[color=rgb(251,]पच्चीसवाँ अध्याय: खुशियों का आगमन[/color]
[color=rgb(97,]भाग - 6[/color]
[color=rgb(71,]अब तक आपने पढ़ा:[/color]
आयुष: दादा जी, आप और दादी जी सबसे बड़े हैं तो पहले आप घूमिये फिर मम्मी जाएँगी और सबसे आखिर में हम दोनों (आयुष और नेहा) जायेंगे|
आयुष इतने प्यार से बोला की पिताजी ने उसे गोद में उठा लिया और उसके सर को चूमने लगे| दादा-दादी को आज अपने पोता-पोती की समझदारी भरी बातों पर बहुत प्यार आ रहा था| दोनों बच्चों ने अपने दादा-दादी के हाथ पकडे और उन्हें गाडी के पास ला कर खुद गाडी का दरवाज खोल कर उन्हें बैठने को कहा| ये दृश्य जिसने भी देखा वो बच्चों पर मोहित हो रहा था!
[color=rgb(51,]अब आगे:[/color]
पिताजी आगे बैठे और मैंने उनकी seatbelt लगाई, माँ पीछे बैठीं तथा मुझसे मजाक करते हुए बोलीं;
माँ: अरे वाह अपने पिताजी की seatbelt लगा दी और मेरी?
माँ बच्चों की तरह बोलीं तो मैं और पिताजी हँसने लगे| मैंने गाडी के पीछे वाला दरवाजा खोल कर माँ की seat belt लगाई और फिर आगे आ कर driving seat पर बैठ गया| गाडी को ignition दिया और माँ ने पीछे बैठे-बैठे हाथ जोड़े और भगवान से प्रार्थना की| मैंने भी भगवान को मन ही मन शुक्रिया की और handbrake हटा कर गाडी main road की तरफ मोड़ ली| माँ-पिताजी आज पहलीबार मेरे साथ गाडी में बैठे थे इसलिए मैं गाडी बड़े ध्यान से चला रहा था, वैसे गाडी थी भी नई तो एकदम मक्खन जैसे चल रही थी! मेरी driving से प्रभावित हो कर माँ-पिताजी संतुष्ट थे की मैं नई गाडी पा कर कोइ आवारागर्दी नहीं करूँगा!
इधर मैं माँ-पिताजी के साथ drive पर मजे कर रहा था और उधर संगीता, दिषु से माफ़ी माँगते हुए बोली;
संगीता: दिषु भैया, आपको इतनी जल्दी मंदिर बुलाने के लिए माफ़ी चाहती हूँ|
संगीता हाथ जोड़ कर माफ़ी माँगने लगी तो दिषु एकदम से बोला;
दिषु: अरे भाभी क्या बात कर रहे हो? मेरे भाई की ख़ुशी का मौका था, सुबह क्या आधी रात को भी कहते तो मैं आ जाता!
संगीता: भैया आप दोनों जैसी दोस्ती मैंने कहीं नहीं देखि! जब-जब इन्हें (मुझे) आपकी जर्रूरत पड़ी आप हमेशा इनके कँधे से कँधे मिला कर खड़े नजर आये|
संगीता दिषु की तारीफ करने लगी, अपनी तारीफ सुन दिषु गदगद हो कर बोला;
दिषु: बस भाभी, यूँ तारीफ का शर्बत मत पिलाओ! ये बताओ की अपने हाथ से बनी रसोई कब खिला रहे हो?
संगीता: अभी घर चलो...
संगीता खुश होते हुए बोली, लेकिन दिषु ने उसकी बात काट दी और बोला;
दिषु: मैं ये घास-फूँस नहीं खाता, मुझे तो चिकन चाहिए और वो भी आपके हाथ से बना हुआ|
दिषु जानता था की संगीता ने कभी nonveg नहीं बनाया इसलिए वो संगीता को तंग करने के इरादे से बोला| मंदिर में खड़े हो कर जैसे ही दिषु ने चिकन कहा तो सुमन एकदम से बोल पड़ी;
सुमन: मंदिर में चिकन का नाम ले लिया, पाप लगेगा आपको!
सुमन के बीच में बोलने से दिषु को फिर उसकी और अनिल की टाँग खींचने का मौका मिल गया;
दिषु: अरे आप बनाओगी तो हमें ये पाप लगना भी मंजूर है!
दिषु ने मजे लेते हुए अपनी बात कही तो सुमन को छोड़ कर सब हँस पड़े, सुमन बेचारी शर्मा कर संगीता के पीछे छुप गई थी!
संगीता: दिषु भैया मेरे बेटे अनिल की तरह भोंदू नहीं हैं, उनसे मत उलझा कर!
संगीता, सुमन को प्यार से छेड़ते हुए बोली और उसकी बात पर दिषु ठहाका लगाने लगा|
खैर ,चूँकि सुमन की दखलंदाजी से दिषु अपने चिकन खाने की माँग का जवाब संगीता से नहीं जान पाया था, इसलिए उसने पुनः अपना सवाल दोहरा दिया;
दिषु: बताओ न भाभी, कब खिला रहे हो चिकन?
इस बार दिषु ने चिकन शब्द सुमन की ओर देखते हुए कहा और सुमन शर्मा कर रह गई!
संगीता: भैया मुझे तो बनाना ही नहीं आता!
संगीता ने अपने हाथ खड़े करते हुए कहा|
दिषु: क्यों? वो है न संजीव कपूर का assistant chef!
दिषु बात गोल घुमाते हुए बोला, संगीता को दिषु की बात समझ नहीं आई तो वो भोयें सिकोड़ कर दिषु को देखने लगी;
दिषु: अरे मानु की बात कर रहा हूँ! उससे कहना, वो आपको सिखा देगा!
मेरा नाम सुनते ही संगीता मुस्कुराई ओर बोली;
संगीता: अंडा बनाना तो मुझे सिखाया था, लेकिन मैंने कभी बनाया नहीं|
अंडे का जिक्र हुआ तो अनिल ने एकदम से अपनी दीदी से पूछ लिया;
अनिल: दीदी आप अंडा खाते हो न?
अनिल के सवाल से संगीता दंग रह गई! अनिल की आवाज में आत्मविश्वास था जिसका मतलब की किसी ने उसे संगीता के अंडा खाने के बारे में बताया था| अब मंदिर में खड़ी हो कर संगीता झूठ तो बोल नहीं सकती थी, इसलिए उसने शर्माते हुए सर झुकाया और गर्दन हाँ में हिलाई| अनिल को अपनी दीदी की खिंचाई करने का मौका मिल गया था और उसने अपनी दीदी को चिढ़ाते हुए कहा;
अनिल: हे भगवान! आप ने तो पूरा कुनबा भ्र्ष्ट कर दिया!
संगीता खामोश रही और सर झुकाये खड़ी रही, अब दोनों बच्चों ने अपनी मम्मी का पक्ष लिया और बोले;
नेहा: अंडा खाया तो क्या हुआ मामा जी?
आयुष ये जानता था की हमारे पूरे परिवार में कोई अंडा नहीं खता परन्तु उसे समझ नहीं आया की वो क्या कहे इसलिए उसने जा कर अपनी मम्मी की टाँग से लिपटते हुए अपना मूक समर्थन दे दिया| जब बच्चों का साथ मिला तो संगीता में हिम्मत आ गई और वो अनिल की बात का जवाब देते हुए बोली;
संगीता: हमारे परिवार में तेरी उम्र का कोई लड़का शराब नहीं पीता, लेकिन तूने न केवल शराब पी बल्कि girlfriend भी बना ली!
संगीता का कटाक्ष सुन अनिल के मुँह पर ताला लग गया और वो सर झुकाये शर्माने लगा! अनिल की इस हालत पर दिषु खूब जोर से हँसा और उसके साथ नेहा भी हँसने लगी!
तभी मैं भी गाडी ले कर लौट आया, जैसे ही मैं गाडी से बाहर निकला दिषु मेरी ओर इशारा करते हुए संगीता से बोला;
दिषु: ये लो भाभी, आ गया संजीव कपूर का assistant chef!
