[color=rgb(255,]चौबीसवाँ अध्याय: उलझते-सुलझते बंधन[/color]
[color=rgb(226,]भाग-9[/color]
[color=rgb(26,]अब तक आपने पढ़ा:[/color]
दिषु: तुझे लगता है की अंकल जी-आंटी जी मान जायेंगे?
दिषु के सवाल मेरे अति आत्मविश्वास रुपी गुब्बारे में चुभी सुई की समान था, जिसने मेरा अति आत्मविश्वास का गुब्बारा फोड़ दिया था;
मैं: भाई उम्मीद तो पूरी है! अगर नहीं माने तो मैं घर छोड़ दूँगा!
मेरा अति आत्मविश्वास का गुब्बारा फूटा तो मैं धड़ से जमीन पर आ गिरा और ठंडी आह भरते हुए बोला! उधर मेरे घर छोड़ने की बात सुन दिषु चिंतित हो गया;
दिषु: यार ऐसा मत बोल!....
वो आगे कुछ कहता उससे पहले ही मैंने अपनी बात रख दी;
मैं: यार माँ-बाप का गुस्सा कभी जीवन भर के लिए नहीं होता! एक बार उनका गुस्सा शांत हो गया तो मैं खुद उनके पाँव पकड़ कर घर छोड़ने की माफ़ी माँग लूँगा!
मैंने बात को हलके में लेते हुए कहा| भले ही मैं अपने और भौजी के रिश्ते को ले कर संजीदा था और एक वयस्क की तरह हमारे इस रिश्ते को एक पाक-साफ़ नाम देना चाहता था मगर उसके लिए मैं जो ऊल-जुलूल बातें सोच रहा था वो मेरी अपरिपक्वता दर्शाता था!
दिषु: भाई....
दिषु इतना कहते हुए रुक गया और उसका यूँ रुकना मेरे दिल में चुभने लगा! मैं समझ गया की उसके इस तरह खामोश होने का क्या कारन है, वो नहीं चाहता की मैं अपने माँ-पिताजी को छोड़ूँ! अब देखा जाए तो दिषु का ये सोचना सही भी था, वो माँ-बाप जिन्होंने मुझे इतने नाजों से पाला-पोसा मैं उन्हें छोड़ दूँ ये सही बात तो नहीं!
मैं: मैं समझ गया भाई!
मैंने दिषु की और गंभीरता से देखते हुए सर हाँ में हिलाते हुए कहा| दिषु जान गया की मैं उसके मन की बात पढ़ चूका हूँ, अब बस ये देखना था की मैं निर्णय क्या लेता हूँ?
[color=rgb(84,]अब आगे:[/color]
खैर इसके आगे हमने (मैंने और दिषु ने) इस मुद्दे पर और बात नहीं की! मैंने बात का रुख बदलते हुए उसकी नौकरी के बारे में बात शुरू कर दी| इधर-उधर की बातें करते हुए हम मेरे घर पहुँचे, मैं गाडी से उतरा तो दिषु भी मेरे पीछे गाडी से उतरते हुए बोला;
दिषु: भाई तेरा जो भी निर्णय होगा मैं तेरे साथ खड़ा रहूँगा! अगर कल को
अंकल जी तुझे घर से निकाल दें तो मुझे कॉल कर दियो, मैं उनके गुस्सा शांत होने तक तेरे, भाभी और बच्चों के रहने का प्रबंध कर दूँगा!
गौर करने वाली बात ये थी की दिषु ने पिताजी द्वारा मुझे घर से निकाले जाने की बात कही न की मेरे द्वारा घर छोड़ने की! ये उसका एक मूक इशारा था की मैं किसी भी हालत में घर न छोड़ूँ वरना माँ-पिताजी का क्या होगा?
बहरहाल दिषु ने अपनी बात साफ़ कहते हुए मुझे अपना तथा अपनी दोस्ती का सहरा दे दिया था! हमारी दोस्ती का रिश्ता विश्वास पर खड़ा था और हालात चाहे जैसे हों हम हमेशा एक दूसरे को सहारा देने के लिए तत्पर थे! मैं दिषु के गले लगा और मुस्कुरा कर उसे "धन्यवाद" कहा, दिषु गाडी ले कर अपने घर निकल गया और मैं अपनी गली में दाखिल हो गया| रात काफी हो चुकी थी और मेरा इरादा किसी को जगाने का नहीं था इसलिए मैंने अपनी चाभी से घर का दरवाजा खोला| मैंने अपने कमरे की ओर देखा तो दरवाजे के नीचे से मुझे कमरे में रौशनी नजर आई, मैं जान गया की भौजी मेरे इंतजार में अभी तक जागीं हुई हैं| नेहा का तोहफा बाहर छोड़कर मैं अपना बैग लिए हुए दबे पाँव अपने कमरे में आया तो देखता क्या हूँ, भौजी और बच्चे तीनों जाग रहे हैं! मुझे देखते ही दोनों बच्चे हल्ला मचाते हुए खड़े हुए और मेरी ओर लपके! मैंने एकदम से दोनों बच्चों को अपने सीने से लगा लिया और उनके सर को चूमने लगा! बच्चों को इस तरह गले लगा कर लग रहा था की मानो सालों बाद उन्हें गले लगा रहा हूँ! वहीं मेरे गले लगे हुए दोनों बच्चों ने कूदना शुरू कर दिया और; "पापा जी मेरा gift" की रट लगानी शुरू कर दी!
मैं: Okay-Okay! आप दोनों के लिए मैं special gifts लाया हूँ|
ये सुनते ही दोनों बच्चों ने ख़ुशी के मारे मेरे दोनों गालों पर अपनी पप्पियों की बौछार कर दी!
मैं: नेहा बेटा, आपका gift बाहर रखा है!
इतना सुनना था की नेहा फ़ौरन बाहर दौड़ती हुई गई और अपना gift उठा कर ले आई| नेहा के लिए मैं 30 inch का teddy bear लाया था जो लगभग नेहा जितना ही बड़ा था! नेहा अपने teddy bear को अपने से चिपकाए हुए, ख़ुशी से भरी हुई मेरे पास आई;
नेहा: पापा जी मेरी class में सभी लड़कियों के पास teddy bear है, आपको कैसे पता की मुझे ये चाहिए था?
नेहा खुश होते हुए पूछने लगी||
मैं: वो क्या है न बेटा, पापा को सब पता होता है!
मैंने नेहा के सर पर हाथ रखते हुए कहा| जब नेहा आयुष जितनी थी तो उसे गुड्डे-गुड़िया से खेलना अच्छा लगता था, अब वो बड़ी हो चुकी थी तो उसके लिए बड़ी गुड़िया चाहिए थी यही सोचते हुए मैंने नेहा के लिए ये 30 inch का teddy bear लिया था!
अब बारी थी आयुष की जो बड़ी उत्सुकता से अपनी बारी की प्रतीक्षा कर रहा था;
मैं: आयुष बेटा, आपके लिए मैं लाया हूँ hotwheels track set!
मैंने आयुष का तोहफा अपने बैग से निकालते हुए दिया| अपना gift देख आयुष ख़ुशी से पलंग के ऊपर कूदने लगा, मैंने उसका gift pack खोल कर उसे दिया तो उसने track set खुद जोड़ना शुरू कर दिया! आयुष का उत्साह देख मैंने और नेहा ने आयुष की मदद करनी शुरू कर दी| मेरे ये बचपना देख भौजी प्यार से अपना सर पीटते हुए बोलीं;
भौजी: हे राम! आप न, कभी नहीं सुधरोगे?!
भौजी की बात सुन मैं मुस्कुराया और बोला;
मैं: Come on यार!
मैंने भौजी को आँख मारी और आयुष का track set जोड़ने में मदद करने का इशारा किया;
भौजी: बच्चों के लिए तो खिलोने ले आये और मेरे लिए?
भौजी अपनी कमर पर दोनों हाथ रखते हुए बोलीं|
मैं: Oops!!!
मैं अपनी जीभ दाँतों तले दबाते हुए भूलने का नाटक करने लगा| मुझे लगा था की मेरी भूल जाने की नौटकी देख कर भौजी नाराज होंगी, मगर वो मुस्कुराने लगीं और बोलीं;
भौजी: कोई बात नहीं, आप जल्दी आ गए मेरे लिए वही काफी है!
मैं: Sorry जान!
मैंने कान पकड़ते हुए अफ़सोस जताने का नाटक किया|
मैं: अच्छा जान, जरा एक ग्लास पानी लाना|
मैंने बात बनाते हुए भौजी को कमरे से बाहर भेजा और झट से भौजी का gift तकिये के नीचे छुपा दिया! नेहा ने मुझे अपनी मम्मी का गिफ्ट छुपाते हुए देख लिया तो मैंने अपने होठों पर ऊँगली रखते हुए नेहा को चुप रहने का मूक इशारा किया, जिसे समझ नेहा हँसने लगी! मिनट भर बाद भौजी मेरे पानी ले कर आईं तो मैंने उन्हें उनका दूसरा gift दिया;
मैं: Handmade chocolates for my beautiful wife!
मैंने मुस्कुरा कर कहा तो भौजी झट से बोलीं;
भौजी: जानती थी, आप मेरे लिए कुछ न कुछ जर्रूर लाये होगे|
भौजी मुस्कुराते हुए बोलीं और chocolate का box खोल कर खाने लगीं|
मैंने सोचा की क्यों न माँ-पिताजी को अपने आने की खबर तथा उनके लिए लाये हुए तोहफे दे दूँ, इसलिए मैं उन्हें जगाने के लिए अकेला उनके कमरे के बाहर पहुँचा| दरवाजा खटका कर मैं ज्यों ही अंदर आया तो माँ-पिताजी जाग गए, पिताजी ने फ़ौरन घडी देखि और मुझसे बोले;
पिताजी: बेटा तू कब आया?
