[color=rgb(44,]तेईसवाँ अध्याय: अभिलाषित प्रेम बन्धन[/color]
[color=rgb(251,]भाग - 9 [/color]
[color=rgb(255,]अब तक आपने पढ़ा:[/color]
10 मिनट की मेहनत के बाद मैं भौजी के घर पहुँच ही गया, चौखट से कन्धा टिकाये मैंने भौजी के घर की घंटी बजाई| भौजी दरवाजे के पास ही बैठीं थीं इसलिए उन्होंने फटाफट दरवाजा खोला, जैसे ही भौजी ने नशे में झूमता हुआ देखा वो जान गईं की मैंने पी रखी है!
वहीं भौजी को देखते ही दिषु के द्वारा पिलाई ड्रग का असली असर सामने आया! मेरे पूरे जिस्म में चीटियाँ काटने लगीं, खून का बहाव पूरे शरीर में इतना तेज हो गया की मेरे जिस्म के अब तक के शांत पड़े 'उस' हिस्से में हलचल होने लगी! भौजी को यूँ देख कर 'वासना' मेरे ऊपर हावी हो गई थी! कुछ पल के लिए मैंने सोचने समझने की शक्ति खो दी थी, मुझे बस भौजी के रूप में एक औरत दिख रही थी जिसे भोगने की मुझ में तीव्र इच्छा पैदा हो चुकी थी! ऐसी इच्छा जिसने मुझे बहका दिया था और मैं आज वो करने वाला था जो मुझे नहीं करना चाहिए था!
[color=rgb(97,]अब आगे:[/color]
आज बरसों बाद भौजी और मेरी मिलान की रात थी इसलिए भौजी बन सवंर कर तैयार खड़ीं थीं| उन्हें यूँ देख मेरी आँखों में लाल डोरे तैरने लगे थे, वो तो जिस्म साथ नहीं दे रहा था वरना मैं उन्हें जर्रूर दबोच लेता!
भौजी: अपने शराब पी है?
भौजी ने उदास होते हुए सवाल पुछा| उनके सवाल को सुन कर अचानक जैसे दिमाग को झटका लगा और मुझे भौजी के सुहागरात वाली बात याद आ गई, नशे में धुत्त चन्दर ने उनके साथ जो सलूक किया था वो मैं कभी नहीं कर सकता था! भौजी के इस एक सवाल ने जैसे वासना की आग पर पानी डाल दिया था, मन खट्टा हो गया था और मन में ग्लानि भरने लगी थी की भला मेरे मन में उन्हें दबोचने का गंदा ख्याल आया भी क्यों?! शाम को जो मैंने भौजी की तुलना संगेमरमर की मूरत से की थी वही तुलना फिर याद आने लगी! यकायक मुझे लगने लगा था की मुझे शराब पी कर यहाँ नहीं आना चाहिए था!
मैं: अह्ह्ह...हम्म्म्म....!
मैंने भौजी से नजरें चुराते हुए कहा| भौजी दरवाजे पर से हट गईं और मुझे अंदर बुलाया|
मैं: I...am....sorry!
मैं सर झुका कर अंदर आया, सामने कुर्सी पड़ी थी जिस पर मैं बैठने चाहता था मगर सर घूम रहा था इसलिए मैं पैर फैला कर लुढक गया|
भौजी: अंदर चल के लेट जाओ|
भौजी ने उदास मन से कहा, मेरे शराब पी कर घर आने से उनका दिल टूट गया था! आज हमारी पुनः मिलन की रात थी, इसलिए भौजी ने दोनों बच्चों को दूसरे कमरे में पहले ही सुला दिया था| कुर्सी पर बैठने के बाद मुझे याद आया की नेहा के मिलने के बाद पीना छोड़ने की सोची थी! ये मेरे लिए ग्लानि का दूसरा झटका था!
मैं: नहीं...बच्चे ...मुझे ऐसे...नहीं... देखें ....
मैंने खुसफुसा कर कहा ताकि कहीं बच्चे न जाग जाएँ! मैं किसी तरह उठ के खड़ा हुआ, 2 बार अपनी आँखें कस कर बंद और खोलीं ताकि मुझे ठीक से दिखाई देने लगे, सामने दिवार पर वॉशबेसिन लगा था| मैं धीरे-धीरे कदमों से उसकी ओर बढ़ा, भौजी ने मुझे सहारा देना चाहा तो मैंने अपना हाथ दिखा कर उन्हें रोक दिया| नल खोल कर मैंने खूबसारा पानी अपने चेहरे पर मारा जिससे मुझे कुछ-कुछ नजर आने लगा| बिना पानी पोछे मैं बाहर जाने के लिए दरवाजे की ओर एक कदम चला हूँगा की भौजी ने पीछे से सवाल पुछा;
भौजी: कहाँ जा रहे हो आप?
मैं: घर|
मैंने संक्षेप में जवाब दिया|
भौजी: पर ऐसी हालत में घर जाओगे तो पिताजी...
भौजी ने अपनी बात अधूरी छोड़ दी| वो मुझे पिताजी के गुस्से के बारे में आगाह करना चाह रहीं थीं|
मैं: जानता हूँ...गलती की है तो....
मैं जानता था की ऐसी हालत में देख कर पिताजी सबसे पहले तो खींच कर तमाचा मारेंगे, फिर पेट भर कर गालियाँ देंगे| मैं ये सब भुगतने को तैयार था उसका कारन था की मुझे खुद पर भरोसा नहीं था| मुझे लग रहा था की मैं नशे में जर्रूर भौजी से कोई बदसलूकी करूँगा, कुछ देर पहले जो sex की आग भड़की थी वो मुझे कहीं भौजी के साथ जबरदस्ती न करने पर मजबूर कर दे, बस इसी कारन से मैं किसी भी हालत में भौजी के घर से निकलना चाहता था|
भौजी: मैं साथ चलती हूँ|
भौजी ने आगे बढ़ते हुए कहा|
मैं: नहीं...आप यहीं रहो ...