दिषु की बात से हैरान हो कर मैं संगीता को देखने लगा तो उसने मुझे सारी बात बताई|
मैं: अभी माँ-पिताजी से बात हुई, तू, (दिषु) अंकल-आंटी जी (दिषु के माता-पिता) और मिश्रा अंकल जी को सपरिवार कल ही खाने का निमंत्रण देने आज मैं और पिताजी आएंगे|
मैंने मुस्कुराते हुए दिषु से कहा|
दिषु: यार कल का मत रख, मुझे आज ही audit पर निकलना है| अगले sunday को lunch रख ले.और हाँ मेरा चिकन तू भाभी से ही बनवाइयो!
दिषु के चिकन वाली बात सुन सभी हँस पड़े|
अब बारी आई बच्चों की जिन्होंने अपने दादा-दादी जी से गाडी की सवारी के बारे में पूछना शुरू कर दिया| माँ-पिताजी भी एक पल के लिए बच्चे बन गए और दोनों बच्चों को प्यार से गाडी मैं बैठने की बातें बना कर सुनाने लगे| अपने दादा-दादी जी की बातें दोनों बच्चे बड़े गौर से सुन रहे थे|
आयुष को थी जल्दी गाडी में बैठने की तो वो अपनी मम्मी के पास आया और अपनी अधीरता दिखाते हुए बोला;
आयुष: मम्मी आप भी जल्दी से जाओ और जल्दी से आओ, फिर मैं और दीदी जाएंगे|
आयुष की अधीरता देख सभी हँस पड़े|
अनिल: आप दोनों (नेहा और आयुष) की बारी कैसे आएगी, हम दोनों (अनिल और सुमन) आपसे बड़े हैं तो दीदी (संगीता) के बाद हम-दोनों बैठेंगे|
अनिल, आयुष को तंग करते हुए बोला| अपने मामा जी की बात सुन आयुष का मुँह बन गया, तभी नेहा आगे आई और आयुष का हाथ पकड़ कर बोली;
नेहा: कोई बात नहीं आयुष, हम last में जायेंगे और सबसे देर तक घूमेंगे!
नेहा ने आयुष को बहलाने के लिए बात कही थी, परन्तु आयुष उस बात से एकदम से खुश हो गया| पिताजी को बच्चों को तरसना अच्छा नहीं लगता था;
पिताजी: बच्चों, अभी मैं और आपके पापा सबको मिठाई देने जा रहे हैं तो आप हमारे साथ चलो!
अपने दादा जी की बात सुन दोनों बच्चे ख़ुशी से चहकने लगे और जा कर अपने दादा जी से लिपट गए|
माँ, संगीता, सुमन और अनिल घर निकले तथा घर में कुछ रस्मों की तैयारी करने में व्यस्त हो गए| उधर मैं, पिताजी और बच्चे मिठाई की दूकान पर पहुँचे और जहाँ-जहाँ मिठाई देनी थी उसके लिए मिठाइयाँ खरीदी| एक-एक कर हमने सभी को घर जा कर मिठाइयाँ दी, जहाँ भी हम जाते बच्चे हमारे साथ होते थे और जो कोई भी उन्हें देखता उन पर मोहित हो कर उन्हें दुलार करने लगता| अंत में हम मिश्रा अंकल जी और दिषु के घर पहुँचे, उन्हें मिठाई दे पिताजी ने अगले sunday को lunch करने का न्योता भी दे दिया|
सब को मिठाई दे कर हम चारों घर लौटे, जब मैं गाडी गली के बाहर park कर रहा था तब पिताजी colony के guard को 100/- रुपये देते हुए बड़े गर्व से बोले;
पिताजी: ये हमारी गाडी है, इसका ख़ास ख्याल रखना!
इतना सुनना था की guard खुश हो गया और बोला;
Guard: आप चिंता न करो साहब, मैं रोज सुबह गाडी साफ़ कर के चमचमा दिया करूँगा!
पिताजी ने उसकी पीठ थपथपाई और मैंने उन्हें एक मिठाई का डिब्बा दोनों बच्चों के हाथों दिलवाया| नेहा और आयुष ने मिठाई दे कर हाथ जोड़ कर उन्हें "thank you अंकल जी" कहा और guard ने अपने दोनों हाथ उठा कर बच्चों को आशीर्वाद दिया|
घर में दाखिल हुआ तो माँ ने मुझे जल्दी से नहा कर आने को कहा, माँ की आज्ञा मानते हुए मैं नहा-धो कर आया तो माँ ने पूजा शुरू की| पूजा सम्पन्न होने के बाद सुमन और अनिल ने गहरे गुलाबी रंग के पानी वाली एक परात मेरे और संगीता के आगे कर दी| मैं जान गया की अब कौन सी रस्म की जाने वाली है, मैंने संगीता को देखा तो पाया की वो तो पहले से ही मुस्कुराये जा रही है|
सुमन: जीजू मैं इस परात में ये सोने की अँगूठी 3 बार डालूँगी, आप दोनों (मेरे और संगीता) में से जो भी सबसे ज्यादा बार अंगूठी ढूँढ निकालेगा वो जीतेगा और उसी की घर में चलेगी!
सुमन ने मुझे अँगूठी दिखाते हुए इस रस्म के नियम बताये| अब वो क्या जाने की हमारे घर में सिवाए-माँ-पिताजी के और किसी की चल ही नहीं सकती! उधर बच्चों को ये रस्म खेल जैसी लगी इसलिए दोनों बच्चों ने मेरा पक्ष ले लिया;
आयुष: मैं पापा की team में रहूँगा!
आयुष मेरी बगल में बैठते हुए बोला|
नेहा: मैं भी!
नेहा ख़ुशी से चहकते हुए बोली और मेरी दूसरी बगल बैठ गई| बच्चों की देखा-देखि अनिल भी मेरी तरफ हो लिया और चुपचाप मेरे पीछे आ कर बैठ गया| अब संगीता अकेली हो गई थी इसलिए उसने मुँह लटकाने का नाटक किया, संगीता को मुँह लटकाते देख माँ-पिताजी उसकी तरफ हो लिए और संगीता के पीछे बैठ गए| अब संगीता ने मुझे और बच्चों को जीभ चिढ़ाई और इधर से मैंने तथा बच्चों ने उसे जीभ चिढ़ाई! माँ-पिताजी, सगीता को जीभ चिढ़ाते हुए तो देख नहीं पाए, परन्तु मुझे और बच्चों को जीभ चिढ़ाते देख माँ-पिताजी हँसने लगे|
सुमन ने अपना हाथ परात में गोल-गोल घुमाया और धीरे से अंगूठी छोड़ दी, मेरी नजर पहले से ही सुमन के हाथ पर थी तो मैंने अंदाजा लगा लिया की उसने कहाँ अंगूठी छोड़ी है! मैंने झट से उस जगह के आस-पास टटोला और फट से अंगूठी ढूँढ निकाली! मेरी फुर्ती देख संगीता दंग रह गई और उधर बच्चों ने ख़ुशी से अपने पापा के जीत जाने पर तालियाँ बजानी शुरू कर दी! वहीं मेरे सर पर पहली बार में ही अंगूठी ढूँढ निकालने का थोड़ा गुरूर छा गया था| संगीता मुझे प्यार भरे गुस्से देखने लगी, मगर बोली कुछ नहीं! उधर सुमन दोनों बच्चों के ताली बजा कर खुश होने से सुमन उन्हें प्यार से टोकते हुए बोली;
सुमन: आप दोनों क्यों इतना खुश हो रहे हो?
बच्चे हँसते हुए कुछ कहें उससे पहले ही माँ बोल पड़ीं;
माँ: अरे खुश तो होंगे ही, बाप जीत गया तो फिर इनकी (बच्चों की) जो चेलगी घर में! फिर तो ये दोनों (आयुष और नेहा) अपने पापा से जिद्द कर के रोज चाऊमीन और चिप्स मँगवाएँगे!
