Hindi Antarvasna एक अनोखा बंधन - पुन: प्रारंभ


[color=rgb(255,]चौबीसवाँ अध्याय: उलझते-सुलझते बंधन[/color]
[color=rgb(235,]भाग-11 [/color]


[color=rgb(26,]अब तक आपने पढ़ा:[/color]

पिताजी: अब बस जल्दी से तुम दोनों की शादी हो जाए तो हम दोनों (माँ और पिताजी) तीर्थ हो आएं!

पिताजी ख़ुशी से चहकते हुए बोले, मगर उनकी ख़ुशी कुछ ज्यादा ही तेज भाग रही थी!

मैं: पिताजी, अभी भी कुछ बाकी है! बड़के दादा को मनाना और चन्दर से divorce papers पर sign लेना!

मैंने एक गहरी साँस लेते हुए कहा| बगावत का बिगुल अब बज चूका था, आज जो आग ससुर जी के कलेजे में लगी थी, वो आग सीधा गाँव में बड़के दादा की तरफ तेजी से दौड़ी जा रही थी! एक जबरदस्त विस्फोट होने को तैयार था ऐसा विस्फोट जो सब कुछ तबाह करने वाला था!

[color=rgb(84,]अब आगे:[/color]

दोपहर को बच्चे पूजा से लौटे तो दोनों के मस्तक पर टीका लगा हुआ था तथा दोनों के हाथों में प्रसाद था| दोनों बच्चे अनजान थे की घर में क्या घटित हुआ है इसलिए उनके सामने मैं, माँ-पिताजी और संगीता पहले की तरह हँस-खेल कर बात कर रहे थे|

जब से मैंने, माँ-पिताजी को संगीता और मेरे प्यार की सच्चाई बताई थी तब से हमारे (मेरे और संगीता के) बीच कुछ बदलाव आ गए थे! रात को सोने के समय आयुष संगीता के पास सोता था तथा नेहा मेरे पास| ये बदलाव मैंने शुरू किया था क्योंकि मैं नहीं चाहता था की माँ-पिताजी को ऐसा लगे की हम दोनों रात को छुप-छुप कर मिल रहे हैं| मुझे माँ-पिताजी के सामने संगीता से बात करने में थोड़ी झिझक होती थी और वही झिझक संगीता को भी हो रही थी| संगीता अब पहले की तरह घूंघट नहीं करती थी, बल्कि बस सर पर पल्ला करती थी और ये बात माँ ने ही उसे कही थी| हमारा (मेरा ओर संगीता का) एक दूसरे को देखने का नजरिया बदल गया था, पहले हमारे बीच शर्म नहीं होती थी लेकिन अब हम दोनों की आँखों में शर्म होती थी| जब हम एक दूसरे को देखते तो नचाहते हुए भी हम दोनों के होठों पर मुस्कान आ जाती थी! ये मुस्कान कोई आम मुस्कान नहीं थी, बल्कि शर्म और उत्साह से मिश्रित मुस्कान थी! संगीता मुझे अब और भी आकर्षक लगने लगी थी, उसकी मुस्कान का मैं शुरू से दीवाना रहा हूँ परन्तु अब जब मैं उसे मुस्कुराते हुए देखता तो बस दिल 'धक्क' सा रह जाता था| जब भी वो (संगीता) मुझे देख कर मुस्कुराती तो मन करता की जा कर उससे बात करूँ, मगर माँ-पिताजी के सामने शर्म आती थी इसलिए मैं भी उसे देख कर बस मुस्कुरा देता! मेरा और संगीता का पहले की तरह छुप-छुपके मिलना बंद हो चूका था| हम अपने-अपने कमरे में रहते और बस एक दूसरे को मुस्कुरा कर देख कर ही खुश हो लेते थे| कुछ भी कहो इस खेल में हम दोनों को मजा आने लगा था| ऐसा लगता था जैसे हम दोनों अनजान हैं और हरबार जब हम एक दूसरे को देखते तो ऐसा लगता की हम पहलीबार मिल रहे हैं!

खैर रात हुई और खाना खाने के बाद मैं मैं अपने कमरे में गाँव जाने के लिए ticket book कर रहा था जब पिताजी पीछे से मेरे कमरे में आये;

पिताजी: बेटा गाँव जाने की टिकट बुक कर रहा है?

पिताजी मेरे कँधे पर हाथ रखते हुए बोले|

मैं: जी, कल दोपहर की गोरक्धाम की ticket मिल रही थी तो सोचा की अपनी ticket book कर लूँ!

मैंने पिताजी की ओर नकली मुस्कान लिए हुए कहा|

पिताजी: एक नहीं, दो ticket book कर|

पिताजी मेरी नकली मुस्कान भाँप गए और मेरे कँधे को दबाते हुए मुझे एक पिता का सहरा देते हुए बोले|

मैं: दो? पर आप क्यों....

मैंने हैरान होते हुए पुछा, क्योंकि मैं अकेला गाँव जा कर बड़के दादा से बात करना चाहता था ताकि उनके गुस्से का सामना मैं करूँ न की मेरे पिताजी! लेकिन पिताजी ने मेरी बात पूरी ही नहीं होने दी, वो मेरी बात काटते हुए बोले;

पिताजी: तू बेटा है मेरा, तेरा हर फैसला मेरा फैसला है और वो (बड़के दादा) बड़े भाई है मेरे और केवल मैं ही उन्हें समझा सकता हूँ|

पिताजी बड़े विश्वास से बोले| उनकी बातें मुझे वैसी ही लगीं जैसीं मैं जोश आने पर सोचता था, शायद पिताजी की जोश में हर बात सरलता से लेने वाली आदत मुझे उनसे अनुवांशिक तौर पर मिली थी!

मैं: आपको लगता है की वो मानेंगे?

मैंने पिताजी से सवाल पुछा तो वो मुस्कुराये और मेरे सवाल के जवाब में मुझसे ही सवाल पूछ लिया;

पिताजी: तुझे लगा था मैं मानूँगा?

मैं: नहीं, पर एक उम्मीद थी!

पिताजी के सवाल ने मेरे चेहरे पर मुस्कान जगा थी, इसलिए मैंने मुस्कुरा कर उन्हें जवाब दिया|

पिताजी: वही उम्मीद मुझे भी है! अब चल 2 टिकट बुक कर और एक-आध जोड़ी कपड़े रख लिओ, हो सकता है की हमें दो-एक दिन रुकना पड़े क्योंकि भाईसाहब इतनी जल्दी नहीं मान जायेंगे|

पिताजी मेरे सर पर हाथ फेर कर मुस्कुरा कर चले गए| चलो मैं न सही, पिताजी तो सकारात्मक सोच रहे थे वरना मैं तो ये मान कर बैठा था की था की बड़के दादा मुझे कूटे बिना नहीं मानेंगे!

मैंने टिकट बुक कर ली और संगीता के Divorce papers तथा अपने एक जोड़ी कपड़े bag में रखने लगा, इतने में संगीता आ गई;

संगीता: तो आप कल गाँव जा रहे हो?

संगीता सामने की ओर हाथ बाँधे हुए बोली|

मैं: हाँ जी!
मैंने नकली मुस्कान के साथ संगीता को देखते हुए कहा| संगीता जानती थी की मैं गाँव क्यों जा रहा हूँ और उसे मेरी चिंता थी;

संगीता: अगर उसने (चन्दर ने) Divorce papers पर sign नहीं किया तो?

संगीता डरते हुए बोली| संगीता का डर जायज था मगर मेरा इरादा मज़बूत था;

मैं: I'm not gonna give him a choice!

मैंने पक्के इरादे से कहा| मेरी आवाज में आत्मविश्वास देख संगीता का डर खत्म हो गया और वो मुस्कुराते हुए मेरे कपडे तह लगाने लगी|

संगीता: जल्दी आना!

मैं: Ofcourse जान! वहाँ रुकने का कोई कारण भी नहीं है हमारे (मेरे और पिताजी के) पास!

मैंने संगीता से नजरें चुराते हुए कहा| मुझे नाते-रिश्ते टूटने का कोई गम नहीं था परन्तु संगीता को ग्लानि हो रही थी की हम जो कदम उठाने जा रहे थे उससे बहुत सारे रिश्ते टूटने वाले थे!

संगीता: हमारी एक गलती ने सब कुछ...

संगीता की ग्लानि भरी आधी बात सुन मेरा खून खोल गया और मैं संगीता को डाँटते हुए बोला;

मैं: Hey! गलती? Seriously? तुम्हें लगता है की हमने प्यार कर के गलती की? अगर हम सोच समझ कर प्यार करते तो गलती होती, पर क्या हमने प्यार करने से पहले सोचा था?

मेरे सवाल सुन संगीता को उसके कहे शब्दों का रहसास हुआ और वो सर झुका कर मेरे सवाल का जवाब देते हुए बोली;

संगीता: नहीं!

मैं: See?!

मेरा गुस्सा शांत हो चूका था और मेरे चेहरे पर मुस्कान आ गई थी| मेरी मुस्कान देख भौजी समझ गईं की मेरा गुस्सा शांत हो चूका है इसलिए वो भी मुस्कुराने लगीं और अपने कमरे में चली गईं| कुछ देर बाद माँ आईं और मेरे bag में ही पिताजी के कपड़े भी pack कर दिए|

बच्चों के सोने का समय हो चूका था और दोनों बच्चे मेरे पास आ कर एक स्वर में बोले; "पापा नीनी!" मैंने दोनों बच्चों को गोदी में उठाया और टहलते-टहलते उन्हें कहानी सुनाने लगा| दोनों बच्चे सो गए तो मैं उन्हें लिटाने के लिए संगीता के कमरे में आया, बच्चों को लिटा कर मैं अपने कमरे में आ गया| आधा घंटा नहीं हुआ होगा की नेहा रोती हुई मेरे कमरे में वापस आ गई;

मैं: Awww मेरा बच्चा!

मैंने नेहा को गोदी में लिया और अपने से चिपका कर लेट गया| मेरे सीने से लग कर नेहा को चैन मिला और वो आराम से सो गई|

अगली सुबह जब बच्चे school जाने के लिए तैयार हो रहे थे तब हम बाप-बेटा (मैं और पिताजी) गाँव जाने के लिए तैयार हो रहे थे| हमें तैयार होता देख बच्चों के मन में जिज्ञासा जगी;

आयुष: दादी जी, दादा जी कहाँ जा रहे हैं?

आयुष अपनी दादी जी (मेरी माँ) से पूछने लगा|

माँ: हाँ जी बेटा! आपके दादा जी गाँव जा रहे हैं|

माँ आयुष के सर पर हाथ फिराते हुए बोलीं| गाँव जाने का सुन कर नेहा डर गई और मुझे बड़ी उमीदों से देखने लगी की मैं उसके डर को शांत करूँ| मैंने नेहा को गोद में उठाया और अपने कमरे में आ कर उसे समझाते हुए बोला;

मैं: मेरा बच्चा! डरते नहीं हैं, आपके पापा गाँव जा रहे हैं ताकि वो आपके बड़े दादा (बड़के दादा) जी को समझा सकें| आप बिलकुल चिंता मत करो, मैं और आपके दादा जी (मेरे पिताजी) जल्दी ही वापस आ जायेंगे फिर मैं आपको रसमलाई खिलाऊँगा|

मैंने नेहा को रसमलाई का लालच दे कर मना लिया और वो पहले की तरह मुस्कुराने लगी|

बच्चों को स्कूल भेज मैं और पिताजी स्टेशन जाने के लिए निकलने लगे| मैं अपना रुमाल भूल गया था इसलिए मैं अपना रुमाल लेने अपने कमरे में आया, तभी पीछे से संगीता भी कमरे में आ गई

संगीता: I'm sorry for what I said last night, I didn't mean that!

संगीता सर झुकाते हुए बोली|

मैं: Hey!... I know!

इतना कह मैं मुस्कुराया और संगीता का हाथ पकड़ उसे अपनी ओर खींचा तथा अपने सीने से लगा कर उसका सर चूमा| संगीता ने भी मुझे अपनी बाहों में कस लिया और मेरे सीने को चूमने लगी| हम दोनों आँखें बंद किये हुए एक दूसरे में समाये हुए थे, ठीक उसी समय माँ मेरे कमरे में आ गईं और हम दोनों (मुझे और संगीता) को इस तरह एक दूसरे के पहलु में सिमटा हुआ देख माँ ने हल्ला मचा दिया;

माँ: अभी शादी नहीं हुई है तुम्हारी! चलो बाहर!

माँ हँसते हुए हम दोनों (मुझे और संगीता) को छेड़ते हुए बड़े प्यार से बोलीं और संगीता का हाथ पकड़ कर उसे बाहर ले आईं| माँ के द्वारा इस तरह पकड़े जाने में आज बहुत मज़ा आया था और मन रोमांच से भर गया था| मैं, माँ और संगीता के पीछे-पीछे बाहर बैठक में आया तो माँ, पिताजी से हम दोनों (मेरी और संगीता) की शिकायत करते हुए बोलीं;

माँ: देखलो जी, ये दोनों हमसे छुप-छुप कर अंदर गले लगे हुए थे!

माँ ने हँसते हुए कहा, माँ की बात सुन संगीता ने शर्म के मारे अपना चेहरा माँ के कँधे पर रख कर छुपा लिया|

पिताजी: भई ये तो गलत बात है!

पिताजी हँसते हुए नसीरुद्दीन साहब की नक़ल करते हुए बोले| पिताजी की बात ने सब को खिलखिलाकर हँसा दिया था| तो इस तरह हमने (मैंने और पिताजी ने) हमारे गॉंव जाने की शुरुआत की| हमारी train आने में बथेरा समय था परन्तु पिताजी को train छूटने का भय हमेशा लगा रहता है इसलिए वो हमेशा जल्दी ही घर से निकल पड़ते थे, Station जल्दी आ कर हम दोनों बैठे-बैठे ऊबने लगे!

Train आई और उसने हमें अगली सुबह लखनऊ पहुँचाया| पिताजी गाँव जाना चाहते थे जबकि मैं सीधा चन्दर से बात करने नशा मुक्ति केंद्र जाना चाहता था| नशा मुक्ति केंद्र में चन्दर अकेला होता, वो सीधे से तो Divorce papers पर sign करने वाला था नहीं, इसलिए मैं उसे डरा-धमका कर sign करवा लेता! परन्तु जब हम नशा मुक्ति केंद्र पहुँचे तो चन्दर वहाँ से पहले ही भाग चूका था इसलिए हमें अब सीधा गाँव जाना था!

जब हम गाँव पहुँचे तो वहाँ के हालात जंग के समान थे! जैसा मैंने सोचा था, बिलकुल वही हुआ था, मेरे होने वाले ससुर जी के कलेजे में लगी आग ने गाँव में हमारे घर को आग लगा दी थी! जब मैं और पिताजी गाँव पहुँचे तो हमारा सामना सीधा बड़के दादा से हुआ| बड़के दादा चारा काटने वाले कमरे से निकल रहे थे जब उनकी नजर हम बाप- बेटा पर पड़ी| हमें देखते ही वो गरजते हुए बोले;

बड़के दादा: अब हियाँ का लिए आये हो?

बड़के दादा की गर्जन सुन घर के सब लोग इकठ्ठा हो गए| इधर अपने बड़े भाई की गर्जन सुन पिताजी बड़ी नम्रता से उन्हें समझाने की कोशिश करने लगे;

पिताजी: भैया, तनिक हमार बात तो सुन लिहो?

परन्तु बड़के दादा पर अपने छोटे भाई की नम्रता का कोई असर नहीं हुआ, वे तो सारे रिश्ते-नाते तोड़ने पर तुले थे;

बड़के दादा: अब सुनने का रही का गवा है? चला जा हियाँ से, इससे पाहिले की हम भूल जाई की तू हमार सगा भाई है!

बड़के दादा की बात सुन पिताजी का दिल टूट गया था इसलिए मैंने सोचा की क्यों न मैं ही बड़के दादा को समझाने की कोशिश करूँ;

मैं: दादा, मैं आपके आगे हाथ जोड़ता हूँ! बस एक बार मेरी बात सुन लीजिये, उसके बाद दुबारा मैं आपको कभी अपनी शक्ल नहीं दिखाऊँगा!

मैंने बड़के दादा से विनती की, तभी बड़की अम्मा आ गईं और मेरा पक्ष लेते हुए बोलीं;

बड़की अम्मा: अरे सुन तो लिहो की मुन्ना का कहा चाहत है? का पता माफ़ी माँगा चाहत हो?

बड़की अम्मा जानती थीं की मैं और संगीता एक दूसरे को कितना चाहते हैं मगर फिर भी नजाने उन्हें ऐसा क्यों लग रहा था की मुझे संगीता से प्यार करने पर पछतावा हो रहा है! परन्तु मेरे मन में कोई पछतावा नहीं था, अपितु गर्व था!

मैं: दादा, मैं आपसे माफ़ी माँगने नहीं आया, बल्कि आपसे बात करने आया हूँ| मैं संगीता से बहुत प्यार करता हूँ और उससे शादी करना चाहता हूँ!

मैंने गर्व से अपनी बात सामने रखी|

मेरी आँखों में कोई डर, कोई पछतावा, कोई ग्लानि न देख और मेरी गर्वपूर्ण बात सुन बड़के दादा का गुस्सा उफान मारने लगा| वे गुस्से में बड़की अम्मा पर मेरी तरफदारी करने के लिए चढ़ बैठे;

बड़के दादा: देख लिहो आपन मुन्ना को और सुन लिहो ई पापी का कहत है?!

बड़के दादा ने गुस्से से बड़की अम्मा को घूरते हुए कहा और फिर मेरी तरफ देखते हुए बोले;

बड़के दादा: हम सभई के मोह का एहि सिला दिएक रहा?

मैंने बड़के दादा और बड़की अम्मा से नजरें मिलाई और प्यार से उन्हें समझाने लगा;

मैं: दादा, मैं आपकी बहुत इज्जत करता हूँ और अम्मा मेरे लिए दूसरी माँ हो, मेरी बड़ी माँ! पहली नजर में मुझे संगीता से प्यार हो गया था बस इसे समझने में मुझे थोड़ा समय लगा| हम दोनों अपने प्यार के उस मुकाम पर पहुँच चुके हैं जहाँ से आगे या तो शादी है या फिर मौत! मेरे माता-पिता अपने बेटे की ख़ुशी चाहते हैं इसलिए वो हमारी (मेरी और संगीता की) शादी के लिए राज़ी हो गए| मैं यहाँ बड़ी उमीदें लिए हुए आप दोनों (बड़के दादा और बड़की अम्मा) का आशीर्वाद लेने आया हूँ!

जिस धड़ल्ले से मैं, संगीता और अपने प्यार का बखान कर रहा था उसे सुन पिताजी को छोड़ सब हैरान थे| मैं तो और खुलासा करता मगर तभी पीछे से निकल कर चन्दर मेरे सामने आ गया और उसने मेरी बात काट दी;

चन्दर: बस!

चन्दर ने जब मेरी बात काटी तो मैंने अपनी बात का रुख उसी की ओर मोड़ दिया और बड़की अम्मा से चन्दर की तरफ इशारा करते हुए बोला;

मैं: अम्मा, संगीता इससे (चन्दर से) प्यार नहीं करती और वो इससे प्यार क्यों नहीं करती ये आप सभी अच्छे से जानते हैं! शादी से पहले ये जैसा बिगड़ैल हैवान था, आज भी वैसा ही हैवान है!

मैंने चन्दर के बारे में बड़े सोच-समझ कर शब्द इस्तेमाल किये थे, जबकि मन तो मेरा उसे गाली देने का कर रहा था! वहीं अपनी बुराई सुन चन्दर जल-भून कर राख हो गया और मुझे गुस्से से देखते हुए चिल्लाया;

चन्दर: चुपाये हुई जाओ, नाहीं ता आभायें हियाँ काट के रख देब!

चन्दर की धमकी सुन मेरा गुस्सा उबाले मारने लगा! मैं उसके नजदीक पहुँचा और उसे खा जाने वाली नजरों से देखते हुए बुदबुदाया;

मैं: तू काटेगा मुझे? भूल गया उस दिन साइट पर तुझे कैसे पेला था? बोल तो अभी यहीं सब के सामने पेलूं तुझे?!

मैंने दाँत पीसते हुए चन्दर को धमकाया तो वो शांत हो गया| मैं चाहता तो चन्दर पर हाथ उठा कर अपना गुस्सा शांत कर सकता था, परन्तु उस पर हाथ उठा कर मैं बात और बिगाड़ देता तथा divorce papers पर sign होना नामुमकिन हो जाता, इसीलिए मैंने चन्दर को खाली धमकी दी थी और इतनी सी धमकी से उसकी फटने लगी थी!

खैर चन्दर शांत हुआ तो मैंने बड़की अम्मा और बड़के दादा को पुनः समझाना शुरू किया;

मैं: दादा-अम्मा, आप दोनों अपने बेटे (चन्दर) की सारी हरकतें जानते थे उसके बाद भी आपने इसकी शादी जानबूझ कर संगीता से कराई तथा उसका जीवन बर्बाद कर दिया! जो इंसान अपनी माँ की कसम खा कर तोड़ दे ऐसे इंसान को जानवर ही कहेंगे न? और आपने ऐसे जानवर को संगीता के गले बाँध दिया? ये वेह्शी जानवर संगीता को मारता-पीटता था, उसके साथ जबरदस्ती करता था और तो और ये (चन्दर) जो बार-बार मामा जी के घर भाग जाता है, उसका कारन आप दोनों जानते हैं न? अरे इस कमीने ने तो संगीता की छोटी बहन तक को नहीं छोड़ा, जिस कारन संगीता इसे अपने आस-पास भटकने तक नहीं देती थी! जो प्यार, जो ईमानदारी इस कमीने को दिखानी चाहिए थी वो संगीता को मुझ में दिखी और उसे मुझसे प्यार हो गया! अब आप दोनों ही बताइये की इसमें हमारा क्या कसूर था? क्या सच में आपकी नजरों में मैं कसूरवार हूँ?

मेरी बातों का बड़के दादा और बड़की अम्मा पर गहरा प्रभाव पड़ा था, एक तरफ जहाँ बड़की अम्मा का अपने खून की काली करतूत सुन कर सर झुक गया था वहीं बड़के दादा का गुरूर उन्हें झुकने नहीं दे रहा था!

बड़के दादा: अगर ई (चन्दर) केहू के पास जावत है तो ई की कसूरवार संगीता है! ऊ अगर आपन पति की जर्रूरत पूरी ना करि तो पति तो गलत रास्ता जाबे करि!

बड़के दादा का गुमान, उनका मर्द होने की अकड़ उनकी अक्ल पर पड़े पत्थर समान था, जो उन्हें सही और गलत सोचने नहीं देता था| बड़के दादा की बात सुन मेरा खून उनपर खौल गया और मैं उनकी बात का विरोध करते हुए बोला;

मैं: जर्रूरतें? दुनिया में ऐसी कौन सी पत्नी है जो सुहागरात पर अपने पति के मुँह से अपनी छोटी बहन का नाम सुन कर उसे खुद को छूने देगी?

मैंने करारा सवाल पुछा तो बड़के दादा एक पल के लिए निरुत्तर हो गए, परन्तु फिर उनके ज़ेहन में मर्द होने का गुरूर बोल उठा;

बड़के दादा: ऊ औरत है!

बड़के दादा के कहे इन तीन शब्दों ने मेरे सब्र का बाँध तोड़ दिया था और मैं उन (बड़के दादा) पर चिल्लाने को विवश हो गया था, परन्तु मैं बड़के दादा पर बरसता उससे पहले ही पिताजी अपने बड़े भाई पर बरस पड़े;

पिताजी: बस बहुत हुई गवा भाईसाहब! संगीता औरत है तो का उसे आप दबा के रखिओ, ठीक वैसे है जैसे आप हमर भाभी (बड़की अम्मा) का दबाये रखत रहेओ? हम आज तलक ऊ दिन नाहीं भूलेन जब भाभी से गलती हुई जाए पर आप भाभी का हाथ किवाड़ का कब्ज़ा मा दबाये के भाभी का दर्द दिया करत रहेओ! तब हम छोट रहन, आप से डराइत रहन, एहि से न कभौं कुछ कह सकन न ही भाभी का बचाये सकन! लेकिन आज तलक न आप बदलैओ न ही आपकी सोच बदली, अभऊँ गिरी हुई सोच पाले बैठे हो!

आज जिंदगी में पहलीबार पिताजी ने अपने बड़े भाई के खिलाफ अपनी आवाज बुलंद की थी और अपने भाई (मेरे पिताजी) के बगावती तेवर देख बड़के दादा मेरे पिताजी को ताना मारते हुए बोले;

बड़के दादा: जानत रहन तू आपन भाभी का तरफदारी जर्रूर करिहो! जैसन बाप वैसन बेटा! जब बाप पर प्यार का बुखार चढ़ा रहा और ऊ दूसर ज़ात की लड़की से ब्याह कर लिहिस तो तोहार लड़िकवा तो तोहरे से आगे सोचबे करि! ऊ तो ससुर आपन भौजी पर ही बुरी नजर डालिहिस!

बड़के दादा के यूँ मुझ पर तोहमद लगाने से मेरा दिमाग फ़िर गया और मैं उन पर गरज पड़ा;

मैं: मैंने बुरी नजर डाली? कोई पाप या अधर्म नहीं किया मैंने, प्यार किया है मैंने संगीता से और अब उससे शादी करने वाला हूँ! मुझे गर्व है मेरे माता-पिता पर, जब वो मुझे देखते हैं तो उनकी आँखों में मुझे मेरे लिए गर्व नजर आता है! आपकी तरह उन्हें अपने बेटे को देख कर कोई ग्लानि कोई शिकवा नहीं होता!

मेरा ये रूखापन देख बड़के दादा आँखें फाड़े मुझे देख रहे थे|

पिताजी: बेटा, कागज़ निकाल|

पिताजी बात खत्म करने के लिए मुझसे बोले| मैंने बैग से divorce papers निकाले और चन्दर की तरफ बढ़ाते हुए पहले बड़के दादा से बोला;

मैं: मैं यहाँ आप की कीचड भरी बातें सुनने नहीं आया था, मैं आपको समझाने और मनाने आया था परन्तु आपका गर्म दिमाग मेरी बातें समझने लायक नहीं है!

फिर मैंने चन्दर को देखा जो घृणा भरी नजरों से मुझे देख रहा था;

मैं: ये ले और इन कागज़ों पर sign कर दे!

कागज़ देख कर चन्दर हैरान हुआ और आँखें बड़ी कर के कागज देखने लगा;

मैं: देख क्या रहा है? तलाक के कागज़ हैं, चल sign कर!

मैंने गुस्से से चन्दर को हुक्म देते हुए कहा|

चन्दर: ह...हम न करब!

Divorce के कागज़ देख कर चन्दर हकलाने लगा, मगर मैं उसकी अक्ल ठिकाने लगाना जानता था;

मैं: जानता था, तू यही कहेगा!

इतना कह मैंने अपनी जेब से फोन निकाला और सतीश जी को कॉल मिला कर फ़ोन speaker पर डाल दिया;

मैं: हेल्लो, सतीश जी?

सतीश जी का नाम सुन चन्दर के हाव-भाव बदलने लगे! वो जानता था की सतीश जी वकील हैं और चन्दर ने उन्हीं के काम में घपला किया था!

मैं: सर मुझे आपसे कुछ पूछना था, जो पति अपनी बीवी को मारता-पीटता हो, उसके साथ जबरदस्ती करता हो, ऐसे इंसान को कौन सी दफा लगती है?

सतीश जी तो पहले ही जानते थे की मैं गाँव आया हुआ हूँ इसलिए वो अपनी रोबदार आवाज में बोले;

सतीश जी: सीधा-सीधा 'घरेलु उत्पीड़न' का केस है| पत्नी हर्जाने के तहत पति से कितने भी पैसे माँग सकती है और पैसे न देने पर पति को जेल होगी| अगर पत्नी को किसी भी तरह से धमकाया गया, डराया गया, जोर-जबरदस्ती की जाती है तो पति को जेल पक्की है!

सतीश जी की बात सुनकर चन्दर की सिट्टि-पिट्टी गुल हो गई! उस बेचारे की जान उसके हलक में आ गई थी, मगर फिर भी मैंने उसकी और फाड़ने की सोची;

मैं: और हाँ पैसे की हेरा-फेरी की कौन सी दफा लगती है?

सतीश जी: दफा 420!

बस इतना सुनना था की चन्दर की फट कर चार हो गई और उसने मेरे हाथ से कागज लिया, मैंने उसे जेब से pen निकाल कर दिया और कागज में जहाँ-जहाँ उसे sign करना था वो जगह बताने लगा| मैंने सतीश जी को 'thank you' कहा और फ़ोन जेब में रख लिया| मैंने जब बड़के दादा की ओर देखा तो उनके चेहरे पर कोर्ट-कचेहरी का डर झलकने लगा था| मेरी तरफ कानून था और बड़के दादा की तरफ कोई मददगार नहीं था इसलिए वो खामोश थे|

चन्दर ने कागज़ों पर अपने sign किये और मैंने उसके हाथ से कागज तथा pen दोनों खींच लिए| मेरा काम हो चूका था परन्तु इस सब से मैंने अपनी बड़की अम्मा का दिल बहुत दुखाया था! मैं बड़की अम्मा के पास आया और हाथ जोड़ कर उनसे माफ़ी माँगने लगा;

मैं: अम्मा, मुझे माफ़ करना, मैंने आज आपका दिल दुखाया! दादा तो अभी गुस्से में हैं और शायद मुझे कभी माफ़ भी न करें, लेकिन आप मुझे गलत मत समझना! आप मेरी बड़ी माँ हो और मैं अपनी शादी में आपके आशीर्वाद की उम्मीद करूँगा!

मेरी बात सुन बड़की अम्मा के चेहरे पर एक बुझी हुई सी मुस्कान आ गई| बड़की अम्मा ने संगीता का दर्द महसूस किया था, किसी ने भले ही मेरी बात न समझी हो मगर बड़की अम्मा ने मेरी बात समझी थी और दिल से मानी भी थी|

बड़के दादा और बड़की अम्मा एक साथ खड़े थे| अपनी बात कह मैंने बड़के दादा और बड़की अम्मा के पैर छूने चाहे, मगर बड़के दादा ने मेरी ओर अपनी पीठ कर दी, परन्तु बड़की अम्मा वहीं खड़ी रहीं! उन्होंने मेरे सर पर हाथ रखा और बिना कोई शब्द कहे अपना आशीर्वाद दिया| देखा जाए तो मेरे लिए इतना ही काफी था, क्योंकि बड़के दादा से मैंने कभी प्यार की उम्मीद नहीं की थी! पिताजी ने भी हाथ जोड़ के अपने भाई-भाभी से माफ़ी माँगी, बड़की अम्मा ने तो रूँधे गले से मुस्कुरा कर पिताजी को माफ़ कर दिया परन्तु बड़के दादा का दिल पत्थर का था| उनके दिल में अपने भाई के लिए जरा सा भी प्यार नहीं था, अब जो वो बोलने वाले थे उससे उनके (बड़के दादा के) दिल में जो जहर भरा था वो बाहर आ गया;

बड़के दादा: तुम दुनो (दोनों) जन, आज का बाद दुबारा कभौं हमका आपन सकल (शक्ल) न दिखायो! ई गाँव से, ई घर से तोहार हुक्का-पानी बंद!

बड़के दादा के पैने शब्दों ने मेरे पिताजी का दिल छलनी कर दिया था! उनका दिल रो रहा था और इसका दोषी मैं था.सिर्फ और सिर्फ मैं! अपने पिता को ऐसा दुःख देने के लिए मैं ताउम्र खुद को माफ़ नहीं कर सकता!

मैंने पिताजी के कँधे पर हाथ रख उन्हें सहारा दिया और उनका कंधा दबाते हुए उन्हें दिलासा देने लगा| हम दोनों बाप-बेटे बिना किसी से और कुछ कहे प्रमुख सड़क की ओर पैदल चल दिए| अभी हम कुछ दूर पहुँचे होंगे की तभी खेतों के बीच से हमारी ओर दौड़ती हुई सुनीता दिलखाई दी|

[color=rgb(51,]जारी रहेगा भाग-12 में...[/color]
 

[color=rgb(255,]चौबीसवाँ अध्याय: उलझते-सुलझते बंधन[/color]
[color=rgb(226,]भाग-12[/color]


[color=rgb(26,]अब तक आपने पढ़ा:[/color]

बड़के दादा: तुम दुनो (दोनों) जन, आज का बाद दुबारा कभौं हमका आपन सकल (शक्ल) न दिखायो! ई गाँव से, ई घर से तोहार हुक्का-पानी बंद!

बड़के दादा के पैने शब्दों ने मेरे पिताजी का दिल छलनी कर दिया था! उनका दिल रो रहा था और इसका दोषी मैं था.सिर्फ और सिर्फ मैं! अपने पिता को ऐसा दुःख देने के लिए मैं ताउम्र खुद को माफ़ नहीं कर सकता!

मैंने पिताजी के कँधे पर हाथ रख उन्हें सहारा दिया और उनका कंधा दबाते हुए उन्हें दिलासा देने लगा| हम दोनों बाप-बेटे बिना किसी से और कुछ कहे प्रमुख सड़क की ओर पैदल चल दिए| अभी हम कुछ दूर पहुँचे होंगे की तभी खेतों के बीच से हमारी ओर दौड़ती हुई सुनीता दिलखाई दी|

[color=rgb(61,]अब आगे:[/color]

सुनीता
: नमस्ते अंकल जी!

सुनीता मुस्कुराते हुए बोली|

पिताजी: नमस्ते बेटी, खुश रहो!

पिताजी ने हँसी-ख़ुशी सुनीता को आशीर्वाद दिया|

सुनीता: Hi मानु जी!

सुनीता ने मुस्कुराते हुए कहा|

मैं: Hi!

मैंने भी मुस्कुरा कर जवाब दिया|

सुनीता: आप वापस दिल्ली जा रहे हो?

सुनीता ने मेरे कँधे पर bag देखते हुए पुछा, मगर मैं कुछ जवाब देता उससे पहले ही वो बोल पड़ी;

सुनीता: ये क्या बात हुई, कुछ देर पहले ही तो आपको आते हुए देखा था?! कम से कम अपनी दोस्त को तो बता देते की आप आ रहे हो? मैं कुछ नहीं जानती, कल मेरी शादी है और आपको दो दिन के लिए रुकना होगा!

सुनीता एक साँस में अपनी सारी बात बिना किसी शर्म के कह गई, तथा प्यार से हक़ जताते हुए मुझे रुकने को कहा|

मैं: सुनीता, तुम्हारी शादी के लिए मेरी तरफ से ढेरों शुभकामनाएं! परन्तु मुझे माफ़ करना पर मैं तुम्हारी शादी में सम्मिलित नहीं हो पाऊँगा! तुम तो जानती ही हो की गाँव भर में क्या बात फैली हुई है, मैं नहीं चाहता की मेरे कारन तम्हारी शादी में कोई रुकावट आये!

मैंने सुनीता को प्यार से समझना चाहा, पर वो कहाँ मानने वाली थी;

सुनीता: कोई कुछ भी कहे, मुझे उससे कोई फर्क नहीं पड़ता! आपने प्यार किया है और आपके मम्मी-पापा भी इस शादी के लिए तैयार हैं तो किसी को कोई हक़ नहीं कुछ कहने का!

सुनीता मेरी तरफदारी करते हुए बोली|

मैं: Thank you! कम से कम तुम तो सबकी तरह नहीं सोचती| पर please मैं तुम्हारी शादी में आ कर रंग में भंग नहीं डालना चाहता|

मैंने बड़े प्यार से सुनीता को समझाते हुए मना किया|

सुनीता: प्लीज रूक जाओ ना!

सुनीता छोटे बच्चे की तरह जिद्द करते हुए बोली और उसे यूँ जिद्द करता हुआ देख मैं और पिताजी हँस पड़े!

मैं: यार, अगर मैं रूक सकता तो क्या मना करता?

मैंने तर्क किया तो सुनीता एकदम से बोली;

सुनीता: नहीं!

सुनीता थोड़ी मायूस होते हुए बोली| दरअसल मेरी और सुनीता की ऐसी कोई घनिष्ट मित्रता नहीं थी, मेरे लिए वो बस एक साधारण दोस्त थी पर उसके लिए में दोस्त से थोड़ा ज्यादा था! गाँव में जो मैंने उसके साथ शादी के लिए मना कर के उसे पढ़ने का मौका दिया था उसके चलते सुनीता मुझे बहुत ख़ास मानती थी| फिर भौजी से जुदाई होने के बाद मेरा मन खट्टा हो चला था और मैंने किसी से कोई रिश्ते बनाने की नहीं सोची! हाँ हम दोनों (मैं और सुनीता) कभी-कभार facebook पर बात किया करते थे और वो मुझे सब बताया करती थी| एक-आध बार सुनीता ने मिलने के लिए बुलाया भी मगर मेरा जाना नहीं हो पाया|

खैर मेरी बात से सुनीता का दिल मायूस हो रहा था तो मैंने उसका ध्यान भटकाने के लिए लड़के की बात छेड़ दी;

मैं: अच्छा ये तो बताओ की लड़का कौन है?

सुनीता: मेरे ही college का, उसकी दिल्ली में wholesale की दूकान है!

ये कहते हुए सुनीता शर्माने लगी|

मैं: अरे वाह! मतलब लड़का तुम्हारी पसंद का है! तब तो शादी के बाद तुम भी दिल्ली में ही रहोगी, फिर तो तुम्हें मेरी शादी में जर्रूर आना होगा!

मेरी शादी के बारे में सुन सुनीता एकदम से बोली;

सुनीता: अरे मैं तो बिन बुलाये आ जाऊँगी, आप बस अपना मोबाइल नंबर दो!

मैंने सुनीता को अपना नंबर दिया और उसने तुरंत मुझे miss call मार के अपना नंबर दे दिया| फिर मैंने और पिताजी ने उससे विदा ली और लखनऊ केसर बाग़ बस स्टैंड के लिए निकले, वहाँ पहुँचने तक मेरे तथा पिताजी के बीच कोई बात नहीं हुई| जहाँ एक तरफ पिताजी अपने भाई द्वारा घर निकाला देने के कारण दुखी थे तथा अपना गम छुपाने के लिए खामोश थे, वहीं दूसरी ओर मैं उनको बड़के द्वारा घर निकाला देने का कारण होने की ग्लानि की वजह से चुप था| बस स्टैंड पहुँच कर मैंने दिल्ली जाने वाली अगली बस की टिकट ली, बस आने में करीब आधे घंटे का समय था तो मैंने बड़ी हिम्मत कर के पिताजी से बात शुरू की;

मैं: पिताजी मुझे माफ़ कर दीजिये, मेरे कारण आपको....

मैं मायूस होते हुए बोला, परन्तु मेरी पूरी बात सुने बगैर ही पिताजी ने मुझे अपने गले लगा लिया और मुझे प्यार से समझाते हुए बोले;

पिताजी: बेटा तूने कुछ नहीं किया! तूने बस प्यार किया और मैंने तेरा इस निर्णय में साथ दिया| तूने कोई पाप थोड़े ही किया जो मुझे तेरे से कोई गिला- शिकवा हो?

इतना कह पिताजी ने मुझे रोने नहीं दिया और फिर मुझे अपने साथ बिठा कर समझाने लगे;

पिताजी: तू जानता है मैंने तेरा साथ क्यों दिया? क्यों मैं आज अपने बड़े भाई के खिलाफ बोल सका?

मेरे लिए पिताजी के दोनों सवालों का जवाब; 'पुत्र मोह' था, परन्तु असल में बात कुछ और ही थी;

पिताजी: मैंने तेरा साथ केवल इसलिए नहीं दिया क्योंकि तू मेरा बेटा है, मैंने तेरा साथ इसलिए दिया क्योंकि तूने अपने प्यार को छुपाया नहीं, बल्कि मुझे तथा अपनी माँ को सच बताया| मैंने तेरा साथ इसलिए दिया क्योंकि तू संगीता से शादी करना चाहता था ताकि तू अपने होने वाले बच्चे को अपना नाम दे सके| मुझे और तेरी माँ को दादा-दादी बनने का सुख मिल रहा है, ऐसी गुणवान बहु (संगीता) मिल रही है जो सदैव इस परिवार को अपनी प्रेम और निष्ठा से बाँध कर रखेगी! अगर तू ये शादी हमसे (मेरे माँ-पिताजी से) बिना बताये करता, हमसे झूठ बोल कर करता, या घर से भाग कर करता तो मैं तेरा कतई साथ नहीं देता! तू शादी कानूनी तौर पर करना चाहता है और मुझे तेरे इस निर्णय पर फक्र है!

पिताजी की सारी बात जानकार मुझे उन पर गर्व हो रहा था| मैंने कभी नहीं सोचा था की पिताजी मुझसे इतना प्यार करते हैं!

पिताजी: रही बात मेरे भाई साहब की तो, मुझे जानकार दुःख हुआ की उन्होंने आजतक तेरी माँ को और मुझे कभी इस परिवार का हिस्सा ही नहीं माना! उनके लिए मेरा शादी करना आज भी पाप है और ये जानकार मुझे सच में उनसे नफरत होने लगी है| खैर, तू इन बातों को छोड़ और अपनी शादी के बारे में सोच|

जहाँ पिताजी को अपने भाई के कहे शब्दों पर क्रोध आ रहा था, वहीं मेरे अच्छे जीवन की कामना ने उनके चेहरे पर प्यारी सी मुस्कान जगा दी थी|

सुबह से मैंने और पिताजी ने कुछ खाया नहीं था और अभी शाम होने को आई थी| बस से सफर करना था तो पिताजी और मैं खाना नहीं खाते थे, इसलिए हमने चाय और बिस्कुट खाये| जब Volvo बस आ कर लगी तो उसे देख पिताजी मुस्कुराये और मेरी पीठ थपथपाते हुए बोले:

पिताजी: ये अच्छा किया बेटा तूने 'बड़ी वाली बस' की ticket कराई, अब आराम से घर पहुँचेंगे|

हम अपनी सीट पर बैठे, पिताजी ने बड़े आराम से कुर्सी पीछे झुका कर लेट गए| बस चली और थोड़ी ही देर में नेहा का फ़ोन आ गया;

नेहा: पापा जी, आप कब घर आ रहे हो?

नेहा मुझसे थोड़ा नाराज होते हुए बोली|

मैं: बेटा मैं और आपके दादा जी बस से दिल्ली आ रहे हैं, अगर late नहीं हुए तो कल सुबह आपके स्कूल जाने से पहले हम घर पहुँच जायेंगे|

इतना सुनना था की नेहा की सारी नाराजगी काफूर हो गई और वो फ़ोन पर मुझे अपनी मीठी-मीठी पप्पी देने लगी! फिर नेहा ने कहा की उसे दादाजी (मेरे पिताजी) से बात करनी है तो मैंने बगल में बैठे पिताजी को फ़ोन दिया| दोनों दादा-पोती में काफी देर तक बात हुई, नेहा ने आयुष की शिकायत करनी शुरू कर दी थी और पिताजी कह रहे थे की वो आ कर आयुष से बात करेंगे|

अगली सुबह बस धुंध के कारण दिल्ली देर से पहुँची, सुबह के 8 बज रहे थे और मैं सतीश जी को संगीता के Divorce papers देने के लिए मचल रहा था| मैंने पिताजी को cab करवा के घर भेजा और मैं पहुँचा सीधा सतीश जी के पास| सतीश जी को सारे कागज दे कर मैंने उन्हें case file करने को कहा| उधर पिताजी घर पहुँचे और माँ से अपने कमरे में बैठे अकेले में बात करने लगे;

पिताजी: तुम सही कहती थी मानु की माँ! जबतक मैं पैसे खर्च कर रहा था, घर का खर्चा उठा रहा था तबतक मैं सागा भाई था, लेकिन जब मैंने अपने बेटे की ख़ुशी चाहि तो मुझे घर से निकाल दिया! तुम्हें बियाह के जब पहलीबार गाँव गया था, जो तिरस्कार भैया ने हमारा किया था मैं उस तिरस्कार तक को भूल गया था, लेकिन भैया के लिए तुम आज भी दूसरी ज़ात की हो!

ये कहते हुए पिताजी का गला भर आया| अब माँ ने एक सच्ची जीवन संगनी का फ़र्ज़ निभाया और पिताजी को सहारा देते हुए बोलीं;

माँ: देखिये जी, सगा भाई न सही परन्तु भगवान ने हमें जो लाल दिया है वो तो आपका मान-सम्मान करता है! एक बहु मिलने वाली है जो हमें अपने सगे माँ-पिताजी से ज्यादा प्यार करती है! पोता-पोती हैं और अब तो एक और भी आने वाला है! तीनो पोता-पोती आपको खूब सारा प्यार देंगे!

माँ ने बड़े प्यार से पिताजी को समझाया तो पिताजी के मन से सब दुःख दूर हो गए और वे मुस्कुराने लगे|

माँ-पिताजी ये नहीं जानते थे की संगीता ने दरवाजे पर खड़े हो कर माँ-पिताजी की सारी बात सुन ली! आँखों में आँसूँ लिए संगीता कमरे के भीतर पहुँची और रुँधे गले से पिताजी से बोली;

संगीता: पिताजी....मुझे माफ़ कर दीजिये....मेरे कारण .....

अपनी होने वाली बहु को रोता देख माँ ने फ़ौरन संगीता को अपने गले लगा लिया और उसे पुचकारने लगीं| इधर पिताजी संगीता को समझाते हुए बोले;

पिताजी: बेटी इधर तू रो रही है, उधर कल मानु बस स्टैंड पर रो रहा था| बेटी तुम दोनों हमारे बच्चे हो और माँ-बाप के लिए उनके बच्चों की ख़ुशी पहले होती है! मैं क्यों अपने भाई के घर निकाले का दुःख करूँ जब मेरे पास मेरे बहु-बेटा, पोता-पोती हैं!

