भरी हुई है, पीछे की तरफ three seater सीट पर खिड़की की तरफ एक लड़का बैठा है, हम दोनों वहीं बैठने लगे पर करुणा को तो बीच में बिठा नहीं सकता था क्योंकि मैंने 'बस यात्रा' में हुई छेड़खानी की बहुत सी कहानियाँ पढ़ रखी थीं, इसलिए मुझे ही बीच में बैठने पड़ा| सुबह के साढ़े ग्यारह बजे थे और गर्मी ने हमें तपाना शुरू कर दिया था, जबतक बस ने अपनी रफ़्तार नहीं पकड़ी तबतक मैं पसीने से लगभग भीग चूका था| उधर बस में बैठे हुए सभी सवारियों की नजर हम दोनों पर ही थी, ख़ास कर बूढी महिलाएँ तो करुणा और मुझे घूर-घूर कर देख रहीं थीं| लोगों का यूँ हमें देखना अब मुझे चुभने लगा था और मुझे पुनः करुणा की चिंता होने लगी थी| कुछ देर बाद कंडक्टर हमारे पास आया और हमारे गंतव्य स्थान के बारे में पुछा तो मैंने घरसाना कहा| उसने मुझसे पैसे लिए और टिकट दी, जब टिकट देखि तो समझ आया की राजस्थान में महिलाओं को बस यात्रा पर 10% की छूट दी जाती है| अभी तक मैंने ऐसा किसी भी राज्य में नहीं देखा था, मैंने इसे ही विषय बना कर करुणा से बात शुरू की क्योंकि हॉस्पिटल से निकलने से ले कर अभी तक हम दोनों खामोश थे|

करुणा: देखा मिट्टू, लड़की होने का कितना फायदा होता है?

करुणा हँसते हुए बोली| उसे अपनी टिकट पर छूट मिलने पर बड़ा गर्व हो रह था!

गर्मी कड़क थी तो करुणा मैडम तो मेरे कँधे पर सर रख कर सो गईं और इधर मैं खिड़की से बाहर जम्हाई लेते हुए जागता रहा| डेढ़ घंटे बाद घरसाना आया तो मैं और करुणा बस से उतरे, सरकारी अस्पताल का पता पूछते हुए हम आखिर अस्पताल पहुँच ही गए| मैंने यहाँ करुणा की joining के लिए छान-बीन की तो पता चला की यहाँ भी बड़े साहब नहीं आये, उनके आने का समय दोपहर बाद का था तो हमारे पास सिवाए इंतजार करने के और कोई चारा नहीं था| वहीं करुणा की joining की हवा पूरे अस्पताल में फ़ैल गई और हमें ढूँढ़ते हुए वहाँ का स्टाफ आ धमका| 2 पुरुष कम्पाउण्डर, एक एम्बुलेंस ड्राइवर, 3 अधेड़ उम्र की नर्सें तथा एक junior डॉक्टर, सभी ने आ कर हमें घेर लिया| सब ने करुणा और मुझसे बात चीत शुरू की, करुणा से उसकी पढ़ाई, उसके घर तथा पुरानी नौकरी के बारे में पुछा और मुझसे उन्होंने मेरा परिचय लिया| करुणा की वहाँ joining को ले कर सभी गर्म जोशी से भरे हुए थे, हम दोनों को सभी नर्सों वाले कमरे में ले गए और वहाँ बिठा कर बात चीत शुरू हुई| बकायदा हमारे लिए चाय मँगाई गई और बातचीत का लम्बा दौर शुरू हुआ, उस दौरान जिस किसी को काम होता वो चला जाता, पर उसकी जगह दूसरा व्यक्ति रुक कर बातें करने लगता| यहाँ का सारा स्टाफ अधेड़ उम्र यानी 40 साल से ऊपर का था, बस एक वो junior डॉक्टर ही थी जो करीब 35 की लग रही थी| दूसरी बात जो मैंने गौर की वो ये की सारा स्टाफ या तो राजस्थान का रहने वाला था या फिर पंजाबी था| 2 अधेड़ उम्र की नर्सें तो पंजाबी थीं, क्योंकि उनकी बोली में पंजाबी साफ़ झलक रही थी| तीसरी और सबसे जर्रूरी बात ये की पूरे स्टाफ को लग रहा था की मेरा और करुणा का चक्कर अर्थात प्रेम-प्रसंग चल रहा है, क्योंकि उनकी बातें ज्यादा कर के मुझे जानने से जुडी हुईं थीं| वे सभी सोच रहे थे की मैं एक प्रेमी की तरह करुणा की जिंदगी के सभी फैसले मैं करता हूँ इसलिए उनके सवालों में हम दोनों के रिश्ते को जानने की एक अद्भुत जिज्ञासा थी| हालाँकि मैं और करुणा अपनी तरफ से पूरी कोशिश कर रहे थे की हमारे दोस्ती के रिश्ते को अच्छी तरह से उनके सामने रख सकें पर लगता है इसका कोई फर्क पड़ नहीं रहा था|

खैर बातें हो रहीं थीं और सब यहीं आस-पास के रहने वाले थे तो मैंने करुणा के रहने की बात चलाई| मैंने उन्हें बताया की श्री विजय नगर में तो मैंने एक PG ढूँढा था पर वहाँ से यहाँ रोजाना सफर करना करुणा के लिए नामुमकिन है, ऐसे में अगर यहीं रहने का इंतजाम हो जाए तो करुणा का काम बन जायेगा| वहाँ की सबसे उम्र दराज नर्स ने कामिनी नाम की किसी नर्स को बुलाने को कहा, उन्होंने हमें बताया की ये नर्स केरला की रहने वाली हैं तथा यहाँ अपने परिवार के साथ रहती हैं| हम दोनों जब से आये थे हमने उन्हें नहीं देखा था और चूँकि वो केरला से थीं तो मेरा दिल उम्मीद कर रहा था की वे ही करुणा की रहने की समस्या का निवारण कर देंगी|

लेकिन जब वो मैडम आईं तो मेरे दिल में घबराहट शुरू हो गई| केरला साड़ी पहने हुए, बगल में पर्स टाँगे, भारी-भरकम जिस्म की मालकिन!!! भारी-भरकम जिस्म से मेरा मतलब मोटा होना नहीं, बल्कि शरीर के उन ख़ास हिस्सों पर अत्यधिक माँस होने से है जो एक पुरुष को अत्यधिक लुभाते हैं! कमरे में घुसते ही उनकी नजर पहले करुणा पर पड़ी और वो उससे सीधा ही मलयालम में बात करने लगीं| दोनों के बात करने का लहजा ऐसा था मानो बहुत पुरानी सहेलियाँ हों! दोनों ने पता नहीं मलयालम में क्या गिटर-पिटर की, जब करुणा ने मेरी और इशारा कर के कुछ कहा तब मैं समझा की वो मुझे अपना दोस्त बता रही है| अब जा कर उन कामिनी मैडम का ध्यान मुझ पर गया, नजाने मुझे ऐसा क्यों लगा जैसे वो मुझे सर से ले कर पाँव तक अपनी आँखों के scanner से scan कर रहीं हैं! उनकी नजरों में अलग सी चुभन थी कुछ-कुछ वैसी है जैसी रसिका भाभी की आँखों में होती थी, शायद यही कारन है की उन्हें देखते ही मेरे दिमाग में खतरे की घंटी बजने लगी थी!

मैंने बात शुरू करते हुए उन्हें अपना नाम बताया और सीधा उनसे मुद्दे की बात की, उन्होंने बताया की ये कोई शहर नहीं है जहाँ पर मुझे हॉस्टल या PG मिलेगा, यहाँ पर तो शायद कहीं कमरा किराए पर मिल जाए तो वो हमारी किस्मत है! बात चिंता जनक थी इसलिए हम दोनों के चेहरे पर हवाइयाँ उड़ने लगी थीं, तभी कामिनी मैडम एकदम से बोलीं;

कामिनी: मानु तुम चिंता मत करो, ये मेरे घर में ही रह लेगी| मेरे पति वैसे भी दुबई गए हैं और बच्चे मुंबई में पढ़ रहे हैं, मैं घर पर अकेली ही रहती हूँ तो ये मेरे साथ रह सकती है|

उनकी बात सुन करुणा तो खुश हो गई पर मेरी चिंता अब भी वैसी की वैसी थी, मुझे कामिनी पर शक होने लगा था और उसके घर में करुणा का रहना मुझे किसी खतरे की दस्तक लग रही थी! खैर लंच टाइम हो गया था और सारा स्टाफ खाना खाने बैठ रहा था तो हम दोनों खाना खाने बाहर चल दिए| बाहर आ कर मैंने करुणा से बात करनी शुरू की, मुझे जानना था की करुणा इस जगह, यहाँ के लोगों के बारे में क्या सोच रही है? करुणा ने बताया की कुछ डरी हुई है, यहाँ के लोग विजय नगर की तरह ही हमें घूर रहे थे और उनकी ये नजरें करुणा को बहुत चुभ रहीं थीं| हाँ रहने के मामले में वो निश्चिंत थी पर मैंने उसे अपने डर से रूबरू कराते हुए कहा;

मैं: यार वो औरत ठीक नहीं लगी मुझे!

मेरी दो टूक बात सुन करुणा हैरान हुई और उसके चेहरे पर सवाल नजर आने लगे!

मैं: यार....मैं आपको बता नहीं सकता.....उसे देखते ही मुझे डर लगने लगा..... वो न..... कुछ गड़बड़ वाली औरत है!

मुझे करुणा से साफ़-साफ़ बात कहने में शर्म आ रही थी इसलिए में बात को गोल-मोल घुमा रहा था, शुक्र है की मेरी बात करुणा की समझ में आ गई और वो मुस्कुराते हुए बोली;

करुणा: ऐसा कुछ नहीं है मिट्टू! मेरा उससे मलयालम में बात हुआ, वो बोला की वो यहाँ 4 साल से काम कर रे और उसका बात से मुझे कुछ गड़बड़ नहीं लगा| आप बस tension मत लो!

करुणा भोली थी वो लोगों को नहीं पहचान पाती थी, पर मैं इन कुछ सालों में लोगों को पहचानने में कुछ-कुछ परिपक्व हो गया था|

हम खाना खाने जा रहे थे की करुणा को रास्ते में एक ब्यूटी पार्लर दिखा तो उसने जिद्द की कि उसे अपनी eyebrow ठीक करवानी है! इधर मैं करुणा के रहने के इंतजाम को लेकर परेशान हूँ और इन मैडम को मेकअप करना है?! ये सोच कर मुझे थोड़ा अजीब लगा पर क्या कर सकते थे, मैं उसके साथ ब्यूटी पार्लर में चल दिया| 20 मिनट तक में ब्यूटी पार्लर में अच्छे से पका, पैसे दे कर हम खाना खाने चले तो करुणा ने मुझे बताया की ब्यूटी पार्लर वाली लड़की करुणा को कामिनी के गाँव वाली समझ रही थी| उसने करुणा को बताया की कामिनी मैडम यहाँ की regular ग्राहक हैं और बहुत कुछ करवाती हैं! ये सुन कर मेरे दिमाग में फिर से डर का साईरन बजने लगा!

'कामिनी का मियाँ यहाँ पर है नहीं तो ये इतना बनठन कर कहाँ जाती है? जर्रूर इसका कोई चक्कर चल रहा है, हो न हो कामिनी का प्रेमी घर भी आता होगा और अगर करुणा इसके घर रही तो कहीं वो आदमी करुणा पर भी हाथ-साफ़ न कर ले!' ये डरवना ख्याल दिमाग में आते ही मैंने सोच लिया की मैं करुणा को इसके घर तो रहने नहीं दूँगा!

उधर करुणा का फ़ोन बजने लगा और वो किसी से मलयालम में बात करने लगी, मुझे लगा की शायद उसकी मम्मा का फ़ोन होगा पर वो फ़ोन था उसके EX का! करुणा मलयालम में उसे कुछ समझा रही थी और वो उसकी सुनने को तैयार नहीं था! इधर मैंने खाना खाने के लिए दूकान देखनी शुरू कर दी थी, अस्पताल के नजदीक एक छोटा सा बजार था और उसमें खाने लायक कोई ढंग की जगह नहीं थी| वहाँ मुझे एक ठीक-ठाक दूकान दिखी तो हम उसमें बैठ गए, करुणा काफी गंभीर हो कर बात करने में लगी थी और मैं इसकी परवाह किये बिना खाने का menu देखने लगा था| Menu छापने वाला 'दिन दहाड़े अंग्रेजी बोलना सीखें' institute का विद्यार्थी रहा होगा




क्योंकि उसने जिस भी खाने की चीज का नाम लिखा था उस सब में spelling mistake थी!
Chow mein को Choumeen, Samosa को Semosa, Cheese को Cheej, Pepsi को Papsi, Veg Gril Sandwich को Veg Girl Sandvich, Cutlet ko Cutles, Pizza को Piza, Pineaple को Pinaple, Schezwan को Shezvan छापा हुआ था और जो सबसे हँसी वाली आइटम मैंने पढ़ी थी वो थी; "Jain Cheese Girl Sandvich"! ये आइटम पढ़ कर तो मेरा दिमाग उस जैन लड़की से मिलने को करने लगा था जो आर्डर देने पर हमें परोसी जाती!!

जिंदगी में पहलीबार मैं Menu पढ़ कर हँस रहा था, मैंने वेटर को आर्डर लेने के लिए बुलाया और उससे "Girl Sandvich" के बारे में पुछा, वो बोला की अभी लाइट नहीं है तो सिर्फ चाऊमीन या समोसा ही मिलेगा| तो मैंने दो प्लेट चाऊमीन और दो कोल्ड ड्रिंक मँगाई| इधर करुणा की बात खत्म हुई और वो काफी रुनवासी थी, उसकी ये हालत देख कर मेरा menu पर से ध्यान हटा और मैंने उससे कारन पुछा| करुणा ने बताया की उसके EX ने कॉल किया था, उसकी बहन ने जो मेरे बारे में अपने गाँव भर में ढिंढोरा पीटा था वो करुणा के EX ने सुन लिया था| वो करुणा को फ़ोन कर के ताने मार रहा था की करुणा कैसे एक अनजान "North Indi" (उत्तर भारतीय) लड़के पर भरोसा कर सकती है! ये सुन कर मुझे बहुत गुस्सा आया और मैं उस लड़के को गाली देते हुए बोला;

मैं: उस बहनचोद की हिम्मत कैसे हुई मेरे बारे में कुछ कहने की?

मेरा गुस्सा देख करुणा मुझे शांत करवाने लगी|

करुणा: मैं उसे बोला की आप बहुत अच्छा लड़का है, मेरा बहुत help करते, मेरा बहुत care करते है| लेकिन वो मान ही नहीं रहा, वो इदर केरला में है और मेरे को मिलने बुला रे! वो बोलते की मैं अगर उससे नहीं मिलने आ रे तो वो मेरे को लेने दिल्ली आते, मैं बोला की मैं दिल्ली में नहीं तो वो बोला की मैं उदर (यानी घरसाना) आ जाते!

मैं जनता था की करुणा के EX को "क्या चाहिए", तभी वो करुणा को बार-बार केरला बुलाता था, एक बार उसे वो मिल जाए तो उसे कोई फर्क नहीं पड़ता की करुणा किस के साथ है| मुझे यूँ करुणा का अपने EX से दब कर रहना अच्छा नहीं लगता था तो मैंने अपनी झुंझुलाहट में कुछ गलत कह दिया;

करुणा: मेरी बात सुन, आप उस लड़के को बोलो की आप ने उससे "revenge" लेने के लिए किसी लड़के के साथ "sex" कर लिया है! ये सुन कर वो आपको दुबारा कभी कॉल नहीं करेगा, क्योंकि जो उसे चाहिए वो उसे अब मिलने से रहा!

ये शब्द मेरे मुँह से बाहर आने के बाद भी मुझे जरा सा एहसास नहीं हुआ की मैंने कुछ गलत कहा है! मेरे सर पर गुस्सा सवार था और जो मैं बोल रहा था वो शब्द मेरे दिमाग से नहीं बल्कि गुस्से से निकले थे|

मेरी बात सुन कर करुणा सन्न थी, उसके 'छोटे' से दिमाग ने मेरी कही बात में से दो शब्द पकड़ लिए; "REVENGE" और "SEX"!!! मैं नहीं जानता था की उसने इन दोनों शब्दों को जोड़ कर अपने EX से बदला लेने की ठान ली है!
चाऊमीन परोसी गई और हम ने ख़ामोशी से चुप-चाप खाया, स्वाद तो कुछ था नहीं बस पेट भरना था| खाना खा कर हम वापस अस्पताल लौट आये, बड़े डॉक्टर साहब अभी तक नहीं आये थे और अस्पताल का स्टाफ इस वक़्त व्यस्त था इसलिए हम दोनों को एक होम्योपैथी दवाई के स्टोर रूम में बैठने को बोला| कमरे में एक टेबल और तीन कुर्सियाँ पड़ी थीं तथा हमारे अलावा उस कमरे में कोई और नहीं था| तभी करुणा ने बात शुरू करते हुए कहा;

करुणा: मुझे मेरा EX से REVENGE लेना है, आज होटल जा कर हम SEX करते!

करुणा की आवाज में गुस्सा और बदले की आग धधक रही थी, तथा उसने ये बात अपना फैसला सुनाने के ढँग से कही थी! वहीं उसके मुँह से ये शब्द निकले तो मैं भौंचक्का उसे घूरने लगा, मेरे दिल की धड़कन तेज हो गई थी, दिमाग ने चेतावनी का घंटा बजा दिया था और मन ने मुझे कास कर जकड़ लिया था!

मैं: Dear I don't want to do anything that we'll regret our whole life!

इतना कह मैंने करुणा से मुँह फेर लिया|

मैं समझ सकता था की करुणा गुस्से से भरी है पर वो जो कह रही थी वो पाप था! मेरा मन जिसमें शायद अब भी कहीं भौजी के लिए प्यार दफ़न था वो मुझे ये पाप करने से रोक रहा था, दिमाग और दिल भी आज मन के साथ हो लिए थे और मुझे रोक रहे थे| अचानक मुझे गुजरात वाले भैया की कही बात याद आई जो उन्होंने मेरे आखरी बार गाँव जाने से पहले कही थी, उनकी कही बात की मुझे बुराई के दलदल से दूर रहना मैंने नहीं सुनी थी और उसके बाद जो मेरी 'गत' हुई थी उस पर मुझे आज भी पछतावा होता था| मैं आज फिर वही 'गलती' नहीं दोहराना चाहता था, इसीलिए करुणा से मुँह मोड़ कर खामोश बैठा था|

उधर करुणा को अपने कहे शब्दों पर पछतावा होने लगा था तथा उसकी आँखों से गँगा-जमुना बहने लगी थी|

करुणा: I'm sorry मिट्टू!

करुणा रोते हुए बोली और फिर उसने अपनी प्रेम कहानी फिर दोहराई| मुझे उसकी प्रेम कहानी सुनने में कतई दिलचस्पी नहीं थी पर मजबूरन सुनना पड़ रहा था, मैंने सोच लिया था की आज होटल जा कर उसके EX की ऐसी-तैसी मार के रहूँगा! मैंने फिलहाल के लिए करुणा को चुप कराया और उसे बड़े डॉक्टर साहब के कमरे तक चलने को कहा ताकि देख सकें की वो आये या नहीं| जब हम बड़े डॉक्टर साहब के कमरे की ओर जा रहे थे तो बीच में एक कमरा पड़ा जो की पूरा खाली था, कमरे में एक टेबल-कुर्सी रखी थी| कुर्सी पर नर्स कामिनी बैठीं थीं और उनके सामने मरीजों के बैठने के लिए एक लकड़ी की बेंच पड़ी थी जिस पर एक आदमी बैठा| उस आदमी की कमीज के बटन सामने की ओर से खुले थे तथा वो दोनों ही खुसफुसा कर कुछ बात कर रहे थे और मंद-मंद मुस्कुरा रहे थे! मुझे और करुणा को देखते ही नर्स कामिनी उठ कर बाहर आईं तथा अपने चेहरे पर नकली मुस्कान ले कर करुणा से मलयालम में कुछ बात करने लगी, पर मेरी नजर उस आदमी पर थी जो फटाफट अपनी कमीज के बटन बंद कर रहा था! मैं और करुणा कामिनी को अच्छी तरह जान गए थे, उसके साथ करुणा का रहना खतरे से खाली नहीं था, करुणा को इस औरत के साथ नहीं छोड़ूँगा वरना हर वक़्त मेरी जान करुणा की इज्जत के बारे ेमिन सोचते हुए अटकी रहेगी| होटल जा कर मैं करुणा को अच्छे से ज्ञान दूँगा की वो इस औरत से गज भर दूर रहे वरना ये उसकी इज्जत को दाव पर लगा देगी!

कामिनी से बात कर के हम बड़े डॉक्टर साहब के कमरे के पास आये तो वो अब भी बंद था, मैंने ऑफिस में जा कर उनके आने के बारे में पुछा तो मुझे कहा गया की मैं कल सुबह जल्दी आऊँ तब उनसे भेंट हो पाएगी| अब वहाँ रुकने का कोई फायदा था नहीं सो हम बस स्टैंड की ओर चल पड़े, रास्ते में हमारी कामिनी के बारे में बात हुई और मैंने करुणा से साफ़ शब्दों में कह दिया की भले ही वो औरत करुणा केरला से है पर करुणा को उससे दूरी बनाये रखनी होगी, रही करुणा के रहने की बात तो कल मैं घरसाना में कुछ न कुछ इंतजाम कर दूँगा| करुणा को एक चिंता ये भी थी की मैं उससे हर हफ्ते मिलने आऊँगा तो ठहरूँगा कहाँ, दिल्ली से श्री विजय नगर और फिर वहाँ से डेढ़ घंटे की घरसाना तक की यात्रा कर के आना उसे सोखा नहीं लग रहा था| मैंने उसे आश्वासन दिया की जैसे भी होगा मैं अपना प्रबंध खुद कर लूँगा, उसे बस मेरे बनाये कुछ नियमों का सख्ती से पालन करना होगा;

मैं: Dear मैं आपके लिए कुछ rules बना रहा हूँ, ये rules आपकी भलाई के लिए हैं और अगर आपने ये rules तोड़े तो फिर मैं आपसे कभी बात नहीं करूँगा|

  • No Drinking! यहाँ आप किसी के साथ भी शराब, बियर या वाइन कुछ भी नहीं पियोगे| पीने के बाद आपका होश कम होने लगता है जिसका कोई भी फायदा उठा सकता है!
  • घर से अस्प्ताल और अस्पताल से घर! इसके अलावा आप कहीं भी जाओगे तो मुझे बता कर जाओगे, मुझे आपके जाने की पूरी जानकारी होनी चाहिए की आप कहाँ जा रहे हो, किसके साथ जा रहे हो और कितनी देर के लिए जा रहे हो! भगवान न करे अगर कल को कोई ऊँच-नीच हुई तो कम से कम मुझे पता तो होगा की आप कहाँ गए थे?
  • यहाँ के पुरुष सहकर्मियों से दूरी बना कर रखना| बदकिस्मती से आपकी दोस्ती पुरुषों से जल्दी होती है, पर यहाँ पर आप किसी के ऊपर भरोसा नहीं करोगे! बातचीत सिर्फ और सिर्फ अपने काम से जुडी हुई करना, अगर कोई आ कर आपके पास अपने जीवन का रोना रोये तो उसे कन्धा देने की गलती मत करना| लड़की को भावुक कर के उसके मन में अपने लिए सहानुभूति पैदा करना आदमियों का पहला हथियार होता है|
  • कामिनी से कोसों दूर रहना, वो आपको अपने घर बुलाये तो कतई मत जाना, कुछ भी झूठ बोल कर निकल जाना! वो औरत आपको कुछ खिला-पीला कर बेहोश कर के आपके साथ कुछ भी गलत करवा सकती है, इसलिए उससे सावधान रहना!
  • रोज सुबह आप मुझे फ़ोन करोगे की आप अस्पताल निकल रहे हो, वहाँ पहुँचने तक आप मुझसे बात करते रहोगे| दोपहर को खाना खाने के समय आप मुझे पुनः फ़ोन करोगे और घर जाते समय आप मुझसे बात करते हुए घर लौटोगे|

करुणा ने मेरी ये बात ध्यान से सुनी पर उसके दिमाग में कुछ नहीं घुसा!

करुणा: मिट्टू, आप मेरे को इतना care करते? मेरा लिए इतना concern हो कर rules बनाते?

करुणा ने मुस्कुरा कर पुछा|

मैं: वो इसलिए dear क्योंकि आप मेरा वो plant (पौधा) हो जिसे मैंने बहुत प्यार से nurture (पालन-पोषण) किया है!

मेरी बात सुन करुणा के चेहरे पर प्यार भरी मुस्कान खिल गई|

बस चली और हम लोग रोडवेज बस के झटके खाते हुए होटल पहुँचे| मुँह-हाथ धो कर मैंने चाय मँगाई और करुणा से उसके EX के बारे में बात शुरू की| मैंने उसे सीधा ही सवाल पुछा की क्या वो चाहती है की उसका EX उसका पीछा हमेशा के लिए छोड़ दे? या फिर उसे अपने EX द्वारा सताये जाने में मजा आता है? करुणा ने फटक से जवाब दिया की वो चाहती है की उसका EX उसे तंग न करे| मैंने उसे कहा की मैं उसके EX से पुलिस इंस्पेक्टर बनकर बात करता हूँ और उसे इस कदर डराता हूँ की वो पलट कर कभी करुणा को तंग नहीं करेगा| करुणा को मेरी ये खुराफाती तरकीब अच्छी लगी और उसने फ़ौरन अपनी हामी भरी! पहले तो मैंने करुणा से ये पुछा की उसके EX को हिंदी आती है? पता चले की मैं उसकी हिंदी में लेने लगूँ और उस ससुरे के कुछ पल्ले ही न पड़े! करुणा ने बताया की उस लड़के को भी करुणा की तरह हिंदी समझ आती है, बस बोलने में दिक्कत होती है| मैंने करुणा के EX का नंबर लिया और उसे अपने फ़ोन से मिलाते हुए फ़ोन loudspeaker पर रखा और हरयाणवी लहजे में उससे बात की, मेरा लहजा उत्तम तो नहीं पर काम चलाऊ जर्रूर था|

मैं: रे जैकब (Jacob) बोले है?

मैंने हरयाणवी पुलिस की नकल करते हुए बात शुरू की| अपना नाम और मेरी हरयाणवी भाषा सुन जैकब घबरा गया|

जैकब: ह..हाँ...कौन?

मैं: मैं श्री विजय नगर थाने ते SI बोलूँ! रे छोरे थारी कंप्लेंट आई है माहारे धोरे! (मैं श्री विजय नगर थाने से Station In-charge बोल रहा हूँ, तेरी कंप्लेंट आई है मेरे पास|)

कंप्लेंट शब्द सुन कर जैकब की फट के हाथ में आ गई, वो घबराते हुए बोला;

जैकब: कंप्लेंट...मेरी...?

मैं: तू करुणा नाम की छोरी ने घणे फ़ोन करे है, उससे अश्लील बात करे है?

ये सुन कर वो जान गया की करुणा ने ही उसकी शिकायत की है, अब उसे खुद को बचाना था तो वो बोलने झूठ बोलने लगा;

जैकब: No..no...!

मैं: न तो ये छोरी झूठ बोले है? इसके कॉल रिकॉर्ड में तेरा नाम कैसे आ रा?

जैकब: Sir....I only....

जैकब घबराते हुए आगे बोलता उससे पहले ही मैंने उसकी बात काट दी;

मैं: न के sir-sir लगा रख्या तैने? तेरी सादी हो राखी न, फिर क्यों इस छोरी ने परेशान करे है? न वहीं आ कर तेरे चूतड़ों पर डंडे मारूँ?

मैं जानता था की जैकब 'चूतड़' का मतलब नहीं जानता होगा तो मैंने उसके मजे लेते हुए कहा;

मैं: चूतड़ जाने है?

जैकब: No....No Sir!

वो काँपते हुए बोला| अब मुझे झूठ-मूठ का दिखावा करना था तो मैंने acting करते हुए झूठी आवाज लगाते हुए कहा;

मैं: अरे हवलदार, रे चूतड़ ने अंग्रेजी में क्या कहें?

अब हवलदार का role करने वाला कोई था नहीं तो मैंने आवाज बदलते हुए कहा; "Ass हजूर!"

मैं: हाँ... सुन रे लौंडे, उधर आ कर तेरे ass पर लट्ठ बजा दूँगा!

ये सुन कर जैकब की Ass फट गई! अभी तक मैं बस जैकब के मजे ले रहा था, अब समय था उससे सख्ती से बात करने का;

मैं: देख बे, बाहर से आया है न यहाँ, तो चैन से रह और इस लड़की को भी चैन से रहने दे! वरना केस बना कर तेरे VISA पर stay लगा दूँगा और राजस्थान की जेल में भर दूँगा!

मेरी धमकी सुन कर जैकब की बुरी तरह फट चुकी थी, वो लगभग रोते हुए sorry बोले जा रहा था| मैंने एकदम से फ़ोन दिया और करुणा की ओर देखा जो अपने मुँह पर हाथ रख कर खुद को हँसने से रोक रही थी| कॉल कटते ही करुणा बड़ी जोर से हँसी और हँसते-हँसते उसके पेट में दर्द हो गया!

खैर चाय आई और चाय पीने के समय माँ का फ़ोन आया, माँ ने मेरा हाल-चाल पुछा तथा मैं दिल्ली कब पहुँचूँगा ये पुछा| मैंने करुणा की तरफ देखते हुए कहा की मुझे अभी 2-3 और लगेंगे, ये दरअसल एक तरह का सवाल था करुणा से की इतने दिन में तो उसकी joining हो ही जाएगी| फिर मैंने बात बदलते हुए उनका हाल-चाल पुछा| माँ ने बताया की वो ठीक हैं, शादी कल की है और अगले दिन विदाई है| इस बार गोने की रस्म नहीं की जायेगी, जब बहु को लिवा लाएंगे तो उसके 1-2 दिन बाद माँ-पिताजी लौटेंगे| फिर उन्होंने फ़ोन बड़की अम्मा को दिया, मैंने अम्मा से पायलागि की तो करुणा की जिज्ञासा जाग गई की मैं किस्से बात कर रहा हूँ| उसने मुझे मेरा फ़ोन स्पीकर पर करने को कहा तथा मेरी और बड़की अम्मा की बात बड़े गौर से सुनने लगी;

बड़की अम्मा: मुन्ना कइसन हो? जानत हो हियाँ सब तोहका बहुत याद करत हैं! अब तो तोहार नीक-नीक भाभी आवे वाली है, अब तू कैहा आइहो?