माँ ने मजाक करते हुए कहा| माँ की बात सुन दोनों बच्चे शर्माने लगे और मेरे से आ कर लिपट गए|
संगीता: ऐसे कैसे बाहर से खाएँगे?
संगीता जोश से बोली और दोनों बच्चों को प्यार से घूरते हुए डराने लगी| बच्चे अपने पापा की शय पा कर बिलकुल नहीं घबराये, उल्टा अपनी मम्मी को फिर से जीभ चिढ़ाने लगे|
दुसरीबारी में सुमन ने थोड़ी बेमानी की, उसने अंगूठी जानबूझ कर संगीता के नजदीक पानी में छोड़ी और इशारे से संगीता को झपटने को कहा| संगीता ने भी फट से अपना हाथ मारा और अंगूठी उठा ली और मैं उसका मुँह देखता रह गया| अनिल ने ये बेईमानी देख ली थी और वो सुमन को टोकने लगा;
अनिल: Cheater!
जैसे ही अनिल ने "cheater" शब्द कहा दोनों बच्चों ने वो शब्द दोहराना शुरू कर दिया| वहीं संगीता बड़ी शान से अपनी खोजी हुई अंगूठी दिखाते हुए मुझे जीभ चिढ़ाने लगी! सच कहता हूँ, जब-जब संगीता इस तरह जीभ चिढ़ाती थी तो मन करता था की उसकी रसीली जीभ को अपने दाँतों तले दबा कर उसका रस निचोड़ लूँ!
खैर, इधर सुमन इतराते हुए अनिल से बोली;
सुमन: तुम सब एक तरफ हो गए और दीदी बेचारी अकेली पड़ गईं तो मेरा पक्ष लेना तो बनता था!
मैं: अच्छा भई, ले लो पक्ष!
मैं बीच-बचाव करते हुए बोला|
सुमन ने तीसरी बार अंगूठी डाली और इस बार भी वो बेईमानी करने वाली थी, लेकिन मैं सचेत था| जैसे ही सुमन ने अंगूठी पानी में छोड़ी मैंने फट से अंगूठी उठा ली! मेरे अंगूठी उठा लेने से संगीता गुस्सा नहीं हुई, बल्कि मुस्कुराने लगी क्योंकि उसे मेरे जीतने से भी उतनी ही ख़ुशी हुई थी जितनी मुझे उसके जीतने से होती| मैंने अंगूठी संगीता की ओर बढ़ाते हुए अपनी जीता का मूक श्रेय दिया, संगीता ने वो अंगूठी बस आधी पकड़ी जो इस बात का प्रतीक थी की वो मेरी इस जीत में बराबर की साझेदारी ले रही है न की सारा श्रेय ले रही है! अब ये दृश्य बच्चों को छोड़ कर सबको अच्छे से समझ आ गया था! सुमन मेरे इस तरह अपनी जीता का श्रेय संगीता को देने से बहुत प्रभावित नजर आई, तो अनिल को ये दृश्य देख कर सुकून मिल रहा था की उसका जीजा उसकी दीदी को कितना चाहता है! वहीं मेरे माता-पिता प्रसन्न थे क्योंकि उनके बेटा-बहु इतना समझदार हैं की अपनी जीत को एक दूसरे के साथ बाँट कर अपनी ख़ुशी व्यक्त कर रहे हैं, न की अपनी जीत पर गुमान कर रहे हैं!
माँ: अच्छा बच्चों अब खाना खाते हैं|
माँ ने सब का ध्यान भंग करते हुए कहा और हम सभी dining table पर आ कर बैठ गए| संगीता ने और सुमन ने खाना table पर सजा रखा था, हमारे बैठते ही संगीता ने सब को खाना परोसा| अब ऐसा तो था नहीं की आज हम सभी पहली बार संगीता के हाथ का बना खाना खा रहे थे, परन्तु मुझसे शादी होने के बाद आज संगीता की पहली रसोई थी और इस समय पर सभी रस्में निभाना जर्रूरी था फिर संगीता का उत्साह बिलकुल नई-नवेली दुल्हन जैसा था और माँ-पिताजी उसके इस उत्साह में पूरी तरह साथ थे|
पहला कौर खाते ही पिताजी ने अपनी जेब में हाथ डाला और संगीता के सर पर हाथ रख उसे आशीर्वाद देते हुए कुछ पैसे दिए| फिर माँ की बारी आई और उन्होंने संगीता को अपने पास बुलाते हुए सोने की चार-चार चूड़ियाँ दी तथा संगीता के सर पर हाथ रख उसे आशीर्वाद दिया| संगीता के चेहरे पर आई ख़ुशी ने आँसूँ के कतरे का रूप ले लिया और उसकी आँखों से बह निकला| माँ ने संगीता को अपने गले लगा कर उसे रोने नहीं दिया और अपनी बगल में बैठ कर खाना खाने को कहा|
आयुष जो अपने चेहरे पर सवाल लिए हुए ये सब देख रहा था वो मुझसे पूछने लगा;
आयुष: पापा जी, दादा जी और दादी जी ने मम्मी को क्या दिया? और...और मम्मी रो क्यों रही थी?
मैंने आयुष को प्यार से समझाते हुए कहा;
मैं: बेटा, हमारी (मेरी और संगीता की) शादी होने के बाद आज आपकी मम्मी ने पहलीबार खाना बनाया न, इसलिए आपके दादा-दादी जी ने आपकी मम्मी को आशीर्वाद और प्यार दिया|
आयुष को उसके सवाल का जवाब मिला तो वो ख़ुशी से चहकने लगा|
खाना खा कर हम सभी बैठक में बैठे थे जब अनिल ने अपने जाने की बात छेड़ी;
अनिल: जीजू, हमारी मुंबई जाने की गाडी रात की है|
अनिल के जाने की बात सुन सबसे पहले बच्चे बोल पड़े;
नेहा: मामा जी, इतनी जल्दी क्यों जा रहे हो?
आयुष: मत जाओ न मामा जी!
