Hindi Antarvasna एक अनोखा बंधन - पुन: प्रारंभ


[color=rgb(255,]चौबीसवाँ अध्याय: उलझते-सुलझते बंधन[/color]
[color=rgb(226,]भाग-1[/color]


मैं भौजी को प्यार से समझा-बुझा कर नीचे ले आया| रात का खाना मैंने बाहर से मँगाया और हम पाँचों ने साथ बैठ कर खाना खाया| बच्चे मेरे और अपनी मम्मी के जीवन में उठे तूफ़ान से अनजान थे इसलिए बड़े मजे से खाना खा रहे थे! उधर भौजी थोड़ा खामोश-खामोश थीं, माँ उनसे जो थोड़ी बहुत बात कर रहीं थीं, भौजी बस उसका जवाब दे रहीं थीं! इधर मैं अपना ध्यान बच्चों को खाना खाने में लगाए हुए था, ताकि बच्चों के मन में कोई शक न पनपे! पिताजी रात 10 बजे की गाडी से आने वाले थे, इसलिए खाना खा कर मैंने चुपके से भौजी को गर्म पानी करके दिया ताकि वो अपनी सिंकाई कर सकें! फिर मैं पिताजी को लेने railway station निकल गया, ट्रैन थोड़ी लेट थी इसलिए हमें (मुझे और पिताजी को) घर लौटते हुए देर हो गई! घर लौट कर पता चला की भौजी दवाई ले कर सो चुकी हैं, बच्चे मेरे बिना सो नहीं रहे थे इसलिए भौजी ने उन्हें बहुत बुरी तरह डाँटा और बच्चे रोते-रोते सो गए! मुझे उनपर (भौजी पर) गुस्सा तो बहुत आया मगर मैंने अपने गुस्से को दबाया और पिताजी के साथ dining table पर बैठ गया| पिताजी ने खाना खाया और मुझसे काम के बारे में report माँगी, मैंने उन्हें सारी जानकारी दी| हम आगे बात करते मगर माँ ने 'कौन बनेगा करोड़पति के अमिताभ बच्चन' की तरह समय समाप्ति की घोषणा कर दी;

माँ: बस करो जी! थके-मांदे आये हो, ग्यारह बज रहे हैं, आराम करो और लड़के को भी आराम करने दो!

माँ की बात सुन पिताजी हँस पड़े और सोने चले गए| मैंने एक नजर भौजी के कमरे में डाली तो पाया की वो सो रही हैं या कम से कम दूर से देख कर तो ऐसा ही लगा|

मैं अपने कमरे में आया तो देखा बच्चे अब भी जगे हुए थे, नेहा ने अपनी बड़ी बहन होने का फ़र्ज़ अच्छे से निभाया था और आयुष की पीठ थपथपाते हुए सुला रही थी! जैसे ही कमरे का दरवाजा खोल कर मैं अंदर आया दोनों बच्चे फुर्ती से पलंग पर खड़े हो गए! मैंने आगे बढ़कर दोनों को गले लगाया, और उनके सर पर हाथ फेरते हुए बोला;

मैं: बेटा मैं कपडे बदल लूँ फिर मैं आप दोनों को प्याली-प्याली कहानी सुनाता हूँ|

अब जा कर दोनों बच्चे मुस्कुरा रहे थे, मैंने कपडे बदले और फटाफट बिस्तर में घुस गया| मैं पलंग के बीचों-बीच लेटा था, अपनी दोनों बाहों को फैलाते हुए मैंने दोनों बच्चों के लिए तकिया बना दिया| आयुष मेरी बाईं तरफ लेटा और नेहा मेरी दाहिनी तरफ, दोनों ने अपने हाथ मेरे सीने पर रख दिए तथा मुझसे से सट कर लेट गए| आयुष ने अपनी बाईं टाँग उठा कर मेरे पेट पर रख दी, उसकी देखा देखि नेहा ने भी अपनी दाईं टाँग उठा कर मेरे पेट पर रख दी! मैंने अपने दोनों हाथों को कस कर बच्चों को अपने सीने से कस लिया और उन्हें एक प्यारी-प्यारी कहानी सुनाने लगा| कुछ ही मिनटों में दोनों बच्चों की आँख लग गई और वो चैन से सो गए|

वो पूरी रात मैं जागता रहा और सोचता रहा की कल मैं कैसे हिम्मत जुटा कर पिताजी से सच कहूँगा? ये तो तय था की पिताजी नहीं मानेंगे और बात घर छोड़ने पर आ जायेगी, लेकिन क्या मेरा घर छोड़ना सही होगा? क्या अपने माँ-पिताजी के इतने प्यार-दुलार का यही सिला होना चाहिए की मैं भौजी के लिए उन्हें छोड़ दूँ? मेरी माँ जिसने मुझे नौ महीने अपनी कोख में रखा, मेरा लालन-पालन किया उसे अपने बच्चों (नेहा-आयुष) के लिए छोड़ दूँ? या मेरे पिताजी जिन्होंने एक पिता होने की सारी जिम्मेदारियाँ निभाईं, मुझे अच्छे संस्कार दिए, एक अच्छा इंसान बनाया उन्हें अपने प्यार (भौजी) के लिए छोड़ दूँ? दिमाग में खड़े इन सवालों ने मुझे एक पल के लिए भी सोने नहीं दिया!

सोचते-सोचते सुबह के 6 बज गए, भौजी बच्चों को जगाने आईं तो मुझे खुली आँखों से कमरे की छत को घूरते हुए पाया|

भौजी: सोये नहीं न सारी रात?

भौजी के सवाल को सुन मैं अपने सवालों से बाहर आया;

मैं: नहीं और जानता हूँ की आप भी नहीं सोये होगे, लेकिन आज पिताजी से बात करने के बाद सब ठीक हो जायेगा!

मैंने गहरी साँस छोड़ते हुए, उठ कर पीठ टिका कर बैठते हुए कहा|

भौजी: मैं आपसे एक विनती करने आई हूँ|

भौजी ने गंभीर आवाज से कहा| मैं जान गया की वो मुझसे यही विनती करेंगी की मैं पिताजी से बात न करूँ, इसलिए मैंने पहले ही उनकी इस बात को मानने से मना कर दिया;

मैं: हाँ जी बोलो! लेकिन अगर आप चाहते हो की मैं वो बात पिताजी से न करूँ तो I'm sorry मैं आपकी ये बात नहीं मानूँगा|

मैंने प्यार से अपना फैसला भौजी के सामने रख दिया|

भौजी: नहीं मैं आपको बात करने के लिए रोक नहीं रही! मैं बस ये कह रही हूँ की आप बात करो पर अभी नहीं, दिवाली खत्म होने दो! कम से कम एक दिवाली तो आपके साथ मना लूँ, क्या पता फिर आगे मौका मिले न मिले?!

भौजी की बातों से ये तो तय था की वो हिम्मत हार चुकीं हैं, उनके मन में ये बात बैठ चुकी है की हमारा साथ छूट जाएगा!

मैं: Hey जान! ऐसे क्यों बोल रहे हो? ऐसा कुछ नहीं होगा, मैं आपको खुद से दूर नहीं जाने दूँगा!

मैंने भौजी को हिम्मत बँधाई|

मैं: आप चाहते हो न की मैं दिवाली के बाद बात करूँ तो ठीक है, लेकिन दिवाली के बाद मैं पिताजी से बात करने में एक भी दिन की देरी नहीं करूँगा! ठीक है?

भौजी मेरे आश्वासन से संतुष्ट थीं|

भौजी: जी ठीक है!

भौजी ने बेमन से कहा और बाहर चली गईं|

इधर मेरे बच्चे कुनमुना रहे थे इसलिए मैंने दोनों के सर चूमते हुए उन्हें उठाया| नींद से जागते ही आयुष और नेहा ने मेरे गाल पर अपनी प्याली-प्याली पप्पी दी तथा ब्रश करने लगे| बाकी दिन नेहा सबसे पहले तैयार होती थी और आयुष को मुझे तैयार करना होता था, मगर आज आयुष पहले तैयार हो गया तथा मेरे फ़ोन पर गेम खेलने बैठ गया| जब नेहा तैयार हुई तो आयुष की पीठ पर थपकी मारते हुए बोली;

नेहा: सारा दिन गेम-गेम खेलता रहता है!

नेहा की प्यारभरी झिड़की सुन आयुष उसे जीभ चिढ़ाने लगा और मेरा मोबाइल लिए हुए घर में दौड़ने लगा| दोनों बच्चों के हँसी-ठाहके से मेरा घर गूँजने लगा और इस हँसी-ठाहके ने माँ-पिताजी के चेहरे पर भी मुस्कान ला दी! माँ-पिताजी के चेहरे पर आई ये मुस्कान मेरे लिए उम्मीद की किरण साबित हुई, मेरा आत्मविश्वास और पक्का हो गया की मैं अपने मकसद में जर्रूर कामयाब हूँगा!

खैर दोनों बच्चों को गोदी में लिए हुए मैं उन्हें school van में बिठा आया, घर आ कर नाश्ता करते समय पिताजी ने मुझे आज के कामों की list बना दी| तीन sites के बीच आना-जाना था इसलिए दोपहर को घर पर खाना नामुमकिन था| मैं तैयार हो कर कमरे से निकलने लगा तो भौजी मेरे कमरे में आईं और प्यार से बोलीं;

भौजी: मैं रात के खाने पर आपका इंतजार करुँगी!

सुबह के हिसाब से अभी भौजी का दिल थोड़ा खुश था, इसलिए मैंने मुस्कुरा कर हाँ में सर हिला दिया| इतने में बाहर से पिताजी की आवाज आई तो मैं उनके पास पहुँचा, दोनों बाप-बेटे घर से साथ निकले और सबसे पहले सतीश जी के यहाँ पहुँचे| संतोष वहाँ पहले से ही मौजूद था तो मैंने उसके साथ मिलकर सतीश जी का काम पहले शुरू करवा दिया| फिर वहाँ से मैं गुडगाँव साइट पहुँचा और architect के साथ काम का जायजा लिया| उसके बाद नॉएडा और फिर वापस गुडगाँव, इस भगा दौड़ी में मैंने ध्यान नहीं दिया की मेरा फ़ोन switch off हो चूका है! दरअसल सुबह गेम खेलते हुए आयुष ने फ़ोन की बैटरी आधी कर दी थी! दोपहर को lunch के समय बच्चों ने मुझे कॉल किया मगर मेरा फ़ोन तो switch off था! मुझे भी lunch करने का समय नहीं मिला क्योंकि तब मैं पिताजी वाली साइट की तरफ जा रहा था| शाम को मैंने अपना फ़ोन देखा तो पता चला की मेरा फ़ोन discharge हो चूका है, अब न मेरे पास charger था न power bank की मैं अपना फ़ोन charge कर लूँ!

रात को मुझे आने में देर हो गई, रात के ग्यारह बजे थे| पिताजी खाना खा कर सो चुके थे, बस माँ और भौजी जागीं हुईं थीं! मुझे देख कर भौजी का चहेरा गुस्से से तमतमा गया था, मैं जान गया था की आज मेरी ऐसी-तैसी होने वाली है! मैं कपडे बदलने कमरे में आया तो भौजी भी गुस्से में मेरे पीछे-पीछे आ गईं;

भौजी: सुबह से आपने एक कॉल तक नहीं किया, इतना busy हो गए थे?

भौजी गुस्से से बोलीं|

मैं: जान फ़ोन की बैटरी discharge हो गई थी, इसलिए कॉल नहीं कर पाया!

मैंने अपनी सफाई देते हुए कहा, लेकिन भौजी का गुस्सा रत्तीभर कम नहीं हुआ था!

मैं: I'm sorry जान!

मैंने का पकड़ते हुए प्यार से भौजी को sorry कहा, मगर उनका गुस्सा फिर भी कम नहीं हुआ!

मैं: अच्छा...I know आपने खाना नहीं खाया होगा, चलो चल कर खाना खाते हैं, फिर आप जो सजा दोगे मुझे कबूल होगी!

मैंने बात बनाते हुए कहा ताकि भौजी का गुस्सा शांत हो जाए, मगर वो तुनकते हुए बोलीं;

भौजी: नहीं! मैंने खाना खा लिया!

भौजी का जवाब बड़ा रुखा था! उनका गुस्सा देख मैंने ज्यादा दबाव डालने की नहीं सोची, भौजी भी आगे कुछ नहीं बोलीं और तुनक कर अपने कमरे में चली गईं| मैं कपडे बदलकर बाहर आया तो माँ ने खाना परोस दिया, खाना खाते हुए मैंने चपलता दिखाते हुए भौजी के खाना खाने के बारे में पुछा तो माँ ने बताया की भौजी ने सबके साथ बैठ कर खाना खाया था, मुझे संतोष हो गया की कम से कम उन्होंने (भौजी ने) खाना तो खा लिया था| खाना खा कर मैं बच्चों को लेने के लिए भौजी के कमरे में पहुँचा;

मैं: नेहा...आयुष?

मेरी आवाज सुनते ही नेहा जाग गई और आयुष को जगाने लगी, लेकिन तभी भौजी ने नेहा को डाँट दिया;

भौजी: सो जा चुपचाप!

भौजी की डाँट सुनते ही नेहा सहम गई और फिर से लेट गई! मुझे बुरा तो बहुत लगा पर मैं भौजी के गुस्से को छेड़ना नहीं चाहता था, इसलिए चुप-चाप अपने कमरे में आ कर लेट गया| बच्चों को अपने सीने से चिपका कर सोने की आदत थी, इसलिए अपनी इस आदत के चलते मैंने अपना तकिया अपने सीने से चिपकाया और बच्चों की कल्पना कर सोने की कोशिश करने लगा|

अगली सुबह 5 बजे मेरी बेटी कमरे में आई, मुझे यूँ तकिये को अपने सीने से लगाए हुए देख वो पलंग पर चढ़ी और गुस्से से तकिये को खींच कर फेंक दिया! नेहा जानती थी की गाँव से आने के बाद, मैं नेहा को याद कर के इसी तरह सोता था, लेकिन नेहा को ये कतई पसंद नहीं था क्योंकि वो मुझे इस तरह तरसते हुए नहीं देख सकती थी! नेहा के तकिया खींचने से मेरी नींद खुल गई थी, मैंने अधखुली आँखों से उसे देखा और हैरान हुआ! तभी मुस्कुराते हुए नेहा मेरी छाती पर चढ़ गई और बिना कुछ कहे सो गई! मैंने नेहा का सर चूमा और उसे अपनी बाहों में कसते हुए सो गया!

कुछ देर बाद alarm बजा तो मैंने नेहा का सर चूमते हुए उसे उठाया और ब्रश करने भेज दिया| इधर नेहा गई और उधर आयुष दौड़ता हुआ आया और मेरी गोदी में चढ़ गया| 10 मिनट तक मैं आयुष को गोदी लिए हुए कमरे में इधर से उधर चलता रहा, तभी भौजी गुस्से से भरी हुईं कमरे में आईं और आयुष पर चिल्लाईं;

भौजी: आयुष! तुझे ब्रश करने को कहा था न? चल जल्दी से ब्रश कर!

आयुष को डाँट पड़ी थी मगर फिर भी वो डरा नहीं क्योंकि वो अपने पापा की गोदी में था| मैंने आयुष को लाड करते हुए ब्रश करने को कहा तो वो ख़ुशी-ख़ुशी ब्रश करने चला गया| इधर नेहा अपने स्कूल के कपडे पहनने भौजी के कमरे में चली गई, मैं उठ कर बाहर बैठक में आ कर बैठ गया| पिताजी ने आज के कामों के बारे में मुझे बताना शुरू कर दिया, कल के मुक़ाबले आज काम कम थे इसलिए मैंने सोच लिया था की आज उन्हें (भौजी को) नाराज नहीं करूँगा और समय से खाने पर आ जाऊँगा|

आज मेरा एक काम बच्चों के स्कूल के पास का था, इसलिए आज बच्चों को मैंने खुद स्कूल छोड़ा और अपने काम पर निकल गया| जल्दी निकलने के चक्कर में आज मैंने नाश्ता नहीं किया था, बाकी दिन जब मैं बिना नाश्ता किये निकलता था तो भौजी मुझे नाश्ते के समय कॉल अवश्य करती थीं| मैं जानता था की कल के गुस्से के कारन वो तो आज मुझे कॉल करेंगी नहीं इसलिए मैंने ही उन्हें कॉल घुमाया, फ़ोन बजता रहा मगर भौजी ने फ़ोन नहीं उठाया| मैंने सोचा की शायद माँ सामने होंगी इसलिए नहीं उठा रहीं, कुछ देर बाद मैंने फिर फ़ोन मिलाया, परन्तु भौजी ने फ़ोन नहीं उठाया अलबत्ता काट कर switch off कर दिया! 1 बजे तक मैंने सैकड़ों बार फ़ोन किया मगर भौजी का फ़ोन switch off ही रहा, मैं समझ गया की उन्होंने जानबूझ कर फ़ोन बंद कर रखा है| मैंने what's app पर उन्हें प्यारभरा sorry लिख कर भेज दिया, सोचा शायद मैसेज देख कर उनका दिल पिघल जाये, मगर ऐसा हुआ नहीं!

दोपहर डेढ़ बजे नेहा ने मुझे फ़ोन करना था, उसने जब अपनी मम्मी से फ़ोन माँगा तो भौजी ने उसे कह दिया की बैटरी खत्म हो गई है! मेरी बेटी बहुत होशियार थी, उसने अपनी दादी जी यानी मेरी माँ से फ़ोन लिया और मेरे कमरे में जा कर मुझे फ़ोन किया|

नेहा: पापा जी, आप घर कब आ रहे हो?

नेहा ने चहकते हुए पुछा|

मैं: क्या बात है, मेरा बच्चा आज बहुत खुश है?

मैंने पुछा तो नेहा ख़ुशी-ख़ुशी बोली;

नेहा: आप घर आओगे तब बताऊँगी!

मैं: मैं बस 15 मिनट में आ रहा हूँ बेटा!

मैंने फ़ोन रखा और सोचने लगा की मेरी बेटी आज इतना खुश क्यों है?

कुछ देर बाद जैसे ही मैं घर में घुसा नेहा दौड़ती हुई आई और मेरी टाँगों से लिपट गई| मैंने नेहा को गोद में उठाया और अपने कमरे में आ गया;

नेहा: पापा जी एक मिनट!

नेहा नीचे उतरने के लिए छटपटाई, मैंने उसे नीचे उतारा तो वो भौजी वाले कमरे में दौड़ गई और वापसी में अपने साथ अपनी एक कॉपी ले आई| उसने अपनी कॉपी खोल कर मुझे दिखाई और बोली;

नेहा: पापा जी मुझे आज surprise class test में 'Excellent' मिला!

वो 'Excellent' मिलने की ख़ुशी नेहा के लिए किसी पद्म विभूषण से कम नहीं थी| मैंने नेहा को अपने सीने से लगाया और उसके सर को चूमते हुए बोला;

मैं: I'm proud of you my बच्चा!

नेहा को खुद पर इतना गर्व हो रहा था की जिसकी कोई सीमा नहीं थी! नेहा को गोदी में ले कर मैं बाहर आया और माँ को ये बात बताई, माँ को excellent का मतलब नहीं पता लेकिन पूरे नंबर सुन कर माँ ने नेहा को आशीर्वाद दिया| आयुष नहा कर निकला और मेरी गोद में आने को कूदा, आयुष को गोदी में उठा कर मैं गोल-गोल घूमने लगा! आयुष को इस खेल में मज़ा आ रहा था और वो चहक रहा था| तभी भौजी को पता नहीं क्या हुआ वो आयुष को झिड़कते हुए बोलीं;

भौजी: देख अपनी दीदी को, आज उसे surprise class test में EXCELLENT मिला है और तू है की सारा दिन बस खेलता रहता है!

अपनी मम्मी की झिड़की सुन आयुष उदास हो गया| अब मैं उसकी तरफदारी करता तो भौजी नाराज हो जातीं, इसलिए मैं आयुष को गोद में पुचकारते हुए अपने कमरे में आ गया|

मैं: कोई बात नहीं बेटा, जब आपका class test होगा न तब आप भी खूब मन लगा कर पढ़ना और अच्छे नंबर लाना|

पढ़ाई को लेकर मैं अपने बच्चों पर कोई दबाव नहीं बनाना चाहता था, न ही ये चाहता था की आयुष और नेहा के बीच class में top करने की कोई होड़ हो इसीलिए मैंने आयुष से class में top करने की कोई बात नहीं कही| इतने में पीछे से नेहा आ गई और आयुष की पीठ पर हाथ फेरते हुए बोली;

नेहा: आयुष मैं है न अब से तुझे पढ़ाऊँगी, फिर तुझे भी class में excellent मिलेगा!

इतना सुनना था की आयुष खुश हो गया और पहले की तरह चहकने लगा|

दोपहर का खाना खा कर मैं फिर काम पर निकल गया और रात को समय से घर आ गया| मुझे लगा था की मेरे आज सबके साथ खाना खाने से भौजी का गुस्सा कम होगा पर ऐसा नहीं हुआ| रात के खाने के बाद सोने की बारी थी, पिताजी अपने कमरे में लेट चुके थे, माँ टी.वी. देख रहीं थीं, नेहा मेरी गोद में बैठी थी और आयुष ब्रश कर रहा था| इतने में भौजी पीछे से आ गईं और नेहा को सोने के लिए बोलने लगीं, नेहा ने अपनी होशियारी दिखाई और मेरी गोद में बैठ कर सोने का ड्रामा करने लगी! मैंने नेहा का ड्रामा देख लिया था, पर मैं फिर भी खामोश रहा और नेहा की साइड हो लिया| भौजी नेहा को लेने के लिए मेरे पास आईं तो मैंने धीमी आवाज में कहा;

मैं: नेहा सो गई|

भौजी में इतनी हिम्मत नहीं थी की वो नेहा को मेरी गोद से ले लें, इसलिए वो बिना कुछ कहे माँ की बगल में टी.वी. देखने बैठ गईं| अब मैं ज्यादा देर वहाँ बैठता तो भौजी को पता लग जाता की नेहा जागी है, इसलिए मैं नेहा को गोद में ले कर उठा और अपने कमरे में आ गया| कमरे का दरवाजा भिड़ा कर दोनों बाप-बेटी लेट गए;

मैं: मेरा बच्चा ड्रामा करता है!

मैंने नेहा का सर चूमते हुए कहा तो नेहा के चेहरे पर नटखट भरी मुस्कान आ गई| नेहा उठी और मेरी छाती पर सर रख कर बोली;

नेहा: पापा जी....मुझे न अच्छा नहीं लगता की आप तकिये को पकड़ कर सोते हो....आपकी बेटी है न यहाँ?!

जिस तरह से नेहा ने अपनी बात कही थी उसे सुन कर मैं बहुत भावुक हो गया था! मेरी बेटी अपने पापा के दिल का हाल समझती थी, वो जानती थी की मैं उसे कितना प्यार करता हूँ और उसकी (नेहा की) कमी पूरी करने के लिए रत को सोते समय तकिया खुद से चिपका कर सोता हूँ! एक पिता के लिए इस बड़ी उपलब्धि क्या होगी की उसके बच्चे जानते हैं की उनके पिता के दिल में कितना प्यार भरा है!

मैंने नेहा को कस कर अपनी बाहों में भरा और उसके सर को चूमते हुए बड़े गर्व से बोला;

मैं: ठीक है मेरा बच्चा! अब से जब भी आपको miss करूँगा, तो आपको बुला लूँगा! फिर मैं आपको प्यारी-प्यारी कहानी सुनाऊँगा और आप मुझे प्यारी-प्यारी पप्पी देना!

मेरी बात सुन नेहा मुस्कुराने लगी और मेरे दाएँ गाल पर अपनी मीठी-मीठी पप्पी दे कर सो गई|

[color=rgb(51,]जारी रहेगा भाग-2 में...[/color]
 

[color=rgb(255,]चौबीसवाँ अध्याय: उलझते-सुलझते बंधन[/color]
[color=rgb(226,]भाग-2[/color]


[color=rgb(0,]अब तक आपने पढ़ा:[/color]

नेहा: पापा जी....मुझे न अच्छा नहीं लगता की आप तकिये को पकड़ कर सोते हो....आपकी बेटी है न यहाँ?!

जिस तरह से नेहा ने अपनी बात कही थी उसे सुन कर मैं बहुत भावुक हो गया था! मेरी बेटी अपने पापा के दिल का हाल समझती थी, वो जानती थी की मैं उसे कितना प्यार करता हूँ और उसकी (नेहा की) कमी पूरी करने के लिए रत को सोते समय तकिया खुद से चिपका कर सोता हूँ! एक पिता के लिए इस बड़ी उपलब्धि क्या होगी की उसके बच्चे जानते हैं की उनके पिता के दिल में कितना प्यार भरा है!

मैंने नेहा को कस कर अपनी बाहों में भरा और उसके सर को चूमते हुए बड़े गर्व से बोला;

मैं: ठीक है मेरा बच्चा! अब से जब भी आपको miss करूँगा, तो आपको बुला लूँगा! फिर मैं आपको प्यारी-प्यारी कहानी सुनाऊँगा और आप मुझे प्यारी-प्यारी पप्पी देना!

मेरी बात सुन नेहा मुस्कुराने लगी और मेरे दाएँ गाल पर अपनी मीठी-मीठी पप्पी दे कर सो गई|

[color=rgb(44,]अब आगे: [/color]

अगली सुबह बाप-बेटी समय से उठ गए, नेहा ब्रश करने लगी तो इधर आयुष मेरी गोदी में चढ़ गया| भौजी इस समय अपने कमरे में बच्चों के स्कूल के कपडे इस्त्री कर रहीं थीं, मुझे उनसे बात करने का मन था मगर बात शुरू कैसे करूँ ये सोच रहा था| तभी दिमाग की बत्ती जली और मैंने अपना कंप्यूटर चालु कर उसमें एक गाना लगा दिया, तथा उसके बोल गुनगुनाते हुए भौजी के कमरे की ओर चल पड़ा|

"रूठ ना जाना तुम से कहूँ तो

मैं इन आँखों में जो रहूँ तो

तुम ये जानो या ना जानो

तुम ये जानो या ना जानो

मेरे जैसा दीवाना तुम पाओगे नहीं

याद करोगे मैं जो ना हूँ तो,

रूठ ना जाना तुम से कहूँ तो!"

गाने के बोल सुन भौजी अपने कमरे से बाहर आ गईं और मुझे आयुष को गोदी में लिए हुए देखने लगीं| मुझे गाता हुआ सुन आयुष जाग गया और मुस्कुराते हुए अपने दोनों हाथ उठा कर मेरी गोदी में ही नाचने लगा!

"मेरी ये दीवानगी कभी ना होगी कम,

जितने भी चाहे तुम कर लो सितम,

मुझसे बोलो या ना बोलो,

मुझको देखो या ना देखो,

ये भी माना मुझसे मिलने आओगे नहीं,

सारे सितम हँसके मैं सहूँ तो,

रूठ ना जाना तुम से कहूँ तो!"

मैंने गाने के प्रथम अन्तरे को गुनगुनाते हुए भौजी को उल्हाना दिया, कल से जो वो मुझसे बात नहीं कर रहीं थीं उसके लिए| मैंने गाने के बोलों द्वारा ये भी साफ़ कह दिया की मैं उनके ये सारे सितम सह लूँगा! इस अन्तरे के खत्म होने पर भौजी के चेहरे पर शर्मीली मुस्कान आ ही गई थी! भौजी माँ की चोरी अपने कान पकड़ते हुए दबी आवाज में "sorry" बोल रही थीं! भौजी के इस तरह sorry बोलने से मैं मुस्कुराने लगा और उन्हें तुरंत माफ़ कर दिया! इधर आयुष को गाना सुनने में बहुत मज़ा आ रहा था तो उसने मेरे दाएँ गाल पर पप्पियाँ करनी शुरू कर दी| इतने में नेहा अपनी स्कूल ड्रेस पहन कर आ गई, तो मैंने दोनों बच्चों को गोदी में उठाया और गाने का अंतिम आन्तरा दोनों को गोदी में लिए हुए गाया;

"प्रेम के दरिया में लहरें हज़ार,

लहरों में जो भी डुबा हुआ वही पार,

ऊँची नीची नीची ऊँची,

नीची ऊँची ऊँची नीची,

लहरों में तुम देखूँ कैसे आओगे नहीं,

मैं इन लहरों में जो बहूँ तो,

रूठ ना जाना तुम से कहूँ तो!"

बच्चों को गाने की ये पंक्तियाँ समझ नहीं आईं, उन्हें तो बस 'ऊँची-नीची, नीची-ऊँची" वाली पंक्तियाँ भाईं, जिसे सुन दोनों ने मेरी गोदी में ही नाचना शुरू कर दिया| लेकिन भौजी को अन्तरे की शुरू की दो पंक्तियाँ छू गई थीं, जहाँ एक तरफ मैं हम दोनों (मुझे और भौजी) को एक करने के लिए प्रयास कर रहा था, वहीं दूसरी तरफ वो (भौजी) हमारे पास जो अभी है उसे खोने से डर रहीं थीं| "लहरों में तुम देखूँ कैसे आओगे नहीं" ये पंक्ति ख़ास थी, ये भौजी के लिए एक तरह की चुनौती थी की आखिर कब तक वो इस तरह नाराज रह कर मुझे रोकेंगी?!

गाना खत्म हुआ और माँ ने मुस्कुराते हुए कहा;

माँ: अब बस भी कर! चल जा कर आयुष को तैयार कर!

मैंने बच्चों को स्कूल के लिए तैयार किया और उन्हें उनकी school van में बिठा आया| पिताजी ने मुझे काम की लिस्ट बना दी, आज उनको माँ के साथ कहीं जाना था इसलिए आज सारा काम मेरे जिम्मे था| मैं दिमाग में calculations बिठाने लगा की कैसे भी करके मैं टाइम निकाल कर घर आ सकूँ ताकि भौजी के साथ बिताने के लिए मुझे कुछ समय मिल जाए| मुझे समय बचाना था इसलिए मैं बिना नाश्ता किये ही निकल गया, मेरे निकलने के आधे घंटे बाद माँ-पिताजी भी निकल गए थे| उनके निकलते ही भौजी ने मुझे फ़ोन कर दिया;

भौजी: आपने कुछ खाया?

भौजी ने चिंता जताते हुए पुछा|

मैं: जान, कोशिश कर रहा हूँ की काम जल्दी निपटा कर घर आ जाऊँ!

मैंने उत्साहित होते हुए कहा|

भौजी: वो तो ठीक है, पर पहले कुछ खाओ! मैं आपको 10 मिनट में कॉल करती हूँ|

इतना कह उन्होंने फ़ोन काट दिया| अब हुक्म मिला था तो उसकी तामील करनी थी, इसलिए मैंने चाय-मट्ठी ले ली| पाँच मिनट में उन्होंने (भौजी ने) फिर कॉल कर दिया;

भौजी: कुछ खाया?

भौजी ने एकदम से अपना सवाल दागा|

मैं: हाँ जी, खा रहा हूँ!

मैंने मट्ठी खाते हुए कहा|

भौजी: क्या खा रहे हो?

मैं: चाय-मट्ठी|

मैंने चाय की चुस्की लेते हुए कहा|

भौजी: और कुछ अच्छा नहीं मिला आपको? पता नहीं कैसे पानी की चाय बनाता होगा? कहीं बैठ कर आराम से परांठे नहीं खा सकते थे?!

भौजी नाश्ते को ले कर मेरे ऊपर रासन-पानी ले कर चढ़ गईं!

मैं: जान, जब आपने कॉल किया तब मैं बस में था| आपने खाने का हुक्म दिया तो मैं अगले स्टैंड पर उतर गया, वहाँ जो भी नजदीक खाने-पीने की चीज दिखी वो ले ली|

मैंने अपनी सफाई दी|

भौजी: हुँह!

भौजी मुँह टेढ़ा करते हुए बोलीं और फ़ोन काट दिया| चाय-मट्ठी खा कर मैं साइट की ओर चल दिया, लकिन ठीक 15 मिनट बाद भौजी ने फिर फ़ोन खडका दिया!

भौजी: कहाँ पहुँचे?

भौजी ऐसे बात कर रहीं थीं जैसे वो मुझसे कोई कर्ज़ा वापस माँग रही हों|

मैं: जान अभी रास्ते में ही हूँ! अभी कम से कम पौना घंटा लगेगा!

इतना सुन भौजी ने फ़ोन रख दिया| मुझे भौजी का ये अजीब व्यवहार समझ नहीं आ रहा था? उनसे पूछ भी नहीं सकता था क्योंकि एक तो मैं बस में था और दूसरा भौजी से सवाल पूछना मतलब उनके गुस्से को निमंत्रण देना| मुझे सब्र से काम लेना था इसलिए मैं दिमाग शांत कर के बैठा रहा| ठीक 15 मिनट बाद भौजी ने फिर फ़ोन खड़काया और मुझसे पुछा की मैं कहाँ पहुँचा हूँ तथा साइट पहुँचने में अभी कितनी देर लगेगी?! ये फ़ोन करने का सिलसिला पूरे एक घंटे तक चला, वो फ़ोन करतीं, पूछतीं मैं कहाँ हूँ और फ़ोन काट देतीं| फिर थोड़ी देर बाद कॉल करना, पूछना और कॉल काट देना! पता नहीं उन्हें किस बात की जल्दी थी!

आखिर मैं साइट पर पहुँच ही गया और भौजी ने भी ठीक समय से फ़ोन खड़का दिया!

मैं: हाँ जी बोलिये!

मैंने फ़ोन उठा कर प्यार से कहा|

भौजी: साइट पहुँच गए की नहीं? पाताल पूरी में साइट है क्या?

भौजी चिढ़ते हुए बोलीं|

मैं: हाँ जी बस अभी-अभी पहुँचा हूँ!

मैंने प्यार से कहा|

भौजी: मुझे आपसे कुछ पूछना है?

इतना कह भौजी ने एक लम्बी साँस ली और अपना सवाल दागा;

भौजी: आपने मेरे सामने शादी का प्रस्ताव सिर्फ इसलिए रखा न क्योंकि मैं माँ बनना चाहती थी? अगर मैं ये माँग नहीं करती तो आप मेरे सामने शादी का प्रस्ताव ही नहीं रखते न?

भौजी की आवाज में शक झलक रहा था और मुझे बिना किसी वजह के खुद पर शक किया जाना नागवार था! कोई और दिन होता तो मैं भौजी को अच्छे से झिड़क देता मगर आजकल भौजी का पारा पहले ही चढ़ा हुआ था, अब मैं अगर उन्हें झिड़कता तो उनके पास लड़ने के लिए नया बहाना होता, इसीलिए मैंने हालात को समझते हुए उन्हें प्यार से समझाना शुरू किया;

मैं: जान ऐसा नहीं! चन्दर के गाँव जाने के बाद से मैं एक बिंदु तलाश कर रहा था जिसके सहारे मैं हमारे रिश्ते को बाँध सकूँ और आपको यहाँ अपने पास हमेशा-हमेशा के लिए रोक सकूँ| उस समय मेरे पास सिर्फ और सिर्फ बच्चों का ही बहाना था, मगर जब आपने माँ बनने की बात कही तो मुझे वो बिंदु मिल गया जिसके सहारे मैं हमारे रिश्ते के लिए नै रूप-रेखा खींच सकता हूँ! ऐसी रूप-रेखा जिससे हमारा ही नहीं बल्कि हमारे बच्चों का जीवन भी सुधर जाएगा| अगर आप ने मुझसे माँ बनने की माँग नहीं की होती तो भी मेरे पास हमारे रिश्ते को बचाने के लिए शादी ही आखरी विकल्प रहता! फर्क बस इतना रहता की मैं घर छोड़ने के लिए मानसिक रूप से तत्पर नहीं होता, लेकिन इस वक़्त मैं आपको पाने के लिए सब कुछ छोड़ने को तैयार हूँ!

मैं भौजी को इससे अच्छे तरीके से अपने दिल के जज्बात नहीं समझा सकता था| उधर भौजी ने बड़े गौर से मेरे दिल की बात सुनी, परन्तु उनकी सुई फिर घूम फिरकर मेरे अपने परिवार से अलग होने पर अटक गई;

भौजी: आप सच में मेरे लिए अपने माँ-पिताजी को छोड़ दोगे?

भौजी भावुक होते हुए बोलीं| ये सवाल हम दोनों के लिए बहुत संवेदनशील था, भौजी मुझे अपने परिवार से अलग होता हुआ नहीं देखना चाहतीं थीं और मैं भी अपने माँ-बाप को छोड़ना नहीं चाहता था! शुक्र है की दो दिन पहले मैंने रात भर इस विषय पर गहन विचार किया था, तथा मेरे दिमाग ने मुझे तर्कसिद्ध (logical) रास्ता दिखा दिया था;

मैं: जान, मैं पूरी कोशिश करूँगा की बात मेरे घर छोड़ने तक नहीं आये, मगर फिर भी अगर ऐसे हालात बने तो भी मैं अपने माँ-पिताजी को अच्छे से जानता हूँ! उनका गुस्सा कुछ दिनों का होगा, शादी कर के हम घर लौट आएंगे और मैं उनके पाँव में गिरकर घर छोड़ने की माफ़ी माँग लूँगा| माता-पिता का गुस्सा कभी इतना बड़ा नहीं होता की वो अपने बच्चों को हमेशा-हमेशा के लिए अपनी जिंदगी से निकाल फेंक दें| मेरी माँ का दिल सबसे कोमल है, वो मुझे झट से माफ़ कर देंगी! रही बात पिताजी की तो उन्हें थोड़ा समय लगेगा, परन्तु जब वो देखेंगे की मैं अपने परिवार की जिम्मेदारी अच्छे से उठा रहा हूँ तो वो भी मुझे माफ़ कर देंगे| सब कुछ ठीक हो जाएगा, आप बस मेरा साथ दो!

मैंने भौजी को इत्मीनान से मेरी बात समझा दी थी, अब ये नहीं पता की उनको कितनी बात समझ में आई और कितनी नहीं, क्योंकि मेरी बात पूरी होते ही भौजी ने बिना कुछ कहे फ़ोन काट दिया! मुझे लगा की शायद माँ घर आ गई होंगी इसलिए भौजी ने फ़ोन काट दिया, पर ऐसा नहीं था क्योंकि माँ शाम को घर पहुँचीं थीं|

खैर मैं कुछ हिसाब-किताब करने में लग गया, लेबर की दिहाड़ी का हिसाब करना था और माल के आने-जाने का हिसाब लिखना था| लंच के समय भौजी ने मुझे कॉल किया, मैं उस वक़्त लेबर से सामान चढ़वा रहा था फिर भी मैंने उनका कॉल उठाया;

भौजी: खाना खाने कब आ रहे हो आप?

भौजी ने बड़े साधारण तरीके से पुछा|

मैं: जान, अभी साइट पर ही हूँ, आना नामुमकिन है लेकिन रात को समय से आ जाऊँगा|

मैंने बड़े प्यार से कहा, इस उम्मीद में की भौजी कुछ प्यार से कह दें| लेकिन कहाँ जी, मैडम जी के तो सर पर पता नहीं कौन सा भूत सवार था! इतने में पीछे से आयुष की आवाज आई;

आयुष: मम्मी मुझे पापा से बात करनी है|

आयुष खुश होते हुए बोला| दरअसल बच्चे जानते थे की अगर उनकी मम्मी फ़ोन पर बात कर रहीं हैं तो वो मुझसे ही बात कर रहीं हैं|

भौजी: तेरे पापा नहीं आने वाले, अब जा कर कपडे बदल!

भौजी ने बड़े रूखे शब्दों से आयुष से कहा|

नेहा: मुझे बात करनी है!

नेहा अपना हाथ उठाते हुए बोली|

भौजी: फ़ोन की बैटरी खत्म हो गई!

ये कहते हुए भौजी ने फ़ोन काटा और अपना फ़ोन switch off कर दिया| मैं इतना तो समझ चूका था की भौजी ने जानबूझ कर मुझे ये सब सुनाने के लिए कहा है, मगर इसका कारन क्या है ये मेरी समझ से परे था!

रात सात बजे में घर पहुँचा तो मेरा स्वागत मेरे दोनों बच्चों ने प्यार भरी पप्पी से किया! दोनों को गोदी में ले कर मैं खुश हो गया, दिन भर की जितनी थकान थी वो सब मेरे बच्चों की पप्पी ने उतार दी थी! चलो बच्चों के कारन ही सही कम से कम मेरे चेहरे पर मुस्कान तो आ गई थी!

रात के खाने के बाद मैंने भौजी से बात करनी चाहि, मैं उनके कमरे में बात करने पहुँचा तो वो सरसराती हुई मेरी बगल से बाहर निकल गईं और माँ के साथ बैठ कर टी.वी. देखने लगीं| एक बार फिर मुझे गुस्सा चढ़ने लगा, तभी आयुष आ कर मेरी टाँगों से लिपट गया! मैं आयुष और नेहा को ले कर अपने कमरे में आ गया तथा उन्हें कहानी सुनाते हुए सुला दिया|

भौजी के इस रूखेपन से मैं बेचैन होने लगा था इस कर के मुझे नींद नहीं आ रही थी| मैंने उनके अचानक से ऐसे उखड़ जाने के बारे में बहुत सोचा, बहुत जोड़-गाँठ की, गुना-भाग किया और अंत में मैं समझ ही गया!

रात एक बजे आयुष को बाथरूम जाना था, वो उठा और बाथरूम गया, मेरी आँख उसी वक़्त लगी थी इसलिए आयुष के उठने पर मेरी नींद खुल गई थी| मैंने कमरे की लाइट जला दी ताकि आयुष अँधेरे में कहीं टकरा न जाए, जैसे ही आयुष बाथरूम से निकला भौजी मेरे कमरे में घुसीं और आयुष को गोद में उठा कर ले गईं! उन्होंने (भौजी ने) देख लिया था की मैं जाग रहा हूँ, फिर भी उन्होंने ये जानबूझ कर मुझे गुसा दिलाने के लिए किया था| मैं शांत रहा और नेहा को अपनी बाहों में कस कर लेट गया क्योंकि भौजी का इस वक़्त कोई पता नहीं था, हो सकता था की वो दुबारा वापस आयें और नेहा को भी अपने साथ ले जाएँ|

खैर अगले कुछ दिनों तक भौजी और मेरा ये खेल चलता रहा| वो (भौजी) मुझे गुस्सा दिलाने के लिए ऊल-जुलूल हरकतें करती रहतीं| कभी दिनभर इतने फ़ोन करतीं की पूछू मत तो कभी एक फ़ोन तक नहीं करतीं! मैं जब फ़ोन करूँ तो वो फ़ोन काट देतीं और switch off कर के अपने कमरे में छुपा देतीं! मेरे सामने दोनों बच्चों को हर छोटी-छोटी बात पर डाँट देतीं, कभी सोफे पर बैठ कर पढ़ने पर, तो कभी ज़मीन पर बैठ कर पढ़ने पर! कभी घर में खेलने पर तो कभी कभी घर में दौड़ने पर! मैंने इस पूरे दौरान खुद को काबू में रखा और बच्चों के उदास होने पर उनका मन हल्का करने के फ़र्ज़ निभाता रहा|

एक दिन की बात है, sunday का दिन था और सुबह से पानी बरस रहा था| बच्चों के स्कूल की छुट्टी थी, नेहा तो रात में मेरे साथ सोइ थी मगर आयुष जो रात को अपनी मम्मी के साथ सोया था वो सुबह उठ कर मेरी छाती पर चढ़ कर फिर सो गया| सात बजे भौजी आईं और आयुष को मेरी छाती के ऊपर से खींच कर अपने साथ ले गईं| आयुष बेचारा बहुत छटपटाया मगर भौजी फिर भी जबरदस्ती उसे अपने साथ ले गईं और उसे ब्रश करवा के जबरदस्ती पढ़ाने बैठ गईं| मेरा मन सोने का था पर आयुष के साथ होता हुआ ये जुल्म मैं कैसे बर्दाश्त करता, इसलिए मैं बाहर आया और आँख मलते हुए माँ से शिकायत करते हुए बोला;

मैं: यार देखो न sunday के दिन भी बेचारे आयुष को सोने को नहीं मिल रहा!

मेरी बात सुन माँ ने बैठक से आयुष को आवाज मारी;

माँ: आयुष बेटा!

अपनी दादी की बात सुन आयुष दौड़ता हुआ बाहर आया| मुझे माँ के पास बैठा देख वो जान गया की उसकी जान बचाने वाले उसके पापा हैं, आयुष ने खुश होते हुए अपने दोनों हाथ खोल दिए और मैंने उसे अपने सीने से चिपका लिया| 5 मिनट बाद भौजी उठ कर आ गईं;

माँ: बहु आज sunday है, कम से कम आज तो बच्चों को सोने देती!

माँ ने प्यार से भौजी को समझाते हुए कहा तो भौजी सर झुकाते हुए बोलीं;

भौजी: Sorry माँ!

