Hindi Antarvasna एक अनोखा बंधन - पुन: प्रारंभ


[color=rgb(0,]इक्कीसवाँ अध्याय: कोशिश नई शुरुआत की[/color]
[color=rgb(251,]भाग - 1[/color]


[color=rgb(44,]अब तक आपने पढ़ा:[/color]

इस तरह से मेरे दिल में जो दर्द था वो कभी दब जाता तो कभी किसी बात को याद कर के उभर आता, जब दर्द उभर आता तो मैं उस पर बियर की दवा लगा लेता और दिल को चैन मिल जाता| सेकंड ईयर के पेपर हुए और रिजल्ट ठीक ही आया, थर्ड ईयर में आये तो कॉलेज के दोस्त कुछ करीब आ गए और बियर पीना पार्टी करने में बदल गया| कुछ गिने-चुने दोस्तों के साथ pub जाना शुरू हो गया और वहाँ जा कर एक दोस्त ने बियर की जगह जाम पकड़ा दिया! पहली बार थी तो थोड़ा सम्भल कर पी रहा था, आज से पहलेतो बस पिताजी की aristocrat whiskey ही पी थी, वो भी 2-3 घूँट, पर आज 30ml का जाम सामने था| कॉलेज के दोस्त का जन्मदिन था और घर में पार्टी जाने का बोल कर ही आया था, वो बात अलग है की माँ-पिताजी के अनुसार पार्टी का मतलब था रेस्टुरेंट में बैठ कर खाना-पीना, पर यहाँ तो मैं अपनी जिंदगी में एक नई दिशा की ओर कदम बढ़ा रहा था| उस दिन मैंने बस एक ही पेग पिया और शराब का स्वाद जो जीभ पर चढ़ा वो फिर कभी उतारे नहीं उतरा| Audit कर के जो थोड़े-बहुत पैसे इकठ्ठा हुआ थे उन्हें मैंने धीरे-धीरे शराब पीने में फूँकना शुरू कर दिया| दिल का दर्द भूलाने के लिए शराब ही सबसे अच्छी थी, जब शराब के लिए पैसे कम पड़े तो दिषु से उधार लिए पर शराब का साथ नहीं छोड़ा| ऐसा बिलकुल नहीं था की मैं किसी शराबी की तरह पीटा था, मैं जानता था की किसी भी सूरत में ये राज घर में नहीं खुलना चाहिए, इसलिए मैं अपनी लिमिट में पीता था| जब भी पी कर घर आया तो चुप-चाप सो गया, माँ-पिताजी को इसका रत्ती भर भी शक नहीं हुआ की उनका सीधा-साधा लड़का पीने लगा है| खैर थर्ड ईयर के पेपर दिए और पास भी हो गया, खानदान का पहला लड़का ग्रेजुएट हुआ था तो पिताजी ने इसकी खुशखबर गाँव भेजी और यहाँ शहर में उन्होंने पार्टी दे डाली| ये मेरी जिंदगी का वो पड़ाव था जहाँ से सब कुछ बदलना शुरू हुआ, अभी तक मुझ पर जिमीदारियाँ नहीं थीं पर बहुत जल्द ऐसा कुछ होने वाला था जिसके बारे में मैं अपने बचपन से सोचता चला आया था|

[color=rgb(255,]अब आगे:[/color]

मेरे थर्ड ईयर के रिजल्ट आने तक पारिवारिक उथल-पुथल तेज हो चुकी थी| बड़के दादा ने चन्दर को ऐसा सीधा किया था की वो अचानक ही सुधर गया था, अब वो खेती-बाड़ी में अजय भैया के साथ ध्यान देने लगा था| एक दिन मैंने माँ-पिताजी की बात सुनी थी, वो कह रहे थे की बड़के दादा ने पिताजी के कहने पर अपनी वसीहत बनाई है, जिसमें उन्होंने चन्दर का हिस्सा आयुष के नाम कर दिया था| अब जाहिर सी बात है की उसे खुद को सुधारना था वरना उसके हाथ एक फूटी कौड़ी नहीं लगती| इसीलिए वो कुत्ते की दुम एकदम से सीधा हो गया था और जिम्मेदार हो गया था|

अनिल भैया (बड़की अम्मा के लड़के) की शादी से कुछ दिन पहले रसिका भाभी के परिवार वाले सुलह करने आये थे| साथ में वो एक भैंस उपहार स्वरुप लाये थे, अपनी नाक रगड़ कर माफ़ी माँग कर वे भेंट वहीं छोड़ गए थे| रसिका भाभी जानती थी की तलाक होने के बाद उनकी दुबारा शादी हो पाना मुश्किल है, तक-हार के उनके घर वाले किसी उम्र-दराज के पल्ले उन्हें बाँध देते इसके चलते उन्होंने भी चन्दर की तरह मजबूर हो कर खुद को सुधारा| थोड़ा समय लगा और फिर धीरे-धीरे अजय भैया के साथ भी उनके रिश्ते सुधरने लगे, उनका बेटा वरुण अब यहीं रहता है और नेहा के साथ स्कूल जाता है|

आयुष मेरा बेटा सबकी आँखों का तारा बन चूका था, साल भर का होते ही वो बड़के दादा की गोद में अपना कब्जा जमा चूका था| अपने पोते के प्रेम में पड़ कर बड़के दादा और बड़की अम्मा ने उसे बहुत लाड-दुलार करना शुरू कर दिया था| उसका रोना सुन कर बड़की अम्मा भागी-भागी जातीं और उसे प्यार से गोद में ले कर टहलने लगतीं| जब आयुष तीन साल का हुआ तो बड़के दादा उसके साथ बिलकुल बच्चे बन चुके थे, उसे पीठ पर लादे हुए बड़के दादा आँगन में टहलते रहते| पिताजी बताते थे की एक दिन तो बड़के दादा आयुष के लिए घोडा भी बने थे और ये दृश्य देख कर सब ने जम कर ठहाका मारा था| आयुष के कारन बड़के दादा का दिल पिघल गया था, जिस कारन नेहा को भी उनसे थोड़ा स्नेह मिलने लगा था|

वहीं भौजी का दर्जा अब किसी महारानी जैसा था, कोई भी त्यौहार हो सारी खरीदारी बड़की अम्मा भौजी को साथ बिठा कर करती थीं| उनको केवल खाना बनाने की जिम्मेदारी दे गई थी और बाकी का सारा काम रसिका भाभी करती थीं| शादी के दिनों में भौजी को हरकाम में आगे किया जाता था और वो अपनी सारी जिम्मेदारियाँ अच्छे से निभा रहीं थीं| इतना मान-सम्मान मिले तो इंसान कई बार अपनी जिंदगी के सबसे ख़ास इंसान को भूल ही जाता है| शायद इसी लिए वो भी मुझे भूल चुकी थीं|

इधर मेरे पिताजी अपने भाई के प्रेम में पूर्णतः अंधे हो चुके थे, उन्होंने मेरे जिम्मे काम लगा कर गाँव के चक्कर लगाना शुरू कर दिया था| उनके बार-बार गाँव आने-जाने से न केवल समय की बर्बादी होती थी, बल्कि पैसों की भी अधिक बर्बादी होने लगी थी| उनके बिज़नेस के काफी क्लाइंट छूट चुके थे और जो रह गए थे उनके काम से थोड़ी बहुत आमदनी हो रही थी| पिताजी के तय किये गए नियमों में बंध कर काम क्र पाना नामुमकिन हो रहा था, उनकी बताई जगह से सामान लो, लेबर को सर पर बिठाओ, काम के पैसे मत बढ़ाओ और छोटे-छोटे काम के लिए दौड़ो| ये सब मुझसे नहीं हो रहा था, फिर एक दिन पता चला की पिताजी ने बिना माँ को बताये गाँव में बड़के दादा के कहने पर जमीन खरीद ली है, जबकि मैं चाहता था की हम एक गाडी ले लें| पिताजी ये समझ ही नहीं पा रहे थे की उनके बड़े भाई उनका 'इस्तेमाल' किये जा रहे हैं, या फिर वो जयन्ती०बूझते हुए भी खुद 'लुट' रहे थे|

जब मेरा कॉलेज खत्म हुआ तो उन्होंने मुझे अपने साथ काम करने को कहा, अब मुझे करनी थी नौकरी तो बहस होना तय था;

मैं: पिताजी मुझे जॉब करनी है|

मैंने बिना डरे पिताजी से अपनी बात कही, जिसे सुन कर पिताजी का पारा चढ़ गया और वो मुझे डाँटते हुए बोले;

पिताजी: बिलकुल नहीं, मेरा बेटा किसी और के यहाँ काम नहीं करेगा| ये बिज़नेस मैंने किसीके लिए बनाया है?!

पिताजी के ये बात सुनकर मुझे गुस्सा तो बहुत आया पर मैंने अपने गुस्से की टूटी को बंद किया और अपनी बात पर अडिग रहा;

मैं: मुझे अपने पाँव पर खुद खड़ा होना है!

ये सुन कर पिताजी गरजे;

पिताजी: तो मेरे ये बिज़नेस संभाल और इसे और बड़ा कर|

बिज़नेस तो पिताजी ऐसे कह रहे थे जैसे साल का लाखों का टर्नओवर हो, उधर बाप-बेटे की बहस सुन कर माँ मेरे पीछे आ कर खड़ी हो गईं|

पिताजी: बिना कोई मेहनत किये तुझे सब मिल रहा है और तुझे उसकी कोई कदर ही नहीं, नाशुक्रा कहीं का!

पिताजी का ये ताना मुझे बहुत जोर से लगा और मेरा गुस्सा फूट पड़ा;

मैं: किस बिज़नेस की बात करते हैं आप? अपने खुद कभी उसकी कदर की है, जो आप मुझसे अपेक्षा रखते हैं? साल के 6 महीने तो आप गाँव में होते हो और बचे 6 महीने में क्या काम मिलता है आपको? छोटे-मोटे ठेके? कितने साल से आप ये काम कर रहे हो? रत्ती भर भी आपने काम को सुधारा? एक ही जगह से माल लो, लेबर को सर बिठाओ और उसके बाद भी काम नहीं होता आपका! वो आपके सेठ जी जिनसे आप माल लेते हो, उनही की सामने वाली दूकान पर माल सस्ता मिलता है, आप ये बात जानते हो न? क्या फायदा होता है सेठ जी से माल ले कर, न वो आपको कम दाम देते हैं, न credit (उधार) देते हैं? वो कारपेंटर ऐसे धौंस दिखाता है जैसे मालिक आप नहीं वो है, एक दिन मैंने उस थोड़ा सुना क्या दिया उसने आपसे शिकायत कर दी और आप भी उसी की तरफदारी करते हो? क्या फ्री में काम करता है वो, जो इतनी अकड़ दिखाता है?

मैं अपने गुस्से में कहे जा रहा था और पिताजी मेरे गुस्से की जड़ जानने के लिए खामोश थे| जब मेरी बात पूरी हुई तो वो मुझ पर चढ़ बैठे और यहाँ से बहस तेज हुई;

पिताजी: तो तू मुझे काम करना सिखाएगा? कल का छोकरा, न काम की तमीज है न बोलने का लिहाज! जिन सेठ जी की तू बात कर रहा है उनसे बहुत पुराणी रिश्तेदारी है मेरी, मेरा काम शुरू होने के समय उन्होंने बड़ी मदद की थी....

पिताजी की बात बीच में काटते हुए;

मैं: आप यहाँ बिनेस्स करने बैठे हो या रिश्तेदारी निभाने? जो मदद उन्होंने की उसके बदले में महँगा माल भी तो बेच रहे हैं आपको, तो हो गया हिसाब बराबर! और ये कल का छोकर आपको काम सिखा नहीं रहा, आपको आपकी गलतियाँ बता रहा है|

किसी भी बाप के लिए अपनी गलतियां मानना आसान नहीं होता, वो ये कैसे स्वीकार ले की उसका बेटा इतना बड़ा हो चूका है की उसे उसकी भूल याद दिला रहा है?!

माँ: बस! मैं बात करती हूँ इससे|

माँ बीच में बोलीं तो पिताजी गुस्से से तमतमाते हुए बाहर चले गए| माँ जानती थीं की मैं स्वभाव से जिद्दी नहीं हूँ, अगर मैं नौकरी करने की जिद्द कर रहा हूँ तो इसके पीछे जर्रूर कोई कारन है|

माँ: बेटा तू नौकरी की क्यों जिद्द कर रहा है?

माँ ने मेरे सर पर हाथ फेरते हुए पुछा|

मैं: क्योंकि मैं नहीं चाहता की आप यहाँ रहो! जॉब करूँगा, पैसे कमाऊँगा और आपके साथ पिताजी से अलग कहीं रहूँगा!

मेरी ये बात सुन कर माँ अवाक रह गईं, उनके चेहरे पर हवाइयाँ उड़ने लगीं और मुझसे मन ही मन अपेक्षा करने लगीं की मैं उन्हें सब बातें विस्तार से बताऊँ|

मैं: बचपन से देखता आया हूँ की पिताजी ने आपको और मुझे कितना दबा आकर रखा है| जितना प्यार वो मुझे मेरे बालपन में करते थे वो मेरे स्कूल जाते ही खत्म हो गया| मुझे इसकी उनसे कोई शिकायत नहीं है, शिकायत है तो उन पलों की जब उन्होंने आपको आपके सही होने पर डाँटा, झिड़का और एक-आध बार हाथ भी उठाया| उनक वो घर में शराब पी कर आपसे लड़ना, गाली देना, ये सब मैंने खून के घूँट पी-पी कर बर्दाश्त किया है| छोटी-छोटी खुशियों के लिए माने आपको तरसते देखा है और मैं अब आपको उन खुशियों के लिए अब तरसने नहीं दूँगा| आपके हक़ की सारी खुशियां मैं आपको ला कर दूँगा, वो भी मेरे कमाए मेहनत के पैसों से! आप ये कभी मत भूलो की उनके (पिताजी के) मन में सिर्फ अपने भाई-भाभी के लिए प्यार है और वक़्त आने पर वो हमें जर्रूर छोड़ कर अपने भाई-भाभी के पास चले जायेंगे| मैं बस उस वक़्त के आने से पहले ही सम्भलना चाहता हूँ!

मैंने पूरे आत्मविश्वास से कहा| मेरी सच्चाई सुन माँ की आँख भर आई और वो रूँधे गले से बोलीं;

माँ: बेटा....वो मेरे...पति है....मैं उनका साथ नहीं छोड़ सकती.....!

मैंने माँ के आँसूँ पोछे और बोला;

मैं: आप चिंता मत करो, मैं उन्हें एक बार सुधरने का मौका अवश्य दूँगा| वो सम्भल गए तो ठीक वरना मैं आपको यहाँ बिलकुल नहीं रहने दूँगा, माँ-बेटे अपनी अलग जिंदगी शुरू करेंगे|

मैंने मुस्कुराते हुए कहा, जिसे सुन माँ ने मेरे दाहिने हाथ को चूम लिया| मैं माँ का दर्द समझ सकता था, उन्हें अपने खून और अपने पत्नी के धर्म के बीच फैसला करना था, जो उनके लिए आसान नहीं था|

माँ: ठीक है बेटा, जब अलग होने का वक़्त आएगा तब देखेंगे, पर अभी के लिए तू अपनी पिताजी के साथ काम में हाथ बँटा और साथ-साथ अपने लिए जॉब भी ढूँढ| तेरे पिताजी बड़े रूढ़िवादी हैं, पर तू अगर उन्हीं प्यार से उनकी गलतियां बताएगा तो वो मान जायेंगे|

माँ ने मेरे सर पर हाथ फेरते हुए कहा| मैं समझ गया था की माँ इस परिवार को बिखरने से बचाने को ये कह रही हैं, इसलिए मैंने सर हाँ में हिला कर उनकी बात का मान रखते हुए मान ली|

शाम को जब पिताजी लौटे तो माँ ने उन्हीं समझना शुरू किया और पता नहीं कैसे उन्हें मना भी लिया| अगले दिन से मैंने नौकरी के लिए इंटरव्यू और पिताजी के साथ साइट का काम दोनों संभाल लिया| शुरू का 10 दिन तो ठीक ठाक गए, मैंने बहुत जगह इंटरव्यू दिए पर जब कहीं से कोई कॉल नहीं आया तो मुझे कोफ़्त होने लगी! दिमाग में गुस्सा भरने लगा था और इसी गुस्से में मैं एक दिन भरा बैठा था जब पिताजी ने मुझे माल लेने के लिए भेज दिया| मुझे गुस्सा तो निकालना था तो मैंने सेठ जी के सामने बैठते हुए उन्हीं की क्लास लगानी शुरू कर दी;

मैं: सेठ जी एक बात पूछनी थी आपसे|

सेठ जी: हाँ-हाँ पूछो बेटा|

उन्होंने खुश होते हुए कहा| दरअसल उस वक़्त कोई ग्राहकी नहीं थी तो उन्हीं लगा की मैं चकल्लस करना चाहता हूँ|

मैं: पिताजी आपके साथ कितने सालों से काम कर रहे हैं, फिर आप हमें इतना महँगा समान क्यों बेचते हो?

ये सवाल सुनते ही उनके कान खड़े हो गए और वो बात को संभालते हुए बोले;

सेठ जी: अरे बेटा, तुम तो हमारे परिवार जैसे हो, किसने कहा हम तुमसे ज्यादा पैसे लेते हैं?

मैं: सेठ जी, 1,000/- का तो सीधा डिस्काउंट आपके सामने वाली दूकान वाला दे रहा है| ऊपर से वो माल उधार देने को भी तैयार है!

मैंने पीठ पीछे टिका कर आराम से बैठते हुए कहा| जब दिल में चोर हो तो इंसान हड़बड़ा जाता है और बेफालतू के तर्क करने लगता है, वही हाल सेठ जी का था|

सेठ जी: अरे वो तो है ही चोर! मेरी ग्राहकी बिगड़ता है, उसके माल में मिलावट है!

मैं पहले से ही जानता था की वो ये बकवास करेंगे इसलिए मैंने एकदम से जवाब दिया;

मैं: अरे बालू, बदरपुर और ईंटों में काहे की मिलावट करेगा वो? माल तो वो सब वहीं से लेता है जहाँ से आप लेते हो|

सेठ जी समझ गए थे की मैं आज उनसे भाव-ताव करने के मूड में हूँ, इसलिए वो मुस्कुराये और बोले;

सेठ जी: बहुत खोज-खबर रखने लगे हो बेटा! चलो बताओ क्या रेट लगाऊँ?

वो शायद सोच रहे थे की मैं शायद रेट सोच कर नहीं आऊँगा, पर मैं आज पूरी गणना करके आया था| दस मिनट के भाव-ताव के बाद वो मान गए और उन्होंने मेरे सामने ही पिताजी को फ़ोन किया;

सेठ जी: अरे भाईसाहब, आपका लड़का तो बड़ा होशियार है! मेरी उससे सारी बात तय हो गई है, अब आपको माल नए रेट पर मिलेगा|

उधर पिताजी उनकी बात सुन कर हैरान थे की मैंने ऐसा क्या कह दिया किया की सेठ जी ने नए रेट पर माल देना शुरू कर दिया है और सबसे जर्रूरी बात की रेट है कितने का? सेठ जी को नए रेट से पैसे दे कर मैंने 2,500/- बचाये थे| दस मिनट बाद पिताजी का फ़ोन आया और मैंने उन्हें काम रेट की खबर दी तो उन्हें वो ख़ुशी नहीं हुई जिसकी मैं उम्मीद कर रहा था, या फिर शायद वो जानबूझ कर अपनी ख़ुशी छुपाये हुए थे की कहीं मैं हवा में न उड़ने लगूँ|

मैं वापस साइट की ओर चल दिया, मैंने मेट्रो की थी और तभी उस मेट्रो में वही लड़की दिखी| काले रंग का बिज़नेस सूट पहने हुए वो स्टैंड पर उतर रही थी, उसे देखते ही मेरे पाँव तेजी से उसके पीछे चल पड़े पर किस्मत को कुछ और ही मंजूर था| मेरे उस तक पहुँचने से पहले ही वो ट्रैन से उतर चुकी थी और ट्रैन के दरवाजे मेरे मुँह पर बंद हो चुके थे| दरवाजे बंद होने से बुरा तो बहुत लगा पर फिर मैंने दिल को समझा लिया की; 'अगर उससे बात भी हो जाती तो क्या ही होता? वो कौन सा मुझे पहचान लेती?!' मायूस दिल के साथ, कान में हेडफोन्स ठूसें हुए मैं गाना सुनने लगा, कुछ देर बाद स्टैंड आया और आखिरकार मैं साइट पर पहुँचा| मुझे लग रहा था की पिताजी झाड़ेंगे पर जब मैंने उन्हीं बचे हुए पैसे दिए तो उन्होंने कुछ नहीं कहा और मुझे कारपेंटर के सर पर खड़ा कर चले गए|

घर जब लौटा तो खाना खाते समय मैंने पिताजी को एक खुश खबर दी जिसे सुन कर उनेक चेहरे पर मुस्कान आ ही गई;

मैं: पिताजी नॉएडा में एक 2 कमरे के ऑफिस स्पेस में कुछ काम करने का 'कॉन्ट्रैक्ट' आया है|

पिताजी: तूने कोई टेंडर भरा था?

पिताजी ने कुछ ख़ास दिलचस्पी नहीं लेते हुए कहा|

मैं: जी वो इंटरव्यू देने गया था तो, वहाँ रिसेप्शन पर आपका कार्ड छोड़ आया था|

कार्ड का नाम सुन कर पिताजी हैरान हो कर मुझे देखने लगे|

पिताजी: कार्ड कब छपवाए तूने?

मैं खाने से उठा और अपने ड्रावर से उन्हें कार्ड का बॉक्स निकाल कर दिया, पिताजी कार्ड देखे तो उनमें उनके साथ मेरा नाम और नम्बर था| पिताजी ने बहुत कोशिश की पर वो अपनी ख़ुशी छुपा नहीं पाए और मुस्कुराते हुए माँ को देखने लगे, उनकी मुस्कान में गर्व छुपा था जो मैंने महसूस कर रहा था| इतने साल काम करने के बाद भी उन्होंने कभी अपना कोई विजिटिंग कार्ड नहीं बनवाया था, इधर मेरा सपना था की मेरा अपना विजिटिंग कार्ड हो तो मैंने अपना और पिताजी, दोनों का सपना एकसाथ पूरा कर दिया था|

मैं: कल आपको उन्होंने मिलने बुलाया है|

मैंने सर झुकाये हुए कहा तो पिताजी ने हाँ में सर हिला दिया| अगले दिन जब हम ऑफिस पहुँचे तो पैसे की सारी बात हुई और इस बार सारी बात पिताजी ने की| कॉन्ट्रैक्ट फाइनल हुआ और पिताजी बहुत खुश थे, शाम को आते समय उन्होंने खुद तीनों के लिए चाऊमीन ली| कुछ दिन बीते थे और एक दिन मुझे एक ऑफिस से कॉल आया, ये एक बहुत बड़ी MNC कंपनी थी जहाँ 3 राउंड हुए इंटरव्यू के और मुझे सेलेक्ट कर लिया गया| जब सैलरी बताऐंगे तो मेरे दिल की हालत ऐसी थी जैसे वो ख़ुशी से ही फ़ट जायेगा, 25,000/- रुपये प्रति माह, लाने-लेजाने के लिए कैब और शनिवार की छुट्टी! मैं ख़ुशी से उड़ता हुआ घर पहुँचा और माँ को ये खबर सुनाई, माँ मेरी कामयाबी से बहुत खुश हुईं और फटाफट हलवा बनाने लगीं| शाम को जब मैंने पिताजी को ये खबर सुनाई तो उन्हीं कुछ ख़ास ख़ुशी नहीं हुई, मेरी ख़ुशी फीकी न हो इसलिए माँ ने रात को मेरी पसंद की दाल बनाई| मेरा ऑफिस जाना शुरू हुआ और सुबह जब गाडी वाले का फ़ोन आया तो पिताजी थोड़ा हैरान दिखे और माँ से खुसफुसा कर बोले;

पिताजी: लेने गाडी आई है?

पिताजी की खुसफुसाहट सुन माँ ने बड़े गर्व से कहा;

माँ: सिर्फ लेने ही नहीं छोड़ने भी आएगी और वो भी फ्री में!

अब माँ क्या जाने की इसका पैसा पहले ही सैलरी में काटा जाता है, उधर पिताजी ये बात सुन कर इतना हैरान हुए जैसे उनका बेटा कोई डिप्टी कलेक्टर हो! हो न हो पर गर्व तो उन्हें भी अपने बेटे पर हो ही रहा होगा!

[color=rgb(51,]जारी रहेगा भाग 2 में... [/color]
 

[color=rgb(0,]इक्कीसवाँ अध्याय: कोशिश नई शुरुआत की[/color]
[color=rgb(243,]भाग - 2[/color]


[color=rgb(41,]अब तक आपने पढ़ा:[/color]

मेरा ऑफिस जाना शुरू हुआ और सुबह जब गाडी वाले का फ़ोन आया तो पिताजी थोड़ा हैरान दिखे और माँ से खुसफुसा कर बोले;
पिताजी: लेने गाडी आई है?
पिताजी की खुसफुसाहट सुन माँ ने बड़े गर्व से कहा;
माँ: सिर्फ लेने ही नहीं छोड़ने भी आएगी और वो भी फ्री में!
अब माँ क्या जाने की इसका पैसा पहले ही सैलरी में काटा जाता है, उधर पिताजी ये बात सुन कर इतना हैरान हुए जैसे उनका बेटा कोई डिप्टी कलेक्टर हो! हो न हो पर गर्व तो उन्हें भी अपने बेटे पर हो ही रहा होगा!

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नया ऑफिस, नए लोग और नए जोश के साथ मैंने काम शुरू किया, मेरा admin डिपार्टमेंट था और जैसा की होता है मेरा बॉस बहुत खड़ूस था| मेरे साथ काम करने वाले बस दो लोग थे अनुज और साधना, आज के दिन जो भी समस्या हुई उसमें दोनों ने मेरी मदद की| जब लंच टाइम हुआ तो दिषु का फ़ोन आया और वो मुझ पर जोर से चिल्लाया;

दिषु: ओ बहनचोद! भोसड़ी के जॉब मिल गई और बताया भी नहीं!

दिषु गुस्से में बोला, पर ये गुस्सा दोस्तों वाला गुस्सा था!

मैं: अबे गाँडू, तू था यहाँ जो तुझे बताता? साले जयपुर जा के तेरा फ़ोन बंद हो गया, तो मैं क्या करता? SMS देख अपना, मैंने मैसेज किया था तुझे की कॉल कर खुशखबरी देनी है!

ये सुन कर उसे एहसास हुआ की वो गलत है पर अपनी गलती वो मानने से रहा, दोस्त जो ठहरा!

दिषु: हाँ तो ठीक है, पार्टी कब दे रहा है?

उसके इस तरह पलटी मारने से मैं हँस पड़ा|

मैं: साले तू नहीं सुधरेगा! अगले महीने बर्थडे और जॉब दोनों की पार्टी ले लिओ, तेरे उधार वाले पैसे भी तो देने हैं!

दिषु: अबे उधार के पैसे नहीं माँग रहा, बस पार्टी दे दे!

दिषु को अपने उधार दिए पैसों की कभी माँगने की जर्रूरत नहीं पड़ी थी, उसे बस एक ही चीज से मतलब था वो थी दारु!

खैर फ़ोन पर बात कर के मैं खाना खाने बैठा तो साधना और अनुज भी मेरे पास आ कर बैठ गए, वो दोनों तो कैंटीन से छोले भठूरे तथा छोले कुलचे खा रहे थे, वहीं मैं माँ द्वारा पैक किया हुआ घर का खाना खा रहा था| माँ ने खाने में भिंडी की सब्जी और रोटी बनाई थी, मैं नहीं जानता था की उन दोनों को भिंडी इतनी पसंद है| जैसे ही उन्होंने भिंडी देखि दोनों ने अपनी प्लेट मेरी और सरका दी और मेरा टिफ़िन ले कर दोनों खाने लगे|

मैं: आप दोनों बता दो की आपको क्या-क्या पसंद है मैं वही बनवा कर लाऊँगा|

ये सुनते ही दोनों हँस पड़े और एक-एक कर अपनी फरमाइशें बताने लगे;

अनुज: मैं हॉस्टल में रहता हूँ, तो मेरे लिए आप घर का बना हुआ कुछ भी ले आओ!

अनुज खुश होते हुए बोला|

साधना: मुझे भिंडी पसंद है.....और छोले.....और....हाँ कढ़ी!

साधना ने किसी बच्चे की तरह अपनी फरमाइश बताई|

शाम को घर लौटते-लौटते सात बज गए, घर आते ही मैंने माँ से उनके बनाये खाने की तारीफ की तो माँ बहुत खुश हुईं| फिर मैंने उन्हें अपने colleagues की सारी फरमाइशें भी बता दी, माँ हमारा ये बचपना देख कर हँस पड़ीं और उस दिन से वो ज्यादा खाना देने लगीं| अगले दिन मुझे कंपनी ने मेरा I-Card दिया जिस पर मेरी फोटो छपी थी, उसी कार्ड में एक code था जिसे स्कैन करने पर ही मैं ऑफिस के अंदर-बाहर जा सकता था| वो कार्ड को स्कैन कराने का अनुभव मुझे हमेशा रोमांचित करता था, ऐसा लगता था जैसे की मैं कोई secret agent हूँ जो किसी सरकारी secret lab में चोरी-छुपे कोई जहरीला virus चुराने जा रहा है! सुनने में थोड़ा बचकाना लगता है, पर यही वो बचपना था जो मुझे थामे हुए था| साथ ही मुझे कंपनी की तरफ से लैपटॉप मिला था जो मेरे लिए एक नई चीज थी, शुरू-शुरू में उसपर काम करने में बड़ी दिक्कत होती थी क्योकि उसकी नरम key जोर से दबाने में डर लगता था| ऊपर से mouse नहीं था तो track pad का इस्तेमाल मैंने दोनों हाथों से करता था, जिसे देख कर साधना बहुत हँसती थी, वो कहती थी की मैं किसी cute से बच्चे की तरह लैपटॉप चलता हूँ! Track pad से बचने के लिए मैंने अपना एक USB Mouse ले लिया, लेकिन लैपटॉप के keyboard में फटाफट टाइप करने से अब भी डर लगता था!

मैंने अपना बैंक अकाउंट नहीं खुलवाया था, और सर ने मुझे इसके लिए टोका था तो मैंने पिताजी की reference से अपना अकाउंट खुलवाया| फिर उसी दिन मैंने सर को अपना अकाउंट नंबर दिया ताकि समय पर सैलरी अकाउंट में आ सके|

ऑफिस में मेरा काम करने का ढंग अलग ही था, जब भी सर कोई काम देते तो मैं उस काम को खत्म कर के ही घर जाता, फिर चाहे उसके लिए खाना ही क्यों न छोड़ना पड़े| इस जूनून का एक फायदा और एक नुक्सान था, फायदा ये की कई बार अगले दिन मैं खाली बैठा रहता था और नुक्सान ये की उस खाली समय में मेरा दिल अकेलापन महसूस करने लगता और भौजी की यद् मुझे सताने लगती| अपने cubicle में कुर्सी से पीठ टिकाये मैं सामने दिवार को घूरता रहता, कई बार साधना ने मुझे ऐसे अकेले गुम-सुम बैठे देख और एक बार जोर देकर कारन पूछने लगी तो मैंने उसे भौजी के बारे में बता दिया पर आधी-अधूरी बात| मैंने उसे कभी भी हमारे देवर-भाभी के रिश्ते या मेरे बेटे के बारे में उसे कुछ नहीं बताया, साधना ने कई बार मुझे प्रेरित किया की मैं ये सब भूल जाऊँ और मैं उसे हर बार "कोशिश कर रहा हूँ" कह के टालने लगा|

कुछ दिनों में सर को मेरी मेहनत पसंद आ गई और उन्होंने मुझे FOREX में लगा दिया, यहाँ शिफ्ट में काम होता था और मुझे अमेरिका के बाज़ार का काम देखना था| मेरा काम था की बड़ी-बड़ी transaction amount का source verify करना और फिर payment accept या decline करना! सर ने दो दिन मुझे इसकी ट्रेनिंग दी, शुरू-शुरू में मुझे बहुत दिक्कत आई और इसलिए मैं शाम को घर लेट जाने लगा| सैलरी 30,000/- तक बढ़नी थी इसलिए मैं कुछ कह भी नहीं पा रहा था, लेकिन पिताजी का गुस्सा बढ़ने लगा था| एक दिन मुझे घर आते-आते रात के 10 बज गए, थका-हारा घर में घुसा ही था की पितजी गुस्से से मुझ पर बरस पड़े;

पिताजी: ये क्या वक़्त-बेवक़्त आता है तू, न कोई ठोर है न ठिकाना?!

मैंने बैग रखा और माँ ने मुझे पानी दिया, पानी पी कर मैं बोला;

मैं: पिताजी मुझे नए डिपार्टमेंट में ट्रांसफर किया है, सैलरी भी बहुत बढ़ गई है....

माँ जानती थी की पिताजी अभी फिर बरस पड़ेंगे, इसलिए उन्होंने एकदम से मेरी सैलरी पूछी;

माँ: कितनी बढ़ी बेटा?

माँ का सवाल सुन पिताजी ने पहले तो माँ को घूरा क्योंकि उन्होंने हमारी बात काटी थी पर फिर उन्हें भी उत्सुकता हुई की कितनी सैलरी बढ़ी है;

मैं: जी 30,000/- हो गई है!

मेरी तनख्वा सुन पिताजी और माँ दोनों सन्न रह गए;

पिताजी: इतनी...कैसे...अभी तो महीना नहीं हुआ....और तेरी....

पिताजी ने आस्चर्य से पुछा|

मैं: कंपनी ने हाल ही में FOREX यानी बाहर के डॉलर का लेन-देन का काम भारत में शिफ्ट किया है, मेरी मेहनत देख कर सर ने मुझे इस डिपार्टमेंट में ट्रांसफर कर दिया| अगले हफ्ते से मुझे दोपहर तीन बजे निकलना है और आते-आते सुबह के 3-4 बज जायेंगे|

सुबह के टाइमिंग के बारे में सुन माँ चिंतित हो गईं और पूछने लगीं;

माँ: बेटा ये क्या टाइम है ओफिस का?

मैं: जी माँ दरअसल उस टाइम पर अमेरिका में सुबह होती है तो इसलिए मुझे वहाँ के टाइम के हिसाब से काम करना होगा|

जैसे-तैसे पिताजी शांत हो गए और अगले हफ्ते से मेरा ऑफिस जाने का टाइमिंग बदल गया| रात में जागने में महारत हासिल थी पर ऑफिस का काम बड़ा दुखदाई था, हर एक transaction का source verify करना बहुत सरदर्दी वाला काम था! मैं फिर भी लगा रहा और अपनी पूरी लगन से काम करने लगा| मेरा इस डिपार्टमेंट में ट्रांसफर 22 तरीक को हुआ था, 21 दिन की सैलरी 25,000/- के रेट से हुई और बाकी के 9 दिन की सैलरी 30,000/- के रेट से हुई| जब सैलरी अकाउंट में क्रेडिट हुई तो मेरी ख़ुशी का कोई ठिकाना नहीं रहा! उस सैलरी को देख कर ख़ुशी के आँसूँ बह निकले, मैंने तुरंत माँ के लिए एक मोबाइल फ़ोन खरीदा और पिताजी के लिए VanHeusen की शर्ट खरीदी| संडे का दिन था और तोहफे ले कर मैं उनके सामने सुबह खड़ा हो गया;

मैं: माँ-पिताजी, आप दोनों अपनी आँखें बंद करो|

मेरे चेहरे पर ख़ुशी देख माँ ने फ़ौरन आँख बंद कर ली पर पिताजी ने थोड़ा सोचते हुए आँखें बंद की| मैंने एक हाथ में फ़ोन और दूसरे में शर्ट पकड़ी और बोला;

मैं: अब आप दोनों अपनी आँखें खोलिये|

दोनों ने एक साथ आँख खोली और मेरे हाथ में तोहफे देखते ही खुश हो गए| दोनों ने गिफ्ट ले लिए और मुझे गिफ्ट खोलने के लिए उन्हें याद दिलाना पड़ा;

मैं: अब गिफ्ट भी तो खोलिये!

सबसे पहले पिताजी ने अपना गिफ्ट खोला और शर्ट देख कर बहुत खुश हुए, आज से पहले पिताजी ने कभी भी इतने महँगे ब्रांड की शर्ट नहीं खरीदी थी|

पिताजी: बेटा....ये तो ...बहुत अच्छी है...कितने की ली?

मैं अगर कीमत बताता तो मार खाता तो मैंने मुस्कुरा कर उनके पाँव छुए और बोला;

मैं: पिताजी आपसे सीखा है की तोहफा देने वाले से मोल नहीं पूछते और फिर ये तो आपका बेटा आपके लिए अपनी पहली तनख्वा से लाया है!

ये सुन कर पिताजी का चेहरा गर्व से खिल उठा और उन्होंने उसे फ़ौरन पहन कर देखा, मेरा अंदाजा सही था और ये उन्हें फिट आ गई थी|

माँ: अजी शादी के बाद आज पहली बार इतने सूंदर लग रहे हो आप!

माँ ने शर्माते हुए पिताजी की तारीफ की, जिसे सुन जिंदगी में पहली बार पिताजी के गाल लाल हो गाये!

मैं: अब शाम को चलिएगा दूकान पर, इसकी मैचिंग पैंट भी लेनी है|

मैं बड़े गर्व से बोला| अब बारी थी माँ का गिफ्ट खोलने की, माँ का गिफ्ट साइज में छोटा था तो पिताजी बोले;

पिताजी: अरे इसमें कहीं चूड़ियाँ तो नहीं?

ये सुन कर मैं हँसा, जैसे ही गिफ्ट खुला और माँ ने मोबाइल का डिब्बा देखा तो उनकी आँखें छलक आईं| माँ एकदम से उठीं और मुझे अपने सीने से लगा कर सिसकने लगीं!

मैं: माँ ये फ़ोन आपके लिए है, जब आपका मन हो आप मुझे और पिताजी को फ़ोन कर दिया करना|

मैंने माँ के आँसूँ पोछे और हम तीनों एक सुखी परिवार की तरह शाम को बाहर घूमने लाजपत नगर निकले| पिताजी के लिए शर्ट से मैचिंग पैंट और माँ के लिए एक बनारसी साडी ली, फिर माँ-पिताजी ने जोर दे कर मुझे भी एक शर्ट और पैंट दिलवाई जिसके पैसे पिताजी ने दिए तथा उनके कपड़ों के पैसे मैंने दिए| खा-पी कर रात को सब घर लौटे, मेरा घर अब खुशियों से भर चूका था और मैं दुआ कर रहा था की इसे किसी की नजर न लगे|

दो दिन बाद मेरा जन्मदिन आया और जन्मदिन के लिए मेरा प्रोग्राम पहले ही तय था, रात में सबसे पहले माँ-पिताजी से प्यार तथा आशीर्वाद मिला| फिर दिषु का फ़ोन आया और उसने मुझे birthday wish किया, उसके बाद ऑफिस के colleagues के मैसेज आने लगे| शाम को ऑफिस पहुँच कर login कर के थोड़ी देर काम किया और फिर half day बोल कर 9 बजे मैं ऑफिस से निकला| दिषु मुझे मेट्रो स्टेशन पर इंतजार करता हुआ मिला, वहाँ से हम सीधा एक पब पहुँचे जहाँ हमने जम कर दारु पी! दो बजे तक दारु पीने के बाद दिषु टल्ली हो चूका था, मैंने उसके मुक़ाबले कम पी थी क्योंकि मुझे सुबह घर भी जाना था|

मैं: भाई....भाई घर चलें?

मैंने दिषु को जोर से झिंझोड़ते हुए कहा तो उसे कुछ होश आया और वो बोला;

दिषु: किसके..... (हिक)

दिषु हिचकियाँ लेने लगा|

मैं: अबे तेरे घर और किसके?

ये सुन कर उसका दिमाग जागा;

दिषु: अबे...रुक....(हिक).... ऐसे गया न....(हिक) तो पापा ले...लेंगे...मेरी... (हिक)

दिषु लड़खड़ाते हुए खड़ा हुआ और बाथरूम गया| वहाँ जा कर उसने उल्टियाँ की और मुँह-हाथ धो कर झूमता हुआ बाहर आया| बिल दे कर मैंने उसे उसके घर के बाहर छोड़ा और पता नहीं कैसे उस दिन दिषु पीटने से बच गया! मैं भी अपने समय से घर पहुँचा और माँ से नजरें बचा कर सीधा बाथरूम में घुस गया, नाहा-धो कर बाहर आया और बिस्तर पर पड़ते ही सो गया|

ऑफिस के इन टाइमिंग से मेरे शरीर पर बुरा असर पड़ने लगा था और मेरी B.P. की complications बढ़ने लगी थीं! एक दिन में दो सूर्य उदय देखता था, एक इंडिया में और दूसरा अमेरिका में! Desk job होने के कारन मुझे छींकें शुरू हो गई थीं, एक बार जब ये शुरू होतीं तो मेरा पूरा जिस्म काँप जाता था| इतनी जोर-जोर से छींकें आतीं थीं की बदन ठंडा पड़ जाता और पसीने से तरबतर हो जाता था| घर में तो ठीक था पर जब ऑफिस में ये हाल होता तो मेरे लिए सम्भलना मुश्किल हो जाता था| डॉक्टर सरिता ने कुछ टेस्ट किये और मुझे बताया की मुझे sinusitis है, कुछ ख़ास चीजों से मुझे एलर्जी है जैसे की धुल-मिटटी, ज्यादा तला हुआ खाना, ठंडी चीजें, उर्द धूलि दाल आदि! पर मेरी ये समस्या मुझे कभी-कभार तंग करती थी इसलिए मैंने इसी के साथ जीना सीख लिया|

मेरी ऑफिस वाली जिंदगी बहुत बढ़िया चल रही थी, उसका कारन था कंपनी का team bonding के नाम पर अपने employees का ख़ास ख्याल रखना| Leisure के नाम पर महीने में कम से कम एक बार तो पार्टी की जाती थी और इस पार्टी के लिए कंपनी TL को बजट देती थी| पार्टी के अंदर कोई रोक-टोक नहीं होती थी और लोग डट कर पीते थे| मेरे घर में पीने पर सख्त मनाही थी तो मैं अपनी लिमिट में पीता था, इन पार्टी के जरिये शराब के प्रति मेरा ज्ञान बहुत बढ़ गया| हर ब्रांड की शराब, बियर और 2-3 बार हुक्का भी पिया| बस एक सिगरेट थी जिसे मैंने अभी तक मुँह नहीं लगाया था, करण था उसके प्रति मेरा डर की अगर इसकी आदत लग गई तो छुड़ाए नहीं छूटेगी! पार्टी के जरिये शराब और शराब के जरिये मेरा दर्द को दबाना बदस्तूर जारी था, पी कर जब भी घर आया तो कभी घर में किसी को शक नहीं हुआ क्योंकि पीने के बाद की सभी जर्रूरी सावधानियाँ मैं बरतता था| मेरे इस शराब पीने का फायदा दिषु को भी मिला, कौन सी नई शराब, कौन सी नई बियर, कहाँ सस्ती होती है ये सब मैं जान गया था और जब भी हम दोनों का पीने का प्लान होता तो हम वहीं निकल जाते|

पीने के अलावा ऑफिस के काम में मेरा मन लगने लगा था, इसी के चलते मुझे दो बार employee of the month का mug भी मिला! बस एक ही दिक्कत थी वो थी टाइमिंग की, इस टाइमिंग से पिताजी को चिढ होने लगी थी| मैंने अपनी TL से बात की और उन्हें अपनी समस्या बताई तो उन्होंने मुझे अमेरिकन मार्किट से ऑस्ट्रेलियाई मार्किट में ट्रांसफर कर दिया| अब यहाँ का टाइमिंग जल्दी का था और इसलिए मुझे अब जल्दी ऑफिस जाना होता था, फ्लोर बदल गया, colleagues बदल गए, बस काम वही था| लेकिन अब कंपनी ने नियम बहुत सख्त कर दिए थे और ये सख्त नियम कानून मुझे नापसंद थे! अपनी डेस्क से उठने के समय सिस्टम logoff करना पड़ता था मेरे logoff करते ही एडमिन को टाइम पता चल जाता था और मेरे दुबारा login करने तक वो इस टाइम को monitor करता था| Logoff और Login के बीच का टाइम अगर ज्यादा हो तो admin मेरी जान खा जाता था, ऊपर से बाथरूम break के लिए भी सवाल पूछता था?! और तो और मैंने अपनी दाढ़ी बढ़ा ली थी, तो उसे इससे भी चिढ होने लगी थी! मेरा दिमाग हुआ खराब और मैंने उसे तंग करने की सोची| हमारा cafeteria जो था वो कैंटीन के सामने था और यहाँ पर कई बार एडमिन अपनी टीम के साथ मीटिंग करता था| जब वो मीटिंग करता तो वहाँ बैठ कर खाना खाने वाले फटाफट खाना खाकर उठ जाते थे| एक दिन workload ज्यादा था तो मैंने लंच टाइम में भी काम किया और जब मैं खाना खाने पहुँचा तो मेरे पीछे ही एडमिन अपनी टीम के साथ मीटिंग करने cafeteria पहुँच गया| मेरे आस-पास वाले तो फटाफट खाने लगे पर मैं अपने आराम से खाने लगा, मेरे साथ मेरा एक colleague बैठा था वो खुसफुसा कर बोला;

colleague: यार जल्दी खा, एडमिन और उसकी टीम यहाँ मीटिंग करने आये हैं|

मैंने उसकी बात को हलके में लिया और बोला;

मैं: करने दे!

इतना कह कर मैं मजे से खाना खाने लगा, उधर वो एडमिन बार-बार घडी देख रहा था पर उसकी हिम्मत नहीं पड़ी की मुझे आ कर कुछ कहे| उसकी टीम वाले भी उसी के साथ खड़े थे और मेरे बारे में खुसर-फुसर कर रहे थे| 25 मिनट बाद मैं खा कर उठा और जानबूझ कर एडमिन की बगल से 'डकार' लेता हुआ निकला और हाथ-मुँह धो कर काम करने लगा| कुछ देर बाद मेरे colleague मेरे पास आये और खूब दहाड़े मार-मार के हँसे!

Colleague: यार क्यों उससे उलझता है?

मैं: यार मुझे कोई शौक नहीं है, ये साला बाथरूम break के लिए सवाल पूछता है?! आदमी चैन से मूत भी नहीं सकता क्या? मुझे कहता है की अपनी दाढ़ी काट के आ, क्यों बे? तेरे बाप की खेती है जो काट दूँ? और प्रॉब्लम इसे है मुझसे, तुझे तो कभी नहीं कहता की तू बाथरूम में बैठा क्या कर रहा है? आप जानते हो मैं काम में कोई कंजूसी नहीं करता, तो थोड़ा टाइम तो relax होने को चाहिए न?!

मेरे colleagues को मेरी बात जायज लगी और उन्होंने मुझे बताया की जब से TL ने मुझे दो बार employee of the month बनाया है तब से उसकी जली पड़ी है! खैर इस तरह हमारा टकराव जारी रहा, उसने जान बूझ कर TL से कह कर मेरे ऊपर backlog का प्रेशर डाल दिया, जिसकी वजह से मुझे Saturday or Sunday भी ऑफिस जाना पड़ा| क्योंकि ये backlog मेरा नहीं था तो मैंने TL से साफ़ कह दिया की वो मुझे इन दिनों के लिए भी compensate करे| इधर कुछ पार्टियों में मेरी दोस्ती मैनेजर से हो गई, उसने मुझे कहा की नेक्स्ट ईयर एन्ड तक वो जा रहा है और जाते-जाते वो मुझे assistant manager compliance की पोस्ट दे जाएगा! ये सुन कर मैं बहुत खुश हुआ क्योंकि assistant manager compliance की सैलरी 40,000/- थी! उसी दिन पार्टी में एडमिन की मैनेजर से लड़ाई हो गई, मैनेजर ने chivas माँगी थी और इसने पैसे को ले कर मैनेजर को मना कर दिया!

मैनेजर: How dare you asshole!

एडमिन: Sir...

मैनेजर: Fuck off and don't you dare show your face ever to me!

एडमिन को भरी पार्टी से जलील कर के निकाला और उसके बाद वो कभी किसी पार्टी में नहीं दिखा|

मेरे घर के हालात सुधर चुके थे, माँ मेरी नौकरी और तरक्की से बहुत खुश थीं| मैं हर महीने माँ के साडी लाता था, वो बात अलग है की वो उन्हें बहुत कम ही पहनती थीं| जब मैं उनसे पहनने को कहता तो कहतीं;

माँ: अरे बेटा मैं बुढ़िया ये सब कहाँ पह्नु?!

मैं: कौन बोला आपको बुढ़िया? ये साड़ियाँ पहनोगी तो पिताजी फिर से शादी कर लेंगे आप से!

ये सुन माँ जोर से हँसने लगीं| वहीं पिताजी और मेरी अब कम बनती थी, कारन था मेरा उनके बिज़नेस में ध्यान न देना जिस कारन वो गाँव नहीं जा पा रहे थे| इधर दिवाली आई तो मैंने माँ के लिए fully automatic washing machine EMI पर खरीदी| ये देख कर तो पिताजी बहुत हैरान हुए क्योंकि पिताजी का उसूल था की कभी कोई भी चीज EMI पर नहीं लेनी| उन्होंने इसे ले कर मुझे खूब सुनाया पर मैंने कुछ नहीं कहा तथा चुप-चाप सुनता रहा| जब उनका सुनाना हो गया तो वो गुस्से में बड़बड़ाते हुए साइट पर चले गए|

माँ: बेटा क्यों करते है तू ऐसे?

मैं: क्योंकि मेरी माँ कमर पकड़ कर कपडे धोये, वो मुझे पसंद नहीं!

मैंने मुस्कुराते हुए कहा| पिताजी की बात गलत नहीं थी, पर मैं ठहरा गर्म खून और मुझ में तब सब्र कम था! उन्हीं दिनों online shopping का craze शुरू हुआ तो मैंने माँ के लिए एक mixer-grinder मँगाया, शाम को जब मैं घर पहुँचा तो पिताजी एक बार फिर गुस्से में बरसे पर मैंने उन्हें बता दिया की ये मैंने किश्तों पर नहीं लिया| तब जाकर उनका गुस्सा शांत हुआ, मैंने सोच लिया की मैं उनको अब गुस्सा करने का मौक़ा नहीं दूँगा| वाशिंग मशीन की 6 किश्तें थीं जो मैंने समय से पहले ही चुका दी और ये खबर पिताजी को ख़ुशी-ख़ुशी दी पर उन्हें उतनी ख़ुशी नहीं हुई जितनी होनी चाहिए थी|

दिसंबर का महीना था और गाँव से अचानक फ़ोन आया, बड़के दादा बीमार थे तो उन्होंने जमीन के काम से पिताजी को गाँव बुलाया| पिताजी ने आव देखा न ताव उन्होंने फट से टिकट बुक कराई और पहुँच गए गाँव! इधर ऑफिस में मेरा काम दुगना हो गया था, इसलिए मेरा घर आना लेट होने लगा था| उन्हीं दिनों माँ की तबियत खराब हो गई और मेरी जान मुँह को आ गई! मैंने TL से छुट्टी माँगी तो उसने मुझे 2 दिन की छुट्टी दे दी, डॉक्टर सरिता ने माँ को चेक किया और बताया की माँ की शुगर और BP की समस्या बढ़ गई थी और साथ ही साथ माँ ने अपने स्वास्थ्य में लापरवाही बरती थी तो उन्हीं बुखार भी हो गया था| डॉक्टर सरिता ने उन्हें 15-20 दिन के लिए bed rest करने को कहा| माँ का bed rest मतलब मुझे घर का सारा काम संभालना था, मैंने तुरंत पिताजी को माँ की हालत बताई तथा उन्हें जल्दी घर आने को कहा, तो उन्होंने बड़के दादा के काम का वास्ता दे कर आने से मना कर दिया और मुझे माँ की देखभाल करने को कहा| उनकी ये 'भाई-भक्ति' सुन मुझे बहुत गुस्सा आया, बड़के दादा का काम करने के लिए उनके 5 हट्टे-काटते लड़के थे पर माँ का ख्याल रखने के लिए अकेला मैं था| इधर मैंने अपनी मैनेजर से छुट्टी माँगी तो उन्होंने प्रोजेक्ट का वास्ता दे कर मुझे मना कर दिया, अब ये सुन कर मेरा दिमाग खराब हो गया| मेरे लिए मेरी माँ सबसे पहले थी, मैंने माँ को दवाई दे कर आराम करने को कहा और उन्हें घर में बंद कर के मैं ऑफिस पहुँचा और सीधा मैनेजर के केबिन में घुस गया| मैंने उस समय casual कपडे पहने थे, बाल बिगड़े हुए और मेरी हालत देखते ही मैनेजर समझ गया की कुछ जर्रूरी बात है तो उसने मुझसे कारन पुछा;

मैं: सर मेरी माँ की तबियत बहुत खराब है, डॉक्टर ने उन्हें 15-20 दिन का bed rest करने को कहा! उनकी देखभाल करने के लिए कोई नहीं है, इसलिए मुझे छुट्टी चाहिए!

मैनेजर: मानु तुम जानते हो की तुम्हारी टीम के 2 लोग पहले से ही planned leave पर हैं और तुम भी चले गए तो काम कौन करेगा?

मैं: सर मेरी मजबूरी समझिये... प्लीज!

मैंने मिन्नत करते हुए कहा, पर वो नहीं माने|

मैनेजर: देखो corporate world में ये सब नहीं चलता! तुम अपनी माँ को हॉस्पिटल में एडमिट करा दो, वहाँ उनकी देखभाल हो जाएगी|

ये सुन कर मुझे बहुत गुस्सा आया, मैंने उनके टेबल से एक कागज लिया और pen stand से एक पेन ले कर 4 लाइनों का अपना resignation लिख कर उनकी और सरका दिया|

मैनेजर: Are you out of you danm mind? You want to resign because your mom's sick?! Think about your future, I wanted you to be assistant manager!

मेरे सर पर गुस्सा सवार था, जिस अस्सिटेंट मैनेजर की पोस्ट के सपने दिखा कर यहाँ मुझसे दुगना काम कराया जा रहा था वो चालाकी और अत्याचार मैं समझने लगा था!

मैं: My mom's more important to me, than this sick job! You know how hardworking I'M and you're denying me 20 days leave! I don't live for future, I live in present and at present my mom needs me more than I need this job of yours. You can keep your job, just clear my account.

मैंने गुस्से से ये सब कहा और केबिन से बाहर आने को मुड़ा ही था की मैनेजर पीछे से बोला;

मैनेजर: You think you can just a four-line resignation and you're good to go! It isn't that easy, you're legally bound to work for us for the next three months under 'notice period'!