बड़की अम्मा ने एक सांस में अपने सारे सवाल दाग दिए|

मैं: अम्मा ऑफिस के काम से राजस्थान में हूँ, कोशिश करता हूँ गाँव आने की|

मैंने बात बनाते हुए जैसे-तैसे खत्म की|

बड़की अम्मा: ऊ सब हम नाहीं जानित, हमका ई बताओ की तू आपने बड़की अम्मा का नाहीं मुहात हो? हम तोहार बड़ी माँ हन तो हमसे मिले ही आई जाओ!

बड़की अम्मा ने बड़े प्यार से कहा| सच कहूँ तो मैं बड़की अम्मा से मिलने चला जाता पर भौजी को दुबारा देखने की गलती मैं नहीं करना चाहता था!

मैं: अम्मा कैसी बात कर रहे हो, पूछो माँ से शहर में मैं कई बार माँ से कहता था की कब बड़की अम्मा के हाथ का खाना खाने को मिलेगा| मैंने नकली हँसी हँसते हुए कहा|

बड़की अम्मा: ठीक है तो जल्दी आयो! अच्छा एक ठो बात बताओ, बियाह कब करिहो? घर मा अब तुहीं कुंवारे बैठा हो!

बड़की अम्मा हँसते हुए बोलीं|

मैं: अम्मा 'बियाह' तो आप सब के आशीर्वाद से होगा!

तभी पीछे से बुआ की आवाज आई और उन्होंने मेरी शादी को ले कर अपने सपने बताने शुरू कर दिए| अब मुझे क्या पता की माँ का फ़ोन भी स्पीकर पर है!

बुआ: अरे मुन्ना तू हियाँ आओ, कुछ दिन हमरे लगे रहिओ तो हम तोहार खातिर गोरहार-गोरहार (गोरी-गोरी) लड़की ढूँढ देई! तोहार सादी होइ तो तोहार ई घर का हम अच्छे से लीप (गोबर से) देई, फिर तू हमका नवा-नवा, नीक-नीक साड़ी लाई दिहो! हैं?

बुआ की ये बात सुन कर मुझे बहुत हँसी आ रही थी और मेरी ये हँसी देख कर करुणा कुछ-कुछ तो समझ गई होगी|

मैं: हाँ-हाँ बुआ! बस काम निपटे फिर आऊँगा और आप ही के घर रुकूँगा!

मैंने बात खत्म करने के इरादे से बात को निपटाते हुए कहा|

फ़ोन कटा तो करुणा ने मुझसे सारी बात पूछी, मैंने करुणा को सारी बात बताई बस अपने गाँव न जाने की बात को दबा दिया| करुणा फ़ोन पर बुआ और बड़की अम्मा का मेरे प्रति प्यार देख कर बहुत खुश थी क्योंकि उसके परिवार के मुक़ाबले मेरा परिवार मुझे बहुत प्यार करता था|

फिर अगले ही पल करुणा की हँसी गायब हो गई और चेहरे पर उदासी छाने लगी|

करुणा: मिट्टू thank you so much! आप वो stupid (Jacob) को मेरा पीछे से हटाया! And sorry की मेरा वजह से आप अपना family को झूठ बोल रे!

करुणा गंभीर होते हुए बोली|

में: Its okay यार!

मुझे अपनी तारीफ सुनने की आदत नहीं थी इसलिए मैंने बात खत्म करते हुए कहा|

करुणा: नहीं मिट्टू, आप सच में बहुत genuine लड़का है! मैंने afternoon में जो कहा उसे सुन कर आप immediately मना किया, कोई और है तो वो मेरा उस situation का फायदा उठाते! मेरा वो कहने से आपको hurt हुआ है तो I'm genuinely sorry! मैं ऐसा लड़की नहीं है, मैं उस आदमी (Jacob) से बहुत परेशान हो गया था, उससे revenge लेने के लिए मैंने वो कहा! नहीं तो आप जानते मैं ऐसा लड़की नहीं है, हमारा God शादी से पहले ये सब forbidden कर के रखा! ये कर रे तो sin होते और फिर father को जा कर सारा confess करना पड़ते!

करुणा ने रुनवासी होते हुए अपनी सफाई दी|

मैं: I know की आप वैसी लड़की नहीं हो, आपको गुस्सा आ रहा था और अपना गुस्सा निकालने के लिए आपने वो सब कहा| जो हो गया उसे भूल जाओ और smile करो, एक आपकी smile ही तो है जिसे देख कर मेरा दिल खुश हो जाता है|

मैंने करुणा को रोने से रोक लिया था, वहीं उसका मन अब हलका हो चूका था|

हम ने रात को खाना खाया और बाहर थोड़ा घूम कर सो गए, अगली सुबह में फटाफट उठा और नहा-धो कर तैयार हो गया| करुणा भी उठी और नाहा-धो कर तैयार हो गई, हमने समय से चाय पी कर बस स्टैंड पहुँचे तथा बस पकड़ कर अस्पताल पहुँच गए| हमारे पहुँचते ही बड़े डॉक्टर साहब अस्पताल में घुसे, मैंने उनसे गुड मॉर्निंग कह कर करुणा की joining की बात बताई| उन्होंने मुझे admin department में जा कर कुछ करुणा के कागजात जो श्री विजय नगर से मेल पर आये थे वो लाने को कहा| हम दोनों admin वाले कमरे में पहुँचे तो वहाँ की हालत देख कर मुझे बहुत हैरानी हुई, कमरा बड़ा था पर उसमें हॉस्पिटल के पुराने पलंग -कुर्सी भरे पड़े थे, कमरे के शुरू में एक कंप्यूटर रखा था और उसी के साथ hp का पुराना deskjet printer रखा था| अब कंप्यूटर चलाने वाला क्लर्क गायब था, मुझे बड़ी कोफ़्त हुई की साला काहे का अस्पताल है? कभी डॉक्टर गायब तो कभी क्लर्क गायब! मैंने करुणा को वहाँ खड़ा किया और उस क्लर्क को अस्पताल में ढूँढने लगा, वो क्लर्क मुझे कम्पाउण्डर के साथ बैठा चाय पीता हुआ मिला| पहले तो मन किया की इसे सुना दूँ पर फिर सोचा की मेरे गुस्से से करुणा के लिए मुसीबत खड़ी न हो जाये इसलिए मैं अपना गुस्सा पीते हुए उसे वापस उसके कमरे में लाया| कमरे में लौट कर क्लर्क ने कंप्यूटर चलाया तो उसके कंप्यूटर से निकलते 'घरर' की आवाज सुन कर मुझे उस बिचारे बूढ़े कंप्यूटर पर दया आने लगी| कंप्यूटर ऑन हुआ तो windows xp की जोरदार startup sound


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सुनाई दी जिसे सुन कर करुणा ने अपने कान बंद कर लिए!
Windows 7 launch हो चुकी थी और ये लोग अभी तक windows xp पर हैं?! खैर कंप्यूटर चालु होने के बाद उसे 10 मिनट लगा, तब जा कर कंप्यूटर काम करने लायक हालत में आया| क्लर्क ने मेल चेक की और एक print out निकाला, साथ ही उसने दो employee फॉर्म निकाले, जिनपर करुणा को दस्तखत करने थे| सारे कागज़ ले कर मैं बड़े डॉक्टर साहब के पास जल्दी से पहुँचा ताकि कहीं वो निकल न जाएँ| शुक्र है की बड़े डॉक्टर साहब अब भी अपने कमरे में ही बैठे थे, उन्होंने सारे कागज़ देखे और दस्तख्त कर के करुणा को आज की तरीक से joining दे दी! करुणा को joining मिली तो मैंने मन ही मन भगवान को बहुत धन्यवाद दिया, साथ ही ये भी प्रार्थना की कि वो करुणा का यहाँ ध्यान रखें| उधर बड़े डॉक्टर साहब ने करुणा से बात करनी शुरू कर दी, वो उससे जानना चाहते थे कि इससे पहले वो कहाँ काम कर रही थी, अस्पताल कौन सा था, उसे तनख्वा कितनी मिलती थी| करुणा उनकी सब बातों का जवाब दे रही थी और बड़े डॉक्टर साहब उससे काफी खुश दिखे| करुणा कि बातें सुन कर वो जान गए थे की करुणा की हिंदी बहुत खराब है, उन्होंने करुणा को आगाह करते हुए कहा;

बड़े डॉक्टर साहब: तुम्हारी हिंदी बहुत खराब है, फिर यहाँ के लोगों की हिंदी में हरयाणवी तथा पंजाबी का touch है इसलिए तुम्हें यहाँ बातें समझने में थोड़ी दिक्कत होगी|

उनकी बात सुन कर करुणा के तोते उड़ चुके थे, जब से हम आये थे तब से लोग पहले ही उसे घूर-घूर कर देख रहे थे, अब अगर कोई मरीज उसे कुछ कहे तो करुणा समझ ही नहीं पाती! ये दो बातें करुणा को डराने लगी थीं, यही वो पल था जब करुणा के दिल में डर पनपने लगा था!

मैंने करुणा का डर कम करने को बड़े डॉक्टर साहब से करुणा के रहने की बात चलाई, उन्होंने पुछा की अभी तक हम कहाँ रुके हैं? मैंने उन्हें बताया की हम फिलहाल एक होटल में रुके हैं, मैंने श्री विजय नगर में एक PG में बात की हर पर वहाँ से यहाँ रोज डेढ़ घंटे का सफर करुणा के लिए टेढ़ी खीर है| डॉक्टर साहब ने अपने हाथ खड़े कर दिए की वो हमारी इसमें कोई मदद नहीं कर सकते! उन्होंने मुझे कहा की मैं करुणा के रहने का इंतजाम होने तक छुट्टी की एक application लिख कर दे दूँ| मैं करुणा को ले कर बाहर आ गया और इस बार मैंने खुद अपनी गन्दी सी लिखावट में छुट्टी की application लिखने लगा, अब application में लिखना था की हमें कितने दिन की छुट्टी चाहिए तो करुणा बोली की 15 दिन लिख दो| मैंने 15 दिन लिख दिए और करुणा के दस्तखत करवा कर वापस बड़े डॉक्टर साहब के कमरे में आ गया| उन्होंने जब application पढ़ी तो बोले की कोई 15 दिन की छुट्टी नहीं मिलेगी, ज्यादा से ज्यादा 3 दिन की छुट्टी मिलेगी बस! उन्होंने मुझे application दुबारा लिख कर admin में देने को कहा, इतना कह कर वो चले गए| बड़े डॉक्टर साहब की बात सही थी पर परेशानी ये थी की करुणा के रहने का यहाँ कोई प्रबंध नहीं हो पा रहा था|

हमारे पास श्री विजय नगर का PG आखरी विकल्प बचा था, फिर मैंने सोचा की एक बार यहाँ खुद कोई जगह ढूँढने की कोशिश तो करूँ! मैंने करुणा को साथ लिया और अस्पताल से बाहर आया, मैंने आस-पास हॉस्टल, PG और कमरे का पता करना शुरू किया| पोन घंटे की गर्मी में माथा-पच्ची के बाद भी हमें न तो हॉस्टल मिला, न PG मिला और न ही कोई कमरा मिला| फिर मुझे कुछ दूर पर दो लड़कियाँ coaching जाती हुई नजर आईं, मैं उनके पास पहुँचा और उनसे girl's hostel अथवा PG के बारे में पुछा तो उन्होंने बताया की यहाँ ऐसा कुछ भी नहीं है| फिर एक लड़की बोली की एक आंटी हैं जो tiffin service चलातीं हैं उनके पास शायद एक कमरा है| मेरे लिए तो ये मौका ऐसा था जैसे की अँधेरे कमरे में रौशनी की एक किरण! मैंने उनसे उन आंटी का पता पुछा तो उन्होंने बताया की उन आंटी का घर काफी अंदर कर के है और हम दोनों गलियों में भटक जायेंगे, इसलिए उन्होंने स्वयं चलने की बात कही परन्तु हमें थोड़ा तेज चलना होगा क्योंकि उनके coaching का समय हो गया था| मैं तो उनके साथ तेज-तेज चलने लगा पर करुणा काफी धीरे थी, उसके धीरे होने का कारन था की दिल्ली वाले अस्पताल से उसे फ़ोन आ रहे थे और वे सभी उसकी joining को ले कर सवाल कर रहे थे|

खैर उन लड़कियों ने हमें उन आंटी से मिलवाया और मैंने उन्हें सारी बात बताई, वो बोलीं की उनके पास एक कमरा है जहाँ एक लड़की रह रही है| करुणा को उसी लड़की के साथ कमरा share करना पड़ेगा तथा खाना करुणा को आंटी के यहीं पर खाना होगा| आंटी हमें ऊपर बने कमरे में ले गईं तो वहाँ निहायत ही सुन्दर लड़की बैठी किताब पढ़ रही थी, उसे देख कर मेरा दिल तो किया की करुणा की जगह मैं ही यहाँ रह जाऊँ! करुणा ने मुझे कोहनी मारते हुए मेरे वहाँ रहने के ख्याल से बाहर निकाला, मैंने आंटी से जब पैसे की बात की तो आंटी ने बताया की वो खाना और रहना मिला कर 8,000/- लेंगी! ये सुन कर हमारी हवा फुस्स हो गई क्योंकि फिलहाल करुणा की तनख्वा बहुत कम थी, उसका कारन ये था की करुणा को यहाँ पहले 3 साल probation पर काटने थे, उसके बाद ही करुणा की तनख्वा बढ़ती! मैंने आंटी से गुजारिश की कि वे पैसे कुछ कम कर दें पर वो नहीं मानी, हारकर हम वहाँ से वापस अस्पताल के लिए निकल लिए| रास्ते में करुणा ने मुझे बताया की दिल्ली के अस्पताल वाले सब उसके पीछे पड़े हैं की करुणा कैसे भी ये job join कर ले! दरअसल मेरे कहे अनुसार करुणा ने अभी तक अपनी दिल्ली वाली नौकरी से इस्तीफ़ा नहीं दिया था, पूरा अस्पताल जानता था की करुणा को यहाँ नौकरी मिल गई है और वो सब करुणा पर दबाव बना रहे थे की वो यहाँ join कर ले ताकि वहाँ वो लोग अपने किसी रिश्तेदार को करुणा की जगह लगा सकें|

इतने में करुणा का फ़ोन दुबारा बजा तो उसने अपना फ़ोन मेरी ओर बढ़ा दिया| मैंने फ़ोन उठा कर बात की तो सब बारी-बारी मुझ पर दबाव बनाने लगे की मैं कैसे भी करुणा की joining यहाँ करवा कर लौट आऊँ! मैंने उन्हें यहाँ के हालत के बारे में बताया की अभी तक हमें करुणा के रहने के लिए जगह नहीं मिल पाई है, पर किसी को भी वहाँ इससे कोई फर्क ही नहीं पड़ रहा था! उनका कहना था की मैं करुणा को श्री विजय नगर वाले हॉस्टल में ही भर्ती करवा दूँ, वहाँ से आना-जाना करुणा खुद संभाल लेगी! एक ने तो ये तक बोला की घरसाना आने तक बीच में कोई भी गाँव पड़ता हो तो मैं करुणा के रहने का इंतजाम वहाँ कर दूँ!

उस वक़्त मुझे बहुत गुस्सा आ रहा था, खुद को करुणा के दोस्त कहने वाले उसकी ज़रा भी परवाह नहीं करते थे! उनकी बला से वो बेचारी अकेली चाहे मर जाए बस यहाँ से इस्तीफ़ा दे दे ताकि वो अपने किसी निजी को करुणा की नौकरी दिलवा सकें! मैंने गुस्से में फ़ोन काटा और करुणा से कहा की पहले हम कुछ खा लेते हैं ताकि दिमाग चलने लगे| खाने का आर्डर दे कर मैंने करुणा से बात शुरू की, मैंने उसके पुराने अस्पताल के स्टाफ वालों की बात बताई पर उन लोगों की ये चालाकी करुणा के दिमाग में नहीं घुसी| करुणा में ये भी एक कमी थी की वो जल्दी ही लोगों पर आँख मूँद कर भरोसा कर लेती थी, फिर चाहे कोई उनकी कितनी ही गलती निकाल दे वो टस से मस नहीं होती थी| मैंने सोचा की इसे उनकी बात नहीं माननी न सही, कम से कम मैं तो अपना पक्ष साफ़ कर दूँ;

मैं: देख dear आपको मेरा विश्वास नहीं करना मत कर, पर मेरी बात सुन लो! मैं आपको इस तरह यहाँ किसी तीसरे के सहारे छोड़ कर नहीं जाऊँगा! आपको मैं उस कामिनी के साथ तो रहने नहीं दूँगा और न ही हमारे पास इतने पैसे हैं की आप वो आंटी के यहाँ रह सको, तो आप मुझे सोच कर बताओ की क्या आप श्री विजय नगर से यहाँ रोज डेढ़ घंटे का सफर कर के आ सकते हो? और हाँ एक बात सोच लेना की आप को रोज आना है, फिर चाहे बारिश हो या आँधी आये!

ये सुन कर करुणा सोच में पड़ गई, उसका छोटा सा दिमाग इतना बड़ा फैसला नहीं ले सकता था इसलिए उसने फैसले मेरे ऊपर छोड़ दिया;

करुणा: आप क्या बोलते?

मेरा जवाब तो सीधा था, क्योंकि मैं जानता था की करुणा से इतना संघर्ष नहीं होने वाला|

मैं: ये job छोडो और दिल्ली वापस चलो!

मैं नहीं जानता था की करुणा मेरे मुँह से यही सुनना चाहती है, मेरा जवाब सुनते ही उसके चेहरे पर मुस्कान आ गई और वो एकदम से वापस जाने को तैयार हो गई! बड़े डॉक्टर साहब ने जो करुणा के मन में डर का बीज बोया था वो अंकुरित हो चूका था, यहाँ रहने की व्यव्य्स्था न हो पाने से करुणा को वापस जाने का एक और बहाना मिल गया था|

इधर मैं नहीं चाहता था की कल को कोई अगर करुणा से पूछे की उसने ये नौकरी क्यों छोड़ी तो वो मेरा नाम ले इसलिए मैंने उसे कहा की वो अपनी मम्मा को सारी बात बताये और उनका निर्णय पूछे| करुणा ने अपनी मम्मा को फ़ोन किया और उन्हें सारी बात विस्तार से बताई, उसकी माँ ने उसे वापस दिल्ली आने को कहा दिया क्योंकि वो भी जानती थी की उनकी बेटी अकेली खुद को नहीं संभाल पायेगी| अपनी माँ की ओर से न सुन कर करुणा का चेहरा खिल गया क्योंकि उसके वापस दिल्ली जाने का रास्ता साफ़ हो गया था|

खाना खा कर हम वापस अस्पताल लौटे और क्लर्क से बड़े डॉक्टर साहब के बारे में पुछा, उसने बताया की वो तो अब कल आएंगे| मैंने उससे पुछा की नौकरी छोड़ने के लिए कोई फॉर्म भरना होगा तो उसने करुणा से नौकरी छोड़ने का कारन पुछा| करुणा ने अपना दिमाग इस्तेमाल करते हुए रहने की व्यवस्था न हो पाने और अपनी मम्मा का वास्ता दे कर बहाना बनाया, पर उसका बहाना उपयुक्त नहीं था इसलिए मुझे अपना दिमाग लगा कर उसके बहाने को सही रूप देना पड़ा;

मैं: एक तो वैसे ही इनकी मम्मी केरला में रहतीं हैं ऊपर से इनके रहने का इंतजाम हुआ नहीं है, ऐसे में वो कैसे अपनी बेटी को अकेला छोड़ दें?! उनका कहना है की ये नौकरी छोड़ कर सीधा उनके पास लौट आयें|

मैंने बहना तो ठीक बना दिया पर ये करुणा के नौकरी छोड़ने की आँधी पूरे अस्पताल में फ़ैल गई| हम दोनों घर जाने के लिए निकल ही रहे थे की एक नर्स आई और हमें operation theater में बैठीं सबसे उम्र दराज नर्स के पास ले आई| उन्होंने करुणा के नौकरी छोड़ने का कारन पुछा तो करुणा ने कुछ देर पहले मेरा बहना मारा किसी रट्टू तोते की तरह सुना दिया, पर उन्होंने (उम्र दराज नर्स ने) बात का रुख ही मोड़ दिया!

उम्र दराज नर्स: देखो सरकारी नौकरी इतनी आसानी से नहीं मिलती, तुम दोनों शादी कर लो, मानु यहीं कोई नौकरी ढूँढ लेगा और तुम दोनों आराम से यहाँ रह सकोगे!

उनकी बात सुन कर हम दोनों अवाक खड़े एक दूसरे को देख रहे थे, पर आज तो जैसे पूरे स्टाफ ने ही मन बना लिया था की हम दोनों की शादी आज करा कर ही रहेंगे|

दूसरी नर्स: कोर्ट यहीं नजदीक है, गवाह हम सब बन जायेंगे!

मैं आगे कुछ बोलता इतने में पीछे से तीसरी नर्स आ गईं और यहाँ बैठी महफ़िल का कारन पूछने लगी| दूसरी वाली नर्स ने उन्हें सारी बात बताई तो वो भी हम दोनों की शादी करवाने के पीछे पड़ गईं और मेरी तारीफों के पुल्ल बाँधते हुए बोलीं;

तीसरी नर्स: हाँ सही तो कह रही हैं मैडम (उम्र दराज नर्स)| इतना अच्छा लड़का है, तहजीब वाला है, तेरी इतनी मदद कर रहा है, इससे अच्छा लड़का कहाँ मिलेगा?

मुझे लगा की करुणा कुछ बोलेगी पर उसे तो ये सब मजाक लग रहा था तभी तो वो बस मुस्कुराये जा रही थी|

मैं: नहीं जी ऐसा कुछ नहीं है! ये बस मेरी अच्छी दोस्त है, इसकी मदद कर के मैं बस अपनी दोस्ती का फ़र्ज़ निभा रहा हूँ|

इतने में उम्र दराज नर्स जी बोल पड़ीं;

उम्र दराज नर्स: ठीक है दोस्त सही, पर तुम दोनों की शादी लायक उम्र तो हो ही गई है|

मैं: जी शादी लायक उम्र तो हो गई पर हमारे परिवार वाले भी तो शादी के लिए राजी होने चाहिए? बिना उनकी मर्जी के कैसे शादी कर सकते हैं?

मैंने अपनी सफाई दी|

दूसरी नर्स: अरे उन्हें तो हम समझा देंगे, तुम दोनों बस शादी के लिए राजी तो हो जाओ?!

उन्होंने बात हलके में लेते हुए कहा|

मैं: जी आप उन्हें क्या-क्या समझायेंगे? हम दोनों के धर्म अलग-अलग हैं, जात अलग-अलग है, यहाँ तक की हमारी उम्र में भी 5 साल का अंतर् है! हमारे माँ-पिताजी इस शादी के लिए कभी राजी नहीं होंगे!

मेरी बात सुन सब खामोश हो गए|

उम्र दराज नर्स: बेटा हम तो ये ही चाहते है की करुणा ये नौकरी न छोड़े|

मैं: जी मैं समझ सकता हूँ पर दरअसल इनकी (करुणा की) मम्मी बहुत चिंतित हैं| आज से पहले इन्हें (करुणा को) कभी घर से इतनी दूर, अकेली रही नहीं| फिर एक आध दिन की बात होती तो कोई दिक्कत नहीं थी, अब तो उम्र भर यहीं काम करना है तो ये अकेले कैसे संभालेगी? इसीलिए इनकी मम्मी ने इनको वापस अपने पास केरला बुला लिया है|

मेरी बात में वजन बहुत था इसलिए उम्र दराज नर्स जी बोलीं;

उम्र दराज नर्स: हाँ ये बात तो सही है! मैं भी एक माँ हूँ और मेरी बेटी को ही कहीं दूर नौकरी मिले तो चिंता तो होगी ही|

आगे बात होती उससे पहले ही मैंने उनसे चलने की इजाज़त ले ली|

बाहर आते ही मैंने करुणा के दाहिनी बाजू पर प्यार से घूसा मारते हुए कहा;

मैं: बड़ी हँसी आ रही थी न?! बेटा 5 मिनट और वहाँ रुकते न तो आज दोनों की शादी हो जाती!

ये सुन कर करुणा दहाड़े मारते हुए हँसने लगी| हम दोनों होटल लौटे और नहा-धो कर चाय पीने लगे, करुणा के चेहरे पर एक अजब सी ख़ुशी थी! उसने अपनी मम्मा को फ़ोन कर के सब बताया, जिसे सुन कर उन्होंने करुणा को कुछ बताया जो फिलहाल के लिए करुणा ने मुझसे छुपाया| इस बात से अनजान मैं अब निश्चिंत था की कम से कम दिल्ली में करुणा के पास उसकी एक नौकरी तो है| रात का खाना खाया, हँसी-मजाक किया, बाहर घूमे फिरे, माँ का फ़ोन आया तो मैंने उन्हें बताया की मैं कल रात को निकलूँगा और परसों घर पहुँच जाऊँगा| माँ ने भी बताया की वो परसों गाँव चल देंगी और तरसों दिल्ली पहुँचेंगी तथा मुझे सुबह आनंद विहार बस स्टैंड लेने आने को कहा|

सोने का समय हो रहा था तो हम दोनों चैन से सो गए| अगली सुबह हम जल्दी उठे और आज करुणा में अलह ही जोश था| हम समय से घरसाना पहुँचे और अस्पताल में घुसते ही सीधा बड़े डॉक्टर साहब से मिले, मैंने उन्हें करुणा की नौकरी छोड़ने की बात बताई| मुझे लगा था की वो गुस्सा होंगे और हमें अच्छे से सुनाएँगे पर ऐसा नहीं हुआ, उन्होंने तो सीधा कहा; "ठीक ही है, यहाँ पर तुम्हारे (करुणा के) लिए adjust करना आसान नहीं था!" उनकी ये बात हम दोनों ने पकड़ ली और एक साथ अपने सर हाँ में हिलाये| फिर उन्होंने मुझे करुणा की तरफ से एक application लिखने को कही जिसमें मुझे नौकरी छोड़ने का कारन देना था, साथ ही admin से एक फॉर्म भर कर लाने को कहा| हमने ठीक वैसा ही किया और सारे कागज़ ले कर फटाफट उनके पास लौटे| उन्होंने application पढ़ी और दस्तखत कर के हमें फॉर्म दिया, अब हमें ये फॉर्म ले कर श्री विजय नगर जाना था जहाँ इस फॉर्म को जमा कर के हमें करुणा के जमा किये हुए दस्तावेज छुड़ाने थे|

श्री विजय नगर आ कर हमने करुणा के नौकरी छोड़ने का कारन बताया, फॉर्म जमा किया और करुणा के दस्तावेज ले कर होटल पहुँचे| होटल पहुँच कर मैंने करुणा से कहा की वो अपनी मम्मा और दीदी को बता दे की उसने नौकरी छोड़ दी है तथा हम आज रात की बस से दिल्ली लौट रहे हैं| ये सुन कर करुणा ने जो बात मुझे बताई उसे सुन कर मैं दंग रह गया!

करुणा: मेरा दीदी ने मुझे कल फ़ोन किया ता, वो बोला की तू वापस इदर (करुणा की दीदी के घर) नहीं आ सकता! तू पता नहीं कहाँ-कहाँ घूम रे, जिस-किस के साथ सो रे, मेरा घर में आ कर मेरा घर गंदा मत कर! तुझे जहाँ रहना है वहाँ रह पर मेरा घर के आस-पास आ रे तो मैं तेरा कंप्लेंट पुलिस में कर देते!

ये सुन कर मुझे बहुत जोरदार झटका लगा| मैं जानता था की इस सब के लिए कहीं न कहीं मैं ही जिम्मेदार हूँ, पर फिर लगा की मैंने ऐसा क्या कर दिया? मैं करुणा की मदद ही तो कर रहा था वो भी उसकी दीदी और उसकी मम्मा की आज्ञा से!

मैं: आपकी मम्मा को पता है की आपकी दीदी ने आपको फ़ोन कर के क्या कहा है?

मैंने ये सोच कर सवाल पुछा की करुणा की मम्मा ने जर्रूर करुणा की दीदी को समझा दिया होगा, पर हुआ उसका उल्टा;

करुणा: हाँ दीदी ने खुद उन्हें फ़ोन कर के बोला की मैं उनका घर में अब नहीं रह सकता!

इतना कह कर करुणा चुप हो गई|

मैं: तो आपकी मम्मा ने उन्हें कुछ कहा नहीं?

मुझे बात को कुरेदना पड़ा ताकि करुणा मुझे सारी बात बताये|

करुणा: वो बोल रे की तेरे को (करुणा को) क्या ठीक लग रे वो कर!

ये सुन कर तो मैं हैरान रह गया, ये कैसा परिवार है जिसे एक दूसरे की कुछ पड़ी ही नहीं!

मैं: फिर अब आप कहाँ रहोगे?

मैंने गंभीर होते हुए करुणा से सवाल पुछा तो उसने एक नक़ली मुस्कान चिपकाई और खामोश रही| उसके रहने का इंतजाम करना मेरी जिम्मेदारी थी, इसलिए मैंने ही फ़ोन में हॉस्टल ढूँढने शुरू कर दिए| इंटरनेट बहुत धीमे चल रहा था पर फिर भी जो कुछ जानकारी मिली मैंने वहाँ फ़ोन करना शुरू कर दिया| हर तरफ से मुझे निराशा ही हाथ लग रही थी, करुणा कहाँ रहेगी इसकी चिंता मेरे दिमाग पर सवार हो चुकी थी और मुझे उसकी दीदी पर बहुत गुस्सा आने लगा था!

करुणा: मिट्टू आप टेंशन मत लो! मैं....

करुणा आगे कुछ बोलती उससे पहले ही मैंने उसकी बात काट दी और गुस्से से बोला;

मैं: क्यों टेंशन न लूँ? आपको पता है की आप कहाँ रहोगे? आपकी दीदी को आप पर ज़रा भी भरोसा नहीं?!

करुणा मेरा गुस्सा और मेरी चिंता समझ रही थी इसलिए वो मुझे शांत करते हुए बोली;

करुणा: Relax dear! मैंने हॉस्पिटल का एक डॉक्टर से बात किया है, वो बोला की वो कल शाम को गाँव जा रे तब तक मैं उनका घर में उनकी बेटियों के साथ रह सकते|

ये सुन कर मुझे थोड़ा तो इत्मीनान हुआ पर शाम तक करुणा रहेगी कहाँ और फिर ये arrangement तो कुछ दिन के लिए था, बाद में करुणा कहाँ रहेगी? ये सोच-सोच कर मेरा सर दर्द करने लगा था, खुद को शांत करने के लिए मैं कुछ देर के लिए लेट गया| मुझे लेटा देख करुणा को लगा की मेरी तबियत खराब है, मैंने उसे बताया की मेरा बस सर दर्द कर रहा है| करुणा ने मेरा सर अपनी गोद में रखा और धीरे-धीरे दबाने लगी, 10 मिनट बाद मैं उठा और बोला;

मैं: कल सुबह दिल्ली पहुँच कर मैं आपको होटल में ठहरा देता हूँ, शाम को आपका सामान उन डॉक्टर साहब के यहाँ शिफ्ट कर देंगे, तबतक मैं आपके लिए कोई न कोई हॉस्टल ढूँढ दूँगा!

