Hindi Antarvasna एक अनोखा बंधन - पुन: प्रारंभ


[color=rgb(243,]उन्नीसवाँ अध्याय: बिछड़न![/color]
[color=rgb(184,]भाग -5[/color]


[color=rgb(65,]अब तक आपने पढ़ा....[/color]

रात के दो बजे मेरा मन बेचैन होने लगा था इसलिए मेरी आँख अचानक खुली| मैंने सबसे पहले नेहा को देखा तो वो मुझसे चिपकी हुई चैन से सो रही थी| आँखों में कुछ नींद थी और कुछ अमावस की रात होने के कारन अँधेरा ज्यादा था सो मैं ठीक से भौजी की चारपाई की ओर ठीक से देख नहीं पा रहा था| मैं उठ कर बैठा तो पाया की भौजी चारपाई पर नहीं हैं, मैंने बैठे-बैठे उनके कमरे के अंदर झाँका तो पाया वो वहाँ भी नहीं हैं! अब मेरी हवा गुल हो गई की इतनी रात गए वो गईं कहाँ?! घर का प्रमुख दरवाजा खुला था, जैसा की मैंने सोने से पहले खुला छोड़ा था, ताकि घर में कोई शक़ न करे!

मैं एकदम से उठ खड़ा हुआ और बहार जाने ही वाला था की मैंने एक बार पीछे पलट कर देखा तो भौजी को स्नानघर के पास मेरी ओर पीठ कर के खड़ा पाया! मैं उनकी ओर बढ़ा तो मुझे उनके सिसकने की आवाज सुनाई दी, मैं समझ गया की वो यहाँ कड़ी होकर रो रहीं हैं, चारपाई पर लेटी हुई रोती तो मैं उठ जाता| मैंने भौजी के दाएँ कँधे पर हाथ रख कर उन्हें अपनी ओर घुमाया, आगे जो दृश्य मैंने देखा उसे देख कर मेरी जान मेरे मुँह को आ गई! भौजी के दाहिने हाथ में उनका वही खंजर था और वो भौजी की बाईं कलाई की नस पर था, भौजी अपनी नस काटने जा रहीं थीं!

[color=rgb(44,]अब आगे...[/color]

वो खंजर देखते ही मेरी आँखों से आँसुओं की धरा बह निकली, मेरी आँखों में दर्द भरे आँसूँ देख भौजी को उनके पाप का एहसास हुआ और उनका सर झुक गया| मैंने भौजी के हाथ से वो खंजर छुड़ाया और घर के बहार फेंक दिया, भौजी से खुद को संभाला न गया तथा वो आ कर मेरे गले लग कर फूट-फूट कर रोने लगीं!

मैं: ये क्या अनर्थ करने जा रहे थे?

मैंने भौजी को खुद से अलग करते हुए कहा|

मैं: मेरा जरा भी ख्याल नहीं आपको? आपको कुछ हो जाता तो में क्या करता? कैसे जीता? आखिर किस गलती की सजा दे रहे हो मुझे?! सुबह से मुझसे बात नहीं कर रहे, बात-बात पर चिढ जाते हो, कसूर क्या है मेरा?!

मैंने भौजी के कंधे पकड़ कर उन्हें झिंझोड़ते हुए कहा|

मैं: और नेहा का क्या? उस बेचारी ने कौन सा पाप किया जो उसके सर से उसकी माँ का साया छीन रहे हो?! क्या जवाब देता मैं उसे जब वो मुझसे पूछती की उसकी मम्मी कहाँ है?!

भौजी ग्लानि से गड़ी जा रहीं थीं, उनसे मेरी ओर देखा भी नहीं जा रहा था इसलिए वो फिर से मेरे सीने से लग गईं और रोने लगीं|

मैं: और उस नहीं सी जान का क्या जिसे आप मेरी निशानी के रूप में चाहते थे?! समझ सकता हूँ की आपके मन में कितना गुबार है, कितना दर्द है पर उसका हल जान देना तो नहीं!!

मेरे सवाल सुन कर भौजी को बस ग्लानि हो रही थी इसलिए वो रोते हुए बोलीं;

भौजी: मुझे....माफ़ कर ...दो!

भौजी को इस तरह टूटे हुए देख मेरा सब्र जवाब दे गया था, मैं अंदर से पूरी तरह टूट चूका था इसलिए मैं भी फफक कर रोने लगा, तथा मेरे आँसू बहते हुए भौजी की पीठ पर जा गिरे! मुझे इस तरह रोता देख भौजी का दिल और दुखा;

भौजी: प्लीज...आप मत रोइये!

मैं: कैसा न रोऊँ, सुबह से खुद को रोक रहा था की मैं आपके सामने इस तरह न टूट जाऊँ, पर आप....अपने तो हद्द ही पार कर दी!

भौजी मुझसे अलग हुईं और रोते हुए अपने दोनों हाथ मेरे सामने जोड़कर बोलीं;

भौजी: मुझे माफ़ कर दो..... मैं होश में नहीं थी....मुझे कुछ सूझ नहीं रहा था....मैं आपके बिना नहीं जी सकती....

इतना कह वो बदहवास होकर रोने लगीं, इधर उनकी ये बात सुनकर मुझे डर लगने लगा;

मैं: नहीं.....ऐसा मत बोलो! देखो...आपने कहा था न की आपको मेरी निशानी चाहिए?

मैंने उनकी कोख पर हाथ रखा और अपनी बात पूरी की;

मैं: तो फिर? उसके लिए तो जीना होगा ना आपको?

मैंने भौजी को जीने की एक उम्मीद बँधाई|

रात का सन्नाटा था और इस सन्नाटे में हम दोनों रो तो रहे थे, पर हमारी आवाज घुटी ही सी थी! हमारी ये घुटी हुई रोने की आवाज सुन कर नेहा उठ बैठी, हम दोनों उसकी ओर पीठ आकर के रो रहे थे सो हम उसे देख न पाए| लेकिन नेहा जाएंगे थी की हम दोनों रो रहे हैं, इसलिए वो उठ कर मेरे पास आई और मेरी टांगों से लिपट गई| जब हम दोनों का ध्यान उस पर गया तो हमने अपने आँसूँ पोंछ लिए, फिर मैं दोनों को भौजी की चारपाई तक लाया| पहले भौजी लेटीं, उनकी बगल यानी बीच में मैं दिवार से अपनी पीठ टिका कर बैठ गया और मेरी बगल में नेहा लेट गई| नेहा को मुझसे दुलार करना था तो वो उठी और कुछ इस तरह बैठी की उसका सर मेरी छाती पर था तथा उसने अपने नन्हे-नन्हे हाथों से मुझे अपनी बाहों में ले लिया था! उसकी देखा देखि भौजी भी ऐसे बैठीं की उनका सर मेरे बाकी के सीने पर था और उन्होंने भी अपनी बाँहों से मुझे अपने आगोश में ले लिया था| भौजी का सुबकना और रोना बंद नहीं हुआ था, उनकी सिसकियाँ और आँखों से बह रहे आँसूँ मेरी टी-शर्ट भीगा रहे थे| नेहा की समझ में नहीं आया की इतनी रात गए हम दोनों क्यों रो रहे थे और उसकी मम्मी तो अब भी सिसक रहीं थीं सो उसने अबोध बन कर पुछा;

नेहा: पापा...मम्मी को क्या हुआ? और आप दोनों अभी क्यों रो रहे थे?

भौजी ने उसे सच बताना चाहा;

भौजी: बेटा वो आपके पापा ....

आगे भौजी कुछ बोलतीं, उससे पहले ही मैंने उनकी बात काट दी;

मैं: बेटा...वो...हमने बुरा सपना देखा था, इसलिए हम दोनों डर गए और रोने लगे|

अब मुझे बात घुमानी थी, वर्ण नेहा और सवाल पूछती तो मैंने नेहा को अपनी बातों में लगा लिया;

मैं: अच्छा बेटा आप ये बताओ, जब से मैं आया हूँ, आपको आये दिन बुरे सपने आते हैं! आप क्या देखते हो सपने में की डर जाते हो?!

मेरा सवाल सुन नेहा का ध्यान बंट गया और वो बोली;

नेहा: मैं है न सपना देखती हूँ,.की आप मुझे अकेला छोड़ के जा रहे हो?

मैं नहीं जानता की नेहा की ये बात सच थी या नहीं, पर मेरे मन ने उसकी इस बात को बिना किसी विरोध के सच मान लिया|

मैं: बेटा वो सिर्फ बुरा सपना था और बुरे सपने कभी सच नहीं होते!

मैंने नेहा के माथे को चूमा तो वो मुस्कुराने लगी, मुझे भौजी से बात करनी थी पर पहले नेहा को सुलाना था तो मैंने उसे एक कहानी सुननी शुरू की| आधी कहानी में ही नेहा सो गई और हम दोनों मियाँ-बीवी को बात करने का समय मिल गया|

मैं: अब आप बताओ, क्यों मेरी जान लेना चाहते हो, जो भी है आपके मन में बोल दो!!

ये सुन भौजी ने मेरी आँखों में देखते हुए अपना सारा दुःख ब्यान किया;

भौजी: इन कुछ दिनों में मैंने बहुत से सपने संजो लिए थे, कल्पनायें करने लगी थी की आप और मैं हमेशा साथ रहेंगे| हम इसी तरह प्यार से एक दूसरे के पहलु में रहेंगे, ये रूठना-मनाना, छुप-छुप कर प्यार करना, सब कुछ इसी तरह चलता रहेगा और फिर वो नन्ही सी जान आएगी जिसकी डिलिवरी के समय आप मेरे पास होगे, बल्कि मेरे साथ होगे! सबसे पहले आप उसे अपनी गोद में लोगे, उसका नाम दोगे, उसे लाड-प्यार करोगे! कल रात तक मैं मैं इन्हीं ख़्वाबों में जी रही थी, पर आज वक़्त ने मेरे सारे ख्वाब चूर कर दिए! मेरा सामना उस बेरहम हक़ीक़त से हुआ जिसके बारे में मैं भूल ही गई थी! हम दोनों कभी भी एक नहीं हो पाएंगे, आपकी पढ़ाई और आपकी किस्मत आप को मुझसे दूर ले जायेगी...बहुत दूर...इतना दूर की आप मुझे भूल ही जाओगे! फिर न मैं आपको याद रहूँगी और ना ही हमारा बच्चा! सब ख़त्म हो जायेगा!

मुझे भौजी के दुःख का अंदाजा तो था पर वो अंदर से इस कदर हिम्मत हार चुकी हैं इसका अंदाजा नहीं था!

मैं: आप पागल हो क्या? किसने कहा की मैं आपसे दूर हो जाऊँगा? मैं आपसे सच्चा प्यार करता हूँ, तो फिर आपको या हमारे बच्चे को कैसे भूल जाऊँगा?! आपको पता है आप अपने इस पागलपन में हमारे बच्चे की हत्या करने जा रहे थे! उस बच्चे की जो हमारे इस सच्चे प्यार की निशानी है, याद है न उसके लिए हमने कितना बड़ा खतरा उठाया था और आपने कितना बड़ा झूठ बोला था?

ये कह कर मैंने भौजी के दिल में हुए जख्म पर मरहम लगाया, मैंने भौजी को मेरी निशानी का वास्ता दे कर संभाल लिया था| कहने को तो मैं उन्हें प्रवचन दे सकता था, पर जब इंसान भावुक होता है तो प्रवचन काम नहीं आता! मैंने भौजी के आँसूँ पोछे और बोला;

मैं: रही डिलीवरी की बात तो जब आपकी डिलिवरी होगी तो मैं आपके पास हूँगा|

मैंने भौजी के माथे को चूमते हुए मुस्कुरा कर कहा| ये सुन कर एक पल को तो भौजी खुश हुई पर अगले ही पल उन्हें कुछ याद आया;

भौजी: ऐसा कभी नहीं हो सकता?!

भौजी ने मुझे डराते हुए कहा|

मैं: क्यों?

मैंने हैरान होते हुए कहा|

भौजी: क्योंकि डॉक्टर ने डिलीवरी के लिए फरवरी की तारिख दी है और तब आप बोर्ड के एक्साम्स की तैयारी में लगे होगे!

ये सुन कर मैं कुछ सोचने लगा;

मैं: आपने सही कहा, पर आप जानते हो ना की मैं कभी हार नहीं मानता| डिलीवरी के समय मैं आपके साथ हूँगा, चाहे कुछ भी हो!

मैंने पूरे आत्मविश्वास से कहा|

भौजी: तो अब क्या आप भाग के यहाँ आओगे?

भौजी ने चिंतित होते हुए पुछा|

मैं: नहीं! बल्कि आप मेरे साथ आओगे!

मैंने उत्साह से भरते हुए कहा|

भौजी: नहीं! मैंने आपको पहले ही कहा था की मैं आपके साथ नहीं भाग सकती और अब तो बिलकुल भी नहीं!

भौजी घबराते हुए बोलीं|

मैं: किसने कहा हम भाग रहे हैं?

मैंने भोयें सिकोड़ कर कहा|

भौजी: तो?

भौजी ने सवालिया नजरों से मुझसे पुछा|

मैं: मैं पिताजी और माँ से मिन्नत कर के आपको हमारे साथ दिल्ली ले जाऊँगा|

ये सुन कर भौजी भौचक्की रह गईं, सही भी था मैं कर ही रहा था बेसर-पैर की बातें!

मैं: मैं उन्हें ये तर्क दूँगा की इस बीहड़ में आपकी देख-रेख करने वाला कोई नहीं है और दिल्ली से अच्छा शहर कौन सा हो सकता है जहाँ हर तरह की मेडिकल सेवा बस एक फ़ोन कॉल जितना दूर है! फिर हमारे घर के पास ही हॉस्पिटल है, वो भी ज्यादा नहीं बल्कि बीस मिनट की दूरी पर| बड़के दादा और बड़की अम्मा को बच्चे की इतनी लालसा है की वो मेरी बात झट से मान जायेंगे!

मैंने खुश होते हुए कहा, मैं उस समय भूल गया था की घर में जो हम दोनों को लेकर रसिका भाभी ने रायता फैलाया है, उसे अभी समेटना बाकी है!

भौजी: बिलकुल नहीं! आप ऐसा कुछ भी नहीं कहेंगे!

भौजी ने मुझे चेतावनी देते हुए कहा|

भौजी: आज सुना नहीं अम्मा ने क्या कहा था, वो पहले से ही हमारे बारे में सब जानती हैं...

भौजी आगे कुछ कहतीं उससे पहले ही मैंने उन्हें टोक दिया;

मैं: वो क्या जानती होंगी?!

मैंने थोड़ा घबराते हुए पुछा|

भौजी: जहाँ तक मैं समझती हूँ, वो हमारे प्यार को बस देवर-भाभी का प्यार प्यार और लगाव समझतीं हैं! हमारे जिस्मानी रिश्ते के बारे में वो कुछ नहीं जानती, अगर जानती होती तो मुझे जरूर कुछ कहा होता!

भौजी की बात में दम तो था, अगर बड़की अम्मा को हमारे जिस्मानी तालुकात के बारे में पता होता तो उन्होंने भौजी की खाट खड़ी कर दी होती! खैर भौजी ने अपनी बात पूरी की;

भौजी: आप आगे की सोचो, ऐसा कुछ भी मत कहो और करो की हमारे परिवार वाले हम पर या हमारे प्यार पर संदेह करें तथा गन्दी बातें कहें! हम दोनों के साथ-साथ चाचा-चाची की भी छीछालेदर हो जायेगी! फिर आपको अब अपनी पढ़ाई पर ध्यान लगाना चाहिए, जानती हूँ आप पढ़ाई में अच्छे हो पर अचे नंबरों से पास होंगे तो मुझे अच्छा लगेगा! जो ख्वाब मैं पूरे न कर पाई वो आप पूरे करो!

भौजी के चेहरे पर मुस्कान आ गई!

मैं: अच्छा ये बताओ की मेरी गैरहाजरी में आपका ध्यान कौन रखेगा?

भौजी ने अपनी कोख पर हाथ रखा और मुस्कुरा कर बोलीं;

भौजी: ये है ना! और फिर नेहा भी तो है!

भौजी ने जिस आत्मविश्वास से ये कहा उसे देख मेरे दिल को चैन मिला की अब भौजी कोई गलत काम नहीं करेंगी!

मैं: ठीक है जान! मैं अब इस मुद्दे पर आपसे कोई बहस नहीं करूँगा पर आपको भी एक वादा करना होगा?!

भौजी: बोलो?

मैं: जब तक आपकी डिलिवरी नहीं हो जाती, आप यहाँ नहीं रहोगे! आप आपने मायके में ही रहोगे, क्योंकि एक तो आपका मायका प्रमुख सड़क के पास है और दूसरा यहाँ दो-दो शैतान हैं जो मेरे बच्चे को शारीरिक और मानसिक रूप से कष्ट देंगे!

भौजी: कौन-कौन?

भौजी ने थोड़ा हैरान होते हुए पुछा|

मैं: एक तो चन्दर, जो आपको ताने मार-मार के मानसिक पीड़ा देगा और दूसरी वो चुडेल रसिका! मुझे उस पर कतई भरोसा नहीं, वो आपके साथ कभी भी कुछ भी गलत कर सकती है!

भौजी: ठीक है, मैं भी इस मुद्दे पर आपसे बहंस नहीं करुँगी और वादा करती हूँ की डिलिवरी होने तक मैं आपने मायके ही रहूँगी|

भौजी मुस्कुरा कर बोलीं|

भौजी: आज का दिन मैंने अपनी बेवकूफी से ख़राब कर दिया इसलिए वादा करती हूँ की कल का दिन मैं ऐसे जीऊँगी की आपकी सारी यादें उसी एक दिन में पिरो के आपने दिल में बसा लूँगी|

भौजी ने मेरी नाक चूमी, उनके चेहरे पर पहले की तरह मुस्कान देख कर मैं दिल की गहराई तक खुश हो गया और बोला;

मैं: I love you जान!!

भौजी: I love you too!!!

इन प्यार भरे वादों के बाद भौजी मुस्कुराते हुए कस कर मुझसे लिपट गईं! उनकी वो भीनी सी मुस्कराहट जिसे देखने को मैं सुबह से मरा जा रहा था, वो मुझे अब जा कर देखने को मिली थी! हम दोनों एक दूसरे की आँखों में देख रहे थे और मुस्कुरा कर एक दूसरे को संभाल रहे थे ताकि हम दोनों फिर से उस गम में फिर न डूब जाएँ! आँखों ही आँखों में मैंने भौजी को kiss करने की इच्छा प्रकट की, भौजी ऊपर को आईं और हम दोनों के प्यासे होंठ आखिर कर मिले!

इस मीठी सी kiss के बाद अब सोने का समय था, मैं तो दिवार का सहारा ले कर आधा बैठा और आधा लेटा हुआ था, भौजी तथा नेहा मेरी अगल-बगल मुझसे लिपटे हुए थे| करीब एक घंटे बाद बड़की अम्मा दबे पाँव आईं और हम तीनों को ऐसे सोते हुए देखा तो उनके चेहरे पर मुस्कान आ गई| उन्होंने बड़े ध्यान से नेहा को अपनी गोद में उठाया, मेरी आँख खुल गई थी और मैंने उन्हें देख लिया था पर मैं चुपचाप रहा| नेहा के जाने से चारपाई पर जगह हो गई थी तो मैं भौजी से थोड़ा दूर हो कर लेटा, नींद बड़ी जोरदार आ रही थी इसलिए मैं गहरी नींद सो गया जिसका खामयाजा बाद में भुगतना पड़ा!

[color=rgb(147,]जारी रहेगा भाग 6 में...[/color]
 

[color=rgb(243,]उन्नीसवाँ अध्याय: बिछड़न![/color]
[color=rgb(184,]भाग - 6[/color]


[color=rgb(65,]अब तक आपने पढ़ा....[/color]

इस मीठी सी kiss के बाद अब सोने का समय था, मैं तो दिवार का सहारा ले कर आधा बैठा और आधा लेटा हुआ था, भौजी तथा नेहा मेरी अगल-बगल मुझसे लिपटे हुए थे| करीब एक घंटे बाद बड़की अम्मा दबे पाँव आईं और हम तीनों को ऐसे सोते हुए देखा तो उनके चेहरे पर मुस्कान आ गई| उन्होंने बड़े ध्यान से नेहा को अपनी गोद में उठाया, मेरी आँख खुल गई थी और मैंने उन्हें देख लिया था पर मैं चुपचाप रहा| नेहा के जाने से चारपाई पर जगह हो गई थी तो मैं भौजी से थोड़ा दूर हो कर लेटा, नींद बड़ी जोरदार आ रही थी इसलिए मैं गहरी नींद सो गया जिसका खामयाजा बाद में भुगतना पड़ा!

[color=rgb(44,]अब आगे...[/color]

सुबह छः बजे भौजी ने मेरा मस्तक चूम कर जगाया, आँख खुलते ही मेरी नजर उनके दमकते चेहरे पर पड़ी, वो हंसीन मुस्कराहट वो प्यारी सी लालिमा!

भौजी: Good morning जानू!

भौजी मुस्कुराते हुई बोलीं|

मैं: हाय! कान तरस गए थे आप के मुँह से 'जानू' सुनने को!

मैंने मुस्कुरा कर कहा|

भौजी: अच्छा जी?! चलो अब उठो, याद है न आज का दिन सिर्फ मेरे नाम!

मैं: हमने तो जिंदगी आपके नाम कर दी!

ये कह कर मैंने लेटे-लेटे अंगड़ाई लेने के बहाने बाहें फैलाईं और भौजी का हाथ पकड़ के अपने पास खींच लिया| भौजी एकदम से मेरे सीने पर आ गिरीं;

मैं: Aren't you forgetting something?

माने भौजी की आँखों में देखते हुए पुछा तो भौजी लजाते हुए बोलीं;

भौजी: याद है!

ये कह कर भौजी ने अपने होंठ मेरे होंठों पर रख दिए, वो गुलाबी नम होंठ जिनका मधुर स्वाद मैं भूलने लगा था आज वो फिर से मुझे अपना दीवाना बना रहे थे! सुबह का समय था तो किसी के आने का डर था, इसलिए ये चुंबन कुछ सेकंड का ही था परन्तु इन कुछ सेकंड में हम दोनों ने चरम आनंद पा लिया था! खैर चुंबन तोड़ कर भौजी मुस्कुराते हुए बोलीं;

भौजी: आपको खाना बनाना अच्छा लगता है न?

भौजी का ये सवाल सुन मुझे थोड़ा अचम्भा हुआ;

मैं: हाँ...पर क्यों पूछा?

भौजी: ऐसे ही, चलो जल्दी से उठो और बाहर मत आना|

मैं: पर क्यों?

पहले खाना बनाने को पूछना, फिर बाहर न आने को बोलना? कुछ तो गड़बड़ है, लेकिन भौजी के चेहरे पर वही मुस्कान थी, मतलब की भौजी ने कोई प्लान बनाया है!

भौजी: जितना कहा है, उतना कीजिये!

मैं: यार पर मुझे बाथरूम जाना है!

मैंने भौजी को सोच का बहाना मारा, तो भौजी एकदम से बोलीं;

भौजी: बगल वाले रस्ते से जाओ और 5 मिनट में वापस आओ, वरना मैं आपसे बात नहीं करूँगी!

दरअसल भौजी के घर की बगल से एक छोटा सा रास्ता पीछे की ओर जाता था, इस रास्ते का इस्तेमाल कोई नहीं करता था क्योंकि उसमें कुछ झाड़ियाँ उगी हुई थीं| गौर करने की बात ये थी की भौजी खुश थीं, क्योंकि आज का दिन वो यादगार बनाना चाहती थीं और उनके चेहरे पर मुस्कान देख के मेरा दिल बहुत खुश था! उनकी इस ख़ुशी को बरकरार रखने के लिए आज मैं कुछ भी करने को तैया था, भले ही वो आज मुझसे उपले पथ्वा लें! मुझे उपले पाथने से घिन्न आती थी, इसलिए ये ऐसा काम है जो मैंने कभी नहीं किया, परन्तु आज भौजी की ख़ुशी के लिए मैं ये भी करने को तैयार था!

प्रेशर तेज था सो मैं तेजी से बाहर भागा, नित्य कर्म से निपट आकर मैं वापस भौजी के घर में घुस गया| वापस आ कर देखा तो भौजी ने मेरा टूथब्रश, साबुन, टॉवल, कपडे सब ला आकर रख दिए हैं| भौजी का ये प्यार देख कर मेरे चेहरे पर फिर से मुस्कान आ गई और मैंने फटाफट ब्रश किया| अभी ब्रश समाप्त ही हुआ था की भौजी पानी की बाल्टी ले कर आ गईं, मैंने दौड़ के उनके हाथ से बाल्टी ले ली और चिंतित स्वर में बोला;

मैं: जान ये क्या कर रहे हो आप? आपको भारी सामान नहीं उठाना चाहिए!

मेरी चिंता देख आकर भौजी खिलखिलाकर हँस पड़ीं और मैं उन्हें एक टक देखता रहा, ऐसा लगा जैसे एक अरसे बाद उन्हें खिल-खिला के हँसते हुए देख रहा हूँ! मुझे यूँ खुद को देखते हुए देख भौजी तो शरमाईं और अपनी साडी का पल्लू अपने दाँतों तले दबाते हुए मुझसे बोलीं;

भौजी: ऐसे क्या देख रहे हो जानू?

मैं: आपकी मुस्कान! जाने किस की नजर लग गई थी इसे!

मैंने मुस्कुराते हुए कहा|

भौजी: जिस मुई की लगी थी, अब वो रो रही है! उस कामिनी ने इतनी लगा-बुझाई की पर फिर भी हमारे बीच कोई दरार नहीं आई!

भौजी ने बड़े गर्व से कहा|

मैं: अच्छा! क्या किया मेरी जान ने उसके साथ?

मैंने थोड़ा हैरान होते हुए पुछा|

भौजी: सेंक दी उसकी........(गांड)!

भौजी ने बड़े गुस्से में कहा और गांड शब्द का प्रयोग नहीं किया, क्योंकि वो जानती थीं की इससे मैं गुस्सा हो जाऊँगा| इधर मैं समझ गया था की भौजी का क्या मतलब था पर फिलहाल के लिए मैं उन्हीं गुस्सा नहीं दिलाना चाहता था तो मैंने उनकी इस बात का नजर अंदाज किया और उनके नजदीक आ गया, पर भौजी का दिल में कुछ और ही पाक रहा था इसलिए उन्होंने एकदम से बात पलट दी;

भौजी: खेर आपको मेरे वजन उठाने की ज्यादा चिंता नहीं करनी चाहिए, क्योंकि अभी वो समय नहीं आया जब गर्भवती महिलाओं को भारी सामान उठाने से मना किया जाता है|

मैं भौजी की इस होशियारी को समझ न पाया और उनकी बातों में आ गाया;

मैं: पर अगर आप अभी से precaution लो तो क्या हर्ज़ है?

मैंने अपनी कमर पर दोनों हाथ रख हक़ जताते हुए कहा|

भौजी: ठीक है बाबा अब से नहीं उठाऊँगी! चलो अब आप नहा लो!

भौजी ने पहले की तरह मुस्कुराते हुए कहा|

मैं: यहाँ, आपके सामने?

मैंने थोड़ा हैरान होते हुए कहा, क्योंकि कल वाला रायता अभी भी फैला हुआ था और ऐसे में कोई आजाता और भौजी को यूँ मुझे नंगा नहाते हुए देख लेता तो काण्ड हो जाता!

भौजी: क्यों जानू? डर लगता है की अगर मेरा ईमान डोल गया तो?!

भौजी को मुझे छेड़ने का मौका मिल गया और उन्होंने मेरी टांग खींचनी शुरू कर दी|

मैं: नहीं....दरअसल मैं सोच रहा था की आप मेरे साथ ही नहाओगे!

मैंने भौजी को आँख मारते हुए कहा, भौजी जान गईं की मेरा उद्देश्य क्या है पर वो आज कुछ और सोचे बैठी थीं|

भौजी: मैं तो कबकी नहा चुकी, आपके पास मौका था मुझे नहाते हुए देखने का पर आप तो घोड़े बेच कर सो रहे थे!

भौजी ने मुझे उलाहना देते हुए कहा, ये सुनकर मेरे पाँव तले जमीन खिसक गई! सुबह-सुबह का इतना मनोरम दृश्य देखने को नहीं मिला, लानत है...लानत है...! 'साले तुझे आज ही सोना था!' मेरे दिमाग ने मेरे जिस्म को लताड़ते हुए कहा| 'पर अब पछताए होत क्या जब भौजी नहा लीं!' मेरे अंतर्मन से आवाज आई|

मैं: मुझे उठाया क्यों नहीं!

मैंने रूठने का ड्रामा करते हुए शिकायत की|

भौजी: ही..ही..ही.. आपका मौका तो गया, पर मेरा मौका तो सामने खड़ा है!

भौजी खींसें निपोरते हुए बोलीं|

मैं: ठीक है!

मैंने मन ही मन सोचा की आज मैं इन्हें किसी मेल स्ट्रिपर की तरह कपडे खोल कर दिखाऊँ और इनके मन में उत्तेजना पैदा करूँ ताकि ये खुद आ कर मेरे सीने से लग जाएँ| अब मेरे न तो सिक्स पैक abs थे न ही कोई ढंग की बॉडी, पर फिर भी मैं इस ढंग से भौजी को घूम कर अपनी बॉडी दिखा रहा था मानो कोई बहुत बड़ा मेल स्ट्रिपर हूँ! मैंने बड़ी अदा से अपनी टी-शर्ट उतारी और उसे भौजी के मुँह पर फेंक दी, ये देख भौजी खिलखिला कर हँसने लगीं क्योंकि उन्हें ये नौसिखिया मेल स्ट्रिपर पसंद आ रहा था! फिर बारी थी मेरे पजामे की जिसे मैंने साधारण तरीके से उतरा और चारपाई पर फेंक दिया| अब भौजी को सताने के लिए मैंने अपने कच्छे की इलास्टिक में अपनी ऊँगली फँसाई और उन्हें गोल घुमाकर भौजी को तड़पाने लगा!

भौजी: ये भी तो उतारो!

भौजी ने नटखट मुस्कान के साथ कहा| अब मुझे क्या पता था की मेरा उनको यूँ तड़पाना मुझे ही महँगा पड़ेगा;

मैं: पर अगर कोई आ गया तो?

मैंने थोड़ा चिंतित स्वर में कहा|

भौजी: इसीलिए तो मैं दरवाजे के सामने चारपाई डाल के बैठी हूँ!

भौजी ने बड़ी होशियारी से जवाब दिया, मतलब की वो सब पहले से ही सोच कर बैठीं थीं|

मैं: ठीक है बाबा|

मैंने उनके आगे हथियार डालते हुए कहा और अपना कच्छा उतार के दिवार पर रख दिया|

अब मैं पूरा नंगा था और भौजी मुझे बड़े प्यार से देख रही थी, मानो अपनी आँखों में मेरे जिस्म को बसा लेना चाहतीं हों!

मैं: आप बड़े प्यार से देख रहे हो, ऐसा कुछ है जो आपने नहीं देखा?

मैंने भौजी को छेड़ते हुए कहा|

भौजी: आपको अपनी आँखों में बसाना चाहती हूँ!

भोज मुस्कुराते हुए बोलीं, मैंने जानबूझ कर आगे इस बात को नहीं खींचा वरना वो उदास हो जातीं| भौजी के सामने यूँ नहाने में मुझे आज बड़ा ही अजीब लग रहा था, मैं पूरा नंगा और वो कपडे पहने मुस्कुराते हुए मुझे देख रहीं थीं| मैं चाहता था की भौजी को पकड़ कर अपने पास खींच लूँ और उन्हें भी भिगो दूँ, लेकिन मेरी झिझक मुझे ऐसा करने से रोक रही थी| अब बस एक ही तरीका था की भौजी को उकसाओ, ताकि वो खुद आ कर मुझसे लिपट जाएँ, तो मैंने भौजी को तड़पाने के लिए घूम-घूम कर अपनी स्पाट छाती पर साबुन लगा कर दिखाने लगा, फिर भौजी की तरफ पीठ कर के झुक कर अपने पाँव में साबुन लगाता, कभी अपने बाजुओं पर साबुन मलता और उन्हें फुला कर अपनी बॉडी दिखाने की कोशिश करता! वैसे कुछ बॉडी थी नहीं मेरी, वो सब तो मैंने भौजी को उकसाने को किया था और उसमें बुरी तरह नाकामयाब हुआ था क्योंकि भौजी का ईमान जरा भी नहीं डोला! वो अपने घुटने पर अपनी कोहनी टिका कर, मुस्कुराते हुए मुझे ये सब करते हुए देख रहीं थीं! खैर नहाना खत्म हुआ तो मैंने भौजी से अपना टॉवल माँगा;

मैं: जान मेरा टॉवल देना?

भौजी उठीं और उन्होंने मुझे मेरा नया कच्छा पकड़ाया|

भौजी: नहीं, पहले ये पहनो! थोड़ी देर और आपको ऐसा देखा न तो मेरा सब्र छूट जायेगा!

भौजी मुस्कुराते हुए बोलीं|

मैं: पर पानी तो पोछने दो वरना ये (कच्छा) गीला हो जायेगा|

भौजी मेरी बात समझ गेन और उन्होंने अपना टॉवल उठाया और मेरा टॉवल मुझे देते हुए बोलीं;

भौजी: ये लो अपना टॉवल, इसे नीचे लपेट लो! आपके जिस्म से पानी मैं पोछूँगी|

भौजी ने मुस्कुराते हुए कहा|

मैं: As you wish!

मैंने मुस्कुराते हुए कहा, मैंने अपना टॉवल कमर पर लपेट लिया| भौजी अपना तौलिया लेके मेरे पास आईं और तौलिये से मेरे बदन पर पड़ी पानी की बूँदें पोछने लगीं| सबसे पहले उन्होंने मेरी छाती पर पड़ी पानी की बूंदें पोंछीं, पानी पोछते समय उनकी नजरें मेरी नजरों में झाँक रहीं थीं| दोनों की ही आँखों में एक ख़ुशी थी, एक उत्साह था की आज का दिन हम प्यार से बितायेंगे! अब चूँकि आँखें एक दूसरे से मिली हुईं थीं तो शब्दों की जर्रूरत नहीं थी, चेहरे पर मुस्कान हमारी ख़ुशी और एक दूसरे के लिए प्यार को दर्शा रही थी| पीठ का पानी पोंछने के बाद मैं भौजी की तरफ पीठ कर के खड़ा हो गया और वो मेरी पीठ पोछने लगीं| फिर उन्होंने मेरी दाहिने बाजू प्यार से पकड़ कर मुझे अपनी तरफ घुमाया और मेरे दोनों हाथों को पोंछ के सुखा दिया| जैसे ही भौजी पाँव पोंछने को झुकीं तो मैं दो कदम पीछे चला गया;

भौजी: जानू पाँव तो पोंछने दो?

मैं: जान आपको पता है ना मैं आपको कभी अपने पाँव छूने नहीं देता, लाओ मैं खुद पोंछ देता हूँ!

भौजी मुस्कुराईं और मुझे अपना वाला तौलिया दे दिया, मैंने अपने पाँव पोंछे और उन्हें तौलिया वापस दे दिया| अब मुझे एक शररत सूझी तो मैंने भौजी को फिर से उकसाने को कहा;

मैं: अरे आप एक जगह तो पोंछनी ही भूल गए?!

भौजी हैरानी से मेरी ओर देखने लगीं;

भौजी: कौन सी?

मैंने अपना तौलिया जो कमर पर बाँधा था उसे सामने की तरफ से खोल दिया और अपने लिंग की ओर इशारा करते हुए कहा;

मैं: ये!!!

मैंने शैतानी भरी मुस्कान से कहा! भौजी एकदम से शर्मा गईं ओर बोलीं;

भौजी: नहीं...वो नहीं...!

मुझे उनकी ये हरकत थोड़ी अजीब लगी क्योंकि ऐसा शर्माने जैसा तो हमारे बीच में कुछ था नहीं, पर मैंने इस बात को ज्यादा तूल नहीं दी, भौजी के चेहरे की मुस्कान देख मैं पहले से ही बहुत खुश था|

उधर भौजी अपना वो टॉवल जिससे उन्होंने मेरे जिस्म से पानी पोंछा था उसे लेकर अपने कमरे में चली गईं| आमतौर पर तौलियो को इस्तेमाल के बाद धुप में रखते हैं फिर भौजी उसे ले कर अंदर क्यों गईं? इस सवाल के जवाब के लिए मैं जब अंदर पहुँचा तो देखा वो ये तौलिया तहा के अपने सूटकेस के ऊपर रख रहीं हैं!

मैं: अच्छा एक बात बताओ, आप इस तौलिये का क्या करोगे?

ये सवाल सुन कर भौजी के चेहरे पर गर्वपूर्ण मुस्कान आ गई और वो बोलीं;

भौजी: संभाल के रखूँगी!

मैं: क्यों?

मैंने हैरान होते हुए पुछा|

भौजी: क्योंकि इसमें आपकी खुशबु बसी है! जब भी मेरा मन करेगा आपसे मिलने का, तो इस तौलिये को खुद से लपेट लूँगी और सोचूँगी की आप ने मुझे अपनी बाहों में भर लिया है|

भौजी की ये बचकानी बात सुन मेरा दिल धक् सा रह गया, भौजी भले ही मुस्कुरा रहीं थीं पर मेरी जुदाई का दुःख उनके मन के भीतर अब भी था और वो उस दुःख से लड़ने के लिए सहारा ढूँढ रहीं थीं|

मैं: यार...

मैं उस समय उनको कहना चाहता था की मैं हमेशा के लिए नहीं जा रहा, मैं वापस आऊँगा आपसे मिलने वरना मैं कैसे जिन्दा रहूँगा?! पर भौजी से कुछ कहने की हिम्मत नहीं हुई, वरना वो भावुक हो जातीं और उनकी आँखों में फिर आँसूँ आ जाते|

मैं: अच्छा ये बताओ की आपने मुझसे क्यों पूछा की मुझे खाना बनाना पसंद है या नहीं?

मैंने पुनः बात घुमाते हुए माहौल को भावुक होने से बचा लिया|

भौजी: जानू! माँ ने बताया था की आप दिल्ली में घर में कभी-कभार खाना बनाने में माँ की मदद करते हो और एक-आध बार आपने खाना बनाया भी है| मैं बस जानना चाहती थी की आप बस बेटे का फ़र्ज़ निभाने को मदद करते थे या आपको वाक़ई में खाना पसंद है?! जब आपने हाँ कहा तो मैंने बड़की अम्मा से कह दिया की आज का खाना हम दोनों बनाएंगे!

भौजी ने मुस्कुराते हुए कहा, अब मैं समझ गया की मेरी पत्नी ने क्यों पुछा था की मुझे खाना बनाना पसंद है या नहीं?! भौजी के इस प्लान के बारे में सुन मैं दुगने उत्साह से भर गया और बोला;

मैं: Wow! That's Wonderful! I love experimental cooking!

मेरा उत्साह देख भौजी के चेहरे पर आई मुस्कान और बड़ी हो गई!

मैं: तो आपने सोच रखा है की क्या बनाना है, या मैं बताऊँ?

भौजी: आप बताओ?

भौजी ने जिज्ञासु होते हुए कहा| मुझे खाना ऐसा बनाना था जो सादा हो, क्योंकि गाँव में सब सादा खाना ही खाते हैं, कहीं ज्यादा संजीव कपूर बनता तो कोई नहीं खाता! मैंने 5 सेकंड कुछ सोचा और फिर भौजी से पुछा;

मैं: म्म्म्म...घर पर फूल गोभी है?

भौजी: हाँ है|

मैं: दही है?

भौजी: हाँ है|

मैं: ठीक है, तो दाल आप बनाना बस तरीका मैं बताऊँगा और ये गोभी वाली सब्जी मैं बनाऊँगा|

गोभी और दही के बारे में सुन कर भौजी बहुत जिज्ञासु थीं;

भौजी: मतलब आज मुझे आपसे कुछ सीखने को मिलेगा!

मैं: अगर अच्छे शागिर्द की तरह सीखोगे तो! वरना अगर बदमाशी की...तो....

मैंने भौजी को छेड़ते हुए कहा| दरअसल मेरा इशारा था की खाना बनाने के दौरान अगर हम दोनों के बीच कोई प्रेम-प्रसंग शुरू हुआ तो! भौजी मेरा इशारा समझ गईं और हँसते हुए बोलीं;

भौजी: नहीं गुरु जी, केवल खाना बनाना ही सीखूँगी!

भौजी की बात पर हम दोनों ने बड़ी जोर से ठहाका लगाया|

खैर मैं कपडे पहन के बाहर आ गया और सबसे पहले अपनी लाड़ली नेहा को ढूँढने लगा, क्योंकि आज सुबह से मैंने उसे नहीं देखा था|

भौजी: वो तो गई, अम्मा ने (मेरे) पिताजी को उसे छोड़ने की ड्यूटी लगा दी!

भौजी हँसते हुए बोलीं, अब मैं सोच में पड़ गया की ये कैसे हुआ? पिताजी तो गुस्से से लाल थे......? मैं हैरान खड़ा ये सवाल ही सोच रहा था की बड़की अम्मा और माँ आ गए, दोनों के चेहरे पर मुस्कान थी;

बड़की अम्मा: तो प्रधान रसोइया जी, का बनावत हो आज?

बड़की अम्मा ने हँसते हुए पुछा, उनकी बात सुन माँ और भौजी दोनों खिखिला कर हँसने लगे|

मैं: अम्मा वो तो मैं आपको नहीं बताऊँगा और हाँ जब तक खाना बन नहीं जाता तब तक आप लोग वहाँ नहीं आएंगे, अगर कोई भी चीज चाहिए तो माँग लीजियेगा|

ये सुन कर बड़की अम्मा ने मेरे सर पर हाथ रख कर आशीर्वाद दिया और बोलीं;

बड़की अम्मा: ठीक है प्रधान रसोइया! लेकिन खाना नीक बनायो, वरना पइसवा न मिली!

हम सारे ठहाका मार के हँसने लगे|

माँ: अब जा जल्दी, बारह बजे तक खाना तैयार हो जाना चाहिए!

माँ ने मेरी पीठ पर थपकी देते हुए कहा|

मित्रों आगे जो मैं रेसिपी लिखने जा रहा हूँ, ये मेरी खुद की है| उस दिन मैंने भौजी के साथ मिलकर इसे पहलीबार बनाया था और कैसी बानी ये आपको आगे पता चल जायेगा|

मैंने भौजी से उर्द दाल, चना दाल , लाल मसूर, मूँग दाल और अरहर दाल धो के लाने को कहा क्योंकि आज मैं उनसे पंचरंगी दाल बनवाने वाला था| इधर मैं गोभी के फूल अलग कर के उन्हें धो लाया और उन्हें मखमली कपडे पर सूखने को छोड़ दिया| जब तक गोभी सूख रही थी, तब तक हम दोनों प्याज, टमाटर, अदरक, लहसुन और हरी मिर्च काटने लगे| अब शहर में तो मैं चौप्पिंग बोर्ड का इस्तेमाल करता था, पर यहाँ तो चौप्पिंग बोर्ड था नहीं और न ही ढँग का चाक़ू था! सब्जी काटने के लिए हँसिये का ही इस्तेमाल किया जाता था, भौजी ने अपने पाँव के अंगूठे और उसकी बगल वाली ऊँगली से हँसिये का हैंडल पकड़ रखा था तथा अपने दोनों हाथों के इस्तेमाल से सब्जियाँ काट रहीं थीं| पर मैं ठहरा नौसिखिया, एक-दो बार कोशिश की पर जब कामयाब नहीं हुआ तो मैंने भौजी से चाक़ू माँगा| ये सुन कर भौजी को मेरे नौसिखिया होने पर हँसी आ गई! अब घर में एक पुअरना चाक़ू था पर उसे ढूँढना था, तो भौजी उसे ढूँढने चली गईं और इधर बड़की अम्मा और माँ रसोई के पास वाले छप्पर के नीचे बैठ गए और मुझसे बात करने लगे;

बड़की अम्मा: मुन्ना हम तोहार पिताजी से आज सुबह बात किहिन है और उनका बहुत समझाईं है! उनका गुस्सा तनिक कम हुआ है, बाकी की बात दोपहर खाना खाये के करब!

माँ: बेटा अभी तेरे बड़के दादा और पिताजी पड़ोस के गाँव गए हैं, तो तू खाना बना कर अपनी भौजी वाले घर में ही रहिओ, उस बीच हम लोग सब मिलकर तेरे पिताजी को समझाते हैं|

मैंने हाँ में सर हिलाया, इतने में भौजी आ गईं और माँ ने बात एकदम से बदल दी;

माँ: प्रधान रसोइया, कउनो समान चाहि तो बताये दिहो!

माँ की बात सुन सब हँस पड़े, माँ और बड़की अम्मा उठ कर चल दिए| मतलब एक तो भौजी को कल की कोई बात नहीं पता और दूसरा बड़की अम्मा के समझाने के कारन ही पिताजी नेहा को स्कूल छोड़ने गए थे| खैर मैंने पिताजी के गुस्से वाली बात को झटक कर अपने दिमाग से निकाला और फिर से मुस्कुराने लगा, भौजी ने मुझे चाक़ू दिया तो हमें सब्जी की कटाई चालु की| भौजी टमाटर काट रहीं थीं और मेरी ओर देख के मुझे जीभ चिढ़ा रहीं थीं| उनकी चेहरे की मुस्कान और उनका यूँ मुझे जीभ चिढ़ाना मेरे दिल में अजीब सी हलचल पैदा कर रहा था| मेरी नजर उनके चेहरे से झलक रही मासूमियत और प्यार से हट ही नहीं रही थी, इसी वजह प्याज काटते समय मेरी ऊँगली कट गई| भौजी ने जैसे ही मेरी कटी हुई ऊँगली से निकलते खून को देखा तो उन्होंने आननफानन में मेरी ऊँगली अपने मुँह में ले ली और मेरा बहता खून चूसने लगी, इधर मैं टकटकी बाँधे उन्हें देखने लगा|

भौजी: ऐसे भी क्या खो गए थे की ये भी ध्यान नही रहा की ऊँगली कट गई है?!

भौजी ने मुझे प्यार से डाँटते हुए कहा|

मैं: तेरे चेहरे से नजर नहीं हटती, नज़ारे हम क्या देखें?!

मैंने गाने के बोल गुनगुनाये जिसे सुन भौजी मुस्कुराईं और मुझे छेड़ते हुए बोलीं;

भौजी: क्या बात है, आज मूड बड़ा शायराना है?!

मैं: भई खाना बनाना एक art है, कला है, तो जैसा मूड होगा वैसा खाना बनेगा!

मैंने भौजी को आँख मारते हुए उन्हें अपने दिल का हाल बताया, जिसे सुन भौजी फिर से शर्मा गईं! अब भौजी का ध्यान मेरी कटी हुई ऊँगली पर गया| वो अपनी साडी का पल्लू फाड़ के मेरी ऊँगली को पट्टी करने वाली थीं की तभी मैंने उन्हें रोक दिया;

मैं: ये क्या कर रहे हो? एक छोटा सा cut ही तो है, उसके लिए अपनी साडी क्यों ख़राब करते हो! जाओ बड़े घर में मेरे कमरे में खिड़की पर एक दवाई की पॉलिथीन रखी है, उसमें से एक band-aid ले आओ!

भौजी Band-Aid ले आईं और मेरी ऊँगली पर लगा दी, अब मैंने उन्हें किसी मास्टर साहब की तरह निर्देश देने शुरू किये;

मैं: दही लाओ और उसमें धनिया पाउडर, लाल मिर्च पाउडर, थोड़ा सा गर्म मसाला और दाल चीनी पाउडर मिलाओ|

भौजी ने एक अच्छे शागिर्द की तरह मेरी बात सुनी और मानी| अब मैं इन मसालों को खुद दही में नहीं मिला सकता था क्योंकि मेरी ऊँगली में band-aid लगी थी, तो मैंने भौजी से बड़े प्यार से कहा;

मैं: जान प्लीज इन सब को दही में मिला दो और उसके बाद इस मिश्रण में गोबी के फूल डाल के Marinate होने को छोड़ दो!

मेरे इस प्यार भरे आग्रह को सुन भौजी फिर से मुस्कुराईं और ठीक वैसा ही किया, जैसा मैंने उन्हें कहा था| भौजी के चेहरे पर जिज्ञासु भाव थे, क्योंकि खाना बनाने का ये अंदाज उनके लिए बिलकुल नया था| गोभी अच्छे से marinate हो उसके लिए मैंने उसे ढक कर कुछ देर के लिए छोड़ दिया| अब समय था दाल बनाने का;

मैं: पहले इन पाँचों दालों को उबाल लो, फिर प्याज-टमाटर का छौंका लगाने से पहले मुझे बताना|

मैंने भौजी को निर्देश दिया, भौजी ने हाँ में सर हिलाया और मुस्कुराते हुए अपने काम में लग गईं| जब भौजी ने दाल उबलने रख दी तब मैं बोला;

मैं: अच्छा अब आप मुझे एक लकड़ी का चौड़ा और साफ़ टुकड़ा दो|

ये सुन भौजी सवालियाँ नजरों से मुझे देखने लगीं और बोलीं;

भौजी: पर किस लिया?

मैं: आप एक अच्छे शागिर्द की तरह गुरु की बात मानो और सवाल मत पूछो|

मैंने भौजी को मास्टर जी की तरह निर्देश देते हुए कहा| भौजी उठीं और लकड़ी की एक फट्टी धो कर ले आईं, मैंने उस लकड़ी की फट्टी को अपना चोप्पिंग बोर्ड बनाया| अब मैंने गोभी की सब्जी के लिए प्याज के लच्छे काटने लगा, मुझे प्याज काटते हुए भौजी बोलीं;

भौजी ने एक लकड़ी का टुकड़ा, अच्छे से धो के ला के दिया| मैंने उस टुकड़े को अपना चोपपिणः बोर्ड बनाया और गोभी की सब्जी के लिए प्याज के लच्छे काटने लगा|

भौजी: जानू मुझे कह देते मैं काट देती!

मैं: पर उसमें फिर मेरे हाथ का स्वाद नहीं आता|

ये सुन कर भौजी ने अपने होठों को गोल बनाया और बोलीं;

भौजी: ओ....!

गोभी की सब्जी के लिए सारी तैयारी पूरी हो चुकी थी, अब बारी थी पंचरंगी दाल की| मैं चाहता था की दाल में भौजी के हाथ का स्वाद आये और सब्जी में मेरे हाथ का तो मैंने भौजी से दाल के लिए प्याज, टमाटर, अदरक, लहसुन और हरी मिर्ची काटने को कहा|

मैं: अब आप बहार आओ, मैं गोभी की सब्जी बनाता हूँ तब तक आप ये सब काटो|

भौजी: ठीक है प्रधान रसोइया जी!