आयुष अपनी भोली आवाज में मुँह फुलाते हुए बोला| अब बच्चों की देखा-देखि सबने अनिल को रोकना चाहा पर वो बेचारा भी मजबूर था;
अनिल: जी college के exams दो हफ्ते बाद हैं, इसलिए जाना पड़ रहा है|
अनिल भी नहीं जाना चाहता था परन्तु अपनी पढ़ाई के कारण उसे जाना पड़ रहा था|
खैर उसकी train 8 बजे की थी तो हमें घर से 7 बजे निकलना था, माँ ने जबरदस्ती कर के उसे और सुमन को खाना खिला कर मेरे साथ station भेजा| अनिल और सुमन को train में बिठा कर मैं घर पहुँचा तो सभी मेरा खाने के table पर इंतजार कर रहे थे| रात का खाना खा कर सोने का समय आया तो दोनों बच्चे आ कर मेरी गोद में चढ़ गए और कहने लगे की वो मेरे साथ सोयेंगे! मन तो मेरा भी बच्चों के साथ सोने का था, परन्तु ज्यादा मन संगीता के साथ romance का था और वो बच्चों की मौजूदगी में होने से रहा! मैं, माँ-पिताजी से भी मदद नहीं माँग सकता था क्योंकि उनसे इस बारे में मदद माँगना मुझे बहुत अटपटा लग रहा था| हारकर मैं बच्चों को ले कर अपने कमरे में आ गया और अपने सीने से बच्चों को लिपटाये हुए लेट गया| कुछ देर बाद संगीता रसोई समेट कर कमरे में आई और मुझे यूँ बच्चों के साथ लिपट कर लेटा हुआ देख खी-खी कर हँसने लगी! दरअसल संगीता की हँसी का कारण ये था की सुबह संगीता ने मुझे रात में मुझे मुँह मीठा कराने का वादा किया था, परन्तु दोनों बच्चों की मौजूदगी में अब मुझे कुछ नहीं मिलने वाला था! संगीता बच्चों की दूसरी तरफ लेट गई और एक बार फिर मुस्कुरा कर मुझे उल्हाना दिया, जवाब में मैंने बिना कोई आवाज किया अपने होंठ हिलाते हुए "sorry" कहा! अब सिवाए बच्चों से लिपट कर सोने के कुछ कर भी नहीं सकता था, इसलिए मैं चैन से सोने लगा|
रात साढ़े बराह बजे संगीता दबे पाँव उठी और मुझे जगाने लगी, मैं आँख मलते-मलते उठा तो उसने अपने होठों पर ऊँगली रख मुझे चुप रहने का इशारा किया| मैं थोड़ा हैरान था की भला आधी रात को संगीता मुझे क्यों उठा रही है, तभी मैंने गैर किया तो पाया की संगीता के चेहरे पर एक नटखट मुस्कान है! मैं कुछ समझ पाता उससे पहले ही संगीता मेरा हाथ पकड़ मुझे कमरे से बाहर जाने को खींचने लगी| मैं धीरे से उठा और संगीता के पीछे चलता हुआ बच्चों के कमरे में आ गया| संगीता ने धीरे से दरवाजा बंद किया और चेहरे पर अपनी नटखट मुस्कान लिए मुझे देखने लगी! अब मुझे सब समझ आ गया था की आखिर क्यों संगीता मुझे इस कमरे में लाई है| मैंने संगीता को गोद में उठाया और उसे बच्चों के पलंग पर लिटा दिया, तथा फटाफट हम दोनों के ऊपर रजाई डाल ली| मेरे जिस्म के सम्पर्क में आते ही संगीता का बदन कसमसा उठा और उसने बिना कोई समय गँवाये मेरे होठों पर अपना कब्जा कर लिया| दस मिनट के रसपान के बाद हमने एक दूसरे को कपड़ों की जकड़न से आजाद किया और एक बार फिर कसकर एक दूसरे से लिपट गए| कल के मुक़ाबले आज जोश कुछ ज्यादा ही था और इस जोश का कारण हम दोनों ही नहीं जानते थे! उत्तेजना ऐसी सवार हुई की कब हम अपने समागम के अगले चरण में पहुँच गए इसका पता ही नहीं चला! हाँ इतना जर्रूर था की ये चरण संगीता के लिए कुछ अधिक ही संतोष जनक था, क्योंकि मुझसे पहले वो 2 बार चरम पर पहुँच चुकी थी और मैं अभी अपने पहले चरम पर भी नहीं पहुँचा था! अपने दूसरे स्खलन के बाद संगीता प्यार भरी शिकायत करते हुए बोली;
संगीता: ज.....जानू.....आ...आप बहुत...सताते हो!....और कितनी देर तड़पाओगे?!
मैं: क्या करूँ जान, जी ही नहीं भरता!
मैंने अपने दिल की बात कही तो संगीता को खुद पर गर्व होने लगा की उसे ऐसा पति मिला है जो उसका इतना दीवाना है!
खैर कुछ ही देर में संगीता अपने तीसरे स्खलन पर पहुँच गई और उसका पूरा शरीर एक बार को अकड़ कर फिर ढीला पड़ गया, संगीता कभी भी अपने तीसरे स्खलन के बाद खुद को संभाल नहीं पाती थी इसलिए मुझे अब जल्दी से जल्दी चरम पर पहुँचना था! मैंने नीचे झुक कर संगीता के होठों को छुआ तो संगीता ने हिम्मत कर मेरे होठों को निचोड़ना शुरु कर दिया, नतीजन कुछ ही देर में मैं अपने चरम पर पहुँच गया! मेरा स्खलन आज इतना तीव्र था की मैंने अपने स्खलन के आवेग में आ कर संगीता को कुछ ज्यादा ही कस कर अपनी बाहों में भर लिया! मेरे स्खलन खत्म होते ही मैं संगीता की बगल में गिर पड़ा और हाँफते हुए अपनी सांसें दुरुस्त करने लगा|
उधर संगीता का जिस्म मेरे द्वारा किये इस परिश्रम के कारण दुःख रहा था, इसलिए उसने जैसे-तैसे मेरी तरफ करवट ली और मुझसे लिपट कर सो गई! करीब तीन बजे मैं bathroom जाने के लिए जगा तो मुझे याद आया की दोनों बच्चे मेरे कमरे में अकेले सो रहे हैं और वो अगर जाग गए तो मुझे ढूँढ़ते हुए यहाँ आ जायेंगे! मैंने अपने कपड़े पहने और संगीता को ठीक से रजाई ओढ़ा कर मैं बच्चों के पास लौट आया| Bathroom हो कर मैं जैसे ही लेटा की आयुष जाग गया और मेरी छाती पर चढ़ कर सोने लगा!
अगली सुबह पौने 6 बजे का alarm बजा तो मैं एकदम से उठा, घर में सन्नाटा पसरा था यानी की अभी तक कोई नहीं उठा था, संगीता भी नहीं! मैंने सबसे पहले नेहा का सर चूमते हुए उसे उठाया और फिर आयुष का सर चूम उसे उठने को कहा| आयुष इतनी जल्दी उठने वाला नहीं था इसलिए मैंने आयुष को उठाने की duty नेहा को दे दी और खुद संगीता को ढूँढ़ते हुए बच्चों के कमरे में पहुँचा| संगीता इस वक़्त भी गहरी नींद में थी, मैंने उसे उठाना ठीक नहीं समझा और वापस बच्चों को स्कूल के लिए तैयार करने लगा| अब तक माँ-पिताजी भी उठ कर बैठक में बैठ चुके थे तथा भजन सुनने में लगे थे| मैंने फटाफट चाय बनाई और माँ-पिताजी के सामने चाय ले कर आया तो माँ चिंता करते हुए बोलीं;
माँ: चाय तू लाया है? बहु ठीक तो है न?
मैं कुछ कहता की तभी संगीता तेजी से सबसे नजरें चुराते हुए बच्चों के कमरे से निकल कर हमारे कमरे में घुस गई| माँ ने उसे कमरे में जाते हुए देख लिया था इसलिए बजाए मेरा जवाब सुनने के माँ ने मुझे बच्चों को तैयार करने में लगा दिया| मैं अपने कमरे में पहुँचा तो दोनों बच्चे अपनी school dress पहने हुए तैयार थे| मैं दोनों बच्चों को बाहर लाया और फटाफट उनके लिए ब्रेड-मक्खन बना कर उनका tiffin pack कर दिया| दोनों बच्चों ने अपने दादा-दादी जी के पाँव छुए और फिर मैं उन्हें उनकी school van में बिठा आया| जब मैं वापस घर में दाखिल हुआ तो संगीता नहा-धोकर, तैयार हो कर कमरे से बाहर निकली ही थी| माँ ने हम दोनों को अपने सामने बिठाया और संगीता से पूछने लगी;
माँ: बहु, तू बच्चों के कमरे में क्यों सोइ थी?
माँ का सवाल सुन हम दोनों के सर झुक गए, सुबह-सुबह हम दोनों के मुँह से झूठ नहीं निकल रहा था परन्तु सच बताने में दुगनी शर्म भी आ रही थी!
मैं: वो....माँ....बच्चे मेरे साथ सोये थे....तो पलंग पर जगह कम ....पड़ गई थी!
मैंने बात गोल घुमाते हुए कही| मेरी बात सुन संगीता शर्म से लाल होने लगी थी और सर झुकाये हुए सबसे नजरें चुराने में लगी थी! माँ-पिताजी मेरी बात समझ गए थे, माँ ने संगीता को अपने पास बिठाया और उसे अपने सीने से लगा कर उसे शर्माने से बचाने लगी! उधर पिताजी ने मेरी class लगाते हुए कहा;
पिताजी: सब तेरी गलती है, तूने बच्चों को सर चढ़ा रखा है, जब देखो तेरे साथ लिपटे रहते हैं! अभी दो दिन हुए नहीं शादी को और बहु अकेली अलग कमरे में सो रही है?! मैं कुछ नहीं जानता, तू बच्चों को समझा और आज से दोनों बच्चे हमारे पास सोयेंगे|
पिताजी ने तो अपना हुक्म सुना दिया परन्तु वो नहीं जानते थे की बच्चे इतनी आसानी से मानने वाले नहीं हैं| वहीं पिताजी का मुझे यूँ संगीता की गलती के लिए सुनाना, संगीता को ग्लानि महसूस करवा रहा था| वो भी बेचारी मजबूर थी की अपनी लाज के मारे वो माँ-पिताजी से सच नहीं कह पा रही थी|
जब पिताजी की डाँट खत्म हुई तो माँ ने मुझे नाश्ता बनाने का हुक्म दिया;
माँ: सुबह चाय बनाई थी न, अब जा कर नाश्ता बना!
