(UPDATE-91)

बंदरों को छूना था अपने एक्सपेरिमेंट के लिए." श्रुति, परवेज़ को समझते हुए कहा.
"वो तो ठीक है. लेकिन तेरे इस एक्सपेरिमेंट से इन बंदरों पर क्या असर पढ़ा है. यह इतने खूनकर क्यों हो गये?" रोहन, विक्रम की और देखते हुए कहा.
"दरसा यह मेरे दो सहायक थे उनकी गलती से हुआ था. उन्होंने शराब के नशे में एक बंदर पर उस केमिकल का ओवेरडोज़े टेस्ट कर लिया था. जिसकी वजह से उस बंदर पर केमिकल रिएक्शन हुआ और वो खूनकर हो गया." विक्रम ने कहा.
"तुम लोगों ने कितने बंदरों पर यह एक्सपेरिमेंट किया था?" श्रुति ने विक्रम की तरफ देखते हुए कहा.
"सिर्फ़ एक बंदर था उस वक्त." विक्रम ने जवाब दिया.
"सिर्फ़ एक! लेकिन बाहर तो कई ऐसे बंदर है जिसपर यह एक्सपेरिमेंट किया हुआ लग रहा है. मेरा मतलब है अगर तूने सिर्फ़ एक बंदर पर यह एक्सपेरिमेंट किया था तो यह लोग की तादाद इतनी कैसे हो गयी?" रोहन ने कहा.
"वाइरस! वाइरस की वजह से. मेरे कहने का मतलब है जो केमिकल रिएक्शन उस बंदर पर हुआ था उसने वही चीज़ अपने साथी बंदर को दे दी और उसके साथी बंदर ने दूसरों को. और इसी तरह एक बंदर दूसरे बंदर को अपनी तरह खूनकर बनाते गये."
"लेकिन मेरी समझ में यह नहीं आया की यह बीमारी सिर्फ़ बंदरों में क्यों ट्रांसफर हो रही है..इंसानो में या कोई दूसरे जानवर में क्यों नहीं हुई?" इस बार परवेज़ ने कहा.
"वो इसलिए की.उस केमिकल रिएक्शन की वजह से वह सारे बंदर इतने खूनकर हो जाते है और फिर उन्हें हर वक्त खून और माँस की तलाश रहती है. वह अपनी बिरादरी को तो कुछ नहीं करते है लेकिन जैसे ही उन्हें उनकी बिरादरी से कोई बाहर वाला दिखता है तो वो झपट पढ़ते है उसपर और तब तक उस पर झपते रहते है जब तक उसके जिस्म से माँस का एक एक टुकड़ा ना कहा ले. तो ऐसी सूरत में जब कोई बंदरों के अलावा ज़िंदा ही नहीं बचेगा तो वो वाइरस कैसे दूसरों में पहुंचेगा." इतना कहते हुए विक्रम खामोश हो गया. फिर रोहन, विक्रम का गला पकड़ते हुए कहता है.
"लेकिन तुझे इस जंगल में यह एक्सपेरिमेंट करने की क्या जरूरत पढ़ गयी?" जब थोड़ी देर तक विक्रम, रोहन की बात का कोई जवाब नहीं दिया तो रोहन ने एक तमंचा उसके गाल पे खींच के मारा. रोहन का जोरदार हाथ पढ़ते ही विक्रम बिलबिला उठा और कहने लगा.
"ववओो..में गैर कानोनी तरीके से यह सब एक्सपेरिमेंट करता हूँ और फिर उन्हें ब्लैक मार्केट में बेच देता हूँ. और इसके लिए मुझे ऐसी ही एकांत जगह चाहिए थी."
"साले मादरचोड़!! तेरे इस एक्सपेरिमेंट की वजह हम सब की मां बहन हुई वो अलग और ना जाने कितनों की जान चली गयी बहनचोद!!!"
"हां बहनचोद बोल!! क्यों किया तूने ऐसा?" इस बार श्रुति ने कहा. रोहन और परवेज़ हैरत से श्रुति की तरफ देखने लगे.
"ययएएः..क्या बक रही हो?" रोहन, श्रुति की तरफ देखते हुए कहा.
"क्यों गाली सिर्फ़ तुम ही बक सकते हो में नहीं?" श्रुति भी जवाब देते हुए कहा.
"अरे लेकिन..तुम पर अच्छा नहीं लगता है."
"तो तुम्हारे ऊपर भी अच्छा नहीं लगता है. जब तक तुम गाली देना बंद नहीं करोगे में भी तुम्हारी तरह यूँही गालियाँ देती रहूंगी. तभी तुम्हें एहसास होगा जब तुम गालियाँ बकते हो तो मुझे कितना बुरा लगता है."
"अच्छा अच्छा ठीक है. नहीं देता में गाल्यान, लेकिन आज के बाद तुम यह सब नहीं कहोगी."
"वाह बेटा वाह!! इतनी जल्दी पलटी कहा गया. मेरे मना करने पर तो आज तक यह आदत छ्छूती नहीं और आज इनकी एक आवाज़ पर तूने मिंटो में गाली देना छोड दिया." परवेज़ तंज़ करता हुआ बोला. परवेज़ की बात सुनकर श्रुति थोड़ा सा खिलखिला कर हँसने लगी.
"अच्छा ठीक है . यह वक्त इन बातों का नहीं है. पहले ज़रा हम इस नमूने से तो निपट ले." रोहन ने कहा.. फिर रोहन विक्रम की तरफ देख कर कहा.
"अब यह बता की जो बीमारी तूने इन जानवरो में फेलाइ है इसका कोई तोड़ है?"
"हां..हां.मैंने अभी अभी एक आंटिडोट तैयार किया है. और अभी मैंने जो इंजेक्शन इस बंदर को दिया है यह वही आंटिडोट है. जिसके कारण यह अपनी पुरानी अवस्था में आ गया है." विक्रम ने पिंजरे की तरफ इशारा करते हुए कहा जिसमें वो बंदर एक दम बेसुध पढ़ा हुआ गहरी गहरी साँसें ले रहा था.

"अरे वाह!! यह तो बहुत बढ़िया हो गया!! अब हम आसानी से इन दरिंदो को मर कर इस जंगल से निकल सकते है." परवेज़ ने कहा.
"वो तो ठीक है. लेकिन हम इतने सारे दरिंदो को एक साथ इंजेक्शन तो नहीं दे सकते ना." रोहन ने कहा.
"हां यार! बात तो तेरी ठीक है. मैंने तो इस बारे में सोचा ही नहीं. अब हम क्या करे?" परवेज़ ने कहा.
"हम एक काम कर सकते है. हम इसे यहां के फोरेस्ट ऑफिसर के हवाले कर देंगे. फिर जब उन्हें इन बंदारो के बारे में मालूम पड़ेगा तो वह कुछ ना कुछ इसका हाल जरूर निकालेंगे." श्रुति ने कहा.
"यह नहीं हो सकता क्योंकि हम दोनों फोरेस्ट ऑफिसर्स के सामने नहीं जा सकते, इसमें खतरा है." परवेज़, श्रुति की तरफ देखते हुए कहा.
"परवेज़ ठीक कह रहा..
 
