[color=rgb(251,]पच्चीसवाँ अध्याय: खुशियों का आगमन[/color]
[color=rgb(97,]भाग -4 (1)[/color]
[color=rgb(71,]अब तक आपने पढ़ा;[/color]
संगीता: आप बड़ी तरफदारी कर रहे हो उसकी (सुमन की)! बार-बार मुझे बाबू कह के मुझे मना लेते हो!
इतना कहते हुए संगीता मेरी तरफ घूमी और कस कर मेरे गले लग गई! मुझे संगीता को कोई सफाई देने की कोई जर्रूरत नहीं थी इसलिए मैंने संगीता के बाएँ गाल को चूम लिया|
मैं: अच्छा अब बाहर चलो, माँ-पिताजी बाहर बैठे हैं, उनके पास बैठ कर चाय पीते हैं|
संगीता मुस्कुराई और हम सब बैठ कर चाय पीने लगे|
[color=rgb(51,]अब आगे:[/color]
चाय पीते हुए पिताजी ने अनिल और सुमन से जानना चाहा की वो आगे चल कर अपने भविष्य के बारे में क्या सोच रहे हैं, मतलब job या कोई business;
पिताजी: तो बेटा आगे क्या इरादा है?
इससे पहले की सुमन जवाब दे, अनिल चौधरी बनते हुए बोल पड़ा;
अनिल: जी शादी!
बेचारा अनिल रात से इतना हड़बड़ाया हुआ था की उसे समझ नहीं आ रहा था की वो क्या कह रहा है! अनिल की शादी की बात सुन संगीता का चेहरा ऐसा था मानो जैसे किसी ने उसके चेहरे पर सफ़ेद रंग का powder पोत दिया हो, वो तो माँ-पिताजी मौजूद थे इसलिए वो शांत बैठी थी वरना आज संगीता अनिल के कान पर एक धर ही देती! खैर जैसे ही अनिल ने अपनी शादी की बात कही, मैं उसकी पीठ पर थपकी मारते हुए बोला;
मैं: ओ महान आत्मा! पिताजी पूछ रहे हैं की तूने course पूरा होने के बाद क्या करना है?
मेरी बात सुन संगीता को छोड़ कर सब हँस पड़े|
अनिल: Oh sorry! जी...वो....job!
अनिल अपनी दीदी को देख कर उनके मन में चल रहे पिटाई के ख्याल को पढ़ चूका था इसलिए अनिल की डर के मारे हवा टाइट हो गई थी!
पिताजी: बेटा, अगर चाहो तो हमारे साथ काम कर सकते हो! लेकिन फिर शायद समधी जी को ये पसंद ना आय!
पिताजी दिल से चाहते थे की अनिल हमारे साथ काम करे परन्तु वो अपने समधी जी को भी नाराज नहीं करना चाहते थे|
अनिल: जी, शायद उन्हें अब मेरे किसी भी फैसले से कोई फर्क नहीं पड़ेगा|
अनिल ने गंभीर होते हुए अपनी बात कही|
मैं: क्यों?
अनिल की बात सुन मैं गंभीर हो गया और मुझे डर सताने लगा की कहीं मेरे होने वाले ससुर जी ने अनिल से भी तो सारे रिश्ते नहीं तोड़ लिए?!
अनिल: वो जीजू, उस दिन जब पिताजी आप पर गुस्सा हो रहे थे तो मुझसे ये सब बर्दाश्त नहीं हुआ, उन्हें कोई हक़ नहीं था आपको इस तरह जलील करने का इसलिए मैंने उन्हें सब सच बता दिया और ये भी बता दिया की मैं शादी attend करने दिल्ली जा रहा हूँ|
अनिल की बात सुन हम सभी स्तब्ध थे, वहीं मुझे ये जानने की जिज्ञासा थी की आखिर मेरे होने वाले ससुर जी ने क्या प्रतिक्रिया दी?
मैं: तो पिताजी ने क्या कहा?
मैंने जिज्ञासु होते हुए पुछा|
अनिल: वो कुछ नहीं बोले, उनके पास बोलने के लिए क्या होगा?
अनिल चिढ़ते हुए बोला|
पिताजी: ये तुने ठीक नहीं किया बेटा! कम से कम तुझे समधी जी को शादी में आने की बात नहीं बतानी चाहिए थी!
मेरे माँ-पिताजी को डर था की कहीं मेरी शादी में किसी और तरह का विघ्न न पड़ जाए इसलिए उन्होंने अनिल को थोड़ा डाँटते हुए कहा|
अनिल: क्षमा करें पिताजी, लेकिन मैं अपने जीजू की बेइज्जती बर्दाश्त नहीं कर सकता था, उन्होंने (मैंने) कुछ गलत नहीं किया तो पिताजी को कोई हक़ नहीं उन्हें बुरा-भला कहने का!
अनिल मेरा पक्ष लेते हुए बोला|
पिताजी: बेटा ये सब बातें करने के लिए तू बहुत छोटा है, तेरे ये सब कहने से समधी जी को बहुत आघात लगा होगा!
अब पिताजी मेरी और संगीता की तरफ देखने लगे तथा थोड़ा निराश होते हुए बोले;
पिताजी: बेटा, भगवान से दुआ करता हूँ की तुम दोनों के जीवन में कोई नई परेशानी न खड़ी हो जाये|
मैं: पिताजी, आप चिंता मत कीजिये, सब कुछ ठीक होगा| शादी के बाद मैं और संगीता जा कर उनसे (मेरे होने वाले ससुर जी से) मिल लेंगे तथा उनका दिल दुखाने के लिए माफ़ी माँग लेंगे|
मैंने मुस्कुराते हुए पिताजी को निश्चिन्त करते हुए कहा| घर का माहौल थोड़ा चिंतित हो गया था तो मैंने बात घुमाते हुए कहा;
मैं: वैसे पिताजी, शादी की तैयारियाँ कैसी चल रही है?
मेरे इस सवाल का तातपर्य बस इतना था की अनिल आ चूका है तो उसे भी काम दे दिया जाए, परन्तु मेरी माँ ने मेरी बात को कुछ इस तरह लिया जैसे की कोई सेठ अपने नौकरों से पूछ रहा हो;
माँ: तू तो ऐसे पूछ रहा है जैसे घर का बड़ा-बूढ़ा तू ही है! हमें पता है की क्या तैयारी करनी है और कैसे करनी है, तू बस खुद को काबू में रख!
कुछ देर पहले जब मैं छुपते हुए संगीता के पीछे कमरे में घुसा था तो माँ ने मुझे देख लिया था और उनका ये कटाक्ष मेरी उसी हरकत पर था! माँ की बात सुन मैं और संगीता बुरी तरह झेंप गए और बाकी सब लोग हँसने लगे|
खेर नाश्ते के बाद माँ-पिताजी खरीदारी के लिए निकल गए और अनिल को बारातियों के आने-जाने के लिए बस book करने के लिए taxi वालों के नंबर दे गए| इधर माँ-पिताजी निकले और उधर संगीता ने अपनी बन्दूक में सवालों की कारतूस भर ली, मेरे "fire" कहने की देर थी और सुमन को सवालों की गोली से छलनी कर दिया जाता!
मैं: So guys, lets start this Q&A round! Sangeeta.shoot!
मैंने किसी game show के anchor की तरह कहा| दरअसल मुझे आज देखना था की एक माँ (संगीता) की ममता अपने बेटे (अनिल) के भविष्य का क्या फैसला लेती है?
संगीता: My first question to you Suman, are you an alcoholic?
संगीता ने गुस्से में आते हुए धायें से अपना पहला सवाल दागा|
सुमन: No दीदी!
सुमन ने डर के मारे सर झुका कर कहा| सुमन के बाद अब बारी थी अनिल की, संगीता ने गुस्से से अनिल को देखा और बोली;
संगीता: Is this true Anil? And you better not lie to me!
अनिल: No दीदी! We don't drink!
अनिल घबराते हुए बोला| बेचारा अपनी दीदी से इतना डरा हुआ था की उसने सुमन के साथ-साथ अपनी भी सफाई दे दी, जो संगीता को रास नहीं आया!
संगीता: मैंने तेरे पीने के बारे में पुछा है?
संगीता गुस्से से भड़कते हुए बोली| संगीता को लगता था की जब कोई इंसान बिना माँगें अपनी सफाई देता है तो वो झूठ बोलता है, यही सोचते हुए संगीता ने अनिल को झिड़का था|
संगीता: Why do you smoke?
संगीता ने सुमन से गुस्से में सवाल पुछा|
सुमन: B...because of my roomie! उसकी गलत संगत में...वो depression में थी...
बेचारी सुमन की घिघ्घी बँध चुकी थी और डर के मारे उसके मुँह से झूठ निकल गया|
संगीता: So instead of stopping her, you too started smoking...right?
संगीता ने सुमन को taunt मारते हुए पुछा| संगीता के हाथ में सुमन की गर्दन आ चुकी थी और आज संगीता उसे (सुमन को) काटे बिना छोड़ने वाली नहीं थी!
अनिल: नहीं दीदी! She (सुमन) had a break up.she was in depression.then we met .and she found a soft spot inside my heart and ..
अनिल ने सुमन को बचाने के लिए सच बोल दिया की सुमन का break up हुआ था जिसके बाद से सुमन टूट चुकी थी और उसे cigarette पीने की लत पड़ गई|
संगीता: Shut up!
संगीता, अनिल पर चिल्लाई, उसे अनिल का सुमन की तरफदारी करना पसंद नहीं आया था| बेचारा अनिल डर के मारे खामोश हो कर बैठ गया! Cigarette पीने के साथ सुमन ने अपने break up की बात छुपा कर दोहरा जुर्म किया था जिससे संगीता का पारा और चढ़ चूका था!
संगीता: झूठ क्यों बोला मुझसे?
संगीता ने भोयें सिकोड़ कर सुमन को घूरते हुए पुछा|
सुमन: दीदी, मैं अपने past को याद नहीं करना चाहती थी|
सुमन ने सर झुकाये हुए बोला| ये आजकल की पीढ़ी का नया बहाना होता है, परन्तु संगीता को सब सच जानना होता है तो वो किसी भी तरह का बहाना नहीं सुनना चाहती|
संगीता: Its my 'baby' brother's life on the line, you have to dig your past and answer my every danm question!
संगीता बड़ी सख्ती से बोली| अपनी प्रियतमा पर अपनी दीदी की सख्ती देख कर अनिल परेशान हो गया था, इसलिए उसने अपनी दीदी को रोकना चाहा;
अनिल: Please दीदी...
परन्तु संगीता को अपने भाई की दखलंदाजी पसंद नहीं आई और उसने फिर से अनिल को झाड़ दिया;
संगीता: Shut up!
संगीता ने अनिल को झिड़कते हुए कहा और सुमन से सीधा सवाल पुछा;
संगीता: Why did you had a break up?
सुमन: I was fool to trust that he (सुमन का ex boyfriend) loves me.
इतना कह सुमन रो पड़ी! सुमन को रोता हुआ देख अनिल मेरी तरफ देखने लगा की मैं इस सवाल-जवाब को रोक दूँ!
मैं: Okay enough!
मैंने बीच में बोलते हुए संगीता को शांत होने का इशारा किया| संगीता मेरा इशारा समझ गईं और उसने सुमन के past के बारे में कोई सवाल नहीं किया| दो पल के लिए सब खामोश थे, इसी ख़ामोशी ने सुमन को खुद को सम्भलने का मौका दे दिया| सुमने ने अपने आँसूँ पोछे और संगीता को देखने लगी| संगीता की आँखों में अब भी सवाल थे, सुमन ने सर हाँ में हिला कर संगीता को आगे सवाल पूछने का मूक संकेत दिया;
संगीता: मेरे माँ-पिताजी गाँव के रहने वाले हैं, उनकी सोच बिलकुल गाँव वाली है| उन्हें नए जमाने की लड़कियाँ पसंद नहीं, उन्हें गाँव की देहाती लड़की चाहिए जो चूल्हे पर खाना बना सके| क्या तुम अनिल के लिए खुद को बदल सकती हो? तुम्हारा ये cigarette पीना, ये जीन्स-पैंट पहनना, ये सब बंद कर सकती हो?
संगीता के सवाल सुन सुमन सर हाँ में हिलाने लगी, इससे पहले की सुमन कुछ कहे संगीता ने उस पर अपना सबसे जर्रूरी सवाल फेंक कर मारा;
संगीता: और सब से जर्रुरी सवाल, क्या तुम अनिल के लिए अपने माँ-बाप को छोड़ सकती हो?
सुमन: दीदी आपके सारे सवालों का जवाब हाँ है!
सुमन ने बड़े आत्मविश्वास से कहा| सुमन की बातों में आज मुझे वैसा ही आत्मविश्वास दिख रहा था जैसा उस दिन संगीता की आँखों में था जब उसने (संगीता ने) अपने परिवार की जगह मुझे चुना था!
संगीता: Okay, No more questions dear!
संगीता ने मुस्कुराते हुए कहा| इतनी देर बाद आखिर संगीता के चेहरे पर मुस्कान आ ही गई थी!
संगीता: And I'm sorry for being so rude!