मैनेजर की ये बात सुन कर मैं भौंचक्का रह गया और तब मुझे ये clause याद आया, मैं मजबूर था पर माँ के लिए चिंतित भी बहुत था! मैं बिना कुछ कहे घर पहुँचा और माँ को सब बताया, माँ ने बहुत समझाया की मैं नौकरी न छोड़ूँ पर माँ की तबियत के आगे मुझे कुछ सूझ नहीं रहा था|

मैं माँ को हॉस्पिटल में admit नहीं करवाना चाहता था, पर उसके अलावा कोई चारा नहीं था| मैं ऑफिस में रहता तो कौन घर में उनका ध्यान रखता, उनका खाना-पीना, नहलाना-धुलाना आदि करने के लिए कोई नहीं था| अब मेरे पास माँ को हॉस्पिटल में admit कराने के अलावा कोई चारा नहीं था, पर मैं उसके लिए उन्हें ऐसे ही किसी हॉस्पिटल में admit नहीं कराना चाहता था| मैंने सोचा की मैं उन्हें किसी अच्छे से प्राइवेट हॉस्पिटल में admit करा देता हूँ, पर कौनसे हॉस्पिटल में इसके लिए मुझे सलाह लेनी थी तो मैंने सीधा डॉक्टर सरिता को फ़ोन किया| उन्होंने बताया की मुझे किसी हॉस्पिटल में जाने की जर्रूरत नहीं, बल्कि वो एक नर्स को माँ के साथ रहने को बोल देंगी| वो नर्स घर में रह कर माँ का ध्यान रखेगी और मेरे घर आने तक माँ के सभी काम कर दिया करेगी| उनका सुझाव बढ़िया था क्योंकि इससे मेरी चिंता आधी रह गई थी, मैंने माँ से इस बारे में बात की| माँ ने शुरू में बहुत मना किया पर मैंने जिद्द कर के उन्हें मना लिया और डॉक्टर सरिता को उस नर्स को कल भेजने को कह दिया| उस रात को मैं माँ के साथ बैठ खाना खा रहा था की TL का फ़ोन आया और उन्होंने बताया की मैनेजर मेरे से बहुत नाराज है, पर मुझे उससे घंटा कोई फर्क नहीं पड़ा था;

मैं: वो मुझे assistant manager का लालच दे कर काम करवाना चाहता था| आप ही बताओ की कौन से employee को सालभर में assistant manager की पोस्ट मिल जाती है?

ये खबर सुन कर TL भी हैरान हुई और वो समझ गई की मेरे साथ बस गधा मजदूरी करवाई जा रही है| वहीं मेरी बातें सुन कर माँ को अफ़सोस हो रहा था की उनके कारन मैं इतनी अच्छी नौकरी छोड़ रहा हूँ;

मैं: माँ मेरे लिए सबसे जर्रूरी आप हो, आपके आगे ऐसी सैकड़ों नौकरियों को मैं लात मारता हूँ! नौकरी तो हजारों मिलेंगी पर ऐसी प्यारी माँ कहाँ से लाऊँगा, आप खुद को दोष मत दो!

मैंने माँ को प्यार से खाना खिलाया और आज कई दिनों बाद उनके पास सोया|

अगले दिन मैं ऑफिस के लिए तैयार हुआ की तभी दरवाजे की घंटी बजी, जब मैंने दरवाजा खोला तो देखा की सामने डॉक्टर सरिता और एक दुबली-पतली सी नर्स खड़ी हैं| दोनों अंदर आये और डॉक्टर सरिता ने नर्स का तार्रुफ़ हम से कराया;

डॉक्टर सरिता: आंटी जी ये है नर्स करुणा, पहले मेरे पास काम करती थी| मानु के आने तक ये ही आपकी देख भाल करेगी!

फिर डॉक्टर सरिता ने करुणा से मेरा तार्रुफ़ कराया;

डॉक्टर सरिता: और ये है मानु, ये 6 बजे तक आ जायेगा और तब तुम चली जाना|

करुणा ने उनकी बात सुन कर हाँ में सर हिलाया|

डॉक्टर सरिता: मानु दरअसल ये अभी-अभी गाँव से आई है, काम है नहीं तो मैंने इससे कह दिया है की ये खाना बना देगी, तुम इसे उसके लिए extra pay कर देना|

मैंने फ़ौरन हाँ में सर हिला दिया|

डॉक्टर सरिता माँ को नमस्ते कह कर चली गईं, उनक जाने के बाद मैंने पहली बार करुणा को ध्यान से देखा|

बदन बिलकुल दुबला-पतला, कद में मुझसे थोड़ी छोटी, रंग काला परन्तु उससे उसकी खूबसूरती और निखर के आती थी! उसके चेहरे की क्या तारीफ करूँ, छोटा माथा, घुंघराले और लम्बे बाल, आँखों में eyeliner जिन्होंने उसकी आँखों को तीखा बना दिया था, नाक बड़ी सी और गहरे गुलाबी रंग के बड़े होंठ, सुराहीदार गर्दन और कान में बड़े-बड़े झुमके| उसे गौर से देखने के बाद अचानक से दिल में कुछ हुआ जिसे ब्यान कर पाना नामुमकिन था!

करुणा: आंटी...मैं ...आपको... मम्मा...बोल सकते?

करुणा अपनी टूटी-फूटी हिंदी में बोली| उसकी ये हिंदी सुन कर मुझे हँसी आई पर मैंने अपनी हँसी दबा ली!

माँ: हाँ बेटी!

माँ ने मुस्कुराते हुए कहा|

करुणा: आप क्या-क्या खाते...मुझे बताना... मैं सब बनाते!

ये सुन कर माँ ने उसे अपने पास बुलाया और उसके सर पर हाथ फेरते हुए बोलीं;

माँ: बेटी मुझे खाने का ज्यादा शौक नहीं|

तभी करुणा को कुछ याद आया और वो बोली;

करुणा: मम्मा....मैं क्रिस्चन (christain) है...आपको कोई प्रॉब्लम तो नहीं...

ये सुन कर मुझे लगा की माँ गुस्सा होंगी या मना कर देंगी, पर माँ बड़े प्यार से बोलीं;

माँ: बेटी उससे कुछ नहीं होता, बस तू यहाँ कुछ माँस-मछली मत लाना, नहा-धो कर ही खाना बनाना|

ये सुनकर करुणा के मुरझाये हुए चेहरे पर मुस्कान आ गई और उसने वादा किया की वो कभी यहाँ माँस-मछली खा कर नहीं आएगी| अब मुझे ऑफिस निकलना था और मैं उनकी बातचीत के खत्म होने का इंतजार कर रहा था जो खत्म ही नहीं हो रही थी!

मैं: Sorry करुणा जी.... मुझे लेट हो रहा है...मैं चलता हूँ|

मैंने माँ और करुणा का ध्यान अपनी ओर खींचते हुए कहा|

करुणा: ओह! सॉरी!

मैं: Its okay! मैं आपको बता देता हूँ की कौन सी चीज कहाँ रखी है|

फिर मैंने करुणा को किचन से रूबरू कराया और इस दौरान उसने कुछ ज्यादा मुझसे नहीं पुछा| मैंने अपना लैपटॉप बैग उठाया और माँ का आशीर्वाद ले कर ऑफिस पहुँच गया|

[color=rgb(51,]जारी रहेगा भाग 3 में...[/color]
 

[color=rgb(0,]इक्कीसवाँ अध्याय: कोशिश नई शुरुआत की[/color]
[color=rgb(243,]भाग - 3[/color]


[color=rgb(41,]अब तक आपने पढ़ा:[/color]

मैं: Sorry करुणा जी.... मुझे लेट हो रहा है...मैं चलता हूँ|
मैंने माँ और करुणा का ध्यान अपनी ओर खींचते हुए कहा|
करुणा: ओह! सॉरी!
मैं: Its okay! मैं आपको बता देता हूँ की कौन सी चीज कहाँ रखी है|
फिर मैंने करुणा को किचन से रूबरू कराया और इस दौरान उसने कुछ ज्यादा मुझसे नहीं पुछा| मैंने अपना लैपटॉप बैग उठाया और माँ का आशीर्वाद ले कर ऑफिस पहुँच गया|

[color=rgb(255,]अब आगे:[/color]

ऑफिस
पहुँचते ही मुझे देख कर सब हैरान हो गए, ऐसा लग रहा था मानो उन सब ने कोई अजूबा देख लिया हो! मैंने अभी login किया ही था की TL ने मुझे अपने केबिन में बुलाया और सबसे पहले माँ का हालचाल पुछा| फिर उन्होंने मुझे बताया की मैनेजर ने कहा की मैं एक formal resignation mail कर दूँ| मैंने वैसा ही किया और अपना काम करना शुरू कर दिया, कुछ देर बाद मेरे कुछ colleague मेरे पास आये और माँ का हालचाल पुछा| कुछ देर में मैनेजर आया और सब के सब अपने-अपने cubicle में लौट गए| मैंने थोड़ा ब्रेक लिया और माँ का हाल-चाल पूछने को कॉल किया तो फ़ोन करुणा ने उठाया;

मैं: माँ....

मैं आगे कुछ बोलता उससे पहले ही करुणा मेरी बात काटते हुए बोली;

करुणा: मम्मा नाश्ता कर के सो रे!

मैं: ओके! मैं लंच टाइम कॉल करूँगा|

इतना कह कर मैंने कॉल काट दिया| जाने करुणा की आवाज में क्या था, दिल को उस पर भरोसा होने लगा था, लगता था की उसके होते माँ जल्दी ही ठीक हो जाएँगी और मुझे माँ की चिंता नहीं करनी चाहिए पर मेरा 'मनवा' इतनी जल्दी कहाँ मानता| जैसे ही लंच टाइम हुआ मैंने माँ को कॉल किया और इस बार उन्होंने ही फ़ोन उठाया;

मैं: माँ, अब कैसी तबियत है आपकी?

माँ: ठीक हूँ बेटा, अभी खाना खाया है| करुणा ने बड़ी स्वाद दाल बनाई थी!

माँ चटखारे लेते हुए बोलीं, उनका यूँ इतनी जल्दी किसी पर विश्वास कर लेना आस्चर्यजनक था|

मैं: दवाई ली?

मैंने पुछा तो माँ मुस्कुराते हुए बोली;

माँ: ले ली बेटा! तूने खाना खाया?

मैं: नहीं, अभी जा ही रहा था सोचा आपसे पहले पूछ लूँ|

माँ: मैं ठीक हूँ बेटा, तू मेरी चिंता मत कर और कुछ तला हुआ खाना मत खाइयो!

माँ से बात होने पर दिल को सुकून मिला था, अब काम का बोझ इतना ज्यादा था की खाना छोड़कर मैं काम करने लगा ताकि शाम को जल्दी निकल सकूँ|

मैं ठीक 7 बजे घर पहुँचा और मेरे आते ही करुणा माँ को दवाई देकर चली गई, मेरी और उसकी कोई बात नहीं हुई| जाने से पहले वो मुझे देख कर मुस्कुराई जर्रूर थी, जो हमारी दोस्ती की शुरआत थी| उसके जाने के बाद मैंने चाय बनाई और माँ के पास बैठ कर उनका हाल-चाल पूछने लगा| लेकिन माँ ने अपना हालचाल बताना छोड़कर 'करुणा वर्णन' शुरू कर दिया;

माँ: तेरे जाने के बाद मैंने करुणा से बहुत बात की, उसने बताया की उसकी माँ कुछ-कुछ मेरे जैसी दिखती है, इसीलिए उसने मुझे मम्मा कहा|

माँ की बात सुन कर दिल ने कहा की सब माँ तो एक जैसी ही होती हैं, प्यार करने वाली, ख्याल रखने वाली और कभी-कभी डाँटने वाली|

माँ: पर उसकी माँ खड़ूस है, अकड़ू है और कई बार इसकी अपनी माँ से नहीं बनती| वो केरला की रहने वाली है और इसके परिवार में इसकी बहन, जीजा और उसकी एक बेटी है| इसकी बहन का परिवार दिल्ली में ही रहता है और ये वहीं रहती है, इसकी दीदी भी खड़ूस है और इसे हमेशा दबा कर रखती है| इसने नर्सिंग का कोर्स किया था और फिर दिल्ली में नौकरी के लिए आ गई, एक जगह काम मिला भी पर सालभर तक ही! फिर सरिता ने इसे अपने पास लगा लिया, लेकिन इसकी नानी की तबियत खराब हुई और ये वापस गाँव चली गई| उस कारन इसकी नौकरी छूट गई, अब जब वापस आई तो इसकी बहन माँ बन चुकी थी और उसकी सालभर की बच्ची की देखभाल करनी होती थी, इसलिए उसने जबरन इसे अपने घर बिठा दिया| ये घर बैठी-बैठी बोर हो गई और इसने सरिता से काम माँगा, तभी तूने फ़ोन कर के सरिता से मेरे लिए बात की और ये यहाँ आ गई!

माँ का 'करुणा वर्णन' पूरा हुआ तो मैंने उनसे दुबारा उनका हाल पुछा तब वो हँसते हुए बोलीं;

माँ: मेरा बेटा इतना सीधा है की उसे किसी लड़की के बारे में जानना ही नहीं!

ये कहते हुए उन्होंने मेरे सर पर हाथ फेरा और फिर आजकी अपनी दिनचर्या बताई;

माँ: तेरे जाने के बाद करुणा ने मुझे गर्म पानी से नहाने में मदद की, कपडे बदल कर उसने मुझे सादा 'पराटा' बना कर दिया|

माँ के परांठा को पराटा कहने पर मैं बहुत हँसा!

माँ: बेटा उसकी हिंदी कमजोर है, पर बेचारी बहुत कोशिश करती है| हाँ तो नाश्ता कर के मैं सो गई और वो मेरे पास बैठ कर टीवी देखने लगी| जब मैं उठी तो उसने मुझे तेरे फ़ोन के बारे में बताया, फिर उसने दाल-रोटी बनाई और मैं खाना खा ही चुकी थी की तेरा फ़ोन आ गया| उसने भी मेरे सामने खाना खाया और फिर उसने मुझसे हम कैसा खाना बनाते हैं वो पुछा| मैंने उसे काफी कुछ बनाना सिखाया और जानता है उसकी इन बातों के चक्कर में मेरा दिल बहला गया| सच्ची बड़ी शरीफ और नेक लड़की है!

उसके बाद माँ ने ऐसी बात बोली की मैं एक पल को सन्न रह गया था;

माँ: बस तुझसे उम्र में 5 साल बड़ी है, गैर धर्म की है पर धर्म तो हम फिर भी बदल सकते हैं पर उम्र में बड़ा होना अखरता है.....

इतना कह कर माँ 2 सेकंड के लिए रुकीं ताकि मेरी प्रतक्रिया जान सकें| मैं उस वक़्त मुँह फाड़े उनकी बात सुन रहा था और मेरी ये प्रतिक्रिया देखते हुए वो बोलीं;

माँ: वरना लड़की तो मुझे बहुत अच्छी लगी ...तेरे लिए!

ये सुन कर मुझे बड़ा अजीब सा लगा और मैंने मुँह बनाते हुए कहा;

मैं: क्या माँ आप भी!

इतना कह कर मैं उठा तो माँ ने मेरे कंधे पर हाथ रखते हुए कहा;

माँ: बेटा शादी कर ले!

मैं वापस माँ के पास बैठ गया और उनका दाहिना हाथ अपने हाथ में लेते हुए बोला;

मैं: माँ पहले आप ठीक हो जाओ, मैं कोई और अच्छी जॉब देख लूँ फिर कर लूँगा|

इतना कह मैं उठा और घर के काम करने लगा, झाड़ू-पोछा, कपडे-बर्तन और फिर रात का खाना भी तो बनाना था|

मैं खाना बना रहा था की मेरा फ़ोन बज उठा, स्क्रीन पर पिताजी का नाम था पर मैंने जानबूझ कर फ़ोन नहीं उठाया| मेरे फ़ोन न उठाने से पिताजी को लगा की मैं ऑफिस में हूँ, रात के बजे थे 9 और उन्होंने सीधा माँ को मेरी करनी सुनाने को कॉल मिला दिया| माँ के हेलो बोलते ही उन्होंने माँ से मेरी शिकायत कर दी, वो कहने लगे की यहाँ माँ की देखभाल करने की बजाए मैं रात को ऑफिस में बैठा हूँ! माँ एकदम से बोलीं की मैं खाना बना रहा हूँ और ये सुन कर पिताजी खामोश हो गए! माँ ने उन्हें नर्स के आने की सारी बात बताई बस उसका ईसाई होना नहीं बताया क्योंकि पिताजी ज़ात-पात में मानते थे! इधर किचन में खाना बनाते हुए मैं गुस्से से भरने लगा था, खाना बनाते हुए मुझे पिताजी पर बहुत गुस्सा आ रहा था| खाना बना और मैं खाना ले कर माँ के पास पहुँचा, थाली में दाल-चावल देख कर माँ मुस्कुराई| माँ ने खाना खाया और फिर मुझे उनके पास बैठ कर ही खाने को कहा, मैं खाना ले कर उनके पास बैठ कर खाने लगा|

माँ: बेटा इतना गुस्सा नहीं करते!

माँ ने प्यार से कहा, वो मेरा पिताजी का कॉल नहीं उठाने के पीछे छुपा गुस्सा जान चुकी थीं|

मैं: एक बार नई जॉब मिल जाए, हम ये घर छोड़ देंगे!

ये सुन माँ खामोश हो गईं और जबतक मैंने खाना नहीं खा लिया वो कुछ नहीं बोलीं| मेरे खाना खाने के बाद पहले उन्होंने दवाई ली और फिर मुझे अपने पास बिठा कर बोलीं;

माँ: बेटा हम चले जायेंगे तो तेरे पिताजी का क्या होगा?

माँ ने बड़े प्यार से सवाल पुछा|

मैं: उनके भाईसाहब हैं न उन्हें गोद लेने को!

मैं गुस्से से बोला| ये सुन माँ ने मेरी पीठ पर प्यार से थपकी मारी जो इशारा था की मैं गुस्से में ज्यादा बोल गया|

माँ: बेटा ऐसा नहीं बोलते! माना तेरे पिताजी गलत हैं पर इसका मतलब ये तो नहीं की हम भी गलत बन जाएँ? वो अपना कर्म कर रहे हैं तू अपना कर्म कर, वो मेरा ख्याल नहीं रखते न सही पर तू तो रखता है न?! मेरे लिए बस यही काफी है!

माँ ने मेरे सर पर हाथ फेरते हुए कहा| मैं माँ का उद्देश्य जानता था, वो इस घर को बिखरने नहीं देने चाहती थीं इसीलिए मुझे अलग नहीं होने दे रहीं थीं|

मैं: आपकी बात सही है माँ, पर आप ये नहीं देख रहे की पिताजी बड़के दादा के कहने पर कितने पैसे बर्बाद कर रहे हैं? उस जमीन को खरीदने में कितने पैसे लगे हैं, आप जानते भी नहीं! 1.5 लाख रुपये! कहाँ से आये ये रुपये? पिताजी ने अपनी मेहनत से कमाए न?! मैंने पिताजी से कहा था की वो घर के लिए गाडी ले लें, ताकि उनका भी काम पर जाना आसान हो जाए और कभी-कभार हम तीनों घूमने जा-आ सकें, पर उन्होंने वो पैसे वहाँ गाँव में फूँक दिए! क्या लाभ मिलेगा हमें उस जमीन का? क्या बड़के दादा उस पर उगी फसल का आधा हिस्सा हमें देंगे?! आज ये जमीन ली है, कल को वो मेरी मेहनत की कमाई के पैसे भी गाँव में फूकेंगे तो मैं बर्दाश्त नहीं करूँगा!

मेरे बाघी तेवर देख माँ मेरी बग़ावत जान चुकी थीं, पर उन्हें इस परिवार को बचाना था इसलिए वो बोलीं;

माँ: बेटा ऐसा नहीं होगा, हम दोनों मिलकर उन्हें समझायेंगे, वो नहीं माने तब देखेंगे!

मैं माँ से अभी बहस नहीं करना चाहता था इसलिए मैंने बात वहीं छोड़ दी|

अगले दिन सुबह मैं जल्दी उठा, झाड़ू-पोछा कर नाश्ता बनाने जा रहा था की करुणा आ गई| उसने मुझे गुड मॉर्निंग कहा और सीधा माँ के कमरे में चली गई, माँ को गुड मॉर्निंग कह तथा उनका हालचाल पूछ कर वो बाहर आई और मुझसे बोली;

करुणा: मैं ब्रेकफास्ट बना लेते.... आप खा...खाते?

करुणा ने अपनी हिंदी संभालते हुए पुछा|

मैं: Actually मैं लेट हो रहा हूँ!

इतना कह मैं रसोई से बाहर निकला और ऑफिस के लिए तैयार हो गया, माँ से आशीर्वाद ले कर मैं ऑफिस चल दिया| शाम को जब ऑफिस से आया तो माँ ने मुझे करुणा को पैसे देने को कहा, मैंने बिना कोई सवाल पूछे पर्स निकाला और उसे 1,000/- का नोट उसकी ओर बढ़ाया, लेकिन वो लेने से घबरा रही थी;

माँ: ले-ले बेटी और कल वो सब सब्जियाँ ले आइयो जो आज मैंने बताई है|

माँ की बात सुन कर मुझे पता चला की पैसे किस लिए देने हैं|

मैं: ऐसा करो आप ये चेंज ले लो|

मैंने करुणा को हजार के चेंज देते हुए कहा, पर उसे अब भी डर लग रहा था;

माँ: ले-ले बेटी!

माँ ने कहा तब जा कर उसने डरते हुए पैसे लिए| अगले दिन जब वो आई तो उसके दोनों हाथों में फल और सब्जियों की थैली थी| उसने थैलियाँ टेबल पर रखीं और मुझे पूरा हिसाब देने लगी, माँ तब बाहर बैठक में बैठीं थीं, वो एकदम से बोल पड़ीं;

माँ: करुणा! तेरे से हिसाब माँगा मैंने?

ये सुन कर वो थोड़ा सहम गई और उसकी आँखें झुक गई, फिर माँ ने उसे हुक्म देते हुए कहा;

माँ: सेब काट कर ला और बैठ मेरे पास!

करुणा सेब काटने लगी और मैं तैयार होने लगा, जब मैं तैयार हो कर आया तो माँ उसे फिर से डाँट रही थी;

माँ: मैंने कहा न मेरे साथ खा!

माँ ने उसे सेब खाने को कहा था पर वो मना कर रही थी|

माँ: देख कितनी दुबली-पतली है! चुप-चाप खा.....!

जब करुणा की झिझक खत्म नहीं हुई तो माँ झूठा गुस्सा दिखाते हुए मुझसे बोली;

माँ: मानु ज़रा वो बड़ा वाला डंडा तो ला, बड़े दिन हुए किसी की पिटाई नहीं की!

ये सुन कर करुणा हँस पड़ी और उसने सेब का एक पीस उठाया| माँ ने उसके सर पर हाथ फेरा और उसे प्यार से समझाते हुए बोली;

माँ: तू मुझे मम्मा कहती है न, तो मेरे साथ ये पैसों को ले कर और खाने-पीने को लेकर बहस मत किया कर वरना बहुत मारूँगी| मेरे ठीक होते-होते तेरा 10 किलो वजन बढ़ाना है मुझे!

माँ ने करुणा को मोटी करने का बीड़ा उठाते हुए कहा| वहीं मैं माँ की ये बात सुन कर मुस्कुरा रहा था| बस उस दिन से माँ ने करुणा को अपने साथ खिलाना शुरू कर दिया, खाने के समय माँ ने उसे अपने सामने बैठ कर खाने को कह दिया| इससे माँ का अकेलापन भी दूर होता था और इसी बहाने माँ करुणा को 'कोंच-कोंच कर खिला' भी देती थी| सभी माँओं की तरह मेरी माँ को भी बच्चों को खिलाने का शौक था और करुणा से उनका लगाव कुछ ज्यादा ही था| वहीं करुणा भी माँ से बहुत स्नेह करती थी और उनसे अचार बनाने की विधि पूछती रहती थी|

कुछ दिन बीते और संडे आ गया, आज मेरी छुट्टी थी तो मैंने करुणा को आने से मना कर दिया था| मैं घर के काम निपटा रहा था की दिषु और उसकी मम्मी आ गईं और माँ के पास बैठ गईं| उन्होंने माँ का हाल-चाल पुछा और मैं चाय बनाने लगा, चाय ले कर मैं आया तो पहले आंटी जी (दिषु की मम्मी) से डाँट पड़ी;

आंटी जी: तूने बताय क्यों नहीं की बहनजी की तबियत ठीक नहीं?

ये सुन कर मेरा सर शर्म से झुक गया और तभी दिषु उठा और मेरी पीठ में मुक्का मारते हुए बोला;

दिषु: अक्ल ठिकाने आई या और एक दूँ?! मुझे सारी बात बताता था फिर आंटी जी के बीमार होने की बात क्यों नहीं बताई?

मैं अपनी पीठ पकड़ कर दर्द से कसमसाते हुए बोला;

मैं: यार....ससस...आह! मैं भूल गया...ऑफिस के काम का प्रेशर के आगे....

मेरी बात पूरी होती उससे पहले ही दिषु ने एक और घूसा धर दिया! तब माँ ने सब सच बता दिया, सिवाए इसके की पिताजी वहाँ गाँव में 'भाई-भक्ति' में लगे हैं| ये सुन कर आंटी जी ने मेरी बड़ी तारीफ की कि मैंने माँ के लिए इतनी अच्छी नौकरी छोड़ दी! खैर आंटी जी हमारे लिए दोपहर का खाना बना कर लाईं थीं, उन्होंने मुझे वो बैग दिया और मेरे कान उमेठते हुए बोलीं;

आंटी जी: अगर आगे से तूने मुझसे बात छुपाई तो बहुत मरूँगी!

आंटी जी ने प्यार भरे गुस्से से मुझे डाँटा|

आंटी जी और दिषु चले गए और उस दिन दोनों टाइम के खाने के लिए मुझे कुछ बनाना नहीं पड़ा|

अगले दस दिन तक सब सामान्य चला, बस एक ही बदलाव था वो ये कि करुणा ने अब रात के लिए खाना बनाना शुरू कर दिया था| ऑफिस से आ कर मुझे बस रोटियाँ बनानी होती थीं, जो मैं जैसे तैसे बना लेता था, भले ही किसी देश का नक्शा बनता हो पर खाने लायक तो बना ही लेता था! कभी-कभार मैं चावल बना लेता था तो काम चल ही जाता था| मजबूरी इंसान को सब कुछ सीखा देती है, ये मैंने जान लिया था| खैर करुणा के खाने में south indian खाने का स्वाद बहुत था, हालाँकि वो खाने में वही बनाती थी जो हमलोग आमतौर पर घर पर खाते थे पर उसका खाने में कढीपत्ता, नारियल और राई डालने से खाने का स्वाद पूरी तरह बदल जाता था| जब वो सूखी सब्जी बनाती थी तो उसमें नारियल कद्दूकस करके डालती और उस सब्जी को 'थोरन' कहती| माँ को पता नहीं कैसे ये खाना पसंद आ गया था और वो भी सब्जी को 'थोरन' कह कर बुलाने लगी| एक-आध बार मुझे लगा की कहीं मेरी माँ south indian तो नहीं बन गई?! लेकिन असल में माँ को उससे खाने में कुछ नया बनाना सीखने को मिल रहा था, अब उस समय youtube वगैरह तो फ़ोन में था नहीं जो माँ उससे नया खाना बनाना सीख पातीं| इसी बहाने माँ का टाइम भी अच्छे से पार हो जाता था| बाकी हम दोनों (मैं और करुणा) की बातचीत Hi और Hello तक ही सीमित थी, उसके आगे न मुझसे बढ़ा जा रहा था और न ही करुणा से! इधर ऑफिस में मैं सबसे कट चूका था, ऑफिस पार्टी में मैंने जाना बंद कर दिया था, उसकी जगह मैं घर पर रह कर माँ के पास रहता था| उधर पिताजी दो-तीन दिन में कॉल करते थे पर मैं उनका फ़ोन नहीं उठाता था, हारकर वो माँ को फ़ोन करते और मेरे बारे में पूछते| माँ मुझे बचाने के लिए बार-बार झूठ बोलती की मैं ऑफिस के काम में बिजी हूँ, इसलिए बात नहीं कर पा रहा| उन्होंने अभी तक पिताजी को मेरे जॉब छोड़ने की बात नहीं बताई थी वरना उनको गाँव देर तक रहने का मौका मिल जाता| पिताजी के मन में मेरे लिए गुस्सा भरने लगा था जो वो माँ को नहीं बता रहे थे, मैं भी जानता था की उनके आने पर घमासान युद्ध होना तय है!

माँ का स्वास्थ्य अब काफी ठीक हो चूका था, डॉक्टर सरिता ने उनका check up किया और कुछ टेस्ट वगैरह किये| Report अच्छी आई और उन्होंने माँ को घर का थोड़ा बहुत काम करने की इजाजत दे दी, पर कुछ सावधानियाँ बरतने को कहा| मैं जानता था की माँ बहुत लापरवाह हैं इसलिए मैंने करुणा को कुछ और दिनों के लिए आने को कहा|

आखरी दिन मैंने डॉक्टर सरिता को माँ का फिरसे checkup करने को बुलाया और उन्हीं के सामने मैंने करुणा की जो फीस थी वो उसे दे दी| पैसे देख कर उसने कहा की थोड़ी ज्यादा है और 1,500/- रुपये वापस देने लगी तो माँ ने उसे डॉक्टर सरिता के सामने ही प्यार से डाँट दिया;

माँ: मैं क्या कहा था तुझे? ये पैसे तेरी मेहनत के हैं और अगर तू नहीं लेगी तो दुबारा मेरे पास कभी मत आइयो!

माँ की धमकी सुन वो डर गई और पैसे रख लिए| ऐसे ही दिन बीते और माँ भली-चँगी हो गईं और घर संभाल लिया|

कुछ दिनों में क्रिसमस का त्यौहार आया और चूँकि आज छुट्टी थी तो मैं घर पर ही था| 12 बजे करुणा आ धमकी और उसके हाथ में क्रिसमस केक था! उसने वो केक माँ को देते हुए कहा;

करुणा: मम्मा...आज क्रिसमस है....ये हमारे चर्च वाला केक.... इसमें अंडा है...आप खाते?

माँ ने उसे आशीर्वाद दिया और मुस्कुरा कर बोलीं;

माँ: बेटा मैं तो नहीं खाती पर मानु खाता है|

माँ ने मुझे आवाज दे कर बुलाया और करुणा को यूँ देख कर मैं हैरान हुआ, फिर जब नजर केक पर पड़ी तो मैं समझ गया;

मैं: Merry Christmas!

मैंने मुस्कुरा कर बात शुरू करते हुए कहा, तो करुणा ने भी मुस्कुरा कर thank you कहा| फिर करुणा ने दो डिब्बे वाला टिफ़िन निकाला और माँ को देते हुए बोली;

करुणा: मम्मा इसमें इडली और साम्बार है.... आपके लिए ...!

करुणा मुस्कुरा कर माँ से बोली तो माँ ने उसे बैठने को कहा और मुझे केक का पैकेट दे दिया| मैं बैठ के मजे से केक खाने लगा, इतने में करुणा मेरे सामने बैठ गई और उम्मीद करने लगी की मैं केक की तारीफ करूँगा, पर मैं तो केक खाने में लगा था| तभी माँ दो प्लेट में इडली और साम्बार परोस कर लाईं और तीसरी प्लेट में उन्होंने सुबह का बनाया हुआ आलू का पराँठा गर्म कर के करुणा के लिए परोसा| मैं नहीं जानता था की करुणा को आलू का पराँठा इतना पसंद था, उसने तो फटाफट खाना शुरू कर दिया और इधर अपने सामने इडली देख कर मैं खुश हुआ तथा केक छोड़ कर इडली पर टूट पड़ा| माँ और मैं इडली खा रहे थे और माँ करुणा से इडली और साम्बार के बारे में पूछने लगी| आधे घंटे के recipe discussion के बाद माँ मुझसे बोली;

माँ: बेटा, करुणा इतना स्वाद खाना लाइ है उसे शुक्रिया तो कह दे|

ये सुनकर मुझे थोड़ी शर्म आई और मैंने करुणा को थैंक यू कहा| नजाने माँ को क्या सूझी की वो एकदम से बोलीं;

माँ: बेटी मेरा बेटा बड़ा शर्मिला है, ज्यादा किसी से घुलता मिलता नहीं! सिर्फ अपने काम से काम रखता है, तू इतने दिन रही थी पर तूने कभी इसे किसी से बात करते हुए देखा? गाँव में इसकी एक भाभी है जिससे ये बहुत घुला-मिला है और उसके अलावा ये किसी से बात नहीं करता|

माँ की बाकी सारी बात तो ठीक थी, बस जब उन्होंने मुझे भौजी की याद दिलाई तो मेरा जख्म फिर हरा हो गया| मैं माँ को कुछ कह नहीं सकता था, लेकिन अगर थोड़ी देर और खामोश रहता तो माँ इस बात को ज्यादा खींच देती इसलिए मैंने बात शुरू करते हुए करुणा से बोला:

मैं: Actually आपका और मेरा interaction मेरे घर पर नहीं रहने से ज्यादा हो नहीं पाया, बाकी माँ ने तो बता ही दिया की मैं थोड़ा shy हूँ!

मेरी shy होने की बात सुन कर करुणा हँस पड़ी और उसके साथ माँ भी हँसने लगी| माँ के कारन उस दिन मेरी और करुणा की थोड़ी बहुत बात हुई, ये हमारी दोस्ती का पहला कदम था!

[color=rgb(51,]जारी रहेगा भाग 4 में...[/color]
 

[color=rgb(65,]इक्कीसवाँ अध्याय: कोशिश नई शुरुआत की[/color]
[color=rgb(243,]भाग - 4[/color]


[color=rgb(41,]अब तक आपने पढ़ा:[/color]

माँ: बेटा, करुणा इतना स्वाद खाना लाइ है उसे शुक्रिया तो कह दे|
ये सुनकर मुझे थोड़ी शर्म आई और मैंने करुणा को थैंक यू कहा| नजाने माँ को क्या सूझी की वो एकदम से बोलीं;
माँ: बेटी मेरा बेटा बड़ा शर्मिला है, ज्यादा किसी से घुलता मिलता नहीं! सिर्फ अपने काम से काम रखता है, तू इतने दिन रही थी पर तूने कभी इसे किसी से बात करते हुए देखा? गाँव में इसकी एक भाभी है जिससे ये बहुत घुला-मिला है और उसके अलावा ये किसी से बात नहीं करता|
माँ की बाकी सारी बात तो ठीक थी, बस जब उन्होंने मुझे भौजी की याद दिलाई तो मेरा जख्म फिर हरा हो गया| मैं माँ को कुछ कह नहीं सकता था, लेकिन अगर थोड़ी देर और खामोश रहता तो माँ इस बात को ज्यादा खींच देती इसलिए मैंने बात शुरू करते हुए करुणा से बोला:
मैं: Actually आपका और मेरा interaction मेरे घर पर नहीं रहने से ज्यादा हो नहीं पाया, बाकी माँ ने तो बता ही दिया की मैं थोड़ा shy हूँ!
मेरी shy होने की बात सुन कर करुणा हँस पड़ी और उसके साथ माँ भी हँसने लगी| माँ के कारन उस दिन मेरी और करुणा की थोड़ी बहुत बात हुई, ये हमारी दोस्ती का पहला कदम था!

[color=rgb(255,]अब आगे:[/color]

दो दिन बाद पिताजी आखिर घर लौट ही आये| सुबह के सात बजे थे और मैं ऑफिस के लिए निकल ही रहा था की दरवाजे पर दस्तक हुई| माँ रसोई में खाना बना रही थीं तो मैंने ही दरवाजा खोला, सामने पिताजी थे और मुझे देखते ही उन्हें गुस्सा आ गया| उनका गुस्सा देखते ही मैं समझ गया की आज कोहराम होगा, इसलिए उनके आते ही मैं बाहर जाने लगा;

पिताजी: बैठ यहाँ पर!

पिताजी गुस्से में बोले, उनकी आवाज सुन कर माँ की नजर पिताजी पर पड़ी| अब चूँकि मैंने कोई गलती की नहीं थी इसलिए मैंने भी आज उनसे तू-तू मैं-मैं का मन बना लिया था, मैंने बैग टेबल पर रखा और उनके सामने बड़े इत्मीनान से हाथ बाँधे बैठ गया| पिताजी उम्मीद कर रहे थे की उनका गुस्सा देख मैं डरूँगा, पर मुझे बेफिक्र और शांत देख वो गुस्से से बोले;

पिताजी: माँ यहाँ बीमार है और तुझे अपनी नौकरी की पड़ी है?

ये सुन कर मुझे बहुत गुस्सा आया और इसी गुस्से में आ कर मैं उनकी तरफ देखते हुए बोला;

मैं: नौकरी पहले ही छोड़ चूका हूँ, ये तो मजबूरी है की मुझे notice period में तीन महीने काम करना पड़ रहा है!

भले ही मैं गुस्सा था पर इतनी हिम्मत नहीं थी की अपनी आवाज में गुस्सा ला सकूँ इसलिए मैंने बड़े उखड़े स्वर में पिताजी को जवाब दिया ताकि उन्हें मेरे गुस्से का अंदाजा स्वयं हो जाए| जहाँ मेरी नौकरी छोड़ने की बात पर उन्हें हैरानी हुई, वहीं मेरा यूँ उखड़ कर जवाब देना उन्हें रास ना आया!

पिताजी: मैंने तुझे शुरू में ही कहा था की मेरा बिज़नेस संभाल, पर तूने तो नौकरी करनी थी! 6 महीने भी नहीं टिकी तेरी ये नौकरी!

पिताजी का ये ताना सुन कर मुझे बहुत गुस्सा आया और मैं उन्हें तंज कसने वाले लिहाज में बोला;

मैं: आपका बिज़नेस संभालता तो आपको गाँव रह कर बड़के दादा की सेवा करने की पूरी छूट मिल जाती!

मेरी नीम से कड़वी बात सुन पिताजी की आँखें गुस्से से लाल हो गई और वो मुझे घूर कर देखने लगे जैसे मुझे अभी खा जायेंगे! इधर मेरा गुस्सा जो अभी निकलना शुरू हुआ था वो पिताजी के घूरने से और तीव्र हो चूका था, मैं बिना इस बात की फ़िक्र किये की ये मेरे आगे कहे शब्द हमारे रिश्ते को तार-तार कर देंगे, अपने गुस्से में बहता हुआ बोला;

मैं: 30,000/- रुपये महीने की तनख्वा, घर लाने-लेजाने के लिए गाडी, एयर कंडीशन बिल्डिंग में काम करने का सुख मैंने सिर्फ इसलिए छोड़ा क्योंकि मेरे लिए मेरी माँ जर्रूरी है, आपकी तरह नहीं जो अपनी पत्नी को यहाँ छोड़ कर बड़के दादा की तीमारदारी करने चले गए! अगर आप यहाँ होते तो मुझे ये जॉब नहीं छोड़नी पड़ती, पर आपके लिए तो आपके भाईसाहब ही सब कुछ हैं!

मेरा गुस्सा देख माँ ने इशारे से मुझे चुप होने को कहा, पर मेरा क्रोध रुपी ज्वालामुखी अब फट चूका था!

मैं: किसे बिज़नेस कहते हैं आप? वो लोगों के घर पानी की पाइप डालने को? या लोगों के घर में लकड़ी का काम करवाने को? कितनी कमाई होती थी आपकी उससे? अच्छे खासे ठेके आपने उठाने बंद कर दिए, क्यों? क्योंकि आपके भाईसहाब ने कॉल करके आपको बुलाना शुरू कर दिया! बड़ी मुश्किल से 'मैंने' एक ऑफिस का काम आपको ला कर दिया था, उसे खत्म कर के कौन सा काम ढूँढा आपने? सेठ जी से बात कर के 'मैंने' आपके माल की कीमत कम करवाई, उसके लिए आपने मेरी पीठ थपथपाई? पीठ थपथपाना तो एक तरफ आपने उसदिन सीधे मुँह तक बात नहीं की मुझसे! आप चाहते हो मैं आपका काम सम्भालूँ, ताकि जो 'मैं' मेहनत से पैसे कमाऊँ, उन्हें आप गाँव में गाड़ आओ! मैं पूछता हूँ किया क्या है उन सब ने हमारे लिए आज तक? बड़के दादा के 4 लड़कों की शादी आपने करवाई, क्या मिला उसके बदले आपको? अनिल भैया की शादी तय की तो आपसे पुछा? गाँव में बच्चा पैदा हुआ, इतना नौटंकी-तमाशा हुआ, आपको पुछा? तब बड़के दादा को अपने छोटे भाई की याद नहीं आई? अरे वो सब तो छोड़िये, माँ बीमार है ये बताया था न आपने बड़के दादा को? एक फ़ोन किया किसी ने ये पूछने को की मैं यहाँ कैसे सब सँभाल रहा हूँ? किसी को नहीं पड़ी की यहाँ हम जी रहे हैं या मर रहे हैं, उन्हें बस आप दिखते हो और आपकी जेब में पैसा दिखता है! जिस दिन आपकी जेब से पैसा गायब हुआ उनकी नजर में आपकी कोई कीमत नहीं रह जायेगी!

आपने हर कदम पर उन्हें (बड़के दादा तथा उनके परिवार को) तवज्जो दी है और हमें दरकिनार किया है, चन्दर ने जब मेरी पीठ लहू-लुहान की थी तो आपने उसे सिर्फ इसलिए माफ़ कर दिया क्योंकि वो आपके बड़े भाई का लड़का है, अगर कोई दूसरा होता तो आप उसकी बक्कल फोड़ देते! कुछ महीने पहले मैंने आप से कहा था की घर के लिए गाडी ले लो, ताकि आपको आने-जाने की दिक्कत न हो, पर आपने उन पैसों की गाँव में जमीन ले ली, वो भी सिर्फ इसलिए क्योंकि आपके भाईसाहब ने कहा था! 'बो' आये न आप उस में आलू, कल को उसकी फसल उगेगी तो देंगे बड़के दादा आपको आधा हिस्सा? माँग कर देखना एक बार फसल में हिस्सा, फिर वही गाली देंगे जो माँ को शादी के बाद ले जाने पर मिली थी! आप भले ही एक अच्छे भाई साबित हुए होंगे पर एक अच्छे पति, एक अच्छे बाप कभी साबित नहीं हो पाए!

इतना गुबार कहने के बाद मेरा दिल कह रहा था की उन्हें अपने और माँ के घर छोड़ने का धक्का भी अभी दे दूँ, पर मन ने मना किया इसलिए मैं उन्हें अपने बचपन से ले कर अभी तक की आधी भड़ास सूना कर उठ गया| मैंने बैग उठाया और चुप-चाप घर से निकल गया, ऑफिस की cab miss हो चुकी थी इसलिए मैं मेट्रो पकड़ कर ऑफिस पहुँचा|

उधर पिताजी मेरी बात चुप-चाप सुन चुके थे और उन्हें पता चल गया था की उनके सीधे- साधे लड़के के मुँह में लम्बी जुबान उग आई है| जिसे पहले वो जहाँ चाहे हाँक दिया करते थे आज उसने पहलीबार पलट कर उन्हें सींघ मारा था! किसी भी बाप के लिए ये सब सह पाना आसान नहीं होता, या तो वो बाप सम्भल जाता है और बेटे की बात मानने लगता है, या फिर उस पर कोई असर नहीं होता तथा वो पहले की ही तरह अपने रास्ते पर मदमस्त हाथी की तरह चलता रहता है| मेरे पिताजी पर क्या असर हुआ ये आपको आगे पता चलेगा!

इधर ऑफिस पहुँच कर मैं अपना काम करने लगा था, कुछ देर बाद जब मैंने चाय पीने के लिए ब्रेक लिया तब मुझे मेरे कहे पैने शब्दों का एहसास हुआ! रह-रह कर मेरा मन कचोटने लगा था, मैंने जो कहा था वो सही था पर जिस लहजे में मैंने पिताजी से बात की थी वो गलत था! उस समय मेरा 'अहम' मुझ पर हावी था, जिस कारन मैंने अपने पिताजी द्वारा दी गई सभी शिष्टाचार की बातें ताख पर रख दी थीं! मुझे अपने बर्ताव के लिए बहुत बुरा लग रहा था और जब ये दर्द बर्दाश्त नहीं हुआ तो मैंने माँ को फ़ोन किया| माँ ने मुझे बताया की मेरे जाने के बाद, आधे घंटे तक पिताजी सर झुकाये रोते रहे और फिर बाहर चले गए| उन्होंने (माँ ने) मुझे बहुत समझाया की मैं अपने गुस्से पर काबू रखूँ वरना ये परिवार बिखर जाएगा! उनकी ये बात मुझे चेतावनी ज्यादा लगी थी, इसलिए मुझे भीतर से ग्लानि महसूस होने लगी थी!

ऑफिस का काम निपटा कर मैं ग्लानि से भरा हुआ घर पहुँचा, बैग टेबल पर रख मैंने माँ से पिताजी के बारे में पुछा| माँ ने ख़ामोशी से अपने कमरे की तरफ इशारा कर दिया, मैं सर झुकाये हुए उनके कमरे की तरफ चल दिया| पिताजी पलंग पर टाँग पर टाँग चढ़ाये बैठे थे और सिगरेट पी रहे थे, उनकी एक झलक देखते ही मैंने फ़ौरन गर्दन दुबारा से झुका ली तथा धीरे-धीरे उनकी ओर बढ़ने लगा| मुझे अपनी तरफ बढ़ता देख पिताजी ने सिगरेट बुझा दी, वो मेरे सर झुकाने से समझ गए थे की मैं उनसे माफ़ी माँगने आया हूँ इसलिए वो मेरे बोलने का इंतजार करने लगे|

मैं: मुझे माफ़ कर दीजिये पिताजी, मुझे आपसे ऐसे बात नहीं करनी चाहिए थी! अपने झूठे 'अहम' में मैं हमारे रिश्ते और आपके सिखाये शिष्टाचार को भूल गया था|

अपनी ग्लानि को पिताजी के समक्ष रख कर दिल हल्का हो गया था, पर अब डर लगने लगा था! डर पिताजी के मुझे न अपनाने का, डर उनका मुझ पर हाथ छोड़ने का! पिताजी उठे और मेरे नजदीक आये, उन्होंने अपना दाहिना हाथ मेरे बाएँ कँधे पर रखा और बोले;

पिताजी: तूने सही ही कहा था, मैं अपने भाईसहाब को बहुत मानता हूँ और इसके चलते मैंने अपने परिवार को कभी तवज्जो नहीं दी| मुझे बड़ा गर्व है की मेरा बेटा इतना बड़ा हो गया की न केवल सही-गलत समझने लगा है बल्कि अपनी जिम्मेदारी उठाने लगा है! लेकिन बेटा बड़ा भाई बाप के समान होता है, बाप अगर बेटे को दुत्कार दे तो क्या बेटे को अपने बाप को भूल जाना चाहिए? नहीं! इसीलिए मैं उनके आगे कुछ नहीं बोल पाता और जो वो कहते हैं उसे एक बेटे का फ़र्ज़ समझ कर करता जाता हूँ!

पिताजी की ये बात मुझे बहुत जोर से लगी, मेरे दिल में जो अभी तक घर अलग बसाने की आग जल रही थी उस पर जैसे समझदारी का पानी पड़ गया था, जिसने इस आग को बुझा दिया था| इंसान गलती करता है, पर उसे सुधरने का मौका देना चाहिए न की उसे अकेला छोड़ देना चाहिए! परन्तु अभी पिताजी की बात अधूरी थी;

पिताजी: बेटा...देख मैंने ठेकेदारी के काम को बहुत छोटे स्तर पर किया है, उसे बड़ा करने से डरता था क्योंकि अगर संभाल न पाया तो ये घर कैसे चलता?! जब तू बड़ा होने लगा तो ये बिज़नेस तेरे सुपुर्द कर के मैं तेरी माँ के साथ गाँव में बस जाना चाहता था, लेकिन जब तूने नौकरी करने की बात की तो मेरा खून बड़ा जला! देखा जाए तो गलती मेरी ही थी, मैंने तेरे बड़े होने पर तेरे साथ सख्ती से पेश आना शुरू कर दिया जबकि मुझे तुझे ये सब बातें समझानी चाहिए थी| मैंने कभी तेरी बढ़ाई तेरे सामने नहीं की, सिर्फ इस डर से की कहीं ये तेरे सर गुरूर बन कर न चढ़ जाए! तेरे साथ जो भी मैंने सख्ती की मुझे वो नहीं करनी चाहिए थी, उसके लिए मैं तुझसे माफ़ी माँगता हूँ!

ये कहते हुए पिताजी ने मेरे आगे हाथ जोड़े तो मैंने एकदम से उनके दोनों हाथ पकड़ लिए और बोला;

मैं: ऐसा न कहिये पिताजी! आपकी सख्ती के कारन ही मैं काबू में था, वरना मैं बिगड़ जाता! फिर आप मेरे पिता है, आपका गुस्सा, मार मेरे लिए सबक थी, इनके बिना मेरे जीवन की 'नीव' कैसे बनती!

ये कहते हुए मेरी आँखें छलक आईं, पिताजी ने मेरे आँसूँ पोछे और मुझे अपने सीने से लगा लिया|

पिताजी: अब से बेटा जैसा तू कहेगा मैं वैसा ही करूँगा!

पिताजी मुझे अपनी छाती से लगाए हुए बोले, पर मुझे ये नहीं चाहिए था! मैं उनके सीने से अलग हुआ और उनकी आँखों में देखते हुए बोला;

मैं: नहीं पिताजी! मैं आपको न तो आदेश दे सकता हूँ न कभी दूँगा! मैं आपको अपने सुझाव देता रहूँगा और आपसे विनती करूँगा की आप उन्हें मान लीजियेगा! रही बड़के दादा की बात तो आपको उनसे जैसा रिश्ता रखना है आप रखिये बस उनके आगे अपने परिवार को मत भूल जाइये! भले ही वो आपके भाई हैं, पिता सामना हैं पर आप ये मत भूलियेगा की आपका अपना खून भी है और आपकी एक पत्नी भी है!

ये सुनकर पिताजी ने मुझे पुनः अपने गले लगा लिया| माँ जो बाहर से सब सुन रहीं थीं वो अंदर आईं और पिताजी ने उन्हें भी गले लगने को बुलाया| मैं, माँ और पिताजी एक साथ गले लगे हुए खड़े थे और धीमे-धीमे सिसक रहे थे! इस अलौकिक दृश्य को दर्शाने के लिए मेरे पास शब्द नहीं हैं! एक छोटे से परिवार के प्यार की ताक़त ने उसे बिखरने से रोक लिया था!

अगली सुबह चाय पीते समय पिताजी ने मेरे से अपने काम के सिलसिले में बात की तथा मैंने उन्हीं अपने सुझाव दे दिए| पिताजी ने उन सुझावों पर काम करना शुरू कर दिया था| पिताजी ने अपनी जान-पहचान निकाल कर मिश्रा जी से मीटिंग तय की और उस मीटिंग में मुझे भी आने को कहा| मुझे न तो मिश्रा जी के बारे में कुछ पता था और न ही ये की ये मीटिंग किस लिए बुलाई गई है| मैंने पिताजी से इस विषय में पुछा तो उन्होंने बताया की;

पिताजी: बेटा मैंने ठेकेदारी मिश्रा जी के साथ ही शुरू की थी| वो बहुत बड़े बिल्डर हैं और तब वो दिल्ली के अंदर फ्लैट वगैरह बनाते थे, उस समय उनका काम छोटा था तो वो मुझे कारपेन्टरी, प्लंबिंग का काम दे दिया करते थे| धीरे-धीरे उन्होंने नॉएडा और गुड़गाँव में काम फैलाया और मुझे अपने साथ जुड़ने को कहा| उस समय मैं इतना ज्यादा काम नहीं फैला सकता था इसलिए मैंने मना कर दिया, पर तेरे से बात कर के मैंने उनसे पुनः बात की और उन्हें बतया की मेरा बेटा भी इस काम में जुड़ना चाहता है तो उन्होंने हमें रविवार को मिलने बुलाया है|

बिल्डर के साथ एक बड़े प्रोजेक्ट पर काम करना था और उसका मुनाफा भी तगड़ा होना था सो मैंने पिताजी के साथ बैठ कर काम की बारिकयाँ समझी और उन्हें अपना पहलु समझाया| मैंने फटाफट अपने लैपटॉप पर जोड़-गाँठ कर के बजट बनाया और मुझे वहाँ क्या बात रखनी है उसे मैंने लिख लिया| हालांकि ये बहुत छोटी सी मीटिंग थी पर मैंने इसे किसी MNC का प्रपोजल समझ कर सारी तैयारी कर ली थी|

संडे आने में अभी समय था और एक दिन ऑफिस से लौटते समय मुझे देर हो गई, उसी रात मेरी तबियत ज्यादा खराब हो गई| पूरी रात मैं छींकता रहा, पूरी नाक अंदर से जैसे छिल गई थी और साँस लेने पर जलन सी हो रही थी| अगली सुबह डॉक्टर सरिता आ गईं और उन्होंने मुझे nebulizer लगाया, जिससे साँस लेने के बाद मुझे आराम मिला| वो दिन मैंने आराम किया और रात में 11 बजे मुझे एक अनजान नंबर से whats app आया! 'आप कैसे हो' ये मैसेज पढ़ मैं हैरान हुआ और मैंने पुछा की; 'आप कौन हो?' तो जवाब आया, 'मैं करुणा है'! ये पढ़ कर मुझे थोड़ा अजीब सा लगा क्योंकि मैंने करुणा के मैसेज की उम्मीद नहीं की थी! मेरी उससे चैट शुरू हुई और पता चला की उसने डॉक्टर सरिता को फ़ोन किया था नए काम के लिए, तब उन्होंने उसे मेरी बिमारी के बारे में बताया| करुणा की बहन को भी मेरी जैसी ही बिमारी थी और उनके घर में ही nebulizer रखा था, अगर माँ ने करुणा को फ़ोन किया होता तो वो कल रात को ही मशीन ले कर आ जाती! 'इतनी रात को आप कैसे अकेले आते?' मैंने मैसेज किया तो करुणा का जवाब आया; 'Patient का help करने ...लिए... इतना तो करना...होते!' उसकी टूटी फूटी हिंदी सुन कर बड़ा अच्छा लगता था| 'वैसे आपको मेरा नंबर कैसे मिला?' मैंने मैसेज कर के पुछा तो उसका जवाब आया; 'मम्मा से लिए ता (था)....' इतना कह कर वो चुप हो गई| इसके आगे हमारी कोई बात नहीं हुई और मैं दवाई ले कर सो गया| अगले दिन से हमारी whats app पर बात शुरू हो गई, करुणा का मैसेज दोपहर को आने शुरू होते थे और फिर हम रात तक रुक-रुक कर बातें करते रहते थे| हमारी बातें good afternoon से शुरू होतीं, फिर खाने तक पहुँचतीं और रात को good night पर खत्म होती| इसके आलावा whats app पर funny videos भेजना तो आम था| करुणा से whats app पर बात करते-करते मैं उसकी दिनचर्या जान गया था, वो रात को 2-3 बजे सोती और सीधा दोपहर को उठती, खाने-पीने के मामले में उसे कुछ ख़ास रूचि नहीं थी| दोपहर में उठ कर वो पहले black coffee पीती और फिर खाना बनाती जिसे खाते-खाते शाम के 3-4 बज जाते थे| खाना बनाने के अलावा वो अपनी बहन की बेटी को संभालती और घर के बाकी काम करती, उसकी बहन ने उसे नौकरानी जो बना रखा था!

खैर करुणा से whats app पर बात करते-करते संडे आ ही गया और मुझे आज पिताजी के साथ मिश्रा जी से मीटिंग करने जाना था| हमदोनों समय से मिश्रा जी के घर पहुँचे, उन्होंने हमें बैठक में बिठाया और हमारे सामने बैठ गए| पिताजी ने उनसे बात शुरू की और मेरा उनसे तार्रुफ़ कराते हुए बोले;

पिताजी: भाईसाहब, ये मेरा लड़का मानु| आपने इसे बहुत छोटेपन में देखा था!

मैं उठा और जा कर उनके पाँव छुए तो वो मुझे आशीर्वाद देते हुए बोले;

मिश्रा जी: जुग-जुग जियो मुन्ना! नानमून रहेओ जब हम तोहका देखेन रहें!

इस बार उन्होंने मुझे अपने बराबर बिठा लिया और सीधा ही मुझसे सवाल किया;

मिश्रा जी: तोहार पिताजी कहत रहे की तू उनके साथे काम करा चाहत हो!