(UPDATE-92)

है. हमें कुछ और सोचना होगा." रोहन ने कहा
उन तीनों को बातें करता हुआ देख विक्रम कुछ सोचने लगा और फिर कहने लगा.
"अगर आप लोगों को इस जंगल से निकलना है तो में इसमें आप लोगों की मदद कर सकता हूँ."
"वो कैसे?" रोहन ने कहा.
"स्टोर रूम में तीन या चार ट्रांक्विललाइज़र गन्स होगी. अगर हम उसके डार्ट्स के अंदर यह आंटिडोट भर देंगे तो शायद हम उनका मुकाबला आसानी से कर सकते है." विक्रम जवाब में कहा.
"हम" से तुम्हारा क्या मतलब? क्या तुम भी हमारे साथ आना चाहते हो?" श्रुति ने विक्रम की तरफ देखते हुए कहा.
"हां.हां..बिलकुल.मुझे भी यहां से जल्द से जल्द निकलना है. क्योंकि अगर में यहां रहा तो में बेमौत मारा जाऊंगा." विक्रम ने कहा.
"क्यों? इसके बारे में तुम्हें पहले ख्याल नहीं आया था जब तुम इन जानवरों पर अपना एक्सपेरिमेंट कर रहे थे?" श्रुति ने थोड़ा व्यंग करते हुए कहा.
"देखो में मानता हूँ की मुझे ऐसा नहीं करना चाहिए था. में अपने किए पर शर्मिंदा भी हूँ." फिर विक्रम थोड़ा रुक कर फिर कहने लगा. " लेकिन अगर आप लोग मुझे अपने साथ लेकर चलते है तो इसमें आप लोगों का भी भला होगा."
"इसमें भला हमारा क्या भला है भाई?" परवेज़ ने कहा.
"देखो इन बंदारो में जो बीमारी है इसके बारे में सिर्फ़ मुझे पता है, तो यह संभव है की इसका तोड़ भी मेरे पास है. अगर में आप लोगों के साथ में रहूँगा तो उन सब से निपटने में आप लोगों की सहायता भी कर सकूँगा." विक्रम ने कहा.
"हां परवेज़!! यह ठीक कह रहा है. इसका हमारा साथ में रहना जरूरी है." रोहन ने कहा.
"लेकिन रोहन यह गलत है. यह आदमी ना जाने कितने मासूमों का हत्यारा है. इसने जो कांड किया है उसके लिए इसे सजा मिलनी चाहिए." श्रुति ने कहा.
"श्रुति जी!!! वो सब ठीक है. अगर हम इसे सजा दिलवाने जाएँगे तो हमें भी लेने के देने पढ़ जाएँगे. हमें इस वक्त बस इस जंगल से निकालने के बारे में सोचना चाहिए." परवेज़ ने कहा.
"ठीक है परवेज़ भाई अगर तुम्हारी बात मान भी लेते है तो भी प्रॉब्लम्स खत्म नहीं होगी क्योंकि इस आदमी के अनुसार जिन बंदारो में यह वाइरस होता है वो एक दूसरे में शामिल करते है. अगर उनका कोई तोड़ नहीं ढूंढ़ा गया तो यह दरिंदे अभी फिलहाल इस जंगल में है, अगर इनकी आबादी तरफ जाएगी तो यह शहरो में भी अपना आतंक मचा देंगे. और हो सकता है और भी कई सारी मासूमू की जाने चली जाए. इन दरिंदो को आतंक मचाने से अगर कोई रोक सकता है तो इस वक्त हम ही है. तो प्लीज़ मेरी मानो तो इसे यहां के अतॉरिटी के हवाले कर दो इसी में सब की भलाई रहेगी." श्रुति ने कहा.
"अरे लेकिन अगर..." परवेज़ कुछ और कहता रोहन उसे चुप करता हुआ बोला.
"श्रुति ठीक कह रही परवेज़!! हम इतने सारे मासूमों की जान के साथ खिलवाड़ नहीं कर सकते. हमें इस कुत्ते को फोरेस्ट ऑफिसर्स के हवाले करना पड़ेगा." फिर परवेज़, रोहन घसीटता हुआ एक कोने में ले गया और धीमे धीमे कहने लगा.
"आबे तेरा दिमाग खराब हो गया है? फोरेस्ट ऑफिसर्स के पास जाएगा तो जानता है ना क्या होगा?"
"हां जानता हूँ, वह हमें गिरफ्तार कर लेंगे. यही ना? तो ठीक है. एक काम करते तू श्रुति को अपने साथ इस जंगल से बाहर ले जा और में इस कमीने को फोरेस्ट ऑफिसर्स के हवाले कर देता हूँ. बाद में अगर वह लोग मुझे गिरफ्तार करेंगे तो कार्नो दो."
"आबे तू पागल..."
"बस मुझे जो कहना है मैंने कह दिया. अब जैसे में कह रहा हूँ तू वैसा कर" कहते हुए रोहन, श्रुति की तरफ बढ़ने लगा.
"श्रुति तुम एक काम करो तुम परवेज़ के साथ चली जाओ में इसे अकेला ही फोरेस्ट ऑफिसर्स के हवाले कर देता हूँ." रोहन, श्रुति के तरफ देख कर कहा.
"अकेले.? में कुछ समझी नहीं?" श्रुति ने कहा.
"अब इसमें समझना क्या है. परवेज़ तुम्हें यहां से हिफ़ाज़त से बाहर निकाल ले जाएगा." रोहन ने कहा.
"नहीं रोहन तुम जानते हो में ऐसा नहीं कर सकती. में भी तुम्हारे साथ चलूंगी."
"यह नहीं हो सकता श्रुति, अगर हम दोनों वहां गये तो हम दोनों को गिरफ्तार कर लिया जाएगा. इसलिए कह रहा हूँ प्लीज़ इसके साथ में चली जाओ."
"अगर परवेज़ भाई जाना चाहते है तो वह जा सकते है लेकिन में तुम्हारे साथ ही जाओंगी. और अगर तुम और ज़बरदस्ती करोगे तो में इसी वक्त बाहर चली जाओंगी, फिर चाहे वह दरिंदे मुझे मर डाले या कुछ भी कर डाले." श्रुति ने कहा.
"श्रुति जी ठीक कह रही है रोहन.तू क्या समझता है मुझे बचाने के लिए तू अकेला जाकर गिरफ्तार हो जाएगा तो क्या मुझे अच्छा लगेगा. आबे दोस्त हूँ में तेरा..तो हर हाल में दोस्ती निभाओंगा अगर गिरफ्तार होना ही है तो हम दोनों गिरफ्तार होंगे. तू अकेला क़ुर्बानी क्यों देगा." परवेज़ ने कहा. रोहन के पास कहने के लिए अब कुछ भी नहीं बच्चा था. उसे उन दोनों की बात माननी ही पढ़ी.
"ठीक है ठीक है.ज्यादा जज़्बाती मत बन.. चल मेरे साथ. लेकिन हम यहां से जाएँगे कैसे? हमें तो पता भी नहीं है की फोरेस्ट ऑफिसर्स वालो का.
 
(UPDATE-93)

हेडक्वॉर्टर्स कहा होगा?"
"मुझे पता है." श्रुति का इतना कहना ही था की वह दोनों हैरत से श्रुति की तरफ देखने लगे जो इस वक्त अपने सामने रखे हुए टेबल पर कुछ पेपर्स को पढ़ रही थी..
"तुम्हें पता है? पर कैसे? हम दोनों को नहीं पता और तुम्हें कैसे पता चल गया.?" रोहन हैरत से कहा.
"इस नक्शे की वजह से" श्रुति उन पेपर्स में से कुछ उठाते हुए दिखाई जो एक नक्शा था.
"नक्शा? यह कैसा नक्शा है?" रोहन हैरत से श्रुति के हाथ में नक्शे को देखते हुए कहा.
"यह इस नेशनल पार्क का पूरा नक्शा है. कौनसा रास्ता किस तरफ जाएगा इसके बारे में पूरी इन्फार्मेशन दी हुई है इसमें."
"रोहन यह तो बहुत अच्छा हुआ अब आसनई से यहां से निकल सकते है. वैसे हम इस वक्त किधर है श्रुति जी?" परवेज़ ने कहा. शरइत ने नक्शे में किसी एक तरफ उंगली रखकर बताया.
"चलो इस नमूने ने कुछ तो अच्छा काम किया है." परवेज़ ने कहा.
"अब हमें और देर नहीं करना चाहिए और फौरन फोरेस्ट डिपार्टमेंट के हेडक्वॉर्टर जाना चाहिए. जितनी जल्दी हो सके हमें इस आफत को रोकना होगा." रोहन, श्रुति से वो नक्शा अपने हाथ में लिया और बारे गौर से फोरेस्ट डिपार्टमेंट के हेडक्वॉर्टर के जाने का रास्ता समझने लगा.

