[color=rgb(44,]तेईसवाँ अध्याय: अभिलाषित प्रेम बन्धन[/color]
[color=rgb(251,]भाग - 19[/color]
[color=rgb(255,]अब तक आपने पढ़ा:[/color]
रावण दहन सम्पत हुआ और दिषु को bye कर हम सब घर लौटे, रास्ते भर दोनों बच्चों ने दहन को ले कर अपनी बचकानी बातों से रास्ते का सफर मनोरम बनाये रखा| बच्चों की बातें, उनका आपस में बहस करना सुन कर अलग ही आनंद आता है, क्योंकि उनकी बहस खुद को सही साबित करने के लिए नहीं होती बल्कि अपने अनुभव को साझा करने की होती है, उन्हें बस अपनी बात सुनानी होती है और बदले में वो बस आपसे इतना ही चाहते हैं की आप उनकी बात ध्यान से सुनें तथा उनकी सराहना करें!
[color=rgb(97,]अब आगे:[/color]
बच्चों की बात सुनते-सुनते हम चारों घर लौटे, मेरे हाथ में खिलौने देख पिताजी मुस्कुराते हुए बोले;
पिताजी: तू नहीं सुधरेगा! खिलोने देखे नहीं की खरीदने लग गया!
पिताजी की बात सुन मैं मुस्कुराने लगा और उन्हें दिषु के बारे में बताया;
मैं: पिताजी, ये सब खिलोने मैंने नहीं खरीदे| दरअसल दिषु मिल गया था उसी ने बच्चों के लिए इतने सारे खिलोने खरीदे!
पिताजी मेरे और दिषु के बीच के भाइयों वाले प्यार को जानते थे इसलिए उन्हें दिषु का बच्चों के लिए खिलौने खरीदना बुरा नहीं लगा|
कपडे बदल कर मैं और बच्चे बैठक में बैठे थे, भौजी खाना बनाने में माँ की सहायता कर रहीं थीं और पिताजी चन्दर से बात कर रहे थे;
पिताजी: मुन्ना कल सब काम छोड़ के सतीश जी के हियाँ बाथरूम का फिटिंग शुरू करवाए दिहो| डिज़ाइनर नलका (designer faucets) तथा CPVC pipe का आर्डर हम देइ दिहिन है, तू दूकान से माल उठवा लिहो और ई माल ही लगवायो! सतीश जी तोहका जइसन काम बताएँ वइसन काम कराये दिहो!
चन्दर से बात खत्म हुई तो दोनों बच्चों ने पिताजी को घेर लिया और उन्हें मेले में की गई मस्ती के बारे में बड़े चाव से बताने लगे| रावण के पुतला तो वर्णन सुन कर पिताजी के साथ-साथ माँ ने भी; "हैं?" और "अच्छा?" बोलना शुरू कर दिया| माँ-पिताजी को बच्चों की बात इतने गौर से सुनते हुए देख मुझे महसूस हुआ की माँ-पिताजी का अपने पोता-पोती से घनिष्ट प्रेम होता है, ऐसा प्रेम जो शायद उन्हें अपने बेटा-बेटी से भी नहीं होता! तभी तो कहते हैं की दादा-दादी को असल से ज्यादा सूत प्यार होता है!
खैर अगले दो दिन बड़े सुख से बीते, लेकिन तीसरे दिन आफ़त आ गई| रात को बच्चों के साथ गेम खलने के करण मुझे सुबह उठने में देर हो गई, जिस कारन भौजी को मुझे और बच्चों को उठाने आना पड़ा| मुझे उठा कर टेबल पर रखी चाय की तरफ इशारा कर भौजी नजरें चुरा कर कमरे से जाने लगीं, मैंने लपक कर उनका हाथ पकड़ लिया और दिल्लगी करते हुए उन्हें अपनी ओर खींचा| भौजी झटके से मेरे सीने से आ लगीं, लेकिन फिर एकदम से छिटक कर मुझसे दूर हो गईं| उनका ऐसा करने से मैं जान गया की उनका mood off है, उनका mood अच्छा करने के लिए मैंने बड़े प्यार से उनसे बात करनी शुरू की;
मैं: Good morning जान!