मैंने माँ-पिताजी के पाँव छुए और उनके पास बैठ गया| मैं जवाब देता उसके पहले ही भौजी मेरे पीछे-पीछे माँ-पिताजी के कमरे में आ गईं, उन्हें देख मैंने बात तोहफों की तरफ मोड़ दी;
मैं: बस अभी-अभी आया! खैर मैं आप दोनों के लिए कुछ लाया हूँ|
ये कहते हुए मैंने बैग से पिताजी के लिए कोल्हापुरी चप्पल और माँ के लिए पश्मीना शाल निकाली!
मैं: ये चप्पल आपके लिए पिताजी, बिलकुल सुहाग पिक्चर के अमिताभ बच्चन जैसी है!
ये सुन पिताजी ठहाका लगा कर हँस पड़े!
मैं: और माँ ये पशमीना शाल आपके लिए, बहुत गर्म है और बहुत मुलायम भी!
शॉल देख कर माँ बिलकुल माँ वाले अंदाज में बोलीं;
माँ: बेटा क्यों इतने पैसे बर्बाद करता है हम पर!
मैं माँ की बात का जवाब देता उससे पहले ही भौजी बोल पड़ीं;
भौजी: माँ अपने माता-पिता के लिए कुछ खरीदना पैसे बर्बाद करना थोड़े ही होता है?!
भौजी की बात सुन माँ-पिताजी के चेहरे पर गर्वपूर्ण मुस्कान आ गई|
पिताजी: बेटा खाना खाया तूने?
पिताजी ने आज जिंदगी में पहलीबार मुझसे खाने के बारे में पुछा, आजतक ये सवाल बस माँ ही पूछतीं थीं| पिताजी के सवाल से मैं ऐसा भौचक्का हुआ की मैंने गलती से हाँ में सर हिला दिया!
पिताजी: अच्छा बहु, तु जा कर आराम कर, मैं जरा मानु से कुछ काम की बात कर लूँ|
पिताजी की बात सुन भौजी अपने कमरे में सोने चली गईं|
भौजी गईं और पिताजी ने सीधा अनिल के बारे में पुछा;
पिताजी: अच्छा अब बता की अनिल गाँव चला गया?
मैं: नहीं पिताजी, दरअसल उसकी college में attendance कम है और साथ ही उसके काफी lecture बाकी हैं!
इतना कह मैंने न चाहते हुए पिताजी से अनिल का सुमन के यहाँ ठहरने की बात छुपाई;
मैं: उसके college के कुछ दोस्त हैं और वही लोग मिलकर उसका ख्याल रखेंगे| फिर अनिल के पिताजी पहले ही उसे (अनिल को) loan ले कर पढ़ा रहे हैं, जवान बेटे को अपने सामने इस हालत में देखते तो परेशान हो जाते, इसीलिए अनिल मना कर रहा था की उसके accident की खबर गाँव न पहुँचे!
पूरी बात सुन पिताजी बात तो समझ गए पर उन्हें भविष्य की चिंता थी और साथ ही अनिल का ख्याल रखे जाने की भी!
पिताजी: बेटा पक्का वहाँ उसका ध्यान रखा जाएगा न? वरना बेचारा 'परदेस' में कैसे सब कुछ सँभालेगा?
मैं: मैं उसके दोस्त से मिलकर आया हूँ और उसने अनिल का ख्याल रखने की जिम्मेदारी ली है!
मैंने पिताजी को अनिल के ख्याल रखे जाने के मामले में आश्वस्त करते हुए कहा|
पिताजी: बेटा लेकिन कल को ये बात समधी जी के सामने खुली की हमने उनसे अनिल के accident की बात छुपाई तो?
पिताजी का सवाल सुन मैं एकदम से बोल पड़ा;
मैं: आप बस कह देना की मैंने किसी को कुछ नहीं बताया!
पिताजी: बेटा ऐसा कैसे हो सकता है? तेरा बाप हूँ तुझे थोड़े ही ऐसे अकेला समधी जी के सामने कर दूँगा?
पिताजी बड़े प्यार से बोले|
मैं: पिताजी आप बस अपने बेटे पर विश्वास रखिये, मैंने जो भी किया उसमें ही सबकी भलाई थी| फिर मेरा निर्णय मेरा था, मैंने इस बारे में आपसे तो पुछा ही नहीं जो आपका नाम बीच में आये! अनिल की जगह मैं होता तो मैं भी आपको या माँ को अपनी तबियत के बारे में दुखी थोड़े ही करता? मुझे यक़ीन है की आपके समधी जी भी ये बात समझ जाएँगे!
आज मेरे बात करने में अलग ही आत्मविश्वास था| मैं आज छाती चौड़ी कर के पिताजी को अपने लिए हुए सही फैसले के बारे में बता रहा था और मेरा यही आत्मविश्वास देख पिताजी को अपने बेटे पर गर्व महसूस हो रहा था!
पिताजी: ठीक है बेटा जैसा तू कहे|
पिताजी मुस्कुराते हुए बोले| पिताजी की आवाज में आज एक मधुरता थी, उनकी आँखों में अपने बेटे के लिए गर्व था और इसी सब ने उन्हें मेरे प्रति झुका दिया था!
माँ-पिताजी को शुभरात्रि बोल मैं अपने कमरे में लौटा तो देखा की दोनों बच्चे अभी तक जाग रहे हैं और अपने-अपने खिलोने से खेल रहे हैं| नेहा अपने teddy bear के ऊपर से plastic उतार रही थी और आयुष अपना hotwheels track set जोड़ने में लगा हुआ है| मैंने जब सोने को कहा तो नेहा अपना teddy bear ले कर लेट गई मगर आयुष अपनी जगह से नहीं हिला और अपना track set जोड़ने में लगा रहा| मैं जानता था की जब तक आयुष launcher से गाडी launch नहीं कर लेता, तब तक वो सोने वाला नहीं है, इसलिए मैंने track set जोड़ने में आयुष की मदद की| Track set जुड़ा और आयुष ने गाडी launch की, गाडी तेजी से पूरे loop में घूमी और फिर पलंग के नीचे चली गई! इस 5 सेकंड की ख़ुशी ने आयुष को ख़ुशी से भर दिया था, उसे ऐसा लग रहा था मानो वो गाडी खुद चला रहा हो इसलिए वो रोमांच से भरकर कूदने लगा! अब आयुष को फिर से खेलना था मगर मैंने उसे प्यार से समझाया; "बेटा रात बहुत हो गई है, कल सुबह उठ कर खेल लेना" तब जा कर आयुष माना और मेरी गोदी में आने के लिए अपनी दोनों बाहें पँख की तरह खोल दी| आयुष को गोद में लिए मैं बिस्तर में घुसा, आयुष मेरी छाती से चिपका सोने लगा और नेहा मेरी ओर करवट ले कर मुझसे लिपट गई! दोनों बच्चे आज इतने खुश थे की बिना कहानी सुने ही सो गए!
हालाँकि मैं काफी थका हुआ था परन्तु आँखों में नींद नहीं थी, दिमाग में बस कल सुबह पिताजी से जो बात करनी है उसके शब्द दौड़ रहे थे! एक ख़ास बात जो मेरे दिल में चुभ रही थी वो थी घर छोड़ने की बात! मेरा मन नहीं मान रहा था की मैं अपना घर, अपने माँ-बाप छोड़ कर अलग रहूँ! मुझे कैसे भी अपने माँ-पिताजी को भौजी संग मेरे नए संसार शुरू करने के लिए मनाना था! इधर आयुष की नींद थोड़ी कच्ची हुई और उसने अपने छोटे- छोटे हाथों से मुझे अपनी बाहों में कसना शुरू किया, यही वो पल था जब मेरा ध्यान कल की बातों से भटका और मुझे नींद आने लगी! बच्चों के प्यार ने मुझे अच्छी नींद दिला ही दी!
अगली सुबह मेरी नींद 5 बजे ही खुल गई, पिताजी से बात करने को मैं इतना उतावला था की मेरे दिमाग ने मुझे अधिक सोने ही नहीं दिया! दोनों बच्चों को अच्छे से रजाई ओढ़ा कर मैं brush करने लगा और तैयार हो कर फटाफट बाहर बैठक में आया| माँ-पिताजी और भौजी जग चुके थे, पिताजी अखबार पढ़ रे थे तथा माँ उनके सामने बैठीं कुछ बात कर रहीं थीं| भौजी का मुँह एकदम से उतरा हुआ था, अभी मैं अपने कमरे की चौखट पर ही खड़ा था, भौजी ने जैसे ही मुझे देखा वो तेजी से मेरी ओर चलती हुईं आईं और मुझे धकेलती हुईं मुझे मेरे कमरे में वापस ले आईं| उन्होंने एकदम से मेरा हाथ पकड़ा और अपने सर पर रखते हुए एक साँस में बोल गईं;
भौजी: जानू आपको मेरी कसम है अगर आपने माँ-पिताजी से घर छोड़ने की बात कही, तो आप मेरा मरा-मुँह देखोगे!
इतना कह भौजी की आँखें आँसूँ से भर गईं! भौजी को यूँ भावुक देख मुझसे कुछ बोला नहीं गया, क्योंकि मैं अपनी ताक़त बात करने के लिए बचाना चाहता था इसलिए मैंने बस हाँ में सर हिलाया और कमरे से बाहर आ गया| अपनी हिम्मत बटोर कर मैं बैठक में पिताजी के सामने बैठा, लेकिन मैं कुछ बोलता उससे पहले ही माँ मेरे सर पर प्यार से हाथ फेरते हुए नाश्ते के बारे में पूछने लगीं| जिस प्यार से माँ-पिताजी मुझसे बात कर रहे थे, उसे देखते हुए मन नहीं किया की उनके चेहरे से हँसी छीन लूँ! मेरा मन हिम्मत हारने लगा और मैं ख़ामोशी से अपने मन को हिम्मत इकठ्ठा करने की सलाह देने लगा! इतने में पिताजी का फ़ोन बजा, ये फ़ोन भौजी के मायके से था! दरअसल अगले हफ्ते भौजी के पिताजी आ रहे थे, क्यों और किस लिए ये बस पिताजी जानते थे! भौजी के पिताजी के आने की बात जानकार मन को हिम्मत मिलने लगी, मैंने मन को हिम्मत बँधाने के लिए समझाते हुए कहा; 'अच्छा है पिताजी (भौजी के) आ रहे हैं, उन्हें भी तो ये सच बताना है!' तभी दिमाग मुझे झिड़कते हुए बोला; 'पर अपने पिताजी से तो बात कर ले?'