इधर फोरेस्ट डिपार्टमेंट के हेडक्वॉर्टर में.
"विजय जी!! आप घबराए नहीं आपकी बेटी के बारे में जल्द ही हमें कुछ ना कुछ खबर जरूर मिल जाएगी.मैंने अपने कुछ ऑफिसर्स को श्रुति और उसके दोस्तों की तलाश के लिए भेजा है" उमेश ने कहा.
"ज़रा जल्दी करिए उमेश जी!! आप तो जानते है जंगल में कितने खूनकर जानवर घूम रहे है. कही मेरी श्रुति को कुछ हो ना जाए." विजय से पहले सौंदर्या ने रोते हुए उमेश से कहा.
"देखिए मैडम हम अपनी पूरी कोशिश कर रहे है आप लोग.." अभी वो कुछ और कहते की इतने में उसके केबिन में कोई जूनियर ऑफिसर आकर कहने लगा.
"सर! अभी एक लड़की मिली है. जिसकी हालत इस वक्त बहुत नाज़ुक है और वो बहुत बुरी तरह से जख्मी भी है. हमें जो गुमशुदा बच्चों की रिपोर्ट मिली है यह उन्हीं में से एक लग रही है क्योंकि यह अपना नाम छाया बता रही है." इतना सुनना था की एक तरफ खड़े छाया के मां बाप चौंक गये और झट से उस ऑफिसर की तरफ बढ़ने लगे.
"कहा है हमारी बच्ची!! हम..हम उसके पेरेंट्स है..प्लीज़ जल्दी से हमें उससे मिलवओ.." इतनी देर उमेश भी उन दोनों के पास आ गया और उस ऑफिसर से कहने लगा.
"इस वक्त वो लड़की किधर है?" उमेश ने कहा
"सर! यही सर उसका ट्रीटमेंट चल रहा है." उस ऑफिसर ने जवाब दिया.
"ओके चलो देखते है उसे!! आप लोग भी आइये मेरे साथ." उमेश उन सारे पेरेंट्स से कहता हुआ उधर चला गया जहां छाया का उपचार चल रहा था.
छाया जो इस वक्त एक दम बेहाल हुई थी. जगह जगह से उसके कपड़े पाते हुए थे और उन पाते हुई जगह से उसके गहरे गहरे जख्म साफ नज़र आ रहे थे. दूर से देखने में मालूम पढ़ रहा था की उसपर कितना अत्याचार हुआ होगा.डॉक्टर्स और नर्स उसका जल्दी से उपचार करने लगे. अभी उसकी सारी ड्रेसिंग अभी पूरी हुई थी की उस कमरे में यकायक ढेर सारे लोग प्रवेश कर गये. पहले उमेश आया फिर उसके पीछे पीछे छाया के मां बाप. और आते ही वह छाया से गले लग रख रोते रहे. फिर काफी देर वो भावक शान खत्म हुआ तो उमेश ने छाया से सवाल पूछने लगा.
"छाया? अब तुम कैसा फील कर रही हो?"
"पहले से बेहतर." छाया ने जवाब दिया
"अच्छा छाया तुम्हारे दोस्त कहा है इस वक्त?" उमेश ने कहा. उमेश का इतना कहना था की छाया फिर से फूट फूट कर रोने लगी.
"क्या हुआ छाया बेटी तुम कुछ बोलती क्यों नहीं? कहा है मेरा बेटा निखिल?" संजीव सान्याल जो निखिल के पिता थे काफी देर से चुप बैठे हुआ था. छाया को रोता देख कर उससे पूछने लगे.
"अंकल...निखिल इस नो मोर ." रोते रोते छाया ने बताया. इतना सुनना था की संजीव ज़ोर ज़ोर से रोने लगा. और इतना सुनना था की बाकी के और पेरेंट्स भी घबरा गये और सब एक साथ अपने बच्चों के बारे में छाया से सवाल पूछने लगे. यह देखकर छाया और घबरा गयी. उमेश ने उन्हें बड़ी मुश्किल से रोका और फिर से छाया से पूछने लगा.
"छाया? क्या तुम हमें पूरी बात बनाएगी की तुम यहां कैसे पहुँची? क्योंकि तुम लोग का प्लान तो नैनीताल जाने का था तो यहां कैसे तुम सब लोग पहुंच गये?"
"वो दो गुंडों की वजह से." छाया ने रोते हुए कहा.
"गुंडे? कौन गुंडे और इस वक्त कहा है?" उमेश थोड़ा हैरत से पूछा.
"मुझे नहीं पता वह दोनों इस वक्त कहा है. वह बस हमें अपने साथ में बंदी बनाकर यहां लाए थे और फिर हमें अकेला छोड कर चले गये थे."
"एक काम करो छाया तुम हमें शुरू से सारी बताओ की तुम्हारे साथ में क्या क्या हुआ था और यह गुंडे कौन थे जो तुम्हें और तुम्हारे दोस्त से मिले थे." उमेश ने कहा. फिर उसके बाद छाया ने सारी बात बता दी ढाबे से लेकर और नेशनल पार्क..
 
(UPDATE-94)

में रोहन और परवेज़ ने उन्हें बंदी बनाकर लाए थे सब बता दिया.
"लेकिन वह तुम लोगों को ज़बरदस्ती अपने साथ क्यों इस नेशनल पार्क में लाए थे जब वह यूँही तुम लोगों को छोड़ दिए."
"ई डोंट नो....शायद उन्हें नेशनल पार्क एंट्री करने में किसी चीज़ का डर था..मेरे ख्याल से वह हमें इसलिए अपने साथ लाए थे ताकि अगर हम सब उनके साथ रहेंगे तो उन पर किसी का शक़ुए नहीं जाएगा और वह आसानी से नेशनल पार्क में एंटरयकर लेंगे."
"सर!! मेरे ख्याल से यह उन्हीं पोचर्स में से कोई होंगे जिनकी हमें तलाश थी. शायद उन्हें कही से मालूम पढ़ गया होगा की हमें उनकी तलाश है तो इन्हें अपनी ढाल बनाकर यहां पर लाए होंगे." उस जूनियर ओफ्फ्सेर्स ने उमेश से कहा.
"हम..यही हो सकता है. वरना वह इन्हें नेशनल पार्क में एंट्री करने के बाद यूँही नहीं छोड देते." उमेश थोड़ा घंभी स्वर में कहते हुए कहा.
"ओके छाया फिर उसके बाद क्या हुआ. जब वह दोनों तुम सबको छोड कर चले गये थे?" उमेश ने फिर से छाया से सवालों का सिलसिला चालू कर दिया. उसके बाद छाया ने विस्तार से उन सबको वही बताया जो उसके और उसके दोस्तों के साथ उन बंदारो का हमला हुआ था.
"खैर में कैसे कैसे कर के अपनी जान बचाकर वहां से भाग निकली. मुझे नहीं लगता शायद मेरे अलावा कोई और बच्चा होगा. वह इतने खूनकर थे की वह शायद ही किसी को बख़्शे होंगे." छाया ने कहा. छाया का इतना कहना था की बाकी के सारे पेरेंट्स हें हें करने की आवाजें आने लगी वह अपने बच्चों की मौत की खबर जो सुन लिए थे. लेकिन फिर भी विजय को भरोसा नहीं था की उसकी श्रुति इतनी आसानी से उसे छोड कर जा सकती है. वो फिर से छाया से सवाल पूछने लगा.
"छाया बेटा? क्या तुमने श्रुति को भी उन दरिंदो का शिकार बनते ड्यू देखा था?"
"नहीं अंकल मैंने तो नहीं देखा था...." फिर छाया कुछ सोचते हुए बोली ." हां मुझे याद आया की उन जानवरो में से एक ने श्रुति के पीछे लपका जरूर था लेकिन वो उसे पकड़ नहीं पाया था क्योंकि उससे पहले ही श्रुति उस खाई में गिर गयी थी." यह सुनकर सौंदर्या एक घबरा गयी.
"क्या!!!! मेरी बेटी खाई में गिर गयी थी. ओह नूऊऊओ...विजय अब क्या होगा?"
"एक मिनट सौंदर्या रुको.." सौंदर्या को चुप कराकर विजय फिर से छाया से पूछने लगा.
"अच्छा छाया यह बताओ जिस खाई की तुम बात कर रही हो क्या वो बहुत गहरी थी? मेरा मतलब है की अगर वहां से कोई गिरता है तो क्या जरूरी है की वो अपनी जान खो बैठे?"
"ई थिंक..नो...ऐसा कोई जरूरी तो नहीं है क्योंकि वो खाई इतनी डीप भी नहीं मगर इतनी शॅलो (कम गहरी) भी नहीं थी.मेरे ख्याल से हो सकता है श्रुति वहां से गिरकर ज़िंदा भी हो. लेकिन उन जानवारो का कोई भरोसा नहीं अगर वो इतने दीनों तक ज़िंदा भी होगी तो वह जरूर उसे कोई ना कोई नुकसान जरूर पहुंचाए हुए होंगे."
"हो सकता है जिस तरह तुम अपनी जान बच्चा कर आई हो उसी तरह मेरी श्रुति भी आ जाए." सौंदर्या ने रोते हुए कहा.
" हो सकता है और नहीं भी. अगर उसकी किस्मत अच्छी रही तो वो शायद ज़िंदा भी बच जाए." छाया थोड़ा मुंह बनाते हुए बोली क्योंकि अभी तक उसके दिल में श्रुति के लिए नफरत जो भारी थी.
"जरूर आएगी मेरी बेटी." कहते हुए विजय, उमेश की तरफ देख कर कहा.
"उमेश जी!! ई होप के मेरी बेटी अभी भी ज़िंदा हो सकती है. हमें एक बार फिर से उसे जगह पर जाकर देखना चाहिए. शायद वो हमें मिल जाए. पता नहीं मेरी बेटी इस वक्त किस हाल में होगी."
"रिलॅक्स मिस्टर. विजय! हम एक बार फिर जाएँगे श्रुति को ढूँढे. बस मुश्किल यह है की इस वक्त रात के अंधेरे में किसी की तलाश करना मूसखिल है. अब हमें सुबह ही सर्च ऑपरेशन करना पड़ेगा.