अब मेरा ऐसा कोई प्लान तो था नहीं, पर ना कह कर मैं पिताजी को झूठ नहीं बना सकता था इसलिए मैंने बात बनाते हुए कहा;

मैं: अंकल जी, मैं पिताजी के काम को बढ़ाना चाहता हूँ....

मैं आगे कुछ बोलता उसके पहले ही मिश्रा जी मेरी बात काटते हुए बोले;

मिश्रा जी: अरे वाह मुन्ना वाह! ई तो बहुत नीक बात है, अरे सुनत हो तनिक मिठाई लाओ!

मिश्रा जी ने अपनी पत्नी को आवाज दे कर कहा और फिर सीधा पिताजी से बोले;

मिश्रा जी: ग्रेटर नॉएडा में हमार एक ठो बिल्डिंग आभयें तैयार भई है, ऊ मा हमका कारपेन्टरी और प्लंबिंग का काम करायेक है!

ये सुनते ही मैं एकदम से बीच में बोल पड़ा;

मैं: अंकल जी ये मैंने एक प्रपोजल तैयार किया है, आप देख लीजिये!

ये कहते हुए मैंने उनके सामने अपना लैपटॉप खोला, बैग से अपनी डायरी निकाल कर अपने और पिताजी द्वारा तैयार किया सारा हिसाब-किताब उन्हें दिखाने लगा| मिश्रा अंकल जी ने मेरी सारी बात बड़े आराम से सुनी, मैंने उन्हें जो हमारा बजट और उसकी कोटेशन दी उसे सुनते ही उनके चेहरे पर एक गर्वपूर्ण मुस्कान आ गई!

मिश्रा जी: भाई सुरेश (मेरे पिताजी), तोहार लड़िकवा बहुत होशियार है! ई हियाँ पहले से ही सब सोच के आवा रहा, पर ई नहीं जानत की तोहार और हमार बीच मा घर वाली बात है!

मिश्रा अंकल जी ने मेरी पीठ थप-थपाई और मुझसे बोले;

मिश्रा जी: मुन्ना तोहका ई सब दिखाए का कउनो जर्रूरत नाहीं है, तोहार पिताजी से ईमानदार आदमी हम आजतक नाहीं देखेन! आज तलक ई हमरे संगे एको पैसा की हेरा-फेरी नाहीं करिस है और हमका ई देख कर बहुत ख़ुशी हुई की तुहुँ आपन पिताजी जइसन ईमानदार हो! आज से ऊ साइट का काम तुम्हीं सँभालयो, बस एक चीज का ध्यान रहे किचन मा ऊ... क कहत हैं....मोलड़र...

मिश्रा अंकल modular नहीं बोल पा रहे थे तो मैंने उनकी मदद की और बोला;

मैं: Modular Kitchen!

मिश्रा जी: हाँ-हाँ वही! लड़िकवा तो खूब समझदार है!

इस तरह से एक बड़ा ठेका हमें मिल गया और हम ख़ुशी-ख़ुशी घर लौट आये|

[color=rgb(51,]जारी रहेगा भाग 5 में...[/color]
 

[color=rgb(65,]इक्कीसवाँ अध्याय: कोशिश नई शुरुआत की[/color]
[color=rgb(251,]भाग - 5[/color]


[color=rgb(44,]अब तक आपने पढ़ा:[/color]

मिश्रा जी: मुन्ना तोहका ई सब दिखाए का कउनो जर्रूरत नाहीं है, तोहार पिताजी से ईमानदार आदमी हम आजतक नाहीं देखेन! आज तलक ई हमरे संगे एको पैसा की हेरा-फेरी नाहीं करिस है और हमका ई देख कर बहुत ख़ुशी हुई की तुहुँ आपन पिताजी जइसन ईमानदार हो! आज से ऊ साइट का काम तुम्हीं सँभालयो, बस एक चीज का ध्यान रहे किचन मा ऊ... क कहत हैं....मोलड़र...
मिश्रा अंकल modular नहीं बोल पा रहे थे तो मैंने उनकी मदद की और बोला;
मैं: Modular Kitchen!
मिश्रा जी: हाँ-हाँ वही! लड़िकवा तो खूब समझदार है!
इस तरह से एक बड़ा ठेका हमें मिल गया और हम ख़ुशी-ख़ुशी घर लौट आये|

[color=rgb(255,]अब आगे:[/color]

अगले दिन पिताजी ने साइट visit की और मेरे प्लान के अनुसार लेबर लगा दी, मैं चौधरी बना पिताजी को फ़ोन कर के सारी बातें पुछा तथा बताया करता था| Modular kitchen हमारे लिए एक समस्या थी, क्योंकि उसके बारे में पिताजी को कोई ज्ञान नहीं था| मैंने इंटरनेट पर बहुत छानबीन की और दिल्ली में एक शोरूम ढूँढ लिया जहाँ बना-बनाया मॉडुलर किचन मिलता था| अब अगर हम बना-बनाया modular kitchen खरीदते तो सारा बजट खराब हो जाता, इसलिए मैंने उसका एक हिन्दुस्तानी तरीका निकाला! संडे के दिन मैं और पिताजी अच्छे कपडे पहन कर उस शोरूम में घुसे जहाँ modular kitchen बना-बनाया मिलता था, वहाँ जा कर हमने बात ऐसे की जैसे हमें आज ही ये modular kitchen setup करवाना हो! पिताजी तजुर्बेकार थे तो उन्होंने उस setup को अच्छे से देखा और समझ लिया, फिर हम sales executive को 'बताते हैं' बोल कर निकल आये! ये हिन्दुस्तानी तरीका हर समस्या में कारगर साबित होता है! रास्ते में पिताजी ने मुझे एक दूकान दिखाई जिससे वो कारपेन्टरी का समान लेते थे, उनके पास ठीक ऐसा ही setup था, पर क्योंकि उस वक़्त modular kitchen का इतना चाव मार्किट में नहीं था तो लोग कम ही इसे बनवाते थे, परन्तु नए फ्लैट्स और घरों में ये बनाना एक feature की तरह गिना जाने लगा था| मैं इस बारे में कुछ ज्ञान प्राप्त कर चूका था, अब समय था साइट पर जाने का| वहाँ पहुँच कर मैंने देखा तो काम बहुत धीमे रफ्तार से चल रहा था| मुझे labor hours कम लगाने थे पर जिस गति से काम हो रहा था उससे बजट बिगड़ना था, मैंने पिताजी को अपने संग लिया और प्लम्बर तथा कारपेंटर के सर पर बैठ गया| दोनों को आज के दिन का कोटा समझा दिया, ताकि वो कामचोरी न करें| प्लम्बर तो मान गया पर कारपेंटर पिताजी के सर चढ़ा हुआ था तो उसे हड़काना बनता था;

मैं: देख भाई मेरी आदत नहीं किसी से बार-बार बात दोहराने की, इसलिए एक बार कहूँगा तो मेरी बात अच्छे से गाँठ बाँध ले| आज शाम 7 बजे तक दोनों कमरों के पल्ले टँग जाने चाहिए और खिड़कियों पर AC duct का काम पूरा हो जाना चाहिए| अगर आप से काम नहीं होता तो कल सुबह 6 बजे घर आकर 'मेरे' से हिसाब कर लेना!

मुझे उसे हिदायत देता देख पिताजी चौंक गए, उनके चेहरे पर आई शिकन उनकी परेशानी साफ़ ब्यान कर रही थी| मैंने उस समय उन्हें कुछ नहीं कहा और उनके साथ कमरे के बाहर आया तो पिताजी दबी हुई आवाज में बोले;

पिताजी: बेटा इसने काम छोड़ दिया तो सारा काम लटक जायेगा!

पिताजी की बात सुन मैंने कुछ इस कदर ऊँची आवाज में जवाब दिया ताकि वो कारपेंटर मेरी बात सुन ले;

मैं: देखिये पिताजी, बजार में एक दिन की दिहाड़ी 400/- रुपये है और हम 500/- देते हैं! फिर आज 7 बजे तक काम करने पर overtime भी मिल रहा है, तो काम करने में कोई परेशानी नहीं आनी चाहिए| फिर भी अगर कोई काम छोड़ता है तो कोई दिक्कत की बात नहीं है, बजार में कारपेंटरों की कोई कमी थोड़े ही है?! एक तो कारपेंटर मेरे ही ऑफिस में काम कर रहा है, मैं उसे बोल दूँगा तो वो कल से आ जायेगा|

मैंने बात इतनी सरलता से कही जिसे सुन पिताजी अचरज में पड़ गए| दरअसल पिताजी काम को बहुत जज्बाती तौर पर लेते थे, इसी का फायदा उठा कर लेबर उनके सर बैठ जाया करती थी पर मुझे उन्हें सर चढाने को कोई शौक नहीं था| काम करवाने के लिए मैं थोड़ा-थोड़ा झूठ बोल दिया करता था, इस झूठ से लेबर में थोड़ा डर बना रहता था और अपना काम हो जाता था| इसीलिए मैंने ऑफिस में कारपेंटर होने का झूठ बोला था और जाते-जाते मैंने एक झूठ और पिताजी को चिपका दिया जिसे पिताजी ने हँसते हुए पकड़ लिया;

मैं: पिताजी वो अंकल जी से बात हुई थी, वो कह रहे थे की दो साइट का काम और है तो इसे जल्दी से निपटाइए ताकि वहाँ काम शुरू करें!

इतना कहते हुए मैं घर वापस निकल आया| रात को जब पिताजी आये तो उन्होंने हँसते हुए माँ को मेरी चतुराई गिनाई और माँ को मुझ पर बड़ा गर्व हुआ|

खैर पिताजी का काम अच्छे से चल पड़ा था और इधर मैं करुणा से बात करते हुए दिन काट रहा था, पर ये text चैट मुझे पसंद नहीं थी! मैं उससे बात करना चाहता था लेकिन मुझे डर था की कहीं उसे बुरा न लगे, या फिर कहीं वो ये न समझे की मैं कोई ठरकी आशिक़ हूँ जो उसके पीछे पड़ा है! मैं करुणा से whats app पर बात कर रहा हूँ ये घर में कोई नहीं जानता था, अगर वो आ कर यहाँ बोल देती तो माँ तो शायद कुछ न कहतीं पर पिताजी गुस्सा जर्रूर होते और फिर मेरी शादी के लिए दबाव बनना शुरू हो जाता! इसी डर से मैं शांत था, पर एक दिन उसी ने मुझे कॉल किया और मैंने जोश-जोश में कॉल उठा लिया| फ़ोन उठा तो लिया पर उससे बात करने में घिघी बँध गई! 5 सेकंड तक में खामोश रहा और उधर वो हेल्लो-हेल्लो करती रही!

मैं: हे...हेल्लो!

मेरी आवाज में कँपकँपी महसूस कर वो बहुत हँसी और इधर मैं शर्म से लाल होने लगा|

करुणा: इतना shy क्यों है आप?

उसने हँसते हुए पुछा|

मैं: वो...आपका कॉल unexpected था!

ये सुन वो खिलखिलाकर हँसने लगी|

करुणा: आज ऐसे ही आपको कॉल करना मन हुआ|

मैं: ओके!

अब इससे ज्यादा मैं क्या बोलता, पर शुक्र है की उसे बात करने का शौक था| हमारी बातें शुरू हुईं और धीरे-धीरे मैं इसका आदि हो गया| हमारी बातें जब शुरू होतीं तो कम से कम पोना घंटे तक चलती थी, जिस कारन ऑफिस में मुझे admin से बहुत सुनना पड़ता था| पर मैंने करुणा को कभी कुछ नहीं बाताय, मैं उससे हेडफोन्स लगा कर बात करने लगा और साथ-साथ अपना काम करता रहता| इतनी देर बात करने से उसका और मेरा दोनों का खर्चा होता था, क्योंकि कभी वो कॉल करती और कभी मैं| तो इसका मैंने एक रास्ता निकाला, मैंने वोडाफोन का पोस्टपेड कनेक्शन लिया और उसका नंबर फ्रेंड्स एंड फॅमिली प्लान में डलवा कर फ्री करवा लिया| अब मेरे उसे कॉल करने से कोई कॉल चार्ज नहीं लगता था| जब उसे ये पता चला तो उसने मुझे मैसेज कर के कॉल करने को कहना शुरू कर दिया|

हमारी इन लम्बी-लम्बी बातों के जरिये उसे मुझ पर विशवास हो गया क्योंकि मैंने उससे कभी तू-तड़ाक या फिर कोई भी अश्लील बात नहीं की थी| ये मेरा प्रभाव था जो उस पर इस कदर पड़ा था की उसे मुझ पर भरोसा हो चला था| उसने मुझे अपने बारे में सब कुछ बताया, अपने relationship से ले कर अपने परिवार वालों तक सब कुछ! एक मैं ही था जिसने अभी तक उसे भौजी और मेरे बेटे के बारे में कुछ नहीं बताया था, शायद मुझे अभी तक उस पर इतना भरोसा नहीं हुआ था| करुणा के नर्सिंग कॉलेज के दिनों में एक लड़के से उसे प्यार हुआ था, पर वो लड़का हवसी था| उसने करुणा को बहकाने की कोशिश की पर करुणा एक सच्ची christian लड़की थी इसलिए उसने 1-2 बार kiss से आगे उसके साथ कुछ नहीं किया| करुणा ने अपनी बहन को उस लड़के के बारे में बताया तो उसने उस लड़के से दूर रहने की सलाह दे दी! करुणा ने उसे लड़के को शादी करने के लिए दबाव दिया और इस दबाव में उसने भूल से उस लड़की को अपनी जायदाद के बारे में बता दिया| पर ये जायदाद करुणा के नाम नहीं थी, उसकी माँ पूरी जायदाद पर कुंडली मारे बैठी थी और अपनी दोनों बेटियों को कुछ नहीं देती थी| इधर उस लड़के ने अपने लालची बाप से सब बता दिया और उसका बाप करुणा की माँ के घर लालच की लार टपकाते हुए पहुँच गया| करुणा की माँ इस लालच को भाँप गई और उन्होंने इस शादी से मना कर दिया| उस लड़के के बाप को इतनी मिर्ची लगी की उसने फ़ौरन अपने बेटे की शादी कर दी और करुणा के घर आ कर उसकी माँ को सुना कर चला गया| वो लड़का अपनी शादी के बाद गल्फ चला गया जहाँ उसे अच्छी नौकरी मिल गई थी, पर उसकी करुणा के साथ सेक्स करने की चुल्ल खत्म नहीं हुई थी| इधर करुणा के मन में उसके लिए अब भी प्यार था, उस लड़के ने गल्फ से करुणा को कॉल करना शुरू किया और उसे नौकरी के बहाने गल्फ बुलाने लगा| लेकिन करुणा के पास पासपोर्ट नहीं था, इसलिए वो बच गई पर उस लड़के ने उस पर बहुत दबाव डालना शुरु किया और एक दिन बातों-बातों में अपने प्यार का इजहार दुबारा किया| करुणा साफ़ दिल की थी उसे यूँ उस लड़के का अपनी पत्नी को धोखा देना अच्छा नहीं लगा तो उसने उसे ये रिश्ता खत्म करने के लिए कहा| पर वो लड़का जानता था की उसे करुणा को कैसे लाइन पर लाना है, उसने करुणा को emotional blackmail करना शुरू कर दिया और ये पागल भी उसकी बातों में आ गई पर कभी कोई गलत काम नहीं किया| इनका प्यार बस कॉल तक सिमट कर रह गया था, फिर एक दिन करुणा को नजाने क्या सूझी की उसने उस लड़के का फेसबुक अकाउंट खोल लिया| उस लड़के ने करुणा को अपना फेसबुक का पासवर्ड करुणा के नर्सिंग कॉलेज के दिनों में बता दिया था, पर वो उल्लू बाद में उसे चेंज करना भूल गया था! जैसे ही करुणा ने उसका फेसबुक खोला वो देख कर दंग रह गई की जिस लड़के को वो प्यार करती है वो तो नजाने कितनी लड़कियों से सेक्स चैट करने में बिजी है! करुणा को बहुत गुस्सा आया और उसने उस लड़के को फ़ोन कर के खूब सुनाया, वो लड़का बस माफियाँ माँगता रह गया| करुणा ने उससे बात करनी बंद कर दी और दिल्ली आ गई, यहाँ आ कर उसे बड़े जुगाड़ और पैसे खिलाने के बाद एक प्रोजेक्ट में नौकरी मिल गई| पोस्ट कुछ और थी पर काम वो नर्सिंग का ही करती थी, सैलरी अच्छी थी पर ये प्रोजेक्ट साल भर चला होगा और फिर उसे निकाल दिया गया| उन्हीं दिनों उसकी नानी की तबियत खराब होने पर वो वापस केरला चली गई और वहीं रह कर उनकी देखभाल करने लगी| इस बीच उसकी शादी के लिए बात चलाई गई पर उसके काले रंग और शरीर से कमजोर होने के कारन बात नहीं बनी| उसकी नानी जी बिमारी से ज्यादा लड़ नहीं पाईं और जल्द ही उनकी मृत्यु हो गई| उनकी मृत्यु होने के बाद वो दुबारा काम ढूँढने दिल्ली आ गई| इन कुछ सालों तक वो लड़का चुप बैठा था, पर अब उसने फिर से करुणा को परेशान करना शुरू कर दिया| वो उसे अलग-अलग नम्बरों से फ़ोन करता और जबरदस्ती उससे मिलने की कहता, ये अपनी दीदी के पास थी तो बची हुई थी पर उस लड़के को इससे बात करने का मौका तो मिल ही गया था| ये गधी भी उस ठरकी लड़के से बातें करती रहती, पर किसी तरह से इसने अपने को उसके प्यार में पड़ने से बचा लिया था|

उसकी सारी कहानी सुन कर मैं जान गया था की करुणा बहुत ही भावुक लड़की है और उसमें थोड़ी बहुत suicidal tendencies भी हैं| मेरा दिल अब उसकी ओर बहना लगा था, उसे इस तरह दुःख में देख मुझे मेरा समय याद आने लगा| मेरे पास तो जीने का सहारा मेरी माँ थी, पर उस बेचारी के पास कुछ नहीं था| मैंने सोच लिया की मैं उसे सहारा दूँगा और उसे उसके दुखों के सागर से बाहर लाऊँगा| मैंने बातों-बातों में उसकी फेसबुक आई डी पूछी और उसे फ्रेंड रिक्वेस्ट भेजी| उसके फेसबुक पेज से मुझे उसकी जन्मथिति पता चली और मैंने मन ही मन इस दिन को उसके लिए ख़ास बनाने की सोच ली| वहीं उससे बातें करते हुए मैंने उसे सकरात्मकता की तरफ ले जाना शुरू कर दिया| सबसे पहले उसे समय से सोने और समय से जागने के लिए प्रेरित करने लगा, फिर उसे ठीक से खाना खाने के लिए उसे मेरे खाना न खाने की धमकी से डराने लगा| मेरे खाना न खाने की बात से वो डर जाती और खाना खाती, कभी-कभी मैं उससे प्लेट में परोसे खाने की तस्वीर माँगता ताकि मुझे ये संतुष्टि रहे की उसने सच में खाना खाया है|

ऐसा नहीं था की वो मेरी सारी बातें मानती थी, बहुत जिद्दी थी और कई बार मेरी बातों को हलके में ले कर टाल दिया करती थी| मुझे गुस्सा तो बहुत आता पर मैं उसे प्यार से समझाता उसे उसकी सेहत का वास्ता देता| कभी-कभी वो बात मान जाती और कभी-कभी उसके भेजे में कुछ नहीं घुसता! वो कभी अपनी बहन से लड़ाई तो कभी उस लड़के के कॉल आने का बहाना देती, मैं उसकी बात मान लेता और उसका दर्द इत्मीनान से सुनता| फिर एक दिन उसने बताया की उसके जीजा की नीयत उस पर खराब होने लगी है! अब घर में कोरा माल हो तो ठरकी आदमी की ठरक जाग ही जाती है! लेकिन करुणा का जीजा था फुस्सी बम, वो करुणा को घूर कर जर्रूर देखता पर उससे (करुणा से) कुछ कहने की कभी कोई हिम्मत नहीं हुई! एक दिन उसने बहुत हिम्मत कर के अपनी ठरक करुणा को दिखाई, उसने अपना धुला हुआ कच्छा ले जा कर करुणा के धुले हुए undergarments के साथ पलंग पर रख दिया| उसी दिन करुणा की बहन ने ये कपडे देख लिए और बजाए अपने पति को कुछ कहने के करुणा को झाड़ दिया! ये बात मुझे बताते हुए करुणा फफक कर रोने लगी, पता नहीं क्यों पर उसकी आँखों में आँसूँ मुझसे देखे नहीं गए! उसके आँसूँ और सिसकने की आवाज सुन मैं पिघल गया और उसे फ़ोन पर ही सांत्वना देने लगा, अगले एक घंटे तक मैं उसकी बात सुनता रहा और उसे दिलासा देता रहा|

करुणा की बहन ये जान चुकी थी की करुणा किसी लड़के (यानी मुझसे) से फ़ोन पर बहुत बात करती है और अब उसने इसके लिए भी उसे ताना मारना शुरू कर दिया था| जब करुणा ने मुझे ये बताया तो मैंने उससे कहा;

मैं: अब से हम कम बात करेंगे|

ये सुनते ही करुणा मायूस हो गई और बोली;

करुणा: आप ऐसा क्यों बोल रे dear?

मैं: मैं नहीं चाहता की मेरी वजह से आपकी जिंदगी में कोई समस्या खड़ी हो|

मेरी बात से करुणा समझ गई की उसकी बहन को मेरे कारन उसे डाँटना मुझे पसंद नहीं आया, इसलिए वो तपाक से बोली;

करुणा: वो (उसकी बहन) कुछ भी बोल रे तो उसे बोलने दो! आप मेको (मेरे को) कॉल तब तक करना जबतक मैं आपको न मना कर दे! मेरा पास बस एक आप ही friend है, आप भी बात नहीं कर रे तो मैं मर जाएगा (जाऊँगी)!

करुणा मुझ में एक सच्चा दोस्त पा चुकी थी और नहीं चाहती की मैं उससे बात करना छोड़ दूँ, इसलिए मैंने उस दिन से ये ध्यान रखना शुरू कर दिया की मैं उसे फ़ोन तब ही करूँ जब उसकी बहन उसके आस-पास न हो|

2 दिन बाद ही करुणा से फिर मुझे एक दुखद खबर जानने को मिली, उसके घर पर गैस खत्म हो गई थी| इस गलती का ठीकरा उसकी बहन ने करुणा के सर ही फोड़ा और अपने पति तथा बच्ची के साथ बाहर खाना खाने चली गई| उसने करुणा से पुछा तक नहीं, बस फ़ोन कर के कह दिया की वो लोग खाना खा कर आएंगे| रात के 8 बजे थे और मैं घर पहुँचा था जब करुणा का मैसेज आया की मैं उसे कॉल करूँ, जब मैंने उसे कॉल किया और खाने के बारे में पुछा तो उसने ये बात बताई| ये सुन कर मुझे बहुत गुस्सा आया;

मैं: आप अपना घर के बाहर आओ, मैं खाना ले कर आ रहा हूँ!

मैं एकदम से बोला तो वो मना करने लगी;

करुणा: No...no..no...!!!

करुणा घबराते हुए बोली! उसका घबराना जायज था, एक लड़का उसे खाना देने जायेगा तो जो कोई भी देखेगा वो बातें बनाएगा!

मैं: अच्छा आप मुझे address दे दो, मैं online pizza आर्डर कर देता हूँ|

मैंने कहा तो वो मना करने लगी, उसका घर पर पिज़्ज़ा खाना उसकी बहन को न ग्वार होता और वो लाखों सवाल पूछती की उसके पास पैसे कहाँ से आये?! अब मुझे उसकी चिंता हो रही थी की वो बेचारी क्या खायेगी, उस टाइम paytm था पर बहुत कम लोग इस्तेमाल करते थे इसलिए मैं उसे पैसे भेज नहीं सकता था| मैंने उसे बहुत कहा की वो मैगी ले आये और खा ले पर वो नहीं मानी और बोली;

करुणा: आप मेरा tension मत लो, मैं ब्रेड खा लेते!

मैं भी कहाँ मानने वाला था, मैंने उससे तबतक बात की जबतक उसने सैंडविच नहीं बना लिया और उसे फोटो whats app करने को कहा| उसकी फोटो whats app पर आने के बाद मुझे चैन मिला और मैंने उसे गुड नाईट बोलकर फ़ोन काटा| फ़ोन काट कर जैसे ही मैं पलटा तो देखा की माँ मेरी सारी बात सुन चुकी थी, मैंने उन्हें सारी बात बताई तो उन्हें बहुत बुरा लगा|

ऐसा कई बार हुआ जब मैं करुणा से बात कर रहा होता तो माँ आस-पास होतीं और उन्हें पता चल जाता की मैं करुणा से बात कर रहा हूँ| माँ कुछ नहीं कहतीं थी पर मुझे लग रहा था की माँ को मेरा यूँ करुणा से घंटों बात करना अखरता है, इसलिए मैंने उसे छुप-छुप कर कॉल करना शुरू कर दिया| एक-दो बार जब मैं छत पर करुणा से बात कर रहा था तब माँ अचानक से आ गईं और उन्हें देखते ही मैंने उससे अंग्रेजी में बात करना शुरू कर दिया ताकि माँ को पता न चले की मैं किस से बात कर रहा हूँ, पर ये चालाकी हरबार नहीं चलती इसलिए जब माँ आ जातीं तो मैं करुणा से कुछ इस तरह बात करता की माँ को लगे की मैं दिषु से बात कर रहा हूँ| ऐसे ही एक दिन हुआ जब मैं छत पर घुमते हुए करुणा से बात कर रहा था और माँ पीछे से आ गईं थीं;

मैं: और कैसे है?

करुणा ने जब ये सुना तो उसे लगा की मैं उसे चिढ़ाने के लिए उसकी हिंदी का मजाक उड़ा रहा हूँ|

मैं: क्या हाल-चाल, सब बढ़िया है?

करुणा: ऐसे क्यों बोल रे?

करुणा को कुछ शक होने लगा था|

मैं: यार मैं बस अभी-अभी घर पहुँचा, 'तू' सुना 'कैसा' है?

मैंने 'तू' और 'कैसा' शब्द पर इतना जोर डाल कर कहा की पास खड़ी माँ को इत्मीनान हो गया की मैं दिषु से बात कर रहा हूँ, इसलिए वो बिना कुछ कहे मुस्कुराती हुई नीचे चली गईं| बाद मैंने करुणा को सब बताया तो वो बहुत हँसी और बोली;

करुणा: Very smart मिट्टू!

आज से पहले जब भी हम बात करते थे तो वो मुझे 'dear' कह कर सम्भोधित करती थी, उसका मुझे 'dear' कहना मुझे बहुत अच्छा लगता था क्योंकि इतने सालों तक किसी ने भी मुझसे 'dear' कह के बात नहीं की थी| मेरा दिल ने इस शब्द का ये मतलब निकाला था; 'वो इंसान जो दिल के सबसे करीब हो!' किसी के दिल के करीब होना वो भी एक लड़की के मेरे लिए एक अनोखी बात थी| अब उसका मुझे 'मिट्टू' शब्द से सम्भोधित करना मेरे लिए ऐसा था मानो जैसे कोई चाशनी में डूबा हुआ शब्द मेरे कानों में पड़ा हो! ये शब्द सुन कर में कुछ सेकंड के लिए मोहावस्था में चला गया था, उधर करुणा को लगा की मुझे उसका मुझे 'मिट्टू' कहना अच्छा नहीं लगा तो वो माफ़ी माँगते हुए बोली;

करुणा: I'm sorry dear!

उसके बोलने से मैं जैसे होश में आया और मुस्कुराते हुए बोला;

मैं: अरे आपको माफ़ी माँगने की कोई जर्रूरत नहीं, मैं आपसे नाराज नहीं हूँ| दरअसल आपके मुझे 'मिट्टू' कहने से मुझे बहुत अच्छा लगा, पर आपने मुझे अचानक मिट्टू क्यों बोला?

ये सुन कर उसे इत्मीनान हुआ की मैंने उसकी बात का बुरा नहीं लगाया है|

करुणा: आप है न बहुत cute है!

ये बोल कर वो हँसने लगी|

करुणा: First time आपको देखा न तो आप बहुत silent ता, एकदम 'toto' (tortoise) जैसा, अपना shell में silent बैठा हुआ! आप मेरे से बात भी कम करता ता, पर अभी हम कितना बात करते और आप मुझसे इतना प्यार से बात करते, मेरा हिंदी ठीक करते तो इसलिए अमीने आज आपको प्यार से मिट्टू बोला!

उसकी ये बात सुनकर मुझे बहुत हँसी आई!

उस दिन से करुणा ने मुझे 'मिट्टू' कहना शुरू कर दिया, उसने मेरा नंबर अपने फ़ोन में मिट्टू नाम से save कर लिया| कई बार जब हम बात कर रहे होते तो उसकी बहन की बेटी आस-पास होती और अपनी मौसी को मुझे मिट्टू बोलते सुन वो भी मुझे मिट्टू कहने लगी थी| उस बच्ची ने घर में मिट्टू-मिट्टू कहना शुरू कर दिया और इस तरह करुणा की बहन को पता चल गया की मेरा नाम मिट्टू है! उसे करुणा को नया ताना मारने का मौका मिल गया, जब भी कभी उसका फ़ोन बजता, भले ही वो मेरा नंबर नहीं होता था क्योंकि मैं उसकी बहन के घर होने पर कॉल नहीं करता था तो वो (करुणा की बहन) उसे ताना मरती की तेरे मिट्टू का फ़ोन होगा| इस तरह मेरा नाम रख कर वो बेचारी खुद ही ताने सुनने लगी थी!

खैर दिन बीते और उसका जन्मदिन आ गया, मैंने सोच लिया था की मुझे करुणा का birthday कैसे मनाना है पर उसके लिए एक बहुत बड़ी अड़चन थी! वो अड़चन थी उसकी बहन और उसका पति, मैंने प्लान तो ऐसा बनाया था जो ठीक से अम्ल में आने पर करुणा के चेहरे में मुस्कान ले आता| 20 जनवरी को ठीक रात 12 बजे मैंने करुणा को फ़ोन किया और उसे birthday wish किया! उसने मुझे खुसफुसाते हुए 'thank you' कहा, उसके चेहरे पर आई मुस्कान मुझे फ़ोन पर महसूस हो रही थी|

मैं: अच्छा dear मैं आपसे कुछ माँगूँ तो आप मन तो नहीं करोगे?

ये सुन कर उसने एक सेकंड नहीं लिया और बोली;

करुणा: हाँ जी माँगो!

उसने ये हाँ जी बोलना मुझसे सीखा था, जब भी वो हाँ जी बोलती तो मुझे पक्की पंजाबन लगती!

मैं: Dear कल आप मेरे साथ dinner करोगे?!

मैं जानता था की मैं जो कदम बढ़ा रहा हूँ वो बहुत जल्दीबाजी की निशानी है और करुणा साफ़ मना कर देगी पर वो एकदम से बोली;

करुणा: Ok dear!

अब मैंने इतनी जल्दी हाँ की उम्मीद तो कतई नहीं की थी, मैं जानता था की थोड़ा न-नुकुर के बाद मैं उससे हाँ बुलवाऊँगा पर वो तो एकदम से मान गई थी!

मैं: Wow! इतनी जल्दी हाँ कर दी आपने?

ये सुन कर वो धीमे से हँसी और बोली;

करुणा: मेरी दीदी कल सुबह out of station जा रे और मेरा जीजू का night shift है!

ये सुन कर मैंने भगवान को बहुत शुक्रिया किया की उन्होंने मेरा करुणा को ख़ुशी देने का प्लान flop होने से बचा लिया|

मैं: और Angel?

Angel करुणा की बहन की लड़की का नाम था|

करुणा: वो भी दीदी के साथ जा रे!

अब मेरा रास्ता साफ़ था और मेरी ख़ुशी का कोई ठिकाना नहीं था| मैंने कल करुणा से मिलने का समय तय किया, तो उसने मुझे अपने घर बुलाया| अब उसके घर जाने की बात से मैं थोड़ा घबरा रहा था, लेकिन मैनेअपनी ये घबराहट अपने चेहरे पर आने नहीं दी| अगले दिन की छुट्टी मैं पहले ही ले चूका था, बस मुझे अपनी प्लानिंग के तहत काम करना था|

[color=rgb(51,]जारी रहेगा भाग 6 में...[/color]
 

[color=rgb(65,]इक्कीसवाँ अध्याय: कोशिश नई शुरुआत की[/color]
[color=rgb(251,]भाग -6[/color]


[color=rgb(44,]अब तक आपने पढ़ा:[/color]

करुणा: मेरी दीदी कल सुबह out of station जा रे और मेरा जीजू का night shift है!
ये सुन कर मैंने भगवान को बहुत शुक्रिया किया की उन्होंने मेरा करुणा को ख़ुशी देने का प्लान flop होने से बचा लिया|
मैं: और Angel?
Angel करुणा की बहन की लड़की का नाम था|
करुणा: वो भी दीदी के साथ जा रे!

अब मेरा रास्ता साफ़ था और मेरी ख़ुशी का कोई ठिकाना नहीं था| मैंने कल करुणा से मिलने का समय तय किया, तो उसने मुझे अपने घर बुलाया| अब उसके घर जाने की बात से मैं थोड़ा घबरा रहा था, लेकिन मैनेअपनी ये घबराहट अपने चेहरे पर आने नहीं दी| अगले दिन की छुट्टी मैं पहले ही ले चूका था, बस मुझे अपनी प्लानिंग के तहत काम करना था|

[color=rgb(255,]अब आगे:[/color]

सुबह जल्दी उठा और नाहा-धो कर तैयार हो गया, घर पर मैंने एक colleague का बर्थडे होने का झूठ पहले ही बोल दिया था, अगर करुणा के बर्थडे का सच बोलता तो माँ-पिताजी के सवाल शुरू हो जाते| अब सुबह जल्दी उठा था तो पिताजी ने साइट का काम दे दिया और मुझे साइट पर निकलना पड़ा| वहाँ पहुँच कर देखा तो काम लगभग फाइनल था, modular kitchen बहुत बढ़िया लग रहा था और साथ ही हमने बिना कहे ही चिमनी भी बढ़िया वाली लगा दी थी| मैं निकलने को हुआ तो मिश्रा अंकल जी आ गए और काम देख कर बहुत खुश हुए!

मिश्रा अंकल जी: बेटा हम तोहरे लगे ही आवत रहन!

उनकी बात सुन कर मुझे लगा की कोई जर्रूरी काम होगा;

मैं: कोई ख़ास काम था अंकल जी?

मिश्रा अंकल जी: अरे नाहीं मुन्ना! हम कलिहाँ काम देख गयन रहे और आभायें एक ठो पार्टी आवत है जो हमका एडवांस देइ, हम ओहि एडवांस तो का दिए आवत रहन!

ये सुन कर मैं बहुत खुश हुआ की चलो आज ही पैसे मिल जायेंगे| तभी उनकी पार्टी आ गई और उसे काम बहुत पसंद आया, उसने तुरंत मिश्रा अंकल जी को एडवांस का चेक दे दिया| उनके जाते ही मिश्रा अंकल जी ने 35,000/- का चेक काट कर मुझे दे दिया!

मिश्रा अंकल जी: ई लिहो मुन्ना, तोहार मेहनत की पहली कमाई! तोहार काम बहुत साफ़-सुथरा है और एहि खातिर हम तोहका दुइ ठो और ठेका देइत है!

चेक मिलने से मैं बहुत खुश था और अंकल जी मुझे अपने साथ उन दो location पर ले जाना चाहते थे, इसलिए मैंने लेबर को बुलाया और उसे हुक्म देते हुए कहा;

मैं: आज शाम तक कारपेंटर भैया काम खत्म कर देंगे, उसके बाद सारे कमरों में ढंग से झाड़ू-पोछा लगा के शाम को चाभी दे जाना और कल सुबह नई वाली साइट पर मिलना वहीं अभी तक का हिसाब पिताजी से ले लेना और नया काम मिला है तो दो आदमी और ले आना|

इतना कह मैं मिश्रा अंकल जी के साथ दोनों साइट देखने चल पड़ा| रास्ते में बैंक आया तो अंकल ने और मैंने अपना-अपना चेक जमा कराया| फिर अंकल जी ने मुझे दोनों साइट का काम दिखाया, modular kitchen के अलावा यहाँ पर बाथरूम का ख़ास काम था, यहाँ पर बाथरूम में शावर के लिए गिलास का पैनल लगाना था| आज तक ऐसे बाथरूम मैंने बस टीवी में देखे थे और इन्हें बनाने के लिए जो समान चाहिए था उसके लिए थोड़ी छानबीन करनी थी| दोपहर को घर आते हुए मैं गिलास पैनल की जानकारी ले कर घर पहुँचा| सबसे पहले मैंने पिताजी को पैसे मिलने की खुशखबरी दी, उसके बाद उन्हें दो नई साइट्स के बारे में बताया और साथ ही में ग्लास पैनल की जानकारी उन्हें दी| खाना खाते हुए हमने दोनों ठेकों का मोटा-मोटा हिसाब लगा लिया था, मुझे बस बैठ कर उसमें cost cutting करनी थी जिसमें मुझे महारत थी! लेकिन वो बाद में, खाना खा कर मैं छत पर आया और आज रात जहाँ डिनर के लिए जाना था उस रेस्टुरेंट में टेबल बुक किया| वैसे आजतक मैंने कभी टेबल बुक नहीं किया था, इसलिए पहलीबार टेबल बुक करने में थोड़ा डर लग रहा था|

शाम 5 बजे से मैं तैयार होना शुरू हुआ, मैंने नई शर्ट पहनी जो मैंने ख़ास कर करुणा के बर्थडे के लिए खरीदी थी, नीचे जीन्स और शर्ट के ऊपर एक नेहरू जैकेट भी पहनी| तैयार होते समय मेरे दिमाग में एक ख्याल आया, वो ये की अगर करुणा को रास्ते में ठंड लगी तो? इसलिए मैंने अपनी एक जैकेट भी ओढ़ ली जिसे मैं जर्रूरत पड़ने पर करुणा को दे देता| इस जैकेट ने आगे चलकर मेरे प्लान में एक बहुत ख़ास रोल अदा किया था|

6 बजे मैं तैयार हो कर निकला और पौने सात बजे तक मैं करुणा के घर के पास पहुँच चूका था, सबसे पहले मैंने ATM से 5,000/- रुपये कॅश निकाले ताकि अगर ATM न चले तो कम से कम कॅश से पैसे भर सकूँ| अब करुणा के घर खाली हाथ जाना अच्छा नहीं लग रहा था तो मैंने आस-पास नजर दौड़ाई और देखा तो एक फूल वाला बैठा हुआ है| फूल देखते ही मेरे मन में एक 'चुल्ल' पैदा हुई, मैंने फूल वाले से 500/- रुपये का लाल गुलाब वाला bouquet बनवाया! इस bouquet को बनवाने का कारण था मेरा एक शौक पूरा करना, मैंने आजतक किसी भी लड़की को bouquet नहीं दिया था तो आज ये bouquet दे कर मैं अपना वही शौक पूरा करना चाहता था| हाँ लाल गुलाब चुनने में मुझे बड़ा अजीब लग रहा था पर उस फूल वाले के पास सिर्फ सफ़ेद फूल ही बचे थे, अब मैं किसी की मैयत पर तो जा नहीं रहा था की सफ़ेद फूल ले जाऊँ! खैर bouquet तैयार हुआ तो एक मुसीबत खड़ी हो गई, वो ये की इसे करुणा के घर तक कैसे ले जाऊँ? अगर उसके किसी जानने वाले ने मुझे लाल गुलाब का bouquet उसके घर ले जाते हुए देख लिया तो वो बेचारी बहुत बड़ी मुसीबत में फँस जाती, उसी वक़्त दिमाग की बत्ती जाली और मैंने अपनी पहनी हुई जैकेट उतारी| मैंने bouquet बाएँ हाथ में पकड़ा और अपनी जैकेट बाएँ हाथ के ऊपर ढक ली| अपनी इस होशियारी पर मुझे गर्व हो रहा था और मैं बड़े गर्व से करुणा के दिए पते की ओर बढ़ रहा था| इतने में करुणा का फ़ोन आया और उसने मुझसे पुछा की मैं कहाँ हूँ, तो मैंने उसे बताया की मैं एक केरला स्टोर के पास खड़ा हूँ, उसने मुझे वहाँ से ले कर अपने घर तक सारा रास्ता फ़ोन पर बताया| मैं उसके दिए हुए निर्देशों का पीछा करते हुए उसके घर पहुँचा, उसका फ्लैट तीसरी मंजिल पर था| मैं वहाँ पहुँचा और बेल्ल बजाई, करुणा ने घर का दरवाजा खोला और मुझे देख कर उसके चेहरे पर एक लम्बी मुस्कान तैर गई!

उसने मुझे अंदर आने को कहा, मैंने जूते उतारे और अंदर प्रवेश किया| सबसे पहले मैंने उस जैकेट में छुपा हुए bouquet दिया तो उसकी मुस्कान दुगनी हो गई;

मैं: Happy birthday dear! God आपकी सारी wish पूरी करे और आपको बहुत सारी खुशियाँ दे!

मैंने करुणा को दिल से बधाई दी, जिसे पा कर उसके चेहरे पर आई ख़ुशी आँसूँ का एक कतरा बन कर छलक आई|

करुणा: Thank you so much मिट्टू!

करुणा अपने ख़ुशी के आँसूँ पोछते हुए बोली| उसने बड़े प्यार से वो bouquet लिया और अपने कमरे में रख आई और मुझसे मुस्कुराते हुए बोली;

करुणा: आज तो मिट्टू बहुत handsome लग रे!

करुणा मेरी तारीफ करते हुए बोली|

मैं: आज आपका बर्थडे है, life में first टाइम हम अकेले मिले हैं और डिनर करने जा रहे हैं तो अच्छे से dress होना तो बनता था न?!

ये सुन कर करुणा शर्मा गई!

मैं: अब आप time waste मत करो और अच्छे से dress करके आओ|

करुणा: आप कॉफ़ी लेते?

मैं: No...no....no! आप जल्दी से तैयार हो जाओ, कोई अगर आ गया तो आपके लिए प्रॉब्लम हो जाएगी!

मैंने अपनी चिंता जाहिर की जिसे सुन करुणा को एहसास हुआ की एक घर में हम दोनों का अकेला होना उसके लिए मुसीबत का सबब बन सकता था! वो अपने कमरे में गई और दो dresses उठा कर लाई और मुझे दिखाते हुए पूछने लगी;

करुणा: कौन सा अच्छा है?

मैंने बारीकी से उन dresses को देखा, एक ब्लैक कलर का टॉप और जीन्स थी, दूसरा नेवी ब्लू कलर का टॉप और स्कर्ट थी|

मैं: नेवी ब्लू टॉप और जीन्स पहनो|

मैंने दोनों dresses को interchange कर दिया, मेरी पसंद सुन कर करुणा बहुत खुश हुई और तैयार होने चली गई| उसकी dress select करते समय मैंने बस करुणा के skin tone का ध्यान रखा था, ब्लैक और नेवी ब्लू उस पर बहुत फबते यही सोच कर मैंने उसे dress select करके दी थी|

लड़कियों का तैयार होना मतलब कम से कम एक घंटे का समय बर्बाद तो मैंने उसके drawing room में घूमना शुरू कर दिया| दरवाजे के ठीक सामने की तरफ पूजास्थल था जहाँ पर अगल-बगल दो candle holder रखे थे और बीचों बीच Jesus Christ की तस्वीर थी, पास ही एक माला थी जिसे rosary कहते हैं| मैं उस पूजा स्थल के सामने हाथ जोड़ कर खड़ा हो गया और भगवान से प्रार्थना करना लगा की वो करुणा को लम्बी उम्र दे और उसे खूब सारी खुशियाँ दे| पूजास्थल के बगल में ही करुणा के पिताजी की एक ब्लैक एंड वाइट तस्वीर टंगी थी| दिखने में वो बिलकुल साधारण थे पर उन्हें देख कर लग रहा था की वो अपने जमाने में कितने handsome रहे होंगे|

इसके अलावा drawing room में और कुछ खास नहीं था, टीवी, फ्रिज, सोफा बस यही था| अब समय पार करना था तो मैंने अपना फ़ोन निकाला और गेम खेलने लगा, करीब आधे घंटे बाद करुणा तैयार हो कर आई और जब उसे सजा-धजा देखा तो बस देखता रहा! उसने अपने बालों का bun बनाया हुआ था जिससे उसकी पतली और लम्बी गर्दन साफ़ दिखती थी! नीचे नेवी ब्लू कलर का टॉप जो हाफ स्लीव था और plain था, नीचे sky blue कलर की टाइट जीन्स! कपडे साधारण भले ही थे पर उसकी ख़ूबसूरती में ज़रा भी कमी नहीं आई थी| उसके चेहरे की ओर ध्यान से देखा तो पाया की उसने कुछ makeup नहीं किया था, उसने बस मुँह धोया था और होठों पर lip balm लगाया था जिससे उसका निचला होंठ कुछ ज्यादा मोटा लग रहा था तथा lip balm के कारन चमक रहा था!

मुझे खुद को यूँ निहारते देख करुणा शर्मा गई और बोली;

करुणा: कैसे लग रे मैं?

मैं: Beautiful!

इससे ज्यादा कुछ कहना हम दोनों को अजीब (akward) महसूस करवाता!

करुणा: सच?..... एक मिनट.....आप wait करो....!

इतना कह कर वो अपने कमरे में भाग गई और जब वापस आई तो उसकी ख़ूबसूरती अचानक से दुगनी बढ़ चुकी थी! दरअसल उसने अपनी आँखों पर eye liner लगाया था, उसकी ख़ूबसूरती का सबसे बड़ा कारन उसकी आँखें थीं| जब वो eyeliner लगा कर आई तो उसकी नजरें पैनी हो गईं और उन आँखों को आज देख कर फिर से दिल में तरंग उठने लगी थी!

मैं: 5 मिनट में double beautiful हो गए आप तो?!

मैंने करुणा की तारीफ करते हुए कहा, जिसे सुन उसके गाल गुलाबी हो गए!

करुणा तैयार थी तो हम निकलने लगे, तभी बाहर से हमें लोगों की आवाज आने लगी| ये आवाज सुन कर हम दोनों डर गए, मुझे लगा की जर्रूर करुणा की दीदी और जीजा होंगे और वो मुझे यहाँ देखेंगे तो आज पक्का बवाल होगा! करुणा ने अपने होठों पर ऊँगली रख कर मुझे चुप रहने को कहा, दो मिनट हुए और आवाजें बंद हो गईं| शायद पड़ोसियों के यहाँ कोई आया था, हमने चैन की साँस ली और एक-एक कर बाहर आये| मैंने जूते पहने और सीधा नीचे चला गया, मेरे नीचे जाने के 5 मिनट बाद करुणा आई जिससे किसी को शक न हो की मैं यहाँ करुणा से मिलने आया था|

हम दोनों थोड़ा दूरी बना कर चल रहे थे, जिससे कोई हमारे साथ होने पर शक न करे| करुणा के घर से कुछ दूरी पर मैंने फटाफट ऑटो किया, ऑटो वाले को मैंने Connaught Place Church (CP) चलने को कहा| ये सुन कर करुणा के चेहरे पर जो थोड़ी देर पहले डर की रेखा थी वो ख़ुशी में बदल गई!

करुणा: आप मेरे साथ चर्च जाते?

उसने थोड़ा हैरान होते हुए पुछा|

मैं: मेरा चर्च जाना मना है क्या?

ये सुन कर करुणा ने न में सर हिलाया|

मैं: Dear मैं सब भगवानों को मानता हूँ, मस्जिद गया हूँ, गुरद्वारे गया हूँ आज आपके साथ चर्च भी जाके God को मिल लेता हूँ! सब भगवान तो एक ही हैं न?

मेरी बात सुन आकर ऑटो वाले भैया भी बोल उठे;

ऑटो ड्राइवर: सही कहा आपने साहब! भगवान तो सब जगह एक ही होते हैं!

मैं: चलो इसी बहाने आज एक नई तरह से इबादत...मतलब Pray करने को सीखने को भी मिलेगा|

ये सुन कर करुणा के चेहरे पर गर्वपूर्ण मुस्कान आ गई|

रात के आठ बजे थे और हम Sacred Heart Cathedral Church पहुँच गए थे, वहाँ पहुँच कर मैं बस वही कर रहा था जैसे करुणा कर रही थी| चर्च में प्रवेश करने से पहले मैं जूते उतारने लगा तो करुणा मुस्कुराते हुए बोली;

करुणा: No मिट्टू! इधर shoe नहीं उतारते, आप shoe पहन कर अंदर जा सकते हो|

मुझे लगता था की किसी भी पूजा स्थल में घुसने से पहले जूते-चप्पल उतारने आवश्यक होता है, पर यहाँ जूते न उतारने के बारे में सुन कर मुझे अलग लगा| जब हमने चर्च में प्रवेश किया तो वो अंदर से ठीक उतना ही बड़ा था जितना harry potter फिल्म में बच्चों का mess hall था! (हा..हा..हा...)

वहाँ बहुत सारी लम्बी-लम्बी बेंचें लगी हुई थीं, ठीक सामने की ओर Jesus Christ की एक मूरत थी और एक बड़ा सा Cross था! रात का समय था तो लोग बहुत कम थे, करुणा सबसे पीछे वाली बेंच पर बैठ गई और Christains की इबादत का जो तरीका होता है उसी तरह से वो अपनी इबादत करने लगी| मैंने उसकी देखा-देखि ठीक वैसे ही किया और आँखें बंद कर के पहलीबार Jesus Christ से प्रार्थना करने लगा| प्रार्थना कर के हम दोनों मुस्कुराते हुए बाहर आये, बाहर से हमने candles ली पर चूँकि बाहर कोई बैठा नहीं था और हम बिना पूछे-बताये कोई चीज उठा रहे थे इसलिए मैंने वहाँ कुछ पैसे रख दिए| बाहर Mother Mary की मूर्ती थी जहाँ हमने वो candles जलाईं और उनसे प्रार्थना की| साढ़े आठ बजे हम बाहर निकले और मैंने उस रेस्टुरेंट तक ऑटो किया जहाँ मैं करुणा को ले जाना चाहता था| रेस्टुरेंट का गेट बहुत छोटा था पर जब हम अंदर घुसे तो अंदर का setup देख कर करुणा की आँखें फटी की फटी रह गईं! नीचे sitting थी और ऊपर pub था जहाँ से music की बहुत तेज आवाज आ रहे थी! पहले मैंने करुणा को नीचे बिठाया और मैनेजर से पुछा की क्या हम ऊपर जा सकते हैं, तो वो बोला की जररु जा सकते हैं पर खाना नीचे ही serve होगा| मैंने करुणा को ऊपर चलने को कहा और ऊपर आ कर देखा तो वहाँ कुछ लड़के-लड़कियाँ loud music पर dance कर रहे थे| करुणा ने ये सब जिंदगी में पहली बार देखा था और वो ये सब देख कर बहुत अचंभित थी! Pub कुछ ज्यादा बड़ा नहीं था, कोने में 2 कुर्सियाँ थीं जहाँ हम दोनों बैठ गए लेकिन करुणा की नजर dance करते हुए लोगों पर और loud music पर थी|

मैंने बाथरूम जाने का बहाना किया और वेटर से चुपके से बेकरी के बारे में पूछ कर पीछे की तरफ आ गया| बेकरी में मैंने करुणा के लिए एक birthday cake आर्डर किया और वापस आ गया| मुझे गए हुए 5-7 मिनट हुए थे तो करुणा घबराई हुई थी, उसे लगा की मैं उसे यहाँ बिठा कर कहीं गायब हो गया! जब मैं वापस आया तो वो दुखी होते हुए बोली;

करुणा: आप कहा ता?

मैं: ठण्ड है न तो बाथरूम जाना पड़ता है!

मैंने मुस्कुराते हुए झूठ बोला| इतने में पीछे से वेटर एक केक ले कर आ गया और उसने केक हम दोनों के सामने रख दिया! केक पर मैंने लिखवाया था; 'Happy B'day My Panjasara! 'Panjasara' एक मलयाली शब्द था जो मैंने पिछले कुछ दिनों में करुणा से सीखा था, इसका मतलब था Sugar यानी चीनी! केक और उसपर लिखे हुए शब्द देखते ही करुणा की ख़ुशी का ठिकाना नहीं रहा, उसकी आँखों से ख़ुशी के दो आँसूँ छलक आये| अब जा कर उसे मेरे बाथरूम का बहाना मार के जाने का कारन समझ आया था!

करुणा: Thank you dear! Thank you so much!

मैं उसे और भावुक नहीं करना चाहता था, इसलिए मैंने उसे हँसाने के लिए कहा;

मैं: कोई thank you नहीं, जल्दी से केक काटो बहुत भूख लगी है!

ये सुन करुणा हँस पड़ी और उसने केक काटा;

मैं: Happy B'day to you! Happy B'day to you! Happy B'day to my dear panjasaara! Happy B'day to you!

मैंने रीति-रिवाज से ये गाना गाया, ये सुन कर करुणा के गाल लाल हो चुके थे! फिर उसने पहला पीस मुझे अपने हाथों से खिलाया और दूसरा पीस खुद खाया|

करुणा: मिट्टू! ये तो मेरा फेवरेट वाला केक है! आपको कैसे पता?!

करुणा ने खुश होते हुए कहा|

मैं: Dear आपने ही एकदिन बातों-बातों में बताया था की आपको black forest pastry पसंद है, तो मैंने उसी के केक आर्डर कर दिया था!

मेरा उसकी पसंद याद रखना करुणा को भा गया था, इधर मेरी नजर बस उसके चेहरे पर उमड़ी ख़ुशी पर थी| जिंदगी में पहलीबार आज मैं किसी को इतना खुश देख रहा था!

घडी में बजे थे 9 और मुझे इस बात का ख़ास ध्यान था की मेरे कारण करुणा कहीं लेट न हो जाए, तो मैंने उसे खाने के लिए पुछा| हम दोनों ख़ुशी-ख़ुशी उठ कर नीचे आ गए| करुणा सोफे पर बैठ गई और मैं उसके सामने कुर्सी पर, तभी करुणा ने मुझे वहाँ से उठ कर अपने पास बैठने को कहा| शाम से लेकर हम दोनों साथ अवश्य थे पर अपनी मर्यादा में थे और साथ बैठे हुए भी हम इस मर्यादा का पालन कर रहे थे| मैं करुणा की बगल में बैठ गया और वेटर को बुलाया, उसने हमें दो menu कार्ड दिए, Food वाला करुणा को और Drinks वाला मुझे! Drinks menu देख कर मेरे मुँह में पानी आ गया पर करुणा के सामने drink करने से उसे uncomfortable महसूस होता और वो मेरे बारे में गलत सोचती, इसलिए मैंने वो menu बंद कर के रख दिया और उसके food menu में देखने लगा|

पर मुझे ऐसा करते हुए करुणा ने देख लिया और food menu छोड़ कर drinks menu देखने लगी! उसकी इस हरकत पर मैं हैरान हुआ, मुझे लगता था की वो सीधी-साधी christain लड़की इन चक्करों में नहीं पड़ती होगी इसीलिए मैं आँखें फाड़े उसे देख रहा था और मन ही मन judge कर रहा था| मुझे ऐसे देख करुणा हँसते हुए बोली;

करुणा: क्या हुआ, आप बियर नहीं पीते?

ये सुन कर मुझे हँसी आ गई और मैं अपनी शेखी बघारते हुए बोला;

मैं: मैं तो आपकी शर्म कर रहा था वरना ऐसी कोई drink नहीं जो मैंने न पी हो!

ये सुन कर करुणा को अस्चर्य हुआ और मैंने उसे अपने ऑफिस का किस्सा सुना दिया|

मेरा किस्सा सुन कर करुणा को हैरानी हुई और उसने मुझे drinks menu दे दिया और ऑर्डर करने को बोला|

मैं: Dear अगर hard drink ली तो मैं तो खुद को संभाल लूँगा पर शायद आपके लिए संभाल पाना मुश्किल होगा!