मैं भौजी को अपने साथ नहीं ले जाना चाहता था क्योंकि फिर वो वापस कैसे आतीं? दूसरा बच्चे घर पर अकेले होते और अगर वो उठ जाते तो घर पर अकेले होने से डर जाते तथा रोने लगते|
भौजी को मना कर मैं दो कदम चला हूँगा की मुझे लगा दरवाजा आ चूका है, मैंने सोचा की उसका सहारा ले कर थोड़ा खड़ा हो जाता हूँ, मगर मेरा अंदाजा गलत निकला और मैं लड़खड़ा कर गिर पड़ा| ये तो शुक्र था की ज्यादा चोट नहीं आई वरना भौजी के लिए मुझे सँभालना मुश्किल हो जाता| भौजी मुझे उठाने को आगे आईं पर मैंने उन्हें फिर रोक दिया और किसी तरह खुद को थोड़ा बहुत सँभालते हुए खड़ा हुआ| मेरे इस तरह लड़खड़ाने से भौजी घबरा गईं थीं, अगर मैं रास्ते में इसी तरह कहीं गिर गया तो क्या होगा? यही सोच कर उन्होंने मुझे रोकते हुए बड़ी सख्ती से कहा;
भौजी: आप कहीं नहीं जा रहे, चलो अंदर चल कर लेट जाओ|
मैं: नहीं...माँ...पिताजी.....चिंता.....कर....
मैंने हिलते-डुलते हुए कहा|
भौजी: नहीं! मैं आपको कहीं नहीं जाने दूँगी, चलो अंदर लेट जाओ|
भौजी ने टीचर की तरह डाँटते हुए कहा| भौजी की डाँट सुन कर मैं किसी बच्चे की तरह घबरा गया और मुँह बना कर उन्हें देखने लगा| मेरे इस तरह बच्चा बन कर मुँह बनाने से भौजी मुस्कुराने लगीं, उन्होंने मुझे अपने कँधे का सहारा दिया और अपने कमरे में लाईं|
मैं जानता था की मैं इस हालत में घर नहीं जा सकता, तो रात यहीं गुजारने के अलावा मेरे पास अब कोई चारा भी नहीं था| नरम-नरम गद्दे पर मैं पैर फैला कर लेट गया, आँखें बंद किये जूते उतारने के लिए मैंने अपने दोनों पैरों को आपस में रगड़ना शुरू कर दिया| भौजी मुस्कुराते हुए मुझे यूँ जूते उतारते हुए झूझता हुआ देख रहीं थीं, मिनट भर की कोशिश के बाद मैंने अपने दोनों पाओं की एड़ियों को बारी-बारी से रगड़ कर जूते उतार लिए थे| जूते उतरे और मैंने अपने पाँव ठीक से फैलाये, कुछ देर पहले जो ड्रग्स के कारन तरंगे उठ रहीं थीं वो एक बार फिर उठने लगीं थी| एक बार फिर मेरा जिस्म काम वासना के कारन उत्तेजित होने लगा था, मन कर रहा था की भौजी को कस कर अपनी बाहों में दबोच लूँ! 'ये मुझे क्या हो रहा है?' मैं मन ही मन बड़बड़ाया| मेरे दिमाग और मेरे जिस्म में वासना को ले कर लड़ाई छिड़ चुकी थी| जिस्म बस sex चाहता था और दिमाग ये पाप करने से जिस्म को बगावत करने से रोक रहा था! परिस्थिति ऐसी थी मानो दिमाग का जिस्म पर कोई काबू ही न हो, जिस्म को काबू करने के लिए दिमाग ने ध्यान भटकाते हुए जुबान को कहने को कुछ शब्द दिए;
मैं: माँ...पिताजी....फोन....कर दो!
मैं आँखें बंद किये हुए बड़बड़ाया|
भौजी: हाँ मैं अभी फोन करती हूँ|
भौजी पिताजी को फ़ोन करने लगीं|
दिमाग का मुझे डराने का ये तर्क ज्यादा चल नहीं पाया, मेरे जिस्म में वासना की आग और भड़कने लगी थी| जितना ही मैं उस आग को दबाना चाहता था वो आग उतनी ही धधकती थी| खुद को रोकने का बस एक ही तरीका था की मैं सो जाऊँ! मैंने अपने दिमाग को हल्का छोड़ दिया, जब दिमाग ने sex के बारे में सोचना बंद किया तो दिमाग थोड़ा शांत होने लगा, रही-सही जो कसर थी वो शराब के नशे ने पूरी कर दी थी, नशे ने मेरी आँखें भारी कर दी थी जिससे मैं सोने लगा| आँखें बंद किये हुए मैंने आधी नींद में भौजी की पिताजी से बात करते हुए आवाज सुनी मगर मैं ये नहीं समझ पाया की उन्होंने पिताजी से कहा क्या? नशे के कारन मुझ में ताक़त नहीं थी की मैं उठ के बैठूँ और सुनूँ की भौजी क्या बात कर रहीं हैं| पिताजी से बात कर के भौजी ने बाहर का दरवाजा बंद किया, अंदर कमरे की लाइट बुझाई और मेरी बगल में लेट गईं| कहाँ तो आज की रात हम एक दूसरे के पहलु में प्यार करते हुए गुजारने वाले थे और कहाँ बेचारी भौजी प्यासी मन मार कर सो रहीं थीं!
