[color=rgb(243,]उन्नीसवाँ अध्याय: बिछड़न![/color]
[color=rgb(184,]भाग - 6[/color]
[color=rgb(65,]अब तक आपने पढ़ा....[/color]
इस मीठी सी kiss के बाद अब सोने का समय था, मैं तो दिवार का सहारा ले कर आधा बैठा और आधा लेटा हुआ था, भौजी तथा नेहा मेरी अगल-बगल मुझसे लिपटे हुए थे| करीब एक घंटे बाद बड़की अम्मा दबे पाँव आईं और हम तीनों को ऐसे सोते हुए देखा तो उनके चेहरे पर मुस्कान आ गई| उन्होंने बड़े ध्यान से नेहा को अपनी गोद में उठाया, मेरी आँख खुल गई थी और मैंने उन्हें देख लिया था पर मैं चुपचाप रहा| नेहा के जाने से चारपाई पर जगह हो गई थी तो मैं भौजी से थोड़ा दूर हो कर लेटा, नींद बड़ी जोरदार आ रही थी इसलिए मैं गहरी नींद सो गया जिसका खामयाजा बाद में भुगतना पड़ा!
[color=rgb(44,]अब आगे...[/color]
सुबह छः बजे भौजी ने मेरा मस्तक चूम कर जगाया, आँख खुलते ही मेरी नजर उनके दमकते चेहरे पर पड़ी, वो हंसीन मुस्कराहट वो प्यारी सी लालिमा!
भौजी: Good morning जानू!
भौजी मुस्कुराते हुई बोलीं|
मैं: हाय! कान तरस गए थे आप के मुँह से 'जानू' सुनने को!
मैंने मुस्कुरा कर कहा|
भौजी: अच्छा जी?! चलो अब उठो, याद है न आज का दिन सिर्फ मेरे नाम!
मैं: हमने तो जिंदगी आपके नाम कर दी!
ये कह कर मैंने लेटे-लेटे अंगड़ाई लेने के बहाने बाहें फैलाईं और भौजी का हाथ पकड़ के अपने पास खींच लिया| भौजी एकदम से मेरे सीने पर आ गिरीं;
मैं: Aren't you forgetting something?
माने भौजी की आँखों में देखते हुए पुछा तो भौजी लजाते हुए बोलीं;
भौजी: याद है!
ये कह कर भौजी ने अपने होंठ मेरे होंठों पर रख दिए, वो गुलाबी नम होंठ जिनका मधुर स्वाद मैं भूलने लगा था आज वो फिर से मुझे अपना दीवाना बना रहे थे! सुबह का समय था तो किसी के आने का डर था, इसलिए ये चुंबन कुछ सेकंड का ही था परन्तु इन कुछ सेकंड में हम दोनों ने चरम आनंद पा लिया था! खैर चुंबन तोड़ कर भौजी मुस्कुराते हुए बोलीं;
भौजी: आपको खाना बनाना अच्छा लगता है न?
भौजी का ये सवाल सुन मुझे थोड़ा अचम्भा हुआ;
मैं: हाँ...पर क्यों पूछा?
भौजी: ऐसे ही, चलो जल्दी से उठो और बाहर मत आना|
मैं: पर क्यों?
पहले खाना बनाने को पूछना, फिर बाहर न आने को बोलना? कुछ तो गड़बड़ है, लेकिन भौजी के चेहरे पर वही मुस्कान थी, मतलब की भौजी ने कोई प्लान बनाया है!
भौजी: जितना कहा है, उतना कीजिये!
मैं: यार पर मुझे बाथरूम जाना है!
मैंने भौजी को सोच का बहाना मारा, तो भौजी एकदम से बोलीं;
भौजी: बगल वाले रस्ते से जाओ और 5 मिनट में वापस आओ, वरना मैं आपसे बात नहीं करूँगी!
दरअसल भौजी के घर की बगल से एक छोटा सा रास्ता पीछे की ओर जाता था, इस रास्ते का इस्तेमाल कोई नहीं करता था क्योंकि उसमें कुछ झाड़ियाँ उगी हुई थीं| गौर करने की बात ये थी की भौजी खुश थीं, क्योंकि आज का दिन वो यादगार बनाना चाहती थीं और उनके चेहरे पर मुस्कान देख के मेरा दिल बहुत खुश था! उनकी इस ख़ुशी को बरकरार रखने के लिए आज मैं कुछ भी करने को तैया था, भले ही वो आज मुझसे उपले पथ्वा लें! मुझे उपले पाथने से घिन्न आती थी, इसलिए ये ऐसा काम है जो मैंने कभी नहीं किया, परन्तु आज भौजी की ख़ुशी के लिए मैं ये भी करने को तैयार था!
प्रेशर तेज था सो मैं तेजी से बाहर भागा, नित्य कर्म से निपट आकर मैं वापस भौजी के घर में घुस गया| वापस आ कर देखा तो भौजी ने मेरा टूथब्रश, साबुन, टॉवल, कपडे सब ला आकर रख दिए हैं| भौजी का ये प्यार देख कर मेरे चेहरे पर फिर से मुस्कान आ गई और मैंने फटाफट ब्रश किया| अभी ब्रश समाप्त ही हुआ था की भौजी पानी की बाल्टी ले कर आ गईं, मैंने दौड़ के उनके हाथ से बाल्टी ले ली और चिंतित स्वर में बोला;
मैं: जान ये क्या कर रहे हो आप? आपको भारी सामान नहीं उठाना चाहिए!
मेरी चिंता देख आकर भौजी खिलखिलाकर हँस पड़ीं और मैं उन्हें एक टक देखता रहा, ऐसा लगा जैसे एक अरसे बाद उन्हें खिल-खिला के हँसते हुए देख रहा हूँ! मुझे यूँ खुद को देखते हुए देख भौजी तो शरमाईं और अपनी साडी का पल्लू अपने दाँतों तले दबाते हुए मुझसे बोलीं;
भौजी: ऐसे क्या देख रहे हो जानू?
मैं: आपकी मुस्कान! जाने किस की नजर लग गई थी इसे!
मैंने मुस्कुराते हुए कहा|
भौजी: जिस मुई की लगी थी, अब वो रो रही है! उस कामिनी ने इतनी लगा-बुझाई की पर फिर भी हमारे बीच कोई दरार नहीं आई!
भौजी ने बड़े गर्व से कहा|
मैं: अच्छा! क्या किया मेरी जान ने उसके साथ?
मैंने थोड़ा हैरान होते हुए पुछा|
भौजी: सेंक दी उसकी........(गांड)!
भौजी ने बड़े गुस्से में कहा और गांड शब्द का प्रयोग नहीं किया, क्योंकि वो जानती थीं की इससे मैं गुस्सा हो जाऊँगा| इधर मैं समझ गया था की भौजी का क्या मतलब था पर फिलहाल के लिए मैं उन्हीं गुस्सा नहीं दिलाना चाहता था तो मैंने उनकी इस बात का नजर अंदाज किया और उनके नजदीक आ गया, पर भौजी का दिल में कुछ और ही पाक रहा था इसलिए उन्होंने एकदम से बात पलट दी;
भौजी: खेर आपको मेरे वजन उठाने की ज्यादा चिंता नहीं करनी चाहिए, क्योंकि अभी वो समय नहीं आया जब गर्भवती महिलाओं को भारी सामान उठाने से मना किया जाता है|
मैं भौजी की इस होशियारी को समझ न पाया और उनकी बातों में आ गाया;
मैं: पर अगर आप अभी से precaution लो तो क्या हर्ज़ है?
मैंने अपनी कमर पर दोनों हाथ रख हक़ जताते हुए कहा|
भौजी: ठीक है बाबा अब से नहीं उठाऊँगी! चलो अब आप नहा लो!
भौजी ने पहले की तरह मुस्कुराते हुए कहा|
मैं: यहाँ, आपके सामने?
मैंने थोड़ा हैरान होते हुए कहा, क्योंकि कल वाला रायता अभी भी फैला हुआ था और ऐसे में कोई आजाता और भौजी को यूँ मुझे नंगा नहाते हुए देख लेता तो काण्ड हो जाता!
भौजी: क्यों जानू? डर लगता है की अगर मेरा ईमान डोल गया तो?!
भौजी को मुझे छेड़ने का मौका मिल गया और उन्होंने मेरी टांग खींचनी शुरू कर दी|
मैं: नहीं....दरअसल मैं सोच रहा था की आप मेरे साथ ही नहाओगे!
मैंने भौजी को आँख मारते हुए कहा, भौजी जान गईं की मेरा उद्देश्य क्या है पर वो आज कुछ और सोचे बैठी थीं|
भौजी: मैं तो कबकी नहा चुकी, आपके पास मौका था मुझे नहाते हुए देखने का पर आप तो घोड़े बेच कर सो रहे थे!