भौजी हँसते हुए बाहर आईं और मैं चूल्हे के सामने आसान जमा कर बैठ गया| आज जिंदगी में पहली बार मैं गाँव में मिटटी के चूल्हे पर खाना बना रहा था, ये तो शुक्र है की भौजी ने चूल्हा पहले जला रखा था वरना मुझसे तो आग भी नहीं जलती|

मैंने लोहे की कढ़ाई चढ़ाई, फिर उसमें सरसों का तेल डाल कर उसे खौलाया| फिर उसमें साबुत जीरा डाल के उसके चटकने तक भूना, आग थोड़ी ज्यादा थी तो भौजी ने मुझे आग से कुछ लकड़ी निकालने को कहा| इधर मेरा जीरा भून चूका था, तो मैंने कढ़ाई में प्याज के लच्छे डाले, फिर हरी मिर्च फाड़ के डाली और अदरक के पतले-पतले लम्बे टुकड़े डाल कर उन्हीं चलाने लगा| जब इस मिश्रण का रंग थोड़ा बदला तब मैंने उसमें कटे हुए टमाटर डाले और उसी समय नमक भी डाला ताकि टमाटर गाल जाए| जब टमाटर थोड़ा पाक गए और तेल छोड़ने लगा तब मैंने मरिनाते की हुई गोभी डाल दी| आग एकदम से बुझने लगी थी क्योंकि लकड़ियाँ तो मैंने डाली नहीं थी, इसलिए भौजी ने मुझे और लकड़ी डालने को कहा| मैंने और लकड़ी डाली तथा अपनी गोभी को धीरे-धीरे चलाने लगा, फिर मैंने उसमें थोड़ा हल्दी पाउडर, लाल मिर्च पाउडर, धनिया पाउडर, जीरा पाउडर और अंत में गर्म मसाला डाल के मिलाया| अब चूँकि घर में सिरका नहीं था तो मैंने उसमें थोड़ा सा चाट मसाला डाला और सब्जी पकने के बाद, ऊपर से धनिये से गार्निश किया तथा सब्जी को आग पर से उतार लिया| भौजी जो अब तक बस मुँह बाए मुझे ये सब करते हुए देख रहीं थीं वो सब्जी की महक सूँघ कर झूमने लगीं थीं;

भौजी: Wow जानू! इसकी खुशबु इतनी अच्छी है तो स्वाद कितना अच्छा होगा!

भौजी अपने होठों पर जीभ फेरते हुए बोलीं|

मैं: यार अभी आपको चखने को नहीं मिलेगा, जब सब खा लेंगे तब आपको खाने को मिलेगा|

ये सुन कर भौजी ने प्यार भरा गुस्सा दिखाया, फिर अगले ही पल उन्हें एक बात याद आई;

भौजी: वैसे जानू, मेरे पास आपकी एक और निशानी है|

ये सुन कर मैं थोड़ा हैरान हुआ;

मैं: वो क्या?

भौजी: अभी दिखाती हूँ!

इतना कह भौजी उठीं और अपने कमरे में कुछ लेने के लिए चली गईं| इधर मैं उत्सुक था की भला ऐसी कौन सी निशानी उन्होंने ढूँढ ली जो मुझे भी नहीं पता, खैर मेरे इस सवाल का जवाब मुझे कुछ देर बाद मिला जब वो वापस लौटीं| चेहरे पर मुस्कान लिए और अपनी कमर के पीछे कुछ छुपाये, भौजी मेरे सामने खड़ी हो गईं!

मैं: क्या छुपा रहे हो, मुझे भी दिखाओ!

भौजी ने मसुकुराते हुए अपनी कमर के पीछे छुपी हुई चीज दिखाई, ये मेरी तस्वीर थी! जब मैं दसवीं क्लास में था तब स्कूल जाते समय पिताजी ने सुबह मेरी ये तस्वीर खींची थी, लाल स्वेटर, खाकी पैंट पहने मैं गोलू-मोलू बड़ा क्यूट लग रहा था!

मैं: इतनी पुरानी तस्वीर आपके पास कैसे आई?

मैंने हँसते हुए पुछा|

भौजी: आपके घर से चुराई है!

भौजी ने बड़े गर्व से कहा, मानो उन्होंने कोई कोहिनूर का हीरा चुरा लिया है| उनका ये बचपना देख कर मेरा दिल बहुत प्रसन्न था;

मैं: अच्छा? कब?

मैंने हँसते हुए पुछा|

भौजी: जब पिछली बार दिल्ली आई तब माँ से माँगी थी!

मैं कुछ नहीं बोला, बस होले से मुस्कुरा दिया!

खैर अब बारी थी पंचरंगी दाल की, तो मैंने भौजी को आसन ग्रहण करने को कहा और मैं रसोई के बहार बैठ गया और वहीं से उनको निर्देश देने लगा;

मैं: चलो अब बटुला चढ़ाओ और उसमें घी डालो|

भौजी ने ठीक वैसा ही किया|

मैं: अब जीरा और हींग डालो|

जैसे ही जीरे के चटकने की आवाज आई, मैं बोला;

मैं: अब इसमें कटी हुई हरी मिर्ची और कटे हुए अदरक-लहसुन डालो|

भौजी ने मेरे कहे अनुसार अदरक-लहसुन को बारीक काटा था| करीब मिनट भर बाद मैं बोला;

मैं: अब प्याज डालो और थोड़ा भुनो|

करीब 2-3 मिनट बाद जब प्याज पक गए तब;

मैं: अब कटे हुए टमाटर मिलाओ और साथ ही नमक डालो!

भौजी: नमक कितना डालूँ?

मैं: स्वादानुसार!

भौजी ने वैसा ही किया और 4-5 बाद मैंने उनसे पुछा;

मैं: अब देख तेल अलग हो रहा है क्या?

भौजी ने बटुला देखा और बोलीं;

भौजी: हाँ जी!

मैं: अब इसमें धनिया पाउडर, लाल मिर्च पाउडर और हल्दी पाउडर डालो|

मिश्रण एक दो मिनट चलाने के बाद;

मैं: अब उबली हुई दाल मिला दो|

कुछ देर पकने के बाद;

मैं: अब गर्म मसाला और थोड़ा सा जीरा पाउडर मिलाओ|

करीब 2-3 मिनट बाद दाल तैयार हो गई और उसकी खुशबु सूँघ भौजी बोलीं;

भौजी: जानू, सच कहती हूँ मैंने आजतक इतनी स्वाद दाल नहीं बनाई!

मैं: जान, मेरे साथ रहोगी तो और भी बहुत सिखाऊँगा!

मैंने अपनी शेखी बघारते हुए कहा, जिसे सुन भौजी मुस्कुराने लगीं|

अब बारी थी आँटा गूंदने की, अब ये काम ऐसा था जो मैं न तो कभी करना चाहता था और न ही मुझे अच्छा लगता था!

भौजी: लीजिये.....गुंदिये आँटा?

भौजी ने एक प्रात में आटा डालते हुए कहा|

मैं: क्या?

मैं डर के मारे बोला|

इतने में माँ वहाँ आ गईं, उन्होंने रसोई के बाहर से ही हमारी बात सुन ली थी;

माँ: अरे बहु इसे नहीं आता आटा गूँदना| एक बार गूंदा था तो अपने सारे हाथ आटे में सान लिए थे!

माँ मेरा मजाक उड़ाते हुए बोलीं, माँ की बात सुन दोनों सास-पतुहा (बहु) हँसने लगे!

भौजी: आप चिंता मत करो माँ, मैं सीखा दूँगी|

अब मैं इस काम में फँसने वाला था तो मैंने फ़ौरन अपनी कटी हुई ऊँगली का बहाना मारा;

मैं: पर कैसे सिखाओगे, मेरी ऊँगली तो कट गई है ना?!

भौजी: हम्म्म..तो आप मुझे देखो और सीखो|

भौजी मुस्कुराते हुए बोलीं| माँ बस ये देखने आईं थीं की खाना बन भी रहा है या फिर हम दोनों ऐसे ही समय बर्बाद कर रहे हैं, लेकिन आटा देख माँ समझ गईं की खाना लगभग तैयार है इसलिए वो उठ कर बड़की अम्मा के पास चली गईं|

इधर भौजी आँटा गूंदने लगीं, पर मेरा ध्यान तो उनके चेहरे से हट ही नहीं रहा था| मन कर रहा था की बस घंटों इसी तरह बैठा उन्हें निहारता रहूँ! मुझे खुद को यूँ निहारते देख भौजी मुस्कुराने लगीं, इनकी ये मुस्कराहट उनके हुस्न में चार चाँद लगा रही थी| अब भौजी को मुझे सताना था, सो उन्होंने अपने सर पर पल्ला किया और साडी के पल्ले को दाँतों तले दबा कर हँसने लगीं|

मैं: यार ये सही है, आप खुद तो मुझे नहाते हुए बड़े प्यार से देख रहे थे और अब जब मेरी बारी ै तो अपना मुँह छुपा लिया?! मेरी सब निशानियाँ आपके पास हैं: मेरी फोटो, मेरे बदन की महक और तो और 'ये' भी...

मैंने 'ये' शब्द भौजी की कोख की ओर इशारा करते हुए कहा, जिसे भौजी समझ कर हँसने लगीं|

मैं: पर मेरे पास आपकी एक भी निशानी नहीं, ये जायज बात है क्या?

मैंने प्यार से भौजी को उलाहना दिया|

भौजी: अब मैं क्या करूँ, न तो मेरे पास अपनी कोई तस्वीर है जो मैं आपको दे दूँ! जहाँ तक मेरी महक की बात है तो वो तो आप भूल जाओ, आपके पास अच्छा मौका था लेकिन आप तो घोड़े बेच कर सो रहे थे, सो आपने खुद अपना मौका गँवा दिया!

भौजी ने मुझे चिढ़ाते हुए कहा| 'अब मैं क्या जानूँ की मेरी इस नींद का इतना बड़ा खामयाजा मुझे भुगतना पड़ेगा!' मेरी इस सोच का कारन था की मेरा मन भी छह रहा था की मेरे पास भी कुछ ऐसा हो जिसे देख कर मैं भौजी को याद कर सकूँ, उनसे दूर होते हुए भी उन्हें महसूस कर सकूँ!

धुप चढ़ रही थी और गर्मी में आँटा गूंदते-गूंदते भौजी के माथे पर पसीने आ गया| मुझे अचानक से कुछ सूझा, इससे पहले की भौजी अपना पसीना पोंछ पातीं मैंने झट से अपनी जेब से रुमाल निकाला और उनका पसीना पोंछा;

भौजी: Thank you जानू!

भौजी मुस्कुराते हुए बोलीं|

मैं: No.....Thank you!

मेरे उन्हें thank you कहने पर भौजी को कुछ हैरानी हुई;

भौजी: मैंने आपको thank you कहा क्योंकि आपने मेरा पसीना पोंछा, लेकिन आपने मुझे thank you क्यों कहाँ?!

मैं: मैंने आपको thank you इसलिए कहा क्योंकि मेरे इस रुमाल में आपकी खुशबु कैद है, मैं इसे कभी नहीं धोऊँगा और हमेशा अपने पास संहभाल कर रखूँगा!

ये कहते हुए मैंने रुमाल को आँख बंद कर के सूँघा| मुझे ऐसा करते देख भौजी का दिल भी ख़ुशी से धक् कर गया!

उनका आँटा गूंदने का काम खत्म हुआ तो मैंने घडी देखि, अभी बस ग्यारह ही बजे थे और नेहा के स्कूल की छुट्टी बराह बजे होती थी| मुझे भौजी के साथ कुछ पल अकेले में मिल जाएँ इसलिए मैंने भौजी से प्यार भरा झूठ बोला;

मैं: अरे नेहा के स्कूल की छुट्टी होने वाली है|

भौजी: तो आप जा के ले आओ!

भौजी आटा ढकते हुए बोलीं|

मैं: चलो न दोनों साथ चलते हैं?

मैंने प्यार से अपना प्रस्ताव रखा|

भौजी: ठीक है, मैं हाथ धो के आई|

भौजी मुस्कुराते हुए बोलीं और हाथ धोने चली गईं| उन्होंने अपनी साड़ी ठीक से बाँधी और हम दोनों बड़की अम्मा को बता कर नेहा को स्कूल लेने चल दिए| जब हम स्कूल के नजदीक पहुँचे तो मैंने भौजी से सच कहा;

मैं: अभी सिर्फ ग्यारह बजे हैं और नेहा की छुट्टी होने में अभी एक घंटा बाकी है!

ये सुन कर भौजी अस्चर्य से मुझे देखने लगीं और फिर उन्हें मेरी चतुराई समझ आई;

भौजी: क्या?.... मतलब आपने ....आप न बहुत शरारती हो! अब एक घंटा हम क्या करेंगे?

मैं: देखो वहाँ एक बाग़ है, वहीं चल के बैठते हैं|

वो बाग़ स्कूल से करीब पाँच मिनट की दूरी पर था| ऐसा नहीं था की मैं भूल गया था की पिताजी मुझ पर अब भी गुस्सा हैं, लेकिन मैं आज का दिन बस भौजी के साथ रहना चाहता था फिर चाहे कितना ही सुनना पड़े!

हम दोनों प्रेमी बाग़ पहुँचे, इस समय ये बाग़ खाली हो रहता है| वहाँ बहुत से झुरमुट थे, आम के पेड़ थे, घांस थी और बाग़ के बीचों बीच एक बरगद का पेड़ था| हम उसी बरगद के पेड़ के नीचे खड़े हो गए, दोनों के बीच चंद कदमों का फासला था| दोनों मौन खड़े बस एक दूसरे को देख रहे थे, ये एक अजीब सी प्यास थी जो खत्म होने का नाम ही नहीं लेती थी! इधर मेरा दिल और दिमाग भौजी के जिस्म की गर्माहट चाहता था, मेरे मन में वासना नहीं थी बल्कि भौजी को पाने की एक ललक जगी थी, शायद ये ललक इसलिए थी क्योंकि कल मैं जा रहा था! मैंने आस-पास नजर दौड़ा कर देखा की कहीं कोई हमें देख तो नहीं रहा और जब मुझे भरोसा हो गया की कोई नहीं है तो मैंने एकदम से आगे बढ़ कर भौजी का हाथ थाम लिया तथा उन्हीं झटके से अपनी ओर खींचा! भौजी मेरे इस आक्रमण के लिए तैयार नहीं थी इसलिए वो सीधा आ के मेरी छाती से लग गईं| भौजी के जिस्म की महक सूँघते ही मैं उनके प्यार में बहने लगा और अपने होठों को उनके होठों के पास ले आया| लेकिन इससे पहले की हमारे होंठ मिल पाते, भौजी ने अपनी ऊँगली मेरे होठों पर रख दी और मेरी आँखों में देखते हुए बोलीं;

भौजी: जानू प्लीज बुरा मत मानना, But this is not how I want to remember this day!

मुझे भौजी की ये बात जरा भी समझ नहीं आई पर मैं इस बात को और खींच कर उन्हीं उदास नहीं करना चाहता था, इसलिए मैंने मुस्कराते हुए कहा;

मैं: Okay... no problem जान!!!

मैंने आजतक भौजी के साथ कभी जबरदस्ती नहीं की थी, इसलिए मैंने इस बात को जाने दिया| लेकिन भौजी का दिल बहुत दुखा, वो मुझे रोकने के लिए शर्मसार हुईं;

भौजी: I'm sorry!!

मैं: Its okay जान!

मैंने मुस्कुराते हुए कहा, दरअलस मुझे उनके रोकने का बुरा नहीं लगा था बस थोड़ा अजीब सा लगा था!

अब अगर हम और कुछ देर वहाँ रुकते तो भौजी ये बात सोचते हुए मायूस हो जातीं इसलिए मैंने दूसरी बात शुरू करते हुए कहा;

मैं: चलो नेहा के स्कूल चलते हैं|

मैंने दो कदम चलते हुए कहा|

भौजी: पर अभी तो काफी समय बाकी है|

मैंने घडी देखि तो करीब आधा घंटा बाकी था;

मैं: अरे तो क्या हुआ, मैं हेडमास्टर साहब से विनती कर लूँगा|

मैंने बड़ी सहजता से कहा|

भौजी: क्या जर्रूरत है छोटी सी बात के लिए किसी से विनती करना|

भौजी नहीं मानी और वहीं खड़ी रहीं|

मैं: मुझे मेरी प्यारी बच्ची को भी समय देना है न!

मैंने नेहा का बहाना मारा|

मैं उन्हें जबरदस्ती स्कूल तक ले आया और उनको साथ लेके हेडमास्टर साहब के कमरे के पास पहुँच गया| मैंने बाहर से उनके कमरे में देखा तो एक लड़का बैठा था, जो उम्र में भौजी के बराबर का था| उधर हेडमास्टर साहब ने जैसे ही मुझे देखा उन्होंने उस लड़के से बात खत्म की और उसे बहार जाने को कहा| जैसे ही वो लड़का बाहर आया, भौजी की नजर घूंघट के भीतर से उस पर पड़ी और उन्होंने एकदम से मेरा हाथ पकड़ के दबा दिया! मैं तुरंत समझ गया की कुछ तो बात है, वरना भौजी मेरा हाथ यूँ न दबातीं! खैर मैंने कमरे में प्रवसिह किया और भौजी दरवाजे के बाहर ही रुक गईं;

हेडमास्टर साहब: अरे मानु...आओ-आओ बैठो!

मैं: जी शुक्रिया हेडमास्टर साहब! दरअसल में आपसे एक बिनती करने आया था, आशा करता हूँ की आप बुरा नहीं मानेंगे|

मैंने कुर्सी पर बैठते हुए कहा|

हेडमास्टर साहब: हाँ..हाँ कहिये!

मैं: सर दरअसल कल मैं कल दिल्ली वापस जा रहा हूँ| नेहा मुझसे बहुत प्यार करती है और मैं भी उसे बहुत प्यार करता हूँ| मेरे पास बहुत समय कम रह गया है, तो मैं चाह रहा था की जितना भी समय है मैं उसके साथ गुजारूँ| मेरी आपसे विनती है की क्या मैं उसे अभी ले जा सकता हूँ? जानता हूँ की छुट्टी होने में बस आधा घंटा ही है पर...प्लीज!

मैंने बड़े हलीमी से दरख्वास्त की तो हेडमास्टर साहब मना न कर पाए;

हेडमास्टर साहब: देखो अगर आपकी जगह कोई और होता तो मैंने मना कर देता पर चूँकि मैं आपको व्यक्तिगत तौर पर जानता हूँ तो आप जर्रूर नेहा को ले जाइये| वैसे अब कब आना होगा आपका?

मैं: जी जल्द ही!

हेडमास्टर साहब: बढ़िया है!

हेडमास्टर साहब मुस्कुरा कर बोले और मैं उनसे इजाजत ले कर उठा ही था की मुझे उस लड़के की याद आई तो मैंने उनसे पूछ ही लिया;

मैं: सर...ये लड़का जो अभी यहाँ....

मेरी बात पूरी होने से पहले ही हेडमास्टर साहब ने जवाब दे दिया;

हेडमास्टर साहब: वो मेरा बेटा है, कल ही शहर से आया था| समय नहीं मिला की आपके घर आके इसे मिलवा सकूँ और आज तो ये दुबई जा रहा है|

उन्होंने बड़े गर्व से कहा|

मैं: अरे वाह! ..... अच्छा मैं चलता हूँ और एक बार और आपका बहुत-बहुत शुक्रिया|

मैंने हेडमास्टर साहब को नमस्कार कहा और बाहर आ गया| मैं खुश था की मेरा इतना तो मान-सम्मान है की हेडमास्टर साहब की नेहा जाने दिया| वैसे देखा जाए चूँकि नेहा अभी छोटी क्लास में थी इसीलिए मैं उसे इतनी जल्दी ले जा रहा था, अगर बड़ी क्लास में होती तो मैं ऐसा स्वार्थी कदम न उठाते!

जैसे ही भौजी ने मुझे हेडमास्टर साहब के कमरे से बाहर निकलते हुए देखा तो उन्होंने फ़ौरन अपनी गर्दन उस ओर मोड़ ली, जिस ओर वो लड़का खड़ा था| मैं भौजी की होशियारी भाँप नहीं पाया, मैंने जब भौजी की नजरों का पीछा किया तो पाया की वो लड़का कुछ दूर एक चबूतरे पर खड़ा है और सिगेरट पी रहा है| मैंने भौजी के पास आ कर सीधा सवाल किया;

मैं: उस लड़के को देख आपने मेरा हाथ क्यों दबाया था? आप जानते हो उसे?

मेरी आवाज में जलन साफ़ झलक रही थी, मेरी ये जलन देख भौजी को मौका मिल गया मुझे जलाने का;

भौजी: वो....मेरे साथ....स्कूल में पढता था|

भौजी ने शर्माते हुए कहा, उनकी ये शर्म देख के मेरी जलने लगी!

मैं: तो जाओ बात कर लो उससे?

मेरी आवाज में जलन के कारन थोड़ा गुस्सा आ गया था जिसे देख भौजी थोड़ा डर गईं थीं!

भौजी: पर...पुरानी बात है... वैसे भी स्कूल में कभी उससे बात नहीं हुई| छोडो उसे...चलो नेहा को ले कर घर चलते हैं|

भौजी ने मेरे डर के मारे बात बदलते हुए कहा|

मैं: सच में उससे बात नहीं करनी?

मैंने थोड़ा ढीला पड़ते हुए पुछा|

भौजी: करनी तो है...पर ....आप साथ हो इसलिए!!!

अब ये सुन के मेरी बुरी तरह किलस गई!

मैं: तो आप बात करो उससे, मैं नेहा को उसकी क्लास से ले आता हूँ|

मैंने अपनी जलन छुपाने की नाकामयाब कोशिश करते हुए कहा| लेकिन अब भौजी ने जलन पकड़ ली थी और अब वो उसका भरपूर आनंद लेना चाहती थीं;

भौजी: वैसे ... He had a crush on me!!!

भौजी ने मुस्कुराते हुए कहा|

मैं: और आप?

मेरी जलन के कारन, मेरे मुँह से अनायास ही ये सवाल निकला|

भौजी: ...I don't wanna talk about!

भौजी ने एकदम से बात खत्म करते हुए कहा, ये सुन मैं जल कर राख हो गया! मैं सोचने लगा की अभी कुछ दिन पहले तो उन्होंने मुझसे कहा था की वो मेरे अलावा किसी और से प्यार नहीं करतीं! फिर अब इस लड़के की बात बता कर वो आग में घी डालने का काम क्यों कर रहीं हैं?! खैर उस समय तो मैंने कुछ नहीं कहा, जैसे-तैसे वो जलन बर्दाश्त कर के रह गया और नेहा की क्लास के द्वार पर खड़ा होके अध्यापक महोदय से बात की तथा उन्होंने भी नेहा को छुट्टी दे दी| नेहा ने फ़ौरन अपना झोला समेटा और हँसती हुई बाहर आ गई, नेहा को देखते ही भौजी ने अपने हाथ खोले ताकि वो आ कर उनके गले लग जाए| लेकिन मेरी बेटी भगति हुई मेरे पास आई और मैंने उसे फ़ौरन गोद में उठा लिया तथा उसके मस्तक को चूमने लगा| नेहा ने भी मुझे दो पप्पियाँ दी जो वो रोज सुबह-सुबह दिया करती थी! बाप-बेटी का प्यार देख भौजी कमर पर हाथ रख के दोनों को प्यार भरे गुस्से से देखने लगी| अब दोनों माँ-बेटी के बीच में प्यार-भरी नोक-झोंक शुरू हो गई, दोनों ने एक दूसरे को जीभ चिढ़ाना शुरू कर दिया| इधर मन ही मन मैं उस लड़के से जलने लगा था, साले की हिम्मत कैसे हुई इनसे प्यार करने की?! खैर हम घर की ओर चल पड़े पर मैंने भौजी से कोई बात नहीं की, बस नेहा की पप्पियाँ लेता रहा और भौजी को जलाने की कोशिश करता रहा| मैं जानता था की मेरे नेहा की सरे आम पप्पियाँ लेने से जलन होती है, तो मैं अपने दिल की जलन का बदला उन्हें जला कर ले रहा था| भौजी का मुझे जला कर राख करने का प्लान कामयाब हो चूका था!

घर लौट कर भौजी हाथ-मुँह धो कर रोटी बनाने लग गईं, अब रोटी बनाना मुझे आता नहीं था तो में रसोई के पास वाले छप्पर के नीचे नेहा को गोद में लेकर बैठ गया| नेहा को गर्मी लग रही थी, सो वो बोली;

नेहा: पापा बहुत गर्मी लग रही है, मैं नहा लूँ?!

मैंने नेहा के माथे को चूमा और कहा;

मैं: ठीक है बेटा, पर जल्दी आना|

नेहा नहाने भाग गई और इधर भौजी ने मुझे सताना शुरू कर दिया;

भौजी: वहाँ क्या बैठे हो, चलो रोटी बनाओ!

भौजी रसोई से रोटी बेलते हुए बोलीं|

मैं: मुझे नहीं आती बनानी, जब बनाई तो किसी न किसी देश का नक्शा बन गई!

ये सुन कर भौजी 'खी..खी...' कर खींसें निपोरने लगीं|

भौजी: तो जानू आपने पूछा नहीं की उस लड़के का नाम क्या है?

भौजी ने मुझे चिढ़ाने के लिए कहा|

मैं: तो आप ही बता दो!

मैंने चिढ़ते हुए जवाब दिया|

भौजी: रमेश!

मैं: तो आपको उसका नाम भी याद है?

मैंने भौजी को आँखें तर्रेर कर देखते हुए पुछा|

भौजी: अजी नाम क्या...हमें तो उसका जन्मदिन भी याद है!

भौजी ने मेरी जलन की आग में पेट्रोल छिड़कते हुए कहा|

मैं: अच्छा?! वैसे आपको मेरा जन्मदिन याद है?

भौजी: ममम्म्म ...sorry वो तो मैं भूल गई!

भौजी ने मेरी खिंचाई जारी रखते हुए कहा|

मैं: हाँ भई हमें कौन याद रखता है!

मेरा दिल अब जल कर ख़ाक हो चूका था!

भौजी: जलन हो रही है मेरे जानू को?

भौजी ने हँसते हुए पुछा|

मैं: मैं क्यों जलूँगा?!

मैंने तुनकते हुए कहा|

भौजी: अच्छा बाबा! चलो अब सबको बुला लो, खाना तैयार है|

भौजी ने बात को खत्म करते हुए कहा, वरना मैं खुद जलते हुए चूल्हे में बैठ जाता!

अब खाना खाने को बुलाना था तो मैंने बड़की अम्मा को ढूँढा, वो मुझे छोटे वाले खेत में माँ के साथ बैठीं गुड़ाई करती हुई मिली|

मैं: अम्मा खाना तैयार है, सब को बुला दो!

बड़की अम्मा: अरे ओ अजय.....अजयवा हो!

बड़की अम्मा ने अजय भैया को जोर से आवाज देकर पुकारा, अजय भैया कुछ दूरी पर बैलों के लिए घाँस छोल रहे थे|

अजय भैया: हो अम्मा!

वो भी वहीं बैठे-बैठे चिलाये|

बड़की अम्मा: जाय के आपन चाचा और बप्पा का बुलाये लाओ, खाना बनी गवा है!

अजय भैया: जाइत है!

मुझे ये वार्तालाप सुनने में बड़ा मजा आ रहा था, ऐसा नहीं था की मैं पहली बार इस तरह की वार्तालाप सुन रहा था लेकिन गाँव में जब लोग दूर-दूर काम करते हुए एक दूसरे को चिल्ला कर बात करते थे तो सुन कर बड़ा मजा आता था|

खैर मैं वापस छप्पर के नीचे लौट आया, नेहा भी नाहा कर आ गई थी इसलिए मैं उसे लेकर भौजी के घर आ गया| मुझे पता था की अभी पिताजी आएंगे और कुछ ही देर में मेरी क्लास लगेगी इसलिए मैं मन ही मन सारी तैयारी करने लगा| जैसे ही घर के सभी सदस्य खाना खाने बैठे की अम्मा ने मुझे आवाज मार के बुलाया;

बड़की अम्मा: ओ प्रधान रसोइया जी! तनि हियाँ आये के खाना तो परोस दिहो!

बड़की अम्मा ने हँसते हुए कहा, मैं नेहा को गोद में लिए हुए बाहर आया| मुझे देखते ही पिताजी का गुस्सा चढ़ गया, वो खाने से उठने लगे तो बड़की अम्मा ने उन्हें डाँट दिया;

बड़की अम्मा: चुप्पै बैठ के खाना खाओ, नाहीं तो मारब अभी तोहका!

पिताजी बड़की अम्मा को माँ समान मानते थे इसलिए उनकी डाँट सुन कर बैठे रहे| मैं हाथ-पाँव धो कर रसोई के बाहर बैठ गया, भौजी ने सबसे पहले बड़के दादा के लिए थाली परोसी और घूँघट के नीचे से मुझसे अपनी आँखों द्वारा सवाल पुछा; 'ये सब क्या हो रहा है?' मैंने सर न में हिला कर उनके सवाल से खुद को बचाना चाहा|

एक-एक कर मैंने सब को थाली परोसी, बड़के दादा ने खाने को प्रणाम किया और मेरी ओर देख कर मुस्कुराते हुए बोले;

बड़के दादा: मुन्ना खुशबु बहुत नीक है!

पिताजी खामोश थे, तभी माँ ओर बड़की अम्मा वहाँ आ कर बैठ गईं और बेने (पंखे) से हवा करने लगीं|

पिताजी: ये क्या बनाया है?!

पिताजी ने थोड़ा चिढ़ते हुए पुछा|

बड़की अम्मा: जो भी है...जब खसबू इतनी नीक है तो स्वाद तो लाजवाब होबे करी!

माँ ने पिताजी की चिढ को छुपाते हुए कहा|

मैं: जी पंचरंगी दाल और मेरी स्पेशल गोभी है!

मैंने थोड़ा घबराते हुए कहा|

अजय भैया: भय हम तो पाहिले गोभी खाब!

अजय भैया ने जैसे ही पहला कौर खाया वो खुश होते हुए बोले;

अजय भैया: म्म्म्म...वाह! भैया ई तो बहुत स्वाद है!

अब उनकी देखा देखि चन्दर ने भी पहले गोभी खाई और वो भी मेरे हाथ की बनी गोभी की तारीफ करते हुए बोला;

चन्दर: बहुत स्वाद है!

चन्दर के मुँह से ये सुन मैं थोड़ा हैरान हुआ, फिर मैं समझा की वो तो बस बड़की अम्मा के डर के मारे कह रहा है, वरना पिताजी की तरह उसे भी उनकी डाँट पड़ती|

इधर बड़के दादा ने पहला कौर खा कर फ़ौरन अपने कुर्ते की ऊपर वाली जेब में हाथ डाला और सो रुपये निकाल कर मुझे देते हुए कहा;

बड़के दादा: मुन्ना ई लिहो!

वो सौ का नोट देख मैं हमेशा की तरह पिताजी की तरफ देखने लगा, बचपन में जब भी कोई पैसे देता तो पिताजी के संस्कार के अनुसार पैसे कभी नहीं लेने चाहिए|

मैं: जी ....पर...

मैंने हिशकते हुए पिताजी को देखते हुए कहा|

पिताजी: रख ले.....भाई साहब खुश हो के दे रहे हैं|

पिताजी की आवाज बड़ी सख्त थी, इसलिए मैं अब भी पैसे लेने से कतरा रहा था|

बड़के दादा: आपन पिताजी की तरफ न देख, हम ख़ुशी से देइत है काहे की खाना बहुतये स्वाद है! हमका तो यादो नाहीं की हम आखिर बार कब अइसन खाना खाएँन रहा!

बड़के दादा के मुँह से मेरी बड़ाई सुन भौजी को बहुत गर्व महसूस हुआ, इधर मैंने दोनों हाथों से बड़के दादा द्वारा दिया हुआ सौ का नोट लिया और उसे अपनी जेब में रख लिया|

मेरी प्यारी बिटिया तख्त पर बैठी हुई ये सब देख रही थी और मुस्कुरा रही थी|

माँ: बहु नेहा को भी खाना परोस दे|

ये सुन भौजी धीमे से बोलीं;

भौजी: माँ ये अकेले कहाँ खाना खाती है?!

माँ: बेटा तू भी खाना खा ले|

मैं: जी मैं प्रधान रसोइया हूँ, मैं तो सब से आखिर में खाऊँगा|

अजय भैया: हम कछु छोड़ देइ तब तो खैहो!

अजय भैया ने हँसते हुए कहा, उनकी बात सुन सब हँस पड़े...पिताजी भी!

उनकी हँसी देख के मुझे लगा की शायद पिताजी का गुस्सा अब पिघलने लगा है|

बड़की अम्मा: मुन्ना ई खाना बनाना का आपन माँ से सीख्यो है?

माँ: नाहीं दीदी! न हम ई का बनाया हुआ कछु खाइत है और नहीं ई के पिताजी कछु ख़ावत हैं! अपने-आप पता नहीं का-का बाड़म-बगड़म बनावत है, कभी ई मिला कभी ऊ मिला! पता नाहीं इ सब्जी में का-का डालिस है?!

माँ की बात सुन सब को लगा की कहीं मैंने इसमें कुछ गलत चीज तो नहीं डाल दी, इसलिए मैंने उन्हें रेसिपी बतानी शुरू की;

मैं: जी गोभी को दही में Marinate किया था|

बड़की अम्मा: ऊ का होत है?!

बड़की अम्मा ने Marination के बारे में पुछा तो मैंने उन्हें साड़ी विधि समझाई| मैंने जो सामग्री डाली थी और बनाने की विधि बताई तो बड़की अम्मा समेत सबका मुँह खुला का खुला रह गया! मुझे तथा भौजी को छोड़ कर सब के सब अचम्भित थे और मेरी प्रशंसा कर रहे थे, सिवाए माँ और पिताजी के| माँ को सादा खाना खाने की आदत थी, इसलिए मेरा बनाया हुआ चटक-मटक खाना वो नहीं खातीं थी| वहीं पिताजी तो गुस्से से भरे बैठे थे तो इसलिए उन्होंने जानबूझ कर मेरी तारीफ नहीं की, पर इतना तो मैं दावे से कह सकता हूँ की उन्हें गर्व जर्रूर हो रहा था|

बड़की अम्मा: और का-का बना लेत हो?

मैं: अम्मा मुझे Experiment Cooking पसंद है| मुझे ये दाल-रोटी पकाना अच्छा नहीं लगता, मैं कुछ हट के करता हूँ!

देखा जाए तो मेरी बात सही भी थी, आखिर मेरी पसंद अर्थात भौजी भी तो हट के ही थीं!!! अब चूँकि अम्मा को Experiment Cooking का मतलब नहीं पता था तो मैंने उन्हें विस्तार में सब समझाया|

खैर सब पुरुष सदस्यों ने खाना खाया और वो उठ कर आँगन में बैठ गए, उनके जाने के बाद रसिका सर झुकाये हुए आई| आज सुबह से वो बड़े घर में गठरी बनी छुपी हुई थी, उसके आते ही बड़की अम्मा ने मुझे भौजी के घर जाने को कहा| बड़की अम्मा को लगा की कहीं मैं रसिका पर रासन-पानी ले कर चढ़ न जाऊँ, मैंने नेहा को गोद में लिया और भौजी के घर लौट आया| भौजी के घर के आँगन में चारपाई बिछा कर दोनों बाप-बेटी बैठ गए, समय बिताने के लिए मेरी प्यारी गुड़िया मेरे साथ चिड़िया उडी खेलने लगी| बड़की अम्मा. माँ और रसिका को खाना परोस कर आते-आते भौजी को थोड़ा समय लग गया, अब सुबह से कुछ खाया नहीं था ऊपर से भौजी ने मुझे उस वक़्त मसाला लगा कर तंदूर में जला कर राख कर दिया था तो थोड़ा तो गुस्सा आने लगा था| भौजी एक थाली में तीनों का भोजन परोस लाईं और घर के भीतर घुसते हुए मुझसे बोलीं;

भौजी: चलिए जानू खाना खाते हैं|

भौजी ने खाने की थाली चारपाई पर रखते हुए कहा|

मैं: मेरा मन नहीं है|

मैंने नाराज होते हुए कहा, भौजी जानती थीं की मेरी नारजगी का कारन वही लड़का है पर भौजी को मुझे जलाने में बड़ा मजा आया था|

भौजी: क्यों नहीं खाना? नाराज हो मुझसे?

भौजी ने भोली सी सूरत बनाते हुए पुछा|

मैं: नाराज तो रमेश होगा, मेरे चक्कर में आपने उससे बात जो नहीं की!

मैंने सीधा कटाक्ष किया|

भौजी: ओह! अब समझी, अच्छा मेरी बात सुनो?

भौजी ने मेरा हाथ पकड़ते हुए बिठाया|

मैं: नहीं मुझे कुछ नहीं सुन्ना!

ये कह कर मैं उठ के जाने लगा तो, उन्होंने मेरा हाथ फिर पकड़ के रोक लिया और मुझे अपनी ओर घुमाया| इससे पहले वो कुछ कहतीं मैंने ही जलन की आग में जलते हुए अपना सीधा सवाल पूछ लिया;

मैं: Did you had a crush on him?

ये सुन कर भौजी के होठों पर फिर से मुस्कान आ गई|

भौजी: नो... अब खुश?!

भौजी का ये जवाब मेरे लिए संतोषजनक नहीं था, क्योंकि शक का बीज जो पनपने लगा था! भौजी ने फ़ौरन मेरे मन की हालत पकड़ ली;

मेरी संतुष्टि के लिए भौजी ने अपना दायाँ हाथ अपनी कोख पर रखते हुए कहा;

भौजी: हमारे बच्चे की कसम! मेरे मन में आपके सिवाय न किसी और के लिए कभी प्यार था और न ही कभी पैदा होगा! उस लड़के की शक्ल मेरे स्कूल के दिनों में एक लड़के से मिलती थी, इसलिए पक्के तौर पर नहीं कह सकती की ये वही रमेश था या नहीं| स्कूल के दिनों में मैं प्यार-मोहब्बत से दूर ही रहती थी और वो समय भी ऐसा था की लड़के-लड़कियाँ आजकल की तरह दिल फेंक नहीं होते थे| मेरा मन पढ़ाई में ज्यादा लगता था, घर से स्कूल और स्कूल से घर, बस यही दुनिया थी मेरी|

भौजी की बात सुन अब मुझे विश्वास हो गया था की उनके मन में बस मैं ही बसा हूँ और मुझे खुद पर गर्व होने लगा| मेरी प्यारी बेटी जो अभी तक बड़े ध्यान से हम दोनों की बातें सुन रही थी, उसके मन में सवाल पैदा होने लगे थे!

नेहा: कौन रमेश मम्मी?

उसने भौजी से बड़े प्यार से पुछा|

मैं: बेटा मैंने कहा था न वो दाढ़ी वाला बाबा जो बच्चों को उठा कर ले जाता है, ये वही बाबा है!

मैंने नेहा को डराते हुए भौजी का पक्ष लिया|

नेहा: वो...वो...बाय...फ्रंड...वाला बाबा...?

नेहा ने डरते हुए पुछा, उसका ये सवाल सुन हम दोनों मियाँ-बीवी ठहाका मार के हँसने लगे|

[color=rgb(85,]जारी रहेगा भाग 7 में...[/color]
 

[color=rgb(243,]उन्नीसवाँ अध्याय: बिछड़न![/color]
[color=rgb(184,]भाग -7[/color]


[color=rgb(65,]अब तक आपने पढ़ा....[/color]

भौजी की बात सुन अब मुझे विश्वास हो गया था की उनके मन में बस मैं ही बसा हूँ और मुझे खुद पर गर्व होने लगा| मेरी प्यारी बेटी जो अभी तक बड़े ध्यान से हम दोनों की बातें सुन रही थी, उसके मन में सवाल पैदा होने लगे थे!
नेहा: कौन रमेश मम्मी?
उसने भौजी से बड़े प्यार से पुछा|
मैं: बेटा मैंने कहा था न वो दाढ़ी वाला बाबा जो बच्चों को उठा कर ले जाता है, ये वही बाबा है!
मैंने नेहा को डराते हुए भौजी का पक्ष लिया|
नेहा: वो...वो...बाय...फ्रंड...वाला बाबा...?
नेहा ने डरते हुए पुछा, उसका ये सवाल सुन हम दोनों मियाँ-बीवी ठहाका मार के हँसने लगे|

[color=rgb(44,]अब आगे...[/color]

मैंने नेहा को हाथ धोने भेजा और इस मौके का फायदा उठा कर मैंने भौजी की कमर थाम कर उन्हें अपने नजदीक खींच लिया;

मैं: मेरी जान मुझे जला रही थी?!

ये सुन भौजी खिलखिलाकर हँस पड़ीं;

भौजी: उस दिन जब आप बड़े मजे ले कर अपनी प्रेम कहानी सुना रहे थे, तब कहा था न की मेरा भी वक़्त आएगा! तो आज मेरा वही वक़्त था और जब आप जल कर लाल हो गए थे तो बड़े प्यारे लग रहे थे!

भौजी ने मेरी नाक पकड़ कर खींचते हुए कहा| मैं मुस्कुराया और अपनी ख़ुशी जाहिर करने के लिए मैंने उनके चेहरे को अपने दोनों हाथों में थाम लिया| मैं उन्हें Kiss करने ही वाला था की मेरी नजर उनके चेहरे पर पड़ी, उनके चेहरे पर झिझक और इंकार के मिले-जुले भाव थे! तब मुझे याद आया की आज वो ये सब नहीं चाहतीं इसलिए मैंने उनके चेहरे को छोड़ दिया और उनसे नजरें चुरा कर इधर-उधर देखने लगा ताकि वो किसी तरह की ग्लानि महसूस कर उदास न हो जाएँ| लेकिन मेरी पत्नी को मुझे रोकने के लिए बुरा लग रहा था, उन्होंने मेरी बाजू पकड़ ली और इससे पहले की वो कुछ बोलतीं, मैं ही बोल पड़ा;

मैं: Sorry! मैं...वो... भूल गया था!

मैंने नजर चुराते हुए कहा|

भौजी: No .....I'm sorry !

भौजी मन ही मन खुद को कोस रहीं थीं की, क्योंकी वो मुझे बार-बार Kiss करने से रोक रहीं थीं! भौजी थोड़ा भावुक हो गई थी, पर तभी मेरी लाड़ली बिटिया कूदती हुई आई और माहौल गमगीन होने से बच गया!

हमने खाना खाने के लिए आसन ग्रहण किया, नेहा आके सीधा मेरी गोद में बैठ गई|

भौजी: बेटा आज है न...खाना है न...आपके पापा ने बनाया है!

भौजी ने मुस्कुराते हुए मेरी ओर देखते हुए कहा|

नेहा: हैं पापा?

मैंने नेहा के सर को चूमा और कहा;

मैं: बेटा गोभी की सब्जी मैंने बनाई है, बाकी दाल और रोटी आपकी मम्मी ने बनाई है!

ये सुन कर नेहा की आँखें ख़ुशी से चमकने लगी और वो बड़े प्यार से मुझसे बोली;

नेहा: फिर पहले मैं गोभी खाऊँगी|

माने नेहा को गोभी की सब्जी के साथ पहला कौर खिलाया तो उसे वो बहुत स्वाद लगी, वो मेरी गोद से उठी और मेरे बाएँ गाल को चूमते हुए बोली;

नेहा: मममम...बहुत स्वाद है पापा!

नेहा के चेहरे पर ख़ुशी देख हम दोनों के दिल ख़ुशी से बजने लगे| भौजी ने हमेशा की तरह मुझे गोभी की सब्जी के साथ पहले कौर खिलाना चाहा;

मैं: जान, पहले आप तो खाओ!

तो भौजी ने वो कौर खुद खाया, वो कौर खाते ही भौजी की आँखें खुली की खुली रह गईं!

भौजी: Delicious!!! इसके आगे तो Restaurant का खाना फीका है! आपने पहले क्यों नहीं बताया की आप इतना अच्छा खाना बनाते हो?! मैं तो रोज आपसे ही खाना बनवाती!

भौजी ख़ुशी से झूमते हुए बोलीं|

मैं: Thanks पर मैं शौक के लिए कुकिंग करता हूँ! जब भी मैं उदास होता हूँ या बहुत ज्यादा खुश होता हूँ तभी कुकिंग करता हूँ|

ये सुन भौजी के मन में सवाल उठ खड़ा हुआ;

भौजी: तो आज आप किस मूड में थे?

भौजी का सवाल सुन, मेरा काबू मेरी जीभ पर नहीं रहा और मेरे मुँह से न चाहते हुए भी सच निकल गया;

मैं: खुश भी और उदास भी! खुश इसलिए की आज आप इतना खुश हो, आपके चेहरे पर फिर से वही प्यारी मुस्कान है और उदास इसलिए की कल से मैं आपको इस तरह मुस्कुराता हुआ नहीं देख पाउँगा!

मेरी बात सुन कर भौजी एकदम से चुप हो गईं, वहीं नेहा भी खामोश हो गई! अब जा कर मुझे अपनी गलती का एहसास हुआ, मेरे दिमाग ने एकदम से मेरे मन को ये कह कर लताड़ा की 'तुझे क्या जर्रूरत थी ये कहने की!' मन में जो बात थी वो अपने आप जुबान पर आ गई थी, खैर अब मुझे इस बात को संभालना था|

मैं: नेहा बेटा आपने दाल तो टेस्ट की ही नहीं, ये है न...आपकी मम्मी ने बनाई है!

मैंने भौजी की ओर देखा और उन्हें आँख मारते हुए कहा;

मैं: अरे आप भी तो अपनी बनाई दाल टेस्ट करो!

भौजी: ओह! मैं तो भूल ही गई थी!

नेहा ने दाल टेस्ट की तो वो फिर से चहकने लगी और इस बार उसने जा कर अपनी मम्मी के दाएँ गाल पर मीठी-मीठी पप्पी दी!

नेहा: मम्मी दाल बहुत स्वाद है!

भौजी अपनी तारीफ सुन कर खुश हुईं, लेकिन फिर नेहा ने प्यार भरी मस्ती की;

नेहा: लेकिन पापा की गोभी ज्यादा स्वाद थी!

ये सुन कर हम तीनों ठहाका मार के हँसने लगे| अब जा कर भौजी ने अपनी बनाई दाल टेस्ट की और उनके चेहरे पर हैरानी थी;

भौजी: जानू ये मैंने बनाई है? Wow!!! Seriously! Amazing....घी का स्वाद और महक....मममम...Awesome!

मैं: जान ये आपके हाथ का जादू है! मेरी पत्नी खाना बहुत स्वाद बनाती है!

मैंने भी दाल चखते हुए कहा, अपनी तारीफ सुन भौजी शर्माने लगीं!

भौजी: जानू! अब तो आप मुझे complex दे रहे हो! आपके हाथ का खाना खा कर, घर वालों को मेरे हाथ का खाना अच्छा ही नहीं लगेगा! ही..ही..ही..!!!

मैं शुरू से अपनी तारीफ सुनने का आदि नहीं था तो मुझे लगा की भौजी मेरी टाँग खींच रही हैं!

मैं: यार टांग मत खींचो!

भौजी: जानू अगर मैं जूठ बोल रही हूँ तो आप ही बताओ की बप्पा ने आपके बनाये खाने से खुश हो के पैसे क्यों दिए? पता है मेरी पहली रसोई बनाने के बाद मुझे कुछ नहीं मिला था!

मैं: अच्छा याद दिलाया आपने, ये आप रखो|

मैंने अपनी जेब से वो सौ का नोट निकाल कर उनकी ओर बढ़ाया|

भौजी: पर किस लिए?

भौजी ने पैसे नहीं लिया ओर अपना सवाल दागा|

मैं: आप अपने पास रखो, मेरी निशानी के तौर पर!

भौजी: पर ये तो आपको ....

मैं: आईडिया आपका था की खाना मैं बनाऊँ और प्लीज अब बहंस मत करो|

मैंने भौजी की बात काटते हुए कहा|

भौजी: ठीक है, आप कहाँ मानते हो मेरी!

भौजी ने मुझे उलाहना दिया और बेमन से पैसे अपने पास रख लिए|

जब मैं छोटा था तो मैंने सोचा था की जब मैं पैसे कमाऊँगा तब पहली कमाई माँ के हाथ लगा कर अपनी पत्नी को दूँ| जब बड़के दादा ने मेरे बनाये खाने से खुश हो कर दिए तो मैंने यही सोच कर भौजी को ये पैसे दिए थे, हालाँकि वो मेरी कमाई के पैसे नहीं थे पर भौजी को पैसे दे कर मैं अपनी ये एक ख्वाइश आज ही पूरी कर लेना चाहता था| क्या पता आगे मौका मिले न मिले?!

खैर खाना खत्म हुआ, मैंने और नेहा ने हाथ-मुँह धोये| अब मुझे तो बाहर जाना मना था सो मैं नेहा को अपनी छाती से लगाए भौजी के घर के आँगन में पसर गया| भौजी जब बर्तन रखने गईं तो अम्मा ने उन्हें वापस मेरे पास भेज दिया, भौजी को ये बात खटकी तो उन्होंने वापस आ कर मुझसे पुछा;

भौजी: घर में क्या हो रहा है? मैं बर्तन रख रही थी की अम्मा ने मुझे वापस यहाँ भेज दिया?!

मैं: अभी नहीं बाद में|

मैंने भौजी को इशारे से बताया की नेहा अभी जाग रही है| भौजी खामोश हो गईं और मेरी बगल वाली चारपाई पर लेट गईं, नेहा हमेशा की तरह मेरी छाती पर चढ़ी हुई थी और अभी जाग रही थी| मैं: अच्छा मेरा प्यारा-प्यारा बेटा!

मैंने नेहा के माथे को चूमते हुए उससे बात करना शुरू किया|

मैं; बेटा मैं है न...आपको है न...बहुत जर्रूरी जिम्मेदारी दे रहा हूँ! आपको है न ये जिम्मेदारी किसी भी हालत में निभानी है!

नेहा एकदम से उठ बैठी और मेरे पेट पर बैठते हुए मेरी बात ध्यान से सुनने लगी|

मैं: बेटा जब तक मैं वापस नहीं आता न, तब तक आपको अपनी मम्मी का खूब ध्यान रखना है! उनके खाने-पीने का ध्यान रखना, दवाई का ध्यान रखना, उन्हें कोई भारी चीज उठाने नहीं देना, कोई मेहनत वाला काम नहीं करने देना और उनके हर काम में आप उनकी मदद करना!

नेहा ने फ़ौरन हाँ में सर हिलाया और गर्व के साथ मेरे द्वारा दी हुई सारी ड्यूटी अपने सर ले ली| अब बारी थी भौजी को सीधा करने की;

मैं: और आप सुन लो, खबरदार मेरी बेटी को जो डाँटा तो! रोज रात को नेहा को कहानी सुनना और उसे अपने से चिपका के सुलाना!

मैंने भौजी को प्यारभरी चेतावनी देते हुए कहा| भौजी ने अपने कान पकडे और बोली;

भौजी: जो हुक्म! लेकिन मुझे कहानी सुनना नहीं आता?

