Hindi Antarvasna एक अनोखा बंधन - पुन: प्रारंभ


[color=rgb(44,]तेईसवाँ अध्याय: अभिलाषित प्रेम बन्धन[/color]
[color=rgb(251,]भाग - 9 [/color]


[color=rgb(255,]अब तक आपने पढ़ा:[/color]

10 मिनट की मेहनत के बाद मैं भौजी के घर पहुँच ही गया, चौखट से कन्धा टिकाये मैंने भौजी के घर की घंटी बजाई| भौजी दरवाजे के पास ही बैठीं थीं इसलिए उन्होंने फटाफट दरवाजा खोला, जैसे ही भौजी ने नशे में झूमता हुआ देखा वो जान गईं की मैंने पी रखी है!

वहीं भौजी को देखते ही दिषु के द्वारा पिलाई ड्रग का असली असर सामने आया! मेरे पूरे जिस्म में चीटियाँ काटने लगीं, खून का बहाव पूरे शरीर में इतना तेज हो गया की मेरे जिस्म के अब तक के शांत पड़े 'उस' हिस्से में हलचल होने लगी! भौजी को यूँ देख कर 'वासना' मेरे ऊपर हावी हो गई थी! कुछ पल के लिए मैंने सोचने समझने की शक्ति खो दी थी, मुझे बस भौजी के रूप में एक औरत दिख रही थी जिसे भोगने की मुझ में तीव्र इच्छा पैदा हो चुकी थी! ऐसी इच्छा जिसने मुझे बहका दिया था और मैं आज वो करने वाला था जो मुझे नहीं करना चाहिए था!

[color=rgb(97,]अब आगे:[/color]

आज बरसों बाद भौजी और मेरी मिलान की रात थी इसलिए भौजी बन सवंर कर तैयार खड़ीं थीं| उन्हें यूँ देख मेरी आँखों में लाल डोरे तैरने लगे थे, वो तो जिस्म साथ नहीं दे रहा था वरना मैं उन्हें जर्रूर दबोच लेता!

भौजी: अपने शराब पी है?

भौजी ने उदास होते हुए सवाल पुछा| उनके सवाल को सुन कर अचानक जैसे दिमाग को झटका लगा और मुझे भौजी के सुहागरात वाली बात याद आ गई, नशे में धुत्त चन्दर ने उनके साथ जो सलूक किया था वो मैं कभी नहीं कर सकता था! भौजी के इस एक सवाल ने जैसे वासना की आग पर पानी डाल दिया था, मन खट्टा हो गया था और मन में ग्लानि भरने लगी थी की भला मेरे मन में उन्हें दबोचने का गंदा ख्याल आया भी क्यों?! शाम को जो मैंने भौजी की तुलना संगेमरमर की मूरत से की थी वही तुलना फिर याद आने लगी! यकायक मुझे लगने लगा था की मुझे शराब पी कर यहाँ नहीं आना चाहिए था!

मैं: अह्ह्ह...हम्म्म्म....!

मैंने भौजी से नजरें चुराते हुए कहा| भौजी दरवाजे पर से हट गईं और मुझे अंदर बुलाया|

मैं: I...am....sorry!

मैं सर झुका कर अंदर आया, सामने कुर्सी पड़ी थी जिस पर मैं बैठने चाहता था मगर सर घूम रहा था इसलिए मैं पैर फैला कर लुढक गया|

भौजी: अंदर चल के लेट जाओ|

भौजी ने उदास मन से कहा, मेरे शराब पी कर घर आने से उनका दिल टूट गया था! आज हमारी पुनः मिलन की रात थी, इसलिए भौजी ने दोनों बच्चों को दूसरे कमरे में पहले ही सुला दिया था| कुर्सी पर बैठने के बाद मुझे याद आया की नेहा के मिलने के बाद पीना छोड़ने की सोची थी! ये मेरे लिए ग्लानि का दूसरा झटका था!

मैं: नहीं...बच्चे ...मुझे ऐसे...नहीं... देखें ....

मैंने खुसफुसा कर कहा ताकि कहीं बच्चे न जाग जाएँ! मैं किसी तरह उठ के खड़ा हुआ, 2 बार अपनी आँखें कस कर बंद और खोलीं ताकि मुझे ठीक से दिखाई देने लगे, सामने दिवार पर वॉशबेसिन लगा था| मैं धीरे-धीरे कदमों से उसकी ओर बढ़ा, भौजी ने मुझे सहारा देना चाहा तो मैंने अपना हाथ दिखा कर उन्हें रोक दिया| नल खोल कर मैंने खूबसारा पानी अपने चेहरे पर मारा जिससे मुझे कुछ-कुछ नजर आने लगा| बिना पानी पोछे मैं बाहर जाने के लिए दरवाजे की ओर एक कदम चला हूँगा की भौजी ने पीछे से सवाल पुछा;

भौजी: कहाँ जा रहे हो आप?

मैं: घर|

मैंने संक्षेप में जवाब दिया|

भौजी: पर ऐसी हालत में घर जाओगे तो पिताजी...

भौजी ने अपनी बात अधूरी छोड़ दी| वो मुझे पिताजी के गुस्से के बारे में आगाह करना चाह रहीं थीं|

मैं: जानता हूँ...गलती की है तो....

मैं जानता था की ऐसी हालत में देख कर पिताजी सबसे पहले तो खींच कर तमाचा मारेंगे, फिर पेट भर कर गालियाँ देंगे| मैं ये सब भुगतने को तैयार था उसका कारन था की मुझे खुद पर भरोसा नहीं था| मुझे लग रहा था की मैं नशे में जर्रूर भौजी से कोई बदसलूकी करूँगा, कुछ देर पहले जो sex की आग भड़की थी वो मुझे कहीं भौजी के साथ जबरदस्ती न करने पर मजबूर कर दे, बस इसी कारन से मैं किसी भी हालत में भौजी के घर से निकलना चाहता था|

भौजी: मैं साथ चलती हूँ|

भौजी ने आगे बढ़ते हुए कहा|

मैं: नहीं...आप यहीं रहो ...

मैं भौजी को अपने साथ नहीं ले जाना चाहता था क्योंकि फिर वो वापस कैसे आतीं? दूसरा बच्चे घर पर अकेले होते और अगर वो उठ जाते तो घर पर अकेले होने से डर जाते तथा रोने लगते|

भौजी को मना कर मैं दो कदम चला हूँगा की मुझे लगा दरवाजा आ चूका है, मैंने सोचा की उसका सहारा ले कर थोड़ा खड़ा हो जाता हूँ, मगर मेरा अंदाजा गलत निकला और मैं लड़खड़ा कर गिर पड़ा| ये तो शुक्र था की ज्यादा चोट नहीं आई वरना भौजी के लिए मुझे सँभालना मुश्किल हो जाता| भौजी मुझे उठाने को आगे आईं पर मैंने उन्हें फिर रोक दिया और किसी तरह खुद को थोड़ा बहुत सँभालते हुए खड़ा हुआ| मेरे इस तरह लड़खड़ाने से भौजी घबरा गईं थीं, अगर मैं रास्ते में इसी तरह कहीं गिर गया तो क्या होगा? यही सोच कर उन्होंने मुझे रोकते हुए बड़ी सख्ती से कहा;

भौजी: आप कहीं नहीं जा रहे, चलो अंदर चल कर लेट जाओ|

मैं: नहीं...माँ...पिताजी.....चिंता.....कर....

मैंने हिलते-डुलते हुए कहा|

भौजी: नहीं! मैं आपको कहीं नहीं जाने दूँगी, चलो अंदर लेट जाओ|

भौजी ने टीचर की तरह डाँटते हुए कहा| भौजी की डाँट सुन कर मैं किसी बच्चे की तरह घबरा गया और मुँह बना कर उन्हें देखने लगा| मेरे इस तरह बच्चा बन कर मुँह बनाने से भौजी मुस्कुराने लगीं, उन्होंने मुझे अपने कँधे का सहारा दिया और अपने कमरे में लाईं|

मैं जानता था की मैं इस हालत में घर नहीं जा सकता, तो रात यहीं गुजारने के अलावा मेरे पास अब कोई चारा भी नहीं था| नरम-नरम गद्दे पर मैं पैर फैला कर लेट गया, आँखें बंद किये जूते उतारने के लिए मैंने अपने दोनों पैरों को आपस में रगड़ना शुरू कर दिया| भौजी मुस्कुराते हुए मुझे यूँ जूते उतारते हुए झूझता हुआ देख रहीं थीं, मिनट भर की कोशिश के बाद मैंने अपने दोनों पाओं की एड़ियों को बारी-बारी से रगड़ कर जूते उतार लिए थे| जूते उतरे और मैंने अपने पाँव ठीक से फैलाये, कुछ देर पहले जो ड्रग्स के कारन तरंगे उठ रहीं थीं वो एक बार फिर उठने लगीं थी| एक बार फिर मेरा जिस्म काम वासना के कारन उत्तेजित होने लगा था, मन कर रहा था की भौजी को कस कर अपनी बाहों में दबोच लूँ! 'ये मुझे क्या हो रहा है?' मैं मन ही मन बड़बड़ाया| मेरे दिमाग और मेरे जिस्म में वासना को ले कर लड़ाई छिड़ चुकी थी| जिस्म बस sex चाहता था और दिमाग ये पाप करने से जिस्म को बगावत करने से रोक रहा था! परिस्थिति ऐसी थी मानो दिमाग का जिस्म पर कोई काबू ही न हो, जिस्म को काबू करने के लिए दिमाग ने ध्यान भटकाते हुए जुबान को कहने को कुछ शब्द दिए;

मैं: माँ...पिताजी....फोन....कर दो!

मैं आँखें बंद किये हुए बड़बड़ाया|

भौजी: हाँ मैं अभी फोन करती हूँ|

भौजी पिताजी को फ़ोन करने लगीं|

दिमाग का मुझे डराने का ये तर्क ज्यादा चल नहीं पाया, मेरे जिस्म में वासना की आग और भड़कने लगी थी| जितना ही मैं उस आग को दबाना चाहता था वो आग उतनी ही धधकती थी| खुद को रोकने का बस एक ही तरीका था की मैं सो जाऊँ! मैंने अपने दिमाग को हल्का छोड़ दिया, जब दिमाग ने sex के बारे में सोचना बंद किया तो दिमाग थोड़ा शांत होने लगा, रही-सही जो कसर थी वो शराब के नशे ने पूरी कर दी थी, नशे ने मेरी आँखें भारी कर दी थी जिससे मैं सोने लगा| आँखें बंद किये हुए मैंने आधी नींद में भौजी की पिताजी से बात करते हुए आवाज सुनी मगर मैं ये नहीं समझ पाया की उन्होंने पिताजी से कहा क्या? नशे के कारन मुझ में ताक़त नहीं थी की मैं उठ के बैठूँ और सुनूँ की भौजी क्या बात कर रहीं हैं| पिताजी से बात कर के भौजी ने बाहर का दरवाजा बंद किया, अंदर कमरे की लाइट बुझाई और मेरी बगल में लेट गईं| कहाँ तो आज की रात हम एक दूसरे के पहलु में प्यार करते हुए गुजारने वाले थे और कहाँ बेचारी भौजी प्यासी मन मार कर सो रहीं थीं!

करीब आधे-एक घंटे बाद मेरा नशा कुछ कम हुआ, मुझे बड़ी जोर से मूत लगा था इसलिए मुझे मूतने उठना पड़ा| कमरे में एक जीरो वाट का बल्ब जल रहा था, मैं उठ कर बैठा तो भौजी मुझे बगल में सोती हुई नजर आईं| भौजी उस वक़्त मेरी तरफ करवट ले कर लेटीं थीं, इस तरह सोने पर मुझे उनके जिस्म के सारे कटाव साफ़ दिख रहे थे| उन्हें इस तरह सोता हुआ देख कर वासना फिर भड़क उठी, मेरा दिल भौजी को छूने के लिए मचलने लगा! होंठ भौजी के जिस्म को चूमने के लिए थरथराने लगाने! हथेलियाँ भौजी के जिस्म को मींजने के लिए कंपकंपाने लगे! वासना का जूनून मेरे दिलों-दिमाग पर काबू करने लगा था, मगर अभी तक मेरी अंतरात्मा मरी नहीं थी! 'प्यार करता है न तू? तो नशे की हालत में उन्हें छूने की सोच भी कैसे सकता है और वो भी sex करने के लिए?' अंतरात्मा की झिड़की सुन मेरा सर शर्म से झुक गया|

मैंने 2 मिनट भौजी को टकटकी बाँधे देखा और फिर हिलते-डुलते बाथरूम में घुस गया! बाथरूम कर के मैंने एक बार फिर ढेर सारा पानी अपने मुँह पर मारा ताकि मैं होश में आऊँ और यहाँ से चुप-चाप अपने घर चला जाऊँ, मगर नशा अब भी मुझे ठीक से सीधा खड़ा नहीं होने दे रहा था| पानी अपने मुँह पर मारने से मेरी वासना की आग जररू कुछ ठंडी पड़ी थी, मगर एक कमरे में, एक बिस्तर पर सोते हुए मैं कुछ काण्ड अवश्य कर सकता था| हालाँकि ये मेरा वहम था क्योंकि नशा होने पर भी मुझ में अब भी सोचने-समझने की कुछ शक्ति बची थी| बाथरूम से बाहर आकर मेरी नजर फिर से सोती हुई भौजी पर पड़ी, लेकिन इससे पहले वासना की आग फिर से भड़के मैं दिवार का सहारा लेते हुए कमरे से बाहर आ गया|

भौजी का घर 3 BHK था, जहाँ मैं पहले लेटा था वो उनका बैडरूम था, दूसरे कमरे में दोनों बच्चे सो रहे थे और तीसरा कमरे में बस कबाड़ भरा पड़ा था| उस कमरे में एक चरमराता हुआ सिंगल बेड बिछा हुआ था, जिसपर चादर तक नहीं थी| अपनी वासना को रोकने के लिए मुझे इसी बेड पर रात बितानी थी, मैंने कमरे की लाइट जलाई, दरवाजा चिपका कर बंद किया और धीरे-धीरे सहारा लेते-लेते बेड पर लेट गया| अब केवल अलग कमरे में सोने से वासना खत्म हो सकती तो बात ही क्या थी? मेरे जिस्म को दूसरे कमरे में लेटीं भौजी के जिस्म की गर्मी अब भी महसूस हो रही थी, बार-बात मन कर रहा था की मैं भौजी के पास ही लेट जाऊँ! वासना के वशीभूत जिस्म अलग-अलग तरह के तर्क दे रहा था, कभी कहता की सिर्फ एक साथ लेटने से थोड़े ही कुछ होगा? तो कभी कहता की एक बार छू लेने से कुछ नहीं होगा!

आज जिंदगी में पहलीबार मेरी मदद उस एक बुरी आदत ने की जिसके लिए पिताजी हमेशा डाँटते थे, वो आदत थी; 'आलस'! जिस्म को भले ही sex की भूख लगी थी पर उसके लिए उठना पड़ता, लेकिन मेरी सुस्ती मुझे उठने नहीं दे रही थी! मेरी सुस्ती के जवाब में मेरे लिंग ने मुझे सताना शुरू कर दिया, वो ससुर एकदम से अकड़ कर 90 डिग्री का कोण बना कर खड़ा हो गया| शुरू के 5-10 मिनट तो मुझे कुछ फर्क नहीं पड़ा, मगर उसके बाद मेरे सख्त लिंग के करण मुझे पीड़ा होने लगी! वासना की गर्मी प्रगाढ़ रूप ले रही थी और वो गर्मी अब जिस्म से बाहर आने लगी थी, अजीब सी बेचैनी सर पर सवार हो गई जिसके चलते मैंने बिस्तर पर करवटें बदलनी शुरू कर दी| जिस्म उठ कर भौजी के पास जाना चाहता था मगर आलस मुझे उठने नहीं दे रहा था| 'काश वो खुद यहाँ आ जाएँ!' वासना का मारा मेरा मन बोला| वो तो मेरी किस्मत अच्छी थी जो भौजी वहाँ नहीं आईं वरना मैं खुद को कतई नहीं रोक पाता और वो कर बैठता जिसके लिए मैं खुद को आजीवन दोषी मानता रहता|

खैर वासना का असर मेरे जिस्म पर पूरे शबाब पर था, मेरे पसीने छूटने लगे थे, लिंग में आये तनाव के कारन लिंग लगभग फटने की कगार पर था, ऐसा लग रहा था जैसे पूरे जिस्म में चीटियाँ काट रहीं हों! 'ठीक है...वो न सही...कम से कम मुठ तो तू मार ही सकता है?' मन तर्क करते हुए बोला| लेकिन नशे की हालत में मैं मुठ कैसे मारता? अगर मैं हस्तमैथुन करने के लिए उठ जाता तो मेरे कदम मुझे सीधा भौजी के पास ले जाते, बस इसी डर से मैं आलस करके उठा ही नहीं! उस पल मेरे मन ने मेरे आलसी होने पर पेट भर कर गालियाँ दी, अब जब वो पल याद करता हूँ तो बहुत हँसी आती है!

वो तो मेरी किस्मत अच्छी थी जो घंटे भर तक वासना की आग में जलने के बाद भी मैं ये (सम्भोग) दुष्कर्म करने से बच गया तथा किसी तरह सो गया और सोया भी ऐसा की मुझे कोई सुध ही नहीं रही!

सुबह 10 बजे सर दर्द के कारन मैं उठा, जब उठ कर बैठा तो खुद को स्टोर रूम में देख कर हैरान हुआ? थोड़ा दिमाग पर जोर डाला तो कल रात दारु पी कर भौजी के घर आने की बात याद आई लेकिन उसके आगे की कोई भी बात याद नहीं थी! मुझे जगा देख कर भौजी कमरे में आईं, मैं उस समय अपना सर पकडे बैठा था तो भौजी समझ गईं की मुझे सर दर्द हो रहा है;

भौजी: चाय-कॉफ़ी लोगे?

भौजी की आवाज में चिंता झलक रही थी|

मैं: हाँ... ब्लैक कॉफ़ी!

मैंने बिना भौजी से नजरें मिलाये कहा|

भौजी: अभी लाई|

वैसे तो खाना-पीना सब मेरे घर पर होता था, भौजी के घर पर एक हीटर था जिस पर वो पानी वगेराह उबाल लिया करतीं थीं, उसी हीटर पर भौजी ने मेरे लिए ब्लैक कॉफ़ी बनाई| कुछ देर बाद भौजी कॉफ़ी ले के लौटीं, अगले दो मिनट तक हमारे बीच कोई बात नहीं हुई| मुझे ये ख़ामोशी दुःख रही थी इसलिए मैंने ही भौजी से बात शुरू करते हुए पुछा;

मैं: बच्चे स्कूल चले गए?

भौजी: हाँ जी! दोनों आपके बारे में पूछ रहे थे, मैंने कह दिया की आप साइट पर हो और दोपहर तक वापस आओगे|

भौजी के जवाब देने से मुझे कुछ तसल्ली हुई की कम से कम वो मुझसे नाराज नहीं हैं|

मैं: I hope मैंने कल रात आपसे कोई बदतमीजी नहीं की!

मैंने कॉफ़ी खत्म करते हुए कहा|

भौजी: उसके बारे में बाद में बात करते हैं, अभी आप घर चलो!

भौजी का ये सूखा जवाब सुन मैं सोच में पड़ गया की वो मुझसे नाराज हैं भी या नहीं?!

हम दोनों मेरे घर के लिए निकले, रास्ते में भौजी ने मुझे रात को उनकी और पिताजी की बात बताई;

भौजी: कल रात आपके फ़ोन न उठाने से पिताजी बहुत चिंतित थे, मैंने जब उन्हें ये बताया की आप यहाँ मेरे घर में हो तो उन्होंने आपसे बात कराने को कहा| आप होश में नहीं थे और बात नहीं कर सकते थे इसलिए मुझे पिताजी को सब सच बताना पड़ा| मेरी बात सुन कर उन्हें बहुत गुस्सा आया और वो आपको लेने घर आने वाले थे, मैंने उन्हें समझाया की आप इस हालत में नहीं हो की घर जा सको| फिर आपको इस हालत में मोहल्ले वालों ने देख लिया तो पिताजी की बहुत बदनामी होगी, इसलिए सुबह जब आप उठोगे तो मैं आपको ले कर घर आऊँगी| सुबह से अभी तक पिताजी और माँ आपके बारे में 10 बार पूछ चुके हैं, मैं उन्हें यही कह देती थी की आप अभी सो रहे हो|

भौजी की बात सुन कर मैं जान गया था की आज तो पिताजी मार-मार कर घर से निकाल देंगे!

खैर हम दोनों घर पहुँचे, घर में घुसते ही सबसे पहले मुझे माँ का गुस्से से तमतमाया हुआ चेहरा दिखाई दिया, माँ का गुस्सा देख मैं समझ गया की आज पिताजी नहीं बल्कि माँ ही मुझे कूटेंगी! पिताजी डाइनिंग टेबल पर बैठे अखबार पढ़ रहे थे और उन्होंने मुझे अभी तक देखा नहीं था| शुरू से ही मेरी कोशिश रही है की डाँट/मार पहले खा ली जाए ताकि इसकी tension में सारा दिन कुढ़ता हुआ न बीते, इसलिए मैं जा कर डाइनिंग टेबल पर बैठ गया और फिर से अपना सर पकड़ लिया| मेरे बैठने से जो हलचल हुई उससे पिताजी का ध्यान अखबार से हट गया, जैसे ही पिताजी की नजर मुझ पर पड़ी वो झललाते हुए बोले;

पिताजी: उतर गई तेरी रात की या अभी बाकी है? मँगाऊँ तेरे लिए और शराब?

ये पिताजी का पहला आक्रमण था, जिसने मुझे हिला डाला था| पिताजी की झाड़ सुन कर मुझे मेरी गलती का एहसास हो रहा था, मुझे अपने किये पर बहुत बुरा लग रहा था और मैं अपने किये पर काफी लज्जित महसूस कर रहा था|

इतने में चन्दर आ गया और मेरे सामने बैठ गया| कल रात जब मैंने पिताजी का फ़ोन नहीं उठाया तो उन्होंने चन्दर को फ़ोन कर के मेरे बारे में पुछा था, जाहिर था की पिताजी ने उसे सब बता दिया होगा की मैं रात भर कहाँ था, अब चूँकि चन्दर मेरे पीने के बारे में जान गया था तो उसे लेने थे मेरे मजे;

चन्दर भैया: मानु भैया काहे इतना पीयत हो?

चन्दर मुझे छेड़ते हुए बोला|

मैं: वो...कल...पहलीबार था..... इसलिए होश नहीं रहा| Sorry पिताजी!

मैंने सर झुका कर पिताजी की ओर मुँह किये हुए कहा|

पिताजी: भाड़ में गया तेरा "sorry"! तू तो कह के गया था की दिषु को पार्टी देने जा रहा है, यही थी तेरी पार्टी, शराब पीना और नशे में धुत्त हो कर घर आना?

पिताजी ने गुस्से में झाड़ते हुए सवाल पूछा| अब अगर सच बोलता की पार्टी का मतलब होता था पीना तो पिताजी जूते से मारते, इसलिए बेहतरी इसी में थी की मैं झूठ बोलूँ!

मैं: जी...दिषु और मैंने कभी पी नहीं थी...हमने सोचा की एक बार....इसलिए अचानक plan बन गया...

मैंने डर के मारे आधी-अधूरी बात कही| पिताजी की झाड़ सुन कर मैं इतना घबराया हुआ था की ठीक से झूठ नहीं बोल पा रहा था, जो मैंने आधी-अधूरी 'एक बार पीने' की बात कही उसे सुन कर पिताजी का गुस्सा चरम पर पहुँच गया;

पिताजी: तेरी हिम्मत कैसे हुई शराब पीने की?

पिताजी गरजते हुए बोले|

मैं: Sorry पिताजी! मैंने बस एक ग्लास बियर ली थी| वहाँ पहले से किसी की पार्टी चल रही थी और हम दोनों की drinks बदल गई!

मैंने बेसर-पैर की सफाई दी जिसे सुन कर पिताजी खा जाने वाली आँखों से मुझे देखने लगे! मुझे मेरी बेसर-पैर की बात का एहसास हुआ तो मैंने एक बार फिर माफ़ी माँगते हुए बात खत्म करनी चाहि;

मैं: माफ़ कर दीजिये पिताजी, वादा करता हूँ आगे से फिर कभी ऐसा नहीं करूँगा!

लेकिन मेरी माफ़ी माँगने का कोई फायदा नहीं होना था क्योंकि पिताजी ने मेरी drinks बदल जाने की बात पकड़ ली थी;

पिताजी: कहाँ गया था तू?

पिताजी ने गरजते हुए पुछा|

मैं: जी...जी....याद नहीं!

पहले तो मैं उस जगह का नाम लेने वाला था, फिर लगा की अगर पिताजी ने वहाँ जा कर तहकीकात की तो मेरा झूठ पकड़ा जायेगा, इसलिए मैंने जूठ बोलने में ही अपनी भलाई समझी| वैसे भी कल रात भौजी के घर जाने के बाद की मेरी याददाश्त धुँधली थी, तो एक तरह से देखा जाए तो मैं आधा ही झूठ बोल रहा था! मेरे इस आधे झूठ से दिषु भी बच जाता वरना उस ससुरे की भी शामत थी!

माँ जो इतनी देर से गुस्से में भरी चाय बनाते हुए मेरी बातें सुन रहीं थीं उन्होंने भी अपना गुस्सा मुझ पर निकालते हुए चाय का गिलास टेबल पर दे पटका और बोलीं;

माँ: ये ले चाय, तेरा सर दर्द ठीक होगा!

माँ का गुस्सा देख पिताजी को मुझे और डाँटने का मौका मिल गया क्योंकि एक माँ ही तो थीं जो हमेशा मुझे पिताजी के गुस्से से बचा लेतीं थीं, अब जब वो भी मुझसे नाराज हैं तो पिताजी को आज मेरी क्लास लेने से कोई रोकने वाला नहीं था|

पिताजी: पता नहीं? कैसे पता नहीं? तुझे इतना भी होश नहीं की तू गया कहाँ था? दिषु को तो पता होगा न?

पिताजी गुस्से में बोले और दिषु को फ़ोन करने वाले हुए थे| दिषु मेरे बनाये झूठ के बारे में नहीं जानता था, अगर पिताजी उससे बात करते तो वो साला पता नहीं क्या कहता और फिर हम दोनों की तुड़ाई होती!

मैं: जी नहीं......उसे भी नहीं याद...मैंने बताया न वहाँ पार्टी चल रही थी और हमारी drinks उन लोगों के साथ बदल गईं, इसलिए हमारी ये हालत हुई!

मैंने पिताजी को रोकते हुए अपना झूठ फिर दोहराया|

पिताजी: अगर आज के बाद फिर कभी तूने शराब पी, तो मैं तेरी टाँगें तोड़ दूँगा! और दिषु...उसके घर वालों से मैं आज बात करता हूँ, कल रात से उसके (दिषु के) पापा पचास बार फोन कर चुके हैं! तेरी भौजी ने जब बताया की तूने पी है तब मैंने दिषु के पापा को बताया की तुम दोनों ने शराब पी रखी थी और दिषु शायद अपने किसी दोस्त के घर रुका हुआ है| दस बजने आये हैं और उस लड़के का अभी तक कोई अत-पता नहीं! पी कर घर आने में इतनी ही शर्म आती है तो तुम दोनों पीते ही क्यों हो?

पिताजी ने आखरीबार झिड़कते हुए कहा|

मैं और दिषु इतनी आसानी से छूटने वाले नहीं थे, मुझे कैसे भी कर के दिषु को फ़ोन कर के अपना झूठ बताना था वरना उस साले की वजह से हम दोनों बहुत बुरा फँसते!

मैं: Sorry पिताजी वादा करता हूँ की आज के बाद मैं कभी नहीं पीऊँगा|

मैंने बात खत्म करते हुए सर झुका कर कहा| पिताजी आगे कुछ नहीं बोले बस चन्दर के साथ काम पर निकल गए| मैंने चाय पी और चुपचाप उठ कर अपने कमरे में आ गया, मैंने दिषु को फ़ोन मिलाया तो उसका फ़ोन अब भी बंद था| मैं जल्दी से नहाया और तैयार हो कर फिर से दिषु का नंबर मिलाने लगा, उसका फ़ोन बंद आ रहा था इसलिए मैंने उसे sms कर दिया की वो फ़ोन on करते ही सबसे पहले मुझसे बात करे|

2 मिनट बाद भौजी आईं, सुबह-सुबह मेरे पिताजी से डाँट खाने के कारन उनके चेहरे पर उदासी झलक रही थी|

भौजी: आपने रात को कुछ खाया था?

मैं: नहीं!

मैंने सर झुकाये हुए कहा| भौजी ने बड़े दिल से रात को हमारे मिलन का plan बनाया था और मैंने शराब पी कर उस प्लान को खराब कर दिया था, इसी कारन मुझे बहुत बुरा लग रहा था|

भौजी: मैं अभी कुछ खाने को लाती हूँ|

इतना कह भौजी मेरे लिए नाश्ता बनाने चली गईं| उनके जाने के 5 मिनट बाद दिषु का फोन आ गया, मैंने कमरे का दरवाजा चिपकाया और दूर कोने में जा कर दिषु का फ़ोन उठाया;

दिषु: हेल्लो?

दिषु का हेल्लो सुनते ही मैंने अपनी गालियों का पिटारा खोल दिया;

मैं: साले, कुत्ते, कमीने, बहनचोद, भोसड़ीवाले...कल रात तूने drink में क्या डाला था?

मेरे इस तरह गालियाँ देने से दिषु को जोरदार हँसी आ गई और वो हँसते हुए बोला;

दिषु: क्यों आया न मजा रात को भाभी के साथ?

उसकी बात सुन मेरे होश उड़ गए!

मैं: क्या बकवास कर रहा है तू?

मैंने गुस्से से पुछा|

दिषु: अबे you didn't had sex with your bhabhi?

ये सुन कर मेरी आँखें फटी की फटी रह गईं| नशे में भौजी के साथ sex करने की बात मैं कभी सोच भी नहीं सकता था!

मैं: ओ भोसड़ीवाले! क्या कह रहा है तू? क्या मिलाया था तूने?

मैंने दिषु को डाँटते हुए पुछा|

दिषु: Aphrodisiac ....या फिर....Ecstasy....नाम तो याद नहीं...मगर बारटेंडर कह रहा था की बड़ी मस्त 'चीज' (drug) है! जहाँ हम गए थे वहाँ pub के बाहर बड़ा hi-fi माल (रंडी) मिलता था, तभी तो तुझे वहाँ ले कर गया था! तेरे जाने के बाद मैं फिर अंदर गया और bartender से एक-दो लड़कियों के नंबर भी लिए| बहनचोद 4,000/- लिए दोनों ने, मैं और मेरे ओफिस colleague ने खूब बजाई! काश तू होता तो तू भी मजा ले लेता, लेकिन भाई तेरे पास तो भाभी जी थीं ही, तो तूने तो उनके साथ बर्थडे मनाया ही होगा?!

दिषु की बात सुन कर मैं सन्न था| दिषु ने जो sexual drug मुझे दी थी उसके नशे में मैंने जर्रूर भौजी के साथ जबरदस्ती की होगी, ये सोच कर मैं बहुत डर गया था!

मैं: ओ बहनचोद! मुझे कल रात का कुछ कुछ याद नहीं, बेटा अगर मैंने उनके (भौजी के) साथ कुछ किया होगा तो सच कह रहा हूँ तेरी गाँड़ लंगूर के जैसी लाल कर दूँगा!

मैंने दाँत पीसते हुए दिषु को डाँटते हुए कहा|

दिषु: अबे तू भड़क क्यों रहा है? तू साले बिना उस drug के भाभी को छूता भी नहीं, मैंने तो तेरा काम आसान कर दिया और तू साले मुझे ही डाँट रहा है?!

दिषु मेरे बदले हुए रवैये से हैरान था!

मैं: साले नशे की हालत में मैं उन्हें (भौजी को) छूने की भी नहीं सोच सकता और तेरी वजह से मैंने कल रात पता नहीं क्या किया उनके साथ! तू गया बेटा!! बहनचोद अब तो तेरी गाँड़ लाल हो के रहेगी!

मैंने उसे गुस्से से झाड़ा और फ़ोन काट दिया| दिषु की बात को सच मान कर सुबह से भौजी के चेहरे पर आई उदासी अब मुझे समझ आने लगी थी, जररु मैंने रात को नशे में भौजी के साथ sex के लिए जोर-जबरदस्ती की होगी तभी वो इस कदर उदास हैं! ये ख्याल दिमाग में आते ही मुझे खुद से घिन्न आने लगी, मैं इतना गिर सकता हूँ इसकी मैंने कल्पना भी नहीं की थी!

फ़ोन काट कर जैसे ही मैं मुड़ा मेरी नजर भौजी पर पड़ी जो प्लेट में मेरे लिए सैंडविच ले कर चुप-चाप खड़ीं थीं, उन्होंने दिषु से हुई मेरी सारी बात सुन ली थी| मैंने फ़ोन पलंग पर फेंका और तेजी से चल कर भौजी के पास आया, अपने दोनों घुटनों पर आते हुए मैंने एक साँस में उनसे माफ़ी माँगी;

मैं: जान I'm very sorry! कल रात मैंने आपके साथ बदसलूकी की, नशे की हालत में मैंने आपको छुआ, आपके साथ जोर-जबरदस्ती की! I'm very sorry, आप मुझे जो सजा देना चाहो वो मुझे मंजूर है, मुझे मार लो, काट लो, गाली दे दो, चाहे तो पुलिस कंप्लेंट कर दो लेकिन please मुझे माफ़ कर दो!!

नशे की हालत में मैंने भौजी का जो शोषण किया होगा उसे सोच कर मैं ग्लानि से इस कदर भरा था की मैं कोई भी सजा भुगतने को तैयार था, अगर भौजी मेरी जान भी ले लेतीं तो मैं उफ़ तक नहीं करता| वहीं मेरे इस तरह गिड़गिड़ाकर माफ़ी माँगने से भौजी हैरान थीं, उन्होंने नाश्ते की प्लेट टेबल पर रखी और मेरे दोनों कँधे पकड़ कर मुझे उठाते हुए बोलीं;

भौजी: जानू आपने कल रात कुछ नहीं किया!

भौजी ने मेरी आँखों में आँखें डालते हुए बड़े गर्व से कहा| भौजी की बात सुन कर मैं दंग था, हाँ मुझे इस बात की ख़ुशी जर्रूर थी की मैंने नशे में उनके साथ कोई गलत काम नहीं किया!

मैं: क्या? How's that possible? दिषु ने अभी कहा की उसने हम दोनों की drink में कोई sexual drug मिलाई थी! उस साले ने तो रात को...मतलब....

मैंने आगे कहते-कहते रुक गया क्योंकि मैं भौजी को दिषु के प्लान के बारे में नहीं बताना चाहता था|

मैं: तो मतलब मैंने आपको नहीं छुआ न?

मैंने अपनी तसल्ली के लिए एकबार फिर भौजी से पुछा|

भौजी: नहीं! पर आप drugs लेते हो?

भौजी ने मेरी drug वाली बात पकड़ ली थी और उसे बात को जान कर वो काफी चिंतित थीं|

मैं: नहीं! कल दिषु ने पहली बार ....

मैं आगे कुछ कहता उससे पहले ही भौजी बीच में बोल पड़ीं;

भौजी: सच कह रहे हो न? खाओ मेरी कसम?

भौजी ने भोयें सिकोड़ कर शक करते हुए पुछा|

मैं: आपकी कसम मैं कोई drugs नहीं लेता| कल रात पहलीबार था और आखरी भी! Thank God मैंने कल आपको नहीं छुआ, वरना कसम से मैं खुद को कभी माफ़ नहीं कर पाता|

मैंने इत्मीनान की साँस लेते हुए कहा| मेरी बात सुन भौजी के चेहरे पर गर्वपूर्ण मुस्कान आ गई;

भौजी: कल शाम आप मेरी बड़ी बड़ाई कर रहे थे की संगेमरमर की पवित्र मूरत हूँ और आपके छूने भर से अपवित्र हो जाऊँगी! कल रात नशे की हालत में आप भी मेरे साथ बहुत कुछ कर सकते थे, लेकिन आपने मुझे छुआ तक नहीं! Drugs के नशे में होते हुए भी आपने खुद को संभाले रखा, डेढ़ बजे उठके मुझे देखा मगर फिर भी आपने कोई बदसलूकी नहीं की| तो अब बताओ की कौन ज्यादा प्यार करता है और किस की पूजा की जानी चाहिए: मेरी या आपकी? मिल गया न अपने सवालों का जवाब या मैं दूँ?