इतना कह वो चाय बनाने लग गईं| जान तो वो (भौजी) गईं थीं की मैंने ही उनकी शिकायत माँ से की है इसलिए उनका गुस्सा फिर उबाले मारने लगा|

मैंने आयुष को खेलने जाने को कहा तो वो अपने खिलौनों से खेलने लगा| इधर पिताजी चाय पीने dining table पर बैठ गए, अब मैं जागा हुआ था तो पिताजी ने मुझे हिसाब-किताब की बातों में लगा दिया| आधे घंटे बाद पिताजी की बात खत्म हुई तो मैं अंगड़ाई लेते हुए उठा| मैं अपने कमरे में जा रहा था की तभी बाहर जोरदार बिजली कड़की, बिजली की आवाज से मेरा ध्यान बारिश की ओर गया| मेरे अंदर का बच्चा बाहर आ गया और मैं सबसे नजरें बचाते हुए छत पर आ गया| जब छत पर आया तो देखा की आयुष पहले से ही बारिश में अपने खिलौनों के साथ खेल रहा है! बाप की तरह बेटे को भी बारिश में खलने का शौक था! मैं चुपचाप छत के दरवाजे पर हाथ बाँधे खड़ा हो कर आयुष को खेलते हुए देखने लगा, उसे यूँ बारिश में खेलते हुए देख मुझे अपना बचपन याद आ रहा था|

2 मिनट बाद जब आयुष की नजर मुझ पर पड़ी तो वो बेचारा डर गया! उसे लगा की मैं उसे बारिश में भीगने के लिए डाटूँगा इसलिए आयुष डरते हुए मेरी तरह सर झुका कर खड़ा हो गया! अब मैं आयुष पर गुस्सा थोड़े ही था जो उसे डाँटता, मैं भी बारिश में भीगते हुए उसके पास पहुँचा और आयुष के सामने अपने दोनों घुटने टेक कर बैठ गया, मैंने आयुष की ठुड्डी पकड़ कर ऊपर उठाई और बोला;

मैं: बेटा मैं आपसे गुस्सा नहीं हूँ! आपको पता है, मुझे भी बारिश में भीगना और खेलना बहुत पसंद है|

मेरी बात सुन आयुष के चेहरे पर मुस्कान आ गई और वो हँसने लगा, आखिर उसे अपने पिता के रूप में एक साथी जो मिल गया था| बस फिर क्या था, बाप-बेटों ने मिलकर खुराफात मचानी शरू कर दी| मैंने छत पर मौजूद नाली पर पत्थर रख कर पानी का रास्ता रोक दिया, जिससे छत पर पानी भरने लगा, अब मैंने आयुष से उसके खिलोने लाने को कहा| खिलौनों में प्लास्टिक की एक नाव थी, उस नाव में मैंने 2-3 G.I. Joe's बिठा दिए और दोनों बाप-बेटे ने मिलकर नाव पानी में छोड़ दी| नाव कुछ दूर जा कर डूब गई! आयुष को खेल समझ आ गया, आयुष ने G.I. Joe's को नाव में बिठाया और पानी में छोड़ दिया, इस बार भी नाव कुछ दूर जा कर डूब गई! इस छोटी सी ख़ुशी से खुश हो कर हम दोनों बाप-बेटे ने पानी में 'छपाक-छपाक' कर उछलना शुरू कर दिया!

अपनी मस्ती में हम ये भूल गए की हमारे उछलने से नीचे आवाज जा रही है! हमारी चहलकदमी सुन माँ-पिताजी जान गए की मैं और आयुष ही उधम मचा रहे हैं, उन्होंने भौजी को हमें नीचे बुलाने को भेजा| भौजी जो पहले से ही गुस्से से भरी बैठीं थीं, पाँव पटकते हुए ऊपर आ गईं| मैं उस वक़्त आयुष को गोदी में ले कर तेजी से गोल-गोल घूम रहा था और आयुष खूब जोर से खिखिलाकर हँस रहा था! तभी भौजी बहुत जोर से चीखीं;

भौजी: आयुष!

भौजी की गर्जन सुन आयुष की जान हलक में आ गई| मैंने आयुष को नीचे उतारा तो वो सर झुकाते हुए अपनी मम्मी की ओर चल दिया|

भौजी: बारिश में खेलने से मना किया था न मैंने तुझे?!

भौजी गुस्से से बोलीं| भौजी का गुस्सा देख आयुष रोने लगा, मैं दौड़ कर उसके पास पहुँचा और उसे गोदी में लेकर भौजी को गुस्से से घूर कर देखने लगा! मेरी आँखों में गुस्सा देख भौजी भीगी बिल्ली बन कर नीचे भाग गईं! वो जानती थीं की अगर उन्होंने एक शब्द भी कहा तो मेरे मुँह से अंगारे निकलेंगे जो उन्हें जला कर भस्म कर देंगे!

मैं: बस बेटा रोना नहीं, आप तो मेरे बहादुर बेटे हो न?!

मैंने आयुष को पुचकारते हुए कहा| आयुष ने रोना बंद किया और सिसकने लगा| मेरे बेटे के चेहरे पर आये आँसुओं को देख कर मुझे बहुत दुःख हो रहा था, कहाँ तो कुछ देर पहले मेरे बेटे के चेहरे पर मुस्कान छाई हुई थी और अब मेरे बेटे के चेहरे पर उदासी का काला साया छा गया था| अपने बेटे को फिरसे हँसाने के लिए मैं फिर से उसे गोद में ले कर बारिश में आ गया, फिर से बारिश में भीग कर मेरे मेरे बेटे का दिल खुश हो गया और उसके चेहरे पर फिर से मुस्कान खिल उठी! मैंने नाली पर रखा हुआ पत्थर हटाया और आयुष के खिलोने ले कर नीचे आ गया|

माँ ने मुझे और आयुष को बारिश से तरबतर देखा तो मुझे प्यार से डाँटते हुए बोलीं;

माँ: जा कर जल्दी अपने और आयुष के कपडे बदल वरना सर्दी लग जाएगी!

मैंने फटाफट आयुष के कपडे बदले और उसके बाल सूखा दिए, फिर मैंने अपने कपड़े बदले| इतने में नेहा भी जाग चुकी थी और हम दोनों (आयुष और मुझे) को यूँ देख कर हैरान थी! वो कुछ पूछती या कहती उससे पहले ही आयुष ने मुझसे सवाल पुछा;

आयुष: पापा जी, मम्मी इतना गुस्सा क्यों करती हैं?

आयुष ने अपना निचला होंठ फुला कर पुछा|

मैं: बेटा, ये जो आप और मैं ठंड के मौसम में बारिश में भीग रहे थे, इसी के लिए आपकी मम्मी गुस्सा हो गई थीं! अब आप देखो आपकी दादी जी ने भी मुझे बारिश में भीगने के लिए डाँटा न?

देखा जाए तो भौजी का गुस्सा होना जायज था, नवंबर का महीना था और ठंड शुरू हो रही थी, ऐसे में बारिश में भीगना था तो गलत! लेकिन करें क्या, बारिश में भीगना आदत जो ठहरी!

अब चूँकि बारिश हो रही थी तो पिताजी ने माँ से पकोड़े बनाने की माँग की, माँ और भौजी ने मिलकर खूब सारे पकोड़े बना दिए! पकोड़ों की महक सूँघ कर मैं और बच्चे बाहर आ गए| माँ-पिताजी dining table पर बैठ कर पकोड़े खा रहे थे और मैं, भौजी तथा बच्चे थोड़ा दूर टी.वी. के सामने बैठ कर पकोड़े खा रहे थे| पकोड़े खाते समय भौजी का ध्यान खींचने के लिए मैंने बच्चों से बात शुरू की, मैंने ये ध्यान रखा था की मेरी आवाज इतनी ऊँची न हो की माँ-पिताजी सुन लें लेकिन इतनी धीमी भी न हो की भौजी और बच्चे सुन न पाएँ|

मैं: नेहा, बेटा आपको याद है गाँव में एक बार आप, मैं और आपकी मम्मी इसी तरह बैठ कर पकोड़े खा रहे थे?

मैंने भौजी को देखते हुए नेहा से सवाल किया| मेरा सवाल सुन भौजी के चेहरे पर एक तीखी मुस्कान आ गई, वो बारिश में मेरे संग उनका (भौजी का) भीगना, मेरी बाहों में उनका सिमटना, वो खुले आसमान के तले हमारा प्रेम-मिलाप, वो बाहों में बाहें डालकर नाचना, सब उन्हें याद आ चूका था! भौजी के चेहरे पर आई मुस्कान, उस दिन को याद करते हुए बढ़ती जा रही थी! तभी मैंने पकोड़े में मिर्ची लगने का बहाना किया और "सी...सी...सी..." की आवाज निकालने लगा| मेरी सी-सी ने उन्हें (भौजी को) हमारे उस दिन के प्यार भरे चुंबन की याद ताज़ा कर दी थी! भौजी मेरी शरारत जान चुकी थीं तभी वो मुझसे नजरें चुरा कर मसुकुराये जा रहीं थीं! हमारा ये नजरों का खेल और चलता मगर आयुष अपने भोलेपन में बोल उठा;

आयुष: मुझे क्यों नहीं बुलाया?

आयुष की भोलेपन की बात सुन नेहा एकदम से बोल पड़ी;

नेहा: तू तब गेम खेल रहा था!

आयुष के भोलेपन से भरे सवाल और नेहा के टेढ़े जवाब को सुन मैं जोर से ठहाका लगा कर हँस पड़ा! अब जाहिर था की मेरे इस तरह हँसने पर माँ-पिताजी ने कारण जानना था;

मैं: कुछ नहीं पिताजी, वो मैं नेहा को याद दिला रहा था की आखरी बार इस तरह से पकोड़े हमने गाँव में खाये थे, तो आयुष पूछने लगा की तब मैं कहाँ था? इस पर नेहा बोली की तू गेम खेल रहा था!

मेरी बात सुन माँ-पिताजी भी हँस पड़े और उनके संग भौजी तथा नेहा भी हँसने लगे! अपना मजाक उड़ता देख आयुष ने मुँह फुला लिया और मेरी तरफ देखने लगा;

मैं: आजा मेरा बेटा!

ये कहते हुए मैंने आयुष को आपने गले लगा लिया| आज पहलीबार मैंने सबके सामने आयुष को 'मेरा बेटा' कहा था और ये मैंने जानबूझ कर नहीं कहा था, बल्कि अनायास ही मेरे मुँह से निकल गया था| माँ-पिताजी ने इस बात पर गौर नहीं किया, मगर भौजी आँखें बड़ी कर के मुझे देखने लगीं थीं! जब भौजी ने मुझे यूँ आँखें बड़ी कर के देखा तो मुझे मेरे बोले हुए शब्दों का एहसास हुआ, परन्तु मैंने न इस बात को छुपाने की कोशिश की और न ही इस बात को और बढ़ाया| मैंने आयुष को गोद में लिया और अपने हाथ से पकोड़े खिलाने लगा|

[color=rgb(51,]जारी रहेगा भाग-3 में...[/color]
 

[color=rgb(255,]चौबीसवाँ अध्याय: उलझते-सुलझते बंधन[/color]
[color=rgb(226,]भाग-3[/color]


[color=rgb(0,]अब तक आपने पढ़ा:[/color]

अपना मजाक उड़ता देख आयुष ने मुँह फुला लिया और मेरी तरफ देखने लगा;

मैं: आजा मेरा बेटा!

ये कहते हुए मैंने आयुष को आपने गले लगा लिया| आज पहलीबार मैंने सबके सामने आयुष को 'मेरा बेटा' कहा था और ये मैंने जानबूझ कर नहीं कहा था, बल्कि अनायास ही मेरे मुँह से निकल गया था| माँ-पिताजी ने इस बात पर गौर नहीं किया, मगर भौजी आँखें बड़ी कर के मुझे देखने लगीं थीं! जब भौजी ने मुझे यूँ आँखें बड़ी कर के देखा तो मुझे मेरे बोले हुए शब्दों का एहसास हुआ, परन्तु मैंने न इस बात को छुपाने की कोशिश की और न ही इस बात को और बढ़ाया| मैंने आयुष को गोद में लिया और अपने हाथ से पकोड़े खिलाने लगा|

[color=rgb(44,]अब आगे:[/color]

भौजी के चेहरे पर आई मुस्कान बस कुछ पल के लिए ही थी, वो अब पुनः मुझसे उखड़ी-उखड़ी घर के काम करने में लगी थीं| माँ-पिताजी की मौजूदगी थी इसलिए मैं उनसे खुल कर बात नहीं कर पा रहा था, तो मैंने अपना ध्यान दोनों बच्चों के साथ खेलने में लगा दिया| कुछ देर बाद बारिश रुकी तो पिताजी ने मुझे अपने साथ काम की बात करने के लिए बिठा लिया| आगे भविष्य में काम कैसे बढ़ाना है, किस तरह के projects उठाने चाहिए आदि के विषय में पिताजी ने मेरे विचार जाने| मेरे सपने शुरू से ही ऊँचे रहे हैं, जब मैंने पिताजी से company register करवाने की बात कही तो उन्हें बहुत ख़ुशी हुई! मुझे काम professional ढँग से करने का शौक था, कहने की जर्रूरत तो नहीं की ये शौक मुझे पिताजी से ही लगा था| जब मैं छोटा था तो पिताजी सर्दियों के दिनों में कोर्ट-टाई लगा कर काम पर जाते थे, उन्हें यूँ जाते देख कर मुझे हमेशा गर्व होता था, ऐसा लगता था जैसे मेरे पिताजी किसी बहुत बड़ी company के मालिक हों! Company register करवा कर मैं चाहता था की हम दोनों बाप बेटे ऐसे ही काम पर जाएँ और मेरा बचपन का सपना सच हो जाए| मेरी बात सुन पिताजी मुस्कुराने लगे, फिर उन्होंने मुझसे हिसाब-किताब की बात की तो मैंने उन्हें सारा हिसाब दे दिया| पिताजी मेरे हिसाब-किताब साफ़ रखने से बड़े खुश थे और उनकी ये ख़ुशी गर्व बनकर उनके चेहरे पर झलक रही थी|

वहीं आज पिताजी से बात करते हुए नज़ाने क्यों ऐसा लगा की जैसे वो मेरी तरफ कुछ झुक गए हों! जब से वो गाँव से आये थे, मेरे प्रति उनका व्यवहार कुछ ज्यादा ही नरम हो गया था| शायद गाँव में उन्होंने चन्दर के जो काण्ड देखे उन्हें देखते हुए उन्हें अपने आज्ञाकारी बेटे पर गुमान हो रहा था! बिगड़ने को मैं भी बिगड़ सकता था, शराब मैं भी पीता था, मगर पिताजी के द्वारा पकडे जाने पर मैंने शराब से तौबा कर ली थी और शायद इसी का फक्र पिताजी को हो रहा था! चलो मेरे लिए तो पिताजी का यूँ मेरे प्रति नरम पढ़ना मेरे लिए फायदे की बात थी, क्योंकि मेरे मुख से सच्चाई जानकार वो मुझे सीधा घर से निकाल नहीं देते, बल्कि मुझे मेरी बात रखने का एक मौका अवश्य देते!

बहरहाल दिवाली आने में कुछ दिन रह गए थे, मगर भौजी के वयवहार में रत्ती भर बदलाव नहीं आया था| वही चिचिड़ापन, वही मेरे साथ उखड़े रहना, वही मुझे तड़पाना, मेरी बात न सुनना, मुझसे बात न करना, बच्चों को झिड़कते रहना, बच्चों को मेरे पास सोने न देना बल्कि उन्हें मेरे से दूर रखना! मैं ये सब बर्दाश्त कर रहा था क्योंकि मैं उनके दिल का हाल समझता था| मैं जानता था की वो गलत हैं मगर मैं इस वक़्त उन्हें सही-गलत का भाषण नहीं दे सकता था, क्योंकि उनकी नजर में मैं खुद गलत करने जा रहा था! हाँ एक बात पक्की हो गई थी की भौजी को मेरे ऊपर भरोसा नहीं, या फिर शायद मैं ही अपने ऊपर हद्द से ज्यादा भरोसा करने लगा था!

लेकिन इस सब के बावजूद जहाँ एक ओर भौजी मुझसे खींची-खींची रह रहीं थीं, वहीं दूसरी ओर मैं अपना सब्र दिखाते हुए उनके नजदीक बना हुआ था! हमारा रिश्ता जैसे rubber band बन चूका था जिसे भौजी खींच कर तोडना चाहती थीं, मगर हमारे प्यार का rubber band खींच कर वापस मुझे उनके पास ले आता था|

चूँकि दिवाली नजदीक थी तो छोटे -मोटे कामों का ठेका बढ़ गया था, जिस कारण मैं साइट पर ज्यादा व्यस्त रहने लगा था| रात में मुझे आने में देर हो जाया करती थी, इसलिए भौजी ने जबरदस्ती बच्चों को अपने साथ सुलाना शुरू कर दिया! वहीं दूसरी तरफ मैं व्यस्त होते हुए भी समय निकाल कर भौजी को what's app पर message कर के उन्हें अपनी उपस्थिति से परिचित कराता रहता था| कभी कोई joke भेज देता, तो कभी उन्हें खुश करने के लिए कोई शायरी, कभी-कभी मैं अपनी अच्छी selfie खींच कर भौजी के दिल में अपना प्यार जगाये रखता| भौजी मेरे message तो देख लेतीं मगर किसी message का जवाब नहीं देतीं! मैंने भी हार नहीं मानी और उन्हें kissi की आवाज record कर भेज ने लगा| भले ही भौजी ठंडी पढ़ रहीं हों, पर मैं अपना कर्म करते हुए हमारे romance का दिया जलाये हुए था!

जब से कमाने लायक हुआ था, तब से हर साल दिवाली पर मैं माँ-पिताजी के लिए कुछ न कुछ लिया करता था| इस बार भौजी और मेरे बच्चे साथ थे तो मैंने सब के लिए online कपडे देखना शुरू किया| पिताजी के लिए मैंने branded shirt-pant, माँ के लिए chiffon की साडी, नेहा के लिए लेहंगा चोली और आयुष के लिए मैंने कुरता और धोती order कर दिया| सब के लिए जो भी मैंने मँगाया था वो मैंने घर के पते पर deliver करवाया और माँ को बता दिया की वो ये order ले लें, मगर भौजी के लिए मैंने एक ख़ास बनारसी साडी मँगाई जिसे मैंने अपनी साइट के पते पर मँगवाया ताकि भौजी को पता न चले| माँ की साडी समय से घर आ गई थी, मैंने पीछे पड़ कर माँ को जबरदस्ती के दर्जी के पास भेजा वरना माँ हर बार की तरह ये साडी भी पैक कर के रखतीं, जबकी मैं चाहता था की वो दिवाली पर यही साडी पहने| उधर भौजी की साडी साइट पर deliver हो गई, मगर अब दिक्कत ये थी की उसे दर्जी को दूँ कैसे? दर्जी के पास साडी देने के लिए मुझे भौजी का माप दिलवाना होता, अब अगर भौजी से माप देने की बात कहता तो उन्हें पता चल जाता की मैंने उनके लिए साडी खरीदी है! मुझे ये बात फिलहाल छुपानी थी इसलिए मैंने थोड़ा दिमाग लगाया! मुझे याद आया की कई बार माँ दर्जी को अपना माप न दे कर पहले से सिला कोई कपडा दे देतीं थीं, तो भौजी की साडी के लिए मुझे उनका कोई ब्लाउज चाहिए था! अब उनसे जा कर माँग तो सकता नहीं था इसलिए मैंने चोरी करने का सोचा! अपने घर में, अपनी परिणीता का ब्लाउज चुराने में मुझे बहुत शर्म आ रही थी! लेकिन ब्लाउज तो चाहिए था इसलिए मैं चुपचाप भौजी के कमरे में घुसा और उनका एक ब्लाउज चुरा कर जेब में डालकर अपने कमरे में आ गाय| मैंने एक दूसरे दर्जी को भौजी की साडी और माप के लिए भौजी का चुराया हुआ ब्लाउज दिया ताकि कहीं माँ को पता न चल जाए| आंटी जी (दर्जी) ने माप वाला ब्लाउज साडी के साथ रख लिया था, मैं जानता था की भौजी आज नहीं तो कल ये ब्लाउज ढूँढेंगी जर्रूर, इसलिए मैंने आंटी जी से कहा की वो माप ले कर ब्लाउज मुझे वापस दे दें! आंटी जी ने माप ले कर ब्लाउज मुझे दे दिया, मैंने उन्हें समय से पहले साडी और ब्लाउज तैयार करने को कहा| थोड़े पैसे बढ़ा कर आंटी जी मान गईं और मुझे धनतेरस के दिन साडी और ब्लाउज ले जाने को कहा|

इधर माँ ने मुझे एक दिन भौजी के सामने पूछ लिया;

माँ: तूने सब के लिए कुछ न कुछ मँगाया पर अपनी दोस्त, अपनी भौजी के लिए कुछ क्यों नहीं मँगाया?

माँ का सवाल सुन मैं थोड़ा हैरान था, ऊपर से भौजी भी वहीं बैठीं सब्जी काट रहीं थीं| अगर माँ ने अकेले में पुछा होता तो मैं उन्हें सच बता देता, मगर भौजी के सामने कैसे कुछ कहूँ?

मैं: क्या है न माँ, दोस्ती का रिश्ता दो तरफा होता है! ये तो कहीं की रीत नहीं की सिर्फ मैं ही दोस्ती का रिश्ता निभाऊँ!

मैंने भौजी को उल्हाना देते हुए कहा और उठ कर साइट पर निकल गाय| मैं तो उल्हाना दे कर चल दिया, मगर मेरे पीछे माँ ने भौजी से सवालों की झड़ी लगा दी! पता नहीं बेचारी भौजी ने क्या-क्या कहा होगा, सच तो बोल नहीं पाईं होंगी?! बेचारी ने मन मारकर माँ से झूठ ही कहा होगा! मुझे लगा की भौजी समय मिलने पर जर्रूर मुझे कॉल करेंगी और मुझसे शिकायत करेंगी या लड़ेंगी, परन्तु उन्होंने ऐसा कुछ नहीं किया!

उधर दिवाली के उपलक्ष्य में बच्चों की स्कूल की छुट्टियाँ हो चुकीं थीं, घर में अकेले रहते हुए बच्चे मुझसे दूर रह कर दुखी रहने लगे थे! उधर मैं भी काम बढ़ने के कारण बच्चों को जरा सा भी समय नहीं दे पा रहा था| रात को थक कर चूर देर से घर आना और सुबह 8 बजे तक सो के नींद पूरी करने के कारण मैं बच्चों को देख भी नहीं पाता था| वहीं भौजी बच्चों को मुझसे दूर रखते हुए उन्हें सुबह या रात को मेरे पास आने नहीं देतीं| रात को मेरे घर आने से पहले ही वो बच्चों को जबरदस्ती डाँट-फटकार कर सुला देतीं, मुझे खाना परोस कर वो सोने चली जातीं और अपने कमरे का दरवाजा अंदर से बंद कर लेतीं ताकि देर रात या सुबह बच्चे उठ कर मेरे पास न आ जाएँ| भौजी के दरवाजा बंद कर सोने का एक कारण और भी था, वो ये की कहीं मैं रात को उनसे बात करने न चला आऊँ! जब बच्चों का स्कूल होता था तब वो ये ध्यान रखतीं की बच्चे मेरे पास न आ पाएँ इसके लिए वो दोनों बच्चों के सर पर खड़ीं रहतीं और उन्हें तैयार करतीं थीं| जब बच्चों के स्कूल की छुट्टियाँ हुईं तो उन्होंने बच्चों को सुबह उठने से मना कर दिया! भौजी की इस सख्ती के कारण सुबह-सुबह मुझे मिलने वाली मीठी-मीठी पप्पी भी बंद हो गई थी! दोपहर को बच्चे मुझे फ़ोन करना चाहते तो भौजी उन्हें झूठ बोल देतीं की मैं काम में व्यस्त हूँ और बात नहीं कर सकता| बच्चे बेचारे मन मसोस कर रह जाते और मायूस हो कर बैठ जाते! वो तो मेरे माँ-पिताजी यानी उनके दादा-दादी थे जो उनका मन बहलाये रखते थे, जिससे बच्चे थोड़ा खिले-खिले रहते! दोनों बच्चे जानते थे की उन पर ये जुल्म उनकी मम्मी ही कर रही है, क्योंकि मैं ऐसा कतई नहीं था! आयुष चूँकि छोटा था तो कुछ कह नहीं पाता था, परन्तु नेहा बड़ी थी और उससे अपनी मम्मी का ये उखड़ा हुआ व्यवहार बर्दाश्त नहीं हो रहा था| नेहा का मन दिनभर मेरे बिना नहीं लगता था, रात होती तो उसे मेरे बिना नींद नहीं आती, वो तो उसे अपनी मम्मी का डर था जिसके मारे वो सहती रहती थी| परन्तु अब उसके सब्र की इंतेहा हो रही थी, उसके मन का ज्वालामुखी फटने की कगार पर आ चूका था!

धनतेरस से एक दिन पहले की बात है, रात में आज फिर मैं देर से घर आया था| भौजी ने बच्चों को डरा-धमका कर सुला दिया था, पिताजी तो पहले ही सो चुके थे बस माँ और भौजी टी.वी. देखते हुए मेरा इंतजार कर रहे थे| मैं घर पहुँचा तो भौजी मेरा खाना परोसने लगीं, मैं मुँह-हाथ धो कर खाना खाने बैठ गया| भौजी और मेरे बीच अब भी कोई बात नहीं हो रही थी, मैंने बात शुरु करते हुए माँ से बच्चों के बारे में बात करना शुरू कर दिया| माँ और मेरी बात होने लगी तो भौजी माँ को "शुभरात्रि" बोल कर सोने चली गईं, रोज की तरह मुझे उनके दरवाजा अंदर से बंद करने की आवाज आई| दिल तो बहुत दुखता था की वो मुझे मेरे ही बच्चों से दूर कर रहीं हैं, मगर माँ की उपस्थिति के कारण मैं लाचार था| खाना खा कर बर्तन सिंक में डालकर मैं सोने चला गया और माँ भी सोने चली गईं| रात के 12 बजे थे और नेहा कोई डरावना सपना देख कर दहल गई थी, वो चुपचाप उठ कर मेरे पास आने लगी तो भौजी ने उसे डाँट दिया;

भौजी: चुपचाप सो जा!

भौजी की डाँट सुन कर भी नेहा नहीं मानी और सिसकते हुए कुर्सी खींच कर दरवाजे के पास ले आई| कुर्सी पर चढ़ कर वो दरवाजे की चिटकनी खोलने लगी, अब तक भौजी उठ चुकीं थीं और उन्होंने कमरे की लाइट जला दी थी| भौजी ने जब नेहा को कुर्सी पर चढ़ कर चिटकनी खोलते देखा तो उनका गुस्सा फूट पड़ा;

भौजी: नेहा! तुझे समझ नहीं आती एक बार में?! सो जा चुप चाप!

भौजी का गुस्सा देख नेहा से बर्दाश्त नहीं हुआ और वो रोते हुए अपनी मम्मी पर चिल्लाई;

नेहा: नहीं!

इतना कह वो फटाफट कुर्सी से नीचे कूदी और दरवाजा खोलकर मेरे कमरे की तरफ दौड़ी| उधर नेहा की चीख सुन कर मैं उठ कर बैठ चूका था, मैंने फटाफट कमरे की लाइट जलाई और उठ कर अपने दरवाजे तक पहुँचा था की रोती हुई नेहा आ कर मेरी टाँगों से लिपट गई! मैंने नेहा को गोद में उठाया और उसे पुचकारते हुए चुप कराने लगा| मेरी बेटी फफक कर रो रही थी और उसे यूँ रोता हुआ देख मेरा दिल खून के आँसूँ रोने लगा था! मैं नेहा की पीठ सहलाते हुए उसे ढाँढस बँधा रहा था की तभी मेरी नजर भौजी के कमरे पर पड़ी, मैंने देखा भौजी गुस्से से आँखें बड़ी कर के मुझे और नेहा को देख रहीं हैं! भौजी की आँखों में गुस्सा देख मेरी आँखें गुस्से से जलने लगीं, मैंने घूर कर उन्हें देखा और गुस्से में आ कर मेरे मुँह से कुछ निकलने वाला था की तभी माँ-पिताजी आ गए! नेहा की चीख सुन के वे भी जाग गए थे, उन्हें अपने सामने देख मैंने अपने होंठ सी लिए और गुस्से से दाँत पीसते हुए खामोश हो गया!

पिताजी: क्या हुआ बेटा, नेहा क्यों चीखी?

पिताजी ने चिंतित होते हुए पुछा|

मैं: बुरा सपना देख कर उठ गई!

मैंने दाँत पीसते हुए भौजी को देखते हुए कहा, मेरा गुस्सा देख कर भौजी की जान हलक में आ गई थी और वो सर झुकाये मुझसे नजरें चुराने लगीं! घर में कलेश न हो इसलिए मैं नेहा को गोदी में लिए हुए कमरे में आ गया, बाकी सब भी अपने-अपने कमरे में लौट गए!

मैं नेहा को गोदी में लिए कमरे में टहलने लगा और उसे पुचकार कर शांत कराने लगा, थोड़ा टाइम लगा नेहा का रोना रुकने में|

नेहा: पा..पा (पापा)... म.मम्मी...मु...झे (मुझे)....आप...से....अ...लग (अलग)....कर....रही...है!

नेहा सिसकते हुए बोली| नेहा की बात सुन मैं सख्ते में था क्योंकि मैंने उस छोटी सी बच्ची से इतनी बड़ी बात सोचने की कभी उम्मीद नहीं की थी! मैंने नेहा को गोदी से उतारा और उसे पलंग पर खड़ा करते हुए उसकी आँखों में देखते हुए बोला;

मैं: बेटा कोई मुझे आप से अलग नहीं कर सकता! उन्हें (भौजी को) जो करना है वो करने दो, आप ये कभी मत सोचना की हम दोनों बाप-बेटी कभी अलग होंगें! मैं आपको कभी खुद से दूर जाने नहीं दूँगा, चाहे मुझे उसके लिए किसी से भी लड़ना पड़े!

मेरी आवाज में बहुत आत्मविश्वास था, इतना आत्मविश्वास की मेरी बेटी के मन से मुझसे अलग होने का डर हमेशा-हमेशा के लिए जा चूका था!

डर से मुक्त हो कर नेहा ने मुस्कुराने की कोशिश की, मैंने नेहा के आँसूँ पोछे और उसे समझाते हुए बोला;

मैं: बेटा आपकी मम्मी इस वक़्त बहुत बड़ी उलझन में हैं! सही चीज जो उनके सामने है वो उसे समझ नहीं पा रहीं, डर रहीं हैं और अपने इस डर को छुपाने के लिए अपना गुस्सा आप दोनों पर निकाल रहीं हैं!

मैं नेहा को सब सच नहीं बता सकता था क्योंकि अपनी माँ से बगावत की चिंगारी जो आज नेहा के अंदर जली थी, ये बात जानकार वो चिंगारी कभी भी धधकती हुई आग बन सकती थी, इसीलिए मैंने नेहा से सारी बात गोल-मोल की थी! नेहा ने मुझसे कोई सवाल नहीं पुछा और आ कर मुझसे लिपट गई! दोनों बाप-बेटी रात को चैन से सोये, सुबह हुई तो माँ हमें जगाने आईं| बच्चों के स्कूल की छुट्टी थी इसलिए सुबह सब आराम से उठे थे| नेहा अभी नींद में थी और नींद में होते हुए भी मेरी छाती से चिपटी हुई थी, मैं नेहा को गोद में लिए हुए बाहर आया और बैठक में बैठ गया| पिताजी ने नेहा की पीठ थपथपाई और मुझसे बात करने लगे| आज चूँकि धनतेरस थी तो उन्होंने माँ के साथ खरीदारी करने जाना था और मेरे हिस्से सारे काम आ गए थे| चूँकि मैं नेहा को गोदी लिए हुए था तो पिताजी ने कागज़ पर मेरे लिए आज के काम की लिस्ट बना कर दे दी| इतने में माँ चाय ले आईं, नेहा को यूँ सोता हुआ देख उन्होंने नेहा के सर पर हाथ फेरा और नेहा को पुकारा| नेहा आँख मलते हुए जागी और मेरे गाल पर अपनी मीठी-मीठी पप्पी दी! अब तो आयुष भी जाग चूका था और मेरी आवाज सुन वो अंदर से दौड़ता हुआ आया| नेहा मेरी गोदी से उतरी ताकि उसके भाई को भी थोड़ा प्यार मिले, नेहा बाथरूम गई और इधर आयुष ने मेरे गाल पर मीठी-मीठी पप्पी दी! मैं आयुष को गोदी में ले कर अपने कमरे में आया, नेहा उस समय बाथरूम से निकल रही थी जब आयुष मुस्कुराते हुए बोला;

आयुष: I love you पापा!

इतने दिनों बाद अपने पापा के गले लग कर आयुष खुश हो गया था| मैंने आयुष के माथे को चूमा और बोला;

मैं: पापा loves you too बेटा!

मेरे दोनों बच्चे जिस प्यार को तरस रहे थे उसे पा कर वो खुश हो गए थे| नाश्ता कर मैं तैयार होने लगा तो नेहा डरी हुई सी मेरे पास आई;

नेहा: पापा जी, मैं भी आपके साथ चलूँ?

नेहा सर झुकाते हुए बोली| दरअसल नेहा जानती थी की आज घर पर बस वो, आयुष और उसकी मम्मी होंगे! ऐसे में भौजी के गुस्से का कोई भरोसा नहीं, हो सकता था की कल रात की नेहा की गुस्ताखी के लिए आज उसे मार पड़ती! इधर मैं अपने साथ दोनों बच्चों को नहीं रख सकता था, क्योंकि साइट पर वो दोनों बोर हो जाते!

मैं: Sorry बेटा! लेकिन मेरा काम दौड़-भाग वाला है! लेकिन आप चिंता मत करो, मेरा पास एक plan है!

मैंने नेहा को अपनी ऊँगली पकड़ाई और उसे पिताजी के पास बैठक में ले आया;

मैं: पिताजी, आप से एक गुजारिश है!

इतना सुन पिताजी उत्सुक्ता से मुझे देखने लगे|

मैं: पिताजी आप खरीदारी करने जा रहे हैं तो दोनों बच्चों को साथ ले जाइये!

बाहर घूमने जाने की बात से आयुष तो दौड़ कर मेरे पास आ गया|

पिताजी: अरे बेटा ये भी कोई कहने की बात है! तू चिंता न कर हम सारे (पिताजी, माँ, आयुष, नेहा और भौजी) चले जाएँगे!

अपनी मम्मी की डाँट से बचने का मौका मिला तो नेहा के चेहरे पर भी ख़ुशी की मुस्कान आ गई|

मैं: बेटा आप दोनों अपने दादा जी और दादी जी को तंग मत करना!

मैंने प्यार से दोनों बच्चों को हिदायत दी| इतने में पीछे से माँ बोल पड़ीं;

माँ: हमारे बच्चे हमें तंग थोड़े ही करते हैं!

माँ को अपनी तरफदारी करते सुन दोनों बच्चे उनके पास दौड़ गए| माँ उस समय dining table पर बैठीं थीं और उन्हीं की बगल में भौजी बैठीं नाश्ता कर रहीं थीं| मैं माँ के पास आया तो भौजी उठ गईं, मैंने दोनों बच्चों को पिताजी के पास भेजा तथा मैं खुद माँ के पास बैठा और धीमी आवाज में उनसे बोला;

मैं: माँ, बच्चों का ध्यान रखना!

इतना कह मैंने भौजी की तरफ गर्दन से इशारा किया और अपनी बात पूरी की;

मैं: मेरे आने तक बच्चों को इनसे दूर रखना!

मेरी बात सुन माँ अचरज में पड़ गईं और पूछ बैठीं;

माँ: क्यों?

माँ ने भोयें सिकोड़ कर पुछा| मैंने फिर से भौजी की तरफ गर्दन से इशारा किया और बोला;

मैं: इनका पारा आजकल बहुत चढ़ा हुआ है!

माँ मेरी बात समझ गईं और बोलीं;

माँ: तू चिंता मत कर मैं समझाऊँगी बहु को!

सच कहूँ तो मुझे कोई फर्क नहीं पड़ता था की माँ उनसे क्या बात करेंगी, इसलिए मैंने कोई प्रतिक्रया नहीं दी और नकली मुस्कान के साथ उठ गया| मैं दोनों बच्चों को "bye" कहा और बदले में मुझे दोनों बच्चों ने अपनी प्यारी-प्यारी पप्पी दी!

मैं काम पर आया और उधर बच्चों ने माँ-पिताजी के साथ खूब मस्ती की! माँ-पिताजी ने दोनों बच्चों को खूब लाड-प्यार से घुमाया और अच्छे से खिलाया-पिलाया! पिछले कुछ दिनों से बच्चों पर जो अपनी मम्मी का दबाव बन गया था वो आज की मौज-मस्ती ने खत्म कर दिया था| बजार से घूम कर आते-आते सब को 3 बज गए थे, घर आते ही दोनों बच्चों ने अपनी दादी जी के फ़ोन से मुझे कॉल किया और बड़े उत्साह से मुझे सारा ब्यौरा दिया! मैं खुश था की मेरे बच्चे खुश हैं!

रात को जब मैं घर पहुँचा तो बच्चे ख़ुशी से चहक रहे थे| वहीं माँ ने भौजी से उनके गुस्से को ले कर बात की थी और उन्हें बहुत समझाया भी था, यही कारण था की भौजी इस वक़्त शांत थीं मगर मेरे प्रति वो अब भी उखड़ीं थीं! अब तो माँ से उनकी (भौजी की) शिकायत करने की तोहमत भी मेरे सर लग चुकी थी! चलो मुझे तो भौजी के गुस्से की आदत पड़ चुकी थी इसलिए मैंने इस बात का बुरा लगाना ही छोड़ दिया!

अगले दिन छोटी दिवाली थी और आज माँ-पिताजी का plan जान-पहचान में मिठाई देने जाना था| कल की दादा-दादी संग की गई मस्ती के कारण बच्चे आज भी उन्हीं के संग रहना चाहते थे! माँ-पिताजी को इससे कोई परेशानी नहीं थी, बल्कि वो तो बहुत खुश थे! उनका और बच्चों का plan तो सेट था, अब बचे हम दोनों (मैं और भौजी) तो हम दोनों के नसीब में आज मिलना लिखा ही नहीं था! मिश्रा अंकल जी की एक साइट का काम आज फाइनल होना था इसलिए मेरा सारा समय वहीं पर निकला| काम फाइनल हुआ तो मिश्रा अंकल जी ने हाथ के हाथ payment पिताजी के अकाउंट में डलवा दी! रात को जब मैं घर पहुँचा तो दोनों बच्चों ने मुझे घेर लिया और आज की मस्ती के बारे में बताने लगे तथा माँ-पिताजी मुस्कुराते हुए दोनों बच्चों को अपनी बचकानी बात करते हुए देख रहे थे|

मैंने खाना खाया और दोनों बच्चों को अपने साथ ले कर कमरे में आ गया, कल दिवाली थी और मैं घर पर ही रहने वाला था इसलिए दोनों बच्चे चहक रहे थे| जहाँ एक तरफ आयुष को अपने नए कपडे पहनने का उत्साह था, वहीं नेहा को पूरा दिन मेरे साथ रहने की ख़ुशी थी! बच्चों का उत्साह इतना था की आज उन्हें सुलाने के लिए एक कहानी कम पड़ी, दोनों ने "please...please" कह कर दूसरी कहानी भी सुनी और तब जा कर वो सोये!

[color=rgb(51,]जारी रहेगा भाग-4 में...[/color]
 

[color=rgb(255,]चौबीसवाँ अध्याय: उलझते-सुलझते बंधन[/color]
[color=rgb(235,]भाग-4[/color]


[color=rgb(26,]अब तक आपने पढ़ा:[/color]

मैंने खाना खाया और दोनों बच्चों को अपने साथ ले कर कमरे में आ गया, कल दिवाली थी और मैं घर पर ही रहने वाला था इसलिए दोनों बच्चे चहक रहे थे| जहाँ एक तरफ आयुष को अपने नए कपडे पहनने का उत्साह था, वहीं नेहा को पूरा दिन मेरे साथ रहने की ख़ुशी थी! बच्चों का उत्साह इतना था की आज उन्हें सुलाने के लिए एक कहानी कम पड़ी, दोनों ने "please...please" कह कर दूसरी कहानी भी सुनी और तब जा कर वो सोये!

[color=rgb(44,]अब आगे:[/color]

अगली
सुबह दिवाली के दिन की सुबह थी! 7 बजे मेरी नींद खुली तो मैंने पाया की दोनों बच्चे उसी तरह मुझसे लिपटे हुए सो रहे हैं जैसे रात को लिपट कर सोये थे! मैंने दोनों के सर पर हाथ फेर कर उन्हें जगाया;

मैं: बेटा उठो, आज दिवाली है!

दिवाली का नाम सुन आयुष एकदम से जाग गया, आखिर आज उसे नए कपडे जो पहनने थे! उधर नेहा कुनमुनाती रही और मेरे से कस कर लिपट गई, साफ़ था की उसे अभी और सोना है! मैंने नेहा के सर को चूमा और उसके सर पर हाथ फेरता रहा| इधर आयुष जोश में भरा हुआ उठा और फटाफट ब्रश करने लगा| अब वो ब्रश करे और उसकी दीदी सोये ऐसे कैसे हो सकता था?! आयुष ब्रश करते हुए पलंग पर चढ़ा और नेहा को जगाने लगा| नेहा पिनकते हुए उठी और उसे डाँटते हुए बोली;

नेहा: स्कूल जाने के नाम से तो उठता नहीं, नए कपडे पहनने के लिए फट से उठ गया!

नेहा की बात सुन मैं हँस पड़ा, उधर आयुष पर अपनी दीदी की डाँट का कोई असर नहीं पड़ा बल्कि उसने फटाफट अपना ब्रश किया और अपने गीले हाथों को नेहा के चेहरे पर रगड़ कर भाग गया| ठंडा पानी चेहरे पर पड़ा तो नेहा गुस्से से उठी और आयुष को मारने के लिए दौड़ी! तो इस तरह दोनों बच्चों की घर में पकड़म-पकड़ाई चालु हो गई!

आयुष को अगर अपनी जान बचानी थी तो उसे मेरे पास आना था, आयुष दौड़ता हुआ मेरे पास आया और चिल्लाने लगा;

आयुष: पापा बचाओ! बचाओ!

मैंने आयुष को गोद में उठाया और उसे नेहा से बचाने लगा| इतने में नेहा आयुष को पकड़ने के लिए मेरे ऊपर कूदी, मैंने दोनों बच्चों को एक दूसरे से दूर रखा और नेहा को समझाते हुए बोला;

मैं: बेटा माफ़ कर दो अपने छोटे भाई को!

नेहा की नींद खराब हुई थी तो वो इतनी जल्दी आयुष को छोड़ने वाली नहीं थी! मैंने आयुष को गोद से उतारा तो वो खिड़की की तरफ भागा और नेहा उसके पीछे भागी! मैंने नेहा को पीछे से पकड़ गोदी में उठाया मगर नेहा ने आयुष को पकड़ने के लिए छटपटाना शुरू कर दिया!

मैं: Awwww मेरा बच्चा! बस-बस! गुच्छा (गुस्सा) नहीं करते! आप बड़ी बहन हो, माफ़ कर दो बेचारे को!

मैंने नेहा को समझाते हुए कहा| नेहा को मेरे मुँह से 'Awwww मेरा बच्चा' सुनना अच्छा लगता था इसलिए ये शब्द सुनते ही वो शांत हो गई और मेरे से लिपट गई! मैंने मुस्कुरा कर नेहा के सर पर हाथ फेरा, नेहा फिर से मुस्कुराने लगी और मुस्कुराते हुए उसने मेरे गाल पर पप्पी दी! आयुष दूर से अपनी दीदी को मुस्कुराते हुए देख रहा था, वो अब निश्चिंत था की उसकी दीदी अब उसे नहीं मारेगी इसलिए वो फुदकता हुआ मेरे पास आ गया| अपनी दीदी को मक्खन लगाने के लिए उसने कान पकड़ कर माफ़ी माँगी, नेहा जानती थी की ये माफ़ी तो बस आयुष का ड्रामा है! अब मेरे सामने वो आयुष को सबक नहीं सीखा सकती थी इसलिए उसने हँसते हुए अपने भाई को फिलहाल के लिए माफ़ कर दिया! माफ़ी मिली तो आयुष ने मेरी गोदी में आने के लिए अपने दोनों पँख (हाथ) खोल दिए, मैंने दोनों बच्चों को गोदी में उठाया और दोनों ने मेरे दोनों गालों पर अपनी मीठी-मीठी पप्पी दी! दिवाली के दिन की मीठी शुरुआत हुई थी, मगर अभी तो बहुत कुछ बाकी था!

बाप-बेटा-बेटी की तिगड़ी अभी पप्पियों लेने-देने में व्यस्त थी की तभी भौजी कमरे में आईं| बाकी दिनों की तरह वो मुझसे उखड़ी हुईं थीं लेकिन आज मुझे उनके व्यवहार में कुछ अलग महसूस हुआ| उनके चेहरे पर आज अलग ही तेज था, बाकी दिनों के मुक़ाबले आज उनका मस्तक कुछ ज्यादा तेजोमय लग रहा था| गाल आज कुछ-कुछ गुलाबी थे, आँखों में हलकी सी हया थी, लबों पर शब्द थे जो वो कहना चाहतीं थीं मगर कह नहीं रहीं थीं! तभी भौजी के होंठ थरथराये और उनके कोकिल कंठ से बोल फूटे;

भौजी: आयुष-नेहा बेटा चलो दूध पी लो!