मैंने करुणा के रहने की जिम्मेदारी अपने सर ले ली थी और मुझे अब वो पूरे मन से निभानी भी थी|

शाम को हमने होटल से check out किया और जो बिल आया उसे देख कर करुणा और मेरी आँखें फटी की फटी रह गईं; 5,240/-, जिसमें ढाई हजार के लगभग का तो हमने खाना ही खाया था!!!! करुणा को ये बिल देख कर बहुत बुरा लग रहा था की उसने बिना मतलब के मेरे इतने पैसे लगवा दिए थे, पर अब किया भी क्या जा सकता था!

हम दोनों बस स्टैंड पहुँचे और बस की टिकट ले कर इंतजार करने लगे| बस आई करीब एक घंटे बाद और तब तक करुणा की माँ का फ़ोन आ चूका था, उन्होंने करुणा से पुछा की वो कहाँ रहेगी तो करुणा ने अपनी अकड़ दिखाते हुए कहा; "मैं देख लूँगी!" इतना कह कर उसने फ़ोन काट दिया| उसका गुस्सा होना जायज भी था, क्योंकि उसकी माँ बस पैसे की लालची थी| करुणा ने मुझे बताया की जब भी महीने की पहली तरीक आती तो करुणा की माँ उससे बड़े प्यार से बात करने लगती थी, उसी वक़्त उनके अंदर की ममता जाग जाती थी और करुणा के अपनी माँ को पैसे भेजते ही उसकी माँ की ममता खत्म हो जाती!

खैर कुछ देर में बस लगी और हमने अपनी स्लीपर वाली बर्थ पकड़ ली, मैं पानी तथा चिप्स वगैरह ले कर वापस लौट आया| इतने में करुणा की बहन ने मुझे फ़ोन किया, मैंने करुणा को फ़ोन दिखाते हुए कॉल उठाया;

करुणा की दीदी: मानु करुणा आपके साथ है न?

मैं: हाँ!

मैंने संक्षेप में जवाब दिया क्योंकि मेरी उनसे बात करने की कतई इच्छा नहीं थी|

करुणा की दीदी: मैंने आपको एक बार warn करना चाहती हूँ, आप अच्छे लड़के हो, इसलिए करुणा से दूर रहना! इसे ले कर मेरे घर मत आना, वरना मुझे पुलिस कंप्लेंट करनी पड़ेगी, मैं नहीं चाहती की उस कंप्लेंट में आपका नाम आये और आप तकलीफ में आओ!

करुणा की दीदी ने बड़े सख्त लहजे में मुझसे बात की, तथा अपनी बात कह कर उन्होंने फ़ोन काट दिया| मैंने ये बात करुणा को बताई तो उसे बहुत बुरा लगा की उसकी बहन ने मुझसे इतने सख्त लहजे में बात की| वो तो करुणा थी जिस कारन मैं सह गया और कुछ बोला नहीं वरना जवाब मैं भी दे सकता था|

उधर करुणा का मन दुखी हो चला था, वो खामोश हो गई थी और मुझे बात नहीं कर रही थी| मैंने उसे समझाने की लाख कोशिश की पर वो नहीं समझी, बड़ी मश्किल से मैंने उसे चिप्स वगैरह खिलाये| बस में हिलते-डुलते दोनों ही सो न सके और खामोश लेटे रहे, बस ने हमें सुबह के 5 बजे दिल्ली के कश्मीरी गेट बस स्टैंड के पास वाले flyover के नीचे छोड़ा| अब जाना कहाँ है इसका फैसला तो हुआ नहीं था, इसलिए समान ले कर हम बस स्टैंड के waiting hall में बैठ गए| आज जिंदगी में पहली बार मैं खुद को उस मुसाफिर की जगह रख कर उस मुसाफिर की मजबूरी को महसूस कर रहा था, कैसा लगता होगा जब आपके पास जाने के लिए कोई 'दर' कोई ठिकाना न हो! निराशा का जो जोरदार थपेड़ा पड़ता है उस दर्द को सहना कितना मुश्किल और असहनीय होता है!

लेकिन कहते हैं न की जिंदगी तब तक खत्म नहीं होती जब तक आप उसकी दी हुई चुनौतियों से लड़ना बंद न कर दो| भौजी के प्रेम ने मुझे वो जुझारू लड़ाका बना दिया था जो बिना लडे हार नहीं सकता था! मैं मन ही मन सोचने लगा की क्यों न करुणा को घर ले जाऊँ शाम तक वो वहीं रहेगी और शाम को उसे उन डॉक्टर साहब के घर छोड़ दूँगा, पर तभी दिमाग ने इस ख्याल को गलत ठहराते हुए कहा; 'पागल मत बन! गली-मोहल्ले के लोग हमे साथ देखेंगे तो बातें बनायेंगे! किसी ने अगर ये बात मेरे माँ-पिताजी को फ़ोन कर के बता दी की करुणा मेरे साथ घर पर है तो मेरा क्रियाकर्म हुआ समझो! जो कल सोचा था वही कर और करुणा को किसी होटल में ठहरा दे!' मैंने फ़ोन निकाला और ऑनलाइन होटल ढूँढने लगा, तब वो trivago वाले चाचा नहीं थे




वरना मैं trivago पर ही होटल ढूँढता! खैर मैंने google पर दिखाए ऊपर के 4-5 होटलों में फ़ोन कर के कमरे का भाड़ा पुछा, सब के सब 2,000/- के ऊपर के थे! एक रास्ता था की मैं पहाड़गंज चला जाऊँ क्योंकि वहाँ पर कम भाड़े पर कमरा मिल जाता पर करुणा को वहाँ अकेला छोड़ने से डर रहा था! मैं चाहता था की होटल मेरे घर के आस-पास हो ताकि मैं करुणा का ध्यान रख सकूँ, तब मुझे याद आया की मेरे घर से करीब डेढ़ किलोमीटर दूर एक होटल था| मैंने करुणा से चलने को कहा जो अभी तक ख़ामोशी से मायूस हो कर सर झुका कर बैठी थी|

मैं नहीं जानता की करुणा के दिमाग में क्या चल रहा था पर उसके हाव-भाव देख कर मुझे उसके मन में मेरे लिए नफरत महसूस होने लगी थी! मैंने उस समय कुछ नहीं कहा और ऑटो कर के होटल की ओर चल पड़ा, करुणा की उतरी हुई शक्ल देख ऑटो वाले को लगा की कहीं मैं उसे भगा कर तो नहीं लाया? मैंने उसे बात बनाते हुए कहा की करुणा यहाँ काम की तलाश में आई है और फिलहाल हम यहाँ कोई girl's hostel ढूँढ रहे हैं! मेरी शकल देख कर ऑटो वाले को यक़ीन हो गया की मैं सच बोल रहा हूँ, उसने मुझे बताया की मैं किसी student लड़की से बात करूँ, उन लड़कियों को कॉलेज की तरफ से हॉस्टल मिलता है और वो वो कई बार थोड़े से पैसों के लिए दूसरी लड़कियों को अपने साथ रहने देती हैं| ऑटो वाले का आईडिया तो बहुत अच्छा था पर मेरी किसी student लड़की से जान पहचान थी नहीं तो मैंने ऑटो वाले से ही मदद माँगी| उसने मुझे एक girl's college का नाम बताया और कहा की वहाँ जा कर चपरासी से बात करूँ तो शायद कोई जुगाड़ फिट बैठ जाए! मैंने सोच लिया की करुणा को होटल में छोड़ कर आज एक बार इस आईडिया को चला कर देखा जाए|

मैं नहीं जानता था की मेरा यूँ एक ऑटो वाले से बात करना करुणा को अखर रहा है! उसने मेरी और ऑटो वाले की बात ख़ामोशी से सुनी पर उस समय बोली कुछ नहीं| हम होटल पहुँचे और वहाँ मैंने करुणा की केरला वाली ID से उसका check in करवाया क्योंकि दिल्ली में होते हुए मेरी दिल्ली की ID इस्तेमाल नहीं हो सकती थी! करुणा को कमरे का दरवाजा अच्छे से बंद करने को बोल कर मैं अपने घर लौटा, घर की साफ़ सफाई कर ही रहा था की पितजी का फ़ोन आया उन्होंने बताया की साइट पर कोई पंगा हो गया हैं तो मुझे अभी वहाँ जाना होगा| मैंने अभी तक कुछ खाया नहीं था, मैं खाली पेट ही कपडे बदल कर साइट पर पहुँचा| साइट पर हमारा आया माल लेबर ने बेवकूफी से लौटा दिया था! पहले तो मैंने लेबर को झाड़ लगाई की उसने बिना मेरे पूछे बताये समान कैसे नहीं उतरने दिया और फिर उस गाडी को वापस बुलाने के लिए supplier को फ़ोन किया| Supplier ने बताया की गाडी वाले ने माल तो छोड़ दिया है, मैंने supplier से गाडी वाले का नंबर लिया और उससे पुछा की उसने कहाँ माल छोड़ा है तो उस उल्लू के चरखे ने बताया की उसने हमारा माल किसी दूसरे की साइट पर छोड़ दिया था! पहले मैंने उससे उस साइट का नाम पुछा और फिर उसे पेट भरकर गालियाँ दी! फिर मैं उस साइट पर पहुँचा तो देखा की वहाँ हमारा माल अलग से पड़ा हुआ था, सुपरवाइजर से मिल कर मैंने उसे इस गलतफैमी के बारे में बताया और वहाँ से माल उठवाया|

इस सब माथा-पच्ची में आधा दिन निकल गया था, मैंने करुणा को फ़ोन कर के उसका हाल-चाल पुछा और उसे खाना खाने को कहा तो वो मुझ पर बिगड़ते हुए बोली; "मेरा मन नहीं है!" इतना कह कर उसने फ़ोन काट दिया! गुस्सा तो बहुत आया पर किसी तरह अपना गुस्सा पी गया और अपने गुस्से में खुद भूखा रहा| शाम को मैं करुणा के होटल पहुँचा, करुणा का मुँह अब भी उतरा हुआ था| मैंने बात शुरू करने के इरादे से कहा;

मैं: यार मैं जानता हूँ की ये सब मेरी वजह से हो रहा है, and I'm really sorry for that!

मेरी बात की जवाब में करुणा ने बस; "हाँ" कहा जो इस बात का इशारा था की वो भी मानती है की उसके घर से निकाले जाने का दोषी मैं ही हूँ! मैंने आगे कुछ नहीं कहा और करुणा का समान उठा कर बाहर ले आया, मैंने ऑटो किया और करुणा का सामान ले कर उन डॉक्टर साहब के घर पहुँचा| रास्ते में करुणा ने मुझे सुबह मेरा उस ऑटो वाले से उसके बारे में बात करने को ले कर थोड़ा सुनाया जिसे मैंने ख़ामोशी से सुना, मेरा ये सब सुनने का कारन थी मेरी ग्लानि जो मेरे मन में टीस मार रही थी| खैर उन डॉक्टर साहब के घर पर केवल उनकी दो बेटियाँ थी, वो मुझे देख कर करुणा से कुछ न पूछें इसलिए करुणा ने मुझे दरवाजे पर से ही लौट जाने को कहा| मैं बिना कुछ कहे कुछ दूर आ कर खड़ा हो गया ताकि देख सकूँ की आखिर दरवाजा कौन खोलता है, दरवाजा एक लड़की ने खोला जो करुणा को जानती थी| मुझे सुकून हो गया की करुणा यहाँ सुरक्षित रहेगी और मैं थक कर चूर घर लौट आया| नहा-धो कर खाना खाया और बिस्तर पर पड़ते ही सो गया, सुबह मैं ठीक 5 बजे उठा घर साफ़ कर के मैं आनंद विहार बस स्टैंड पहुँचा|

मेरे पहुँचते ही माँ-पिताजी की बस आ गई, मैंने सामान उतारा और माँ-पिताजी को घर ले आया| घर आ कर पिताजी ने काम की खबर ली, मैंने उन्हें सारे काम की रिपोर्ट दी और कुछ बिल वगैरह दिए| वहीं माँ ने मेरा हल-चाल पुछा, मेरा दिमाग अब करुणा की वजह से खराब हो चूका था क्योंकि उसने अभी तक मुझे फ़ोन नहीं किया था तो मैंने माँ से साफ़ शब्दों में कह दिया की अब से मैं दिल्ली से बाहर की कोई audit नहीं करूँगा| माँ ने जब इसका कारन पुछा तो मैंने कहा की मुझसे इतने दिन घर से बाहर नहीं रहा जाता, बाहर का खाना खा-खा कर मैं ऊब चूका हूँ! मेरी बात काफी हद्द तक सच थी इसलिए मुझे आज आधा झूठ बोलने पर ग्लानि नहीं हो रही थी| नाश्ता कर के मैं और पिताजी साइट पर निकल गए, घर चकाचक साफ़ था तो माँ को सिर्फ खाना बनाना था| दोपहर को करुणा ने मुझे फ़ोन किया और बड़े ही उखड़े हुए ढँग से बात की, ऐसा लग रहा था जैसे वो किसी को दिखाने के लिए फ़ोन कर रही हो! मैंने उससे पुछा की सब ठीक तो है, पर उसने कोई उपयुक्त जवाब नहीं दिया और "थोड़ी देर बाद फ़ोन करती हूँ" कह कर फ़ोन काट दिया| शाम होने को आई थी और करुणा ने अभी तक फ़ोन नहीं किया था तो मैंने ही उसे फ़ोन कर के मिलने के बारे में पुछा तो करुणा ने; "काम है" कह कर मना कर दिया| मैंने कुछ नहीं कहा और पिताजी के साथ साइट पर ही रहा| मैंने चुप चाप करुणा के लिए हॉस्टल ढूँढने शुरू कर दिए, 2-3 जगह के पते ले कर मैंने रात को करुणा को मैसेज कर के बताया| जवाब में करुणा ने मुझे कल लंच के समय चलने को कहा, मैंने इसके आगे उससे और कोई बात नहीं की|

अगले दिन लंच के समय मैं साइट से गोल हुआ और करुणा के साथ उन हॉस्टलों के चक्कर लगाए, एक सरकारी हॉस्टल था जिसे local guardian की जर्रूरत थी और बाकी सब प्राइवेट होस्टल्स थे जिनकी फीस बहुत ज्यादा थी! हॉस्टल घूमने के समय हमारी बातें न के बराबर हुईं, करुणा कुछ बोल नहीं रही थी और मैं बस उसे हॉस्टल दिलवा कर अपनी जिम्मेदारी से छुटकारा चाहता था| अगले दो-तीन दिन ऐसे ही चला, करुणा कभी-कभार मुझे कॉल करती और हमारी घंटों की बातें कुछ मिनट में खत्म हो जातीं| शाम को मिलने का उसका मन नहीं होता था तो मैंने वो समय उसके लिए खुद हॉस्टल ढूँढने में लगा दिया| उधर करुणा ने अपने अस्पताल की कुछ junior doctors से बात कर के उनके साथ उनके हॉस्टल में रहने का इंतजाम खुद बा खुद कर लिया|ये बात जब मुझे पता चली तो मैं चिंता मुक्त हो गया, अब तक करुणा मेरे प्रति उखड चुकी थी और मैं उसके उखड़ने के कारन से अनजान गुस्से से भरा बैठा था! करुणा ने अपनी उन्हीं junior doctors का group ज्वाइन कर लिया था, दो लड़कियाँ जिन में से एक केरला की थी, एक तमिल नाडु से थी और एक लड़का जो केरला से ही था| इन चारों का group मजबूत हो चूका था, ये लोग साथ खाते थे, साथ घुमते थे और साथ ही काम भी करते थे! मुझे अपने इस 'माल्टा' यानी मल्लू-तमिल ग्रुप की जानकारी करुणा ने खुद दी थी और कुछ इस तरह से दी थी की मैं जल भून कर राख हो जाऊँ! मैं जान गया था की करुणा ने मेरी जगह अपने इस नए group को दे दी है, पर मैं बस ये जानना चाहता था की आखिर उसने ऐसा किया क्यों? क्यों वो मुझे इस तरह से दुःख दे रही है, जबकि मैंने कुछ गलत किया भी नहीं?! मेरा दिल बस एक ही सवाल का जवाब चाहता था, हमारे इस दोस्ती क रिश्ते को खत्म किया जाए या फिर छोड़ दिया जाए?

हफ्ता-दस दिन बीता होगा की एक रात नौ बजे मुझे करुणा का कॉल आया, उसकी आवाज सुन मैं समझ गया की उसने पी हुई है और जब उसने बोलना शुरू किया तो मैं हैरान रह गया;

करुणा: मैं आज.....सुकुमार ...के साथ बियर पिया....आपको पता कहाँ पिया? अपना हॉस्टल का रूम में...वो भी दरवाजा बंद कर के....बस हम दोनों....!

सुकुमार वही मलयाली लड़का था जो करुणा के माल्टा group का हिस्सा था| करुणा ने मेरा सबसे पहला कायदा तोडा था और ये मुझे कतई बर्दाश्त नहीं था, मैं फ़ोन ले कर अपने घर की छत पर आया और उसे डाँटते हुए बोला;

मैं: आपको जो करना है वो करो, बस मुझे फ़ोन कर के ये सब मत बताओ!

इतना कह कर मैं फ़ोन काटने को हुआ तो करुणा मुझे जलाने के लिए बोली;

करुणा: सुकुमार मुझे अपना फ़ोन पर porn भी दिखाया!

ये सुन कर मेरी किलस गई और मैंने गुस्से में आ कर फ़ोन काट दिया| करुणा को चैन नहीं पड़ा और उसने मुझे कई बार फ़ोन किया पर मैंने फ़ोन नहीं उठाया| मेरे दिमाग में ऊल-जुलूल ख्याल आने लगे पर मेरा दिल ये नहीं स्वीकार रहा था की करुणा ऐसा कर सकती है! कुछ देर तक तो मैं अपने दिमाग के ख्यालों से लड़ता रहा पर फिर मैंने लड़ना छोड़ दिया और सोचा की उसकी जिंदगी है, जैसे जीना चाहे जीए कौन सा मैं उसे प्यार करता था जो मुझे फर्क पड़ेगा!

कुछ दिन बीते और करुणा ने एक रात मुझे फ़ोन कर के कहा की वो मेरे घर के पास वाले बजार में है, चूँकि हम बहुत दिनों से मिले नहीं थे इसलिए उसने मुझे वहाँ मिलने बुलाया| मैंने घडी देखि तो रात के सवा नौ हुए थे, मैंने उससे पुछा की वो अकेली इतनी दूर क्यों आई तो उसने बताया की सुकुमार उसके साथ है! उस लड़के का नाम सुनते ही मैंने आने से मना कर दिया और फ़ोन स्विच ऑफ कर दिया| मुझे करुणा का ये रवैया चुभने लगने लगा था क्योंकि धीरे-धीरे मैं उसे ले कर थोड़ा possessive हो गया था| जैसे करुणा शुरुआत में किसी के मुझे देखने से जलने लगती थी, वैसे ही अब मैं उसके सुकुमार के साथ होने से जलने लगा था| कुछ लोगों में ये फितरत होती है की वो अपने दोस्तों को, अपने प्रिय जनों को दूसरों के साथ बाटना नहीं चाहते थे, मैं और करुणा वैसे ही थे!

जाने कब ये चुभन दर्द में तब्दील हो गई पता ही नहीं चला, मैं अकेला छत पर टहलने लगा और सोचने लगा की आखिर करुणा के उखड़ जाने की वजह क्या है? मैंने हर वो गलत/गन्दी वजह सोच ली जिस कारन करुणा का उखड़ना बनता था पर उनमें से कोई भी वजह यहाँ उपयुक्त नहीं बैठ रही थी! कुछ देर बाद दिषु ने पिताजी वाले फ़ोन पर कॉल किया और मुझसे बात करवाने को कहा| मेरी आवाज सुन कर दिषु जान गया की मैं म्यूसियत की राह पर चल रहा हूँ, उसने मुझे सहारा दिया और मेरी उदासी कारन जाना| मैंने उसे सारी बात बताई बस honeymoon suite, नकली पति-पत्नी बन कर होटल में रुकना और करुणा का sex करने के लिए कहने की बात नहीं बताई!

दिषु: यार तेरी गलती क्या है इस सब में? तू तो उसकी बस मदद कर रहा था, फिर तूने तो नहीं कहा था की तू उसे विजय नगर ले कर जायेगा? उसी ने कहा न की आप नहीं जाओगे तो मैं नहीं जाऊँगी? ऊपर से उसकी बहन जो तुझे इतने अच्छे से जानती है वो भी तुझे ही हड़का रही है! छोड़ इस लड़की को और खुद को संभाल, पहले जैसे मत बन जाइओ!

दिषु की बात सही थी, जिससे प्यार किया (भौजी) जब उसने मुझे मरने को छोड़ दिया तो ये (करुणा) तो फिरभी एक दोस्त थी| कल तक अनजान थी, फिर दोस्त बनी आज फिर अनजान हो गई!

बस एक ही दिक्कत थी, मैं करुणा से किये अपने वादे से बँधा था की मैं ये दोस्ती कभी नहीं तोडूँगा, लेकिन दिमाग ने मेरे किये हुए वादे में ही खामी ढूँढ ली! मैं उससे दोस्ती नहीं तोड़ सकता पर अगर वो ही पहले ये दोस्ती तोड़ दे तो मैं अपने किये वादे से आजाद हो जाता| पर ये होगा कैसे मुझे बस यही सोचना था|

कई बार इंसान को अपनी की गलतियों का एहसास देर-सावेर होता है, कुछ-कुछ वैसा ही करुणा को भी एहसास हुआ और उसने दो दिन बाद मुझे फ़ोन किया| मैंने जब फ़ोन उठाया तो उसने मुझसे शाम को मिलने की "इल्तिज़ा" की, उसकी आवाज में ग्लानि थी जिस कारन मैंने उस से शाम को मिलने का समय और जगह तय की|

आज तक हमेशा मैं ही समय पर पहुँच कर उसका इन्तेजा करता था, शाम को मैं करुणा की बताई जगह पर पहुँचा तो वो पहले से ही मेरा इंतजार कर रही थी! उसने मुझे बैठने को कहा और अपने उखड़े व्यवहार के लिए माफ़ी माँगते हुए कारण बताने लगी;

करुणा: I'm sorry मिट्टू! मैं आपके साथ बहुत rude behave किया!

करुणा ने नजरें झुकाते हुए कहा|

करुणा: Actually मेरा मम्मा मुझे फ़ोन कर के आपसे दूर रहना बोला!

करुणा की बात अभी पूरी भी नहीं हुई थी की मैं एकदम से बोल पड़ा;

मैं: अच्छा? तो उन्होंने ये बोला की मुझे छोड़ कर दूसरे लड़के के साथ घूमो? Or maybe he's a मलयाली इसलिए आपकी मम्मा को कोई प्रॉब्लम नहीं था?

मेरे आरोप सुन कर करुणा ने अपनी सफाई देनी शुरू कर दी;

करुणा: नहीं-नहीं मिट्टू ऐसे नहीं! मैं....

करुणा कुछ बोलती उससे पहले ही मैं पुनः बीच में बोल पड़ा;

मैं: Oh really!

मैंने व्यंगपूर्ण ढँग से कहा|

मैं: तो वो मुझे फ़ोन कर के बताना की आप कमरे में अकेले बैठे उस "आदमी" के साथ बियर पी रहे हो, porn देख रहे हो, घूम-फिर रहे हो वो सब क्या था?

ये सुन आकर करुणा का सर शर्म से झुक गया|

मैं: वो सब आप मुझे जलाने के लिए कह रहे थे, पर क्यों? आपकी मम्मा ने बोला की जा कर मिट्टू को जलाओ?!

करुणा: मिट्टू I swear मैंने कुछ गलत नहीं किया, उस वक़्त मुझे बहुत गुस्सा आ रहा था! मैं मम्मा का बात सुन कर आपको अपना ये situation के लिए responsible समझा, इसलिए मैं....

करुणा की बात सुन कर मुझे बहुत गुस्सा आया और मैंने आखरी बार उसकी बात बीच में काटते हुए कहा;

मैं: मैंने ऐसा क्या कर दिया की मैं आपकी इस situation के लिए responsible बन गया? क्या गलत किया मैंने? आप ने बोला की मैं आप के साथ श्री विजय नगर जाऊँ, मैंने तो नहीं कहा था की मैं आपके साथ जाऊँ?

करुणा: I know मिट्टू.. but....I'm sorry.....! मेरा मन में ऐसा कुछ नहीं ता.....!

आज करुणा की आवाज में, उसकी बातों में वो प्यार, वो सच्चाई, वो जूनून नहीं था जो पहले हुआ करता था| मैंने जानबूझ कर उसकी बातों को और आगे नहीं बढ़ने दिया, क्योंकि करुणा की बातों पर मुझे अब विश्वास नहीं हो रहा था, उसका झूठ सुनने से अच्छा था की मैं घर चला जाऊँ|

उस दिन मुझे एक बात समझ आई की जो रिश्ते जल्दबाजी में बनते हैं वो ज्यादा देर नहीं टिकते!

खैर उस दिन से हमारे बीच दूरियाँ आ गई, हमारा मिलना-बातें करना सिमट कर रह गया| मेरा दिल मुझे करुणा का उसके परिवार से दूर रहने के लिए दोषी मानता था, मैंने भगवान से प्रार्थना करनी शुरू कर दी की उसे कोई दूसरी सरकारी नौकरी मिल जाए और उसका परिवार उसे फिर से अपना ले| मुझे क्या पता की भगवान इतनी जल्दी मेरी बात सुन लेंगे, एक दिन करुणा का मुझे फ़ोन आया की उसने केरला में नौकरी का एक फॉर्म भरा था और उसे वहाँ एक सरकारी नौकरी मिल गई है| वाक़ई में नौकरी के नाम पर करुणा की किस्मत बहुत तेज थी, यहाँ लोगों को एक नौकरी नहीं मिलती और वहाँ उसे एक छूटते ही दूसरे मिल गई थी!
ये खबर सुन कर मैंने मन ही मन भगवान को धन्यवाद दिया और प्रर्थना करने लगा की करुणा का परिवार भी उसे माफ़ कर दे तथा उसे प्रेमपूर्वक अपना ले| उधर करुणा ने खुद मुझे शाम को मिलने को बुलाया, मैं समय से उससे मिलने पहुँचा तो पता चला की उसकी बहन उसके हॉस्पिटल में आई हुई है| अब मुझे उसकी बहन के जाने तक इंतजार करना था, करीब आधे घंटे बाद उसकी बहन गई और तब करुणा नीचे उतर कर मेरे पास आई| उसने मुझे बताया की उसकी बहन ने करुणा से हाथ जोड़कर माफ़ी माँगी है और कहा है की करुणा उससे पैसे ले कर केरला जाए तथा ये नौकरी join कर ले| साफ़ था की उसकी बहन चाहती थी की करुणा यहाँ से चली जाए ताकि उसकी खुद की इज्जत बनी रहे| करुणा ने केरला जाने के लिए हाँ कह दिया था और ये जान कर मुझे थोड़ा बहुत दुःख हो रहा था, पर फिर मन ने कहा की इसी में करुणा की भलाई है| बस यही सोच कर मैंने अपने दुःख को दबा दिया, वहीं दिल्ली छोड़ने तथा मुझे छोड़ने के नाम से करुणा काफी दुखी थी और रोने लगी थी|

करुणा की flight परसों की थी जिसकी टिकट मैंने ही अपने पैसों से बुक की थी क्योंकि फिलहाल करुणा के पास पैसे नहीं थे, तथा अपनी अकड़ दिखाने के लिए वो अपनी बहन से पैसे लेना नहीं चाहती थी| करुणा ने कहा की कल का पूरा दिन वो मेरे साथ रहेगी और परसों मैं ही उसे airport छोड़कर आऊँ| उसकी इस इच्छा का मैंने ख़ुशी-ख़ुशी मान रखा और अगला पूरा दिन उसके साथ रहा, सुबह हम दोनों चर्च गए जहाँ उसने मुझे अपने चर्च के father से मिलवाया| वो जानते थे की अभी तक मैंने करुणा की कितनी मदद की है, उन्होंने मुझे आशीर्वाद दिया और मैंने God से प्रार्थना की कि वो करुणा का करेला में ध्यान रखें| फिर हम ने एक फिल्म देखि, उसके बाद lunch किया और शाम को मैंने करुणा को उसके हॉस्टल छोड़ा|

फिर आया वो दिन जब करुणा हमेशा के लिए केरला जाने वाली थी, मैं सुबह जल्दी उसके हॉस्टल पहुँचा ताकि आखरी बार उसके साथ कुछ समय और व्यतीत कर पाऊँ| जाने से पहले मैंने करुणा को आखरीबार दिल्ली के छोले-भठूरे खिलाये और फिर उसका समान ले कर मैं एयरपोर्ट पहुँचा| एयरपोर्ट पहुँचने तक के रास्ते में मैं भावुक हो चूका था, मेरा नाजुक दिल करुणा को जाने नहीं देना चाहता था! ये तो मन था जो करुणा के अच्छे जीवन का बहना दे कर मेरे दिल को संभाल रहा था पर वो भी कब तक दिल को संभालता| एयरपोर्ट पहुँच कर करुणा के अंदर जाने का समय आ गया था, इस समय हम दोनों की आँखें नम हो चलीं थीं| मैंने करुणा को एकदम से अपने सीने से लगा लिया और मैं फफक कर रो पड़ा| आज पहलीबार मैंने करुणा को इस कदर छुआ था, वो भी तब जब हम हमेशा के लिए दूर हो रहे थे| मेरा रोना देख करुणा से भी नहीं रुका गया और वो भी रोने लगी| पिछले महीनों में भले ही हमारे बीच दरार आ गई हो पर करुणा को इस कदर खुद से दूर जाते हुए मुझसे नहीं देखा जा रहा था|

मैंने एक बार करुणा को फिर से उसकी बेहतरी के लिए बनाये अपने rules याद दिलाये और उसे अपना ध्यान रखने को कहा| करुणा ने सर हाँ में हिला कर उन rules को अपने पल्ले बाँधा, तब मैं नहीं जानता था की उस duffer के दिमाग में उसके फायदे की बातें कभी नहीं टिकतीं!

खैर करुणा एयरपोर्ट के भीतर गई तो मैं फ़ौरन वहाँ से घर की ओर चल दिया, वहाँ एक मिनट और रुकता तो फिर रो पड़ता| मेरे दिमाग ने मुझे वापस पुराना शराब पीने वाला मानु बनने की राह दिखाई जिस पर मैं हँसी-ख़ुशी चलने को तैयार था| मैं और मेरी शराब यही रह गया था मेरे पास अब!
 