भौजी ने मुस्कुराते हुए बड़े गर्व से कहा| कुछ भी कहो आज भौजी का सीना गर्व से चौड़ा हो गया था!

मैं: हाँ जी!

मैंने मुस्कुराते हुए कहा| मेरे मुस्कुरा कर जवाब देने से भौजी का दिल खिल गया और वो कस कर मेरे गले लग गईं| भौजी के गले लगने से अब मन में ग्लानि नहीं थी, मैंने ख़ुशी-ख़ुशी नाश्ता किया और भौजी को उनका ख़ास तोहफा देने ही वाला था की तभी दिषु का फ़ोन आ गया|

दिषु ने फ़ोन पर उसके घर से आई 50 missed calls की notification देख ली थी और अब उसकी फटी हुई थी!

मैंने फ़ोन उठाया और गुस्से में बोला;

मैं: बोल?!

दिषु: यार sorry....बहनचोद मेरी फटी हुई है! कल रात पापा ने तेरे घर फ़ोन किया था तो अंकल जी ने उन्हें ये नहीं कहा की मैं तेरे साथ हूँ?

दिषु घबराते हुए बोला|

मैं: अबे भोसड़ी के, उन्हें खुद नहीं पता था की तू कहाँ है, तो वो झूठ कैसे कहते? Hell I wasn't even conscious, all thanks to you!

मैंने दिषु को टॉन्ट मारते हुए कहा|

दिषु: यार आज तो मेरी चुदाई पक्की है!

दिषु का डर के मारे बुरा हाल था और मुझे उसकी रोनी सूरत की कल्पना करके हँसी आ रही थी|

मैं: सही है, कल रात तूने बजाई और आज तेरी बजेगी!!! ही..ही..ही..!

मैं हँसते हुए बोला| उस वक़्त मुझे दिषु के मजे लेने की सूझ रही थी और इस मजे लेने के चक्कर में मैं ये भी भूल गया की सामने भौजी बैठीं हैं|

दिषु: हँस ले भाई, बजी तो तेरी भी होगी?!

दिषु चिढ़ते हुए बोला|

मैं: भोसड़ी के बजी तो जर्रूर, पर शुक्र कर तुझे बचा लिया!

मैंने दिषु को मेरा बोला हुआ सारा झूठ समझा दिया| जब मैं दिषु को झूठ समझा रहा था तब भौजी चुपचाप मेरी सारी बातें सुन रही थीं, जैसे ही मैंने फोन काटा वैसे ही उन्होंने कल रात के घटनाक्रम के बारे में पुछा;

भौजी: अभी क्या कह रहे थे आप?

भौजी ने शक करते हुए सवाल किया|

मैं: दरअसल दिषु ने कल plan बनाया था की पहले हम खूब शराब पीयेंगे उसके बाद हम....वो....वहाँ....मतलब... वो मुझे उस काम के लिए ले जाना चाहता था!

मैंने शराब पीने की बात तो बेधड़क कह दी मगर दिषु के रंडी चोदने वाले पालन के बारे में कहने में संकोच कर रहा था|

भौजी: क्या? कहाँ ले जाना चाहता था?

भौजी ने भोयें सिकोड़ कर पुछा|

मैं: वो....वो जो वहाँ होती हैं न...G.B. रोड...में...उनके पास...!

मैंने शर्म से सर झुकाते हुए कहा|

भौजी: ये कौन सी जगह है? और किसके पास ले जा रहा था?

भौजी इस सब के बारे में कुछ नहीं जानती थीं इसलिए थोड़ा जिज्ञासु हो रहीं थीं|

मैं: Red light area!

मैंने सर झुकाये हुए कहा|

भौजी: Hwwwwww!

भौजी अपने मुँह पर हाथ रखते हुए बोलीं| भौजी को अब सारी बात समझ आ गई थी इसलिए उन्होंने बात को और नहीं कुरेदा|

भौजी: लेकिन आप गए क्यों नहीं?

भौजी ने नटखट भरी मुस्कान के साथ मुझसे पुछा| वो मेरा जवाब पहले से जानती थीं बस मुझे छेड़ रहीं थीं!

मैं: Because ... I ... love....you!!!

मैंने प्यार से भौजी को आँख मारते हुए कहा|

भौजी: I love you too जानू!

मेरे मुँह से I love you सुन कर भौजी का दिल बागबाग हो गया था|

मैं: अच्छा आप मेरा एक काम करोगे?

मैंने भौजी के तोहफे की बात शुरू करते हुए कहा|

भौजी: हाँ-हाँ बोलो जानू!

मैं: आप यहाँ बैठो!

मैंने भौजी को कंप्यूटर टेबल के पास पड़ी कुर्सी पर बैठने को कहा|

मैं: अब अपनी आँखें बंद करो!

भौजी: पर क्यों?

भौजी ने हैरान होते हुए पुछा|

मैं: यार सवाल मत पूछो! चुपचाप जो कह रहा हूँ वो करो!

मैंने थोड़ी सख्ती से कहा|

भौजी: ठीक है बाबा!

भौजी ने हार मानते हुए कहा|

भौजी ने आँखें बंद की, मैंने अपने तकिये के नीचे छुपाई चाँदी की पायल निकाली और भौजी के ठीक सामने जमीन पर आलथी-पालथी मार के बैठ गया| मैंने उनका दाहिना पैर उठा के अपने दाहिने घुटने पर रखा और उन्हें पायल पहनाई| भौजी को पायल का एहसास हो गया था इसलिए उन्होंने झट से अपनी आँखें खोल लीं;

भौजी: हाय राम! ये...ये आप कब लाये? और क्यों....

भौजी अपनी बात पूरी करती उससे पहले ही मैंने उनकी बात काट दी;

मैं: क्या मतलब क्यों लाये?

मैंने भौजी को थोड़ा गुस्से से देखा तो भौजी ने फ़ौरन अपने दोनों कान पकड़ लिए!

मैं: उस दिन जब आप बीमार पड़े थे तब मैंने ध्यान दिया की मेरा मन मोहने वाली वो छम-छम करती पायल गायब है, इसलिए मैंने उसी दिन सोच लिया था की मैं अपने जन्मदिन के दिन आपको तोहफे में पायल दूँगा| कल हमारी मिलन की घडी थी तो मैंने सोचा की मैं कल रात को अपने हाथ से पहनाऊँगा, इसलिए शाम को जब मैं बच्चों के लिए चाऊमीन लेने निकला तब मैंने ये पायल खरीदी, लेकिन कल रात जो काण्ड हुआ उसमें ये पायल पहनने का होश ही नहीं रहा|

मेरी बात सुन कर भौजी के चेहरे पर चित-परिचित मुस्कान आ गई| भौजी को वो पायल बहुत पसंद आई थी जिसकी ख़ुशी उनके चेहरे पर झलक रही थी, उन्होंने पायल के lock को देखा तो ख़ुशी से चहकते हुए बोलीं;

भौजी: ये तो lock वाली पायल है, आपको कैसे पता चला की मुझे ऐसी पायल पसंद है? मैंने तो आपको कभी बताया नहीं, फिर आपको कैसे पता चला?

भौजी ने भोलेपन में सवाल पुछा|

मैं: क्योंकि हमारे दिल connected हैं!

मैंने बड़े प्यार से भौजी की कही बात उन्हें पुनः स्मरण करवाई, ये बात उन्होंने कुछ दिन पहले मुझसे कही थी| इस बात को याद करते ही भौजी हँस पड़ीं, उनकी वो मनमोहक हँसी देख कर मेरे दिल को अजीब सा सुकून मिला!

भौजी: अच्छा जानू ये तो बताओ की ये कितनी की आई?

भौजी ने किसी पत्नी की तरह पुछा|

मैं: क्यों? पैसे दोगे मुझे?

मैंने उन्हें थोड़ा डाँटते हुए पुछा|

भौजी: नहीं ...मैं तो बस.....ऐसे ही पूछ रही थी!

भौजी डर के मारे मुझसे नजरें चुराते हुए बोलीं| मन तो किया उनकी क्लास लगा दूँ पर मैं अच्छा ख़ासा माहौल खराब नहीं करना चाहता था|

मैं: वो सब छोडो और ये बताओ की आपकी पुरानी वाली पायल कहाँ है?

मैंने बात आगे बढ़ाते हुए पुछा ताकि भौजी के मन से डर खत्म कर सकूँ|

भौजी: वो अनिल को exams के लिए कुछ पैसे चाहिए थे, मेरे पास थे नहीं तो मैंने उसे अपनी पायल और चूड़ियाँ दे दी|

मुझे नहीं पता था की भौजी के मायके की हालत इतनी कमजोर थी की अनिल की exam फीस भरने के लिए भौजी को अपने जेवर बेचने पड़े थे!

मैं: और ये कब की बात है?

मैंने भोयें सिकोड़ कर पुछा|

भौजी: यहाँ आने से पहले की|

भौजी ने सर झुका कर कहा|

मैं: अच्छा...और आपने मुझे ये बताना जर्रुरी नहीं समझा न?

मैंने थोड़ा सख्ती दिखाते हुए कहा|

भौजी: नहीं-नहीं ऐसी बात नहीं है, वो मुझे याद नहीं रहा|

भौजी ने मुझसे नजरें चुराते हुए कहा| मैं जानता था की भौजी ने जानकार ये बातें मुझसे छुपाई हैं क्योंकि वो मुझसे किसी भी तरह की पैसे की मदद नहीं लेना चाहतीं थीं, मैंने भी बात घुमाते हुए कहा;

मैं: आप जानते हो न मुझे आपकी पायल की आवाज कितनी अच्छी लगती थी?!

भौजी: Sorry बाबा!

भौजी ने नकली मुस्कान हँसते हुए कहा|

मैं: चलो कोई बात नहीं, माफ़ किया! अच्छा एक कप चाय मिलेगी?

मैंने बात को खत्म करते हुए कहा|

भौजी: जी जर्रूर!

भौजी ने बड़े अदब से अपना सर झुकाते हुए किसी मुगलिया दरबार की 'कनीज़' के जैसे कहा|

मैं: अच्छा मेरे फोन की बैटरी discharge हो गई है, आपके फोन में balance है?

मैंने बड़ी चालाकी से झूठ बोला क्योंकि मुझे भौजी के फ़ोन से अनिल का नंबर जो निकालना था|

भौजी: हाँ ये लो|

भौजी मेरी बातों में आ गईं और मुझे अपना बटन वाला फ़ोन दे कर चाय बनाने चली गईं| मैंने फटाफट अनिल का नंबर निकाला, अपनी चेकबुक से एक चेक फाड़ कर जेब में रखा और चाय पी कर घर से बैंक की ओर निकल गया| बहार जाके मैंने अनिल को फोन किया;

मैं: हेल्लो अनिल?

अनिल मेरी आवाज सुन कर थोड़ा हैरान था, उसे थोड़ा समय लगा पर उसने आखिर मेरी आवाज पहचान ही ली|

अनिल: नमस्ते जीजू!

मैं: नमस्ते! यार तुमने अपनी दीदी से कुछ पैसे लिए थे?

मैंने बात थोड़ी गोल घुमा कर शुरू की|

अनिल: जी वो कॉलेज की फीस भरनी थी....

अनिल आगे कुछ बोलता उससे पहले ही मैं उत्साह में बोल पड़ा;

मैं: मुझे क्यों नहीं बताया? पिताजी का नंबर तो था ना तुम्हारे पास?

मेरी बात सुन अनिल को थोड़ा अजीब लगा, जो जायज भी था आखिर मेरा और उसका रिश्ता ही क्या था?!

अनिल: जी व...वो.....

अनिल जब हकलाने लगा तब मुझे मेरी बेवकूफी समझ आई और मैंने जैसे-तैसे अपनी बात सँभाली;

मैं: अच्छा ये बता पैसे पूरे पड़ गए थे?

अनिल: जी.....वो...

अनिल को कहने में शर्म आ रही थी इसलिए मुझे ही उसकी शर्म दूर करनी पड़ी;

मैं: देख भाई जूठ मत बोल!

मेरी बात सुनते ही अनिल बोल पड़ा;

अनिल: जी नहीं.... मैंने कुछ पैसे उधार ले लिए थे...तो काम चल गया था|

अनिल के पैसे उधार लेनी वाली बात मुझे खटक रही थी, अगर फीस के लिए पैसे नहीं थे तो सूद के पैसे वो कैसे देता?

मैं: कितने पैसे?

मैंने गंभीर होते हुए पुछा|

अनिल: जी....पाँच...पाँच हजार... मुझे PG के पैसे भरने थे...उसके लिए|

अनिल ने सँकुचाते हुए कहा|

मैं: अच्छा...वो...आपकी दीदी ने कुछ पैसे दिए हैं आपको भेजने को! तो मैं NEFT कर दूँ, थोड़ी देर में पहुँच जायेंगे|

मैंने जान बूझ कर झूठ बोला क्योंकि मैं जानता था की अनिल कभी मुझसे पैसे नहीं लेगा|

अनिल मेरे पैसे भेजने की बात को सुन कर खुश हो गया और ख़ुशी से चहकते हुए बोला;

अनिल: जी!

अनिल ने मुझे अपनी सारी bank detail sms की और मैंने उसी वक़्त उसे NEFT कर दिया तथा अपने घर लौट आया|

[color=rgb(226,]जारी रहेगा भाग - 10 में...[/color]
 

[color=rgb(44,]तेईसवाँ अध्याय: अभिलाषित प्रेम बन्धन[/color]
[color=rgb(251,]भाग - 10[/color]


[color=rgb(255,]अब तक आपने पढ़ा:[/color]

मैं: कितने पैसे?

मैंने गंभीर होते हुए पुछा|

अनिल: जी....पाँच...पाँच हजार... मुझे PG के पैसे भरने थे...उसके लिए|

अनिल ने सँकुचाते हुए कहा|

मैं: अच्छा...वो...आपकी दीदी ने कुछ पैसे दिए हैं आपको भेजने को! तो मैं NEFT कर दूँ, थोड़ी देर में पहुँच जायेंगे|

मैंने जान बूझ कर झूठ बोला क्योंकि मैं जानता था की अनिल कभी मुझसे पैसे नहीं लेगा|

अनिल मेरे पैसे भेजने की बात को सुन कर खुश हो गया और ख़ुशी से चहकते हुए बोला;

अनिल: जी!

अनिल ने मुझे अपनी सारी bank detail sms की और मैंने उसी वक़्त उसे NEFT कर दिया तथा अपने घर लौट आया|

[color=rgb(97,]अब आगे:[/color]

मैंने अनिल को पैसे भेजने की बात भौजी से छुपाई थी क्योंकि मैं नहीं चाहता था की उनके मन में मेरे प्यार के अलावा कोई और जज़्बात पैदा हों, वो बस मुझे प्यार करें न की मेरा एहसानमंद बन कर दबने लगें! करीब दो घंटों बाद मुझे अनिल का फोन आया की उसे पैसे मिल गए हैं और उसने मुझे पैसे भेजने के लिए thank you भी कहा| उसे अभी तक नहीं पता था की ये पैसे उसकी दीदी ने नहीं बल्कि मैंने भेजे हैं| उधर बच्चों के स्कूल से आने का समय हो रहा था तो मैं उन्हें लेने चल दिया, जैसे ही बच्चों ने school van में से मुझे देखा दोनों ख़ुशी से चहकने लगे| ड्राइवर साहब ने मुझे दोनों बच्चों के school bag दिए, इधर दोनों बच्चे मेरे से कस कर लिपट गए|

माँ का गुस्सा अभी तक कम नहीं हुआ था इसलिए सुबह से मैं जानकार उनके सामने नहीं आ रहा था, बच्चों को घर ला कर मैं माँ से नजरें चुराते हुए अपने कमरे में घुस गया| भौजी जान गईं थीं की मैं माँ से छुप रहा हूँ इसलिए उन्होंने मेरा और बच्चों का खाना एक थाली में परोस कर मेरे कमरे में ही भिजवा दिया| पिताजी और चन्दर दोपहर को साइट पर रुके थे और उनका खाना वहीं होना था, इसलिए भौजी तथा माँ बाहर बैठक में टी.वी देखते हुए खाना खा रहे थे|

मैंने दोनों बच्चों को खाना खिलाया, खाना खाते समय दोनों ने बारी-बारी अपनी आज की दिनचर्या बताई| नेहा की दिनचर्या बड़ी सामन्य होती थी, वो सारा टाइम अपना पिछले काम निपटाने में लगी रहती, दूसरी तरफ आयुष की दिनचर्या बस मस्ती से भरी होती थी| कभी arts class में clay के साथ clay modelling तो कभी games period में खेलना! एक बस lunchtime था जो दोनों भाई-बहन खाना खाते हुए बिताते थे, उस समय भी आयुष नेहा को अपनी class में की गई मस्तियों के बारे में बताने लगता था|

खैर खाना खा कर हम तीनों बाप-बेटा-बेटी लिपट कर सो गए, बच्चों के संग इतनी प्यारी नींद आई की मैं सीधा शाम को 5 बजे उठा, मुँह-हाथ धो कर मैं अपना फ़ोन देख रहा था जब भौजी चुपचाप चाय का गिलास लिए मेरे सामने खड़ी हो गईं! मेरी नजरें फ़ोन में घुसी थीं और उधर भौजी टकटकी बाँधे मुझे देख रहीं थीं| जब मैंने नजरें उठा कर भौजी को देखा तो मैं हैरान हो गया, भौजी की आँखों में आँसूँ थे और वो किसी तरह अपना रोना रोके हुए खड़ीं थीं| मैं फ़ौरन उठा और उनका हाथ पकड़ कर अपने पास बिठाया| चाय का गिलास टेबल पर रखा और उनके आँसूँ पोछते हुए उनसे बोला;

मैं: Hey क्या हुआ? किसी ने कुछ कहा आपसे?

मैंने घबराते हुए पुछा| मेरा सवाल सुन भौजी बिना कुछ कहे मुझसे लिपट गईं और रोने लगीं|

मैं: क्या हुआ? कुछ बताओ तो सही?

मैंने भौजी के सर पर हाथ फेरते हुए पुछा तो भौजी सुबकते हुए बोलीं;

भौजी: अनिल का फोन आया था....

इतना कह भौजी साँस लेने को रुकीं, मुझे लगा की जर्रूर उसके साथ कोई अनहोनी हुई है, यही सोच कर मैं चिंतित हो गया और बीच में बोल पड़ा;

मैं: वो ठीक तो है न?

मेरा सवाल सुन भौजी ने हाँ में सर हिलाया और फिर से सुबकते हुए बोलीं;

भौजी: आपने....उसे पैसे....भेजे थे न?

मैं भौजी से जूठ नहीं बोल सकता था, इसलिए मैंने बड़े संक्षेप में जवाब दिया;

मैं: हाँ!

इतना सुन भौजी ने अपनी बाँहों को मेरी पीठ के इर्द-गिर्द कस लिया|

भौजी: Thank...you!

भौजी मेरे सीने से लगे हुए सुबकती हुई बोलीं|

मैं: किस लिए thank you? अब अगर आप मुझे अपनी समस्याओं के बारे में बताओगे नहीं तो मुझे खुद ही पता करना पड़ेगा न?

मैने भौजी के सर पर हाथ फेरते हुए कहा|

भौजी: नहीं ऐसा नहीं है! अनिल मुंबई में MBA कर रहा है, अब आपको तो पता ही होगा की इसमें कितना खर्च होता है?! मेरे पिताजी उम्र के चलते कोई काम-धँधा कर नहीं पाते, जमीन का छोटा सा टुकड़ा है जिसे उन्होंने किराए पर दे रखा है, उस छोटे से टुकड़े से ही थोड़ी-बहुत आमदनी होती है| जो कुछ जमा-पूँजी थी उससे अनिल का दाखिला मुंबई में हो गया, मगर आगे का खर्चा सँभालना मुश्किल हो रहा था, इसलिए पिताजी जमीन को गिरवी रख कर बैंक से लोन लेने के लिए apply किया है, loan approve होने में देर लग रही है! अनिल के exams नजदीक हैं और साथ ही उसकी hostel की फीस भी भरनी थी तो मैंने उसे अपनी पायल और दो चूड़ियाँ दे दी थीं!

भौजी ने मुझे सारी बात बताई तो उनका मन हल्का हो गया| भौजी का रोना अब थम चूका था, मगर वो फिर भी मुझे अपनी बाहों में भरे हुए थीं|

मैं: जान बस अब और मत गले लगो मेरे, माँ घर में ही हैं अगर आ गईं तो?

मन भौजी से जुदा नहीं होना चाहता था मगर माँ का डर भी था!

भौजी: जानू माँ घर पर हैं ही नहीं, वरना मैं ऐसे थोड़े ही आपसे लिपटी रहती!

भौजी मेरे सीने को चूमते हुए बोलीं| माँ का डर नहीं था तो मैंने भी भौजी को कस कर अपनी बाहों में भर लिया, लेकिन हमारा ये प्यारभरा संगम आगे बढ़ता उससे पहले ही अनिल का फ़ोन आ गया;

मैं: हेल्लो!

अनिल: Thank you जीजू!

अनिल खुश होते हुए बोला|

मैं: अरे यार thank you वाली formality बाहर वालों के साथ होती है, अपनों के साथ नहीं! आगे से कभी भी कोई जर्रूरत हो तो मुझे फोन किया कर, अपनी दीदी को नहीं!

मैंने बड़े हक़ से अनिल को कहा जैसे की मैं उसका असल का जीजा हूँ|

अनिल: पर जीजू, दीदी ने तो आपको कुछ बताया नहीं था फिर आपको कैसे पता चला की मुझे पैसों की जर्रूरत है?

अनिल ने जिज्ञासु बनते हुए सवाल पुछा|

मैं: आज मैंने तुम्हारी दीदी को बिना पायल के देख तो उनसे पायल के बारे में पूछा, तब उन्होंने मुझे बताया की तुम्हारी exam fees भरने के लिए उन्होंने अपनी पायल और कुछ चूड़ियाँ तुम्हें दी हैं| मैं समझ गया की चाँदी के पायल के मिलते ही कितने हैं?! चूड़ियों के फिर भी शायद कुछ मिले होंगे, इसलिए मैंने तुम्हारा नंबर निकाला और तुमसे बात की| खैर तुम इन बातों को सोचना छोड़ो और अपनी पढ़ाई में मन लगाओ|

मैंने ये पूरी बात भौजी की ओर देखते हुए कही| मेरी बात सुन कर भौजी मुस्कुराने लगी थीं|

अनिल: जी जीजू!

अनिल बड़े अदब से बोला|

मैं: Bye and take care!

मैंने बात खत्म करते हुए कहा|

अनिल: Bye जीजू!

अनिल ने bye कह कर फ़ोन रखा| भौजी जो अभी तक ख़ामोशी से मेरी और अनिल की बातें सुन रहीं थीं वो कुछ बोलने को हुई थीं की मैंने उन्हें प्यार से धमका दिया;

मैं: और आप, अगर आपने दुबारा मुझसे कोई बात छुपाई न तो देख लेना, ढूँढने से भी नहीं मिलूँगा!

मेरी प्यारभरी धमकी से भौजी डर गईं और एकदम से न में सर हिलाते हुए बोलीं;

भौजी: आज के बाद आपको सब बताऊँगी!

इतना कह वो फिर से मेरे सीने से लग गईं| भौजी थोड़ा सी भावुक हो गईं थीं तो मैंने उन्हें पुचकारते हुए चुप कराया| भौजी जो मेरे लिए चाय बना कर लाईं थीं वो हम ने आधी-आधी पी| भौजी smartphone चलाना नहीं जानतीं थीं तो मैं उन्हें अपने फ़ोन में मौजूद सारे features उन्हें समझाने लगा| जैसे ही मैंने उन्हें कैमरा on कर के दिखाया और हमारी फोटो खींच कर दिखाई तो भौजी का चहेरा ख़ुशी से खिल गया;

भौजी: जानू please इस picture को कागज़ में print कर के मुझे दे दो, मैं इसे हमेशा अपने सीने से लगाए रखूँगी!

मैं: जान अब तो हमेशा आपके सामने रहता हूँ, तो picture का क्या करोगे?

मेरी बात सुन भौजी शर्मा गईं और अपनी नजरें झुका लीं| हम आगे बात करते उससे पहले ही बच्चे उठ गए, नेहा उठ कर मेरी पीठ पर चढ़ गई और आयुष मेरी गोद में बैठ गया| मैंने दोनों बच्चों को लाड-प्यार करना शुरू किया और उनके साथ खेलने में व्यस्त हो गया, भौजी भी उठीं और रात का खाना बनाने में लग गईं| थोड़े खेल-कूद के बाद बारी थी पढ़ाई की, नेहा तो अपने notes copy करने में लग गई और मैंने आयुष को पढ़ाना शुरू कर दिया|

कुछ देर बाद माँ घर आ गईं और मेरे बारे में भौजी से पूछने लगीं, मैं बच्चों को ले कर आने के बाद से अपने कमरे में छुपा हुआ था| भौजी ने मेरी हिमायत करते हुए माँ को समझाना शुरू कर दिया था, जिसका असर इतनी जल्दी होने वाला नहीं था! पिताजी और चन्दर रात को देर से आने वाले थे, खाना तैयार था तो मैंने दोनों बच्चों को अपने कमरे में ही खाना खिला दिया और कहानी सुनाते हुए सुला दिया| मैंने खाना नहीं खाया था, वो इसलिए क्योंकि अगर मैं पिताजी के आने से पहले खा लेता तो चार गालियाँ और पड़तीं! रात साढ़े नौ बजे पिताजी घर आये और तब माँ मुझे खाने के लिए बोलने आईं;

माँ: खाना खा ले!

माँ ने उखड़े हुए स्वर में कहा| मैं सर झुका कर कमरे से बाहर आया, सब लोग डाइनिंग टेबल पर खाने के लिए बैठ गए थे और अब बारी थी फिर से पिताजी के ताने सुनने की;

पिताजी: तो क्या किया सारा दिन?

पिताजी ने सख्त आवाज में पुछा|

मैं कुछ जवाब देता उससे पहले ही माँ बोल पड़ीं;

माँ: सारा दिन पलंग तोड़ रहा था और क्या?

पिताजी: हम्म्म्म!

पिताजी की ये आवाज मुझे नजाने क्यों शेर की गुर्राहट जैसी लगी, मुझे लगा जर्रूर पिताजी अब डाँटेंगे;

पिताजी: कल साइट पर आजइओ!!

पिताजी ने कड़क आवाज में कहा और खाना खाने लगे|

मैं: जी!

मैंने सर झुकाये हुए कहा| मैं हैरान था की बस इतनी ही डाँट पड़नी थी? लेकिन फिर तभी चन्दर ने चुटकी ली;

चन्दर भैया: मानु भैया, चाचा अभयें अच्छे मूड म हैं एहि से बच गयो!

चन्दर ने आग लगाते हुए कहा| मुझे गुस्सा तो बहुत आया की यहाँ आग ठंडी पड़ रही है और ये साला उसमें घांसलेट डाल रहा है| पिताजी के डर के मारे मैं कुछ नहीं बोल सकता था इसलिए सर झुका कर चुपचाप खाना खाने लगा, मगर चन्दर की बात का जवाब पिताजी ने खुद दिया;

पिताजी: ऐसा नाहीं है बेटा! क़िलास तो हम अभयें लगाई देई, मगर मानु आज तक कउनो गलत काम नाहीं किहिस है! आज जिंदगी म पहली और आखरी बार गलती करिस है और ऊ के लिए मानु शर्मिंदाओ है, अब अगर हम ई का कूट-पीट देई तो ई सुधरी न, बल्कि और बिगड़ जाई! फिर है भी गरम खून, कल को कछु उलट-सीध कर देई तो हम का करब? हमरे लिए एहि बड़ा है की सुबह हमसे वादा कर दिहिस है की अब ई (मैं) सराब का हाथ न लगाई!

पिताजी की बात सुन चन्दर का मुँह बंद हो गया|

मैं: I promise पिताजी, आज के बाद कभी शराब को हाथ नहीं लगाउँगा|

मैंने लगे हाथ एक और बार अपनी बात दोहरा दी, जिसे सुन पिताजी के चेहरे पर आखिरकर मुस्कान आ गई तथा उन्होंने प्यार से मेरे सर पर हाथ फेर दिया|

खाना खा कर पिताजी अपने कमरे में सोने चले गए, इधर चन्दर ने भौजी से घर की चाभी ली और वो भी सोने चला गया| अब चूँकि मैं दिनभर पलंग तोड़ चूका था तो मुझे नींद आ नहीं रही थी, मैं आज टी.वी. देखने के लिए माँ और भौजी के साथ बैठ गया| शुक्रवार का दिन था और रात दस बजे CID आता था, माँ उसकी बहुत बड़ी fan है तथा ये आदत भौजी को भी लग चुकी थी| मुझे ये program बिलकुल पसंद नहीं था, अब अगर मैं channel बदलने की गुस्ताखी करता तो माँ से डाँट पड़ती इसलिए मैं चुपचाप बैठा देखने लगा| CID खत्म हुआ तो माँ सोने चली गई और मुझे कह गई;

माँ: अगर देर तक टी.वी देखना हो तो अपनी भौजी को घर अकेले मत जाने दिओ उसे घर छोड़ कर आइयो!

माँ की आवाज में गुस्सा नहीं था. मतलब पिताजी के साथ-साथ उनका गुस्सा भी शांत हो रहा था|

मैं: जी!

मैंने बड़े प्यार से कहा|

अब बैठक में बस मैं और भौजी बचे थे, टी.वी. पर Crime Patrol चल रहा था| मैं भौजी से दूर दूसरी कुर्सी पर बैठा था और भौजी सोफे पर बैठीं थीं| भौजी ने इशारे से मुझे अपने पास बैठने के लिए बुलाया, मैंने एक बार चेक कर लिया की माँ-पिताजी के कमरे का दरवाजा बंद हुआ की नहीं और फिर मैं जाके भौजी के पास बैठ गया|

भौजी: एक बात पूछूँ, आप बुरा तो नहीं मानोगे?

भौजी ने हिचकते हुए कहा|

मैं: हाँ जी पूछो?

मैंने बड़े प्यार से कहा|

भौजी: आपने अनिल को वो पैसे कहाँ से भेजे थे? मेरा मतलब आपके पास वो पैसे कहाँ से आये?

भौजी ने थोड़ा घबराते हुए पुछा| दरअसल भौजी को चिंता हो रही थी की कहीं मैंने ये पैसे पिताजी के चोरी तो नहीं दिए?

मैं: मेरे अकाउंट से|

मैंने बड़ी सरलता से जवाब दिया क्योंकि मैं अभी तक भौजी की बात का मतलब समझ नहीं पाया था|

भौजी: और आपके पास पैसे कहाँ से आये?

भौजी ने थोड़ी हिम्मत और करते हुए सवाल पुछा|

मैं: Graduation के दौरान और Graduation पूरी होने के बाद मैंने कुछ डेढ़-दो साल जॉब की थी| अब घर तो पिताजी के पैसों से चल जाया करता था, तो मैं अपनी salary से घर के लिए appliances खरीदा करता था| कभी washing machine तो कभी desktop computer, उसी salary की savings से मैंने अनिल को पैसे भेजे थे|

मैंने बड़े इत्मीनान से भौजी को जवाब दिया| मेरी बात सुन कर भौजी एकदम से खामोश हो गईं और गर्दन झुका कर बैठ गईं| मैं जान गया की उन्हें मेरे पैसे खर्च होने पर दुःख हो रहा है;

मैं: Hey? क्या हुआ? बुरा लग रहा है?

मैंने बात शुरू करते हुए कहा पर भौजी ने कोई जवाब नहीं दिया|

मैं: अच्छा ये बताओ की अगर अनिल आपका भाई है तो क्या मेरा कुछ नहीं? भई आपने ही तो उसे मेरा साला बनाया था न?

मैंने भौजी को गाँव में उनकी कही बात याद दिलाई|

मैं: अब दुनिया में ऐसा कौन सा जीजा है जिसे साले की मदद करने में दुःख होता हो? I mean जेठा लाल को छोड़ के!

मेरी जेठा लाल वाली बात सुन भौजी मुस्कुरा दीं, चलो तारक मेहता का उल्टा चश्मा के जरिये ही सही वो हँसी तो!

मैं: चलो रात बहुत हो रही है, मैं आपको घर छोड़ देता हूँ|

मैंने मुस्कुरा कर उठते हुए कहा| हम दोनों घर से निकले, रात का सन्नाटा था तो भौजी ने मेरा हाथ कस कर पकड़ लिया| हम दोनों बिना बात किये भौजी के घर पहुँचे, भौजी ने अपनी चाभी से घर का ताला खोला और अंदर घुसीं मैंने उन्हें मुस्कुरा कर; "good night" कहा|

भौजी: ऐसे कैसे good night?!

भौजी खुसफुसा कर बोलीं और अपने दाहिने गाल पर kiss करने का इशारा किया| मैंने न में सर हिलाया क्योंकि इस वक़्त चन्दर घर पर मौजूद था|

मैं: कल!

मैंने मुस्कुराते हुए कहा| भौजी जान गईं की मेरा उन्हें kiss न करने का कारन क्या है और उन्होंने इसका बुरा नहीं लगाया| उन्होंने मुस्कुराते हुए मुझे; "good night" कहा और दरवाजा बंद कर दिया|

जब मैं घर लौटा तो देखा की आयुष जाग रहा है और अपने हवाई जहाज वाले खिलोने से अकेला खेल रहा है|

मैं: आयुष बेटा, नींद नहीं आ रही?

मैंने अपने कमरे का दरवाजा चिपकाते हुए पुछा|

आयुष: नहीं पापा!

आयुष खुश होते हुए बोला|

मैं: बेटा कल स्कूल जाना है, जल्दी सोओगे नहीं तो सुबह जल्दी कैसे उठोगे?

मैंने पलंग पर बैठते हुए कहा|

आयुष: पापा जी मुझे गेम खेलनी है|

आयुष ने ख़ुशी से अपना सर हाँ में हिलाते हुए कहा| उसका यूँ
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सर हिलाना देख कर मुझे थोड़ी हैरानी हुई और मेरा दिल एकदम से पिघल गया;

मैं: ठीक है बेटा मगर शोर नहीं करना वरना आपकी दीदी जाग जाएगी|

मेरी बात सुन आयुष फिर से मुस्कुरा कर अपना सर हाँ में हिलाने लगा|
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नटखट बालक तो मैं हुँ ही, बेटे का साथ मिला तो मैं भी बच्चा बन गया| कमरे की लाइट बंद कर मैंने desktop पर गेम लगा दी, मैं कुर्सी पर बैठा और आयुष को अपनी गोद में बिठा लिया| दोनों बाप-बेटा बारी-बारी से NFS खेलने लगे, जब गाडी पलट जाती या किसी दूसरी गाडी से ठुक जाती तो आयुष ख़ुशी से अपने दोनों हाथ उठा कर खुश हो जाता! कुछ देर बाद keyboard के buttons की टप-टप सुन कर नेहा भी उठ गई और मेरी बगल वाली कुर्सी पर आ कर बैठ गई|

नेहा: पापा जी मैं भी खेलूँगी!

नेहा बोली मगर आयुष अपनी बारी छोड़ने को तैयार नहीं था|

आयुष: दीदी आप सो जाओ, गेम खेलने का idea मेरा था!

आयुष की बात सुन नेहा जोर जबरदस्ती करने लगी;

नेहा: हट जा, मैं खेलूँगी!

नेहा ने बड़ी बहन का हक़ जताते हुए कहा और keyboard अपनी तरफ खींच लिया|

आयुष: नहीं मैं खेलूँगा!

आयुष ने keyboard खींचना चाहा मगर नेहा ने वो कस कर पकड़ रखा था| अब बड़ी बहन के आगे आयुष का जोर कहाँ चलता तो उसने मुझसे अपनी बहन की शिकायत कर दी;

आयुष: देखो न पापा, दीदी मुझे खेलने नहीं देती!!

आयुष मुँह फुलाते हुए बोला| अब मुझे मामला सुलझाना था;

मैं: बेटा आप दोनों आज रात बारी-बारी से खेलो, कल मैं आप दोनों के लिए दो game controllers ला दूँगा फिर आप दोनों एक साथ खेल पाओगे!

बच्चे मान गए और बारी-बारी से गाडी चलाने लगे, इस तरह गेम खेलते-खेलते बारह बज गए| कंप्यूटर बंद कर के हम तीनों लिपट कर सोये, अब देर से सोये थे तो बच्चों को सुबह उठने में देरी हो गई| मैं जल्दी उठ गया था मगर बच्चों को उठाने का मन नहीं किया, इसलिए उनके सर पर हाथ फेरता रहा| सवा 6 बजे भौजी गुस्से में बड़बड़ाती हुई कमरे में बच्चों को उठाने आईं;

भौजी: कितनी बार कहा की जल्दी सोया करो, ताकि सुबह जल्दी उठो, लेकिन तुम दोनों दिन पर दिन बदमाश होते जा रहे हो!