पिताजी मुस्कुराये और माँ से बोले;

पिताजी: मानु की माँ अब हमारी होने वाली बहु को ज़रा हँसाओ-बुलाओ! और तुम भी सुन लो बहु तुम माँ बनने वाली हो इसलिए आज के बाद जो कभी रोई न तो मानु और तुम दोनों की पिटाई कर दूँगा!

पिताजी ने थोड़ा प्यार से संगीता को डाँटते हुए कहा| पिताजी की ये प्यार भरी डाँट सुन संगीता हँस पड़ी और पिताजी का आशीर्वाद ले कर नाश्ता बनाने लगी|

सतीश जी को कागज दे कर मैं घर लौटा तो नाश्ता तैयार था, नहा-धो कर मैं नाश्ता करने बैठा तो माँ ने बताया की नेहा और आयुष मेरे से मिलने के चक्कर में आज school नहीं जा रहे थे, बड़ी मुश्किल से माँ ने उन्हें समझा-बुझा कर school भेजा था| मैं जान गया की वापस आ कर बच्चे मुझसे नाराज होंगे इसलिए उन्हें खुश करने के लिए मैंने रसमलाई वाली रिश्वत देने की बात माँ को बताई| मेरी रिश्वत वाली बात सुन माँ, पिताजी और संगीता हँस पड़े!

नाश्ता करने के बाद पिताजी ने हमारे (मेरे और संगीता के) सामने अपना surprise खोल दिया;

पिताजी: बेटा तुम दोनों की शादी धूम-धाम से हो ये हम दोनों (माँ और पिताजी) की ख्वाहिश है, इसलिए मैंने तीन दिन पहले ही पंडित जी को तुम दोनों की कुंडली दिखाई थी और उन्होंने तुम दोनों की शादी का मुहूर्त 8 दिसंबर का निकाला है!

पिताजी का ये खुशियों भरा बम फूटने से मेरे और संगीता के चेहरे पर मुस्कान आ गई|

मैं: सच पिताजी?

मैं ख़ुशी से चहकते हुए बोला|

पिताजी: अरे बेटा, तुम दोनों की शादी की तैयारी भी शुरू हो चुकी है! वो तो तेरी माँ का कहना था की ये बात तुझसे राज़ रखी जाए!

मेरी शादी धूम-धाम से हो ये मैं भी चाहता था, परन्तु माँ-पिताजी को कोई ताने न मारे बस इसी डर से मैं धूम-धाम से शादी नहीं करना चाहता था| लेकिन कल शाम को पिताजी ने मुझे जो समझाया था उसे जानकर मेरा भी मन धूम-धड़ाके से शादी करने के लिए कर रहा था| मैं ख़ुशी-ख़ुशी उठा और माँ-पिताजी के पाँव छुए तथा पिताजी के गले लग गया!

पिताजी: बेटा तेरी माँ और मैंने मिलकर मेहमानो की सूची बना ली है, लेकिन कुछ नाम हैं जिनके बारे में हमें नहीं पता की उन्हें बुलाया जाए या नहीं?!

पिताजी की बात सुन मेरे चेहरे पर शिकन पड़ने लगी;

मैं: कौन-कौन पिताजी?

मैंने नाम पूछे तो पिताजी ने नाम गिनाये;

पिताजी: अनिल तेरा होने वाला साला, अशोक, अनिल, गट्टू (बड़के दादा के लड़के)|

पिताजी की बात सुन संगीता उदास हो गई, जिस तरह मैं हमारे टूटने वाले रिश्तों के पिताजी पर पड़ने वाले प्रभाव को ले कर चिंतित था, उसी तरह संगीता भी चिंतित थी परन्तु मैं संगीता की pregnancy के चलते उसे ज्यादा खुश रखना चाहता इसलिए मैंने पिताजी से बात कुछ इस प्रकार की कि संगीता के दिल पर कोई भार न रहे;

मैं: अनिल, मतलब मेरे होने वाले साले साहब से मेरी what's app पर हाल-चाल हो रही थी, लेकिन रविवार से वो what's app पर मेरे किसी भी message का जवावाब नहीं दे रहा, आज उससे बात करके देखता हूँ! रही बात अनिल, अशोक और गट्टू भैया की तो वो नहीं आने वाले!

पिताजी: पर अशोक, वो तो तुझे बहुत मानता है?

अशोक भैया से गाँव में मेरी बहुत बनती थी, असल में भाइयों वाला प्यार मुझे बस उन्हीं से मिला था|

मैं: मैं उनसे एक बार बात कर के देखता हूँ| वैसे और किस-किस को आपने बुलाया है?

मैंने बातों का रुख जानबूझ कर मोड़ दिया ताकि संगीता चिंता न करने लगे| जैसे ही मैंने पुछा कि मेहमानों कि सूची में कौन-कौन है तो पिताजी ने अपनी बनाई हुई सूची मेरे आगे कर दी और बोले;

पिताजी: ये रही list, खुद देख ले और दिषु के अलावा किसी का नाम लिखना हो तो मुझे बताइओ! अच्छा, मैं चला चाँदनी चौक, तेरी शादी के card लेने!

पिताजी ने शादी के card लेने जाने की बात बड़े गर्व से कही| इधर अपनी शादी के card के बारे में सुन कर मैं हक्का-बक्का रह गया!

मैं: आपने वो भी बनवा दिए? क्या बात है पिताजी आप तो आज surprise पर surprise दिए जा रहे हो!

मैंने हँसते हुए पिताजी की तारीफ करते हुए कहा|

पिताजी: बेटा कभी-कभी बाप को बेटे से भी कुछ चीजें सीख लेनी चाहिए| तू तो हमें बड़े सर्परेज (surprise) देता रहता है, तो हमने (माँ और पिताजी ने) सोचा की हम भी तुझे सर्परेज दें!

ये कहते हुए पिताजी खूब जोर से हँस पड़े| अपने माँ-पिताजी के चेहरे पर आज ये ख़ुशी देख कर मैं बहुत खुश था, मेरे लिए तो बस यही स्वर्ग था!

खैर पिताजी मेरी शादी के card लेने चल दिए और माँ नहाने चली गईं| संगीता रसोई में खाना बनाने की तैयार कर रही थी और साथ ही मुझे देख-देख कर मुस्कुराये जा रही थी! मैं भी संगीता की मुस्कान का जवाब मुस्कुरा कर दे रहा था परन्तु मेरा दिमाग अनिल (मेरा होने वाला साला) को ले कर चिंतित था| 'ये तो पक्का है की (मेरे होने वाले) ससुर जी ने अनिल को फ़ोन जर्रूर किया होगा तथा मेरे और संगीता के बारे में सब बता दिया होगा, ये सब जानने के बाद आखिर अनिल ने फोन क्यों नहीं किया? क्या वो मुझसे नफरत करता है?' मैं अभी ये सवाल दिमाग में सोच ही रहा था की मेरे इन सवालों का जवाब दरवाजे पर पहुँच गया!

दरवाजे पर दस्तक हुई तो संगीता मुस्कुराते हुए मेरी बगल से निकली और दरवाजा खोला| संगीता को लगा की शायद पिताजी (मेरे) होंगे, परन्तु जब उसने अपने सामने अनिल और उसके हाथ में plaster चढ़े देखा तो वो दंग रह गई!

संगीता: अ...अनिल...ये...ये सब कैसे हुआ?

संगीता डर के मारे सकपकाते हुए बोली| उधर बैठक में बैठे हुए जब मैंने अनिल का नाम सुना तो मैं एकदम से उठ खड़ा हुआ और दरवाजे की तरफ बढ़ा, तभी अनिल ने भोयें सिकोड़ कर अपनी बहन को देखा और बोला;

अनिल: दीदी, वो सब बाद में! पहले ये बताओ की क्या मैंने जो सुना वो सच है, आप मानु जी से शादी कर रहे हो?

अनिल ने बहुत गंभीरता से पुछा|

संगीता: तू पहले अंदर आ और बैठ फिर बात करते हैं|

संगीता ने दरवाजा छोड़ा और अनिल को भीतर बुलाया| अंदर आने पर अनिल ने मुझे देखा परन्तु उसने मुझसे कुछ नहीं कहा और सीधा बैठक में पड़ी कुर्सी पर बैठ गया| उसके हाव-भाव देख कर मैं मन ही मन सोचने लगा की कहीं कोई और बवाल न खड़ा हो जाए!

मैंने अपने आपको मानसिक रूप से सज किया और उसके सामने सोफे पर बैठ गया|

[color=rgb(51,]जारी रहेगा भाग-13 में...[/color]
 

[color=rgb(255,]चौबीसवाँ अध्याय: उलझते-सुलझते बंधन[/color]
[color=rgb(235,]भाग-13[/color]


[color=rgb(26,]अब तक आपने पढ़ा:[/color]

अनिल: दीदी, वो सब बाद में! पहले ये बताओ की क्या मैंने जो सुना वो सच है, आप मानु जी से शादी कर रहे हो?

अनिल ने बहुत गंभीरता से पुछा|

संगीता: तू पहले अंदर आ और बैठ फिर बात करते हैं|

संगीता ने दरवाजा छोड़ा और अनिल को भीतर बुलाया| अंदर आने पर अनिल ने मुझे देखा परन्तु उसने मुझसे कुछ नहीं कहा और सीधा बैठक में पड़ी कुर्सी पर बैठ गया| उसके हाव-भाव देख कर मैं मन ही मन सोचने लगा की कहीं कोई और बवाल न खड़ा हो जाए!

मैंने अपने आपको मानसिक रूप से सज किया और उसके सामने सोफे पर बैठ गया|

[color=rgb(44,]अब आगे:[/color]

अनिल ने फिर मेरी ओर देखा ओर अपनी दीदी से नाराज होते हुए दुबारा अपना सवाल दोहराया;

अनिल: बोलो दीदी, क्या आप और मानु जी शादी कर रहे हैं?

संगीता मेरी बगल में बैठते हुए पूरे आत्मविश्वास से बोली;

संगीता: हाँ! हम दोनों एक दूसरे से बहुत प्यार करते हैं और जल्द ही शादी कर रहे हैं!

अनिल: पर आपने मुझसे ये बात क्यों छुपाई? क्या मुझ पर, अपने सगे भाई पर भरोसा नहीं था?

अनिल ने थोड़े गुस्से से अपनी दीदी से कहा, परन्तु संगीता के पास इसका कोई जवाब नहीं था सो वो सर झुका कर खामोश हो गई|

अनिल: आपको क्या लगता है की मुझे पता नहीं चलेगा? गाँव में ही मैंने आप दोनों की नजदीकी भाँप ली थी, मुझे शक तो तभी हो गया था जब मानु जी के दिल्ली आने के बाद आप हमेशा उन्हीं की बातें करते रहते थे, अकेले होने पर मुरझाये से बैठे रहते थे! वो तो आप मेरी बड़ी बहन हो इस कर के मेरी हिम्मत नहीं हुई आप से कुछ कहने की| बोलो क्यों नहीं बताया आपने मुझे सब?

अनिल के हम पर शक करने की बात सुन कर मैं और संगीता एक दूसरे को हैरानी से देख रहे थे, ऐसा लगता था मानो उसने हमारी चोरी पकड़ ली हो! परन्तु फिलहाल अनिल के सवाल का जवाब देना था;

संगीता: बेटा, मैं तुझसे कितनी बड़ी हूँ, फिर मैं तुझे कैसे ये सब बताती? मैंने इनसे (मुझसे) सच्चे दिलसे प्यार किया है और ये भी मुझे सच्चे दिल से प्यार करते हैं| उस आदमी (चन्दर) के साथ मैं कभी खुश नहीं थी, वो धोकेबाज था.....

संगीता, अनिल से बहुत बड़ी थी और इसलिए वो उसे अक्सर बेटा कह कर बुलाती थी| खैर अपनी बात आधी कह संगीता चुप हो गई, एक पल के लिए मुझे लगा की संगीता अनिल को सब सच बता देगी पर उसने ऐसा नहीं किया और बात का रुख मोड़ दिया;

संगीता: शराब के नशे में कई बार उस आदमी (चन्दर) ने मुझे मारा-पीटा, मेरे साथ जबरदस्ती करने की कोशिश की, मगर मैं सब कुछ सहती रही! इनके (मेरे) प्यार का सहारा नहीं होता तो मैं कब की मर चुकी होती!

ये कहते हुए संगीता भावुक हो गई थी और उसकी कही बातें सुन अनिल भी बहुत भावुक हो चूका था|

संगीता: इन्होने (मैंने) मुझे सँभाला, मुझे इतना प्यार दिया की मैं इनके साथ सपने संजोने लगी मगर वो सपने इनके दिल्ली जाने पर टूट जाते और उन सपनो के साथ मैं भी टूट जाती...मगर इन्होने (मैंने) मुझे टूटने नहीं दिया! मुझे सहारा दिया अपने प्यार से संवारा!

संगीता और भी कुछ कहना चाहती थी परन्तु उसने अपनी बात को यहीं खत्म कर दिया, परन्तु अनिल सच जानने को उत्सुक था;

अनिल: दीदी...आपने इतना कुछ बताया है और क्या है जो आप मुझसे छुपा रहे हो?

अनिल की बात सुन संगीता उसकी आँखों में देखते हुए बोली;

संगीता: गाँव में रहते हुए हमारा (मेरा और संगीता का) प्यार परवान चढ़ चूका था और....और

आगे की बात, अपने बेटे जैसे भाई के सामने संगीता से कुछ कहा नहीं जा रहा था, परन्तु आज अनिल को सब सच जानना था;

अनिल: बताओ मुझे! आज मुझे सब सच जानना है!

अनिल बड़े जोश से बोला|

संगीता: आयुष हमारे (मेरे और संगीता के) प्यार की पहली निशानी है और हमारे प्यार की दूसरी निशानी मेरी कोख में है!

संगीता ने बड़े आत्मविश्वास से अपने भाई की आँखों में देखते हुए कहा| बच्चों के बारे में सच, मेरे परिवार के इलावा कोई नहीं जानता था इसलिए ये सच सुनते ही अनिल का मुँह खुला का खुला रह गया तथा उसकी आँखें फटने की हद्द तक बड़ी हो गईं!

दोनों ही भाई-बहन के बीच बड़ी ही अजीब परिस्थिति पैदा हो गई थी तो आगे की बात मैंने सँभाली;

मैं: अनिल हमने बहुत कोशिश की थी की एक दूसरे के बिना जीना सीख जाएँ, परन्तु हम दोनों जिंदगी के एक ऐसे पड़ाव पर पहुँच चुके थे जहाँ एक दूसरे के बिना हम जिन्दा नहीं रह सकते थे इसलिए हमने शादी करने का फैसला किया! ये सब जानकार भी अगर तुझे लगता है की हम दोनों ने तुझे सच न बता कर कोई पाप किया है तो हम (मैं और संगीता) तेरे कसूरवार हैं और हम दोनों तुझसे तहे दिल से माफ़ी माँगते हैं!

अनिल हमारे इस बात को गोपनीय रखने का कारण जान गया था और चूँकि वो खुद अपने और सुमन के प्यार को सबसे छुपाये हुए था तथा अपनी दीदी की ख़ुशी चाहता था इसलिए वो हमारे उसे सच न बताने की बात को समझ गया|;

अनिल: नहीं मानु जी, आप दोनों ने कोई गलती नहीं की! मैं...मैं आपकी बात समझ गया की क्यों आप दोनों ने मुझसे ये बात छुपाई|

इतना कह अनिल अपनी दीदी से बोला;

अनिल: पिताजी ने मुझे sunday फोन करके आपके और मानु जी के बारे में बहुत भड़काया| आपके यूँ घर से सारे रिश्ते-नाते तोड़ लेने के बारे में सुन कर मैं यहाँ आपको समझाने और अपने साथ गाँव ले जाने आ धमका, परन्तु आप दोनों की (संगीता और मेरी) बात सुन कर मुझे एहसास हुआ की पिताजी गलत हैं तथा आप दोनों सही और मेरे लिए मेरी दीदी की ख़ुशी मायने रखती है, पिताजी की नहीं! इसलिए मेरी ओर से अभी से आप दोनों को खूब-खूब बधाइयाँ!

अनिल मुस्कुरा कर बोला| परन्तु उसका यूँ इतनी जल्दी हमें मुबारक़बाद देना मेरे पल्ले नहीं पड़ा?!

मैं: इतनी जल्दी मुबारकबाद क्यों? 8 दिसंबर की शादी है, तू तब तक नहीं रुकेगा?

मैंने भोयें सिकोड़ कर पुछा तो मेरे साथ-साथ संगीता ने भी कोतुहल वश मेरा ही सवाल दोहरा दिया;

संगीता: तू हमारी शादी में नहीं आएगा?

अनिल: किसने कहा मैं नहीं आऊँगा? मैं तो जर्रूर आऊँगा, लेकिन मेरी आज शाम की ticket गाँव की book है! मैं 1 दिसंबर की वापसी की ticket book करा लूँगा और शादी से जुड़े सारे काम सँभाल लूँगा!

अनिल मुस्कुराते हुए जोश से बोला| अनिल के हमारी शादी में सम्मिलित होने की बात से संगीता और मैं बहुत खुश हुए क्योंकि कोई तो था जो संगीता के मायके की तरफ से आ रहा था|

चलो शादी-बियाह की बात खत्म हुई तो संगीता ने अपने भाई के plaster की बात छेड़ दी;

संगीता: अब ये बता की तुझे ये चोट कैसे लगी?

संगीता ने भोयें सिकोड़ कर पुछा तो अनिल डर गया और सीधा मेरी ओर देखने लगा| उसे लगा था की शायद मैंने अब तक संगीता को सब सच बता दिया होगा, परन्तु मुझे ये सच बताने का कोई मौका ही नहीं मिला था! इधर संगीता ने अनिल को मेरी ओर देखते हुए देख लिया था और वो जान गई थी की मैं सब बात जानता हूँ, इसलिए वो रासन-पानी ले कर मेरे ऊपर चढ़ गई;

संगीता: तो आपको सब पता था, है न?

संगीता ने थोड़े गुस्से से मुझसे पुछा| अनिल संगीता के बेटे समान था और जब एक माँ को अपने बेटे की तकलीफ का पता चलता है तो उसकी मातृ वृत्ति (maternal instinct) जाग जाती है| एक माँ से उसके बेटे का हाल छुपा कर मैं संगीता का दोषी बन चूका था इसलिए मुझे संगीता को सब सच बताना था;

मैं: हाँ जी! याद है वो दिवाली वाली रात जो फ़ोन आया था, वो फ़ोन अनिल के मोबाइल से ही आया था|

फिर मैंने संगीता को दिवाली वाली रात की सारी घटना सुनाई और साथ ही सुमन का जिक्र भी कर दिया, परन्तु अनिल के college fees की बात गोल कर गया!

सारि बात सुन संगीता का गुस्सा मेरे ऊपर फूट पड़ा;

संगीता: आपने इतनी बड़ी बात मुझसे छुपाई? आप जानते हो न अनिल मेरा बेटा है, उसका हाल चाल जानने का पहला हक़ मेरा है और फिर भी आपने मुझसे ये बात छुपाई? I never expected this from you!

संगीता का गुस्सा जायज था इसलिए मैंने अपने कान पकडे और संगीता से माफ़ी माँगते हुए बोला;

मैं: I'm sorry यार! Really....really very sorry!!! उसी दिन तुमने मुझे बताया था की तुम pregnant हो, फिर मेरे पिताजी से बात करने को ले कर तुम पहले से दबाव में थी बस इन्हीं कारणों से मैंने तुम्हें कुछ नहीं बताया! Sorry!

मैंने अपनी सफाई दी|

संगीता: मुझे नहीं बताया ठीक है, परन्तु और किसी को तो बताते? कम से कम (मेरे) माँ-पिताजी को तो बताते?

संगीता गुस्से से बोली|

मैं: माँ-पिताजी जानते हैं पर मैंने उन्हें मना किया था की तुम्हें कुछ न बताएँ| यहाँ तक की (मेरे होने वाले) ससुर जी तक को इस बात की भनक नहीं! I'm sorry!

मैंने कान पकडे हुए ही कहा| परन्तु मेरे कान पकड़ने का संगीता पर कोई असर नहीं हो रहा था, एक माँ का दिल दुख था और मेरे कान पकड़ने से उस पर मरहम थोड़े ही लग जाती!

संगीता: अगर अनिल को कुछ हो जाता तो कौन जिम्मेदार होता?

संगीता फिर गुस्से से बोली और उसके इस सवाल का जवाब मेरे पास नहीं था| मैं उसे कैसे कहता की मैं कसूरवार होता! मैं मौन हो कर सर झुका कर बैठा रहा तो संगीता गुस्से में बोली;

संगीता: मैं आपसे बात नहीं करुँगी!

संगीता आँखों में आँसूँ लिए हुए बोली|

अब मैंने चूँकि अपनी होने वाली पत्नी का दिल दुखाया था तो उसे मनाना मेरा ही फ़र्ज़ था! मैं उठा और संगीता के सामने घुटने टेक कर बैठ गया तथा कान पकडे हुए संगीता से माफ़ी माँगते हुए उसे मनाने लगा परन्तु मुझे बस हताशा ही हाथ लगी!

उधर अनिल जो अभी तक चुपचाप बैठा मुझे अपनी दीदी को मनाते हुए देख रहा था, उसी ने अपनी दीदी को समझाते हुए कहा;

अनिल: दीदी, मानु जी की कोई गलती नहीं है! मैंने ही उन्हें मना किया था की वो ये बात किसी को न बताएँ क्योंकि मैं नहीं चाहता था की आप सभी बेकार परेशान हों| पिताजी पहले ही दिल की बिमारी से ग्रसित हैं और आप तो मेरा दुःख-दर्द सुन कर बहुत जल्दी परेशान हो जाते हो, मेरे accident के बारे में सुन कर आप नँगे पाँव मुंबई आ जाते! फिर आपको पता है मानु जी ने मेरे hospital का सारा खर्चा उठाया, मुझे वहाँ दवाई के खर्चे के लिए पैसे दिए और मेरा student loan जो अटक गया था उसकी वजह से मेरी college की फीस भी मानु जी ने दी वरना मुझे college से निकाल देते!

अनिल की सारी बात सुन संगीता ने आगा देखा न पीछा सीधा मेरे गले लग गई, तथा सिसकने लगी| हर सिसकी के साथ संगीता की पकड़ कसती जा रही थी, दिक्कत ये थी की अनिल की मौजूदगी में मुझे संगीता का यूँ गले लगना थोड़ा अटपटा लग रहा था इसलिए मैंने संगीता के कान में खुसफुसाते हुए कहा;

मैं: अनिल देख रहा है!

ये सुनते ही संगीता ने अपना आलिंगन तोडा और शर्माते हुए सर झुका कर बैठ गई| हमारा ये प्यारभरा मिलन देख अनिल बोला;

अनिल: Now I don't need any proof, my sister is in safe hands! Please मानु जी मेरी दीदी को बहुत खुश रखना?

अनिल थोड़ा भावुक होते हुए बोला|

मैं: I promise मैं तुम्हारी दीदी का बहुत खुश रखूँगा!

मैंने अपने दिल पर हाथ रखते हुए अनिल को वचन देते हुए कहा| इतने में संगीता बड़े गुरूर से अनिल से बोली;

संगीता: तुझे कुछ कहने की जर्रूरत नहीं है, ये (मैं) मुझे पहले ही मेरा ध्यान बहुत अच्छे से रखते हैं!

संगीता की बात सुन अनिल हँस पड़ा| आगे कुछ और बात होती उससे पहले ही माँ नहा कर आ गईं और अनिल को देखते ही बोलीं;

माँ: अरे अनिल बेटा, तू कब आया?

अनिल खड़ा हुआ और माँ के पैर छुए| माँ ने उसे आशीर्वाद दिया और संगीता से बोली;

माँ: बहु लड़का बाहर से आया है, कुछ खाया-पीया नहीं होगा| जल्दी से चाय बना और अनिल के मनपसंद मालपुए बना!

माँ ने जिस तरह अनिल की पसंद का जिक्र किया था उसे सुन मैं हैरानी से माँ को देख रहा था| अब वैसे इसमें कोई हैरानी की बात नहीं थी, क्योंकि संगीता ने ही अनिल की पसंद के बारे में माँ को बताया होगा|

खैर माँ ने अनिल के accident के बारे में पूछना शुरू कर दिया, मैंने site पर फ़ोन किया और संतोष से हाल-खबर लेते हुए बजार चल दिया| बच्चों को दी जाने वाली रिश्वत (रसमलाई) जो लेनी थी वरना आज जैसे उनकी माँ नाराज हो गई थीं वैसे ही बच्चे मुझसे नाराज हो जाते!

रसमलाई ले कर जब मैं वापस लौटा तो माँ अपने कमरे में बैठीं tailor आंटी से बात कर रही थीं और उनसे माप के बारे में कुछ बात कर रहीं थीं| दोनों भाई-बहन (संगीता और अनिल) बैठक में बैठे गप्पें मार रहे थे तो मैं भी उन्हीं के पास बैठ गया;

संगीता: तू तो मुझे बड़ा कह रहा था की मैंने तुझे अपने और इनके (मेरे) बारे में कुछ नहीं बताया, तूने भी तो अपने और सुमन के बारे में कुछ नहीं बताया?

सुमन का नाम सुनते ही अनिल शर्म से लाल टमाटर हो गया!

अनिल: दीदी ... वो....

अनिल शर्मा कर आगे कुछ कहता, उससे पहले ही मैंने उसकी टाँग खींचनी शुरू कर दी;

मैं: शर्मा गया! गाल लाल हो जाते हैं जब सुमन का नाम आता है!

मेरी बात सुन संगीता हँस पड़ी, वहीं अनिल अपनी शर्म छुपाते हुए अपनी सफाई देने लगा;

अनिल: क्या मानु जी...

अनिल आगे कुछ कहता उससे पहले ही संगीता ने अनिल को टोक दिया;

संगीता: जब से तू आया है तब से तू, इन्हें (मुझे) नाम ले कर क्यों बुला रहा है? ये (मैं) तेरे जीजा जी हैं, इन्हें जीजू कह के बुला!

संगीता अनिल को हुक्म देते हुए बोली|

अनिल: दीदी, पहले मैं मानु जी को जीजू कहता था परन्तु वो किसी और रिश्ते से था! मैंने मानु जी को जीजा नहीं मानता था, केवल मुँह से बोलता था!

अनिल का तातपर्य था की पहले वो मुझे जीजू सिर्फ इसलिए कहता था क्योंकि संगीता की शादी चन्दर से हुई थी और मैं चन्दर का चचेरा भाई था, इस नाते मैं अनिल का बस नाम का जीजा था!

अनिल: लेकिन 8 तारिक के बाद, जब आपकी शादी हो जाएगी तब मैं मानु जी को दिल से जीजू कहूँगा!

अनिल मुस्कुराते हुए बोला! अनिल की बात सही थी पर संगीता जी को उसके मुँह से मेरे लिए 'जीजू' सुन्ना था इसलिए वो उसके साथ तर्क करने लगीं;

संगीता: वो तो ठीक है, लेकिन अभी भी तो ये (मैं) तेरे होने वाले जीजा जी ही हैं?!

अब मुझे अपने साले साहब की तरफदारी करनी थी, सो मैं बोला;

मैं: यार होने वाला जीजा हूँ, अभी हुआ तो नहीं?! अभी कुछ टाइम तो हम दोनों (मुझे और संगीता) को 'lovers' बने रहना है!

मैंने संगीता को छेड़ते हुए कहा| मेरी बात सुन अनिल ठहाके मार के हँसने लगा और संगीता शर्म से दोहरी हो गई, तथा अपना मुँह मेरे बाएँ कँधे पर रख कर अपने भाई से शर्माने लगी! अपनी दीदी को शर्माते देख अनिल ने अपनी दीदी को चिढ़ाते हुए बोला;

अनिल: अब गाल किस के लाल हो रहे हैं दीदी?

ये सुन हम तीनों खिलखिलाकर हँस पड़े!

दोपहर का समय हो रहा था और मेरे बच्चों के school से वापस आने का समय हो रहा था, तो मैं दोनों बच्चों को लेने उनकी school van वाले stand पर पहुँचा| अपनी school van से उतरते ही दोनों बच्चे दौड़ते हुए मेरे पास आये और मैंने दोनों को गोदी में उठा लिया| घर पहुँचने तक दोनों बच्चों ने मेरे दोनों गालों पर अपनी पप्पी से गीले कर दिए! मुझे लगा था की दोनों बच्चे मुझसे नाराज होंगे, मगर दो दिन की अपने पापा से जुदाई ने बच्चों को बहुत भावुक कर दिया था!

घर पहुँच कर बच्चों ने अपने मामा जी को देखा तो दोनों ख़ुशी से झूमने लगे, अनिल भी अपने भाँजे और भाँजी को देख प्रफुल्लित हुआ तथा उनके साथ प्यार से बात करने लगा| मैं अनिल के सामने ही बैठा था और दोनों बच्चे आ कर मेरी गोदी में बैठ गए थे| इतने में पिताजी चाँदनी चौक से मेरी शादी के card ले कर लौट आये| शादी के card का design पिताजी ने बड़ा ही राजसी रखा था, देख कर ही लग रहा था की पिताजी ने बहुत खर्चा किया है! शादी का card मुझे और संगीता को दूर से देखने को मिला, हमें हाथ में ले कर पढ़ने नहीं दिया गया;

पिताजी: दूर से देख लो तुम दोनों (मैं और संगीता) पढ़ना बाद में!

पिताजी मुझे और संगीता को चिढ़ाते हुए बोले| मैं और संगीता सवालिया नजरों से पिताजी को देखने लगे तो पिताजी मुस्कुरा कर बोले;

पिताजी: सर्पेरेज (surprise) है!

अब पिताजी की बात हम दोनों (मैं और संगीता) कैसे काटते, इसलिए हम दोनों बस मुस्कुरा कर रह गए| नेहा ने card देखा तो वो बहुत खुश हुई, आयुष जो ये सब बड़ी हैरानी से देख रहा था उसने सीधा अपने दादा जी से सवाल पूछ लिया;

आयुष: दादाजी ये क्या है?

आयुष शादी के card की गड्डी की तरफ इशारा करते हुए पूछने लगा| उसका सवाल सुन पिताजी ने पहले मेरी तरफ देखा, क्योंकि उन्हें लगा था की मैंने आयुष को सब बता दिया होगा, परन्तु जब मेरे चेहरे पर पिताजी को हैरानी दिखी तो उन्होंने आयुष को सब बताने का निर्णय लिया| पिताजी ने आयुष को गोदी में बिठाया और उसे समझाते हुए बोले;

पिताजी: बेटा आपके दादा-दादी (मेरे माँ-पिताजी), आपके मम्मी-पापा (मैं और संगीता) की शादी करा रहे हैं!

पिताजी ने 'मम्मी-पापा' कहते समय मेरी और संगीता की तरफ इशारा किया| अपने दादाजी की बात सुन आयुष हक्का-बक्का रह गया, जिस राज़ (मुझे सबके सामने पापा कहने की बात) को मैंने आयुष को छुपाने के लिए कहा था वो अब सबके सामने खुल चूका था और इसका पता आयुष को नहीं था! मैंने आयुष को अपने पास बुलाया और उसे प्यार से समझाते हुए बोला;

मैं: आयुष बेटा, आप तो जानते ही हो की मैं और आपकी मम्मी एक दूसरे से कितना प्यार करते हैं! इसलिए आपके दादा जी और दादी जी ने हमें शादी करने की इज़ाजत दे दी है!

बस इतना सुनना था की आयुष के चेहरे पर मुस्कान खिल गई| मैं जानता था की आयुष बहुत कुछ नहीं समझा है, उसकी उम्र अभी ये सब समझने की नहीं थी इसलिए मैं भी उसी की ख़ुशी में चहकने लगा;

मैं: संगीता fridge में कुछ रखा है वो परोस दो!

मैंने संगीता से कहा तो संगीता ने फ़ट से सबको रसमलाई परोस दी| रसमलाई देखते ही नेहा और आयुष ने कूदना शुरू कर दिया, नेहा अपनी रसमलाई की कटोरी ले कर मेरे पास आई और धीरे से बोली;

नेहा: Thank you पापा!

नेहा ने मुझे रसमलाई लाने के लिए 'thank you' कहा| मैंने नेहा के मस्तक को चूमा और उसे रसमलाई खिलाने लगा| उधर आयुष अपने दादाजी के सामने अपनी रसमलाई की कटोरी ले कर खड़ा हो गया तो पिताजी ने आयुष को रसमलाई खिलाई|

मुँह मीठा करने के बाद खाना खाने का मौका आया, बच्चों का आधा पेट तो रसमलाई से भर गया था इसलिए वो जल्दी से मेरे हाथ से खाना खा कर खेलने चले गए| इधर dining table पर मैं, पिताजी, माँ, संगीता और अनिल बैठे खाना खा रहे थे| पिताजी ने अनिल से मेरे होने वाले ससुर जी को मनाने की बात शुरू की तो अनिल ने बताया की मेरे होने वाले ससुर जी काफी ज़िद्दी स्वभाव के हैं;

अनिल: पिताजी ने मुझे sunday को फ़ोन कर के ये कह के भड़का दिया था की तेरी दीदी (संगीता) ने हमसे (मेरे होने वाले ससुर जी से) सारे रिश्ते-नाते तोड़ लिए हैं! इसलिए आज के बाद तू (अनिल) कभी भी संगीता या मानु जी का फ़ोन नहीं उठाएगा और न ही उनसे (मुझसे और संगीता से) कभी कोई बातचीत करेगा वरना वो (अनिल के पिताजी) मुझसे भी मुँह मोड़ लेंगे!

जैसे ही मैंने ये बात सुनी तो मैं दंग रह गया, मेरे कारन संगीता अपने पिताजी से अलग तो हो ही चुकी थी अब मैं नहीं चाहता था की अनिल भी अपने पिताजी से अलग हो जाए|

मैं: अनिल, तब तो तू इस शादी में शरीक़ नहीं हो सकता! संगीता के बाद अब एक तू ही (मेरे होने वाले) ससुर जी का सहारा है, अब तू भी उनकी आज्ञा की अवहेलना करेगा तो वो किसके सहारे जीएंगे और कहाँ जायेंगे?

मेरी बात सुन संगीता भी मेरी हाँ में हाँ मिलाते हुए बोली;

संगीता: हाँ बेटा, अब मेरे आलावा तू ही तो उनका (संगीता के पिताजी का) सहारा है!

लेकिन अनिल गर्म जोशी से काम लेना चाह रहा था, वो अपने पिताजी के खिलाफ खड़ा होना चाहता था!

अनिल: दीदी, please मुझे मत रोको! आप तो जानते ही हो पिताजी का सौभाव, अपनी जिद्द के आगे उन्हें सब गलत लगते हैं! जिस इंसान (मुझे) को वो इतना गलत समझते हैं, उसने अगर मुझे सहारा न दिया होता तो आज मेरी पढ़ाई छूट गई होती, उनके (अनिल के पिताजी के) सारे सपने टूट चुके होते और मैं दर-दर की ठोकरें खा रहा होता|

अनिल के बगावती तेवर देख मैंने उसे समझना चाहा;

मैं: नहीं अनिल, please उन्हें (मेरे होने वाले ससुर जी को) इस बारे में कुछ मत कहना, वरना उन्हें लगेगा की मैंने ये सब संगीता को पाने के लालच में किया!

गुस्से से अँधा हो चुका व्यक्ति हर बात को अपने खिलाफ समझता है! अनिल अगर मेरे होने वाले ससुर जी को मेरे उसके (अनिल के) college fee तथा accident की बात छुपाने के बारे में बताता तो मेरे होने वाले ससुर जी इस बात को संगीता को पाने का मेरा लालच समझते और उनका दिल आगे चल कर कभी नहीं पिघलता| लेकिन अनिल गर्मजोशी से काम ले रहा था और मेरे साथ तर्क करना चाह रहा था;

अनिल: लालच? कैसा लालच? अगर आपको लालच ही होता तो आप मेरे accident वाले दिन ही आप पिताजी (मेरे होने वाले ससुर जी) से सब कुछ बता देते और आज भी आप मुझे उन्हें सच बताने से रोक रहे हो, इसलिए आपके मन में लालच होने का तो सवाल ही नहीं होता! मैं जानता हूँ आपने जो भी किया वो हमारी बेहतरी के लिए किया, वैसे भी मैं उन्हें सुमन से मिलाना चाहता हूँ!

अनिल अपनी गर्म जोशी में मेरे पिताजी के सामने सुमन का नाम ले गया और जब उसे इसका एहसास हुआ तो उसने शर्म से गर्दन झुका ली| इधर जैसे ही अनिल ने सुमन को अपने पिताजी से मिलवाने की बात कही तो मैंने अनिल को फिर समझाने की कोशिश की;

मैं: यार तू क्यों इतनी जल्दी मचा रहा है? (मेरे होने वाले) ससुर जी वैसे ही हमारी (मेरी और संगीता की) वजह से दुखी हैं और तू अपने तथा सुमन के बारे में उन्हें बता कर क्यों मानसिक झटका दे रहा है?! उनकी तबियत का ख्याल कर, कहीं वो बीमार न पड़ जाएँ?!

दरअसल अनिल सोच रहा था की चूँकि मेरे और संगीता के कारन आग लग चुकी है तो क्यों न वो उसमें अपने तथा सुमन के प्यार की रोटी भी सेक ले?!

संगीता: तू ऐसा कुछ नहीं करेगा! समझा? अभी तेरा course बाकी है, पहले उसे निपटा! तब तक ये बात (संगीता और मेरी शादी की बात) भी ठंडी हो जाएगी! फिर तू पिताजी से बात कर लिओ, अगर तब तक उनका गुस्सा शांत हो गया तो मैं भी उनसे तेरी सिफारिश कर दूँगी!

संगीता ने कड़ी आवाज में अनिल को डाँटते हुए कहा|

अनिल: वो (अनिल के पिताजी) कभी नहीं मानेंगे! सुमन की ज़ात, उसके non-vegetarian होने से, traditional कपडे न पहनने से और भी नजाने कितनी गलतियाँ निकाल देंगे!

अपनी बहन की डाँट सुन, अनिल सर झुका कर बोला|

मैं: देख अभी सब्र से काम ले, ज्यादा जल्दीबाजी ठीक नहीं|

मैंने प्यार से अनिल को समझाया|

अनिल: मैं कोई guarantee नहीं देता की मैं पिताजी के सामने खामोश रहूँगा! अगर उन्होंने आपके खिलाफ कुछ भी कहा तो मैं खुद को नहीं रोक पाउँगा!

अनिल फिर गर्म जोशी से बोला|

मैं: मैं कोई भगवान नहीं हूँ जो तू मेरे लिए अपने पिताजी से लड़ाई करेगा!

मैंने अनिल को थोड़ा डाँटते हुए कहा, जिस कारन अनिल का गर्म जोश ठंडा पड़ने लगा|

मैं: तूने खुद ही कहा न की गुस्से में वो किसी की नहीं सुनते, तो एक बार उनका गुस्सा शांत हो जाने दे फिर मैं और संगीता खुद उनसे मिलकर बात करेंगे| तब तुझे मेरी जितनी तरफदारी करनी हो कर लियो! ठीक है?

अब मैंने थोड़ा प्यार से अनिल को समझाया तो वो मान गया और सर झुकाये हुए बोला;

अनिल: ठीक है जीजू!

अनिल के मुँह से जैसे ही जीजू निकला संगीता उसकी टाँग खींचते हुए बोली;

संगीता: आखिर निकल ही आया तेरे मुँह से जीजू!

संगीता की बात सुन हम सब हँस पडे|

पिताजी ने सुमन के बारे में पुछा और मैंने उन्हें सब सच बता दिया, सब सच जानकार पिताजी मुस्कुराये और बोले;

पिताजी: बेटा, तुम लोग आज की नई 'पौध' हो!

इतना कह पिताजी मुस्कुराने लगे| उनका इशारा था की हम लोग आज कल की नई पीढ़ी, आजकल इश्क़ बाजी और मस्ती में डूबे रहते हैं! पुरानी सोच के होने के बाद भी पिताजी इस नए जमाने की सोच के अनुसार खुद को ढाल रहे थे इसीलिए वो कुछ नहीं बोले!

खेर अनिल की गाडी (train) late हो गई थी और उसे रात 10 बजे जाना था, मैंने cab की और अनिल को train में बिठा आया| घर आते-आते मुझे देर हो गई थी और बच्चे मेरा इंतजार करते-करते सो चुके थे| घर आ कर मैं अपने कमरे में कपड़े बदल रहा था जब संगीता कमरे में आई और बड़ी अदा से मुझे हाथ बाँधे हुए देखने लगी!

मैं: जान! ऐसे मत देखो वरना में तुम्हें अपनी बाहों में भरने को मजबूर हो जाऊँगा!

मैं मुस्कुराते हुए बोला|

संगीता: जानू, जबसे आपने मुझे 'तुम' कहना शुरू किया है न तबसे मेरे दिल में कुछ-कुछ होने लगा है! मन करता है की आपकी बाहों में सिमट जाऊँ पर.....

संगीता शर्माते हुए बोली और अपनी बात अधूरी छोड़ दी|

मैं: पर माँ-पिताजी के डर से तुम मेरे पास नहीं आती न?!

मैंने संगीता की बात पूरी करते हुए कहा और संगीता ने शर्मा कर सर हाँ में हिलाया| मैं संगीता की तरफ बढ़ा ही था की बाहर से माँ की आवाज आई और संगीता बाहर भाग गई! मैं बस मुस्कुराता हुआ संगीता को देखता रहा! हाय!!

[color=rgb(51,]जारी रहेगा भाग-14 में...[/color]
 

[color=rgb(255,]चौबीसवाँ अध्याय: उलझते-सुलझते बंधन[/color]
[color=rgb(235,]भाग-14[/color]


[color=rgb(26,]अब तक आपने पढ़ा:[/color]

खेर अनिल की गाडी (train) late हो गई थी और उसे रात 10 बजे जाना था, मैंने cab की और अनिल को train में बिठा आया| घर आते-आते मुझे देर हो गई थी और बच्चे मेरा इंतजार करते-करते सो चुके थे| घर आ कर मैं अपने कमरे में कपड़े बदल रहा था जब संगीता कमरे में आई और बड़ी अदा से मुझे हाथ बाँधे हुए देखने लगी!

मैं: जान! ऐसे मत देखो वरना में तुम्हें अपनी बाहों में भरने को मजबूर हो जाऊँगा!

मैं मुस्कुराते हुए बोला|

संगीता: जानू, जबसे आपने मुझे 'तुम' कहना शुरू किया है न तबसे मेरे दिल में कुछ-कुछ होने लगा है! मन करता है की आपकी बाहों में सिमट जाऊँ पर.....

संगीता शर्माते हुए बोली और अपनी बात अधूरी छोड़ दी|

मैं: पर माँ-पिताजी के डर से तुम मेरे पास नहीं आती न?!

मैंने संगीता की बात पूरी करते हुए कहा और संगीता ने शर्मा कर सर हाँ में हिलाया| मैं संगीता की तरफ बढ़ा ही था की बाहर से माँ की आवाज आई और संगीता बाहर भाग गई! मैं बस मुस्कुराता हुआ संगीता को देखता रहा! हाय!!

[color=rgb(44,]अब आगे:[/color]

शादी में 15 दिन रह गए थे और चूँकि मुझे शादी की तैयारियों से दूर रखा गया था तो मैंने अपना सारा ध्यान काम में लगा दिया| इतना तो तय था की पिताजी मेरी शादी में को कसर नहीं छोड़ेँगे और इसके लिए पैसों की आवश्यकता होगी, तो कहीं पैसे कम न पड़ें इसके लिए मैंने छोटे-छोटे ठेके उठाने शुरू कर दिए तथा उनकी जिम्मेदारी संतोष को दे दी| मेरा काम बस गुडगाँव और नॉएडा की sites देखना था तथा वहाँ भी मैं लेबर को चैन नहीं लेने देता था! Overtime रात 10 बजे तक चलता था और site से लौटते-लौटते मुझे रात के 12 बज जाते थे| घर आ कर मैं खाना खा कर सोने चला जाता, नेहा जो मेरा इंतजार करते-करते सो जाती थी वो मेरे लेटते ही जाग जाती और मेरे से लिपट कर सो जाती| फिर अगली सुबह मैं 5 बजे ही नहा-धोकर, अपने सोते हुए बच्चों की पप्पी ले कर निकल जाता| आयुष तो दो दिन मुझे देख ही नहीं पाया था, जिस कारन वो मुझसे नाराज हो गया था!

तीसरे दिन मुझे कुछ payment उठानी थी, दोपहर का समय था तो मैंने सोचा की घर खाना खा कर ही जाता हूँ| मैं घर लौटा तो माँ-पिताजी पंडित जी से मिलने निकलने वाले थे, मुझे देख उन्होंने मुझे अपने पास बिठा लिया| पहले पिताजी ने मुझसे काम-काज की बातें की और जब संगीता उठ कर रोटी बनाने चली गई तब उन्होंने मुझसे पुछा;

पिताजी: बेटा एक बात पूछनी थी, शादी में बहु की तरफ से सिर्फ अनिल ही होगा?

मैं पिताजी का मतलब समझ गया, वो चाहते थे की अगर उनके होने वाले समधी जी यानी संगीता के पिताजी मान जाते तो अच्छा होता| पिताजी का सवाल सुन मेरे चेहरे पर चिंता की रेखाएँ आ गईं;

मैं: मैं कुछ करता हूँ पिताजी|

मैंने बड़ा संक्षेप में जवाब दिया| मेरे चेहरे पर चिंता की रेखाएं देख माँ मुझे हिम्मत बँधाते हुए बोलीं;

माँ: तू चिंता मत कर बेटा, हम सब यहाँ हैं तो सही बहु के लिए!

माँ ने मेरे सर पर हाथ फेरा और पिताजी के साथ पंडित जी से मिलने चली गईं तथा जाते-जाते संगीता से कह गईं की वो उनके (माँ-पिताजी के) लिए रोटी न बनाएँ|

संगीता ने गरमा-गर्म रोटी बनाई और मुझे परोसीं, जब मैंने उसे अपने साथ बैठ कर खाने को कहा तो वो शर्मा गई और बोली;

संगीता: माँ-पिताजी ने देख लिया न तो....