संगीता ने सुमन के साथ अपने किये गुस्से की माफ़ी माँगी|
सुमन: नहीं दीदी, मैं समझ सकती हूँ! आप अनिल की बड़ी बहन हो और आपको पूरा हक़ है सब बातें जानने का|
सुमन ने मुस्कुराते हुए कहा| सुमन एक दीदी के जज्बात समझ रही थी और उसके मन में संगीता के लिए कोई गुस्सा नहीं था! संगीता ने सुमन के सर पर हाथ फेरा और सारा मामला सुलझ गया|
अनिल पिताजी द्वारा दिए गए नम्बरों पर call करने लगा और बस वालों से किराए को ले कर भाव-ताव करने लगा| सुमन और संगीता बात करते हुए रसोई में खाना बनाने लगे तथा मैं site पर जाने के लिए तैयार होने लगा| इतने में दिषु का फ़ोन आया और उसने बताया की वो मेरा laptop लेने आ रहा है| मैं दिषु के आने तक रुक गया, जैसे ही दिषु ने घर में प्रवेश किया उसे देखते ही संगीता उससे नाराज होते हुए बोली;
संगीता: दिषु भैया, पिताजी ने मुझे बताया की आप शादी में इनकी (मेरी) तरफ से जाना चाहते हो?
ये सुनते ही दिषु और मैं हँसने लगे, हम दोनों दोस्तों को यूँ हँसते देख संगीता ने प्यार से अपना मुँह फुला लिया|
दिषु: भाभी जी, आप नहीं जानतीं पर आपकी तरफ से तो बहुत से लोग आ रहे हैं! अब मानु की तरफ से तो ले-दे कर एक मैं ही हूँ!
दिषु मुस्कुराते हुए बोला| दिषु की बातें सुन संगीता की उत्सुकता जाग गई की आखिर शादी में क्या होने वाला है पर दिषु ने साफ़ मना करते हुए कहा;
दिषु: अगर मैंने आपको कुछ बताया न तो अंकल-आंटी मेरी पिटाई कर देंगे!
इतने में अनिल और सुमन बैठक में आ गए, मैंने अनिल का तार्रुफ़ दिषु से करवाते हुए कहा;
मैं: अनिल, ये मेरा भाई जैसा दोस्त है दिषु....
मैं आगे कुछ कहता उससे पहले ही दिषु बोल पड़ा;
दिषु: भाई में जानता हूँ, facebook पर friend request आई थी अनिल की|
दिषु ने अनिल से हाथ मिलाते हुए कहा|
अनिल: वो जीजू मुझे दिषु भैया को thank you कहना था क्योंकि उन्होंने ही तो अपने cousin को मेरे पास अस्पताल में भेजा था|
इस तरह हम तीनों की बात शुरू हुई, फिर बारी आई सुमन के तार्रुफ़ की तो मैंने दिषु से कहा की "सुमन अनिल कि girlfriend है"| इस मुद्दे पर मैंने और दिषु ने मिल कर अनिल की खूब खिंचाई की!
खैर दिषु और अनिल में अच्छी दोस्ती हो गई थी और दोनों ने मिलकर मेरी शादी के कामो को ले कर बात करनी शुरू कर दी| मैंने दोनों को "bye" कहा और साइट पर निकल गया| अनिल के आ जाने से पिताजी का काम आसान हो गया था, ऊपर से दिषु भी अब शाम को पिताजी को गाडी में ले कर जाने लगा था| दरअसल पिताजी ने शादी का सारा इंतजाम banquet hall के जिम्मे न कर के अपने सर ले रखा था| वो कहते थे की मेरे इकलौते बेटे की शादी है तो सारी तैयारी मैं खुद ही करूँगा| जिस जूनून से मेरे माँ-पिताजी शादी की तैयारियों में लगे थे वो देख कर मुझे खुद पर बड़ा गर्व महसूस होता था की मुझे इतना प्यार करने वाले माता-पिता मिले हैं| जहाँ पिताजी शादी के लिए बाहर का काम संभाल रहे थे वहीं माँ ने संगीता और नेहा को ले कर दिषु के साथ tailor आंटी जी के जाना शुरू कर दिया था| दिषु की चचेरी बहन भी मेरी शादी attend करने के लिए बंगाल से आईं थीं, दुल्हन के शादी के जोड़े को ले कर सभी स्त्रियाँ (दिषु की मम्मी, चचेरी बहन, माँ) ने tailor आंटी का सर खपा दिया था! संगीता और नेहा को तो कई बार चीजें समझ ही नहीं आतीं थीं, वो बस सबकी हाँ में हाँ मिला दिया करते थे! वहीं बेचारे दिषु की हालत ड्राइवर की हो गई थी, वो बेचारा अपनी गाडी ले कर इधर-उधर घूमता रहता था!
दूसरी तरफ दूल्हे मियाँ, यानी मैं अपने काम-धँधे में लगा हुआ था, एक दिन शाम को दिषु ने मेरी class लगाई क्योंकि मैं अपने कपड़ों का trial लेने नहीं जा रहा था| वो पिताजी के साथ मुझे जबरदस्ती tailor master के लाया और मेरे कपड़ों का trial करवाया| Fitting में थोड़ी दिक्कत थी क्योंकि मैं थोड़ा मोटा हो गया था, जब ये बात संगीता को पता चला तो वो मेरा मजाक उड़ाने लगी| संगीता का यूँ मेरा मजाक उड़ाना मुझे थोड़ा बुरा लग गया और मैंने strict dieting शुरू कर दी| साला पाँच दिनों में मैं लगभग अपनी shape में आ गया था, मुझे वापस से shape में देख संगीता कान पकड़ कर मेरा मजाक उड़ाने के लिए "sorry" बोली|
वहीं मैं रोज रात को site पर overtime करवाता था, जब 6 तरीक आई तो पिताजी ने 7 तरीक को मुझे बाहर जाने से मना कर दिया| 7 तरीक की सुबह को जब मैं साइट से लौटा तो अनिल मेरा dining table पर इंतजार कर रहा था| माँ-पिताजी अपने कमरे में तैयार हो रहे थे और सुमन तथा संगीता घर के बाहर सब्जी खरीद रहे थे|
अनिल: जीजू, बैठो आपसे कुछ बात करनी थी|
अनिल ने मेरे बैठने के लिए कुर्सी खींचते हुए कहा|
मैं: हाँ जी!
मैं बैठा और अपनी पीठ टिका कर आराम करने लगा|
अनिल: जीजू, कल शादी है तो मैं सोच रहा था की आपकी bachelor's party का क्या होगा?
अनिल की बात सुन मैं चौंक गया और आँखें बड़ी कर के उसे देखने लगा|
मैं: What?
मुझे इस तरह से चौंकता हुआ देख अनिल हैरान हुआ और बोला;
अनिल: क्यों जीजू, आप drink नहीं करते?
मैं: अबे! मेरी छोड़ और तू अपनी बता, तू drink करता है?
मुझे लगता तो था ही की अनिल college hostel में रहते हुए पीता जर्रूर होता होगा, मगर फिर भी मैंने हैरान होने का नाटक करते हुए पुछा|
अनिल: सिर्फ beer पीता हूँ वो भी कभी-कभी roomie के साथ!
अनिल ने थोड़ा झिझकते हुए कहा|
मैं: अबे उस दिन तो तू अपनी दीदी से कह रहा था की तू कुछ खता-पीता नहीं?!
मैंने अनिल को भोयें सिकोड़ कर देखते हुए कहा|
अनिल: अब दीदी के सामने अगर कह देता की मैं beer पीता हूँ तो दीदी मुझे चप्पल से मारती! फिर beer शराब थोड़े ही होती है?!
अनिल ने खुद को बेगुनाह साबित करने की कोशिश करते हुए कहा|
मैं: आगर तेरी दीदी और सुमन को ये पता चला की तूने पी है तो बेटा 'स्त्री शक्ति' का सामना करने के लिए तैयार रहिओ|
मैंने अनिल को डरना चाहा, परन्तु वो जनाब तो पीने के mood में थे;
अनिल: Oh Come on जीजू! सुमन कुछ नहीं कहेगी और दीदी को संभालने के लिए आप हो तो सही!
अनिल ने चालाकी से मुझे संगीता का सामना करने के लिए आगे कर दिया और खुद बचना चाहा|
मैं: मैं तो बच जाऊँगा क्योंकि मैं पी ही नहीं सकता क्योंकि मैं संगीता और पिताजी को दिए वचन से बँधा हूँ| तू अपना देख लीओ!
मैंने पल्ला झाड़ते हुए कहा| अब कौन शादी वाले दिन अपनी होने वाली पत्नी का गुस्सा मोल ले! कहीं गुस्से में आ कर संगीता शादी करने से पलट गई तो? माँ-पिताजी ऊपर से पीट देते!
अनिल: Oh come on जीजू! Don't be a spoil sport!
अनिल मुझे पीने के लिए उकसाते हुए बोला|
मैं: Dude, no bachelor's party for me!
मैंने bachelor party देने से साफ़ मना करते हुए कहा|
अनिल: ठीक है तो मैं दिषु भैया से कह देता हूँ की आप party के लिए मना कर रहे हो|
अनिल ने अपनी चाल चलते हुए कहा|
मैं: दिषु? अच्छा? उसी ने आग लगाई होगी ये!
अब मैं समझ गया की bachelor's party का idea था किसका!
मैं: उससे मैं बात कर लूँगा|
मैंने बात हलके में लेते हुए कहा और कपडे बदलने के लिए अपने कमरे में जाने के लिए उठ खड़ा हुआ, ठीक तभी मेरे फ़ोन की घंटी बजी! मैंने फ़ोन देखा तो screen पर दिषु का नाम लिखा हुआ था, मेरी आँखें हैरत से बड़ी हो रहीं थी की तभी मैंने अनिल को एक नजर देखा तो पाया की उसके चेहरे पर कुटिल मुस्कान फैली हुई है!
मैं: हेल्लो!
मैंने फ़ोन कान से लगाते हुए कहा|
दिषु: बहनचोद अनिल ने अभी मैसेज किया की; 'जीजू isn't coming!' देख मैं पहले कह रहा हूँ, तू ज्यादा ड्रामे मत चोद, वरना घर आ कर तुझे खींच कर ले जाऊँगा! बहनचोद मेरे इकलौते दोस्त की शादी है और तू नखरे पेल रहा है!
दिषु भड़कते हुए बोला|
मैं: भाई पिछली बार का काण्ड याद है न?
मैंने दिषु को आगाह करते हुए कहा|
दिषु: याद है, तेरे से बड़ा काण्ड मेरे घर पर हुआ था! तुझे तो अंकल जी ने आसानी से छोड़ दिया था, मेरे बापू ने मेरी
ले ली थी!
दिषु चिढ़ते हुए बोला|
मैं: भाई, मैंने promise किया है...
दिषु जानता था की मैं अपने वादे से मुकरने वाला नहीं इसलिए वो मेरी बात काटते हुए बोला;
दिषु: ठीक है बहनचोद, तू मत पीयो पर हमें तो पीने दे! हमारे साथ तो चल ले!
अब मेरे ऊपर कोई बंदिश नहीं थी, अपने दोस्त को शादी से पहले दारु पिलाना तो बनता था!
मैं: ठीक है मैं चलूँगा, लेकिन तू पहले वादा कर की तू वहाँ जा कर; 'भाई नहीं है?' वाला dialogue मार कर मुझे blackmail नहीं करेगा?
ये दिषु की हरबार की चाल होती थी| जब भी खाने-पीने का मौका आता तो वो मुझे इसी तरह से emotional blackmail किया करता था|
दिषु: अच्छा ठीक है, I promise!
दिषु हँसते हुए बोला| हमने रात में मिलने का समय निर्धारित किया और ये सारी बातें सुन अनिल बहुत खुश हुआ|
अब पिताजी, जिन्होंने पीछे से हमारी सारी बात सुन ली थी वो मुझे ताना मारते हुए बोले;
पिताजी: हाँ भई, कहाँ जा रहे हो?
पिताजी की आवाज सुन, अनिल डर के मारे सर झुका कर खामोश हो गया| मैं पिताजी से झूठ नहीं बोलना चाहता था इसलिए मैंने उन्हें सब सच बता दिया;
मैं: पिताजी, वो दिषु bachelor's party माँग रहा था! अब एक ही तो भाई जैसा दोस्त है मेरा उसे मना कैसे करूँ?!
मैंने पिताजी को थोड़ा मस्का लगाने की सोची|
पिताजी: पहले तो ये बता की ये कौन सी party होती है?
मैंने जिस प्यार भरे ढंग से पिताजी को मस्का लगाया था उससे पिताजी मुस्कुरा कर पूछने लगे|
मैं: विलायती चोंचला है पिताजी! बाहर के देश में शादी होने से पहले दूल्हे को उसके दोस्तों द्वारा एक party दी जाती है जिसमें खूब खाना-पीना होता है, पर हमारे देश में ये काम दूल्हा खुद करता है! शादी में तो पीना-खाना हो नहीं सकता इसलिए वो पहले ही अपने दोस्तों को party दे देता है|
पीने का नाम सुनते ही पिताजी का खुशमिज़ाज चेहरा गंभीर हो गया;
पिताजी: बेटा....