भौजी ने मुझे उलाहना देते हुए कहा, ये सुनकर मेरे पाँव तले जमीन खिसक गई! सुबह-सुबह का इतना मनोरम दृश्य देखने को नहीं मिला, लानत है...लानत है...! 'साले तुझे आज ही सोना था!' मेरे दिमाग ने मेरे जिस्म को लताड़ते हुए कहा| 'पर अब पछताए होत क्या जब भौजी नहा लीं!' मेरे अंतर्मन से आवाज आई|
मैं: मुझे उठाया क्यों नहीं!
मैंने रूठने का ड्रामा करते हुए शिकायत की|
भौजी: ही..ही..ही.. आपका मौका तो गया, पर मेरा मौका तो सामने खड़ा है!
भौजी खींसें निपोरते हुए बोलीं|
मैं: ठीक है!
मैंने मन ही मन सोचा की आज मैं इन्हें किसी मेल स्ट्रिपर की तरह कपडे खोल कर दिखाऊँ और इनके मन में उत्तेजना पैदा करूँ ताकि ये खुद आ कर मेरे सीने से लग जाएँ| अब मेरे न तो सिक्स पैक abs थे न ही कोई ढंग की बॉडी, पर फिर भी मैं इस ढंग से भौजी को घूम कर अपनी बॉडी दिखा रहा था मानो कोई बहुत बड़ा मेल स्ट्रिपर हूँ! मैंने बड़ी अदा से अपनी टी-शर्ट उतारी और उसे भौजी के मुँह पर फेंक दी, ये देख भौजी खिलखिला कर हँसने लगीं क्योंकि उन्हें ये नौसिखिया मेल स्ट्रिपर पसंद आ रहा था! फिर बारी थी मेरे पजामे की जिसे मैंने साधारण तरीके से उतरा और चारपाई पर फेंक दिया| अब भौजी को सताने के लिए मैंने अपने कच्छे की इलास्टिक में अपनी ऊँगली फँसाई और उन्हें गोल घुमाकर भौजी को तड़पाने लगा!
भौजी: ये भी तो उतारो!
भौजी ने नटखट मुस्कान के साथ कहा| अब मुझे क्या पता था की मेरा उनको यूँ तड़पाना मुझे ही महँगा पड़ेगा;
मैं: पर अगर कोई आ गया तो?
मैंने थोड़ा चिंतित स्वर में कहा|
भौजी: इसीलिए तो मैं दरवाजे के सामने चारपाई डाल के बैठी हूँ!
भौजी ने बड़ी होशियारी से जवाब दिया, मतलब की वो सब पहले से ही सोच कर बैठीं थीं|
मैं: ठीक है बाबा|
मैंने उनके आगे हथियार डालते हुए कहा और अपना कच्छा उतार के दिवार पर रख दिया|
अब मैं पूरा नंगा था और भौजी मुझे बड़े प्यार से देख रही थी, मानो अपनी आँखों में मेरे जिस्म को बसा लेना चाहतीं हों!
मैं: आप बड़े प्यार से देख रहे हो, ऐसा कुछ है जो आपने नहीं देखा?
मैंने भौजी को छेड़ते हुए कहा|
भौजी: आपको अपनी आँखों में बसाना चाहती हूँ!
भोज मुस्कुराते हुए बोलीं, मैंने जानबूझ कर आगे इस बात को नहीं खींचा वरना वो उदास हो जातीं| भौजी के सामने यूँ नहाने में मुझे आज बड़ा ही अजीब लग रहा था, मैं पूरा नंगा और वो कपडे पहने मुस्कुराते हुए मुझे देख रहीं थीं| मैं चाहता था की भौजी को पकड़ कर अपने पास खींच लूँ और उन्हें भी भिगो दूँ, लेकिन मेरी झिझक मुझे ऐसा करने से रोक रही थी| अब बस एक ही तरीका था की भौजी को उकसाओ, ताकि वो खुद आ कर मुझसे लिपट जाएँ, तो मैंने भौजी को तड़पाने के लिए घूम-घूम कर अपनी स्पाट छाती पर साबुन लगा कर दिखाने लगा, फिर भौजी की तरफ पीठ कर के झुक कर अपने पाँव में साबुन लगाता, कभी अपने बाजुओं पर साबुन मलता और उन्हें फुला कर अपनी बॉडी दिखाने की कोशिश करता! वैसे कुछ बॉडी थी नहीं मेरी, वो सब तो मैंने भौजी को उकसाने को किया था और उसमें बुरी तरह नाकामयाब हुआ था क्योंकि भौजी का ईमान जरा भी नहीं डोला! वो अपने घुटने पर अपनी कोहनी टिका कर, मुस्कुराते हुए मुझे ये सब करते हुए देख रहीं थीं! खैर नहाना खत्म हुआ तो मैंने भौजी से अपना टॉवल माँगा;
मैं: जान मेरा टॉवल देना?
भौजी उठीं और उन्होंने मुझे मेरा नया कच्छा पकड़ाया|
भौजी: नहीं, पहले ये पहनो! थोड़ी देर और आपको ऐसा देखा न तो मेरा सब्र छूट जायेगा!
भौजी मुस्कुराते हुए बोलीं|
मैं: पर पानी तो पोछने दो वरना ये (कच्छा) गीला हो जायेगा|
भौजी मेरी बात समझ गेन और उन्होंने अपना टॉवल उठाया और मेरा टॉवल मुझे देते हुए बोलीं;
भौजी: ये लो अपना टॉवल, इसे नीचे लपेट लो! आपके जिस्म से पानी मैं पोछूँगी|
भौजी ने मुस्कुराते हुए कहा|
मैं: As you wish!
मैंने मुस्कुराते हुए कहा, मैंने अपना टॉवल कमर पर लपेट लिया| भौजी अपना तौलिया लेके मेरे पास आईं और तौलिये से मेरे बदन पर पड़ी पानी की बूँदें पोछने लगीं| सबसे पहले उन्होंने मेरी छाती पर पड़ी पानी की बूंदें पोंछीं, पानी पोछते समय उनकी नजरें मेरी नजरों में झाँक रहीं थीं| दोनों की ही आँखों में एक ख़ुशी थी, एक उत्साह था की आज का दिन हम प्यार से बितायेंगे! अब चूँकि आँखें एक दूसरे से मिली हुईं थीं तो शब्दों की जर्रूरत नहीं थी, चेहरे पर मुस्कान हमारी ख़ुशी और एक दूसरे के लिए प्यार को दर्शा रही थी| पीठ का पानी पोंछने के बाद मैं भौजी की तरफ पीठ कर के खड़ा हो गया और वो मेरी पीठ पोछने लगीं| फिर उन्होंने मेरी दाहिने बाजू प्यार से पकड़ कर मुझे अपनी तरफ घुमाया और मेरे दोनों हाथों को पोंछ के सुखा दिया| जैसे ही भौजी पाँव पोंछने को झुकीं तो मैं दो कदम पीछे चला गया;
भौजी: जानू पाँव तो पोंछने दो?
मैं: जान आपको पता है ना मैं आपको कभी अपने पाँव छूने नहीं देता, लाओ मैं खुद पोंछ देता हूँ!
भौजी मुस्कुराईं और मुझे अपना वाला तौलिया दे दिया, मैंने अपने पाँव पोंछे और उन्हें तौलिया वापस दे दिया| अब मुझे एक शररत सूझी तो मैंने भौजी को फिर से उकसाने को कहा;
मैं: अरे आप एक जगह तो पोंछनी ही भूल गए?!
भौजी हैरानी से मेरी ओर देखने लगीं;
भौजी: कौन सी?
मैंने अपना तौलिया जो कमर पर बाँधा था उसे सामने की तरफ से खोल दिया और अपने लिंग की ओर इशारा करते हुए कहा;
मैं: ये!!!
मैंने शैतानी भरी मुस्कान से कहा! भौजी एकदम से शर्मा गईं ओर बोलीं;
भौजी: नहीं...वो नहीं...!
मुझे उनकी ये हरकत थोड़ी अजीब लगी क्योंकि ऐसा शर्माने जैसा तो हमारे बीच में कुछ था नहीं, पर मैंने इस बात को ज्यादा तूल नहीं दी, भौजी के चेहरे की मुस्कान देख मैं पहले से ही बहुत खुश था|
उधर भौजी अपना वो टॉवल जिससे उन्होंने मेरे जिस्म से पानी पोंछा था उसे लेकर अपने कमरे में चली गईं| आमतौर पर तौलियो को इस्तेमाल के बाद धुप में रखते हैं फिर भौजी उसे ले कर अंदर क्यों गईं? इस सवाल के जवाब के लिए मैं जब अंदर पहुँचा तो देखा वो ये तौलिया तहा के अपने सूटकेस के ऊपर रख रहीं हैं!
मैं: अच्छा एक बात बताओ, आप इस तौलिये का क्या करोगे?
ये सवाल सुन कर भौजी के चेहरे पर गर्वपूर्ण मुस्कान आ गई और वो बोलीं;
भौजी: संभाल के रखूँगी!
मैं: क्यों?