संगीता मुस्कुराते हुए बोली और अपनी बात अधूरी कह रोटी बेलने चली गई| उसका यूँ मुझसे शर्माना मुझे अच्छा लगता था, मैं अपनी थाली ले कर उठा और पीछे से जा कर संगीता को अपनी बाहों में भर लिया| मेरे जिस्म का एहसास होते ही संगीता कसमसाने लगी, मन तो दोनों का था की प्यार करें लेकिन हम दोनों ही शादी तक खुद को बचा कर रखना चाहते थे| हालत बेकाबू हों उससे पहले ही मैंने संगीता को अपनी पकड़ से आजाद कर दिया और उससे बोला;

मैं: एक थाली में न सही, कम से कम साथ बैठ कर तो खा ही सकते हैं!

इतना कह मैं सब्जी ले कर बैठक में आ गया| संगीता ने फटाफट अपनी दो रोटी सेकीं और अपनी थाली परोस कर मेरे पास बैठ कर खाने लगी| उसके चेहरे पर अब भी वही शर्म, वही हया थी तथा एक गुप्-चुप मुस्कान फैली हुई थी! हमने चुपचाप खाना खाया और उसके बाद मैं अपने कमरे में आ गया तथा अपनी एक file ढूँढने लगा| घर में हम दोनों अकेले थे और एक दूसरे को ख़ामोशी से देखने में हम दोनों की प्यास बुझ जाती थी! अपनी इस प्यास को मिटाने के लिए संगीता कमरे में आ गई और मुझे file ढूँढ़ते हुए मुस्कुराते हुए देखने लगी| मेरे दिमाग में अभी भी पिताजी द्वारा कही बात गूँज रही थी इसलिए मैंने संगीता से बात शुरू करते हुए कहा;

मैं: आप जरा बैठो कुछ बात करनी है!

मेरी बात सुन संगीता पलंग पर बैठ गई और उसत्सुक्ता वश मेरी ओर बड़ी गौर से देखने लगी|

मैं: जान, आपके पिताजी तो बहुत गुस्सा हैं और वो फिलहाल हमारी बात नहीं सुनेंगे, लेकिन आपकी माँ...क्या वो हमारी बात सुनेंगी? मैं उनसे एक बार बात कर के देखूँ?

मेरी बात सुन संगीता थोड़ी गंभीर हो गई क्योंकि मेरी बात ने उसके मन में अपने घर की याद ताज़ा कर दी थी|

संगीता: माँ को तो पिताजी पहले से ही बाँध कर रखते हैं, बिना इजाजत उन्हें घर से बाहर निकलने नहीं दिया जाता और उनके पास कोई फ़ोन भी नहीं जो आप उनसे बात कर सको!

संगीता सर झुकाते हुए बोली| संगीता की बात सुन कर मुझे अधिक हैरानी नहीं हुई, क्योंकि हमारे गाँव-देहात में अक्सर औरतों को पुरुषों द्वारा बनाये नियम-कानूनों में बाँध कर ही रखा जाता है|

मैं: पर उस दिन जब मैं गाँव में तुम्हारे घर आया था तब तो मुझे वो बड़ी सहज दिखीं, उनके हाव-भाव देख कर नहीं लगा की पिताजी (मेरे होने वाले ससुर जी) उन्हें किसी तरह के बँधन में बाँध कर रखते हों?!

मेरा सवाल सुन संगीता ने मेरी तरफ देखा और निराश होते हुए बोली;

संगीता: सब के सामने वो खुद को सहज ही दिखाती हैं! लेकिन मैं जानती हूँ की वो अंदर से कितना घुट-घुट के जीती हैं!

संगीता की नजरों में अपनी माँ के लिए दुःख था और नजाने मुझे ऐसा क्यों लग रहा था की वो मुझसे उपेक्षा रखती थी की मैं उसकी माँ को इस कैद से निजाद दिलाऊँ;

मैं: अगर आपको बुरा न लगे तो मैं एक बार माँ (मेरी होने वाली सासु माँ) से बात करूँ? अभी अनिल गाँव में है तो उसके फोन के जरिये मैं, माँ से बात कर के उन्हें समझाऊँ और हमारी शादी में सम्मिलित होने के लिए बुला लूँ?

मैंने उत्साह से भर कर कहा, परन्तु मेरी बात सुन संगीता का चहेरा फीका पड़ने लगा था! उसे डर था की कहीं उसकी माँ भी गुस्से में आ कर मुझे ज़लील न कर दें! मैं संगीता के मन की बात समझ गया इसलिए मैंने संगीता को ही आगे कर दिया;

मैं: या आप उनसे (मेरी होने वाली सासु माँ से) बात करो, शायद वो आपकी बात मान लें!

मेरी बातों से संगीता के मन में उम्मीद जगी और वो बोली;

संगीता: ठीक है मैं, माँ से बात करती हूँ|

मैंने फटाफट अनिल को फोन मिलाया और उससे कहा की वो माँ से बात कराये| ख़ुशक़िस्मती से पिताजी (मेरे होने वाले ससुर जी) उस समय घर पर नहीं थे, अनिल ने फ़ोन अपनी माँ को दिया और इधर मैंने फ़ोन संगीता को दिया| जैसे ही माँ ने "हेल्लो" कहा संगीता भावुक हो गई और एकदम से रो पड़ी! मैं फ़ौरन संगीता की बगल मैं जा बैठा और उसे सहारा दे कर चुप कराया;

संगीता: माँ...तू हमार खातिर आई जाओ!

संगीता सिसकते हुए बोली, परन्तु मेरी होने वाली सासु माँ संगीता को ये शादी न करने के लिए प्यार से समझाने लगीं;

मेरी होने वाली सासु माँ: मुन्नी ई अनर्थ न करो! देखो ई ठीक बात नाहीं! ना करो मानु से बियाह वरना ई घर टूट जाई! तोहार पिताजी केहू का मुँह दिखाए लायक न रहियें, बिरादरी में हम सभई का हुक्का-पानी बंद हुई जाई! तू हमार नीक मुन्नी हो न, महतारी (माँ) की सुन ले और हमरे लगे लौट आओ!

मेरी होने वाली सासु माँ एक ही साँस में रोते हुए सब बोल गईं| एक माँ होने के दृष्टिकोण से मेरी होने वाली सासु माँ की बात सही थी, वो अपने परिवार को टूटने से बचाना चाहतीं थीं, लेकिन इधर संगीता पहले ही फैसला कर चुकी थी इसलिए उसने अपनी माँ को समझना शुरू कर दिया;

संगीता: माँ ऐसा नाहीं कहो! ई (मैं) हमार बहुत ख्याल रखत हैं, हमसे बहुत प्यार करत हैं! हमहुँ इनसे (मुझसे) बहुत प्यार करित है, हम ही इनसे आपन प्यार का इजहार करेँ रहा! हम ऊ आदमी (चन्दर) संगे नाहीं रह सकित, ऊ हमार घर बर्बाद करिस है, हमका मारत-पीटत रहा, हमरे संगे जबरदस्ती करत रहा! हम मर जाब लेकिन ऊ आदमी का पास कभौं न जाब! हमरी ख़ुशी इनसे (मुझसे) शादी किये मा है, नाहीं तो हम आपन जान दे देब! हम तोहरे आगे हाथ जोडित है, तुहुँ पिताजी की तरह हमका गलत न समझो!

मेरी होने वाली सासु माँ ने अपनी बेटी की बात पूरी सुनी और फिर बोलीं;

मेरी होने वाली सासु माँ: ठीक है मुन्नी! हम तोहार बात समझित है, खुश रहे का हक़ सभाएं का है! तोहार पिताजी का बस आपन इज्जत प्यारी है, फिर भले ही कउनो जिए या मरे! हम तोहका और मानु का हियाँ से खूब-खूब आशीर्वाद देइत है! जीते रहो, जुग-जुग जियो!

मैं संगीता के नजदीक बैठा था इसलिए माँ से होने वाली बात मैं साफ़ सुन पा रहा था, जैसे ही मेरी होने वाली सासु माँ ने आशीर्वाद दिया मैंने संगीता से फ़ोन ले लिया और खुद उनसे बात करने लगा;

मैं: पाँयलागि माँ!

मेरी आवाज सुनते ही मेरी होने वाली सासु माँ भावुक हो उठीं और मुझे आशीर्वाद देते हुए बोलीं;

मेरी होने वाली सासु माँ: जीते रहो मुन्ना, दूधो नहाओ पूतो फलो! खूब आगे बढ़ो, खूब कमाओ और तरक्की करो!

मेरी होने वाली सासु माँ ने दिल से दुआएँ दी|

मैं: माँ, पिताजी न सही कम से कम आप तो हमारी शादी में आ जाओ न! मैं कल आपको खुद लेने आ जाता हूँ, नहीं तो आप अनिल के साथ आ जाओ मैं ticket करवा देता हूँ! आपको किसी को कुछ बताने की जर्रूरत नहीं, चुपचाप कोई बहना कर के आ जाओ और शादी निपने के बाद आप वापस चले जाना|

मैंने बड़े ही बचकाने ढँग से अपनी होने वाली सासु माँ से बात की|

मेरी होने वाली सासु माँ: बेटा हम आ तो जाई, पर हियाँ तोहार ससुर जी का ध्यान के रखी? अगर उनका तनिको भनक लग गई की हम तोहरे हियाँ आयन है तो हमसे कभौं बात न करीहें!

मेरी होने वाली सासु माँ ने अपनी विवशता मेरे सामने प्रकट की, परन्तु मैं उस वक़्त दिमाग से नहीं दिल से सोच रहा था;

मैं: मैं हूँ न माँ, आप मेरे पास रहना! हम सब एक साथ ख़ुशी-ख़ुशी रहेंगे|

मेरी बचकानी बातें सुन मेरी होने वाली माँ हँस पड़ीं और मुझे समझाते हुए बोलीं;

मेरी होने वाली सासु माँ: मुन्ना, औरत खातिर ऊ के पति का घर ही सब कुछ होत है! हम चाह कर भी तोहरे लगे नाहीं आई सकित......

आगे मेरी होने वाली सासु माँ कुछ कहतीं उससे पहले ही पीछे से मेरे होने वाले ससुर जी की आवाज आई;

मेरे होने वाले ससुर जी: के से बतुआत है?

अपने पति की अचानक आवाज सुन कर मेरी होने वाली सासु माँ सकपका गईं और उनके मुँह से बोल नहीं फूटे| आखिर मेरे होने वाले ससुर जी ने मेरी होने वाली सासु माँ के हाथ से mobile खींच लिया और फ़ोन कान पर लगा कर बोले;

मेरे होने वाले ससुर जी: हेल्लो? के हुओ?

मैं: पाँयलगी पिताजी!

मैंने बड़ी हलीमी से कहा| मेरी आवाज सुनते ही मेरे होने वाले ससुर जी का गुस्सा सातवें आसमान पर जा पहुँचा;

ससुर जी: तू? तोहार हिम्मत कैसे भई फ़ोन करे की?

ससुर जी गुस्से से मुझ पर बरसते हुए बोले|

मैं: जी 8 दिसंबर को हमारी शादी है, उसके लिए मैं आपको बुलाने आना चाहता था इसलिए फ़ोन आकर के पूछ रहा था की कब आऊँ?

मैंने बात बनाते हुए कहा ताकि कहीं उनको ये न लगे की मेरी होने वाली सासु माँ मुझसे छुपकर बात कर रहीं हैं|

मेरे होने वाले ससुर जी: @@@@@@@@@ *#*#@*@#*@#*@#

मेरे होने वाले ससुर जी ने आव देखा न ताव सीधा मुझ पर अपनी गालियों से हमला कर दिया!

मेरे होने वाले ससुर जी: खबरदार जो हियाँ पाँव भी धरेओ तो तोहका काट के रख देब! तू हमार भोली-भाली मुन्नी का बरगलाया हो! तू...तोहका तो नरक (नर्क) मेओ जगह न मिली! @#$*@#$**#$@*@%#

मेरे होने वाले ससुर जी ने मुझे बद्दुआ दी और पेट भर कर गालियाँ देनी शुरू कर दी| मैं चुपचाप उनकी गालियाँ सुन रहा था की तभी संगीता ने मेरे हाथ से फ़ोन खींच लिया और आगे की गालियाँ खुद सुनी| अपने पिताजी के मुँह से ऐसी शुद्ध-शुद्ध गालियाँ सुन संगीता को दुःख हो रहा था, बड़ी मुश्किल से उसके जो आँसूँ थमे थे वो फिरसे बह निकले और रोते हुए संगीता फ़ोन अपने कान से लगाए हुए मेरे सीने से लग गई! अपने पिताजी को चुप कराने के लिए बेचारी ने रोते हुए बस एक शब्द कहा;

संगीता: पिताजी....

अपनी बेटी की आवाज सुन मेरे होने वाले ससुर जी को एहसास हुआ की मेरे हिस्से की गालियाँ उन्होंने अपनी बेटी को दे दीं, इसलिए वो एक पल के लिए खामोश हो गए!

संगीता: पिताजी...आप...इन्हें गलत समझ...रहे हैं!

संगीता रोते हुए बोली| परन्तु अपने गुस्से के आगे मेरे होने वाले ससुर जी किसकी सुनते जो अपनी बेटी की सुनते;

मेरे होने वाले ससुर जी: देख लिहो?! कर दीस न तोहका आगे, हमार गाली खाये तक का कलेजा नाहीं ऊ लड़के मा?

मेरे होने वाले ससुर जी संगीता पर गरजते हुए बोले|

संगीता: नहीं पिताजी....मैंने उनसे (मुझसे) फोन ले लिया...

संगीता रोते हुए अपने पिताजी को सफाई देने लगी, परन्तु मेरे होने वाले ससुर जी के सर पर तो गुस्सा सवार था;

मेरे होने वाले ससुर जी: रहय दे, झूठ न बोल! हम सब जानित है ऊ लड़िकवा का! *#@$%@#@#@$$&*

मेरे होने वाले ससुर जी ने मेरे लिए गाली निकाली और फ़ोन काट दिया|

फ़ोन कटा और संगीता मुझसे लिपटी हुई फूट-फूट कर रोने लगी! मैंने संगीता को अपनी बाँहों में कसा और उसके सर को चूमते हुए उसे चुप कराने लगा;

मैं: Hey! Its okay जान! बस...चुप हो जाओ|

मैंने संगीता की पीठ को सहलाते हुए उसे चुप कराया|

संगीता: मेरी वजह से.....

संगीता सिसकते हुए बोली, परन्तु मैंने उसकी बात काट दी;

मैं: कुछ आपकी वजह से नहीं हुआ! वो (मेरे होने वाले ससुर जी) बड़े हैं, उन्हें हक़ है गुस्सा होने का, नाराज होने का! मैं भी बाप हूँ, कोई मेरे और मेरी बेटी के बीच आता तो मैं भी गुस्सा होता! छोड़ो इन बातों को और मुस्कुराओ| You're gonna be a mom soon, चुप हो जाओ वरना अगर पिताजी ने तुम्हें रोते हुए देख लिया न तो मेरी खटिया खड़ी कर देंगे!

मेरी खटिया खड़ी होने की बात सुन संगीता की हँसी छूट गई और हम दोनों मुस्कुरा दिए|

मेरे होने वाले ससुर जी ने मुझे जो भी गालियाँ दी मैंने उनका बिलकुल बुरा नहीं लगाया था, क्योंकि मैं एक बाप के दिल में हो रही पीड़ा को समझता था! नेहा में मेरी जान बसती थी और कल को जब उसकी शादी होती या अगर कभी उसका कोई boyfriend बनता तो उसे (नेहा को) खुद से दूर जाता देख मेरा कलेजा भी रोता!

खैर मैंने प्यार से संगीता को संभाल लिया था, अब बच्चों के school से आने का समय हो चला था तो मैं उन्हें लेने चल दिया| मुझे stand पर देख दोनों बच्चे खुश हुए, मेरी गोदी में आते ही नेहा ने अपने भाई की शिकायत कर दी;

नेहा: पापा जी, आयुष है न आप से नाराज था!

नेहा ने जब अपने भाई की शिक़ायत की तो आयुष आँखें बड़ी कर के अपनी दीदी को घूरते हुए चुप कराने लगा|

मैं: मैं जानता हूँ बेटा!

मैंने नेहा से कहा और फिर आयुष की तरफ देखते हुए बोला;

मैं: बेटा I'm sorry! काम बढ़ गया है न इसलिए मैं आपको समय नहीं दे पाता, आप पापा को थोड़ा सा समय दो और फिर देखना पापा सब ठीक कर देंगे!

मैंने आयुष को समझाते हुए कहा तो वो झट से मान गया और मेरे बाएँ गाल पर अपनी प्यारी-प्यारी पप्पी दे डाली! आयुष की देखा देखि नेहा ने भी मेरे दाहिने गाल पर पप्पी दी और हँसते हुए हम तीनों घर पहुँचे| माँ-पिताजी घर लौट चुके थे, मुझे बच्चों को गोद में उठाये देख पिताजी बोले;

पिताजी: Site पर नहीं जाना?

मैं: पिताजी मैं सोच रहा था की आज शाम को सब मंदिर चलते हैं|

मंदिर जाने की बात सुन माँ एकदम से बोलीं;

माँ: पहले बता देता तो हम दोनों (माँ-पिताजी) अकेले क्यों जाते?

माँ ने प्यार से डाँटते हुए कहा तो आज जिंदगी में पहलीबार पिताजी मेरे बचाव में बोले;

पिताजी: अरे तो क्या हुआ, शाम को सब चलते हैं! मंदिर जाने के लिए कौन सा नियम बना हुआ की दिन में एक ही बार जा सकते हैं?!

पिताजी को मेरी तरफदारी करते देख माँ हँस पड़ीं और पिताजी को प्यार से टौंट मारते हुए बोलीं;

माँ: अरे वाह! आज बड़ा तरफदारी कर रहे हो अपने बेटे की?

पिताजी: अरे होनहार, लायक बेटा है मेरा तो तरफदारी करूँ नहीं?!

पिताजी ने माँ के टौंट का जवाब मुस्कुराते हुए दिया|

माँ: अच्छा जी? जब गलती करे तो मेरा बेटा और अच्छे काम करे तो आपका बेटा? ये कहाँ की रीत है?

माँ की बात सुन सब हँस पड़े!

उधर गाँव में मेरे होने वाले ससुर जी ने मुझे गर्मागर्म गालियाँ दी थीं, उससे अनिल का खून उबाले मार रहा था! मेरे होने वाले ससुर जी फ़ोन काटने के बाद भी मुझे गालियाँ दिए जा रहे थे जो की अनिल के लिए सहना मुश्किल हो गया था, आज वो जिंदगी में पहलीबार अपने पिताजी को आँख दिखाते हुए बोला;

अनिल: बस पिताजी! अब हम जीजू (मेरे) के खिलाफ कुछओ न सुनब!

अनिल को मेरी हिमायत करते देख मेरे होने वाले ससुर जी का गुस्सा अपने बेटे पर निकला;

मेरे होने वाले ससुर जी: का? तो अब तुहुँ आपन जीजा खातिर हमका आँख दिखैहो?

मेरे होने वाले ससुर जी गुस्से से अनिल से बोले|

अनिल: और नाहीं तो का?! जानत हो जो तोहार बेटा आज पढ़ी पा रहा है, तोहरे लगे खड़ा है ऊ किसका एहसान है?

अनिल की बात सुन मेरे होने वाले ससुर जी आँखें फाड़े उसे देखने लगे|

अनिल: हमका hostel से निकला जात रहा, सड़क पर रहे का दिन आवा रहा.....

अनिल की आधी बात सुन ही मेरे होने वाले ससुर जी बीच में बोल पड़े;

मेरे होने वाले ससुर जी: तो तू ओ से (मुझसे) काहे भीख माँगत रहेओ? हमसे नाहीं कह सकेओ रहा?

अपने पिताजी की बात सुन अनिल उनपर गरजते हुए बोला;

अनिल: हमार education loan तो आभायें तक pass भवा नाहीं तो हमरा रहे का खातिर का home loan लिहे वाले रहेओ?! और हम केहू के आगे हाथ नाहीं फैलाईं रहा! जब दीदी गाँव रहीं तब, हमार exam fees भरे खातिर हम दीदी से मदद माँगें रहे! दीदी हमका आपन चांदी की पायल दिहिन और कहीं की ई का बेच कर आपन exam fee भर लिहो! सहर मा एक दिन जब जीजू दीदी का पाँव में पायल नाहीं देखेन तो उनसे पूछे लागे की तोहार (संगीता की) पायल कहाँ गई, तब दीदी उनका बताईं की ऊ पायल हमका दिहिन ताकि हम आपन exam fee भर सकीय| जीजू ने चुपेय से दीदी का फ़ोन से हमार नंबर लिहिन और हमका झूठ बोल के 5,000/- रुपये दिहिन, ई कही के की ई पैसा दीदी भिजवाईं है! ऊ तो हम जब दीदी का शुक्रिया कहे खातिर फ़ोन किहिन तब पता चला की ऊ पैसा जीजू आपन जेब से भरिन है!

अनिल की बात सुन कर मेरे होने वाले ससुर जी को धक्का लगा की उनका लड़का बेघर होते-होते बचा, परन्तु अनिल को अभी उन्हीं बहुत कुछ सुनाना था;

अनिल: और ई चोट देखत हो? हमार accident हुआ रहा और ई बात हम केहू का नाहीं बतावा चाहत रहें| दिवाली वाली रात हम आपन दोस्त की मोटरसाईकल से कहीं जावत रहेन जब सामने से एक गाडी हमका मार दिहिस! गाडी चलावे वाला डॉक्टर रहा और ऊ हमका अस्पताल लावा और हमका भर्ती करवाए के हमार इलाज करहिस, हमार मोबाइल में आखिर फ़ोन हम जीजू को दिवाली की मुबारकबाद दिए खातिर करें रहा, एहीसे ऊ डॉक्टर जीजू का फ़ोन कर दिहिस और जीजू हवाई जहाज पकड़ के मुंबई आये रहे! हमार अस्पताल का सारा खर्चा जीजू दिहिन, यहाँ तक की college की fees जो education loan pass न होने के कारन अटकी रही ऊ भी जीजू दिहिन! जानत हो कितना पैसे फूके ऊ हम पर? 60,000/- रुपये! ऊ (मैं) तो हमार accident की बात सबका बतावा चाहत रहेन पर हम उनका रोक दिहिन काहे से की तोहार दिल पाहिले ही कमजोर है और हमार ई हालत देख के तोहार तबियत न बिगड़े एहीसे हम उनका (मुझे) मना कर दिहिन!

अनिल के accident की बात और college की fees की बात सुन मेरे होने वाले ससुर जी हक्के-बक्के रह गए थे!

अनिल: का जर्रूरत रही उनका (मुझे) ई पैसा हम पर बर्बाद करे खातिर? का रिस्ता है हमार ऊ से? ई सब ऊ दीदी खातिर नहीं करीं काहे से की दीदी का इन पैसा के बारे में कछु नहीं पता रहा! हियाँ आये से पाहिले हम उनसे मिले खातिर गयन रहन, हम देखेन की ऊ दीदी से कितना प्यार करत हैं! हुआँ दीदी कितने सुख से है, ऊ सुख हम हियाँ कभौं नाहीं देखेन! का गलत कर दिहिन दीदी अगर आपन ख़ुशी चाह लिहिन तो? का ऊ का खुश रहे का कउनो हक़ नाहीं? सारी उम्र की तो आपन पिताजी की मर्जी से चलो नाहीं तो पति की मर्जी से, का एहि धर्म है ऊ का?

अनिल की बातों ने उसके माता-पिता के दिल को चोटिल किया था| एक तरफ मेरी होने वाली सासु माँ को अपनी बेटी की पसंद पर फक्र हो रहा था और मेरे पति प्रति प्यार उमड़ रहा था क्योंकि मैं बिना कुछ जताये उनके लड़के की मदद कर रहा था तथा दूसरी तरफ मेरे होने वाले ससुर जी निरुत्तर हो गए थे, उनके चेहरे पर कोई हाव-भाव नहीं थे! ठीक तभी अनिल ने एक अंतिम प्रहार और किया;

अनिल: और एक बात बताये देइत है, 8 दिसंबर को हम दीदी और जीजू का सादी में जाइत है!

इतना कह अनिल पाँव पटकते हुए घर से बाहर चला गया|

मेरे ससुराल में आये इस भूचाल की भनक यहाँ (मेरे घर में) किसी को नहीं थी| शाम को मंदिर जा कर मैंने भगवान को बहुत-बहुत धन्यवाद दिया की उन्होंने मुझे मेरी झोली में मेरा प्यार डाल दिया था! मेरा पूरा परिवार मेरी नजरों के सामने था और मैं इसके लिए भगवान का तहे दिल से शुक्रगुजार था| मंदिर से घर आ कर मैंने अशोक, अजय, अनिल और गट्टू भैया को बारी-बारी से फ़ोन किया, परन्तु अजय भैया को छोड़ कर किसी ने मुझसे ठीक से बात नहीं की| जब मैंने उन्हें शादी का निमंत्रण दिया तो अशोक और अनिल भैया मुझ पर भड़क गए और गुस्से में आ कर फ़ोन काट दिया| गट्टू मुझसे बस साल भर बड़ा था और जब उसने फ़ालतू बोलने के लिए मुँह खोला तो मैंने फ़ोन काट दिया| एक बस अजय भैया थे जो मुझसे आराम से बात कर रहे थे| उन्होंने मुझे मेरे लिए फैसले पर कोई ज्ञान नहीं दिया, लेकिन साथ ही उन्होंने मेरा साथ भी नहीं दिया! जब मैंने उनसे शादी में आने की बात कही तो वो खामोश हो गए, आखिर में मैंने ही "कोई बात नहीं भैया" बोल कर फ़ोन रख दिया| मैं उनकी मजबूरी समझता था, वो अपने पिताजी के खिलाफ नहीं जा सकते थे और मुझे इसका कोई मलाल नहीं था|
 

[color=rgb(251,]पच्चीसवाँ अध्याय: खुशियों का आगमन [/color]
[color=rgb(97,]भाग - 1[/color]



[color=rgb(71,]अब तक आपने पढ़ा;[/color]


मंदिर से घर आ कर मैंने अशोक, अजय, अनिल और गट्टू भैया को बारी-बारी से फ़ोन किया, परन्तु अजय भैया को छोड़ कर किसी ने मुझसे ठीक से बात नहीं की| जब मैंने उन्हें शादी का निमंत्रण दिया तो अशोक और अनिल भैया मुझ पर भड़क गए और गुस्से में आ कर फ़ोन काट दिया| गट्टू मुझसे बस साल भर बड़ा था और जब उसने फ़ालतू बोलने के लिए मुँह खोला तो मैंने फ़ोन काट दिया| एक बस अजय भैया थे जो मुझसे आराम से बात कर रहे थे| उन्होंने मुझे मेरे लिए फैसले पर कोई ज्ञान नहीं दिया, लेकिन साथ ही उन्होंने मेरा साथ भी नहीं दिया! जब मैंने उनसे शादी में आने की बात कही तो वो खामोश हो गए, आखिर में मैंने ही "कोई बात नहीं भैया" बोल कर फ़ोन रख दिया| मैं उनकी मजबूरी समझता था, वो अपने पिताजी के खिलाफ नहीं जा सकते थे और मुझे इसका कोई मलाल नहीं था|

[color=rgb(51,]अब आगे;[/color]


शादी की तैयारियों ने मेरे घर में खुशियों को न्योता दे दिया था! खुशियाँ भी ऐसी आईं की घर में उनका ताँता लग गया था!

Site पर काम बहुत बढ़ गया था, अब पिताजी ने शादी के card बाँटने का काम पकड़ रखा था तो सारा काम मेरे सर पर आ चढ़ा था इसलिए मेरा देर से रात को आना बदस्तूर जारी रहने लगा था| सिर्फ पैसों के लालच के कारन ही मैं देर तक काम नहीं कर रहा था, बल्कि शादी होने के बाद मेरा मन छुट्टी मारने का था! शादी के अगले दिन कौन कमबख्त काम पर जाता है!

शादी में दस दिन बचे थे की एक दिन किस्मत से मैं दोपहर के खाने पर घर पहुँच गया;

पिताजी: चलो, आज तेरी शक्ल तो दिख गई वरना तू कब आता है, कब जाता है मुझे पता ही नहीं चलता!

पिताजी मुझे प्यार से टौंट मारते हुए बोले|

मैं: पिताजी, काम बहुत बढ़ गया है!

मैं हाथ-मुँह धोते हुए बोला|

माँ: सब बहु के चरणों का प्रताप है!

माँ मेरे खाने की थाली लगाते हुए बोलीं| इतने में संगीता दोनों बच्चों को school से ले आई, मुझे देखते ही दोनों बच्चे दौड़ते हुए आ कर मेरी गोदी में चढ़ गए और उधर संगीता ने माँ की कही बात को सही करते हुए बोली;

संगीता: नहीं माँ, ये तो आपका और पिताजी का आशीर्वाद है! पिताजी ने जिस मेहनत और लगन से कारोबार को खड़ा किया है, ये (मैं) उसी कारोबार को नई ऊँचाई पर ले जा रहे हैं|

संगीता की बात सुन माँ-पिताजी मुस्कुरा दिए और संगीता को आशीर्वाद देने लगे| माँ, संगीता को ले कर रसोई में खाना परोसने चली गईं, मैंने दोनों बच्चों को थोड़ा लाड-प्यार किया और फिर दोनों बच्चों को कपडे बदलने भेज दिया तथा मैं, पिताजी से बात करने लगा;

मैं: पिताजी, सारे card बँट गए?

मैंने ये सवाल इसलिए पुछा था क्योंकि मुझे डर था की किसी ने पिताजी को card बाँटते समय मेरे और संगीता के रिश्ते को लेकर टोका तो नहीं और यदि टोका तो पिताजी का दिल तो नहीं दुखा?

पिताजी: हाँ बेटा, बस 2-3 नजदीक जाने वाले रह गए हैं|

पिताजी का जवाब बड़ा संक्षेप में था जिससे मैं बेचैन हो गया था, इसलिए मैंने बात को कुरेदते हुए पुछा;

मैं: किसी ने पूछा नहीं की लड़की कौन है?

मेरा सवाल सुन पिताजी जान गए की मेरे मन में क्या उथल-पुथल मची हुई है?!

पिताजी: हाँ पूछा था, मैंने बहु का नाम बता दिया| अब ऐसा तो है नहीं की कोई बहु को न जानता हो क्योंकि तेरी माँ के साथ बहु कीर्तन वगैरह में जाती रहती है|

पिताजी ने थोड़ा जोश से कहा जिससे मुझे खटका लगा की हो न हो किसी न किसी ने तो पिताजी को मेरे और संगीता के रिश्ते को ले कर सुनाया होगा| अब मुझे वो नाम जानना था ताकि उस इंसान से मैं खुद निपट सकूँ;

मैं: तो किसी ने कुछ कहा नहीं? मेरा मतलब...

मेरी बात पूरी होती उससे पहले ही पिताजी एकदम से मुझे डाँटते हुए बोले;

पिताजी: नहीं! और अगर किसी ने पूछा भी तो मैंने कह दिया की मेरा लड़का, लड़की (संगीता) से प्यार करता है तथा मेरे लिए मेरे बेटे की ख़ुशी मायने रखती है! लड़की सुशील है, पूरा घर सँभालती है, हमारा (माँ-पिताजी का) बहुत ख्याल रखती है और जिसने हमारे लिए अपने माँ-पिताजी की कुर्बानी दे दी, ऐसी बहु पा कर ये घर संवर जाएगा|

पिताजी ने जिस तरह संगीता की तरफदारी की थी उससेएक बार को तो मेरा दिल खुश हो गया था की मेरे माता-पिता संगीता को दिल से अपना चुके हैं, परन्तु पिताजी के जवाब ने मेरा मुँह बंद हो गया था| मुझे पिताजी की डाँट से रत्ती भर फर्क नहीं पड़ा था, खीज थी तो बस इस बात की कि मुझे उस शक़्स का नाम नहीं पता चल सका जिसने मेरे पिताजी का दिल दुखाया था!

खैर बच्चे कपड़े बदल कर आ गए थे और खाना खाने के लिए सभी लोग बैठ चुके थे| मैं आयुष और नेहा को खाना खिला रहा था जब पिताजी ने मुझसे कपड़ों के माप देने चलने को कहा;

पिताजी: खाना खा कर मेरे साथ दर्जी के पास चल और अपनी पसंद के कपड़े सिलवा|

पिताजी ने मुझे प्यार से हुक्म देते हुए कहा| कपडे सिलवाने कि बात शुरू हुई तो दोनों बच्चे ख़ुशी-ख़ुशी मुझे देखने लगे क्योंकि उन्हें जानना था कि वो क्या पहनेंगे?

माँ: मुन्नी, तेरे कपडे मैं पसंद करुँगी|

माँ मुस्कुराते हुए नेहा से बोली| अपनी दादी जी कि बात सुन नेहा का चहेरा ख़ुशी से खिल गया| अब बारी थी आयुष कि और वो बेचारा मुँह बाये मुझे और अपने दादाजी को देख रहा था|

पिताजी: आयुष बेटा आप हमारे (मेरे और पिताजी के) साथ चलना|

इतना सुनना था कि आयुष खुश हो गया| परन्तु अब संगीता के मन में सवाल था कि भला मैं शादी के दिन क्या पहनने वाला हूँ, ये सवाल वो सबके सामने तो मुझसे पूछ नहीं सकती थी, लेकिन मैं संगीता का मन पढ़ चूका था;

मैं: पिताजी मैं अपने लिए शेरवानी सिलवाऊँ?

मैंने आयुष कि तरह पिताजी से प्यार से पुछा तो पिताजी मुस्कुरा दिए और बोले;

पिताजी: बेटा सिलवा ले, मैंने कब मना किया है!

पिताजी मेरा ये बालपन देख कर मुस्कुराते हुए बोले| आयुष जो हम बाप बेटों कि नोक-झोंक ख़ामोशी से देख रहा था वो मेरी ओर प्यार से देख रहा था ताकि उसके पहनने वाले कपड़ों का भी फाइनल हो|

मैं: बेटा आपके लिए हम suit सिलवायेंगे, वो भी two piece!

मैं आयुष से बोला| Two-piece suit क्या होता है ये आयुष को नहीं पता था, परन्तु नए कपडे मिलने की ख़ुशी आयुष के चेहरे पर दौड़ रही थी!

खाना खा कर बाप-बेटा-पोता तीनों दर्जी के पास पहुँचे| मेरी शेरवानी के लिए कपड़ा पिताजी ने पसंद किया और दर्जी ने मेरा नाप लिया? अब बारी आई दादा-पोते के कपड़ों की तो मैंने पिताजी से पुछा की वो क्या पहनना चाहेंगे, पिताजी का जवाब सादा सा था;

पिताजी: बेटा कोट-पैंट!

पिताजी का जवाब सुन मैं मुस्कुरा दिया और पिताजी से बोला;

मैं: लड़का शेरवानी पहने और पिताजी कोट-पैंट, ये शोभा थोड़े ही देता है?!

पिताजी ये सुन मुस्कुराये और मुझसे बोले की मैं अपनी पसंद बताऊँ|

मैं: पिताजी, two-piece suit!

ये सुन पिताजी मुस्कुराये और सर हाँ में हिला कर मेरा मन रख लिया| अब बारी आई आयुष की तो पिताजी एकदम से बोले;

पिताजी: मास्टर जी, हम दादा-पोते का सूट एक जैसा बनाइयेगा!

पिताजी की बात सुन सब ठहाका मार कर हँस पड़े|

दर्जी को माप देकर हम घर लौटे, पिताजी दोनों बच्चों को साथ ले कर बैठ गए और उन्हें कुछ बातें समझाने लगे, इधर मैं, मैं और संगीता अकेले बैठे थे तो मैंने माँ से बात शुरू की;

मैं: माँ....वो...

आज माँ से संगीता को ले कर बात करने में मुझे शर्म आ रही थी|

माँ: अरे बोल न, इतना क्या शर्मा रहा है?

माँ मुझे छेड़ते हुए बोलीं, जिससे संगीता की रुचि मेरी बात में जग गई;

मैं: माँ वो...संगीता pregnant है तो मैं चाहता था की एक बार उसका check up हो जाए तो?

मैंने हिम्मत कर के अपनी बात रखी|

माँ: बेटा जबतक शादी नहीं होती, तब तक तुम दोनों (मेरा और संगीता) का यूँ बाहर घूमना ठीक नहीं इसलिए बहु को मैं डॉक्टर सरिता के पास ले जाती हूँ और साथ ही उसे (डॉक्टर सरिता को) शादी का न्योता भी दे दूँगी!

माँ की बात सही थी, शादी से पहले मेरा यूँ संगीता के साथ घूमना 'बोलने वालों' को फालतू बोलने का एक और मौका दे देता| फिर संगीता का check up होने जर्रूरी था, मैं साथ जा कर कराऊँ या फिर माँ क्या फर्क पड़ता?

माँ ने संगीता को तैयार होने को कहा था संगीता तैयार होने चली गई और माँ ने मुझे कुछ याद दिलाते हुए कहा;

माँ: बेटा, डॉक्टर सरिता के नाम से याद आया, तूने करुणा को बताया या नहीं?

करुणा का नाम सुनते ही मुझे याद आया की उससे बात किये हुए कई महीने हो गए! मेरे जन्मदिन वाले दिन उसने फ़ोन किया था जो मैं उठाना ही भूल गया था! खैर मैंने, माँ के सामने ही करुणा को call किया पर उसने उठाया नहीं! एक तरह से ठीक ही था की उसने मेरा कॉल नहीं उठाया, क्योंकि मेरा उस पर गुस्सा अब तक शांत नहीं हुआ था|

मैं: फ़ोन नहीं उठा रही, शायद busy होगी!

इतना कह मैं उठ खड़ा हुआ, क्योंकि मैं नहीं चाहता था की माँ करुणा को ले कर कोई सवाल-जवाब करें| मुझे payment लेने एक party के पास जाना था, तभी नेहा और आयुष कहने लगे की वो भी मेरे साथ जायेंगे| मैंने पिताजी की तरफ देखा तो उन्होंने सर हाँ में हिला कर मुझे बच्चों को साथ ले जाने की इजाजत दे दी|

पिताजी: अच्छा बेटा तू दिषु को फ़ोन कर दे, उसे बता दे की हम (माँ और पिताजी) आज card देने आ रहे हैं|

मैंने फ़ौरन दिषु को फ़ोन किया और उसे बता दिया की माँ-पिताजी card देने आ रहे हैं, ये सुनते ही वो खुश हो गया और फिर से party माँगने लगा| मैं घर में था तो कुछ कह नहीं सकता था, इसलिए मैंने गोलमोल बात की और बोला;

मैं: वो सब बाद में.....बात करते हैं|

इधर आयुष और नेहा ने शोर मचा रखा था, दिषु समझ गया की मैं घर पर हूँ इसलिए उसने ज्यादा जोर नहीं दिया|

बच्चे तैयार हो कर मेरे साथ निकले तथा माँ, संगीता को अपने साथ ले कर डॉक्टर सरिता के पास निकली| डॉक्टर सरिता को माँ ने जब मेरी शादी का card दिया तो वो बहुत खुश हुईं, फिर माँ ने संगीता को आगे करते हुए सारी बात बताई तो सरिता जी ने संगीता को बहुत मुबारकबाद दी और उसका सारा check up किया| शुक्र है की कोई चिंता वाली बात नहीं निकली और सरिता जी ने माँ को दादी बनने की मुबारकबाद दी! संगीता को घर छोड़ कर माँ-पिताजी दिषु के घर पहुँचे जहाँ उनका स्वागत बड़ा जोरदार हुआ क्योंकि दिषु ने अपने माँ-पिताजी को सब बात बता दी थी| दिषु और मेरे घर के बीच बड़े खुले तौर पर बातचीत होती थी, इसलिए जब पिताजी ने संगीता का नाम बताया तो दिषु के माता-पिता ने इस बात को ख़ुशी पूर्वक स्वीकारा| दिषु के पिताजी मुस्कुराते हुए पिताजी से बोले;

दिषु के पिताजी: अरे भाईसाहब, लड़का हमारा, मर्जी हमारी जिससे शादी करें| किसी को क्या हक़ है की वो शादी के खिलाफ बोले?!

दिषु के पिताजी की बात सुन पिताजी और माँ बहुत खुश हुए और फिर पिताजी ने उनसे एक गुजारिश की;

पिताजी: भाईसाहब आपसे एक गुजारिश है, जैसा की आप जानते हैं की संगीता के पिताजी इस शादी के लिए राज़ी नहीं हैं तो हम सोच रहे थे की आप तथा मेरे एक जानकार मिश्रा जी बहु की तरफ से हो जाते और कुछ रस्में निभा देते ताकि बहु को कोई दुःख न रहे की उसके परिवार से कोई नहीं आया|

इतना सुन्ना था की दिषु के माता-पिता फ़ौरन मान गए;

दिषु के पिताजी: बिलकुल भाईसाहब! आप बिलकुल चिंता मत कीजिये, संगीता के तरफ से की जाने वाली रस्में हम सभी निभाएंगे|

इतने में दिषु बीच में बोल पड़ा;

दिषु: पर मैं दूल्हे के साथ ही रहूँगा!

दिषु का ऐसा कहने के पीछे एक कारण था जो उसने मुझे बाद में बताया| उधर दिषु की बचकानी ढँग से कही बात सुन सभी ठहाका लगाने लगे!

इधर मैं और बच्चे cab करके party के पास payment लेने पहुँचे| Payment लेने के बाद दोनों बच्चों ने अपनी-अपनी फरमाइशें कर दी, आयुष खानी थी चाऊमीन और नेहा को रसमलाई! अब पिता होने के नाते मैं बच्चों को मना तो कर नहीं सकता था और फिर मन तो मेरा भी था बाहर से खाने का तो हम तीनों एक restaurant में बैठ गए| Waiter ने मुझे menu card दिया तो मैंने menu card नेहा को दे दिया ताकि वो खाने का order दे| नेहा ने menu card पढ़ना शुरू किया तो आयुष का भी मन किया की वो menu card देखे इसलिए वो अपनी दीदी से menu card माँगने लगा| नेहा ने बड़ी दीदी होने की धौंस दिखाई और आयुष को चिढ़ाते हुए menu card दूर कर दिया| आयुष उठा और menu card लेने के लिए जिद्द करने लगा और नेहा के पीछे पड़ गया| आयुष को यूँ अपनी दीदी के पीछे पड़ता देख मुझे बहुत मज़ा आया, परन्तु अब समय था दोनों के बीच सुलह कराने की वरना क्या पता दोनों हाथापाई शुरू कर देते!

मैं: आयुष बेटा, इधर आओ|

मैंने आयुष को अपने पास बुलाया और उसे गोदी में बिठाते हुए दोनों बच्चों को प्यार से समझाने लगा'

मैं: बेटा देखो बाहर आ कर यूँ लड़ाई नहीं करते वरना सबको लगेगा की आप दोनों अच्छे बच्चे नहीं हो|

दोनों बच्चों को मेरी बात समझ आई और दोनों ने कान पकड़ कर मुझे "sorry" बोला| मैंने मुस्कुरा कर दोनों बच्चों के सर पर हाथ फेरा और चाऊमीन order की| दोनों बच्चों को मैंने बारी-बारी चाऊमीन खिलाई, मुँह मीठा करने के लिए मैंने रस मलाई मँगाई और इस बार रस मलाई मुझे दोनों बच्चों ने बारी-बारी से खिलाई|

खा-पी कर बाप-बेटा-बेटी घर लौटे, बच्चों को आ रही डकार सुन माँ मुस्कुराते हुए बोलीं;

माँ: आ गए बाहर से खा-पी कर?

अपनी दादी जी की बात सुन दोनों बच्चे शर्मा कर मेरी टाँगों से लिपट गए| उन्हें लगा की मैं उन्हें माँ की डाँट से बचा सकता हूँ, अब वो क्या जाने की माँ ने अगर डाँटा तो फिर मेरी खुद की खैर नहीं! फिर न मैं बच पाउँगा और न ही उन्हें (आयुष और नेहा को) बचा पाउँगा| शुक्र है की किसी को डाँट नहीं पड़ी, हाँ पिताजी ने बच्चों को बिठा कर प्यार से समझाया की वो इस तरह रोज-रोज बाहर से खाना न खाएँ वरना तबियत खराब हो जाती है|

इधर मैंने माँ से पुछा की डॉक्टर सरिता ने क्या कहा, तो माँ ने बताया की कोई घबराने की बात नहीं है बस बहुत का (संगीता का) अच्छे से ख्याल रखना है| मुझ पर पहले ही बाप बनने का जूनून सवार था, ऊपर से माँ की कही बात सुन कर मैं तो जैसे बावरा सा हो गया था| मैंने संगीता को कुछ ज्यादा ही अच्छे से ख्याल रखना शुरू कर दिया| मैं काम में व्यस्त रहता था, इस कारण घर रह कर मैं संगीता का ख्याल नहीं रख सकता था इसलिए मैंने site से संगीता को हर एक घंटे में फ़ोन करना शुरू कर दिया| हम दोनों ही इन दिनों विवाह पिक्चर के प्रेम और पूनम बन चुके थे, हमारे बीच बातें बिलकुल उसी अंदाज में हुआ करती थीं जैसी की पिक्चर में शहीद और अमृता राओ करते थे| जब मैं पूनम उर्फ़ संगीता को फ़ोन कर के पूछता की क्या उसने dry fruits खाये तो वो शर्म से गठरी बनके बोलती; "हाँ जी|" कई बार वो माँ के सामने होती जब मैं उसे फ़ोन करता, माँ के सामने तो संगीता के मुँह से शब्द नहीं निकलते थे| बड़ी मुश्किल से शर्माते हुए "हम्म्म" नाम का एक शब्द निकलता था जिसे सुन कर मैं समझ जाता था की आस-पास माँ-पिताजी होंगे!