मैं: Relax यार! गलती मेरी है, रात को हम तीनों कंप्यूटर पर गेम खेल रहे थे! बारह बजे तो सोये हैं इसलिए थोड़ा सा सो लेने दो!

मैंने गलती अपने सर लेते हुए कहा|

भौजी: हम्म्म्म तो सजा आपको मिलेगी!

भौजी अपना झूठा गुस्सा दिखाते हुए बोलीं|

मैं: बताइये मालिक क्या सजा मुक़र्रर की है आपने|

मैंने किसी गुलाम की तरह सर झुका कर कहा|

भौजी: आप ने लेट सुलाया है तो आप ही इन्हें तैयार करोगे|

भौजी मुस्कुरा कर बोलीं|

मैं: वो तो मैं रोज करता हूँ|

मैंने मुस्कुरा कर कहा| बच्चों को सुबह स्कूल के लिए तैयार करने का काम ज्यादातर मैं ही किया करता था तो मेरे लिए कोई सजा नहीं थी, मगर भौजी की बात अभी पूरी कहाँ हुई थी!

भौजी: और आज मेरे साथ shopping चलोगे!

भौजी ने पत्नी की तरह इठला कर कहा|

मैं: Done लेकिन शाम को, सुबह पिताजी के साथ site पर जाना है|

मैंने सर झुका कर उनका हुक्म मानते हुए कहा|

भौजी: Done!

भौजी खुश होते हुए बोलीं!

अब बारी थी बच्चों को उठाने की, मैंने बस एक बार प्यार से दोनों बच्चों को पुकारा तो दोनों एकदम से उठ बैठे और मेरे गले लग गए|

भौजी: अरे वाह! मैं इतनी देर से गुस्से में उबल रही थी तब तो नहीं उठे और पापा की एक आवाज में उठ गए?

भौजी अपनी कमर पर दोनों हाथ रखते हुए बोलीं|

मैं: वो क्या है न, मेरे बच्चे मुझसे इतना प्यार करते हैं की मेरी हर बात मानते हैं|

मैंने दोनों बच्चों के सर चूमते हुए कहा| दोनों बच्चों ने अपनी मम्मी को जीभ चिढ़ाई और मुझसे लिपट कर खिलखिलाकर हँसने लगे| भौजी ने मुस्कुरा कर बाप-बेटा-बेटी को देखा और बच्चों का नाश्ता बनाने चली गईं| बच्चों को स्कूल के लिए तैयार कर मैं उन्हें उनकी school van में बिठा आया| वापस आ कर मैं नहा-धो कर तैयार हुआ और नाश्ता कर के पिताजी के साथ निकलने वाला था की भौजी ने सबसे नजर बचाते हुए घूँघट हटाया तथा मुझे अपनी नशीली आँखों से इशारा कर कमरे में आने को कहा| मैंने पिताजी से पर्स भूलने का बहाना किया और पर्स लेने के लिए अपने कमरे में आ गया| मेरे पीछे-पीछे भौजी भी सबसे नजरें बचातीं हुई आ गईं|

भौजी: आप कुछ भूल नहीं रहे?

भौजी ने घूँघट हटाते हुए कहा| मैंने फ़ौरन अपना पर्स, रुम्माल और फोन चेक किया और बोला;

मैं: नहीं तो|

भौजी: अच्छा? कल रात से आपकी एक kiss due है?

भौजी शिकायत करते हुए बोलीं|

मैं: ओह याद आया! लेकिन अभी नहीं, शाम को! ठीक है?

मैंने भौजी को प्यार से समझाते हुए कहा| Kissi करने का मन तो मेरा भी था मगर घर में सब मौजूद थे और भौजी को गाल पर kiss जमती नहीं थी तथा दूसरी वाली kiss के लिए अभी सही समय नहीं था|

भौजी: ठीक है!

भौजी ने कुछ सोचते हुए कहा| मुझे लगा की भौजी मान गईं, लेकिन भौजी बिना kiss लिए कहाँ मानने वालीं थीं?! वो एकदम से उचकीं और अचानक से मेरे होठों को चूम कर बाहर भाग गईं!

मैं: बदमाश! अगर करना ही था तो ढँग से करते!

मैं पीछे से बोला मगर तब तक भौजी बाहर भाग चुकी थीं|

पिताजी ने मुझे नॉएडा वाली साइट का काम संभालने को कहा था, तथा चन्दर को ले कर वो गुडगाँव चले गए| आज मैं बहुत जोश में था, इतना जोश में की लेबर भी पूछ रही थी की; "क्या बात है भैया, आज बड़े मूड में हो?" अब मैं उन्हें क्या कहता की मैं मूड में इसलिए हूँ क्योंकि आज दिन की शुरुआत बड़ी मीठी हुई है! मैं अपने जोश में इतना मग्न था की दोपहर में खाना भी नहीं खाया, 4 बजे मैंने पिताजी को फोन कर के झूठ कह दिया की; "माँ ने बुलाया है, मैं घर जा रहा हूँ|" पिताजी ने कोई सवाल-जवाब नहीं किया, मैं ख़ुशी से नाचता हुआ दिषु के ऑफिस पहुँचा| मेरे चेहरे पर ख़ुशी देख कर दिषु थोड़ा हैरान था, उसे लगा था की कल पिताजी की डाँट से मेरा मुँह उतरा होगा|

दिषु: अबे साले तू तो हवा में उड़ रहा है? लगता है अंकल जी ने बेल्ट से सूता नहीं तुझे?!

दिषु हँसते हुए बोला|

मैं: वो सब बाद में, फिलहाल मुझे तेरी Nano की चाभी चाहिए! आज उनको (भौजी को) और बच्चों को घुमाने ले जा रहा हूँ!

मैंने थोड़ा शर्माते हुए कहा|

दिषु: ओये-होये! शर्म तो देखो लड़के की!

दिषु ने मेरी टाँग खींचते हुए कहा| उसने अपनी गाडी की चाभी मुझे निकाल कर दी और बोला;

दिषु: भाई अपना ध्यान रखिओ!

उसने ये बात थोड़ा गंभीर होते हुए कही| मैं उसकी बात का मतलब समझ गया था, दरअसल वो मुझे आगाह कर रहा था की मैं फिर से कहीं प्यार में न बह जाऊँ और एक बार फिर अपना दिल तुड़वा लूँ! अब मैं उस वक़्त भौजी के प्यार में इस कदर डूब चूका था की मैंने दिषु की बात को तवज्जो नहीं दी! मैंने बस दिषु का दिल रखने के लिए हाँ में सर हिलाया और गाडी भगाता हुआ घर पहुँचा| मैंने घर के बाहर से ही भौजी को फ़ोन किया और उन्हें तथा बच्चों को बाहर आने को कहा| भौजी और बच्चे बन ठन कर तैयार होकर गली से बाहर आये, मैंने गाडी से बाहर निकल अपना हाथ हिला कर तीनों को अपने पास बुलाया| मुझे गाडी के साथ देख दोनों बच्चे ख़ुशी से उछल पड़े और दौड़ते हुए मेरी तरफ आये|

आयुष: पापा जी ये हमारी गाडी है?

आयुष ने खुश होते हुए पुछा|

मैं: नहीं बेटा ये आपके दिषु चाचा की गाडी है, मैंने उनसे गाडी थोड़ी देर के लिए ली है|

अब आयुष दिषु के बारे में कुछ नहीं जानता था, मेरे दिषु को उसका चाचा बताने से वो थोड़ा हैरान था|

नेहा: दिषु चाचा पापा के bestfriend हैं, तो हमारे चाचा जी हुए न?

नेहा ने आयुष को समझाते हुए कहा| आयुष नेहा की बात सुन हाँ में सर हिलाने लगा और उत्साह से भरते हुए बोला;

आयुष: मैं आगे बैठूँगा!

लेकिन नेहा एकदम से बड़ी बहन का हक़ जताते हुए बोली;

नेहा: नहीं! छोटे बच्चे आगे नहीं बैठते!

नेहा की बात सुन कर आयुष का दिल टूट गया और उसका मुँह बन गया| अब मैं चाहता था की भौजी आगे बैठें मगर उनके आगे बैठने से दोनों बच्चों का दिल टूट जाता इसलिए मुझे कूटनीति अपनानी थी ताकि दोनों बच्चे नाराज न हों!

मैं: आयुष बेटा ऐसा करते हैं की आपकी दीदी आपसे बड़ीं हैं न तो अभी उनको आगे बैठने दो और आप पीछे अपनी मम्मी के साथ बैठो ताकि उनको पीछे डर न लगे| आज पहलीबार मम्मी गाडी में बैठ रहीं हैं न इसलिए आप उनका अच्छे से ख्याल रखना|

मेरी बात सुन कर भौजी मेरी होशियारी समझ गईं, लेकिन फिर भी उन्हें मेरी टाँग खींचनी थी इसलिए वो अपनी चाल चलते हुए बोलीं;

भौजी: मैं नहीं डरती गाडी में बैठने से! मैं कोई छोटी बच्ची थोड़े ही हूँ?!

मैं भौजी की होशियारी जान गया था इसलिए मैंने उन्हें आँख दिखा कर थोड़ा डराया और फिर आयुष को समझाने में लग गया;

मैं: मम्मी को बहुत डर लगता है, वो बस आपसे कहने में डरतीं हैं| आप अभी पीछे बैठ जाओ वापसी में आप आगे बैठ जाना और आपकी दीदी मम्मी के साथ बैठ जाएँगी|

आयुष अच्छा बच्चा था इसलिए वो मेरी बात मान गया, लेकिन भौजी को चुटकी लेने का फिर मौका मिल गया;

भौजी: और मैं? मैं कब आगे बैठूँगी?!

भौजी ने प्यारभरा गुस्सा दिखाते हुए कहा|

मैं: जान आप अगलीबार बैठ जाना!

मैंने प्यार से कहा| भौजी कुछ कहें उससे पहले ही नेहा ने फट से आगे का दरवाजा खोला और आगे बैठ गई, भौजी उसे हैरानी से देखती रहीं की नेहा को गाडी का दरवाजा खोलना कैसे आता है? फिर मैंने पीछे का दरवाजा खोला और भौजी को बैठने को कहा, पर भौजी बैठतीं उससे पहले आयुष घुस गया और पहले बैठ कर ऐसे खुश हुआ मानो उसने कोई खेल जीत लिया हो! उसे यूँ हँसता हुआ देख हम तीनों भी हँसने लगे! भौजी बैठीं और मैंने दरवाजा बंद किया, फिर मैं भी आगे बैठ गया तथा पहले नेहा की seat belt लगाई और फिर अपनी| नेहा की seat belt देख आयुष पीछे seat belt ढूँढने लगा;

मैं: बेटा पीछे seat belt लगाना जर्रूरी नहीं होता, आप बस अपनी मम्मी का हाथ पकड़ कर बैठो कहीं वो डर से रोने न लगे!

मैंने भौजी को छेड़ते हुए कहा|

भौजी: अच्छा जी?!

भौजी ने गाल फुलाते हुए कहा| गाडी चल पड़ी और नेहा ने आगे बैठे हुए अपनी मम्मी को गाडी के बारे में बताना शुरू कर दिया| AC, Radio, खिड़की ऊपर-नीचे करना और गाडी अंदर से lock-unlock करना, ये सब नेहा ने मेरे साथ cab में सीखा था| रास्ते में पड़ने वाली दुकानें, लोग और घरों को देख कर दोनों बच्चे अपनी मम्मी का ध्यान उस ओर खींचते रहते जिससे भौजी का मन लगा हुआ था|

हम Saket Select City Mall पहुँचे, गाडी parking में लगा कर हम तीनों mall की तरफ चल दिए| Entry होते समय security checking होनी थी, अब नेहा ने चौधरी बनते हुए अपनी मम्मी का हाथ पकड़ा और जहाँ महिलाओं की checking होती है वहाँ चली गई| मैंने आयुष का हाथ पकड़ा और security checking करवाने लगा| जब मेरी security checking हो रही थी तो आयुष ये सब बड़े गौर से देख रहा था| जब आयुष की बारी आई तो उसने भी मेरी तरह अपने दोनों हाथ उठा लिए, security guard ने जब ये देखा तो वो झुक गए और आयुष की checking बस दिखावे के तौर पर की, checking के बाद आयुष ने मुस्कुरा कर उनको bye कहा और मेरे पास दौड़ आया, एक छोटे से बच्चे के bye कहने भर से एक इंसान के चेहरे पर जो ख़ुशी आती है वही ख़ुशी security guard के चेहरे पर आ गई थी| उधर नेहा और भौजी अपनी security checking करवा कर बाहर आ गए, भौजी को आज अपनी बेटी पर बहुत गर्व हो रहा था क्योंकि नेहा ने उन्हें security check के बारे में सब समझा दिया था|

खैर mall के अंदर आ कर भौजी, नेहा और आयुष वहाँ की चकाचौंध में खो गए! इतने सारे लोग और सब tiptop कपडे पहने, इतनी खूबसूरत दुकानें जिन्हें देख कर ही उनके महँगे होने का अंदाजा लगाया जा सकता था, Mall में बजता music, escalators पर ऊपर-नीचे जाते लोग! ये दृश्य देख कर तीनों खामोश हो गए थे, बच्चों ने और भौजी ने कभी इस सब की कल्पना नहीं की थी इसलिए उनका चकित होना लाज़मी था|

मैं: बच्चों इस जगह को Mall कहते है| यहाँ बहुत सारी दुकानें होती हैं, कपड़ों की, खाने-पीने की और यहाँ पर फिल्म भी दिखाई जाती है!

फिल्म देखने के नाम से दोनों बच्चे खुश हो गए और कूदने लगे| भौजी ने उन्हें आँख दिखा कर डराया और कूदने से मना करने लगीं|

मैं: यार बच्चे हैं, थोड़ी मस्ती कर लेने दो!

मैंने बच्चों की हिमायत करते हुए कहा|

भौजी: ये तो बहुत महँगी जगह है!

भौजी घबराते हुए बोलीं!

मैं: मेरे परिवार से महँगा कुछ नहीं!

मैंने बिना डरे उनका हाथ पकड़ा और बच्चों के साथ theatre की ओर चल पड़ा| Theatre first floor पर था, मैं भौजी को ले कर escalators की ओर मुड़ गया| Escalators देख कर भौजी डर गईं;

भौजी: इसमें मेरी साडी फँस गई तो?

मैं: जान ये escalators specially design किये जाते हैं जिससे इसमें कुछ नहीं फँस सकता!

मैंने भौजी को हौसला देते हुए कहा|

नेहा: हाँ मम्मी चलो न, खूब मजा आएगा|

नेहा चहकते हुए बोली, लेकिन भौजी थोड़ी डरी हुई थीं| मैंने भौजी का हाथ कस कर पकड़ा और आँखों के इशारे से उन्हें मुझ पर विश्वास रखने को कहा| मैंने भौजी का हाथ पकड़ा तो नेहा ने भी बड़ी बहन बनते हुए आयुष का हाथ पकड़ा और उसे समझाते हुए बोली;

नेहा: देख आयुष तुझे न ऐसे पैर रखना है, कूदना नहीं है वरना गिर जाएगा| फिर जब हम ऊपर पहुँचेंगे न तब ऐसे पाँव बढ़ा कर आगे बढ़ना है! ठीक है?

नेहा ने आयुष को escalators पर चढ़ने तथा उतरने का तरीका समझा दिया था| अब मेरी बारी थी भौजी को समझाने की;

मैं: जान अपना दायाँ कदम आगे बढ़ाओ और ये सोचो की आप मेरे साथ नई जिंदगी शुरू करने जा रहे हो!

मेरी बात सुन भौजी के चेहरे पर मुस्कान आ गई और उन्होंने ठीक वैसे ही किया| हम दोनों escalators पर चढ़ चुके थे, मैंने पीछे मुड़ कर देखा तो नेहा आयुष का हाथ पकडे हुए escalator पर चढ़ चुकी थी| दोनों बच्चों ने अपनी गर्दन इधर-उधर घूमना शुरू कर दिया था और आस-पास की हर चीज को देखना शुरू कर दिया था| इधर भौजी बस escalator की सीढ़ी को ही घूरे जा रही थीं|

मैं: जान अब हम ऊपर पहुँचने वाले हैं, आप ये सोचो की हमारी शादी हो चुकी है और आप मेरे घर में पहलीबार 'प्रवेश' करने वाली हो!

मेरी बात सुन भौजी की आँखें इस कल्पना से चमकने लगी और उन्होंने मेरा हाथ कस कर जकड़ लिया| हम ऊपर पहुँचे और दोनों सम्भल कर escalator से उतरे, भौजी का सारा डर छूमंतर हो चूका था! उधर बच्चे भी हमारे पीछे-पीछे ऊपर पहुँचा गए और escalator से उतरते ही मेरी टाँगों से लिपट गए!

हम चारों theatre पहुँचे, मैं टिकट लेने लगा और उधर नेहा ने गाँव मेरे साथ देखि film के बारे में आयुष को सब बताना शुरू कर दिया| अपनी दीदी की बात सुन आयुष का उत्साह दुगना हो गया था, मगर जो film हमें देखनी थी वो housefull थी! जब टिकट नहीं मिली तो बच्चों का मुँह बन गया;

मैं: Awwww! बेटा film कल देख लेंगे, मैं कल की टिकट पहले book कर लूँगा और आज के लिए....

मैं कुछ सोचने लगा और तभी मुझे कल रात की बात याद आई;

मैं: हम game खलने के लिए controllers ले लेते हैं!

Game controller लेने की बात से दोनों बच्चे खुश हो गए! मैं दोनों बच्चों का हाथ पकड़ कर lift की ओर चल पड़ा, लेकिन बच्चों को escalators में जाना था क्योंकि उन्हें उसमें बहुत मजा आया था!

मैं: बेटा अभी हम lift से चलते हैं, उसमें भी बहुत मजा आता है|

नेहा ने lift की सैर की थी इसलिए उसने आयुष को अपने lift वाले अनुभव के बारे में बताना शुरू कर दिया| नेहा की बात सुन कर भौजी बोल पड़ीं;

भौजी: जब lift थी तो आप मुझे escalator से क्यों लाये? अगर मैं गिर जाती तो?

भौजी अपना झूठा गुस्सा दिखाते हुए बोलीं|

मैं: आपको गिरने थोड़े ही देता! फिर इसी बहाने आपका हाथ पकड़ने का मौका भी तो मिल गया!

मैंने भौजी को छेड़ते हुए कहा| मेरी बात सुन कर भौजी शर्मा गईं और मुस्कुराने लगीं|

हम lift में घुसे और जब वो नीचे आने लगी तो, आयुष तथा भौजी मुझसे कस कर लिपट गए! एक बस नेहा थी जो निडर खड़ी थी तथा आयुष और अपनी मम्मी को देख कर उनके डरने का मजाक उड़ा रही थी!

भौजी: बहुत हँसी आ रही है तुझे!

भौजी नेहा को प्यार से डाँटते हुए बोली| खैर मैंने बच्चों को game controllers खरीदवाए और food court की ओर चल पड़ा| अब भौजी ने यहाँ बहुत सी लड़कियों और औरतों को jeans पहने देखा था तो उनका मन अब jeans पहनने का कर रहा था|

भौजी: बच्चों को तो game controller खरीदवा दिए, अब मुझे भी एक jeans खरीदवा दो!

भौजी बड़े प्यार से माँग करते हुए बोलीं| भौजी को jeans पहने हुए कल्पना कर मेरी आँखें चमकने लगी थीं मगर मैं उन्हें ये surprise देना चाहता था इसलिए मैंने थोड़ी बातें बनाईं और भौजी से उनकी कमर का नाप तथा top का साइज पूछ लिया| भौजी को लगा की मैं उन्हें jeans और top ख़रीदवाऊँगा मगर मैंने बात पलटते हुए कहा;

मैं: यार आप jeans में अच्छे नहीं लगोगे, हम ऐसा करते हैं की आपके लिए साडी ले लेते हैं|

भौजी इतनी भोली थीं की वो मेरी बात में आ गईं और साडी लेने के लिए ख़ुशी-ख़ुशी तैयार हो गईं|

भौजी: ठीक है लेकिन पसंद आप करोगे!

भौजी ने शर्त रखते हुए कहा, अब वो क्या जाने की मेरी पसंद इस मामले में कितनी अच्छी है?!

मैं: ठीक है!

मैंने मुस्कुराते हुए कहा| हम चारों एक अच्छी सी दूकान में घुसे और वहाँ मैंने अपनी पसंद की भौजी को Chiffon की साडी खरीदवाई! मेरी पसंद देख कर भौजी बहुत खुश थीं लेकिन वो साडी थी बहुत महँगी और मैं अपना debit card लाना भूल गया था! जेब में जितने पैसे थे उनसे वो साडी तो आ गई लेकिन cash खत्म हो गया था, भौजी नहीं जानतीं थीं की मेरे पास फिलहाल पैसे नहीं हैं वरना वो साडी लेने से मना कर देतीं| साडी खरीदने के बाद भौजी ने जिद्द पकड़ी की वो मेरे लिए एक शर्ट खरीदेंगी, मैंने कल लेने का बहाना मारा और हम चारों food court की ओर चल पड़े| गाँव में सीखे अपने सबक के चलते मैं हमेशा अपने पर्स में 500/- रुपये अलग से रखता था, ताकि कभी जर्रूरत पड़े तो काम आ जाएँ| आज वही पैसे मेरे काम आने वाले थे, food court में आ कर मैंने बच्चों से पुछा की वो क्या खाएँगे? उधर भौजी ने बाहर लगा हुआ menu पढ़ लिया था इसलिए उन्होंने होशियारी करते हुए कहा;

भौजी: बच्चों आपने corn नहीं खाये न? यहाँ बहुत अच्छे corn मिलते हैं!

भौजी इतने आत्मविश्वास से बोलीं जैसे की वो यहाँ रोज आतीं हों! मैं हैरान होते हुए उन्हें देखने लगा क्योंकि मैं उनकी होशियारी भाँप नहीं पाया था| वहीं बच्चे अपनी मम्मी की बात में आ गाये और corn खाने की माँग करने लगे! मैंने 4 medium corn लिए, दो मसाला कम रखवाया और दो में मसाला तेज रखवाया| जब मैं पैसे देने लगा तब मुझे भौजी की होशियारी समझ आई और मैं मंद-मंद मुस्कुराने लगा| Menu में लिखी सारे खाने की चीज 150/- रुपये से ऊपर थी, पैसे ज्यादा खर्च न हो इसलिए भौजी ने सबसे सस्ती चीज यानी corn खाने के लिए बच्चों को उकसाया था|

Corn खाते- खाते हम गाडी में बैठे, इस बार आयुष आगे बैठा और ख़ुशी से सीट पर बैठे-बैठे नाच रहा था| मैंने गाडी में गाना लगाया और गाडी का rear view mirror भौजी की ओर मोड़ते हुए गाने लगा;

मैं: हाँ तू है हाँ तू है,

मेरी बातों में तू है,

मेरी ख्वाबों में तू,

याददों में तू,

इरादो में तू है!

गाना सुन भौजी इतने प्यार से मुस्कुराईं की मन किया की अभी गाडी रोक कर उन्हें अपनी बाहों में भर लूँ! खैर गाना सुनते हुए हम चारों घर पहुँचे, भौजी तो आते ही माँ के साथ बातों में लग गईं और उन्हें अपनी साडी दिखाने लगीं| भौजी की देखा-देखि दोनों बच्चों ने माँ को घेर लिया और वो भी mall के बारे में माँ को सब बताने लगे|

[color=rgb(226,]जारी रहेगा भाग - 11 में...[/color]
 

[color=rgb(44,]तेईसवाँ अध्याय: अभिलाषित प्रेम बन्धन[/color]
[color=rgb(251,]भाग - 11[/color]


[color=rgb(255,]अब तक आपने पढ़ा:[/color]

Corn खाते- खाते हम गाडी में बैठे, इस बार आयुष आगे बैठा और ख़ुशी से सीट पर बैठे-बैठे नाच रहा था| मैंने गाडी में गाना लगाया और गाडी का rear view mirror भौजी की ओर मोड़ते हुए गाने लगा;
मैं: हाँ तू है हाँ तू है,
मेरी बातों में तू है,
मेरी ख्वाबों में तू,
याददों में तू,
इरादो में तू है!

गाना सुन भौजी इतने प्यार से मुस्कुराईं की मन किया की अभी गाडी रोक कर उन्हें अपनी बाहों में भर लूँ! खैर गाना सुनते हुए हम चारों घर पहुँचे, भौजी तो आते ही माँ के साथ बातों में लग गईं और उन्हें अपनी साडी दिखाने लगीं| भौजी की देखा-देखि दोनों बच्चों ने माँ को घेर लिया और वो भी mall के बारे में माँ को सब बताने लगे|

[color=rgb(97,]अब आगे:[/color]

माँ बड़े चाव से बच्चों की बात सुन रही थीं और बच्चों के भोलेपन से भरी बातों का आनंद ले रहीं थीं| वहीं मैंने अपने कमरे में जा कर दिषु को फ़ोन कर के कल के दिन गाडी अपने पास रखने की इजाजत माँग रहा था, दिषु मेरा भाई समान दोस्त था इसलिए उसे कोई दिक्कत नहीं थी| अब मुझे हुड़क लगी भौजी के लिए jeans और top लेने की तो मैंने अपना कार्ड उठाया और वापस mall आ गया| मैं सीधा pantaloons की shop में घुसा और ladies section में भौजी के लिए jeans और टॉप देखने लगा| Jeans खरीदना तो आसान था क्योंकि उसमें ज्यादा colors के लिए मुझे माथा पछि नहीं करनी पड़ी थी मगर top के लिए मुझे काफी दिमाग लड़ाना पड़ा था| मैंने मन ही मन कल्पना की कि भौजी पर कौन सा रंग फबेगा, भौजी का रंग साफ़ था इसलिए उन पर हर रंग का कपड़ा अच्छा लगता, बाकी रही design की बात तो मैंने तस्वीर में एक model को देखा तो उसी design का top भी खरीद लिया|

भौजी के लिए कपडे खरीद कर मैं घर लौटा और सबसे नजरें बचाते हुए वो कपडे अपने कमरे में छुपा दिए| मैं कपडे बदल कर डाइनिंग टेबल पर आकर बैठ गया और अखबार देखते हुए माँ से चाय माँगी;

मैं: माँ एक कप चाय मिलेगी?

माँ उस समय सब्जी काट रहीं थीं, वो उठते हुए बोलीं;

माँ: रुक बनाती हूँ! बहु तू भी पियेगी?

माँ ने भौजी से पुछा तो भौजी एकदम से बोल पड़ीं;

भौजी: माँ आप बैठो, मैं बनाती हूँ सब पी लेंगे|

भौजी चाय बनाने लगीं इधर माँ ने मेरे से बात शुरू कर दी;

माँ: तो कहाँ गई थी सवारी?

माँ को mall जाने का तो पता चल गया था मगर कौन से mall गए थे ये नहीं पता था|

मैं: हम चारों साकेत mall गए थे, बच्चों को गेम खलने के लिए controllers चाहिए थे, तो मैंने सोचा इन्हें (भौजी को) भी थोड़ा घुमा दूँ| अब कल को कुछ सामान लाना हो और मैं घर पर न हूँ तो ये अकेले जा-आ तो सकें|

मैंने बड़ी चपलता से ये बात कही थी, ताकि माँ के मन में मुझे और भौजी को लेकर कोई शक न रहे! माँ को घूमने-फिरने से कोई आपत्ति नहीं होती थी, फिर उनके लिए मेरा और भौजी का रिश्ता बस देवर-भाभी का था इसलिए उन्होंने मुझसे घूमने-फिरने के बारे में कोई अन्य सवाल-जवाब नहीं किया|

माँ: अच्छा किया|

माँ बोलीं और फिर बच्चों को समझाते हुए बोलीं;

माँ: बेटा ज्यादा कम्पोटर (computer) पर गेम मत खेल करो वरना चस्मा लग जायेगा|

बच्चों ने माँ की बात बड़े ध्यान से सुनी और चश्मा लगने की बात से दोनों थोड़ा घबरा गए थे|

मैं: दरअसल माँ कल रात को दोनों बच्चों को गेम खेलनी थी इसलिए दोनों लड़ रहे थे, अब 2 controllers आ गए हैं तो अब कोई चिंता नहीं है| इन controllers के साथ लम्बी तार है, तो अब हम तीनों computer की screen से दूर बैठ कर आराम से गेम खेल सकते हैं!

मैंने माँ को आश्वस्त करते हुए कहा| बच्चे जान गए थे की इस तरह गेम खेलने से उन्हें चश्मा नहीं लगेगा इसलिए दोनों बच्चे फिर से चहकने लगे! बच्चों को चहकता देख भौजी ने उन्हें झूठ-मूठ के गुस्से से देखने लगीं और मुझे माँ से डाँट पड़वाने के लिए माँ से मेरी शिकायत करते हुए बोलीं;

भौजी: माँ देखो न, रात-रात भर तीनों गेम खेलते हैं?

माँ जानती थीं की भौजी की ये शिकायत दिखावटी है, इसलिए माँ ने उनकी बात हलके में लेते हुए कहा;

माँ: बहु तू चिंता मत कर, माना की ये लड़का (मैं) बहुत शरारती है मगर ये अपनी जिम्मेदारियाँ समझता है! फिर एक आध बार तो चलता है!

माँ हँसते हुए बोलीं| माँ का यूँ एकदम से बच्चों की तरफदारी करने से मुझे हँसी आ गई| जब मैं छोटा था और पिताजी मेरी पढ़ाई को ले कर सख्त हो गए थे तब एक माँ थीं जो मेरा पक्ष लिया करतीं थीं तथा मुझे थोड़ी बहुत मस्ती करने दिया करतीं थीं|

चाय बन रही थी तथा बच्चे अपनी पढ़ाई में लगे हुए थे, मैं डाइनिंग टेबल से उठा और भौजी को आँख मारते हुए कमरे में आने का इशारा किया| दो मिनट बाद भौजी चाय लेके कमरे में आ गईं;

मैं: चाय रखो टेबल पर और यहाँ बैठ कर अपनी आँखें बंद करो|

मैंने भौजी को आदेश देते हुए कहा| आँख बंद करने का सुन कर भौजी खुश हो गईं और बोलीं;

भौजी: एक और सरप्राइज?! लो कर ली आँखें बंद!

भौजी ने एकदम से अपनी आँखें बंद कर ली| मैंने भौजी के लिए लाये हुए jeans और top निकाले और भौजी के सामने रखते हुए बोला;

मैं: अब आँखें खोलो!

आँखें खोलते ही भौजी ने कपड़ों को देखा और अस्चर्य से आँखें बड़ी करते हुए बोलीं;

भौजी: ये...पर.आपने तो कहा था की ये कपडे मुझ पर अच्छे नहीं लगेंगे?!

मैं: वो इसलिए बोला था क्योंकि एक तो मैं आपको सरप्राइज देना चाहता था और दूसरा मैं अपना debit card घर पर भूल गया था!

मैंने मुस्कुराते हुए कहा|

भौजी: ओह्ह! तो आप पहले घर आये हमें छोड़ा, फिर अपना debit card लिया और फिर दुबारा गए?! हे भगवान!!!

भौजी अपना माथा पीटते हुए बोलीं| अब उन्हें एक और बात समझ आई;

भौजी: एक मिनट...एक मिनट....एक मिनट! तो इसीलिए आपने मुझे अपने लिए शर्ट नहीं लेने दी न?

भौजी थोड़ा नाराज होते हुए बोलीं|

मैं: हाँ जी!

मैंने मुस्कुरा कर कहा| मेरे मुस्कुराने से भौजी की नाराजगी कुछ शांत हुई और वो ख़ामोशी से कुछ सोचने लगीं| उन्हें यूँ सोचता हुआ देख मैं जान गया की वो मेरे surprise के बदले जर्रूर अपना surprise देंगी और इस चक्कर में पैसे फूँकेंगी इसलिए मैंने उन्हें प्यार से आगाह करते हुए कहा;

मैं: और मैडम सुन लो, Don't you dare surprise me by buying an expensive shirt?!

मेरी बात सुन कर भौजी सर झुका कर बड़ी हलकी आवाज में बुदबुदाई;

भौजी: मेरे पास पैसे ही कहाँ हैं?

भौजी को लगा की मैंने उनकी बात नहीं सुनी मगर उनकी ये बात मेरे दिल को बहुत चुभी थी! वो शक़्स जिससे मैं बिन्तेहा प्यार करता हूँ उसी के पास अगर पैसे न हों तो लानत है मेरे प्यार पर?! मैंने फ़ट से अपना पर्स उठाया और अपना डेबिट कार्ड निकाल कर देते हुए कहा;

मैं: ये लो और इसे सँभाल कर रखो!

Debit card देख कर भौजी की आँखें बड़ी हो गईं और वो मुझसे सवाल करने लगीं;

भौजी: पर किस लिए?

मैं: आज के बाद कभी भी....कभी भी मत कहना की आपके पास पैसे नहीं हैं! समझे? और कल ही आप मुझे एक अच्छी सी शर्ट दिलवाओगे!

मैंने थोड़ा गुस्से से भौजी को डाँटते हुए कहा|

भौजी: लेकिन मैं ये नहीं ले सकती, ये आपके पैसे हैं!

भौजी debit card लेने से मना कर रहीं थीं और मुझे उनकी इस हरकत पर थोड़ा गुस्सा आने लगा था|

मैं: Hey I'm not asking you, I'm ordering you. NOW KEEP IT!

मैंने गुस्से से कहा तो भौजी का सर डर के मारे झुक गया| भौजी की ईमानदारी सही थी मगर प्यार में मुझे ये सब मेरा-तुम्हारा करना अच्छा नहीं लगता था! मैंने अपना गुस्सा शांत किया और भौजी से थोड़ा मजाक करते हुए बोला;

मैं: अच्छा ये बताओ, ये मेरा और तुम्हारा हमारे बीच कब से हो गया? ये दिल भी तो मेरा था, फिर क्यों ले लिया आपने? उस समय तो नहीं कहा की ये आपका है?!

मेरी बात सुन कर भौजी थोड़ा मुस्कुराईं और थोड़ा शर्मा भी गईं| उनके मुस्कुराने पर मैंने debit card फिर उनकी ओर बढ़ाया लेकिन भौजी ने अभी भी card नहीं लिया;

भौजी: पर....

भौजी आगे कुछ बोलतीं उससे पहले ही मैंने उनकी बात काट दी और जबरदस्ती करने लगा;

मैं: पर-वर कुछ नहीं! जो कह रहा हूँ वो करो!

मैंने हक़ जताते हुए कहा|

भौजी: अच्छा, मुझे जब जर्रूरत होगी, मैं आपसे माँग लूँगी!

भौजी तर्क करते हुए बोलीं|

मैं: अच्छा? कल को आपका मन मुझे surprises देने का हो और मैं अगर घर पर न हुआ तो?

मैंने भौजी के तर्क का जवाब देते हुए कहा|

भौजी: लेकिन मुझे ये card इस्तेमाल करना कहाँ आता है?

भौजी फिर तर्क करने लगीं, जो किसी हद्द तक जायज भी था क्योंकि मैंने उन्हें card इस्तेमाल करना सिखाया नहीं था|

मैं: वो मैं आपको कल सिखा दूँगा!

मैंने उनके तर्क का सुलझा हुआ जवाब देते हुए कहा|

भौजी: और अगर आपको जर्रूरत होगी तो?

भौजी फिर तर्क करने लगीं!

मैं: मेरे पास checkbook है|

भौजी और कोई तर्क करें उससे पहले ही मैंने उन्हें अपनी कसम से बाँध दिया;

मैं: आपको मेरी कसम, अब ये सवाल-जवाब बंद करो और इसे (debit card को) संभाल के रखो!