पिताजी कुछ कहते उससे पहले ही मैं बोल पड़ा;
मैं: पिताजी मुझे आपको दिया हुआ वचन याद है, किसी भी हालत में मैं अपना वचन टूटने नहीं दूँगा! परन्तु दिषु को पीने से क्या बोल कर मना करूँ? इसलिए मैं आपसे विनती करता हूँ की मुझे सिर्फ उसे पिलाने के लिए जाने दीजिये, मैं खुद वहाँ कोई भी शराब नहीं पीयूँगा!
मैंने सच्चे मन से बात कही| पिताजी को अपने बेटे पर विश्वास था इसलिए उन्होंने गर्दन हाँ में हिलाते हुए इज्जाजत दे दी!
मुझे दिषु को शराब पिलाने की इजाजत मिल गई थी, अब बेचारा अनिल जो खामोश बैठा था वो सोच रहा था की उसके पीने की इजाजत मैं ही माँगूँ इसलिए मैंने पिताजी से उसके लिए भी बात की;
मैं: पिताजी, अनिल को भी ले जाऊँ?
पिताजी: बेटा, अच्छा नहीं लगता!
पिताजी ने कम शब्दों में अपनी बात कही| अब मुझे अनिल को ले जाना था वरना वो बेचारा प्यासा रह जाता;
मैं: आप ठीक कह रहे हैं पिताजी, पर आजकल इसकी उम्र में सब बियर तो पीते ही हैं! इस बेचारे को भी जाने दीजिये, बेचारे ने मेरी शादी में बहुत काम किया है!
मैं अनिल की हिमायत करते हुए बोला|
पिताजी: अगर बहु (संगीता) नाराज हुई तो तेरी जिम्मेदारी!
पिताजी ने अपने हाथ खड़े करते हुए कहा|
मैं: पिताजी, हमें किसी को कुछ बताने की जर्रूरत ही नहीं, हम रात को 9 बजे निकलेंगे और 12-1 बजे तक लौट आएंगे! आपको कोई झूठ भी नहीं बोलना पड़ेगा क्योंकि सब झूठ हम दोनों जीजा-साले ही बोलेंगे!
मैं मुस्कुराते हुए बोला| पिताजी ने मेरी पीठ पर प्यार से थपकी मारी और बोले;
पिताजी: बेटा, कर ले मस्ती! शादी हो गई फिर तेरे सारे
पर कट जायेंगे!
पिताजी हँसते हुए बोले| खैर पिताजी इस राज के राजदार हो गए थे, सिर्फ और सिर्फ इसलिए की उन्हें अपने बेटे पर विश्वास था की वो (मैं) कभी कोई गलत काम नहीं करेगा|
मैंने और अनिल ने मिलकर घर से निकलने का plan बना लिया था, ठीक साढ़े आठ बजे मैंने साइट से फ़ोन आने का नाटक किया और साइट पर निकलने के लिए तैयार होने लगा| Plan के मुताबिक अनिल ने एकदम से साथ चलने की बात कही और मैंने भी थोड़ा दिखावा कर के मान जाने की acting की| अब बच्चों ने जब हम दोनों को जाते हुए देखा तो उन्होंने जिद्द की;
नेहा: हम दोनों भी चलेंगे|
आयुष: हाँ जी!
आयुष ने अपना सर दाएँ-बाएँ हिलाना शुरू कर दिया| उसका यूँ सर हिलाना एक ख़ास मोहपाश था जिसे देख कर कोई भी उसे मना नहीं कर सकता था!
मैं: बेटा हमें आने में रात हो जाएगी, फिर कल सुबह जल्दी उठना होगा तो आप दोनों कैसे उठोगे?
मैंने दोनों बच्चों को बहलाना चाहा परन्तु दोनों नहीं माने|
अनिल: Chocolate किसे खानी है?
अनिल ने बच्चों का ध्यान भटकाते हुए कहा और बच्चों को साथ न आने के लिए chocolate का लालच दिया| आखिर थोड़ी न-नुकुर के बाद दोनों बच्चे मान गए| वहीं पिताजी बैठक में बैठे हम जीजा-साले का drama देख कर मुस्कुराने लगे|
खैर हम दोनों घर से निकले और गली के बाहर दिषु हमें इंतजार करता हुआ मिला| किसी को शक न हो इसलिए मैंने और अनिल ने सादे कपड़े पहने थे, जबकि दिषु का plan था अच्छे से bar में जाने का जहाँ इन कपड़ों में entry नहीं मिलती| दिषु अपने साथ अपना एक blazer लाया था जिससे अनिल का काम चल गया परन्तु मेरे लिए उसके पास एक जैकेट थी| मैंने जैकेट पहनी पर मुझे कुछ जची नहीं इसलिए मैंने दिषु को गाडी mall की तरफ लेने को कहा| Mall में मैंने अपने लिए एक बढ़िया सा blazer लिया और फिर हम सीधा bar पहुँचे| Bar पहुँच कर हमने सबसे पहले couch पकड़ लिया, जब waiter ने drinks menu दिया तो अनिल menu उठा कर देखने लगा|
दिषु: अरे ये बंद कर और कमाल देख!
दिषु ने अनिल के हाथ से menu card छीनते हुए कहा| अनिल हैरान हो कर दिषु को देखने लगा क्योंकि उसको समझ नहीं आया की कौन सा कमाल होने वाला है?! मैंने menu उठा लिया था और मैं पन्ने पलट कर देख रहा था, तभी दिषु मेरी बड़ाई करते हुए अनिल से बोला;
दिषु: तेरा जीजा जब पीता था तो ऐसे-ऐसे ब्रांड पिलाता था की कभी हमने नाम भी नहीं सुना होगा! वो तो इसने (मैंने) पीना छोड़ दिया वरना ये तो दारु की तो नस-नस से वाक़िफ़ है!
अपनी बड़ाई सुन मैं मुस्कुरा दिया और हँसते हुए दोनों से पुछा की वो क्या पीयेंगे;
अनिल: मैं तो beer लूँगा!
अनिल ने बियर का चुनाव किया तो दिषु उसे चढ़ाते हुए बोला;
दिषु: भक! अपने जीजा की bachelor's party में तुझे beer पीनी है? अबे आज तो बोतल खुलेगी!
दिषु मेरी ओर देखते हुए शैतानी हँसी हँसते हुए बोला|
मैं: भाई तेरा तो ठीक है, पर इसने (अनिल) कभी दारु नहीं पी, ये संभाल नहीं पायेगा!
मैंने अनिल को दारु पीने से बचना चाहा मगर अनिल को दिषु के कहने से दारू की हवा लग गई थी, इसलिए वो अपनी शेखी बघारते हुए बोला;
अनिल: कोई बात नहीं जीजू, आज try कर के देखता हूँ!
मैं: नहीं! तूने शराब पी है, ये बात घर पर पता चल गई तो तेरी दीदी बिना शादी किये मुझसे divorce ले लेगी! तुझे beer पीनी है न, मैं तुझे अच्छी वाली beer पिलाता हूँ|
मेरी बात सुन कर अनिल का मुँह बन गया था, परन्तु वो कुछ कह नहीं पाया|
मैं: तू (दिषु) पूरी एक बोतल पी लेगा?
मैंने दिषु से पुछा तो उसके चेहरे पर ख़ुशी ऐसे आई जैसे मैंने उससे अमृत पीने को पुछा हो!
दिषु: भाई, ये भी कोई पूछने की बात है, बहनचोद एक क्या दो बोतल पी लूँगा!
दिषु हवा में उड़ते हुए बोला| मैंने waiter को बुलाया और दिषु के लिए Red Label की पूरी बोतल मँगवाई और अनिल के लिए 2 'lager' beer मँगवाई| अनिल ने आजतक बस वही kingfisher की लाल वाली beer पी थी, इसलिए lager का नाम सुन कर वो हैरान हुआ| अब खाने की बारी आई तो मैंने अपने और दिषु के लिए chicken की item मँगवाई, मुझे chicken का order देता देख अनिल हैरान हुआ| साफ़ था की वो nonveg नहीं खाता इसलिए मैंने उसके लिए pizza मँगवा दिया| सब order लिख कर waiter चला गया और इधर अनिल मुझसे पूछने लगा;
अनिल: जीजू आप nonveg खाते हो?
मैं: तेरी दीदी भी खाती है, मतलब अभी तक उसने सिर्फ अंडा ही खाया है पर धीरे-धीरे वो भी खाने लगेगी!
अपनी दीदी के अंडा खाने की बात जानकार अनिल हैरान हुआ और मैं जब संगीता को chicken खिलाने की बात कही तो वो (अनिल) हँसने लगा|
खाना-पीना शुरू हुआ और bar में बज रहे गानों को सुन कर अनिल और दिषु पर सुरूर चढ़ने लगा| वो दोनों डंगर तो मजे से अपनी-अपनी beer और दारु पी रहे थे और मैं इधर thumbs up और चिकन खा रहा था! 'क्या दिन आ गए बहनचोद, सामने दारु है मगर पी नहीं सकते!' मैं मुस्कुराते हुए मन में बड़बड़ाया| मुझे दारु न पी पाने का कोई पछतावा या कोई खीज नहीं थी, बस थोड़ा अजीब लग रहा था की मेरा दोस्त पी रहा है और मैं चिकन खा रहा हूँ!
उधर अनिल और दिषु को जब सुरूर चढ़ने लगा तो दोनों ने मिल कर मेरी तारीफों के पुल बाँधने शुरू कर दिए;
अनिल: जीजू, ये beer तो एकदम मस्त है! कोई बदबू नहीं, इतनी जल्दी चढ़ भी नहीं रही, बड़ी
soft सी है!
मैं: वो इसलिए की ये ताज़ा beer है, पीछे brewing tank लगा है जहाँ beer बनती है|
मैंने इशारे से अनिल को beer brewing tank दिखाते हुए कहा| Brewing tank देख अनिल की आँखें बड़ी हो गेन, उसने कभी नहीं सोचा था की उसे brewing tank देखने को मिलेगा| अब बारी आई दिषु की जिसे दारु दिमाग में
hit करने लगी थी;
अनिल: भाई दारु तो ये है बहनचोद! गले से उतरते हुए ऐसी लगती है जैसे शहद हो! खुशबु भी बहुत बढ़िया है!
दिषु की बात सुन मैं मुस्कुराया और (
) इस तरह झुक कर उसकी तारीफ स्वीकार की|
इधर अनिल ने अपने दोनों गिलास beer के निपटाए और उधर दिषु ने आधी बोतल खत्म की| अब दोनों की गाडी दुसरे gear में जा चुकी थी, अनिल ने एक गिलास beer और मँगवा ली| दोनों की गाडी दूसरे gear में जाते ही दोनों ने अब नाचना था| दोनों ने मेरा हाथ पकड़ कर मुझे dance floor पर खींचा| अब हम तीनों ने बढ़िया से नाचना शुरू किया और तब तक नाचे जब तक दोनों की गाडी तीसरे gear में नहीं पहुँच गई|
तीसरे gear में आते-आते, अनिल तीन glass beer डकार चूका था और दिषु ने मेरे लाख मना करने के बावजूद अनिल को जबरदस्ती एक 30ml दारु का पेग पिला दिया! अब अनिल के मुँह दारु का स्वाद लग चूका था इसलिए उसने हिलते-डुलते दूसरा पेग बनाया| मैंने उसे रोकना चाहा तो दिषु ने मेरा हाथ पकड़ कर मुझे खींच कर बिठा लिया और इस मौके का फायदा उठा कर अनिल neat पेग खींच गया| दोनों बेवड़ों की गाडी अब full speed से दौड़ रही थी और अब उन्हें मुझ पर बहुत ज्यादा प्यार आ रहा था| दिषु हिलते-डुलते washroom गया तो अनिल उठ कर couch पर बैठ गया और मेरे सीने से लगते हुए भावुक हो गया;
अनिल: ज...जी....जीजू.....ऊऊऊ....में...मेरी....दीदी.........का....
अनिल नशे में बोलने की कोशिश कर रहा था, मगर उसके मुँह से शब्द खींच-खींच कर बाहर आ रहे थे| वो आगे कुछ कहता उससे पहले ही दिषु एक waiter का सहारा ले कर वापस आ गया और धम्म से couch पर मेरी दूसरी बगल गिर गया|
अनिल: दीदी....का....खा...ख्याल...रखना!
अनिल ने बड़ी मुश्किल से बात पूरी की| अनिल ने आज पहलीबार दारु पी थी इसलिए वो दो पेग में ढेर हो रहा था, वहीं दिषु पुराना खिलाड़ी था इसलिए उसे बोलने में कोई दिक्कत नहीं होती थी| अनिल की बात सुन वो मुझे पर फक्र करते हुए बोला;
दिषु: अबे....मेरा भाई तेरी दीदी से कितना प्यार करता है ये तू नहीं जानता! मैं जानता हूँ, ये बहनचोद पक्का वाला आशिक़ है! तू चिंता मत कर ये भाभी (संगीता) का अच्छे से ख्याल रखेगा! मेरा प्यारा भाई (मैं)!