करीब आधे-एक घंटे बाद मेरा नशा कुछ कम हुआ, मुझे बड़ी जोर से मूत लगा था इसलिए मुझे मूतने उठना पड़ा| कमरे में एक जीरो वाट का बल्ब जल रहा था, मैं उठ कर बैठा तो भौजी मुझे बगल में सोती हुई नजर आईं| भौजी उस वक़्त मेरी तरफ करवट ले कर लेटीं थीं, इस तरह सोने पर मुझे उनके जिस्म के सारे कटाव साफ़ दिख रहे थे| उन्हें इस तरह सोता हुआ देख कर वासना फिर भड़क उठी, मेरा दिल भौजी को छूने के लिए मचलने लगा! होंठ भौजी के जिस्म को चूमने के लिए थरथराने लगाने! हथेलियाँ भौजी के जिस्म को मींजने के लिए कंपकंपाने लगे! वासना का जूनून मेरे दिलों-दिमाग पर काबू करने लगा था, मगर अभी तक मेरी अंतरात्मा मरी नहीं थी! 'प्यार करता है न तू? तो नशे की हालत में उन्हें छूने की सोच भी कैसे सकता है और वो भी sex करने के लिए?' अंतरात्मा की झिड़की सुन मेरा सर शर्म से झुक गया|
मैंने 2 मिनट भौजी को टकटकी बाँधे देखा और फिर हिलते-डुलते बाथरूम में घुस गया! बाथरूम कर के मैंने एक बार फिर ढेर सारा पानी अपने मुँह पर मारा ताकि मैं होश में आऊँ और यहाँ से चुप-चाप अपने घर चला जाऊँ, मगर नशा अब भी मुझे ठीक से सीधा खड़ा नहीं होने दे रहा था| पानी अपने मुँह पर मारने से मेरी वासना की आग जररू कुछ ठंडी पड़ी थी, मगर एक कमरे में, एक बिस्तर पर सोते हुए मैं कुछ काण्ड अवश्य कर सकता था| हालाँकि ये मेरा वहम था क्योंकि नशा होने पर भी मुझ में अब भी सोचने-समझने की कुछ शक्ति बची थी| बाथरूम से बाहर आकर मेरी नजर फिर से सोती हुई भौजी पर पड़ी, लेकिन इससे पहले वासना की आग फिर से भड़के मैं दिवार का सहारा लेते हुए कमरे से बाहर आ गया|
भौजी का घर 3 BHK था, जहाँ मैं पहले लेटा था वो उनका बैडरूम था, दूसरे कमरे में दोनों बच्चे सो रहे थे और तीसरा कमरे में बस कबाड़ भरा पड़ा था| उस कमरे में एक चरमराता हुआ सिंगल बेड बिछा हुआ था, जिसपर चादर तक नहीं थी| अपनी वासना को रोकने के लिए मुझे इसी बेड पर रात बितानी थी, मैंने कमरे की लाइट जलाई, दरवाजा चिपका कर बंद किया और धीरे-धीरे सहारा लेते-लेते बेड पर लेट गया| अब केवल अलग कमरे में सोने से वासना खत्म हो सकती तो बात ही क्या थी? मेरे जिस्म को दूसरे कमरे में लेटीं भौजी के जिस्म की गर्मी अब भी महसूस हो रही थी, बार-बात मन कर रहा था की मैं भौजी के पास ही लेट जाऊँ! वासना के वशीभूत जिस्म अलग-अलग तरह के तर्क दे रहा था, कभी कहता की सिर्फ एक साथ लेटने से थोड़े ही कुछ होगा? तो कभी कहता की एक बार छू लेने से कुछ नहीं होगा!
आज जिंदगी में पहलीबार मेरी मदद उस एक बुरी आदत ने की जिसके लिए पिताजी हमेशा डाँटते थे, वो आदत थी; 'आलस'! जिस्म को भले ही sex की भूख लगी थी पर उसके लिए उठना पड़ता, लेकिन मेरी सुस्ती मुझे उठने नहीं दे रही थी! मेरी सुस्ती के जवाब में मेरे लिंग ने मुझे सताना शुरू कर दिया, वो ससुर एकदम से अकड़ कर 90 डिग्री का कोण बना कर खड़ा हो गया| शुरू के 5-10 मिनट तो मुझे कुछ फर्क नहीं पड़ा, मगर उसके बाद मेरे सख्त लिंग के करण मुझे पीड़ा होने लगी! वासना की गर्मी प्रगाढ़ रूप ले रही थी और वो गर्मी अब जिस्म से बाहर आने लगी थी, अजीब सी बेचैनी सर पर सवार हो गई जिसके चलते मैंने बिस्तर पर करवटें बदलनी शुरू कर दी| जिस्म उठ कर भौजी के पास जाना चाहता था मगर आलस मुझे उठने नहीं दे रहा था| 'काश वो खुद यहाँ आ जाएँ!' वासना का मारा मेरा मन बोला| वो तो मेरी किस्मत अच्छी थी जो भौजी वहाँ नहीं आईं वरना मैं खुद को कतई नहीं रोक पाता और वो कर बैठता जिसके लिए मैं खुद को आजीवन दोषी मानता रहता|
खैर वासना का असर मेरे जिस्म पर पूरे शबाब पर था, मेरे पसीने छूटने लगे थे, लिंग में आये तनाव के कारन लिंग लगभग फटने की कगार पर था, ऐसा लग रहा था जैसे पूरे जिस्म में चीटियाँ काट रहीं हों! 'ठीक है...वो न सही...कम से कम मुठ तो तू मार ही सकता है?' मन तर्क करते हुए बोला| लेकिन नशे की हालत में मैं मुठ कैसे मारता? अगर मैं हस्तमैथुन करने के लिए उठ जाता तो मेरे कदम मुझे सीधा भौजी के पास ले जाते, बस इसी डर से मैं आलस करके उठा ही नहीं! उस पल मेरे मन ने मेरे आलसी होने पर पेट भर कर गालियाँ दी, अब जब वो पल याद करता हूँ तो बहुत हँसी आती है!
वो तो मेरी किस्मत अच्छी थी जो घंटे भर तक वासना की आग में जलने के बाद भी मैं ये (सम्भोग) दुष्कर्म करने से बच गया तथा किसी तरह सो गया और सोया भी ऐसा की मुझे कोई सुध ही नहीं रही!
सुबह 10 बजे सर दर्द के कारन मैं उठा, जब उठ कर बैठा तो खुद को स्टोर रूम में देख कर हैरान हुआ? थोड़ा दिमाग पर जोर डाला तो कल रात दारु पी कर भौजी के घर आने की बात याद आई लेकिन उसके आगे की कोई भी बात याद नहीं थी! मुझे जगा देख कर भौजी कमरे में आईं, मैं उस समय अपना सर पकडे बैठा था तो भौजी समझ गईं की मुझे सर दर्द हो रहा है;
भौजी: चाय-कॉफ़ी लोगे?
भौजी की आवाज में चिंता झलक रही थी|
मैं: हाँ... ब्लैक कॉफ़ी!
मैंने बिना भौजी से नजरें मिलाये कहा|
भौजी: अभी लाई|
वैसे तो खाना-पीना सब मेरे घर पर होता था, भौजी के घर पर एक हीटर था जिस पर वो पानी वगेराह उबाल लिया करतीं थीं, उसी हीटर पर भौजी ने मेरे लिए ब्लैक कॉफ़ी बनाई| कुछ देर बाद भौजी कॉफ़ी ले के लौटीं, अगले दो मिनट तक हमारे बीच कोई बात नहीं हुई| मुझे ये ख़ामोशी दुःख रही थी इसलिए मैंने ही भौजी से बात शुरू करते हुए पुछा;
मैं: बच्चे स्कूल चले गए?