मैंने हैरान होते हुए पुछा|
भौजी: क्योंकि इसमें आपकी खुशबु बसी है! जब भी मेरा मन करेगा आपसे मिलने का, तो इस तौलिये को खुद से लपेट लूँगी और सोचूँगी की आप ने मुझे अपनी बाहों में भर लिया है|
भौजी की ये बचकानी बात सुन मेरा दिल धक् सा रह गया, भौजी भले ही मुस्कुरा रहीं थीं पर मेरी जुदाई का दुःख उनके मन के भीतर अब भी था और वो उस दुःख से लड़ने के लिए सहारा ढूँढ रहीं थीं|
मैं: यार...
मैं उस समय उनको कहना चाहता था की मैं हमेशा के लिए नहीं जा रहा, मैं वापस आऊँगा आपसे मिलने वरना मैं कैसे जिन्दा रहूँगा?! पर भौजी से कुछ कहने की हिम्मत नहीं हुई, वरना वो भावुक हो जातीं और उनकी आँखों में फिर आँसूँ आ जाते|
मैं: अच्छा ये बताओ की आपने मुझसे क्यों पूछा की मुझे खाना बनाना पसंद है या नहीं?
मैंने पुनः बात घुमाते हुए माहौल को भावुक होने से बचा लिया|
भौजी: जानू! माँ ने बताया था की आप दिल्ली में घर में कभी-कभार खाना बनाने में माँ की मदद करते हो और एक-आध बार आपने खाना बनाया भी है| मैं बस जानना चाहती थी की आप बस बेटे का फ़र्ज़ निभाने को मदद करते थे या आपको वाक़ई में खाना पसंद है?! जब आपने हाँ कहा तो मैंने बड़की अम्मा से कह दिया की आज का खाना हम दोनों बनाएंगे!
भौजी ने मुस्कुराते हुए कहा, अब मैं समझ गया की मेरी पत्नी ने क्यों पुछा था की मुझे खाना बनाना पसंद है या नहीं?! भौजी के इस प्लान के बारे में सुन मैं दुगने उत्साह से भर गया और बोला;
मैं: Wow! That's Wonderful! I love experimental cooking!
मेरा उत्साह देख भौजी के चेहरे पर आई मुस्कान और बड़ी हो गई!
मैं: तो आपने सोच रखा है की क्या बनाना है, या मैं बताऊँ?
भौजी: आप बताओ?
भौजी ने जिज्ञासु होते हुए कहा| मुझे खाना ऐसा बनाना था जो सादा हो, क्योंकि गाँव में सब सादा खाना ही खाते हैं, कहीं ज्यादा संजीव कपूर बनता तो कोई नहीं खाता! मैंने 5 सेकंड कुछ सोचा और फिर भौजी से पुछा;
मैं: म्म्म्म...घर पर फूल गोभी है?
भौजी: हाँ है|
मैं: दही है?
भौजी: हाँ है|
मैं: ठीक है, तो दाल आप बनाना बस तरीका मैं बताऊँगा और ये गोभी वाली सब्जी मैं बनाऊँगा|
गोभी और दही के बारे में सुन कर भौजी बहुत जिज्ञासु थीं;
भौजी: मतलब आज मुझे आपसे कुछ सीखने को मिलेगा!
मैं: अगर अच्छे शागिर्द की तरह सीखोगे तो! वरना अगर बदमाशी की...तो....
मैंने भौजी को छेड़ते हुए कहा| दरअसल मेरा इशारा था की खाना बनाने के दौरान अगर हम दोनों के बीच कोई प्रेम-प्रसंग शुरू हुआ तो! भौजी मेरा इशारा समझ गईं और हँसते हुए बोलीं;
भौजी: नहीं गुरु जी, केवल खाना बनाना ही सीखूँगी!
भौजी की बात पर हम दोनों ने बड़ी जोर से ठहाका लगाया|
खैर मैं कपडे पहन के बाहर आ गया और सबसे पहले अपनी लाड़ली नेहा को ढूँढने लगा, क्योंकि आज सुबह से मैंने उसे नहीं देखा था|
भौजी: वो तो गई, अम्मा ने (मेरे) पिताजी को उसे छोड़ने की ड्यूटी लगा दी!
भौजी हँसते हुए बोलीं, अब मैं सोच में पड़ गया की ये कैसे हुआ? पिताजी तो गुस्से से लाल थे......? मैं हैरान खड़ा ये सवाल ही सोच रहा था की बड़की अम्मा और माँ आ गए, दोनों के चेहरे पर मुस्कान थी;
बड़की अम्मा: तो प्रधान रसोइया जी, का बनावत हो आज?
बड़की अम्मा ने हँसते हुए पुछा, उनकी बात सुन माँ और भौजी दोनों खिखिला कर हँसने लगे|
मैं: अम्मा वो तो मैं आपको नहीं बताऊँगा और हाँ जब तक खाना बन नहीं जाता तब तक आप लोग वहाँ नहीं आएंगे, अगर कोई भी चीज चाहिए तो माँग लीजियेगा|
ये सुन कर बड़की अम्मा ने मेरे सर पर हाथ रख कर आशीर्वाद दिया और बोलीं;
बड़की अम्मा: ठीक है प्रधान रसोइया! लेकिन खाना नीक बनायो, वरना पइसवा न मिली!
हम सारे ठहाका मार के हँसने लगे|
माँ: अब जा जल्दी, बारह बजे तक खाना तैयार हो जाना चाहिए!
माँ ने मेरी पीठ पर थपकी देते हुए कहा|
मित्रों आगे जो मैं रेसिपी लिखने जा रहा हूँ, ये मेरी खुद की है| उस दिन मैंने भौजी के साथ मिलकर इसे पहलीबार बनाया था और कैसी बानी ये आपको आगे पता चल जायेगा|
मैंने भौजी से उर्द दाल, चना दाल , लाल मसूर, मूँग दाल और अरहर दाल धो के लाने को कहा क्योंकि आज मैं उनसे पंचरंगी दाल बनवाने वाला था| इधर मैं गोभी के फूल अलग कर के उन्हें धो लाया और उन्हें मखमली कपडे पर सूखने को छोड़ दिया| जब तक गोभी सूख रही थी, तब तक हम दोनों प्याज, टमाटर, अदरक, लहसुन और हरी मिर्च काटने लगे| अब शहर में तो मैं चौप्पिंग बोर्ड का इस्तेमाल करता था, पर यहाँ तो चौप्पिंग बोर्ड था नहीं और न ही ढँग का चाक़ू था! सब्जी काटने के लिए हँसिये का ही इस्तेमाल किया जाता था, भौजी ने अपने पाँव के अंगूठे और उसकी बगल वाली ऊँगली से हँसिये का हैंडल पकड़ रखा था तथा अपने दोनों हाथों के इस्तेमाल से सब्जियाँ काट रहीं थीं| पर मैं ठहरा नौसिखिया, एक-दो बार कोशिश की पर जब कामयाब नहीं हुआ तो मैंने भौजी से चाक़ू माँगा| ये सुन कर भौजी को मेरे नौसिखिया होने पर हँसी आ गई! अब घर में एक पुअरना चाक़ू था पर उसे ढूँढना था, तो भौजी उसे ढूँढने चली गईं और इधर बड़की अम्मा और माँ रसोई के पास वाले छप्पर के नीचे बैठ गए और मुझसे बात करने लगे;
बड़की अम्मा: मुन्ना हम तोहार पिताजी से आज सुबह बात किहिन है और उनका बहुत समझाईं है! उनका गुस्सा तनिक कम हुआ है, बाकी की बात दोपहर खाना खाये के करब!
माँ: बेटा अभी तेरे बड़के दादा और पिताजी पड़ोस के गाँव गए हैं, तो तू खाना बना कर अपनी भौजी वाले घर में ही रहिओ, उस बीच हम लोग सब मिलकर तेरे पिताजी को समझाते हैं|
मैंने हाँ में सर हिलाया, इतने में भौजी आ गईं और माँ ने बात एकदम से बदल दी;
माँ: प्रधान रसोइया, कउनो समान चाहि तो बताये दिहो!
माँ की बात सुन सब हँस पड़े, माँ और बड़की अम्मा उठ कर चल दिए| मतलब एक तो भौजी को कल की कोई बात नहीं पता और दूसरा बड़की अम्मा के समझाने के कारन ही पिताजी नेहा को स्कूल छोड़ने गए थे| खैर मैंने पिताजी के गुस्से वाली बात को झटक कर अपने दिमाग से निकाला और फिर से मुस्कुराने लगा, भौजी ने मुझे चाक़ू दिया तो हमें सब्जी की कटाई चालु की| भौजी टमाटर काट रहीं थीं और मेरी ओर देख के मुझे जीभ चिढ़ा रहीं थीं| उनकी चेहरे की मुस्कान और उनका यूँ मुझे जीभ चिढ़ाना मेरे दिल में अजीब सी हलचल पैदा कर रहा था| मेरी नजर उनके चेहरे से झलक रही मासूमियत और प्यार से हट ही नहीं रही थी, इसी वजह प्याज काटते समय मेरी ऊँगली कट गई| भौजी ने जैसे ही मेरी कटी हुई ऊँगली से निकलते खून को देखा तो उन्होंने आननफानन में मेरी ऊँगली अपने मुँह में ले ली और मेरा बहता खून चूसने लगी, इधर मैं टकटकी बाँधे उन्हें देखने लगा|
भौजी: ऐसे भी क्या खो गए थे की ये भी ध्यान नही रहा की ऊँगली कट गई है?!