ये सुन वो अपनी शेखी बह्रते हुए बोली;

करुणा: मेरे को कुछ नहीं होते.... आपको पता मैं न वोडका पिया एक बार, मेरा जीजू का friend को चढ़ा... मुझे कुछ नहीं हुआ!

मैं जानता था की ये और कुछ नहीं बस शेखचिल्ली की डींगें हैं इसलिए मैंने कहा;

मैं: Next time हम drinking गेम खेल लेंगे पर इस बार हम सिर्फ बियर लेते हैं!

करुणा ने कुछ नहीं कहा और मेरे साथ drinks menu देखने लगी| Menu में जो सबसे सस्ती बियर थी वो थी kingfisher तो उसने वही चुनी पर मैं आज की रात उसकी जिंदगी की सबसे सुनहरी रात बनाना चाहता था, इसलिए मैंने 6 Corona आर्डर की! ये imported बियर थी और महंगी भी, इसलिए उसकी कीमत देख कर करुणा मना करने लगी| मैंने जोर-जबरदस्ती से फिर भी आर्डर कर दी| अब बारी थी खाना आर्डर करने की तो करुणा ने ये काम खुद संभाला पर खाने की कीमत देख कर वो डर गई और उसका मुँह बन गया!

करुणा: Dear ये बहुत costly है, मेरे पास इतना पैसा नहीं! हम बाहर जा कर खाते!

मैंने उसकी आँखों में प्यार से देखा और बोला;

मैं: मेरा friend से तो ज्यादा costly नहीं हो सकता न? फिर आपको किसने कहा ये आपकी treat है, ये मेरी treat है!

मैंने friend और treat वाली बात गर्व से कही, जिसे सुनकर करुणा के हाव-भाव बदल गए| उसके चेहरे पर ख़ुशी थी, ऐसी ख़ुशी जिसे देख कर मन हुआ की उसके लिए सब कुछ करूँ! मैं मंत्र-मुग्ध से उसकी आँखों में देखता रहा और उसने अपनी चुप्पी तोड़ते हुए कहा;

करुणा: पर birthday तो मेरा है न? Treat आप क्यों देते?

मैं: क्योंकि आप मेरा BEST FRIEND है!

मैंने ये बात उसी के लहजे में कहा जिसे सुन उसके चेहरे पर मुस्कान आ गई| अब आगे वो कुछ बोलती उससे पहले ही मैंने उसका ध्यान menu पर खींचा और बोला;

मैं: इधर गलौटी कबाब बहुत अच्छे मिलते हैं!

करुणा का ध्यान बँट गया और उसने मस्त non veg खाना आर्डर किया| नॉनवेज के नाम पर मैं बस अंडा खाता था, उसके आगे मैंने कभी कुछ नहीं खाया था| मोमोस भी मैं veg या फिर पनीर वाले खाता था, पर जब करुणा ने चिकन और फिश वाली चीजें आर्डर की तो मैंने सोचा की आज हो ही जाए! खाना आर्डर हुआ और तब तक हमने बियर पीना शुरू किया, हमें जो beer सर्वे की गई थी उसके साथ में नीम्बू का एक स्लाइस आया था| करुणा ने गलती से वो नीम्बू बियर की बोतल में ही निचोड़ दिया, पर मैं इसका असली इस्तेमाल जानता था| हम दोनों ने पहले बोतल से बोतल टकरा कर चियर्स किया और फिर एक-एक घूँट पिया| जाहिर सी बात है की करुणा वाली बियर का स्वाद नीम्बू ने थोड़ा खराब कर दिया था तो वो मुँह बनाने लगी| अब मेरी बारी थी उसे बियर पीने का सही तरीका बताने की| मैंने एक घूँट बियर पी और उसे निगलने के बाद नीम्बू के स्लाइस को मुँह में रख कर थोड़ा सा दबाया, जिससे जो खटास मुँह में आई उसने बियर के स्वाद में चार चाँद लगा दिए! मुझे ऐसा करता देख करुणा को उसकी गलती का एहसास हुआ और उसने मेरे हाथ से मेरी बियर की बोतल खींच ली और एक बड़ा घूँट पीया, फिर उसने मेरा ही झूठा वाला नीम्बू चाटा! तब जा कर उसे बियर का असली taste समझ में आया!

इधर उसका मेरा झूठा खाने से मुझे अचानक से भौजी की याद आ गई, दिल्ली वापस आने से एक रात पहले हम दोनों का वो एक ही लॉलीपॉप चूसी थी! वो दृश्य याद आते ही मेरा चेहरा उतर गया, मेरा उतरा हुआ चेहरा देख करुणा को लगा की मुझे उसका यूँ मेरा झूठा पीना और खाना अच्छा नहीं लगा|

करुणा: आपको बुरा लगा हो तो sorry!

उसकी बात सुन कर मैं होश में आया और चेहरे पर बनावटी मुस्कान लिए हुए बोला;

मैं: आपको sorry बोलने की कोई जर्रूरत नहीं है, मुझे कुछ याद आ गया था!

मैंने करुणा से नजरें चुराई और फ़ोन में कुछ देखने लगा, लेकिन अब करुणा को जानना था की वो क्या बात थी इसलिए उसने जोर दे कर मुझसे पूछना शुरू कर दिया;

करुणा: बताओ न dear? क्या याद आया?

अब मुझे मजबूरन उसे बताना पड़ा;

मैं: थी एक... जिससे बहुत प्यार करता था.... पर उसने छोड़ दिया मुझे!

मैंने करुणा की ओर देखते हुए कहा, मेरी छोड़ देनी वाली बात सुन कर वो भावुक हो गई और एकदम से बोली;

करुणा: आपको छोड़ने वाला idiot होगा!

मैं: क्यों भला?

मैंने कौतुहल वश पुछा|

करुणा: आपका जितना caring और loving person कहाँ मिलते!

अपनी तारीफ सुन कर मुझे अच्छा लगा, मेरी caring तो करुणा ने देख ली थी पर उसे कैसे पता की मैं loving हूँ?

मैं: आपको कैसे पता मैं loving हूँ?

ये वाक़ई में एक बेवकूफी भरा सवाल था|

करुणा: Dear जो caring होगा वो loving भी तो होगा न?

उसका जवाब सुन कर मुझे मेरी बेवकूफी समझ आई और मैं अपने ही बेवकूफी भरे सवाल पर मुस्कुराने लगा|

मैंने करुणा को कभी भौजी का नाम या हमारा रिश्ते की सच्चाई नहीं बताई, क्योंकि मैं जानता था की वो ये सब सुन कर मुझे judge करती और मेरे बारे में बुरा सोचती| करुणा जान गई थी की मैं भी उसी की तरह प्यार का मारा हूँ, लेकिन अगर उसका और मेरा दुःख तौलें तो मेरा दुःख ज्यादा था| उसका तो सिर्फ प्यार करने वाला धोकेबाज था, पर मेरा तो मुझे मेरे ही खून से अलग कर चूका था!

खैर खाना आया और अपने सामने इतना नॉनवेज देख कर मेरा जी मिचलाने लगा था! मेरे चेहरे पर अजीब भाव देख करुणा जान गई की मैंने अभी तक non veg नहीं चखा है!

करुणा: क्या हुआ मिट्टू, शुरू करो न?!

थोड़ी देर पहले जो non veg खाने का जोश था वो फाख्ता हो चूका था, अब मैं सोचने लगा की कहाँ एक लड़की के चक्कर में पड़ कर मैं अपना धर्म भ्रस्ट करने जा रहा हूँ! मेरी हालत 'रहना है तेरे दिल में' के 'Maddy' जैसी थी!
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पर उसकी बात का जवाब तो देना था, इसलिए मैं बात बनाते हुए बोला;

मैं: Actually कभी इतना non veg खाया नहीं, तो एक साथ देख कर डर लग रहा है!

ये सुन कर करुणा ठहाका मार के हँसने लगी और इधर मैं थोड़ा शर्मिंदा होने लगा|

करुणा: मेरे साथ friendship करनी है तो ये सब खाना होगा!

करुणा हँसते हुए बोली| ये बस एक मज़ाक था पर मैं अपनी जिंदगी में non veg को खुद लाना चाहता था, ऑफिस पार्टी में एक मैं ही था जो veg खाता था, बाकी सब non veg दबा कर पेलते थे| यहाँ तक की दिषु भी non veg था और सिर्फ मेरी वजह से veg खाता था, दिषु की याद आते ही मैं सोचा की अगर आज मैंने non veg खा लिया तो दिषु मुझे बहुत मारेगा क्योंकि उसने मुझे बहुत उकसाया था की मैं non veg खाऊँ पर मैं हरबार मना आकर देता था| लड़की के चक्कर में non veg खाने की बात सुन कर वो मुझे बहुत पीटता!

मैं: मेरा friendship test लोगे?

ये कहते हुए मैंने starters वाली प्लेट उठाई और उसमें से chilli chicken का एक पीस उठाया और जोश-जोश में खा गया| मेरे वो पीस खाते ही करुणा ख़ुशी से तालियाँ बजाने लगी|

करुणा: मेरा मिट्टू मेरे को बहुत प्यार करते, देखो मेरे लिए वो non veg खा रे!

वो ख़ुशी से चिलाते हुए बोली, आसपास जो इक्का-दुक्का लोग बैठे थे वो सब मुझे देखने लगे और हँसने लगे!

इधर वो चिकन का पीस मुँह में घुल रहा था, उस मधुर स्वाद को चख कर मैं सोचने लगा की आखिर क्यों मैं आज तक इस सुख से वंचित रहा?! चिकन इतना tasty होगा इसका मुझे जरा भी अंदाजा नहीं था, कुछ देर पहले मेरे चेहरे पर जो अजीब से भाव थे वो अब बदल कर स्वर्ग की अनुभूति वाले हो गए थे! चिकन खा कर मुझे खुद पर गर्व हो रहा था और मेरे अंदर का बच्चा खुश हो कर बाहर आ गया, मैंने अपने दोनों हाथों से टेबल बजाया और non veg खाने की अपनी ख़ुशी का इजहार किया| टेबल की धप-धप सुन जो लोग पहले हँस रहे थे वो मेरा बचपना देख कर मुस्कुराने लगे, मानो उन्हें भी मेरे non veg खाने पर गर्व हुआ हो|

खैर अब बारी थी sea food platter की जिसे मैं चिकन ही समझा था, कारण साफ़ की मैं ठहरा नया-नया non-वेजीटेरियन अब मैं क्या जानूँ की कौनसी मछली है और कौन सा चिकन?! आज से पहले एक बार ऑफिस पार्टी में TL ने sea food platter मँगवाया था और तब इसमें से आ रही पानी की बू के कारन मुझे लगभग उबकाई आ गई थी| लेकिन इस वाले sea food platter में से ऐसी कोई बू नहीं आ रही थी, मैंने फ़ट से फिश का एक पीस चिकन समझ कर उठा लिया और मुँह में रखते ही उसके तंदूरी स्वाद को महसूस करने लगा! स्वाद में ये जर्रूर चिकन से हलका था पर मुझे तब ये अंतर् समझ में नहीं आया| जब मैं वो डिश आधी खा गया तब करुणा हैरान होते हुए बोली;

करुणा: मिट्टू आप तो आधा फिश खुद खा गए?

फिश सुन कर मेरी आँखें बड़ी हो गईं और मैं करुणा से बहस करने पर उतर आया;

मैं: ये फिश थोड़े ही है?...ये तो चिकन है!

अब हम दोनों के बीच दोस्तों वाली बहस शुरू हुई, मैंने अपनी नाक बचाने के लिए अपनी foodie वाली राय दे डाली;

मैं: फिश जो होती है वो चिकन से सॉफ्ट होती है, उसमें न..... 'juicyपन' ज्यादा होता है!

करुणा मेरी राय ऐसे सुन रही थी जैसे की कोई बहुत बड़ा chef बोल रहा हो, पर ये उसकी चाल थी मेरा मजाक उड़ाने की! उसने मेरी बात पूरी होते ही waiter को बुलाया और पुछा की ये फिश है या चिकन?

वेटर: सर ये फिश है, हमने इसे तंदूर में cook किया है!

अब ये सुन मेरे चेहरे पर शर्म और मुस्कान दोनों आ गई जिसे देख करुणा जोर से हँसने लगी| Foodie बनने के चक्कर में मेरा ही पोपट हो गया था!

खैर खाना हुआ, बियर मैंने करुणा को ज्यादा पीने नहीं दी| 6 में से 4 मैंने पी और 2 करुणा ने, बियर की बोतल नार्मल साइज की नहीं थी बल्कि करीब 300ml की थी इसलिए दोनों को ज्यादा चढ़ी नहीं थी| अब समय था मीठे का तो मैंने एक ख़ास डेजर्ट मँगाया, ऐसा डेजर्ट जिसे ऐसे serve किया गया की आस-पास वाले हमारी ओर देखने लगे| वेटर ने दो पीस चॉकलेट ब्राउनी प्लेट में serve की और फिर उसने उसके ऊपर वाइट वाइन डाली और एकदम से उसमें आग लगा दी! वाइन ने आग एकदम से पकड़ी और 3-4 सेकंड के लिए आग धधकने लगी! ये दृश्य देख कर हम दोनों बहुत खुश थे और आस-अपडोस वाले सब हमारी इस डिश की तरफ देखने लगे थे| करुणा ने मेरे फ़ोन से उस dish की तसवीरें खींचनी शुरू कर दी!

आग जब जल कर बुझी तब हमने सम्भल कर उस brownie को taste किया! भले ही उसमें आग लगी थी पर वो अंदर से बिलकुल ठंडी थी! ऐसी brownie करुणा ने तो क्या मैंने भी नहीं खाई थी! उसकी एक bite लेते ही करुणा के मुँह से; 'उम्म्म' निकला जो brownie के स्वादिष्ट होने की निशानी थी! घडी में बजे थे 10 और अब मुझे करुणा को घर छोड़ना था, वरना अगर उसकी बहन या जीजा घर पहुँच कर उसे वहाँ नहीं पाते तो बखेड़ा खड़ा हो जाता| मैंने बिल मँगाया और जैसे ही वेटर ने बिल टेबल पर रखा, करुणा ने झपट्टा मार के बिल उठा लिया और बिल देख कर उसका दिल बैठ गया! उसके चेहरे पर हवाइयाँ उड़ने लगी, इधर मैं उम्मीद कर रहा था की बिल ज्यादा से ज्यादा 3,000/- का होगा पर जब मैंने करुणा से बिल लिया तो देख कर मेरे दिल को झटका लगा! बिल था 5,500/- का, पर आज करुणा जितना खुश थी उसके आगे मेरे मन ने इस बिल को तवज्जो नहीं दी! उसके चेहरे की ख़ुशी के लिए मैं कुछ भी करने को तैयार था तो फिर ये बिल क्या चीज थी! मैंने पर्स निकाला और सारे पैसे बिल के साथ रख दिए, करुणा आँखें फाड़े मुझे देखती रही की भला मैं मुस्कुराते हुए इतने पैसे कैसे भर रहा हूँ? वो उस समय तो कुछ नहीं बोली पर जब हम बाहर आये तो वो रुनवासी होते हुए बोली;

करुणा: Dear.....आज तक मैंने dream में भी नहीं सोचा था की ... मेरा बर्थडे ऐसे सेलिब्रेट करते..... आप मेरे लिए इतना किया... उसके लिए बहुत सारा thank you!

इतना कहते हुए उसकी आँखों से आँसूँ बहने लगे| उसे रोते देख मेरे दिल में दर्द होने लगा और मैं उससे बोला;

मैं: अपना best friend को कोई thank you बोलते? मैं ये सब इसलिए प्लान किया क्योंकि जबसे हमारी दोस्ती हुई तब से मैंने आपको बस रोते हुए ही सुना है, आपको रोते हुए देख कर मुझे बहुत दुःख होता है इसलिए मैंने आपका बर्थडे memorable बनाने के लिए ये सब किया!

ये सुन कर करुणा को मेरे जज्बात समझ आये, वो मुझे अपना अच्छा दोस्त तो मानती थी पर आज जो हुआ उसके बाद मैं उसके दिल के बहुत करीब आ चूका था| मैं उसकी जिंदगी का वो बिंदु बन चूका था जिसके आगे से उसकी नई जिंदगी शुरू होनी थी!
मैंने टैक्सी कर करुणा को घर छोड़ा, उसने घर में घुसते ही मुझे कॉल किया और तब मैंने टैक्सी वाले को टैक्सी मेरे घर की ओर मोड़ने को कहा| वो मुझसे तबतक बात करती रही जबतक मैं घर नहीं पहुँचा और इस बीच उसकी आवाज में बस ख़ुशी ही ख़ुशी झलक रही थी| उसकी ये ख़ुशी महसूस कर मेरे मन को अजीब सा सुकून मिल रहा था|

उस दिन से हमारी बातें और भी ज्यादा होने लगी, हम घण्टों तक बातें करते रहते थे| मेरे ऑफिस के colleagues तक जान चुके थे की मैं किसी लड़की से इतनी बातें कर रहा हूँ, उन सब ने अटखलें लगानी शुरू कर दी की हो न हो ये मेरी कोई गर्लफ्रेंड है| इधर इन सब से बेखबर मैं करुणा और अपनी ऑफिस life में बिजी हो गया था| एक दिन साधना ने मुझे ऑफिस से निकलते हुए पकड़ लिया और मेरे चेहरे पर आई रौनक पढ़ते हुए बोली;

साधना: आजकल किस्से बातों में बिजी रहते हो? वो उदास करने वाली या फिर कोई नई है?

ये सुन कर मेरे मुँह से अचानक भौजी का नाम निकला;

मैं: .....वो नहीं.... कोई और है....मेरी अच्छी दोस्त है!

भौजी का मुँह मेरे मुँह से निकलने से दिल आज फिर जलने लगा था और मेरा चेहरा फिर से फीका पड़ने लगा|

साधना: सॉरी मानु जी! मैं आपको उसका नाम याद नहीं दिलाना चाहती थी! Anyway वैसे ये लड़की सिर्फ दोस्त ही है की उससे कुछ ज्यादा भी.....

साधना बात घुमाई ताकि मेरा ध्यान वापस से भौजी पर न जाए, साथ ही उसने मेरी खिंचाई करने के लिए जानबूझ करअपनी बात अधूरी छोड़ दी!

मैं: न-न! सिर्फ दोस्त है!

साधना: अरे तो दोस्त से घंटों कौन बात करता है?

उसने अपना शक जताते हुए कहा|

मैं: Actually उसके पास कोई job नहीं है तो अभी घरपर अकेली बोर होती है, मुझसे बात करके उसका time pass हो जाता है और मेरा भी मन लगा रहता है| फिर आपने ही तो कहा था की मुझे move on करना चाहिए!

मैंने चतुराई से साधना की कही गई बात उसके सामने रख दी जिस कारन वो आगे कुछ बोल न सकी|

कुछ दिन बीते और फिर एक दिन करुणा ने बताया की उसे कोई exam देना है, इस exam के clear होने पर उसे सरकारी हॉस्पिटल में नौकरी मिल सकती है! अब वो exam था online और उसे इसके बारे में कुछ नहीं पता था, मैंने उसकी मदद करने के लिए शनिवार को मेरे साथ नई सड़क चलने को कहा| वो तुरंत मान गई और फिर हम सीधा शनिवार को मिले, नई सड़क पहुँचने के लिए हमें दो metro बदलनी थी पर भीड़ ज्यादा होने के कारन दुसरो मेट्रो बदलते वक़्त करुणा तो उतर गई पर मैं उतर नहीं पाया| वो अकेली स्टेशन पर खड़ी थी और घबरा गई थी, मैंने उसे वहीं रुकने को कहा और मैं अगले स्टेशन से ट्रैन बदल कर वापस उसके पास पहुँचा| शुक्र है की वो रोइ नहीं वरना पाता नहीं मैं उसे कैसे चुप कराता! मैंने उसे नई सड़क से काफी खोजबीन कर के किताबें दिलवाई, online exam कैसे देते हैं इसके बारे में थोड़े tips दिए और फिर उसे उसके घर जाने के लिए बस में चढ़ा दिया|

वो घर जा कर पढ़ने लगी और इधर मैं साइट पहुँचा, जब मैं वहाँ पहुँचा तो बाथरूम का काम ठप्प पड़ा था| मैंने पिताजी को साथ लिया और नजदीक के एक शोरूम में faucets खरीदने के बहाने घुस गया, फिर वही हिन्दुस्तानी तरीका अपनाया जिससे हमें वहाँ से सारी जानकारी मिल गई| मैंने दिषु को फ़ोन कर के bath fittings के manufacturer ढूँढने को कहा, उसने मुझे कॉल पर लिए हुए ही कंप्यूटर पर चेक किया और झिलमिल जाने को कहा| पिताजी मुझे यूँ दिषु से बात करता हुआ देख हैरान थे, उसने मुझे फ़ोन पर ही सारा रास्ता समझा दिया था| मैं पिताजी को लेकर झिलमिल पहुँचा और वहाँ बहुत घूमने के बाद हमने सारा सामान लिया और सीधा साइट आ गए| पिताजी ने showroom से अर्जित ज्ञान को प्लम्बर को समझा दिया और कहाँ क्या फिटिंग होनी है सब ध्यान से बता दिया| फिर भी प्लम्बर कोई गड़बड़ न करे इसलिए मैंने कारपेंटर की पेंसिल से दिवार पर निशान बना कर सब लिख दिया|

उधर करुणा दिल लगा कर पढ़ रही थी और अब हमारी बातें बहुत कम होती थीं, पर इसका मुझे कोई मलाल नहीं था क्योंकि मैंने ये समय माँ-पिताजी को देना शुरू कर दिया| अगले हफ्ते करुणा का admit card आया और उसे ग़ज़िआबाद का center मिला, exam सुबह 9 बजे शुरू होना था जिसके लिए उसे सुबह 5 बजे निकलना था| ठंडी के दिन और सुबह 5 बजे सन्नाटा होता था, जाहिर था की उसकी बहन ने exam देने जाने से मना कर दिया था| मैं जानता था की अगर वो ये exam नहीं देगी और घर बैठी रहेगी तो उसकी बहन करुणा को नौकरानी बना कर रखेगी इसलिए मैंने उससे कहा की मैं उसे exam दिलवाने ले जाऊँगा!

करुणा: नहीं मिट्टू, आप क्यों तकलीफ करते!

उसने बुझे मन से कहा|

मैं: तकलीफ कैसी? मैं आपका best friend हूँ न? तो इतना मैं कर सकता हूँ!

करुणा: आपका जॉब भी तो है!

मैं: मैं planned leave ले लूँगा, आप उसकी चिंता मत करो!

मैंने उसकी सवाल का जवाब देते हुए कहा|

करुणा: पर दीदी...

मैं जानता था की उसकी दीदी जाने नहीं देगी, इसलिए मैं उसकी बात काटते हुए बोला;

मैं: मेरी बात ध्यान से सुनो, हो सकता है आपको मेरी बात बुरी लगी पर मैं सच कह रहा हूँ| आपकी दीदी नहीं चाहती की आप कोई job करो, क्योंकि फिर उन्हें आपके जैसी नौकरानी कहाँ से मिलेगी? वो आपको बस अपनी बेटी की टट्टी-पॉटी साफ़ करने को यहाँ लाई है, आप जॉब करोगे तो वो काम कौन करेगा?

मेरी सच्ची बातों का असर उस पर हुआ और वो एकदम से बोली;

करुणा: ठीक है, मैं आपको main road पर मिलेगा!

मैं: नहीं! आपके घर से main road दूर है वहाँ तक अकेले आना ठीक नहीं| मैं आपको वो कोने की जूस वाली दूकान से pick करूँगा|

अब क्योंकि मैं उसे ले जा रहा था तो उसकी सुरक्षा मेरा जिम्मा थी, जूस की दूकान उसके घर के पास थी और main road से वो दूकान ज्यादा सुरक्षित थी|

करुणा को तो बोल दिया था की मैं उसे exam दिलवाने ले जाऊँगा पर इतनी सुबह घर से कैसे निकलता? Overtime कर नहीं सकता था क्योंकि मेरी मार्किट शाम 5-6 बजे तक बंद हो जाती थी, ऐसे में मैं 12 घंटे तक तो ऑफिस रुक नहीं सकता था?! सिवाए झूठ बोलने के मेरे पास कोई उपाए नहीं था, मैंने घर में झूठ बोला की मैंने एक सरकारी नौकरी का फर्म भरा है और उसका exam अगले हफ्ते है| ये झूठ foolproof था, हालाँकि मुझे झूठ बोलने का अफ़सोस था पर मजबूर था क्योंकि अगर सच बोलता तो पिताजी जाने नहीं देते|

खैर exam वाला दिन आया और मैं सुबह 5 बजे निकल पड़ा, पर घर से main road आते-आते एक भी ऑटो नहीं मिला| बड़ी मुश्किल से ऑटो मिला जिसे मैंने हाथ-पैर जोड़ कर पहले करुणा के घर और फिर वहाँ से मेट्रो स्टेशन जाने के लिए मनाया| करुणा को ले कर मैं समय से उसके exam center पहुँच गया, जहाँ उसका एक batch mate मिला जिसे देख करुणा मुझसे एकदम से दूर चली गई क्योंकि उसे डर था की कहीं वो हमें एक साथ न देख ले और जा कर करुणा के घर में न बता दे! तब मुझे पाता चला की वो भी अपने घर में नहीं बता कर आई की मैं उसे exam center ले जा रहा हूँ! मैंने करुणा को फ़ोन किया और उसे best of luck बोल कर बाहर उसका इंतजार करने लगा| वो exam center बियाबान जंगल में था, साला आस-पास बस बड़े-बड़े ट्रक खड़े थे, उनके अलावा यहाँ कुछ भी नहीं था! 3 घंटे बाद करुणा और बाकी सारे लोग बाहर आये, मैंने करुणा को दूर से देख लिया था वो बेचारी गर्दन घुमा-घुमा कर मुझे ही ढूँढ रही थी| मैंने उसे फ़ोन किया और पुछा की मैं आऊँ या नहीं तो उसने बोला;

करुणा: मैंने उसे बगहा (भगा) दिया है, आप कहाँ है?

मैं एकदम से उसके पीछे खड़ा हुआ और उसे चौंका दिया;

मैं: Exam कैसा हुआ?

ये सुन कर वो बेचारी मायूस हो गई और बोली;

करुणा: मैं जो पढ़ कर गए वो आया ही नहीं, सारा पेपर बाहर से ता (था)|

मैं जान गया की वो मायूस है तो मैं उसे ले कर मेट्रो स्टेशन आया, वहाँ से हम सीधा Sacred Heart Cathedral Church पहुँचे|

करुणा: हम यहाँ क्यों आया?

करुणा ने हैरान होते हुए पुछा|

मैं: जब मुझे डर लगता है या exams अच्छे नहीं जाते तो मैं प्रार्थना करता हूँ और सब कुछ भगवान पर छोड़ देता हूँ| मैंने अपनी रफ से पूरी मेहनत की थी, अब आगे भगवान जी जो चाहेंगे वो करेंगे|

ये सुन कर करुणा के चेहरे पर उम्मीद की मुस्कान आई| हम दोनों ने वहाँ प्रार्थना की और फिर मैं उसे ले कर पालिका बाजार आ गया| यहाँ घुमते हुए उसे ear rings पसंद आई और उन्हें select करने में मैंने उसकी बहुत मदद की| जब पैसे देने की बारी आई तो मैंने पैसे दिए, इस बार करुणा ने कुछ नहीं कहा| कुछ देर बाद हम बाहर आये तो उसने एक बहाना किया;

करुणा: मिट्टू आप यहीं रुको, मैं कुछ लेना भूल गए!

इतना कह कर वो वापस अंदर भाग गई और मैं बाहर खड़ा उसका इंतजार करने लगा| जब वो आई तो बहुत मुस्कुरा रही थी, उसने अपने बैग में हाथ डाला और मुझे दवाई वाले कागज का एक लिफाफा दिया| उस लिफाफे में एक tube थी जिसे जब मैंने निकाल कर देखा तो वो था Schwarzkopf की hair styling क्रीम! मैं उसे देख कर बहुत हैरान हुआ और आँखें फाड़े करुणा को देखने लगा! Schwarzkopf बाहर का ब्रांड था और बहुत महँगा भी था!

मैं: Dear ये तो बहुत महँगा होगा!

ये सुन कर करुणा बड़े तपाक से बोली;

करुणा: मेरा मिट्टू से तो महँगा नहीं?! अब मेरे को मिलने आ रे तब parachute oil लगा कर नहीं आना, ये (hair cream) लगा कर आना|

ये कह वो हँसने लगी, इधर मैं न चाहते हुए भी मन ही मन भौजी को याद करने लगा| उस दिन जब भौजी ने मुझे एक टी-शर्ट गिफ्ट की थी तब भी मैंने उनसे कीमत की बात की थी और उन्होंने भी कुछ इसी तरह बात कह कर अपने प्यार का एहसा दिलाया था! यही सोच कर मैं खामोश खड़ा था की करुणा ने अपने हैंडबैग से कुछ निकाला और मेरी ओर बढ़ा दिया, वो लाल कपडे का एक छोटा सा पाउच था| मैंने उसे खोला तो अंदर से एक Aviator Sunglass निकला! उसे देखते ही मैं फिर से आँखें फाड़े करुणा को देखने लगा, की तभी वो मुस्कुराते हुए बोली;

करुणा: ये लगा रे तो मिट्टू sexy लगते!

ये कहते हुए उसने मुझे वो sunglass खुद पहनाया| आखरी बार कुछ ऐसे ही शब्द भौजी ने कहे थे; 'my sexy husband!' वो शब्द याद करते हुए मेरी आँखें नम हो गईं पर अगर मेरी आँखों से आँसूँ बहते तो मुझे करुणा को कारन बताना पड़ता इसलिए मैंने जैसे-तैसे अपने आँसू दबा लिए और नकली हँसी हँसते हुए बोला;

मैं: क्या बात है dear, पहले hair cream और अभी sunglass?!

करुणा: आप मेरे लिए इतना करते..... इसलिए मैंने सोचा की मैं अपना मिट्टू को थोड़ा stylish बनाते!

करुणा बड़े गर्व से बोली| इतने में घर से फ़ोन आ गया और मैं करुणा को उसके घर वाली बस में बिठा कर अपने घर लौट आया|

हफ्ता बीता और इस एक हफ्ते में हमारी बातें बदस्तूर जारी रहीं, कभी-कभार मैं दिषु के साथ सब्जी लेने जाता था और सब्जी ले कर वापसी आते समय मैं करुणा से बात करता था और उससे बातें करते हुए मैं पूरी कॉलोनी में चक्कर लगाता रहत था| दिषु को भी शक होने लगा था की जर्रूर मेरा कोई चक्कर चल रहा है पर मैंने उसके मन का शक मिटाते हुए कहा;

मैं: यार ऐसा कुछ नहीं है, हम दोनों बस अच्छे दोस्त हैं उससे ज्यादा और कुछ नहीं!

ये सुन वो मुस्कुराया और बोला;

दिषु: अबे तो serious हो जा न, किसने रोका है?

उसकी बात सही थी पर मेरा दिल अब प्यार करना नहीं चाहता था, इसलिए मैंने उसकी बात अपनी नकली हँसी में टाल दी|

शुक्रवार की शाम को करुणा का फ़ोन आया और उसने बताया की उसके दाँत में दर्द है, उसने चेक करवाया तो उसकी अक्कल दाड़ निकालनी पड़ेगी! अब ये सुनकर मुझे बहुत हँसी आई, एक तो उसकी अक्कल दाड़ निकाली जानी थी और दूसरा वो दाँत निकाले जाने से बहुत घबराई हुई थी;

मैं: अरे घबराओ मत, ज्यादा दर्द नहीं होगा!

मैंने उसे हिम्मत बँधाई पर वो किसी बच्चे की तरह रोने लगी|

करुणा: आप मेरे साथ चलो, आप साथ है तो मेरे को डर नहीं लगते!

मैंने उस हाँ कर दी और अगले दिन उसे ले कर डॉक्टर के पास पहुँचा, डॉक्टर ने उसका दाँत निकालने के लिए उसे अंदर बुलाया पर वो डर के मारे जाने से मना कर रही थी| मैंने डॉक्टर से request की कि वो मुझे अंदर आने दे, जैसे तैसे डॉक्टर मान गया और उसने मुझे अंदर आने दिया| मैं अंदर आ कर dentist वाली chair के सामने खड़ा हो गया, डॉक्टर ने करुणा को एक बार फिर चेक किया और फिर उसके दाँत के x ray को ठीक से देख कर पक्का कर लिया की कोई बड़ी समस्या नहीं है| फिर उन्होंने ट्रे में से injection उठाया जिसे देखते ही करुणा ने डर के मारे अपनी आँखें कस कर मीच ली! विधि की विडंबना तो देखिये, दूसरों को injection लगाने वाली को खुद injection लगा तो बेचारी दर्द से चिल्लाने लगी! खैर करुणा का दाँत निकला और मुझे मुँह बिदकाये हुए ये सब देखना पड़ा, डॉक्टर ने एक पर्ची पर उसे कुछ दवाइयाँ लिख कर दी और उसे ice cream खाने को कहा| Ice cream का नाम सुनते ही वो खुश हो गई और मेरी ओर मुस्कुरा कर देखने लगी| अभी इंजेक्शन का असर था तो उसे दर्द कम हो रहा था, मैं उसे ले कर नजदीकी Mc Donald में आया और उसके और मेरे लिए Mc Flurry आर्डर किया, Ice cream ले कर हम दोनों बैठ गए, मैंने तो खाना शुरू किया पर वो बुद्धू उस ice cream को चम्मच से हिला कर सूप बनाने लगी!

मैं: Dear ice cream खाते हैं, पीते नहीं हैं!

ये सुन कर वो खिखिलकर हँसने लगी! जब भी वो इस तरह खिलखिलाकर हँसती थी तो मेरे दिल को अजीब सा सुकून मिलता था, मेरे दिम्माग ने मुझसे बहुत पुछा की इस सुकून का कारन क्या है पर दिल कभी इसका जवाब नहीं दे पाया! खैर करुणा ने बातें शुरू की ओर उसकी बातों के चक्कर में मेरी ice cream भी पिघल कर soup बन गई! दोनों soup वाली ice cream पी कर निकले और अपने-अपने घर आ गए|

दो दिन बाद मुझे पाता चला की करुणा को एक हॉस्पिटल में job interview के लिए बुलाया है, उसे जाना था okhla industrial area में और उसे वहाँ का कुछ नहीं पाता था| मैंने उसे कहा की मैं साथ चलता हूँ, मैंने ऑफिस से unplanned leave medical emergency बता कर ली और उसके साथ हॉस्पिटल पहुँचा| ये एक प्राइवेट हॉस्पिटल था और दो घंटे बाद वो मुस्कुराते हुए बाहर आई, उसकी मुस्कराहट उसकी नौकरी पक्की होने की ख़ुशी ब्यान कर रही थी|

करुणा: मिट्टू आप मेरा good luck है!

वो खुश होते हुए बोली|

मैं: ये God का blessing है!

इतने दिनों से उससे बातें करते-करते मेरी हिंदी भी थोड़ी-थोड़ी खराब होने लगी थी! मगर मेरी बिगड़ी हुई हिंदी सुन कर करुणा बहुत हँसती थी!

करुणा: आप जब ऐसे गलत हिंदी बोलते तो बहुत cute लगते!

मैं: आपकी हिंदी सुधारते-सुधारते मेरी हिंदी खराब हो गई!

करुणा: अभी सर मेरा इंटरव्यू लिया, वो तमिलियन ता| वो मेरी हिंदी appreciate करते हुए बोला की मेरा हिंदी उससे बहुत अच्छा है!

मैं: अंधों में काना राजा!

ये कह कर मैं खूब हँसा, पर करुणा को ये बात समझ नहीं आई थी तो मैंने उसे इस मुहावरे का अर्थ बताया| अर्थ पाता चलते ही उसने मेरे दाहिनी बाजू पर एक मुक्का मारा और प्यार भरा गुस्सा दिखते हुए बोली;

करुणा: मेरा हिंदी का मजाक उड़ाते?!

उसने ठीक मुझे वैसे ही प्यारा भरा मुक्का मरा था जैसे भौजी मारा करती थी, ये बात याद तो आई पर मैंने इस बात को अपने दिल से न लगाते हुए करुणा से पार्टी करने को कहा;

करुणा: सैलरी आते तब करते!

वो बोली पर मुझे तो अभी पार्टी चाहिए थी|

मैं: वो तो सैलरी आने की पार्टी होगी न, ये पार्टी तो जॉब मिलने की है! सैलरी वाली पार्टी आप देना और ये वाली मैं दे देता हूँ!

थोड़ी न-नुकुर के बाद करुणा मान गई, पर दिक्कत ये थी की हम पार्टी करें कहाँ? दोपहर के 1 बज रहे थे, मैंने pub जाने को कहा तो वो मना करने लगी क्योंकि वहाँ पैसे ज्यादा लगते|

करुणा: Dearrrrrrr......

करुणा ने dear शब्द खींच कर बोला, मैं समझ गया की उसके दिमाग में जर्रूर कुछ खुराफात आई है!

करुणा: हम वाइन पीयें?

पीने के नाम से मेरी ख़ुशी का ठिकाना नहीं रहा और मैंने एकदम से हाँ कर दिया, पर दिक्कत ये की पीयें कहाँ? अब मेरे दिमाग में खुराफात पैदा हुई;

मैं: अंसल प्लाजा के पीछे बहुत बड़ा पार्क है, इस टाइम वहाँ पर बस couples होते हैं, वहाँ चलकर पीयें?

मुझे लगा था की करुणा मना कर देगी लेकिन उसने मेरे इस खुराफाती idea में फ़ौरन हाँ में हाँ मिला दी! हम दोनों की दोस्ती की यही सबसे ख़ास बात थी, हम दोनों को ऐसी खुराफात बहुत सूझती थी! हम दोनों wine shop पहुँचे पर वहाँ मुझे red wine नहीं मिली, उसकी जगह वाइट वाइन मिली! करुणा दूकान के बाहर थी तो मैंने उससे पुछा की वाइट वाइन ले लूँ तो उसे फ़ौरन हाँ में गर्दन हिलाई| इधर मैं वाइट वाइन लेने लगा जो की 800/- की आई और उधर वो प्लास्टिक के glases और चखने का सामान खरीदने लगी| फिर हमने ऑटो किया और सीधा अंसल प्लाजा पहुँचे, वहाँ एक पेड़ के नीचे दोनों बैठ गए| करुणा ने वाइन की बोतल खोली और गिलास में डालने लगी, मेरी नजर गिलास में पड़ी तो वो मुझे गौ मूत्र जैसा दिख रहा था! मैंने नाक सिकोड़ते हुए करुणा से कहा;

मैं: ये क्या गौ मूत्र है?

करुणा ने उसका रंग देखा जो बिलकुल गौ मूत्र जैसा था, वो मेरी बात सुन कर हँसने लगी| दोनों के गिलास आधे भरे थे, दोनों ने चियर्स कर के जैसे ही पहला घूँट पीया तो मैंने बड़ा गंदा सा मुँह बनाया और बोला;

मैं: ये सच्ची में गौ मूत्र है! छी!!!

ये देख करुणा बहुत हँसी और बोली;

करुणा: नहीं मिट्टू, मैंने पहले वाइट वाइन पिया ता, ये बिलकुल वैसा ही है!

उसकी बात सुन कर मैंने अगला घूँट पीया तो उसका मीठा-मीठा सा स्वाद जुबान पर घुलने लगा| मैंने करुणा से चिप्स का पैकेट खोलने को कहा और 2-4 चिप्स खाये, तब जा कर उसकी बदबू मेरे मुँह से गई!

मैं: यार मैंने रेड वाइन पी है और वो इसके मुक़ाबले बहुत अच्छी होती है, ये तो बहुत smell कर रही है!

करुणा मुस्कुराने लगी और बड़े गर्व से बोली;

करुणा: मैं अपना घर में वाइन बनाते, वो भी बिलकुल ऐसे ही taste करते! रेड वाइन बहुत महँगा होते और ये वाला homemade लग रे मेरे को!

मैं: इस पर तो imported लिखा है?!

करुणा: वाइन बनाना एक आर्ट है, ये alcohol जैसे नहीं बनते! ये imported होगा पर कोई बहुत बड़ा ब्रांड नहीं है, बाहर का कोई लोकल ब्रांड होगा!

मैं: इसे बंद करो और अपने घर ले जाओ! मेरे बस की नहीं इसे पीना!

मैंने मुँह बिदकाके कहा पर करुणा नहीं मानी और बोली;

करुणा: मैं घर नहीं ले जाते, आप नहीं पी रे तो मत पी, मैं यहीं पीते!

मैं: ओ मैडम जी ये सारा आप पीते तो घर कैसे जाते?

मैंने करुणा के बात करने के अंदाज में सवाल पुछा तो वो हँसने लगी और बोली;

करुणा: आप छोड़ते!

उसे कोई फर्क नहीं पड़ रहा था की वो कैसे घर जाएगी पर उसके पूरी बोतल पीने से मेरी फटी हुई थी! मेरी पतली हालत देख वो मुस्कुराते हुए बोली;

करुणा: टेंशन मत लो मिट्टू, इसमें alcohol नहीं होते!

उसने कह तो दिया पर मेरी फटने लगी थी, मैं जानता था की अगर इसने पूरी बोतल पी तो ये यहीं लोट जाएगी इसलिए मजबूरन मुझे वो बदबूदार वाइन पीनी पड़ी| मेरी कोशिश थी की मैं उसे कम पीने दूँ पर करुणा बहुत ढीठ थी, मेरी लाख कोशिशों के बाद वो आधी बोतल डकार गई! आधी बोतल डकार कर वो खड़ी हुई तो जिस पेड़ कर नीचे हम बैठे थे उसी पेड़ को पकड़ कर पुरानी फिल्मों की हीरोइन की तरह झूमने लगी और ये गाना गुनगुनाने लगी;

करुणा: जरा सा झूम लूँ मैं?!

ये गाना सुन कर मैंने उसकी ओर देखा तो मेरी हवा टाइट हो गई! उसकी आँखें सुर्ख लाल हो गई थीं, चेहरे पर हल्का सा पसीना था, उसके हाव-भाव नशे में धुत्त लड़की जैसे थे! मैं जान गया की ये हो गई टुन्न!

मैं: नीचे बैठ जाओ, आपको चढ़ गई है!

मैंने कहा पर मैडम जी पर तो वाइन की खुमारी सवार थी!

करुणा: मेरा मन dance करने को कर रे! जरा सा झूम लूँ मैं......

मैं: अरे न रे बाबा ना!

मैंने उसके गाने की पंक्तियाँ पूरी की तो वो नशेड़ी जैसे हँसने लगी और नीचे बैठने को हुई तो डगमगा गई, अब जा कर उसे होश आया की उसे वाइन चढ़ गई है!

करुणा: मिट्टू....मेरे को....चढ़ गए....मैं घर...कैसे....

उसकी बात सुनकर मैं उसे टोकते हुए बोला;

मैं: मना किया था मैंने की मत पीयो, पर आपको तो मजा आ रहा था न?

ये सुन कर करुणा को उसकी गलती का एहसास हुआ पर अब बहुत देर हो चुकी थी!

करुणा: आपको....नहीं .... चढ़ते....

उसने सवाल पुछा और उसका सवाल सुन कर मुझे मेरी दशा का अनुमान लगा| मेरा सर भारी हो चूका था और थोड़े-थोड़े चककर आ रहे थे, सुबह से मैंने कुछ खाया नहीं था तथा खाली पेट वाइन पीने से वाइन मेरे सर पर चढ़ चुकी थी| लेकिन मैं अगर ये बात करुणा से कहता तो वो डर जाती इसलिए मैंने उससे झूठ बोलते हुए कहा;

मैं: मुझे नहीं चढ़ते!

मैंने कह तो दिया पर मेरी हालत मैं ही जानता था| मैं उठ कर चलने के लिए खड़ा हुआ तो वाइन का सुरूर इतना चढ़ गया था की मैं सीधा खड़ा नहीं हो पा रहा था| मुझे सीधा खड़ा होने में जद्दोजहद करते देख करुणा हँसने लगी और बोली;

करुणा: मिट्टू को चढ़ गई....मिट्टू को चढ़ गई!

अब मैं क्या झूठ बोलता, मैंने उससे घर चलने को कहा, पर मैडम जी हो चुकी थीं नशे में चूर और उन्हें आ रही थी नींद!

करुणा: मुझे नींद आ रे.... मैं इदर सो जाऊँ?!

करुणा ने किसी बच्चे की तरह ये सवाल पुछा, पर उसकी ये बात सुन कर मेरा नशा उतरने लगा था!

मैं: पा....पागल है क्या.... घर चल...उठ..... उठ जा....

मैंने करुणा को उठने को कहा पर वो नहीं उठी| मैंने 'उठ-उठ' की रट लगा दी और मजबूरन करुणा पेड़ का सहारा ले कर उठी और उसी पेड़ से अपने शरीर को टिका कर खड़ी हो गई! इतने में एक आंटी वहाँ आईं, मुझे लगा की ये हमें डाँटेंगी की हम क्यों ऐसे खुले में पी रहे हैं पर वो तो हमें प्रेमी जोड़ा समझ कर हमें दुआ दे कर पैसे लेने आईं थीं! जब उन्होंने हाथ आगे किया तो मैंने अपनी जेब से एक दस का नोट निकाल कर उन्हें दिया और वो हमें दुआ देते हुए बोलीं; "भगवान जोड़ी बनाये रखे!" इतना कह वो ख़ुशी-ख़ुशी चली गईं और इधर मैं आँखें फाड़े उन्हें जाते हुए देखता रह गया!

खैर मैं फिर से करुणा के पीछे पड़ गया की वो घर चले, लेकिन वो तो पेड़ का सहारा ले कर ही ऊँघने लगी थी! मैंने सारा सामान समेटा और करुणा को आवाज दे कर उठाया;

मैं: चल यार....मेरा सर घूम रहा है!

नशा फिर से सर पर चढ़ने लगा था, इसलिए मैंने करुणा से अपनी तकलीफ ब्यान की| हम दोनों किसी तरह वहाँ से निकले और एक कूड़ेदान में वाइन की बोतल फेंक दी| सामने ऑटो वाले लाइन लगा कर खड़े थे, मैंने उनसे करुणा के घर की तरफ जाने के लिए पुछा| हम दोनों की हालत देख ऑटो वाले ने मौके का फायदा उठाया और जहाँ 60/- रुपये लगते थे उसने सीधा 100/- रुपये माँगे| अब उस ऑटो वाले से भाव-ताव करने की मुझ में हिम्मत नहीं थी तो हम दोनों उसी ऑटो में बैठ गए| ऑटो चल पड़ा पर करुणा को नींद आ रही थी और वो दाईं तरफ सर टिका कर सो रही थी, मुझे उसे उठाना था पर उसे बिना छुए कैसे उठाऊँ?! भले ही मुझ पर नशा चढ़ रहा था पर मैं इतने होश में तो था की मैं किस के साथ हूँ और क्या कर रहा हूँ! मैंने एक तरकीब निकाली, मैंने करुणा के बाएँ कान के पास जोरदार चुटकी बजाई जिससे उसकी आँख एकदम से खुल गई! वो मुँह बनाते हुए बोली;

करुणा: सोने दो न मिट्टू!

अब दिक्कत ये थी की ये था दिन का समय, घडी में यही कोई 3-4 बजे होंगे, उसके घर पर कोई न कोई जर्रूर होता और ऐसे में अगर मैं उसके साथ इस हालत में घर जाता तो आज बहुत बड़ा वाला काण्ड होता! या तो मैं पीटा जाता या फिर मुझे पकड़ कर पुलिस थाने में दे दिया जाता, इसलिए मुझे करुणा को जगाये रखना था!

मैं: यार आप सो जाओगे तो घर कैसे जाओगे?

पर इतने में करुणा फिर से सो गई, लेकिन मैं अपनी चुटकी बजाने वाला काम किये जा रहा था| उसके घर के पास पहुँचने तक मैंने करुणा के कान में चुटकी बजा-बजा कर उसे सोने नहीं दिया| करुणा का घर गलियों में पड़ता था और ऑटो आगे बहुत कम ही जाते थे, जिस ऑटो में हम थे उसने हमें बस स्टैंड पर उतारा| वहाँ से करुणा का घर यही कोई 5-7 मिनट दूर होगा, ऑटो से उतरते ही करुणा को एकदम से उलटी हो गई! वो एक नाली के ऊपर खड़ी हो कर जोर-जोर से उल्टियाँ करने लगी| मैंने फटाफट करुणा को पानी ला कर दिया, उसने पानी से कुल्ली की और अपना मुँह धोया| अब उसकी हालत बहुत खराब हो चुकी थी, उसका सर घूमे जा रहा था और उसे बड़ी जोर से नींद आ रही थी! आमतौर पर मैं इसी बस स्टैंड तक करुणा को छोड़ देता था और इसके आगे उसके किसी पहचान वाले के देखने का खतरा होता था इसलिए यहाँ से घर वो खुद चली जाती थी, पर आज मुझे उसे उसके घर तक छोड़ने जाना था| हम दोनों अभी 10 कदम ही गए होंगे की करुणा का सर चकराने लगा और वो एक घर के आगे सीढ़ी पर बैठ गई;

करुणा: मिट्टू....मेरा सर....घूम...रे....

उसकी ये हालत देख कर मैं बहुत घबरा गया था, उसे घर पहुँचाना मेरी जिम्मेदारी थी तो मैंने उसे रुकने को कहा और मैं वापस बस स्टैंड की ओर दौड़ा| वहाँ मैंने एक ऑटो वाले से मिन्नत की;

मैं: भाईसाहब मेरे साथ एक patient है उसे बस थोड़ा आगे छोड़ना है, प्लीज चल लीजिये!

वो भी मेरी हालत देख कर समझ ही गया होगा की मैंने पी रखी है| वो जैसे-तैसे मान गाय और मैं उसी ऑटो में बैठ गया, 10 सेकंड में ऑटो करुणा के सामने था| मैं बाहर निकला और उसे बैठने को कहा, वो बड़ी मुश्किल से ऑटो के भीतर घुसी| ऑटो में घुसते ही उसे उलटी आ गई और उसने ऑटो में ही उलटी कर दी! ऑटो वाला मुँह बनाने लगा पर मैंने उसे चलने को कहा, गलियों में घुमते-घुमते आखिरकर करुणा की गली आ गई| मैंने ऑटो वाले को इतने से रास्ते के 30/- रुपये दिए पर वो मुँह बनाते हुए बोला;

ऑटो वाला: अरे मैडम ने उलटी कर दी, वो भी साफ़ करनी है!

अब मुझ में इतना सब्र नहीं था की मैं खड़ा हो कर उससे बहस करूँ! मैंने उसे 100/- का नोट दिया और करुणा को आवाज दे कर बाहर आने को कहा| वो जैसे-तैसे खुद को संभालते हुए उतरी और अपनी घर वाली गली में घुस गई, अब उसे अकेले कैसे जाने देता कहीं इधर-उधर गिर-गिरा जाती इसलिए मैं उससे 10 कदम दूर चलता रहा| ताकि अगर कोई देखे तो किसी को शक न हो की हम दोनों साथ हैं, करुणा का घर आ गए तो उसने मुड़ कर मुझे देखा और लड़खड़ाती जुबान में बोली;

करुणा: आप जाओ....मैं चले जाते....!

मैं फिर भी वहीं खड़ा रहा, जब वो सीढ़ियाँ चढ़ने लगी तब मैं वापस मुड़ा और अपने घर की तरफ चल पड़ा| मुझे बड़ी जोरदार प्यास लगी थी, गला सूख चूका था इसलिए मैंने एक दूकान से पानी की बोतल और दो chewing गम ली| पानी की बोतल मैं मुँह लगा कर एक साँस में सारी पी गया, पानी पीने से नशा कम हुआ| मैंने कान में लगाए headphones और घर के लिए ऑटो किया, chewing gum खाते हुए मैं घर पहुँचा| नाहा-धो कर मैं छत पर आया और आज जो हुआ उसके बारे में सोचने लगा, मैं जान गया था की आज करुणा को बहुत डाँट पड़ी होगी! कुछ देर बाद मैंने करुणा को फ़ोन किया पर उसने फ़ोन नहीं उठाया, मुझे लगा जर्रूर उसकी बहन सामने होगी इसलिए वो फ़ोन नहीं उठा रही है| मैंने उसे whats app पर खैरियत पूछने के लिए मैसेज किया पर उसका data बंद था| तब whats app में double tick होने का कोई feature नहीं था! रात 10 बजे तक में उसे फ़ोन करता रहा पर उसने कॉल नहीं उठाया, अब मेरे मन में बुरे-बुरे ख्याल आने लगे थे! कहीं उसके नशे में होने के कारण उसके जीजा ने उसका कोई गलत फायदा तो नहीं उठा लिया? कहीं उसकी बहन ने उसे पी कर घर आने के लिए मारा तो नहीं? कहीं कोई उसके घर घुस आया हो और उसके साथ कुछ गलत तो नहीं कर रहा? ये सब गंदे ख्याल मन में आने से मैं व्यकुल हो उठा और हाथ जोड़कर भगवान से प्रार्थना करने लगा की आज के बाद फिर कभी करुणा के साथ नहीं पीयूँगा!

साढ़े दस बजे भगवान का नाम लेते हुए मैंने करुणा को कॉल किया और तब उसने फ़ोन पहले की ही तरह मुस्कुराते हुए उठाया|

करुणा: हैल्लो मिट्टू!

उसकी आवाज सुन कर मेरी जान में जान आई|

मैं: आप कैसे हो?

मैंने चिंताजनक स्वर में पुछा|

करुणा: मैं....ठीक हूँ!

करुणा ने 'मैं' शब्द के बाद 2 सेकंड का cinematic pause ले कर अपनी बात मुस्कुराते हुए पूरी की| उसका यूँ 2 सेकंड का cinematic pause लेना मेरी समझ से परे था, इसलिए मैंने उससे इस cinematic pause का कारन पुछा तो वो हँसने लगी!

करुणा: ये मेरा स्टाइल है!

उसने बड़ी अदा से कहा| उसकी आवाज से ख़ुशी झलक रही थी और मैं उसकी इस ख़ुशी से थोड़ा हैरान था!

मैं: आपको पता है मैं कितना परेशान था? कितने बुरे-बुरे ख्याल आ रहे थे मुझे? मुझे लग रहा था आज तो आपकी दीदी आपको drunk हो कर घर आने के लिए बहुत मारेगी या फिर आपका जीजा आपके drunk होने का कुछ गलत फायदा उठाएगा!

मैंने करुणा को अपने डर से रूबरू करवाया|

करुणा: मैं ठीक हूँ मिट्टू! आपका जाने के बाद मैं बड़ी मुश्किल से सीढ़ी चढ़ा, फर्स्ट फ्लोर पर पहुँच कर मुझे फिर से vomitting हुआ और मैं चुप-चाप घर आ गया| Luckily घर पर कोई नहीं ता, मैं घर आ कर मुँह-हाथ धो कर लेट गया और फिर अभी थोड़ी देर पहले उठा!

करुणा के इतनी बार उलटी होने से एक बात साफ़ हो गई थी की उसे शराब हजम नहीं होती इसलिए मैंने उसे ये बात सुनाते हुए कहा;

मैं: आज के बाद हम कभी drink नहीं करेंगे!

ये सुन कर करुणा इसे कदर डर गई जैसे मैंने उससे अपनी दोस्ती तोड़ने की बात की हो|

करुणा: ऐसा क्यों?

मैं: क्योंकि आपको शराब हज़म .... मतलब digest नहीं होती!