[color=rgb(85,]बाईसवाँ अध्याय: अनपेक्षित आगमन[/color]
[color=rgb(235,]भाग - 1[/color]


[color=rgb(65,]अब तक आपने पढ़ा:[/color]

फिर आया वो दिन जब करुणा हमेशा के लिए केरला जाने वाली थी, मैं सुबह जल्दी उसके हॉस्टल पहुँचा ताकि आखरी बार उसके साथ कुछ समय और व्यतीत कर पाऊँ| जाने से पहले मैंने करुणा को आखरीबार दिल्ली के छोले-भठूरे खिलाये और फिर उसका समान ले कर मैं एयरपोर्ट पहुँचा| एयरपोर्ट पहुँचने तक के रास्ते में मैं भावुक हो चूका था, मेरा नाजुक दिल करुणा को जाने नहीं देना चाहता था! ये तो मन था जो करुणा के अच्छे जीवन का बहना दे कर मेरे दिल को संभाल रहा था पर वो भी कब तक दिल को संभालता| एयरपोर्ट पहुँच कर करुणा के अंदर जाने का समय आ गया था, इस समय हम दोनों की आँखें नम हो चलीं थीं| मैंने करुणा को एकदम से अपने सीने से लगा लिया और मैं फफक कर रो पड़ा| आज पहलीबार मैंने करुणा को इस कदर छुआ था, वो भी तब जब हम हमेशा के लिए दूर हो रहे थे| मेरा रोना देख करुणा से भी नहीं रुका गया और वो भी रोने लगी| पिछले महीनों में भले ही हमारे बीच दरार आ गई हो पर करुणा को इस कदर खुद से दूर जाते हुए मुझसे नहीं देखा जा रहा था|

मैंने एक बार करुणा को फिर से उसकी बेहतरी के लिए बनाये अपने rules याद दिलाये और उसे अपना ध्यान रखने को कहा| करुणा ने सर हाँ में हिला कर उन rules को अपने पल्ले बाँधा, तब मैं नहीं जानता था की उस duffer के दिमाग में उसके फायदे की बातें कभी नहीं टिकतीं!

खैर करुणा एयरपोर्ट के भीतर गई तो मैं फ़ौरन वहाँ से घर की ओर चल दिया, वहाँ एक मिनट और रुकता तो फिर रो पड़ता| मेरे दिमाग ने मुझे वापस पुराना शराब पीने वाला मानु बनने की राह दिखाई जिस पर मैं हँसी-ख़ुशी चलने को तैयार था| मैं और मेरी शराब यही रह गया था मेरे पास अब!

[color=rgb(251,]अब आगे: [/color]

कहते हैं की जब खुद के सर पर पड़ती है तो आटे-दाल का भाव पता चल जाता है!

करुणा को अपनी नई नौकरी के लिए केरला में अकेले पापड़ बेलने पड़ रहे थे, धुप में अपनी एड़ियाँ घिस-घिस कर उसे मेरी असली कीमत समझ आने लगी थी| उसने मुझे फ़ोन कर के अपनी तकलीफें गिनाना शुरू कर दिया, मैं उससे कोसों दूर बैठा था और यहाँ से उसके लिए कुछ नहीं कर सकता था| उसकी तकलीफें सुन कर मैं उसे ढाँढस बँधा दिया करता और मन ही मन भगवान से प्रार्थना करता की इस नौकरी को पाने में वे उसकी मदद करें| उधर पूरा एक हफ्ते तक करुणा को धुप में दौड़ाने के बाद करुणा को नौकरी मिल ही गई, पर posting दूसरे शहर में मिली| मैंने सोचा कम से कम वो केरला में तो है, वहाँ उसे वो दिक्कत नहीं होगी जो राजस्थान में होती|

पोस्टिंग तो मिल गई थी पर उस शहर में रहने का इंतजाम होना बाकी था| अपने दिमाग का इस्तेमाल करते हुए करुणा अपनी माँ को ले कर रविवार के दिन उस शहर पहुँची जहाँ उसे posting मिली थी और वहाँ अपने रहने के लिए हॉस्टल ढूँढने लगी| एक hostel में उसने खुद बात की और दो दिन बाद आने का कह दोनों माँ-बेटी घर वापस आ गए| घर लौट कर करुणा की अपनी माँ से पैसों को ले कर लड़ाई हो गई, उसे अपनी माँ पर इतना गुस्सा आया की सोमवार रात को करुणा ने अपना समान समेट कर ट्रैन में बैठ गई और अगले दिन तड़के 5 बजे अपने posting वाले शहर पहुँच गई| अपना सूटकेस ले कर करुणा उस हॉस्टल में पहुँची जहाँ उसने बात की थी, इतने तड़के सुबह करुणा को हॉस्टल में देख उस हॉस्टल की वार्डन को लगा की करुणा अपने घर से भाग कर आई है, इस बात पर उन्होंने करुणा को खूब झाड़ा और तब तक admission नहीं दिया जब तक उसके घर वाले नहीं आ जाते! वार्डन की झाड़ सुन करुणा का मुँह बन गया और वो अपना समान उठा कर बाहर आ गई, उसे समझ आया की इतनी सुबह कोई भी हॉस्टल उसे एडमिट नहीं करेगा इसलिए उसने अपनी कुंज्जु (मौसी) को बुलाया| उनके आने तक वो एक पार्क में बैठी रही और मुझे फ़ोन कर के अपना रोना सुनाती रही| मुझे शुरू से ही उसका रोना सुन्ना पसंद नहीं था पर क्या करें दोस्ती की थी और करुणा से किये अपने वादे से बँधा था| करुणा ने दूसरे हॉस्टल में कमरा ले लिया और उसकी नई नौकरी पर उसका पहला दोस्त एक लड़का बना! लेकिन इस बार मुझे इससे कोई परेशानी नहीं हुई, कोई चिढ नहीं, कोई जलन नहीं हुई| शुरू-शुरू में करुणा मुझे रोज फ़ोन करती, उसकी बातों में केरला को ले कर बस शिकायत होती थी! जबकि जब वो दिल्ली में थी तो केरला की तारीफ करते नहीं थकती थी, मैंने उसके बदले हुए नजरिये का बहुत मजाक उड़ाया| करुणा ने बताया की मलयाली लोग बड़े उखड़े लोग हैं, उन्हें दूसरों को तरक्की करता देख कर जलन होती है तथा वे औरों की मदद करने से कतराते हैं! वहाँ के ऑटो वाले बड़े लालची हैं और थोड़ी सी दूर जाने के 100/- रुपये ले लेते हैं! इन सब के अलावा वहाँ पर एक समस्या और है, "पट्टी" यानी सड़क के कुत्ते! मैंने करुणा से मजाक करते हुए कहा की वो कुत्तों को दूर रखने के लिए उन्हें हिंदी में डाँटती है या मलयालम में?!
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फिर एक दिन उसने ये शिकायत करनी शुरू की कि वहाँ के आदमी उसे देख कर बहुत घूरते हैं! मैंने मन ही मन सोचा की राजस्थान में लोगों का घूरना जायज था क्योंकि वो अपने सामने एक मलयाली लड़की पहली बार देख रहे थे, पर मलयाली मर्दों का उसे घूरना एक सामान्य मर्दों की आदत थी जिसे करुणा नहीं समझ रही थी! इस तरह हर रोज करुणा अपनी शिकायतों का पिटारा खोल कर बैठ जाती और मैं; "हाँ ...हम्म्म" करते हुए उसकी बात सुनता रहता|

हमारा यूँ देर तक बात करना करुणा के आस-पास वाले लोग, जैसे की उसके अस्पताल के सहकर्मी और उसकी roommate गौर करने लगे थे| वे सभी करुणा से पूछने लगे थे की वो किस से हिन्दी में इतनी लम्बी बातें करती है? करुणा ने उन्हें मेरे बारे में बताना शुरू कर दिया जिससे उनकी मुझसे बात करने की इच्छा जागने लगी, लेकिन उनमें से किसी को भी हिंदी नहीं आती थी इसलिए मैं उनसे अंग्रेजी में बात करने लगा| मेरी अंग्रेजी उनकी अंग्रेजी के मुक़ाबले अच्छी थी तो मैं थोड़ा बहुत दिखावा करने लगा! वो सब लोग मुझसे बहुत प्रभावित थे और मुझसे बात करना बहुत पसंद करते थे| करुणा ने उन्हें मेरे बारे में सब कुछ बताया था जिस कारन वो मुझे अच्छा लड़का समझते थे| मैंने उनसे बात करते हुए ये साफ़ कर दिया था की मैं और करुणा बस अच्छे दोस्त हैं ताकि उनके दिमाग में हम दोनों को ले कर कोई शंका न रहे!

फिर एक दिन करुणा ने मुझे बताया की सुकुमार उसे porn videos भेजता है| ये सुन कर मैंने कटाक्ष करते हुए करुणा से कहा; "और देखो उसके साथ porn?!" मेरी बात सुनकर करुणा अपनी सफाई देते हुए बोली की वो उसकी भेजी हुई porn videos download कर के नहीं देखती| मुझे कटाक्ष करने में मजा आ रहा था तो मैंने कहा; "जंगल में मोर नाचा किसने देखा!" जाहिर सी बात थी की मेरा मुहावरा करुणा के पल्ले पड़ने से रहा| उसने कई बार इस मुहावरे का अर्थ पुछा, मैंने उसे "google" करने की सलाह देते हुए बात खत्म करनी चाही लेकिन अभी करुणा की बात खत्म नहीं हुई थी, जिस सुकुमार के वो दिल्ली में कसीदे पढ़ती थी आज वो उसके porn भेजने को ले कर नराज हो रही थी| मैंने करुणा से कहा की अगर उसे porn देखना नहीं पसंद तो वो सुकुमार को मना कर दे, पर करुणा में इतनी हिम्मत नहीं थी की वो उसे मना कर सके| दो दिन बाद करुणा ने हिम्मत कर के सुकुमार से porn नहीं भेजने को कहा तो उस ठरकी ने पलट कर करुणा से कहा; "ये तेरे मतलब की चीज है! अभी नहीं देखेगी तो कब देखेगी?" करुणा मंद बुद्धि ने इसे सुकुमार का मजाक समझा और उसकी बात को हलके में लिया, पर तभी सुकुमार ने कुछ ऐसा कहा जिसे सुन कर करुणा के होश फाख्ता हो गए; "उस दिन जब हम दोनों ने कमरे में बैठ कर बियर पी, तब मैंने तुझे porn इसलिए दिखाया था ताकि तो गर्म हो जाए! अगर तू उस दिन मुझसे sex करने को कह देती तो मैं तुझे जन्नत की सैर करा देता!" सुकुमार की बात सुन कर करुणा को बहुत बड़ा धक्का लगा| करुणा को मेरी दयनाददारी (ईमानदारी) समझ आई और उसने शाम को मुझे फ़ोन कर के माफ़ी माँगना शुरू किया| मौका अच्छा था तो मैंने करुणा को उसके मेरे साथ किये उखड़े व्यवहार के बारे में याद दिला कर शर्मिंदा कर दिया, वो बेचारी बस माफियाँ माँगती रह गई!

केरला में रह कर करुणा को दिल्ली में मेरे साथ बिताया हर एक दिन याद आने लगा था और वो मुझे रोज फ़ोन कर के उन दिनों को याद दिलाया करती थी| वहीं मेरा दिल इन यादों को बस ख़ुशी के पल मान कर याद करता था, मेरे मन में जो करुणा के प्रति थोड़ा बहुत रोष था वो कम होने लगा था पर हमारा ये दोस्ती का रिश्ता एक बार फिर खींचने लगा| अपने काम के प्रति समर्पित करुणा अब हरामखोरी करने लगी थी, झूठी हाजरी लगा कर वो गोल होने लगी थी| फिर एक दिन सुबह 11 बजे मुझे करुणा का फ़ोन आया और उसने कहा की; "आज मेरा बियर पीने का मन है, अस्पताल का कम्पाउण्डर सब के लिए बियर लाने जा रे, मैं भी उससे अपने लिए बियर मँगाऊँ?" मैंने गुस्सा करते हुए करुणा को साफ़ शब्दों में मना किया पर उसे चढ़ी थी पीने की धुन तो उसने मेरा बनाया हुआ कायदा तोड़ दिया| उसी रात को उसने जब मुझे फ़ोन किया तो वो पी के धुत्त थी और शराबियों की तरह मुझसे बात कर रही थी| मैं उस वक़्त दिल्ली से बाहर आया था और स्टेशन पर अपनी ट्रैन का इंतजार कर रहा था, करुणा की फ़ोन पर शराबियों जैसी आवाज सुन कर मुझे बहुत गुस्सा आ रहा था, लेकिन करुणा के अंदर अचानक ही मेरे लिए चिंता जाग गई थी! वो मुझसे ऐसे बात कर रही थी जैसे की मैं कोई छोटा बच्चा हूँ जो जिंदगी में पहलीबार घर से बाहर अकेला आया हो! करुणा को मुझसे ऐसे बात करने पर बहुत मजा आ रहा था और मेरे गुस्से का पारा चढ़ रहा था| मैंने उसकी कॉल काटनी शुरू की पर वो बाज नहीं आई और बार-बार फ़ोन कर के मेरी जान खाती रही! हारकर मैंने फ़ोन ही switch off कर दिया, पर आधे घंटे बाद मुझे फिर से फ़ोन चालु करना पड़ा क्योंकि माँ-पिताजी का फ़ोन भी तो आ सकता था?! शुक्र है की करुणा का फ़ोन दुबारा नहीं आया, मैंने अपनी ट्रैन पकड़ी और घर की ओर चल पड़ा| रात का समय था और कुछ करने को था नहीं तो मैंने सोचना शुरू कर दिया की करुणा के दिमाग में आखिर चल क्या रहा है? श्री विजय नगर से वापस आने के बाद करुणा एकदम से उखड गई थी और अब वो मुझे फ़ोन करते नहीं थकती?! शायद उसे मेरी कीमत का एहसास हो रहा हो या फिर वो मेरे साथ किये व्यवहार के लिए शर्मिंदा हो?! अब उसके मन की तो मैं कुछ कह नहीं सकता था, तो बात आई मेरे गुस्से की? मेरा दिमाग करुणा की बेवकूफियों से थक गया था, पर दिल को अब भी लगता था की उसमें कुछ तो अच्छा है, शायद अब भी देर नहीं हुई करुणा के बदलने की? 'लेकिन तू उसे क्यों बदलना चाहता है?' मेरा दिमाग बोला| दिमाग की बात सही थी इसलिए मैंने अपने जज्बातों पर काबू करने का फैसला किया, आखिर क्यों मैं उसके चक्कर में अपना खून जलाऊँ?

अगले दिन सुबह करुणा ने मुझे फ़ोन किया, संडे था और मैं छत पर सैर कर रहा था| मैंने फ़ोन उठाया तो करुणा ने अपनी माफ़ी की गठरी मेरे सामने रख दी और मुझसे झूठ बोलते हुए कहने लगी की उसने बियर खरीदी थी पर पी नहीं थी! मैं उसकी बात मानने से रहा इसलिए मैंने अपनी बात बड़ी सख्ती से उसके सामने रखी! मेरा उस पर भरोसा न करने की बात सुन कर करुणा को मिर्ची लगी और वो तुनक कर मुझसे बोली; "आपको मेरा से इतना problem हो रे तो हम ये friendship end कर देते!" इतना सुनना था की मैंने फ़ोन काट दिया| करुणा को लगा था की मैं उसे समझाऊँगा, गिड़गिड़ाऊँगा पर मैंने तो फ़ोन काट कर बात ही खत्म कर दी थी!

मुझे एक पार्टी को कुछ पिक्चर भेजनी थी तो मैंने अपना what's app खोला, पार्टी का नाम ढूँढ़ते हुए मुझे पता चला की करुणा ने मुझे block कर दिया है! ये देख कर मुझे गुस्सा नहीं आया बल्कि मुझे कुछ फर्क ही नहीं पड़ा| मैं अपने काम में लग गया, पर 15 मिनट बाद ही करुणा का फ़ोन आया और वो फिर से sorry वाला गाना गाने लगी| उसने बताया की उसने दिल्ली वाले चर्च के father से बात की और उन्होंने करुणा को मेरे 'अच्छे कर्मों' के बारे में याद दिलाया| मैं खामोश रहा और वो बड़बड़ करती रही, तभी उसने मुझसे पुछा की क्या मैंने what's app पर देखा की उसने मुझे block कर दिया है? मैंने हाँ कहा तो उसे ये जानकर हैरानी हुई की मैंने उसे मुझे block करने पर कुछ कहा क्यों नहीं? मैं खामोश रहा और वो मुझ पर अपना झूठा गुस्सा निकालती रही! तब मुझे एहसास हुआ की मेरा दिल अब करुणा के प्रति सुन्न हो चूका है!

खैर करुणा ने एक-एक कर मेरे बनाये सारे कायदे-कानून तोड़ने शुरू कर दिए, मुझे बिना बताये उसने बाहर जाना शुरू कर दिया, छुट्टी वाले दिन मुझसे झूठ बोल कर उसने अपने अस्पताल में काम करने वाले आदमी के घर खाना खाने जाना शुरू कर दिया, कभी-कभार मैं अगर उसे फ़ोन करता तो वो फ़ोन नहीं उठाती! पर मुझे अब करुणा पर गुस्सा नहीं आ रहा था, शायद मैं अब दिल से चाहने लगा था की करुणा ये friendship खत्म कर दे! कुछ समय बाद धीरे-धीरे हमारी दोस्ती इस कदर खींच गई की हमारी बातें होनी बंद हो गई!

मैंने खुद को पिताजी के बिज़नेस और कभी-कभार दिषु के साथ ऑडिट पर बिजी कर लिया| रोज शाम को मेरा एक निश्चित कार्यक्रम था, काम से निकलो तथा किसी पार्क या कभी-कभार pub जा कर शराब पियो| लेकिन मेरा पीना हमेशा काबू में रहा क्योंकि पी कर मुझे घर जाना था और कहीं माँ-पिताजी को शक न हो इसलिए मैंने कभी भी ज्यादा नहीं चढ़ाई| पी कर मैं हमेशा लेट पहुँचता था, शराब की हलकी-हलकी खुमारी मुझे पसंद थी इसलिए उस खुमारी के उतरने से पहले ही मैं अपने कमरे में घुस कर दरवाजा बंद कर के सो जाता था| माँ-पिताजी लेट आने का कारन पूछते तो मैं कह देता की दिषु के साथ ऑडिट का थोड़ा काम निपटा रहा था| चूँकि मैं बड़ा शांत स्वभाव का था और अब माँ-पिताजी के काबू में आ गया था तो वे मुझसे ज्यादा सवाल-जवाब नहीं करते थे|

बिज़नेस की बात करूँ तो मेरे पूरा समय देने से काम अच्छा चल निकला था, बीच में मुझे नौकरी के दो offer आये पर पिताजी ने मुझे नौकरी करने से साफ़ मना कर दिया| मैंने भी उनसे कोई बहस नहीं की क्योंकि मेरे लिए दिषु के साथ छोटी-मोटी ऑडिट ही काफी थीं| वहीं मिश्रा अंकल जी से मिलने वाला बड़ा contract थोड़ा लटक गया था क्योंकि प्लाट कोई कानूनी पचड़े में फँस गया था| कानूनी पचड़ा सुलझाने के लिए उन्होंने एक निजी वकील किया जिनका नाम सतीश था, अब वकील तो पैदाइशी दिमाग से तेज होते हैं तो सतीश जी ने मिश्रा अंकल जी का काम चुटकियों में सुलझा दिया| मिश्रा अंकल की मुसीबत दूर हुई तो उन्होंने एक पार्टी दे डाली और पिताजी को सह कुटुम्भ न्योता दिया| पार्टी में मिश्रा अंकल जी ने हमारा तार्रुफ़ सतीश जी से करवाया और मेरी तारीफ करते हुए बोले;

मिश्रा अंकल जी: ई हमार मुन्ना है, तोहका जौनो काम है ऊ ईका बताई दिहो!

इतना सुनना था की सतीश जी ने मुझे अपने साथ बिठा लिया और मुझे अपने फ्लैट में क्या-क्या काम करवाना है उसकी बात शुरू कर दी| सतीश जी का एक छोटा ऑफिस उनके फ्लैट में था जिसमें वो बहुत महँगी वाली lighting लगवाना चाहते थे जैसे की बड़े-बड़े घरों के study room में होती हैं! उनकी फरमाइशें सुन मैं मन ही मन सोच रहा था की इसका पैसा कौन देगा? कहीं ऐसा न हो की मिश्रा अंकल जी हमें काम देने के एवज में ये काम हमारे सर डाल दें? ये ख्याल आते ही मैंने सतीश जी को अपनी ओर से कोई सुझाव नहीं दिया और उनकी बातों में हाँ मिलाता रहा|

पार्टी शुरू हुई और पीने-पाने का कारकर्म शुरू हुआ, लेकिन पिताजी की मौजूदगी में पियूँ कैसे? इतने में सतीश जी उठे और अपने तथा मेरे लिए एक drink बना कर ले आये, सतीश जी ने drink मेरी ओर बढ़ाया पर मैंने गर्दन न में हिला कर पीने से मना कर दिया| मेरी 'न' कितनी मुश्किल से निकली ये बस मैं ही जानता था, दिल कह रहा था की मर्द बन और एक साँस में गटक जा पर दिमाग ने आगाह किया की पिताजी यहीं मौजूद हैं! उन्होंने अगर पीते हुए देख लिया तो ऐसा कस कर थप्पड़ मारेंगे की शराब और इज्जत दोनों उतर जायेगी! तभी पीछे से मिश्रा अंकल जी आ गए, उन्होंने मेरी न में हिलती हुई गर्दन देख ली थी इसलिए वो मुझे पीने के लिए थोड़ा प्रोत्साहन देते हुए बोले;

मिश्रा अंकल जी: अरे पी लिहो मुन्ना, तोहार पिताजी का हम समझा देब!

मन तो बहुत था पीने का पर मैंने फिर भी चेहरे पर नकली मुस्कान लिए न में गर्दन हिलाई|

सतीश जी: अरे यार तुम्हारी उम्र में तो लड़के सब पीते-खाते हैं! ये ही उम्र है खा-पी लो वरना मेरी तरह 40 पार किया नहीं की बीमारियाँ ले कर बैठ जाओगे!

अब पिताजी की मौजूदगी में मुझे खुद को 'शुद्ध' साबित करना था तो मैंने भोलेपन का नाटक करते हुए कहा;

मैं: सर जी मैं ये सब नहीं पीता|

इतने में पीछे से पिताजी आ गए और समझ गए की यहाँ क्या चल रहा है;

पिताजी: सतीश जी, मैंने अपने बेटे की लगाम बचपन से बहुत खींच कर रखी है, इसलिए ये किसी भी तरह का कोई नशा-वशा नहीं करता!

पिताजी बड़े गर्व से बोले| अब उन्हें क्या पता की उनके लड़के ने ऐसी-ऐसी शराब पी है जिसका उन्होंने नाम तक नहीं सुना होगा और काण्ड तो ऐसे किये हैं की उस पर किताब लिखी जा सके!

पिताजी ने मुझे माँ के लिए कुछ खाने को ले जाने को कहा और खुद सतीश जी के साथ बैठ कर पीने लगे| मैं माँ के लिए कुछ खाने को लाया तो देखा की माँ मिश्रा आंटी जी के साथ बैठीं बात कर रहीं हैं| मुझे देखते ही मिश्रा आंटी जी ने मुझे अपने सामने बिठा लिया और माँ से मेरी शादी की बात छेड़ते हुए बोलीं;

मिश्रा आंटी जी: अब तो तोहार लड़का कमाए लगिस है, अब तो ई का बियाह कर दिहो!

महिलाओं को अपना मन पसंद चर्चा का विषय मिला तो दोनों ने गप्पें लड़ानी शुरू कर दी, मैं वहाँ से खिसकने को हुआ तो माँ ने मुझे खींच कर अपने पास बिठा लिया|

मिश्रा आंटी जी: हमार पूरबी ब्याह लायक हुई गई रही वरना तो हम पूरबी के पिताजी से कहिन रहन की ऊ तोहरे घरे बात करें!

मिश्रा आंटी जी की बात सुन माँ मुस्कुराते हुए बोलीं;

माँ: अरे बहन जी, सादी ब्याह के रिश्ते तो ऊपर से बन के आवत हैं!

ये बात माँ ने बात को संभालने के लिए कही थी, असल बात ये थी की पूरबी ने प्रेम-विवाह किया था|

खैर पार्टी खत्म हुई और हम सब घर आये, घर आने पर पिताजी ने बताया की मिश्रा जी ने हमें दो साइट के प्रोजेक्ट दिए हैं| एक साइट गुडगाँव में है और दूसरी नॉएडा में तथा दोनों ही साइटों पर हमें सारा काम संभालना है क्योंकि मिश्रा जी अपने दामाद के साथ मथुरा में किसी अन्य प्रोजेक्ट पर काम कर रहे हैं! पिताजी और मैंने बहुत दिमाग मारी कर के दोनों साइटों के बजट बनाये, जो बजट हमारे सामने था उसमें मुनाफा बहुत तगड़ा था! मुनाफे की सोच कर ही मैं बहुत खुश था, जो सबसे पहली चीज मेरे दिमाग में आई थी वो थी गाडी! गाडी की लालसा में मैंने इस प्रोजेक्ट में अपना तन-मन लगाने की तैयारी कर ने लगा पर नियति को कुछ और ही मंजूर था!

मैंने सबसे पहले सतीश जी का काम पकड़ा, पिताजी ने बताया की मिश्रा अंकल जी ने सतीश जी के काम के लिए अलग से पैसे दिए हैं| मिश्रा अंकल जी ने जो पैसे दिए थे वो काम के हिसाब से ज्यादा थे, साफ़ था की बे चाहते थे की इस काम से पिताजी मुनाफा कमाएं पर पिताजी बहुत ईमानदार थे और साथ ही मिश्रा अंकल जी के दिए प्रोजेक्ट्स के लिए एहसानमंद भी| उन्होंने मुझे सतीश जी का ये काम rate to rate करवाने को कहा, मैंने पिताजी की आज्ञा का पालन करते हुए सारा काम सतीश जी की पसंद के अनुसार करवाया| दो दिन के अंदर मैंने सतीश जी का ऑफिस वाला कमरा ऐसा जगमगा दिया मानो किसी रहीस का study room हो! फिर इस काम से जुड़े सभी बिल इकठ्ठा कर के और अपनी छोटी सी project report बना कर पिताजी को दे दी| पिताजी ने बचे हुए पैसे और बिल सहित मेरी बनाई project report मिश्रा अंकल जी को सौंपनी चाही ताकि उन्हें पता रहे की कितना पैसा खर्चा हुआ| लेकिन मिश्रा अंकल जी ने न तो report देखि और न ही पैसे वापस नहीं लिए| मेरे पिताजी उनसे उम्र में थोड़े छोटे थे तो उन्होंने पिताजी की पीठ थपथपाई और;

मिश्रा अंकल जी: तू हमार छोट भाई हो, आज तक हम तोहरे संगे कभौं पैसा को ले कर भाव-ताव किहिन है? तोहार मुन्ना जउन बजट बनावट है और आपन जो report हमका बनाये के देत है ऊ हमार दामाद का बहुत पसंद आवत है, जानत हो ऊ तोहार मुन्ना की कितनी बड़ाई करत है?! फिर हम जानित है तू कितना ईमानदार हो और तोहार मुन्ना भी तोहरे दिखाए रास्ता पर चलत है, इसलिए ई पैसा तोहार मेहनत का है!

मिश्रा अंकल जी की बात सुन कर पिताजी मुस्कुरा दिए और घर लौट आये|

अगस्त का दूसरा हफ्ता शुरू हो रहा था और दोनों साइट पर काम धीमी रफ्तार से काम शुरू हो गया था| गुडगाँव से नॉएडा जाने-आने में खासी दिक्कत होती थी, इसलिए मैंने पिताजी को ज्यादा मेहनत करने से मना कर दिया और सारा काम खुद संभालने लगा| इसी बीच मुझे एक प्राइवेट कॉन्ट्रैक्ट मिला, काम ज्यादा बड़ा नहीं था और दिल्ली में था, घर पर ऊबने से अच्छा था की पिताजी वो कॉन्ट्रैक्ट संभालें| तो इसी कॉन्ट्रैक्ट के सिलसिले में मुझे और पिताजी को मिलने बुलाया गया, दोनों बाप-बेटे आज मीटिंग के लिए बहुत अच्छे से तैयार हो कर ऑफिस पहुँचे| हमारी मीटिंग अभी शुरू ही हुई थी की तभी अचानक मेरे फ़ोन पर एक अनजान नंबर से कॉल आया, मुझे लगा की कहीं गुडगाँव या नॉएडा की साइट से तो नहीं इसलिए मैं "excuse me for a sec" बोल कर केबिन से बाहर आ गया|

मैं: हेल्लो|

मैंने फ़ोन कान पर लगाते हुए कहा, पर जब अगली आवाज मेरे कान में पड़ी तो मेरे दिल की धड़कन मानो रुक सी गई!

भौजी: Hi!

भौजी ने ख़ुशी से चहकते हुए कहा| मैं भौजी की आवाज तो पहचान गया था पर नजाने क्यों मेरा दिमाग इस 'अनचाही आवाज' को सुन कर यक़ीन नहीं कर रहा था!

मैं: Who's this?

मैंने ये सवाल इस उम्मीद से पुछा की शायद ये आवाज किसी और इंसान की हो, पर ऐसा नहीं था!

भौजी: पहचाना नहीं?

भौजी ने बनावटी गुस्से से कहा| मेरा डर सही साबित हुआ, ये उसी शक़्स की आवाज थी जिसे मैं सुनना नहीं चाहता था! भौजी की आवाज सुनने के बाद मेरे मन से आवाज आई;'oh shit!'

मैं: हाँ!

ये शब्द मेरे दिल से निकला था जो भौजी की आवाज सुन कर बावरा होने लगा था, तभी मेरे दिमाग ने मेरे साथ हुए धोके की याद दिलाई जिसे याद कर के दिल सुन्न हो गया!

भौजी: तो?

भौजी ने मेरी ख़ामोशी तोड़ने के इरादे से बात शुरू की| लेकिन उस समय बस भौजी द्वारा किये धोके को याद किये जा रहा था, मेरी तड़प, मेरे आँसूँ, मेरा दुःख सब के सब मुझे एक साथ याद आ गये थे| वहीं भौजी को मेरे अंदर भरे गुस्से का एहसास होने लगा था इसलिए वो भी कुछ पल के लिए खामोश हो गईं, उन्होंने मन ही मन ये मनाना शुरू किया की मैं उनसे बात करना शुरू करूँ ताकि वो मुझसे बात कर सकें| इधर मेरी ख़ामोशी से भौजी को लगने लगा की कहीं मैंने फ़ोन उठा कर रख तो नहीं दिया?