भौजी ने मुझे प्यार से डाँटते हुए कहा|
मैं: तेरे चेहरे से नजर नहीं हटती, नज़ारे हम क्या देखें?!
मैंने गाने के बोल गुनगुनाये जिसे सुन भौजी मुस्कुराईं और मुझे छेड़ते हुए बोलीं;
भौजी: क्या बात है, आज मूड बड़ा शायराना है?!
मैं: भई खाना बनाना एक art है, कला है, तो जैसा मूड होगा वैसा खाना बनेगा!
मैंने भौजी को आँख मारते हुए उन्हें अपने दिल का हाल बताया, जिसे सुन भौजी फिर से शर्मा गईं! अब भौजी का ध्यान मेरी कटी हुई ऊँगली पर गया| वो अपनी साडी का पल्लू फाड़ के मेरी ऊँगली को पट्टी करने वाली थीं की तभी मैंने उन्हें रोक दिया;
मैं: ये क्या कर रहे हो? एक छोटा सा cut ही तो है, उसके लिए अपनी साडी क्यों ख़राब करते हो! जाओ बड़े घर में मेरे कमरे में खिड़की पर एक दवाई की पॉलिथीन रखी है, उसमें से एक band-aid ले आओ!
भौजी Band-Aid ले आईं और मेरी ऊँगली पर लगा दी, अब मैंने उन्हें किसी मास्टर साहब की तरह निर्देश देने शुरू किये;
मैं: दही लाओ और उसमें धनिया पाउडर, लाल मिर्च पाउडर, थोड़ा सा गर्म मसाला और दाल चीनी पाउडर मिलाओ|
भौजी ने एक अच्छे शागिर्द की तरह मेरी बात सुनी और मानी| अब मैं इन मसालों को खुद दही में नहीं मिला सकता था क्योंकि मेरी ऊँगली में band-aid लगी थी, तो मैंने भौजी से बड़े प्यार से कहा;
मैं: जान प्लीज इन सब को दही में मिला दो और उसके बाद इस मिश्रण में गोबी के फूल डाल के Marinate होने को छोड़ दो!
मेरे इस प्यार भरे आग्रह को सुन भौजी फिर से मुस्कुराईं और ठीक वैसा ही किया, जैसा मैंने उन्हें कहा था| भौजी के चेहरे पर जिज्ञासु भाव थे, क्योंकि खाना बनाने का ये अंदाज उनके लिए बिलकुल नया था| गोभी अच्छे से marinate हो उसके लिए मैंने उसे ढक कर कुछ देर के लिए छोड़ दिया| अब समय था दाल बनाने का;
मैं: पहले इन पाँचों दालों को उबाल लो, फिर प्याज-टमाटर का छौंका लगाने से पहले मुझे बताना|
मैंने भौजी को निर्देश दिया, भौजी ने हाँ में सर हिलाया और मुस्कुराते हुए अपने काम में लग गईं| जब भौजी ने दाल उबलने रख दी तब मैं बोला;
मैं: अच्छा अब आप मुझे एक लकड़ी का चौड़ा और साफ़ टुकड़ा दो|
ये सुन भौजी सवालियाँ नजरों से मुझे देखने लगीं और बोलीं;
भौजी: पर किस लिया?
मैं: आप एक अच्छे शागिर्द की तरह गुरु की बात मानो और सवाल मत पूछो|
मैंने भौजी को मास्टर जी की तरह निर्देश देते हुए कहा| भौजी उठीं और लकड़ी की एक फट्टी धो कर ले आईं, मैंने उस लकड़ी की फट्टी को अपना चोप्पिंग बोर्ड बनाया| अब मैंने गोभी की सब्जी के लिए प्याज के लच्छे काटने लगा, मुझे प्याज काटते हुए भौजी बोलीं;
भौजी ने एक लकड़ी का टुकड़ा, अच्छे से धो के ला के दिया| मैंने उस टुकड़े को अपना चोपपिणः बोर्ड बनाया और गोभी की सब्जी के लिए प्याज के लच्छे काटने लगा|
भौजी: जानू मुझे कह देते मैं काट देती!
मैं: पर उसमें फिर मेरे हाथ का स्वाद नहीं आता|
ये सुन कर भौजी ने अपने होठों को गोल बनाया और बोलीं;
भौजी: ओ....!
गोभी की सब्जी के लिए सारी तैयारी पूरी हो चुकी थी, अब बारी थी पंचरंगी दाल की| मैं चाहता था की दाल में भौजी के हाथ का स्वाद आये और सब्जी में मेरे हाथ का तो मैंने भौजी से दाल के लिए प्याज, टमाटर, अदरक, लहसुन और हरी मिर्ची काटने को कहा|
मैं: अब आप बहार आओ, मैं गोभी की सब्जी बनाता हूँ तब तक आप ये सब काटो|
भौजी: ठीक है प्रधान रसोइया जी!
भौजी हँसते हुए बाहर आईं और मैं चूल्हे के सामने आसान जमा कर बैठ गया| आज जिंदगी में पहली बार मैं गाँव में मिटटी के चूल्हे पर खाना बना रहा था, ये तो शुक्र है की भौजी ने चूल्हा पहले जला रखा था वरना मुझसे तो आग भी नहीं जलती|
मैंने लोहे की कढ़ाई चढ़ाई, फिर उसमें सरसों का तेल डाल कर उसे खौलाया| फिर उसमें साबुत जीरा डाल के उसके चटकने तक भूना, आग थोड़ी ज्यादा थी तो भौजी ने मुझे आग से कुछ लकड़ी निकालने को कहा| इधर मेरा जीरा भून चूका था, तो मैंने कढ़ाई में प्याज के लच्छे डाले, फिर हरी मिर्च फाड़ के डाली और अदरक के पतले-पतले लम्बे टुकड़े डाल कर उन्हीं चलाने लगा| जब इस मिश्रण का रंग थोड़ा बदला तब मैंने उसमें कटे हुए टमाटर डाले और उसी समय नमक भी डाला ताकि टमाटर गाल जाए| जब टमाटर थोड़ा पाक गए और तेल छोड़ने लगा तब मैंने मरिनाते की हुई गोभी डाल दी| आग एकदम से बुझने लगी थी क्योंकि लकड़ियाँ तो मैंने डाली नहीं थी, इसलिए भौजी ने मुझे और लकड़ी डालने को कहा| मैंने और लकड़ी डाली तथा अपनी गोभी को धीरे-धीरे चलाने लगा, फिर मैंने उसमें थोड़ा हल्दी पाउडर, लाल मिर्च पाउडर, धनिया पाउडर, जीरा पाउडर और अंत में गर्म मसाला डाल के मिलाया| अब चूँकि घर में सिरका नहीं था तो मैंने उसमें थोड़ा सा चाट मसाला डाला और सब्जी पकने के बाद, ऊपर से धनिये से गार्निश किया तथा सब्जी को आग पर से उतार लिया| भौजी जो अब तक बस मुँह बाए मुझे ये सब करते हुए देख रहीं थीं वो सब्जी की महक सूँघ कर झूमने लगीं थीं;
भौजी: Wow जानू! इसकी खुशबु इतनी अच्छी है तो स्वाद कितना अच्छा होगा!
भौजी अपने होठों पर जीभ फेरते हुए बोलीं|
मैं: यार अभी आपको चखने को नहीं मिलेगा, जब सब खा लेंगे तब आपको खाने को मिलेगा|
ये सुन कर भौजी ने प्यार भरा गुस्सा दिखाया, फिर अगले ही पल उन्हें एक बात याद आई;
भौजी: वैसे जानू, मेरे पास आपकी एक और निशानी है|
ये सुन कर मैं थोड़ा हैरान हुआ;
मैं: वो क्या?
भौजी: अभी दिखाती हूँ!
इतना कह भौजी उठीं और अपने कमरे में कुछ लेने के लिए चली गईं| इधर मैं उत्सुक था की भला ऐसी कौन सी निशानी उन्होंने ढूँढ ली जो मुझे भी नहीं पता, खैर मेरे इस सवाल का जवाब मुझे कुछ देर बाद मिला जब वो वापस लौटीं| चेहरे पर मुस्कान लिए और अपनी कमर के पीछे कुछ छुपाये, भौजी मेरे सामने खड़ी हो गईं!
मैं: क्या छुपा रहे हो, मुझे भी दिखाओ!
भौजी ने मसुकुराते हुए अपनी कमर के पीछे छुपी हुई चीज दिखाई, ये मेरी तस्वीर थी! जब मैं दसवीं क्लास में था तब स्कूल जाते समय पिताजी ने सुबह मेरी ये तस्वीर खींची थी, लाल स्वेटर, खाकी पैंट पहने मैं गोलू-मोलू बड़ा क्यूट लग रहा था!
मैं: इतनी पुरानी तस्वीर आपके पास कैसे आई?