अब तक आयुष और नेहा भी जाग चुके थे, तथा मेरी गोदी में चढ़े हुए फिर से सोने लगे थे! बच्चों के मेरी गोद में होने से मेरा ध्यान बँटने लगा था;
मैं: बेटा, आप दोनों जा कर brush करो|
मैंने आयुष और नेहा को समझाते हुए कहा| दोनों अच्छे बच्चों की तरह कूदते हुए brush करने चले गए! इधर माँ ने चाय का गिलास मुझे दिया और पिताजी ने काम के बारे में बात शुरू कर दी, परन्तु मेरा ध्यान किसी बात पर नहीं लग रहा था! कब चाय खत्म हुई और कब नाश्ता बन कर तैयार हुआ, पता नहीं!
माँ ने नाश्ता dining table पर परोसा और सब लोग वहीं बैठ गए| पिताजी घर के मुखिया वाली कुर्सी पर बैठे थे, माँ उनके सामने वाली कुर्सी पर बैठीं थीं, माँ की दाईं तरफ भौजी बैठीं थीं, मैं पिताजी के बाईं तरफ बैठा था और दोनों बच्चे मेरे बगल में खड़े थे| दोनों बच्चे चिड़िया के बच्चों की तरह अपना मुँह खोले हुए मेरे पराँठे का कौर खिलाने का इंतजार कर रहे थे! मैंने दोनों को बारी-बारी से नाश्ता कराया और खेलने के लिए अंदर भेज दिया| मैंने भी फटाफट अपना नाश्ता निपटाया और माँ-पिताजी के नाश्ता खत्म करने का इंतजार करने लगा|
नाश्ता कर माँ और भौजी रसोई में काम करने लगे और पिताजी अपना अखबार पढ़ने लगे| समय आ गया था माँ-पिताजी से बात करने का, परन्तु ये समझ नहीं आ रहा था की बात शुरू कैसे करूँ? शब्दों का चयन करने में मुझे पूरे आधे घंटे का समय लगा, सही शब्द मिले तो मैंने पूरे आत्मविश्वास से अपनी बात शुरू की;
मैं: पिताजी, मुझे आपसे और माँ से कुछ बात करनी है|
मैंने पिताजी का ध्यान अपनी ओर खींचते हुए बात शुरू की!
पिताजी: हाँ बोल?
पिताजी अखबार नीचे रखते हुए बोले|
मैं: माँ, आप भी बैठ जाओ|
मैंने माँ को आवाज दे कर बुलाते हुए कहा| इस समय मेरी आवाज बहुत गंभीर हो चली थी, फिर मैं भौजी से मुखातिब हुआ और उन्हें इशारे से बोला;
मैं: और आप please अंदर चले जाओ|
मैंने भौजी को अंदर जाने के लिए इसलिए कहा था क्योंकि सारी सच्चाई जानकार माँ-पिताजी कैसी प्रतिक्रिया देंगे ये मैं भली-भाँती जानता था और मैं नहीं चाहता था की भौजी मुझे पिताजी का हाथों 'पिटते' हुए देखें! उधर माँ पिताजी के सामने वाली कुर्सी खींच कर बैठते हुए अपनी भोयें सिकोड़ कर पूछने लगीं;
माँ: क्यों?
माँ का तातपर्य था की मैं भौजी को क्यों अंदर जाने को कह रहा हूँ?
मैं: माँ, बात कुछ ऐसी है|
मैंने माँ से नजर चुराते हुए कहा| भौजी समझ गईं की मैं 'बात' शुरू करने वाला हूँ इसलिए वो चुपचाप अंदर चली गईं, अब ये तो मैं जानता था की भौजी कमरे में बैठीं हमारी बातें सुन रहीं होंगी!
मैंने एक गहरी साँस ली और अपना इरादा पक्का करते हुए बोला;
मैं: पिताजी, आज मैं आपको जो बात बताने जा रहा हूँ वो बात मेरे अंदर बहत दिनों से दबी हुई थी, मेरी बस आपसे और माँ से बस एक गुजारिश है की ये बात जान कर आपको बहुत गुस्सा आएगा मगर कृपया एक बार मेरी पूरी बात सुन लेना, उसके बाद आप अपना फैसला सुनाना|
मैंने एक गहरी साँस छोड़ी और अपनी बात आगे कही| आज जिंदगी में पहलीबार मैं भौजी का नाम लेने जा रहा था!
मैं: मैं संगीता से प्यार करता हूँ!
मैंने पूरे आत्मविश्वास से कहा, मगर पिताजी को मेरा ये आत्मविश्वास जरा भी नहीं भाया बल्कि मेरी बात सुन उनका चहेरा गुस्सा से तमतमा गया, मगर उनके सब्र का पैमाना अभी छलका नहीं था! दूसरी तरफ माँ मेरी बात सुनकर हक्की-बक्की थीं की मैं आखिर कह क्या रहा हूँ, परन्तु ये तो बस शुरुआत भर थी!
मैं: और संगीता भी मुझसे बहुत प्यार करती है!
ये सुन पिताजी और माँ का गुस्सा उबाले मार रहा था! एक शब्द 'और' की माँ-पिताजी के गुस्से का पैमाना छलक जाता, परन्तु मैं कहाँ सुनने वाला था? मुझे तो आज अपना सारा सच सुनाना था!
मैं: जब से मैंने संगीता को पहलीबार देखा था तभी से मेरे दिल में संगीता के लिए जज्बात जाग चुके थे! फिर हम जब पिछलीबार गाँव गए थे तब मैं और संगीता बहुत ज्यादा नजदीक आ गए!
अभी तक मेरा विश्वास पूरे जोर पर था, मगर आगे जो मैं कहने वाला था उसके लिए विश्वास नहीं 'जिगरा' चाहिए था!
मैं: हम दोनों इतना नजदीक आ गए थे की...
इतना कह मैं ने अपना जिगरा मजबूत किया और गर्व से बोला;
मैं: ..आयुष................आयुष मेरा बेटा है!
इतना सुन पिताजी का सब्र टूट गया और उन्होंने खींच कर मुझे थप्पड़ रसीद कर दिया!
पिताजी: होश में है तू?
पिताजी चीखते हुए बोले! पिताजी के एक थप्पड़ ने मेरे दिमाग के अंजर-पंजर हिला दिए थे मगर मैं आज ढीठ बना अपनी बात पूरी करने के लिए मन बना चूका था;
मैं: Please पिताजी, मेरी पूरी बात सुन लीजिये...
मैं आगे कुछ कहता उससे पहले ही पिताजी ने मेरी बात काट दी;
पिताजी: बात सुन लूँ? अब बचा क्या है सुनने को?
पिताजी गुर्राते हुए बोले और आँखों से अंगारे बरसाते हुए मुझे देखने लगे! फिर उनकी नजर माँ पर पड़ी जो मेरी बातें सुन कर सदमे में थीं;
पिताजी: देख लो अपने पुत्तर की करतूत! ये...
पिताजी माँ को दोष देते हुए बोले| लेकिन पिताजी माँ पर और बरसते उससे पहले ही मैंने अपने मन की बात एकदम से कह दी;
मैं: पिताजी, मैं संगीता से शादी करना चाहता हूँ!
पिताजी: मैं तेरी टाँगें तोड़ दूँगा जो तूने आगे बकवास की तो! जरा सा भी होश है तुझे या फिर आज फिर पी रखी है?
पिताजी को लग रहा था की मैं नशे में हूँ तभी तो ऐसी ऊल-जुलूल बातें कर रहा हूँ!
पिताजी: संगीता शादी-शुदा है और वो भी तेरे बड़े चचेरे भाई से, उसका (संगीता का) भरा-पूरा परिवार है और तू उन सबकी हँसती-खेलती जिंदगी में आग लगाने पर तुला है!
पिताजी की बात खत्म हुई तो मैंने बेख़ौफ़ अपने मन में दबे हुए संगीता के लिए प्यार को बाहर की ओर उड़ेल दिया;
मैं: तोड़ दो मेरी टांगें, चाहे तो जान ले लो मेरी मगर मैं संगीता के बिना नहीं जी सकता और वो भी मेरा बिना नहीं जी सकती! हम दोनों के प्यार की निशानी उसके कोख में है और मैं अपने बच्चे को खोना नहीं चाहता, मैं उसे अपना नाम देना चाहता हूँ!
मेरी बात सुन माँ और पिताजी दोनों अवाक रह गए! अपने भोले-भाले, सीधे-साधे बच्चे के मुँह से ये सुनने की उन्होंने कभी उम्मीद नहीं की थी और इसी बात का सदमा उन्हें बड़ी जोर से लगा था! माँ-पिताजी सदमे से मौन हुए तो मैंने पिताजी की कही बात का काट करना शुरू कर दिया;
मैं: और किस शादी की बात कर रहे हैं आप? संगीता ने चन्दर को कभी अपना पति माना ही नहीं! आप भी तो अच्छे से जानते हो न की चन्दर शादी के पहले कैसा था? संगीता से शादी होने से पहले ही उसने अपनी सबसे छोटी साली को नोच खाया था, इसीलिए संगीता उसे खुद को छूने तक नहीं देती है!
एक तो मैं पहले ही पिताजी से अपने इस नाजायज प्यार की गाथा का बखान बेख़ौफ़ कर रहा था ऊपर से इसी जोश में मैं पिताजी के सामने 'नोच खाया', 'छूने नहीं देती' जैसे शब्दों का प्रयोग कर बैठा, जो की उनकी दी गई शिक्षा की अपने से बड़ों से आदर से बात करने के खिलाफ था! तो ये सब सुन कर पिताजी को गुस्सा आना लाजमी था, उन्होंने तड़ाक से एक और थप्पड़ मेरे गाल पर रसीद कर दिया!