मैं उम्मीद कर के बैठा था की वो मुझसे कुछ कहेंगी पर वो तो बच्चों को दूध पीने का बोल कर नजरें फेर कर चली गईं! मैंने सोचा चलो कोई बात नहीं, मैं न सही कम से कम बच्चों से तो वो प्यार से बात कर रहीं हैं! मैंने दोनों बच्चों को गोदी से उतारा, नेहा ब्रश करने घुसी और आयुष बाहर बैठक में दौड़ गया| इधर मैं अपनी प्रियतमा से आज बात कैसे करूँ ये सोचते हुए मैं भी आयुष के पीछे बाहर आ गया| कमरे से बाहर आया तो मैंने देखा की पिताजी dining table पर अपनी checkbook ले कर बैठे हैं तथा उनके पास मिठाइयों के दो डिब्बे रखे हैं| मिठाई के डिब्बे देख मैं जान गया की आज वो और माँ जर्रूर किसी के यहाँ मिठाई देने जायेंगे और यही वो समय होगा जब मैं भौजी से इत्मीनान से बात कर सकता हूँ| अब मुझे बस दिमाग लगा कर बात बनानी थी ताकि चालाकी से हम चारों (मैं, भौजी और बच्चों) को कहीं जाने का बहाना मिल जाए!

वहीं पिताजी की नजर मुझ पर पड़ी तो उन्होंने मुझे अपने पास dining table पर बिठा लिया;

पिताजी: बेटा कल तूने मिश्रा जी वाली एक साइट का फाइनल का काम जो फाइनल कराया था उसकी payment आ गई है! मेरी गैरहाजरी में तूने सारा काम संभाल लिया वरना हमारा नुक्सान और नाम दोनों खराब हो जाते!

पिताजी मेरी पीठ थपथपाते हुए बोले| भौजी उस वक़्त रसोई में थीं और पिताजी को मेरी पीठ थपथपाते उन्हें बहुत ख़ुशी हो रही थी, बस वो ये ख़ुशी जता नहीं रहीं थीं!

पिताजी: ये रहा चन्दर के हिस्से के मुनाफे का चैक, इससे तू अपने अनुसार दोनों बच्चों के नाम की FD करवा दे!

पिताजी ने मेरी तरफ 15,000/- रुपये का चैक बढ़ाते हुए कहा| ये पैसे बच्चों के लिए बहुत कम थे इसलिए मैंने मन ही मन सोच लिया की इसमें मैं अपने पैसे डाल कर बच्चों के नाम की FD करवा दूँगा|

पिताजी: और तेरे हिस्से का मुनाफ़ा मैंने तेरे अकाउंट में डलवा दिया है!

पिताजी मुस्कुराते हुए बोले| उनके चेहरे पर गर्वपूर्ण मुस्कान थी और हो भी क्यों न, आखिर उनका लड़का जिम्मेदार जो हो चला था!

मैं: जी बेहतर!

मैंने सर हाँ में हिलाते हुए कहा| मैं चैक ले कर उठने लगा तो भौजी का ग़मगीन चहेरा दिखा!

मैं: पिताजी, मुझे दिवाली के लिए कुछ खरीदारी करनी थी तो अगर आप की आज्ञा हो तो हम पाँचों (मैं, माँ, भौजी और दोनों बच्चे) बजार हो आयें?

मैं जानता था की पिताजी माँ को अपने साथ मिठाई देने ले जाएँगे इसलिए मैंने बड़ी चपलता से अपनी बात कही|

पिताजी: बेटा आज मुझे तेरी माँ के साथ मिश्रा जी के यहाँ जाना है| दिवाली का दिन है तो उन्हें मिठाई देने हम दोनों का जाना जर्रूरी है| तू ऐसा कर अपनी भौजी और दोनों बच्चों को ले जा|

बस यही तो मैं सुनना चाहता था! मैं फ़ौरन सर हाँ में सर हिलाते हुए अपना उत्साह दबाते हुए बोला;

मैं: जी ठीक है|

मैं अपने कमरे में आने को उठा, तभी भौजी रसोई से निकल कर अपने कमरे में जा रहीं थीं उन्होंने मेरी बात सुन ली थी इसलिए मैंने जानकार उन्हें कुछ नहीं कहा|

नाश्ता कर के हम सब एक साथ निकले, माँ-पिताजी ऑटो कर के मिश्रा अंकल जी के यहाँ चले गए और मैं, भौजी तथा दोनों बच्चे बजार की ओर चल दिये| आयुष मेरी दाईं तरफ था और नेहा मेरी बाईं तरफ तथा भौजी आयुष की बगल में खामोशी से चल रहीं थीं| दोनों बच्चे अपनी मम्मी की मौजूदगी से घबराये हुए थे इसलिए दोनों मेरी ऊँगली पकडे हुए खामोश थे, जबकि बाकी दिन वो हमेशा बजार जाते समय चहकते रहते थे| मुझे अपने बच्चों की ये ख़ामोशी खल रही थी, इसलिए मैंने बात शुरू करते हुए नेहा से कहा;

मैं: नेहा बेटा आपने स्कूल में रंगोली बनाई थी?

नेहा: जी पापा|

नेहा ने सर हाँ में हिलाते हुए कहा|

मैं: तो आज घर पर भी बनाओगे?

मैंने मुस्कुराते हुए पुछा तो नेहा की आँखें चमक उठीं;

नेहा: जी!

नेहा ने खुश होते हुए कहा| मैंने जेब से 100/- रुपये निकाले और नेहा को देते हुए सामने की दूकान की तरफ इशारा करते हुए कहा;

मैं: ये लो पैसे और जो सामान लाना है ले लो|

नेहा मुझसे पैसे ले कर दूकान की तरफ घूमी ही थी की तभी भौजी पीछे से बोल पड़ीं;

भौजी: कोई जर्रूरत नहीं, घर पर सब रखा है!

भौजी की झिड़की सुन नेहा सहम गई और सर झुका कर वापस मेरे पास खड़ी हो गई! त्यौहार के दिन बच्चों पर यूँ भौजी का अपना चिड़चिड़ापन निकालना मुझे अच्छा नहीं लगा इसलिए मैंने जोश में आकर नेहा का हाथ पकड़ा और बोला;

मैं: आप चलो मेरे साथ, मैं आपको सामान दिलाता हूँ

मैंने नेहा को होंसला बँधाते हुए कहा| नेहा ने फिर एक नजर अपनी मम्मी को देखा, भौजी उसे आँखें बड़ी कर के देख रहीं थीं और मूक इशारे से मेरे साथ जाने से मना कर रहीं थीं| अपनी मम्मी का इशारा समझ नेहा बेचारी सहमी हुई सी नजर झुका कर सर न में हिला कर मेरे साथ जाने से मना करने लगी! नेहा का न में सर हिलाना देख मैंने भौजी को देखा और उनकी बड़ी आँखे देख मैं समझ गया की वो ही नेहा को मेरे साथ जाने से मना कर रहीं हैं! मैं घुटने मोड़ कर बैठा और नेहा की ठुड्डी ऊपर करते हुए उससे नजरें मिलाकर बोला;

मैं: अपनी मम्मी को मत देखो! मैं आपका पापा हूँ न, तो आप मेरे साथ चलो!

नेहा को अपने पापा की शय मिली तो उसे होंसला आ गया, मैं दोनों बच्चों को ले कर रंगों वाली दूकान पर आया और नेहा को जो-जो चाहिए था वो सब खरीदवाया| भौजी मुँह फुलाये, हाथ बाँधे पीछे खड़ीं रहीं और एक शब्द नहीं बोलीं, बोलतीं भी कैसे वरना आज मैं उनकी ऐसी-तैसी जो कर देता!

नेहा ने रंग, stencil वगैरह खरीदी तो अब बारी आई आयुष की जो चुपचाप बाकी दुकानों की ओर देख रहा था|

मैं: आयुष बेटा, आप फुलझड़ी लोगे?

पटाखे किसे अच्छे नहीं लगता, मगर मेरी बात सुन आयुष बेचारा डर के मारे सीधा अपनी मम्मी को देखने लगा| मैंने आयुष की ठुड्डी पकड़ अपनी तरफ घुमाई ओर मुस्कुराते हुए उसका डर कम करने लगा;

मैं: बेटा आपके पापा इधर हैं, वो आपको पटाखे दिलवा रहे हैं न की मम्मी!

अपने पापा को मुस्कुराता देख आयुष के चेहरे पर प्यारी सी मुस्कान आ गई और उसने पटाखे लेने की अपनी ख़ुशी व्यक्त की| मैं, आयुष और नेहा पटाखे की दूकान पर आये, बच्चों को सिवाए फुलझड़ी के और कोई पटाखा नहीं पता था तो मैंने उनकी सहयता करते हुए अनार, चखरी तथा राकेट खरीद कर दिए| दरअसल हमारे गाँव में दिवाली बड़ी ही फीकी मनाई जाती थी, रात को पूजा होती थी जो बड़के दादा करते थे, घर में दीप जला कर सभी प्रसाद में रखी लड्डू-बर्फी खा कर मुँह मीठा करते हैं| हाँ पिछले 2-4 सालों से अजय भैया पड़ोस के गाँव में कुम्हार के लड़के से घर में सन (चारपाई बुनने के लिए इस्तेमाल की जाने वाली रस्सी) से बनाये हुए 1-2 बम लाते थे और उसे फोड़ कर ही उनकी दिवाली मन गई! मैंने इस बार ठान लिया था की मैं अपने बच्चों को असली दिवाली दिखाऊँगा!

खैर इधर बाप-बेटा-बेटी खरीदी कर रहे थे तो उधर भौजी मुँह फुलाये हुए शाम की पूजा के लिए समान खरीदने लगीं| बच्चों को खरीदारी करवा कर मैं भौजी के पास लौट आया और सामान खरीदने में उनकी मदद करने लगा| भौजी दिये ले रहीं थी, तो मैंने दोनों बच्चों को दरवाजे पर बाँधे जाने वाला शुभ दिवाली का sticker खरीदने में लगा दिया, वहीं मैं खुद खील-खिलोने-बताशे खरीदने लगा| भौजी ने दिये खरीद लिए थे, उन्होंने मुझे इशारे से पैसे देने को कहा और वो फल लेने बगल के ठेले पर चली गईं| मैंने सब समान के पैसे दिए और बच्चों को ले कर भौजी के पास आ गया| फल लेने के बाद अब बस एक काम बचा था और वो था मिठाई लेना! अब मिठाई दोनों बाप-बेटे (मेरी और आयुष) की कमजोरी थी तो उसके नाम से ही हम दोनों अपने होठों पर जीभ फिर रहे थे! आयुष तो लड्डू-बर्फी देख कर ही खुश हो गया था, नेहा और भौजी की मिठाई में कुछ ख़ास रूचि नहीं थी| मैंने दुकानदार से सोहन पपड़ी का डिब्बा लिया, अब सोहन पपड़ी भौजी और बच्चों ने कभी खाई नहीं थी तो उनकी जिज्ञासा बनी हुई थी की आखिर ये चीज होती क्या है? डिब्बे पर बने मिठाई के चित्र को देख कर माँ-बेटा-बेटी बस अंदाजा लगा रहे थे की ये मिठाई कैसी होगी| तभी नेहा की नजर रस मलाई पर पड़ी, वो शर्माते हुए मेरे पास आई और मेरा हाथ पकड़ कर नीचे खींचने लगी, मैं अपना कान नेहा के मुँह के पास लाया तो वो शर्माते हुए बोली;

नेहा: पापा जी, मुझे रस मलाई खानी है!

नेहा ने बड़े प्यार से फरमाइश की|

मैंने दुकानदार से 10 पीस रस मलाई पैक करवाई और नेहा से धीमी आवाज में कहा;

मैं: बेटा ये आपको रात को पूजा के बाद मिलेगी!

मेरी बात सुन नेहा मुस्कुराने लगी और हाँ में सर हिलाने लगी|

सारा सामान ले कर हम चारों घर लौटे, बच्चे तो घर आते ही कार्टून देखने में लग गए| दोपहर के साढ़े बारह हुए थे और भौजी खाना बनाने की तैयारी कर रहीं थीं| इतने में पिताजी का फ़ोन आ गया, उन्होंने बताया की वो मिश्रा अंकल जी के यहाँ lunch कर रहे हैं, इसलिए हम चारों उनका इंतजार न करें| पिताजी से बात कर के मैंने फ़ोन रखा, भौजी इस समय गैस पर आलू उबाल रहीं थीं;

मैं: जान खाना मत बनाओ, माँ-पिताजी, मिश्रा अंकल जी के यहीं खाना खाने वाले हैं| मैं हम चारों के लिए बाहर से कुछ मँगवा रहा हूँ|

मैंने प्यार से कहा| इतना सुनना था की भौजी ने गुस्से से गैस बंद की और अपने कमरे की ओर जाने लगीं| मैंने एकदम से उनका (भौजी का) हाथ थाम लिया और खींचते हुए अपने कमरे में ले आया| कमरे में आ कर मैंने भौजी का हाथ छोड़ दिया;

मैं: बैठो, मुझे आपसे कुछ बात करनी है|

मैंने गंभीर होते हुए भौजी को कुर्सी की तरफ बैठने का इशारा करते हुए कहा| मेरी आवाज में चिंता झलक रही थी और इसी चिंता को महसूस कर भौजी कुर्सी पर मुझसे नजरें चुरा कर बैठ गईं| उनके चेहरे पर सुबह वाला तेज अब नहीं था, बल्कि एक उदासी थी! मैं भौजी के सामने पलंग पर बैठ गया और उनका दाहिना हाथ अपने दोनों हाथों में ले कर बोला;

मैं: करवा चौथ के बाद से आप जो ये मेरे साथ रुखा व्यवहार कर रहे हो, मैं इसका कारण जानता हूँ!

मेरी आधी बात सुन भौजी की आँखें बड़ी हो गईं और वो हैरानी से मुझे देखने लगीं| भौजी की ये मुझे गुस्सा दिलाने वाली हरकतें सिर्फ और सिर्फ मुझे खुद से दूर करने के लिए थीं! वो जानतीं थीं की सच सामने आने के बाद हम दोनों को हमेशा-हमेशा के लिए अलग कर दिया जाएगा! उनसे (भौजी से) और बच्चों से दूर हो कर मैं फिर से पीना शुरू कर देता, मैं ऐसा कुछ न करूँ इसके लिए वो जानबूझ कर मुझसे बात न कर के, बच्चों को मुझसे दूर कर के, मेरे मन में अपने लिए नफरत भरना चाहतीं थीं! परन्तु वो ये भूल गईं थीं की 'हमारे दिल connected हैं!'

मैं: आखिर क्यों आप मुझे खुद से और हमारे बच्चों से दूर करना चाहते हो?

ये सुनते ही भौजी की आँखों में आँसूँ उतर आये!

मैं: ये सब आप जानबुझ कर इसलिए कर रहे हो न ताकि मैं आपसे खफा हो जाऊँ, आपसे नफरत करने लगूँ और पिताजी से हमारे रिश्ते की बात न करूँ?

मैंने सवाल तो पूछ लिया मगर मैं इसका जवाब पहले से ही जानता था;

भौजी: हाँ!

भौजी ने रूँधे गले से कहा और ये कहते हुए उनकी आँखें छलछला गईं!

मैं: आपको लगा की मैं गुस्से में आ कर आपको छोड़ दूँगा?

ये सुन भौजी से खुद को रोकपाना मुश्किल हो गया और वो फफक कर रोने लगीं!

मैं: जान, आपने ये सोच भी कैसे लिया?

इतना कह मैं भौजी के सामने घुटनों पर आया और वो मेरे गले लग कर रोने लगीं| मैंने भौजी को पुचकारा और उनके आँसूँ पोछते हुए बोला;

मैं: अच्छा मेरी एक बात का जवाब दो, क्या आप नहीं चाहते की हम दोनों हमेशा एक साथ रहे, हमारे रिश्ते को एक जायज नाम मिले, हमारे बच्चे हमें सबके सामने मम्मी-पापा कह सकें, हमें यूँ छुप-छुप कर न मिलना पड़े?

मेरा सवाल सुन भौजी ने हिम्मत बटोरी और बोलीं;

भौजी: मैं आपसे बहुत प्यार करती हूँ और आपके साथ हर पल जीना चाहती हूँ मगर मैं आपको खोना नहीं चाहती! कल जब आप पिताजी से हमारे रिश्ते की बात कहेंगे तो वो हमें हमेशा-हमेशा के लिए अलग कर देंगे!

भौजी का डर एक बार फिर बाहर आया|

मैं: ऐसा कुछ नहीं होगा! और अगर हुआ भी तो हम ये घर छोड़ देंगे!

मैंने भौजी को होंसला देते हुए कहा| मेरी बात सुनते ही वो तपाक से बोलीं;

भौजी: यही मैं नहीं चाहती! मेरे कारण आप अपने माँ-पिताजी से अलग होंगे तो मेरे ऊपर उम्र भर का लांछन लग जायेगा!

ये कहते हुए भौजी की आँखें फिर छलक गईं!

मैं: जान मैंने आपको समझाया था न की मैं ऐसा होने ही नहीं दूँगा! इन कुछ दिनों में माँ-पिताजी मेरे प्रति बहुत नरम हो गए हैं, मैं उन्हें मना लूँगा! फिर भी अगर वो नहीं माने तो हमें बस उनका (माँ-पिताजी का) गुस्सा ठंडा होने तक अलग रहना है! आप खुद सोचो की माँ-बाप अपने खून से कब तक नाराज रह लेंगे? जैसे ही उनका गुस्सा शांत होगा मैं उनके पैरों में गिरकर घर छोड़ने की माफ़ी माँग लूँगा और वो मुझे माफ़ भी कर देंगे, तो आप पर कोई लांछन नहीं लगेगा!

इस समय मेरा आत्मविश्वास अपनी पूरी बुलंदियों पर था, मुझे अपने ऊपर इतना अधिक आत्मविश्वास की मैंने भौजी को अपनी बातों से मना लिया था|

मैं: अब आप इस मुद्दे को सोच कर नहीं रोओगे, आज त्यौहार का दिन है और आज के दिन हमें ख़ुशी-ख़ुशी बिताना है|

मैंने भौजी के आँसूँ पोछते हुए कहा| आखिर भौजी के चेहरे पर थोड़ी से मुस्कान आ ही गई और वो मेरे दोनों हाथ आपने हाथों में लेते हुए मुस्कुराईं और बोलीं;

भौजी: जानू!

हाय! इतना सुनना था की मेरी रूह खुश हो गई! मगर आगे उन्होंने जो कहा उसे सुन कर तो मेरा दिल जैसे धड़कना ही भूल गया;

भौजी: मैं आपके बच्चे की माँ बनने वाली हूँ!

भौजी शर्माते हुए बोलीं| उनके कहे ये शब्द जा कर सीधा दिल को लगे, ऐसा लगा मानो जैसे दिल धड़कन भूल गया हो!

मैं: सच जान?

मैंने खुश होते हुए पुछा|

भौजी: हाँ जी! आज सुबह ही मैंने pregnancy test kit से चेक किया था!

भौजी शर्म से लाल होते हुए बोलीं| अब मुझे समझ आया की सुबह भौजी के चेहरे पर तेज क्यों था! इधर बाप बनने की ख़ुशी ने मुझे पागल कर दिया था, ख़ुशी से बौराया हुआ मैं नाचने लगा! मुझे भंगड़ा डालते देख भौजी इतने दिनों बाद खिलखिला कर हँस पड़ीं! मैंने भौजी का हाथ पकड़ उन्हें खड़ा किया और अपने साथ नचाने लगा! भौजी मुझे देखते हुए भंगड़ा डालने की कोशिश करने लगीं! अगले ही पल मुझे इतना जोश आया की मैंने भौजी को कमर से पकड़ कर हवा में उठा लिया और गोल-गोल घूमने लगा! भौजी और मेरे चेहरे पर इतनी ख़ुशी थी, इतनी ख़ुशी की इस ख़ुशी के मारे हमारी आँखें छलक आईं! मैंने भौजी को नीचे उतारा और उन्हें कस कर अपने गले लगा लिया, भौजी ने भी आगे बढ़ते हुए अपनी दोनों बाहें मेरी पीठ पर कस लीं तथा मुझ में समां गईं! उन कुछ पलों के लिए हम दोनों खामोश हो गए थे, आँखें बंद किये हुए हम दोनों और हमारे तेजी से धड़कते दिल, जिनकी अलग-अलग धड़कनें एक सुर में धड़कने लगी थी! यहाँ तक की हम दोनों की साँसें एक समान चल रहीं थीं, जो हमारे शांत दिल की सूचक थी|

आँख बंद किये हुए मैंने अपने भरे-पूरे परिवार की कल्पना कर ली थी! अपने बच्चे को पहली बार गोदी में लेने की कल्पना से मेरी आँखों ने नीर बहाना शुरू कर दिया था| जब मेरे आँसूँ बहते हुए भौजी के कँधे पर गिरे तो भौजी ने हमारा आलिंगन तोडा और मेरा चेहरा अपने हाथ में लेते हुए बोलीं;

भौजी: जानू....

लेकिन वो आगे कुछ कहतीं उससे पहले ही मैंने उनके चेहरे को अपने दोनों हाथों में थामा और उनकी आँखों में आँखें डालते हुए उनके होठों के नजदीक आ कर बोला;

मैं: जान! दिवाली का इससे अच्छा तोहफा नहीं हो सकता था!

ये कहते हुए मैंने भौजी के होठों को चूम लिया! मेरा ये दो सेकंड का चुंबन भौजी के दिल की गहराई तक उतर चूका था! इस छोटे से चुंबन के बाद मैंने भौजी की आँख में देखा तो मुझे अलग ख़ुशी दिखाई दी, ये ख़ुशी थी मुझे पिता बनाने की ख़ुशी!

भौजी के चेहरे को छोड़ मैं घुटने मोड़ कर नीचे बैठा और आँख बंद कर के उनके पेट पर अपने होंठ रख दिए! भौजी ने अपनी आँख बंद कर ली और मेरे इस चुंबन को हमारे बच्चे को मिलने वाली पहली 'पप्पी' के रूप में महसूस करने लगीं! हम दोनों उस वक़्त खुदको पूर्ण महसूस कर रहे थे, हमारा ये प्यार भरा रिश्ता ऐसे मुक़ाम पर आ चूका था जिसके आगे हम दोनों को अब कुछ नहीं चाहिए था| अब बस एक आखरी पड़ाव, एक आखरी उपलब्धि मिलनी बाकी थी, वो शिखर जिस पर पहुँच कर हम दोनों एक दूसरे को अपना सर्वस्व सौंप कर हमेशा-हमेशा के लिए के पावन रिश्ते में बँध जाते!

[color=rgb(51,]जारी रहेगा भाग-5 में...[/color]
 

[color=rgb(255,]चौबीसवाँ अध्याय: उलझते-सुलझते बंधन[/color]
[color=rgb(209,]भाग-5[/color]


[color=rgb(26,]अब तक आपने पढ़ा:[/color]

भौजी के चेहरे को छोड़ मैं घुटने मोड़ कर नीचे बैठा और आँख बंद कर के उनके पेट पर अपने होंठ रख दिए! भौजी ने अपनी आँख बंद कर ली और मेरे इस चुंबन को हमारे बच्चे को मिलने वाली पहली 'पप्पी' के रूप में महसूस करने लगीं! हम दोनों उस वक़्त खुदको पूर्ण महसूस कर रहे थे, हमारा ये प्यार भरा रिश्ता ऐसे मुक़ाम पर आ चूका था जिसके आगे हम दोनों को अब कुछ नहीं चाहिए था| अब बस एक आखरी पड़ाव, एक आखरी उपलब्धि मिलनी बाकी थी, वो शिखर जिस पर पहुँच कर हम दोनों एक दूसरे को अपना सर्वस्व सौंप कर हमेशा-हमेशा के लिए के पावन रिश्ते में बँध जाते!

[color=rgb(61,]अब आगे:[/color]

इतनी ख़ुशी पा कर हम दोनों तृप्त हो गए थे! मैंने भौजी को पलंग पर बिठाया और मैं उनके सामने कुर्सी ले कर के बैठ गया| भौजी की आँखें ख़ुशी के मारे फिर छलक गईं थीं;

भौजी: जानू, मुझे मेरा पूरा परिवार चाहिए!

यहाँ पूरे परिवार से भौजी का तातपर्य था; मैं, वो, हमारे तीनों बच्चे और मेरे माता-पिता| भौजी की आवाज में अब वो आत्मविश्वास झलक रहा था जो मैंने कुछ पल पहले उनके भीतर जगाया था| उनका ये आत्मविश्वास देख मैं बड़े गर्व से बोला;

मैं: जान वादा करता हूँ की आपकी ये माँग मैं अवश्य पूरी करूँगा!

मैंने उस वक़्त जोश-जोश में कह तो दिया था, लेकिन ये सब होना इतना आसान नहीं था!

खैर अब समय रोने का नहीं था बल्कि ख़ुशी मनाने का था| मैंने भौजी के आँसूँ पोछे और मुस्कुराते हुए बोला;

मैं: अच्छा बस! अब कोई रोना-धोना नहीं! सबसे पहले हमारे दोनों बच्चों को थोड़ा प्यार दो, बेचारे इतने दिनों से आपकी डाँट खा रहे हैं!

मैंने भौजी का ध्यान बच्चों की ओर करते हुए कहा|

भौजी: हाँ जी! उन्हें भी तो ये खुशखबरी दें!

भौजी मुस्कुराते हुए बोलीं|

मैं: नहीं जान, अभी नहीं! वो बच्चे हैं कहीं आज माँ-पिताजी के सामने कुछ कह दिया तो कल के लिए मेरी बात बिगड़ जायेगी! फिलहाल आप उन्हें थोड़ा प्यार करो ताकि वो दोनों ख़ुशी से पहले की तरह चहकने लगें!

मैं नहीं चाहता था की बच्चों को ये बात अभी बताई जाए| दोनों की उम्र का तकाज़ा था, अपने बचपने में अगर वो किसी से कुछ कह देते तो मेरे लिए माँ-पिताजी से बात करने में मुश्किल खड़ी हो जाती! फिर मैं ये भी नहीं चाहता था की इतनी सी उम्र में बच्चों के ऊपर इतने सारे राज़ छुपाने का भार पड़े, उनका बचपन बिना किसी चिंता के होना चाहिए!

बहरहाल मने दोनों बच्चों को आवाज दे कर कमरे में बुलाया;

मैं: आयुष....नेहा बेटा इधर आओ!

मेरी आवाज सुन दोनों दौड़े-दौड़े कमरे में आये|

मैं: बेटा मम्मी के गले लगो!

मैंने प्यार से दोनों बच्चों को कहा, मगर दोनों ही अपनी मम्मी के गले लगने से झिझक रहे थे| दरअसल अपनी मम्मी के रूखे बर्ताव के कारन वो नाराज थे|

मैं: देख लो आपके रूखेपन के कारन मेरे बच्चे कितने डर गए हैं!

मैंने भौजी को प्यार से डाँटा तो भौजी ने अपने दोनों कान पकड़ लिए और सर झुका लिया|

मैं: बेटा आपकी मम्मी मुझसे नाराज थीं और मेरा सारा गुस्सा आपके ऊपर निकाल दिया| मेरे लिए अपनी मम्मी (भौजी) को माफ़ कर दो और उनके गले लग जाओ!

मैंने सारा इल्जाम अपने सर लिया और प्यार से बच्चों को समझाया तो दोनों ने झट से अपनी मम्मी को माफ़ कर दिया और मुस्कुराते हुए अपनी मम्मी के गले लग गए| भौजी ने भी दोनों बच्चों को कस कर अपने सीने से लगाया और दोनों के सर पर हाथ फेरते हुए बोलीं;

भौजी: मुझे माफ़ कर दो बेटा!

जिसके जवाब में दोनों ने अपनी मम्मी के गालों पर प्यारी-प्यारी पप्पी दी और उन्हें माफ़ कर दिया|

मेरे दोनों बच्चे अब पहले की तरह चहक रहे थे, खाने का समय हो चला था तो दोनों बच्चे प्यार से तुतलाते हुए बोले; "पापा जी भूख लगी है!" मैंने फ़ोन उठाया और सब के लिए चाऊमीन और pastry मँगाई! चाऊमीन तो बच्चों की मनपसंद थी मगर pastry आने वाले मेहमान की ख़ुशी में मँगाई गई थी! खाना आया और हम चारों ने एक साथ बैठ कर, एक दूसरे को खिला कर खाया| खाना खा कर माँ-बेटी (भौजी और नेहा) रंगोली बनाने में जुट गए और हम बाप-बेटा (मैं और आयुष) दिवाली की लाइटें लगाने छत पर पहुँच गए| छत पर लाइटें लगा कर दोनों बाप-बेटे नीचे आये और घर के भीतर की सजावट में लग गए| सजावट करते समय मेरे मन में एक ख्याल आया और काम निपटा कर मैं 20 मिनट के लिए बाहर चल गया| दरअसल मेरा मन भौजी के साथ अकेले में कुछ समय बिताने का था, अब घर पर तो ये मुमकिन नहीं था इसलिए मैंने गाडी किराए पर लेने का मन बनाया| लेने को तो मैं गाडी दिषु से भी माँग सकता था लेकिन आज त्यौहार के दिन उसे भी गाडी की जर्रूरत होती इसलिए मैंने उससे गाडी नहीं माँगी! मैंने Swift Dzire 3,000/- रुपये दे कर किराये पर ली और गली के बाहर पार्क कर के घर आ गया|

माँ-पिताजी के आते-आते पूरा घर चमक रहा था! माँ-पिताजी आये तो साथ में मिठाई लाये, मिठाई देख कर दोनों बाप-बेटे (मैं और आयुष) एक दूसरे को देखने लगे! हम दोनों ही के चेहरे पर लालच नजर आ रहा था, माँ ने हमारा ये लालच देखा तो हँसते हुए बोलीं;

माँ: बहु ये मिठाई सब संभाल कर रखिओ, यहाँ दो-दो लालची शैतान घूम रहे हैं!

माँ की बात सुन हम सब ने जोर से से ठहाका लगाया|

सभी बारी-बारी से नहाये और नए कपडे पहन कर तैयार हो गए| पिताजी ने नई shirt-pant पहनी थी, माँ ने नै शिफॉन की साडी पहनी थी| मैंने अपने लिए कुछ नहीं खरीदा था इसलिए मैं jeans और shirt पहनने वाला था, मगर पिताजी ने मुझे नई shirt-pant दी और बोले;

पिताजी: जानता था तू अपने लिए कपडे लेना भूल गया होगा, इसलिए इस बार मेरी तरफ से तेरे लिए shirt-pant!

मैंने मुस्कुरा कर पिताजी से कपडे लिए और उनके पाँव छू कर उनका आशीर्वाद लिया| मैं अपने कमरे में भौजी के लिए लिए साडी लेने जा ही रहा था की इतने में माँ ने भौजी को आवाज लगा कर अपने पास बुलाया;

माँ: बहु, मेरी तरफ से तेरे लिए ये साडी| जल्दी से जा कर इसे पहन कर आ|

भौजी ने मुस्कुरा कर माँ से साडी ली और उनके पाँव छु कर आशीर्वाद लिया| अब माँ ने खुद साडी दे दी थी तो मैंने सोचा की मैं भौजी को साडी बाद में दे दूँगा!

माँ-पिताजी तो तैयार हो कर बैठक में बैठे थे, बच्चे नहा कर तैयार हो रहे थे और मैं अपनी बारी का इंतजार करने के लिए dining table के पास टहल रहा था| तभी नेहा तैयार हो कर अपना लहँगा-चोली पहन कर बाहर आई! लहँगा-चोली में मेरी बेटी इस समय पूरी परी लग रही थी! नेहा को देखते ही मैंने अपने दोनों हाथ खोल दिए और वो दौड़ती हुई आ कर मेरे गले लग गई!

मैं: मेरा बच्चा आज बहुत खूबसूरत लग रहा है! कहीं आपको मेरी नजर न लग जाए!

मैंने जेब से 10/- रुपये निकाले और नेहा पर वारते हुए मंदिर में रख दिए| फिर नेहा ने झुक कर मेरे पाँव छुए तो मैंने उसे गोदी में उठा लिया और उसके गालों की मीठी-मीठी पप्पी ले कर नाचने लगा| मेरी बेटी भी इतनी खुश थी की उसने मेरे कान में खुसफुसाते हुए कहा;

नेहा: Thank you पापा जी!

वहीं जब माँ ने नेहा को तैयार मेरी गोदी में नाचते हुए देखा तो माँ बोलीं;

माँ: अरे वाह! मेरी बिटिया तो आज राजकुमारी लग रही है!

माँ ने नेहा को अपने पास बुलाया तो मैंने नेहा को गोदी से उतार दिया| नेहा भागती हुई अपनी दादी की कमर से लिपट गई, माँ ने अपनी आँखों से काजल निकालते हुए नेहा के कान के पीछे टीका लगा दिया;

माँ: मेरी बिटिया को नजर न लगे!

माँ ने नेहा के माथे को चूमते हुए कहा| इतने में आयुष धोती कुरता पहन कर बाहर आ गया| अपनी छोटी सी धोती में आयुष 'छोटे कुँवर साहब' लग रहा था! मैंने आगे बढ़ते हुए आयुष को गोदी उठा लिया और अपने गले लगाते हुए बोला;

मैं: बेटा आज तो आप बहुत cute लग रहे हो! मेले छोटे लाड साहब!

मैंने आयुष के दोनों गालों पप्पी लेते हुए कहा, आयुष अपनी तारीफ सुनते हुए शर्म से लाल हो गया! लाड साहब की 'उपाधि' मुझे मेरे बचपन में पिताजी द्वारा दी गई थी, आज जब आयुष को छोटी सी धोती में देखा तो मेरे मुँह से छोटे लाड साहब अनायास ही निकल गया! ठीक ही है, बाप (मैं) अपने पिताजी का लाड साहब था और बेटा (आयुष) मेरा छोटा लाड साहब था! नए कपड़ों को पा कर आयुष बहुत खुश था और ख़ुशी से चहक रहा था| पिताजी ने जब हम बाप-बेटे को देखा तो उन्होंने आवाज दे कर कहा;

पिताजी: अरे भई आयुष बेटा ने क्या पहना है हमें भी दिखाओ?

मैंने आयुष को नीचे उतारा और वो दौड़ता हुआ अपने दादाजी (मेरे पिताजी) के सामने खड़ा हो गया|

पिताजी: अरे भई वाह! हमारे छोटे साहबजादे तो आज बहुत जच रहे हैं!

पिताजी के मुँह से तारीफ सुन आयुष शरमा गया और जा कर अपने दादा जी के गले लग गया| पिताजी ने आयुष के सर को चूमा, अब आयुष भागता हुआ अपनी दादी जी के पास आया, माँ ने आयुष को भी काला टिका लगाया|

माँ: मेरा मुन्ना तो आज बहुत प्यारा लग रहा है|

माँ ने आयुष के सर को चूमते हुए कहा, आयुष शर्मा गया और माँ से लिपट गया|

पिताजी: भई क्या बात है, बच्चों के लिए कपडे तो तू बड़े चुन-चुन कर लाया है!

पिताजी मेरी तारीफ करते हुए बोले| अब अपनी तारीफ सुन मैं भी आयुष की तरह शर्माने लगा!

माँ: अजी समझदार हो गया है मेरा लाल!

माँ ने भी मेरी तारीफ की तो मैं शर्म से लाल हो चूका था! नेहा जो पिताजी के पास बैठी थी वो मेरे पास आई और मेरी कमर के इर्द-गिर्द अपनी बाहें लपेट कर खड़ी हो गई| पूरे घर में बस एक मेरी बेटी थी जो मुझे समझती थी और मेरे शर्म से लाल होने पर मुझे सहारा देने आई थी| मैंने नेहा को गोद में उठाया और उसकी नाक से अपनी नाक रगड़ते हुए अपने कमरे में आ गया|

मैं: मेरा प्यारा बच्चा हमेशा मुझे बचाने आ जाता है!

मैंने नेहा की बड़ाई की तो नेहा मेरे दोनों गाल खींचते हुए बोली;

नेहा: I love you पापा!

मैंने नेहा का माथा चूमा और बोला;

मैं: I love you too मेरा बच्चा!

मैंने नेहा को गोदी से उतारा और मैं तैयार हो कर बाहर आया|

कुछ देर बाद भौजी भी तैयार हो कर बाहर निकलीं| माँ ने भौजी के लिए अच्छी साडी पसंद की थी, मगर भौजी ने जो घूँघट काढ़ा था उसके नीचे मैं उनका चहेरा नहीं देख पा रहा था| अब माँ-पिताजी के सामने तो भौजी को देख पाना नामुमकिन था, इसलिए मैंने ये सोच कर संतोष कर लिया की drive पर जाते समय इसकी सारी भरपाई कर लूँगा!

खैर पूजा का समय हुआ और पंडित जी पूजा करवाने के लिए आ गए| सबसे आगे माँ-पिताजी बैठे थे, उनके पीछे मैं और भौजी बैठे थे, आयुष मेरी गोद में और नेहा मेरी दाहिनी तरफ बैठी थी| हम चारों (मैं, भौजी, नेहा और आयुष) एक छोटे से कुटुम्भ के समान दिख रहे थे! पूजा शुरू हुई, सभी विधि-विधान माँ-पिताजी ने निभाए, मैं उस वक़्त पीछे बैठा अपने खवाबों की दुनिया में गुम था; 'अगले साल दिवाली की पूजा में मैं और मेरी परिणीता बैठे होंगे!' इस मीठे ख्वाब को सोच कर मैं बहुत खुश था और ये ख़ुशी मेरे चेहरे पर झलक रही थी| भौजी मेरे चेहरे पर आई ये ख़ुशी पढ़ चुकीं थीं और उनके पेट में तितलियाँ उड़ने लगीं थीं! नेहा मेरे ख़्वाबों से अनजान इसलिए खुश थी की उसके पापा जो उसे इस पूरी दुनिया में सबसे ज्यादा चाहते हैं, आज उनके साथ उसे दिवाली की पूजा में बैठने का अवसर मिला है और आयुष के चेहरे पर ख़ुशी इसलिए ही की पूजा के बाद उसे मिठाई खाने और पटाखे जलाने को मिलेंगे!

पूजा संपन्न हुई तो पंडित जी आशीर्वाद दे कर, अपनी दक्षिणा ले कर चले गए| इधर आयुष से मिठाई खाने और पटाखे जलाने का सब्र नहीं हो रहा था!

पिताजी: बेटा, अभी थोड़ी रात होने दो फिर हम सब छत पर चलकर पटाखे जलाएँगे|

पिताजी ने आयुष को प्यार से समझाते हुए कहा|

माँ: चलो तबतक मिठाई खाते हैं!

माँ ने मिठाई का नाम लिया तो आयुष दौड़ कर अपना नंबर लगा कर माँ के सामने खड़ा हो गया| माँ ने सबको सोहन पापड़ी निकाल कर दी, सबसे पहले आयुष को सोहन पापड़ी मिली तो उसने घप्प से मिठाई मुँह में रखी! सोहन पापड़ी उसके मुँह में घुलने लगी तो आयुष ने ख़ुशी से अपनी गर्दन दाएँ-बाएँ हिलाई! अगला नंबर नेहा का था, उसने भी सोहन पपड़ी का एक पीस खाया तो वो भी ख़ुशी से आयुष की तरह अपनी गर्दन दाएँ-बाएँ हिलाने लगी! अभी बाकियों को मिठाई मिली भी नहीं थी की दोनों बच्चे फिर से माँ के सामने अपना नंबर लगा कर खड़े हो गए| बच्चों का बचपना देख माँ हँस पड़ीं और दोनों को दो-दो मिठाई के पीस दिए| माँ-पिताजी दोनों ही मिठाई के शौक़ीन नहीं थे तो उन्होंने एक पीस मिठाई ली और आधी-आधी खाने लगे| बाकी की मिठाई dining table पर रखी थी, मैंने एक पीस भौजी को दिया और खुद एक बड़ा पीस उठा कर खाने लगा| भौजी ने जब मिठाई का एक पीस खाया तो वो धीमी आवाज में मुझसे बोलीं;

भौजी: जानू, इसने तो मेरी बचपन की याद दिला दी!

भौजी की बात सुन मेरा ध्यान उनकी ओर गया वरना मैं तो सोहन पापड़ी लपेटने के चक्कर में था!

भौजी: जब मैं छोटी थी तो इसे बुढ़िया के बाल कहते थे! मेरे स्कूल के दिनों में कभी-कभी खाती थी!

भौजी घूँघट के नीचे से मुस्कुराते हुए बोलीं| 'बुढ़िया के बाल' सुन कर दोनों बच्चे खिलखिलाकर हँसने लगे, क्योंकि ये नाम सुनने में मजाकिया लगता है! फिर दोनों ये बात बताने के लिए अपने दादा जी के पास चले गए! पिताजी को जब ये बात पता चली तो वो भी ठहाका मार कर हँसने लगे! उन्होंने बच्चों को अपने पास बिठा के अपने बचपन की यादें ताज़ा करनी शुरू कर दी| इधर मेरी और भौजी की खुसर-फुसर जारी रही| भौजी की स्कूल के दिनों की बात सुन मुझे मस्ती सूझी और मैं भौजी को चिढ़ाते हुए बोला;

मैं: कहते तो हम भी इसे बुढ़िया के बाल थे, लेकिन आपके जमाने में ये मिठाई मिलती भी थी?

ये सुनते ही भौजी ने मेरी बाजू पर प्यार से घूसा मारा और बोलीं;

भौजी: इतनी बुढ़िया लगती हूँ तो क्यों प्यार करते हो मेरे से?

भौजी नाराज हो कर मुँह फुलाते हुए बोलीं|

मैं: जान शराब जितनी पुरानी होती है उतना ज्यादा नशा देती है!

मैंने भौजी को छेड़ते हुए कहा| मुझे लगा था की अपनी तुलना पुरानी शराब से होते देख भौजी शर्माएंगी, मगर वो तो रासन-पानी ले कर मेरे ही ऊपर चढ़ गईं;

भौजी: फिर आपने शराब का नाम लिया?

मैंने फ़ौरन अपने कान पकडे और माफ़ी माँगने लगा;

मैं: माफ़ी! माफ़ी देई दिहो!

मेरी गाँव की बोली सुन भौजी हँस पड़ीं, लेकिन फिर अगले ही पल फिर से मुँह फुला लिया;

भौजी: सबके लिए कपडे लाये, लेकिन अपनी पत्नी को भूल गए?

भौजी शिकायत करते हुए बोलीं| मैं उन्हें साडी के बारे में बताता उससे पहले ही पिताजी ने आवाज लगा दी;

पिताजी: चल बेटा, पटाखे जलाएँ!

दरअसल पटाखे जलाने के लिए आयुष पिताजी के पीछे पड़ गया था| वहीं नेहा माँ से लिपट गई और बोली;

नेहा: दादी जी, मुझे रसमलाई खानी है!

आयुष को जलाने थे पटाखे और नेहा को खानी थी रसमलाई तो दोनों भाई-बहन की मीठी-मीठी नोक-झोंक शुरू हो गई;

आयुष: नहीं पहले पटाखे जलाएँगे!

नेहा: नहीं पहले रसमलाई!

आयुष: Please दीदी! Pleaseeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeee!

नेहा: नहीं!!

दोनों भाई-बहन की लड़ाई हम सब ख़ामोशी से मुस्कुराते हुए देख रहे थे, जब कोई हल नहीं निकला तो मैंने आगे बढ़ कर सुलाह कराई;

मैं: बेटा ऐसा करते हैं की रसमलाई खाते-खाते पटाखे जलाते हैं|

ये सुनते ही दोनों खुश हो गए|

हम छत पर जाते उससे पहले ही मेरे फ़ोन की घंटी बज गई! हुआ ये की भौजी अपना फ़ोन चार्ज करना भूल गईं थीं इसलिए उनका फ़ोन switch off हो गया था, तो दिवाली की मुबारकबाद देने के लिए अनिल ने मेरे फ़ोन पर कॉल किया था| मुझे दिवाली की शुभेच्छा दे कर उसकी बात अपनी बहन से हुई| उसके बाद नंबर आया बच्चों का जिन्होंने बस; "Happy Diwali मामा जी" कहा और छत पर भाग गए क्योंकि उन्हें पटाखे और रसमलाई जो खानी थी| अंत में माँ-पिताजी ने अनिल से बात की, उन्होंने गाँव घर की हाल-खबर ली और आखिरकार हम सब छत पर आ गए| छत पर तीन कुर्सियाँ लगी थीं जिन पर पिताजी, माँ और भौजी बैठ गए, टेबल पर मैंने नेहा की रसमलाई तथा पिताजी द्वारा लाये हुए ढ़ोकले रख दिए| मैंने पटाखे जलाने के लिए मोमबत्ती जलाई थी की माँ ने मुझे रोकते हुए कहा;

माँ: बेटा पहले ढोकला खा ले, फिर पटाखे जलाना!

मुझे ढोकला कुछ ख़ास पसंद नहीं था, इसलिए मैंने बस एक पीस लिया और पटाखे जलाने की तैयारी करने लगा| जब आयुष ने ढोकला देखा तो उसने अपनी एक ऊँगली से उसे दबा कर देखा, ढोकला sponge की तरह दबा तो आयुष ने खिखिलाकर हँसना शुरू कर दिया! आयुष का बचपना देख माँ, पिताजी, नेहा और भौजी ने हँसना शुरू कर दिया| मैं सबसे थोड़ा दूर था तो माँ ने मुझे आयुष के ऊँगली से ढोकला दबाने की बात बताई, ये सुन मेरी भी हँसी छूट गई!