भौजी: हाँ जी! दोनों आपके बारे में पूछ रहे थे, मैंने कह दिया की आप साइट पर हो और दोपहर तक वापस आओगे|
भौजी के जवाब देने से मुझे कुछ तसल्ली हुई की कम से कम वो मुझसे नाराज नहीं हैं|
मैं: I hope मैंने कल रात आपसे कोई बदतमीजी नहीं की!
मैंने कॉफ़ी खत्म करते हुए कहा|
भौजी: उसके बारे में बाद में बात करते हैं, अभी आप घर चलो!
भौजी का ये सूखा जवाब सुन मैं सोच में पड़ गया की वो मुझसे नाराज हैं भी या नहीं?!
हम दोनों मेरे घर के लिए निकले, रास्ते में भौजी ने मुझे रात को उनकी और पिताजी की बात बताई;
भौजी: कल रात आपके फ़ोन न उठाने से पिताजी बहुत चिंतित थे, मैंने जब उन्हें ये बताया की आप यहाँ मेरे घर में हो तो उन्होंने आपसे बात कराने को कहा| आप होश में नहीं थे और बात नहीं कर सकते थे इसलिए मुझे पिताजी को सब सच बताना पड़ा| मेरी बात सुन कर उन्हें बहुत गुस्सा आया और वो आपको लेने घर आने वाले थे, मैंने उन्हें समझाया की आप इस हालत में नहीं हो की घर जा सको| फिर आपको इस हालत में मोहल्ले वालों ने देख लिया तो पिताजी की बहुत बदनामी होगी, इसलिए सुबह जब आप उठोगे तो मैं आपको ले कर घर आऊँगी| सुबह से अभी तक पिताजी और माँ आपके बारे में 10 बार पूछ चुके हैं, मैं उन्हें यही कह देती थी की आप अभी सो रहे हो|
भौजी की बात सुन कर मैं जान गया था की आज तो पिताजी मार-मार कर घर से निकाल देंगे!
खैर हम दोनों घर पहुँचे, घर में घुसते ही सबसे पहले मुझे माँ का गुस्से से तमतमाया हुआ चेहरा दिखाई दिया, माँ का गुस्सा देख मैं समझ गया की आज पिताजी नहीं बल्कि माँ ही मुझे कूटेंगी! पिताजी डाइनिंग टेबल पर बैठे अखबार पढ़ रहे थे और उन्होंने मुझे अभी तक देखा नहीं था| शुरू से ही मेरी कोशिश रही है की डाँट/मार पहले खा ली जाए ताकि इसकी tension में सारा दिन कुढ़ता हुआ न बीते, इसलिए मैं जा कर डाइनिंग टेबल पर बैठ गया और फिर से अपना सर पकड़ लिया| मेरे बैठने से जो हलचल हुई उससे पिताजी का ध्यान अखबार से हट गया, जैसे ही पिताजी की नजर मुझ पर पड़ी वो झललाते हुए बोले;
पिताजी: उतर गई तेरी रात की या अभी बाकी है? मँगाऊँ तेरे लिए और शराब?
ये पिताजी का पहला आक्रमण था, जिसने मुझे हिला डाला था| पिताजी की झाड़ सुन कर मुझे मेरी गलती का एहसास हो रहा था, मुझे अपने किये पर बहुत बुरा लग रहा था और मैं अपने किये पर काफी लज्जित महसूस कर रहा था|
इतने में चन्दर आ गया और मेरे सामने बैठ गया| कल रात जब मैंने पिताजी का फ़ोन नहीं उठाया तो उन्होंने चन्दर को फ़ोन कर के मेरे बारे में पुछा था, जाहिर था की पिताजी ने उसे सब बता दिया होगा की मैं रात भर कहाँ था, अब चूँकि चन्दर मेरे पीने के बारे में जान गया था तो उसे लेने थे मेरे मजे;
चन्दर भैया: मानु भैया काहे इतना पीयत हो?
चन्दर मुझे छेड़ते हुए बोला|
मैं: वो...कल...पहलीबार था..... इसलिए होश नहीं रहा| Sorry पिताजी!
मैंने सर झुका कर पिताजी की ओर मुँह किये हुए कहा|
पिताजी: भाड़ में गया तेरा "sorry"! तू तो कह के गया था की दिषु को पार्टी देने जा रहा है, यही थी तेरी पार्टी, शराब पीना और नशे में धुत्त हो कर घर आना?
पिताजी ने गुस्से में झाड़ते हुए सवाल पूछा| अब अगर सच बोलता की पार्टी का मतलब होता था पीना तो पिताजी जूते से मारते, इसलिए बेहतरी इसी में थी की मैं झूठ बोलूँ!
मैं: जी...दिषु और मैंने कभी पी नहीं थी...हमने सोचा की एक बार....इसलिए अचानक plan बन गया...
मैंने डर के मारे आधी-अधूरी बात कही| पिताजी की झाड़ सुन कर मैं इतना घबराया हुआ था की ठीक से झूठ नहीं बोल पा रहा था, जो मैंने आधी-अधूरी 'एक बार पीने' की बात कही उसे सुन कर पिताजी का गुस्सा चरम पर पहुँच गया;
पिताजी: तेरी हिम्मत कैसे हुई शराब पीने की?
पिताजी गरजते हुए बोले|
मैं: Sorry पिताजी! मैंने बस एक ग्लास बियर ली थी| वहाँ पहले से किसी की पार्टी चल रही थी और हम दोनों की drinks बदल गई!
मैंने बेसर-पैर की सफाई दी जिसे सुन कर पिताजी खा जाने वाली आँखों से मुझे देखने लगे! मुझे मेरी बेसर-पैर की बात का एहसास हुआ तो मैंने एक बार फिर माफ़ी माँगते हुए बात खत्म करनी चाहि;
मैं: माफ़ कर दीजिये पिताजी, वादा करता हूँ आगे से फिर कभी ऐसा नहीं करूँगा!
लेकिन मेरी माफ़ी माँगने का कोई फायदा नहीं होना था क्योंकि पिताजी ने मेरी drinks बदल जाने की बात पकड़ ली थी;
पिताजी: कहाँ गया था तू?
पिताजी ने गरजते हुए पुछा|
मैं: जी...जी....याद नहीं!
पहले तो मैं उस जगह का नाम लेने वाला था, फिर लगा की अगर पिताजी ने वहाँ जा कर तहकीकात की तो मेरा झूठ पकड़ा जायेगा, इसलिए मैंने जूठ बोलने में ही अपनी भलाई समझी| वैसे भी कल रात भौजी के घर जाने के बाद की मेरी याददाश्त धुँधली थी, तो एक तरह से देखा जाए तो मैं आधा ही झूठ बोल रहा था! मेरे इस आधे झूठ से दिषु भी बच जाता वरना उस ससुरे की भी शामत थी!