कोई दूसरा दिन होता तो मेरे इतना प्यार से good morning कहने पर भौजी हँसते हुए good morning करतीं पर आज उनका दिल दुखी था तभी तो उन्होंने सर झुकाये हुए बस; "ह्म्म्म्म्म" कह कर जवाब दिया|
मैं: क्या बात है जान, mood क्यों off है?
मैंने भौजी के नजदीक जाते हुए उनकी ठुड्डी पकड़ कर ऊपर करते हुए पुछा|
भौजी: कुछ नहीं!
इतना कह भौजी ने अपना मुँह मोड़ लिया|
मैं: यार बताओ तो सही?
मैंने फिर भौजी की ठुड्डी पकड़ कर अपनी तरफ घुमाते हुए पुछा, मगर भौजी ने कोई जवाब नहीं दिया और मुझसे मुँह मोड़ कर चली गईं| मैं उन्हें मनाने जाने वाला था लेकिन तभी बच्चे उठ गए और कुनमुनाते हुए; "पापा जी" बोलने लगे| मैंने सोचा बच्चों को स्कूल छोड़कर आ कर उन्हें (भौजी को) मना लूँगा|
बच्चों को तैयार कर के मैं उन्हें school van में बिठा आया, इससे पहले की मैं भौजी से कुछ कह पाता पिताजी ने माल लेने जाने को कह दिया| आज के दिन पिताजी के साथ मुझे एक नई जगह से माल लेना था, अब चूँकि दिषु की गाडी मेरे पास थी तो उन्होंने साथ जाने को कहा था| चाय पी कर ही मैं पिताजी के साथ चल दिया ताकि जल्दी वापस आ कर भौजी की नाराजगी का कारन जान सकूँ| रास्ते भर मैं यही सोच रहा था की मैंने कुछ गलत तो नहीं कर दिया जिससे वो (भौजी) मुझसे खफा हैं? 'दो दिन से तूने (मैंने) उनसे (भौजी से) ठीक से बात नहीं की! फिर पिछले महीने भर से तू उन्हें खुद से जिस्मानी तौर पर दूर रखे हुए है तो उनको (भौजी को) गुस्सा आना स्वाभाविक है!' मन में उठी बात सुन मैंने सोच लिया की आज भौजी को थोड़ा घुमा देता हूँ, थोड़ा समय साथ गुजरेंगे तो भौजी खुश हो जाएँगी!
मैं और पिताजी दूकान पर पहुँचे और साइट के लिए माल order किया, पिताजी को ग़ाज़ियाबाद में किसी काम के सिलसिले में जाना था इसलिए वो वहाँ से सीधा ग़ाज़ियाबाद के लिए निकल गए| जाते-जाते पिताजी ने मुझे मिश्रा अंकल जी के पास पैसे लेने जाने को कहा| मैंने मिश्रा अंकल जी से फ़ोन पर बात की तो उन्होंने बताया की वो पैसे account में डलवा देंगे, अब मेरा उनके पास जाने का चक्कर बच गया था| दोपहर के खाने का समय हो रहा था तो मैंने गाडी घर की तरफ घुमाई और भौजी को फ़ोन घुमाया| भौजी के फ़ोन की घंटी बजती रही मगर भौजी ने जानबूझ कर मेरा फ़ोन नहीं उठाया| मैंने थोड़ा सोचा और माँ को फ़ोन मिलाया तथा बाहर घूमने जाने की बात तर्क पूर्ण तरीके से करने लगा;
मैं: हेल्लो माँ?!
माँ: हाँ बेटा, कब आ रहा है खाना खाने?