ये कहते हुए दिषु भी मेरे सीने से लग गया|
दोनों के दोनों टल्ली हो चुके थे और अब समय था घर जाने का, मैंने waiter को बुलाया तो वो कहने लगा की अब हम लोगों को drinks serve नहीं की जायेगी| मैंने हँसते हुए उसे कहा की मुझे bill चाहिए, तो उसने मुझे bill ला कर दिया| Bill बहनचोद अच्छा खासा आया, जिसे देख कर मेरे होश उड़ गए! खैर bill तो भरना था, bill भर कर मैंने अनिल और दिषु को होश में लाने की कोशिश की| दोनों को अपने कँधे का सहारा दे कर खड़ा किया, दिषु तो फिर भी हिल- डुल कर चल पा रहा था पर अनिल का तो हाल बुरा था| वो किसी लाश की तरह मेरे ऊपर अपना सारा वजन डाले खड़ा हुआ था| उधर दिषु की नजर दारु की बोतल पर पड़ी, जिसमें अभी 10-15ml दारु बची हुई थी, उसने फ़ट से बोतले उठा ली और उसकी ये हरकत देख मैं हँस पड़ा| "भाई पैसे दिए हैं, ऐसे-कैसे छोड़ दूँ!" दिषु दारु की बोतले पर इतराते हुए बोला|
हम तीनों गाडी तक पहुँचे, दिषु आगे बैठा और अनिल पीछे सीट पर फ़ैल कर सोने लगा| मैंने गाडी पहले दिषु के घर की तरफ ली, गाडी चलाते समय मैंने घडी देखि तो रात के डेढ़ बज रहे थे| आगे पुलिस का checkpoint था, दिषु को पता नहीं क्या जोश चढ़ा उसने बोतल अपने होठों से लगाई और बची-कुचि दारु गट-गट पीने लगा| फिर उसने गाडी में गाना जोर से चला दिया और गाने के बोल जोर से दुहराने लगा!
मैं: भोसड़ी के ज्यादा मस्ती सूझ रही है तुझे?
मैंने हँसते हुए दिषु से कहा तो उसके चेहरे पर कटीली मुस्कान फ़ैल गई| इतने में गाडी checkpoint पहुँच गई| पुलिस वाले ने गाडी के सामने वाले शीशे से दिषु के ड्रामेबाजी देख ली थी इसलिए उसने गाडी रुकवाई और मुझे शीशा नीचे करने को कहा| जैसे ही मैंने गाडी का शीशा नीचे किया, पुलिस वाले को शराब का भभका सूँघने को मिला! पुलिस वाला मुँह बिदका कर कुछ कहने को हुआ इतने में दिषु सीट पर बैठे-बैठे नाचने लगा और गाना गाने लगा;
दिषु: आज मेरे भाई की शादी है, आज मेरे भाई की शादी है!
दिषु को झूमते हुए देख पुलिस वाला हँस दिया और मुझसे बोला;
पुलिस वाला: ये तो Full tight है, ये पीछे कौन पड़ा है?
मैं: मेरा साला है और ये जो गाना गाये रहा है ये मेरा दोस्त है|
मैंने मुस्कुराते हुए कहा क्योंकि दिषु तो अपना गाना गाने में मस्त था| पुलिस वाला मुस्कुराया और मुझसे पूछने लगा;
पुलिस वाला: तूने नो नहीं पी रखी?
मैं: नहीं सर!
मेरी बातों में आत्मवविश्वास झलक रहा था इसलिए पुलिस वाले ने मुझे जाने का इशारा किया| कुछ देर और मस्तीबाजी करते हुए दिषु; "मेरे यार की शादी है" गाना जाता रहा और गाना गाते-गाते ही सो गया!
दिषु के घर पहुँच मैंने उसे सहारा दे कर गाडी से बाहर निकाला| उसकी हालत देख कर मैं थोड़ा डर रहा था, दरवाजा अंकल-आंटी जी में से कोई खोलता और दिषु की ये हालत देख कर वो मुझसे सवाल करने लगते! "भोसड़ी के आज तेरे चक्कर में अंकल-आंटी जी मुझे सुनाएंगे!" मैं दिषु को अपने कँधे पर टाँगें हुए बोला, पर दिषु तो नींद में था सो उसने कोई प्रतिक्रिया नहीं दी| मैंने दरवाजे की घंटी बजाई तो दरवाजा दिषु की नौकरानी ने खोला, दिषु की हालत देख कर वो समझ गई की आज वो पी के टुन्न है, इसलिए उसने मुझे भीतर आने को कहा| मैं दिषु को उसके कमरे में लाया और उसे बिस्तर पर लिटा कर जैसे ही मुड़ा की पीछे अंकल जी (दिषु के पिताजी) खड़े हुए थे|
दिषु के पिताजी: आज फिर पी?
अंकल जी ने मुस्कुराते हुए सवाल पुछा| मुझे तो लगा था की आज अंकल जी डाटेंगे परन्तु वो तो मुस्कुरा रहे थे?!
मैं: Sorry अंकल जी|
मैंने शर्माते हुए सर झुका कर कहा|
दिषु के पिताजी: कोई बात नहीं बेटा, आज ये बुद्धू (दिषु) बता कर गया था|
अंकल जी मुस्कुराते हुए बोले| अंकल की बात सुन मैंने चैन की साँस ली की चलो डाँट खाने से बच गए!
दिषु के पिताजी: लेकिन बेटा, तुम तो पिए हुए नहीं लग रहे?
अंकल जी ने थोड़ा हैरान होते हुए पुछा|
मैं: जी, वो दरअसल पिछलीबार वाली बेवकूफी के बाद मैंने पिताजी से वादा किया था की मैं कभी शराब नहीं पीयूँगा|
मेरी बात सुन उन्हें मुझ पर गर्व हुआ, परन्तु फिर भी वो हँसते हुए पूछने लगे;
दिषु के पिताजी: तो ये कैसी bachelor's party थी जहाँ दूल्हे को छोड़ के सबने पी!
अंकल जी की बात सुन मैं और अंकल जी दोनों हँसने लगे|
दिषु के पिताजी: वैसे अच्छा है बेटा, काश ये पागल भी तुम्हारी तरह होता|
अंकल जी ठंडी आह भरते हुए बोले| फिर उन्होंने घडी देखि तो रात के ढाई बज रहे थे;
दिषु के पिताजी: बेटा रात बहुत हो रही है, तुम यहीं सो जाओ|
मैं: Sorry अंकल जी, वो मेरा साला गाडी में है, मैं उसे घर छोड़ के गाडी वापस ले आता हूँ|
मैंने कहा तो अंकल जी एकदम से बोले;
दिषु के पिताजी: नहीं-नहीं बेटा! इतनी रात गए बाहर मत घूमो, गाडी लेने कल इस पागल (दिषु) को भेज दूँगा| गाडी संभाल कर चलाना और पहुँच कर मुझे फ़ोन कर देना|
अंकल जी ने चिंता व्यक्त करते हुए कहा|
मैं: Thank you अंकल जी! Good night!
मैंने हाथ जोड़ कर अंकल जी को धन्यवाद दिया|
दिषु के पापा: Good Night बेटा!
अंकल जी मुस्कुराते हुए बोले|
गाडी भगाते हुए मैं घर पहुँचा, फिर अनिल को जगाने लगा पर वो उठा ही नहीं| आखिर उसे अपने कँधे का सहारा दे कर घर लाया, घर से निकलते समय मैंने अपनी चाभी ले ली थी| मैंने अपनी उन्हीं चाभियों से दरवाज़ा खोला और बिना कोई आवाज किये सीधा अपने कमरे की ओर बढ़ा| जैसे ही मैंने दरवाजा खोला तो कमरे में मौजूद zero watt के bulb की रौशनी में मुझे संगीता और सुमन सोते हुए नजर आये| मैं धीरे से पीछे हो लिया और संगीता वाले कमरे में पहुँचा, मैंने अनिल को लिटाया और उस पर रजाई डाल दी| मैं बैठक में पानी पीने आया, थोड़ी भूख लगी थी इसलिए मैं एक केला खाने लगा, तभी नेहा जो मेरे कमरे का दरवाज़ा खोलने से जाग गई थी वो उठ के आ गई|
नेहा: पापा जी, दादा जी तो कह रहे थे की आप सुबह आने वाले हो?
नेहा ने आँख मलते हुए सवाल किया|
मैं: Awwww मेरा बच्चा, सोया नहीं? इधर आओ!
मैंने नेहा के सवाल का जवाब नहीं दिया बल्कि अपनी बातों में फुसला कर उसे अपने पास बुलाया| नेहा आ कर मुझसे लिपट गई और नींद पूरी न होने के कारन उबासी लेते हुए बोली;
नेहा: पापा जी, आपके बिना नींद नहीं आती|
मैं: Awwwww मेरा बच्चा!
मैंने नेहा को अपनी बाहों में कस लिया और सर को चूमने लगा|
नेहा को मेरे साथ सोना था और नेहा को अपने साथ ले कर मैं अनिल के साथ नहीं सो सकता था क्योंकि अनिल दारु से महक रहा था! नेहा के बचपन का काफी हिस्सा चन्दर के मुख से दारु की महक सूँघते हुए निकला था और मैं अपनी बेटी को इस गंदी महक से दूर रखना चाहता था| इसलिए इस वक़्त सिवाए बैठक में सोने के मेरे पास और कोई चारा नहीं था, बैठक में भी बस एक सोफे ही था जिस पर केवल एक व्यक्ति सो सकता था! मैं अंदर से एक रजाई ले आया, फिर नेहा को अपनी गोदी में उठा कर पीठ के बल लेट गया और दोनों के ऊपर रजाई डाल ली| नेहा ने मुझे अपनी बाहों में कसना चाहा और उसके प्यार ने मुझे बड़ी गहरी नींद के आगोश में पहुँचा दिया|
सुबह के साढ़े पाँच बजे थे और संगीता सबसे पहले जाग गई थी| बैठक में आ कर उसने रजाई देखि तो उसने खींच कर मेरे ऊपर से रजाई निकाल दी| रजाई एकदम से हटी तो मैं एकदम से उठ गया, उधर संगीता भोयें सिकोड़े हुए गुस्से से मुझे नेहा से लिपटे हुए लेटा देख रही थी!
संगीता: आप यहाँ क्या कर रहे हो?
संगीता गुस्से से बोली|
मैं: Good morning बाबू!
मैंने संगीता का गुस्सा शांत करने के लिए उसे मस्का लगाते हुए कहा, परन्तु संगीता का पारा चढ़ने लगा था! उस दिन मैंने एक जर्रूरी सबक सीखा था, वो ये की जब पत्नी गुस्से में हो तो उसे मस्का नहीं लगाना चाहिए! इधर संगीता को शक हो गया था की जर्रूर मैंने कल रात कोई काण्ड किया है तभी मैं उसे मस्का लगाने की कोशिश कर रहा हूँ;
संगीता: You didn't answer me?
संगीता गुस्से दाँत पीसते हुए बोली| मुझे उस वक़्त मस्ती सूझ रही थी इसलिए मैंने शराबियों की तरह अपनी एक आँख बंद की और संगीता को छेड़ते हुए बोला;
मैं: रात को जल्दी लौट आया था!
संगीता: Seriously?
संगीता ने मुझे घूर कर देखते हुए पुछा| मैंने छोटे बच्चे की तरह सर हाँ में हिलाते हुए कहा|
संगीता: तो यहाँ क्यों सोये हुए हो? और ये आपके कपडे कौन से हैं? और अनिल कहाँ है?
संगीता ने मुझे पर अपने सवालों की बौछार कर दी| मैं समझ गया था की आज तो हम दोनों जीजा साले की शामत है, इसलिए मैंने साधारण तरीके से बात करने की सोची;
मैं: अनिल अंदर सो रहा है!
मैंने संगीता के कमरे की तरफ इशारा किया| वहीं माँ-पिताजी उठ चुके थे और बैठक से आ रही आवाजें सुन वे बाहर आ गए;
पिताजी: क्या हुआ भई? अरे मानु, तू यहाँ क्यों सो रहा है?
पिताजी बात शुरु करते हुए पूछने लगे|
मैं: जी वो...
मैं कुछ कहता उससे पहले ही संगीता ने पिताजी से मेरी शिकायत कर दी;
संगीता: देखिये न पिताजी, पता नहीं कल रात ये दोनों (मैं और अनिल) कहाँ गए थे? इनके (मेरे) कपडे देखिये, रात को कब आये कुछ पता नहीं? नेहा यहाँ कैसे पहुँची, कुछ पता नहीं? अनिल कहाँ है, कुछ पता नहीं?
संगीता को परेशान देख पिताजी ने सारा राज़ खोल दिया;
पिताजी: बेटा बात ये है की ये तीनों, मतलब ये (मैं), अनिल और दिषु मुझे बता कर party करने गए थे!
पार्टी का नाम सुनते ही संगीता मुझे गुस्से से घूर कर देखने लगी और बोली;
संगीता: Party? मतलब आपने शराब पी?