ये कहते हुए मैंने debit card भौजी की मुट्ठी में थमा दिया और उन्हें अपने गले लगा लिया| मेरे गले लगने से भौजी के दिल में प्यारी सी हलचल उठी! भौजी ने debit card ले लिया था मगर मैं जानता था की वो उसे बिना मुझसे पूछे कभी इस्तेमाल नहीं करने वाली लेकिन फिलहाल मेरे लिए इतना ही काफी था की उन्होंने card अपने पास रख लिया है|

हमारे गाँव में औरतों के नाम जमीन जायदाद, घर-द्वार, बैंक आदि जैसी चीजें कभी नहीं की जातीं| अगर किसी आदमी ने गलती से अपनी पत्नी के नाम का बैंक account खुलवा लिया तो सारे बूढ़े-बुजुर्ग मिल कर उसे ताने मारने लगते हैं और कहते हैं की वो आदमी अपनी बीवी का गुलाम है! इसी सोच के चलते चन्दर भौजी को कोई पैसे नहीं देता था, भौजी के पास जो भी थोड़े बहुत पैसे थे वो उन्हें या तो अपने मायके से मिले होंगे या फिर कहीं शादी-ब्याह में मिले होंगे! भौजी के पास पैसे न होने वाली बात से मेरा दिल कचोट उठा था और इसीलिए मैंने उन्हें अपना debit card दिया था|

खैर मैं चाय पीने लगा की अचानक ही मन में भौजी को उन कपड़ों (jeans और top) में देखने की लालसा जाग उठी थी!

मैं: अच्छा सुनो, कल आप यही कपडे पहनना|

मेरा इतना कहना था की भौजी अपने दोनों गालों पर हाथ रखते हुए चौंक कर बोलीं;

भौजी: Hwwwwwwwww!!!

उनके यूँ चौंकने से मैं मुस्कुराने लगा और बोला;

मैं: क्या 'hwwwww'?! सुनो मेरी बात, कल ये कपडे अपने साथ ले लेना, हम सीधा mall चलेंगे और वहाँ बाथरूम में जाके कपडे बदल लेना! फिर हम film देखेंगे, खाएंगे-पीयेंगे और वापसी में फिर कपडे बदल लेना|

मैंने भौजी को समझाते हुए कहा, मगर भौजी को आ रही थी शर्म और अपनी शर्म के चलते उन्होंने बच्चों का बहाना मारा;

भौजी: और बच्चे?

मैं: वो कुछ नहीं कहेंगे|

मैं भौजी का बहाना जानत गया था इसलिए मैंने उनके बहाने का जवाब बड़े इत्मीनान से दिया| लेकिन भारतीय नारी शर्म न करे ऐसा कैसे हो सकता है?!

भौजी: न बाबा न! मुझे शर्म आएगी!

भौजी ने अपना चेहरा छुपाते हुए कहा|

मैं: Come on यार!

मैंने थोड़ी मिन्नत करते हु कहा तो भौजी का दिल पिघल गया और वो मुस्कुराते हुए बोलीं;

भौजी: ठीक है जानू!

भौजी के हाँ कहने से मैं खुश हो गया और उन्हें गले लगना चाहा मगर तभी आयुष अपनी किताब ले कर आ गया| आयुष के आने पर भौजी बाहर चली गईं और मैं आयुष को गोदी में बिठा कर पहले तो थोड़ा दुलार किया और फिर मैं आयुष को पढ़ाने लगा| आयुष का हाथ पकड़ कर अंग्रेजी के alphabet लिखने में मुझे बड़ा आनंद आ रहा था| आयुष को पढ़ाते हुए मुझे मेरा बचपन याद आ गया, पिताजी भी मुझे कुछ-कुछ इसी तरह पढ़ाते थे| पिताजी के पढ़ाने में और मेरे पढ़ाने में बस प्यार का फर्क था| पिताजी मुझे पढ़ाते समय बिलकुल कठोर अध्यापक बन जाते थे, जबकि मुझे आयुष को पढ़ाने में बहुत आनंद आ रहा था! खैर पिताजी के कठोर होने का कारन भी था, उन्हें मुझसे बहुत सारी उमीदें थीं जबकि मुझे बस आयुष पर प्यार आ रहा था!

रात का खाना खा कर मैंने जल्दी से बच्चों को सुला दिया| इधर कल भौजी को jeans-top में देखने की ख़ुशी ने मुझे सोने ही नहीं दिया, पूरी रात मैंने गिन-गिन कर काटी! सुबह की पहली किरण निकलते ही मैं नहाने घुस गया, बच्चों के उठने तक मैं तैयार हो चूका था| बच्चों को प्यार करते हुए उठाया और तैयार कर के school van में बिठाया तथा वहीं से सीधा साइट पर निकल गया| पिताजी अभी घर पर ही थे और उनके साइट पर पहुँचते-पहुँचते मैंने दोनों साइट पर माल उतरवा दिया था| एक साइट से दूसरी साइट के बीच दौड़ते हुए मैंने सब काम संभाल लिया था| पिताजी मेरे इस जोश को देख कर बहुत खुश थे, इसलिए जैसे ही बारह बजे मैंने पिताजी से बच्चों को film दिखाने के लिए छुट्टी माँगी तो पिताजी ने ख़ुशी-ख़ुशी छुट्टी दे दी! यही तो मेरा प्लान था, पहले पिताजी को खुश करो और बाद में आधे दिन की छुट्टी मारो!

मैं साइट से चल पड़ा और रास्ते में ही मैंने मोबाइल से तीन टिकट बुक कर ली तथा पौने घंटे में मैं घर पहुँच गया| अब मुझे सम्भल कर माँ से भौजी को बच्चों के साथ फिल्म देखने ले जाने की बात करनी थी, ताकि माँ को कोई शक न हो!

मैं: माँ...वो... बच्चों को मैंने वादा किया था की आज उन्हें फिल्म दिखाऊँगा....तो मैं ले जाऊँ उन्हें?!

मैंने सोच-सोच कर पुछा|

माँ: आज बड़ा पूछ रहा है मुझसे?

माँ भोयें सिकोड़ कर बोलीं| अब मुझे कोई जवाब सूझ नहीं रहा था तो मैंने अपनी नजरें फ़ोन में गड़ा ली|

माँ: अरे ले जा बेटा, मैंने कब मना किया!

माँ प्यार से बोलीं तो मेरी झिझक थोड़ी कम हुई|

मैं: जी ठीक है!

मैं उम्मीद कर रहा था की माँ खुद कहेंगी की; 'अपनी भौजी को भी ले जा', मगर माँ ने कुछ नहीं कहा| अब कैसे न कैसे कर के मुझे माँ को मनाना था ताकि मैं भौजी को भी अपने साथ ले जा सकूँ, लेकिन बात कैसे शुरू करूँ?!

इधर मैं बहाना सोच रहा था और उधर भौजी ने रसोई में थोड़ी आवाज कर के सब्जियाँ काटना शुरू कर दिया था| ये भौजी का उल्हाना देना का ढँग था की मैं जल्दी से कोई बहना सोचूँ, मैंने घडी पर नजर डाली तो पता चाला की बच्चों के आने में बस एक घंटा रह गया है| मैंने दिमाग पर जोर डालना शुरू कर दिया मगर कोई बहाना सूझ ही नहीं रहा था! अब पहले की बात और थी, तब मेरी उम्र कम थी और मुझे भौजी के साथ जाने के लिए इतना दिमाग नहीं लड़ाना पड़ता, क्योंकि माँ मेरा बचपना सोच कर जाने देतीं! लेकिन अब मैं जवान हो चूका था, दाढ़ी- मूछ उग चुकी थी और माँ से भौजी को फिल्म दिखाने ले जाने की बात कहने में मेरी जान सूख रही थी!

वहीं ऊपर वाले को मेरी हालत पर तरस नहीं आ रहा था तभी तो उन्होंने पड़ोस में रहने वाली कमला आंटी को हमारे घर भेज दिया| आंटी ने आके माँ से कहा की लंच के बाद उनकी किसी जान-पहचान वाले के यहाँ एक साडी बेचने वाला आने वाला है, इसलिए वो माँ और भौजी अपने साथ चलने का कहने आईं थीं| सभी हिन्दुस्तानी ग्रहणी की तरह माँ को भी साडी खरीदने का शौक था इसलिए उन्होंने कह दिया की वो लंच के बाद भौजी के साथ सीधा आ जायेंगी| माँ की बात सुन कर मैं फिर सोच में पड़ गया की भौजी को इस झमेले से कैसे निकालूँ? मैंने माँ से नजर बचाते हुए भौजी को देखा और उन्हें इशारा किया की वो ही माँ से फिल्म जाने की बात करें, भौजी मेरा इशारा समझ गईं लेकिन थोड़ी-बहुत शर्म तो उन्हें भी आ रही थी!

भौजी: माँ.... मैं भी पिक्चर देखने जाऊँ?

भौजी ने थोड़ा डरते हुए माँ से कहा|

माँ: बच्चों के साथ? ठीक है बहु!

माँ ने बड़ी आसानी से जाने की इज्जत दे दी थी और हम दोनों बेकार में ही उनसे पूछने को हिचक रहे थे! माँ के हाँ कहने से हम दोनों के चेहरे पर ख़ुशी आ गई थी, फिर अचानक माँ ने सवाल पूछ लिया;

माँ: लेकिन बहु तुझे साड़ियाँ नहीं खरीदनी?

मैं माँ के हाँ कहने से इतना हवा में उड़ रहा था की मैंने अपने 'अति आत्मविश्वास' में कहा;

मैं: अरे भैया, कहाँ आपकी पुराने design की साड़ियाँ और कहाँ इनकी नए जमाने की पसंद! फिर सारी तो आंटी होती हैं वहाँ!

मैंने ये बात थोड़ा मजाक में कही थी और माँ ने भी इसे मजाक की तरह लेते हुए कहा;

माँ: अच्छा बाबा! ले जा!

माँ ने मजाक में मेरे आगे हाथ जोड़ते हुए कहा| लेकिन भौजी को मेरी बात लग गई, उन्हें मेरा यूँ मजाक उड़ाना पसंद नहीं आया! वो मेरी माँ को अपनी माँ की तरह मानती थीं और उनकी माँ से अच्छी जमती भी थी, इसीलिए वो माँ का मान रखते हुए बोलीं;

भौजी: माँ ऐसा नहीं है, ये अपनी बात कर रहे हैं! मैं तो आपके साथ साड़ियाँ देखने ही जाऊँगी!

भौजी के एकदम से पलट जाने से मैं हक्का-बक्का हो गया| मैंने माँ से नजर चुराते हुए भौजी को थोड़ा घूरा और मन ही मन बोला; 'यार ये आप क्या कर रहे हो?'

माँ: नहीं बहु तेरा मन पिक्चर देखने का है तो पिक्चर देख ले, साडी हम फिर कभी ले लेंगे|

माँ भौजी को प्यार से समझाते हुए बोलीं|

मैं: और क्या, माँ ठीक तो कह रही है|

मैं भी मौका पा कर माँ के साथ हो लिया और फिर से भौजी को घूर कर देखने लगा ताकि वो फिल्म देखने के लिए तैयार हो जाएँ, मगर भौजी माँ की ख़ुशी चाहतीं थीं इसलिए वो अपनी बात से टस से मस नहीं हुईं;

भौजी: नहीं माँ, आज तो आप और मैं साडी ही खरीदेंगे|

भौजी मुस्कुराते हुए बोलीं| माँ को साडी खरीदने के लिए साथी मिल गया था इसलिए उन्होंने दुबारा भौजी को फिल्म देखने जाने के लिए नहीं कहा और इधर मेरे मूड की 'लग' चुकी थी!

[color=rgb(226,]जारी रहेगा भाग - 12 में...[/color]
 

[color=rgb(44,]तेईसवाँ अध्याय: अभिलाषित प्रेम बन्धन[/color]
[color=rgb(251,]भाग - 12[/color]


[color=rgb(255,]अब तक आपने पढ़ा:[/color]

मैं भी मौका पा कर माँ के साथ हो लिया और फिर से भौजी को घूर कर देखने लगा ताकि वो फिल्म देखने के लिए तैयार हो जाएँ, मगर भौजी माँ की ख़ुशी चाहतीं थीं इसलिए वो अपनी बात से टस से मस नहीं हुईं;

भौजी: नहीं माँ, आज तो आप और मैं साडी ही खरीदेंगे|

भौजी मुस्कुराते हुए बोलीं| माँ को साडी खरीदने के लिए साथी मिल गया था इसलिए उन्होंने दुबारा भौजी को फिल्म देखने जाने के लिए नहीं कहा और इधर मेरे मूड की 'लग' चुकी थी!

[color=rgb(97,]अब आगे:[/color]

अब
मरता क्या ना करता, बच्चों से फिल्म दिखाने का वादा जो किया था| मैं उठा और बच्चों को लेने चल दिया, school van से उतरते ही मुझसे लिपट गए तथा फिल्म देखने जाने का शोर मचाने लगे! मैंने दोनों बच्चों को गोद में उठाया और घर की ओर चल पड़ा, रास्ते में नेहा ने फिर से आयुष को गाँव में मेरे साथ देखि फिल्म के बारे में बताना शुरू कर दिया| हैरानी की बात ये थी की आयुष जब भी वो बातें सुनता था तो ख़ुशी से तालियाँ बजाने लगता था, जैसे हर बार उसे ये बात सुनने में मजा आता हो!

घर पहुँच कर भौजी ने दोनों बच्चों को तैयार किया और उन्हें समझाने लगीं;

भौजी: बेटा बाहर है न पापा को तंग मत करना और कुछ खाने-पीने की बेकार जिद्द मत करना!

मैं कमरे में अपना पर्स लेने आया था, मैंने भौजी की बात सुन ली और उन्हें टोकते हुए बोला;

मैं: क्यों जिद्द नहीं करना? मेरे बच्चे हैं, वो जो चाहेंगे वो खाएँगे-पीयेंगे!

मेरा यूँ बच्चों के ऊपर हक़ जताना भौजी को अच्छा लगता था, लेकिन आज मेरा भौजी को टोकने का कारन कुछ और था! मैं उन्हें मेरा plan चौपट करने के लिए उलहाना देना चाह रहा था, जो की शायद भौजी समझ चुकी थीं तभी तो उनके चेहरे पर शरारत भरी मुस्कान थी!

तैयार हो कर बाप-बेटा-बेटी घर से निकले, अभी हम गली में थे जब आयुष चहकते हुए बोला;

आयुष: पापा जी आज भी हम गाडी में जाएँगे?

जिस भोलेपन से आयुष ने पुछा था मुझे उस पर प्यार आ गया और मैंने उसे गोद में उठा लिया|

मैं: हाँ जी बेटा!

गाडी में घूमने के नाम से दोनों बच्चों ने शोर मचाना शुरू कर दिया| जब हम गाडी के पास पहुँचे तो इस बार दोनों बच्चों ने आगे बैठने के लिए लड़ाई नहीं की बल्कि नेहा ने बड़ी बहन बनते हुए अपना बड़प्पन दिखाया और बोली;

नेहा: आयुष तू अभी आगे बैठ जा वापसी में मैं बैठ जाऊँगी!

पहले आगे बैठने की बात से आयुष खुश हो गया और फ़ट से आगे बैठ गया| हम तीनों mall पहुँचे और escalators से होते हुए theatre में घुसे| Theatre में घुसते ही दोनों बच्चों की नजर सबसे पहले food counter पर पड़ी, खाने-पीने की चीज देख कर दोनों बच्चे ललचा गए मगर मुझसे कुछ नहीं बोले| आयुष चूँकि छोटा था तो उसने हिम्मत कर के खाने के लिए कुछ माँगना चाहा, लेकिन तभी नेहा ने उसका हाथ दबा कर चुप रहने को कहा, मैंने दोनों भाई-बहन की हरकत पकड़ ली थी इसलिए मैं दोनों के सामने एक घुटना मोड़ कर बैठा और उन्हें समझाते हुए बोला;

मैं: बेटा मैं आपका पापा हूँ, आपको अगर कुछ खाना होता है, कहीं घूमना होता है, कुछ खरीदना होता है तो मुझसे माँगना आप दोनों का हक़ है! आपकी माँग जायज है या नहीं, या फिर मैं उसे पूरा कर सकता हूँ या नहीं इसका फैसला मैं करूँगा! Okay?

ये सुन कर दोनों बच्चों के चेहरे पर मुस्कराहट आ गई!

मैं: अब बताओ आप दोनों को क्या खाना है?

इतना सुनना था की आयुष ने फ़ौरन popcorn की ओर इशारा कर दिया और नेहा ने cold drink की ओर| मैंने दोनों को popcorn और cold drink खरीद कर दी तथा उन्हें ले कर auditorium खुलने तक बाहर बैठ गया| दोनों बच्चे बारी-बारी मुझे खिलाते और फिर खुद खाते, मैंने दोनों बच्चों को multiplex के बारे में बताना शुरू किया| एक साथ 4 अलग-अलग फिल्में 4 auditorium में चलने के नाम से दोनों बच्चे अचंभित थे और उन्हें लग रहा था की हम किसी भी auditorium में घुस कर फिल्म देख सकते हैं| मैंने उन्हें समझाया की हमने जिस फिल्म की टिकट ली है हम बस उसी auditorium में जा सकते हैं|

खैर 5 मिनट बाद मैं दोनों को ले कर auditorium में घुसा, हमारी सीट सबसे ऊपर थी तो मैंने दोनों बच्चों को सम्भल कर सीढ़ी चढ़ने को कहा| लेकिन इतना बड़ा auditorium देख कर दोनों बच्चों का ध्यान वहीं लगा हुआ था, ऊपर से screen पर advertisement चल रहे थे तो बच्चे खड़े हो कर बड़े चाव से screen देख रहे थे! मैंने दोनों को गोद में उठाया और हमारी सीट तक ले आया| हमारी सीट शुरू में ही थी इसलिए मैंने दोनों बच्चों को गोदी से उतारा, मैं बीच वाली सीट में बैठा और बच्चों को अपनी अगल-बगल वाली सीट पर बिठाया| दोनों बच्चों की नजरें screen पर टिकी थीं, बच्चों के लिए ये अनुभव नया था और मैं ख़ामोशी से उन्हें इस अनुभव का आनंद लेते हुए देख रहा था| कुछ देर बाद नेहा मुस्कुराते हुए मुझसे बोली;

नेहा: पापा जी ये सिनेमा तो गाँव वाले से बहुत-बहुत अच्छा है! यहाँ AC है, मुलायम कुर्सी है, कितने सारे लोग हैं और पर्दा भी कितना साफ़ है!

नेहा की ख़ुशी उसकी बातों से झलक रही थी, मैंने उसके सर पर हाथ फेरा और बोला;

मैं: बेटा वो गाँव देहात है, वहाँ इतनी सहूलतें नहीं हैं और न ही वहाँ कोई पैसा खर्चा करता है!

नेहा को मेरी बात कुछ-कुछ समझ आई और वो मुस्कुराते हुए पॉपकॉर्न खाने लगी| इधर आयुष ने मुझे popcorn खिलाना चाहा और उधर नेहा ने मुझे cold drink पीने के लिए दी!

फिल्म शुरू हुई और दोनों बच्चे बड़े चाव से फिल्म देखने लगे, आयुष आज पहलीबार फिल्म देख रहा था तो उसके मन में बहुत सारे सवाल थे जैसे की हीरो कौन है, हीरोइन कौन है, वो दादाजी कौन हैं आदि! आयुष के बार-बार सवाल पूछने से नेहा परेशान हो रही थी इसलिए उसने चिढ़ते हुए आयुष को डाँटा;

नेहा: तू चुप-चाप फिल्म देख मैं बाद में तुझे बताऊँगी!

बहन की डाँट खा कर आयुष खामोश हो गया| मैंने आयुष को अपनी गोद में बिठाया और उसके सर को चूम कर खुसफुसाते हुए सब समझाने लगा| नेहा का ध्यान फिल्म पर था इसलिए उसे बाप-बेटे की बातों का पता नहीं चला था| फिल्म में जब गाना आया तो नेहा ने अपनी प्यारी सी आवाज में वो गाना गुनगुनाना शुरू कर दिया| मैंने जब नेहा का गुनगुनाना सुना तो मुझे नेहा पर भी बहुत प्यार आया और मैने नेहा के सर पर हाथ रख दिया, नेहा ने मेरी तरफ देखा और शर्मा कर खामोश हो गई! मैंने अपना हाथ नेहा के कँधे पर रखा और उसका सर अपने बाजू से टिका लिया| अब मैं कभी आयुष का सर चूमता तो कभी नेहा का! इसी तरह प्रेम से हम बाप-बेटा-बेटी ने फिल्म देखि, फिल्म खत्म हुई तो बच्चों को आज कुछ ख़ास खिलाने का मन था| मैंने आज उन्हें Al-bake का पनीर शवरमा खिलाना था, हालाँकि मैं चिकन शवरमा खाना चाहता था मगर बच्चों को non-veg नहीं खिलाना चाहता था इसलिए मैंने पनीर शवर्मा मँगाया| जब बच्चों ने शवरमा खाया तो दोनों बच्चे एक साथ ख़ुशी-ख़ुशी अपना सर दाएँ-बाएँ हिलाने लगे!

खाना खा कर हम घर की ओर निकले, नेहा आगे बैठी थी और उसने रेडियो पर गाना लगा लिया| ये गाना दोनों बच्चों को आता था तो दोनों एक साथ गाना-गाने लगे, दोनों का गाना सुन कर मेरा मन प्रफुल्लित हो उठा और मैं भी दोनों बच्चों के साथ गाने लगा! बच्चों को अपने पापा का साथ मिला तो दोनों जोश में आ गाये, फिर क्या था घर आने तक दोनों बच्चों ने गाडी में जो उधम मचाया की क्या कहूँ?!

आठ बजे मैं नेहा को पीठ पर और आयुष को गोद में ले कर दाखिल हुआ, उस समय घर में सब मौजूद थे बस एक चन्दर था जो आज नॉएडा वाली साइट पर overtime देख रहा था| दोनों बच्चों को चहकते हुए देख पिताजी मुस्कुराते हुए बोले;

पिताजी: अरे वाह भई! घुम्मी करके आ रहे हो सब?!

पिताजी की बात सुन दोनों बच्चे दौड़ कर उनके पास गए और उनके पाँव छुए| मैं पिताजी के सामने बैठ गया, नेहा कूदती हुई मेरे पास आई और मेरी गोदी में बैठ गई| अब आयुष ने अपनी भोली सी भाषा में पिताजी को फिल्म की कहानी सुनानी शुरू की;

आयुष: दादा जी..हम ने न....फिल्म देखि! उसमें न ...वो सीन था जब.....!

आयुष अपनी टूटी-फूटी भाषा में फिल्म की कहानी सुना रहा था, मुझे उसका कहानी सुनाने का ढँग बहुत मजेदार लग रहा था और मैं बड़े प्यार से उसे कहानी सुनाते हुए देख रहा था| नेहा जो मेरी गोद में बैठी थी, वो बार-बार आयुष को टोक कर फिल्म की कहानी ठीक कर रही थी| दोनों बच्चों को इस तरह जुगलबंदी करते देख मुझे बहुत आनंद आ रहा था, इतना आनंद की मैं भौजी के मेरा plan चौपट करने वाली बात को भूल चूका था| उधर भौजी रसोई में खड़ीं खाना बनाते हुए घूंघट की आड़ से मुझे देख रहीं थीं और मुस्कुरा रहीं थी| वो अपने फिल्म देखने न जा पाने से बिलकुल दुखी नहीं थीं, बल्कि मुझे बच्चों के साथ भेज कर उन्हें बड़ा गर्व महसूस हो रहा था|

कुछ पल बाद जब मैंने भौजी की ओर देखा तो उन्हें खुश देख मैं उनके मन के भाव समझ गया| उनका यूँ माँ के साथ समय बिताना और मुझे बच्चों के साथ भेज देना मेरे पल्ले पड़ चूका था| दोपहर में भौजी का मेरे साथ न जाने से जो मूड खराब हुआ था वो अब ठीक हो चूका था और अब मुझे उनपर थोड़ा-थोड़ा प्यार आने लगा था|

रात के खाने के बाद भौजी मेरे कमरे में आईं, बच्चे पलंग पर बैठे आपस में खेल रहे थे और मैं बाथरूम से निकला था;

भौजी: Sorry जानू!!!

भौजी कान पकड़ते हुए किसी बच्चे की भाँती भोलेपन से बोलीं|

मैं: अब आपको सब को खुश रखना है तो रखो खुश!

मैंने भौजी को उल्हाना देते हुए कहा| मैं उनसे नाराज नहीं था बस उन्हें jeans-top पहने हुए न देखपाने का दर्द जताना चाहता था!

भौजी: अच्छा बाबा, कल हम पक्का फिल्म देखने चलेंगे!

भौजी मुझे मनाने के लिए प्यार दिखते हुए बोलीं|

मैं: अच्छा? और मैं रोज-रोज माँ को क्या बोलूँगा? कल बच्चों को फिल्म दिखाई थी और आज आपको अकेले फिल्म दिखाने ले जा रहा हूँ?

मैंने भौजी से शिकायत करते हुए कहा|

भौजी: तो फिर कभी चलेंगे|

भौजी ने मेरी बात को हलके में लेते हुए कहा|

मैं: और वो कपडे कब पहनके दिखाओगे?

भौजी मेरे दिल की तड़प नहीं पढ़ पा रहीं थीं, इसलिए मैंने अपने दिल की बात उनके सामने रखते हुआ कहा|

भौजी: अभी थोड़ी देर बाद!

भौजी एकदम से बोलीं!

मैं: मजाक मत करो!?

मैंने भौजी को थोड़ा गुस्सा करते हुए कहा|

भौजी: सच जानू! आज आपके भैया देर से आएंगे, तो.....that means we've plenty of time together!

भौजी मुझे आँख मारते हुए बोलीं!

मैं: ठीक है! लेकिन इस बार आपने कुछ किया ना तो मैं आपसे बात नहीं करूँगा!

मैंने भौजी को डराते हुए कहा|

भौजी: नहीं बाबा! आज पक्का!

भौजी ने मुस्कुराते हुए कहा| भौजी को jeans-top में देखने के नाम से मेरा दिल रोमाँच से भर उठा था!

चलो भई आज रात का सीन तो पक्का हो गया था, अब मुझे सीन के लिए झूठ बोलने की तैयारी करनी थी| मैंने दिषु को फोन किया और उसे बड़े उत्साह से अपना प्लान समझा दिया, मेरा उत्साह सुन दिषु बस हँसे जा रहा था! वहीं भौजी ने जब मेरी planning सुनी तो वो भी मुस्कुराने लगीं!

मैंने जल्दी से भौजी को उनके घर भेज दिया और बच्चों को सुलाने लगा, आज की धमाचौकड़ी के बाद बच्चे थक गए थे इसलिए उन्हें सुलाना ज्यादा मुश्किल नहीं था| बच्चों को सुला कर मैं माँ के साथ बैठ कर टी.वी. देखने लगा, जैसे ही घडी में दस बजे दिषु ने मेरा फ़ोन खड़का दिया| मैंने माँ के पास बैठे-बैठे ही फ़ोन उठा लिया और माँ सुन लें इतनी तेज आवाज में उससे बात करने लगा;

मैं: हेल्लो?!

दिषु: भाई तेरी मदद चाहिए!

मैंने पहले ही फ़ोन की आवाज तेज कर दी थी, जिससे जब मैं दिषु से बात करूँ तो माँ उसकी बात सुन लें और उनके मन में कोई शक न रहे|

मैं: क्या हुआ? तू घबराया हुआ क्यों है?

मेरी बात सुन माँ हैरान हो गई, उन्होंने टी.वी. की आवाज बंद की और मेरी बातें ध्यान से सुनने लगीं|

दिषु: यार मेरे चाचा के लड़के का एक्सीडेंट हो गया है, उसकी मोटर साइकिल disbalance हो गई और उसके पाँव में चोट आई है, तू फटाफट trauma center पहुँच!

दिषु की बात सुन मैंने घबराने की बेजोड़ acting की और बोला;

मैं: मैं अभी आ रहा हूँ!

मैंने फ़ोन काटा और माँ की तसल्ली के लिए उन्हें एक बार फिर सारी बात बता दी| बहाना जबरदस्त था और माँ ने जाने से बिलकुल मना नहीं किया, मैं जिस हालत में था उसी हालत में गाडी की चाभी ले कर निकल गया| कपडे बदलने लगता तो हो सकता था की माँ पिताजी को बात बता दें, मैंने गाडी निकाली तथा कुछ दूरी पर underground parking में खड़ी की ताकि अगर पिताजी बाहर निकलें तो गाडी खड़ी देख कर शक न करें| Parking से निकल कर मैं भागता हुआ भौजी के घर पहुँचा और बेसब्र होते हुए दरवाजा खटखटाने लगा|

[color=rgb(226,]जारी रहेगा भाग - 13 में...[/color]
 

[color=rgb(44,]तेईसवाँ अध्याय: अभिलाषित प्रेम बन्धन[/color]
[color=rgb(251,]भाग - 13[/color]


[color=rgb(255,]अब तक आपने पढ़ा:[/color]

मैंने फ़ोन काटा और माँ की तसल्ली के लिए उन्हें एक बार फिर सारी बात बता दी| बहाना जबरदस्त था और माँ ने जाने से बिलकुल मना नहीं किया, मैं जिस हालत में था उसी हालत में गाडी की चाभी ले कर निकल गया| कपडे बदलने लगता तो हो सकता था की माँ पिताजी को बात बता दें, मैंने गाडी निकाली तथा कुछ दूरी पर underground parking में खड़ी की ताकि अगर पिताजी बाहर निकलें तो गाडी खड़ी देख कर शक न करें| Parking से निकल कर मैं भागता हुआ भौजी के घर पहुँचा और बेसब्र होते हुए दरवाजा खटखटाने लगा|

[color=rgb(97,]अब आगे:[/color]

जैसे ही भौजी ने दरवाजा खोला मैं अवाक उन्हें आँखें फाड़े देखने लगा!









हलके गुलाबी रंग का top, slim-fit jeans जो कस कर उनकी टांगों से चिपकी हुई थी, हाथों में लाल चूड़ियाँ, होठों पर लाली, बाल खुले हुए, और चेहरे पर face powder लगा हुआ! कुल मिला कर कहें तो भौजी नई-नवेली दुल्हनें लग रहीं थीं!

भौजी को देख कर मेरा मुँह खुला का खुला रहा गया था, मुझे यूँ खुद को घूरता हुआ देख कर भौजी लजा रहीं थीं, उन्होंने अपनी आँखें लाज से झुका कर नकली खाँसी खाई जिससे मैं होश में आया और बोला;

मैं: WOW! You're looking GORGEOUS!!!

मैंने आँखें फाड़े हुए ही कहा|

भौजी: पसंद आपकी जो है जानू!

भौजी लजाते हुए बोलीं| मैं भौजी की सुंदरता में खो गया था इसलिए अब भी बाहर ही खड़ा था तो भौजी ने मुझे अंदर आने को कहा;

भौजी: अंदर तो आओ न!!

मेरी इच्छा बस भौजी को इन कपड़ों में देखने की थी, उसके आगे की मैंने कोई उम्मीद नहीं की थी! जब भौजी ने मुझे अंदर आने को कहा तो मैं झिझकता हुआ अंदर आया और सीधा कुर्सी पर बैठ गया| मेरा यूँ कुर्सी पर बैठ जाना भौजी को अजीब लगने लगा था इसलिए उन्होंने मुझे टोकते हुए कहा;

भौजी: यहाँ क्यों बैठ गए? अंदर चलो न!

भौजी का यूँ मुझे bedroom में निमंत्रण देने से मुझे घबराहट होने लगी थी| मेरा ये मानना है की जब भी हम कोई गलत काम करने वाले होते हैं तो सबसे पहले हमारी अंतरात्मा हमें रोकती है| जो अंतरात्मा की बात सुन लेता है और मान लेता है वो गलती करने से बच जाता है, जो नहीं मानता वो गलतियों की दलदल में उतरने लगता है| (Sorry for repeating!) गाँव में भौजी और मेरे पहले समागम के समय मैंने अपनी अंतरात्मा की बात नहीं समझी थी क्योंकि उस समय मेरे सर पर वासना सवार हो गई थी, लेकिन इस समय मेरा दिमाग मेरे काबू में था और उसने ही मुझे आगे जो होने वाला था उसके लिए डराना शुरू कर दिया था|

मेरी घबराहट के चलते मुझसे कुछ भी कहना नमुमकिन हो रहा था, इसलिए मैंने भौजी की बात मानते हुए उठ कर भौजी के bedroom में प्रवेश किया| Bedroom में प्रवेश करते ही मुझे कमरे में गुलाब की मीठी-मीठी खुशबु आई, ये खुशबु मेरे डर को सही साबित कर रही थी! भौजी ने आज रात की सारी तैयारी बड़े दिल से की थी, लेकिन वो क्या जाने की मैं यहाँ डर से घबरा रहा हूँ!

भौजी: कपडे मेरी fitting के होने का कारन तो मैं समझ गई क्योंकि आपने बड़ी होशियारी से कल मुझसे मेरे size के बारे में पूछ लिया था| लेकिन आपको कैसे पता की इसी रंग और design का top और jeans मुझ पर इतने अच्छे लगेंगे?

भौजी ने बात शुरू करते हुए कहा|

मैं: कपडे लेते समय मैंने अपनी आँखें बंद की और कल्पना की कि आप पर ये कपडे कैसे लगेंगे!

मैंने मुस्कुरा कर जवाब दिया| भौजी के सवाल पूछने से मेरा ध्यान एक पल को भटक गया था और मेरा भय कम हो गया था| लेकिन फिर अगले ही पल मुझे दुबारा डर ने जकड लिया! मैं अब और इस तरह डरा-डरा नहीं रहना चाहता था इसलिए मैंने हिम्मत करके भौजी से सीधा सवाल पूछ लिया;

मैं: अच्छा क्या बात है, आज आपका कमरा बहुत महक रहा है?!

मैंने भौजी से नजरें चुराते हुए कहा|

भौजी: ये सब.....आपके लिए....ही है!

भौजी ने इठलाते हुए मेरे नजदीक आते हुए कहा| जिस मादक ढँग से भौजी ने ये बात कही थी उससे मेरे पसीने छूटने लगे थे!

मैं: मेरे लिए? मैं...मैं कुछ समझा नहीं!

मैंने एक कदम पीछे हटते हुए नसमझ बनते हुए कहा|

भौजी: ओफ्फो! आज की रात बड़े सालों बाद आई है|

मुझे sex करना है ये तो भौजी कह नहीं सकतीं थीं, इसीलिए उन्होंने बात को गोलमोल करते हुए कहा और मेरी टी-शर्ट के कॉलर का बटन खोलने लगीं| अब नासमझ बन कर उनसे फिर सवाल पूछता तो वो डाँट देतीं इसलिए मैंने पहले तो बड़े प्यार से भौजी के हाथ अपनी टी-शर्ट के कॉलर से हटाए, फिर उनसे नजरें चुराते हुए इधर-उधर देखते हुए बोला;

मैं: प...पर ...

मेरी घबराहट भौजी ने पढ़ ली थी, इसलिए मेरी बात शुरू होती उससे पहले ही भौजी ने मुझे टोक दिया;

भौजी: जानू आप शर्मा क्यों रहे हो, ये सब पहली बार तो नहीं हो रहा?

मैं: नहीं ...लेकिन....अब हालात बदल चुके हैं!

मैंने भौजी की आँखों में आँखें डालते हुए कहा| इतना सुनना था की भौजी एकदम से भावुक हो गईं;

भौजी: क्या बदल चूका है? अभी दो दिन पहले तो आपने हाँ कहाँ था, इन दो दिनों में ऐसा क्या बदल गया?

भौजी के सवाल सुन कर मेरी अंतरात्मा दिषु द्वारा समझाई हुई बात कहना चाहती थी, आज मौका सही था और मैं भौजी से हमारे रिश्ते के भविष्य के बारे में बात कर सकता था मगर दिल में बैठी बुज़दिली मुझे भौजी को दुःख देने से बचाने का बहाना सोच बैठी थी;

मैं: What if you got pregnant?

मैंने अपना बहाना मारा|

भौजी: तो क्या हुआ?

भौजी एकदम से बोलीं! उनकी बात सुन मैं हक्का-बक्का रह गया?! उनका यूँ अपने माँ बनने की बात को हलके में लेना मेरी समझ से परे था! मुझे लगा शायद भौजी मेरी बात समझी नहीं हैं, इसलिए मैंने अपनी बात शुद्ध अंग्रेजी भाषा में दोहराई ताकि भौजी मेरी बात को समझ सकें;

मैं: I mean; I don't want you to have another baby!

मुझे लगा अब भौजी बात समझ गई होंगी परन्तु वो मुझसे सीधा बहस करते हुए बोलीं;

भौजी: पर क्यों? मेरे फिर से माँ बनने में हर्ज़ ही क्या है?

मैं: यार 5 साल पहले हालात और थे, तब हम जानते थे की हम दूर हो जायेंगे तथा आपको जिन्दा रहने के लिए एक सहारे की जर्रूरत थी, जो मैं दूर रह के पूरी नहीं कर सकता था इसलिए आयुष...