देखा जाए तो कम मैं भी नहीं था, मैं खुद संगीता से विवाह पिक्चर के प्रेम की तरह बात करता था| मुझ में थोड़ी बहुत शर्म जो हाल-फिलहाल में शुरू हुई थी वो मेरी बातों में झलकती थी|

अपने बाप बनने को ले कर मैं संगीता के पीछे पड़ गया था, site पर से ही मैंने किराने वाले को फ़ोन कर के घर में dry fruits मँगवा दिए, घर के नजदीक जो फल वाला था उसे फ़ोन पर घर fruits पहुँचाने को कह दिया! जब ये साड़ी चीजें घर पहुँचीं तो माँ ने मुझे फ़ोन खनखना दिया, जब मैंने उन्हें बताया की ये सब मैंने मंगाया है तो माँ हँसने लगीं| उस दिन से मैं कभी माँ को तो कभी नेहा को फ़ोन कर के संगीता को फल या dry fruits खिलाने को कहने लगा| मेरा ये जूनून देख कर माँ बहुत हँसती थीं और मेरी टाँग खींचने का कोई मौका नहीं छोड़तीं थीं! बेचारी संगीता शर्म से लाल हो जाया करती थी जब माँ मुझे फ़ोन पर छेड़तीं!

[color=rgb(184,]जारी रहेगा भाग - 2 में...[/color]
 

[color=rgb(251,]पच्चीसवाँ अध्याय: खुशियों का आगमन[/color]
[color=rgb(97,]भाग -2[/color]


[color=rgb(71,]अब तक आपने पढ़ा;[/color]

अपने बाप बनने को ले कर मैं संगीता के पीछे पड़ गया था, site पर से ही मैंने किराने वाले को फ़ोन कर के घर में dry fruits मँगवा दिए, घर के नजदीक जो फल वाला था उसे फ़ोन पर घर fruits पहुँचाने को कह दिया! जब ये सारी चीजें घर पहुँचीं तो माँ ने मुझे फ़ोन खनखना दिया, जब मैंने उन्हें बताया की ये सब मैंने मंगाया है तो माँ हँसने लगीं| उस दिन से मैं कभी माँ को तो कभी नेहा को फ़ोन कर के संगीता को फल या dry fruits खिलाने को कहने लगा| मेरा ये जूनून देख कर माँ बहुत हँसती थीं और मेरी टाँग खींचने का कोई मौका नहीं छोड़तीं थीं! बेचारी संगीता शर्म से लाल हो जाया करती थी जब माँ मुझे फ़ोन पर छेड़तीं!

[color=rgb(51,]अब आगे:[/color]

दिन बड़ी हँसी-ख़ुशी बीत रहे थे, तारीख थी 30 नवम्बर और कल यानी 1 दिसंबर को मेरे होने वाले साले साहब आने वाले थे| अनिल की गाडी रात की थी इसलिए मैंने आज लेबर से सारी रात overtime करवा मारा!

नेहा को मैंने skype का call करना सिखा दिया था, तो नेहा मुझे skype पर video call किया तथा आयुष की शिकायत करने लगी| आयुष मेरे घर न आने से सो नहीं रहा था और अपनी मम्मी यानी संगीता को तंग कर रहा था| नेहा ने आयुष को फ़ोन दिया और आयुष मुझे video call पर देख कर खुश हो गया;

मैं: बेटा, मम्मी को तंग करना अच्छी बात नहीं! कल मैं सारा दिन घर पर रहूँगा, इसलिए जितनी भी मस्ती करनी है वो हम दोनों (मैं और आयुष) कल करेंगे|

आयुष के लिए मस्ती का मतलब होता था computer पर game खेलना|

आयुष: तो पापा जी मैं कल school से छुट्टी कर लूँ?

आयुष भोली सी सूरत बनाते हुए बोला ताकि मैं उसकी भोलीभाली सूरत देख कर पिघल जाऊँ;

मैं: नहीं बेटा! School से छुट्टी करोगे तो आपके दादा जी गुस्सा होंगे! फिर सुबह घर आ कर मैं सोऊँगा, तो आप घर रह कर क्या करोगे? आप अपनी दीदी के साथ स्कूल जाओ और जब आप वापस आओगे न तब हम आपकी hotwheels cars के साथ खेलेंगे|

ये सुन कर आयुष ने थोड़ा मुँह बनाया तो नेहा ने उसे मेरे बदले एक पप्पी दी और कल स्कूल में chips खिलाने का लालच दिया तब जा कर आयुष माना|

अगली सुबह मैं 7 बजे घर में घुसा, बच्चे उस समय तैयार हो कर अपने स्कूल जाने के लिए निकल रहे थे| मुझे देखते ही पहले दोनों ने मेरे गालों पर अपनी मीठी-मीठी पप्पी दी और फिर अपने दादाजी के साथ स्कूल चले गए| रात भर का जगा था, इसलिए थकान से चूर था| घर पहुँचते ही मैंने अपने कपडे उतार फेंके तथा अपनी t-shirt और हल्का सा पजामा पहन रजाई में घुस कर सो गया| माँ-पिताजी को किसी से मिलने जाना था तो वो संगीता से कह गए की वो मेरे ध्यान रखें और चूँकि मैंने रात से कुछ खाया नहीं था तो जब मैं सो कर उठूँ तो संगीता मुझे खाना बना कर खिला दे!

मुझे और संगीता को एक दूसरे की आदत लग चुकी थी, ऐसी आदत की बिना एक दूसरे को छुए हमसे रहा नहीं जाता था! ये छुअन वासना की नहीं होती थी, परन्तु ये छुअन हमें एक दूसरे के जिस्म में मौजूद रूहों को खुश करने के लिए जर्रूरी होती थी| जब से मैं और पिताजी गाँव से हो कर आये थे तब से हम दोनों (मैं और संगीता) ने एक दूसरे को स्पर्श नहीं किया था| मैं तो काम में व्यस्त होने के कारन अपने आपको संभाल लेता था परन्तु संगीता के लिए ये दूरी असहनीय थी! आज कई दिनों के बाद जब संगीता को मेरे साथ समय बिताने का मौका मिला तो संगीता ने इसका फायदा उठाने की सोची! करीब घंटे भर बाद संगीता nighty पहने हुए मेरी रजाई में घुसी, मैं उस वक़्त दाईं करवट ले कर लेटा था| संगीता मेरे पीछे लेटी, अपने दाएँ हाथ को मेरी गर्दन के नीचे से मेरी छाती की ओर लाइ तथा अपने बाएँ हाथ को मेरी कमर पर से होते हुए मेरी छाती की तरफ ला कर अपने दोनों हाथों से मुझे जकड़ना शुरू कर दिया| धीरे-धीरे संगीता ने अपने दोनों हाथों को मेरी छाती पर फिराना शुरू कर दिया था! ऐसा लगता था मानो कोई जंगली बेल मेरे शरीर से लिपटती जा रही हो! अब मुझे आ रही थी जोर से नींद और संगीता पर romance सवार हो चूका था, इसलिए मैं कुनमुनाते हुए बोला;

मैं: बाबू ...क्या कर रहे हो?

मेरे मुँह से "बाबू" शब्द सुनते ही संगीता के चेहरे पर खुशियों भरी मुस्कान छा गई!

संगीता: क्या बोला आपने?

संगीता मेरी गर्दन पर अपने ठंडे-ठंडे होंठ रखते हुए पूछने लगी|

मैं: ममम...बाबू!

संगीता: Awwwwww!!! I loved what you just said!

संगीता ने मुझे अपनी बाहों में कसते हुए कहा|

मैं: मममम!

मैं आँख बंद किये हुए बोला|

संगीता मेरे जिस्म से चिपकी हुई थी और कोशिश कर रही थी की मैं उसे अपनी बाहों में ले कर अपने जिस्म की गर्मी से उसे पिघला दूँ, मगर मेरी आँखों में नींद बसी थी जो मुझे उठने नहीं दे रही थी| जब मैंने कोई परतक्रिया नहीं दी तो संगीता को मुझे उकसाना पड़ा;

संगीता: मैं आपको बहुत तंग करती हूँ न?

संगीता का सवाल सुन कर मैं समझ गया की वो जानबूझ कर ऐसा सवाल पूछ रही है, ताकि उसका जवाब देने के लिए मैं जाग जाऊँ, मगर मैंने अलसाये हुए ही कहा;

मैं: ममम!

मैं नींद में कुनमुनाया| संगीता ने इस जवाब की उम्मीद नहीं की थी, उसे लगा था की उसका सवाल सुन मैं उसे अपनी बाहों में भर लूँगा और उसे खूब प्यार करूँगा| इस वक़्त संगीता जी का दिमाग गलत दिशा में भागने लगा, उसे लगने लगा की मैं शायद उससे नाराज हूँ;

संगीता: मेरी एक जिद्द के कारन ये सब हो गया न?! न मैं आपसे कहती की 'I wanna conceive this baby' न आप कहते की 'Marry Me'! सब मेरी गलती है, मेरी वजह से आप काम में इतना मशगूल हो गए की आजकल मुझे पूरा समय भी नहीं दे पाते हो!

खुद को कसूरवार ठहराते हुए भी आखिर में संगीता ने मुझसे काम में व्यस्त होने की शिकायत कर ही दी!

उधर संगीता ने जब अपने माँ बनने की बात को गलती कहा तो मेरी नींद फुर्ररर हो गई, अपने पिता बनने को ले कर मैं कुछ ज्यादा ही उतावला था और अगर कोई मेरे होने वाले बच्चे को गलती कहता तो मैं उसे नोच खाता! मैंने एकदम से संगीता की तरफ करवट ली और संगीता के ऊपर आ कर उसे घूरते हुए देखा;

मैं: Listen to me, stop blaming yourself! तुमने कोई गलती नहीं की, तुमने बस एक जिद्द की और उस जिद्द ने मुझे हमारे रिश्ते को नया नाम देने की राह दिखा दी! इस बात को अपने दिमाग में घुसा लो, समझी?

मैंने जिस गुस्से संगीता से बात कही थी वो बेचारी सहम गई थी! मैं संगीता को डरा कर नहीं रखना चाहता था, वो भी तब जब वो मेरे बच्चे की माँ बनने वाली थी इसलिए उसका मन हल्का करने को मैंने अपनी बात को थोड़ा प्यार से प्रस्तुत किया;

मैं: हमारे एक होने की राह थोड़ी मुश्किल थी, लेकिन हमने मिलके मुश्किलों भरा रास्ता पार कर लिया है! अब बस सात दिन और, फिर हम दोनों हमेशा-हमेशा के लिए एक हो जायेंगे| मैं हमारे बच्चों को अपना नाम दे पाऊँगा, अपने होने वाले बच्चे को गोद में ले कर खिलाऊँगा और हमारे सबसे रिश्तों (बड़के दादा, बड़की अम्मा, मेरे होने वाले ससुर जी से रिश्तों) पर जो घना कोहरा छा गया है वो भी धीरे-धीरे साफ़ हो जायेगा|

मैंने सकारत्मक सोचते हुए पूरे परिवार के रिश्ते सुधरने की बात कही तो संगीता की आँखें चमकने लगीं;

संगीता: सच जानू?

संगीता के इस सवाल के जवाब में मैंने उसके माथे को चूम लिया, मेरा ये चुंबन संगीता के लिए सब कुछ था! संगीता के चेहरे पर प्यारी सी मुस्कान खिल गई थी और उसने हँसते हुए मुझसे अपने दिल की बात कही;

संगीता: एक बात कहूँ जानू?

मैं: कहो मेरी जान!

मैंने मुस्कुराते हुए कहा|

संगीता: बहुत दिनों से आपने मुझे प्यार नहीं किया!

ये शिकायत करते हुए संगीता ने नाराज होते हुए अपना निचला होंठ फुला लिया!

मैं: Sorry जान! आजकल काम इतना जयदा बढ़ गया की समय ही नहीं मिलता की अपनी जान के साथ समय बिता पाऊँ!

मैंने बात को हलके में लेते हुए अपनी सफाई दी|

संगीता: मतलब शादी के बाद भी आप मुझे समय नहीं दोगे?

संगीता भोयें सिकोड़ कर बोली| मैं उसके सवाल का जवाब देता उससे पहले ही संगीता मुझे तंग करने के लिए बोली;

संगीता: I'm having second thoughts!

संगीता को लगा की उसकी ये बात सुन कर मैं उसे मनाऊँगा या अपनी सफाई दूँगा, परन्तु मैं उसका ये प्यार भरा खेल समझ चूका था इसलिए मैंने भी अपना प्यार भरा खेल खेला| मैं संगीता के ऊपर से हटा और सीधा लेटते हुए अपनी अकड़ दिखाते हुए बोला;

मैं: Really? So you wanna back down?......हम्म्म्म.... its okay!

मैंने जब संगीता के शादी से मना करने के खिलाफ कुछ नहीं कहा तो संगीता बहुत हैरान हुई और मुझ पर चढ़ बैठते हुए बोली;

संगीता: एनहेंहैं!! इतनी आसानी से आपका पीछा नहीं छोडूँगी, ये (हमारा रिश्ता) fevicol का जोड़ है, इतनी आसानी से नहीं छूटेगा!

ये कहते हुए संगीता अपना सर मेरे सीने पर रखते हुए मुझसे फिर से लिपट गई| मैं अपने प्यारे से खेल में जीत गया था इसलिए मैंने भी संगीता को अपनी बाहों में कस लिया|

मेरे जिस्म से मिल रही गर्मी ने संगीता के भीतर प्यार की आग भड़का दी थी! संगीता ने मुझे अपनी बाहों में कसे हुए कसमसाना शुरू कर दिया था, वो चाहती थी की मैं पहल करूँ और उसके प्रणय मिलन की गुहार उसके बिना कहे सुन लूँ| मेरे अंदर प्रेम की आग भड़काने के लिए संगीता ने मेरे सीने को चूमना शुरू कर दिया;

मैं: You're getting naughty हाँ?

मैंने संगीता के सर को चूमते हुए पुछा, जिसके जवाब में संगीता ने हाँ में सर हिला दिया| अब मैं संगीता को शादी तक रुकने तक का ज्ञान नहीं दे सकता था क्योंकि उससे वो नाराज हो जाती इसलिए उसे समझाने के लिए मैंने फ़िल्मी गाने का रास्ता अपनाया| मैंने हाथ बढ़ा कर अपना tablet उठाया और संगीता को समझाने के लिए विवाह पिक्चर का गाना ढूँढ निकाला| जब गाना शुरू हुआ तो संगीता ने पहल करते हुए गाने के बोल बदल दिए और गुनगुनाते हुए बोली;

संगीता: हमारी शादी में,

अभी बाकी हैं दिन सात,

पाँच बरस लगे, ये हफ्ता होगा कैसे पार?!

नहीं कर सकती मैं और एक दिन भी इंतज़ार,

आज ही पहना दे,

हो आज ही पहना दे,

अपनी बाँहों का हार,

हो जानम... हो जानम हो ....!

संगीता मुस्कुराते हुए गाने लगी| गाने के बदले हुए ये बोल संगीता के दिल के जज्बात ब्यान कर रहे थे| इस समय संगीता विवाह पिक्चर की प्रेम यानी शहीद कपूर बन चुकी थी और प्रेम समागम करने को आतुर थी! वहीं मैं, पूनम अर्थत अमृता राओ का किरदर निभाते हुए अपनी परिनेता को समझना चाहता था| संगीता इस वक़्त मुस्कुराते हुए मुझे देख रही थी और जानना चाहती थी की भला मैं उसके प्रणय मिलन की विनती का क्या जवाब दूँगा?! आखिर मेरे हिस्से की पंक्तियाँ आ गईं, जिनके बोल मैंने बदलते हुए गाये;

मैं: हमारी शादी में,

अभी बाकी है बस दिन सात,

महीने बीत गए ये दिन भी हो जाएंगे पार,

ना फिर तरसाऊँगा और करवाके इंतज़ार,

मैं यूँ पहना दूँगा ...ऐसे पहना दूँगा,

हक़ से पहना दूँगा तुम्हे अपने बाहों का हार,

हो साजनी हो ... सजनी हो!

मैंने गाने की पंक्तियाँ गाते हुए संगीता को अपनी बाहों में जकड़ लिया| गाना खत्म हुआ परन्तु संगीता को मेरे द्वारा गाने के रूप में कही हुई बात जचि नहीं इसलिए उसने मुझसे गोल-मोल सवाल पुछा;

संगीता: तो आप मेरी इच्छा पूरी नहीं करोगे न?

संगीता ने फिर अपना निचला होंठ फुलाते हुए पुछा और मेरे ऊपर से हट कर बगल में नाराज होने का नाटक करने लगी| इस वक़्त अगर मैं संगीता को अकड़ दिखाता तो वो मुझसे सच में नाराज हो जाती इसलिए मैंने तुरंत उसकी ओर करवट ली और उसे प्यार से समझाने लगा;

मैं: जान, मैं मना नहीं कर रहा! परन्तु मैं बस आपको इतना समझाना चाहता हूँ की बस कुछ दिनों की बात है.....

लेकिन संगीता को आज मेरा प्यार चाहिए था इसलिए उसने एकदम से मेरी बात काट दी;

संगीता: उन कुछ दिनों के बाद हम प्रेमी नहीं पति-पत्नी होंगे न?!

संगीता की बात में दम था, शादी के बाद तो हम पति-पत्नी बन जाते और पति-पत्नी के बीच प्यार में वो कशिश नहीं होती जो दो प्रेमियों में होती है! तब यूँ चोरी-छुपे प्यार करने का न तो मन करता और न ही मज़ा आता!

मैं: Awwwww! तो मेरी होने वाली बीवी को शादी से पहले मेरा थोड़ा प्यार चाहिए?

ये सुनते ही संगीता मुझे आस भरी नजरों से देखने लगी और छोटे बच्चों की तरह गर्दन हाँ में हिलाने लगी|

मैं: भई तब तो अपनी परिणीता को प्यार करना बनता है!

इतना कह मैंने संगीता को अपने ऊपर खींच लिया और बिना कोई देर किये संगीता के गुलाबी होठों को अपने मुँह भर कर उनका रसपान करने लगा! मेरे इस प्यारे भरे चुंबन ने संगीता के जिस्म में प्यार की आग दहका दी थी तथा उसने कसमसाना शुरू कर दिया था! संगीता का जिस्म मचलने लगा था और उसे यूँ मचलता देख मैंने उसके होठों को अपनी गिरफ्त से आजाद कर दिया;

संगीता: उफ्फ्फ्फ़...जानू.....आपके छूने भर से मेरा शरीर जलने लगता है!

संगीता आँखें बंद किये हुए बोली|

मैंने फ़ौरन करवट बदली और संगीता को अपने नीचे ले आया| मैंने आगे बढ़ते हुए संगीता की nighty खोलनी चाही तो वो मुझे रोकते हुए बोलीं;

संगीता: जानू, माँ-पिताजी कभी भी आ सकते हैं! आप बाकी सब (foreplay) छोडो....

इतना कहते हुए संगीता लजाने लगी और लालम लाल हो गई! संगीता जल्दी मचा रही थी और मुझे चिंता थी की बिना foreplay के उसे तकलीफ होगी;

मैं: जान तुम्हें दर्द होगा!

मैंने थोड़ा चिंतित होते हुए कहा| संगीता जानती थी की उसे प्यार करते समय मैं उसके चेहरे पर कोई दर्द, कोई तकलीफ नहीं देख सकता इसलिए संगीता ने मुस्कुराते हुए मेज पर रखी हुई vaseline की शीशी की तरफ इशारा किया| मेरा कमरा ठंडा था और मैंने सिर्फ एक पतली सी t-shirt पहन रखी थी, मैंने फटाफट vaseline उठाई और फ़टक से रजाई में घुस गया| जैसे ही मैं रजाई में घुसा, संगीता ने मेरे पाजामे का नाडा खोल दिया| मैंने फटाफट पजामा निकाला और कमर के नीचे से बिलकुल नग्न हो गया| उधर संगीता ने अपनी nighty ऊपर उठाई और वो भी कमर के नीचे से नग्न हो गई| मैंने अपने लिंग पर vaseline चुपड़ी और थोड़ी बहुत vaseline संगीता की योनि पर चुपड़ दी, मुझे थोड़ा डर लग रहा था की कहीं किसी तरह का खून-खराबा न हो जाए इसलिए मैंने अपनी उत्तेजना पर काबू करते हुए संगीता के योनि द्वार पर अपने लिंग का मुंड टिकाये हुए रुक गया! मुझे इस तरह रुका हुआ देख संगीता चिंतित होते हुए बोली;

संगीता: क्या हुआ जानू?

मैं: जान, डर लग रहा है की कहीं आपको दर्द हुआ तो?

मैं चिंतित स्वर में बोला|

संगीता: तो क्या हुआ?

संगीता मेरे इस तरह चिंतित होने को हलके में लेते हुए बोली|

मैं: यार शादी में अगर आप लँगड़ाये तो, सारे लोग तो मुझे ही घूर रहे होंगे न?

संगीता ने जब मेरी चिंता को हलके में लिया तो मैंने संगीता को छेड़ते हुए अपनी बात का रुख बदल दिया जिसे सुन कर संगीता खिलखिलाकर हँस पड़ी|

संगीता: हाय जानू! इतना प्यार करते हो आप मुझसे? मुझे जरा सा भी दर्द नहीं दे सकते?

संगीता अपनी प्यारी भरी आँखें नचाते हुए मुझसे पूछने लगी|

संगीता: रुको मैं कुछ करती हूँ|

ये कहते हुए संगीता ने मुझे अपने ऊपर से हटने को कहा| मैं नीचे लेट गया और संगीता मेरे ऊपर आ गई, उसने अपनी दोनों टांगें मोडीं और मेरे लिंग के ऊपर अपनी योनि को ले आई| फिर अपने दाएँ हाथ की उँगलियों से अपने योनि कपालों को खोल वो धीरे-धीरे मेरे लिंग पर बैठने लगी| संगीता भी जानती थी की vaseline लगी होने के कारण हमारे जनांगों का मिलन बहुत तीव्र होगा इसलिए वो बहुत सम्भल कर आगे बढ़ रही थी| इधर संगीता के इस प्रकार मेरे ऊपर बैठने से मेरे ऊपर से रजाई हट चुकी थी, एक पतली सी t-shirt में होने के कारण मुझे ठंड लगने लगी थी!

मेरी ठंड से बेखबर संगीता बड़ी सावधानी से मेरे लिंग के हर एक centimeter को अपनी योनि में समाये जा रही थी, ऐसा लगता था मानो हम दोनों ये समागम जिंदगी में पहलीबार कर रहे हों! मेरे आधे लिंग को अपनी योनि में समायोजित कर संगीता रुक गई, दर्द की लहर संगीता के जिस्म में दौड़ चुकी थी जिस कारण उसकी आँखें बंद हो चलीं थीं! अपनी परिणीता को यूँ पीड़ा में देख मैं बोला;

मैं: तुम नीचे आ जाओ, I'll be gentle!

संगीता मेरी बगल में लेट गई, मैंने रजाई हम दोनों पर वापस डाली और संगीता के ऊपर आ गया| संगीता की दोनों टांगों के बीच आते हुए, मैंने अपने दाहिने हाथ से अपने कामदण्ड को पकड़े हुए उसे सही दिशा दिखाई| बहुत धीरे-धीरे मैंने अपने कामदण्ड को संगीता की योनि पर दबाना चालु किया| जैसे ही संगीता के चेहरे पर मुझे दर्द की लकीरें दिखतीं मैं रुक जाता, जब वो दर्द भरी लकीरें मिट जातीं तो मैं फिर अपने कामदण्ड को धीरे-धीरे योनि के अंदर दबाता जाता| करीब दो मिनट बाद मैं पूरी तरह से संगीता के भीतर समा चूका था और संगीता के चेहरे पर आखरी दर्द की कुछ लकीरें आ चुकी थीं| जब वो लकीरें मिट गईं तब मैंने बहुत धीरे-धीरे अपनी रफ़्तार पकड़ी, धीमी रफ्तार ने आज कुछ अलग ही समां बाँध दिया था| इस वक़्त हम दोनों ही भूल चुके थे की माँ-पिताजी घर कभी भी आ सकते हैं, हरपाल बढ़ती अपनी उत्तेजना के जोश में बहते हुए हम दोनों ने एक दूसरे के होठों का रसपान शुरू कर दिया| कुछ पल के संसर्ग से ही संगीता कुछ ज्यादा ही कामुक हो चली थी, उसने अपनी बाहों में मुझे कैद कर लिया था और मेरी गर्दन पर अपने दाँत गड़ा चुकी थी! उसके मुँह से मादक सिसकारियाँ निकल रहीं थीं और नीचे से उसकी कमर मेरे कामदण्ड पर प्रहार करने लगी थी| मैं समझ गया की संगीता अपने स्खलन के नजदीक पहुँच चुकी है इसलिए मैंने अपनी गति थोड़ी तेज कर दी जिससे संगीता मिनट भर में अपने स्खलन पर पहुँच गई और मेरी पीठ में अपने नाखून गाड़ते हुए चीखी; "आँह्हह्ह!" संगीता का जिस्म एकदम से अकड़ा और फिर वो निढाल हो कर पड़ गई! संगीता के स्खलन से उतपन्न हुए गर्म लावे ने मेरे कामदण्ड को भीगा दिया था, अब मुझे भी अपने स्खलन पर पहुँचना था जो इतनी कम गति पर पहुँचना मुश्किल था इसलिए मैंने अपनी गति और बढ़ा दी परन्तु मैं केवल आधे लिंग को ही अंदर ले जा सकता था वरना संगीता दर्द से कराहने लगती| 20 minute लगे मुझे मेरे स्खलन पर पहुँचने में और इस दौरान मैं पसीने से तरबतर हो चूका था| आखिर जब अंदर का लावा फूटा तो मैं निढाल हो कर संगीता की बगल में फ़ैल गया और तेजी से साँस लेने लगा|

रजाई में आज हमारा ये पहला सम्भोग था और इस सम्भोग ने आज हमें कुछ अलग ही आनंद प्रदान किया था| कुछ पल बाद जब मेरी सासें सामन्य हुईं तो संगीता मेरी ओर करवट ले कर लेट गई ओर मेरी आँखों में देखते हुए प्यार से बोली;

संगीता: Thank you मेरा दिल रखने के लिए और sorry मैंने आपकी नींद खराब कर दी| अब आप आराम करो, तब तक मैं आपके लिए कुछ खाने को बनाती हूँ|

संगीता के चेहरे पर संतुष्टि की मुस्कान आई और वो उठने लगी| मैंने संगीता का हाथ पकड़ उसे अपने ऊपर खींच लिया और उसके बालों में हाथ फेरते हुए बोला;

मैं: अरे छोडो खाना-पीना और मेरे पास रहो!

मैंने संगीता को अपनी बाहों में भर लिया|

संगीता: अच्छा जी? अभी माँ-पिताजी आएंगे और मेरे बिखरे हुए बाल और खराब हुई nighty की हालत देखि तो वो क्या कहेंगे?

संगीता मेरे सीने पर अपनी ठुड्डी टिकाते हुए बोली|

मैं: कुछ नहीं कहेंगे!

मैंने बात हलके में लेते हुए कहा|

संगीता: उन्हें लगेगा की मैं इतनी उतावली हूँ की...

संगीता अपनी बात अधूरी छोड़ कर लाज के मारे मेरे सीने से लिपट गई|

मैं: उन्हें (माँ-पिताजी को) ये लगेगा की मैं इतना बावरा हो गया हूँ की उनकी बहु को छोड़ता ही नहीं!

मैंने संगीता को अपनी बाहों में कसते हुए कहा| मेरी बात सुन कर हम दोनों एक साथ हँस पड़े!

रात से कुछ खाया नहीं था और अभी की हुई वर्जिश ने पेट में चूहों को जगा दिया था, जब चूहों ने खाली पेट में उथल-पुथल मचाई तो मुझे मजबूरन संगीता से कुछ खाने के लिए कहना पड़ा;

मैं: जान, ऐसा करो Maggie बना लो, फिर हम दोनों मिल के खाते हैं|

संगीता: अभी लाई|

संगीता मुस्कुराते हुए एकदम से बोली| संगीता अपने कपडे ठीक कर maggie बनाने रसोई में घुसी और इधर मैं सोचने लगा की मैं यहाँ अकेला रह कर क्या करूँ? मैं उठा और पूरे कपडे पहन कर मैं भी रसोई में आ गया और पीछे से जा कर अचानक से संगीता को अपनी बाहों में भर लिया| मेरी आँखों के सामने संगीता की गोरी-गोरी गर्दन चमक रही थी तो मैंने उसकी गर्दन पर अपने दहकते हुए होंठ रख दिए तथा उसकी कमर को सामने की ओर से अपने दोनों हाथों से जकड़ लिया! मेरे स्पर्श से संगीता फिर कसमसाने लगी और उसके मुख से; "ममम...हम्म्म" का संगीत गूँजने लगा| Maggie में मसाला डालते हुए संगीता झूठ-मूठ का दिखावा करते हुए बोली;

संगीता: छोडो न?

ये बोल केवल संगीता के मुख से निकल रहे थे, दिल से तो वो चाहती थी की मैं उसे छोड़ूँ ही न!

मैं: क्यों छोड़ दूँ? थोड़ी देर पहले आप अगर मुझे इस तरह जकड सकते हो तो मैं क्यों नहीं आपको अपनी बाहों जकड़ सकता?

मैंने अपने नथुनों को संगीता के बालों में घुसाया और एक लम्बी साँस अंदर खींचते हुए संगीता के जिस्म की महक सूँघने लगा|

संगीता: जानू, हम hall के पास हैं और अगर कोई आ गया तो?

संगीता ने मुझे डराना चाहा|

मैं: तो क्या हुआ?!

मैंने संगीता की बात को नकार दिया और उसकी गर्दन पर धीमे से काट लिया!

संगीता: सससस...आप ना...बहुत शरारती हो गए हो! छोडो मुझे...अब सात दिन बाद बारी आएगी! सात दिन के बाद आपको कभी नहीं रोकूँगी!

संगीता सीसियाते हुए बोली| इस समय संगीता बिलकुल मेरी ब्याहता पत्नी की तरह पेश आ रही थी, उसके इस तरह बात करने के अंदाज ने मुझे उसका और भी दीवाना बना दिया था!

मैं: हाय! पहले तो तुम मेरी आदत बिगड़ती हो और जब मुझे तुम्हारे लत पड़ जाती है तो आदत छुड़ाने की बात करती हो?!

मैं संगीता को अपनी बाहों में कसे हुए आँखें मूँद कर शिकायत करते हुए बोला|

संगीता: जानू, लत छुड़ाने के लिए नहीं कह रही, बस सब्र करने को कह रही हूँ! सात दिन बात तो....

इतना कह संगीता ने गैस बंद की और मेरी तरफ मुड़ते हुए अपने होंठ गोल बना कर मुझे चिढ़ाने लगी!

मैं: न जी न! अब तो तुमने सोते हुए शेर को अपनी महक सूँघा कर जगा दिया है! अब नहीं छोड़ने वाला तुम्हें मैं, माँ-पिताजी का सहारा लेना शुरू कर दो वरना जहाँ अकेले मिलीं वहीं तुम्हें अपनी बाहों में भरकर प्यार करने लगूँगा!

मैंने ताव में आ कर कहा और संगीता को अपनी बाहों से आजाद कर dining table पर आ कर बैठ गया| संगीता ने maggie परोसी और मुस्कुराते हुए हम दोनों की अलग-अलग plate ले कर dining table पर आ गई| हम दोनों बैठ कर maggie खा रहे थे जब माँ-पिताजी घर लौटे|

पिताजी: अरे वाह, maggie खाई जा रही है?

पिताजी मुस्कुराते हुए बोले|

मैं: हाँ जी पिताजी, देख लो! शादी से पहले ये हाल है, तो शादी के बाद तो मक्खन-ब्रेड पर आ जाऊँगा!

मैंने संगीता को छेड़ते हुए कहा| मेरी बात सुन संगीता हैरान हुई और आँखें बड़ी करते हुए मन ही मन मुझसे शिकायत करने लगी; 'Maggie बनाने को तो आपने कहा था, फिर पिताजी के आगे मुझे क्यों कर दिया?' संगीता के मन की बात सुन मैं हँस पड़ा और मेरी बात सुन पिताजी ठहाका मार कर हँसने लगे| अब माँ अपनी बहु का मजाक कैसे उड़ने देतीं, तो वो अपनी बहु का बचाव करते हुए बोलीं;

माँ: इस घर में सबसे ज्यादा maggie किसे पसंद है?

माँ के सवाल पर संगीता ने एकदम से मेरी चुगली की;

संगीता: इन्हें!

संगीता मेरी और अपनी गर्दन से इशारा करते हुए बोली|

माँ: सुन लिया जी, इसी ने बनवाई है! बदमाश!

माँ, पिताजी से बोलीं और प्यार से मेरा कान उमेठ दिया|

दोपहर को बच्चों के घर लौटने का समय हुआ तो मैं उन्हें लेने के लिए पहुँचा, हमेशा की तरह अपनी school van से उतरते ही दोनों बच्चे दौड़ते हुए मेरी ओर आये| मैंने दोनों को अपनी गोदी में उठा लिया और उन्हें जी भर कर प्यार करते हुए घर लौटा| घर आते ही दोनों बच्चों ने फटाफट अपने कपड़े बदले और मैंने उन्हें खाना खिलाया| खाना खाने के बाद दोनों बच्चों ने मुझे घेर लिया, पिछले कुछ दिनों से मैंने जो बच्चों को समय नहीं दिया था, आज मुझे उस समय की भरपाई करनी थी| आयुष ने computer चालु किया और अपनी मनपसंद game लगा दी, मैं गेम खेलने लगा और दोनों बच्चे मेरी अगल-बगल खड़े हो कर game में दूसरे किरदार को मारने के लिए चिल्लाने लगे| पूरे घर में दोनों बच्चों का शोर गूँज रहा था जिसे सुन कर माँ-पिताजी बाहर बैठे मुस्कुरा रहे थे| पौने घंटे बाद बारी आई picture देखने की तो नेहा ने कहा की उसे beyblade cartoon देखना है| मैंने cartoon लगाया और हम तीनों बाप-बेटा-बेटी बिस्तर पर रजाई ओढ़ कर बैठ गए| बच्चे थक गए थे इसलिए थोड़ी देर में सो गए, मुझे भी बहुत नींद आ रही थी तो मैं भी बैठे-बैठे ऊँघने लगा|

[color=rgb(184,]जारी रहेगा भाग - 3 में...[/color]
 

[color=rgb(251,]पच्चीसवाँ अध्याय: खुशियों का आगमन[/color]
[color=rgb(97,]भाग -3[/color]


[color=rgb(71,]अब तक आपने पढ़ा;[/color]

दोपहर को बच्चों के घर लौटने का समय हुआ तो मैं उन्हें लेने के लिए पहुँचा, हमेशा की तरह अपनी school van से उतरते ही दोनों बच्चे दौड़ते हुए मेरी ओर आये| मैंने दोनों को अपनी गोदी में उठा लिया और उन्हें जी भर कर प्यार करते हुए घर लौटा| घर आते ही दोनों बच्चों ने फटाफट अपने कपड़े बदले और मैंने उन्हें खाना खिलाया| खाना खाने के बाद दोनों बच्चों ने मुझे घेर लिया, पिछले कुछ दिनों से मैंने जो बच्चों को समय नहीं दिया था, आज मुझे उस समय की भरपाई करनी थी| आयुष ने computer चालु किया और अपनी मनपसंद game लगा दी, मैं गेम खेलने लगा और दोनों बच्चे मेरी अगल-बगल खड़े हो कर game में दूसरे किरदार को मारने के लिए चिल्लाने लगे| पूरे घर में दोनों बच्चों का शोर गूँज रहा था जिसे सुन कर माँ-पिताजी बाहर बैठे मुस्कुरा रहे थे| पौने घंटे बाद बारी आई picture देखने की तो नेहा ने कहा की उसे beyblade cartoon देखना है| मैंने cartoon लगाया और हम तीनों बाप-बेटा-बेटी बिस्तर पर रजाई ओढ़ कर बैठ गए| बच्चे थक गए थे इसलिए थोड़ी देर में सो गए, मुझे भी बहुत नींद आ रही थी तो मैं भी बैठे-बैठे ऊँघने लगा|

[color=rgb(51,]अब आगे:[/color]

शाम को संगीता ने मेरे होठों पर अपनी ऊँगली फिरा कर मुझे जगाया! मैंने आँखें खोल कर संगीता को देखा तो वो मुझसे ललचाने के लिए अपने होठों पर जीभ फिरा रही थी, मैंने फ़ौरन संगीता का हाथ पकड़ना चाहा मगर वो छिटक कर मुझे अंगूठा दिखा कर चिढ़ाने लगी और बाहर भाग गई! संगीता के इस प्यारी हरकत पर मैं मुस्कुरा दिया और धीरे से उठने लगा, मगर मेरे उठते ही नेहा जाग गई और मुझसे लिपट कर मुझे फिर से सोने को कहने लगी|

मैं: मेरा बच्चा, आपको school का homework करना है न?

मैंने प्यार से कहा तो नेहा एकदम से जाग गई और मेरे गाल पर अपनी प्यारी-प्यारी पप्पी दी|

नेहा: वो तो पापा मैंने games period में कर लिया था!

नेहा बड़े गर्व से बोली| मैंने नेहा को गोदी में उठाया और बाहर बैठक की ओर चल पड़ा, सोफे में पिताजी की बगल में बैठते हुए मैं नेहा से बोला;

मैं: बेटा games period खलेने के लिए होता है, homework घर आ कर कर लिया करो|

मेरी बात सुन नेहा ने बड़े तपाक से जवाब दिया;

नेहा: घर में तो मैं आयुष के साथ खेलती ही हूँ!

मैं: बेटा घर में आपके साथ खेलने वाला सिर्फ आयुष है, स्कूल में तो आपके पास बहुत सारे दोस्त होंगे न!

मैंने नेहा को प्यार से समझाया|

नेहा: हमारी class में एक लड़का है, वो सारा दिन घूमता रहत है और खेलता-कूदता रहता है! एक दिन Teacher जी उसे डाँट रहीं थीं की वो अपने मम्मी-पापा के fees के पैसे बर्बाद कर रहा है, इसलिए मैं....

नेहा थोड़ा गंभीर होते हुए बोली और अपनी बात अधूरी छोड़ दी| इतनी कम उम्र में ही मेरी बेटी समझदार हो गई थी और पैसों की ऐहमियत समझने लगी थी| नेहा को लगता था की खेल-कूद करने से बच्चे पढ़ाई में कमजोर पड़ जाते हैं और वो खेल-कूद ेमिन अपना समय बर्बाद कर के मेरे पैसों का नुक्सान नहीं करना चाहती थी|

मैं: बेटा आप तो पढ़ाई खूब मन लगा कर करते हो न, तो थोड़ा खेल-कूद से कुछ नहीं होगा|

मैंने नेहा को प्यार से समझाते हुए कहा| दरअसल मैं चाहता था की मेरी बेटी पढ़ाई के साथ खेल-कूद में भी आगे रहे, मुझे डर था की कहीं वो भी मेरी तरह किताबी कीड़ा बन कर न रह जाए| पिताजी जो अभी तक हम बाप-बेटी की बात सुन रहे थे, वो नेहा का पक्ष लेते हुए बोले;

पिताजी: मेरी पोती अगर पढ़ना चाहती है तो उसे पढ़ने दे, जर्रूरी है उसका खेल-कूद करना?

पिताजी की सोच अब भी वैसी की वैसी थी, वो हमेशा कहते थे की; 'पढोगे लिखोगे तो बनोगे नवाब, खेलोगे-कूदोगे तो बनोगे खराब!' पिताजी की यही सीख बचपन में मैंने अपने पल्ले बाँध ली थी और अपना मन पढ़ाई में लगा लिया था, मगर मैं चाहता था की मेरे बच्चे पढ़ाई तथा खेल कूद दोनों में आगे रहें! लेकिन इस वक़्त पिताजी की कही बात को नेहा के सामने काटना सही नहीं था इसलिए मैं खामोश बैठ रहा| वहीं पिताजी ने नेहा को अपने बगल में बिठाया और उससे बोले;

पिताजी: बेटा तू अपने पापा की मत सुन, तू मन लगा कर पढ़ा कर|

अपने दादाजी का प्रोत्साहन पा कर नेहा खुश हो गई और अपने दादाजी से लिपट गई| कुछ देर बाद आयुष जाग गया और मुँह हाथ धो कर अपनी किताब ले कर मेरे पास आ गया| मैंने आयुष को पढ़ाना शुरू किया, मुझे अपने भाई को पढ़ाते हुए देख नेहा की रूचि बढ़ गई और वो भी चुप हो कर मुझे आयुष को पढ़ाते हुए देखने लगी| दरअसल नेहा वो दिन याद कर रही थी जब मैं उसे गाँव में पढ़ाता था!

रात का खाना खा कर मैंने बच्चों को सोने के लिए कहा, बच्चे जानते थे की आज रात उनके मामा जी (अनिल) आने वाले हैं और मैं उसे लेने station जा रहा हूँ| दोनों बच्चे जिद्द करने लगे की वो भी मेरे साथ station चलेंगे, मैं उन्हें कुछ समझाता उससे पहले ही माँ अपनी चिंता जताते हुए बोलीं;

माँ: नहीं बच्चों, देखो ठंडी का टाइम है, ऊपर से रात हो रही है! तबियत खराब हो जाएगी, फिर कल school भी जाना है न?!

बच्चे अपनी दादी जी के आगे कैसे कुछ कहते, वो बेचारे मुझे आसभरी नजरों से देखने लगे| इधर मैं भी मजबूर था, माँ के खिलाफ नहीं जा सकता था, तो पिताजी आगे आये और बच्चों को प्यार से फुसलाते हुए बोले;

पिताजी: बच्चों, आपको मेरी कहानी सुननी है की नहीं?

पिताजी की बात ने बच्चों को दुविधा में डाल दिया था, उन्हें मेरे साथ station भी जाना था और अपने दादाजी से पहलीबार कहानी भी सुननी थी| दोनों बच्चे एक-दूसरे को देखने लगे और फैसला लेने लगे की उन्हें क्या चाहिए, तभी पिताजी ने अपनी शेखी बघारते हुए कहा;

पिताजी: तुम्हारे बाप को सारी कहानी मैंने ही सिखाई है! वो कढ़ी-फ़्लोरी वाली कहानी जो तुम दोनों सुनते हो वो मैंने ही उसे (मुझे) सिखाई थी!

पिताजी बड़े गर्व से बोले| अब फैसला हो चूका था, दोनों बच्चे जा कर अपने दादाजी की गोदी में चढ़ गए और मुझे हाथ हिला कर "bye" कहने लगे|

मैं, अनिल को लेने station समय से पहुँचा| Train हमेशा की तरह late थी और तब तक मैं station पर चक्कर लगाते हुए इन्स्तेजार कर रहा था| आखिर train आई, train के coach से पहले अनिल निकला और उसके पीछे सुमन निकली! सुमन को देख कर मैं चौंक गया और जो बात सबसे पहले मेरे दिमाग में आई वो ये, की ये train लखनऊ से आई थी, जिसका मतलब की हो न हो अनिल, सुमन को अपने घर अपने पिताजी से मिलवाने ले गया होगा? फिर मैंने दोनों (अनिल और सुमन) के चेहरों पर गौर किया तो पाया की उनके चेहरे पर कोई डर या चिंता नहीं है, इसका मतलब की अनिल, सुमन को अपने घर नहीं ले गया था!

खैर मैंने अपने इस ख्याल को झटका और मुस्कुराते हुए दोनों का स्वागत किया|

मैं: यार, सुमन आ रही है ये बता तो देता, मैं उसके ठहरने का इंतजाम कर देता!

अनिल जवाब देता उससे पहले ही सुमन बोल पड़ी;

सुमन: जीजू, आपने तो बुलाया नहीं! तो मैंने सोचा की मैं बिना बताये ही आ जाती हूँ!

सुमन बड़ी बेबाकी से बोली|

मैं: दरअसल शादी के सब काम-काज पिताजी ने अपने सर ले रखे हैं| न्योते देने से ले कर तम्बू-कनात का सब काम पिताजी देख रहे हैं, मुझे तो ये भी नहीं पता की शादी कौन सी जगह हो रही है! फिर अनिल के साथ 'plus 1' आना तो वैसे भी allowed था!

मेरे अंत में किये मज़ाक से हम तीनों हँस पड़े|

हम तीनों बाहर आये और cab करके घर पहुँचे| माँ-पिताजी से मैंने सुमन का तार्रुफ़ कुछ इस तरह करवाया;

मैं: पिताजी ये है सुमन, जिसने मुंबई में अनिल का ध्यान रखा था!

पिताजी समझ गए की सुमन ही वो लड़की है जिससे अनिल शादी करना चाहता है| माँ-पिताजी ने सुमन का स्वागत किया और बैठक में बिठाया| जब संगीता का नम्बर आया तो उसके चेहरे पर बड़े रूखे से भाव थे, उसे सुमन कुछ ख़ास पसंद नहीं आई थी! मुझे जानना था की संगीता का मुँह क्यों बिगड़ा हुआ है पर ये बात मैं सबके सामने नहीं पूछ सकता था| माँ-पिताजी ने दोनों (अनिल और सुमन) के एकसाथ आने का कारण पुछा तो पता चला की दोनों प्रेमी लखनऊ घूम रहे थे और वहीं से सीधा दिल्ली आये हैं! मतलब अनिल अपने घर से लखनऊ आया जहाँ उसे सुमन मिली, दोनों ने घूमा-हामी की और फिर train पकड़ कर दिल्ली आ गए|

उधर दोनों बच्चे जिन्हें पिताजी ने कहानी सुना कर सुलाया था वो उठ गए थे और बाहर बैठक में आ गए थे| दोनों आ कर अपने मामा से मिले और सुमन को हैरानी से देखने लगे, अनिल चाहता था की मैं बच्चों का तार्रुफ़ सुमन से कराऊँ क्योंकि वो बच्चों से सुमन का तार्रुफ़ कराने में शर्मा रहा था| मैं हाथ बाँधे सोफे पर बैठा था और अनिल की हालत पर मुस्कुराये जा रहा था, अनिल बेचारा मुझसे मूक विनती किये जा रहा था की मैं उसकी मदद करूँ और मैं उसकी इस हालत के मज़े ले रहा था!