संगीता के चेहरे पर गुस्सा देख मैं समझ गया की भाई आज तो इसने शादी के लिए मना कर देना है, इसलिए मैंने फ़ौरन अपनी सफाई पेश कर दी;
मैं: नहीं जान! मैंने पिताजी और आपसे वादा किया था न की मैं कभी शराब नहीं पीयूँगा!
मेरे मुँह से अचानक 'जान' शब्द सुन कर माँ-पिताजी मुस्कुराने लगे थे और मुझे भी जब ये एहसास हुआ तो मेरे चेहरे पर भी मुस्कान आ गई थी| उधर संगीता, माँ-पिताजी के सामने पहली बार अपने लिए जान शब्द सुन कर जैसे-तैसे अपनी मुस्कान दबा रही थी की तभी मेरे चेहरे पर आई मुस्कान देख संगीता के चेहरे पर मुस्कान एक महीन रेखा आ गई!
संगीता: अनिल कहाँ है?
संगीता ने अपनी मुस्कान छुपाते हुए नकली गुस्सा दिखाते हुए सवाल पुछा| दरअसल अपनी मुस्कान छुपाने के चककर में संगीता के मुँह से एक ही सवाल दुबारा निकल गया| मुझे उस समय बहुत हँसी आ रही थी और मेरे चेहरा हँसी के कारण चमक रहा था, ठीक तभी अनिल अपना सर पकडे हुए बाहर आया|
अनिल: मैं इधर हूँ दीदी! आह! मेरा सर दर्द से फट रहा है!
अनिल की हालत देख कर कोई भी कह सकता था की उसने कितनी पी थी| इधर संगीता समझ चुकी थी की अनिल ने शराब पी रखी है;
संगीता: तूने शराब पी?
संगीता अनिल को कच्चा खा जाने वाली नजरों से देखते हुए चिल्ला कर बोली!
अनिल: स....Sorry दीदी...सब मेरी गलती है....जीजू को कुछ मत कहना....उन्होंने कुछ नहीं किया....ये सब मेरा और दिषु भैया का प्लान था| जीजू ने बहुत मना किया था पर हमारे जोर देने पर वो हमारे साथ bachelor's party के लिए गए थे, लेकिन उन्होंने वहाँ एक बूँद भी शराब नहीं पी! उनकी कोई गलती नहीं! प...please!
अपनी दीदी का गुस्सा देख अनिल की फ़ट के चार हो गई थी! कहीं आज के दिन घर में कलेश न खड़ा हो जाए इसलिए अनिल ने मुझे बचाने के लिए सब सच बोल दिया| वैसे वो था बहुत होशियार उसने अपनी दीदी के सवाल का जवाब नहीं दिया था! खैर ये अनिल की सोच थी की वो संगीता के सवालों से बच जायेगा, क्योंकि संगीता ने अगले ही पल अपना सवाल गुस्से में फिर दोहराया;
संगीता: तूने शराब कब से पीनी शुरू की?
संगीता का सवाल सुन अनिल खामोश हो गया था और उसकी ये ख़ामोशी संगीता को गुस्सा दिला रही थी! संगीता ने एकदम से अनिल का बायाँ कान पकड़ कर उमेठ दिया और गुस्से से फिर चिल्लाई;
संगीता: मैंने तुझसे कुछ पुछा है? शर्म नहीं आती तुझे शराब पीते हुए?!
अनिल बेचारा घबरा कर काँपने लगा और बोला;
अनिल: वो...hostel में....वो roomies के साथ कभी-कभी beer पीता हूँ!
ये सुनते ही संगीता गुस्से में गरज पड़ी;
संगीता: मुझसे झूठ बोलते हुए तुझे शर्म नहीं आती तुझे?!
इतना कह संगीता, अनिल पर हाथ छोड़ने लगी की तभी मैंने संगीता का हाथ रोक लिया| संगीता माँ-पिताजी के लाज और मेरे डर के मारे मुझे कुछ कह नहीं सकती थी इसलिए उसने सीधा पिताजी से शिकायत की;
संगीता: देखा पिताजी?
पिताजी आज के दिन कोई कलेश नहीं चाहते थे इसलिए उन्होंने बात सँभालते हुए कहा;
पिताजी: बेटा (संगीता) आज की नई पीढ़ी ऐसी ही है! तू चिंता न कर बेटा मैं कल इसे (अनिल को) अच्छे से समझा दूँगा| फिलहाल ये सब बातें छोडो, आज शुभ दिन है, तुम दोनों की शादी है और आज के दिन कलेश करना ठीक नहीं!
पिताजी की बात सुन संगीता कुछ नहीं बोली और सर झुका कर खड़ी रही| उसे बुरा लग रहा था की आज के दिन भी उसने अपने गुस्से से कलेश करना चाहा था! उधर पिताजी ने संगीता को ग्लानि से बचाने के लिए बात बदल दी;
पिताजी: मानु की माँ, अनिल को चाय दो ताकि इसका सर दर्द बंद हो और ये आज के काम सँभाले|
पिताजी की बात से सब का ध्यान कलेश की तरफ से हट गया| गौर करने वाली बात ये थी की मेरी माँ ख़ामोशी से सब देख और सुन रहीं थीं, उन्होंने मुझे एक शब्द भी नहीं कहा| उसका एक बहुत बड़ा कारण था और वो ये की मेरी माँ जानती थीं की मैं बेगुनाह हूँ! अगर मैं गुनहगार होता तो मेरी शक्ल पर बारह बजे होते और फिर माँ मेरी अच्छे से class लगा देतीं! खैर माँ छाया बनाने जा रहीं थीं की तभी अनिल बोल पड़ा;
अनिल: पिताजी बस एक कप चाय और मैं सब काम सँभाल लूँगा!
अनिल अपनी दीदी से नजर चुराते हुए बोला| तभी सुमन जो सबसे पीछे खड़ी थी वो बोली;
सुमन: आंटी जी, मैं चाय बनाती हूँ|
सुमन चाय बनाने घुसी और मैं बिना कुछ कहे नेहा को गोद में ले कर अपने कमरे में आ गया| नेहा भी भी सो रही थी इसलिए मैंने उसे लिटा दिया और रजाई ओढ़ा दी|
मैं बिना कुछ कहे अपने कमरे में आया था इसलिए संगीता को लग रहा था की मैं उससे नाराज हूँ, इसलिए मुझे मनाने के लिए संगीता सब से छुप कर मेरे कमरे में आ गई| मैं अभी कपडे बदल ने लगा था की संगीता अपने कान पकड़ते हुए बोली;
संगीता: Sorry!
मैं संगीता से नाराज नहीं था इसलिए मैंने तुरंत मुस्कुरा कर जवाब दिया;
मैं: Its okay जानू! Quick, gimme a kiss and smile!
मेरी बात सुन संगीता अपने होठों पर हाथ रखते हुए बोली;
संगीता: कोई Kissi-vissi नहीं मिलेगी! अब जो भी मिलेगा सब रात को मिलेगा!
संगीता एक कुटिल मुस्कान हँसते हुए बोली| ये संगीता का मुझे तंग करने का तरीका था|
मैं: यार that's not fair! कम से कम अभी जो आपने बेवजह का गुस्सा किया उसके हर्जाने में ही एक kiss दे दो!
मैं प्यार से मिन्नत करते हुए बोला| मगर संगीता को मुझ पर तरस नहीं आया, वो गर्दन ना में हिलाने लगी!
नतीजन मैं ठंडी आह भरते हुए bathroom जाने के लिए पलटा, तभी संगीता ने मुझे जोर से अपनी तरफ घुमाया और अपने पंजों पर खड़े होते हुए मेरे लब से अपने लब मिला दिए! संगीता कहीं भागे नहीं इसलिए मैंने अपने दोनों हाथों को उसकी कमर पर ले जाते हुए कस लिया और संगीता के लबों का रस पीने लगा! संगीता का जिस्म मेरी बाहों में आ कर पिघलने लगा था, उसके दोनों हाथ मेरी पीठ पर चलते हुए रास्ता बना रहे थे| वहीं संगीता के जिस्म की महक मुझे उसका दीवाना बना रही थी और मैं इस वक़्त अलग ही नशे में चूर था!
इस वक़्त समा इतना romantic था की हम दोनों को ही ये एहसास नहीं था की कमरे का दरवाजा खुला हुआ है! अभी बस 2 मिनट हुए थे की सुमन मेरी चाय ले कर कमरे में आ गई, हम दोनों को एक दूसरे से लिपटे देख वो मुस्कराई और नकली खाँसी खाते हुए बोली;
सुमन: Love birds के लिए चाय लाई हूँ!
सुमन की आवाज सुन हमारा चुंबन टूट गया! संगीता बेचारी लाज के मारी दोहरी हो रही थी इसलिए उसने अपना चहेरा मेरे सीने में छुपा लिया| उधर सुमन ढीठ बन गई और चाय टेबल पर रख कर हाथ बाँधे हम दोनों को देखने लगी मैंने उसे इशारे से जाने को कहा भी तो वो सर न में हिलाते हुए कुटिल हँसी हँसने लगी| तभी वहाँ अनिल आ गाया और उसने जब कमरे के भीतर का नजारा देखा तो वो सुमन का हाथ पकड़ कर उसे खींच कर बाहर ले गया|
जब दोनों बाहर चले गए तब मैंने संगीता से कहा;
मैं: Hey, they're gone!
'They' शब्द सुनते ही संगीता आँखें बड़ी कर के मुझे देखने लगी!
संगीता: They?
मैं: हाँ अनिल और सुमन|
मैंने मुस्कुराते हुए कहा| अनिल का नाम सुन संगीता अपना सर पीटते हुए बोली;
संगीता: हे राम!
संगीता इस वक़्त लालम-लालम हो चुकी थी और उसके चेहरे पर ये लाली मुझे बहका रही थी! मैंने संगीता को अपने नजदीक खींचा और उसके होठों के नजदीक जाते हुए बोला;
मैं: चलो जल्दी से kiss निपटाओ और ....
संगीता ने एकदम से मेरी बात काट दी और बोली;
संगीता: न बाबा न! बस अब और kissi नहीं! पहले ही इस सुमन की बच्ची ने मुझे आपके साथ देख लिया है, अब सारा दिन मुझे ये आपका नाम ले-ले कर छेड़ेगी!
संगीता सुमन से चिढ़ते हुए बोली|
मैं: क्यों, सुमन क्या कहती है?
मैंने पुछा भर था की संगीता ने सुमन की शिकायत शुरू कर दी;
संगीता: लुच्ची है एक नंबर की! सारा दिन कहती रहती है की; "दीदी आप कितने नसीब वाले हो जो आपको जीजू जैसा husband मिला है! जीजू तो आपको सारी रात सोने नहीं देंगे, आपकी हालत खराब कर देंगे" और भी न जाने क्या-क्या कहती रहती है!
ये कहते हुए संगीता लजाने लगी|
मैं: अरे सही तो कह रही है!
मैंने संगीता से थोड़ी दिल्लगी करते हुए कहा तो संगीता मुझे जीभ चिढ़ाते हुए भाग गई!
चाय पी कर, नाहा-धो कर मैं तैयार हुआ, दोनों बच्चे जाग चुके थे और मेरा इंतजार कर रहे थे| मेरे नहा कर आते ही दोनों बच्चे आ कर मेरी गोद में चढ़ गए, नाश्ता बना और सबने नाश्ता किया| नाश्ते के बाद पिताजी ने मुझे आज के दिन के बारे में थोड़ी सी जानकारी देते हुए कहा;
पिताजी: हाँ तो लाड साहब, रात 9 बजे का मुहूरत है| शादी के लिए मैंने छतरपुर में एक farmhouse book किया था, दोपहर 3-4 बजे तक मेहमान आने शुरू हो जायेंगे| बहु, सुमन, अनिल, मिश्रा जी का परिवार और दिषु का परिवार सब हमसे पहले निकलेंगे और farmhouse पर पहुँचेंगे| सभी औरतें वहीं तैयार होंगी और वहाँ की सभी तैयारी अनिल फिर से check कर लेगा| हम बरात ले कर ठीक 7 बजे निकलेंगे, अंदाजन 8 बजे तक हम farmhouse पहुँच जायेंगे!
जिस तरह से पिताजी ने इतने दिनों से अपना ये surprise बरकरार रखा था वो क़ाबिले तारीफ था| पिताजी की बात सुन मैं मुस्कुराया और सर हाँ में हिलाने लगा| पिताजी ने सबको अपने-अपने काम बता दिया थे, बस बच्चों को क्या करना है ये उन्होंने नहीं बताया था|
नेहा: दादा जी हम दोनों (नेहा और आयुष) को क्या करना है?
नेहा का सवाल सुन सब लोग हँस पड़े| मुझे और संगीता को छोड़कर इस शादी में हर कोई काम कर रहा था, इसलिए बच्चों को ताव आना जायज़ बात थी!
पिताजी: बेटा आपको अपनी मम्मी के साथ रहना है और वहाँ (farmhouse) पर अपने अनिल मामू की बातें माननी हैं|
पिताजी ने नेहा को प्यार से समझाते हुए कहा| तभी आयुष ने अपना हाथ उठा दिया और अपने दादाजी से पूछने लगा;
आयुष: और दादा जी मैं?