भौजी ने बहना मारा|

मैं: कोई मुश्किल काम नहीं है, आप नेहा को हमारी कहानी सुनना!

मैंने भौजी को आँख मरते हुए कहा, भौजी तुरंत मेरा इशारा समझ गईं और मुस्कुराने लगीं|

मैं: और नेहा अगर मम्मी कहानी न सुनाएं तो आप मुझे बताना| मैं आ कर इनको सीधा कर दूँगा!

ये सुन कर नेहा खिलखिलाकर हँसने लगी और अपनी मम्मी को जीभ चिढ़ाने लगी|

पेट स्वाद खाने से भरा था तो नेहा मेरे सीने पर सर रख कर लेट गई, पर अभी वो सोइ नहीं थी तो मैंने भौजी से बात करनी शुरू की;

मैं: जान एक बात तो बताना, आपकी पढ़ाई छूटे हुए इतना समय हो गया फिर आपकी इंग्लिश इतनी अच्छी कैसे?

मैंने जिज्ञासु बनते हुए सवाल पुछा| भौजी मुस्कुराते हुए उठीं और अपनी अटैची से एक मैगज़ीन ले आईं| मैंने वो मैगज़ीन खोल कर देखि तो पाया की वो फ़िल्मी सितारों की मैगज़ीन है और उसमें जगह-जगह पेंसिल से शब्दों को निशान लगाया गया है|

भौजी: ये मैगज़ीन मैंने अनिल से मँगवाई थी ताकि अंग्रेजी की प्रैक्टिस करती रहूँ| ये जो शब्द मैंने निशान लगाए हैं, इनके अर्थ मुझे नहीं पता थे तो जब मैं अपने मायके जाती तो वहाँ अनिल की डिक्शनरी से इनके मतलब ढूँढती और याद कर लेती| इस मैगज़ीन का एक-एक शब्द मुझे मुँह जुबानी याद है|

भौजी ने बड़े गर्व से कहा| मैंने वो मैगज़ीन अच्छे से देखि और तब मुझे एहसास हुआ की जब लोगों के बॉस साधन नहीं होते तो वो कैसे जीते हैं! भौजी की पढ़ाई छूट जाने के बाद भी, इतने साल उनके मन से पहने को ललक कभी खत्म नहीं हुई| मुझे उसपल भौजी के लिए बहुत बुरा लगा, पढ़ाई में इतनी रूचि होने के बाद भी वो आगे पढ़ नहीं पाईं! काश कोई ऐसा तरीका होता की मैं उनकी पढ़ाई फिर से शुरू करवा सकता, शहर में होती तो मैं ओपन से उनका फॉर्म भरवा देता पर यहाँ तो कोई सुविधा ही नहीं है! मुझे कुछ सोचते हुए देख भौजी जान गईं की मैं कुछ न कुछ गुना-भाग कर रहा हूँ, सो उन्होंने मेरा हाथ पकड़ कर मुझे हिलाते हुए मेरे ख्यालों से बाहर निकाला;

मैं: जब मैं आऊँगा न तो आपके लिए 5-7 मैगजीन्स और डिक्शनरी ले आऊँगा, आप वो सब आराम से पढ़ना|

मेरी बात सुन कर भौजी के चेहरे पर झूसी की दमक आ गई|

नेहा की आँख लग चुकी थी तो भौजी ने अपनी बात दुहराते हुए पुछा;

भौजी: अब बताओ की घर में क्या हो रहा है, जिसकी भनक मुझे नहीं?!

तब मैंने भौजी को सारी बात बताई, मेरी बात सुन कर भौजी अवाक रह गईं!

भौजी: आपने मुझे ये सब पहले क्यों नहीं बताया?

उन्होंने चिंतित होते हुए पुछा|

मैं: आप पहले ही दुःख से बौखलाए हुए थे, ये सब बताता तो आप पता नहीं क्या करते?!

मेरी बात सुन कर भौजी मायूस हो गईं|

भौजी: आपके नाम पर कोई लाँछन न लग जाए इसकी कोशिश करती थी और आज मैं ही आपकी बेइज्जती का कारन बन गई|

मैंने नेहा को बगल में लिटाया और उठ कर भौजी की बगल में बैठ गया|

मैं: जान ऐसा मत कहो! आपने कुछ नहीं किया, ये सब रसिका का किया धरा है! उसी ने हमारे बारे में सच बोला जो पिताजी ने सुन लिया| अभी माँ और बड़की अम्मा पिताजी को समझा रहे हैं, देखना सब ठीक हो जायेगा|

भौजी: अगर पिताजी नहीं माने तो?

भौजी की आँखें भर आईं थीं|

मैं: तो मैं उन्हें सच बता दूँगा!

भौजी: और फिर क्या होगा ये जानते हो न आप?

मैं: जानता हूँ!

मेरी बात सुन भौजी का सर झुक गया, वो हिम्मत न हार जाएँ इसलिए मैंने उन्हें हिम्मत बंधाई;

मैं: जान, आप को हिम्मत रखनी होगी और मेरा इंतजार करना होगा| ये सच खुलने के बाद मैं खूब मेहनत करूँगा और जितना जल्दी हो सकेगा, उतनी जल्दी अपने पाँव पर खड़ा हूँगा और फिर मैं आपको लेने आऊँगा! हम दोनों अपनी नई जिंदगी शुरू करेंगे, पर तब तक आपको मेरा इंतजार करना होगा|

मेरी बात सुन भौजी मेरी आँखों में देखने लगीं, उन्हीं मेरी आँखों में प्यार और आत्मविश्वास दिखा, जिसे देख उन्हें आशा की एक किरण मिली| भौजी ने सर हाँ में हिलाया और मेरी बात का मान रखा, मेरे लिए ये अचंभित करने वाली बात थी की आज उन्होंने मेरी बात मान कैसे ली?!

अब मुझे माहौल थोड़ा हल्का था सो मैंने भौजी से हँसते हुए पुछा;

मैं: अच्छा ये तो बताना, रसिका की कुटाई कैसे की आपने?

ये सवाल सुन भौजी के चेहरे पर मुस्कान आ गई और वो बोलीं;

भौजी: मैं सुबह छप्पर के नीचे पहुँची तो मुझे रसिका सोती हुई मिली, वो बाईं करवट लेटी थी और उसका दायाँ कुल्हा ऊपर को निकला हुआ था| उसे देखते ही मुझे कल की उसकी काली-करतूत याद आ गई, कैसे उसने हमारे बीच में लगाई-बुझाई की थी| मैंने छप्पर में खोंसी हुई एक पतली सी डंडी निकाली और खींच कर उसके दाएँ कूल्हे पर मारी! वो बड़ी जोर से चीखते हुए, अपना दायाँ कुल्हा मसलते हुए उठी और मुझे देखते ही उसकी नानी मर गई! ही..ही..ही..ही..

रसिका की सुताई की कहानी सुन कर हम दोनों ठहाका मार के हँसने लगे|

करीब आधे घंटे बाद माँ मुझे बुलाने आईं, मैं, भौजी और माँ तीनों छप्पर के नीचे पहुँचे| पिताजी, बड़के दादा और चन्दर तख्त पर बैठे थे, बड़की अम्मा, अजय भैया और माँ की चारपाई सामने बिछी थी| मैं जा कर बीचों-बीच पिताजी की ओर मुँह कर के खड़ा हो गया, मेरे पीछे भौजी घूंघट काढ़े खड़ीं थीं| हम दोनों के दिल की धड़कन तेज थी, हालाँकि दोनों फैसला तो ले चुके थे पर पिताजी का डर मेरे चेहरे पर दिख रहा था| जैसे ही पिताजी की नजर मुझ पर पड़ी, मैंने शर्म से अपना सर झुका लिया| शर्म इसलिए नहीं की मैंने भौजी से प्यार किया, बल्कि इसलिए की मेरे कारन पिताजी का सर शर्म से झुक गया|

पिताजी: बेटा तूने मुझसे ये बात छुपाई?

पिताजी का ये सवाल सुन कर मैं सोच में पड़ गया, उनकी आवाज में गुस्सा नहीं था बल्कि पिता का प्रेम था| चूँकि मैं पिताजी का सवाल नहीं समझा था तो मैं सर झुकाये खड़ा रहा, ताकि वो अपना सवाल स्पष्ट कर दें|

पिताजी: बेटा तू नहीं जानता मेरा दिल कितन दुख जब तेरी बड़की अम्मा ने मुझसे सारी बात बताई! मैंने अपने निर्दोष बेटे पर लाँछन लगाया और तुझ पर हाथ उठाया! मुझे माफ़ कर दे बेटा, मैंने दूसरे की बात में आ कर तेरे साथ ऐसा बुरा सलूक किया!

ये कहते हुए पिताजी ने हाथ जोड़ दिए, मैंने फ़ौरन उनके दोनों हाथ थाम लिए और मेरी आँखों से आँसुओं की धारा बहने लगी| जिंदगी में आज पहलीबार मेरे पिताजी मुझसे माफ़ी माँग रहे थे, ये एहसास मुझे अंदर से झिंझोड़ गया था| पिताजी के दिल का दरिया बाँध तोड़ कर बहने लगा और पिताजी ने मुझे अपने सीने से लगा लिया| उनके सीने में उमड़ रहे पिता के प्रेम ने आज मुझे भीतर तक छु लिया था, ये मनोरम दृश्य देख सबकी आँखें छलक आईं थीं, सिवाए चन्दर के!

पिताजी: बेटा क्यों नहीं बताया तूने मुझे सच?

पिताजी ने मेरे सर पर हाथ फेरते हुए पुछा| उनका लाड-प्यार देख मैं समझ गया की वो मुझसे रसिका का मेरे ऊपर चढ़ने वाले काण्ड के बारे में पूछ रहें हैं|

मैं: पिताजी...मैं नहीं जानता था की मैं आपसे ये बात कैसे कहूँ? मुझे बहुत शर्म आ रही थी....

आगे की बात मैंने भौजी की तरफ इशारा करते हुए पूरी की|

मैं: ....इसलिए मैंने ये बात सिर्फ इन्हें बताई| इन्होने भी कहा की मैं ये बात सब को बता दूँ, पर मेरी हिम्मत नहीं पड़ी!

मैंने संकुचाते हुए कहा| पिताजी ने मुझे अपने सीने से अलग किया और मेरी आँसू पोछते हुए बोले;

पिताजी: बेटा तु बड़ा हो गया है और कहते हैं की जब बेटे का जूता बाप के पाँव आने लगे तो वो बेटा नहीं रहता बल्कि दोस्त बन जाता है| तो वादा कर की आगे से तु मुझसे कोई बात नहीं छुपायेगा|

पिताजी ने मुझे वादा करने को कहा, पर अगर मैं वादा करता तो मुझे उन्हें भौजी के बारे में भी सब बताना पड़ता इसलिए मैंने बड़े संक्षेप में उत्तर दिया;

मैं: जी!

पिताजी ने मुझे एक बार फिर अपने गले से लगा लिया और तब जा कर भौजी के दिल को चैन मिला!

बड़की अम्मा: हम पाहिले ही कहत रहन की हमार मुन्ना दिल का साफ़ है, कउनो मैल न है ऊ का दिल में! पर तू (पिताजी) गुस्सा मा हमार मुन्ना पर भुनभुनात रहेओ! जानत हो ई कइसन आपन भौजी और भतीजी का सम्भालीस ही? ई हियाँ न होता तो कल सुबह अनर्थ हुई ज़ात, बड़का बेहोश होये गई रही जब हमार मुन्ना ऊ का सम्भालीस और देखो आज हमार बहु कतना चहकत है!

बड़की अम्मा ने मेरा पक्ष लेते हुए कहा|

बड़के दादा: मुन्ना (पिताजी) तोहार लाल सहर मा रहा है, हियाँ के तोर-तरीके नाहीं जानत है पर तोहार बेटा होनहार है! ऊ के लिए तोहका कभौं सक (शक) करेका जर्रूरत नाहीं!

बड़की अम्मा और बड़के दादा ने पिताजी को बड़े प्यार से उनकी गलती का आभास करा दिया|

बड़की अम्मा: मुन्ना अब तू आपन भौजी संगे जाओ, हम सब हियाँ ऊ कल मुहि (रसिका) का फैसला करब!

बड़की अम्मा की बात सुन मैं और भौजी वापस उन के घर लौट आये, घर में घुसते ही भौजी मेरे सीने से लिपट गईं और थोड़ा सुबकने लगीं|

मैं: बस जान! रोना नहीं है, अब तो सब ठीक हो गया न!

भौजी: मैं...बहुत...डर गई थी....लग रहा था जैसे आज आपको खो दूँगी!

भौजी सुबकते हुए बोलीं|

मैं: ऐसे कैसे खो देती? भगा न ले जाता आपको!

मैंने हँसते हुए कहा तो भौजी के चेहरे पर भी भीनी सी मुस्कान आ गई| खैर हम दोनों आमने-सामने चारपाई पर लेट गए और रसिका के बारे में बात शुरू हुई;

भौजी: आप क्या कहते हो? क्या फैसला होगा उसका (रसिका)?

मैं: मेरे कहने से क्या होता है, करेंगे तो सब वही जो उन्हें ठीक लगेगा|

मैंने गोलमोल जवाब दिया|

भौजी: पर फिर भी आपकी राय क्या है?

मैं: मेरा तो ये कहना है की घर वाले जो भी निर्णय लें, उससे पहले वो ये तीन बातों के बारे में सोच लें;

पहली, इस सारे फसाद में बिचारे वरुण की कोई गलती नहीं थी, वो तो बेचारा मासूम है! उसे थोड़े ही पता है की उसकी माँ कैसी है? तो घर के बड़े कोई भी निर्णय लें उसका बुरा असर वरुण पर ना पड़े|

दूसरी, मुझे नहीं पता की रसिका के माँ-बाप किस तरह के लोग हैं, क्या उन्हें पता था की शादी से पहले उनकी बेटी पेट से है? अगर उन्होंने सब जानते-बूझते शादी की थी तो बात सीधा तलाक पर आएगी और वो लोग तलाक देने के समय हमें परेशान करने से बाज नहीं आएंगे! शहर में तलाक के एवज में लड़की वाले एलिमनी (alimony) माँगते हैं, मतलब बच्चे के रख-रखाव, पढ़ाई, कपडा-लत्ता आदि के लिए पैसे!

तीसरी बात थोड़ी अजीब है और मैं उस बात पर यकीन नहीं कर सकता पर उसे अनदेखा भी नहीं कर सकता| वो ये की उस दिन जब अजय भैया और रसिका के बीच में झगड़ा हुआ था और मैं बीच में पड़ गया था तब रसिका ने मुझे बताया की अजय भैया उसे शारीरिक रूप से खुश नहीं कर पाते| अब या तो वो सच कह रही थी, या फिर उसके अंदर की आग इतनी बड़ी है की कोई भी उसे शांत...

मैंने जान कर आगे की बात पूरी नहीं की क्योंकि उसे कहने में मुझे बड़ा अजीब लग रहा था, मेरी सोच उस समय ऐसी थी की सेक्स से दोनों ही व्यक्ति संतुष्ट हो जाते हैं!

इधर भौजी मेरे मन की व्यथा समझ गईं और उन्होंने अपनी बात कह कर मुझे असहज महसूस नहीं होने दिया;

भौजी: हम्म्म.... उस जैसी .....

भौजी रसिका को गाली देने वाली थीं, पर किसी तरह दाँत पीसते हुए खुद को रोका और आगे की बात की;

भौजी: ऐसी औरत का विश्वास कोई कैसे करे? रही बात उसके घरवालों की, तो मैं भी उनके बारे में कुछ नहीं जानती| शादी के बाद जब उसके इतना जल्दी पेट से होने की बात सामने आई तो सब सवाल करने लगे की वो इतनी जल्दी गर्भवती कैसे हो गई! तब बप्पा ने उसके (रसिका के) घर वालों को बुलाया और उन्हें बहुत बुरी तरह जलील किया| तब से ना वो लोग यहाँ आते हैं और ना ही हमारे घर से कोई उनके घर जाता है| पैसे के तौर पर देखा जाए तो वो काफी अमीर हैं, मतलब काफी जमीन है उनके पास| सुनने में आया था के वरुण के नाना ने अपनी सारी जमीन-जायदाद वरुण के नाम कर दी है|

इतना कह कर भौजी एक सेकंड के लिए रुक गईं और फिर बोलीं;

भौजी: सच कहूँ तो पहले मुझे उससे हमदर्दी होती थी, पुरे घर ने उसे अलग-थलग कर दिया था| कोई उसे पूछता नहीं था, कुछ-कुछ मेरी ही तरह जब नेहा पैदा हुई थी|

भौजी की हमदर्दी वाली बात सही भी थी, जब आप किसी इंसान पर जुल्म होता देखते हो या उसे अकेला पड़ता देखते हो तो आपके दिल में हमदर्दी पैदा हो ही जाती है| लेकिन अचानक भौजी के चेहरे पर घृणा वाले भाव आ गए और वो गुस्से में बोलीं;

भौजी: मुझे उसके शादी से पहले मुँह काला करने से कोई सरोकार नहीं था, मुझे गुस्सा उस पर तब से आने लगा जब उसने मेरी गैरहाजरी में आपके साथ जोर-जबरदस्ती करने की कोशिश की! अगर उसने आपको छू लिया होता तो मैं उसे जान से मार डालती!

भौजी का चेहरा गुस्से से तमतमा रहा था| उनकी possessiveness आज फिर से बाहर आई थी|

मैं: Hey! शांत हो जाओ, ऐसा कुछ हुआ तो नहीं न! आप बस अपना वादा मत भूलना, मेरे जाने के बाद आप एक भी दिन यहाँ नहीं रुकोगे! उस उलटी खोपड़ी की औरत को मैं आपके आस-पास भी नहीं चाहता!

मैंने भौजी को चेतावनी देते हुए आगाह किया| मैं जान गया था की मेरी गैरहाजरी में वो कुछ न कुछ ऐसा काण्ड करेगी जिससे भौजी और मेरे होने वाले बच्चे की जान आफत में पड़ जाती|

भौजी: जानू, मैंने आपको वादा किया है, तो मैं उसे कैसे तोड़ सकती हूँ!

भौजी ने मुस्कुरा कर कहा|

मैं: अच्छा इससे पहले मैं भूल जाऊँ, मुझे आप अपने घर का नंबर दे दो ताकि मैं पहुँचते ही आपको फ़ोन कर सकूँ और आप मेरा नंबर भी लिख लो पर ये नम्बर पिताजी के पास होता है, तो आप मुझे या तो सुबह छ बजे तक कॉल करना या फिर रात में सात बजे के बजे बाद कभी भी कॉल कर लेना|

हम दोनों ने फ़ोन नंबरों का अदा-प्रदान किया, घडी में बजे थे 4 और मेरी प्यारी लाड़ली जाग गई थी| उठते ही नेहा ने मेरे बाएँ गाल पर पप्पी दी और बाथरूम करने बाहर चली गई|

बड़की अम्मा: ओ बड़का तानी हिया आवो और चयिहा चढ़ाओ!

बड़की अम्मा ने बाहर आंगन से आवाज दे कर भौजी को पुकारा| हम दोनों घर से निकले, भौजी तो हाथ-पाँव धो कर रसोई में घुस गईं इधर मेरी लाड़ली आ कर मेरी टाँग से लिपट गई| मैंने नेहा को गोद में लिया और छप्पर के नीचे आ कर बैठ गया, नेहा ने अपने दोनों हाथों से मेरे गाल खींचने शुरू कर दिए| दोनों बाप-बेटी का खेल देख भौजी रसोई से मुस्कुरा रहीं थीं, इतने में अजय भैया आ कर मेरे पास बैठ गए और मुझसे दिल्ली के बारे में पूछने लगे| वो आज तक दिल्ली नहीं गए थे तो मैंने उन्हें वहाँ के बारे में बड़े चाव से बताना शुरू कर दिया| मेरी कई बातों को मेरी लाड़ली और भी बढ़ा-चढ़ा कर बता रही थी| उसका ये बचपना देख मैंने उसके गालों की पप्पी ले लिया करता था| चाय बनी और मैंने खुद सब को ले जा कर दी, अब सिर्फ रसिका बची थी|

भौजी: नेहा ये चाय अपनी चाची को दे आ|

नेहा ने भौजी से चाय का गिलास लिया और धीरे-धीरे चलते हुए बड़े घर चली गई, रसिका को भर गिलास चाय पीने की आदत थी| चाय का गिलास था गर्म इसलिए भौजी ने उसे कटोरी में रख कर नेहा को दिया था, चाय छलक न जाए इसलिए नेहा धीरे-धीरे चल रही थी| दो मिनट में नेहा चाय दे कर मेरे पास भाग आई, भौजी ने नेहा के लिए दूध बनाया था तो मैंने नेहा को गोद में बिठा कर अपने हाथ से उसे दूध पिलाया| भौजी मेरी और अपनी चाय का गिलास ले कर आ गईं, छप्पर के नीचे बस हम तीनों थे और मुझे सूझ रही थी दिल्लगी! मैंने एक घूँट पीते ही अपना चाय का गिलास भौजी की ओर बढ़ा दिया;

मैं: यार इसमें चीनी कम है!

ये कह कर मैंने उन्हें आँख मारी, पर मेरी बुद्धू पत्नी कुछ नहीं समझी और अपने गिलास से एक घूँट पी कर बोलीं;

भौजी: ठीक तो है!

ये देख मैंने अपना माथा पीटा, अब भौजी सवालिया नजरों से मुझे देखने लगीं|

मैं: यार सच में बुद्धू हो क्या?

भौजी अब भी हैरान मुझे आँखें बड़ी कर के देख रहीं थीं| अब मैंने आँखें बड़ी कर के उन्हें थोड़ा घूरा तब जा कर उनके दिमाग की तुबेलिघ्त ठीक से जली! उन्होंने मेरे गिलास से एक घूँट चाय पी और डरते हुए मेरी ओर गिलास बढ़ा दिया| मैंने बिना अपने भाव बदले गिलास से एक घूँट पिया और मुस्कुराते हुए बोला;

मैं: हम्म्म...अब हुई न मीठी!

ये सुन कर भौजी के चेहरे पर मुस्कान आई और वो हँस पड़ीं|

मैं: यार सच्ची में बुद्धू हो क्या?!

मैंने हँसते हुए अपना सवाल दोहराया तो सबसे पहले नेहा ने अपने मुँह पर हाथ रखते हुए अपनी हँसी रोकी! उसके ऐसा करने से हम दोनों खिखिलकर हँस पड़े!

भौजी: मैं क्या जानू, आपको कब क्या सूझ जाता है!

भौजी उल्हना देते हुए बोलीं|

मैं: आपसे ज्यादा होशियार मेरी बेटी है, देखो बिना कुछ कहे सब समझ जाती है|

अपनी तारीफ सुन नेहा खूह हो गई और हँसते हुए अपनी मम्मी को चिढ़ाने लगी|

भौजी: इधर आ तुझे बताऊँ मैं!

भौजी ने नेहा को प्यार-भरे गुस्से से अपने पास बुलाया, पर मेरी बेटी मेरे सीने से लिपट गई|

मैं: खबरदार मेरी बेटी को कुछ कहा तो!

मैंने भौजी को हड़का दिया और नेहा फिर से अपनी मम्मी को जीभ चिढ़ाने लगी|

खेर सब ने चाय पी लेकिन किसी ने भी रसिका के बारे में लिए फैसले के बारे में मुझे कुछ नहीं बताया और न ही मुझे कुछ जानने की पड़ी थी| मैं तो बस मन ही मन ये मना रहा था की कैसे भी कल का दिन कभी ना आये! रात का खाना बनाने का काम मुझे नहीं बोला गया था तो भौजी ने ही खाना बनाना शुरू कर दिया| मैं और नेहा चिड़िया उडी खेल रहे थे और हम दोनों की हँसी पूरे घर में गूँज रही थी, दोपहर तक का समय मैं भौजी को दे चूका था, अब समय था अपनी लाड़ली को प्यार-दुलार करने का| उस समय मेरे पास कैमरे वाला फोन तो था नहीं जो मैं फोटो खींच कर उन यादों को अपने लिए कैद कर लेता, इसलिए नेहा की पप्पियाँ, उसकी बेबाक हँसी, उसकी किलकारियाँ सब को अपने दिमाग में बिठा लेना चाहता था| अगले चार महीने ये यादें ही मुझे जिन्दा रखने वाली थीं|

वहीं रसिका से सब ने किनारा कर लिया था, मुझे थोड़ा बुरा लग रहा था! क्यों ये मैं नहीं जानता पर मेरे मन में उसके प्रति सिर्फ सहनुभूति थी और कुछ नहीं| ये सब नहीं होता अगर उसने मेरी मर्जी के खिलाफ वो 'हरकतें' मेरे साथ न की होती! रात का खाना बना और सबसे पहले पुरुष सदस्य एक कतार में बैठ गए, मैं भी सबसे आखिर में नेहा को गोदी में ले कर बैठ गया| मैंने सोच लिया था की आज मैं सब के साथ बैठ कर खाना खाऊँगा, केवल पुरुष सदस्यों के साथ ही नहीं बल्कि बड़की अम्मा और भौजी के साथ भी! भौजी ने सबकोखाना थाली में परोसा और बड़की अम्मा ने सबको थाली ला कर दी| मेरी थाली में जितना भोजन था उसे मैंने धीरे-धीरे नेहा को खिलाना शुरू किया, नेहा आज बहुत धीरे-धीरे खा रही थी, शायद वो भी जानती थी की आज रात वो मेरे हाथ से आखरी बार खा रही है! कुछ समय बाद सभी पुरुष खा कर उठ लिए पर मैं अब भी बैठा था, नेहा खा चुकी थी और जो खाना बच गया था मैंने उसे धीरे-धीरे खा रहा था| मुझे इतने धीमे खाते देख पिताजी बोले;

पिताजी: बेटा सोना नहीं है क्या? या अभी और भूख लगी है?

पिताजी हँसते हुए बोले|

मैं: जी आप सब के साथ तो भोजन कर लिया पर बड़की अम्मा के साथ भोजन करना तो रह गया न, इसलिए आप सोइये मैं अम्मा के साथ भी बैठ के थोड़ा खा लेता हूँ फिर सो जाऊँगा|

पिताजी: ठीक है बेटा, पर ज्यादा देर जागना मत सुबह जाना भी है!

पिताजी ये कह कर चले गए, उनके जाने के बाद भौजी ने सबकी थाली परोस दी तथा अपना और मेरा खाना एक ही थाली में परोस लाईं| रसिका की थाली उन्होंने नेहा के हाथ बड़े घर भिजवा दी थी| माँ और अम्मा हाथ धो कर खाने बैठ गईं, इधर मेरी थाली में जो थोड़ा खाना बचा था उसे भौजी ने अपनी ही थाली में मिला दिया| अम्मा ने मेरी पिताजी से उनके साथ खाना खाने की बात सुन ली थी, इसलिए वो बोलीं;

अम्मा: मुन्ना ई नीक किहो, जो हमरे साथे बैठ के खाना ख़ावत हो!

फिर उन्हें मेरी बनाई हुई गोभी की सब्जी की याद आई;

बड़की अम्मा: अरे बड़का, ऊ गोभी बची है का?! बहुत स्वाद रही!

अम्मा के मुँह से मेरी गोभी की तारीफ सुन माँ हँस पड़ी|

भौजी: जी अम्मा ये रही|

भौजी ने अम्मा को सब्जी परोस दी|

अम्मा: वाह मुन्ना! का स्वाद सब्जी बनायो है!

अब मैंने बड़की अम्मा से माँ की शिकायत की;

मैं: सुन लो माँ! अम्मा आपको पता है माँ को मेरा खाना बनाना बिलकुल भी अच्छा नहीं लगता|

ये सुन बड़की अम्मा हैरान हुईं और बोलीं;

अम्मा: काहे छुटका?!

माँ: दीदी पता नाहीं का-का बनावत है! घने ई डाल, घने ऊ डाल! अब हमका आदत है सादा खाना खाये की और ई पता नाहीं का बनावत है! कभौं शाही पनीर बनावत है, कभौं कढ़ाई पनीर बनावत है! अब तुहिं हमका बतावा कोई सब्जी अगर कढ़ाई मा बानी तो ऊ का कढ़ाई पनीर कहा जावात है? अब कल को हम डाल पतीले मा बनाई तो का ऊ पतीला डाल होइ?!

माँ की बात सुन हम सब जोर से हँस पड़े! अब थी सोने की बारी, गर्मी ज्यादा होने के कारन सभी स्त्रियाँ बड़े घर के आँगन में सोने वालीं थीं| मेरा मन अकेला सोने का बिलकुल नहीं था इसलिए मैंने भी अपनी चारपाई भौजी के बगल में लगा ली| नेहा अभी भी जाग रही थी, तो मैं उसे गोद में लेकर आँगन में टहलने लगा और उसे आज आखरी प्यारी सी कहानी सुनाई| कहानी सुनते-सुनते नेहा सो गई और इधर बड़की अम्मा और माँ अपनी चारपाई पर लेट चुके थे| भौजी भी पानी चारपाई पर लेट चुकी थीं, रसिका अपने कमरे में चुपचाप पड़ी हुई थी| नेहा को सुला कर मैं अभी अपनी चारपाई पर लेट गया पर नींद एक पल को न आई| मैंने उठ कर भौजी की ओर देखा तो वो माथे पर अपनी दाईं कलाई रखे सो चुकी थीं| मेरा दिल बेचैन होने लगा था, कल जाने की बात से अब डर लगने लगा था! जो हालत भौजी की कल थी, वही हालत अब मेरी हो रही थी! मैं चुप-चाप उठा ओर छत पर आ गया, परापेट वॉल से पीठ टिका कर मैं नीचे बैठ गया| भौजी से दूर जाने का डर अब मुझ पर हावी होने लगा था, दिल जोरों से धड़कने लगा था! कैसे रहूँगा उनके ओर नेहा के बिना सोच कर ही मेरी आँखें आँसूँ बहाने को तैयार हो गईं थीं| मुझे खुद को संभालना था, वरना मेरा इस कदर खामोश होना, रोना कल लाखों सवाल खड़े कर देता! जिस रिश्ते को हम अभी तक दोस्ती की आड़ में छुपाये थे, जो आज लगभग सबकी आँखों के सामने आने से बचा था वो पर्दाफाश हो सकता था| मैंने अपने हाथ मोड, टांगें पसारी और सर झुकाये कल की सुबह के लिए खुद को संजोने लगा| करीब 20 मिनट बाद वहाँ भौजी आ गईं....

[color=rgb(147,]जारी रहेगा भाग 8 में...[/color]
 

[color=rgb(243,]उन्नीसवाँ अध्याय: बिछड़न![/color]
[color=rgb(184,]भाग -8[/color]


[color=rgb(65,]अब तक आपने पढ़ा....[/color]

अब थी सोने की बारी, गर्मी ज्यादा होने के कारन सभी स्त्रियाँ बड़े घर के आँगन में सोने वालीं थीं| मेरा मन अकेला सोने का बिलकुल नहीं था इसलिए मैंने भी अपनी चारपाई भौजी के बगल में लगा ली| नेहा अभी भी जाग रही थी, तो मैं उसे गोद में लेकर आँगन में टहलने लगा और उसे आज आखरी प्यारी सी कहानी सुनाई| कहानी सुनते-सुनते नेहा सो गई और इधर बड़की अम्मा और माँ अपनी चारपाई पर लेट चुके थे| भौजी भी पानी चारपाई पर लेट चुकी थीं, रसिका अपने कमरे में चुपचाप पड़ी हुई थी| नेहा को सुला कर मैं अभी अपनी चारपाई पर लेट गया पर नींद एक पल को न आई| मैंने उठ कर भौजी की ओर देखा तो वो माथे पर अपनी दाईं कलाई रखे सो चुकी थीं| मेरा दिल बेचैन होने लगा था, कल जाने की बात से अब डर लगने लगा था! जो हालत भौजी की कल थी, वही हालत अब मेरी हो रही थी! मैं चुप-चाप उठा ओर छत पर आ गया, परापेट वॉल से पीठ टिका कर मैं नीचे बैठ गया| भौजी से दूर जाने का डर अब मुझ पर हावी होने लगा था, दिल जोरों से धड़कने लगा था! कैसे रहूँगा उनके ओर नेहा के बिना सोच कर ही मेरी आँखें आँसूँ बहाने को तैयार हो गईं थीं| मुझे खुद को संभालना था, वरना मेरा इस कदर खामोश होना, रोना कल लाखों सवाल खड़े कर देता! जिस रिश्ते को हम अभी तक दोस्ती की आड़ में छुपाये थे, जो आज लगभग सबकी आँखों के सामने आने से बचा था वो पर्दाफाश हो सकता था| मैंने अपने हाथ मोड, टांगें पसारी और सर झुकाये कल की सुबह के लिए खुद को संजोने लगा| करीब 20 मिनट बाद वहाँ भौजी आ गईं....

[color=rgb(44,]अब आगे...[/color]

भौजी: जानती थी आप यहीं मिलोगे? क्या हुआ नींद नहीं आ रही?

भौजी ने मेरे सामने खड़े हुए पुछा| उनकी आवाज सुन कर मैं सर उठा कर उन्हें देखा, जो आँसूँ आँखों की दहलीज पर थे वो रुक गए क्योंकि अगर वो छलक जाते तो भौजी रो पड़तीं|

मैं: नहीं!

मैंने न में सर हिलाते हुए कहा|

भौजी: मुझे भी नहीं आ रही|

भौजी बड़े प्यार से बोलीं और मेरे नजदीक आ कर झुकीं, उन्होंने मेरी टांगें चौड़ी कीं और उनके बीचों-बीच अपनी पीठ मेरे सीने से टिका कर बैठ गईं| मेरे दोनों हाथ खुदबखुद उनके पेट पर लॉक हो गए, मेरे होंठ ठीक भौजी की गर्दन के पास थे और उन्हें मेरी गर्म सांसें अपनी गर्दन पर महसूस हो रही थी| इतने नजदीक होने के बाद भी दोनों के जिस्म अभी शांत थे, तभी भौजी ने बात शुरू करते हुए कहा;

भौजी: आपने मुझे वो पैसे क्यों दिए थे मैं समझ गई!

ये कहते हुए भौजी के चेहरे पर मुस्कान आ गई|

भौजी: आपने वो अपनी कमाई समझ के मुझे दिए थे न?

मैं: हाँ जी|

मैंने भौजी को कस कर अपने आगोश में लेते हुए कहा|

भौजी: I love you जानू!

भौजी ने अपने दोनों हाथों को मेरे हाथों के ऊपर रख कर कस कर दबाते हुए कहा|

मैं: I love you too जान!

मैंने अपनी नाक भौजी की गर्दन से रगड़ते हुए कहा|

भौजी: जानू, मैंने आज सारा दिन आपके साथ सही नहीं किया न?

भौजी की आवाज गंभीर हो चली थी|

मैं: कोई बात नहीं जान, आपने कोई पाप नहीं किया, कुछ गलत नहीं था और मुझे जरा भी बुरा नहीं लगा| हाँ जब आपने रमेश के नाम से मुझे जलाया तब मैं जल कर राख हो गया!

अपने जलने की बात कह कर मैं मुस्कुराने लगा और भौजी के चेहरे पर मुस्कान आ गई| फिर भौजी ने मेरे दोनों हाथों का लॉक खोला और मेरी तरफ देखते हुए बोलीं;

भौजी: मैं सारा दिन आपको अभी के लिए रोक रही थी!

उनकी बात सुन के मेरी आँखें चौड़ी हो गईं!

भौजी: जितना मन आपका मुझे पाने का था उतना ही मेरा भी था, पर मैं चाहती थी की बस एक बार, एक आखरी बार हम दिल से, सुकून से प्यार करें ना की सब के डर के मारे, छुप-छुप के, जल्दी बाजी में एक दूसरे को नोचते-खरोंचते रहे!

उनकी पूरी बात सुन कर मैं समझ गया की ये सब उन्होंने पहले से ही प्लान कर रखा था, इसीलिए वो मुझे आज दिनभर रोक रहीं थीं|

मैं: जान ...मेरे पास शब्द नहीं हैं...कहने को...आप ने...इतना ...इतना सब ...प्लान किया...मेरे लिए...इतना प्यार करते हो आप मुझसे?!

जानता हूँ आखरी वाला सवाल बेवकूफी भरा था, क्योंकि अगर वो मुझसे प्यार न करतीं तो इतना सब कभी प्लान नहीं करती, पर मैं उस वक़्त भावुक हो गया था और जज्बातों में बहते हुए ये फ़िल्मी सवाल पुछा!

मेरे सवाल का जवाब देने के लिए भौजी ने आगे बढ़ कर मेरे होठों को अपने होठों में कैद कर लिया| जब हमारे होंठ एक दूसरे से मिले तो लगा जैसे बरसों की प्यास बुझ गई हो| हम दोनों का मन जानता था की रात हमारी आज आखरी रात है, ये आखरी कुछ घंटे, ये आखरी कुछ लम्हें, जिन्हें हम दोनों एक साथ बिता रहे हैं! हमारे पास समय कम था तो हम इस पूरे समय का ज्यादा से ज्यादा उपयोग करना चाहता थे! प्रेम की शुरुआत एक दूसरे के होंठों के रसपान से शुरू हुई, हम दोनों बारी-बारी एक दूसरे के होठों के रस निचोड़ने लगे थे! इस रसपान के कारन दोनों के होंठ रस से सराबोर थे, मैंने अपनी जीभ को उनके होठों पर फिराना शुरू गया और उनके होंठ के रस को पी लिया! अब भौजी ने भी अपनी जीभ बहार निकली और हम दोनों की जीभ एक दूसरे को प्यार से छेड़ने लगी, वो चित-परिचित सुगंध दोनों को मोहित करने लगी| मेरा मन बस भौजी के होठों के मधुर स्वाद को चखना चाहता था, इसलिए मैंने उनके होठों को बारी-बारी से चूसना शुरू कर दिया| इधर भौजी ने अपना दायाँ हाथ मेरे बालों में फिराना शूरु कर दिया, दस मिनट तक हम ऐसे ही एक दूसरे के होठों का रसपान करते रहे| जब हम अलग हुए तो दोनों की आँखों में प्यास थी, चाहा थी, परन्तु हमारे पास जगह नहीं थी जहाँ ये प्रेम मिलान चल सके| इस समय अगर हम घर से बाहर जाते तो जाते कहाँ? अगर भौजी ने मुझे इस प्लान के बारे में पहले बताया होता तो मैंने इसका इंतजाम ठीक से किया होता, पर छत पर इस प्रेम मिलाप को जारी रखना खतरे से खाली नहीं था| नीचे सब सो रहे थे और ऊपर छत पर कोई बिस्तर नहीं था, तो अब करें तो करें क्या? मैंने जब भौजी की आँखों में देखा तो मुझे उनके चेहरे पर मुझे पाने की ललक दिखी, मैंने आनन-फानन में इधर उधर देखना शुरू किया|

मैंने देखा की छत पर बड़की अम्मा ने आम सुखाने को रखे थे, वो आम दो चादरों पर बिछे हुए थे| मैंने एक चादर के आम उठा के दूसरी पर रख दिए और भौजी को अपने पास बुलाया| हम दोनों ने मिलकर वो चादर बिछाई और मैंने भौजी को उस चादर पर लेटने का इशारा किया| भौजी के लेटते ही मैं उनकी दोनों टांगों के बीच आ गया और सबसे पहले उनके होठों पर हमला कर उन्हें फिर से चूमने लगा| भौजी ने अपने दोनों हाथों से मेरा चेहरा थाम लिया और वो अपनी गर्दन ऊपर उठा-उठा के मुझे चूम रहीं थीं| कुछ पल बाद मैंने स्वयं ये चुम्बन तोडा और नीचे खिसकता हुआ उनकी योनि के ऊपर पहुँच गया| मैंने झट से उनकी साडी ऊपर कमर तक उठा दी| मेरे सामने भौजी की योनि थी जिसकी मादक महक मेरे नथुने में घुलने लगी थी| एक जूनून सा दिमाग पर चढ़ा और मैंने अपना मुँह खोल कर उनकी योनि पर रख दिया! अपनी जीभ को पूरा बाहर निकल मैंने भौजी की योनि जड़ तक चाटी, तब मुझे याद आया की क्यों न हम '69' की पोजीशन try करते हैं|

मैंने भौजी को आसन के बारे में जल्दी से सब समझाया और वो इसके लिए ख़ुशी-ख़ुशी मान भी गईं| सबसे पहले मैं नीचे लेटा, फिर भौजी मेरे ऊपर आ गईं| भौजी का मुख मेरे लिंग की तरफ था, धीरे-धीरे नीचे को आईं| सबसे पहले मेरे होंठ उनकी योनि से छुए, उधर भौजी ने मेरे लिंग पर झुक कर जैसे ही अपने होठों से मेरे लिंग को छुआ की मेरे शरीर में करंट दौड़ गया| भौजी ने जोश-जोश में एक ही बारी में पूरा लिंग अपने मुक्ख के भीतर भर लिया, उनके मुँह से निकलती गर्म साँसों से मेरे लिंग के सुपाड़े को सुरक लाल कर दिया था| इधर मुझे भी जोश आया और मैंने भौजी की समूची योनि को अपने मुख में भर लिया तथा उसे चूसने लगा| दो मिनट के भीतर ही हम दोनों के जिस्म प्रेम तरंगों से मचलने लगे थे, अगर मैं इसी तरह भौजी की योनि को मुख में भरे चूसता तो वो जल्दी ही स्खलित हो जातीं इसलिए मैंने उनकी योनि को अपने मुख से आजाद किया| अब मैंने उँगलियों की सहायता से उनकी योनि के कपालों को खोला और अपनी जीभ उनकी योनि के भीतर प्रवेश करा दी तथा अपनी गर्दन को आगे पीछे करते हुए अपनी जीभ को लिंग की तरह इस्तेमाल करते हुए उनकी योनि में अंदर-बहार करने लगा! मेरी इस क्रीड़ा से भौजी की योनि में कुलबुलाहट बढ़ गई और अपनी इसी कुलबुलाहट के चलते उन्होंने अपनी जीभ की नोक से मेरे लिंग के सुपाड़े के छेद को कुरेदना शुरू कर दिया|उत्तेजना के मारे मैंने अपनी कमर को भौजी के मुख की ओर झटके देना शुरू कर दिया! मैं चाह रहा था की भौजी मेरे लिंग को फिर से अपने मधुर मुख में भर लें और कस कर निचोड़ें, भौजी मेरा मतलब समझ गईं तथा उन्होंने फिर से मेरे लिंग को अपने मुख में भर लिया! उनकी जीभ मेरे लिंग के इर्द-गिर्द घूमने की कोशिश कर रही थी और इस एहसास से मैं हवा में उड़ने लगा था| अब मैंने भी भौजी की योनि पर अपनी जीभ से प्रगाढ़ प्रहार किया, मैंने उनके भगनासे को अपने मुँह में भर के जीभ की नोक से छेड़ा! मेरी इस क्रिया से भौजी का जिस्म मचलने लगा और उन्होंने अपनी कमर दाएँ-बाएँ हिलाना शुरू कर दिया| भौजी की उत्तेजना कुछ इस कदर बढ़ गई की उन्होंने कचकचा कर अपने सफ़ेद दाँत मेरे लिंग के सुपाड़े पर गड़ा दिए, जिसके परिणाम स्वरुप सबसे पहले तो मेरे शरीर में दर्द और कामोन्माद की मिली-जुली लहर दौड़ गई तत्पश्चात मैं भरभरा कर भौजी के मुख में स्खलित हो गया! भौजी ने मेरे शुक्र (वीर्य) की एक भी बूँद बाहर नहीं बहने दी, सब का सब वो पी गईं! स्खलन के बाद मैं कुछ सेकंड के लिए शिथिल रहा, फिरलगा की मैं तो किनारे लग गया पर भौजी तो अब भी भवसागर में फँसी हैं| इसलिए मैंने भौजी की योनि में अपनी ऊँगली और जीभ दोनों से दुहरा वार किया, भौजी इस दुहरे वार को सह नहीं पाईं और अंततः वो भी स्खलित हो गईं| उनका सारा रति रस बहता हुआ मेरे मुँह में आ गया और मैं वो नमकीन काम रस गटक गया! अगले पाँच मिनट तक हम दोनों ऐसे ही पड़े रहे, हम दोनों आनंद के किनारे पर पहुँच चुके थे पर मन अब भी प्यासा था|

भौजी उठीं मेरे साथ लिपट के लेट गईं, कुछ देर बाद जब मन में फिर से कामोन्माद की अग्नि धधकने लगी तो हमने बेतहाशा एक दूसरे के होठों का फिर से रसपान शुरू कर दिया| कुछ देर पहले दोनों ही एक दूसरे के मुख में स्खलित हुए थे, तो दोनों ही के मुख से हमदोनों के कामरस की महक आ रही थी जो हमें और उत्तेजित किये जा रही थी! अब मैं भौजी के ऊपर आ गया और उनसे उनका ब्लाउज उतारने का आग्रह किया तो भौजी ने मुस्कुराते हुए अपना ब्लाउज उतार दिया| मैं उन्हें साडी निकालने को कहता उससे पहले ही भौजी ने अपनी साडी खुद ही निकाल दी| अब बचा था पेटीकोट, तो उसका नाड़ा मैंने अपने दाँतों से खींच कर खोल दिया और उसे निकाल के अलग रख दिया| आगे मैंने बिना भौजी के कुछ कहे अपने कपडे स्वयं उतार दिए और हम दोनों अब पूरी तरह नग्न अवस्था में थे तथा एक दूसरे के जिस्म से लिपटे हुए एक दूसरे के अंगों से खेल रहे थे| कुछ क्षण बाद जब हम दोनों की नजरें मिली तो मैंने भौजी की आँखों में झाँका और एक तड़प महसूस की, कुछ वैसी ही तड़प मेरी आँखों में भी थी जिसे भौजी समझ गईं थीं;

भौजी: आप पूछ क्यों रहे हो?

भौजी ने मुस्कुराते हुए कहा, उन्होंने मेरी तड़प को झिझक समझा जबकि मैं थोड़ा सा घबराया हुआ था|

मैं: जान, नीचे सब सोये हैं और यहाँ हम......इस तरह......अगर कोई आ गया तो?!

मैंने थोड़ा डरते हुए कहा|

भौजी: जानू, मुझे अपनी किस्मत पर पूरा बहोरसा है! वैसे भी इतनी रात गए यहाँ कोई नहीं आएगा!

भौजी की बात में गजब का आत्मविश्वास था, ऐसा आत्मविश्वास जिसके सामने मेरा ये डर खत्म हो गया! मैंने अपना सिकुड़ा हुआ लिंग, जो की अब थोड़ा-थोड़ा सख्त होने लगा था उसे भौजी की योनि के भीतर प्रवेश करा दिया! चूँकि मेरा लिंग उस समय अधिक सख्त नहीं था तो भौजी को कुछ महसूस नहीं हुआ, परन्तु जैसे ही उसे भौजी की योनि की गर्मी मिली वो अकड़ने लगा जिससे भौजी के चेहरे पर दर्द भरी लकीरें उभर आईं! भौजी की योनि जो अभी स्खलित होने से सिकुड़ चुकी थी, उसमें जब मेरा लिंग अपना अकार लेने लगा तो भौजी की योनि में तनाव पैदा होने लगा, जिस कारन उनके मुख से सीत्कारें निकलने लगीं; "आह! ससस...ममम...!" भौजी की सीत्कारें इस सन्नाटे में सबको उठा देतीं इसलिए मैंने उनके होठों को अपने होठों से ढक दिया और उनकी दर्द भरी सीत्कारें मेरे मुँह में दफन हो गईं| जब भौजी की योनि मेरे अकड़े हुए लिंग के अनुसार रूप ले चुकी थी, तब मैंने धीरे-धीरे अपना लिंग अंदर-बाहर करना शुरू किया| शुरू-शुरू में मैं आधा ही लिंग उनकी योनि में प्रवेश करा रहा था, पर कुछ ही पलों में मैं कामातुर हो उठा और अपना पूरा लिंग जड़ तक उनकी योनि में उतार ने लगा| मेरा लिंग भौजी की योनि में समा ने लगा था, वहीं भौजी की योनि मेरे लिंग को गपा-गप निगले जा रही थी| मेरी उत्तेजना इस कदर बढ़ गई की मैंने अपना लिंग ज्यादा जोर से भौजी की योनि में प्रवेश करा दिया, मेरा लिंग सरसराता हुआ भौजी की बच्चेदानी से जा टकराया! जैसे ही मेरा लिंग भौजी की बच्चेदानी से टकराया, दर्द की तीव्र लहर के कारन भौजी ऊपर की ओर उचक गईं| चूँकि भौजी के होंठ मेरे होंठों की कैद में थे इसलिए भौजी की दर्द भरी कराह उनके गले में दफन रह गई! मैंने अपनी उत्तेजना को थोड़ा संभाला और लिंग ज्यादा अंदर नहीं जाने दिया, कुछ सेकंड बाद जब मैंने भौजी के होठों को आजाद किया तो उनके मुख से सिसकारी निकली; "स्स्स्स....जा...नू....स्स्स्स्स.तेज...!!" भौजी की आवाज ने मेरे मन रुपी इंजन के लिए पेट्रोल का काम किया और मैंने अपनी रफ़्तार तेज कर दी! अत्यधिक उत्तेजना होने के कारन भौजी के साथ-साथ मेरी भी हालत ख़राब होने लगी, भौजी की योनि मेरे लिंग को निचोड़ने लगी थी और मेरा लिंग भौजी की योनि में आग लगाए हुए था! मेरी रफ़्तार बढ़ने से भौजी की सिसकारियाँ और तेज होने लगी थीं; "स्स्स..अह्ह्हह्ह...म्म्म्म्म...जानू...ऊऊऊ ..!!" उनकी सिसकारी सुन मैं थोड़ा डर गया की कहीं कोई ऊपर न आ जाए; "जान प्लीज ज्यादा जोर से मत चिल्लाओ...वरना कोई ऊपर आ जायेगा!" मैंने भौजी को चेताया| मेरी बात सुन भौजी ने हाँ में सर हिलाया, लेकिन उनकी सिसकारियों में कोई कमी नहीं आई, उनके मुँह से सिसकारियाँ रुकने का नाम ही नहीं ले रही थी| भौजी के लिए खुद पर काबू रखना मुश्किल था इसलिए उन्होंने एक उपाय निकाला, उन्होंने अपनी टांगें उठा के मेरे कमर पर लॉक कर ली और मेरे चेहरे को अपने दोनों हाथों से थाम के मेरे होठों को चूसने लगीं! ऊपर भौजी मेरे होठों को चूस रहीं थीं और नीचे में अपनी ताक़त दिखाते हुए भौजी की योनि को कूटे जा रहा था| "जानू.......स्स्स्स्स....आपके बिना....ये 4 महीने....मैं अधूरी ....रहूँगी....आज...की रात...मुझे पूरा कर दो.... आज हमारी आखरी रात है...साथ.....स्स्स्स्स अम्म्म्म्म्म ... !" भौजी कामोत्तेजना से भरी थीं और उनके मुँह से शब्द ठीक से नहीं निकल रहे थे! इन्हीं शब्दों के साथ भौजी दुबारा स्खलित हो गईं और उनके रस की गर्म फुवार जब मेरे लिंग पर पड़ी तो मैं भी खुद को रोक नहीं पाया तथा भरभरा कर स्खलित हो गया| हाँफते हुए मैं भौजी के ऊपर लुढ़क गया, उधर भौजी की साँसें भी तेज हो चली थीं|

भौजी के गोर-गोर स्तन मेरी छाती में धंसे हुए थे, उनके ठंडे जिस्म का एहसास मेरे गर्म जिस्म पर जादू चलाने लगा था| वहीं नीचे भौजी की योनि में जो हम दोनों का रस भरा था वो अब बह के बाहर आना चाहता था, परन्तु भौजी उस कामरस की एक बूँद भी बाहर नहीं गिराना चाहती थीं| मैं भौजी के ऊपर से उतर गया और उनकी बगल में पीठ के बल लेट गया, तभी भौजी ने अपनी टांगें मोड़कर ऊपर की ओर उठा लीं! उनका बचपना देख मैंने उनसे पुछा;

मैं: जान ये क्या कर रहे हो?