पिताजी: तू इतना बेशर्म हो गया की ऐसी गन्दी बातें अपने बाप के सामने करता है? यही शिक्षा दी थी मैंने तुझे?
पिताजी गुस्से से गरजते हुए बोले! ठीक तभी संगीता की रोती हुई आवाज मेरे पीछे से आई;
संगीता: नहीं पिताजी! ये (मैं) सच कह रहे हैं....
पिताजी और मेरे बीच जो बातें हो रहीं थीं उन्हें संगीता के साथ- साथ बच्चे भी सुन रहे थे| बच्चे बेचारे सहमे हुए कमरे में बैठे थे, परन्तु संगीता से ये सब सहना मुश्किल हो रहा था इसलिए वो बीच-बचाव करने के लिए आईं थीं| लेकिन वो कुछ कहतीं उससे पहले ही पिताजी ने उन्हें (संगीता को) चुप करा दिया;
पिताजी: तू बीच में मत पड़ बहु! ये लड़का (मैं) तुझे बरगला रहा है, ये पागल हो गया है!
पिताजी संगीता को डाँटते हुए बोले| ठीक उसी समय नेहा हिम्मत कर के कमरे से बाहर आई और डरी-सहमी से मुझे देखने लगी| उसकी आँखों में सवाल थे और मैं उन सवालों का जवाब इस समय नहीं दे सकता था, इधर पिताजी की नजर जैसे ही नेहा पर पड़ी वो मेरे मन की आधी बात समझ गए और चिल्लाते हुए नेहा की तरफ इशारा करते हुए बोले;
पिताजी: इन बच्चों के प्यार में बँध कर ये सब झूठ कह रहा है न तू? बच्चों के प्यार में इतना अँधा हूँ गया की अपने और बहु के रिश्तों की मर्यादाएँ भूल गया? जिसे तू बचपन से 'भौजी' कहता आया है उसी से शादी करने की गन्दी बात कह रहा है! छी-छी!!!
पिताजी की बात खत्म होते ही मैं बड़े तपाक से बोला;
मैं: पिताजी, आपने कभी गोर नहीं किया लेकिन मैंने संगीता को 'भौजी' कहना कब का छोड़ दिया|
मेरा यूँ तपाक से जवाब देना पिताजी को नहीं भाया और उन्होंने रख कर मुझे एक झापड़ रसीद किया! मैंने नेहा को इशारा करते हुए अंदर जाने को कहा तो वो रोती हुई अंदर चली गई!
पिताजी: चुप कर!
पिताजी चिल्लाते हुए बोले! अब तक मैं पिताजी से तीन झापड़ खा चूका था, मेरे बाएँ गाल पर पिताजी की पाँचों उँगलियाँ छप चुकीं थीं और होठों के किनारे से खून निकलने लगा था! मेरी ये हालत देख भौजी बिलख-बिलख कर रो रहीं थीं और आँखों ही आँखों में मुझसे चुप होने की विनती कर रहीं थीं, मगर मैं सुनने से रहा तो उन्होंने पिताजी से ही विनती करनी चाही;
संगीता: नहीं पिताजी.....
मैंने हाथ दिखा कर संगीता को चुप करा दिया और पिताजी से खुद विनती करने लगा;
मैं: मैं संगीता के बिना नहीं जी सकता, उससे और अपने बच्चों से अलग हो कर मैं तड़प-तड़प कर मर जाऊँगा!
ये कहते हुए मेरी आँखों से आँसूँ बह निकले जो पिताजी के दिल को पिघलाने लगे|
मैं: मैं ये बात यूँ ही आपसे नहीं कह रहा पिताजी, परन्तु मैंने इस बारे में बहुत सोचा| पिछले पाँच साल मैंने बहुत कोशिश की कि मैं सब कुछ भुला कर जी सकूँ, मगर मेरा दिल मुझे संगीता और बच्चों से दूर नहीं जीने देता! वो पाँच साल मैंने तन्हा हो कर काटे हैं, अकेले में रोते हुए काटे हैं! आप चाहो तो माँ से पूछ लो, मैं कैसा था संगीता और बच्चों के बिना? जब मैं स्कूल में था तो बुझा-बुझा रहता था, तब एक बार माँ ने कहा था की मैं संगीता को फ़ोन कर के बात कर लूँ मगर उस समय मैं उसे (संगीता को) भूलना चाहता था, इसलिए खुद को किसी तरह संभालने की कोशिश करने में लगा हुआ था! कई बार माँ ने मुझे दिलासा दिया, मेरा ध्यान इधर-उधर भटकाया ताकि मैं हँसूँ-खेलूँ पर मेरा जी नहीं करता था की मैं हँसूँ-बोलूँ| आपकी ख़ुशी के लिए मैंने आपके और माँ के सामने ख़ुशी का मुखौटा ओढ़ लिया लेकिन अंदर ही अंदर मैं कुढ़ता जा रहा था और इसी कारन उन्हीं दिनों में मैंने शराब पीना शुरू किया था क्योंकि मुझे लगता था की शराब पीने से मैं सब कुछ भुला दूँगा मगर मैं गलत था!
वहीं मेरे बिना संगीता का भी हाल बुरा था! वो मेरे बिना नहीं जी सकती थी फिर भी उसने मुझे अपनी कसम से बाँधकर खुद से दूर किया क्योंकि वो चाहती थी की मैं अपना ध्यान पढ़ाई में लगाऊँ| ये पाँच साल उसने (संगीता ने) उस जानवर से खुद को और हमारे बच्चों को बचाते हुए काटे| एक भी पल ऐसा नहीं गुजरा जब उसने मेरी जुदाई में आँसूँ न बहाया हो!
आज मैं यहाँ आपके सामने अपने प्यार का इकरार कर रहा हूँ, ये जानते हुए की आप कभी नहीं मानेंगे मगर फिर भी हिम्मत जुटा कर मैं बड़ी उम्मीद ले कर बैठा हूँ की आप मेरे दिल का हाल समझेंगे| आप जबरदस्ती मुझे किसी और के साथ बाँध देंगे तो न तो मैं उसे कोई प्यार दे पाउँगा और न ही उसके साथ नई शुरुआत कर पाउँगा क्योंकि पिताजी, अब मुझ में नई शुरुआत करने की जान नहीं बची! मेरे साथ-साथ उस लड़की की भी जिंदगी बर्बाद हो जायेगी!
मेरी बात सुन मेरे माता-पिता का हाल बुरा था, पिताजी बाहर से सख्त दिख रहे थे मगर मैं जानता था की उनके भीतर मौजूद पिता का दिल अपने बेटे को यूँ खून के आँसूँ बहाते देख टूट चूका है! दूसरी तरफ माँ बिलख-बिलख कर रो रहीं थीं, उन्हें रोता देख भौजी उन्हें सहारा देना चाहतीं थीं मगर माँ-पिताजी के गुस्से के डर से सर झुकाये खड़ीं थीं! मुझसे अपने माँ के आँसूँ नहीं देखे जा रहे थे इसलिए मैंने उन्हें समझाना चाहा;
मैं: माँ....माँ आप तो....
मैं आगे कुछ कहता उससे पहले ही माँ रोते हुए मुझे झिड़कने लगीं;
माँ: मत कह मुझे माँ....ये...तूने....तूने क्या किया?
माँ रोते हुए बोलीं क्योंकि उन्हें ये परिवार टूटता हुआ नजर आ रहा था|
मैं: माँ कम से कम आप तो अपने बेटे के दिल का हाल समझो? आप जानते हो करवाचौथ के अगले दिन जब संगीता आपकी गोदी में सर रख कर सो रही थी, वो दृश्य देख कर ही मुझे ये ख्याल आया की मैं संगीता और हमारे बच्चों को हमारे (मेरे, पिताजी तथा माँ के) परिवार का हिस्सा बना सकूँ! क्या आपको अपने बेटे की ख़ुशी नहीं चाहिए?
मैंने माँ से सवाल पुछा, परन्तु माँ ने मुझसे नजरें चुरा ली| इधर पिताजी पिघलने लगे थे, वो जान गए थे की वो मुझे अपने गुस्से से काबू नहीं कर सकते इसलिए उन्होंने दुनियादारी का बहाना मेरे सामने रख दिया ताकि मैं उनके सवालों में उलझ जाऊँ और हार मान लूँ;
पिताजी: बेटा, तू जो कह रहा है वो कभी नहीं हो सकता! हम जिस समाज में रहते हैं उसके नियम-क़ानून तेरी संगीता से शादी की इजाजत नहीं देते! क्या जवाब देंगे हम दुनिया को? तेरे इस कदम के बाद बिरादरी में हमारा हुक्का-पानी बंद हो जाएगा! फिर ये भी सोच की क्या संगीता के घर वाले मानेंगे? मेरे बड़े भाई यानी तेरे बड़के दादा, वो कभी इस शादी के लिए नहीं मानेंगे? तेरे इस कदम से सब खत्म हो जायेगा बेटा!!! सब खत्म हो जायेगा!
मुझे दुनियादारी से कोई सरोकार नहीं था, न ही मुझे बड़ेक दादा या किसी से कोई सरोकार था! मैं पिताजी के इन सभी सवालों के लिए तैयार था, सिवाए एक सवाल के; 'संगीता के घर वाले इस शादी के लिए मानेंगे?' इस एक सवाल की मैंने कोई तैयारी नहीं की थी, परन्तु पिताजी के सवालों का जवाब तो देना था वरना अगर मैं ढीला पड़ता तो पिताजी मुझे तथा मेरे प्यार को दुनियादारी के डर तले दबा देते;
मैं: आपकी और माँ की love marriage थी ना? आपके भाईसाहब ने उसे भी नहीं माना था, मगर धीरे-धीरे सब ठीक हो गया न?