अब किसी पीने वाले को उसके पीने के लिए गलत ठहराओ तो वो कभी अपनी गलती नहीं स्वीकारता, ठीक वैसे ही करुणा बहाना बनाते हुए बोली;

करुणा: वो वाइन बेकार ता, मैंने बोला न मैं घर पर भी बनाते और पीते तब तो मुझे कुछ नहीं होते!

मैं: वो मुझे नहीं पता, जब आपने फ़ोन नहीं उठाया तो मैं बहुत डर गया था इसलिए मैंने God से pray किया की आप फ़ोन उठा लो तो मैं फिर कभी आपके साथ नहीं पीते!

ये सुन कर करुणा को मेरी चिंता समझ आई पर वो भी पक्की ढीठ थी, इतनी जल्दी कैसे सुधर जाती?!

खैर बात खत्म हुई और अगले दिन से करुणा ने हॉस्पिटल ज्वाइन कर लिया| उसी दिन लंच टाइम में उसका फ़ोन आया और उसने मुझे शाम को मिलने बुलाया| मैं शाम को 6 बजे उससे मिला और फिर हम दोनों साथ चल पड़े, मैंने उसे उसके घर के पास वाले बस स्टैंड पर छोड़ा जहाँ से वो अपने घर चली गई तथा मैं अपने घर लौट आया| घर आते-आते मुझे 9 बज गए थे, माँ को लगा की ऑफिस में काम ज्यादा होगा पर वो क्या जाने मैं कहाँ था?

अब तो मेरा लेट आना रोज की बात हो गई थी, मैं रोज करुणा के हॉस्पिटल के बाहर खड़ा हो कर उसका इंतजार करता और फिर हम दोनों साथ-साथ कभी पार्क में बैठ जाते या कभी कुछ खाने पीने लग जाते| फिर मैं उसे उस बस स्टैंड छोड़ता और फिर अपने घर लौटता| शनिवार को मेरी छुट्टी होती थी तो मैं उससे शाम को जल्दी मिलता और फिर हम कहीं घूमने चले जाते| रविवार को उसको अपनी बहन के साथ चर्च जाना होता था, इसलिए बस उस दिन हम नहीं मिलते थे| एक-आध बार मैं उसे शनिवार को फिल्म दिखाने ले गया और इसके लिए उसने हॉस्पिटल से हाफ डे भी लिया| दिन बीते और उसकी सैलरी आई जो की बहुत थोड़ी थी, क्योंकि उसने महीने के आखरी दिनों में ज्वाइन किया था| वो मेरे लिए कपडे लेना चाहती थी पर फिर उसके पास कुछ नहीं बचता तो मैंने उसे बहुत समझाया की वो ये सैलरी बचा कर रखे ताकि अगले महीने वो अपने बस का किराया चला पाए| उसका दिल रखने के लिए मैंने उसे मुझे मसाला डोसा खिलाने की ट्रीट माँगी, करुणा इससे बहुत खुश हुई की मैंने आज पहलीबार उससे कुछ माँगा है| करुणा ने मुझे कुछ नया खिलाने के लिए 'घी roast' मसाला डोसा मँगाया, जैसा की नाम से पता चलता है इसमें घी और मक्खन भर-भर कर डाला गया था| जब मैंने उसे चखा तो उसका स्वाद बहुत बढ़िया निकला, मैंने आज तक ऐसा मसाला डोसा नहीं खाया था|

कुछ दिन निकले और हम इसी तरह मिलते रहे, फिर आया valentine's day! मैंने आज के दिन की छुट्टी ले रखी थी, वहीं करुणा भी दो दिन की छुट्टी पर थी, उसकी दीदी ऑफिस के काम से कहीं बाहर गई थी और उसे घर रह कर बच्ची की देखभाल करने का काम सौंपा गया था, इसी के चलते उसने दो दिन की छुट्टी ली थी| मैंने से जोर दे कर उसने मिलने बुलाया, जब मैंने जोर दे कर करुणा को जोर दे कर मिलने बुलाया तो वो हँसने लगी, पर फिर मान गई| मेरा आज उसे मिलने बुलाने का ख़ास कारन था, वो कारन ये की मुझे आज उसे red rose देना था! इसलिए नहीं क्योंकि मैं उससे प्यार करता था, बल्कि इसलिए क्योंकि मुझे अपना एक शौक पूरा करना था| मैंने आज तक कभी किसी लड़की को valentine's day पर red rose और चॉक्लेट नहीं दी थी| कल को शादी होगी और मेरे बच्चे पूछेंगे की पापा आपने valentine's day पर किसी को red rose दिए थे, तो मैं गर्व से कह सकूँ की मैंने भी ये कारनामा किया है! बस अपनी यही शौक पूरा करने के लिए मैंने करुणा को मिलने बुलाया| मैं घर से कुछ बहाना मार के निकला, आज पता नहीं क्यों मेरे पेट में तितलियाँ उड़ रही थीं! ऑटो कर के मैं एक पार्क पहुँचा जहाँ से करुणा का घर यही कोई 10 मिनट दूर था| सबसे पहले मैंने वहाँ पर red rose ढूँढा, वैसे तो रेड लाइट पर गुलाब बेचने वाले मिल जाया करते थे पर आज valentine's day था और मुझे रेड लाइट पर कोई भी नहीं मिला था| जिस फूल वाले से मैंने पिछली बार bouquet बनवाया था उसी के पास आ कर मैंने एक red rose लिया जिसके मुझे 100/- देने पड़े! जो red rose आम दिनों में 50/- रुपये का मिलता था आज वही red rose 100/- रुपये का था! प्यार में लोग कैसे-कैसे अपना चूतिया कटवाते हैं ये सोच कर मुझे हँसी आ रही थी! वैसे red rose मैं भी देने वाला था पर मुझे तो बस अपना शौक पूरा करना था! Red rose ले कर हाथ में पकड़ना ठीक नहीं लगा, इसलिए मैंने उसे अपने बैग में डाल लिया| अब बारी थी चॉकलेट लेने की, मैं एक दूकान में चॉकलते लेने घुसा| मुझे लगा 10/- 20/- 50/- रुपये की होगी चॉकलेट पर वहाँ 150/- रुपये से कम की कोई चॉकलेट ही नहीं थी! टी. वी. पर मैंने जो चॉकलेट की विज्ञापन देखे थे उन्हें देख कर मुझे लगता था की इसकी कीमत यही कोई पचास एक रुपये होगी पर ये तो ससुरी 150/- रुपये की निकली! मैं हैरान खड़ा सोचने लगा की साला एक शौक पूरा करने के चक्कर में 200/- रुपये का फटका लगने वाला था! चलो मेरा तो शौक था पर उन आशिकों का क्या जो ये काम रोज करते हैं?!

मैंने एक कैडबरी सिल्क ली और उसे भी बैग में डाले हुए मैं वापस उस पार्क लौट आया| मैंने करुणा को फ़ोन कर के बताया की मैं पहुँच गया हूँ, उसने जवाब में बस; "10 मिनट में आ रे' बोला| हमेशा की तरह आज भी उसे आने में पाना घंटा लगा और जब वो आई तो अपने साथ अपनी बहन की बेटी को साथ ले आई| मुझे पार्क में बैठा देख उसने sorry की झड़ी लगा दी;

करुणा: Am sorry मिट्टू! Actually मैं आपका लिए कुछ बना रे थे!

ये कहते हुए वो मेरे सामने बैठी और अपनी प्यारी सी भतीजी को मेरे पास बिठाया!

उस प्यारी सी बच्ची को देखते ही मुझे नेहा की याद आ गई, वही मासूमियत, वही cuteness! इधर वो बच्ची मुझे आँखें बड़ी करके देखे जा रही थी, मेरे चेहरे पर अच्छी-खासी दाढी थी जो उसे पसंद नहीं थी| दरअसल उसका बाप clean shaven था और उस बच्ची को इसी की आदत थी, ऐसे में अपने नजदीक एक दाढ़ी वाले व्यक्ति को देख वो शायद डर गई थी! उसका यूँ आँखें बड़ी कर के मुझे देखना मेरे दिल को भा गया था, इतने महीनों से जो बाप का प्यार दबा था वो आखिर आज जाग चूका था! मैंने उस बच्ची को गोद में लेने के लिए अपने हाथ फैलाये तो उस बच्ची ने बिना कुछ सोचे समझे अपने दोनों हाथ मेरी ओर देखते हुए खोल दिए| मैंने उसे फ़ौरन अपनी गोद में उठाया और अपने सीने से लगा कर अपनी आँखें बंद कर ली| उस छोटी से बच्चे के जिस्म की गर्माहट को मैं नेहा के जिस्म की गर्माहट मान चूका था, उसका छोटा सा धड़कता दिल मुझे मेरी बेटी नेहा के पास ले जा रहा था! 'मेरा बच्चा मुझे माफ़ कर देना, मैं एक अच्छा पापा नहीं बन पाया!' मेरे दिल से निकली ये बात गले तक पहुँच कर घुट कर रह गई! इधर उस छोटी बच्ची ने अपने हाथ मेरी गर्दन के इर्द-गिर्द ठीक वैसे ही जकड़ लिए थे जैसे नेहा जकड़ती थी| मेरे सीने से लगी वो बिलकुल शांत थी, मानो उसे किसी बात का कोई डर ही न हो!

मैं नहीं जानता था की करुणा ख़ामोशी से मुझे एंजेल को अपने गले लगाए देख रही है| दो मिनट बाद उसने मुझे पुकारा जिससे मेरी तंद्रा भंग हुई;

करुणा: मिट्टू!

मैंने अपनी आँखें खोली और करुणा को मेरी ओर प्यार से देखते हुए पाया|

करुणा: क्या हुआ?

उसने बड़े प्यार से पुछा|

मैं: एंजेल को देख कर मुझे मेरी प्यारी बेटी की याद आ गई! नेहा.. मेरे cousin भाई की बेटी!

मैंने सर झुकाते हुए कहा| नेहा को हमेशा याद कर मैं ग्लानि महसूस करता था, भौजी के गुस्से की सजा मैं उस मासूम को जो दे रहा था!

मेरी बात सुन कर करुणा को मेरे दर्द का अंदाजा हुआ और वो बोली;

करुणा: आप उसे बहुत miss करते न?

मैंने हाँ में सर हिलाया और फिर गाँव में नेहा के साथ बिताया मेरा सारा वक़्त सुनाया| मेरी बात इत्मीनान से सुनने के बाद उसे मेरे प्यार का अंदाजा हुआ;

करुणा: वैसे एक बात बोलूँ एंजेल इतने आराम से किसी के पास नहीं रहते!

मैं: एंजेल को hug कर के आज बहुत सालों बाद मुझे बहुत अच्छा लग रहा है|

करुणा जानती थी की मैं उसी की तरह बहुत भावुक हूँ और कहीं मैं रो न पडूँ इसलिए उसने बात बदलते हुए कहा;

करुणा: अच्छा अब एंजेल को मुझे दो और आप ये खाओ जो मैं आपके लिए बना कर लाये!

करुणा ने एक टिफ़िन मेरी ओर बढ़ा दिया| मैंने एंजेल को हम दोनों के बीच में बिठाया और करुणा से वो टिफ़िन बॉक्स ले लिया| पर मैंने उसे खोला नहीं बल्कि एक तरफ रख कर अपना बैग उठाया, बैग से मैंने पहले चॉकलेट निकाली और करुणा को दी, करुणा को चॉकलेट बहुत पसंद थी| उसके बाद मैंने उसे rose निकाल कर दिया, उस red rose देख कर वो सोच में पड़ गई! उसे लगा की मैं उसे propose करने वाला हूँ पर मैंने हँसते हुए उसे rose देने की वजह बताई;

मैं: Don't get me wrong! I'm not proposing you, actually मैं आपको ये red rose इसलिए दे रहा हूँ ताकि कल को मेरी शादी हो और मेरे बच्चे मुझसे पूछें की पापा आपने valentine's day पर किसी लड़की को red rose दिया था, तो मैं गर्व से हाँ कह सकूँ! मैं उन्हें ये थोड़े ही बताऊँगा की मैंने ये red rose अपनी बेस्टफ्रेंड को दिया है!

मेरे ये बचकाने ख्याल को सुन कर करुणा बहुत हँसी, इधर अपनी मौसी को हँसता हुआ देख एंजेल भी हँसने लगी!

अब इधर करुणा ने चॉकलेट का पैकेट खोला और उधर मैंने करुणा का दिया हुआ टिफ़िन खोला| टिफ़िन में करुणा ने मेरे लिए दलिया का उपमा बनाया था, मैंने आज तक सूजी का उपमा तो खाया था पर दलिया का उपमा बड़ा अजीब दिख रहा था! ये बिलकुल दलिया जैसा लिसलिसा था और उसे देख कर मेरा मन नहीं कर रहा था उसे खाने का! पर मैं करुणा का दिल नहीं तोडना चाहता था इसलिए मैंने जैसे-तैसे उसे खा लिया और पानी पी कर गले से उतार लिया! करुणा को लगा की मुझे उसका बनाया उपमा बहुत पसंद आया और उसके चेहरे पर ख़ुशी झलकने लगी|

वहीं करुणा और एंजेल बड़े मजे से चॉकलेट खा रहे थे, एंजेल ने तो पूरी चॉकलेट अपने होठों और गालों पर फैला ली थी जिसे देख कर हम दोनों बहुत हँसे! करुणा ने उसका मुँह साफ़ किया और उसे अपनी गोद में बिठा कर मेरी ओर इशारा करते हुए मलयालम में उससे बोली; "एंजेल ये मेरा बेस्टफ्रेंड मिट्टू है!' मेरा नाम सुनते ही एंजेल के चेहरे पर मुस्कान आ गई, उसकी मुस्कान ठीक नेहा जैसी थी| एंजेल की मुस्कान देखते ही मेरा दिल बड़ी जोर से धड़कने लगा और मैंने उसे गोद मेंलेने के लिए अपनी बाहें फैला दी! एंजेल उठ कर मेरी गोद में आ गई और मेरे सीने से लग कर चिपक गई! उसे अपने सीने से चिपकाए हुए मैं बोला;

मैं: Angel will you be my friend?

एंजेल को english और हिंदी समझ नहीं आती थी तो करुणा ने उसे मेरी कही बात मलयालम में पूछी तो एंजेल ने हाँ में सर हिलाया|

मैं: Thank you dear!

मैंने एंजेल के सर को चूमते हुए कहा|

करुणा: नया फ्रेंड का चक्कर में मेरे को तो नहीं भूल जाते न?

मैं: ये तो मेरा childhood friend है और आप तो मेरा best friend है!

मैंने ये बात करुणा के बात करने के अंदाज में कही| मेरा एंजेल को childhood फ्रेंड बोलना करुणा की समझ में नहीं आया तो उसने मुझसे सवाल किया;

करुणा: मिट्टू एंजेल आपका childhood फ्रेंड कैसे?

मैं: एंजेल छोटी बच्ची है, मतलब child और मेरी दोस्त है, मतलब friend तो हुआ न मेरा childhood फ्रेंड?!

मेरी ये बच्चों वाली बात सुन करुणा खूब हँसी और हमेशा की तरह उसे हँसता हुए देख मेरे दिल को सुकून मिल रहा था|

करुणा: मिट्टू आप न बिलकुल क्यूट बच्चा है!

करुणा हँसते हुए बोली|

करुणा: अच्छा एक बात बताओ, मेरा बर्थडे पर आपने मुझे red rose का bouquet क्यों दिया?

मैं: Actually उस फूल वाले के पास बस red और white roses थे! White roses तो death होने पर देते हैं न? इसलिए मैंने red roses लिए!

करुणा: अच्छा? पक्का न?

करुणा ने थोड़ा शक जताते हुए पुछा|

मैं: आपकी कसम, आप जो भी सोच रहे हो वैसा कुछ नहीं है| Trust me मेरे दिल में आपके लिए lover वाला प्यार नहीं है! आप मेरे best friend हो, उससे ज्यादा और कुछ नहीं!

मैंने करुणा को अपनी बात का यक़ीन दिला दिया की मेरा मन बिलकुल साफ़ है, उसमें प्यार का कोई भी कीड़ा नहीं कुलबुला रहा| उस दिन के बाद करुणा ने मुझसे ये सवाल कभी नहीं पुछा|

हम करीब और आधा घंटा वहीं बैठे और इस दौरान एंजेल मेरी गोद में ही बैठी रही, उसे मेरी गोद पसंद आ गई थी| जब चलने का समय हुआ तो मैंने करुणा को एक ख़ास बात बताई;

मैं: अच्छा एक ख़ास बात मैं आपको बताना भूल गया| कल घर पर पूजा है और उसके बाद छोटी सी पार्टी है, माँ ने कहा था की आपको जर्रूर आना है| अपनी दीदी और जीजा को भी ले आना वरना वो कुछ गलत सोचेंगे!

करुणा: पर कल तो मेरा ड्यूटी है!

मैं: छुट्टी ले लो! दोपहर 2 बजे सब आ जाना वरना मैं आपसे बात नहीं करूँगा!

मैंने करुणा को प्यार से धमकी दे डाली! उसने मुस्कुराते हुए कल आने की हाँ की और फिर हम अपने-अपने घर लौट आये|

पिछले डेढ़ महीने से घर के हालत सुधरने लगे थे तो पिताजी ने घर में पाठ रखवाया था और उस के बाद एक छोटी सी पार्टी community hall में रखी थी| इस पार्टी का 15 तरीक को रखने के लिए मैंने पिताजी पर बहुत जोर डाला था, उसका कारन ये था की 15 फरवरी को मेरे बेटे आयुष का जन्मदिन था! इतने सालों से में भले ही अलग था पर हर साल उसके जन्मदिन पर मैं मंदिर जाता था और उसके लिए प्रार्थना करता था| जिस बच्चे को देखना नसीब नहीं हुआ उसके लिए आज के दिन घर पर पाठ रखवा कर मैं अपने बाप होने का फ़र्ज़ पूरा करना चाहता था| एक बात का मलाल मुझे जर्रूर था और वो ये की मैंने भौजी से कभी नेहा के जन्मदिन की तारिख नहीं पूछी थी, पर दुआ तो उसके लिए मैं फिर भी करता था आखिर वो मेरी पहली औलाद थी, उसी ने तो मुझे सबसे पहले बाप बनने का सुख दिया था!

एक आरसे बाद घर में खुशियों का आगमन हुआ था इसलिए हम सभी बहुत खुश थे| मिश्रा अंकल जी के दोनों ठीके समय से पहले पूरे हो गए थे और वो एक बड़े प्रोजेक्ट के लिए हमें बता चुके थे| अगली सुबह पाठ शुरू हुआ और मैं पाठ में केसरी रंग का कुरता तथा सफ़ेद पजामा पहने बैठा था, बाल सारे पीछे की तरफ किये हुए और माथे पर एक बड़ा सा तिलक! 'बोले तो फुलटू वास्तव के संजय बाबा का लुक!' दिषु मुझे देख कर बहुत हँसा, मेरा जिगरी दोस्त था तो उसे मेरी खिंचाई करने में बहुत मजा आता था| पाठ के बाद सारे लोग community hall पहुँचे और वहाँ खाना-पीना शरू हुआ|

करुणा ढाई बजे अपनी बहन और एंजेल के साथ पहुँची, उसे देखते ही माँ ने उसे अपने गले लगा लिया और उसके सर पर हाथ फेरने लगी| पिताजी करुणा से नहीं मिले थे तो मैंने पिताजी को धीरे से बताया की करुणा ही वो नर्स थी जिसने माँ का ध्यान रखा था, साथ ही मैंने उन्हें बता दिया की वो Chirstain है| पिताजी को उसके Christain होने से कोई फर्क नहीं पड़ा और उन्होंने उसके सर पर हाथ रख कर उसे आशीर्वाद दिया| फिर उसने अपनी बहन का तार्रुफ़ हम सब से कराया;

करुणा: मम्मा ये मेरा sister है और ये उनका बेटी एंजेल!

करुणा का मेरी माँ को मम्मा कहना करुणा की दीदी को बड़ा अजीब लगा, पर उन्होंने उस समय कुछ नहीं कहा| उन्होंने हाथ जोड़ कर मेरी माँ और पिताजी से नमस्ते की, इधर मैंने एंजेल को गोदी में लेने के लिए हाथ बढाए तो वो करुणा की गोद से फ़ौरन मेरी गोद में आ गई| उसके मेरी गोद में आसानी से आ जाने से करुणा की दीदी को हैरानी हुई पर फिर करुणा ने उससे मलयालम में कहा की मैं ही मिट्टू हूँ! ये सुन करुणा की दीदी हैरान हो कर मुझे देखने लगी! मैं नहीं जानता की करुणा ने उन्हें मेरे बारे में क्या-क्या बताया था और न ही पूछना चाहता था वरना माँ-पिताजी के सामने हम दोनों (करुणा और मेरा) का सारा भेद खुल जाता! फिर मैंने उन दोनों को अपने साथ बूफे टेबल तक आने को कहा और उन्हें खाना शुरू करने को कहा| चूँकि मैं एंजेल को गोद में लिए हुए था तो दोनों आराम से अपनी-अपनी प्लेट में खाना परोस सकती थीं| खाना देख कर एंजेल को भी खाने का मन हुआ तो मैंने दीदी से पुछा;

मैं: दीदी एंजेल जलेबी खा सकती है?

उन्होंने हैरान होते हुए हाँ में सर हिलाया और मैंने एंजेल को जलेबी का एक पीस दिया, वो मेरी गोद में चढ़े हुए ही बड़े चाव से जलेबी खाने लगी| मुझे करुणा और उसकी दीदी के साथ खड़ा देख दिषु मेरे मजे लेने आ गया! मैंने उसका तार्रुफ़ करुणा और उसकी दीदी से नाम ले कर करवाया मैंने उसे ये नहीं कहा की ये नर्स करुणा हैं, पर दिषु समझ चूका था की ये ही वो लड़की है जिससे मैं घंटों बात करता हूँ| वो मेरे मजे लेता उससे पहले ही माँ ने करुणा और उसकी दीदी को अपने पास बिठा लिया| माँ ने करुणा के वजन को ले कर उसे प्यार से डाँटा और मुझे कहा की मैं उसके लिए और खाना ले कर आऊँ| करुणा की दीदी मेरी माँ का अपनी बहन के लिए इतना प्यार देख कर बहुत हैरान थी! उस दिन पार्टी के बाद जब करुणा अपने घर पहुँची तो उसने मुझे बताया की उसकी बहन मेरी माँ और मेरे से बहुत impress हैं! उन्होंने उसे आज जो भी कुछ हुआ उसके लिए ज़रा भी नहीं डाँटा, जिससे करुणा बहुत खुश थी की उसे मिलने वाले ताने अब बंद हो जायेंगे!

फरवरी का महीना निकला, हम रोज मिलते और खूब बातें करते| हमारी दोस्ती और गहरी होती जा रही थी| एक दिन जब वो शाम को मिली तो बहुत बुझी हुई थी, मैंने कारन पुछा तो वो बोली की उसके Ex boyfriend ने आज फ़ोन कर के उसे फिर से अपने प्यार का राग सुनाया| वो केरला आया हुआ है और उसे मिलने के लिए वहाँ बुला रहा है, वरना वो यहाँ खुद आ जायेगा! करुणा उससे मिलना नहीं चाहती थी और उसकी इस धमकी से डरी हुई थी| मैंने उसे समझाया की वो ये रिश्ते हमेशा के लिए खत्म कर दे, पर वो सिर्फ बहाने मारे जा रही थी और आँखों से टेसुएँ बहाये जा रही थी| मुझे उसका ये व्यवहार देख कर चिढ पैदा हो रही थी क्योंकि उसका यूँ मुँह लटका कर बैठ जाना बेकार का नाटक था! एक दिन गुजरा, दो दिन गुजरे पर उसका ये मुँह लटकाना रोज का हो गया था, मैंने उसे बहुत समझाया पर वो नहीं मानी| अगले दिन जब वो आई तो उसने रोते हुए उस लड़के के साथ बिताये अपने प्यार भरे दिन गिनाने शुरू कर दिए! उसका रोना मुझसे बर्दाश्त नहीं था तो मैंने उसे सीधा बियर पीने को पुछा, उसने 10 सेकंड चुप रहने के बाद हाँ कर दी| हम दोनों एक वाइन शॉप पहुँचे जहाँ से मैंने दो बियर की कैन ली और हम एक पार्क के कोने में बैठ कर पीने लगे| कैन लेने का बस एक ही कारन था, वो था bottle opener न होना, पर अगले दिन से करुणा ने एक ऐसा key chain लाना शुरू किया जिसमें bottle opener लगा हुआ था! बियर पीने से उसका रोना-धोना बंद हो गया और वापस पहले की तरह हँस कर बात करने लगी| मैंने मन ही मन भगवान से माफ़ी माँगी क्योंकि मैंने भगवान से कहा था की मैं अब कभी करुणा के साथ शराब नहीं पीयूँगा| अब जब भी करुणा अपना रोना-धोना शुरू करती मैं उसे बियर पिला देता और वो शांत हो जाती, धीरे-धीरे उसका ये रोना-धोना हफ्ते में एक बार तक सीमित हो गया| हमने अब बियर पीने की जगह बदल ली थी, AIIMS के पास एक पार्क था, हम दोनों वहीं बैठ कर बियर पीते थे| ये पार्क main road के साथ था और यहाँ शाम को इक्का-दुक्का लोग होते थे| देखा जाए तो करुणा का ये रोना-धोना मेरे लिए थोड़ा फायदे मंद था क्योंकि मुझे भी इसी बहाने पीने को मिल जाता था, पर मैं इतना भी स्वर्थी नहीं था की अपने पीने के लिए उसे रुलाऊँ इसलिए मैं उसे बहुत समझाता था पर उसके पल्ले कुछ नहीं पड़ता था! एक बात और, हम एक बियर से ज्यादा नहीं पीते थे क्योकि उससे ज्यादा पीने से करुणा उलटी करने लगती! एक दिन हम आये तो थे पीने पर उसे INA से कुछ शॉपिंग करनी थी जिस कारन हम लेट हो गए, लेकिन मुझे तो बियर पीनी थी तो मैंने बियर की एक कैन खरीदी और करुणा को ले कर सीधा ऑटो में बैठ गया| ऑटो चल पड़ा और जैसे ही हम थोड़ी दूर पहुँचे मैंने बियर की कैन खोली, 'पसस' की आवाज सुन कर ऑटो वाले भैया ने पीछे मुड़ कर देखा तो वो हैरान हुए की हम दोनों बारी-बारी बियर पीने में लगे हुए थे| उन्होंने हमें कुछ नहीं कहा, आगे एक चेकपॉइंट आया तो करुणा की डर के मारे हालत खराब हो गई! शुक्र है की कोई चेक्किंग नहीं हुई वरना पुलिस वाले बिना कुछ खाये जाने नहीं देते! उस दिन से करुणा ने ऑटो में पीने से मना कर दिया और हमने उसी पार्क में बैठ कर कभी-कभी पीना जारी रखा|

करुणा की सैलरी आई तो मैं हैरान हुआ, उसे गिनती के 15000/- मिले थे!

मैं: इतनी कम सैलरी?

मैंने भोयें सिकोड़ कर पुछा|

करुणा: मुझको अटेंडेंट का पोस्ट मिला पर काम नर्स का करते!

ये सुन कर मुझे बहुत हैरानी हुई और मैंने उससे डिटेल पूछी तब उसने बताया की हॉस्पिटल में अटेंडेंट की temporary पोस्ट के लिए vacancy थी पर preference सिर्फ नर्स को दी जा रही थी|

मैं: चलो कोई बात नहीं, घर पर बैठने से तो अच्छा है|

खैर करुणा मुझे ले कर एक मॉल में पहुँची और मेरे लिए एक ब्रांडेड शर्ट और पैंट खरीदनी चाही, पर दोनों उसके बजट से बाहर जा रही थीं| बेचारी ने बहुत मेहनत कर के AllenSolly की एक शर्ट सेलेक्ट की थी जो की 3,000/- की थी और PeterEngland की 3,000/- की पैंट सेलेक्ट की थी! मैं ब्रांडेड कपडे पहनता था, पर इतने महंगे नहीं इसलिए मैंने करुणा को बहुत समझाया पर वो जिद्द पर अड़ गई और AllenSolly की शर्ट खरीद कर मुझे गिफ्ट की|

करुणा: पैंट नेक्स्ट टाइम लेते!

करुणा मुस्कुराते हुए बोली|

करुणा के साथ रहते-रहते मुझ पर उस का प्रभाव पड़ने लगा था| कई बार जब वो मेरे साथ होती तो उसका फ़ोन बजता और उसे मलयालम में किसी से बात करते देख मैं कुछ-कुछ शब्द सीखने लगा था|

'नी पोडा पट्टी' - मतलब भाग कुत्ते!

ये वो पहला शब्द है जो मैंने सीखा था, क्योंकि किसी भी भाषा को सीखने के लिए सबसे पहले उसकी गाली सीखी जाती है! (हा....हा....हा....!) वैसे गालियां और भी थी पर करुणा मुझे वो कभी नहीं सीखती थी|

'एविडे' - किधर जा रहे हो

'वेंडा' - (शायद) नहीं

'चेची' - बड़ी बहन

'चेटटन' - बड़ा भाई और कभी-कभी अपने पति को भी!

'कुन्जू' - मौसी

ऐसे कुछ-कुछ शब्द मैं सीख गया था| जब मैं इन शब्दों को करुणा के सामने कहता तो उसे बहुत ख़ुशी होती और मेरे शब्द गलत उच्चारण करने पर वो मुझे सही करती| धीरे-धीरे उसने मुझे मलयालम फिल्में अपने फ़ोन पर दिखानी शुरू की, इन फिल्मों के लिए वो english subtitles ढूँढ कर लाती थी| इन फिल्मों की कहानी बॉलीवुड फिल्मों से बहुत अच्छी होती थी तो मुझे इन्हें देखने में मजा आता था| अब शाम को हम जब मिलते तो ये फिल्में हेडफोन्स लगा कर देखने लगते| जब फिल्में देखने लगा तो इनके कुछ कलाकारों का मैं फैन बन गया, सुपरस्टार मोहन लाल का अभिनय मुझे बहुत पसंद था| उनके अलावा दो तीन लोग और अच्छे लगते थे; निविन पॉली, पृथ्वीराज और दुलकर सलमान मेरे पसंदीदा एक्टर थे| हीरोइन की बात करूँ तो मुझे पार्वथी और निथ्या मेनन सबसे जयादा पसंद थी, दोनों की सादगी का मैं फैन था! इस तरह से मार्च का महीना खत्म हुआ और उसी के साथ मेरा ऑफिस का नोटिस पीरियड भी खत्म हुआ, अब मुझे अपनी आगे की जिंदगी का निर्णय लेना था!

[color=rgb(51,]जारी रहेगा भाग 7 में...[/color]
 

[color=rgb(65,]इक्कीसवाँ अध्याय: कोशिश नई शुरुआत की[/color]
[color=rgb(243,]भाग -7 (1)[/color]


[color=rgb(44,]अब तक आपने पढ़ा:[/color]

अब शाम को हम जब मिलते तो ये फिल्में हेडफोन्स लगा कर देखने लगते| जब फिल्में देखने लगा तो इनके कुछ कलाकारों का मैं फैन बन गया, सुपरस्टार मोहन लाल का अभिनय मुझे बहुत पसंद था| उनके अलावा दो तीन लोग और अच्छे लगते थे; निविन पॉली, पृथ्वीराज और दुलकर सलमान मेरे पसंदीदा एक्टर थे| हीरोइन की बात करूँ तो मुझे पार्वथी और निथ्या मेनन सबसे जयादा पसंद थी, दोनों की सादगी का मैं फैन था! इस तरह से मार्च का महीना खत्म हुआ और उसी के साथ मेरा ऑफिस का नोटिस पीरियड भी खत्म हुआ, अब मुझे अपनी आगे की जिंदगी का निर्णय लेना था!

[color=rgb(255,]अब आगे:[/color]

4 तरीक थी और आज सुबह मैं बहुत देर से उठा, अंगड़ाई लेता हुआ मैं बाहर आया तो पिताजी मुझे हैरानी से देखते हुए बोले;

पिताजी: आज ऑफिस नहीं जाना?

मैं: नहीं पिताजी, कल आखरी दिन था!

मैंने कुर्सी खींच कर उनके पास बैठते हुए कहा|

पिताजी: तो आगे क्या करना है?

पिताजी ने मेरी तरफ अपना ध्यान केंद्रित करते हुए सवाल पुछा|

मैं: जी कोई और नौकरी ढूँढूँगा और जब तक नहीं मिलती साइट का काम सम्भालूँगा|

नौकरी ढूँढने की बात तो सच थी पर साइट का काम संभालने की बात मैंने सिर्फ और सिर्फ पिताजी का दिल रखने को कही थी|

पिताजी: अब तो काम भी अच्छा चल पड़ा है, तो फिर तुझे क्या जर्रूरत है नौकरी करने की?

पिताजी ने प्यार से पुछा|

मैं: पिताजी आजकल के समय में आमदनी के सिर्फ एक जरिये पर आश्रित नहीं होना चाहिए! नौकरी होगी तो कम से कम एक निश्चित पैसा घर तो आता रहेगा!

पिताजी को मुझसे इतनी अक्लमंदी की उम्मीद नहीं थी, इसलिए वो मुस्कुराने लगे और माँ से बोले;

पिताजी: देख रही हो अपने लाल को? समझदार हो गया है, अब इसका ब्याह कर देना चाहिए!

पिताजी ने ब्याह की चिंगारी सुलगाई तो माँ ने उसी आग पर अपना तवा चढ़ा दिया;

माँ: मैं तो कब से कह रही हूँ, मुझे तो एक लड़की पसंद भी आई थी पर दिक्कत ये थी की वो हमारे धर्म की नहीं और उम्र में भी इससे बड़ी है!

माँ का इशारा करुणा की तरफ था, अब पत्नी की कही बात पति न समझे ये कैसे हो सकता है?! पिताजी ने फ़ौरन माँ की बात पकड़ ली और उनसे बोले;

पिताजी: अरे भागवान! धर्म का क्या है, वो तो बदला भी जा सकता है और उम्र भी कोई मायने नहीं रखती! तुम अगर मुझसे 10-12 साल बड़ी भी होती तो क्या मैं तुमसे ब्याह नहीं करता?

पिताजी ने माँ को छेड़ते हुए कहा, ये सुन माँ शर्म से लजाने लगीं और बोलीं;

माँ: क्या आप भी..... जवान लड़का बैठा है.... और आप हो की.....!

माँ की ये बात सुन कर मैं ठहाका मार के हँसने लगा|

पिताजी: मजाक की बात एक तरफ, अब तू ब्याह कर ले!

पिताजी ने बड़े प्यार से मुझसे कहा तो मैंने भी उनकी बात का मान रखते हुए कहा;

मैं: पिताजी एक नौकरी मिल जाए फिर दिसंबर तक शादी पक्का!

मैंने अपने चेहरे पर नकली मुस्कान चिपका कर कहा और उठ कर अपने कमरे में आ गया| शादी के लिए हाँ कह के मैंने माँ-पिताजी का दिल तो रख लिया था पर मेरे दिल का क्या? इन 4 सालों में मैं अभी तक भौजी को पूरी तरह भुला नहीं पाया था, गुस्सा से ही सही पर याद तो उन्हें फिर भी करता था! तभी दिमाग बोलने लगा; 'कब तक यूँ ही कुढ़ता रहेगा? क्या तुझे किसी ख़ुशी का हक़ नहीं? तूने कौन सा पाप किया है की तू उसकी सजा यूँ अकेले भुगत रहा है? जिसने पाप किया वो तो वहाँ मजे से जिंदगी 'जी रही' है और तू यहाँ पागलों की तरह अकेला तड़प रहा है!' दिमाग की कही बात सही थी पर दिल ससुरा आगे बढ़ने ही नहीं दे रहा था!

खैर मैं तैयार हुआ और आज पिताजी के साथ नाश्ता कर के साइट के लिए निकला, मिश्रा अंकल जी का प्रोजेक्ट हमें अभी नहीं मिला था तो पिताजी ने कुछ पुराने क्लाइंट से काम उठा लिया था| यहाँ मेरे करने लायक कोई काम नहीं था इसलिए मैं बोर हो रहा था और दिमाग में बस सुबह हुई मेरी शादी की बातें ही घूम रहीं थीं| पहले सोचा की करुणा को फ़ोन करके मिलने चला जाता हूँ पर फिर लगा की वो इस वक़्त ड्यूटी पर होगी, इसलिए मैंने दिषु को फ़ोन किया और उसे मिलने को पुछा| उसने मुझे लंच में मिलने को बुलाया और तब तक मैं पिताजी के साथ रह कर कुछ काम समझने लगा|

लंच में मैं दिषु से मिला और उसे अपनी जॉब के बारे में बताया तो वो एकदम से बोला;

दिषु: तू audit करेगा?

मैं: यार 400/- रुपये के लिए तेरे सर के साथ स्टॉक ऑडिट में अपना सर खपाने की मेरी हिम्मत नहीं!

मैंने मुँह बनाते हुए कहा|

दिषु: अबे स्टॉक ऑडिट नहीं एकाउंट्स ऑडिट और वो भी दिल्ली में!

ये सुन कर मैं बहुत खुश हुआ और उससे सीधा पैसे पूछे;

मैं: पैसे कितने मिलेंगे?

दिषु: एक ऑडिट 2 से 3 दिन की होती है और इसके तुझे 1,000/- प्रति दिन मिलेंगे| खाना-पीना अलग से लेकिन एक ही बात है की ऑडिट में time boundation है! सर 3 दिन से ज्यादा टाइम नहीं देते और सबसे मजे की बात की हम दोनों साथ होंगे, मतलब फुल ऐश!

दिषु खुश होते हुए बोला|

मैं: हाँ साले फुल ऐश तो तेरी होगी, क्योंकि काम तो सारा तू मेरे ऊपर डाल देगा!

ये सुन कर दिषु जोर से हँसने लगा|

ऑडिट रोज-रोज तो होनी नहीं थी हफ्ते में एक आधी होती और खाली बैठने से तो यही अच्छा था, इसलिए मैंने इस काम के लिए हाँ कर दी| दिषु साथ में था तो मेरे लिए एक फायदा ये भी था की मैं शाम को करुणा से मिलने के लिए आराम से निकल सकता था|

खैर आज शाम करुणा को घर जल्दी जाना था क्योंकि उसके घर पर मेहमान आये थे तो मेरा उससे मिलने का कोई प्लान नहीं था| इसलिए मैं शाम को जल्दी घर आ गया और माँ को दिषु से हुई बात बताई, उस समय पिताजी नहीं आये थे तो माँ को मुझसे अकेले में कुछ ख़ास बात करने का मौका मिल गया;

माँ: ठीक है बेटा जो तुझे ठीक लगे वो कर!

मेरी दिषु के साथ ऑडिट करने की बात सुन माँ ने प्यार से मेरे सर पर हाथ फेरते हुए कहा|

माँ: अच्छा मुझे एक बात सच-सच बता, तुझे कोई लड़की पसंद है?

माँ का ये सवाल सुन कर मैं आँखें बड़ी कर के उन्हें देखने लगा|

माँ: देख बेटा आज तेरे पिताजी से मेरी बात हुई थी, वो कह रहे थे की तू उनसे शायद शर्म करे और इस सवाल का जवाब न दे इसलिए मैंने तुझसे ये सवाल पुछा|

माँ की बात सुन मेरा सर झुक गया क्योंकि मैं उन्हें बताना चाहता था की मैं भौजी से बहुत प्यार करता हूँ पर उसका कोई फायदा नहीं होता क्योंकि वो तो मुझे भुला चुकी थीं!

माँ: बेटा मुझसे तो शर्म मत कर, मैं तो तेरी माँ हूँ!

माँ ने मेरे सर झुकाने को मेरी शर्म से जोड़ा और मुझे एहसास हुआ की मुझे माँ के सामने खुद को सामन्य दिखाना होगा|

मैं: नहीं माँ ऐसी कोई बात नहीं है! मेरी जॉब लगने के बाद आप जब बोलोगे, जिससे बोलोगे मैं शादी कर लूँगा|

ये शब्द अनायास ही मेरे मुँह से निकले क्योंकि अब मैं अपने माँ-पिताजी की ख़ुशी चाहता था उसके लिए अगर शादी करनी पड़े तो वो भी कर लूँगा! शायद शादी करने से जो जिम्मेदारियाँ सर पर पड़ेंगी उससे मैं भौजी को भुला सकूँ! मेरी बात सुन कर माँ को मुझ पर बहुत गर्व हुआ और उन्होंने मेरे सर पर हाथ फेरा|

रात को पिताजी आये तो मैंने उन्हें भी दिषु वाली बात बताई तो उन्होंने; 'ठीक है' कहा, मैं जानता था की वो नहीं चाहते की मैं इस तरह छोटे-मोटे काम करूँ पर खाली बैठने से तो अच्छा ही था| खाना खाने के बाद सोते समय मेरी करुणा से whats app पर चैट हुई तो मैंने उसे दिषु के साथ काम करने की बात बताई, उसने मेरी बात का समर्थन किया| कुछ दिन बाद मुझे दिषु ने बताया की कोहट एन्क्लेव में एक ऑडिट है और उसके लिए उसने मुझे अपने बॉस से मिलने बुलाया, मैं लंच में उसके ऑफिस पहुँचा और वहाँ उसके बॉस से मेरी अच्छे से बात हुई, उन्होंने हमें बता दिया की कितने क्वार्टर का काम है तथा मुझे कितने पैसे मिलेंगे| अगले ही दिन मैं, दिषु और उसके बॉस कोहट एन्क्लेव पहुँचे और वहाँ उन्होंने मुझे सारा काम समझा दिया, वो वहाँ दस एक मिनट रुकने के बाद निकल गए| मुझे कॉस्ट ऑडिट का अच्छा तजुर्बा था, पर ये ऑडिट बड़ी सरदर्दी का काम था! मैंने जैसे ही एक क्वार्टर की सेल्स की फाइल माँगी तो चपरासी ने बड़ी-बड़ी फाइलों के दो गट्ठर मेरे सामने रख दिए! उस ढेर को देख मैं सोचने लगा की ये अगर एक क्वार्टर का काम है तो बाकी के दो क्वार्टर की फाइलों का गठ्ठर कितना बड़ा होगा? मुझे हैरानी से गठ्ठर को घूरता देख दिषु मेरे पास आया और मेरी पीठ पर जोरदार हाथ मारते हुए बोला;

दिषु: क्यों? फ़ट गई?

ये कह कर वो हँसने लगा|

मैं: साले मजे मत ले वरना सारा काम तेरे ऊपर छोड़ कर निकल जाऊँगा!

मेरी धमकी सुन कर अब दिषु की फ़टी!

दिषु: ऐसा मत बोल भाई! देख मैं तुझे एक मस्त तरीका बताता हूँ, ये ले पेंसिल और आँख बंद कर के शुरू और आखरी के बिलों पर टिक मार दे क्योंकि उनमें कुछ गड़बड़ नहीं होती!

मैं: अबे साले मुझे काम मत सीखा! जा कर purchase आर्डर क्लियर कर!

दिषु ये सुन कर मुस्कुराया और चला गया, मुझे कौन सा यहाँ चार्टर्ड अकाउंटेंट की तरह काम करना था?! अपनी 7 महीने की नौकरी मैंने सीखा था की जितना दिल लगा कर काम करोगे उतना ही ज्यादा काम मिलेगा, इसलिए काम ऐसे करो की सैलरी ज्यादा लगने लगे! मैंने सारे बिल randomly चेक किये और शाम होने तक एक क्वार्टर का सारा गट्ठर चेक कर के सेल्स मैच करा दी, बॉस को शक न हो इसलिए मैंने एक पेज पर signing authority के change होने पर बिल नंबर लिख दिए| इसके अलावा किसी बिल में तारीक आगे-पीछे थी तो वो भी नोट कर दिया, ताकि बॉस को लगे की मैंने बहुत बारीकी से काम किया है|

जैसे ही 5 बजे मैं उठ खड़ा हुआ और दिषु ये देख कर मुस्कुराते हुए बोला;

दिषु: चल दिए अपनी आशिक़ की ड्यूटी पर?

मैं: चल बे! वो मेरी दोस्त है बस!

इतना कह कर मैं चल दिया और करुणा से आज midway में मिला, आज मैंने काम के चककर में लंच नहीं किया था तो दोनों ने मेट्रो स्टेशन की सीढ़ियों पर बैठ कर माँ द्वारा दिया हुआ मेरा लंच खाया, फिर उसे घर छोड़कर मैं अपने घर लौट आया| मेरा ये नियम चलता रहा, ऑडिट खत्म हुआ तो अगले ऑडिट मिलने तक मैंने पिताजी के साथ रहना शुरू कर दिया| इसी बीच मिश्रा अंकल जी ने हमें वो नया प्रोजेक्ट दिया, उन्होंने ग्रेटर नॉएडा में एक जमीन खरीदी थी और उस पर काम लगभग खत्म हुआ था| उन्होंने पिताजी को प्लंबिंग, कारपेन्टरी और बिजली का सारा काम सौंप दिया! काम बहुत बड़ा था और पैसा भी बहुत बड़ा था, मेरे लिए ये पूरा नया अनुभव था| मैंने पूरी एक रात पिताजी के साथ बैठ कर सारा हिसाब-किताब किया, मटेरियल कहाँ से आएगा और कितना लगेगा सब का हिसाब लगा कर मैंने रिपोर्ट बनाई| काम पूरा होने पर पूरे 45,000/- रूपयों का मुनाफ़ा था! मुनाफा ज्यादा था तो खर्चा भी ज्यादा था, पिताजी के पास पैसों की कमी थी तो मैंने कुछ पैसे तो मेरी saving से डाले और बाकी मैंने मिश्रा अंकल जी से एडवांस में माँगे| काम शुरू हुआ पर अब मुझे पैसे और बचाने थे ताकि मुनाफ़ा बढे इसलिए मैंने पिताजी से ओवरटाइम कराने को कहा, पिताजी ने मना किया तो मैंने ओवरटाइम के गणित को पिताजी को अच्छे से समझाया| तीन महीने के काम को मैंने फिलहाल 3 दिन तक कम कर दिया था, मैंने और गुना भाग किये और पिताजी से लेबर बढ़ाने को कहा पर पिताजी ने पैसों के कारन मना कर दिया, मैंने भी सोचा की ज्यादा लालच ठीक नहीं| इसी बीच मुझे एक दो दिन की नई ऑडिट मिली, पिताजी ने मना किया पर मैं ने थोड़ी जिद्द की तो पिताजी आगे कुछ नहीं बोले, उन्हें नाराजगी न हो इसलिए मैंने ऑडिट के लिए जल्दी जाना शुरू किया और शाम को मैं ठीक 5 बजे साइट पर पहुँच कर पिताजी को घर भेज देता| काम रात 9 बजे तक खींच कर मैं साढ़े दस बजे तक घर पहुँचता, पर मेरी इस डबल 'शिफ्ट' के कारन मैं करुणा से दो दिन नहीं मिल पाया| ये दो दिन मेरे लिए बड़े तक़लीफदायी थे, अब जा कर मुझे ये एहसास हुआ की मुझे करुणा की आदत पड़ गई है!

करुणा से प्यार करने का तो सवाल ही नहीं पैदा होता था, इसलिए नहीं क्योंकि वो गैर धर्म की थी, या उम्र में मुझसे बड़ी थी, या उसका रंग काला था, या उसका जिस्म कमजोर था पर उसकी और मेरी आदतों का कोई मेल नहीं था| मैं पूरब था तो वो पश्चिम, उसकी बहुत सी बुरी आदतें थीं जो मुझे बहुत नापसंद थीं|

वो अपने फ़ोन को साइलेंट कर के रखती थी, जेब में फ़ोन पड़े होने पर भी उसे उसके फ़ोन की vibration महसूस नहीं होती थी!

संडे को वो घर होती थी और देर तक सोती थी, जब की मैं उसे चर्च जा कर mass अटेंड करने को कहता था, उसने कभी मेरी बात नहीं मानी! पूजा-पाठ में मुझे लापरवाही कतई मंजूर नहीं थी और जब वो मेरी बात न मान कर मुझसे बेफज़ूल के तर्क करती तो मुझे बहुत गुस्सा आता था|

आधा संडे तो वो सोते हुए निकालती और जब उठती तब भी मुझे कॉल नहीं करती, एंजेल को गोदी में बिठा कर पिक्चर देखती रहती और शाम को मुझे कॉल करती, अगर मैं बीच में फ़ोन भी करता तो फ़ोन साइलेंट होने के कारन वो कॉल नहीं उठाती!

जब कभी हम मिलते और उस बीच अगर उसके किसी दोस्त का फोन आ जाता तो वो मुझे भूल कर अपने उस दोस्त से बात करने में मशगूल हो जाती!

मुझे मिलने के लिए जल्दी बुला लेती और मुझे पौना घंटे तक इंतजार करवाती! जब मैं उसके लेट आने की शिकायत करता तो कहती की; 'मैंने बोला जल्दी आने को?' ये सुन कर गुस्सा तो बहुत आता पर मैं इस बात को छोड़ देता!

सबसे सरदर्दी के बात तो वो उसके ex boyfriend का वर्णन, जिसे सुन कर मेरा सर दर्द करने लगता था!

इन सब बुराइयों के कारन मैं फिर भी उससे मिलता था, इस उम्मीद में की मेरे साथ रह-रह कर वो धीरे-धीरे सम्भल जायेगी लेकिन वो कभी नहीं सुधरी| जब रिश्ता नया-नया हो तो आप सब गलतियों को नजरअंदाज करते हो, बस वही मैं भी कर रहा था!

वहीं करुणा अपनी खामियाँ जानती थी पर उसे सुधारने के लिए कुछ नहीं करती थी, एक दिन उसने मुझे साफ़-साफ़ कह दिया; 'आपको ठीक लग रे तो friendship कर नहीं तो छोड़ दे! मैं किसी के लिए खुद को change नहीं करते!' उसकी दो टूक बात सुन कर मुझे बहुत गुस्सा आया और मैंने उसका फ़ोन काट दिया| उसे पता चल गया था की मुझे उसकी बात का कितना बुरा लगा है, इसलिए उसने ताबड़तोड़ फ़ोन करना शुरू कर दिया| आखिर मैंने उसका फ़ोन उठा लिया और उसने रोते हुए 'सॉरी' की रट लगा दी, उसके आँसूँ मुझे बर्दाश्त नहीं होते थे इसलिए मैंने उसे माफ़ कर दिया| उस दिन से वो डरी हुई रहने लगी, उसे लगता था की मैं उसकी दोस्ती तोड़ दूँगा| एक दिन उसने अपना ये डर मुझसे साझा किया;

करुणा: मिट्टू आप एक दिन मेरा friendship छोड़ देते न?!

उसका सवाल सुन कर मुझे अजीब लगा और मैंने उसे आश्वासन देते हुए वादा किया;

मैं: I promise मैं ये दोस्ती कभी नहीं तोडूँगा, भले ही आप इसे तोड़ दो!

ये सुन कर वो जोश में बोली;

करुणा: मैं ये friendship कभी नहीं तोड़ते!

मैं: अगर फिर भी आपका मन हो दोस्ती तोड़ने का तो मुझे एक बार कारन बता देना और मेरा जवाब सुन लेना उसके बाद मैं आपको कभी कॉल नहीं करूँगा!

भौजी द्वारा बिना मेरी बात सुने मुझे छोड़ देने के कारन मैंने ये बात करुणा से कही ताकि कम से कम वो तो भौजी की तरह न करे! इधर ये सुन कर करुणा को मेरे अंदर के दुःख का एहसास हुआ और उसने मेरे जख्म को थोड़ा कुरेदते हुए कारन पुछा;

करुणा: आप ऐसा क्यों बोल रे मिट्टू?

मैं: बस ऐसे ही!

ये कह कर मैंने बात पलट दी!

अपने सवाल का जवाब तो नहीं मिला, अलबत्ता मैं इन बातों को याद करके और उलझ गया| ये तो साफ़ था की मैं उससे प्यार नहीं करता क्योंकि मेरे दिल में अब भी भौजी के लिए जज्बात दबे हुए हैं, वो जज्बात या तो गुस्से के रूप में थे या फिर शायद अब भी कहीं प्यार बच गया था!

अगले दिन से मैंने पिताजी को साइट पर आने से मना कर दिया, ऑडिट निपटा कर मैं सीधा करुणा से मिलने पहुँचा और आज उससे मिल कर दिल को सुकून मिला था| दिल ने दिमाग को ज्यादा सोचने से रोका और कहा; 'आदत है तो आदत सही, कुछ नुक्सान तो नहीं कर रही न?' ये सुन कर दिमाग शांत हो गया| कुछ दिन बाद ऑडिट निपटी और मैंने साइट का काम संभाल लिया, पर मैं ठीक शाम 5 बजे गोल हो जाता| पिताजी पूछते तो कह देता की मैं दिषु से मिलने जा रहा हूँ या फिर कोई भी बहना बना देता| पिताजी इस कर के कुछ नहीं कहते क्योंकि मैं रात 8 बजे तक घर पहुँच जाता था| कुछ दिन बाद करुणा ने अचानक दोपहर को फोन कर के बताया की उसे जयपुर में सरकारी नौकरी मिली है! उसकी आवाज से ख़ुशी झलक रही थी, पर मैं एक सेकंड के लिए सोच में पड़ गया था की अब हम दोनों कभी नहीं मिल पाएंगे, फिर अगले ही पल मेरे मन ने मुझे लताड़ा और कहा की मैं इतना स्वार्थी कैसे हो सकता हूँ? सरकारी नौकरी होने से करुणा की जिंदगी स्थिर हो जाएगी, पर दिल इस ख्याल को मानने से मना कर रहा था!

मैं: Congratulations dear!

मैंने नकली मुस्कान चिपकाए हुए कहा|

करुणा: मिट्टू मेरे को जयपुर जाना..... आप चलते?

उसके ये सवाल सुन कर मुझे हाँ करने में सेकंड नहीं लगा;

मैं: हाँ!

फिर याद आया की मैं अपने घर में क्या कहूँगा? और चलो मैं तो फिर भी झूठ बोल दूँगा पर करुणा का क्या? वो क्या बोलेगी की वो किसके साथ जा रही है?

मैं: Dear आप अपने घर पर क्या बोलोगे?

मैंने सीधा सवाल पुछा तो करुणा ने बिना सोचे जवाब दिया;

करुणा: मैं कहते की मैं आपके साथ जा रे|

ये सुन कर मैं चौंक गया, मुझे उससे इतने आसान जवाबों की उम्मीद नहीं होती थी| मेरे साथ वो हमेशा दिल से सोचती थी, दिमाग का उपयोग वो न के बराबर करती थी!

मैं: आपकी दीदी कुछ नहीं बोलेगी?

करुणा: वो सब मैं manage करते, आप मुझे ले जाते या नहीं?

करुणा ने किसी बच्चे की तरह कहा| मेरा जवाब तो पहले से ही हाँ था, मैंने उसे शाम को मिलने को कहा ताकि हम जाने की planning कर पायें|

शाम को जब हम मिले तो करुणा ने मुझे सारी बात विस्तार से बताई, ये उसकी हरबार की आदत थी, वो हर खबर को किसी news anchor की तरह आधी ही सुनाती थी!

करुणा: मैंने last year एक जॉब का फॉर्म ब...भ...भरे थे! आज सुपह (सुबह) में मेरे को एक कॉल आते| वो कॉल एक सर का थे और वो मुझे फ़ोन कर के बहुत डाटते..... बोलते की मैं irresponsible है, मैंने website पर notification नहीं पढ़े थे! मैं बोला मुझे पता नहीं ता की वेबसाइट पर notification आते, तो वो मुझे और डाँटते और बोलते की मेल पर भी वो notification आया पर मैं बोला की मेरे पास कोई notification नहीं आये! वो मुझे बहुत डाँटा और कल आने को बोला, मैंने बोले मैं इतना जल्दी कैसे आते तो वो गुस्सा कर के बोला की परसों नहीं आ रे तो वो मेरा नाम cancel कर देते! फिर मैंने अपना मम्मा को कॉल कर के सब बताया तो वो बोले की government job है इसे मत छोड़! मैंने दीदी को बताया तो वो बोले की तू चले जा, मेरे पास टाइम नहीं इसलिए मैंने आपको पुछा!