तभी पिताजी बोल पड़े;
पिताजी: और खबरदार जो ब्रेड-मक्खन लाया तो!
पिताजी ने थोड़ा डाँटते हुए कहा, परन्तु मुझे उनकी डाँट सुन कर हँसी आ गई! अब संगीता ने मुझे बचाना चाहा और वो मेरा पक्ष लेने के लिए बोली;
संगीता: पिताजी, मैं नाश्ता बनाती हूँ!
लेकिन पिताजी ने संगीता को रोक दिया;
पिताजी: नहीं बहु! गलती इसने की है, सजा भी यही भुगतेगा!
आमतौर पर जब मुझे बिना मेरे गलती किये सजा दी जाती थी तो मैं गुस्सा होता था, परन्तु आज मुझे इस सजा में मज़ा आ रहा था! मैं उठा और रसोई में apron पहन कर घुस गया, 20 मिनट में ही रसोई से जब सुगंध उठी तो सब लोग dining table पर बैठ गए| मैंने नाश्ते में बेसन और सब्जी लगे toast बनाये थे, माँ-पिताजी ने जब पहले निवाला खाया तो मेरी तारीफ करने से खुद को रोक नहीं पाए और बोले;
पिताजी: ये तो बड़ी स्वाद चीज बनाई है!
माँ: हाँ, बस रसोई का हाल बुरा न कर दिया हो!
माँ मुझे प्यार से ताना मारते हुए बोलीं|
मैं: नहीं माँ, रसोई साफ़ है!
मैंने बड़े गर्व से कहा| अब मेरी नजर संगीता पर टिकी थी, ताकि वो भी तारीफ के कुछ शब्द कहे! संगीता ने मुस्कुराते हुए देखा और आँखों ही आँखों में मेरे द्वारा बनाये नाश्ते की प्रशंसा करने लगी! उसका यूँ मुस्कुरा कर मुझे देखना ही मेरे लिए सराहना थी, इसलिए मैं तो उसी से बहुत खुश हो गया|
नाश्ते के बाद पिताजी site पर फ़ोन कर के बात करने लगे और इधर माँ ने संगीता से दोपहर के खाने के बारे में पुछा|
मैं: माँ दोपहर का खाना भी मैं बनाऊँगा!
मैं एकदम से बीच में बोल पड़ा| मेरा उत्साह देख माँ हँसने लगी और संगीता अचरज भरी नजरों से मुझे देखने लगी, उसे समझ नहीं आ रहा था की मैं सच में खाना बनाना चाहता हूँ या फिर पिताजी द्वारा डाँटने का बदला ले रहा हूँ?!
माँ: अच्छा, क्या बनाएगा?
माँ ने हँसते हुए सवाल पुछा तो मैंने दाल-सब्जी और रोटी गिना दी!
संगीता: आप रहने दो न, मैं बना लूँगी!
संगीता प्यार से बोली, पर मैं खाना बनाने का मन बना चूका था इसलिए मैंने प्यार से संगीता की बात को नकार दिया;
मैं: यार आज मेरे हाथ का बना खाना खाओ तो सही!
दरअसल खाना बनाना तो बहाना था, मुझे तो site पर जाने से बचना था ताकि घर रह कर संगीता के साथ मस्ती की जा सके! खैर माँ ने हँसते हुए मुझे खाना बनाने की इजाजत दे दी और मैं फिर से रसोई में घुस गया| पिताजी को नजदीक ही कुछ पेमेंट लेने और करने जाना था सो वो चले गए, अब रह गए बस हम तीन प्राणी: मैं, माँ और संगीता| माँ अपना टी.वी. देखने में व्यस्त हो गईं तो संगीता उनसे नजर बचाते हुए मेरे पास रसोई में आई और अपने कान पकड़ते हुए मासूमियत से बोली;
संगीता: Sorry जी! मेरी वजह से आपको सुबह-सुबह डाँट पड़ी!
मैं: तो क्या हुआ जान? मुझे बुरा थोड़े ही लगा? देखो मियाँ-बीवी की ये चोरियाँ चलती रहनी चाहिए, बस हम पकडे नहीं जाने चाहिए!
मैंने संगीता को आँख मरते हुए कहा| संगीता मेरी बात से हैरान थी, उसे लगता था की मैं शायद उसे डाटूँगा या फिर आज के बाद ये चोरी फिर कभी करने से मना करूँगा परन्तु मैं तो उसे खुलेआम प्रोत्साहन दे रहा था!
संगीता: कभी-कभी तो लगता है की मैं आपको समझ ही नहीं सकती?!
संगीता मुस्कुराते हुए बोली| संगीता की बात सुन मैं हँस पड़ा और संगीता को अपने सीने से लगा कर खड़ा रहा|
कुछ पल यूँ ही खड़े रहने के बाद मैंने संगीता से बात करते हुए कहा;
मैं: अच्छा जान ये तो बताओ की आप देर से क्यों उठे?
मैंने संगीता को अपनी बाहों से आजाद करते हुए दाल cooker में डालते हुए पुछा तो संगीता ऐसी शरमाई, ऐसी शरमाई की क्या कहूँ! अपनी ऊँगली दाँतों तले दबाते हुए, नजरें झुका कर संगीता मुझे उल्हाना देती हुई बोली;
संगीता: पहले रात भर मेरी हालत खराब करते हो, फिर सुबह पूछते हो की मैं देर से क्यों उठी! हुँह!
संगीता को यूँ शर्माते देख मुझे मस्ती सूझी और मैंने थोड़ा सा नाटक करते हुए कहा;
मैं: ठीक है, आज से नहीं करूँगा!
संगीता को लगा की मैंने उसकी बात का बुरा मान लिया है इसलिए वो एकदम से डर गई और मुझसे कस कर लिपट गई|
मैं: बाबू, मैं तो मजाक कर रहा था!
मैंने हँसते हुए कहा तब जा कर संगीता की जान में जान आई, मगर मेरी मस्ती के बारे में जान कर वो नाक पर प्यार भरा गुस्सा लिए हुए मुझे देखने लगी!
संगीता: आप न.......
संगीता को अपना गुस्सा दिखाना था पर उसके पास कोई शब्द नहीं थे इसलिए वो अपनी बात आधी छोड़ कर रसोई के बाहर निकलने लगी, तभी मैंने संगीता को पीछे से अपनी बाहों में जकड़ लिया और उसकी गर्दन को चूम कर उसका झूठा गुस्सा शांत कर दिया!
दाल-सब्जी तैयार हो चुकी थी बस रोटियाँ बनानी बाकी थीं, घडी में बजे थे पौने एक, अब मौका था माँ को मस्का लगाने का;
मैं: माँ, वो....आप...से...पूछना...था!
ये कहते हुए मैंने माँ का हाथ दबाना शुरू कर दिया| अब मैं, माँ को मस्का लगाऊँ और वो पकड़ न पाएँ ऐसा तो हो नहीं सकता!
माँ: अब बोल भी, क्यों मक्खन लगा रहा है!
मैं: माँ, मैं सोच रहा था की मैं और संगीता एक बार doctor सरिता से check up करवा आयें?
Doctor के जाने के बारे में सुनते ही माँ थोड़ा चिंतित हो गईं;
मैं: कोई घबराने वाली बात नहीं है माँ, संगीता चूँकि pregnant है तो मैं उसका check up करवाना चाहता था, फिर मैं भी अपना B.P. check करवा लूँगा!
