Hindi Antarvasna एक अनोखा बंधन - पुन: प्रारंभ


[color=rgb(251,]पच्चीसवाँ अध्याय: खुशियों का आगमन[/color]
[color=rgb(97,]भाग - 6[/color]


[color=rgb(71,]अब तक आपने पढ़ा:[/color]

आयुष: दादा जी, आप और दादी जी सबसे बड़े हैं तो पहले आप घूमिये फिर मम्मी जाएँगी और सबसे आखिर में हम दोनों (आयुष और नेहा) जायेंगे|

आयुष इतने प्यार से बोला की पिताजी ने उसे गोद में उठा लिया और उसके सर को चूमने लगे| दादा-दादी को आज अपने पोता-पोती की समझदारी भरी बातों पर बहुत प्यार आ रहा था| दोनों बच्चों ने अपने दादा-दादी के हाथ पकडे और उन्हें गाडी के पास ला कर खुद गाडी का दरवाज खोल कर उन्हें बैठने को कहा| ये दृश्य जिसने भी देखा वो बच्चों पर मोहित हो रहा था!

[color=rgb(51,]अब आगे:[/color]

पिताजी
आगे बैठे और मैंने उनकी seatbelt लगाई, माँ पीछे बैठीं तथा मुझसे मजाक करते हुए बोलीं;

माँ: अरे वाह अपने पिताजी की seatbelt लगा दी और मेरी?

माँ बच्चों की तरह बोलीं तो मैं और पिताजी हँसने लगे| मैंने गाडी के पीछे वाला दरवाजा खोल कर माँ की seat belt लगाई और फिर आगे आ कर driving seat पर बैठ गया| गाडी को ignition दिया और माँ ने पीछे बैठे-बैठे हाथ जोड़े और भगवान से प्रार्थना की| मैंने भी भगवान को मन ही मन शुक्रिया की और handbrake हटा कर गाडी main road की तरफ मोड़ ली| माँ-पिताजी आज पहलीबार मेरे साथ गाडी में बैठे थे इसलिए मैं गाडी बड़े ध्यान से चला रहा था, वैसे गाडी थी भी नई तो एकदम मक्खन जैसे चल रही थी! मेरी driving से प्रभावित हो कर माँ-पिताजी संतुष्ट थे की मैं नई गाडी पा कर कोइ आवारागर्दी नहीं करूँगा!

इधर मैं माँ-पिताजी के साथ drive पर मजे कर रहा था और उधर संगीता, दिषु से माफ़ी माँगते हुए बोली;

संगीता: दिषु भैया, आपको इतनी जल्दी मंदिर बुलाने के लिए माफ़ी चाहती हूँ|

संगीता हाथ जोड़ कर माफ़ी माँगने लगी तो दिषु एकदम से बोला;

दिषु: अरे भाभी क्या बात कर रहे हो? मेरे भाई की ख़ुशी का मौका था, सुबह क्या आधी रात को भी कहते तो मैं आ जाता!

संगीता: भैया आप दोनों जैसी दोस्ती मैंने कहीं नहीं देखि! जब-जब इन्हें (मुझे) आपकी जर्रूरत पड़ी आप हमेशा इनके कँधे से कँधे मिला कर खड़े नजर आये|

संगीता दिषु की तारीफ करने लगी, अपनी तारीफ सुन दिषु गदगद हो कर बोला;

दिषु: बस भाभी, यूँ तारीफ का शर्बत मत पिलाओ! ये बताओ की अपने हाथ से बनी रसोई कब खिला रहे हो?

संगीता: अभी घर चलो...

संगीता खुश होते हुए बोली, लेकिन दिषु ने उसकी बात काट दी और बोला;

दिषु: मैं ये घास-फूँस नहीं खाता, मुझे तो चिकन चाहिए और वो भी आपके हाथ से बना हुआ|

दिषु जानता था की संगीता ने कभी nonveg नहीं बनाया इसलिए वो संगीता को तंग करने के इरादे से बोला| मंदिर में खड़े हो कर जैसे ही दिषु ने चिकन कहा तो सुमन एकदम से बोल पड़ी;

सुमन: मंदिर में चिकन का नाम ले लिया, पाप लगेगा आपको!

सुमन के बीच में बोलने से दिषु को फिर उसकी और अनिल की टाँग खींचने का मौका मिल गया;

दिषु: अरे आप बनाओगी तो हमें ये पाप लगना भी मंजूर है!

दिषु ने मजे लेते हुए अपनी बात कही तो सुमन को छोड़ कर सब हँस पड़े, सुमन बेचारी शर्मा कर संगीता के पीछे छुप गई थी!

संगीता: दिषु भैया मेरे बेटे अनिल की तरह भोंदू नहीं हैं, उनसे मत उलझा कर!

संगीता, सुमन को प्यार से छेड़ते हुए बोली और उसकी बात पर दिषु ठहाका लगाने लगा|

खैर ,चूँकि सुमन की दखलंदाजी से दिषु अपने चिकन खाने की माँग का जवाब संगीता से नहीं जान पाया था, इसलिए उसने पुनः अपना सवाल दोहरा दिया;

दिषु: बताओ न भाभी, कब खिला रहे हो चिकन?

इस बार दिषु ने चिकन शब्द सुमन की ओर देखते हुए कहा और सुमन शर्मा कर रह गई!

संगीता: भैया मुझे तो बनाना ही नहीं आता!

संगीता ने अपने हाथ खड़े करते हुए कहा|

दिषु: क्यों? वो है न संजीव कपूर का assistant chef!

दिषु बात गोल घुमाते हुए बोला, संगीता को दिषु की बात समझ नहीं आई तो वो भोयें सिकोड़ कर दिषु को देखने लगी;

दिषु: अरे मानु की बात कर रहा हूँ! उससे कहना, वो आपको सिखा देगा!

मेरा नाम सुनते ही संगीता मुस्कुराई ओर बोली;

संगीता: अंडा बनाना तो मुझे सिखाया था, लेकिन मैंने कभी बनाया नहीं|

अंडे का जिक्र हुआ तो अनिल ने एकदम से अपनी दीदी से पूछ लिया;

अनिल: दीदी आप अंडा खाते हो न?

अनिल के सवाल से संगीता दंग रह गई! अनिल की आवाज में आत्मविश्वास था जिसका मतलब की किसी ने उसे संगीता के अंडा खाने के बारे में बताया था| अब मंदिर में खड़ी हो कर संगीता झूठ तो बोल नहीं सकती थी, इसलिए उसने शर्माते हुए सर झुकाया और गर्दन हाँ में हिलाई| अनिल को अपनी दीदी की खिंचाई करने का मौका मिल गया था और उसने अपनी दीदी को चिढ़ाते हुए कहा;

अनिल: हे भगवान! आप ने तो पूरा कुनबा भ्र्ष्ट कर दिया!

संगीता खामोश रही और सर झुकाये खड़ी रही, अब दोनों बच्चों ने अपनी मम्मी का पक्ष लिया और बोले;

नेहा: अंडा खाया तो क्या हुआ मामा जी?

आयुष ये जानता था की हमारे पूरे परिवार में कोई अंडा नहीं खता परन्तु उसे समझ नहीं आया की वो क्या कहे इसलिए उसने जा कर अपनी मम्मी की टाँग से लिपटते हुए अपना मूक समर्थन दे दिया| जब बच्चों का साथ मिला तो संगीता में हिम्मत आ गई और वो अनिल की बात का जवाब देते हुए बोली;

संगीता: हमारे परिवार में तेरी उम्र का कोई लड़का शराब नहीं पीता, लेकिन तूने न केवल शराब पी बल्कि girlfriend भी बना ली!

संगीता का कटाक्ष सुन अनिल के मुँह पर ताला लग गया और वो सर झुकाये शर्माने लगा! अनिल की इस हालत पर दिषु खूब जोर से हँसा और उसके साथ नेहा भी हँसने लगी!

तभी मैं भी गाडी ले कर लौट आया, जैसे ही मैं गाडी से बाहर निकला दिषु मेरी ओर इशारा करते हुए संगीता से बोला;

दिषु: ये लो भाभी, आ गया संजीव कपूर का assistant chef!

दिषु की बात से हैरान हो कर मैं संगीता को देखने लगा तो उसने मुझे सारी बात बताई|

मैं: अभी माँ-पिताजी से बात हुई, तू, (दिषु) अंकल-आंटी जी (दिषु के माता-पिता) और मिश्रा अंकल जी को सपरिवार कल ही खाने का निमंत्रण देने आज मैं और पिताजी आएंगे|

मैंने मुस्कुराते हुए दिषु से कहा|

दिषु: यार कल का मत रख, मुझे आज ही audit पर निकलना है| अगले sunday को lunch रख ले.और हाँ मेरा चिकन तू भाभी से ही बनवाइयो!

दिषु के चिकन वाली बात सुन सभी हँस पड़े|

अब बारी आई बच्चों की जिन्होंने अपने दादा-दादी जी से गाडी की सवारी के बारे में पूछना शुरू कर दिया| माँ-पिताजी भी एक पल के लिए बच्चे बन गए और दोनों बच्चों को प्यार से गाडी मैं बैठने की बातें बना कर सुनाने लगे| अपने दादा-दादी जी की बातें दोनों बच्चे बड़े गौर से सुन रहे थे|

आयुष को थी जल्दी गाडी में बैठने की तो वो अपनी मम्मी के पास आया और अपनी अधीरता दिखाते हुए बोला;

आयुष: मम्मी आप भी जल्दी से जाओ और जल्दी से आओ, फिर मैं और दीदी जाएंगे|

आयुष की अधीरता देख सभी हँस पड़े|

अनिल: आप दोनों (नेहा और आयुष) की बारी कैसे आएगी, हम दोनों (अनिल और सुमन) आपसे बड़े हैं तो दीदी (संगीता) के बाद हम-दोनों बैठेंगे|

अनिल, आयुष को तंग करते हुए बोला| अपने मामा जी की बात सुन आयुष का मुँह बन गया, तभी नेहा आगे आई और आयुष का हाथ पकड़ कर बोली;

नेहा: कोई बात नहीं आयुष, हम last में जायेंगे और सबसे देर तक घूमेंगे!

नेहा ने आयुष को बहलाने के लिए बात कही थी, परन्तु आयुष उस बात से एकदम से खुश हो गया| पिताजी को बच्चों को तरसना अच्छा नहीं लगता था;

पिताजी: बच्चों, अभी मैं और आपके पापा सबको मिठाई देने जा रहे हैं तो आप हमारे साथ चलो!

अपने दादा जी की बात सुन दोनों बच्चे ख़ुशी से चहकने लगे और जा कर अपने दादा जी से लिपट गए|

माँ, संगीता, सुमन और अनिल घर निकले तथा घर में कुछ रस्मों की तैयारी करने में व्यस्त हो गए| उधर मैं, पिताजी और बच्चे मिठाई की दूकान पर पहुँचे और जहाँ-जहाँ मिठाई देनी थी उसके लिए मिठाइयाँ खरीदी| एक-एक कर हमने सभी को घर जा कर मिठाइयाँ दी, जहाँ भी हम जाते बच्चे हमारे साथ होते थे और जो कोई भी उन्हें देखता उन पर मोहित हो कर उन्हें दुलार करने लगता| अंत में हम मिश्रा अंकल जी और दिषु के घर पहुँचे, उन्हें मिठाई दे पिताजी ने अगले sunday को lunch करने का न्योता भी दे दिया|

सब को मिठाई दे कर हम चारों घर लौटे, जब मैं गाडी गली के बाहर park कर रहा था तब पिताजी colony के guard को 100/- रुपये देते हुए बड़े गर्व से बोले;

पिताजी: ये हमारी गाडी है, इसका ख़ास ख्याल रखना!

इतना सुनना था की guard खुश हो गया और बोला;

Guard: आप चिंता न करो साहब, मैं रोज सुबह गाडी साफ़ कर के चमचमा दिया करूँगा!

पिताजी ने उसकी पीठ थपथपाई और मैंने उन्हें एक मिठाई का डिब्बा दोनों बच्चों के हाथों दिलवाया| नेहा और आयुष ने मिठाई दे कर हाथ जोड़ कर उन्हें "thank you अंकल जी" कहा और guard ने अपने दोनों हाथ उठा कर बच्चों को आशीर्वाद दिया|

घर में दाखिल हुआ तो माँ ने मुझे जल्दी से नहा कर आने को कहा, माँ की आज्ञा मानते हुए मैं नहा-धो कर आया तो माँ ने पूजा शुरू की| पूजा सम्पन्न होने के बाद सुमन और अनिल ने गहरे गुलाबी रंग के पानी वाली एक परात मेरे और संगीता के आगे कर दी| मैं जान गया की अब कौन सी रस्म की जाने वाली है, मैंने संगीता को देखा तो पाया की वो तो पहले से ही मुस्कुराये जा रही है|

सुमन: जीजू मैं इस परात में ये सोने की अँगूठी 3 बार डालूँगी, आप दोनों (मेरे और संगीता) में से जो भी सबसे ज्यादा बार अंगूठी ढूँढ निकालेगा वो जीतेगा और उसी की घर में चलेगी!

सुमन ने मुझे अँगूठी दिखाते हुए इस रस्म के नियम बताये| अब वो क्या जाने की हमारे घर में सिवाए-माँ-पिताजी के और किसी की चल ही नहीं सकती! उधर बच्चों को ये रस्म खेल जैसी लगी इसलिए दोनों बच्चों ने मेरा पक्ष ले लिया;

आयुष: मैं पापा की team में रहूँगा!

आयुष मेरी बगल में बैठते हुए बोला|

नेहा: मैं भी!

नेहा ख़ुशी से चहकते हुए बोली और मेरी दूसरी बगल बैठ गई| बच्चों की देखा-देखि अनिल भी मेरी तरफ हो लिया और चुपचाप मेरे पीछे आ कर बैठ गया| अब संगीता अकेली हो गई थी इसलिए उसने मुँह लटकाने का नाटक किया, संगीता को मुँह लटकाते देख माँ-पिताजी उसकी तरफ हो लिए और संगीता के पीछे बैठ गए| अब संगीता ने मुझे और बच्चों को जीभ चिढ़ाई और इधर से मैंने तथा बच्चों ने उसे जीभ चिढ़ाई! माँ-पिताजी, सगीता को जीभ चिढ़ाते हुए तो देख नहीं पाए, परन्तु मुझे और बच्चों को जीभ चिढ़ाते देख माँ-पिताजी हँसने लगे|

सुमन ने अपना हाथ परात में गोल-गोल घुमाया और धीरे से अंगूठी छोड़ दी, मेरी नजर पहले से ही सुमन के हाथ पर थी तो मैंने अंदाजा लगा लिया की उसने कहाँ अंगूठी छोड़ी है! मैंने झट से उस जगह के आस-पास टटोला और फट से अंगूठी ढूँढ निकाली! मेरी फुर्ती देख संगीता दंग रह गई और उधर बच्चों ने ख़ुशी से अपने पापा के जीत जाने पर तालियाँ बजानी शुरू कर दी! वहीं मेरे सर पर पहली बार में ही अंगूठी ढूँढ निकालने का थोड़ा गुरूर छा गया था| संगीता मुझे प्यार भरे गुस्से देखने लगी, मगर बोली कुछ नहीं! उधर सुमन दोनों बच्चों के ताली बजा कर खुश होने से सुमन उन्हें प्यार से टोकते हुए बोली;

सुमन: आप दोनों क्यों इतना खुश हो रहे हो?

बच्चे हँसते हुए कुछ कहें उससे पहले ही माँ बोल पड़ीं;

माँ: अरे खुश तो होंगे ही, बाप जीत गया तो फिर इनकी (बच्चों की) जो चेलगी घर में! फिर तो ये दोनों (आयुष और नेहा) अपने पापा से जिद्द कर के रोज चाऊमीन और चिप्स मँगवाएँगे!

माँ ने मजाक करते हुए कहा| माँ की बात सुन दोनों बच्चे शर्माने लगे और मेरे से आ कर लिपट गए|

संगीता: ऐसे कैसे बाहर से खाएँगे?

संगीता जोश से बोली और दोनों बच्चों को प्यार से घूरते हुए डराने लगी| बच्चे अपने पापा की शय पा कर बिलकुल नहीं घबराये, उल्टा अपनी मम्मी को फिर से जीभ चिढ़ाने लगे|

दुसरीबारी में सुमन ने थोड़ी बेमानी की, उसने अंगूठी जानबूझ कर संगीता के नजदीक पानी में छोड़ी और इशारे से संगीता को झपटने को कहा| संगीता ने भी फट से अपना हाथ मारा और अंगूठी उठा ली और मैं उसका मुँह देखता रह गया| अनिल ने ये बेईमानी देख ली थी और वो सुमन को टोकने लगा;

अनिल: Cheater!

जैसे ही अनिल ने "cheater" शब्द कहा दोनों बच्चों ने वो शब्द दोहराना शुरू कर दिया| वहीं संगीता बड़ी शान से अपनी खोजी हुई अंगूठी दिखाते हुए मुझे जीभ चिढ़ाने लगी! सच कहता हूँ, जब-जब संगीता इस तरह जीभ चिढ़ाती थी तो मन करता था की उसकी रसीली जीभ को अपने दाँतों तले दबा कर उसका रस निचोड़ लूँ!

खैर, इधर सुमन इतराते हुए अनिल से बोली;

सुमन: तुम सब एक तरफ हो गए और दीदी बेचारी अकेली पड़ गईं तो मेरा पक्ष लेना तो बनता था!

मैं: अच्छा भई, ले लो पक्ष!

मैं बीच-बचाव करते हुए बोला|

सुमन ने तीसरी बार अंगूठी डाली और इस बार भी वो बेईमानी करने वाली थी, लेकिन मैं सचेत था| जैसे ही सुमन ने अंगूठी पानी में छोड़ी मैंने फट से अंगूठी उठा ली! मेरे अंगूठी उठा लेने से संगीता गुस्सा नहीं हुई, बल्कि मुस्कुराने लगी क्योंकि उसे मेरे जीतने से भी उतनी ही ख़ुशी हुई थी जितनी मुझे उसके जीतने से होती| मैंने अंगूठी संगीता की ओर बढ़ाते हुए अपनी जीता का मूक श्रेय दिया, संगीता ने वो अंगूठी बस आधी पकड़ी जो इस बात का प्रतीक थी की वो मेरी इस जीत में बराबर की साझेदारी ले रही है न की सारा श्रेय ले रही है! अब ये दृश्य बच्चों को छोड़ कर सबको अच्छे से समझ आ गया था! सुमन मेरे इस तरह अपनी जीता का श्रेय संगीता को देने से बहुत प्रभावित नजर आई, तो अनिल को ये दृश्य देख कर सुकून मिल रहा था की उसका जीजा उसकी दीदी को कितना चाहता है! वहीं मेरे माता-पिता प्रसन्न थे क्योंकि उनके बेटा-बहु इतना समझदार हैं की अपनी जीत को एक दूसरे के साथ बाँट कर अपनी ख़ुशी व्यक्त कर रहे हैं, न की अपनी जीत पर गुमान कर रहे हैं!

माँ: अच्छा बच्चों अब खाना खाते हैं|

माँ ने सब का ध्यान भंग करते हुए कहा और हम सभी dining table पर आ कर बैठ गए| संगीता ने और सुमन ने खाना table पर सजा रखा था, हमारे बैठते ही संगीता ने सब को खाना परोसा| अब ऐसा तो था नहीं की आज हम सभी पहली बार संगीता के हाथ का बना खाना खा रहे थे, परन्तु मुझसे शादी होने के बाद आज संगीता की पहली रसोई थी और इस समय पर सभी रस्में निभाना जर्रूरी था फिर संगीता का उत्साह बिलकुल नई-नवेली दुल्हन जैसा था और माँ-पिताजी उसके इस उत्साह में पूरी तरह साथ थे|

पहला कौर खाते ही पिताजी ने अपनी जेब में हाथ डाला और संगीता के सर पर हाथ रख उसे आशीर्वाद देते हुए कुछ पैसे दिए| फिर माँ की बारी आई और उन्होंने संगीता को अपने पास बुलाते हुए सोने की चार-चार चूड़ियाँ दी तथा संगीता के सर पर हाथ रख उसे आशीर्वाद दिया| संगीता के चेहरे पर आई ख़ुशी ने आँसूँ के कतरे का रूप ले लिया और उसकी आँखों से बह निकला| माँ ने संगीता को अपने गले लगा कर उसे रोने नहीं दिया और अपनी बगल में बैठ कर खाना खाने को कहा|

आयुष जो अपने चेहरे पर सवाल लिए हुए ये सब देख रहा था वो मुझसे पूछने लगा;

आयुष: पापा जी, दादा जी और दादी जी ने मम्मी को क्या दिया? और...और मम्मी रो क्यों रही थी?

मैंने आयुष को प्यार से समझाते हुए कहा;

मैं: बेटा, हमारी (मेरी और संगीता की) शादी होने के बाद आज आपकी मम्मी ने पहलीबार खाना बनाया न, इसलिए आपके दादा-दादी जी ने आपकी मम्मी को आशीर्वाद और प्यार दिया|

आयुष को उसके सवाल का जवाब मिला तो वो ख़ुशी से चहकने लगा|

खाना खा कर हम सभी बैठक में बैठे थे जब अनिल ने अपने जाने की बात छेड़ी;

अनिल: जीजू, हमारी मुंबई जाने की गाडी रात की है|

अनिल के जाने की बात सुन सबसे पहले बच्चे बोल पड़े;

नेहा: मामा जी, इतनी जल्दी क्यों जा रहे हो?

आयुष: मत जाओ न मामा जी!

आयुष अपनी भोली आवाज में मुँह फुलाते हुए बोला| अब बच्चों की देखा-देखि सबने अनिल को रोकना चाहा पर वो बेचारा भी मजबूर था;

अनिल: जी college के exams दो हफ्ते बाद हैं, इसलिए जाना पड़ रहा है|

अनिल भी नहीं जाना चाहता था परन्तु अपनी पढ़ाई के कारण उसे जाना पड़ रहा था|

खैर उसकी train 8 बजे की थी तो हमें घर से 7 बजे निकलना था, माँ ने जबरदस्ती कर के उसे और सुमन को खाना खिला कर मेरे साथ station भेजा| अनिल और सुमन को train में बिठा कर मैं घर पहुँचा तो सभी मेरा खाने के table पर इंतजार कर रहे थे| रात का खाना खा कर सोने का समय आया तो दोनों बच्चे आ कर मेरी गोद में चढ़ गए और कहने लगे की वो मेरे साथ सोयेंगे! मन तो मेरा भी बच्चों के साथ सोने का था, परन्तु ज्यादा मन संगीता के साथ romance का था और वो बच्चों की मौजूदगी में होने से रहा! मैं, माँ-पिताजी से भी मदद नहीं माँग सकता था क्योंकि उनसे इस बारे में मदद माँगना मुझे बहुत अटपटा लग रहा था| हारकर मैं बच्चों को ले कर अपने कमरे में आ गया और अपने सीने से बच्चों को लिपटाये हुए लेट गया| कुछ देर बाद संगीता रसोई समेट कर कमरे में आई और मुझे यूँ बच्चों के साथ लिपट कर लेटा हुआ देख खी-खी कर हँसने लगी! दरअसल संगीता की हँसी का कारण ये था की सुबह संगीता ने मुझे रात में मुझे मुँह मीठा कराने का वादा किया था, परन्तु दोनों बच्चों की मौजूदगी में अब मुझे कुछ नहीं मिलने वाला था! संगीता बच्चों की दूसरी तरफ लेट गई और एक बार फिर मुस्कुरा कर मुझे उल्हाना दिया, जवाब में मैंने बिना कोई आवाज किया अपने होंठ हिलाते हुए "sorry" कहा! अब सिवाए बच्चों से लिपट कर सोने के कुछ कर भी नहीं सकता था, इसलिए मैं चैन से सोने लगा|

रात साढ़े बराह बजे संगीता दबे पाँव उठी और मुझे जगाने लगी, मैं आँख मलते-मलते उठा तो उसने अपने होठों पर ऊँगली रख मुझे चुप रहने का इशारा किया| मैं थोड़ा हैरान था की भला आधी रात को संगीता मुझे क्यों उठा रही है, तभी मैंने गैर किया तो पाया की संगीता के चेहरे पर एक नटखट मुस्कान है! मैं कुछ समझ पाता उससे पहले ही संगीता मेरा हाथ पकड़ मुझे कमरे से बाहर जाने को खींचने लगी| मैं धीरे से उठा और संगीता के पीछे चलता हुआ बच्चों के कमरे में आ गया| संगीता ने धीरे से दरवाजा बंद किया और चेहरे पर अपनी नटखट मुस्कान लिए मुझे देखने लगी! अब मुझे सब समझ आ गया था की आखिर क्यों संगीता मुझे इस कमरे में लाई है| मैंने संगीता को गोद में उठाया और उसे बच्चों के पलंग पर लिटा दिया, तथा फटाफट हम दोनों के ऊपर रजाई डाल ली| मेरे जिस्म के सम्पर्क में आते ही संगीता का बदन कसमसा उठा और उसने बिना कोई समय गँवाये मेरे होठों पर अपना कब्जा कर लिया| दस मिनट के रसपान के बाद हमने एक दूसरे को कपड़ों की जकड़न से आजाद किया और एक बार फिर कसकर एक दूसरे से लिपट गए| कल के मुक़ाबले आज जोश कुछ ज्यादा ही था और इस जोश का कारण हम दोनों ही नहीं जानते थे! उत्तेजना ऐसी सवार हुई की कब हम अपने समागम के अगले चरण में पहुँच गए इसका पता ही नहीं चला! हाँ इतना जर्रूर था की ये चरण संगीता के लिए कुछ अधिक ही संतोष जनक था, क्योंकि मुझसे पहले वो 2 बार चरम पर पहुँच चुकी थी और मैं अभी अपने पहले चरम पर भी नहीं पहुँचा था! अपने दूसरे स्खलन के बाद संगीता प्यार भरी शिकायत करते हुए बोली;

संगीता: ज.....जानू.....आ...आप बहुत...सताते हो!....और कितनी देर तड़पाओगे?!

मैं: क्या करूँ जान, जी ही नहीं भरता!

मैंने अपने दिल की बात कही तो संगीता को खुद पर गर्व होने लगा की उसे ऐसा पति मिला है जो उसका इतना दीवाना है!

खैर कुछ ही देर में संगीता अपने तीसरे स्खलन पर पहुँच गई और उसका पूरा शरीर एक बार को अकड़ कर फिर ढीला पड़ गया, संगीता कभी भी अपने तीसरे स्खलन के बाद खुद को संभाल नहीं पाती थी इसलिए मुझे अब जल्दी से जल्दी चरम पर पहुँचना था! मैंने नीचे झुक कर संगीता के होठों को छुआ तो संगीता ने हिम्मत कर मेरे होठों को निचोड़ना शुरु कर दिया, नतीजन कुछ ही देर में मैं अपने चरम पर पहुँच गया! मेरा स्खलन आज इतना तीव्र था की मैंने अपने स्खलन के आवेग में आ कर संगीता को कुछ ज्यादा ही कस कर अपनी बाहों में भर लिया! मेरे स्खलन खत्म होते ही मैं संगीता की बगल में गिर पड़ा और हाँफते हुए अपनी सांसें दुरुस्त करने लगा|

उधर संगीता का जिस्म मेरे द्वारा किये इस परिश्रम के कारण दुःख रहा था, इसलिए उसने जैसे-तैसे मेरी तरफ करवट ली और मुझसे लिपट कर सो गई! करीब तीन बजे मैं bathroom जाने के लिए जगा तो मुझे याद आया की दोनों बच्चे मेरे कमरे में अकेले सो रहे हैं और वो अगर जाग गए तो मुझे ढूँढ़ते हुए यहाँ आ जायेंगे! मैंने अपने कपड़े पहने और संगीता को ठीक से रजाई ओढ़ा कर मैं बच्चों के पास लौट आया| Bathroom हो कर मैं जैसे ही लेटा की आयुष जाग गया और मेरी छाती पर चढ़ कर सोने लगा!

अगली सुबह पौने 6 बजे का alarm बजा तो मैं एकदम से उठा, घर में सन्नाटा पसरा था यानी की अभी तक कोई नहीं उठा था, संगीता भी नहीं! मैंने सबसे पहले नेहा का सर चूमते हुए उसे उठाया और फिर आयुष का सर चूम उसे उठने को कहा| आयुष इतनी जल्दी उठने वाला नहीं था इसलिए मैंने आयुष को उठाने की duty नेहा को दे दी और खुद संगीता को ढूँढ़ते हुए बच्चों के कमरे में पहुँचा| संगीता इस वक़्त भी गहरी नींद में थी, मैंने उसे उठाना ठीक नहीं समझा और वापस बच्चों को स्कूल के लिए तैयार करने लगा| अब तक माँ-पिताजी भी उठ कर बैठक में बैठ चुके थे तथा भजन सुनने में लगे थे| मैंने फटाफट चाय बनाई और माँ-पिताजी के सामने चाय ले कर आया तो माँ चिंता करते हुए बोलीं;

माँ: चाय तू लाया है? बहु ठीक तो है न?

मैं कुछ कहता की तभी संगीता तेजी से सबसे नजरें चुराते हुए बच्चों के कमरे से निकल कर हमारे कमरे में घुस गई| माँ ने उसे कमरे में जाते हुए देख लिया था इसलिए बजाए मेरा जवाब सुनने के माँ ने मुझे बच्चों को तैयार करने में लगा दिया| मैं अपने कमरे में पहुँचा तो दोनों बच्चे अपनी school dress पहने हुए तैयार थे| मैं दोनों बच्चों को बाहर लाया और फटाफट उनके लिए ब्रेड-मक्खन बना कर उनका tiffin pack कर दिया| दोनों बच्चों ने अपने दादा-दादी जी के पाँव छुए और फिर मैं उन्हें उनकी school van में बिठा आया| जब मैं वापस घर में दाखिल हुआ तो संगीता नहा-धोकर, तैयार हो कर कमरे से बाहर निकली ही थी| माँ ने हम दोनों को अपने सामने बिठाया और संगीता से पूछने लगी;

माँ: बहु, तू बच्चों के कमरे में क्यों सोइ थी?

माँ का सवाल सुन हम दोनों के सर झुक गए, सुबह-सुबह हम दोनों के मुँह से झूठ नहीं निकल रहा था परन्तु सच बताने में दुगनी शर्म भी आ रही थी!

मैं: वो....माँ....बच्चे मेरे साथ सोये थे....तो पलंग पर जगह कम ....पड़ गई थी!

मैंने बात गोल घुमाते हुए कही| मेरी बात सुन संगीता शर्म से लाल होने लगी थी और सर झुकाये हुए सबसे नजरें चुराने में लगी थी! माँ-पिताजी मेरी बात समझ गए थे, माँ ने संगीता को अपने पास बिठाया और उसे अपने सीने से लगा कर उसे शर्माने से बचाने लगी! उधर पिताजी ने मेरी class लगाते हुए कहा;

पिताजी: सब तेरी गलती है, तूने बच्चों को सर चढ़ा रखा है, जब देखो तेरे साथ लिपटे रहते हैं! अभी दो दिन हुए नहीं शादी को और बहु अकेली अलग कमरे में सो रही है?! मैं कुछ नहीं जानता, तू बच्चों को समझा और आज से दोनों बच्चे हमारे पास सोयेंगे|

पिताजी ने तो अपना हुक्म सुना दिया परन्तु वो नहीं जानते थे की बच्चे इतनी आसानी से मानने वाले नहीं हैं| वहीं पिताजी का मुझे यूँ संगीता की गलती के लिए सुनाना, संगीता को ग्लानि महसूस करवा रहा था| वो भी बेचारी मजबूर थी की अपनी लाज के मारे वो माँ-पिताजी से सच नहीं कह पा रही थी|

जब पिताजी की डाँट खत्म हुई तो माँ ने मुझे नाश्ता बनाने का हुक्म दिया;

माँ: सुबह चाय बनाई थी न, अब जा कर नाश्ता बना!

तभी पिताजी बोल पड़े;

पिताजी: और खबरदार जो ब्रेड-मक्खन लाया तो!

पिताजी ने थोड़ा डाँटते हुए कहा, परन्तु मुझे उनकी डाँट सुन कर हँसी आ गई! अब संगीता ने मुझे बचाना चाहा और वो मेरा पक्ष लेने के लिए बोली;

संगीता: पिताजी, मैं नाश्ता बनाती हूँ!

लेकिन पिताजी ने संगीता को रोक दिया;

पिताजी: नहीं बहु! गलती इसने की है, सजा भी यही भुगतेगा!

आमतौर पर जब मुझे बिना मेरे गलती किये सजा दी जाती थी तो मैं गुस्सा होता था, परन्तु आज मुझे इस सजा में मज़ा आ रहा था! मैं उठा और रसोई में apron पहन कर घुस गया, 20 मिनट में ही रसोई से जब सुगंध उठी तो सब लोग dining table पर बैठ गए| मैंने नाश्ते में बेसन और सब्जी लगे toast बनाये थे, माँ-पिताजी ने जब पहले निवाला खाया तो मेरी तारीफ करने से खुद को रोक नहीं पाए और बोले;

पिताजी: ये तो बड़ी स्वाद चीज बनाई है!

माँ: हाँ, बस रसोई का हाल बुरा न कर दिया हो!

माँ मुझे प्यार से ताना मारते हुए बोलीं|

मैं: नहीं माँ, रसोई साफ़ है!

मैंने बड़े गर्व से कहा| अब मेरी नजर संगीता पर टिकी थी, ताकि वो भी तारीफ के कुछ शब्द कहे! संगीता ने मुस्कुराते हुए देखा और आँखों ही आँखों में मेरे द्वारा बनाये नाश्ते की प्रशंसा करने लगी! उसका यूँ मुस्कुरा कर मुझे देखना ही मेरे लिए सराहना थी, इसलिए मैं तो उसी से बहुत खुश हो गया|

नाश्ते के बाद पिताजी site पर फ़ोन कर के बात करने लगे और इधर माँ ने संगीता से दोपहर के खाने के बारे में पुछा|

मैं: माँ दोपहर का खाना भी मैं बनाऊँगा!

मैं एकदम से बीच में बोल पड़ा| मेरा उत्साह देख माँ हँसने लगी और संगीता अचरज भरी नजरों से मुझे देखने लगी, उसे समझ नहीं आ रहा था की मैं सच में खाना बनाना चाहता हूँ या फिर पिताजी द्वारा डाँटने का बदला ले रहा हूँ?!

माँ: अच्छा, क्या बनाएगा?

माँ ने हँसते हुए सवाल पुछा तो मैंने दाल-सब्जी और रोटी गिना दी!

संगीता: आप रहने दो न, मैं बना लूँगी!

संगीता प्यार से बोली, पर मैं खाना बनाने का मन बना चूका था इसलिए मैंने प्यार से संगीता की बात को नकार दिया;

मैं: यार आज मेरे हाथ का बना खाना खाओ तो सही!

दरअसल खाना बनाना तो बहाना था, मुझे तो site पर जाने से बचना था ताकि घर रह कर संगीता के साथ मस्ती की जा सके! खैर माँ ने हँसते हुए मुझे खाना बनाने की इजाजत दे दी और मैं फिर से रसोई में घुस गया| पिताजी को नजदीक ही कुछ पेमेंट लेने और करने जाना था सो वो चले गए, अब रह गए बस हम तीन प्राणी: मैं, माँ और संगीता| माँ अपना टी.वी. देखने में व्यस्त हो गईं तो संगीता उनसे नजर बचाते हुए मेरे पास रसोई में आई और अपने कान पकड़ते हुए मासूमियत से बोली;

संगीता: Sorry जी! मेरी वजह से आपको सुबह-सुबह डाँट पड़ी!

मैं: तो क्या हुआ जान? मुझे बुरा थोड़े ही लगा? देखो मियाँ-बीवी की ये चोरियाँ चलती रहनी चाहिए, बस हम पकडे नहीं जाने चाहिए!

मैंने संगीता को आँख मरते हुए कहा| संगीता मेरी बात से हैरान थी, उसे लगता था की मैं शायद उसे डाटूँगा या फिर आज के बाद ये चोरी फिर कभी करने से मना करूँगा परन्तु मैं तो उसे खुलेआम प्रोत्साहन दे रहा था!

संगीता: कभी-कभी तो लगता है की मैं आपको समझ ही नहीं सकती?!

संगीता मुस्कुराते हुए बोली| संगीता की बात सुन मैं हँस पड़ा और संगीता को अपने सीने से लगा कर खड़ा रहा|

कुछ पल यूँ ही खड़े रहने के बाद मैंने संगीता से बात करते हुए कहा;

मैं: अच्छा जान ये तो बताओ की आप देर से क्यों उठे?

मैंने संगीता को अपनी बाहों से आजाद करते हुए दाल cooker में डालते हुए पुछा तो संगीता ऐसी शरमाई, ऐसी शरमाई की क्या कहूँ! अपनी ऊँगली दाँतों तले दबाते हुए, नजरें झुका कर संगीता मुझे उल्हाना देती हुई बोली;

संगीता: पहले रात भर मेरी हालत खराब करते हो, फिर सुबह पूछते हो की मैं देर से क्यों उठी! हुँह!

संगीता को यूँ शर्माते देख मुझे मस्ती सूझी और मैंने थोड़ा सा नाटक करते हुए कहा;

मैं: ठीक है, आज से नहीं करूँगा!

संगीता को लगा की मैंने उसकी बात का बुरा मान लिया है इसलिए वो एकदम से डर गई और मुझसे कस कर लिपट गई|

मैं: बाबू, मैं तो मजाक कर रहा था!

मैंने हँसते हुए कहा तब जा कर संगीता की जान में जान आई, मगर मेरी मस्ती के बारे में जान कर वो नाक पर प्यार भरा गुस्सा लिए हुए मुझे देखने लगी!

संगीता: आप न.......

संगीता को अपना गुस्सा दिखाना था पर उसके पास कोई शब्द नहीं थे इसलिए वो अपनी बात आधी छोड़ कर रसोई के बाहर निकलने लगी, तभी मैंने संगीता को पीछे से अपनी बाहों में जकड़ लिया और उसकी गर्दन को चूम कर उसका झूठा गुस्सा शांत कर दिया!

दाल-सब्जी तैयार हो चुकी थी बस रोटियाँ बनानी बाकी थीं, घडी में बजे थे पौने एक, अब मौका था माँ को मस्का लगाने का;

मैं: माँ, वो....आप...से...पूछना...था!

ये कहते हुए मैंने माँ का हाथ दबाना शुरू कर दिया| अब मैं, माँ को मस्का लगाऊँ और वो पकड़ न पाएँ ऐसा तो हो नहीं सकता!

माँ: अब बोल भी, क्यों मक्खन लगा रहा है!

मैं: माँ, मैं सोच रहा था की मैं और संगीता एक बार doctor सरिता से check up करवा आयें?

Doctor के जाने के बारे में सुनते ही माँ थोड़ा चिंतित हो गईं;

मैं: कोई घबराने वाली बात नहीं है माँ, संगीता चूँकि pregnant है तो मैं उसका check up करवाना चाहता था, फिर मैं भी अपना B.P. check करवा लूँगा!

मैंने अपने B.P. check करवाने की बात बहाने के रूप में कही थी| मेरी बात सुन माँ निश्चिंत हो गईं और मसुकुराते हुए हम दोनों को जाने की अनुमति दे दी|

हम दोनों मियाँ-बीवी सीधा doctor सरिता के पास निकल पड़े| Clinic पहुँच कर सरिता जी ने हमें अपने cabin में बिठाया और हमसे पूछने लगीं;

Doctor सरिता: और बताओ सब ठीक हैं?

मैं: हाँ जी| दरअसल मैं संगीता के check up के लिए आया था|

मैंने थोड़ा गंभीर होते हुए कहा| इस समय मैं एक जिम्मेदार पति की भूमिका निभा रहा था, परन्तु मैं नहीं जानता था की मैं फ़िजूल चिंता कर रहा हूँ|

Doctor सरिता: अरे मानु, तुम बेकार चिंता कर रहे हो! संगीता पूरी तरह तंदुरुस्त है, मैंने इसके सारे test करवाए थे और कोई घबराने वाली बात नहीं है| मैंने जो multivitamins लिखीं थीं वो देनी हैं और थोड़ा ज्यादा आराम करना है!

Doctor सरिता की बात सुन कर मुझे तसल्ली मिली और इसी के साथ एक बार फिर पिता बनने का जूनून मेरे सर पर सवार हो गया|

संगीता: सरिता जी, एक बार इनका B.P. check कर लीजिये, ताकि मुझे भी शांति मिले|

संगीता मुस्कुराते हुए मुझे छेड़ने के इरादे से बोली| वो जान गई थी की मैं यहाँ सिर्फ और सिर्फ उसका check up करवाने के लिए आया था| Doctor सरिता ने मेरा B.P. check किया तो वो मेरे दवाई लेने के कारन काबू में था, ये देख कर संगीता को भी इत्मीनान हुआ की मैं भी हृष्ट-पृष्ट हूँ| 5-7 मिनट बात कर के हम दोनों बच्चों को लेने उनके school van के स्टैंड पर पहुँच गए|

हरबार की तरह, बच्चों ने मुझे अपनी school van के भीतर से ही देख लिया था और वो कूदते हुए आ कर मेरे से लिपट गए थे| अब जाहिर था की संगीता को थोड़ी सी जलन हुई;

संगीता: शैतानों! जब मैं तुम्हें लेने आती हूँ, मुझसे तो कभी इस तरह लिपट कर प्यार नहीं करते?!

अपनी मम्मी का झूठा गुस्सा देख बच्चे हँसने लगे, नेहा तो टस से मस नहीं हुई मगर आयुष जा कर अपनी मम्मी की टांगों से लिपट गया|

संगीता: देखा, ये है मेरा लाडला!

संगीता आयुष को लाड करते हुए बोली| इधर नेहा ने अपनी मम्मी को जीभ चिढ़ाई और मेरी गोदी में चढ़ गई! हँसते-खेलते हुए हम चारों घर पहुँचे तो पिताजी पहले से ही खाने का इंतजार कर रहे थे|

संगीता ने फिर रोटी बनाने जाने की कोशिश की तो मैंने उसे मना करते हुए कहा;

मैं: दाल-सब्जी बनाऊँ मैं और रोटी बना कर सारा credit लो तुम?!

मैंने मजाक में कहा तो पिताजी जोर से हँस पड़े और संगीता से बोले;

पिताजी: बना लेने दे बहु!

संगीता मुस्कुराई और बच्चों को लेकर कमरे में चली गई| इधर मैंने रोटियाँ सेकीं और उधर संगीता ने बच्चों को कपड़े बदल कर खाने के लिए बाहर भेज दिया| सब लोग dining table पर बैठ चुके थे जब मैं सारा खाना परोस रहा था तब दोनों बच्चे मुझे खाना परोसते हुए बड़ी उत्सुकता से देख रहे थे| जब सबको खाना परोस कर मैं अपनी कुर्सी पर बैठा तो पिताजी और माँ ने पहला कौर खाया और मुस्कुराते हुए मेरी तारीफ करने लगे;

माँ: खाना तो बढ़िया बनाया है!

पिताजी: हाँ, सादा खाना (दाल, रोटी, सब्जी) बढ़िया बनाता है मानु! वो जब तू अगड़म -बगड़म बनाता है न, वो मुझे नहीं पसंद!

उधर संगीता बस मुस्कुराये जा रही थी और मुझसे नजरें चुराते हुए खाना खाये जा रही थी| मैंने एक-एक कौर बच्चों को खिलाया तो दोनों स्वाद खाने की ख़ुशी से अपना सर दाएँ-बाएँ हिलाने लगे! तभी आयुष ने जिज्ञासु होते हुए अपने दादा जी से सवाल पुछा;

आयुष: दादा जी, कल मम्मी ने खाना बनाया था तो आपने उन्हें पैसे दिए थे, आज पापा ने खाना बनाया है तो आप उन्हें भी पैसे दोगे?

आयुष के इस मासूमियत से भरे सवाल पर सभी लोग हँस पड़े, पर आयुष सोच में था की सब हँस क्यों रहे हैं इसलिए वो सभी को बड़ी उत्सुकता से देख रहा था|

पिताजी: बेटा, आपके पापा को हमने (माँ-पिताजी ने) पहले ही गाडी ले कर दे दी थी!

पिताजी ने आयुष की जिज्ञासा शांत करते हुए कहा| जब आयुष को उसके सवाल का जवाब मिला तो वो पुनः हँसने लगा|

खाना खा कर माँ-पिताजी आराम कर रहे थे तथा मैं संतोष से फ़ोन पर बात कर के कुछ हिसाब कर रहा था| संगीता ने दोनों बच्चों को सुला दिया था, मैं जब फ़ोन पर बात कर के लौटा तो संगीता ने मुझसे आज मेरे खाना बनाने को ले कर बात की;

संगीता: जानू, आज अचानक से आप पर खाना बनाने का भूत कैसे सवार हुआ?

मैं: तुम तो जानती ही हो की मैं कोई भी काम ऐसे ही नहीं करता, आज का खाना बनाना...ये सब एक सोची समझी planning की तहत हुआ है|

मैंने बात को रहस्मयी ढंग से कहा तो संगीता जिज्ञासु हो गई!

मैं: अगर मैं रसोई में न घुसता तो पिताजी आज मुझे site पर भेज देते और अगर मैं site पर जाता तो मुझे तुम्हारे साथ romance करने का मौका कैसे मिलता?

ये कहते हुए मैंने संगीता का हाथ पकड़ कर धीरे से दबा दिया| Romance का नाम लिया था तो दिमाग में romance का कीड़ा कुलबुलाने लगा था, मैं उठा और बारी-बारी दोनों बच्चों को उनके कमरे में सुला दिया और अपने कमरे में लौट कर दरवाजा बंद कर संगीता को अपने नजदीक खींच लिया| संगीता को अपने जिस्म से चिपका कर मैंने संगीता के मस्तक को चूमा और अपनी बात पूरी की;

मैं: फिर अभी जब doctor सरिता की बात सुन कर मैंने फैसला कर लिया की जबतक तुम्हारी delivery नहीं होगी तबतक मैं घर पर ही रहूँगा और घर का सारा काम अब से मैं करूँगा! मेरी बीवी आज से कोई भी काम नहीं करेगी!