भौजी: आपका वो (रस).... अपने अंदर समा रही थी!

मैं उनकी बचकानी बात सुन के खी..खी..कर के हँस पड़ा!

भौजी: हँस क्या रहे हो...सच कह रही हूँ!

भौजी ने मुझे ऐसे डाँटा जैसे की मैंने कोई बचकानी बात की हो!

मैं: अच्छा बाबा!

मैंने अपनी हँसी रोकते हुए कहा|

भौजी कुछ नहीं बोलीं पर शर्म से मुस्कुराने लगीं| मैं समझ गया की वो क्या कर रहीं थीं, वो हम दोनों के प्रेमरस को अपनी बच्चेदानी में भर रहीं थीं! करीब 2 मिनट बाद उन्होंने अपनी टांगें नीचे कीं और लेटे-लेटे अपनी साडी उठाने लगीं| उन्हें साडी उठाते हुए देख मुझे लगा की भौजी उठ कर जाने वाली हैं, इसलिए मैंने व्यकुल होते हुए कहा;

मैं: आप अभी जा रहे हो? प्लीज! मत जाओ न, मेरे पास बैठो न|

भौजी: किसने कहा मैं जा रही हूँ? मैंने साडी में कुछ गाँठ लगा के रखा है उसे निकाल रही हूँ|

भौजी ने मेरी ओर मुस्कुराते हुए देखते हुए कहा|

मैं: क्या खोल रहे हो?

मैंने बेसब्र होते हुए पुछा|

भौजी ने अपनी साडी के पल्लू की गाँठ खोल के उसमें से स्ट्रॉबेरी वाली लोलीपोप निकाली! लॉलीपॉप देखते ही मेरी आँखें चमकने लगीं, क्योंकि इसी बहाने भौजी अब मेरे पास देर तक बैठेंगी|

मैं: मेरी जान सब प्लान कर के आई थी?!

मैंने मुस्कुराते हुए पुछा|

भौजी: जानू आप से ही सीखा है! आज रात आपकी farewell पार्टी वाली रात है तो इसे आपके और मेरे लिए special तो होना ही था|

भौजी ने बड़े गर्व से कहा और लोलीपोप अपने मुँह में लेके चूसने लगी| उन्होंने मेरी तरफ करवट ली और अपनी दायीं टाँग मोड़ के मेरे लिंग के नजदीक रख दी तथा अपने घुटने से मेरे लिंग को सहलाने लगीं| कुछ सेकंड लोलीपोप चूसने के बाद उन्होंने अपनी झूठी लॉलीपॉप मुझे दी और मैं भौजी के मुख के रस से लिप्त उस लॉलीपॉप को चूसने लगा| भौजी ने अपनी दाएँ हाथ की उँगलियाँ मेरे सिकुड़ चुके लिंग पर फिराने शुरू कर दी, लेकिन उन्हीं संदेह था की कहीं मैं बहुत थका हुआ तो नहीं;

भौजी: You must be exhausted! (आप थके हुए होंगे!)

भौजी की ये बात मेरे लिए प्रश्न था|

मैं: Are you? (क्या आप थके हो?)

मैंने उनकी बात को प्रश्न बना दिया|

भौजी: नहीं!

भौजी ने शर्माते हुए कहा|

मैं: तो मैं कैसे थका हो सकता हूँ?! फिर ये तो हमारी आखरी रात है, क्योंकि इसके बाद तो हम कुछ महीने बाद ही मिलेंगे और तब तो मैं आपको छू भी नहीं पाउँगा?

जहाँ मेरे न थके होने की बात से भौजी के चेहरे पर पहले मुस्कान आई थी, वहीं हमारे पुनः मिलने पर उन्हें न छूने की बात सुन कर भौजी कुछ चिंतित नजर आईं|

भौजी: वो क्यों?

भौजी ने थोड़ा परेशान होते हुए पुछा|

मैं: मैंने सुना है की Pregnancy के दिनों में सम्भोग नहीं करते!

ये सुन कर भौजी के दिल को चैन मिला|

भौजी: हाय!!! आपको मेरी कितनी फ़िक्र है, पर एक चीज तो कर ही सकते हैं?!

भौजी ने आँख मारते हुए बात कही, मैं उनका मतलब समझ गया था| उनका इशारा anal sex की तरफ था|

मैं: कभी नहीं! मुझे वो वहशी पना लगता है!

मैंने चिढ़ते हुए कहा|

मैं: Anal तो जानवर करते हैं, मैं आपके जिस्म का भूखा नहीं हूँ क्योंकि मैं आपसे प्यार करता हूँ! सेक्स या नो सेक्स, मेरे लिए आपको अपनी बाहों में भरना ही काफी है!

मैंने बड़े गर्व से कहा, मेरी बात सुन कर भौजी को बहुत ख़ुशी हुई और उन्होंने मेरी नाक पर एक छोटा सा kiss किया|

भौजी; जानती हूँ जानू की आप मुझसे सच्चा प्यार करते हो, अगर आप जिस्म के ही भूखे होते तो आज मेरे आपको रोकने पर या तो आप मुझसे रूठ जाते या फिर जबरदस्ती करते! मैंने तो ये बात सिर्फ आपका मन जानने को कही थी| अगर आप उसकी (anal sex) की फरमाइश करते तो मैं कभी मना नहीं करती!

भौजी ने मुस्कुराते हुए कहा, ये था उनका मेरे प्रति समर्पण| मेरी हर ख़ुशी के लिए वो कुछ भी करने को तैयार हो जाती थीं|

मैं: आपका मन करता है Anal करने का?

मैंने सीधा सवाल पुछा|

भौजी: नहीं! मुझे तो नाम से ही चिढ़ है, पर आपकी ख़ुशी के लिए कुछ भी!

भौजी ने 'मेरी ख़ुशी' की बात को लजाते हुए कहा|

मैं: Thanks but No Thanks!

मैंने उनके इस प्रस्ताव को साफ़ मना कर अपनी मंशा जाहिर कर दी| मैंने काफी बार anal videos देखि थीं, पर जो असहनीय दर्द औरत सहती थी उसे देख कर मेरा मन कभी anal करने को नहीं हुआ!

खैर जो लॉलीपॉप मैं चूस रहा था वो खत्म हो चुकी थी, जब मैंने उसकी डंडी अपने मुँह से निकाली तो वो खत्म हो चुकी थी|

मैं: Oops मैं सारी लॉलीपॉप चूस गया!

मैंने अपने जीभ दाँतों तले दबाते हुए कहा|

भौजी: कोई बात नहीं जानू! अभी तो एक आम वाली और एक ऑरेंज वाली बची है|

भौजी ने मुस्कुराते हुए कहा|

भौजी ने आम वाली लॉलीपॉप खोली और पीठ के बल लेट कर लॉलीपॉप चूसने लगीं, इधर मेरी नजर उनके स्तनों पर पड़ी जो मुझे देखते हुए अपनी नाराजगी जाता रहे थे की आखिर अबतक मैंने उन्हें क्यों नहीं छुआ?! मैंने भौजी की तरफ करवट ली और उनके बाएँ स्तन को अपने मुँह में ले जीभ की नोक से उनके निप्पल को कुरेदने लगा| भौजी ने तुरंत अपने दायें हाथ से मेरा सर अपने दाएँ स्तन पर दबा दिया| मैं जितना हो सकता था उतना बड़ा मुँह खोला और उनके बाएँ स्तन को अपने मुँह में भरना चाहा परन्तु असफल राहा, अपनी असफलता की झुंझलाहट के कारन मैंने अपने दाँत उनके गोर-गोर स्तन पर गड़ा दिए! भौजी को एक मीठा सा दर्द महसूस हुआ जिसकी आह उन्होंने बाहर नहीं निकलने दी! इधर मैं स्तन को तो मुँह में न भर सका, तो मैंने भौजी के बाएँ चुचुक को चूसना शरू कर दिया| पाँच मिनट तक मैंने भौजी का स्तनपान किया, अब मुझे भौजी के दाएँ स्तन का पान करना था लेकिन भौजी सीधी लेटी थीं तो मुझे उनके दाएँ स्तन का पान करने हेतु उनकी दोनों टांगों के बीच आना पड़ा| मैं उठ कर भौजी के ऊपर आ गया, भौजी ने तुरंत अपनी दोनों टांगें खोल दीं और मैं अपना आसन बना कर भौजी की टांगों के बीच आ गया| अब मैंने भौजी के दाएँ चुचुक को अपनी जीभ से छेड़ा तो भौजी ने "स्स्स..." की सीटी बजा दी! मैंने आजतक कभी गौर नहीं किया, पर भौजी का दायाँ चुचुक अत्यधिक संवेदनशील था| जब भी मैं उसे चूसता या उसको मुख में भर कर चुभलाते तो भौजी के जिस्म में करंट दौड़ जाता था! खैर मैं कुछ ज्यादा जोश में था और उनके दाएँ स्तन को तेज सुड़का मार कर चूस रहा था, मानो जैसे उसमें से सच में दूध निकल आएगा| "प्लीज...स्स्स्स्स!" कहते हुए भौजी ने मेरे सर को अपनी छाती पर दबा दिया! मैंने एकदम से अपने दाँत उनके दाएँ स्तन पर गड़ा दिए, पिछलीबार के मुक़ाबले इस बार मैंने कुछ ज्यादा ही जोर से भौजी के स्तनों को काटा था! इतना जोर से की भौजी चिहुँक उठी; "आआआआहहहह...ममम...!" भौजी की सीत्कार सुन मैं रुक गया तथा उनकी आँखों में देखने लगा, भौजी की आँखें तो पहले से ही मेरे ऊपर गड़ी थीं और जब मेरे रुकने के कारन हमारी नजरें मिलीं तो पहले उन्होंने अपने स्तनों पर पड़े मेरे दाँतों के निशानों की ओर इशारा किया, फिर वो लरजते हुए बोलीं;

भौजी: ये निशान मेरे दिल पे पड़ चुके हैं!

ये सुन मैं भौजी की आँखों में देखते हुए मुस्कुरा दिया| भौजी के लरजते हुए शब्दों ने मेरे लिंग में जान फूँक दी और मेरा लिंग तनतना गया, लेकिन मेरे मन ने मुझे ये कहते हुए रोक दिया की; 'तीसरी बार?! ये ठीक नहीं!' दिल प्यासा था और मन इसकी गवाही नहीं दे रहा था, यही कश्मकश मेरे चेहरे पर दिखने लगी थी! मेरे चेहरे पर ये कश्मकश देख भौजी गंभीर हो गईं और मेरे चेहरे को अपने हाथ में ले सवाल पुछा;

भौजी: क्या हुआ जानू?

मैं: ये ठीक नहीं है!

इतना कह मैं उनके उपर से हट के उनकी बगल में पीठ के बल लेट गया| मेरी आवाज भौजी को विचलित कर गई थी, वो आस किये बैठीं थीं की मैं तीसरी बार उनसे सम्भोग करूँगा पर मेरे अचानक रुक जाने से वो दुखी सी हो गईं| वो तुरंत मेरी ओर करवट ले कर लेट गईं और बोलीं;

भौजी: क्यों क्या हुआ?

मैं: मैं आपसे प्यार करता हूँ...दो बार तक करना ठीक था...परन्तु तीसरी बार...ये...ऐसा लगता है जैसे मेरे अंदर आपके जिस्म की भूख है....पर मैं आपसे प्यार करता हूँ...सिर्फ आपके जिस्म से नहीं!

ये मेरी अंतरात्मा थी जो हमारे इस प्रेममिलन को वासना का रूप दे रही थी और मेरा मन वासना शब्द को सुनना कभी गंवारा नहीं करना चाहता था| मैंने अपने वाक्य में कहीं भी सेक्स, सम्भोग शब्द का प्रयोग नहीं किया था, कारन था एक शर्म जो मुझे भौजी से और उन्हें मेरे से होती थी| लेकिन मेरी प्यारी पत्नी समझ गई और मुस्कुराते हुए बोलीं;

भौजी: समझी...आप की सोच गलत नहीं है, पर जैसा आपका दिमाग कह रहा है वैसे नहीं है! ये कोई शरीर की भूख नहीं है, ये आपका प्यार है! भूख तब होती जब मैं 'इसके' (सेक्स के) लिए राजी नहीं होती, आप मुझसे जबरदस्ती करते, या मुझे जूठ बोल के मुझे emotional blackmail कर के करते या ये कहूँ की आपका शरीर अंदर से आपको ये (सेक्स) करने को विवश करता| पर आप खुद देख लो, आप ने कैसे खुद को रोक लिया! अगर ये आपकी शारीरिक भूख होती तो आप खुद को कभी रोक ना पाते और तो और आप रसिका के साथ कब का वो सब (सेक्स) कर चुके होते! लेकिन ये आपका मेरे प्रति प्यार था, तभी तो माधुरी ने जब आपका नाजायज फायदा उठाया तब आपको ग्लानि हुई! रसिका के छूने भर से आपको अपवित्र जैसा लगा और आधी रात को नहा बैठे और क्या हालत हो गई थी आपकी याद है न? इसलिए आप कुछ भी गलत नहीं कर रहे, तीन बार क्या अगर सारी रात भी आप करना चाहो तो ना तो ये अनैतिक है ना ही मैं आपको मना करुँगी| जबतक होगा आपका साथ देती रहूँगी! अब चलो finish what you started? Or do you expect me to start?! (खत्म करो जो आपने शुरू किया था, या फिर मैं शुरू करूँ!)

भौजी ने अंग्रेजी में मुझे आदेश देते हुए कहा| भौजी की कही बात मेरे दिमाग में गूँजने लगी थी, उन्होंने जो कहा था वो सही कहा था इसलिए मैंने हाँ में सर हिला कर हमारे प्रेम मिलाप में आगे बढ़ने का सहस दिखाया|

भौजी के जिस्म में प्रेम अगन प्रगाढ़ रूप लेने लगी थी, इससे पहले की मैं उनके ऊपर आता, वो ही मेरे ऊपर आ गईं| उन्होंने अपनी दोनों टाँगें मेरी कमर के इर्द-गिर्द की और अपनी पनियाई योनि को मेरे लिंग पर थोड़ा रगड़ा, भौजी की योनि का रस मेरे लिंग पर लग गया और वो फिर से चमकने लगा| अब भौजी ने अपनी योनि मेरे लिंग पर दबानी शुरू की, मेरा लिंग सरसराता हुआ उनकी योनि में उतर गया| भौजी की योनि अंदर से पूरी गीली थी, भौजी बहुत कामुक हो गईं थीं और अपनी इसी कामुकता के कारन वो कुछ ज्यादा ही उत्तेजित हो गईं! भौजी पहले तो धीरे-धीरे मेरे लिंग पर उठक-बैठक कर रहीं थीं, पर जब उनकी कामुकता बढ़ी तो उन्होंने अपनी रफ़्तार तेज कर दी| योनि भीतर से गीली होने के कारन मेरा लिंग फिसल रहा था, तभी वो एकदम से अंदर गहराई तक फिसला और जा कर सीधा भौजी की बच्चेदानी से टकराया! मादक दर्द की लहार भौजी के जिस्म में दौड़ गई पर उन्होंने अपनी गति नहीं रोकी, वो अब भी लयबद्ध तरीक से मेरे लिंग पर ऊपर-नीचे हो रहीं थीं, उनकी तेज गति के कारन उनके गोरे स्तन भी तेजी से ऊपर-नीचे उछलने लगे थे| ये कामुक दृश्य उत्तेजना से भरा था, मन कर रहा था की उनके स्तनों को अपनी मुट्ठी में दबोच लूँ पर मेरा ऐसा करने से भौजी की गति रुक जाती और ये आनंदमयी गाडी रुक जाती! उधर नीचे मेरा लिंग अब बार-बार भौजी के गर्भाशय से टकरा रहा था और भौजी को इसमें बहुत आनंद आ रहा था, शायद वो दर्द की लहर भौजी को अब मीठी लगने लगी थी| मैंने भी भौजी का पूरा साथ देना शुरू कर दिया और नीचे से अपनी कमर उचका कर अपना लिंग उनकी योनि में और गहराई तक, उनकी ताल से ताल मिलाते हुए साथ देने लगा| मेरे उनके साथ ताल से ताल मिलाने के कारन भौजी के मुँह से मादक सिसकारियाँ निकलने लगीं; "स्स्स्स्स...म्मा ..माआ म्म्म्म्म्म...आह...म्म्म्म्म्म...स्स्स्स्स...आह...स्स्स्स...म्म्म्म...हम्म्म्म...स्स्स्स....हाय्य्य !!" गनीमत थी की भौजी की आवाज अधिक तेज नहीं थी वरना कोई न कोई अवश्य आ जाता!

भौजी: हाँ....स्स्स्सस्स्स्स......इसी तरह.....आअह.....लगता है आज तो आप मेरी उसमें (बच्चेदानी) के....आहहहह....ममम...हम्म्म्म...स्स्स्स......अंदर घुसा दोगे...स्स्स्स्स्स!!!

मैं नहीं जानता की आज भौजी ने 'घुसा दोगे' जैसे शब्द इतनी आसानी से कैसे बोल दिए! शायद मादकता के कारन उनके मुँह से ये शब्द निकले थे! पर मैं ठहरा जड़बुद्धि, मुझे लगा की भौजी शिकायत कर रहीं हैं इसलिए डर के मारे मैंने अपनी कमर उचकाना बंद कर दिया|

मैं: Sorry जान ...आह...मुझे नहीं पता था...मुझे क्या हो रहा है?!

मेरे ग्लानि भरे शब्द सुन भौजी के चेहरे पर एक मादक मुस्कान आ गई, उन्होंने अपने दोनों हाथ मेरी छाती पर रख अपना वजन मुझ पर डाला और मुझे आआँख मारते हुए बोलीं;

भौजी: प्लीज...रुकना मत ...स्स्स्सस्स्स्स....अह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह ...ऐसे ही..... मेरे साथ....देते...रहो...आह्ह...हहनननममम!

भौजी का आँख मारना मेरे लिए इशारा था की उन्हें ज्यादा दर्द नहीं हो रहा और उनका यूँ कामुक अंदाज में बात करना आज मुझ में अजीब सा जोश पैदा कर रहा था| काश यही कामुक अंदाज मैं पहले देख पाया होता तो और मज़ा आता, खैर देर से ही सही भौजी का ये कामुक अंदाज देखने को तो मिला|

अब मैंने भौजी की कमर अपने दोनों हाथों से थामी और नीचे से झटका दे कर उन्हें अपनी बगल में लिटाया| मेरे इस तरह दम दिखाने से भौजी की आँखें नशीली हो गईं और उनके चेहरे पर मुस्कान आ गई| मैंने भौजी की दोनों टांगें अपने कंधे पे रखीं और अपने लिंग को उनकी योनि में पुनः प्रवेश करा दिया| मेरी कामवासना हिलोरे मारने लगी थी और मैं कामातुर हो चला था, मैंने तेजी से अपने लिंग को भौजी की योनि में अंदर-बाहर करना शुरू किया| नतीजन भौजी अपने चरम पर पहुँच गईं, वो किसी भी समय स्खलित होने वालीं थीं| भौजी की आँखें पीछे की ओर घूम गईं, उनकी छातियाँ तेजी से ऊपर-नीचे होने लगीं! मैं अपनी रफ़्तार बनाये हुआ था की तभी भौजी की योनि अचानक से कसने लगी, भौजी थोड़ा ऊपर को उठीं और अपने दोनों हाथों को मेरी गर्दन के पीछे लॉक कर मुझे अपने ऊपर खींच लिया| भौजी की टाँगें बीच में थीं सो मैं ज्यादा आगे नहीं जा पा रहा था, इसलिए मैंने भौजी की दोनों टाँगें अपने कंधे पर से उतार दी| मेरी नंगी गर्म छाती भौजी के गोरे ठंडे स्तनों से जा चिपकी और ठीक उसी समय भौजी चरम पर पहुँच गईं!

तैश में आकर उन्होंने अपने दोनों हाथों की सारी उँगलियाँ मेरी पीठ में धँसा दी, इस्समय भौजी का जिस्म उनका साथ नहीं दे रहा था, उनके जिस्म में उठ रही मादक तरंगें भौजी के दिमाग पर हावी हो चुकी थीं! भौजी उत्तेजना से इस कदर भरी थीं की उन्होंने अपने नाखूनों से मेरी पीठ कुरेद दी मानो कोई बिल्ली अपने पंजों से गद्दे कुरेद देती हो! "आह!" मेरे मुँह से सीत्कार निकली क्योंकि भौजी के कुरेदने से मेरी पीठ पर हल्का सा जख्म यानी उनके नाखूनों के गहरे निशान पड़ गए थे| अगले दो मिनट तक वो बिना रुके सीसियाते हुए स्खलित होती रहीं; "स्स्स्स्स...अह्ह्हह्ह्ह्ह....जानू...उउउउउउ म्म्म्म्म्म!!" चूँकि मैं अपना पूरा वजन डाले भौजी के ऊपर पड़ा हुआ अब भी अपनी कमर हिलाये जा रहा था तो भौजी की योनि जो उनके रस से भरी थी वो फच-फच की आवाजें निकालने लगी थी| मैं अभी तक अपने चरम के नजदीक बही नहीं पहुँचा था, ऊपर से ये फच-फच की आवाज मुझे डरा रही थी की कहीं कोई ये आवाज न सुन ले! इसलिए मैं भौजी के ऊपर से हटा पर अपना लिंग उनकी योनि से नहीं हटाया, मैंने उनकी बाईं टाँग को सीधा हवा में खड़ा कर दिया और उनकी बाईं जाँघ को पकड़ दनादन अपने लिंग को भौजी की योनि में घिसने लगा! घर्षण न होने के कारन मेरा लिंग पूरा अंदर जा रहा था, लेकिन अब मुझ में और शक्ति नहीं बची थी की मैं ये क्रिया देर तक संभाल पाऊँ! मैं अपनी चरम सीमा लाँघ चूका था, आखरी बार जैसे ही मेरा लिंग भौजी की योनि में पहुँचा उन्होंने अपनी योनि को कसते हुए मेरे लिंग का सुपाड़ा पकड़ लिया! बस फिर क्या था मेरे लिंग ने अपना लावा रुपी वीर्य उनकी योनि में उड़ेलना शुरू कर दिया, भौजी की योनि ने अच्छे से मेरा वीर्य पीया! अब मुझे में जरा भी जान नहीं थी तो मैं भौजी के ऊपर ही लुढ़क गया!

मैं पूरी तरह पसीने से तरबतर था, ऊपर से भौजी के नाखूनों से जो पीठ छिल गई थी तो उनमें पसीने की बूंदें पड़ते ही जलन होने लगी थी| दोनों ही तक कर चूर हो चुके थे, दोनों ही हाँफ रहे थे और नीचे जाके अपने बिस्तर में सोना हमने दोनों के लिए आफत थी!

भौजी: जानू...आज...तो.....आपने मुझे....पूर्ण कर दिया!

ये कह कर भौजी शर्माने लगीं| मेरे पास बोलने के लिए कोई शब्द नहीं थे, मैं तो चाह रहा था की ये समा बस थम जाए और मैं उनसे लिपट के सो जाऊँ! लेकिन भौजी का दिल में और प्यार उमड़ने लगा था, उन्होंने मेरे सर को चूमा और मेरे सर को अपने नंगे स्तनों पर दबाने लगीं|

मैं: जान...मुझ में तो कपडे पहनने की भी ताक़त नहीं बची!

मैंने भौजी को अपने शारीरिक हालातों से रूबरू कराया!

भौजी: जानू ये बताओ की टाइम क्या हुआ है?

मैंने घडी देखि और उन्हें टाइम बताया;

मैं: एक बज रहा है!

भौजी: पिछले तीन घंटों से आप मुझे प्यार कर रहे हो तो थक तो जाओगे ही ना! चलो आप लेटो मैं दूध बनाके ले आती हूँ!

ये कह कर भौजी उठने को हुईं तो मैंने उन्हीं उठने नहीं दिया|

मैं: कोई जर्रूरत नहीं, आप भी तो थके हुए हो! चुप-चाप मेरे पास पड़े रहो!

मैंने भौजी को आदेश देते हुए कहा|

भौजी: पर जानू आप थके हुए हो, कहीं तबियत खराब होगी तो फिर सुबह दिल्ली कैसे जाओगे?

भौजी ने चिंता जताते हुए कहा|

मैं: बीमार हुआ तो अच्छा है, कल जाना बच जायेगा और कल का दिन भी मैं आपके साथ ऐसे ही गुजारूँगा!

मैंने भौजी के होंठों को चूमते हुए कहा|

भौजी: सच?

भौजी ने आँखें बड़ी करते हुए सवाल पुछा|

मैं: मुच!

मैंने मुस्कुरा कर कहा, पर भौजी जानती थीं की ये असम्भव है| उन्होंने लेटे-लेटे ही अपने और मेरे कपडे खींचे|

भौजी: अच्छा पहले कपडे पहन लो!

भौजी ने मुझे मेरी टी-शर्ट और पजामा गया, थके हुए थे फिर भी हमने जैसे-तैसे कपडे पहने क्योंकि अगर कोई ऊपर आता और ऐसे ही हमें नंगा देखता तो काण्ड हो जाता! कपडे पहन के मैं छत की पेरापट वॉल से पीठ लगा कर बैठ गया, मेरे से ज्यादा खस्ता हालत भौजी की थी इसलिए वो मेरी गोद में सर रख कर लेट गईं| मैंने भौजी के बालों में हाथ फेरना शुरू किया और कुछ ही पल में उनकी आँख लग गई! कुछ देर तक मैं ऐसे ही भौजी को टकटकी बाँधे देखता रहा, उनके चेहरे पर संतुष्टि पूर्ण मुस्कान थी जिसे अपनी आँखों में बसा कर मैं बैठे-बैठे ही सो गया|

[color=rgb(85,]जारी रहेगा भाग 9 में... [/color]
 

[color=rgb(243,]उन्नीसवाँ अध्याय: बिछड़न![/color]
[color=rgb(184,]भाग -9[/color]


[color=rgb(65,]अब तक आपने पढ़ा....[/color]

हमने जैसे-तैसे कपडे पहने क्योंकि अगर कोई ऊपर आता और ऐसे ही हमें नंगा देखता तो काण्ड हो जाता! कपडे पहन के मैं छत की पेरापट वॉल से पीठ लगा कर बैठ गया, मेरे से ज्यादा खस्ता हालत भौजी की थी इसलिए वो मेरी गोद में सर रख कर लेट गईं| मैंने भौजी के बालों में हाथ फेरना शुरू किया और कुछ ही पल में उनकी आँख लग गई! कुछ देर तक मैं ऐसे ही भौजी को टकटकी बाँधे देखता रहा, उनके चेहरे पर संतुष्टि पूर्ण मुस्कान थी जिसे अपनी आँखों में बसा कर मैं बैठे-बैठे ही सो गया|

[color=rgb(44,]अब आगे...[/color]

सुबह की पहली किरण जैसे ही मेरे मुख पर पड़ी तो मेरी आँख एकदम से खुली| आँखें खुलते ही मैंने सबसे पहले अपनी गोद की तरफ देखा तो पाया की भौजी वहाँ नहीं हैं, पर मेरे ऊपर एक हलकी सी चादर पड़ी है जो हो न हो भौजी ने ही डाली होगी|! दिमाग ने एकदम से मुझे कुछ देर में दिल्ली वापस जाने वाली बात याद दिलाई और मेरा मन मायूस हो गया! लोग सुबह उठते हैं, भगवान को नमस्कार करते हैं, माँ-बाप के पाँव छू कर आशीर्वाद लेटे हैं, पर वो सुबह मेरे लिए ऐसी थी मानो मेरी जिंदगी की शाम ढल गई हो| मायूसियत दर्द का रूप ले चुकी थी और मन अंदर ही अंदर रोने लगा था, दिमाग ने सुबह को कोसना शुरू कर दिया था; 'आज ये सुबह हुई ही क्यों? क्या वो रात और लम्बी नहीं हो सकती थी? क्यों?' होनी इसी झुंझलाहट में मैंने अपना सर पैरापेट वॉल पर मारना शुरू कर दिया, धीरे-धीरे मेरी खुद को सजा देनी की गति तेज हो गई थी और इस हरकत से उठने वाला दर्द मुझे जैसे महसूस ही नहीं हो रहा था| आधे घंटे तक खुद को इस तरह सजा देने के बाद मैंने घडी पर नजर डाली तो देखा अभी सुबह के साढ़े पाँच बजे हैं, मतलब आधा घंटा मैंने अपना सर पीटने में निकाल दिया था| मैं जानता था की कुछ ही देर में मुझे नीचे से बुलावा आएगा और ये भी पुछा जायेगा की मैं रात में छत पर क्यों सोया?! छत पर सोने की बात के लिए तो मैं झूठ बोल देता पर नीचे कैसे जाऊँ?! नीचे जाना ऐसा लग रहा था मानो मेरे नीचे जाते ही कुछ बहुत बड़ा अनर्थ हो जायेगा, यही सोच कर मैं डरने लगा था| मेरा बालक मन ये मानने लगा था की अगर मैं नीचे ही न जाऊँ तो आज जाना कैंसिल हो जायेगा! जबकि असल में मुझ में हिम्मत नहीं थी की मैं भौजी और नेहा का सामना कर सकूँ, उन्हीं दुबारा रोते हुए देख कर मैं टूट जाता इसीलिए ये ऊल-जुलूल बातें सोचने लगा था| पर मेरा दिमाग मेरे मन के ख़याल को गलत कह रहा था और मुझे समझा रहा था की; 'नीचे जा और एक आखरीबार अपने प्यार और अपनी बेटी को जी भर के देख ले|' पर बुजदिली का साया मुझे अपने आगोश में ले चूका था और मैंने सोच लिया की चाहे कुछ भी हो, मैं नीचे नहीं जाऊँगा| मैंने अपनी टांगें मोडीं और अपने दोनों हाथों को अपने घुटने के इर्द-गिर्द लपेट, अपना मुँह छुपाये बैठ गया|




मैंने सुना था की जब शुतुरमुर्ग को खतरा महसूस होता है तो वो अपनी गर्दन जमीन में छुपा लेता है, उसे लगता है की आंखें बंद कर लेने से उसकी मुसीबत खत्म हो जाएगी| कुछ ऐसा ही मैं भी सोच रहा था, इस तरह अपना मुँह छुपा कर मैं सच से भागने लगा था| पर अगर ये इतना ही आसान होता तो क्या बात थी?! मेरी अंतरात्मा अंदर से कचोटने लगी थी, आँखें भौजी को देखने को प्यासी हो चली थीं लेकिन बुजदिली आगे बढ़ें ही नहीं देती थी! भौजी को देख कर फफक कर रो पडूँगा और फिर उनका दिल टूट जायेगा, ये तर्क दे कर मैंने खुद को नीचे जाने से रोक लिया|

करीब पंद्रह मिनट बाद भौजी ऊपर छत पर आईं, उनकी पायल की चित-परिचित छम-छम आवाज मेरे कानों में मधुर संगीत की तरह गूँजने लगी| आँखें लालहित हो उठीं उन्हीं देखने को पर मैं दर के मारे वैसे ही जड़वत होकर बैठ रहा| भौजी मेरे नजदीक आईं और अपने घुटने टेक कर मेरे सामने बैठ गईं;

भौजी: जानू........जानू.......उठो?

उनकी आवाज में दर्द था जिसे वो छुपाने की बतेह्री कोशिश कर रहीं थीं पर मैं उनका ये दर्द महसूस कर चूका था|

उधर भौजी ये सोच रहीं थीं की मैं अभी भी सो रहा हूँ, लेकिन फिर भी वो मुझे इतनी जल्दी उठाने का पाप इसलिए कर रहीं थीं ताकि जो कुछ घंटे हमारे पास बचे हैं उन्हें हम एक साथ गुजार सकें| लेकिन भौजी का दर्द महसूस कर मैं टूटने लगा था, मेरे आँसूँ मेरी आँखों की दहलीज पर खड़े थे, जिन्हें मैंने बड़ी मुश्किल से रोका हुआ था| मैं भौजी के सामने टूटना नहीं चाहता था, वरना वो मुझे रोता हुआ देख हिम्मत हार जातीं!

जिस तरह मैं भौजी का दर्द महसूस कर पा रहा था, वैसे ही भौजी मेरा डर जान गईं थीं| उन्होंने अपने दोनों हाथों को मेरे दोनों कान के पास रखा और मेरा सर ऊपर उठाने की कोशिश करने लगीं, इधर मैं डरा हुआ था इसलिए अपना दम लगा कर अपना सर नीचे की ओर खींच रहा था|

भौजी: जानू....मैं जानती हूँ...आप क्या महसूस कर रहे हो....पर आपका दीदार करने को ये आँखें तरस रहीं हैं!

उनकी ये बातें मेरे दिल को छू गईं और मैंने अपना मुँह घुटनों की गिरफ्त से निकाला और एकदम से भौजी के गले लग गया| मैंने भौजी को अपनी शक्ल देखने का मौका तक नहीं दिया क्योंकि वो मेरा डरा हुआ चेहरा देखतीं तो रो पड़तीं| मैंने अपने जिस्म की सारी ताक़त खुद को रोने से रोकने में झोंक दी, बहुत रोका खुद को...अपनी आवाज तक अपने गले में दफन कर दी क्योंकि मैं जानता था की अगर मैंने कुछ बोलना चाहा तो मेरे आँसूँ बह निकलेंगे और भौजी का मनोबल आधा हो जाएगा तथा वो टूट जाएँगी, पर भौजी पहले से ही मेरी मनोदशा समझ चुकी थीं! भौजी: मैं.....जानती हूँ.......आप पर क्या ....बीत रही है|

भौजी ने सुबकते हुए कहा, वो बहुत भावुक हो चुकी थीं और अपना दर्द, अपनी तड़प चाह कर भी छुपा नहीं पा रहीं थीं| उन्होंने खुद को रोने से रोकने की बेजोड़ कोशिश की पर फिर भी उनकी सिसकियाँ नहीं रुकी और उन सिसकियों ने उनके टूटे दिल का दर्द मेरे सामने खोल कर रख दिया था| मुझसे किये वादे की आन रखने के लिए वो खुद को रोने से रोक रहीं थीं और मैं ये बात अच्छे से जानता था| मैं भौजी की आँखों में आँसूँ नहीं देख सकता था इसीलिए उन्हें रोने से रोकना चाहता था, पर कुछ कहने से डरता था, कहीं उन्हीं रोने से रोकने के चक्कर में मैं ही न रोने लगूँ!

मैं: प्लीज......कुछ....मत....कहो!

मैंने भौजी के गले लगे हुए कहा, इन चार शब्दों से ज्यादा कहने की हिम्मत मैं नहीं जुटा पाया| अगर आगे कुछ और बोलता तो, खुद को रोने से रोक नहीं पाता| इस प्रकार गले लगने से दोनों के दिलों को चैन मिल रहा था, वो तड़प, वो दर्द, वो जुदा होने की जलन सब मानो कहीं गायब हो चुके थे! करीब 10 मिनट भौजी ने हमारा आलिंगन तोडा और रात के बाद से अब जाके मेरा चेहरा देखा, अपने दोनों हाथों में मेरा चेहरा थामे वो टकटकी बाँधे ख़ामोशी से मेरा चेहरा देखने लगीं| मानो आने वाले 4 महीनों के लिए अपने दिल में मेरी सूरत बसा लेना चाहती हों, इधर आलिंगन टूटने से मेरा डर फिर लौटने लगा लेकिन जब भौजी का वो मासूम चेहरा देखा तो दिल धक्क सा रह गया! ये प्यारा चेहरा मुझे 4 महीने बाद देखने को मिलता ये सोच कर एक बार को बुरा लगा पर मैंने इसे अपनी किस्मत मान कर समझौता करने का फैसला किया| फैसला करना और उसपर अम्ल करना आसान नहीं होता पर भौजी की आँखें मेरे मन का ख़याल पढ़ चुकी थीं, वो एकदम से मेरे गले लग गईं जो की मेरे फैसले पर मोहर साबित हुई!

बड़की अम्मा: मुन्ना!...ओ मुन्ना! जल्दी नीचे आवो!

बड़की अम्मा की आवाज सुन कर हम अलग हुए और साथ-साथ नीचे आये| नीचे आ कर भौजी बाहर चली गईं और मैं जल्दी से अपने नित्यकर्म निपटाने लगा| मैंने नहाने के लिए हैंडपंप से पानी भरा और स्नान घर में आसन जमा कर बैठ गया| पहले लौटा पानी डालते हुए मेरी आँखों के सामने नेहा का चेहरा आ गया, जब से मैं उठा था तब से नेहा को नहीं देखा था| उसकी वो गाल पर प्याली-प्याली पप्पी याद आते ही मैंने जल्दी-जल्दी नहाना शुरू किया| फटाफट लौटे से खुद पर पानी मार के मैं नहाया और जल्दी से तैयार होने लगा| जब तक हम निकलते नहीं तबतक मैं जी भर के नेहा और भौजी को प्यार करना चाहता था, उन्हें अपने सीने से लिपटाये रखना चाहता था| तैयार होकर मैं कमरे से निकला ही था की सामने पिताजी मिल गए;

पिताजी: बेटा दस बजे निकलना है, तब तक अपना सामान चेक कर के पैक कर ले|

मेरा मन सामान पैक करने का कतई नहीं था, सो मैंने उन्हें नेहा का वास्ता दिया ताकि मैं वहाँ से निकल जाऊँ;

मैं: जी वो माँ कर देंगी, मैं एक बार नेहा से मिल लूँ, वरना वो स्कूल चली जाएगी|

पिताजी: नेहा स्कूल नहीं जा रही, बेचारी सुबह से रोये जा रही है| तू ऐसा कर उसे चुप करा, तबतक मैं सामान पैक कर देता हूँ|

पिताजी की बात सुन कर मेरी आँखों में आँसूँ भर आये, मैंने एकदम से वहाँ से निकला की तभी प्रमुख दरवाजे पर मुझे बड़की अम्मा चाय लिए हुए मिल गईं| मैंने उनके पाँव हाथ लगाए और अपनी चाय का गिलास उठाते हुए पुछा;

मैं: अम्मा आप चाय क्यों लाय?

मेरा सवाल सुन बड़की अम्मा ने मुझसे आँखें चुराते हुए जवाब दिया;

बड़की अम्मा: मुन्ना तोहार भौजी....कछु काम करत है!

रोज सुबह भौजी ही मुझे चाय दिया करती थीं, आज उनका चाय न लेके आना मेरे गले नहीं उतर रहा था| कुछ तो बात थी जो बड़की अम्मा मुझसे छुपा रहीं थीं, मैंने अपना चाय का गिलास वापस रखा और भौजी के घर की तरफ दौड़ा| अम्मा की बात सुन कर मुझे डर लगने लगा था की कहीं भौजी उस रात की तरह फिर से कोई गलत कदम न उठा लें! मेरा ये डर और भी बढ़ गया जब मैंने भौजी के घर के दरवाजे को अंदर से बंद पाया, मैंने दरवाजा खटखटाया तो करीब मिनट भर तक मुझे अंदर से कोई आवाज नहीं आई| मैंने छप्पर के नीचे झाँका तो वहाँ भी कोई नहीं था, इसका मतलब नेहा भी अंदर है! अब मेरा डर और भी पक्का हो गया, मैं फ़ौरन भौजी के घर की बगल वाली दिवार तक दौड़ा और अंदर कूदने का फैसला किया|

मैं उस वक़्त इतना जोश में था की ये भी नहीं देखा की भौजी की वो दिवार आठ-नौ फुट ऊँची है! मैंने अपने जूते-जुराब उतार फेंकी और दिवार की तरफ दौड़ लगाई, दिवार के पास पहुँच कर मैंने थोड़ी कूद लगाई और किसी तरह दिवार का ऊपरी किनारा पकड़ खुद को ऊपर की तरफ खींचा| ताक़त लगा कर मैं अपने पेट के बल दिवार पर आधा लटक गया, फिर अपनी टाँगें फैला कर दिवार पर चढ़ाई और मैं अब दिवार पर दोनों तरफ पैर लटकाकर बैठ गया| दिवार पर बैठे-बैठे ही मैंने भौजी के कमरे के भीतर झाँका तो वो मुझे कमरे की चौखट के पास बैठी हुई नजर आईं| नेहा उनकी छाती से लिपटी हुई थी और दोनों माँ-बेटी बिलख-बिलख कर रो रहीं थीं| उन्हें रोता हुआ देख मैं खुद को काबू नहीं कर पाया और भौजी के घर के आंगन में कूद पड़ा| जैसे ही मैं आँगन में कूदा तो दोनों माँ-बेटी की नजर मुझ पर एक साथ पड़ी, नेहा एकदम से अपनी मम्मी से अलग हुई और मेरे पास आने को दौड़ी| मैं अपने दोनों घुटने टेक कर हाथ खोले खड़ा हो गया, नेहा रोती हुई आ कर मेरे गले से लग गई| मैंने उसे कस कर अपनी बाँहों में भर लिया, अपनी बेटी को यूँ रोता हुआ देख मेरा दिल खून के आँसूँ रोने लगा था! एक नन्ही सी बच्ची जिसका मेरे अलावा कोई ख़याल नहीं रखता था, जो अपने असली बाप की जगह मुझे पापा कहती थी, जिसके चेहरे पर मुस्कान देखने के लिए मैं कुछ भी करने को तैयार था वो बच्ची मेरे गले लग कर बदहवास हो कर रोये जा रही थी| ऐसी स्थिति में चाहे जैसा भी पत्थर दिल इंसान हो, वो खुद को रोने से नहीं रोक पाता पर मैं खुद को किसी तरह रोके हुए था! मेरी आँखों ने आँसुओं को कस कर पकड़ लिया था, कुछ वैसे ही जैसे मैंने नेहा को अपनी बाहों में भर रखा था| मैं अगर रोता तो नेहा को कैसे संभालता इसलिए मैंने नेहा के बाएं गाल को चूमते हुए पुचकारा ताकि वो चुप हो जाए;

मैं: नेहा...बेटा बस...बस बेटा! चुप हो जाओ...देखो पापा अभी आपके पास हैं न?! बस मेरी बेटी.....चुप हो जाओ! देखो...मैं बस कुछ दिनों के लिए जा रहा हूँ...और आपसे मेरी बात फोन पर होती रहेगी! प्लीज बेटा...

मैं नेहा को चुप कराने में असफल साबित हुआ, वो बेचारी नन्ही सी बच्ची अपने पापा को खोने के दर्द से अकेली जूझ रही थी! कैसा लगता है जब आपका बच्चा आपसे लिपट कर इस तरह रोता है और आप उसे चुप कराने के लिए कुछ नहीं कर सकते, वो दर्द दुनिया के हर दर्द के सामने छोटा साबित होता है! मैंने नेहा को गोद में लिए हुए खड़ा हुआ और उसकी पीठ पर हाथ फेर कर उसे शांत कराने लगा|

वहीं दूसरी और भौजी जो अभी तक किसी तरह खुद को मेरे सामने रोने से रोके हुए थी, उनका सब्र अब जवाब दे चूका था, वो दौड़ कर मेरे पास आईं और मेरे से लिपट कर फूट-फूट के रोने लगीं| नेहा तो पहले से ही रो रही थी और अब भौजी का रोना देख मुझसे सहन नहीं हुआ, मुझ में जरा भी हिम्मत नहीं थी की मैं खुद को रोने से रोकूँ| इसलिए जिन आँसुओं को आँखों ने बाँध रखा था वो छलक आये, दिल ने भावनाओं के आगे हार मान ली थी, खुद पर कोई काबू नहीं रहा, ऐसा लगा की भौजी और नेहा के बिना मैं पागल हो जाऊँगा! मैंने दोनों को अपनी बाहों में कस कर भर लिया और फफक के रो पड़ा! एक बाप, एक पति हार मान चूका था और ये आँसूँ मेरे हार जाने का प्रतीक थे! हम तीनों का ये छोटा सा कुटुम्भ आज एक साथ रोये जा रहा था, आज कोई नहीं था जो हम तीनों को संभाल सके और हमारे आँसूँ पोछ सके! इधर भौजी ने मेरा आलिंगन तोडा और मेरे आगे हाथ जोड़ते हुए बोलीं;

भौजी: प्लीज.....I beg of यू (मैं आपसे भीख मांगती हूँ) ...प्लीज..... मत जाओ....हमें छोड़ कर मत जाओ!

भौजी ने रोते हुए मिन्नत की, उनकी ये मिन्नत सुन कर मेरा दिल टूट कर चकना चूर हो गया| आजतक उनकी हर एक ख्वाइश पूरी करने वाला उनका पति, आज उनके आगे लाचार हो गया था! मेरे पास कोई तर्क, कोई झूठ, कोई बहाना नहीं बचा था जो मैं आजका जाना कैंसिल करवा सकूँ!

मैं: प्लीज....ऐसा मत कहो.....मैं मजबूर हूँ! .....मुझे माफ़ कर दो!!! प्लीज !!!

मैंने रोते हुए कहा और भौजी को पुनः अपने सीने से लगा लिया| भौजी और नेहा को यूँ बिलखता हुआ छोड़ के दिल्ली जाने की हिम्मत नहीं थी, लेकिन पिताजी को रोक पाने में भी मैं असमर्थ था!

अगले आधे घंटे तक हम तीनों इसी तरह लिपटे रहे, नेहा तो रोते-रोते सो गई पर हम दोनों सिसकते रहे और अपने आँसूँ बहाते रहे| दोनों के दिल की हालत बहुत बुरी थी, ऐसा लगता था मानो कोई जिस्म से रूह को खींच कर अलग कर रहा हो| इसी डर के साथ हम दोनों ने एकदूसरे को और कस के भींच लिया, पर जुदाई तो लिखी थी, उसे हम चाह कर भी बदल नहीं सकते थे!

मैं: जान....नेहा को लिटाने दो ताकि मैं आप को कस कर अपने सीने से लगा सकूँ!

मैंने काँपती हुई सी आवाज में कहा, भौजी ने हमारा आलिंगन तोडा और मैंने नेहा को चारपाई पर झुक कर लिटाने लगा| लेकिन नेहा ने नींद में ही मेरी गर्दन के इर्द-गिर्द जो फंदा बनाया था उसे अब भी जकड़ रखा था, मानो उसे लग रहा हो की मैं उसे सोते हुए मैं छोड़ जाऊँगा| ये दृश्य देख भौजी मेरे दाएँ कंधे पर सर रख कर फिर से रोने लगीं;

भौजी: देखो....नेहा भी...नहीं...च...चाहती...की आप...जाओ|

भौजी ने अपना रोना रोकते हुए सिसक कर कहा|

मैं: मैं भी...उसे छोड़ कर...नहीं जाना चाहता!

मैंने आँखों में आँसूँ लिए भौजी को देखते हुए कहा| भौजी मेरी लाचारी समझ गईं और उन्होंने अपने दोनों हाथों से नेहा की पकड़ छुड़ाई| नेहा को लिटा कर मैंने उसके चेहरे पर बनी आँसुओं की रेखा देखि और उसके मस्तक को चूम कर खड़ा हुआ| मेरे खड़े होते ही भौजी मेरे सीने से आ लगीं और खुद को रोने से रोकते हुए सुबकने लगीं| वो जानती थीं की वो आज के दिन अपना न रोने का वादा तोड़ चुकी हैं और इसी कारन उन्हें ग्लानि भी हो रही थी| इधर मेरे आँसूँ भी नहीं रुक रहे थे, मैंने भौजी को और कस कर अपने बाहुपाश में जकड़ लिया, इस आलिंगन से दोनों के दिल मानो एक हो गए हों और समान रफ़्तार से धड़क रहे हों! भौजी का ये सुबकना मेरे दिल को कचोटे जा रहा था, उन्हें हिम्मत बढ़ाने के लिए मैंने बात शुरू की;

मैं: देखो...I Promise मैं वापस आऊँगा!!

भौजी जानती थी की मैं अपना किया वादा हर हाल में निभाता हूँ, इसलिए उन्होंने अपने आप को किसी तरह काबू किया और मेरे सीने से लगे हुए ही हाँ में सर हिलाया| जब उनका सुबकना बंद हुआ तब मैंने आगे बात की;

मैं: जान, अब दरवाजा खोलो और बाहर चलो|

मैंने भौजी को अपनी गिरफ्त से आजाद किया और उनके आँसूँ पोछे, तभी भौजी ने मुझसे अपनी तसल्ली के लिए सवाल पुछा;

भौजी: आप सच में वापस आओगे ना? मुझे भूल तो नहीं जाओगे न?!

भौजी का सवाल सुन कर मुझे उनके दिल में बैठे डर का पता चला, मैंने अपने दोनों हाथों से उनका चेहरा थाम लिया और उनकी आँखों में देखते हुए जवाब दिया;

मैं: वादा करता हूँ की दशेरे की छूट्टियों में मैं जर्रूर आऊँगा और ये भूलने वाली बात अपने दिल से निकाल दो, मैं खुद को भूल सकता हूँ पर आपको कभी नहीं! बस कुछ महीनों की ही बात है, उसके बाद हम दोनों पुनः ऐसे ही गले मिलेंगे|

मेरी प्यारभरी बात सुनकर भौजी के दिल को इत्मीनान हुआ और उन्होंने हाँ में सर हिलाया|

भौजी को अंदर अंदर छोड़ कर मैं बाहर आया और बड़े घर की ओर चल दिया, रास्ते में पड़ी मेरी जुराबें उठा कर पहनी, फिर जूते पहन कर मैं अंदर घुसा| उधर भौजी ने हमारे लिए खाना पैक करना शुरू कर दिया| इधर रोने से मेरी आँखें सुर्ख लाल हो गईं थीं, कोई भी मेरी शक्ल देख के बता सकता था की मैं कितना रोया हूँ! जब पिताजी ने मेरी ये बिगड़ी हुई सूरत देखि तो उन्हें थोड़ा गुस्सा आया;

पिताजी: क्यों...जाने का मन नहीं हो रहा है?