मैंने पिताजी के सवाल का जवाब अपने सवाल से दे कर बचना चाहा|
पिताजी: बेटा वो अलग बात थी, ये अलग है? तुम दोनों एक सामजिक रिश्ते से बँधे हो और तुम दोनों की उम्र.....
पिताजी ने अपनी बात आधी छोड़ दी जो इस बात की सूचक थी की वो अब हार मानने लगे हैं| वहीं पिताजी के सवालों से छुपने का कोई फायदा नहीं था इसलिए मैंने उनके सवालों का जवाब बड़े ही भावुक अंदाज में दिया;
मैं: पिताजी, जब हमें (मुझे और संगीता को) प्यार हुआ तब हमें एक दूसरे की उम्र नहीं दिखी न ही वो रिश्ता दिखा जिसमें हम 'बाँधे गए थे'!
पिताजी के सवाल का जवाब दे मैंने उन्हें अपनी बात तर्क द्वारा समझाई;
मैं: रही बात दुनियादारी की तो, आपको दुनियादारी की इतना चिंता क्यों है? कल को आप मेरी शादी किसी अनजान लड़की से कर दोगे, जिसको मैं जानता-पहचानता नहीं! शादी के बाद वो क्या गुल खिलाएगी किसे पता? मुझे आप दोनों (माँ-पिताजी) से अलग करना चाहे तो? या मुझे उसे तलाक देना पड़े तो? दुनिया तो तब भी कुछ न कुछ कहेगी न?
दूसरी तरफ संगीता है, वो आपको और माँ को अपने माँ-पिताजी मानती है| आप उसे जानते-पहचानते हो, माँ तो संगीता को अपनी बेटी मानतीं हैं, संगीता पूरा घर संभालती है तथा आप दोनों (माँ-पिताजी) भी तो संगीता को बहु समान लाड-प्यार करते हो| आप नहीं जानते, परन्तु मुझे पता था की आप मेरी बात कभी नहीं मानेंगे इसलिए मैं संगीता और बच्चों को साथ ले कर आपका गुस्सा शांत होने तक घर छोड़ने को तैयार था मगर ये बात सुनते ही संगीता बोली की; "मैं अपनी जिंदगी जैसे-तैसे काट लूँगी, मगर आप (मैं) माँ-पिताजी से अलग न होइये!" मैं आपसे (अपने माँ-पिताजी से) अलग न हूँ, उसके लिए संगीता हमारा (मेरा और संगीता का) प्यार कुर्बान करने को तैयार थी! ये सब जानकर आपको अभी भी लगता है की संगीता मेरी पत्नी बनने के योग्य नहीं है?
मेरे घर छोड़ने की बात ने माँ-पिताजी को झिंझोड़ कर रख दिया था, उनका दिल दर्द से कराह उठा था! इधर मैंने अपनी बात जारी रखी;
मैं: पिताजी, आप बस मेरे एक सवाल का जवाब दीजिये; क्या आपको अपने बेटे की ख़ुशी नहीं प्यारी? आपको (पिताजी को) इस दुनियादारी की क्यों पड़ी है?
मेरे सवाल ने पिताजी को तोड़ दिया था तथा अपने बेटे को खोने के डर से उनकी आँखों से आँसूँ बह निकले थे!
पिताजी: पर ..पर ये सब होगा कैसे? क्या तू गाँव में सब को बिना बताये संगीता से शादी करेगा?
पिताजी ने अपने आँसूँ पोछते हुए सवाल पुछा| ये सवाल कम बल्कि पिताजी का मेरी जिद्द के प्रति झुकना ज्यादा था!
मैं: बिलकुल नहीं पिताजी, मैं कोई पाप नहीं कर रहा जो सब से छुपाऊँ! अगले हफ्ते संगीता के पिताजी आ रहे हैं और मैं उन्हें हमारी (मेरी और संगीता की) शादी के लिए मनाऊँगा| उसके बाद मैं बड़के दादा से बात करूँगा और उन्हें भी इस शादी के लिए राज़ी करूँगा| लेकिन उस सब से पहले मुझे आपका और माँ का फैसला जानना है!
मेरे इस साधारण से plan को सुन पिताजी ने मुझ पर विश्वास कर लिया, इधर मैं अपनी आँखों में उमीदें बाँधे पिताजी को देखने लगा|
पिताजी ने अपना फैसला सुनाने के लिए कुछ पलों का समय लिया और ये समय मेरे लिए पहाड़ काटने के समान था| मन में जितनी भी नकारात्मक सोच थी वो मुझे डराए जा रही थी की पिताजी 'न' कहेंगे! मेरा मन अंदर से इतना कमजोर था की मैं पिताजी की न सुनने लायक नहीं था, इसलिए मैंने ख़ुदकुशी करने के उपाए सोचने शुरू कर दिए! रेल के आगे कूदने से ले कर जहर खाने की सारी planning मैंने उन कुछ क्षणों में कर ली थी!
वहीं पिताजी ने कुछ सोचते हुए माँ की ओर देखा, मैं भी पिताजी की नजरों का पीछा करते हुए माँ को देखने लगा| माँ के आँसूँ थम चुके थे तथा वो अपनी साडी के पल्लू से अपने आँसूँ पोंछ रहीं थीं| कुछ पलों के लिए माँ-पिताजी की आँखें मिलीं और उन्होंने आँखों ही आँखों में कुछ बात की जिसका पता मुझे या संगीता को नहीं चला| मिनट भर की शान्ति के बाद माँ ने अपने पास पड़ी कुर्सी अपने नजदीक खींची और संगीता को अपने पास उस कुर्सी पर बैठने के लिए बोलीं;
माँ: बहु...इधर आ और मेरे पास बैठ|
संगीता सर झुकाये हुए, डरी-सहमी सी उस कुर्सी पर बैठ गई| देखते ही देखते माँ ने संगीता को अपने गले लगा लिया, माँ के गले लगते ही संगीता फूट-फूटकर रोने लगी!
संगीता को माँ के गले लगे देख मैं ये तो समझ गया की माँ मान गईं हैं, मगर पिताजी का निर्णय क्या होगा? पिताजी ने मेरे दाएं हाथ पर अपना हाथ रखा और रुनवासी आवाज में बोले;
पिताजी: बेटा....हमारे लिए बस तू ही एक जीने का सहारा है! अगर तू ही हम से दूर हो गया तो हम कैसे जिन्दा रहेंगे? माँ-बाप अपने बच्चों की ख़ुशी के लिए क्या नहीं करते, इसलिए हमें संगीता तेरी जीवन संगिनी के रूप में मंजूर है!
पिताजी भावुक होते हुए बोले| उनकी हाँ सुनते ही मेरी खुशियों का ठिकाना नहीं रहा!
मैं फ़ौरन उठ खड़ा हुआ और पिताजी के गले लग गया और थोड़ा रुनवासा होते हुए बोला;
मैं: पिताजी, मैं बता नहीं सकता...आपने मुझे आज वो ख़ुशी दी है....वो ख़ुशी जिसके लिए मैं आजतक तरस रहा था! Thank you पिताजी!
मेरी आवाज सुन पिताजी बहुत भावुक हो गए और उनकी आँखें छलक आईं| मैंने पिताजी के पाँव छुए और उन्होंने ख़ुशी-ख़ुशी मेरे सर पर हाथ फेरा| फिर मैं माँ के पास पहुँचा, माँ ने अपनी साडी के पल्लू से मेरे होठों के किनारे बह रहे खून को पोंछा और सीधा अपने सीने से लगा कर रो पड़ीं|
मैं: माँ...मुझे माफ़ कर दो....मैंने आपका दिल दुखाया!
मैं भरे गले से बोला| माँ ने मेरे सर पर हाथ फेरा और मेरे मस्तक को चूमते हुए मुस्कुराने लगीं| मैंने उनके पाँव छुए और उन्होंने भी पिताजी की तरह ख़ुशी-ख़ुशी मुझे आशीर्वाद दिया|
पूरे घर का माहौल भावुक हो गया था इसलिए पिताजी घर का माहौल हल्का करते हुए संगीता से बोले;
पिताजी: बेटी आज ख़ुशी के मौके पर हलवा बना!
पिताजी ने संगीता को बहु की जगह बेटी कहा तो मेरे भीतर थोड़ी सी जिज्ञासा जगी;
मैं: बेटी?
मैंने आँखें बड़ी करते हुए पिताजी से पुछा तो वो मुस्कुराते हुए बोले;
पिताजी: और नहीं तो क्या! तुम दोनों की शादी से पहले संगीता को थोड़े ही बहु कहेंगे?
पिताजी मुस्कुराते हुए बोले और ये सुन मेरे तथा संगीता के गाल लाल हो गए!
संगीता हलवा बनाने घुसी और मैं दोनों बच्चों को देखने के लिए अपने कमरे में पहुँचा| अपने कमरे में पहुँच कर मैंने देखा दोनों बच्चे डरे-सहमे से बैठे हैं, दरअसल बाहर बैठक में जो पिताजी मुझ पर दहाड़ रहे थे और मुझ पर हाथ उठा रहे थे उसी डर के कारण दोनों बच्चे घबराये हुए थे! आयुष भले ही कुछ न समझा हो मगर नेहा सब समझ चुकी थी और उसके मन में ढेरों सवाल थे जिन्हें पूछने से वो झिझक रही थी| जैसे ही दोनों बच्चों ने मुझे देखा वैसे ही दोनों मेरी गोदी में आने के लिए मचलने लगे! मैंने दोनों बच्चों को बाहों में भरा तो दोनों ने रोना शुरु कर दिया, दोनों का रोना सुन माँ-पिताजी मेरे कमरे के भीतर आये और एक पिता-पुत्र-पुत्री को गले लगे हुए ख़ामोशी से देखने लगे| मैंने दोनों बच्चों को प्यार से पुचकारा और बोला;
मैं: बस मेरे बच्चों! अब रोना नहीं है, सब ठीक हो गया है!