पिताजी: बेटा आप मेरे साथ रहोगे, हम दोनों दादा-पोते आज एक जैसे कपडे पहने होंगे न तो, कहीं कोई मेरी जगह आप से बात करने लगा तो?
पिताजी का बचपना देख सभी लोग जोर से ठहाका लगाने लगे|
मेरे पूरे घर का माहौल चहल-पहल भरा था, पिताजी अपनी ख़ुशी के मुताबिक सारा काम अपने सर पर लिए बैठे थे| करने को वो कोई event management वाली company से बात कर सकते थे, परन्तु उनका बड़ा चाव था की अपने बेटे की शादी के सारे काम खुद करवाने का| पूरे घर में बस अनिल और पिताजी की आवाजें गूँज रही थीं जो फ़ोन पर किसी को डाँट रहे होते तो कभी किसी से कुछ पूछ रहे होते| अब मैं बैठा था खाली, तो मुझे आ रही थी नींद इसलिए मैं अपने कमरे में सोने चल दिया| मुझे सोता देख आयुष मेरे पास आया, उसे भी किसी ने कोई काम नहीं दिया था इसलिए वो भी मेरी तरह खाली बैठा था, तो दोनों बाप-बेटा लिपट कर सो गए| नेहा को जो सामान farmhouse जाना था उसे इकठ्ठा करने का काम दे दिया गया, सुमन को खाने बनाने का काम मिला तो वो रसोई में खाना बनाने घुस गई|
जितने चाव से माँ ने संगीता को दुल्हन की तरह सजने-सँवरने के लिए खरीदारी की थी, वैसे ही संगीता ने माँ को सजने-सँवरने के लिए तैयारी की थी| संगीता ने एक beauty parlor वाली लड़की को घर बुला दिया, जिसने माँ की सुंदरता में चार-चार लगाने शुरू कर दिए| खाना तैयार हुआ तो मैं, आयुष के साथ कमरे से बाहर आया| ठीक तभी माँ अपना beauty parlor वाला सारा 'treatment' करवा कर कमरे से बाहर आईं| उन्हें देखते ही पिताजी उन्हें देखते रह गए! जिस तरह मैं, संगीता को देख कर romantic हो जाता था वैसे ही आज माँ को इतना बना-सँवरा देख पिताजी romantic हो गए| माँ का हाथ पकड़ कर पिताजी अपने आशिक़ वाले अंदाज में बोले;
पिताजी: मानु की माँ, लड़का तो शादी कर ही रहा है! कहो तो उसी मंडप में हम-तुम दुबारा शादी के मंतर पढ़वा लें!
पिताजी की बात पर मैंने जोर से सीटी बजा दी! माँ इतनी शरमाई की जा कर पिताजी के सीने में चेहरा छुपाने लगीं, ठीक वैसे ही जैसे संगीता मेरे सीने में शर्म से अपना चहेरा छुपाती थी!
मैं: पिताजी, पिछलीबार जब नेहा-आयुष ने दिवाली पर सुन्दर कपडे पहने थे तो माँ ने कहा था की बच्चों को काला टीका लगाओ, आज सोच रहा हूँ मैं खुद माँ को काला टीका लगा दूँ!
मैंने मस्ती करते हुए कहा|
माँ: इधर आ, तुझे काला टीका मैं लगाऊँ!
माँ मुझे प्यार से डाँटते हुए बोलीं| माँ की बात सुन सभी जोर से हँसने लगे! मैं आगे बढ़ा और माँ के गले लग गया और उनकी तारीफ करने लगा;
मैं: माँ सच में आप आज बहुत सुन्दर लग रहे हो! पिताजी सही कह रहे हैं, 2-3 साल में आप दोनों (माँ-पिताजी) की शादी के पच्चीस साल हो जायेंगे, फिर तो आपको दुबारा शादी करनी ही पड़ेगी तो आप आज ही पिताजी से शादी कर लो न!
मैंने माँ को छेड़ते हुए कहा| माँ ने प्यार से मेरी पीठ पर थपकी मारी और हँसते हुए बोलीं;
माँ: तू बाज नहीं आएगा न अपनी मस्ती से?
उधर दोनों बच्चे अपनी दादी जी के पास आये और माँ से लिपट गए| माँ ने दोनों बच्चों के सर पर हाथ रख उन्हें आशीर्वाद दिया|
खाना खा कर हम उठे थे की दिषु आ गया और अपने साथ नेहा, संगीता, अनिल और सुमन को अपनी गाडी में ले गया| अनिल को छोड़ कर कोई भी अभी तैयार नहीं हुआ था, सब ने इस वक़्त सादे से कपड़े पहने थे, असली सजने-संवरने का सारा काम तो farmhouse पर होना था! उधर पिताजी ने एक catering वाले को घर बुलाया था जिसने ठंडा, चाय, coffee और समोसों का table सेट कर दिया था, ये इंतजाम इसलिए था की जो बराती पहले आएँगे वो खाते-पीते रहें| मुझे लगा था की 5 बजे से पहले कोई बराती नहीं आएगा, परन्तु तीन बजे से लोगों का आना शुरू हो गया था| माँ अपने कमरे में तैयार हो रहीं थीं, जितनी औरतें आईं थीं सब ने माँ को घेर लिया और उनसे बातें करने लगीं| जितने आदमी आये थे वो सब पिताजी से बात करने में लगे हुए थे| पिताजी का ध्यान आधा लोगों की बातों में था और बाकी ध्यान किसी न किसी को फ़ोन के ऊपर डाँटने पर था| कई लोगों ने पिताजी से कहा की भला शादी का सारा इंतजाम उन्होंने अपने सर क्यों ले रखा है, कुछ काम दूल्हे यानी मुझे भी करना चाहिए, तो पिताजी मेरा बचाव करते हुए बोले; "मेरे बेटे की शादी है, उससे थोड़े ही काम करवाऊँगा!" सभी को ये पिताजी का मेरे प्रति दुलार लगा और जिससे हो सका वो पिताजी की मदद करने लगा| खैर पिताजी ने जो खाने-पीने का इंतजाम किया था उससे सभी बहुत खुश थे क्योंकि सभी के मुँह
चल रहे थे!
उधर मैं और आयुष bore हो रहे थे की तभी माँ कमरे में आईं और मुझे दो कपडे देते हुए बोलीं;
माँ: ये पहन और जल्दी से बाहर आ!
इतना कह माँ बाहर चली गईं| मैंने वो कपडे खोल कर देखे तो सफ़ेद रंग की एक धोती और एक नई सफ़ेद बनियान थी| अब जा कर पिताजी के surprise की परतें धीरे-धीरे खुलने लगी थीं| उन कपड़ों को देख मैं समझ गया की मुझे हल्दी लगाई जाएगी, मैंने कपडे पहने और बाहर आ गया| बाहर आ कर पता चला की सभी औरतें इकठ्ठा हो चुकीं हैं तथा एक camera man camera मेरी तरफ घुमाये हुए खड़ा है| जिंदगी में पहलीबार camera के सामने आया था तो मेरा थोड़ा व्यग्र होना वाजिब था! मैंने माँ को औरतों की भीड़ में देखा और गर्दन के इशारे से पूछने लगा की आगे क्या करूँ? मेरी ये हरकत पड़ोस की भाभी ने देख ली और वो मेरी टाँग खींचते हुए बोलीं;
पडोसी भाभी: अरे अपनी माँ को क्या देख रहे हो देवर जी, यहाँ बैठ जाओ!
भाभी ने एक पीढ़े की ओर इशारा करते हुए कहा| मैं अपनी व्यग्रता छुपाने के लिए मुस्कुराया और पीढ़े पर बैठ गया| सबसे पहले माँ ने मेरे माथे पर हल्दी लगाई और मेरे सर को चूमते हुए आशीर्वाद दिया| मैंने भी माँ के पैर छुए और उनका आशीर्वाद लिया| माँ के हटते ही वहाँ मौजूद सभी औरतों ने मुझे हल्दी लगाई, कई औरतों को तो मैं जानता भी नहीं था फिर भी उनसे हल्दी लगवाई| मुझे हल्दी लगते हुए देख आयुष घबरा कर छुप गया, क्योंकि उसे लगा था की उसे भी हल्दी लगेगी! पीली-पीली टट्टी जैसी चीज देख कर आयुष का मुँह बना हुआ था!
जब मुझे हल्दी लग गई तब मुझे नहाने जाने को कहा गया, मैं कमरे में लौटा तो आयुष जो मुझे हल्दी लगते समय डर के मारे छुप गया था वो हल्दी वाली कटोरी ले कर मेरे पास आया;
आयुष: पापा जी....मैं भी...आपको ये (हल्दी) लगाऊँ?
आयुष बड़े प्यार से बोला| आयुष को अभी तक नहीं पता था की ये पीली-पीली चीज क्या है? मैं उसके सामने उकडून हो कर बैठ गया और मुस्कुरा कर उस्सने पूछने लगा;
मैं: बेटा आप कहाँ थे?
आयुष: वो...मैं....डर...गया था....इतनी सारी आंटी को देख कर...मैं....
आयुष धीरे से बुदबुदाया|
मैं: चलो कोई बात नहीं, अब है न आप ये सब 'हल्दी' मुझे पोत दो!
मैंने मुस्कुरा कर इस पीली-पीली चीज एक नाम बताया| आयुष धीरे-धीरे अपने छोटे-छोटे हाथों से मेरे हाथों और चेहरे पर हल्दी लगाने लगा| हल्दी की महक आयुष को पसंद थी मगर हल्दी छूने के समय वो अपना मुँह बिदका लेता था! इतने में माँ आ गई और आयुष को मुझे हल्दी लगाते देख उसके सर पर हाथ फेरते हुए बोलीं;
माँ: आयुष, बेटा आप कहाँ थे?
मैं: माँ वो इतने सारे लोगों को मुझे घेरे हुए देख आयुष डर गया था|
मैंने आयुष की कटोरी में से थोड़ी सी हल्दी ली और आयुष की नाक पर लगा दी| आयुष की नाक पर हल्दी लगी तो वो अजीब सा मुँह बनाने लगा और अपनी नाक पर लगी हल्दी पोंछ दी, मैंने आयुष के हाथ से पोंछी हुई हल्दी अपने गाल पर लगा ली! हम बाप-बेटे की ये मस्ती देख माँ बोलीं;
माँ: अच्छा अब बस! कोई मस्ती नहीं, जा कर दोनों नहाओ और तैयार हो जाओ|
माँ बाहर गईं तो आयुष ने जिज्ञासु बनते हुए अपना सवाल पुछा;
आयुष: पापा जी, ये हल्दी क्यों लगाई जाती है?
मैंने आयुष को अपनी ऊँगली पकड़ाई और उसे बाथरूम की ओर ले जाते हुए बोला;
मैं: बेटा एक तो हल्दी लगाना शगुन होता है और दूसरा हल्दी लगाने से हमारी त्वचा निखर जाती है!
मैं चाहता तो आयुष को वैज्ञानिक कारण समझा सकता था मगर छोटे बच्चों को अगर पूजा-पाठ की बातें वैज्ञानिक तर्क से समझाई जाएँ तो वो आगे चल कर हर चीज में तर्क करने लगते हैं| यही कारण था की मैंने आयुष को हल्दी लगाने की बात कुछ गोल-मोल ढँग से समझाई| अब आयुष क्या जाने की निखार क्या होता है, इसलिए इससे पहले वो अपना सवाल पूछे मैंने ही उसके मन में उठे सवाल का जवाब देते हुए कहा;
मैं: बेटा हल्दी लगाने से हम गोरे हो जाते हैं! आज आप देखना की आपकी मम्मी कितनी गोरी दिखेंगी, मैं भी गोरा दिखूँ इसलिए मुझे हल्दी लगाई गई है|
अब जा कर आयुष को सब समझ आया ओर वो मेरे गोर होने की बात से खुश हो गया| फिर अपनी नाक को देखते हुए उसकी ओर अपनी ऊँगली से इशारा करते हुए आयुष बोला;
आयुष: पापा जी, मेरी नाक गोरी हो जाएगी न?
आयुष की बचकानी बात सुन मैं पेट पकड़ कर हँसने लगा और आयुष आँखें बड़ी कर के अपने सवाल के जवाब का इंतजार करने लगा|
मैं: हाँ जी बेटा, आपकी नाक गोरी हो जाएगी!
मैंने हँसते हुए कहा|
हम दोनों बाप-बेटे नहाये ओर कपडे पहन कर तैयार हो गए| आयुष को उसका two-piece suit मैंने खुद पहनाया और उसमें वो बहुत cute लग रहा था! मैंने आयुष के दोनों गालों की ढेर सारी पप्पी ली और बोला;
मैं: मेरा बेटा आज बहुत cute लग रहा है!
अपनी तारीफ सुन आयुष बहुत खुश हुआ और मेरे गले लग गया| तभी पिताजी भी तैयार हो कर आ गए, two-piece suit में दोनों दादा-पोते एक जैसे दिख रहे थे क्योंकि दोनों के suit हूबहू एक जैसे थे!