मैंने बड़े गर्व से अपनी बात कही और एक बार फिर संगीता के सर को चूम लिया| मेरी बात सुन संगीता कसमसाई और मेरी पकड़ से छुटते हुए बोली;

संगीता: जानू, मेरी delivery होने में अभी 8 महीने का वक़्त है और तबतक आप काम नहीं करोगे तो कैसे चलेगा? पिताजी गुस्सा करेंगे सो अलग! ऊपर से मुझे आपसे काम करवाना अच्छा नहीं लगता, इसलिए please...

संगीता की बात पूरी होने से पहले ही मैंने उसकी बात काट दी;

मैं: मैंने जो बोल दिया सो बोल दिया! मैं सब संभाल लूँगा, आज से तुम्हें बस आराम करना है!

मेरे सर पिता बनने का जूनून सवार था और मैं उसके आगे किसी की भी नहीं सुनने वाला था| आगे बात हो पाती उससे पहले ही आयुष ने दरवाजा खटखटा दिया, उसकी नींद पूरी हो चुकी थी और उसे अब मेरे साथ खेलना था!

शाम हुई और मैंने बिना किसी के कहे चाय बनानी शुरू कर दी, जब मैं बैठक में माँ-पिताजी की चाय ले कर पहुँचा तो मुझे देख माँ-पिताजी हँसने लगे| तभी संगीता उठ कर आ गई और माँ की बगल में बैठ गई, मैंने बच्चों को दूध बना कर दिया और रात के खाने की तैयारी करने लगा| माँ-पिताजी ने मुझे सब्जी काटते देखा परन्तु कहा कुछ नहीं, उनके लिए ये मेरा बचपना था! चाय पी कर संगीता बर्तन धोने के लिए उठी, सुबह से सारे बर्तन kitchen sink में इकठ्ठा हो चुके थे! संगीता बर्तन धोती उससे पहले ही मैंने उसके हाथ से बर्तन छीन लिए;

मैं: मैंने कहा न की तुम्हें बस आराम करना है!

मैंने संगीता को थोड़ा प्यार से हुक्म देते हुए कहा|

संगीता: जानू, अच्छा नहीं लगता की आप बर्तन धोओ!

संगीता बहस करते हुए बोली|

मैं: मेरे तीन गिनने तक अगर तुम बाहर नहीं गई तो मैं यहीं romance शुरू कर दूँगा!

मैंने संगीता को प्यारभरी धमकी देते हुए कहा! संगीता को लगा की मैं उसे बस छेड़ने के लिए ये कह रहा हूँ, इसलिए मैंने उसे डराने के लिए उसे अपनी बाहों में भर लिया! पिताजी की घर में मौजूदगी होने के कारन संगीता डर भी रही थी और माँ द्वारा पकडे जाने से शर्मा भी रही थी, इसलिए मेरी बाहों में आते ही उसने छटपटाना शुरू कर दिया तथा मैंने भी उसे अपनी पकड़ से आजाद कर दिया|

खैर रात का खाना मैंने अच्छे से बनाया और सबने मेरी तारीफ करते हुए खाना भी खाया| अब सोने की बारी आई तो दोनों बच्चे मुझसे चिपक गए, आयुष को समझाना आसान था पर नेहा को नहीं! परन्तु इसका भी इलाज था, मैंने नेहा को कहानी सुनाते हुए सुलाया और फिर उसे गोदी में ले कर पिताजी के कमरे में पहुँच कर लिटा दिया| मैं वापस कमरे में आया तो संगीता मेरा इंतजार कर रही थी, उसे देखते ही romance का कीड़ा कुलबुलाने लगा परन्तु आज दिनभर रसोई संभालने के कारन थोड़ी थकावट भी लग रही थी! आज हमारे प्रेम समागम ज्यादा नहीं चल पाया, परन्तु इतना अवश्य था की हम दोनों पूरी तरह संतुष्ट हो चुके थे!

सुबह के 2 बजे नेहा ने हमारे कमरे का दरवाजा खटखटाया तो मेरी नींद खुली, नेहा को मेरी कुछ ऐसी आदत हो गई थी की वो बीच रात में मेरी गैरमौजूदगी को महसूस कर के उठ जाया करती थी| मैं नेहा को गोदी में ले कर वापस रजाई में घुस गया और हम तीनों आराम से सोये| फिर वही पौने 6 का alarm बजा जिसने हम तीनों को जगाया| संगीता को जबरदस्ती रजाई में छोड़ कर मैं आयुष को उठाने पहुँचा| सुबह-सुबह मुझे जागा हुआ देख माँ-पिताजी हैरान हुए, पर उन्हें लगा की ये मेरा सुबह जल्दी उठने का कोई नया नियम होगा इसलिए उन्होंने कुछ नहीं कहा| जब मैं बच्चों के लिए नाश्ता बना रहा था तब माँ ने मुझे टोका;

माँ: क्या बात है, आज तू फिर बच्चों के लिए नाश्ता बना रहा है?

मैंने माँ की बात का जवाब मजाक करते हुए दिया;

मैं: बच्चों को मेरे हाथ का बना हुआ नाश्ता अच्छा लगता है!

मैं, माँ से खुल कर नहीं कह सकता था की मैं ये सब इसलिए कर रहा हूँ ताकि संगीता ज्यादा से ज्यादा आराम करे क्योंकि मेरी बात सुन माँ-पिताजी मेरी खिंचाई करने लगते! इतने में नेहा तैयार हो कर आ गई और मेरी बात का मान रखते हुए बोली;

नेहा: हाँ जी दादी जी, पापा जी वाला नाश्ता ज्यादा स्वाद होता है|

संगीता: अच्छा?

संगीता कमरे से निकलते हुए अपना नकली गुस्सा दिखाते हुए नेहा से बोली| संगीता की बात सुन सभी हँसने लगे!

बच्चों को school छोड़ मैं नाश्ता बनाने लगा तो माँ ने मुझे फिर टोका;

माँ: ओ लड़के! ये क्या कर रहा है तू?

उस समय पिताजी नहा रहे थे, मैं कुछ बहाना मारता उससे पहले ही संगीता ने मौके का फायदा उठाया और मेरी चुगली कर दी!

संगीता: माँ, ये तो बस इनका काम पर न जाने का बहाना है! फिर कल (doctor) सरिता जी ने मुझे आराम करने को कहा तो तब से इन पर घर का सारा काम करने का भूत चढ़ गया है|

संगीता मुझे देखते हुए मुँह टेढ़ा करते हुए बोली!

माँ: बेटा, तू क्यों चिंता करता है? मैं हूँ न बहु का ख्याल रखने के लिए!

माँ मुझे प्यार से समझाते हुए बोलीं|

मैं: माँ, पहलीबार पिता बनने जा रहा हूँ इसलिए थोड़ा ज्यादा उत्साहित हूँ और किसी भी तरह की कोई कोताही बरतना नहीं चाहता|

मैंने बड़ी मासूमियत से कहा| माँ जानती थीं की ये सब मेरे सर पर चढ़ा पिता बनने का जूनून है, जब ये जूनून ठंडा पड़ेगा तो अपने आप मेरी अकल ठिकाने आ जायेगी!

माँ: ठीक है बहु, कर लेने दे इसे इसके मन की!

माँ कुटिल मुस्कान के साथ बोलीं और मुझे परांठे बनाने का हुक्म दे कर संगीता को जबरदस्ती अपने साथ ले कर बैठक में बैठ गईं तथा कुछ इधर-उधर की बातें करने लगीं| उधर संगीता हैरान थी की भला ये माँ को क्या हो गया है जो बजाए मेरे साथ तर्क-वितर्क करने के मुझे मेरे मन की करने को कह रहीं हैं?!

कुछ देर बाद पिताजी नहा कर निकले और जब उन्होंने मुझे रसोई से नाश्ता ले कर निकलते देखा तो वो माँ से पूछने लगे;

पिताजी: क्या बात है भई, आजकल कोई नया खानसामा रखा है?

पिताजी मेरी और इशारा करते हुए बोले| उनकी बात पर सभी ने ठहाका लगाया और तभी माँ ने पिताजी के सवाल का जवाब मजाक में देते हुए कहा;

माँ: हाँ जी, मेरी बहु ये सब काम थोड़े ही करेगी, इसलिए बड़ी दूर से इस खानसामे को बुलाया है!

पिताजी: तो कितनी तनख्वा दे रही हो?

पिताजी हँसते हुए माँ से पूछने लगे|

माँ: अभी तो काम करवा कर देख रही हूँ की इसे काम आता भी है या नहीं?!

माँ, मुझे छेड़ते हुए बोलीं|

पिताजी: अच्छा मजाक बहुत हो गया, नाश्ता कर और मेरे साथ चल!

पिताजी मुझसे बोले| अब उनकी बात सुनते ही मेरा मुँह बन गया और मैं माँ को देखने लगा| अब माँ ने मेरा पक्ष लेते हुए कहा;

माँ: कुछ दिन के लिए इसे (मुझे) घर रहने दो!

माँ की बात बड़ी संक्षेप में थी, परन्तु उनकी बात करने का ढंग और उसमें मौजूद वजन ऐसा था की पिताजी बस मुस्कुराते हुए रह गए तथा उन्होंने माँ की कही बात का कोई विरोध नहीं किया|

नाश्ता करने के बाद पिताजी site पर अकेले निकल गए और मैं झाड़ू उठा कर साफ़-सफाई में लग गया| फिर नंबर आया बर्तन और कपड़े धोने का, शुक्र है की कपडे धोने के लिए washing machine मौजूद थी वरना मेरी तो कमर ही अकड़ जाती! वो पूरा दिन मैंने घर के सारे काम सँभाले, माँ बीच- बीच में मेरा काम देखने के लिए किसी supervisor की तरह आतीं मगर उन्हें मेरे किये किसी काम में शिकायत का कोई मौका ही नहीं मिलता! रात में रसोई समेट कर जब मैं कमरे में पहुँचा तो थकावट पूरे जोर पर थी, बिस्तर पर पड़ते ही कब आँख लगी पता ही नहीं चला! एक दिन पूरा घर का काम करने से मुझे आंटे-दाल का भाव पता चल चूका था!

अगले दिन फिर सुबह जल्दी उठ कर मैंने बच्चों को तैयार कर school भेजा और वापसी में आते समय अपने साथ घर का काम करने के लिए एक आंटी को ले आया| मैंने उन्हें झाड़ू-पोछा और बर्तन धोने का काम समझा दिया तथा कल से आने के लिए कह दिया| जब वो चली गईं तब पिताजी ने थोड़ा ऐतराज करते हुए मुझसे सवाल पुछा;

पिताजी: आजकल बिना पूछे काम करने लगा है?!

तभी माँ ने पिताजी के कंधे पर हाथ रखते हुए उन्हें शांत कर दिया और मुस्कुरा कर मुझसे बोलीं;

माँ: पैसों की बात कर ली थी या नहीं?

माँ की शय पा कर मैं खुश हो गया और हाँ में अपनी गर्दन हिलाई|

माँ: अच्छा, जाकर नाश्ता बना|

माँ मुस्कुराते हुए बोलीं और मैं तुरंत नाश्ता बनाने में जुट गया| इधर माँ ने पिताजी को सारी बात इत्मीनान से बताई और उन्हें गुस्सा होने नहीं दिया| चलो शुक्र है की माँ ने पिताजी के गुस्से बचा लिया!

अगले दो दिन इसी तरह घर का काम सँभालते हुए निकले, आंटी जी दिन में दो बार आतीं थीं और झाड़ू-पोछा तथा बर्तन धोने का काम कर दिया करतीं थीं जिससे मुझे थोड़ा आराम मिल रहा था| वहीं घर पर रहने का जो सबसे बड़ा फायदा मुझे मिला था वो ये की अब मैं अपने दोनों बच्चों को जी भर कर प्यार कर सकता था| बच्चों को भी मेरे भीतर एक पिता के साथ-साथ एक दोस्त भी मिल गया था, जिस कारण दोनों घर पर मेरे साथ ही मस्ती करते रहते! गली में रहने वाले बच्चों के साथ दोस्ती करने में दोनों बच्चों की इतनी रूचि नहीं थी, आयुष तो फिर भी कभी-कभार खेलने बाहर जाता था मगर नेहा तो हमेशा घर पर अपनी किताबों में घुसी रहती| अब जब मैं घर पर रहने लगा था तो पढ़ाई के बाद नेहा मेरी गोदी में बैठ जाती, कभी खाना बनाते हुए मुझे देखती, कभी कपडे सुखाने में मेरी मदद करती तो कभी अपनी किताब ले कर मेरे पीछे-पीछे चलते हुए मुझसे सवाल पूछती रहती! वहीं आयुष की मस्ती पूरे घर में जारी रहतीं, अपनी पढ़ाई खत्म कर वो अपने खिलोने ले कर कभी रसोई के फर्श पर बैठ कर खेलने लगता तो कभी dining table के ऊपर चढ़ कर खेलने लग जाता| पूरे घर के हर कोने में उसने अपने खिलोने फैला छोड़े थे, एक बार तो अपने सोते हुए दादाजी की छाती पर खिलौनों से खेलने लगा था!

चौथे दिन हमें (मुझे और संगीता को) marriage registrar के पास जाना था, सतीश जी हमें वहीं मिलने वाले थे और गवाही के लिए मेरे माँ-पिताजी तथा दिषु से मैं बात कर चूका था| ख़ास मेरे काम के लिए मैंने बेचारे दिषु को audit से जल्दी बुलाया था!

बच्चों के स्कूल जाने के बाद सभी लोग marriage registrar के पास पहुँचे, सतीश जी ने अपना जुगाड़ पहले ही बैठा कर रखा था इसलिए मेरे और संगीता के सभी कागज, गवाही के लिए आये माँ-पिताजी तथा दिषु के सारे कागज़ जमा हुए, उसके बाद सब की फोटो खींची गई और सतीश जी ने आधे घंटे में ही हम सब को घर जाने के लिए free कर दिया| Marriage Certificate हमें 15 दिसंबर को मिलना था और तब तक हमें बस इंतजार ही करना था|

दोपहर को जब बच्चे school से लौटे तो उन्होंने बताया की अगले दिन छुट्टी है, क्योंकि school में बड़े बच्चों का कोई Olympiad exam था| अगले दिन स्कूल की छुट्टी होने के कारण बच्चों ने घर में उधम मचाना शुरू कर दिया, माँ-पिताजी दोनों बच्चों को यूँ सोफे पर कूदते हुए देख मुस्कुराये जा रहे थे और संगीता थोड़ी हैरान थी की बजाए बच्चों को रोकने के माँ-पिताजी मुस्कुरा क्यों रहे हैं?! "बहु, बच्चों की कह-कहाट से पूरे घर में रौनक लगी हुई है! इस रौनक को देख कर ही हम दोनों (माँ-पिताजी) मुस्कुरा रहे हैं!" माँ संगीता के सर पर हाथ फेरते हुए बोलीं| माँ का जवाब सुन संगीता के चेहरे पर भी मुस्कान छा गई और उसे दादा-दादी की ख़ुशी समझ आने लगी! वो पूरी रात मैंने और बच्चों ने मस्ती की, कभी cartoon film देखते तो कभी खिलोनो से खेलते! बल्कि मैंने और बच्चों ने मिलकर संगीता को भी अपने साथ मिला लिया, फिर हम चारों ने computer पर game खेली| संगीता आज पहली बार game खेल रही थी और सबसे ज्यादा मज़ा उसे ही आ रहा था| दोनों बच्चों ने संगीता को घेर लिया और उसे कौन सा button दबाना है वो चिल्ला-चिल्ला कर बताने लगे! संगीता नौसिखिये की तरह computer game में चलाने वाली अपनी गाडी इधर-उधर ठोक देती और ये देख बच्चे उसे सही से गाडी चलाने के लिए चिल्लाने लगते! वहीं मुझे ये दृश्य देख कर बहुत मज़ा आ रहा था इसलिए मैं हँसे जा रहा था! अपने बच्चों को सिखाने वाली माँ आज खुद अपने बच्चों से game खेलना सीख रही थी!

नया दिन आया और सुबह मैं समय से उठ कर सबके लिए चाय बनाने लगा| मैं, माँ-पिताजी और संगीता बैठक में बैठे चाय पी रहे थे और कुछ इधर-उधर की बातें कर रहे थे जब दरवाजे पर दस्तक हुई| संगीता दरवाजा खोलने के लिए उठी ही थी की मैंने उसे रोकते हुए खुद दरवाजा खोला| जैसे ही मैंने दरवाजा खोला तो अपने सामने मैंने अपने सासु माँ और ससुर जी को देखा!

[color=rgb(184,]जारी रहेगा भाग - 7 में...[/color]
 

[color=rgb(251,]पच्चीसवाँ अध्याय: खुशियों का आगमन[/color]
[color=rgb(97,]भाग - 7[/color]


[color=rgb(71,]अब तक आपने पढ़ा:[/color]

नया दिन आया और सुबह मैं समय से उठ कर सबके लिए चाय बनाने लगा| मैं, माँ-पिताजी और संगीता बैठक में बैठे चाय पी रहे थे और कुछ इधर-उधर की बातें कर रहे थे जब दरवाजे पर दस्तक हुई| संगीता दरवाजा खोलने के लिए उठी ही थी की मैंने उसे रोकते हुए खुद दरवाजा खोला| जैसे ही मैंने दरवाजा खोला तो अपने सामने मैंने अपने सासु माँ और ससुर जी को देखा!

[color=rgb(51,]अब आगे:[/color]

मेरे
ससुर जी का आगमन हम सभी के लिए अनापेक्षित था इसलिए उन्हें देख मैं अवाक रह गया था! जो एक पल के लिए मैंने उनका चेहरा देखा था उसे मैं ठीक से पढ़ नहीं पाया था, खुद को संभालते हुए मुस्कुरा कर मैंने तुरंत अपने ससुर जी के पाँव छूने के लिए झुका तो मेरे ससुर जी ने मेरे दोनों बाजू पकड़ कर मुझे रोक लिया और अपने सीने से लगा कर वो रो पड़े! इस वक़्त मैं बहुत हैरान था, मुझे ससुर जी के रोने का कारन समझ नहीं आ रहा था| वहीं ससुर जी की पकड़ मेरी पीठ पर कसती जा रही थी, मैंने अपनी सासु माँ को देखा तो पाया की उनकी आँखें भी नम हैं! मैंने ससुर जी की पीठ पर हाथ फेरते हुए उन्हें शांत करना चाहा और उनसे पूछने ही वाला था की तभी पीछे से पिताजी की आवाज आई|

दरअसल बैठक में बैठे माँ, पिताजी और संगीता ने अभी तक ससुर जी को नहीं देखा था, जब मैं काफी देर तक दरवाजा खोल कर नहीं लौटा तो सबको उत्सुकता हुई की आखिर कौन आया है? फिर ससुर जी के रोने की आवाज सुन सबसे पहले पिताजी उठ कर आये थे, जैसे ही उन्होंने ससुर जी को देखा तो वो हैरान होते हुए बोले;

पिताजी: समधी जी आप?

जैसे ही पिताजी ने समधी जी कहा संगीता और माँ फ़ौरन उठ कर दरवाजे के नजदीक आ गए| माँ-पिताजी और संगीता ने ससुर जी को मुझे गले लगाए हुए देख लिया था तथा ये दृश्य देख माँ-पिताजी के दिल को बहुत सुकून मिला था| वहीं संगीता अपने माता-पिता को देख कर जड़वत हो गई थी! उसके दिमाग में उस दिन पिताजी (मेरे ससुर जी) का गुस्से वाला रूप घूमने लगा था, पिताजी के गुस्से में कहे वो सभी शब्द एक बार फिर संगीता को चुभने लगे थे और इसी कारण उसकी आँखें गीली हो चुकी थीं! माँ आगे आते हुए पिताजी की बगल में खड़ी हो गईं और संगीता सबसे पीछे रह गई|

इधर जैसे ही मेरे ससुर जी ने मेरे पिताजी को देखा उन्होंने मुझे अपने आलिंगन से आजाद कर पिताजी के सामने हाथ जोड़ कर खड़े हो गए| मैं सीधा अपनी सासु माँ के पाँव छूने लगा तो उन्होंने मुझे आशीर्वाद देते हुए मेरा मस्तक चूमा| मेरे बाद सासु माँ मेरी माँ के गले मिलीं, उधर मेरे ससुर जी पिताजी के सामने हाथ जोड़े खड़े थे| पिताजी ने एकदम से अपने समधी जी के दोनों हाथ पकड़े और उनके गले लग गये| मेरे माँ-पिताजी के मन में मेरे ससुर जी और सासु माँ के लिए कोई गिला-शिकवा नहीं था| वहीं जब मेरी नजर संगीता पर पड़ी तो मैंने उसे अकेले खड़े हुए सिसकते हुए पाया| सब के बीच से होते हुए मैं, संगीता के पास जा पहुँचा;

मैं: जान, आप यहाँ क्यों खड़े हो? माँ-पिताजी से गले मिलो!

मैंने संगीता को प्यार से हुक्म देते हुए कहा तो वो बिना कुछ बोले हमारे कमरे में चली गई| मैं फ़ौरन उसके पीछे कमरे में पहुँचा तो संगीता मेरे गले लग कर रोने लगी!

संगीता: पिताजी...ने आपकी...इतनी बेइज्जती...की और आप....

संगीता रोते हुए बोल रही थी की तभी मैंने उसकी बात काटते हुए कहा;

मैं: Hey! वो हमसे बड़े हैं, हमारे पिताजी हैं फिर उस दिन वो गुस्से में थे और गुस्से में अगर कुछ कह दिया तो क्या हुआ? आपने आज देखा न, उन्होंने मुझे कितने प्यार से गले लगाया| अब इससे ज्यादा और क्या चाहिए आपको?

मैंने प्यार से संगीता को समझाया| संगीता मेरी बात तो समझ गई परन्तु उसके मन में अब भी झिझक थी, वो अपने पिताजी को मेरी बेइज्जती करने के लिए माफ़ नहीं कर पा रही थी!

मैं: अच्छा बाबा, कम से कम माँ से तो मिल लो, उन्होंने ने तो कुछ नहीं कहा था न?

मैंने संगीता के साथ प्यार से तर्क किया तो वो मान गई| मैं, संगीता का हाथ थाम उसे वापस बैठक में लाया, सभी लोग बैठक में बैठ चुके थे और उनके बीच प्यार से बात चल रही थी| मेरी सासु माँ सबसे नजदीक बैठीं थीं तो मैं संगीता को सीधा उनके पास ले आया, सासु माँ ने संगीता का माथा चूमा और उसे अपने सीने से लगा कर भावुक हो गईं| जब माँ-बेटी का मिलन खत्म हुआ तो संगीता अपने पिताजी से नजरें चुराए हुए खड़ी थी, आखिर कर ससुर जी को ही संगीता से पूछना पड़ा;

ससुर जी: मुन्नी, हम से न भेंटाबो? अभउँ हम से नाराज है?

ससुर जी ने खड़े होते हुए अपनी बेटी से सवाल पुछा था, परन्तु संगीता ने उनके सवाल का कोई जवाब नहीं दिया और अपनी जगह खड़ी रही|

मैं: Hey? Come on!

मैंने संगीता के कँधे पर हाथ रखते हुए खुसफुसा कर संगीता को अपने पिताजी के पास जाने को कहा, मगर संगीता टस से मस नहीं हुई! अपनी बेटी का रूखापन देख ससुर जी समझ गए की उनकी बेटी किस लिए गुस्सा है, उन्होंने फ़ौरन मेरे आगे हाथ जोड़ दिए और मुझसे माफ़ी माँगने लगे;

ससुर जी: बेटा हम से बहुत बड़ी भूल हुई गई...

मुझसे यूँ ससुर जी का मेरे सामने हाथ जोड़ना नहीं देखा जा रहा था, परन्तु मैं कुछ कहता या करता उसे पहले ही पिताजी बीच में आ गए और ससुर जी की बात काटते हुए एक बार फिर उनके दोनों हाथ पकड़ते हुए बोले;

पिताजी: ई का करत हो समधी जी! ई (मैं) तोहार बेटा जइसन है और अगर तू ऊ का डाँट दिहो या कछु कह दिहो तो का भवा? मनई का जब गुस्सा आवत है तो ऊ कछु भी कही देत है, ई का मतलब ई थोड़े ही है की ऊ की कही बात का दिल से लगावा जात है?!

पिताजी अपने समधी जी का पक्ष लेते हुए बोले, परन्तु मेरे ससुर जी के भीतर मौजूद ग्लानि उन्हें चैन नहीं लेने दे रही थी;

ससुर जी: नाहीं समधी जी, हम आपन सभी अधिकार गवांये दिहिन है! हम आपन गुस्सा मा आँधर होये गयन रहन! हमका बस आपन इज्जत प्यारी रही, हम आपन बेटी की ख़ुशी नाही देखन! जउन मानु हमार बेटा अनिल खातिर किहिस, ऊ का ख्याल रखिस, ऊ का कालेज का पैसा भरिस, ऊ का रहे खातिर पैसा भेजिस ई सब जान के हम बहुत शर्मसार हन! अगर मानु ना होवत तो हमार बेटा आज आगे नाहीं पड़ी पावत, ऊ की जिंदगी खराब हुई जात! जब ऊ दिन अनिल हमका ई सब बातइस तो हम शरम से पानी-पानी होइ गयन रहन! हम मूर्ख रहन जो ई पारस जइसन मुन्ना का इतना गलत समझेन और न जाने कतना भला बुरा कहन! और आज देखो मुन्ना (मैं) हमका देखि के हमार, हम पापी के पाँव छुए जात रहा.....हम.....

अपनी बात कहते हुए ससुर जी बहुत भावुक हो चुके थे और उनके भीतर मौजूद ग्लानि आँसुओं का रूप ले कर बाहर आ चुकी थी| पिताजी ने तुरंत अपने समधी जी को सहारा देते हुए कहा;

पिताजी: बस समधी जी! और कुछो न कहो, जउन भवा ऊ नाहीं होवेक चाहि रहा लेकिन अब ऊ का फिर याद करि के आपन दिल न दुखाओ! हम सभये ऊ बात भुलाये चुकेन है, तुहुँ भूल जाओ! अब बैठो हमरे लगे और चाय पियो|

फिर पिताजी माँ से बोले;

पिताजी: मानु की माँ, चाय रखो|

जैसे ही पिताजी ने माँ से चाय बनाने को कहा तो ससुर जी एकदम से बोल पड़े;

ससुर जी: अरे नाहीं समधी जी, बेटी के घर का तो पानी भी नाहीं पिया जात है!

पिताजी: समधी जी, ऊ सब पुरान बात रही, आज कल अइसन नाहीं होवत है!

पिताजी ने अपने समधी जी को समझना चाहा परन्तु ससुर जी मान नहीं रहे थे, तो मैं ही बोल पड़ा;

मैं: पिताजी (ससुर जी), ये आपकी बेटी का घर नहीं आपके बेटे का घर है और बेटे के घर में ऐसा कोई कानून नहीं है!

मैंने बड़े हक़ से कहा तो मेरे पिताजी बोल पड़े;

पिताजी: बस समधी जी, अब तोहार बेटा कह दिहिस अब तू मना ना करिहो!

पिताजी की बात पर संगीता को छोड़ सभी हँस पड़े| संगीता अब भी नाराज थी इसलिए वो सर झुकाये हुए खड़ी थी|

उधर मेरे ससुर जी ने मुझे अपने पास बिठा लिया और मुझसे काम-काज के बारे में पूछने लगे, वहीं संगीता सबसे नजर चुराते हुए हमारे कमरे में चली आई| 5 मिनट बाद मैं भी बहाना कर के उठा और हमारे कमरे में आ गया, संगीता पलंग के एक किनारे खड़ी हो कर सोते हुए बच्चों को देखते हुए कुछ सोचने में लगी थी;

मैं: जान, आप मुझसे प्यार करते हो न?

मैंने संगीता का गुस्सा शांत करने के लिए उसका ध्यान भटकाते हुए बड़े प्यार से अपना सवाल पुछा, संगीता ने तुरंत सर हाँ में हिला कर हाँ कहा|

मैं: तो मेरे लिए...please मेरे लिए...पिताजी (मेरे ससुर जी) से मिल लो!

मैंने इतने प्यार से कहा की संगीता का दिल पिघल गया और वो मेरे गले लग गई|

मुझसे गले लगने के बाद संगीता ने मेरा हाथ बड़े गर्व से थामा और बाहर बैठक में अपने पिताजी के सामने खड़ी हो गई| संगीता का माथा गर्व से ऊँचा था और उसके मन में इस वक़्त कोई गिला-शिकवा नहीं था| ससुर जी ने जब संगीता को अपने सामने देखा तो वो पुनः खड़े हो गए, सबकी नजर इस वक़्त मेरे और संगीता पर थी| संगीता ने अपने पिताजी के पाँव छूने के लिए झुकना चाहा तो पिताजी (मेरे ससुर जी) ने उसे रोक कर सीधा गले लगा लिया और रूँधे गले से बोले;

ससुर जी: हमका माफ़ कर दे मुन्नी!

अपने पिताजी को रोता देख संगीता से भी खुद को नहीं संभाला गया और वो रोने लगी| उसके मन में हमारे शादी वाले दिन का दृश्य घूम रहा था, उस दिन संगीता ने अपने पिताजी की कमी बहुत महसूस की थी और आज उनके गले लग कर वो उस कमी के दर्द को पूरा करना चाहती थी| ससुर जी ने संगीता को चुप कराने की बहुत कोशिश की परन्तु संगीता चुप नहीं हुई, आखिर मैंने संगीता की पीठ सहलाई तो वो अपने पिताजी को छोड़ मेरे गले लग कर रोती रही! मैंने संगीता को अपनी बाहों में जकड़ कर उसे सुरक्षित होने का एहसास दिलाया और उसके सर पर हाथ फेर उसे ढाँढस बँधाया तब जा कर संगीता चुप हुई|

जब संगीता भावुक होती थी तो किसी के संभाले नहीं सम्भलती थी, उस समय उसे बस मेरी बाहों की जकड़न और मेरे जिस्म की तपिश ही शांत कर सकती थी| लेकिन पहले ये सब कमरे के भीतर होता था, परन्तु आजकल ये माँ-पिताजी के सामने होने लगा था| जब हम दोनों गले लगे होते थे तो हम दोनों भूल जाते थे की हम दोनों कहाँ मौजूद हैं तथा हमारे आस-पास कौन-कौन है?! आज जब संगीता मेरे गले लगी तो मेरे माँ-पिताजी के साथ-साथ ससुर जी और सासु माँ ने भी ये दृश्य देखा था!

ससुर जी: समधी जी, सच कहित है आज तलक हम अइसन प्यार कभौं न देखन! मानु हमार मुन्नी का सच मा बहुत चाहत है!

ससुर जी की आवाज कानों में पड़ते ही हम दोनों मियाँ-बीवी को होश आया की हम दोनों सबके सामने गले लगे हुए थे, अब हाल ये था की हम दोनों के गाल शर्म के मारे लाल हो चुके थे| संगीता ने सब के लिए चाय बनाई और चाय पीते हुए बातों का दौर चल पड़ा| अब घर का माहौल खुशनुमा था तो मैंने सोचा की क्यों न ससुर जी को खुशखबरी भी दे दूँ;

मैं: पिताजी (मेरे ससुर जी) मैं आप को और माँ (मेरी सासु माँ) को एक खुशखबरी देना चाहता हूँ!

मैंने मुस्कुराते हुए कहा और फिर संगीता की तरफ इशारा करते हुए बोला;

मैं: संगीता माँ बनने वाली है, उसे लगभग एक महीना हो गया है!

ये सुनते ही सासु माँ जो संगीता और (मेरी) माँ के बीच बैठीं थीं उन्होंने संगीता के सर पर हाथ रखे उसे आशीर्वाद दिया| फिर वो मेरी माँ की तरफ मुड़ीं और उनसे गले लग कर बोलीं;

सासु माँ: बधाई हो समधन जी!

इधर मेरे ससुर जी पिताजी से बैठे-बैठे गले मिलते हुए बोले;

ससुर जी: बधाई हो समधी जी और तुम दुनो प्राणी (मैं और संगीता) का भी बहुत-बहुत बधाई! ई से बड़ी खुशखबरी का होइ, रुको हम आभायें आइथ है!

इतना कह ससुर जी बाहर जाने लगे, तभी मैं उन्हें रोकते हुए बोला;

मैं: क्या हुआ पिताजी, आप कहाँ जा रहे हो?

ससुर जी: हम मिठाई ले करआइथ है!

ससुर जी ख़ुशी से झूमते हुए बोले|

माँ: अरे समधी जी ई लिहो, मुँह मीठा करो|

इतना कह माँ अंदर से मिठाई का डिब्बा ले आईं| पिताजी ने फ़ौरन बर्फी का एक टुकड़ा उठा कर अपने समधी जी को खिलाया और इस तरह हम सभी ने हँसते-खेलते हुए मिठाई खानी और खिलानी शुरू कर दी|

ससुर जी: अब तो समधी जी तोह से कछु दिनों में फिर भेट होइ!

ससुर जी बर्फी खाते हुए बोले| ससुर जी की बात सुन संगीता एकदम से बोल पड़ी;

संगीता: क्यों पिताजी?

ससुर जी: मुन्नी, अब तू माँ बनने वाली हो तो तोहका मायके लेजाए खातिर तो आये का पड़ी न?! काहे से की आयुष और नेहा भी तो हमरे घरे पैदा भय रहे न!

ससुर जी के संगीता को घर ले जाने की बात से ही मेरे प्राण सूखने लगे थे इसलिए मैं हड़बड़ा कर एकदम से बीच में बोल पड़ा;

मैं: माफ़ कीजिये पिताजी, मगर संगीता यहीं रहेगी! मैं उसका पूरा ख्याल रखूँगा!

मैंने बड़े आत्मविश्वास से बोला|

ससुर जी: लेकिन मुन्ना तू आपन काम-काज करिहो की संगीता का ख्याल रखिओ? फिर घर का सारा काम समधन जी का करे का पड़ी...

ससुर जी आगे कोई तर्क देते मैं उससे पहले ही बोल पड़ा;

मैं: नहीं पिताजी, ऐसी कोई समस्या नहीं आएगी| मैं तो पहले से ही घर पर रह कर सब सँभाल रहा हूँ, site का सारा काम पिताजी ही देख रहे हैं!

संगीता की जाने की बात ने मुझे व्यकुल कर दिया था इसलिए मैं अपनी तरफ से हर सम्भव कोशिश कर रहा था की मैं संगीता को अपने पास ही रोक सकूँ! मेरी बेचैनी देख पिताजी ने मेरे ससुर जी के सामने पिछले 4-5 दिन का सारा किस्सा कह डाला;

पिताजी: अब का कही समधी जी, ई दोनों बच्चे (मैं और संगीता) एक दूसरे का इतना चाहत हैं की एक दूसरे के बिना नहीं रही पावत हैं! शादी हुए के बाद से मानु घर रहत है और आजकल चूल्हा-चौका ई ही सम्भालीस है! एक ठो नौकरानी रख लिहिस है जो दिन मा दुई बार आवत है और बर्तन, झाड़ू-पोछा करि जात है!

पिताजी ने मेरा मजाक उड़ाते हुए सब बात कही तो सभी हँसने लगे और सबको हँसते हुए देख मेरी भी हँसी छूट गई! पूरे घर में हँसी-ख़ुशी का माहोल था और ससुर जी संतुष्ट हो गए थे की मैं, संगीता का अच्छे से ख्याल रख सकता हूँ|

बैठक में हँसी-ठहाके का शोर सुन बच्चे जाग चुके थे और आँखें मलते-मलते दोनों हमारे कमरे से बाहर आ चुके थे, अपने नाना-नानी जी को देख कर दोनों मेरे पास आ कर खड़े हो गए|

मैं: बेटा, अपने नाना-नानी जी के पाँव छुओ!

मैंने दोनों बच्चों की पीठ पर हाथ रखते हुए कहा| मेरी बात सुन दोनों बच्चों ने अपने नाना-नानी जी के पाँव छुए, ससुर जी और सासु माँ ने दोनों को आशीर्वाद दिया और उन्हें अपनी गोदी में बिठा कर दुलार करने लगे| आयुष ने तो अपने नाना-नानी जी का बहुत दुलार पाया था, परन्तु नेहा को ये दुलार कम ही मिला था, परन्तु आज उसे बेशुमार प्यार मिल रहा था!

ससुर जी: मुन्ना (मैं) तोहार दिल बहुत बड़ा है, तू दोनों बच्चन का अपनाये लिहो जइसन ई दोनों तोहार खून हैं!

ससुर जी को ये बात बच्चों के सामने नहीं कहनी चाहिए थी, उनकी ये बात सबसे ज्यादा मुझे चुभी थी परन्तु इसमें ससुर जी की कोई गलती नहीं थी क्योंकि उन्हें सच नहीं पता था|

मैं: पिताजी (मेरे ससुर जी)...आयुष...मेरा बेटा है...और नेहा...उसे सबसे ज्यादा प्यार मैं ही करता हूँ!

मैंने शब्दों का चयन सोच-समझ कर करते हुए कहा क्योंकि मुझे इस बात का ध्यान रखना था की मेरी बातें ससुर जी और सासु माँ को बुरी न लगें तथा मेरे बच्चों के मन को भी कोई ठेस न पहुँचे| हाँ, मैंने नेहा को ज्यादा प्यार करने की बात कही थी लेकिन मेरे बेटे आयुष को अपनी दीदी से कोई इर्षा नहीं थी, वो अब भी ख़ुशी से मुस्कुराये जा रहा था|

उधर नेहा मेरी बात सुन बहुत खुश हुई और अपने नाना जी की गोद से उतर कर मेरे गले लग गई, नेहा के पीछे-पीछे आयुष भी दौड़ता हुआ आया तथा वो भी मेरे गले लग गया| ससुर जी और सासु माँ मेरी बात सुन कर हैरान थे, परन्तु जब उन्होंने नेहा से मेरा लगाव देखा तो दोनों के चेहरे पर मुस्कान आ गई|

सासु माँ: तो मुन्ना...का जब तू गाँव आय रहेओ तब...

इतना कह सासु माँ ने अपनी बात अधूरी छोड़ दी| दरअसल मेरी बातों ने उनके मन में जिज्ञासा पैदा कर दी थी की क्या मेरा और संगीता का प्यार भरा रिश्ता तब बना जब मैं आखरी बार गाँव आया था और जिसके परिणाम स्वरुप आयुष का जन्म हुआ?

मैं: माँ (मेरी सासु माँ)...प्यार तो हमें (मुझे और संगीता को) पहलीबार जब हम मिले थे तब ही हो गया था, बस तब हम दोनों इतना परिपक्व नहीं थे की इस प्यार को समझ पाएँ|

मेरा तातपर्य उस दिन से था जब मैंने संगीता को पहलीबार अपनी भौजी के रूप में देखा था|

मैं: लेकिन जब मैं ग्यारहवीं में था और संगीता मुझसे मिलने यहाँ आई थी, उस दिन हमने एकदूसरे से अपने प्यार का इजहार किया था| फिर उसके बाद जब मैं गाँव आया तब हम दोनों बहुत ज्यादा नजदीक आ गए और आयुष हमारे प्यार की निशानी के रूप में पैदा हुआ|

तो इस तरह मैंने अपनी सासु माँ को मेरे और संगीता के प्यार की कहानी सुनाई परन्तु बहुत संक्षेप में!

हमारी प्रेम कहानी सुन ससुर जी ने मुझे एक बार फिर आशीर्वाद दिया| कुछ समय बाद अपने चलने की अनुमति माँगी;

मैं: नहीं पिताजी (मेरे ससुर जी)! अभी तो आप आये हो, मेरे हाथ का आपने कुछ खाया भी नहीं और आप वापस जाने की बात कह रहे हो?

मैंने अपने ससुर जी को प्यार से रोकते हुए कहा|

पिताजी: और का समधन जी, ज़रा आपन मुन्ना के हाथे की रसोई तो खाये लिहो!

पिताजी अपनी समधन जी से मजाक करते हुए बोले| दरअसल हमारे गाँव में समधी-समधन का रिश्ता हँसी-मजाक वाला होता है, इसीलिए पिताजी के मजाक पर सभी हँसने लगे!

खैर मेरे ससुर जी अब भी रुकने के लिए नहीं मान रहे थे, वो बस अपनी बस छूटने का बहाना किये जा रहे थे| जबकि असल में उन्हें अपनी बेटी के घर खाना खाने से झिझक हो रही थी! मैंने आयुष और नेहा को इशारा किया तो दोनों ने अपने नाना जी के दोनों हाथ पकड़ लिए और जिद्द करते हुए बोले;

नेहा: नाना जी, रुक जाइये न!

आयुष: नाना जी, हम आपको कहीं नहीं जाने देंगे!

अपने पोता-पोती को जिद्द करते देख पिताजी भी उनकी तरफदारी करने लगे और बोले;

पिताजी: अब कहो समधी जी, आपन नाती-नातन का दिल तोड़ कर जाए पैहो?

पिताजी ने मेरे ससुर जी को बच्चों का बहाना कर के रोक लिया था;

ससुर जी: समधी जी, अब आपन नाती-नातन का दिल तो हम तोड़ नाहीं सकित है, लेकिन हमार बस छूट जाई...

ससुर जी की बात पूरी होती उससे पहले ही मैं बोल पड़ा;

मैं: पिताजी (ससुर जी) आप तनिको चिंता न करो, हम आप का और माँ (सासु माँ) की आज रात की टिरेन (train) की ticket book कराये देइथ है!

मैंने अपने गाँव की भाषा में कहा तो सभी लोग जोर से हँस पड़े! मेरे मुँह से देहाती सुन कर सभी को बहुत मज़ा आया था और सभी ठहाका लगा कर हँस रहे थे|

मैं: आप सब बातें कीजिये मैं नाश्ता बनाता हूँ|

इतना कह मैं उठा तो मेरे ससुर जी और सासु माँ ने मुझे अपने पास रोकना चाहा पर मैंने जिद्द करते हुए apron पहना और रसोई में घुस गया| समय कम था इसलिए मुझे कोई झटपट वाली चीज बनानी थी, तभी पीछे से आयुष आ गया और अपनी भोली सी आवाज में बोला;

आयुष: पापा जी, मुझे भी खाना बनाना सिखाओ न?

आयुष की खाना बनाने में रूचि देख मैं मुस्कुराया और आयुष को बाहर से एक कुर्सी लाने को कहा| आयुष ने अच्छे बच्चे की तरह बात मानी और बाहर से एक कुर्सी घसीट कर ले आया, मैंने उस पर आयुष को खड़ा होने को कहा ताकि वो slab पर मैं क्या कर रहा हूँ वो अच्छे से देख सके| फिर मैंने एक-एक कर आयुष को सब चीजें बतानी शुरू की| मैंने फटाफट सूजी ली, उसमें नमक तथा मसाले मिलाये और पानी डाल कर आयुष को धीरे-धीरे मिलाने को कहा| आयुष ने मेरी बात को अच्छे शागिर्द की तरह माना और अपनी पूरी एकाग्रता सूजी को हिलाने में लगा दी और तभी मैंने उसी समय फटाफट सब्जी धो कर काटनी शुरू कर दीं|

इधर हम बाप-बेटे ने रसोई संभाली और उधर बाकी सभी लोगों का हँसी-ठहाका जारी था| मेरी सासु माँ को मेरी कमी खल रही थी इसलिए उन्होए संगीता को टोकते हुए कहा;

सासु माँ: संगीता, तू हियाँ काहे बैठी है! जा के मानु की मदद कर, ऊ हुआँ रसोई मा अकेला काम करत है!

अपनी माँ के टोकने पर संगीता उठ कर खड़ी हुई थी की माँ ने उसका पक्ष ले लिया;

माँ: ई लड़िकवा (मैं) इस वक़्त केहू की न सुनी!

पिताजी: बैठ जा बहु, आज जरा आपने माँ-पिताजी को मानु के हाथ की रसोई चखने दे!

पिताजी और माँ ने मेरे सर पर अच्छी रसोई बनाने का दबाव डाल दिया था और मैंने भी ठान लिया था की आज तो मैं अपने सास-ससुर को अपने हाथ से बना खाना खिला कर खुश कर के रहूँगा!

नाश्ता बना कर मैंने जब परोसा तो सभी लोग दंग थे! ससुर जी और सासु माँ ने सबसे पहले एक कौर खाया तो दोनों की आँखें ख़ुशी के मारे बड़ी हो गईं!

ससुर जी: अरे मुन्ना ई का बनाया है, ई तो बड़ा स्वाद है!

ससुर जी मेरे खाने की तारीफ करते हुए बोले|

सासु माँ: हमका तो जान ही नाहीं पड़त की ई का हुए? पर जउन भी चीज है, बहुत स्वाद है!

सासु माँ चटकारे लेते हुए बोलीं|

मैं: जी ये तमिल नाडु के मशहूर पकवान 'उत्तप्पम' की नकल है! उत्तप्पम चावल और दाल को पीस के बनता है, मैंने ये सूजी तथा दही को मिला कर बनाया है!