हारकर अनिल को ही बच्चों का सुमन से तार्रुफ़ कराना पड़ा;

अनिल: आयुष-नेहा, ये मेरी college friend है सुमन!

जैसे ही अनिल ने ये कहा, वैसे ही आयुष एकदम से बोल पड़ा;

आयुष: मतलब आपकी girlfriend हैं!

आयुष की बात सुन मैं बड़ी जोर से हँसा और मेरे साथ-साथ नेहा, माँ तथा पिताजी भी हँस पड़े! अनिल और सुमन शर्म से लाल हुए जा रहे थे, उनका यूँ शर्म से लाल होना मुझे और हँसी दिला रहा था! इस वक़्त कोई अगर नहीं हँसा तो वो थी संगीता, वो आयुष पर गुस्सा होते हुए रसोई से बोलीं;

संगीता: आयुष, बहुत बद्तमीज हो गया है तू!

अपनी मम्मी की झिड़की सुन आयुष मेरी तरफ देखने लगा, उधर नेहा ने अपनी मम्मी की तरफ से आयुष की पीठ पर एक मुक्का जड़ दिया! आयुष दौड़ता हुआ मेरे पास आया और इससे पहले वो रोता मैंने उसे गोदी में उठा लिया और उसकी पीठ को सहलाने लगा| नेहा बेचारी डर के मारे अपने दादाजी के पास छुप गई, क्योंकि उसे लगा था की मैं उसे आयुष को मारने के लिए डाटूँगा|

संगीता ने दोनों (अनिल और सुमन) के लिए गर्मागर्म रोटियाँ बनाईं और दोनों ने चुपचाप बैठक में बैठ कर खाना खाया, वहीं मैं दोनों भाई-बहन (आयुष और नेहा) के बीच सुलह कराने लगा| मैंने किसी को नहीं डांटा, बस प्यार से समझाया की इस तरह मार-पीट नहीं करते!

खाने के बाद सोने की बारी आई तो मैंने सभी के सोने की व्यव्य्स्था की;

मैं: पिताजी, आप और माँ तो अपने कमरे में ही सोओगे...

मैं आगे कुछ कहता उससे पहले आयुष जिद्द करते हुए बोल पड़ा;

आयुष: मैं दादी जी के पास सोऊँगा!

मैं: ठीक है आप माँ के पास सो जाना!

मैंने मुस्कुराते हुए कहा|

आयुष: माँ नहीं दादी!

आयुष मुझे सही करते हुए बोला, वो ये भूल गया था की मेरी माँ ही उसकी दादी हैं!

मैं: हाँ जी बेटा जी! मेरी माँ आपकी दादी जी ही तो हुईं न?!

मेरी बात सुन सभी मुस्कुराने लगे| मैंने संगीता को गर्दन से इशारा किया और बोला;

मैं: सुमन आपके कमरे में सोयेगी|

संगीता ने मेरी बात का कोई जवाब नहीं दिया, बल्कि वो मेरे से नजरें चुराने लगी| अब मैंने अनिल को देखा और उससे बोला;

मैं: बचे हम दोनों और नेहा, तो हम तीनो मेरे कमरे में सोयेंगे|

अनिल मुझे तंग नहीं करना चाहता था इसलिए वो बोला;

अनिल: जीजू, मैं यहीं सोफे पर सो जाऊँगा|

मैं अनिल को समझाता उससे पहले ही माँ उसे समझाने लगीं;

माँ: नहीं बेटा ठण्ड का मौसम है, फिर तेरा हाथ भी अभी पूरी तरह ठीक नहीं हुआ है| तू मानु के कमरे में सो जा!

अनिल माँ को मना नहीं कर सकता था इसलिए उसने गर्दन हाँ में हिलाई|

सुमन, संगीता वाले कमरे में लेटने चली गई, माँ-पिताजी भी आयुष को ले कर अपने कमरे में चले गए और अनिल नेहा को मेरे कमरे में ले कर खेलने लगा| बैठक में बस मैं और संगीता बचे थे, मैंने इशारे से संगीता को छत पर जाने को कहा| मैं, संगीता से पहले छत पर पहुँच गया और टहलते हुए सोचने लगा की आखिर संगीता के दिमाग में क्या चल रहा होगा, सुमन को देख क्यों उसका चेहरा उतरा हुआ था?!

दिसंबर का पहला हफ्ता था और अभी वो ठंड नहीं पड़ी थी जो की पड़ा करती थी, मैं इस ठंड का लुत्फ़ उठाते हुए अँधेरे में टहल रहा था| मैंने जानबूझ कर छत की lights बंद रखी थीं ताकि कोई मुझे और संगीता को न देख ले! 5 मिनट बाद संगीता ऊपर आ गई, मैंने उसका हाथ थामा और छत के आगे वाले हिस्से में आ गया;

मैं: अब बताओ की तुम्हारा मुँह क्यों बना हुआ है?

मैंने बड़े प्यार से बात शुरू करते हुए कहा|

संगीता: वो लड़की, मुझे कुछ जचि नहीं!

संगीता चिढ़ते हुए बोली|

मैं: क्या मतलब?

मैंने भोयें सिकोड़ कर पुछा|

संगीता: पता नहीं, पर ऐसा लगता है की वो लड़की अनिल के लिए सही नहीं है|

ये संगीता के भीतर मौजूद ममता थी जो उसके बेटे यानी अनिल के प्रति अतिसंरक्षित हो रही थी!

मैं: जान, पहले अनिल से बात करो, ऐसे ही अपना मन मत बनाओ!

मैंने संगीता को प्यार से समझाया|

संगीता: ठीक है!

संगीता ने मेरी बात मान ली| अब चूँकि हम दोनों छत पर अकेले थे तो संगीत का mood romantic हो चला था|

संगीता: तो बस इसीलिए आपने मुझे छत पर बुलाया था?

संगीता एक नटखट मुस्कान लिए हुए बोली| मैं संगीता का मतलब समझ गया, आज सुबह जो संगीता ने मेरे भीतर प्रेम की अग्नि जलाई थी वो मुझे संगीता की ओर ले जा रही थी!

मैं: नहीं!

इतना कह मैंने संगीता के दोनों हाथ पकडे और उसे दिवार से सटा कर खड़ा कर दिया| मेरी पीठ छत वाले दरवाजे की ओर थी, संगीता मेरे तथा दिवार के बीच पीसी हुई थी! मेरे दोनों हाथों ने अपनी पकड़ संगीता की कमर पर बना ली थी और इतने भर से संगीता की साँसें तेज हो चलीं थीं! संगीता की आँखों में देखते हुए मैं उस पर झुका, लेकिन इससे पहले की हमारे होंठ मिल पाते हम दोनों को जलती हुई cigarette की महक आई!

Cigarette की बू ने हम दोनों को थोड़ा असहज कर दिया था, क्योंकि अब किसी तीसरे के द्वारा पकडे जाने का डर था| मैंने अभी भी संगीता को अपने और दिवार के बीच दबा रखा था, इतने में संगीता ने दरवाजे के पास किसी शक़्स की काली परछाई देखि और छटपटाने लगी! उसे लगा की शायद पिताजी ऊपर आ गए हैं, संगीता ने फ़ौरन मुझे खुद को छोड़ने के लिए कहा और गर्दन के इशारे से पीछे दरवाजे की ओर देखने को कहा| मैंने संगीता को अपनी पकड़ से आजाद किया और पलट कर देखा तो सुमन दरवाजे पर खड़ी नीचे की ओर देखते हुए छुपकर Cigarette पी रही है! अँधेरा होने के कारन सुमन ने अभी तक हम दोनों को नहीं देखा था, बल्कि वो तो डरी हुई सी cigarette पीने में व्यस्त थी! सुमन को यूँ cigarette पीता हुआ देख हम दोनों हैरान थे, मुंबई में जब मैंने सुमन से खाने-पीने के बारे में पुछा था तो उसने मना कर दिया था! सुमन को यूँ cigarette फूँकता देख संगीता जी का पारा चढ़ गया था, अब अगर मुझे सुमन ने उस दिन सब बता दिया होता तो आज मैं संगीता को संभाल लेता, मगर मैं खुद इस बात से बेखबर था और संगीता ने मेरा चेहरा पढ़ लिया था की मुझे इस बारे में (सुमन के cigarette पीने के मामले में) कुछ भी नहीं पता है|

इतने में सुमन की नजर हम दोनों (मेरे और संगीता) पर पड़ गई, अँधेरे में वो हमें ठीक से देख नहीं पाई मगर उसने अंदाजा लगा लिया था की छत पर मैं और संगीता ही हैं| सुमन ने फ़ौरन अपनी cigarette नीचे फेंक दी और अपनी चप्पल से रोंदते हुए बुझा दी और हड़बड़ाते हुए मुझसे बोली;

सुमन: अरे...जी....जीजू...दी...दीदी...आप लोग...यहाँ क्या कर रहे हो?

सुमन का सवाल सुन, संगीता बिना कुछ कहे गुस्से में पाँव पटकते हुए नीचे चली गई| संगीता की प्रतिक्रिया से मैं भी हड़बड़ा गया था, परन्तु जैसे तैसे मैंने बात को संभाला और बोला;

मैं: वो ...हम.... तुम cigarette पीती हो?

मैंने अपनी सफाई देने की बजाए सुमन से सवाल पूछ लिया|

सुमन: जी कभी-कभी!

सुमन डरते हुए सर झुका कर बोली|

मैं: कभी-कभी का कोई सवाल नहीं होता| खेर, तुम्हारी जिंदगी है, जैसे मर्जी जिओ!

मैंने बात को सरलता से लिया और नीचे जाने लगा| मुझे किसी को भी बेवजह का ज्ञान पेलने में रूचि नहीं थी! छत के दरवाजे पर पहुँच कर मैं एक पल को रुका और सुमन की ओर मुड़ते हुए पूछ बैठा;

मैं: वैसे अनिल जानता है?

सुमना: जी हाँ!

सुमन ने सर झुका कर कहा| मैंने आगे कुछ नहीं कहा और नीचे आ गया|

मैं अपने कमरे में आया, नेहा अपने मामा के साथ atlas वाली किताब खोल कर देश का नाम ढूँढने वाला खेल, खेल रही थी| मुझे देखते ही नेहा पलंग पर खड़ी हो गई और मेरी गोदी में आ कर कहानी सुनाने की जिद्द करने लगी; "पापा कहानी..कहानी...कहानी!" मैं, नेहा को कहानी सुनाने लगा और तब तक अनिल computer पर अपना facebook account देखने लगा| कहानी सुनते-सुनते नेहा मुझसे लिपट कर सो गई थी;

मैं: अनिल, PC बंद कर और यहाँ बैठ, कुछ पूछना है तुझ से|

अनिल ने computer बंद किया और नेहा की बगल में रजाई ओढ़ कर लेट गया|

मैं: सुमन cigarette पीती है?

मेरा सवाल सुन अनिल का चेहरा फीका पड़ गया|

अनिल: जी!

अनिल ने सर झुका कर जवाब दिया| फिर उसे एहसास हुआ की भला मुझे कैसे पता;

अनिल: पर आपको कैसे पता?

अनिल ने अचरज भरी नजरों से मुझे देखते हुए पुछा|

मैं: हम अभी छत पर थे, जब सुमन cigarette पीने के लिए आई|

'हम' शब्द सुन कर अनिल की आँखें बड़ी हो गईं!

अनिल: हम...मतलब दीदी ने भी उसे cigarette पीते देख लिया? सत्यानाश!

अनिल अपना सर पीटते हुए बोला|

मैं: Dude, कल अपनी दीदी का सामना करने के लिए तैयार रहना|

मैंने अनिल की टाँग खींचते हुए कहा|

अनिल: जीजू please help me वरना दीदी कल हम दोनों (अनिल और सुमन) को कूट देगी!

अनिल घबराते हुए बोला| जिस तरह वो घबरा रहा था मुझे नहीं लगता वो इतना अपने पिताजी से घबराता होगा|

मैं: I can't help you until you tell me everything.

मुझे सब बातें जननी थीं, लेकिन इससे पहले की अनिल कुछ बताता कमरे के दरवाजे पर दस्तक हुई| मैं दरवाजा खोलता उससे पहले ही संगीता एकदम से अंदर आई और अपने भाई पर रासन-पानी ले कर चढ़ बैठी;

संगीता: अनिल! तुझे मालूम है न वो लड़की (सुमन) cigarette पीती है?

संगीता ने अनिल को गुस्से से देखते हुए पुछा| अपनी दीदी का गुस्सा देख बेचारा अनिल डर के मारे भीगी बिल्ली बन गया और सर झुका कर हाँ बोला|

संगीता: इसका मतलब, तू भी cigarette पीता है? है न?

संगीता का सवाल सुन अनिल एकदम से बोला;

अनिल: नहीं दीदी, मैं नहीं पीता|

अनिल की बात में सच्चाई झलक रही थी इसलिए संगीता को अनिल की बात पर विश्वास हो गया| अब संगीता जी मेरी ओर घूमीं और बोलीं;

संगीता: देखा आपने! मैंने कहा था न मुझे वो लड़की अजीब लगी| जब मैं उससे मिली थी तभी मुझे उसके जिस्म से cigarette की बू आई थी, तब मुझे नहीं पता था की ये cigarette की बू कौन सी होती है|

संगीता के चेहरे पर गुस्से के भाव थे और एक अजब ही आत्मविश्वास था की उसने सुमन को पहचानने में कोई गलती नहीं की! एक बात गौर करने लायक थी, संगीता के सूँघने की शक्ति कुछ ज्यादा ही तेज थी!

मैं: बाबू calm down! अगर वो सिगरेट पीती भी है तो क्या problem है?

मैंने संगीता को शांत करने के लिए बाबू कहा, परिणाम स्वरुप संगीता का गुस्सा थोड़ा शांत हुआ|

संगीता: क्यों पीती है? आखिर उसे ऐसी कौन सी बिमारी है?

संगीता मुझसे कुछ नहीं कह सकती थी इसलिए वो अनिल से सवाल पूछने लगी|

मैं: यार अनिल उसे कहेगा तो वो छोड़ देगी|

मैंने बात खत्म करते हुए कहा| मेरी बात से अनिल को अच्छा बहाना मिल गया था, इसलिए वो मेरी बात को ही आगे बढ़ाते हुए बोला;

अनिल: हाँ दीदी, वो पक्का छोड़ देगी?

संगीता बच्ची नहीं थी इसलिए वो अनिल की बातों में नहीं आई और अपना फैसला सुनाते हुए बोली;

संगीता: तूने मुझे बवकूफ समझा है? Cigarette और शराब कभी छूटती है? तू उससे शादी नहीं कर सकता!

संगीता की बात सुन अनिल दहल गया और मेरी तरफ बड़ी उम्मीदों से देखने लगा की मैं उसे उसकी दीदी के प्रकोप से बचाऊं!

मैं: Heyyyyyyy! Don't jump to a conclusion yet! कल हम मिलकर सुमन से बात करते हैं| अभी आप जा के सो जाओ और उसे (सुमन) फ़िलहाल कुछ मत कहना, अगर वो कुछ कहे तो कहना कल बात करते हैं!

मैंने संगीता के गुस्से पर काबू पाते हुए कहा| जब मैंने संगीता से कहा की वो सुमन से फिलहाल कोई बात न करे तब संगीता ने कोई प्रतिक्रिया नहीं दी, मुझे डर था की कहीं संगीता, सुमन के ऊपर चढ़ न बैठे इसलिए मैंने संगीता को वादे से बाँध दिया;

मैं: Promise me!

मैंने थोड़ा सख्ती दिखाते हुए कहा|

संगीता: ठीक है!

संगीता ने मेरी बात मानते हुए कहा| फिर वो अनिल की तरफ गुस्से से देखते हुए बोली;

संगीता: हमारी शादी से पहले ये मामला सुलझ जाना चाहिए!

संगीता की आवाज में सख्ती नजर आ रही थी|

अनिल: जी दीदी!

अनिल डर के मारे बोला|

मैं: अच्छा बाबू! अब आप जाओ और सो जाओ|

मैंने बड़े प्यार से संगीता से कहा, संगीता ने अपना गुस्सा दबाया और अपने कमरे में चली गई|

अनिल: Thanks जीजू आपने बचा लिया वरना आज दीदी world war छेड़ देतीं और सुमन को घर के बाहर सुलाती| You really know how to control her!

अनिल मेरी तारीफ करते हुए राहत की साँस लेते हुए बोला|

मैं: Atleast for now she's (sangeeta) quite, पर बेटा कल के लिए कमर कस ले! तेरी दीदी के घुसे के आगे हरबार मेरी नहीं चलती, फिर कल तो मेरे माँ-पिताजी ने भी तुझसे सुमन को ले कर बड़े सवाल पूछने होंगे!

मैंने अनिल को आगाह करते हुए कहा| मेरी बात सुन अनिल की लंका लग चुकी थी, उसे लगा था की मैं उसे बचाऊँगा पर अब तो मैंने भी अपने हथियार डाल दिए थे|

अनिल: मर गया|

अनिल फिर सर पीटते हुए बोला| खैर वो रात मैं तो बड़े चैन से सोये पर बेचारा अनिल करवटें बदलता रहा!

सुबह हुई और मैं दोनों बच्चों को तैयार कर स्कूल छोड़ आया| संगीता ने सब को चाय दी, मैं, अनिल, पिताजी और माँ बैठ कर चाय पी रहे थे तथा साधारण बातें कर रहे थे| उधर सुमन रसोई में संगीता की नाश्ता बनाने में मदद करना चाह रही थी, मगर संगीता गुस्से से भरी हुई थी और सुमन को कुछ करने ही नहीं दे रही थी| वो तो माँ-पिताजी बाहर dining table पर बैठे थे, इस कर के संगीता के होठों पर चुप्पी थी वरना अब तक तो वो सुमन पर चिल्ला देती! वहीं अब संगीता से अपना गुस्सा काबू करना मुश्किल हो रहा था इसलिए वो तेजी से चलते हुए रसोई से निकली और अपने कमरे में घुस गई! मैंने संगीता की ये तेजी देखि तो मैं समझ गया की संगीता का पारा चढ़ा हुआ है, उसे शांत करने के लिए मैं सबसे नजर बचा कर संगीता के कमरे में घुसा| बेचारी डरी हुई सुमन, माँ-पिताजी के पास बैठ कर बात करने लगी|

इधर संगीता अपने कमरे में आ कर रजाई तह लगा रही थी, मैंने मौके का फायदा उठाया और पीछे से जा कर संगीता को अपनी बाहों में भर लिया! मेरी बाहों में आ कर संगीता कसमसाने लगी और सीसियाते हुए बोली;

संगीता: छ...छोड़िये वरना माँ-पिताजी देख लेंगे!

संगीता के हाव-भाव उसके शब्दों से मेल नहीं खा रहे थे, अंदर से वो गुस्सा थी परन्तु मेरी बाहों में आ कर उसका जिस्म मचलने लगा था|

मैं: छोड़ दूँगा, मगर पहले बताओ की तुम्हारा मूड क्यों खराब है?

मैंने संगीता की गर्दन पर अपने होंठ रखते हुए पुछा|

संगीता: ससस.... रात भर सुमन मुझसे बात करने की कोशिश करती रही, लेकिन मैंने कुछ नहीं कहा|

संगीता ने मेरी बात मानी थी इसलिए मुझे उस पर थोड़ा प्यार आ रहा था;

मैं: Awwwww मेरा बाबू!

मैंने संगीता की कमर के इर्द-गिर्द अपनी पकड़ कस दी और उसके जिस्म की महक को अपने नथुनों में भरने लगा| मुझे खुद को इस तरह प्यार करता देख संगीता को लगा की मैं किसी तरह की चापलूसी कर रहा हूँ इसलिए वो मेरे हाथों पर अपने हाथ रखते हुए बोली;

संगीता: आप बड़ी तरफदारी कर रहे हो उसकी (सुमन की)! बार-बार मुझे बाबू कह के मुझे मना लेते हो!

इतना कहते हुए संगीता मेरी तरफ घूमी और कस कर मेरे गले लग गई! मुझे संगीता को कोई सफाई देने की कोई जर्रूरत नहीं थी इसलिए मैंने संगीता के बाएँ गाल को चूम लिया|

मैं: अच्छा अब बाहर चलो, माँ-पिताजी बाहर बैठे हैं, उनके पास बैठ कर चाय पीते हैं|

संगीता मुस्कुराई और हम सब बैठ कर चाय पीने लगे|

[color=rgb(184,]जारी रहेगा भाग - 4 में...[/color]
 

[color=rgb(251,]पच्चीसवाँ अध्याय: खुशियों का आगमन[/color]
[color=rgb(97,]भाग -4 (1)[/color]


[color=rgb(71,]अब तक आपने पढ़ा;[/color]

संगीता: आप बड़ी तरफदारी कर रहे हो उसकी (सुमन की)! बार-बार मुझे बाबू कह के मुझे मना लेते हो!
इतना कहते हुए संगीता मेरी तरफ घूमी और कस कर मेरे गले लग गई! मुझे संगीता को कोई सफाई देने की कोई जर्रूरत नहीं थी इसलिए मैंने संगीता के बाएँ गाल को चूम लिया|
मैं: अच्छा अब बाहर चलो, माँ-पिताजी बाहर बैठे हैं, उनके पास बैठ कर चाय पीते हैं|
संगीता मुस्कुराई और हम सब बैठ कर चाय पीने लगे|

[color=rgb(51,]अब आगे:[/color]

चाय पीते हुए पिताजी ने अनिल और सुमन से जानना चाहा की वो आगे चल कर अपने भविष्य के बारे में क्या सोच रहे हैं, मतलब job या कोई business;

पिताजी: तो बेटा आगे क्या इरादा है?

इससे पहले की सुमन जवाब दे, अनिल चौधरी बनते हुए बोल पड़ा;

अनिल: जी शादी!

बेचारा अनिल रात से इतना हड़बड़ाया हुआ था की उसे समझ नहीं आ रहा था की वो क्या कह रहा है! अनिल की शादी की बात सुन संगीता का चेहरा ऐसा था मानो जैसे किसी ने उसके चेहरे पर सफ़ेद रंग का powder पोत दिया हो, वो तो माँ-पिताजी मौजूद थे इसलिए वो शांत बैठी थी वरना आज संगीता अनिल के कान पर एक धर ही देती! खैर जैसे ही अनिल ने अपनी शादी की बात कही, मैं उसकी पीठ पर थपकी मारते हुए बोला;

मैं: ओ महान आत्मा! पिताजी पूछ रहे हैं की तूने course पूरा होने के बाद क्या करना है?

मेरी बात सुन संगीता को छोड़ कर सब हँस पड़े|

अनिल: Oh sorry! जी...वो....job!

अनिल अपनी दीदी को देख कर उनके मन में चल रहे पिटाई के ख्याल को पढ़ चूका था इसलिए अनिल की डर के मारे हवा टाइट हो गई थी!

पिताजी: बेटा, अगर चाहो तो हमारे साथ काम कर सकते हो! लेकिन फिर शायद समधी जी को ये पसंद ना आय!

पिताजी दिल से चाहते थे की अनिल हमारे साथ काम करे परन्तु वो अपने समधी जी को भी नाराज नहीं करना चाहते थे|

अनिल: जी, शायद उन्हें अब मेरे किसी भी फैसले से कोई फर्क नहीं पड़ेगा|

अनिल ने गंभीर होते हुए अपनी बात कही|

मैं: क्यों?

अनिल की बात सुन मैं गंभीर हो गया और मुझे डर सताने लगा की कहीं मेरे होने वाले ससुर जी ने अनिल से भी तो सारे रिश्ते नहीं तोड़ लिए?!

अनिल: वो जीजू, उस दिन जब पिताजी आप पर गुस्सा हो रहे थे तो मुझसे ये सब बर्दाश्त नहीं हुआ, उन्हें कोई हक़ नहीं था आपको इस तरह जलील करने का इसलिए मैंने उन्हें सब सच बता दिया और ये भी बता दिया की मैं शादी attend करने दिल्ली जा रहा हूँ|

अनिल की बात सुन हम सभी स्तब्ध थे, वहीं मुझे ये जानने की जिज्ञासा थी की आखिर मेरे होने वाले ससुर जी ने क्या प्रतिक्रिया दी?

मैं: तो पिताजी ने क्या कहा?

मैंने जिज्ञासु होते हुए पुछा|

अनिल: वो कुछ नहीं बोले, उनके पास बोलने के लिए क्या होगा?

अनिल चिढ़ते हुए बोला|

पिताजी: ये तुने ठीक नहीं किया बेटा! कम से कम तुझे समधी जी को शादी में आने की बात नहीं बतानी चाहिए थी!

मेरे माँ-पिताजी को डर था की कहीं मेरी शादी में किसी और तरह का विघ्न न पड़ जाए इसलिए उन्होंने अनिल को थोड़ा डाँटते हुए कहा|

अनिल: क्षमा करें पिताजी, लेकिन मैं अपने जीजू की बेइज्जती बर्दाश्त नहीं कर सकता था, उन्होंने (मैंने) कुछ गलत नहीं किया तो पिताजी को कोई हक़ नहीं उन्हें बुरा-भला कहने का!

अनिल मेरा पक्ष लेते हुए बोला|

पिताजी: बेटा ये सब बातें करने के लिए तू बहुत छोटा है, तेरे ये सब कहने से समधी जी को बहुत आघात लगा होगा!

अब पिताजी मेरी और संगीता की तरफ देखने लगे तथा थोड़ा निराश होते हुए बोले;

पिताजी: बेटा, भगवान से दुआ करता हूँ की तुम दोनों के जीवन में कोई नई परेशानी न खड़ी हो जाये|

मैं: पिताजी, आप चिंता मत कीजिये, सब कुछ ठीक होगा| शादी के बाद मैं और संगीता जा कर उनसे (मेरे होने वाले ससुर जी से) मिल लेंगे तथा उनका दिल दुखाने के लिए माफ़ी माँग लेंगे|

मैंने मुस्कुराते हुए पिताजी को निश्चिन्त करते हुए कहा| घर का माहौल थोड़ा चिंतित हो गया था तो मैंने बात घुमाते हुए कहा;

मैं: वैसे पिताजी, शादी की तैयारियाँ कैसी चल रही है?

मेरे इस सवाल का तातपर्य बस इतना था की अनिल आ चूका है तो उसे भी काम दे दिया जाए, परन्तु मेरी माँ ने मेरी बात को कुछ इस तरह लिया जैसे की कोई सेठ अपने नौकरों से पूछ रहा हो;

माँ: तू तो ऐसे पूछ रहा है जैसे घर का बड़ा-बूढ़ा तू ही है! हमें पता है की क्या तैयारी करनी है और कैसे करनी है, तू बस खुद को काबू में रख!

कुछ देर पहले जब मैं छुपते हुए संगीता के पीछे कमरे में घुसा था तो माँ ने मुझे देख लिया था और उनका ये कटाक्ष मेरी उसी हरकत पर था! माँ की बात सुन मैं और संगीता बुरी तरह झेंप गए और बाकी सब लोग हँसने लगे|

खेर नाश्ते के बाद माँ-पिताजी खरीदारी के लिए निकल गए और अनिल को बारातियों के आने-जाने के लिए बस book करने के लिए taxi वालों के नंबर दे गए| इधर माँ-पिताजी निकले और उधर संगीता ने अपनी बन्दूक में सवालों की कारतूस भर ली, मेरे "fire" कहने की देर थी और सुमन को सवालों की गोली से छलनी कर दिया जाता!

मैं: So guys, lets start this Q&A round! Sangeeta.shoot!

मैंने किसी game show के anchor की तरह कहा| दरअसल मुझे आज देखना था की एक माँ (संगीता) की ममता अपने बेटे (अनिल) के भविष्य का क्या फैसला लेती है?

संगीता: My first question to you Suman, are you an alcoholic?

संगीता ने गुस्से में आते हुए धायें से अपना पहला सवाल दागा|

सुमन: No दीदी!

सुमन ने डर के मारे सर झुका कर कहा| सुमन के बाद अब बारी थी अनिल की, संगीता ने गुस्से से अनिल को देखा और बोली;

संगीता: Is this true Anil? And you better not lie to me!

अनिल: No दीदी! We don't drink!

अनिल घबराते हुए बोला| बेचारा अपनी दीदी से इतना डरा हुआ था की उसने सुमन के साथ-साथ अपनी भी सफाई दे दी, जो संगीता को रास नहीं आया!

संगीता: मैंने तेरे पीने के बारे में पुछा है?

संगीता गुस्से से भड़कते हुए बोली| संगीता को लगता था की जब कोई इंसान बिना माँगें अपनी सफाई देता है तो वो झूठ बोलता है, यही सोचते हुए संगीता ने अनिल को झिड़का था|

संगीता: Why do you smoke?

संगीता ने सुमन से गुस्से में सवाल पुछा|

सुमन: B...because of my roomie! उसकी गलत संगत में...वो depression में थी...

बेचारी सुमन की घिघ्घी बँध चुकी थी और डर के मारे उसके मुँह से झूठ निकल गया|

संगीता: So instead of stopping her, you too started smoking...right?

संगीता ने सुमन को taunt मारते हुए पुछा| संगीता के हाथ में सुमन की गर्दन आ चुकी थी और आज संगीता उसे (सुमन को) काटे बिना छोड़ने वाली नहीं थी!

अनिल: नहीं दीदी! She (सुमन) had a break up.she was in depression.then we met .and she found a soft spot inside my heart and ..

अनिल ने सुमन को बचाने के लिए सच बोल दिया की सुमन का break up हुआ था जिसके बाद से सुमन टूट चुकी थी और उसे cigarette पीने की लत पड़ गई|

संगीता: Shut up!

संगीता, अनिल पर चिल्लाई, उसे अनिल का सुमन की तरफदारी करना पसंद नहीं आया था| बेचारा अनिल डर के मारे खामोश हो कर बैठ गया! Cigarette पीने के साथ सुमन ने अपने break up की बात छुपा कर दोहरा जुर्म किया था जिससे संगीता का पारा और चढ़ चूका था!

संगीता: झूठ क्यों बोला मुझसे?

संगीता ने भोयें सिकोड़ कर सुमन को घूरते हुए पुछा|

सुमन: दीदी, मैं अपने past को याद नहीं करना चाहती थी|

सुमन ने सर झुकाये हुए बोला| ये आजकल की पीढ़ी का नया बहाना होता है, परन्तु संगीता को सब सच जानना होता है तो वो किसी भी तरह का बहाना नहीं सुनना चाहती|

संगीता: Its my 'baby' brother's life on the line, you have to dig your past and answer my every danm question!

संगीता बड़ी सख्ती से बोली| अपनी प्रियतमा पर अपनी दीदी की सख्ती देख कर अनिल परेशान हो गया था, इसलिए उसने अपनी दीदी को रोकना चाहा;

अनिल: Please दीदी...

परन्तु संगीता को अपने भाई की दखलंदाजी पसंद नहीं आई और उसने फिर से अनिल को झाड़ दिया;

संगीता: Shut up!

संगीता ने अनिल को झिड़कते हुए कहा और सुमन से सीधा सवाल पुछा;

संगीता: Why did you had a break up?

सुमन: I was fool to trust that he (सुमन का ex boyfriend) loves me.

इतना कह सुमन रो पड़ी! सुमन को रोता हुआ देख अनिल मेरी तरफ देखने लगा की मैं इस सवाल-जवाब को रोक दूँ!

मैं: Okay enough!

मैंने बीच में बोलते हुए संगीता को शांत होने का इशारा किया| संगीता मेरा इशारा समझ गईं और उसने सुमन के past के बारे में कोई सवाल नहीं किया| दो पल के लिए सब खामोश थे, इसी ख़ामोशी ने सुमन को खुद को सम्भलने का मौका दे दिया| सुमने ने अपने आँसूँ पोछे और संगीता को देखने लगी| संगीता की आँखों में अब भी सवाल थे, सुमन ने सर हाँ में हिला कर संगीता को आगे सवाल पूछने का मूक संकेत दिया;

संगीता: मेरे माँ-पिताजी गाँव के रहने वाले हैं, उनकी सोच बिलकुल गाँव वाली है| उन्हें नए जमाने की लड़कियाँ पसंद नहीं, उन्हें गाँव की देहाती लड़की चाहिए जो चूल्हे पर खाना बना सके| क्या तुम अनिल के लिए खुद को बदल सकती हो? तुम्हारा ये cigarette पीना, ये जीन्स-पैंट पहनना, ये सब बंद कर सकती हो?

संगीता के सवाल सुन सुमन सर हाँ में हिलाने लगी, इससे पहले की सुमन कुछ कहे संगीता ने उस पर अपना सबसे जर्रूरी सवाल फेंक कर मारा;

संगीता: और सब से जर्रुरी सवाल, क्या तुम अनिल के लिए अपने माँ-बाप को छोड़ सकती हो?

सुमन: दीदी आपके सारे सवालों का जवाब हाँ है!

सुमन ने बड़े आत्मविश्वास से कहा| सुमन की बातों में आज मुझे वैसा ही आत्मविश्वास दिख रहा था जैसा उस दिन संगीता की आँखों में था जब उसने (संगीता ने) अपने परिवार की जगह मुझे चुना था!

संगीता: Okay, No more questions dear!

संगीता ने मुस्कुराते हुए कहा| इतनी देर बाद आखिर संगीता के चेहरे पर मुस्कान आ ही गई थी!

संगीता: And I'm sorry for being so rude!

संगीता ने सुमन के साथ अपने किये गुस्से की माफ़ी माँगी|

सुमन: नहीं दीदी, मैं समझ सकती हूँ! आप अनिल की बड़ी बहन हो और आपको पूरा हक़ है सब बातें जानने का|

सुमन ने मुस्कुराते हुए कहा| सुमन एक दीदी के जज्बात समझ रही थी और उसके मन में संगीता के लिए कोई गुस्सा नहीं था! संगीता ने सुमन के सर पर हाथ फेरा और सारा मामला सुलझ गया|

अनिल पिताजी द्वारा दिए गए नम्बरों पर call करने लगा और बस वालों से किराए को ले कर भाव-ताव करने लगा| सुमन और संगीता बात करते हुए रसोई में खाना बनाने लगे तथा मैं site पर जाने के लिए तैयार होने लगा| इतने में दिषु का फ़ोन आया और उसने बताया की वो मेरा laptop लेने आ रहा है| मैं दिषु के आने तक रुक गया, जैसे ही दिषु ने घर में प्रवेश किया उसे देखते ही संगीता उससे नाराज होते हुए बोली;

संगीता: दिषु भैया, पिताजी ने मुझे बताया की आप शादी में इनकी (मेरी) तरफ से जाना चाहते हो?

ये सुनते ही दिषु और मैं हँसने लगे, हम दोनों दोस्तों को यूँ हँसते देख संगीता ने प्यार से अपना मुँह फुला लिया|

दिषु: भाभी जी, आप नहीं जानतीं पर आपकी तरफ से तो बहुत से लोग आ रहे हैं! अब मानु की तरफ से तो ले-दे कर एक मैं ही हूँ!

दिषु मुस्कुराते हुए बोला| दिषु की बातें सुन संगीता की उत्सुकता जाग गई की आखिर शादी में क्या होने वाला है पर दिषु ने साफ़ मना करते हुए कहा;

दिषु: अगर मैंने आपको कुछ बताया न तो अंकल-आंटी मेरी पिटाई कर देंगे!

इतने में अनिल और सुमन बैठक में आ गए, मैंने अनिल का तार्रुफ़ दिषु से करवाते हुए कहा;

मैं: अनिल, ये मेरा भाई जैसा दोस्त है दिषु....

मैं आगे कुछ कहता उससे पहले ही दिषु बोल पड़ा;

दिषु: भाई में जानता हूँ, facebook पर friend request आई थी अनिल की|

दिषु ने अनिल से हाथ मिलाते हुए कहा|

अनिल: वो जीजू मुझे दिषु भैया को thank you कहना था क्योंकि उन्होंने ही तो अपने cousin को मेरे पास अस्पताल में भेजा था|

इस तरह हम तीनों की बात शुरू हुई, फिर बारी आई सुमन के तार्रुफ़ की तो मैंने दिषु से कहा की "सुमन अनिल कि girlfriend है"| इस मुद्दे पर मैंने और दिषु ने मिल कर अनिल की खूब खिंचाई की!

खैर दिषु और अनिल में अच्छी दोस्ती हो गई थी और दोनों ने मिलकर मेरी शादी के कामो को ले कर बात करनी शुरू कर दी| मैंने दोनों को "bye" कहा और साइट पर निकल गया| अनिल के आ जाने से पिताजी का काम आसान हो गया था, ऊपर से दिषु भी अब शाम को पिताजी को गाडी में ले कर जाने लगा था| दरअसल पिताजी ने शादी का सारा इंतजाम banquet hall के जिम्मे न कर के अपने सर ले रखा था| वो कहते थे की मेरे इकलौते बेटे की शादी है तो सारी तैयारी मैं खुद ही करूँगा| जिस जूनून से मेरे माँ-पिताजी शादी की तैयारियों में लगे थे वो देख कर मुझे खुद पर बड़ा गर्व महसूस होता था की मुझे इतना प्यार करने वाले माता-पिता मिले हैं| जहाँ पिताजी शादी के लिए बाहर का काम संभाल रहे थे वहीं माँ ने संगीता और नेहा को ले कर दिषु के साथ tailor आंटी जी के जाना शुरू कर दिया था| दिषु की चचेरी बहन भी मेरी शादी attend करने के लिए बंगाल से आईं थीं, दुल्हन के शादी के जोड़े को ले कर सभी स्त्रियाँ (दिषु की मम्मी, चचेरी बहन, माँ) ने tailor आंटी का सर खपा दिया था! संगीता और नेहा को तो कई बार चीजें समझ ही नहीं आतीं थीं, वो बस सबकी हाँ में हाँ मिला दिया करते थे! वहीं बेचारे दिषु की हालत ड्राइवर की हो गई थी, वो बेचारा अपनी गाडी ले कर इधर-उधर घूमता रहता था!

दूसरी तरफ दूल्हे मियाँ, यानी मैं अपने काम-धँधे में लगा हुआ था, एक दिन शाम को दिषु ने मेरी class लगाई क्योंकि मैं अपने कपड़ों का trial लेने नहीं जा रहा था| वो पिताजी के साथ मुझे जबरदस्ती tailor master के लाया और मेरे कपड़ों का trial करवाया| Fitting में थोड़ी दिक्कत थी क्योंकि मैं थोड़ा मोटा हो गया था, जब ये बात संगीता को पता चला तो वो मेरा मजाक उड़ाने लगी| संगीता का यूँ मेरा मजाक उड़ाना मुझे थोड़ा बुरा लग गया और मैंने strict dieting शुरू कर दी| साला पाँच दिनों में मैं लगभग अपनी shape में आ गया था, मुझे वापस से shape में देख संगीता कान पकड़ कर मेरा मजाक उड़ाने के लिए "sorry" बोली|

वहीं मैं रोज रात को site पर overtime करवाता था, जब 6 तरीक आई तो पिताजी ने 7 तरीक को मुझे बाहर जाने से मना कर दिया| 7 तरीक की सुबह को जब मैं साइट से लौटा तो अनिल मेरा dining table पर इंतजार कर रहा था| माँ-पिताजी अपने कमरे में तैयार हो रहे थे और सुमन तथा संगीता घर के बाहर सब्जी खरीद रहे थे|

अनिल: जीजू, बैठो आपसे कुछ बात करनी थी|

अनिल ने मेरे बैठने के लिए कुर्सी खींचते हुए कहा|

मैं: हाँ जी!

मैं बैठा और अपनी पीठ टिका कर आराम करने लगा|

अनिल: जीजू, कल शादी है तो मैं सोच रहा था की आपकी bachelor's party का क्या होगा?

अनिल की बात सुन मैं चौंक गया और आँखें बड़ी कर के उसे देखने लगा|

मैं: What?

मुझे इस तरह से चौंकता हुआ देख अनिल हैरान हुआ और बोला;

अनिल: क्यों जीजू, आप drink नहीं करते?

मैं: अबे! मेरी छोड़ और तू अपनी बता, तू drink करता है?

मुझे लगता तो था ही की अनिल college hostel में रहते हुए पीता जर्रूर होता होगा, मगर फिर भी मैंने हैरान होने का नाटक करते हुए पुछा|

अनिल: सिर्फ beer पीता हूँ वो भी कभी-कभी roomie के साथ!

अनिल ने थोड़ा झिझकते हुए कहा|

मैं: अबे उस दिन तो तू अपनी दीदी से कह रहा था की तू कुछ खता-पीता नहीं?!

मैंने अनिल को भोयें सिकोड़ कर देखते हुए कहा|

अनिल: अब दीदी के सामने अगर कह देता की मैं beer पीता हूँ तो दीदी मुझे चप्पल से मारती! फिर beer शराब थोड़े ही होती है?!

अनिल ने खुद को बेगुनाह साबित करने की कोशिश करते हुए कहा|

मैं: आगर तेरी दीदी और सुमन को ये पता चला की तूने पी है तो बेटा 'स्त्री शक्ति' का सामना करने के लिए तैयार रहिओ|

मैंने अनिल को डरना चाहा, परन्तु वो जनाब तो पीने के mood में थे;

अनिल: Oh Come on जीजू! सुमन कुछ नहीं कहेगी और दीदी को संभालने के लिए आप हो तो सही!

अनिल ने चालाकी से मुझे संगीता का सामना करने के लिए आगे कर दिया और खुद बचना चाहा|

मैं: मैं तो बच जाऊँगा क्योंकि मैं पी ही नहीं सकता क्योंकि मैं संगीता और पिताजी को दिए वचन से बँधा हूँ| तू अपना देख लीओ!

मैंने पल्ला झाड़ते हुए कहा| अब कौन शादी वाले दिन अपनी होने वाली पत्नी का गुस्सा मोल ले! कहीं गुस्से में आ कर संगीता शादी करने से पलट गई तो? माँ-पिताजी ऊपर से पीट देते!

अनिल: Oh come on जीजू! Don't be a spoil sport!

अनिल मुझे पीने के लिए उकसाते हुए बोला|

मैं: Dude, no bachelor's party for me!

मैंने bachelor party देने से साफ़ मना करते हुए कहा|

अनिल: ठीक है तो मैं दिषु भैया से कह देता हूँ की आप party के लिए मना कर रहे हो|

अनिल ने अपनी चाल चलते हुए कहा|

मैं: दिषु? अच्छा? उसी ने आग लगाई होगी ये!

अब मैं समझ गया की bachelor's party का idea था किसका!

मैं: उससे मैं बात कर लूँगा|

मैंने बात हलके में लेते हुए कहा और कपडे बदलने के लिए अपने कमरे में जाने के लिए उठ खड़ा हुआ, ठीक तभी मेरे फ़ोन की घंटी बजी! मैंने फ़ोन देखा तो screen पर दिषु का नाम लिखा हुआ था, मेरी आँखें हैरत से बड़ी हो रहीं थी की तभी मैंने अनिल को एक नजर देखा तो पाया की उसके चेहरे पर कुटिल मुस्कान फैली हुई है!

मैं: हेल्लो!

मैंने फ़ोन कान से लगाते हुए कहा|

दिषु: बहनचोद अनिल ने अभी मैसेज किया की; 'जीजू isn't coming!' देख मैं पहले कह रहा हूँ, तू ज्यादा ड्रामे मत चोद, वरना घर आ कर तुझे खींच कर ले जाऊँगा! बहनचोद मेरे इकलौते दोस्त की शादी है और तू नखरे पेल रहा है!

दिषु भड़कते हुए बोला|

मैं: भाई पिछली बार का काण्ड याद है न?

मैंने दिषु को आगाह करते हुए कहा|

दिषु: याद है, तेरे से बड़ा काण्ड मेरे घर पर हुआ था! तुझे तो अंकल जी ने आसानी से छोड़ दिया था, मेरे बापू ने मेरी ले ली थी!

दिषु चिढ़ते हुए बोला|

मैं: भाई, मैंने promise किया है...

दिषु जानता था की मैं अपने वादे से मुकरने वाला नहीं इसलिए वो मेरी बात काटते हुए बोला;

दिषु: ठीक है बहनचोद, तू मत पीयो पर हमें तो पीने दे! हमारे साथ तो चल ले!

अब मेरे ऊपर कोई बंदिश नहीं थी, अपने दोस्त को शादी से पहले दारु पिलाना तो बनता था!

मैं: ठीक है मैं चलूँगा, लेकिन तू पहले वादा कर की तू वहाँ जा कर; 'भाई नहीं है?' वाला dialogue मार कर मुझे blackmail नहीं करेगा?

ये दिषु की हरबार की चाल होती थी| जब भी खाने-पीने का मौका आता तो वो मुझे इसी तरह से emotional blackmail किया करता था|

दिषु: अच्छा ठीक है, I promise!

दिषु हँसते हुए बोला| हमने रात में मिलने का समय निर्धारित किया और ये सारी बातें सुन अनिल बहुत खुश हुआ|

अब पिताजी, जिन्होंने पीछे से हमारी सारी बात सुन ली थी वो मुझे ताना मारते हुए बोले;

पिताजी: हाँ भई, कहाँ जा रहे हो?

पिताजी की आवाज सुन, अनिल डर के मारे सर झुका कर खामोश हो गया| मैं पिताजी से झूठ नहीं बोलना चाहता था इसलिए मैंने उन्हें सब सच बता दिया;

मैं: पिताजी, वो दिषु bachelor's party माँग रहा था! अब एक ही तो भाई जैसा दोस्त है मेरा उसे मना कैसे करूँ?!

मैंने पिताजी को थोड़ा मस्का लगाने की सोची|

पिताजी: पहले तो ये बता की ये कौन सी party होती है?