उधर सवेरा होते ही रोहन, श्रुति और परवेज़ , विक्रम की गाड़ी लेकर हेडक्वॉर्टर के लिए निकल पढ़े थे. उन्होंने ने विक्रम को भी अपने साथ बंदी बनकर लिया हुआ था और उन दरिंदो से सामना करने के लिए वो डार्ट गन्स भी ली हुई थी अपने साथ. अभी वह आधा ही रास्ता पार किए थे की अचानक जिस गाड़ी पर वह बैठे हुए थे उस पर गोलियाँ चलने लगी और एक गोली जाकर गाड़ी के तैयार पर जा लगी. रोहन जो गाड़ी चला रहा था अचानक हुए इस हमले से अपना नियंत्रण खो बैठा और गाड़ी सीधा जाकर एक पेड़ से जा टकराई. अचानक हुए इस हमले से कोई संभाल नहीं पाया था और अंदर बैठे सभी लोगों को चोटें भी आई थी. श्रुति आगे की सीट पर बैठे होने के कारण बेहोश हो गयी थी और रोहन भी काफी हद तक घायल हो गया था. पीछे बैठे हुए परवेज़ और विक्रम को हल्की सी चोटें आई थी. रोहन को समझ ही नहीं आ रहा था यह अचानक कौन इन पर गोलियाँ बरसाने लगा था. वो अपनी हालत को सुधरते हुए यह सब सोच ही रहा था की तभी उस गाड़ी का..
 
(UPDATE-95)

दरवाजा खोलते हुए कई सारे फोरेस्ट रेंजर्स अपनी गुण से उसको निशाने बनाने लगे.
"बाहर निकलो!! जल्दी!!" वो फोरेस्ट रेंजर चिल्लाता हुआ रोहन से कहा. रोहन उस फोरेस्ट रेंजर की बातों को नजरअंदाज करते हुए अपनी भाई और देखा जहां श्रुति घायल अवस्था में बेहोश पढ़ी हुई थी.
"श्रुति? शुर्ती? तुम ठीक हो??" रोहन, श्रुति को हिलाते हुए कहा. रोहन को अपनी बातों पर अमल ना करते हुए उस फोरेस्ट रेंजर ने उसकी तरफ का दरवाजा खोला और उसे जबरन बाहर निकालने लगा. फिर देखते ही देखते उन्होंने सभी को अपने हिरासत में ले लिया. श्रुति को उन्होंने अपनी एक गाड़ी में बारे प्यार से लिटा दिया था. अचानक हुए इस हमले को रोहन समझ ही रहा था की तभी उसने देखा की एक औरत और एक आदमी जिनकी उमर 45 से 50 के आस पास थी और उन दोनों के साथ में एक लड़की भी उसे नज़र आई. लेकिन उस लड़की को देखकर उसे 1000 वॉल्ट का झटका सा लगा क्योंकि यह लड़की कोई और नहीं बल्कि उन्हीं लड़कों और लड़कियों में से एक थी जिन्हें वो और परवेज़ बंदी बनाकर लाए थे. उसे बड़ी हैरत हो रही की यह लड़की उन दरिंदो के हमले में कैसे बच गयी. फिर तभी उसे एहसास हुआ की अचानक उन लोगों पर यह हमला क्यों हुआ था. क्योंकि वो समझ गया था की यह लड़की फोरेस्ट डिपार्टमेंट वालो को उसके और परवेज़ के बारे में सब बता दी होगी और तभी यह लोग उनको ढूँढते हुए यहां तक आ गये.
"यही है सर!! यही दोनों है!! जिन्होंने मुझे और मेरे दोस्तों को किडनॅप करके यहां लाए थे. और उन लोगों को की मौत के जिम्मेदार भी यही दोनों है." छाया, उमेश को रोहन और परवेज़ के बारे में बताने लगी
"लेकिन मेरी श्रुति किधर है?" सौंदर्या जो एक दम घबराई हुई थी उसने कहा. तभी उन फोरेस्ट रेंजर में एक ने कहा.
"हमें इनके पास से एक लड़की बेहोशी की अवस्था में मिली है, आइये और उसे शिनाकस्ट कीजिए." कहता हुआ वो ऑफिसर विजय और सौंदर्या को उस गाड़ी की तरफ ले गया जिसमें श्रुति बेहोशी की अवस्था में थी. और फिर जैसे ही उन दोनों ने श्रुति को घायल और बेहोशी की अवस्था में देखा तो बिलक बिलक कर रोने लगे.
"हां यही तो है हमारी श्रुति. ओह माइ गॉड!!! इसकी हालत तो देखो विजय!. क्या किया है इस जालिम ने मेरी बेटी के साथ में." श्रुति को अपने से गले लगते हुए सौंदर्या ने कहा.
"घबराइए नहीं इसे ज्यादा चोट नहीं आई है. इसे जल्द ही होश आ जाएगा." उस ऑफिसर ने कहा. सौंदर्या को श्रुति के पास चोद कर विजय एक दम गुस्से की हालत में सीधा जाकर रोहन के गाल पर लगातार थप्पड़ मारने लगा.
"कमीने तेरी हिम्मत कैसे हुई मेरी फूल जैसी बेटी के साथ यह सब करने की. में तेरा वो हाल करूँगा की तेरी सात पुश्ते भी तुझे पहचान नहीं पाएगी हरंखोर!!!!!!" फिर बड़ी मुश्किल से उसे च्छुदाया गया. जब विजय को रोहन से अलग किया गया तो रोहन, उमेश की तरफ देखते हुए कहा.
"सर में मानता हूँ मैंने गलत काम किया है. लेकिन यह वक्त इन सब बातों का नहीं है. हमें सबसे पहले उन जानवरो को रोकना पड़ेगा जो इस जंगल में आतंक मचा के रखे हुए है. और उन्हें रोकने के लिए मैंने मेरे पास इसका तोड़ भी है." रोहन की बात सुनकर उमेश एक दम चौंक सा गया.
"क्या कहा तुमने?? तुम्हारे पास इसका तोड़ है. कैसे??" फिर रोहन ने उसे सारी बात बता दी. सारी बात जाने के बाद उमेश का तो सर ही घूम गया.
"कुत्ते कमीने तेरी नालयकी की वजह से हमें कितनी बड़ी मुसीबत उतनी पढ़ रही इसका तुझे अंदाज़ा है? उमेश, विक्रम को लताड़ता हुए कहा. फिर उमेश ने अपने जूनियर ऑफिसर को बुलाया और कहने लगा.
"लगता है हमें मिलिटरी की मदद लेनी पड़ेगी इस पूरे ऑपरेशन के लिए. तुम एक काम करो जल्द से कुछ साइंटिस्ट्स की टीम तैयार करो, और इस ससेंटिस्ट ने जो आंटिडोट तैयार किया है उसी फ़ॉर्मूले के बसे पर और आंटिडोट तैयार करो. हमें जल्द से जल्द उन जानवरो को रोकना पड़ेगा वरना प्रलय आ जाएगी."
फिर कुछ देर बाद्ष्रुति को होश आता है तो वो देखती है की उसके मम्मी और पापा उसके पास खड़े हुए थे. वो उठने की कोशिश करने लगी तो उसके सर में थोड़ा दर्द होने लगा. उसने अपने हाथ को अपने सर पर रखा तो मालूम पड़ा की उसके सर पर पट्टी बँधी हुई है. फिर उसे अचानक याद आया की उसके सर में चोट कैसे लगी थी. फिर वो और शॉक हो गयी की उसके मम्मी और पापा यहां पर कैसे आ गये और रोहन और परवेज़ किधर है.
"मामा, पापा आप दोनों यहां पर कैसे?" लेकिन सौंदर्या उसकी बात का जवाब ना देते हुए सीधे उसके हाल चाल पूछने लगी.
"मेरी बच्ची तुम्हें होश आ गया! अब तुम कैसा फील कर रही हो?"
"ई'में ओके मामा. बस सर में थोड़ा दर्द है. लेकिन आप यह बताए की आप दोनों यहां कैसे पहुंच गये? और रोहन कहा है?"
"रोहन? कौन रोहन?" सौंदर्या, विजय की तरफ सवालिया निगाहों से..
 