खैर अब समय था पटाखे जलाने का, मैंने सबसे पहले आयुष को एक फुलझड़ी जला कर दी| आयुष अपनी फुलझड़ी पकड़ कर उसे गोल-गोल घुमाने लगा और ख़ुशी से कूदने लगा| नेहा माँ की गोदी में बैठी मजे से अपनी रसमलाई खा रही थी, अब मैंने एक अनार उठाया और उसे दूसरी फुलझड़ी से जलाया| अनार को पहलीबार अपने सामने जलता देख आयुष ने खुशी से उछलना शुरू कर दिया, अनार जलते देखने का उत्साह इतना था की नेहा माँ की गोदी से उठ खड़ी हुई और पिताजी के साथ खड़ी हो कर ख़ुशी से चिल्लाने लगी! मैंने एक फुलझड़ी जलाई और नेहा की तरफ बढ़ाई तो वो डरने लगी, पिताजी ने नेहा के सर पर प्यार से हाथ फेरा तो नेहा में आत्मविश्वास आया और उसने फुलझड़ी ले ली और आयुष की देखा-देखि फुलझड़ी गोल-गोल घुमाने लगी| मैंने एक-एक फुलझड़ी माँ और भौजी को भी दे दी, ताकि उन्हें भी थोड़ा उत्साह मिले| अब बारी थी चखरी जलाने की, मैंने आयुष को अपने पास बुलाया और उसे चखरी जलाने का तरीका बताया| आयुष थोड़ा-थोड़ा डर रहा था इसलिए मैंने आयुष का हाथ पकड़ कर चखरी जलाई, जैसे ही चखरी गोल-गोल घूमी आयुष अपने दोनों हाथ अपने होठों पर रख कर आस्चर्य से चखरी को देखने लगा| मैंने आयुष का ध्यान अपनी तरफ खींचा और चखरी के इर्द-गिर्द कूदने लगा| अपने पापा को चखरी के इर्द-गिर्द कूदता देख आयुष में उत्साह भर उठा और वो भी मेरी देखा-देखि कूदने लगा| वहीं नेहा ने जब अपने भाई को कूदते देखा तो वो भी आयुष की तरह चखरी के इर्द-गिर्द कूदने लगी! अब पिताजी को भी जोश आया, उन्होंने एक-एक कर अनार जलाये| पूरी छत रौशनी से जगमगा रही थी और ये जगमगाहट सबके चेहरे पर ख़ुशी बनकर खिली हुई थी! हम सब की नजर बस बच्चों पर थी जो पटाखे जलने की ख़ुशी में डूबे हँस-कूद रहे थे!

अगल-बगल वाले पड़ोसियों ने आसमान में 7 रंग वाले shots चलाये तो सबका ध्यान उन रंग-बिरंगी आतिशबाजी की तरफ गया| माँ-पिताजी को ये आतिशबाजी देखने की आदत थी फिर भी उनके चेहरे पर वैसी ही ख़ुशी थी जैसे वो ये आतिशबाजी पहलीबार देख रहे हों| वहीं बच्चे और भौजी तो आश्चर्यचकित थे, उनके लिए तो ये बहुत अनोखी चीज थी! बच्चों के चेहरे पर आयी ख़ुशी और उत्साह देख कर ख़ुशी के मारे मेरी आँखें नम हो चली थीं| मैंने सबसे नजरे बचा कर अपनी आँखें पोछीं और बच्चों का ध्यान rocket जलाने की ओर खींचा|

आज तक अपने जीवन काल में मैंने बस एक ही बार rocket जलाया था और वो ससुरा ऊपर न जा कर नीचे ही मेरे सामने फट गया था! उस दिन से मैंने rocket जलाने से तौबा कर ली थी, इसलिए rocket जलाने का काम पिताजी ने किया| जैसे ही पिताजी ने rocket को आग लगाई वो भागता हुआ आसमान में जा फटा! Rocket को यूँ आसमान की ओर उड़ता देख बच्चे ख़ुशी से तालियाँ बजाने लगे थे! दोनों बच्चों ने; "दादा जी फिर से" की रट लगानी शुरू कर दी, पिताजी को भी जोश आया और उन्होंने पटाखे जलाने की कमान अपने हाथ में ले ली| कभी अनार, कभी, चखरी तो कभी rocket, जो भी बच्चे उठा कर लाते पिताजी वही जलाते! अब चूँकि पिताजी पटाखे जला रहे थे तो मैं आराम से भौजी और माँ के पास आ कर बैठ गया| मैं नेहा की छोड़ी हुई रसमलाई खा रहा था जब माँ ने भौजी से बात छेड़ी;

माँ: बेटा तो कैसी लगी दिवाली हमारे साथ?

भौजी: माँ सच कहूँ तो ये मेरी अब तक की सबसे यादगार दिवाली है| गाँव में ना तो इतनी रौशनी होती है, न ये शोर-गुल| रात की पूजा के बाद शायद ही कोई पटाखे जलाता था, पिछले साल मैंने आयुष का शौक पूरा करने के लिए उसे फुलझड़ी ला कर दी थी वरना ये दोनों (आयुष और नेहा) तो जानते थे की पूजा और मिठाई खाने को ही दिवाली कहते हैं! यहाँ आके आज हम तीनों को पता चला की दिवाली क्या होती है?!

भौजी की बात सुन मुझे हैरानी नहीं हुई थी, क्योंकि गाँव की दिवाली के बारे में पिताजी ने मुझे पहले बताया था, तभी तो आज ये दिवाली मैं अपने बच्चों और अपनी दिलरुबा के लिए यादगार बनाना चाहता था|

माँ: बेटा वो ठहरा गाँव और ये शहर! यहाँ लोग दिखावा ज्यादा करते हैं, जबकि गाँव में सब कुछ सादे ढँग से मनाया जाता है|

माँ की बात सही थी, शहर में लोगों को बेकार पैसे फूँकने में मज़ा आता है|

मैं: अब इसे (मुझे) देख ले, हर साल मैं इससे कहती थी की पटाखे ले ले, मगर ये कहता था की पटाखे जलाने से पोलुशन (pollution) होता है और आज देखो जरा इसे?!

माँ ने जब मेरे पटाखे खरीदने की बात कही तो मैं माँ को समझाते हुए बोला;

मैं: माँ, मैं तो अब भी कहता हूँ की pollution बहुत बढ़ गया है, लेकिन आयुष और नेहा ने कभी पटाखे नहीं जलाये थे इसलिए मैं उनकी ख़ुशी के लिए बस फुलझड़ी, अनार, चखरी और राकेट लाया! बम और ये रंग-बिरंगे shots हवा के pollution के साथ ध्वनि pollution भी करते हैं, इसलिए मैंने वो नहीं खरीदे|

मेरी बात समझते हुए माँ बोलीं;

माँ: देख बेटा मैंने तुझे पटाखे खरीदने के लिए कभी मना नहीं किया, अपना मन मारकर कभी नहीं जीना!

माँ मेरी पीठ पर हाथ रखते हुए बोलीं|

माँ: अच्छा ऐसा कर खाने का order दे दे, लेकिन खाना अच्छा मँगाईयो!

जैसे ही माँ ने मुझसे खाना मँगाने की बात कही, भौजी बीच में बोल पड़ीं;

भौजी: पर माँ मैंने पुलाव बना लिया है!

हमारे घर में हर दिवाली पर पुलाव बनता था, ये बात माँ ने भौजी को नहीं बताई थी इसलिए जैसे ही भौजी ने पुलाव का नाम लिया माँ ने हैरान होते हुए भौजी से पुछा;

माँ: पुलाव? पर बहु तुझे कैसे पता की दिवाली पर मैं पुलाव बनाती हूँ? इस बार तो समय नहीं मिला इसलिए नहीं बना पाई!

माँ का सवाल सुन भौजी की गर्दन मेरी तरफ घूमी तो माँ सब समझ गईं और मुस्कुराते हुए; "हम्म्म" बोलीं| पता नहीं माँ को क्या-क्या समझ आया था, शायद वो जान गईं थीं की मेरे और भौजी के बीच क्या चल रहा है? परन्तु अगर ऐसा था तो उन्होंने कुछ कहा क्यों नहीं?

इतने में हमारे पडोसी ने दस हजार बम की लड़ी जला दी, पटाखों का शोर शुरू हुआ तो किसी को भी कुछ सुनाई नहीं दे रहा था| मैंने इस मौके का फायदा उठाया और भौजी के नजदीक जा कर उनके कान में बोला;

मैं: दस मिनट बाद नीचे मिलना|

भौजी ने हाँ में सर हिलाया और बोलीं;

भौजी: ठीक है|

मुझे भौजी के शब्द सुनाई नहीं दिए पर मैंने अंदाजा लगा लिया की उन्होंने 'ठीक है' ही कहा होगा| माँ ने खाने का जिक्र किया था तो मुझे लगा की खाना खा कर हम दोनों drive पर कैसे जायेंगे इसलिए मैंने भौजी को नीचे बुलाया था ताकि मैं उन्हें अपना तौहफा दे सकूँ और drive पर ले जाऊँ! मैंने घर की चाभी उठाई और बिना किसी को कुछ कहे नीचे आ गया, पाँच मिनट बाद भौजी भी नीचे आ गईं| ऊपर छत पर बच्चों ने हँसते-खेलते हुए समा बाँधा था तो माँ-पिताजी का ध्यान उन्हीं में लगा हुआ था, इसलिए उन्हें (माँ-पिताजी को) पता ही नहीं चला की मैं और भौजी छत से गोल हो लिए हैं! भौजी जब नीचे आईं तो वो आज की खुशियों को देख कर कल की चिंता करते हुए भावुक हो गई थीं, उन्हें यूँ भावुक देख मैं थोड़ा घबरा गया;

मैं: Hey जान! क्या हुआ आपको?

मैंने भौजी के नजदीक आते हुए पुछा|

भौजी: कुछ नहीं|

भौजी नजरें झुकाते हुए बोलीं|

मैं: Awwww!!!

मैंने भौजी को बच्चों की तरह लाड किया और उन्हें अपने सीने से लगा कर अपनी बाहों में जकड़ लिया|

मैं: I got a surprise for you!

मैं भौजी के कान में खुसफुसाया और अपने कमरे से उनके लिए लाई हुई साडी उन्हें देते हुए बोला;

मैं: इसे जल्दी से पहन लो|

भौजी ने साडी देखि तो उनकी आँखें ख़ुशी के मारे फ़ैल गईं;

भौजी: ये आप कब लाये?

मैं: जब सब के कपडे ले रहा था तब मैंने ये साडी ली थी और इसकी delivery मैंने साइट के address पर करवाई थी, क्योंकि मैं आपको ये आज के दिन पहने हुए देखना चाहता था!

मेरी बात सुन भौजी ने अपने कान पकडे और बोलीं;

भौजी: Sorry जानू! मैंने आप से बेवजह शिकायत की, मुझे लगा मेरे आपसे नाराज रहने के कारन आपने मेरे लिए कुछ नहीं खरीदा! मैं भी सच्ची बुद्धू हूँ!

भौजी मुस्कुराते हुए बोलीं|

मैं: कोई बात नहीं जान! चलो अब मौका भी है और दस्तूर भी, जल्दी से इसे पहनो ताकि हम जल्दी से drive पर चलें वरना दोनों बच्चे मुझे ढूँढ़ते हुए नीचे आ गए तो हमारा अकेले drive पर जाने का प्रोग्राम फुस्स हो जायेगा!

Drive पर जाने की बात सुन भौजी दुबारा हैरान हुईं;

भौजी: ड्राइव पर? क्या बात है जानू, आज बड़े romantic हो रहे हो?

भौजी मुझे छेड़ते हुए बोलीं|

मैं: इतने दिनों से आपने मुझसे बात नहीं की न, तो आज उसकी सारी कसर निकालनी है!

मैंने होठों पर जीभ फिराते हुए कहा| भौजी मेरा मतलब समझ गईं लेकिन बजाए जल्दी से तैयार होने के सवाल-जवाब में लग गईं;

भौजी: पर गाडी कहाँ है?

मैं: दिषु वाली (गाडी) तो उसके पास है, इसलिए मैंने किराए पर एक गाडी ले ली है!

भौजी: और माँ-पिताजी से क्या कहेंगे?

भौजी के सवाल-जवाब सुन मैंने अपना सर पीट लिया;

मैं: अरे बाबा उन्हें मैं सँभाल लूँगा, आप पहले तैयार तो हो जाओ?

मैंने भौजी के आगे हाथ जोड़ते हुए कहा तो भौजी मुस्कुराने लगीं और तपाक से बोलीं;

भौजी: रुकिए! पहले मैं भी आपको एक surprise दे दूँ|

भौजी तेजी से अपने कमरे में गईं और मेरे लिए मँगाया तोहफा ले आईं, मैंने उत्सुकता दिखाते हुए polythene खोला तो देखा उसमें मेरे लिए बंगाली design वाला कुरता पाजामा था! अब हैरान होने की बारी मेरी थी;

मैं: ये आपने कब खरीदा? आप तो मुझसे नाराज थे न?

मैंने प्यार से भौजी को उल्हना देते हुए कहा|

भौजी: नारजगी एक तरफ और अपने जानू के लिए तोहफा एक तरफ! पता है मैंने ये Online order कर के मँगाया है!

भौजी बड़े गर्व से बोलीं| बात थी भी उनके लिए गर्व की, आखिर पहलीबार उन्होंने बिना मेरी मदद के online कुछ order किया था!

भौजी: पहले सोचा आपके लिए लखनवी design का कुरता-पजामा लूँ मगर वो मुझे कुछ जचा नहीं, इसलिए मैंने बंगाली design चुना!

भौजी अपनी पसंद की तरीफ करते हुए बोलीं|

मैं: भई मानना पड़ेगा हम मियाँ-बीवी की पसंद को! मियाँ ने बिना बताये अपनी बीवी के लिए बंगाली साडी पसंद की तो बीवी ने भी बिना बताये अपने मियाँ के लिए बंगाली design का कुरता-पजामा पसंद किया!

मेरी बात सुन भौजी हँस पड़ीं और बोलीं;

भौजी: कहा था न हमारे दिल connected हैं!

भौजी की बात सुन मैं मुस्कुराया और बोला;

मैं: तो ठीक है भई अब दोनों तैयार हो जाते हैं!

हम दोनों अपने-अपने कमरे में घुसे, मैं तो 2 मिनट में तैयार हो कर आ गया मगर भौजी को तैयार होने में 15 मिनट लग गए! मैं dining table पर बैठा बेसब्री से उनके बाहर आने का इंतजार करने लगा, लेकिन 15 मिनट बाद जब भौजी बन-संवर कर बाहर आईं तो उन्हें देखते ही मेरे मुँह से; "WOW" निकला! भौजी ने साडी बिलकुल बंगाली ढँग से बाँधी थी, इस समय वो बिलकुल बंगाली दुल्हन लग रहीं थीं! होठों पर गहरे लाल रंग की लाली, आँखों में काजल, कानों में बालियाँ और हाथों में लाल-लाल चूड़ियाँ! भौजी के सजने-संवरने का मैं शुरू से प्रशंसक रहा हूँ, जब-जब वो बन-संवर के मेरे सामने आईं हैं उन्हें देखते ही मेरा दिल बेकाबू हो जाया करता था! वही हाल मेरा अभी भी था, भौजी को यूँ दुल्हन बना देख मैं उन्हें अपनी बाहों में लेने के लिए आगे बढ़ा ही था की भौजी ने भोयें सिकोड़ कर मेरे ऊपर सवाल दाग दिया;

भौजी: जानू, मुझे बताने की कृपा करेंगे की ये ब्लाउज मेरी fitting का कैसे बना?

भौजी का सवाल मेरे अरमानों पर ठंडा पानी साबित हुआ, साथ ही इस सवाल को सुन कर मैं शर्म से लाल हो गया;

मैं: मम...वो....मैंने....माप के लिए आपका ब्लाउज चुराया था!

मैंने शर्माते हुए सर झुका कर कहा|

भौजी: अरे वाह! मेरे जानू तो बहुत समझदार हैं! लेकिन आप शर्मा क्यों रहे हो?

भौजी मेरी ठुड्डी पकड़ कर ऊपर उठाते हुए बोलीं|

मैं: वो...मैंने...आजतक कभी ऐसा नहीं किया!

मैंने मुस्कुराते हुए कहा|

भौजी: एक बात कहूँ जानू, जब आप शर्माते हो न तो आप बड़े cute लगते हो!

भौजी के मुँह से अपनी तारीफ सुन मैं फिर से शर्म से लाल हो गया| मुझे यूँ शर्माते हुए देख भौजी ने बात बदली वरना मैं शर्म से पिघल जाता;

भौजी: वैसे जानू, इस कुर्ते-पजामे में आप बहुत handsome लग रहे हो! मैं तो बेकार डर रही थी की कहीं साइज ऊपर-नीचे हो गया तो मेरा surprise धरा का धरा रह जाता!

मैं: अजी आपका surprise खराब कैसे होता, साइज चाहे जो होता मैं पहनता जर्रूर!

मैं भौजी के दोनों गाल खींचते हुए बोला|

भौजी: अच्छा अब आप माँ-पिताजी को हमारे जाने का बोल आओ|

भौजी मुस्कुराते हुए बोलीं|

मैं: आप भी साथ चलो तो माँ-पिताजी मना नहीं करेंगे|

मैंने भौजी का हाथ पकड़ा और उन्हें अपने साथ ऊपर छत पर ले आया|

हम दोनों (मैं और भौजी) ऊपर पहुँचे तो देखा की पिताजी बच्चों के साथ मिलकर पटाखे जला रहे हैं| माँ ने जब हम दोनों को यूँ नए कपडे में देखा तो वो हमारी तारीफ करते हुए बोलीं;

माँ: वाह भई वाह! तुम दोनों तो इन कपड़ों में बड़े अच्छे लग रहे हो! कौन लाया?

माँ का सवाल सुन हम दोनों की गर्दन एक दूसरे की तरफ घूम गई और माँ समझ गईं की हम दोनों ने ही एक दूसरे को ये तोहफा दिया है!

माँ: समझी! जानती थी की मानु तेरे (भौजी के) लिए कुछ न लाये ऐसा हो ही नहीं सकता, पर बहु तूने ये कुरता कब लिया?

भौजी: माँ online मँगाया था!

भौजी ने मुस्कुरा कर जवाब दिया|

माँ: तो बेटा तुम दोनों ने पूजा में यही क्यों नहीं पहना?

माँ का सवाल सुन मैं जवाब देने को हुआ था, मगर भौजी ही बोल पड़ीं;

भौजी: माँ आप के लाये हुए कपड़ों में आपका प्रेम और स्नेह छुपा था, उसके आगे हमारे कपडे तो कुछ नहीं!

भौजी की बात ने माँ का दिल जीत लिया था, माँ ने उन्हें आशीर्वाद दिया और मुझे प्यार से डाँटते हुए बोलीं;

माँ: देख कितनी समझदार है मेरी बेटी और एक तू है, हमेशा उससे लड़ता रहता है!

माँ की प्यारभरी डाँट सुन मैं हँस पड़ा|

इस छोटी सी प्यारभरे वार्तालाप ने मेरे लिए कल बात करने का मंच तैयार कर दिया था!

अब समय था माँ से मेरे और भौजी के अकेले drive पर जाने की बात करने का;

मैं: माँ मैं सोच रहा था की दिषु और एक-दो जगह मिठाई दे आऊँ|

मेरी बात सुन माँ ने मेरे जाने की हमीं भर दी, मगर मुझे भौजी को साथ ले जाना था इसलिए मैंने भौजी की तरफ अपनी गर्दन से इशारा करते हुए कहा;

मैं: इनको साथ ले जाऊँ?

मुझे लगा था की माँ मना कर देंगी पर उन्होंने मुस्कराते हुए हमें इजाजत दी;

माँ: ठीक है बेटा, मगर जल्दी घर आना वरना खाना ठंडा हो जायेगा|

मैंने खुश होते हुए हाँ में सर हिलाया और भौजी को साथ ले कर फटाफट निकल लिया! भौजी ने इस बार मेरे माँ से झूठ बोलने पर कोई सवाल नहीं पुछा, वो भी जानतीं थीं की हमारे अकेले निकलने के लिए झूठ बोलना जर्रूरी था|

हम गाडी में बैठे तो भौजी थोड़ा चिंतित होते हुए बोलीं;

भौजी: जानू अगर माँ-पिताजी ने दिषु भैया को फ़ोन किया तो?

मैंने फोन उठाया और दिषु को कॉल कर सब समझा दिया की अगर मेरे घर से फ़ोन आये तो वो कह दे की मैं उसके यहाँ से अभी-अभी निकला हूँ, भौजी मेरी होशियारी देख हँसे जा रहीं थीं|

मैंने गाडी सीधा India Gate की ओर घुमाई, इधर भौजी ने radio पर चुन-चुन कर रोमांटिक गाने लगाये| गाने सुनते हुए हम दोनों ही romantic हो चुके थे, भौजी ने मेरे थोड़ा नजदीक आते हुए अपना सर मेरे कँधे पर रख दिया और जब तक हम India Gate नहीं पहुँचे वो इसी तरह बैठी रहीं| India gate के नजदीक पहुँच एक एकांत जगह पर मैंने गाडी रोकी और भौजी की तरफ देखते हुए बोला;

मैं: जान आपने तो मूड रोमांटिक कर दिया!

भौजी: आपके साथ अकेले में समय बिताने को मिले और मूड रोमांटिक न हो तो कैसे चलेगा?

भौजी अपनी जीभ होठों पर फिराते हुए बोलीं| अभी तक मेरा मन बस भौजी के होठों का रसपान करने का था, मगर भौजी को यूँ अपने होठों पर जीभ फिराते देख मैं समझ गया की आग दोनों तरफ लगी हुई है!

मैं: चलें back seat पर?

मैंने पुछा ही था की भौजी तपाक से बोलीं;

भौजी: मुझे तो लगा था की आप पूछोगे ही नहीं!

भौजी प्यारभरा उल्हाना देते हुए बोलीं! उनका आशिक़ थोड़ा तो बुद्धू है, जिसे इशारे समझने में थोड़ा समय लगता है!

दिवाली के चलते ये रास्ता सुनसान था और हमारे प्यार के लिए इससे उपयुक्त जगह नहीं हो सकती थी! हम दोनों गाड़ी की back seat पर आ गए, दिषु की Tata Nano के मुक़ाबले इस गाडी में पीछे काफी जगह थी| पिछली सीट पर आ कर हम दोनों प्यासी नजरों से एक दूसरे को देखे जा रहे थे| अब समय था आगे बढ़ने का, मैंने पहल करते हुए अपने दाहिने हाथ को भौजी की गर्दन के पीछे ले जाकर रख उन्हें अपनी ओर खींचा, वहीं भौजी ने अपने दोनों हाथों का हार मेरी गर्दन में पहना दिया! धीरे-धीरे हमारे लब टकराये, उस मनमोहक स्पर्श ने हम दोनों के दिलों में उत्तेजना भर दी! मैंने भार सँभालते हुए अपना मुँह खोलकर भौजी के निचले होंठ को अपने मुख में भर लिया और उसे निचोड़कर पीने लगा| भौजी की मेरी गर्दन पर पकड़ सख्त हो गई और वो मुझे अपने नजदीक खींचने लगीं, अब गाडी में इतनी जगह तो होती नहीं की खड़ा हो कर मैं भौजी के ऊपर आ जाऊँ, इसलिए पहले मुझे अपने पैरों को सही स्थिति में करना था ताकि मैं उनके ऊपर छा सकूँ! अपने पैरों को ठीक करने के चक्कर में मेरी भौजी के होठों के ऊपर से पकड़ छूट गई, भौजी ने उस मौके का फायदा उठा लिया और अपना मुख खोल कर मेरे ऊपर वाले होंठ को अपने मुख में भरकर चूसने लगीं! इधर मैंने अपने पैर सीधे कर लिए थे और मैं भौजी को पीछे धकेल कर उन पर छा चूका था| फिर तो जो होठों के रसपान का सिलसिला शुरू हुआ की हम दोनों ने बेसब्री दिखाते हुए एक दूसरे के होठों को कस कर निचोड़ना शुरू कर दिया! 5 मिनट के चुंबन के दौर ने हम दोनों की सांसें उखाड़ दी थीं, उतावलेपन के कारण हमारे दिलों की धड़कन तेज हो गई थी, प्यास ऐसी थी की हमारी आँखों से ही छलक रही थी! हम आगे बढ़ते उससे पहले ही गाडी के dashboard पर रखा मेरा मोबाइल बज उठा!

[color=rgb(51,]जारी रहेगा भाग-6 में...[/color]
 

[color=rgb(255,]चौबीसवाँ अध्याय: उलझते-सुलझते बंधन[/color]
[color=rgb(209,]भाग-6[/color]

[color=rgb(26,]अब तक आपने पढ़ा:[/color]

दिवाली के चलते ये रास्ता सुनसान था और हमारे प्यार के लिए इससे उपयुक्त जगह नहीं हो सकती थी! हम दोनों गाड़ी की back seat पर आ गए, दिषु की Tata Nano के मुक़ाबले इस गाडी में पीछे काफी जगह थी| पिछली सीट पर आ कर हम दोनों प्यासी नजरों से एक दूसरे को देखे जा रहे थे| अब समय था आगे बढ़ने का, मैंने पहल करते हुए अपने दाहिने हाथ को भौजी की गर्दन के पीछे ले जाकर रख उन्हें अपनी ओर खींचा, वहीं भौजी ने अपने दोनों हाथों का हार मेरी गर्दन में पहना दिया! धीरे-धीरे हमारे लब टकराये, उस मनमोहक स्पर्श ने हम दोनों के दिलों में उत्तेजना भर दी! मैंने भार सँभालते हुए अपना मुँह खोलकर भौजी के निचले होंठ को अपने मुख में भर लिया और उसे निचोड़कर पीने लगा| भौजी की मेरी गर्दन पर पकड़ सख्त हो गई और वो मुझे अपने नजदीक खींचने लगीं, अब गाडी में इतनी जगह तो होती नहीं की खड़ा हो कर मैं भौजी के ऊपर आ जाऊँ, इसलिए पहले मुझे अपने पैरों को सही स्थिति में करना था ताकि मैं उनके ऊपर छा सकूँ! अपने पैरों को ठीक करने के चक्कर में मेरी भौजी के होठों के ऊपर से पकड़ छूट गई, भौजी ने उस मौके का फायदा उठा लिया और अपना मुख खोल कर मेरे ऊपर वाले होंठ को अपने मुख में भरकर चूसने लगीं! इधर मैंने अपने पैर सीधे कर लिए थे और मैं भौजी को पीछे धकेल कर उन पर छा चूका था| फिर तो जो होठों के रसपान का सिलसिला शुरू हुआ की हम दोनों ने बेसब्री दिखाते हुए एक दूसरे के होठों को कस कर निचोड़ना शुरू कर दिया! 5 मिनट के चुंबन के दौर ने हम दोनों की सांसें उखाड़ दी थीं, उतावलेपन के कारण हमारे दिलों की धड़कन तेज हो गई थी, प्यास ऐसी थी की हमारी आँखों से ही छलक रही थी! हम आगे बढ़ते उससे पहले ही गाडी के dashboard पर रखा मेरा मोबाइल बज उठा!

[color=rgb(84,]अब आगे:[/color]

हमारे
(मेरे और भौजी के) प्यार का आगाज हो रहा था और इस फ़ोन की घंटी ने हम दोनों का मूड खराब कर दिया था, ऐसा लगता था मानो किसी ने गर्मागर्म अरमानों पर ठंडा-ठंडा पानी डाल दिया हो! अब मन तो नहीं था फ़ोन उठाने का पर मैंने ये सोच कर फ़ोन उठा लिया की क्या पता घर से फ़ोन आया हो! मैंने आगे की दोनों सीटों के बीच से होते हुए dashboard पर से अपना फ़ोन उठाया, मोबाइल की screen पर अनिल का नाम था! घडी साढ़े नौ बजा रही थी और इतनी रात गए अनिल का फ़ोन आना चिंता की बात लग रही थी!

'अनिल का फोन वो भी इस समय? कहीं कोई चिंता जनक बात तो नहीं?' मन में ये सवाल कौंधने लगे! पहले तो मन किया की भौजी को बता दूँ की ये अनिल का कॉल है, लेकिन फिर मैं रूक गया! पिछले पंद्रह दिन से वो (भौजी) पहले ही बहुत परेशान थीं, फिर कल जो बात होनी है उसे ले कर भी वो दबाव में हैं, ये तो मैं उन्हें drive पर ले आया तब जा कर वो कुछ खुश लग रहीं हैं, ऐसे में अनिल की तरफ से कोई चिंता जनक बात का उन्हें पता लगना मतलब भौजी के ऊपर दुःख का पहाड़ टूटना और मैं अपनी गर्भवती पत्नी को कम से कम परेशानी देना चाहता था इसलिए मैंने फोन ले कर गाडी से बाहर आ गया| भौजी गाडी के अंदर से मुझे भोयें सिकोड़ कर देख रहीं थीं, मैंने इशारे से उन्हें दो मिनट का इशारा किया और धीरे-धीरे गाडी से थोड़ा दूर आ कर कॉल उठाया;

मैं: हेल्लो!

मैंने हेल्लो बोला तो मुझे एक अनजान आवाज सुनाई दी;

अनजान अवाज: हेल्लो, आप अनिल के जीजा जी बोल रहे हैं?

एक अनजान व्यक्ति द्वारा ऐसा सवाल पुछा जाना शुभ संकेत नहीं था, इसलिए ये सवाल सुन मैं चिंतित हो उठा!

मैं: जी! पर हुआ क्या है? और आप हैं कौन? अनिल कहाँ है?

मैंने सवाल पूछने शुरू किये तो उस अनजान आवाज ने मुझे सब बताया;

अनजान आवाज: मेरा नाम सुरेंदर है और मैं Lilavati Hospital & Research Centre में PG डॉक्टर हूँ| मुझे अनिल जख्मी हालत में सड़क किनारे मिला, उसकी बाइक का accident हो गया था| मैंने उसे हॉस्पिटल में भर्ती करवाया है, उसके पर्स से मुझे उसकी ID मिली और उसके फ़ोन में आपका नंबर last dialed था, इसलिए मैंने आपको कॉल किया!

इतना सुनना था की मेरे होश फाक्ता हो गए! अनिल के एक्सीडेंट की खबर ने मुझे हिला दिया था|

मैं: क्या...क्या हुआ उसे? वो ठीक तो है?

मेरी परेशान आवाज सुन सुरेंदर मुझे आश्वस्त करते हुए बोला;

डॉक्टर सुरेंदर: सर घबराने की बात नहीं है! वो फिलहाल बेहोश है, उसके दाएँ हाथ में fracture हुआ है......

वो आगे कुछ कहते उससे पहले ही मैं उनकी बात काटते हुए हड़बड़ा कर बोला;

मैं: मैं....मैं आ रहा हूँ! आज रात की flight से! Thank.....Thank you very much!

मैंने सुरेंदर को धन्यवाद कहा तो वो मुझे दिलासा देते हुए बोला;

सुरेंदर: सर आप चिंता न करें, आपके आने तक मैं यहीं रहूँगा!

सुरेंदर का ये आश्वासन मेरे लिए बहुत बड़ी बात थी|

मैं: Thank you very much!

मैंने उसे फिर से धन्यवाद दिया और फ़ोन काटा| फिर मैंने एक पल के लिए गहरी साँस ली और क्या करना है उसकी रणनीति बनाने लगा|

जो सबसे बड़ा निर्णय मुझे लेना था वो ये की मैं ये बात भौजी को बताऊँ या नहीं? अनिल उनका सगा भाई था तो उन्हें बताना जर्रूरी था, लेकिन तभी दिमाग में एक बिजली कौंधी; 'अगर ये सब झूठ निकला तो? नहीं पहले मैं खुद जा कर ये बात पक्की कर लूँ, फिर उन्हें सब सच बताऊँगा!' दिमाग शांत हुआ था इसीलिए मैं अब सब कुछ सही सोच रहा था| तभी मुझे याद आया की दिषु के चाचा मुंबई में रहते हैं! ये याद आते ही मैंने दिषु को फ़ोन मिलाया, घंटी बजती रही मगर उसने फ़ोन नहीं उठाया| एक बार, दो बार, तीन बार, चार बार, पाँच बार, मैं फ़ोन मिलाता रहा मगर दिषु ने फ़ोन नहीं उठाया| मैं अपनी गाडी की तरफ दौड़ा और मैंने देखा की भौजी पिछली सीट पर बैठीं मेरी ही तरफ देख रहीं हैं और उनके चेहरे पर चिंता झलक रही है! उनके चेहरे पर आई जरा सी चिंता को देख मेरी जान निकलने लगी थी, अब मुझे उन्हें कुछ न बताने का अपना फैसला सही लग रहा था!

मैं फटाफट driving seat पर बैठा और गाडी दिषु के घर की ओर घुमाई|

भौजी: क्या हुआ जानू, आप परेशान लग रहे हो?

भौजी ने भोयें सिकोड़ कर अपनी चिंता प्रकट की|

मैं: हाँ, वो मेरे कॉलेज का एक दोस्त है! वो बीमार है, तो हम अभी दिषु के घर जा रहे हैं|

मैंने बात बनाते हुए कहा| दरअसल दिषु से बात करने के चक्कर में मेरा दिमाग उलझा हुआ था, इसलिए मैं भौजी से बोले जाने वाले बहाने के बारे में भूल गया था| भौजी का सवाल सुन दिमाग में जो कुछ भी शब्द आये मैंने उन्हें बोल दिया ओर उन्हीं शब्दों के इर्द-गिर्द झूठी कहानी बनाने लगा|

भौजी: सिर्फ तबियत खराब होने पर आप इतना क्यों परेशान हो रहे हो?

मैं: जान, वो मेरा जिगरी दोस्त है| उसकी बिमारी का सुन कर थोड़ा परेशान हूँ, आप ऐसा करो ये मेरा फोन लो और दिषु का नंबर try करते रहो, जैसे ही वो उठाये उसे कहना की वो मुझे अपने घर के नीचे मिले|

मैंने भौजी को अपना फ़ोन दिया लेकिन (अनिल के फ़ोन से आये) अभी वाले कॉल को recent calls की लिस्ट से delete कर दिया| भौजी ने मेरे फ़ोन से दिषु को कॉल मिलाने शुरू कर दिए, इधर दिषु अपने परिवार के साथ दिवाली मनाने में व्यस्त था इसलिए उसने अपना फ़ोन नहीं देखा था| दसवीं बार में दिषु का फ़ोन उसकी माँ ने उठाया;

भौजी: नमस्ते आंटी जी, दिषु भैया हैं? मैं उनके दोस्त की भाभी बोल रही हूँ|

आंटी जी ने दिषु को आवाज मारी और वो फ़ोन पर आया;

भौजी: दिषु भैया, मैं आपकी भाभी बोल रही हूँ| आप जल्दी से अपने घर के नीचे आइये, मैं और आपके दोस्त आपके घर आ रहे हैं|

भौजी की बात सुन दिषु ने पुछा की कोई ख़ास काम है तो भौजी बोलीं;

भौजी: वो तो मुझे नहीं पता, पर वो (मैं) थोड़ा चिंतित हैं!

इसके बाद भौजी ने बस ठीक है बोला और फ़ोन काट दिया|

वही दूसरी तरफ मैं सोच रहा था की अपने घर में अनिल के accident की बात बताऊँ या नहीं? अगर नहीं बताता हूँ तो अभी निकलूँगा कैसे और बता दिया तो पिताजी गाँव भर में ढिंढोरा पीट देंगे! अगर अनिल के घर खबर करूँगा तो ससुर जी (अनिल और भौजी के पिताजी) परेशान हो उठेंगे, फिर वो उम्र दराज हैं कहीं चिंता के कारन उनकी तबियत खराब हो गई तो? 'पिताजी को बिना बताये घर से निकलना नमुमकिन है, इसलिए उन्हें बता देता हूँ और अपनी कसम से बाँध कर ये खबर फैलाने से रोक लूँगा! एक बार मुंबई पहुँच कर खुद अनिल का हाल देख लूँ तो ससुर जी को खुद फ़ोन कर सब बता दूँगा|' मैं मन में बड़बड़ाया|

अगले पाँच मिनट में हम दिषु के घर पर पहुँच चुके थे और दिषु नीचे खड़ा मेरा ही इंतजार कर रहा था| भौजी अभी भी गाडी की पिछली सीट पर बैठी थीं, गाडी में मुझे देख दिषु मेरे पास आया और भौजी से नमस्ते की| भौजी ने भी हाथ जोड़ कर उसे नमस्ते की और गाडी से उतरने लगीं तो मैंने उन्हें अंदर बैठे रहने का इशारा किया तथा मैं गाडी से उतर कर दिषु को गाडी से थोड़ा दूर ले जा कर बात शुरू की;

मैं: सुन भाई तेरी मदद चाहिए?

मेरे चेहरे पर चिंता देख दिषु भी परेशान हो गया|

दिषु: हाँ-हाँ! आजा अंदर बैठ के बात करते हैं|

दिषु ने मेरे कँधे पर हाथ रखते हुए मुझे अंदर चलने को कहा, मगर उसके घर में मैं अकेला जा नहीं सकता था और भौजी को अंदर ले जा कर मैं अंकल-आंटी को क्या जवाब देता की इतनी रात गए हम दोनों (मैं और भौजी) यहाँ क्या कर रहे हैं?!

मैं: नहीं यार, फिर कभी!

मैंने दिषु को मना किया| मेरे चेहरे पर चिंता बढ़ रही थी तो वो मुझे होंसला देते हुए बोला;

दिषु: अच्छा बता क्या हुआ?

मैं: यार, अभी थोड़ी देर पहले मुझे अनिल यानी इनके (भौजी के) भाई के फ़ोन से किसी डॉक्टर सुरेंदर का कॉल आया था| उसने बताया की अनिल का accident हो गया है, उसके दाहिने हाथ में fracture हो गया है और वो इस वक़्त Lilavati हॉस्पिटल में भर्ती है! तेरे चाचा जी मुंबई में रहते हैं न, तो तू उन्हें फ़ोन कर के बोल सकता है की वो एक बार अस्पताल में जा कर चेक कर लें की ये खबर सच भी है या फिर कोई झूठ बोल रहा है?! एक बार चाचा जी ने बात confirm कर दी की अनिल हॉस्पिटल में भर्ती है तो मैं flight पकड़ कर अभी निकल जाऊँगा!

मेरी बात सुन दिषु ने अपना फ़ोन निकाला और बोला;

दिषु: रूक एक मिनट|

उसने मेरे सामने ही अपने चाचा जी के लड़के को फोन मिलाया और उसे हॉस्पिटल भेजा| मेरी किस्मत अच्छी थी की दिषु के चाचा बांद्रा west में रहते थे और उनके घर से लीलावती अस्पताल आधा घंटा दूर था!

हमें अब बस दिषु के चचेरे भाई के कॉल का इंतजार करना था| इधर भौजी ने गाडी के अंदर से हम दोनों को परेशान देखा तो वो दरवाजा खोल कर बाहर निकलने लगीं, मैंने उन्हें इशारे से अंदर बैठे रहने को कहा| दिषु कुछ पूछता उससे पहले ही मैं बोल पड़ा;

मैं: मैंने अनिल के accident की बात इनको (भौजी को) नहीं बताई है, एक बार मैं उसे (अनिल को) खुद देख लूँ, फिर सब बता दूँगा|

दिषु ने मुझे इस बारे में कुछ नहीं कहा बस मेरे कँधे पर हाथ रख दिया|

दिषु: वैसे तुम दोनों गए कहाँ थे?

दिषु ने बात बनाते हुए कहा ताकि मेरा तनाव कुछ कम हो|

मैं: India Gate तक गए थे!

India Gate का नाम सुन दिषु के चेहरे पर शैतानी मुस्कान आ गई| वो जान गया की मैं वहाँ भौजी को क्यों ले गया था?! हालात कैसे भी हों सच्चा दोस्त हमेशा अपनी शैतानी मुस्कान से आपको हँसा ही देता है, दिषु के चेहरे पर आई शैतानी मुस्कान को देख मेरी हँसी भी निकल ही पड़ी!

दिषु: और ये गाडी किसकी है?

दिषु ने पुछा तो मेरे मुँह से सच निकल गया;

मैं: किराय की|

बस इतना सुनना था की उसके चेहरे पर आई मुस्कान गायब हो गई और वो थोड़ा गुस्से से बोला;

दिषु: अबे साले तेरा दिमाग खराब है! मुझसे चाभी नहीं ले सकता था?

मैं: यार अभी वो सब छोड़, तू जरा अपने cousin भाई को फोन करके पूछ न?

दिषु ने फिर भी गुस्से से मुझे देखा और बोला;

दिषु: करता हूँ|

दिषु ने अपने चाचा के लड़के को फोन घुमाया और इधर मैं मन ही मन प्रार्थना करने लगा की खबर झूठी हो और कोई हमारा फुद्दू काट रहा हो! दिषु का कॉल मिला और फ़ोन पर बात करते हुए वो काफी गंभीर हो गया, अब बात साफ़ थी की अनिल के एक्सीडेंट की बात सच है! दिषु ने अभी फ़ोन काटा भी नहीं था और मैं इधर फ़ोन पर मुंबई की flights देखने लगा, सबसे जल्दी की फ्लाइट रात एक बजे की थी और मैंने उसकी टिकट बुक कर ली थी| दिषु ने कॉल काटा और मुझसे बोला;

दिषु: यार बात सच है! मेरा cousin किसी Dr. सुरेंदर से मिला, उसने मेरे cousin को अनिल से मिलवाया| अनिल फ़िलहाल होश में है, उसके सीधे हाथ में fracture है और डॉक्टर उसका treatment कर रहे हैं! अनिल को जब पता चला की हमने (मैंने और दिषु ने) मेरे cousin को भेजा है तो वो घबरा गया और उसने कहा है की उसके accident की बात किसी को न बताई जाए!

दिषु की बात सुन मैंने अपने माथे पर पड़ी शिकन पर हाथ फेरा और बोला;

मैं: Thanks यार! मैंने रात एक बजे की flight की टिकट बुक कर ली है!

मैंने गहरी साँस लेते हुए कहा|

दिषु: Tension मत ले, सब ठीक हो जायेगा! साढ़े गयरह तैयार रहिओ मैं तुझे airport drop कर दूँगा|

दिषु मेरी पीठ थपथपाते हुए बोला|

मैं: Thanks भाई!

मैं दिषु के गले मिला और वापस गाडी में बैठ गया|

मैं जानता था की भौजी अब मुझ पर अपना सवाल मारेंगी इसलिए मैं अपने बहाने को पुख्ता करने के बारे में सोचने लगा|

भौजी: क्या हुआ जानू? आपका दोस्त ठीक तो है?

भौजी ने चिंतित होते हुए अपना स्वाला दागा|

मैं: हाँ! वो दरअसल किसी project के लिए आज ही बुला रहा है|

मैं भौजी से झूठ नहीं बोलना चाहता था इसलिए कोशिश कर रहा था की संक्षेप में जवाब दे कर बच जाऊँ|

भौजी: Project? कैसा project? उसके लिए आप इतना परेशान क्यों हो? आप कुछ तो छुपा रहे हो?

भौजी ने शक जताया| भौजी के शक को महसूस कर मुझे उनसे मजबूरन झूठ बोलना ही पड़ा;

मैं: वो दरअसल उसने (मेरे काल्पनिक दोस्त ने) किसी company के लिए ठेका उठाया था, advance पैसे जो उसे मिले उसने इधर-उधर खर्च कर दिए और अब खुद बीमार पड़ा है| अब उसे हमारी मदद चाहिए क्योंकि परसों company वाले साइट visit करने आ रहे हैं और ये बिस्तर से हिल-डुल नहीं सकता| अगर मैंने वहाँ पहुँच के काम शुरू नहीं किया तो ये बहुत बुरा फँसेगा क्योंकि company सीधा case ठोक देगी, इसलिए मुझे आज रात की flight से मुंबई जाना होगा!

जब आप किसी से झूठ न बोलना चाहो तो आपके मुँह से बढ़िया झूठ नहीं निकलता, उसी तरह मेरे झूठ में मैं जिस से 'project' की बात कर रहा था मैंने उसके विषय में कुछ सोचा ही नहीं था! वो तो शुक्र है की भौजी ने इस पर गौर नहीं किया और मेरे झूठ पर विश्वास कर बैठीं| बहरहाल मेरी रात की flight से मुंबई जाने की बात से वो थोड़ी चिंतित हुईं और बोलीं;

भौजी: आज रात की फ्लाइट से?

मैं: हाँ जी! Flight एक बजे की है, इसलिए मैं साढ़े गयरह-बारह बजे के आस-पास निकलूँगा|

भौजी अब भी पीछे की seat पर बैठीं थीं, इसलिए मैंने rear view mirror में देखते हुए कहा|

भौजी: ठीक है जानू| आप जबतक खाना खाओगे तब तक मैं आपका सामान पैक कर दूँगी|

चलो भौजी तो मेरी बातों से पूरी तरह आश्वस्त थीं, उधर मैं हैरान था की मैं इतना बड़ा झूठ कैसे बोल गया?!