मैंने हँसते हुए पुछा|
भौजी: आपके घर से चुराई है!
भौजी ने बड़े गर्व से कहा, मानो उन्होंने कोई कोहिनूर का हीरा चुरा लिया है| उनका ये बचपना देख कर मेरा दिल बहुत प्रसन्न था;
मैं: अच्छा? कब?
मैंने हँसते हुए पुछा|
भौजी: जब पिछली बार दिल्ली आई तब माँ से माँगी थी!
मैं कुछ नहीं बोला, बस होले से मुस्कुरा दिया!
खैर अब बारी थी पंचरंगी दाल की, तो मैंने भौजी को आसन ग्रहण करने को कहा और मैं रसोई के बहार बैठ गया और वहीं से उनको निर्देश देने लगा;
मैं: चलो अब बटुला चढ़ाओ और उसमें घी डालो|
भौजी ने ठीक वैसा ही किया|
मैं: अब जीरा और हींग डालो|
जैसे ही जीरे के चटकने की आवाज आई, मैं बोला;
मैं: अब इसमें कटी हुई हरी मिर्ची और कटे हुए अदरक-लहसुन डालो|
भौजी ने मेरे कहे अनुसार अदरक-लहसुन को बारीक काटा था| करीब मिनट भर बाद मैं बोला;
मैं: अब प्याज डालो और थोड़ा भुनो|
करीब 2-3 मिनट बाद जब प्याज पक गए तब;
मैं: अब कटे हुए टमाटर मिलाओ और साथ ही नमक डालो!
भौजी: नमक कितना डालूँ?
मैं: स्वादानुसार!
भौजी ने वैसा ही किया और 4-5 बाद मैंने उनसे पुछा;
मैं: अब देख तेल अलग हो रहा है क्या?
भौजी ने बटुला देखा और बोलीं;
भौजी: हाँ जी!
मैं: अब इसमें धनिया पाउडर, लाल मिर्च पाउडर और हल्दी पाउडर डालो|
मिश्रण एक दो मिनट चलाने के बाद;
मैं: अब उबली हुई दाल मिला दो|
कुछ देर पकने के बाद;
मैं: अब गर्म मसाला और थोड़ा सा जीरा पाउडर मिलाओ|
करीब 2-3 मिनट बाद दाल तैयार हो गई और उसकी खुशबु सूँघ भौजी बोलीं;
भौजी: जानू, सच कहती हूँ मैंने आजतक इतनी स्वाद दाल नहीं बनाई!
मैं: जान, मेरे साथ रहोगी तो और भी बहुत सिखाऊँगा!
मैंने अपनी शेखी बघारते हुए कहा, जिसे सुन भौजी मुस्कुराने लगीं|
अब बारी थी आँटा गूंदने की, अब ये काम ऐसा था जो मैं न तो कभी करना चाहता था और न ही मुझे अच्छा लगता था!
भौजी: लीजिये.....गुंदिये आँटा?
भौजी ने एक प्रात में आटा डालते हुए कहा|
मैं: क्या?
मैं डर के मारे बोला|
इतने में माँ वहाँ आ गईं, उन्होंने रसोई के बाहर से ही हमारी बात सुन ली थी;
माँ: अरे बहु इसे नहीं आता आटा गूँदना| एक बार गूंदा था तो अपने सारे हाथ आटे में सान लिए थे!
माँ मेरा मजाक उड़ाते हुए बोलीं, माँ की बात सुन दोनों सास-पतुहा (बहु) हँसने लगे!
भौजी: आप चिंता मत करो माँ, मैं सीखा दूँगी|
अब मैं इस काम में फँसने वाला था तो मैंने फ़ौरन अपनी कटी हुई ऊँगली का बहाना मारा;
मैं: पर कैसे सिखाओगे, मेरी ऊँगली तो कट गई है ना?!
भौजी: हम्म्म..तो आप मुझे देखो और सीखो|
भौजी मुस्कुराते हुए बोलीं| माँ बस ये देखने आईं थीं की खाना बन भी रहा है या फिर हम दोनों ऐसे ही समय बर्बाद कर रहे हैं, लेकिन आटा देख माँ समझ गईं की खाना लगभग तैयार है इसलिए वो उठ कर बड़की अम्मा के पास चली गईं|
इधर भौजी आँटा गूंदने लगीं, पर मेरा ध्यान तो उनके चेहरे से हट ही नहीं रहा था| मन कर रहा था की बस घंटों इसी तरह बैठा उन्हें निहारता रहूँ! मुझे खुद को यूँ निहारते देख भौजी मुस्कुराने लगीं, इनकी ये मुस्कराहट उनके हुस्न में चार चाँद लगा रही थी| अब भौजी को मुझे सताना था, सो उन्होंने अपने सर पर पल्ला किया और साडी के पल्ले को दाँतों तले दबा कर हँसने लगीं|
मैं: यार ये सही है, आप खुद तो मुझे नहाते हुए बड़े प्यार से देख रहे थे और अब जब मेरी बारी ै तो अपना मुँह छुपा लिया?! मेरी सब निशानियाँ आपके पास हैं: मेरी फोटो, मेरे बदन की महक और तो और 'ये' भी...
मैंने 'ये' शब्द भौजी की कोख की ओर इशारा करते हुए कहा, जिसे भौजी समझ कर हँसने लगीं|
मैं: पर मेरे पास आपकी एक भी निशानी नहीं, ये जायज बात है क्या?
मैंने प्यार से भौजी को उलाहना दिया|
भौजी: अब मैं क्या करूँ, न तो मेरे पास अपनी कोई तस्वीर है जो मैं आपको दे दूँ! जहाँ तक मेरी महक की बात है तो वो तो आप भूल जाओ, आपके पास अच्छा मौका था लेकिन आप तो घोड़े बेच कर सो रहे थे, सो आपने खुद अपना मौका गँवा दिया!
भौजी ने मुझे चिढ़ाते हुए कहा| 'अब मैं क्या जानूँ की मेरी इस नींद का इतना बड़ा खामयाजा मुझे भुगतना पड़ेगा!' मेरी इस सोच का कारन था की मेरा मन भी छह रहा था की मेरे पास भी कुछ ऐसा हो जिसे देख कर मैं भौजी को याद कर सकूँ, उनसे दूर होते हुए भी उन्हें महसूस कर सकूँ!
धुप चढ़ रही थी और गर्मी में आँटा गूंदते-गूंदते भौजी के माथे पर पसीने आ गया| मुझे अचानक से कुछ सूझा, इससे पहले की भौजी अपना पसीना पोंछ पातीं मैंने झट से अपनी जेब से रुमाल निकाला और उनका पसीना पोंछा;
भौजी: Thank you जानू!
भौजी मुस्कुराते हुए बोलीं|
मैं: No.....Thank you!
मेरे उन्हें thank you कहने पर भौजी को कुछ हैरानी हुई;
भौजी: मैंने आपको thank you कहा क्योंकि आपने मेरा पसीना पोंछा, लेकिन आपने मुझे thank you क्यों कहाँ?!
मैं: मैंने आपको thank you इसलिए कहा क्योंकि मेरे इस रुमाल में आपकी खुशबु कैद है, मैं इसे कभी नहीं धोऊँगा और हमेशा अपने पास संहभाल कर रखूँगा!
ये कहते हुए मैंने रुमाल को आँख बंद कर के सूँघा| मुझे ऐसा करते देख भौजी का दिल भी ख़ुशी से धक् कर गया!
उनका आँटा गूंदने का काम खत्म हुआ तो मैंने घडी देखि, अभी बस ग्यारह ही बजे थे और नेहा के स्कूल की छुट्टी बराह बजे होती थी| मुझे भौजी के साथ कुछ पल अकेले में मिल जाएँ इसलिए मैंने भौजी से प्यार भरा झूठ बोला;
मैं: अरे नेहा के स्कूल की छुट्टी होने वाली है|
भौजी: तो आप जा के ले आओ!
भौजी आटा ढकते हुए बोलीं|
मैं: चलो न दोनों साथ चलते हैं?
मैंने प्यार से अपना प्रस्ताव रखा|
भौजी: ठीक है, मैं हाथ धो के आई|
भौजी मुस्कुराते हुए बोलीं और हाथ धोने चली गईं| उन्होंने अपनी साड़ी ठीक से बाँधी और हम दोनों बड़की अम्मा को बता कर नेहा को स्कूल लेने चल दिए| जब हम स्कूल के नजदीक पहुँचे तो मैंने भौजी से सच कहा;
मैं: अभी सिर्फ ग्यारह बजे हैं और नेहा की छुट्टी होने में अभी एक घंटा बाकी है!
ये सुन कर भौजी अस्चर्य से मुझे देखने लगीं और फिर उन्हें मेरी चतुराई समझ आई;
भौजी: क्या?.... मतलब आपने ....आप न बहुत शरारती हो! अब एक घंटा हम क्या करेंगे?
मैं: देखो वहाँ एक बाग़ है, वहीं चल के बैठते हैं|
वो बाग़ स्कूल से करीब पाँच मिनट की दूरी पर था| ऐसा नहीं था की मैं भूल गया था की पिताजी मुझ पर अब भी गुस्सा हैं, लेकिन मैं आज का दिन बस भौजी के साथ रहना चाहता था फिर चाहे कितना ही सुनना पड़े!