जब मैंने नाश्ते के बारे में बताया तो सभी बहुत हैरान हुए, किसी ने भी इतना जल्दी और इतना स्वाद बनने वाले नाश्ते की उम्मीद नहीं की थी! सब ने मिलकर मेरी बड़ाई की, वहीं संगीता आँखों ही आँखों से मुझे उल्हाना दे रही थी; 'मुझे तो कभी नहीं खिलाया इतना स्वाद खाना?' संगीता की आँखों की बात सुन और समझ मैं मुस्कुराने लगा और दोनों बच्चों को नाश्ता खिलाने लगा|

नाश्ता कर मैं दोपहर के खाने की तैयारी में लग गया, मुझे दोपहर खाने की तैयारी करता देख सासु माँ मेरे पास बैठ गईं और मुझसे मेरे खाना बनाने के बारे में पूछने लगीं;

सासु माँ: और का-का बनावत हो मुन्ना?

मैं: माँ (सासु माँ) मैं शौकिया खाना बनाता हूँ, मुझे ये सादा खाना बनाना अच्छा नहीं लगता, वो तो संगीता माँ बनने वाली है इसलिए मैं आजकल सादा खाना बना देता हूँ वरना मुझे experimental cooking पसंद है!

ये वो जवाब था जो मैं संगीता को नाश्ता करते समय देना चाहता था, परन्तु सब की मौजूदगी में कह नहीं सकता था| खैर मैंने experimental cooking का जिक्र किया तो मेरी सासु माँ को ये शब्द समझ नहीं आया इसलिए मैंने उन्हें समझाते हुए कहा;

मैं: Experimental cooking का मतलब होता है कोई नई चीज बनाना| अब आप ने आज जो नाश्ता किया वो कुछ ऐसा ही था, माँ घर पर कभी कभार बेसन का चीला बनातीं हैं, तो मैंने उसी से मिलती-जुलती चीज बनाने का सोचा और ये चीज बन गई! अब इसी चीज को मैदे bread के साथ बनाऊँ तो कुछ-कुछ bread पकोड़े जैसी चीज बनेगी| मुझे इसी तरह के तिगड़म करने का शौक है, परन्तु माँ-पिताजी को ये खाना ज़रा भी नहीं पसंद!

मेरी सारी बात सुन मेरी सासु माँ मुझसे बड़ी प्रभावित हुईं| फिर तो सास और दामाद ने खाने को ले कर बड़ी सारी बातें की, हम ने बातों ही बातों में खाने के अलग-अलग तरह के combo सोच लिए!

सासु माँ: मुन्ना हम गाँव जाए के अब से कछु नया बनाब और तोहका फ़ोन कर के बताब|

सासु माँ मुस्कुराते हुए बोलीं| इस तरह मैंने अपनी सासु माँ के भीतर भी बचपना जगा दिया था!

दोपहर का खाना बना तो एक बार सभी खाना खाने के लिए साथ बैठ गए| खाने में मैंने मूँग धुली और लाल मसूर (मलका) मिला कर बनाई थी, दाल बहुत गाढ़ी थी ऊपर से ताजे धनिये की महक सूँघ सभी के मुँह में पानी आ गया था| साथ ही मेरी शाही गोभी थी जो मैंने गाँव में बनाई थी| रोटियाँ थोड़ी टेढ़ी-मेढ़ी थीं मगर किसी ने कोई शिकायत नहीं की, साथ ही चावल भी बनाये थे|

ससुर जी: मुन्ना, सच कहित है आज से पाहिले इतना स्वाद खाना हम नाहीं खायं!

ससुर जी मेरे सर पर हाथ रख मुझे आशीर्वाद देते हुए बोले|

मैं: पिताजी (ससुर जी) आप चिंता मत कीजिये, मैंने माँ (सासु माँ) को सब सीखा दिया है! घर जा कर वो रोज आपको मेरी तरह बनाया हुआ खाना खिलाएंगी!

मैंने मुस्कुराते हुए कहा तो सभी हँस पड़े|

मैं: और माँ (सासु माँ) आपको कभी भी कुछ भी पूछना हो तो मुझे phone कर देना, मैं आपको फ़ोन पर ही सारी विधि बता दूँगा|

ये सुन पिताजी (ससुर जी) ठहाका मार कर हँसने लगे|

खाना खा कर हम सभी बैठक में आराम से बैठ गए, बच्चों को नींद आ रही थी सो वो मेरी गोदी में सर रख कर सो गए और हम सभी हँसी-मज़ाक में लग गए| मेरे माँ-पिताजी ने मेरे सासु-ससुर जी को संगीता की खूबियाँ गिनानी शुरू कर दी की कैसे संगीता ने अलग रहने की बात के लिए अपनी नाराजगी व्यक्त की थी और कैसे वो हमारा पूरा घर संभालती है! अपनी बेटी की बड़ाई सुन मेरे सास-ससुर जी को अपनी बेटी संगीता पर बहुत गर्व हो रहा था| जब संगीता की बड़ाई हो चुकी तो मेरे ससुर जी ने मेरे बनाये खाने की तारीफ में पुल्ल बाँधने शुरू कर दिए| मेरी तारीफ सुन पिताजी बहुत खुश थे पर मेरी माँ को हँसी आ रही थी! माँ की हँसी का कारण ये था की वो जानती थीं की मेरे सर पर ये रसोइये का भूत सिर्फ संगीता की pregnancy तक है, संगीता की delivery होने के बाद मैं रसोई में कभी कदम नहीं रखने वाला!

रात के खाने के बाद मैं, ससुर जी, सासु माँ और पिताजी station जाने के लिए तैयार हुए तो दोनों बच्चों ने साथ जाने की जिद्द पकड़ ली|

पिताजी: बेटा कल आप दोनों का school है और हमें आने में देर हो जायेगी!

पिताजी प्यार से बच्चों को समझाने लगे, लेकिन बच्चों को गाडी में घूमने का मन था इसलिए वो मान नहीं रहे थे!

मैं: अच्छा बेटा, अभी हमें जाने दो कल मैं आपको गाडी से स्कूल ले जाऊँगा और गाडी से वापस लाऊँगा|

इतना सुनना था की दोनों बच्चों ने ख़ुशी के मारे कूदना शुरू कर दिया, बच्चों को खुश देख सभी हँस पड़े|

अब ससुर जी और सासु माँ ने, माँ, संगीता तथा बच्चों से विदा ली| संगीता अपने माँ-पिताजी के जाने से थोड़ी भावुक हो गई थी, तो माँ ने आ कर उसे प्यार से संभाला| जब बच्चों की बारी आई तो दोनों बच्चों ने अपने नाना-नानी जी के पाँव छुए, ससुर जी और सासु माँ ने दोनों बच्चों के गाल चूमे और उनकी छोटी-छोटी हथेलियों में 10/- के नोट रख कर हथेलियाँ बंद कर दी| बच्चों को इसकी आदत नहीं थी इसलिए वो अपनी गर्दन न में हिला कर पैसे लेने से मना करने लगे;

मैं: बेटा आपके नाना-नानी जी प्यार से दे रहे हैं, ले लो और उन्हें thank you कहो|

मैं मुस्कुरा कर बोला तो बच्चों ने वैसा ही किया| सासु माँ-ससुर जी ने दोनों बच्चों के गाल एक बार और चूमे तथा हम सब घर से निकल पड़े| गली से बाहर आ कर मैंने हमारी गाडी की तरफ इशारा किया तो नई गाडी देख कर सासु माँ-ससुर जी बहुत खुश हुए! मैंने सासु माँ को आगे बिठाया और उनकी seat belt लगाई, पिताजी तथा ससुर जी पीछे आराम से बैठ गए| मुझे थोड़ी मस्ती सूझ रही थी तो मैंने गाडी में 'जीया हो बिहार के लाला' गाना चला दिया| गाने के बोल सुन कर सभी ने ठहाके लगाने शुरू कर दिए, सभी को मेरे इस बचपने पर बहुत हँसी आ रही थी! हँसते हुए हम सभी station के लिए निकले, रास्ते भर पिताजी सासु माँ-ससुर जी को दिल्ली की चीजें बता रहे थे तथा उन्हें अगली बार 10-12 दिन के लिए आने को कह रहे थे| उधर आगे बैठने से मेरी सासु माँ बहुत खुश थीं, उन्हें मुझ पर इतना गर्व हो रहा था की क्या कहूँ!

आखिर हम station पहुँचे और मैं अपने सास-ससुर जी की seat के जुगाड़ में लग गया| Lucknow Mail दिल्ली से बन कर चलती थी, इसलिए मैंने फटाफट TTE को ढूँढा और उससे अपने शादी-शुदा होने की दुहाई देते हुए बोला;

मैं: Sir जी, मेरे ससुर जी और सासु माँ की ticket बना दीजिये, चाहे तो second AC की बना दीजिये पर please...

TTE साहब भी शादीशुदा थे और जानते थे की सास-ससुर की क्या एहमियत होती है इसलिए वो मेरी आधी बात सुनकर ही बोले की टिकट के पैसे दो! मैंने फटाफट पैसे दिए और ticket बनवा कर सीधा पिताजी के पास आया| जब हम चारों second AC coach में घुसे तो मेरे ससुर जी और सासु माँ हैरान रह गए, उन्होंने आज तक कभी AC coach में सफर नहीं किया था! उनकी seat पर पहुँच मैंने उन्हें ticket दी तो सासु माँ बोलीं;

सासु माँ: मुन्ना ई तो बहुत महँगा लागत है!

मैं कुछ कहता उससे पहले पिताजी बोल पड़े;

पिताजी: तो समधन जी आप कउनो कम महँगे हो?!

पिताजी ने मज़ाक करते हुए कहा तो आस-पास सभी लोग हँस पड़े तथा मेरी सासु माँ शर्माने लगी| मैं फटाफट नीचे उतरा तथा पानी और अपने सासु माँ-ससुर जी के लिए chips-biscuit ले आया|

जब train के छूटने का समय हुआ तो मैंने पहले अपनी सासु माँ के पाँव छुए, सासु माँ ने मुझे आशीर्वाद दिया तथा मेरे दोनों गालों और माथे को चूम कर मुझे बहुत लाड़ किया| फिर मैंने अपने ससुर जी के पाँव छूने चाहे तो उन्होंने मुझे एक बार फिर रोक दिया और बोले;

ससुर जी: नाहीं मुन्ना, हमार पाँव नहीं तू हमार गले लग जा!

मैं: नहीं पिताजी (ससुर जी) पहले आपके पाँव छू कर थोड़ा पुण्य कमा लेने दीजिये|

ये कहते हुए मैंने जबरदस्ती उनके पाँव छुए और फिर उन्होंने मुझे कस कर अपने गले लगा लिया| उन्होंने अपने कुर्ते की जेब से कुछ पैसे निकाले और शगुन स्वरुप मेरी मुठी में रख दिए| मैंने बहुत मना किया परन्तु वे नहीं माने और मेरा मस्तक चूम कर मुस्कुराने लगे| पिताजी अपने समधी जी के गले लगे और अपनी समधन से उन्होंने हाथ जोड़ कर नमस्ते की, तब हम दोनों बाप-बेटे ने विदाई ली|

[color=rgb(184,]जारी रहेगा भाग - 8 में...[/color]
 

[color=rgb(251,]पच्चीसवाँ अध्याय: खुशियों का आगमन[/color]
[color=rgb(97,]भाग - 8[/color]


[color=rgb(71,]अब तक आपने पढ़ा:[/color]

जब train के छूटने का समय हुआ तो मैंने पहले अपनी सासु माँ के पाँव छुए, सासु माँ ने मुझे आशीर्वाद दिया तथा मेरे दोनों गालों और माथे को चूम कर मुझे बहुत लाड़ किया| फिर मैंने अपने ससुर जी के पाँव छूने चाहे तो उन्होंने मुझे एक बार फिर रोक दिया और बोले;

ससुर जी: नाहीं मुन्ना, हमार पाँव नहीं तू हमार गले लग जा!

मैं: नहीं पिताजी (ससुर जी) पहले आपके पाँव छू कर थोड़ा पुण्य कमा लेने दीजिये|

ये कहते हुए मैंने जबरदस्ती उनके पाँव छुए और फिर उन्होंने मुझे कस कर अपने गले लगा लिया| उन्होंने अपने कुर्ते की जेब से कुछ पैसे निकाले और शगुन स्वरुप मेरी मुठी में रख दिए| मैंने बहुत मना किया परन्तु वे नहीं माने और मेरा मस्तक चूम कर मुस्कुराने लगे| पिताजी अपने समधी जी के गले लगे और अपनी समधन से उन्होंने हाथ जोड़ कर नमस्ते की, तब हम दोनों बाप-बेटे ने विदाई ली|

[color=rgb(51,]अब आगे:[/color]

Station
से घर आते-आते मुझे और पिताजी को देर हो गई थी, आयुष अपनी दादी जी के पास सो चूका था और नेहा हमारे कमरे में सोइ थी| जैसे ही कपडे बदल कर मैं लेटा नेहा जाग गई और मेरे से लिपट कर सो गई| नेहा की इस हरकत पर संगीता मुस्कुराई और बोली;

संगीता: इस शैतान को आपके बिना चैन नहीं मिलता!

मैंने नेहा का सर चूमा और बोला;

मैं: मेरी बेटी शैतान नहीं है, वो बस मुझसे ज्यादा प्यार करती है!

ये सुन नेहा नींद में ही मुस्कुराई और अपनी पकड़ मेरे इर्द-गिर्द कसने लगी|

नेहा तो जल्दी हो सो गई परन्तु मैं और संगीता प्यासे एक दूसरे को देखते हुए जाग रहे थे| संगीता ने इशारे से मुझे नेहा को उसके कमरे में सुला कर आने को कहा परन्तु आयुष अपने दादा-दादी के पास सोया था और नेहा को अकेले कमरे में सुलाना ठीक नहीं लगा रहा था! संगीता उठी और मेरे नजदीक आ कर मेरे होठों को चूमने लगी, संगीता के चुंबन ने मेरे अंदर romance के कीड़े जगा दिए थे! मिनट भर बाद जब संगीता वापस जाने लगी तो मैंने उसका हाथ पकड़ लिया, धीरे से खुद को नेहा की पकड़ से छुड़ाया और संगीता को खींचते हुए bathroom में ले आया! फिर तो बाथरूम में प्रेम को वो बवंडर उठा जिसने दोनों को थका कर चूर कर दिया! पौने घंटे बाद, थके हुए दोनों मियाँ-बीवी चेहरे पर संतोष जनक मुस्कान लिए हुए बाहर निकले और रजाई में घुस कर सो गए!

अगली सुबह बच्चों को मैंने गाडी में स्कूल छोड़ा और जब उनका स्कूल छूटा तो मैं उन्हें गाडी से ही घर ले आया| बच्चे बड़े खुश थे, सबसे ज्यादा खुश तो आयुष था क्योंकि आज वो अपनी class में नई गाडी के गुण गाने में लगा था| वहीं नेहा इसलिए खुश थी क्योंकि उसके बिना कहे उसकी class की लड़कियों ने उसे अपने पापा के साथ नई गाडी में बैठते हुए देखा था!

खैर sunday आ चूका था और आज दावत थी, अब क्योंकि सबको संगीता के हाथ का खाना ही खाना था तो आज मैं खाना बनाने में संगीता की कोई मदद नहीं कर सकता था| सबसे पहले तो मैं बाहर से चिकन बनाने का सारा सामान ले आया, माँ ने जब ये समान देखा तो मुझे आगाह करते हुए बोलीं;

माँ: चिकन सबसे आखिर में बनाइयो!

मैंने सर हाँ में हिलाया और चिकन बनाने की तैयारी में लग गया| उधर संगीता ने दावत के लिए जो खाना बनाना था उसके लिए मुझसे परामर्श लेना शुरू कर दिया;

संगीता: सुनिए, मैं दाल-रोटी नहीं बना कर खिलाना चाहती! आप ही बताइये की मैं क्या बनाऊँ?

मैं: ऐसा करो की दाल मखनी, शाही पनीर और कढ़ाई पनीर बना लो|

इन पकवानों के नाम सुन संगीता की आँखें फटी की फटी रह गईं!

संगीता: मैंने तो ये सब कभी बनाया ही नहीं?

संगीता घबराते हुए बोली|

मैं: तो जान, आज बना लो!

संगीता घबराई हुई थी इसलिए मैं उसकी मदद करने के लिए आगे आया|

मैं: नेहा-आयुष!

मैंने बच्चों को आवाज लगाई तो दोनों मेरे सामने किसी सेना के सिपाही की तरह खड़े हो गए|

मैं: बेटा आज आप दोनों को हमारी (मेरी और संगीता की) मदद करनी है|

ये कहते हुए मैंने दोनों बच्चों को dusting वाला कपडा दिया और बोला;

मैं: बेटा आज घर में मेहमान आने वाले हैं और सारे घर में dusting करने की जिम्मेदारी आप दोनों की है! सब चीजें अच्छे से साफ़ होनी चाहिए और अच्छे से arrange होनी चाहिए!

मैंने किसी major की तरह हुक्म देते हुए कहा तो दोनों बच्चों ने मेरा हुक्म मानते हुए सर हाँ में हिलाया और अपने काम में लग गए|

मुझे सफाई करने का एक कीड़ा है, ये कीड़ा मुझे कभी-कभी ही काटता है| जब ये कीड़ा मुझे काटता है तो सफाई के दौरान मैं बहुत ज्यादा संजीदा हो जाता हूँ, मैं हर चीज इस तरह साफ़ करता हूँ की धुल-मिटटी का नामो-निशाँ मिटा देता हूँ! ये कीड़ा मेरे बच्चों में भी था ये मुझे उस दिन पता चला, नेहा-आयुष ने मिल कर टेबल-कुर्सी रगड़- रगड़ कर साफ़ किये! आयुष तो dining table के ऊपर चढ़ गया और फिर घस-घस कर उसे साफ़ करने लगा| कुर्सियों की टाँगें तक बच्चों ने नहीं छोड़ी और गीले कपडे से रगड़-रगड़ कर चमचमा दी| जब desktop की बारी आई तो नेहा अपना paint brush ले कर keyboard को ऐसे साफ़ करने लगी जैसे पुरातत्व वाले खुदाई के समय निकली चीजों को साफ़ करते हैं! उधर आयुष ने पहलीबार अपनी तथा अपनी दीदी की सारी किताबें bookshelf में arrange करनी शुरू कर दी| दोनों बच्चे बड़े जोश से पूरे घर में इधर-उधर दौड़ रहे थे| सबसे आखिर में आयुष ने अपने खिलोने देखे और गीले कपडे से सारे खिलोने चमका कर अच्छे से सजा कर रख दिए| दोनों बच्चे bathroom के नल से कपडा धो कर सफाई कर रहे थे तो bathroom गीला हो गया था, नेहा ने जोश में आ कर घर के तीनों bathroom धो कर चमका दिए|

माँ-पिताजी बाहर गए हुए थे और जब वो वापस लौटे तो घर को चमकता हुआ देख वो बहुत खुश हुए तथा दोनों बच्चों को खूब लाड करने लगे|

पिताजी: बच्चों, आज तुम्हें मैं तुम्हारे पापा के बारे में कुछ बताता हूँ|

ये कहते हुए पिताजी दोनों बच्चों को ले कर बैठक में बैठ गए;

पिताजी: तुम्हारा पापा अपनी मर्जी से कभी सफाई नहीं करता था, लेकिन जब कोई घर आने वाला होता था या कोई त्यौहार होता था तो वो बिलकुल इसी तरह से घर साफ़ कर के चमचमा देता था! तुम दोनों भी बिलकुल अपने पापा पर गए हो!

ये कहते हुए पिताजी ने दोनों बच्चों के सर चूमे|

बच्चों को शाबाशी देते हुए जब उनकी तुलना उनके माँ-बाप से की जाती है तो बच्चों को अपने ऊपर बहुत गर्व महसूस होता है तथा आगे से वो अपनी तरफ से और मेहनत करते हैं| उसी तरह नेहा और आयुष को इस वक़्त खुद पर बहुत गर्व हो रहा था, वहीं रसोई में मौजूद मैं और संगीता पिताजी की बात सुन कर हँस रहे थे|

खैर मैं संगीता को recipe पढ़ कर बता रहा था, तथा सब्जियाँ काटने में उसकी मदद कर रहा था| संगीता इस समय किसी विद्यार्थी की तरह मुझसे हर चीज पूछ कर ही कर रही थी और मैं किसी head chef की तरह उसे order देते हुए बात कर रहा था| अब बारी आई चिकन बनाने की तो मैंने संगीता को मेरे द्वारा marinate करने डाला हुआ चिकन इस्तेमाल करने को कहा, संगीता ने बिना किसी झिझक या घिन्न के चिकन उठाया और कढ़ाई में बनाये मसाले में चिकन के टुकड़े एक-एक कर डालने शुरू कर दिए| चिकन तैयार हो चूका था और घर में उसकी खुशबु भर चुकी थी, मैंने घर में room freshener मारा क्योंकि पिताजी को ये महक अच्छी नहीं लगती थी| फिर मैने दिषु को फ़ोन किया और उसे हुक्म देते हुए बोला;

मैं: चिकन खाना है तो आते समय खमीरी रोटी ले आइओ!

चिकन का नाम सुनते ही दिषु के मुँह में पानी आ गया और वो ख़ुशी से बोला;

दिषु: भाभी ने ही बनाया है न चिकन?

मैं: हाँ भाई, संगीता ने ही बनाया है, मैंने बस तरीका बताया था|

ये सुन कर दिषु को इत्मीनान हुआ और उसने फ़ोन रखा|

माँ: रोटी बाहर से क्यों मँगवा रहा है?

माँ मुझे टोकते हुए बोलीं|

मैं: माँ खमीरी रोटी घर पर नहीं बनती, उसके साथ चिकन खाने का स्वाद ही अलग होता है!

माँ ने आगे कुछ नहीं कहा और संगीता के साथ बातों में लग गई|

कुछ ही देर में मिश्रा अंकल जी और आंटी जी आ गए, उनकी लड़की-दामाद नहीं आ पाए क्योंकि वो घूमने दिल्ली से बाहर गए हुए थे| मैंने, संगीता तथा बच्चों ने उनके पाँव छुए और बैठक में बैठ कर बात करने लगे| उनके आने के दस मिनट बाद ही दिषु, अंकल जी और आंटी जी आ गए| अंकल-आंटी जी के पाँव छू हम सीधा dining table की ओर चल पड़े, दोपहर के खाने का समय हो चूका था तथा सभी को भूख लगी थी| घर के सब बड़े dining table पर बैठ चुके थे, मेरे, संगीता, दिषु और बच्चों के लिए टेबल पर कोई जगह नहीं थी इसलिए हम पाँचों बैठक में ही बैठ गए|

संगीता ने सब को खाना परोसा और हाथ पीछे बाँधे, सर पर पल्ले किये dining table के पास खड़ी हो गई ताकि अगर किसी को कोई जर्रूरत हो तो वो खाना/पानी परोस सके| सब ने पहला कौर खाया और संगीता की तारीफ करने लगे,

मिश्रा अंकल जी: वाह बहु वाह! खाना बहुत स्वाद है!

दिषु के पिताजी: हाँ बहु, सच खाना बहुत स्वाद है, जीती रहो!

दिषु की मम्मी जी: इधर आ बहु|

दिषु की मम्मी जी ने संगीता को अपने पास बुलाया और उसे एक शगुन का लिफाफा देते हुए बोलीं;

दिहु की मम्मी: जुग-जुग जियो बहु!

संगीता वो शगुन लेने से संकोच कर रही थी तो दिषु के पिताजी बोले;

दिषु के पिताजी: बहु मानु हमारे बेटे जैसा है, तो तू बहु जैसी हुई न?

दिषु के पिताजी के तर्क के आगे संगीता कुछ कह न पाई और उसने मुस्कुरा कर शगुन का लिफाफा ले लिया तथा दिषु के पिताजी और दिषु की मम्मी जी के पाँव छू कर आशीर्वाद लिया|

मिश्रा आंटी जी: तनिक हमरे लगेओ आओ बहु!

मिश्रा आंटी जी ने मुस्कुरा कर संगीता को अपने पास बुलाया और अपने पर्स से शगुन का लिफाफा तथा लक्ष्मी जी की एक छोटी सी मूर्ति निकाल कर संगीता को देते हुए बोलीं;

मिश्रा आंटी जी: हमार नीक-नीक बहु! दूधो-नहाओ पूतो फलो!

मिश्रा आंटी जी संगीता का माथा चूमते हुए बोलीं| संगीता एक बार फिर संकुचने लगी तो मिश्रा आंटी जी ने संगीता के गाल खींचे और बोलीं;

मिश्रा आंटी जी: हम मानु की बड़की अम्मा हन!

मिश्रा आंटी जी ने एकदम से खुद को मेरी बड़की अम्मा कहा तो मुझे अपनी बड़की अम्मा की याद आ गई! खैर, संगीता ने मिश्रा अंकल और मिश्रा आंटी जी के पाँव छू कर आशीर्वाद लिया|

दिषु: भाभी हमें (मुझे और दिषु को) भी खाना दे दो, मैंने तो अपनी मन पसंद चीज बनवाई है!

दिषु बच्चों की तरह जिद्द करते हुए बोला| उसे यूँ जिद्द करता देख सभी लोग हँसने लगे और ख़ास कर बच्चे तो ऐसे हँसे जैसे उन्हें कोई अपने बराबर की उम्र वाला मिल गया हो!

संगीता: मैंने कुछ नहीं बनाया, जो भी बनाया वो आपके दोस्त ने बनाया है!

संगीता ने मज़ाक करते हुए कहा तो दिषु हक्का-बक्का हो कर मुझे देखने लगा!

दिषु: तू....

दिषु आगे कुछ कहता उससे पहले ही संगीता हँसते हुए बोली;

संगीता: भैया, चिंता मत करो मैंने ही बनाया है!

ये सुन कर दिषु ने चैन की साँस ली और हँसते हुए बोला;

दिषु: देवर से मसखरी कर रहे हो भाभी?

संगीता: आपके दोस्त से सीखा है!

संगीता ने एकदम से मुझे आगे कर दिया तो दिषु ठहाका लगा कर हँसने लगा!

संगीता ने हम सभी को खाना परोसा, बच्चों को चिकन नहीं परोसा गया था क्योंकि उन्होंने आज तक nonveg नहीं खाया था! मैंने बच्चों को उनके लिए परोसा गया खाना खिलाना शुरू किया उधर दिषु बड़े मज़े से चिकन और खमीरी रोटी खाने में लगा था| बच्चों को खाना खिला कर मैंने चिकन taste किया तो मैं दंग रह गया! चिकन बहुत स्वाद था और मेरे चेहरे पर आई ख़ुशी संगीता ने पढ़ ली थी तथा वो ख़ुशी से फूली नहीं समा रही थी!

मुझे चिकन खाते हुए देख बच्चों को जिज्ञासा हुई और दोनों बच्चे डरते हुए मुझसे बोले;

आयुष: पापा जी, मैं भी ये खा कर देखूँ?

आयुष ने चिकन की तरफ ऊँगली करते हुए पुछा|

नेहा: मैं भी!

नेहा अपना हाथ उठाते हुए बोली| मैंने दोनों बच्चों को सबसे पहले खामिरि रोटी चिकन की gravy में डूबा कर खिलाई| बच्चों को gravy का स्वाद बहुत पसंद आया और दोनों बच्चों ने ख़ुशी से अपनी गर्दन दाएँ-बाएँ हिलनी शुरू कर दी! फिर मैंने बच्चों को चिकन का एक छोटा piece खिलाया तो बच्चों को चिकन बहुत स्वाद लगा! फिर तो बाप-बेटा-बेटी चिकन खाने में लग गए, बच्चे जब अपने दोनों हाथों से चिकन का piece हड्डी से अलग करते तो वो दृश्य देख कर मैं और दिषु बहुत हँसते! जब संगीता ने हमें हँसते हुए देखा तो उसकी नजर बच्चों पर पड़ी, बच्चों को दोनों हाथों से खाते हुए देख वो दोनों को डाँटने लगी;

संगीता: आयुष-नेहा, ठीक से खाओ!

अब दोनों बच्चों को ठीक से खाना आये तब तो वो ठीक से खायें! दोनों बच्चों ने अपने दोनों हाथ चिकन और उसकी gravy में लबेड लिए थे और ये दृश्य देख कर सभी हँसने लगे थे! मैंने दोनों बच्चों के हाथ पोंछे और अपने हाथ से उन्हें चिकन खिलाने लगा|

खाने के बाद बारी आई मीठा खाने की और संगीता ने मीठे में खीर बनाई थी| मीठा तो मेरा और आयुष का सबसे ज्यादा पसंदीदा था इसलिए खीर खाते समय सबसे ज्यादा खुश हम दोनों (मैं और आयुष) ही थे|

खाना खा कर सभी बैठक में बैठ गए और बातें करने लगे, बच्चों ने आज ज्यादा खाना खाया था इसलिए वो सोने चले गए| अब दिषु को सूझ रही थी मस्ती और अपनी इसी मस्ती में उसने मेरी और संगीता की खिंचाई करने का प्लान बना लिया था;

दिषु: अंकल जी, मानु और भाभी honeymoon पर कहाँ जा रहे हैं?

Honeymoon का नाम सुनते ही मेरे और संगीता के चेहरे शर्म से लाल हो गए!

माँ: इसे (मुझे) बच्चों से फुर्सत मिले तब तो कुछ कहे ये!

माँ मेरी गलती निकालते हुए बोलीं| तभी पिताजी उठे और अपने कमरे से train की ticket लेकर लौटे तथा मुझे देते हुए बोले;

पिताजी: ये परसों, तुम दोनों (मेरी और संगीता) के मुन्नार जाने की ticket!

पिताजी की बात सुनते ही हम दोनों मियाँ-बीवी के मुँह खुले के खुले रह गए!

मैं: पिताजी...ये...आप...

मैं आगे कुछ कहता उससे पहले ही पिताजी मुस्कुराते हुए बोले;

पिताजी: ये सब तेरे भाई (दिषु) ने सोचा है!

पिताजी ने दिषु की तरफ इशारा करते हुए कहा| मैंने जब दिषु की तरफ देखा तो वो बड़ी अदा से ( thank_you ) झुक कर मेरे उसकी तारीफ करने से पहले ही मूक भाषा में मुझे thank you बोला!

संगीता: Thank you भैया!

संगीता शर्माते हुए बोली|

दिषु: भाभी आपको thank You कहने की जर्रूरत नहीं है, ये chicken मैंने आपसे आपके thank you के एवज में ही तो बनवाया था!

दिषु हँसते हुए बोला| अब हम दोनों (मुझे और संगीता) को समझ आया था की आखिर क्यों दिषु ने अचानक संगीता से चिकन बनाने की माँग की थी!

दिषु ने मुझे hotel reservation के बारे में सब बताया और साथ ही वहाँ कैसे पहुँचना है उसके बारे में बताने लगा| मुझे बहुत अच्छा लग रहा था की मेरा भाई जैसा दोस्त मेरे honeymoon के लिए इतनी planning कर के बैठा है| यही ख़ुशी संगीता को भी हो रही थी की उसका देवर अपने भाई (मैं) के honeymoon के लिए पहले से ही सब कुछ सोचे बैठा है|

शाम को चाय पीने के बाद सब ने विदा माँगी, अब तक बच्चे जाग चुके थे और मुँह-हाथ धो कर सबके पाँव छू रहे थे|

दिषु: आयुष और नेहा, आपको गाडी में घूमना अच्छा लगता है न?

दिषु ने अचानक से बोला तो दोनों बच्चों ने ख़ुशी से कूदना शुरू कर दिया|

दिषु: तो मेरे साथ चलोगे...अभी?

दिषु ने बच्चों के मन में और उत्साह भरते हुए कहा तो दोनों बच्चे उमीदें लिए मुझे देखने लगे की मैं उन्हें जाने की आज्ञा दूँ| मैंने सर हाँ में हिला कर उन्हें जाने की आज्ञा दी तो दोनों बच्चे मुझे thank you कहने के लिए मेरी टाँगों से लिपट गए|

संगीता: अपने चाचू (दिषु) को तंग मत करना|

संगीता ने दोनों बच्चों को प्यार से आगाह करते हुए कहा|

दिषु: क्या भाभी, अब मुझे तंग नहीं करेंगे तो किसे करेंगे?

दिषु ने दोनों बच्चों को शय दी और हम सभी लोग हँस पड़े|

दिषु: रात को खाना खिला कर मैं बच्चों को छोड़ जाऊँगा|

दिषु मुझे आँख मारते हुए बोला तथा मैंने भी मुस्कुरा कर दिषु को thank you कहा| दिषु ने जब मुझे आँख मारी तो संगीता ने उसकी ये हरकत पकड़ ली और सबके जाते ही मुझसे खुसफुसा कर बोली;

संगीता: ये आप दोनों भाइयों के बीच क्या खुराफात पक रही थी?

मैं: मेरा दोस्त मुझे अच्छे से जानता है| जब माँ ने कहा की मैं बच्चों को ज्यादा समय देता हूँ तो दिषु समझ गया की हमारा romance बाधित हो रहा है, इसलिए वो जानबूझ कर बच्चों को अपने साथ ले गया ताकि हम दोनों को थोड़ा romance करने का मौका मिल जाए!

ये कहते हुए मैंने संगीता को अपनी बाहों में भर लिया| मेरी बात सुनते ही संगीता बड़े प्यार से मेरी गलती निकलते हुए बोली;

संगीता: अच्छा जी, तो जरा ये भी बताइये की माँ-पिताजी के घर में मौजूद होते हुए ये (romance) कैसे संभव है?

बस इतना सुनना था की मैंने झट से दरवाजा बंद किया, दरवाजा बंद होते ही संगीता घबरा गई और बोली;

संगीता: नहीं-नहीं जानू! अच्छा नहीं लगता, माँ-पिताजी घर में हैं...

संगीता आगे कुछ कहती उससे पहले ही मैंने उसे गोद में उठा लिया और फटाफट पलंग पर लिटा दिया| संगीता ने छटपटाना शुरु कर दिया पर मैं नहीं माना, मैंने संगीता को गुदगुदी करनी शुरू कर दी! संगीता हँसे जा रही थी और मेरी पकड़ से छूटने के चक्कर में उसके कपडे-बाल सब खराब हो गए थे!

कुछ second के बाद जब मैंने संगीता को गुदगुदी करनी बंद की तो संगीता ने मुझे अपनी बाहों में जकड़ कर मेरे लबों को अपने लबों में कैद कर लिया! फिर तो जबतक प्यार का तूफ़ान ठंडा नहीं हुआ तब तक हम दोनों ने एक दूसरे को नहीं छोड़ा! पौने घंटे बाद जब हम दोनों मियाँ-बीवी, नए कपड़ों में बाहर निकले तो पता चला माँ-पिताजी घर बाहर से बंद कर के पड़ोस में गए हुए हैं| हम दोनों बस एक-दूसरे को देखे जा रहे थे और शर्म के मारे लाल हुए जा रहे थे क्योंकि हमें नहीं पता था की माँ-पितजी के वापस आने पर हम उनका सामना कैसे करेंगे? संगीता ज्यादा घबरा रही थी जबकि class मेरी लगनी थी!

हम दोनों मियाँ-बीवी रात के खाने की तैयारी करने लगे, कुछ देर बाद माँ-पिताजी लौटे और बैठक में टी.वी. देखने लगे| इधर हम मियाँ-बीवी की हालत खराबा हो गई की माँ-पिताजी से कैसे कुछ कहें?

संगीता: जानू, माँ-पिताजी से कैसे...

संगीता खुसफुसाते हुए बोली|

मैं: जान...खाना बन जाने दो फिर मैं ही सामने जाऊँगा! तुम बस चुप रहना, आज का दिन निकल जाये तो माँ-पिताजी कल तक सब भूल जायेंगे!

मैंने खुसफुसा कर कहा|

कभी-कभी जब सामने बिल्ली हो तो आँखें मूँद कर प्रार्थना करने में ही भलाई है! (lol1) यही सोच कर मैंने उम्मीद की कि माँ-पिताजी शायद कुछ न कहें!

खैर, शुक्र है की माँ-पिताजी ने कुछ नहीं कहा| रात के 8 बजने को आये थे और बच्चे अभी तक नहीं लौटे थे| मैंने दिषु को फ़ोन किया ताकि उससे पूछ सकूँ की बच्चे घर कब आ रहे हैं, फ़ोन आयुष ने उठाया क्योंकि दिषु गाडी चला रहा था और गाडी में बहुत जोर से गाना बज रहा था!

आयुष: पापा....पापा जी...हम ने न चाऊमीन खाई...और...और...

आयुष ख़ुशी के मारे जोर से चीखते हुए बोला क्योंकि गाडी में बहुत शोर था!

मैं: बेटा..बेटा आप सब घर कब आ रहे हो?

मैंने आयुष की बात काटते हुए पुछा, मगर आयुष अपने भोलेपन में बस अपनी की हुई मस्ती के बारे में कहे जा रहा था;

आयुष: पापा.चाचू ने हमें....वहाँ घुमाया...वो...वो...mall में...

आयुष आगे कुछ कहता की तभी नेहा ने उससे फ़ोन छीन लिया;

नेहा: पापा जी, चाचू हमें थोड़ी देर में घर छोड़ रहे हैं!

नेहा भी जोर से चिल्लाते हुए बोली क्योकि गाडी में बहुत तेज गाना बज रहा था! मेरी बेटी सच में बहुत होशियार थी, वो जानती थी कि मैंने फ़ोन किस लिए किया है इसलिए उसने मेरे बिना सवाल पूछे ही जवाब दे दिया|

मैंने फ़ोन रखा और सबको ये बात बताई, माँ-पिताजी को भूख लगी थी इसलिए मैंने खाना परोस दिया| हम सभी खाना खा ही रहे थे की तभी दरवाजे पर दस्तक हुई| मैंने उठ कर दरवाजा खोला और दोनों बच्चे सीधा मेरी टाँगों से लिपट गए और ख़ुशी से शोर मचाने लगे!! बच्चों का ध्यान मुझ पर था तो दिषु ने मुझे आँखों और गर्दन से इशारा करते हुए पुछा की क्या हमने (मैंने और संगीता ने) बच्चों की गैरहाजरी का फायदा उठाया? तो मैंने भी एक शैतानी मुस्कान के साथ गर्दन हाँ में हिलाई! मेरी प्रतिक्रिया देख दिषु एकदम से हँसने लगा और ऐसा हँसा की दोनों बच्चे हैरानी से उसे देखने लगे!

दिषु: अच्छा बच्चों, New Year Party के लिए तैयार हो न?

दिषु की बात सुन दोनों बच्चों ने हाथ उठा कर कूदना शुरू कर दिया| मैं हैरान था की एकदम से ये चाचा-भतीजा-भतीजी का plan कैसे बन गया? पर जब मैंने दिषु को देखा तो पाया की वो मुझे और संगीता को अधिक समय देने के लिए ये plan कर चूका था!

मैं: Wait....wait...wait...we'll talk about this later! अभी आप तीनों चाचा-भतीजा-भतीजी अंदर चलो और खाना खाओ!

मैंने तीनों से कहा तो दिषु बोला;

दिषु: हम तीनों (दिषु, आयुष और नेहा) ने पेट भर कर चाऊमीन और pastry खाई है!

दिषु की बात सुनते ही दोनों बच्चों ने दिषु को thank you कहा;

आयुष: Thank you चाचू!

आयुष सबसे पहले बोला और दिषु के गले लग गया|

नेहा: Thank you चाचू!

नेहा ने दिषु के गले लगते हुए कहा| दिषु ने दोनों बच्चों को लाड किया तथा तीनों किसी football team players की तरह एक साथ cheer करने लगे और मुझे ये दृश्य देख कर हँसी आ रही थी!

दिषु bye बोल कर चला गया और अंदर आते ही दोनों बच्चों ने आज अपने दिषु चाचू के साथ की हुई मस्ती की कहानी सुनानी शुरू कर दी| फिर अचानक ही दोनों बच्चे मेरे सामने मुँह खोल कर खड़े हो गए, मैंने दोनों बच्चों को एक-एक निवाला खिलाया और दोनों बच्चों ने फिर से अपनी मस्ती की कहानी कहनी शुरू कर दी| खाना खा कर सोने का समय हुआ तो दोनों बच्चों ने हमारे कमरे में दौड़ कर जा कर पलंग पर पसर कर कब्ज़ा कर लिया! बच्चों को यूँ पूरे पलंग पर कब्ज़ा करता देख हम दोनों मियाँ-बीवी हँस पड़े| जैसे ही मैं लेटा आयुष मेरी छाती पर चढ़ गया और नेहा मेरी तरफ करवट ले कर मुझसे लिपट कर सो गई!

अगली सुबह 6 बजे ही सतीश जी ने मुझे फ़ोन कर के बताया की आज मुझे मेरा और संगीता का marriage certificate लेने marriage registrar के पास जाना है| ये सुनना था की मैं ख़ुशी से पागल हो गया और नाचने लगा, बच्चों ने मुझे नाचते देखा तो उन्होंने भी मेरे साथ नाचना शुरू कर दिया वो भी बिना ये जाने की मैं नाच क्यों रहा हूँ?!
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इतने में संगीता हम बाप-बेटा-बेटी का शोर सुन कमरे में आई और हम तीनों को नाचता हुआ देख खिलखिलाकर हँसने लगी! संगीता की हँसी सुन माँ-पिताजी भी कमरे में आये और हम तीनों को नाचते देख वो भी हँसने लगे! आखिर कर माँ ने हँसते हुए मुझे टोका और मेरी ख़ुशी का कारन पूछने लगीं;

माँ: अब बता भी दे की तू इतना क्यों खुस है?

मैं बच्चों के सामने इस बात को छुपाना चाहता था इसलिए मैंने बच्चों को school के लिए तैयार होने के लिए भेजा| बच्चों के मुख पर बहुत सारे सवाल थे और वो मुझसे थोड़ा नाराज दिखे की मैं उन्हें अपनी ख़ुशी का कारन क्यों नहीं बता रहा?

मैं: बेटा ये surprise आपको बाद में पता चलेगा!

मैंने बच्चों को बहलाया तो उनकी नाराजगी फुर्रर हो गई और वो दौड़ते हुए school के लिए तैयार होने चले गए|

बच्चों के जाने के बाद मैंने सभी को ये खुशखबरी दी, माँ-पिताजी खुशखबरी से बहुत प्रसन्न थे तथा मुझे marriage registrar के यहाँ से वापस आते हुए मिठाई लाने को भी कह दिया, इधर संगीता शर्माए जा रही थी! माँ ने संगीता को यूँ शर्माते हुए देख लिया था इसलिए उन्होंने बात बनाते हुए कहा;

माँ: बेटा, बहु को साथ ले जाइयो|

माँ की बात सुन हम दोनों मियाँ-बीवी खुश हो गए, मैं तो जोश से भर गया और फटाफट बच्चों को तैयार कर उनके school van stand पर छोड़ आया| घर लौटा तो संगीता ने नाश्ते की आधी तैयारी कर दी थी, मैंने उसे तैयार होने को कहा तथा मैंने फटाफट नाश्ता बनाया| नाश्ता कर के हम घर से निकले, आज पहलीबार संगीता हमारी गाडी में मेरे बराबर की seat पर बैठने वाली थी और मुझे आज थोड़ी मस्ती सूझ रही थी| मैंने chivalry दिखते हुए खुद driver की बगल वाली seat की तरफ का दरवाजा खोला और संगीता को ठीक से बैठाया| संगीता मुस्कुराये जा रही थी, वो जान गई थी की मेरे दिमाग में कुछ खुराफात पक रही है! मैं driving seat पर बैठा और संगीता को देख कर फिर मुस्कुराया, इस बार संगीता मेरी मुस्कान का कारण समझ गई;

संगीता: सब जानती हूँ आप क्यों मुस्करा रहे हो? आज मैं पहलीबार आपकी बगल में बैठी हूँ इसीलिए मुस्कुरा रहे हो न?!

संगीता मुस्कुराते हुए बोली|

मैं: हाँ जी! और नई गाडी में driver के बगल में जब driver की पत्नी बैठती है तो पत्नी को एक एक रस्म अदा करनी होती है!

ये कहते हुए मैं एक खुराफाती हँसी हँसने लगा| संगीता ये तो जान गई थी की मैं कुछ ऐसी माँग करूँगा जिसे संगीता के लिए पूरा करना शर्मपूर्वक होगा, लेकिन फिर भी संगीता के मन में जिज्ञासा थी की मैं क्या माँग करने वाला हूँ?

मैं: वो रस्म ये है की तुम्हें मुझे इसी वक़्त kiss करना होगा!

मैंने एकदम से अपनी बात रखी तो संगीता का मुँह खुला का खुला रह गया! संगीता ने शर्माते हुए सर न में हिलाना शुरू कर दिया, लेकिन मुझे अपनी बात मनवानी थी!

मैं: जब तक मुझे kiss नहीं मिलेगी ये गाडी start नहीं होगी!

ये कहते हुए मैंने अपना हाथ ignition से हटा दिया| संगीता होशियार थी और मेरा marriage registrar के जल्दी पहुँचने का उतावलापन जानती थी! वो जानती थी की मैं अपने उतावलेपन के मारे ज्यादा देर तक यहाँ नहीं रुकने वाला इसलिए उसने मुस्कुराते हुए अपने हाथ बाँध लिए और अपनी पीठ टिका कर बड़े आराम से बैठ गई! मैं जान गया की संगीता मेरा bluff पकड़ चुकी है इसलिए मैंने मुस्कुराते हुए अपनी हार स्वीकार की और गाडी start की| संगीता अपनी जीत पर मुस्कुराई और मेरे कँधे को प्यार से चूमा!

मैं: Wrong place to kiss!

मैंने प्यार से शिकायत करते हुए कहा|

खैर हम दोनों मियाँ-बीवी marriage registrar के पास पहुँचे और कुछ दस्तखत कर के हमें हमारा marriage certificate मिला| घडी में बारह बज रहे थे और मुझे संगीता को कुछ खिलाना था इसलिए मैंने एक chocolate खरीदी;

संगीता: Marriage certificate मिलने की ख़ुशी में बस एक chocolate?

संगीता मुझे प्यार से taunt मारते हुए बोली| मैं चुप रहा और मुस्कुराते हुए गाडी अपने school की तरफ घुमाई| School के बाहर गाडी रोक मैंने बड़े शान से कहा;

मैं: ये है...