मैंने जिस प्यार भरे ढंग से पिताजी को मस्का लगाया था उससे पिताजी मुस्कुरा कर पूछने लगे|

मैं: विलायती चोंचला है पिताजी! बाहर के देश में शादी होने से पहले दूल्हे को उसके दोस्तों द्वारा एक party दी जाती है जिसमें खूब खाना-पीना होता है, पर हमारे देश में ये काम दूल्हा खुद करता है! शादी में तो पीना-खाना हो नहीं सकता इसलिए वो पहले ही अपने दोस्तों को party दे देता है|

पीने का नाम सुनते ही पिताजी का खुशमिज़ाज चेहरा गंभीर हो गया;

पिताजी: बेटा....

पिताजी कुछ कहते उससे पहले ही मैं बोल पड़ा;

मैं: पिताजी मुझे आपको दिया हुआ वचन याद है, किसी भी हालत में मैं अपना वचन टूटने नहीं दूँगा! परन्तु दिषु को पीने से क्या बोल कर मना करूँ? इसलिए मैं आपसे विनती करता हूँ की मुझे सिर्फ उसे पिलाने के लिए जाने दीजिये, मैं खुद वहाँ कोई भी शराब नहीं पीयूँगा!

मैंने सच्चे मन से बात कही| पिताजी को अपने बेटे पर विश्वास था इसलिए उन्होंने गर्दन हाँ में हिलाते हुए इज्जाजत दे दी!

मुझे दिषु को शराब पिलाने की इजाजत मिल गई थी, अब बेचारा अनिल जो खामोश बैठा था वो सोच रहा था की उसके पीने की इजाजत मैं ही माँगूँ इसलिए मैंने पिताजी से उसके लिए भी बात की;

मैं: पिताजी, अनिल को भी ले जाऊँ?

पिताजी: बेटा, अच्छा नहीं लगता!

पिताजी ने कम शब्दों में अपनी बात कही| अब मुझे अनिल को ले जाना था वरना वो बेचारा प्यासा रह जाता;

मैं: आप ठीक कह रहे हैं पिताजी, पर आजकल इसकी उम्र में सब बियर तो पीते ही हैं! इस बेचारे को भी जाने दीजिये, बेचारे ने मेरी शादी में बहुत काम किया है!

मैं अनिल की हिमायत करते हुए बोला|

पिताजी: अगर बहु (संगीता) नाराज हुई तो तेरी जिम्मेदारी!

पिताजी ने अपने हाथ खड़े करते हुए कहा|

मैं: पिताजी, हमें किसी को कुछ बताने की जर्रूरत ही नहीं, हम रात को 9 बजे निकलेंगे और 12-1 बजे तक लौट आएंगे! आपको कोई झूठ भी नहीं बोलना पड़ेगा क्योंकि सब झूठ हम दोनों जीजा-साले ही बोलेंगे!

मैं मुस्कुराते हुए बोला| पिताजी ने मेरी पीठ पर प्यार से थपकी मारी और बोले;

पिताजी: बेटा, कर ले मस्ती! शादी हो गई फिर तेरे सारे पर कट जायेंगे!

पिताजी हँसते हुए बोले| खैर पिताजी इस राज के राजदार हो गए थे, सिर्फ और सिर्फ इसलिए की उन्हें अपने बेटे पर विश्वास था की वो (मैं) कभी कोई गलत काम नहीं करेगा|

मैंने और अनिल ने मिलकर घर से निकलने का plan बना लिया था, ठीक साढ़े आठ बजे मैंने साइट से फ़ोन आने का नाटक किया और साइट पर निकलने के लिए तैयार होने लगा| Plan के मुताबिक अनिल ने एकदम से साथ चलने की बात कही और मैंने भी थोड़ा दिखावा कर के मान जाने की acting की| अब बच्चों ने जब हम दोनों को जाते हुए देखा तो उन्होंने जिद्द की;

नेहा: हम दोनों भी चलेंगे|

आयुष: हाँ जी!

आयुष ने अपना सर दाएँ-बाएँ हिलाना शुरू कर दिया| उसका यूँ सर हिलाना एक ख़ास मोहपाश था जिसे देख कर कोई भी उसे मना नहीं कर सकता था!

मैं: बेटा हमें आने में रात हो जाएगी, फिर कल सुबह जल्दी उठना होगा तो आप दोनों कैसे उठोगे?

मैंने दोनों बच्चों को बहलाना चाहा परन्तु दोनों नहीं माने|

अनिल: Chocolate किसे खानी है?

अनिल ने बच्चों का ध्यान भटकाते हुए कहा और बच्चों को साथ न आने के लिए chocolate का लालच दिया| आखिर थोड़ी न-नुकुर के बाद दोनों बच्चे मान गए| वहीं पिताजी बैठक में बैठे हम जीजा-साले का drama देख कर मुस्कुराने लगे|

खैर हम दोनों घर से निकले और गली के बाहर दिषु हमें इंतजार करता हुआ मिला| किसी को शक न हो इसलिए मैंने और अनिल ने सादे कपड़े पहने थे, जबकि दिषु का plan था अच्छे से bar में जाने का जहाँ इन कपड़ों में entry नहीं मिलती| दिषु अपने साथ अपना एक blazer लाया था जिससे अनिल का काम चल गया परन्तु मेरे लिए उसके पास एक जैकेट थी| मैंने जैकेट पहनी पर मुझे कुछ जची नहीं इसलिए मैंने दिषु को गाडी mall की तरफ लेने को कहा| Mall में मैंने अपने लिए एक बढ़िया सा blazer लिया और फिर हम सीधा bar पहुँचे| Bar पहुँच कर हमने सबसे पहले couch पकड़ लिया, जब waiter ने drinks menu दिया तो अनिल menu उठा कर देखने लगा|

दिषु: अरे ये बंद कर और कमाल देख!

दिषु ने अनिल के हाथ से menu card छीनते हुए कहा| अनिल हैरान हो कर दिषु को देखने लगा क्योंकि उसको समझ नहीं आया की कौन सा कमाल होने वाला है?! मैंने menu उठा लिया था और मैं पन्ने पलट कर देख रहा था, तभी दिषु मेरी बड़ाई करते हुए अनिल से बोला;

दिषु: तेरा जीजा जब पीता था तो ऐसे-ऐसे ब्रांड पिलाता था की कभी हमने नाम भी नहीं सुना होगा! वो तो इसने (मैंने) पीना छोड़ दिया वरना ये तो दारु की तो नस-नस से वाक़िफ़ है!

अपनी बड़ाई सुन मैं मुस्कुरा दिया और हँसते हुए दोनों से पुछा की वो क्या पीयेंगे;

अनिल: मैं तो beer लूँगा!

अनिल ने बियर का चुनाव किया तो दिषु उसे चढ़ाते हुए बोला;

दिषु: भक! अपने जीजा की bachelor's party में तुझे beer पीनी है? अबे आज तो बोतल खुलेगी!

दिषु मेरी ओर देखते हुए शैतानी हँसी हँसते हुए बोला|

मैं: भाई तेरा तो ठीक है, पर इसने (अनिल) कभी दारु नहीं पी, ये संभाल नहीं पायेगा!

मैंने अनिल को दारु पीने से बचना चाहा मगर अनिल को दिषु के कहने से दारू की हवा लग गई थी, इसलिए वो अपनी शेखी बघारते हुए बोला;

अनिल: कोई बात नहीं जीजू, आज try कर के देखता हूँ!

मैं: नहीं! तूने शराब पी है, ये बात घर पर पता चल गई तो तेरी दीदी बिना शादी किये मुझसे divorce ले लेगी! तुझे beer पीनी है न, मैं तुझे अच्छी वाली beer पिलाता हूँ|

मेरी बात सुन कर अनिल का मुँह बन गया था, परन्तु वो कुछ कह नहीं पाया|

मैं: तू (दिषु) पूरी एक बोतल पी लेगा?

मैंने दिषु से पुछा तो उसके चेहरे पर ख़ुशी ऐसे आई जैसे मैंने उससे अमृत पीने को पुछा हो!

दिषु: भाई, ये भी कोई पूछने की बात है, बहनचोद एक क्या दो बोतल पी लूँगा!

दिषु हवा में उड़ते हुए बोला| मैंने waiter को बुलाया और दिषु के लिए Red Label की पूरी बोतल मँगवाई और अनिल के लिए 2 'lager' beer मँगवाई| अनिल ने आजतक बस वही kingfisher की लाल वाली beer पी थी, इसलिए lager का नाम सुन कर वो हैरान हुआ| अब खाने की बारी आई तो मैंने अपने और दिषु के लिए chicken की item मँगवाई, मुझे chicken का order देता देख अनिल हैरान हुआ| साफ़ था की वो nonveg नहीं खाता इसलिए मैंने उसके लिए pizza मँगवा दिया| सब order लिख कर waiter चला गया और इधर अनिल मुझसे पूछने लगा;

अनिल: जीजू आप nonveg खाते हो?

मैं: तेरी दीदी भी खाती है, मतलब अभी तक उसने सिर्फ अंडा ही खाया है पर धीरे-धीरे वो भी खाने लगेगी!

अपनी दीदी के अंडा खाने की बात जानकार अनिल हैरान हुआ और मैं जब संगीता को chicken खिलाने की बात कही तो वो (अनिल) हँसने लगा|

खाना-पीना शुरू हुआ और bar में बज रहे गानों को सुन कर अनिल और दिषु पर सुरूर चढ़ने लगा| वो दोनों डंगर तो मजे से अपनी-अपनी beer और दारु पी रहे थे और मैं इधर thumbs up और चिकन खा रहा था! 'क्या दिन आ गए बहनचोद, सामने दारु है मगर पी नहीं सकते!' मैं मुस्कुराते हुए मन में बड़बड़ाया| मुझे दारु न पी पाने का कोई पछतावा या कोई खीज नहीं थी, बस थोड़ा अजीब लग रहा था की मेरा दोस्त पी रहा है और मैं चिकन खा रहा हूँ!

उधर अनिल और दिषु को जब सुरूर चढ़ने लगा तो दोनों ने मिल कर मेरी तारीफों के पुल बाँधने शुरू कर दिए;

अनिल: जीजू, ये beer तो एकदम मस्त है! कोई बदबू नहीं, इतनी जल्दी चढ़ भी नहीं रही, बड़ी soft सी है!

मैं: वो इसलिए की ये ताज़ा beer है, पीछे brewing tank लगा है जहाँ beer बनती है|

मैंने इशारे से अनिल को beer brewing tank दिखाते हुए कहा| Brewing tank देख अनिल की आँखें बड़ी हो गेन, उसने कभी नहीं सोचा था की उसे brewing tank देखने को मिलेगा| अब बारी आई दिषु की जिसे दारु दिमाग में hit करने लगी थी;

अनिल: भाई दारु तो ये है बहनचोद! गले से उतरते हुए ऐसी लगती है जैसे शहद हो! खुशबु भी बहुत बढ़िया है!

दिषु की बात सुन मैं मुस्कुराया और (
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) इस तरह झुक कर उसकी तारीफ स्वीकार की|

इधर अनिल ने अपने दोनों गिलास beer के निपटाए और उधर दिषु ने आधी बोतल खत्म की| अब दोनों की गाडी दुसरे gear में जा चुकी थी, अनिल ने एक गिलास beer और मँगवा ली| दोनों की गाडी दूसरे gear में जाते ही दोनों ने अब नाचना था| दोनों ने मेरा हाथ पकड़ कर मुझे dance floor पर खींचा| अब हम तीनों ने बढ़िया से नाचना शुरू किया और तब तक नाचे जब तक दोनों की गाडी तीसरे gear में नहीं पहुँच गई|

तीसरे gear में आते-आते, अनिल तीन glass beer डकार चूका था और दिषु ने मेरे लाख मना करने के बावजूद अनिल को जबरदस्ती एक 30ml दारु का पेग पिला दिया! अब अनिल के मुँह दारु का स्वाद लग चूका था इसलिए उसने हिलते-डुलते दूसरा पेग बनाया| मैंने उसे रोकना चाहा तो दिषु ने मेरा हाथ पकड़ कर मुझे खींच कर बिठा लिया और इस मौके का फायदा उठा कर अनिल neat पेग खींच गया| दोनों बेवड़ों की गाडी अब full speed से दौड़ रही थी और अब उन्हें मुझ पर बहुत ज्यादा प्यार आ रहा था| दिषु हिलते-डुलते washroom गया तो अनिल उठ कर couch पर बैठ गया और मेरे सीने से लगते हुए भावुक हो गया;

अनिल: ज...जी....जीजू.....ऊऊऊ....में...मेरी....दीदी.........का....

अनिल नशे में बोलने की कोशिश कर रहा था, मगर उसके मुँह से शब्द खींच-खींच कर बाहर आ रहे थे| वो आगे कुछ कहता उससे पहले ही दिषु एक waiter का सहारा ले कर वापस आ गया और धम्म से couch पर मेरी दूसरी बगल गिर गया|

अनिल: दीदी....का....खा...ख्याल...रखना!

अनिल ने बड़ी मुश्किल से बात पूरी की| अनिल ने आज पहलीबार दारु पी थी इसलिए वो दो पेग में ढेर हो रहा था, वहीं दिषु पुराना खिलाड़ी था इसलिए उसे बोलने में कोई दिक्कत नहीं होती थी| अनिल की बात सुन वो मुझे पर फक्र करते हुए बोला;

दिषु: अबे....मेरा भाई तेरी दीदी से कितना प्यार करता है ये तू नहीं जानता! मैं जानता हूँ, ये बहनचोद पक्का वाला आशिक़ है! तू चिंता मत कर ये भाभी (संगीता) का अच्छे से ख्याल रखेगा! मेरा प्यारा भाई (मैं)!

ये कहते हुए दिषु भी मेरे सीने से लग गया|

दोनों के दोनों टल्ली हो चुके थे और अब समय था घर जाने का, मैंने waiter को बुलाया तो वो कहने लगा की अब हम लोगों को drinks serve नहीं की जायेगी| मैंने हँसते हुए उसे कहा की मुझे bill चाहिए, तो उसने मुझे bill ला कर दिया| Bill बहनचोद अच्छा खासा आया, जिसे देख कर मेरे होश उड़ गए! खैर bill तो भरना था, bill भर कर मैंने अनिल और दिषु को होश में लाने की कोशिश की| दोनों को अपने कँधे का सहारा दे कर खड़ा किया, दिषु तो फिर भी हिल- डुल कर चल पा रहा था पर अनिल का तो हाल बुरा था| वो किसी लाश की तरह मेरे ऊपर अपना सारा वजन डाले खड़ा हुआ था| उधर दिषु की नजर दारु की बोतल पर पड़ी, जिसमें अभी 10-15ml दारु बची हुई थी, उसने फ़ट से बोतले उठा ली और उसकी ये हरकत देख मैं हँस पड़ा| "भाई पैसे दिए हैं, ऐसे-कैसे छोड़ दूँ!" दिषु दारु की बोतले पर इतराते हुए बोला|

हम तीनों गाडी तक पहुँचे, दिषु आगे बैठा और अनिल पीछे सीट पर फ़ैल कर सोने लगा| मैंने गाडी पहले दिषु के घर की तरफ ली, गाडी चलाते समय मैंने घडी देखि तो रात के डेढ़ बज रहे थे| आगे पुलिस का checkpoint था, दिषु को पता नहीं क्या जोश चढ़ा उसने बोतल अपने होठों से लगाई और बची-कुचि दारु गट-गट पीने लगा| फिर उसने गाडी में गाना जोर से चला दिया और गाने के बोल जोर से दुहराने लगा!

मैं: भोसड़ी के ज्यादा मस्ती सूझ रही है तुझे?

मैंने हँसते हुए दिषु से कहा तो उसके चेहरे पर कटीली मुस्कान फ़ैल गई| इतने में गाडी checkpoint पहुँच गई| पुलिस वाले ने गाडी के सामने वाले शीशे से दिषु के ड्रामेबाजी देख ली थी इसलिए उसने गाडी रुकवाई और मुझे शीशा नीचे करने को कहा| जैसे ही मैंने गाडी का शीशा नीचे किया, पुलिस वाले को शराब का भभका सूँघने को मिला! पुलिस वाला मुँह बिदका कर कुछ कहने को हुआ इतने में दिषु सीट पर बैठे-बैठे नाचने लगा और गाना गाने लगा;

दिषु: आज मेरे भाई की शादी है, आज मेरे भाई की शादी है!

दिषु को झूमते हुए देख पुलिस वाला हँस दिया और मुझसे बोला;

पुलिस वाला: ये तो Full tight है, ये पीछे कौन पड़ा है?

मैं: मेरा साला है और ये जो गाना गाये रहा है ये मेरा दोस्त है|

मैंने मुस्कुराते हुए कहा क्योंकि दिषु तो अपना गाना गाने में मस्त था| पुलिस वाला मुस्कुराया और मुझसे पूछने लगा;

पुलिस वाला: तूने नो नहीं पी रखी?

मैं: नहीं सर!

मेरी बातों में आत्मवविश्वास झलक रहा था इसलिए पुलिस वाले ने मुझे जाने का इशारा किया| कुछ देर और मस्तीबाजी करते हुए दिषु; "मेरे यार की शादी है" गाना जाता रहा और गाना गाते-गाते ही सो गया!

दिषु के घर पहुँच मैंने उसे सहारा दे कर गाडी से बाहर निकाला| उसकी हालत देख कर मैं थोड़ा डर रहा था, दरवाजा अंकल-आंटी जी में से कोई खोलता और दिषु की ये हालत देख कर वो मुझसे सवाल करने लगते! "भोसड़ी के आज तेरे चक्कर में अंकल-आंटी जी मुझे सुनाएंगे!" मैं दिषु को अपने कँधे पर टाँगें हुए बोला, पर दिषु तो नींद में था सो उसने कोई प्रतिक्रिया नहीं दी| मैंने दरवाजे की घंटी बजाई तो दरवाजा दिषु की नौकरानी ने खोला, दिषु की हालत देख कर वो समझ गई की आज वो पी के टुन्न है, इसलिए उसने मुझे भीतर आने को कहा| मैं दिषु को उसके कमरे में लाया और उसे बिस्तर पर लिटा कर जैसे ही मुड़ा की पीछे अंकल जी (दिषु के पिताजी) खड़े हुए थे|

दिषु के पिताजी: आज फिर पी?

अंकल जी ने मुस्कुराते हुए सवाल पुछा| मुझे तो लगा था की आज अंकल जी डाटेंगे परन्तु वो तो मुस्कुरा रहे थे?!

मैं: Sorry अंकल जी|

मैंने शर्माते हुए सर झुका कर कहा|

दिषु के पिताजी: कोई बात नहीं बेटा, आज ये बुद्धू (दिषु) बता कर गया था|

अंकल जी मुस्कुराते हुए बोले| अंकल की बात सुन मैंने चैन की साँस ली की चलो डाँट खाने से बच गए!

दिषु के पिताजी: लेकिन बेटा, तुम तो पिए हुए नहीं लग रहे?

अंकल जी ने थोड़ा हैरान होते हुए पुछा|

मैं: जी, वो दरअसल पिछलीबार वाली बेवकूफी के बाद मैंने पिताजी से वादा किया था की मैं कभी शराब नहीं पीयूँगा|

मेरी बात सुन उन्हें मुझ पर गर्व हुआ, परन्तु फिर भी वो हँसते हुए पूछने लगे;

दिषु के पिताजी: तो ये कैसी bachelor's party थी जहाँ दूल्हे को छोड़ के सबने पी!

अंकल जी की बात सुन मैं और अंकल जी दोनों हँसने लगे|

दिषु के पिताजी: वैसे अच्छा है बेटा, काश ये पागल भी तुम्हारी तरह होता|

अंकल जी ठंडी आह भरते हुए बोले| फिर उन्होंने घडी देखि तो रात के ढाई बज रहे थे;

दिषु के पिताजी: बेटा रात बहुत हो रही है, तुम यहीं सो जाओ|

मैं: Sorry अंकल जी, वो मेरा साला गाडी में है, मैं उसे घर छोड़ के गाडी वापस ले आता हूँ|

मैंने कहा तो अंकल जी एकदम से बोले;

दिषु के पिताजी: नहीं-नहीं बेटा! इतनी रात गए बाहर मत घूमो, गाडी लेने कल इस पागल (दिषु) को भेज दूँगा| गाडी संभाल कर चलाना और पहुँच कर मुझे फ़ोन कर देना|

अंकल जी ने चिंता व्यक्त करते हुए कहा|

मैं: Thank you अंकल जी! Good night!

मैंने हाथ जोड़ कर अंकल जी को धन्यवाद दिया|

दिषु के पापा: Good Night बेटा!

अंकल जी मुस्कुराते हुए बोले|

गाडी भगाते हुए मैं घर पहुँचा, फिर अनिल को जगाने लगा पर वो उठा ही नहीं| आखिर उसे अपने कँधे का सहारा दे कर घर लाया, घर से निकलते समय मैंने अपनी चाभी ले ली थी| मैंने अपनी उन्हीं चाभियों से दरवाज़ा खोला और बिना कोई आवाज किये सीधा अपने कमरे की ओर बढ़ा| जैसे ही मैंने दरवाजा खोला तो कमरे में मौजूद zero watt के bulb की रौशनी में मुझे संगीता और सुमन सोते हुए नजर आये| मैं धीरे से पीछे हो लिया और संगीता वाले कमरे में पहुँचा, मैंने अनिल को लिटाया और उस पर रजाई डाल दी| मैं बैठक में पानी पीने आया, थोड़ी भूख लगी थी इसलिए मैं एक केला खाने लगा, तभी नेहा जो मेरे कमरे का दरवाज़ा खोलने से जाग गई थी वो उठ के आ गई|

नेहा: पापा जी, दादा जी तो कह रहे थे की आप सुबह आने वाले हो?

नेहा ने आँख मलते हुए सवाल किया|

मैं: Awwww मेरा बच्चा, सोया नहीं? इधर आओ!

मैंने नेहा के सवाल का जवाब नहीं दिया बल्कि अपनी बातों में फुसला कर उसे अपने पास बुलाया| नेहा आ कर मुझसे लिपट गई और नींद पूरी न होने के कारन उबासी लेते हुए बोली;

नेहा: पापा जी, आपके बिना नींद नहीं आती|

मैं: Awwwww मेरा बच्चा!

मैंने नेहा को अपनी बाहों में कस लिया और सर को चूमने लगा|

नेहा को मेरे साथ सोना था और नेहा को अपने साथ ले कर मैं अनिल के साथ नहीं सो सकता था क्योंकि अनिल दारु से महक रहा था! नेहा के बचपन का काफी हिस्सा चन्दर के मुख से दारु की महक सूँघते हुए निकला था और मैं अपनी बेटी को इस गंदी महक से दूर रखना चाहता था| इसलिए इस वक़्त सिवाए बैठक में सोने के मेरे पास और कोई चारा नहीं था, बैठक में भी बस एक सोफे ही था जिस पर केवल एक व्यक्ति सो सकता था! मैं अंदर से एक रजाई ले आया, फिर नेहा को अपनी गोदी में उठा कर पीठ के बल लेट गया और दोनों के ऊपर रजाई डाल ली| नेहा ने मुझे अपनी बाहों में कसना चाहा और उसके प्यार ने मुझे बड़ी गहरी नींद के आगोश में पहुँचा दिया|

सुबह के साढ़े पाँच बजे थे और संगीता सबसे पहले जाग गई थी| बैठक में आ कर उसने रजाई देखि तो उसने खींच कर मेरे ऊपर से रजाई निकाल दी| रजाई एकदम से हटी तो मैं एकदम से उठ गया, उधर संगीता भोयें सिकोड़े हुए गुस्से से मुझे नेहा से लिपटे हुए लेटा देख रही थी!

संगीता: आप यहाँ क्या कर रहे हो?

संगीता गुस्से से बोली|

मैं: Good morning बाबू!

मैंने संगीता का गुस्सा शांत करने के लिए उसे मस्का लगाते हुए कहा, परन्तु संगीता का पारा चढ़ने लगा था! उस दिन मैंने एक जर्रूरी सबक सीखा था, वो ये की जब पत्नी गुस्से में हो तो उसे मस्का नहीं लगाना चाहिए! इधर संगीता को शक हो गया था की जर्रूर मैंने कल रात कोई काण्ड किया है तभी मैं उसे मस्का लगाने की कोशिश कर रहा हूँ;

संगीता: You didn't answer me?

संगीता गुस्से दाँत पीसते हुए बोली| मुझे उस वक़्त मस्ती सूझ रही थी इसलिए मैंने शराबियों की तरह अपनी एक आँख बंद की और संगीता को छेड़ते हुए बोला;

मैं: रात को जल्दी लौट आया था!

संगीता: Seriously?

संगीता ने मुझे घूर कर देखते हुए पुछा| मैंने छोटे बच्चे की तरह सर हाँ में हिलाते हुए कहा|

संगीता: तो यहाँ क्यों सोये हुए हो? और ये आपके कपडे कौन से हैं? और अनिल कहाँ है?

संगीता ने मुझे पर अपने सवालों की बौछार कर दी| मैं समझ गया था की आज तो हम दोनों जीजा साले की शामत है, इसलिए मैंने साधारण तरीके से बात करने की सोची;

मैं: अनिल अंदर सो रहा है!

मैंने संगीता के कमरे की तरफ इशारा किया| वहीं माँ-पिताजी उठ चुके थे और बैठक से आ रही आवाजें सुन वे बाहर आ गए;

पिताजी: क्या हुआ भई? अरे मानु, तू यहाँ क्यों सो रहा है?

पिताजी बात शुरु करते हुए पूछने लगे|

मैं: जी वो...

मैं कुछ कहता उससे पहले ही संगीता ने पिताजी से मेरी शिकायत कर दी;

संगीता: देखिये न पिताजी, पता नहीं कल रात ये दोनों (मैं और अनिल) कहाँ गए थे? इनके (मेरे) कपडे देखिये, रात को कब आये कुछ पता नहीं? नेहा यहाँ कैसे पहुँची, कुछ पता नहीं? अनिल कहाँ है, कुछ पता नहीं?

संगीता को परेशान देख पिताजी ने सारा राज़ खोल दिया;

पिताजी: बेटा बात ये है की ये तीनों, मतलब ये (मैं), अनिल और दिषु मुझे बता कर party करने गए थे!

पार्टी का नाम सुनते ही संगीता मुझे गुस्से से घूर कर देखने लगी और बोली;

संगीता: Party? मतलब आपने शराब पी?

संगीता के चेहरे पर गुस्सा देख मैं समझ गया की भाई आज तो इसने शादी के लिए मना कर देना है, इसलिए मैंने फ़ौरन अपनी सफाई पेश कर दी;

मैं: नहीं जान! मैंने पिताजी और आपसे वादा किया था न की मैं कभी शराब नहीं पीयूँगा!

मेरे मुँह से अचानक 'जान' शब्द सुन कर माँ-पिताजी मुस्कुराने लगे थे और मुझे भी जब ये एहसास हुआ तो मेरे चेहरे पर भी मुस्कान आ गई थी| उधर संगीता, माँ-पिताजी के सामने पहली बार अपने लिए जान शब्द सुन कर जैसे-तैसे अपनी मुस्कान दबा रही थी की तभी मेरे चेहरे पर आई मुस्कान देख संगीता के चेहरे पर मुस्कान एक महीन रेखा आ गई!

संगीता: अनिल कहाँ है?

संगीता ने अपनी मुस्कान छुपाते हुए नकली गुस्सा दिखाते हुए सवाल पुछा| दरअसल अपनी मुस्कान छुपाने के चककर में संगीता के मुँह से एक ही सवाल दुबारा निकल गया| मुझे उस समय बहुत हँसी आ रही थी और मेरे चेहरा हँसी के कारण चमक रहा था, ठीक तभी अनिल अपना सर पकडे हुए बाहर आया|

अनिल: मैं इधर हूँ दीदी! आह! मेरा सर दर्द से फट रहा है!

अनिल की हालत देख कर कोई भी कह सकता था की उसने कितनी पी थी| इधर संगीता समझ चुकी थी की अनिल ने शराब पी रखी है;

संगीता: तूने शराब पी?

संगीता अनिल को कच्चा खा जाने वाली नजरों से देखते हुए चिल्ला कर बोली!

अनिल: स....Sorry दीदी...सब मेरी गलती है....जीजू को कुछ मत कहना....उन्होंने कुछ नहीं किया....ये सब मेरा और दिषु भैया का प्लान था| जीजू ने बहुत मना किया था पर हमारे जोर देने पर वो हमारे साथ bachelor's party के लिए गए थे, लेकिन उन्होंने वहाँ एक बूँद भी शराब नहीं पी! उनकी कोई गलती नहीं! प...please!

अपनी दीदी का गुस्सा देख अनिल की फ़ट के चार हो गई थी! कहीं आज के दिन घर में कलेश न खड़ा हो जाए इसलिए अनिल ने मुझे बचाने के लिए सब सच बोल दिया| वैसे वो था बहुत होशियार उसने अपनी दीदी के सवाल का जवाब नहीं दिया था! खैर ये अनिल की सोच थी की वो संगीता के सवालों से बच जायेगा, क्योंकि संगीता ने अगले ही पल अपना सवाल गुस्से में फिर दोहराया;

संगीता: तूने शराब कब से पीनी शुरू की?

संगीता का सवाल सुन अनिल खामोश हो गया था और उसकी ये ख़ामोशी संगीता को गुस्सा दिला रही थी! संगीता ने एकदम से अनिल का बायाँ कान पकड़ कर उमेठ दिया और गुस्से से फिर चिल्लाई;

संगीता: मैंने तुझसे कुछ पुछा है? शर्म नहीं आती तुझे शराब पीते हुए?!

अनिल बेचारा घबरा कर काँपने लगा और बोला;

अनिल: वो...hostel में....वो roomies के साथ कभी-कभी beer पीता हूँ!

ये सुनते ही संगीता गुस्से में गरज पड़ी;

संगीता: मुझसे झूठ बोलते हुए तुझे शर्म नहीं आती तुझे?!

इतना कह संगीता, अनिल पर हाथ छोड़ने लगी की तभी मैंने संगीता का हाथ रोक लिया| संगीता माँ-पिताजी के लाज और मेरे डर के मारे मुझे कुछ कह नहीं सकती थी इसलिए उसने सीधा पिताजी से शिकायत की;

संगीता: देखा पिताजी?

पिताजी आज के दिन कोई कलेश नहीं चाहते थे इसलिए उन्होंने बात सँभालते हुए कहा;

पिताजी: बेटा (संगीता) आज की नई पीढ़ी ऐसी ही है! तू चिंता न कर बेटा मैं कल इसे (अनिल को) अच्छे से समझा दूँगा| फिलहाल ये सब बातें छोडो, आज शुभ दिन है, तुम दोनों की शादी है और आज के दिन कलेश करना ठीक नहीं!

पिताजी की बात सुन संगीता कुछ नहीं बोली और सर झुका कर खड़ी रही| उसे बुरा लग रहा था की आज के दिन भी उसने अपने गुस्से से कलेश करना चाहा था! उधर पिताजी ने संगीता को ग्लानि से बचाने के लिए बात बदल दी;

पिताजी: मानु की माँ, अनिल को चाय दो ताकि इसका सर दर्द बंद हो और ये आज के काम सँभाले|

पिताजी की बात से सब का ध्यान कलेश की तरफ से हट गया| गौर करने वाली बात ये थी की मेरी माँ ख़ामोशी से सब देख और सुन रहीं थीं, उन्होंने मुझे एक शब्द भी नहीं कहा| उसका एक बहुत बड़ा कारण था और वो ये की मेरी माँ जानती थीं की मैं बेगुनाह हूँ! अगर मैं गुनहगार होता तो मेरी शक्ल पर बारह बजे होते और फिर माँ मेरी अच्छे से class लगा देतीं! खैर माँ छाया बनाने जा रहीं थीं की तभी अनिल बोल पड़ा;

अनिल: पिताजी बस एक कप चाय और मैं सब काम सँभाल लूँगा!

अनिल अपनी दीदी से नजर चुराते हुए बोला| तभी सुमन जो सबसे पीछे खड़ी थी वो बोली;

सुमन: आंटी जी, मैं चाय बनाती हूँ|

सुमन चाय बनाने घुसी और मैं बिना कुछ कहे नेहा को गोद में ले कर अपने कमरे में आ गया| नेहा भी भी सो रही थी इसलिए मैंने उसे लिटा दिया और रजाई ओढ़ा दी|

मैं बिना कुछ कहे अपने कमरे में आया था इसलिए संगीता को लग रहा था की मैं उससे नाराज हूँ, इसलिए मुझे मनाने के लिए संगीता सब से छुप कर मेरे कमरे में आ गई| मैं अभी कपडे बदल ने लगा था की संगीता अपने कान पकड़ते हुए बोली;

संगीता: Sorry!

मैं संगीता से नाराज नहीं था इसलिए मैंने तुरंत मुस्कुरा कर जवाब दिया;

मैं: Its okay जानू! Quick, gimme a kiss and smile!

मेरी बात सुन संगीता अपने होठों पर हाथ रखते हुए बोली;

संगीता: कोई Kissi-vissi नहीं मिलेगी! अब जो भी मिलेगा सब रात को मिलेगा!

संगीता एक कुटिल मुस्कान हँसते हुए बोली| ये संगीता का मुझे तंग करने का तरीका था|

मैं: यार that's not fair! कम से कम अभी जो आपने बेवजह का गुस्सा किया उसके हर्जाने में ही एक kiss दे दो!

मैं प्यार से मिन्नत करते हुए बोला| मगर संगीता को मुझ पर तरस नहीं आया, वो गर्दन ना में हिलाने लगी!

नतीजन मैं ठंडी आह भरते हुए bathroom जाने के लिए पलटा, तभी संगीता ने मुझे जोर से अपनी तरफ घुमाया और अपने पंजों पर खड़े होते हुए मेरे लब से अपने लब मिला दिए! संगीता कहीं भागे नहीं इसलिए मैंने अपने दोनों हाथों को उसकी कमर पर ले जाते हुए कस लिया और संगीता के लबों का रस पीने लगा! संगीता का जिस्म मेरी बाहों में आ कर पिघलने लगा था, उसके दोनों हाथ मेरी पीठ पर चलते हुए रास्ता बना रहे थे| वहीं संगीता के जिस्म की महक मुझे उसका दीवाना बना रही थी और मैं इस वक़्त अलग ही नशे में चूर था!

इस वक़्त समा इतना romantic था की हम दोनों को ही ये एहसास नहीं था की कमरे का दरवाजा खुला हुआ है! अभी बस 2 मिनट हुए थे की सुमन मेरी चाय ले कर कमरे में आ गई, हम दोनों को एक दूसरे से लिपटे देख वो मुस्कराई और नकली खाँसी खाते हुए बोली;

सुमन: Love birds के लिए चाय लाई हूँ!

सुमन की आवाज सुन हमारा चुंबन टूट गया! संगीता बेचारी लाज के मारी दोहरी हो रही थी इसलिए उसने अपना चहेरा मेरे सीने में छुपा लिया| उधर सुमन ढीठ बन गई और चाय टेबल पर रख कर हाथ बाँधे हम दोनों को देखने लगी मैंने उसे इशारे से जाने को कहा भी तो वो सर न में हिलाते हुए कुटिल हँसी हँसने लगी| तभी वहाँ अनिल आ गाया और उसने जब कमरे के भीतर का नजारा देखा तो वो सुमन का हाथ पकड़ कर उसे खींच कर बाहर ले गया|

जब दोनों बाहर चले गए तब मैंने संगीता से कहा;

मैं: Hey, they're gone!

'They' शब्द सुनते ही संगीता आँखें बड़ी कर के मुझे देखने लगी!

संगीता: They?

मैं: हाँ अनिल और सुमन|

मैंने मुस्कुराते हुए कहा| अनिल का नाम सुन संगीता अपना सर पीटते हुए बोली;

संगीता: हे राम!

संगीता इस वक़्त लालम-लालम हो चुकी थी और उसके चेहरे पर ये लाली मुझे बहका रही थी! मैंने संगीता को अपने नजदीक खींचा और उसके होठों के नजदीक जाते हुए बोला;

मैं: चलो जल्दी से kiss निपटाओ और ....

संगीता ने एकदम से मेरी बात काट दी और बोली;

संगीता: न बाबा न! बस अब और kissi नहीं! पहले ही इस सुमन की बच्ची ने मुझे आपके साथ देख लिया है, अब सारा दिन मुझे ये आपका नाम ले-ले कर छेड़ेगी!

संगीता सुमन से चिढ़ते हुए बोली|

मैं: क्यों, सुमन क्या कहती है?

मैंने पुछा भर था की संगीता ने सुमन की शिकायत शुरू कर दी;

संगीता: लुच्ची है एक नंबर की! सारा दिन कहती रहती है की; "दीदी आप कितने नसीब वाले हो जो आपको जीजू जैसा husband मिला है! जीजू तो आपको सारी रात सोने नहीं देंगे, आपकी हालत खराब कर देंगे" और भी न जाने क्या-क्या कहती रहती है!

ये कहते हुए संगीता लजाने लगी|

मैं: अरे सही तो कह रही है!

मैंने संगीता से थोड़ी दिल्लगी करते हुए कहा तो संगीता मुझे जीभ चिढ़ाते हुए भाग गई!

चाय पी कर, नाहा-धो कर मैं तैयार हुआ, दोनों बच्चे जाग चुके थे और मेरा इंतजार कर रहे थे| मेरे नहा कर आते ही दोनों बच्चे आ कर मेरी गोद में चढ़ गए, नाश्ता बना और सबने नाश्ता किया| नाश्ते के बाद पिताजी ने मुझे आज के दिन के बारे में थोड़ी सी जानकारी देते हुए कहा;

पिताजी: हाँ तो लाड साहब, रात 9 बजे का मुहूरत है| शादी के लिए मैंने छतरपुर में एक farmhouse book किया था, दोपहर 3-4 बजे तक मेहमान आने शुरू हो जायेंगे| बहु, सुमन, अनिल, मिश्रा जी का परिवार और दिषु का परिवार सब हमसे पहले निकलेंगे और farmhouse पर पहुँचेंगे| सभी औरतें वहीं तैयार होंगी और वहाँ की सभी तैयारी अनिल फिर से check कर लेगा| हम बरात ले कर ठीक 7 बजे निकलेंगे, अंदाजन 8 बजे तक हम farmhouse पहुँच जायेंगे!

जिस तरह से पिताजी ने इतने दिनों से अपना ये surprise बरकरार रखा था वो क़ाबिले तारीफ था| पिताजी की बात सुन मैं मुस्कुराया और सर हाँ में हिलाने लगा| पिताजी ने सबको अपने-अपने काम बता दिया थे, बस बच्चों को क्या करना है ये उन्होंने नहीं बताया था|

नेहा: दादा जी हम दोनों (नेहा और आयुष) को क्या करना है?

नेहा का सवाल सुन सब लोग हँस पड़े| मुझे और संगीता को छोड़कर इस शादी में हर कोई काम कर रहा था, इसलिए बच्चों को ताव आना जायज़ बात थी!

पिताजी: बेटा आपको अपनी मम्मी के साथ रहना है और वहाँ (farmhouse) पर अपने अनिल मामू की बातें माननी हैं|

पिताजी ने नेहा को प्यार से समझाते हुए कहा| तभी आयुष ने अपना हाथ उठा दिया और अपने दादाजी से पूछने लगा;

आयुष: और दादा जी मैं?

पिताजी: बेटा आप मेरे साथ रहोगे, हम दोनों दादा-पोते आज एक जैसे कपडे पहने होंगे न तो, कहीं कोई मेरी जगह आप से बात करने लगा तो?

पिताजी का बचपना देख सभी लोग जोर से ठहाका लगाने लगे|

मेरे पूरे घर का माहौल चहल-पहल भरा था, पिताजी अपनी ख़ुशी के मुताबिक सारा काम अपने सर पर लिए बैठे थे| करने को वो कोई event management वाली company से बात कर सकते थे, परन्तु उनका बड़ा चाव था की अपने बेटे की शादी के सारे काम खुद करवाने का| पूरे घर में बस अनिल और पिताजी की आवाजें गूँज रही थीं जो फ़ोन पर किसी को डाँट रहे होते तो कभी किसी से कुछ पूछ रहे होते| अब मैं बैठा था खाली, तो मुझे आ रही थी नींद इसलिए मैं अपने कमरे में सोने चल दिया| मुझे सोता देख आयुष मेरे पास आया, उसे भी किसी ने कोई काम नहीं दिया था इसलिए वो भी मेरी तरह खाली बैठा था, तो दोनों बाप-बेटा लिपट कर सो गए| नेहा को जो सामान farmhouse जाना था उसे इकठ्ठा करने का काम दे दिया गया, सुमन को खाने बनाने का काम मिला तो वो रसोई में खाना बनाने घुस गई|

जितने चाव से माँ ने संगीता को दुल्हन की तरह सजने-सँवरने के लिए खरीदारी की थी, वैसे ही संगीता ने माँ को सजने-सँवरने के लिए तैयारी की थी| संगीता ने एक beauty parlor वाली लड़की को घर बुला दिया, जिसने माँ की सुंदरता में चार-चार लगाने शुरू कर दिए| खाना तैयार हुआ तो मैं, आयुष के साथ कमरे से बाहर आया| ठीक तभी माँ अपना beauty parlor वाला सारा 'treatment' करवा कर कमरे से बाहर आईं| उन्हें देखते ही पिताजी उन्हें देखते रह गए! जिस तरह मैं, संगीता को देख कर romantic हो जाता था वैसे ही आज माँ को इतना बना-सँवरा देख पिताजी romantic हो गए| माँ का हाथ पकड़ कर पिताजी अपने आशिक़ वाले अंदाज में बोले;

पिताजी: मानु की माँ, लड़का तो शादी कर ही रहा है! कहो तो उसी मंडप में हम-तुम दुबारा शादी के मंतर पढ़वा लें!

पिताजी की बात पर मैंने जोर से सीटी बजा दी! माँ इतनी शरमाई की जा कर पिताजी के सीने में चेहरा छुपाने लगीं, ठीक वैसे ही जैसे संगीता मेरे सीने में शर्म से अपना चहेरा छुपाती थी!

मैं: पिताजी, पिछलीबार जब नेहा-आयुष ने दिवाली पर सुन्दर कपडे पहने थे तो माँ ने कहा था की बच्चों को काला टीका लगाओ, आज सोच रहा हूँ मैं खुद माँ को काला टीका लगा दूँ!

मैंने मस्ती करते हुए कहा|

माँ: इधर आ, तुझे काला टीका मैं लगाऊँ!

माँ मुझे प्यार से डाँटते हुए बोलीं| माँ की बात सुन सभी जोर से हँसने लगे! मैं आगे बढ़ा और माँ के गले लग गया और उनकी तारीफ करने लगा;

मैं: माँ सच में आप आज बहुत सुन्दर लग रहे हो! पिताजी सही कह रहे हैं, 2-3 साल में आप दोनों (माँ-पिताजी) की शादी के पच्चीस साल हो जायेंगे, फिर तो आपको दुबारा शादी करनी ही पड़ेगी तो आप आज ही पिताजी से शादी कर लो न!

मैंने माँ को छेड़ते हुए कहा| माँ ने प्यार से मेरी पीठ पर थपकी मारी और हँसते हुए बोलीं;

माँ: तू बाज नहीं आएगा न अपनी मस्ती से?

उधर दोनों बच्चे अपनी दादी जी के पास आये और माँ से लिपट गए| माँ ने दोनों बच्चों के सर पर हाथ रख उन्हें आशीर्वाद दिया|

खाना खा कर हम उठे थे की दिषु आ गया और अपने साथ नेहा, संगीता, अनिल और सुमन को अपनी गाडी में ले गया| अनिल को छोड़ कर कोई भी अभी तैयार नहीं हुआ था, सब ने इस वक़्त सादे से कपड़े पहने थे, असली सजने-संवरने का सारा काम तो farmhouse पर होना था! उधर पिताजी ने एक catering वाले को घर बुलाया था जिसने ठंडा, चाय, coffee और समोसों का table सेट कर दिया था, ये इंतजाम इसलिए था की जो बराती पहले आएँगे वो खाते-पीते रहें| मुझे लगा था की 5 बजे से पहले कोई बराती नहीं आएगा, परन्तु तीन बजे से लोगों का आना शुरू हो गया था| माँ अपने कमरे में तैयार हो रहीं थीं, जितनी औरतें आईं थीं सब ने माँ को घेर लिया और उनसे बातें करने लगीं| जितने आदमी आये थे वो सब पिताजी से बात करने में लगे हुए थे| पिताजी का ध्यान आधा लोगों की बातों में था और बाकी ध्यान किसी न किसी को फ़ोन के ऊपर डाँटने पर था| कई लोगों ने पिताजी से कहा की भला शादी का सारा इंतजाम उन्होंने अपने सर क्यों ले रखा है, कुछ काम दूल्हे यानी मुझे भी करना चाहिए, तो पिताजी मेरा बचाव करते हुए बोले; "मेरे बेटे की शादी है, उससे थोड़े ही काम करवाऊँगा!" सभी को ये पिताजी का मेरे प्रति दुलार लगा और जिससे हो सका वो पिताजी की मदद करने लगा| खैर पिताजी ने जो खाने-पीने का इंतजाम किया था उससे सभी बहुत खुश थे क्योंकि सभी के मुँह चल रहे थे!

उधर मैं और आयुष bore हो रहे थे की तभी माँ कमरे में आईं और मुझे दो कपडे देते हुए बोलीं;

माँ: ये पहन और जल्दी से बाहर आ!

इतना कह माँ बाहर चली गईं| मैंने वो कपडे खोल कर देखे तो सफ़ेद रंग की एक धोती और एक नई सफ़ेद बनियान थी| अब जा कर पिताजी के surprise की परतें धीरे-धीरे खुलने लगी थीं| उन कपड़ों को देख मैं समझ गया की मुझे हल्दी लगाई जाएगी, मैंने कपडे पहने और बाहर आ गया| बाहर आ कर पता चला की सभी औरतें इकठ्ठा हो चुकीं हैं तथा एक camera man camera मेरी तरफ घुमाये हुए खड़ा है| जिंदगी में पहलीबार camera के सामने आया था तो मेरा थोड़ा व्यग्र होना वाजिब था! मैंने माँ को औरतों की भीड़ में देखा और गर्दन के इशारे से पूछने लगा की आगे क्या करूँ? मेरी ये हरकत पड़ोस की भाभी ने देख ली और वो मेरी टाँग खींचते हुए बोलीं;

पडोसी भाभी: अरे अपनी माँ को क्या देख रहे हो देवर जी, यहाँ बैठ जाओ!