मैंने आयुष और नेहा के सरों को चूमना शुरु कर दिया, साथ ही उनकी पीठ सहलाते हुए उन्हें शांत कराने लगा| नेहा का रोना जल्दी रुक गया और उसने अपने आँसूँ पोछते हुए अपने दादा जी को देखा, नेहा मेरी गोदी से उतरी तथा अपने दादाजी के पास पहुँची| पिताजी ने एकदम से नेहा को गोदी में उठा लिया और उसके माथे को चूमते हुए बोले;
पिताजी: बिटिया रोते नहीं हैं!
नेहा थोड़ा सा मुस्कुराई और पिताजी के गाल को चूमते हुए बोली;
नेहा: I love you दादाजी!
नेहा ने ये शब्द अपने दादाजी को धन्यवाद स्वरुप कहे थे| धन्यवाद इसलिए की उन्होंने नेहा को मुझसे दूर नहीं किया, धन्यवाद इसलिए की आखिरकर वो इस परिवार का हिस्सा बन जाएगी, धन्यवाद इसलिए की उसे अब अपने दादा-दादी का प्यार मिलेगा!
पिताजी: आय (I) लभ (love) यु (you) मेरी प्यारी बिटिया!
पिताजी अपनी टूटी-फूटी भाषा में नेहा के गाल को चूमते हुए बोले|
इधर आयुष जो अभी तक अपने दादाजी का गुस्सा देख कर घबराया हुआ था, उन्हें (पिताजी को) मुस्कुराते देख उसका डर कम होने लगा था| वो मेरी गोद से उतरा और अपने दादाजी के पास पहुँच खुद को गोदी लेने का इशारा किया| पिताजी ने नेहा को गोदी से उतारा तो वो जा कर अपनी दादीजी की टाँगों से लिपट गई| माँ ने उसके सर पर हाथ फेरा और अपनी कमर पकड़ते हुए बोलीं;
माँ: बिटिया मेरे से तुझे गोदी नहीं लिया जायेगा! तू ऐसा कर मुझे अपनी प्यारी-प्यारी पप्पी दे दे!
माँ थोड़ा नीचे झुकीं तो नेहा ने माँ के दोनों गालों पर अपनी मीठी-मीठी पप्पी दी और बोली;
नेहा: दादीजी मैं आपकी कमर की मालिश कर देती हूँ!
इतना कह वो माँ का हाथ पकड़ कर उनके कमरे में चली गई|
वहीं पिताजी ने आयुष को गोदी में उठाया तो आयुष ने अपनी दीदी की देखा-देखि अपने दादाजी (पिताजी) से कहा;
आयुष: I love you दादाजी!
इतना कह आयुष ने पिताजी के गाल पर पप्पी की| बदले में पिताजी ने भी आयुष की ढेर सारी पप्पी ली और अपनी टूटी-फूटी भाषा में बोले;
पिताजी: आय (I) लभ (love) यु (you) मेरे पुत्तर!
ये कहते हुए, आयुष को गोद में लिए हुए पिताजी बाहर बैठक में आ गए|
माँ-पिताजी, बच्चे, संगीता सब बाहर बैठक में थे और मैं अकेला कमरे में था| एक गहरी साँस लेते हुए मैं बैठ गया और मन ही मन भगवान को आज के दिन के लिए धन्यवाद देने लगा| मुझे जो चाहिए था मुझे वो आज मिल चूका था और उसके लिए मैं भगवान का थे दिल से शुक्र गुजार था! इतने में संगीता कटोरी में हलवा लिए आ गई और मुझे यूँ खामोश बैठे देख वो थोड़ी चिंतित हो उठी! कटोरी टेबल पर रख संगीता ने मेरा हाथ पकड़ मुझे खड़ा होने को कहा| संगीता के स्पर्श से मैं अपने मन के विचारों से बाहर आया और खड़ा हो कर संगीता से एकदम से लिपट गया! मेरे सीने से लग कर संगीता भाव-विभोर हो उठी और सिसकने लगी;
मैं: जान! अब सब ठीक हो जायेगा!
मैंने संगीता के सर को चूमते हुए कहा| संगीता से कुछ भी बोल पाना मुश्किल हो रहा था इसलिए उन्होंने मुझे अपनी बाहों की पकड़ कठोर कर दी|
हमारा ये मधुर मिलन आगे बढ़ता उससे पहले ही बाहर से माँ की आवाज आ गई, जिसे सुन हम दोनों सकपका कर अलग हो गए! हम दोनों बारी-बारी बाहर आये तो माँ संगीता को याद कराते हुए बोलीं;
माँ: बेटी, आज भाई-दूज है! ज़रा पूजा की थाली ला, नेहा ने आयुष को तिलक करना है!
अपनी दादी जी की बात सुन नेहा मुँह-हाथ धोने भागी, भौजी पूजा की थाली सजाने लगीं और मैं माँ-पिताजी के पास बैठक में बैठ कर हलवा खाने लगा|
नेहा कपडे बदलकर तैयार हो कर आई और अपनी मम्मी से थाली ले कर आयुष को तिलक किया तथा लड्डू खिलाया| आयुष ने झुक कर अपनी दीदी के पाँव छुए और नेहा ने उसे अपने गले लगा लिया| दोनों भाई-बहन का मधुर मिलाप देख कर सभी खुश थे, ख़ास कर जब आयुष ने अपनी दीदी के पाँव छुए उसकी तो किसी ने कल्पना भी नहीं की थी! इस मिलाप के बाद दोनों बच्चे आ कर मेरी गोदी में चढ़ गए और मिठाई खाने लगे|
दोपहर को खाना खा कर मैंने दोनों बच्चों को सुला दिया, माँ-पिताजी बैठक में बैठे टी.वी. देख रहे थे तथा संगीता dining table पर बैठीं कुछ सिल रही थी| अब मन तो मेरा संगीता के पास बैठने का था परन्तु माँ-पिताजी के सामने मुझे संगीता के पास बैठने में थोड़ी झिझक हो रही थी, इसलिए मैं उठ कर माँ-पिताजी के पास बैठक में बैठ गया| कुछ पल बीते और फिर माँ ने मुझे प्यार से इशारा कर अपने तथा पिताजी के बीच सोफे पर बैठने को कहा| मैं उठ कर वहाँ बैठा तो माँ ने मेरा बायाँ हाथ अपने हाथ में लिया और बोलीं;
माँ: बेटा एक बात बता, तू क्या सच में हमें (उन्हें तथा पिताजी को) छोड़ कर चला जाता?
माँ का सवाल सुन मेरी आँखों में आँसूँ आ गए और मैं 'न' में गर्दन हिलाते हुए बोला;
मैं: कभी नहीं माँ! कल रात मैंने फैसला कर लिया था की अगर आप और पिताजी मेरी संगीता से शादी के लिए नहीं माने तो मैं ये घर नहीं छोड़ूँगा! फिर आज सुबह संगीता ने मुझे अपनी कसम से बाँध दिया की अगर मैं घर छोड़ने की बात कही तो मैं उसका (संगीता का) मरा मुँह देखूँगा! मुझ में आप दोनों (मेरे माँ-पिताजी) को और संगीता तथा बच्चों को खोने की हिम्मत नहीं बची थी, इसलिए सुबह मैंने हार मान ली थी और ये फैसला कर लिया था की आपकी (माँ-पिताजी की) न के बाद मैं खुद को ही खत्म कर लूँगा!
मेरी बातें सुन माँ-पिताजी की आँखें भर आईं थीं| एक तरफ उन्हें संगीता के मुझे घर छोड़ने से रोकने पर गर्व हो रहा था तो दूसरी तरफ मेरे आत्महत्या के फैसले को जानकार गहरा सदमा लगा था!
पिताजी: बेटा.अगर तुझे कुछ हो जाता....तो हमारा क्या होता? बूढ़े बाप के कँधे पर जवान बेटे की अर्थी का बोझ सँभालने की ताक़त नहीं है मुझ में!
पिताजी मेरी पीठ पर हाथ रखते हुए मुझे समझाते हुए बोले|
माँ: बेटा भगवान के लिए दुबारा ऐसा कुछ मत सोचियो, वरना मैं भी तेरे साथ ही मर जाऊँगी!
माँ की बात सुन मैं उनसे लिपट गया और उनसे वादा कर बैठा;
मैं: ऐसा मत कहो माँ! मैं वादा करता हूँ की आज के बाद मेरे मन में ऐसा कोई ख्याल नहीं आएगा!
माँ को मेरी बात पर ऐतबार हुआ और वो मेरे सर पर हाथ फेरने लगीं| उधर संगीता ये सब सुन सिसक रही थी तो माँ ने उन्हें हुक्म देते हुए कहा;
माँ: बेटी छोड़ अपनी सिलाई-कढ़ाई और बैठ मेरे पास!
संगीता फ़ौरन माँ के बगल वाली कुर्सी पर बैठ गई और माँ ने संगीता को भी अपने गले लगा लिया तथा प्यार से पुचकारते हुए चुप कराया|
आधा घंटा बीता होगा की नेहा रोती हुई उठी और दौड़ती हुई मेरे पास आई, दरअसल नेहा ने फिर कोई बुरा सपना देखा था जिस कारण वो रो रही थी! मैंने फ़ौरन नेहा को गोदी में उठाया और उसे पुचकारते हुए घर-भर में चलने लगा| पिताजी को अस्चर्य हुआ की नेहा क्यों रो रही है इसलिए उन्होंने नेहा के रोने का करण जानना चाहा;
मैं: कोई बुरा सपना देखा होगा पिताजी|
मैंने बात को हलके में लेते हुए कहा और नेहा को गोदी में उठाये हुए लाड करने लगा| जब नेहा का रोना बंद हुआ तो उसने मुझे मेरे कमरे की तरफ चलने का इशारा किया| मैं नेहा को ले कर कमरे में आया, आयुष अभी चैन से सो रहा था इसलिए नेहा अपने मन के सवाल आराम से पूछ सकती थी| मैंने नेहा को पलंग पर खड़ा किया और उसके आँसूँ पोछे| अब समय आ गया था की सुबह से जो सवाल नेहा के मन में उमड़ रहे थे उन्हें मुझसे पूछने का;
नेहा: पापा जी, क्या मैं आपसे दूर हो जाऊँगी?