मैं आगे कुछ कहता उससे पहले ही संगीता ने मेरी बात पूरी की;

संगीता: आपका school!

संगीता बड़े उत्साह से बोली क्योंकि मेरे school को देख कर मुझसे ज्यादा संगीता खुश थी! गाडी park कर हम दोनों हाथ में हाथ डाल कर school के भीतर प्रवेश किया| मेरा स्कूल भीतर से बहुत बड़ा था, अंदर आने के बाद संगीता ने जब school की पूरी ईमारत देखि तो वो दंग रह गई;

संगीता: जानू...ये...आपका...स्कूल है...हमारे बच्चे...यहाँ...इतने बड़े स्कूल में...पढ़ते हैं!

मैं: हाँ जी जान! Recess खत्म हो चुकी है तो पहले चल के admin में काम निपटा लें फिर मैं आपको अपना school घुमाऊँगा|

Admin में जाने के बारे में सुन कर संगीता थोड़ा हैरान थी, तो मैंने संगीता के सामने अपना surprise खोला;

मैं: Actually, आज मैं अपने बच्चों के school records में अपना नाम उनके पिता के नाम की जगह लिखवाने जा रहा हूँ|

मेरी गर्वपूर्ण बात सुन संगीता के चेहरे पर प्यारी सी मुस्कान आ गई|

खैर. हम दोनों admin office पहुँचे और बच्चों के school records में change कराने लगे| हमें करीब आधा घंटा लगा और उसके बाद बारी आई संगीता को अपना school घुमाने की| सबसे पहले मैंने संगीता को आयुष की class दिखाई, इतने सारे छोटे बच्चों को एक छोटे से गोल table के इर्द-गिर्द बैठा देख संगीता खुसफुसाते हुए बोली; "awwww!" सभी बच्चे बहुत cute लग रहे थे और उन सभी के बीच उसे आयुष को ढूँढने में दिक्कत हो रही थी, मैंने जब ऊँगली के इशारे से संगीता को आयुष को दूसरे बच्चे के साथ मिल कर drawing करते हुए दिखाया तब जा कर संगीता को आयुष दिखाई दिया| आयुष ने जैसे ही हमें देखा वो ख़ुशी के मारे अपनी कुर्सी से खड़ा हो गया और हमारी तरफ आने वाला था की मैंने उसे अपना हाथ दिखाते हुए बैठे रहने को कहा| आयुष की teacher ने हम दोनों को देख लिया था इसलिए वो मुस्कुराते हुए हमसे मिलने बाहर आईं| मैंने अपना और संगीता का तार्रुफ़ उनसे आयुष के माता-पिता के रूप में कराया, साथ ही उन्हें ये भी बताया की मैं भी इसी school से पढ़ा हूँ| 5-7 मिनट बाद हम ने आयुष की teacher जी से विदा ली तथा संगीता को नेहा की class दिखाई| नेहा की class में सभी बच्चे मस्ती करने में व्यस्त थे, परन्तु मेरी बेटी सबसे आगे की desk पर बैठी अपना homework करने में लगी थी| नेहा का ध्यान उसकी किताब में लगा था इसलिए उसे पता ही नहीं चला की उसके मम्मी-पापा उसकी class के बाहर खड़े हुए उसे देख रहे हैं|

संगीता: आपकी बेटी बिलकुल आप पर गई है, सब बच्चे मस्ती कर रहे हैं और ये लड़की अपनी किताबों में घुसी है!

संगीता प्यार से शिकायत करते हुए बोली|

मैं: Hello madam जी, मैं इतना पढ़ाकू नहीं था! मस्ती मैं भी करता था...थोड़ी बहुत!

मैंने संगीता से नजर चुराते हुए कहा| दरअसल मैं अपने स्कूल के दिनों में अंतर्मुखी (introvert) था, दिषु के अलावा मेरी गहरी दोस्ती किसी से नहीं हुई थी| लड़कियों से तो दोस्ती करने में फटती थी, दूसरे लड़कों से मैं बस इतनी दोस्ती रखता था की थोड़ा बहुत हँसी-मज़ाक किया जा सके!

संगीता: अच्छा, अब अपनी बारहवीं की class भी दिखा दीजिए!

संगीता हँसते हुए बोली| संगीता जानती थी की मैं भी अपने स्कूल के दिनों में कुछ-कुछ नेहा जैसा ही था|

खैर, School की छुट्टी होने वाली थी तो मैंने संगीता को रोकते हुए कहा;

मैं: जान, 10 मिनट में छुट्टी होने वाली है| छुट्टी के बाद मैं, आप और बच्चे एक साथ चलेंगे| मैं और संगीता नेहा की क्लास के बाहर खड़े थे, जैसे ही छुट्टी की घंटी सभी बच्चे अपनी class से ऐसे निकले जैसे कैदी jail तोड़कर भागे हों| इतने सारे बच्चों को यूँ दौड़ता देख संगीता के चेहरे पर मुस्कान आ गई, तभी नेहा अकेली अपनी class से निकली और हम दोनों (मैं और संगीता) को देखते ही वो दौड़ते हुई आ कर मेरी टाँगों से लिपट गई| नेहा की class के बच्चे हमारे इर्द-गिर्द से निकल रहे थे परन्तु नेहा ने किसी पर ध्यान नहीं दिया और न ही उसकी अपने मम्मी-पापा को अपने किसी दोस्त से मिलाने में रूचि थी| नेहा उम्मीद कर रही थी की मैं उसे अपनी गोद में उठाऊँगा और लाड-प्यार करूँगा परन्तु नेहा की class के बच्चे कहीं उसे चिढ़ायें न इसलिए मैंने नेहा को गोदी में नहीं उठाया, बल्कि उसके सर पर हाथ फेरते हुए नेहा को आयुष की class की तरफ चलने का इशारा किया| नेहा थोड़ा परेशान थी की आखिर मैं उसे गोदी में उठा कर प्यार करने की बजाए उसकी पीठ पर हाथ रख कर क्यों चल रहा हूँ, लेकिन फिलहाल उसमें कुछ कहने की हिम्मत नहीं थी|

हम तीनों (मैं, नेहा और संगीता) आयुष की class के बाहर पहुँचे, आयुष पहले से ही हमारा इंतजार कर रहा था इसलिए मुझे देखते ही वो दौड़ता हुआ आया और मेरी टाँगों से लिपट गया| नेहा से उलट उसने अपने दोस्तों से मुझे मिलाना शुरू कर दिया, आयुष के छोटे-छोटे दोस्तों को देख मैं और संगीता मुस्कुरा रहे थे तथा सभी को प्यार से देखते हुए सबसे "hi-hello" कर रहे थे| उन सभी बच्चों में एक प्यारी सी लड़की भी थी जिसे हमसे मिलाते समय आयुष थोड़ा शर्मा रहा था! मैंने सबसे आँखें चुराते हुए आयुष को आँख मारी, आयुष मेरा इशारा समझ गया और मुस्कुराने लगा|

खैर मैंने बच्चों के school van driver साहब को फ़ोन कर के बता दिया की बच्चे मेरे साथ जायेंगे, फिर मैंने दोनों बच्चों को अपने हाथ की एक-एक ऊँगली पकड़ाई और बोला;

मैं: तो किसको मेरी class देखनी है?

इतना सुनते ही दोनों बच्चे उत्साह से अपना हाथ उठाते हुए बोले; "मुझे!" अब जा कर मेरी बेटी (नेहा) के चेहरे पर ख़ुशी दिखी थी वरना वो तब से मेरे उसे गोदी नहीं लेने के कारण परेशान थी| खैर, हम चारों मेरी बारहवीं class के बाहर पहुँचे;

मैं: ये है मेरी twelvth class, मेरी इस school में आखरी class!

मेरे लिए ये थोड़ा भावुक दृश्य था परन्तु मैं किसी को भावुक नहीं करना चाहता था इसलिए हम चारों class में घुसे| मैंने सभी को वो जगह दिखाई जहाँ मैं बैठता था, फर्क बस ये था की मैं लकड़ी की बानी desk पर बैठता था परन्तु अब स्कूल वालों ने लोहे के frame वाली desk लगाई थीं|

मेरा बड़ा मन था अपनी जगह पर बैठने का इसलिए मैं इतने सालों बाद अपनी जगह बैठा, मुझे एक विद्यार्थी की तरह बैठा देख संगीता ने तुरंत एक फोटो खींची| बस फिर तो सब ने खाली पड़ी class में photo session शुरू कर दिया| बच्चों को मेरी class देखने का उत्साह बहुत था और मेरे साथ मेरी ही desk पर बैठ कर photo खिंचवाने का उत्साह उससे भी ज्यादा था! संगीता भी बच्ची बन गई थी और मेरे साथ फोटो खिंचवाते समय थोड़ी romantic हो गई थी! जब सबका फोटो खींचना हो गया तो आयुष अपने उत्साह में बहते हुए बोला;

आयुष: पापा जी, मैं भी आपकी ही class में इसी seat पर बैठ कर पढ़ूँगा!

आयुष का जोश काबिले तारीफ था पर बारहवीं तक पहुँचने में अभी उसे बहुत साल लगने वाले थे| अब ये बात मैं आयुष को प्यार से समझाता उससे पहले ही संगीता ने आयुष को छेड़ते हुए कहा;

संगीता: पहले nursery तो पूरी कर, बाद में बहुत पढ़ना होगा इस class तक पहुँचने के लिए|

अपनी मम्मी के द्वारा मज़ाक उड़ाने से आयुष थोड़ा खफा हो गया था, तभी नेहा ने भी आयुष का मजाक उड़ाते हुए कहा;

नेहा: सारा दिन तो खेलता रहता है, twelvth तक कैसे पढ़ेगा? तेरे से पहले तो मैं twelvth class में आऊँगी और पापा की seat पर मैं बैठूँगी!

नेहा ने मेरी seat पर बैठने की बात बड़े गर्व से कही|

संगीता: और क्या, मेरी बेटी कितना मन लगा कर पढ़ती!

संगीता ने आयुष को चिढ़ाने के लिए नेहा का पक्ष लिया| अब आयुष नाराज हो चूका था और अपना निचला होंठ फुला कर मुझे देख रहा था की मैं उसका पक्ष लूँ;

मैं: इधर आओ बेटा|

मैंने आयुष को अपने पास बुलाया, आयुष आ आकर मेरे गले लग गया| आयुष कहीं रोने न लगे इसलिए मैंने उसे प्यार से समझना शुरू किया;

मैं: बेटा आपकी मम्मी और दीदी आपसे मज़ाक कर रहे थे| मेरी seat पर बैठने के लिए सिर्फ पढ़ाई ही नहीं बल्कि आपको अपनी tenth class के बाद अपनी जिंदगी का बहुत बड़ा निर्णय लेना होगा और वो निर्णय होगा की क्या आपको science लेनी है या फिर commerce?!

इतना सुनना था की नेहा एकदम से बोली;

नेहा: पापा जी, आपने कौन सा subject लिया था?

मैं: Commerce...

मैं आगे कुछ बोलता उसके पहले ही आयुष जोश से बोला;

आयुष: मैं भी commerce लूँगा!

हैरानी की बात ये थी की आयुष को ये भी नहीं पता था की commerce क्या subject होता है, उसे तो बस अपने पापा की तरह बनना था|

संगीता: Commerce का मतलब क्या होता है, ये पता भी है तुझे?

संगीता, आयुष की खिंचाई करते हुए बोली|

आयुष: वो मुझे पापा जी समझायेंगे|

आयुष ने अपनी मम्मी को जीभ चिढ़ाते हुए कहा|

मैं: बेटा वो सब समझने के लिए अभी आप छोटे हो, जब आप बड़े हो जाओगे तो मैं आपको सब समझा दूँगा, अभी सब लोग घर चलो वरना अगर principal madam ने देख लिया तो हम चारों को सजा मिलेगी!

मैंने हँसते हुए आयुष को समझाया तथा संगीता, नेहा और आयुष को घर चलने के लिए कहा| आधा घंटा होने को आया था और मैंने अपनी पुरानी class को picnic spot बना दिया था!
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School से निकलते समय नेहा फिर से परेशान हो गई थी, मैं उस वक़्त उसकी परेशानी नहीं समझ पाया था परन्तु फिर भी उसे खुश करने के लिए मैंने नेहा को आगे बैठने के लिए कहा| अब आयुष को भी आगे बैठना था, इसलिए नेहा ने बुझे मन से बिना कुछ कहे आयुष के आगे बैठने के लिए मान गई|

मैं: आयुष बेटा, आपकी दीदी बड़ी है न? चलो पीछे बैठो, आप अगली बारी आगे बैठना|

आयुष मेरी बात कभी नहीं टालता था, इसलिए वो ख़ुशी-ख़ुशी मान गया| हम घर के लिए निकल पड़े, आयुष तो अपनी मम्मी के फ़ोन में game खेलने लगा, संगीता ने मेरे फ़ोन में film देखनी शुरू कर दी, परन्तु नेहा खोई-खोई थी! मुझसे उसका ये उदास चेहरा नहीं देखा जा रहा था इसलिए मैंने उससे बात शुरू की;

मैं: नेहा बेटा, आप चुप क्यों हो?

नेहा ने बिना मेरी तरफ देखे धीमी आवाज में अपना सवाल पुछा;

नेहा: पापा जी, आप मुझसे नाराज हो?

मैं: नहीं तो बेटा!

मैंने भोयें सिकोड़ कर नेहा को देखते हुए कहा|

नेहा: फिर आपने मुझे आज छुट्टी के समय गोदी क्यों नहीं लिया?

ये कहते हुए नेहा ने मेरी ओर आँसूँ भरी आँखों से देखा| मेरी फूल सी बच्ची इतनी छोटी सी बात को अपने दिल से लगाकर परेशान हो रही थी और ये मेरे लिए...एक बाप के लिए देख पाना मुश्किल था| मैंने फ़ौरन गाडी side में लगाई और नेहा को प्यार से समझाते हुए बोला;

मैं: बेटा, उस समय आपके दोस्त आस-पास थे| ऐसे में अगर मैं आपको गोदी लेता और छोटे बच्चों की तरह लाड-प्यार करता तो आपके दोस्त आपका मज़ाक उड़ाते! आपको आपके स्कूल के दोस्तों के सामने शर्मिंदा न होना पड़े इसलिए मैंने आपको गोदी में नहीं लिया| आयुष आपसे कितना छोटा है, मैंने तो उसे भी गोदी नहीं लिया न?!

मेरी बात सुन नेहा एकदम से मेरे गले लग गई और रोते हुए बोली;

नेहा: मुझे...कुछ नहीं...पता...मुझे आपकी...गोदी....चाहिए!

मैं नेहा की बात समझ गया, उसे कोई फर्क नहीं पड़ता था की उसके दोस्त क्या कहेंगे, उसे तो बस अपने पापा की गोदी चाहिए थी|

मैं: I'm sorry मेरा बच्चा! आगे से मैं ऐसा कभी नहीं करूँगा, आस-पास चाहे कोई भी हो मैं आपको गोदी ले लूँगा|

नेहा को मेरी बात से इत्मीनान हो गया था और उसने रोना बंद कर दिया था| उधर आयुष भी अपनी दीदी का रोना देख कर थोड़ा सहम गया था, इसलिए दोनों बच्चों को खुश करने के लिए मैंने उन्हीं खुशखबरी सुनाने का फैसला किया;

मैं: अच्छा बच्चों आप दोनों सुबह पूछ रहे थे न की मैं सुबह क्यों इतना खुश था?

मेरा सवाल सुन, दोनों बच्चों ने एक साथ अपने सर हाँ में हिलाये|

मैं: बेटा आज मुझे और आपकी मम्मी को हमारा marriage certificate मिला है!

Marriage certificate का मतलब दोनों बच्चों को नहीं पता था, नेहा certificate शब्द से थोड़ा अंदाजा लगा रही थी मगर आयुष के चेहरे पर सवाल ही सवाल थे| तब संगीता ने दोनों बच्चों को समझाया;

संगीता: बेटा जैसे आप दोनों का birth certificate होता है, जिससे पता चलता है की आप दोनों कौन सी तरीक को पैदा हुए हो?! वैसे ही marriage certificate होता है जिससे पता चलता है की हमारी (मेरी और संगीता की) शादी कब हुई है?!

बच्चों को बात समझ में आ गई और वो खुश हो गए;

नेहा: फिर तो पापा जी आज हम रस मलाई खाएँगे|

नेहा अपने होठों पर जीभ फेरते हुए ललचाई नजरों से मुझे देखते हुए बोली| बाहर से खाने के नाम से आयुष भी अपनी दीदी के साथ हो लिया;

आयुष: हाँ जी, पापा जी!

मैं: बेटा ये तो आधी खुशखबरी है, बाकी की आधी खुशखबरी तो सुनो?

दोनों बच्चे बड़ी उत्सुकता से मेरी बात सुनने लगे;

मैं: आज मैं और आपकी मम्मी आपके school आये थे ताकि आपके school records में आपके पापा के नाम की जगह मेरा नाम लिखा जाए| तो आज के बाद कोई आप से पूछे की आपके पापा का नाम क्या है तो आपको मेरा नाम लेना है|

मैंने बच्चों से ये बात बड़े गर्व से कही और मेरे बच्चों ने इस बात को उसी गर्व से स्वीकारा भी| दोनों बच्चे आ कर मेरे गले लग गए और मैंने उनके सर चूमते हुए उन्हें लाड किया| तभी पिताजी का फ़ोन आया और उन्होंने पुछा की हम सब कहाँ हैं? मैंने उन्हें बताया की हम चारों एक साथ हैं और खाना ले कर घर आ रहे हैं| बाहर से खाना खाने के नाम से बच्चे double खुश हो गए|

खाना ले कर हम सब घर पहुँचे, सबसे पहले मैंने माँ-पिताजी को school records में कराये हुए बदलाव के बारे में बताया तो वे भी बहुत प्रसन्न हुए| सभी ने ख़ुशी-ख़ुशी खाना खाया, नेहा को नींद आ रही थी इसलिए वो मेरी गोदी में चढ़ कर सो गई| वहीं आयुष अपने खिलोनो से खेलने में लगा था;

संगीता: आयुष, चल सो जा शाम को homework करना है!

संगीता ने आयुष को थोड़ा डाँटते हुए कहा| अपनी मम्मी की डाँट सुन आयुष बेमन से उठा और मुझसे लिपट कर सो गया|

गौर करने वाली बात ये थी की, आज की इस ख़ुशी में मैं बच्चों को अभी तक संगीता के साथ कल honeymoon पर निकलने वाली बात बताना ही भूल चूका था!

[color=rgb(184,]जारी रहेगा भाग - 9 में...[/color]
 

[color=rgb(251,]पच्चीसवाँ अध्याय: खुशियों का आगमन[/color]
[color=rgb(97,]भाग - 9[/color]


[color=rgb(71,]अब तक आपने पढ़ा:[/color]

खाना ले कर हम सब घर पहुँचे, सबसे पहले मैंने माँ-पिताजी को school records में कराये हुए बदलाव के बारे में बताया तो वे भी बहुत प्रसन्न हुए| सभी ने ख़ुशी-ख़ुशी खाना खाया, नेहा को नींद आ रही थी इसलिए वो मेरी गोदी में चढ़ कर सो गई| वहीं आयुष अपने खिलोनो से खेलने में लगा था;

संगीता: आयुष, चल सो जा शाम को homework करना है!

संगीता ने आयुष को थोड़ा डाँटते हुए कहा| अपनी मम्मी की डाँट सुन आयुष बेमन से उठा और मुझसे लिपट कर सो गया|

गौर करने वाली बात ये थी की, आज की इस ख़ुशी में मैं बच्चों को अभी तक संगीता के साथ कल honeymoon पर निकलने वाली बात बताना ही भूल चूका था!

[color=rgb(51,]अब आगे:[/color]

शाम होते ही दोनों बच्चे उठे और उधम मचाने लगे, मैं चाय बनाने में व्यस्त था तथा संगीता packing की list बना रही थी| अभी भी बच्चों को हमारे honeymoon के बारे में नहीं पता था!

पिताजी को आज ही एक corporate client मिला था, ये party बाहर देश की एक company थी और उन्हें अपना conference room renovate करवाना था| पिताजी आज जब इस party से मिलने उनके office गए थे तो वहाँ उन्होंने मौखिक रूप से quotation दे दी थी| अब दिक्कत ये थी की पिताजी ने quotation कम दे दी थी तथा project खत्म करने का time ज्यादा बता दिया था| इसी मुद्दे पर चर्चा करने के लिए पिताजी ने संतोष को बुलाया था| चाय पीते हुए मैं, संतोष और पिताजी इसी project पर बात करने लगे| चूँकि मैंने और संगीता ने कल शाम की train से अपने honeymoon पर निकल जाना था इसलिए मुझे आज ही पूरी quotation final करनी थी| मैंने अपना laptop उठाया और हमारी company के letterhead पर estimate type करने लगा| हमने हर तरह से सोचा, गुना-भाग किया पर फिर भी पिताजी ने company में जो मौखिक रूप से quotation दिया था उससे हमें कम से कम 5 हजार का नुक्सान हो रहा था! पिताजी के अनुसार ये कोई बहुत बड़ा नुक्सान नहीं था और मुझे इस नुक्सान के बारे में ज्यादा चिंतित नहीं होना चाहिए परन्तु मैं इस नुक्सान को होने से बचाना चाहता था| कुछ सोचने के बाद मैंने हमारी quotation में एक clause जोड़ दिया और पिताजी को वो clause पढ़ के सुनाया;

मैं: अगर contract समय से पहले पूर्व खत्म होता है तो company हमें 5,000/- रुपये अधिक देगी!

ये सुन कर पिताजी ने मेरी बात सिरे से खारिज कर दी;

पिताजी: पागल हो गया है क्या, ऐसा कौन करता है? कौन सी company काम जल्दी पूरा करने के एवज में ज्यादा पैसे देती है?

पिताजी दरअसल corporate culture के बारे में नहीं जानते थे|

मैं: पिताजी, मैंने ऐसी company में काम किया है, इसलिए मैं जानता हूँ की इन लोगों को छोटे-मोटे कामों में पैसे बचाने के लिए कोई manager माथा-पच्ची नहीं करता| इन्हें (company वालों को) काम बढ़िया और जल्दी से जल्दी चाहिए होता है, यक़ीन मानिये वो इस quotation के लिए कभी मना नहीं करेंगे|

मैंने पिताजी को मनाना चाहा परन्तु वो नहीं माने|

पिताजी: छोटा-मोटा ठेका नहीं है ये! फिर कल को company और ठेके हम ही को देगी, लेकिन तेरी ये चालाकी हम पर भारी पड़ेगी!

पिताजी नाराज होते हुए बोले|

मैं: अच्छा, कल मैं खुद ये quotation ले कर जाता हूँ| अगर company ने ऐतराज़ जताया तो मैं ये clause हटा दूँगा और आपका quotation ही दूँगा|

मैंने थोड़ी चपलता दिखाते हुए कहा| पिताजी मेरी इस चपलता को समझ नहीं पाए और उन्होंने फिलहाल के लिए हाँ कर दी|

अब अगले दिन मुझे काम पर जाना था तो घर में दोपहर के खाना बनाने का काम संगीता के सर पर पड़ता इसलिए मैंने अक्लमंदी दिखाते हुए दाल और सब्जी ज्यादा बनाई ताकि अगले दिन दोपहर को मुझे बस रोटियाँ ही बनानी पड़ें| बाकी के काम जैसे झाड़ू-पोछा-बर्तन तो कामवाली आंटी जी करने वाली थीं ही| रात का खाना बना और हम सब एकसाथ बैठ कर खाने लगे| इस समय पिताजी के दिमाग में मेरी clause वाली बात घूम रही थी, इसलिए उन्होंने मुझे फिर से समझना शुरू किया ताकि मैं अपनी जिद्द छोड़ दूँ| वहीं काम -काज की बातों में माँ की कोई दिलचस्पी नहीं होती थी इसलिए उन्होंने संगीता को अपने साथ लिया और बैठक में टी.वी. देखते हुए खाना खाने लगीं| Dining table पर बस मैं और पिताजी ही खाना खाते हुए आपस में बातें कर रहे थे| बच्चे भी मेरे पास ही खड़े थे, परन्तु बच्चों का ध्यान मेरे हाथ से खाना खाने और टी.वी. दोनों पर था| माँ को लगा की बच्चों को खाना खिलाने से मेरी और पिताजी की बातों में ख़लल पड़ रहा है इसलिए उन्होंने दोनों बच्चों को अपने पास बुला लिया;

माँ: बच्चों, आज जरा अपनी दादी के हाथ से भी खाना खा लो!

अपनी दादी की बात सुनते ही दोनों बच्चे माँ के पास दौड़ गए और उनके अगल-बगल बैठ कर माँ के हाथों से खाना खाने लगे| इधर मैं और पिताजी, माँ की बात पर थोड़ा मुस्कुराये तथा फिर से अपनी बातों में लग गए|

मेरे पिताजी दूरदर्शी थे, उनके लिए भविष्य के ठेकों की बहुत अहमियत थी, परन्तु मैं भविष्य के ठेकों पर कभी भरोसा नहीं रखता था| मैं जिद्दी कतई नहीं था बस मेरे सर पर थोड़ा सा अतिआत्मविश्वास सवार था, खैर पिताजी ने इसे मेरी जिद्द समझा और उन्होंने आगे कुछ नहीं कहा| खाना खाने के बाद मैं पिताजी के साथ बैठक में बैठ गया और उन्हें अपनी सफाई देने लगा, इस सफाई की जर्रूरत इसलिए थी क्योंकि मैं पिताजी को अपना दृष्टिकोण बताना चाहता था| मैं नहीं चाहता था की वो ये सोचें की मैं कोई जिद्दी लड़का हूँ जिसने पहले शादी के लिए जिद्द की और अब वो काम करने में भी जिद्द करना चाहता है;

मैं: पिताजी, पहले मैं जिस company में काम करता था वो भी बाहर की company थी और वहाँ काम करते समय जो मैंने सीखा है वो मैं आपको बताने जा रहा हूँ| Company कोई एक आदमी नहीं चलाता, company को चलाने वाले बहुत सारे लोग होते हैं| अब आप खुद सोचिये की जो company करोड़ों में खेलती है उसके लिए 30-40 हजार की क्या कीमत होगी? अगर यही ठेका 10-20 लाख का होता तो company meeting करती और फिर हमसे भाव-ताव करती|

दूसरी बात, company को चाहिए होता है की काम बढ़िया हो और कम से कम समय में हो| पैसे बचाने के लिए वो कभी भी अपना समय बर्बाद नहीं करेगी, क्योंकि पैसे की भरपाई वो करोड़ों रुपये छाप कर लेगी लेकिन समय की भरपाई वो कभी नहीं कर सकती| अगर मैं ठेका जल्दी खत्म करने के थोड़े पैसे ज्यादा माँग रहा हूँ तो company कतई मना नहीं करेगी क्योंकि उसे काम अच्छा और जल्दी समय में मिल रहा है| मैं आपसे वादा करता हूँ की कल मैं company में बात करते समय कोई भी कोताही नहीं बरतूँगा, कोई जिद्द नहीं करूँगा, अगर उन्हें मेरे अधिक पैसे माँगना जायज नहीं लगा तो मैं आपका quotation दे दूँगा|

मैंने बड़ी हलीमी से अपनी बात कही| मेरी सारी बात सुन पिताजी प्यार से मुस्कुराये और बोले;

पिताजी: बेटा, मानता हूँ जो तू कह रहा है वो सही है लेकिन भविष्य की भी सोचनी चाहिए| 5,000/- बचाने के लिए तू इतना बड़ा जोखम क्यों ले रहा है? अरे इस बार न सही तो अगले ठेके में पैसे कमा लेंगे!

पिताजी की बात सही थी परन्तु मुझे इस बारे में उन्हें अपना पक्ष समझाना था;

मैं: आपकी बात बिलकुल जायज है पिताजी, परन्तु ये बात company के ठेकों में लागू नहीं होती| Company के ठेकों के लिए हमेशा ही quotation मँगाए जाते हैं और सबसे कम quotation को ही project दिया जाता है| हम चाहे कितना भी सस्ते में काम कर के दें, company को इस नियम का पालन करना ही है, क्योंकि मँगाई गई सभी quotations की एक report बनती है जिसे जब साल में audit होता है तो CA देखता है की quotations मँगाई गई थीं या नहीं?! आप जो कह रहे की आगे से सब काम हमें मिलेंगे उसके लिए 'खिलाना-पिलाना' पड़ता है जो की आपके सिद्धांतों के खिलाफ जाता है! अब आप ही बताइये की हम भविष्य के उस ठेके की चाहत में जो हमें मिले या न मिले, अपने इस ठेके में नुक्सान क्यों सहें?

अब जा कर पिताजी को मेरे मन की बात समझ आई थी| मेरे अंत में पूछे सवाल के जवाब में पिताजी मुस्कुराये और मेरी पीठ थपथपाते हुए बोले;

पिताजी: बेटा, जब तू इस तरह बड़ी-बड़ी बातें करता है तो मुझे तुझ पर बड़ा गर्व होता है! जो बातें सीखने में मुझे बहुत समय लगा उसे तू इतनी कम उम्र में सीख गया है, शाबाश!

पिताजी की बातें सुन ख़ुशी के मारे मेरे रोंगटे खड़े हो गए थे, कुछ देर पहले जो मेरे सर पर अतिआत्मविश्वास चढ़ा हुआ था वो अब फुर्रर हो चूका था और उसकी जगह अब मुझे थोड़ा-थोड़ा डर लगने लगा था|

पिताजी तो बात कर के सोने चले गए, इधर मैं कल अपनी "presentation" के लिए चिंता करने लगा| शादी हुए लगभग 10 दिन होने आये थे और घर पर बैठने से मुझे लग रहा था जैसे मैं काम-धँधा भूल गया हूँ! ये कुछ नहीं बल्कि मेरा बेवजह का डर था, अपने पिताजी के सामने गलत साबित होने का डर! मैंने अपना laptop उठाया और अपने पुराने project reports दुबारा पढ़ने लगा| मैंने बेवजह की तैयारी करते हुए सारी reports print करने की सोची ताकि कल अपनी meeting में मैं ये reports दिखा सकूँ! मैंने दिमागी रूप से तैयारी करनी शुरु कर दी मानो कल मैं quotation नहीं बल्कि interview देने जा रहा हूँ| कल मुझसे कौन क्या सवाल पूछेगा ये भी मैंने अपने दिमाग में सोचना शुरू कर दिया तथा मुझे इनके क्या जवाब देने हैं वो भी सोचना शुरू कर दिया|

उधर बच्चों के सोने का समय हो चूका था और मुझे काम करता हुआ देख किसी ने मुझे तंग करना ठीक नहीं समझा| बच्चे बिना कुछ कहे अपने कमरे में सोने चले गए, संगीता हमारे कमरे में आराम कर रही थी परन्तु उसे मेरे बिना नींद कहाँ आती| जब साढ़े ग्यारह बजे तब वो मुझे बुलाने के लिए बैठक में आई, उसे देख मुझे समय का आभास हुआ और मैंने laptop बंद किया| वापस कमरे में आ कर हम दोनों मियाँ-बीवी लेट गए, संगीता ने मुझे हिम्मत देते हुए कहा;

संगीता: जानू, जब पिताजी ने आपको शाबाशी दी न तो मुझे आप पर बहुत गर्व महसूस हुआ!

संगीता ने बात शुरू करते हुए कहा|

मैं: अच्छा जी? फिर तो मुँह-मीठा करना बनता है!

संगीता जानती थी की मैं कौन सा मुँह मीठा करने की बात कर रहा हूँ| वो मुस्कुराई और मेरे होठों पर ऊँगली रखते हुए बोली;

संगीता: कोई मुँह-मीठा नहीं होगा, जो भी होगा वो मुन्नार पहुँच कर होगा!

संगीता शर्माते हुए बोली|

संगीता के मुँह से मुन्नार जाने की बात सुन मुझे याद आया की मैंने packing तो की ही नहीं!

मैं: यार मैं तो packing करना भूल ही गया!

मैं अपनी जीभ दाँतों तले दबाते हुए बोला| मेरी इस हरकत पर संगीता हँसी और बोली;

संगीता: जानू, मैंने packing शुरू कर दी है वो भी list बना कर!

ये कहते हुए संगीता ने side table पर रखी लिस्ट उठा कर मुझे दी| मैंने list पढ़ी तो मेरे चेहरे पर मुस्कान आ गई, मेरी पत्नी ने list बड़े ध्यान से बनाई थी, दवाइयों से ले कर मेरे undergarments सब उस list में लिखे गए थे!

मैं: अरे वाह! मेरी पत्नी तो बहुत समझदार है!

मैंने संगीता की तारीफ करते हुए कहा और उसे अपने सीने से लगा लिया|

संगीता: ये list मैंने इसलिए बनाई थी की कहीं मैं कुछ pack करना भूल जाऊँ तो आप मुझे दोष न दो!

संगीता मुझे चिढ़ाते हुए बोली| संगीता की इस बात पर हम दोनों मियाँ-बीवी एक साथ हँस पड़े!

सुबह के तीन बजे नेहा सुबकती हुई कमरे में आई, उसने कोई बुरा सपना देखा था इसलिए वो सहमी हुई थी| उसे सुबकते सुन मैं चौंक कर उठा और एकदम से नेहा को अपने सीने से लगा कर उसे लाड करने लगा| आयुष कमरे में अकेला सो रहा था इसलिए मैं नेहा को गोदी में ले कर बच्चों वाले कमरे में आ गया और दोनों बच्चों को अपने से लिपटा कर सो गया|

फिर वही सुबह जल्दी उठना, फटाफट बच्चों को तैयार कर के स्कूल भेजना और सबके लिए नाश्ता बनाना| नाश्ता कर के मैं तैयार हुआ और माँ-पिताजी से आशीर्वाद ले कर गुडगाँव निकलने लगा| जाने से पहले मैंने संगीता को सख्त हिदायत दी की वो मेरे आने तक रसोई में न घुसे, जिसके उत्तर मैं, दोनों सास-पतुआ (माँ और संगीता) ने मेरी खूब खिल्ली उड़ाई!

खैर जब मैं उस company के ऑफिस पहुँचा तो पता चला की जिस company का हमने सबसे पहले ठेका उठाया था ये उसी company की parent company है| अब जा कर मेरा डर थोड़ा कम होने लगा था; 'हम से ये quotation हमारा पुराना काम देखकर मँगाई गई है|' मैं मन ही मन बुदबुदाया| मैंने अपनी quotation submit करने से पहले manager से मिलने की इच्छा जताई तो कुछ देर इंतजार करने के बाद मुझे manager से मिलने का मौका मिला| मैंने manager को अपने तथा हमारी (मेरे और पिताजी की) company के बारे में जानकारी दी| जो बात manager को सबसे अच्छी लगी वो थी मेरा एक MNC में job छोड़ना और अपने पिताजी का business सँभालना| फिर उसने हमारी quotation पढ़ी और मुझसे बस एक सवाल पुछा की काम कौन सी तारिख तक खत्म होगा| मैंने पहले ही हिसाब लगा लिया था तो मैंने 5 जनवरी की तारिख बताई| Manager ने आगे मुझसे कुछ नहीं पुछा और मुझसे हाथ मिलाते हुए बोला; "This contract is yours." ये सुन मैं बहुत खुश हुआ, तभी उसने अपने accounts department में call किया और हमारी quotation final करवा दी| मैंने manager को धन्यवाद कहा और ख़ुशी-ख़ुशी घर लौट आया| जब पिताजी को सब बात पता चली तो वो भी बहुत प्रसन्न हुए और मेरी पीठ थपथपाने लगे|

मैंने घर लौटने से पहले conference room की कुछ तसवीरें खींचीं थीं, मैंने वो तसवीरें पिताजी को दिखाईं और मेरी गैरहाजरी में काम कैसे शुरू होगा उस पर बात करने लगा| मैंने और पिताजी ने मिलकर पहलीबार इतनी सटीक planning की थी, जिसके अनुसार काम 1 जनवरी को ही खत्म होने वाला था| पिताजी ने संतोष को फ़ोन कर के इस बारे में बात करनी शुरू कर दी, साथ ही उन्होंने माल के लिए हमारे suppliers को फ़ोन घुमाना शुरू कर दिया|

उधर मैं उठा और नहा-धो कर रसोई में घुस गया| डेढ़ बजने को आ रहा था और मेरे बच्चे school से भूखे लौटने वाले थे| मुझे रोटियाँ बनाने में समय लग गया इसलिए पिताजी खुद आयुष और नेहा को लेने चले गए| घर लौटते ही दोनों बच्चों रसोई में दौड़ते हुए आये और मेरी टाँगों से लिपट गए| मैंने दोनों बच्चों को लाड किया तथा उन्हें कपडे बदल कर आने को कहा|

सब लोग खाना खाने बैठे, उसी दौरान पिताजी बोले;

पिताजी: अच्छा बेटा, मुझे कुछ payment देने जाना है ताकि कल नया माल उठा सकें तो मुझे आने में थोड़ी देर हो सकती है...

इसके आगे पिताजी कुछ कहते की तभी माँ बोल उठीं;

माँ: मैं भी चलूँ?

माँ ने आज बड़े नटखट अंदाज में अपनी बात कही| उनका ये अंदाज बिलकुल वैसा था जैसा की कोई प्रेमिका अपने प्रेमी से प्यार भरे अंदाज में बात करती है| आज से पहले मैंने माँ को पिताजी के साथ कभी romantic होते हुए नहीं देखा था, अब ये बात साफ़ हो चुकी थी की हमारी (मेरी और संगीता की) गैरहाजरी में माँ-पिताजी romantic होने वाले थे| उस समय मुझे ऐसा लग रहा था की मेरे और संगीता के प्यार ने पूरे घर में romance भर दिया हो!

खैर माँ के इस प्यारभरे, नटखट अंदाज को देख मैं और संगीता हैरान थे वहीं पिताजी के मुख पर एक कुटिल मुस्कान थी| उन्होंने बस सर हाँ में हिला कर हाँ कहा, मैं और संगीता माँ-पिताजी की आँखों में पनप रहे romance को भाँप चुके थे परन्तु हमने जान कर कुछ नहीं कहा वरना दोनों को ही मार पड़ती! माँ-पिताजी दोनों जानते थे की उनकी ये प्यारी सी जुगलबंदी उनके बेटे-बहु ने जर्रूर देखि होगी इसलिए दोनों शर्माते हुए एक दूसरे से नजरें चुराने लगे थे| तब मैंने दुबारा से काम की बात छेड़ दी जिससे माँ-पिताजी की हमारे सामने असहजता खत्म हो जाए|

खाना खा कर माँ-पिताजी तैयार होने लगे, बच्चों ने computer पर game खेलना शुरू कर दी और संगीता तथा मैं टी.वी. देखने लगे| माँ-पिताजी तैयार हो कर निकले और मुझसे बोले;

माँ: 6 बजे तक तुम दोनों (मैं और संगीता) तैयार हो जाना और हमारे खाने की चिंता मत करना!

पिताजी: हाँ, याद रहे train 8 बजे की है!

माँ-पिताजी की बात सुन मुझे याद आया की मुझे अपने बच्चों को मेरे और संगीता के honeymoon पर जाने की बात बताने का समय ही नहीं मिला!

माँ-पिताजी तो चले गए इधर मेरी शकल पर बारह बज गए थे जो संगीता ने देख लिये थे! उसे मेरी हालत देख कर बहुत मज़ा आ रहा था, संगीता बड़ी मुश्किल से अपनी हँसी रोक पा रही थी! वो जानती थी की अब क्या होने वाला है और वो बस ये देखना चाहती थी की मैं इस हालत को कैसे संभालता हूँ|

मैं अपने कमरे में आया तो देखा दोनों बच्चे computer पर game खेलते हुए चिल्ला रहे हैं|

मैं: आयुष...नेहा...बेटा मेरे पास आओ|

मेरी बात सुनते ही दोनों बच्चे game pause कर के मेरे पास आये| बच्चे मेरे सामने खड़े हो गए, पर मुझे ये समझ नहीं आया की मैं उनसे ये बात कहूँ कैसे? अब बच्चों को honeymoon शब्द का मतलब समझाना नामुमकिन था, नेहा तो फिर भी कम सवाल पूछती मगर आयुष के मन में बहुत सारे सवाल होते हैं. इसलिए मैंने बच्चों को ये बात आसान शब्दों में समझाने का फैसला किया|

मैं: बेटा, मैं और आपकी मम्मी है न...मतलब...शादी के बाद हमें...बाहर जाना होता है...

मैं अपने ही बच्चों के सामने डर के मारे हकला रहा था! उधर बाहर जाने की बात सुनते ही आयुष जोश से भर उठा और मेरी आधी बात सुनते ही कूदते हुए बोला;

आयुष: पापा हम (आयुष और नेहा) भी जायेंगे!

मैं आयुष को समझा पाता उससे पहले ही नेहा एकदम से भावुक हो उठी और रूँधे गले से बोली;

नेहा: पापा आप हमें छोड़ के चले जाओगे?

पता नहीं नेहा को ऐसा क्यों लगा की मैं उसे अकेला छोड़ कर कहीं जा रहा हूँ?! बहरहाल नेहा को यूँ भावुक देख मैं परेशान हो गया;

मैं: बेटा किसने कहा की हम (मैं और संगीता) आपको छोड़के जा रहे हैं? Come here!

मैंने दोनों बच्चों को गले लगा लिया और उन्हें लाड करने लगा, दोनों बच्चे मेरे गले लगने से मुस्कुराने लगे थे इसलिए मैंने अपना फोन निकाला और मुन्नार में हमारे होटल में फ़ोन कर बच्चों के लिये एक कमरा book करने लगा| मुझे फ़ोन में नंबर मिलाते देख संगीता अपनी भोयें सिकोड़ कर मुझे देखने लगी;

मैं: बच्चों के लिये होटल में कमरा बुक कर रहा हूँ|

मैंने डर के मारे संगीता को अपनी सफाई देते हुए कहा| बच्चों के लाड में बहते हुए मैं ऊल-जुलूल बातें कह रहा था! एक अलग कमरा book करने के बाद भी दोनों बच्चे अलग सोने वाले तो थे नहीं, वो आ कर मुझसे लिपट जाते और गया हमारा (मेरा और संगीता का) honeymoon कूड़ेदान में! खैर मेरी बात सुन संगीता बच्चों पर नाराज हो गई;

संगीता: तुम दोनों (आयुष और नेहा) बड़े हो गए हो! Just act like grownups!

संगीता ने गुस्सा होते हुए कहा और उसका गुस्सा देख दोनों बच्चे सहम गए!

मैं: Hey...Hey...Hey....मैं बच्चों के लिये एक और कमरा बुक कर रहा हूँ न?!

संगीता: Oh yeah?! और इन दोनों शैतानों का ध्यान कौन रखेगा? ये दोनों शैतान अपने कमरे में रहेंगे भी?

संगीता गुस्से में मुझ पर बरस पड़ी| अब उसका गुस्सा भी जायज था, मैं बस बच्चों के लाड में बहे जा रहा था|

मैं: Okay...बाबू calm down! I'll figure out something!

मैंने संगीता को 'बाबू' कह कर शांत किया तथा दोनों बच्चों को समझाने लगा;

मैं: नेहा-आयुष...बेटा आपका तो school है न, फिर आप हमारे (मेरे और संगीता के) साथ कैसे आ सकते हो?

मैंने बच्चों के साथ तर्क करते हुए कहा, मगर मेरे बच्चे बहुत होशियार थे|

आयुष: तो पापा हम सब हमारी (नेहा और आयुष के) winters holidays में जाएँगे!

आयुष ने बड़े प्यार से तर्क करते हुए अपनी बात कही, जिस प्यार से आयुष ने आज मेरे साथ तर्क किया था उसे सुन मैं हँस पड़ा|

मैं: Clever हाँ?!

मैंने आयुष के सर पर हाथ फेरते हुए उसकी तारीफ की|

संगीता: देख रहे हो दोनों की चतुराई? एक आपको emotional blackmail कर रही है (नेहा) और दूसरा इतना छोटा होने के बाद भी आपके साथ तर्क कर रहा है!

संगीता दोनों बच्चों की शिकायत करते हुए बोली|

मैंने संगीता की बात को नजरअंदाज किया और बच्चों की बात रख ली;

मैं: Okay done!

मैंने आयुष और नेहा की तरफ देखते हुए कहा| मेरे चेहरे पर एक शिशु की भाँती प्यारी सी मुस्कान आ गई! वहीं मुझे बच्चों की बात का मान रखता देख संगीता और भी नाराज हो गई;

संगीता: Really?

संगीता मुझे घूरते हुए बोली| लेकिन अगले ही पल मेरे चेहरे पर एक नटखट बच्चे की मुस्कान देख संगीता को हँसी आ गई;

संगीता: कभी-कभी लगता है, मैं आपको कभी समझ नहीं पाऊँगी! बच्चों की ख़ुशी के लिए आप सब कुछ करते हो, यहाँ तक की आज आपने हमारा honeymoon तक cancel कर दिया!

संगीता की बातों में उसके प्यार के साथ-साथ शिकायत झलक रही थी|

मैं: बाबू (honeymoon) cancel नहीं postpone कर रहा हूँ! अब तुम ही बताओ की मैं अपने बच्चों का दिल तोड़के तुम्हारे साथ कैसे जा सकता हूँ? फिर मेरे बच्चों का भी मन है घूमने का...

मैं आगे कुछ कहता उससे पहले ही संगीता ने मुझे डराते हुए दो नाम लिये;

संगीता: अच्छा? दिषु भैया ने होटल book करवाया है, पिताजी ने train की tickets book करवाई हैं, क्या कहोगे आप दिषु और पिताजी से?

संगीता की बात सुन मैंने एक गहरी साँस छोड़ी और बोला;

मैं: देखते हैं!