खैर घर नजदीक आ रहा था और अब मुझे ये समझ नहीं आ रह था की माँ-पिताजी से सच कहूँ या झूठ? पिताजी से झूठ बोलता तो जब ये बात खुलती तो मैं बहुत बुरा फँसता इसलिए मैंने उन्हें सब सच बताने का निर्णय लिया|

हमने (मैंने और भौजी ने) घर में प्रवेश किया तो माँ-पिताजी खाने के टेबल पर ही बैठे हमारा इंतजार कर रहे थे और मुझे ही कॉल मिला रहे थे| हम दोनों को (भौजी और मुझे) एक साथ देख कर पिताजी को कोई हैरानी नहीं हुई, शायद माँ ने उन्हें सब बता दिया था, हाँ हमारे लेट आने का गुस्सा जर्रूर उनके चेहरे पर झलक रहा था| फिर पिताजी की नजर मेरे चिंतित चेहरे पर पड़ी तो उन्हें भी चिंता होने लगी, मैंने पिताजी को एक मिनट के लिए उनके कमरे में बुलाया और उन्हें सब सच बता दिया की अनिल का एक्सीडेंट हो गया है तथा मैं रात एक बजे की flight से मुंबई जा रहा हूँ| पिताजी ने मुझे अनिल से बात करवाने को कहा, मैंने अनिल के नंबर पर कॉल मिलाया मगर कॉल डॉक्टर सुरेंदर ने उठाया| पिताजी ने उनसे सारी बात की और अपने सवाल पूछे, वो (पिताजी) अनिल से बात करना चाहते थे मगर अनिल को हो रहे दर्द के कारन उसे दवाई दे कर सुला दिया गया था| मैंने पिताजी से फ़ोन लिया और डॉक्टर सुरेंदर को बता दिया की मैं रात के 1 बजे वाली flight से मुंबई आ रहा हूँ, उन्होंने मुझे पुनः आश्वस्त किया की वो तब तक अनिल के पास हैं| फ़ोन रख मैंने पिताजी को देखा तो उन्होंने मुझे जाने से बिलकुल नहीं रोका, बल्कि मुझे कुछ cash पैसे देने लगे| मैंने पैसे लेने से मन कर दिया क्योंकि मैं flight में cash पैसे नहीं रखना चाहता था| अब बात आई की इस बात को दबाने की;

मैं: पिताजी अभी इस बात का जिक्र आप किसी से भी मत करना| एक बार मैं वहाँ पहुँच जाऊँ, खुद से हालात देख लूँ फिर मैं ही सबको बता दूँगा|

पिताजी को मेरी बात जचि नहीं, वो ऐसी बात छुपाने के पक्ष में नहीं थे, मगर जब मैंने उन्हें बताया की अनिल ने खुद किसी को ये बात बताने के लिए मना किया है, तब जा कर पिताजी माने|

पिताजी: लेकिन बेटा अगर बात गंभीर निकली तो मैं अनिल के पिताजी को फ़ोन कर दूँगा|

पिताजी ने मुझे आगाह करते हुए कहा| इतने में माँ आ गईं, पिताजी ने उन्हें सारी बात बताई तो माँ ये बात भौजी को बताने के लिए आतुर हो गईं;

माँ: वो भाई है बहु का, उसे ये बात पता होनी चाहिए!

माँ तर्क करते हुए बोलीं|

मैं: माँ खामखा वो (भौजी) चिंता पाल लेंगी और खाना-पीना छोड़ देंगी! फिर मैं तो जा ही रहा हूँ न, एक बार मैं खुद हालात देख लूँ तो मैं खुद उन्हें (भौजी को) सब बता दूँगा|

मैंने माँ को जोर दे कर समझाया तो माँ जैसे-तैसे मान गईं| फिर मैंने माँ-पिताजी को भौजी से बोले हुए झूठ के बारे में बता दिया ताकि कहीं मेरे पीछे भौजी को मेरे झूठ का पता न लग जाए| अपने झूठ को छुपाने में मैं बड़ा माहिर हूँ!

मैं, माँ और पिताजी बाहर आये और खाने के लिए बैठ गए| भौजी ने खाना गर्म कर लिया था तथा सबको परोस कर वो मेरे कपडे pack करने लगी थीं| आयुष और नेहा दोनों मेरे सामने खाना खाने के लिए फुदक रहे थे, एक-एक कौर खा कर दोनों अपनी गर्दन ख़ुशी के मारे दाएँ-बाएँ हिलाने लगे| उनका ये बचपना देख माँ-पिताजी भी मुस्कुरा रहे थे और बीच-बीच में उन्हें अपने हाथ से खिला रहे थे| खाना खा कर मैंने दोनों बच्चों को भौजी के कमरे में लिटाया और उन्हें अपने मुंबई जाने के बारे में बताया| मेरे जाने के नाम से नेहा डर गई और उठा कर मेरे गले लग कर सुबकने लगी|

मैं: मेरा बच्चा, रोना नहीं! पापा बस कुछ काम से जा रहे हैं और 1-2 दिन में आ जायेंगे|

फिर मैंने भौजी की तरफ देखा और नेहा से बोला;

मैं: मेरे पीछे आपको कोई दुखी करे तो मुझे अपनी दादी जी के फ़ोन से कॉल कर देना, वापस आ कर मैं 'उनकी' खबर लूँगा!

भौजी और नेहा दोनों ही मेरा मतलब समझ गईं तथा मेरी बात सुन दोनों माँ बेटी (भौजी और नेहा) मुस्कुराने लगीं| इतने में आयुष उठा और मेरे ऊपर कूद पड़ा;

मैं: आयुष बेटा, आप नेहा के भाई हो तो आपका फ़र्ज़ है मेरी गैरहाजरी में अपनी दीदी का ख्याल रखना|

मैंने आयुष को जिम्मेदारी वाला काम दिया, मेरी बात सुन आयुष ने नेहा को झप्पी डाली और बोला;

आयुष: दीदी मैं आपका ध्यान रखूँगा!

उस छोटे से बच्चे के मुँह से इतनी बड़ी बात सुन मेरा और भौजी का सीना गर्व से चौड़ा हो गया| नेहा ने आयुष को अपने गले लगाया और मैंने उन दोनों को अपनी बाहों में भर लिया|

अब बारी थी सोने की तो मैंने दोनों को कहानी सुना कर सुलाया और अपने कमरे में आ कर कपडे बदलने लगा| पीछे से भौजी आ गईं और मुझे मेरा ATM card देते हुए बोलीं;

भौजी: जानू आपको इसकी जर्रूरत पड़ेगी|

मैंने मुस्कुरा कर उनसे card लिया, हालांकि मैं अपनी checkbook रख ली थी लेकिन फिर भी मैंने card ले लिया| मैंने भौजी के माथे को चूमा और बोला;

मैं: जान अपना ख्याल रखना!

ये सुन भौजी ऐसे शरमाईं की मन किया की उनके गुलाबी होंठ चूम लूँ, लेकिन तभी दिषु का फ़ोन आ गया! वो गाडी ले कर बाहर खड़ा था और मुझे बुला रहा था| माँ-पिताजी का आशीर्वाद ले कर मैं निकला| रास्ते में दिषु ने मुझे बताया की उसके cousin ने अस्पताल में पैसे जमा करा दिए हैं तथा अनिल फिलहाल सो रहा है| डॉक्टर सुरेंदर वहाँ खुद रुके हैं और अनिल की देखभाल कर रहे हैं! दिषु ने मुझे डॉक्टर सुरेंदर का नंबर दिया और बताया की अनिल का फ़ोन low battery के कारण switch off हो चूका है! कुलमिला कर कहें तो बात घबराने की नहीं थी, मगर मुझे चैन तब पड़ता जब मैं अनिल को खुद अपनी आँखों से देख लेता|

[color=rgb(51,]जारी रहेगा भाग-7 में...[/color]
 

[color=rgb(255,]चौबीसवाँ अध्याय: उलझते-सुलझते बंधन[/color]
[color=rgb(226,]भाग-7[/color]

[color=rgb(26,]अब तक आपने पढ़ा:[/color]

माँ-पिताजी का आशीर्वाद ले कर मैं निकला| रास्ते में दिषु ने मुझे बताया की उसके cousin ने अस्पताल में पैसे जमा करा दिए हैं तथा अनिल फिलहाल सो रहा है| डॉक्टर सुरेंदर वहाँ खुद रुके हैं और अनिल की देखभाल कर रहे हैं! दिषु ने मुझे डॉक्टर सुरेंदर का नंबर दिया और बताया की अनिल का फ़ोन low battery के कारण switch off हो चूका है! कुलमिला कर कहें तो बात घबराने की नहीं थी, मगर मुझे चैन तब पड़ता जब मैं अनिल को खुद अपनी आँखों से देख लेता|

[color=rgb(84,]अब आगे: [/color]
[color=rgb(0,]
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हम दोनों भाई (मैं और दिषु) airport पहुँचे, मैंने गाडी से उतरते हुए दिषु को मेरे द्वारा किराये पर ली हुई गाडी की चाभी दी और कहा;

मैं: भाई ये किराये वाली गाडी की चाभी है, गाडी का नंबर है XXXX, इसे कल वो flyover के नीचे वाले करण भैया को दे दियो और उनसे पाँच हजार वापस ले लियो!

दिषु ने चाभी ली और मेरे गले मिलते हुए मुझे होंसला देते हुए कहा;

दिषु: वो सब मैं देख लूँगा, तू बस अपना ध्यान रखिओ और कोई भी जर्रूरत हो तो मुझे फ़ोन कर दियो|

मैंने सर हाँ में हिला कर दिषु को; "Thanks यार" बोला और मैंने airport में प्रवेश किया| ये मेरी पहली हवाई यात्रा थी, मगर मैं इस यात्रा का लुत्फ़ उठाने की परिस्थिति में नहीं था!

Flight ने समय से takeoff किया और सुबह के 3 बजे के करीब मैं मुंबई उतरा| अपना समान ले कर बाहर आते-आते मुझे लगभग 20 मिनट लग गए, Airport से बाहर आ कर मैंने Lilavati hospital तक के लिए टैक्सी की और जैसे ही टैक्सी में बैठा की भौजी का फ़ोन आ गया;

भौजी: पहुँच गए जानू?

मैं: हाँ जान, करीब बस बीस मिनट हुए|

मैंने घडी देखते हुए कहा|

भौजी: जल्दी काम निपटाना, यहाँ कोई आप का बेसब्री से इन्तेजार कर रहा है!

भौजी बड़े कामुक अंदाज से बोलीं|

मैं: जानता हूँ जान! अब आप आराम करो, मैं आपको कल सुबह फोन करता हूँ|

भौजी मेरे कहने का मतलब समझ गईं| चूँकि वो माँ बनने वालीं थीं इसलिए मैं नहीं चाहता था की वो देर रात तक जागें और बीमार पड़ें| देखा जाए तो मेरी चिंता फिजूल थी, मगर मैं भौजी की pregnancy को ले कर अभी से कुछ ज्यादा ही सचेत हो गया था|

भौजी: हम्म! लेकिन पहले आप I love you कहो?

भौजी प्यार से हट करते हुए बोलीं|

मैं: I love you जान!

मैंने मुस्कुरा कर कहा|

भौजी: I love you toooooooooooooooooooooo! (Muaaah)

भौजी ने I love you के बाद फ़ोन पर मुझे अपनी मीठी-मीठी 'चुम्मी' दी! मैंने फ़ोन रखा और अगले 5-7 मिनट में मैं अस्पताल पहुँच गया|

अस्पताल के gate पर मुझे दिषु का cousin मिल गया, मैंने उसे दिल से बहुत-बहुत धन्यवाद दिया की इतनी रात- बेरात वो त्यौहार के दिन अपने परिवार को छोड़ कर अस्पताल में रहा| फिर मैंने ATM से उसके द्वारा जमा कराये 10,000/- रुपये निकाल के दिए, उसने बहुत मना किया की; "भैया घर की बात है, आप बाद में दे देना|" मगर मैंने जबरदस्त उसे पैसे दिए और फिर से धन्यवाद किया| इतने में डॉक्टर सुरेंदर आ गए और दिषु के cousin ने मेरा उनसे तार्रुफ़ कराया, उन्होंने मुझे अनिल की हाल खबर दी की अनिल को प्लास्टर चढ़ाया जा चूका है और वो आराम कर रहा है| हम अंदर जाते उससे पहले मैंने दिषु के cousin को विदा किया क्योंकि सुबह होने को थी और फिर मैं डॉ सुरेंदर के साथ अनिल के कमरे की तरफ आया| अनिल नींद में था, मगर जैसे ही उसके कमरे का दरवाजा खुला अनिल की नींद खुल गई! मुझे अपने सामने देख वो (अनिल) कराहते हुए उठने लगा, मैं तेजी से उसके पास पहुँचा ताकि उसे सँभाल सकूँ परन्तु मेरे नजदीक आते ही अनिल मेरे पाँव हाथ लगाने को झुका! मैंने फ़ौरन उसे सँभाला और उसे रोकते हुए पुनः लिटा दिया| अनिल के सर पर चोट आई थी, शुक्र है की गहरी नहीं थी बस हलकी सी पट्टी बँधी थी| उसके दाहिने हाथ में प्लास्टर लगा था और टाँगो में एक दो जगह छिलने से घाव हो गया था|

मैं: ये सब हुआ कैसे?

मैंने चिंतित होते हुए पुछा|

अनिल: जीजू, वो मैं bike से जा रहा था....

अनिल की आधी बात सुन मैंने उसे रोक दिया;

मैं: Bike? पर तेरे पास bike कहाँ से आई?

अनिल: जी वो मेरे दोस्त की थी|

मैं: फिर?

अनिल ने सुरेंदर की तरफ इशारा करते हुए कहा;

अनिल: इनकी गाडी wrong side से आ रही थी और मुझे आ लगी!

अनिल की बात सुन मैं सुरेंदर की तरफ पलटा और भोयें सिकोड़ कर देखने लगा, मेरे इस तरह देखने से सुरेंदर घबरा गया और बोला;

सुरेन्द्र: I'm sorry sir, मैंने आप से झूठ कहा! दरअसल गलती मेरी थी, मैं drive करते हुए फोन पर बात कर रहा था और सामने नहीं देख रहा था! Please मुझे माफ़ कर दीजिये!

सुरेंदर की बात सुन कर मुझे गुस्सा तो बहुत आया, लेकिन फिर मेरी अंतरात्मा ने मुझे रोक लिया और मुझे समझाने लगी; 'सुरेंदर चाहता तो अनिल को उसी हालत में मरने के लिए छोड़ देता, मगर उसने अपनी गलती स्वीकार की और अनिल को अस्पताल में भर्ती करवाया और मेरे आने तक वही उसकी (अनिल की) देखभाल कर रहा था| ऐसे इंसान पर अपना गुसा निकाल कर, उस पर हाथ उठा कर तू उसकी मानवता को गाली देगा!' मेरी अंतर आत्मा की बात सही थी और मैंने ये बात स्वीकार कर ली थी|

मैं एकदम से खामोश हो कर सुरेंदर को एकटक देख रहा था, तो उसे (सुरेंदर को) लगा की मैं उसके खिलाफ कुछ बुरा सोच रहा हूँ;

सुरेंदर: Sir, please don't file any police case against me, वरना मेरा career बर्बाद हो जायेगा!

सुरेंदर घबराते हुए बोला|

मैं: Relax, I'm not gonna file any complaint against you!

ये कहते हुए में सुरेंदर के नजदीक पहुँचा और उसके कँधे पर हाथ रखते हुए बोला;

मैं: आप चाहते तो अनिल को वहीं छोड़ के भाग सकते थे और हमें कभी पता भी नहीं चलता की उसे (अनिल को) हुआ क्या था! लेकिन न केवल आपने अनिल को हॉस्पिटल पहुँचाया बल्कि इसके फोन से मुझे कॉल भी किया और मेरे आने तक इसका पूरा ध्यान रखा, इसलिए Thank you.... Thank you very much!

मैंने सुरेंदर की तारीफ की तो उसे होंसला आया और वो चिंतामुक्त हो कर मुस्कुराने लगा|

मैं: अच्छा, ये बता दीजिये की अनिल को यहाँ कितने दिन रहना है?

सुरेन्द्र: सर, कल शाम तक discharge मिल जायेगा|

मैं: तो मैं रात की गाँव की टिकट करवा लेता हूँ, ताकि वहाँ इसकी (अनिल की) अच्छे से देखभाल हो सके|

जैसे ही मैंने गाँव जाने की बात की अनिल के चेहरे पर परेशानी की रेखा झलक आई;

मैं: फिलहाल कोई नहीं जानता की तेरा accident हुआ है, बस मैं और मेरे माँ-पिताजी जानते हैं|

ये सुन कर अनिल को थोड़ा इत्मीनान हुआ, मगर अनिल गाँव नहीं जाना चाहता था;

अनिल: जीजू, मैं गाँव नहीं जा सकता! Exams आ रहे हैं ऊपर से मेरी attendance भी short है|

Attendance short मतलब अनिल यहाँ अपनी college life 'अच्छे' से जी रहा है, यही सोच कर मैंने उसे इसके लिए नहीं टोका| परन्तु मेरी चिंता उसके ख्याल रखे जाने को ले कर थी, एक-आध दिन की बात होती तो मैं रुक जाता पर plaster कटने में कम से कम एक महीना लगता!

मैं: पर यहाँ तेरा ख्याल कौन रखेगा?

मैंने चिंता जताई तो सुरेंदर बीच में बोल पड़ा;

सुरेन्द्र: सर If you don't mind, मैं यहीं hostel में रहता हूँ and I can take good care of him! फिर गलती भी तो मेरी ही थी तो मैं अनिल का ध्यान रख लूँगा|

सुरेंदर ने जिम्मेदारी उठाने के लिए कदम आगे बढ़ाया;

मैं: Sorry यार, I don't want to trouble you anymore.

मैंने मुस्कुराते हुए कहा| इतने में अनिल शर्माते हुए बोल पड़ा;

अनिल: जीजू...वो.....मेरी grilfreind है...and she can take care of me!

अनिल शर्म से लाल हुआ जा रहा था और मुझे माहौल हल्का करने का मौका मिल गया था;

मैं: अबे 'साले' तूने girlfriend भी बना ली?

मैंने साले शब्द पर थोड़ा जोर देते हुए कहा| मेरी बोली और बात इतनी मजाकिया थी की हम तीनों ठहाका मार के हँस पड़े!

मैं: वैसे नाम क्या है इस कन्या का?

मैंने अनिल को छेड़ते हुए पुछा|

अनिल: जी सुमन! मेरे ही साथ पढ़ती है!

अनिल शर्माते हुए बोला| अनिल को डर था की उसकी ये बात मैं कहीं घर पर न बता दूँ इसलिए वो डरते हुए बोला:

अनिल: लेकिन जीजू please घर पर किसी को मत बताना!

मैं: अरे भाई जीजा-साले के बीच की बातें सबको थोड़े ही बताई जाती है!

मैंने मजाक करते हुए अनिल को आश्वस्त कर दिया की उसका राज मेरे पास सुरक्षित है! मेरी बात सुन हम तीनों फिर ठहाका मर कर हँसने लगे|

मैं: तूने खबर की सुमन जी को?

मैंने अनिल की टाँग खींचते हुए कहा तो वो बेचारा बुरी तरह शर्माने लगा और बोला;

अनिल: उसे तो मेरे accident के बारे में पता भी नहीं!

अब सुरेंदर भी बीच में बोल पड़ा;

सुरेंदर: तो बता दो, वरना बाद में बहुत लड़ेगी!

सुरेंदर ने जिस अंदाज में कहा था उसे सुन मेरी हँसी छूट गई, मुझे हँसता हुआ देख अनिल और सुरेंदर भी हँसने लगे| मैंने अपनी हँसी रोकी और बोला;

मैं: चल ठीक है, अभी तू आराम कर सुबह के चार बज रहे हैं| सुबह जब वो तुझे good morning वाली kissi देने के लिए फ़ोन करे तब बता देना|

ये सुन्ना था की सुरेंदर पेट पकड़ कर हँसने लगा और उधर अनिल शर्म से बिलकुल लालम-लाल हो गया!

अनिल समझदार था, वो जानता था की सुरेंदर के कारन उसकी ये हालत हुई है पर उसके मन में सुरेंदर के प्रति कोई मलाल नहीं था, फिर हम तीनों तो बिलकुल ऐसे बात कर रहे थे जैसे कोई दोस्त हों!

आराम करने की बात चली तो सुरेंदर मुझसे बोला;

सुरेन्द्र: सर आप मेरे cabin में आराम करिये|

मैं: अरे नहीं यार, अच्छा नहीं लगता! आप आराम करो, मैं यहीं बैठता हूँ और जरा घर फोन करके खबर दे दूँ|

मैंने सुरेंदर को मना करते हुए कहा, मगर घर फ़ोन करने की बात सुन कर अनिल घबरा गया और बोला;

अनिल: नहीं जीजू! प्लीज मेरे accidentके बारे में किसी को कुछ मत बताना, वरना सब घबरा जायेंगे|

अनिल मिन्नत करते हुए बोला|

मैं: यार मैं सिर्फ अपने माँ-पिताजी को तेरी हाल-खबर दे रहा हूँ, वो किसी से कुछ नहीं कहेंगे| तू आराम से सो जा!

मैंने अनिल को आश्वस्त करते हुए कहा तब जा कर उसे चैन पड़ा;

अनिल: जी ठीक है!

सुरेंदर अपने हॉस्टल निकल गया और मैंने पिताजी को फोन कर के सब बताया| सब सच जानकर वो सुरेंदर पर बहुत गुस्सा हुए, लेकिन फिर मैंने उन्हें समझाया की घबराने की बात नही है और उन्हें अनिल का सारा हाल सुनाया तथा ये भी बताया की सुरेंदर ने एक नेक इंसान होने का पूरा फ़र्ज़ निभाया है, तब कहीं जा कर पिताजी का गुस्सा शांत हुआ| पिताजी ने कहा की मैं अनिल को उसके घर यानी गाँव छोड़ दूँ, तो मैंने बस इतना कहा की कल अनिल को discharge करवा कर गाँव जाने की व्यव्य्स्था करता हूँ| अनिल ने मेरी बातें सुन ली थी और फ़ोन कटने के बाद उसने फिर अपनी बात दोहराई;

अनिल: जीजू सुमन मेरा ख्याल रख लेगी|

मैं: देख यार, पहले मुझे उससे मिल लेने दे फिर बताता हूँ| ऐसे एकदम से मैं तुझे किसी के सहारे नहीं छोड़ सकता, वरना कल को तेरी दीदी को बात पता चली तो वो मुझे कच्चा खा जाएगी!

मैंने हँसते हुए कहा तो अनिल भी मुस्कुराने लगा| वैसे जब से मैं आया था मैं अनिल के सामने बिलकुल उसके सगे जीजा की तरह व्यवहार कर रहा था, पता नहीं वो कितना समझ पाया था या वो इसे बस मेरा मसखरापन समझ रहा था! बहरहाल मैंने दिषु को what's app पर message कर के यहाँ के सारे हालात बता दिए ताकि वो भी निश्चिंत हो जाए! उसने कुछ देर बाद मैसेज देखा और मुझे ध्यान रखने को बोल कर सो गया|

इधर घडी में साढ़े चार बजे थे और आँखें भारी हो रहीं थीं, अनिल अस्पताल के bed पर सो गया था, मैंने उसका फ़ोन charging पर लगाया और मैं भी आरामदायक कुर्सी पर बैठ कर ऊँघने लगा| फिर तो ऐसी आँख लगी की सीधा सुबह आठ बजे नींद खुली जब भौजी ने मुझे फ़ोन किया, मैंने फ़ोन उठाया और कमरे के बाहर आ गया;

भौजी: जानू कैसे संभालते हो आप इन दोनों शैतानों को?

भौजी अपना सर पीटते हुए परेशान हो कर बोलीं| पीछे से मुझे आयुष और नेहा के झगड़ने की आवाज आ रही थी, मैं समझ गया की दोनों बच्चों ने अपनी मम्मी की नाक में दम कर रखा है!

मैं: क्यों क्या हुआ?

मैंने पुछा तो भौजी शिकायत करते हुए बोलीं;

भौजी: सुबह नेहा जल्दी उठ गई थी तो मैंने उसे आयुष को उठाने भेजा, इस पगली को पता नहीं क्या सूझा इसने कटोरी में ठंडा पानी लिया और आयुष के मुँह पर पानी मारकर भाग गई! अब तब से आयुष रोये जा रहा है और रोते-रोते नेहा के पीछे पानी का मग्घा ले कर दौड़ रहा है!

भौजी परेशान होते हुए बोलीं| उनको यूँ परेशान होता हुआ देख मैं हँस पड़ा और उन्हें सब सच बताया;

मैं: यार वो दिवाली वाली सुबह आयुष ने अपने गीले हाथ सोती हुई नेहा को लगाए थे, ये उसी का बदला था!

ये सुन भौजी हैरान हो गईं और दोनों बच्चों को प्यार से डाँटते हुए बोलीं;

भौजी: शैतानों! मान जाओ वरना अभी एक-एक थप्पड़ मारूँगी! ये लो पापा से बात करो!

भौजी ने जोर से आवाज लगा कर बच्चों को कहा था, मतलब की माँ-पिताजी घर पर नहीं थे! खैर पापा से बात करने की बात सुन कर दोनों बच्चे 'अस्थायी सुलाह' कर के फ़ोन पर आ गए, सबसे पहले आयुष ने फोन छीना और बात करने लगा;

आयुष: हैल्लो पापा जी, आप मेरे लिए क्या लाओगे?

आयुष ने भोलेपन में सीधा सवाल पुछा तो पीछे से नेहा की आवाज आई;

नेहा: पापा का हाल-चाल तो पूछ?

नेहा ने टोका मगर आयुष ने उसे अनसुना किया और अपना सवाल पुनः दोहराया;

आयुष: मेरे लिए क्या लाओगे पापा जी?

अभी तक मैंने सोचा नहीं था की घर क्या ले जाना है, तो मैंने आयुष से ही पूछ लिया की उसे क्या चाहिए;

मैं: आप बोलो बेटा क्या चाहिए आपको?

आयुष एक सेकंड के लिए सोचने लगा और फिर खुश होते हुए बोला;

आयुष: Game! Assassin's creed वाली game!

दरअसल उन दिनों मैं assassin's creed खेलता था तो मेरी देखा देखि आयुष ने भी ये शौक अपना लिया था, मगर उसे खुद खेलने से ज्यादा मुझे खेलते हुए देखने में मजा आता था|

मैं: बेटा ये game तो वहाँ (दिल्ली में) भी मिलेगी! आप ये बताओ की यहाँ से क्या लाऊँ?

मेरा सवाल सुन आयुष एकदम से बोल पड़ा;

आयुष: पता नहीं!

आयुष के ये बोलते ही पीछे से दोनों माँ-बेटी (भौजी और नेहा) के हँसने की आवाज आने लगी! अब देखा जाए तो बात हँसने वाली थी ही, आयुष को मुंबई से कुछ खास चाहिए था, मगर क्या ये उसे नहीं पता था!
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अपना मजाक उड़ता देख आयुष ने गाल फुला लिए और अपनी मम्मी और दीदी को जीभ चिढ़ाने लगा!

अब बारी आई नेहा की तो उसने कोई माँग नहीं की, बल्कि सीधा पुछा की मैं कब लौटूँगा? मैंने नेहा को प्यार से प्रोत्साहन दिया तो उसने बिना कुछ सोचे कह दिया की उसे कुछ ख़ास चाहिए, मगर क्या ये उसने नहीं बताया! मेरी बेटी ने मेरे ऊपर बात डाल दी थी तो मुझे ही कुछ ख़ास सोचना था!

मैं: अच्छा मेरा बच्चा एक बार फ़ोन स्पीकर पर डालो|

मैंने नेहा को फ़ोन स्पीकर पर डालने को कहा तो नेहा ने फ़ोन स्पीकर पर डाल दिया;

मैं: बच्चों, मेरी अनुपस्थिति में अपनी मम्मी को तंग मत करना! मैं वापस आ जाऊँ, फिर आप दोनों के बीच का झगड़ा हम 'pillow fight' से सुलझाएंगे!

Pillow fight की बात सुन दोनों बच्चे खुश हो गए और मुझे वादा किया की मेरे आने तक वो अपनी मम्मी को परेशान नहीं करेंगे| अगली बारी भौजी की थी, उन्होंने फ़ोन नेहा से लिया और उसे बाहर भगाते हुए बोलीं;

भौजी: अच्छा बस! अब मेरी बारी है, जा कर आयुष के साथ खेल!

दोनों बच्चे ख़ुशी-ख़ुशी हँसते हुए बाहर चले गए और भौजी को मुझसे अकेले में बात करने का मौका मिल गया;

भौजी: Muuuaaaah!

भौजी ने फ़ोन पर एक जोरदार kiss दी!

भौजी: अच्छा जानू आप कब आ रहे हो?

भौजी का सवाल सुन मुझे ग्लानि होने लगी की मैं उनसे इतनी बड़ी बात छुपा रहा हूँ|

मैं: बस जान, एक-दो दिन!

मैंने अपनी ग्लानि छुपाते हुए कहा|

भौजी: अच्छा जानू, आप चूँकि मुंबई में हो तो आप अनिल से मिल लोगे? कल भाई-दूज है, आप उसकी हाल-खबर ले लेते तो अच्छा होता!

इतना बोल भौजी एक सेकंड के लिए खामोश हुईं और एकदम से बोलीं;

भौजी: जान, आप उसे अपने साथ ले आओ ना?

भौजी प्यार भरी जिद्द करते हुए बोलीं| भौजी ये भूल गईं थीं की ट्रैन से आने में हमें कमसकम 19 घंटे लगते और हम समय से तब पहुँचते जब हम अभी निकलते!

मैं: जान, मुझे अभी दो एक दिन यहाँ लगेगा तो मैं अनिल को साथ कैसे लाऊँ?

ये सुन भौजी थोड़ा उदास हो गईं, मैं अपनी परिणीता को उदास कैसे करता इसलिए मैं कुछ सोचते हुए बोला;

मैं: ममम...ऐसा करता हूँ मैं आपकी बात उससे करा देता हूँ|

इतना सुनना था की भौजी खुश हो गईं और एकदम से बोलीं;

भौजी: हाँ दो न उसे फोन?

भौजी को लगा की मैं उन्हें surprise देने keलिए पहले ही अनिल के पास पहुँच गया हूँ| मैं अनिल के पास तो था, मगर भौजी को surprise देने के लिए नहीं बल्कि चिंता से बचाने के लिए!

मैं: जान मैं अपने दोस्त के घर हूँ, अनिल की बगल में नहीं बैठा| मैं उससे आज शाम को मिलूँगा और तब आपकी बात करा दूँगा|

मैंने बात बनाते हुए झूठ कहा| अभी एक झूठ बोला ही था की भौजी ने दूसरा सवाल पूछ लिया;

भौजी: ठीक है जानू! अच्छा आपका दोस्त कैसा है?

मैं: वो ठीक है!

इसके आगे मुझ में भौजी से झूठ बोलने की हिम्मत नहीं थी इसलिए मैंने फ़ोन की battery discharge होने का बहाना बनाया;

मैं: अच्छा जान मैं चलता हूँ, battery discharge होने वाली है|

भौजी: ठीक है जानू! Lunch में फोन करना मत भूलना!

भौजी मुझे याद दिलाते हुए बोलीं|

मैं: ठीक है जान!

मैंने फ़ोन रखा और अनिल के कमरे में लौट आया|

अनिल जाग चूका था, मुझे बाहर से आता देख वो पूछने लगा तो मैंने उसे सब बताया;

मैं: तेरी दीदी का फ़ोन था, वो कह रही हैं की भाई-दूज के लिए तुझे साथ ले आऊँ!

अपनी दीदी का नाम सुन कर अनिल की सिट्टी-पिट्टी गुल हो गई| बेचारा अपने पिताजी से ज्यादा अपनी दीदी से जो डरता था!

अनिल: इस हालत में? न बाबा न! आपने दीदी का गुस्सा नहीं देखा!

अब अनिल क्या जाने, हमने तो उसकी दीदी के गुस्से के साथ-साथ उनका (भौजी का) प्यार भी देखा है!

मैं: मैंने कह दिया की मुझे यहाँ 1-2 दिन लगेंगे, मैं शाम को तुझसे मिल कर तेरी हाल-खबर ले कर तेरी बात फ़ोन पर उनसे (भौजी से) करवा दूँगा|

ये सुन कर अनिल ने रहत की साँस ली|

मैं: तो कर दिया तूने अपनी girlfriend को फ़ोन?

मेरा सवाल सुन अनिल फिर शर्माने लगा|

अनिल: हाँ, वो आ रही है! मैं उसके साथ उसके कमरे में ही रुकूँगा?

अनिल ने फिर अपनी बात दुहराई तो मैंने उसकी खिंचाई शुरू कर दी;

मैं: अबे साले! तू कुछ ज्यादा तेज नहीं जा रहा, लेटे-लेटे सारा plan बना लिया?

ये सुन अनिल शर्मा से लाल हो गया!

अपने साले साहब को शर्माते देख मुझे उसकी खिंचाई करने में बड़ा मज़ा आने लगा;

मैं: आय-हाय शर्म देखो लौंडे की?

अनिल ने अपनी शर्म छुपाने के लिए बात बदली;

अनिल: जीजू आप भी न! खेर छोडो ये सब और आप बताओ की कैसा चल रहा है आपका काम? कब कर रहे हो शादी?

मैं समझ गया की वो बात बदल रहा है इसलिए मैं उसकी बात का जवाब देने लगा;

मैं: काम सही चल रहा है और शादी, वो बहुत जल्दी ही होगी|

मेरी आवाज में आत्मविश्वास झलक रहा था!

अनिल: जल्दी? कब?

अनिल जिज्ञासु हो कर पूछने लगा|

मैं: पता चल जायेगा!

मैंने रहस्मयी मुस्कान हँसते हुए कहा|

अनिल: कौन है लड़की, ये तो बताओ?

अनिल ने मेरी टाँग खींचनी चाहि परन्तु मैंने बात पलट दी;

मैं: तू मेरी वाली छोड़ और ये बता की तेरी वाली के साथ तेरा क्या relationship है? Time pass या serious है तू?

मैंने उम्मीद की थी की अनिल time pass कहेगा पर वो तो पक्के वाला आशिक़ निकला;

अनिल: जी serious वाला केस है| कोर्स पूरा होते ही मैं उससे शादी कर लूँगा|

अनिल बड़े आत्मविश्वास से बोला|

मैं: तेरे घर वालों को पता है?

मैंने पुछा तो अनिल ने बड़ी सरलता से कहा;

अनिल: नहीं और जानता हूँ वो मानेंगे भी नहीं! देखते हैं की आगे क्या होता है? वैसे भी आप और दीदी तो हैं ही|

अनिल साँस छोड़ते हुए बोला| अनिल को मेरा और अपनी दीदी का सहारा था, मगर वो क्या जाने हम खुद कब बेसहारा हो जाएँ पता नहीं!

मैं: पागल कहीं का!

मैंने मुस्कुराते हुए बात खत्म करते हुए कहा| अभी मुझे मेरा खुद का पता नहीं था तो उसे सहारा देने की guarantee कैसे देता!

इतने में वो लड़की आ गई, जिसकी हम बात कर रहे थे| सुमन, पंजाबी सूट पहने हुए हुए और चेहरे पर गुस्सा लिए हुए वो कमरे में घुसी! उसे देखते ही अनिल की हालत पतली होने लगी, अनिल की हालत देख वो उसपर बरस पड़ी और उसे खूब सुनाने लगी! दिखने में वो मुझे अल्हड लगी, हालाँकि वो खुद को परिपक्व साबित करना चाह रही थी परन्तु उसकी हरकतें उसकी कोशिशें नाकाम कर रहीं थीं!

सुमन: मना किता सी न त्वनु!

वो अनिल पर बरसी तो अनिल ने उसे खामोश रहने का इशारा किया और मेरी तरफ इशारा करते हुए नक़ली मुस्कान लिए हुए बोला;

अनिल: अरे थम जा! पहले जीजू से तो मिल ले!

अनिल की बात सुन सुमन ने मेरी ओर देखा और हड़बड़ाते हुए मुस्कुराने की कोशिश करने लगी| मुझे ये दृश्य देख कर मज़ा आ रहा था इसलिए मैं हाथ बाँधे सुमन को सम्भल जाने का पूरा मौका दे रहा था| उसने हाथ जोड़े और मुस्कुराते हुए बोलीं;

सुमन: न...नमस्ते जीजू!

मैं मुस्कुराया क्योंकि अनिल की देखा-देखि वो भी मुझे जीजू कह रही थी! मैंने नमस्ते की और इसके आगे हम बात करते की तभी डॉक्टर और नर्स आ गए, उन्होंने अनिल को घेर लिया और हम दोनों को बाहर जाने को कहा| हम दोनों बाहर आये और कुछ पल के लिए खामोश खड़े रहे, अब मुझे सुमन के बारे में जानना था क्योंकि मैं ये सुनिश्चित करना चाहता था की क्या वो अनिल का ख्याल रख भी पायेगी या नहीं?

मैं: सुमन, If you don't mind me asking you, how's Anil in studies?

मैंने बात शुरू करते हुए पुछा|

सुमन: He's good! I mean, मेरे से तो अच्छा ही है| मैं इसी से टूशन लेती हूँ!

सुमन मुस्कुराते हुए बोली|

मैं: I hope he doesn't drink or do things like that?

मैंने हाथ बाँधे हुए सामान्य तरीके से सवाल पुछा| देखा जाए तो मैं जानता था की वो मना ही करेगी, परन्तु मेरा लक्ष्य हम दोनों (मेरे और सुमन) के बीच जो शर्म और झिझक की ठंडी सख्त बर्फ थी, मैं तो बस उसे तोडना चाहता था|

सुमन: न! He's very shy to these things!

सुमन का जवाब सुन मैं मन ही मन हँसने लगा, दुनिया का ऐसा कौन सा दोस्त या girlfriend है जो कहेगा की उसका पीता-खता है! लेकिन फिर सुमन ने बिना मेरे पूछे ही अपनी सफाई पेश कर दी;

सुमन: Even I don't do drinks and all!

उसकी ये बेमतलब की सफाई ने मेरे मन में खटका पैदा कर दिया की ये दोनों जर्रूर पीते-खाते होंगे! अब मुझे दोनों के पीने-खाने से कोई तकलीफ नहीं थी, मैं जानता था की गर्म खून हैं तो ये सब तो करते ही होंगे! बहरहाल इसके आगे मैंने सुमन से उसके घर-परिवार के बारे में पुछा तो उसने मुझे बताया की वो पंजाब से है, उसका भरा-पूरा परिवार है तथा यहाँ वो अकेली कमरा ले कर रह रही है| उसे (सुमन को) देख कर, उसकी बात सुन कर मुझे वो थोड़ा भरोसे लायक लगी|

इधर मैं अपने मन में निर्णय ले रहा था की मैं अनिल को यहाँ उसके (सुमन के) भरोसे छोड़ूँ या नहीं और उधर वो पटर-पटर करते हुए अपने तथा अपने परिवार के बारे में लगी हुई थी| सुमन को वाक़ई लग रहा था की मैं उसके परिवार के बारे में जानने में इच्छुक हूँ, इसलिए वो मुझे सबका ब्यौरा दे रही थी! फिर अचानक से वो कुछ कहते हुए रुक गई;

सुमन: जीजू वो.....

सुमन का यूँ रुक जाना देख मेरे मन में सवाल पैदा हो गया, तो मैंने बात को कुरेदते हुए कहा;

मैं: क्या हुआ? You wanna say something?

सुमन: अम्म्म..Actually जीजू.....इसकी (अनिल की) third और forth semester की fees pending है! मैंने इसे कहा की मुझसे लेले, पर ये मानता नहीं, कहता है की घर में कुछ problem है..तो....

इसके आगे कहने की सुमन में हिम्मत नहीं थी!

मैं: Fees कैसे जमा होती है?

मैंने भोयें सिकोड़ कर पुछा|

सुमन: जी चेक से, cash से या draft से!

मैं: एक मिनट!

इतना कह मैं कमरे में आया और अपने बैग की जेब से checkbook निकाल कर बाहर आ गया|

मैं: कितनी fees है और check किसके नाम का बनेगा?

मैंने सुमन से पुछा तो उसने कॉलेज का नाम और 50,000/- रुपये fees बताई| मैंने बिना सोचे check भरा, मुझे इतनी बड़ी रकम सुन कर जरा सा भी संकोच नहीं हुआ था और ये देख कर सुमन बहुत चकित थी!

मैं सुमन को check देता उससे पहले ही डॉक्टर बहार आ गए, उन्होंने बताया की वो अनिल को अभी discharge कर रहे हैं और मैं accounts department में जा कर bill सेटल कर लूँ| मैंने doctors को "thank you" कहा और हम दोनों (मैं और सुमन) अनिल के पास अंदर आये| मैंने check सीधा अनिल की ओर बढ़ाया तो वो हैरान हो कर मुझे देखने लगा;

मैं: तेरे college की fees का check है!

मैंने मुस्कुरा कर कहा तो अनिल गुस्से से तमतमा गया और सुमन को घूर कर देखने लगा!

मैं: उसे (सुमन को) मत घूर! मैंने ही उससे जोर दे कर पूछा था, वो फिर भी नहीं बता रही थी इसलिए मैंने उसे तेरी कसम दी तब जा कर बोली|

मैंने सुमन की पैरवी करते हुए कहा| लेकिन अनिल सर न में हिला कर मना करने लगा:

अनिल: जीजू आपने पहले ही वो पैसे भेज कर मेरी बहुत मदद की है! फिर मेरा accident हुआ तो आप दौड़े-दौड़े यहाँ आ गए और अब ये फीस का खर्चा मैं आपको नहीं उठाने दे सकता! पिताजी ने कहा था की वो अगले हफ्ते तक उनका loan pass हो जायेगा......

अनिल आगे कुछ बोलता उससे पहले ही मैंने उसकी बात काट दी;

मैं: यार तू जीजू कहता है न मुझे?

मैं जानता था की वो सीधे-सीधे तो मेरी बात मानेगा नहीं इसलिए मैंने उसे हमारे रिश्ते का वास्ता दे दिया, मगर अनिल बहुत समझदार था उसने पलट कर मेरे साथ ही तर्क किया;

अनिल: माफ़ करना जीजू पर आप मेरे असली जीजा के चचेरे भाई हो!

अनिल नहीं जानता था की यहाँ मैं उसका असली जीजा बनने की तैयारी में हूँ!

मैं: देख यार, तेरी दीदी के साथ मेरा रिश्ता दोस्ती का रहा है और दोस्ती में दोस्त के सुख-दुःख अपने सुख-दुःख होते हैं!

मेरा दिल तो कह रहा था की मैं अनिल से सब सच कह दूँ, क्योंकि मेरे घर में बम फूटते ही ये खबर उसे (अनिल को) पता चल ही जाती, परन्तु उस वक़्त वहाँ सुमन मौजूद थी और उसके सामने ये बात कहना मुझे उचित नहीं लगा, इसीलिए मैंने बात गोल घुमा कर कही थी|

मैं: उस रिश्ते से ही सही तू मुझे बिलकुल मना नहीं करेगा वरना मैं अभी तेरे पिताजी को फ़ोन कर के सब बता देता हूँ!

कहावत है की जब घी सीधी ऊँगली से न निकले तो ऊँगली टेढ़ी कर लो, मैंने भी इस वक़्त वही किया! मैंने प्यार से अनिल को धमकाया तो वो बेचारा डर गया और मेरी बात मान गया|

अनिल का चहेरा उतर गया था इसलिए मैंने उसका मन और सुमन के सामने उसकी इज्जत रखने को मैंने एक बात कही;

मैं: देख यार अभी तेरी college की fees जर्रूरी है वरना तेरा साल खराब हो जायेगा! फिर ये हमारे घर की बात है, तू ठीक हो जा उसके बाद हम आपस में बैठ कर बात कर लेंगे!