माँ जो इतनी देर से गुस्से में भरी चाय बनाते हुए मेरी बातें सुन रहीं थीं उन्होंने भी अपना गुस्सा मुझ पर निकालते हुए चाय का गिलास टेबल पर दे पटका और बोलीं;
माँ: ये ले चाय, तेरा सर दर्द ठीक होगा!
माँ का गुस्सा देख पिताजी को मुझे और डाँटने का मौका मिल गया क्योंकि एक माँ ही तो थीं जो हमेशा मुझे पिताजी के गुस्से से बचा लेतीं थीं, अब जब वो भी मुझसे नाराज हैं तो पिताजी को आज मेरी क्लास लेने से कोई रोकने वाला नहीं था|
पिताजी: पता नहीं? कैसे पता नहीं? तुझे इतना भी होश नहीं की तू गया कहाँ था? दिषु को तो पता होगा न?
पिताजी गुस्से में बोले और दिषु को फ़ोन करने वाले हुए थे| दिषु मेरे बनाये झूठ के बारे में नहीं जानता था, अगर पिताजी उससे बात करते तो वो साला पता नहीं क्या कहता और फिर हम दोनों की तुड़ाई होती!
मैं: जी नहीं......उसे भी नहीं याद...मैंने बताया न वहाँ पार्टी चल रही थी और हमारी drinks उन लोगों के साथ बदल गईं, इसलिए हमारी ये हालत हुई!
मैंने पिताजी को रोकते हुए अपना झूठ फिर दोहराया|
पिताजी: अगर आज के बाद फिर कभी तूने शराब पी, तो मैं तेरी टाँगें तोड़ दूँगा! और दिषु...उसके घर वालों से मैं आज बात करता हूँ, कल रात से उसके (दिषु के) पापा पचास बार फोन कर चुके हैं! तेरी भौजी ने जब बताया की तूने पी है तब मैंने दिषु के पापा को बताया की तुम दोनों ने शराब पी रखी थी और दिषु शायद अपने किसी दोस्त के घर रुका हुआ है| दस बजने आये हैं और उस लड़के का अभी तक कोई अत-पता नहीं! पी कर घर आने में इतनी ही शर्म आती है तो तुम दोनों पीते ही क्यों हो?
पिताजी ने आखरीबार झिड़कते हुए कहा|
मैं और दिषु इतनी आसानी से छूटने वाले नहीं थे, मुझे कैसे भी कर के दिषु को फ़ोन कर के अपना झूठ बताना था वरना उस साले की वजह से हम दोनों बहुत बुरा फँसते!
मैं: Sorry पिताजी वादा करता हूँ की आज के बाद मैं कभी नहीं पीऊँगा|
मैंने बात खत्म करते हुए सर झुका कर कहा| पिताजी आगे कुछ नहीं बोले बस चन्दर के साथ काम पर निकल गए| मैंने चाय पी और चुपचाप उठ कर अपने कमरे में आ गया, मैंने दिषु को फ़ोन मिलाया तो उसका फ़ोन अब भी बंद था| मैं जल्दी से नहाया और तैयार हो कर फिर से दिषु का नंबर मिलाने लगा, उसका फ़ोन बंद आ रहा था इसलिए मैंने उसे sms कर दिया की वो फ़ोन on करते ही सबसे पहले मुझसे बात करे|
2 मिनट बाद भौजी आईं, सुबह-सुबह मेरे पिताजी से डाँट खाने के कारन उनके चेहरे पर उदासी झलक रही थी|
भौजी: आपने रात को कुछ खाया था?
मैं: नहीं!
मैंने सर झुकाये हुए कहा| भौजी ने बड़े दिल से रात को हमारे मिलन का plan बनाया था और मैंने शराब पी कर उस प्लान को खराब कर दिया था, इसी कारन मुझे बहुत बुरा लग रहा था|
भौजी: मैं अभी कुछ खाने को लाती हूँ|
इतना कह भौजी मेरे लिए नाश्ता बनाने चली गईं| उनके जाने के 5 मिनट बाद दिषु का फोन आ गया, मैंने कमरे का दरवाजा चिपकाया और दूर कोने में जा कर दिषु का फ़ोन उठाया;
दिषु: हेल्लो?
दिषु का हेल्लो सुनते ही मैंने अपनी गालियों का पिटारा खोल दिया;
मैं: साले, कुत्ते, कमीने, बहनचोद, भोसड़ीवाले...कल रात तूने drink में क्या डाला था?
मेरे इस तरह गालियाँ देने से दिषु को जोरदार हँसी आ गई और वो हँसते हुए बोला;
दिषु: क्यों आया न मजा रात को भाभी के साथ?
उसकी बात सुन मेरे होश उड़ गए!
मैं: क्या बकवास कर रहा है तू?
मैंने गुस्से से पुछा|
दिषु: अबे you didn't had sex with your bhabhi?
ये सुन कर मेरी आँखें फटी की फटी रह गईं| नशे में भौजी के साथ sex करने की बात मैं कभी सोच भी नहीं सकता था!
मैं: ओ भोसड़ीवाले! क्या कह रहा है तू? क्या मिलाया था तूने?
मैंने दिषु को डाँटते हुए पुछा|
दिषु: Aphrodisiac ....या फिर....Ecstasy....नाम तो याद नहीं...मगर बारटेंडर कह रहा था की बड़ी मस्त 'चीज' (drug) है! जहाँ हम गए थे वहाँ pub के बाहर बड़ा hi-fi माल (रंडी) मिलता था, तभी तो तुझे वहाँ ले कर गया था! तेरे जाने के बाद मैं फिर अंदर गया और bartender से एक-दो लड़कियों के नंबर भी लिए| बहनचोद 4,000/- लिए दोनों ने, मैं और मेरे ओफिस colleague ने खूब बजाई! काश तू होता तो तू भी मजा ले लेता, लेकिन भाई तेरे पास तो भाभी जी थीं ही, तो तूने तो उनके साथ बर्थडे मनाया ही होगा?!
दिषु की बात सुन कर मैं सन्न था| दिषु ने जो sexual drug मुझे दी थी उसके नशे में मैंने जर्रूर भौजी के साथ जबरदस्ती की होगी, ये सोच कर मैं बहुत डर गया था!