हम दोनों प्रेमी बाग़ पहुँचे, इस समय ये बाग़ खाली हो रहता है| वहाँ बहुत से झुरमुट थे, आम के पेड़ थे, घांस थी और बाग़ के बीचों बीच एक बरगद का पेड़ था| हम उसी बरगद के पेड़ के नीचे खड़े हो गए, दोनों के बीच चंद कदमों का फासला था| दोनों मौन खड़े बस एक दूसरे को देख रहे थे, ये एक अजीब सी प्यास थी जो खत्म होने का नाम ही नहीं लेती थी! इधर मेरा दिल और दिमाग भौजी के जिस्म की गर्माहट चाहता था, मेरे मन में वासना नहीं थी बल्कि भौजी को पाने की एक ललक जगी थी, शायद ये ललक इसलिए थी क्योंकि कल मैं जा रहा था! मैंने आस-पास नजर दौड़ा कर देखा की कहीं कोई हमें देख तो नहीं रहा और जब मुझे भरोसा हो गया की कोई नहीं है तो मैंने एकदम से आगे बढ़ कर भौजी का हाथ थाम लिया तथा उन्हीं झटके से अपनी ओर खींचा! भौजी मेरे इस आक्रमण के लिए तैयार नहीं थी इसलिए वो सीधा आ के मेरी छाती से लग गईं| भौजी के जिस्म की महक सूँघते ही मैं उनके प्यार में बहने लगा और अपने होठों को उनके होठों के पास ले आया| लेकिन इससे पहले की हमारे होंठ मिल पाते, भौजी ने अपनी ऊँगली मेरे होठों पर रख दी और मेरी आँखों में देखते हुए बोलीं;
भौजी: जानू प्लीज बुरा मत मानना, But this is not how I want to remember this day!
मुझे भौजी की ये बात जरा भी समझ नहीं आई पर मैं इस बात को और खींच कर उन्हीं उदास नहीं करना चाहता था, इसलिए मैंने मुस्कराते हुए कहा;
मैं: Okay... no problem जान!!!
मैंने आजतक भौजी के साथ कभी जबरदस्ती नहीं की थी, इसलिए मैंने इस बात को जाने दिया| लेकिन भौजी का दिल बहुत दुखा, वो मुझे रोकने के लिए शर्मसार हुईं;
भौजी: I'm sorry!!
मैं: Its okay जान!
मैंने मुस्कुराते हुए कहा, दरअलस मुझे उनके रोकने का बुरा नहीं लगा था बस थोड़ा अजीब सा लगा था!
अब अगर हम और कुछ देर वहाँ रुकते तो भौजी ये बात सोचते हुए मायूस हो जातीं इसलिए मैंने दूसरी बात शुरू करते हुए कहा;
मैं: चलो नेहा के स्कूल चलते हैं|
मैंने दो कदम चलते हुए कहा|
भौजी: पर अभी तो काफी समय बाकी है|
मैंने घडी देखि तो करीब आधा घंटा बाकी था;
मैं: अरे तो क्या हुआ, मैं हेडमास्टर साहब से विनती कर लूँगा|
मैंने बड़ी सहजता से कहा|
भौजी: क्या जर्रूरत है छोटी सी बात के लिए किसी से विनती करना|
भौजी नहीं मानी और वहीं खड़ी रहीं|
मैं: मुझे मेरी प्यारी बच्ची को भी समय देना है न!
मैंने नेहा का बहाना मारा|
मैं उन्हें जबरदस्ती स्कूल तक ले आया और उनको साथ लेके हेडमास्टर साहब के कमरे के पास पहुँच गया| मैंने बाहर से उनके कमरे में देखा तो एक लड़का बैठा था, जो उम्र में भौजी के बराबर का था| उधर हेडमास्टर साहब ने जैसे ही मुझे देखा उन्होंने उस लड़के से बात खत्म की और उसे बहार जाने को कहा| जैसे ही वो लड़का बाहर आया, भौजी की नजर घूंघट के भीतर से उस पर पड़ी और उन्होंने एकदम से मेरा हाथ पकड़ के दबा दिया! मैं तुरंत समझ गया की कुछ तो बात है, वरना भौजी मेरा हाथ यूँ न दबातीं! खैर मैंने कमरे में प्रवसिह किया और भौजी दरवाजे के बाहर ही रुक गईं;
हेडमास्टर साहब: अरे मानु...आओ-आओ बैठो!
मैं: जी शुक्रिया हेडमास्टर साहब! दरअसल में आपसे एक बिनती करने आया था, आशा करता हूँ की आप बुरा नहीं मानेंगे|
मैंने कुर्सी पर बैठते हुए कहा|
हेडमास्टर साहब: हाँ..हाँ कहिये!
मैं: सर दरअसल कल मैं कल दिल्ली वापस जा रहा हूँ| नेहा मुझसे बहुत प्यार करती है और मैं भी उसे बहुत प्यार करता हूँ| मेरे पास बहुत समय कम रह गया है, तो मैं चाह रहा था की जितना भी समय है मैं उसके साथ गुजारूँ| मेरी आपसे विनती है की क्या मैं उसे अभी ले जा सकता हूँ? जानता हूँ की छुट्टी होने में बस आधा घंटा ही है पर...प्लीज!
मैंने बड़े हलीमी से दरख्वास्त की तो हेडमास्टर साहब मना न कर पाए;
हेडमास्टर साहब: देखो अगर आपकी जगह कोई और होता तो मैंने मना कर देता पर चूँकि मैं आपको व्यक्तिगत तौर पर जानता हूँ तो आप जर्रूर नेहा को ले जाइये| वैसे अब कब आना होगा आपका?
मैं: जी जल्द ही!
हेडमास्टर साहब: बढ़िया है!
हेडमास्टर साहब मुस्कुरा कर बोले और मैं उनसे इजाजत ले कर उठा ही था की मुझे उस लड़के की याद आई तो मैंने उनसे पूछ ही लिया;
मैं: सर...ये लड़का जो अभी यहाँ....
मेरी बात पूरी होने से पहले ही हेडमास्टर साहब ने जवाब दे दिया;
हेडमास्टर साहब: वो मेरा बेटा है, कल ही शहर से आया था| समय नहीं मिला की आपके घर आके इसे मिलवा सकूँ और आज तो ये दुबई जा रहा है|
उन्होंने बड़े गर्व से कहा|
मैं: अरे वाह! ..... अच्छा मैं चलता हूँ और एक बार और आपका बहुत-बहुत शुक्रिया|
मैंने हेडमास्टर साहब को नमस्कार कहा और बाहर आ गया| मैं खुश था की मेरा इतना तो मान-सम्मान है की हेडमास्टर साहब की नेहा जाने दिया| वैसे देखा जाए चूँकि नेहा अभी छोटी क्लास में थी इसीलिए मैं उसे इतनी जल्दी ले जा रहा था, अगर बड़ी क्लास में होती तो मैं ऐसा स्वार्थी कदम न उठाते!
जैसे ही भौजी ने मुझे हेडमास्टर साहब के कमरे से बाहर निकलते हुए देखा तो उन्होंने फ़ौरन अपनी गर्दन उस ओर मोड़ ली, जिस ओर वो लड़का खड़ा था| मैं भौजी की होशियारी भाँप नहीं पाया, मैंने जब भौजी की नजरों का पीछा किया तो पाया की वो लड़का कुछ दूर एक चबूतरे पर खड़ा है और सिगेरट पी रहा है| मैंने भौजी के पास आ कर सीधा सवाल किया;
मैं: उस लड़के को देख आपने मेरा हाथ क्यों दबाया था? आप जानते हो उसे?
मेरी आवाज में जलन साफ़ झलक रही थी, मेरी ये जलन देख भौजी को मौका मिल गया मुझे जलाने का;
भौजी: वो....मेरे साथ....स्कूल में पढता था|
भौजी ने शर्माते हुए कहा, उनकी ये शर्म देख के मेरी जलने लगी!
मैं: तो जाओ बात कर लो उससे?
मेरी आवाज में जलन के कारन थोड़ा गुस्सा आ गया था जिसे देख भौजी थोड़ा डर गईं थीं!
भौजी: पर...पुरानी बात है... वैसे भी स्कूल में कभी उससे बात नहीं हुई| छोडो उसे...चलो नेहा को ले कर घर चलते हैं|
भौजी ने मेरे डर के मारे बात बदलते हुए कहा|
मैं: सच में उससे बात नहीं करनी?
मैंने थोड़ा ढीला पड़ते हुए पुछा|
भौजी: करनी तो है...पर ....आप साथ हो इसलिए!!!
अब ये सुन के मेरी बुरी तरह किलस गई!
मैं: तो आप बात करो उससे, मैं नेहा को उसकी क्लास से ले आता हूँ|
मैंने अपनी जलन छुपाने की नाकामयाब कोशिश करते हुए कहा| लेकिन अब भौजी ने जलन पकड़ ली थी और अब वो उसका भरपूर आनंद लेना चाहती थीं;
भौजी: वैसे ... He had a crush on me!!!