नेहा के इस सवाल ने मुझे झिंझोड़ दिया था इसलिए मैंने एकदम से नेहा को अपने सीने से लगा चिपका लिया और बोला;
मैं: बेटा मैंने आपको कहा था न की आपको मुझसे कोई दूर नहीं कर सकता!
ये सुनकर नेहा के मन को चैन मिला और उसने मुझे अपनी बाहों में कसना शुरू कर दिया| एक पल के लिए वो शाँत रहीं, फिर कुछ सोचते हुए बोली;
नेहा: फिर सुबह दादाजी आपको डाँट क्यों रहे थे? और...आप मम्मी से शादी करना चाहते हो? और...और...मेरा छोटा भाई या छोटी बहन आने वाली है?
नेहा ने एक-एक कर अपने सवाल पूछे और उसके सवाल सुन मैंने उसे सब सच बताने का निर्णय लिया| मैंने नेहा के दोनों कंधे पकड़े और उसे सच से रूबरू कराने लगा;
मैं: बेटा चन्दर ने यहाँ काम करते हुए बेईमानी की थी और डर के मारे गाँव भाग गया| आपके बड़े दादाजी (बड़के दादा) को जब ये पता चला तो उन्होंने आपको, आयुष को और आपकी मम्मी को गाँव बुलाया| लेकिन आपके दादाजी (मेरे पिताजी) ने उन्हें (बड़के दादा को) समझाया की इस तरह से बीच साल में बच्चों को गाँव भेजने से आप दोनों (आयुष और नेहा) का साल खराब हो जायेगा| आपके बड़े दादाजी मान गए और हमें (मुझे, संगीता और बच्चों को) अगले साल मार्च तक का समय दिया, मार्च में आपको और आपकी मम्मी को गाँव जाना पड़ता| लेकिन मैं आप तीनों (नेहा, आयुष और संगीता) को खुद से दूर नहीं जाने दे सकता था, इसलिए मैंने आपकी मम्मी (संगीता ) से शादी करने का फैसला किया| जब मैंने ये बात आपके दादाजी को बताई तो उन्हें बहुत गुस्सा आया और उन्होंने मुझे डाँटा, लेकिन मैंने उन्हें (पिताजी को) सारी बात समझा दी और वो मेरी और आपकी मम्मी की शादी के लिए मान गए!
सारी बात सुन नेहा के चेहरे पर मुस्कान आ गई, परन्तु अभी भी उसके एक सवाल का जवाब देना रह गया था;
नेहा: और मेरा छोटा भाई या छोटी बहन? वो कब आएंगे?
नेहा खुश होते हुए पूछने लगी| मैंने दोनों हाथों से नेहा का चेहरा थामा और मुस्कुरा कर बोला;
मैं: हाँ जी बेटा, बहुत जल्दी आपका सबसे छोटा भाई या बहन आएंगे!
ये सुन नेहा ख़ुशी से चहकने लगी|
में: लेकिन बेटा अभी इसके बारे में किसी को बताना नहीं!
नेहा को थोड़ी हैरानी हुई मगर उसने कोई सवाल नहीं पुछा और ख़ुशी से मेरे गले लग गई! मेरी बेटी सिर्फ वही सवाल पूछती थी जो जर्रूरी होते थे, ऐसे सवाल जो मैं उसे समझा न सकूँ उन्हें वो कभी नहीं पूछती थी!
वो दिन प्यार भरा बीता, बच्चों ने अपनी हँसी-ठिठोली से सब को खुश रखा था| मुझे और संगीता को बात करने का मौका ही नहीं मिला! हम तो बस एक दूसरे खुश देख कर ही संतोष कर लेते थे!
संगीता के पिताजी को अगले हफ्ते आना था और मुझे तबतक हमारी शादी के लिए कानूनी रूप से सलाह चाहिए थी जिसके लिए सतीश जी से उपयुक्त कोई नहीं था| मैं अगले दिन ही समय ले कर उनसे मिलने उनके घर पहुँच गया, पिताजी कहते थे की वकील और डॉक्टर से कभी कोई बात नहीं छुपानी चाहिए इसलिए मैंने सतीश जी को सारी बात बता दी| मेरी सारी बात सुन सतीश जी बोले;
सतीश जी: सबसे पहले तो तुम्हें संगीता के divorce के लिए case file करना होगा, उसके बाद ही तुम दोनों शादी कर सकते हो| लेकिन ये इतना आसान काम नहीं है, फिल्मों की तरह आज application और कल शादी नहीं हो सकती! Court में case चलेगा और इस दौरान तुम्हारे नाम से बहुत छीछालेदर होगा, कम से कम डेढ़ साल लगेगा और फिर भी कोई guarantee नहीं की divorce मिलेगा ही!
ये सुन कर मैं बहुत निराश हो गया, क्योंकि मैं चाहता था की संगीता के माँ बनने से पहले ही उनका तलाक हो जाए और हमारी शादी हो जाए ताकि मैं अपने तीनों को कानूनी तौर पर अपना नाम दे सकूँ! मेरी निराशा देख सतीश जी बोले;
सतीश: एक रास्ता है: 'Divorce through registration!' इसके चलते तुम दोनों शादी कर सकरते हो मगर जो aggrieved party है यानी की चन्दर वो कल को तुम पर case कर सकता है क्योंकि ये रास्ता अभी तक court द्वारा मान्य नहीं है!
ये सुन मैं दुविधा में पड़ गया, क्या मैं डेढ़ साल तक इंतजार करूँ या फिर ये छोटा रास्ता ले लूँ? Divorce through registration वाला रास्ता मुझे आसान लग रहा था तो मैंने इसी के विषय में पुछा की क्या होगा अगर सबसे बुरे हालात पैदा हुए तो;
मैं: अगर मान लीजिये हम (मैं और संगीता) Divorce through registration के जरिये शादी कर लें और फिर चन्दर हम पर case कर दे तो क्या आप सब संभाल सकते हैं?
सतीश जी: सच कहूँ तो चन्दर के पास case करने का कोई तथ्य नहीं है, वो लालची है तो तुमसे पैसे ऐठने के लिए ही परेशान करेगा! अब उसे पैसे देना न देना तुम्हारे ऊपर है!
चन्दर को बिना मतलब के पैसे देना मुझे चुभ रहा था इसलिए मैंने सोचा की क्यों न मैं भी उसे blackmail करूँ;
मैं: अगर चन्दर पैसे माँगे तो क्या हम संगीता की तरफ से चन्दर पर 'Domestic violence' का case नहीं कर सकते?
ये सुन सतीश जी मुझे आगाह करने लगे;
सतीश जी: वो बहुत बड़ा पचड़ा है, तुम उसमें न ही पड़ो तो बेहतर है!
सतीश जी की बात सुन मैं अपना सर पकड़ कर बैठ गया क्योंकि मेरे पास अब कोई रास्ता नहीं था जिससे मैं इस शादी को जायज ठहरा सकूँ! ये शादी हमेशा ही खतरे की तलवार बनकर मेरे सर पर लटकती रहती, पता नहीं कब कौन चन्दर के कान भर दे और वो मुझ पर case कर दे| मुझे अपने ऊपर case किये जाने का डर नहीं था, तकलीफ बस इस बात की थी की मेरे माता-पिताजी का नाम खराब होता, जो मैं कतई नहीं चाहता था!
मुझे यूँ चिंतित देख सतीश जी मुझे उम्मीद की किरण दिखाते हुए बोले;
सतीश जी: देखो मानु, चूँकि तुम 'अपने' हो तो मेरे पास एक रास्ता है, लेकिन थोड़ा टेढ़ा है लेकिन जो भी कुछ होगा वो सब मैं सँभाल लूँगा! हाँ और थोड़ा बहुत खर्चा भी होगा?!
सतीश जी की इतनी कही बात मेरे लिए ऐसी थी जैसे भूसे के ढेर में सुई मिलना, मैं फ़ौरन खुश होते हुए बोला;
मैं: जी बताइये?
सतीश: मैं संगीता की तरफ से divorce papers तैयार कर देता हूँ, संगीता तो sign कर ही देगी अब रही चन्दर की बात तो तुम उसे कैसे भी डरा-धमका कर इन papers पर sign करवा लो| इधर मैं ये divorce का case file करूँगा और उधर तुम दोनों (मैं और संगीता) शादी कर लो, तुम्हारा जो marriage certificate होगा उसका जुगाड़ मैं बिठा दूँगा! Divorce का केस आराम से चलने दो, चन्दर ने वकील किया तो भी और नहीं किया तो भी मैं एक तिगड़म बिठा कर उसकी तरफ से वकील खड़ा करवा दूँगा, जो सिर्फ चन्दर के नाम से लड़ेगा लेकिन सुनेगा सिर्फ मेरी! बस दो बातों का ध्यान रखना, पहली की तुम्हारी शादी की बात दबी रहनी चाहिए वरना हो सकता है की court तुम्हें चन्दर को aggrieved party समझ reimburse करने का order दे सकती है और दूसरी बात ये की 1-2 बार संगीता की हाजरी court में लगवानी पड़ेगी!
सतीश जी के तिगड़म वाली बात मेरे गले नहीं उतर रही थी और साथ ही वो जो मेरी और संगीता की शादी वाली बात दबाने की कह रहे थे वो मुझे कुछ अजीब लग रही थी!
मैं: सतीश जी, हमारी (मेरी और संगीता की) शादी की बात दबी कैसे रह सकती है और आप चन्दर की तरफ से वकील कैसे खड़ा कर देंगे?