भाभी ने एक पीढ़े की ओर इशारा करते हुए कहा| मैं अपनी व्यग्रता छुपाने के लिए मुस्कुराया और पीढ़े पर बैठ गया| सबसे पहले माँ ने मेरे माथे पर हल्दी लगाई और मेरे सर को चूमते हुए आशीर्वाद दिया| मैंने भी माँ के पैर छुए और उनका आशीर्वाद लिया| माँ के हटते ही वहाँ मौजूद सभी औरतों ने मुझे हल्दी लगाई, कई औरतों को तो मैं जानता भी नहीं था फिर भी उनसे हल्दी लगवाई| मुझे हल्दी लगते हुए देख आयुष घबरा कर छुप गया, क्योंकि उसे लगा था की उसे भी हल्दी लगेगी! पीली-पीली टट्टी जैसी चीज देख कर आयुष का मुँह बना हुआ था!

जब मुझे हल्दी लग गई तब मुझे नहाने जाने को कहा गया, मैं कमरे में लौटा तो आयुष जो मुझे हल्दी लगते समय डर के मारे छुप गया था वो हल्दी वाली कटोरी ले कर मेरे पास आया;

आयुष: पापा जी....मैं भी...आपको ये (हल्दी) लगाऊँ?

आयुष बड़े प्यार से बोला| आयुष को अभी तक नहीं पता था की ये पीली-पीली चीज क्या है? मैं उसके सामने उकडून हो कर बैठ गया और मुस्कुरा कर उस्सने पूछने लगा;

मैं: बेटा आप कहाँ थे?

आयुष: वो...मैं....डर...गया था....इतनी सारी आंटी को देख कर...मैं....

आयुष धीरे से बुदबुदाया|

मैं: चलो कोई बात नहीं, अब है न आप ये सब 'हल्दी' मुझे पोत दो!

मैंने मुस्कुरा कर इस पीली-पीली चीज एक नाम बताया| आयुष धीरे-धीरे अपने छोटे-छोटे हाथों से मेरे हाथों और चेहरे पर हल्दी लगाने लगा| हल्दी की महक आयुष को पसंद थी मगर हल्दी छूने के समय वो अपना मुँह बिदका लेता था! इतने में माँ आ गई और आयुष को मुझे हल्दी लगाते देख उसके सर पर हाथ फेरते हुए बोलीं;

माँ: आयुष, बेटा आप कहाँ थे?

मैं: माँ वो इतने सारे लोगों को मुझे घेरे हुए देख आयुष डर गया था|

मैंने आयुष की कटोरी में से थोड़ी सी हल्दी ली और आयुष की नाक पर लगा दी| आयुष की नाक पर हल्दी लगी तो वो अजीब सा मुँह बनाने लगा और अपनी नाक पर लगी हल्दी पोंछ दी, मैंने आयुष के हाथ से पोंछी हुई हल्दी अपने गाल पर लगा ली! हम बाप-बेटे की ये मस्ती देख माँ बोलीं;

माँ: अच्छा अब बस! कोई मस्ती नहीं, जा कर दोनों नहाओ और तैयार हो जाओ|

माँ बाहर गईं तो आयुष ने जिज्ञासु बनते हुए अपना सवाल पुछा;

आयुष: पापा जी, ये हल्दी क्यों लगाई जाती है?

मैंने आयुष को अपनी ऊँगली पकड़ाई और उसे बाथरूम की ओर ले जाते हुए बोला;

मैं: बेटा एक तो हल्दी लगाना शगुन होता है और दूसरा हल्दी लगाने से हमारी त्वचा निखर जाती है!

मैं चाहता तो आयुष को वैज्ञानिक कारण समझा सकता था मगर छोटे बच्चों को अगर पूजा-पाठ की बातें वैज्ञानिक तर्क से समझाई जाएँ तो वो आगे चल कर हर चीज में तर्क करने लगते हैं| यही कारण था की मैंने आयुष को हल्दी लगाने की बात कुछ गोल-मोल ढँग से समझाई| अब आयुष क्या जाने की निखार क्या होता है, इसलिए इससे पहले वो अपना सवाल पूछे मैंने ही उसके मन में उठे सवाल का जवाब देते हुए कहा;

मैं: बेटा हल्दी लगाने से हम गोरे हो जाते हैं! आज आप देखना की आपकी मम्मी कितनी गोरी दिखेंगी, मैं भी गोरा दिखूँ इसलिए मुझे हल्दी लगाई गई है|

अब जा कर आयुष को सब समझ आया ओर वो मेरे गोर होने की बात से खुश हो गया| फिर अपनी नाक को देखते हुए उसकी ओर अपनी ऊँगली से इशारा करते हुए आयुष बोला;

आयुष: पापा जी, मेरी नाक गोरी हो जाएगी न?

आयुष की बचकानी बात सुन मैं पेट पकड़ कर हँसने लगा और आयुष आँखें बड़ी कर के अपने सवाल के जवाब का इंतजार करने लगा|

मैं: हाँ जी बेटा, आपकी नाक गोरी हो जाएगी!

मैंने हँसते हुए कहा|

हम दोनों बाप-बेटे नहाये ओर कपडे पहन कर तैयार हो गए| आयुष को उसका two-piece suit मैंने खुद पहनाया और उसमें वो बहुत cute लग रहा था! मैंने आयुष के दोनों गालों की ढेर सारी पप्पी ली और बोला;

मैं: मेरा बेटा आज बहुत cute लग रहा है!

अपनी तारीफ सुन आयुष बहुत खुश हुआ और मेरे गले लग गया| तभी पिताजी भी तैयार हो कर आ गए, two-piece suit में दोनों दादा-पोते एक जैसे दिख रहे थे क्योंकि दोनों के suit हूबहू एक जैसे थे!

माँ: अरे वाह! आज तो पोते में उसके दादा का बचपन दिख रहा है!

माँ पीछे से खिखिला कर हँसते हुए बोलीं| मैंने माँ को देखा तो वो बनारसी साडी में और भी सुन्दर लग रहीं थीं! मैं: माँ, दादा-पोते से ज्यादा तो आप सुन्दर लग रहे हो!

मैं माँ को देखते हुए सीटी बजाते हुए बोला|

मैं: पिताजी, मुझे लगता है आज आपका पत्ता कट जायेगा!

मैंने माँ-पिताजी को छेड़ते हुए कहा| मेरी बात सुन हम चारों ठहाका लगा कर हँसने लगे, आयुष के समझ में कुछ नहीं आया पर सबको हँसता हुआ देख वो भी हँसने लगा|

माँ: आज सबसे ज्यादा सुन्दर तो मेरा लाल (मैं) लग रहा है, किसी रियासत का राजकुमार लग रहा है!

माँ मेरी शेरवानी की तारीफ करते हुए बोलीं| अपनी तारीफ सुन मैं थोड़ा शर्माने लगा, तभी आयुष अपनी दादी जी से बोला;

आयुष: दादी जी मैं कैसा लग रहा हूँ?

आयुष ने अपने दोनों हाथ फैलाते हुए पुछा|

माँ: मेरा 'लल्ला' तो आज प्यारा सा गुड्डा लग रहा है!

माँ ने आयुष को गोदी में उठाया और उसके गाल चूमते हुए बोलीं| वहीं पिताजी अपनी बारी का इंतजार कर रहे थे की कब माँ उनकी भी थोड़ी तारीफ कर दें! अब मुझे फिर मस्ती सूझी और मैंने पिताजी की टाँग खींचते हुए कहा;

मैं: पिताजी, तारीफ सुनने के लिए पहले तारीफ भी करनी पड़ती है!

पिताजी मेरी बात समझ गए और उन्होंने पलट कर बड़ा मज़ेदार जवाब दिया;

पिताजी: बेटा जी, अभी तेरी शादी हुई नहीं और तू पहले ही समझदार हो गया? अब तू मुझे सिखाएगा की पत्नी की तारीफ कैसे करते हैं?

पिताजी कुटिल मुस्कान लिए हुए बोले और अपना दाहिना हाथ माँ की ओर बढ़ा दिया| माँ इस वक़्त शर्म से लालम लाल हो चुकीं थीं, फिर भी हिम्मत कर के उन्होंने पिताजी का हाथ थामा| पिताजी ने माँ को धीरे से अपने सीने से लगा लिया और उनके सर को चूमते हुए दोनों मियाँ-बीवी खुसफुसाने लगे! अपने माँ-पिताजी को इस तरह romantic होते देख मुझे बहुत मजा आ रहा था|

फिर माँ ने मुझे और आयुष को नजर से बचने का काला टीका लगाया| अब बारी आई पिताजी की तो जैसे ही माँ उन्हें काला टीका लगाने लगीं, पिताजी बोले;

पिताजी: अरे मुझे काहे टीका लगा रही हो, हमें कौन सा नजर लगेगी!

माँ मुस्कुराईं और फिर भी जबरदस्ती पिताजी के कान के पीछे काला टीका लगा दिया| वहीं camera man अपने camera से मेरे परिवार की ये प्यारी-प्यारी खुशियाँ record करने में लगा था| हाथ पोंछ कर माँ ने हम सभी को बाहर आने को कहा| पिताजी ने आयुष को अपनी ऊँगली पकड़ाई और सबसे पहले वो बाहर निकले, उनके बाहर आते ही सब ने दादा-पोते की खूब तारीफें की! अपनी तारीफ सुन आयुष शर्म से लाल हो गया और अपने हाथ उठा कर अपने दादाजी को देखने लगा| पिताजी ने फ़ौरन उसे गोद में उठा लिया और आयुष की पप्पी लेते हुए एक शानदार फोटो खिंचवाई!

अब मेरी बारी थी बाहर आने की, मेरे बाहर आते ही सब ने मेरा स्वागत ऐसे किया जैसे की मैं कोई मशहूर हस्ती हूँ! इतने सारे लोगों को अपनी ओर देखते हुए मुझे थोड़ा अजीब लग रहा था! उधर दिषु ने इशारा कर के ढोल बजवाने शुरू कर दिए तो जितने भी आदमी खड़े थे उन सब ने घर के भीतर ही नाचना शुरू कर दिया| पिताजी और आयुष, दिषु के साथ मिल कर घर के चौतरे पर नाचने लगे| इधर माँ पूजा की थाली ले कर मेरे पास आईं और मुझे तिलक कर पूजा करने लगीं| माँ के साथ जितनी भी औरतें थीं सब ने मिलकर गाँव का गीत गाना शुरू कर दिया, ये गीत दरअसल दूल्हे को नई दुलन लाने के लिए बधाई स्वरुप गाया जाता है|

माँ का आशीर्वाद ले कर मैं बाहर आया तो मुझे पिताजी के surprise का दूसरा हिस्सा पता चला, घर के बाहर एक घोड़ी खड़ी थी! तो ये था पिताजी के surprise का दूसरा हिस्सा, वो अपने बेटे को घोड़े पर बिठा कर शादी के लिए ले जाना चाहते थे! मैं मुस्कुराया और पिताजी की तरफ देखने लगा, पिताजी भी मुस्कुराये और मेरी पीठ पर थपथपाते हुए मुझे घोड़ी पर बैठने का इशारा किया| मैं घोड़ी पर बैठता उससे पहले ही माँ 500/- के नोटों की माला ले कर आ गईं और मुझे पहनाते हुए मेरा माथा चूम लिया| बारी आई घोड़ी चढ़ने की, अब मुझे ये डर लगे की अगर घोड़ी बिदक गई या मैं नीचे गिर पड़ा या फिर शेरवानी के नीचे पहना पजामा फ़ट गया तो अच्छी-खासी किरकिरी हो जाएगी! ऊपर से अगर किसी ने इसकी वीडियो बना कर internet पर डाल दी तो 'गजब बेइज्जती' होगी, इसलिए मैं घोड़ी वाले से बोला;

मैं: भैया, जरा ध्यान रखना!

मेरी घबराहट देख दिषु मेरे पास आया और मुझे होंसला देते हुए बोला;

दिषु: भाई तू चिंता न कर, घोड़ी ने कुछ भी किया तो घोड़ी वाले भैया के पैसे गए!

दिषु की बात सुन सभी हँस पड़े और घोड़ी वाला दिषु को ऐसे देखने लगा जैसे दिषु सच में उसके पैसे नहीं देगा!

खैर दिषु ने मुझे सहारा दिया और घोड़ी पर बिठाया, अपने दोस्त का सहारा ले कर घोड़ी चढ़ने का सुख आज मुझे मिल रहा था! उधर आयुष मुझे घोड़ी चढ़ते देख अपनी बाहें खोल कर मेरी गोदी में आने के लिए मचलने लगा! मैंने आयुष को अपनी गोदी में लिया और ठीक से घोड़ी पर बिठा दिया, अब ये दृश्य जिसने भी देखा वो बस यही बोलने लगा की; "ये देखो, बेटा अपने पापा की शादी में सहबाला' बना है|" हमने किसी का बात का बुरा नहीं लगाया और नाचते हुए बरात घर से निकली| पिताजी, माँ और दिषु घोड़ी के आगे-आगे थे, बाकी सारी औरतें पीछे-पीछे आ रहीं थीं| जितने भी आदमी थे उन सब ने band और ढोल के शोर में नाचना शुरु कर दिया था| दिषु ने जोश में नाचना शुरु किया और पिताजी का हाथ पकड़ उन्हें भी नचाने लगा! पिताजी ने भी जोश में आ कर नाचना शुरू कर दिया, फिर उन्होंने माँ का हाथ पकड़ा और उन्हें भी अपने साथ जबरदस्ती नचवाया| माँ और पिताजी को एक साथ नाचता देख मेरा दिल बहुत खुश हुआ! आज जिंदगी में पहलीबार मैं अपनी माँ और पिताजी को यूँ ख़ुशी से झूमते-नाचते देख रहा था! वहीं माँ ने अपनी शर्म के मारे बस एक-आध ठुमका मारा और फिर शर्मा कर मेरे पास आ गईं! मेरे सर से पैसे वार कर उन्होंने ढोल वालों को दे दिए|

जिनके साथ भी हम काम करते थे वे सभी पिताजी को घेर कर नाचने लगे, सभी को नाचते देख आयुष का मन हुआ की वो भी नाचे इसलिए वो मेरे कान में खुसफुसाते हुए बोला;

आयुष: पापा जी, मैं भी नाचूँ?

मैंने सर हाँ में हिलाया और इशारे से दिषु को अपने पास बुलाया|

मैं: भाई, आयुष को भी नाचना है!

इतना सुन दिषु ने आयुष को गोदी में ले कर नीचे उतारा और अपने साथ नचाने लगा| जब आयुष ने नाचना शुरुर किया तो सब उसे नाचता हुआ देखने लगे, छोटे से बच्चे का इतना उत्साह देख सब ने खूब तालियाँ बजाई| तालियों की गड़गड़ाहट सुन आयुष शर्मा कर लाल हो गया और अपने दिषु चाचू से कहने लगा की वो उसे मेरे पास घोड़ी पर दुबारा पहुँचा दे| एक बच्चे के बालपन ने सबके चेहरे पर खुशीयों की लहर ला दी थी!

मेरे घर से गली के बाहर का रास्त मुश्किल से मिनट भर का था जिसे सब ने नाच-नाच कर 20 मिनट का बना दिया था! गली से बाहर आ कर सभी बराती तित्तर-बित्तर हो गए, जो गाडी वाले थे वो अपनी गाड़ियों में बैठ कर farmhouse की तरफ निकल गए और जो बगैर गाडी वाले थे उन सबके लिए पिताजी ने tempo traveler बस बुलवाई थी| दिषु का सहारा ले कर मैं घोड़ी से उतरा और बस में बैठ गया, दिषु भी आ कर मेरी बगल में बैठ गया| उसने सबसे नजर बचा कर 100 pipers का एक miniature निकाला और मुझे देते हुए बोला;

दिषु: ले खेंच ले!

दिषु मुझे आँख मारते हुए खुसफुसाया|

मुझे दिषु के हाथ में शराब देख कर कोई हैरानी नहीं हुई थी, दोस्त की शादी में पीना तो दस्तूर होता है! मुझे बस डर था तो ये की कहीं वो पी कर कोई बवाल न खड़ा कर दे!

मैं: भोसड़ी के तू ही पी, लेकिन कोई बवाल मत खड़ा करिओ!

मैं बुदबुदाते हुए बोला| जिस तरह मैंने बेपरवाह होते हुए उसे दारु पीने की इजाजत दी थी उससे दिषु दंग था!

दिषु: अबे कोई बवाल नहीं करूँगा, मगर एक बात बता बहनचोद मुझे लगा था की तू बोलेगा; 'चूतिया हो गया है जो दारु ले कर आया है!' लेकिन तुझे तो जैसे कोई फर्क ही नहीं पड़ा!

दिषु खुसफुसाया| दिषु की बात सुन मैं मुस्कुराया और खुसफुसाते हुए बोला;

मैं: भाई मेरी शादी में तेरा पीना हक़ है, लेकिन किसी को पता नहीं चलना चाहिए वरना तू मार खायेगा!

मेरी बात सुन दिषु मेरी पीठ थपथपाने लगा और बोला;

दिषु: जीयो बहनचोद!

दिषु थोड़ी आवाज तेज करते हुए जोश में बोला| मैंने दिषु के कँधे पर घूसा मारा और बुदबुदाते हुए बोला;

मैं: ओ भोसड़ी के, गाली मत दे, बहनचोद घर वाले सब हैं यहाँ!

दिषु हँसने लगा और पूरी miniature की बोतल एक झटके में खींच गया!

इधर हम सभी बरात ले कर छतरपुर के farmhouse की तरफ बढ़ रहे थे और उधर farmhouse पर चहलकदमी जारी थी! संगीता और बाकी सभी स्त्रियाँ अपना makeup करवाने और सजने-सँवरने में व्यस्त थीं तो अनिल पूरे farmhouse में घुमते हुए सजावट तथा खाने-पीने की व्यव्य्स्था सँभाल रहा था| मिश्रा अंकल जी और दिषु के पिताजी विवाह मंडप के लिए सभी सामान एकत्र करने में व्यस्त थे| ऐसा नहीं था की farmhouse पर कोई तैयारी नहीं हुई थी, परन्तु आखरी मौके पर कोई कसर न रह जाए इसलिए सभी कामों को फिर से check किया जा रहा था|

आखिर कर हम सभी बरात ले कर छतरपुर के farmhouse पर पहुँच गए| बस से उतर कर मुझे फिर से घोड़ी चढ़ना पड़ा और घोड़ी टप-टप करते हुए आगे बढ़ने लगी तथा सभी बाराती नाचते हुए आगे-आगे चलने लगे| Miniature गटकने से दिषु पर थोड़ा-थोड़ा सुरूर चढ़ चूका था इसलिए वो ज्यादा जोश से नाच रहा था|

Farmhouse के main gate पर मिश्रा अंकल जी और दिषु का पूरा परिवार आरती की थाली ले कर संगीता की तरफ से खड़ा हुआ था| मैं घोड़ी से उतरा और विधिवत मेरा तिलक और स्वागत हुआ| अब बारी आई सालियों की, मिश्रा अंकल जी की बेटी और सुमन ने द्वार छकाई के लिए मुझे रोक लिया और बिना नेग लिए अंदर नहीं जाने दिया;

मिश्रा अंकल जी की बेटी: मानु भैया, ऐसे अंदर जाने नहीं देंगे!

सुमन: हाँ जी जीजू! अपनी दुल्हन को लेने के लिए अंदर जाने से पहले अपनी सालियों से निपट लो!

मेरा मन संगीता को देखने के लिए उतावला हो रहा था इसलिए मैंने उत्सुकता दिखाते हुए कहा;

मैं: दो प्यार करने वालों को तड़पाना अच्छी बात नहीं!

तभी दिषु मेरी बगल में खड़ा हो गया और प्यारभरी जबरदस्ती करते हुए बोला;

दिषु: अरे ऐसे-कैसे अंदर नहीं जाने दोगे! हम दिवार पर सीढ़ी लगा कर अंदर कूद जायेंगे!

दिषु की बात पर सब ने ठहाका लगाया|

सुमन: अरे ऐसे-कैसे कूद जाओगे! आपको सारी सालियाँ घेर लेंगी, फिर क्या करोगे?

सुमन थोड़ा अकड़ते हुए बोली|

मिश्रा अंकल जी की बेटी: मानु भैया, सीधे से 11,000/- नेग दो तो अंदर जाने देंगे नहीं तो खड़े रहो यहाँ ठंड में!

नेग की बात सुन मैंने पिताजी की तरफ देखा तो वो अपने हाथ खड़े करते हुए बोले;

पिताजी: बेटा तेरी सालियाँ हैं, तू ही निपट!

अब मैं भाव-ताव करूँ उससे पहले ही दिषु बोल पड़ा;

दिषु: अरे ठंड में क्यों खड़े रहेंगे, आप हो न company देने के लिए!

दिषु, सुमन को छेड़ते हुए बोला|

मैं: अबे तू कहाँ line लगा रहा है, वो पहले से मेरे साले साहब की girlfriend है!

मैंने, दिषु को कोहनी मारते हुए कहा|

दिषु: अरे हाँ, अनिल कहाँ है?

अनिल का नाम आते ही सब लोग फिर से ठहाका मार कर हँसने लगे|

अनिल: क्या दिषु भैया, आप अपनी भाभी लेने आये हो, मेरी वाली काहे लिए जा रहे हो?!

अनिल की बात सुन कर सब के सब जोर-जोर से हँसने लगे|

मैं: बता भाई कितने से भाव-ताव शुरु किया जाया?

मैंने दिषु से पुछा तो वो सीधा 1,100/- रुपये से शुरु हुआ| जैसे ही दिषु ने ग्यारह सौ बोला संगीता की तरफ की सभी औरतें दिषु पर चढ़ गईं, ये कहते हुए की वो कितना कंजूस है!

मैं: अबे, तू मदद करवाने आया है बेइज्जती?!

मैंने दिषु को कोहनी मारते हुए कहा| मैंने बात संभाली और 5,000/- रुपये से बात शुरू की| मैं हमेशा से ही दूसरों की शादी-ब्याह में पीछे रहा था, कारण ये की मुझे भीड़-भड़ाका पसंद नहीं था| मैंने कभी नहीं सोचा था की मेरी भी शादी होगी और मुझे भी ये सभी रस्में निभानी होंगी! फिर जिन हालातों में मेरी शादी हो रही थी उसमें मैंने कभी कामना नहीं की थी द्वार छकाई जैसी कोई रस्म भी आएगी?!

मैं: ग्यारह हजार तो थोड़े ज्यादा हैं, पहली बार शादी कर रहा हूँ थोड़ी तो रियायत करो!

मैंने मजाक करते हुए कहा तो सभी हँसने लगे|

सुमन: दूसरीबार शादी करते तो ज्यादा देते?

सुमन मेरी टाँग खींचते हुए बोली|

मैं: अरे दादा! आपकी जैसी साली होगी तो एक ही बार शादी करना काफी है!

मैंने सुमन की बात का जवाब इस कदर दिया की बेचारी शर्मा कर चुप हो गई!

मिश्रा अंकल जी की बेटी: चलो मानु भैया आपको discount दे देते हैं! 10,000/- रुपये! इससे कम नहीं होगा!

दिषु: दीदी हजार रुपये तो अपनी भाभी के लिए मैं ही दे देता! कम ही करना है तो कम से कम 3-4 हजार कम करो!

दिषु के भाव ताव करने से फिर से हो-हल्ला मचने लगा था, अब मुझसे मेरी परिणीता को देखे बिना नहीं रहा जा रहा था इसलिए मैंने हार मानते हुए कहा;

मैं: अच्छा बस!

इतना कह मैंने जेब में हाथ डाला और पैसे निकाल कर गिनने लगा| मुझे पैसे गिनते देख सभी की नजरें मुझ पर टिक गईं| उधर दिषु को मस्ती सूझ रही थी इसलिए वो मेरे हर नॉट को गिनने के बाद "बस" कह कर रोकने की कोशिश करता| जैसे ही दिषु "बस" बोलता वैसे ही सभी सालियाँ शोर मचाने लगतीं| आखिर कर मैंने पूरे नोट गिने और पूरे 11,001/- रुपये गिन कर मिश्रा अंकल जी की बेटी के हाथ में रखे! पैसे मिले तो सारी सालियाँ खुश हो गईं और बड़े प्रेम से हम सभी को अंदर आने दिया गया| अब जैसा की होता है, दूल्हे की entry होने पर एक ही प्रसिद्द गाना बजाया जाता है; "अज़ीम-ओ-शान शहंशाह"! ये गाना मुझे भी पसंद है परन्तु जब ये मेरी entry पर बजा तो मेरी और दिषु की एक साथ हँसी निकल गई!

खैर सभी बाराती अंदर आये और farmhouse की सजावट देख कर सभी तारीफें करने लगे| सबसे पहले एक बड़ा सा गार्डन था जहाँ पर ढेर सारी कुर्सी-टेबल सजा कर रखी गईं थीं, उन्हीं कुर्सियों के नजदीक खाने-पीने का buffet लगा था| गार्डन के बाद एक बड़ा सा hall था जिसके बीचों-बीच मंडप बाँधा गया था और हॉल के अंत में एक बड़ा सा stage सजाया गया था तथा stage के अगल-बगल दूल्हे और दुल्हन के घर वालों के बैठने के लिए ख़ास कर सोफे रखे गए थे| पीछे की तरफ makeup room था जहाँ इस वक़्त संगीता मेरा इंतजार कर रही थी| पूरा farmhouse बहुत ही अच्छे से सजाया गया था, लोगों के भर जाने से अब पूरे farmhouse में जान आ गई थी| Dj वाला गाने बजाए जा रहा था और सभी लोगों ने चाट वगेराह खानी शुरू कर दी थी|

वहीं मैं अपनी दुल्हन, अपनी परिणीता को देखने के लिए मरा जा रहा था! माँ-पिताजी मेरे सामने बैठे थे और मुझे यूँ परेशान देख पूछने लगे की सब कुछ ठीक तो है, अब उन्हें कैसे कहूँ की मैं 'किस के' लिए परेषान हो रहा हूँ?! पिताजी को लगा की मुझे भूख लगी होगी इसलिए उन्होंने मेरे लिए पनीर टिक्का मँगवा दिया| Waiter लोगों को पता चला की मैं दूल्हा हूँ तो सब के सब मेरे आस-पास मंडराने लगे| बाकी सभी को खाने-पीने के लिए buffet तक जाना पड़ रहा था और यहाँ मेरे आस-पास कोई वेटर पानी ले कर घूम रहा था, कोई ठंडा, कोई चाट, तो कोई टिक्का वाला platter ले कर! मैंने बमुश्किल एक सोया मलाई चाप का पीस खाया और बाकी सब आयुष को खिलाने लगा| उधर दिषु एक प्लेट में कुछ nonveg टिक्के ले कर मेरे पास आया और पिताजी के सामने बोला;

दिषु; अंकल जी आपने nonveg भी रखवाया है?!

दिषु ने अचरज भरी आँखों से पुछा तो पिताजी मुस्कुराते हुए बोले;

पिताजी: बेटा तुम सब के लिए रखवाया है!

मेरे पिताजी शुद्ध शाकाहारी हैं और उनका यूँ मेरी शादी में nonveg रखवाना बहुत बड़ी बात थी! दिषु ने मुझे प्लेट देते हुए कुछ खाने को कहा तो मैंने मना कर दिया क्योंकि मैं चाहता था की पूजा हो जाए फिर nonveg खाऊँ| लेकिन दिषु ने मेरी बात का कुछ और ही मतलब निकालते हुए कहा;

दिषु: हाँ भाई, तू क्यों खायेगा?! तेरी जान तो भाभी जी में अटकी है!

दिषु की बात सुन माँ-पिताजी तो हँसने लगे पर मैं हँस भी नहीं पाया! तभी Dj वाले ने romantic गाने चला दिए, अब दिषु को मेरी टाँग खींचने का एक और मौका मिल गया;

दिषु: ओये -होये-होये! Dj वाला भी तुझे तड़पाने के लिए romantic गाने बजा रहा है!

दिषु की मेरी टाँग खींचने पर माँ-पिताजी फिर हँस पड़े|

पिताजी ने दिषु को मेरे पास बैठने को कहा और वो माँ को ले कर आगे होने वाले कार्यक्रम की तैयारी में लग गए| 5 मिनट बाद माँ मुझे बुलाने आईं और मुझे stage पर ला कर बिठा दिया गया| मैं अकेला stage पर बैठा था, दिषु और आयुष खाने-पीने में लगे थे| मेरी नजरें बस संगीता को ढूँढ रहीं थीं; "अब आ भी जाओ जान! कितना तडपाओगी!" मैं बुदबुदाया| इतने में बन-सँवर कर तैयार हुई नेहा दौड़ती हुई मेरे पास आई, मेरी गुड़िया रानी आज इतनी सुन्दर लग रही थी की क्या कहूँ?!

मैं: मेरा बच्चा तो बहुत सुन्दर लग रहा है, बिलकुल princess जैसी! ये कपडे दादी जी ने पसंद किये न?

मैंने नेहा का सर चूमते हुए कहा| नेहा ने मेरे गाल पर पप्पी की और बड़े प्यार से बोली;

नेहा: पापा जी, मेरी ड्रेस है न बिलकुल दादी जी की साडी से match करती है!

नेहा अपनी दादी जी की तरफ ऊँगली से इशारा करते हुए बोली|

नेहा की बात सुन मैंने गौर किया तो पाया की माँ की साडी का design और नेहा के लहंगे-चोली का design लगभग एक था! इसका मतलब की माँ-पिताजी ने अपने पोता-पोती के कपडे अपने कपड़ों से matching कर के बनवाये थे! मैंने नेहा को अपने पास रोक लिया और उससे पूछने लगा की उसकी मम्मी क्या कर रहीं हैं?

नेहा: पापा जी, मम्मी ने भी आपके पास यही जानने के लिए भेजा है!

नेहा की बात सुन मैं हँस पड़ा| चलो एक अकेला मैं ही नहीं तड़प रहा, मेरे साथ संगीता भी तड़प रही है! माँ-पिताजी ने जब नेहा को देखा तो वो मेरे पास स्टेज पर आये, नेहा जा कर अपने दादा जी से लिपट गई| पिताजी ने नेहा को गोदी में उठाया और माँ से बोले;

पिताजी: अरे वाह जी वाह! मुझे बड़ा कह रही थी की मेरे पोते में मेरा बचपना दिखता है? ये जो तुम्हारी पोती में तुम्हारा बचपन दिखता है वो कुछ नहीं?!

पिताजी दादी-पोती के एक जैसे दिखने वाले कपड़ों की तारीफ करते हुए बोले|

माँ: मेरी इतनी समझदार पोती जो है!

माँ ने नेहा को अपने पास बुलाया तो नेहा पिताजी की गोदी से उतर कर माँ की कमर से लिपट गई|

पिताजी: वैसे मानु की माँ, नेहा की तरह तुम भी लेहंगा-चोली पहनती तो और अच्छी लगती!

पिताजी शरारत भरे अंदाज से बोले| माँ शर्म और प्यार भरे गुस्से लाल हो गईं और बोलीं;

माँ: हटो जी, बस भी करो! जवान लड़का और पोती के सामने आप फिर शुरू हो रहे हो!

माँ प्यार से पिताजी को डाँटते हुए अपनी महिलाओं वाले झुण्ड में चली गईं| इधर मैं, नेहा और पिताजी, माँ के शर्माने पर हँसने लगे|

[color=rgb(184,]जारी रहेगा भाग - 4(2) में...[/color]
 

[color=rgb(251,]पच्चीसवाँ अध्याय: खुशियों का आगमन[/color]
[color=rgb(97,]भाग - 5[/color]


[color=rgb(71,]अब तक आपने पढ़ा:[/color]

अनिल: जीजू, आपका कमरा तैयार है, चलिए!

अनिल मुस्कुराते हुए बोला| मैं और संगीता 'हमारे' कमरे में पहुँचे तो कमरा सजा हुआ था| जो कमरा आजतक मेरा था, जिसमें मेरा बचपन और बचपना बसा था आज उस कमरे को एक नई मालकिन (संगीता) मिलने जा रही थी, इसी ख़ुशी से पूरा कमरा आज कुछ ज्यादा ही जगमगा रहा था! सुहाग की सेज सुमन ने बहुत अच्छे से सजाई थी, बिस्तर के बीचों बीच गुलाब की पंखुड़ियों से दिल बनाया हुआ था, छत पर लगे पँखे से पलंग के चारों कोनो तक फूलों की मालायें लटक रहीं थी!

कमरे की सजावट देख कर मैं और संगीता बहुत खुश थे और एक दूसरे को देख रहे थे, वहीं अनिल और सुमन हमारे पीछे खड़े हुए हमसे 'thank you' की उम्मीद लगाए बैठे थे| जब मिनट भर तक मैं और संगीता कुछ नहीं बोले तो सुमन नकली खाँसी खाने लगी, हम दोनों ने पलट कर देखा तो अनिल-सुमन के चेहरे देख मैंने फ़ौरन उन्हें "thank you" कहा|

आगे कुछ बात होती उससे पहले ही दोनों बच्चे दौड़ कर कमरे में आये और मेरी टाँगों से लिपट गए!

[color=rgb(51,]अब आगे:[/color]

कमरे को सजा देख दोनों बच्चे बहुत खुश थे और मेरे साथ सोना चाहते थे;

आयुष: मैं तो यहीं सोऊँगा|

पलंग सजा हुआ देख आयुष खुश होते हुए बोला|

नेहा: मैं भी पापा के पास सोऊँगी|

नेहा को रोज मेरे साथ सोने की आदत थी, इसलिए वो भी आयुष के साथ हो गई|

अनिल: ओ हेल्लो?! हम (अनिल और सुमन) ने ये मेहनत आप दोनों के लिए नहीं की है, ये सब आपके मम्मी-पापा के लिए है| आज रात आप सुमन जी के साथ सोओगे|

अनिल ने दोनों बच्चों को रोकते हुए कहा| लेकिन दोनों बच्चों ने जिद्द पकड़ ली और एक साथ रोनी सूरत बना कर बोलने लगे; "पापा के पास सोना है!" आज मैंने, मेरे बच्चों को सबके सामने पापा कहने का हक़ दिया था इसलिए मैं उनका दिल नहीं दुखाना चाहता था;

मैं: कोई बात नहीं यार, सोने दे|

अपने बच्चों के प्रेम के आगे पिघलते हुए मैंने अनिल से कहा| इधर मैं बच्चों के प्यार में पिघला और उधर संगीता का मुँह बन गया! शादी हुए कुछ घंटे हुए थे और मैं अपनी पत्नी और अपने बच्चों के बीच चयन करने में फँस चूका था! तभी माँ-पिताजी ने पीछे से आ कर मेरी जान बचाई;

पिताजी: बच्चों, आप में से किस को कल चाऊमीन खानी है?

पिताजी के सवाल पर दोनों बच्चे एक साथ हाथ उठा कर बोले; "मुझे"! बाप की (मेरी) तरह बच्चों को भी चाऊमीन पसंद थी!

पिताजी: तो फिर आज आप दोनों अपनी दादी जी और सुमन "मामी" के साथ सोओगे|

पिताजी ने मामी शब्द पर काफी जोर दे कर कहा, जिसे सुन सुमन और अनिल झेंप गए तथा हम दोनों (मैं और संगीता) आँखें फाड़े पिताजी को देख रहे थे| ऐसा नहीं था की हम दोनों नहीं चाहते थे की अनिल और सुमन की शादी हो, परन्तु बिना अपने ससुर जी से बात किये हम दोनों अनिल की शादी के बारे में अपना फैसला सुरक्षित रखना चाहते थे|

मैं: मामी?

मैंने हैरान होते हुए पुछा|

पिताजी: हाँ भई, अब सिर्फ शादी में सम्मिलित होने के लिए कोई इतनी दूर से आता है क्या?

पिताजी अनिल के कंधे पर हाथ रखते हुए बोले| जानते तो हम सभी थे की अनिल, सुमन से ही शादी करेगा, इसलिए पिताजी की बात पर सभी ठहाका लगा कर हँसने लगे|

पिताजी ने बच्चों को अपने साथ ले जाना चाहा तो दोनों बच्चे फिर से मेरी टाँगो से लिपट गए, अब माँ आगे आईं और बच्चों को बहलाने-फुसलाने लगीं;

माँ: रहने दो जी, हम बूढा-बूढी के साथ कौन सोयेगा?!

माँ ने मायूस होने का नाटक करते हुए पिताजी से कहा, पिताजी माँ की बात समझ गए और वो भी निराश होने का नाटक करने लगे| बच्चों से अपने दादा-दादी जी की उदासी नहीं देख गई और सबसे पहले आयुष जा कर अपने दादा जी की टाँग से लिपटते हुए बोला;

आयुष: दादा जी, मैं आपके साथ सोऊँगा!

अब माँ ने एक ठंडी आह भरी और मायूसी का नाटक करते हुए पिताजी से बोलीं;

माँ: लो जी, आपको तो आयुष का साथ मिल गया, मैं किसके साथ सोऊँ?

माँ की बात सुन नेहा दौड़ कर गई और माँ से लिपटते हुए बोली;

नेहा: दादी जी, मैं आपके साथ सोऊँगी और आपके पैर भी दबाऊँगी!

माँ की चाल एकदम सटीक थी, दोनों बच्चे हँसी-ख़ुशी अपने दादा-दादी जी के पास सोने के लिए मान गए थे|

खेर दोनों बच्चे और माँ-पिताजी बाहर बैठक की ओर चले गए| सुमन ने table पर रखे गिलास की तरफ इशारा किया और संगीता को छेड़ते हुए बोली;

सुमन: दीदी, याद से जीजू को दूध पिला देना!

इतना कह सुमन "खी...खी..खी" हँसने लगी, संगीता ने सुमन को प्यार से अपना हाथ दिखा कर मारने का नाटक किया! अनिल ने सुमन का हाथ पकड़ा और झेंपते हुए उसे जबरदस्ती खींचते हुए बाहर ले गया| मैंने कमरे का दरवाजा बंद किया और उधर संगीता अपनी सुहाग सेज पर घूंघट कर के बैठ गई| दरवाजा अंदर से बंद कर मैं संगीता की तरफ मुड़ा और बोला;

मैं: FINALLY, WE'RE TOGETHER!!!

मुझे इस वक़्त विश्वास नहीं हो रहा था की सच में हम दोनों की शादी हो चुकी है! उधर संगीता को मुझसे दिल्लगी सूझ रही थी इसलिए उसने मेरी बात को पूरा करते हुए कहा;

संगीता: अभी कहाँ जी? अब भी पाँच फुट का फ़ासला है! ही...ही...ही...ही!!!

संगीता मेरे और पलंग के बीच के फ़ासले की तरफ इशारा करते हुए बोली और खीसे निपोरने लगी|

मैं पलंग के नजदीक बढ़ने लगा तो संगीता ने टेबल पर रखे गिलास की तरफ इशारा किया और लजाने लगी| मैंने गिलास में से आधा दूध पिया और बाकी आधा गिलास संगीता की तरफ बढ़ा दिया| संगीता को दूध पीना अच्छा नहीं लगता था मगर आज वो मुझे मना नहीं कर सकती थी! संगीता ने दूध खत्म कर गिलास मुझे दिया, मैंने गिलास टेबल पर रख पलंग पर संगीता की तरफ मुँह कर के बैठ गया|

मैं: जान, आज की रात एक और रस्म अदा करने की रीत है!

मेरी बात सुन संगीता उत्सुक हो कर मुझे देखने लगी|

मैं: दूल्हा, दुल्हन को मुँह दिखाई में कुछ देता है!

मैं मुस्कुराते हुए बोला और जेब से एक गुलाबी रंग का कागज़ निकाल कर संगीता को देते हुए बोला;

मैं: ये तोहफा तुम्हारे लिए मैंने मुंबई में लिया था, सोचा था की पिताजी जब हमारी शादी के लिए मान जायेंगे तब दूँगा, लेकिन फिर काम में ऐसा उलझा की तुम्हें ये तोहफा देना ही भूल गया|

संगीता मुस्कुराई और कागज खोला तो उसमें से सोने की नथुनी निकली;

संगीता: Wow! Thank you जानू!

संगीता खुश होते हुए बोली|

मैं: चलो अब मैंने मुँह दिखाई भी दे दी, अब तो मुँह मीठा करा दो?!

मैंने नटखट मुस्कान लिए हुए कहा| मेरी बात सुन संगीता लजाने लगी और अपनी नजरें झुका ली|

मैंने संगीता की ठुड्डी पकड़ ऊपर उठाई, संगीता की नजरें अब भी नीचे थीं| मैं धीरे-धीरे संगीता के नजदीक खिसका और अपने दाहिने हाथ को संगीता के बायें गाल रख अपने होठों को उसके होठों के नजदीक लाया| संगीता ने अपनी आँखें बड़ी ही नज़ाक़त से बंद कर ली थी, मैंने भी अपनी आँखें मुदीं और धीरे से संगीता के गोठों को चूमा|




आज इस चुंबन में अलग ही कसक थी, शायद इसलिए की आज हमें किसी के द्वारा पकड़े जाने का कोई भी डर नहीं था! हमारा चुंबन हर पल गहरा होता जा रहा था, होठों का रसपान करते-करते कब हमारी जीभ एक दूसरे से गुथ्थम-गुत्था हो गईं की हम दोनों को पता ही नहीं चला! संगीता के दोनों हाथ मेरे गाल पर आ चुके थे और संगीता मुझे पीछे की ओर धकेलना चाह रही थी, वहीं मैं संगीता को धीरे-धीरे पीछे की ओर धकेलने में लगा था|

संगीता का जोर तो मुझ पर चलने से रहा अलबत्ता मैंने ही उसे धीरे-धीरे पीछे की ओर धकेलते हुए लिटा दिया| संगीता ने मेरी गर्दन के पीछे अपने हाथ कस लिए थे और मेरे होठों पर अपने होठों द्वारा कहर बरपाये जा रही थी| मैंने अपने होठों को संगीता की पकड़ से छुड़वाया और अपनी शेरवानी के बटन खोलने लगा|

शेरवानी निकाल कर मैंने कुर्सी पर फेंकी और संगीता के ऊपर छाना चाहा की तभी संगीता ने अपनी ऊँगली से मेरे पाजामे की ओर इशारा कर के मुझे उसे भी उतारने की याद दिलाई| मुझे इस वक़्त सूझ रही थी मस्ती इसलिए मैं बिना अपना पजामा खोले संगीता के होठों पर टूट पड़ा! मेरे हाथों ने सीधा संगीता के वक्ष थाम लिए, मुझे लगा था की साडी के blouse की तरह इसमें भी hook या button लगे होंगे, परन्तु चोली में लगी थी रस्सी और वो (रस्सी) थी संगीता की पीठ पर! मैं अपने हाथों को सरकाते हुए संगीता की पीठ पर बँधी रस्सी तक लाया, थोड़ा बहुत टटोलने के बाद मैंने आखिर संगीता की चोली की रस्सी पकड कर खींच डाली! रस्सी खुलते ही संगीता की चोली ढीली हो गई और संगीता शर्माने लगी;

संगीता: जानू, light...!

ये कह संगीता मुस्कुराते हुए अपनी आँखें चुराने लगी| मेरी आँखों में सवाल थे की आखिर संगीता light बुझाने को क्यों कह रही है? हम दोनों के बीच तो ऐसा कुछ भी नहीं था जो हमने न देखा हो? उस समय जो बात मैं समझ नहीं पाया था वो ये थी की संगीता के लिए आज के दिन की अलग ही अहमियत थी, आज का दिन उसके लिए मेरे साथ नई शुरुआत करने का दिन था, इसलिए उसका आज यूँ लजाना जायज़ था! खैर, मैं उठा और कमरे की रौशनी कुछ कम कर दी, संगीता की लाज जायज़ थी पर एक पति का अपनी ब्याहता पत्नी को सुहागरात पर निहारना भी तो जर्रूरी था!

मैं जब पलंग पर वापस बैठा तो संगीता उठ के बैठ चुकी थी, तथा अपनी चोली उतार रही थी| मैं झट से उसके सामने आ गया और खुद उसकी चोली निकाल कर कुर्सी पर अपनी शेरवानी के ऊपर फेंक दी| जिस जल्दबाजी में मैंने संगीता की चोली फेंकी थी उसे देख संगीता अपने मुँह पर हाथ रख हँस पड़ी! दरअसल मुझे ध्यान ही नहीं रहा की हमारी शादी हो चुकी थी! जब मुझे अपनी ये नादानी समझ आई और मैं भी सर झुका कर हँस पड़ा| उधर संगीता ने अपने हाथ गर्दन में ले जा कर अपने जेवर उतरने चाहे तो मैंने उसका हाथ थाम कर रोक दिया, संगीता अचरज भरी आँखों से मुझे देख रही थी की तभी मैंने गर्दन न में हिलाई| सोने के जेवरों ने संगीता के हुस्न में हजार चाँद कलगा रखे थे और मेरा मन उन्हें उतारने का नहीं कर रहा था|

अब मेरी नजर संगीता के वक्षों पर पड़ी जो bra की कैद में थे, मुझे अपने वक्षों को निहारते देख संगीता शर्मा गई और अपने दोनों हाथों से खुद को ढकने का प्रयास करने लगी| मैंने संगीता के चहेरे को अपने दोनों हाथों से थामा और अपने होठों को उसके होठों से भिड़ा दिया तथा एक बार फिर उसे पीछे की ओर धकेल कर लिटा दिया| दीवानगी हम दोनों के सर पर सवार हो चुकी थी, चेहरे पर मुस्कान लिए हुए हम एक दूसरे के होठों का रसपान करने में लिप्त थे!