दिषु को मैं समझा सकता था लेकिन पिताजी मेरी band बजा देते! मैंने दिषु को फ़ोन कर के सारा हाल सुनाया तो वो मुझ पर बरस पड़ा;

दिषु: अबे साले तू चूतिया हो गया है क्या? बच्चों की वजह से अपना honeymoon cancel कर रहा है? रुक वहीं मैं आ रहा हूँ, अपने भतीजा-भतीजी को मैं समझाता हूँ|

दिषु ने फ़ोन काटा और घर आ धमका|

दिषु: आयुष...नेहा...बच्चों जाने दो अपने मम्मी-पापा को! हम तीनों मिल कर खूब घूमेंगे, खेलेंगे और बाहर खाएंगे!

दिषु ने बच्चों को लालच देते हुए कहा, मगर मेरे बच्चे टस से मस नहीं हुए! दोनों बच्चों ने अपने कान पकड़े और सर झुकाते हुए मायूस हो कर बोले; "sorry चाचू!" बच्चों को यूँ मायूस सर झुकाये देख दिषु पिघलने लगा, उसने एक आखरी बार बच्चों को समझाने की कोशिश करते हुए कहा;

दिषु: बेटा, मैं आपको घुमाऊँगा...

दिषु आगे कुछ कहता उससे पहले ही दोनों बच्चे एक साथ आगे आये, दिषु के पाँव छूते हुए अपने होंठ फुलाते हुए फिर से बोले; "sorry चाचू!" ये देख दिषु पिघल कर पानी-पानी हो गया और उसने दोनों बच्चों को एक साथ अपने गले लगा लिया तथा मुस्कुराते हुए मुझे देखते हुए बोला;

दिषु: अब समझ में आया तूने (मैं) अपना honeymoon cancel क्यों किया!

मैं: O hello भाईसाहब, cancel नहीं postpone!

मैंने दिषु की कही बात को सही करते हुए कहा| उधर बच्चों को लग रहा था की उनके दिषु चाचा उनसे नाराज हैं इसलिए उन्होंने बड़ी मासूमियत से अपने चाचू से पूछा; "चाचू, आप हमसे नाराज हो?"

दिषु: नहीं बच्चों! मेरे पास बस दो ही तो भतीजा-भतीजी हैं, अब आपसे नाराज हो जाऊँगा तो मैं कहाँ जाऊँगा?

दिषु ने बच्चों को फिर से अपने गले लगा लिया और बच्चे फिर से चहकने लगे|

संगीता: पहले पापा (मैं) बच्चों की तरफ थे, अब बच्चों के चाचू (दिषु) भी उनके (बच्चों की) तरफ हो गए!

संगीता बुदबुदाते हुए नाक चिढ़ा कर बोली| संगीता को बुदबुदाते हुए देख मेरी हँसी छूट गई! मुझे हँसता हुआ देख संगीता ने मुझे गुस्से से घूर कर देखा और हमारे कमरे में चली गई!

अब मुझे अपनी पत्नी को मनाना था, इसलिए मैं संगीता के पीछे-पीछे कमरे में घुसा| मुझे देख संगीता गुस्से से बाहर जाने को हुई की तभी मैंने फ़ट से दरवाजा बंद किया| संगीता ने दरवाजा खोलने के लिए हाथ बढ़ाया तो मैंने संगीता को अपनी बाहों में कस लिया और संगीता की कमजोरी का फायदा उठाते हुए उसकी गर्दन पर अपने होंठ रख दिए! एक second नहीं लगा संगीता को पिघलने में, संगीता एकदम से बलखाने लगी और मेरी बाहों में कसमसाने लगी! इधर मैं भी संगीता के जिस्म की महक से बहकने लगा था, संगीता को मनाने के चक्कर में मेरा खुद पर से काबू छूटने लगा था! अगले ही पल हम दोनों के होंठ मिल गए और प्रेम का सैलाब टूट गया! दो प्रेमी बिना किसी की परवाह किये हुए प्यार में डूब गए, परन्तु ये प्यार बस चुंबन तक ही सीमित रहना चाहिए था परन्तु हमारे प्यार का पैमाना छलकने लगा था और अब समय था अपने प्यार को अगली ऊँचाई पर ले जाने का लेकिन हम घर में अकेले तो थे नहीं! हमने जैसे-तैसे खुद को काबू किया और अपना चुंबन तोडा! फूली हुई साँसों से हम दोनों एक दूसरे की आँखों में देख रहे थे और हमारी आँखों में प्यास साफ़ झलक रही थी!

मैं: जान...I...I'm...sorry... मैंने हमारा...honeymoon...postpone कर दिया!

मैंने अपनी फूली हुई साँस को काबू करते हुए कहा|

संगीता: Its okay...जानू! लेकिन...इसका 'हर्जाना' आपको....देने होगा!

संगीता एक कुटिल मुस्कान के साथ दाँतों तले अपनी ऊँगली दबाते हुए बोली| मैं संगीता का मतलब समझ गया और संगीता को आँख मारते हुए बोला;

मैं: कहो तो अभी हर्जाना भर दूँ!

संगीता: बाहर दिषु भैया हैं और उनके साथ वो दोनों शैतान हैं!

संगीता का मन भी इसी वक़्त प्यार करने का था इसलिए उसने मुझे उलहाना देते हुए कहा!

खैर हम दोनों मियाँ-बीवी अपने कमरों से बाहर आये, हम दोनों को देखते ही दिषु के चेहरे पर एक कुटिल मुस्कान आ गई!
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दिषु की ये कुटिल मुस्कान देख संगीता लाज के मारे लाल हो गई, उधर दिषु की ये मुस्कान देख मैं बड़ी जोर से हँस पड़ा! मुझे हँसता हुआ देख बच्चे भी हँसने लगे और संगीता की लाज-शर्म दुगनी हो गई! अपनी पत्नी को शर्म से बचाने के लिए मैंने बात बनाते हुए कहा;

मैं: अच्छा यार, मेरी और संगीता की hotel वाली accommodation cancel करवा दियो! तेरा जो भी खर्चा हुआ वो बता दियो मैं...

मेरी बात पूरी होती उससे पहले ही दिषु बोला;

दिषु: अरे उसकी चिंता मत कर, मैंने booking अपने एक जानकार travel agent से करवाई थी, वो मुझे पूरा refund दिलवा देगा!

इस बार दिषु नाराज नहीं था, बल्कि बच्चों के प्यार के आगे अपना सर झुका चूका था| इधर दिषु अपने घर निकल गया और संगीता मेरे सीने में अपना मुँह छुपा कर शर्माने लगी| मैंने संगीता को अपनी बाहों में जकड़ा और उसे वापस अपने कमरे में ले आया तथा उसका हाथ पकड़ कर उसे गाँव में बिताये हमारे पुराने दिन याद दिलाने लगा|

कुछ देर बाद माँ-पिताजी घर लौटे तथा बैठक में बैठ कर आराम से बात करने लगे| हमारे bags packed थे परन्तु हमारा जाना cancel हो चूका था! मैं और संगीता बैठक में आये तथा माँ-पिताजी के सामने बैठ गए| मैंने दोनों बच्चों को अपने पास बुलाया और अपनी गोद में बिठा लिया|

पिताजी: सारी तैयारी हो गई?

पिताजी ने बात शुरू करते हुए पुछा|

मैं: अ.......

पिताजी का सवाल सुन मैं हड़बड़ा गया, मगर इससे पहले मैं शब्दों का चयन कर के अपनी बात रखता संगीता एकदम से बोल पड़ी;

संगीता: पिताजी, हम नहीं जा रहे!

संगीता की बात सुनते ही माँ के चेहरे पर गुस्सा आ गया और वो मुझे गुस्से से देखते हुए संगीता से पूछने लगीं;

माँ: क्या? पर क्यों?

संगीता ने अपना सर झुका लिया, जिसका मतलब था की सारी गलती मेरी थी!

माँ: मानु, क्या किया तूने?

माँ ने गुस्से में मुझसे पुछा|

मैं: ...नेहा और आयुष हमारे (मेरे और संगीता) साथ आने की जिद्द कर रहे हैं| अब अपने बच्चों का दिल तोड़के कैसे जाऊँ?

मैंने सर झुकाते हुए बच्चों की तरह अपना निचला होंठ फुलाते हुए कहा| मेरे इस तरह बच्चों की तरह मुँह बना कर बात कहने से पिताजी मुस्कुराये और दोनों बच्चों को समझाने के लिए बोले;

पिताजी: इधर आओ बेटा|

पिताजी ने नेहा और आयुष को अपने पास बुलाया|

पिताजी: देखो बेटा, आपके मम्मी-पापा को जाने दो! मैं और आपकी दादी जी आपको घुमाने इनसे अच्छी जगह ले जायेंगे| ये दोनों (मैं और संगीता) तो ठण्ड में अकड़ जायेंगे, लेकिन हम दोनों (माँ-पिताजी) आपको ताजमहल दिखाने ले जायेंगे|

पिताजी ने बच्चों को बहलाते हुए कहा|

आयुष: Sorry दादा जी, मैं पापा के साथ जाऊँगा|

इतना कह आयुष आ कर मेरी कमर से अपने हाथ लपेट कर खड़ा हो गया|

नेहा: हाँ दादा जी, sorry! मैं भी पापा के साथ जाऊँगी|

ये कहते हुए नेहा पिताजी के गले लग गई और भावुक होते हुए सुबकने लगी! नेहा ने अपने दादा जी को न कहा था इसलिए उसे ग्लानि हो रही थी|

पिताजी: बेटा, देखो जिद्द नहीं करते|

पिताजी ने नेहा को पुचकारते हुए थोड़ी सख्ती दिखाते हुए कहा| दरअसल ये मेरे पिताजी का अंदाज था, पहले वो प्यार से समझाते थे अगर उनकी बात न मानो तो फिर वो एकदम से कड़क हो जाते थे! लेकिन अपनी प्यारी सी पोती को वो डाँट नहीं सकते थे इसलिए उन्होंने बस थोड़ी सी ही सख्ती दिखाई थी! पिताजी की थोड़ी सी सख्ती देख आयुष और नेहा दोनों ही घबरा गए थे लेकिन दोनों अब भी अपनी जिद्द पर अड़े हुए थे! अब माँ ने मोर्चा सँभाला,

माँ: आप सब की कोशिश हो गई हो, तो मैं कुछ कहूँ?

माँ मुस्कुराते हुए बोलीं| माँ की मुस्कान देख बच्चों की जान में जान आई और वो मुस्कुराते हुए अपनी दादी जी को देखने लगे|

माँ: बच्चों आप में से किस को गाजर का हलवा खाना है?

हलवे का नाम सुनते ही हम बाप बेटे (मेरी और आयुष) की आँखें चमकने लगी, एक पल को तो मेरे अंदर का बच्चा भी खिखिलाता हुआ बाहर आने लगा और मेरा मन छोटे से बच्चे की तरह हाथ उठा कर सर हाँ में हिलाने को किया! लेकिन फिर एहसास हुआ की मैं छोटा बच्चा नहीं रहा, अब तो बहुत जल्द ही 3 बच्चों का पापा बनने जा रहा हूँ!

आयुष: मुझे!

आयुष उत्साह से भरते हुए अपना हाथ उठा कर कूदने लगा| फिर उसने अपनी दीदी का हाथ पकड़ा और बोला;

आयुष: दीदी चलो!

दोनों बच्चे जा कर माँ की गोदी में चढ़ने लगे, तभी माँ ने अपनी प्यार भरी चाल चली;

माँ: ऐसे नहीं बनाऊँगी मैं हलवा, पहले अपने मम्मी-पापा को जाने दो उसके बाद मैं रोज तुम्हें गाजर का हलवा बना कर खिलाऊँगी!

माँ की बात सुन बच्चे दुविधा में पड़ गए थे, उन्हें अपनी दादी के हाथ का बना गाजर का हलवा भी खाना था और मेरे साथ घूमने भी जाना था! दोनों बच्चे एक दूसरे को देखते हुए कुछ पल सोचने लगे और तभी आयुष अपनी चतुराई दिखाते हुए बोला;

आयुष: दादी जी, हम ऐसा करते है की गाजर का हलवा हम वापस आ कर खाएँगे|

ये कहते हुए आयुष अपनी दीदी का हाथ पकड़ कर मेरे पास दुबारा खींच लाया| कुछ भी कहो, आज मेरा बेटा बड़ी चतुराई दिखा रहा था| वहीं आयुष को लग रहा था की वो और नेहा आज ही हमारे (मेरे और संगीता के) साथ घूमने जाने वाला है इसलिए उसका उत्साह कुछ ज्यादा ही था, अब उस छोटे बच्चे को क्या पता की बिना टिकट train में इतनी बड़ी यात्रा करना नामुमकिन है!

खैर आयुष की चतुराई देख माँ-पिताजी हैरान थे तथा मुस्कुराये जा रहे थे, इधर संगीता बुदबुदाते हुए बोली; "जैसे पापा वैसा बेटा!" मतलब आयुष भी मेरी तरह समस्याओं का समाधान झट से निकालने लगा था! संगीता की बात सुन मैं होले से मुस्कुराये और बच्चों का पक्ष लेते हुए बोला;

मैं: कोई फायदा नहीं माँ, ये दोनों नहीं मानने वाले|

मैंने दोनों बच्चों को अपने सीने से लगाते हुए कहा| तभी मुझे एक जोरदार idea आया;

मैं: ऐसा करते हैं, बच्चों के school की छुट्टियों पर हम सबके बाहर घूमने की टिकट बुक करा देता हूँ! वैसे भी आप दोनों (माँ-पिताजी) को कहीं घूमे हुए बहुत time हुआ, आप साथ रहोगे तो इन शैतानों (आयुष और नेहा) का ध्यान भी रख लोगे!

मैंने बड़ी चतुराई से झटपट सबके बाहर घूमने का plan बना लिया था! वहीं माँ-पिताजी हमारे honeymoon पर मेरे साथ जा कर, कबाब में हड्डी नहीं बनना चाहते थे इसलिए उन्होंने अपने-अपने बहाने बनाना शुरू कर दिए;

पिताजी: बेटा तुझे पता है न काम कितना फैला हुआ है? तो ऐसे में हम सब एक साथ कैसे जा सकते हैं? तू ऐसा कर अपनी माँ को साथ ले जा|

पिताजी ने काम का बहना कर के फ़ट से माँ को आगे किया ताकि माँ मेरे साथ जाएँ, तभी माँ तुनक कर बोलीं;

माँ: वाह! तो यहाँ आपका ख्याल कौन रखेगा?

माँ ने पिताजी का ख्याल रखने का बहना दे कर बचना चाहा, लेकिन तभी संगीता बीच में बोल पड़ी;

संगीता: पिताजी, अगर जायेंगे तो सारे जाएंगे, वरना कोई नहीं जाएगा|

संगीता की बात सुन मैं भी उसी के साथ हो लिया;

मैं: बिलकुल सही!

मैं संगीता के साथ माँ-पिताजी को एक साथ घूमने ले जाने के लिए राजी हुआ था, मगर मुझे क्या पता था की संगीता के मन में क्या चल रहा है और वो एकदम से मुझ ही पर पलटी मार जायेगी?!

संगीता: और आप (मैं) कल से site का काम सँभालो तथा जल्दी से सारा काम निपटाओ! जो थोड़ा बहुत काम रह भी जायेगा वो काम संतोष भैया सँभाल लेंगे|

ये सुनते ही मैं हैरानी से अपनी आँखें बड़ी कर के संगीता को देखने लगा!

मैं: पर...

मैंने अपनी दलील देने के लिए मुँह खोला ही था की संगीता ने मेरी बात काट दी;

संगीता: ओफ्फो! मैं ठीक हूँ, अभी बस महीना हुआ है मेरी प्रेगनेंसी को और आप ऐसे ध्यान रख रहे हो जैसे नौंवा महीना हो!

संगीता ने मुझे प्यार से डाँटते हुए कहा| संगीता की बात पूरी तरह सही नहीं थी, मैं घर पर सिर्फ उसका ख्याल रखने के लिए नहीं बैठा था बल्कि घर रह कर मुझे संगीता से प्यार भी तो करना था! खैर मैं ये सच माँ-पिताजी के सामने नहीं कह सकता था इसलिए मैंने अपनी बात को शायरी का रूप दे दिया;

मैं: तुम जान हमारी हो, तुम्हारे लिए कुछ भी कर जाऊँगा,

मत कर जुदा मुझे खुद से, तेरी कसम मैं मर जाऊँगा!

मेरी ये दिल फेंक शायरी सुन संगीता शर्म से लाल हो गई और जा कर माँ के गले लिपट कर खुद को छुपाने लगी| माँ ने जब अपनी बहु को शर्माते हुए देखा तो उन्होंने मुझे प्यार भरे गुस्से से देखा

माँ: तू ना...

इसके आगे माँ को समझ नहीं आया की वो क्या कहें इसलिए उनकी हँसी छूट गई, पर अपनी बहु का दिल रखने के लिए उन्होंने पिताजी को कोहनी मारते हुए मेरी शिकायत की;

माँ: देख रहे हो जी अपने लड़के को?

माँ की बात सुन पिताजी हँस पड़े और मेरी बगल में आ कर बैठ गए तथा मेरा ही पक्ष लेते हुए बोले;

पिताजी: हाँ भई देख रहा हूँ, बहुत प्यार करता है मेरा लड़का बहु से!

पिताजी की शय पा कर मैं हवा में उड़ने लगा और दूसरी शायरी के लिए शब्द सोचने लगा, लेकिन तभी पिताजी ने अचानक से मेरा दायाँ कान उमेठा और प्यार से डाँटते हुए बोले;

पिताजी: आज से तेरा खाना बनाना बंद और कल से site का काम सँभाल! तेरे यहाँ रहने से सारा काम मेरे सर आ पड़ा है, लेबर जान खा जाती है और मैं दिनभर एक site से दूसरी site की बीच दौड़ते-दौड़ते थक जाता हूँ| दिन का काम तू सँभाल लियो और रात का overtime संतोष देख लेगा! यहाँ घर पर ये दोनों शैतान हैं अपनी मम्मी(संगीता) का ध्यान रखने को, फिर तेरी माँ भी है इसलिए घर की चिंता मत कर!

पिताजी की सारी बात सुन मैंने फ़ौरन हाँ में सर हिलाया, तब जा कर पिताजी ने मेरा कान छोड़ा| हँसी की बात ये थी की जब मेरा कान उमेठा जा रहा था तो मेरे बीवी-बच्चे इस दृश्य का भरपूर मज़ा ले रहे थे और पेट पकड़ कर हँसे जा रहे थे! जब पिताजी ने मेरा कान छोड़ा तो मैंने बच्चों को उल्हाना देते हुए कहा;

मैं: आपके दादा जी मेरा कान खींच रहे थे और आप दोनों को मज़ा आ रहा था? तब कोई मेरी मदद करने नहीं आया न?!

ये कहते हुए मैंने जानबूझ कर अपना निचला होंठ फुला लिया| बच्चे अपने पापा के बचपने को जानते थे, वो ये भी जानते थे की मुझे कैसे 'बहलाना' है इसलिए दोनों ने फ़ौरन अपने-अपने कान पकड़े और उठक-बैठक शुरू कर दी! बच्चों को यूँ उठक-बैठक करते देख मेरा दिल पिघल गया और मैंने दोनों बच्चों को अपने गले लगा लिया;

मैं: Awww...मैं अपने बच्चों से गुस्सा कैसे हो सकता हूँ?!

मुझे बच्चों को लाड करते देख संगीता ने मुझे प्यार भरे गुस्से से देखा और फिर एकदम से पिताजी से बोली;

संगीता: तो पिताजी हमारा family holiday पक्का है न?

पिताजी: हाँ बहु पक्का!

पिताजी मुस्कुराते हुए बोले| पिताजी की हाँ सुन आयुष और नेहा खुश हो गए और अपना प्यार भरा dance शुरू कर दिया!

तो इस तरह से हमारा (संगीता और मेरा) honeymoon, honeymoon cum family vacation में बदल गया और आखिरकार हमारे पूरे परिवार का मुन्नार घूमने का program 24 दिसंबर से 2 जनवरी तक का final हो चूका था!

[color=rgb(184,]जारी रहेगा भाग - 10 में...[/color]
 

[color=rgb(251,]पच्चीसवाँ अध्याय: खुशियों का आगमन[/color]
[color=rgb(97,]भाग - 10[/color]


[color=rgb(71,]अब तक आपने पढ़ा:[/color]

संगीता: तो पिताजी हमारा family holiday पक्का है न?

पिताजी: हाँ बहु पक्का!

पिताजी मुस्कुराते हुए बोले| पिताजी की हाँ सुन आयुष और नेहा खुश हो गए और अपना प्यार भरा dance शुरू कर दिया!

तो इस तरह से हमारा (संगीता और मेरा) honeymoon, honeymoon cum family vacation में बदल गया और आखिरकार हमारे पूरे परिवार का मुन्नार घूमने का program 24 दिसंबर से 2 जनवरी तक का final हो चूका था!

[color=rgb(85,]अब आगे:[/color]

आज रात का खाना संगीता ने बनाया और उसके चेहरे पर आज कुछ ज्यादा ही ख़ुशी थी! वहीं नेहा मेरे कल काम पर जाने से उदास थीं क्योंकि अब नेहा के स्कूल से आने पर उसे मैं घर पर नहीं मिलता! मेरे साथ उसका समय बिताना अब कम होने वाला था इसलिए नेहा बहुत ज्यादा उदास थी| मैंने आयुष को पढ़ने के लिए बोला और नेहा को गोदी में उठा कर बच्चों वाले कमरे में आ गया|

मैं: मेरा बच्चा उदास क्यों है?

मैंने नेहा के सर को चूमते हुए पुछा|

नेहा: पापा...कल से आप...घर पर...नहीं होंगे...तो मैं...किसके साथ खेलूंगी!

नेहा का गला भर आया और वो मुझसे कस कर लिपट गई| नेहा को यूँ भावुक देख मैंने उसे अपनी बाहों में कस लिया और बार-बार उसके सर को चूमते हुए बोला;

मैं: रोते नहीं मेरा बच्चा! बेटा काम करना भी जर्रूरी होता है न? मैं काम नहीं करूँगा तो फिर हम सब घूमने कैसे जाएँगे? फिर मैं शाम को तो वापस आ जाऊँगा और फिर आप और मैं खूब खेलेंगे!

मैंने नेहा को बहलाते हुए कहा, मगर नेहा के मन में डर बैठ चूका था इसलिए वो सर न में हिला रही थी!

मैं: मेरा बच्चा...I love you!

मैंने नेहा को गोदी में उठाये हुए किसी छोटे से बच्चे की तरह लाड करना शुरू कर दिया| मेरे I love you कहने से नेहा थोड़ा मुस्कुराई थी और वो कहीं फिर से उदास न हो जाए इसलिए मैंने नेहा के सर को चूमना शुरू कर दिया| मेरे लाड-प्यार से नेहा के चेहरे पर मुस्कान आ चुकी थी और वो फिर से चहकने लगी थी| थोड़ी मस्ती के बाद मैंने नेहा को पढ़ने में लगा दिया तथा आयुष को गोदी में ले कर समझाने लगा;

मैं: आयुष बेटा, आपको न मेरा एक बहुत जर्रूरी काम करना है|

इतना सुनते ही आयुष जिज्ञासु हो गया और मुझे उत्सुकता से देखने लगा;

मैं: बेटा कल से मैं काम पर जाऊँगा तो आपका काम है की अपनी दीदी का ख्याल रखना, नेहा के साथ खेलने और किसी भी हाल में अपनी दीदी को को उदास मत होने देना!

आयुष ने बड़े गौर से मेरी बात सुनी और सर हाँ में हिला कर अपनी जिम्मेदारी स्वीकार की| मैंने आयुष का माथा चूमा और आयुष ख़ुशी के मारे हँसने लगा|

रात में खाना खाते समय संगीता की नजरें मुझ पर जमी हुई थी, क्योंकि उसे मेरे मुँह से अपने खाने की तारीफ सुननी थी;

मैं: पिताजी, आपको नहीं लगता आज बड़े दिनों बाद हमें 'स्वाद' खाना खाने को मिला है?

मैंने बात गोल घुमा कर कही और अपने आजतक बनाये खाने को खराब बताया| मैंने संगीता के खाने की तारीफ कर दी थी और संगीता मेरी इस तरह की गई तारीफ से बहुत खुश भी थी| उधर माँ-पिताजी मेरा मतलब समझ गए और मेरे साथ हो लिए;

पिताजी: हाँ भई ये तो है, बड़े दिनों बाद आज स्वाद खाना खाने को मिला है|

माँ: कहाँ तेरे (मेरे) हाथ का बेस्वाद खाना और कहाँ मेरी बहु के हाथ का बना हुआ स्वाद खाना!

माँ-पिताजी मुस्कुराते हुए बोले| मेरे खाने की तौहीन हो रही थी और नेहा को ये गँवारा नहीं था;

नेहा: दादाजी, मुझे तो बस पापा के हाथ का खाना अच्छा लगता है!

नेहा मेरा पक्ष लेते हुए बोली|

आयुष: मुझे भी!

आयुष अपना हाथ उठाते हुए जोश से बोला| बच्चों को मेरी तरफदारी करते देख माँ, पिताजी और संगीता मुस्कुराने लगे|

अब सोने का समय आया था और दोनों बच्चों को मेरे साथ मेरे कमरे में सोना था, लेकिन मुझे तो आज अपने द्वारा honeymoon postpone करने पर संगीता को 'हर्जाना' देना था! मैंने दोनों बच्चों को गोदी में उठाया तथा बच्चों के कमरे में आ गया;

मैं: बेटा आज मैंने आपकी मम्मी के साथ बाहर जाना cancel किया है इसलिए आपकी मम्मी मुझसे नाराज हैं! मुझे आज रात आपकी मम्मी को प्यार से मनाना है, वरना वो मुझसे कभी बात नहीं करेंगी|

मैंने बच्चों को समझाने के लिए एक प्यार भरा झूठ बोला था और बच्चे मेरी बात में आ चुके थे, उन्हें सच में लगता था की संगीता मुझसे नाराज है| लेकिन दो second में ही आयुष बड़े जोश से बोला;

आयुष: पापा जी, हम तीनों चलते हैं...और है न...मम्मी को मनाते हैं!

आयुष का जोश देख नेहा भी उसके साथ बोलने लगी;

नेहा: पापा जी, हम दोनों भी मम्मी से माफ़ी मांगेंगे तो मम्मी झट से मान जाएँगी|

दोनों बच्चों का उत्साह देख मैं हैरान था, उसपर आज आयुष के दिमाग में एक के बाद एक idea आ रहे थे! अब मुझे बच्चों को समझाना था, क्योंकि आज रात सिर्फ मुझे ही हर्जाना भरना था!

मैं: बेटा, आपकी मम्मी को मैंने नाराज किया है और माफ़ी भी मुझे ही माँगनी है|

बच्चों ने मेरी बात को बड़ी गंभीरता से लिया| फिर मैंने उनका ध्यान भटकाते हुए कहानी सुनानी शुरू की और बच्चों को जल्दी ही नींद आ गई|

मैं कमरे में लौटा तो संगीता मेरा इंतजार कर रही थी, मैंने दरवाजा बंद किया तथा बिस्तर में घुस गया| संगीता आज कुछ ज्यादा ही आक्रामक थी, मेरे बिस्तर में घुसते ही उसने मुझे अपनी बाहों में जकड़ लिया और मेरे होठों को अपनी गिरफत में ले लिया| प्रेम का ये समागम बहुत देर चला और ऐसा चला की संगीता के चेहरे पर संतुष्टि की मुस्कान छा गई!

रात 3 बजे नेहा फिर कोई बुरा सपना देख कर जागी और सिसकते हुए अपने कमरे से बाहर आई, उसी समय माँ रसोई से पानी पी कर निकल रहीं थीं| नेहा को सिसकते देख माँ ने नेहा को बड़ी मुश्किल से गोदी में उठाया और उसके सर को थपथपाते हुए अपने कमरे में ले आईं| उस रात माँ ने नेहा को बहुत लाड किया, ऐसा लाड जैसे कोई माँ एक छोटे से बच्चे को करती है| माँ ने नेहा को अपने सीने से लगाया और उसके सर को चूमते हुए नेहा को बहलाने लगी;

माँ: मुन्नी...मेरी प्यारी सी गुड़िया...मेरी सबसे प्यारी बिटिया...ऐसे डरते नहीं हैं...मेरी बहादुर बिटिया...

माँ के बात करने से नेहा को तो नींद आने लगी थी, परन्तु पिताजी की नींद खराब हो रही थी इसलिए वो उठे और आयुष के पास जा कर सो गए| इधर माँ के इस लाड के कारण नेहा चैन से सो गई!

अगली सुबह संगीता जल्दी उठी और चाय बनाने जा रही थी की मैंने पीछे से संगीता को अपनी बाहों में भर लिया| सुबह-सुबह जो 'शैतान' जागता है वो जागा हुआ था और संगीता ने उसे महसूस कर लिया था! संगीता को खुमारी चढ़ गई थी इसलिए उसने मुझे पलंग पर खींच लिया| मैं तो वैसे ही संगीता के साथ romance करने के मौके ढूँढता था, आज जब उसने पहल की तो मैं दीवानों की तरह उस पर टूट पड़ा| आधे घंटे बाद जब प्यार का तूफ़ान थमा तो संगीता की हालत बेहाल थी;

संगीता: आप न...बहुत खराब...हो! अच्छा खासा जल्दी उठा थी...और आपने मुझे late करा दिया!

संगीता मुझे उलहाने देते हुए बोली|

मैं: वाह जी वाह! पलंग पर मुझे खींचा खुदने (संगीता ने) और दोष मुझे दे रही हो?!

मैंने बड़े प्यार से शिकायत करते हुए कहा| मेरी शिकायत सुन संगीता शर्मा गई, पर फिर उसे कुछ याद आया;

संगीता: पहल अपने की थी, आपको पता है न की आपकी बाहों में आ कर मैं पिघलने लगती हूँ! बस इसी बात का आपने जानबूझ कर फायदा उठाया!

संगीता की शिकायत सही थी इसलिए मैं मुस्कुराया और बोला;

मैं: क्या करूँ जानेमन, तुम्हें देखते ही romance का कीड़ा कुलबुलाने लगता है! फिर आज तो नेहा भी कमरे में नहीं आई थी इसलिए मन थोड़ा बेईमान हो गया था!

नेहा का ध्यान आया तो मुझे चिंता हुई और मैं उसे देखने के लिए फ़ौरन बच्चों वाले कमरे में पहुँचा| पिताजी और आयुष लिपटे हुए सो रहे थे, नेहा को कमरे में न देख मैं फ़ौरन माँ के कमरे में पहुँचा| माँ और नेहा बड़े चैन से सो रहे थे, अपनी बेटी को चैन से सोते हुए देख मुझे इत्मीनान आया तथा मैं अपने कमरे में पलट कर जाने लगा| लेकिन तभी नेहा की आँख खुल गई और वो दौड़ती हुई आ कर मेरी टाँगों से लिपट गई| मैंने फ़ौरन नेहा को अपनी गोद में उठाया, लेकिन मैं कुछ पूछता उससे पहले ही नेहा ने सब बात बता दी;

नेहा: पापा जी, मैं है न रात में डर गई थी और आपके पास आ रही थी, तभी दादी जी kitchen से पानी पी कर निकलीं| उनहोने मुझे गोदी लिया और प्यार करते-करते सुला दिया!

नेहा की बात सुन कर मुझे ख़ुशी हुई, दिल को एक तसल्ली मिली की मेरी गैरहाजरी में माँ, नेहा के भावुक होने पर उसे संभाल सकतीं हैं| लेकिन अगले ही पल नेहा ने जो खुसफुसा कर कहा उससे मेरी तसल्ली खत्म हो गई;

नेहा: लेकिन पापा जी, मुझे आपके पास सोना अच्छा लगता है!

ये कहते हुए नेहा ने अपने दोनों हाथों का फंदा मेरे गले के इर्द-गिर्द डाल दिया! मेरे दिल को अचानक से महसूस हुआ की नेहा कुछ और भी कहना चाहती है लेकिन उसमें आगे कहने की हिम्मत नहीं है| मैं उससे पूछता उससे पहले ही माँ उठ कर बाहर आ गईं तथा उन्होंने संगीता के बारे में पूछना शुरू कर दिया जिससे मेरा ध्यान भटक गया|

खैर बच्चे school गए तथा मैं site पर निकलने के लिए तैयार हुआ, नाश्ता कर मैं और पिताजी एक साथ घर से निकले| गाडी तक पहुँच कर मुझे थोड़ी मस्ती सूझी इसलिए मैं पिताजी को घर में कुछ भूलने का बहाना मार कर घर लौटा| घर का दरवाजा खुला था और माँ बैठक में बैठीं टी.वी. देख रहीं थीं, संगीता हमारे कमरे में बिस्तर ठीक कर रही थी| मुझे घर पर देख माँ ने मुझे सवालिया नजरों से देखा| मैंने अपना रुमाल भूलने का बहाना किया तथा अपने कमरे में सरसराता हुआ घुस गाया| संगीता की पीठ दरवाजे की ओर थी, मैंने इस मौके का पूरा फायदा उठाया और संगीता को पीछे से अपनी बाहों में भर लिया| मेरे जिस्म का स्पर्श पा कर संगीता पहले तो चौंकी, परन्तु अगले ही पल उसे एहसास हुआ की ये स्पर्श मेरा है तो वो एकदम से मेरी ओर पलट गई| इससे पहले की संगीता कुछ पूछती मैंने उसके होठों को अपने होठों में भर लिया! ज्यादा समय नहीं था तो ये रसपान बस मिनट भर ही चल पाया, लेकिन इस एक मिनट में ही दोनों पति-पत्नी के भीतर कामुक अग्नि दहक उठी थी!

मेरे चुंबन तोड़ने से संगीता मुझे शिकायत भरी नजरों से देख रही थी तथा आज उसकी ये नजरें आज कुछ ज्यादा ही पैनी थीं!

मैं: सुबह की good morning वाली kissi नहीं दी थी न आपने, तो जाने से पहले वही लेने आया था|

मैंने अपनी साँसें सँभालते हुए कहा|

संगीता: सुबह की good morning kissi के बदले जो आपने मुँह मीठा किया उसका क्या?

संगीता उल्हाना देते हुए बोली और हमारे चुंबन से गीले हुए अपने होठों को मुझे दिखाते हुए पोछने लगी| संगीता की ये अदा इतनी मादक लग रही थी की मन कर रहा था की मन कर रहा था की उसे अभी बिस्तर पर धकेल दूँ और कपड़े उतार कर उसे खूब प्यार करूँ, मगर पिताजी गाडी के पास मेरा इंतजार कर रहे थे इसलिए मैं मजबूर था|

मैं: चलो कोई बात नहीं, आज से ये kiss हमारा bye-bye kiss होगा!

मेरी बात का मतलब साफ़ था की आज से मेरे काम पर जाने के समय संगीता मुझे रोज इसी तरह kiss करेगी, मगर संगीता एकदम से तुनक कर बोली;

संगीता: बिलकुल नहीं! आप तो kiss ले कर चले जाओगे और मैं यहाँ आपकी kiss लेने से लगाई आग में तड़पती रहूँगी! आज से ऐसी kisses बस रात में, दिन में छोटी-छोटी वाली 'किस्सियाँ' मिलेंगी! थोड़ा आप भी तड़पो, तब आपको पता चलेगा कीअभी मुझे कैसा लग रहा है!

संगीता के बात करने के अंदाज में आज थोड़ा बचपना था तो थोड़ी शिकायत भी थी! मैं, संगीता को प्यार से मस्का लगा पाता उससे पहले ही पिताजी ने फ़ोन खड़का दिया और मुझे संगीता को प्यार की अग्नि में जलते हुए छोड़ कर जाना पड़ा|

पिताजी को नॉएडा वाली site पर छोड़ कर मैं गुडगाँव वाली site पर पहुँचा| मैंने संगीता को call किया तो उसने फ़ोन तो उठाया पर मुँह टेढ़ा कर के मुझसे बात की| वो मेरे द्वारा सुबह उसे प्यासा छोड़ कर जाने के लिए खफा थी, मैंने भी "बाबू" कह-कह कर संगीता को मस्का लगाना शुरू कर दिया| संगीता थोड़ी-थोड़ी पिघलने लगी थी और मुस्कुरा रही थी, बाकी की जो रही-सही कसर थी वो मुझे घर जा कर रात में पूरी करनी थी!

दोपहर हुई और बच्चे school से घर पहुँचे, नेहा ने अपनी दादी जी का फ़ोन लिया और मुझे call कर मुझसे बात करनी शुरू कर दी| मेरी घर में गैरमौजूदगी के कारन नेहा परेशान थी और मुझसे फ़ोन पर बात कर के वो अपना दर्द छुपा रही थी! इस समय मुझे नेहा को ज्ञान देने का मन नहीं था मैं तो बस उसकी प्यारी-प्यारी बातों को बड़े ध्यान से सुन रहा था| आज class में क्या हुआ, कौन सा बच्चा गिरा, कौन सा बच्चा किससे लड़ा, कौन से बच्चे को कौन सी teacher ने डाँटा| नेहा की सारी बातें इन्हीं से जुडी थीं लेकिन इन बातों में कहीं भी नेहा का कोई जिक्र नहीं था, मतलब नेहा ने ये सब दूर से होते हुए देखा था!

मैं: मेरे बच्चे का दिन इतना अच्छा गुजरा?! फिर तो वापस आ कर आज आपको बहुत सारी प्यारी-प्यारी दूँगा!

इतना सुनना था की नेहा ख़ुशी से चहकने लगी! तभी पीछे से आयुष की आवाज आई; "दीदी, जल्दी से नाहा लो वरना मम्मी डाटेंगी!" नेहा ने फ़ोन आयुष को दिया और आयुष भी ख़ुशी-ख़ुशी अपनी class के किस्से सुनाने लगा| आयुष के किस्से नेहा के मुक़ाबले ज्यादा रोचक थे क्योंकि आयुष के किस्सों में आयुष बड़े जोर शोर से बोलता था, लड़ता था, दूसरे बच्चों के साथ हँसी-मज़ाक करता था! जबकि नेहा के किस्सों में नेहा खोमश थी और मुझे इस बात को लेकर थोड़ी सी चिंता हो रही थी!

आयुष से बात कर मैंने माँ से बात की;

मैं: माँ, नेहा मेरे घर न होने से थोड़ा उदास है इसलिए आज उसे खाना आप ही खिलाना|

इतना सुनना था की माँ बड़े तपाक से नेहा का पक्ष लेते हुए बोलीं;

माँ: मेरी मुन्नी बहुत बहादुर है, कल रात को मैंने उसे बड़े प्यार से सुलाया था!

माँ अपनी बड़ाई करते हुए बोलीं| माँ की बात सुन मैं मुस्कुराया और उन्हें नेहा के मन की वो बात नहीं बताई जो नेहा ने मुझसे सुबह कही थी|

मैं: नेहा के साथ-साथ मेरे छोटे साहबजादे को भी खाना खिला देना|

मेरी बात सुन माँ मुस्कुराईं और बोलीं;

माँ: हाँ-हाँ बेटा मैं अपने दोनों पोता-पोती को खाना खिला दूँगी, जैसे तुझे खिलाती थी!

माँ की बातों से मुझे मेरा बचपन याद आ गया और मेरे चेहरे पर प्यारी सी मुस्कान आ गई!

रात को जैसे ही मैं घर लौटा नेहा दौड़ती हुई आई और मैंने उसे गोदी में उठा कर खूब चूमा! नेहा भी मेरी गोदी में आ कर बहुत खुश थी, इतनी खुश तो वो फ़ोन पर मुझसे बात करते समय भी नहीं थी| अपनी दीदी को मेरी गोदी में देख आयुष ने भी अपने दोनों हाथ खोल कर मुझे गोदी लेने की मूक इच्छा जताई| अब दोनों बच्चों को गोदी में ले कर मैंने लाड करना शुरू कर दिया| दोनों बच्चों को गुद-गुदी कर मैंने हँसाना शुरू कर दिया जिससे पूरे घर में बच्चों का हँसी-ठहाका गूँजने लगा! रात के खाने का समय हुआ और मैंने दोनों बच्चों को खाना खिलाया, खाना खा कर दोनों बच्चे फिर मेरी गोदी में चढ़ गए| दोनों बच्चों को गोद में लिए हुए घर में टहलते हुए मैंने बच्चों को सुलाया और अंत में मैंने दोनों बच्चों को माँ-पिताजी के कमरे में लिटा दिया|

अपने कमरे में लौट मैं कुछ हिसाब करने में व्यस्त था, संगीता, माँ और पिताजी बैठक में बैठे cable पर 'major साब' film देख रहे थे| Film में एक दृश्य था जिसमें major साब की पत्नी की delivery के समय कुछ जटिल समस्य पैदा हो गई थी और doctor ने major साब को उनकी पत्नी या उनके बच्चे में से किसी एक को बचाने विकल्प दिया| Major साब ने अपनी पत्नी को चुना था जिसके लिए उनकी पत्नी उन्हें दोष दे रही थी की उन्होंने अपने बच्चे को क्यों नहीं बचाया? ये दृश्य देख कर संगीता भावुक हो गई और हमारे कमरे में आ कर सिसकने लगी| मैंने जब संगीता किस सिसकी सुनी तो अपना काम छोड़ उसे चुप कराने लगा, तब संगीता ने मुझे film की सारी कहानी सुनाई;

मैं: जान, Its just a movie!

मैंने संगीता को समझना चाहा मगर इस बेकार film ने संगीता के दिल में सवाल खड़ा कर दिया था;

संगीता: नहीं! अगर मेरी delivery होते समय ऐसी कोई समस्या हुई तो आपको हमारे बच्चे को बचाना होगा...

संगीता की बात पूरी होने से पहले ही मैं बोल पड़ा;

मैं: कतई नहीं!

संगीता: नहीं, आपको मेरी कसम!

मेरी न सुन संगीता ने मुझे अपनी कसम में बाँधना चाहा मगर मैं पहले ही अपना मन बना चूका था;

मैं: Sorry! इस बार मैं आपकी कोई कसम नहीं मानने वाला, फिर भले ही सारी उम्र मुझे आपके गुस्से का सामना क्यों न करना पड़े! I love you and you'll always be my first priority!

संगीता: नहीं...please....मेरे कारण आपको पिता बन कर आयुष को अपनी गोद में खिलाने का सुख कभी नहीं मिला! हमारे इस बच्चे को आपको अपनी गोद में खिलाने का सुख आपका हक़ है....

संगीता रूँधे गले से बोल रही थी, उसके दिल के दर्द को मैं अच्छे से समझ गया था और उसे और दुखी नहीं करना चाहता था इसलिए मैंने उसकी बात काट दी;

मैं: मुझे बाप बनने का सुख आपने दे दिया है| हमारे दो प्यारे-प्यारे बच्चे हैं और मैं उन्हें बहुत प्यार करता हूँ|

मेरी बात सुन संगीता ने मुझसे तर्क करने को अपना मुँह खोला, लेकिन मैंने उसे आगे कुछ कहने का कोई अवसर नहीं दिया;

मैं: बस, अब मैं इस बारे में और बात नहीं करना चाहता!

ये कह मैंने संगीता को खामोश कर दिया| संगीता खामोश हो गई और सर झुका कर एकदम से गुम-सुम हो गई|

मैं: क्या हुआ बाबू, ऐसे चुप क्यों हो गए?

मैंने संगीता को मस्का लगाते हुए बड़े प्यार से पूछा| मानता हूँ मैंने ही संगीता को खामोश कराया था, मगर मेरा उद्देश्य केवल संगीता को इस फ़ालतू बात को कुरेदने से मना करने के था|

संगीता: आप मुझसे इतना प्यार करते हो?

संगीता ने आयुष की तरह अपना निचला होंठ फुला कर मुझे देखते हुए पुछा| संगीता का सवाल बड़ा ही बचकाना था, ऊपर से संगीता इस वक़्त भोली सी प्यारी सी गुड़िया लग रही थी|

मैं: क्यों आपको कोई शक है?

मैंने मुस्कुराते हुए संगीता के सवाल के जवाब में अपना सवाल पुछा तो संगीता को उसके सवाल का जवाब मिल गया|

संगीता: कभी-कभी लगता है की मैं आपको समझ ही नहीं सकती| You're so unpredictable!

ये संगीता का मन पसंद dialogue बन चूका था!

मैं: I'll take that (being unpredictable) as a complement! Now no more रोना-धोना, okay?