भौजी: हेल्लो? Are you there?

मैं: हाँ|

मैंने बेमन से जवाब देते हुए कहा| तभी पीछे से पिताजी आ गए और मेरे पास खड़े हो गए, उन्होंने मुझे जल्दी से बात खत्म करने को कहा क्योंकि अंदर मीटिंग मेरी वजह से रुकी हुई थी|

भौजी: मैं आपसे मिलने आ रही हूँ!

भौजी ने उमंग से भरते हुए कहा! उन्हें लगा की उनकी बात सुन कर मैं भी उनकी तरह ख़ुशी से फूला नहीं समाऊँगा पर मेरे अंदर तो जैसे जज्बात मर चुके थे इसलिए मैंने एक ठंडी आह भरते हुए कहा;

मैं: हम्म्म्म!

मेरा हम्म्म सुन भौजी को बहुत हैरानी हुई और वो मुझे अपना प्यार भरा गुस्सा दिखाते हुए बोलीं;

भौजी: बस "हम्म्म्म" मुझे तो लगा आप ख़ुशी से कहोगे कब?

इधर पिताजी की नजर मुझ पर थी की मैं जल्दी से ये कॉल निपटाऊँ इसलिए मैंने बात को जल्दी खत्म करने के लिए रूखे स्वर में कहा;

मैं: कब?

मेरा रुखा सा 'कब' सुन भौजी समझ चुकीं थीं की मैं उनसे खफा हूँ और फोन पर वो मुझे नहीं मना पाएँगी फिर भी उन्होंने मुझ पर ऐसे हक़ जताया जैसे की हमारे बीच सब कुछ पहले की तरह सामान्य है|

भौजी: इस शनिवार को! आप मुझे लेने आओगे न?

भौजी ने बड़ी आस लिए मुझसे पुछा|

मैं: शायद ...नहीं.....उस दिन मुझे अपने दोस्त के साथ जाना है!

भौजी के सवाल ने मेरे दिल और दिमाग में जंग छेड़ दी थी| बुद्धू दिल भौजी को लेने जाना चाहता पर दिमाग ने मेरे से मेरे साथ हुआ दगा दिल को याद दिलाया तो दिल ने मुरझा कर 'शायद' कहा, तभी दिमाग ने दिल को एक जोरदार तमाचा मारा इसलिए मेरे मुँह से 'नहीं' निकला| साथ ही मैंने बेवजह अपने न आने के लिए बहाना भी मार दिया!

भौजी: नहीं मैं नहीं जानती, आपको आना होगा!

भौजी ने गुस्से से मुझे हुक्म देते हुए कहा| मन तो किया की अभी चिल्ला कर उन्हें झाड़ दूँ पर फिर पिताजी का ख्याल आ गया और मैंने बात खत्म करते हुए कहा;

मैं: देखता हूँ!

मेरा जवाब सुन भौजी को विश्वास नहीं हुआ इसलिए वो बोलीं;

भौजी: मैं जानती हूँ की आपको बहुत गुस्सा आ रहा है, पर मैं मिलके आपको सब बताती हूँ|

मुझे बस फ़ोन काटना था इसलिए मैंने बात को और आगे नहीं बढ़ाया;

मैं: हम्म्म्म!

इतना कह कर मैंने फ़ोन काट दिया| पिताजी ने जब पुछा की किस का फ़ोन था तो मैंने कह दिया की ऑडिट के लिए फ़ोन आया था, इसके आगे मैंने पिताजी से कुछ नहीं कहा और उनका ध्यान मीटिंग की तरफ मोड़ दिया| मैंने ये तो सोच लिया था की मैं भौजी को लेने नहीं जाऊँगा पर उसके लिए मुझे पहले योजना बनानी थी और योजना के बनाने से पहले मुझे पिताजी से बात छुपानी थी वरना मैं अपनी कही बातों में फँस जाता|

खैर मीटिंग खत्म हुई और मैं गुडगाँव का बहाना कर के निकल लिया, रास्ते भर मैं बहाना सोचने लगा| भौजी ज्यादा से ज्यादा एक दिन के लिए आने वालीं थीं और वो पूरा दिन मैं उनकी शक्ल नहीं देखना चाहता इसलिए मुझे घर से गोल रहने का बहाना सोचना था| बहाना इतना जबरदस्त होना चाहिए की पिताजी किसी भी तरह से मुझे गोल होने से रोक न पाएँ| अब चूँकि मैंने पिताजी के सामने ही दिषु के साथ कहीं जाने की बात कही थी तो मैंने उसी बात को आधार बना कर शनिवार भौजी को न लेने जाने का बहाना तैयार किया| मैंने दिषु को फ़ोन किया और उसे मिलने को कहा, लंच टाइम होने वाला था तो उसने मुझे छोले- भठूरे खाने का लालच दे कर अपने ऑफिस बुलाया| छोले-भठूरे खाते हुए मैंने दिषु को सारी बात बताई, मेरी बात सुन कर वो शनिवार को मेरे साथ निकलने के लिए तैयार हो गया| उसने कहा की मैं शनिवार को उसके ऑफिस आ जाऊँ, फिर वो अपने बॉस को मेरे साथ किसी जर्रूरी काम से जाने का झाँसा दे देगा और हम दोनों तफ़री मरने निकल जायेंगे|

छोले-भठूरे खा कर मैं घर लौट आया और अपने कमरे में कुछ काम ले कर बैठ गया| शाम को पिताजी जब लौटे तो उन्होंने चाय पीते हुए चन्दर के आने की खबर सुनाई;

पिताजी: भाईसाहब (बड़के दादा) का आज फ़ोन आया था|

इतना कह पिताजी की नजरें मुझ पर टिक गईं;

पिताजी: इस शनिवार को गाँव से तेरे चन्दर भैया आ रह है, तो उन्हें लेने स्टेशन चला जईओ|

पिताजी की बात सुन कर मैंने हैरान होने का बेजोड़ अभिनय किया| तभी मेरा ध्यान गया पिताजी की बात पर, मैंने गौर किया तो पाया की उन्होंने ये बात मुझे 'विशेष कर' बताई है| मैं समझ गया की माजरा क्या है, दरअसल भौजी चाहतीं थीं की मैं उन्हें लेने स्टेशन आऊँ, इसीलिए उन्होंने बड़ी चालाकी से पिताजी को मेरे स्टेशन आने की अपनी ख्वाइश बड़के दादा के जरिये पहुँचाई थी| इधर मैं अपना मन बना चूका था की मैं उन्हें लेने स्टेशन नहीं जाने वाला इसलिए मैंने अपना पहले से ही सेट बहाना पिताजी को सुना दिया;

मैं: पर पिताजी उस दिन मुझे दिषु से मिलने जाना है?

ये सुन कर पिताजी एकदम से बोले;

पिताजी: तू उसे बाद में भी मिल सकता है! इतने सालों बाद तेरी भौजी आ रहीं है और तू है की बहाने मार रहा है|

पिताजी ने भौजी का नाम ये सोच कर लिया की शायद मेरे चेहरे पर पहले की तरह मुस्कान आ जाए, पर मेरे चेहरे पर तो चिढ के निशान बने हुए थे! लेकिन एक बात तो थी, देर से ही सही पर पिताजी ने मेरा बहाना पकड़ लिया था, अब मुझे अपने बहाने को सच साबित करना था तो मैंने उनसे साफ़ कहा;

मैं: बहाना नहीं मार रहा पिताजी, आप चाहो तो दिषु को फ़ोन कर लो|

पर पिताजी को मेरा झूठ परखने का मन नहीं था, उन्होंने सीधा अपना हुक्म सुनाते हुए कहा;

पिताजी: मैं कुछ नहीं जानता, तू लेने जाएगा मतलब जाएगा!

मैं खामोश हो गया क्योंकि मैंने मन ही मन दूसरी योजना बना ली थी, ऐसी योजना जिसे पिताजी मना कर ही नहीं सकते! लेकिन अभी पिताजी का हुक्म पूरा कहाँ हुआ था, उनकी आगे की बात सुन कर मेरे होश फाख्ता हो गए;

पिताजी: और हाँ चौथी गली में जो गर्ग आंटी का मकान खाली है, उसे खुलवा कर अच्छे से साफ़-सफाई करवा दियो|

पिताजी की बात मेरे पल्ले नहीं पड़ी तो मैंने भोयें सिकोड़ कर सड़ा हुआ सा मुँह बना कर उनसे पुछा;

मैं: क्यों?

मेरी सड़ी हुई सी शक्ल देख पिताजी बोले;

पिताजी: तेरे भैया-भौजी अब दिल्ली में ही रहेंगे और चन्दर हमारे साथ ही काम करेगा|

ये सुन कर तो मेरी हवा खिसक गई, कहाँ तो मैं सोच रहा था की भौजी बस एक दिन के लिए आएँगी तथा वो पूरा एक दिन मैं दिषु के साथ गोल हो लूँगा और कहाँ भौजी तो अपना बोरिया-बिस्तर बाँध कर यहाँ आ रहीं हैं? इधर मैं अपने दिमाग में ये आंकलन करने में व्यस्त था की तभी पिताजी ने माँ को अपना फरमान सुनाते हुए तीसरा बम फोड़ा;

पिताजी: और आप भी सुन लो, जबतक बहु की रसोई का काम सेट नहीं होता चारों यहीं खाना खाएंगे!

जैसे ही पिताजी ने चारों कहा मुझे नेहा की याद आई और आखिरकर मेरे चेहरे पर एक भीनी सी मुस्कान तैरने लगी|

माँ: ठीक है, मुझे क्या परेशानी होगी?! इसी बहाने मेरा भी मन लगा रहेगा|

माँ की बात सुन कर मैं नेहा के ख्याल से बाहर आया|

चाय पी कर पिताजी सब्जी लेने चले गए, इधर मेरे चेहरे पर सवाल थे जो कुछ-कुछ मेरी माँ ने पढ़ लिए थे, लेकिन उन्होंने उन सवालों को उल्टा पढ़ा था, उन्हें लग रहा था की मैं चन्दर, भौजी और बच्चों के आने से परेशान हूँ, इसलिए मुझे समझाने के लिए माँ मेरे पास बैठते हुए बोलीं;

माँ: दरअसल बेटा, जब हम गट्टू की शादी पर गाँव गए थे तब घर में हर एक की जुबान पर बस तेरा ही नाम था| तेरे जैसा फर्माबरदार बेटा पूरे खानदान में नहीं, तेरे गुण पूरा परिवार गाता था| अपने भाई की देखा-देखि तेरे बड़के दादा के मन में इच्छा जगी की वो अपने पोते आयुष को अंग्रेजी स्कूल में पढायें, ताकि उनका जो सपना गट्टू पूरा न कर पाया उसे आयुष पूरा करे| वहीं खेती-किसानी से अब कुछ निकल नहीं रहा था तो तेरे बड़के दादा ने सोचा की शहर रह कर चन्दर भी अपने परिवार की जिम्मेदारी उठाना शुरू कर देगा| उन्होंने ये दोनों बातें तेरे पिताजी से की और तेरे पिताजी ने उन्हें कहा की चन्दर तेरे (मेरे) साथ काम संभाल सकता है और चूँकि वो (चन्दर) यहीं रहेगा तो आयुष भी अच्छे अंग्रेजी स्कूल में पढ़ सकता है|

मुझे बच्चों के आने से कोई आपत्ति नहीं थी, बल्कि नेहा से पुनः मिलने को मेरा आतुर हो गया था लेकिन मैं नेहा से भौजी के सामने नहीं मिलना चाहता था इसलिए मैंने अपने दिषु के साथ जाने की योजना को नहीं बदला, क्योंकि मेरा मकसद था की भौजी को नहीं लेने जा कर मैं उन्हें अपने गुस्से से अवगत कराना था! उधर मेरी ख़ामोशी देख कर माँ बोलीं;

माँ: क्या हुआ बेटा?

अब मैं माँ से क्या कहता, मैंने न में सर हिलाया और उठ कर अपने कमरे में आ गया|

कमरे में आ कर मैं बिस्तर पर पसर गया और सोचने लगा की आखिर भौजी क्यों मेरी जिंदगी में लौट कर आ रही हैं? आखिर अब क्या चाहिए उन्हें मुझसे? जाने क्यों मेरा मन उन्हें अपने सामने देखने से डर रहा था, ऐसा लगता था मानो उन्हें देखते ही मेरे सारे गम हरे हो जायेंगे! आंसुओं की जिन धाराओं पर मैंने शराब का बाँध बनाया था वो भौजी के देखते ही टूट जायेगा और फिर मुझे सब को अपने आंसुओं की सफाई देनी पड़ती! मुझ में अब भौजी को ले कर झूठ बोलने की ताक़त नहीं बची थी, सब के पैने सवाल सुन कर मैं सारा सच उगल देता और फिर जो परिवार पर बिजली गिरती वो पूरे परिवार को जला कर राख कर देती!
भौजी के इस अनपेक्षित आगमन के लिए मुझे आत्म्निक रूप से तैयार होना था, मुझे अपने बहुमूल्य आसुओं को संभाल कर रखना तथा अपने गुस्से की तलवार को अधिक धार लगानी थी क्योंकि भौजी की जुदाई में मैं जो दर्द भुगता था मुझे उसे कई गुना दुःख भौजी को देना था!

[color=rgb(255,]जारी रहेगा भाग - 2 में....[/color]
 

[color=rgb(85,]बाईसवाँ अध्याय: अनपेक्षित आगमन[/color]
[color=rgb(235,]भाग - 2[/color]


[color=rgb(65,]अब तक आपने पढ़ा:[/color]

कमरे में आ कर मैं बिस्तर पर पसर गया और सोचने लगा की आखिर भौजी क्यों मेरी जिंदगी में लौट कर आ रही हैं? आखिर अब क्या चाहिए उन्हें मुझसे? जाने क्यों मेरा मन उन्हें अपने सामने देखने से डर रहा था, ऐसा लगता था मानो उन्हें देखते ही मेरे सारे गम हरे हो जायेंगे! आंसुओं की जिन धाराओं पर मैंने शराब का बाँध बनाया था वो भौजी के देखते ही टूट जायेगा और फिर मुझे सब को अपने आंसुओं की सफाई देनी पड़ती! मुझ में अब भौजी को ले कर झूठ बोलने की ताक़त नहीं बची थी, सब के पैने सवाल सुन कर मैं सारा सच उगल देता और फिर जो परिवार पर बिजली गिरती वो पूरे परिवार को जला कर राख कर देती!
भौजी के इस अनपेक्षित आगमन के लिए मुझे आत्म्निक रूप से तैयार होना था, मुझे अपने बहुमूल्य आसुओं को संभाल कर रखना तथा अपने गुस्से की तलवार को अधिक धार लगानी थी क्योंकि भौजी की जुदाई में मैं जो दर्द भुगता था मुझे उसे कई गुना दुःख भौजी को देना था!

[color=rgb(251,]अब आगे:[/color]

अचानक नेहा का खिलखिलाता हुआ चेहरा मेरी आँखों के सामने आ गया और मेरा गुस्सा एकदम से शान्त हो गया! मेरी बेटी नेहा अब ९ साल की हो गई होगी, जब आखरी बार उसे देखा तब वो इतनी छोटी थी की मेरी गोद में आ जाया करती थी, अब तो नजाने कितनी बड़ी हो गई होगी, पता नहीं मैं उसे गोद में उठा भी पाऊँगा या नहीं?! ये सोचते हुए मैं अंदाजा लगाने लगा की नेहा मेरी गोद में फिट भी होगी या नहीं? 'गोद में नहीं ले पाया तो क्या हुआ, अपने सीने से लगा कर उसे प्यार तो कर पाऊँगा!' ये ख्याल मन में आते ही आँखें नम हो गईं| मैं मन ही मन कल्पना करने लगा की कितना मनोरम दृश्य होगा वो जब नेहा मुझे देखते ही भागती हुई आएगी और मैं उसे अपने सीने से लगा कर एक बाप का प्यार उस पर लुटा सकूँगा! इस दृश्य की कल्पना इतनी प्यारी थी की मैं स्वार्थी होने लगा था! 5 साल पहले नेहा ने कहा था की; "पापा मुझे भी अपने साथ ले चलो" तब मैं ने बेवकूफी कर के उसे मना कर दिया था पर इस बार मुझे अपनी गलती सुधारनी थी| 'चाहे कुछ भी हो मैं इस बार नेहा खुद से दूर नहीं जाने दूँगा!' एक बाप ने अपनी बेटी पर हक़ जताते हुए सोचा|

'पूरे 5 साल का प्यार मुझे नेहा पर उड़ेलना होगा, मुझे उस हर एक दिन की कमी पूरी करनी होगी जो हम बाप-बेटी ने उनके (भौजी) के कारन एक दूसरे से दूर रह कर काटे थे! नेहा मेरे साथ सोयेगी, मेरे साथ खायेगी, मैं उसके लिए ढेर सारे कपडे लाऊँगा, उसे उसकी मन पसंद रसमलाई खिलाऊँगा! नेहा को गाँव में चिप्स बहुत पसंद थे, तो कल ही मैं उसके लिए अंकल चिप्स का बड़ा पैकेट लाऊँगा! रोज नेहा को नई-नई कहानी सुनाऊँगा और उसे अपने से चिपकाए सुलाऊँगा|' अपनी बेटी को पुनः मिलने की चाहत में एक बाप आज बावरा हो चूका था, उसे सिवाए अपनी बेटी के आज कुछ नहीं सूझ रहा था| मैं पलंग से उठा और अपनी अलमारी में अपने सारे कपडे एक तरफ करने लगा ताकि नेहा के कपडे रखने के लिए जगह बना सकूँ| फिर मैंने अपने पलंग पर बिस्तर को अच्छे से बिछाया और मन ही मन बोलने लगा; 'जब नेहा आएगी तो उसे बताऊँगा की रोज मैं अपने तकिये को नेहा समझ कर अपनी छाती से चिपका कर सोता था|' मेरी बात सुन कर नेहा पलंग पर चढ़ कर मेरे सीने से लग कर अपने छोटे-छोटे हाथों में मुझे भरना चाहेगी और मैं नेहा के सर को चूमूँगा तथा उसे अपनी पीठ पर लाद कर घर में दौड़ लगाऊँगा| पूरा घर नेहा की किलकारियों से गूं गूँजेगा और मेरे इस नीरस जीवन में नेहा रुपी फूल फिर से महक भर देगा|

ये सब एक बाप की प्रेमपूर्ण कल्पना थी जिसे जीने को वो मरा जा रहा था| हैरानी की बात ये थी की मैंने इतनी सब कल्पना तो की पर उसमें आयुष का नाम नहीं जोड़ा! जब मुझे ये एहसास हुआ तो मैं एक पल के लिए पलंग पर सर झुका कर बैठ गया| 'क्या आयुष मेरे बारे में जानता होगा? क्या उसे पता होगा की मैं उसका कौन हूँ?' ये सवाल दिमाग में गूँजा तो एक बार फिर भौजी के ऊपर गुस्सा फूट पड़ा| 'भौजी ने तेरा इस्तेमाल करना था, कर लिया अब वो क्यों आयुष को बताने लगीं की वो तेरा खून है?!' दिमाग की ये बात आग में घी के समान साबित हुई और मेरा गुस्सा और धधकने लगा! गुस्सा इस कदर भड़का की मन किया की आयुष को सब सच बता दूँ, उसे बता दूँ की वो मेरा बेटा है, मेरा खून है! लेकिन अंदर बसी अच्छाई ने मुझे समझाया की ऐसा कर के मैं आयुष के छोटे से दिमाग में उसकी अपनी माँ के प्रति नफरत पैदा कर दूँगा! भले ही मैं गुस्से की आग में जल रहा था पर एक बच्चे को उसकी माँ को नफरत करते हुए नहीं देखना चाहता था, मेरे लिए मेरी बेटी नेहा का प्यार ही काफी था!

रात का खाना खा कर, अपनी बेटी को पुनः देखने की लालसा लिए आज बिना कोई नशा किये मैं चैन से सो गया| अगले दिन से साइट पर मेरा जोश देखने लायक था, कान में headphones लगाए मैं चहक रहा था और साइट पर Micheal Jackson के moon walk वाले step को करने की कोशिश कर रहा था! लेबर आज पहलीबार मुझे इतना खुश देख रही थी और मिठाई खाने की माँग कर रही थी, पर मैं पहले अपनी प्यारी बेटी को अपने गले लगाना चाहता था और बाद में उन्हें मिठाई खिलाने वाला था! अपनी बेटी के प्यार में मैं भौजी से बदला लेना भूलने लगा था, मैंने तो पीना बंद करने तक की कसम खा ली थी क्योंकि मैं शराब पी कर अपनी बेटी को छूना नहीं चाहता था! नेहा को देखने से पहले मैं इतना सुधर रहा था तो उसे पा कर तो मैं एक आदर्श पिता बनने वाला था| 'चाहे कुछ भी कर, सीधा काम कर, उल्टा काम कर पर किसी भी हालत में नेहा को अपने से दूर मत जाने दियो!' मेरे दिल ने मेरा गिरेबान झिंझोड़ते हुए कहा| दिमाग ने मुझे ये कह कर डराना चाहा; 'अगर भौजी वापस चली गईं तब क्या होगा? नेहा भी उनके साथ चली जायेगी!' ये ख्याल आते ही मेरा मन मेरे दिमाग पर चढ़ बैठा; 'मैं नेहा को खुद से कभी दूर नहीं जाने दूँगा! मैं....मैं...मैं उसे गोद ले लूँगा!' मन की बात सुन कर तो मैं ख़ुशी से उड़ने लगा, पर ये रास्ता इतना आसान था नहीं लेकिन दिमाग ने परिवार से बगावत की इस चिंगारी की हवा देते हुए कहा; 'लड़ना आता है न? हाथों में चूड़ियाँ तो नहीं पहनी तूने? अब तो तू कमाता है, नेहा की परवरिश बहुत अच्छे से कर सकता है, भाग जाइयो उसे अपने साथ ले कर!' मेरा मोह कब मेरे दिमाग पर हावी हो गया मुझे पता ही नहीं चला और मैं ऊल-जुलूल बातें सोचने लगा|

शुक्रवार शाम को दिषु से मिल मैंने उसे सारी बात बताई, मेरी नेहा को अपने पास रखने की बात उसे खटकी और उसने मुझे समझाना चाहा पर एक बाप के जज्बातों ने उसकी सलाह को सुनने ही नहीं दिया| मैंने उसकी बात को तवज्जो नहीं दी और उसे कल के लिए बनाई मेरी नई योजना के बारे में बताने लगा, दिषु को कल फ़ोन पर मुसीबत में फँसे होने का अभिनय करना था ताकि पिताजी पिघल जाएँ!

शनिवार सुबह मैंने अपना फ़ोन बंद कर के हॉल में पिताजी के सामने चार्जिंग पर लगा दिया| पिताजी अखबार पढ़ रहे थे की तभी दिषु ने उनके नंबर पर कॉल किया| मैं जानता था की दिषु का कॉल है पर फिर भी मैं ऐसे दिखा रहा था जैसे मुझे पता ही न हो की किसका फ़ोन है, मैं मजे से चाय की चुस्की ले रहा था और वहाँ दिषु ने बड़ा कमाल का अभिनय किया;

दिषु: नमस्ते अंकल जी!

पिताजी: नमस्ते बेटा, कैसे हो?

दिषु: मैं ठीक हूँ अंकल जी| वो...मानु का फ़ोन बंद जा रहा था!

दिषु ने घबराने का नाटक करते हुए कहा|

पिताजी: हाँ वो तो मेरे सामने ही बैठा है, पर तु बता तू क्यों घबराया हुआ है?

पिताजी ने दिषु की नकली घबराहट को असली समझा, मतलब दिषु ने बेजोड़ अभिनय किया था| मैंने चाय का कप रखा और भोयें सिकोड़ कर पिताजी को अपनी दिलचस्पी दिखाई|

दिषु: अंकल जी मैं एक मुसीबत में फँस गया हूँ!

पिताजी: कैसी मुसीबत?

दिषु: अंकल जी, मैं license अथॉरिटी आया था अपने license के लिए, पर अभी मेरे बॉस ने फ़ोन कर जल्दी ऑफिस बुलाया है| मुझे किसी भी हालत में आज ये कागज अथॉरिटी में जमा करने हैं और लाइन बहुत लम्बी है, अगर कागज आज जमा नहीं हुए तो फिर एक हफ्ते बाद मेरा नंबर आएगा! आप please मानु को भेज दीजिये ताकि वो मेरी जगह लग कर कागज जमा करा दे और मैं ऑफिस जा सकूँ!

पिताजी: पर बेटा आज तो उसके भैया-भाभी गाँव से आ रहे हैं?

पिताजी की ये बात सुन कर मुझे लगा की गई मेरी योजना पानी में, पर दिषु ने मेरी योजना बचा ली;

दिषु: ओह...सॉरी अंकल... मैं...मैं फिर कभी करा दूँगा|

दिषु ने इतनी मरी हुई आवाज में कहा की पिताजी को उस पर तरस आ गया!

पिताजी: ठीक है बेटा मैं अभी भेजता हूँ|

पिताजी की बात सुन दिषु खुश हो गया और बोला;

दिषु: Thank you अंकल!

पिताजी: अरे बेटा थैंक यू कैसा, मैं अभी भेजता हूँ|

इतना कह पिताजी ने फोन काट दिया|

पिताजी: लाड-साहब, दिषु अथॉरिटी पर खड़ा है! अपना फ़ोन चालु कर और उसे फ़ोन कर, उसे तेरी जर्रूरत है, जल्दी जा!

पिताजी ने मुझे झिड़कते हुए कहा|

मैं: पर स्टेशन कौन जायेगा?

मैंने थोड़ा नाटक करते हुए कहा|

पिताजी: वो मैं देख लूँगा! मैं उन्हें ऑटो करा दूँगा और तेरी माँ उन्हें घर दिखा देगी साफ़-सफाई करवाई थी या वो भी मैं ही कराऊँ?

पिताजी ने मुझे टॉन्ट मारते हुए कहा|

मैं: जी करवा दी थी!

इतना कह मैं फटाफट घर से निकल भागा|

दिषु अपने ऑफिस में बहाना कर के निकल चूका था, मैं उसे अथॉरिटी मिला और वहाँ से हम Saket Select City Walk Mall चले गए| गर्मी का दिन था तो Mall से अच्छी कोई जगह थी नहीं, हमने एक फिल्म देखि और फिर वहीं घूमने-फिरने लगे| दिषु ने नैन सुख लेना शुरू कर दिया और मैंने घडी देखते हुए सोचना शुरू कर दिया की क्या अब तक नेहा घर पहुँच चुकी होगी?! दिषु ने मुझे खामोश देखा तो मेरा ध्यान भंग करते हुए उसने खाने का आर्डर दे दिया|

भौजी के आने से मेरा दिमागी संतुलन हिल चूका था और दिषु का डर था की कहीं मैं पहले की तरह मायूस न हो जाऊँ, इसीलिए वो मेरा ध्यान भटक रहा था| तभी मुझे याद आया की आज की तफऱी के लिए जो पिताजी से बहाना मारा था वो कहीं पकड़ा न जाए;

मैं: यार घर जाके पिताजी ने अगर पुछा की दिषु के जमा किये हुए document कहाँ हैं तो? अब पिताजी से ये तो कह नहीं सकता की मैं अथॉरिटी से तुझे कागज़ देने तेरे दफ्तर गया था, वरना वो शक करेंगे की हम तफ़री मार रहे थे!

दिषु ने अपने बैग से अपने जमा कराये कागजों की कॉपी और रसीद निकाल कर मुझे दी और बोला;

दिषु: यार चिंता न कर! मैंने document पहले ही जमा करा दिए थे| ये कॉपी और रसीद रख ले, मैं शाम को तुझसे लेने आ जाऊँगा!

दिषु ने मेरी मुश्किल आसान कर दी थी, अब बस इंतजार था तो बस शाम को फिर से गोल होने का!

भौजी को तड़पाने का यही सबसे अच्छा तरीका था, मैं उनके पास तो होता पर फिर भी उनसे दूर रहता! उन्हें भी तो पता चले की आखिर तड़प क्या होती है? कैसा लगता है जब आप किसी से अपने दिल की बात कहना चाहो, अपने किये गुनाह की सफाई देना चाहो पर आपकी कोई सुनने वाला ही न हो!

शाम को पाँच बजे मैं घर में घुसा, भौजी अपने सह परिवार संग दिल्ली आ चुकीं थीं पर मेरी नजरें नेहा को ढूँढ रही थी! मैंने माँ से जान कर चन्दर के बारे में पुछा क्योंकि भौजी का नाम लेता तो आगे चलकर जब मेरा भौजी को तड़पाने का खेल शुरू होता तो माँ के पास मुझे सुनाने का एक मौका होता! खैर माँ ने बताया की चन्दर गाँव के कुछ जानकर जो यहाँ रहते हैं, उनके घर गया है, भौजी और बच्चे अपने नए घर में सामान सेट कर रहे थे| मैं नेहा से मिलने के लिए जाने को मुड़ा पर फिर भौजी का ख्याल आ गया और मैं गुस्से से भरने लगा| मैं हॉल में ही पसर गया तथा माँ को ऐसा दिखाया की सुबह से ले कर अभी तक मैं अथॉरिटी पर लाइन में खड़ा हो कर थक कर चूर हो गया हूँ| माँ ने चाय बनाई और इसी बीच मैंने दिषु को मैसेज कर दिया की वो घर आ जाए| उधर दिषु भी मेरी तरह अपने घर में थक कर ऑफिस से आने की नौटंकी कर रहा था| 6 बजे दिषु अपनी बाइक ले कर घर आया;

दिषु: नमस्ते आंटी जी|

माँ: नमस्ते बेटा! कैसे हो? घर में सब कैसे हैं?

दिषु: जी सब ठीक हैं, आप सब को बहुत याद करते हैं|

माँ: बेटा समय नहीं मिल पाता वरना मैं भी सोच रही थी की बड़े दिन हुए तेरी मम्मी से मिल आऊँ|

इतना कह माँ रसोई में पानी लेने चली गईं| इस मौके का फायदा उठा कर मैंने दिषु को समझा दिया की उसे क्या कहना है| इतने में माँ दिषु के लिए रूहअफजा और थेपला ले आईं;

माँ: ये लो बेटा नाश्ता करो|

दिषु ने थेपला खाते हुए मेरी योजना के अनुसार मुझसे बात शुरू की|

दिषु: यार documents जमा हो गए थे?

मैं उठा और कमरे से उसे दिए हुए documents ला कर उसे दिए|

मैं: ये रही उसकी कॉपी|

दिषु: Thank you यार! अगर तू नहीं होतो तो एक हफ्ता और लगता|

मैं: Thank you मत बोल...