पैसों के तौर पर अनिल की मजबूरी थी तो वो मान गया और थोड़ा रुनवासा हो गया| मैंने उसका काँधा थपथपा कर उसे होंसला दिया और बोला;

मैं: इसे (चेक को) सँभाल के रख तबतक मैं जरा accounts department से होके आया|
[color=rgb(0,]

[/color]
[color=rgb(51,]जारी रहेगा भाग-8 में...[/color]
 

[color=rgb(255,]चौबीसवाँ अध्याय: उलझते-सुलझते बंधन[/color]
[color=rgb(226,]भाग-8[/color]


[color=rgb(26,]अब तक आपने पढ़ा:[/color]

अनिल: माफ़ करना जीजू पर आप मेरे असली जीजा के चचेरे भाई हो!
अनिल नहीं जानता था की यहाँ मैं उसका असली जीजा बनने की तैयारी में हूँ!
मैं: देख यार, तेरी दीदी के साथ मेरा रिश्ता दोस्ती का रहा है और दोस्ती में दोस्त के सुख-दुःख अपने सुख-दुःख होते हैं!
मेरा दिल तो कह रहा था की मैं अनिल से सब सच कह दूँ, क्योंकि मेरे घर में बम फूटते ही ये खबर उसे (अनिल को) पता चल ही जाती, परन्तु उस वक़्त वहाँ सुमन मौजूद थी और उसके सामने ये बात कहना मुझे उचित नहीं लगा, इसीलिए मैंने बात गोल घुमा कर कही थी|
मैं: उस रिश्ते से ही सही तू मुझे बिलकुल मना नहीं करेगा वरना मैं अभी तेरे पिताजी को फ़ोन कर के सब बता देता हूँ!
कहावत है की जब घी सीधी ऊँगली से न निकले तो ऊँगली टेढ़ी कर लो, मैंने भी इस वक़्त वही किया! मैंने प्यार से अनिल को धमकाया तो वो बेचारा डर गया और मेरी बात मान गया|
अनिल का चहेरा उतर गया था इसलिए मैंने उसका मन और सुमन के सामने उसकी इज्जत रखने को मैंने एक बात कही;
मैं: देख यार अभी तेरी college की fees जर्रूरी है वरना तेरा साल खराब हो जायेगा! फिर ये हमारे घर की बात है, तू ठीक हो जा उसके बाद हम आपस में बैठ कर बात कर लेंगे!
पैसों के तौर पर अनिल की मजबूरी थी तो वो मान गया और थोड़ा रुनवासा हो गया| मैंने उसका काँधा थपथपा कर उसे होंसला दिया और बोला;
मैं: इसे (चेक को) सँभाल के रख तबतक मैं जरा accounts department से होके आया|

[color=rgb(84,]अब आगे:[/color]

अनिल[/b] और सुमन को कमरे में छोड़ मैं bill settle करने पहुँचा तो देखा सुरेंदर ने bill भर दिया है, परन्तु मैं अभी इस बात से अनजान था| मुझे देखते ही वो मुस्कुराते हुए बोला;

सुरेन्द्र: सर आप चाहें तो अभी अनिल को घर ले जा सकते हैं| हाँ बीच-बीच में उसे follow up के लिए आना होगा| मैंने उसे अपना नंबर दे दिया है, वो मुझसे मिल लेगा और मैं जल्दी से उसका check up करा कर उसे free कर दूँगा!

मैंने मुस्कुरा कर सुरेंदर को धन्यवाद दिया और account clerk को अपना debit card दिया ताकि वो पैसे काट ले;

Clerk: सर payment तो हो गई! Surender जी ने आपके behalf पर payment कर दी है|

मैं: What?

मैं हैरान हुआ और भोयें सिकोड़ कर सुरेंदर को देखने लगा;

मैं: सुरेन्द्र, ये नहीं चलेगा....

मैं आगे कुछ कहते उससे पहले ही सुरेंदर मेरी बात काटते हुए बोला;

सुरेन्द्र: सर, गलती मेरी थी! मेरी वजह से आप को दिल्ली से यहाँ अचानक आना पड़ा...

सुरेंदर आगे कुछ कहता उससे पहले ही मैंने भी उसकी बात काट दी;

मैं: आपने अपनी इंसानियत का फ़र्ज़ पूरा किया, अनिल को हॉस्पिटल तक लाये, उसका अच्छे से इलाज कराया और वो भी मेरी अनुपस्थिति में! क्या मैं नहीं जानता की जब तक मरीज का कोई रिश्तेदार साथ न हो तो इतने बड़े अस्पताल में इलाज नहीं होता? इसलिए please मेरे साथ ऐसा मत कीजिये मैं बहुत ही स्वाभिमानी इंसान हूँ|

मैंने सुरेंदर को समझाते हुए कहा और फिर clerk से मुख़ातिब होते हुए बोला;

मैं: Please इनके (सुरेंदर के) पैसे वापस कीजिये और payment इस card से काटिये! Please!

मैंने नम्रता से कहा तो clerk ने सुरेंदर की आज्ञा लेने के लिए उसे देखा, सुरेंदर के मुख पर कोई भाव नहीं थे क्योंकि वो मुझसे बहुत परभावित था! Clerk ने सुरेंदर के दिए हुए cash पैसे मुझे वापस दिए तथा मेरे debit card से पैसे काटने लगा;

सुरेंदर: EHS में डाल दो!

सुरेंदर ने clerk को हुक्म देते हुए कहा तो clerk ने bill में काफी discount दे दिया! मैं सुरेंदर की होशियारी भाँप गया और मुस्कुराने लगा| मुझे discharge papers मिले और मैंने सुरेंदर के पैसे उसे लौटाए, मगर वो लेने से मना करने लगा|

मैं: देखो यार, मैं request कर रहा हूँ!

मेरी बात सुन सुरेंदर को मेरी गैरतमन्दी समझ आई और उसने अपने पैसे वापस ले लिए|

मैं और सुरेंदर बात करते हुए कमरे में लौटे और मैंने अनिल की टाँग खींचते हुए सुमन का सुरेंदर से तार्रुफ़ कराया| जिस अंदाज में मैंने दोनों का तार्रुफ़ कराया था उसे देख कर अनिल, मैं और सुरेंदर के चेहरे पर शैतानी मुस्कान आ गई! सुमन इस मुस्कान से अनजान थी और कुछ सोचते हुए अनिल को देख रही थी! अपने साले साहब को बचाने के लिए मैंने सुमन से कहा;

मैं: अनिल बाद में सब बता देगा!

ये सुन सुरेंदर की हँसी छूट गई और उसकी देखा देखि अनिल भी हँसने लगा| बेचारी सुमन इन बातों से अनजान कभी अचरज भरी आँखों से मुझे देखती तो कभी अनिल को!

मैं: तो चलें साले साहब?

मैंने मुस्कुराते हुए अनिल से कहा तो वो फिर से रात की बात दोहराने लगा;

अनिल: जीजू, मैं सुमन के room पर ही रहूँगा....

वो आगे कुछ कहता इतने में सुमन बोल पड़ी;

सुमन: हाँ जीजू, मैं इसका (अनिल का) अच्छे से ध्यान रखूँगी!

मैं: सुमन तुम्हारे घर पर ये बात पता चल गई तो तुम्हारी बदनामी होगी!

मैंने सुमन को समझना चाहा मगर वो बड़े तपाक से बोली;

सुमन: जीजू, कोई दिक़्क़त नहीं होगी! वो सब पंजाब में हैं और यहाँ आते-जाते नहीं! फिर हम दोनों एक दूसरे से सच्चा प्यार करते हैं और course खत्म होने के बाद शादी करना चाहते हैं! आज नहीं तो कल ये बात सबके सामने आएगी ही!

सुमन तर्क करने लगी|

मैं: सुमन, अनिल के तुम्हारे साथ रहने की बात खुली तो तुम दोनों के घर वाले नाराज हो जायेंगे!

मैंने सुमन को समझाना चाहा परन्तु वो मेरी बात सुनने को राजी नहीं थी! इस दृश्य में व्यंग तो देखिये, ये जानते-बूझते की भौजी और मेरे प्यार की बात सामने आते ही पूरा परिवार तित्तर-बित्तर हो जायेगा, वही इंसान खुद दो प्रेमियों को परिवार का डर दिखा रहा हो! खैर मेरी बात अनसुनी करते हुए सुमन बोल पड़ी;

सुमन: आप हैं न हमारे साथ?

उसका ये सवाल सुन मैं मन ही मन बोला; 'मेरा अपना ठिकाना नहीं तो मैं तुम दोनों का क्या साथ दूँगा?' लेकिन ये बात सुन मेरी अंतरात्मा बोली; 'तुझे प्यार नहीं मिला तो क्या तू इन दोनों को भी इनका प्यार नहीं मिलने देगा?' मेरे लिए ये सवाल झकझोड़ने वाला था!

मैं: ठीक है! पहले तुम दोनों अपना course खत्म करो, फिर तुम दोनों की शादी की पहल मैं करूँगा!

मैंने मुस्कुराते हुए कहा, जिसे सुन अनिल और सुमन के चेहरे खिल गए!

खैर मैं अनिल को अस्पताल से discharge करवा के सुमन के flat पर ले आया, सुमन के flat में एक कमरा और किचन भर था| मैंने अनिल को सुमन के कमरे में सहारा दे कर बिठाया तो अनिल भावुक हो उठा;

अनिल: Sorry जीजू, मेरी वजह से आपको इतनी तकलीफ हुई! I'm extremely sorry!

मैं: ओ पगले! मुझे कोई तकलीफ नहीं हुई! तू बस आराम कर जल्दी से अच्छा हो जा!

मैंने मुस्कुराते हुए कहा|

मैं: अच्छा तो सुमन, अच्छे से ध्यान रखना मेरे साले साहब का!

मैंने शरारती मुस्कान लिए हुए कहा|

सुमन: जीजू, आप चिंता मत करो, मैं 'इनका' अच्छे से ध्यान रखूँगी!

सुमन ने जिस अदा से अनिल को ' इनका' कहा था उसे देख कर अनिल शर्म से लाल हो गया था, वहीं सुमन की ये अदा देख मैं खींसें निपोरने लगा था!

अनिल और सुमन के रिश्ते में एक 'जल्दबाजी' थी जो आजकल की नई पढ़ी में साफ़ दिखती है! आज की नई पीढ़ी में सब्र नहीं, उन्हें रिश्तों में ठराव से कोई मतलब नहीं! उन्हें बस चाहिए fast food की तरह पका-पकाया हुआ रिश्ता, जिसे वो चाव से खा सकें! दिलों के मेल से ज्यादा उन्हें 'जिस्मानी' मेल से मतलब होता है! बहरहाल मैं इस हालत में नहीं था की मैं दोनों को रिश्तों के बारे में ज्ञान दे सकूँ, एक तो मैं खुद ही मेरे और भौजी के रिश्ते को सबके सामने लाने को आतुर था और दूसरा, मुझे प्रवचन देने का शौक नहीं था!

मैं: चलो अब 'सुमन जी' तेरा ख्याल अच्छे से रख लेंगी तो मैं आज रात की flight ले लेता हूँ?

मैंने खींसें निपोरते हुए अनिल से कहा, परन्तु मेरे जाने की बात सुन सुमन बीच में बोल पड़ी;

सुमन: अरे जीजू! आजतक ये (अनिल) आपके बारे में बताता था, आज जा कर आपसे मिली हूँ और आप आज ही जाने की बात कर रहे हैं? होने वाली साली हूँ, कुछ दिन तो रहो हमारे साथ? मैं आपको मुंबई घुमाती-फिराती, यहाँ का बढ़िया खाना खिलाती!

सुमन ने बड़ी जल्दी से साली-जीजा का रिश्ता जोड़ते हुए कहा! सुमन की बात सुन अनिल मुस्कुरा कर रह गया और मैं तो खिलखिलाकर हँस पड़ा;

मैं: मैं यहाँ ये सोच के आया था की अनिल को गाँव छोड़ दूँगा, पर ये तुम्हारे पास रहना चाहता है क्योंकि ये 'किसी को तकलीफ नहीं देना चाहता|' वैसे बहाना अच्छा मारा था साले साहब!

मैंने सुमन के सामने अनिल की पोल-पट्टी खोलते हुए प्यार-भरा कटाक्ष किया! अनिल शर्म से लाल हुआ जा रहा था तो मैंने बात का रुख सुमन की ओर मोड़ दिया;

मैं: अब तुम हो ही इसका (अनिल का) ध्यान रखने को तो मेरा यहाँ क्या काम? मैं चला घर, वहाँ सब काम छोड़ के यहाँ भागा आया था| हाँ, रही घूमने-फिरने की बात तो, अगली बार देखेंगे और हो सकता है की मेरे साथ इसकी (अनिल की) दीदी भी हों!!!

मैंने हलके शब्दों से अनिल को एक संकेत दिया, जिसे अनिल पकड़ नहीं पाया! अब अनिल की दीदी की बात शुरू हुई तो सुमन की जिज्ञासा जाग गई;

सुमन: फिर तो बढ़िया हो जायेगा!

सुमन खुश होते हुए बोली|

मैं: अरे इतनी जल्दी खुश मत हो जाओ, तुम जानती नहीं अनिल की दीदी को?! उनके (भौजी के) "baby brother" की जिंदगी का सवाल है, पहलीबार मिलते ही तुम्हें उनके सवालों का सामना करना पड़ेगा!

मैंने सुमन को चेताया| ये सुन कर सुमन थोड़ा घबरा गई और अनिल की ओर चिंतित हो कर देखने लगी;

अनिल: पूरे घर में बस एक दीदी हैं जिससे मैं डरता हूँ, बचपन से ले कर अब तक उन्होंने मेरा बहुत ध्यान रखा है! वही तो थी जो मुझे पढ़ने के लिए प्रोत्साहन देतीं थीं और मस्ती नहीं करने देतीं थीं! जब मैं कच्ची (nursery) में था तो वो ही मुझे डाँट-डपट कर पढ़ातीं थीं!

डाँटने का नाम सुन सुमन डर गई तो अनिल ने उसे हिम्मत बँधाते हुए मुझे आगे कर दिया;

अनिल: अरे डर मत, जीजू हैं न?! दीदी बस इनकी सुनती हैं!

ये सुन सुमन ने राहत की साँस ली!

मैं: ओ भाईसाहब, मुझे मत फँसाओ! उनका गुस्सा मैं भली-भाँती भोग चूका हूँ! उनका गुस्सा सामने वाले को चीर देता है! मैंने बस तेरे (अनिल के) पिताजी से बात करने को कहा है, तेरी दीदी (भौजी) की मैं कोई guarantee नहीं लेता!

मैंने भौजी के प्रकोप के डर से अपना पल्ला झाड़ते हुए कहा! अरे भाई प्यार-मोहब्बत इनका और पीसूँ मैं? काहे भैया?! इतने में भौजी का फ़ोन आ गया, सच में बड़ी लम्बी उम्र है उनकी! मैंने फ़ोन उठाया और बाहर आ कर बात करने लगा;

मैं: हेल्लो?!

भौजी: आपको कहा था न की दोपहर के खाने के समय कॉल करना? मैं कॉल न करूँ तो आपको याद ही नहीं रहता न?!

भौजी शिकायत करते हुए मुझ पर बरस पड़ीं|

मैं: Sorry जान!

मैंने तुतलाते हुए बच्चों की तरह बोला तो भौजी झट से पिघल गईं और हँस पड़ीं!

भौजी: खाना खाया? दवाई ली?

भौजी ने बड़े प्यार से पुछा|

मैं: अभी खाऊँगा| आपने और बच्चों ने खाया?

मैंने थोड़ा चिंतित होते हुए पुछा तो भौजी मुस्कुराते हुए बोलीं;

भौजी: जानू, अभी से मेरी और हमारे होने वाले बच्चे की इतनी चिंता मत करो!

मैं: कैसे न करूँ जान?! कल से आपको और हमारे होने वाले बच्चे को ले कर मैं नजाने क्या-क्या सोच रहा हूँ! ऊपर से आप पर प्यार तो इतना आ रहा है की क्या कहूँ?!

मैंने भावनाओं में बहते हुए अपने दिल की बात कही तो भौजी के दिल में जैसे प्यार की कोयल बोलने लगी;

भौजी: तो प्यार करो न, मगर चिंता मत करो!

भौजी मुझे लुभाते हुए बोलीं|

मैं: वापस आने दो मुझे फिर जी भर कर प्यार करूँगा आपको!

इतना सुनना था की भौजी लाज़ के मारे दोहरी हो गईं! हमारी बातें आगे होतीं उससे पहले माँ-पिताजी घर लौट आये और भौजी एकदम से फ़ोन रख कर चलीं गईं!

फ़ोन जेब में डालकर मैं अनिल के पास आया तो देखा की सुमन परांठें बनाने में लग गई है, मैं भी मुँह-हाथ धो कर कपड़े बदलकर तैयार हुआ तथा अपनी flight की ticket book करने लगा| 20 मिनट में सुमन ने परांठे और चाय परोस दी और हम तीनों बैठ कर खाने लगे;

सुमन: Sorry जीजू, वो टाइम कम था खाना बनाने के लिए इसलिए जल्दी-जल्दी में मैंने परांठे बना लिए!

सुमन संकोच करते हुए बोली|

मैं: कोई बात नहीं, जब तुम दोनों की शादी हो जाएगी तब तुम्हारे हाथ की रसोई खा लेंगे!

मैंने दोनों का मजाक उड़ाते हुए कहा| मेरी बात सुन अनिल और सुमन शर्म से लाल हो गए!

खाना खाने के बाद हम जीजा-साला (मैं और अनिल) बैठे बात कर रहे थे और सुमन बर्तन धो रही थी जब मुझे कुछ याद आया, मैंने जेब से 7 हजार रुपये निकाले और अनिल को देते हुए बोला;

मैं: यार ये थोड़े पैसे हैं रख ले, तेरी दवाई तथा दूसरी चीजों के काम आएंगे और जर्रूरत पड़े तो माँग लियो! अनिल फिर से पैसे लेने में सँकुचाने लगा तो मैंने उसे डरा-धमका कर पैसे दे ही दिए! ठीक उसी समय सुमन बर्तन धो कर कमरे में आई और अनिल के हाथ में पैसे देख उसे मसखरी सूझी;

सुमन: जीजू ये मेरी पहली रसोई थोड़े ही है जो आप मुझे ये 'नेग' दे रहे हो?!

सुमन की बात सुन हम तीनों ठहाका मर कर हँसने लगे! अभी अनिल और सुमन की शादी नहीं हुई थी और हम दोनों (मेरा और सुमन) का जीजा-साली का मजाक चालु हो चूका था!

शाम होने को आई थी इसलिए मैंने सोचा की अनिल की बात उसकी दीदी (भौजी) से करा दूँ| मैंने फ़ोन मिला कर अनिल को दिया और वो अपनी दीदी से बात करने लगा, भौजी ने उससे उसका हाल-चाल पुछा तो अनिल को मजबूरन झूठ कहना पड़ा की वो बिलकुल तंदुरुस्त है! अपनी बहन से बात करने के बाद अनिल ने मुझे फ़ोन वापस दिया| मैंने (अपने) पिताजी को फ़ोन मिलाया तो उन्होंने मुझे अनिल से बात कराने को कहा, मैंने फ़ोन speaker पर डाल दिया और अनिल पिताजी से बात करने लगा| पिताजी ने अनिल का हाल-चाल पुछा और फिर सीधा गाँव जाने की बात कही| गाँव जाने की बात से अनिल का चेहरा फीका पड़ गया, मैंने फ़ोन स्पीकर से हटाया और खुद पिताजी से बात करने लगा;

मैं: पिताजी आप चिंता मत कीजिये, मैं सब इंतजाम कर चूका हूँ|

मैंने बात गोल-मोल बात कही क्योंकि फ़ोन पर पिताजी को समझना मुश्किल था|

मैं: पिताजी मैं आज रात की flight से लौटूँगा!

मैं बात पलटते हुए कहा ताकि पिताजी अनिल के गाँव जाने के बारे में मुझसे अधिक सवाल न पूछने लगें! पिताजी से मेरी बात खत्म हुई तो अनिल अपना मुँह बनाते हुए बोला;

अनिल: जीजू....

वो आगे कुछ कहता उससे पहले ही मैंने उसकी बात काट दी;

मैं: Relax! मैं घर जा कर पिताजी से सब बात कर लूँगा| तू बस यहाँ अपना ध्यान रखना, कोई मस्ती नहीं, समय से दवाई लेना और जल्दी से अच्छा हो जाना!

मैंने अनिल को आश्वस्त किया और सबके लिए तोहफे खरीदने के लिए बजार चल दिया|

माँ-पिताजी के लिए खरीदारी करना आसान था, मगर बच्चों के लिए खरीदारी करने के लिए मुझे बच्चा बनना पड़ा! खुद को बच्चों की जगह रख कर उनकी पसंद की चीजें खरीदने में बड़ा मज़ा आ रहा था! आयुष के लिए मैंने वो खरीदा जो कभी मुझे चाहिए था, नेहा के लिए मुझे कुछ अच्छा नहीं मिला, मैंने phone में थोड़ा ढूँढा तो मुझे कुछ बढ़िया मिल ही गया| बच्चों के लिए तो बढ़िया चीजें ले ली मगर अपनी जानेमन के लिए मुझे कुछ बढ़िया नहीं सूझा! खरीदारी निपटा कर मैं वापस लौटा, फ्लाइट रात 8 बजे की थी इसलिए सामान बाँध कर मैं निकलने लगा| सुमन ने बहुत कहा की मैं खाना खा कर जाऊँ, मगर मैंने उसे मना कर दिया क्योंकि मुझे देरी हो रही थी! मैं फटाफट मुंबई airport पहुँचा, वहाँ पहुँच कर मैंने दिषु को फ़ोन किया तो उसने कहा की वो मुझे लेने दिल्ली airport आ जायेगा|

घर पहुँचने की उत्सुकता मेरे चेहरे पर ख़ुशी बनकर झलक रही थी! वहीं मुझे अपने ऊपर गर्व हो रहा था की मैंने एक मुश्किल हालात का सामना सूझबूझ से किया था और इस समस्या को कोई बड़ा रूप लेने से बचाया था| इन खुशियों के साथ मेरे मन में कल पिताजी से अपने और भौजी के रिश्ते को उजागर करने का एक डर भी पनप चूका था, परन्तु मैं घबरा नहीं रहा था क्योंकि मैंने दृढ़ निस्चय कर रखा था की मैं ये बात अब नहीं छुपाउँगा!

मैं दिल्ली airport रात के 11 बजे पहुँचा और दिषु मुझे लेने के लिए 20 मिनट देरी से पहुँचा, वो भी अपने देर से आने की आदत से मजबूर ठहरा! मैं गाडी में बैठा तो दिषु ने मेरे साले साहब यानी अनिल के बारे में पूछना शुरू किया, मैंने दिषु को सारी बात बताई तो वो हँसते हुए बोला;

दिषु: जैसा जीजा वैसा साला!

मतलब जब जीजा प्यार के समुद्र में गोता लगा चूका है तो साला कैसे पीछे रहे! हम घर की ओर चल दिए की तभी मैंने दिषु को एक जगह रुकवा कर नेहा का तोहफा लिया और हम पुनः घर की ओर चल पड़े|

मैं: अच्छा भाई तुझे एक खुश ख़बरी देना भूल गया!

मैंने मसुकुराते हुए कहा तो दिषु जिज्ञासु होते हुए पूछने लगा;

दिषु: कौन सी खुश ख़बरी?

मैं: तू चाचा बनने वाला है!

ये सुन दिषु मुस्कुराने लगा और हँसते हुए बोला;

दिषु: और तू ये अब बता रहा है?

ये कहते हुए उसने मेरी बाजू पर जोरदार घूसा मारा|

मैं: भाई मुझे भी दिवाली वाले दिन पता चला की मैं बाप बनने वाला हूँ! मैंने plan बनाया था की India gate से लौटते वक़्त तुझे ये खुशखबरी दूँगा, मगर अनिल के accident की खबर सुन मुझे कुछ याद नहीं रहा!

मेरी बात सुन दिषु थोड़ा गंभीर हो गया और पूछने लगा;

दिषु: तो तूने कुछ सोचा है?

मैं: हाँ! हम शादी कर रहे हैं!

मैंने सीना चौड़ा करते हुए कहा| ये सुनते ही दिषु ने गाडी एक तरफ रोक दी और मेरी तरफ पलटा;

दिषु: क्या बोल रहा है तू?

दिषु आँखे फाड़े मुझे अचरज भरी आँखों से देख रहा था| मैंने दिषु को करवाचौथ वाली रात से ले कर दिवाली तक की सारी बात बता दी|

मैं: देख भाई मुझसे अब यूँ छुप-छुपकर जीया नहीं जाता! मुझे मेरा परिवार चाहिए, मुझे चाहिए की मेरे बच्चे मुझे सबके सामने पापा कहें, मुझे चाहिए की मैं हमारे (मेरे और भौजी के) रिश्ते को एक जायज नाम दूँ, इसलिए मैंने ये निर्णय लिया है! अब तू बता की तू मेरे साथ है या नहीं?

मेरा सवाल सुन दिषु मुस्कुराया और मेरे कँधे पर हाथ रखते हुए बोला;

दिषु: भाई मैं तेरे साथ हूँ, तू मुझे ये बता court में शादी करने के लिए दो गवाह लगते हैं, दूसरा गवाह है तेरे पास या मैं जुगाड़ करूँ?!

मैं जानता था की दिषु कभी मेरा साथ नहीं छोड़ेगा! वहीं उसकी बात सुन मैं मुस्कुराया और बोला;

मैं: भाई मेरी पूरी कोशिश है की court में शादी करने की नौबत ही न आये, बल्कि माँ-पिताजी मुझे अपना आशीर्वाद देते हुए मेरी शादी करें!

दरअसल मैं 'अति आत्मविश्वास' का शिकार हो चूका था, मुझे लगता था की मैं पिताजी से कहूँगा की मुझे भौजी से शादी करनी है और वो कहेंगे; 'तथास्तु'! अपने इसी अति आत्मविश्वास में उड़ते हुए मैं इतनी बड़ी बात को हलके में लेने की भूल कर चूका था! उधर मेरी बात सुन दिषु थोड़ा गंभीर हुआ और बोला;

दिषु: तुझे लगता है की अंकल जी-आंटी जी मान जायेंगे?

दिषु के सवाल मेरे अति आत्मविश्वास रुपी गुब्बारे में चुभी सुई की समान था, जिसने मेरा अति आत्मविश्वास का गुब्बारा फोड़ दिया था;

मैं: भाई उम्मीद तो पूरी है! अगर नहीं माने तो मैं घर छोड़ दूँगा!

मेरा अति आत्मविश्वास का गुब्बारा फूटा तो मैं धड़ से जमीन पर आ गिरा और ठंडी आह भरते हुए बोला! उधर मेरे घर छोड़ने की बात सुन दिषु चिंतित हो गया;

दिषु: यार ऐसा मत बोल!....

वो आगे कुछ कहता उससे पहले ही मैंने अपनी बात रख दी;

मैं: यार माँ-बाप का गुस्सा कभी जीवन भर के लिए नहीं होता! एक बार उनका गुस्सा शांत हो गया तो मैं खुद उनके पाँव पकड़ कर घर छोड़ने की माफ़ी माँग लूँगा!

मैंने बात को हलके में लेते हुए कहा| भले ही मैं अपने और भौजी के रिश्ते को ले कर संजीदा था और एक वयस्क की तरह हमारे इस रिश्ते को एक पाक-साफ़ नाम देना चाहता था मगर उसके लिए मैं जो ऊल-जुलूल बातें सोच रहा था वो मेरी अपरिपक्वता दर्शाता था!

दिषु: भाई....

दिषु इतना कहते हुए रुक गया और उसका यूँ रुकना मेरे दिल में चुभने लगा! मैं समझ गया की उसके इस तरह खामोश होने का क्या कारन है, वो नहीं चाहता की मैं अपने माँ-पिताजी को छोड़ूँ! अब देखा जाए तो दिषु का ये सोचना सही भी था, वो माँ-बाप जिन्होंने मुझे इतने नाजों से पाला-पोसा मैं उन्हें छोड़ दूँ ये सही बात तो नहीं!

मैं: मैं समझ गया भाई!

मैंने दिषु की और गंभीरता से देखते हुए सर हाँ में हिलाते हुए कहा| दिषु जान गया की मैं उसके मन की बात पढ़ चूका हूँ, अब बस ये देखना था की मैं निर्णय क्या लेता हूँ?

[color=rgb(51,]जारी रहेगा भाग-9 में...[/color]
 

[color=rgb(255,]चौबीसवाँ अध्याय: उलझते-सुलझते बंधन[/color]
[color=rgb(226,]भाग-9[/color]


[color=rgb(26,]अब तक आपने पढ़ा:[/color]

दिषु: तुझे लगता है की अंकल जी-आंटी जी मान जायेंगे?
दिषु के सवाल मेरे अति आत्मविश्वास रुपी गुब्बारे में चुभी सुई की समान था, जिसने मेरा अति आत्मविश्वास का गुब्बारा फोड़ दिया था;
मैं: भाई उम्मीद तो पूरी है! अगर नहीं माने तो मैं घर छोड़ दूँगा!
मेरा अति आत्मविश्वास का गुब्बारा फूटा तो मैं धड़ से जमीन पर आ गिरा और ठंडी आह भरते हुए बोला! उधर मेरे घर छोड़ने की बात सुन दिषु चिंतित हो गया;
दिषु: यार ऐसा मत बोल!....
वो आगे कुछ कहता उससे पहले ही मैंने अपनी बात रख दी;
मैं: यार माँ-बाप का गुस्सा कभी जीवन भर के लिए नहीं होता! एक बार उनका गुस्सा शांत हो गया तो मैं खुद उनके पाँव पकड़ कर घर छोड़ने की माफ़ी माँग लूँगा!
मैंने बात को हलके में लेते हुए कहा| भले ही मैं अपने और भौजी के रिश्ते को ले कर संजीदा था और एक वयस्क की तरह हमारे इस रिश्ते को एक पाक-साफ़ नाम देना चाहता था मगर उसके लिए मैं जो ऊल-जुलूल बातें सोच रहा था वो मेरी अपरिपक्वता दर्शाता था!
दिषु: भाई....
दिषु इतना कहते हुए रुक गया और उसका यूँ रुकना मेरे दिल में चुभने लगा! मैं समझ गया की उसके इस तरह खामोश होने का क्या कारन है, वो नहीं चाहता की मैं अपने माँ-पिताजी को छोड़ूँ! अब देखा जाए तो दिषु का ये सोचना सही भी था, वो माँ-बाप जिन्होंने मुझे इतने नाजों से पाला-पोसा मैं उन्हें छोड़ दूँ ये सही बात तो नहीं!
मैं: मैं समझ गया भाई!
मैंने दिषु की और गंभीरता से देखते हुए सर हाँ में हिलाते हुए कहा| दिषु जान गया की मैं उसके मन की बात पढ़ चूका हूँ, अब बस ये देखना था की मैं निर्णय क्या लेता हूँ?

[color=rgb(84,]अब आगे:[/color]

खैर इसके आगे हमने (मैंने और दिषु ने) इस मुद्दे पर और बात नहीं की! मैंने बात का रुख बदलते हुए उसकी नौकरी के बारे में बात शुरू कर दी| इधर-उधर की बातें करते हुए हम मेरे घर पहुँचे, मैं गाडी से उतरा तो दिषु भी मेरे पीछे गाडी से उतरते हुए बोला;

दिषु: भाई तेरा जो भी निर्णय होगा मैं तेरे साथ खड़ा रहूँगा! अगर कल को अंकल जी तुझे घर से निकाल दें तो मुझे कॉल कर दियो, मैं उनके गुस्सा शांत होने तक तेरे, भाभी और बच्चों के रहने का प्रबंध कर दूँगा!

गौर करने वाली बात ये थी की दिषु ने पिताजी द्वारा मुझे घर से निकाले जाने की बात कही न की मेरे द्वारा घर छोड़ने की! ये उसका एक मूक इशारा था की मैं किसी भी हालत में घर न छोड़ूँ वरना माँ-पिताजी का क्या होगा?

बहरहाल दिषु ने अपनी बात साफ़ कहते हुए मुझे अपना तथा अपनी दोस्ती का सहरा दे दिया था! हमारी दोस्ती का रिश्ता विश्वास पर खड़ा था और हालात चाहे जैसे हों हम हमेशा एक दूसरे को सहारा देने के लिए तत्पर थे! मैं दिषु के गले लगा और मुस्कुरा कर उसे "धन्यवाद" कहा, दिषु गाडी ले कर अपने घर निकल गया और मैं अपनी गली में दाखिल हो गया| रात काफी हो चुकी थी और मेरा इरादा किसी को जगाने का नहीं था इसलिए मैंने अपनी चाभी से घर का दरवाजा खोला| मैंने अपने कमरे की ओर देखा तो दरवाजे के नीचे से मुझे कमरे में रौशनी नजर आई, मैं जान गया की भौजी मेरे इंतजार में अभी तक जागीं हुई हैं| नेहा का तोहफा बाहर छोड़कर मैं अपना बैग लिए हुए दबे पाँव अपने कमरे में आया तो देखता क्या हूँ, भौजी और बच्चे तीनों जाग रहे हैं! मुझे देखते ही दोनों बच्चे हल्ला मचाते हुए खड़े हुए और मेरी ओर लपके! मैंने एकदम से दोनों बच्चों को अपने सीने से लगा लिया और उनके सर को चूमने लगा! बच्चों को इस तरह गले लगा कर लग रहा था की मानो सालों बाद उन्हें गले लगा रहा हूँ! वहीं मेरे गले लगे हुए दोनों बच्चों ने कूदना शुरू कर दिया और; "पापा जी मेरा gift" की रट लगानी शुरू कर दी!

मैं: Okay-Okay! आप दोनों के लिए मैं special gifts लाया हूँ|

ये सुनते ही दोनों बच्चों ने ख़ुशी के मारे मेरे दोनों गालों पर अपनी पप्पियों की बौछार कर दी!

मैं: नेहा बेटा, आपका gift बाहर रखा है!

इतना सुनना था की नेहा फ़ौरन बाहर दौड़ती हुई गई और अपना gift उठा कर ले आई| नेहा के लिए मैं 30 inch का teddy bear लाया था जो लगभग नेहा जितना ही बड़ा था! नेहा अपने teddy bear को अपने से चिपकाए हुए, ख़ुशी से भरी हुई मेरे पास आई;

नेहा: पापा जी मेरी class में सभी लड़कियों के पास teddy bear है, आपको कैसे पता की मुझे ये चाहिए था?

नेहा खुश होते हुए पूछने लगी||

मैं: वो क्या है न बेटा, पापा को सब पता होता है!

मैंने नेहा के सर पर हाथ रखते हुए कहा| जब नेहा आयुष जितनी थी तो उसे गुड्डे-गुड़िया से खेलना अच्छा लगता था, अब वो बड़ी हो चुकी थी तो उसके लिए बड़ी गुड़िया चाहिए थी यही सोचते हुए मैंने नेहा के लिए ये 30 inch का teddy bear लिया था!

अब बारी थी आयुष की जो बड़ी उत्सुकता से अपनी बारी की प्रतीक्षा कर रहा था;

मैं: आयुष बेटा, आपके लिए मैं लाया हूँ hotwheels track set!

मैंने आयुष का तोहफा अपने बैग से निकालते हुए दिया| अपना gift देख आयुष ख़ुशी से पलंग के ऊपर कूदने लगा, मैंने उसका gift pack खोल कर उसे दिया तो उसने track set खुद जोड़ना शुरू कर दिया! आयुष का उत्साह देख मैंने और नेहा ने आयुष की मदद करनी शुरू कर दी| मेरे ये बचपना देख भौजी प्यार से अपना सर पीटते हुए बोलीं;

भौजी: हे राम! आप न, कभी नहीं सुधरोगे?!

भौजी की बात सुन मैं मुस्कुराया और बोला;

मैं: Come on यार!

मैंने भौजी को आँख मारी और आयुष का track set जोड़ने में मदद करने का इशारा किया;

भौजी: बच्चों के लिए तो खिलोने ले आये और मेरे लिए?

भौजी अपनी कमर पर दोनों हाथ रखते हुए बोलीं|

मैं: Oops!!!

मैं अपनी जीभ दाँतों तले दबाते हुए भूलने का नाटक करने लगा| मुझे लगा था की मेरी भूल जाने की नौटकी देख कर भौजी नाराज होंगी, मगर वो मुस्कुराने लगीं और बोलीं;

भौजी: कोई बात नहीं, आप जल्दी आ गए मेरे लिए वही काफी है!

मैं: Sorry जान!

मैंने कान पकड़ते हुए अफ़सोस जताने का नाटक किया|

मैं: अच्छा जान, जरा एक ग्लास पानी लाना|

मैंने बात बनाते हुए भौजी को कमरे से बाहर भेजा और झट से भौजी का gift तकिये के नीचे छुपा दिया! नेहा ने मुझे अपनी मम्मी का गिफ्ट छुपाते हुए देख लिया तो मैंने अपने होठों पर ऊँगली रखते हुए नेहा को चुप रहने का मूक इशारा किया, जिसे समझ नेहा हँसने लगी! मिनट भर बाद भौजी मेरे पानी ले कर आईं तो मैंने उन्हें उनका दूसरा gift दिया;

मैं: Handmade chocolates for my beautiful wife!

मैंने मुस्कुरा कर कहा तो भौजी झट से बोलीं;

भौजी: जानती थी, आप मेरे लिए कुछ न कुछ जर्रूर लाये होगे|

भौजी मुस्कुराते हुए बोलीं और chocolate का box खोल कर खाने लगीं|

मैंने सोचा की क्यों न माँ-पिताजी को अपने आने की खबर तथा उनके लिए लाये हुए तोहफे दे दूँ, इसलिए मैं उन्हें जगाने के लिए अकेला उनके कमरे के बाहर पहुँचा| दरवाजा खटका कर मैं ज्यों ही अंदर आया तो माँ-पिताजी जाग गए, पिताजी ने फ़ौरन घडी देखि और मुझसे बोले;

पिताजी: बेटा तू कब आया?

मैंने माँ-पिताजी के पाँव छुए और उनके पास बैठ गया| मैं जवाब देता उसके पहले ही भौजी मेरे पीछे-पीछे माँ-पिताजी के कमरे में आ गईं, उन्हें देख मैंने बात तोहफों की तरफ मोड़ दी;

मैं: बस अभी-अभी आया! खैर मैं आप दोनों के लिए कुछ लाया हूँ|

ये कहते हुए मैंने बैग से पिताजी के लिए कोल्हापुरी चप्पल और माँ के लिए पश्मीना शाल निकाली!

मैं: ये चप्पल आपके लिए पिताजी, बिलकुल सुहाग पिक्चर के अमिताभ बच्चन जैसी है!

ये सुन पिताजी ठहाका लगा कर हँस पड़े!

मैं: और माँ ये पशमीना शाल आपके लिए, बहुत गर्म है और बहुत मुलायम भी!

शॉल देख कर माँ बिलकुल माँ वाले अंदाज में बोलीं;

माँ: बेटा क्यों इतने पैसे बर्बाद करता है हम पर!

मैं माँ की बात का जवाब देता उससे पहले ही भौजी बोल पड़ीं;

भौजी: माँ अपने माता-पिता के लिए कुछ खरीदना पैसे बर्बाद करना थोड़े ही होता है?!

भौजी की बात सुन माँ-पिताजी के चेहरे पर गर्वपूर्ण मुस्कान आ गई|

पिताजी: बेटा खाना खाया तूने?

पिताजी ने आज जिंदगी में पहलीबार मुझसे खाने के बारे में पुछा, आजतक ये सवाल बस माँ ही पूछतीं थीं| पिताजी के सवाल से मैं ऐसा भौचक्का हुआ की मैंने गलती से हाँ में सर हिला दिया!

पिताजी: अच्छा बहु, तु जा कर आराम कर, मैं जरा मानु से कुछ काम की बात कर लूँ|

पिताजी की बात सुन भौजी अपने कमरे में सोने चली गईं|

भौजी गईं और पिताजी ने सीधा अनिल के बारे में पुछा;

पिताजी: अच्छा अब बता की अनिल गाँव चला गया?

मैं: नहीं पिताजी, दरअसल उसकी college में attendance कम है और साथ ही उसके काफी lecture बाकी हैं!

इतना कह मैंने न चाहते हुए पिताजी से अनिल का सुमन के यहाँ ठहरने की बात छुपाई;

मैं: उसके college के कुछ दोस्त हैं और वही लोग मिलकर उसका ख्याल रखेंगे| फिर अनिल के पिताजी पहले ही उसे (अनिल को) loan ले कर पढ़ा रहे हैं, जवान बेटे को अपने सामने इस हालत में देखते तो परेशान हो जाते, इसीलिए अनिल मना कर रहा था की उसके accident की खबर गाँव न पहुँचे!

पूरी बात सुन पिताजी बात तो समझ गए पर उन्हें भविष्य की चिंता थी और साथ ही अनिल का ख्याल रखे जाने की भी!

पिताजी: बेटा पक्का वहाँ उसका ध्यान रखा जाएगा न? वरना बेचारा 'परदेस' में कैसे सब कुछ सँभालेगा?

मैं: मैं उसके दोस्त से मिलकर आया हूँ और उसने अनिल का ख्याल रखने की जिम्मेदारी ली है!

मैंने पिताजी को अनिल के ख्याल रखे जाने के मामले में आश्वस्त करते हुए कहा|

पिताजी: बेटा लेकिन कल को ये बात समधी जी के सामने खुली की हमने उनसे अनिल के accident की बात छुपाई तो?

पिताजी का सवाल सुन मैं एकदम से बोल पड़ा;

मैं: आप बस कह देना की मैंने किसी को कुछ नहीं बताया!

पिताजी: बेटा ऐसा कैसे हो सकता है? तेरा बाप हूँ तुझे थोड़े ही ऐसे अकेला समधी जी के सामने कर दूँगा?

पिताजी बड़े प्यार से बोले|

मैं: पिताजी आप बस अपने बेटे पर विश्वास रखिये, मैंने जो भी किया उसमें ही सबकी भलाई थी| फिर मेरा निर्णय मेरा था, मैंने इस बारे में आपसे तो पुछा ही नहीं जो आपका नाम बीच में आये! अनिल की जगह मैं होता तो मैं भी आपको या माँ को अपनी तबियत के बारे में दुखी थोड़े ही करता? मुझे यक़ीन है की आपके समधी जी भी ये बात समझ जाएँगे!

आज मेरे बात करने में अलग ही आत्मविश्वास था| मैं आज छाती चौड़ी कर के पिताजी को अपने लिए हुए सही फैसले के बारे में बता रहा था और मेरा यही आत्मविश्वास देख पिताजी को अपने बेटे पर गर्व महसूस हो रहा था!

पिताजी: ठीक है बेटा जैसा तू कहे|

पिताजी मुस्कुराते हुए बोले| पिताजी की आवाज में आज एक मधुरता थी, उनकी आँखों में अपने बेटे के लिए गर्व था और इसी सब ने उन्हें मेरे प्रति झुका दिया था!

माँ-पिताजी को शुभरात्रि बोल मैं अपने कमरे में लौटा तो देखा की दोनों बच्चे अभी तक जाग रहे हैं और अपने-अपने खिलोने से खेल रहे हैं| नेहा अपने teddy bear के ऊपर से plastic उतार रही थी और आयुष अपना hotwheels track set जोड़ने में लगा हुआ है| मैंने जब सोने को कहा तो नेहा अपना teddy bear ले कर लेट गई मगर आयुष अपनी जगह से नहीं हिला और अपना track set जोड़ने में लगा रहा| मैं जानता था की जब तक आयुष launcher से गाडी launch नहीं कर लेता, तब तक वो सोने वाला नहीं है, इसलिए मैंने track set जोड़ने में आयुष की मदद की| Track set जुड़ा और आयुष ने गाडी launch की, गाडी तेजी से पूरे loop में घूमी और फिर पलंग के नीचे चली गई! इस 5 सेकंड की ख़ुशी ने आयुष को ख़ुशी से भर दिया था, उसे ऐसा लग रहा था मानो वो गाडी खुद चला रहा हो इसलिए वो रोमांच से भरकर कूदने लगा! अब आयुष को फिर से खेलना था मगर मैंने उसे प्यार से समझाया; "बेटा रात बहुत हो गई है, कल सुबह उठ कर खेल लेना" तब जा कर आयुष माना और मेरी गोदी में आने के लिए अपनी दोनों बाहें पँख की तरह खोल दी| आयुष को गोद में लिए मैं बिस्तर में घुसा, आयुष मेरी छाती से चिपका सोने लगा और नेहा मेरी ओर करवट ले कर मुझसे लिपट गई! दोनों बच्चे आज इतने खुश थे की बिना कहानी सुने ही सो गए!

हालाँकि मैं काफी थका हुआ था परन्तु आँखों में नींद नहीं थी, दिमाग में बस कल सुबह पिताजी से जो बात करनी है उसके शब्द दौड़ रहे थे! एक ख़ास बात जो मेरे दिल में चुभ रही थी वो थी घर छोड़ने की बात! मेरा मन नहीं मान रहा था की मैं अपना घर, अपने माँ-बाप छोड़ कर अलग रहूँ! मुझे कैसे भी अपने माँ-पिताजी को भौजी संग मेरे नए संसार शुरू करने के लिए मनाना था! इधर आयुष की नींद थोड़ी कच्ची हुई और उसने अपने छोटे- छोटे हाथों से मुझे अपनी बाहों में कसना शुरू किया, यही वो पल था जब मेरा ध्यान कल की बातों से भटका और मुझे नींद आने लगी! बच्चों के प्यार ने मुझे अच्छी नींद दिला ही दी!

अगली सुबह मेरी नींद 5 बजे ही खुल गई, पिताजी से बात करने को मैं इतना उतावला था की मेरे दिमाग ने मुझे अधिक सोने ही नहीं दिया! दोनों बच्चों को अच्छे से रजाई ओढ़ा कर मैं brush करने लगा और तैयार हो कर फटाफट बाहर बैठक में आया| माँ-पिताजी और भौजी जग चुके थे, पिताजी अखबार पढ़ रे थे तथा माँ उनके सामने बैठीं कुछ बात कर रहीं थीं| भौजी का मुँह एकदम से उतरा हुआ था, अभी मैं अपने कमरे की चौखट पर ही खड़ा था, भौजी ने जैसे ही मुझे देखा वो तेजी से मेरी ओर चलती हुईं आईं और मुझे धकेलती हुईं मुझे मेरे कमरे में वापस ले आईं| उन्होंने एकदम से मेरा हाथ पकड़ा और अपने सर पर रखते हुए एक साँस में बोल गईं;

भौजी: जानू आपको मेरी कसम है अगर आपने माँ-पिताजी से घर छोड़ने की बात कही, तो आप मेरा मरा-मुँह देखोगे!