मैंने संगीता के मस्तक को चूमते हुए कहा| संगीता ने हाँ में सर हिलाया और माँ-पिताजी के साथ film देखने लगी|

सोने का समय हुआ तो माँ-पिताजी अपने कमरे में गए और इधर हम दोनों मियाँ-बीवी एक दूसरे के पहलु में सिमटने लगे! रात को दो बजे नेहा की आँख खुल गई, हालाँकि माँ ने उसे अपने से चिपका रखा था मगर नेहा का जी मेरे बिना नहीं लगता था| वो धीरे से उठी और हमारे (संगीता और मेरे) कमरे में आ गई| मुझे नेहा की मौजूदगी का एहसास हो चूका था इसलिए मैंने नेहा को अपने सीने से चिपकाया और उसके सर को चूमने लगा| Second नहीं लगा और नेहा के चेहरे पर मुस्कान आ गई और उसने अपने हाथों से मुझे जकड़ना चाहा! दोनों बाप-बेटी ऐसी चैन की नींद सोये की हमें उठाने के लिए अगली सुबह खुद माँ खुद आना पड़ा|

बहरहाल बच्चों के school की छुट्टियाँ हो चुकीं थीं, हम सबके घूमने जाने का plan तय था, रहने तथा train की tickets मैंने book करा दी थीं| बच्चों ने मिल कर माँ और संगीता की सामान pack करने में मदद करनी शुरू कर दी थी| उधर संगीता का जन्मदिन (21 दिसंबर) नजदीक आ चूका था जिसके बारे में घर में किसी को नहीं पता था| मैंने इस दिन के लिए ख़ास तैयारी की थी जिससे ये दिन संगीता के लिए यादगार बनने वाला था|

20 दिसंबर को सबसे पहले मैंने Slice of Italy XXXX branch में एक बुकिंग की, फिर उसी रात मैं site से जल्दी घर भाग आया, रास्ते में मैंने अपनी ID से एक नया sim लिया| मैं तब दो फ़ोन इस्तेमाल करता था, एक single sim वाला और एक dual sim वाला, कारण कुछ नहीं बस मुझे अपने visiting card पर 3 नंबर लिखवाने का शौक था!
lotpot.gif
खैर मैंने नया सिम अपने dual sim वाले फ़ोन में डाला और उसे activate कर लिया| घर पहुँच कर मैंने अपना एक फ़ोन जानबूझ कर सनगीता के पास छोड़ दिया तथा मैं झट से bathroom में घुस गया| Bathroom में घुसे हुए मैंने संगीता के पास पड़े फ़ोन पर अपने नए सिम से ये message भेजा;

"मानु जी,

मैं आपको रोज आते-जाते हुए देखती हूँ! आप बड़े smart दिखते हो, लेकिन आज अपने check shirt क्यों पहनी? कल please blue shirt पहनना, blue मेरा favorite color है!

माया"

मैंने उस दिन वाकई में check shirt पहनी थी और ये shirt संगीता की मन पसंद shirt थी, संगीता ये message पढ़ कर अच्छे से जल- भुन जाए इसीलिए मैंने message में shirt का जिक्र किया था| मैं संगीता की possessiveness को भली भाँती जानता था और मैंने जानबूझ कर उसकी इस possessiveness को trigger करने के लिए ये message भेजा था| संगीता को और तड़पाने के लिए मैंने ये सिम निकाल दिया तथा अपने द्वारा type किया हुआ message भी delete कर दिया ताकि कहीं संगीता मेरा झूठ न पकड़ ले| जैसे ही मैं bathroom से बाहर आया तो पाया की संगीता गुस्से से तमतमाती हुई मेरे आज लिए नए नंबर पर call करने में लगी हुई| मुझे देखते ही संगीता गुस्से में जलती हुई बोली;

संगीता: ये माया कौन है?

संगीता का गुस्सा देख एक पल को तो लगा की शायद मैंने कुछ ज्यादा बड़ी आग लगा दी, लेकिन फिर मैंने सोचा की आग लग ही गई है तो थोड़े हाथ सेंक ही लिए जाएँ!

मैं: माया? पता नहीं?

मैंने हैरान होने का नाटक करते हुए कहा| अब मैं कोई theatre actor तो था नहीं, इसलिए acting करने के चक्कर में थोड़ी सी over acting हो गई;

मैं: क्यों क्या हुआ?

दरअसल मैं थोड़ा बेसब्र हो गया था, इसलिए मैंने अपनी अधीरता दिखाते हुए ये सवाल पूछ लिया, पर शुक्र है की मेरी पत्नी को अपने गुस्से के आगे मेरी ये बेवकूफी दिखाई नहीं दी!

संगीता: मैं आपके फ़ोन पर game खेल रही थी की तभी ये message आया!

ये कहते हुए संगीता ने गुस्से में मेरा फ़ोन मेरे आगे किया| मैंने मैसेज पढ़ा और ऐसे दिखाया जैसे मुझे कुछ पता ही नहीं!

मैं: पता नहीं कौन है?

मैंने इस बार साधारण acting की, मगर मेरी पत्नी के दिमाग में शक का कीड़ा कुलबुलाने लगा था| उसने मुझे आँखें तार्रेर कर देखा और थोड़ा गुस्से में बोली;

संगीता: पक्का नहीं जानते न?

संगीता की आवाज में उसकी possessiveness भरी पड़ी थी और अब मुझे लग रहा था की कहीं मैंने उड़ता तीर तो नहीं ले लिया न?!

मैं: हाँ जान, अगर जानता होता तो बता देता न?

मैंने संगीता की आँखों में देखते हुए कहा| देखा जाए तो मैं एक तरह से सच कह रहा था क्योंकि मैं इस नाम की किसी भी लड़की को नहीं जानता था| यही कारण था की संगीता को मेरी आँखों में सच्चाई दिखी और वो सोच में पड़ गई, तभी बाहर से माँ ने आवाज दे कर संगीता को खाना परोसने को कहा| संगीता ने गुस्से में मेरे हाथ से फ़ोन खिंचा और रसोई में खाना परोसने लगी| इधर मैं अपनी खुराफ़ात से बाज नहीं आया और नया सिम दुबारा अपने फ़ोन में डालकर एक और message type किया परन्तु उसे send नहीं किया! फ़ोन silent कर जेब में डाले मैं बाहर dining table पर बैठ गया| बच्चों को खाना खिला कर मैंने उन्हें टी.वी. देखने को कहा और सबकी नजरें बचा कर जो message मैंने कुछ देर पहले type किया था वो संगीता के पास रखे हुए अपने नंबर पर send कर दिया| संगीता ने मेरा फ़ोन अपने सामने रखा हुआ था इसलिए जैसे ही मेरा भेजा हुआ message आया संगीता ने झपट कर फ़ोन उठाया और message पढ़ने लगी;

"मानु जी,

आपका construction cum renovation का काम है ना?

माया"

ये message पढ़ते ही संगीता जलन के मारे लाल हो गई और फटाफट जवाब दिया;

"कौन हो तुम? और मेरे बारे में इतना सब कुछ कैसे जानती हो?"

संगीता गुस्से से भुनभुना चुकी थी और बड़ी मुश्किल से अपना गुस्सा छुपा पा रही थी| इधर मुझे message मिल चूका था मगर मैं ये message अभी पढ़ नहीं सकता था! मैंने चुपचाप खाना खाया और bathroom में हाथ-मुँह धोने के बहाने घुस कर message पढ़ने लगा| अब मुझे जवाब देना था वो भी ऐसा की संगीता की जलन बरकरार रहे;

"नाम तो आपको पता ही है, आपका phone number मिलना थोड़ा मुश्किल था लेकिन यहाँ तो आपको और आपके पिताजी को सब जानते हैं तो कैसे न कैसे मुझे आपका number मिल ही गया|"

ये message पढ़ कर संगीता का गुस्सा साँतवे आसमान पर था और उसने गुस्से से मेरे नए नंबर को माया का नंबर समझ कर call मिलाना शुरू कर दिया था| मैंने संगीता के गुस्से को भड़काने के लिए जानबूझ कर उसके call काटने शुरू कर दिए और अंत में फ़ोन switch off कर sim निकाल दिया जिससे संगीता गुस्से से पागल होने लगी थी| मैं bathroom से बाहर निकला और संगीता को गुस्से से तिलमिलाया हुआ देख बोला;

मैं: क्या हुआ? तुम्हारा मुँह गुस्से से क्यों लाल है?

मैंने अनजान बनने का नाटक करते हुए कहा|

संगीता: उस लड़की ने फिर से आपको message किया!

ये कहते हुए संगीता ने मुझे वो message दिखाया| मैंने message पढ़ कर अपनी भोयें सिकोड़ कर परेशान होने का नाटक किया|

संगीता: और उसकी हिम्मत तो देखो, जब मैंने उसे call किया तो वो मेरे फ़ोन काटने लगी! आखिर है कौन ये लड़की?

संगीता गुस्से से बोली|

संगीता: हमारी गली में तो किसी का नाम माया नहीं है? कहीं ये कोई नई PG लड़की तो नहीं?

संगीता के दिमाग में शक का कीड़ा दौड़ना शुरू हो गया था और उसने बैठे-बैठे गली की सभी लड़कियों के नाम याद करने शुरू कर दिए थे|

मैं: जान, Relax! Let's think it through! ऐसा करो आप मेरी तरफ से एक message type करो की कल मैं आपसे मिलना चाहता हूँ...

मेरे उस लड़की से मिलने की बात सुन संगीता भुभुना गई और मेरी आधी बात सुनते ही एकदम से बोली;

संगीता: हैं? आप उससे क्यों मिलोगे?

संगीता मुझे गुस्से से देखते हुए बोली| उस समय मुझे संगीता का गुस्सा इतना प्यारा लग रहा था की मन कर रहा था उसे बाहों में भर कर सब सच कह दूँ, मगर फिर मेरा खुद का plan किया हुआ surprise खराब हो जाता|

मैं: जान, मैं अकेला उससे नहीं मिलूँगा! बल्कि हम दोनों उससे मिलते हैं, उसे प्यार से समझाते हैं, क्या पता वो आपकी बात समझ जाए!

मैंने बड़े प्यार से संगीता को शांत किया| देखा जाए तो पहले मैं ही संगीता को गुस्सा दिला रहा था और फिर मैं ही उसे शांत कर रहा था!

संगीता: लेकिन उसका फोन बंद आ रहा है?!

संगीता दुखी होते हुए बोली|

मैं: बाबू, आप message भेज दो! जब भी वो लड़की अपना phone on करेगी तब देख लेगी! अब सो जाओ!

मैंने संगीता को बाबू कह उसे शांत कर दिया, मैंने संगीता को अपने गले लगाया और उसके माथे पर चूमते हुए उसे सोने को कह मैं बाहर बैठक में आया| माँ-पिताजी व दोनों बच्चे एक साथ बैठक में बैठे टी.वी. देख रहे थे| बच्चों के school की छुट्टी थी इसलिए दोनों बच्चे अपने दादा-दादी जी की गोदी में बैठे मस्ती कर रहे थे| मैंने माँ-पिताजी के बीच बैठकर उन्हें अपना सारा plan समझाया, माँ-पिताजी को मेरा idea पसंद नहीं था क्योंकि उन्हें मेरा संगीता को बेवजह का गुस्सा दिलाना जायज नहीं लग रहा था! लेकिन मेरे दोनों बच्चे उत्साह से कूद रहे थे, बड़ी मुश्किल से मैंने बच्चों को समझा कर उनका उत्साह काबू किया!

इधर संगीता मेरे plan से अनजान थी और उसने मेरे कहे अनुसार message type कर के माया यानी मुझे भेज दिया था! मैंने संगीता को थोड़ा और तड़पाना चाहा और बिना उसके message कोई जवाब दिए रजाई में घुस गया| करीब बीस मिनट बाद मैं उठा और मैंने अपना नया sim चालु किया और संगीता के मैसेज का जवाब दिया;

"कल दोपहर 01:00 बजे मैं Slice Of Italy XXXX (branch) में आपका इन्तेजार करुँगी| और please...please मुझे call मत किया करो, मेरे पापा को पता चल गया तो मेरा क्या होगा? वैसे भी मुझे आपकी call काटने में बहुत अफ़सोस होता है!"

ये message कर मैंने अपना phone बंद किया और bathroom से बाहर आया| जैसे ही संगीता ने मुझे bathroom से निकलते देखा वो एकदम से बोली;

संगीता: उस लड़की का reply आया है!

इतना कह संगीता ने मुझे message पढ़ कर सुनाया;

संगीता: उसने कल एक बजे Slice of Italy restaurant में मिलने बुलाया है|

संगीता दाँत पीसते हुए गुस्से से बोली|

संगीता: कल के कल हम इस लड़की से बात final करते हैं! मैं उसे बस एक बार समझाऊँगी की वो हमें अकेला छोड़ दे, अगर वो नहीं मानी तो मैं उसकी police complaint कर दूँगी!

Police complaint का नाम सुनते ही मेरी खिसक गई और मैं संगीता का गुस्सा शांत करते हुए बोला;

मैं: क...क...Calm down बाबू! कल मिलके उसे अच्छे से समझा देंगे|

संगीता कुछ कहे उससे पहले ही मैंने उसे अपनी बाहों में भर लिया और प्यार करते हुए संगीता का ध्यान भटका दिया!

सुबह मैं संगीता के उठने से पहले उठा, एक तो मेरे बच्चे कुछ ज्यादा उत्साही थे और वो ये surprise ज्यादा देर तक अपने पेट में नहीं रख सकते थे तथा दूसरा कारन ये की आज चूँकि संगीता का जन्मदिन था तो उसे काम करने कैसे देता?! रात को मैंने जानबूझ कर संगीता के साथ 'मेहनत' की थी जिसके कारण संगीता इस वक़्त कुछ ज्यादा सो रही थी| मैंने फटाफट बच्चों को उठाया और उन्हें गोदी में ले कर रसोई में घुसा, दोनों बच्चों को काउंटर पर बिठा कर मैंने सबके लिए चाय तथा बच्चों के लिए दूध बनाया| माँ-पिताजी को चाय दे कर और बच्चों को माँ-पिताजी के पास बिठा मैं चाय ले कर संगीता को उठाने के लिए कमरे में घुसा| चाय सिरहाने रख मैंने संगीता के होठों को अपने होठों से ढक दिया, संगीता का जिस्म एकदम से गनगना गया और उसने अपनी दोनों बाहें मेरी गर्दन के इर्द-गिर्द लपेट ली! संगीता ने मुझे अपने ऊपर खींच लिया और एक पल के लिए वो बिलकुल लापरवाह हो गई की हम दोनों मियाँ-बीवी के अलावा भी घर में चार लोग हैं! मिनट भर बाद जब संगीता को इस बात का एहसास हुआ तो वो मुझे परे धकेलने लगी| अब romance मेरे ऊपर चढ़ चूका था इसलिए मैंने अपना सारा वजन संगीता पर डाल उसे दबाना शुरु कर दिया, मेरे जिस्म की गर्मी पा कर संगीता पिघलने लगी और अपने होठों को छुड़ाते हुए लजाते हुए बोली; "जानू, पहले दरवाजा बंद कर दो!" तभी बाहर से बच्चों की किलकारी सुनाई दी और मैंने अपना romance का भूत काबू किया; "अभी छोड़ रहा हूँ तुम्हें, लेकिन रात में नहीं छोड़ूँगा!" मैंने संगीता को तड़पाते हुए कहा तो उसकी आह निकल गई; "मैंने तो कहा भी नहीं की मुझे छोड़ दो!" संगीता लाज के मारे शर्माते हुए बोली| तभी आयुष, जिससे अपना उत्साह काबू नहीं हो रहा था वो हमारे कमरे में दौड़ता हुआ आया और अपनी मम्मी को birthday wish करने के लिए पलंग पर चढ़ कर कूदने ही वाला हुआ था की मैंने आयुष को हवा में ही लपक लिया और अपने सीने से चिपका कर खुसफुसा कर उसे चुप रहने को कहा; "अभी नहीं बेटा!" संगीता ने बाप-बेटे की ये खुसफुसाहट देख ली थी मगर वो कुछ समझ नहीं पाई, उसे लगा की ये हम बाप-बेटे का कोई खेल है! मैंने आयुष को नेहा के पास जा कर खेलने को कहा तथा संगीता को चाय उठा कर दी; "जानू, क्या जर्रूरत थी आपको तकलीफ करने की?" संगीता चाय की चुस्की लेते हुए बोली| मैंने संगीता की बात का कोई जवाब नहीं दिया और मुस्कुराता हुआ बहार आ गया| दरअसल मेरे बेटे की उत्सुकता ने मेरे लिए संगीता से और झूठ बोलना मुश्किल करा दिया था! इधर संगीता को मेरी ये मुस्कान देख कर शक होने लगा था, इसलिए वो अपनी चाय ले कर बाहर बैठक में आ गई|

मैं dining table पर बैठा नाश्ते की तैयारी कर रहा था, संगीता माँ-पिताजी से आशीर्वाद ले कर मेरे सामने खड़ी हो गई और बुदबुदाते हुए बोली; "छोडो ये सब, मैं कर लूँगी!" मैंने फिर मुस्कुराते हुए संगीता को देखा और बोला; "Omlette बना रहा हूँ, अगर खाना है तो चुप-चाप माँ-पिताजी के पास बैठो!" मेरी आवाज में प्यार भरा आदेश था, अब संगीता को omlette खाने का बहुत मन था इसलिए वो मेरी बात मान गई और माँ-पिताजी के पास बैठ गई| बच्चों ने अपनी मम्मी को देख खी-खी कर हँसना शुरू कर दिया, बच्चे कहीं मेरा भांडा न फोड़ दें इसलिए मैंने दोनों बच्चों को आवाज लगाई;

मैं: बच्चों omlette खाना है तो मेरी मदद करो!

इतना सुनते ही दोनों बच्चे मेरे सामने खड़े हो गए| मैंने खुसफुसा कर दोनों को चुप रहने को कहा और अपने साथ रसोई में ले आया, पहले मैंने माँ-पिताजी के लिए बेसन का चिल्ला बनाया और दोनों बच्चों से कहा की वो ये माँ-पिताजी को दे कर आएं| बच्चे, माँ-पिताजी का नाश्ता ले कर गए पर वो अपने दादा-दादी के साथ बैठ कर खाने लगे और अपनी मम्मी को देख कर खी-खी कर हँसने लगे| इस सब से हैरान हो कर संगीता रसोई में आई, उसके चेहरे को देख कर ही मैं समझ गया की संगीता अभी पूछेगी की बच्चे उसे देख कर क्यों खी-खी कर के हँस रहे हैं इसलिए मैंने उसका ध्यान अपने romance से भटका दिया| मैंने संगीता को अपनी बाहों में भर लिया और उसकी गर्दन को चूमते हुए बोला; "omlette बनाना सिखाऊँ?" संगीता का ध्यान भटक गया और इस तरह मैंने उसे omlette बनाना सिखाने में अपने साथ व्यस्त कर लिया| Omlette को साबुत पलटते हुए देख संगीता बहुत खुश होती और छोटे बच्चे की तरह ताली बजाने लगती थी! तभी दोनों बच्चे आ गए और omlette बनते हुए देख उन्होंने भी अपनी मम्मी की तरह ताली बजानी शुरू कर दी! तीनों माँ-बेटा-बेटी का बचपना देख मैं हँस पड़ा और दोनों बच्चों को गोदी में उठा कर प्यार करने लगा जिससे संगीता थोड़ा सा चिढ गई!

खैर, हम चारों ने dining table पर कब्जा किया| अब बच्चों ने कभी omlette नहीं खाया था तो वो चाह रहे थे की मैं उन्हें अपने हाथ से खिलाऊँ| मैंने knife और fork उठाया तथा अंग्रेजी तरीके से बच्चों को omlette खिलाने लगा| मुझे बच्चों को अंग्रेजी तरीके से omlette खिलाते देख संगीता ने अपना मुँह फुला लिया, मैंने संगीता को भी छुरी-काँटे की मदद से omlette खिलाया! तीनों माँ-बेटा-बेटी ने एक साथ ख़ुशी के मारे अपनी गर्दन दाएँ-बाएँ हिलानी शुरू कर दी| ये दृश्य इतना मनमोहक था की मेरा दिल उमंग से भर गया!

सर्दी के दिन थे और दिन छोटे हुआ करते थे, इसलिए नाश्ता करते-करते साढ़े ग्यारह हो चुके थे| माँ-पिताजी ने मेरे द्वारा तय किये plan के तहत संगीता से किसी रिश्तेदार के यहाँ जाने का बहाना किया और बच्चों को भी अपने साथ ले जाने की बात कही| संगीता को माँ-पिताजी के बहाने पर कोई शक नहीं हुआ, बल्कि वो तो खुश थी की बच्चे माँ-पिताजी के साथ जा रहे हैं क्योंकि अब संगीता के मन में माया (यानी मैं) को सबक सिखाने का गुस्सा जाग चूका था!

माँ-पिताजी और बच्चे तैयार हुए, घर से निकलते समय दोनों बच्चों ने अपनी मम्मी को देखा और बड़ी जोर से खी-खी करने लगे! मैंने संगीता की चोरी दोनों बच्चों को देखा और अपने होठों पर ऊँगली रख दोनों बच्चों को चुप रहने का इशारा किया| "चलो बेटा!" माँ ने मुस्कुराते हुए दोनों बच्चों के हाथ पकड़े और बाहर ले गईं| बच्चों के चेहरे पर आई हँसी माँ के चेहरे पर भी आ गई थी इसीलिए माँ भी मुस्कुराने लगीं थीं| जब सब चले गए तो संगीता भोयें सिकोड़ कर मुझसे बोली;

संगीता: ये बच्चे मुझे देख के सुबह से इतना मुस्कुरा क्यों रहे हैं?

संगीता ने बच्चों की हँसी पकड़ ली थी, मैंने संगीता की बात को हलके में लेते हुए कहा;

मैं: यार बच्चे हैं! आप जल्दी से तैयार हो जाओ, आज उस कलमुही से बात भी तो करनी है|

मैंने अपनी हँसी छुपाते हुए कहा| अच्छे से तैयार हो कर हम मियाँ-बीवी साढ़े बारह बजे घर से निकले और सवा एक बजे restaurant पहुँचे| माँ-पिताजी और बच्चे हमसे पहले ही पहुँच चुके थे और restaurant में संगीता के जन्मदिन की सारी तैयारियाँ हो चुकी थीं| इस सब से अनजान संगीता अपनी चिंता में गुम थी;

संगीता: ओफ्फो हम लेट हो गए! अगर वो लड़की हमारा इंतजार कर के चली गई होगी तो?

मैं: अरे यार अगर वो लड़की चली जाती तो मुझे call या sms तो करती?!

मैंने बात को हलके में लेते हुए कहा|

संगीता: हाँ लेकिन हम उसे पहचानेंगे कैसे?

संगीता परेशान होते हुए बोली| मैं खुद ये सवाल संगीता से करने वाला था, मगर संगीता ने खुद ये सवाल पूछ लिया था|

मैं: हम्म...अगर वो हमें साथ देखेगी तो समझ जाएगी और घबरा कर भाग जाएगी!

मैंने चिंतित होने का नाटक करते हुए कहा|

मैं: ऐसा करो, आप आगे चलो और मैं हमारी गाडी park कर के आता हूँ|

मैंने बहाना मारते हुए कहा|

संगीता गाडी से उतर कर आगे चली गई, मुझे कौन सा गाडी park करनी थी?! मैंने valet वाले को बुलाया और पैसे तथा गाडी की चाभी दी| मैंने फटाफट पिताजी को फ़ोन कर छुपने के लिए कह दिया, मैंने संगीता से 20 कदम की दूरी बनाये रखी ताकि संगीता मुझे देख न ले| संगीता धीरे-धीरे सीढ़ियाँ उतरने लगी और restaurant में बैठे इक्का-दुक्का लोगों को बड़े गौर से देखने लगी ताकि पहचान सके की माया कौन है? इधर मैं भी दबे पाँव नीचे उतरा और एकदम से संगीता को पीछे से अपनी बाहों में जकड़ते हुए उसके कान में बोला;

मैं: Surprise मेरी जान! Happy birthday to you and I love you!

मुझसे अपनी ख़ुशी सँभाल पाना मुश्किल हो रहा था इसलिए मैंने किसी बच्चे की तरह सब एक साँस में कह दिया! इतने में माँ-पिताजी और बच्चे birthday caps पहने हुए पीछे से निकले| मैंने जल्दी से संगीता को अपनी बाहों से आजाद किया और संगीता ने फटाफट सर पर पल्लू किया| दोनों बच्चे आ कर अपनी मम्मी के पाँव से लिपट गए और एक साथ बोले; "Happy birthday मम्मी!" संगीता ने दोनों बच्चों के सर पर हाथ रख उन्हें आशीर्वाद दिया| माँ-पिताजी ने भी संगीता को आशीर्वाद देते हुए जन्मदिन की शुभकामनायें दी| माँ ने संगीता को अपने गले लगाया और बोलीं; "जुग-जुग जियो मेरी प्यारी बहु!" संगीता अब भावुक होने लगी थी| संगीता पिताजी के पास पहुँची और उनके पैर छूने लगी; "जुग-जुग जियो मेरी बेटी!" पिताजी, संगीता के सर पर हाथ रखते हुए बोले| संगीता के चहरे की ख़ुशी बयान करने लायक शब्द नहीं थे, वो इस समय इतनी खुश थी...इतनी खुश थी की उसकी आखें छलक आईं और वो एकदम से मेरे गले लग गई|

संगीता: आप...आपने ये सब कुछ प्लान किया था न?

संगीता सुबकते हुए खुसफुसा कर बोली| मैंने संगीता के इर्द-गिर्द अपनी पकड़ कस ली और हाँ में अपनी गर्दन हिलाई|

माँ: बस बहु बस! आज तो ख़ुशी का मौका है!

माँ ने संगीता के सर पर हाथ रखते हुए कहा| मैंने संगीता को अपनी बाहों से आजाद किया, संगीता इस वक़्त शर्माने लगी थी क्योंकि वो माँ-पिताजी की मौजूदगी में मेरे गले लग गई थी|

आयुष: मम्मी, जल्दी चलो अभी तो cake भी काटना है!

आयुष उत्साह से बोला और संगीता की ऊँगली पकड़ कर cake की ओर खींचने लगा| संगीता ने मुझे एक नजर देखा तो मैंने पाया की उसकी आँखें अभी भी नम हैं, मैंने अपनी जेब से रुमाल निकाल कर उसके आँसूँ पोछे और उसका हाथ किसी नए जोड़े की तरह थामे हुए center table तक आया जहाँ cake रखा हुआ था| White forest cake पर मैंने 'Happy birthday my lovely wife" लिखवाया था जिसे पढ़ कर संगीता लजाने लगी थी! संगीता ने cake पर लगी हुई एक मोमबत्ती बुझाई और cake काट कर पहला piece पिताजी को खिलाया तथा उनका आशीर्वाद लिया| फिर अगला piece संगीता ने माँ को खिलाया और उनका आशीर्वाद लिया| तीसरा piece वो मुझे खिलाने वाली थी परन्तु मैंने संगीता का हाथ पकड़ कर नेहा की तरफ घुमाया| नेहा ने cake खाया परन्तु थोड़ा सा केक नेहा के गाल पर लग गया था|

नेहा: Happy birthday मम्मी!

नेहा ने ख़ुशी के मारे संगीता के गाल को kiss किया जिस कारण संगीता के गाल पर भी केक लग गया| संगीता अपना गाल सफने करने वाली थी की मैंने उसे रोक दिया और आँख मारी! मेरे आँख मारने से संगीता शर्म के मारे लाल हो गई, परन्तु मैंने उसका ध्यान आयुष को cake खिलाने की तरफ मोड़ा| जैसे ही संगीता ने cake का piece उठाया, आयुष ने एकदम से संगीता का हाथ पकड़ा और अपने मुँह की तरफ ले आया| आयुष का ये cake खाने का उतावलापन देख सभी हँसने लगे| मैंने आयुष को उसकी मम्मी के गाल पर cake लगाने का इशारा किया तो आयुष ने चुपके से ऊँगली पर cake की frosting उठाई और अपनी मम्मी के दूसरे गाल पर kiss करने के बहाने वो frosting लगा दी! अब संगीता के दोनों गालों पर cake लग चूका था| अंत में बारी मेरी थी, जैसे ही संगीता ने मुझे cake खिलाया की मैंने बचा हुआ cake का टुकड़ा उठा कर संगीता के नाक, गाल और होठों पर प्यार से वो cake का piece रगड़ डाला! संगीता ने बचने की बहुत कोशिश की थी पर मैंने अपना बचपना दिखाते हुए संगीता का मुँह सफ़ेद करना जारी रखा| ये दृश्य देख दोनों बच्चे खिलखिलाकर हँस रहे थे वहीं माँ-पिताजी मुस्कुराते हुए मुझे रुकने को कह रहे थे|

"पगला कहीं का!" माँ ने प्यार से मेरी पीठ पर थपकी मारी और संगीता जो की खुद मुस्कुरा रही थी, उसे अपने साथ bathroom ले गईं| मैं, पिताजी और बच्चे कुर्सी पर बैठ चुके थे की तभी दोनों सास बहु (माँ और संगीता) भी आ कर बैठ गईं| "इतना बड़ा हो गया है, लेकिन अभी भी बचपना नहीं गया इसका!" माँ मुझे प्यार से डाँटते हुए बोलीं| उधर संगीता ने मुझे चुपके से जीभ चिढ़ाई और बुदबुदाते हुए बोली; "मेरी बारी आने दो, सर से ले कर पाँव तक मैंने cake न लबेड दिया तो कहना!"

खैर दोपहर के खाने का समय था इसलिए मैंने सभी के लिए pizza, calzone और pasta मँगाया| मैंने तो office party में या दिषु के साथ बहुत बार pizza खाया था, माँ ने एक बार मेरे साथ घर पर pizza खाया था मगर पिताजी, बच्चे और संगीता आज पहलीबार pizza खाने वाले थे| Pizza देख कर पिताजी का तो मुँह बन गया और उन्होंने जबरदस्ती वो pizza थोड़ा सा खाया, माँ को भी ये वाला pizza उतना पसंद नहीं आया| बच्चे और संगीता pizza देख कर स्तब्ध थे क्योंकि उन्होंने आज से पहले pizza खाली टी.वी. पर देखा था| मैंने शुरुआत करते हुए pizza का एक slice उठाया तो मेरी देखा-देखि संगीता और बच्चों ने भी एक-एक slice उठाया| फिर हम चारों ने एकसाथ अपने-अपने pizza slice की bite ली, इसबार भी सुबह की ही तरह संगीता और दोनों बच्चों ने ख़ुशी के मारे एक साथ अपनी गर्दन दाएँ-बाएँ हिलनी शुरू कर दी! सुबह की ही तरह मेरा दिल ख़ुशी से भर उठा और मेरे चहेरे पर मुस्कान छा गई! संगीता और बच्चों को खाना बहुत पसंद आया था और उनके चेहरे पर आई मुस्कान माँ-पिताजी के दिल को प्यार से छू गई थी|

खा-पी कर हम सभी गाडी से घर लौटे, घर पहुँच कर सब कपडे बदलने जा रहे थे की मैंने सबको रोकते हुए कहा; "शाम को हम सब film देखने जा रहे हैं!" Film देखने के नाम से बच्चों में उत्साह भर गया और वो ख़ुशी से मेरी टाँगों से लिपट गए! माँ-पिताजी ने बहुत कोशिश की कि मैं संगीता और बच्चे अकेले जाएँ मगर संगीता ने भी जिद्द पकड़ ली की वे (माँ-पिताजी) भी हमारे साथ चलें| आखिर माँ-पिताजी मान ही गए, दोनों बच्चों ने अपने दादा-दादी जी का हाथ पकड़ा तथा cartoon देखने में व्यस्त हो गए| "मेरे जानू ने मेरे birthday के लिए इतनी सारी planning की?! मुझे जानबूझ कर जलाया और फिर मेरे लिए दुनिया का सबसे best birthday plan कर के surprise दिया उसके लिए आपको बहुत सारा thank you!" संगीता भावुक होते हुए बोली और मुझसे कस कर लिपट गई| मैंने कस कर संगीता को अपनी बाहों में लपेट लिया; "Sorry मेरी जान मैंने आपको इतना सताया!" ये कहते हुए मैंने संगीता के माथे को चूमा|

शाम हुई तो हम सभी film देखने के लिए निकले, आज बरसों बाद पिताजी film देखने के लिए theatre में आये थे| आखरी film जो मैंने, माँ ने और पिताजी ने एक साथ देखि थी वो थी 'हम आपके है कौन?', आज इतने साल बाद multiplex देख कर पिताजी बहुत हैरान थे| बैठने की बारी आई तो मैंने और संगीता ने सबसे कोने की सीट पकड़ी, हमारे बगल में बच्चे और बच्चों की बगल में माँ-पिताजी| मैंने 'pk' film की ticket book कराई थी, film की शुरुआत अच्छी थी और जब film में सुशांत और अनुष्का का kissing scene आया तो संगीता ने मेरा हाथ दबा दिया क्योंकि इस वक़्त संगीता वो scene देख कर बहुत उत्तेजित हो चुकी थी! अगर हम घर पर होते तो हम ये scene खुद कर रहे होते!

जब interval हुआ तो बच्चों ने popcorn की माँग की, मैं और संगीता बाहर popcorn लेने आये तभी मुझे मेरे पुराने office की colleague साधना मिली;

साधना: Hi मानु!

साधना मुझे हाथ दिखाते हुए बोली|

मैं: Hi! Meet my wife Sangeeta!

मैंने ख़ुशी से साधना का परिचय संगीता से कराया|

मैं: और ये हैं साधना, मेरी पुरानी office colleague.

जब मैंने संगीता का परिचय साधना से कराया तो संगीता ने साधना को गौर से देखा और उसके भीतर जलन की चिंगारी फूटी|

साधना: ओह, तो ये हैं संगीता जी? क्या बात है यार, आपने तो चुपके-चुपके शादी भी कर ली और हमें बताया भी नहीं?

साधना की बात सुन संगीता दंग थी, संगीता को मैंने अपनी office life के बारे में कुछ नहीं बताया था| वो बस इतना ही जानती थी की मैंने college खत्म होने के बाद office join किया था| इधर अपने सामने jeans पहने मेरी उम्र की खूबसूरत लड़की देख संगीता के मन में जली जलन की चिंगारी आग पकड़ने लगी थी| उस पर साधना ने बड़े धड़ल्ले से संगीता का नाम लिया था मानो जैसे वो संगीता को अच्छे से जानती हो, इस पर संगीता के मन में सवाल खड़े हो गए थे!

मैं: हाँ...वो...सब कुछ इतनी जल्दी हुआ की ...

संगीता का मुँह देख कर मैं जान गया था की संगीता जर्रूर रात को मुझसे लड़ेगी इसलिए मैं थोड़ा हड़बड़ाया हुआ था| मैंने जैसे-तैसे बात को सँभालना चाहा और साधना की बात का जवाब देना चाहा, मगर साधना ने मेरी बात काट दी;

साधना: अरे, कोई बात नहीं, ये बताओ party कब दे रहे हो?

साधना ने सीधा अपने मुद्दे की बात की|

मैं: Actually, दो दिन बाद हम honeymoon cum family holiday पर जा रहे हैं, तो वापस आ कर कुछ plan करता हूँ|

Honeymoon cum family holiday का नाम सुन साधना हैरान हुई और मुझसे इसका मतलब पूछने लगी;

साधना: What? Honeymoon cum family holiday वो क्या होता है?

इधर संगीता की जलन बढ़ने लगी थी क्योंकि मन ही मन वो अपने आप को साधना के आगे कम आंक रही थी!

मैं: हाँ...its a long story ...वापस आ कर बताता हूँ!

मैंने बात खत्म करते हुए कहा|

साधना: चलो फिर वापस आ कर किसी दिन मिलते हैं!

साधना ने मुझे bye कहा और वो ladies' toilet में घुस गई और इधर मैं और संगीता popcorn लेने line में लग गए|

संगीता: माया, साधना और कितनी लड़कियों को जानते हो आप?

संगीता भोयें सिकोड़ कर बोली|

मैं: यार वो मेरी office colleague थी|

मैंने बात खत्म करने के लिए कहा, परन्तु संगीता ने अपना शक मिटाने के लिए दूसरा सवाल दागा;

संगीता: अच्छा? तो उसे मेरे बारे में कैसे पता?

मैं: जान, उन दिनों मैं तुम्हें याद करके office में खोया-खोया रहता था| ऐसे ही एक दिन साधना ने मुझसे मेरी उदासी का कारण पुछा तो मैंने उसे तुम्हारा नाम बता दिया लेकिन उससे ज्यादा मैंने उसे कुछ नहीं बताया|

संगीता मुझ पर शक नहीं करती थी, वो जानती थी की मैंने आजतक उसके अलावा किसी दूसरी स्त्री को नहीं छुआ| उसे बस दूसरी लड़कियों को मुझसे बात करके देख जलन होती थी!

संगीता: हम्म्म...और भी कोई है?

संगीता ने आँखें तरेरर कर मुझसे पुछा तो मैंने थोड़ी मस्ती करते हुए कहा;

मैं: न......जब मिलेगी तब बता दूँगा|

मैंने आखरी की बात दबी हुई आवाज में कही जिसे सुन संगीता के चेहरे पर प्यार भरा गुस्सा आ गया और उसने मेरी बाजू पर प्यार से मुक्का मारा|

बहरहाल film खत्म हुई और चूँकि हम बाहर ही थे तो सभी एक restaurant में खाना खाने बैठ गए| एक restaurant में पूरा परिवार जब एकसाथ बैठ कर खाना खाता है तो उसका मज़ा कुछ और ही होता है| सभी के चेहरे पर ख़ुशी थी और इस ख़ुशी ने सब को आत्मिक शान्ति दी थी|

खाना खा कर हम सभी घर लौटे, माँ-पिताजी तो आज की मस्ती से थक गए थे इसलिए वो सीधे सोने चल दिए| उधर बच्चों का उत्साह कम होने का नाम नहीं ले रहा था, अब दोनों मेरे और संगीता के साथ बैठ कर टी.वी. देखना चाहते थे! मैंने बच्चों को प्यार से समझा-बुझा कर कहानी सुना कर उन्हें माँ-पिताजी के पास सुलाया और चुपके से अपने कमरे में आ गया| मैंने घडी देखि तो अभी बस 9 बजे थे, मैंने पिताजी (ससुर जी) को फ़ोन किया और उन्हें याद दिलाया की आज संगीता का जन्मदिन है, तथा उन्हें एक प्यारा सा झूठ बोलने के लिए राज़ी कर लिया| उनसे बात करने के बाद मैंने अनिल को भी फ़ोन कर के संगीता के जन्मदिन की याद दिलाई और उसे भी एक झूठ बोलने के लिए राज़ी कर लिया| पिताजी और अनिल का संगीता का जन्मदिन याद न रखना मेरे लिए कोई बड़ी बात नहीं थी, मुझे तो बस संगीता के चेहरे पर अपने परिवार द्वारा जन्मदिन के बधाई मिलने की ख़ुशी देखने से मतलब था| अनिल से छोटी सी बात कर मैंने चुपके से fridge में छुपाये हुए गुलाब के फूल निकाले और अपने पलंग पर फैला दिया, हमारा पलंग आज फिर से सुहाग सेज बन चूका था| कमरे की light बुझा कर मैं बाहर बैठक में आया, संगीता टी.वी. पर समाचार देखने में व्यस्त थी|

मैं संगीता की बगल में बैठा और अपना दायाँ हाथ उसके दाएँ कँधे पर रख उसे अपने से सटा लिया| संगीता ने भी मुझे अपनी दोनों बाहों से जकड़ लिया और प्यासी आँखों से मुझे देखते हुए बोली;

संगीता: तो और भी कुछ surprise है मेरे लिए या बस इतना ही था?

मैं संगीता की आँखों की प्यास पढ़ चूका था, मगर अभी उसे अगला surprise देना था;

मैं: Speaking of surprises, there's still one left.

ये सुन कर संगीता के चेहरे पर उमीदों भरी खुशियाँ आ गई, मगर अपनी बात कह मैंने अपना फ़ोन उठाया तो संगीता के चेहरे पर आई सारी खुशियाँ फुर्र हो गईं!

मैंने फ़ोन पिताजी (अपने ससुर जी) को मिलाया और "पायेंलागि पिताजी" कह फ़ोन संगीता को दे दिया;

ससुर जी: जुग-जुग जियो हमार मुन्नी! जन्मदिन का बहुत सारी बधाई!

अपने पिताजी से जिंदगी में पहलीबार जन्मदिन की बधाई पा कर संगीता ख़ुशी से फूली नहीं समाई| आज जिंदगी में पहलीबार उसके पिताजी ने उसे जन्मदिन की शुभकामनायें दी थीं, अब गाँव में कहाँ कौन जन्मदिन याद रखता है!

ससुर जी: ओ का है की मुन्नी, हम तोहरे चरण काका संगे लखनऊ गयन रहन और mobile घरे भुलाये गयन रहन एहि से हम तोहका दिन मा फ़ोन नाहीं कर पायें| हम बस आभायें घर पहुँचें तो हम कहीं की लाओ जरा आपन मुन्नी का बधाई दे देइ!

ससुर जी ने मेरे द्वारा बताया हुआ झूठ बोला और फिर माँ (ससुर माँ) को फ़ोन दे दिया|

सासु माँ: जीती रहो हमार मुन्नी! जन्मदिन की....बधाई!

दरअसल मेरी सासु माँ 'बधाई' शब्द बोलना भूल गईं थीं जो मेरे ससुर जी ने पीछे से बोलते हुए उन्हें याद दिलाया था| (हा...हा...हा)
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सासु माँ ने संगीता से बहुत प्यार से बात की और उसका हाल चाल पुछा| फिर उन्होंने मुझसे बात करने की इच्छा जताई और मुझसे बात करते समय वो थोडीं भावुक हो गईं, मैंने उनका मन हल्का किया और उनका ध्यान खाना बनाने की तरफ मोड़ दिया| अपनी सासु माँ को जो मैंने experimental cooking का चस्का लगाया था, उसे ले कर सासु माँ ने एक दिन मेरी जैसी ही दाल बनाई थी जो ससुर जी को बहुत पसंद आई थी| मैंने अपनी सासु माँ को नए-नए तरीके बताने शुरू कर दिया थे, मुझे अपनी माँ से बात करते देख संगीता बहुत खुश थी| इतने में अनिल ने संगीता के फ़ोन पर call कर उसे birthday wish दी तथा अपने college lectures में व्यस्त होने के कारण संगीता को देर से birthday wish करने का बहाना मार दिया| इधर हम माँ-बेटे (मेरी और सासु माँ) की बातें हो रहीं थीं और उधर दूसरे माँ-बेटे (संगीता और अनिल) की बातें होने लगीं| संगीता ने अनिल का हाल-चाल पूछा और उसकी पढ़ाई को ले कर किसी अध्यापिका की तरह उससे सवाल पूछने लगी|

लगभग आधे घंटे तक हमारी बातें चलीं और अंत में सबको bye बोल कर फ़ोन काट कर हम दोनों मियाँ बीवी प्यार से एक दूसरे को देखने लगे| अपने माता-पिता और भाई से बात कर के संगीता बहुत खुश हो गई थी और उसकी ये ख़ुशी देख कर मैं बहुत प्रसन्न था!

संगीता: जानू, आपने सबसे झूठ कैसे बुलवा लिया?

संगीता मुस्कराते हुए बोली| उसका सवाल सुन मैं हैरान था क्योंकि माँ-पिताजी (मेरे सास-ससुर जी) और अनिल द्वारा बुलवाया गया मेरा झूठ संगीता ने एकदम से पकड़ लिया था| मैं कुछ कहता उसके पहले ही संगीता किसी थानेदारनी की तरह तहकीकात करते हुए मुझसे सवाल पूछने लगी;

संगीता: मैं सच में बहुत हैरान हूँ, मुझे आजतक मेरा जन्मदिन याद नहीं था, माँ-पिताजी को आजतक याद नहीं था यहाँ तक की अनिल को भी मेरा जन्मदिन आजतक याद नहीं था फिर भला आपको मेरा जन्मदिन कैसे याद रहा?

संगीता अपने हाथ मोड़ कर बैठते हुए बोली|

अब देखा जाए संगीता इतनी भोली भी नहीं थी जितनी मैं उसे समझता था, मैंने जो अनिल और माँ-पिताजी (अपने सास-ससुर जी) द्वारा अचानक call कराया था, ऐसा झूठ पकड़ना बहुत आसान था| खैर इस समय संगीता को मैं किसी थानेदारनी के रूप में देख रहा था और इसी कारण मेरे चेहरे पर मुस्कान थी|

संगीता: मैं इतनी बड़ी हो गई, दो बच्चों की माँ बन गई लेकिन मेरे माँ-पिताजी ने मुझे कभी मेरे जन्मदिन की मुबारकबाद नहीं दी| मेरे सगे भाई तक को मेरा जन्मदिन नहीं पता इसलिए वो कभी मुझे birthday wish नहीं करता था, हाँ मैं उसे जर्रूर उसके जन्मदिन पर wish करती थी| लेकिन आप...आपको ये दिन कैसे याद रहा?!

संगीता ने बात को और कुरेदते हुए बोली, दरअसल उसे मुझसे जानना था की मैंने ये सब planning की कैसे?! उधर मेरी नजरें बस संगीता की आँखों पर टिकी थीं क्योंकि संगीता की आँखें अब धीरे-धीरे नशीली हो चुकी थीं और उसने हाथ बढ़ा कर अपनी आक्रमकता दिखाते हुए मेरी कमीज का collar पकड़ लिया था|

मैं: शादी के बाद आज तुम्हारा पहला जन्मदिन था और मैं आज के दिन को तुम्हारे लिए special बनाना चाहता था इसलिए मैंने थोड़ा सा झूठ सबसे बुलवा दिया! फिर तुम्हारा जन्मदिन मैं कभी नहीं भूला था, जब तुम से खफा था तब भी आज का दिन याद रखता था और गुस्से में होने के बावजूद आज के दिन तुम्हें surprise देने की कल्पना करता था|

मैंने संगीता को अपनी बाहों में भरते हुए कहा|

संगीता: अब तो मेरी तरफ से एक return gift देना बनता है!

संगीता ने मुझे आँख मारते हुए कहा| Return gift से संगीता का क्या तातपर्य था ये मैं जानता था, तभी तो मैंने पहले ही पलंग को सजा कर तैयारी कर ली थी|

मैंने संगीता को कमरे में जाने को कहा और मैंने घर का दरवाजा और lights बंद की| मैं और संगीता कमरे में कुछ इस कदर दाखिल हुए की संगीता आगे थी और मैं उसके ठीक पीछे| संगीता ने जैसे ही कमरे की light जलाई तो पलंग को सजा हुआ देख वो ख़ुशी के मारे उछल पड़ी!

संगीता: ये...आपने?

संगीता ख़ुशी से चहकते हुए बोली|

मैं: हाँ जी जान! अब हमारा honeymoon तो मेरी वजह से honeymoon cum family holiday बन गया, तो मैंने सोचा की आज आपके birthday वाले दिन ही हम दोनों honeymoon मना लें!