(UPDATE-96)

देखने लगी. विजय ने भी खड़े उचकाकर इस बात का इशारा दिया की उसे भी इस बारे में कोई जानकारी नहीं है.
"मामा, पापा, रोहन!! अगर में आज आप लोगों के सामने ज़िंदा हूँ तो सिर्फ़ उसी की वजह से."
"यह तुम क्या कह रही हो श्रुति? जिसने तुम्हारा किडनॅप किया तुम उसी के लिए कह रही हो की उसने तुम्हारी जान बाचाई. यह तो अच्छा हुआ हम सब समय रहते हुए वहां पहुंच गये. वरना वो कमीना तुम्हारा साथ और क्या करता." विजय ने कहा.
"आपको किसने कहा की उसने मेरा किडनॅप किया था? और वैसे वो है कहा इस वक्त?" श्रुति ने कहा. सौंदर्या और विजय एक दूसरे को अजीब सी नज़रो से देखने लगे. उनको कुछ ना बोलता देख श्रुति थोड़ा चिंचित होते हुए फिर से कहने लगी.
"मामा! पापा! आप लोग कुछ बोलते क्यों नहीं कहा है रोहन...और उसका दोस्त परवेज़ वो कहा है?" अपनी बेटी को उनके बारे में इतना चिंचित होते हुए देख कर वह भी थोड़े चिंतित हो गये. यह देखकर सौंदर्या , श्रुति से कहने लगी.
"श्रुति? तुम उन दोनों को लेकर इतना क्यों टेन्शन में हो?"
"मामा प्लीज़.....पहले मुझे बताओ रोहन इस वक्त कहा है?" श्रुति एक दम बेक़ारारी से कहने लगी
"वह दोनों इस वक्त पुलिस की गिरफ्त में है." विजय ने कहा.
"क्या कहा!! पुलिस की गिरफ्त में? पर क्यों??" श्रुति एक दम से व्याकुल होते हुए कहा. अब उन दोनों को श्रुति को संभालना मूसखिल हो रहा था क्योंकि वो अब अपने आपे से बाहर हो रही थी. फिर काफी देर बाद उन दोनों ने बड़ी मुश्किल से उसे काबू में किया और उसके बाद विजय और सौंदर्या ने बारे आराम से उसे बताया की कैसे उन दोनों को पता चला की श्रुति इस जंगल में है और कैसे छाया के जरिए उन्हें यह पता चला की रोहन और परवेज़ उसे और उसके दोस्तों को किडनॅप किया था. जब श्रुति को यह पता चला की छाया ज़िंदा है तो पहले उसे बड़ी हैरत हुई यह की वो कैसे उन दरिंदो से बच गयी. फिर उसे वो बातें याद आने लगी जो रोहन ने उसे बताया था जो छाया और उसके दोस्त उसके साथ मिलकर करने वाले थे. फिर वो यह सोचने लगी के एक तो रोहन और परवेज़ पर पहले से ही फोरेस्ट ऑफिसर्स की नज़र थी और उसके बाद छाया की वजह से उन्हें यह भी पता चल गया की वह दोनों अब किडनॅपिंग में भी शामिल थे. इसका मतलब अब उन दोनों पर अब डबल चरगेशीट लगेगा. एक तो उनके पोचेर्स होने का और दूसरे किडनॅपिंग का. अब वो बजाए जज़्बाती होने वो यही सोच रही थी के उनको बचाया कैसे जाए. सबसे पहले उसने यह काम किया की छाया और उसके दोस्तों का जो प्लान था उसके खिलाफ उस बारे में उसने किसी से उसका जिक्र करना अभी ठीक नहीं समझा. वो चाहती थी की यह बात डायरेक्ट छाया से की जाए. और फिर यही सब सोच कर वो एक प्लान करने लगी.

फिर उसके 4 दीं बाद,
रोहन और परवेज़ जेल की काल खोत्री में कैद थे. जहाँ पर रोहन अपने और श्रुति के रिश्ते के बारे में सोच रहा था. वो सोच रहा था की वो और परवेज़ क्या करने आए थे इस जंगल में और क्या हो गया उनके साथ में. वह दोनों तो यही सोचकर आए थे की की आखिरी बार एक बड़ा हाथ मारेंगे और फिर उसके बाद इस धंधे को चोद वह एक इज्जत की जिंदगी जियेंगे. लेकिन उनके साथ क्या हो गया. पहले वह दोनों फोरेस्ट ऑफिसर्स से च्चिपने के लिए श्रुति और उसके दोस्तों की किडनॅपिंग की , फिर उसके बाद उन भयानक जानवरो से उनका सामना हुआ, फिर उसके बाद उसे प्यार हो गया वो भी उस लड़की के साथ जिसे उसने ही किडनॅप किया था और अब उसकी यह गिरफ्तारी. फिर वो सोचने लगा की यह तो होना ही था. देर सवेर उसे इन लोगों के हाथ तो लगना ही था. लेकिन अब समस्या यह थी अब उसे श्रुति से प्यार हो गया था और वो उसके बिना एक पल भी जिंदगी जीने का तसवउर भी नहीं कर सकता था. फिर उसने यह सोचा की चलो एक तरह से यह अच्छा ही हो गया क्योंकि अगर वो श्रुति के साथ भी रहा तो क्या जिंदगी देगा उसे. क्योंकि वो जानता था की श्रुति ऊंचे महलो वाली लड़की है, वो उसे गरीबी के अलावा कुछ नहीं दे सकता था. वो और भी यह बातें सोचता रहा की तभी अचानक उसकी काल खोत्री का दरवाजा खुला और एक हवलदार अंदर आया और उन्हें बताने लगा.
"बाहर चलो. तुम दोनों की ज़मानत हो गयी है." उन दोनों के कानों को तो विश्वास ही नहीं हो रहा था की वह दोनों अभी अभी क्या सुने है. उन्हें बड़ा आश्चर्य हो रहा था की भला उनकी ज़मानत कौन करा सकता है. फिर वह दोनों जब बाहर निकले तो उन्हें एक महिला दिखी जिसने उन दोनों की ज़मानत करवाई थी.
"तुम दोनों अब जा सकते हो. लेकिन याद रखना आज के बाद यह काम किए तो काफी महँगा पड़ेगा." उस थाने के इंचार्ज..
 