इतना कह मैंने अपनी बात अधूरी छोड़ दी!

भौजी: ठीक है बाबा लेकिन अब क्या दिक्कत है, अब तो हम साथ हैं न?!

भाभी अपनी बात रखतीं उससे पहले ही मैंने उनकी बात पकड़ ली और उन्हें कुछ कहने का मौका ही नहीं दिया;

मैं: Exactly! अब हम साथ हैं और आपको अब कोई सहारा नहीं चाहिए....

अब मैं आगे कुछ कहता उससे पहले ही भौजी मेरी बात काटते हुए बोल पड़ीं;

भौजी: तो मैंने कब कहा की मुझे कोई सहारा चाहिए? ये पाँच साल मैंने किस तरह काटे हैं ये बस मैं जानती हूँ! अपनी एक बेवकूफी की सजा मैंने हम दोनों को दी!

भौजी भाव-विभोर होते हुए बोलीं| भौजी के भावुक हो जाने से मेरा मन दुखा था मगर मैं भौजी को छूने से झिझक रहा था, मुझे लग रहा था की मेरे उनको छूने से बात बिगड़ जायेगी और मुझ पर वासना सवार हो जायेगी| उधर भौजी के भावुक हो जाने पर मेरे उन्हें न छूने से भौजी के मन में शक पैदा हो गया जिसे मिटाने के लिए भौजी बेमतलब सफाई देने लगीं;

भौजी: मैं दोनों बच्चों की कसम खाती हूँ, इन पाँच सालों में मैंने न उस आदमी को और न ही किसी दूसरे आदमी को खुद को छूने दिया है! आज भी मैं उतनी ही पवित्र हूँ जितनी पाँच साल पहले थी!

भौजी ने बड़े गर्व से कहा|

मैं: Hey ये आप क्या कह रहे हो? मैं आप पर कतई शक नहीं करता, मुझे आप पर अपने से ज्यादा भरोसा है!

इतना कह मैं एक पल के लिए खामोश हो गया| भौजी की शक करने वाली बात से मैं हिल चूका था और मेरी जुबान की कमान मेरी अंतरात्मा ने अपने हाथ में ले ली थी| अब बेकार की बातें गोल-गोल घूमना बंद, सीधा मुद्दे की बात करने का समय था;

मैं: मेरे जन्मदिन वाले दिन मैं मोम सा पिघल गया था और बस दिल से सोच रहा था, लेकिन इस वक़्त मैं अपने पूरे होशों-हवास में हूँ!

इतना कह मैंने क्षण भर का विराम लिया और आगे कही जाने वाली बात के लिए शब्दों का चयन करने लगा|

मैं: जान please मुझे गलत मत समझना! मैं बहुत दिनों से आपसे ये बात कहना चाहता था! जब हमारे बीच के गीले-शिकवे खत्म हुए तो मैं एक अजीब दुराहे पर खड़ा हो गया था| आप मेरे साथ दुबारा शुरुआत करना चाहते थे और मैं इस नई शुरुआत से डरता था, मेरे डर का कारन ये है की मैं अब दुबारा आपको खो नहीं सकता था इसलिए आपके नजदीक आने से घबरा रहा था! हमारे इस रिश्ते का कोई भविष्य नहीं है क्योंकि साल-दो साल में मेरी शादी हो जाएगी और तब आपका भी वही हाल होगा जो मेरा हुआ था, जो मैं कतई नहीं चाहता!

मैंने दिषु द्वारा समझाई हुई बात बड़े ढँग से भौजी के सामने रखी| मेरी बात सुन भौजी खामोश हो गईं! मेरी शादी होने की बात ने भौजी की आत्मा को झिंझोड़ दिया था, उनका दिल टूट चूका था तथा आँसूँ उनकी आँखों के दहलीज तक आ चुके थे, मेरी एक चुभती हुई बात और भौजी की आँखें अपना नीर बहाने लग जातीं! अब मुझे अपनी बात सम्भल कर कहनी थी ताकि भौजी रो न पड़ें;

मैं: मैं आपसे रिश्ता खत्म करने को नहीं कह रहा, पर अगर हम फिर से Physical हो गए तो मेरे लिए खुद को रोकना नामुमकिन है और फिर वही सब मैं दोराहना नहीं चाहता!

मेरी बात खत्म होते ही भौजी बोल पड़ीं:

भौजी: आपने गाँव में एक बार कहा था की 'Live in the present, forget the future!'

दरअसल इस वक़्त भौजी की हालत बिलकुल मेरी जैसी थी, जैसे मैं उनसे ये बात न करने के लिए बच रहा था और बेसर-पैर के तर्क मार रहा था, वैसे ही भौजी का दिल मुझे पाने को इतना आतुर था की उसने भौजी को अजीबों-गरीब तर्क सुझाने शुरू कर दिए थे| मेरी कही पूरी बात भौजी ने दिल से सुनी थी तथा उस बात में मौजूद तथ्य उनकी समझ में नहीं आये थे! चूँकि मैं भी इसी दौर से गुजरा था इसलिए मैंने भौजी को समझना शुरू कर दिया;

मैं: हाँ कहा था! लेकिन उस वक़्त आप pregnant थे, ऐसे में मेरे लिए आया सुनीता का रिश्ता आपके लिए कितना कष्टदाई था ये मैं जानता था| उस वक़्त आपको खुश रखना मेरी जिम्मेदारी थी और मैं नहीं चाहता था की मेरे कारन आपकी और हमारे बच्चे की सेहत खराब हो, इसलिए उस समय मेरा वो कथन बिलकुल सही था! लेकिन इस वक़्त मेरे उस कथन का कोई उपयोग नहीं है!

मैंने भौजी के तर्क का जवाब बड़े आत्मविश्वास से दिया मगर भौजी को ये सब सुनने का मन नहीं था इसलिए वो मेरे साथ भावुक करने वाला तर्क करने लगी;

भौजी: तो क्या अब आप मुझसे प्यार नहीं करते? क्या आपको मेरे जज्बातों की कोई कदर नहीं?!

ये औरत का ऐसा तर्क होता है जिसका जवाब कोई नहीं दे सकता| ये टिक-टिक करते उस time bomb की तरह है जिसे अगर आप defuse करने के लिए तर्क करने की की कोशिश करोगे तो ये time bomb आपके मुँह पर ही फट जायेगा!

मैं: नहीं यार ऐसा नहीं है, मैं आपसे अब भी उतना ही प्यार करता हूँ जितना पहले करता था!

मेरी बात सुन भौजी के चेहरे पर आस की किरण चमकने लगी, लेकिन मेरे लिए भौजी को समझना मुश्किल हो रहा था|

मैं: पर ....oh God....अब कैसे समझाऊँ मैं आपको?!

मैंने सर पीटते हुए कहा| मुझे सर पीटता हुआ देख भौजी ने preganancy वाली बात पकड़ ली और उस का तर्क देकर मेरा ध्यान फिर भटका दिया;

भौजी: ठीक है आप नहीं चाहते न की मैं pregnant हो जाऊँ?

मुझे नहीं पाता था की इस सवाल का कारन क्या था इसलिए मैंने उनके सवाल का जवाब देते हुए कहा;

मैं: हाँ!

भौजी: ठीक है हम protection इस्तेमाल कर लेते हैं!

भौजी एकदम से बोलीं| अब मैं ठहरा बेवकूफ (थोड़ा), मैं उनकी बातों में आ गया और एकदम से जवाब देते हुए बोला;

मैं: पर अभी मेरे पास condom नहीं है!

भौजी का मेरा ध्यान भटकाने का plan सफल हो चूका था इसलिए वो इसी विषय पर बहस करते हुए बोलीं;

भौजी: तो किसने कहा की सिर्फ आप ही protection use कर सकते हो?! मैं कल I-pill ले लूँगी!

भौजी ने खुश होते हुए कहा|

मैं: यार ये सही नहीं है....

मैंने भौजी को समझना चाहा मगर उन्होंने मेरी बात काट दी और मुझे पुनः भावुक करते हुए बोलीं;

भौजी: जानू, मैं आपको बता नहीं सकती की मैं आपके प्यार के लिए कितनी प्यासी हूँ! जब से मैं यहाँ आई हूँ आपने कभी भी मेरे साथ quality time spend नहीं किया जैसे आप गाँव में किया करते थे|

भौजी ने मुझे भावुक करते हुए कहा|

मैं: जानता हूँ जान! और उसके लिए मैं आपका दोषी भी हूँ, लेकिन अब मैं बड़ा हो चूका हूँ! मेरा अब यूँ आप के साथ बैठना, बातें करना, मस्ती और छेड़- छाड़ करना लोगों खटकेगा! सब आप पर उँगलियाँ उठाएंगे और ये मैं कतई बर्दाश्त नहीं करूँगा!

मैंने थोड़ा सख्ती से अपनी बात रखी|

भौजी: जानू ....प्लीज....एक बार...बस मेरे लिए!!!

भौजी ने आस भरी नजरों से गिड़गिड़ाते हुए कहा| अब आपका प्रियतम आपसे खुल कर कहे की वो आपके प्रेम के लिए कितना प्यासा है, तो ऐसे में आप क्या कहोगे? तब न तो आपकी बुद्धि काम करती है न ही आपकी अंतरात्मा आपको रोक पाती है! मैं भी भौजी की प्रणय विनती सुन कर खुद को रोक नहीं पाया, मेरा मन नहीं किया की मैं उनका दिल तोड़ दूँ!

मैंने भौजी को कस कर अपने सीने से लगा लिया, उनके मेरे सीने से लगते ही उनके जिस्म की मिलन की आग मेरे जिस्म में फ़ैल गई! मैंने भौजी के चेहरे को अपने दोनों हाथों में लिया और बेतहाशा चूमने लगा!

[color=rgb(226,]जारी रहेगा भाग - 14 में...[/color]
 

[color=rgb(44,]तेईसवाँ अध्याय: अभिलाषित प्रेम बन्धन[/color]
[color=rgb(251,]भाग - 14[/color]


[color=rgb(255,]अब तक आपने पढ़ा:[/color]

भौजी: जानू ....प्लीज....एक बार...बस मेरे लिए!!!

भौजी ने आस भरी नजरों से गिड़गिड़ाते हुए कहा| अब आपका प्रियतम आपसे खुल कर कहे की वो आपके प्रेम के लिए कितना प्यासा है, तो ऐसे में आप क्या कहोगे? तब न तो आपकी बुद्धि काम करती है न ही आपकी अंतरात्मा आपको रोक पाती है! मैं भी भौजी की प्रणय विनती सुन कर खुद को रोक नहीं पाया, मेरा मन नहीं किया की मैं उनका दिल तोड़ दूँ!

मैंने भौजी को कस कर अपने सीने से लगा लिया, उनके मेरे सीने से लगते ही उनके जिस्म की मिलन की आग मेरे जिस्म में फ़ैल गई! मैंने भौजी के चेहरे को अपने दोनों हाथों में लिया और बेतहाशा चूमने लगा!

[color=rgb(97,]अब आगे:[/color]

हम दोनों पर अब कोई बंदिश नहीं थी और न ही (फिलहाल) किसी का डर था! मैंने भौजी के होठों को अपनी गिरफ्त में ले लिया और उनका रसपान करने लगा| दोनों की आँखें बंद थीं और हमें दीन दुनिया की कोई खबर नहीं थी! भौजी के गुलाबी होंठ तो आज इतने मीठे लग रहे थे मानो कोई मिश्री हो जो धीरे-धीरे अपना मादक मीठा स्वाद मेरे मुँह में छोड़ घुल रही हो! वहीं भौजी आँखें बंद किये हुए मुझे अपने होठों का रस पीने दे रहीं थीं और हमारे इस चुंबन में वो मेरा भरपूर साथ दे रहीं थीं! उनकी दोनों बाहें मेरी पीठ के इर्द-गिर्द लिपटी हुई मेरी पीठ को सहला रहीं थी, उनके यूँ मेरी पीठ सहलाने से मुझे और प्रोत्साहन मिल रहा था|

लगभग दो मिनट के रसपान के बाद ही मेरा काबू मेरे ऊपर से पूरी तरह छूट चूका था, मैंने हमारा चुंबन तोडा और भौजी को एकदम से अपनी गोद में उठा कर सीधा पलंग पर लिटा दिया! अब मैं भौजी के ऊपर छ गया और उनके साथ थोड़ी छेड़खानी करते हुए उनके होठों को चूम कर पीछे हटने का खेल करने लगा! भौजी के गुलाबी top में से उनका बायाँ कन्धा काफी बाहर निकला हुआ था| (पिक्चर में देखें!) मैंने भौजी के उसी कँधे पर अपने गीले होंठ रख दिए, आज सालों बाद जब मैंने भौजी के जिस्म को अपने होंठों से स्पर्श किया तो भौजी के मुख से मादक सिसकारी फूट गई; "स्स्स्स्स्स्स्स्स्स्स्स्स.....जानू!"

भौजी के जिस्म में प्रेम की चिंगारी सुलग चुकी थी, भौजी ने अपने दोनों हाथों से मेरा चेहरा थामा और मेरे होठों को अपने होठों से मिला कर मेरे होठों का रसपान करने लगीं! अब भौजी मेरे होठों से रस निचोड़ रहीं थीं तो मैंने अपने जिस्म का पूरा वजन भौजी पर डाल दिया! मेरे दोनों हाथों को भौजी के जिस्म को आज महसूस करना था इसलिए वो स्वतः ही भौजी के उरोजों को ढूँढने के लिए उनके top की ओर चल दिए! भौजी के top के भीतर घुस कर उँगलियों ने भौजी के उरोजों की टोह लेनी शुरू की! अब उनके उरोज छोटे तो थे नहीं जो मुझे ढूँढने पढ़े?! अगले ही पल मेरी उँगलियों ने भौजी के उरोजों को छू लिया! नरम और ठंडे माँस का एहसास होते ही मुझे पता चला की भौजी ने अंतःवस्त्र अर्थात bra तो पहनी ही नहीं! शायद हमारे मिलान के समय मैं उनके अंतःवस्त्र को खोलने में समय न गवाऊँ इसीलिए उन्होंने अपने अंतःवस्त्र नहीं पहने थे!

खैर भौजी के उरोजों को छू कर तो मेरे जिस्म के रोंगटे खड़े हो गए, बिना देखे ही मेरे दिमाग में पाँच साल पहले वाले भौजी के उरोजों की तस्वीर उभर आई| उँगलियों को अपनी मनपसंद चीज इतने सालों बाद मिली थी तो उन्होंने अपनी पकड़ भौजी के उरोजों पर सख्त कर ली, फिर देखते ही देखते मैंने अपनी दोनों हथेलियों और उँगलियों की सहायता से भौजी के उरोजों को धीमे-धीमे मींजना शुरू कर दिया! इधर मैं भौजी के स्तनों को मींजने में लगा था और उधर भौजी मेरे होठों को कस कर चूस रहीं थीं|

शायद भौजी चुंबन करना भूल गईं थीं तभी तो वो अपनी जीभ का प्रयोग नहीं कर रहीं थीं! मैंने पहल करते हुए धीरे से अपनी जीभ भौजी के मुख में प्रवेश कराई, जैसे ही मेरी जीभ का एहसास भौजी को हुआ उन्होंने 'कच' से मेरी जीभ अपने दाँतों से 'दाब' ली! दर्द की लहर मेरी जीभ में पैदा हुई जो भौजी ने महसूस कर ली थी इसलिए उन्होंने मेरी जीभ को अपने होठों से दबाकर धीमे-धीमे चूसना शुरू कर दिया! भौजी के इस तरह मेरी जीभ को प्यार देने से मेरी जीभ में उतपन्न हुआ दर्द जल्द ही खत्म हो गया| भौजी के जोश में कोई कमी नहीं आई थी, वो अब भी धीमे-धीमे मेरी जीभ को अपने दाँतों से दबा रहीं थीं!

कुछ मिनट बाद भौजी ने मुझे अपनी जीभ का रस पीने के लिए परोस दी, मैं उनकी तरह जंगली नहीं था, मैंने बड़े प्रेम से भौजी की जीभ का स्वागत किया और जितना हो सकता था उतना उनकी जीभ को चूसने का प्रयत्न कर ने लगा| मेरे जिस्म का जोर भौजी के जिस्म में दो जगह निकल रहा था, एक तो मैं भौजी के मुख से रस पी रहा था और दूसरा मेरे हाथ बेदर्दी से भौजी के स्तनों का मर्दन करने में लगे थे! अगले दस मिनट तक हम दोनों प्रेमी बारी-बारी से एक दूसरे के रसों का पान करते रहे! ऐसा लग रहा था जैसे सालों की दबी हुई प्यास अब जा कर उभर के बहार आई हो|

हमारे चुंबन ने भौजी के भीतर प्रेम की चिंगारी को भड़का दिया था, वहीं मेरा कामदण्ड अपने विकराल रूम में आ चूका था तथा कपड़ों से आजादी माँग रहा था! हम दोनों की धड़कनें तेज हो चलीं थीं और हमें अपने प्रेम को अगले पड़ाव पर ले जाना था! हमने मिलकर सर्वप्रथम हमारा चुंबन तोडा, चुंबन तोड़ कर हम दोनों ही एक पल के लिए एक दूसरे को देखने लगे! भौजी के बाल खुले होने के कारन उनके चेहरे पर उनके बालों की एक लट आ गई थी, मैंने अपने दाहिने हाथ की उँगलियों से उनकी लट हटाई और उनके होठों को एक बार फिर चूम लिया|

भौजी की आँखों नशीली हो चलीं थीं और उनकी आँखों का जादू मेरे सर पर सवार हो रहा था! मुझे अपनी आँखों में डूबा हुआ देख भौजी बड़े मादक ढँग से मुस्कुराते हुए बोलीं;

भौजी: जानू....क्या सोच रहे हो?

मैं: कुछ नहीं जान! आपको इस तरह अपनी बाहों में लेटा देख तो....

मैंने मुस्कुराते हुए कहा और अपनी बात अधूरी छोड़ दी!

भौजी: तो क्या?

भौजी ने जिज्ञासु होते हुए पुछा| उनकी ये जिज्ञासा देख मुझे हँसी आ गई;

मैं: तो ये की मुझे आप पर बहुत प्यार आ रहा है!

मैंने भौजी के दाएँ गाल को खींचते हुए कहा|

भौजी: तो इन्तेजार किस का है?!

भौजी ने मुझे आँख मारते हुए कहा|

मैं भौजी के ऊपर से उठा और उनका top निकाल कर उनके स्तनों को मुस्कुराते हुए निहारने लगा| गोरे- गोरे बर्फ के ठन्डे गोले देख कर मन बेईमान होने लगा था, मन कर रहा था की झुक कर उन्हें कस कर अपने मुँह में भर कर काट लूँ! मैंने अपनी इस जंगली इच्छा को शांत किया, फिर अपने बाएँ हाथ की पाँचों उँगलियाँ को धीरे-धीरे भौजी की छाती पर फिराना शुरू कर दिया| जब मेरी उँगलियाँ घूमती हुई भौजी के स्तनों की घुण्डियों के पास पहुँची तो पहले मैंने अपनी उँगलियाँ उन घुण्डियों के इर्द-गिर्द घुमाई| फिर मौका पा कर मैंने अपने अँगूठे और तर्जनी ऊँगली से भौजी के चुचुक दबा दिए! मेरे उनके चुचुक दबाने से भौजी कसमसाने लगीं और अपनी कमर को नागिन की तरह बलखाने लगीं! मुझसे भौजी के उरोजों को चूसने की इच्छा नहीं दबाई जा रही थी इसलिए मैंने झुक कर भौजी के बाएँ चुचुक को अपने मुख में भर लिया और किसी शिशु की भाँती मैं उनके चुचुक को चूसने लगा| मेरे चुचुक चूसने से भौजी के जिस्म में बिजली का तेज प्रवाह हुआ और उन्होंने अपने दाएँ हाथ को मेरे सर पर रख कर अपने बाएँ स्तन पर दबाना शुरू कर दिया! भौजी की ओर से प्रोत्साहन पा कर मैंने चुचुक के साथ उनके स्तनों के माँस का कुछ हिस्सा अपने मुँह में भर लिया, मेरी इस क्रिया से मेरे दाँत भौजी के स्तन पर गड गए जिससे भौजी ने अपने छाती मेरे मुँह की ओर दबानी शुरू कर दिया!

मैंने महसूस किया की मेरे अंदर एक आग सी भड़क उठी है और ये आग हर पल भड़कती जा रही है! मुझे भौजी को और तकलीफ देने का मन कर रहा था, इसलिए मैंने अपने मुँह में मौजूद उनके चुचुक को धीमे से काट लिया! जैसे ही मैंने उनके चुचुक को काटा भौजी दर्द के मरे चिहुँक उठीं; "आह!" भौजी की ये कराह सुन कर मुझे बहुत मजा आया, जाने क्यों मुझे भौजी को यूँ दर्द देने में मजा आने लगा था?! पहले तो मैं ऐसा कतई नहीं था!!!

मैंने भौजी के बाएँ चुचुक के साथ खेलना जारी रखा, कभी मैं उसे अपनी जीभ से चुभलाता तो कभी उसे चूसने लगता और जब मेरे अंदर की वासना अंदर हिलोरे मारती तो मैं उसे काट लेता! भौजी को इस सब में मजा आने लगा था और मुझे प्रोत्साहन देते हुए उन्होंने अपने दाएँ हाथ की उँगलियाँ मेरे बालों में चलानी शुरू कर दी थीं! वहीं दूसरी ओर मेरा बायाँ हाथ भौजी की नाभि से होता हुआ सीधा भौजी की jeans के अंदर सरक गया था| हाथ jeans के भीतर पहुँचा तो मेरी उँगलियों ने भौजी की पैंटी के अंदर घुसने का रास्ता खुद बा खुद ढूँढ लिया!

ऊपर मेरा भौजी के बाएँ स्तन को चूसने का कार्यक्रम बदस्तूर जारी था और नीचे मेरे बाएँ हाथ की उँगलियाँ भौजी की योनि की ओर चहलकदमी कर रहीं थीं| कुछ पल बाद मेरी उँगलियों ने भौजी की योनि को छू लिया, उस स्पर्श से मानो मेरे हाथ में करंट लगा हो! मैंने फ़ौरन अपना हाथ भौजी की jeans से निकाला, भौजी के बाएँ स्तन का पान करना छोड़ा और नीचे की ओर खिसक कर भौजी की jeans के जीनस का बटन खोलने लगा| मुझे अपनी jeans का बटन खोलता हुआ देख भौजी ने अपने दाएँ स्तन की ओर इशारा करते हुए बड़ी मासूमियत से कहा;

भौजी: ये वाला रह गया!

मैं: Patience my dear! उसकी बारी भी आएगी!

मैंने मुस्कुराते हुए कहा|

भौजी की jeans का बटन खुलते ही मुझे सबसे पहले उनकी पैंटी का दीदार हुआ! काले रंग की पैंटी को देख मेरे जिस्म के अंदर की आग प्रगाढ़ रूप लेने लगी| कुछ सेकंड के लिए मैं भौजी की पैंटी को बिना पलकें झपकाए देखने लगा| उधर भौजी से मेरा यूँ अचानक विराम ले कर उनके जिस्म से छेड़छाड़ न करना बर्दाश्त नहीं हो रहा था, उन्होंने उतावलापन दिखाते हुए अपनी कमर उठाई और मुझे उनकी jeans उतारने की मूक विनती की! मैंने भौजी की jeans पाँव की तरफ से पकड़ी और अपनी तरफ खींची| भौजी की jeans टाइट थी इसलिए वो धीरे-धीरे खिसकते हुए भौजी के घुटनों तक आ गई, इस वक़्त सब्र हम दोनों में नहीं था इसलिए मैंने कस कर jeans खींची, वहीं भौजी ने भी अपनी टांगें मोड़ कर अपने पेट पर कस ली ताकि मैं जल्दी से जीन्स निकाल सकूँ!

थोड़ी ताक़त लगा कर मैंने भौजी की जीन्स निकाल फेंकी, अब भौजी बस पैंटी में थीं, कपडे का केवल एक छोटा सा कपड़ा हम दोनों के बीच दिवार बना हुआ था! मैंने अपने दोनों हाथों की दो उँगलियाँ भौजी की पैंटी की elastic में फँसाई और खींच कर निकाल फेंकी! अब जो मेरी आँखों के सामने नजारा था उसे देख मैं अवाक था! भौजी पूरी तरह नग्न मेरे सामने पड़ी हुईं थीं, बिना कपड़ों के उन्हें देख मेरी दिल की धड़कन तेज हो चली थी! मुझे खुद को इस तरह देखता हुआ देख भौजी शर्म से पानी-पानी हो रहीं थीं इसलिए उन्होंने एकदम से अपना चहेरा अपने दोनों हाथों से ढक लिया! उधर दूसरी तरफ मेरी नजरें भौजी की योनि पर टिक गईं थीं! भौजी की योनि की मादक महक कमरे में पहले से मौजूद गुलाब जल की महक में घुलने लगी थी! दोनों खुशबुओं की महक के मिश्रण से जो मनमोहक खुशबु उतपन्न हुई उसने तो समा बाँध दिया था!

भौजी का योनिद्वार बंद था, ऐसा लगता था मानो कोई छोटी सी प्यारी सी कली खुद को समेटे हुए हो! उस बंद योनिद्वार को देख कर मेरा मन उसे चूमने को कर रहा था इसलिए मैंने आव देखा ताव सीधा अपनी जीभ से भौजी की योनि को छू लिया! मेरी जीभ के आधे भाग ने भौजी की योनिद्वार के आधे से ज्यादा भाग को स्पर्श किया था तथा इस स्पर्श मात्र से भौजी सिंहर उठी थीं; "स्स्स्स्स्स्स्स्स्स्स्स्स्स्स्स्स्स्स्स्स्स्स!!" भौजी सीसियाने लगीं! पाँच साल बाद मेरी जीभ और भौजी की योनि का मिलन हुआ था, ये मिलन कुछ-कुछ ऐसा था जैसे किसी ने नंगे जिस्म पर बर्फ का टुकड़ा रख दिया हो! एक तरफ गर्म जिस्म की तपिश उस बर्फ के टुकड़े को पिघलाना चाहती थी तो दूसरी तरफ वो बर्फ का टुकड़ा जिस्म को ठंडा कर देना चाहता था! आज बरसों बाद भौजी की योनि को स्पर्श कर भौजी के जिस्म की मादक महक मेरे नथुनों में भरने लगी थी, वो उनकी योनि का चित-परिचित स्वाद मुँह में फिर घुलने लगा था!

इस स्वाद ने मुझे सब कुछ भूला कर भौजी के योनिरस को चखने के लिए आतुर कर दिया था! मैं जितनी जुबान बाहर निकाल सकता था उतनी बाहर निकाल कर भौजी की योनि को ऊपर से नीचे तक चाटने लगा! मेरे मुँह में मौजूद लार ने भौजी की पूरी योनि को बाहर से पूरा गीला कर दिया था, उधर भौजी ने अपनी आँखें कस कर मींच ली थीं, भौजी के जिस्म में हिलोरें उठने लगीं थीं और इन हिलोरों के साथ भौजी के मुँह से अनगिनत सीत्कारें फूटना चाहतीं थीं मगर भौजी थीं की अपने होठों को कस कर बंद कर वो अपनी सीत्कारें अपने गले में दफन किये जा रहीं थीं! मैंने अपनी जीभ से भौजी के योनि द्वार को खोला और जितना जीभ अंदर प्रवेश करा सकता था उतनी जीभ भौजी की योनि के भीतर प्रवेश करा दी! भौजी की योनि में मुझे कुछ संकुचन महसूस हुई, लेकिन फिर जब जीभ ने योनि में लपलपाना शुरू किया तो वो संकुचन कुछ कम हो गई! जीभ अंदर प्रवेश कराने से मुझे भौजी की योनि में गर्माहट महसूस हुई और वही पुराना नमकीन स्वाद चखने को मिला! इस स्वाद ने मुझे पागल कर दिया और मैंने अपनी जीभ से भौजी की योनि की खुदाई शुरू कर दी!

मेरे जीभ से योनि में खुदाई करने के कारन भौजी की हालत खराब होने लगीं, उन्होंने अपने दोनों हाथों से मेरे सर को अपनी योनि पर दबाना शरू कर दिया तथा अपने सर को तकिये पर इधर-उधर मरना शुरू कर दिया! भौजी इतने सालों से जिस स्खलन के लिए तरस रहीं थीं उसे पाने के लिए वो इतनी आतुर थीं की कुछ ही पलों में उनके जिस्म ने भारी विस्फोट करने की तैयारी कर ली थी! मात्र दो मिनट में भौजी अपने चरम पर पहुँच गई और मेरे मुख में कलकल करती हुईं स्खलित हो गईं! अपने स्खलन के अंतिम पड़ाव में उन्होंने दो झटके खाये और फिर पस्त हो कर पड़ गईं! वहीं भौजी का स्वादिष्ट रज बहता हुआ मेरे मुँह में भर रहा था जिसे मैं बड़ी शिद्दत से गटक रहा था!

भौजी का कामज्वर अब धीरे-धीरे शांत होता जा रहा था मगर मेरा जिस्म कमोतेजित हो चूका था! कुछ दिन पहले जब दिषु ने मुझे drink में वो drug मिला कर दिया था, कुछ-कुछ वही एहसास मुझे फिर से महसूस होने लगा था! मेरे पूरे शरीर में चींटीयाँ सी काटने लगीं थीं, मेरा कामदण्ड इतना अकड़ चूका था की वो मेरा पजामा फाड़ के बहार आने को बावला हो चूका था, बरसों से मेरे भीतर सोया हुआ जानवर जागने को तैयार हो चूका था! ये जानवर हर पल खूँखार होता जा रहा था, उसे तो बस सामने पड़ी भौजी को आज जी भर कर भोगना था! {यहाँ जानवर का तातपर्य वासना से है, जिसने मेरे शरीर पर काबू पा लिया था!}

उधर भौजी अपने स्खलन से अभी तक नहीं उबरी थीं, वो आँखें बंद किये हुए लम्बी-लम्बी साँसें ले रहीं थीं और खुद को जल्द से जल्द सामान्य करने में लगीं थीं| इस समय मुझे अपने भीतर मौजूद उस जानवर को शांत करना था, इसलिए मैं अपने घुटने मोड़ कर बैठ गया और अपने दिमाग तथा दिल पर काबू करने लगा ताकि मैं अतिउत्साह में कहीं भौजी के साथ कुछ ज्यादा मेहनत न कर दूँ!

भौजी को इस तरह पूर्णतः नग्न देख कर दिमाग ने काम करना बंद कर दिया था, मन था जिसमें वासना की लहरें मचल रहीं थीं! दिल कर रहा था की जबरदस्ती भौजी पर चढ़ जाऊँ और सम्भोग कर लूँ लेकिन साला कुछ तो था जो मेरे भीतर के इन जज्बातों को बाँधे हुआ था?!

उधर भौजी अपनी साँसें दुरुस्त करने में व्यस्त थी और इधर मुझे अचानक से एहसास हुआ की; 'ये मैं क्या करने जा रहा हूँ?! अगर वो (भौजी) pregnant हो गईं तो? बवाल...बवाल...और सिर्फ बवाल! अच्छी खासी जिंदगी तबाह हो जाएगी...मेरी.उनकी (भौजी की)...और बच्चों की!' मेरी अंतरात्मा ने मुझे झिंझोड़ते हुए कहा| अंतरात्मा की बात से मेरे ऊपर मेरा डर हावी होने लगा, मगर मेरे भीतर मौजूद जानवर तो सम्भोग चाहता था और वो मुझे अंतरात्मा की बात सुनने नहीं दे रहा था| अंतरात्मा ने दिमाग को करंट मार के झटका दिया तो दिमाग ने तर्क लड़ाने शुरू कर दिए| कुछ देर पहले मेरी और भौजी की बात मन में गूँजने लगी! 'अभी थोड़ी देर पहले तो तू बड़ी ज्ञान भरी बातें चोद रहा था, अब क्या हुआ?' दिमाग ने मन को लताड़ते हुए कहा| मन ने मेरे भीतर मौजूद जानवर के मुँह में लगाम डाल दी और उसे (जानवर को) खींच कर काबू में करने लगा| उस समय खुद को सम्भोग करने से रोक पाना ऐसा था जैसे की आत्महत्या करना! (मेरे अकड़ कर तैयार कामदण्ड का गला दबा कर मारना!)

मेरा शरीर मेरा साथ नहीं दे रहा था क्योंकि उसके सामने नग्न अवस्था में भौजी मौजूद थीं, हाथ आया शिकार कैसे जाने दिया जाता?! मेरे दिमाग और जिस्म के बीच जंग छिड़ गई थी, शरीर लोभी हो गया था मगर दिमाग हितैषी बन गया था तथा हमारे रिश्ते के हित सोच रहा था| 'Please....मत कर....सब तबाह हो जायेगा!' मेरी अंतरात्मा रोते हुए बोली| ये उसकी (मेरी अंतरात्मा की) अंतिम कोशिश थी जो भौजी और मेरे रिश्ते को खत्म होने से बचाना चाहती थी! इस दर्द भरी पुकार को सुन कर मेरा मन फट गया, मन में अपनी वासना के आगे मजबूर हो जाने और मेरे तथा भौजी के रिश्ते को दाव पर लगाने की ग्लानि भरने लगी! मैं छिटक कर भौजी से अलग हो गया और तेजी से साँस लेते हुए अपनी वासना को दबाने लगा! मैं फटाफट पलंग से उतरा और अपने कपडे ठीक करने लगा, मेरे उठने से पलंग पर हलचल हुई जिसे महसूस कर भौजी ने अपनी आँखें खोलीं| मुझे यूँ अपने कपडे ठीक करते हुए देख भौजी हैरान रह गईं, वो मुझसे कुछ पूछतीं उससे पहले ही माँ का फ़ोन आ गया|

[color=rgb(226,]जारी रहेगा भाग - 15 में...[/color]
 

[color=rgb(44,]तेईसवाँ अध्याय: अभिलाषित प्रेम बन्धन[/color]
[color=rgb(251,]भाग - 15[/color]


[color=rgb(255,]अब तक आपने पढ़ा:[/color]

मेरा शरीर मेरा साथ नहीं दे रहा था क्योंकि उसके सामने नग्न अवस्था में भौजी मौजूद थीं, हाथ आया शिकार कैसे जाने दिया जाता?! मेरे दिमाग और जिस्म के बीच जंग छिड़ गई थी, शरीर लोभी हो गया था मगर दिमाग हितैषी बन गया था तथा हमारे रिश्ते के हित सोच रहा था| 'Please....मत कर....सब तबाह हो जायेगा!' मेरी अंतरात्मा रोते हुए बोली| ये उसकी (मेरी अंतरात्मा की) अंतिम कोशिश थी जो भौजी और मेरे रिश्ते को खत्म होने से बचाना चाहती थी! इस दर्द भरी पुकार को सुन कर मेरा मन फट गया, मन में अपनी वासना के आगे मजबूर हो जाने और मेरे तथा भौजी के रिश्ते को दाव पर लगाने की ग्लानि भरने लगी! मैं छिटक कर भौजी से अलग हो गया और तेजी से साँस लेते हुए अपनी वासना को दबाने लगा! मैं फटाफट पलंग से उतरा और अपने कपडे ठीक करने लगा, मेरे उठने से पलंग पर हलचल हुई जिसे महसूस कर भौजी ने अपनी आँखें खोलीं| मुझे यूँ अपने कपडे ठीक करते हुए देख भौजी हैरान रह गईं, वो मुझसे कुछ पूछतीं उससे पहले ही माँ का फ़ोन आ गया|

[color=rgb(97,]अब आगे:[/color]

जब मैं माँ का फ़ोन उठा रहा था उस वक़्त कुछ पल के लिए मेरी और भौजी की आँखें मिलीं, उनकी आँखों में सवाल थे और मेरी आँखों में ग्लानि! मैंने भौजी से नजर चुराते हुए माँ का कॉल उठा लिया;

मैं: हेल्लो माँ?!

मैंने भौजी को सुनाते हुए कहा ताकि उन्हें पता चल जाए की माँ का फ़ोन है|

माँ: बेटा क्या हुआ, अस्पताल में सब ठीक तो है न? मैं तेरे पिताजी को भेजूँ?

पिताजी के आने की बात सुन मैं एकदम से हड़बड़ा गया और बोला;

मैं: जी नहीं...सब ठीक है! दिषु के भाई को plaster चढ़ाया है और मैंने उन्हें घर छोड़ दिया है| मैं अभी गाडी चला कर आ रहा हूँ, दस मिनट में घर पहुँच जाऊँगा|

माँ: ठीक है बेटा, सम्भल कर गाडी चलाइओ|

इतना कह माँ ने फ़ोन रख दिया| मैंने फोन काटा और भौजी की तरफ बड़ी हिम्मत कर के देखा, भौजी अस्चर्य से अपनी आँखें बड़ी कर के मेरी ओर देख रहीं थीं|

भौजी: अ...आप घर जा रहे हो?