इधर उसकी बात सुनते-सुनते मैंने घर पर बोले जाने वाला झूठ सोच लिया था|

मैं: ट्रैन की टिकट तो मिलेगी नहीं, इसलिए बस से चलते हैं|

मैंने फ़ोन निकाला और दिषु से बस के बारे में पुछा, उसने बताया की RSRTC की website से टाइम-टेबल चेक कर लूँ| मैंने ऑनलाइन चेक किया तो बीकानेर हाउस से super deluxe volvo bus चलती थी, मैंने करुणा से जाने का समय पुछा तो उसने रात वाली बस लेने को कहा, मैंने अगले दिन की रात 9 बजे वाली बस की दो टिकट बुक कर ने लगा| टिकट करीब 800/- रुपये की थी और टिकट के पैसे देख कर करुणा मना करने लगी, मैंने उस बहुत समझाया तो वो बोली की वो मुझे अपनी अगली सैलरी से वापस कर देगी| टिकट बुक हुई तो करुणा पूछने लगी;

करुणा: मिट्टू आप मम्मा को क्या बोलते?

मैं उसकी बात समझ गया और अपने झूठ से पर्दा हटाते हुए बोला;

मैं: उनको ये तो नही बोल सकता की मैं आपके साथ जा रहा हूँ, तो मैं बोल दूँगा की जयपुर में मेरी ऑडिट है|

ये सुन कर करुणा को ग्लानि होने लगी;

करुणा: आप मेरे लिए झूठ बोलते?

मैं: यार सच बोलूँगा तो कोई जाने नहीं देगा, सुबह जा कर रात को लौट आना होता तो मैं शायद समझा भी लेता पर रात रुकने के लिए माँ-पिताजी मना कर देंगे!

मैंने करुणा की बात का जवाब तो दिया पर इस जवाब से वो उदास हो गई, मैंने उसे थोड़ा प्यार से समझाया और किसी तरह मना लिया| उस दिन करुणा को घर छोड़ मैं घर जा रहा था, मैंने अपने झूठ को पक्का करने के लिए दिषु को फ़ोन किया और उसे सब सच बता दिया, पर वो साला मेरी बात गलत जगह खींचने लगा;

दिषु: अबे बहुत सही! ले जा भाभी जी को!

उसे लग रहा था की मैं और करुणा घूमने जा रहे हैं!

मैं: अबे पागल मत बन! वो बस दोस्त है, उसकी जॉब का सवाल है इसलिए जा रहा हूँ|

दिषु: हाँ तो मैं कौन सा कुछ 'और' कह रहा हूँ!

उसने 'और' शब्द पर बड़ा जोर डाल कर कहा|

मैं: यार उसके बारे में ऐसा मत बोल| वो ऐसी-वैसी लड़की नहीं है, बहुत अच्छी लड़की है!

मैंने दिषु को प्यार से समझाया तब जा कर उसने मेरी टाँग खींचना बंद किया|

मैं: अगर माँ-पिताजी ने तुझसे पुछा तो तू यही कहियो की मैं जयपुर ऑडिट के लिए अकेला गया हूँ|

मैंने अपना झूठ फिर से दोहराया ताकि उसके भेजे में ये बात बैठ जाए|

दिषु: हाँ-हाँ मैं देख लूँगा, कह दूँगा एक ही आदमी का काम था इसलिए सर ने सिर्फ तुझे भेजा है|

दिषु ने मुझे इत्मीनान दिलाते हुए कहा|

मैं घर पहुँचा और अपना पहले से ही फूलप्रूफ किया झूठ अपने माँ-पिताजी के सामने परोस दिया, पिताजी ने तो कुछ नहीं कहा और जाने की इजाजत दे दी पर माँ ने मुझे पहले की तरह हिदायतें देनी शुरू कर दी| खाने-पीने से ले कर मेरे रहने तक की सारी हिदायतें उन्होंने दोहरा दी, मैंने उनसे थोड़ा मजाक करते हुए कहा;

मैं: माँ ऐसा करता हूँ आपकी सारी बातें लिख कर लैमिनेट करवा लेता हूँ ताकि आपको बार-बार दोहराना न पड़े!

मेरा मजाक सुन माँ ने प्यार से मेरी पीठ पर हाथ मारा| जब से मैंने माँ से शादी के लिए हाँ की थी तब से माँ-पिताजी ने मुझे ये बात रोज-रोज याद दिलानी शुरू कर दी थी, वो ये बात मुझे सीधे-सीधे याद नहीं दिलाते थे बल्कि बात गोल घुमा कर कहते थे|

पिताजी: अरे शादी लायक हो गया तेरा लाल और तू अब भी इसे बच्चों की तरह हिदायतें देती रहती है!

पिताजी ने शादी वाली बात मुझे सुनाते हुए कहा|

माँ: ये कितना भी बड़ा हो जाए, रहेगा तो मेरा बेटा ही|

माँ ने मेरे सर हाथ फेरते हुए कहा| माँ-पिताजी का प्यार देख कर मुझे उनसे झूठ बोलने की ग्लानि तो हो रही थी, पर मैं ये सब स्वर्थी हो कर नहीं कर रहा था, मेरे इस झूठ से करुणा को सरकारी नौकरी मिल रही थी| बस यही सोच कर मैंने खुद को समझा लिया|

तो जयपुर जाने का सारा प्लान सेट था, रात की बस हमें तड़के सुबह जयपुर उतारती, फिर हमें एक होटल में दो अलग-अलग कमरों में थोड़ा आराम करना है, फिर नाहा धो कर सीधा ऑफिस| ऑफिस से काम निपटा कर वापस होटल, नहाओ-धोओ और रात की बस से वापस दिल्ली| एक बात जर्रूर थी, मैं आजतक दिल्ली के बाहर जब भी गया तब मैं किसी के साथ होता था फिर चाहे वो मेरे माँ-पिताजी हों या फिर ऑडिट पर ले जाने वाले बॉस, इसलिए मुझे कभी खुद जिम्मेदारी नहीं लेनी पड़ी, परन्तु इस बार मुझे खुद सारी जिम्मेदारी उठानी थी, न केवल अपनी बल्कि एक लड़की की भी, बस यही सोच कर मुझे खुद पर बहुत गर्व हो रहा था की मैं इतना बड़ा हो चूका हूँ की आज एक लड़की की जिम्मेदारी उठा रहा हूँ|

शाम 6 बजे करुणा का फ़ोन आया और उसने मुझे कहा की मैं उसे घर से pick करूँ! मुझे उसकी ये बात समझ में नहीं आई की भला मैं उसे घर से क्यों pick करूँ?! पर मैंने उस समय इस बात को इतनी तवज्जो नहीं दी और सात बजे उसे लेने उसके घर पहुँचा, उसकी दीदी और करुणा दोनों नीचे खड़े थे जो मैंने कुछ दूर से पहले ही देख लिया था, तो मैंने थोड़ा नाटक करते हुए उन्हें ऐसे दिखाया जैसे मैं यहाँ पहलीबार आया हूँ| मेरी ये चालाकी भाँप कर करुणा मुस्कुराने लगी, वहीं उसकी दीदी को यक़ीन हो गया की मैं यहाँ पहलीबार आया हूँ|

करुणा की दीदी: मानु...आप इधर से कहाँ से आ रहे हो?

दीदी की हिंदी करुणा के मुक़ाबले बहुत अच्छी थी| इधर अपना झूठ बरकरार रखने के लिए मैं जानबूझ कर उलटे रास्ते से लम्बा चक्कर लगा कर आया था|

मैं: वो actually दीदी मैंने आपका एड्रेस पुछा तो एक आदमी ने मुझे गलत गली में भेज दिया, फिर वहाँ से पूछते-पूछते घुमते-घुमते हुए मैं यहाँ पहुँचा|

मैंने बात बनाते हुए कहा| फिर दीदी ने करुणा को मेरे सामने सारी चीजें संभाल के रखने का दिखावा किया और अंत में मुझसे कहा;

करुणा की दीदी: मानु अपना और इसका ध्यान रखना|

उनकी बात में मुझे थोड़ी सी चिंता दिखी, इसलिए मैंने उन्हें आश्वस्त करने के लिए कहा;

मैं: दीदी कल सुबह पहुँचते ही आपको फ़ोन करेंगे और फिर निकलते समय भी|

इतने में पीछे से ऑटो आया और मैंने उसे रोक कर बीकानेर हाउस के लिए पुछा| हम दोनों ऑटो में बैठ गए और दीदी को हाथ हिला कर bye किया| ऑटो कुछ दूर आया होगा की करुणा बोली;

करुणा: आपको पता मैंने आपको घर लेने क्यों बुलाते?

करुणा का सवाल सुन मैंने न में गर्दन हिलाई|

करुणा: कुछ दिन पहले एक न्यूज़ आते की एक लड़का और लड़की बस में जाते, बस में बहुत कम लोग ता| दो लोगों ने लड़के को बस से बाहर फेंक देते और लड़की के साथ रेप करते!

ये सुन कर मैं आँखें फाड़े करुणा को देखने लगा! उसकी बात ने मेरे गर्व को तोड़कर चकना चूर कर दिया था|

करुणा: क्या हुआ मिट्टू?

करुणा मुस्कुराते हुए बोली|

मैं: इसीलिए आपने मुझे घर लेने आने को कहा था न की अगर कुछ गड़बड़ हो तो आपका दीदी मेरे को पुलिस में दे दे?!

मैंने अपने डर को छुपाने के लिए थोड़ा मजाक करते हुए कहा| मेरी बात सुनकर करुणा हँस पड़ी और हमारा बीकानेर हाउस पहुँचने का सफर हँसी-ख़ुशी शुरू हुआ| 10 मिनट बाद करुणा ने अपने हैंडबैग से rosary निकाली और ऑटो में बैठे-बैठे pray करने लगी| ये देख कर तो मैं और भी डर गया, मुझे लगने लगा की कहीं मेरा अति आत्मविश्वास कोई मुसीबत न खड़ी कर दे?! इसलिए मैंने भी ऑटो में बैठे-बैठे प्रार्थना शुरू कर दी; 'हे भगवान हमें अपने काम में सफल करना और मुझे शक्ति देना की मैं करुणा की रक्षा कर सकूँ!' मैंने आँखें मूँद कर भगवान से मन ही मन प्रार्थना की| इधर मुझे आँखें बंद किये हुए प्रार्थना करते देख करुणा के चेहरे पर मुस्कान आ गई, पर उसने कुछ नहीं कहा|

कुछ देर में हम बीकानेर हाउस पहुँचे और बस का पता करके waiting हॉल में बैठ कर इंतजार करने लगे, हॉल में एक टीवी लगा था जिसमें टॉलीवूड की कोई फिल्म दिखा रहे थे| वो फिल्म हिंदी में dubbed थी और उसके एक्शन सीन देख कर हम दोनों को बहुत हँसी आ रही थी, कुछ समय पहले जो डर मुझे डरा रहा था वो अब फुर्र हो चूका था| कुछ समय में अनाउंसमेंट हुई की जयपुर जाने वाली बस लग चुकी है तो हम दोनों बाहर आये और अपना सामान ले कर बस में चढ़ गए| अपनी-अपनी सीट पर बैठ कर दोनों ने अपने-अपने घर फ़ोन कर दिया और बता दिया की हम बस में बैठ गए हैं| करुणा की दीदी तो जानती थीं की मैं करुणा के साथ हूँ, पर मेरे घर में कोई नहीं जानता था की करुणा मेरे साथ है!

बस चली तो मैंने अपने बैग से माँ द्वारा पैक किये हुए आलू के परांठे निकाले, आलू के परांठे देखते ही करुणा की आँखें किसी छोटे बच्चे की तरह चमकने लगीं| मैं जानता था की करुणा को आलू के परांठे कितने पसंद हैं इसलिए मैंने जानबूझ कर माँ से आलू के परांठे बनवाये थे| साथ में माँ ने आम का अचार दिया था जो करुणा की दूसरी सबसे मन पसंद चीज थी! करुणा ने दबा के परांठे खाये और पेट भरने के बाद अब उसे सोना था|

वहीं Volvo बस में सफर करना मेरा सपना था और आज मैं इस सपने के पूरा होने पर बहुत खुश था| आजतक पिताजी के साथ रोडवेज की बसों में मैंने कई बार सफर किया था, पर Vovo उसके मुक़ाबले में कई ज्यादा आराम दायक थी! कहाँ रोडवेज की उधड़ी हुई सीट और कहाँ volvo की नरम-नरम सीट जिसमें आप आराम से अपनी कोहनी टिका कर, पाँव footrest पर रख कर पीठ से कुर्सी के पीछे वाली गद्दी को पीछे धकेल कर आराम से बैठ सकते थे| कहाँ वो सड़क के हर गढ्ढे पर हिचकोले खाती हुई, घड़घड़ करती हुई रोडवेज की बस और कहाँ ये low floor वाली बिना आवाज किये चलने वाली शानदार बस! कहाँ वो रोडवेज की खिड़की से आती बदबूदार हवा और कहाँ volvo बस का शानदार AC जिसने एक पल के लिए करुणा को काँपने पर मजबूर कर दिया था! मैं चुपचाप बैठा रोडवेज की बस और volvo बस में तुलना कर रहा था|

उधर बस में यही कोई 10 यात्री थे और सब के सब आदमी थे, करुणा इस बस में अकेली लड़की थी| जब ड्राइवर ने बस के अंदर की लाइट बंद की तब मैंने पीछे मुड़ कर देखा और मुझे इतने कम लोग देख कर मुझे थोड़ी चिंता होने लगी! ये सभी यात्री पूरी बस में फैले हुए थे और अलग-अलग सीट घेर कर बैठे थे, मुझे लगा था की शायद IFFCO चौक से शायद और यात्री चढ़ेंगे पर ऐसा नहीं हुआ| वहीं करुणा बड़े आराम से कुर्सी पर बैठी ऊँघ रही थी, उसने न तो इस बात पर गौर किया था की बस में वो अकेली लड़की है न ही उसे एक लड़के के साथ रात में बस से सफर करने का कोई डर था| वो तो बेख़ौफ़ सो गई पर मैं पलट कर ये देखने लगा की हमारे आस-पास कितने लोग मौजूद हैं| हमारे आगे एक लड़का दोनों सीट पर फ़ैल कर बैठा था, हमारे बगल वाली सीट पर कोई नहीं बैठा था, हमारे पीछे वाली सीट भी खाली थी और उसके पीछे एक आदमी सीट पर फ़ैल कर सो रहा था| इसी तरह से पूरी बस में जितने आदमी थे सब के सब दोनों सीटों पर फ़ैल कर सो रहे थे| ये देख कर मुझे थोड़ा इत्मीनान हुआ, सामने की तरफ बस का सबसे बड़ा शीशा था जिसमें से मुझे सामने का ट्रैफिक साफ़ दिख रहा था| रात का सन्नाटा और उस सन्नाटे में आस-पास जलती हुई ढाबों की रंग-बिरंगी लाइटें, ये देख कर मेरे दिल को एक अजीब सा चैन मिल रहा था| इसी चैन ने मेरी इस बेचैनी को खत्म कर दिया था|

मुझे याद आया की जब माँ-पिताजी के साथ बस से रात को सफर करता था तब मैं थोड़ी देर जागता था, उसके बाद कभी पिताजी की गोदी तो कभी माँ की गोदी में सर रख कर सो जाता था, पर आजकी बात और थी, आज मुझ पर एक लड़की की जिम्मेदारी तथा volvo बस में पहले सफर दोनों का जोश सवार था! यही जोश मुझे सोने नहीं दे रहा था, मैं चुपचाप बैठा चेहरे पर मुस्कान लिए हुए सामने की ओर सड़क को देख रहा था| मेरे आलावा बस एक ड्राइवर था जो जाग रहा था, वरना पूरी बस में सन्नाटा पसरा हुआ था!

इधर करुणा को बहुत गहरी नींद आ रही थी, नींद में उसका सर मेरे कंधे से छुआ तो मैं थोड़ा चौंक गया, इन चार महीनो में ये हम दोनों का पहला स्पर्श था| मुझे लगा की अचानक से करुणा का सर मेरे कंधे पर आने से वो उठ जाएगी पर वो तो बड़े चैन से मेरे कंधे पर सर रख कर सो रही थी| इधर मुझे ये एहसास बहुत ही अजीब लग रहा था क्योंकि आज पहलीबार किसी लड़की ने मुझे इस कदर छुआ था| अब उसे जगा कर उसकी नींद खराब करने का मन नहीं हुआ तो मैंने कान में हेडफोन्स लगाए और 'यूँ ही चला चल राही ' सुनने लगा| ये गाना सुनते हुए मन में एक ख्याल आया की हम इंसान तो इस सड़क पर से चलते हुए अपनी मंजिल तक पहुँच जाते हैं, पर ये सड़क हमेशा यहीं रहती है, क्या इसका मन नहीं करता होगा की जिन लोगों को ये उनकी मंजिल तक पहुँचाती है वो एक पल ठहर कर इसे शुक्रिया करें?! इस एक ख्याल के आते ही नजाने क्यों मैंने खुद की तुलना इस सड़क से करनी शुरू कर दी, मैं भी तो इस सड़क की ही तरह पहले भौजी को उनकी खुशियों की तरफ ले गया था और अब मैं करुणा को उसकी नई जिंदगी की शुरुआत की ओर ले जा रहा हूँ!

पर मुझ में ओर इस सड़क में बहुत बड़ा फर्क था, ये सड़क मेरी तरह स्वार्थी नहीं थी, शिकायत नहीं करती थी! हालाँकि मैंने भौजी या करुणा के साथ कभी किसी चीज की उम्मीद नहीं की, उनके लिए मैंने आजतक जो भी किया उसके बदले में मैंने बस प्यार और साथ ही माँगा था, पर प्यार या साथ माँगना भी तो एक तरह से स्वर्थी होना ही था! ये ख्याल आने से मैंने खुद को एक स्वार्थी की उपाधि दे दी, पर मुझे इसका कोई गिला नहीं था| प्यार और साथ माँगना कोई पाप नहीं था?!

करुणा: मिट्टू आप सोते नहीं?

करुणा के बोल सुन मैं अपनी सोच से बाहर आया और मुस्कुरा कर बोला;

मैं: यार इतना शांत माहौल है, रंगबिरंगी लाइट्स हैं, अगल-बगल से बसें और ट्रक गुजर रहे! इन्हें छोड़कर सोने का मन नहीं कर रहा|

ये सुन कर करुणा मुस्कुराई और बोली;

करुणा: आप क्या poet है?

मैंने बस मुस्कुराते हुए हाँ में जवाब दिया| उसने आगे कुछ नहीं कहा और खिड़की से सर लगा कर सोने लगी| मैं वापस सड़क, बसें और ढाबे की रंग-बिरंगी लाइट देखने लगा|

कुछ समय बाद मुझे लगा की करुणा ठीक से सो सके इसलिए मैं उठ कर पीछे वाली सीट पर बैठ गया, पीछे वाली सीट पर बैठने का फायदा ये हुआ की मुझे खिड़की के पास बैठने का मौका मिल गया और मैं वहाँ से दूसरी सड़क पर गुजरती हुई गाड़ियाँ देखने लगा! खिड़की से आती-जाती गाड़ियाँ और ट्रक देखने में बड़ा मजा आ रहा था, उन कुछ पलों के लिए मैं सारी चिंताएँ भूल गया था| कुछ देर बाद बस ने एक हॉल्ट लिया, मुझे बाथरूम जाना था तो मैंने करुणा को बेमन से उठाया और उससे पुछा की उसे 'फ्रेश' होना है क्या? करुणा को बहुत जोरदार नींद आई थी इसलिए उसने 'न' कहा और मैं अकेला बाथरूम चला गया| बाथरूम हो कर मैं जल्दी से लौट आया क्योंकि मुझे डर था की मेरी गैरहाजरी में करुणा के साथ कुछ गलत न हो जाए?! मैं फटाफट लौटा तो देखा की करुणा दोनों सीटों पर पैर फैला कर लेटी हुई सो रही है| मैं पुनः करुणा के पीछे वाली सीट पर पाँव फैला कर बैठ गया, 10 मिनट में सब लौट आये और बस फिर चल पड़ी| जयपुर आने तक मैंने एक पल के लिए भी आँख बंद नहीं की और खिड़की के बाहर की दुनिया को टकटकी लगाए देखता रहा| कुछ देर बाद करुणा की नींद खुली और मुझे अपने पास ना पा कर वो डर गई, उसे लगा की मैं कहीं उतर गया इसलिए वो डरी-सहमी सी खड़ी हो कर मुझे ढूँढने लगी, उसके खड़े होती ही मैंने अपना दाहिना हाथ हिला कर उसका ध्यान अपनी ओर खींचा| मुझे देख कर उसके दिल को चैन आया और वो मुस्कुराई, उसने मुझे आगे बैठने को कहा तो मैने कह दिया की वो आराम से लेटे, तबतक मैं खिड़की पर बैठ कर अपनी आँखें ठंडी कर लूँ! वो वापस पैर फैला कर लेट गई और मैं अपने काम में लग गया|

सुबह तीन बजे बस ने हमें सिंधी कैंप बस स्टैंड उतारा, वहाँ उतरते ही हम दोनों बाहर की ओर चल पड़े| अभी हम बाहर पहुँचे भी नहीं थे की हमें होटल वाले दलाल मिल गए, हम दोनों को देख कर वो समझ गए की एक लड़का-लड़की यहाँ घूमने और मौज-मस्ती करने आये हैं| उन्होंने हमें 2,000/- से ऊपर के होटल के बारे में बताना शुरू कर दिया पर हम दोनो बस न में गर्दन हिलाते हुए आगे बढ़ने लगे| आगे चलकर हमें 2-4 ऑटो वाले मिल गए और मैंने उनसे 1,000/- तक के होटल के बारे में पुछा तो वो हमें ले कर सीधा बस स्टैंड के सामने वाली लाइन में घुस गया जहाँ गलियों में होटल थे| ये सारा मोमडन इलाका था, ऑटो वाले ने एक होटल के सामने ऑटो रोका और मुझे साथ चलने को कहा| मैंने करुणा को इशारे से ऑटो में बैठे रहने को कहा और मैं ऑटोवाले के साथ होटल में घुसा| ऑटो वाले ने आगे बढ़ कर बताया की साहब और मेमसाब के लिए रूम चाहिए, ये सुन कर होटल के मालिक ने मुझसे सीधा सवाल पुछा;

होटल मालिक: शादी-शुदा हैं?

ये सुन कर मेरी शक्ल पर हवाइयाँ उड़ने लगी! मैं चाहता तो उससे कह सकता था की हमें दो कमरे चाहिए पर ये जगह देख कर मुझे फिल्मों में दिखाए जाने वाला red light area जैसा दिख रहा था, जिसे देख कर मेरा मन बहुत घबरा रहा था, इसलिए मैंने न में गर्दन हिलाई| मेरी ये हालत देख कर मालिक को लगा की मैं यहाँ 'उस' काम के लिए यहाँ आया हूँ तो उसने कमरा देने से साफ़ मना कर दिया| मैं और ऑटो वाला लौट आये और मैंने उससे साफ़ कहा;

मैं: भैया 1,500/- तक का भी होटल चलेगा पर इस तरह गीच-पिच इलाके में होटल मत दिखाओ!

ये सुन कर ऑटो वाले ने एक अच्छी कॉलोनी की तरफ ऑटो घुमाया और एक राधास्वामी होटल के सामने ऑटो रोका| होटल एक खुली जगह में था, बाहर से दिखने में ही वो 4 स्टार होटल लग रहा था इसलिए मैंने करुणा को उतरने को बोला| हम दोनों बैग लेकर होटल में घुसे, करुणा को नींद आ रही थी तो मैंने उसे lobby में सोफे पर बैठने को कहा और मैं reception पर बात करने लगा| मैंने receptionist से कमरों का किराया तो उसने बताया की 1,200/- रुपये प्रति कमरा, मैंने उससे दो कमरे माँगे और उसने मुझसे हम दोनों की ID माँगी| मैंने उसे अपनी ID दी और करुणा से उसकी ID लेने उसके पास आया;

करुणा: कितना पैसा बोल रे?

मैं: 1,200/- एक रूम का, मैं दो रूम बुक कर रहा हूँ.....

आगे मेरी बात पूरी होती उससे पहले ही करुणा एकदम से गुस्सा हो गई;

करुणा: तुम पागल होरे? दो रूम क्यों लेरे? एक लो!

आज करुणा ने पहली बार मुझे 'तुम' कहा था, पर मेरा ध्यान उस वक़्त उस बात पर नहीं गया बल्कि मैं तो उसकी एक रूम में रहने की बात सुन कर उसे आँखें फाड़े देख रहा था! मुझे यूँ आँखें फाड़े देखते हुए करुणा मेरे मन की स्थिति और मेरे दिमाग में उठ रहे सवालों को समझ गई, पर वो उस समय वहाँ कुछ कह कर हम दोनों का मजाक नहीं बनवाना चाहती थी इसलिए वो अपनी ID ले कर खड़ी हो गई| हम दोनों reception पर लौटे और receptionist ने हमारी ओर होटल का रजिस्टर घुमा दिया| मैंने बिना डरे अपना नाम-पता भर दिया और रजिस्टर करुणा के आगे कर दिया, जबतक करुणा अपनी डिटेल भर रही थी तब तक receptionist ने मुझसे पुछा की कितने दिन के लिए रूम चाहिए, मैं उस वक़्त एक लड़की के साथ रूम में रुकने के नाम से हड़बड़ाया था और उसी हड़बड़ी में मैंने जवाब दिया;

मैं: जी बस 5-6 घंटों के लिए!

ये सुन कर receptionist और करुणा दोनों मुझे घूरने लगे, दोनों की आँखें मुझ पर टिकी थीं और मैं मन ही मन सोच रहा था की अब मैंने क्या गलत कह दिया?!

करुणा ने जैसे-तैसे बात संभाली और बोली;

करुणा: हम evening check out करते!

करुणा की बात सुन कर जैसे उसे इत्मीनान हो गया तथा उसने और कुछ नहीं कहा| करुणा के डिटेल भरने के बाद Receptionist ने एकबार रजिस्टर चेक किया, उसने रजिस्टर में relation वाले column की तरफ इशारा करते हुए हमें स्वालियाँ नजरों से देखा! पेन करुणा के हाथ में था तो उसने उस column में 'friends' लिख दिया| इतने में एक लड़का निकल कर आया जिसने हमें पहली मंजिल पर अपना कमरा दिखाया| कमरे में पहले मैंने प्रवेश किया था और घुसते ही मेरी नजर सीधा पलंग पर पड़ी, उसे देखते ही मैं स्तब्ध खड़ा हो गया| इधर करुणा ने दरवाजे पर अंदर से चिटकनी लगाई, उस चिटकनी की आवाज सुन मेरी तंद्रा भंग हुई| एक कुँवारी लड़की के साथ एक कमरे में एक पलंग पर सोने की बात से ही शरीर में चिंता की झुरझुरी छूटने लगी थी!

करुणा बिना कुछ कहे सीधा बाथरूम में घुस गई, इधर मैंने दोनों बैग रखे और अपने बैग से सोने के लिए पहनने वाले कपडे निकालने लगा| एक पजामा और टी-शर्ट निकाल कर मैं मुड़ा तो देखा करुणा मुझे ही देख रही है;

करुणा: आप दो रूम क्यों बुक कर रहा ता? ज्यादा पैसा आ रे?

करुणा ने अपने दोनों हाथ अपनी कमर पर रखते हुए प्यारभरे गुस्से से पुछा|

मैं: यार मैं एक लड़का हूँ...और आप एक लड़की हो.... हम दोनों ...एक कमरे में...एक बेड पर.... कैसे?

मैंने घबराते हुए कहा|

करुणा: हम best friends है न? एक साथ बेड पर सो रे न और तो कुछ नहीं कर रहे!

करुणा ने फट्क से जवाब दिया|

मैं: Dear मैंने आजतक किसी लड़की के साथ room share नहीं किया, फिर मेरे या आपके घर में पता चला तो कितनी प्रॉब्लम होगी?

करुणा: उनको कौन बोल रे की हम एक साथ रुका था?!

करुणा ने आज पहलीबार मेरे सामने झूठ बोलने की हिम्मत दिखाते हुए कहा|

करुणा: और आप पागल है क्या जो उस receptionist को बोल रे की हमें बस कुछ घंटों के लिए रूम चाहिए?

करुणा की आवाज में थोड़ा गुस्सा झलक रहा था और मुझे उसका कारन जानना था;

मैं: तो उसमें क्या गलत था? थोड़ी देर सो कर तो सुबह ऑफिस के लिए निकल जाना था....

मेरी बात अभी पूरी भी नहीं हुई थी की करुणा मेरी बात काटते हुए बोली;

करुणा: आपको पता है की कुछ घंटों के लिए कौन रूम बुक करते?

उसने बहुत गुस्से से कहा| वहीं मैं उसके सवाल से अनजान था, इसलिए मैं मासूमियत भरी नजरों से उसे देखने लगा|

करुणा: Prostitute को ले कर आते तब आदमी लोग ऐसे रूम बुक करते!

ये सुनते ही मैं आँखें फाड़े हैरानी से उसे देखने लगा!

करुणा: मैं आपको Prostitute दिखते?

उसने फिर गुस्से से मुझसे सवाल पूछा|

मैं: I'm really sorry dear! सच में मुझे ये सब नहीं पता था, मैं तो बस.....

इसके आगे मुझसे कुछ बोला नहीं गया और मैंने उसके आगे हाथ जोड़ दिए| करुणा को मेरे चेहरे पर ईमानदारी दिखी और उसने बात को आगे नहीं खींचा| मैं सर झुकाये बाथरूम में घुस कर कपडे बदल कर बाहर आया, मुझमें हिम्मत नहीं हो रही थी की मैं उससे कोई बात करूँ|

मैं पलंग की तरफ बढ़ा तो देखा की करुणा टीवी ऑन कर रही है| तभी उसने पलट कर मुझे देखा और बात शुरू करते हुए बोली;

करुणा: आप सोने के लिए कपडा लाया ता?

मैंने हाँ में सर हिला कर उसकी बात का जवाब दिया|

करुणा: मैं तो लाना ही भूल गए!

करुणा पलंग के दाईं तरफ बैठ गई, मैं बाईं तरफ आया और अपना तकिया उठा कर गद्दे के बीचों-बीच रख दिया जिससे मैं नींद में करुणा की तरफ न चला जाऊँ!

जब से मैं गाँव से आया था तब से मैं दो तकिये ले कर सोता था, एक मेरे सिरहाने होता था और दूसरे तकिये को मैं नेहा समझ कर अपनी छाती से चिपका कर सोता था| अब यहाँ सोने के लिए जो एक तकिया मिला था उसे मैंने हम दोनों के बीच में रख दिया था, जब करुणा की नजर उस बीच में रखे तकिये पर पड़ी तो वो एक दम से बोली;

करुणा: ये तकिया बीच में क्यों रख रे?

उसके सवाल से मैं हैरान हुआ और बोला;

मैं: ये बीच में इसलिए रखा है ताकि मैं नींद में आपकी तरफ न आ जाऊँ|

ये सुन कर करुणा हँसने लगी;

करुणा: आप sleep walking करते?

उसने हँसते हुए पुछा| मैंने भोली सी सूरत लिए न में सर हिलाया|

करुणा: मिट्टू हम दोनों छोटा बच्चा नहीं है, grown up है और सब जानते है| कुछ नहीं होते, आप आराम से सो जाओ!

करुणा ने मुझे बड़े प्यार से समझते हुए कहा| पर मैंने वो तकिया नहीं हटाया और बिना तकिये के सोने लगा, करुणा ने मुझे अपना तकिया देना चाहा पर मैंने मना कर दिया| करुणा ने टीवी बंद किया और मुझे 'good night' कह अपना तकिया सामने कुर्सी पर रख कर सो गई| बस में सारी रात जागने की थकावट थी पर दिल अभी भी थोड़ा बेचैन था, बार-बार दिमाग में एक लड़की की मौजूदगी होने का एहसास दिमाग में कौंध रहा था| जैसे-तैसे मेरी आँख लगी और मैं सो गया, सुबह ठीक 7 बजे मेरा अलार्म बजा| मैं फ़ौरन उठ बैठा और बाथरूम जाकर फ्रेश हो गया, अब करुणा को उठाना था तो बिना उसे छुए कैसे उठाऊँ? इसलिए मैंने उसका फ़ोन उठाया और उसे साइलेंट मोड से हटा कर उसके मुँह के पास रख दिया, फिर अपने फ़ोन से उसके फ़ोन पर कॉल किया| फ़ोन की जोरदार आवाज से करुणा की नींद खुली और उसने अधखुली आँखों से मुझे मुस्कुराते हुए देखा|

मैं: Good Morning dear!

पर उसकी नींद पूरी नहीं हुई थी इसलिए वो फिर से सोने लगी, मैंने उसे बहुत कहा की वो उठ जाए पर वो बस 5 मिनट बोल कर सो जाती| मैं नहाया-धोया और कपडे पहन कर तैयार हो गया, करुणा को जगाने के लिए मैंने टीवी पर कार्टून लगा दिया और पलंग से टेक लगा कर बैठ गया| कार्टून की आवाज सुन कर करुणा उठी और दोनों हाथ फैला कर अंगड़ाई लेने लगी| आज मैं पहलीबार उसे अंगड़ाई लेते हुए देख रहा था और वो दृश्य वाक़ई में मनमोहक दृश्य था! उसके अंगड़ाई लेने से उसके ऊपर के जिस्म के कटाव दिखने लगे थे, ऐसा नहीं था की उसे देख कर मुझे उत्तेजना पैदा हो रही थी बल्कि मैं तो उसकी ख़ूबसूरती को निहार रहा था, पर अगले ही सेकंड मुझे एहसास हुआ की वो मेरी दोस्त है इसलियें मैंने मुँह मोड़ लिया और अपने फ़ोन को ऑन कर के कुछ देखने लगा| शुक्र है की करुणा ने मुझे उसे निहारते नहीं देखा था वरना वो पता यहीं क्या सोचती|

आखिर करुणा उठी और बाथरूम में फ्रेश होने गई, जब वो वापस आई तो उसने बताया की उसे अभी उलटी हुई है| वो अंदर से इतनी कमजोर थी की जल्दी ही बीमार हो जाया करती थी| मैंने उससे पुछा की वो कुछ खायेगी तो उसने मना कर दिया, मैंने थोड़ा जोर दिया तो उसने कॉफ़ी के लिए हाँ बोला| मैंने दो कॉफ़ी मँगाई और तबतक वो नहा-धो कर तैयार हो गई| कॉफ़ी पी कर हम दोनों नीचे आये तो कल रात वाले receptionist ने हमें रोका और एडवांस माँगा, मैंने उसे 1,000/- रुपये एडवांस दिया और साथ ही उससे उस ऑफिस के बारे में पुछा जहाँ मुझे करुणा को ले कर जाना था|

Receptionist: सर मैं ऑटो वाला बुला देता हूँ!

ये कहते हुए उसने ऑटो वाले को फ़ोन कर बुला दिया|

Receptionist: आप वहाँ काम करते हैं?

Receptionist ने थोड़ी रुचि लेटे हुए बात शुरू की|

मैं: Actually she's a nurse and we were called here by the seniors for an interview.

मैंने जानबूझकर ये बात उसे बताई ताकि आज सुबह जो मैंने बेवकूफी भरी गलती की थी उसे संभाल सकूँ और करुणा की छबि खराब न हो| मुझे ऐसा लगा की मेरी बात सुन कर उसके मन में करुणा के लिए अब कुछ भी गलत ख्याल नहीं बचा है|

खैर ऑटो आया और हम दोनों उस ऑफिस पहुँचे जहाँ करुणा को बुलाया गया था| ऑफिस पहुँच कर मैंने करुणा को आगे कर दिया क्योंकि मैं चाहता था की वो खुद कोशिश करे, पर वो बुद्धू थी और लोगों से बात करने में उसे बहुत डर लगता था| Reception काउंटर पर कोई नहीं था तो वो हाथ बाँधे इंतजार करने लगी की वहाँ कोई आ कर बैठे, मैंने वहीं से गुजरते हुए एक चपरासी को रोक कर जे.बी. गुप्ता जी के बारे में पुछा जिन्होंने करुणा को फ़ोन कर के यहाँ बुलाया था| चपरासी ने उनका कमरा नंबर बताया तो मैं करुणा को ले कर ऊपर चल दिया, कमरे के बाहर पहुँचते ही करुणा के हाथ-पैर फूल गए और वो उम्मीद लिए मेरी ओर देखने लगी की मैं आगे आ कर सब बात करूँ| मैंने चौधरी बनते हुए प्रभार संभाला और कमरे का दरवाजा खटखटाया, तो अंदर से आवाज आई;

जे.बी. गुप्ता: आ जाओ!

सबसे पहले मैं अंदर घुसा और मेरे पीछे करुणा घबराई हुई सी घुसी;

मैं: गुड मॉर्निंग सर! मेरा नाम मानु मौर्या है और ये मेरी दोस्त करुणा है, दो दिन पहले आपने कॉल कर के बताया था की नर्स की पोस्ट के लिए इनका सिलेक्शन हुआ है.....

मैं आगे कुछ कहता या पूछता, उसके पहले ही उन्होंने करुणा को थोड़ा डाँट दिया;

जे.बी. गुप्ता: कितनी लापरवाह लड़की हो तुम?! यहाँ लोग नौकरी के लिए मरे जा रहे हैं और तुम्हें मुझे फ़ोन करके बताना पड़ रहा है?

करुणा बेचारी सर झुका कर खामोश खड़ी रही तो मुझे ही मजबूरन उसके बचाव में उतरना पड़ा;

मैं: माफ़ी चाहूँगा सर, दरअसल इनकी माँ की तबियत खराब थी और उनकी देखभाल करने वाली बस ये अकेली हैं, इसी कारन ये अपनी ईमेल और वेबसाइट चेक करना भूल गईं!

मैंने बहुत नरमी से कहा जिसे सुन जे.बी. गुप्ता जी का दिल पिघल गया और उन्होंने हमें अपने डिप्टी भंवर लाल जी से मिलने को कहा| हम दोनों ने उन्हें हाथ जोड़ कर धन्यवाद कहा और हम भंवर लाल जी के कमरे की ओर चल पड़े| वहाँ पहुँचे तो पता चला की वो इस वक़्त मीटिंग में बैठे हैं तो मजबूरन हमें बाहर इंतजार करना था|

15-20 मिनट इंतजार करने के बाद मैं बगल वाले कमरे में घुसा और वहाँ बैठीं एक मैडम को जे.बी. गुप्ता जी से हुई सारी बात बताई, उन्होंने मुझे बताया की अभी थोड़ी देर में लाल सिंह जी आएंगे तथा वो ही फाइल बना कर भंवर लाल जी के पास ले जायेंगे| दस मिनट बाद एक आदमी उस कमरे में घुसने लगा तो मैंने उन्हें रोक कर पुछा की क्या वो ही लाल सिंह जी हैं तो उन्होंने हाँ में सर हिलाया, फिर मैंने उन्हीं सारी बात बताई तो उन्होंने हम दोनों को अंदर बुलाया| उन्होंने एक लिस्ट निकाली और उस लिस्ट में करुणा का नाम ढूँढने को कहा, मैंने करुणा का नाम ढूँढा और उन्हें करुणा के नाम का सीरियल नंबर बताया| फिर उन्होंने उस सीरियल नम्बर की फाइल निकाली और फाइल ले कर भंवर लाल जी के कमरे में घुस गए| 10 मिनट में वो बाहर आये और बोले की हमें लंच के बाद अंदर बुलाया है, तब तक हम बाहर बने पार्क में बैठ सकते हैं|

हम दोनों बाहर पार्क में आ कर बैठ गए, मैंने करुणा को याद दिलाया की वो अपने घर फ़ोन कर के बता दे और तब तक मैंने भी माँ को फ़ोन कर के बता दिया की मैं ऑडिट करने ऑफिस पहुँच चूका हूँ| माँ ने मुझे मेरा ख्याल रखने को कहा तथा खाना ठीक से खाने को कहा और रात में चलते समय फ़ोन करने को कहा| उधर करुणा ने भी अपनी दीदी को फ़ोन कर के मलयालम में गिड़-बिड करके सब कुछ बता दिया|

वहीं पार्क में कुत्ते का एक पिल्ला था जो घांस में कुछ सूँघ रहा था, करुणा ने उसे पुचकारते हुए अपने पास बुलाना शुरू किया| फिर उसने अपने बैग से एक केला निकाला और उसका एक टुकड़ा उसने सामने की ओर डाला जिसे देख वो पिल्ला फ़ौरन आ गया और मजे से केला खाने लगा| धीरे-धीरे करुणा ने वो पूरा केला उसे ऐसे ही टुकड़े-टुकड़े कर के खिला दिया| केला खा कर वो पिल्ला भाग गया, अब करुणा ने अपने बैग में से एक सेब निकाला और मुझे दिया तथा अपने लिए उसने एक और केला निकाला|

मैं: आपका बैग है या फ्रीज?

मैंने मजाक करते हुए कहा| ये सुन कर करुणा जोर से ठहाका मारने लगी!

खैर लंच हुआ और अब मुझे भूख लग आई थी, पर सुबह उलटी होने के डर के कारन करुणा कुछ भी खाने से मना कर रही थी| अब उसके बिना मैं कैसे खाता इसलिए मैंने भी अकेले खाने से मना कर दिया, हारकर करुणा खाना खाने के लिए मानी और हम दोनों कैंटीन पहँचे| वहाँ पहुँच कर देखा तो लाल सिंह जी खाना खा रहे थे, उन्होंने हमदोनों को भी खाने को कहा और खा कर भंवर लाल जी से मिलने जाने को कहा|

मुझे डर था की कहीं फिर से करुणा को उलटी न हो जाए इसलिए मैंने दोनों के लिए कॉफ़ी और बिस्कुट लिए| करुणा जानती थी की मुझे भूख लगी है इसलिए वो खुद गई और एक प्लेट डोसा ले आई| जैसे ही हमें डोसा खाया तो वो मुँह बिदकाने लगी और बोली;

करुणा: छी! ये डोसा है? इससे अच्छा डोसा तो मैं बनाते!

अब मैंने तो सिर्फ बाहर का डोसा ही खाया था और मुझे उस स्वाद में ज्यादा फर्क नहीं मिला, हाँ साम्भर जर्रूर बेकार था|

मैं: ऐसा कर आप जा कर बना के लाओ!

मैंने मजाक किया तो करुणा हँस पड़ी|

हम दोनों ने जल्दी से वो डोसा खत्म किया और भंवर लाल जी के कमरे के बाहर खड़े हो गए, कुछ देर बाद वो लंच कर के लौटे तो हमें बाहर खड़ा पाया| उन्होंने हमारा नाम पुछा और दोनों को अंदर आने को कहा;

भंवर लाल जी: अपने सर्टिफिकेट्स दिखाओ?

मैंने फ़ौरन करुणा की तरफ देखा तो उसने झट से अपनी फाइल निकल कर दी, उन्होंने बड़े इत्मीनान से सारे सर्टिफिकेट देखे और फिर लाल सिंह जी को बुलाया|

भंवर लाल जी: ऐसा करो इनका नियुक्ति पत्र बनाओ|

करुणा नहीं जानती थी की 'नियुक्ति पत्र' क्या होता है, इसलिए वो सवालिया नजरों से मुझे देखने लगी|

लाल सिंह जी: सर गुप्ता जी तो निकल गए, वो तो 2 दिन बाद आएंगे!

भंवर लाल जी: ठीक है जब वो आ जाएँ तो उनसे दस्तखत करवा कर इनके एड्रेस पर भेज देना|

हम तीनों बाहर आये और लाल सिंह जी ने करुणा के सारे सर्टिफिकेट की कॉपी माँगी, अब करुणा के पास फोटो कॉपी नहीं थी! उस वक़्त मुझे उसकी मूर्खता पर बड़ा गुस्सा आया की वो सरकारी दफ्तर में आई है और अपने सर्टिफिकेट्स की फोटोकॉपी तक नहीं लाई! उसकी जगह कोई और होता तो मैं बहुत जोर से झाड़ता, पर जैसे-तैसे मैंने अपना गुस्सा पीया तथा फोटोकॉपी कराने के लिए नीचे आया| सारे सर्टिफिकेट फोटोकॉपी करवा कर हम दोनों लौटे तो लाल सिंह जी ने मुझे एक सफ़ेद कागज दिया और कहा की मैं उसमें हिंदी में एक पत्र लिख दूँ की करुणा का नियुक्ति पत्र पोस्ट के जरिये उसके पते पर भेज दिया जाय|

अब हिंदी में लिखने के नाम से ही हम दोनों एक दूसरे की शक्ल देखने लगे क्योंकि दोनों को हिंदी में लिखना नहीं आता था! मैंने लाल सिंह से पुछा की अंग्रेजी में पत्र लिख दूँ तो वो बोले की राजस्थान में सिर्फ हिंदी भाषा का उपयोग होता है, इसलिए या तो मैं लिखूँ या फिर किसी से लिखवा लूँ| हम दोनों बाहर आये और सोचने लगे की पत्र कैसे लिखें;

करुणा: ये नियुप्टी क्या होते?

करुणा से तो नियुक्ति पत्र नहीं बोला जा रहा था तो वो क्या ही लिखती!

मैं: 'नियुक्ति पत्र' मतलब appointment letter!

अब जा कर उसे समझ आया की यहाँ इतनी देर से किस बात पर चर्चा हो रही थी| मैंने वहाँ काम करने वालों को रोक कर उनसे मदद माँगी तो सब ने मना कर दिया, एक भले मानस ने बताया की मैं फोटोकॉपी वाले से लिखवा लूँ| मैं करुणा को ले कर नीचे आया और फोटोकॉपी वाले लड़के से मदद माँगी, उसने हमारी मदद की और बदले में 10/- रुपये भी लिए| पत्र ले कर हम ऊपर आये और लाल सिंह जी को दिया, मैंने एक बार हाथ जोड़कर उनसे विनती करते हुए कहा;

मैं: सर प्लीज थोड़ा जल्दी करवा देना!

मेरी देखा देखि करुणा ने भी हाथ जोड़ कर उनसे विनती की, उन्होंने हमें मुस्कुराते हुए आश्वस्त किया की काम जल्दी हो जायेगा| वहाँ से हम दोनों सीधा सिंधी कैंप बस स्टैंड आये, घडी में साढ़े चार हुए थे और दिल्ली जाने वाली सुपर डीलक्स बस रात 9 बजे की थी! मैंने दो टिकटें खरीदी और हम दोनों ने अपने-अपने घर फ़ोन कर के हमारे आने का समय बता दिया| उधर करुणा ने अपनी बहन को आज दिन भर में जो हुआ सब बता दिया|

हम दोनों होटल लौटे और आराम करने लगे, रात सात बजे मैंने करुणा से खाना खाने को कहा तो उसने बताया कल उसे कुछ हल्का खाना है| मैंने दोनों के लिए दाल-चावल मँगाए, चूँकि राधास्वामी होटल था तो खाने में लस्सन और प्याज नहीं था पर खाना बहुत स्वाद था| खाना खा कर ठीक 8 बजे हमने चेकआउट किया और बस स्टैंड पहुँच कर बस का इंतजार करने लगे| बस आई और इस बार बस में बहुत यात्री थे, सारी बस लगभग भरी हुई थी| हम अपनी सीट पर बैठ गए और कुछ देर बाद बस चल पड़ी| करुणा को आई थी नींद थी, उसे न जाने क्या सूझा की उसने अपन सर मेरे दाएँ कंधे पर रखा और मेरी दाईं बाजू को अपने दोनों हाथों से पकड़ कर सोने लगी| उसका ये करना देख मैं स्तब्ध था, उसके मुझे स्पर्श करने से मेरे जिस्म में तरंगें उठने लगती थीं और मेरे दिमाग में बार-बार इस रिश्ते को लेकर सवाल उठने लगे थे|

करुणा तो पूरी रात बड़ी चैन से सोई इधर मैं रात भर जागते हुए ढाबों की रोशनियाँ देखता रहा और मन में उठ रहे सवालों का जवाब सोचता रहा| बस ठीक 6 बजे बीकानेर हाउस पहुँची और फिर टैक्सी कर के पहले मैंने करुणा को उसके घर छोड़ा, फिर अंत में मैं अपने घर पहुँचा| दरवाजा माँ ने खोला और उन्हें देखते ही मैं उनके गले लग गया, माँ ने मेरे माथे को चूमा और फिर बैग रख कर मैं नहाने चला गया| नाहा-धो कर जब मैं आया तो माँ ने चाय बना दी थी, पिताजी भी डाइनिंग टेबल पर बैठे अखबार पढ़ रहे थे| उन्होंने मुझसे जयपुर के बारे में पुछा तो मुझे मजबूरन सुबह-सुबह ऑडिट का झूठ बोलना पड़ा| मैंने ऑडिट की बात को ज्यादा नहीं खींचा और पिताजी से काम के बारे में पूछने लगा, पिताजी ने बताया की उन्होंने एक वकील साहब के जरिये एक नया प्रोजेक्ट उठाया है पर ये प्रोजेक्ट हमें जुलाई-अगस्त में मिलेगा तथा ये प्रोजेक्ट बहुत बड़ा है! मैंने उसी प्रोजेक्ट की जानकारी लेते हुए पिताजी का ध्यान भटकाए रखा ताकि वो फिर से मुझसे ऑडिट के बारे में न मुचने लगे और मुझे फिरसे उनसे झूठ न बोलना पड़े|

[color=rgb(51,]जारी रहेगा भाग 7(2) में...[/color]
 

[color=rgb(97,]इक्कीसवाँ अध्याय: कोशिश नई शुरुआत की[/color]
[color=rgb(251,]भाग -7 (2)[/color]


[color=rgb(61,]अब तक आपने पढ़ा:[/color]

करुणा तो पूरी रात बड़ी चैन से सोई इधर मैं रात भर जागते हुए ढाबों की रोशनियाँ देखता रहा और मन में उठ रहे सवालों का जवाब सोचता रहा| बस ठीक 6 बजे बीकानेर हाउस पहुँची और फिर टैक्सी कर के पहले मैंने करुणा को उसके घर छोड़ा, फिर अंत में मैं अपने घर पहुँचा| दरवाजा माँ ने खोला और उन्हें देखते ही मैं उनके गले लग गया, माँ ने मेरे माथे को चूमा और फिर बैग रख कर मैं नहाने चला गया| नाहा-धो कर जब मैं आया तो माँ ने चाय बना दी थी, पिताजी भी डाइनिंग टेबल पर बैठे अखबार पढ़ रहे थे| उन्होंने मुझसे जयपुर के बारे में पुछा तो मुझे मजबूरन सुबह-सुबह ऑडिट का झूठ बोलना पड़ा| मैंने ऑडिट की बात को ज्यादा नहीं खींचा और पिताजी से काम के बारे में पूछने लगा, पिताजी ने बताया की उन्होंने एक वकील साहब के जरिये एक नया प्रोजेक्ट उठाया है पर ये प्रोजेक्ट हमें जुलाई-अगस्त में मिलेगा तथा ये प्रोजेक्ट बहुत बड़ा है! मैंने उसी प्रोजेक्ट की जानकारी लेते हुए पिताजी का ध्यान भटकाए रखा ताकि वो फिर से मुझसे ऑडिट के बारे में न मुचने लगे और मुझे फिरसे उनसे झूठ न बोलना पड़े|

[color=rgb(255,]अब आगे:[/color]

नाश्ता कर के मैं पिताजी के साथ साइट पर पहुँचा और काम का जायजा लिया, माल कम था तो मैं सीधा माल लेने चल दिया| शाम होते ही मैंने दिषु के ऑफिस जाने का बहाना मारा और करुणा से मिलने आ गया| हम दोनों दिल्ली हाट पहुँचे और बाहर बैठ कर बातें करने लगे;

करुणा: मिट्टू हॉस्पिटल में सब कल का बारे में पूछ रा था, मैंने उनको आपके बारे में बताया की मेरा best friend मेरा बहुत help किया|

करुणा की ख़ुशी उसके चेहरे से झलक रही थी|

मैं: आपने अभी resign तो नहीं किया न?

मेरा सवाल सुन कर करुणा कुछ सोच में पड़ गई और सर न में हिला कर जवाब दिया|

मैं: अभी resign मत करना, एक बार joining मिल जाए तब resign कर देना|

करुणा अब भी नहीं समझ पाई थी की मैं उसे resign करने से क्यों मना कर रहा हूँ, मैंने उसे समझाते हुए कहा;

मैं: भगवान न करे पर अगर कोई problem हुई तो कम से कम आपके पास एक जॉब तो हो!

अब जा कर करुणा को मेरी बात समझ में आई और उसे मेरी इस चतुराई पर गर्व होने लगा|

करुणा: मेरा दीदी पुछा ता की हम दोनों रात में कहाँ रुका.....

इतना बोल कर करुणा रुक गई, उसका यूँ बात को अधूरे में छोड़ देना मेरे दिल को बेचैन करने लगा| मैंने आँखें बड़ी करके उसे अपनी बात पूरी करने को कहा;

करुणा: मैंने उनको झूठ बोल दिया की हम दो रूम में रुका ता!

इतना कह करुणा का चेहरा उतर गया और उसने अपना सर शर्म से झुका लिया| अपनी बहन से झूठ बोलने के करुणा को ग्लानि होने लगी थी, इधर मैं हैरान करुणा को देख रहा था| मेरी हैरानी का कारन था की मैं आज पहलीबार एक इंसान को झूठ बोलने पर ग्लानि महसूस करते हुए देख रहा था|

मैं: Dear मैं समझ सकता हूँ की आपको झूठ बोल कर बुरा लग रहा है.....

मैं आगे कुछ बोलता उससे पहले ही करुणा ने मेरी बात काट दी;

करुणा: मैंने आज life में first time झूठ बोलते! हमारा religion में हम झूठ बोल रे तो वो झूठ father का आगे confess करना होते, अगर नहीं कर रहे तो ये sin होते!

करुणा की बात सुन मैं मन ही मन बोला की दुनिया की किसी भी धर्म में झूठ बोलना नहीं सिखाते, पर ये तो मनुष्य की मानसिक प्रवित्ति होती है जो वो अपने स्वार्थ के लिए झूठ का सहारा लेता है|

मैं: Dear कम से कम हमने कोई पाप तो नहीं किया न? हमने बस एक रूम share किया था और वो भी सिर्फ पैसे ज्यादा खर्च न हो इसलिए!

मेरी बात सुन कर करुणा को थोड़ा इत्मीनान हुआ|

मैं: Atleast हम एक अच्छे होटल में रुके थे, आपको पता है ऑटो वाला हमें पहले जिस होटल में ले गया था वहाँ होटल के मालिक ने पुछा था की क्या हम दोनों शादी-शुदा हैं?!

शादी की बात सुन कर करुणा के मुख पर एक नटखट मुस्कान आ गई, करुणा ने अधीरता दिखाते हुए पुछा;

करुणा: आपने क्या बोला?

उसके चेहरे पर आई नटखट मुस्कान देख मैं हँस पड़ा और अपनी बात पूरी की;

मैं: मैंने गर्दन न में हिला कर मना किया, मैं उसे बोलने वाला हुआ था की हमें दो अलग-अलग कमरे चाहिए पर जिस माहौल में वो होटल था उसे देख कर मुझे डर लग रहा था|

करुणा को मेरे द्वारा हमारे शादी-शुदा नहीं कहने पर हँसी आई पर जब मैंने उसे अपने डर के बारे में बताया तो उसके चेहरे पर स्वालियाँ निशान नजर आये|

मैं: वो पूरा area मुझे red light area जैसा दिख रहा था, मुझे डर लग रहा था की कहीं हम रात को उस होटल में रुके और police की raid पड़ गई तो हम दोनों बहुत बुरे फँसते! एक डर और भी था की अगर कोई आपके कमरे में घुस आये तो मुझे तो कुछ पता भी नहीं चलता!