सुबह मैंने नाश्ता नहीं किया था इसलिए माँ ने सीधा खाने के बारे में पुछा|
मैं: मैं अभी खाली हुआ हूँ और रास्ते में हूँ| अच्छा एक बात बताओ माँ, 'वो' (भौजी) सुबह से मुँह फुलाये क्यों घूम 'रहीं' हैं?
मैं भौजी को भौजी नहीं कहना चाहता था इसलिए मैंने भौजी के लिए 'वो' और 'रहीं' शब्द पर जोर डालते हुए कहा, शुक्र है की माँ बात समझ गईं वरना माँ को समझना मुश्किल हो जाता!
माँ: कौन? बहु?!
मैं: जी...हाँ जी!
मैं एकदम से बोला|
माँ: पता नहीं बेटा, शायद तेरे भैया से कुछ कहा-सुनी हुई होगी|
मैं जानता था माँ को भौजी के mood खराब होने का कारन पता नहीं होगा, मैं तो बस अपनी बात शुरू कर के लिए नीव बना रहा था|
मैं: माँ अगर आप कहो तो मैं बच्चों को और उनको (भौजी को) पिक्चर ले जाऊँ? हो सकता है इससे उनका (भौजी का) mood बदल जाए|
मैंने बड़ी चपलता से अपनी बात रखी जिससे माँ को ज़रा भी शक नहीं हुआ|
माँ: ठीक है बेटा, कब जा रहे हो तुम सब?
मैं: मैं घर आ कर पूछता हूँ की वो कब चलेंगी?
माँ: ठीक है बेटा आजा|
माँ ने फ़ोन रखा और मैंने घर की ओर गाडी भगाई! आधे घंटे बाद मैं घर पहुँचा, भौजी उस समय किचन में चावल बना रहीं थीं और माँ बाथरूम में थीं| मैं सीधा घर में घुसा और बिना कुछ कहे भौजी का हाथ पकड़ के उन्हें अपने कमरे में खींच लाया|
मैं: अब मुझे इत्मीनान से बताओ की क्या हुआ है आपको? क्यों सुबह से आपका mood off है?
मैंने भौजी की आँखों में देखते हुए सवाल पुछा मगर भौजी ने जवाब में एक शब्द नहीं कहा| माँ की घर में मौजूदगी के कारन मैं भौजी पर जवाब के लिए और दवाब नहीं बना सकता था, इसलिए मैंने सीधा घूमने जाने की बात कही;
मैं: ठीक है, मत दो कोई जवाब! कपडे पहनो और तैयार हो जाओ, हम पिक्चर देखने जा रहे हैं|
मुझे लगा था की पिक्चर जाने के नाम से भौजी खुश हो जाएँगी मगर भौजी का mood अब भी खराब था और उसी खराब mood में वो सर झुकाते हुए बोलीं;
भौजी: Mood नहीं है|
इतना कह भौजी कमरे से बाहर जाने लगीं, मैंने एकदम से उनकी दाहिनी कलाई थाम ली और उनपर अपना हक़ जताते हुए बोला;
मैं: Hey, I'm not asking you, I'm ordering you!
मैंने अपना जाना-पहचाना dialogue दोहराया|
भौजी: तो आप 'भी' मुझे हुक्म दोगे, आप 'भी' मेरे साथ जबरदस्ती करोगे?!
भौजी गुस्से से तुनक कर बोलीं| भौजी का गुस्सा देख मेरा ध्यान भटक गया था और मैं उनकी बात ठीक से समझ नहीं पाया| मुझे लगा की मेरा उनपर हुकम चलाना उन्हें पसंद नहीं आया, इसलिए मैंने अपनी सफाई देते हुए कहा;
मैं: Hey! I didn't mean that!
फिर अचानक से मेरे दिमाग में बिजली कौंधी और मैंने भौजी की बात का असली मतलब समझा| भौजी ने अपनी बात में 'भी' शब्द पर बहुत जोर दे कर कहा था|
मैं: जबरदस्ती.....did he?