भौजी ने घबराते हुए पुछा|

मैं: हाँ!

मैंने भौजी से नजरें चुराते हुए कहा|

भौजी: पर क्यों? अभी तो.....

भौजी आगे कुछ कहतीं, उससे पहले ही मैंने उनकी बात काट दी;

मैं: I'm sorry...I...I can't!!! Please!!!

मैंने अपनी गर्दन झुकाते हुए कहा| भौजी मायूस आँखों से मुझे देख रहीं थीं और मन ही मन विनती कर रहीं थीं की मैं हमारे इस मिलन को अधूरा न छोड़ूँ! इधर मुझे भौजी को इस कदर धोका देने का अफ़सोस हो रहा था, खुद से कोफ़्त हो रहे थी, लेकिन अगर मैं वहाँ और रुकता तो शायद वो हो जाता जिसका मुझे उम्र-भर पछतावा रहता|

खैर भौजी के घर से मैं अपने घर आने को निकला, गाडी वापस गली के बाहर खड़ी की और अपने घर पहुँचा| माँ के सामने फिर से अस्पताल का झूठ दोहरा दिया तथा अपने कमरे में आ गया| कमरे में आ कर मैंने सबसे पहले बच्चों को देखा, दोनों बच्चे बड़े आराम से सो रहे थे, आज मेरे बच्चों के प्यार ने मुझे भटकने से रोक लिया था| मेरे जिस्म में वासना की आग ठंडी नहीं पड़ी थी, दिल तो किया की हस्तमैथुन कर के अपनी उत्तेजना शांत कर लूँ मगर मेरा दिमाग अभी शांत नहीं हुआ था, रह-रह कर मुझे भौजी का उदास चेहरा याद आ रहा था! मैंने सोचा की ठन्डे पानी से नहा लेता हूँ, इसलिए मैं नहाने bathroom में घुस गया| फटाफट नहा कर मैं थोड़ा तरो-ताजा महसूस करने लगा था| अब सिवाए सोने के और कोई काम बचा नहीं था इसलिए मैं बिस्तर में घुस गया| मेरे लेटते ही आयुष को मेरी मौजूदगी का एहसास हो गया, उसने मुझे नींद में ही अपने हाथों से मुझे टटोला, आयुष का हाथ मेरी छाती पर आया और उसने अपने हाथ से मेरी टी-शर्ट पकड़ ली| मैंने आयुष की तरफ करवट ली और उसके सर पर हाथ फेरने लगा| कुछ देर बाद नेहा जागी, आँख मलते हुए वो बाथरूम गई और फिर मेरे पास आ कर मेरा कंधा पकड़ कर मुझे सीधा लिटाया और मेरी छाती पर चढ़ कर सो गई! मैं बाएँ हाथ से नेहा के सर पर हाथ फेरता रहा और दाएँ हाथ से आयुष के सर पर हाथ फेरता हुआ पूरी रात बच्चों को दुलार करते हुए जागता रहा| सुबह दोनों बच्चों को फटाफट तैयार कर school van में बिठा आया| वापस आ कर मैं पिताजी के पास बैठा रहा और भौजी की तरफ आँख उठा कर भी नहीं देखा| नाश्ता बना और नाश्ता कर के पिताजी के साथ ही साइट पर निकल गया|

कल जहाँ मैं साइट पर हवा में उड़ता हुआ काम कर रहा था वहीं आज मेरा किसी काम में मन नहीं लग रहा था! दोपहर हुई तो बच्चों ने भौजी के फ़ोन से कॉल किया, मुझे लगा की भौजी ने फ़ोन किया है इस डर से मैं फ़ोन ही नहीं उठाने वाला था! फिर जैसे-तैसे हिम्मत कर के कॉल उठाया तो आयुष की आवाज आई;

आयुष: पापा जी....पापा जी...आप कब आ रहे हो?!

आयुष अपनी प्यारी-प्यारी आवाज में खुश होते हुए बोला|

मैं: Sorry बेटा आज थोड़ा काम ज्यादा है! आप खाना खाओ और दीदी को भी खिलाओ!

मैंने आयुष को समझाते हुए कहा| आयुष ने ख़ुशी-ख़ुशी कॉल रखा और इधर मैं रात को घर जा कर भौजी का सामना करने क लिए खुद को तैयार करने लगा|

शाम 4 बजे पिताजी ने मुझे कॉल कर के घर बुलाया क्योंकि उन्हें कुछ जर्रूरी बात करनी थी, पिताजी की आवाज में ख़ुशी झलक रही थी इसलिए मैं जल्दी से घर पहुँचा| चाय पीते हुए पिताजी ने बात शुरू की और नए project के बारे में बताने लगे| आज सालों बाद पिताजी ने बिना किसी की मदद के एक बहुत बड़ा project उठाया था| मैंने सबसे नजर बचा कर भौजी को देखा तो पाया की भौजी की नजर घूँघट के नीचे से कब से मुझ पर टिकी हुई है| हमारी नजर मिलते ही भौजी ने गर्दन हिला कर मुझे कमरे में बुलाया, मगर मैंने एकदम से अपनी नजरें फेर ली और जम कर अपनी जगह बैठा पिताजी की बातें सुनता रहा| मैं जानता था की भौजी को मुझसे क्या बात करनी है लेकिन फिलहाल मेरे पास भौजी के किसी भी सवाल का कोई जवाब नहीं था!

माँ ज़रा पड़ोस में गई हुई थीं और बच्चे मेरे कमरे में पढ़ाई कर रहे थे| कुछ हिसाब-किताब समझने के लिए पिताजी ने मुझे और चन्दर को अपने कमरे में आने को कहा| चन्दर तो फ़ौरन पिताजी के पीछे-पीछे उनके कमरे में घुस गया, इधर मैं एक घूँट में अपनी चाय सुड़क कर जैसे ही उठा तो देखा की भौजी तेजी से रसोई से निकल कर मेरी तरफ आ रहीं हैं| उन्होंने मेरे हाथ से कप ले कर टेबल पर रखा और मेरा हाथ पकड़ कर खींचते हुए मेरे कमरे में ले आईं|

भौजी: कल रात क्या हुआ था आपको?

भौजी ने मेरा हाथ दबाते हुए पुछा| भौजी के सवाल ने फिर से मेरे मन में ग्लानि भर दी और मैंने खामोशी से सर झुका लिया|

भौजी: क्यों मुझसे नजरें चुरा रहे हो?

भौजी ने मेरी ठुड्डी ऊपर करते हुए बड़े प्यार से पुछा|

मैं: अभी जाने दो, पिताजी बुला रहे हैं! बाद में बात करते हैं!

मैंने मुँह फेरते हुए कहा|

भौजी: ठीक है!

भौजी ने मेरा हाथ छोड़ते हुए कहा|

मैं जल्दी से पिताजी के कमरे में आया तो पिताजी ने इस नए project के बारे में जानकारी देनी शुरू की;

पिताजी: मैं काम और बढ़ाना चाहता हूँ इसलिए मैंने ये काम खुद उठाया है! अभी तक तो construction का काम हम मिश्रा जी की देख-रेख में कर रहे थे मगर इस बार ये सब काम हमारे जिम्मे है| अब जैसे पुरानी दोनों साइट का काम तुम दोनों संभालते हो उसी तरह इस नए project की भी जिम्मेदारियाँ बाँटना चाहता हूँ| चन्दर तू plumbing का ठेका लेले, इस ठेके से जो भी मुनाफा होगा वो तेरा|

ये सुन चन्दर की बाछें खिल गई और उसके चेहरे पर मुस्कान आ गई|

पिताजी: Carpentry और बिजली काम मानु संभालेगा और उसका सारा मुनाफा मानु का!

मुझे काम कम मिला था लेकिन मुझे उससे कोई फर्क नहीं पड़ा था, क्योंकि मेरा ध्यान भौजी की तरफ था!

पिताजी: Construction का काम तुम दोनों नहीं जानते तो वो मैं सम्भालूँगा और उससे जो मुनाफा होगा वो मेरा!

पिताजी ने बराबर-बराबर हम तीनों में काम बाँट दिया था| इस बार हमारे काम में पिताजी की कोई दखलन्दाजी नहीं थी, तो हम दोनों अपने ढँग से काम करवा सकते थे! ये पहलीबार था की पिताजी मुझ पर और चन्दर पर भरोसा कर के छूट दे रहे थे और मैं पिताजी को कोई शिकायत नहीं देने वाला था|

काम कल से शुरू होना था तो पिताजी ने budget को ले कर हमसे काफी बातचीत की तथा advance लेने के लिए मुझे कल NOIDA जाने को कहा| सब बात कर के मैं अपने कमरे में लौटा तो देखा भौजी कुर्सी पर बैठीं मेरा बेसब्री से इंतजार कर रही हैं और बच्चे बिस्तर के दुसरे कोने पर बैठे अपनी पढ़ाई में मगन थे| भौजी ने मुझे अपने पास बैठने का इशारा किया तो मैं ख़ामोशी से उनके सामने बैठ गया|

भौजी: अब बताओ?

भौजी खुसफुसाते हुए बोलीं|

मैं: क्या बताऊँ?

मैंने अनजान बनते हुए कहा|

भौजी: उखड़े-उखड़े क्यों हो?

भौजी ने मेरे उनसे ठीक से बात न करने का कारन पुछा|

मैं: नहीं ऐसा नहीं है... वो कल रात को...जो हुआ ...उसके लिए I'm terribly sorry! मैं आपको बता नहीं सकता की मैंने किस तरह खुद को रोका और मुझे आपको इस तरह छोड़ कर आना कितना बुरा लगा!

मैंने सर झुकाते हुए कहा| भौजी ने मेरी ठुड्डी पकड़ कर चेहरा ऊपर उठाया और मेरी आँखों में देखते हुए बोलीं;

भौजी: जानती हूँ और समझ सकती हूँ की आप पर क्या बीती होगी, मैं ये भी जानती हूँ की आप के दिमाग में क्या चल रहा है, मगर मैं वो सब नहीं समझना चाहती! मैं बस आपको चाहती हूँ, किसी भी कीमत पर!!!

भौजी ने मुझे पर 'अधिकार' जताते हुए क्रोध से अपने दाँत पीसते हुए कहा| मेरा प्यार पाने के लिए भौजी अंधी हो चुकी थीं, उनके दिमाग ने काम करना बंद कर दिया था, उनका प्यासा दिल उन्हें जो कह रहा था भौजी वो किये जा रहीं थीं!

मैं: मगर मैं वो (सम्भोग)....वो...नहीं कर सकता! मुझे डर लगता है की अगर आप pregnant हो गए तो?

मैंने घबराते हुए कहा|

भौजी: तो क्या होगा?

भौजी ने थोड़ा सख्ती से पुछा| उनका यूँ बेवजह मुझ पर सख्ती दिखाना मुझे जायज नहीं लगा इसलिए मैंने पलट कर सख्ती से जवाब दिया;

मैं: तब आप सब से क्या कहोगे की ये बच्चा किसका है?

मेरी पैना सवाल सुन भौजी चुप हो गईं| भौजी की खामोश होने से मेरी हिम्मत बढ़ गई और मैंने भौजी को तर्क के साथ समझना शुरू किया;

मैं: जब आप से ये सवाल पूछ जायेगा तब आप ये नहीं कह सकते की ये बच्चा चन्दर का है, क्योंकि उस ने तो आपको पिछले पाँच सालों से छुआ भी नहीं! फिर हर बार आप तभी pregnant क्यों होते हो जब 'मैं' आपके आस-पास होता हूँ?! जब मैं गाँव में था तब भी आप pregnant हुए थे और अब जब आप यहाँ मेरे घर में हो तब भी आप pregnant हो?! है कोई जवाब आपके पास मेरे इस सवाल का? यही सब सोच कर मैं 'वो' नहीं करना चाहता! कम से कम इस वक़्त हम एक साथ एक छत के नीचे मौजूद तो हैं!

मेरी बात सुन भौजी ने सोचना शुरू कर दिया था|

मैं: इसलिए please...please मुझे 'उसके' लिए मत कहो|

मैंने भौजी के आगे हाथ जोड़ते हुए कहा| मेरी बात का भौजी पर प्रभाव पड़ा था, कुछ पल सोचने के बाद भौजी रुँधे गले से बोलीं;

भौजी: आप जो कह रहे हो वो ठीक है, मगर आप जानते हो मुझे किस बात का सबसे ज्यादा बुरा लगा?

इतना कह भौजी ने दो सेकंड का विराम लिया|

भौजी: आपने मेरे अंदर जल रही आग को तो शांत कर दिया लेकिन अपने अंदर की आग को दबा दिया!

भौजी भावुक हो चुकीं थीं, इसलिए उनका मन रखने के लिए मैंने झूठ बोलने की सोची| मैंने अपने दाहिन हाथ को हस्तमैथुन क्रिया में हिलाते हुए कहा;

मैं: किसने कहा? मैंने कल रात को ये किया था!

लेकिन भौजी मुझे बहुत अच्छे तरीके से जानती थीं, उन्होंने मेरा सफ़ेद झूठ बड़ी सफाई से पकड़ लिया था;

भौजी: क्यों जूठ बोल रहे हो? गाँव आने से पहले करते थे ये सब (हस्तमैथुन), लेकिन गाँव में मेरी कसम देने के बाद मैं शर्त लगा कर कहती हूँ की आपने आजतक ये नहीं किया होगा?!

भौजी ने बड़े गर्व से कहा| मुझे अपनी कसम से बाँधने में उन्हें हमेशा से ही गर्व महसूस होता था| मैंने सर हाँ में हिला कर भौजी की बात को सही ठहराया|

भौजी: आज सुबह छत पर आपके दो underwear सूख रहे थे मतलब कल रात को आप नहाये थे, इसी तरह खुद को ठंडा किया था न?!

मेरी चोरी पकड़ी गई थी इसलिए मैंने शर्म से एक बार फिर सर हाँ में हिलाया|

भौजी: इसलिए मेरे लिए न सही, कम से कम आपने लिए तो एक बार.....please let me relieve you!

भौजी ने विनती करते हुए कहा|

मैं: नहीं यार! I'm alright और अगर ये सब एक बार शुरू हो गया तो फिर रुकेगा नहीं| Its better we don't involve in physical relationship!

मैंने बड़े साफ़ शब्दों में बात कहते हुए मेरे और भौजी के रिश्ते के बीच एक रेखा खींच दी थी, लेकिन मेरी भोली-भाली प्रियतमा मेरी बात का कुछ और ही मतलब निकालने लगीं! उन्हें लगने लगा की आज के बाद मैं उन्हें कभी स्पर्श ही नहीं करूँगा, अपने इस विचार से तड़पते हुए भौजी ने बच्चों की तरह सवाल पुछा;

भौजी: तो क्या अब आप मुझे गले भी नहीं लगाओगे? कभी Kiss भी नहीं करोगे? कभी मेरे आस-पास भी नहीं भटकोगे?

भौजी के बच्चों की तरह सवाल पूछने से मुझे उन पर प्यार आने लगा|

मैं: मेरी परिणीता मैंने ऐसा कब कहा?

मैंने भौजी के दोनों गाल खींचते हुए मुस्कुरा कर कहा|

मैं: मैं आपको दिल से अब भी उतना ही प्यार करता हूँ जितना पहले प्यार किया करता था, मगर प्यार में ये जरूरी तो नहीं की इंसान physical भी हो?

मैंने बड़े प्यार से भौजी की आँखों में आँखें डाले हुए कहा|

मैं: मैं आपको इस तरह गले लगाउँगा...

मैंने भौजी को अपने गले लगाया|

मैं: और आपको Kiss भी करूँगा...

मैंने बिना किसी डर के भौजी के होठों को हलके से चूम लिया| मेरे इस छोटे से चुंबन से भौजी के चेहरे पर मुस्कान आ गई|

मैं: लेकिन इसके आगे कभी नहीं बढूँगा|

मैंने भौजी को हमारे रिश्ते का दायरा समझाते हुए कहा| भौजी को दायरा समझ आ गया था इसलिए उन्होंने (झूठ-मूठ) मुस्कुरा कर कहा;

भौजी: ठीक है जानू, मेरे लिए इतना ही काफी है|

भौजी के मन में एक दुविधा पैदा हो चुकी थी, तभी भौजी के जवाब में नजाने मुझे क्यों वो आश्वासन, वो प्यार नजर नहीं आया जो की आना चाहिए था!

[color=rgb(226,]जारी रहेगा भाग - 16 में...[/color]
 

[color=rgb(44,]तेईसवाँ अध्याय: अभिलाषित प्रेम बन्धन[/color]
[color=rgb(251,]भाग - 16[/color]


[color=rgb(255,]अब तक आपने पढ़ा:[/color]

भौजी: तो क्या अब आप मुझे गले भी नहीं लगाओगे? कभी Kiss भी नहीं करोगे? कभी मेरे आस-पास भी नहीं भटकोगे?
भौजी के बच्चों की तरह सवाल पूछने से मुझे उन पर प्यार आने लगा|
मैं: मेरी परिणीता मैंने ऐसा कब कहा?
मैंने भौजी के दोनों गाल खींचते हुए मुस्कुरा कर कहा|
मैं: मैं आपको दिल से अब भी उतना ही प्यार करता हूँ जितना पहले प्यार किया करता था, मगर प्यार में ये जरूरी तो नहीं की इंसान physical भी हो?
मैंने बड़े प्यार से भौजी की आँखों में आँखें डाले हुए कहा|
मैं: मैं आपको इस तरह गले लगाउँगा...
मैंने भौजी को अपने गले लगाया|
मैं: और आपको Kiss भी करूँगा...
मैंने बिना किसी डर के भौजी के होठों को हलके से चूम लिया| मेरे इस छोटे से चुंबन से भौजी के चेहरे पर मुस्कान आ गई|
मैं: लेकिन इसके आगे कभी नहीं बढूँगा|
मैंने भौजी को हमारे रिश्ते का दायरा समझाते हुए कहा| भौजी को दायरा समझ आ गया था इसलिए उन्होंने (झूठ-मूठ) मुस्कुरा कर कहा;
भौजी: ठीक है जानू, मेरे लिए इतना ही काफी है|
भौजी के मन में एक दुविधा पैदा हो चुकी थी, तभी भौजी के जवाब में नजाने मुझे क्यों वो आश्वासन, वो प्यार नजर नहीं आया जो की आना चाहिए था!

[color=rgb(97,]अब आगे:[/color]

हम दोनों (मैं और भौजी) अपनी बातों में इस कदर खो गए थे की हमने ये भी नहीं देखा की बच्चों ने हमारा छोटा सा kiss देख लिया है! दोनों बच्चे अपने होठों पर हाथ रखे हुए हमें देख रहे थे, भौजी की नजर जब दोनों बच्चों पर पड़ी तो उन्होंने मुझे अपनी आँख का इशारा कर के पीछे देखने को कहा| मैंने पीछे मुड़ कर देखा तो दोनों बच्चे मुस्कुराने लगे थे, मैंने अपने दोनों हाथ खोल कर उन्हें गले लगने को बुलाया| दोनों बच्चे दौड़ते हुए आये और आकर मेरे गले लग कर खिलखिलाने लगे|

रात को खाना खाकर दोनों बच्चे कहानी सुनते हुए मुझसे लिपट कर सो गए, अगला दिन काफी दौड़भाग भरा था इसलिए भौजी और मेरी मुलाक़ात सुबह के बाद हुई ही नहीं| बीच-बीच में मुझे 10-15 मिनट मिल जाया करते थे और तब मेरा मन भौजी से बात करने को करता था| अब अगर उन्हें फ़ोन करता तो हो सकता है की आस-पास माँ होतीं और फिर उनके सामने हम आराम से प्यारभरी बात नहीं कर पाते| What's app पर बात कर सकते थे लेकिन भौजी का फ़ोन button वाला था, इसलिए मैंने भौजी के लिए एक अच्छा सा smartphone खरीदा| फ़ोन ले तो लिया पर भौजी को दूँ कैसे? एक तो न वो मुझसे इतना महँगा कुछ लेंगी और अगर ले भी लिया तो माँ के सामने कैसे इस्तेमाल करेंगी? नया smartphone देख कर घर में सब भौजी से पूछते की ये फ़ोन किसने दिया? अगर भौजी मेरा नाम लेतीं तो घर में सवाल उठने लगते?! मैंने काफी सोचा मगर कोई उपाए नहीं मिला इसलिए मैंने सोचा की माँ के सामने बच्चा बन जाता हूँ! भौजी और मेरा रिश्ता मेरे बचपन से था, तो ऐसे में मैं बच्चा बन कर थोड़ी जिद्द कर सकता था! मेरे बच्चा बन कर फ़ोन देने पर कोई सवाल नहीं करता और अगर करता भी तो मैं कह देता की मैंने अपनी बचपन की दोस्त को gift दिया है!

सुनने में भला ही ये plan बचकाना लगे मगर इसके अलावा कोई उपाए सूझ नहीं रहा था| मैं शाम को थोड़ा जल्दी घर पहुँचा, माँ और भौजी बैठक में बैठे साग चुन रहे थे और बच्चे अभी सो रहे थे| मैंने अपना बचपना दिखाना शुरू करते हुए भौजी से बात शुरू की;

मैं: मम-मम (पानी)!

मैंने बच्चों की तरह पानी पीने का इशारा करते हुए कहा| जब मैं छोटा बच्चा था तब पानी माँगने के लिए माँ से 'मम-मम' कहता था, आज सालों बाद मेरा ये बचपना देख माँ हँस पड़ीं! भौजी पानी ले कर आईं तो मैंने अपना निचला होंठ फुला कर बाहर निकालते हुए भौजी से कहा;

मैं: मुझे...ठंडा...पानी...चाहिए!

मेरा यूँ बच्चों की तरह बोलने से भौजी के चहेरे पर मुस्कान आ गई| वो मेरे लिए ठंडा पानी लाईं और वापस माँ के साथ बैठ कर साग चुनने लगीं| मैं उठा और माँ से थोड़ा लाड करने लगा, मैंने अपना सर माँ के कँधे पर रख दिया और टी.वी. पर कार्टून लगा दिए| मुझे कार्टून देखता हुआ देख भौजी खी-खी कर हँसने लगीं!

मैं: देखो...न माँ....!

मैंने फिर से बच्चे की तरह मुँह फुलाते हुए भौजी की शिकायत माँ से की|

माँ: क्या बात है बेटा, आज बड़ा लाड आ रहा है तुझे?

माँ ने मुस्कुरा कर मेरी ओर देखते हुए पुछा|

मैं: बस ऐसे ही!

मैंने शर्माने का नाटक करते हुए कहा| मेरे इस नाटक से माँ का दिल पिघल गया था!

माँ: बेटा मेरी ज्यादा चापलूसी मत कर!

माँ हँसते हुए बोलीं| माँ तो माँ होती है वो अपने बेटे की रग-रग से वाक़िफ़ होती हैं| मैंने अपना बैग उठाया और उसमें से gift wrap किया हुआ फ़ोन निकाला तथा बिना डरे gift wrap को भौजी की तरफ बढ़ा दिया| भौजी अपनी आँखें बड़ी कर के मुझे देखने लगीं, वो मन ही मन मुझे कह रहीं थीं की मैं ये क्या कर रहा हूँ? माँ के सामने उन्हें gift क्यों दे रहा हूँ? उधर माँ थोड़ा हैरान थीं, वो मेरे बचपने के तार मेरे भौजी को gift देने से जोड़ने में लगीं थीं!

मैं: खोल के तो देखो?

मैंने बेख़ौफ़ भौजी से कहा| लेकिन भौजी ने सर न में हिला दिया, उनके यूँ सर न में हिलाने से माँ बोल पड़ीं;

माँ: बहु एक बार खोल कर तो देख तेरा देवर तेरे लिए क्या लाया है?

जब माँ ने ये कहा तो मेरे दिल को सुकून मिला, क्योंकि माँ इस गिफ्ट को एक देवर-भाभी के प्यार की दृष्टि से देख रहीं थीं!

अब माँ की बात भौजी अनसुना नहीं कर सकती थीं इसलिए भौजी ने मेरा दिया हुआ gift खोला, gift wrap निकलते ही भौजी की आँखें भीग गईं! भौजी इतनी भावुक हो गईं थीं की उनके मुख से शब्द नहीं निकल रहे थे, वो बस लगातार न में गर्दन हिलाये जा रहीं थीं! मैं उठ कर भौजी को शांत कराने वाला था की माँ ने फ़ोन का डिब्बा उठाया और भौजी को खुद देते हुए बोलीं;

माँ: माँ हूँ न तेरी, तो मैं तुझे दे रही हूँ! मुझे मना करेगी?

माँ भौजी को प्यार से डाँटते हुए बोलीं| माँ के यूँ हक़ जताने से भौजी अपना रोना नहीं रोक पाईं, वो उठीं और माँ के गले से लग कर रोने लगीं| माँ ने भौजी के सर पर हाथ फेर कर उन्हें चुप कराया और भौजी से फ़ोन का डिब्बा खोलने को कहा| भौजी ने फ़ोन का डिब्बा खोला मगर फ़ोन को बिना छुए माँ की तरफ बढ़ा दिया;

भौजी: माँ इसे आप चालु करो!

भौजी मुस्कुरा कर बोलीं| मैंने माँ को फ़ोन चालु करने का तरीका बताया, माँ ने फ़ोन चालु किया और अपने आशीर्वाद सहित फ़ोन भौजी को दिया|

मैं हैरान था की माँ ने भला कोई सवाल क्यों नहीं पुछा? मेरी माँ गुस्सा पालने वालों में सी नहीं थीं, अगर उन्हें कोई बात बुरी लगती थी तो वो सामने से बता देतीं थीं| अब इस हिसाब से देखा जाए तो माँ को अगर मेरा भौजी के लिए फ़ोन लाना गलत लगा होता तो वो खुद अपने हाथ से भौजी को फ़ोन हक़ जताते हुए क्यों देतीं? मैं इन सवालों को सोच रहा था और उधर भौजी नया फ़ोन पा कर बहुत खुश थीं, मैंने भौजी से उनका पुराना फ़ोन माँगा| दोनों फ़ोन को बंद कर के मैंने नए फ़ोन में sim card डाला और फिर फ़ोन चालु किया, मैंने भौजी को फ़ोन के सारे function समझाने शुरू किये| जो सबसे पहली app मैंने डाली वो थी What's app, मैंने उन्हें इस app का प्रयोग समझा ने लग गया| हमारी personal chatting के नाम से भौजी खुश हो गईं! |

उधर माँ उठ कर अपने कमरे में गईं, मैं भौजी से नजर चुराते हुए माँ के कमरे में आया| मैंने बड़ी हिम्मत कर के माँ से बात शुरू की;

मैं: माँ.........आप नाराज तो नहीं?

मेरा सवाल सुन माँ मुस्कुराईं और मेरे गाल पर हाथ फेरते हुए बोलीं;

माँ: बेटा मैं क्यों गुस्सा हूँगी? मैं जानती हूँ तू फ़ोन क्यों लाया था!

ये सुन तो मेरी हवा खिसक गई, मुझे लगा की जर्रूर माँ को मेरे और भौजी के रिश्ते के बारे में पता चल गया होगा!

माँ: कुछ दिन पहले बच्चों ने खेल-खेल में उसका (भौजी का) फ़ोन तोड़ दिया था, इसीलिए तू उसके लिए फ़ोन लाया न?!

माँ की बात सुन मैंने रहत की साँस ली और हाँ में सर हिला कर उनकी बात को सही ठहराया|

माँ: फिर बहु है भी तेरे बचपन की दोस्त तो तूने अगर फ़ोन दे दिया तो कौन सी बड़ी बात हो गई?!

माँ ने मुस्कुरा कर कहा और पूजा करने चली गईं| चलो माँ के सवाल पूछने का डर तो खत्म हुआ मगर अभी वो साला चन्दर बाकी था!

मैं अपने कमरे में आया तो बच्चे आँख मलते-मलते हुए जाग गए, दोनों ने पलंग पर खड़े होते हुए अपने हाथ खोल दिए! मैंने दोनों को गोद में उठाया और जी भर कर उन्हें दुलार करने लगा| दोनों हाथ-मुँह धो कर पढ़ाई करने बैठ गए और इधर भौजी मेरी चाय ले कर कमरे में आ गईं| उन्होंने चाय का गिलास टेबल पर रखा और मेरे सीने से कस कर लिपट गईं!

भौजी: Thank You जानू!

भौजी मुझे अपनी बाहों में कसते हुए बोलीं|

मैं: Thank you क्यों? गिफ्ट तो माँ ने दिया न?

मैंने मुस्कुरा कर भौजी के सर को चूमते हुए कहा|

भौजी: लाये तो आप थे न!

भौजी ने हँसते हुए कहा|

मैं: अब मेरी पत्नी भले ही मुझे न बताये की उसका फ़ोन टूट चूका है, लेकिन पति का तो फ़र्ज़ है की वो अपनी पत्नी के लिए नया फ़ोन लाये!

मेरी पति-पत्नी की बात सुन भौजी गदगद हो गईं!

अपनी मम्मी को फ़ोन gift मिलने के नाम सुन दोनों बच्चों ने उधम मचाना शुरू कर दिया, भौजी ने उन्हें फ़ोन दिखाया तो दोनों खुश हो गए| लेकिन बच्चे फ़ोन को छोटे उससे पहले भौजी ने दोनों को सख्ती से कहा;

भौजी: अभी चुपचाप पढ़ाई करो खाना खाने के बाद पापा सारे function समझायेंगे!

इतना कह भौजी ने फ़ोन वापस अपने पास रख लिया! बच्चे फ़ोन के साथ खेलने के लालच में फ़ौरन पढ़ने बैठ गए|

हम दोनों बच्चों के पास बैठ कर बात करने लगे, मैंने भौजी को फ़ोन lock करना सिखा दिया ताकि कहीं कोई उनका फ़ोन खोल कर हमारी chat न पढ़ ले| नया फ़ोन होता है तो उसके साथ खेलना बड़ा अच्छा लगता है, इसलिए भौजी ने अपने फ़ोन से मेरी तसवीरें खींचना शुरू कर दिया| आधे घंटे बाद मैंने उन्हें खाना बनाने को कहा और मैं आयुष को पढ़ाने बैठ गया| बीच-बीच में मैंने भौजी को what's app पर message भी भेजे जिसका जवाब देने में भौजी को बड़ी देर लगी क्योंकि उन्हें फ़ोन पर टाइप करना नहीं आता था| What's app का जो feature भौजी को सबसे अच्छा लगा था वो था emoji इस्तेमाल करना! भौजी ने पेट भर कर मुझे kiss करने वाली emoji भेजीं, मानो वो मुझे सच में kiss कर रहीं हों! इस chatting के चक्कर में उन्हें खाना बनाने में भी देरी हो गई और उनके data pack के साथ-साथ उनका balance भी खत्म हो गया! भौजी उदास हो कर मुँह फुला कर मेरे पास आईं और अपना फ़ोन मुझे देते हुए बोलीं;

भौजी: जानू ...मेला balance खत्म ...हो गया!

भौजी ने तुतलाते हुए कहा! उनके इस तरह तुतलाने से जी किया की उन्हें बाहों में भर कर उनके होंठ चूम लूँ! मैंने भौजी को अपने पास बिठाया और अपने फ़ोन से उनका फ़ोन रिचार्ज करना सिखाया|

मैं: जब मैं घर पर न हूँ तो मैंने जो आपको debit card दिया था उससे recharge कर लेना!

मैंने भौजी को recharge करने का तरीका अच्छे से समझाते हुए कहा| लेकिन भौजी न में सर हिलाने लगीं, फिर एकदम से वो मेरी ओर खिसकीं और मेरे होठों को चूम कर हँसते हुए बाहर भाग गईं| मैं जानता था की भौजी के न कहने का मतलब क्या था, लेकिन फिर भी मैंने इस बात को ले कर उनपर कोई दबाव नहीं बनाया, मैंने सोचा समय के साथ वो सब सीख ही लेंगी|

खैर रात को खाना खाने के बाद बच्चे मेरे पीछे पड़ गए, मैंने उन्हें भौजी के फ़ोन के सारे function समझाये| दोनों बच्चों ने अपनी मम्मी के नये फ़ोन से खेलना शुरू कर दिया था, अब बच्चों का हो-हल्ला शुरू हुआ तो पिताजी और चन्दर का ध्यान बच्चों की तरफ लग गया| नया फ़ोन देख कर चन्दर ने थोड़ा अकड़ते हुए बच्चों से पुछा;

चन्दर: कहाँ पायो रे ई नया फ़ोन?

चन्दर के अकड़ कर पूछने से दोनों बच्चे सहम गए, मुझे ये नाकाबिले बर्दाश्त था इसलिए मैं उसके सवाल का जवाब देते हुए माँ द्वारा बताई हुई बात दोहरा दी;

मैं: बच्चों ने अपनी मम्मी का फ़ोन गिरा कर तोड़ दिया था.....

मैं आगे कुछ कहता उससे पहले ही चन्दर मेरी बात काटते हुए बोला;

चन्दर: तो नवा फ़ोन काहे लाये दिहो, पुरनका ठीक करवाए देतेयो!

चन्दर की मेरी बात काटने से मैं बिदक गया था इसलिए मैं चिढ़ते हुए बोला;

मैं: उसमें पहले से इतनी चेपी (tape) लगी थी, और चेपी लगाने की जगह नहीं बची थी! और मैं ये फ़ोन अपनी दोस्त के लिए लाया हूँ.....

मेरे तेवर गर्म हो चुके थे, कहीं मैं और चन्दर लड़ न पड़ें इसलिए पिताजी बीच में मेरी बात काटते हुए बोल पड़े;

पिताजी: ठीक है बेट कोई बात नहीं!

पिताजी मुझे शांत करवाते हुए बोले|

पिताजी: देवर-भाभी का प्यार है, कोई बात नहीं!

ये कह पिताजी ने चन्दर को भी शांत कर दिया|

मैंने दोनों बच्चों को गोद में लिया और अपने कमरे में आ गाया, कुछ देर बाद भौजी खाना खा कर मेरे कमरे में आईं| भौजी की आँखें नम थीं, कुछ देर पहले मेरी और चन्दर की बातें सुन कर उन्हें बहुत बुरा लगा था;

भौजी: क्यों...क्यों लाये आप ये फ़ोन....?!

भौजी ने खुद का रोना रोकते हुए कहा|

मैं: मैं फ़ोन लाया क्योंकि मेरी जानेमन पुराना फ़ोन इस्तेमाल करे ये मुझे मंजूर नहीं!

मैंने मुस्कुरा कर जवाब दिया|

भौजी: म...महँगा था न....?!

भौजी जानती थीं की अगर वो पैसे को ले कर मुझसे पूछेंगी तो मैं उन्हें झाड़ दूँगा इसलिए उन्होंने डरते हुए बात थोड़ा घुमा कर कही|

मैं: हाँ बहुत महँगा था!

मैंने भौजी से मजाक किया, लेकिन भौजी बेचारीं मेरी बात पर विश्वास कर बैठीं| 'महँगा' शब्द सुनते ही भौजी की आँखें बड़ी हो गईं और गला सूखने लगा|

भौजी: क...कितने का....?

भौजी ने घबराते हुए पुछा| मैंने थोड़ा ड्रामा करते हुए अपनी उँगलियों पर गिनना शुरू किया, जैसे-जैसे उँगलियों की गिनती बढ़ रही थी भौजी की जान निकल रही थी!

मैं: 10K!

मुझे नहीं पता की भौजी 10K का मतलब जानती थीं या नहीं मगर उनका मुँह जर्रूर खुला रह गया था! अब मजाक और लम्बा खींचता तो भौजी रो पड़तीं इसलिए मैंने मजाक खत्म करते हुए कहा;

मैं: 10K यानी 10 Kisses!

Kisses सुन कर भौजी की जान में जान आई और उनके दोनों गाल गुलाबी हो गए!

भौजी: सब एक साथ दूँ की किश्तों में?

भौजी शर्माते हुए बोलीं!

मैं: Madam जी हमारे पास तो सारे plans हैं!

मैंने किसी दुकानदार की तरह बात की, मेरी बात सुन भौजी मुस्कुराने लगीं|

मैं: चाहो तो One-time payment कर दो या फिर घंटों के हिसाब से EMI बाँध लो!

मैंने अपने होठों पर जीभ फिराते हुए कहा|

मैं: लेकिन एक बात बता दूँ, दोनों ही सूरतों में हम 'ब्याज' तगड़ा लेते हैं!