मैं: ओ बहनचोद! मुझे कल रात का कुछ कुछ याद नहीं, बेटा अगर मैंने उनके (भौजी के) साथ कुछ किया होगा तो सच कह रहा हूँ तेरी गाँड़ लंगूर के जैसी लाल कर दूँगा!
मैंने दाँत पीसते हुए दिषु को डाँटते हुए कहा|
दिषु: अबे तू भड़क क्यों रहा है? तू साले बिना उस drug के भाभी को छूता भी नहीं, मैंने तो तेरा काम आसान कर दिया और तू साले मुझे ही डाँट रहा है?!
दिषु मेरे बदले हुए रवैये से हैरान था!
मैं: साले नशे की हालत में मैं उन्हें (भौजी को) छूने की भी नहीं सोच सकता और तेरी वजह से मैंने कल रात पता नहीं क्या किया उनके साथ! तू गया बेटा!! बहनचोद अब तो तेरी गाँड़ लाल हो के रहेगी!
मैंने उसे गुस्से से झाड़ा और फ़ोन काट दिया| दिषु की बात को सच मान कर सुबह से भौजी के चेहरे पर आई उदासी अब मुझे समझ आने लगी थी, जररु मैंने रात को नशे में भौजी के साथ sex के लिए जोर-जबरदस्ती की होगी तभी वो इस कदर उदास हैं! ये ख्याल दिमाग में आते ही मुझे खुद से घिन्न आने लगी, मैं इतना गिर सकता हूँ इसकी मैंने कल्पना भी नहीं की थी!
फ़ोन काट कर जैसे ही मैं मुड़ा मेरी नजर भौजी पर पड़ी जो प्लेट में मेरे लिए सैंडविच ले कर चुप-चाप खड़ीं थीं, उन्होंने दिषु से हुई मेरी सारी बात सुन ली थी| मैंने फ़ोन पलंग पर फेंका और तेजी से चल कर भौजी के पास आया, अपने दोनों घुटनों पर आते हुए मैंने एक साँस में उनसे माफ़ी माँगी;
मैं: जान I'm very sorry! कल रात मैंने आपके साथ बदसलूकी की, नशे की हालत में मैंने आपको छुआ, आपके साथ जोर-जबरदस्ती की! I'm very sorry, आप मुझे जो सजा देना चाहो वो मुझे मंजूर है, मुझे मार लो, काट लो, गाली दे दो, चाहे तो पुलिस कंप्लेंट कर दो लेकिन please मुझे माफ़ कर दो!!
नशे की हालत में मैंने भौजी का जो शोषण किया होगा उसे सोच कर मैं ग्लानि से इस कदर भरा था की मैं कोई भी सजा भुगतने को तैयार था, अगर भौजी मेरी जान भी ले लेतीं तो मैं उफ़ तक नहीं करता| वहीं मेरे इस तरह गिड़गिड़ाकर माफ़ी माँगने से भौजी हैरान थीं, उन्होंने नाश्ते की प्लेट टेबल पर रखी और मेरे दोनों कँधे पकड़ कर मुझे उठाते हुए बोलीं;
भौजी: जानू आपने कल रात कुछ नहीं किया!
भौजी ने मेरी आँखों में आँखें डालते हुए बड़े गर्व से कहा| भौजी की बात सुन कर मैं दंग था, हाँ मुझे इस बात की ख़ुशी जर्रूर थी की मैंने नशे में उनके साथ कोई गलत काम नहीं किया!
मैं: क्या? How's that possible? दिषु ने अभी कहा की उसने हम दोनों की drink में कोई sexual drug मिलाई थी! उस साले ने तो रात को...मतलब....
मैंने आगे कहते-कहते रुक गया क्योंकि मैं भौजी को दिषु के प्लान के बारे में नहीं बताना चाहता था|
मैं: तो मतलब मैंने आपको नहीं छुआ न?
मैंने अपनी तसल्ली के लिए एकबार फिर भौजी से पुछा|
भौजी: नहीं! पर आप drugs लेते हो?
भौजी ने मेरी drug वाली बात पकड़ ली थी और उसे बात को जान कर वो काफी चिंतित थीं|
मैं: नहीं! कल दिषु ने पहली बार ....
मैं आगे कुछ कहता उससे पहले ही भौजी बीच में बोल पड़ीं;
भौजी: सच कह रहे हो न? खाओ मेरी कसम?
भौजी ने भोयें सिकोड़ कर शक करते हुए पुछा|
मैं: आपकी कसम मैं कोई drugs नहीं लेता| कल रात पहलीबार था और आखरी भी! Thank God मैंने कल आपको नहीं छुआ, वरना कसम से मैं खुद को कभी माफ़ नहीं कर पाता|
मैंने इत्मीनान की साँस लेते हुए कहा| मेरी बात सुन भौजी के चेहरे पर गर्वपूर्ण मुस्कान आ गई;
भौजी: कल शाम आप मेरी बड़ी बड़ाई कर रहे थे की संगेमरमर की पवित्र मूरत हूँ और आपके छूने भर से अपवित्र हो जाऊँगी! कल रात नशे की हालत में आप भी मेरे साथ बहुत कुछ कर सकते थे, लेकिन आपने मुझे छुआ तक नहीं! Drugs के नशे में होते हुए भी आपने खुद को संभाले रखा, डेढ़ बजे उठके मुझे देखा मगर फिर भी आपने कोई बदसलूकी नहीं की| तो अब बताओ की कौन ज्यादा प्यार करता है और किस की पूजा की जानी चाहिए: मेरी या आपकी? मिल गया न अपने सवालों का जवाब या मैं दूँ?
भौजी ने मुस्कुराते हुए बड़े गर्व से कहा| कुछ भी कहो आज भौजी का सीना गर्व से चौड़ा हो गया था!
मैं: हाँ जी!
मैंने मुस्कुराते हुए कहा| मेरे मुस्कुरा कर जवाब देने से भौजी का दिल खिल गया और वो कस कर मेरे गले लग गईं| भौजी के गले लगने से अब मन में ग्लानि नहीं थी, मैंने ख़ुशी-ख़ुशी नाश्ता किया और भौजी को उनका ख़ास तोहफा देने ही वाला था की तभी दिषु का फ़ोन आ गया|
दिषु ने फ़ोन पर उसके घर से आई 50 missed calls की notification देख ली थी और अब उसकी फटी हुई थी!