धीरे-धीरे दोनों के बदन का तापमान वासना से बढ़ने लगा था, दीवानगी जब जूनून की हद्द पर पहुँची तो हम दोनों के हाथों ने एक दूसरे के बदन पर मौजूद कपड़ों के सिरों को ढूँढना शुरू कर दिया| संगीता के हाथों ने मेरे पाजामे के नाड़े को ढूँढा तो मेरे हाथों ने संगीता के लहंगे के नाड़े को खोज निकाला| दोनों ने एक साथ एक दूसरे के कपड़ों के नाडों को खींचा, मेरा पजामा ढीला हुआ और संगीता का लेहंगा ढीला हुआ| मैं संगीता के ऊपर से उठा और अपना पजामा निकाल कर कुर्सी पर फेंक दिया, उधर संगीता अपने हाथों से अपना लेहंगा खिसकाने जा रही थी की तभी मैंने उस पर हमला करते हुए संगीता को बाईं करवट मोड़ दिया तथा खुद संगीता के लहंगे को नीचे खिसकाने लगा|

लेहंगा नीचे खिसका तो सबसे पहले मुझे संगीता का मुलायम कुल्हा नजर आया, मैंने आव देखा न ताव सीधा अपने थरथराते होंठ कूल्हे पर रख दिए और ठीक तभी संगीता के मुँह से पहली सिसकी निकली; "सससस....सSSS!" संगीता की इस सिसकी ने मुझ में जोश भर दिया था, मैंने आनन-फानन में उसका लेहंगा पूरा निकाल कर फेंक दिया! संगीता ने नीचे panty पहनी हुई थी, इसके बावजूद उसने फ़ौरन अपने दोनों हाथों को अपनी panty पर रख उसे छुपाने लगी|

संगीता को यूँ शर्माते देख मुझे आज कुछ उस पर ज्यादा ही प्यार आ रहा था, मैंने एक बार फिर उसका चेहरा अपने दोनों हाथों से थामा और संगीता के होठों से खिलवाड़ करने करते हुए उस पर अपना सारा वजन डाल दिया| मेरे कामदण्ड की गर्मी को मेरे कच्छे के ऊपर से अपनी योनि पर महसूस कर संगीता कसमसाने लगी| उसने खुद को छुपाने की कोशिशें छोड़ दी और अपने दोनों हाथों से मुझे अपनी बाहों में कस लिया| मैंने अपनी कमर हिलाते हुए अपने कामदण्ड को संगीता की योनि पर हमारे undergarments के ऊपर से ही रगड़ना शुरू कर दिया| नतीजन संगीता के जिस्म में प्रेम अग्नि दाहक चुकी थी और मेरी क्रिया के प्रतिउत्तर में संगीता ने भी नीचे से अपनी कमर को हिलाना शुरू का दिया था|

मैंने अपनी उँगलियों को संगीता के दोनों कँधे पर रखा और उसकी bra के strap को पकड़ नीचे की तरफ उतारने लगा| वहीं संगीता की उँगलियाँ रेंगते-रेंगते मेरी बनियान को मेरी गर्दन की तरफ से उतारने में व्यस्त थीं| उधर संगीता की bra ढीली हुई और इधर संगीता ने मेरी बनियान मेरी गर्दन से निकाल फेंकी! मैंने संगीता की bra को धीरे से पकड़ के निकाल फेंका और कहीं मेरी पत्नी फिर से न शर्मा जाए इसलिए मैंने खुद संगीता के ऊपरी नग्न जिस्म को अपने ऊपरी नग्न जिस्म से ढक दिया!

संगीता के ठंडे जिस्म से जब मेरा गर्म जिस्म मिला तो संगीता सीसियाने लगी; "ससस....जानू!" मेरे जिस्म की गर्मी पा कर संगीता मुझसे कस कर लिपट गई| मैंने फ़ौरन करवट लेते हुए संगीता को अपने ऊपर कर लिया तथा मैं नीचे पीठ के बल लेट गया| ग्रुत्वकर्षण के कारण संगीता के जिस्म का सारा भार मेरे शरीर पर था और मेरे कामदण्ड की चुभन अब संगीता को अपनी योनि पर हो रही थी!

अब संगीता से खुद को काबू करना मुश्किल था, उसने सबसे पहले मेरे कच्छे की elastic में अपने दोनों हाथों की उँगलियाँ फँसा कर उसे खींच कर निकाल फेंका! कच्छा निकला तो मैं पूरी तरह से नग्न था, अब मैंने संगीता को छेड़ते हुए फ़ौरन अपने कामदण्ड पर दोनों हाथ रखते हुए ढकना चाहा| मुझे ये प्रयास करते देख संगीता हँस पड़ी और मेरे ऊपर छाते हुए मेरे होठों का रसपान करने लगी| मैंने फ़ौरन संगीता को अपनी बाहों में कसा और करवट लेते हुए एक बार फिर उसके ऊपर आ गया| अब मेरी बारी थी संगीता की panty निकालने की, परन्तु संगीता शर्माते हुए अपने हाथ panty के ऊपर रखे हुए थी|

मैंने होशियारी दिखाते हुए संगीता के दोनों वक्षों को अपने दोनों हाथों से थाम लिया, नतीजन संगीता ने फ़ौरन अपने हाथ panty से हटा कर मेरे दोनों हाथों को पकड़ लिया| मैंने फुर्ती दिखाते हुए जल्दी से संगीता की panty पर हमला किया और इससे पहले की संगीता कुछ समझ पाती मैंने उसकी panty निकाल उसे पूरी तरह से निर्वस्त्र कर दिया| बिना कोई समय गवाए मैंने अपने लरजते होंठ संगीता के शहद के भंडार पर लगा दिया और अपनी जीभ से प्रहार करने लगा| अपने मधु भंडार पर अपने प्रियतम की जीभ के प्रहार से संगीता कसमसाने लगी और अपनी उँगलियाँ मेरे बालों में चलाने लगी| संगीता की उँगलियों का जादू मेरे बालों में चला तो मैं और जोश से उस मधु भंडार पर अपनी जीभ चलाने लगा!

3-4 मिनट में ही संगीता की हालत बुरी हो गई थी और उसने मुझे वापस ऊपर खींचना शुरू कर दिया था, क्योंकि आज उसका मन इस प्यार की राह पर मेरे साथ कदम से कदम मिला कर चलने का था| संगीता की बात मानते हुए मैं उसकी योनि पर से उठा और अपने कामदण्ड को उसका लक्ष्य दिखाते हुए धीरे-धीरे संगीता पर झुकने लगा| मेरे कामदण्ड के मुंड ने संगीता की योनि का भेदन शुरू किया और सरकता हुआ अंदर पेवस्त हो गया! अपने जिस्म के भीतर मेरी उपस्थिति से संगीता का पूरा जिस्म धनुष के समान अकड़ गया था! मैंने अपने दोनों हाथों को संगीता की कमर के नीचे ले जा कर सहारा दिया, कुछ पल बाद संगीता का जिस्म ढीला पड़ने लगा और वो पुनः अपनी पीठ के बल लेट गई| मैं इस दौरान सब्र करते हुए शांत था, जब संगीता का जिस्म ढीला पड़ा तो मैंने धीरे-धीरे अपनी गति पकड़ी|

हालाँकि मेरी गति अभी बहुत कम थी परन्तु संगीता ने इतनी कम गति में ही दर्द भरी सिसकियाँ लेना शुरू कर दिया था; "आह्हहहहहहह...मममम...सससस...!" संगीता की ये दर्द भरी सिसकारियाँ मेरी उत्तेजना बढ़ीं रहीं थीं! वहीं कमरे में थी ठंड, हालाँकि blower on था परन्तु फिर भी थोड़ी-थोड़ी ठंड हम दोनों को महसूस हो रही थी! मैंने संगीता को कस कर अपनी बाहों में भर लिया और उसे अपने जिस्म से गर्मी देने लगा| इस दौरान मेरी गति पर full stop लग चूका था! कुछ सेकंड बाद संगीता की कमर मेरी कमर पर झटके मारने लगी, ये संगीता की ओर से इशारा था की मैं फिर से गति पकड़ लूँ|

गाडी एक बार फिर चल पड़ी और इस बार गति कुछ तेज थी| इस तेज गति का एक और फायदा था, वो ये की इससे हमारे जिस्मों में गर्मी पैदा हो रही थी| जल्द ही हम दोनों की उत्तेजना चरम पर थी इसलिए ये प्रेम पूर्ण समागम ज्यादा लम्बा नहीं चला| दोनों मियाँ-बीवी एक साथ अपने-अपने चरम पर पहुँचे और एक दूसरे से लिपट कर अपनी सांसें दुरुस्त करने लगे| जब हम दोनों की सांसें दुरुस्त हुईं तो मैं पीठ के बल लेट गया, संगीता ने रजाई खींची और मेरे सीने पर अपना सर रख कर मुझसे लिपट गई| मैंने संगीता के सर को चूमा और एक नजर घडी को देखा, साढ़े तीन बज रहे थे तथा हम दोनों को बहुत गहरी नींद आ रही थी|




ये रात हम दोनों के लिए बहुत ख़ास थी, आज हम दोनों दो प्रेमियों से मियाँ-बीवी बन चुके थे| अब हमें छुपते-छुपाते हुए मिलना, खुसफुसा कर बातें करना, झूठ बोल कर घूमने जाना, रात के अँधेरे में एक दूसरे के पहलु में सोना और सुबह होने से पहले अपने-अपने बिस्तर लौट आना, इन सभी प्यार भरी अटखेलियों करने की अब कोई जर्रूरत नहीं थी, क्योंकि अब हम दोनों पति-पत्नी थे!

सुबह के साढ़े पाँच बजे थे और संगीता की आँख खुल चुकी थी| वो धीरे से उठने लगी की तभी मेरी आँख खुल गई, मैंने एकदम सेसंगीता का हाथ पकड़ा और उसे खींच कर वापस लिटा दिया|




संगीता: Good morning जानू!

संगीता मुस्कुराते हुए बोली|

मैं: Good Morning जान!

मैंने संगीता को अपनी बाहों में भरते हुए कहा|

संगीता: जानू, उठने दो न! आज मेरी पहली रसोई है!

संगीता ख़ुशी से चहकते हुए बोली| लेकिन मुझे चढ़ा था romance इसलिए मैं संगीता से सौदा करने लगा;

मैं: ठीक है, चले जाना पर पहले सुबह-सुबह मेरा मुँह तो मीठा करा दो|

संगीता जानती थी की मैं किस मुँह मीठा करने की बात कर रहा हूँ!

संगीता: जर्रूर करा देती, लेकिन आपको कम से कम आधा घंटा लगता है और उस आधे घंटे में मेरा बदन टूट जाता है!

संगीता प्यारभरा उल्हाना देती हुई बोली|

मैं: यार तुम भी कमाल करती हो, लड़कियाँ शिकायत करती हैं की उनका पति जल्दी निपट जाता है और तुम शिकायत कर रही हो की मैं बहुत time लेता हूँ?

मेरी बात सुन संगीता खिलखिलाकर हँस पड़ी और मेरी कही बात का जवाब देते हुए बोली;

संगीता: अजी, रात को समय की कोई बंदिश नहीं होती पर सुबह तो होती है न?!

मैं: यार मुझे कुछ नहीं पता, मुझे तो अभी मुँह मीठा करना है!

मैं जिद्द करते हुए बोला| मुझे जिद्द करता हुआ देख संगीता मुझे रात का लालच देने लगी;

संगीता: जानू, आज की रात मैं आपको बिलकुल नहीं रोकूँगी!

मुझे संगीता को अपने पहलु में रोके रखना था तो मैंने गाने का सहारा लिया;

मैं: आज जाने की ज़िद ना करो,

यूँ ही पहलु में बैठे रहो,

यूँ ही पहलु में बैठे रहो,

आज जाने की ज़िद ना कर,

हाय मर जाएंगे,

हम तो लुट जाएंगे,

ऐसी बातें किया ना करो,

आज जाने की ज़िद ना करो|

मैंने गाना गुनगुनाया तो संगीता पिघलने लगी और कस कर मेरे जिस्म से लिपट गई| मेरी तरकीब काम कर गई थी और मैं अब अपना मुँह मीठा कर सकता था! लेकिन तभी घडी में पौने 6 का alarm बजा और संगीता मेरी पकड़ से छूटने के लिए छटपटाने लगी|

संगीता: जानू, please न?! देखो आज पहला दिन है और मुझे माँ-पिताजी को सुबह की चाय देने के कर्म से मत रोको?!

अब माँ-पिताजी का नाम सुन मैंने अपनी पकड़ ढीली कर दी और संगीता छिटक कर उठ कर bathroom में भाग गई, दरअसल उसे लग रहा था की उसने खुद को मेरी पकड़ से छुड़ाया है, लेकिन वो क्या जाने की मैंने खुद ही से अपनी पकड़ ढीली की थी!

संगीता नहाने लगी और मैंने उठ कर अपना पजामा तथा बनियान पहन ली| मुझे नींद आ रही थी इसलिए मैं वापस रजाई में घुस गया, कुछ देर बाद संगीता नहा कर बाहर निकली तो मुझे सोते हुए पाया| कपड़े पहन कर वो माँ-पिताजी के लिए चाय बनाने निकली और इधर मेरे दोनों बच्चे दौड़ते हुए मेरी रजाई में घुस गए! बच्चों के छोटे-छोटे हाथों को महसूस कर मैंने दोनों बच्चों को अपनी बाहों में भर लिया और हम तीनों बाप-बेटा-बेटी लिपट कर सो गए|

सात बजे संगीता मुझे जगाने के लिए कमरे में आई, मैं अब भी दोनों बच्चों से लिपट कर सो रहा था| संगीता झुकी और मेरे मस्तक को चूम कर मुस्कुराने लगी| संगीता के होठों के स्पर्श से मेरी आँख खुल गई और मैं मुस्कुराते हुए जाग गया|

मैं: अब से रोज मुझे ऐसे ही जगाना!

मैं मुस्कुराते हुए बोला तो संगीता भी मुस्कुराने लगी और अपनी गर्दन हाँ में हिलाने लगी|

संगीता: माँ-पिताजी कह रहे हैं की मंदिर जाना है, इसलिए आप तीनों भी जल्दी से नहा-धोकर तैयार हो जाइये|

संगीता प्यार से बोली और बाहर चली गई| मैंने गुदगुदी करते हुए दोनों बच्चों को जगाया, दोनों बच्चों ने मेरे दोनों गालों पर पप्पी की और फिर हम तीनों एक साथ तैयार हो कर बाहर बैठक में आये|

तैयार हो कर हम सभी मंदिर के लिए निकले, दिषु भी गाडी ले कर सीधा मंदिर पहुँच गया| मंदिर में पहले माँ ने भगवान से मेरे और संगीता के अच्छे जीवन के लिए प्रार्थना की| फिर पंडित जी ने नई गाडी के लिए पूजा की और हम सभी को आशीर्वाद दिया| अब बात आई गाडी में बैठने की तो दोनों बच्चों ने आगे बैठने के लिए लड़ना शुरु कर दिया| नेहा बड़ी थी तो उसने अपनी बड़ी बहन होने का हक़ जताया और आयुष छोटा था तो उसने अपनी मासूमियत से अपना हक़ जमाना शुरू कर दिया| अब मुझे ही दोनों बच्चों को समझाना था;

मैं: बेटा, आज पहले आपके दादा जी और दादी जी बैठेंगे!

मेरी बात सुन दोनों बच्चे हैरानी से मुझे देखने लगे| अपने बच्चों की हैरानी भाँपते हुए मैं उन्हें समझाने लगा;

मैं: जब मैं आप दोनों के लिए कुछ खाने के लिए लता हूँ तो आप सबसे पहले क्या करते हो?

मेरा सवाल सुन दोनों बच्चों सोच ने लगे, कुछ सोचने के बाद नेहा एक विद्यार्थी की तरह अपना हाथ उठाते हुए बोली;

नेहा: हम सबसे पहले आपको (मुझे) खिलाते हैं|

मैं: शाबाश बेटा! जब मम्मी-पापा अपने बच्चों के लिए कोई तोहफा लाते हैं तो सबसे पहले तोहफा उन्हें (मम्मी-पापा को) ही पहन कर दिखाया जाता है| तो ये गाडी मुझे मेरे माँ-पिताजी ने दी है तो सबसे पहले वो बैठेंगे न?

बच्चों को मेरी बात में छुपा हुआ तर्क समझ आया और दोनों ख़ुशी-ख़ुशी एक साथ सर हाँ में हिलाने लगे| इतने माँ और पिताजी जो अभी तक चुपचाप मुझे बच्चों को समझाते हुए देख रहे थे वो मुस्कुराते हुए आगे आये और मुझसे बोले;

पिताजी: बेटा, बच्चों को पहले घुमा ला|

माँ: हाँ बेटा, तुम चारों (मैं, संगीता और दोनों बच्चे) पहले घूम आओ| हम तो बूढ़े हो गए, हमें कहाँ चाव गाडी में घूमने का!

अब ये बात न तो मुझे मंजूर थी और न ही संगीता को, लेकिन हम दोनों माँ-पिताजी से कुछ कहें उसके पहले ही नेहा आगे आते हुए बोली;

नेहा: नहीं दादी जी, पहले तो आप और दादाजी जायेंगे!

अपनी दीदी की देखा-देखि आयुष भी आगे आया और अपने दादा जी का हाथ पकड़ते हुए बोला;

आयुष: दादा जी, आप और दादी जी सबसे बड़े हैं तो पहले आप घूमिये फिर मम्मी जाएँगी और सबसे आखिर में हम दोनों (आयुष और नेहा) जायेंगे|

आयुष इतने प्यार से बोला की पिताजी ने उसे गोद में उठा लिया और उसके सर को चूमने लगे| दादा-दादी को आज अपने पोता-पोती की समझदारी भरी बातों पर बहुत प्यार आ रहा था| दोनों बच्चों ने अपने दादा-दादी के हाथ पकडे और उन्हें गाडी के पास ला कर खुद गाडी का दरवाज खोल कर उन्हें बैठने को कहा| ये दृश्य जिसने भी देखा वो बच्चों पर मोहित हो रहा था!

[color=rgb(184,]जारी रहेगा भाग - 6 में...[/color]
 
अपने बच्चों के प्रेम के आगे पिघलते हुए मैंने अनिल से कहा| इधर मैं बच्चों के प्यार में पिघला और उधर संगीता का मुँह बन गया! शादी हुए कुछ घंटे हुए थे और मैं अपनी पत्नी और अपने बच्चों के बीच चयन करने में फँस चूका था! तभी माँ-पिताजी ने पीछे से आ कर मेरी जान बचाई;

पिताजी: बच्चों, आप में से किस को कल चाऊमीन खानी है?

पिताजी के सवाल पर दोनों बच्चे एक साथ हाथ उठा कर बोले; "मुझे"! बाप की (मेरी) तरह बच्चों को भी चाऊमीन पसंद थी!

पिताजी: तो फिर आज आप दोनों अपनी दादी जी और सुमन "मामी" के साथ सोओगे|

पिताजी ने मामी शब्द पर काफी जोर दे कर कहा, जिसे सुन सुमन और अनिल झेंप गए तथा हम दोनों (मैं और संगीता) आँखें फाड़े पिताजी को देख रहे थे| ऐसा नहीं था की हम दोनों नहीं चाहते थे की अनिल और सुमन की शादी हो, परन्तु बिना अपने ससुर जी से बात किये हम दोनों अनिल की शादी के बारे में अपना फैसला सुरक्षित रखना चाहते थे|

मैं: मामी?

मैंने हैरान होते हुए पुछा|

पिताजी: हाँ भई, अब सिर्फ शादी में सम्मिलित होने के लिए कोई इतनी दूर से आता है क्या?

पिताजी अनिल के कंधे पर हाथ रखते हुए बोले| जानते तो हम सभी थे की अनिल, सुमन से ही शादी करेगा, इसलिए पिताजी की बात पर सभी ठहाका लगा कर हँसने लगे|

पिताजी ने बच्चों को अपने साथ ले जाना चाहा तो दोनों बच्चे फिर से मेरी टाँगो से लिपट गए, अब माँ आगे आईं और बच्चों को बहलाने-फुसलाने लगीं;

माँ: रहने दो जी, हम बूढा-बूढी के साथ कौन सोयेगा?!

माँ ने मायूस होने का नाटक करते हुए पिताजी से कहा, पिताजी माँ की बात समझ गए और वो भी निराश होने का नाटक करने लगे| बच्चों से अपने दादा-दादी जी की उदासी नहीं देख गई और सबसे पहले आयुष जा कर अपने दादा जी की टाँग से लिपटते हुए बोला;

आयुष: दादा जी, मैं आपके साथ सोऊँगा!

अब माँ ने एक ठंडी आह भरी और मायूसी का नाटक करते हुए पिताजी से बोलीं;

माँ: लो जी, आपको तो आयुष का साथ मिल गया, मैं किसके साथ सोऊँ?

माँ की बात सुन नेहा दौड़ कर गई और माँ से लिपटते हुए बोली;

नेहा: दादी जी, मैं आपके साथ सोऊँगी और आपके पैर भी दबाऊँगी!

माँ की चाल एकदम सटीक थी, दोनों बच्चे हँसी-ख़ुशी अपने दादा-दादी जी के पास सोने के लिए मान गए थे|

खेर दोनों बच्चे और माँ-पिताजी बाहर बैठक की ओर चले गए| सुमन ने table पर रखे गिलास की तरफ इशारा किया और संगीता को छेड़ते हुए बोली;

सुमन: दीदी, याद से जीजू को दूध पिला देना!

इतना कह सुमन "खी...खी..खी" हँसने लगी, संगीता ने सुमन को प्यार से अपना हाथ दिखा कर मारने का नाटक किया! अनिल ने सुमन का हाथ पकड़ा और झेंपते हुए उसे जबरदस्ती खींचते हुए बाहर ले गया| मैंने कमरे का दरवाजा बंद किया और उधर संगीता अपनी सुहाग सेज पर घूंघट कर के बैठ गई| दरवाजा अंदर से बंद कर मैं संगीता की तरफ मुड़ा और बोला;

मैं: FINALLY, WE'RE TOGETHER!!!

मुझे इस वक़्त विश्वास नहीं हो रहा था की सच में हम दोनों की शादी हो चुकी है! उधर संगीता को मुझसे दिल्लगी सूझ रही थी इसलिए उसने मेरी बात को पूरा करते हुए कहा;

संगीता: अभी कहाँ जी? अब भी पाँच फुट का फ़ासला है! ही...ही...ही...ही!!!

संगीता मेरे और पलंग के बीच के फ़ासले की तरफ इशारा करते हुए बोली और खीसे निपोरने लगी|

मैं पलंग के नजदीक बढ़ने लगा तो संगीता ने टेबल पर रखे गिलास की तरफ इशारा किया और लजाने लगी| मैंने गिलास में से आधा दूध पिया और बाकी आधा गिलास संगीता की तरफ बढ़ा दिया| संगीता को दूध पीना अच्छा नहीं लगता था मगर आज वो मुझे मना नहीं कर सकती थी! संगीता ने दूध खत्म कर गिलास मुझे दिया, मैंने गिलास टेबल पर रख पलंग पर संगीता की तरफ मुँह कर के बैठ गया|

मैं: जान, आज की रात एक और रस्म अदा करने की रीत है!

मेरी बात सुन संगीता उत्सुक हो कर मुझे देखने लगी|

मैं: दूल्हा, दुल्हन को मुँह दिखाई में कुछ देता है!

मैं मुस्कुराते हुए बोला और जेब से एक गुलाबी रंग का कागज़ निकाल कर संगीता को देते हुए बोला;

मैं: ये तोहफा तुम्हारे लिए मैंने मुंबई में लिया था, सोचा था की पिताजी जब हमारी शादी के लिए मान जायेंगे तब दूँगा, लेकिन फिर काम में ऐसा उलझा की तुम्हें ये तोहफा देना ही भूल गया|

संगीता मुस्कुराई और कागज खोला तो उसमें से सोने की नथुनी निकली;

संगीता: Wow! Thank you जानू!

संगीता खुश होते हुए बोली|

मैं: चलो अब मैंने मुँह दिखाई भी दे दी, अब तो मुँह मीठा करा दो?!

मैंने नटखट मुस्कान लिए हुए कहा| मेरी बात सुन संगीता लजाने लगी और अपनी नजरें झुका ली|

मैंने संगीता की ठुड्डी पकड़ ऊपर उठाई, संगीता की नजरें अब भी नीचे थीं| मैं धीरे-धीरे संगीता के नजदीक खिसका और अपने दाहिने हाथ को संगीता के बायें गाल रख अपने होठों को उसके होठों के नजदीक लाया| संगीता ने अपनी आँखें बड़ी ही नज़ाक़त से बंद कर ली थी, मैंने भी अपनी आँखें मुदीं और धीरे से संगीता के गोठों को चूमा|




आज इस चुंबन में अलग ही कसक थी, शायद इसलिए की आज हमें किसी के द्वारा पकड़े जाने का कोई भी डर नहीं था! हमारा चुंबन हर पल गहरा होता जा रहा था, होठों का रसपान करते-करते कब हमारी जीभ एक दूसरे से गुथ्थम-गुत्था हो गईं की हम दोनों को पता ही नहीं चला! संगीता के दोनों हाथ मेरे गाल पर आ चुके थे और संगीता मुझे पीछे की ओर धकेलना चाह रही थी, वहीं मैं संगीता को धीरे-धीरे पीछे की ओर धकेलने में लगा था|

संगीता का जोर तो मुझ पर चलने से रहा अलबत्ता मैंने ही उसे धीरे-धीरे पीछे की ओर धकेलते हुए लिटा दिया| संगीता ने मेरी गर्दन के पीछे अपने हाथ कस लिए थे और मेरे होठों पर अपने होठों द्वारा कहर बरपाये जा रही थी| मैंने अपने होठों को संगीता की पकड़ से छुड़वाया और अपनी शेरवानी के बटन खोलने लगा|

शेरवानी निकाल कर मैंने कुर्सी पर फेंकी और संगीता के ऊपर छाना चाहा की तभी संगीता ने अपनी ऊँगली से मेरे पाजामे की ओर इशारा कर के मुझे उसे भी उतारने की याद दिलाई| मुझे इस वक़्त सूझ रही थी मस्ती इसलिए मैं बिना अपना पजामा खोले संगीता के होठों पर टूट पड़ा! मेरे हाथों ने सीधा संगीता के वक्ष थाम लिए, मुझे लगा था की साडी के blouse की तरह इसमें भी hook या button लगे होंगे, परन्तु चोली में लगी थी रस्सी और वो (रस्सी) थी संगीता की पीठ पर! मैं अपने हाथों को सरकाते हुए संगीता की पीठ पर बँधी रस्सी तक लाया, थोड़ा बहुत टटोलने के बाद मैंने आखिर संगीता की चोली की रस्सी पकड कर खींच डाली! रस्सी खुलते ही संगीता की चोली ढीली हो गई और संगीता शर्माने लगी;

संगीता: जानू, light...!

ये कह संगीता मुस्कुराते हुए अपनी आँखें चुराने लगी| मेरी आँखों में सवाल थे की आखिर संगीता light बुझाने को क्यों कह रही है? हम दोनों के बीच तो ऐसा कुछ भी नहीं था जो हमने न देखा हो? उस समय जो बात मैं समझ नहीं पाया था वो ये थी की संगीता के लिए आज के दिन की अलग ही अहमियत थी, आज का दिन उसके लिए मेरे साथ नई शुरुआत करने का दिन था, इसलिए उसका आज यूँ लजाना जायज़ था! खैर, मैं उठा और कमरे की रौशनी कुछ कम कर दी, संगीता की लाज जायज़ थी पर एक पति का अपनी ब्याहता पत्नी को सुहागरात पर निहारना भी तो जर्रूरी था!

मैं जब पलंग पर वापस बैठा तो संगीता उठ के बैठ चुकी थी, तथा अपनी चोली उतार रही थी| मैं झट से उसके सामने आ गया और खुद उसकी चोली निकाल कर कुर्सी पर अपनी शेरवानी के ऊपर फेंक दी| जिस जल्दबाजी में मैंने संगीता की चोली फेंकी थी उसे देख संगीता अपने मुँह पर हाथ रख हँस पड़ी! दरअसल मुझे ध्यान ही नहीं रहा की हमारी शादी हो चुकी थी! जब मुझे अपनी ये नादानी समझ आई और मैं भी सर झुका कर हँस पड़ा| उधर संगीता ने अपने हाथ गर्दन में ले जा कर अपने जेवर उतरने चाहे तो मैंने उसका हाथ थाम कर रोक दिया, संगीता अचरज भरी आँखों से मुझे देख रही थी की तभी मैंने गर्दन न में हिलाई| सोने के जेवरों ने संगीता के हुस्न में हजार चाँद कलगा रखे थे और मेरा मन उन्हें उतारने का नहीं कर रहा था|

अब मेरी नजर संगीता के वक्षों पर पड़ी जो bra की कैद में थे, मुझे अपने वक्षों को निहारते देख संगीता शर्मा गई और अपने दोनों हाथों से खुद को ढकने का प्रयास करने लगी| मैंने संगीता के चहेरे को अपने दोनों हाथों से थामा और अपने होठों को उसके होठों से भिड़ा दिया तथा एक बार फिर उसे पीछे की ओर धकेल कर लिटा दिया| दीवानगी हम दोनों के सर पर सवार हो चुकी थी, चेहरे पर मुस्कान लिए हुए हम एक दूसरे के होठों का रसपान करने में लिप्त थे!




धीरे-धीरे दोनों के बदन का तापमान वासना से बढ़ने लगा था, दीवानगी जब जूनून की हद्द पर पहुँची तो हम दोनों के हाथों ने एक दूसरे के बदन पर मौजूद कपड़ों के सिरों को ढूँढना शुरू कर दिया| संगीता के हाथों ने मेरे पाजामे के नाड़े को ढूँढा तो मेरे हाथों ने संगीता के लहंगे के नाड़े को खोज निकाला| दोनों ने एक साथ एक दूसरे के कपड़ों के नाडों को खींचा, मेरा पजामा ढीला हुआ और संगीता का लेहंगा ढीला हुआ| मैं संगीता के ऊपर से उठा और अपना पजामा निकाल कर कुर्सी पर फेंक दिया, उधर संगीता अपने हाथों से अपना लेहंगा खिसकाने जा रही थी की तभी मैंने उस पर हमला करते हुए संगीता को बाईं करवट मोड़ दिया तथा खुद संगीता के लहंगे को नीचे खिसकाने लगा|

लेहंगा नीचे खिसका तो सबसे पहले मुझे संगीता का मुलायम कुल्हा नजर आया, मैंने आव देखा न ताव सीधा अपने थरथराते होंठ कूल्हे पर रख दिए और ठीक तभी संगीता के मुँह से पहली सिसकी निकली; "सससस....सSSS!" संगीता की इस सिसकी ने मुझ में जोश भर दिया था, मैंने आनन-फानन में उसका लेहंगा पूरा निकाल कर फेंक दिया! संगीता ने नीचे panty पहनी हुई थी, इसके बावजूद उसने फ़ौरन अपने दोनों हाथों को अपनी panty पर रख उसे छुपाने लगी|

संगीता को यूँ शर्माते देख मुझे आज कुछ उस पर ज्यादा ही प्यार आ रहा था, मैंने एक बार फिर उसका चेहरा अपने दोनों हाथों से थामा और संगीता के होठों से खिलवाड़ करने करते हुए उस पर अपना सारा वजन डाल दिया| मेरे कामदण्ड की गर्मी को मेरे कच्छे के ऊपर से अपनी योनि पर महसूस कर संगीता कसमसाने लगी| उसने खुद को छुपाने की कोशिशें छोड़ दी और अपने दोनों हाथों से मुझे अपनी बाहों में कस लिया| मैंने अपनी कमर हिलाते हुए अपने कामदण्ड को संगीता की योनि पर हमारे undergarments के ऊपर से ही रगड़ना शुरू कर दिया| नतीजन संगीता के जिस्म में प्रेम अग्नि दाहक चुकी थी और मेरी क्रिया के प्रतिउत्तर में संगीता ने भी नीचे से अपनी कमर को हिलाना शुरू का दिया था|

मैंने अपनी उँगलियों को संगीता के दोनों कँधे पर रखा और उसकी bra के strap को पकड़ नीचे की तरफ उतारने लगा| वहीं संगीता की उँगलियाँ रेंगते-रेंगते मेरी बनियान को मेरी गर्दन की तरफ से उतारने में व्यस्त थीं| उधर संगीता की bra ढीली हुई और इधर संगीता ने मेरी बनियान मेरी गर्दन से निकाल फेंकी! मैंने संगीता की bra को धीरे से पकड़ के निकाल फेंका और कहीं मेरी पत्नी फिर से न शर्मा जाए इसलिए मैंने खुद संगीता के ऊपरी नग्न जिस्म को अपने ऊपरी नग्न जिस्म से ढक दिया!

संगीता के ठंडे जिस्म से जब मेरा गर्म जिस्म मिला तो संगीता सीसियाने लगी; "ससस....जानू!" मेरे जिस्म की गर्मी पा कर संगीता मुझसे कस कर लिपट गई| मैंने फ़ौरन करवट लेते हुए संगीता को अपने ऊपर कर लिया तथा मैं नीचे पीठ के बल लेट गया| ग्रुत्वकर्षण के कारण संगीता के जिस्म का सारा भार मेरे शरीर पर था और मेरे कामदण्ड की चुभन अब संगीता को अपनी योनि पर हो रही थी!

अब संगीता से खुद को काबू करना मुश्किल था, उसने सबसे पहले मेरे कच्छे की elastic में अपने दोनों हाथों की उँगलियाँ फँसा कर उसे खींच कर निकाल फेंका! कच्छा निकला तो मैं पूरी तरह से नग्न था, अब मैंने संगीता को छेड़ते हुए फ़ौरन अपने कामदण्ड पर दोनों हाथ रखते हुए ढकना चाहा| मुझे ये प्रयास करते देख संगीता हँस पड़ी और मेरे ऊपर छाते हुए मेरे होठों का रसपान करने लगी| मैंने फ़ौरन संगीता को अपनी बाहों में कसा और करवट लेते हुए एक बार फिर उसके ऊपर आ गया| अब मेरी बारी थी संगीता की panty निकालने की, परन्तु संगीता शर्माते हुए अपने हाथ panty के ऊपर रखे हुए थी|

मैंने होशियारी दिखाते हुए संगीता के दोनों वक्षों को अपने दोनों हाथों से थाम लिया, नतीजन संगीता ने फ़ौरन अपने हाथ panty से हटा कर मेरे दोनों हाथों को पकड़ लिया| मैंने फुर्ती दिखाते हुए जल्दी से संगीता की panty पर हमला किया और इससे पहले की संगीता कुछ समझ पाती मैंने उसकी panty निकाल उसे पूरी तरह से निर्वस्त्र कर दिया| बिना कोई समय गवाए मैंने अपने लरजते होंठ संगीता के शहद के भंडार पर लगा दिया और अपनी जीभ से प्रहार करने लगा| अपने मधु भंडार पर अपने प्रियतम की जीभ के प्रहार से संगीता कसमसाने लगी और अपनी उँगलियाँ मेरे बालों में चलाने लगी| संगीता की उँगलियों का जादू मेरे बालों में चला तो मैं और जोश से उस मधु भंडार पर अपनी जीभ चलाने लगा!

3-4 मिनट में ही संगीता की हालत बुरी हो गई थी और उसने मुझे वापस ऊपर खींचना शुरू कर दिया था, क्योंकि आज उसका मन इस प्यार की राह पर मेरे साथ कदम से कदम मिला कर चलने का था| संगीता की बात मानते हुए मैं उसकी योनि पर से उठा और अपने कामदण्ड को उसका लक्ष्य दिखाते हुए धीरे-धीरे संगीता पर झुकने लगा| मेरे कामदण्ड के मुंड ने संगीता की योनि का भेदन शुरू किया और सरकता हुआ अंदर पेवस्त हो गया! अपने जिस्म के भीतर मेरी उपस्थिति से संगीता का पूरा जिस्म धनुष के समान अकड़ गया था! मैंने अपने दोनों हाथों को संगीता की कमर के नीचे ले जा कर सहारा दिया, कुछ पल बाद संगीता का जिस्म ढीला पड़ने लगा और वो पुनः अपनी पीठ के बल लेट गई| मैं इस दौरान सब्र करते हुए शांत था, जब संगीता का जिस्म ढीला पड़ा तो मैंने धीरे-धीरे अपनी गति पकड़ी|

हालाँकि मेरी गति अभी बहुत कम थी परन्तु संगीता ने इतनी कम गति में ही दर्द भरी सिसकियाँ लेना शुरू कर दिया था; "आह्हहहहहहह...मममम...सससस...!" संगीता की ये दर्द भरी सिसकारियाँ मेरी उत्तेजना बढ़ीं रहीं थीं! वहीं कमरे में थी ठंड, हालाँकि blower on था परन्तु फिर भी थोड़ी-थोड़ी ठंड हम दोनों को महसूस हो रही थी! मैंने संगीता को कस कर अपनी बाहों में भर लिया और उसे अपने जिस्म से गर्मी देने लगा| इस दौरान मेरी गति पर full stop लग चूका था! कुछ सेकंड बाद संगीता की कमर मेरी कमर पर झटके मारने लगी, ये संगीता की ओर से इशारा था की मैं फिर से गति पकड़ लूँ|

गाडी एक बार फिर चल पड़ी और इस बार गति कुछ तेज थी| इस तेज गति का एक और फायदा था, वो ये की इससे हमारे जिस्मों में गर्मी पैदा हो रही थी| जल्द ही हम दोनों की उत्तेजना चरम पर थी इसलिए ये प्रेम पूर्ण समागम ज्यादा लम्बा नहीं चला| दोनों मियाँ-बीवी एक साथ अपने-अपने चरम पर पहुँचे और एक दूसरे से लिपट कर अपनी सांसें दुरुस्त करने लगे| जब हम दोनों की सांसें दुरुस्त हुईं तो मैं पीठ के बल लेट गया, संगीता ने रजाई खींची और मेरे सीने पर अपना सर रख कर मुझसे लिपट गई| मैंने संगीता के सर को चूमा और एक नजर घडी को देखा, साढ़े तीन बज रहे थे तथा हम दोनों को बहुत गहरी नींद आ रही थी|




ये रात हम दोनों के लिए बहुत ख़ास थी, आज हम दोनों दो प्रेमियों से मियाँ-बीवी बन चुके थे| अब हमें छुपते-छुपाते हुए मिलना, खुसफुसा कर बातें करना, झूठ बोल कर घूमने जाना, रात के अँधेरे में एक दूसरे के पहलु में सोना और सुबह होने से पहले अपने-अपने बिस्तर लौट आना, इन सभी प्यार भरी अटखेलियों करने की अब कोई जर्रूरत नहीं थी, क्योंकि अब हम दोनों पति-पत्नी थे!

सुबह के साढ़े पाँच बजे थे और संगीता की आँख खुल चुकी थी| वो धीरे से उठने लगी की तभी मेरी आँख खुल गई, मैंने एकदम सेसंगीता का हाथ पकड़ा और उसे खींच कर वापस लिटा दिया|




संगीता: Good morning जानू!

संगीता मुस्कुराते हुए बोली|

मैं: Good Morning जान!

मैंने संगीता को अपनी बाहों में भरते हुए कहा|

संगीता: जानू, उठने दो न! आज मेरी पहली रसोई है!

संगीता ख़ुशी से चहकते हुए बोली| लेकिन मुझे चढ़ा था romance इसलिए मैं संगीता से सौदा करने लगा;

मैं: ठीक है, चले जाना पर पहले सुबह-सुबह मेरा मुँह तो मीठा करा दो|

संगीता जानती थी की मैं किस मुँह मीठा करने की बात कर रहा हूँ!

संगीता: जर्रूर करा देती, लेकिन आपको कम से कम आधा घंटा लगता है और उस आधे घंटे में मेरा बदन टूट जाता है!

संगीता प्यारभरा उल्हाना देती हुई बोली|

मैं: यार तुम भी कमाल करती हो, लड़कियाँ शिकायत करती हैं की उनका पति जल्दी निपट जाता है और तुम शिकायत कर रही हो की मैं बहुत time लेता हूँ?

मेरी बात सुन संगीता खिलखिलाकर हँस पड़ी और मेरी कही बात का जवाब देते हुए बोली;

संगीता: अजी, रात को समय की कोई बंदिश नहीं होती पर सुबह तो होती है न?!

मैं: यार मुझे कुछ नहीं पता, मुझे तो अभी मुँह मीठा करना है!

मैं जिद्द करते हुए बोला| मुझे जिद्द करता हुआ देख संगीता मुझे रात का लालच देने लगी;

संगीता: जानू, आज की रात मैं आपको बिलकुल नहीं रोकूँगी!

मुझे संगीता को अपने पहलु में रोके रखना था तो मैंने गाने का सहारा लिया;

मैं: आज जाने की ज़िद ना करो,

यूँ ही पहलु में बैठे रहो,

यूँ ही पहलु में बैठे रहो,

आज जाने की ज़िद ना कर,

हाय मर जाएंगे,

हम तो लुट जाएंगे,

ऐसी बातें किया ना करो,

आज जाने की ज़िद ना करो|

मैंने गाना गुनगुनाया तो संगीता पिघलने लगी और कस कर मेरे जिस्म से लिपट गई| मेरी तरकीब काम कर गई थी और मैं अब अपना मुँह मीठा कर सकता था! लेकिन तभी घडी में पौने पाँच का alarm बजा और संगीता मेरी पकड़ से छूटने के लिए छटपटाने लगी|

संगीता: जानू, please न?! देखो आज पहला दिन है और मुझे माँ-पिताजी को सुबह की चाय देने के कर्म से मत रोको?!

अब माँ-पिताजी का नाम सुन मैंने अपनी पकड़ ढीली कर दी और संगीता छिटक कर उठ कर bathroom में भाग गई, दरअसल उसे लग रहा था की उसने खुद को मेरी पकड़ से छुड़ाया है, लेकिन वो क्या जाने की मैंने खुद ही से अपनी पकड़ ढीली की थी!

संगीता नहाने लगी और मैंने उठ कर अपना पजामा तथा बनियान पहन ली| मुझे नींद आ रही थी इसलिए मैं वापस रजाई में घुस गया, कुछ देर बाद संगीता नहा कर बाहर निकली तो मुझे सोते हुए पाया| कपड़े पहन कर वो माँ-पिताजी के लिए चाय बनाने निकली और इधर मेरे दोनों बच्चे दौड़ते हुए मेरी रजाई में घुस गए! बच्चों के छोटे-छोटे हाथों को महसूस कर मैंने दोनों बच्चों को अपनी बाहों में भर लिया और हम तीनों बाप-बेटा-बेटी लिपट कर सो गए|

सात बजे संगीता मुझे जगाने के लिए कमरे में आई, मैं अब भी दोनों बच्चों से लिपट कर सो रहा था| संगीता झुकी और मेरे मस्तक को चूम कर मुस्कुराने लगी| संगीता के होठों के स्पर्श से मेरी आँख खुल गई और मैं मुस्कुराते हुए जाग गया|

मैं: अब से रोज मुझे ऐसे ही जगाना!

मैं मुस्कुराते हुए बोला तो संगीता भी मुस्कुराने लगी और अपनी गर्दन हाँ में हिलाने लगी|

संगीता: माँ-पिताजी कह रहे हैं की मंदिर जाना है, इसलिए आप तीनों भी जल्दी से नहा-धोकर तैयार हो जाइये|

संगीता प्यार से बोली और बाहर चली गई| मैंने गुदगुदी करते हुए दोनों बच्चों को जगाया, दोनों बच्चों ने मेरे दोनों गालों पर पप्पी की और फिर हम तीनों एक साथ तैयार हो कर बाहर बैठक में आये|

तैयार हो कर हम सभी मंदिर के लिए निकले, दिषु भी गाडी ले कर सीधा मंदिर पहुँच गया| मंदिर में पहले माँ ने भगवान से मेरे और संगीता के अच्छे जीवन के लिए प्रार्थना की| फिर पंडित जी ने नई गाडी के लिए पूजा की और हम सभी को आशीर्वाद दिया| अब बात आई गाडी में बैठने की तो दोनों बच्चों ने आगे बैठने के लिए लड़ना शुरु कर दिया| नेहा बड़ी थी तो उसने अपनी बड़ी बहन होने का हक़ जताया और आयुष छोटा था तो उसने अपनी मासूमियत से अपना हक़ जमाना शुरू कर दिया| अब मुझे ही दोनों बच्चों को समझाना था;

मैं: बेटा, आज पहले आपके दादा जी और दादी जी बैठेंगे!

मेरी बात सुन दोनों बच्चे हैरानी से मुझे देखने लगे| अपने बच्चों की हैरानी भाँपते हुए मैं उन्हें समझाने लगा;

मैं: जब मैं आप दोनों के लिए कुछ खाने के लिए लता हूँ तो आप सबसे पहले क्या करते हो?

मेरा सवाल सुन दोनों बच्चों सोच ने लगे, कुछ सोचने के बाद नेहा एक विद्यार्थी की तरह अपना हाथ उठाते हुए बोली;

नेहा: हम सबसे पहले आपको (मुझे) खिलाते हैं|

मैं: शाबाश बेटा! जब मम्मी-पापा अपने बच्चों के लिए कोई तोहफा लाते हैं तो सबसे पहले तोहफा उन्हें (मम्मी-पापा को) ही पहन कर दिखाया जाता है| तो ये गाडी मुझे मेरे माँ-पिताजी ने दी है तो सबसे पहले वो बैठेंगे न?

बच्चों को मेरी बात में छुपा हुआ तर्क समझ आया और दोनों ख़ुशी-ख़ुशी एक साथ सर हाँ में हिलाने लगे| इतने माँ और पिताजी जो अभी तक चुपचाप मुझे बच्चों को समझाते हुए देख रहे थे वो मुस्कुराते हुए आगे आले
अब ये बात न तो मुझे मंजूर थी और न ही संगीता को, लेकिन हम दोनों माँ-पिताजी से कुछ कहें उसके पहले ही नेहा आगे[/QUOTE]
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