(UPDATE-97)

ने कहा.फिर वो महिला उन दोनों के पास आई और उन दोनों से कहा.
"मेरे साथ ज़रा बाहर आओ." फिर उन दोनों ने वैसा ही किया जैसा उस महिला ने कहा था. बाहर आकर वो महिला फिर उनसे कहने लगी.
"जानते हो में कौन हूँ?" रोहन और परवेज़ पहले एक दूसरे को देखे फिर उस महिला की तरफ देखते हुए कहा.
"नहीं हम नहीं जानते. कौन है आप और हमारी ज़मानत क्यों कराईए आपने." रोहन ने कहा.
"अपनी बेटी से मजबूर होकर मैंने तुम दोनों की ज़मानत कराई है."
"में कुछ समझा नहीं." रोहन ना समझने वाले अंदाज़ में कहा.
"मतलब यह की में श्रुति की मां हूँ. और उसी की वजह से मुझे मजबूर होना पड़ा." रोहन और परवेज़ को हैरत होने लगी की आख़िर श्रुति की मां उन दोनों की ज़मानत क्यों कराएगी.
"बड़ी बदकिस्मती की बात है मेरी बेटी तुम जैसे लफंगे से प्यार करने लगी है. पता नहीं तुमने उसपर क्या जादू कर दिया है. एनीवे उसी की वजह से तुम दोनों के ऊपर से किडनॅपिंग के चार्जस हटाए गये है. इसलिए तुम दोनों की ज़मानत आराम से हो पाई है. मेरा बस इतना कहना है की अब तुम्हें यह जो
नयी जिंदगी मिली है उसे ढंग से जियो और जितनी जल्दी हो सके श्रुति के दिल से और इस शहर से हमेशा हमेशा के लिए चले जाओ."
"में एक बार श्रुति से बात करना चाहता हूँ." रोहन ने कहा.
"कोई जरूरत नहीं है इसकी. और वैसे भी क्या बात करोगे. तुम जाओगे और उससे मीठी मीठी बातें करोगे और वो फिर से पिघल जाएगी. वो तो अभी नादान है, नहीं समझती है इन बातों को की तुम्हारे साथ रहकर वो क्या करेगी. लेकिन तुम तो समझते हो ना. अगर तुम उससे सच्चा प्यार करते हो तो क्या तुम यह बर्दाश्त कर सकोगे की वो महलो से निकल कर तुम्हारे साथ गरीबी की जिंदगी गुजरे. बेहतर यही होगा की तुम अभी और इसी वक्त यहां से निकल जाओ." कहने के साथ ही सौंदर्या अपनी गाड़ी में बैठ गयी.
"अब क्या करेगा रोहन?" सौंदर्या के जाने के बाद परवेज़ ने रोहन से कहा.
"वो ठीक ही कह रही है परवेज़. मेरे साथ रहकर श्रुति का कोई भाविशया नहीं है. वो जहां है वही उसे रहने देना चाहिए. तू एक काम देहरादून चलने की तैयारी कर वही जाकर अब हम कोई दूसरा काम देखेंगे." रोहन ने कहा.

श्रुति गुमसुम सी अपने कमरे में बैठे हुई थी. वो इतनी बड़ी मुसीबत से और इतने भयानक जंगल से निकल कर आई थी यह सोचकर उसे खुश होना चाहिए था. लेकिन हो रहा था उसके उलट. वो सोच रही थी भले ही भी उस भयानक जंगल और उन दरिंदो के बीच घिरी हुई थी, लेकिन उसे फिलहाल वही अच्छा लग रहा था क्योंकि उस वक्त उसके साथ उसका महबूब रोहन था. वो सोच रही थी की भले ही वो कितनी भी बड़ी परेशानी में थी लेकिन वो रोहन से कितनी प्यार बातें किया करती थी. यही वो वक्त था जहाँ अपने सपने वाले शहज़ादे से मिली थी. उसे तो रोहन अब अपने सपने वाले शहज़ादे से भी प्यारा लग रहा था. उसका बहुत मन कर रहा था अपने रोहन से दोबारा मिलने का, लेकिन वो मजबूर थी. क्योंकि उसकी मां सौंदर्या को रोहन पसंद नहीं था और उसने धमकी दी थी की अगर उसने रोहन से कोई रिश्ता नहीं थोड़ा तो वो रोहन और परवेज़ को और बुरी तरह फंस्वाकार उन्हें लंबे समय के लिए जेल की हवा खिलवाएगी. श्रुति ऐसा बिलकुल भी नहीं चाहती थी की उसका महबूब जेल की सलाखों के पीछे अपनी उमर गुज़ारे. वो यही सोच रही थी की रोहन से दूर होने में ही उसकी भलाई है क्योंकि कम से कम वो भले ही तक़लीफ़ में रहे लेकिन रोहन आज़ाद होकर अपनी जिंदगी दोबारा से शुरू कर सकता है और इसके अलावा उसके ऊपर उसके परिवार की ज़िम्मेदारिया भी है. यही सब सोचकर उसने रोहन से दूर रहना ही बेहतर समझा. फिर काफी देर श्रुति यही सब बातें सोचती रही की तभी उसकी सोच का सिलसिला तब टूटा जब उसके कमरे में प्रवेश होती अपनी मां को उसने देखा. वो झट से अपनी जगह से उठी और अपनी मां के पास जाते हुए कहा.
"क्या हुआ मामा? उन्हें ज़मानत मिली?"
"हां मिली. और मैंने रोहन से कह दिया है की वो तुम्हारे जिंदगी से और इस शहर से दूर चला जाए. और आज के बाद तुम भी उससे कोई कॉंटॅक्ट करने की कोशिश नहीं करोगी. क्योंकि तुमने मुझसे वादा किया था की अगर में उन्हें ज़मानत दिलवती हूँ तो तुम उसे भूल जाओगी. वरना तुम भी अच्हसे से जानती हो की वह दोनों कितनी बड़ी मुश्किल में पढ़ने वाले थे." सौंदर्या ने कहा.
"ओके..मामा..जैसा आप कहें..वैसा ही होगा." श्रुति ने रोते हुए कहा. श्रुति को रोता देख सौंदर्या को थोड़ा एहसास हुआ की उसे इतने खातोर् लहज़े में बात नहीं करनी चाहिए थी इसलिए वो थोड़ा नर्म पढ़ते हुए बोली.
"देखो बेटी बुरा मत मना, में तुम्हारे भले की लिए बोल रही हूँ. रोहन के साथ जिंदगी गुजार कर तुम्हारा कोई फ्यूचर नहीं था. खुद रोहन भी इस बात को समझ गया है..
 
(UPDATE-98)

क्योंकि मैंने उसे और उसके दोस्त को रेलवे स्टेशन की तरफ जाते हुए देखा था. क्योंकि वो जानता है की तुम अभी नादान हो. तुम्हारे आगे पूरी जिंदगी पढ़ी है. तुम कहा उसके साथ रहकर गरीबी की जिंदगी गुज़रगी." लेकिन जवाब में श्रुति ने कुछ नहीं कहा बस जाकर अपने बेड के ताक़िए से अपना मुंह छुपा कर ज़ोर ज़ोर से रोने लगी. यह देख कर सौंदर्या उसके करीब जाकर उसे दिलासा देने लगी. उसे श्रुति का रोना नहीं देखा जा रहा था आख़िर वो मां जो ठहरी. लेकिन उसे यह नहीं मालूम था की श्रुति और उसके बीच अभी जो बातचीत हुई उसे दरवाजा पर खड़ा विजय ने सुन लिया था.
"सौंदर्या!! यह तुम क्या कर रही हो. फिर से अपनी बेटी की जिंदगी तबाह करने पर तुली हुई हो." पहले तो विजय को यूँ अचानक देखकर सौंदर्या थोड़ा घबरा गयी, फिर संभालते हुए कहा.
"यह तुम क्या कह रहे हो विजय? में इसकी जिंदगी संवारने की कोशिश कर रही हूँ और तुम कह रहे हो की में तबाह कर रही हूँ?" लेकिन विजय, सौंदर्या की किसी बात का जवाब ना देते हुए श्रुति के करीब जाकर उसका खंडा पकड़ उसे उठाने लगा. फिर उसने देखा की श्रुति का रो रो के बुरा हाल था.
"देखो सौंदर्या इसकी आँखों में देखो. क्या तुम्हें इस पर रहम नहीं आता. तुम्हें क्या लगता है तुम रोहन को इससे दूर करोगी तो क्या यह खुश रही पाएगी. नहीं!! जीते जी यह मर जाएगी क्योंकि यह उससे सच्चा प्यार करने लगी है. और में अपने बेटी के जज़्बात का पूरा सम्मान करता हूँ. मेरी बेटी ने जिंदगी में पहला कोई काम अच्छा किया है. मुझे फख्र है अपनी बेटी पर और मुझे उम्मीद है रोहन पर की वो मेरी श्रुति को जिंदगी भर खुश रखेगा क्योंकि अगर श्रुति हमारे सामने है तो सिर्फ़ रोहन की मेहरबानियो की वजह से."
"यह तुम क्या कह रहे हो? उसने कोई एहसान नहीं किया है इस पर क्योंकि वो इसी की वजह से उस जंगल में फाँसी थी. यह तो उसका फर्ज था जो उसने इसकी जिंदगी बचाई है." सौंदर्या ने कहा.
" सौंदर्या तुम्हें पूरी बात मालूम नहीं है इसलिए तुम ऐसा कह रही हो लेकिन जब तुम बाहर गयी हुई थी तब श्रुति ने मुझे सारी बात बताई. रोहन ने उसे उस उन दरिंदो से ही नहीं बल्कि उसके दरिंदे दोस्तों से भी बचाया है." विजय ने बताया.
"इसके दोस्तों से!! में कुछ समझी नहीं तुम क्या कह रहे हो विजय." फिर विजय ने उसे पूरा घटनाक्रम बताया की कैसे उसके दोस्त उसे बहका कर फ़ायरवेल्ल पार्टी के लिए उसके साथ क्या करना चाहते थे फिर कैसे रोहन ने उन लोगों का किडनॅप करके श्रुति को उन लोगों से बच्चा लिया था. पूरी बात सुन कर सौंदर्या का दिमाग एक दम से चकरा गया. वो सोच भी नहीं सकती थी श्रुति के दोस्त इतनी नीच भारी हरकत भी कर सकते थे.
"विजय हमें उनके खिलाफ एक्शन लेना चाहिए. वह ऐसा कैसे कर सकते है हमारी बेटी के खिलाफ."
"नहीं मामा इसकी कोई जरूरत नहीं है. और वैसे भी किसके खिलाफ एक्शन लेंगे क्योंकि सिर्फ़ छाया के अलावा अब कोई ज़िंदा नहीं बच्चा है. उन सभी को अपने किए की सजा मिल चुकी है." फिर उसके बाद सौंदर्या ने भी इस बात पर कोई बहस नहीं की.
"चलो बेटी में तुम्हें तुम्हारे रोहन से मिलवा दम, अगर देर हो गयी तो उसके ट्रेन चली जाएगी." विजय ने श्रुति से कहा.
"लेकिन विजय यह तो सोचो श्रुति उसके साथ कैसे जिंदगी गुज़ारेगी? वो क्या खिलाएगा हमारी फूल जैसी बच्ची को?" सौंदर्या चिंचित होते हुए बोली.
"देखो सौंदर्या अब हमारी श्रुति बड़ी हो गयी है अगर उसे लगता है की वो रोहन के साथ अपनी पूरी जिंदगी बसर कर सकती है चाहे गरीबी में रहे या कैसे भी रहे तो इस बात का फैसला हमें इस पर छोड देना चाहिए." फिर विजय, श्रुति की तरफ देखकर कहा. " श्रुति जल्दी चलो, कही देर ना हो जाए!"
अब की बार सौंदर्या ने भी कुछ नहीं कहा और विजय ने श्रुति का हाथ पकड़ अपनी गाड़ी में बिठाया और चल पड़ा रेलवे स्टेशन की और.