भौजी ने मुस्कुराते हुए कहा|
मैं: और आप?
मेरी जलन के कारन, मेरे मुँह से अनायास ही ये सवाल निकला|
भौजी: ...I don't wanna talk about!
भौजी ने एकदम से बात खत्म करते हुए कहा, ये सुन मैं जल कर राख हो गया! मैं सोचने लगा की अभी कुछ दिन पहले तो उन्होंने मुझसे कहा था की वो मेरे अलावा किसी और से प्यार नहीं करतीं! फिर अब इस लड़के की बात बता कर वो आग में घी डालने का काम क्यों कर रहीं हैं?! खैर उस समय तो मैंने कुछ नहीं कहा, जैसे-तैसे वो जलन बर्दाश्त कर के रह गया और नेहा की क्लास के द्वार पर खड़ा होके अध्यापक महोदय से बात की तथा उन्होंने भी नेहा को छुट्टी दे दी| नेहा ने फ़ौरन अपना झोला समेटा और हँसती हुई बाहर आ गई, नेहा को देखते ही भौजी ने अपने हाथ खोले ताकि वो आ कर उनके गले लग जाए| लेकिन मेरी बेटी भगति हुई मेरे पास आई और मैंने उसे फ़ौरन गोद में उठा लिया तथा उसके मस्तक को चूमने लगा| नेहा ने भी मुझे दो पप्पियाँ दी जो वो रोज सुबह-सुबह दिया करती थी! बाप-बेटी का प्यार देख भौजी कमर पर हाथ रख के दोनों को प्यार भरे गुस्से से देखने लगी| अब दोनों माँ-बेटी के बीच में प्यार-भरी नोक-झोंक शुरू हो गई, दोनों ने एक दूसरे को जीभ चिढ़ाना शुरू कर दिया| इधर मन ही मन मैं उस लड़के से जलने लगा था, साले की हिम्मत कैसे हुई इनसे प्यार करने की?! खैर हम घर की ओर चल पड़े पर मैंने भौजी से कोई बात नहीं की, बस नेहा की पप्पियाँ लेता रहा और भौजी को जलाने की कोशिश करता रहा| मैं जानता था की मेरे नेहा की सरे आम पप्पियाँ लेने से जलन होती है, तो मैं अपने दिल की जलन का बदला उन्हें जला कर ले रहा था| भौजी का मुझे जला कर राख करने का प्लान कामयाब हो चूका था!
घर लौट कर भौजी हाथ-मुँह धो कर रोटी बनाने लग गईं, अब रोटी बनाना मुझे आता नहीं था तो में रसोई के पास वाले छप्पर के नीचे नेहा को गोद में लेकर बैठ गया| नेहा को गर्मी लग रही थी, सो वो बोली;
नेहा: पापा बहुत गर्मी लग रही है, मैं नहा लूँ?!
मैंने नेहा के माथे को चूमा और कहा;
मैं: ठीक है बेटा, पर जल्दी आना|
नेहा नहाने भाग गई और इधर भौजी ने मुझे सताना शुरू कर दिया;
भौजी: वहाँ क्या बैठे हो, चलो रोटी बनाओ!
भौजी रसोई से रोटी बेलते हुए बोलीं|
मैं: मुझे नहीं आती बनानी, जब बनाई तो किसी न किसी देश का नक्शा बन गई!
ये सुन कर भौजी 'खी..खी...' कर खींसें निपोरने लगीं|
भौजी: तो जानू आपने पूछा नहीं की उस लड़के का नाम क्या है?
भौजी ने मुझे चिढ़ाने के लिए कहा|
मैं: तो आप ही बता दो!
मैंने चिढ़ते हुए जवाब दिया|
भौजी: रमेश!
मैं: तो आपको उसका नाम भी याद है?
मैंने भौजी को आँखें तर्रेर कर देखते हुए पुछा|
भौजी: अजी नाम क्या...हमें तो उसका जन्मदिन भी याद है!
भौजी ने मेरी जलन की आग में पेट्रोल छिड़कते हुए कहा|
मैं: अच्छा?! वैसे आपको मेरा जन्मदिन याद है?
भौजी: ममम्म्म ...sorry वो तो मैं भूल गई!
भौजी ने मेरी खिंचाई जारी रखते हुए कहा|
मैं: हाँ भई हमें कौन याद रखता है!
मेरा दिल अब जल कर ख़ाक हो चूका था!
भौजी: जलन हो रही है मेरे जानू को?
भौजी ने हँसते हुए पुछा|
मैं: मैं क्यों जलूँगा?!
मैंने तुनकते हुए कहा|
भौजी: अच्छा बाबा! चलो अब सबको बुला लो, खाना तैयार है|
भौजी ने बात को खत्म करते हुए कहा, वरना मैं खुद जलते हुए चूल्हे में बैठ जाता!
अब खाना खाने को बुलाना था तो मैंने बड़की अम्मा को ढूँढा, वो मुझे छोटे वाले खेत में माँ के साथ बैठीं गुड़ाई करती हुई मिली|
मैं: अम्मा खाना तैयार है, सब को बुला दो!
बड़की अम्मा: अरे ओ अजय.....अजयवा हो!
बड़की अम्मा ने अजय भैया को जोर से आवाज देकर पुकारा, अजय भैया कुछ दूरी पर बैलों के लिए घाँस छोल रहे थे|
अजय भैया: हो अम्मा!
वो भी वहीं बैठे-बैठे चिलाये|
बड़की अम्मा: जाय के आपन चाचा और बप्पा का बुलाये लाओ, खाना बनी गवा है!
अजय भैया: जाइत है!
मुझे ये वार्तालाप सुनने में बड़ा मजा आ रहा था, ऐसा नहीं था की मैं पहली बार इस तरह की वार्तालाप सुन रहा था लेकिन गाँव में जब लोग दूर-दूर काम करते हुए एक दूसरे को चिल्ला कर बात करते थे तो सुन कर बड़ा मजा आता था|
खैर मैं वापस छप्पर के नीचे लौट आया, नेहा भी नाहा कर आ गई थी इसलिए मैं उसे लेकर भौजी के घर आ गया| मुझे पता था की अभी पिताजी आएंगे और कुछ ही देर में मेरी क्लास लगेगी इसलिए मैं मन ही मन सारी तैयारी करने लगा| जैसे ही घर के सभी सदस्य खाना खाने बैठे की अम्मा ने मुझे आवाज मार के बुलाया;
बड़की अम्मा: ओ प्रधान रसोइया जी! तनि हियाँ आये के खाना तो परोस दिहो!
बड़की अम्मा ने हँसते हुए कहा, मैं नेहा को गोद में लिए हुए बाहर आया| मुझे देखते ही पिताजी का गुस्सा चढ़ गया, वो खाने से उठने लगे तो बड़की अम्मा ने उन्हें डाँट दिया;
बड़की अम्मा: चुप्पै बैठ के खाना खाओ, नाहीं तो मारब अभी तोहका!
पिताजी बड़की अम्मा को माँ समान मानते थे इसलिए उनकी डाँट सुन कर बैठे रहे| मैं हाथ-पाँव धो कर रसोई के बाहर बैठ गया, भौजी ने सबसे पहले बड़के दादा के लिए थाली परोसी और घूँघट के नीचे से मुझसे अपनी आँखों द्वारा सवाल पुछा; 'ये सब क्या हो रहा है?' मैंने सर न में हिला कर उनके सवाल से खुद को बचाना चाहा|
एक-एक कर मैंने सब को थाली परोसी, बड़के दादा ने खाने को प्रणाम किया और मेरी ओर देख कर मुस्कुराते हुए बोले;
बड़के दादा: मुन्ना खुशबु बहुत नीक है!
पिताजी खामोश थे, तभी माँ ओर बड़की अम्मा वहाँ आ कर बैठ गईं और बेने (पंखे) से हवा करने लगीं|
पिताजी: ये क्या बनाया है?!
पिताजी ने थोड़ा चिढ़ते हुए पुछा|
बड़की अम्मा: जो भी है...जब खसबू इतनी नीक है तो स्वाद तो लाजवाब होबे करी!
माँ ने पिताजी की चिढ को छुपाते हुए कहा|
मैं: जी पंचरंगी दाल और मेरी स्पेशल गोभी है!
मैंने थोड़ा घबराते हुए कहा|
अजय भैया: भय हम तो पाहिले गोभी खाब!
अजय भैया ने जैसे ही पहला कौर खाया वो खुश होते हुए बोले;
अजय भैया: म्म्म्म...वाह! भैया ई तो बहुत स्वाद है!
अब उनकी देखा देखि चन्दर ने भी पहले गोभी खाई और वो भी मेरे हाथ की बनी गोभी की तारीफ करते हुए बोला;
चन्दर: बहुत स्वाद है!