इतना कह भौजी की आँखें आँसूँ से भर गईं! भौजी को यूँ भावुक देख मुझसे कुछ बोला नहीं गया, क्योंकि मैं अपनी ताक़त बात करने के लिए बचाना चाहता था इसलिए मैंने बस हाँ में सर हिलाया और कमरे से बाहर आ गया| अपनी हिम्मत बटोर कर मैं बैठक में पिताजी के सामने बैठा, लेकिन मैं कुछ बोलता उससे पहले ही माँ मेरे सर पर प्यार से हाथ फेरते हुए नाश्ते के बारे में पूछने लगीं| जिस प्यार से माँ-पिताजी मुझसे बात कर रहे थे, उसे देखते हुए मन नहीं किया की उनके चेहरे से हँसी छीन लूँ! मेरा मन हिम्मत हारने लगा और मैं ख़ामोशी से अपने मन को हिम्मत इकठ्ठा करने की सलाह देने लगा! इतने में पिताजी का फ़ोन बजा, ये फ़ोन भौजी के मायके से था! दरअसल अगले हफ्ते भौजी के पिताजी आ रहे थे, क्यों और किस लिए ये बस पिताजी जानते थे! भौजी के पिताजी के आने की बात जानकार मन को हिम्मत मिलने लगी, मैंने मन को हिम्मत बँधाने के लिए समझाते हुए कहा; 'अच्छा है पिताजी (भौजी के) आ रहे हैं, उन्हें भी तो ये सच बताना है!' तभी दिमाग मुझे झिड़कते हुए बोला; 'पर अपने पिताजी से तो बात कर ले?'

अब तक आयुष और नेहा भी जाग चुके थे, तथा मेरी गोदी में चढ़े हुए फिर से सोने लगे थे! बच्चों के मेरी गोद में होने से मेरा ध्यान बँटने लगा था;

मैं: बेटा, आप दोनों जा कर brush करो|

मैंने आयुष और नेहा को समझाते हुए कहा| दोनों अच्छे बच्चों की तरह कूदते हुए brush करने चले गए! इधर माँ ने चाय का गिलास मुझे दिया और पिताजी ने काम के बारे में बात शुरू कर दी, परन्तु मेरा ध्यान किसी बात पर नहीं लग रहा था! कब चाय खत्म हुई और कब नाश्ता बन कर तैयार हुआ, पता नहीं!

माँ ने नाश्ता dining table पर परोसा और सब लोग वहीं बैठ गए| पिताजी घर के मुखिया वाली कुर्सी पर बैठे थे, माँ उनके सामने वाली कुर्सी पर बैठीं थीं, माँ की दाईं तरफ भौजी बैठीं थीं, मैं पिताजी के बाईं तरफ बैठा था और दोनों बच्चे मेरे बगल में खड़े थे| दोनों बच्चे चिड़िया के बच्चों की तरह अपना मुँह खोले हुए मेरे पराँठे का कौर खिलाने का इंतजार कर रहे थे! मैंने दोनों को बारी-बारी से नाश्ता कराया और खेलने के लिए अंदर भेज दिया| मैंने भी फटाफट अपना नाश्ता निपटाया और माँ-पिताजी के नाश्ता खत्म करने का इंतजार करने लगा|

नाश्ता कर माँ और भौजी रसोई में काम करने लगे और पिताजी अपना अखबार पढ़ने लगे| समय आ गया था माँ-पिताजी से बात करने का, परन्तु ये समझ नहीं आ रहा था की बात शुरू कैसे करूँ? शब्दों का चयन करने में मुझे पूरे आधे घंटे का समय लगा, सही शब्द मिले तो मैंने पूरे आत्मविश्वास से अपनी बात शुरू की;

मैं: पिताजी, मुझे आपसे और माँ से कुछ बात करनी है|

मैंने पिताजी का ध्यान अपनी ओर खींचते हुए बात शुरू की!

पिताजी: हाँ बोल?

पिताजी अखबार नीचे रखते हुए बोले|

मैं: माँ, आप भी बैठ जाओ|

मैंने माँ को आवाज दे कर बुलाते हुए कहा| इस समय मेरी आवाज बहुत गंभीर हो चली थी, फिर मैं भौजी से मुखातिब हुआ और उन्हें इशारे से बोला;

मैं: और आप please अंदर चले जाओ|

मैंने भौजी को अंदर जाने के लिए इसलिए कहा था क्योंकि सारी सच्चाई जानकार माँ-पिताजी कैसी प्रतिक्रिया देंगे ये मैं भली-भाँती जानता था और मैं नहीं चाहता था की भौजी मुझे पिताजी का हाथों 'पिटते' हुए देखें! उधर माँ पिताजी के सामने वाली कुर्सी खींच कर बैठते हुए अपनी भोयें सिकोड़ कर पूछने लगीं;

माँ: क्यों?

माँ का तातपर्य था की मैं भौजी को क्यों अंदर जाने को कह रहा हूँ?

मैं: माँ, बात कुछ ऐसी है|

मैंने माँ से नजर चुराते हुए कहा| भौजी समझ गईं की मैं 'बात' शुरू करने वाला हूँ इसलिए वो चुपचाप अंदर चली गईं, अब ये तो मैं जानता था की भौजी कमरे में बैठीं हमारी बातें सुन रहीं होंगी!

मैंने एक गहरी साँस ली और अपना इरादा पक्का करते हुए बोला;

मैं: पिताजी, आज मैं आपको जो बात बताने जा रहा हूँ वो बात मेरे अंदर बहत दिनों से दबी हुई थी, मेरी बस आपसे और माँ से बस एक गुजारिश है की ये बात जान कर आपको बहुत गुस्सा आएगा मगर कृपया एक बार मेरी पूरी बात सुन लेना, उसके बाद आप अपना फैसला सुनाना|

मैंने एक गहरी साँस छोड़ी और अपनी बात आगे कही| आज जिंदगी में पहलीबार मैं भौजी का नाम लेने जा रहा था!

मैं: मैं संगीता से प्यार करता हूँ!

मैंने पूरे आत्मविश्वास से कहा, मगर पिताजी को मेरा ये आत्मविश्वास जरा भी नहीं भाया बल्कि मेरी बात सुन उनका चहेरा गुस्सा से तमतमा गया, मगर उनके सब्र का पैमाना अभी छलका नहीं था! दूसरी तरफ माँ मेरी बात सुनकर हक्की-बक्की थीं की मैं आखिर कह क्या रहा हूँ, परन्तु ये तो बस शुरुआत भर थी!

मैं: और संगीता भी मुझसे बहुत प्यार करती है!

ये सुन पिताजी और माँ का गुस्सा उबाले मार रहा था! एक शब्द 'और' की माँ-पिताजी के गुस्से का पैमाना छलक जाता, परन्तु मैं कहाँ सुनने वाला था? मुझे तो आज अपना सारा सच सुनाना था!

मैं: जब से मैंने संगीता को पहलीबार देखा था तभी से मेरे दिल में संगीता के लिए जज्बात जाग चुके थे! फिर हम जब पिछलीबार गाँव गए थे तब मैं और संगीता बहुत ज्यादा नजदीक आ गए!

अभी तक मेरा विश्वास पूरे जोर पर था, मगर आगे जो मैं कहने वाला था उसके लिए विश्वास नहीं 'जिगरा' चाहिए था!

मैं: हम दोनों इतना नजदीक आ गए थे की...

इतना कह मैं ने अपना जिगरा मजबूत किया और गर्व से बोला;

मैं: ..आयुष................आयुष मेरा बेटा है!

इतना सुन पिताजी का सब्र टूट गया और उन्होंने खींच कर मुझे थप्पड़ रसीद कर दिया!

पिताजी: होश में है तू?

पिताजी चीखते हुए बोले! पिताजी के एक थप्पड़ ने मेरे दिमाग के अंजर-पंजर हिला दिए थे मगर मैं आज ढीठ बना अपनी बात पूरी करने के लिए मन बना चूका था;

मैं: Please पिताजी, मेरी पूरी बात सुन लीजिये...

मैं आगे कुछ कहता उससे पहले ही पिताजी ने मेरी बात काट दी;

पिताजी: बात सुन लूँ? अब बचा क्या है सुनने को?

पिताजी गुर्राते हुए बोले और आँखों से अंगारे बरसाते हुए मुझे देखने लगे! फिर उनकी नजर माँ पर पड़ी जो मेरी बातें सुन कर सदमे में थीं;

पिताजी: देख लो अपने पुत्तर की करतूत! ये...

पिताजी माँ को दोष देते हुए बोले| लेकिन पिताजी माँ पर और बरसते उससे पहले ही मैंने अपने मन की बात एकदम से कह दी;

मैं: पिताजी, मैं संगीता से शादी करना चाहता हूँ!

पिताजी: मैं तेरी टाँगें तोड़ दूँगा जो तूने आगे बकवास की तो! जरा सा भी होश है तुझे या फिर आज फिर पी रखी है?

पिताजी को लग रहा था की मैं नशे में हूँ तभी तो ऐसी ऊल-जुलूल बातें कर रहा हूँ!

पिताजी: संगीता शादी-शुदा है और वो भी तेरे बड़े चचेरे भाई से, उसका (संगीता का) भरा-पूरा परिवार है और तू उन सबकी हँसती-खेलती जिंदगी में आग लगाने पर तुला है!

पिताजी की बात खत्म हुई तो मैंने बेख़ौफ़ अपने मन में दबे हुए संगीता के लिए प्यार को बाहर की ओर उड़ेल दिया;

मैं: तोड़ दो मेरी टांगें, चाहे तो जान ले लो मेरी मगर मैं संगीता के बिना नहीं जी सकता और वो भी मेरा बिना नहीं जी सकती! हम दोनों के प्यार की निशानी उसके कोख में है और मैं अपने बच्चे को खोना नहीं चाहता, मैं उसे अपना नाम देना चाहता हूँ!

मेरी बात सुन माँ और पिताजी दोनों अवाक रह गए! अपने भोले-भाले, सीधे-साधे बच्चे के मुँह से ये सुनने की उन्होंने कभी उम्मीद नहीं की थी और इसी बात का सदमा उन्हें बड़ी जोर से लगा था! माँ-पिताजी सदमे से मौन हुए तो मैंने पिताजी की कही बात का काट करना शुरू कर दिया;

मैं: और किस शादी की बात कर रहे हैं आप? संगीता ने चन्दर को कभी अपना पति माना ही नहीं! आप भी तो अच्छे से जानते हो न की चन्दर शादी के पहले कैसा था? संगीता से शादी होने से पहले ही उसने अपनी सबसे छोटी साली को नोच खाया था, इसीलिए संगीता उसे खुद को छूने तक नहीं देती है!

एक तो मैं पहले ही पिताजी से अपने इस नाजायज प्यार की गाथा का बखान बेख़ौफ़ कर रहा था ऊपर से इसी जोश में मैं पिताजी के सामने 'नोच खाया', 'छूने नहीं देती' जैसे शब्दों का प्रयोग कर बैठा, जो की उनकी दी गई शिक्षा की अपने से बड़ों से आदर से बात करने के खिलाफ था! तो ये सब सुन कर पिताजी को गुस्सा आना लाजमी था, उन्होंने तड़ाक से एक और थप्पड़ मेरे गाल पर रसीद कर दिया!

पिताजी: तू इतना बेशर्म हो गया की ऐसी गन्दी बातें अपने बाप के सामने करता है? यही शिक्षा दी थी मैंने तुझे?

पिताजी गुस्से से गरजते हुए बोले! ठीक तभी संगीता की रोती हुई आवाज मेरे पीछे से आई;

संगीता: नहीं पिताजी! ये (मैं) सच कह रहे हैं....

पिताजी और मेरे बीच जो बातें हो रहीं थीं उन्हें संगीता के साथ- साथ बच्चे भी सुन रहे थे| बच्चे बेचारे सहमे हुए कमरे में बैठे थे, परन्तु संगीता से ये सब सहना मुश्किल हो रहा था इसलिए वो बीच-बचाव करने के लिए आईं थीं| लेकिन वो कुछ कहतीं उससे पहले ही पिताजी ने उन्हें (संगीता को) चुप करा दिया;

पिताजी: तू बीच में मत पड़ बहु! ये लड़का (मैं) तुझे बरगला रहा है, ये पागल हो गया है!

पिताजी संगीता को डाँटते हुए बोले| ठीक उसी समय नेहा हिम्मत कर के कमरे से बाहर आई और डरी-सहमी से मुझे देखने लगी| उसकी आँखों में सवाल थे और मैं उन सवालों का जवाब इस समय नहीं दे सकता था, इधर पिताजी की नजर जैसे ही नेहा पर पड़ी वो मेरे मन की आधी बात समझ गए और चिल्लाते हुए नेहा की तरफ इशारा करते हुए बोले;

पिताजी: इन बच्चों के प्यार में बँध कर ये सब झूठ कह रहा है न तू? बच्चों के प्यार में इतना अँधा हूँ गया की अपने और बहु के रिश्तों की मर्यादाएँ भूल गया? जिसे तू बचपन से 'भौजी' कहता आया है उसी से शादी करने की गन्दी बात कह रहा है! छी-छी!!!

पिताजी की बात खत्म होते ही मैं बड़े तपाक से बोला;

मैं: पिताजी, आपने कभी गोर नहीं किया लेकिन मैंने संगीता को 'भौजी' कहना कब का छोड़ दिया|

मेरा यूँ तपाक से जवाब देना पिताजी को नहीं भाया और उन्होंने रख कर मुझे एक झापड़ रसीद किया! मैंने नेहा को इशारा करते हुए अंदर जाने को कहा तो वो रोती हुई अंदर चली गई!

पिताजी: चुप कर!

पिताजी चिल्लाते हुए बोले! अब तक मैं पिताजी से तीन झापड़ खा चूका था, मेरे बाएँ गाल पर पिताजी की पाँचों उँगलियाँ छप चुकीं थीं और होठों के किनारे से खून निकलने लगा था! मेरी ये हालत देख भौजी बिलख-बिलख कर रो रहीं थीं और आँखों ही आँखों में मुझसे चुप होने की विनती कर रहीं थीं, मगर मैं सुनने से रहा तो उन्होंने पिताजी से ही विनती करनी चाही;

संगीता: नहीं पिताजी.....

मैंने हाथ दिखा कर संगीता को चुप करा दिया और पिताजी से खुद विनती करने लगा;

मैं: मैं संगीता के बिना नहीं जी सकता, उससे और अपने बच्चों से अलग हो कर मैं तड़प-तड़प कर मर जाऊँगा!

ये कहते हुए मेरी आँखों से आँसूँ बह निकले जो पिताजी के दिल को पिघलाने लगे|

मैं: मैं ये बात यूँ ही आपसे नहीं कह रहा पिताजी, परन्तु मैंने इस बारे में बहुत सोचा| पिछले पाँच साल मैंने बहुत कोशिश की कि मैं सब कुछ भुला कर जी सकूँ, मगर मेरा दिल मुझे संगीता और बच्चों से दूर नहीं जीने देता! वो पाँच साल मैंने तन्हा हो कर काटे हैं, अकेले में रोते हुए काटे हैं! आप चाहो तो माँ से पूछ लो, मैं कैसा था संगीता और बच्चों के बिना? जब मैं स्कूल में था तो बुझा-बुझा रहता था, तब एक बार माँ ने कहा था की मैं संगीता को फ़ोन कर के बात कर लूँ मगर उस समय मैं उसे (संगीता को) भूलना चाहता था, इसलिए खुद को किसी तरह संभालने की कोशिश करने में लगा हुआ था! कई बार माँ ने मुझे दिलासा दिया, मेरा ध्यान इधर-उधर भटकाया ताकि मैं हँसूँ-खेलूँ पर मेरा जी नहीं करता था की मैं हँसूँ-बोलूँ| आपकी ख़ुशी के लिए मैंने आपके और माँ के सामने ख़ुशी का मुखौटा ओढ़ लिया लेकिन अंदर ही अंदर मैं कुढ़ता जा रहा था और इसी कारन उन्हीं दिनों में मैंने शराब पीना शुरू किया था क्योंकि मुझे लगता था की शराब पीने से मैं सब कुछ भुला दूँगा मगर मैं गलत था!

वहीं मेरे बिना संगीता का भी हाल बुरा था! वो मेरे बिना नहीं जी सकती थी फिर भी उसने मुझे अपनी कसम से बाँधकर खुद से दूर किया क्योंकि वो चाहती थी की मैं अपना ध्यान पढ़ाई में लगाऊँ| ये पाँच साल उसने (संगीता ने) उस जानवर से खुद को और हमारे बच्चों को बचाते हुए काटे| एक भी पल ऐसा नहीं गुजरा जब उसने मेरी जुदाई में आँसूँ न बहाया हो!

आज मैं यहाँ आपके सामने अपने प्यार का इकरार कर रहा हूँ, ये जानते हुए की आप कभी नहीं मानेंगे मगर फिर भी हिम्मत जुटा कर मैं बड़ी उम्मीद ले कर बैठा हूँ की आप मेरे दिल का हाल समझेंगे| आप जबरदस्ती मुझे किसी और के साथ बाँध देंगे तो न तो मैं उसे कोई प्यार दे पाउँगा और न ही उसके साथ नई शुरुआत कर पाउँगा क्योंकि पिताजी, अब मुझ में नई शुरुआत करने की जान नहीं बची! मेरे साथ-साथ उस लड़की की भी जिंदगी बर्बाद हो जायेगी!

मेरी बात सुन मेरे माता-पिता का हाल बुरा था, पिताजी बाहर से सख्त दिख रहे थे मगर मैं जानता था की उनके भीतर मौजूद पिता का दिल अपने बेटे को यूँ खून के आँसूँ बहाते देख टूट चूका है! दूसरी तरफ माँ बिलख-बिलख कर रो रहीं थीं, उन्हें रोता देख भौजी उन्हें सहारा देना चाहतीं थीं मगर माँ-पिताजी के गुस्से के डर से सर झुकाये खड़ीं थीं! मुझसे अपने माँ के आँसूँ नहीं देखे जा रहे थे इसलिए मैंने उन्हें समझाना चाहा;

मैं: माँ....माँ आप तो....

मैं आगे कुछ कहता उससे पहले ही माँ रोते हुए मुझे झिड़कने लगीं;

माँ: मत कह मुझे माँ....ये...तूने....तूने क्या किया?

माँ रोते हुए बोलीं क्योंकि उन्हें ये परिवार टूटता हुआ नजर आ रहा था|

मैं: माँ कम से कम आप तो अपने बेटे के दिल का हाल समझो? आप जानते हो करवाचौथ के अगले दिन जब संगीता आपकी गोदी में सर रख कर सो रही थी, वो दृश्य देख कर ही मुझे ये ख्याल आया की मैं संगीता और हमारे बच्चों को हमारे (मेरे, पिताजी तथा माँ के) परिवार का हिस्सा बना सकूँ! क्या आपको अपने बेटे की ख़ुशी नहीं चाहिए?

मैंने माँ से सवाल पुछा, परन्तु माँ ने मुझसे नजरें चुरा ली| इधर पिताजी पिघलने लगे थे, वो जान गए थे की वो मुझे अपने गुस्से से काबू नहीं कर सकते इसलिए उन्होंने दुनियादारी का बहाना मेरे सामने रख दिया ताकि मैं उनके सवालों में उलझ जाऊँ और हार मान लूँ;

पिताजी: बेटा, तू जो कह रहा है वो कभी नहीं हो सकता! हम जिस समाज में रहते हैं उसके नियम-क़ानून तेरी संगीता से शादी की इजाजत नहीं देते! क्या जवाब देंगे हम दुनिया को? तेरे इस कदम के बाद बिरादरी में हमारा हुक्का-पानी बंद हो जाएगा! फिर ये भी सोच की क्या संगीता के घर वाले मानेंगे? मेरे बड़े भाई यानी तेरे बड़के दादा, वो कभी इस शादी के लिए नहीं मानेंगे? तेरे इस कदम से सब खत्म हो जायेगा बेटा!!! सब खत्म हो जायेगा!

मुझे दुनियादारी से कोई सरोकार नहीं था, न ही मुझे बड़ेक दादा या किसी से कोई सरोकार था! मैं पिताजी के इन सभी सवालों के लिए तैयार था, सिवाए एक सवाल के; 'संगीता के घर वाले इस शादी के लिए मानेंगे?' इस एक सवाल की मैंने कोई तैयारी नहीं की थी, परन्तु पिताजी के सवालों का जवाब तो देना था वरना अगर मैं ढीला पड़ता तो पिताजी मुझे तथा मेरे प्यार को दुनियादारी के डर तले दबा देते;

मैं: आपकी और माँ की love marriage थी ना? आपके भाईसाहब ने उसे भी नहीं माना था, मगर धीरे-धीरे सब ठीक हो गया न?

मैंने पिताजी के सवाल का जवाब अपने सवाल से दे कर बचना चाहा|

पिताजी: बेटा वो अलग बात थी, ये अलग है? तुम दोनों एक सामजिक रिश्ते से बँधे हो और तुम दोनों की उम्र.....

पिताजी ने अपनी बात आधी छोड़ दी जो इस बात की सूचक थी की वो अब हार मानने लगे हैं| वहीं पिताजी के सवालों से छुपने का कोई फायदा नहीं था इसलिए मैंने उनके सवालों का जवाब बड़े ही भावुक अंदाज में दिया;

मैं: पिताजी, जब हमें (मुझे और संगीता को) प्यार हुआ तब हमें एक दूसरे की उम्र नहीं दिखी न ही वो रिश्ता दिखा जिसमें हम 'बाँधे गए थे'!

पिताजी के सवाल का जवाब दे मैंने उन्हें अपनी बात तर्क द्वारा समझाई;

मैं: रही बात दुनियादारी की तो, आपको दुनियादारी की इतना चिंता क्यों है? कल को आप मेरी शादी किसी अनजान लड़की से कर दोगे, जिसको मैं जानता-पहचानता नहीं! शादी के बाद वो क्या गुल खिलाएगी किसे पता? मुझे आप दोनों (माँ-पिताजी) से अलग करना चाहे तो? या मुझे उसे तलाक देना पड़े तो? दुनिया तो तब भी कुछ न कुछ कहेगी न?

दूसरी तरफ संगीता है, वो आपको और माँ को अपने माँ-पिताजी मानती है| आप उसे जानते-पहचानते हो, माँ तो संगीता को अपनी बेटी मानतीं हैं, संगीता पूरा घर संभालती है तथा आप दोनों (माँ-पिताजी) भी तो संगीता को बहु समान लाड-प्यार करते हो| आप नहीं जानते, परन्तु मुझे पता था की आप मेरी बात कभी नहीं मानेंगे इसलिए मैं संगीता और बच्चों को साथ ले कर आपका गुस्सा शांत होने तक घर छोड़ने को तैयार था मगर ये बात सुनते ही संगीता बोली की; "मैं अपनी जिंदगी जैसे-तैसे काट लूँगी, मगर आप (मैं) माँ-पिताजी से अलग न होइये!" मैं आपसे (अपने माँ-पिताजी से) अलग न हूँ, उसके लिए संगीता हमारा (मेरा और संगीता का) प्यार कुर्बान करने को तैयार थी! ये सब जानकर आपको अभी भी लगता है की संगीता मेरी पत्नी बनने के योग्य नहीं है?

मेरे घर छोड़ने की बात ने माँ-पिताजी को झिंझोड़ कर रख दिया था, उनका दिल दर्द से कराह उठा था! इधर मैंने अपनी बात जारी रखी;

मैं: पिताजी, आप बस मेरे एक सवाल का जवाब दीजिये; क्या आपको अपने बेटे की ख़ुशी नहीं प्यारी? आपको (पिताजी को) इस दुनियादारी की क्यों पड़ी है?

मेरे सवाल ने पिताजी को तोड़ दिया था तथा अपने बेटे को खोने के डर से उनकी आँखों से आँसूँ बह निकले थे!

पिताजी: पर ..पर ये सब होगा कैसे? क्या तू गाँव में सब को बिना बताये संगीता से शादी करेगा?

पिताजी ने अपने आँसूँ पोछते हुए सवाल पुछा| ये सवाल कम बल्कि पिताजी का मेरी जिद्द के प्रति झुकना ज्यादा था!

मैं: बिलकुल नहीं पिताजी, मैं कोई पाप नहीं कर रहा जो सब से छुपाऊँ! अगले हफ्ते संगीता के पिताजी आ रहे हैं और मैं उन्हें हमारी (मेरी और संगीता की) शादी के लिए मनाऊँगा| उसके बाद मैं बड़के दादा से बात करूँगा और उन्हें भी इस शादी के लिए राज़ी करूँगा| लेकिन उस सब से पहले मुझे आपका और माँ का फैसला जानना है!

मेरे इस साधारण से plan को सुन पिताजी ने मुझ पर विश्वास कर लिया, इधर मैं अपनी आँखों में उमीदें बाँधे पिताजी को देखने लगा|

पिताजी ने अपना फैसला सुनाने के लिए कुछ पलों का समय लिया और ये समय मेरे लिए पहाड़ काटने के समान था| मन में जितनी भी नकारात्मक सोच थी वो मुझे डराए जा रही थी की पिताजी 'न' कहेंगे! मेरा मन अंदर से इतना कमजोर था की मैं पिताजी की न सुनने लायक नहीं था, इसलिए मैंने ख़ुदकुशी करने के उपाए सोचने शुरू कर दिए! रेल के आगे कूदने से ले कर जहर खाने की सारी planning मैंने उन कुछ क्षणों में कर ली थी!

वहीं पिताजी ने कुछ सोचते हुए माँ की ओर देखा, मैं भी पिताजी की नजरों का पीछा करते हुए माँ को देखने लगा| माँ के आँसूँ थम चुके थे तथा वो अपनी साडी के पल्लू से अपने आँसूँ पोंछ रहीं थीं| कुछ पलों के लिए माँ-पिताजी की आँखें मिलीं और उन्होंने आँखों ही आँखों में कुछ बात की जिसका पता मुझे या संगीता को नहीं चला| मिनट भर की शान्ति के बाद माँ ने अपने पास पड़ी कुर्सी अपने नजदीक खींची और संगीता को अपने पास उस कुर्सी पर बैठने के लिए बोलीं;

माँ: बहु...इधर आ और मेरे पास बैठ|

संगीता सर झुकाये हुए, डरी-सहमी सी उस कुर्सी पर बैठ गई| देखते ही देखते माँ ने संगीता को अपने गले लगा लिया, माँ के गले लगते ही संगीता फूट-फूटकर रोने लगी!

संगीता को माँ के गले लगे देख मैं ये तो समझ गया की माँ मान गईं हैं, मगर पिताजी का निर्णय क्या होगा? पिताजी ने मेरे दाएं हाथ पर अपना हाथ रखा और रुनवासी आवाज में बोले;

पिताजी: बेटा....हमारे लिए बस तू ही एक जीने का सहारा है! अगर तू ही हम से दूर हो गया तो हम कैसे जिन्दा रहेंगे? माँ-बाप अपने बच्चों की ख़ुशी के लिए क्या नहीं करते, इसलिए हमें संगीता तेरी जीवन संगिनी के रूप में मंजूर है!

पिताजी भावुक होते हुए बोले| उनकी हाँ सुनते ही मेरी खुशियों का ठिकाना नहीं रहा!

मैं फ़ौरन उठ खड़ा हुआ और पिताजी के गले लग गया और थोड़ा रुनवासा होते हुए बोला;

मैं: पिताजी, मैं बता नहीं सकता...आपने मुझे आज वो ख़ुशी दी है....वो ख़ुशी जिसके लिए मैं आजतक तरस रहा था! Thank you पिताजी!

मेरी आवाज सुन पिताजी बहुत भावुक हो गए और उनकी आँखें छलक आईं| मैंने पिताजी के पाँव छुए और उन्होंने ख़ुशी-ख़ुशी मेरे सर पर हाथ फेरा| फिर मैं माँ के पास पहुँचा, माँ ने अपनी साडी के पल्लू से मेरे होठों के किनारे बह रहे खून को पोंछा और सीधा अपने सीने से लगा कर रो पड़ीं|

मैं: माँ...मुझे माफ़ कर दो....मैंने आपका दिल दुखाया!

मैं भरे गले से बोला| माँ ने मेरे सर पर हाथ फेरा और मेरे मस्तक को चूमते हुए मुस्कुराने लगीं| मैंने उनके पाँव छुए और उन्होंने भी पिताजी की तरह ख़ुशी-ख़ुशी मुझे आशीर्वाद दिया|

पूरे घर का माहौल भावुक हो गया था इसलिए पिताजी घर का माहौल हल्का करते हुए संगीता से बोले;

पिताजी: बेटी आज ख़ुशी के मौके पर हलवा बना!

पिताजी ने संगीता को बहु की जगह बेटी कहा तो मेरे भीतर थोड़ी सी जिज्ञासा जगी;

मैं: बेटी?

मैंने आँखें बड़ी करते हुए पिताजी से पुछा तो वो मुस्कुराते हुए बोले;

पिताजी: और नहीं तो क्या! तुम दोनों की शादी से पहले संगीता को थोड़े ही बहु कहेंगे?

पिताजी मुस्कुराते हुए बोले और ये सुन मेरे तथा संगीता के गाल लाल हो गए!

संगीता हलवा बनाने घुसी और मैं दोनों बच्चों को देखने के लिए अपने कमरे में पहुँचा| अपने कमरे में पहुँच कर मैंने देखा दोनों बच्चे डरे-सहमे से बैठे हैं, दरअसल बाहर बैठक में जो पिताजी मुझ पर दहाड़ रहे थे और मुझ पर हाथ उठा रहे थे उसी डर के कारण दोनों बच्चे घबराये हुए थे! आयुष भले ही कुछ न समझा हो मगर नेहा सब समझ चुकी थी और उसके मन में ढेरों सवाल थे जिन्हें पूछने से वो झिझक रही थी| जैसे ही दोनों बच्चों ने मुझे देखा वैसे ही दोनों मेरी गोदी में आने के लिए मचलने लगे! मैंने दोनों बच्चों को बाहों में भरा तो दोनों ने रोना शुरु कर दिया, दोनों का रोना सुन माँ-पिताजी मेरे कमरे के भीतर आये और एक पिता-पुत्र-पुत्री को गले लगे हुए ख़ामोशी से देखने लगे| मैंने दोनों बच्चों को प्यार से पुचकारा और बोला;

मैं: बस मेरे बच्चों! अब रोना नहीं है, सब ठीक हो गया है!

मैंने आयुष और नेहा के सरों को चूमना शुरु कर दिया, साथ ही उनकी पीठ सहलाते हुए उन्हें शांत कराने लगा| नेहा का रोना जल्दी रुक गया और उसने अपने आँसूँ पोछते हुए अपने दादा जी को देखा, नेहा मेरी गोदी से उतरी तथा अपने दादाजी के पास पहुँची| पिताजी ने एकदम से नेहा को गोदी में उठा लिया और उसके माथे को चूमते हुए बोले;

पिताजी: बिटिया रोते नहीं हैं!

नेहा थोड़ा सा मुस्कुराई और पिताजी के गाल को चूमते हुए बोली;

नेहा: I love you दादाजी!

नेहा ने ये शब्द अपने दादाजी को धन्यवाद स्वरुप कहे थे| धन्यवाद इसलिए की उन्होंने नेहा को मुझसे दूर नहीं किया, धन्यवाद इसलिए की आखिरकर वो इस परिवार का हिस्सा बन जाएगी, धन्यवाद इसलिए की उसे अब अपने दादा-दादी का प्यार मिलेगा!

पिताजी: आय (I) लभ (love) यु (you) मेरी प्यारी बिटिया!

पिताजी अपनी टूटी-फूटी भाषा में नेहा के गाल को चूमते हुए बोले|

इधर आयुष जो अभी तक अपने दादाजी का गुस्सा देख कर घबराया हुआ था, उन्हें (पिताजी को) मुस्कुराते देख उसका डर कम होने लगा था| वो मेरी गोद से उतरा और अपने दादाजी के पास पहुँच खुद को गोदी लेने का इशारा किया| पिताजी ने नेहा को गोदी से उतारा तो वो जा कर अपनी दादीजी की टाँगों से लिपट गई| माँ ने उसके सर पर हाथ फेरा और अपनी कमर पकड़ते हुए बोलीं;

माँ: बिटिया मेरे से तुझे गोदी नहीं लिया जायेगा! तू ऐसा कर मुझे अपनी प्यारी-प्यारी पप्पी दे दे!

माँ थोड़ा नीचे झुकीं तो नेहा ने माँ के दोनों गालों पर अपनी मीठी-मीठी पप्पी दी और बोली;

नेहा: दादीजी मैं आपकी कमर की मालिश कर देती हूँ!

इतना कह वो माँ का हाथ पकड़ कर उनके कमरे में चली गई|

वहीं पिताजी ने आयुष को गोदी में उठाया तो आयुष ने अपनी दीदी की देखा-देखि अपने दादाजी (पिताजी) से कहा;

आयुष: I love you दादाजी!

इतना कह आयुष ने पिताजी के गाल पर पप्पी की| बदले में पिताजी ने भी आयुष की ढेर सारी पप्पी ली और अपनी टूटी-फूटी भाषा में बोले;

पिताजी: आय (I) लभ (love) यु (you) मेरे पुत्तर!

ये कहते हुए, आयुष को गोद में लिए हुए पिताजी बाहर बैठक में आ गए|

माँ-पिताजी, बच्चे, संगीता सब बाहर बैठक में थे और मैं अकेला कमरे में था| एक गहरी साँस लेते हुए मैं बैठ गया और मन ही मन भगवान को आज के दिन के लिए धन्यवाद देने लगा| मुझे जो चाहिए था मुझे वो आज मिल चूका था और उसके लिए मैं भगवान का थे दिल से शुक्र गुजार था! इतने में संगीता कटोरी में हलवा लिए आ गई और मुझे यूँ खामोश बैठे देख वो थोड़ी चिंतित हो उठी! कटोरी टेबल पर रख संगीता ने मेरा हाथ पकड़ मुझे खड़ा होने को कहा| संगीता के स्पर्श से मैं अपने मन के विचारों से बाहर आया और खड़ा हो कर संगीता से एकदम से लिपट गया! मेरे सीने से लग कर संगीता भाव-विभोर हो उठी और सिसकने लगी;

मैं: जान! अब सब ठीक हो जायेगा!

मैंने संगीता के सर को चूमते हुए कहा| संगीता से कुछ भी बोल पाना मुश्किल हो रहा था इसलिए उन्होंने मुझे अपनी बाहों की पकड़ कठोर कर दी|

हमारा ये मधुर मिलन आगे बढ़ता उससे पहले ही बाहर से माँ की आवाज आ गई, जिसे सुन हम दोनों सकपका कर अलग हो गए! हम दोनों बारी-बारी बाहर आये तो माँ संगीता को याद कराते हुए बोलीं;

माँ: बेटी, आज भाई-दूज है! ज़रा पूजा की थाली ला, नेहा ने आयुष को तिलक करना है!

अपनी दादी जी की बात सुन नेहा मुँह-हाथ धोने भागी, भौजी पूजा की थाली सजाने लगीं और मैं माँ-पिताजी के पास बैठक में बैठ कर हलवा खाने लगा|

नेहा कपडे बदलकर तैयार हो कर आई और अपनी मम्मी से थाली ले कर आयुष को तिलक किया तथा लड्डू खिलाया| आयुष ने झुक कर अपनी दीदी के पाँव छुए और नेहा ने उसे अपने गले लगा लिया| दोनों भाई-बहन का मधुर मिलाप देख कर सभी खुश थे, ख़ास कर जब आयुष ने अपनी दीदी के पाँव छुए उसकी तो किसी ने कल्पना भी नहीं की थी! इस मिलाप के बाद दोनों बच्चे आ कर मेरी गोदी में चढ़ गए और मिठाई खाने लगे|

दोपहर को खाना खा कर मैंने दोनों बच्चों को सुला दिया, माँ-पिताजी बैठक में बैठे टी.वी. देख रहे थे तथा संगीता dining table पर बैठीं कुछ सिल रही थी| अब मन तो मेरा संगीता के पास बैठने का था परन्तु माँ-पिताजी के सामने मुझे संगीता के पास बैठने में थोड़ी झिझक हो रही थी, इसलिए मैं उठ कर माँ-पिताजी के पास बैठक में बैठ गया| कुछ पल बीते और फिर माँ ने मुझे प्यार से इशारा कर अपने तथा पिताजी के बीच सोफे पर बैठने को कहा| मैं उठ कर वहाँ बैठा तो माँ ने मेरा बायाँ हाथ अपने हाथ में लिया और बोलीं;

माँ: बेटा एक बात बता, तू क्या सच में हमें (उन्हें तथा पिताजी को) छोड़ कर चला जाता?

माँ का सवाल सुन मेरी आँखों में आँसूँ आ गए और मैं 'न' में गर्दन हिलाते हुए बोला;

मैं: कभी नहीं माँ! कल रात मैंने फैसला कर लिया था की अगर आप और पिताजी मेरी संगीता से शादी के लिए नहीं माने तो मैं ये घर नहीं छोड़ूँगा! फिर आज सुबह संगीता ने मुझे अपनी कसम से बाँध दिया की अगर मैं घर छोड़ने की बात कही तो मैं उसका (संगीता का) मरा मुँह देखूँगा! मुझ में आप दोनों (मेरे माँ-पिताजी) को और संगीता तथा बच्चों को खोने की हिम्मत नहीं बची थी, इसलिए सुबह मैंने हार मान ली थी और ये फैसला कर लिया था की आपकी (माँ-पिताजी की) न के बाद मैं खुद को ही खत्म कर लूँगा!

मेरी बातें सुन माँ-पिताजी की आँखें भर आईं थीं| एक तरफ उन्हें संगीता के मुझे घर छोड़ने से रोकने पर गर्व हो रहा था तो दूसरी तरफ मेरे आत्महत्या के फैसले को जानकार गहरा सदमा लगा था!

पिताजी: बेटा.अगर तुझे कुछ हो जाता....तो हमारा क्या होता? बूढ़े बाप के कँधे पर जवान बेटे की अर्थी का बोझ सँभालने की ताक़त नहीं है मुझ में!

पिताजी मेरी पीठ पर हाथ रखते हुए मुझे समझाते हुए बोले|

माँ: बेटा भगवान के लिए दुबारा ऐसा कुछ मत सोचियो, वरना मैं भी तेरे साथ ही मर जाऊँगी!

माँ की बात सुन मैं उनसे लिपट गया और उनसे वादा कर बैठा;

मैं: ऐसा मत कहो माँ! मैं वादा करता हूँ की आज के बाद मेरे मन में ऐसा कोई ख्याल नहीं आएगा!

माँ को मेरी बात पर ऐतबार हुआ और वो मेरे सर पर हाथ फेरने लगीं| उधर संगीता ये सब सुन सिसक रही थी तो माँ ने उन्हें हुक्म देते हुए कहा;

माँ: बेटी छोड़ अपनी सिलाई-कढ़ाई और बैठ मेरे पास!

संगीता फ़ौरन माँ के बगल वाली कुर्सी पर बैठ गई और माँ ने संगीता को भी अपने गले लगा लिया तथा प्यार से पुचकारते हुए चुप कराया|

आधा घंटा बीता होगा की नेहा रोती हुई उठी और दौड़ती हुई मेरे पास आई, दरअसल नेहा ने फिर कोई बुरा सपना देखा था जिस कारण वो रो रही थी! मैंने फ़ौरन नेहा को गोदी में उठाया और उसे पुचकारते हुए घर-भर में चलने लगा| पिताजी को अस्चर्य हुआ की नेहा क्यों रो रही है इसलिए उन्होंने नेहा के रोने का करण जानना चाहा;

मैं: कोई बुरा सपना देखा होगा पिताजी|

मैंने बात को हलके में लेते हुए कहा और नेहा को गोदी में उठाये हुए लाड करने लगा| जब नेहा का रोना बंद हुआ तो उसने मुझे मेरे कमरे की तरफ चलने का इशारा किया| मैं नेहा को ले कर कमरे में आया, आयुष अभी चैन से सो रहा था इसलिए नेहा अपने मन के सवाल आराम से पूछ सकती थी| मैंने नेहा को पलंग पर खड़ा किया और उसके आँसूँ पोछे| अब समय आ गया था की सुबह से जो सवाल नेहा के मन में उमड़ रहे थे उन्हें मुझसे पूछने का;

नेहा: पापा जी, क्या मैं आपसे दूर हो जाऊँगी?

नेहा के इस सवाल ने मुझे झिंझोड़ दिया था इसलिए मैंने एकदम से नेहा को अपने सीने से लगा चिपका लिया और बोला;

मैं: बेटा मैंने आपको कहा था न की आपको मुझसे कोई दूर नहीं कर सकता!

ये सुनकर नेहा के मन को चैन मिला और उसने मुझे अपनी बाहों में कसना शुरू कर दिया| एक पल के लिए वो शाँत रहीं, फिर कुछ सोचते हुए बोली;

नेहा: फिर सुबह दादाजी आपको डाँट क्यों रहे थे? और...आप मम्मी से शादी करना चाहते हो? और...और...मेरा छोटा भाई या छोटी बहन आने वाली है?

नेहा ने एक-एक कर अपने सवाल पूछे और उसके सवाल सुन मैंने उसे सब सच बताने का निर्णय लिया| मैंने नेहा के दोनों कंधे पकड़े और उसे सच से रूबरू कराने लगा;

मैं: बेटा चन्दर ने यहाँ काम करते हुए बेईमानी की थी और डर के मारे गाँव भाग गया| आपके बड़े दादाजी (बड़के दादा) को जब ये पता चला तो उन्होंने आपको, आयुष को और आपकी मम्मी को गाँव बुलाया| लेकिन आपके दादाजी (मेरे पिताजी) ने उन्हें (बड़के दादा को) समझाया की इस तरह से बीच साल में बच्चों को गाँव भेजने से आप दोनों (आयुष और नेहा) का साल खराब हो जायेगा| आपके बड़े दादाजी मान गए और हमें (मुझे, संगीता और बच्चों को) अगले साल मार्च तक का समय दिया, मार्च में आपको और आपकी मम्मी को गाँव जाना पड़ता| लेकिन मैं आप तीनों (नेहा, आयुष और संगीता) को खुद से दूर नहीं जाने दे सकता था, इसलिए मैंने आपकी मम्मी (संगीता ) से शादी करने का फैसला किया| जब मैंने ये बात आपके दादाजी को बताई तो उन्हें बहुत गुस्सा आया और उन्होंने मुझे डाँटा, लेकिन मैंने उन्हें (पिताजी को) सारी बात समझा दी और वो मेरी और आपकी मम्मी की शादी के लिए मान गए!

सारी बात सुन नेहा के चेहरे पर मुस्कान आ गई, परन्तु अभी भी उसके एक सवाल का जवाब देना रह गया था;

नेहा: और मेरा छोटा भाई या छोटी बहन? वो कब आएंगे?

नेहा खुश होते हुए पूछने लगी| मैंने दोनों हाथों से नेहा का चेहरा थामा और मुस्कुरा कर बोला;

मैं: हाँ जी बेटा, बहुत जल्दी आपका सबसे छोटा भाई या बहन आएंगे!

ये सुन नेहा ख़ुशी से चहकने लगी|

में: लेकिन बेटा अभी इसके बारे में किसी को बताना नहीं!

नेहा को थोड़ी हैरानी हुई मगर उसने कोई सवाल नहीं पुछा और ख़ुशी से मेरे गले लग गई! मेरी बेटी सिर्फ वही सवाल पूछती थी जो जर्रूरी होते थे, ऐसे सवाल जो मैं उसे समझा न सकूँ उन्हें वो कभी नहीं पूछती थी!

वो दिन प्यार भरा बीता, बच्चों ने अपनी हँसी-ठिठोली से सब को खुश रखा था| मुझे और संगीता को बात करने का मौका ही नहीं मिला! हम तो बस एक दूसरे खुश देख कर ही संतोष कर लेते थे!

संगीता के पिताजी को अगले हफ्ते आना था और मुझे तबतक हमारी शादी के लिए कानूनी रूप से सलाह चाहिए थी जिसके लिए सतीश जी से उपयुक्त कोई नहीं था| मैं अगले दिन ही समय ले कर उनसे मिलने उनके घर पहुँच गया, पिताजी कहते थे की वकील और डॉक्टर से कभी कोई बात नहीं छुपानी चाहिए इसलिए मैंने सतीश जी को सारी बात बता दी| मेरी सारी बात सुन सतीश जी बोले;

सतीश जी: सबसे पहले तो तुम्हें संगीता के divorce के लिए case file करना होगा, उसके बाद ही तुम दोनों शादी कर सकते हो| लेकिन ये इतना आसान काम नहीं है, फिल्मों की तरह आज application और कल शादी नहीं हो सकती! Court में case चलेगा और इस दौरान तुम्हारे नाम से बहुत छीछालेदर होगा, कम से कम डेढ़ साल लगेगा और फिर भी कोई guarantee नहीं की divorce मिलेगा ही!

ये सुन कर मैं बहुत निराश हो गया, क्योंकि मैं चाहता था की संगीता के माँ बनने से पहले ही उनका तलाक हो जाए और हमारी शादी हो जाए ताकि मैं अपने तीनों को कानूनी तौर पर अपना नाम दे सकूँ! मेरी निराशा देख सतीश जी बोले;

सतीश: एक रास्ता है: 'Divorce through registration!' इसके चलते तुम दोनों शादी कर सकरते हो मगर जो aggrieved party है यानी की चन्दर वो कल को तुम पर case कर सकता है क्योंकि ये रास्ता अभी तक court द्वारा मान्य नहीं है!