मैंने 'ब्याज; शब्द पर जोर देते हुए कहा! भौजी मेरी बात समझ चुकी थीं और मोल चुकाने के लिए तैयार थीं लेकिन बच्चों की मौजूदगी थी तो इस वक़्त मैंने अपनी 'दूकान' का shutter down कर दिया! भौजी का दिल अब फिर से ख़ुशी से भर चूका था, मगर मैं जानता था की चन्दर जर्रूर फ़ोन को ले कर भौजी को तंग करेगा इसलिए मैंने अपनी आवाज सख्त करते हुए कहा;

मैं: अगर वो (चन्दर) कुछ बोले तो मुझे बताना!

मेरी बात सुन भौजी ने हाँ में सर हिलाया और आयुष को अपने सोने को कहा| अपनी मम्मी के पास सोने पर उसे आज रातभर नए फ़ोन के साथ खेलने को मिलता इसलिए आयुष ख़ुशी-ख़ुशी अपनी मम्मी के साथ चला गया| आयुष के जाते ही नेहा मेरे फ़ोन से खेलने लगी, फिर मैंने उसे कहानी सुनाई और दोनों बाप-बेटी लिपट कर सो गए|

[color=rgb(226,]जारी रहेगा भाग - 17 में...[/color]
 

[color=rgb(44,]तेईसवाँ अध्याय: अभिलाषित प्रेम बन्धन[/color]
[color=rgb(251,]भाग - 17[/color]


[color=rgb(255,]अब तक आपने पढ़ा:[/color]

मैं: 10K यानी 10 Kisses!
Kisses सुन कर भौजी की जान में जान आई और उनके दोनों गाल गुलाबी हो गए!
भौजी: सब एक साथ दूँ की किश्तों में?
भौजी शर्माते हुए बोलीं!
मैं: Madam जी हमारे पास तो सारे plans हैं!
मैंने किसी दुकानदार की तरह बात की, मेरी बात सुन भौजी मुस्कुराने लगीं|
मैं: चाहो तो One-time payment कर दो या फिर घंटों के हिसाब से EMI बाँध लो!
मैंने अपने होठों पर जीभ फिराते हुए कहा|
मैं: लेकिन एक बात बता दूँ, दोनों ही सूरतों में हम 'ब्याज' तगड़ा लेते हैं!
मैंने 'ब्याज; शब्द पर जोर देते हुए कहा! भौजी मेरी बात समझ चुकी थीं और मोल चुकाने के लिए तैयार थीं लेकिन बच्चों की मौजूदगी थी तो इस वक़्त मैंने अपनी 'दूकान' का shutter down कर दिया! भौजी का दिल अब फिर से ख़ुशी से भर चूका था, मगर मैं जानता था की चन्दर जर्रूर फ़ोन को ले कर भौजी को तंग करेगा इसलिए मैंने अपनी आवाज सख्त करते हुए कहा;
मैं: अगर वो (चन्दर) कुछ बोले तो मुझे बताना!
मेरी बात सुन भौजी ने हाँ में सर हिलाया और आयुष को अपने सोने को कहा| अपनी मम्मी के पास सोने पर उसे आज रातभर नए फ़ोन के साथ खेलने को मिलता इसलिए आयुष ख़ुशी-ख़ुशी अपनी मम्मी के साथ चला गया| आयुष के जाते ही नेहा मेरे फ़ोन से खेलने लगी, फिर मैंने उसे कहानी सुनाई और दोनों बाप-बेटी लिपट कर सो गए|

[color=rgb(97,]अब आगे:[/color]

अगले[/b] दो दिन मैं काम में काफी व्यस्त रहा, मगर मेरी और भौजी की बातें whats's app पर होती रहीं| तीसरे दिन मुझे नए project के लिए budget बनाना था, इसलिए मैं अपने कमरे में काम कर रहा था जब भौजी मेरे लिए चाय ले कर आईं;

भौजी: जानू आपको पता है मैंने फ़ोन में search कर के अंग्रेजी के नए नए शब्द सिखने शुरू कर दिए!

भौजी इठलाते हुए बोलीं|

मैं: अच्छा जी? मेरी जानेमन तो बहुत smart है?

मैंने भौजी की तारीफ करते हुए कहा| अपनी तारीफ सुन भौजी अपनी शेखी बघारने लगीं;

भौजी: और न मैंने है न माँ को internet से बहुत सारी recipe पढ़ कर सुनाईं! फिर न मैंने माँ को खाना बनाने वाली वीडियो भी दिखाई, फिर न मैंने google पर words के meaning ढूँढे! गाँव में तो मुझे dictionary में शब्द ढूँढना पड़ता था, मगर यहाँ तो सब फ़ट से मिल जाता है!

भौजी बच्चों की तरह अपनी बातें बताने में लगी थीं और मैं प्यारभरी नजरों से उनका ये बचपना देख कर आनंद ले रहा था|

कुछ पल बाद भौजी ने अपना फ़ोन का बखान करना बंद किया और बड़ा दिलचस्प सवाल पुछा;

भौजी: जानू....आपको याद है......आपने गाँव में मुझे porn देखने के बारे में बताया था?

भौजी ने जिस तरह अपनी बात खींच कर कही थी उससे मैं भौजी के दिमाग में उठ रही खुराफात समझ गया था|

मैं: हाँ तो?

मैंने जानबूझ कर अपना ध्यान काम में लगाते हुए कहा| भौजी ने मेरी ठुड्डी पकड़ी और अपनी तरफ घुमाते हुए बड़े ही शरारती ढंग से बोलीं;

भौजी: मुझे भी देखना है!

भौजी की बात सुन मैं दंग रह गया और आँखें बड़ी कर के उन्हें देखने लगा!

मैं: अच्छे बच्चे ये सब नहीं देखते!

कुछ देर पहले जो भौजी बच्ची बनी मुझसे बात कर रहीं थीं, मैंने उसी बात को मद्दे नजर रखते हुए कहा| मेरा खुद को बच्चा कहने से भौजी ने अपना मुँह डब्बे जैसा फुला लिया!

भौजी: मुझे देखना है....मुझे देखना है....मुझे देखना है!

भौजी ने नाराज होते हुए बच्चों की तरह अपनी बात दोहरानी शुरू कर दी! भौजी का इस तरह जिद्द करता देख मुझे बहुत मजा आ रहा था और मैं अपने हाथ बाँधे धीमे-धीमे मुस्कुराये जा रहा था|

भौजी: जानू....pleaseeeeeee.....बस एक बार! अब पहले ही आप मुझे 'उस तरह' प्यार नहीं करते, कम से कम एक बार 'वो' (porn) दिखा तो दो?!

भौजी विनती करते हुए बोलीं| मैं भौजी की भोली-भाली बातों में आ गया और उन्हें porn दिखाने के लिए तैयार हो गया| जब से भौजी ने गाँव में मुझे ये सब देखने से मना किया था तब से मैंने आज तक porn नहीं देखा था, इसलिए porn देखने की चुल्ल तो मुझे भी थी! मैंने desktop चालु किया, उसमें headphones attach किये और सीधा एक porn website खोलने लगा| उस समय हमारी माननीय सरकार ने porn websites पर ban लगा दिया था इसलिए किसी भी website का link नहीं खुला| अब मैंने Google पर VPN search करना शुरू किया, इस दौरान भौजी थोड़ी बेसब्र हो चली थीं इसलिए वो बीच में बोलीं;

भौजी: और कितना टाइम लगेगा?

मैं: जान, सरकार ने porn website ban कर रखीं हैं, इसलिए मैं VPN ढूँढ रहा हूँ!

जैसे ही मैंने उन्हीं सरकार द्वारा ban की बात बताई भौजी घबरा गईं और बोलीं;

भौजी: तब रहने दो, कहीं पुलिस-वुलिस का चक्कर पड़ गया तो बहुत बदनामी होगी!

भौजी को घबराते देख मैं हँसने लगा|

मैं: ओ मेरी प्यारी मेहबूबा! ऐसा कुछ नहीं होगा, मैं इसीलिए VPN use कर रहा हूँ|

मेरा भौजी को मेहबूबा कहना बहुत अच्छा लगा था इसलिए वो शर्म से दोहरी हो गईं!

भौजी: ये VPN क्या होता है 'जी'?

भौजी ने किसी नई-नवेली दुल्हन की तरह अपने पति के लिए 'जी' लगा कर कहा|

मैं: जब हम internet पर browsing करते हैं तो हमारा IP address दिखता है, अगर किसी को हमें पकड़ना होता है तो वो इस IP address के बदौलत पकड़ सकता है! कोई हमें न पकड़ सके इसके लिए मैं VPN use करता हूँ, VPN हमारा IP address छुपा लेता है और उसकी जगह एक नक़ली जगह का नकली IP address देता है! तो VPN इस्तेमाल करते हुए हम आराम से porn देख सकते हैं!

अब जिसने कभी इस तरह का तिगड़म वाला काम न किया हो उसका डरना स्वाभाविक है, यही कारन था की भौजी अब भी घबरा रहीं थीं| लेकिन जब मैंने porn website खोली और पहली video भौजी को चला कर दिखाई तो भौजी का डर भाग गाया तथा उसकी जगह कामोत्तेजना ने ले ली!

Computer पर sex scene देख कर भौजी का मुँह खुला का खुला रह गया, वो ये तक भूल गईं की घर पर हमारे इलावा माँ भी मौजूद हैं और वो कभी भी यहाँ आ सकती हैं! अब मैं पहले भी इस तरह छुप कर porn देख चूका था इसलिए मेरी नजर दरवाजे तथा screen दोनों पर थी| इधर भौजी से खड़े हो कर porn देखना मुश्किल हो रहा था इसलिए उन्होंने कुर्सी खींची और मेरी बगल में बैठ कर दिल लगा कर porn video देखने लगीं! दो मिनट बाद video खतम हुई तो भौजी किसी लालची इंसान की तरह बोलीं;

भौजी: दूसरी वाली लगाओ!

भौजी का इस तरह बेसब्र होना देख कर मैं फिर मुस्कुराने लगा! मैंने अगली video चलाई तो वो पहली वाली से भी जबरदस्त थी! भरे-पूरे शरीर वाली एक लड़की एक लड़के के साथ जम कर sex कर रही थी! ये वीडियो देख हम दोनों की उत्तेजना बढ़ने लगी थी, मेरा कामदण्ड अपना प्रगाढ़ रूप ले रहा था और भौजी के मुँह से; "सससस...ससस...ससस" की सिसकारियाँ फूटने लगीं थीं! अगले ही पल भौजी ने मेरा बायाँ हाथ पकड़ कर अपनी जाँघ पर रख दिया और मुझे साडी के ऊपर से अपनी योनि सहलाने का मूक निमंत्रण दिया! मेरा दिमाग उस समय वैसे ही काम नहीं कर रहा था इसलिए मैंने धीरे-धीरे अपनी उँगलियों से साडी के ऊपर से भौजी की योनि की टोह लेना शुरू कर दिया| उधर भौजी ने अपना हाथ मेरे कामदण्ड पर रख दिया और उसे दबाने लगीं! पाजामे के ऊपर से ही सही, 5 साल बाद ये हमारा पहला स्पर्श था! भौजी की उँगलियों ने अपना जादू चलाना शुरू कर दिया था और उनके बस दबाने भर से मैं लगभग अपने चरमोत्कर्ष तक पहुँचने वाला था! मुझे अपनी हद्द पता थी इसलिए मैंने अपने दाहिने हाथ को भौजी के हाथ पर रख कर अपने कामदण्ड पर से हटा दिया! मेरा ऐसा करने से भौजी अवाक हो कर मुझे देखने लगीं, मैंने न में सर हिलाया और गर्दन के इशारे से उन्हें video देखने को कहा| भौजी के चेहरे पर एक नक़ली मुस्कान आई और वो वीडियो देखने लगीं| कुछ पल बाद मैंने अपना बायाँ हाथ भौजी की योनि पर से हटा लिया, मैं जानता था की मेरा उन्हें रोकना बुरा लगा है मगर मैं भी अपने कारणों के आगे मजबूर था!

खैर कुछ देर बाद बच्चों के school से आने का समय हुआ तो भौजी उठ कर खाना बनाने चली गईं| मुझे लगा की आज के बाद भौजी फिर कभी porn नहीं देखना चाहेंगी मगर ऐसा नहीं था, भौजी को porn देखने का चस्का लग चूका था! दोपहर को खाना खाने के बाद बच्चे माँ के पास सो गए, मैं अपना काम ले कर बैठक में बैठा था जब भौजी मेरे पास आ कर बैठीं और हमारे बीच खुसर-फुसर शुरू हुई;

भौजी: जानू आज जो हमने porn देखा आपको उसमें 'मज़ा' आया?

भौजी ने अपनी आँखें गोल घुमाते हुए पुछा| मैं भौजी के सवाल में मौजूद शरारत भाँप गया और मुस्कुराते हुए बोला;

मैं: मज़ा तो आपको आया!

मैंने भौजी को आँख मारते हुए कहा|

भौजी: मुझे तो मज़ा आया ही, लेकिन ये video देख कर मेरे मन में एक सवाल पैदा हो गया!

किसी भी नारी के मन में हमेशा ये जानने की ललक होती है की उसके प्रियतम के मन को क्या भाता है और जब बात sex की आती है तो नारी की जिज्ञासा और बढ़ जाती है! उसे जनना होता है की मर्द को sex में क्या लुभाता है, जैसे जिस्म की बनावट (मोटा-पतला), स्तनों का आकार, पिछाड़ी (गाँड़) का आकार (बड़ी या छोटी), कमर का कटाव आदि! मर्द को कौन सा आसन, कौन सी क्रिया पसंद होती है और क्या वो मर्द की ये इच्छा पूरी कर सकती है या नहीं? कुछ ऐसे ही सवाल भौजी के मन में पैदा हो गए थे और उन्हें मुझसे ये सवाल सीधा-सीधा पूछने में संकोच हो रहा था, आखिर हम बँधे ही ऐसे रिश्तों से थे!

कुछ सेकंड सोचने के बाद भौजी ने बड़ी हिम्मत कर के मुझसे अपना सवाल पूछ ही लिया;

भौजी: जानू आपको video वाली लड़की में क्या अच्छा लगा?

अब अगर हम दोनों की शादी हुई होती तो ये मेरे लिए 'trick question' होता, अगर मैं भावना में बहकर उन्हें अपनी पसंद बताने की गलती करता तो मरते दम तक मुझे इसके ताने मारे जाते! लेकिन हमारी शादी नहीं हुई थी और मैं जानता था की अगर मैं भौजी को अपनी पसंद बताने लगा तो वो खुद की तुलना उस लड़की से करने लगेंगी और मेरे उनसे जिस्मानी रिश्ते न बनाने को जोड़ देंगी! बेकार में वो खुद कम आकर्षक आंकेंगी और inferiority complex महसूस करेंगी| मुझे भौजी को आराम से समझना था ताकि वो कभी ये ख्याल अपने मन में न लाएँ की वो किसी भी लड़की से कम हैं;

मैं: मेरी सजनी जी! मैं सिर्फ आपसे प्यार करता हूँ, मेरे मन-मंदिर में केवल आपकी सूरत बसी है! मेरे लिए आप दुनिया की सबसे खूबसूरत नारी हो, आपके आगे किसी दूसरी का क्या मोल? खुद को यूँ किसी दूसरी से मत तौलो, क्योंकि जो आप में है वो उसमें कभी हो ही नहीं सकता और वो है आपका प्यारा सा दिल जो सिर्फ मेरे लिए धड़कता है! मेरे लिए बाहरी खूबसूरती नहीं बल्कि मन की सुंदरता मायने रखती है, इसलिए कभी ऐसा कुछ भी उल्टा-पुल्टा मत सोचना!

मैंने बड़े इत्मीनान से अपनी बात रखी जो भौजी के दिल में उतर गई और वो खुश हो कर मुझे प्यार भरी नजरों से देखने लगीं| अब चूँकि भौजी खुश थीं तो समय था उनसे video देखते समय किये मेरे व्यवहार के लिए माफ़ी माँगने का;

मैं: मैंने उस समय आपके साथ जो व्यवहार किया उसके लिए I'm sorry जान!

भौजी ने मेरे कँधे पर हाथ रख कर मुझे ग्लानि महसूस करने से रोका और सीधा सवाल पूछ डाला;

भौजी: जानू आपको sorry कहने की कोई जर्रूरत नहीं है! मेरा बस आपसे एक सवाल है, आपका 'उसके' (sex के) लिए मना करने का तर्क मैंने मान लिया मगर आपने उस समय मुझे आपके उसको (कामदण्ड को) कपडे के ऊपर से स्पर्श करने से क्यों रोका?

भौजी का सवाल सुन मैंने उन्हें सब सच बताया;

मैं: जान आपके छूने भर से मेरा सब्र जवाब दे जाता और फिर वो हो जाता जिसके लिए मैं आपको मना कर रहा हूँ! हम दोनों का रिश्ता बस इस एक नियम से बँधा है तो प्लीज इस नियम को मत तोड़ो!

मैंने भौजी से विनती की जो उन्होंने 'मेरा मन रखने के लिए मान ली!'

भौजी: ठीक है जानू! हम साथ कुछ करें न करें पर कम से कम साथ porn तो देख ही सकते हैं न? अब please इसके लिए मना मत करना!

भौजी ने हाथ जोड़ते हुए कहा| अब मैं इतना निर्दई तो था नहीं की भौजी को इतनी सी बात के लिए तरसाऊँ इसलिए मैं मुस्कुरा कर हाँ में सर हिला दिया|

हम अभी बात ही कर रहे थे की आयुष उठ कर आ गया और मेरी गोदी में चढ़ गया| अब बच्चों की मौजूदगी में न तो हम porn देख सकते थे न खुसफुसा कर बात कर सकते थे इसलिए भौजी टी.वी. देखने बैठ गईं और मैंने आयुष को लाड करना शुरू कर दिया| शाम को नेहा उठी तो उसने बताया की कल उसकी पहली computer class है, नेहा को computer operate करना नहीं आता था, पहले दिन नेहा की किरकिरी न हो इसलिये मैं दोनों बच्चों को computer सिखाने बैठ गया, मैंने दोनों बच्चों को Computer start करना, turn off करना, Notepad, Wordpad, Microsoft Word की थोड़ी-थोड़ी जानकारी दी| बाकी सब तो नेहा सीख गई मगर नेहा को केवल माउस चलाने में दिक्कत आ रही थी, laser mouse की sensitive होने के कारन नेहा जब क्लिक करती तो click की जगह mouse drag हो जाता| मैंने नेहा को गोद में बिठा कर उसका हाथ पकड़ कर mouse चलाना सिखाया जिससे नेहा का आत्मविश्वास बढ़ने लगा| उधर आयुष का हाथ इतना छोटा था की वो मेरा बड़ा सा mouse चला ही नहीं पाता था| बच्चों को computer चलाना देख भौजी की भी computer सीखने की इच्छा जाग गई और उन्होंने भी बच्चों के साथ computer सीखने की इच्छा जाहिर की;

भौजी: मुझे भी छिखाओ (सिखाओ न?

भौजी ने तुतलाते हुए कहा|

मैं: Computer सीखने की fees लगती है! बच्चे तो मीठी-मीठी fees देते हैं, आप दे पाओगे?

मैंने भौजी को छेड़ते हुए कहा| भौजी ने आयुष की नकल करते हुए मुस्कुरा कर अपना सर हाँ (
yes.gif
) में हिलाना शुरू कर दिया|

मैं: फ़ोन वाली किश्त (EMI) तो अभी तक दी नहीं, computer class की fees कब दोगे?!

मैंने भौजी को उल्हाना दिया तो भौजी हँस पड़ीं और बड़े ही नटखट अंदाज में बोलीं;

भौजी: मैंने तो कभी मना नहीं किया, लेकिन आपके पास मेरे लिए टाइम ही कहाँ हैं!

भौजी ने ठंडी आह भरते हुए मुझे दोषी बना दिया!

मैं: अच्छा जी? वक़्त आने दो, असल ब्याज सब वसूल कर लूँगा!

मैंने साहूकार की तरह कहा|

भौजी: हम इंतज़ार करेंगे,

हम इंतज़ार करेंगे,

क़यामत तक

खुदा करे कि क़यामत हो, और तू आए

खुदा करे कि क़यामत हो, और तू आए

हम इंतज़ार करेंगे!

भौजी का गाना गुनगुनाने लगीं| भौजी के गाने में छिपे उनके मन के भाव पढ़ कर मैं मुस्कुराने लगा, वहीं दोनों बच्चों ने तालियाँ बजानी शुरू कर दी!

अगले कुछ दिनों तक मैं समय मिलने पर भौजी और बच्चों को computer चलाना सिखाने लगा, मगर मेरी गैरमजूदगी में computer खराब होने के डर से कोई भी उसे नहीं छूता था, अब भले ही मैं रात को आऊँ पर computer चलता तभी था जब मैं घर पर मौजूद होता था|

वहीं तीन दिनों तक तो भौजी ने porn देखने की अपनी इच्छा को जैसे-तैसे दबा लिया, मगर चौथे दिन उनका सब्र जवाब दे गया| बच्चे स्कूल जा चुके थे और मैं साइट पर निकलने वाला था जब भौजी मेरे कमरे में आईं;

भौजी: जानू, आज 'वो' (porn) देखने का बहुत मन कर रहा है!

भौजी लजाते हुए बोलीं|

मैं: जान अभी काम पर जाना है, ऐसा करते हैं आज lunch करने के लिए मैं थोड़ा जल्दी आ जाऊँगा!

मैंने भौजी को आँख मारते हुए कहा| भौजी मेरा मतलब समझ गईं और शर्माने लगीं| मैं करीब बारह बजे घर पहुँच गया और हम दोनों ने आधा घंटा porn देखा| अब जब कभी हमें समय मिलता हम दोनों साथ बैठ कर porn देखने लगे|

एक दिन तो गजब हो गया, मैं साइट पर architect के साथ काम के बारे में चर्चा कर रहा था जब भौजी ने मुझे अचानक फ़ोन खड़का दिया! मैंने उनका फ़ोन काटा तो भौजी ने फिर फ़ोन खड़का दिया, मैंने दूसरी बार उनका फ़ोन काटा मगर भौजी ने तीसरी बार फिर फ़ोन खड़का दिया! मैंने architect को "excuse me" कहा और एक तरफ जा कर भौजी का फ़ोन उठाया;

भौजी: जानू, जल्दी से घर आ जाओ! माँ पड़ोस में गईं हैं और घर में कोई नहीं है तो हम आराम से 'वो' (porn) देख सकते हैं!

भौजी ख़ुशी से चहकते हुए बोलीं| मैंने अपना सर पीट लिया, एक बार को तो मन किया की उन्हें झाड़ दूँ पर उनकी इस हरकत पर मुझे प्यार आने लगा था!

मैं: मैं अभी एक meeting में हूँ, बाद में बात करता हूँ!

इतना कह मैंने फोन काट दिया|

शाम को जब मैं घर पहुँचा तो भौजी मुँह फुलाये घूम रहीं थीं, मैंने चुपके से उन्हें मेरे कमरे में आने का इशारा किया और अपने कमरे में आ गया| भौजी गिलास में पानी ले कर मेरे पास आईं, उनका मुँह अब भी फूला हुआ था| मैंने गिलास टेबल पर रखा और भौजी को अपने सीने से लगा लिया, भौजी अपना झूठ-मूठ का गुस्सा दिखाते हुए मुझसे अलग हो कर बाहर जाने लगीं| मैंने भौजी का हाथ पकड़ा और झटका दे कर उन्हें अपनी ओर खींचा| भौजी आ कर मेरे सीने से आ लगीं, मैंने उनके सर को चूमा और बोला;

मैं: जान porn देखने के लिए मैं इस तरह काम छोड़ कर नहीं आ सकता न?!

ये सुन भौजी अपना नीचला होंठ फुलाते हुए बोलीं;

भौजी: एक तो शौक है मेरा और वो भी आप......

भौजी आगे कुछ कहतीं उससे पहले ही मैंने गप्प से उनके निचले होंठ को अपने मुख में भर लिया और उसका रस पीने लगा| जैसे ही मैंने भौजी के निचले होंठ को अपने मुख में लिया भौजी निढाल हो गईं और उनके जिस्म का सारा बोझ मेरे शरीर पर आ गया!

बच्चे और माँ घर पर थे इसलिए मैंने ये चुंबन कुछ पलों में ही तोड़ दिया, लेकिन इन कुछ पलों में ही भौजी का जिस्म थरथरा गया था! उनकी सांसें तेज हो चली थीं और उत्तेजना उन पर लगभग सवार हो ही चुकी थी!

मैं: चलो आज आपसे पहली किश्त ले ही ली मैंने!

मैंने अपनी होठों पर जीभ फिराते हुए कहा|

भौजी: ठीक से कहाँ ली?

भौजी शिकायत करते हुए बोलीं!

मैं: किश्त ली न, 'ब्याज' थोड़े ही लिया?!

मैंने भौजी को आँख मारते हुए कहा| इससे पहले की भौजी हम इंतजार करेंगे कह कर उल्हाना देतीं मैंने बात आगे बढ़ाते हुए कहा;

मैं: अपना फ़ोन लाओ!

भौजी अपना फ़ोन ले आईं| मैंने उन्हें अपने बराबर बिठाया और फ़ोन में VPN चलाते हुए porn देखना सीखा दिया|

मैं: जब मैं घर पर न हूँ और आपका मन हो porn देखने का तो ऐसे देख लेना!

फ़ोन में porn देखने से भौजी खुश तो हुईं मगर मेरा बिना देखने का उनका मन नहीं था!

भौजी: आपके बिना मन नहीं करेगा?

भौजी उदास होते हुए बोलीं|

मैं: जान मैंने कहा की 'जब मैं घर पर न हूँ और आपका मन हो तब', वरना तो हम साथ ही देखेंगे! लेकिन ध्यान रखना की कोई आपको porn देखते हुए देख न ले!

भौजी मेरी बात मन गईं और जब कभी मैं घर नहीं होता और उनका मन porn देखने का होता था तो वो छुपके porn देखने लगीं!

[color=rgb(226,]जारी रहेगा भाग - 19 में...[/color]
 

[color=rgb(44,]तेईसवाँ अध्याय: अभिलाषित प्रेम बन्धन[/color]
[color=rgb(251,]भाग - 18[/color]


[color=rgb(255,]अब तक आपने पढ़ा:[/color]

मैं: अपना फ़ोन लाओ!

भौजी अपना फ़ोन ले आईं| मैंने उन्हें अपने बराबर बिठाया और फ़ोन में VPN चलाते हुए porn देखना सीखा दिया|

मैं: जब मैं घर पर न हूँ और आपका मन हो porn देखने का तो ऐसे देख लेना!

फ़ोन में porn देखने से भौजी खुश तो हुईं मगर मेरा बिना देखने का उनका मन नहीं था!

भौजी: आपके बिना मन नहीं करेगा?

भौजी उदास होते हुए बोलीं|

मैं: जान मैंने कहा की 'जब मैं घर पर न हूँ और आपका मन हो तब', वरना तो हम साथ ही देखेंगे! लेकिन ध्यान रखना की कोई आपको porn देखते हुए देख न ले!

भौजी मेरी बात मन गईं और जब कभी मैं घर नहीं होता और उनका मन porn देखने का होता था तो वो छुपके porn देखने लगीं!

[color=rgb(97,]अब आगे:[/color]

अगला एक हफ्ता काम के कारन मैं बहुत व्यस्त रहा, इस समय एक साथ 4 साइट पर काम चल रहा था| माल गिरवाना और एक साइट से दूसरी साइट पर लेबर को घुमाने में बड़ा टाइम लगता था, ऊपर से सतीश जी भी अपने फ्लैट का काम करवाने के लिए हमारे पीछे पड़े थे| इसी सब के चलते मैं काम में बहुत व्यस्त था, बच्चों के जागने से पहले निकल जाता और रात को उनके सोने के बाद ही घर लौटता| रात को सोते समय बच्चों को मुझसे थोड़ा बहुत प्यार मिल जाता था लेकिन भौजी बेचारी मेरे प्यार के लिए तरस रहीं थीं|

रविवार का दिन आया और मैं सुबह जल्दी उठ कर बाथरूम में नहा रहा था| बच्चे अभी भी सो रहे थे, भौजी उन्हें जगाने आईं मगर बच्चे और सोना चाहते थे| मैं बाथरूम से निकला तो देखा भौजी मेरी ओर पीठ कर के बच्चों को उठने के लिए कह रहीं थीं| भौजी को यूँ देख कर मेरा मन मचलने लगा, मैं दबे पाँव उनके नजदीक आया और अपने दोनों हाथों को भौजी की कमर से होते हुए उनकी नाभि पर कस लिए तथा उन्हें कस कर अपने सीने से लगा लिया! भौजी मेरा स्पर्श पहचानती थीं, वो एकदम से मेरी तरफ घूमीं और मुझसे शिकायत करते हुए बोलीं;

भौजी: मुझ पर जरा भी तरस नहीं आता न आपको? एक हफ्ते से आपको ठीक से देख भी नहीं पाई!

मैं: मेरी जान, मुझे माफ़ कर दो! काम इतना बढ़ गया है इसलिए टाइम नहीं मिल रहा था, मैं ध्यान रखूँगा की अपनी जानेमन को दुबारा शिकायत का मौका न दूँ!

मैंने भौजी के माथे को चूमते हुए कहा| तभी दोनों बच्चे जाग गए और पलंग पर खड़े हो कर ख़ुशी से कूदने लगे!

मैं भौजी से अलग हुआ और दोनों को बच्चों को अपनी बाहों में भर कर लाड करने लगा| पिता का लाड-प्यार मिला तो बच्चों को सब कुछ मिल गया था, वहीं इतने दिनों बाद बच्चों को यूँ सीने से लगा कर मन प्रफुल्लित हो गया था! मिनट भर मैं बच्चों को ऐसे ही अपने सीने से चिपटाये खड़ा था की तभी आयुष बोला;

आयुष: पापा जी नीनी आ रही है!

इतना सुन्ना था की मैं दोनों बच्चों को अपनी छाती से चिपटाये लेट गया, मैंने सोचा आज थोड़ा लेट चला जाऊँगा मगर बच्चों को सुलाने के चक्कर में मेरी भी आँख लग गई! माँ 8 बजे मुझे उठाने आईं और बच्चों के साथ ऐसे लिपट कर सोता देख चुपचाप वापस चली गईं| माँ के बाहर आने पर पिताजी ने मेरे बारे में पुछा तो माँ बोलीं;

माँ: आज मानु को घर रहने दो, पिछले एक हफ्ते से बहुत भगा-दौड़ी कर रहा है!

माँ की बात सुन पिताजी कुछ सोचने लगे और फिर बोले;

पिताजी: ठीक है मानु की माँ, आज भर आराम कर लेने दो कहीं उसकी तबियत न खराब हो जाए!

पिताजी ने नाश्ता कर लिया था इसलिए वो अकेले साइट पर चले गए|

चन्दर ने पिछले कुछ दिनों से रात को साइट पर रुकना शुरू कर दिया था, दरअसल दिन में उसने अपने कुछ निजी ठेके निपटाने शुरू कर दिए थे, इन ठेकों से जो कमाई हो रही थी वो चन्दर की थी| दिन का समय वो अपनी जेब भरनेमें लगा देता था इसलिए रात का समय वो पिताजी के काम को देता था| कभी-कभार वो रात को देर से आता था तो कभी सुबह 8-9 बजे आ कर नहा-धो कर अपने निजी ठेके पर काम करवाने चला जाता था| पिताजी अपने बड़े भाई के कारन चन्दर को कुछ कहते नहीं थे, वरना अगर मैं इस तरह कर रहा होता तो मुझे खूब डाँटते!

नौ बजे मैं हड़बड़ा कर जागा, बच्चे अब भी कस कर मुझसे लिपटे हुए सो रहे थे| उन्हें यूँ सोता हुआ छोड़ कर जाने का मन तो नहीं था लेकिन रोज़ी से मुँह भी नहीं मोड़ सकता था| तैयार हो कर मैं बाहर आया तो मुझे देखते ही माँ बोलीं;

माँ: आज का दिन घर पर ही रहकर आराम कर! ज्यादा भागदौड़ करेगा तो तबियत खराब हो जायेगी तेरी!

माँ की बात ठीक थी पर मुझे पिताजी की चिंता थी, वो अकेले साइट पर काम कैसे सँभालते?

मैं: माँ पिताजी अकेले काम नहीं संभाल पाएँगे!

मैंने अपनी चिंता जाहिर की तो माँ बोलीं;

माँ: चन्दर अभी-अभी निकला है, वो और तेरे पिताजी मिलकर काम सँभाल लेंगे! अब चुप-चाप कपडे बदल!

माँ का आदेश सुन मैंने कपडे बदले और बाहर बैठक में बैठ गया|

कुछ देर में बच्चे उठ गए और मेरी गोदी में बैठ गए, भौजी ने नाश्ता बनाया और हम तीनों ने एक साथ नाश्ता किया| नाश्ता खत्म हुआ तो माँ ने नवरात्रों की बात छेड़ी;

माँ: बेटा नवरात्रे आ रहे हैं, तो घर की सफाई ठीक से करनी है इसलिए एक दिन छुट्टी कर लियो!

नवरात्रों की बात सुन मैं फ़ौरन खुश होते हुए बोला;

मैं: ठीक है माँ! लेकिन एक बात पहले बता दूँ, मैं सारे व्रत रखूँगा!

माँ: बिलकुल नहीं, डॉक्टर ने मना किया है न?!

माँ ने मेरे व्रत रखने की बात से एकदम से इंकार कर दिया था, इसलिए मैंने माँ को मक्खन लगाना शुरू कर दिया;

मैं: कुछ नहीं होगा माँ! देखो मैं निर्जला व्रत तो कर नहीं रहा, फ्रूट वगैरह खाता रहूँगा.....

लेकिन मेरे मक्खन लगाने का माँ पर कोई असर नहीं होना था, उन्होंने एकदम से मेरी बात काट दी;

माँ: बोला न नहीं! डॉक्टर ने तुझे भूखा रहने से मना किया है! ऊपर से तू व्रत में दवाई नहीं लेगा तो बीमार पड़ जाएगा!

माँ का डरना सही था पर मैं उन्हें किसी भी तरह से मनाना चाहता था|

उधर डॉक्टर और दवाइयों की बात सुन भौजी के मन में जिज्ञासा पैदा हो गई, उन्होंने माँ से इस बारे में सब पुछा तो माँ ने उन्हें मेरे बारहवीं के boards से कुछ दिन पहले मेरे बीमार होने की सारी बात बता दी| ये सब सुन कर भौजी सन्न रह गईं, वो जानती थीं की मैं पढ़ाई का pressure लेने वालों में से नहीं था, फिर उसी समय तो आयुष पैदा हुआ था और भौजी ने मुझे फ़ोन करके ये ख़ुशी मुझसे नहीं बाँटी थी, इसलिए हो न हो इसी बात को दिल से लगा कर मैं बीमार पड़ा था! ये सब सोचते हुए भौजी की आँखें भर आईं, जैसे-तैसे उन्होंने अपने जज्बात काबू किये और माँ की तरफ हो गईं और मुझे व्रत रखने से मना करने लगीं;

भौजी: कौन सी किताब में लिखा है की नवरात्रों में व्रत रखना जर्रूरी होता है? देवी माँ की भक्ति तो पूजा कर के भी होती है|

अपनी प्रियतमा को समझाना आसान था, मगर माँ को समझाना थोड़ा टेढ़ी खीर थी, इसलिए मैंने माँ को समझाने पर जोर देना शुरू किया;

मैं: माँ कोई चिंता करने वाली बात नहीं है! मैं पूरा ध्यान बरतूँगा, फलाहार करूँगा, दूध पी लूँगा, कोई tension पालने वाला काम नहीं करूँगा, सूरज ढलने से पहले घर आ जाऊँगा और अगर ज़रा सी भी तबियत ढीली हुई तो मैं व्रत नहीं रखूँगा! Please माँ मना मत करो!

दिमाग में जितने तर्क थे सब दे ते हुए माँ के आगे हाथ जोड़ दिए! माँ जानती थी की मैं कितना धर्मिक हूँ और इसलिए आधे मन से ही सही वो मान गईं मगर उन्होंने ढेर सारी हिदायतों के बाद ही मुझे व्रत रखने की इजाजत दी!

माँ तो मान गईं मगर मेरी जानेमन नाराज हो गई, वो चुपचाप उठीं और मेरे कमरे में बिस्तर ठीक करने चली गईं| मैं उन्हें मनाने के लिए जैसे ही उठा की आयुष बोल पड़ा;

आयुष: दादी जी, मैं भी व्रत रखूँगा!