मैंने अपनी घबराहट जाहिर की, जिसे सुन करुणा के पसीने छूट गए!

करुणा: इसीलिए मैं आपको बोला ता की आप और मैं एक रूम में रुकते! आप साथ है तो मेरे को safe feel होते!

करुणा ने मुस्कुरा कर गर्व से मेरी तारीफ की| उसकी बातों से साफ़ जाहिर था की वो मुझ पर आँख मूँद कर विश्वास करती है, वहीं मैं उस पर अभी इतना विश्वास नहीं करता था|

करुणा: मिट्टू......मुझे आपको सॉरी बोलना ता!

इतना कहते हुए उसकी आँखें फिर ग्लानि से झुक गईं| उसके चेहरे से ख़ुशी से गायब हुई तो मेरी भी उत्सुकता बढ़ गई की आखिर उसे किस बात की माफ़ि माँगनी है?

मैं: क्या हुआ dear?

मैंने प्यार से पुछा तो करुणा ने नजरें झुकाये हुए ही जवाब दिया;

करुणा: मैं आपको उस दिन डाँटा न? मैं आपको गलत समझा, जबकि आपने मेरा dignity save करने के लिए कितना कुछ किया! मेरा help करने को आप कितना परेशान हुआ!

मैं: अरे यार, कोई बात नहीं! Friendship में ये सब चलता रहता है, गुस्सा तो मुझे भी बहुत आया आप पर! आप इतना बड़ा dumb है की सर्टिफिकेट ओरिजिनल ले कर गया पर उसका फोटोकॉपी ले कर नहीं आया?!

मैंने करुणा को सरकारी काम करने के तरीके से अवगत कराया और उसे समझाया की वो हमेशा documents की 2 फोटोकॉपी करवा कर रखे ताकि कभी भी जर्रूरत हो तो परेशानी न हो|

मैं: आपको पता है मैं जब भी किसी काम से बैंक जाता हूँ या फिर किसी सरकारी ऑफिस जाता हूँ तो पूरी तैयारी कर के जाता हूँ| मेरे पास काम से जुड़ा हर सामान होता है, मेरी IDs, उनकी फोटोकॉपी, चेकबुक, all pin, stapler, कागज़ बाँधने के लिए टैग, सल्लो टेप, fevistick, काला और नीला पेन, एप्लीकेशन लिखने के लिए सफ़ेद कागज़, मेरी passport size फोटो और एक पॉलिथीन! आजतक कभी ऐसा नहीं हुआ की मेरा काम इन चीजों की वजह से रुका हो| इसलिए आगे से ये सब चीजें साथ ले कर जाना, वरना इस बार तो मैंने कुछ नहीं कहा अगलीबार बहुत डाटूँगा!

मैंने करुणा को थोड़ा डराते हुए कहा| करुणा ने मेरी सारी बातें किसी भोलेभाले बच्चे की तरह सुनी पर उसके पल्ले कुछ नहीं पड़ा!

जब तक लाल सिंह जी करुणा का appointment letter नहीं भेजते तब तक हमें बस इंतजार करना था| इधर साइट पर काम तेजी से शुरू हो गया था, ऑडिट न मिलने के कारन मैं अब अपना ज्यादातर समय साइट पर रहता था| एक प्रोजेक्ट पूरा हो गया था और दूसरे वाले के लिए माल लेना था, पिताजी ने सेठ जी को एक चेक दिया था जिसपर वो साइन करना भूल गए थे| चेक वापस आया तो सेठ जी ने माल रोक दिया, जब माल साइट पर नहीं पहुँचा तो पिताजी मुझ पर भड़क गए और मुझे 'तफ़तीष' करने के लिए सेठ जी के पास भेजा| मुझे देखते ही सेठ जी ने पहले तो मेरी बड़ी आवभगत की, फिर मैंने जब मुद्दे की बात की तो वो काइयाँ वाली हँसी हँसने लगे| उन्होंने अपनी किताब से पिताजी का चेक निकाल कर मुझे दिखाते हुए बोले;

सेठ जी: मुन्ना 'पइसवा' नहीं आया तो मैं माल कैसे देता?

उनकी वो गन्दी हँसी और माल न देने से मुझे बड़ा गुस्सा आया;

मैं: पिताजी साइन करना भूल गए होंगे, पर इस बात पर आपने माल रोक दिया? आपको पता है आधा दिन होने को आया है और लेबर खाली बैठी है! इतने सालों से पिताजी आपसे माल ले रहे हैं और आपने एक साइन के चलते माल रोक दिया?!

मेरा गुस्सा देख सेठ जी के चेहरे से वो गन्दी हँसी गायब हो गई और वो बोले;

सेठ जी: अरे मुन्ना तुम्हारे इस चेक के चक्कर में मेरा 150/- रुपया कटा अलग फिर मैंने आगे पेमंट करनी थी वो रुकी सो अलग!

मैं: आप फ़ोन कर के कह सकते थे न?

ये कहते हुए मैंने वो चेक जेब में रखा और जेब से 150/- रुपये निकाल कर उनके टेबल पर मारे|

मैं: बाकी के पैसे अभी ला रहा हूँ|

इतना कह कर मैं गुस्से में वहाँ से निकला और नजदीक के बैंक से पैसे निकाल कर लौटा| मैंने एक-एक कर 500 की 2 गड्डी उनके टेबल पर पटकी, पैसे देखते ही उनकी आँखें चमकने लगी, उन्होंने सेकंड नहीं लगाया और अपने लड़के को आवाज मारी;

सेठ जी: अरे साहब का माल पहुँचा कर आ जल्दी से!

मैं गुस्से में पहले ही भुनभुनाया हुआ इसलिए मैंने उनके सामने एकदम से हाथ जोड़ दिए;

मैं: कोई जर्रूरत नहीं है! पुरानी पेमंट के लिए आपने माल रोक कर सारे नाते-रिश्ते खत्म कर दिए! आजतक का सारा हिसाब हो चूका है, अब मैं नगद दे कर माल कहीं और से ले लूँगा!

इतना कह कर मैं चल दिया, सेठ जी ने पीछे से मुझे बड़ा रोका पर मैंने उनकी एक न सुनी| दो घंटे बाद नई जगह से मैं सारा माल ले कर साइट पर पहुँचा तो पिताजी वहाँ मेरी राह देख रहे थे, उन्होंने लेबर से कह कर माल उतरवाया और मुझे पर बड़ी जोर से बरसे;

पिताजी: माल लाने से पहले मुझसे पुछा तूने? सेठ जी को नाराज कर के कहाँ से लाया ये सामान? ये मेरा बिज़नेस है, जैसा मैं चाहूँगा वैसे चलेगा! यहाँ उम्र गुजर गई व्यापार में रिश्ते बनाने में और ये लाड़साहब सब पर पानी फेरने में लगे हुए हैं!

मैंने सर झुका कर पिताजी द्वारा किया गया सारा अपमान सुना और बिना उन्हें कुछ कहे घर लौट आया| जब मैं गलत होता हूँ तो भले ही कोई मुझे 4 गालियाँ दे दे पर मेरे गलत न होने पर मैं किसी की नहीं सुनता था| यही कारन था की मेरा गुस्सा चरम पर पहुँच गया था, घर आ कर मैंने डाइनिंग टेबल पर माल का बिल जोर से पटका और अपने कमरे में घुस कर धड़ाम से दरवाजा बंद किया| माँ जान गईं थीं की मेरा गुस्सा आज फिर कोई बखेड़ा खड़ा करेगा, इसलिए वो मुझे समझाने कमरे में आईं|

माँ: क्या हुआ बेटा?

माँ ने पलंग पर बैठते हुए कहा| मेरा गुस्सा उस वक़्त सातवें आसमान पर था और मैं बिना चिल्लाये कुछ नहीं कह सकता था, मैं माँ पर अपना गुस्सा न निकालूँ इसलिए मैंने जेब से पिताजी का बिना साइन किया हुआ चेक निकाला और माँ की ओर बढ़ाते हुए बोला;

मैं: ये बिना साइन किया हुआ चेक और डाइनिंग टेबल पर रखा बिल पिताजी को दे देना|

मैंने बिना माँ से नजरें मिलाये हुए कहा और बाहर जाने लगा, माँ ने पीछे से मुझे आवाज दे कर रोकना चाहा तो मैंने कहा;

मैं: कुछ जर्रूरी काम से जा रहा हूँ|

बस इतना कह मैं सरसराता हुआ घर से निकल गया| मुझे अब अपना गुस्सा निकालना था और उसका सबसे अच्छा तरीका था दारु पीना! मैंने दिषु को फ़ोन मिलाया तो पता चला की वो दिल्ली से बाहर है और आज रात घर पहुँचेगा, मैंने उसे बिना कुछ कहे फ़ोन रख दिया| मैंने करुणा को फ़ोन किया तो उसने हमेशा की तरह हँसते हुए फ़ोन उठाया, मेरे हेल्लो बोलते ही वो जान गई की मेरा मूड खराब है| जब हम शाम को मिले तो मैंने उसे साफ़ कहा की मुझे पीना है, करुणा ने पलट के कोई कारण नहीं पुछा| हम दोनों एक छोटे से पब में पहुँचे जहाँ Happy Hours चल रहे थे, यहाँ पर एक ड्रिंक पर एक ड्रिंक फ्री थी| मैं व्हिस्की पीना चाहता था पर करुणा ने मना कर दिया, हारकर मैंने बियर मँगाई| अब वहाँ बियर थी किंगफ़िशर स्ट्रांग (लाल वाली) जो मुझे पसंद नहीं थी, पर एक पर एक फ्री के लालच में मैंने ले ली| करुणा ने बियर पीने से मना किया तो मैंने उसके लिए सूप मंगा दिया और अपने लिए सींगदाने वाली मूँगफली मँगाई जो की कम्प्लीमेंटरी थी! पहली बोतल आधी करने के बाद मैंने करुणा को सारी बात बताई, पता नहीं उसने मेरी बात कितनी सुनी या उसे क्या समझ में आई, पर वो मेरी तरफदारी करते हुए बोली;

करुणा: छोड़ दो यार! पापा आपको understand नहीं करते, उनको atleast आपका बात सुनना चाहिए ता!

मैं: Exactly! बिना मेरे कोई गलती किये उन्होंने मुझे लेबर के सामने झाड़ दिया!

मैंने गुस्से से कहा|

करुणा: हम्म्म!

मेरा गुस्सा कम होने का नाम नहीं ले रहा था और मैंने 10 मिनट में बोतल खत्म कर दी| मुझे पीता हुआ देख करुणा को जोश आया और अगली बोतल आते ही उसने उठा ली| मैं यहाँ सिर्फ दो बोतल पीने आया था पर जब करुणा ने वो बोतल उठा ली तो मैंने एक और बोतल मँगवाई| बियर पीते हुए करुणा से बात करते हुए अपना गुस्सा निकालना अच्छा लग रहा था और इस तरह बोतल पर बोतल आती गई| मैंने ध्यान ही नहीं दिया की मैंने अकेले ने 5 बोतल टिका ली! जिंदगी में पहलीबार मैंने आज पीते समय अपने कोटे पर ध्यान नहीं दिया था, नतीजन बियर चढ़ गई सर में और मेरी हालत हो गई खराब| आँखों से धुँधला-धुँधला दिखाई दे रहा था, ठीक से खड़ा भी नहीं जा रहा था! 5 बोतल टिकाने के बाद अब बारी थी बाथरूम जाने की, जब मैं उठ कर खड़ा हुआ तो मेरा सर भन्नाने लगा, मुझसे पैर भी ठीक से नहीं रखे जा रहा था| मुझे ऐसे देख कर करुणा की हालत पतली हो गई;

करुणा: मिट्टू....

उसने घबराते हुए कहा|

मैं: हाँ...I.I'm..fiiiiiiiiiinee!

मैंने शब्दों को खींचते हुए बोला| मैं सहारा लेते हुए बाथरूम पहुँचा, बाथरूम करते समय मुझे मेरी नशे में धुत्त होने का एहसास हुआ| इस हालत में घर जा कर मैं माँ का सामना करने से डर रहा था, पी कर मैं ऑफिस से कई बार घर पहुँचा था पर हरबार मैं अपनी लिमिट में पीता था जिससे माँ को कभी मेरे पीने के बारे में पता नहीं चला, लेकिन जो हालत आज हुई थी उससे ये तो तय था की आज माँ को मेरे पीने के बारे में जर्रूर पता चल जायेगा| मैं मन ही मन मैं खुद को कोस रहा था की क्यों मैंने अपने गुस्से के चलते इतनी पी, पर अब पछताए होत क्या जब चिड़िया चुग गई खेत! मैंने सोचा की मुझे पिताजी से पहले घर पहुँचना होगा, इसलिए मैंने घडी देखि तो घडी धुँधली दिख रही थी! मैंने आँखों पर बहुत जोर मारा, आँखें कई बार मीची ताकि साफ़-साफ़ नजर आये पर कोई फायदा नहीं हुआ!

मेरा बाथरूम हो चूका था तो ज़िप बंद कर के मैं वाशबेसिन के सामने खड़ा हुआ और 4-5 बार आँखों पर पानी मारा, फिर में घडी देखि तो 8 बजे थे! मैंने फटाफट पानी से मुँह धोया इस उम्मीद में की शायद मुँह धोने से नशा उतर जायेगा, पर ऐसा नहीं हुआ| मैंने वाशबेसिन का नल खोला और नल के नीचे अपना सर रख दिया, ठंडा-ठंडा पानी सर पर पड़ा तो आँखें एकदम से खुल गईं! मैंने जब शीशे में खुद को देखा तो पाया की मेरी आँखें सुर्ख लाल हो गई हैं, सर के सारे बाल पानी से गीले हो कर चिपक गए थे तथा उनसे बह रहा पानी मेरी शर्ट और कालर भीगा रहा था| मेरी दाढ़ी बड़ी थी तो वो भी गीली हो कर पानी से तर हो गई थी और उनसे पानी बहता हुआ कमीज पर सामने की ओर गिर रहा था|

मैंने जेब से पानी पोछने के लिए रुमाल निकाला तो वो पूरा गीला हो गया, मैं सहारा लेते हुए बाहर आया और वेटर से बिल माँगा| जब मैं वापस बैठने लगा तो करुणा ने मुझे बैठने से मना कर दिया;

करुणा: इधर मत बैठ...मैं vomitting किया!

Vomitting सुन कर मैंने सड़ा हुआ सा मुँह बनाया और करुणा से बोला;

मैं: झिलती....नहीं तो.... क्यों पीते... हो!

मेरी कही बात करुणा के पल्ले नहीं पड़ी, मैं उसके सामने रखे काउच पर पसर कर बैठ गया| करुणा उठी और मेरे बगल में बैठ गई| वेटर बिल ले कर आया, अब उसमें लिखा था बहुत छोटा और मेरी तो आँखें भी नहीं खुल रहीं थी| मुझे लग रहा था की मेरा होश धीरे-धीरे खो रहा है तो मैंने वेटर से कहा;

मैं: कार्ड....मशीन....

इतना सुन कर वो मशीन लेने गया| इधर करुणा मेरे कंधे पर सर रख कर लेट गई, मुझ में इतनी ताक़त नहीं थी की मैं उसे सोने के बाद उठाऊँ इसलिए मैंने उसे चेताया;

मैं: Dear ..... I'm..drunk... अगर आप सो गए तो मैं आपको उठाने की हालत में नहीं हूँ, मैं भी यहीं सो जाऊँगा|

ये कहते हुए मैंने आँख बंद की तो मेरा सर तेजी से घूमने लगा, ये एहसास होते ही मेरे अंदर का बच्चा बाहर आया और मैं अचानक से हँसने लगा|

वहीं करुणा जो मेरी बात सुन कर परेशान हो गई थी वो मेरी अचानक हँसी सुन कर चौंक गई और भोयें सिकोड़ कर मुझे देखने लगी|

करुणा: हँस क्यों रे?

मैं: Dearrrrr .... आँख बंद कर के देखो..... सर घूम रे......मजा आ रे.....!!!

मैं हँसते हुए बोला| ये सुन कर करुणा भोयें सिकोड़ कर मुझे देखने लगी और बोली;

करुणा: पागल हो गए क्या?

पर मुझे कोई फर्क नहीं पड़ा और मैं किसी मासूम बच्चे की तरह हँसने लगा| इतने में वेटर आया और उसने मुझसे कार्ड माँगा, मैंने उसे कार्ड तो दे दिया पर मैं पिन नंबर भूल गया! मैंने दिमाग पर थोड़ा जोर डाला तो कुछ-कुछ याद आया, अब वो नंबर keypad पर dial करना था जो मुझसे हो नहीं रहा था! मैं 6 और 9 में confuse हो गया और दो बार गलत नंबर डाला, तीसरी और आखरी बार में सही नंबर डला और तब जा कर बिल pay हुआ| भले ही मैं नशे में था पर इतना तो होश था की मुझे अपना कार्ड संभाल कर रखना है| कार्ड रख कर मुझे अब कैब बुलानी थी ताकि करुणा को घर छोड़कर जल्दी से घर पहुँचूँ| मैंने फ़ोन निकाला पर उसमें से इतनी तेज रौशनी आ रही थी की मेरी आँखें चौंधिया गई;

मैं: बहनचोद!

मेरे मुँह से brightness ज्यादा होने पर गाली निकली जो शायद करुणा ने नहीं सुनी थी| मैंने फ़ोन का menu खोला तो उसमें लिखा कोई भी text पढ़ा नहीं जा रहा था, सब कुछ धुँधला-धुँधला दिख रहा था| मुझे फ़ोन से जद्दोजहद करता देख करुणा बोली;

करुणा: आप अपना फ्रेंड को क्यों नहीं बुलाता?!

उसका दिया हुआ आईडिया अच्छा था, इसलिए मैंने फ़ौरन दिषु को फ़ोन मिलाया और बोला;

मैं: भाई मुझे....चढ़ गई है, तू.....आ के.....मुझे ले कर...जा!

मेरी आवाज सुनते ही दिषु समझ गया की मुझे कितनी चढ़ी हुई है|

दिषु: अबे भोसड़ी के, चूतिया हो गया है क्या? बोला न मैं दिल्ली में नहीं हूँ? तूने पी ही क्यों इतनी?!

अब मुझे याद आया की वो तो यहाँ है ही नहीं, मैंने आगे कुछ नहीं बोला और फ़ोन काट दिया| फ़ोन काटा तो करुणा उम्मीद करने लगी की दिषु हमें लेने आ रहा है, मैंने उसकी उम्मीद तोड़ते हुए कहा;

मैं: वो....दिल्ली...में नहीं....!

अब मैंने फिर से फ़ोन को घूरना शुरू किया ताकि मैं उसमें ola app ढूँढ सकूँ, आँखों से धुँधला दिखाई दे रहा था पर फिर भी मैंने किसी तरह app खोला, app खुला तो सही परन्तु खुलते ही वो अपडेट माँगने लगा!

मैं: मादरचोद! तुझे भी अभी अपडेट चाहिए!

मैं गुस्से से फ़ोन पर चिल्लाया, करुणा ने इस बार मेरी गाली सुन ली और मेरे दाईं बाजू पर घूसा मारा| 'आऊऊऊ!' मैं दर्द होने का नाटक करते हुए बच्चे की तरह ड्रामा करने लगा|

खैर app अपडेट हुआ और मैंने फ़ोन को घूर-घूर कर बड़ी मुश्किल से उसमें करुणा के घर की लोकेशन डाली, जैसे ही टैक्सी सर्च की तो 10 सेकंड में कैब मिल गई| मैंने कैब वाले को फ़ोन कर के लोकेशन पूछी, मेरी आवाज सुन कर वो जान गया था की मैं नशे में धुत्त हूँ! हम दोनों उठ कर खड़े हुए तो पता चला की मेरी हालत बहुत खराब है, मुझसे सीधा खड़ा भी नहीं हुआ जा रहा था| वहीं करुणा का हाल तो और भी बदत्तर था, उससे एक बोतल बियर भी नहीं झिली जिस कारन उसका सर घूमने लगा था| हम दोनों जैसे-तैसे दरवाजे तक आये तो सामने देखा की सीढ़ियाँ हैं, सीढ़ियाँ देख कर मुझे याद आया की हम तो अभी दूसरी मंजिल पर हैं और यहाँ तो लिफ्ट भी नहीं! मुझे पहले ही धुँधला दिख रहा था उसके ऊपर से सीढ़ियाँ उतरने जैसा खतरनाक काम?! मैंने तुरंत भोले भाले बच्चे जैसी सूरत बनाई और करुणा से बोला;

मैं: Dearrrrr .... मैं सीढ़ी ...नहीं उतरूँगा..... आप मुझे गोदी ले लो न?!

मेरी ये बचकानी बात सुन कर करुणा खिखिलकर हँसने लगी और हँसते हुए बोली;

करुणा: मैं आपको उठा रे तो मेरे को कौन उठाते?

अब ये सुन कर मैं भी हँस पड़ा|

मैं: मैं...नीचे कैसे उतरूँ....?

मैंने करुणा से सवाल पुछा तो वो इसे मेरा बचपना समझ कर हँसे जा रही थी| मैंने कुछ सेकंड सोचा और फिर बोला;

मैं: मैं बैठ-बैठ के उतरूँ?!

ये सुन कर करुणा हँसते हुए बोली;

करुणा: नीचे पहुँचते-पहुँचते साल लग जाते!

अब ये सुन कर मैं हँस पड़ा, हम दोनों बिना किसी चिंता के सीढ़ियों पर खड़े बकचोदी कर रहे थे और हँसे जा रहे थे| इतने में कैब वाले का फ़ोन आया और उसने पुछा की हम कहाँ हैं, मैंने उसे कहा की हम 5 मिनट में आ रहे हैं| अब नीचे उतरना मजबूरी था, करुणा 4 सीढ़ी पहले उतरी और पलट कर मुझे देखने लगी| मैं अपनी आँखें जितनी बड़ी कर सकता था उतनी बड़ी कर के सीढ़ियों को घूर रहा था ताकि मैं ये तो देख सकूँ की पैर कहाँ रखना है?! दिवार का सहारा लेते हुए मैं एक सीढ़ी उतरा, उस एक सीढ़ी उतरने से मुझे आत्मविश्वास हो गया की मैं सीढ़ी उतरने जैसा मुश्किल काम कर सकता हूँ! करुणा को कम नशा हुआ था इसलिए वो ठीक-ठाक सीढ़ी उतर रही थी, मेरी हालत ज्यादा खस्ता थी तो मैं थोड़ा सम्भल-सम्भल कर उतर रहा था| अभी हम एक मंजिल ही नीचे आये थे की मैं इस तरह सम्भल-सम्भल कर नीचे उतरने से बोर हो गया और करुणा से बोला;

मैं: ये सीढ़ी खत्म नहीं हो रे?

ये सुन कर वो हँस पड़ी और मुझे सताने के लिए बोली;

करुणा: अभी तो एक फ्लोर और बाकी है!

अब ये सुन कर मैं छोटे बच्चे की तरह झुंझला गया;

मैं: मजाक मत कर मेरे साथ!

करुणा: नीचे देखो...अभी और सीढ़ियाँ है...!

मैंने रेलिंग पकड़ कर नीचे झाँका, अभी कम से कम 30 सीढ़ियाँ और थीं, उन सीढ़ियों को देख मैंने अपना सर पीट लिया और बोला;

मैं: Next time ध्यान रखना की हम ग्राउंड फ्लोर वाले pub में जाएँ!

ये सुनकर करुणा हँसने लगी| तभी कैब वाले का दुबारा फ़ोन आ गया;

मैं: आ रहा हूँ भाई... राइड स्टार्ट कर दो...!

मैंने चिढ़ते हुए कहा|

5 मिनट की 'मेहनत-मशक्कत' के बाद मैं आखिर नीचे उतर ही आया और नीचे उतर आने की इतनी ख़ुशी की मैंने दोनों हाथ हवा में लहरा दिए, एक बार फिर मेरा बचपना देख करुणा की हँसी छूट गई! मैंने कैब वाले को फ़ोन किया और उससे पुछा की वो कहाँ है तो उसने बोला;

कैब वाला: सर मैंने हाथ ऊपर उठाया हुआ है, आपको मेरा हाथ दिख रहा है?

उसकी बात सुन मैं एकदम से बोला;

मैं: यहाँ बहनचोद सीढ़ियाँ ठीक से नहीं दिख रहीं थीं, आपका हाथ क्या ख़ाक दिखेगा?

ये सुन कैब वाला हँसने लगा| इधर करुणा ने कैब वाले को देख लिया था, पहले उसने दो chewing gum खरीदीं और मेरी बाजू पकड़ कर मुझे सहारा देते हुए कैब तक लाई| हम दोनों बैठे और कैब चल पड़ी, मैं बाईं तरफ बैठा था तथा मेरा बचपना अब भी चालु था| मैं खिड़की से बाहर देखते हुए किसी छोटे बच्चे की तरह खुश हो रहा था, जब कैब U turn लेती तो मैं फ़ौरन आँख बंद कर लेता, आँख बंद कर के कैब के U टर्न लेने में बड़ा मजा आ रहा था और मैं हँसे जा रहा था| मैंने करुणा को भी ऐसा करने को कहा तो वो हँसने लगी, उधर कैब वाला भी मेरा ये बचपना अपने शीशे में से देख कर मुस्कुरा रहा था|

करुणा: मिट्टू...आप न ... बिलकुल cute सा बच्चा है!

ये कहते हुए करुणा ने मेरे गाल पकडे| उसके मुझे cute कहने से मैं किसी बच्चे की तरह शर्माने लगा|

इतने में दिषु का फ़ोन आ गया, उसे चिंता हो रही थी की कहीं मैं पी कर लुढ़क तो नहीं गया?!

मैं: हेल्लो....

मैंने शब्द को खींचते हुए बोला|

दिषु: कहाँ है तू?

मैं: मैं....मैं....कैब में....!

दिषु: शुक्र है! कहाँ पहुँचा?

मैं: मैं.... ये...ये... आश्रम ... शायद!

आश्रम मेरे घर से बिलकुल उलटी तरफ था तो दिषु को चिंता हुई की मैं आखिर जा कहाँ रहा हूँ?

दिषु: अबे तू आश्रम क्या कर रहा है? रास्ता भटक तो नहीं गया?

उसने चिल्लाते हुए पुछा| मैं जवाब देता उसके पहले ही करुणा ने फ़ोन खींच लिया और उससे बात करने लगी;

करुणा: हेल्लो?

एक लड़की की आवाज सुन दिषु सकपका गया, फिर उसे लगा की ये जर्रूर करुणा ही होगी| दोनों वापस बातें करने लगे और मैं आँखें मूंदें कैब के गोल-गोल घूमने का मजा लेने लगा| बात कर के करुणा ने फ़ोन मुझे दिया और बोली;

करुणा: मिट्टू....मिट्टू.... आपका दोस्त कह रे की घर जा कर उसे कॉल करना!

मैंने हाँ में सर हिलाया और फ़ोन ले कर अपनी जेब में रख लिया| करुणा का घर नजदीक आया तो उसने कैब वाले को रास्ता बताना शुरू किया, कैब ठीक उसके घर के सामने रुकी और मैंने कैब तब तक रोके रखी जब तक करुणा अंदर नहीं चली गई| करुणा के अंदर जाने के बाद मैंने कैब वाले को मेरे घर की ओर चलने को कहा, इतने में करुणा का फ़ोन आ गया और वो बोली की मैं घर पहुँच कर उसे फ़ोन कर दूँ|

बियर का नशा कम होने लगा था जिस कारन मुझे होश आने लगा था, घर जाने के नाम से डर लग रहा था क्योंकि घर पर होती माँ और वो मुझे ऐसे देख कर नजाने कितने सवाल पूछती! मैंने खुद को होश में रखने के लिए ड्राइवर से बात शुरू कर दी, आधे घंटे तक मैं उससे बात करता रहा और उसे घर का रास्ता बताते हुए कॉलोनी के गेट तक ला आया| पैसे दे कर जैसे ही मैं उतरा तो लगा की मेरा पाँव सुन्न हो गया है, मैंने दो-तीन बार पाँव जमीन पर पटका और घर की ओर चल पड़ा| जब मैं चला तो नशा फिर सरपर सवार होने लगा, मैं बजाए सीधे चलने के टेढ़ा-मेढ़ा चलने लगा| 100 मीटर का रास्ता ऐसा था मानो कोई भूल भुलैया हो और मैं चल भी किसी साँप की तरह रहा था| घर पहुँचा तो मेरी फटी, क्योंकि दरवाजा माँ ही खोलतीं और मेरी ये हालत देख कर हाय-तौबा मचा देतीं! 'क्या करूँ?...क्या करूँ?' मैं बुदबुदाया और सर खुजलाने लगा| तभी दिमाग में एक बचकाना आईडिया आया, मैंने घंटी बजाई और दरवाजे के साथ चिपक कर खड़ा हो गया| माँ ने जैसे ही दरवाजा खोला मैं सरसराता हुआ उनकी बगल से निकल गया और सीधा अपने कमरे में घुस गया| माँ को कुछ तो महक आ गई होगी और बाकी की रही-सही कसर मेरे इस अजीब बर्ताव ने पूरी कर दी थी| माँ दरवाजा बंद कर के मेरे पीछे-पीछे कमरे में घुसीं, तब तक मैं बाथरूम में घुस गया था|

माँ: क्या हुआ?

माँ ने बाथरूम के बाहर से पुछा| मैं उस वक़्त chewing gum थूक कर ब्रश कर रहा था तो मैं उसी हालत में बोला;

मैं: बाथरूम आई थी जोर से!

मेरी किस्मत कहो या माँ का भरोसा की माँ ने मेरी बात मान ली|

माँ: कहाँ गया था?

माँ ने मेरे पलंग पर बैठते हुए पुछा|

मैं: आ रहा हूँ!

इतना कह कर मैंने ब्रश खत्म किया, और मुँह फेसवाश से धोया| तभी मेरा दिमाग कहने लगा की जिस्म से जो दारु की महक आ रही है उसका क्या? अब अगर deo होता तो मैं लगा लेता पर deo तो बाहर रखा था! मैंने नजर घुमाई तो पाया की सामने पाउडर रखा है, मैंने थोड़ा सा पाउडर अपनी बगलों में और नाम मात्र का पाउडर अपनी गर्दन पर लगाया| अब बस मुझे माँ को ये विश्वास दिलाना था की ये महक इस पाउडर के पसीने में मिल जाने की है न की दारु की! मैं बाहर आया और माँ से कुछ दूरी पर खड़ा हो कर अपना मुँह पोछने लगा|

माँ: कहाँ गया था? और ये महक कैसी है?

माँ ने मुँह बिदकते हुए सवाल दागा| उनका सवाल सुन कर मैंने खुद को सामन्य दिखाते हुए उनसे ही सवाल पूछ लिया;

मैं: कैसी महक?

माँ उठ के खड़ी हुई और मेरे नजदीक आ कर मेरी कमीज सूँघने लगीं|

माँ: तूने शराब पी है?

माँ ने गुस्से से मुझे देखते हुए पुछा|

मैं: मैं और शराब?

मैंने छाती ठोक कर झूठ बोलते हुए उन्हीं से सवाल पुछा| माँ मेरे नजदीक थीं तो उनकी नजर मेरी आँखों पर पड़ी जो लाल हो चुकी थीं;

माँ: तेरी आँखें क्यों लाल हैं? पक्का तूने पी है!

माँ ने गुस्से से कहा| शराब की महक छुपाने के चक्कर में मैं अपनी आँखों के लाल होने की सुध ही नहीं रही!

मैं: त...तबियत खराब हो गई थी!

मैंने खुद को बचाने के लिए एक और झूठ बोला, पर इस झूठ ने मुझे एक कहानी बना कर तैयार करने का जबरदस्त आईडिया दे दिया|

मैं: मैं एक पार्टी के पास गया था माल की बात करने, उनके ऑफिस में AC चालु था और उन्होंने बड़ा तेज परफ्यूम लगा रखा था! परफ्यूम की महक और AC के कारन मेरी छींकें शुरू हो गईं, मैं मीटिंग अधूरी छोड़कर कैब कर के लौट आया और ये जो अजीब महक आप को आ रहे है ये कुछ तो वो जबरदस्त परफ्यूम की है और बाकी जो मैंने पाउडर लगाया था वो छींकें आने से मेरे पसीने से मिल गया|

ये कहते हुए मैंने अपन हाथ उठा कर अपनी बगल उनकी नाक के आगे की| शायद माँ को यक़ीन हो गया था तभी उन्होंने उस महक के बारे में और कुछ नहीं पुछा|

माँ: अब कैसी है तेरी तबियत?

माँ मेरी तबियत की चिंता करते हुए बोलीं|

मैं: थोड़ा आराम है|

माँ: मैं गर्म पानी ला देती हूँ, तू भाँप ले ले!

माँ ने परेशान होते हुए कहा|

मैं: नहीं माँ....थकावट लग रही है.... सो जाता हूँ...!

इतना कह कर मैंने अपने कपडे बदले और लेट गया|

माँ: बेटा खाना तो खा ले?

मैं: अभी भूख नहीं है|

इतना कह मैंने दूसरी ओर करवट ले ली| माँ को लगा की मैं गुस्सा हूँ इसीलिए खाना नहीं खा रहा, 'थोड़ा आराम कर ले, मैं तुझे बाद में उठाती हूँ' कह कर माँ चली गईं|

माँ के जाते ही मैं सोचने लगा की मैंने कैसे सफाई से झूठ बोला! कुछ समय पहले मुझे बोलने में दिक्कत हो रही थी और अब मैं एक साँस में, पल भर में बनाई झूठी कहानी माँ को सुना और उन्हें अपनी कहानी पर विश्वास दिलाने में कामयाब हो गया?! क्या इतना बड़ा धोकेबाज हूँ मैं?

नशा मुझ पर जोर मार रहा था इसलिए मैं ये सोचते हुए घोड़े बेच कर सो गया!

कुछ देर बाद पिताजी घर लौटे और मेरे बारे में पुछा, माँ ने उन्हें बताया की मेरी तबियत ठीक नहीं है तथा मैं सो रहा हूँ| माँ ने मेरे गुस्से के बारे में पिताजी से पुछा तो पिताजी ने सारी बात बताई| फिर माँ ने माल का बिल और बिना साइन किया हुआ चेक पिताजी को दिया| पिताजी जान तो गए की उन्होंने बेवजह मुझे झाड़ दिया पर अपनी गलती माँ के सामने माने कैसे? पिताजी ने खाना परोसने को कहा और मुझे जगाने को कहा, माँ मुझे जगाने आईं, उनकी बतेहरी कोशिश पर भी मैं नहीं उठा, तो माँ ने जैसे-तैसे बात संभाली और पिताजी से मेरे लिए झूठ बोलीं की मैं बाद में खाऊँगा| अगर वो सच बोलती तो आज पिताजी की मार से मुझे कोई नहीं बचा सकता था, क्योंकि वो मुझे देखते ही समझ जाते की मैं पी कर टुन हूँ!

पिताजी ने खाना खाया और माँ से कहा की मुझे भी खिला दें, इतना कह वो अपने कमरे में चले गए| इधर माँ मुझे पुनः जगाने आईं, उन्होंने इस बार मुझे जोर से झिंझोड़ा जिससे मेरी नींद कुछ खुली पर मैं कुनमुनाते हुए बोला;

मैं: भूख...नहीं....सुबह...खाऊँगा....!

इतना कह मैं फिर से सो गया| माँ उठीं और कुछ देर तक बाहर बैठी टीवी देखती रहीं जिससे पिताजी को लगा की माँ और मैंने खाना खा लिया है|

इधर रात के 3 बजे मेरी नींद एकदम से खुली क्योंकि मेरा जी मचल रहा था, ऐसा लग रहा था की अभी उलटी होगी! मैं तुरंत बाथरूम में घुसा पर शुक्र है की कोई उलटी नहीं हुई, मुँह धो कर मैं बाहर आया और पलंग पर पीठ टिका कर बैठ गया| मेरी नींद उचाट हो गई थी और अब दिमाग में बस ग्लानि के विचार भरने लगे थे!

[color=rgb(51,]जारी रहेगा भाग 7(3) में...[/color]
 

[color=rgb(65,]इक्कीसवाँ अध्याय: कोशिश नई शुरुआत की[/color]
[color=rgb(251,]भाग -7 (3)[/color]


[color=rgb(44,]अब तक आपने पढ़ा:[/color]

इधर रात के 3 बजे मेरी नींद एकदम से खुली क्योंकि मेरा जी मचल रहा था, ऐसा लग रहा था की अभी उलटी होगी! मैं तुरंत बाथरूम में घुसा पर शुक्र है की कोई उलटी नहीं हुई, मुँह धो कर मैं बाहर आया और पलंग पर पीठ टिका कर बैठ गया| मेरी नींद उचाट हो गई थी और अब दिमाग में बस ग्लानि के विचार भरने लगे थे!

[color=rgb(255,]अब आगे:[/color]

ग्लानि अपनी माँ से झूठ बोलने की, उस माँ से जो मुझे इतना प्यार करती है और ग्लानि उस लड़की (करुणा) को शराब पी कर तंग करने की! करुणा का नाम याद आते ही मुझे नजाने क्यों ऐसा लगने लगा की मैंने शराब पी कर उसके साथ कोई बदसलूकी की है, हालाँकि मेरा दिमाग बार-बार कह रहा था की मैंने करुणा के साथ कोई बदसलूकी नहीं की है पर मन में बसी ग्लानि इस बात को मान ही नहीं रही थी! दिमाग को ग्लानि से बचने का रास्ता चाहिए था तो उसने मेरे झूठ बोलने का ठीकरा भौजी के सर मढ़ दिया; 'मैं पहले कभी इतना धड़ल्ले से झूठ नहीं बोलता था और ये पीने की लत मुझे भौजी के कारन लगी! न वो मुझे धोखा देतीं, न मैं पीना शरू करता और ना ही मुझे माँ से झूठ बोलना पड़ता!' जबकि अस्लियत में देखा जाए तो मेरा ये झूठ बोलना मैंने भौजी के मोह जाल में पड़ कर खुद शुरू किया था|

मैं यूँ ही आँखें खोले हुए छत को घूर रहा था और मन ही मन भौजी को दोष दिए जा रहा था, तभी मुझे याद आया की मुझे तो दिषु को कॉल करना था! मैंने फ़ट से अपना फ़ोन उठाया और देखा की उसकी notification लाइट जल रही है, फ़ोन on किया तो पता चला की करुणा और दिषु की 4-4 missed call हैं! अब रात के इस वक़्त कॉल तो कर नहीं सकता था इसलिए मैंने दोनों को मैसेज कर के बता दिया की मैं घर पहुँच गया था और बहुत नींद आ रही थी इसलिए जल्दी सो गया था| मैं जानता था की ये मैसेज करना काफी नहीं होगा, कल सुबह होते ही दिषु मुझे बहुत सुनाएगा और करुणा का क्या? करुणा का नाम याद आते ही फिर ऐसा लगने लगा की मैंने कोई पाप किया है, शायद नशे की हालत में मैंने उसके साथ......? 'नहीं-नहीं! ऐसा कैसे हो सकता है? मुझे अच्छे से याद है, मैंने उसके साथ कोई बदसलूकी नहीं की!' मेरे दिमाग ने बड़े आत्मविश्वास से कहा| पर ससुरा दिल अड़ गया की नहीं मैंने कुछ तो गलत किया है, दरअसल ये दारु पी कर जो मैंने माँ से झूठ बोला था ये उसकी ग्लानि थी और यही ग्लानि नजाने क्या-क्या महसूस करवा रही थी! मैंने सोच लिया था की सुबह होते ही मैं करुणा को फ़ोन कर के माफ़ी माँग लूँगा|

बस सुबह होने तक मैं एक पल भी नहीं सो पाया, एक तो ग्लानि थी और दूसरा बियर ज्यादा पीने से जी मचला रहा था| सुबह 5 बजे मैं बिस्तर से उठा, नहाया-धोया और सीधा डाइनिंग टेबल पर पहुँचा, मुझे इतनी जल्दी उठा देख पिताजी ताना मारते हुए बोले;

पिताजी: गुस्सा शांत हो गया या अभी बाकी है?

मैं पलट कर उन्हें कोई जवाब देता तो झगड़ा शुरू हो जाता, इसलिए मैं खामोश रहा| अब माँ को ही मेरा बीच-बचाव करना था तो वो बोलीं;

माँ: अजी छोड़ दीजिये.....

माँ आगे कुछ कहतीं उससे पहले ही पिताजी ने उन्हें दुत्कार दिया;

पिताजी: तुम्ही ने सर पर चढ़ाया है इसे!

अब माँ को बिना किसी गलती के कैसे झाड़ सुनने देता;

मैं: सर पर चढ़ाया नहीं, बल्कि सही-गलत में फर्क करना सिखाया है|

ये सुन कर पिताजी को मिर्ची लगी और वो कुछ बोलने ही वाले थे की मैंने एकदम से कल का सारा गुस्सा उन पर निकल दिया;

मैं: क्या गलती थी मेरी जो आपने मुझे लेबर के सामने झाड़ दिया? चेक पर साइन करना भूल गए आप, इस छोटी सी बात के लिए माल रोका आपके सेठ जी ने और गुस्सा आप मुझ पर उतार रहे थे? आपके सेठ जी एक फ़ोन कर के नहीं बता सकते थे की चेक वापस आ गया है? 150/- रुपये का टुच्चा सा नुक्सान मुझे गिना ने में उन्हें शर्म नहीं आई?! पैसे दे कर ही माल लेना था तो ले लिया मैंने दूसरे से और बिल देखा आपने? आपके सेठ जी से कम दाम लिए उसने और 30 दिन का credit period भी दिया है, मतलब अगर हमें पेमेंट मिलने में लेट हो तो 30 दिन तक वो आपके सर चढ़ कर पैसे के लिए नहीं नाचेगा! ये बिज़नेस हम पैसा कमाने के लिए करते हैं उन सेठ जी के साथ नाते-रिश्तेदारी निभाने के लिए नहीं और काहे की रिश्तेदारी जब पैसे ही देने हैं तो काहे की रिश्तेदारी? अब बोलिये क्या गलत किया मैंने?

मेरी सारी बात सुन कर पिताजी को मेरे गुस्से का कारन समझ आ गया पर फिर भी वो खामोश रहे, मैं वहाँ ठहरता तो कुछ गलत होता इसलिए मैं वापस अपने कमरे में लौट आया| घंटे भर बाद पिताजी ने मुझे आवाज दी और बाहर बुलाया;

पिताजी: मानु......बाहर आ!

उनकी आवाज में शान्ति थी, मैं सर झुकाये हुए बाहर आया तो पिताजी ने मुझे बैठने को कहा|

पिताजी: अच्छा किया जो तूने सेठ जी से काम बंद कर दिया, पर आगे से कोई भी फैसला लेने से पहले सोचा कर और कमसकम मुझे बता दिया कर!

पिताजी की आवाज में हलीमी थी इसलिए मैंने उनके आगे हाथ जोड़े और बोला;

मैं: पिताजी मुझे माफ़ कर दीजिये, मुझे आपसे यूँ गुस्से से बात नहीं करनी चाहिए थी|

पिताजी: बेटा अपने गुस्से पर काबू रखा कर|

इतना कह पिताजी उठे और माँ को नाश्ता बनाने को बोला| पिताजी नहाने गए तो मैंने सोचा माँ से भी माफ़ी माँग लूँ, पर उन्हें बताऊँ कैसे की मैं पी कर आया था?! लेकिन माँ अपने बच्चे की रग-रग से वाक़िफ़ होती है, इसलिए माँ ने ही पलट कर मुझे प्यार से डाँटते हुए कहा;

माँ: सच-सच बता, कल रात पी कर आया था न?

माँ की बात सुन मेरे तोते उड़ गए, अब उन्हें सच बोलता तो उनका दिल टूटता और वो मुझे पीने से रोकने के लिए अपनी कसम से बाँध देतीं इसलिए मैंने सुबह-सुबह फिर झूठ बोला;

मैं: नहीं तो!

इतना कह मैंने उनसे नजरें चुरा ली और टेबल पर बैठ अखबार पढ़ने लगा| माँ का दिल बड़ा पाक़ होता है इसलिए उन्होंने मेरे झूठ पर भरोसा कर लिया|

नाश्ता कर के मैं पिताजी के साथ निकला और काम संभाला, थोड़ी देर बाद दिषु का फ़ोन आया और उसने मुझे प्यार से डाँटा और समझाया की मुझे अपने पीने पर काबू रखना चाहिए, ख़ास कर तब जब मेरे साथ लड़की हो| मैंने उसे 'sorry' कहा और काम में लग गया,आज शनिवार का दिन था सो मैं आधे दिन में ही गोल हो लिया और सीधा करुणा के पास पहुँचा| मुझे उससे आज माफ़ी माँगनी थी और नजाने मुझे ऐसा क्यों लग रहा था की वो मुझसे नहीं मिलेगी इसलिए मैं धड़धड़ाता हुआ आज उसके हॉस्पिटल में घुस गया| मैंने हॉस्पिटल में करुणा के बारे में एक नर्स से पुछा तो उसने मेरा नाम पुछा, मेरा नाम सुन वो मुस्कुरा कर मुझे ऐसे देखने लगी मानो मैं कोई सुपरस्टार हूँ! वो मुझे अपने साथ nursing station लाई और सभी से मेरा परिचय करवाते हुए बोली; 'ये है मिट्टू!' मिट्टू सुन कर सब के सब ख़ुशी से चहकने लगे और मेरी आव-भगत में लग गए| मुझे नहीं पता था की करुणा ने मेरी तारीफों के पुल यहाँ पहले से ही बाँध रखे हैं! वहाँ सभी कोई मेरे बारे में पूछने लगे और मेरे बारे में जानकार सभी बहुत खुश हुए| सब जानते थे की करुणा को जयपुर में permanent job मिली है और मैं ही उसकी सारी मदद कर रहा हूँ| इतने में करुणा आ गई और मुझे वहाँ बैठे देख उसके चेहरे पर ख़ुशी खिल गई;

करुणा: मिट्टू!!! आप मेरे को surprise देने आये क्या?

उसकी बात सुन साब लोग ठहाका मार के हँसने लगे, मुझे ये देख कर हैरानी हुई की करुणा के मन में कल जो दारु पीने का काण्ड हुआ उसके लिए कोई गिला-शिकवा नहीं है| हँसी-ठहाका सुन एक-दो डॉक्टर आ गए और करुणा ने उनसे मेरा परिचय करवाया, मुझसे मिलकर उनके चेहरे पर भी मुझे सबकी तरह ख़ुशी दिखी|

करुणा: मिट्टू आप यहीं बैठो मैं चेंज कर के आ रे!

करुणा चेंज कर के आई और तब तक सभी मुझसे बात करते रहे|

हम दोनों बाहर निकले तो मैंने करुणा से माफ़ी माँगी;

मैं: Dear I'm sorry for yesterday...

मैं आगे कुछ कहता उससे पहले ही उसने चौंकते हुए मेरी बात काट दी;

करुणा: ऐसा क्यों कह रे? आप ने कुछ नहीं किया, आप drunk था पर आपने कुछ misbehave नहीं किया! आप तो कल और भी cute लग रा ता!

करुणा ने हँसते हुए कहा| उसकी बात सुन मैं हैरान उसे देख रहा था और इधर मेरा दिमाग मेरे दिल को लताड़ रहा था; 'बोला था न कुछ नहीं किया मैंने!' पर आत्मा को बुरा लग रहा था की मैंने कल उसके साथ बैठ कर इतनी दारु पी;

मैं: Dear आज के बाद हम कभी इस तरह दारु नहीं पीयेंगे, कल तो मैं होश में था पर फिर कभी नहीं हुआ तो?!

मैंने सर झुकाते हुए कहा| करुणा ने एकदम से मेरे दोनों कँधे पकडे और मेरी आँखों में देखते हुए बोली;

करुणा: मुझे आप पर पूरा trust है की आप कभी कुछ गलत नहीं करते, इतना months में आप ने मुझे touch तक नहीं किया तो कैसे कुछ गलत करते?!

करुणा की बातों में सच्चाई थी, मैंने आज तक उसे नहीं छुआ था, मैं नहीं जानता था की वो ये सब notice कर रही है|

करुणा: फिर आप मेरे साथ नहीं पी रे तो मैं किसके साथ पीते?

करुणा ने हँसते हुए कहा, पर मैंने उसकी इस बात पर ज्यादा ध्यान नहीं दिया| मेरे खामोश रहने से करुणा ने बात को बदलना चाहा;

करुणा: मिट्टू आज हम खान मार्किट चर्च जाते!

धर्म-कर्म की बात पर मैं हमेशा खुश हो जाता था इसलिए मेरे चेहरे पर एकदम से मुस्कान आ गई| हमने ऑटो किया और खान मार्किट चर्च पहुँचे, चर्च के बाहर लोगों ने फूल माला, मोमबत्ती और कुछ खाने-पीने के समान की फेरी लगा रखी थी| करुणा ने बाहर से फूल माला, गुलाब और मोमबत्तियाँ ली| आज मैं पहलीबार देख रहा था की ईसाई लोग भी पूजा में फूलमाला उपयोग करते हैं, इससे पहले मुझे लगता था की वो केवल मोमबत्ती जला कर ही दुआ करते हैं| हम चर्च में दाखिल हुए तो बाईं तरह एक जूते-चप्पल का स्टैंड था जहाँ जूते रखने थे, पिछलीबार जब हम Sacred Heart Cathederal Church गए थे तो वहाँ हमने जूते नहीं उतार थे| मैंने किसी बच्चे की तरह करुणा से ये सवाल पुछा तो उसने ठीक वैसे ही जवाब दिया जैसे माँ-बाप अपने छोटे बच्चे के नादान सवाल का जवाब देते हैं;

करुणा: मिट्टू इदर जूते पहन कर अंदर नहीं जाते!

क्यों नहीं जाते इसका जवाब तो मिला नहीं, मैंने भी सोचा की ज्यादा पूछूँगा तो कहीं ये डाँट न दे इसलिए मैं जूते-चप्पल उतार के करुणा के साथ अंदर चल दिया| दाईं तरफ Mother Mary की एक मूरत थी और ठीक सामने की तरफ हाथ-मुँह धोने की जगह| हम दोनों ने हाथ-मुँह धोये और चर्च के अंदर घुस गए|

ये चर्च Sacred Heart Cathederal Church के मुक़ाबले बहुत छोटा था पर इस चर्च में बहुत रौनक थी, यहाँ बहुत से लोग मौजूद थे, सामने की ओर Mother Mary की मूरत थी| मूर्ती के आगे एक रेलिंग लगी थी और उस रेलिंग के साथ ही एक लम्बा सा गद्दा बिछा हुआ था| लोग उस गद्दे पर घुटने मोड़ कर अपना सर उस रेलिंग पर रखते थे, रेलिंग के दूसरी तरफ दो लोग थे, एक आदमी भक्तों से फूल माला लेता था और Mother Mary या Jesus Christ की मूर्ति के पास रख देता था तथा दूसरा व्यक्ति रेलिंग पर सर रखने वालों के झुके हुए सर के ऊपर एक मुकुट जैसा कुछ 5-10 सेकंड तक रखता था|

जब हम दोनों की बारी आई तो हमने भी वैसा ही किया, मेरे सर पर जब वो मुकुट रखा गया तो मुझे ऐसा लगा मानो मेरे जिस्म में पवित्रता घुल गई हो! वो पवित्र एहसास ऐसा था की मेरा मन एकदम से शांत हो गया, मैं सभी चिंताएँ भूल गया! जीवन में पहली बार मैं अपनी साँसों को खुद सुन पा रहा था, उन कुछ पलों के लिए मेरे कानों ने कुछ भी सुनना बंद कर दिया था, बस एक अजीब सा सुकून था जिसे मैं आज दिल से महसूस कर पा रहा था|

दिल को जब सुकून मिला तो जुबान पर बस करुणा के लिए दुआ निकली; 'Mother Mary आज मैं पहलीबार आपके मंदिर में आया हूँ, अगर मुझसे कोई भूल हो गई हो तो मुझे माफ़ कर देना| मेरी दोस्त करुणा का ख्याल रखना, उसे ये नई नौकरी दिलाना और इसका वहाँ खूब ख़याल रखना| इसे बहुत सारी खुशियाँ देना, ये थोड़ी सी बुद्धू है तो प्लीज इसे सत बुद्धि देना|' दिल ने जल्दी से ये दुआ की क्योंकि मेरे अलावा भी वहाँ बहुत भक्त थे, अब मैं ही जगह घेर कर बैठ जाता तो लोग हँगामा खड़ा कर देते| मैं उठा तो देखा करुणा गायब है, मैं गर्दन घुमा कर उसे ढूँढने लगा, मुझे करुणा चर्च के बाईं तरफ बानी मूर्तियों के आगे सर झुका कर दुआ कर रही थी| मैं भी उसी की तरह सभी मूर्तियों के आगे सर झुका कर करुणा के लिए दुआ करने लगा|

दुआ कर के हम वहाँ बिछी बेंचों पर बैठ गए, करुणा ने अपनी आंखें बंद कर ली और वो मन ही मन अपनी प्रर्थना में लग गई| मैंने भी सोचा की जो प्रार्थना रेलिंग पर सर रख कर कर रहा था उसे पूरा करूँ| मैंने करुणा की नौकरी के लिए दुआ करनी शुरू की, पर उसी समय मुझे काल शाम का दृश्य याद आया| वो दृश्य याद आते ही मन ने मुझे लताड़ा, भगवान के घर में बैठ कर जब मन लताड़ता है तो बड़ा दर्द होता है| 'अपनी माँ से झूठ बोलने वाला आज सबकी माँ Mother Mary से करुणा के लिए दुआ कर रहा है?! तुझ जैसे झूठे के कारन करुणा का बनता हुआ काम बिगड़ जाएगा!' अंतरात्मा की ये लताड़ सुन मेरी आँखों से आँसूँ बह निकले| 'Mother Mary मुझे माफ़ कर दो! कल जो हुआ उसके लिए में बहुत शर्मिंदा हूँ और वादा करता हूँ की ऐसा कभी कुछ करुणा के साथ नहीं करूँगा! मैंने अपनी माँ से झूठ बोला, उसके लिए मैं आपका कसूरवार हूँ और उसके लिए आप जो भी सजा देना चाहो वो मुझे दो, पर करुणा पर इसका कोई प्रभाव मत पड़ने देना| मैं वादा करता हूँ की जबतक करुणा की नौकरी लग कर वो सेटल नहीं हो जाती तब तक मैं शराब को हाथ नहीं लगाऊँगा, पर प्लीज मेरे कारन उस बेचारी के जीवन में कोई तकलीफ मत देना! उसकी दुःख-तकलीफें मुझे दे देना पर उसे खुश रखना, उसने बहुत दुःख झेला है!' प्रार्थना कर के जब मैंने आँखें खोलीं तो करुणा को मुझे घूरता हुआ पाया परन्तु उसने उस समय मुझसे कोई सवाल नहीं किया| कुछ देर बैठ कर हम बाहर निकले, बाहर निकलते समय मैंने दरवाजे पर खड़े हुए Mother Mary को सर झुका कर प्रणाम किया और मन ही मन उनसे बोला; 'Mother Mary अब मैं चलता हूँ, आप आशीर्वाद देना की अगलीबार जब मैं आपसे मिलने आऊँ तो इस ख़ुशी के साथ आऊँ की करुणा को जॉब मिल गई है|' मैंने मुस्कुरा कर Mother Mary को धन्यवाद दिया और चर्च से बाहर आया| हम दोनों अपने जूते-चप्पल पहन रहे थे तब करुणा ने मुझे चर्च के बारे में बताना शुरू किया;

करुणा: Dear आपको पता, ये हैं न Mother Mary का only church है! ज्यादा कर के चर्च Jesus का होते पर अंदर आपने एक अम्मा और अप्पा का फोटो देखा न, वो दोनों मिल कर ये चर्च शुरू किया| Mother Mary का सबसे बड़ा चर्च Velakanni तमिल नाडु में है, मुझको जब अच्छा सैलरी मिलते तब मैं आपको वहाँ ले जाते|

करुणा की बात सुन कर मेरे चेहरे पर मुस्कान आ गई|

हम घर आने के लिए चल पड़े और चलते-चलते हम खान मार्किट पहुँचे;

करुणा: Dear आप चर्च में रो क्यों रा था?