मैंने भौजी का मुँह अपनी तरफ घुमाते हुए उनकी आँखों में देखते हुए सवाल पुछा;
मैं: उस हरामजादे ने छुआ आपको?
भौजी ने मेरे सवाल का कोई जवाब नहीं दिया, लेकिन उनकी आँखों ने आँसूँ का एक क़तरा बहा कर भौजी के दिल की बात कह दी!
भौजी की आँखों से बहे आँसूँ को देख कर मेरे रोम-रोम में आग लग गई, आँखों में खून उतर आया और दिल बदले की आग में जलने लगा| मैंने अपना फ़ोन उठाया और चन्दर को फ़ोन मिलाया;
मैं: कहाँ पर है तू?
मैंने गरजते हुए पुछा| मेरी गर्जन सुन चन्दर की गाँड़ फ़ट गई और वो डर के मारे हकलाने लगा;
चन्दर भैया: ग...गुडगाँव..क...का भवा? क...काहे इतना रिसियाए हो?
मैं: वहीं रुक, आ कर बताता हूँ तुझे!
मैंने गुस्से से कहा और फ़ोन काट दिया| भौजी ने मेरा गुस्सा देख लिया था और वो जान गईं थीं की आज चन्दर गया काम से! भौजी ने कस कर मेरा हाथ पकड़ कर मुझे रोकने की कोशिश की;
भौजी: जा...जानू रुक जाओ! मेरी बात सुनो....
अब मैं भौजी की सुनने वाला नहीं था, मैंने अपना हाथ छुड़ाया और पैर पटकते हुए घर से निकला|
मैंने गुडगाँव की ओर गाडी भगाई, भौजी ने सैकड़ों बार मुझे कॉल किया पर मैंने उनका कॉल नहीं उठाया, फिर उन्होंने लगातार sms भेजने शुरू कर दिया पर मैंने वो भी नहीं देखे अंत में उन्होंने what's app पर मुझे message भेजने शुरू कर दिए लेकिन मेरा mobile data बंद था, इसलिए मुझे उनका कोई message नहीं मिला| मैं बस अपने गुस्से में जलते हुए गाडी भगाये जा रहा था, फ़ोन बजने का जैसे मुझ पर कोई असर ही नहीं हो रहा था| दिमाग में बस एक ही बात गूँज रही थी की' 'उस हरामजादे (चन्दर) ने कैसे मेरी पत्नी को छुआ होगा, उसके (चन्दर के) छूने से उन्हें (भौजी को) कितनी घिन्न आई होगी?!!' ये सोच कर मेरा गुस्सा मेरे आपे से बाहर हो रहा था! मेरे घर से गुडगाँव की साइट का रास्ता 1 घंटे का था जिसे मैंने आज 39 मिनट में पूरा किया था!
साइट पहुँच कर मैंने गाडी park कर निकलने वाला था जब मुझे दूसरी साइट से लेबर का फोन आया;
लेबर: मालिक आपके चन्दर भैया ने गलत fitting लगवाई है और मालिक गुस्से में आग-बबूला हो रखा है|
ये साइट सतीश जी की थी जिसके लिए पिताजी ने खासकर चन्दर को समझाया था, अब सतीश जी का गुस्सा होना मतलब मिश्रा अंकल जी से तालुक्कात खराब होना!
मैं: पिताजी को बताया?
मुझे ये जानना था की क्या पिताजी को इसके बारे में पता है? अगर उन्हें पता होता तो मैं चन्दर को इस बारे में कुछ नहीं कहता|
लेबर: मालिक का फ़ोन मिलाया तो नंबर मिला नहीं इसलिए मैंने आपको फ़ोन किया!