मेरे सवाल सुन सतीश जी मुस्कुराये और बोले;
सतीश: यही तो पैसा खर्च होगा! तुम शायद जानते नहीं, मैं supreme court का वकील हूँ और यहाँ मेरा इतना रसूख है की मेरी बात को कोई काट नहीं सकता! तुम्हारा case family court में जायेगा और वहाँ मेरी बहुत जान-पहचान है| रही बात चन्दर के वकील की तो उसकी भी तुम चिंता मत करो, मैं Delhi Bar Council का secretary रह चूका हूँ और इस बार के Bar Council के Chairman मेरे जान-पहचान के हैं! चन्दर ने अगर कोई वकील किया भी तो उसकी कोई मजाल नहीं जो मेरे सामने चूँ कर दे, वो वही करेगा जो मैं कहूँगा!
सतीश जी बड़े ताव से बोले, उनकी बातें सुन कर मुझे उनपर विश्वास हो गया था, अब बस एक ही सवाल था;
मैं: सर बस एक सवाल और, मेरे Marriage Certificate का क्या होगा? दरअसल मैं चाहता था की शादी के बाद जो marriage certificate बनता उसे दिखा कर मैं बच्चों के school में उनके पिता के नाम की जगह अपना नाम लिखवा सकूँ! लेकिन मेरी शादी के बाद जो marriage certificate बनेगा और संगीता के divorce के बाद को marriage certificate बनेगा उसमें तारिख का अंत होगा, जिसे मैं school authorities के सामने justify कैसे करूँगा?
सतीश जी: यार उसकी कोई दिक़्क़त नहीं, तुम जो दिन बोलोगे उस दिन मेरे साथ मुख़र्जी नगर चलना, वहीं मंदिर में तुम्हारी शादी करवा कर तुम्हें marriage registrar के ले चलूँगा! Marriage certificate में जो तुम दोनों की असली शादी और divorce के बाद की तारिख का अंतर् होगा उसे भी मैं जुगाड़ लगा कर सुलझा दूँगा! जब Divorce के बाद जब marriage certificate मिले तब तुम मेरी बात बच्चों के school की principal से करवा देना, वो मेरी बात कभी नहीं टालेंगी! अब बोलो है कोई और कोई सवाल?
सतीश जी मुस्कुराते हुए बोले| अब मेरे मन में नेश मात्र भी शक नहीं था तो मैंने फ़ौरन न में गर्दन हिलाई और मुस्कुराते हुये उन्हें धन्यवाद देने लगा;
मैं: Thank you so much सर!
मैंने हाथ जोड़ कर कहा तो सतीश जी मुस्कुराते हुए बोले;
सतीश: अरे यार thank you काहे का? दो प्यार करने वालों को मिलाना तो पुण्य का काम होता है!
सतीश जी खुश होते हुए मुस्कुरा कर बोले| उनका मुस्कुराता हुआ चेहरा देख मुझे यक़ीन हो गया की उन्हें सच में दो प्यार करने वालों को मिलाने की ख़ुशी हो रही थी!
सतीश जी के घर से ख़ुशी-ख़ुशी मैं घर लौटने लगा, मेरी आँखें ख़ुशी के मारे चमक रहीं थीं और दिल अनेकों कल्पनाएँ करने में लगा हुआ था| मैंने दिषु को फ़ोन कर के सारी बात बताई तो वो भी ख़ुशी से फूला नहीं समाया और सीधा party की माँग करने लगा| मैंने उसे समझाया की एक बार सब सुलझ जाए तो उसकी party पक्की, तब जा कर वो माना| घर पहुँच कर मैंने माँ-पिताजी को सारी बात बताई तो वो बहुत खुश हुए और इसी ख़ुशी में वे जशन के मुद्दे पर बात करने लगे! माँ-पिताजी की इच्छा थी की शादी धूम-धाम से हो, आखिर उनके एकलौते लड़के की शादी जो थी और इधर मैं शादी मंदिर में करने के चक्कर में था क्योंकि मैं जानता था की हमारी (संगीता और मेरी) शादी को ले कर मोहल्ले वाले तरह-तरह की बातें करेंगे जो माँ-पिताजी के लिए सहना मुश्किल होता! लेकिन माँ-पिताजी को जमाने की कोई परवाह नहीं थी, उन्हें बस अपने बेटे की ख़ुशी चाहिए थी इसलिए वो किसी भी खर्चे से चूकने वाले नहीं थे! जब मैंने उनके धूम-धाम से शादी के लिए ऐतराज जताये तो उन्हें मेरा ऐतराज करना जायज नहीं लगा और वो मुझसे कारन जानने के इच्छुक हो गए, अब मैं उन्हें ये सब कैसे कहता की मेरे ऐतराज करने का कारन है की मोहल्ले वाले आपको ताने न मारें, क्योंकि मेरा ये कहना मेरी अभी तक माँ-पिताजी को इस शादी के लिए राज़ी करवाने की मेहनत पर पानी फेर देता!
मैं: पिताजी court case में खर्चा होगा, इसलिए मैं सोच रहा था की शादी सादे ढँग से हो!
मैंने court के खर्चे का बहना किया तो माँ-पिताजी खामोश हो गए, अब मैं उनकी अपने बेटे की शादी धूम-धाम से करने की ख़ुशी नहीं छीनना चाहता था इसलिए उनका मन रखने के लिए मैंने कहा;
मैं: पिताजी ऐसा करते हैं की एक बढ़िया सा reception रख लेते हैं!
मैंने खुश होने का नाटक करते हुए कहा तो पिताजी और माँ भी खुश हो गए|
पिताजी: ठीक है तो इसकी तैयारी मैं करूँगा, तू काम-धाम सँभाल!
पिताजी ने बड़े हक़ से मुझे reception plan करने के काम से दूर कर दिया|
वहीं दूसरी तरफ माँ ने संगीता को अपने साथ कपडे खरीदने के लिए व्यस्त कर लिया, संगीता भी बड़े चाव से माँ को online कपडे दिखा रही थी| जब शादी का जोड़ा खरीदने की बात आई तो माँ ने संगीता से पुछा की वो क्या पहनना चाहेंगी तो संगीता की गर्दन मेरी ओर घूम गई! संगीता को यूँ मुझे देखते हुए देख माँ हँस पड़ीं ओर मेरी टाँग खींचते हुए बोलीं;
माँ: हाँ तो बोल लाड साहब, क्या पहने मेरी बहु?
माँ का सवाल सुन मैं हक़्क़ा-बक्का रह गया, यहाँ मैंने अभी तक नहीं सोचा था की मैं क्या पहनूँगा तो मैं कैसे बताऊँ की संगीता क्या पहने?
मैं: अभी मैंने अपना नहीं सोचा तो मैं इनके कपड़ों का क्या कहूँ?
मैंने माँ से नजरें चुराते हुए पल्ला झाड़ा तो माँ मुझे झिड़कते हुए बोलीं;
माँ: एक तो बहु तुझसे पूछ रही है, ऊपर से तेरे नखरे हैं!
फिर माँ ने संगीता की ठुड्डी ऊपर उठाई ओर बड़े गर्व से बोलीं;
माँ: इसे (मुझे) छोड़, तू ये बता की तुझे क्या पसंद है?
पिताजी घर पर थे नहीं इसलिए माँ का सवाल सुन संगीता में हिम्मत आ गई और वो शर्माते हुए बोली;
संगीता: माँ दिवाली वाले दिन मैंने नेहा को लहँगा-चोली पहने देखा था, तो मैं भी वैसा ही लहँगा-चोली पहनू?
संगीता ने अपनी इच्छा जाहिर की परन्तु माँ की मर्जी के बिना वो लहँगा-चोली नहीं पहनती| इधर लहँगा-चोली का नाम सुन मेरी आँखों के आगे संगीता की तस्वीर लहँगा-चोली पहने हुए आ गई और मेरे होठों पर प्यार तथा शैतानी भरी मुस्कान आ गई! माँ ने मेरी मुस्कान देखि तो वो फ़ट से बोलीं;
माँ: ठीक है बहु, तू कल मेरे साथ चल मैं तुझे अच्छा सा लहँगा-चोली सिलवा कर दूँगी!
माँ की बात सुन संगीता खुश हो गई ओर माँ के सीने से लग कर मुझे माँ की चोरी से जीभ चिढ़ाने लगीं!
खैर वो पूरा हफ्ता मेरे घर में शादी की तैयारियों की बातों से भरा हुआ था, माँ-पिताजी ने मुझे तथा संगीता को खास कर इन बातों से दूर रखा गया था! नेहा अपने पापा की शादी के बारे में सब जानती थी परन्तु आयुष इन सब बातों से अनजान था, न तो उसे पता था की शादी क्या होती है और न ही उसे ये समझ आता की उसके पापा-मम्मी शादी क्यों कर रहे हैं, इसलिए नेहा आयुष को पढ़ाई में लगाए रखती, लेकिन आयुष को जब भी समय मिलता वो अपनी नटखट हरकतों से सबको खुश रखता| कभी अपने दादा-दादी जी की गोदी में चढ़ कर सोने की जिद्द करता तो कभी पूरे घर में hotwheels का track set बिछा कर गाडी चलाता रहता और अगर फिर भी उसका मन नहीं भरता तो वो नेहा को तंग करने में लग जाता! रात में जब मैं घर आता तो संगीता माँ के सामने आयुष की प्यारभरी शिकायत ले कर बैठ जातीं, जिसे मैं आयुष को प्यार से समझाते हुए सुलझा देता|
जहाँ एक ओर मेरे घर में जोरों-शोरों से शादी की तैयारी जारी थी वहीं दूसरी ओर मैं अपने होने वाले ससुर जी को अपनी शादी के लिए मनाने की जुगत में लगा था| जब पिताजी को मनाने में मैंने तीन थप्पड़ खाये थे तो अपने होने वाले ससुर जी को मनाने के लिए मुझे नजाने कितने थप्पड़ खाने पड़ते! फिर ससुर जी के थप्पड़ों के बाद बारी आती बड़के दादा की और जितना मैं उन्हें (बड़के दादा को) जनता था वो थप्पड़ों से बात नहीं करते!
[color=rgb(51,]जारी रहेगा भाग-10 में...[/color]