मैंने फ़ोन उठाया और गुस्से में बोला;
मैं: बोल?!
दिषु: यार sorry....बहनचोद मेरी फटी हुई है! कल रात पापा ने तेरे घर फ़ोन किया था तो अंकल जी ने उन्हें ये नहीं कहा की मैं तेरे साथ हूँ?
दिषु घबराते हुए बोला|
मैं: अबे भोसड़ी के, उन्हें खुद नहीं पता था की तू कहाँ है, तो वो झूठ कैसे कहते? Hell I wasn't even conscious, all thanks to you!
मैंने दिषु को टॉन्ट मारते हुए कहा|
दिषु: यार आज तो मेरी चुदाई पक्की है!
दिषु का डर के मारे बुरा हाल था और मुझे उसकी रोनी सूरत की कल्पना करके हँसी आ रही थी|
मैं: सही है, कल रात तूने बजाई और आज तेरी बजेगी!!! ही..ही..ही..!
मैं हँसते हुए बोला| उस वक़्त मुझे दिषु के मजे लेने की सूझ रही थी और इस मजे लेने के चक्कर में मैं ये भी भूल गया की सामने भौजी बैठीं हैं|
दिषु: हँस ले भाई, बजी तो तेरी भी होगी?!
दिषु चिढ़ते हुए बोला|
मैं: भोसड़ी के बजी तो जर्रूर, पर शुक्र कर तुझे बचा लिया!
मैंने दिषु को मेरा बोला हुआ सारा झूठ समझा दिया| जब मैं दिषु को झूठ समझा रहा था तब भौजी चुपचाप मेरी सारी बातें सुन रही थीं, जैसे ही मैंने फोन काटा वैसे ही उन्होंने कल रात के घटनाक्रम के बारे में पुछा;
भौजी: अभी क्या कह रहे थे आप?
भौजी ने शक करते हुए सवाल किया|
मैं: दरअसल दिषु ने कल plan बनाया था की पहले हम खूब शराब पीयेंगे उसके बाद हम....वो....वहाँ....मतलब... वो मुझे उस काम के लिए ले जाना चाहता था!
मैंने शराब पीने की बात तो बेधड़क कह दी मगर दिषु के रंडी चोदने वाले पालन के बारे में कहने में संकोच कर रहा था|
भौजी: क्या? कहाँ ले जाना चाहता था?
भौजी ने भोयें सिकोड़ कर पुछा|
मैं: वो....वो जो वहाँ होती हैं न...G.B. रोड...में...उनके पास...!
मैंने शर्म से सर झुकाते हुए कहा|
भौजी: ये कौन सी जगह है? और किसके पास ले जा रहा था?
भौजी इस सब के बारे में कुछ नहीं जानती थीं इसलिए थोड़ा जिज्ञासु हो रहीं थीं|
मैं: Red light area!
मैंने सर झुकाये हुए कहा|
भौजी: Hwwwwww!
भौजी अपने मुँह पर हाथ रखते हुए बोलीं| भौजी को अब सारी बात समझ आ गई थी इसलिए उन्होंने बात को और नहीं कुरेदा|
भौजी: लेकिन आप गए क्यों नहीं?
भौजी ने नटखट भरी मुस्कान के साथ मुझसे पुछा| वो मेरा जवाब पहले से जानती थीं बस मुझे छेड़ रहीं थीं!
मैं: Because ... I ... love....you!!!
मैंने प्यार से भौजी को आँख मारते हुए कहा|
भौजी: I love you too जानू!
मेरे मुँह से I love you सुन कर भौजी का दिल बागबाग हो गया था|
मैं: अच्छा आप मेरा एक काम करोगे?
मैंने भौजी के तोहफे की बात शुरू करते हुए कहा|
भौजी: हाँ-हाँ बोलो जानू!
मैं: आप यहाँ बैठो!
मैंने भौजी को कंप्यूटर टेबल के पास पड़ी कुर्सी पर बैठने को कहा|
मैं: अब अपनी आँखें बंद करो!
भौजी: पर क्यों?
भौजी ने हैरान होते हुए पुछा|
मैं: यार सवाल मत पूछो! चुपचाप जो कह रहा हूँ वो करो!
मैंने थोड़ी सख्ती से कहा|
भौजी: ठीक है बाबा!
भौजी ने हार मानते हुए कहा|
भौजी ने आँखें बंद की, मैंने अपने तकिये के नीचे छुपाई चाँदी की पायल निकाली और भौजी के ठीक सामने जमीन पर आलथी-पालथी मार के बैठ गया| मैंने उनका दाहिना पैर उठा के अपने दाहिने घुटने पर रखा और उन्हें पायल पहनाई| भौजी को पायल का एहसास हो गया था इसलिए उन्होंने झट से अपनी आँखें खोल लीं;
भौजी: हाय राम! ये...ये आप कब लाये? और क्यों....
भौजी अपनी बात पूरी करती उससे पहले ही मैंने उनकी बात काट दी;
मैं: क्या मतलब क्यों लाये?
मैंने भौजी को थोड़ा गुस्से से देखा तो भौजी ने फ़ौरन अपने दोनों कान पकड़ लिए!
मैं: उस दिन जब आप बीमार पड़े थे तब मैंने ध्यान दिया की मेरा मन मोहने वाली वो छम-छम करती पायल गायब है, इसलिए मैंने उसी दिन सोच लिया था की मैं अपने जन्मदिन के दिन आपको तोहफे में पायल दूँगा| कल हमारी मिलन की घडी थी तो मैंने सोचा की मैं कल रात को अपने हाथ से पहनाऊँगा, इसलिए शाम को जब मैं बच्चों के लिए चाऊमीन लेने निकला तब मैंने ये पायल खरीदी, लेकिन कल रात जो काण्ड हुआ उसमें ये पायल पहनने का होश ही नहीं रहा|
मेरी बात सुन कर भौजी के चेहरे पर चित-परिचित मुस्कान आ गई| भौजी को वो पायल बहुत पसंद आई थी जिसकी ख़ुशी उनके चेहरे पर झलक रही थी, उन्होंने पायल के lock को देखा तो ख़ुशी से चहकते हुए बोलीं;
भौजी: ये तो lock वाली पायल है, आपको कैसे पता चला की मुझे ऐसी पायल पसंद है? मैंने तो आपको कभी बताया नहीं, फिर आपको कैसे पता चला?