मैंने अपने B.P. check करवाने की बात बहाने के रूप में कही थी| मेरी बात सुन माँ निश्चिंत हो गईं और मसुकुराते हुए हम दोनों को जाने की अनुमति दे दी|
हम दोनों मियाँ-बीवी सीधा doctor सरिता के पास निकल पड़े| Clinic पहुँच कर सरिता जी ने हमें अपने cabin में बिठाया और हमसे पूछने लगीं;
Doctor सरिता: और बताओ सब ठीक हैं?
मैं: हाँ जी| दरअसल मैं संगीता के check up के लिए आया था|
मैंने थोड़ा गंभीर होते हुए कहा| इस समय मैं एक जिम्मेदार पति की भूमिका निभा रहा था, परन्तु मैं नहीं जानता था की मैं फ़िजूल चिंता कर रहा हूँ|
Doctor सरिता: अरे मानु, तुम बेकार चिंता कर रहे हो! संगीता पूरी तरह तंदुरुस्त है, मैंने इसके सारे test करवाए थे और कोई घबराने वाली बात नहीं है| मैंने जो multivitamins लिखीं थीं वो देनी हैं और थोड़ा ज्यादा आराम करना है!
Doctor सरिता की बात सुन कर मुझे तसल्ली मिली और इसी के साथ एक बार फिर पिता बनने का जूनून मेरे सर पर सवार हो गया|
संगीता: सरिता जी, एक बार इनका B.P. check कर लीजिये, ताकि मुझे भी शांति मिले|
संगीता मुस्कुराते हुए मुझे छेड़ने के इरादे से बोली| वो जान गई थी की मैं यहाँ सिर्फ और सिर्फ उसका check up करवाने के लिए आया था| Doctor सरिता ने मेरा B.P. check किया तो वो मेरे दवाई लेने के कारन काबू में था, ये देख कर संगीता को भी इत्मीनान हुआ की मैं भी हृष्ट-पृष्ट हूँ| 5-7 मिनट बात कर के हम दोनों बच्चों को लेने उनके school van के स्टैंड पर पहुँच गए|
हरबार की तरह, बच्चों ने मुझे अपनी school van के भीतर से ही देख लिया था और वो कूदते हुए आ कर मेरे से लिपट गए थे| अब जाहिर था की संगीता को थोड़ी सी जलन हुई;
संगीता: शैतानों! जब मैं तुम्हें लेने आती हूँ, मुझसे तो कभी इस तरह लिपट कर प्यार नहीं करते?!
अपनी मम्मी का झूठा गुस्सा देख बच्चे हँसने लगे, नेहा तो टस से मस नहीं हुई मगर आयुष जा कर अपनी मम्मी की टांगों से लिपट गया|
संगीता: देखा, ये है मेरा लाडला!
संगीता आयुष को लाड करते हुए बोली| इधर नेहा ने अपनी मम्मी को जीभ चिढ़ाई और मेरी गोदी में चढ़ गई! हँसते-खेलते हुए हम चारों घर पहुँचे तो पिताजी पहले से ही खाने का इंतजार कर रहे थे|
संगीता ने फिर रोटी बनाने जाने की कोशिश की तो मैंने उसे मना करते हुए कहा;
मैं: दाल-सब्जी बनाऊँ मैं और रोटी बना कर सारा credit लो तुम?!
मैंने मजाक में कहा तो पिताजी जोर से हँस पड़े और संगीता से बोले;
पिताजी: बना लेने दे बहु!
संगीता मुस्कुराई और बच्चों को लेकर कमरे में चली गई| इधर मैंने रोटियाँ सेकीं और उधर संगीता ने बच्चों को कपड़े बदल कर खाने के लिए बाहर भेज दिया| सब लोग dining table पर बैठ चुके थे जब मैं सारा खाना परोस रहा था तब दोनों बच्चे मुझे खाना परोसते हुए बड़ी उत्सुकता से देख रहे थे| जब सबको खाना परोस कर मैं अपनी कुर्सी पर बैठा तो पिताजी और माँ ने पहला कौर खाया और मुस्कुराते हुए मेरी तारीफ करने लगे;
माँ: खाना तो बढ़िया बनाया है!
पिताजी: हाँ, सादा खाना (दाल, रोटी, सब्जी) बढ़िया बनाता है मानु! वो जब तू अगड़म -बगड़म बनाता है न, वो मुझे नहीं पसंद!
उधर संगीता बस मुस्कुराये जा रही थी और मुझसे नजरें चुराते हुए खाना खाये जा रही थी| मैंने एक-एक कौर बच्चों को खिलाया तो दोनों स्वाद खाने की ख़ुशी से अपना सर दाएँ-बाएँ हिलाने लगे! तभी आयुष ने जिज्ञासु होते हुए अपने दादा जी से सवाल पुछा;
आयुष: दादा जी, कल मम्मी ने खाना बनाया था तो आपने उन्हें पैसे दिए थे, आज पापा ने खाना बनाया है तो आप उन्हें भी पैसे दोगे?
आयुष के इस मासूमियत से भरे सवाल पर सभी लोग हँस पड़े, पर आयुष सोच में था की सब हँस क्यों रहे हैं इसलिए वो सभी को बड़ी उत्सुकता से देख रहा था|
पिताजी: बेटा, आपके पापा को हमने (माँ-पिताजी ने) पहले ही गाडी ले कर दे दी थी!
पिताजी ने आयुष की जिज्ञासा शांत करते हुए कहा| जब आयुष को उसके सवाल का जवाब मिला तो वो पुनः हँसने लगा|
खाना खा कर माँ-पिताजी आराम कर रहे थे तथा मैं संतोष से फ़ोन पर बात कर के कुछ हिसाब कर रहा था| संगीता ने दोनों बच्चों को सुला दिया था, मैं जब फ़ोन पर बात कर के लौटा तो संगीता ने मुझसे आज मेरे खाना बनाने को ले कर बात की;
संगीता: जानू, आज अचानक से आप पर खाना बनाने का भूत कैसे सवार हुआ?
मैं: तुम तो जानती ही हो की मैं कोई भी काम ऐसे ही नहीं करता, आज का खाना बनाना...ये सब एक सोची समझी planning की तहत हुआ है|
मैंने बात को रहस्मयी ढंग से कहा तो संगीता जिज्ञासु हो गई!
मैं: अगर मैं रसोई में न घुसता तो पिताजी आज मुझे site पर भेज देते और अगर मैं site पर जाता तो मुझे तुम्हारे साथ romance करने का मौका कैसे मिलता?
ये कहते हुए मैंने संगीता का हाथ पकड़ कर धीरे से दबा दिया| Romance का नाम लिया था तो दिमाग में romance का कीड़ा कुलबुलाने लगा था, मैं उठा और बारी-बारी दोनों बच्चों को उनके कमरे में सुला दिया और अपने कमरे में लौट कर दरवाजा बंद कर संगीता को अपने नजदीक खींच लिया| संगीता को अपने जिस्म से चिपका कर मैंने संगीता के मस्तक को चूमा और अपनी बात पूरी की;
मैं: फिर अभी जब doctor सरिता की बात सुन कर मैंने फैसला कर लिया की जबतक तुम्हारी delivery नहीं होगी तबतक मैं घर पर ही रहूँगा और घर का सारा काम अब से मैं करूँगा! मेरी बीवी आज से कोई भी काम नहीं करेगी!
मैंने बड़े गर्व से अपनी बात कही और एक बार फिर संगीता के सर को चूम लिया| मेरी बात सुन संगीता कसमसाई और मेरी पकड़ से छुटते हुए बोली;
संगीता: जानू, मेरी delivery होने में अभी 8 महीने का वक़्त है और तबतक आप काम नहीं करोगे तो कैसे चलेगा? पिताजी गुस्सा करेंगे सो अलग! ऊपर से मुझे आपसे काम करवाना अच्छा नहीं लगता, इसलिए please...
संगीता की बात पूरी होने से पहले ही मैंने उसकी बात काट दी;
मैं: मैंने जो बोल दिया सो बोल दिया! मैं सब संभाल लूँगा, आज से तुम्हें बस आराम करना है!