चन्दर के मुँह से ये सुन मैं थोड़ा हैरान हुआ, फिर मैं समझा की वो तो बस बड़की अम्मा के डर के मारे कह रहा है, वरना पिताजी की तरह उसे भी उनकी डाँट पड़ती|
इधर बड़के दादा ने पहला कौर खा कर फ़ौरन अपने कुर्ते की ऊपर वाली जेब में हाथ डाला और सो रुपये निकाल कर मुझे देते हुए कहा;
बड़के दादा: मुन्ना ई लिहो!
वो सौ का नोट देख मैं हमेशा की तरह पिताजी की तरफ देखने लगा, बचपन में जब भी कोई पैसे देता तो पिताजी के संस्कार के अनुसार पैसे कभी नहीं लेने चाहिए|
मैं: जी ....पर...
मैंने हिशकते हुए पिताजी को देखते हुए कहा|
पिताजी: रख ले.....भाई साहब खुश हो के दे रहे हैं|
पिताजी की आवाज बड़ी सख्त थी, इसलिए मैं अब भी पैसे लेने से कतरा रहा था|
बड़के दादा: आपन पिताजी की तरफ न देख, हम ख़ुशी से देइत है काहे की खाना बहुतये स्वाद है! हमका तो यादो नाहीं की हम आखिर बार कब अइसन खाना खाएँन रहा!
बड़के दादा के मुँह से मेरी बड़ाई सुन भौजी को बहुत गर्व महसूस हुआ, इधर मैंने दोनों हाथों से बड़के दादा द्वारा दिया हुआ सौ का नोट लिया और उसे अपनी जेब में रख लिया|
मेरी प्यारी बिटिया तख्त पर बैठी हुई ये सब देख रही थी और मुस्कुरा रही थी|
माँ: बहु नेहा को भी खाना परोस दे|
ये सुन भौजी धीमे से बोलीं;
भौजी: माँ ये अकेले कहाँ खाना खाती है?!
माँ: बेटा तू भी खाना खा ले|
मैं: जी मैं प्रधान रसोइया हूँ, मैं तो सब से आखिर में खाऊँगा|
अजय भैया: हम कछु छोड़ देइ तब तो खैहो!
अजय भैया ने हँसते हुए कहा, उनकी बात सुन सब हँस पड़े...पिताजी भी!
उनकी हँसी देख के मुझे लगा की शायद पिताजी का गुस्सा अब पिघलने लगा है|
बड़की अम्मा: मुन्ना ई खाना बनाना का आपन माँ से सीख्यो है?
माँ: नाहीं दीदी! न हम ई का बनाया हुआ कछु खाइत है और नहीं ई के पिताजी कछु ख़ावत हैं! अपने-आप पता नहीं का-का बाड़म-बगड़म बनावत है, कभी ई मिला कभी ऊ मिला! पता नाहीं इ सब्जी में का-का डालिस है?!
माँ की बात सुन सब को लगा की कहीं मैंने इसमें कुछ गलत चीज तो नहीं डाल दी, इसलिए मैंने उन्हें रेसिपी बतानी शुरू की;
मैं: जी गोभी को दही में Marinate किया था|
बड़की अम्मा: ऊ का होत है?!
बड़की अम्मा ने Marination के बारे में पुछा तो मैंने उन्हें साड़ी विधि समझाई| मैंने जो सामग्री डाली थी और बनाने की विधि बताई तो बड़की अम्मा समेत सबका मुँह खुला का खुला रह गया! मुझे तथा भौजी को छोड़ कर सब के सब अचम्भित थे और मेरी प्रशंसा कर रहे थे, सिवाए माँ और पिताजी के| माँ को सादा खाना खाने की आदत थी, इसलिए मेरा बनाया हुआ चटक-मटक खाना वो नहीं खातीं थी| वहीं पिताजी तो गुस्से से भरे बैठे थे तो इसलिए उन्होंने जानबूझ कर मेरी तारीफ नहीं की, पर इतना तो मैं दावे से कह सकता हूँ की उन्हें गर्व जर्रूर हो रहा था|
बड़की अम्मा: और का-का बना लेत हो?
मैं: अम्मा मुझे Experiment Cooking पसंद है| मुझे ये दाल-रोटी पकाना अच्छा नहीं लगता, मैं कुछ हट के करता हूँ!
देखा जाए तो मेरी बात सही भी थी, आखिर मेरी पसंद अर्थात भौजी भी तो हट के ही थीं!!! अब चूँकि अम्मा को Experiment Cooking का मतलब नहीं पता था तो मैंने उन्हें विस्तार में सब समझाया|
खैर सब पुरुष सदस्यों ने खाना खाया और वो उठ कर आँगन में बैठ गए, उनके जाने के बाद रसिका सर झुकाये हुए आई| आज सुबह से वो बड़े घर में गठरी बनी छुपी हुई थी, उसके आते ही बड़की अम्मा ने मुझे भौजी के घर जाने को कहा| बड़की अम्मा को लगा की कहीं मैं रसिका पर रासन-पानी ले कर चढ़ न जाऊँ, मैंने नेहा को गोद में लिया और भौजी के घर लौट आया| भौजी के घर के आँगन में चारपाई बिछा कर दोनों बाप-बेटी बैठ गए, समय बिताने के लिए मेरी प्यारी गुड़िया मेरे साथ चिड़िया उडी खेलने लगी| बड़की अम्मा. माँ और रसिका को खाना परोस कर आते-आते भौजी को थोड़ा समय लग गया, अब सुबह से कुछ खाया नहीं था ऊपर से भौजी ने मुझे उस वक़्त मसाला लगा कर तंदूर में जला कर राख कर दिया था तो थोड़ा तो गुस्सा आने लगा था| भौजी एक थाली में तीनों का भोजन परोस लाईं और घर के भीतर घुसते हुए मुझसे बोलीं;
भौजी: चलिए जानू खाना खाते हैं|
भौजी ने खाने की थाली चारपाई पर रखते हुए कहा|
मैं: मेरा मन नहीं है|
मैंने नाराज होते हुए कहा, भौजी जानती थीं की मेरी नारजगी का कारन वही लड़का है पर भौजी को मुझे जलाने में बड़ा मजा आया था|
भौजी: क्यों नहीं खाना? नाराज हो मुझसे?
भौजी ने भोली सी सूरत बनाते हुए पुछा|
मैं: नाराज तो रमेश होगा, मेरे चक्कर में आपने उससे बात जो नहीं की!
मैंने सीधा कटाक्ष किया|
भौजी: ओह! अब समझी, अच्छा मेरी बात सुनो?
भौजी ने मेरा हाथ पकड़ते हुए बिठाया|
मैं: नहीं मुझे कुछ नहीं सुन्ना!
ये कह कर मैं उठ के जाने लगा तो, उन्होंने मेरा हाथ फिर पकड़ के रोक लिया और मुझे अपनी ओर घुमाया| इससे पहले वो कुछ कहतीं मैंने ही जलन की आग में जलते हुए अपना सीधा सवाल पूछ लिया;
मैं: Did you had a crush on him?
ये सुन कर भौजी के होठों पर फिर से मुस्कान आ गई|
भौजी: नो... अब खुश?!
भौजी का ये जवाब मेरे लिए संतोषजनक नहीं था, क्योंकि शक का बीज जो पनपने लगा था! भौजी ने फ़ौरन मेरे मन की हालत पकड़ ली;
मेरी संतुष्टि के लिए भौजी ने अपना दायाँ हाथ अपनी कोख पर रखते हुए कहा;
भौजी: हमारे बच्चे की कसम! मेरे मन में आपके सिवाय न किसी और के लिए कभी प्यार था और न ही कभी पैदा होगा! उस लड़के की शक्ल मेरे स्कूल के दिनों में एक लड़के से मिलती थी, इसलिए पक्के तौर पर नहीं कह सकती की ये वही रमेश था या नहीं| स्कूल के दिनों में मैं प्यार-मोहब्बत से दूर ही रहती थी और वो समय भी ऐसा था की लड़के-लड़कियाँ आजकल की तरह दिल फेंक नहीं होते थे| मेरा मन पढ़ाई में ज्यादा लगता था, घर से स्कूल और स्कूल से घर, बस यही दुनिया थी मेरी|
भौजी की बात सुन अब मुझे विश्वास हो गया था की उनके मन में बस मैं ही बसा हूँ और मुझे खुद पर गर्व होने लगा| मेरी प्यारी बेटी जो अभी तक बड़े ध्यान से हम दोनों की बातें सुन रही थी, उसके मन में सवाल पैदा होने लगे थे!
नेहा: कौन रमेश मम्मी?
उसने भौजी से बड़े प्यार से पुछा|
मैं: बेटा मैंने कहा था न वो दाढ़ी वाला बाबा जो बच्चों को उठा कर ले जाता है, ये वही बाबा है!
मैंने नेहा को डराते हुए भौजी का पक्ष लिया|
नेहा: वो...वो...बाय...फ्रंड...वाला बाबा...?
नेहा ने डरते हुए पुछा, उसका ये सवाल सुन हम दोनों मियाँ-बीवी ठहाका मार के हँसने लगे|
[color=rgb(85,]जारी रहेगा भाग 7 में...[/color]