मैंने संगीता को अपनी गोद में उठा लिया, फिर संगीता के हाथों कमरे का दरवाजा बंद करवाया, कमरे की light बुझवाई और लाल रंग का bulb जलवा कर उसे पलंग पर ले आया| फिर शुरू हुआ "Passionate love making" का दौर और जब ये दौर खत्म हुआ तो हाँफते हुए दोनों प्राणी अपनी साँसें काबू करने लगे|

अपनी साँसें काबू कर संगीता मेरे सीने पर सर रख कर लेट गई और सँकुचाते हुए बोली;

संगीता: पक्का आपका किसी लड़की के साथ कोई चक्कर तो नहीं है न?

संगीता ने किसी बच्चे की भाँती ये सवाल पूछा था और उसका ये सवाल सुन मैं अपना पेट पकड़ कर हँसने लगा| संगीता को अभी तक मेरी हँसी का कारण समझ नहीं आ रहा था, वो तो मुझे बस मुँह बाए देख रही थी| अपनी हँसी को किसी तरह रोकते हुए मैंने संगीता की बात का जवाब दिया;

मैं: बाबू, आपको अब भी शक है?

मैंने संगीता की ओर प्यार से देखते हुए पूछा तो उसने फ़ौरन अपना सर न में हिला दिया|

मैं: अगर मेरा किसी और से चक्कर होता तो मैं आज के दिन के लिए इतना plan क्यों करता?!

मेरी बात सुन संगीता को इत्मीनान हो गया की मेरा किसी से कोई चक्कर नहीं है|

संगीता: सच कहूँ जानू, तो मुझे आप पर खुद से ज्यादा भरोसा है, लेकिन कल उस sms को पढ़ कर और आज साधना से मिल कर मुझे नजाने क्यों आपको खो देने का डर सताने लगा!

संगीता के डर को समझ कर मैंने संगीता को अपनी बाहों में कस लिया और उससे बोला;

मैं: बाबू, मैं सिर्फ और सिर्फ आपसे प्यार करता हूँ|

मैंने ये बात बड़े गर्व और आत्मविश्वास से कही जिससे संगीता के दिल को करार मिल गया|

अब फिर से जिस्म में romance के कीड़े कुलबुला रहे थे इसलिए हमने फिर से एक प्रेमपूर्वक समागम किया और उसके बाद हम दोनों प्राणी चैन से सो गए! तो कुछ इस तरह से संगीता का ये जन्मदिन हमेशा-हमेशा के लिए यादगार बन गया!

अगले दो दिन हमारे मुन्नार जाने की packing करते हुए निकले| 24 की सुबह को हम सभी समय से 1 घंटे पहले station पहुँच गए, अब पिताजी और माँ की बेकार की late हो जाने की चिंता का कोई हल नहीं था मेरे पास!

[color=rgb(184,]जारी रहेगा भाग - 11 में...[/color]
 

[color=rgb(251,]पच्चीसवाँ अध्याय: खुशियों का आगमन[/color]
[color=rgb(97,]भाग -11(2)[/color]


बहरहाल माँ-पिताजी को good night बोल हम दोनों अपने कमरे में लौट आये, संगीता bathroom में घुस कर मुझे मनाने के लिए अपनी योजना पर काम करने लगी और मैं पलंग पर औंधे मुँह लेट गया! तैयार हो कर संगीता ने bathroom से निकल कर मुझे देखा तो उसे लगा की मैं सो गया;

संगीता: सुनिए? जानू..................सो गए क्या?

संगीता का सवाल सुन कर भी मैं कुछ नहीं बोला और सोने का नाटक करने लगा| दरअसल संगीता ने मुझे लुभाने के लिए करधनी पहनी थी, अब अगर मैं उसे करधनी पहने देखूँगा ही नहीं तो पिघलूँगा कैसे? इधर मैं अपना मन बना चूका था की आज मुझे सख्त लौंडा बने रहना है और संगीता के जाल में बिलकुल नहीं फँसना नहीं है!

इधर संगीता जानती थी की मैं सोया नहीं हूँ और खामोश रह कर अपनी नारजगी व्यक्त कर रहा हूँ| आखिर संगीता मेरे नजदीक आई और अपने दोनों कान पकड़ते हुए बोली;

संगीता: Sorry जानू! Please मुझे माफ़ कर दो!

संगीता ने मुझसे माफ़ी माँगी पर मैं अब भी औंधे मुँह पड़ा था| उसने मुझे मनाने के लिए गाँव में मेरे द्वारा किया हुआ वादा मुझे याद दिलाया;

संगीता: आप भूल गए की आपने गाँव में मुझे promise किया था की आप मुझसे कभी गुस्सा नहीं होगे?!

संगीता की बात सुन मैंने दूसरी तरफ मुँह किया और आँख बंद किये हुए बोला;

मैं: मैंने promise ये किया था की मैं तुमसे गुस्सा कभी नहीं हूँगा, लेकिन इस वक़्त मैं तुमसे नाराज हूँ| तो I don't think I'm breaking any promises I made!

मैंने सीधा सा जवाब दिया| संगीता की ये चाल भी पीटी तो उसने अपने दोनों कान पकडे हुए फिर से माफ़ी माँगनी शुरू कर दी;

संगीता: Sorry बाबा! मैं...मैं.....

वो आगे कुछ कहती उससे पहले ही मैं बोल पड़ा;

मैं: Hey, No need to say sorry. I can understand!

मैंने बात को खत्म करने के लिए कहा| मैंने अभी तक संगीता की तरफ नहीं देखा था इसलिए संगीता को मेरी बात पर वियश्वास नहीं हो रहा था;

संगीता: तो आप मुझसे नाराज नहीं हैं?

मैं: नहीं|

मैंने बड़े संक्षेप में जवाब दिया|

संगीता: तो मेरी तरफ देख के कहो?

संगीता बच्चों की तरह हट करते हुए बोली| मैंने ने संगीता की तरफ अपनी गर्दन घुमाई और अपनी बात दोहराई;

मैं: मैं नाराज नहीं हूँ!

मैंने कह तो दिया पर मेरे मन में कुछ देर पहले के सवाल गूँज रहे थे| मुझे ये तय करना था की हम दोनों में से कौन सही है? उधर संगीता मेरी बात पर विश्वास कर बैठी और ख़ुशी से बोली;

संगीता: I knew आप मुझसे ज्यादा देर नाराज नहीं रह सकते|

ये कहते हुए संगीता ने अपनी आँखों के इशारे से करधनी और अपनी नाभि की ओर इशारा करते हुए बोली;

संगीता: तो?.....

संगीता सोच रही थी की मैं उसे अपनी बाहों में भर लूँगा, लेकिन मेरे मन में उधेड़-बुन जारी थी;

मैं: Just gimme sometime, so I can recollect my thoughts!

मैंने बिना संगीता की नाभि और करधनी देखते हुए कहा| संगीता जानती थी की कई बार मुझे मेरे दिमाग में उमड़ रहे सवालों को सुल्जझाने में समय लगता है, इस बार भी मैं सुबह तक फिर से वही प्यार करने वाला मानु बन जाता परन्तु मेरी पत्नी को मेरे चहेरे पर मुस्कान देखनी थी! वो कुछ कहती उससे पहले ही बाहर दरवाजे पर दस्तक हुई|
दस्तक सुन संगीता फ़ौरन बाथरूम में घुस गई और मैंने उठ कर दरवाजा खोला| बाहर पिताजी नेहा को गोदी में ले कर खड़े थे और नेहा रोये जा रही थी| मुझे देखते ही नेहा मेरी गोदी में आ गई और मुझसे लिपट कर अपना रोना काबू करने लगी|

पिताजी: तू सही कहता था, नेहा हम में से किसी से नहीं सँभालती!

पिताजी प्यार से नेहा की पीठ पर थपकी मारते हुए बोले|

पिताजी: माफ़ करना बेटा नेहा के कारण मैंने तुम दोनों की नींद खराब की!

मैं: नहीं-नहीं पिताजी! नेहा के बिना मुझे नींद कैसे आती!

मैंने नेहा के सर को चूमते हुए कहा|

मैं: क्या हुआ मेरा बच्चा?

मैंने नेहा से तुतलाते हुए पुछा मगर मेरी बेटी से कुछ कहा नहीं जा रहा था!

पिताजी: पता नहीं बेटा, अचानक नींद से उठ बैठी और रोने लगी|

मैं: ओह्ह्ह! नेहा ने फिर बुरा सपना देखा होगा|

मैं नेहा की पीठ पर हाथ फेरते हुए बोला|

पिताजी: अच्छा good night बेटा, कल सुबह आराम से उठना, तुम्हारी माँ थक गई है और मैं भी|

मैं: जी good night!

पिताजी के अपने कमरे में घुसने के बाद मैंने दरवजा बंद किया और नेहा को पुचकार के चुप कराया|

मैं: Awww मेरा बच्चा! बेटा वो बस बुरा सपना था, भूल जाओ! अब आप पापा के साथ हो न?

मैंने नेहा की पीठ थपथपाते हुए उसे होंसला दिया| नेहा को सुलाने के लिए मैं कमरे में एक कोने से दूसरे कोने तक घूमने लगा, इतने में संगीता ने bathroom से बाहर झाँक के पूछा;

संगीता: पिताजी चले गए?

संगीता ने bathroom से पिताजी की आवाज सुन ली थी|

मैं: हाँ|

मैंने कमरे में टहलते हुए कहा| मेरी गोद में नेहा को देख संगीता समझ गई की पिताजी क्यों आये थे;

संगीता: तो इस शैतान ने उन्हें तंग किया होगा!

मैं: हाँ, फिर से डर गई थी|

मैंने गहरी साँस छोड़ते हुए कहा|

संगीता: Maybe we should consult a doctor?

संगीता चिंतित होते हुए बोली|

मैं: हाँ, वापस चल कर दिखाते हैं!

मेरा ध्यान मेरी प्यारी बेटी को सुलाने में लगा था इसलिए मैं संगीता की बातों में ज्यादा दिलचस्पी नहीं ले रहा था|

कुछ ही देर में नेहा की आँखें भारी हो चुकी थीं, मैं उसे अपनी छाती से ही लिपटाये हुए लेट गया| संगीता ने हम दोनों बाप-बेटी पर कम्बल डाला और खुद भी उसी कम्बल में घुस कर मेरे नजदीक आ कर नेहा की पीठ थप-थपाने लगी| इस वक़्त मेरा हाथ नेहा की पीठ पर था और संगीता मेरे हाथ के ऊपर ही अपने हाथ से नेहा को थपथपा रही थी| ये संगीता को मुझे मनाने की प्यारी सी कोशिश थी! मैं कुछ नहीं बोला और सोने का नाटक करने लगा| संगीता ने भी आगे कुछ नहीं कहा और थोड़ी देर में उसकी आँख लग गई|

मैंने अपना दिमाग शांता किया और सब कुछ आहिस्ते-आहिस्ते समझने लगा| मेरा संगीता को तोहफा गलत नहीं था मगर मेरा उसके पीछे पड़ना वो भी सिर्फ इसलिए क्योंकि मैं उसे करधनी पहने देखना चाहता हूँ वो गलत था! मुझे ध्यान रखना चाहिए था की मेरी पत्नी को अगर सबके सामने करधनी पहनने में शर्म आती है तो मुझे उसकी बात की कदर करनी चाहिए! उसी तरह मेरा संगीता से उस park में kiss माँगना भी सरासर गलत था! मुझे अपनी पत्नी के मान-सम्मान की जिम्मेदारी लेनी चाहिए न की इस तरह फूहड़ बन कर खुले आम उससे ऐसी माँग करनी चाहिए! ये सारी बातें दिमाग में साफ़ हुईं तब जा कर मन शांत हुआ! अगली सुबह जो चीज मुझे सबसे पहले करनी थी वो थी अपनी पत्नी से अपने इस अजीब व्यवहार के लिए माफ़ी माँगना!
अगली सुबह मेरे जागने से पहले ही संगीता उठ चुकी थी तथा माँ-पिताजी का आशीर्वाद लेने जा चुकी थी| नेहा मेरी छाती से लिपटी हुई अब भी सो रही थी तो मैंने नेहा के सर को चूमते हुए उसे उठाया, नेहा ने भी पलट कर मेरे दोनों गालों पर अपनी सुबह की प्यारी-प्यारी पप्पी दी| मैंने घडी देखि तो सुबह के साढ़े आठ हुए थे, वहीं नेहा आँख मलते हुए सीधा bathroom में घुस गई| अपने आस-पास संगीता को न पा कर मैं थोड़ा व्याकुल था, मुझे लगा की कल रात के मेरे बर्ताव के कारण मेरी बीवी मुझसे नाराज हो गई है! मैं उसे ढूँढने उठा ही था की तभी संगीता दरवाजा खोल कर भीतर आई|

मैं: Oh my God!

मैं गहरी साँस लेते हुए बोला| मेरे चेहरे से मेरा डर झलक रहा था;

मैं: You scared the hell out of me!

मुझे घबराया देख संगीता परेशान हो गई, लेकिन वो कुछ कहती उससे पहले ही मैं एक साँस में अपने दिल की बात बोल गया;

मैं: कल रात जो हुआ उसके लिए मैं माफ़ी चाहता हूँ! Park में मुझे kiss करने और करधनी पहनने को ले कर मैं तुम्हारे साथ बेकार की जबरदस्ती कर रहा था! मैं वादा करता हूँ की आज के बाद मैं कभी इस तरह की कोई जबरदस्ती नहीं करूँगा और तुम्हारी हर बात की कदर करूँगा!

मेरी बात सुन संगीता के चेहरे पर एक नटखट मुस्कान आ गई, ऐसा लगता था मानो उसे बस यही सुनना था मुझसे!

संगीता: पक्का न?

संगीता कुटिल मुस्कान लिए हुए बोली|

मैं: हाँ जी!

संगीता: Okay!

संगीता ने बात खत्म करते हुए कहा| तभी माँ कमरे में संगीता से बात करने आईं पर मुझे जगा हुआ देख वो सीधा मुझसे बोलीं;

माँ; ओह्ह, तो लाड साहब उठ ही गए?

मैं: Sorry माँ, वो रात को नींद नहीं आ रही थी...

मैं आगे कुछ कहता उससे पहले ही माँ बोल पड़ीं;

माँ: कोई बात नहीं बेटा, आराम से तैयार हो जा| खैर, मैं यहाँ ये बताने आई थी की तेरे पिताजी ने डॉक्टर सरिता से नेहा के लिए बात की है| वापस जा के सब से पहले नेहा को उससे मिलवाना है|

Doctor सरिता का नाम सुन मुझे याद आया की कल संगीता ने नेहा के सपनों को लेकर डरने के बारे में डॉक्टर सरिता से मिलने को कहा था|

मैं: जी ठीक है!

मैंने संगीता की तरफ देखते हुए कहा| संगीता सुबह-सुबह यही बात करने के लिए माँ-पिताजी के पास गई थी| इधर माँ की नजर संगीता द्वारा पहनी हुई करधनी पर पड़ी तो वो संगीता की तारीफ करते हुए बोलीं;

माँ: अरे बहु, मैंने गौर नहीं किया पर तूने ये करधनी कब पहनी?

माँ की बात सुन मेरी नजर संगीता की कमर पर गई| संगीता ने अपनी नाभि साडी के नीचे छुपा रखी थी और साडी के ऊपर ही करधनी बाँधी हुई थी! संगीता को यूँ करधनी पहने देख मैं दंग रह गया था, मैं जान गया की संगीता ने ये बस मेरी ख़ुशी के लिए पहनी है! मैं नहीं चाहता था की संगीता जबरदस्ती मेरी ख़ुशी के लिए करधनी पहने इसलिए मैं संगीता को समझना चाहता था मगर माँ के सामने नहीं!

माँ: कौन लाया?

माँ ने मुस्कुराते हुए पुछा तो संगीता ने शर्माते हुए आँखों से मेरी ओर इशारा कर दिया|

माँ: ह्म्म्म्म्म....दिन पर दिन मेरा बेटा समझदार होता जा रहा है| शाबाश!

माँ ने गर्व के साथ मेरे सर पर हाथ फेरा| मेरी पत्नी ने मेरी तारीफ करवाई थी तो अब मेरी बारी थी उसकी तारीफ करवाने की, मैंने तुरंत माँ के सामने अपना दाहिना हाथ आगे किया ओर अपना bracelet दिखाते हुए बोला;

मैं: माँ ये भी तो देखो?!

माँ ने bracelet देखा और एकदम से समझ गईं की ये bracelet जर्रूर संगीता ने पसंद कर खरीदा है;

माँ: वाह! ये जर्रूर मेरी बहु लाई होगी?

माँ का अंदाजा बिलकुल सही था मगर मैं बुद्धू समझ नहीं पाया;

मैं: आपको कैसे पता?

मैंने थोड़ा हैरान होते हुए पुछा|

माँ: पसंद से पता चल जाता है बेटा!

ये कहते हुए माँ ने हम दोनों के सर पर हाथ रख कर आशीर्वाद दिया;

माँ: जुग-जुग जियो मेरे बच्चों, हमेशा ऐसे ही हँसते-खेलते रहो!

माँ के जाने के बाद मैंने संगीता से करधनी को ले कर बात की;

मैं: जान, तुम्हें जबरदस्ती ये करधनी पहनने की जर्रूरत नहीं है!

संगीता: किसने कहा ये (करधनी) मैंने जबरदस्ती पहनी है?

संगीता भोयें सिकोड़ आकर बोली|

संगीता: गलती मेरी थी, मैं आपकी भावनाओं को समझ नहीं पाई| कोई भी पति अपनी पत्नी को तोहफा देता है क्योंकि उसमें उसका प्यार छुपा होता है| मैं आपके प्यार को ठीक से समझ नहीं पाई और अपनी लाज के आगे आपके प्यार की बेकद्री की! आपने इतने चाव और प्यार के साथ मुझे ये करधनी दी ताकि मैं इसे पहन कर और भी ज्यादा खूबसूरत लगूँ, लेकिन मैं बुद्धू आपके प्यार को समझी नहीं और अपनी लाज का रोना ले कर बैठ गई! आपने भी तो मेरा दिया हुआ तोहफा कितने प्यार से पहना हुआ है.

संगीता को मेरा प्यार समझ आ गया था मगर मुझे अब भी उसका ये करधनी पहनना मेरी जबरदस्ती की याद दिला रहा था;

मैं: मैंने आपका दिया हुआ तोहफा पहना इसका मतलब ये तो नहीं की आप भी जबरदस्ती मेरा दिया तोहफा पहनो?

मैंने संगीता की बात बीच में काटते हुए कहा|

संगीता: कौन कह रहा है ये मैं जबरदस्ती पहन रही हूँ? जब आप मेरी ख़ुशी के लिए इतना करते हो तो क्या मैं आपके लिए एक करधनी भी नहीं पहन सकती|

संगीता बहस करते हुए बोली|

मैं: लेकिन अगर तुम ये करधनी नहीं पहनोगी तब भी मैं खुश रहूँगा!

संगीता: तब तो मेरे इसे पहनने से आप double खुश हो जाओगे!

संगीता अपना बचपना दिखाते हुए बोली|

मैं: यार......

मैं आगे कुछ कहता उससे पहले ही संगीता ने मेरी बात काट दी;

संगीता: All I want is you to be happy! फिर मुझे अब इसे (करधनी) पहनने की आदत हो गई है इसलिए आप मुझे मना नहीं करोगे| समझे?

संगीता प्यार से गाल फुलाते हुए बोली| मुझे यक़ीन हो गया की मेरी पत्नी को करधनी पहनने में कोई तकलीफ नहीं है इसलिए मैं मुस्कुरा दिया और बोला;

मैं: ठीक है बाबा! and Thank you!!!

मैंने संगीता को अपने सीने से लगाया और उसका सर चूमने लगा|

आज के दिन हम सबने Attukal waterfall घूमने जाना था| हम सब तैयार हो कर, नाश्ता-पानी कर के Attukal waterfall देखने के लिए निकले| बस में माँ-पिताजी आगे बैठे थे और उनकी गोद में आयुष बैठा अपनी बातों में उनका ध्यान लगाए हुए था| माँ-पिताजी के ठीक पीछे मैं, संगीता और नेहा बैठे थे| मौसम का जादू हम दोनों पति पत्नी पर असर दिखा रहा था जिस कारण हम दोनों आज कुछ ज्यादा जोश में थे! नेहा खिड़की की तरफ बैठी थी और खिड़की के बाहर के नज़ारे देखने में व्यस्त थी| इधर संगीता मेरे कँधे पर सर रखे हुए बैठी थी, मैंने अपना दायाँ हाथ संगीता के दाएँ कँधे पर रख उसे अपने से सटाये हुए था| मैंने बाएँ हाथ में संगीता के दाहिने हाथ को पकड़ कर मींजना शुरू कर दिया था जिससे संगीता के भीतर प्रेमजवाला जल चुकी थी| संगीता मौका पाते ही इधर-उधर देख कर मेरी गर्दन को चूम रही थी जिस कारण मेरे भीतर भी प्रेमजवाला जल चुकी थी! इन चुहलबाजियों ने हम दोनों को उत्तेजित कर दिया था, काश कहीं कोई कमरा मिल जाता तो honeymoon पर आना आज सार्थक हो ही जाता! मेरा मतलब था की, हम दोनों मियाँ-बीवी को यूँ छुपते-छुपाते प्रेम करना बहुत पसंद था और ये हमारे भीतर नई ऊर्जा भर देता था!



खेर हम Attukal waterfall पहुँचे तो वो नजारा देख के दिल खुश हो गया! वो कल-कल करता हुआ बहता पानी, झरने का शोर, ठंडी-ठंडी हवाएँ और हवाओं में पानी की सौंधी सी महक! ये कुदरती नजारा देख मन प्रसन्न हो गया था, उधर झरनेको देख बच्चों का मन उस ठंडे पानी में खेलने का कर रहा था! पिताजी मेरा और पानी का लगाव जानते थे इसलिए उन्होंने बड़ी सख्त हिदायत दी थी की हम में से कोई भी झरने के पानी में न उतरे वरना अगर भीग गए तो बीमार पड़ जायेंगे! पिताजी की सख्त हिदायत से बच्चे उदास हो गए थे क्योंकि उनका मन तो पानी में खेलने का था! अब मैं अपने बच्चों को उदास कैसे रहने देता? मैंने माँ-पिताजी को देखा तो वो थोड़ा आगे एक पत्थर पर बैठे आपस में बात करने में लगे थे| मैं बच्चों और संगीता को झरने के किनारे छोड़ कर पिताजी के पास आया| पिताजी हमेशा अपने पास एक अखबार रखते थे, सफर में ऊबने की बजाए उन्हें अखबार पढ़ने का शौक था| मैंने पिताजी से उनका अखबार लिया और बिना उन्हें कुछ बताये वापस बच्चों के पास आ गया| माँ-पिताजी अपनी बातों में व्यस्त थे इसलिए उन्होंने ध्यान नहीं दिया| बच्चों के पास लौट मैंने अखबार के दो पन्नों से दो नाव बनाई, एक पर मैंने आयुष का नाम लिखआ और दूसरी पर नेहा का नाम लिख दिया| नाव देख कर दोनों बच्चे बहुत खुश हो गए, वो खेल समझ गए थे और पानी में अपने-अपने नाम की नाव चलना चाहते थे| किनारे में पानी कम था, किनारे से थोड़ा दूर जाने पर बच्चे भीग जाते इसलिए मैंने अपनी पैंट घुटनों तक चढ़ाई, जूते-जुराब उतारे और पानी की ठंडक का जायजा लेने के लिए पानी में उतर गया| बर्फ से ठंडे पानी का एहसास होते ही मेरे रोंगटे खड़े हो गए और मेरी कंपकंपी छूट गई! शुक्र है की माँ-पिताजी ने पीछे मुझे पानी में उतरते नहीं देखा था वरना वो बहुत डाँटते!

संगीता: जानू, पानी बहुत ठंडा है! इस तरह मत भिगो वरना बीमार पड़ जाओगे?

संगीता मुझे रोकते हुए बोली, मगर मेरे सर पर अपने बच्चों की ख़ुशी का भूत सवार था;

मैं: कुछ नहीं होगा|

मैंने संगीता की बात को हलके में लेते हुए कहा|

मैंने ठंडे पानी में उतरने के लिए अपनी हिम्मत जुटाई, फिर मैंने आयुष को गोद में लिया और पानी में उतर कर दो कदम आगे बढ़ गया| कुछ ही सेकंड में ठंडे पानी ने मेरे पाँव सुन्न कर दिए थे, लेकिन आयुष के चेहरे पर जो ख़ुशी थी उसे देख कर मैं ये ठंड बर्दाश्त कर पा रहा था| मैं थोड़ा सा झुका और आयुष ने अपनी कागज की बनी नाव पानी में छोड़ दी, नाव बहती हुई कुछ दूर ही गई और फिर पानी के तेज बहाव के कारन डूब गई! लेकिन इन कुछ पलों में बच्चों को इतनी ख़ुशी मिली थी की उन्होंने ख़ुशी से कूदना शुरू कर दिया था! अब अगली बारी थी नेहा की, मैंने नेहा को भी आयुष की तरह गोदी में उठाया और थोड़ा झुका जिससे नेहा ने पानी में अपनी नाव छोड़ दी| नेहा की नाव आयुष की नाव के मुक़ाबले थोड़ी आगे गई थी जिससे नेहा बहुत खुश थी और अपने भाई को जीभ चिढ़ा कर अपनी जीत की ख़ुशी दिखा रही थी! आयुष: पापा जी...पापा जी...मैं दुबारा नाव चलाऊँगा!!!

आयुष किनारे पर से चिल्लाने लगा जिस कारन माँ-पिताजी का ध्यान मुझ पर आया| नेहा को गोद में लिए, पिंडली तक ठंडे पानी में मुझे खड़ा देख माँ-पिताजी दौड़े-दौड़े आये| मैंने भी जब माँ-पिताजी को अपनी ओर आता हुआ देखा तो मैं झट से पानी से बाहर आ गया|

पिताजी: पागल हो गया है क्या? मना किया था न ठंडे पानी में खेलने से? बीमार पड़ गया तो?

पिताजी गुस्से से बोले| पिताजी का गुस्सा देख बच्चे सहम गए और मुझसे लिपट गए|

माँ: बहु तू तो रोक लेती?!

माँ, संगीता से थोड़ा सख्ती से बोली मगर संगीता सर झुकाये चुप रही| अब मुझे अपनी पत्नी का बचाव करना था इसलिए मैं सच बोल पड़ा;

मैं: माँ, संगीता ने रोका था मगर मैं ही नहीं माना! मेरे बच्चे उदास हो गए थे!

बस इतना सुनना था की माँ-पिताजी के चेहरे से गुस्सा गायब हो गया और उसकी जगह प्यार आ गया| माँ ने पिताजी को कोहनी मारी और मुस्कुराते हुए बोलीं;

माँ: देखा? बिलकुल आप पर गया है?

पिताजी: अरे मैंने क्या किया?

पिताजी हैरान होते हुए बोले|

माँ: जब मानु छोटा था, तो आप इसकी हर जिद्द पूरी किया करते थे! मेरे से चोरी-चोरी इसे खिलोने ला के दिया करते थे| यहाँ तक की मैं रोटी बना रही होती थी और आप उतनी देर में इसे (मुझे) गोद में लिए ऑटो कर घुमा-फ़िरा लाते थे!

माँ प्यार से मुँह टेढ़ा करते हुए पिताजी से उन्हीं की शिकायत करने लगीं|

पिताजी: तो का हम आपन लाल का लाड न करी?!

ये कह पिताजी हँसने लगे|

पिताजी: बहुत लाड किया है मैंने तुझे (मुझे)! लेकिन बेटा, अपने बच्चों को प्यार करने के चक्कर में अपनी सेहत खराब कर लेना अच्छी बात नहीं!

पिताजी मुझे प्यार से समझाते हुए बोले|

मैं: मुझे कुछ नहीं होगा पिताजी!

मैंने आत्मविश्वास से कहा| मैंने कह तो दिया की कुछ नहीं होगा, लेकिन ठंडा पानी मुझ पर देर सवेर अपना असर दिखा ही देता है|

हम सभी शाम तक hotel पहुँच गए, अभी तक ठंडे पानी का मुझ पर असर शुरू नहीं हुआ था| रात को खाना खा कर माँ और बच्चे टी.वी. देखने लगे, पिताजी संतोष से काम का जायजा लेने के लिए बाहर जा कर बात कर रहे थे| इसी मौके का फायदा उठा कर मैंने सनगीता को टहलने का मूक इशारा किया| संगीता ने माँ के कान में धीरे से खुसफुसा कर बता दिया की हम दोनों बाहर टहलने जा रहे हैं| Hotel से बाहर निकल कर संगीता ने मेरा बयान हाथ अपने दोनों हाथों से जकड़ लिया और मुझसे चिपक कर चलने लगी| चलते-चलते हम दोनों फिर उसी park के पास जा पहुँचे जहाँ कल हमने एक प्रेमी जोड़े को kiss करते हुए देखा था|

इस जगह पहुँच कर हम दोनों मियाँ-बीवी को कल का दृश्य याद आ गया था मगर कल के मुक़ाबले आज मैं बहुत शांत था, मेरी पत्नी ने मेरी ख़ुशी के लिए करधनी पहनी थी, आज बच्चों के साथ मैंने जी भर कर पानी में मस्ती भी की थी, इससे ज्यादा की मैंने ख्वाइश नहीं की थी| वैसे मन तो आज भी kiss चाहता था मगर मैंने आज सुबह ही संगीता से वादा किया था की मैं उससे किसी भी चीज के लिए जबरदस्ती नहीं करूँगा, इस कर के मैंने संगीता से कुछ नहीं कहा|

रात के नौ बज रहे थे और पार्क लघभग खाली था इसलिए संगीता अब romantic हो चुकी थी!

संगीता: जानूऊऊऊऊ?!

संगीता ने ऊ शब्द खींचते हुए इतराते हुए बोली|

मैं: हम्म्म!

संगीता के इस तरह बात करने से मैं समझ गया की आगे क्या होने वाला है|

संगीता: I got a surprise for you!

संगीता अपनी आँखें नचाते हुए बोली|

मैं: Okay?!

मैंने थोड़ा उत्साह दिखाते हुए पूछा|

संगीता: पहले अपनी आँखें बंद करो|

संगीता खुश होते हुए बोली| मैंने फ़ट से आँखें बंद की और मन ही मन सोचने लगा की आखिर surprise क्या होगा? संगीता के हाथ में तो कुछ नहीं था, इसका मतलब जर्रूर कुछ मीठा मिलने वाला था!

इतने में संगीता ने अपनी बाहों का हार मेरी गर्दन के इर्द-गिर्द डाल दिया और अपने पंजों पर उठते हुए मेरे होठों पर अपने होंठ रख दिए! मैंने अपने दोनों हाथों से संगीता की कमर थाम ली और गर्दन थोड़ी नीचे कर संगीता के होठों से रस निचोड़ने लगा! करीब दो मिनट तक ये मधुर चुंबन चला और इन दो मिनटों में हमारे जिस्म प्रेम अग्नि से जल उठे थे!

जब हमारा चुंबन टूटा तो मैंने मुस्कुराते हुए संगीता से पुछा;

मैं: Okay...तो ये kiss किस लिए था?!

मैंने संगीता की तरह आँखें नचाते हुए पुछा तो संगीता हँस पड़ी और इतराते हुए बोली;

संगीता: ये kiss कल का उधार था|

संगीता की बात सुन मुझे लगा की संगीता ने ये kiss सिर्फ मेरी ख़ुशी के लिए किया है;

मैं: यार........

मैं आगे कुछ कहता उससे पहले ही संगीता ने मेरी बात काट दी;

संगीता: ये kissi मैंने अपनी मर्जी से दी है, सिर्फ आपकी ख़ुशी के लिए नहीं! है कोई और सवाल?

संगीता थोड़ा प्यार से नाराज होते हुए बोली| मैंने संगीता के आगे हाथ जोड़ हँसते हुए माफ़ी माँगीं तो मेरी पत्नी ठहाका लगा कर हँसने लगी!

हम दोनों पति-पत्नी हँसते हुए hotel लौटे, अब बारी थी सोने की तो आयुष बड़े भोलेपन से अपनी दीदी से बोला;

आयुष: मैं तो दादा जी के पास सोऊँगा! दीदी आप भी आजाओ, दादा जी न बहुत अच्छी कहानियाँ सुनाते हैं|

आयुष को यूँ माँ-पिताजी से प्यार पाते देख मैं खुश था, नेहा भी अपने दादा-दादी से बहुत लाड पाती थी मगर जब रात में सोने की बारी आती थी तब उसे मेरे पास सोना ही अच्छा लगता था!

नेहा: नहीं, मुझे पापा के पास ही नींद आती है|

ये कह नेहा ने आयुष को जीभ चिढ़ाना शुरू कर दिया था|

मैं: अच्छा बेटा, अब चलो सोने|

मैंने नेहा के सर पर हाथ रखते हुए कहा| हम तीनों अपने कमरे में आ गए थे और नेहा ने हमेशा की तरह पलंग के बीचों-बीच अपना कब्ज़ा स्थापित कर लिया था! अब 'संगीता जी' के ऊपर से romance का भूत नहीं उतरा था इसलिए उन्होंने नेहा के साथ तर्क करना शुरू कर दिया| मैं सोफे पर बैठा laptop पर mail देखने लगा, मगर ध्यान मेरा दोनों माँ-बेटी की बातों पर था|

संगीता: नेहा बेटा, अगर मैं आपसे कुछ माँगूँ तो आप मुझे दोगे?

संगीता ने बात बनाते हुए कहा| नेहा ने तुरंत जवाब में अपना सर हाँ में हिलाना शुरू कर दिया|

संगीता: बेटा आज रात आप अपने दादा-दादी के पास सो जाओगे?

इतना सुनते ही नेहा ने अपने मन की जिज्ञासा प्रकट की;

नेहा: पर क्यों मम्मी?

नेहा के सवाल पे मुझे हँसी आ गई और मैंने laptop की आड़ में मुस्कुराना शुरु कर दिया! अब अगर खुल कर मुस्कुराता तो संगीता देख लेती और फिर मुझ पर रासन-पानी ले कर चढ़ जाती! बहरहाल मेरी जिज्ञासा जाग चुकी थी की संगीता अब नेहा के साथ क्या तर्क करती है?!

संगीता: बेटा...वो...मुझे आपके पापा से कुछ बात करनी है?

संगीता ने कुछ सोचते हुए ये बहाना मारा, इससे ज्यादा वो कह भी क्या सकती थी?!

नेहा: तो करो न, मैंने कब रोका है?

नेहा अपना ध्यान टी.वी. में लगाते हुए बड़े तपाक से बोली| नेहा के इस जवाब को सुन मैं अपनी हँसी नहीं रोक पाया और ठहाका लगा कर हँसने लगा! मुझे यूँ हँसता हुआ देख और अपनी बेटी के जवाब के कारन संगीता के चेहरे पर भी थोड़ी सी मुस्कान आ गई|

संगीता: बेटा.वो...बातें आपके सामने नहीं हो सकती| वो बातें बस अकेले में ही होती है?

संगीता ने अपना पक्ष मजबूत करते हुए बात को गोल-मोल करते हुए बोला| नेहा के मन में फिर जिज्ञासा पैदा हुई की ये कौनसी बातें हैं मगर वो कुछ कहती उससे पहले ही संगीता के मुँह से कुछ चुभती हुई बात निकल आई;

संगीता: बेटा, आप बड़े हो गए हो इसलिए आपको अब अकेले सोने की आदत डालनी चाहिए! आखिर कब तक आप अपने पापा की गोद में चढ़े रहोगे?

ये सुनते ही नेहा एकदम से खामोश हो गई और उसका खिला हुआ चेहरा मुरझा गया था! मुझे उसे यूँ देख कर बहुत बुरा लग रहा था, अब अगर मैं नेहा की तरफदारी करता तो संगीता नाराज हो जाती! उधर नेहा चुप-चाप बिस्तर से उतरी और दरवाजे की ओर सर झुका कर जाने लगी| मैं नेहा को रोकता उससे पहले ही नेहा रुकी और मेरी तरफ मुड़ते हुए बोली;

नेहा: पापा जी, आप भी चाहते हो मैं यहाँ से चली जाऊँ?

नेहा ने अपनी मम्मी द्वारा कही बात का मतलब गलत समझा था! उसे लग रहा था की संगीता उसे यहाँ से भगाने के लिए ये सब कह रही है! यही कारण था की जब संगीता मुन्नार आने पर मुझसे नाराज हो गई थी मैं उसे समझा रहा था, न की अपने बच्चों को! इधर नेहा बहुत भावुक हो चुकी थी और उसे यूँ देख कर मेरा दिल पसीज रहा था! उस समय अगर मैं नेहा के सवाल का जवाब 'हाँ' में देता तो नेहा का दिल टूट जाता और वो फिर कभी मेरे पास नहीं आती! आखिर एक पिता का प्यार बाहर आया;

मैं: नहीं बेटा जी, बिलकुल नहीं| आप मेरे पास ही सोओगे|

मैंने laptop बंद करते हुए कहा और अपने दोनों हाथ खोल कर नेहा को गले लगने को बुलाया| नेहा हँसती हुई दौड़ी और मेरे सीने से लग कर बोली;

नेहा: Thank you पापा जी!

नेहा की ख़ुशी ऐसी थी मानो मैंने उसके और उसकी माँ के बीच में से उसे चुना हो!

संगीता: जानती थी आप अपनी गुड़िया (नेहा) से बहुत प्यार करते हो और उसका दिल कभी नहीं तोड़ोगे! Thank you मेरी बेटी का दिल नहीं तोड़ने के लिए!

संगीता मुस्कुराते हुए बोली| संगीता के मन में कोई दुःख नहीं था की मैंने नेहा का पक्ष लिया था, बल्कि ख़ुशी थी की मैं नेहा से इतना प्यार करता हूँ! बाप-बेटी-माँ तीनों लिपट कर सो गए और संगीता तथा मेरा romance आज नहीं हो पाया!

रात के दो बजे मेरी नींद खुली, मुझे साँस लेने में बहुत दिक्का हो रही थी| बुखार से मेरा माथा तपने लगा था, मेरी नाक बंद हो चुकी थी और गला ऐसा भर गया था की मुझसे कुछ बोला नहीं जा रहा था! साफ़ था की ये असर आज ठंडे पानी में की गई मस्ती का है! मैं नहीं चाहता था की मेरी वजह से संगीता और नेहा बीमार पढ़ें इसलिए मैं उठ कर सोफे पर जाके लेट गया तथा कम्बल से खुद को ढक लिया| फिर तो ऐसी बेहोशी वाली नींद आई की सुबह होने का होश ही नहीं रहा! 6 बजे जब संगीता bathroom जाने के लिए उठी तब उसने मुझे सोफे पर सोता हुआ देखा, ये देख उसे बहुत हैरानी हुई और उसे शक हो गया की जर्रूर कुछ गड़बड़ है! उसने मेरे बुखार से तप रहे माथे को छुआ तो वो दंग रह गई! इधर संगीता के ठंडे हाथ के स्पर्श से मेरी नींद भाग गई और मैंने बड़ी मुश्किल से अपनी आँख खोली!

संगीता: आपको तो तेज बुखार है!

संगीता घबराई हुई सी बोली|

मैं: हाँ...रात .....

इन दो शब्दों से ज्यादा मुझसे बोला नहीं गया क्योंकि मेरा गला दुखने लगा था! मेरी भारी-भरकम आवाज सुन संगीता को मेरे गले के दर्द का एहसास हो गया, वो फ़ौरन दौड़कर माँ-पिताजी के कमरे में गई और उन्हें सब बताया| माँ-पिताजी दौड़े-दौड़े आये और मेरी ये हालत देख माँ गुस्से से मुझ पर बरस पड़ीं;

माँ: मैंने कहा था न की बीमार पड़ जायेगा? देख, हो गया ना बीमार?!

मैं चुपचाप लेटा रहा और माँ की डाँट सुनने लगा|

पिताजी ने अदरक और काली-मिर्च वाली चाय मँगवाई जिसे पीने के बाद मेरे मुँह से कुछ शब्द फूटने लगे| जब मैंने बताया की रात को मेरी तबियत खराब हुई थी तो इसे ले कर माँ-पिताजी ने मुझे खूब सुनाया| उनका कहना था की मैंने तभी संगीता को क्यों नहीं जगाया?! वहीँ संगीता मुझे खा जाने वाली नजरों से देख रही थी की मैंने रात को उसे क्यों नहीं उठाया?! इतने में पिताजी ने मुझे देखने के लिए एक doctor बुला दिया,

डॉक्टर: आपको इस तरह ठण्ड में waterfall के ठंडे पानी में नहीं जाना चाहिए था! आपको hypothermia हो जाता तो?

ये सुन कर तो संगीता की जान हलक में अटक गई! डॉक्टर ने मेरा अच्छे से check up किया और संगीता को दवाइयाँ समझा कर मुझे आराम करने को बता कर जाने लगे|

पिताजी: डॉक्टर साहब, दरअसल 1 तरीक को हमारी वापसी है, तो ऐसे में मानु के train से सफर करने से कोई दिक्कत तो नहीं होगी न?

पिताजी ने थोड़ा घबराते हुए पुछा|

डॉक्टर: मानु को आराम करने दीजिये, इन दवाइयों से बहुत आराम मिलेगा|

इतना कह डॉक्टर चला गया और इधर माँ-पिताजी तथा संगीता मुझे घेर कर बैठ गए|

संगीता: आपने मुझे रात को उठाया क्यों नहीं?

संगीता गुस्से से मुँह फुलाते हुए बोली|

माँ: अगर बहु को नहीं उठाना चाहता था तो हमें उठा देता!

माँ भी अपनी बहु के साथ हो लीं|

मैं: मैंने सोचा...क्यों आपको...तंग करूँ| हल्का सा बुखार है...ये तो डॉक्टर...बढ़ा-चढ़ा के...कह रहा था| मैं अब...बेहतर महसूस...कर रहा हूँ|

मेरा गला अब भी मुझे ठीक से बोलने नहीं दे रहा था मगर फिर भी मैंने बात को हलके में लते हुए कहा और अपना दम दिखाने के लिए उठ कर बैठने की कोशिश की|

पिताजी: चुप-चाप आराम कर|

पिताजी ने मुझे डाँटते हुए कहा और फिर माँ से बोले;

पिताजी: हम भी आराम ही करते हैं, चलो जी!

माँ-पिताजी अपने कमरे में गए और इधर संगीता ने मुझे पलंग पर लेटने को कहा| नेहा अभी भी सो रही थी और मैं नहीं चाहता था की उसे मेरी बीमारी लग जाए इसलिए मैंने सनगीता से नेहा को दूसरे किनारे लिटाने को कहा| नेहा को दूसरे किनारे पर लिटा कर संगीता मेरे सिरहाने बैठ गई और मेरे माथे पर हाथ फेरते हुए बड़े प्यार से फिर अपना सवाल पूछने लगी;

संगीता: अब मुझे बताओ की आपने मुझे रात को उठाया क्यों नहीं?

मैं: यार आप...सब थके हुए थे...सोचा क्या उठाऊँ!

मैंने सच कहा तो संगीता नाराज हो गई;

संगीता: ठीक है, तो आगे से मैं कभी बीमार पड़ी तो मैं भी आपको नहीं बताऊँगी|

मैं: Sorry जान! मैंने...अपनी बिमारी...को हलके में...लिया था.....sorry!

मैंने कान पकड़ते हुए भोली सी सूरत बनाते हुए कहा तो संगीता मुस्कुरा दी और एकदम से बोली;

संगीता: ठीक है, इस बार माफ़ किया!

इतने में नेहा उठ गई और मुझे अपनी good morning वाली पप्पी देने ही वाली थी की मैंने उसे रोक दिया और अपनी बिमारी के बारे में बताया| नेहा मेरी बिमारी के बारे में जानकर उदास हो गई, मगर मैंने उसे जिम्मेदारी देते हुए कहा;

मैं: बेटा, अगर आप उदास हो जाओगे तो आपका छोटा भाई भी उदास हो जायेगा! फिर आपके दादा-दादी जी भी उदास हो जायेंगे! मैं जल्दी ठीक हो जाऊँगा, लेकिन तब तक आपको अपने छोटे भाई और दादा-दादी जी का ध्यान रखना है, उन्हें खुश रखना है!

मेरी प्यारी बेटी ने मेरी बात फ़ौरन मान ली और अपने चेहरे पर मुस्कान ले आई| वो फुदकती हुई अपने दादा-दादी जी के कमरे में पहुँची और आयुष के उठने तक अपने दादा-दादी जी का मन लगाए रखा|

मैंने संगीता को टी.वी. चालु करने को कहा और हम दोनों अगल-बगल बैठ कर टी.वी. देखने लगे| कुछ देर बाद फ़ोन की घंटी बज उठी, ये कॉल दिषु ने हम सभी का हाल-चाल पूछने के लिए किया था| मैं फोन उठाता उससे पहले ही संगीता ने फ़ोन उठा लिया और कॉल स्पीकर पर डाल दिया;

संगीता: नमस्ते भैया!

दिषु: नमस्ते भाभी जी, मानु है?

संगीता: हैं, पर उनकी तबियत खराब है|

संगीता ने मेरी ओर देखते हुए कहा|

दिषु: वहाँ जा कर भी बीमार पड़ गया?

दिषु हँसते हुए बोला|

संगीता: हाँ जी, कल बच्चों के साथ झरने के पानी में खेल रहे थे और अब इन्हें (मुझे) बुखार चढ़ा हुआ है!

संगीता ने दिषु को सारी बात बताई|

दिषु: ओह्ह! ऐसा करो उसे RUM पिला दो! सुबह तक 'टनटना' जायेगा!!!!