माँ: अरे वाह! आज तो पोते में उसके दादा का बचपन दिख रहा है!
माँ पीछे से खिखिला कर हँसते हुए बोलीं| मैंने माँ को देखा तो वो बनारसी साडी में और भी सुन्दर लग रहीं थीं! मैं: माँ, दादा-पोते से ज्यादा तो आप सुन्दर लग रहे हो!
मैं माँ को देखते हुए सीटी बजाते हुए बोला|
मैं: पिताजी, मुझे लगता है आज आपका पत्ता कट जायेगा!
मैंने माँ-पिताजी को छेड़ते हुए कहा| मेरी बात सुन हम चारों ठहाका लगा कर हँसने लगे, आयुष के समझ में कुछ नहीं आया पर सबको हँसता हुआ देख वो भी हँसने लगा|
माँ: आज सबसे ज्यादा सुन्दर तो मेरा लाल (मैं) लग रहा है, किसी रियासत का राजकुमार लग रहा है!
माँ मेरी शेरवानी की तारीफ करते हुए बोलीं| अपनी तारीफ सुन मैं थोड़ा शर्माने लगा, तभी आयुष अपनी दादी जी से बोला;
आयुष: दादी जी मैं कैसा लग रहा हूँ?
आयुष ने अपने दोनों हाथ फैलाते हुए पुछा|
माँ: मेरा 'लल्ला' तो आज प्यारा सा गुड्डा लग रहा है!
माँ ने आयुष को गोदी में उठाया और उसके गाल चूमते हुए बोलीं| वहीं पिताजी अपनी बारी का इंतजार कर रहे थे की कब माँ उनकी भी थोड़ी तारीफ कर दें! अब मुझे फिर मस्ती सूझी और मैंने पिताजी की टाँग खींचते हुए कहा;
मैं: पिताजी, तारीफ सुनने के लिए पहले तारीफ भी करनी पड़ती है!
पिताजी मेरी बात समझ गए और उन्होंने पलट कर बड़ा मज़ेदार जवाब दिया;
पिताजी: बेटा जी, अभी तेरी शादी हुई नहीं और तू पहले ही समझदार हो गया? अब तू मुझे सिखाएगा की पत्नी की तारीफ कैसे करते हैं?
पिताजी कुटिल मुस्कान लिए हुए बोले और अपना दाहिना हाथ माँ की ओर बढ़ा दिया| माँ इस वक़्त शर्म से लालम लाल हो चुकीं थीं, फिर भी हिम्मत कर के उन्होंने पिताजी का हाथ थामा| पिताजी ने माँ को धीरे से अपने सीने से लगा लिया और उनके सर को चूमते हुए दोनों मियाँ-बीवी खुसफुसाने लगे! अपने माँ-पिताजी को इस तरह romantic होते देख मुझे बहुत मजा आ रहा था|
फिर माँ ने मुझे और आयुष को नजर से बचने का काला टीका लगाया| अब बारी आई पिताजी की तो जैसे ही माँ उन्हें काला टीका लगाने लगीं, पिताजी बोले;
पिताजी: अरे मुझे काहे टीका लगा रही हो, हमें कौन सा नजर लगेगी!
माँ मुस्कुराईं और फिर भी जबरदस्ती पिताजी के कान के पीछे काला टीका लगा दिया| वहीं camera man अपने camera से मेरे परिवार की ये प्यारी-प्यारी खुशियाँ record करने में लगा था| हाथ पोंछ कर माँ ने हम सभी को बाहर आने को कहा| पिताजी ने आयुष को अपनी ऊँगली पकड़ाई और सबसे पहले वो बाहर निकले, उनके बाहर आते ही सब ने दादा-पोते की खूब तारीफें की! अपनी तारीफ सुन आयुष शर्म से लाल हो गया और अपने हाथ उठा कर अपने दादाजी को देखने लगा| पिताजी ने फ़ौरन उसे गोद में उठा लिया और आयुष की पप्पी लेते हुए एक शानदार फोटो खिंचवाई!
अब मेरी बारी थी बाहर आने की, मेरे बाहर आते ही सब ने मेरा स्वागत ऐसे किया जैसे की मैं कोई मशहूर हस्ती हूँ! इतने सारे लोगों को अपनी ओर देखते हुए मुझे थोड़ा अजीब लग रहा था! उधर दिषु ने इशारा कर के ढोल बजवाने शुरू कर दिए तो जितने भी आदमी खड़े थे उन सब ने घर के भीतर ही नाचना शुरू कर दिया| पिताजी और आयुष, दिषु के साथ मिल कर घर के चौतरे पर नाचने लगे| इधर माँ पूजा की थाली ले कर मेरे पास आईं और मुझे तिलक कर पूजा करने लगीं| माँ के साथ जितनी भी औरतें थीं सब ने मिलकर गाँव का गीत गाना शुरू कर दिया, ये गीत दरअसल दूल्हे को नई दुलन लाने के लिए बधाई स्वरुप गाया जाता है|
माँ का आशीर्वाद ले कर मैं बाहर आया तो मुझे पिताजी के surprise का दूसरा हिस्सा पता चला, घर के बाहर एक घोड़ी खड़ी थी! तो ये था पिताजी के surprise का दूसरा हिस्सा, वो अपने बेटे को घोड़े पर बिठा कर शादी के लिए ले जाना चाहते थे! मैं मुस्कुराया और पिताजी की तरफ देखने लगा, पिताजी भी मुस्कुराये और मेरी पीठ पर थपथपाते हुए मुझे घोड़ी पर बैठने का इशारा किया| मैं घोड़ी पर बैठता उससे पहले ही माँ 500/- के नोटों की माला ले कर आ गईं और मुझे पहनाते हुए मेरा माथा चूम लिया| बारी आई घोड़ी चढ़ने की, अब मुझे ये डर लगे की अगर घोड़ी बिदक गई या मैं नीचे गिर पड़ा या फिर शेरवानी के नीचे पहना पजामा फ़ट गया तो अच्छी-खासी किरकिरी हो जाएगी! ऊपर से अगर किसी ने इसकी वीडियो बना कर internet पर डाल दी तो 'गजब बेइज्जती' होगी, इसलिए मैं घोड़ी वाले से बोला;
मैं: भैया, जरा ध्यान रखना!
मेरी घबराहट देख दिषु मेरे पास आया और मुझे होंसला देते हुए बोला;
दिषु: भाई तू चिंता न कर, घोड़ी ने कुछ भी किया तो घोड़ी वाले भैया के पैसे गए!
दिषु की बात सुन सभी हँस पड़े और घोड़ी वाला दिषु को ऐसे देखने लगा जैसे दिषु सच में उसके पैसे नहीं देगा!
खैर दिषु ने मुझे सहारा दिया और घोड़ी पर बिठाया, अपने दोस्त का सहारा ले कर घोड़ी चढ़ने का सुख आज मुझे मिल रहा था! उधर आयुष मुझे घोड़ी चढ़ते देख अपनी बाहें खोल कर मेरी गोदी में आने के लिए मचलने लगा! मैंने आयुष को अपनी गोदी में लिया और ठीक से घोड़ी पर बिठा दिया, अब ये दृश्य जिसने भी देखा वो बस यही बोलने लगा की; "ये देखो, बेटा अपने पापा की शादी में सहबाला' बना है|" हमने किसी का बात का बुरा नहीं लगाया और नाचते हुए बरात घर से निकली| पिताजी, माँ और दिषु घोड़ी के आगे-आगे थे, बाकी सारी औरतें पीछे-पीछे आ रहीं थीं| जितने भी आदमी थे उन सब ने band और ढोल के शोर में नाचना शुरु कर दिया था| दिषु ने जोश में नाचना शुरु किया और पिताजी का हाथ पकड़ उन्हें भी नचाने लगा! पिताजी ने भी जोश में आ कर नाचना शुरू कर दिया, फिर उन्होंने माँ का हाथ पकड़ा और उन्हें भी अपने साथ जबरदस्ती नचवाया| माँ और पिताजी को एक साथ नाचता देख मेरा दिल बहुत खुश हुआ! आज जिंदगी में पहलीबार मैं अपनी माँ और पिताजी को यूँ ख़ुशी से झूमते-नाचते देख रहा था! वहीं माँ ने अपनी शर्म के मारे बस एक-आध ठुमका मारा और फिर शर्मा कर मेरे पास आ गईं! मेरे सर से पैसे वार कर उन्होंने ढोल वालों को दे दिए|
जिनके साथ भी हम काम करते थे वे सभी पिताजी को घेर कर नाचने लगे, सभी को नाचते देख आयुष का मन हुआ की वो भी नाचे इसलिए वो मेरे कान में खुसफुसाते हुए बोला;
आयुष: पापा जी, मैं भी नाचूँ?
मैंने सर हाँ में हिलाया और इशारे से दिषु को अपने पास बुलाया|
मैं: भाई, आयुष को भी नाचना है!
इतना सुन दिषु ने आयुष को गोदी में ले कर नीचे उतारा और अपने साथ नचाने लगा| जब आयुष ने नाचना शुरुर किया तो सब उसे नाचता हुआ देखने लगे, छोटे से बच्चे का इतना उत्साह देख सब ने खूब तालियाँ बजाई| तालियों की गड़गड़ाहट सुन आयुष शर्मा कर लाल हो गया और अपने दिषु चाचू से कहने लगा की वो उसे मेरे पास घोड़ी पर दुबारा पहुँचा दे| एक बच्चे के बालपन ने सबके चेहरे पर खुशीयों की लहर ला दी थी!
मेरे घर से गली के बाहर का रास्त मुश्किल से मिनट भर का था जिसे सब ने नाच-नाच कर 20 मिनट का बना दिया था! गली से बाहर आ कर सभी बराती तित्तर-बित्तर हो गए, जो गाडी वाले थे वो अपनी गाड़ियों में बैठ कर farmhouse की तरफ निकल गए और जो बगैर गाडी वाले थे उन सबके लिए पिताजी ने tempo traveler बस बुलवाई थी| दिषु का सहारा ले कर मैं घोड़ी से उतरा और बस में बैठ गया, दिषु भी आ कर मेरी बगल में बैठ गया| उसने सबसे नजर बचा कर 100 pipers का एक miniature निकाला और मुझे देते हुए बोला;
दिषु: ले खेंच ले!
दिषु मुझे आँख मारते हुए खुसफुसाया|
मुझे दिषु के हाथ में शराब देख कर कोई हैरानी नहीं हुई थी, दोस्त की शादी में पीना तो दस्तूर होता है! मुझे बस डर था तो ये की कहीं वो पी कर कोई बवाल न खड़ा कर दे!
मैं: भोसड़ी के तू ही पी, लेकिन कोई बवाल मत खड़ा करिओ!
मैं बुदबुदाते हुए बोला| जिस तरह मैंने बेपरवाह होते हुए उसे दारु पीने की इजाजत दी थी उससे दिषु दंग था!
दिषु: अबे कोई बवाल नहीं करूँगा, मगर एक बात बता बहनचोद मुझे लगा था की तू बोलेगा; 'चूतिया हो गया है जो दारु ले कर आया है!' लेकिन तुझे तो जैसे कोई फर्क ही नहीं पड़ा!
दिषु खुसफुसाया| दिषु की बात सुन मैं मुस्कुराया और खुसफुसाते हुए बोला;
मैं: भाई मेरी शादी में तेरा पीना हक़ है, लेकिन किसी को पता नहीं चलना चाहिए वरना तू मार खायेगा!
मेरी बात सुन दिषु मेरी पीठ थपथपाने लगा और बोला;
दिषु: जीयो बहनचोद!
दिषु थोड़ी आवाज तेज करते हुए जोश में बोला| मैंने दिषु के कँधे पर घूसा मारा और बुदबुदाते हुए बोला;
मैं: ओ भोसड़ी के, गाली मत दे, बहनचोद घर वाले सब हैं यहाँ!
दिषु हँसने लगा और पूरी miniature की बोतल एक झटके में खींच गया!
इधर हम सभी बरात ले कर छतरपुर के farmhouse की तरफ बढ़ रहे थे और उधर farmhouse पर चहलकदमी जारी थी! संगीता और बाकी सभी स्त्रियाँ अपना makeup करवाने और सजने-सँवरने में व्यस्त थीं तो अनिल पूरे farmhouse में घुमते हुए सजावट तथा खाने-पीने की व्यव्य्स्था सँभाल रहा था| मिश्रा अंकल जी और दिषु के पिताजी विवाह मंडप के लिए सभी सामान एकत्र करने में व्यस्त थे| ऐसा नहीं था की farmhouse पर कोई तैयारी नहीं हुई थी, परन्तु आखरी मौके पर कोई कसर न रह जाए इसलिए सभी कामों को फिर से check किया जा रहा था|
आखिर कर हम सभी बरात ले कर छतरपुर के farmhouse पर पहुँच गए| बस से उतर कर मुझे फिर से घोड़ी चढ़ना पड़ा और घोड़ी टप-टप करते हुए आगे बढ़ने लगी तथा सभी बाराती नाचते हुए आगे-आगे चलने लगे| Miniature गटकने से दिषु पर थोड़ा-थोड़ा सुरूर चढ़ चूका था इसलिए वो ज्यादा जोश से नाच रहा था|
Farmhouse के main gate पर मिश्रा अंकल जी और दिषु का पूरा परिवार आरती की थाली ले कर संगीता की तरफ से खड़ा हुआ था| मैं घोड़ी से उतरा और विधिवत मेरा तिलक और स्वागत हुआ| अब बारी आई सालियों की, मिश्रा अंकल जी की बेटी और सुमन ने द्वार छकाई के लिए मुझे रोक लिया और बिना नेग लिए अंदर नहीं जाने दिया;
मिश्रा अंकल जी की बेटी: मानु भैया, ऐसे अंदर जाने नहीं देंगे!