अब जब पिताजी को कुछ नहीं पता था तो मैं इस मामले को भी अपने आड़े-हाथ ले सकता था|
मैं: ठीक है मैं देखता हूँ, पिताजी का फ़ोन आये तो उन्हें कुछ मत बताना|
इस फोन ने तो मेरी गुस्से की आग में घी का काम किया था, अभी मैंने फोन रखा ही था की सतीश जी का फ़ोन खनखना गया;
सतीश जी: मानु, ये क्या ड्रामा है? ये किस जाहिल को तुमने ठेका दिया है? साले ने सारी की सारी fitting गलत लगाई है, commode leak कर रह है, washbasins सारे गंदे लगाए हैं, मैंने designer faucets लगाने को बोला के लिए कहा था और तुम्हारे आदमी ने प्लास्टिक की टोटियाँ लगाई हैं? इसीलिए काम दिया था तुम्हें?
सतीश जी झल्लाते हुए मुझ पर चढ़ बैठे|
मैं: Sir..Sir..please listen to me....
मैंने उन्हें समझना चाहा मगर सतीश जी इतना गुस्से में थे की उन्होंने मेरी एक न सुनी और अपने गुस्से में बोलते रहे;
सतीश जी: क्या सुनूँ?...हाँ? आज के बाद मैं तुम लोगों को कोई काम नहीं दूँगा और न ही किसी और को तुम्हें काम देने दूँगा! देखता हूँ कैसे काम करते हो तुम लोग?!
सतीश जी गुस्से से उबलते हुए बोले|
मैं: सर देखिये आपका गुस्सा जायज है! But please let me talk to the guy and don't worry I assure you I'll get it replaced at no extra cost! Please sir gimme a chance!
मैंने बड़े आत्मविश्वास से अपनी बात रखी|
सतीश जी: ठीक है लेकिन कल तक सारी चीजें replace हो जानी चाहिए वरना....
सतीश जी आगे कुछ कहते उससे पहले ही मैंने अपनी बात पर वजन डालते हुए कहा;
मैं: Sir I won't give you another chance to complain!!
सतीश जी: You better!
इतना कह उन्होंने फ़ोन काट दिया| मैंने फोन जेब में डाला और गुस्से से भरा हुआ सीढ़ियाँ चढ़ने लगा, अब समय था गुस्से को बाहर निकालने का! गुस्से से लाल मैं पाँव पटकते हुए ऊपर पहुँचा, चन्दर जमीन पर पाँव फैला कर लेटा हुआ था और लेबर से आलतू-फालतू बातें करने में लगा था| मैंने चुटकी बजाई और चन्दर का ध्यान अपनी ओर खींचा, फिर मैंने उसे ऊँगली से इशारे कर के अलग बुलाया| दूर कोने पर एक कमरा था जिसमें सीमेंट की बोरियाँ पड़ी थीं, इस कमरे में कोई नहीं था इसलिए जैसे ही चन्दर कमरे में आया मैंने दाएँ हाथ से उसकी कमीज का कॉलर पकड़ कर उसे (चन्दर को) दिवार से दे भिड़ा दिया! चन्दर का कॉलर पकड़ने से मुझे उसके मुँह से शराब का भभका आया!
मुझे नहीं पता था की चन्दर शराब पीता है, उस शराब के भभके ने मेरे दिमाग में सवाल पैदा कर दिए थे; 'क्या चन्दर रोज पीता है? रोज पी कर वो उन्हें (भौजी को) परेशान करता है तथा उनके (भौजी के) साथ जबरदस्ती करने की कोशिश करता है? आखिर क्यों उन्होंने (भौजी ने) कभी मुझे चन्दर के पीने के बारे में क्यों नहीं बताया?' जब सवाल पैदा हुए तो दिमाग ने खुद इन सवालों का जवाब ढूँढना शुरू कर दिया और सवालों का जवाब ढूँढ़ते-ढूँढ़ते अनजाने में पिछले कुछ दिनों से जो हो रहा था उसके तार मैंने चन्दर के शराब पीने से जोड़ने शुरू कर दिए| 'तो इस लिए ये साला रात-रात भर साइट पर रुकता था ताकि शराब पी सके?! इसकी इसी शराब पीने के कारन ही वो (भौजी) आयुष को अपने पास सुलाती थीं ताकि ये उन्हें परेशान न कर सके?!'