करुणा ने बड़े प्यार से अपना सवाल पुछा|

मैं: मुझे ऐसा लग रहा था की मेरे किये हुए पापों की सजा आपको मिल रही है, तभी तो आपका अपॉइंटमेंट लेटर अभी तक नहीं आया, इसलिए मैंने Mother Mary को प्रॉमिस किया की जब तक आपको जॉब नहीं मिलती तब तक मैं drink नहीं करूँगा|

करुणा मेरी बात सुन कर हैरान हुई और मुझे समझाना चाहा;

करुणा: Dearrrr....ऐसा नहीं होते.....

मैं: Dear भक्ति में logic नहीं विश्वास चलता है!

मैंने करुणा की बात काटते हुए कहा, वो आगे कुछ बोलती उसके पहले ही मैंने बात घुमा दी और उसका ध्यान खाने-पीने की ओर मोड़ दिया| उस दिन हमने अफगानी चिकन टिक्का रोल खाया, कसम से उससे लजीज चिकन रोल मैंने आजतक नहीं खाया था!

दो दिन बाद करुणा ने लंच में फ़ोन किया, उसकी आवाज खुशियों से भरी थी! मैं जान गया था की उसका अपॉइंटमेंट लेटर आ गया है, मैंने आँख बंद कर के ईश्वर को धन्यवाद दिया और उससे पुछा की कहाँ joining मिली है तथा उसे कब निकलना है| करुणा ने बताया की उसे 'घरसाना' नाम की जगह में पोस्टिंग मिली है पर उसे पहले 'श्री विजयनगर' में रिपोर्ट करना है| Joining के लिए उसकी दीदी, उसका जीजा और एंजेल सब जा रहे हैं, अब ये सुन कर मेरा दिल मुरझा गया क्योंकि उन सब के जाने से मेरा जाना नामुमकिन होगया था, जबकि मैं चाहता था की उसकी joining मैं करवाऊँ!

करुणा: आप मेरे को छोड़ने नहीं जाते?

करुणा ने मायूस होते हुए कहा|

मैं: यार....

मैं कुछ कहता उससे पहले ही करुणा ने मेरी बात काट दी;

करुणा: मेरा जोइनिंग के बाद हम फिर कब मिलते, क्या पता? इसलिए आप अगर नहीं जाते तो मैं भी नहीं जाते!

करुणा ने किसी बच्चे की तरह मुँह बनाते हुए कहा|

मैं: यार....ठीक है....मैं चलूँगा!

मैंने हार मानते हुए कहा, मैं जानता था की मेरे जाने से करुणा की दीदी को चिढ होगी पर करुणा की ख़ुशी के लिए मैं मान गया| करुणा को आज शाम को जल्दी घर जाना था तो आज मिलने का प्लान कैंसिल हो गया, रात को करुणा ने फ़ोन कर के बताया की दो दिन बाद जाना है तो मैं बस की टिकट बुक करवा दूँ| मैंने करुणा से उसके दीदी, जीजा और एंजेल की डिटेल ली तथा टिकट बुक करने के लिए ऑनलाइन चेक किया, तब मुझे पता चला की श्री विजयनगर तक volvo नहीं जाती थी, बल्कि स्लीपर बस जाती थी, मैंने आज तक स्लीपर बस में सफर नहीं किया था तो सोचा की इस बहाने स्लीपर बस में भी सफर करने को मिलेगा| लेकिन दिक्कत ये थी की अगर मैं चारों sleeper टिकट लेता तो मुझे और करुणा को एक साथ स्लीपर मिलती, उसके परिवार की मौजूदगी में ये ठीक नहीं होता इसलिए मैंने केवल तीन स्लीपर बस की टिकट ली तथा अपने लिए मैंने बैठने वाली सीट ली|

अब बारी थी घर में फिर से झूठ बोलने की कि श्री विजयनगर में ऑडिट के लिए जाना है, अपना झूठ फूलप्रूफ करने के लिए मैंने दिषु को सब बता दिया और वो भी मेरे झूठ में शामिल हो गया| माँ-पिताजी ने झूठ सुना और बेटे पर विश्वास कर बैठे, पर मैं जानता था की मैं उनसे कितना झूठ बोल रहा हूँ| खैर ये दो दिन करुणा एकदम से मुरझा गई थी, बुधवार को जब मैं उससे मिला तो करुणा ने मायूस होते हुए कहा;

करुणा: मिट्टू....हम कब मिलते?

करुणा की आवाज में दर्द झलक रहा था और उसका ये दर्द मैं बर्दाश्त नहीं कर पा रहा था, ये दर्द कुछ-कुछ वैसा ही था जो भौजी ने मेरे दिल्ली लौटने के समय किया था| इस दर्द को महसूस कर मन बोला; 'भौजी को तो मैं खो चूका हूँ, पर करुणा को नहीं खोऊँगा;

मैं: पागल! आप joining तो करो, फिर मैं और आप every weekend मिलेंगे!

ये सुन कर करुणा के चेहरे पर ख़ुशी लौट आई, उसके चेहरे पर आई ख़ुशी देखते ही मैंने पल भर में सारा प्लान बना लिया;

मैं: मैं every friday night यहाँ से निकलूँगा, saturday-sunday मैं वहीं रहूँगा और sunday night वापस आ जाऊँगा|

मेरा प्लान था तो बिना सर-पैर का लेकिन जब आपके मन में मोह में बसा हो और आप उस मोह से खुद को संभाल न पाओ तो आप ऊल-जूलूल हरकतें करने लगते हो! न तो मैं भौजी से प्यार करते समय अपने मोह को रोक पाया था और न ही करुणा से दोस्ती में!

करुणा: सच मिट्टू?

करुणा ने आस लिए हुए मुस्कुरा कर पुछा और मैंने तुरंत हाँ में सर हिला कर उसे आश्वासन दिया| मेरी हाँ सुन कर उसके चेहरे पर जो मुस्कान आई वो देख कर दिल को बहुत सुकून मिल रहा था, भले ही मेरा प्लान बेवकूफी भरा था पर मैंने उसके बारे में सोचना शुरू कर दिया था| दिल्ली से बाहर जाना वो भी हर हफ्ते? बस का खर्चा? होटल में रहने का खर्चा? और जो उतने दिन मैं वहाँ रुकता, घूमता-फिरता उसका खर्चा? इसके लिए मुझे पैसे चाहिए थे, बहुत सारे पैसे और उसके लिए मुझे एक अच्छी जॉब चाहिए थी! करुणा से मेरा लगाव इतना बढ़ चूका था की मैं सब कुछ करने को तैयार था!

अगले दिन साइट पर काम ज्यादा था, फिटिंग का कुछ माल नहीं आया था तो पिताजी ने मुझे सुबह ही माल लेने भेज दिया| माल उत्तर प्रदेश से आना था पर कुछ कारन वश नहीं पहुँचा था, पिताजी ने सप्लायर को बहुत फ़ोन मिलाये पर कोई जवाब नहीं, इसलिए पिताजी ने सुबह ही मुझे वहाँ भेज दिया| अब चूँकि पिताजी ने सारी पेमेंट एडवांस की थी इसलिए मेरा जाना जर्रूरी था, मैं पहले सप्लायर की दूकान पहुँचा पर वहाँ कोई नहीं मिला| मैंने आस-पास उनके घर का पता किया और उन्हें ढूँढ़ते हुए उनके घर पहुँचा, घर पहुँच कर पता चला की एक एक्सीडेंट में उन्हें बहुत चोट आई है| हॉस्पिटल का पता लेकर में उनका हाल-चाल लेने पहुँचा, हॉस्पिटल जा कर देखा की अंकल के दाएँ हाथ में फ्रैक्चर हुआ है| मैंने उनसे हाल-चाल लिया, इधर उन्होंने अपने बेटे को बुलाया और उससे फ़ोन माँगा क्योंकि उनका फ़ोन एक्सीडेंट में टूट गया था| उन्होंने सीधा फ़ोन अपनी दूकान वाले छोटू को किया और उसे झाड़ते हुए बोले; "मरी कटौ, हम एकदिन फैक्ट्री नाहीं आयन तो तुम सबका सब मस्ती मारे लागेओ! दिल्ली वाली गाडी कहाँ है? भैया हमरे लगे ठाड़ (खड़े) हैं, दुइ मिनट मा हमका बताओ नहीं तो गंडिया काट डालब तोहार!" फ़ोन काट कर उन्होंने मुझसे माफ़ी माँगी तो मैंने उनके आगे हाथ जोड़ते हुए कहा;

मैं: अंकल जी आप आराम कीजिये, मैं तो......

मैं आगे कुछ बोलता उससे पहले ही अंकल जी का लड़का बोल पड़ा; "भैया कल रतिया का गाडी हाईवे पर पलट गई रही, पापा बाल-बाल बचे! एहि से गाडी आज सुबह न निकल पाई....."

मैं: अरे यार ऐसा मत करो, मैं तो यहाँ बस अंकल जी का हाल-चाल पूछने आया था|

मैंने उसकी बात काटते हुए कहा|

अंकल जी: नाहीं मुन्ना, तोहार पिताजी हम पर भरोसा कर के ऐखय बार मा पूरा पइसवा दे दिहिन| ऊ हम से तनिको भाव-ताव नाहीं किहिन, ई तो ससुर एक्सीडेंट हो गवा नाहीं तो तोहार माल आज पहुँच जावत! आज शाम का हम खुद उनका फ़ोन करि के माफ़ी माँग लेब!

मैं: अंकल जी ऐसा न कहिये! जिंदगी ज्यादा जर्रूरी होती है, भगवान का लाख-लाख शुक्र है की आप सुरक्षित हैं|

इतने में छोटू का फ़ोन आ गया, उसने बताया की गाडी तैयार है और बस निकलने वाली है| अंकल जी ने उसे बहुत झाड़ा और आज रात किसी भी हालत में माल पहुँचाने को कहा| मैंने सारी बात सुन ली थी तो मैंने उनसे विदा लेनी चाही, अंकल ने बहुत जोर दिया की मैं कुछ खा-पीकर जाऊँ पर मैं उन्हें और उनके परिवार को तकलीफ नहीं देना चाहता था इसलिए मैंने उनसे हाथ जोड़ कर धन्यवाद कहा तथा वहाँ से चल पड़ा| घडी में बजे थे शाम के 5 और अभी दिल्ली पहुँचने में लगता कमसकम ढाई घंटे, इसलिए मैंने करुणा को बताया की मैं आज नहीं मिल पाऊँगा| ये सुन कर करुणा मायूस हो गई, वो चाहती थी की कल श्री विजयनगर निकलने से पहले हम आज मिल लें| अब मिलना तो मुमकिन नहीं था पर फ़ोन पर बात करना तो आसान था, तो हम दोनों फ़ोन पर बात करने लगे| मैंने करुणा से पुछा की उसने अपने सारे कपडे- लत्ते पैक किये? अपने सभी documents ले लिए? ये सवाल सुन करुणा भावुक हो गई और फ़ोन पर बात करते हुए रो पड़ी| वो घर छोड़ कर एक नए शहर में बसने से घबरा रही थी और मैं उसे सांत्वना देते हुए उसका हौसला बढ़ा रहा था| मैंने उसे विश्वास दिलाया की उसके वहाँ ठहरने से ले कर आने-जाने का सारा इंतजाम मैं करूँगा और कुछ दिन वहीं उसके पास रहूँगा| दिक्कत ये थी की joining मिलने के बाद करुणा की दीदी और जीजा की मौजूदगी में मैं वहाँ किस तरह रुकता? तो मैंने इसका एक आईडिया निकाला, वो ये की करुणा की joining के बाद उसके रहने के लिए किसी हॉस्टल का इंतजाम कर मैं दिल्ली न आ कर कोई बहाना मार के कहीं और निकल जाऊँगा| उसकी दीदी तो रात की बस से निकल जातीं और तब तक मैं किसी पार्क, होटल में रुक जाता| उनके जाते ही मैं करुणा से मिलता और 1-2 दिन रुक कर जब करुणा को इस सब की आदत हो जाती तो मैं लौट आता| करुणा को मेरा प्लान पसंद आया और उसके चेहरे पर थोड़ी सी ख़ुशी आई|

इधर मैं अब भी करुणा से अपने दिल की हालत छुपा रहा था, उससे रोज मिलने की आदत पड़ गई थी, उसके साथ होने से मेरा दिल काबू में रहता था और भौजी को याद कर के दारु के पीछे नहीं जाता था| दिल करुणा को अपने पास रखना चाहता था पर मन मुझे स्वार्थी होने से रोक रहा था, हार मानते हुए मैंने मन की बात मान ली और भगवान से प्रार्थना की कि वो मुझे शक्ति दे ताकि मैं खुद को संभाल सकूँ| सच कहूँ तो ये दर्द भौजी से जुदा होने के मुक़ाबले कम था क्योंकि मैं भौजी से प्यार करता था पर करुणा से केवल मेरा मोह का रिश्ता था|

रात नौ बजे मैं घर पहुँचा और तबतक हमारी बातें nonstop चलती रहीं, खाना खा कर मैंने कल के लिए अपने कपडे पैक किये| थकावट थी इसलिए मैं सो गया, अगला दिन पर आज सुबह उठने का जैसे मन ही नहीं था| हमारी बस रात की थी और दिनभर मैं पिताजी के साथ काम में लगा रहा, शाम 7 बजे मैं अपने घर से करुणा के घर के लिए निकला| मैं तो समय से पहुँचा पर वो तीनों लेट-लतीफ़ थे, मैं जानकार उनके घर नहीं गया और बाहर पार्क में बैठा रहा| जब वो सब रेडी हुए तो मैंने ola बुलवाई, 5 मिनट में एक SUV आ गई और उधर वो तीनो अपना सामान ले कर नीचे आ गए| आज मैं पहलीबार करुणा के जीजा से मिला और माँ कसम क्या आदमी था वो! मरा हुआ सा शरीर, गाल चपटे, मोटी सी मूछ, सादे से कपडे पहने हुए! मैं ड्राइवर के साथ सामान पीछे रखवा रहा था जब उसने आ कर मुझसे मुस्कुरा कर बात की;

करुणा का जीजा: हेल्लो मैं करुणा का जीजा!

उसकी औरतों जैसी मरी हुई आवाज सुन कर मेरी हँसी छूट गई लेकिन अगर हँसता तो उस बेचारे की किरकिरी हो जाती इसलिए मैंने बड़ी मुश्किल से अपनी हँसी दबाई, पर करुणा मेरी हँसी ताड़ गई थी! उसकी हालत भी मेरी जैसी थी, वो भी बड़ी मुश्किल से अपनी हँसी छुपाये खड़ी थी| खैर हम चले और समय से कश्मीरी गेट बस स्टैंड पहुँच गए, बस लग चुकी थी हम सारा सामान ले कर चढ़ गए| करुणा की दीदी और जीजा को डबल स्लीपर मिला था तथा करुणा को सिंगल स्लीपर मिला था| मैंने अपना बैग करुणा के स्लीपर बर्थ पर रखा तो उसकी दीदी ने मुझसे सवाल किया;

करुणा की दीदी: मानु आपकी बर्थ कहाँ है?

मैं: दीदी मैंने अपने लिए चेयर बुक की थी!

मेरा जवाब सुन करुणा की दीदी ने बड़ी चुभती हुई बात कही;

करुणा की दीदी: स्लीपर बर्थ और चेयर में 100/- रुपये का ही अंतर् था न? तो 100/- रुपये मेरे से ले लेते!

ये सुन कर मुझे गुस्सा तो बहुत आया पर मैं किसी तरह सह गया|

करुणा: मिट्टू को रात में जागते हुए travel करना अच्छा लगते!

करुणा मेरा बचाव करते हुए बोली|

करुणा की दीदी: क्यों? सामान की रखवाली करने के लिए?! आप जाग रहे हो तो हमारे सामना का भी ध्यान रखना!

उन्होंने मजाक करते हुए कहा पर ये मजाक हम दोनों (मुझे और करुणा) को जरा भी पसंद नहीं आया, इसलिए करुणा बीच में बोल पड़ी;

करुणा: मिट्टू poet है, वो रात में जाग कर roads और colorful lights देखते!

करुणा की बात सुन कर उसकी दीदी को हैरानी हुई और शायद कहीं न कहीं उन्हें ये बात लग चुकी थी!

बस में ज्यादा यात्री नहीं थे, मैं अपनी कुर्सी पर बैठ गया और इतने में करुणा एंजेल को ले कर मेरे पास आ गई| उसकी दीदी और जीजा अपनी बर्थ पर पर्दा कर के लेट चुके थे, इधर मुझे देखते ही एंजेल ने अपने दोनों हाथ मेरी गोद में आने को खोल दिए| मैंने एंजेल को अपनी गोद में लिया और करुणा को अपनी बगल वाली खाली सीट पर बैठने को कहा| अभी बस में कोई सोया नहीं था इसलिए हम साथ बैठ सकते थे, बस चल पड़ी और हम दोनों बातें करने लगे| मैंने करुणा से पुछा की क्या उसने वहाँ अपने रहने के लिए कोई हॉस्टल ढूँढा तो उसने कहा की उसे कुछ नहीं मिला| फिर करुणा ने अपना फ़ोन निकाला और उसमें headphones लगा कर एक हिस्सा मुझे दिया, इस तरह फ़ोन में गाने सुनते-सुनते समय बीतने लगा| बस के अंदर की लाइटें बंद हो चुकी थीं, इधर करुणा डरी हुई थी और बहुत भावुक हो चुकी थी इसलिए उसने अपना सर मेरे दाएँ कँधे पर टिका दिया| मैंने अपने दोनों हाथों से एंजेल को अपनी छाती से चिपका रखा था और गाना सुनते हुए मैं भी अपने दिल में उठ रहे करुणा की जुदाई के दर्द को दबाने की नाकाम कोशिश कर रहा था| इतने में करुणा की दीदी पीछे से आईं और हम दोनों को ऐसे बैठे देख स्तब्ध रह गईं! उन्होंने कुछ नहीं कहा बस मेरे बाएँ कँधे पर हाथ रख एंजेल को माँगा, उनके मुझे छूने से मुझे थोड़ा सा झटका लगा जिस कारन करुणा का सर मेरे कँधे से हिला और उसने पीछे पलट कर अपनी दीदी को देखा| बस में अँधेरा था तो हम तीनों एक दूसरे के हाव-भाव नहीं देख पाए थे| करुणा की दीदी एंजेल को ले कर चलीं गईं और तब मैंने करुणा से कहा;

मैं: Dear रात बहुत हो रही है, आप सो जाओ!

करुणा जान गई थी की मैं ये सब सिर्फ उसकी बहन की वजह से कह रहा हूँ, क्योंकि इस तरह हम दोनों का अकेला बैठना उनके मन में सवाल पैदा कर देता पर करुणा को इसकी रत्ती भर चिंता नहीं थी, वो तुनकते हुए बोली;

करुणा: आप टेंशन मत लो, कल के बाद पता नहीं हम कब मिलते?! ये रात हम साथ बैठते!

ये कह करुणा मेरे कँधे पर सर रख कर फिर से लेट गई| रात बारह बजे मैंने अपना दायाँ कंधा हिला कर उसे उठाया और उससे रिक्वेस्ट की कि वो अपनी बर्थ पर जा कर सो जाए वरना उसकी दीदी हमारे बारे में गन्दा सोचेंगी! बेमन से करुणा उठी और अपनी बर्थ पर जा कर पर्दा कर सो गई!

[color=rgb(51,]जारी रहेगा भाग 7(4) में...[/color]
 

[color=rgb(65,]इक्कीसवाँ अध्याय: कोशिश नई शुरुआत की[/color]
[color=rgb(251,]भाग -7 (4)[/color]

[color=rgb(44,]अब तक आपने पढ़ा:[/color]

करुणा: आप टेंशन मत लो, कल के बाद पता नहीं हम कब मिलते?! ये रात हम साथ बैठते!

ये कह करुणा मेरे कँधे पर सर रख कर फिर से लेट गई| रात बारह बजे मैंने अपना दायाँ कंधा हिला कर उसे उठाया और उससे रिक्वेस्ट की कि वो अपनी बर्थ पर जा कर सो जाए वरना उसकी दीदी हमारे बारे में गन्दा सोचेंगी! बेमन से करुणा उठी और अपनी बर्थ पर जा कर पर्दा कर सो गई!

[color=rgb(255,]अब आगे:[/color]

खिड़की से बाहर झांकते हुए मैं बोर हो रहा था तो मैंने सोचा की क्यों न गाने सुने जाएँ, पर मेरे हेडफोन्स मेरे बैग में थे इसलिए मैं अपने हेडफोन्स लेने के लिए उठा| मेरा बैग करुणा की बर्थ पर था तो मैं उसकी बर्थ पर पहुँचा, मैंने देखा की करुणा औंधे मुँह लेटी हुई है, उसकी बर्थ का पर्दा हवा से उड़ रहा था और सामने की बर्थ पर सोने वाला आदमी करुणा की कसी हुई जीन्स के कारन बने उभार को देख सकता था| मैंने परदे को ठीक किया और उसे बर्थ के कोने में फँसा दिया, अब मुझे हेडफोन्स निकालने थे तो जैसे ही मैंने अपने बैग की तरफ हाथ बढ़ाया बस ने एक जोरदार झटका खाया| झटका खाने से करुणा की आँख खुल गई और उसने गर्दन घुमा कर मुझे अपनी नजरों के सामने खड़ा पाया| वो उठ कर बैठ गई और मुझसे बोली;

करुणा: मैं नहीं सो रे इदर, बस इतना हिल रे की मैं नीचे गिर जाते! ये बस वाला बस चला रे की हवाई जहाज उड़ा रे?! आप सो जाओ, तबतक मैं सीट पर बैठते!

करुणा के चेहरे पर चिढ थी क्योंकि बस के इतने झटके लग रहे थे और वो बेचारी सो नहीं पा रही थी| तभी बस ने एक हॉल्ट लिया और कंडक्टर ने आ कर सब को उठाते हुए कहा की बस यहाँ 10 मिनट रुकेगी, जिसको बाथरूम जाना है वो चला जाए| कंडक्टर की आवाज सुन कर भी करुणा की दीदी की नींद नहीं खुली थी तो मैंने करुणा से उन्हें जगाने को कहा| करुणा ने मलयालम में उनसे कुछ किड़बीड़-किड़बीड़ की और वो दोनों उठ गए, करुणा की दीदी को जाना था बाथरूम और यहाँ कोई सोचालय बना नहीं था| मैं बस से उतरा और कंडक्टर से बाथरूम के बारे में पुछा, वो बोला की कोई निर्धारित जगह नहीं है जहाँ औरतें जा रहीं हैं वहीं भेज दो| मैंने करुणा के जीजा से यही बात कही तो वो अपनी बीवी के साथ खुद भी चल दिया| इधर मैं वापस अपनी सीट पर बैठ गया, करुणा भी आ कर मेरे बगल में बैठ गई और मुझसे बोली की मैं थोड़ी देर सो लूँ, मैंने उसे मना करते हुए कहा;

मैं: इस सफर में नींद कुछ इस कदर खो गई,

हम न सो सके रात थक कर सो गई!

मैंने अभी ये लाइन बोली ही थी की करुणा की दीदी और जीजा ने भी ये लाइन सुन ली| करुणा तो मेरी शायरी समझ न पाई पर उसकी दीदी मेरी शायरी का दर्द भाँप गई! खैर वो दोनों अपनी बर्थ पर चढ़ कर, पर्दा कर के सो गए और हम दोनों ऐसे ही बैठे रहे| जब बस चली तो करुणा मेरे कँधे पर सर रख कर सो गई और मैं गाना सुनते हुए जागता रहा| सुबह 5 बजे बस ने हमें श्री विजयनगर उतारा, मैंने वहाँ से एक बड़ा ऑटो किया और उससे किसी अच्छे होटल ले जाने को कहा| सामान ज्यादा होने की वजह से करुणा के जीजा को पीछे लटक कर बैठना पड़ा और हम चार ड्राइवर के पीछे बैठ गए| ऑटो वाला हमें एक अच्छे और सस्ते होटल में लाया, वहाँ रिसेप्शन पर पहुँच मैंने रूम दिखाने को बोला और दोनों रूम देख कर आया|

Receptionist ने हमसे सबके ID माँगे, हम दोनों (मैंने और करुणा) ने अपने-अपने ID दे दिए, पर उसकी दीदी और जीजा अपनी ID नहीं लाये थे| उसकी दीदी ने बजाए अपनी गलती मानने के बेचारी करुणा की ही गलती निकाली;

करुणा की दीदी: तू बता नहीं सकती थी की ID चाहिए होगी?

करुणा: मेरे को लगा तू अपना ID साथ लाते!

करुणा अपना बचाव करते हुए बोली| अब मुझे बात संभालनी थी वरना दोनों लड़ पड़ते;

मैं: Ok! हम दोनो की ID से रूम बुक कर लेते हैं|

पर Receptionist थोड़ा चूतिया था तो वो बोलने लगा;

Receptionist: साहब ID तो सबकी चाहिए होगी!

मैं: देख यार ये (करुणा) मेरी दोस्त है और ये इनके दीदी और जीजा जी हैं| इनकी यहाँ हॉस्पिटल में जॉब लगी है और हम सब उसी के लिए आये हैं| आपको दो कमरे बुक करने हैं, एक मेरी ID से जिसमें मेरे साथ भाईसाहब (करुणा का जीजा) रहेंगे और दूसरा इनके (करुणा) के नाम से बुक कर दे!

मैंने receptionist को बात समझाई तो वो समझ गया|

अब करुणा की ID थी केरला की, इतने साल दिल्ली में रह कर उसकी बहन ने उसका कोई कागज नहीं बनवाया था, receptionist ने इसपर सवाल किया तो मैंने उसे बता दिया की वो यहाँ गाँव से आई है| जब तक उसने हमारी ID स्कैन की तब तक हम दोनों ने होटल के रजिस्टर में हम सब की डिटेल भरी| Receptionist ने हमारी सारी डिटेल verify की और बोला;

Receptionist: साहब इसमें आप दोनों का relation तो भर दीजिये?

एक तो मैं रात भर सोया नहीं था ऊपर से उसका यूँ गलती निकालने से मैं चिढ गया और बोला;

मैं: काहे का relation चाहिए? दो अलग-अलग कमरे हैं न?! दिक्कत क्या है?

इतना कह कर मैंने उसे गुस्से से देखा, तभी उसका साथी आ गया और उससे बोला; 'क्यों तंग कर रहा साहब को?' उसने उसे झाड़ा और हमारा बैग उठाते हुए मुझसे बोला; 'आप चलो साहब मैं आपको आपका कमरा दिखाता हूँ|' उसने हमें दो अगल-बगल वाले कमरे दिए, मुझे आई थी नींद तो मैं तो सामान रखते ही लेट गया| 5 मिनट बाद करुणा का जीजा और एंजेल कमरे में आये, एंजेल बीच में लेट गई और उसका बाप बगल में लेट गया| मेरी झपकी अभी लगी ही थी की करुणा के जीजा का फ़ोन बजने लगा, गुस्सा तो बहुत आया पर जैसे-तैसे मैं खामोश रहा और सोने की कोशिश करने लग| मुश्किल से आधा घंटा सोया हूँगा की किसी ने दरवाजा खटखटाया, मैंने खुद उठ कर दरवाजा खोला तो देखा बाहर करुणा खड़ी थी और उसकी आँखों में आँसूँ थे|

करुणा: मेरा मामा का death हो गए!

करुणा रोते हुए बोली| इतने में पीछे से उसकी दीदी आ गई और उन्होंने आ कर अपने पति को ये दुखद खबर सुनाई| मैंने करुणा से उसके मामा की death के बारे में पुछा तो वो बोली की रात को उनका एक्सीडेंट हो गया और कुछ देर पहले उनकी मृत्यु हो गई| करुणा की दीदी ने कुछ फ़ोन मिलाने शुरू किये और वो अपने कमरे में चली गईं, इधर उनका पति उठा और एंजेल को गोदी में ले कर उसी रूम में चला गया| बच गए मैं और करुणा, तो करुणा ने मुझे अपने मामा के बारे में बताना शुरू किया;

करुणा: मिट्टू...मेरा मामा ...हम को बहुत help करते.... पापा का death के बाद वो मेरा स्कूल और दीदी का स्कूल...सब...सब देखते.... हमसे हॉस्टल मिलने आते....!

करुणा ने रोते हुए कहा, उसका गाला रोने से इस कदर भारी था की वो ज्यादा बोल नहीं पा रही थी|

मैं: I'm so sorry for your loss dear! आप और दीदी जाओगे..... last rites के लिए? मैं...में flights देखता हूँ|

इतना कहते हुए मैंने flight देखना शुरू किया, तभी करुणा की दीदी ने आवाज दे कर हमें बुलाया|

करुणा के दीदी वाले कमरे में आ कर मैंने देखा की कमरे में बिछे बेड के एक सिरहाने पर करुणा की दीदी बैठीं थीं और दूसरे किनारे पर उनका पति एंजेल को गोद में लिए बैठा था| करुणा की दीदी की आँखों में आँसूँ तो थे पर करुणा के मुक़ाबले कम थे| करुणा अपनी दीदी के सामने बैठ गई और मैं कुर्सी पर बैठ गया| तब दीदी ने भावुक होते हुए अपने मामा जी के बारे में बताया| वो last rites के लिए जाना चाहतीं थीं पर करुणा की joining भी जर्रूरी थी|

करुणा की दीदी: क्या टाइमिंग है मामा जी की death का, आज इसकी (करुणा की) joining है और आज ही उनका burial!

मुझे उनकी आवाज में अपनी बहन के लिए चिंता नहीं बल्कि कोफ़्त लगी|

करुणा का जीजा: Joining के बाद, हम फ्लाइट से चलते हैं!

इधर करुणा के जीजा के मन में हवाई यात्रा करने की आग लगी थी!

मैं: दीदी यहाँ से जयपुर और फिर वहाँ से आपको फ्लाइट मिलेगी, आपको टाइम लगेगा ऐसे में आपको फ़ोन कर के wait करने को कहना होगा|

मेरी बात सुन कर करुणा की दीदी एकदम से बोलीं;

करुणा की दीदी: कोई wait नहीं करेगा! छोडो वो सब, तैयार हो जाओ इसका (करुणा का) joining करवाते हैं|

इतना कह कर वो उठीं, उनकी आवाज में अपनी बहन के लिए चिंता नहीं बल्कि चिढ थी! खैर मैं उठ कर अपने कमरे में आया और नहाने चला गया| 15 मिनट में मैं तो तैयार हो गया पर ये परिवार इतना सुस्त और लेट लतीफ़ था की मैंने भी हार मान ली| करुणा ने एंजेल को तैयार कर दिया था तो मैंने उसी के साथ खेलना शुरू कर दिया| एंजेल के हाथ में एक पेन था और वो उस पेन से अखबार में एक लाइन खींचती और ख़ुशी से कूदने लगती| वो इस लाइन खींचने को लिखना मान रही थी और इस छोटी सी ख़ुशी से नाचने लगती थी! मैंने एंजेल को अपने पास बुलाया और उसका हाथ पकड़ कर उसका नाम लिखवाया, अब उसे बताऊँ कैसे की क्या लिखा है? तो मैंने उसे इशारे से समझाना शुरू किया की ये उसका नाम है और ये उसने ही लिखा है| पता नहीं उसे समझ आया या नहीं पर वो ख़ुशी से चहकने लगी, उसके चेहरे पर आई वो बेबाक मुस्कान मुझे आज फिर नेहा की याद दिला रही थी| मैंने उसे अपने पास बुलाया और नेहा समझ कर उसे अपने सीने से लगा लिया| आँखें बंद किये हुए मैं उसे अपनी छाती से चिपकाए नेहा की याद में खो गया| 5 मिनट बाद करुणा आ गई, हमेशा की तरह सादे से कपडे पहने हुए और मुझे एंजेल को गले लगाए देख उसे valentine's day वाला दिन याद आ गया|

मुझे करुणा की मौजूदगी का एहसास हुआ तो मैंने एंजेल को अपने आलिंगन से आजाद किया, एंजेल ने करुणा को वो शब्द दिखाया जो मैंने उसका हाथ पकड़ कर लिखवाया था| वो शब्द देख करुणा मेरी ओर देखने लगी और एंजेल से मलयालम में कुछ कहा, जिसे सुन एंजेल शर्मा गई| अब चूँकि मैं कुछ समझ नहीं पाया था तो करुणा ने अपनी कही बात का हिंदी अनुवाद करते हुए कहा;

करुणा: मैं बोला की एंजेल को अब लिखना आ गए तो हम उसे स्कूल में डाल देते!

ये सुन मैं मुस्कुरा दिया|

मैंने करुणा से उसके सारे documents के बारे में पुछा तो उसने बताया की सब तैयार हैं| करुणा का मन मामा जी की मृत्यु और इस नई जगह में adjust करने के नाम से डरा हुआ था और मैं बस उसे हिम्मत दिए जा रहा था ताकि वो हार न मान जाए| कुछ देर में करुणा की दीदी और जीजा, दोनों तैयार हो कर आ गए| कमरा लॉक करते समय एंजेल बाहर की ओर भागी, वो कहीं सीढ़ियों से गिर न जाए इस लिए मैं उसके पीछे दौड़ा| वो सीढ़ियों तक ही पहुँची थी की मैंने उसे पीछे से पकड़ कर गोद में उठा लिया, करुणा की दीदी ने मुझे ऐसा करते हुए देखा और अपने पति से बोली की वो एंजेल को मुझसे ले ले| खैर हम नीचे आये और मैंने receptionist से हॉस्पिटल के बारे में पुछा| हॉस्पिटल ज्यादा दूर नहीं था, यही कोई 5 मिनट दूर तो हम पैदल ही चल दिए| करुणा, उसकी दीदी, उसका जीजा और एंजेल आगे-आगे थे तथा मैं पीछे-पीछे आराम से चल रहा था| रास्ते में एक मंदिर पड़ा तो मैं वहाँ खड़ा हो गया, मैंने सर झुकाये और भगवान से प्रार्थना की कि करुणा की joining हो जाए तथा उसके रहने की व्यव्य्स्था आराम से हो जाए| करुणा और उसका परिवार मुझसे करीब 10 कदम आगे था और वो रुक कर मुझे प्रार्थना करते हुए देख रहे थे| मेरी प्रार्थना खत्म हुई तो करुणा की दीदी और उसका जीजा आगे-आगे चलने लगे, तथा हम दोनों पीछे चलने लगे|

हॉस्पिटल का गेट आया तो करुणा का चेहरा डर से पीला हो चूका था, मैंने उसका मन हल्का करने को कहा;

मैं: Dear अब न आप अपना दायाँ, मतलब right पैर first अंदर रखो|

मैंने मजाक करते हुए कहा तो करुणा की दीदी को हैरानी हुई और वो बीच में बोल पड़ीं;

करुणा की दीदी: ये तो शादी के बाद गृह प्रवेश में होता है!

ये सुन कर करुणा और मैं जोर से हँस पड़े| तब जा कर करुणा की दीदी को मेरा मजाक समझ में आया और वो भी हँस पड़ीं| वो जान गईं की उनकी बहन (करुणा) डरी हुई है इसलिए उन्होंने करुणा को यहाँ रहने के तौर-तरीके सीखने शरू कर दिए जो की सब मलयालम भाषा में थे|

खैर हम हॉस्पिटल में घुसे तो पता चला की यहाँ पर मरीज नहीं बल्कि कागजी कारवाही की जाती है! मैंने आगे बढ़ते हुए दो-चार लोगों से पुछा की joining के लिए किस से मिलना होगा| पूछते-पूछते हम एक कमरे के बाहर पहुँचे, मैंने करुणा को अंदर जाने को कहा तो वो बेचारी डरी-सहमी सी अंदर घुसी| इधर उसकी बहन हाथ बाँधे बाहर खड़ी थी, मुझे लगा था की वो करुणा के साथ अंदर जायेंगी इसीलिए तो मैं अंदर नहीं गया था पर वो तो दरवाजे पर खड़ी अंदर झाँक रहीं थी| उधर उनका पति एंजेल के साथ हॉस्पिटल के अंदर खेल रहा था| मैंने सोचा क्या गजब परिवार है, किसी को भी करुणा की कुछ पड़ी ही नहीं!

वहीं कमरे के भीतर साहब किसी से फ़ोन पर व्यस्त थे और करुणा सर झुकाये खड़ी थी, दस मिनट तक उन साहब ने जब करुणा पर कोई ध्यान नहीं दिया तो करुणा की दीदी ने मुझे अंदर जाने का आग्रह किया| मैंने दरवाजे पर knock किया और अंदर आने की इजाजत माँगी, मेरे knock करने से साहब का ध्यान मुझ पर आया और उन्होंने मुझे अंदर आने की इजाजत दी| मैंने उन्हें बाकायदा गुड मॉर्निंग सर कहा, अपना परिचय दिया और फिर उन्हें करुणा के बारे में बताया;

मैं: सर हम इनकी (करुणा की) joining के लिए आये हैं|

ये कहते हुए मैंने उस सरकारी आर्डर की ओरिजिनल उन्हें दिखाई|

साहब: अपने documents दीजिये!

करुणा ने अपने सारे documents निकाल कर मुझे दिए और मैंने उन्हें साहब को दिखाया|

साहब: मूल निवास पात्र, affidavit, police verification, medical certificate कहाँ है?

ये सुन कर मैं आँखें फाडे करुणा को देखने लगा क्योंकि मैं जानता था की करुणा के पास इनमें से एक भी document नहीं है! वहीं करुणा की हालत इतनी पतली थी की बेचारी लगभग रोने वाली थी| हम दोनों की सफ़ेद पड़ी शक़्लें देख कर साहब मुझसे बोले;

साहब: आर्डर ठीक से पढ़ा नहीं था?

ये कहते हुए उन्होंने अंतिम पन्ने में लिखे सभी point मुझे पढ़ने को कहा|

मैं: माफ़ कीजियेगा सर पर मुझे इस बारे में नहीं पता था!

साहब: बिना इन कागज के joining नहीं मिल सकती! जा कर पहले ये सब documents लाओ और हाँ याद रहे की head office में जा कर एक application दे देना की ये कागज बनवाने के लिए समय चाहिए! वरना वो लोग इनका (करुणा का) नाम काट देंगे!

उनकी दो टूक बात सुन कर ये तो साफ़ हो गया था की आज तो जोइनिंग मिलने से रही| मैंने सोचा की एक बार कोशिश करूँ की जयपुर की जगह यहाँ पर ही application देने से काम चल जाए!

मैं: सर वो application यहाँ submit नहीं हो सकती?

मैंने थोड़ी चालाकी करने की सोची पर उन्होंने साफ़ मना कर दिया की यहाँ कोई application submit नहीं हो सकती|

सर झुकाये हुए हम दोनों कमरे से बाहर निकले तो देखा न वहाँ करुणा की दीदी है और न ही उनका पति!

मैं: कहाँ गए ये लोग?

मैंने चिढ़ते हुए पुछा तो करुणा ने अपनी दीदी को फ़ोन कर के मलयालम में पुछा;

करुणा: चेची एविडे? (दीदी, कहाँ हो?)

करुणा ने फ़ोन काटा और मुझसे चिढ़ते हुए बोली;

करुणा: वो बाहर दूकान पर चाय पी रे!

ये सुन कर मुझे बहुत गुस्सा आया और मैंने चिढ़ते हुए पुछा;

मैं: ये लोग यहाँ आपकी joining करवाने आये हैं या घूमने?

करुणा: ये लोग तो vacation पे आया!

करुणा ने सर झुकाते हुए कहा| मैं समझ गया की उन दोनों को करुणा की कुछ नहीं पड़ी, उनकी बला से इसे नौकरी मिले या न मिले उन्हें तो बस अपना घूमना है! मैंने करुणा से और कुछ नहीं कहा, हम दोनों हॉस्पिटल से निकल कर कुछ दूर पर बनी एक दूकान पर पहुँचे| वहाँ पहुँच कर देखा तो वो दोनों मियाँ-बीवी मजे से चाय पी रहे हैं! ये देख कर मुझे बहुत गुस्सा आया, एकबार को तो मन किया की अच्छे से सुना दूँ पर करुणा का लिहाज कर के खामोश रहा| इधर करुणा की दीदी को यहाँ करुणा की joining करवाने की जगह चाय पीने की सफाई देनी थी इसलिए वो खुद मुझसे बोलीं;

करुणा की दीदी: आप तो यहाँ हो ही करुणा की joining करवाने के लिए इसलिए मैंने सोचा की तब तक चाय पी लेते हैं!

उन्होंने नकली मुस्कान लिए हुए कहा| फिर उनकी नजर करुणा पर पड़ी जिसका मुँह उतरा हुआ था, उन्होंने उससे मलयालम में पुछा की उसे joining मिली या नहीं तो करुणा ने न में सर हिलाया और बैग से वो आर्डर निकाल कर उन्हें देते हुए बोली;

करुणा: इसमें लास्ट में जो documents लिखा, उसका बिना joining नहीं मिलते!

करुणा की दीदी को हिंदी इतनी अच्छी नहीं आती थी तो उन्होंने मुझे वो कागज पढ़ने को दिया| मैंने उसमें लिखे सभी documents उन्हें पढ़ कर सुनाये, ये सुनते ही वो करुणा पर बरस पड़ीं;

करुणा की दीदी: तुझे हिंदी पढ़ना आता है न? ये दिखाई नहीं दिया?

ये सुन करुणा का गुस्सा भी उन पर फूटा;

करुणा: Order तू receive करते, तू नहीं पढ़ सकता था?

दोनों बहने आपस में लड़ पड़तीं इसलिए मैंने फिर बीच बचाव किया और बोला;

मैं: दीदी जो हो गया सो हो गया! अभी साहब ने कहा है की जयपुर जा कर ऑफिस में एक application दो की जबतक हम ये documents बनवाते हैं तब तक के लिए joining रोक दी जाए!

मेरी बात सुन कर दोनों बहने खामोश हो गईं और दिमाग से काम लेने लगीं, सबसे पहले तो उन documents को बनाने का फैसला हुआ;

करुणा की दीदी: ये मूल ...क्या...होता है?

उनसे मूल निवास पत्र नहीं बोला गया|

मैं: Domicile certificate!

करुणा की दीदी: ये तो अम्मा को गाँव से बनवाना होगा! मैं उनको बोल दूँगी की वो इसका domicile certificate बनवा दें| अब कौन सा document बचा?

मैं: Medical certificate.

करुणा की दीदी: वो तो ये (करुणा) अपने हॉस्पिटल से बनवा लेगी|

मैं: Affidavit.

करुणा की दीदी: वो तो आराम से बन जायेगा|

मैं: Police verification.

करुणा की दीदी: वो मैं चर्च में पूछती हूँ, कोई न कोई जानता होगा|

Documents बनाने का फैसला हुआ तो करुणा की दीदी ने थोड़ा खाना-पूरी करने के लिए मुझसे चाय पूछी तो मैंने नकली मुस्कान के साथ मना कर दिया| इतने देर से जब बात हो रही थी तब तो चाय पूछी नहीं और अब जब बात खत्म हुई तब इन्हीं चाय पिलाने का मन हुआ?!

उधर करुणा के जीजा के मन में जूते खरीदने की खाज हुई और उसने आ आकर अपनी पत्नी से पैसे माँगे! करुणा की दीदी ने बजाए उसे पैसे देने के, हम सब को साथ ले कर उस दुकान में घुस गईं| करुणा के जीजा को चाहिए थे मेरे जैसे जूते जो उसे वहाँ मिले नहीं, पर फिर भी उसने जबरदस्ती अपनी बीवी के पासी खर्च करवा मारे और दूसरे डिज़ाइन के जूते ले लिए! इधर मैं और करुणा हैरान थे की ये सब हो क्या रहा है? यहाँ साला एक इंसान की नौकरी दाँव पर है और इन ससुरों को घूमने की पड़ी है!

खैर जब दोनों मियाँ-बीवी का घूमना हो गया तो दोपहर को हम होटल लौटे, सुबह से अभी तक मैंने और करुणा ने कुछ नहीं खाया था| वापस आ कर मैंने सोचा की खाना आर्डर करता हूँ पर ये लोग तो अपना खाना पैक कर के लाये थे! दही और चावल को मिला कर कुछ बनाया गया था, साथ में सूखी fried मछली और पापड था! ये सब खाना उन्होंने केले के अलग-अलग पत्तों में पैक किया था, करुणा के जीजा ने पूरे पलंग पर अखबर बिछाया और हम चारों एक-एक कोने पर बैठ गए| फिर करुणा ने मेरे आगे केले के पत्तल में पैक वो खाना मेरे आगे रखा, वैसा ही पत्तल उसने सब को परोसा| पलंग के बीच में एक पत्तल था जिसमें सूखी fried मछली थी और दूसरे पत्तल में पप्पड़ का चूरा रखा हुआ था| करुणा की दीदी ने मुझे सूखी मछली देनी चाही तो मैंने उन्हें मना करते हुए कहा की मैं मछली नहीं खाता|

करुणा: मिट्टू को fish का smell अच्छा नहीं लगते!

करुणा अचानक से बीच में बोली जिसे सुन उसकी बहन को थोड़ा अजीब लगा, एक तो करुणा मुझे मिट्टू कह कर बुलाती थी और दूसरा करुणा मेरे बारे में कुछ ज्यादा ही जानती थी, पर हम दोनों (मैं और करुणा) के लिए समान्य बात थी|

करुणा की दीदी: मानु इसमें smell नहीं होती!

उन्होंने कोशिश की कि मैं मछली खा लूँ पर मुझे उस मछली कि महक नाक में चुभने लगी थी इसलिए मैंने दूसरा बहाना बनाया;

मैं: दीदी actually इसमें काटें होते हैं....

मैं आगे कुछ बोलता उससे पहले ही करुणा ने मेरी बात संभाली और बोली;

करुणा: मिट्टू को fish खाना नहीं आते, वो bones को अलग कर के नहीं खा पते!

ये सुन कर सारे हँस पड़े|

करुणा की दीदी: मानु आपको तो पता होगा की हमारा गाँव कितना दूर है, वहाँ ट्रैन से जाने में ही 3 दिन लगते हैं तो ऐसे में हम लोग अपने घर से ये खाना ले कर जाते हैं| ये खाना कैसा भी मौसम हो खराब नहीं होता और आसानी से digest भी हो जाता है|

उन्होंने मुझे ये मलयाली तरीका कुछ ऐसे समझाया जैसे की किसी बच्चे को आप कोई नई चीज सीखते हो!

अब मैंने जो चावल और दही का मिश्रण खाया वो मेरे लिए ऐसा था जैसे मैंने दलिया खाया हो, स्वाद की बात करें तो उसमें नमक था, हरी मिर्च थी और अदरक का कुछ स्वाद था! सुबह से कुछ खाया नहीं था तो ऐसे में ये खाना खा कर मैंने पेट भर लिया| खाना खाते समय करुणा ने मुझसे स्वाद के बारे में कहा तो मैंने झूठी तारीफ कर दी, बाद में पता चला की ये खाना उसके जीजा ने बनाया था| जैसे ही मैंने (करुणा के जीजा को) उसे 'thank you' कहा, उसने मुस्कुरा कर 'welcome' कहा! उसकी वो औरतों वाली दबी हुई सी आवाज सुन कर मेरी हँसी मेरे मुँह तक पहुँच गई, मैंने आँखें चुराते हुए करुणा को देखा तो उसका भी वही हाल था जो मेरा था! ये हमारी की सबसे ख़ास बात थी, दोनों ही जानते थे की कौन सी बात सुन आकर किसे हँसी आती है!

खाना खा कर मैंने ही जयपुर की बात छेड़ी तो करुणा की दीदी बोलीं की वो, उनका पति और एंजेल, दिल्ली वापस जायेंगे! जयपुर जाने की जिम्मेदारी उन्होंने मुझे दी| मैंने अपना समान समेटा और करुणा ने अपना सामान समेटा| इतने में एंजेल को भूख लगी, अब उसे चाहिए था दूध जो हमें होटल में मिला नहीं| करुणा की दीदी ने करुणा से कहा की वो बाहर कहीं से दूध लाये, ये बात मेरे बिलकुल पल्ले नहीं पड़ी! खैर मैं वहाँ कौन सा रुकना चाहता था, सो मैं करुणा के साथ निकल लिया| हम दोनों पूछते-पूछते आस-पास देखने लगे पर हमें कहीं दूध नहीं मिला, ऊपर से वहाँ हर कोई बस हम दोनों को ही ताड़े जा रहा था| ऐसा लगता था की वहाँ किसी ने एक लड़के और एक लड़की को घुमते कभी देखा ही न हो! इतने में करुणा ने कोई departmental store देखा और मुझे वहाँ चलने को कहा| मैं उसके साथ अंदर घुसा तो करुणा ने मुझसे पुछा की ladies section कहाँ है? मैं भोयें सिकोड़ कर उसे हैरत भरी नजरों से देखने लगा की आखिर वो कहना क्या चाहती है? यहाँ हम दूध लेने आये हैं की ladies section ढूँढने और ये ladies section क्या होता है? मैंने आजतक कभी departmental store में shopping नहीं की थी तो मैं नहीं जानता था की वहाँ कोई ladies section भी होता है! इधर करुणा ने जब भोयें सिकोड़े हुए मुझे हैरत में देखा तो वो मेरे कान में खुसफुसाई;

करुणा: मेरा periods आज शुरू हुआ, इसलिए मुझे pads चाहिए!

ये सुन कर मेरी आँखें ऐसे फ़ैल गईं जैसे मैंने कुछ अनोखा सुन लिया हो! दरअसल मुझे करुणा से इन बातों की कभी कोई उम्मीद नहीं थी, हमारी बातें sex और intimate relationship के आस-पास नहीं होतीं थीं!

उसके periods के बारे में सुन मैं ऐसे घबरा गया जैसे की कोई बहुत बड़ी medical emergency हो! मैंने तेजी से departmental store में चक्कर लगाना शुरू किया पर मुझे न तो ladies section मिला और न ही कहीं pads पड़े हुए मिले! मैंने एक 30-35 साल की एक महिला को देखा तो मैंने उनसे जा कर बात की, अब उनसे ये तो कह नहीं सकता था की यहाँ pads कहाँ हैं वरना पिटाई होती अलग से तो मैंने उनसे बस इतना कहा की; "Excuse me, मेरी फ्रेंड को आपसे कुछ पूछना है?!" इतना कह कर मैंने करुणा को उनसे pads के बारे में पूछने का इशारा किया और मैं उन दोनों से 5 कदम दूर आ गया| करुणा ने उनसे पुछा तो उस महिला ने बताया की यहाँ pads नहीं मिलेंगे वो किसी chemist की दूकान पर पूछे| करुणा ने मुझे चलने का इशारा किया और हम फ़ौरन एक chemist के पास पहुँचे, मैंने करुणा को खुद खरीदने को कहा और मैं दूर खड़ा रहा| 5 सेकंड में करुणा खाली हाथ लौट आई, मैंने उससे पुछा की क्या हुआ तो वो बोली; "जो brand मुझे चाहिए था वो इदर नहीं ता!" ये सुन कर बेवकूफी में मैं बोला; "इसमें भी कोई brand आता है? सब तो एक ही होते हैं!" ये बोलने के बाद मुझे एहसास हुआ की मैं क्या बोल गया, अब करुणा मेरे ऊपर पक्का चिल्लायेगी पर हुआ उसका उल्टा; "मिट्टू इसमें बहुत types होते! मैं दूसरा brand try कर रे तो मेरे को itch होते!" ये सुन कर तो मेरा पूरा चेहरा लाल हो गया! मैं शर्म से जमीन में गढ़ने लगा, मैंने फ़ौरन करुणा से नजरें ऐसी चुराई जैसे मैंने कुछ सुना ही न हो! मेरी हालत देख कर करुणा खूब जोर से हँसी और मैं अपनी आँखें बड़ी कर के उसे हैरानी से देखने लगा|

इतने में उसकी दीदी का फ़ोन आया और उन्होंने हमें वापस बुलाया, हम वापस पहुँचे तो देखा की एंजेल मजे से milk power से बना हुआ दूध पी रही है| अब मुझे समझ आया की हमें milk powder लाना था, जो शायद करुणा के जीजा को मिल गया| खैर दीदी ने मुझे कहा की मैं दिल्ली की दो टिकट ले आऊँ जब तक वो चेकआउट कर रहे हैं, मेरा समान पैक था तो मैं फटाफट बस स्टैंड चल दिया और मेरे पीछे ही करुणा आ गई| हम दोनों बस स्टैंड पहुँचे और वहाँ पता चला की दिल्ली की बस 15 मिनट में निकलने वाली है, करुणा ने फ़ौरन अपनी दीदी को फ़ोन किया और उन्हें बस स्टैंड आने को कहा, पर वो आलसी लोग कहाँ आ पाते तो हम दोनों को ही होटल वापस जाना पड़ा| हम दोनों रिक्शा कर के होटल लौटे, तब तक करुणा की दीदी ने bill pay कर दिया था और समान सब बाहर पड़ा था| हम जिस रिक्क्षे में आये थे उसमें सबका जाना नामुमकिन था, इसलिए मैं एक ऑटो ढूँढने दौड़ा| जब मैं ऑटो ले कर लौटा तो देखा पूरा परिवार होटल के बाहर खड़ा फोटो खींचने में बिजी था!

सामना लाद कर हम बस स्टैंड पहुँचे, मैंने जल्दी से दोनों मियाँ-बीवी को बस में चढ़ाया, बस चली गई तो मैंने अपने लिए जयपुर की बस का पता किया| हमें पता चला की वो बस रात को जाएगी और उसमें कोई सीट खाली नहीं! मैंने घडी देखि तो उसमें बजे थे 6, अब केवल ट्रैन बची थी| हमने रिक्शा किया और स्टेशन पहुँचे, मैंने ticket काउंटर से superfast की दो टिकेटें ली| टिकट ले कर मैंने पुछा की जयपुर की ट्रैन कब जाएगी तो काउंटर पर बैठा आदमी बोला की ये जो ट्रैन जा रही है ये ही जाएगी, इसके बाद अगली ट्रैन रात को आएगी! मैंने करुणा से दौड़ने को कहा क्योंकि ट्रैन धीरे-धीरे रेंगने लगी थी| मेरे हाथ में दो बैग थे पर फिर भी मैं करुणा से तेज भागा और सामान रख कर फटाफट चढ़ गया, करुणा अब भी स्टेशन पर दौड़ रही थी| वो बिना किसी मदद की तरह चढ़ नहीं पाती इसलिए मैंने अपना हाथ आगे बढ़ाया ताकि वो मेरा हाथ पकड़ ले, लेकिन उसे दौड़ कर बस पकड़ने की आदत थी तो उसने सावधानी से दौड़कर खुद ट्रैन पकड़ ली|

पूरी की पूरी ट्रैन खाली थी, मैंने सोचा की जब ट्रैन खाली ही है तो सफर आराम से किया जाए! मैं करुणा को लेकर AC वाले कोच की तरफ चल पड़ा, रास्ते में जो भी coaches आय सब या तो खाली थे या फिर उसमें इक्का-दुक्का लोग ही थे!

[color=rgb(51,]जारी रहेगा भाग 7(5) में...[/color]
 
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