मेरे सर पिता बनने का जूनून सवार था और मैं उसके आगे किसी की भी नहीं सुनने वाला था| आगे बात हो पाती उससे पहले ही आयुष ने दरवाजा खटखटा दिया, उसकी नींद पूरी हो चुकी थी और उसे अब मेरे साथ खेलना था!
शाम हुई और मैंने बिना किसी के कहे चाय बनानी शुरू कर दी, जब मैं बैठक में माँ-पिताजी की चाय ले कर पहुँचा तो मुझे देख माँ-पिताजी हँसने लगे| तभी संगीता उठ कर आ गई और माँ की बगल में बैठ गई, मैंने बच्चों को दूध बना कर दिया और रात के खाने की तैयारी करने लगा| माँ-पिताजी ने मुझे सब्जी काटते देखा परन्तु कहा कुछ नहीं, उनके लिए ये मेरा बचपना था! चाय पी कर संगीता बर्तन धोने के लिए उठी, सुबह से सारे बर्तन kitchen sink में इकठ्ठा हो चुके थे! संगीता बर्तन धोती उससे पहले ही मैंने उसके हाथ से बर्तन छीन लिए;
मैं: मैंने कहा न की तुम्हें बस आराम करना है!
मैंने संगीता को थोड़ा प्यार से हुक्म देते हुए कहा|
संगीता: जानू, अच्छा नहीं लगता की आप बर्तन धोओ!
संगीता बहस करते हुए बोली|
मैं: मेरे तीन गिनने तक अगर तुम बाहर नहीं गई तो मैं यहीं romance शुरू कर दूँगा!
मैंने संगीता को प्यारभरी धमकी देते हुए कहा! संगीता को लगा की मैं उसे बस छेड़ने के लिए ये कह रहा हूँ, इसलिए मैंने उसे डराने के लिए उसे अपनी बाहों में भर लिया! पिताजी की घर में मौजूदगी होने के कारन संगीता डर भी रही थी और माँ द्वारा पकडे जाने से शर्मा भी रही थी, इसलिए मेरी बाहों में आते ही उसने छटपटाना शुरू कर दिया तथा मैंने भी उसे अपनी पकड़ से आजाद कर दिया|
खैर रात का खाना मैंने अच्छे से बनाया और सबने मेरी तारीफ करते हुए खाना भी खाया| अब सोने की बारी आई तो दोनों बच्चे मुझसे चिपक गए, आयुष को समझाना आसान था पर नेहा को नहीं! परन्तु इसका भी इलाज था, मैंने नेहा को कहानी सुनाते हुए सुलाया और फिर उसे गोदी में ले कर पिताजी के कमरे में पहुँच कर लिटा दिया| मैं वापस कमरे में आया तो संगीता मेरा इंतजार कर रही थी, उसे देखते ही romance का कीड़ा कुलबुलाने लगा परन्तु आज दिनभर रसोई संभालने के कारन थोड़ी थकावट भी लग रही थी! आज हमारे प्रेम समागम ज्यादा नहीं चल पाया, परन्तु इतना अवश्य था की हम दोनों पूरी तरह संतुष्ट हो चुके थे!
सुबह के 2 बजे नेहा ने हमारे कमरे का दरवाजा खटखटाया तो मेरी नींद खुली, नेहा को मेरी कुछ ऐसी आदत हो गई थी की वो बीच रात में मेरी गैरमौजूदगी को महसूस कर के उठ जाया करती थी| मैं नेहा को गोदी में ले कर वापस रजाई में घुस गया और हम तीनों आराम से सोये| फिर वही पौने 6 का alarm बजा जिसने हम तीनों को जगाया| संगीता को जबरदस्ती रजाई में छोड़ कर मैं आयुष को उठाने पहुँचा| सुबह-सुबह मुझे जागा हुआ देख माँ-पिताजी हैरान हुए, पर उन्हें लगा की ये मेरा सुबह जल्दी उठने का कोई नया नियम होगा इसलिए उन्होंने कुछ नहीं कहा| जब मैं बच्चों के लिए नाश्ता बना रहा था तब माँ ने मुझे टोका;
माँ: क्या बात है, आज तू फिर बच्चों के लिए नाश्ता बना रहा है?
मैंने माँ की बात का जवाब मजाक करते हुए दिया;
मैं: बच्चों को मेरे हाथ का बना हुआ नाश्ता अच्छा लगता है!
मैं, माँ से खुल कर नहीं कह सकता था की मैं ये सब इसलिए कर रहा हूँ ताकि संगीता ज्यादा से ज्यादा आराम करे क्योंकि मेरी बात सुन माँ-पिताजी मेरी खिंचाई करने लगते! इतने में नेहा तैयार हो कर आ गई और मेरी बात का मान रखते हुए बोली;
नेहा: हाँ जी दादी जी, पापा जी वाला नाश्ता ज्यादा स्वाद होता है|
संगीता: अच्छा?
संगीता कमरे से निकलते हुए अपना नकली गुस्सा दिखाते हुए नेहा से बोली| संगीता की बात सुन सभी हँसने लगे!
बच्चों को school छोड़ मैं नाश्ता बनाने लगा तो माँ ने मुझे फिर टोका;
माँ: ओ लड़के! ये क्या कर रहा है तू?
उस समय पिताजी नहा रहे थे, मैं कुछ बहाना मारता उससे पहले ही संगीता ने मौके का फायदा उठाया और मेरी चुगली कर दी!
संगीता: माँ, ये तो बस इनका काम पर न जाने का बहाना है! फिर कल (doctor) सरिता जी ने मुझे आराम करने को कहा तो तब से इन पर घर का सारा काम करने का भूत चढ़ गया है|
संगीता मुझे देखते हुए मुँह टेढ़ा करते हुए बोली!
माँ: बेटा, तू क्यों चिंता करता है? मैं हूँ न बहु का ख्याल रखने के लिए!
माँ मुझे प्यार से समझाते हुए बोलीं|
मैं: माँ, पहलीबार पिता बनने जा रहा हूँ इसलिए थोड़ा ज्यादा उत्साहित हूँ और किसी भी तरह की कोई कोताही बरतना नहीं चाहता|
मैंने बड़ी मासूमियत से कहा| माँ जानती थीं की ये सब मेरे सर पर चढ़ा पिता बनने का जूनून है, जब ये जूनून ठंडा पड़ेगा तो अपने आप मेरी अकल ठिकाने आ जायेगी!
माँ: ठीक है बहु, कर लेने दे इसे इसके मन की!
माँ कुटिल मुस्कान के साथ बोलीं और मुझे परांठे बनाने का हुक्म दे कर संगीता को जबरदस्ती अपने साथ ले कर बैठक में बैठ गईं तथा कुछ इधर-उधर की बातें करने लगीं| उधर संगीता हैरान थी की भला ये माँ को क्या हो गया है जो बजाए मेरे साथ तर्क-वितर्क करने के मुझे मेरे मन की करने को कह रहीं हैं?!
कुछ देर बाद पिताजी नहा कर निकले और जब उन्होंने मुझे रसोई से नाश्ता ले कर निकलते देखा तो वो माँ से पूछने लगे;
पिताजी: क्या बात है भई, आजकल कोई नया खानसामा रखा है?
पिताजी मेरी और इशारा करते हुए बोले| उनकी बात पर सभी ने ठहाका लगाया और तभी माँ ने पिताजी के सवाल का जवाब मजाक में देते हुए कहा;
माँ: हाँ जी, मेरी बहु ये सब काम थोड़े ही करेगी, इसलिए बड़ी दूर से इस खानसामे को बुलाया है!
पिताजी: तो कितनी तनख्वा दे रही हो?
पिताजी हँसते हुए माँ से पूछने लगे|
माँ: अभी तो काम करवा कर देख रही हूँ की इसे काम आता भी है या नहीं?!
माँ, मुझे छेड़ते हुए बोलीं|
पिताजी: अच्छा मजाक बहुत हो गया, नाश्ता कर और मेरे साथ चल!