गाँव में जब चन्दर ने बड़की अम्मा के सर की कसम खाई थी की वो शराब नहीं पीयेगा तो मैं भौजी और हमारे बच्चों की सुरक्षा के लिए बेपरवाह हो गया था, मगर इस हरामजादे ने फिर से पीना शुरू कर दिया है तो ये नजाने उनको (भौजी को) कितना परेशान करता होगा?!
मैं: तू शराब पीता है?
मैंने चन्दर को खा जाने वाली नजर से घूर कर देखा| मेरे सवाल पूछने से चन्दर बौखला गया और हकलाते हुए बोला;
चन्दर भैया: न...नहीं तो! क...के कहत है?
मैं अब भी बलपूर्वक चन्दर को दिवार में धँसाये हुए था|
मैं: कसम खाई थी न तुने अपनी माँ की कि तु शराब को कभी हाथ नहीं लगाएगा?!
मैंने गुस्से से पुछा|
चन्दर भैया: ऊ हमार माँ है, हम चाहे कसम खाई चाहे तोड़ी, तोहका उससे का?
ये कहते हुए चन्दर ने अपनी कमीज का कालर मेरे हाथ से छुड़ा लिया| चन्दर की हेकड़ी देख
मेरा गुस्सा फूटने कि कगार पर था, मैंने अपने दोनों हाथों से चन्दर कि कमीज के कालर पकडे और उसे जोर से दिवार पर दे मारा;
मैं: भोसड़ी के! वो मेरी भी माँ समान हैं!
मैंने चन्दर को घूर कर देखते हुए कहा|
मैं: अब ये बता, क्यों परेशान करता है अपनी पत्नी को?
मैंने दाँत पीसते हुए पुछा|
चन्दर भैया: ओह! तो ई बात है! ऊ (भौजी) हमार शिकायत किहिस है और तोहका हियाँ भेजिस है?!
चन्दर ने चिढ़िते हुए कहा और अपना कॉलर छुड़ाने की कोशिश करने लगा|
मैं: उन्होंने (भौजी ने) मुझसे कुछ नहीं कहा, उनके बिना बोले ही मैं जान गया की तेरी गाँड़ में कौन से कीड़े काट रहे हैं!
मैंने दाँत पीसते हुए कहा| चन्दर अपनी कमीज का कॉलर नहीं छुड़ा पाया तो उसने मेरी छाती पर हाथ रख कर मुझे परे धकेलना चाहा| साला नशे में था मगर फिर भी अपना जोश दिखा रहा था!
मैं: सुन बे गाँडू! वो (भौजी) मेरी दोस्त है, अगर कोई भी उन्हें परेशान करेगा तो मैं भूल जाऊँगा की मेरे सामने कौन खड़ा है!
मैंने चन्दर को दिवार से जोर से भिड़ाते हुए कहा| मुझे गुस्सा तो बहुत आ रहा था पर दिमाग फिलहाल काबू में था तभी तो मैंने अपने और भौजी के रिश्ते को दोस्ती का रिश्ता कहा था| मन तो बहुत कर रहा था की साले को सूत दूँ, मगर दिमाग कह रहा था की इसे (चन्दर को) खाली हड़का देता हूँ, कहीं इसने पिताजी से शिकायत कर दी तो मैं क्या झूठ बोलूँगा की मैंने किस हक़ से मियाँ-बीवी के बीच पड़ने की हिमाक़त की? चन्दर को हड़काने से ज्यादा बात नहीं बिगड़ती, हाँ थोड़ी बहुत डाँट पड़ती या फिर पिताजी शायद एक झापड़ रसीद कर देते, पर उतना तो मैं सह सकता था!