दिषु: चल ठीक है, इस ख़ुशी में पार्टी देता हूँ तुझे|

दिषु जोश-जोश में मेरी बात काटते हुए बोला|

मैं: ये हुई ना बात, कब देगा?

मैं ने किसी तरह से बात संभाली ताकि माँ को ये न लगे की हमारी बातें पहले से ही सुनियोजित है!

दिषु: अभी चल!

ये सुन कर मैंने खुश होने का नाटक किया और एकदम से माँ से बोला;

मैं: माँ, मैं और दिषु जा रहे हैं|

माँ: अरे अभी तो कह रहा था की टांगें टूट रहीं हैं?

माँ ने शक करते हुए पुछा|

मैं: पार्टी के लिए मैं हमेशा तैयार रहता हूँ| तू बैठ यार मैं अभी कपडे बदल कर आया|

मुझे समझ आया की मैंने थकने की कुछ ज्यादा ही overacting कर दी, फिर भी मैंने जैसे-तैसे बात संभाली और माँ को ऐसे दिखाया की मैं पार्टी खाने के लिए मरा जा रहा हूँ|

माँ: ठीक है जा, पर कब तक आएगा?

माँ को अपने बेटे पर विश्वास था इसलिए उन्होंने जाने दिया, बस अपनी तसल्ली के लिए मेरे आने का समय पुछा|

दिषु: आंटी जी नौ बजे तक, डिनर करके मैं इसे घर छोड़ जाऊँगा|

दिषु ने माँ की बात का जवाब देते हुए कहा|

माँ: ठीक है बेटा, पर मोटर साइकिल धीरे चलाना|

माँ ने प्यार से दिषु को आगाह करते हुए कहा|

दिषु: जी आंटी जी|

मैं फटाफट तैयार हुआ और हम दोनों घर से निकले, दिषु की बाइक घर के सामने गली में खड़ी थी| उसने बैठते ही बाइक को kick मारी और बाइक स्टार्ट हो गई, मैं उसके पीछे बैठा ही था की मेरी नजर सामने की ओर पड़ी! सामने से जो शक़्स आ रहा था उसे देखते ही नजरें पहचान गई, ये वो शक़्स था जिसे नजरें देखते ही ख़ुशी से बड़ी हो जाती थीं, दिल जब उन्हें अपने नजदीक महसूस करता था तो किसी फूल की तरह खिल जाया करता था पर आज उन्हें अपने सामने देख कर दिल की धड़कन असमान्य ढंग से बढ़ गई थी, जैसे की कोई दिल दुखाने वाली चीज देख ली हो! इतनी नफरत दिल में भरी थी की उस शक़्स को अपने सामने देख मन नहीं किया की मैं उसका नाम तक अपनी जुबान पर लूँ! 'भौजी' दिमाग ने ये शब्द बोल कर गुस्से का बिगुल बजा दिया, मन किया की मैं बाइक से उतरूँ और जा कर भौजी के खींच कर एक तमाचा लगा दूँ पर मन बावरा ससुर अब भी उन्हें चाहता था! मैंने भोयें सिकोड़ कर भौजी को गुस्से से फाड़ कर खाने वाली आँखों से घूर कर देखा और अपनी आँखों के जरिये ही उन्हें जला कर राख करना चाहा!

उधर भौजी ने मुझे बाइक पर बैठे देखा तो वो एकदम से जड़वत हो गईं, उन्हें 5-7 सेकंड का समय लगा मुझे पेहचान ने में! जिस शक़्स को उन्होंने चाहा, वो भोला भला लड़का, गोल-मटोल गबरू अब कद-काठी में बड़ा हो चूका था! चेहरे पर उगी दाढ़ी के पीछे मेरी वो मासूमियत छुप गई थी, शरीर अब दुबला-पतला हो चूका था पर कपडे पहनने के मामले में हीरो लगता था! चेक शर्ट और जीन्स में मैं बहुत जच रहा था, लेकिन फिर भौजी की आँखें मेरी आँखों से मिली तो भौजी को मेरे दिल में उठ रहे दर्द का कुछ हिस्सा महसूस हुआ! मेरी आँखों से बरस रही गुस्से की आग को महसूस कर उन्हें गरमा गर्म सेंक लगा पर अभी तो उन्होंने मेरे गुस्से की आग की हलकी सी आँच महसूस की थी, अभी तो मुझे उन्हें जला कर राख करना था!

वहीं भौजी उम्मीद कर रहीं थीं की मैं बाइक से उतर कर उनके करीब आऊँगा, उन्हें अपने सीने से लगा कर गिला-शिकवा करूँगा पर मैंने भौजी की आँखों में देखते हुए बाइक पर बैठे-बैठे बड़े गुस्से से अकड़ दिखाते हुए हेलमेट पहना| मुझे हेलमेट पहनता देख भौजी जान गईं की मैं उन्हें मिले बिना ही निकलने वाला हूँ इसलिए वो तेजी से मेरी ओर चल कर आने लगीं|

मैं: भाई बाइक तेजी से निकाल!

मैंने दिषु के कान में खुसफुसाते हुए कहा| दिषु अभी तक नहीं जान पाया था की क्या हो रहा है! भौजी हम दोनों (मेरे ओर दिषु) के कुछ नजदीक पहुँची थीं, उन्होंने मुझे रोकने के लिए बस मुँह भर ही खोला था की दिषु ने बाइक भौजी की बगल से सरसराती हुई निकाली| बेचारी भौजी आँखों में आँसूँ लिए मुझे बाइक पर जाता हुआ देखती रही, उनके दिल में मुझसे बात करने की इच्छा, मुझे छूने की इच्छा दब के रह गई! वो नहीं जानती थीं की दुःख तो अभी मैंने बस देना शुरू किया है!

गुस्सा दिमाग पर हावी था तो मैंने दिषु से बाइक पब की ओर मोड़ने को कहा, पूरे रास्ता मेरे दिमाग बस भौजी और उनके साथ बिताये वो दिन याद आने लगे| मन के जिस कोने में भौजी के लिए प्यार दबा था वहाँ से आवाज आने लगी की मुझे भौजी से ऐसा बर्ताव नहीं करना चाहिए था पर दिमाग गुस्से से भरा हुआ था और वो मन की बात को दबाने लगा था! हम एक पब पहुँचे तो मुझे याद आया की मैंने तो न पीने की कसम खाई थी! मैंने दिषु से कहा की मेरा पीने का मन नहीं है, मेरे पीने से मना करने से और उतरी हुई सूरत देख दिषु जान गया की मामला गड़बड़ है| मैंने उसे सारा सच बयान किया तो उसे मेरा दुःख समझ में आया, उसने मुझे बिठा कर बहुत समझाया और मोमोस आर्डर कर दिया| मुझे अब भौजी से कोई सरोकार नहीं था, मुझे उन्हें ignore करना था और साथ में अपने साथ हुए अन्याय के लिए जला कर राख करना था|

खैर रात का खाना खा कर मैं जानबूझ कर घर लेट पहुँचा ताकि मेरे आने तक भौजी अपने घर (गर्ग आंटी वाले घर) चली जाएँ, पर भौजी माँ के साथ बैठीं टी.वी देख रहीं थीं| मुझे देखते ही भौजी एकदम से उठ खड़ी हुईं, उन्होंने बोलने के लिए मुँह खोला ही था की मैंने उन्हें ऐसे 'नजर अंदाज' (ignore) किया जैसे वो वहाँ हों ही न!

मैं: Good night माँ!

इतना कह कर मैं सीधा अपने कमरे में आ गया, भौजी मेरे पीछे-पीछे कमरे के भीतर आना चाहतीं थीं पर मैंने दरवाजा उनके मुँह पर बंद कर दिया| कपडे बदल कर मैं लेटा पर एक पल को भी चैन नहीं मिला, मेरा दिल बहुत बेचैनी महसूस कर रहा था! मैंने अनेकों करवटें बदलीं पर एक पल को आँख नहीं लगी, मन कर रहा था की मैं खूब जोर से रोऊँ पर आँखों में जैसे पानी बचा ही नहीं था! ऐसा ही हाल मेरा तब हुआ था जब भौजी से मेरी आखरी बार बात हुई थी, मुझे लगा की शायद ये नेहा को न मिलने के कारन मेरा बुरा हाल हो रहा है! कल सुबह होते ही मैं नेहा से मिलूँगा ये सोच कर मैंने दिल को तसल्ली देना शुरू कर दिया|

[color=rgb(255,]जारी रहेगा भाग - 3 में....[/color]
 

[color=rgb(85,]बाईसवाँ अध्याय: अनपेक्षित आगमन[/color]
[color=rgb(209,]भाग -3[/color]


[color=rgb(65,]अब तक आपने पढ़ा:[/color]

खैर रात का खाना खा कर मैं जानबूझ कर घर लेट पहुँचा ताकि मेरे आने तक भौजी अपने घर (गर्ग आंटी वाले घर) चली जाएँ, पर भौजी माँ के साथ बैठीं टी.वी देख रहीं थीं| मुझे देखते ही भौजी एकदम से उठ खड़ी हुईं, उन्होंने बोलने के लिए मुँह खोला ही था की मैंने उन्हें ऐसे 'नजर अंदाज' (ignore) किया जैसे वो वहाँ हों ही न!

मैं: Good night माँ!

इतना कह कर मैं सीधा अपने कमरे में आ गया, भौजी मेरे पीछे-पीछे कमरे के भीतर आना चाहतीं थीं पर मैंने दरवाजा उनके मुँह पर बंद कर दिया| कपडे बदल कर मैं लेटा पर एक पल को भी चैन नहीं मिला, मेरा दिल बहुत बेचैनी महसूस कर रहा था! मैंने अनेकों करवटें बदलीं पर एक पल को आँख नहीं लगी, मन कर रहा था की मैं खूब जोर से रोऊँ पर आँखों में जैसे पानी बचा ही नहीं था! ऐसा ही हाल मेरा तब हुआ था जब भौजी से मेरी आखरी बार बात हुई थी, मुझे लगा की शायद ये नेहा को न मिलने के कारन मेरा बुरा हाल हो रहा है! कल सुबह होते ही मैं नेहा से मिलूँगा ये सोच कर मैंने दिल को तसल्ली देना शुरू कर दिया|

[color=rgb(251,]अब आगे:[/color]

सुबह के पाँच बजे थे और मैं अपने तकिये को नेहा समझ अपने सीने से लगाए जाग रहा था| पिताजी ने दरवाजा खटखटाया तो मैंने फटाफट उठ कर दरवाजा खोला;

पिताजी: गुडगाँव वाली साइट पर 7 बजे माल उतरेगा, टाइम से पहुँच जाइयो वरना पिछलीबार की तरह माल कहीं और पहुँच जायेगा!

मैंने हाँ में सर हिलाया और पिताजी बाहर चले गए| पिताजी के जाते ही अपनी बेटी नेहा को देखने के लिए आँखें लालहित हो उठीं|

माँ उस समय नहाने गई थी, भौजी रसोई में नाश्ते की तैयारी कर रहीं थीं, चन्दर अपने घर में सो रहा था और पिताजी मुझे जगा कर आयुष को अपने साथ दूध लेने डेरी गए थे| मेरी प्यारी बेटी नेहा अकेली हॉल में बैठी थी और टी.वी पर कार्टून देख रही थी| इतने सालों बाद जब मैंने नेहा को देखा तो आँखें ख़ुशी के आँसुओं से छलछला गईं, मेरी प्यारी बेटी अब बहुत बड़ी हो चुकी थी मगर उसके चेहरे पर अब भी वही मासूमियत थी जो पहले हुए करती थी! नीले रंग की फ्रॉक पहने नेहा सोफे पर आलथी-पालथी मार कर बैठी थी और टी.वी. पर कार्टून देख कर मुस्कुरा रही थी! उसे यूँ बैठा देख मेरी आँखें ख़ुशी से चमकने लगी, अब दिल को नेहा के मुँह से वो शब्द सुनना था जिसे सुनने को मेरे कान पिछले 5 साल से तरस रहे थे; "पापा"! उसके मुँह से "पापा" सुनने की कल्पना मात्र से मेरे रोंगटे खड़े हो गए थे| मैं नेहा के सामने अपने घुटने टेक कर खड़ा हो गया, मैंने अपनी दोनों बाहें फैलाईं और रुँधे गले से बोला; "नेहा....बेटा....!" इससे आगे कुछ बोलने की मुझे में हिम्मत नहीं थी! मैं उम्मीद करने लगा की मुझे देखते ही नेहा दौड़ कर मेरे पास आएगी और मेरे सीने से लग जाएगी!

लेकिन जैसे ही नेहा ने मेरी आवाज सुनी उसने मुझे गुस्से से भरी नजरों से देखा! उसकी आँखों में गुस्सा देख मेरा दिल एकदम से सहम गया, डर की ठंडी लहर मेरे जिस्म में दौड़ गई! आज एक बाप अपनी बेटी की आँखों में गुस्सा देख कर सहम गया था, सुनने में अजीब लगेगा पर वो डर जायज था! मैं जान गया की नेहा मुझसे क्यों गुस्सा है, आखिर मैंने उससे किया अपना वादा तोडा था| मैंने उससे वादा किया था की मैं दशहरे की छुट्टियों में आऊँगा, उसके लिए फ्रॉक लाऊँगा, चिप्स लाऊँगा, मगर मैं अपने गुस्से के कारन अपने किये हुए वादे पर अटल न रह सका! मुझे नेहा से माफ़ी माँगनी थी उसे अपने न आने की सफाई देनी थी, मैं उठा और अपने आप को मजबूत कर मैं नेहा से बोला; "नेहा बेटा....." मगर इसके आगे मैं कुछ कहता उससे पहले ही नेहा मुझे गुस्से से देखते हुए बाहर भाग गई!

अपनी बेटी का रूखापन देख मैं टूट गया, मेरे आँसुओं का बाँध टूट गया! मैं फफक कर रो पड़ा, मैंने अपनी निर्दोष बेटी को उसकी माँ की गलतियों की सजा दी थी! उस बेचारी बच्ची ने मुझसे कभी कुछ नहीं माँगा था, बस इतना ही माँगा था की मैं उसे प्यार दूँ, वो प्यार जो उसे अपने बाप से मिलना चाहिए था! मन ग्लानि से भर चूका था और दिमाग से ये ग्लानि बर्दाश्त नहीं हो रही थी, उसे बस ये ठीकरा किसी के सर फोड़ना था! ठीक तभी भौजी रसोई से निकलीं, उन्होंने मेरी आँसुओं से बिगड़ी हुई शक्ल देखि तो उनके चेहरे पर परेशानी के भाव उमड़ आये! भौजी को देखते ही जो पहला ख्याल दिमाग में आया वो ये की उन्होंने ही मेरी प्यारी बेटी के भोले मन में मेरे लिए जहर घोला है! 'मुझे इस्तेमाल कर के छड़ने से मन नहीं भरा था जो मेरी प्यारी बेटी को बरगला कर मेरे खिलाफ कर दिया? कम से कम उसे तो सच बता दिया होता की मुझे खुद से दूर आपने किया था!' दिल तड़पते हुए बोला, मगर जुबान ने ये शब्द बाहर नहीं जाने दिए क्योंकि भौजी इस लायक नहीं थीं की मैं उनसे बात करूँ! आँसूँ भरी आँखों से मैंने भौजी को घूर कर देखा और तेजी से उनकी बगल से निकल गया| मेरा गुस्सा देख भौजी डर गईं इसलिए उनकी हिम्मत नहीं हुई की वो मुझे छुएँ, उन्होंने मुझे कुछ कहने के लिए जैसे ही मुँह खोला मैंने 'भड़ाम' से अपने कमरे का दरवाजा उनके मुँह पर दे मारा|

कमरे में लौट मैं पलंग पर सर झुका कर बैठ गया, एक बार फिर आँखों से आँसुओं की धारा बहने लगी| एक बाप अपनी बेटी से हार चूका था, हताश था और टूट चूका था! दिमाग जुझारू था तो उसने मुझे हिम्मत देनी चाही की मैं एक बार नेहा को समझाऊँ मगर दिल ने ये कह कर डरा दिया की; 'अगर नेहा ने अपने गुस्से में सब सच बोल दिया तो आयुष की जिंदगी खराब हो जायेगी!' ये डरावना ख्याल आते ही मैंने अपने हथियार डाल दिए! नेहा को ले कर मैंने जो प्यारे सपने सजाये थे वो सब के सब टूट कर चकना चूर हो चुके थे और उन्हीं सपनो के साथ मेरा आत्मबल भी खत्म हो चूका था! रह गया था तो बस भौजी के प्रति गुस्सा जो मुझे अंदर ही अंदर जलाने लगा था!

बेमन से मैं उठा और नहा-धो कर अपने कमरे से बाहर निकला, माँ हॉल में बैठीं चाय पी रहीं थीं| उनकी नजर मेरी लाल आँखों पर पड़ी तो वो चिंतित स्वर में बोलीं;

माँ: बेटा तेरी आँखें क्यों लाल हैं, कहीं फिर से छींकें तो शुरू नहीं हो गई?

माँ की आवाज सुन भौजी रसोई से तुरंत बाहर आईं, उधर माँ के सवाल में ही मुझे अपना बोला जाने वाला झूठ नजर आ गया तो मैंने हाँ में सर हिला कर उनकी बात को सही ठहराया|

माँ: रुक मैं पानी गर्म कर देती हूँ, भाप लेगा तो तबियत ठीक हो जाएगी|

माँ उठने को हुईं तो मैंने उन्हें मना कर दिया;

मैं: नहीं अब ठीक हूँ!

इतना कह कर बाहर दरवाजे तक पहुँचा था की माँ ने मुझे नाश्ते के लिए रोकना चाहा;

माँ: इतनी सुबह कहाँ जा रहा है?

मैं: साइट पर माल आने वाला है|

माँ को अपने बेटे की तबियत की चिंता थी, इसलिए उन्होंने मुझे रोकना चाहा;

माँ: बेटा तेरी तबियत ठीक नहीं है, चल बैठ जा और नाश्ता कर फिर दवाई ले कर आराम कर. काम-धाम होता रहेगा!

मैं: देर हो रही है माँ, अगर मैं नहीं पहुँचा तो माल कहीं और उतर जायेगा|

इतना कह कर मैं निकल गया, माँ पीछे से बोलती रह गईं;

माँ: बेटा नाश्ता तो कर ले?

पर मैंने उनकी बात को अनसुना कर दिया|

दुखी मन से मैं साइट पर पहुँचा, माल आ चूका था और मैं सारा माल उतरवा कर रखवा रहा था| 9 बजे पिताजी का फ़ोन आया और उन्होंने मुझे बिना खाये घर से जाने को ले कर झाड़ सुनाई, मैंने बिना कुछ बोले उनकी सारी झाड़ सुनी| भले ही काम को ले कर पिताजी सख्त थे पर खाने की बेकद्री को ले कर वो बहुत नाराज हो जाया करते थे| मुझे पेट भर के डाँटने के बाद पिताजी ने मुझे बताया की थोड़ी देर में वो संतोष को भेज रहे हैं, मुझे उसे दोनों साइट का काम दिखाना था ताकि माल डलवाने का काम वो देख सके| दरअसल संतोष पिताजी के साथ शुरू के दिनों में सुपरवाइजरी का काम करता था और उनका बहुत विश्वासु था, उसके घर में बस उसकी एक बूढी बीमार माँ थी, चूँकि वो घर में अकेला कमाने वाला था तो पिताजी उसे दिहाड़ी की जगह तनख्वा दिया करते थे| जब पिताजी का काम कम होने लगा तो उन्होंने संतोष को कहीं और काम ढूँढने को कह दिया, क्योंकि तब पिताजी उसकी तनख्वा नहीं दे सकते थे| अब जब काम चल निकला था तो पिताजी ने उसे वापस बुला लिया था, मेरी उससे कभी बात नहीं हुई थी इसलिए आज उससे मिला तो वो मुझे बड़ा सीधा-साधा लड़का लगा| मैंने उसे दोनों साइट दिखाईं और वो सारा काम समझ गया, उसके आ जाने से मेरे लिए शाम को निकालना आसान हो गया था|

दोपहर को माँ ने मुझे फ़ोन किया और मेरी तबियत और खाने के बारे में पुछा| मैंने माँ से झूठ कह दिया की मैं ठीक हूँ और मैंने यहाँ कुछ खा लिया है, जबकि मैं सुबह से भूखा बैठा था| माँ का फ़ोन काटा ही था की दिषु का कॉल आए गया, मेरे हेल्लो बोलते ही वो मेरी आवाज में छुपा दर्द दिषु भाँप गया और मुझसे मेरी मायूसी का कारन पूछने लगा| उसका सवाल सुन मैं खामोश हो गया क्योंकि मैं जानता था की वो कभी एक बाप के जज्बात नहीं समझ पायेगा, मेरे खामोश रहने पर दिषु एकदम से बोला;

दिषु: शाम 5 बजे ढाबे मिलिओ!

उसने मेरी हाँ-न सुनने का भी इंतजार नहीं किया, बस अपना फैसला सुना कर उसने फ़ोन काट दिया! ढाबा हमारा एक code word था जिसका मतलब था हमारा मन पसंद पब|

शाम को जब मैं दिषु से पब में मिला तो उसने जोर दे कर मुझसे सब उगलवा लिया, दिषु ने मुझे लाख समझाने की कोशिश की मगर मेरे दिल ने उसकी एक न सुनी! दिषु को लगा था एक पेग के बाद वो मुझे समझा लेगा पर मेरा दिल जल रहा था और शराब उस आग को ठंडा कर रही थी, इसलिए मैंने एक के बाद एक 3 30ml के पेग खत्म कर दिए, दिषु ने मुझे पीने से रोकना चाहा पर मैं नहीं माना| मेरा 90ml का कोटा था उसके बाद मैं बहक जाता था, दिषु ये जानता था इसलिए उसने मुझे घर जाने के नाम से डराया, तब जा कर मुझे कुछ होश आया| लेकिन अपनी पीने की आदत से मैं बाज आने से रहा इसलिए मैंने जबरदस्ती हार्ड वाली बियर और मँगा ली!

रात के 9 बज रहे थे और पिताजी का फ़ोन गनगनाने लगा था, दिषु ने मुझसे फ़ोन ले कर उनसे बाहर जा कर बात की| वापस आ कर उसने बिल भरा और कैब बुलाई, ऐसा नहीं था की मैं पी कर 'भंड' हो चूका था! मुझे मेरे आस-पास क्या हो रहा है उसकी पूरी जानकारी थी, बस मैं ख़ामोशी से चुप-चाप बैठा हुआ था| दिषु ने अपने बैग से डिओड्रेंट निकाल कर मुझ पर छिड़का और मुझे खाने के लिए दो chewing gum भी दी| अपने दोस्त को संभालने के लिए दिषु ने मुझे कल से अपने साथ ऑडिट पर चलने को कहा, मैं उसके साथ रहता तो वो मुझे संभाल सकता था! मगर मैंने उसे घर में बात करने का बहना मारा क्योंकि मुझे अब सम्भलना नहीं था! मेरे पास बचा ही क्या था जो मैं सम्भलूँ?!

घर पहुँचते-पहुँचते 10 बज गए थे, कैब मेरे घर के पास पहुँची और मैं दिषु को bye बोल कर उतर गया| मैंने ज्यादा पी थी लेकिन इतने सालों से पीने का आदि होने पर मैं अपनी बहकी हुई चाल बड़े आराम से काबू कर लेता था| मैं घर में घुसा तो माँ टी.वी. देख रहीं थीं, और पिताजी कुछ हिसाब किताब कर रहे थे| चन्दर, भौजी और बच्चे सब अपने घर जा चुके थे|

पिताजी: बैठ इधर!

पिताजी ने गुस्से से चिल्लाते हुए कहा| उनके गुस्से से भरी आवाज सुनते ही सारा नशा काफूर हो गया! मैं उनके सामने वाली कुर्सी पर सर झुका कर बैठ गया, मेरा सर झुकाना मेरी की गई गलती को स्वीकारने का संकेत था| बचपन में जब भी मैं कोई गलती करता था तो मेरी गर्दन अपने आप पिताजी के सामने झुक जाती थी, पिताजी मेरी झुकी हुई गर्दन को देख कर कुछ शांत हो जाते थे और कई बार बिना डांटें छोड़ देते थे! मगर आज वो मुझे ऐसे ही छोड़ने वाले नहीं थे;

पिताजी: दस बज रहे हैं, कहाँ था अभी तक?

पिताजी ने गुस्से से पुछा|

मैं: जी वो दिषु के साथ ऑडिट का काम निपटा रहा था|

मैंने सर झुकाये हुए कहा|

पिताजी: गाँव से चन्दर आया है, खबर है तुझे? कल सारा दिन तूने आवारा गर्दी में निकाल दिया आज भी सारा दिन तू दिखा नहीं! जानता है कल से तेरा भाई तेरे बारे में कितनी बार पूछ चूका है?

पिताजी का चन्दर को मेरा भाई कहना मुझे बहुत चुभ रहा था, बड़ी मुश्किल से मैं अपना गुस्सा काबू में कर के खामोश बैठा था|

पिताजी: अपने भाई, उसके बीवी-बच्चों से मिलने तक का टाइम नहीं तेरे पास?

पिताजी ने डाँटते हुए कहा| ये सुन कर मेरा सब्र जवाब दे गया और मैं एकदम से उठ खड़ा हुआ और उनसे उखड़े हुए स्वर में बोला;

मैं: काहे का भाई? जब बेल्ट से मेरी चमड़ी उधेड़ रहा था तब उसे अपने भाई की याद आई थी जो मुझे उसकी याद आएगी? आपने उसे यहाँ सह परिवार बुलाया, आपके बिज़नेस में उसे जोड़ना चाहा मगर आपने मुझसे पूछने की जहमत नहीं उठाई!

मेरे बाग़ी तेवर देख पिताजी खामोश हो गए, उन्हें लगा की मेरा गुस्सा चन्दर के कारन है| उन्हें नहीं पता था की मैं किस आग में जल रहा हूँ! कुछ पल खामोश रहने के बाद पिताजी बोले;

पिताजी: बेटा शांत हो जा! भाईसाहब चाहते थे की.....

पिताजी आगे कुछ कहते उससे पहले ही मैंने उनकी बात को पूरा कर दिया;

मैं: चन्दर अपनी जिम्मेदारी उठाये! जानता हूँ! मुझे माफ़ कीजिये पिताजी पर प्लीज आप उसका नाम मेरे सामने मत लिया कीजिये!

ये सुन कर पिताजी मुस्कुरा दिए, माँ ने बात आगे बढ़ने से रोकी और मेरे लिए खाना परोस दिया| मुझे एहसास हुआ की मैं बेकार में अपना गुस्सा अपने असली परिवार पर उतार रहा हूँ, मुझे खुद को संभालना था ताकि मैं उस इंसान को सजा दे सकूँ जो असली कसूरवार है, यही सोचते हुए मैंने दिषु की ऑडिट करने की बात कबूली;

मैं: पिताजी कल से मेरी एक जर्रूरी ऑडिट है|

ये सुन कर पिताजी ने मुस्कुराते हुए बोले;

पिताजी: पर ज्यादा दिन नहीं, दोनों साइट का काम मैं अकेले नहीं संभाल सकता!

मैंने एक नकली मुस्कराहट के साथ उनकी बात का मान रखा|

अगली सुबह मैं थोड़ा देर से उठा क्योंकि रात बड़ी बेचैनी से काटी थी और न के बराबर सोया था| बाहर से मुझे भौजी और माँ के बोलने की आवाज आ रही थी, भौजी की आवाज सुनते ही मेरा गुस्सा भड़कने लगा| मैंने अपना कंप्यूटर चालु किया और स्पीकर पर एक गाना तेज आवाज में चला दिया| भौजी के आने से पहले कभी-कभार मैं सुबह तैयार होते समय कंप्यूटर पर गाना लगा देता था, इसलिए माँ-पिताजी को इसकी आदत थी| मगर आज तो मुझे भौजी को तड़पाना था इसलिए मैंने ऐसा गाना लगाया जिसे सुन कर भौजी को उनके किये पाप का एहसास हुआ, वो गाना था; 'क़समें, वादे, प्यार, वफ़ा सब बातें हैं बातों का क्या!' लेकिन इतने भर से मेरा मन कहाँ भराना था, भौजी को और तड़पाने के लिए मैंने भी गाने के बोल गुनगुनाने शुरू कर दिए|

मैं: कसमे वादे प्यार वफ़ा सब

बातें हैं बातों का क्या

कोई किसी का नहीं ये झूठे

नाते हैं नातों का क्या!

भौजी को इस गाने के शब्द चुभने लगे थे!

मैं: सुख में तेरे...

सुख में तेरे साथ चलेंगे

दुख में सब मुख मोड़ेंगे

दुनिया वाले...

दुनिया वाले तेरे बनकर

तेरा ही दिल तोड़ेंगे

देते है...

देते हैं भगवान को धोखा

इन्सां को क्या छोड़ेंगे

गाने के दूसरे मुखड़े के बोलों ने भौजी के दिल को तार-तार कर दिया था|

जबतक मैं नहा नहीं लिया तब तक ये गाना लूप में चलता रहा और भौजी रसोई से इस गाने को सुन कर तड़पती रहीं| तैयार हो कर मैंने दिषु को फ़ोन किया और उससे पुछा की ऑडिट के लिए मुझे कहाँ पहुँचना है| दिषु ने मुझे बताया की आज मुझे कोहट एन्क्लेव आना है और वो मुझे फ़ोन पर रास्ता समझाने लगा| फ़ोन पर बात करते हुए मैं बाहर आया और नाश्ता करने बैठ गया, उस वक़्त बाहर सभी मौजूद थे सिवाए बच्चों के| दिषु से बात खत्म हुई तो चन्दर ने मुझसे बात करनी शुरू कर दी;

चन्दर: और मानु भैया, तुम तो ईद का चाँद हुई गए?

मैं: काम बहुत है न, दो साइट के बीच भागना पड़ता है! फिर मेरा अपना ऑडिट का काम भी है!

चन्दर को ऑडिट का काम समझ नहीं आया तो पिताजी ने उसे मेरा काम समझाया| अब चन्दर के मन में इच्छा जगी की मैं अपने काम से कितना कमाता हूँ तो मैंने उसे संक्षेप में उत्तर देते हुए कहा;

मैं: इतना कमा लेता हूँ की अपना खर्चा चला लेता हूँ!

मेरा नाश्ता हो चूका था तो मैं उठ कर अपने कमरे में आ गया| मेरे कमरे में घुसते ही भौजी धड़धड़ाते हुए कमरे में घुसीं, वो कुछ कहतीं उससे पहले ही मैं अपने बाथरूम में घुस गया और दरवाजा बंद कर दिया| बाथरूम में इत्मीनान से 10 मिनट ले कर मैंने भौजी को इंतजार करवाया, जब बाहर निकला तो भौजी की नजरें मुझ पर टिकी थीं, मगर मैंने उन्हें नजर अंदाज किया और अपना पर्स उठा कर निकलने लगा| भौजी ने एकदम से मेरा बायाँ हाथ पकड़ लिया और रूँधे गले से बोलीं;

भौजी: जानू...जानू...प्लीज...प्लीज....!