भौजी ने भोलेपन में सवाल पुछा|
मैं: क्योंकि हमारे दिल connected हैं!
मैंने बड़े प्यार से भौजी की कही बात उन्हें पुनः स्मरण करवाई, ये बात उन्होंने कुछ दिन पहले मुझसे कही थी| इस बात को याद करते ही भौजी हँस पड़ीं, उनकी वो मनमोहक हँसी देख कर मेरे दिल को अजीब सा सुकून मिला!
भौजी: अच्छा जानू ये तो बताओ की ये कितनी की आई?
भौजी ने किसी पत्नी की तरह पुछा|
मैं: क्यों? पैसे दोगे मुझे?
मैंने उन्हें थोड़ा डाँटते हुए पुछा|
भौजी: नहीं ...मैं तो बस.....ऐसे ही पूछ रही थी!
भौजी डर के मारे मुझसे नजरें चुराते हुए बोलीं| मन तो किया उनकी क्लास लगा दूँ पर मैं अच्छा ख़ासा माहौल खराब नहीं करना चाहता था|
मैं: वो सब छोडो और ये बताओ की आपकी पुरानी वाली पायल कहाँ है?
मैंने बात आगे बढ़ाते हुए पुछा ताकि भौजी के मन से डर खत्म कर सकूँ|
भौजी: वो अनिल को exams के लिए कुछ पैसे चाहिए थे, मेरे पास थे नहीं तो मैंने उसे अपनी पायल और चूड़ियाँ दे दी|
मुझे नहीं पता था की भौजी के मायके की हालत इतनी कमजोर थी की अनिल की exam फीस भरने के लिए भौजी को अपने जेवर बेचने पड़े थे!
मैं: और ये कब की बात है?
मैंने भोयें सिकोड़ कर पुछा|
भौजी: यहाँ आने से पहले की|
भौजी ने सर झुका कर कहा|
मैं: अच्छा...और आपने मुझे ये बताना जर्रुरी नहीं समझा न?
मैंने थोड़ा सख्ती दिखाते हुए कहा|
भौजी: नहीं-नहीं ऐसी बात नहीं है, वो मुझे याद नहीं रहा|
भौजी ने मुझसे नजरें चुराते हुए कहा| मैं जानता था की भौजी ने जानकार ये बातें मुझसे छुपाई हैं क्योंकि वो मुझसे किसी भी तरह की पैसे की मदद नहीं लेना चाहतीं थीं, मैंने भी बात घुमाते हुए कहा;
मैं: आप जानते हो न मुझे आपकी पायल की आवाज कितनी अच्छी लगती थी?!
भौजी: Sorry बाबा!
भौजी ने नकली मुस्कान हँसते हुए कहा|
मैं: चलो कोई बात नहीं, माफ़ किया! अच्छा एक कप चाय मिलेगी?
मैंने बात को खत्म करते हुए कहा|
भौजी: जी जर्रूर!
भौजी ने बड़े अदब से अपना सर झुकाते हुए किसी मुगलिया दरबार की 'कनीज़' के जैसे कहा|
मैं: अच्छा मेरे फोन की बैटरी discharge हो गई है, आपके फोन में balance है?
मैंने बड़ी चालाकी से झूठ बोला क्योंकि मुझे भौजी के फ़ोन से अनिल का नंबर जो निकालना था|
भौजी: हाँ ये लो|
भौजी मेरी बातों में आ गईं और मुझे अपना बटन वाला फ़ोन दे कर चाय बनाने चली गईं| मैंने फटाफट अनिल का नंबर निकाला, अपनी चेकबुक से एक चेक फाड़ कर जेब में रखा और चाय पी कर घर से बैंक की ओर निकल गया| बहार जाके मैंने अनिल को फोन किया;
मैं: हेल्लो अनिल?
अनिल मेरी आवाज सुन कर थोड़ा हैरान था, उसे थोड़ा समय लगा पर उसने आखिर मेरी आवाज पहचान ही ली|
अनिल: नमस्ते जीजू!
मैं: नमस्ते! यार तुमने अपनी दीदी से कुछ पैसे लिए थे?
मैंने बात थोड़ी गोल घुमा कर शुरू की|
अनिल: जी वो कॉलेज की फीस भरनी थी....
अनिल आगे कुछ बोलता उससे पहले ही मैं उत्साह में बोल पड़ा;
मैं: मुझे क्यों नहीं बताया? पिताजी का नंबर तो था ना तुम्हारे पास?
मेरी बात सुन अनिल को थोड़ा अजीब लगा, जो जायज भी था आखिर मेरा और उसका रिश्ता ही क्या था?!
अनिल: जी व...वो.....
अनिल जब हकलाने लगा तब मुझे मेरी बेवकूफी समझ आई और मैंने जैसे-तैसे अपनी बात सँभाली;
मैं: अच्छा ये बता पैसे पूरे पड़ गए थे?
अनिल: जी.....वो...
अनिल को कहने में शर्म आ रही थी इसलिए मुझे ही उसकी शर्म दूर करनी पड़ी;
मैं: देख भाई जूठ मत बोल!
मेरी बात सुनते ही अनिल बोल पड़ा;
अनिल: जी नहीं.... मैंने कुछ पैसे उधार ले लिए थे...तो काम चल गया था|
अनिल के पैसे उधार लेनी वाली बात मुझे खटक रही थी, अगर फीस के लिए पैसे नहीं थे तो सूद के पैसे वो कैसे देता?
मैं: कितने पैसे?
मैंने गंभीर होते हुए पुछा|
अनिल: जी....पाँच...पाँच हजार... मुझे PG के पैसे भरने थे...उसके लिए|
अनिल ने सँकुचाते हुए कहा|
मैं: अच्छा...वो...आपकी दीदी ने कुछ पैसे दिए हैं आपको भेजने को! तो मैं NEFT कर दूँ, थोड़ी देर में पहुँच जायेंगे|
मैंने जान बूझ कर झूठ बोला क्योंकि मैं जानता था की अनिल कभी मुझसे पैसे नहीं लेगा|
अनिल मेरे पैसे भेजने की बात को सुन कर खुश हो गया और ख़ुशी से चहकते हुए बोला;
अनिल: जी!
अनिल ने मुझे अपनी सारी bank detail sms की और मैंने उसी वक़्त उसे NEFT कर दिया तथा अपने घर लौट आया|
[color=rgb(226,]जारी रहेगा भाग - 10 में...[/color]