उधर मेरा जोश देख कर चन्दर का नशा उसे अपना गर्म खून दिखाने को उकसा रहा था की आखिर ये कौन है जो उसकी पत्नी पर अपना हक़ जता रहा है!
चन्दर भैया: बहिनचदओ! तू ....तू हमका.... मारीहो?! ऊ हमार परिवार है....हमार परिवार से दूर रह!
चन्दर के मुँह से गाली सुन कर मेरा गुस्सा फूट पड़ा! मैंने चन्दर का कॉलर कास कर पकड़ कर उसे दूसरी दिवार से दे मारा, इस बार मैंने इतनी ताक़त लगाई थी की चन्दर का सर धड़ाम से दिवार से जा टकराया था! कोई खून-खराब नहीं हुआ था लेकिन उसे दर्द जर्रूर महसूस हुआ था, चन्दर दर्द के मारे अपना सर पकड़ कर रोने लगा| उसका रोना देख कर तो मेरे अंदर का जानवर जाग गया, मैंने दाहिने हाथ से एक तेज घूसा उसके पेट पर मारा; "आअह माँ!" चन्दर अपना पेट पकड़ कर कराहने लगा! मैंने दाहिने हाथ से खींच कर एक झापड़ उसे मारा, मेरे हाथ की पाँचों उँगलियाँ उसके बाएँ गाल पर छप गईं! मैंने अपने दाहिने हाथ की कोहनी उसके टेंटुए पर दबाई और गुस्से दहाड़ते हुए बोला;
मैं: सुन बे मादरचोद! दुबारा अगर मुझे गाली दी न तो तेरी गाँड़ फाड़ दूँगा! समझा? अब मैं वो लड़का नहीं रहा जिसे तूने अपनी बेल्ट से सूता था, चहुँ तो यहीं तेरी चमड़ी उधेड़ सकता हूँ और तू मेरी झाँट नहीं उखाड़ सकता!
इस वक़्त मेरी आँखों में खून उतर आया था! उधर चन्दर दर्द से कराह रहा था, अभी तो मैंने उसे इतना मारा भी नहीं था, ये तो उसका नशा था जिसके कारन उसे इतना दर्द हो रहा था की वो रोने लगा था!
मैं: अब मेरी एक और बात सुन बहन के लंड! आज के बाद तूने उन्हें (भौजी को) हाथ लगाया, या कुछ फ़ालतू बोला तो मैं तेरे जिस्म की सारी हड्डियाँ तोड़ दूँगा! समझ गया?
चन्दर की डर के मारे फ़ट कर चार हो गई थी! वो अपना पेट पकड़ कर जमीन पर लौटने लगा, मेरे जिस्म की ज़रा से ताक़त देख चन्दर की हालत खराब हो गई थी! दर्द से कराहते हुए चन्दर बुदबुदाने लगा;
चन्दर भैया: साला हमार.....कउनो इज्जत...ही नाहीं! घर में ऊ...हमका छूए नाहीं देत और हियाँ ई (मैं) हमका आपन जिस्म की ताक़त दिखावत है! सराओ कुकुर जइसन हाल है हमार!
इतना कह चन्दर शराबियों की तरह रोने लगा|
मैं: तू इसी के लायक है हरामजादे! न तू उनकी (भौजी की) बहन पर बुरी नजर डालता और न आज तेरी ये हालत होती!
ये सुन कर चन्दर भौंचक्का रह गया और फटी आँखों से मुझे देखने लगा!
चन्दर भैया: तू...तू...सब जानत हो?
चन्दर घबराते हुए बोला|
मैं: हाँ, मैं तेरे सारे काले कारनामे जानता हूँ! वो जो तूने सतीश जी के काम में पैसों का गबन किया है उसके बारे में भी!
गबन की बात सुन चन्दर की हालत और भी पतली हो गई!
चन्दर भैया: क...क...का..हम का किहिन?