पिताजी ने मुझे टॉन्ट मारा, पर मैं फिर भी खामोश रहा क्योंकि अगर कुछ बोलने को मुँह खोलता तो वो मुझ पर बरस पड़ते| मैं खामोश सर झुकाये हुए कमरे में वापस आ गया और सामान चेक करने लगा की कुछ छूट तो नहीं गया, इधर पिताजी ने अजय भैया को रिक्शा लेने के लिए भेज दिया| ये रिक्शा हमें मुख्य सड़क तक छोड़ने वाला था और वहाँ से हमें लखनऊ की बस मिलती फिर रात दस बजे की लखनऊ मेल जो हमें कल दिल्ली छोड़ती| अजय भैया के जाते ही मैंने मन ही मन प्रार्थना शुरू कर दी की अजय भैया को रिक्शा ना मिले! ये मेरा बचपना था, जैसे रिक्शा ना मिलने पर पिताजी जाना कैंसिल कर देंगे. वो भी तब जब की हमारे पास ट्रैन की कन्फर्म टिकट है!

माँ और बड़की अम्मा बड़े घर के आँगन में बैठे थे और दोनों ने ही मेरी लाल आँखें देखीं थीं, वो जानती थीं की ये मेरी आँखें लाल क्यों हैं!

बड़की अम्मा: मुन्ना तोहार खूब याद आई!

ये कह अम्मा ने मुस्कुराते हुए मुझे अपने पास बैठने का इशारा किया, मैं भी जा कर उनके पास बैठ गया| अम्मा ने मेरे सर पर हाथ फेरा और बोलीं;

बड़की अम्मा: तू तान्निको चिंता न किहो, तोहार भौजी का ख्याल हम रखब!

बड़की अम्मा की बात सुन कर मैं खोमश रहा, मैं जानता था की वो ये बात दिल से कह रहीं हैं लेकिन वो ये भूल रहीं थीं की वो चुड़ैल (रसिका) और वो राक्षस (चन्दर) इस घर में मौजूद हैं! ये दोनों मेरी पत्नी और मेरे बच्चे के लिए खतरनाक साबित हो सकते थे, ये तो शुक्र है की मैंने पहले ही भौजी को उनके मायके जाने के लिए मना लिया था, यहाँ के मुक़ाबले वो घर उनके लिए पूरी तरह सुरक्षित था! मैं मन ही मन इस ख्याल में गुम था की तभी भौजी नाश्ता ले कर आ गईं| माँ और बड़की अम्मा को उनकी थाली दे कर उन्होंने तीसरी थाली मेरी ओर बढ़ दी;

भौजी: लीजिये!

भौजी ने नजरें नीचे करते हुए कहा|

मैं: आपकी थाली कहाँ है और नेहा कहाँ है?

मैंने उत्सुकतावश पुछा|

भौजी: नेहा तो सो रही है| आप खा लो, मैं बाद में खा लूँगी!

भौजी ने नजरें चुराते हुए कहा, दरअसल वो माँ और बड़की अम्मा के सामने संकोच कर रहीं थीं| पर मैं कहाँ मानने वाला था, मैंने पराठे का एक टुकड़ा उन्हें खिलाने को उठाया और बोला;

मैं: आजतक कभी ऐसा हुआ है की मैंने आपके पहले खाया हो, कम से कम मुझे पता तो होता था की आपने खाया जर्रूर होगा| आखरी बार के लिए ही मेरे हाथ से खा लो!

ये शब्द स्वतः ही मेरे मुख से निकले थे, दिल बहुत भावुक था और जुबान पर मेरा काबू नहीं था, जो भी सच था वो सब अपने आप ही निकल रहा था| मेरी बात सुन भौजी भावुक हो गईं पर अम्मा और माँ के सामने किसी तरह अपने आँसूँ रोक लिए!

मेरी बात खत्म होने के बाद भी भौजी ने मुँह नहीं खोला तो बड़की अम्मा बोलीं;

बड़की अम्मा: खा लिहो बहु, देख तोहार देवर कतना प्यार से खिलवत है|

बड़की अम्मा की बात सुन भौजी ने मुँह खोला और मैंने उन्हें परांठे का एक कौर खिलाया| इतने में बड़की अम्मा माँ से बोलीं;

बड़की अम्मा: छुटका दोनों देवर-भौजी का प्रेम अद्भुत है, जब से मुन्ना आवा है तब से दोनोंजन एको पल को लग नाहीं हुए! जब हुए तो कभी बहु ने खाट पकड़ ली, तो कभी मुन्ना बीमार पड़ गया! हाँ मुन्ना का बीमार होये का कारन ऊ कुलटा रही!

बड़की अम्मा की बात सुन माँ ने अपनी चिंता जताई;

माँ: हाँ दीदी पता नहीं ई दोनों एक दूसरे के बिन कैसे रहेंगे?

मैं आजतक नहीं जान पाया की माँ ने ऐसा क्यों कहा था?! क्या वो हमारे प्यार के बारे में जान गईं थीं? लेकिन अगर ऐसा था तो आगे जो अम्मा ने कहा उस पर माँ ने कुछ कहा क्यों नहीं;

बड़की अम्मा: अरे छुटका, दूर रहय से रिश्तों में दूरी आ जावत है! धीरे-धीरे दिन बीतेंगे और दोनोंजन भूल जइहें, फिर मानु का ब्याह हुई तो....

बड़की अम्मा की ये बात पूरी होने से पहले ही मैं गुस्से में उठा, अपनी थाली भौजी को थमा कर मैं बाहर आ गया| मेरे यूँ उठ आने से बड़की अम्मा और माँ दोनों अचम्भित थीं और दोनों शायद मेरा गुस्सा समझ गईं थीं पर माँ ने बड़की अम्मा से कुछ नहीं कहा| वहीं भौजी एकदम से मेरी थाली लिए हुए मेरे पीछे दौड़ीं, मैं बड़े घर से बाहर आ कर भूसे वाले कमरे के बाहर खड़ा था और सर झुकाये सोचने लगा; 'बड़की अम्मा ने क्या सोच कर ये कहा की दूर रहने से हम दोनों के रिश्ते में दरार आ जाएगी? हमारा रिश्ता कोई कच्चे धागे की डोर नहीं जिसे दूरियाँ तोड़ दें! ये एक अटूट बंधन था, अनोखा बंधन जो तोड़े न टूटे!' मैं अपने ख्यालों में डूबा बड़की अम्मा को दोष दे रहा था की तभी मेरी नाश्ते की थाली ले कर मेरे पास आईं और मेरे कंधे पर हाथ रख मुझे मेरे ख्यालों से बाहर लाईं;

मैं: क्या जर्रूरत थी अम्मा को वो सब कहने की?

मैंने उखड़ते हुए कहा|

भौजी: छोडो उन्हें, आप नाश्ता करो| देखो मैंने बड़े प्यार से आपके लिए बनाया है!

ये कहते हुए भौजी ने परांठे का एक कौर मुझे खिलाने को मेरी ओर बढ़ाया| मैं जानता था की बड़की अम्मा की मेरी शादी वाली बात सुन कर भौजी का दिल दुख होगा, इसलिए मैं उनके इस दिल पर मरहम लगाने के लिए थोड़ा अकेला समय चाहता था|

मैं: चलो आपके घर में बैठ के खाते हैं|

हम दोनों भौजी के घर में आ गए और आँगन में बिछी चारपाई पर दोनों बैठ गए, मेरे ठीक सामने नेहा दूसरी चारपाई पर लेटी सो रही थी|

भौजी मुझे अपने हाथों से खिला रहीं थीं और मैं उन्हें अपने हाथ से खिला रहा था, ये प्यारा दृश्य हम दोनों अपने मन में बसा लेना चाहता है| कौर खिलाते समय वो उँगलियों का होठों को छूना, ऐसा एहसास था जो आने वाले कुछ महीनों तक एक मीठी याद के रूप में हमारे साथ रहने वाली थी| दोनों की नजरें बस एक दूसरे के लरजते हुए होठों पर थी, अगले मिलन के पल को याद कर दोनों ही के दिल तड़प उठे थे! मैं तो अपनी तड़प कहने से झिझक रहा था, पर भौजी को कोई डर नहीं था;

भौजी: अच्छा मैं एक बात कहूँ, आप मानोगे?

भौजी ने लजाते हुए कहा|

मैं: आपके लिए जान हाज़िर है, माँग के तो देखो!

मैंने किसी दिल फेंक आशिक़ की तरह अपने जज़्बात एक ही बार में खोल कर रख दिए;

भौजी: जाने से पहले एक बार....

इतना कह कर भौजी चुप हो गईं, लेकिन मैं उनके मन के ख्याल पढ़ चूका था| मैं भौजी के नजदीक खिसक कर बैठा और उनके चेहरे को अपने दोनों हाथों के बीच थाम लिया, फिर उनके थिरकते होंठों को चूम लिया| इस चुंबन में कोई वासना नहीं थी, जलते हुए जिस्म की अगन नहीं थी, ये तो हमारा goodbye kiss था, आखरी kiss... कम से कम कुछ महीनों तक तो आखरी kiss ही था! इस चुंबन के दौरान दोनों के दिल फिर एक बार एक हो चुके थे, ये चुंबन हमारे पाक और पवित्र प्रेम की निशानी था| हम दोनों ही आँखें बंद किये हुए, धीरे-धीरे एक दूसरे के होठों को बारी-बारी धीमे-धीमे चूस रहे थे| जब हमारा चुंबन खत्म हुआ तो दोनों की आँखें खुली और एक दूसरे को देख कर दिल फिर भावुक हो उठा, कुछ देर बाद होने वाली जुदाई का दुःख हमारी आँखों में पुनः दिखने लगा था| आँखें एक दूसरे को सांत्वना दे रहीं थीं पर दिल था की मानता ही नहीं था, लोभी हो गया था, उसे बस ये साथ चाहिए था....उम्र भर के लिए!

उधर नेहा उठ कर बैठ गई थी और चुपचाप उसने पहले तो हमारा प्यार भरा चुंबन देखा था, उसके बाद हमारी नजरों की बातें चुप-चाप समझने की कोशिश कर रही थी| जैसे ही मेरी गर्दन नेहा की तरफ घूमी उसने एकदम से अपने दोनों हाथ पंखों समान खोल दिए, मैं अपनी प्रियतमा को तो इन अंतिम पलों में जी भर कर प्यार दे चूका था पर मेरी प्यारी बेटी अभी मेरे प्यार से वंचित थी! मैंने उठ कर नेहा को अपनी गोद में ले लिया, नेहा ने मेरी गोद में आते ही अपने नन्हे-नन्हे हाथों से मेरा चेहरा थामा और मेरे दोनों गालों पर अपनी प्याली-प्याली पप्पियाँ देने लगी| वो मेरी ही नकल कर रही थी, जैसे मैंने अभी उसकी मम्मी को चूमा था वो भी वैसे ही मुझे पप्पियाँ दे रही थी| उसकी ये पप्पियाँ मेरे गालों पर नहीं एक बाप के दिल पर अपनी छाप छोड़ गईं थीं| कल सुबह जब उठूँगा तो न तो मेरी प्रियतमा मेरे पास होगी और न ही मेरी प्यारी बेटी उठ कर मेरे गाल पर पप्पी देगी| ये सोच कर ही दिल काँप गया और मैंने नेहा को कस कर अपने गले लगा लिया, नेहा बच्ची थी इसलिए वो मेरा दिल नहीं पढ़ पाई पर भौजी मेरा दर्द महसूस कर चुकी थीं| वो चारपाई से उठीं और आकर मेरे से लिपट गईं, उनके जिस्म के ताप से मेरे आँसूँ रुक गए वरना वो किसी भी वक़्त बहने लगते| मेरे जाने की घडी नजदीक आ रही थी, इधर नेहा के फिर रोने का डर मुझे सताने लगा था| मैंने भौजी के बाएँ गाल को चूमा और नेहा को ले कर बाहर निकला;

मैं: बेटा आप चिप्स खाओगे?

ये सुन कर नेहा हमेशा जोश से भर जाती थी पर आज उसे जैसे कोई फर्क ही नहीं पड़ रहा था, उसने बस धीरे से अपना सर हाँ में हिलाया| दोनों बाप-बेटी दूकान की ओर चल दिए, मैंने जानबूझ कर रास्ता लम्बा पकड़ा जिससे हम दोनों को बात करने को समय मिल जाए|

नेहा: पापा..... मुझे भी ले चलो न अपने साथ!

नेहा ने बड़े प्यार से अपने भोलेपन में कहा| मैंने उसके माथे और दोनों गालों को चूमते हुए बोला;

मैं: बेटा आप मेरे साथ जाओगे तो फिर आपकी मम्मी का ध्यान कौन रखेगा? आपको पता है न आपका छोटा भाई या बहन आने वाले हैं तो उनका ख्याल कौन रखेगा?! मेरी एक ही तो लाड़ली और जिम्मेदार बेटी है, आपके इलावा मैं किसी पर भरोसा नहीं करता|

मैं छोटे बच्चे के दिल के जज़्बात जानता था पर मैं नेहा को अपने साथ नहीं ले जा सकता था, अगर ये बात मैं उसे साफ़-साफ़ कहता तो उसका दिल टूट जाता इसलिए मैंने बात घुमा कर कही| मेरी बात सुन कर नेहा सोच में पड़ गई और फिर बोली;

नेहा: पापा.फिर आप वापस कब आओगे?

मैं: बेटा मेरे स्कूल की दशहरे की छुटियों में आऊँगा फिर मैं आपको खूब सारा प्यार दूँगा!

ये सुन कर नेहा के दिल में मेरे आने की आस बंध गई और उसने मेरे दाएँ गाल पर पप्पी की| हमदोनों दूकान पहुँचे और मैंने नेहा को चिप्स का बड़ा पैकेट दिलाया ताकि मेरे जाने के समय वो चिप्स खाने में व्यस्त रहे और मुझे जाता देख कर रोये न| नेहा ने चिप्स खाने शुरू किये, वो एक चिप्स खुद खाती और दूसरा मुझे खिलाती, इसी तरह चिप्स खाते हुए हम दोनों बाप-बेटी घर के नजदीक पहुँचे| घर के नजदीक पहुँच करदेखा तो अजय भैया रिक्शा ले कर आ चुके थे और उसपर हमारा सामान रखा जा रहा था! रिक्शा देखते ही मेरी आँखें बड़ी हो गईं, वो रिक्शा नहीं मेरे शवयात्रा की गाडी लग रही थी, जिसे देखते ही मेरे शरीर ने काम करना बंद कर दिया| मेरे पाँव जम गए जैसे वो आगे ही नहीं बढ़ना चाहते थे, गला सूखने लगा, दिल धाड़-धाड़ कर के बजने लगा, ऐसा लगा मानो मेरे सामने मेरी मौत खड़ी हो! तब मैंने अपनी जिंदगी में इतना दुःख नहीं देखा था, भौजी से दूर पहले भी हुआ था लेकिन तब या तो नाक पर गुस्सा था या फिर उनसे पुनः मिलने की ललक थी| परन्तु इस बार ऐसा नहीं था, एक अनोखी ताक़त मुझे दिल्ली जाने से रोक रही थी! वो ताक़त क्या थी ये मैं नहीं जानता था, लेकिन इस ताक़त का आभास मुझे आगे चल कर हुआ! चूँकि मैं इतने दर्द को सहने का आदि नहीं था तो दिमाग ने इस दर्द का 'हौआ' बना कर मुझे डरा दिया! इधर मेरे जिस्म के सारे अंगों ने एकसाथ बगावत कर दी, सब के सब कह रहे थे की; 'हम आगे नहीं जाएंगे!' तभी दिमाग ने मेरे भोले मन को पिताजी का गुस्सा याद दिला कर और डरा दिया; 'अगर तू नहीं गया तो पिताजी का गुस्सा याद है न? अभी सब के सामने तुझ पर बरस पड़ेंगे!' दिमाग की ये धमकी सुन मेरे कदम धीरे-धीरे रिक्क्षे की ओर बढ़ने लगे|

मेरे रिक्शे तक पहुँचते-पहुँचते सारा सामान रखा जा चूका था, सारा घर-परिवार इकठ्ठा हो चूका था और माँ-पिताजी एक-एक कर सबसे विदा ले रहे थे| मैंने नेहा को गोद से उतारा और सबसे विदा लेने लगा, मेरी गोद से उतरने के बाद भी नेहा मेरे नजदीक ही खड़ी रही और अपना सर ऊपर कर के मुझे देखती रही| इधर मैं सबसे पहले बड़के दादा के पास पहुँचा और उनके पाँव छुए;

बड़के दादा: जीते रहो मुन्ना और अगली बार जल्दी आयो!

बड़के दादा ने मुस्कुरा कर मेरे सर पर हाथ रखते हुए कहा| फिर मैं पहुँचा बड़की अम्मा के पास और उनके पाँव छुए;

बड़की अम्मा: सुखी रहो मुन्ना!

इतना कह वो थोड़ा भावुक हो गईं, उनकी आँखें छलक आईं, उन्होंने मेरे चेहरे को थाम मेरे माथे को चूम लिया| फिर उन्होंने अपनी साडी के पल्लू में बँधे पैसे खोले और मेरे लाख मना करने के बावजूद मेरी मुट्ठी में वो पैसे रख कर मेरी मुट्ठी बंद कर दी| अगला नंबर था चन्दर का, मैं उसके पास पहुँचा और हाथ जोड़कर उसे नमस्ते कर आगे बढ़ गया| न तो मेरे मन में उसके लिए बड़े भाई वाला कोई प्यार था और उस बेल्ट वाले काण्ड के बाद तो मेरे मन में उसके लिए कोई इज्जत भी नहीं बची थी, ये तो दिखावा था जो मुझे करना पड़ रहा था| मेरे उसके पाँव न छूने से उसे मिर्ची तो लगी होगी, पर बेचारा कुछ कह नहीं पाया| अब मैं अजय भैयाके पास पहुँचा और उनके गले लग गया, भले ही हमने साथ में कम समय बिताया पर हम दोनों में सेज भाइयों जैसा प्यार था| मैंने उनके कान में खुसफुसा कर कहा;

मैं: भैया मेरा एक काम कर देना!

अजय भैया: का काम भैया?!

उन्होंने जिज्ञासु होते हुए खुसफुसा कर पुछा|

मैं: आज अपना वाला फ़ोन उनके (भौजी) पास छोड़ देना, मैं ट्रैन में बैठने पर उन्हें फोन कर के बता दूँगा वरना वो चिंता करेंगी|

ये कहें के बाद एक पल को तो मैं चिंतित हो गया की पता नहीं अजय भैया समझे भी या नहीं पर जब उन्होंने जवाब दिया तो मेरी चिंता दूर हो गई;

अजय भैया: कउनो बात नाहीं भैया, हम आपन फ़ोन भौजी लगे छोड़ देब!

अजय भैया से मिल कर मैं भौजी की तरफ जा रहा था की नेहा ने मेरी पतलून नीचे से पकड़ कर खींची, मेरा ध्यान उस पर गया तो पाया वो तब से मुझे ही देखे जा रही थी और मन ही मन मुझसे शिकायत कर रही थी की सबसे तो मिल लिए मुझसे क्यों नहीं मिले?! मैंने उसे पुनः गोद में उठा लिया, मेरी गोद में आते ही उसकी आँखें छलक आई क्योंकि वो जानती थी की मैं अभी जा रहा हूँ| जैसे ही मैंने उसके आँसूँ पोछने चाहे, वो एकदम से रो पड़ी, उसके हाथ में जो चिप्स का पैकेट था उसने वो छोड़ दिया और अपने दोनों हाथों का फंदा मेरी गर्दन में डाल अपना सर मेरे कंधे पर रख दिया| नेहा की मेरी गर्दन पर पकड़ मजबूत होती जा रही थी और उसका यूँ रोना देख मेरे आँसूँ भी बाह निकले थे! मैंने उसकी पीठ सहलाई और चुप कराने लगा, कहाँ तो मैं सोच रहा था की नेहा चिप्स खाने में व्यस्त रहेगी पर मेरी बेटी ने मुझे गलत साबित कर दिया था|

मैं: बस मेरा बेटा......रोना नहीं....देखो जब मैं वापस आऊँगा न तो आपके लिए खिलौने लाऊँगा!

मैंने नेहा को मनाने के लिए प्रलोभन दिया पर उसने एकदम से न में गर्दन हिलाई और रट हुए बोली;

नेहा: पा....

इतना सुन मैं नेहा को गोद में लिए हुए कुछ दूरी पर आ गया वर्ण नेहा मुझे सबके सामने ही पापा बोल देती| वैसे इसमें उसका कोई दोष नहीं था, जब इंसान भावुक होता है तो वो भावनाओं में बहने लगता है और नेहा तो छोटी बच्ची थी, वो भला कैसे कुछ समझती!

नेहा: पापा....मुझे....मेरे...पापा.....

इसके आगे वो कुछ नहीं बोल पाई और मेरे से लिपट कर जोर से रोने लगी| उसकी आधी बात से ही मैंने उसका पूरा मतलब समझ लिया, उसे बस उसके पापा चाहिए थे और कोई खिलौना, चिप्स, कपडे, मिठाई कुछ नहीं| उस पल मुझे नेहा पर बहुत गर्व हुआ और मैं उसके दाएँ गाल को चूमते हुए बोला;

मैं: मेरा बच्चा... I love you..... मैं आपसे बहुत प्यार करता हूँ! मैं...आपके बिना नहीं रह सकता बेटा.... पर कुछ महीनों की बात है...मैं है न वापस आऊँगा....आपको पता है न पापा अपना किया वादा हमेशा पूरा करते हैं?!

नेहा ने मेरा सवाल सुन हाँ में गर्दन हिलाई| मेरी आँखें आँसूँ बहा रही थी पर मैंने किसी तरह अपने जज्बातों को काबू कर नेहा को समझाया;

मैं: मेरा बहादुर बेटा है न, मम्मी का ख़याल आपको रखना है और मैं वादा करता हूँ की मैं रोज आपको फ़ोन करूँगा और हम ढेर सारी बातें करेंगे!

मुझे नहीं लगा था की जिम्मेदारी की बात सुन कर नेहा मान जायेगी, पर अपनी मम्मी का ख्याल रखने की बात सुन उसने अपने आँसूँ पोछे और मेरे दोनों गालों पर एक-एक कर पप्पी दी| फिर मैंने भी नेहा की ढेर सारी पप्पियाँ ली, अब जा के नेहा के मन में मुझसे पुनः मिलने की आस रुपी दीपक जल गया था और उसके चेहरे पर थोड़ी सी मुस्कान आ गई थी, आज जाने से पहले नेहा की यही भीनी सी मुस्कान मैं अपने दिमाग में बिठा लेना चाहता था|

मैं नेहा को गोद में लिए हुए वापस आया तो पाया की सब मेरा ही इंतजार कर रहे हैं, उधर भौजी मुझसे गले मिलने को व्याकुल थीं पर सबके आगे शर्म करके घूंघट काढ़े खड़ीं थीं| मैंने नेहा को गोद से उतारा तो पिताजी ने नेहा को अपने पास आने का इशारा किया, नेहा दौड़ कर उनके पास पहुँची और उसने माँ-पिताजी के पाँव छुए| छोटे बच्चे जब पाँव छू कर अपने माथे को हाथ लगाते हैं तो वो बड़े प्यारे लगते हैं, ठीक ऐसी ही नेहा भी लग रही थी| पिताजी ने नेहा को गोद में उठाया और उसकी छोटी सी मुट्ठी में दस का नोट रख कर मुट्ठी बंद कर दी;

पिताजी: ये मेरी गुड़िया के लिए, इससे चिप्स ले के खा लेना|

दस का नोट देख कर नेहा हैरान थी और वो आँखें बड़ी कर के पिताजी को देख रही थी, फिर उसे मेरी कही हुई बात याद आई| जब भौजी बीमार थीं तब मैंने उसे कहा था की वो मेरे अलावा किसी से पैसे नहीं मांगेगी, इसलिए नेहा ने फ़ौरन वो दस का नोट मुट्ठी में बंद किये हुए पिताजी की तरफ बढ़ा दिया;

पिताजी: मुन्नी ये तेरे लिए है, इसे वापस नहीं करते!

पिताजी की बात सुन नेहा मेरी तरफ देखने लगी और मुझसे मूक भाषा में इजाज़त माँगने लगी, ये दृश्य देख सब के सब हैरानी से मुझे देखने लगे|

मैं: पिताजी मैंने नेहा को आपकी ही तरह सीख दी थी की वो किसी से भी पैसे न ले, इसलिए आपको मना कर रही है|

ये सुन पिताजी मुस्कुराये और नेहा के माथे को चूम कर बोले;

पिताजी: मुन्नी मैं तेरा दादा हूँ और दादा जब कुछ देते हैं तो मना नहीं करते!

इधर मैंने हाँ में सर हिलाया तो नेहा ने वो पैसे रख लिए और फिर पिताजी की गोद से उत्तर के पास माँ के पास चली गई| माँ ने उसके दोनों गाल चूमे और उसे आशीर्वाद दिया|

खैर अब दो प्रेमियों के मिलने की घडी आ चुकी थी, जुदाई की आग में तड़पते हुए दो जिस्म, करार पाने को तरस रहे थे! भौजी का तो पता नहीं पर हाँ मुझे इस वक़्त दुनिया की कोई फ़िक्र नहीं थी, मैंने आव देखा न ताव एकदम से भौजी को अपने सीने से लगा लिया! मेरे सीने से लगते ही भौजी टूट कर रोने लगीं, मुझसे भी काबू नहीं हुआ और मैं भी रो पड़ा| परिवार के सभी लोग दोनों को रोता हुआ देख रहे थे, सबके सब इसे देवर-भाभी का प्यार समझ रहे थे लेकिन रसिका सब जानती थी की हम दोनों क्यों इतना रो रहे हैं पर वो कुछ बोल नहीं सकती थी| करीब 5 मिनट तक हम दोनों एक दूसरे से लिपटे हुए रोते रहे, आखिरकर बड़की अम्मा मेरे पास आईं और मेरी पीठ पर हाथ रख कर मुझे शांत होने को कहा| मैंने खुद को संभाला और भौजी के कान में खुसफुसाया;

मैं: जान....... बस ...मैं ...वापस आऊँगा!

मेरी बँधाई हुई हिम्मत से भौजी ने अपना रोना बंद किया|

मैं: मैंने अजय भैया को कह दिया है की वो आज अपना फ़ोन आपको दे देंगे, मैं रात को ट्रैन में बैठते ही आपको फोन करूँगा| मेरे लौट के आने तक अपना ख़याल रखना और हमारे बच्चों का भी!

भौजी ने हाँ में सर हिला कर मेरी बात का मान रखा|

भौजी: आप भी अपना ख़याल अच्छे से रखना|

भौजी ने साधारण आवाज में कहा, जिसे वहां मौजूद सबने सुना| मेरा मन कर रहा था की जाने से पहले एक आखरीबार भौजी का चाँद सा मुखड़ा देख लूँ पर सबकी मौजूदगी के कारन ये मुनासिब नहीं था, दिल पर पत्थर रख मैं भौजी से अलग हुआ|

इतने में वहाँ सुनीता और उसके पिताजी आ गए, उन्हें भी हमारे जाने की खबर लग चुकी थी इसलिए वो भी हमसे आखरी दफा मिलना चाहते थे| ठाकुर साहब तो पिताजी और बड़के दादा से मिलने में व्यस्त हो गए, इधर सुनीता मेरे पास आ गई और उसे देखते ही मैंने अपने आँसूँ पोछे और नकली मुस्कान के साथ बोला;

मैं: अब मैं आपको 'Hi' कहूँ या 'Bye' समझ नहीं आता| But anyways it was nice knowing you!

सुनीता: Same here!!!

शायद सुनीता मेरे दर्द को समझ चुकी थी, तभी उसने मुझसे ज्यादा बात कर के मेरा ध्यान भंग करने की कोशिश नहीं की| फिर मैं ठाकुर साहब के पास पहुँचा और उनके पाँव छुए;

ठाकुर साहब: जीते रहो बेटा! अगली बार कब आइहो?

मैं: जी दशेरे की छुटियों में?

मैंने फटाक से जवाब दिया| मेरा जवाब सुन के पिताजी हैरान दिखे और चन्दर का मुँह जो कुछ समय पहले खुश था की उसकी पत्नी पर हक़ जताने वाला जा रहा है, उसे जब मेरे आने की बात पता चली तो उसका मुँह फिर से फीका पड़ गया|

ठाकुर साहब: ई तो बहुत बढ़िया है, फिर तो तोहसे जल्दी ही भेंट होइ!

मैंने एक नजर भौजी को फिर देखा तो लगा जैसे उनकी आँखें घूँघट के नीचे से मुझे अपने पास बुला रही हों, मैं मन्त्र मुग्ध सा उनकी ओर बढ़ चला| तभी अचानक से मेरी नजर सबसे पीछे खड़ी रसिका पर पड़ी, मैं परिवार में सबसे मिल चूका था बस एक वो ही बची थी| मैं भौजी की बगल से उसके पास पहुँचा ओर हथजोड़ कर उसे नमस्ते कहा, उसने तो उम्मीद भी नहीं की थी की मैं आकर उसे नमस्ते भी कहूँगा! खैर मैं नहीं जानता रसिका उस वक़्त क्या सोच रही थी क्योंकि उसने घूँघट काढ़ा हुआ था| इतने में पीछे से पिताजी ने थोड़ा गुस्से में चिल्ला कर कहा;

पिताजी: चल भई, देर हो रही है|

पिताजी का यूँ चिल्लाना इसलिए था की वो नहीं चाहते थे की मैं रसिका से आखरी बार मिलूँ, पर मैं उसके पास इस लिए गया था ताकि बाहर वालों के सामने उसकी कुछ तो इज्जत रह जाए क्योंकि अब तक काफी लोग इकठ्ठा हो चले थे जो ये 'विदाई' देख रहे थे| मैं वापस मुड़ा और भौजी को हाथ हिला कर bye कहा उसके बाद नेहा को गोद में ले कर आखरी बार उसके दोनों गालों की मीठी-मीठी पप्पियाँ ली, नेहा ने भी मेरी पप्पी ली तथा इस बार उसके चेहरे पर उदासी नहीं थी| नेहा को bye बोल मैं रिक्क्षे के पास पहुँचा, माँ रिक्क्षे में बैठ चुकी थीं, तथा रिक्शे वाले ने धीरे-धीरे पैडल मारने शुरू कर दिए थे, पिताजी अजय भैया के साथ आगे-आगे चल रहे थे और मैं सबसे पीछे चल रहा था| तभी मैंने एक बार मुड़ कर भौजी को देखा तो पाया की वो हमारे पीछे-पीछे आ रहीं थीं|

मैं: आप कहाँ जा रहे हो?

मैं एकदम से रुक गया और भौजी को देख हैरान होते हुए बोला|

भौजी: आपको छोड़ने?

भौजी ने अपना घूँघट ऊपर कर के कहा, उनका चेहरा देखते ही मेरे दिल में प्यार की तरंग छिड़ गई, जाने से पहले उन्हें एक बार देखने की इच्छा जो पूरी हो गई थी!

मैं: अरे प्रमुख सड़क तक कहाँ जाओगे, वो भी इस हालत में?

मैं चिंता जताते हुए कहा| इतने में पिताजी ने मुड़ कर मुझे भौजी से बात करते हुए देखा तो वो भी उन्हें समझाने आ गए;

पिताजी: बहु तु आराम कर, अजय साथ आ रहा है|

पिताजी को देख भौजी ने फिर से घूँघट काढ़ लिया था, मैं जान गया था की भौजी मेरे साथ थोड़ा और समय व्यतीत करना चाहती थीं, इसलिए वो हमारे साथ प्रमुख सड़क तक आना चाहती थीं| अब उनका दिल कैसे तोड़ता इसलिए मैंने पिताजी से तर्क करना चाहा;

मैं: चलने दो पिताजी, इसी बहाने इनकी थोड़ी कसरत ही हो जाएगी|

लेकिन माँ एकदम से बोल पड़ीं;

माँ: न बहु, तु आराम कर! सड़क यहाँ से बीस-पच्चीस मिनट दूर है, इतना चलेगी तो थक जाओगी, ऐसी हालत में ज्यादा मेहनत वाला कोई काम नहीं करते|

माँ का इतना डरना जायज था क्योंकि, बड़के दादा लड़के की आस लिए बैठे थे और कोई भी गड़बड़ या अनहोनी होती तो उसका ठीकरा किसी न किसी के सर फूटता| माँ ये कटाई नहीं चाहती थीं की भौजी को इन दिनों हमारे कारन कोई भी तकलीफ हो, बस इसीलिए उन्होंने भौजी को जाने से मना किया था|

भौजी: माँ...बस चौक तक चालूँ?!

भौजी ने रूंधे गले से कहा| उनकी आवाज सुन मैं उनके मन की व्यथा समझ गया, फिर चौक तो बस 5 मिनट ही दूर था इसलिए मैंने चौधरी बनते हुए कहा;

मैं: ठीक है!

पिताजी 'ये भी सह गए' और बिना कुछ बोले अजय भैया के साथ चल पड़े, उनके पीछे-पीछे रिक्क्षे वाला भी धीरे-धीरे चल पड़ा| सबसे पीछे मैं भौजी और नेहा चल रहे थे, हमारे और रिक्क्षे के बीच करीब 5 कदम का फासला था इसलिए हम आराम से बातें कर सकते थे;

मैं: देखो मेरे जाने के बाद अगर आप बीमार पड़े न तो मैं अगली फ्लाइट पकड़ के यहाँ आ जाऊँगा! मेरी गैरहाजरी में ठीक से खाना, कोई भी मेहनत वाला काम मत करना और कल के कल ही अपने मायके चले जाना!

मैंने भौजी को हिदायतें दीं, मैं हिदायतें इसलिए दे रहा था की ताकि उनका ध्यान भटक जाए लेकिन भौजी का गला एक दम से भर आया और वो रूँधे स्वर में बोलीं;

भौजी: जी!

इतने में ससुर चौक भी आ गया और हम दोनों आगे कुछ बात नहीं कर पाए, रिक्शे वाला दाईं तरफ घूमने लगा और माँ-पिताजी की नजर मुझ पर टिकी थी|

मैं: अच्छा आप मेरा इन्तेजार करना!

मेरा बस इतना कहना था की भौजी मुझसे कस कर लिपट गईं और फफक कर रोने लगीं| उन्हें रोता हुआ देख मेरे आँसूँ पुनः बह निकले, हम दोनों की देखा-देखि नेहा ने भी रोना शुरू कर दिया और वो मेरी टाँग से लिपट गई| मैंने अपने दाएँ हाथ से भौजी की पीठ सहलाते हुए उन्हें चुप कराया, बाएँ हाथ मैंने नेहा के सर पर रखा और उसके सर पर हाथ फेर कर उसे चुप कराने लगा| मैंने भौजी के माथे को चूमा, उनके आँसूँ पोछे और उन्होंने मेरे आँसूँ पोछे, भौजी दूर जातीं उससे पहल ही मैंने अपना माथा उनके माथे से भिड़ा दिया;

मैं: बस जान.... अब और नहीं रोना| मैं जल्दी आऊँगा...ठीक है?!

मैंने खुद को काबू करते हुए कहा|

भौजी: मैं आपका इन्तेजार करुँगी जानू!

भौजी हिम्मत कर के बोलीं|

मैं: Now smile!

भौजी धीमे से मुस्कराईं, हालाँकि उनकी इस मुस्कराहट में अब भी आँसूँ छुपे थे| मैंने नेहा को गोद में लिया और उसके माथे को चूम कर उसे उसकी जिम्मेदारी की फिर याद दिलाई और उसे भी मुस्कुराने को कहा| नेहा के चेहरे पर फिर से भीनी सी मुस्कान आ गई, भौजी के उलट उसकी मुस्कान में उम्मीद साफ झलक रही थी जबकि भौजी अब भी डरी हुई थीं|

मैंने भौजी और नेहा को हाथ हिला कर bye कहा तथा उनकी ओर देखते हुए ही धीरे-धीरे कदम पीछे बढ़ाने लगा, मेरे चेहरे पर दुबारा मिलने की ललक थी जिसने मेरे चेहरे पर ख़ुशी की रेखा को जन्म दे दिया था| आखिर मैं रिक्क्षे पर बैठा, इस ख़ुशी के साथ कम से कम मैं दोनों का हँसता हुआ चेहरे की याद ले कर जा रहा हूँ| इधर पिताजी अजय भैया की साईकिल के पीछे बैठे और आगे चल पड़े, उनके पीछे-पीछे ही रिक्क्षे वाला चल पड़ा| जब तक रिक्क्षा भौजी और नेहा की आँखों से ओझल नहीं हो गया दोनों मुझे हाथ हिला कर bye करते रहे| वहीं जबतक भौजी और नेहा मेरी आँखों से ओझल नहीं हो गए मैं भी उन्हें हाथ हिला कर bye करता रहा| हम तेजी से प्रमुख सड़क की ओर बढे, जैसे ही वहाँ पहुँचे की दो मिनट में लखनऊ की बस आ गई| अजय भैया ने फटाफट सामान अंदर रखा, मैंने उन्हें एक बार फिर याद दिलाया की वो घर जा कर अपना फ़ोन भौजी को दे दें, तो अजय भैया ने मुस्कुरा कर हाँ में सर हिला कर हामी भरी|

साढ़े तीन घंटे तक बस के झटके खा कर हम लखनऊ पहुँचे, घड़े में बजे थे करीब 2 और हमारी ट्रैन थी रात 10 बजे की| मेरी उतरी हुई सूरत देख पिताजी ने मेरा दिल बहलाने को लखनऊ घूमने का प्लान बनाया, भौजी से दूर होकर मेरा मन अशांत था और वो भाग कर भौजी के पास जाना चाहता था| पर जब पिताजी ने घूमने का प्लान बताया, मेरा मन तो कतई नहीं था लेकिन माँ और पिताजी का दिल तोडना नहीं चाहता था इसलिए मैंने उनकी बात मान ली| मैंने तुरंत अपने चेहरे पर ख़ुशी का मुखौटा लगाया और अपने माता-पिता के साथ लखनऊ घूमने लगा| पहले हमने एक रेस्टुरेंट में बैठ कर खाना खाया, उसके बाद हम बड़ा इमाम बाड़ा, छोटा इम्माम बाड़ा, प्रेसीडेंसी और शहीदी पार्क घूमने निकले| परन्तु इसके आगे हमें घूम नहीं पाए, क्योंकि माँ-पिताजी थक गए थे इसलिए हमने बैठ कर चाय पी और फिर स्टेशन आ गए| रात साढ़े नौ बजे ट्रैन स्टेशन पर लग गई और हम सामान रख कर अपनी-अपनी सीटों पर बैठ गए| ट्रैन में बैठते समय मुझे एहसास हुआ की जब मैं गाँव आ रहा था तो मन में किता उल्लास था, हर्ष था, ललक थी पर अब वापस जाते समय दिल में बस उदासी ही उदासी है! तभी मन ने मुझे इन दिनों में मिली इतनी खुशियों की याद दिलाई, आते समय मैं खाली हाथ आया था पर जाते समय भौजी की जिंदगी खुशियों से भर कर जा रहा था, अपने दिल में भौजी और नेहा का प्यार ले कर जा रहा था और नेहा को वो प्यार दे कर जा रहा था जो उसे अब तक नहीं मिला था| इस ख़याल ने मेरे तनमन में ख़ुशी की फुलझड़ी छोड़ दी थी!

तभी बैठे-बैठे दिमाग में बिजली कौंधी और याद आया की भौजी को फोन तो कर ले?! मैंने तुरंत भौजी को कॉल मिलाया पर अजय भैया का फोन बंद था, फ़ोन पर स्विच ऑफ की आवाज सुन मेरा दिल जोरों से धड़कने लगा, मैं भौजी की आवाज सुनने को मरा जा रहा था और हर 10-15 मिनट बाद उन्हें फ़ोन मिलाये जा रहा था, पर हरबार फ़ोन बंद ही आ रहा था| मन विचलित हो कर बोला; 'अभी तुझे भौजी को अकेले छोड़े हुए कुछ घंटे ही हुए हैं और अभी से इतनी परेशानिया खड़ी हो गईं हैं, तेरे दिल्ली पहुँचने तक कहीं कुछ ऊँच-नीच हो गया तो?!' ये ख्याल आते ही जिस्म काँप गया, मन बेचैन हो उठा की कहीं भौजी ने कुछ कर तो नहीं लिया? मेरा उनके लिए प्यार ही मुझे ये बुरे ख्याल सुझा कर डरा रहा था| तभी दिमाग ने मुझे अक्लमंदी वाली घास खिलाई; 'ये भी तो हो सकता है की अजय भैया के फ़ोन की बैटरी खत्म हो गई हो?! अगर कुछ अनर्थ हुआ होता तो अभी तक पिताजी के पास बड़के दादा के फ़ोन से कॉल आ चूका होता| तू थोड़ा सब्र रख और कल घर पहुँच कर भौजी के मायके वाले नंबर पर कॉल कर के उनका हाल-चाल पूछ लेना|' अक्लमंदी की घास काम कर गई और मैंने दिल को ये दिलासा दे कर शांत कर लिया| तभी माँ ने भौजी द्वारा पैक किया हुआ खाना खोला, भौजी के हाथ का बना हुआ ये खाना मेरे लिए आखरी खाना था.... कम से कम कुछ महीने के लिए तो आखरी ही था! खाना खाते समय मैं भौजी के प्यार को महसूस कर पा रहा था, उनकी उँगलियों की छुअन मानो मेरे गले से होते हुए पेट तक पहुँच रही थी| भौजी के मेरे पास न होते हुए भी आँखें बंद कर के मैं उन्हें अपने सामने बैठा हुआ कल्पना करने लगा था| उनका मुस्कुराते हुए चेहरे की कल्पना करते हुए मैंने खाना खाया और सबसे ऊपर वाली बर्थ पर लेट गया|

'समय हुआ था साढ़े 10 और अब तक तो भौजी खाना खा कर लेट चुकी होंगी, मेरी प्यारी बेटी उनसे लिपट कर सो रही होगी और हो न हो भौजी भी मुझे अभी याद ही कर रही होंगी|' अपने मन के इस ख्याल को महसूस कर मेरे चेहरे पर मुस्कान आ गई| मैंने अपनी आँखें बंद की और मेरी बंद आँखों के सामने भौजी के साथ बिताई तमाम यादों की रील चल पड़ी, उन्हीं यादों को फिर से जीते हुए, ट्रैन के झटके सहते हुए मैं सो गया| अगली सुबह जब मेरी नींद खुली तो मुझे होश ही नहीं था की मैंने अपना गाँव छोड़ दिया है, अपनी प्रियतमा को अकेले छोड़ आया हूँ, अपनी लाड़ली बेटी को छोड़ आया हूँ! मैं तो इस उम्मीद में था की अब भौजी आएँगी और मुझे प्यार से उठाएँगी, good morning kiss देंगी! फिर मेरी लाड़ली आएगी और वो आकर मेरे गाल परअपनी मीठी-मीठी पप्पी देगी! लेकिन तभी पिताजी की कड़क आवाज कान में पड़ी;

पिताजी: मानु...उठ जा ...स्टेशन आने वाला है|

पिताजी की आवाज सुन एकदम से उठ बैठा| अब जाके होश आया की न तो यहाँ भौजी हैं और न ही नेहा, ये एहसास होते ही मुझे बहुत दुःख हुआ लेकिन अब किया भी क्या जा सकता था!

[color=rgb(147,]जारी रहेगा भाग 10 में...[/color]
 

[color=rgb(243,]उन्नीसवाँ अध्याय: बिछड़न![/color]
[color=rgb(184,]भाग -10[/color]


[color=rgb(65,]अब तक आपने पढ़ा....[/color]

मैंने अपनी आँखें बंद की और मेरी बंद आँखों के सामने भौजी के साथ बिताई तमाम यादों की रील चल पड़ी, उन्हीं यादों को फिर से जीते हुए, ट्रैन के झटके सहते हुए मैं सो गया| अगली सुबह जब मेरी नींद खुली तो मुझे होश ही नहीं था की मैंने अपना गाँव छोड़ दिया है, अपनी प्रियतमा को अकेले छोड़ आया हूँ, अपनी लाड़ली बेटी को छोड़ आया हूँ! मैं तो इस उम्मीद में था की अब भौजी आएँगी और मुझे प्यार से उठाएँगी, good morning kiss देंगी! फिर मेरी लाड़ली आएगी और वो आकर मेरे गाल परअपनी मीठी-मीठी पप्पी देगी! लेकिन तभी पिताजी की कड़क आवाज कान में पड़ी;

पिताजी: मानु...उठ जा ...स्टेशन आने वाला है|

पिताजी की आवाज सुन एकदम से उठ बैठा| अब जाके होश आया की न तो यहाँ भौजी हैं और न ही नेहा, ये एहसास होते ही मुझे बहुत दुःख हुआ लेकिन अब किया भी क्या जा सकता था!

[color=rgb(41,]अब आगे...[/color]

कुछ
देर में 'नयी दिल्ली' स्टेशन आया और हम सामान ले कर उतर गए, जबसे उठता तब से भौजी और नेहा की आवाज सुनने को विचलित था इसलिए स्टेशन से बाहर आते-आते मैंने भौजी को कॉल किया, पर अब भी फ़ोन बंद ही था| स्टेशन से बाहर आ कर पिताजी ऑटो करने लगे तो मैंने फिर भौजी को फ़ोन खनका दिया, पर कोई फायदा नहीं| आखिर ऑटो करके हम घर पहुँचे, महीने भर से घर बंद था तो अंदर का हाल बड़ा बुरा था| मैं जानता था की पिताजी मुझे सफाई में लगा देंगे, ऐसे में मैं भौजी से बात कैसे करूँगा? इसलिए मैंने खुद ही झाड़ू उठाया और फटाफट सफाई शुरू कर दी, पिताजी टंकी में पानी चढाने लगे| पोन घंटे में सफाई कर मैं अपने कमरे में आ गया और साथ ही पिताजी का फ़ोन भी चुरा लाया! लेकिन तभी माँ ने बैग से सामान निकालने को कहा तो मुझे उनका कहा काम करना पड़ा| घडी में बजे थे साढ़े दस तो मैंने सोचा की थोड़ा और इंतजार कर लेता हूँ, बारह बजे अनिल के नंबर पर कॉल करता हूँ तब तक तो भौजी तो अपने मायके पहुँच ही जाएँगी! इतने में पिताजी टंकी में पानी चढ़ा कर नीचे आ गए और अपना फ़ोन माँगा, नचाहते हुए भी मैंने उन्हें उनका फ़ोन वापस दिया| पिताजी ने बड़के दादा को कॉल किया और उन्हीं घर पहुँचने का समाचार दिया, एकबार को मन तो किया की क्यों न मैं भी पिताजी से फ़ोन ले कर बात करूँ और फिर बड़के दादा से कह दूँगा की वो भौजी को बुला दें, पर फिर सोचा की मेरा ऐसा कहने से बड़के दादा क्या सोचेंगे? भौजी के लिए भी अपने ससुर से फ़ोन ले कर मुझसे बात करना मुश्किल होगा और वो ढंग से बात भी नहीं कर पाएँगी| मैंने दिल को समझाया की थोड़ा और सब्र कर, सब्र का फल मीठा होता है!

इधर फ़ोन पर बात कर पिताजी ने मुझे झिड़कते हुए कहा;

पिताजी: एक महीना बहुत मन की कर ली तूने, अब चुप-चाप पढ़ाई में ध्यान लगा!

पिताजी की झिड़की सुन मैं अपने कमरे में लौट आया, नहाया और अपना हॉलिडे होमवर्क खोल कर बैठ गया| पर मन पढ़ाई में नहीं लग रहा था, आँखें घडी की सुइयों पर टिकी हुई थीं, कब बारह बजे और मैं फटाफट भौजी को कॉल करूँ! टिक-टी ककरते हुए आखिर घडी ने बारह बजाए और मैंने फटाफट अपने साले साहब को कॉल मिलाया;

अनिल: हेल्लो?!

अनिल की आवाज सुन मैं थोड़ा चौंक गया, क्योंकि मैं उम्मीद कर रहा था की फ़ोन भौजी ही उठाएँगी|

मैं: हेल्लो...अनिल, मैं मानु बोल रहा हूँ|

मेरी आवाज सुन कर वो थोड़ा आस्चर्यचकित हुआ|

अनिल: नमस्ते जीजा जी...आप कैसे हैं?

उसने बात शुरू करते हुए कहा|

मैं: मैं ठीक हूँ......

इसके आगे बोलने में मैं हिचक रहा था, अब उससे कैसे कहूँ की मुझे तुम्हारी दीदी से बात करनी है?! पर भौजी से बात तो करनी ही थी, इसलिए मैंने हिम्मत करके कहा;

मैं: मेरी बात हो जाएगी...!

इतना कह मैं चुप हो गया, 'भौजी' कह नहीं सकता था! मैं उम्मीद करने लगा की अनिल शायद समझ जाए, पर वो कैसे समझता की मैं किस्से बात करने को व्याकुल हूँ?!

अनिल: किससे?

उसने जिज्ञासु बनते हुए पुछा|

मैं: अ...अ..... वो....आपकी दीदी से!

मैंने हकलाते हुए कहा|

अनिल: वो तो यहाँ नहीं हैं!

अनिल का जवाब सुन मुझे लगा की वो शायद घर पर नहीं होगा|

मैं: आप घर पर नहीं हो?

अनिल: मैं तो घर पर ही हूँ, पर दीदी यहाँ नहीं आईं|

अनिल की बात सुन मैं अवाक रह गया!

मैं: अच्छा? ओके....

ये कहते हुए में सोचने लगा की भौजी ने मुझसे किया वादा कैसे तोड़ दिया?! तभी अनिल बोला;

अनिल: क्या दीदी न कहा था ई वो आज आएँगी?

मैं; नहीं..नहीं...शायद ....मतलब मुझे ऐसा लगा| खेर..मैं बाद में बात करता हूँ, बाय!

मैं अब भी सोच में था, इसलिए बात जल्दी से खत्म की|

अनिल: बाय जीजा जी|

फ़ोन रख कर मेरे दिमाग में एक सवाल कौंधा; 'कहीं बड़की अम्मा ने भौजी को जाने से मना तो नहीं कर दिया?!' ये सोच के मुझे बहुत चिंता होने लगी थी, फिर मैंने सोचा की चलो एक बार और अजय भैया का नंबर मिला के देखूँ| खुश किस्मती से इस बार नंबर मिल गया और पहली घंटी बजते ही भौजी ने फ़ोन उठा लिया;

भौजी: हेल्लो....

भौजी की हेल्लो सुनते ही मेरे मुँह से हेल्लो निकला;

मैं: हेल्लो!

मेरी आवाज में चिंता झलक रही थी, उधर भौजी भी चिंतित थीं क्योंकि इतने दिन साथ रहने के बाद आज पहला दिन था जब उन्होंने सुबह उठते ही नेरा चेहरा न देखा हो!