सुमन: हाँ जी जीजू! अपनी दुल्हन को लेने के लिए अंदर जाने से पहले अपनी सालियों से निपट लो!
मेरा मन संगीता को देखने के लिए उतावला हो रहा था इसलिए मैंने उत्सुकता दिखाते हुए कहा;
मैं: दो प्यार करने वालों को तड़पाना अच्छी बात नहीं!
तभी दिषु मेरी बगल में खड़ा हो गया और प्यारभरी जबरदस्ती करते हुए बोला;
दिषु: अरे ऐसे-कैसे अंदर नहीं जाने दोगे! हम दिवार पर सीढ़ी लगा कर अंदर कूद जायेंगे!
दिषु की बात पर सब ने ठहाका लगाया|
सुमन: अरे ऐसे-कैसे कूद जाओगे! आपको सारी सालियाँ घेर लेंगी, फिर क्या करोगे?
सुमन थोड़ा अकड़ते हुए बोली|
मिश्रा अंकल जी की बेटी: मानु भैया, सीधे से 11,000/- नेग दो तो अंदर जाने देंगे नहीं तो खड़े रहो यहाँ ठंड में!
नेग की बात सुन मैंने पिताजी की तरफ देखा तो वो अपने हाथ खड़े करते हुए बोले;
पिताजी: बेटा तेरी सालियाँ हैं, तू ही निपट!
अब मैं भाव-ताव करूँ उससे पहले ही दिषु बोल पड़ा;
दिषु: अरे ठंड में क्यों खड़े रहेंगे, आप हो न company देने के लिए!
दिषु, सुमन को छेड़ते हुए बोला|
मैं: अबे तू कहाँ line लगा रहा है, वो पहले से मेरे साले साहब की girlfriend है!
मैंने, दिषु को कोहनी मारते हुए कहा|
दिषु: अरे हाँ, अनिल कहाँ है?
अनिल का नाम आते ही सब लोग फिर से ठहाका मार कर हँसने लगे|
अनिल: क्या दिषु भैया, आप अपनी भाभी लेने आये हो, मेरी वाली काहे लिए जा रहे हो?!
अनिल की बात सुन कर सब के सब जोर-जोर से हँसने लगे|
मैं: बता भाई कितने से भाव-ताव शुरु किया जाया?
मैंने दिषु से पुछा तो वो सीधा 1,100/- रुपये से शुरु हुआ| जैसे ही दिषु ने ग्यारह सौ बोला संगीता की तरफ की सभी औरतें दिषु पर चढ़ गईं, ये कहते हुए की वो कितना कंजूस है!
मैं: अबे, तू मदद करवाने आया है बेइज्जती?!
मैंने दिषु को कोहनी मारते हुए कहा| मैंने बात संभाली और 5,000/- रुपये से बात शुरू की| मैं हमेशा से ही दूसरों की शादी-ब्याह में पीछे रहा था, कारण ये की मुझे भीड़-भड़ाका पसंद नहीं था| मैंने कभी नहीं सोचा था की मेरी भी शादी होगी और मुझे भी ये सभी रस्में निभानी होंगी! फिर जिन हालातों में मेरी शादी हो रही थी उसमें मैंने कभी कामना नहीं की थी द्वार छकाई जैसी कोई रस्म भी आएगी?!
मैं: ग्यारह हजार तो थोड़े ज्यादा हैं, पहली बार शादी कर रहा हूँ थोड़ी तो रियायत करो!
मैंने मजाक करते हुए कहा तो सभी हँसने लगे|
सुमन: दूसरीबार शादी करते तो ज्यादा देते?
सुमन मेरी टाँग खींचते हुए बोली|
मैं: अरे दादा! आपकी जैसी साली होगी तो एक ही बार शादी करना काफी है!
मैंने सुमन की बात का जवाब इस कदर दिया की बेचारी शर्मा कर चुप हो गई!
मिश्रा अंकल जी की बेटी: चलो मानु भैया आपको discount दे देते हैं! 10,000/- रुपये! इससे कम नहीं होगा!
दिषु: दीदी हजार रुपये तो अपनी भाभी के लिए मैं ही दे देता! कम ही करना है तो कम से कम 3-4 हजार कम करो!
दिषु के भाव ताव करने से फिर से हो-हल्ला मचने लगा था, अब मुझसे मेरी परिणीता को देखे बिना नहीं रहा जा रहा था इसलिए मैंने हार मानते हुए कहा;
मैं: अच्छा बस!
इतना कह मैंने जेब में हाथ डाला और पैसे निकाल कर गिनने लगा| मुझे पैसे गिनते देख सभी की नजरें मुझ पर टिक गईं| उधर दिषु को मस्ती सूझ रही थी इसलिए वो मेरे हर नॉट को गिनने के बाद "बस" कह कर रोकने की कोशिश करता| जैसे ही दिषु "बस" बोलता वैसे ही सभी सालियाँ शोर मचाने लगतीं| आखिर कर मैंने पूरे नोट गिने और पूरे 11,001/- रुपये गिन कर मिश्रा अंकल जी की बेटी के हाथ में रखे! पैसे मिले तो सारी सालियाँ खुश हो गईं और बड़े प्रेम से हम सभी को अंदर आने दिया गया| अब जैसा की होता है, दूल्हे की entry होने पर एक ही प्रसिद्द गाना बजाया जाता है; "अज़ीम-ओ-शान शहंशाह"! ये गाना मुझे भी पसंद है परन्तु जब ये मेरी entry पर बजा तो मेरी और दिषु की एक साथ हँसी निकल गई!
खैर सभी बाराती अंदर आये और farmhouse की सजावट देख कर सभी तारीफें करने लगे| सबसे पहले एक बड़ा सा गार्डन था जहाँ पर ढेर सारी कुर्सी-टेबल सजा कर रखी गईं थीं, उन्हीं कुर्सियों के नजदीक खाने-पीने का buffet लगा था| गार्डन के बाद एक बड़ा सा hall था जिसके बीचों-बीच मंडप बाँधा गया था और हॉल के अंत में एक बड़ा सा stage सजाया गया था तथा stage के अगल-बगल दूल्हे और दुल्हन के घर वालों के बैठने के लिए ख़ास कर सोफे रखे गए थे| पीछे की तरफ makeup room था जहाँ इस वक़्त संगीता मेरा इंतजार कर रही थी| पूरा farmhouse बहुत ही अच्छे से सजाया गया था, लोगों के भर जाने से अब पूरे farmhouse में जान आ गई थी| Dj वाला गाने बजाए जा रहा था और सभी लोगों ने चाट वगेराह खानी शुरू कर दी थी|
वहीं मैं अपनी दुल्हन, अपनी परिणीता को देखने के लिए मरा जा रहा था! माँ-पिताजी मेरे सामने बैठे थे और मुझे यूँ परेशान देख पूछने लगे की सब कुछ ठीक तो है, अब उन्हें कैसे कहूँ की मैं 'किस के' लिए परेषान हो रहा हूँ?! पिताजी को लगा की मुझे भूख लगी होगी इसलिए उन्होंने मेरे लिए पनीर टिक्का मँगवा दिया| Waiter लोगों को पता चला की मैं दूल्हा हूँ तो सब के सब मेरे आस-पास मंडराने लगे| बाकी सभी को खाने-पीने के लिए buffet तक जाना पड़ रहा था और यहाँ मेरे आस-पास कोई वेटर पानी ले कर घूम रहा था, कोई ठंडा, कोई चाट, तो कोई टिक्का वाला platter ले कर! मैंने बमुश्किल एक सोया मलाई चाप का पीस खाया और बाकी सब आयुष को खिलाने लगा| उधर दिषु एक प्लेट में कुछ nonveg टिक्के ले कर मेरे पास आया और पिताजी के सामने बोला;
दिषु; अंकल जी आपने nonveg भी रखवाया है?!
दिषु ने अचरज भरी आँखों से पुछा तो पिताजी मुस्कुराते हुए बोले;
पिताजी: बेटा तुम सब के लिए रखवाया है!
मेरे पिताजी शुद्ध शाकाहारी हैं और उनका यूँ मेरी शादी में nonveg रखवाना बहुत बड़ी बात थी! दिषु ने मुझे प्लेट देते हुए कुछ खाने को कहा तो मैंने मना कर दिया क्योंकि मैं चाहता था की पूजा हो जाए फिर nonveg खाऊँ| लेकिन दिषु ने मेरी बात का कुछ और ही मतलब निकालते हुए कहा;
दिषु: हाँ भाई, तू क्यों खायेगा?! तेरी जान तो भाभी जी में अटकी है!
दिषु की बात सुन माँ-पिताजी तो हँसने लगे पर मैं हँस भी नहीं पाया! तभी Dj वाले ने romantic गाने चला दिए, अब दिषु को मेरी टाँग खींचने का एक और मौका मिल गया;
दिषु: ओये -होये-होये! Dj वाला भी तुझे तड़पाने के लिए romantic गाने बजा रहा है!
दिषु की मेरी टाँग खींचने पर माँ-पिताजी फिर हँस पड़े|
पिताजी ने दिषु को मेरे पास बैठने को कहा और वो माँ को ले कर आगे होने वाले कार्यक्रम की तैयारी में लग गए| 5 मिनट बाद माँ मुझे बुलाने आईं और मुझे stage पर ला कर बिठा दिया गया| मैं अकेला stage पर बैठा था, दिषु और आयुष खाने-पीने में लगे थे| मेरी नजरें बस संगीता को ढूँढ रहीं थीं; "अब आ भी जाओ जान! कितना तडपाओगी!" मैं बुदबुदाया| इतने में बन-सँवर कर तैयार हुई नेहा दौड़ती हुई मेरे पास आई, मेरी गुड़िया रानी आज इतनी सुन्दर लग रही थी की क्या कहूँ?!
मैं: मेरा बच्चा तो बहुत सुन्दर लग रहा है, बिलकुल princess जैसी! ये कपडे दादी जी ने पसंद किये न?
मैंने नेहा का सर चूमते हुए कहा| नेहा ने मेरे गाल पर पप्पी की और बड़े प्यार से बोली;
नेहा: पापा जी, मेरी ड्रेस है न बिलकुल दादी जी की साडी से match करती है!
नेहा अपनी दादी जी की तरफ ऊँगली से इशारा करते हुए बोली|
नेहा की बात सुन मैंने गौर किया तो पाया की माँ की साडी का design और नेहा के लहंगे-चोली का design लगभग एक था! इसका मतलब की माँ-पिताजी ने अपने पोता-पोती के कपडे अपने कपड़ों से matching कर के बनवाये थे! मैंने नेहा को अपने पास रोक लिया और उससे पूछने लगा की उसकी मम्मी क्या कर रहीं हैं?
नेहा: पापा जी, मम्मी ने भी आपके पास यही जानने के लिए भेजा है!
नेहा की बात सुन मैं हँस पड़ा| चलो एक अकेला मैं ही नहीं तड़प रहा, मेरे साथ संगीता भी तड़प रही है! माँ-पिताजी ने जब नेहा को देखा तो वो मेरे पास स्टेज पर आये, नेहा जा कर अपने दादा जी से लिपट गई| पिताजी ने नेहा को गोदी में उठाया और माँ से बोले;
पिताजी: अरे वाह जी वाह! मुझे बड़ा कह रही थी की मेरे पोते में मेरा बचपना दिखता है? ये जो तुम्हारी पोती में तुम्हारा बचपन दिखता है वो कुछ नहीं?!
पिताजी दादी-पोती के एक जैसे दिखने वाले कपड़ों की तारीफ करते हुए बोले|
माँ: मेरी इतनी समझदार पोती जो है!
माँ ने नेहा को अपने पास बुलाया तो नेहा पिताजी की गोदी से उतर कर माँ की कमर से लिपट गई|
पिताजी: वैसे मानु की माँ, नेहा की तरह तुम भी लेहंगा-चोली पहनती तो और अच्छी लगती!
पिताजी शरारत भरे अंदाज से बोले| माँ शर्म और प्यार भरे गुस्से लाल हो गईं और बोलीं;
माँ: हटो जी, बस भी करो! जवान लड़का और पोती के सामने आप फिर शुरू हो रहे हो!
माँ प्यार से पिताजी को डाँटते हुए अपनी महिलाओं वाले झुण्ड में चली गईं| इधर मैं, नेहा और पिताजी, माँ के शर्माने पर हँसने लगे|
[color=rgb(184,]जारी रहेगा भाग - 4(2) में...[/color]