रोहन और परवेज़ ट्रेन में बैठ चुके थे. उनकी ट्रेन को छूटने में 10 मिनिट्स बाकी थे. रोहन एक दम उदास सा अपना सर सीट पर टिकाए हुए आँखें बंद कर पता नहीं क्या सोच रहा था और परवेज़ भी अपने दोस्त को गमगीन होते हुए देखकर खुद भी गमगीन होकर खिड़की के बाहर देखे जा रहा था. उसे बड़ा गुस्सा आ रहा था श्रुति की मां पर उसने कैसे दो प्यार करने वालो को जुड़ा कर दिया था और चाह कर भी वो कुछ नहीं कर पा रहा था. अभी वो यही सब सोच ही रहा था की वो एक दम से चौंक गया क्योंकि उसने अपनी खिड़की से कुछ ऐसा देखा की उसे बड़ी हैरत हुई. उसने जल्दी से रोहन को हिलाते हुए खिड़की से बाहर दिखाने लगा.
"क्या हुआ परवेज़? क्या दिखा रहा है तू मुझे?" रोहन यहां वहां देखकर बोला.
"आबे अंधे वो देख कौन है." परवेज़ अपनी उंगली से एक तरफ इशारा करता हुआ कहने..
 
(UPDATE-99)

लगा. फिर रोहन भी उसी दिशा में देखने लगा की तभी वो भी एक दम से शॉक्ड हो गया क्योंकि उसने श्रुति को अपने बाप विजय के साथ देख लिया था. लेकिन फिर वो कुछ सोचने लगा. उसको सोच में देखकर परवेज़ ने कहा.
"आबे क्या सोच रहा है. देख वो कितनी बेक़रार है वो भी तेरे साथ जाने के लिए आई है. चल जल्दी से उसे बुलाले इससे पहले की ट्रेन चुत जाए." कहने के साथ ही परवेज़ अपनी जगह से उठ गया और चलने लगा की तभी रोहन उसका पकड़ कर कहने लगा.
"नहीं परवेज़ रहने दे. यह ठीक नहीं होगा. अगर वो मेरे साथ आएगी तो बड़ी मुश्किल हो जाएगी. कैसे वो मेरे साथ जिंदगी गुजार पाएगी." रोहन ने कहा.
"इसका फैसला करने वाला तू कौन होता है. जब उसे कोई फर्क नहीं पढ़ता तो तू क्यों इतना सोच रहा है?" परवेज़ ने कहा.
"अरे यार तू बात को समझना...वो अभी नादान है नहीं समझती है इन बातों को.." रोहन, परवेज़ को आँख दिखाते हुए कहा.
"मेरे हिसाब से तू नहीं समझता उसके जज़्बातों को. तू यही बैठा रही में जा रहा हूँ उसे लेने के लिए." कहने के बाद परवेज़ अपना हाथ च्छूदते हुए ट्रेन के बाहर निकल गया. और फिर श्रुति की तरफ हाथ दिखाने लगा.
"श्रुति बाभ...ओह सॉरी.श्रुति जी..इधर इधर..." फिर श्रुति ने भी देख लिया था परवेज़ को और वो उसके पास जाने लगी.
"मुझे पता था की तुम जरूर आओगी." परवेज़, श्रुति को देखता हुआ बोला
"रोहन कहा है परवेज़ भाई??" श्रुति एक दम रोहँसी और घबराई हुई सी थी.
"वो अंदर ही बैठा है. वो नहीं चाहता है की तुम उसके साथ चलो क्योंकि वो समझता है की तुम उसके साथ गरीबी की जिंदगी नहीं गुजार पाएगी."
"मुझे उसके पास ले चलो" श्रुति ने कहा.
"तुम चलो में तुम्हारे लिए टिकट का बँदबस्त करके अभी आता हूँ." कहते हुए विजय टिकट रिज़र्वेशन काउंटर की और जाने लगा.
फिर परवेज़, श्रुति को उधर ले जाता है जहाँ रोहन बैठा हुआ था. श्रुति, रोहन को देखते ही उसके गले लग जाती है.
"मुझे अपने साथ लिए बगैर जा रहे थे. क्यों रोहन??"
"श्रुति समझा करो. में तुम्हारी भलाई के लिए यह सब कर रहा था."
"मेरी भलाई सिर्फ़ तुम्हारे साथ जिंदगी गुज़ारने में है रोहन. में तुम्हारे बगैर जिंदगी गुज़ारने के बारे में सोच भी नहीं सकती."
"देखो श्रुति नादान मत बनो. तुम्हें इस तरह की जिंदगी जीने की आदत नहीं है. तुम अगर मेरे साथ रहोगी तो हर वक्त तक़लीफो का सामना करने पड़ेगा तुम्हें."
"रोहन!! जिस जंगल से हम मौत के मुंह से बच कर निकले है ना अगर तुम मुझे वापस उसी जगह जाकर रहने के लिए कहोगे तो में वहां भी रहने के लिए तैयार हूँ. तो फिर तुम्हारे घर रहने में मुझे क्या प्राब्लम होगी.बस शर्त यह है की तुम मेरे साथ रहो. और वैसे भी मैंने तुमसे प्यार किया है और जो प्यार करते है वह यह नहीं देखते की उन्हें कहा रहना है और कहा नहीं. वह जिस हाल में रहते है उसी हाल में खुश रहते है." अब रोहन के पास कहने के लिए कुछ भी नहीं बच्चा था क्योंकि श्रुति ने अपनी बातों से उसे कायल कर लिया था.
"ठीक है श्रुति अगर तुम्हें कोई प्राब्लम नहीं है तो मुझे भी कोई प्राब्लम नहीं है."
"सच!! ओह रोहन ई लव यू!!! कहने के साथ ही श्रुति, रोहन के गालों को किस करने लगी.
"अरे श्रुति यह क्या कर रही हो?"
"ओह सॉरी!!" फिर श्रुति नज़रे झुका कर यहां वहां देखने लगी की सबकी नज़रे उन्हीं दोनों पर थी. इतने लोगों की नज़रे अपने ऊपर देख कर वो थोड़ा शर्मा गयी. रोहन ने भी यह देख लिया था और उसकी झेंप मिटाने के लिए वो श्रुति का हाथ पकड़ कर अपने पास बिता लिया और कहना लगा.
"वो तो सब ठीक है श्रुति. लेकिन तुम्हें और प्रॉब्लम्स भी से गुजरना पड़ेगा."
"और भी प्रॉब्लम्स से मतलब? में कुछ समझी नहीं." श्रुति हैरत से रोहन की तरफ देखने लगी.
"तुम्हें मेरे घर पर एक भारतीय नारी की तरह रहना पड़ेगा. मेरा मतलब है तुम्हें अपनी सास यानि के मेरी मां का खूब ख्याल रखना पड़ेगा और सुबह सवेरे उठ कर घर के सारे काम काज़ करने पड़ेंगे. तुम तैयार हो इसके लिए?"
"अगर तुम जिंदगी भर मेरे साथ रहने का वादा करो तो यह सब भी मेरे लिए कोई मुश्किल नहीं है." मुस्कुराते हुए श्रुति, रोहन के खड़े पर अपना सर रख दी.फिर उसके बाद रोहन को कुछ याद आता है और फिर वो श्रुति से कुछ पूछने लगता है.
"अच्छा श्रुति एक बताओ? हमारे ऊपर से यह अचानक किडनॅपिंग का इल्जाम कैसे हाथ गया. क्या तुम्हें इस बारे कुछ में पता है?"
"जब मुझे पता चला की छाया ज़िंदा है तो जाहिर सी बात है वो तुम दोनों के खिलाफ कंप्लेंट की होगी हमारी किडनॅपिंग को लेकर. में यही सोच रही थी की कैसे तुम दोनों को इस इल्जाम से बचाओ की तभी मुझे अचानक वो बात याद आई जो तुमने मुझे बताई थी की मेरे सारे दोस्त मेरे खिलाफ क्या प्लान कर रहे थे. तब फिर मैंने सोचा की अगर में छाया को इसी बात पर धमकी दम की अगर वो..
 