पिताजी मुझसे बोले| अब उनकी बात सुनते ही मेरा मुँह बन गया और मैं माँ को देखने लगा| अब माँ ने मेरा पक्ष लेते हुए कहा;
माँ: कुछ दिन के लिए इसे (मुझे) घर रहने दो!
माँ की बात बड़ी संक्षेप में थी, परन्तु उनकी बात करने का ढंग और उसमें मौजूद वजन ऐसा था की पिताजी बस मुस्कुराते हुए रह गए तथा उन्होंने माँ की कही बात का कोई विरोध नहीं किया|
नाश्ता करने के बाद पिताजी site पर अकेले निकल गए और मैं झाड़ू उठा कर साफ़-सफाई में लग गया| फिर नंबर आया बर्तन और कपड़े धोने का, शुक्र है की कपडे धोने के लिए washing machine मौजूद थी वरना मेरी तो कमर ही अकड़ जाती! वो पूरा दिन मैंने घर के सारे काम सँभाले, माँ बीच- बीच में मेरा काम देखने के लिए किसी supervisor की तरह आतीं मगर उन्हें मेरे किये किसी काम में शिकायत का कोई मौका ही नहीं मिलता! रात में रसोई समेट कर जब मैं कमरे में पहुँचा तो थकावट पूरे जोर पर थी, बिस्तर पर पड़ते ही कब आँख लगी पता ही नहीं चला! एक दिन पूरा घर का काम करने से मुझे आंटे-दाल का भाव पता चल चूका था!
अगले दिन फिर सुबह जल्दी उठ कर मैंने बच्चों को तैयार कर school भेजा और वापसी में आते समय अपने साथ घर का काम करने के लिए एक आंटी को ले आया| मैंने उन्हें झाड़ू-पोछा और बर्तन धोने का काम समझा दिया तथा कल से आने के लिए कह दिया| जब वो चली गईं तब पिताजी ने थोड़ा ऐतराज करते हुए मुझसे सवाल पुछा;
पिताजी: आजकल बिना पूछे काम करने लगा है?!
तभी माँ ने पिताजी के कंधे पर हाथ रखते हुए उन्हें शांत कर दिया और मुस्कुरा कर मुझसे बोलीं;
माँ: पैसों की बात कर ली थी या नहीं?
माँ की शय पा कर मैं खुश हो गया और हाँ में अपनी गर्दन हिलाई|
माँ: अच्छा, जाकर नाश्ता बना|
माँ मुस्कुराते हुए बोलीं और मैं तुरंत नाश्ता बनाने में जुट गया| इधर माँ ने पिताजी को सारी बात इत्मीनान से बताई और उन्हें गुस्सा होने नहीं दिया| चलो शुक्र है की माँ ने पिताजी के गुस्से बचा लिया!
अगले दो दिन इसी तरह घर का काम सँभालते हुए निकले, आंटी जी दिन में दो बार आतीं थीं और झाड़ू-पोछा तथा बर्तन धोने का काम कर दिया करतीं थीं जिससे मुझे थोड़ा आराम मिल रहा था| वहीं घर पर रहने का जो सबसे बड़ा फायदा मुझे मिला था वो ये की अब मैं अपने दोनों बच्चों को जी भर कर प्यार कर सकता था| बच्चों को भी मेरे भीतर एक पिता के साथ-साथ एक दोस्त भी मिल गया था, जिस कारण दोनों घर पर मेरे साथ ही मस्ती करते रहते! गली में रहने वाले बच्चों के साथ दोस्ती करने में दोनों बच्चों की इतनी रूचि नहीं थी, आयुष तो फिर भी कभी-कभार खेलने बाहर जाता था मगर नेहा तो हमेशा घर पर अपनी किताबों में घुसी रहती| अब जब मैं घर पर रहने लगा था तो पढ़ाई के बाद नेहा मेरी गोदी में बैठ जाती, कभी खाना बनाते हुए मुझे देखती, कभी कपडे सुखाने में मेरी मदद करती तो कभी अपनी किताब ले कर मेरे पीछे-पीछे चलते हुए मुझसे सवाल पूछती रहती! वहीं आयुष की मस्ती पूरे घर में जारी रहतीं, अपनी पढ़ाई खत्म कर वो अपने खिलोने ले कर कभी रसोई के फर्श पर बैठ कर खेलने लगता तो कभी dining table के ऊपर चढ़ कर खेलने लग जाता| पूरे घर के हर कोने में उसने अपने खिलोने फैला छोड़े थे, एक बार तो अपने सोते हुए दादाजी की छाती पर खिलौनों से खेलने लगा था!
चौथे दिन हमें (मुझे और संगीता को) marriage registrar के पास जाना था, सतीश जी हमें वहीं मिलने वाले थे और गवाही के लिए मेरे माँ-पिताजी तथा दिषु से मैं बात कर चूका था| ख़ास मेरे काम के लिए मैंने बेचारे दिषु को audit से जल्दी बुलाया था!
बच्चों के स्कूल जाने के बाद सभी लोग marriage registrar के पास पहुँचे, सतीश जी ने अपना जुगाड़ पहले ही बैठा कर रखा था इसलिए मेरे और संगीता के सभी कागज, गवाही के लिए आये माँ-पिताजी तथा दिषु के सारे कागज़ जमा हुए, उसके बाद सब की फोटो खींची गई और सतीश जी ने आधे घंटे में ही हम सब को घर जाने के लिए free कर दिया| Marriage Certificate हमें 15 दिसंबर को मिलना था और तब तक हमें बस इंतजार ही करना था|
दोपहर को जब बच्चे school से लौटे तो उन्होंने बताया की अगले दिन छुट्टी है, क्योंकि school में बड़े बच्चों का कोई Olympiad exam था| अगले दिन स्कूल की छुट्टी होने के कारण बच्चों ने घर में उधम मचाना शुरू कर दिया, माँ-पिताजी दोनों बच्चों को यूँ सोफे पर कूदते हुए देख मुस्कुराये जा रहे थे और संगीता थोड़ी हैरान थी की बजाए बच्चों को रोकने के माँ-पिताजी मुस्कुरा क्यों रहे हैं?! "बहु, बच्चों की कह-कहाट से पूरे घर में रौनक लगी हुई है! इस रौनक को देख कर ही हम दोनों (माँ-पिताजी) मुस्कुरा रहे हैं!" माँ संगीता के सर पर हाथ फेरते हुए बोलीं| माँ का जवाब सुन संगीता के चेहरे पर भी मुस्कान छा गई और उसे दादा-दादी की ख़ुशी समझ आने लगी! वो पूरी रात मैंने और बच्चों ने मस्ती की, कभी cartoon film देखते तो कभी खिलोनो से खेलते! बल्कि मैंने और बच्चों ने मिलकर संगीता को भी अपने साथ मिला लिया, फिर हम चारों ने computer पर game खेली| संगीता आज पहली बार game खेल रही थी और सबसे ज्यादा मज़ा उसे ही आ रहा था| दोनों बच्चों ने संगीता को घेर लिया और उसे कौन सा button दबाना है वो चिल्ला-चिल्ला कर बताने लगे! संगीता नौसिखिये की तरह computer game में चलाने वाली अपनी गाडी इधर-उधर ठोक देती और ये देख बच्चे उसे सही से गाडी चलाने के लिए चिल्लाने लगते! वहीं मुझे ये दृश्य देख कर बहुत मज़ा आ रहा था इसलिए मैं हँसे जा रहा था! अपने बच्चों को सिखाने वाली माँ आज खुद अपने बच्चों से game खेलना सीख रही थी!
नया दिन आया और सुबह मैं समय से उठ कर सबके लिए चाय बनाने लगा| मैं, माँ-पिताजी और संगीता बैठक में बैठे चाय पी रहे थे और कुछ इधर-उधर की बातें कर रहे थे जब दरवाजे पर दस्तक हुई| संगीता दरवाजा खोलने के लिए उठी ही थी की मैंने उसे रोकते हुए खुद दरवाजा खोला| जैसे ही मैंने दरवाजा खोला तो अपने सामने मैंने अपने सासु माँ और ससुर जी को देखा!
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