मैंने गुस्से में बिना उनकी ओर देखे अपना हाथ बड़ी जोर से झटक दिया जिससे उनकी पकड़ मेरे हाथ पर से छूट गई!

भौजी: प्लीज...जा.....

भौजी की बात सुने बिना मैं अपने कमरे से बाहर आया और माँ-पिताजी को बता कर निकल गया|

"साले जब तू मेरी बात मानता है न तो अच्छा लगता है|" दिषु मेरी पीठ थपथपाते हुए बोला| दिनभर दिषु ने मेरा मन बहलाने के लिए स्कूल के दिनों की याद दिलाई, वो लास्टबेंच पर छुप कर खाना खाना, कैंटीन से साल भर तक रोज पैटीज खाना, लंच होते ही स्कूल के गेट पर दौड़ कर जाना क्योंकि वहाँ छोले-कुलचे वाला खड़ा होता था, छुट्टी होने पर कई बार हम साइकिल पर कचौड़ी बेचने वाले से कचौड़ी खाते थे, वो गणित वाली मैडम से punishment मिलने पर हाथ ऊपर कर के खड़ा होना! स्कूल की ये खट्टी-मीठी यादें याद कर के दिल को कुछ सुकून मिला|

दिषु के साथ काम निपटा कर मैं रात को साढ़े नौ बजे घर पहुँचा, घर पर सिर्फ माँ-पिताजी थे जिन्होंने मेरे कारन अभी तक खाना नहीं खाया था| हम सब ने साथ खाना खाया और फिर काम को ले कर बात हुई, पैसों को ले कर हमने कुछ हिसाब किया उसके बाद हम सोने चले गए!

अगली सुबह मैंने फिर कंप्यूटर पर गाना लगाया; 'मेरे दुश्मन तू मेरी दोस्ती को तरसे!'

मैं: मेरे दिल से सितमगर तू ने अच्छी दिल्लगी की है,

के बन के दोस्त अपने दोस्तों से दुश्मनी की है!

मैं गाने के पहले मुखड़े को गाता हुआ अपने कमरे से बाहर निकला| भौजी रसोई में मेरी ओर मुँह कर के खड़ी थीं, उस समय हॉल में माँ-पिताजी मौजूद थे इसलिए वो कुछ कह नहीं पाईं| मैंने अपना फ़ोन निकाला और अपने कमरे की चौखट से कन्धा टिका कर खड़ा हो गया| माँ-पिताजी को दिखाने के लिए मैंने अपनी नजरें फ़ोन में गड़ा दी पर मैं गाने के बोल भी बोल रहा था|

मैं: मेरे दुश्मन तू मेरी दोस्ती को तरसे

मुझे ग़म देने वाले तू खुशी को तरसे!

मैंने दुश्मन शब्द कहते हुए भौजी को देखा और आँखों ही आँखों में 'दुश्मन' कह कर पुकारा|

मैं: तू फूल बने पतझड़ का, तुझ पे बहार न आए कभी

मेरी ही तरह तू तड़पे तुझको क़रार न आए कभी

जिये तू इस तरह की ज़िंदगी को तरसे!

मैंने फ़ोन में नजरें गड़ाए भौजी को बद्दुआ दी!

मैं: इतना तो असर कर जाएं मेरी वफ़ाएं ओ बेवफ़ा

जब तुझे याद आएं अपनी जफ़ाएं ओ बेवफ़ा

पशेमान होके रोए, तू हंसी को तरसे!

ये मुखड़ा मैंने भौजी की ओर देखते हुए गाय, ताकि उन्हें उनकी बेवफाई याद दिला सकूँ!

मैं: तेरे गुलशन से ज़्यादा वीरान कोई वीराना न हो

इस दुनिया में तेरा जो अपना तो क्या, बेगाना न हो

किसी का प्यार क्या तू बेरुख़ी को तरसे!

ये आखरी बद्दुआ दे कर मैं अपने कमरे में लौट आया और गाना बंद कर दिया|

मेरे कमरे में जाने के बाद भौजी की आँखों से आँसूँ बह निकले, जिन्हें उन्होंने अपनी साडी के पल्लू से पोंछ लिया| वो जानती थीं की मैं गानों के जरिये भौजी पर तोहमद लगा रहा हूँ, मेरा उन्हें दुश्मन कहना, बेवफा कहना, गाने के बोलों के जरिये उन्हें बद्दुआ देना उन्हें आहात कर गया था! वो अंदर ही अंदर घुटे जा रहीं थीं, अपने दिल के जज्बातों को मेरे सामने रखने को तड़प रहीं थीं मगर मैं उन्हें बेरुखी दिखा कर जलाये जा रहा था!

अपने कमरे में लौटकर मैं पलंग पर सर झुका कर बैठ गया और खुद से सवाल पूछने लगा; 'भौजी को जलाने, तड़पाने के बाद मुझे सुकून मिलना चाहिए था, फिर ये बेचैनी क्यों है?' मुझे मेरे इस सवाल का जवाब नहीं मिला क्योंकि गुस्से की आग ने मेरे दिमाग पर काबू कर लिया था! जबकि इसका जवाब बड़ा सरल था, मैंने कभी किसी को अनजाने में भी दुःख नहीं दिया था, भौजी को तो मैं जानते-बूझते हुए दुःख दे रहा था, तड़पा रहा था तो मुझे सुकून कहाँ से मिलता?!

मैं नहा धोकर तैयार होकर अपना पर्स रख रहा था जब भौजी मेरे कमरे में घुसीं, उनकी आँखें भीगी हुई थीं और दिल में दुःख का सागर उमड़ रहा था| उन्होंने अपने दोनों हाथों से मेरा दायाँ हाथ कस कर पकड़ लिया और बोलीं;

भौजी: जानू.....प्लीज....एक बार मेरी.....बात...

भौजी आगे कुछ कहतीं उससे पहले ही मैंने गुस्से अपने दाएँ हाथ को इस कदर मोड़ा की भौजी की पकड़ कुछ ढीली पड़ गई, उनहोने जैसे ही अपनी पकड़ को फिर से मजबूत करना चाहा मैंने झटके से अपना हाथ छुड़ा लिया और तेज क़दमों से बाहर आ गया| भौजी एक बार फिर जल बिन मछली की तरफ तड़पती रह गईं क्योंकि आज फिर उनके मन की बात उनके मन में रह गई थी!

बाहर पिताजी नाश्ते पर मेरी राह देख रहे थे, उन्होंने थोड़ा सख्ती से मेरे ऑडिट के बारे में पुछा की कब तक मेरी ऑडिट चलेगी? मैं कुछ जवाब देता उससे पहले ही उन्होंने मुझे 'थोड़ी सख्ती' से डाँट दिया; "लाखों का काम छोड़ कर तू अपना छोटा सा काम पकड़ कर बैठा है! कल से साइट पर आ जा, मिश्रा जी ने पैसे ट्रांसफर किये हैं, कल से और लेबर लगानी है!" मैंने सर झुका कर उनकी बात मानी और देर रात तक बैठ कर ऑडिट का काम खत्म किया| जब से भौजी आईं थीं मेरी नींद हराम थी, पिछली रात थोड़ा बहुत सोया था मगर आज की रात मैं चैन से सोना चाहता था इसलिए मैंने घर जाते हुए ठेके से एक gin का पौआ लिया| थोड़ी देर बाद जब मैं घर पहुँचा तो पिताजी ने सख्ती से मुझे कल क्या काम करवाना है उसके बारे में बताया| खाना खा कर मैं अपने कमरे में आया, कमरे में मुझे भौजी की महक महसूस हुई और दिमाग में गुस्सा भर गया! मैंने बैग से पौआ निकाला और मुँह से लगाकर एक साँस में खींच गया! Neat gin जब गले से नीचे उतरी तो आँखें एकदम से लाल हो गईं, मैंने खाली बोतल वापस बैग में डाल दी और पलंग पर लेट गया| बिस्तर पर पड़े हुए कुछ देर मैं नेहा के बारे में सोचने लगा, उसके मासूम से चेहरे की कल्पना करते हुए मेरी आँखें भारी होने लगी| फिर शराब की ऐसी खुमारी चढ़ी की मैं घोड़े बेच कर सो गया!

अगली सुबह जब मैं नौ बजे तक नहीं उठा तो माँ ने पिताजी के कहने पर मेरा दरवाजा खटखटाया पर मैं बेसुध अब भी सो रहा था| माँ ने पिताजी से मेरी वकालत करते हुए कहा; "कल रात देर से आया था न इसलिए थक कर सो गया होगा! थोड़ी देर में उठेगा तो मैं नाश्ता करवा कर भेज दूँगी!' चन्दर घर में मौजूद था इसलिए पिताजी ने बात को ज्यादा खींचा नहीं और उसे अपने साथ ले कर गुडगाँव वाली साइट पर निकल गए| दस बजे माँ ने मेरा दरवाजा भड़भड़ाया, दरवाजा भड़भड़ाये जाने से मैं मुँह बिदका कर उठा और बोला;

मैं: आ...रहा....हूँ!

माँ: दस बज रहे हैं लाड-साहब, तेरे पिताजी बहुत गुस्सा हैं!

माँ बाहर से बोलीं|

भले ही मैं 21 साल का लड़का था पर पिताजी के गुस्से से डरता था, ऊपर से मेरे कमरे में कल रात की शराब की महक भरी हुई थी! मैं फटाफट नहाया और तैयार हुआ, मैंने कमरे में भर-भरकर परफ्यूम मारा ताकि शराब की महक को दबा सकूँ! मैं कमरे से बाहर निकला ही था की माँ को कमरे से परफ्यूम की तेज महक आ गई;

माँ: क्या सारी फुस्स-फुस्स (परफ्यूम) लगा ली?

माँ परफ्यूम को फुस्स-फुस्स कहती थीं!

मैं: वो फुस्स-फुस्स का स्प्रे अटक गया था!

मैंने हँसते हुए कहा|

उधर भौजी ने बड़ी गजब की चाल चली, वो जानती थीं की वो मेरे नजदीक आएँगी तो मैं कैसे न कैसे कर के उनके चंगुल से निकल भागूँगा इसलिए उन्होंने माँ का सहारा लेते हुए अपनी चाल चली|

माँ: बेटा अपनी भौजी के घर में ये सिलेंडर रख आ, चूल्हा तेरे पिताजी आज-कल में ला देंगे|

माँ ने एक भरे सिलेंडर की ओर इशारा करते हुए कहा| माँ का कहा मैं कैसे टालता, इसलिए मजबूरन मुझे सिलेंडर उठा के भौजी के घर जाना पड़ा| भौजी पहले ही मेरा इंतजार बड़ी बेसब्री से कर रहीं थीं, जैसे ही मैंने दरवाजा खटखटाया की भौजी ने एकदम से दरवाजा खोला, मुझे अपने सामने देखते ही उनके मुँह पर ख़ुशी झलकने लगी;

भौजी: जानू यहाँ रख दीजिये!

भौजी ने मुस्कुराते हुए कहा| पता नहीं क्यों भौजी मुझसे ऐसे बर्ताव कर रहीं थीं जैसे कुछ हुआ ही नहीं है?! मैंने सिलिंडर रखा तथा मुड़ कर बाहर जाने लगा तो भौजी ने मेरे कँधे पर हाथ रखा और एकदम से मुझे अपनी तरफ घुमाया! भौजी का 'हमला' इतनी जल्दी था की इससे पहले मैं सम्भल पाता, भौजी एकदम से मेरे गले लग गईं और मुझे अपनी बाहों में कस लिया! भौजी मेरे सीने की आँच में अपने लिए प्यार ढूँढ रहीं थीं और मैं अपने दोनों हाथ अपनी पैंट की पॉकेट में डाले खुद को उनके प्यार में बहने से रोक रहा था! भौजी के जिस्म की आग मेरे दिल को पिघलाने लगी थी, कुछ-कुछ वैसे ही जब मैं गाँव में था तो भौजी के मेरे नजदीक होने पर मैं बहकने लगता था! इधर भौजी के जिस्म की तपिश इस कदर भड़क गई थी की उन्होंने अपने दोनों हाथ मेरी पीठ पर फिराने शुरू कर दिए थे जबकि मैंने उन्हें अभी तक नहीं छुआ था! पीछे से अगर कोई देखता था तो उसे लगता की भौजी मेरे गले लगी हुई हैं मैं नहीं!

5 मिनट तक मेरे जिस्म से लिपट कर भौजी ने तो अपनी प्यास बुझा ली थी मगर मेरे दिमाग में अब गुस्सा फूटने लगा था|

मैं: OK let go of me!

मैंने गुस्से से भौजी के दोनों हाथ अपनी पीठ के इर्द-गिर्द से हटाए और उन्हें खुद से दूर कर दिया|

भौजी: आप मुझसे अब तक नाराज हो?

भौजी ने शर्म से सर झुकाते हुए पुछा|

मैं: (हुँह)नाराज? किस रिश्ते से?

मैंने भौजी को घूर कर देखते हुए पुछा|

भौजी: आप मेरे पति हो.

भौजी ने मुझसे नजर मिलाते हुए गर्व से कहा, मगर ये सुनते ही मैंने उनकी बात बीच में ही काट दी और उन्हें ताना मारा;

मैं: था!

ये शब्द सुन कर भौजी की आँखों से आँसू बहने लगे|

भौजी: जानू प्लीज मुझे माफ़ कर दो! मुझे आपको वो सब कहने में कितनी तकलीफ हुई थी, ये मैं आपको बता नहीं सकती! दस दिन तक मैं बड़ी मुश्किल से खुद को आपको कॉल करने से रोकती रही, सिर्फ और सिर्फ इसलिए की ..

भौजी ने अपनी बात अधूरी छोड़ दी क्योंकि अगर वो अपनी बात दुबारा दुहराती तो मेरा गुस्सा और बढ़ जाता| वो एक बार फिर मेरे जिस्म से किसी जंगली बेल की तरह चिपक गईं, मुझे उनके जिस्म का स्पर्श अच्छा नहीं लग रहा था इसलिए मैंने उन्हें एक बार फिर खुद से अलग किया और उनपर बरस पड़ा;

मैं: तकलीफ? इस शब्द का मतलब जानते हो आप? मुझे खुद से 'काट कर' अलग करने के बाद आप तो चैन की जिंदगी जी रहे थे, परिवार को उसका 'उत्तराधिकारी' दे कर आप तो बड़के दादा और बड़की अम्मा के चहेते बन गए! क्या मैं नहीं जानता की आपकी 'महारानी' जैसी खातिरदारी की जाती थी?

मैंने खुद की तुलना किसी खर-पतवार से की, जिसे किसान अपनी फसल से दूर रखने के लिए 'काट' देता है और 'उत्तराधिकारी' तथा 'महारानी' जैसे शब्द मैंने भौजी को ताना मारने के लिए कहे थे|

मैं: आपको पता है की इधर मुझ पर क्या बीती? पूरे 5 साल...FUCKING 5 साल आपको भुलाने की कोशिश करता रहा, पर साला मन माने तब न और आप अपने दस दिन की 'तकलीफ' की बात करते हो? आपने मुझे कुछ कहने का मौका तक नहीं दिया, क्या मुझे अपनी बात रखने का हक़ नहीं था? कितनी आसानी से आपने कह दिया की; "भूल जाओ मुझे"? (हुँह) आपने मुझे समझा क्या है? मुझे खुद से ऐसे अलग कर के फेंक दिया जैसे कोई मक्खी को दूध से निकाल के फेंक देता है! आप सोच नहीं सकते मैं किस दौर से गुजरा हूँ, कितना दर्द सहा है मैंने! मैं इतना दुखी था, इतना तड़प रहा था की अपनी तड़प मिटाने के लिए मैंने पीना शुरू कर दिया!

मेरे पीने की बात सुन भौजी की आँखें फटी की फटी रह गईं!

मैं: आपने कहा था न की मैं पढ़ाई पर ध्यान दूँ, मगर मेरे mid-term में कम नंबर आये सिर्फ और सिर्फ आपकी वजह से! क्या फायदा हुआ आपके "बलिदान" का? Pre-Boards आने तक मैंने जैसे-तैसे खुद को संभाला और ठीक-ठाक नंबर से पास हुआ, Boards में अच्छे नंबर ला सकता था पर सिर्फ आपकी वजह से मेरा मन पढ़ाई में नहीं लग रहा था इसलिए मुश्किल से मुझे DU के evening college में एडमिशन मिला!!

मेरी बात सुन कर भौजी को एहसास हुआ की उनका मुझसे दूर रहने का फैसला मेरे किसी काम नहीं आया बल्कि पढ़ाई के मामले में मेरी हालत और बदतर हो गई थी!

मैं: इन 5 सालों में आपको मेरी जरा भी याद नहीं आई? जरा भी? Do you know I felt when you dumped, I felt like. like you USED ME! और जब आपका मन भर गया तो मुझे मरने को छोड़ दिया! आप ने एक पल को भी नहीं सोचा की आपके बिना मेरा क्या होगा? अरे मैं मर ही जाता अगर मेरा दोस्त दिषु नहीं होता! बोलो यही चाहते थे न आप की मैं मर जाऊँ?!

मैंने जब अपने मरने की बात कही तो भौजी सर न में हिलाते हुए बिलख कर रो पड़ीं|

मैं: आपका मन मुझे कॉल करने का भी नहीं हुआ? प्यार करते 'थे' न मुझसे, तो कभी मेरी आवाज सुनने का मन नहीं हुआ? मेरे बारहवीं पास होने पर फोन नहीं किया, ग्रेजुएट होने पर भी कॉल नहीं किया, अरे इतना भी नहीं हुआ आपसे की आयुष के पैदा होने पर ही कम-स-कम मुझे एक फोन कर दो? पिताजी इतनी दफा गाँव आये, कभी आपने उनके हाथ आयुष की एक तस्वीर तक भेजने की नहीं सोची? थोड़ा तो मुझ पर तरस खा कर मुझे आयुष की आवाज फ़ोन पर सुना देते, आखिर बाप 'था' न मैं उसका?! लोग किसी अनजाने के साथ भी ऐसा सलूक नहीं करते, मैं तो फिर भी आपका पति 'हुआ करता था'| बिना किसी जुर्म के, बिना किसी गलती के आपने मुझे इतनी भयानक सजा दी! बता सकते हो की मेरी गलती क्या थी? आपने मुझे ऐसी गलती की सजा दी जो मैंने कभी की ही नहीं! और तो और आपको मुझे सजा देते समय नेहा के बारे में जरा भी ख्याल नहीं आया? उसके मन में मेरे लिए क्यों जहर घोला? इतवार सुबह जब मैंने नेहा को बुलाया तो जानते हो उसने मुझे कैसे देखा? उसकी आँखों मेरे लिए गुस्सा था, नफरत थी जो आपने उसके मन में घोल दी! मैं तो उसे पा कर ही खुश हो जाता और शायद आपको माफ़ कर देता लेकिन अब तो उस पर भी मेरा अधिकार नहीं रहा!

अपने भीतर का जहर उगल कर मैंने मैंने एक लम्बी साँस ली और बोला;

मैं: मेरे साथ इतना बड़ा धोका करने के बाद आपकी हिम्मत कैसे हुई मुझसे कहने की कि क्या मैं आपसे नाराज हूँ?!

पिछले 5 साल से मन में दबी हुई आग ने भौजी को जला कर ख़ाक कर दिया था! भौजी को अपने किये पर बहुत पछतावा था इसलिए वो सोफे पर सर झुकाये अपने दोनों हाथों में अपना चेहरा छुपाये बिलख-बिलख कर रो रहीं थीं! मैं अगर चाहता तो उन्हें चुप करा सकता था, उनके आँसूँ पोछ सकता था मगर मैंने ऐसा नहीं किया| मैं उन्हें रोता-बिलखता हुआ छोड़ के जाने लगा कि तभी मुझे दो बच्चे घर में घुसे| ये कोई और नहीं बल्कि नेहा और आयुष थे| आयुष को आज मैं जिन्दगी में पहली बार देख रहा था, चेहरे पर मुस्कान लिए, आँखों में हलकी सी शरारत के साथ वो नेहा संग दौड़ कर घर में घुसा पर उसने एक पल के लिए भी मुझे नहीं देखा, बल्कि मेरी बगल से होता हुआ अंदर कमरे में भाग गया| इधर नेहा मुझे देख कर रुक गई और गुस्से से भरी नजरों से मुझे 5 सेकंड तक देखती रही! मुझे लगा वो शायद कुछ बोलेगी पर वो बिना कुछ बोले अंदर चली गई!

अपने दोनों बच्चों को अपने सामने देख कर मेरा मन आशा से भर गया था, मेरा मन किया की मैं आयुष और नेहा को एक बार छू कर देख सकूँ, उनसे एक बार बात करूँ, उन्हें अपने सीने से लगा कर एक जलते हुए बाप के कलेजे को शांत कर सकूँ, लेकिन एक बेबस बाप को बस हताशा ही हाथ लगी! आयुष के मुझे अनदेखा कर अंदर भाग जाने और नेहा की गुस्से से भरी आँखों को देख मैं रो पड़ा! मेरी आँखों से आँसूँ बह निकले, उस पल मेरे दिल के मानो हजार टुकड़े हो गए और हर एक टुकड़े ने भौजी को बद्दुआ देनी चाहि, मगर मेरे माँ-पिताजी ने मुझे कभी किसी को बद्दुआ देना नहीं सिखाया था, माँ को तो बचपन से पिताजी के जुल्म सहते हुए देखा था इसलिए मैं भी ख़ामोशी से सब सह गया|

मैंने शिकायत भरी आँखों से भौजी की ओर देखा तो पाया की उन्होंने अभी घटित दुःखमयी दृश्य देख लिया है, लेकिन इससे पहले वो कुछ कहतीं मैं अपने घर लौट आया| मैं सीधा अपने कमरे में घुसा ओर दरवाजा अंदर से बंद कर दरवाजे के सहारे जमीन पर बैठ गया, माँ मेरे रोने की आवाज न सुन लें इसलिए मैंने अपना सर अपने समेटे हुए घुटनों में छुपा कर रोने लगा! मेरे दिल के जिन जख्मों पर धूल जम चुकी थी, आज वो भौजी के कुरेदने से हरे गए थे! यही कारन था की मैं नहीं चाहता था की भौजी मेरे जीवन में फिर से लौट कर आएं!

[color=rgb(255,]जारी रहेगा भाग - 4 में....[/color]
 

[color=rgb(85,]बाईसवाँ अध्याय: अनपेक्षित आगमन[/color]
[color=rgb(226,]भाग -4[/color]


[color=rgb(97,]अब तक आपने पढ़ा:[/color]

अपने दोनों बच्चों को अपने सामने देख कर मेरा मन आशा से भर गया था, मेरा मन किया की मैं आयुष और नेहा को एक बार छू कर देख सकूँ, उनसे एक बार बात करूँ, उन्हें अपने सीने से लगा कर एक जलते हुए बाप के कलेजे को शांत कर सकूँ, लेकिन एक बेबस बाप को बस हताशा ही हाथ लगी! आयुष के मुझे अनदेखा कर अंदर भाग जाने और नेहा की गुस्से से भरी आँखों को देख मैं रो पड़ा! मेरी आँखों से आँसूँ बह निकले, उस पल मेरे दिल के मानो हजार टुकड़े हो गए और हर एक टुकड़े ने भौजी को बद्दुआ देनी चाहि, मगर मेरे माँ-पिताजी ने मुझे कभी किसी को बद्दुआ देना नहीं सिखाया था, माँ को तो बचपन से पिताजी के जुल्म सहते हुए देखा था इसलिए मैं भी ख़ामोशी से सब सह गया|

मैंने शिकायत भरी आँखों से भौजी की ओर देखा तो पाया की उन्होंने अभी घटित दुःखमयी दृश्य देख लिया है, लेकिन इससे पहले वो कुछ कहतीं मैं अपने घर लौट आया| मैं सीधा अपने कमरे में घुसा ओर दरवाजा अंदर से बंद कर दरवाजे के सहारे जमीन पर बैठ गया, माँ मेरे रोने की आवाज न सुन लें इसलिए मैंने अपना सर अपने समेटे हुए घुटनों में छुपा कर रोने लगा! मेरे दिल के जिन जख्मों पर धूल जम चुकी थी, आज वो भौजी के कुरेदने से हरे गए थे! यही कारन था की मैं नहीं चाहता था की भौजी मेरे जीवन में फिर से लौट कर आएं!

[color=rgb(251,]अब आगे:[/color]

सारा दिन मैंने अकेले एक पार्क में बैठ कर काटा, रात को नौ बजे घर आया तो पिताजी से फिर डाँट पड़ी| पिताजी ने मुझे सुनाते हुए कहा की; "तू इतनी आवारागिर्दी करता रहता है!" मैंने पलट कर उन्हें कोई जवाब नहीं दिया और चुप-चाप उनकी डाँट सुनी, माँ ने खाना परोसा तथा मेरे खाने तक वो मेरे साथ बैठी रहीं| खाना खा कर मैं अपने कमरे में आया और अपने साथ छुपा कर लाया पौआ खोल कर पीने लगा| ये पौआ मैं सिर्फ इसलिए लाया था की रात को सो सकूँ वरना आज दिन भर के घटनाक्रम याद कर के मैं सो नहीं पाता!

अगले दिन मैं सुबह जल्दी उठ गया और तैयार हो कर घर से निकलने ही वाला था की पिताजी ने रोक लिया;

पिताजी: कहाँ जा रहा है?

पिताजी ने सख्ती से पुछा|

मैं: जी गुडगाँव....साइट पर|

पिताजी: कोई जर्रूरत नहीं, मैंने चन्दर को वहाँ भेजा है| वो आज प्लंबिंग का काम शुरू करवा रहा है, आज वहाँ तेरा कोई काम नहीं है| तेरी भौजी ने तेरी माँ से कहा था की घर में कुछ सफाई और बिजली का काम करवाना है, तू जा और वो काम कर के आ|

मैं समझ गया था की भौजी की ही चाल है, तभी वो और बच्चे घर पर नहीं थे! अब मैं भौजी की चाल में आने से रहा तो मैंने चिढ़ते हुए पिताजी से कहा;

मैं: पर मैं अभी नहाया हूँ और आप मुझे धुल-मिटटी का काम दे रहे हैं! मैं दीपक को....

मैंने काम से बचने के लिए पिताजी से दीपक बिजली वाले का नाम लिया पर पिताजी को न सुनने की आदत नहीं थी;

पिताजी: तो फिर से नाहा लिओ, यहाँ कौन सा सुख पड़ा है जो तुझे नहाने को पानी नहीं मिलेगा?! अब बहाने बंद कर और जा जल्दी|

पिताजी मुझे फरमान सुना कर निकल गए|

बुझे मन से मैंने भौजी के घर की ओर चल दिया, तभी मुझे कुछ याद आया| मैंने नेहा से वादा किया था की जब मैं उससे मिलने आऊँगा तो उसके लिए कपडे और चिप्स ले कर आऊँगा, ये वादा याद आते ही मन में एक आस भर गई की शायद gift देख कर ही नेहा मुझसे बात कर ले?! उस समय मेरे लिए ये आस ऐसी थी मानो डूबते को तिनके का सहारा, मैं जल्दी से मार्किट पहुँचा और नेहा के लिए एक जीन्स और टॉप खरीदा| मुझे नेहा का साइज नहीं पता था पर उसकी उम्र पता थी, मैंने दुकानदार से नेहा की उम्र की बच्ची के साइज के जीन्स-टॉप लिया और उसे एक gift wrap कराया| दुकानदार gift pack करने वाले थे की मैंने उन्हें 1 मिनट के लिए रोका और दूसरी दूकान से नेहा के मनपसंद 'अंकल चिप्स' खरीद लाया| मैंने वो चिप्स का पैकेट सबसे ऊपर रखा, ताकि gift खोलते ही नेहा को चिप्स का पैकेट सबसे पहले दिखे! Gift pack चिप्स के पैकेट के कारन बहुत मोटा हो गया था, gift pack को देख मुझे अजीब सा डर लगने लगा की पर पता नहीं नेहा को अब चिप्स पसंद होंगे भी या नहीं?! मन मजबूत कर मैं नेहा का gift pack ले कर एक खिलोने वाली दूकान में घुसा, वहाँ मुझे आयुष के लिए एक खिलौने वाला हवाई जहाज पसंद आया| मैंने दुकानदार से वो हवाई जहाज gift pack करने को कहा, दोनों बच्चों के लिए gift ले कर मैं भौजी के घर पहुँचा|

भौजी ने दरवाजा खोला और मुझे देख उनके चेहरे पर प्यार मुस्कान खिल गई, ऐसा लगा जैसे कल जो हुआ उसका उन पर कुछ प्रभाव ही नहीं पड़ा था! 'कहीं ये पागल-वागल तो नहीं हो गईं?' मैं मन ही मन बोला और चुप-चाप भौजी से नजरें फेर कर खड़ा हो गया| भौजी ने मुस्कुराते हुए मुझे बैठने का इशारा किया और बाहर चली गईं, दरअसल बच्चे घर पर नहीं थे वो गली के बच्चों के साथ छुपन-छुपाई खेल रहे थे| मैं सोफे पर बैठ गया और अपने दोनों बच्चों के इंतजार में नजरें दरवाजे पर बिछा दी!

भौजी: आयुष....नेहा..... बेटा जल्दी घर आओ!

भौजी ने घर के चौतरे पर खड़े हो कर बच्चों को आवाज दी, दोनों बच्चे अपनी मम्मी की आवाज सुन तुरंत हाजिर हो गए| भौजी ने दोनों को घर के भीतर जाने का इशारा किया, दोनों घर में घुसे और मुझे अपने सामने बैठा देख हाथ पीछे बाँधे खड़े हो गए| नेहा की आँखों में गुस्सा अब भी था पर धीरे-धीरे उसके गुस्से में अब कमी आने लगी थी, शायद भौजी ने कल मेरे जाने के बाद उससे बात की थी| वहीं आयुष की आँखें सूनी थी, वो मुझे आँखें बड़ी कर के देख रहा था और मुझे जानने की कोशिश कर रहा था! मैं उसकी आँखों में अपने पिता को देखने की ख़ुशी देखना चाहता था न की किसी अजनबी को जानने-पहचानने की कोशिश करता हुआ उसका छोटा सा दिमाग!

मैं टकटकी बाँधें दोनों बच्चों की भोली सी सूरत अपनी आँखों में बसाने में लगा था की भौजी ने चौधरी बन कर बीच में बोल कर मेरी नजरों की भूख को खंडित कर दिया;

भौजी: आयुष...नेहा... बेटा ये आपके पा....