चन्दर ने झूठ बोलना चाहा पर उसकी घबराहट देख कर कोई भी कह सकता था की वो झूठ बोल रहा है|
मैं: बहनचोद! सारा माल घटिया लगाया तूने और वो (सतीश जी) फोन कर के मेरी मार रहा था! अब बताऊँ ये सब पिताजी को?
पिताजी को बताने की बात सुन कर चन्दर की फटी!
चन्दर भैया: ह...हम कछु...न...नाहीं किहन...
चन्दर घबराते हुए झूठ बोलने लगा, मगर मेरे आगे उसका झूठ चलने वाला नहीं था!
मैं: Shut Up!!!
मैं बड़ी जोर से उसपर चिल्लाते हुए बोला|
जिस आत्मविश्वास से मैं चन्दर पर बरस रहा था उसे देख चन्दर जान गया था की मैंने उसके गबन को पकड़ लिया है! अब झूठ बोलकर कोई फायदा था नहीं, इसलिए चन्दर ने मेरे पाँव पकड़ लिए और गिड़गिड़ाते हुए बोला;
चन्दर: नाहीं भैया! चाचा का कछु न बतायो! जउन तू कहिओ, तउन हम करब! हम कभी ऊ का(भौजी को) हाथ न लगाब!
चन्दर ने अनजाने में मुझे खुद को blackmail करने का रास्ता सुझा दिया था! मैंने इस blackmail के बारे में दिमाग को शांत कर के सोचना शुरू किया ही था की तभी चन्दर ने कुछ ऐसा बोला जिससे मेरा क्रोध फिर लौट आया;
चन्दर: वैसे भी कौन सा ऊ ससुरी हमका छुए देत है, कल छुए लागन तो सार हमका धकेल के दूसर कमरे में छुप गई!
चन्दर बुदबुदाते हुए बोला| उसे लगा मैंने कुछ नहीं सुना, मगर मैंने उसकी सारी बात सुन ली थी और मेरा गुस्सा फिर भड़क उठा| मैंने टाँग से उसे दूर धकेला और उसके पेट में कस कर लात मारी! चन्दर के पूरे जिस्म में दर्द की लहार दौड़ गई और वो दर्द के मारे जोर से कराहने लगा; "आअह्ह्ह!" मैंने दोनों हाथों से उसकी कमीज का कॉलर पकड़ कर उसे जमीन से उठा कर खड़ा किया, फिर उसे दिवार से दे मारा! मैंने उसके कॉलर छोड़े और खींच के तीन झापड़ उसके बाएँ गाल पर चिपका दिए! थप्पड़ एक ही जगह पड़ने से चन्दर का निचला होंठ काट गया और खून की दो-चार बूँदें गिरने लगीं! मैने दोनों हाथों से चन्दर का गला पकड़ लिया और गरजते हुए उसकी आँखों में आँखें डाले बोला;
मैं: मादरचोद! आज के बाद उनके (भौजी के) लिए एक भी गलत शब्द निकाला न तो तेरी जान ले लूँगा!
मैंने इतने गुस्से से कहा था की चन्दर का डर के मारे मूत निकल गया!
चन्दर भैया: आअह्ह्ह्ह! म...माफ़....माफ़ कर दिहो....अब हम ऊ का कछु न कहब.....हम ऊ का आस-पास भी न भटकब! ह.हम का माफ़ कर दिहो!
चन्दर हाथ जोड़ते हुए माफ़ी के लिए गिड़गिड़ाने लगा| मैंने चन्दर का गला छोड़ा, चन्दर धीरे से फर्श पर गिर पड़ा और पाना पेट पकड़ कर कराहने लगा! उसे कराहता हुआ छोड़ मैंने कमरे से बाहर आ कर देखा तो लेबर झुण्ड बना कर खड़ी थी| गुस्से से मेरे गर्म तेवर देख कर कोई कुछ नहीं बोला और मैं सबके बीच से होता हुआ सतीश जी वाली साइट की ओर चल पड़ा|
[color=rgb(226,]जारी रहेगा भाग - 20 में...[/color]