भौजी: जानू....जानू...आप कैसे हो? आपकी आवाज सुनने को तरस गई थी|

भौजी घबराते हुए बोलीं|

मैं: मैं ठीक हूँ जान! कल रात से छत्तीस बार नंबर मिला चूका हूँ, पर फोन switch off जा रहा था|

मैंने उन्हें अपने हालात बताये और मेरी आवाज में चिंता बराबर झलक रही थी|

भौजी: वो फोन की बैटरी खत्म हो गई थी...अभी-अभी अजय भैया फ़ोन चार्ज करा के लाये और मुझे दिया| आपको पता है, सारी रात मैं सो नहीं पाई.... करवटें बदलती रही....आपकी आवाज ने सोने नहीं दिया|

भौजी ने रूँधे गले से अपने दिल के जज़्बात ब्यान किये|

मैं: चिंता से मेरी जान जा रही थी...और ये बताओ की आप अब तक यहीं हो?

मैंने भौजी पर अपना सवाल दागा, मेरी आवाज में चिंता के साथ-साथ थोड़ा गुस्सा भी झलक ने लगा था|

भौजी: जी....वो..... फोन तो किया था अनिल को...पर वो आया नहीं!

भौजी ने डरते हुए मुझसे झूठ बोला|

मैं: जूठ बोल रहे हो ना?!

मैंने आवाज में थोड़ी सी हलीमी लाते हुए कहा, जो इस बात का संकेत था की मैंने उनकी चोरी पकड़ ली है|

भौजी: जी....वो.....

भौजी हकलाते हुए बहाना सोचना चाहा|

मैं: मेरी अभी बात हुई थी अनिल से, उससे बात कर के पता चला की आपने मायके आने का कोई संदेसा ही नहीं भिजवाया तो वो आता कैसे आपको लेने?

मेरी बात सुन भौजी शर्मिंदा हुईं और अंततः सच बोलीं;

भौजी: सॉरी जानू, कल आप चले गए और आज अगर मैं चली जाती तो घर कौन संभालता?

भौजी की बात सुन मेरा गुस्सा फिर से भड़क उठा, वो घर संभालने के लिए अपनी और हमारे बच्चे की जान दाऔ पर लगा रहीं थीं और ये मुझे कतई गंवारा नहीं था|

मैं: आप जानते हो न, आपने अपना वादा तोड़ दिया! और घर संभालने के लिए 'वो' (रसिका) है ना! आप कल मुझे अपने मायके में मिलने चाहिए? समझे? वरना मैं कल रात की गाडी पकड़ के आ रहा हूँ!

मैंने गुस्से में भौजी को हड़काया!

भौजी: तो आ जाओ ना....

पर भौजी मेरे कल आने की बात सुनकर खुश हो गईं और अपने प्यार भरी आवाज में मुझे आने का निमंत्रण ही दे डाला! इधर भौजी की ये बात सुन कर मेरा मन प्रफुल्लित हो गया;

मैं: सच?

मैंने उत्साहित होते हुए पुछा|

भौजी: नहीं बाबा, आज ही तो पहुँचे हो तो कल कैसे आओगे? आप अक्टूबर में आना, तब तक मैं आपका इंतजार करूँगी! और मैं आपसे हाथ जोड़कर माफ़ी मांगती हूँ की मैंने आपसे किया वादा तोडा, पर ये आखरी बार था की मैं आपसे किया कोई वादा तोड़ रही हूँ! आज के बाद अगर मैंने कोई वादा तोडा तो खाल खींच लेना मेरी! आपकी कसम मैं कल अपने मायके चली जाऊँगी और कल वहाँ पहुँचते ही आपको फोन करुँगी|

भौजी ने बड़े प्यार से अपनी वादा खिलाफी के लिए माफ़ी माँगी, उनकी इसी अदा का तो मैं कायल था और एकदम से पिघल गया था पर पति था उनका थोड़ा और हड़काना तो बनता था!

मैं: जब तक आप फोन नहीं करोगे मैं कुछ नहीं खाऊँगा!

मेरी बात सुन भौजी थोड़ा डर गईं और बोलीं;

भौजी: नहीं..नहीं.. ऐसा मत कहो!

मैं: नहीं मैं कुछ नहीं जानता, कल आप अगर अपने मायके नहीं पहुँचे तो......

मैंने भौजी को एक खोखली धमकी दे डाली और अपनी बात अधूरी छोड़ दी|

भौजी: ठीक है बाबा, मैं कल सुबह ही चली जाऊँगी|

भौजी ने हार मानते हुए मुस्कुरा कर कहा|

मैं: और हाँ प्लीज इसी तरह मुस्कुराते रहना, I love you!

मैंने मुस्कुरा कर कहा, उस समय लगा की काश भौजी मेरे सामने होतीं और मैं उन्हें अपने सीने से लगा कर उनके सर को चूम पाता|

भौजी: I love you too!

भौजी ने मुस्कुराते हुए जवाब दिया, वहीं उनकी ये मुस्कान मैं पिताजी के नोकिआ 1600 पर महसूस कर रहा था|

मैं: अच्छा मेरी लाड़ली कहाँ है, उसकी आवाज भी तो सुनाओ!

भौजी: वो तो अभी तक स्कूल से नहीं आई, कल उससे जी भर के बात कर लेना!

दिक्कत ये थी की उन दिनों call rates बहुत महँगे थे, STD कॉल 2/- रूपए प्रति मिनट होता था और लोकल 1/- प्रति मिनट! अब मैं कमाता-धमाता तो था नहीं, इसी कारन न तो मैं भौजी से ज्यादा लम्बी बात कर सकता था और न ही नेहा के आने तक मैं कॉल होल्ड कर सकता था! कल उससे बात होगी ये सोच कर ही मैंने दिल को तसल्ली दे दी और भौजी को bye कह कर कॉल काटा| भौजी से बात होकर मेरे बेकरार दिल को चैन आ गया था|

अब समय था किताबें खोलने का और मन लगा कर पढ़ाई करने का वरना भौजी मेरी पढ़ाई में मिली नाकामी को अपने सर ले लेतीं! मैंने अपने स्कूल के दोस्तों को फ़ोन मिलाया और उन्हें अपने आने की सुचना दी, उन सब के तो holiday homework खत्म हो चुके थे पर मेरे सामने holiday homework का पहाड़ खड़ा हुआ था|

प्यार मोहब्बत में डेढ़ महीना कैसे निकला पता ही नहीं चला, लेकिन ये डेढ़ महीना वो समय था जिसने मेरी जिंदगी को पूरी तरह बदल दिया था| इन डेढ़ महीनों में मुझे एक पत्नी मिली जो मुझे दिलों जान से प्यार करती है, एक प्यारी सी गुड़िया जैसी बेटी मिली जो मुझमें अपने पिता को देखती है, एक आने वाले नए मेहमान की ख़ुशी मिली जो न केवल हम दोनों पति-पत्नी के प्रेम की निशानी था बल्कि वो हमें ताउम्र साथ जोड़े रखता और अंत में मुझे एक अच्छी सी दोस्त सुनीता के रूप में मिली थी! इतनी खुशियाँ वो भी डेढ़ महीने में, कौन यकीन करेगा?! मैंने इस बात को अपने दोस्तों से राज रखने का सोचा, परन्तु मेरा दोस्त दिषु वो मेरी प्रेम कहानी 'आधी' जानता था तो जाहिर था की वो मेरे पीछे पड़ता| मेरी दिषु से मुलाक़ात कल सुबह होने वाली थी और मैं ने सोच लिया था की मैं उसे भौजी और मेरे रिश्ते के बारे में नहीं बताऊँगा, ऊपर-ऊपर से बता दूँगा! दोपहर के भोजन के बाद मैंने सबसे पहले अपना इंग्लिश का holiday homework निकाला और रात 9 बजे तक बैठ कर आधा खत्म कर दिया, रात में खाना खाने के दौरान पिताजी माँ से काम के बारे में बात करने लगे| इतने दिन गाँव में रहने से 'हमेशा की तरह' काम का बहुत नुक्सान हुआ था, जाने से पहले पिताजी ने खाली एक साइट का काम चालु रखा था| इतने दिन गाँव रहने से कोई भी नया ठेका नहीं मिला था, जो भी पुराने जान-पहचान वाले हरहाक थे उन सब ने काम किसी और को दे दिया था! पर ये कोई नै बात नहीं थी, जब भी पिताजी गाँव जाते थे तो ऐसा ही होता था, शुरू-शुरू में माँ उन्हें टोकती पर पिताजी पलट कर उन्हीं झाड़ दिया करते थे इसलिए अब माँ ने चुप रहना शुरू कर दिया था| पिताजी के लिए नाते-रिश्ते पहले आते थे और काम-धंधा बाद में, उनकी ये नीति माँ को कभी पसंद नहीं आई थी! खैर खाना खा कर मैं फिर homework ले कर बैठ गया, दस बजे माँ ने आ कर मुझे सोने को कहा पर नेहा और भौजी के बिना मुझे नींद कैसे आती? मैं लेट तो गया पर नींद नहीं आई, मैंने करवटें बदलनी शुरू की पर कोई चैन नहीं! नेहा को अपने सीने से चिपका कर सोने की आदत जो पद गई थी, हारकर मैंने एक तकिया लिए और उसे अपने सीने से चिपका लिया| उस तकिये को मैंने नेहा मान लिया और उसे चूमता रहा, कुछ देर में नींद आ गई लेकिन एक बजे मैं चौंक कर उठ गया! मैंने बहुत डरावना सपना देखा था, सपने में मैं भागकर गाँव पहुँचा था और मुझे देखते ही भौजी और नेहा हवा में 'गायब' हो गए थे! इस सपने ने मेरी नींद उदा दी, मैं उठ कर बैठा और अपनी साँसों को नियंत्रित करने लगा| फिर पानी पिया और अपने कमरे की लाइट जला कर टेबल पर बैठ गया, नींद तो आ नहीं रही थी इसलिए मैंने सोचा की क्यों न homework ही खत्म कर लिया जाए! सुबह के 4 बजे तक जाग कर मैंने इंग्लिश का holiday homework खत्म कर दिया और अब मुझे खुद पर बहुत गर्व महसूस हो रहा था| आँखें बोझिल हो रहीं थीं इसलिए मैंने लेट गया और लेटते ही नींद आ गई, फिर जब आँख खुली तो सुबह के साढ़े 7 हो रहे थे| मैं ट्रैक पंत और टी-शर्ट पहन कर बाहर आया तो माँ-पिताजी मुझे डाइनिंग टेबल पर बैठे मिले| मैंने दोनों के पाँव हाथ लगाए की तभी माँ मेरे सर पर हाथ फेरते हुए बोलीं;

माँ: मेरा लाल रात भर जाग कर पढ़ रहा था|

माँ ने मेरी तारीफ की, पर पिताजी थोड़ा कठोर स्वभाव के थे इसलिए वो तुनक कर बोले;

पिताजी: हाँ तो करेगा ही, डेढ़ महीना मस्ती जो मारी है इसने! पढ़ेगा नहीं तो टाँग नहीं तोड़ दूँगा इसकी!

पिताजी की झिड़की सुन मेरा सर शर्म से झुक गया, माँ की तारीफ से दिल को थोड़ी ख़ुशी मिली थी पर पिताजी के अंगारों ने दिल को जला दिया था| अब अगर वहां रुकता तो माँ-पिताजी के बीच मुझे लेकर झगड़ा हो जाता तो मैं माँ से बोला;

मैं: माँ मैं पार्क जा रहा हूँ, एक घंटे में आ जाऊँगा|

माँ ने मेरे सर पर हाथ फेरा और पिताजी को सुनाते हुए बोलीं;

माँ: ठीक है बेटा, थोड़ी ताजा हवा खा ले| जब तू आएगा न तो मैं तुझे मैगी बना देती हूँ!

माँ मेरा दिल खुश करना जानती थी, मैगी का नाम सुनते ही मैं खुश हो गया पर मेरे पिताजी.... वो माँ को सुनाते हुए बोले;

पिताजी: ज्यादा मटर-गश्ती मत करिओ, चुप चाप घर पर रह कर अपनी पढ़ाई करिओ!

पिताजी की चेतावनी सुन मेरे चेहरे से फिर ख़ुशी हवा हो गई और मैं सर झुकाये हुए पार्क पहुँचा जहाँ दिषु मेरा इंतजार कर रहा था|

दिषु: आ गए मजनू अपनी लैला को छोड़ कर?

दिषु मुझे चिढ़ाते हुए बोला| उसकी ये बात सुन कर मैं हँस पड़ा, फिर हम गले मिले और पार्क का चक्कर लगाने लगे|

दिषु: और भाई, क्या किया इतने दिन गाँव में? भाभी कैसी हैं?

भाभी का नाम सुनते ही मैं चौंक गया और आँखें बड़ी कर के उसे देखने लगा, मैं मन ही मन सोचने लगा की मैंने तो दिषु को भौजी के बारे में बताया नहीं फिर उसे कैसे पता?

मैं: भ...भाभी?

मैंने हकलाते हुए पुछा, दिषु ने एक जोरदार थपकी मेरी पीठ पर मारी और हँसते हुए बोला;

दिषु: अबे मेरी भाभी, मतलब तेरी बंदी!

उसकी बात सुन कर मेरे दिल को चैन मिला और मैं भी हँस पड़ा| तभी दिषु ने मेरी पीठ में एक जोरदार घुसा मारा और बोला;

दिषु: बहनचोद! घर से भागने वाला था, भोसड़ीवाले, चूतिया हो गया था क्या?!

दिषु ने थोड़ा गुस्से से कहा|

मैं; सॉरी यार! दिमाग खराब हो गया था!

मैंने उससे माफ़ी माँगते हुए कहा| अब वो मेरे पीछे पद गया की मैं उसे सब बताऊँ तो मैंने उसे बताना शुरू किया;

मैं: यार बहुत प्यार करता हूँ 'उससे'!

मुझे मजबूरन यहाँ भौजी के लिए 'उनसे' शब्द की जगह 'उससे' शब्द का प्रयोग किया, कारन था मेरा दिषु से भौजी और मेरे रिश्ते को छुपाना|

मैं: वो भी मुझे बहुत प्यार करती है, इतना प्यार की कभी-कभी तो हम जैसे मुक़ाबले करने लगते थे की कौन किसे ज्यादा प्यार करता है| सुबह आँख खुलने से लेकर रात को सोने तक मेरी आँखों के सामने बस वही होती थी, इतने दिनों में बस एक हफ्ता ही हम अलग रह पाए और वो एक हफ्ता या तो मैं बीमार पड़ा रहा या फिर वो बीमार पड़ी रही| इतना प्यार है हम दोनों के बीच की तू सोच भी नहीं सकता, बहुत नसीब वाला हूँ मैं जो मुझे इतना प्यार करने वाली मिली|

मेरे मुँह से प्यार की बातें सुन दिषु को भौजी का नाम जानने की इच्छा पैदा हुई, अब मैं उसे मना कैसे करता इसलिए मैंने उसे भौजी का असली नाम बता दिया| अब जैसा की लौंडों में होता है, जब हमें दोस्त की बंदी का नाम पता चल जाए तो हम अपने दोस्त की टाँग खींचने से बाज नहीं आते| ठीक वही 'चुल्ल' दिषु को भी मची और उसने भौजी का नाम ले-ले कर मेरी खिंचाई शुरू कर दी| इसी खिंचाई के दौरान उसने वो सवाल भी पुछा जिसे जानने को लौंडे बहुत इच्छुक रहते हैं;

दिषु: अच्छा ये बता, तूने कुछ किया या नहीं?!

मैं उसका मतलब समझ गया और शर्म से सर झुका कर मुस्कुराने लगा| मेरे चेहरे पर शर्म की लाली देख कर दिषु ने मुझे चिढ़ाना शुरू कर दिया;

दिषु: ओये-होये! लड़के के गाल शर्म से लाल हो गए, मतलब की मेरा भाई अब वर्जिन न रहा!

दिषु ने मुझे छेड़ते हुए कहा, उसकी बात सुन कर मैं शर्म से लाल था पर अभी तो वो सबकुछ नहीं जानता था, अगर जानता तो मुँह बाए मुझे देखता रहता|

पार्क से घर लौट कर मैंने मैगी खाई और चुपचाप पिताजी का फ़ोन चुरा कर अपने कमरे में पहुँच गया| मैंने फटफट अनिल का नंबर मिलाया तो पता चला की अनिल अभी तक उन्हें लेने ही नहीं गया है, उसने बताया की वो दोपहर तक पहुँचेगा| मैंने घडी देखि तो अभी बस 10 बजे थे, मेरा मन फिर से बेसब्र हो चला था, दिल भौजी और नेहा की आवाज सुनने को तड़प रहा था| तभी पिताजी ने अपना फ़ोन माँगा और वो साइट पर निकल गए, आमतौर पर पिताजी दोपहर को खाना खाने आ जाते थे पर कभी-कभार वो सीधा रात को आते थे| मेरा दिल बस यही दुआ कर रहा था की कैसे भी आज पिताजी जर्रूर खाना खाने आएं ताकि मैं भौजी और नेहा से बात कर सकूँ! मैंने अपनी किताब खोली और एकाउंट्स का holiday homework खोल कर बैठ गया, दोपहर होने तक मैं अपना ध्यान पढ़ाई में लगाने में कामयाब रहा| दो बजे पिताजी खाना खाने आये और मैंने उनसे दिषु को फ़ोन करने का बहाना मार के फ़ोन लिया, पहले फ़ोन साइलेंट किया और झूठ मूठ का दिखावा करते हुए उससे बात करने लगा, पिताजी को इत्मीनान हो गया की मैं दिषु से ही बात कर रहा हूँ| माँ ने पिताजी को खाना परोसा और मुझे भी आने को कहा;

मैं: माँ आप खाना खाइये, मैं बस एक सवाल का हल पूछ कर आ रहा हूँ

इतना कह मैं अपने कमरे में खिसक गया और भौजी को फ़ोन मिलाया, खुशकिस्मती से भौजी अपने घर पहुँच चुकी थीं और फ़ोन की पहली घंटी भी पूरी नहीं बजी थी की भौजी ने एकदम से फ़ोन उठा लिया;

मैं: हेल्लो?!

मेरे हेल्लो सुनते ही भौजी ख़ुशी से चहकते हुए बोलीं;

भौजी: हेल्लो जानू!

उनकी आवाज सुन कर मेरे दिल को करार आया|

मैं: कैसे हो आप?

भौजी: आपके बिना, बस समय काट रही हूँ! तो कब आ रहे हो आप?

भौजी ने अपनी अधीरता दिखाते हुए सवाल पुछा;

मैं: जान जैसे ही स्कूल खुलेंगे मैं जुगाड़ लगा के पता करता हूँ की दशेरे की छुटियाँ कब हैं, फिर तुरंत टिकट बुक करवा लूँगा|

मैंने उत्साहित होते हुए भौजी की आस बँधाई|

भौजी: और प्लीज जानू इस बार कोई सरप्राइज प्लान मत करना!

भौजी ने वाराणसी से लौटने के दिन वाले सरप्राइज की याद दिलाते हुए विनती की|

मैं: जानता हूँ जान, इस बार ऐसा कोई सरप्राइज नहीं दूँगा, सीधा दौड़ते हुए आपके मायके आ जाऊँगा|

मेरी बात सुन भौजी को इत्मीनान हुआ की इस बार मैंने उन्हें अपने सरप्राइज से तड़पाऊँगा नहीं|

भौजी: अच्छा ये बताओ, आपने खाना खाया की नहीं?

भौजी ने चिंता जताते हुए पुछा|

मैं: अभी नहीं|

भौजी: तो पहले खाना खाओ जाके, फिर बाद में बात करते हैं|

भौजी में मुझे हुक्म देते हुए कहा|

मैं: जान, पिताजी अभी खाना खाने घर आये हैं और खा कर फिर चले जायेंगे, तो हम बात कब करेंगे? रात में वो देर से आते हैं, फिर कल सुबह तक इन्तेजार करना पड़ेगा|

मैंने भौजी को परिस्थिति से अवगत कराया|

भौजी: सच कहूँ तो मेरा मन करता है की भाग के आपके पास आ जाऊँ!

भौजी ने एकदम से अपने दिल के अरमान मुझे बताये|

मैं: Hey....मैं आ रहा हूँ ना, तो आपको भागने की क्या जर्रूरत है?!

मैंने भौजी को बड़े प्यार से समझाया, इतने में पीछे से नेहा के बोलने की आवाज आई|

मैं: अच्छा अब नेहा से बात कराओ?

ये सुन भौजी मुस्कुराईं और बोलीं;

भौजी: ये लो बात करो, कल से सौ बार पूछ चुकी है की पापा कब आएंगे?

भौजी ने फ़ोन नेहा को दिया और उसकी प्यारी सी मधुर आवाज कान में पड़ी;

नेहा: हे..हेल्लो पापा!

नेहा आज जिंदगी में पहलीबार फ़ोन पर बात कर रही थी और वो भी मुझसे| मैं आँखे बंद किये हुए कल्पना करने लगा की वो कैसी दिखती होगी, फ़ोन उठाये हुए|

मैं: Awww...मेरा बच्चा कैसा है?

मैंने अपने चित-परिचित आवाज में कहा, जिसे सुन नेहा के चेहरे पर बड़ी सी मुस्कान आ गई|

नेहा: पापा ... आई...लब....यू.....शो....मच!

नेहा ने अटकते-अटकते पहली बार अंग्रेजी में मुझे; 'I love you so much' कहा| पहलीबार था इसलिए नेहा थोड़ा घबराई थी और शब्दों का उच्चारण ठीक से नहीं कर पा रही थी|

मैं: Awwww मेरा बच्चा...!

मैंने नेहा को अपनी बाहों में भरना चाहा, पर वो मेरे सामने तो थी नहीं! ये बेबसी महसूस कर के मुझे थोड़ी सी मायूसी हुई पर दिल ने कहा की तू बाद में रो लिओ, पर अपनी बेटी से बात तो कर ले|

मैं: बेटा किसने सिखाया ये, मम्मी ने न?

मेरा सवाल सुन नेहा ने हाँ में गर्दन हिलाई और बोली;

नेहा: हाँ जी|

मैं: I Love You Too मेरा बेटा! कैसा है मेरा बच्चा?

मैंने नेहा से तुतलाते हुए बात की, उस समय मुझे उस पर बहुत-बहुत प्यार जो आ रहा था!

नेहा: मैं ठीक हूँ पापा, आप कैसे हो और मुझसे मिलने कब आ रहे हो?

मैं: मैं ठीक हूँ बेटा और आपसे मिलने बहुत जल्द आऊँगा, आपके लिए बहुत सारे तोहफे भी लाऊँगा!

मुझसे मिलने की बात सुन कर नेहा का दिल उल्लास से भर उठा और वो ख़ुशी से चीखते हुए बोली;

नेहा: सच पापा?

मैं: हाँ बेटा जी, आपके बिना तो मैं सो भी नहीं पा रहा| कल पूरी रात जाग रहा था, अब आप को गले लगा कर सोने की आदत पड़ गई है न इसलिए मैं जितना जल्दी होगा उतनी जल्दी आऊँगा!

ये सुन कर नेहा बड़े भोली आवाज में बोली;

नेहा: आप जल्दी आ जाओ, फिर न मैं रोज आपसे लिपट कर सोऊँगी|

मैं: Awwww....मेरा बच्चा! चलो अब आप अपनी मम्मी को फोन दो|

नेहा ने फ़ोन भौजी को दिया और उन्हीं के बगल मैं बैठ कर बात सुनने लगी|

भौजी: हाँ जी बोलिए जानू?!

भौजी मुस्कुराते हुए बोलीं, उन्होंने मेरी नेहा के बिना न सोने की बात जो सुन ली थी|

मैं: बहुत कुछ सीखा रहे हो मेरी बेटी को?!

भौजी: हाँ जी! उसने ही पूछा था की I love you का मतलब क्या होता है, तो मैंने बता दिया|

भौजी सफाई देते हुए बोलीं|

मैं: अच्छा जी? उसने ये I love you शब्द कहाँ सुन लिया?!

मैंने भोयें सिकोड़ते हुए पुछा|

भौजी: कितनी बार हमें बोलते हुए सुना था, मेरी बेटी बहुत होशियार है!

भौजी ने नेहा की तारीफ करते हुए कहा| वहीं नेहा अपनी तारीफ सुन कर शर्माने लगी थी| आगे बात हो पाती उससे पहले ही पिताजी ने मुझे खाना खाने के लिए बाहर से पुकारा|

मैं: अच्छा जान मैं चलता हूँ,.कल सुबह फोन करूँगा| Bye!

भौजी: ना...ऐसे नहीं, पहले I love you कहो?

मैं: I love you जान!

भौजी: I love you too जानू!

मैं फ़ोन रखता उससे पहले ही नेहा ने अपनी मम्मी से फ़ोन ले लिया और फ़ोन के स्पीकर पर अपना मुँह लगा कर बोली;

नेहा: उम्मम्मम्माह्ह्ह्हह्ह!

नेहा ने मुझे फ़ोन पर ही सुबह की good morning वाली पप्पी दी|

मैं: Awwwww मेरा बच्चा! सुबह से आपकी पप्पी को बहुत याद कर रहा था|

ये सुनते ही नेहा खुश हो गई और फ़ोन पर खिलखिलाकर हँस पड़ी|

फ़ोन रखने का मन तो नहीं था, पर अगर मैं नहीं जाता तो पिताजी कमरे में आ जाते इसलिए फ़ोन काट आकर मैंने फ़ोन लिस्ट से भौजी का नंबर डिलीट किया और दिषु का फ़ोन मिलाकर काट दिया, ताकि पिताजी को कोई शक न हो| फ़ोन पिताजी को दे मैं खाना खाने बैठ गया, शुक्र है की पिताजी ने कुछ नहीं पुछा| खाना खाके वो साइट पर निकल गए और मैं पढ़ाई करने बैठ गया| भौजी और नेहा से हुई कुछ देर की बातों ने मेरे मूड को ताजा कर दिया था, सबसे पहले मैंने अपना टाइम-टेबल बनाया ताकि उसके अनुसार मैं अपना holiday homework और भौजी से बात करने का समय निश्चित कर सकूँ| ये टाइम-टेबल मैंने बड़ी सतर्कता से बनाया ताकि मैं इसमें भौजी से बात करने का समय इस तरह से 'फिट' कर सकूँ ताकि पिताजी और माँ को कोई शक न हो की मैं दिषु का बहाना करके किसी और से बात नहीं कर रहा| भौजी से बात करने के लिए मुझे सुबह का समय सबसे ठीक लग रहा था, उस समय मैं पार्क जाने का बहाना कर सकता था और वहाँ मुझे माँ-पिताजी का कोई भय नहीं था| लेकिन उसके लिए मुझे सुबह जल्दी निकलना होता, क्योंकि पिताजी 9-10 बजे तक साइट पर निकल जाते और फ़ोन उनके साथ ही जाता| सुबह जल्दी पार्क जाने के लिए, रात को जल्दी सोना था जिससे मुझे अपनी पढ़ाई का समय बदलना था| खैर सुबह जल्दी उठना मुश्किल नहीं था पर सुबह-सुबह फ़ोन ले जाना चुनौती भरा काम था, क्योंकि पिताजी पूछते की मैं सुबह-सुबह फ़ोन क्यों ले जा रहा हूँ?! ये ऐसा सवाल था जिसका कोई उपयुक्त जवाब नहीं था, क्या कहता; 'स्टाइल मारने को ले जा रहा हूँ', तो पिताजी कहते 'सुबह-सुबह किस पर स्टाइल झाड़ना है तुझे?!' पर मैंने इसका भी एक हल निकाल लिया, सुबह जल्दी उठ कर दिषु को एक 'नकली कॉल' मिला कर पूछना की तू पहुँच गया? और फिर बातें करते हुए घर से फटाफट भाग जाना! सुनने में बचकाना लगता है पर इसके अलावा कोई चारा भी नहीं था| अब आते हैं दूसरे सबसे बड़े सवाल पर, call rates! 2/- प्रति मिनट सुनने में ही इतना महँगा लग रहा है तो कॉल खत्म होने के बाद कितना चुभता?! अब ऐसा तो था नहीं की मुझे भौजी से बस 2-4 मिनट बात करनी थी, कम से कम आधा घंटा तो बात होती और उसके लिए पैसे कहाँ से लाता?! मैं कोई काम-धाम तो करता नहीं था, न ही मुझे pocket money मिलती थी और अगर मिल भी जाती तो पिताजी उसके खर्चे का हिसाब माँगते?! वैसे कहने को मैं भौजी से कह सकता था की वो मुझे फ़ोन करें, पर खर्चा तो उनका भी होता न और रोज-रोज का ये खर्चा उनको न सही पर भौजी के मायके वालों को जर्रूर अखरता! इसलिए मेरे पास सिवाए उधारी के कोई दूसरा रास्ता नहीं था और उसके लिए मुझे दिषु से मददद माँगनी पड़ी| दिषु से मेरी दोस्ती इतनी गहरी थी की उसने कभी पैसों को हमारे बीच में आने नहीं दिया, इसलिए मैं पैसों की तरफ से निश्चिन्त था| उससे ली हुई उधारी मैं स्कूल जाते समय मिलने वाली खर्ची की हेरा-फेरी से पूरी कर देता|

खेर मैंने holiday homework पर फोकस बनाया, वरना स्कूल में मेरी पढ़ाकू बच्चे की छबि पर दाग लग जाता| जितना मैं भौजी से प्यार करता था, उतना ही मैं पढ़ाई से भी करता था और मैं नहीं चाहता था की पढ़ाई को लेके भौजी किसी भी तरह की कोई चिंता करें| मैंने दिल लगा कर पढ़ाई करना शुरू कर दिया|

अगली सुबह मैं जल्दी उठा और अपने तथाकथित 'प्लान' पर काम करते हुए पिताजी का फ़ोन ले कर चम्पत हो गया| पार्क पहुँच कर मैंने दिषु को साड़ी प्लानिंग समझाई, ताकि कल को पिताजी उसे कॉल करके पूछें तो वो पलटी न मार जाए| मेरी प्लानिंग सुन कर वो बहुत हँसा और मेरा दिल खोल कर मजाक उड़ाया, मैं भी उसके संग थोड़ा हँस लिया और फ़ोन ले कर कुछ दूर आ गया और भौजी को कॉल मिलाया;

मैं: हेल्लो?!

नेहा: उम्मम्मम्मम्माःह्ह्ह्ह!

नेहा ने एकदम से मुझे प्याली-प्याली पप्पी दी!

मैं: Awwww....मेरा बच्चा! मेरी तरफ से आपको उम्मम्मम्मम्हाःह्ह्ह्ह!

मैंने भी नेहा को प्यार भरी पप्पी दी, मेरी पप्पी मिलते ही नेहा जोर से हँस पड़ी|

नेहा: I love you पापा!

नेहा प्यार से बोली|

मैं: I love you too मेरा बच्चा!

बाप-बेटी के बीच प्यार के आदान-प्रदान के बाद नेहा ने एकदम से अपनी मम्मी की शिकायत कर दी;

नेहा: पापा..... मम्मी है न.... मुझे है न.... कहानी नहीं सुनाती!

नेहा की भोली सी बात सुन कर पहले तो मैं खूब हँसा फिर मैंने उसका दिल रखने को कहा;

मैं: अच्छा? दो मम्मी को फ़ोन, अभी डाँटता हूँ उन्हें!

नेहा ने फ़ोन भौजी को दिया और मैंने उन्हें फ़ोन स्पीकर पर रखने को कहा;

मैं: आप मेरी बच्ची को क्यों कहानी नहीं सुनाते?

मैंने भौजी को प्यारभरे गुस्से से डाँटते हुए कहा|

भौजी: अब मुझे आती नहीं तो मैं क्या करूँ?!

भौजी ने तुतलाते हुए अपनी सफाई दी|

मैं: आपको कहा था न की हमारी कहानी सुनाओ? चलो मैं आपको कुछ टिप्स देता हूँ उन्हीं याद करो और कहानी बनाया करो|

फिर मैंने भौजी को कुछ टिप्स दीं, ये कुछ ख़ास टिप्स नहीं थे बस मैंने खुद को राजकुमार और उनको राजकुमारी बनने को कहा| फिर हमारी सारी मुलाक़ातों को कहानी में पिरोकर रोज एक नै कहानी बनाने को कहा, भौजी को मेरा आईडिया समझ आया और वो इसके लिए राजी भी हो गईं| इसके बाद नेहा ने फिर से फ़ोन अपने पास खींच लिया और मेरे से दस मिनट तक बातें करने लगी| उसकी बातें कुछ ख़ास नहीं बस उसकी दिनचर्या, उसके स्कूल की बातें और आज उसने कितना भौजी का ख्याल रखा स जुडी होती थी| उसकी प्यारी बातें सुनने में बड़ा मजा आ राह था पर भौजी वहाँ बात करने को व्यकुल थीं;

भौजी: बेटा मुझे भी बात करने दे न?!

भौजी ने पीछे से प्यारभरी बिनती करते हुए कहा, पर नहीं मानी वो फ़ोन ले कर घर के आँगन में दौड़ने लगी| मुझे फ़ोन पर दोनों के दौड़ने और हँसने की आवाज आ रही थी, भौजी तो भागते-भागते थक गईं और चारपाई पर सर झुका कर बैठ गईं| उन्होंने झूठ-मूठ के टेसुएँ बहाने शुरू कर दिए ताकि नेहा को लगे की वो रो रहीं हैं! मेरी बच्ची अबोध थी, उसे सच में लगा की उसकी मम्मी फ़ोन न मिलने से रो रहीं है| वो फ़ोन ले कर उनके पास पहुँची और मुझसे बोली;

नेहा: पापा जी, आप मम्मी से बात करो हम कल बात करेंगे!

नेहा का प्यार देख भौजी ने अपना झूठ-मूठ का रोना बंद किया और उसे अपने सीने से लगा कर उसके सर को चूमा|

भौजी: ये ले और जा कर चिप्स खा ले!

उन्होंने नेहा को पैसे दिए और वो दौड़ती हुई चिप्स लेने गई|

भौजी: हाँ जी अब बोलो, अब कोई तंग नहीं करेगा!

भौजी हँसते हुए बोलीं|

मैं: हाँ नेहा को तो रिश्वत दे कर भगा दिया आपने!

ये सुन भौजी खिलखिलाकर हँस पड़ीं|

भौजी: अब क्या करूँ जानू, आपसे बात करने को मन था और आपकी लाड़ली फ़ोन ही नहीं दे रही थी|

मैं: जब भी आपको नेहा से कुछ काम हो तो उसे गोद में लो और उसकी दो पप्पियाँ लो, फिर उसे जो काम कहोगे वो सब करेगी!

मेरी चालाकी सुन कर भौजी पहले तो हँस पड़ीं, फिर एकदम से नराज होते हुए बोलीं;

भौजी: एक बात बताने का कष्ट करो, आपने नेहा से क्या कहा था की आप सिर्फ उसे मिलने आओगे?!

ये कहते हुए भौजी रसन-पानी ले कर मेरे ऊपर चढ़ गईं| उनका तातपर्य उस दिन से था जब रसिका ने उन्हें मेरे जाने की बात बता आकर आग लगाई थी, तब नेहा रोये जा रही थी और उसे चुप कराने को मैंने कहा था की मैं सिर्फ उसे मिलने आऊँगा| अब नेहा ने भोलेपन में ये बात अपनी मम्मी से कह दी, जिसे सुन कर भौजी मुझसे नाराज हो गईं थीं|

मैं: जान, उस दिन अपने नेहा को मेरे जाने की बात एकदम से बता कर रुला दिया था, तब मैंने उसका दिल रखने को ये कहा था| अब आप बताओ की ऐसा हो सकता है की मैं सिर्फ नेहा से मिलने आऊँ? अरे आपके बिना मेरा यहाँ क्या हाल है, ये आप क्या जानो? पता है रात को नींद नहीं आती, अगर गलती से झपकी लग जाए तो आपकी पायल की मधुर आवाज सुन कर जाग जाता हूँ! फिर पागलों की तरह कमरे में आपकी मौजूदगी के निशान ढूँढने लगता हूँ! दिमाग मेरे साथ छल करने लगा है, आपके न होते हुए भी आपकी मौजूदगी महसूस करता हूँ! कभी-कभी अपना वो रुमाल जिसमें आपकी खुशबु कैद थी उसे सूँघ लेता हूँ, तो कभी हमारे साथ बिताये लम्हें याद करने लगता हूँ!

मुझे अपनी सफाई देने की जरूरत तो नहीं थी पर फिर भी मैंने भौजी को अपने दिल के जज्बातों से रूबरू कराया|

भौजी: जानू मेरा भी हाल आपके जैसा है! कई बार आँख बंद कर के आपकी छुअन महसूस होती है, मन बावरा हो जाता है! दिल करता है की सब छोड़कर आपके पास भाग आऊँ!

भौजी ने भी मुझसे अपने मन की व्यथा साझा की|

मैं: जान आपके पास नेहा तो है, पर मेरे पास तो कोई नहीं?! आपकी एक फोटो भी नहीं, इस बार आऊँगा तो कैमरा ले कर आऊँगा और हम दोनों की बहुत सारी तस्वीरें खींच कर ले जाऊँगा!

भौजी: कैमरा लाओ चाहे न लाओ, अपनी नई फोटो जर्रूर ला देना! कहते हैं गर्भवती औरत को जिस इंसान की तस्वीर ज्यादा देखती है, बच्चा वैसा ही पैदा होता है और मुझे बस आपकी तस्वीर देखनी है ताकि हमारा बच्चा बिलकुल आप जैसा पैदा हो!

भौजी ने थोड़ा हुक्म चलाते हुए कहा|

मैं: ठीक है जान और कोई हुक्म?!

मैंने मुस्कुरा कर पुछा|

भौजी: हम्म्म... मुझे एक kiss चाहिए!

मैं: उम्मम्मम्माह्ह्हह्ह!!!

मैंने भौजी को फ़ोन पर kiss दी|

भौजी: हाय! आपकी इसी kiss का सहारा है!

भौजी ठंडी आँहें भरते हुए बोलीं|

मैं: क्यों? नेहा सुबह उठ कर पप्पी नहीं देती?!

मैंने भौजी को छेड़ते हुए कहा|

भौजी: अरे कहाँ! Good morning वाली पप्पी सिर्फ आपके लिए थी, आपके आलावा वो न तो किसी को पप्पी देती है न ही किसी से पप्पी लेती है!

भौजी तुनक कर बोलीं|

मैं: हाँ तो ठीक ही तो है, नेहा की सारी पप्पियों का ठेका मैंने ले रखा है!

मैंने नेहा पर हक़ जताते हुए कहा, मेरा ऐसा कहना था की भौजी खिलखिला कर हँसने लगीं|

मैं: अच्छा जान ये बताओ नेहा स्कूल कैसे जाती है, आपके घर से तो स्कूल दूर पड़ता होगा न?

भौजी: अनिल उसे सुबह साइकिल से स्कूल छोड़ देता है और चरण काका उसे साइकिल से ले आते हैं|

मैं: चलो उसका तथा अपना ध्यान रखना और मेरी तरफ से उसे बहुत-बहुत प्यार देना!

भौजी: ओके जानू! आप भी अपना ख्याल रखना और मैं कल सुबह इसी टाइम आपके फ़ोन का इंतजार करूँगी!

मैं: I love you जान!

भौजी: I love you जानू!

इस तरह हमारी प्यारभरी बातें खत्म हुईं और मैं दिषु को ढूँढने लगा, हम दोनों अपने-अपने घर लौटे और पढ़ाई में लग गए| अगले दिन से हमारे टूशन वाले सर ने क्लास शुरू कर दी, holiday homework के साथ-साथ टूशन क्लास भी संभालनी पड़ी| लेकिन इसका असर मेरे और भौजी के बात करने पर नहीं पड़ा, हम अब भी सुबह बातें किया करते थे| हाँ कभी-कभार पिताजी सुबह पार्क जाने के समय मुझसे फ़ोन ले लिए करते थे, तो तब मैं दिषु के फ़ोन से भौजी को फ़ोन कर लिया करता था|

गाँव में मिलने वाली साक्षात् good morning kiss और (नेहा की) पप्पियाँ, अब फ़ोन पर मिलने लगी थीं| ये सोच कर ही संतोष कर लिया की कम से कम फ़ोन पर ही सही मिल तो रहीं हैं! हमारी प्यारभरी बातें, नोक-झोंक, रूठना-मनाना, बाप-बेटी का प्यार सब कुछ बदस्तूर फ़ोन पर चल रही थीं| इन सब बातों के साथ-साथ मैं भौजी को अपनी पढ़ाई की अपडेट भी दे रहा था, मैंने कितना holiday homework निपटाया और कितनी पढ़ाई की उनतक मेरी सारी जानकारी पहुँच रही थी| भौजी मेरी इन छोटी-छोटी उपलब्धियों से बहुत खुश थीं और उनके मन में अब मेरी पढ़ाई को ले कर कोई डर नहीं था| मैंने अपना सारा holiday homework 15 दिन में खत्म कर दिया और जब ये बात भौजी को पता चली तो वो भी बहुत खुश हुईं| अभी मेरे पास तकरीबन 1 हफ्ता बचा था तो मैंने इस हफ्ते में मैथ्स (गणित) उठा ली, ये एक ऐसा सब्जेक्ट था जिससे मुझे डर लगता था| इस एक हफ्ते में मैंने मैथ्स की बड़ी उपासना की और आराम से पास हो जाऊँ उतना समझ गया!

अब समय आया स्कूल खुलने का और अब हमारा सुबह बात कर पाना नामुमकिन था, मैं जुगाड़ फिट करने लगा की किस समय मैं भौजी से बात करूँ?! सुबह और रात नामुमकिन था, बचा सिर्फ और सिर्फ 1 बजे से 6 बजे तक का टाइम! इस समय के बीच अगर पिताजी दोपहर में खाना खाने आते तो मैं उनके फ़ोन से कॉल कर लेता या फिर शाम को जल्दी टूशन के बहाने से निकलता और सीधा दिषु के घर जा कर उसके फ़ोन से कॉल करता| मैंने भौजी को अपना ये नया टाईम-टेबल अच्छे से समझा दिया, भौजी मेरा ये उतावलापन देख पहले तो खूब हँसी, लेकिन मुझसे बात करने की आग तो उनके मन में भी लगी थी! मैंने पिताजी से मिली जेब खर्ची से 30/- वाले रिचार्ज कूपन इकठ्ठा करने शुरू कर दिए, ताकि अगर भौजी से कभी बात करते हुए बैलेंस खत्म हो तो फटाफट रिचार्ज कर के बात कर लूँ| इन रिचार्ज कूपन का बड़ा फायदा था, घर में हूँ या बाहर कभी भी रिचार्ज करो और बात करते जाओ!

खैर स्कूल खुले और मेरे मित्र मेरा खिला हुआ चेहरे देख कर सोच में पड़े थे की आखिर इस पढ़ाकू लड़के के चेहरे पर इतनी मुस्कान कैसे?! इधर मैं सोच रहा था की कब दशहरे की छुटियाँ declare होंगी, पर जुलाई में दशहरे की छुटियाँ कैसे declare होतीं? अब बाकी स्कूलों की तरह ही हमारे principle सर कहते थे की science section के मुक़ाबले commerce section के नंबर ज्यादा आने चाहिए, क्योंकि science tough होती है! उनकी ये गलतफैमी हमारे पिछवाड़े पर टीचर के surprise class test के रूप में 'चट' से पड़ी! मेरी तैयारी ठीक-ठाक थी तो मैं सारे tests में अच्छे नम्बरों से पास हो गया| मैंने जानबूझ कर इस बात को पिताजी के सामने बड़े शान से प्रस्तुत किया, उसका करना था की वो दशहरे में गाँव जाने के लिए ये कह कर मना न कर दें की मेरे mid-term paper हैं! मेरे अच्छे नंबर देख कर पिताजी खुश हुए और आखिकर उनके चेहरे पर मुस्कान आ ही गई| वहीं जब शाम को मैंने भौजी को ये खुशखबरी दी तो वो एकदम से बोलीं;

भौजी: जानू, इस बार आपको मिलने पर एक बहुत बड़ा surprise दूँगी!

उनके मुँह से surprise के बारे में सुन कर मेरे मुँह में पानी आ गया, दिमाग ने अलग-अलग कल्पनाएँ शुरू कर दी| मैंने बहुत पुछा पर भौजी ने कुछ नहीं बताया और मुझे गाँव में मेरे द्वारा दिए हुए सरप्राइज का उल्हाना दे कर सताती रहीं| ठीक भी था, सरप्राइज देने का मजा तब है जब बात गुप्त रहे, खुल जाने पर मजा किरकिरा हो जाता है| सरप्राइज के लिए मन व्यकुल था तो मैंने आज के आज ही क्लास के उस लड़के से बात की जिसकी स्कूल के चपरासी से अच्छी बनती थी| जब मैंने उस लड़के से पुछा की दशहरे की छुट्टियाँ कब से होंगी तो वो भी मुझ पर खूब हँसा और बोला; "अभी तो गर्मियों की छुटियाँ खत्म हुई हैं और तू दशहरे की छुट्टियाँ मनाना चाहता है?" अब मुझे उसे कुछ तो जवाब देना था तो मैंने उसे बहाना बना दिया; "यार वो गाँव में पूजा है और उसके लिए ट्रैन की टिकट बुक करानी है, इसलिए पुछा!" बहाना फिट बैठ गया और उसने चपरासी से बातों-बातों में पुछा| चपरासी ने उसे कोई सटीक तरीक तो नहीं बताई बस ये बताया की 10 अक्टूबर से 25 अक्टूबर के बीच हो सकती हैं| मेरे लिए इतना ही काफी था, तरीक का अंदाजा लगते ही मेरे दिमाग ने गुणा-भाग शुरू कर दी, एक सटीक तारिख निकालने के लिए माने पंचाँग तक देख मारा| एक आध दिन आगे-पीछे करते हुए हुए मैंने 10 अक्टूबर की तरीक चुन ली, अब आगे का काम इसी तरीक के अनुसार करना था|

आखरी पीरियड फ्री था तो मैं सबसे पीछे वाली बेंच पर बैठ गया और अपने आने-जाने का हिसाब लगाने लगा| 10 अक्टूबर को निकलना और 11 अक्टूबर को गाँव पहुँचना, अब उसी दिन तो मैं भौजी के मायके नहीं जा सकता तो मैं अगले दिन उनके मायके जाऊँगा तथा अपने सास-ससुर के रोकने का बहाना मारकर वहीं रुक जाऊँगा| थोड़ा बेशर्म हो कर 2-3 दिन तो वहाँ चिपक ही जाऊँगा, 1 आध दिन के लिए बड़की अम्मा के पास रुक जाऊँगा और फिर दिल्ली वापस| चलो दिन काटने की प्लानिंग तो हो गई पर गाँव जाएंगे कैसे? बहुत दिमाग लड़ाया पर कोई कारन नहीं मिला, फिर एक बचकाना ख्याल आया! बड़की अम्मा...मुझे उनसे बात करनी होगी और उन्हें ये विश्वास दिलाना होगा की मैं गाँव उनसे मिलने आना चाहता हूँ, अगर मान लो उन्होंने मेरी चोरी पकड़ भी ली तो वो तो सब जानती ही हैं, मुझे मना थोड़े ही करेंगी? प्लान फूलप्रूफ नहीं था पर इसके लिए मैंने एक बैकअप प्लान तैयार कर लिया था, दिषु को इसमें फँसाऊँगा! वो कहेगा की उसके किसी रिश्तेदार की शादी/मुंडन/मौत कुछ भी बहाना मार के उसके साथ निकलूँगा और सीधा उड़ता हुआ भौजी के घर जा पहुँचूँगा! देखा जाए तो मेरा बैकअप प्लान भी फूलप्रूफ नहीं था, दिषु वाला झूठ भी खुलता जर्रूर और उसके बाद जो तुड़ाई होती मेरी वो जबरदस्त होती, पर भौजी और नेहा से मिलने की इतनी ललक थी की मैं कोई भी काण्ड करने को तैयार था!

भौजी को अपने आने की खुशखबरी देने को मैं आज बहुत उत्सुक था, इसलिए आज स्कूल से दौड़ते हुए घर पहुँचा| घर पहुँच कर देखा तो पिताजी आज पहले ही खाना खाने आ चुके थे, मतलब आज मेरी किस्मत कुछ ज्यादा ही मेहरबान थी! माने उनसे फ़ोन लिया और झूठ-मूठ का दिखावा करते हुए दिषु से बात करने लगा, बहाना बना कर मैं अपने कमरे में आया और भौजी को फ़ोन मिला दिया|
 

[color=rgb(255,]बीसवाँ अध्याय: बिछोह[/color]

[color=rgb(41,]भाग - 1 [/color]

[color=rgb(65,]अब तक आपने पढ़ा:[/color]

भौजी को अपने आने की खुशखबरी देने को मैं आज बहुत उत्सुक था, इसलिए आज स्कूल से दौड़ते हुए घर पहुँचा| घर पहुँच कर देखा तो पिताजी आज पहले ही खाना खाने आ चुके थे, मतलब आज मेरी किस्मत कुछ ज्यादा ही मेहरबान थी! माने उनसे फ़ोन लिया और झूठ-मूठ का दिखावा करते हुए दिषु से बात करने लगा, बहाना बना कर मैं अपने कमरे में आया और भौजी को फ़ोन मिला दिया|

[color=rgb(251,]अब आगे:[/color]

नंबर मिलते ही आवाज आई; 'जिस एयरटेल ग्राहक से आप सम्पर्क साधना चाह रहे हैं, वह इस समय switched off है!' ये सन्देश सुन कर मेरा जोश फीका पड़ गया, कहाँ तो मैं भौजी को ये खुशखबरी देने को उड़ रहा था और कहाँ इस सन्देश ने मेरे 'पर' ही काट दिए! 'अबे यार फ़ोन है, बैटरी डिस्चार्ज हो गई होगी! गाँव-देहात है, लाइट आती नहीं इसलिए फ़ोन चार्ज नहीं हुआ होगा, शाम तक चार्ज हो कर आ जायेगा तब बात कर लिओ! इतनी सी बात के लिए जी छोटा मत कर|' मेरे दिमाग ने मुझे ज्ञान देते हुए शांत किया| पर भौजी को खुशखबरी सुनाने की ख़ुशी अब धीरे-धीरे कम हो रही थी, इसलिए सर झुकाये मैं अपने कमरे से बाहर आया और बेमन से आधा खाना खा कर उठ गया| माँ ने जब कम खाने का कारन पुछा तो मैंने कह दिया की पढ़ाई करनी है, ज्यादा खाऊँगा तो नींद आएगी! माँ ने मेरी बात पर विश्वास कर लिया और मैं अपने कमरे में आ कर किताब खोल कर बैठ गया| किताब तो खोल ली, पर ध्यान जरा भी नहीं था, मन बस भौजी की आवाज सुनने को व्याकुल था और फिर आज की नेहा की पप्पी भी तो बाकी थी! मैं बस घडी की सुइयों पर नजर गड़ाए बैठ गया, इस आस में की जल्दी से 4 बजें और मैं दिषु के घर पहुँच कर भौजी को फ़ोन करूँ| आखिर चार बज ही गए और मैं अपना टूशन का बैग उठा कर भाग लिया, दौड़ते हुए दिषु के घर पहुँचा और फटाफट भौजी का नंबर मिलाया| लेकिन इस बार भी वही सन्देश की फ़ोन स्विच ऑफ है! बहुत गुस्सा आया, मन किया की फ़ोन तोड़ दूँ पर वो मेरा फ़ोन तो था नहीं इसलिए मैं एक कुर्सी पर सर झुका कर बैठ गया| पीछे से दिषु आया और मेरे कंधे पर हाथ रखते हुए बोला;

दिषु: क्या हुआ?