आयुष नहीं जानता था की व्रत रखना क्या होता है इसलिए उसकी बचकानी बात सुन मैं और माँ हँस पड़े!

भौजी: हाँ-हाँ बिलकुल!

भौजी कमरे के भीतर से मुझे उल्हाना देते हुए बोलीं! इतने में नेहा भी अपने भाई के साथ हो ली;

नेहा: फिर तो मैं भी व्रत रखूँगी!

भौजी: हाँ-हाँ तुम दोनों तो जररु व्रत रखो!

भौजी ने कमरे के भीतर से मुझे फिर से उल्हना देते हुए कहा|

बच्चे जब बड़ों की तरह बात करते हैं तो और भी प्यारे लगते हैं! मैंने दोनों बच्चों को अपने गले लगा लिया और उन्हें बड़े प्यार से समझाते हुए बोला;

मैं: बेटा, बच्चे व्रत नहीं रखते! आपका दिल बहुत साफ़ होता है, इसलिए अगर आप सच्चे मन से देवी माँ की भक्ति करोगे तो देवी माँ वैसे ही बहुत खुश हो जाएँगी! फिर दूसरी बात आपकी उम्र में आपका शरीर बढ़ रहा होता है, जो खाना आप खाते हो वो आपको ताक़त देता है जिससे आपके दिमाग के साथ-साथ आपके शरीर का विकास होता है| अगर आप खाना नहीं खाओगे तो कमजोर रह जाओगे, इसलिए कभी भी भूखे नहीं रहना!

बच्चों को मेरी बात समझ आ गई थी, लेकिन उनका मन था मेरे साथ व्रत रखने का इसलिए उनका मन रखते हुए मैंने कहा;

मैं: ऐसा करते हैं की आप व्रत रखने के बजाए मेरे साथ पूजा करना!

मेरे साथ पूजा करने के नाम से ही दोनों बच्चे खुश हो गए और फिर से चहकने लगे|

चलो बच्चे तो मन गए थे, अब मुझे अपनी दिलरुबा को मनाना था इसलिए मैं उठ कर अपने कमरे में आया| भौजी चादर ठीक करने के लिए झुकीं थी, जैसे ही वो चादर ठीक कर के उठीं मैंने उन्हें पीछे से अपनी बाहों में भर लिया और उनके दाहिने गाल को चूम लिया!

भौजी: जानू..सब मेरी वजह से हुआ....मेरी वजह से आपको ये बिमारी लगी.... न मैं आपको खुद से अलग करती न आप....

इस वक़्त भौजी बहुत भावुक हो चुकी थीं, वो आगे कुछ कहतीं उससे पहले मैंने उनके होठों पर ऊँगली रख दी!

मैं: बस-बस! जो होना था वो हो गया, अब उसे याद कर के अपना दिल न जलाओ!

ये कहते हुए मैंने भौजी के बाएँ गाल को चूम लिया! मेरी बात सुन भौजी का दिल शांत हो रहा था, मैंने सोचा की मौके का फायदा उठा कर क्यों न दूसरी वाली किश्त ले ही ली जाए?! मैंने भौजी को अपनी ओर घुमाया ओर उनके चेहरे को अपने हाथ में थामते हुए बोला;

मैं: मैं सोच रहा था की आज आपसे दूसरी किश्त और ब्याज ले लूँ?

मैंने होठों पर जीभ फिराते हुए कहा| भौजी ने अपनी आँखें झुका कर मुझे मूक स्वीकृति दे दी, लेकिन इससे पहले की हमारे लब मिलते बच्चे दौड़ते हुए कमरे में आ गए!

भौजी: इन शैतानो के होते हुए आपको कुछ नहीं मिलने वाला!

भौजी उल्हाना देते हुए बाहर चली गईं!

अब बच्चों को क्या समझाता, मैंने दोनों को गोद में लिया और बाहर बैठक में बैठ गया| आयुष को cartoon देखना था इसलिए मैंने cartoon लगाया और हम दोनों ninja hatori कार्टून देखने लगे| नेहा को पढ़ाई का शौक था इसलिए वो कमरे में बैठ कर पढ़ने लगी| भौजी और माँ दोपहर के खाने की तैयारी करने जाने वाले थे तो मैंने उन्हें रोक दिया, क्योंकि आज मेरा मन बाहर से खाना खाने के था| बाहर से खाना खाने की बात सुन नेहा अपनी किताब ले कर बाहर दौड़ आई, दोनों बच्चों ने मिलकर 'चाऊमीन' की रट लगानी शुरू कर दी|

मैं: हम तीनों तो चाऊमीन खाएंगे!

मैंने बच्चों की टीम में जाते हुए कहा|

भौजी: और मैं और माँ?

भौजी की बात सुन माँ बोल पड़ीं;

माँ: मेरे लिए दाल-रोटी मँगवा दे और बहु के लिए जो उसे अच्छा लगता है मँगवा दे!

भौजी जानती थीं की दाल-रोटी सस्ती होती है और ऐसे में वो कुछ ख़ास खाना माँग कर पैसे खर्च नहीं करवाना चाहतीं थीं, इसलिए अपनी कंजूसी भरी चाल चलते हुए उन्होंने थोड़ा बचपना दिखा कर माँ के साथ दाल-रोटी खाने की बात कही;

भौजी: मैं भी दाल-रोटी खाऊँगी!

माँ के दाल-रोटी खाने का कारन ये था की उन्हें बाहर का खाना पसंद नहीं था, मगर भौजी के दाल-रोटी खाने का कारन था की वो पैसे खर्च नहीं करना चाहती थीं| मेरे न चाहते हुए भी कहीं न कहीं भौजी के मन में मेरे द्वारा पैसे खर्च करने को ले कर दुःख पनप चूका था|

मैं: यार आप खाने-पीने को ले कर पैसे का मुँह मत देखा करो! माँ बाहर से खाती-पीती नहीं इसलिए वो बस सादा खाना खातीं हैं, लेकिन आपको तो ऐसी कोई दिक्कत नहीं?!

मैंने भौजी को थोड़ा डाँटते हुए कहा| मेरी बात सुन माँ ने भौजी को प्यार से समझाया;

माँ: देख बेटी मैं सादा खातीं हूँ क्योंकि मुझे अपनी तबियत खराब होने का डर लगता है, लेकिन मैं कभी तुम सब को बाहर खाने से नहीं रोकती! जो भी खाओ अच्छा खाओ, 4 पैसे बचाने के लिए कँजूसी करना मुझे पसंद नहीं! आगे से तूने कभी ऐसी छोटी बात सोची तो मैं डंडे से तेरी पिटाई करुँगी!

माँ की डंडे से पीटने की बात सुनकर हम सभी हँस पड़े!

दोपहर को मैंने बाहर से खाना मँगाया, मेरे और बच्चों के लिए चाऊमीन आई, माँ के लिए दाल(तड़का)-रोटी आई तथा भौजी के लिए मैंने special थाली मँगाई! चन्दर और पिताजी दोपहर को आने वाले नहीं थे इसलिए हम चारों dining table पर बैठ गए| खाना खाते समय भौजी ने कई बार मुझे माँ से छुपके खाना खिलाने का इशारा किया, पर मैं हर बार माँ के डर के कारन मना कर देता| खाना खा कर माँ सोने चली गईं, नेहा और आयुष मेरे कमरे में सो गए| अब बचे मैं और भौजी तो हम बैठक में बैठ कर टी.वी. देखने लगे|

मैं: तो कितना porn देख लिया?

मैंने भौजी को छेड़ते हुए बात शुरू की| मुझे लगा भौजी शर्मा जाएँगी पर वो तो मुझे बड़े विस्तार से विवरण देने लगीं| उन्होंने porn के सभी प्रमुख प्रकार खोज-खोज कर देख लिए थे, उनके इस 'व्यख्यान' को सुन कर मेरे कान खड़े हो गए और मैं मन ही मन बोला; ' लोग कुल्हाड़ी पाँव पर मारते हैं और तूने पाँव ही कुल्हाड़ी पर दे मारा! Just wait for this to blow on your face!' मैं जानता था की एक न एक दिन मुझे अपने इस किये का फल भुगतना पड़ेगा, मगर कब बस इसी का इंतजार था!

खैर दिन बीतने लगे, बच्चे तो मेरा भरपूर प्यार पाने लगे मगर भौजी के नसीब में प्यार के कुछ कतरे ही लिखे थे| नवरात्रे शुरू होने से एक दिन पहले मैंने काम से छुट्टी ली, उस दिन मैंने और बच्चों ने मिल कर पूरे घर की सफाई करनी थी| मैंने दोनों बच्चों को dusting वाला कपड़ा दिया और उन्हें dusting करनी सिखाई और मैं पूरे घर में झाड़ू लगाने लगा| मुझे झाड़ू लगाते देख भौजी ने मेरी मदद करनी चाही, मगर माँ ने उन्हें रोक दिया;

माँ: सफाई आज ये तीनों ही करेंगे, बदले में शाम को मैं इन्हें ख़ास चीज खिलाऊँगी!

खाने-पीने के नाम से बाप-बेटा-बेटी का जोश देखने लायक था, तीनों ने ऐसी सफाई की कि पूरा घर चमकने लगा| शाम को माँ ने दोनों बच्चों को चॉकलेट दी मगर मुझे कुछ मिला ही नहीं! जब मैंने माँ से मुँह फुला कर शिकायत की तो माँ और भौजी खिलखिलाकर हँसने लगे! तब दोनों बच्चे मेरे पास आये और मुझे अपनी चॉकलेट में से आधा हिस्सा दिया! मैंने माँ और भौजी को जीभ चिढ़ाई और बच्चों के साथ बच्चा बन कर चॉकलेट खाने लगा! मेरा बचपना देख माँ और भौजी खिलखिलाकर हँसने लगे|

अगले दिन से नवरात्रे शरू थे और माँ ने मेरे पीछे भौजी की duty लगा दी| सुबह उठ कर मैं पूजा करने के लिए तैयार होने लगा तो नेहा अपने आप उठ गई, फिर उसने आयुष को उठाया और दोनों माँ के कमरे में तैयार हो कर मेरे पास आ गए| दोनों को पूजा के लिए तैयार देख मुझे उनपर प्यार आने लगा| मैं दोनों को गोद में उठाता उससे पहले ही दोनों बच्चों ने झुक कर मेरे पाँव छुए, मैंने इसकी कतई उम्मीद नहीं की थी इसलिए मैंने एकदम से दोनों बच्चों को गोद में उठा लिया और उनकी सैकड़ों पप्पियाँ ले डाली| मुझे बच्चों को प्यार करता देख माँ बोल पड़ीं;

माँ: तूने बच्चों की पप्पियाँ ले ली, अब काहे का व्रत?

माँ की बात सुन पिताजी, चन्दर और भौजी हँस पड़े!

पूरे परिवार ने खड़े हो कर माँ की आराधना की, बच्चे स्कूल के लिए तैयार थे तो मैं उन्हें school van में बिठा आया| नाश्ते में भौजी ने दूध पीने के लिए दिया, उसे पी मैं काम पर निकल गया| आज दिनभर में भौजी ने हर आधे घंटे में मुझ से what's app पर पुछा की मेरी तबियत ठीक तो है? दोपहर हुई तो उन्होंने मुझे अपनी कसम से बाँधते हुए घर बुलाया, खाने का समय हुआ तो दोनों बच्चे अपनी-अपनी थाली ले कर मेरे सामने खड़े हो गए| जब भी मैं घर पर होता था तो बच्चे मेरे हाथ से ही खाना खाते थे, मैंने दोनों को खाना खिलाना शुरू किया तो चन्दर टोकते हुए बोला;

चन्दर: तुम दोनों जन का चैन है की नाहीं?! आज मानु भैया वर्ती हैं, आपन हाथ से खाये नाहीं पावत हो?

चन्दर का टोकना मुझे हमेशा अखरता था, मैं चिढ कर उसे जवाब देने को हुआ था मगर इस बार भी पिताजी बीच में बोल पड़े;

पिताजी: अरे कउनो बात नाहीं बेटा, बच्चन का खाना खिलाये से थोड़े ही व्रत टूट जावत है?!

मैंने दोनों बच्चों का ध्यान खाने में लगाए रखा और उनसे उनके स्कूल के बारे में पूछता रहा| आयुष के पास बताने को बहुत कुछ होता था, क्लास में हुई हर एक घटना उसे मुझे बतानी होती थी मगर नेहा का दिन बड़ा सामान्य होता था| एक-आध बार उसने बताया था की उसकी teacher ने उसकी तारीफ की लेकिन उसके अलावा उसने कभी कोई रोचक बात नहीं बताई|

बच्चों का खाना हुआ तो भौजी ने मेरे लिए फल काट कर दे दिए, मेरा खाने का मन कतई नहीं था लेकिन माँ के डर के मारे मैं खाने लगा और बच्चों को भी खिलाने लगा| भौजी ने जैसे ही बच्चों को मेरे हिस्से के फल खाते देखा तो उन्होंने बच्चों को टोक दिया;

भौजी: आयुष-नेहा, अभी खाना खाया न तुमने? ये फल तुम्हारे लिए नहीं हैं!

भौजी का यूँ खाने को ले कर बच्चों को टोकने से मुझे बहुत गुस्सा आया, मैंने उन्हें घूर कर देखा तो भौजी खामोश हो गईं| उधर भौजी का यूँ टोकना माँ-पिताजी को बुरा लगा था, पिताजी ने थोड़ा नरमी से भौजी को समझाते हुए कहा;

पिताजी: बहु अइसन बच्चन का खाने का लेकर कभौं न टोका करो! का होइ ग्वा अगर ऊ फल खावत हैं?! तू और फल काट दियो, अगर घर मा फल नाहीं हैं तो हमका बताओ हम लाइ देब! लेकिन आज के बाद बच्चन का कभौं खाये-पीये का न टोका करो!

भौजी ने पिताजी की बात सर झुका कर सुनी और उनसे माफ़ी भी माँग ली;

भौजी: माफ़ कर दीजिये पिताजी, आगे से ध्यान रखूँगी!

भौजी के माफ़ी माँग लेने से माँ-पिताजी ने उन्हें माफ़ कर दिया और खाना खाने लगे|

खाना खा कर मैं, पिताजी और चन्दर काम पर निकल गए| शाम 5 बजे मुझे नेहा ने फ़ोन किया और पूजा की याद दिलाई;

मैं: हाँ जी बेटा जी, मुझे याद है! मैं बस साइट से निकल रहा हूँ| मेरे आने तक आप और आयुष नाहा-धो कर तैयार रहना|

मैंने फोन रखा और घर की ओर चल पड़ा| घर पहुँच कर मैं नहा-धोकर तैयार हुआ, बच्चे, माँ और भौजी पहले से ही तैयार थे| हम चारों ने विधिवत द्वारा पूजा की, पूजा खत्म होने के बाद दोनों बच्चों ने मेरे पैर छू कर आशीर्वाद लिया| मैंने दोनों को गोद में उठा लिया और जी भर कर उन्हें दुलार करने लगा| माँ और भौजी आस भरी नजरों से मुझे बच्चों को प्यार करते हुए देख रहे थे| जहाँ माँ को ये प्यार एक चाचा का मोह लग रहा था, वहीं भौजी का दिल एक बाप को अपने बच्चों को चाहते हुए प्रफुल्लित हो उठा था|

भौजी खाना बना रहीं थी और मैं माँ के साथ बैठक में बैठा था, माँ ने बातों-बातों में मुझे बताया की भौजी ने भी व्रत रखा है| मुझे भौजी के व्रत रखने से कोई आपत्ति नहीं थी, बस हैरानी हो रही थी की उन्होंने व्रत रखा और मुझे बताया भी नहीं| रात में भौजी ने सबको खाना परोसा, मैंने बच्चों का खाना लिया और उन्हें ले कर मैं अपने कमरे में आ गया| बच्चों का खाना होने के बाद दोनों बच्चे बाहर चले गए और भौजी मेरे लिए फल काट कर ले आईं|

मैं: आजकल मुझसे बात छुपाने लगे हो?

मैंने भौजी को आँखें तार्रेर कर देखते हुए कहा| भौजी मेरा सवाल सुन असमंजस में थीं, उन्हें समझ नहीं आया की आखिरी कौन सी बात उन्होंने मुझसे छुपाई है?

मैं: व्रत रखा और मुझे बताया भी नहीं?!

मैंने भौजी को बात याद दिलाते हुआ कहा| भौजी मुस्कुरा कर मुझे देखने लगीं और बड़े प्यार से बोलीं;

भौजी: आप ही बताओ की अच्छा लगता है की मेरा पति भूखा रहे और मैं खाना खाऊँ?

भौजी की बात सुन मुझे हँसी आ गई|

मैं: ठीक है! अब जा आकर अपने लिए भी फल काट कर यहीं ले आओ!

मेरी बात सुन भौजी कुछ सोच में पड़ गईं, वो उठ कर रसोई में गईं और वहाँ से उबले हुए आलू ले कर आ गईं|

हमारे गाँव में नवरात्रों के व्रत रखने का तरीका कुछ यूँ हैं, सुबह पूजा करने के बाद से कोई कुछ खाता-पीता नहीं है, सीधा शाम को पूजा करने के बाद वर्ती लोग उबले हुए आलू खाते हैं! मैं भी इसी नियम का पालन करता मगर माँ की हिदायतों के कारन मुझे फलाहार करना पड़ रहा था|

अब मैं फल खाऊँ और मेरी प्रेयसी आलू ये मुझे मंजूर नहीं था;

मैं: आलू छोडो और फल ले कर आओ!

मैंने भौजी को आदेश देते हुए कहा|

भौजी: फल आप खाओ, मुझे ये ही पसंद हैं!

भौजी ने मेरी बात को हलके में लते हुए कहा|

मैं: ठीक है, फिर मैं भी यही खाऊँगा|

ये कहते हुए मैंने एक आलू का टुकड़ा उठा लिया| भौजी जानती थीं की मुझे उबले आलू खाना पसंद नहीं इसलिए उन्होंने मेरे हाथ से आलू का टुकड़ा ले लिया!

भौजी: अच्छा बाबा! ला रही हूँ!

भौजी मेरे आगे हाथ जोड़ते हुए बोलीं| भौजी अपने लिए भी फल काट कर ले आईं और हम दोनों साथ बैठ कर फल खाने लगे|

मैं: अगर मेरी पत्नी मुझे भूखा नहीं देख सकती तो मैं भी अपनी पत्नी को उबले हुए आलू खाते हुए नहीं देख सकता!

मैंने प्यार से भौजी को अपनी नारजगी का कारन बताया जिसे सुन वो मुस्कुराने लगीं|

इतने में दोनों बच्चे कूदते हुए आ गए और मेरे सामने मुँह खोल कर खड़े हो गए| मैंने दोनों को फल खिलाये और मुस्कुराते हुए भौजी से बोला;

मैं: आप जानते हो की मैं व्रत क्यों रख रहा हूँ?

मुझे लगा था की भौजी इस सवाल का जवाब नहीं जानती होंगी, लेकिन मैं भूल गया था की हमारे दिल connected हैं, इसलिए मैं जो भी सोचता या महसूस करता हूँ भौजी उस बात को पढ़ लेती हैं!

भौजी: जानती हूँ! देवी माँ ने जो बिना माँगे आपको आपके बच्चों से मिलवा दिया, उसके लिए आप उन्हें धन्यवाद करना चाहते हो!

भौजी की बात अधूरी थी इसलिए मैंने उसे पूरा करते हुए कहा;

मैं: बच्चों के साथ-साथ मुझे मेरा प्यार भी वापस मिल गया!

मैंने बात कुछ इस ढंग से कही जिससे भौजी को महसूस हो गया की मैं केवल बच्चों से ही प्यार नहीं करता बल्कि उनसे भी करता हूँ!

व्रत के नौ दिन इतने मधुरमई बीते की इसकी कल्पना मैंने नहीं की थी, प्रत्येक दिन बच्चे पूजा के समय मेरे साथ खड़े होते थे, प्रत्येक दिन मैं और भौजी साथ बैठ कर फलाहार करते थे और जो पिछले कुछ दिनों से मैं भौजी को समय नहीं दे पा रहा था उसकी कमी अब जाकर पूरी हो गई थी| जिस दिन व्रत खुला उस दिन भौजी ने सबके लिए आलू-पूरी बनाई, उस दिन तो पूरे नौ दिन की कसर खाने पर निकाली गई! मैंने और बच्चों ने पेट भरकर पूरियाँ खाई और फिर हम फ़ैल कर सोये!

अगले दिन दशेरा था और इस दिन से हमारी (भौजी और मेरी) एक ख़ास याद जुडी थी! गाँव में मैंने दशेरे की छुट्टियों में आने का वादा किया था, लेकिन अपना वादा पूरा न कर पाने पर पाँच साल पहले आज ही के दिन मैं बहुत उदास था! मुझे लगता था की भौजी को ये बात याद नहीं होगी लेकिन ऐसा नहीं था| सुबह जब वो मुझे जगाने आईं तो बहुत भावुक थीं, मैंने उन्हें अपने पास बिठाते हुए बात पूछी तो उन्होंने इस बात को फिर से दोहरा दिया| अब मैं अपनी प्रेयसी को कैसे रोने देता इसलिए मैंने उनका ध्यान भटका दिया;

मैं: जान, जो होना था हो गया, उसे भूल जाओ! अभी तो हम साथ हैं, इसलिए ये सब बात छोडो और शाम को हम मेला घूमने जायेंगे तथा रावण दहन देखेंगे|

भौजी कुछ प्रतिक्रिया देतीं उससे पहले ही घूमने की बात सुन दोनों बच्चे उठ बैठे और आ कर मेरे से लिपट गए!

आयुष: पापा जी मुझे वो गोल-गोल झूले पर बैठना है!

नेहा: मुझे भी! मुझे रावण भी देखना है!

दोनों बच्चों ने अपनी फरमाइशें पेश कर दीं जिसे सुन मैं और भौजी हँस पड़े|

दोनों बच्चों को गोदी ले कर मैं बाहर आया और पिताजी से आज शाम घूमने जाने का प्लान बताया| माँ-पिताजी ने तो भीड़-भाड़ के चलते जाने से मना कर दिया, चन्दर ने रात को साइट पर रुकने की बात कर के अपना पल्ला झाड़ दिया अब बचे दोनों बच्चे, मैं और भौजी! मैं बोलने वाला था की हम चारों जायेंगे की तभी माँ ने मेरा काम आसान करते हुए कहा;

माँ: तुम चारों हो आओ, लेकिन भीड़-भाड़ में बच्चों का ध्यान रखना!

कई बार माँ बिन मेरे कुछ कहे ही मेरा रास्ता आसान कर दिया करती थीं|

पिताजी दोनों बच्चों को आज के दिन के महत्त्व के बारे में बताना चाहते थे, इसलिए उन्होंने दोनों बच्चों को अपने पास बुलाया और उन्हें गोदी में बिठा कर बात करने लगे;

पिताजी: बच्चों आपको पता है की आज के दिन का महत्त्व क्या है? हम दशहरा क्यों मनाते हैं?

पिताजी का सवाल सुन नेहा ने फ़ट से अपना हाथ उठाया और बोली;

नेहा: दादा जी मैं...मैं ...मैं बताऊँ?

नेहा का उत्साह देख पिताजी मुस्कुराने लगे और सर हाँ में हिला कर नेहा को बोलने का मौका दिया|

नेहा: आज के दिन भगवान राम जी ने रावण का वध कर के सीता माता को छुड़ाया था|

नेहा की बात से पिताजी बहुत प्रभावित हुए और उनके चेहरे पर गर्वपूर्ण मुस्कान आ गई! छोटे बच्चे जब पूछे गए सवाल का सही जवाब देते हैं तो वो बहुत प्यारे लगते हैं और उन पर बहुत प्रेम आता है, ऐसा ही प्रेम पिताजी को नेहा पर आ रहा था, नेहा के सर पर हाथ फेरते हुए पिताजी बड़े गर्व से बोले;

पिताजी: बिलकुल सही कहा बेटा! लेकिन ये आपको किसने बताया?

नेहा: मम्मी ने!

नेहा ने अपनी मम्मी की तरफ इशारा करते हुए कहा|

पिताजी: शाबाश बहु! तूने सच में बच्चों को अच्छे संस्कार दिए हैं!

अपनी तारीफ सुन भौजी गर्व से फूली नहीं समाईं!

पिताजी की बात खत्म हुई तो मेरे मन में इच्छा जगी की क्या बच्चों ने कभी रावण दहन देखा है?

मैं: नेहा-आयुष, बेटा आप दोनों ने कभी रावण दहन देखा है?

सवाल मैंने बच्चों से पुछा था मगर जवाब देने ससुरा चन्दर कूद पड़ा;

चन्दर: एक बार गाँव में राम-लीला हुई रही तब हम सभय रावण दहन देखेन रहा!

चन्दर मुस्कुराते हुए बोला| मैं समझ गया की गाँव में बच्चों ने क्या ही रावण दहन देखा होगा?!

शाम 5 बजे हम चारों तैयार हो कर निकलने को हुए की तभी दिषु का फ़ोन आ गया, उसने मुझसे मेले में मिलने की बात कही| मैं तो पहले से ही तैयार था, मैंने उससे मिलने की जगह तय की तथा बच्चों और भौजी के साथ घर से निकल पड़ा| नारंगी साडी में भौजी आज बहुत सुंदर लग रहीं थीं, रास्ते भर मैं बहाने से उनका हाथ पकड़ लिया करता और उनके हाथ को हलके से दबा दिया करता, मेरे ऐसा करने पर भौजी के चेहरे पर प्यारभरी मुस्कान आ जाया करती! मेले में पहुँच कर वहाँ की रौनक देख कर हम चारों बहुत खुश थे, बच्चों ने जैसे ही विशालकाय रावण, मेहघनाद और कुम्भकरण का पुतला देखा तो दोनों बच्चों ने मेरा हाथ पकड़ कर मेरा ध्यान उस ओर खींचा| भौजी ने भी जब इतना विशालकाय पुतला देखा तो वो कुछ घबरा गईं और मुझे दूर खींच कर ले जाने लगीं!

आयुष: पापा जी इतना बड़ा रावण?

आयुष आश्चर्यचकित होते हुए बोला|

नेहा: गाँव वाला रावण तो बहुत छोटा सा था, ये तो बहुत-बहुत बड़ा है!

नेहा अपने हैरानी से खुले हुए मुँह पर हाथ रखते हुए बोली!

भौजी: जानू इतना बड़ा रावण बनाते कैसे होंगे?

भौजी का सवाल सुन मैं हँस पड़ा और उन्हें चिढ़ाते हुए बोला;

मैं: क्यों? अगले साल आप रावण बनाओगे?

मेरा कटाक्ष सुन भौजी ने प्यार से मेरी बाजू पर मुक्का मारा|

दिषु को आने में अभी समय था इसलिए हमने घूमना शुरू कर दिया| मेले में कुछ खिलौनों की दुकानें थीं, मुझे याद है जब मैं छोटा था तो खिलौनों के लिए पिताजी से कहा करता था और वो हर बार मुझे मना कर देते थे! मैंने सोच लिया की अगर मेरे बच्चे खिलौने माँगेंगे तो मैं उन्हीं कतई मना नहीं करूँगा, मैं इंतजार करने लगा की बच्चे मुझसे खिलौने लेने की जिद्द करें और में उन्हें बढ़िया सा खलौना खरीद कर दूँ| आयुष को चाहिए थी खिलौने वाली गाडी, इसलिए आयुष ने अपनी ऊँगली उसकी तरफ ऊँगली कर के इशारा किया| मैंने गाडी खरीद कर आयुष को दी तो आयुष का चेहरा ख़ुशी से खिल गया| जब मैंने नेहा से पुछा की उसे क्या चाहिए तो नेहा ने न में सर हिला दिया!

मैं: मेरे प्यारे बच्चे को कुछ नहीं चाहिए?

मैंने नेहा के सर पर हाथ रख कर पुछा| दरअसल नेहा अपनी मम्मी के डर से कुछ नहीं बोल रही थी, जब मैंने नेहा के सर पर हाथ रखा तो उसने हिम्मत कर के एक गुड़िया की तरह इशारा किया| मैंने नेहा को गुड़िया खरीद कर दी तो वो भी ख़ुशी से कूदने लगी! अब बारी थी झूलों में झूलने की, दोनों बच्चों को मैंने छोटे वाले giant wheel पर बिठाया! Giant wheel पर बैठ कर बच्चे ख़ुशी से चीखने लगे, उन्हें चीखता हुआ देख मैं और भौजी बहुत खुश थे| Giant wheel में बैठते वक़्त बच्चों ने mickey mouse वाला झूला देख लिया था| Giant wheel से उतरते ही दोनों बच्चों ने "mickey mouse" चिल्लाना शुरू कर दिया! हम चारों उस झूले के पास पहुँचे तो देखा तो हवा वाले pump से भरा हुआ एक बहुत बड़ा झूला है, बच्चे उस फूले हुए झूले पर चढ़ रहे थे और फिसलते हुए उतर रहे थे| दोनों बच्चे उस झूले पर मस्ती करने लगे, इधर मैं और भौजी बच्चों को मस्ती करते हुए देख कर हँसने लगे| सच कहता हूँ, बच्चों को यूँ उछल-कूद करते हुए देखने का सुख कुछ और ही होता है?! न उन्हें किसी बात की चिंता होती है, न कोई डर, उन्हें तो बस मस्ती करनी होती है!

मौज-मस्ती के बाद अब बारी थी पेट-पूजा की, हम चारों चाट खाने के लिए एक stall के सामने पहुँचे| भौजी ने गोलगप्पे खाने थे, आयुष और नेहा को टिक्की, बचा मैं तो मैंने अपने लिए लिए भल्ले-पपड़ी ली| सारी चाट हम चारों ने मिल-बाँट कर खाई, बच्चों को मिर्ची लगी तो दोनों ने 'सी..सी..सी..' की रट लगानी शुरू कर दी! दोनों बच्चों को सी-सी करते देख भौजी को बहुत मज़ा आ रहा था! मैंने फटाफट पानी की बोतल खरीदी और दोनों बच्चों को दी, आयुष ने फटाफट पानी गटका! नेहा से सब्र नहीं हो रहा था तो उसने आयुष से बोतल छीन ली और फटाफट पानी पीने लगी! पानी पीने से दोनों बच्चों को लगी मिर्ची थोड़ी बहुत ही कम हुई थी, इसलिए मैंने उन्हें एक सूखी पूरी खाने को दी जिससे दोनों बच्चों को लगी मिर्ची खत्म हुई!

भौजी: और खाओगे चाट?

भौजी ने बच्चों को चिढ़ाते हुए पुछा| भौजी की बात सुन दोनों बच्चे अपनी मम्मी को जीभ चिढ़ाने लगे और मेरी टाँगों से लिपट गए|

कुछ पल बाद दिषु का फ़ोन आया तो मैंने उसे बताया की हम कहाँ खड़े हैं| आज दिषु पहलीबार भौजी से मिलने वाला था, भौजी को देखते ही दिषु ने मुस्कुराते हुए हाथ जोड़कर कहा;

दिषु: नमस्ते भाभी जी!

दिषु की आवाज में हलकी सी शैतानी थी जिसे महसूस कर हम दोनों भाई हँसने लगे! हमने हाथ मिलाया और मैंने हँसते हुए उसे कहा;

मैं: सुधर जा!

दोनों बच्चे हैरानी से हम दोनों को देख रहे थे| नेहा तो दिषु से मिल चुकी थी, इसलिए उसने आगे बढ़ते हुए दिषु के पाँव छूते हुए कहा;

नेहा: नमस्ते चाचू!

दिषु एकदम से नीचे झुका और नेहा के सर पर हाथ रखते हुए बोला;

दिषु: जीते रहो बेटा!

अब मुझे आयुष को दिषु से मिलवाना था;

मैं: आयुष बेटा मैंने उस दिन आपको आपके दिषु चाचा के बारे में बताया था न? ये हैं आपके दिषु चाचा!

आयुष ने अपने हाथ जोड़े और दिषु के पाँव छूने लगा| दिषु ने आयुष को गोदी में उठा लिया और उसके गाल चूमते हुए मुझसे बोला;

दिषु: अरे तो ये हमारे साहबज़ादे! आपके (मेरे) सूपपुत्र जी?!

दिषु समझ गया की आयुष भौजी और मेरा बेटा है, उसके आयुष को साहबजादा कहने से हम तीनों हँसने लगे|

दिषु: वैसे बच्चों आपने तो पाँव छू कर मुझे इतनी जल्दी बूढा बना दिया!

दिषु का मज़ाक सुन हम सब हँसने लगे! हँसी-ख़ुशी का माहौल था तो मौका पा कर भौजी ने दिषु से बात शुरू की;

भौजी: दिषु भैया, thank you आपने इन्हें सँभाला और इनका ख्याल रखा!

भौजी ने हाथ जोड़ते हुए कहा|

दिषु: भाभी जी भाई है ये मेरा! आपको दिल से प्यार करता है, एक बार तो मैंने इसे सँभाल लिया, लेकिन अगर इसका दिल दुबारा टूटा तो ये सम्भल नहीं पायेगा!

दिषु की बात सुन कर भौजी भावुक हो गईं थीं, मुझे दुबारा खोने के डर के कारन उनके आँसूँ छलक आये थे!

भौजी: नहीं भैया! एक बार इन्हें खुद से अलग करने का पाप कर चुकी हूँ, लेकिन वादा करती हूँ की मैं कभी इनका दिल नहीं दुखाऊँगी!

भौजी रो पड़ती उससे पहले ही मैंने उन्हें कस कर अपने गले लगा लिया और सर पर हाथ फेरते हुए चुप कराया;

मैं: बस जान, रोना नहीं है!

हम दोनों को गले लगे हुए देख दिषु बोला;

दिषु: आप दोनों घूम कर आओ, तब तक मैं अपने भतीजे-भतीजी को घुमा लाता हूँ!

दिषु की बात सुन भौजी मुस्कुराने लगीं, दिषु बच्चों के साथ घूमने निकला और मैं भौजी का हाथ पकड़ कर मेला घूमने लगा| मेले में हम बड़ों के लिए खाने-पीने के इलावा कुछ ख़ास नहीं था इसलिए हम दोनों घुमते-घामते रामलीला देखने लगे| रावण दहन शुरू होने से पहले दिषु दोनों बच्चों को घुमा लाया और उन्हें अपनी तरफ से खिलौने खरीद कर दिए| जब मैंने उससे पुछा की उसने खिलौने क्यों खरीदे तो वो बड़े गर्व से बोला;

दिषु: मैं चाचू हूँ इनका तो मेरा भी फ़र्ज़ बनता है की मैं अपने भतीजे-भतीजी को कुछ गिफ्ट दूँ!

दिषु की बात सुन भौजी मुस्कुराते हुए बोलीं;

भौजी: ठीक है दिषु भैया आप भी लाड कर लीजिये!

रावण दहन शुरू होने वाला था और बच्चों को वो देखने का बड़ा चाव था! दोनों बच्चों ने रावण के पुतले की तरफ इशारा कर चिल्लाना शुरू कर दिया;

नेहा: पापा जी रावण देखो?

आयुष: पापा जी, रावण कब जलेगा?

दोनों बच्चों का जोश देख मैंने दोनों को गोद में उठा लिया| गोद में आने से बच्चों को रावण का पुतला साफ़ नजर आ रहा था| हम लोग उचित दूरी पर खड़े थे इसलिए डरने की कोई बात नहीं थी! रावण दहन शुरू हुआ और पटाखे फूटते हुए देख दोनों बच्चों ने ताली बजाना शुरू कर दिया! पटाखों के शोर से भौजी डर गईं और मेरा हाथ पकड़ कर मेरे से चिपक गईं! जब तक रावण, मेघनाद और कुम्भकरण का दहन पूर्ण नहीं हुआ तबतक भौजी मुझसे चिपकी खड़ी रहीं|

रावण दहन सम्पत हुआ और दिषु को bye कर हम सब घर लौटे, रास्ते भर दोनों बच्चों ने दहन को ले कर अपनी बचकानी बातों से रास्ते का सफर मनोरम बनाये रखा| बच्चों की बातें, उनका आपस में बहस करना सुन कर अलग ही आनंद आता है, क्योंकि उनकी बहस खुद को सही साबित करने के लिए नहीं होती बल्कि अपने अनुभव को साझा करने की होती है, उन्हें बस अपनी बात सुनानी होती है और बदले में वो बस आपसे इतना ही चाहते हैं की आप उनकी बात ध्यान से सुनें तथा उनकी सराहना करें!

[color=rgb(226,]जारी रहेगा भाग - 19 में...[/color]
 
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