ये सुन मैं दुविधा में पड़ गया, क्या मैं डेढ़ साल तक इंतजार करूँ या फिर ये छोटा रास्ता ले लूँ? Divorce through registration वाला रास्ता मुझे आसान लग रहा था तो मैंने इसी के विषय में पुछा की क्या होगा अगर सबसे बुरे हालात पैदा हुए तो;

मैं: अगर मान लीजिये हम (मैं और संगीता) Divorce through registration के जरिये शादी कर लें और फिर चन्दर हम पर case कर दे तो क्या आप सब संभाल सकते हैं?

सतीश जी: सच कहूँ तो चन्दर के पास case करने का कोई तथ्य नहीं है, वो लालची है तो तुमसे पैसे ऐठने के लिए ही परेशान करेगा! अब उसे पैसे देना न देना तुम्हारे ऊपर है!

चन्दर को बिना मतलब के पैसे देना मुझे चुभ रहा था इसलिए मैंने सोचा की क्यों न मैं भी उसे blackmail करूँ;

मैं: अगर चन्दर पैसे माँगे तो क्या हम संगीता की तरफ से चन्दर पर 'Domestic violence' का case नहीं कर सकते?

ये सुन सतीश जी मुझे आगाह करने लगे;

सतीश जी: वो बहुत बड़ा पचड़ा है, तुम उसमें न ही पड़ो तो बेहतर है!

सतीश जी की बात सुन मैं अपना सर पकड़ कर बैठ गया क्योंकि मेरे पास अब कोई रास्ता नहीं था जिससे मैं इस शादी को जायज ठहरा सकूँ! ये शादी हमेशा ही खतरे की तलवार बनकर मेरे सर पर लटकती रहती, पता नहीं कब कौन चन्दर के कान भर दे और वो मुझ पर case कर दे| मुझे अपने ऊपर case किये जाने का डर नहीं था, तकलीफ बस इस बात की थी की मेरे माता-पिताजी का नाम खराब होता, जो मैं कतई नहीं चाहता था!

मुझे यूँ चिंतित देख सतीश जी मुझे उम्मीद की किरण दिखाते हुए बोले;

सतीश जी: देखो मानु, चूँकि तुम 'अपने' हो तो मेरे पास एक रास्ता है, लेकिन थोड़ा टेढ़ा है लेकिन जो भी कुछ होगा वो सब मैं सँभाल लूँगा! हाँ और थोड़ा बहुत खर्चा भी होगा?!

सतीश जी की इतनी कही बात मेरे लिए ऐसी थी जैसे भूसे के ढेर में सुई मिलना, मैं फ़ौरन खुश होते हुए बोला;

मैं: जी बताइये?

सतीश: मैं संगीता की तरफ से divorce papers तैयार कर देता हूँ, संगीता तो sign कर ही देगी अब रही चन्दर की बात तो तुम उसे कैसे भी डरा-धमका कर इन papers पर sign करवा लो| इधर मैं ये divorce का case file करूँगा और उधर तुम दोनों (मैं और संगीता) शादी कर लो, तुम्हारा जो marriage certificate होगा उसका जुगाड़ मैं बिठा दूँगा! Divorce का केस आराम से चलने दो, चन्दर ने वकील किया तो भी और नहीं किया तो भी मैं एक तिगड़म बिठा कर उसकी तरफ से वकील खड़ा करवा दूँगा, जो सिर्फ चन्दर के नाम से लड़ेगा लेकिन सुनेगा सिर्फ मेरी! बस दो बातों का ध्यान रखना, पहली की तुम्हारी शादी की बात दबी रहनी चाहिए वरना हो सकता है की court तुम्हें चन्दर को aggrieved party समझ reimburse करने का order दे सकती है और दूसरी बात ये की 1-2 बार संगीता की हाजरी court में लगवानी पड़ेगी!

सतीश जी के तिगड़म वाली बात मेरे गले नहीं उतर रही थी और साथ ही वो जो मेरी और संगीता की शादी वाली बात दबाने की कह रहे थे वो मुझे कुछ अजीब लग रही थी!

मैं: सतीश जी, हमारी (मेरी और संगीता की) शादी की बात दबी कैसे रह सकती है और आप चन्दर की तरफ से वकील कैसे खड़ा कर देंगे?

मेरे सवाल सुन सतीश जी मुस्कुराये और बोले;

सतीश: यही तो पैसा खर्च होगा! तुम शायद जानते नहीं, मैं supreme court का वकील हूँ और यहाँ मेरा इतना रसूख है की मेरी बात को कोई काट नहीं सकता! तुम्हारा case family court में जायेगा और वहाँ मेरी बहुत जान-पहचान है| रही बात चन्दर के वकील की तो उसकी भी तुम चिंता मत करो, मैं Delhi Bar Council का secretary रह चूका हूँ और इस बार के Bar Council के Chairman मेरे जान-पहचान के हैं! चन्दर ने अगर कोई वकील किया भी तो उसकी कोई मजाल नहीं जो मेरे सामने चूँ कर दे, वो वही करेगा जो मैं कहूँगा!

सतीश जी बड़े ताव से बोले, उनकी बातें सुन कर मुझे उनपर विश्वास हो गया था, अब बस एक ही सवाल था;

मैं: सर बस एक सवाल और, मेरे Marriage Certificate का क्या होगा? दरअसल मैं चाहता था की शादी के बाद जो marriage certificate बनता उसे दिखा कर मैं बच्चों के school में उनके पिता के नाम की जगह अपना नाम लिखवा सकूँ! लेकिन मेरी शादी के बाद जो marriage certificate बनेगा और संगीता के divorce के बाद को marriage certificate बनेगा उसमें तारिख का अंत होगा, जिसे मैं school authorities के सामने justify कैसे करूँगा?

सतीश जी: यार उसकी कोई दिक़्क़त नहीं, तुम जो दिन बोलोगे उस दिन मेरे साथ मुख़र्जी नगर चलना, वहीं मंदिर में तुम्हारी शादी करवा कर तुम्हें marriage registrar के ले चलूँगा! Marriage certificate में जो तुम दोनों की असली शादी और divorce के बाद की तारिख का अंतर् होगा उसे भी मैं जुगाड़ लगा कर सुलझा दूँगा! जब Divorce के बाद जब marriage certificate मिले तब तुम मेरी बात बच्चों के school की principal से करवा देना, वो मेरी बात कभी नहीं टालेंगी! अब बोलो है कोई और कोई सवाल?

सतीश जी मुस्कुराते हुए बोले| अब मेरे मन में नेश मात्र भी शक नहीं था तो मैंने फ़ौरन न में गर्दन हिलाई और मुस्कुराते हुये उन्हें धन्यवाद देने लगा;

मैं: Thank you so much सर!

मैंने हाथ जोड़ कर कहा तो सतीश जी मुस्कुराते हुए बोले;

सतीश: अरे यार thank you काहे का? दो प्यार करने वालों को मिलाना तो पुण्य का काम होता है!

सतीश जी खुश होते हुए मुस्कुरा कर बोले| उनका मुस्कुराता हुआ चेहरा देख मुझे यक़ीन हो गया की उन्हें सच में दो प्यार करने वालों को मिलाने की ख़ुशी हो रही थी!

सतीश जी के घर से ख़ुशी-ख़ुशी मैं घर लौटने लगा, मेरी आँखें ख़ुशी के मारे चमक रहीं थीं और दिल अनेकों कल्पनाएँ करने में लगा हुआ था| मैंने दिषु को फ़ोन कर के सारी बात बताई तो वो भी ख़ुशी से फूला नहीं समाया और सीधा party की माँग करने लगा| मैंने उसे समझाया की एक बार सब सुलझ जाए तो उसकी party पक्की, तब जा कर वो माना| घर पहुँच कर मैंने माँ-पिताजी को सारी बात बताई तो वो बहुत खुश हुए और इसी ख़ुशी में वे जशन के मुद्दे पर बात करने लगे! माँ-पिताजी की इच्छा थी की शादी धूम-धाम से हो, आखिर उनके एकलौते लड़के की शादी जो थी और इधर मैं शादी मंदिर में करने के चक्कर में था क्योंकि मैं जानता था की हमारी (संगीता और मेरी) शादी को ले कर मोहल्ले वाले तरह-तरह की बातें करेंगे जो माँ-पिताजी के लिए सहना मुश्किल होता! लेकिन माँ-पिताजी को जमाने की कोई परवाह नहीं थी, उन्हें बस अपने बेटे की ख़ुशी चाहिए थी इसलिए वो किसी भी खर्चे से चूकने वाले नहीं थे! जब मैंने उनके धूम-धाम से शादी के लिए ऐतराज जताये तो उन्हें मेरा ऐतराज करना जायज नहीं लगा और वो मुझसे कारन जानने के इच्छुक हो गए, अब मैं उन्हें ये सब कैसे कहता की मेरे ऐतराज करने का कारन है की मोहल्ले वाले आपको ताने न मारें, क्योंकि मेरा ये कहना मेरी अभी तक माँ-पिताजी को इस शादी के लिए राज़ी करवाने की मेहनत पर पानी फेर देता!

मैं: पिताजी court case में खर्चा होगा, इसलिए मैं सोच रहा था की शादी सादे ढँग से हो!

मैंने court के खर्चे का बहना किया तो माँ-पिताजी खामोश हो गए, अब मैं उनकी अपने बेटे की शादी धूम-धाम से करने की ख़ुशी नहीं छीनना चाहता था इसलिए उनका मन रखने के लिए मैंने कहा;

मैं: पिताजी ऐसा करते हैं की एक बढ़िया सा reception रख लेते हैं!

मैंने खुश होने का नाटक करते हुए कहा तो पिताजी और माँ भी खुश हो गए|

पिताजी: ठीक है तो इसकी तैयारी मैं करूँगा, तू काम-धाम सँभाल!

पिताजी ने बड़े हक़ से मुझे reception plan करने के काम से दूर कर दिया|

वहीं दूसरी तरफ माँ ने संगीता को अपने साथ कपडे खरीदने के लिए व्यस्त कर लिया, संगीता भी बड़े चाव से माँ को online कपडे दिखा रही थी| जब शादी का जोड़ा खरीदने की बात आई तो माँ ने संगीता से पुछा की वो क्या पहनना चाहेंगी तो संगीता की गर्दन मेरी ओर घूम गई! संगीता को यूँ मुझे देखते हुए देख माँ हँस पड़ीं ओर मेरी टाँग खींचते हुए बोलीं;

माँ: हाँ तो बोल लाड साहब, क्या पहने मेरी बहु?

माँ का सवाल सुन मैं हक़्क़ा-बक्का रह गया, यहाँ मैंने अभी तक नहीं सोचा था की मैं क्या पहनूँगा तो मैं कैसे बताऊँ की संगीता क्या पहने?

मैं: अभी मैंने अपना नहीं सोचा तो मैं इनके कपड़ों का क्या कहूँ?

मैंने माँ से नजरें चुराते हुए पल्ला झाड़ा तो माँ मुझे झिड़कते हुए बोलीं;

माँ: एक तो बहु तुझसे पूछ रही है, ऊपर से तेरे नखरे हैं!

फिर माँ ने संगीता की ठुड्डी ऊपर उठाई ओर बड़े गर्व से बोलीं;

माँ: इसे (मुझे) छोड़, तू ये बता की तुझे क्या पसंद है?

पिताजी घर पर थे नहीं इसलिए माँ का सवाल सुन संगीता में हिम्मत आ गई और वो शर्माते हुए बोली;

संगीता: माँ दिवाली वाले दिन मैंने नेहा को लहँगा-चोली पहने देखा था, तो मैं भी वैसा ही लहँगा-चोली पहनू?

संगीता ने अपनी इच्छा जाहिर की परन्तु माँ की मर्जी के बिना वो लहँगा-चोली नहीं पहनती| इधर लहँगा-चोली का नाम सुन मेरी आँखों के आगे संगीता की तस्वीर लहँगा-चोली पहने हुए आ गई और मेरे होठों पर प्यार तथा शैतानी भरी मुस्कान आ गई! माँ ने मेरी मुस्कान देखि तो वो फ़ट से बोलीं;

माँ: ठीक है बहु, तू कल मेरे साथ चल मैं तुझे अच्छा सा लहँगा-चोली सिलवा कर दूँगी!

माँ की बात सुन संगीता खुश हो गई ओर माँ के सीने से लग कर मुझे माँ की चोरी से जीभ चिढ़ाने लगीं!

खैर वो पूरा हफ्ता मेरे घर में शादी की तैयारियों की बातों से भरा हुआ था, माँ-पिताजी ने मुझे तथा संगीता को खास कर इन बातों से दूर रखा गया था! नेहा अपने पापा की शादी के बारे में सब जानती थी परन्तु आयुष इन सब बातों से अनजान था, न तो उसे पता था की शादी क्या होती है और न ही उसे ये समझ आता की उसके पापा-मम्मी शादी क्यों कर रहे हैं, इसलिए नेहा आयुष को पढ़ाई में लगाए रखती, लेकिन आयुष को जब भी समय मिलता वो अपनी नटखट हरकतों से सबको खुश रखता| कभी अपने दादा-दादी जी की गोदी में चढ़ कर सोने की जिद्द करता तो कभी पूरे घर में hotwheels का track set बिछा कर गाडी चलाता रहता और अगर फिर भी उसका मन नहीं भरता तो वो नेहा को तंग करने में लग जाता! रात में जब मैं घर आता तो संगीता माँ के सामने आयुष की प्यारभरी शिकायत ले कर बैठ जातीं, जिसे मैं आयुष को प्यार से समझाते हुए सुलझा देता|

जहाँ एक ओर मेरे घर में जोरों-शोरों से शादी की तैयारी जारी थी वहीं दूसरी ओर मैं अपने होने वाले ससुर जी को अपनी शादी के लिए मनाने की जुगत में लगा था| जब पिताजी को मनाने में मैंने तीन थप्पड़ खाये थे तो अपने होने वाले ससुर जी को मनाने के लिए मुझे नजाने कितने थप्पड़ खाने पड़ते! फिर ससुर जी के थप्पड़ों के बाद बारी आती बड़के दादा की और जितना मैं उन्हें (बड़के दादा को) जनता था वो थप्पड़ों से बात नहीं करते!

[color=rgb(51,]जारी रहेगा भाग-10 में...[/color]
 

[color=rgb(255,]चौबीसवाँ अध्याय: उलझते-सुलझते बंधन[/color]
[color=rgb(235,]भाग-10[/color]


[color=rgb(26,]अब तक आपने पढ़ा:[/color]

जहाँ एक ओर मेरे घर में जोरों-शोरों से शादी की तैयारी जारी थी वहीं दूसरी ओर मैं अपने होने वाले ससुर जी को अपनी शादी के लिए मनाने की जुगत में लगा था| जब पिताजी को मनाने में मैंने तीन थप्पड़ खाये थे तो अपने होने वाले ससुर जी को मनाने के लिए मुझे नजाने कितने थप्पड़ खाने पड़ते! फिर ससुर जी के थप्पड़ों के बाद बारी आती बड़के दादा की और जितना मैं उन्हें (बड़के दादा को) जनता था वो थप्पड़ों से बात नहीं करते!

[color=rgb(61,]अब आगे:[/color]

रविवार
का दिन था और संगीता के पिताजी यानी मेरे होने वाले ससुर जी आज ट्रैन से दिल्ली आने वाले थे| जिस प्रकार पिताजी सच जानकर मुझ पर बरस पड़े थे, उसी प्रकार आज सच जानकार मेरे होने वाले ससुर जी मुझ पर बरस सकते थे और मैं नहीं चाहता था की पिछली बार की तरह इस बार भी ये दृश्य देख कर मेरे बच्चे सहम जाएँ इसलिए मैंने बच्चों को पड़ोस में हो रही पूजा में सम्मिलित होने के लिए भेज दिया| बच्चे पूजा में सम्मिलित होने गए और इधर मैं अपने होने वाले ससुर जी को लेने के लिए अकेला station पहुँचा, धोती कुरता और शाल लपेटे हुए मेरे होने वाले ससुर जी train से उतरे| उन्हें मुझे पहचानने में थोड़ी दिक़्क़त हुई क्योंकि जब उन्होंने मुझे आखरी बार देखा था तब मेरे चेहरे पर दाढ़ी नहीं आई थी और अब मेरा चेहरा दाढ़ी से भरा हुआ था| मैंने जब हथजोड़ कर उन्हें नमस्ते कही और पैर छुए तब जा कर उन्हें पता चला की मैं ही मानु हूँ;

मेरे होने वाले ससुर जी: अरे मुन्ना तू तो बहुत बड़ा हुई गवा!

मेरे होने वाले ससुर जी मेरी पीठ थपथपाते हुए बोले और मुझे गले लगाया| मैंने उनका झोला लिया जो वो गाँव से लाये थे फिर बड़ी वाली sedan taxi की और उन्हें घर लाया| बड़ी गाडी में बैठने की ख़ुशी उनके चेहरे पर फ़ब रही थी और मैं मन ही मन ये कल्पना कर रहा था की क्या होगा जब उन्हें सच पता चलेगा?

जब हम घर पहुँचे तो संगीता ने अपने पिताजी को देखते ही उनके पाँव छुए और उनके गले लगी|

मेरे होने वाले ससुर जी: चन्दर हुआँ अस्पताल मा पड़ा है और तू हियाँ डेरा डाले बैठी है? आपन सामान बाँध, आज रतिया की गाडी से हम दुनो जन का गाँव जाए का है! आयुष और नेहा हियाँ रहके पढ़ लिहिंयैं, अगले साल हम फिर आब और उनका ले जाब, फिर वो (आयुष और नेहा) वहीँ पढियें!

मेरे होने वाले ससुर जी संगीता को थोड़ा डाँटते हुए बोले| अपनी होने वाली बहु को बचाने के लिए पिताजी ने आगे बढ़ कर मेरे होने वाले ससुर जी से हाथ मिलाया तथा उन्हें बैठने को कहा, इतने में माँ पानी का गिलास और गुड़ ले आईं, जिसे मेरे होने वाले ससुर जी ने छुआ तक नहीं क्योंकि हमारे गाँव के रीति-रिवाजों के अनुसार लड़की का बाप लड़के के घर का पानी तक नहीं पी सकता! खैर गाँव जाने की बात सुनकर मुझे और संगीता को बहुत बड़ा धक्का लगा, मैं तो इस धक्के को सह गया और अपने ससुर जी को मनाने के लिए अपने शब्दों को सोचने लगा मगर मुझसे दूर होने के नाम से संगीता के हाथ-पाँव फूल गए थे! वो जड़वत सी सर झुका कर खड़ी हो गई और हम दोनों (मेरे और संगीता) के दिलों की जो मूक बोली-भाषा थी, उस बोली-भाषा से मेरे दिल को अपने पिताजी से बात करने का सन्देश भेजने लगी| वहीं पिताजी ने मेरे बदले अपने होने वाले समधी जी से बात शुरू करनी चाहि परन्तु मैंने उन्हें गुप्-चुप इशारे से रोक दिया| मैंने जिस तरह से अपने पिताजी के सामने संगीता से प्यार करने का बम फोड़ा था, वैसा बम मैं अपने होने वाले ससुर जी के सामने नहीं फोड़ सकता था क्योंकि वो दिल के रोगी थे और ऐसी कोई बात उनके लिए सदमे के समान हो सकती थी| मुझे ये बात बतानी थी परन्तु इस तरह से की उन्हें सदमा न लगे;

मैं: मुझे माफ़ कीजिये, परन्तु संगीता अब कभी गाँव वापस नहीं जायेगी!

मैं अपने होने वाले ससुर जी के सामने बैठते हुए गंभीर स्वर में बोला| मेरी बात सुन मेरे होने वाले ससुर जी हैरान होते हुए बोले;

मेरे होने वाले ससुर जी: का? पर काहे?

मेरे होने वाले ससुर जी अस्चर्य से भरकर बोले|
मैं: क्योंकि वो इंसान (चन्दर) इन्हें (संगीता को) मारता-पीटता है, इनसे बदसलूकी करता है!

मैंने गोल-मोल बात की|

मेरे होने वाले ससुर जी: तो? ऊ मर्द (पति) है ई (संगीता) का?

मेरे होने वाले ससुर जी को तो जैसे इस बात से कोई फर्क ही नहीं पड़ा| उनकी ऐसी प्रतिक्रिया देख मैं दंग रह गया की ये कैसे पिता हैं जिसे अपनी बेटी की खुशियों से कोई सरोकार ही नहीं? 'मेरी बेटी नेहा को उसका पति ऐसे परेशान करता तो मैं उस आदमी को जान से मार देता!' मैं मन ही मन बुदबुदाया|

मैं: आपके कहने का मतलब है की चूँकि वो पति है तो कुछ भी करेगा?

मैंने बड़ी हलीमी से सवाल पुछा| हालांकि इस सवाल की कोई जर्रूरत नहीं थी परन्तु, मेरे होने वाले ससुर जी की बात सुन कर मेरे तन बदन में चिंगारियाँ छूटने लगी थी, लेकिन चूँकि मुझे उन्हें अपनी और संगीता की शादी के लिए मनाना था इसलिए मैं इतनी नरमी से पेश आ रहा था|

मेरे होने वाले ससुर जी: ऊ (संगीता) का धरम है की ऊ आपन पति संगे निभाए!

मेरे होने वाले ससुर जी की बातें मेरे दिमाग के बारूद में आग लगा चुकी थी परन्तु मैं अपने दिमाग को गुस्से से फटने से रोक रहा था| एक तो वो मेरे होने वाले ससुर जी थे ऊपर से पिताजी की अपने से बड़ों का आदर करने की शिक्षा ने मेरे गुस्से को बाँध दिया था| औरतों को दबाने की सोच तो मेरे पिताजी की भी थी, परन्तु मेरे कारण वो अब जा कर अपनी इस सोच से पीछा छुड़ा रहे थे और हो सकता था की मेरे कारण मेरे होने वाले ससुर जी भी इस सोच से निजात पा सकें इसलिए मुझे सब्र और नरमी से काम लेना था;

मैं: वाह! सही धर्म सिखाया आपने? वो स्त्री है तो आप दबाते चले जाओ!

मैं नकली हँसी हँसते हुए कटाक्ष करते हुए बोला| मेरे कटाक्ष ने मेरे होने वाले ससुर जी के गुस्से को भड़का दिया था;

मेरे होने वाले ससुर जी: एक बात बताओ, तू हियाँ का हमार बिटिया की बकालत (वकालत) करत हो?

मेरे होने वाले ससुर जी अपनी भोयें सिकोड़ कर अपना गुस्सा दबाते हुए बोले|

मैं: जी नहीं, मैं ये सब इसलिए कह रहा हूँ क्योंकि मैं आपकी बेटी से प्यार करता हूँ!

मैंने बड़े गर्व से अपनी बात कही|

कान के पास जब कोई बम फटता है तो कुछ पल के लिए हमें बस 'संननननननननन' आवाज सुनाई देती है, ठीक वही हालत इस वक़्त मेरे होने वाले ससुर जी की थी! वो आँखें फाड़े मुझे देख रहे थे और जो शब्द मैंने अभी-अभी कहे थे वो शब्द उनके कानों में गूँज रहे थे!

मेरे होने वाले ससुर जी: का?

उन्होंने भौंचक्के होते हुए पुछा| फिर उन्होंने अपनी भोयें सिकोड़ कर संगीता को देखा और उसे ताना मरते हुए बोले;

मेरे होने वाले ससुर जी: तो आखिर ई लड़िकवा का जादू तोहरे ऊपर चल ही गवा? हम पाहिले से जानत रहन, जब गाँव मा तू आपन चरण काका की बिटिया की सादी में केहू के बुलावे पर ना आई, मगर ई लड़िकवा तोहका एक बार कहिस और तू तुरँते घर आई गयो| तब ई लड़िकवा (मैं) छोट रहा एहि से हम कछु नाहीं कहन पर अब तुम दोनोंजन तो बेहयाई पार कर गयो!

अपनी बेटी को ताना मर कर मेरे होने वाले ससुर जी मुझे घूर कर देखा, परन्तु मैं रत्ती भर नहीं घबराया बल्कि मेरे चेहरे पर सच बोलने का तेज जगमगा रहा था| जब मैं नहीं डरा तो मेरे होने वाले ससुर जी ने सोचा की शायद मैं अपने पिताजी से डर जाऊँ इसलिए वो मेरी शिकायत मेरे पिताजी से करने लगे;

मेरे होने वाले ससुर जी: सुनत हो समधी जी?

परन्तु मेरे पिताजी के चेहरे पर एक शिकन नहीं पड़ी क्योंकि वो तो पहले ही सब सच जानते थे! पिताजी ने मेरे होने वाले ससुर जी को समझना चाहा तो मैंने अपना हाथ दिखा कर उन्हें रोक दिया और खुद ही चौधरी बनते हुए सच को परत दर परत खोलने लगा;

मैं: जी वो सब जानते हैं! मैं आपके साथ कोई मजाक नहीं कर रहा, न ही आपको दुःख देने की इच्छा से ये बात बता रहा हूँ| आपकी बेटी संगीता भी मुझसे पय्यार करती है और हम दोनों शादी करना चाहते हैं!

मैंने बड़े सरल शब्दों में इत्मीनान से अपने होने वाले ससुर जी को समझना चाहा परन्तु उनका गुस्सा अहंकार कर रूप ले कर उनके सर पर चढ़ चूका था| इसलिए वो मुझ पर बरस पड़े;

मेरे होने वाले ससुर जी: तू....तू ....पगलाए गए हो?!

मेरे होने वाले ससुर जी के मुँह से गाली निकलने वाली थी परन्तु मेरे पिताजी के डर से उनके मुख से गाली नहीं निकली|

मेरे होने वाले ससुर जी: जानत हो का कहत हो? संगीता पाहिले से सादी-सुदा (शादी-शुदा) है! और...और तू तो ओह का (संगीता को) आपन छुटपन से "भौजी" कहत आओ है और तू ओहि (उसी) से बियाह करा चाहत हो? तोहार बुद्धि घाँस चारे गई है का?

मेरे होने वाले ससुर जी, गुस्से से मुझ पर बरसे! मुझ पर उनके बरसने का कोई फर्क नहीं पड़ा क्योंकि मैं तथा मेरा परिवार पहले ही हमारी (मेरी और संगीता की) शादी के लिए तैयार था|

मैं: मैंने संगीता को भौजी बोलना कब का बंद कर दिया था और सिर्फ बोलने से क्या होता है? हम दोनों के बीच कभी देवर-भाभी का रिश्ता था ही नहीं! हमारा रिश्ता दोस्ती से शुरू हुआ था और सीधा प्यार तक पहुँच गया!

मैंने अपने होने वाले ससुर जी को समझना चाहा परन्तु उन पर मेरी बात का असर नहीं हुआ, वे सीधा मेरे पिताजी से बोले;

मेरे होने वाले ससुर जी: समधी जी, तुहुँ आपन लड़िका (लड़के) संगे ई पाप मा सामिल (शामिल) हो?

मेरे होने वाले ससुर जी के सवाल को सुन मेरे पिताजी को कोई ग्लानि, कोई शर्म महसूस नहीं हुई जो मेरे लिए बहुत बड़ी बात थी! जैसे ही पिताजी मेरे होने वाले ससुर जी के सवाल देने लगे, मैं बीच में बोल पड़ा;

मैं: जी हाँ! वो सब जानते हैं तथा मेरी और संगीता की शादी के लिए तैयार भी हैं|

मेरे होने वाले ससुर जी: हम ई कभऊँ न होने देब! का इज्जत रह जाए हमार बिरादरी मा?

मेरे होने वाले ससुर जी गुस्से से मुझे देखते हुए बोले और फिर सीधा संगीता की तरफ गुस्से से देखने लगे और चिल्लाते हुए बोले;

मेरे होने वाले ससुर जी: संगीता...संगीता ...आपन सामान बाँध! हम सब आभायें गाँव जाब!

मेरे होने वाले ससुर अपने अहंकार से चूर होते हुए बोले, उनका अहंकार हमारे (मेरे और संगीता के) प्यार को कुचलने लगा था| संगीता को खो देने का डर मेरे सर पर सवार हो चूका था जिस कारण मैं टूटने लगा था! अपने प्यार को बचाने के लिए मैं अपने होने वाले ससुर जी के सामने घुटने टेक दिए और उनसे हाथ जोड़ कर विनती करने लगा;

मैं: नहीं पिताजी, हमें अलग मत कीजिये! हम एक दूसरे के बिना नहीं जी सकते!

मैंने गिड़गिड़ाते हुए कहा परन्तु मेरे होने वाले ससुर जी का अहंकारी गुस्सा पूरे शबाब पर था, वो मेरे कमजोर होने पर अपने अहंकार से मेरे प्यार को रोंदते हुए बोले;

मेरे होने वाले ससुर जी: मरीकटौ! तू होश में नाहीं है, ई बिया (शादी) कभौं न होइ! कभौं नाहीं!

मेरे होने वाले ससुर जी मुझे गाली देते हुए बोले और मुझे धक्का देकर उठ खड़े हुए| उनकी नजर संगीता पर पड़ी जो घूंघट किये हुए, सर झुका कर रोये जा रही थी|

मेरे होने वाले ससुर जी: संगीता! चल हियाँ से!

मेरे होने वाले ससुर जी संगीता से गरज कर बोले, परन्तु संगीता सर झुकाये जस की तस खड़ी रही, न कुछ बोली और न ही अपनी जगह से हिली| अपनी बेटी के बात न सुनने से मेरे होने वाले ससुर जी का गुस्सा फूट पड़ा और उन्होंने संगीता की बाजू पकड़ कर उसे दरवाजे की ओर खींचना शुरू किया| ये दृश्य देख मेरे जिस्म से प्राण निकलने लगे और मैं एक कदम संगीता की ओर बढ़ा परन्तु फिर रुक गया! संगीता का हाथ थामे जो शक़्स मेरे सामने खड़ा था वो एक पिता था और मुझ में एक पिता-पुत्री को अलग करने की क्षमता नहीं थी! 'तुझे कैसा लगता अगर कोई नेहा को तुझसे दूर करता?' मेरा मन अंदर से बोला| ये सुन मेरा जिस्म आगे नहीं बढ़ा, परन्तु तभी दिमाग मुझे उकसाते हुए बोला; 'नेहा तो तुझसे वैसे भी जुदा हो जाएगी!' दिमाग की बात सुन मन ने सवाल किया; 'वो कैसे?' जिसके जवाब में दिमाग बोला; 'संगीता जायेगी तो क्या नेहा और आयुष यहीं रह जाएँगे? उन्हें भी तो अपनी माँ के साथ जाना होगा न?' अपने बच्चों को खोने के डर के ठंडे एहसास ने मुझे घबराने पर मजबूर कर दिया जिससे मेरा सारा आत्मविश्वास टूट कर चकनाचूर हो गया! मेरी आँखों के सामने संगीता और बच्चों के हमेशा-हेमशा के लिए मुझे छोड़कर जाने का दृश्य चलने लगा और मेरे मन में सिवाए मौत की तरफ जाने के दूसरा कोई चारा छोड़ा ही नहीं!

इधर मैं हिम्मत हारा हुआ, लाचार, बेबस खड़ा था और वहाँ दूसरी ओर संगीता अपने पिताजी द्वारा खींच कर ले जाने पर मौन हो कर लड़ रही थी! कई कोशिशों के बाद भी जब संगीता अपनी जगह से नहीं हिली तो मेरे होने वाले ससुर जी अपनी बेटी पर बरस पड़े;

मेरे होने वाले ससुर जी: तो तुहुँ हियाँ ई लड़िकवा सँगे रहा चाहत हो?

अपने पिता के पूछे गए सवाल का जवाब संगीता ने बड़ी हिम्मत कर के सर हाँ में हिला कर कहा;

संगीता: हाँ!

मेरे कारन आज संगीता को अपने पिताजी के खिलाफ खड़ा होना पड़ा था!

संगीता: पिताजी में इनसे बहुत प्यार करती हूँ....जब से मैंने इन्हें पहली बार देखा था तब से! आप...आप नहीं जानते पर मैंने इनसे प्यार का इजहार किया था क्योंकि मुझे इनसे पहली नजर में प्यार हो गया था| हमें.....अलग मत कीजिये पिताजी....मैं....नहीं जी पाऊँगी.....

संगीता रोते हुए अपने पिताजी से हथजोड़ कर विनती कर रही थी, पर मेरे होने वाले ससुर जी पर कोई असर नहीं पड़ रहा था, उन्हें बस अपना गुरूर प्यारा था!

मेरे होने वाले ससुर जी: ई सादी कभौं न होइ! अगर तू हमार खिलाफ जायेके ई से (मुझसे) सादी किहो तो हमार से तोहार सारा रिस्ता खत्म! तोहार हमार घर से कउनो सरोकार न रही, हमार घर का दरवाजा तोहरे लिए हमेसा-हमेसा के लिए बंद!

संगीता को मुझ में और अपने परिवार के बीच किसी एक को चुनना था| ये एक ऐसा चुनाव था जिसमें संगीता कुछ न कुछ हार जाती, अगर मुझे चुनती तो अपने परिवार को हार जाती और अगर अपने परिवार को चुनती तो मुझे हार जाती! मैं कभी नहीं चाहता था की संगीता को ऐसा कोई चुनाव करना पड़े इसलिए इससे पहले की संगीता कोई चुनाव करे मैं बीच में बोल पड़ा;

मैं: नहीं पिताजी (मेरे होने वाले ससुर जी)...ऐसा मत कहिये! संगीता आपकी बेटी है आपका खून है, वो भला आपको छोड़कर मेरे साथ कैसे खुश रह सकती है?

मैंने अपने होने वाले ससुर जी के आगे हाथ जोड़ते हुए कहा| मेरा दिल जानता था की अब हमारे (मेरे और संगीता के) अलग होने का समय आ गया है, इसलिए मेरा दिल खून के आँसूँ रो रहा था और वही आँसूँ मेरे चेहरे पर आ गए थे| मैंने संगीता की तरफ देखा और रुंधे गले से बोला;

मैं: संगीता...please ....please....आप चले जाओ....please...मैं नहीं चाहता की आप...आप....मेरी वजह से अपने परिवार से अलग हो!

मैंने बहुत रोका पर खुद को फूट-फूटकर रोने से रोक नहीं पाया| माँ-बाप से अलग होने का दर्द मैं जानता था और नहीं चाहता था की संगीता इस दर्द से गुजरे इसलिए मैंने हमारे (संगीता और मेरे) प्यार को कुर्बान करने का फैसला लिया|

कल तक जो लड़का छाती ठोक कर अपने प्यार का बखान कर रहा था आज हांलातों ने उसे इस कदर मजबूर कर दिया था की उसे अपने प्यार की कुर्बानी देनी पड़ रही थी| इधर पिताजी ने जब मेरी बात सुनी तो उन्हें यक़ीन ही नहीं हुआ की उनका बेटा इतनी जल्दी हार कैसे मान सकता है? शुरू से ही मेरी आँखों में आँसूँ पिताजी को नगवार थे इसलिए वो बड़े ताव से उठे और मेरे कँधे पर हाथ रख मुझे हिम्मत बँधाते हुए बोले;

पिताजी: ये तू क्या कह रहा है बेटा? समधी जी की झूठी शान के आगे तू अपना प्यार कुर्बान करने जा रहा है? अगर ये (मेरे होने वाले ससुर जी) अपने घर के दरवाजे संगीता के लिए बंद करना चाहते हैं तो कर दें, संगीता हमारी होने वाली बहु है और यहाँ उसके माँ-बाप से ज्यादा प्यार मिलेगा!

पिताजी बड़े गर्व से अपने होने वाले समधी जी से नजरें मिलाते हुए अकड़ कर बोले, मगर मेरे लिए बात किसी की शान की नहीं थी, न किसी को हराने की थी, मुझे तो बस संगीता को इस कठिन चुनाव करने से रोकना था;

मैं: पिताजी, जब संगीता नहीं चाहती थीं की उसकी वजह से मैं आपसे अलग हो जाऊँ, तो भला मैं कैसे उसे उसके परिवार से अलग करूँ?

मेरी बातों से मेरा दर्द छलक रहा था और इस दर्द को महसूस कर एक पिता का दिल अपने बेटे की ख़ुशी को पाने के लिए व्याकुल हो रहा था!

पिताजी: पर बेटा...

पिताजी ने मुझे समझना चाहा परन्तु मैंने उनकी बात काटते हुए कहा;

मैं: नहीं पिताजी! भूल जाइये मैंने आपसे जो कुछ भी माँगा था, आप ये सोच लेना की मैं जिद्द कर रहा था...और...

इसके आगे मुझ में बोलने की हिम्मत नहीं थी! मेरे सारे सपने मेरे होने वाले ससुर जी के संगीता से पूछे इस एक सवाल ने तोड़ डाले थे! लेकिन मैं उन्हें (मेरे होने वाले ससुर जी को) बिलकुल भी नहीं कोस रहा था, मुझे बस अफ़सोस था की उन्हें अपनी बेटी की ख़ुशी नहीं बल्कि अपना अहंकार प्यारा था! अब चूँकि मुझ में आगे कुछ कहने की हिम्मत नहीं थी इसलिए मैं पलट कर अपने कमरे में जाने को मुड़ा तभी संगीता के सवाल ने मेरे कदम रोक दिए;

संगीता: सुनिए....मेरा जवाब नहीं सुनेंगे?

संगीता अपने आँसूँ पोछते हुए बड़ी हिम्मत बटोर कर मेरी ओर देखते हुए बोली| आँसूँ पूछते समय संगीता का घूँघट हट गया था और रोने से बेहाल चेहरा दिखने लगा था| जब मैंने संगीता की ये हालत देखि तो मेरा दिल फूट-फूटकर रोने लगा, उसकी इस हालत का दोषी मैं था मगर मैंने खुद को संगीता के सामने कठोर दिखाने का नाटक किया और अपने आँसूँ पोछते हुए बोला;

मैं: नहीं, क्योंकि मैं ये कतई नहीं चाहता की तुम अपने माँ-बाप का दिल तोड़ो|

भले ही मैं खुद को संगीता के सामने कठोर दिखाने का नाटक कर रहा था परन्तु संगीता मेरे दिल की रग-रग से वाक़िफ़ थी, उसने मेरा कठोर बनने की कोशिश पर अपने दूसरे सवाल से प्रहार किया;

संगीता: मेरी ख़ुशी भी नहीं चाहते?

ये सवाल सुन मेरी कठोर दिखने की सारी कोशिशें कम पड़ने लगीं थीं, मगर मेरा ढीला पड़ना मतलब संगीता अपने माँ-बाप को छोड़कर मेरे पास चली आती!

मैं: चाहता हूँ ...पर .... Not at the cost of your parents!

मैंने रूँधे गले से कहा| मेरा जवाब सुन संगीता रो पड़ी क्योंकि वो मेरे भीतर के दर्द को महसूस कर रही थी|

संगीता: पर मैं आपसे अलग हो कर मर जाऊँगी!

संगीता ने जब मरने की बात कही तो मुश्किल से काबू किये हुए मेरे आँसूँ बह निकले;

मैं: नहीं...ऐसा मत कहो! तुम्हें जीना होगा...हमारे बच्चों के लिए!

इतना कहते हुए मेरा गला भर आया और मैं एक पल के लिए खामोश हो गया| मैंने संगीता को जीने की राह दिखा दी थी परन्तु मेरे पास तो कोई रास्ता था नहीं और संगीता को इसकी बहुत चिंता थी, उसे जानना था की मैं उसके बिना क्या करूँगा?

संगीता: और आप?

मैं: मुझे अपने माँ-पिताजी के लिए जीना होगा? मुश्किल होगी....पर...

मैंने अपनी माँ की तरफ देखते हुए कहा| मैंने माँ से वादा किया था की मैं कभी अपनी जान देने के बारे में नहीं सोचूँगा इसलिए मैं जीने के लिए बजबूर था| मैं इस कदर टूटने लगा था की मेरे लिए अपनी बात पूरी कह पाना मुश्किल हो रहा था! मेरी आधी-अधूरी बात सुन कर संगीता जान चुकी थी उसके बिना न तो मैं जी पाउँगा और न ही मर पाउँगा! एक तरफ जहाँ मैं मजबूरी में हालातों से समझौता करना चाहता था वहीं संगीता के मन में अपने पिताजी से बगावत की चिंगारी भड़क चुकी थी;

संगीता: नहीं जी सकती मैं आपके बिना और जानती हूँ आप भी मेरे बिना नहीं जी पाओगे फिर क्यों मुझे अपने से दूर कर रहे हो? मैं आपसे शादी करना चाहती हूँ!

संगीता का रोना थम चूका था और उसके बगावती तेवर देख मेरे होने वाले ससुर जी हैरान थे, वो आँखें फाड़े संगीता को देख रहे थे मगर संगीता की नजरें मुझ पर टिकी थीं|

मैं: नहीं...

मैं आगे कुछ बोलता उससे पहले ही संगीता ने अपने पिताजी के पकड़ से अपना हाथ छुड़ाया तथा तेजी से मेरी तरफ आई और मेरे सीने से लग कर फूट-फूटकर रोने लगी!

अब फैसला हो चूका था, संगीता ने अपने परिवार को छोड़कर मुझे चुना था| मुझे संगीता के इस चुनाव पर ग्लानि हो रही थी क्योंकि मेरे कारण वो अपने परिवार से हमेशा-हमेशा के लिए जुदा हो चुकी थी, परन्तु जिस कठोरता से संगीता ने मुझे अपनी बाहों में बेख़ौफ़ जकड़ा था उस एहसास में बहते हुए मैंने संगीता को अपनी बाहों में कसकर जकड़ लिया और उसके सर को चूमने लगा| मेरे माँ-पिताजी ने जब ये दर्द भरा दृश्य देखा तो पिताजी से रहा नहीं गया और वो गुस्से से मेरे होने वाले ससुर जी पर बरसे;

पिताजी: भाईसाहब, मैं अब तक खामोश था क्योंकि मुझे अपने बच्चे की ख़ुशी चाहिए थी! लेकिन आप, आपको अपना गुरुर ज्यादा प्यार है न की अपनी बेटी की ख़ुशी! आपको क्या लगा की आप अगर संगीता से मुँह मोड़ लेंगे तो वो अकेली रह जाएगी? जी नहीं, ये मेरी बेटी बनकर रहेगी!

पिताजी का ताव और अपनी बेटी द्वारा ठुकराए जाने से लज्जित हो कर मेरे होने वाले ससुर जी अपनी अकड़ दिखा कर अपना झोला उठा कर निकल गए!

उधर मेरे होने वाले ससुर जी गए और इधर मैं और संगीता सब कुछ भुला कर एक दूसरे से अपने दिल का दर्द कहने लगे;

मैं: I'm sorry....so sorry....I put you in this difficult situation!

मैंने संगीता के आँसूँ पोछते हुए कहा|

संगीता: नहीं...आपने कुछ नहीं किया....मेरे पिताजी....ने आपका इतना अपमान किया...और फिर भी आप.....उनके लिए हमारे प्यार को कुर्बान कर रहे थे|

संगीता सुबकते हुए बोली और मेरे आँसूँ अपनी साड़ी के पल्लू से पोछने लगी| हम दोनों इतने भावुक थे की हम ये भी भूल चुके थे की हम दोनों के अलावा माँ-पिताजी भी हैं! जब पिताजी की आवाज हमारे कानों में पड़ी तब जा कर हमें उनकी और माँ की उपस्थिति का बोध हुआ;

पिताजी: बेटा, तुम दोनों का ये प्रेम देख कर मेरे पास शब्द नहीं हैं! मैं तुम दोनों के इस पाक़ प्रेम की कोई तुलना नहीं कर सकता! तूम दोनों एक दूसरे से इतना प्रेम करते हो लेकिन फिर भी आज तुम दोनों एक दूसरे के परिवार की ख़ुशी के आगे अपने प्रेम को कुर्बान करने से नहीं चूके| मुझे फक्र है मेरे बच्चों पर!

पिताजी गर्व से सीना चौड़ा करते हुए बोले और अपनी बाहें खोल कर हम दोनों (मुझे और संगीता) को अपने सीने से लगा लिया|

पिताजी: मानु की माँ, आज मुझे इन दोनों पर इतना प्यार आ रहा है, इतना गर्व हो रहा है की मुझे हमारे (माँ और पिताजी के) फैसले पर नाज़ हो रहा है|

पिताजी बड़े गर्व से बोले| पिताजी की बात सुन मैं और संगीता दोनों ही शर्म से लाल होने लगे थे|

पिताजी: अब बस जल्दी से तुम दोनों की शादी हो जाए तो हम दोनों (माँ और पिताजी) तीर्थ हो आएं!

पिताजी ख़ुशी से चहकते हुए बोले, मगर उनकी ख़ुशी कुछ ज्यादा ही तेज भाग रही थी!

मैं: पिताजी, अभी भी कुछ बाकी है! बड़के दादा को मनाना और चन्दर से divorce papers पर sign लेना!

मैंने एक गहरी साँस लेते हुए कहा| बगावत का बिगुल अब बज चूका था, आज जो आग ससुर जी के कलेजे में लगी थी, वो आग सीधा गाँव में बड़के दादा की तरफ तेजी से दौड़ी जा रही थी! एक जबरदस्त विस्फोट होने को तैयार था ऐसा विस्फोट जो सब कुछ तबाह करने वाला था!

[color=rgb(51,]जारी रहेगा भाग-11 में...[/color]
 
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