भौजी 'पापा' शब्द कहने वाली ही थीं की मैंने उनकी बात को बीच में काट कर उसका रुख बदल दिया;

मैं: बेटा मैं आपका चाचा हूँ|

भौजी ने जिस तरह दोनों बच्चों को मुझे उनका पापा कहना चाहा ये मुझसे बर्दाश्त नहीं हुआ, उनके लहजे में मुझे प्यार महसूस नहीं हुआ, ऐसा लगा मानो वो दोनों बच्चों को 'जानकारी' दे रहीं थीं! जबकि मैं ऐसा कतई नहीं चाहता था, इसीलिए मैंने उनकी बात काटी थी|

खुद को दोनों बच्चों का 'पापा' कहने की बजाए 'चाचा' कहने में मेरे दिल में जो पीड़ा उठी उसे शब्दों में ब्यान कर पाना नामुमकिन है! दिल खून के आँसूँ रोये जा रहा था और आँखें उन आँसुंओं को चेहरे पर लाना चाहतीं थीं मगर ऐसा कर के मैं आयुष के मन में अपनी माँ के प्रति संदेह या गलत विचार पैदा नहीं करना चाहता था, आखिर कौन सा बच्चा अपनी माँ के मुँह से ये सुन्ना चाहेगा की उसके पापा कोई और हैं?! बहुत जोर लगाया और अपने जिस्म की सारी ताक़त झोंक कर मैंने अपने आँसुओं को बहने से रोक लिया|

उधर मेरी बात सुन कर भौजी और नेहा आँखें फ़ाड़े मेरी ओर देख रहे थे, क्योंकि नेहा मुझे पापा कहती थी तथा भौजी को इसकी ज़रा भी उम्मीद नहीं थी की मैं आयुष से अपना रिश्ता कुछ इस तरह स्थापित करूँगा! भौजी ने अपनी बात पुनः सही ढँग से दोहरानी चाहि और आयुष को मेरे बारे में सच बताना चाहा मगर मैंने उन्हें बोलने ही नहीं दिया| जितना दुःख मुझे खुद को आयुष और नेहा का 'चाचा' बोलने में हुआ था उससे हजार गुना ज्यादा दर्द भौजी को हुआ था! मैं उन्हें तड़पाने का मौका कैसे जाने देता इसलिए मैंने उन्हें उनकी बात कहने से रोक कर दर्द से तिलमिला दिया था, इसी बहाने उन्हें भी मेरा वो दर्द महसूस हुआ जो मुझे तब हुआ था जब भौजी ने मुझे आखरी बार कॉल किया था और ये कह के फोन काट दिया की "मैं कुछ नहीं सुनना चाहती...ये आखरी कॉल था! आपको मेरी कसम है, आज के बाद ना मैं आपको कभी फोन करुँगी और ना ही आप करोगे! आप बस...मुझे भूल जाओ!" भौजी की आँखों में आँसूँ उमड़ आये और उन्होंने मेरा ध्यान अपनी ओर आकर्षित करने के लिए रूँधे गले से; "जानू" कहा, मगर मैंने उनको कोई तवज्जो नहीं दी बल्कि नेहा की ओर देखते हुए बोला;

मैं: नेहा बेटा, पता नहीं आपको याद होगा की नहीं पर गाँव में मैंने एक बार आपको promise किया था की मैं दशेरे की छुटियों में आऊँगा और आपके लिए बहुत सारे gift लाऊँगा|

ये कहते हुए मेरी आँखें भर आईं, गला भारी हो गया पर जैसे तैसे मैंने अपने आँसूँ रोके और अपनी बात पूरी करने लगा;

मैं: हाँ थोड़ा लेट हो गया...5 साल!

ये बात मैंने भौजी की ओर देखते हुए कही, जिससे उन्हें ये एहसास दिला सकूँ की उनके मुझे खुद से दूर करने का राज मैं उनके बच्चों पर नहीं खोल कर मैं उनपर कितना बड़ा एहसान कर रहा हूँ! वहीं मेरी बात सुन कर भौजी की नजरें शर्म से झुक गई थीं|

मैंने नेहा का gift उसकी ओर बढ़ाया तो नेहा अब भी बड़ी-बड़ी आँखों से मुझे देख रही थी, उसकी नजरों में नाराजगी फिर से लौट आई थी क्योंकि मैंने पहले तो खुद को उसका चाचा कहा और दूसरा मैंने उससे बात कुछ इस तरह शुरू की थी जैसे की नेहा को 5 साल पहले का कुछ याद ही न हो?! नेहा का गुस्सा जायज था पर मैं भी क्या करता, अपनी बेटी का गुनहगार मैं उससे बात करने से घबरा रहा था और इसी घबराहट में मैंने नेहा से इस तरह बात शुरू की थी!

नेहा वो gift लेने से झिझक रही थी पर जब उसने मेरी आँखों में आँसूँ देखे तो उसने बेमन से वो gift ले लिया;

नेहा: थैंक यू....

नेहा आगे कुछ कहने वाली थी, पर फिर उसने अपने शब्दों को रोक लिया और शिकायती नजरों से मुझे देखने लगी| नेहा की शिकायती नजरों के बाण मुझे चुभने लगे थे, मुझ में हिम्मत नहीं थी की मैं उससे नजरें मिलाऊँ इसलिए मैंने उससे नजरें चुराते हुए आयुष को देखा| आयुष मेरे हाथ में gift देख कर खुश था पर साथ ही उसके मन में एक जिज्ञासा थी की सामने बैठा आदमी आखिर है कौन? उसकी जिज्ञासा मैंने पढ़ ली थी, मेरा मन कर रहा था की मैं उसे गले लगा लूँ और उसे सब सच कह दूँ मगर मैं भौजी की इज्जाजत उनके बेटे के सामने ख़राब नहीं करना चाहता था|

मैं: आयुष बेटा.....

इतना कह मैं दो सेकंड के लिए रुक गया क्योंकि मेरे आँसूँ छलकने वाले थे;

मैं: ये आपके लिए!

मैंने आयुष को उसका gift दिया, लेकिन आयुष अपनी मम्मी की ओर देखते हुए बिना कुछ कहे उनकी आज्ञा माँगने लगा, भौजी ने सर हिला कर हाँ कहा तब जा कर आयुष ने मुझसे अपना gift लिया! मुझे उसका अपनी मम्मी से आज्ञा माँगना भा गया, एक पल को दिल को ख़ुशी हुई की भौजी ने आयुष को अच्छे संस्कार दिए हैं| अपना गिफ्ट बिना खोले सिर्फ वजन के अंदाजे से आयुष जान गया की उसमें जर्रूर कोई खिलौना है और ये सोच कर ही चेहरे पर एक अनमोल मुस्कान आ गई| आयुष ने अपनी दीदी (नेहा) का हाथ पकड़ा और उसे अपने साथ खेलने के लिए अंदर कमरे में ले जाने लगा, लेकिन नेहा मुझे देखते हुए अब भी कुछ सोच रही थी, ऐसा लगा वो कुछ कहना चाहती हो पर कहने की हिम्मत न कर पा रही हो! एक बार का तो मन हुआ की उसे रोक लूँ और पूछूँ पर नहीं, अब मेरा उस पे कोई हक़ नहीं था| आयुष को अपने इतना नजदीक देख के उसे छूना चाहा, गले लगाना चाहा, आखिर वो मेरा खून था मगर उसे अपने रिश्ते की परिभाषा देने से डर गया!

दोनों बच्चे जब कमरे के अंदर जा रहे थे तो मेरी नजरें उनका पीछा कर रहीं थीं और मेरी लाख कोशिशों के बाद भी मेरी आँखों से आँसूँ छलक आये! भौजी मेरी दशा समझ रहीं थीं तथा मन ही मन खुद को कोसें जा रहीं थीं जिसका सबुत उनकी आँखों ने आँसूँ बहा कर दिया| भौजी खामोश थीं और मैं भी, कुछ पाँच मिनट तक खामोश बैठा रहा और खुद को संभालने की कोशिश करता रहा| नेहा का उखड़ा व्यवहार मुझे कचोटे जा रहा था और भौजी के प्रति मेरा गुस्सा उबलने लगा था| जब से भौजी आईं थीं तब से कई बार मैंने अपने मन में उठ रहे ख्यालों तथा सवालों में 'भौजी' शब्द का इस्तेमाल किया था, वक़्त था आज ये शब्द पुनः बोल कर भौजी को दर्द की सुई चुभाई जाए! लेकिन तभी मुझे याद आया की 'भौजी' तो मैं उन्हें अपने बचपन में कह कर बुलाता था, ये शब्द सुन कर उन्हें वो दर्द नहीं होगा जो मैं चाहता हूँ! 'भाभी' दिमाग ने बदला लेने के लिए मुझे बड़ा ही उपयुक्त शब्द सुझाया, ये ऐसा शब्द था जिसे सुन कर भौजी के दिल के टुकड़े-टुकड़े हो जाते और उन्हें पता लगता की मैंने कितने भारी मन से 'चाचा' शब्द कहा था!

मैं: तो कहिये "भाभी" क्या काम है आपको?

मैंने भाभी शब्द पर बहुत जोर दे कर कहा| जैसे ही भौजी ने मेरे मुँह से अपने लिए 'भाभी' शब्द सुना उनका दिल टूट कर चकनाचूर हो गया, वो एकदम से मेरे पास आ कर बैठ गईं जैसे की कोई पेड़ लक्कड़हारे के काटने से गिर पड़ता है! भौजी की आँखों से गंगा-जमुना तेजी से बहने लगी थी, उनके सारे जिस्म में त्रास का ज्वालामुखी फ़ट चूका था| भौजी जानती थीं की मैंने उन्हें तड़पाने के लिए ये शब्द जानबूझ कर कहा है और क्यों कहा है| भौजी में हिम्मत नहीं बची थी की वो मुझे कुछ कह सकें इसलिए वो अपनी आँसूँ बहाती हुई आँखों से मुझे देख रहीं थीं और मूक भाषा में मुझसे माफ़ी माँग रहीं थीं;

मैं: क्या हुआ?

मैंने अनजान बनने का नाटक करते हुए कहा| मैंने ऐसे दिखाया जैसे मुझे उनके बहते हुए आँसूँ और उनकी मूक शब्दों में माँगी माफ़ी समझ ही न आई हो! मगर मैं इतना पत्थर दिल नहीं था, भौजी के आँसूँ देख कर मेरा दिल पिघलने लगा था, मैं कमजोर पड़ कर उन्हें माफ़ न कर दूँ इसलिए मैंने वहाँ से जाने का फैसला किया,

मैं: मैं जा रहा हूँ!

मैं उठ कर जाने लगा तो भौजी ने एकदम से अपने आँसूँ पोछे और मुझसे सवाल पुछा;

भौजी: आप तो मुझे "जान" कहके बुलाया करते थे न?

ये सवाल भौजी ने मेरा मन टटोलने के लिए किया था, मगर उनके इस सवाल ने मेरे गुस्से की आग को और भड़का दिया;

मैं: कहता था, जबतक आपने मुझे ऐसे अपराध की सजा नहीं दी थी जो मैंने किया ही नहीं था| फिर अब रहा ही क्या है हमारे बीच जो मैं आपको 'जान' कहके बुलाऊँ?

ये सुन भौजी की आँखों से फिर आँसूँ बह निकले!

भौजी: कुछ नहीं रहा हमारे बीच?

भौजी ने रुनवासी होते हुए पुछा;

मैं: नहीं मैं अब किसी और से प्यार करता हूँ|

मैंने भौजी को जलाने के लिए कहा|

ये सुनते ही भौजी बिफर कर रो पड़ीं, आज उन्हें यूँ रुला कर मुझे बुरा लग रहा था मगर फिर भी मैं ऐसे दिखा रहा था की मुझे कोई फर्क नहीं पड़ रहा है, लेकिन उन्हें रोता देख मेरा दिल कचोटने लगा था!

भौजी: ठीक है!

भौजी ने अपने रोने पर काबू कर सुबकते हुए कहा|

मैं: तो कुछ काम है मेरा की मैं जाऊँ?

मुझसे भौजी की ये रोनी सूरत नहीं देखि जा रही थी इसलिए मैं वहाँ से जल्दी से जल्दी निकलना चाहता था|

भौजी कुछ नहीं बोलीं और टकटकी बाँधें मुझे देखने लगीं, अपनी नजरों से वो मेरी आत्मा को टटोल रहीं थीं की क्या मैं सच कह रहा हूँ या उन्हें जला रहा हूँ?! उन कुछ पलों के लिए मेरी और भौजी की आँखें मिलीं, पर इससे पहले की हमारे नजरें कुछ बात कर पातीं मुझे अंदर वाले कमरे से बच्चों के खेलने की आवाज सुनाई देने लगी! आयुष हवाई जहाज हाथ में लिए अंदर के कमरे में दौड़ रहा था और अपने मुँह से हवाई जहाज के इंजन की आवाज निकाल रहा था! बच्चों की किलकारियाँ सुन मेरा मन हुआ की उन्हें खेलते हुए देखूँ, मैं एक कदम आगे बढ़ा हूँगा की अचानक से रुक गया क्योंकि दिमाग मुझे डराए जा रहा था की मेरे अंदर जाने से नेहा की हँसी गुस्से में बदल जायेगी और आयुष मुझे फिर अजनबी की तरह देखेगा!

मुझे अंदर न जाता देख भौजी अस्चर्य में पड़ गईं, वो नहीं जानती थीं की मेरे दिमाग में क्या उथल-पुथल मची हुई है! अनजाने में भौजी ने ऐसा सवाल पुछा जिससे मेरा गुस्सा पुनः धधकने लगा;

भौजी: आप आयुष को गले नहीं लगाओगे?

भौजी का सवाल सुनते ही मैंने उन्हें ताना मरते हुए कहा;

मैं: किस हक़ से? ओह! याद आया चाचा जो हूँ उसका!

मेरा खुद को आयुष का चाचा कहना भौजी को चुभा और वो थोड़ा गुस्से में बोलीं;

भौजी: आप ऐसा क्यों कह रहे हो?

भौजी नहीं जानती थीं की उनके थोड़े से गुस्से ने मेरे अंदर के ज्वालामुखी को फटने पर मजबूर कर दिया है, मैं उन पर चिल्लाते हुए बोला;

मैं: (हुँह) मैं ऐसा क्यों कह रहा हूँ? मेरी बात का जवाब दो, क्या आपने कभी उसे (आयुष को) बताय की मैं उसका कौन हूँ? या मेरे और उसका क्या (आयुष का) रिश्ता है? अरे ये तो छोडो आपने उसे मेरे बारे में कुछ भी बताया?

मेरे सवाल सुन भौजी ने पलट कर मुझे ही दोषी बनाना चाहा;

भौजी: कैसे बताती, आप कभी आये ही नहीं मिलने!

भौजी को मुझे दोषी कहने का कोई हक़ नहीं था इसलिए मैंने उन्हें शर्मिंदा करते हुए उस सच से रूबरू कराया जो इतने सालों से मरे सीने में दफन था;

मैं: कैसे आता? आपके आखरी कॉल वाले दिन मैं आपको खुशखबरी देना चाहता था की मेरे स्कूल की दशेरे की छुटियाँ पंद्रह अक्टूबर से शुरू होंगी, मगर आपने मेरी बात सुने बिना अपना फरमान सुना दिया और मुझे खुद से और मेरे बच्चों से दूर कर दिया!

भौजी को सच पता चला तो वो मुँह बाए मुझे देखने लगीं|

मैं: मेरी तस्वीर तो थी ना आपके पास?

मेरी इस बात का तातपर्य था की वो आयुष को मेरी तस्वीर दिखा कर उसे मेरे बारे में कुछ तो बता सकती थीं, ताकि आज जब मैं उससे मिला तो कमसकम उस रिश्ते से ही मैं उसे अपने गले लगा सकता था| ये कहते हुए मैंने भौजी को इस कदर शर्मिंदा कर दिया की उनका सर झुक गया और आँखों से ग्लानि भरे आँसूँ टपकने लगे|

भौजी को इस कदर शर्मिंदा कर के मुझे चैन मिला था, मैं पलट कर जाने लगा तो नेहा पीछे से आई और मेरी कमीज पीछे से खींचते हुए बोली;

नेहा: पापा!

नेहा की मासूमी से भरी आवाज मैं 'पापा' सुन मैं अपने घुटनों पर गिर पड़ा और नेहा को कस कर अपने सीने से लगा लिया| इतने सालों बाद अपनी बेटी के मुँह से 'पापा शब्द सुन कर मैं भाव-विभोर हो गया और मेरी आँखों में ख़ुशी के आँसूँ भर आये, नेहा को गले लगाने की तमन्ना आज पूरी हुई और मेरे दिल ने उसके छोटे से धड़कते दिल की धड़कन को सुनना शुरू कर दिया| इधर नेहा ने अपने हाथों को मेरी गर्दन के इर्द-गिर्द कस कर लपेट लिया, उसकी पकड़ में आई कसावट उसके प्रेम को दर्शा रही थी और अपने इसी प्रेम में बहते हुए उसकी आँखें भी भर आईं थी! दो मिनट के इस पिता-पुत्री मिलन ने दोनों को ही तृप्त कर दिया था! मैंने ख़ुशी से मुस्कुराते हुए नेहा के आँसूँ पोछे और नेहा ने मेरे आँसूँ पोछते हुए कहा;

नेहा: पापा I missed you so much!

उसके मुँह से अंग्रेजी सुन कर मेरा दिल गदगद हो गया और मैंने सालों बाद उसके माथे को चूमते हुए कहा;

मैं: I missed you too मेरा बच्चा!

मेरे मुँह से 'मेरा बच्चा' सुनना नेहा को बहुत अच्छा लगता था, आज इतने साल बाद ये दो शब्द दुबारा सुन नेहा के चेहरे पर मुस्कान आ गई| लेकिन फिर अगले ही पल उसने अपने मन में उठ रहे सवाल को पुछा;

नेहा: आपने कहा था ना की आप 'मुझसे' मिलने दशेरे की छुटियों में आओगे, फिर आप क्यों नहीं आये?

नेहा ने 'मुझसे' शब्द पर जोर डालते हुए कहा| नेहा का सवाल सुन कर एक पल को तो मन हुआ की मैं उसे सब सच बता दूँ, मगर फिर मैं रुक गया क्योंकि सच्चाई जानकार नेहा अपनी माँ से नफरत करने लगती, इसलिए मैंने सारा इल्जाम अपने सर ले लिया;

मैं: बेटा.... वो मैं......Sorry मैं अपना वादा पूरा नहीं कर पाया|

ये कहते हुए मेरी आँखें फिर भीग गई थीं, पर नेहा ने मेरे आँसूँ पोछे और अपनी वही पुरानी भोली सी मुस्कान लिए बोली;

नेहा: It's okay पापा| लेकिन अब तो आप कहीं नहीं जाओगे न?

नेहा ने बहुत जल्दी मुझे माफ़ कर दिया था और मेरे लिए उसकी माफ़ी ही सब कुछ थी, मगर फिर भी उस छोटी सी बच्ची के दिल में डर था की कहीं मैं उसे फिरसे अकेला छोड़ कर तो नहीं चला जाऊँगा?

मैं: नहीं बेटा, मैं आपके दादा जी के घर पर ही रहता हूँ, आपका जब मन चाहे आ जाना और याद रहे ये 'पापा' वाला secret हमारे बीच रहे!

मैंने नेहा के सर पर हाथ फेरते हुए कहा| इतने साल बाद नेहा से मिल कर भी मुझे डर लगता था की कहीं वो बच्ची भावनाओं में बहते हुए सब के सामने मुझे पापा न कह दे! नेहा ने मेरी बात सुन कर पहले की तरह अपना सर हाँ में हिलाया और उसके चेहरे पर प्यारी सी मुस्कान तैरने लगी|

मैं उठा और एक पल के लिए भौजी को देखने लगा, उनकी आँखों से अब भी आँसूँ बाह रहे थे! ये देख मैं समझ नहीं पाया की वो खुश है या दुखी? खैर उन्हें और देख कर मैं अपना मन खराब नहीं करना चाहता था, मैंने नेहा को 'bye' कह कर जाने लगा तो भौजी ने फटाफट अपने आँसूँ पोछे और बोलीं;

भौजी: जानू प्लीज...1 मिनट रुकिए!!!

उनकी बात सुन मैं उनकी तरफ पीठ किये हुए रूक गया, भौजी ने आयुष को आवाज मारी;

भौजी: आयुष...बेटा इधर आओ|

मैं समझ गया की भौजी क्या चाहतीं हैं, मैंने सोचा की मैं यहाँ और नहीं रुकूँगा और बाहर जाने को एक कदम आगे बढ़ाया ही था की नेहा ने मेरे दाएँ हाथ की ऊँगली पकड़ के मुझे रोक लिया| मैंने पलट कर नेहा की ओर देखा और उसे समझाना चाहा लेकिन तभी आयुष मेरा दिया हुआ हवाई जहाज वाला खिलौना हाथ में लिए हुए कमरे से बाहर आ गया| मैं आयुष की तरफ मुड़ा, फिर एक बार मन में उसे (आयुष को) गले लगाने की हूक़ उठी पर दिमाग ने जैसे-तैसे उस हूक़ को दबा दिया और मेरे बढे हुए कदम एक बार फिर रूक गए!

भौजी: बेटा ये आपके पापा हैं|

भौजी मेरी तरफ इशारा करते हुए एकदम से बोलीं| उनकी बात सुन आयुष के चेहरे से ख़ुशी गायब हो गई और वो हैरत भरी आँखों से मुझे देखने लगा| आयुष के चेहरे से गायब होती हुई ख़ुशी देख मैंने फ़ौरन भौजी की बात संभालते हुए कहा;

मैं: चाचा....मैं आपका चाचा हूँ!

लेकिन मेरे जवाब ने आयुष को संतुष्ट नहीं किया था, वो अब भी सवालिया नजरों से मुझे देख रहा था| इधर मुझे खुद को आयुष का 'चाचा' कहने में फिर से तकलीफ हो रही थी!

मैं: और बेटा आपको Thanks कहने की कोई जर्रूरत नहीं, आप जाओ और अपनी दीदी के साथ खेलो|

मैंने आयुष का ध्यान भंग करते हुए कहा और नेहा को अपने भाई के साथ खेलने जाने को इशारा किया| नेहा ने आयुष का हाथ पकड़ा और उसे खेलने के लिए अंदर ले गई, दोनों बच्चों के जाने के बाद हॉल में सन्नाटा छा गया| मैं और भौजी ख़ामोशी से खड़े थे, भौजी की नजर मुझ पर थी और मेरी उस कमरे के दरवाजे पर जहाँ बच्चे खेल रहे थे| मेरा दिल बच्चों के पास जाना चाहता था, उनके साथ खेलना चाहता था, उनसे जी भर कर बातें करना चाहता था लेकिन भौजी की वजह से मैं अंदर नहीं जा पा रहा था! मुझे ख़ामोशी से दरवाजे को देखता हुआ देख भौजी फिर रो पड़ीं, मेरा आयुष को खुद से दूर रखना भौजी के दिल को चीर गया था|

भौजी के रोने की आवाज सुन मैंने उन्हें देखा तो एक पल को मेरा दिल पसीज गया, लेकिन खुद को पत्थर के समान कठोर कर मैं अपनी जगह खड़ा रहा और उन्हें संभालने के लिए अपने कँधे का सहारा तक नहीं दिया! 'क्यों दूँ मैं उनको सहारा, जब मैं रो रहा था तब मुझे सहारा देने वो आईं थीं यहाँ? नहीं! तब तो मुझे तड़प-तड़प कर मरने के लिए छोड़ दिया था, तो अब आपकी बारी है और महसूस करो की तड़प क्या होती है?' मेरा गुस्से से भरा दिमाग बोला| लेकिन मन ससुरा पिघलने लगा था वो भौजी की तरफ बहने लगा था, तभी दिमाग ने उसे भौजी द्वारा किये गए धोके को याद दिलाया और जुबान से जहर में लिब्डे, कड़वे शब्द बाहर आये;

मैं: क्यों जबरदस्ती के रिश्ते बाँध रहे हो?

ये सुन भौजी के दिल में बसा मेरा प्यार गुस्से के रूप में बाहर आया, उन्होंने अपने आँसूँ पोछे और बोलीं;

भौजी: जबरदस्ती के? वो आपका बेटा है, आपका अपना खून है!

भौजी का यूँ मुझ पर अधिकार जताना मुझे गुस्सा दिला रहा था इसलिए मैंने उन्हें ताना मारते हुए कहा;

मैं: Thanks बताने के लिए!

मेरा ताना सुन भौजी रोते हुए मेरी मिन्नत करने लगीं;

भौजी: प्लीज...प्लीज.....एक बार मेरी बात सुन लो!.. ...प्लीज...प्लीज....!

भौजी ने मेरे सामने हाथ जोड़ दिए|

मैं: चाहूँ तो मैं अभी जा सकता हूँ और आप अच्छे से जानते हो की मैं कभी नहीं लौटूँगा! जो सफाई आप मुझे देना चाहते हो वो आपके अंदर ही दब कर रह जाएगी, मगर मैं आपकी तरह नहीं हूँ, आपने तो उस दिन मुझे अपनी बात कहने का मौका नहीं दिया था लेकिन मैं जर्रूर दूँगा! बोलो क्या बोलना है आपको?

ये कहते हुए मैं हाथ बाँधे खड़ा हो गया, मुझे भी जानना था की भौजी को क्या बहाना मारना है?!

भौजी: मैंने कभी आपका कोई इस्तेमाल नहीं किया, मेरे मन में कभी भी ऐसा ख्याल नहीं आया की मैं आपको USE कर रही हूँ| मैं ने आपसे आजतक सच्चे दिल से प्यार किया है और ताउम्र आपसे प्यार करती रहूँगी! आप ही के कारन तो मुझे इस परिवार में वो इज्जत मिली, वो प्यार वापस मिला जो नेहा के पैदा होने के बाद मुझसे छीन लिया गया था| सिर्फ मैं ही नहीं नेहा को भी थोड़ा-बहुत जो प्यार अपनी दादी और दादा (बड़की अम्मा और बड़के दादा) से मिला वो भी सिर्फ आप ही के कारन मिला! आपके दिल्ली लौट आने के बाद हम रोज फ़ोन पर बातें करते थे, मेरे माता-पिता ने इसको ले कर मुझसे सवाल पूछने शुरू कर दिए थे! हमारा प्यार उन्हें खटक रहा था और मेरे लिए उन्हें जवाब दे पाना मुश्किल हो रहा था! मुझे लगा की लोगों का यूँ हम पर ऊँगली उठाना आपके और मेरे लिए अच्छी बात नहीं! मुझे ये भी एहसास होने लगा की मैं इस तरह रोज-रोज आपसे फ़ोन पर बात कर के आपका समय बर्बाद कर रही हूँ, जिस कारन आप पढ़ाई के प्रति लापरवाह हो रहे हो! इन्हीं सब कारणों से मैंने खुद को आपसे दूर किया ताकि आप अच्छे से पढ़ाई में अपना मन लगा सको!

भौजी की बात खत्म होते ही मैं उन पर गुस्से से बरस पड़ा;

मैं: Oh please! Don't gimme that bullshit story again! असली बात ये है की आपसे अपने माँ-पिताजी को जवाब देते नहीं बन रहा था की आप क्यों मुझसे रोज बात करते हो?!

ये सुन भौजी का सर शर्म से झुक गया|

मैं: क्या मैंने कभी आपसे कहा की मैं पढ़ाई में ध्यान नहीं दे पा रहा? भूल गए class test में मेरे कितने अच्छे नंबर आये थे? आपके साथ डेढ़ महीना बिताने के बाद सिर्फ 15 दिन....FUCKING 15 दिन में मैंने अपना सारा holiday homework खत्म कर दिया था! What else you wanted me to do? You knew everything.... FUCKING EVERYTHING BUT आपको वो सब याद थोड़े ही था?

मैं गरजते हुए भौजी से बोला|

मैं: जानते हो मैं पढ़ाई में क्यों अच्छा था, क्योंकि आप मेरी प्रेरणा (Inspiration) थे! मैं जानता था की अगर मैं पढ़ाई को ले कर कोई ढिलाई बरतूँगा तो आपका दिल दुखेगा इसलिए मैं आपको शिकायत का कोई मौका नहीं देना चाहता था| क्या फायदा हुआ इतनी क़ुरबानी दे कर, क्योंकि आप की वजह से पढ़ाई में मेरे नंबर बढ़ने के बजाए घटने लगे! एक घंटा...बस दिन में एक घंटा आप से बात करता था न, वो एक घंटा आप कहीं छुप कर मुझसे बात नहीं कर सकते थे? इसके सिवा मैंने आपसे कभी कुछ माँगा था?

मैंने भौजी को झिंझोड़ते हुए सवाल पुछा|

मैं: What if I've committed suicide over our last telephonic conversation? Would you ever be able to forgive yourself?

ये सुन भौजी को जोरदार झटका लगा और वो गिड़गिड़ाते हुए मुझसे बोलीं;

भौजी: प्लीज...प्लीज...ऐसा मत कहिये, आपको कुछ हो जाता तो मैं भी अपनी जान दे देती! मैं मानती हूँ की गलती मेरी थी, मुझे फैसला लेने से पहले आपको पूछना चाहिए था? मैंने बहुत बड़ी गलती की है...Punish Me!

भौजी रोते हुए बोलीं| उनका यूँ सजा की माँग करना सुन मुझे और गुस्सा आने लगा;

मैं: Punish you? You gotta be kidding me! क्या ये इतनी छोटी गलती है की मैं आपको उठक-बैठक करने की सजा दूँ और बात खत्म! आपने....You ruined everything.everything!

मैंने अपने दाँत पीसते हुए खुद को गाली देने से रोकते हुए कहा|

भौजी ग्लानि से बेहाल थीं, वो मेरे सामने अपने घुटनों पर गिर गईं और बिलख-बिलख कर रोने लगीं तथा मेरा बायाँ पाँव अपने दोनों हाथों से कस कर पकड़ लिया| उन्हें यूँ अपने सामने बिखरा हुआ देख मेरा सब्र टूटने लगा| मैंने भौजी से बहुत प्यार किया था और शायद अब भी करता हूँ, फिर मुझे मेरी प्यारी बेटी नेहा मिल गई थी, उसे पा कर मैं तृप्त था इसलिए मैंने भौजी की पकड़ से अपनी टाँग निकाली और तीन कदम पीछे जाते हुए बोला;

मैं: Despite everything you did to me... I forgive you! This is the least I can do!

मैंने भौजी को माफ़ कर दिया लेकिन उन्होंने जो मेरे साथ किया उसे कभी भूल नहीं सकता था| मैंने भौजी से आगे कुछ नहीं कहा और वहाँ से घर लौट आया|

[color=rgb(255,]जारी रहेगा भाग - 5 में....[/color]
 
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