(UPDATE-100) FINAL UPDATE

तुम दोनों के ऊपर से लगाया हुआ इल्जाम वापस नहीं लेती है तो में उसकी शिकायत कर दूँगी. बस फिर क्या था मैंने यह बात डायरेक्ट छाया से कहा. मेरी बात सुनकर तो पहले उसे यकीन ही नहीं हुआ लेकिन जब मैंने उसे काफी धमकाया तो वो डर गयी और अपना बयान वापस लेने के लिए राजी हो गयी. फिर हमने फोरेस्ट डिपार्टमेंट वालो के सामने यह बयान दिया की जिन्होंने हमारा किडनॅप किया था वह तुम दोनों नहीं बल्कि कोई और थे. लेकिन फिर भी उन्होंने तुम दोनों को पोचिंग के इल्जाम में गिरफटकार किया. लेकिन सिर्फ़ यही चार्जस होने की वजह से और मेरी मामा की बारे लोगों में कॉंटॅक्ट्स होने की वजह से तुम दोनों की ज़मानत आराम से हो पाई."
वह और भी इसी तरह की बातें करते रहे फिर उसके बाद विजय ने श्रुति की टिकट उसे पकड़ा दी और अपनी बेटी और दामाद को आशीर्वाद देकर रुखसत कर दिया.

फिर उसके 1 हफ्ते बाद,
रोहन सुबह सुबह अपने घर के बरामदे में बैठा हुआ अख़बार पढ़ रहा था. जिसमें लिखा था पीच्छले कुछ दीनों से जिम कॉर्बेट नेशनल पार्क में जिन दरिंदो ने आतंक मचाया हुआ था अब मिलिटरी की मदद से उनको दरिंदो से वापस उनकी पुरानी अवस्था में ला दिया गया है. अब वहां की प्रशासन ने सभी को आश्वासन दे दिया है की अब हालात पहले से बेहतर हो गये है और अब किसी को भी इस जंगल में आने में किसी तरह की कोई भी परेशानी नहीं होगी. यह खबर पढ़ कर रोहन का ध्यान उस और जाने लगा जो उसके , श्रुति, परवेज़ और ना जाने कितने लोगों को उन दरिंदो से परेशानी उठानी पढ़ी थी और ना जाने कितने ही लोगों ने अपनी जाने भी गँवाए थे और वो भी सिर्फ़ एक साइंटिस्ट की नलायकी की वजह से. वो यही सब सोचे जा रहा था की तभी पीछे से उसे आवाज़ आई.
"चाय!!" रोहन ने देखा की श्रुति सलवार कमीज़ पहने हुए, माथे पर सिंदूर और गले में उसके नाम का मंगलसूत्र पहने हुए और हाथ में चाय का कप लिए हुए एक सच्ची भारतीय नारी लग रही थी. उसे बड़ी हैरत हो रही थी श्रुति जैसी लड़की कैसे अपने आपको उसके माहौल में ढाल ली थी. यह अपने आप में ही बहुत बड़ी बात थी. वो अपने आपको दुनिया का सबसे खुशनसीब इंसान समझने लगा की उसे श्रुति जैसे खूबसूरत, समझदार और उस पर मर मिटने वाली लड़की मिली थी. वो यूँही उसे एक टुक देखे जा रहा था की तभी श्रुति उसे टोकते हुए कहा.
"कहा खो गये? यह लो अपनी चाय पकड़ो मुझे और भी ढेर सारा काम है." कहते हुए श्रुति उसे चाय का कप पकड़ा दी और वापस जाने के लिए मुड़ी ही थी के रोहन उसका हाथ पकड़ कर अपनी तरफ कर लिया.
"अरे दो मिनट रुको तो. ज़रा कुछ देर मेरे से बात तो करो." रोहन ने उससे कहा.
"क्या बात कर रहे हो रोहन अभी मुझे मां को दवा देनी है और खाना भी बनाना है और भी ना जाने कितने काम है. अगर में तुम्हारे से बातें ही करूँगी तो यह सब काम कब करूँगी?"
"तो फिर में तुमसे बातें कब करूं?"
"ओफफ़ो रोहन!! तुम्हीं ने तो कहा था मुझे मां का खायल रखना पड़ेगा, खाना बनाना पड़ेगा , घर के और भी काम करने पड़ेंगे. अगर में तुमसे दिन भर बातें ही किया करूँगी तो फिर यह सब काम कौन करेगा.?" फिर रोहन को अपनी तरफ हैरत से देखते हुए श्रुति ने कहा.
"डोंट वरी जब हम रात को अपने कमरे में जाएँगे तो जितनी बातें तुम्हें मुझसे करनी है कर लेना. ओके???" कहने के साथ ही श्रुति रोहन का हाथ च्चूधकर जाने लगी. फिर अचानक कुछ सोच कर रुकी और रोहन की तरफ देखते हुए कहा.
"बायें थे वे...मुझे तुम्हें एक खुशख़बरी देनी है."
"क्या?" रोहन ने कहा.
"मुझे आज उल्टिया हो रही थी."
"उल्टिया हो रही थी!! कैसे? यह खुशख़बरी है? क्यों क्या हुआ तुम्हें? तुम्हारी तबीयत तो ठीक है. चलो में तुम्हें डॉक्टर को दिखा दम." रोहन एक दम घबराते हुए कहा.
"अरे भूद्धू किसी औरत को उल्टियाँ होती है तो इसका मतलब तुम्हें पता नहीं है क्या?" श्रुति अपना माता ठोनकटे हुए कहा.
"क्यों? क्या मतलब होता है?" रोहन ना समझने वाले अंदाज़ में कहा.
"कुछ मतलब नहीं होता है. भूधहू!!" हंसते हुए श्रुति अंदर की तरफ चली गयी. और रोहन हैरत से उसे जाता हुआ देख रहा था.

बस ऐसे ही हसीं खुशी सब अपनी जिंदगी मे मस्त हो गए और अपने पुराने झकमो को भूल गए जो उन्हें मिले थे।

THE END
 
Back
Top