मैं: यार फ़ोन स्विच ऑफ है!

दिषु: अरे तो क्या हुआ? रात में फिर ट्राय कर लियो!

दिषु ने मुझे ढाँढस बँधाते हुए कहा|

मैं: यार मुझे आज उन्हें दशहरे की छुटियों के बारे में बताना था और उनका फ़ोन ही बंद है!

मैं गुस्से में बोला|

दिषु: तू शांत हो जा, रात तक फ़ोन कर लियो|

हम दोनों उसके घर से चले और सीधा टूशन पहुँचे, टूशन में बैठे-बैठे भी मेरा दिमाग भौजी और नेहा में लगा हुआ था| मैं चाहता था की जल्दी से क्लास खत्म हो और मैं बाहर निकल कर भौजी को पुनः फ़ोन करूँ|

जब कुछ देर बाद क्लास खत्म हुई तो मैंने फिर से भौजी को फ़ोन मिलाना शुरू कर दिया, पर हर बार फ़ोन स्विच ऑफ जा रहा था| मायूस हो कर मैं अपने घर पहुँचा और अपने बिस्तर पर औंधे मुँह पड़ गया, मन ही मन मैं प्रार्थना करने लगा की आज पिताजी जल्दी घर आ जायें ताकि उनके फ़ोन से मैं भौजी का नम्बर फिर से ट्राय कर सकूँ| भगवान ने मेरी बात सुन ली और पिताजी घर जल्दी आ गए, उनके आते ही मैंने चुपके से उनका फ़ोन उड़ाया तथा अपने कमरे में किताब के नीचे छुपा कर कॉल मिलाने लगा, पर कोई फायदा नहीं हुआ! आखिर पिताजी ने खाना खाने को बुलाया और मैं गर्दन झुका कर खाना खाने बैठ गया, माँ-पिताजी का डर था इसलिए खाना खा रहा था वरना खाने की बिलकुल इच्छा नहीं थी| खाना खा कर मैं लेट गया और पिताजी का फ़ोन अपने पास ही छुपाये रखा, लेटे-लेटे मैंने भौजी को कई बार कॉल किया पर हर बार फ़ोन स्विच ऑफ ही जा रहा था| भौजी का फ़ोन स्विच ऑफ जाने से मेरे दिमाग में उथल-पुथल शुरू हो चुकी थी| बुरे-बुरे ख्याल आने लगे थे, कहीं उन्हें कुछ हो तो नहीं गया? कहीं नेहा को तो कुछ नहीं हो गया? हमारा बच्चा तो...... इन सभी गंदे ख्यालों ने मुझे रात भर सोने नहीं दिया|

एक बार फिर मेरे दिमाग ने मुझे समझाया; 'हो सकता है की फ़ोन चार्ज न हुआ हो, वैसे भी गाँव में बिजली है नहीं, फ़ोन चार्ज कराने बाजार जाना पड़ता है और वहाँ भी बिजली एक-दो घंट ही आती है| देख कल तक सब्र कर, सब ठीक हो जाएगा! दिमाग ने समझा तो दिया पर दिल को चैन न आया, सारी करवटें बदल कर बस यही सोचता रहा की कल कैसे भी बात हो जाए बस! लेकिन नियति को कुछ और ही मंज़ूर था, अगली सुबह मैं जोश में उठा और फिर भौजी को फ़ोन खनका दिया! पर हुआ कुछ नहीं, मैं फटाफट तैयार हुआ और कमरे से बाहर आ कर सबसे पहले पिताजी से डाँट खाई क्योंकी सारी रात उनका फ़ोन जो दबाये हुए था! उतरी हुई सूरत ले कर स्कूल पहुँचा और मुझे देखते ही दिषु समझ गया की आशिक़ का दिल फ़ोन पर बात न हो पाने के कारन जल रहा है| उसने लंच टाइम में जुगाड़ बिठाया और मुझे चुपके से किसी और का फ़ोन थमा कर आँख मारते हुए बोला;

दिषु: बाथरूम में जा कर कर ले बात|

उसकी बात सुन कर मैं आँखें फाड़े उसे देखने लगा, फिर मैं फटाफट बाथरूम में घुसा और भौजी को नंबर मिलाया, पर फ़ोन अब भी स्विच ऑफ था! अब मेरा दिल बहुत तेजी से धड़कने लगा था, भौजी की आवाज न सुन पाने से मैं मायूस होने लगा था| जब में वापस लौटा तो मुझे देखते ही दिषु समझ गया की बात नहीं हुई है!

दिषु: अबे सुन, जी छोटा न कर देख घर जा कर ट्राय करिओ, नंबर मिल जाएगा|

दिषु ने मुझे ढाँढस बंधाते हुए कहा| लेकिन नियति सब तय तो कर ही चुकी थी, मुझे तो बस अब सात दिन तक और तड़पना था| इन सात दिनों में मेरी हालत किसी नशे के लत में पड़े आदमी जैसी थी| मेरे जिस्म को बस वो मन पसंद आवाज सुननी थी जिसके लिए मेरा दिल बावरा हुआ जा रहा था| मेरे दिमाग पर पागलपन सवार हो चूका था, जिस कारन मैं ऊल-जुलूल बातें सोचने लगा था| दिमाग ने अटखलें लगाना शुरू कर दिया था; 'कुछ तो है जो भौजी मुझसे छुपा रहीं हैं, जर्रूर वो घर (ससुराल) वापस चली गईं होंगी इसीलिए उन्होंने अनिल का फ़ोन स्विच ऑफ करा दिया होगा!' मेरी चिंता जायज थी वर्ण भौजी यूँ एकदम से मुझसे बात करना क्यों बंद कर देतीं?! तभी एक ऐसा ख्याल दिमाग में आया जिसने मुझे झिंझोड़ कर रख दिया; 'कहीं भौजी जान बूझ कर तो मुझे AVOID नहीं कर रहीं?!' ये ख्याल दिमाग में आते ही मुझे वो दिन याद आया जब मैं नेहा को लिए हुए रिक्क्षे को देख कर डर कर रुक गया था!

वो 'अनोखी ताक़त' जिसने मुझे दिल्ली जाने से रोका था, कहीं वो इसी उन्होने की तरफ इशारा तो नहीं कर रही थी? वो मेरा उस दिन का ख्वाब जिसमे मैंने नेहा और भौजी को गायब होते देखा तो वो सब इसी अप्रिय घटना की चेतावनी तो नहीं थी? आखिर क्यों मैंने ये बात भौजी को नहीं बताई? अगर बताई होती तो वो यूँ फ़ोन करना बंद नहीं करतीं!

इन सभी बातों ने मेरे दिमाग में बवंडर खड़ा कर दिया, तभ मन से आवाज आई; 'भौजी ऐसी नहीं हैं, अपने प्यार पर भरोसा रख| जर्रूर वो किसी परेशानी से जूझ रही हैं, इसीलिए तुझसे बात नहीं कर पा रहीं!' मन की आवाज सुन कर दिमाग शांत होने लगा, पर भौजी के वापस घर (ससुराल) जाने का डर सताने लगा था| अपने मन की शान्ति की लिए मैंने अजय भैया को छुप कर फ़ोन किया;

मैं: हेल्लो अजय भैया?!

अजय भैया: हाँ मानु भैया, कइसन हो?

मैं: मैं ठीक हूँ भैया, आप कैसे हो? घर में सब कैसे हैं?

अब उनसे सीधा-सीधा तो पूछ नहीं सकता था की भौजी वहाँ हैं की नहीं, इसलिए मैंने थोड़ी चतुराई दिखाई और बात घुमाई|

अजय भैया: हियाँ सब ठीक हैं, चाचा-चाची कैसे हैं?

अजय भैया आराम से बात करना चाहते थे, पर मैं तो अपना सवाल पूछने को तड़प रहा था|

मैं: सब ठीक हैं! भैया नेहा वहाँ है क्या?

मैंने बात घुमा कर पूछी, कारन ये की मैं भौजी को 'भौजी' नहीं कहना चाहता था| अगर नेहा घर पर होती तो भौजी भी उसी के साथ होतीं, थोड़ा तो दिमाग चल रहा था!

अजय भैया: नाहीं तो! हियाँ हमरे और अम्मा के इलावा कउनो नाहीं!

भैया की बात सुन कर नजाने क्यों मुझे शक सा हुआ;

मैं: भैया आप कहीं झूठ तो नहीं बोल रहे? कहीं 'उन्होंने' (भौजी) ने तो नहीं कहा की अगर मैं फ़ोन करूँ तो झूठ बोल दो की न तो नेहा यहाँ है और न 'वो' यहाँ हैं?

मैंने बड़ी चालाकी से बात कही ताकि मैं 'भौजी' कहने से बच जाऊँ| मेरा सवाल सुन अजय भैया हँस पड़े और हँसते हुए बोले;

अजय भैया: हम काहे झूठ बोलब? अच्छा चलो अम्मा कसम खाइत है, हियाँ न तो भौजी हैं और न ही नेहा है! बप्पा और बड़े भैया 'आइस' (दावत खाने) खाये गए हैं, घरे बस हम हम और अम्मा हन!

अजय भैया ने रसिका के बारे में कुछ नहीं बताया, पर अगर घर में सिर्फ अजय भैया और बड़की अम्मा हैं तो इसका मतलब रसिका अपने मायके में ही होगी| खैर अजय भय की बात सुन कर दिल को चैन आया की कम से कम भौजी अपने मायके सुरक्षित हैं, पर फिर वो मुझे कॉल क्यों नहीं कर रहीं? मैं अपने इसी ख्याल में डूबा था की अजय भैया की आवाज ने मेरा ध्यान भंग किया;

अजय भैया: का हुआ भैया? चुप काहे हो?

मैं: वो... कुछ नहीं भैया...बहुत दिन से नेहा की आवाज नहीं सुनी थी, मैंने भौजी के घर फ़ोन किया पर नम्बर बंद था इसलिए सोचा की यहाँ कॉल कर के नेहा से बात कर लूँ|

मैंने झूठ बोला और जल्दी ही बात निपटा कर फ़ोन रख दिया| मेरा मन व्याकुल होने लगा था की आखिर ऐसी क्या बात है, जो न तो भौजी मुझे फोन कर रहीं हैं न ही अनिल का नंबर स्विच ओंन कर रहीं हैं?! अगर कोई चिंता जनक बात होती तो तो अजय भैया मुझे अवश्य बता देते, इतना तो भरोसा था मुझे की वो मुझसे कभी झूठ नहीं बोलेंगे| अगर ये भी मान लूँ की अजय भैया को कुछ नहीं पता तो पिताजी ने भी कुछ दिन पहले बड़के दादा से बात की थी, अगर कोई घबराने की बात होती तो बड़के दादा पिताजी को तो अवश्य बता देते! तो आखिर ऐसी क्या बात है जो भौजी को मुझे फ़ोन करने से रोक रही है?! ये सब सोचते हुए मैं दिषु से विदा ले कर घर पहुँचा और अपने कमरे में घुस कर बिस्तर पर पड़ गया, पिछले एक हफ्ते से मेरा यही हाल था, रात में जागता था और दिनभर ऊँघता रहता!

मुझे भौजी की चिंता खाये जा रही थी, मैंने बहुत सोचा की कोई तो उपाय हो जिससे मैं भाग कर गाँव पहुँच जाऊँ, लेकिन कोई उपाए नहीं सूझा! भौजी से बात किये हुए मुझे 10 दिन हो गए थे और मैं अंदर ही अंदर तड़पे जा रहा था, मेरा दोस्त दिषु मेरा ध्यान भंग करने की कई कोशिश कर रहा था पर मेरा ध्यान भौजी तथा नेहा से हटता ही नहीं था! जैसे-तैसे मैंने अपने आप को माँ-पिताजी के सामने सहेज कर रखा था वरना उनके सवालों का जवाब कैसे देता?! शाम को जब मैं टूशन में दिषु से मिला तो वो बोला की कल हम किताब लेने चांदनी चौक चलते हैं, मैंने उसे मना क्या पर वो नहीं माना और जबरदस्ती जिद्द करने लगा| मैंने उसे हाँ कह दिया और घर आकर पिताजी को कल के प्रोग्राम के बारे में बताया, कल चूँकि संडे था और पिताजी घर ही रहने वाले थे तो उन्होंने कहा की मैं उनका फ़ोन ले जाऊँ| जब भी मैं कहीं उनके बिना बाहर जाता था (शहर से बाहर नहीं) तो वो मुझे अपना फ़ोन दे दिया करते थे, जिससे वो मुझे फ़ोन करके मेरा हाल-पता ले सकें! मैं चुप-चाप खाना खा कर अपने पलंग पर लेट गया और रोज की तरह मन ही मन दुआ करने लगा की कल कैसे भी भौजी से बात हो जाए! ये दुआ ही थी जिसे सहारे मैं जिन्दा था और उम्मीद बाँधे हुआ था|

अगले दिन सुबह मैं उठा और तैयार हो कर बैठ गया, मुझे 11 बजे निकलना था पर माँ-पिताजी को आज पड़ोस में कहीं जाना था, इसलिए उन्होंने मुझे डुप्लीकेट चाभी दी और निकल गए| उनके जाते ही मैं आँखें खोले अपने सपनों में खो गया, कम से कम मेरे सपनो में तो हम दोनों साथ थे| ये कोरी कल्पना करना मुझे अच्छा लगता था, क्योंकि इस कल्पना पर मेरा काबू होता था और सब कुछ मेरे अनुसार अच्छा ही होता था| खैर ठीक 10 बजे पिताजी का फ़ोन बज उठा, स्क्रीन पर नंबर देखा तो वो कोई अनजान नंबर था| पता नहीं क्यों पर वो नंबर देख कर दिल की धड़कन तेज हो उठी, ऐसा लगा मानो ये कॉल भौजी ने ही किया है! गाँव में एक बार भौजी ने कहा था की हमारे दिल जुड़े हैं, शायद इसी कारन मेरे मन में ये ख्याल आया था| दिल की इस हलचल ने जिस्म में खुशियाँ ही खुशियाँ भर दी और मन फ़टक से कॉल उठा लिया;

मैं: हेल्लो?

मेरी आवाज में प्रेम भरी उत्सुकता झलक रही थी|

भौजी: हे... हेल्लो ....!

भौजी की काँपती हुई सी आवाज आई, जिसे सुन मेरा दिल बहुत जोरों से धड़कने लगा!

मैं: ओह जान... I missed you so much! कहाँ थे आप? इतने दिन फोन क्यों नहीं किया..और तो और अनिल का नंबर भी बंद था?! मेरी जान सुख गई थी....औ..... और ये नंबर किसका है? आप हो कहाँ?

मैंने बिना रुके एक ही साँस में सारे सवाल दाग दिये!

भौजी: वो सब मैं आपको बाद में बताऊँगी, But first I wanna talk to you about something!

भौजी ने गंभीर होते हुए कहा|

मैं: Yeah sure my love!

भौजी: ..... look..we gotta end this!

इतना बोल कर भौजी 2-3 सेकंड के लिए रुक गईं और उधर मेरी साँस एकदम से अटक गई!

भौजी: I mean..आपको मुझे भूलना होगा!

भौजी के शब्द कान में पड़ते ही मैं सन्न रह गया, फिर अगले ही पल मेरे दिमाग में गुस्से का गुबार फूटा!

मैं: Are you out of your fucking mind? एक तो इतने दिन फोन बंद कर के बैठे रहे और न ही मुझे फ़ोन करने की ज़हमत उठाई! आज दस दिन बाद मुझे फ़ोन करते हो और बजाए मेरे सवालों का जवाब देने के, मुझे कह रहे हो की मैं आपको भूल जाऊँ?!

माने गरजते हुए कहा|

भौजी: Look..I've thought over it.again and again..but.... हमारे इस रिश्ते का कोई भविष्य नहीं है! आपका ध्यान मुझे पर और नेहा पर बहुत है! आपको अभी बहुत पढ़ना है... अच्छा इंसान बनना है...माँ-पिताजी के सपने पूरे करने हैं...... और हम दोनों माँ-बेटी इस सब में बाधा बन रहे हैं| आप रोज-रोज मुझे फोन करते हो..और वहाँ रह कर कितना तड़प रहे हो ये मैं अच्छे से जानती हूँ| ये भी जानती हूँ की आप गाँव आने को कितना व्याकुल हो... और अगर ये रिश्ता यहाँ ही नहीं रोक गया तो आप अपनी पढ़ाई छोड़ दोगे और यहाँ भाग आओगे| इसलिए बेहतर यही होगा की आप हमें भूल जाओ...और अपनी पढाई में ध्यान लगाओ!

मैं ये नहीं जानता की भौजी को कैसे पता चला की मैं घर से भागने वाला हूँ, शायद हमारे दिल जुड़े होने वाली बात सही थी!

मैं: पर मेरी....

मैंने भौजी को अपनी बात समझानी चाहि पर उनका मन मेरी बात सुनने का था ही नहीं, वो एकदम से मेरी बात काटते हुए बोलीं;

भौजी: मैं कुछ नहीं सुन्ना चाहती...ये आखरी कॉल था! आपको मेरी कसम है, आज के बाद ना मैं आपको कभी फोन करुँगी और ना ही आप करोगे! आप बस...मुझे भूल जाओ!

इतना कह कर भौजी ने फ़ोन काट दिया!

[color=rgb(51,]जारी रहेगा भाग - 2 में [/color]
 

[color=rgb(255,]बीसवाँ अध्याय: बिछोह[/color]
[color=rgb(41,]भाग - 2 [/color]


[color=rgb(65,]अब तक आपने पढ़ा:[/color]

भौजी: मैं कुछ नहीं सुन्ना चाहती...ये आखरी कॉल था! आपको मेरी कसम है, आज के बाद ना मैं आपको कभी फोन करुँगी और ना ही आप करोगे! आप बस...मुझे भूल जाओ!
इतना कह कर भौजी ने फ़ोन काट दिया!

[color=rgb(251,]अब आगे:[/color]

भौजी के फ़ोन काटने के अगले पाँच मिनट तक मैं फ़ोन कान पर लगाए हुए था, इस उम्मीद में की शायद वो दुबारा कॉल कर दें और मुझे मेरी बात रखने का मौका दें| पर भौजी का कोई कॉल नहीं आया, आखिर मैंने फ़ोन नीचे रखा और अपना सर पकड़ कर सोचने लगा की आखिर मैंने ऐसा क्या किया जो भौजी ने मुझे इतनी बड़ी सजा दी? मैंने तो कभी नहीं कहा था की मैं पढ़ाई छोड़ दूँगा? क्लास टेस्ट में मेरे इतने अच्छे नम्बर आये, holiday homework के इतने अच्छे नम्बर मिले, क्यों? क्योंकि भौजी मेरे लिए inspiration थीं, उन्हीं की ख़ुशी के लिए मैं इतना मन लगा कर पढ़ा था और उन्होंने ही मुझे खुद से यूँ काट कर अलग कर दिया?! कितनी आसानी से कह दिया की 'मुझे भूल जाओ'?! इतना आसान होता है क्या किसी को भूल जाना? अगर भूलना ही था तो क्यों इतना नजदीक आये मेरे? पहले मुझे ख़ुद के इतना करीब आने दिया, साथ रहने के सपने दिखाए और फिर अचानक से मुझे खुद से दूर कर दिया?! क्या हक़ था उन्हें मेरे सपने तोड़ने का? यही सिला मिलना था मुझे इतनी ईमानदारी दिखाने का? अरे कम से कम मुझे मेरी बात रखने का तो मौका दिया होता?

ये सभी सवाल मेरे दिमाग में गूँजने लगे थे और चूँकि इनका जवाब मेरे पास नहीं था इसलिए मन में खीज उठ रही थी! गुस्सा इस कदर भड़क रहा था की अगर ये बात भौजी ने मेरे सामने कही होती तो आज मैं उन पर हाथ भी उठा देता!

कुछ ही पलों में दिमाग ने मुझे बेबस घोषित कर दिया और बेबस इंसान सिवाए रोने के और कुछ नहीं कर सकता! सर पकडे हुए ही मैं फफक कर रोने लगा, घर में कोई नहीं था तो मैं जी खोल कर रो सकता था| दिल में इतना दर्द था की आँखों से खून के आँसूँ निकलने लगे थे, मेरी उन दर्द भरी चीखों में बस भौजी का नाम ही था! रोते-रोते मैं उन्हें बस दोष दिए जा रहा था और कुछ देर पहले जो मन में सवाल उठे थे उन्हें ही दोहराये जा रहा था!

कुछ देर बाद दिषु का फ़ोन आया, वो अपने घर से निकल रहा था और उसने मुझे फ़ोन किया था ताकि मैं भी निकलूँ;

दिषु: हेल्लो मानु, मैं निकल रहा हूँ, तू भी निकल और सीधा स्टैंड पर मिलिओ|

मुझ में जरा भी ताक़त नहीं थी की मैं उसकी बात का जवाब दे सकूँ, इसलिए मैं खामोश रहा! मेरी ख़ामोशी भी मेरा दर्द ब्यान कर रही थी इसलिए दिषु ने फिर अपनी बात दोहराई;

दिषु: हेल्लो..मानु....सुन रहा है....हेल्लो..मैं निकल रहा हूँ.... हेल्लो...?

मुझे उसे जवाब देना था, इसलिए मैंने खुद पर किसी तरह काबू किया और रूँधे गले से बोला;

मैं: हाँ.... सुन... मैं नहीं.... आ सकता... तू चल जा...!

मैंने बड़ी हिम्मत करके ये शब्द कहे, उधर मेरी आवाज सुन दिषु समझ गया की कुछ गड़बड़ है;

दिषु: तू रुक वहीं, मैं तेरे घर आ रहा हूँ!

उस वक़्त मैं बस अकेला रहना चाहता था, इसलिए मैंने दिषु को मन करते हुए कहा;

मैं: नहीं...भाई...मुझे अकेला रहने दे...कल बात करेंगे!

दिषु ने बहुत कोशिश की कि मैं मान जाऊँ और उसके साथ बाहर आऊँ पर मैंने उसे मना कर दिया| फ़ोन रख कर मैं फिर से अपने गमों की दुनिया में डूब गया, 1 बजे माँ-पिताजी आये और उन्होंने दरवाजा खटखटाया| मैंने फटाफट अपने आँसूँ पोछे और दरवाजा खोल कर तुरंत उन्हें पीठ दिखा कर जाने लगा, ये मैंने इसलिए किया ताकि वो मेरी रोने से बिगड़ी हुई हालत न देख पाएँ! मैं अभी अपने कमरे की चौखट तक ही पहुँचा था की पीछे से पिताजी ने पुछा;

पिताजी: तू गया नहीं?

मैं: जी...वो...तबियत ठीक नहीं लग रही!

मैंने पिताजी की तरफ घुमते हुए सर झुका कर झूठ कहा| मेरे सर झुकाने से पिताजी मेरी बिगड़ी हुई हालत नहीं देख पाए पर माँ को सवाल करने का मौका मिल गया;

माँ: क्या हुआ तुझे, सुबह तो भला-चंगा था?!

मैं: वो... पेट...में दर्द हो रहा था!

मैंने सर झुकाये हुए ही माँ के सवाल का जवाब अपने झूठ से दिया, मेरी बात सुन माँ चिंतित हो गईं और उन्हें कुछ-कुछ शक होने लगा| माँ मेरे नजदीक आईं और मेरी ठुड्डी पकड़ कर ऊपर की ओर उठाई तो उन्हें मेरा रोने से बेहाल हुआ चेहरा दिखा, इससे पहले की वो कुछ बोलतीं पिताजी ही बोल पड़े;

पिताजी: ये क्या हालत बना रखी है तूने?

मैं: जी...वो...बहुत..दर्द हो रहा था...!

मैंने अपने आँसुओं से खराब चेहरे की हालत समझाने को झूठी सफाई दी| सुनने में अजीब लगता है पर अपने ही घर में, अपने ही कमरे में, मैं अकेला बैठ कर ठीक से रो भी नहीं सकता था, अपने आँसुओं तक की सफाई देनी पड़ रही थी और वो भी सिर्फ इसलिए की मेरे आँसुओं के कारन मुझे माँ-पिताजी से और झूठ न बोलना पड़े!

माँ: अरे बेटा तूने मुझे आवाज दे कर क्यों नहीं बुलाया, यहीं पड़ोस में तो थे हम लोग?!

माँ आखिर माँ ही होती है, वो हर हाल में पाने बेटे का दुःख-दर्द समझ जाती है| भले ही माँ मेरे आँसुओं का कारन न जान पाईं हों, पर उन्होंने मेरे पेट दर्द के बहाने को तो सच मान ही लिया था|

पिताजी: दवाई ली तूने?

पिताजी ने थोड़ा सख्ती से पूछा, वो पिता थे तो सख्ती ही उनका प्यार थी|

मैं: जी...पुदीन हरा लिया था, थोड़ा आराम है!

मैंने फिर झूठ बोला|

पिताजी: जर्रूर कल कुछ उल्टा-सीधा खाया होगा इसने, आज से इसे बाहर से कुछ खाने मत देना और कल से स्कूल इसे टिफिन देना शुरू करो!

इतना कह पिताजी अपने कमरे में चले गए|

माँ: बेटा तू आराम कर, मैं तेरे लिए खिचड़ी बना देती हूँ!

माँ ने सर पर हाथ रखते हुए कहा|

मैं: माँ अभी कुछ खाने का मन नहीं है, थोड़ी देर सो लेता हूँ शाम को भूख लगी तो बता दूँगा|

इतना कह मैं अपने कमरे में आ गया और औंधे मुँह बिस्तर पर पड़ गया| अब चूँकि माँ-पिताजी घर पर थे तो मैं रो नहीं सकता था क्योंकि वे लोग कभी भी कमरे में आ सकते थे| इसलिए मैं बस आँखें खोले यूँ ही पड़ा रहा और मन ही मन अपने दर्द को याद करके रोने लगा| लेकिन मन में जब दर्द उठा हो तो वो चेहरे पर आ ही जाता है, उस समय मेरी हालत ऐसी थी जैसे किसी ने आपको दुनिया में जीने के लिए छोड़ दिया बस आपसे साँस लेने का अधिकार छीन लिया| अब बिना साँस लिए कोई कैसे जी सकता है!!!

शाम होने तक मैं अपने ही कमरे में पड़ा सिसकता रहा, माँ ने मुझे जब चाय के लिए बुलाया तो मैं अपनी शक्ल ठीक कर के बाहर आया| माँ ने चाय बनाई थी तो मैं अपनी चाय ले कर कमरे में आ गया, रात का खाना बना तो खाने में माँ ने खिचड़ी बनाई जो मजबूरन मुझे पिताजी के डर से खानी पड़ी| खाना खा कर पर लेट गया और आँखें खोले हुए कमरे और मेरी जिंदगी में छाए अँधेरे को देखने लगा, कमरे के उस अँधेरे में मुझे भौजी और नेहा नजर आने लगीं| नेहा का ख्याल आते ही मैं उठ बैठा और मेरी आँखों से आँसुओं की धारा बहने लगी, भौजी के इस गलत फैसले ने न केवल मुझे आहात किया था बल्कि मेरी फूल से नाजुक बच्ची नेहा को भी दुःख पहुँचाया था| पता नहीं मेरी बच्ची कैसी होगी? इतने दिन मेरे से बात किये बिना वो कितना दुखी होगी? मैंने पास पड़े हुए तकिये को उठाया और उसे नेहा समझ कर कस के अपने सीने से चिपका कर रोने लगा| 'मुझे माफ़ कर देना बेटा, मैं बेबस हूँ, मजबूर हूँ!' ये कहते हुए मैं औंधे मुँह पड़ गया और नेहा के साथ बिठाये सभी पल याद कर के रोता रहा|

सुबह हुई और घडी में बजे अलार्म से मैं उठ बैठा, नाहा धो कर स्कूल ड्रेस पहन कर मैं बाहर निकला तो माँ ने मेरे लिए टिफ़िन बना कर रेडी कर दिया था| मैंने टिफिन बैग मैं डाला और माँ-पिताजी के पाँव छू कर स्कूल चल दिया| मैंने किसी को बात करने का मौका तक नहीं दिया था, क्योंकि उनसे बात करने की अब मुझ में हिम्मत नहीं थी| स्कूल मैं अपनी सड़ी हुई शक़ल ले कर पहुँचा, दिषु ने जब मुझे देखा तो वो दौड़ कर मेरे पास आया और मुझसे पूछने लगा| मैंने उसे कुछ नहीं बताया और उससे बस इतना कहा की मैं कुछ टाइम अकेला रहना चाहता हूँ, दिषु ने मुझे मेरा 'space' दिया जिससे मैं खुद को संभाल सकूँ| ये मेरी जिंदगी का वो दौर था जिसने मुझे अकेला रहना सिखाया, ये अकेलापन मुझे उन हसीन पलों को याद करने में मदद करता था| मैं ये नहीं जानता था की यही अकेलापन मुझे ग़मों के समंदर में डुबो रहा है, पढ़ाई में तो ध्यान लगता था नहीं था इसलिए मैं चुपचाप अकेला बैठा रहता| क्लास में मैं हमेशा आखरी बेंच पर अकेला गुम-सुम बैठता, लंच टाइम में मैं कैंटीन के पास वाली सीढ़ियों पर अकेला बैठता| अगर कभी कुछ दोस्त आ कर साथ बैठते तो मैं उनसे घुलता-मिलता नहीं था, कुछ समय बाद मैं चुप-चाप उठ कर चला जाता| घर पर मैंने अपने लिए छत को अपनी पसंदीदा जगह बना लिया, इस छत ने हमारे (मेरे और भौजी के) प्यार का इकरार सुना था और यही छत अब मेरा दिल टूटने पर टपकते आँसुओं की आवाज भी सुन रही थी!

माँ-पिताजी मुझसे कोई सवाल न पूछें इसलिए मैं अपने दुःख को अपने सीने में दबाने लगा था, एकदम से हँस मुख बच्चा खामोश हो जाए तो माँ को सबसे पहले शक़ होता है| यही शक़ माँ को भी हो चूका था और वो मुझसे बात करने का मौका ढूँढ रहीं थीं, इधर मैं माँ-पिताजी की मौजूदगी में किताब खोले रहता जिससे उन्हें लगे की मैं पढ़ रहा हूँ| मेरी इसी होशियारी के चलते माँ जब भी मुझसे बात करना चाहतीं उन्हें मैं 'पढता' हुआ दिखता और वो मुझसे कुछ पूछने का इरादा छोड़ देतीं|

वहीं मेरा दर्द कम होने की बजाए बढ़ता जा रहा था, मेरा रात को सोना दुश्वार हो चूका था| जैसे ही झपकी लगती तो मुझे भौजी और नेहा के सपने आते, उन सपनों में हम साथ होते, प्यार करते, बातें करते, कभी-कभी नोक-झौंक भी करते! ये सपने दिखने में तो अच्छे लगते थे पर जब आँख खोल कर सच सामने दिखता था तो बड़ी तड़प महसूस होती थी| ये सपने मुझे बेबस और लाचार होने का एहसास कराते थे और मैं बिलकुल भी कमजोर नहीं होना चाहता था! इस दर्द को झेलने के लिए मैंने वही रास्ता चुना जो मैंने फिल्मों में देखा था, मैं उस कड़वी बला को अपने होठों के लिए तैयार हो चूका था!

पिताजी शराब पिया करते थे, कभी किसी शादी-ब्याह के समारोह में तो कभी-कभी घर पर| मुझे उनके पीने से कोई तकलीफ नहीं होती थी, तकलीफ होती थी जब वो पी कर माँ से लड़ते-झगड़ते और कभी-कभी उन पर हाथ पर छोड़ दिया करते थे| उनका ऐसा करना मेरा खून खौला दिया करता था और मैं शराब से नफरत करने लगा था, पर आज मेरे हालात ही मुझे शराब के नजदीक ले आये थे! उस समय मेरे दिमाग में बस अपना गम मिटाने का जूनून सवार था और मैं पिताजी के माँ पर किये जुल्म भूल गया था|

संडे का दिन था, पिताजी आज सुबह ही किसी से मिलने जा चुके थे और माँ पड़ोस में गई हुई थीं| मेरा पास अच्छा मौका था, मैं पिताजी के कमरे में जा पहुँचा और पिताजी की 'Aristocrat' की बोतल से मुँह लगा कर एक घूँट पिया| जोश इतना था की मैंने व्हिस्की की महक तक पर ध्यान नहीं दिया, जैसे ही शराब का कड़वा घूँट पीया वो मेरे गले को जलाता हुआ मेरे पेट तक जा पहुँचा| पेट में पहुँच ने के बाद मुझे शराब की तेज महक का एहसास हुआ और मैं मुँह बिदका कर बोतल को देखने लगा| मन तो किया की एक और घूँट खींच जाऊँ पर तभी माँ ने बाहर का दरवाजा खोला और मैं बोतल वापस रख कर अपने कमरे में भाग आया| मेरे पास chewing gum पड़ी थी, मैंने फटाफट मुँह में डाली और बाथरूम घुस गया| मेरे बाथरूम में घुसते ही माँ मुझे ढूँढती हुई मेरे कमरे में घुसीं और मुझे आवाज दे कर बाहर बुलाने लगीं| उस दिन chewing gum ने मेरी जान बचा ली थी!

खैर जुबान को शराब का ये स्वाद भा गया था और दिल ने इसे मेरे दर्द की दवा मान लिया था| अब बस एक ही दिक्कत थी, वो ये की अगर ये बोतल खतम हो गई तो पिताजी की छड़ी और मेरी पीठ! अगर पैसों का जुगाड़ कर भी लेता तो लाता कौन? आस-पड़ोस में अगर किसी से कहता लाने को तो पिताजी को पता चल जाता और फिर मेरी जम कर कुटाई होती! इसलिए सिवाए पिताजी की उस बोतल के और कोई सहारा नहीं था, कुछ विचार के बाद एक उपाय मिला! मैंने सोच लिया की मैं बोतल में से जितनी पीयूँगा उतना पानी मिला दूँगा, अब मैं कोई पियक्कड़ तो था नहीं जो एक ही बार में सारी शराब खींच जाता इसलिए मेरा ये प्लान फूलप्रूफ था! भले ही दिल ने शराब को दर्द का सहारा मन लिया था पर दिमाग अब भी काम करता था जो मुझे काबू में रखता था और मैंने कभी भी इसकी अति नहीं दी| पिताजी की शराब मैं चुरा कर तभी पीता था जब मैं बहुत ज्यादा उदास होता था, वरना अपने गम पर मैं अपने आँसुओं का मरहम तो लगा ही लेता था|

महीना बीता और मेरा जन्मदिन आया, सुबह जब उठा तो पिताजी ने आज बड़े प्यार से आशीर्वाद दिया, माँ ने अपने गले लगा कर मुझे ढेर सारा प्यार दिया| माँ-पिताजी का प्यार पा कर मैं खुश हुआ पर फिर मन में ग्लानि पैदा होने लगी, ग्लानि माँ-पिताजी से झूठ बोलने की, ग्लानि उनका विश्वास तोड़ कर शराब पीने की और ग्लानि इसलिए भी की मैं अब वो आदर्श बेटा नहीं रहा जो पहले हुआ करता था| हर साल आज के दिन पिताजी मुझे पैसे दिया करते थे ताकि मैं पाने दोस्तों को बाहर खिला-पिला कर ट्रीट दे दूँ, इस बार भी जब उन्होंने पैसे दिए तो मन नहीं हुआ उनसे पैसे लेने का!

मैं: नहीं पिताजी!

मैंने सर न में हिलाते हुए कहा|

पिताजी: क्यों भई? हरसाल तो तू पैसे ले लेता था, इस बार क्या हुआ?

पिताजी के सवाल का कोई जवाब नहीं था, तो मुझे मजबूरन झूठ बोलना पड़ा;

मैं: जी....वो.....दिषु की तबियत ठीक नहीं है!

मैंने दिषु का बहाना मार दिया और अपने इस झूठ के लिए मन ही मन खुद को बहुत गालियाँ दी| मैं फटाफट तैयार हुआ और स्कूल पहुँचा, स्कूल पहुँचते ही मेरे दोस्तों ने मुझे घेर लिया और सब के सब एक साथ चिल्ला कर बोले; "birthday bomb!" हमारे स्कूल के लड़कों ने ये प्रथा बनाई थी, जिसमें जिस लड़के का birthday होता उसकी पीठ पर उतने ही मुक्के मारे जाते जितने साल का वो हो गया हो! अपने गिने-चुने दोस्तों को देख मैं समझ गया की आज तो सब मुझे 17-17 घूसे मारने वाले हैं! "क्यों भाई पीठ की मालिश करवा के आया है की नहीं?" मेरा एक दोस्त हँसते हुए बोला| मैं जानता था की आज इनकी मार से तो मैं बचने से रहा, इसलिए मैंने अपनी पीठ अपने दोस्तों की तरफ कर दी| सालों ने एक-एक कर इतने घूसे मारे की मुझे मेरी नानी याद आ गईं! सब ने मेरी पीठ पर हाथ सेंके थे, सिवाए दिषु के उसने मुझे बस कस कर गले लगा कर बक्श दिया था| जब treat की बारी आई तो दिषु ने ही आगे बढ़ कर सबको 100/- का एक नोट दिया और मुझे ले कर कैंटीन की सीढ़ियों पर बैठ गया|

दिषु: देख भाई, मैंने तुझे पूरा डेढ़ महीना दिया ताकि तो अपने 'personal space' में खुद को संभाल ले, पर तू सिर्फ अंदर ही अंदर घुटे जा रहा है! अगर तू मुझे अपना भाई मानता है तो मुझे सब सच बता|

मैं उसकी कसम में बँध चूका था, इसलिए उसे मैंने सब सच बता दिया| उसने मेरी आँखों में आँखें डाले हुए सारी बात सुनी;

दिषु: Honestly कहूँ तो अगर ये सब बातें तूने मुझे शुरू में बताई होती तो मैं यही कहता की इस relationship का कोई नाम, परिभाषा या अंत नहीं| ये relationship तेरी शादी के बाद भी तू जारी रख सकता था, सुनने में extra marital affair थोड़ा बुरा लगता पर आजकल की दुनिया में ये चलता ही है|

दिषु का हमारे प्यार को extra marital affair कहना मुझे बहुत चुभा था|

मैं: Please यार ऐसा मत बोल, ये कोई affair नहीं था, ये सच्ची मोहब्बत 'थी'! तू नहीं जानता पर मैंने बहुत कुछ सोच रखा था, पर उन्होंने अचानक से सब कुछ खत्म कर दिया, मुझे मेरी बात कहने का मौका तक नहीं दिया!

इन कुछ दिनों में जिस दर्द से मैं गुजर रहा था उसने मेरी मोहब्बत के साथ 'थी' शब्द जोड़ने के लिए मजबूर कर दिया था|

दिषु: तू सही है, तुझे तेरी बात रखने का हक़ था जो उन्होंने तुझसे छीन लिया! मेरी नजर में उनके दिए कारन तुझ पर कहीं से भी सही नहीं उतरते! मुझे कहना नहीं चाहिए पर she used you!

दिषु के कहे ये शब्द पहले तो मेरे दिल को चुभे और फिर दिल से होते ये शब्द मेरे दिमाग में बस गए, पर मन इन शब्दों को मानने से इंकार कर रहा था|

उस दिन जब मैं दोपहर को स्कूल से घर लौटा तो मेरा दिमाग भिन्नाया हुआ था| माँ ने खाना लगाया और मैं अपने कपडे बदल कर आया, पिताजी उस समय dining table पर बैठे बड़के दादा से फ़ोन पर बात कर रहे थे| बड़के दादा ने फ़ोन यूँ ही किया था, दरअसल हमारे गाँव में कोई भी किसी का birthday याद नहीं रखता था, अगर याद आ भी जाए तो उस दिन कुछ ख़ास नहीं होता था, ज्यादा से ज्यादा उस दिन परिवार मंदिर जाता होगा पर मैंने ऐसा कभी कुछ सुना नहीं! इसीलिए न तो पिताजी ने बड़के दादा को मेरे जन्मदिन के बारे में बताया और न ही बड़के दादा को मेरा जन्मदिन जानने की कुछ पड़ी थी| खैर तभी मेरे दिमाग में एक बिजली कौंधी की भौजी ने कहीं मुझे birthday wish करने के लिए दिन में फ़ोन तो नहीं किया था?! ये ख्याल आते ही मैं पुरानी सब बातें भुला बैठा और पिताजी की बात खत्म होते ही उनके फ़ोन में call list चेक करने लगा, पर उस लिस्ट में न तो कोई नया नम्बर था ही नहीं! मैंने सोचा की अब तक नहीं आया तो रात तक कॉल आ ही जायेगा, भले ही लाख नाराजगी सही पर वो मेरा जन्मदिन कैसे भूल सकती हैं?! आने दो उनका फ़ोन, मैं उनसे अच्छे से बात करूँगा और पुरानी सारी बातें माफ़ कर दूँगा! ये सब सोच मेरा चेहरा ख़ुशी से फिर चमकने लगा, मैंने फटाफट खाना खत्म किया और पिताजी का फ़ोन ले कर अपने कमरे में घुस गया| फ़ोन को अपने सीने से चिपटाये मैं लेट गया और सोचने लगा की मैं भौजी और नेहा से क्या-क्या बात करूँगा? लगभग दो महीने होने को आये थे और मुझे आज उनसे खूब सारी बातें करनी थीं! उधर पिताजी को आज बाहर कुछ काम नहीं था तो वो घर पर ही रुके हुए थे, जिस कारन फ़ोन मेरी छाती पर पड़ा आराम कर रहा था|

दोपहर से शाम हुई, शाम से रात हुई पर भौजी का कोई फ़ोन नहीं आया! दिमाग में फिर गुस्सा भरने लगा था, जैसे -तैसे मैंने खुद को समझाया की अभी रात बाकी है, हो सकता है की रात में फ़ोन करें| ये सोच कर मैं रात का खाना खा कर अपने कमरे में आ गया, कुछ समय मुझे पिताजी की आवाज dining table पर से आई;

पिताजी: मानु की माँ, आज क्या बात है ये तो बिलकुल सादे पानी जैसी लग रही है!!

दरअसल पिताजी dining table पर बैठे व्हिस्की का पेग पी रहे थे, पिछले कुछ दिनों से मैं जो उनकी शराब पी कर उसमें पानी मिलाने का महान कार्य कर रहा था वो अब जा कर असर दिखा रहा था! एक पल को तो मैं डर गया था की आज तो पिताजी मेरी अच्छी खबर लेंगे पर जब माँ बोलीं तो पिताजी को शक नहीं हुआ;

माँ: अरे आजकल सब चीजों में मिलावट होती है, कितने दिन हुए आपको ये बोतल लाये हुए खराब हो गई होगी शायद!

माँ ने बड़े भोलेपन से कहा, अब उन्हें क्या पता की ये कारिस्तानी तो उन्ही के सुपुत्र की है, जिसने बोतल में सिर्फ पानी ही छोड़ा था!

पूरी रात मैंने जागते हुए काटी, दिल में जो मेरे और भौजी के रिश्ते के सम्भलने की रही-सही उम्मीद थी वो भी अब बुझ चुकी थी| मैं ये मान चूका था की भौजी ने हमारा ये अटूट 'अनोखा बंधन' तोड़ दिया है, ठीक है जब उन्हें ही कोई रिश्ता नहीं रखना तो मैं भी क्यों उनसे कोई उम्मीद करूँ! दिल बहुत दुखा पर मेरे इस दुखते दिल पर मरहम लगाने वाला अब कोई नहीं था, मुझे अकेले ही अपने दिल को संभालना था|

समय का चक्र घूमा और मेरे मध्यावधि परीक्षा (mid term exam) आ गई, दिल टूटा था और ध्यान पढ़ाई में था नहीं तो पेपर अच्छे नहीं हुए| जब रिजल्ट आया तो मुझे जरा भी अस्चर्य नहीं हुआ, लेकिन अध्यपकों समेत मेरे माता-पिता बहुत हैरान हुए! सारे पपेरों में मैं बस मार्जिन से पास हुआ था, पेपर देख कर तो मुझे लगा था शायद टीचर ने दया कर के पास कर दिया हो! जल्द ही अभिभावक शिक्षक बैठक (parent teacher meeting) के लिए मेरे पिताजी को बुलावा भेजा गया, एक-एक कर सभी अध्यापकों ने पिताजी से मेरे इतने कम नम्बर का कारन पुछा, पर उन्हें खुद नहीं पता था की मेरे इतने कम नम्बर कैसे आये? अध्यपकों और पिताजी ने एक साथ मुझसे कम नंबरों का कारन पुछा तो मैं बस सर झुकाये हुए खामोश खड़ा रहा| थोड़ी डाँट फटकार के बाद पिताजी और मैं स्कूल के गेट पर खड़े थे की तभी पिताजी का फ़ोन बजा| पिताजी वहीं खड़े हो कर बात करने लगे, तभी वहाँ मेरी क्लास की एक लड़की अपनी माँ के साथ स्कूल में दाखिल होने जा रही थी;

अंकिता: Hi मानु!

उसने मुस्कुरा कर कहा, उसका Hi सुनकर मेरे मुख से कुछ नहीं निकला की तभी उसने हाथ जोड़कर पिताजी से नमस्ते कहा;

अंकिता: नमस्ते अंकल!

पिताजी: नमस्ते बेटा!

पिताजी ने नकली मुस्कान के साथ जवाब दिया, वो तो अंदर चली गई पर इधर पिताजी मुझे घूर कर देखने लगे| उन्हें लगा की उनका लड़का प्यार-मोहब्बत के चक्कर में पड़ चूका है, घर आने तक पिताजी मुझसे कुछ नहीं बोले और घर में घुसते ही उन्होंने मुझे जो डाँट लगाई की पड़ोस के एक अंकल देखने आ गए की आखिर ऐसा क्या हो गया की गली के सबसे शरीफ लड़के को इतनी डाँट पड़ रही है|

[color=rgb(51,]जारी रहेगा भाग - 3 में[/color]
 

[color=rgb(255,]बीसवाँ अध्याय: बिछोह[/color]
[color=rgb(41,]भाग - 3[/color]


[color=rgb(65,]अब तक आपने पढ़ा:[/color]

पिताजी मुझे घूर कर देखने लगे| उन्हें लगा की उनका लड़का प्यार-मोहब्बत के चक्कर में पड़ चूका है, घर आने तक पिताजी मुझसे कुछ नहीं बोले और घर में घुसते ही उन्होंने मुझे जो डाँट लगाई की पड़ोस के एक अंकल देखने आ गए की आखिर ऐसा क्या हो गया की गली के सबसे शरीफ लड़के को इतनी डाँट पड़ रही है|

[color=rgb(243,]अब आगे:[/color]

पिताजी की पूरी डाँट मैंने सर झुका कर ख़ामोशी से सुनी, बोलने के लिए जुबान तो थी पर बोलता क्या? आखिर में जब पिताजी ने अंकिता के बारे में पुछा तब जा आकर मेरे मुँह से बोल फूटे;

मैं: वो मेरे साथ क्लास में पढ़ती है|

मैंने सर झुकाये हुए ही कहा|

पिताजी: सच सच बता, इसी लड़की के चक्कर में पद कर तो तेरे नम्बर कम नहीं आये न?

पिताजी ने बड़ी सख्ती से पुछा|

मैं: जी नहीं!

मैंने सर झुकाये हुए ही कहा, इतने में माँ पीछे से आ गईं और मेरा बचाव करते हुए बोलीं;

माँ: अजी छोड़ दीजिये! पास तो हो गया न, आगे से मन लगा कर पढ़ेगा|

पर पिताजी को माँ का यूँ मेरा बीच बचाव करना अच्छा नहीं लगा और वो उन्हीं पर बरस पड़े;

पिताजी: तुम्ही ने इसे सर पर चढ़ाया|

मैं नहीं चाहता था की मेरे कारन माँ को डाँट पड़े इसलिए मैं सर झुकाये हुए ही बीच में बोल पड़ा;

मैं: पिताजी आगे से आपको शिकायत का मौका नहीं दूँगा!

इतने सुन कर पिताजी गुस्से में बाहर चले गए और मैं सर झुकाये हुए ही अपने कमरे में आ कर बैठ गया| माँ मेरा मुरझाया हुआ चेहरा देख के समझ गईं थीं की कुछ तो बात है जो मैं सब से छुपा रहा हूँ. इसलिए वो मेरे कमरे में आईं और मेरी बगल में बैठ गईं| माँ मेरे सर पर हाथ फेरते हुए बोलीं;

माँ: क्या बात है बेटा, आजकल तू बहुत गुम-सुम रहता है?!

मैं: कुछ नहीं माँ...वो....

मैंने सर झुकाये हुए ही कहा, मैं जानता था की अगर मैंने सर उठा आकर माँ की आँखों में देख कर कुछ कहाः तो माँ सब समझ जाएंगी, पर माँ सर्वज्ञानी थीं!

माँ: मुझसे मत छुपा! तेरे पेपरों में अचानक से कम नंबर आये और जब तेरे पिताजी ने कारण पूछा तब भी तू इसी तरह चुप था! देख मैं जानती हूँ की तुझे अपनी भौजी और नेहा की बहुत याद आ रही है, ये ले फ़ोन कर ले उन्हें बात करेगा तो तेरा मन हल्का हो जायेगा! कितने दिन से तूने उनसे बात नहीं की, ले कर ले फ़ोन!

माँ की बात सुन कर मैं आँखें फाड़े उन्हें देखने लगा, मैं तो भौजी से बात करते समय बड़ी चौकसी बर्तता था तो फिर उन्हीं कैसे पता?

माँ: मैं सब जानती हूँ बेटा! एक दिन तू अपनी लाड़ली नेहा से बात कर रहा था तब मैं अपने कमरे में कुछ काम से जा रही थी, तब मैंने तेरी बातें सुनी थीं!

माँ मुस्कुराते हुए बोलीं, शुक्र है की माँ ने मेरी और भौजी की बातें नहीं सुनी थीं वरना माँ मुझसे प्यार से नहीं बल्कि चप्पल से पीटते हुए बात करतीं!

माँ: ये ले फ़ोन और बात कर ले अपनी दोस्त से!

माँ ने फिर से मुस्कुराते हुए कहा, पर मेरा मन अब भौजी की तरफ से फ़ट चूका था;

मैं: नहीं माँ... मैं कोई फोन नहीं करूँगा!

मैंने तुनकते हुए कहा|

माँ: क्यों फिर लड़ाई हो गई तुम दोनों की?

माँ हँसते हुए बोलीं|

मैं: नहीं तो......

मुझे एहसास हुआ की मुझे इस तरह तुनक कर जवाब नहीं देना चाहिए था, इसलिए मैंने बात सम्भालिनी चाही पर तबतक तो बहुत देर हो चुकी थी|

माँ: हम्म्म .....समझी...तो दोनों में लड़ाई हुई है!

माँ ने गर्दन हिलाते हुए कहा, पर मुझे अब ये बात खत्म करनी थी क्योंकि भौजी को याद कर के मुझे बस गुस्सा ही आता था|

मैं: नहीं माँ, ऐसा कुछ नहीं है| Thank you माँ की आप मेरे पास आके बैठे, अब मैं अच्छा महसूस कर रहा हूँ|

मैंने एक नकली मुस्कान लिए हुए कहा और उठ कर बाथरूम में घुस गया, माँ को कुछ-कुछ यक़ीन हो गया था की उनका बच्चा अब फिर से पहले की तरह चहकने लगेगा| बाथरूम में घुस कर मैंने अपना मुँह धोया और बाहर आ कर पढ़ाई करने बैठ गया|

माँ से बात छुपाना इतना आसान नहीं होता, इसलिए घर पर होते हुए मुझे पहले की ही तरह नार्मल दिखना था| मेरी माँ की एक ख़ास बात ये थी की वो कभी किसी बात पर अड़ नहीं जाती थी, इसीलिए उन्होंने भौजी से फ़ोन पर बात न करने की बात को ज्यादा नहीं दबाया| वो इतने से ही खुश थीं की उनका बेटा अब मन लगा कर पढ़ेगा|

इधर मुझे मेरे सवालों का जवाब अब तक नहीं मिला था, आखिर क्यों भौजी ने मुझे अपने जीवन से इस तरह निकाल के फेंक दिया? कसूर क्या था मेरा जिसकी मुझे इतनी बड़ी सजा दी गई? मेरा जिज्ञासु मन बस इन सवालों के जवाब के लिए तड़पे जा रहा था| ग्यारहवीं में मैंने पिताजी से जिद्द करके एक MP3 CD Player लिया था, बजार से 30/- रुपये में mp3 की CD मिल जाती थी जिसमें 1000 तक गाने होते थे, इन CDs में मैं मेरे कुछ चुनिंदा दुःख भरे गाने सुन के जीये जा रहा था| वो चुनिंदा गानों के नाम थे;

1. जिंदगी ने जिंदगी भर गम दिए - द ट्रेन (2007) : वैसे तो ये गाना पूरा का पूरा मुझ पर उतरता था, पर इस गाने की कुछ ख़ास पंक्तियाँ जो मुझे छू जातीं थीं वो थीं;

"अपने भी पेश आये हमसे अजनबी

वक़्त की साजिश कोई समझा नहीं

बेइरादा कुछ खताएं हमसे हो गयी

राह में पत्थर मेरी हरदम दिए

ज़िन्दगी ने ज़िन्दगी भर..."

2. मैं जहाँ रहूँ - नमस्ते लन्दन (2007) : इस गाने का एक-एक शब्द ऐसा था, जो मेरी हालत ब्यान करता था|

"कहीं तो दिल में यादों की इक सूली गढ़ जाती है,

कहीं हर एक तस्वीर बहुत ही धुंधली पड़ जाती है" - ये पंक्ति मेरी पसंदीदा थी, क्योंकि ये मुझे भौजी के संग बिठाये उन हसीं लम्हों को याद दिलाती थी|

"कोई नयी दुनिया के नए रंगों में खुश रहता है" - ये वो पंक्ति थी जो मुझे एहसास कराती थी की मेरे बिना भौजी वहाँ ख़ुशी से जी रही होंगी!

3. जीना यहाँ - मेरा नाम जोकर (1970) :

"कल खेल में, हम हों न हों

गर्दिश में तारे रहेंगे सदा

भूलोगे तुम, भूलेंगे वो

पर हम तुम्हारे रहेंगे सदा

रहेंगे यहीं, अपने निशाँ

इसके सिवा जाना कहाँ" - ये पंक्तियाँ सुन कर कभी-कभी मन करता था की चाक़ू उठा कर नस काट लूँ, पर फिर माँ-पिताजी का चहेरा सामने आ जाता और आत्महत्या का ख्याल मन से निकल जाता!

4. कसमें वादे प्यार वफ़ा सब - उपकार (1967) :

"सुख में तेरे साथ चलेंगे

दुख में सब मुख मोड़ेंगे

दुनिया वाले तेरे बनकर

तेरा ही दिल तोड़ेंगे

देते हैं भगवान को धोखा

इन्सां को क्या छोड़ेंगे" ये पंक्तियाँ मुझे मेरे साथ हुए धोखे की याद दिलाते थे! हालाँकि अभी तक मैंने भौजी को 'धोखेबाज' की उपाधि नहीं दी थी!

कुछ दिन बीते और एक दिन पिताजी रात को बड़े गुस्से में घर लौटे, जब माँ ने उनसे गुस्से का कारन पुछा तो पिताजी बड़े गुस्से में बोले;

पिताजी: वो हरामजादा... रौशन... उस कुत्ते को सारा काम सिखाया मैंने.. और अब वो @@#$&@#$@ मेरे बराबर में कंपनी खोल कर बैठ गया!

पिताजी गुस्से में उस आदमी को गाली देते हुए बोले|

पिताजी: आजकल के टाइम में कोई किसी का नहीं होता, हर कोई बस 'फायदा' उठाना चाहता है!

पिताजी के वाक्य में कहे 'फायदे' शब्द को सुन कर मेरे कान खड़े हो गए| ये ऐसा शब्द था जो मेरे दिमाग में अटक गया, मैंने इस शब्द के ऊपर बहुत सोचा और इसे हम दोनों (मेरे और भौजी) के रिश्ते के बीच में रख दिया! मेरा मन इस शब्द को स्वीकारना नहीं चाहता पर दिल में उठ रहे दर्द ने इस शब्द के इर्द-गिर्द दिवार खड़ी कर नफरत की ईमारत बनानी शुरू कर दी; 'भौजी ने मेरा फायदा नहीं उठाया तो क्या था ये सब? गाँव में इतना प्यार दिखाना और शहर आते ही एकदम से बात करना बंद कर देना, ये भौजी का स्वार्थ नहीं तो और क्या था? उन्हें मुझसे बस एक बच्चा चाहिए था, वो उन्हें मिल गया तभी तो मुझे दूध में से माखी की तरह निकाल कर यूँ फेंक दिया!' दिल ने जब नफरत की इस ईमारत का ढाँचा बना दिया तो, दिमाग में शक का कीड़ा पैदा हो गया! ये तो मेरा मन था जो अब भी इस 'फायदे' वाली बात को नामंजूर कर रहा था, वरना दिल की बनाई इस इमारत पर बस यक़ीन की छत पड़नी बाकी थी!

शक पैदा हुआ तो मुझे खुद को सुधारने का मौका मिला, दिल ने कहा की जब भौजी को ही तेरी कुछ नहीं पड़ी तो तू क्यों यूँ तड़प रहा है? मुझे सम्भलना था, अपने लिए नहीं बल्कि अपनी माँ के लिए| मेरी उदासी ही मेरी माँ के चेहरे से हँसी चुरा लिया करती थी, इसलिए मैंने निर्णय लिया की मैं कभी भी माँ को दुखी नहीं करूँगा, पहले ही माँ ने बहुत तकलीफें सही हैं, अब उन्हें और तकलीफ नहीं दूँगा!

मैंने गिर कर उठने का निर्णय लिया तो जो हाथ सबसे पहले आगे आया, वो था दिषु का! उसने मुझे सहारा दिया, होंसला दिया और मेरे मन को वापस भौजी के प्यार की तरफ भटकने से रोका! लेकिन मैं बहुत भावुक व्यक्ति था, तो ये सब मेरे लिए आसान कतई नहीं था| दिषु की मौजूदगी में मेरा मन शांत रहता पर जब घर में अकेला होता तो फिर वही सब याद करने लगता| भौजी संग बिताये लम्हे याद कर के बहुत दुःख होता था तो वहीं नेहा की मुस्कान याद करके दिल को सुकून मिलता था| वो नेहा को कहानी सुनना, उसका यूँ कस कर मुझसे लिपट कर सोना, सुबह होते ही प्यारी-प्यारी पप्पी देना, उसे स्कूल छोड़ने जाना, फिर उसे स्कूल से लाना, मेरा उसे खाना खिलाना, कभी-कभी उसके नन्हें हाथों से कौर खाना, फिर वो दिन जब मैंने नेहा के बाल बनाये थे और वो मुझे सीखा रहे थी की बाल कैसे बनाये जाते हैं! फिर वो दिन जब मैं खेतों में पानी लगा रहा था तब नेहा ने मुझे टमाटर तोडना सिखाया था! इन सब बातों को याद कर के चेहरे पर मुस्कान आ जाती और दिमाग एक कल्पना गढ़ने लगता की नेहा अभी पीछे से आएगी और बोलेगी; "पापा!"

लेकिन नेहा की एक ऐसी याद भी थी, जिसे याद कर के आँखों में आँसूँ आ जाया करते थे| कभी-कभी नेहा जब मेरी छाती पर सर रख कर सोती थी तो वो अपने नन्हे-नन्हे हाथों से मुझे अपनी बाहों में जकड़ना चाहती थी, वो एहसास याद करके मैं कई बार रोता था क्योंकि ये एहसास में शायद अब कभी महसूस न कर पाऊँ!

कुछ दिन बीते और फिर दशहरे की छुटियाँ हो गईं, इन छुट्टियों ने जैसे मेरा जख्म हरा कर दिया! अगर भौजी ने मुझे यूँ खुद से अलग न किया होता तो मैं आज गाँव में होता| एक बार मन में ख़याल आया की भौजी के लिए न सही तो कम से कम अपनी बेटी के लिए ही सही गाँव चलता हूँ, पर फिर डर लगने लगा की कहीं भौजी ये न बोल दें की मैं क्यों गाँव आया हूँ? या मेरा नेहा पर कोई हक़ नहीं! ये सुनकर मैं अपना आपा खो देता और या तो उन पर हाथ उठा देता, या फिर मैं इस कदर टूट जाता की अपनी जान देता! इसी कारन मैं गाँव नहीं गया, क्योंकि मैं अब टूटना नहीं चाहता था|

भौजी को मैं कभी नहीं भूल सकता था इसलिए मैंने इन छुट्टियों में भौजी की सुनहरी यादों को मन में दबाना शुरू कर दिया| सब के सामने तो मैंने हँसी का मुखौटा ओढ़ना शुरू कर दिया, लेकिन जब अकेला होता तो ये सभी यादें मन की कब्र से बाहर निकल आतीं, फिर वही दर्द भरे गाने सुनना, रोना और कभी-कभी चोरी से पिताजी की शराब के 2-4 घुट पीना| ऐसे करते-करते third term के पेपर आ गए और इस बार मैं ठीक-ठाक नंबरों से पास हो गया|

[color=rgb(85,]जारी रहेगा भाग - 4 में[/color]
 

[color=rgb(255,]बीसवाँ अध्याय: बिछोह[/color]
[color=rgb(41,]भाग - 4 (1)[/color]


[color=rgb(65,]अब तक आपने पढ़ा:[/color]

भौजी को मैं कभी नहीं भूल सकता था इसलिए मैंने इन छुट्टियों में भौजी की सुनहरी यादों को मन में दबाना शुरू कर दिया| सब के सामने तो मैंने हँसी का मुखौटा ओढ़ना शुरू कर दिया, लेकिन जब अकेला होता तो ये सभी यादें मन की कब्र से बाहर निकल आतीं, फिर वही दर्द भरे गाने सुनना, रोना और कभी-कभी चोरी से पिताजी की शराब के 2-4 घुट पीना| ऐसे करते-करते third term के पेपर आ गए और इस बार मैं ठीक-ठाक नंबरों से पास हो गया|

[color=rgb(243,]अब आगे:[/color]

जनवरी में pre-boards हुए और मेरे नम्बर हमेशा की ही तरह आये, पिताजी बहुत खुश तो नहीं, पर ये था की मध्यावधि परीक्षा के मुक़ाबले तो नम्बर बहुत अच्छे थे| महीने गुजरे और फिर वो पल आया जब मेरा बच्चा, मेरा खून पैदा हुआ! फरवरी पूरा महीना छुट्टी था और मैं मन लगा कर पढ़ने लगा था, Boards के पपेरों का भूत जो डरा रहा था! 15 तारिख की सुबह के 10 बजे थे, मैं अपने कमरे में बैठा गणित के सवाल हल कर रहा था जब पिताजी का फ़ोन बजा| फ़ोन पर बात करते-करते ही पिताजी ने मुझे और माँ को आवाज मार के बुलाया, जब हम दोनों drawing room में पहुँचे तो देखा की पिताजी बहुत खुश हैं| फ़ोन काटते ही पिताजी ने मुझे 100/- दिए और कहा;

पिताजी: जल्दी से जा कर लड्डू ले कर आ|

पिताजी की चेहरे पर ख़ुशी देख मेरे चेहरे पर भी मुस्कान आ गई और मैं पैसे ले कर बाहर दौड़ पड़ा| पिताजी की ख़ुशी का कारण तो मैं नहीं जानता था, पर इतने दिन बाद जो खुशियाँ घर आईं थीं उन्हें मनाने का मौका मैं नहीं छोड़ना चाहता था| जब मैं मिठाई ले कर घर पहुँचा तो पिताजी ने माँ को खुशखबरी दे दी थी, अब मेरा भी मन था की ये खुशखबरी मुझे भी पता चले;

माँ: बेटा तू चाचा बन गया, तेरी भौजी को लड़का हुआ है!

माँ ख़ुशी से चहकते हुए बोलीं|

ये खुशखबरी सुन कर मेरा दिल हवा में उड़ने लगा, दिल एकदम से भावुक हो उठा और इससे पहले की आँखें छलछला जातीं मैं मिठाई रख कर बाथरूम में घुस गया| वाशबेसिन के सामने खड़ा हो कर, शीशे में अपना अक्स देखते हुए मैं मुस्कुरा उठा, ठीक उसी समय मेरे आँखों से ख़ुशी के आँसूँ बहने लगे| आज दिल में तड़प नहीं उठ रही थी, बल्कि बाप बनने की ख़ुशी हो रही थी|

मुँह धो कर मैं बाहर आया तो माँ ने मेरे इस बर्ताव के बारे में पुछा तो मैंने ये कह कर बात टाल दी की मुझे बहुत जोर से बाथरूम आ रही थी|

माँ: जानता है तेरे भतीजे का नाम तेरी भौजी ने क्या रखा है?

माँ की बात सुन मेरे मन में नाम जानने की लालसा जगी और मेरी आँखें ख़ुशी से बड़ी हो गईं;

माँ: आयुष!

ये नाम सुन कर मेरी आँखें चमकने लगीं, ये वही नाम था जो मैंने भौजी से कहा था| नाम सुन कर मन तो किया की भौजी को फ़ोन करूँ, पर फिर उनकी दी हुई कसम याद आ गई औरमैं रुक गया| मैंने मिठाई के डिब्बे से एक लड्डू निकाला और ये कल्पना करने लगा की कि भौजी मुझे मेरे बाप बनने की ख़ुशी में खुद लड्डू खिला रही हों|

इधर पिताजी लड्डू बाँटने चले गए और मैं अपने कमरे में आ कर बैठ गया, बैठे-बैठे दिमाग में कुछ पल याद आने लगे| जिस दिन भौजी रात को आत्महत्या करने जा रहीं थीं, उस दिन मैंने उनसे कहा था की उनकी डिलीवरी के समय मैं उनके साथ हूँगा| ये बात याद करते ही मुझे ग्लानि होने लगी की मैं अपनी बात पर कायम नहीं रह सका, पर तभी दिमाग बोला; 'साथ रहता कैसे? भौजी ने तुझे खुद से अलग कर दिया था न?' ये ख्याल आते ही मन ने दिमाग को लताड़ा; 'कम से कम आज के दिन तो ये बातें मत याद कर? आज तू बाप बना है, इस ख़ुशी को ढंग से महसूस कर!' मन की बात अच्छी लगी और मैं आँख बंद कर के बैठ गया| अपने दोनों हाथों को मैंने ठीक उसी तरह मोड़ा जैसे किसी छोटे बच्चे को गोद में उठाते समय मोड़ते हैं| आयसुह मेरी गोद में नहीं था, पर मेरा मन इस कल्पना को सच मान चूका था| इस प्यार भरे एहसास ने मेरे दिमाग में चढ़े गुस्से को शांत किया और मेरा दिमाग कल्पना करने लगा की आयुष मेरी गोद में मुस्कुरा रहा है! वो भोली से मुस्कान देख कर दिल में एक दर्द पैदा हुआ, दर्द अपने बच्चे को गोद में न ले पाने का, दर्द उसकी प्यारी सी मुस्कान कभी न देख पाने का, दर्द कभी उसकी किलकारी न सुनने का! ये दर्द महसूस होते ही दिल रो पड़ा और आँखों से आँसु फिर बह निकले|

बाप होते हुए अपने ही पुत्र को गोद में न ले पाने से इतना दुःख होता है इस दुःख की मैंने कभी कल्पना भी नहीं की थी| अगर आज के दिन मैं गाँव में होता तो आयुष को गोद में ले पाता, उसके नन्हे-नन्हे हाथों को चूम पाता, उसे अपने सीने से लिपटा कर उसके सर को चूम पाता, उसके नन्हे-नन्हे पैरों को चूमता| एक बाप के सीने की अगन उसके पुत्र को पा कर शांत होती!

तभी दिल में एक उम्मीद पैदा हुई, एक ऐसी उम्मीद ने जिसने मेरे दिमाग से भौजी के प्रति सारा गुस्सा निकाल फेंका| आयुष के पैदा होने से नए आयाम खुल गए थे, मन ने कहा की हो न हो भौजी का दिल पसीज गया होगा और वो मुझे जर्रूर फ़ोन करेंगी| आखिर ये हमारा बच्चा था, हमारे प्यार की निशानी, वो एक बाप को उसके ही बच्चे से दूर नहीं रखेंगी| आज नहीं तो कल वो जर्रूर फ़ोन करेंगी और मुझसे वैसे ही बात करेंगी जैसे हम पहले किया करते थे| मैं भी उनके सारे गुनाह माफ़ कर दूँगा, भूल जाऊँगा जो उन्होंने मेरे साथ किया और फिर से उन्हें उसी तरह से अपना लूँगा जैसे पहले चाहता था! 'आखिर वो मेरी पत्नी हैं, गलती से कुछ कह दिया तो कोई बात नहीं!' दिल बोला और इस बार दिमाग ने इस बात को आदर सहित मान लिया| "हे भगवान्! मैं उनसे (भौजी से) बहुत प्यार करता हूँ, बीते कुछ महीनों में जो भी हुआ वो नहीं होना चाहिए था| पर अब मैं एक बाप बन चूका हूँ और पुरानी सारी बातें भूलना चाहता हूँ, आप बस कैसे भी उनसे (भौजी से) एक कॉल करवा दो! मैं वादा करता हूँ की सब कुछ भुला कर उनके (भौजी के) साथ एक नई शुरुआत करूँगा!" मैंने हाथ जोड़ते हुए भगवान से ये प्रार्थना की|

ये प्रार्थना कर मेरा दिल उमीदों के तेल से भर गया, जो मायूसी मेरे दिल में थी वो गायब हो गई और मेरा चहेरा फिर से खिल गया| उसी दिन शाम को दिषु मुझे मिला तो मैंने उसे ये खुशखबरी दी, उसे वो ख़ुशी नहीं हुई जो मैं उम्मीद कर रहा था! कारन थी उसकी व्यवहारिक सोच, जो की सही भी थी पर फिर भी उसने मुझे ये महसूस नहीं होने दिया की उसे कम ख़ुशी हो रही है| "यार हो सकता है की तेरे फ़ोन पर उनका (भौजी का) कॉल आये, अगर मैं तेरे साथ न हुआ तो तू प्लीज उन्हें कह दियो की वो मुझे पिताजी वाले नम्बर पर रात में कॉल करें|" मैंने उत्साहित होते हुए कहा| मेरा उत्साह से खिला चेहरा देख दिषु मुस्कुरा दिया और सर हाँ में हिला कर अपनी स्वीकृति दी| अब अपने बाप बनने की ख़ुशी में दिषु को पार्टी देना तो बनता था, इसलिए मैंने उसे चाऊमीन खिलाई| यही हम दोनों के खुशियाँ मनाने का जरिया था, दिन चाहे जो भी हो अगर ख़ुशी मनानी है तो 20/- की फुल प्लेट चाऊमीन घर ले आओ, साथ में कोल्ड्रिंक और हो गई शानदार पार्टी!

खैर पार्टी हुई और अब मेरा इंतजार शुरू हो गया| मैं जानता था की भौजी फ़ोन कर के अवश्य पूछतीं की मैंने उनके कॉल के इंतजार में मैंने पढ़ाई का त्याग तो नहीं कर दिया, इसलिए मैंने अपनी पढ़ाई भी उसी जोश से जारी रखी| पढ़ाई और भौजी के कॉल के इंतजार में मैंने खाना-पीना लगभग छोड़ दिया, दिन में बस रात को खाना खाता और वो भी ढंग से नहीं खाता था| माँ ने कई बार टोका पर मैंने उन्हें पढ़ाई के लिए जागने का बहाना कर के मना कर दिया| वहीं पिताजी मेरी पढ़ाई की तरफ इतनी ईमानदारी देख बहुत खुश थे, वो उम्मीद लगाए बैठे थे की उनका लड़का इस बार 85% तो मारेगा ही मारेगा! लेकिन वो नहीं जानते थे की मेरे इस जोश के पीछे का कारन सिर्फ पढ़ाई ही नहीं बल्कि भौजी के कॉल का इंतेहजार भी है|

उधर गाँव में बड़के दादा ने अपने दादा बनने की ख़ुशी में भण्डारा रख दिया| भौजी भी दूसरे दिन घर लौट आईं और अम्मा और बाकी की सभी औरतों ने उन्हीं घेर लिया था| आखिर उन्होंने इस घर को उसका वारिस, उसका चश्म-ओ-चिराग दिया था| बचा पैदा होने के 15 दिन तक घर का कोई भी बुजुर्ग पुरुष उसे नहीं छूता, इसी कारन बड़के दादा ने अभी तक आयुष को गोद में नहीं लिया था, बड़की अम्मा ने ही उसे गोद में ले कर बड़के दादा को दिखाया था| सारे घर-परिवार ने उन्हें सर आँखों पर बिठा लिया, बड़की अम्मा ने उनकी पसंद के पकवान बनाने शुरू कर दिए| अशोक भैया, मधु भाभी, अनिल, गट्टू सब के सब घर पहुँचे हुए थे और भौजी को घेरे बैठे थे| सारा घर महमानों से भरा हुआ था, इन्हीं खुशियों में भौजी लीन हो गईं और मुझे.अपने चाहने वाले, अपने पति को बधाई देना ही भूल गईं|

वहीं बड़के दादा ने पिताजी को गाँव आने के लिए नहीं कहा, पिताजी ठहरे अपने भाई के भक्त तो उन्होंने इस बात को कोई तवज्जो नहीं दी| हालाँकि पिताजी को फ़ोन पर सभी खबर मिल रही थी और वो बड़ी ख़ुशी से ये बातें हमें (मुझे और माँ को) बताते थे| माँ चाहतीं तो पिताजी को कह सकतीं थीं की भला हमें क्यों नहीं बुलाया गया, पर वो जानती थीं की पिताजी उनकी बात को दबा देंगे और अपने भाई को ही सही ठहराएंगे!

पूरे सात दिन तक मैंने भौजी के फ़ोन का इंतजार किया, पर उनका कोई कॉल नहीं आया| ऐसा नहीं था की वो मेहमानों के डर से फ़ोन न कर रहीं हों, जिसे सच में फ़ोन करना होता है वो टेलीफोन के खम्बे पर भी चढ़ कर फ़ोन कर सकता है| लेकिन भौजी की नियत ही नहीं थी कॉल करने की इसीलिए उन्होंने मुझे कॉल करना जर्रूरी नहीं समझा| सातवें दिन एक बाप का दिल आखिर टूट ही गया, उससे अब और इंतजार नहीं होता था! मैं अपने बिस्तर पर अपने घुटने अपनी छाती से मोड़, बुरी तरह से रो पड़ा! भौजी इस तरह मुझसे मुँह मोड़ लेंगी, ये मैंने कभी नहीं सोचा था! क्या उनके मन में मेरे लिए, अपने पति के लिए जरा सा भी प्यार नहीं? अगर था तो एक कॉल तो कर सकतीं थीं? 'मैंने कहा था, उन्हें बस तेरा इस्तेमाल करना था, वो उन्होंने कर लिया और जब काम पूरा हो गया तो छोड़ दिया तुझे मरने को! फिर सब तो मिल गया उन्हें, परिवार में नाम, प्यार, इज्जत तो अब भला तेरी क्या जर्रूरत रही!' ये बात दिमाग में आते ही मन को झटका लगा, पिछली बार तो उसने इस बात को नहीं माना था पर इस बार मन भी कमजोर पड़ने लगा था! जो शक की ईमारत दिमाग ने खड़ी की थी आज मन ने उस पर RCC Concrete की छत डाल कर उसे नफरत का पक्का घर बना दिया था, जिसमें मेरा बेचारा टूटा हुआ दिल कैद हो चूका था| मन से एक शब्द निकला जो जुबान पर आ गया; 'बेवफा!' ये वो शब्द था जिसने आज भौजी को मेरा दिल तोड़ने का गुनहगार बना दिया था, जिस दिल में कभी प्यार भरा था आज उसमें बस नफरत भरी थी| ये शब्द इतना ताक़तवर था की इसके मन में आते ही मेरे जिस्म में कोहराम छिड़ गया था, दिमाग में गुस्सा भरा हुआ था और दिल में नफरत! इस सब का बुरा असर मेरी सेहत पर पड़ा, पहले ही पिछले 1 हफ्ते से मैंने ढंग से खाना नहीं खाया था उस पर ये सब मेरा जिस्म बर्दाश्त नहीं कर पाया और मैं बेहोश हो गया|

जब होश आया तो मेरे पास, पिताजी, माँ, दिषु और डॉक्टर सरिता बैठीं थीं| डॉक्टर सरिता हमारी फॅमिली डॉक्टर थीं, जब वो बोलने लगीं तो उनकी बातें सुन कर सब हैरान रह गए;

डॉक्टर सरिता: अंकल जी, मानु को High B.P. है!

उनकी बात सुन कर सब मुँह बाए उन्हें देखने लगे;

पिताजी: बेटा ये कैसे हो सकता है? ये तो तंदुरुस्त बच्चा है, दौड़ता, खेलता रहता है....

पिताजी घबराते हुए बोले|

डॉक्टर सरिता: अंकल जी दरअसल मानु को ये बिमारी अनुवांशिक है| मतलब आपको High B.P. है और आंटी जी को Low B.P. है, कई बार माँ-बाप को ऐसी कोई बिमारी हो तो वो बच्चों में अनुवांशिक तौर पर आ जातीं| फिर मानु का metabolism भी थोड़ा weak है, exams के टेंशन के कारन वो ठीक से खाता-पीता नहीं था और इन बीमारियों के कारन वो बेहोश हो गया था|

डॉक्टर सरिता की बात सुन कर सब बहुत घबरा गए थे|

पिताजी: तो मानु दवाई से तो ठीक हो जायेगा न?!

पिताजी ने घबराते हुए कहा|

डॉक्टर सरिता: देखिये अंकल जी B.P. की बिमारी दवाइयों से काबू में रहती है, पर ये पूरी तरह कभी ठीक नहीं होती| जब तक मानु दवाइयाँ समय पर लेगा, योग, इत्यादि, ढंग से खाना खायेगा ये बिमारी कोई नुकसान नहीं करेगी|

डॉक्टर सरिता की बात सुन कर सब को थोड़ा इत्मीनान तो हुआ, पर माँ जानती थीं की मैं ने बचपन से लगतार कभी दवाई नहीं खाई है तो उन्होंने डॉक्टर सरिता से पुछा;

माँ: बेटा मानु ने कभी इतनी दवाइयाँ नहीं खाई, बचपन में जब भी ये बीमार पड़ा तो ज्यादातर ये अपने आप स्वस्थ हो जाता था, तोअगर ये दवाई लेना बंद कर दे तो?

डॉक्टर सरिता: आंटी जी अगर मानु दवाई नहीं लेगा, लापरवाही करेगा तो ये बिमारी और भी बढ़ सकती है! Paralysis या Heart problem जैसी समस्याएँ खड़ी हो जाएँगी!

ये सुनते ही सब बहुत घबरा गए, माँ के चेहरे पर डर के बादल छा गए;

मैं: माँ आप चिंता मत करो, मैं कोई लापरवाही नहीं बरतूँगा!

मैं कुछ भी देख सकता था पर माँ के चेहरे पर डर और आँसूँ नहीं देख सकता था, इसलिए मैंने उस पल निश्चय किया की मैं ऐसा कुछ नहीं करूँगा जिससे मेरी जान पर बन आये|

डॉक्टर सरिता ने एक पर्चे पर कुछ दवाइयाँ लिखीं और कुछ हिदायततें दे कर चली गईं| पिताजी दवाई लेने चले गए और माँ को उन्होंने सूप बनाने को कहा| मेरे कमरे में बस मैं और दिषु ही बचे थे;

दिषु: तू ने भाभी के कारन ही खाना-पीना छोड़ दिया था न?

दिषु ने सख्ती से पुछा तो मैं बिफर पड़ा और उसके गले लग कर रो पड़ा| दिषु ने कस कर मुझे जकड़ लिया और मेरी पीठ सहलाते हुए बोला;

दिषु: यार तू क्यों इस तरह पागल हुआ जा रहा है? अपनी न सही तो कम से कम अपने माँ-पिताजी की तो सोच? वो move-on कर चुकी हैं, उनकी जिंदगी में अब तेरे लिए कोई जगह नहीं, तो तू क्यों इस तरह अपनी जान देने पर तुला है? भूल जा उन्हें और अपनी life पर focus कर!

दिषु की दी हुई ये सलाह मैंने मान ली, मैंने अपने आँसूँ पोछे और बोला;

मैं: तू सही कह रहा है यार! बहुत तिल-तिल कर मर लिया मैं, अब उस 'बेवफा' के चक्कर में अपनी जिंदगी और नर्क नहीं करूँगा|

मैंने अपना आत्मविश्वास दिखाते हुए कहा|

उस दिन से मैंने खुद को और गिरने नहीं दिया, मैंने अपना पूरा focus पढ़ाई पर लगाया| भौजी को मन ने बेवफा करार दे दिया था, तो उन्हीं याद करने से दिल जलता था पर सोते समय अब भी उन्हें और नेहा को सपने में देखता था| कई बार रात में नींद खुल जाती थी और मैं चौंक कर उठ जाया करता था, भौजी को सपने में देख कर गुस्सा आता था तो नेहा को देख कर फिर दर्द टीस मार उठता था| ये दर्द इसलिए था की मैं नेहा से किया अपना वादा तोड़ चूका था और अपनी इस वादा खिलाफी के लिए उठता था| भौजी के प्रति मेरे गुस्से की आग में बेचारी नेहा जल रही थी, एक बस नेहा ही थी जिसके लिए मन में कभी किसी संदेह ने जन्म नहीं लिया| मेरा मन जानता था की वो मुझे बहुत याद कर रही होगी और रोती भी होगी, पर इस सब की कसूरवार सिर्फ भौजी थीं! अगर उन्होंने ये काण्ड न किया होता तो मैं गाँव में होता, नेहा और आयुष को अपनी छाती से समेटे हुए खुश हो रहा होता| अचानक दिमाग ने एक बड़ी ही मनोरम कल्पना की, नेहा अपने छोटी-छोटी बाहों में आयुष को गोद ले कर मुस्कुरा रही है| इस दृश्य की कल्पना से ही आँखों से ख़ुशी के आँसूँ बह निकले| मन जोश में भर गया और मैंने सोचा की भौजी के लिए नहीं बल्कि मैं नेहा के लिए गाँव जर्रूर जाऊँगा, उससे अपने तोड़े वादे के लिए माफ़ी माँगूंगा| मेरी बेटी का दिल इतना बड़ा है की वो मुझे जर्रूर माफ़ कर देगी, लेकिन तभी दिमाग में एक ऐसा ख्याल आया की मैं थक कर हार गया; 'किस हक़ से नेहा को अपनी बेटी मान रहा है? ये तेरा खून थोड़े ही है?!' ये ऐसे जहरीले शब्द थे जो मेरे नहीं थे, बल्कि भौजी के प्रति मेरी नफरत ने मेरे दिमाग में भर दिए थे| मेरे अंदर बिलकुल ताक़त नहीं थी इन शब्दों को भौजी के मुँह से सुनने की और इसी कारन मैंने कभी गाँव न जाने का फैसला किया| जानता था की ये फैसला ले कर मैं नेहा के साथ गलत कर रहा हूँ, पर दिमाग में चढ़ा गुस्सा इतना था की उसने इस अन्याय की ओर ध्यान जाने ही नहीं दिया|

बस फिर उस दिन से मैंने अपना ध्यान पढ़ाई में लगाया, दवाई टाइम पर लेने लगा, खान ठीक से खाने लगा और जब कभी भौजी की याद आती तो उसे दबाने के लिए मैं माँ के पास बैठ जाता| माँ प्यार से सर सहलाती और मैं भौजी की याद को दबा कर फिर पढ़ाई में लग जाता| 7 मार्च से बोर्ड के पेपर शुरू हुए, पहले दिन पिताजी साथ आये और उनका आशीर्वाद ले कर मैं पेपर देने सेंटर में घुसा| दोपहर को जब मैं पेपर दे कर घर पहुँचा तो पिताजी बड़ी बेसब्री से मेरा इंतजार कर रहे थे, मैंने उन्हें बताया की पेपर बहुत अच्छा हुआ है तो वो बड़े खुश हुए| इसी प्रकार सभी पेपर अच्छे गए, आखरी पेपर वाले दिन मैं दोपहर को घर लौट रहा था की पीछे से किसी ने मुझे आवाज दी; "मानु जी!" ये आवाज जानी-पहचानी लगी तो मैंने चौंकते हुए पीछे मुड़ कर देखा तो पाया की ये तो सुनीता है!

सुनीता: आप यहाँ क्या कर रहे हो?

उसने ख़ुशी-ख़ुशी पुछा|

मैं: पेपर देने आया था!

तब जा कर सुनीता का ध्यान मेरे स्कूल के कपड़ों और स्कूल बैग पर गया, वो अपना माथा पीटते हुए हँसते हुए बोली;

सुनीता: आपकी हड़बड़ाने की बिमारी मुझे भी लग गई!

उसकी बात सुन कर मुझे भी एक आरसे बाद हँसी आ गई|

सुनीता: मेरे स्कुल में पेपर देने आते हो. मुझे बताया क्यों नहीं?

उसने थोड़ा नाराज होते हुए कहा|

मैं: आपने थोड़े ही बताया था की ये आपका स्कूल है, वरना मैं पहले ही आपसे कह देता की मेरी चीटिंग का कोई जुगाड़ बिठा दो!

मेरा मजाक सुन कर दोनों ठहाका मार के हँसने लगे| दोनों में कुछ ऐसे ही बातें हुई और फिर मैंने उसे मेरे घर आने का निमंत्रण दिया तो वो झट से मान गई| उसने अपने फ़ोन से घर फ़ोन किया और मेरे साथ मेरे घर पहुँच गई|

हम दोनों घर पहुँचे तो माँ-पिताजी मेरा इंतजार कर रहे थे, सुनीता को साथ देख कर वो बहुत खुश हुए और मेरे पेपर के बारे में पूछना ही भूल गए| सुनीता की बड़ी आव-बघत हुई और उसे जबरदस्ती खाना भी खिलाया गया| फिर उससे उसके पपेरों के बारे में पुछा गया तो वो मुस्कुराते हुए बोली;

सुनीता: अंकल जी, मेरे पेपर बहुत अच्छे हुए थे और अगले हफ्ते ही result भी आ जायेगा|

अब पिताजी को मेरे पेपर की याद आई और वो हँसते हुए मुझे देखने लगे, वो कुछ पूछते उससे पहले ही मैं बोल पड़ा;

मैं: जी आज वाला पेपर भी बहुत अच्छा गया है!

मेरा जवाब सुन कर पिताजी और माँ को इत्मीनान हो गया की मैं अच्छे नम्बरों से पास हो जाऊँगा| कुछ देर बाद सुनीता के पिताजी का फ़ोन आया और पिताजी ने खुद बात की| उनसे बात होने के बाद माँ-पिताजी सुनीता को घर छोड़ने जाने वाले थे, मुझे भी बोलै गया की मैं भी साथ चलूँ तो मैंने बाहना मारते हुए कहा;

मैं: पिताजी वो कुछ entrance exams का पता करने के लिए दिषु के साथ जाना है|

सुनीता मेरा बहाना ताड़ गई और बीच में बोल पड़ी;

सुनीता: आज ही तो पेपर खत्म हुए हैं? ऐसे भी कौन से entrance exams का पता करना है आपको, कल चले जाना?

पर उसका जवाब माँ ने दिया, उन्होंने मेरे गाल पर प्यार से चपत लगाई और बोलीं;

माँ: बेटी ये ऐसा ही है, कहीं बाहर आता-जाता नहीं| या तो पढ़ाई में घुसा रहता है या फिर game खेलता रहता है|

माँ की कही बात सुन कर मैं नकली हँसी हँसने लगा, वहीं सुनीता जान गई की कुछ तो गड़बड़ है|

माँ तैयार होने चली गईं, पिताजी बाहर फ़ोन करने लगे तो सुनीता को मुझसे बात करने का मौका मिल गया;

सुनीता: किसी girlfriend का चक्कर है क्या?

सुनीता ने थोड़ा गंभीर होते हुए कहा|

मैं: क्या मतलब?

मैंने भोयें सिकोड़ते हुए पुछा|

सुनीता: पहले से काफी कमजोर हो गए हो, कहीं बाहर आते-जाते नहीं, मतलब कोई प्यार-व्यार का चक्कर ही है!

सुनीता ने होशियारी जताते हुए अटकलें लगाईं|

मैं: ऐसा कुछ नहीं है, पढ़ाई का बहुत प्रेशर था और कुछ दिन पहले बीमार पड़ गया था|

मैंने बड़े तरीके से सफाई दी जिससे सुनीता को यक़ीन हो जाए की मैं कोई आशिक़ नहीं हूँ|

सुनीता: अच्छा?

उसने आँखें तर्रेर कर कहा|

मैं: मेरी शक़्ल देख कर लगता है की मेरी कोई गर्लफ्रेंड होगी? पिताजी को पता चल गया न तो वो मेरी खाल खींच कर भूसा भर देंगे! फिर भी यक़ीन न हो तो माँ से मेरी बिमारी के बारे में पूछ लेना, वो आपको सब सच बता देंगी|

इस बार मैंने अपनी सफाई इस कदर दी की सुनीता डर गई और मेरी बात पर यक़ीन कर बैठी|

सुनीता: वैसे आप झूठ तो बोलोगे नहीं मुझसे!

मैंने हाँ में सर हिला कर उसे पूरा विश्वास दिला दिया|

सुनीता: अरे मैं तो पूछना ही भूल गई, मैंने सुना की आप चाचा बन गए?

सुनीता ने खुश होते हुए कहा, पर उसकी बात सुन कर मेरा जख्म फिर हरा हो गया| बहुत ताक़त लगा कर मैंने एक नकली मुस्कान उसे दी और हाँ में सर हिलाया, जबकि मेरा दर्द सिर्फ मैं ही जानता था!

सुनिता: तो कैसा है वो?

अब ये एक ऐसा सवाल था जिसका मेरे पास कोई जवाब नहीं था, तो मैं आँखों में सवाल लिए उसे देखने लगा और अंदर ही अंदर अपने आँसुओं को आँखों की दहलीज पर आने से रोकने लगा|

सुनीता: अरे भई आपकी सबसे अच्छी दोस्त का बेटा और आप गए नहीं उससे मिलने?

ये सुन कर मेरा दिल रो पड़ा, जिसे वो मेरा भतीजा समझ रही थी वो दरअसल मेरा बेटा है, पर ये बात मैं उसे कह नहीं सकता था! मेरी ख़ामोशी देख सुनीता को शक होने लगा की जर्रूर मेरे और भौजी के बीच अनबन हैं;

सुनीता: ओह समझी! मतलब आप दोनों में कोई नाराजगी चल रही है?!

सुनीता ने बड़ी चालाकी से भौजी का नाम लिए बिना ही बात कही और मैं उसके जाल में फँस गया;

मैं: Exams थे तो कैसे जाता!

सुनीता: मैंने तो भौजी का नाम तक नहीं लिया, फिर आपने ये सफाई कैसे दे दी?

सुनीता ने फिर से आँखें तर्रेर कर पुछा, अब मैं फँस गया था| मुझे कैसे भी ये बात यहीं के यहीं खत्म करनी थी, इसलिए मैं बातें बनाते हुए बोला;

मैं: वो क्या है न, अब मैं न पहले की तरह बुद्धू नहीं रहा!

मैंने ये बात मुस्कुराते हुए कही, जिसे सुन सुनीता खिलखिला कर हँस पड़ी|

मैं: Honestly यार, मुझे BBA और CPT की कोचिंग का पता करना था, इसीलिए अपने दोस्त के साथ शाम को जाना है|

सुनीता को मेरी बात पर विश्वास हो गया और उसने मुझे इस बारे में और कुछ नहीं कहा|

कुछ देर बाद माँ-पिताजी उसे छोड़ने चले गए और मुझे duplicate चाभी दे गए| 2 घंटे बाद दिषु आया और पहले से ही सब कुछ पूछ-पाछ कर आया था, इधर मैं सुनीता द्वारा अनजाने में कुरेदे हुए जख्मों को समेत कर खामोश बैठा था| मुझे देखते ही दिषु समझ गया की क्या माजरा है;

दिषु: क्या हुआ? भाभी का फ़ोन आया था?

उसने चिंता जताते हुए कहा|

मैं: कुछ नहीं यार, एक दोस्त आई थी उसी ने सब कुछ याद दिला दिया|

मैंने दिषु से नजरें चुराते हुए कहा| जिस तरह से दिषु ने हिम्मत दे कर मुझे संभाला था उसके बाद फिर टूटना उसकी दोस्ती पर थूकना होता, बस इसीलिए मैं उससे नजर नहीं मिला पा रहा था|

मैं: छोड़ ये सब, तूने पता किया कुछ?

मैंने बात घुमाते हुए कहा|

दिषु: हाँ सब कर लिया, करकरडूमा के पास बहुत सारे कोचिंग सेंटर वो तेरे दोनों एंट्रेंस टेस्ट की तैयारी कराते हैं|

मैं: 'तेरे'? क्यों तू नहीं देगा entrance exams?

मैंने भोयें सिकोड़ते हुए पुछा|

दिषु: न यार, मैं तो office असिस्टेंट का कोर्स कर रहा हूँ|

मैं: क्या? अबे रिजल्ट तो आने दे?

मैंने चौंकते हुए कहा|

दिषु: यार मैं तेरी तरह तो पढता नहीं जो मेरा admission regular (college) में हो जाए| मैंने तो just पास होना है, इससे पहले की पिताजी कुछ सुनाएं मैं correspondence का फॉर्म भर कर जॉब ज्वाइन कर लूँगा|

दिषु planning के मामले में बहुत होशियार था, इसीलिए उसने अपने पिताजी की डाँट से बचने के लिए ये plan पहले ही बना लिया था| इधर मैं सोच में पड़ गया था की मुझे अकेले ही कोचिंग जाना होगा, तभी वो मेरा ध्यान भंग करते हुए बोला;

दिषु: तू भी ज्वाइन कर ले मेरे साथ!

पर मैं तो regular college सोच कर बैठा था;

मैं: यार....मैं तो regular.....

मैं आगे कुछ बोलता उससे पहले ही वो बोला;

दिषु: देख यार मैं सिर्फ suggestion दे रहा हूँ, तू अपने entrance exams के साथ-साथ office assistant का कोर्स ज्वाइन कर ले| हाँ तेरे लिए थोड़ा hectic होगा दोनों एक साथ, पर कोर्स काफी हद्द तक एक जैसा ही है| रिजल्ट के बाद तू regular college ज्वाइन कर लियो और जब कॉलेज खत्म होगा तब तेरे हाथ में दोनों चीजें होंगी, कॉलेज की डिग्री और office assistant कोर्स का डिप्लोमा, तुझे जॉब बड़ी आसानी से मिल जाएगी|

दिषु का सुझाव काफी अच्छा था और मैंने इसे तुरंत मान लिया;

मैं: ये ठीक है, मैं इस बारे में पिताजी से पूछ लूँगा|

मेरे भविष्य का फैसला तो हो चूका था, अब दिषु को मेरा मूड ठीक करना था तो उसने मुझसे पुछा;

दिषु: बियर पियेगा?

ये दो जादुई शब्द सुन कर मेरी आँखें चमक उठीं और मैंने फ़ौरन हाँ में सर हिला कर सहमति दी!

दिषु: बियर का नाम सुनते ही तबियत खुश हो गई लौंडे की!

उसने मेरी पीठ पर जोर से हाथ मारते हुए कहा| हम दोनों घर से निकले और पहले विश्वास नगर पहुँचे और एक दो Institue से कुछ पूछ कर घंटे भर में ही फ्री हो गए| घडी में बजे थे 5 की तभी घर से फ़ोन आया और मैंने कह दिया की हमें थोड़ा और समय लगेगा| पिताजी ने 8 बजे तक लौट आने की हिदायत दी और फ़ोन रख दिया| अब दोनों को बियर लेनी थी, पर आज तक हमने ये काम कभी नहीं किया था| जब भी हमने पी तो दिषु का एक जानकार था जो हमें बियर ला दिया कर देता था और हम उसके घर पर छुप कर पी लिया करते थे| लेकिन आज बियर हमें लेनी थी और पकडे जाने के डर से 'गाँव' फ़ट रही थी!

दिषु: अबे हिम्मत कर और जा कर ले आ|

मैं: साले मैं ही क्यों हिम्मत करूँ, तू हिम्मत नहीं कर सकता?

हम दोनों ठेके के बाहर खड़े हो कर तर्क-वितर्क करने लगे, पर दोनों ही की हिम्मत नहीं पड़ रही थी की जा कर बीयर ला सकें|

मैं: देख भाई, पीनी तो है और इस तरह 'फट्टालों' की तरह बहस करेंगे तो हो गया!

मैंने दिषु को हिम्मत देते हुए कहा ताकि वो बियर लाने को मान जाए, पर वो मेरे से होशियार निकला और पलट कर मुझे ही उकसाने लगा;

दिषु: सही कह रहा है, देख दाढ़ी तो दोनों की आई हुई है, ऊपर से दूकान में अभी लोग भी कम हैं! तू दौड़ कर जा और दो बियर ले आ!

मैं: अबे भोसड़ी के, मैं तुझे चढ़ा रहा हूँ और तू साले मेरे रास्ते लगा रहा है!

ये सुन कर दोनों खूब हँसे और अंत में दोनों ने एक लम्बी साँस ले कर फ़ैसला किया की बियर तो आज खरीदकर ही रहेंगे| दोनों काउंटर पर पहुँचे, वहाँ खड़ा था एक लड़का जो हमसे 1-2 साल ही बड़ा होगा, उसे देख कर हम आत्मविश्वास से भरने लगे|

मैं: दो किंगफ़िशर लाल वाली!

मैंने ऐसे आर्डर दिया जैसे मैं कहीं का चौधरी हूँ, मेरी आवाज में रोब देख उस लड़के ने हमें दो ठंडी कैन निकाल कर दी जिसे दिषु ने फटाफट बैग में डाल लिया| हम दोनों बड़ा रुबाब दिखाते हुए चल दिए, जैसे की ये हमारे लिए रोज की बात हो| हमारे बाहर आते ही हमसे उम्र में छोटे दो लौंडे, जिनकी दाढ़ी भी नहीं आई थी वो अंदर घुसे और बियर ले कर चल दिए| अब हम दोनों आँखें फाड़े एक दूसरे को देखने लगे की बहनचोद यहाँ हमारी फ़ट रही थी और ये दोनों तो बियर ऐसे खरीद कर ले आये. मानो आटा-चावल ले रहे हों! दरअसल उस समय तक शराब, पान-मसाला आदि खरीदने के लिए नियम-कानून इतने सख्त नहीं थे, जितने अब हैं| तब आज की तरह दूकान पर वो warning नहीं होती थी की; '18 वर्ष से कम आयु के किसी भी बच्चे को नशीले पदार्थ बेचना सख्त मना है!'

खैर बियर ले तो ली अब पीयें कहाँ? दिषु ने एक पार्क की तरफ इशारा किया और हम बैग ले कर उसी तरफ चल दिए, रास्ते में हमने चिप्स के दो पैकेट भी ले लिए| पार्क पहुँच कर हमने एक जगह ढूँढी जहाँ बहुत से लौंडे-लौंडिया बैठे इश्क़ फरमा रहे थे, जीने-मरने की कसमें खा रहे थे और उन्हीं देख कर मुझे आज बहुत हँसी आ रही थी| जब दिषु ने मुझसे मेरी हँसी का कारन पुछा तो मैं कुछ इतनी आवाज में बोला की सभी सुन लें;

मैं: अरे बहनचोद 'सब रोयेंगे' एक दिन!

ये सुन कर दिषु भी ठहाका मार के हँसने लगा| हमने फटाफट बियर की कैन खोली और आधे घंटे में खत्म कर के घर की ओर चल पड़े तथा रास्ते में हमने chewing gum भी खा ली ताकि किसी को कोई शक न हो|

घर आ कर मैंने पिताजी को सारी बातें बताईं, पर उन्होंने मेरी नौकरी करने की बात पर मुझे झाड़ दिया;

पिताजी: कोई जर्रूरत नहीं है तुझे नौकरी करने की, जितना पढ़ना है उतना पढ़ और फिर मेरे काम में हाथ बँटा!

मैंने ज्यादा बहस न करते हुए फिलहाल के लिए उनकी बात मान ली और बात यहीं खत्म हो गई| Entrance exams के लिए मैं पहले ही रजिस्टर कर चूका था और उसकी सारी किताबें भी ला चूका था, तो अगले ही दिन से मैं किताबें बैग में डाले पहले institute में trial क्लास लेने पहुँच गया| दिषु ने कहा था की किसी भी कोचिंग सेण्टर को ज्वाइन करने से पहले ट्रायल क्लास ले लिओ, ताकि पता चल जाए की वो पढ़ाते कैसे हैं| यही सोच कर मैं आया था की आज 1-2 institute में trial क्लास ले कर देखता हूँ, जहाँ सही से पढ़ाते होंगे वहीं ज्वाइन कर लूँगा|

[color=rgb(85,]जारी रहेगा भाग - 4 (2)[/color]
 
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