दिषु ने थोड़ा मजाकिये ढंग से अपनी बात कही| वैसे ये था तो बेजोड़ इलाज मगर मैं तो पिताजी से वादा कर चूका था की मैं कभी शराब को हाथ नहीं लगाऊँगा|

मैं: अबे...तेरा दिमाग...खराब है?

मेरी भारी सी आवाज सुन दिषु को मेरी बिमारी का एहसास हुआ|

दिषु: अबे, सही कह रहा हूँ भाई!

मैं: साले, मैं...दवाई खा के...ही खुश हूँ|

दिषु: भाई मैं तो तेरे भले की कह रहा था, आगे तेरी मर्जी| अच्छा ये बता कब आ रहा है?

दिषु ने मेरे RUM पीने की बात को ज्यादा नहीं खींचा क्योंकि वो जनता था की संगीता मेरे पास बैठी थी| यही कारण था की मैं और दिषु अभी शरीफों की तरह बात कर रहे थे, वरना अभी तो हमने गालियों से बात करनी शुरू कर देनी थी!

मैं: 2 जनवरी को|

दिषु: तो तू New Year वहीं मनाएगा?

आज तक मैंने New year हमेशा दिषु के साथ मनाया था, इसलिए मेरे दिल्ली से बाहर new year मनाने को ले कर वो थोड़ा हैरान था|

मैं: हाँ भाई!

दिषु: यार फिर तो मेरा अपने भतीजे-भतीजी के साथ new year मनाना रह गया! चल कोई बात नहीं, तुम सब enjoy करना और बच्चों को मेरा प्यार देना| Bye!

दिषु ने जब बच्चों के साथ अपने new year plan की बात कही तब मुझे होश आया की जिस दिन संगीता के हाथ की पहली रसोई थी उस दिन दिषु ने कहा था की वो और बच्चे new year साथ मनाएँगे| मैंने सोचा की दिल्ली वापस जा कर बच्चे दिषु के साथ रात को बाहर चले जायेंगे तथा एक और बार new year मना लेंगे|

मैं: Bye!

फ़ोन रखा ही था की तभ मेरी नजर संगीता पर पड़ी, दिषु की RUM पीने की बात सुन संगीता की आँखें चमकने लगीं थीं!

मैं: उस (मेरे RUM पीने के) बारे में सोचना भी मत?

मैंने प्यार से संगीता को सचेत करते हुए कहा| लेकिन संगीता कहाँ मेरी सुनती, वो उठी और बिना कुछ कहे माँ के कमरे में भाग गई| मिनट भर नहीं हुआ होगा की वो माँ को अपने साथ में ले आई|

माँ: बेटा, बहु ने अभी मुझे सब बताया| अगर RUM पीने से तू जल्दी ठीक होता है तो पी ले! कौन सा तुझे पूरी बोतल पीनी है, दो ढक्कन ही तो पीने हैं!

माँ मुझे समझाते हुए बोलीं|

मैं: आप भी किस पागल (दिषु) की बातों में आ रहे हो माँ? अगर RUM पीने से बिमारी खतम होती तो RUM बनाने वाले अमीर न हो जाते?! मैं दवाई ले रहा हूँ और उसी से ठीक हो जाऊँगा|

मैंने थोड़ा मजाक करते हुए अपनी बात समझाई|

माँ: बेटा पर तेरे बीमार होने से बहु और बच्चे घूमने नहीं जा सकते उसका क्या? जनता है जब से आयुष उठा है तब से तेरे पास आने को आतुर हो रहा था, तब नेहा ने उसे समझाया की अभी तेरी तबियत ठीक नहीं है और तू आराम कर रहा है| पता है कितना उदास हो गया था आयुष, तब तेरे पिताजी उसे और नेहा को घुमाने निकल गए!

मेरे कारण मेरे बीवी-बच्चों के घूमने न जाने से मुझे बुरा लग रहा था| मैंने सोचा की शाम तक दवाई लूँगा तो ठीक हो जाऊँगा और फिर शाम को ही सब के साथ कहीं घूम आऊँगा;

मैं: मैं अब पहले से बेहतर महसूस कर रहा हूँ, इसलिए शाम से ही हम घूमना शुरू करते हैं|

मैंने बच्चों की तरह उत्साह दिखाते हुए कहा| लेकिन तभी मेरी बीवी मुझ पर चढ़ बैठी;

संगीता: बिलकुल नहीं! जबतक आप पूरी तरह ठीक नहीं होते आप यहाँ से हिलोगे भी नहीं!

संगीता मुझे हुक्म देते हुए बोली|

मैं: Ohhh come on यार...

मैंने संगीता को समझाना चाहा मगर उसने मेरी बात काट दी;

संगीता: नहीं!!

माँ: बिलकुल सही कह रही है बहु|

माँ भी अपनी पतुआ की तरफ हो गईं|

माँ: चुप-चाप थोड़ी सी RUM पी ले और...

माँ आगे कुछ कहतीं उससे पहले ही मैंने माँ को सच बता दिया;

मैं: माँ, मैंने पिताजी से वादा किया था की मैं कभी शराब को हाथ नहीं लगाउँगा, इसलिए मैं नहीं पी रहा!

ये सुन माँ मुझे पुनः प्यार से समझाने लगीं;

माँ: बेटा दवाई की तरह पीना है, शराबियों की तरह थोड़े ही?!

मगर मैं वचनबद्ध था;

मैं: Sorry माँ, मैं दवाइयों से ही ठीक हो जाऊँगा|

तभी माँ ने कुछ सोचते हुए कहा;

माँ: अच्छा, अगर तेरे पिताजी कहेंगे तब तो पीयेगा न?

माँ का सवाल सुन मुझे एक सेकंड नहीं लगा और मैंने फ़ौरन न में गर्दन हिलाई|

मैं: नहीं!

माँ को मुझ पर प्यार आ गया और उन्होंने बड़े फ़क़्र से मेरे सर पर हाथ फेरा और बोलीं;

माँ: ठीक है बेटा! मुझे ये जानकार बहुत ख़ुशी हुई की तो अपने वादे का कितना पक्का है!

माँ अपने कमरे में जाने लगीं और मेरे लिए कुछ खाने को मँगाने को संगीता से कह गईं| संगीता ने मेरे लिए omlette मँगाया जो उसने अपने हाथ से मुझे खिलाया तथा मेरे साथ ही खाया| उधर माँ के लिए संगीता ने आलू के परांठे मँगा दिए जो खा कर माँ आराम करने लगीं|

संगीता मेरी ही बगल में बैठी थी की तभी उसके मन में जिज्ञासा उठी;

संगीता: जानू, एक बात पूछूँ?

मैंने हाँ में सर हिलाया|

संगीता: आपका drink करने का मन करता है?

संगीता का सवाल सुन मैं मुस्कुराया और दिमाग में आये शब्दों को जोड़कर शेर बनाने लगा;

मैं: हमने तुम्हारे हुस्न का रस चख लिया है,

अब शराब में क्या रखा है?

हमें बहकाने के लिए तेरी एक मुस्कान ही काफी है!

जानता हूँ काफ़िया नहीं मिला, पर उस समय जो दिल में आया वो मैंने कह दिया!

संगीता: वाह-वाह!!!वाह-वाह!!

संगीता ने जब मेरे शेर पढ़ने पर वाह-वाह की तो मैंने जोश-जोश में एक और शेर पढ़ दिया;

मैं: ये कैसा जादू किया तेरे इश्क़ ने,

एक काफ़िर को शायर बना दिया!!!

ये शेर मैंने what's app पर पढ़ा था!
lotpot.gif


संगीता: वाह-वाह!!!वाह-वाह!!!

संगीता मुस्कुराते हुए बोली|

संगीता: अच्छा बहुत हो गई शायरी, अब सच-सच बताओ, आपका मन करता है drink करने को?

संगीता ने अपनी बात दोहराई तो मैंने उसे सच बताया;

मैं: जान करता है, लेकिन मैं शराब पी आकर अपने बच्चों से कभी नजरें नहीं मिला पाऊँगा! मैं नहीं चाहता की मेरे शराब पीने का उन पर कोई भी बुरा प्रभाव पड़े! मुझे अपने बच्चों के लिए एक आदर्श पिता बनना है, इसलिए मैं पीने-पाने के चक्कर में नहीं पड़ता|

बच्चों के मेरी जिंदगी में आने के बाद से मुझे डर लगा रहता था की क्या होगा अगर कभी बच्चों ने मुझे शराब पीये देख लिया तो? नेहा ने चन्दर को बहुत बार शराब पीये हुए देखा था, ख़ास कर उस बेल्ट वाले काण्ड के समय की भयानक याद ऐसी थी जो नेहा के दिल में अब भी कहीं छुपी हुई थी, मुझे शराब पीये हुए देख हो सकता था की नेहा के मन में वो दर्दनाक याद फिर ताज़ा हो जाती और वो मुझसे उखड़ जाती! वहीं आयुष इस बात को बर्दाश्त नहीं कर पाता और मुझसे मेरे पीने का कारण पूछने लगता, तब मैं उसके किसी भी सवाल का जवाब नहीं दे पाता और उसकी (आयुष की) नजरों से हमेशा-हमेशा के लिए गिर जाता! यही कारण थे की मैंने जब अपने जन्मदिन वाली रात शराब पी थी तो मैं बच्चों के पास जाने से डर रहा था! खैर मेरी बात सुन संगीता बहुत प्रभावित हुई थी और उसके चेहरे पर एक गर्वपूर्ण मुस्कान आ गई थी|

संगीता: अच्छा जानू, अब आप आराम करो|

ये कहते हुए संगीता मेरे से सट कर बैठने लगी तो मैंने उसे रोकना चाहा;

मैं: नहीं जान, आप मेरे इतने नजदीक मत बैठो वरना आपको भी ये बिमारी लग जायेगी!

मैंने संगीता को समझाते हुए कहा, परन्तु संगीता ठहरी जिद्दी;

संगीता: नहीं मैं तो यहीं बैठूँगी!

ये कह संगीता मुझसे लिपट गई|

मैं: यार माना करो? आप सब को exposure न हो इसलिए तो मैं रात को सोफे पर सोया था|

मैंने थोड़ी कठोरता दिखाते हुए कहा| ये सुन संगीता एकदम से उठी और माँ के पास मेरी शिकायत ले कर पहुँच गई, माँ थोड़े गुस्से में मेरे पास आईं और मुझे झिड़कते हुए बोलीं;

माँ: क्यों रे? क्यों तंग कर रहा है बहु को?

मैं: मैंने क्या किया?

मैंने मासूम बनते हुए कहा|

माँ: बहु अगर तुझे चैन से सुलाने के लिए तेरा सर दबाना चाहती है तो तू उसे मना क्यों कर रहा है?

संगीता ने बड़ी चालाकी से माँ से झूठ बोल कर मुझे डाँट पड़वाई थी|

मैं: माँ वो.संगीता pregnant हैं और उसे कहीं मेरा सर्दी-बुखार न लगे इसलिए मैं उसे मना कर रहा था| मैं नहीं चाहता की मेरे होने वाले बच्चे को कोई बिमारी हो!

मेरी बात सुन माँ मुझे झिड़कते हुए बोलीं|

माँ: ऐसा कुछ नहीं होगा? मामूली सी सर्दी- खाँसी तो सब को लगी रहती है, फिर अपनों में बीमारी ऐसे नहीं फ़ैलती|

अब माँ को कौन समझाए की सर्दी-खाँसीं एक तरह की communicable disease होते हैं जो एक इंसान से दूसरे इंसान में बड़ी जल्दी फ़ैल जाते हैं| बहरहाल मैंने माँ और संगीता के आगे अपने हाथ जोड़े और माफ़ी माँगी| 'जब आप जीत नहीं सकते हो तो माफ़ी माँग कर अपनी जान छुड़ा लो!' ये है एक विवाहित जीवन का सार!

माँ फिर से अपने कमरे में चली गईं और संगीता दरवजा बंद कर मेरे पास कंबल में आ कर बैठ गई|

मैं: आजकल माँ-पिताजी से मेरी बड़ी शिकायतें हो रहीं हैं?

मैंने सनगीता को प्यार से taunt मारते हुए कहा|

संगीता: करनी पड़ती है, क्योंकि आप मेरी बात जो नहीं मानते!

संगीता मुझे उल्हाना देते हुए बोली|

मैं: जान, मुझे तुम्हारी बहुत चिंता है! मैं नहीं चाहता की मेरे कारण तुम बीमार पड़ो!

ये सुन संगीता ने भी बिलकुल वैसे प्रतिक्रिया दी जैसे कल रात नेहा ने अकेले सोने पर अपनी प्रतिक्रिया दी थी;

संगीता: तो इसका मतलब आप मुझे खुद से दूर कर दोगे?

संगीता का सवाल सुन मैंने उसे इत्मीनान से समझना चाहा;

मैं: जान, मेरी बिमारी कोई नासूर नहीं जो ठीक नहीं होगी! दो-चार दिन में मैं ठीक हो जाऊँगा और तब तक अगर तुम मुझसे थोड़ी जमीनी दूरी बनाओ तो इसका मतलब ये थोड़े ही है की मैं तुम्हें खुद से दूर कर रहा हूँ?

संगीता के पल्ले मेरी बात नहीं पड़ी, उसे लगा की मैं उसे ज्ञान दे कर खुद से दूर कर रहा हूँ इसलिए वो ताव में आ कर उठने लगी;

संगीता: लगता है आप ऐसे नहीं मानोगे? मैं, माँ को बुलाती हूँ!

मैंने फ़ौरन संगीता का हाथ पकड़ उसे रोक लिया और डर के मारे अपने दोनों कान पकड़ते हुए बोला;

मैं: Sorry-Sorry...Sorry-Sorry...Sorry-Sorry!

मेरे इस तरह से sorry बोलने से संगीता को मेरा अपनी माँ के प्रति भय का पता लगा और वो ठहाका लगा कर हँस पड़ी|

संगीता ने मुझे लेटने को कहा और वो मेरे नजदीक बैठ कर मेरा सर दबाने लगी| वहीं मेरे दिमाग में अब भी संगीता को exposure वाला ख्याल घूम रहा था इसलिए मैंने जानबूझ के दूसरी तरफ करवट ले ली ताकि मेरी साँसों के जरिये कहीं संगीता न बीमार पड़ जाए| परन्तु संगीता मेरी चालाकी समझ गई ;

संगीता: हम्म्म....clever हाँ?!

ये कहते हुए संगीता लेट गई और अपना हाथ मेरी कमर पर रख पीछे से मुझसे चिपक गई| मैं अपनी बीवी की इस होशियारी पर मुस्कुरा कर रह गया|

संगीता: जानू, आपको याद है एक बार मैं गाँव में बीमार पड़ी थी और तब आपने सारी रात जाग के मेरा ख्याल रखा था?

ये कहते हुए संगीता का हाथ मेरी कमर से सरकता हुआ मेरी छाती पर आ चूका था और संगीता मुझमें समाती जा रही थी| ये कोई कामवासना नहीं थी, ये बस एक खिंचाव था जो हम दोनों को अलग नहीं रहने देता था, हमें बस एक-दूसरे के जिस्म के सम्पर्क में रहना होता था!

मैं: हम्म्म|

मैंने आँख बंद किये हुए कहा|

संगीता: उस रात मुझे फिर से बुखार चढ़ा था और आपने ठीक इसी तरह लेटते हुए अपने शरीर से मुझे गर्मी दी थी!

अब मुझे संगीता की बात का असली मतलब और उसका यूँ मेरे संग चिपकने का कारण समझ आया था|

मैं: हम्म्म्म!

मैंने उस दिन को याद करते हुए कहा|

संगीता: वो मेरे लिए ऐसा लम्हा था जिसे मैं आपके दिल्ली आने के बाद हमेशा याद किया करती थी| सोचती थी की मैं कब बीमार पडूँ और आप मेरी देखभाल करने के लिए भाग कर मेरे पास आ जाओ!

ये कहते हुए संगीता ने मेरी गर्दन को चूम लिया|

मैं: तो इस बार कहीं फिर से बीमार पड़ने का इरादा तो नहीं?!

मैंने मज़ाक करते हुए कहा|

संगीता: क्या मुझे अब बीमार पड़ने की जर्रूरत है? अब तो हम हमेशा संग रहते हैं| फिर मेरी pregnancy की खबर के बाद से तो आप कुछ ज्यादा ही ख्याल रखते हो! हमारी शादी के अगले दिन से आप सारा घर संभाल रहे थे, मेरी मदद के लिए आपने घर में नौकरानी रखी और वो मुझे बार-बार फ़ोन कर के जो आप मेरा हाल-चाल लेते थे, मेरे लिए तरह-तरह की खाने की चीजें लाते हो!

संगीता खुश होते हुए सब बता रही थी|

मैं: भई तुमसे इतना प्यार जो करात हूँ तो तुम्हारा खयाल रखना तो बनता है न?! फिर कुछ महीनों में पापा बनने वाला हूँ, इसीलिए तो तुम्हें बीमार होने से बचाना चाहता हूँ!

मैंने फिर एक बार संगीता को प्यार से समझना चाहा मगर इस वक़्त संगीता एक अलग दुनिया में थी| वो हमारे भविष्य की सुनहरी कल्पना में लगी थी;

संगीता: जानू, मैं अपनी pregnancy को ले कर मैं बहुत excited हूँ!

संगीता की ये excitement मेरी समझ से परे थी, मैं कुछ पूछता उससे पहले ही संगीता खुद बोल पड़ी;

संगीता: इस बार आप मेरे साथ होगे न?

संगीता का सवाल मेरी मसझ में नहीं आया इसलिए मैंने बिना कुछ समझे ही जवाब दे दिया;

मैं: मैं तो हमेशा तुम्हारे संग हूँ|

संगीता: ऐसे नहीं...मेरा मतलब है जब मेरी delivery होगी तब?!

अब जा आकर मुझे संगीता की बात समझ आई| आयुष के पैदा होने के समय संगीता का ये प्यारा सा सपना था की मैं उसके साथ maternity room में रहूँ और सबसे पहले मैं हमारे बच्चे को गोद में लूँ| तब उसका ये सपना पूरा नहीं हो पाया था इसलिए वो चाहती थी की इस बार उसका ये सपना पूरा हो जाए!

मैं: जान, अगर डॉक्टर ने इज्जाजत दी तो जर्रूर रहूँगा|

उन दिनों होने वाले बच्चे के पिता को delivery के समय कमरे में नहीं रहने दिया जाता था| कुछ एक-आध hi-fi हॉस्पिटल थे जहाँ होने वाले बच्चे के पिता को अंदर जाने दिया जाता था| इधर मेरी बात सुन संगीता ने एकदम से जिद्द पकड़ ली;

संगीता: नहीं, promise me की आप आप मेरे साथ रहोगे?!

संगीता जिद्द करते हुए बोली|

मैं: अच्छा बाबा I promise!

मैंने संगीता के बचपने के आगे सर झुकाते हुए कहा|

संगीता: Thank you जानू!

संगीता ख़ुशी से चहकते हुए बोली|

संगीता: अब अच्छे बच्चे की तरह तो मेरी तरफ घूम जाओ!

संगीता मुझे प्यार से हुक्म देते हुए बोली| इस समय संगीता की नजर में मैं एक छोटा सा बच्चा था तभी वो मुझसे किसी बच्चे की तरह दुलार कर रही थी!

मैं: जान....

मैंने बिना घूमे संगीता को समझना चाहा लेकिन तभी संगीता एकदम से छोटी सी बच्ची बन गई और तुतलाते हुए बोली;

संगीता: जानू.pleaseeeeeeeeeee!!!!!!

उसकी ये प्यारी सी बोली सुन मैं पिघल गया;

मैं: ठीक है बाबा!

आखिर मैंने संगीता की तरफ करवट ले ली| मेरे अपनी बात मनवाने से संगीता बहुत खुश हुई, उसके चेहरे पर आई वो बेबाक ख़ुशी देख कर मेरी आँखें उसके चेहरे पर टिक गईं! कुछ पल हम दोनों ही एक दूसरे को एकटक देखते रहे, फिर संगीता ने मेरा चेहरा अपने सीने में छुपा लिया और फिर तो वो नींद आई की समय का किसी को कुछ पता ही नहीं रहा|

[color=rgb(184,]जारी रहेगा भाग - 11(3) में...[/color]
 

[color=rgb(51,]छब्बीसवाँ अध्याय[/color][color=rgb(51,]: दुखों का [/color][color=rgb(51,]ग्रहण[/color]
[color=rgb(251,]भाग - 1[/color]

[color=rgb(26,]अब तक पढ़ा:[/color]

प्यार-मोहब्बत से हम दिल्ली airport पर उतरे ओर वहाँ से taxi कर अपने घर पहुँचे| मुन्नार की ये यात्रा हमेशा-हमेशा के लिए हम सभी के दिलों में बस चुकी थी| एक सीधा-साधा honeymoon ने family vacation के रूप में पूरे परिवार को इतनी ख़ुशी दे गया जिसकी कल्पना हम में से किसी ने नहीं की थी!

[color=rgb(97,]अब आगे:[/color]

बच्चों ने घर आते ही खेलना-कूदना शुरू कर दिया, वहीं पड़ोस में किसी का चौथा था तो माँ-पिताजी शोक व्यक्त करने उस शोक सभा में वहाँ चल दिए| मुझे रात को site पर overtime खींचना था इसलिए मुझे थोड़ा आराम करके शाम तक site पर निकलना था| अब जब कोई रोकने-टोकने वाला नहीं था तो मैंने अपनी बीवी से romance करने की सोची| संगीता रसोई में खड़ी हो कर चाय बना रही थी जब मैंने उसे पीछे से अपनी बाहों में भर लिया| मेरे हाथ संगीता के पेट पर अपनी पकड़ बना चुके थे, मेरे नथुनों में संगीता के जिस्म की मादक खुशबु भरने लगी थी और मेरा 'वो' अपना एहसास संगीता को दिला रहा था| मेरे 'उसके' एहसास से संगीता गनगना चुकी थी और उसकी साँसें बेकाबू होने लगीं थी;

संगीता: उम्म्म्म.... जानू.....आपका मन नहीं भरा ....उम्म्म्म...हटो ....चाय बनाने दो|

संगीता का जिस्म कुछ और चाह रहा था और उसकी जुबान कुछ और कह रही थी! चूल्हे पर चायदानी चढ़ थी और उसमें पानी उबल रहा था, ठीक उसी तरह संगीता के भीतर भी प्यार उबल रहा था! मैंने गैस बंद की और संगीता की गर्दन को चूमते हुए बोला;

मैं: जान, छोडो चाय-वाय! माँ-पिताजी घर हैं नहीं तो पूरा मौका है...

मैंने संगीता की गर्दन को पुनः चूमते हुए कहा|

संगीता: अच्छा? और बच्चे?

संगीता मेरी बात काटते हुए बोली| भले ही संगीता मेरे मोहपाश में जकड़ी हुई थी मगर उसे अब भी किसी के द्वारा पकड़े जाने का भी लग रहा था!

मैं: वो खेल रहे हैं!

मैंने संक्षेप में जवाब दिया और अपने हाथ को संगीता के नंगे पेट से ऊपर की और सरकाने लगा| लेकिन इससे पहले की मैं उन दो पहाड़ों की चोटियों पर अपना कब्जा जमा पाता, संगीता ने मेरा हाथ थाम लिया और उत्तेजना के मारे कसमसाने लगी! वो जानती थी की एक बार हमारा ये परम् मिलन शुरू हुआ तो ये इतनी जल्दी खत्म नहीं होगा और अगर कहीं माँ-पिताजी आ गए तो संगीता को शर्मिंदा होना पड़ेगा इसीलिए वो मुझे रोक रही थी!

संगीता: उम्म्म्म....नहीं....आप को आराम करना चाहिए....रात भर आप को site पर जागना है!

संगीता कसमसाते हुए बहाना बनाते हुए बोली|

मैं: जान, यही सोच के तो नींद नहीं आ रही| अपनी जान से रात भर दूर कैसे रहूँगा?

मैंने संगीता को उत्तेजना दिलाने के लिए एक मादक सिसकारी की नक़ल करते हुए कहा| मेरी इस मादक सिसकारी का असर हुआ और संगीता के मुँह से आह निकल ही पड़ी;

संगीता: ससस...ऐसा करते हैं...हम दोनों...रात भर फोन पर बात करेंगे|

मैं सोच रहा था की मेरी पत्नी मेरे इस तरह सिसकने से फिसल जायेगी और मुझसे लिपट जायेगी मगर मेरी पत्नी तो मुझसे तर्क करने में लगी थी!

मैं: अच्छा? डॉक्टर ने आपको आराम करने को कहा है, मुझसे रात भर बात करोगी तो सोओगी कब?

मैंने प्यार से संगीता को डाँटते हुए कहा| इस डाँट के दो कारण थे, एक तो मैं romantic हो रहा था और मेरी पत्नी फीकी पड़ रही थी और दूसरा वो मेरे साथ रात भर बात करते हुए जागना चाहती थी जिसका बुरा असर उसकी तबियत पर पड़ता!

संगीता: जैसे की मुझे यहाँ आपके बिना नींद आएगी|

संगीता मुँह फुलाते हुए शिकायत करती हुई बोली|

मैं: तभी तो कह रहा हूँ की रात की बजाए अभी मुँह मीठा कर लिया जाए!

मैंने लालची बनते हुए कहा|

संगीता: आप मुँह मीठा करने में बहुत समय लेते हो, कहीं तब तक माँ-पिताजी आ गए तो मुझे शर्मिंदा होना पड़ेगा!

संगीता उल्हना देते हुए बोली|

मैं: यार तुम भी कमाल करती हो, सुबह-सुबह taxi में तो तुम romantic हो रही थी और मेरे साथ न देने पर नाराज हो रही थी और अब देखो?!

मैंने नाराज होते हुए कहा| संगीता मेरी और घूमी और अपनी बाहें मेरे गले में डाल कर मुझे मस्का लगाते हुए बोली;

संगीता: गुस्सा न हो मेरे जानू! Taxi में तो मैं बस आपको छेड़ रही थी, मैं तो बस इतना चाहती थी की आप मुझसे प्यार भरी बातें करो!

संगीता की बात सुन कर भी मेरी नाराजगी खत्म नहीं हुई थी इसलिए संगीता मुझे ललचाते हुए बोली;

संगीता: अच्छा बाबा, आप कल सुबह जब site से लौटोगे न, तब मैं किसी काम से माँ-पिताजी को बच्चों संग बाहर भेज दूँगी....

संगीता ने अपनी बात आधी छोड़ते हुए कहा| उसकी बात सुन मेरे चेहरे पर थोड़ी सी मुस्कान आ गई थी लेकिन अभी के लिए मुझे खुश ख़ास चाहिए था ताकि मेरी नाराजगी काफूर हो सके! संगीता मेरी नजरों को पढ़ चुकी थी और मुझे खुश करने के लिए वो बोली;

संगीता: आप जा कर नहाओ और तब तक मैं आपके लिए अपने हाथों से omelette बनाती हूँ!

Omelette का नाम सुन मैं एकदम से खुश हो गया;

मैं: सच? मैं अभी नहा के आया|

अपनी पत्नी के हाथ का बना हुआ omelette खाने को मैं इतना उत्साहित था की मैं फ़ट से कमरे में आया और computer पर तेज आवाज में गाना चलाया; 'क्योंकि इतना प्यार तुमको करते हैं हम!' जब ये गाना बजने लगा तो संगीता के चेहरे पर मुस्कान आ गई| वो जानती थी की मैं गाने चला कर अपने मन की बात कहने का शौक़ीन हूँ! गाने के बोल हम दोनों मियाँ-बीवी गुनगुना रहे थे, संगीता वहाँ रसोई में गाने के बोल सुनते हुए omelette बनाने की तैयारी कर रही थी और मैं यहाँ bathroom में गाना गुनगुनाते हुए नहाने लगा!

पर संगीता को छोड़कर नहाने जाना मेरी सबसे बड़ी भूल साबित होने वाली थी! दुनिया-जहान की परवाह किये बिना हम दोनों ने मिलकर जो कदम उठाया था आज हमें उसका ख़ामियाजा भुगतना था! सच्चा प्यार करने का जुर्माना, सबसे दूर अपनी जिंदगी बसाने का ख्वाब देखने की सजा आज हमें मिलनी थी! अगर मुझे रत्ती भर भी शक होता की आज ऐसा कुछ घटित होगा तो मैं संगीता को एक पल के लिए अकेला नहीं छोड़ता!

[color=rgb(255,]मैं रसोई में इनके (मेरे पति के) द्वारा लगाए गाने को गुनगुनाते हुए प्याज काटने जा रही थी की तभी किसी ने घर के दरवाजे को भड़भड़ाना शुरू कर दिया! इतनी तेज भड़भड़ाने की आवाज सुन मुझे चिंता होने लगी, मुझे लगा की कहीं माँ-पिताजी तो नहीं? कहीं वो किसी मुसीबत में तो नहीं? इस तरह दरवाजा भड़भड़ाया जाना कोई शुभ संकेत नहीं था इसलिए मैंने आननं-फानन में बिना देखे की बाहर कौन खड़ा है दरवाजा खोल दिया! दरवाजा खोलते ही जिस इंसान को मैंने देखा उसे देख कर मैं अचंभित थी! उसके कभी होने या न होने से मुझे कोई फर्क नहीं पड़ा था पर आज जब उसे अपने सामने देखा तो शरीर जैसे ठंडा पड़ने लगा! जब नजरें उसके चेहरे पर गई तो मेरा डर और गहरा हो गया! चेहरे पर वही गुस्सा, वही क्रोध लिए वो आदमी मुझे जान से मार देने वाली नजरों से देख रहा था! आज बरसों बाद उसी डरावने चेहरे को देख कर मेरे अंदर सोया हुआ डर जाग चूका था! उस डरावने चेहरे को देख कर मुझे अपने गुजरे समय के सभी दुःख-दर्द याद आ गए थे! वो एक-एक तकलीफें शारीरिक और मानसिक, जो इस आदमी ने मुझे दीं थीं, वो sab मुझे याद आ गईं थीं!

कुछ देर पहले ही मैं अपनी पति और परिवार के साथ इतनी अच्छी छुट्टियाँ बिता कर घर लौटी थी, जिसकी खुशियाँ अभी तक मेरे चेहरे पर छाई हुइ थी वो अब डर में तब्दील हो चुकी थीं!

इस आदमी को देख कर मैं कुछ भी समझने-बूझने की ताक़त खो चुकी थी! समझ नहीं आ रहा था की इसे अंदर आने को कहूँ या फिर दरवाजा इसके मुँह पर मार दूँ! 'इस आदमी का कोई भरोसा नहीं!' मेरी अंतरात्मा चीखी जिससे मेरा डर और भी प्रबल हो गया! वहीं इस आदमी का क्रोध देख कर मुझे लगने लगा था की जाररूर ये यहाँ मेरा हँसता-खेलता घर तबाह करने आया है! जो खुशियाँ मुझे इतनी मुश्किल से हासिल हुईं हैं उन्हें आज ये मुझसे छीन कर ले जाएगा! तभी मेरा मन अंदर से चीखा और सवाल करने लगा की आखिर ये आदमी यहाँ क्यों आया है? क्यों ये मुझे चैन से नहीं रहने देता, क्यों मेरी खुशियों में आग लगाने आ जाता है?

इधर मैं मन ही मन अपने सवालों का जवाब सोच रही थी और उधर उस आदमी के सर पर हैवानियत सवार थी! उसने एकदम से मेरा गला पकड़ा और जोर से चिल्लाया; "आयुष!" उसकी गर्जन सुन मैं काँप गईं, ठीक वैसे ही जैसे मैं पहले काँप जाया करती थी! आयुष का नाम सुन मेरी धड़कनें तेज हो गईं थीं और मेरा कलेजा मेरे मुँह को आ गया था! ये हैवान मेरे बच्चे को मुझसे जुदा करने के लिए आया था! अपने बच्चे को बचाने के लिए मैंने सबसे पहले तो मैंने चिल्लाने की कोशिश की मगर मेरे गले से आवाज बाहर फूटी ही नहीं! फिर मैंने अपनी गर्दन उस हैवान की पकड़ से छुड़ानी चाही मगर तभी उस दरिंदे ने अपनी पकड़ और मजबूत कर दी जिससे मेरी साँस रुकने लगी!

मेरे भीतर मौजूद इस डर से मेरा बहुत पुराना नाता था! पहली शादी या ये कहूँ की धोके के बाद से ही इस डर ने मुझसे रिश्ता बना लिया था! जब ये (मेरे पति) मेरी जिंदगी में आये तो इन्होने अपने प्यार से उस डर को मेरे भीतर कहीं दबा दिया था, लेकिन आज फिर से उस डर ने अपना फन्न फैलाये थे और मुझे डसने लगा था!

उधर इस हैवान की बात सुन आयुष भागा-भागा आया, अपने सामने उस दरिंदे को देख मेरा छोटा सा बच्चा डर कर सहम चूका था! आयुष को डरा हुआ देख मैंने एक बार फिर हिम्मत जुटाई और खुद को छुड़ाने के लिए हाथ-पैर मारने लगी, लेकिन उस दरिंदे के हाथों में इतनी ताक़त थी की मैं बेबस-लाचार सिवाए आँखों से आँसूँ बहाने के कुछ कर न पाई! उस राक्षस ने आयुष का हाथ पकड़ लिया परन्तु उसने मेरी गर्दन नहीं छोड़ी| मैंने एक बार फिर चिल्लाने की, कुछ बोलने की कोशिश की, अपने दोनों हाथों से उस जुल्मी के हाथ पर मारना शुरू किया पर उस हैवान को कोई फर्क ही नहीं पड़ा! उस कमीने ने अपने पंजों से मेरी गर्दन दबोच रखी थी और मुझे ऐसा लग रहा था की अब किसी भी समय मेरी साँस रुक जायेगी और मेरे साथ-साथ उस मासूम जिंदगी का भी अंत हो जायेगा जो अभी इस दुनिया में आई भी नहीं थी!

लेकिन उस राक्षस का मन मुझे मारने का नहीं बल्कि मुझे तड़पाने का था! मुझे साँस लेने के लिए जूझता हुआ देख उस कुत्ते के चेहरे पर हैवानी मुस्कान आ गई और वो मेरी आँखों में आँखें डाल कर अपने दाँत पीसते हुए बोला; "हम हियाँ आपन बिटवा का लिए खातिर आयन है! आज हमका ऊ का (आयुष को) हियाँ से लेजाए का कउनो नाहीं रोक सकत, न तू और न ऊ तोहार खसम! बुला ऊ का, आज तो हम ऊ का काट डालब!" उस राक्षस की आवाज सुन मैं सन्न रह गई! इस हरामज़ादे के सर पर खून सवार था और अपने इस जूनून में अगर वो मेरे पति को कुछ कर देता तो मैं क्या करती? अपने पति को खोने का डर मेरे बेटे को खोने के डर के मुक़ाबले बहुत बड़ा था! अंततः मैंने डर के मारे उस राक्षस के आगे हाथ जोड़ दिए और गिगिडाते हुए कुछ बोलने की कोशिश करने लगी तो उस हैवान ने अपनी पकड़ थोड़ी सी ढीली की; "प......please.......मेरे बच्चे को छोड़ दो....मेरे पति को छोड़ दो!" लेकिन उस हैवान के मन में कोई दया-भाव नहीं था, उसे तो बस मेरी बेबसी देख कर मज़ा आ रहा था! मुझे बेबस देख कर मुस्कुराने लगा और उसके मन में छुपे बुरे ख्याल उसके चेहरे पर दिखने लगे!

उधर आयुष का हाथ जब उस जानवर ने पकड़ा तो आयुष डर के मारे रोने लगा था और विपरीत दिशा में खुद को खींच कर अपने आप को बचाने की कोशिश कर रहा था! इतने में नेहा भी अंदर के कमरे से बाहर भाग आई थी, अपने सामने उस शैतान को देख नेहा डर गई थी लेकिन अपने भाई को रोता हुआ देख उसने अपनी हिम्मत जुटाई और अपने भाई का हाथ उस कमीने के हाथ से छुड़ाने लग पड़ी! नेहा को देख इस जानवर ने बहुत गालियाँ बकनी शुरू कर दी, ये देख मुझे गुस्सा आने लगा और मैंने फिर हिम्मत जुटाई और खुद को छुड़ाने की कोशिश की मगर कोई फायदा न हुआ! मैं अब हार मान चुकी थी और खुद को हताश और लाचार मान चुकी थी! बेबसी की ऐसी मार मुझ पर पड़ी की मेरा आत्मविश्वास, मान-सम्मान सब टूट कर चकना चूर हो गया! आज पहलीबार........पहलीबार मुझे अपने औरत होने पर शर्म आने लगी थी! कैसी औरत हूँ मैं, जो अपने बच्चों तक की रक्षा नहीं कर सकती?! मैंने आँख बंद की और भगवान को याद करने लगी की शायद भगवान को मुझ पर तरस आ जाए लेकिन आज मेरी क़िस्मत मुझ पर कुछ ज्यादा ही खफा थी!

ये राक्षस, ये हैवान, जालिम, कमीना कोई और नहीं बल्कि चन्दर ही था! [/color]

जहाँ एक तरफ मेरा परिवार खुशियाँ मना कर मुन्नार से लौटा था वहीं दूसरी तरफ गाँव में कोहराम मचा हुआ था! संगीता और मेरी शादी की बात गाँव भर में फ़ैल चुकी थी और इसको ले कर सभी ने बातें करनी शुरू कर दी थीं| बड़के दादा को इस सब से कोई सरोकार नहीं था उन्हें तो बस अपना पोता, अपनी वंश बेल अपने कब्जे में चाहिए थी! गाँव के सभी लोगों ने बड़के दादा को चढ़ाना शुरू कर दिया था की चन्दर का तलाक होने के बाद बच्चे अब संगीता के पास रहेंगे और ये बात सुन-सुन कर बड़के दादा का दिमाग खराब हो रहा था! उनके अनुसार आयुष चन्दर का खून था और आयुष पर उनका हक़ था, ऐसे में वो अपना हक़ अपने छोटे भाई को कैसे मारने देते? उनका मन पिताजी को फ़ोन कर अपने पोते की माँग करने को कहता था मगर उनका अहंकार उन्हें रोक लेता था! अपनी इसी कश्मकश में बड़के दादा घुटे जा रहे थे और उनके भीतर गुस्से का सैलाब उमड़ने लगा था!

उधर चन्दर अपने गुस्से के कारण आग बबूला हो चूका था! संगीता के उसे छोड़कर मुझसे शादी करने और बच्चों को अपने पास रखने से चन्दर की मर्दानगी की कमर टूट चुकी थी! लोगों ने उसे ताने मारना शुरू कर दिया था की उसकी पत्नी और छोटे बच्चों को उसका छोटा चचेरा भाई ले उड़ा था! चन्दर से ये सब बर्दाश्त करना मुश्किल हो रहा था और वो किसी ज्वालामुखी के समान धधकने लगा था! उसे न तो आयुष से कोई प्यार था न ही संगीता से कोई लेना देना था, उसे तो बस अपनी मरदाना ताक़त साबित करनी थी! जब चन्दर को उसकी मर्दानगी साबित करने का मौका नहीं मिला तो उसने शराब पीना और रंडियाँ चोदना शुरू कर दिया| मामा का घर उसके लिए किसी रंडीखाने के समान था जहाँ चन्दर नशे में पड़ा रहता था! पहले-पहल चन्दर बड़के दादा के डर के मारे काबू में रहता था, परन्तु अपने पिता को यूँ लाचार देख उसकी हिम्मत अब बहुत बढ़ चुकी थी|

एक दिन ऐसे ही मामा घर आ धमके और उन्होंने बड़के दादा को उकसाना शुरू कर दिया की उन्हें कैसे भी आयुष को अपने पास ले आना चाहिए! बड़के दादा अपने साले की बात में आ गए और आयुष को गाँव लाने का फैसला कर लिया! लेकिन अब बात थी की हमसे (मुझसे और पिताजी से) ये बात की कैसे जाए? बड़के दादा का अपने भाई के प्रति मन फ़ट चूका था, वो पिताजी की शक्ल तक नहीं देखना चाहते थे और न ही पिताजी की आवाज सुनना चाहते थे इसलिए उन्होंने ये काम चन्दर और अजय भैया को सौंपा| चन्दर और अजय भैया का काम था दिल्ली आ कर हमसे बात करना और आयुष को अपने साथ ले जाना| बड़के दादा ने ये काम चन्दर को दे तो दिया मगर वो ये भूल गए की चन्दर को बात करने का सलीका आता कहाँ है? शायद उन्होंने अजय भैया को इसी कारन भेजा था ताकि वो बात सुलझा सकें?!

दोनों भाई 30 दिसंबर को दिल्ली पहुँचे और सीधा मेरे घर आ धमके मगर घर पर लगा था ताला! चन्दर खुद तो यहाँ किसी से कुछ पूछ नहीं सकता था क्योंकि यहाँ उसकी मट्टी-पलीत हो चुकी थी इसलिए उसने अजय भैया से कहा की वो पड़ोसियों से पूछें| पड़ोसियों ने अजय भैया से हमारे बाहर घूमने की बात बता दी, परन्तु उन्हें (पड़ोसियों को) ये नहीं पता था की हम सब घूम कर वापस कब आने वाले हैं?! अजय भैया ने ये बातें चन्दर को बताई तो उसका गुस्सा सातवें आसमान पर चढ़ गया, अजय भैया ने उसे कहा की वो मुझे फोन कर के पूछ ले की हम कब आएंगे मगर चन्दर अपनी अकड़ के कारन मुझे फ़ोन नहीं करना चाहता था| उसका इरादा था की वो आकस्मिक प्रकट हो कर हम सभी को चौंका दे और आयुष को जबरदस्ती अपने साथ ले जाए! वो मुर्ख ये भूल गया की आयुष के पिता (मेरे) के होते हुए वो (चन्दर) कुछ नहीं कर सकता!

चन्दर ने हमारे गाँव के जान-पहचान वाले के यहाँ डेरा डाल लिया और सुबह-शाम हमारे घर के चक्कर काटने शुरू कर दिए! ऐसे ही उसने एक दिन संतोष को देख लिया और उससे बात करने के लिए अजय भैया को भेज दिया| चन्दर ने अजय भैया को झूठ बोलने के लिए कहा था, अजय भैया बेचारे सीधे- साधे थे उन्होंने अपने बड़े भाई द्वारा पढ़ाये हुए शब्द संतोष के सामने दोहरा दिए| संतोष ने जब उनसे पुछा की वो (अजय भैया) कौन हैं तो अजय भैया ने कह दिया की वो मेरे कोई जानकार हैं और मुझसे मिलने आये हैं| मैंने 1 तरीक की रात को संतोष को फ़ोन कर के बता दिया था की हम सब 2 तरीक को हवाई जहाज से दिल्ली पहुँच रहे हैं, संतोष ने उन (अजय भैया) पर विश्वास करते हुए बता दिया की हम सभी 2 तरीक को आ रहे हैं| अजय भैया ये खबर ले कर चन्दर के पास पहुँचे तो चन्दर नशे में धुत्त था! उसके दिमाग में गुस्सा सवार था और वो अपने इसी गुस्से की आग में जल रहा था!

दो तरीक को चन्दर हमारे घर ठीक उसी समय पहुंचा जब माँ-पिताजी शोक सभा में गए थे| हमारे घर आते समय चन्दर ने मेरे माता-पिता को शोक सभा में बैठे देख लिया था, संगीता उसे वहाँ दिखी नहीं जिसका मतलब था की संगीता घर पर होगी, उसने अपनी घडी देखि तो इस वक़्त बारह बज रहे थे मतलब मैं site पर था| इसी मौके का फायदा उठा कर चन्दर अपनी मन मानी करने के लिए हमारे घर घुस आया था! उसे नहीं पता था की मैं तो पहले से ही घर पर मौजूद हूँ!

उधर मैं बाथरूम में नहा कर अपने कपडे पहन रहा था जब मुझे किसी आदमी के चीखने की आवाज आई! ये आवाज सुन मैं परेशान हो गया क्योंकि ये आवाज बस एक ही इंसान की थी जिसे मैं अपने परिवार के आस-पास भी नहीं देखना चाहता था! मैं फटाफट बाहर आया और रसोई का दृश्य देख मेरे जिस्म में बिजली सी कौंधी! चन्दर के दाएँ हाथ में संगीता की गर्दन थी और बाएँ हाथ से वो आयुष का हाथ थामे हुए मुस्कुरा रहा था! वहीं मेरी बेचारी बेटी आयुष का हाथ छुड़ाने की कोशिश कर रही थी! चन्दर ने जैसे ही मुझे देखा वो दंग रहा गया, क्योंकि उसके अनुसार मैं इस वक़्त site पर होना चाहिए था! मैं एकदम से चन्दर पर लपका और अपने दाहिने हाथ से उसका टेटुआ दबोच लिया! इस वक़्त मेरी नजरों में खून उतर आया था और मैंने चन्दर का टेटुआ दबाना शुरू कर दिया था! चन्दर की साँस घुटने लगी तो उसने आनन-फानन में संगीता की गर्दन पर से अपनी पकड़ छोड़ दी तथा अपनी गर्दन छुड़ाने की कोशिश करने लगा| चन्दर ने अभी भी आयुष का हाथ पकड़ रखा था, मैंने फ़ौरन अपने दूसरे हाथ से आयुष का हाथ छुड़ा लिया! मैंने अब दोनों हाथों से चन्दर की गर्दन पकड़ ली थी और अपना गुस्सा उस पर उतारते हुए उसका टेटुआ दबाने लगा| उधर चन्दर खुद को बचाने की कोशिश करने में लगा था! मैंने संगीता को एक नजर देखा तो पाया की वो जमीन पर गिरी हुई साँस लेने के लिए जूझ रही है और दोनों बच्चे रोते हुए अपनी मम्मी को पकड़े बैठे हैं! संगीता और अपने बच्चों को यूँ तड़पता हुआ देख मेरा गुस्सा बेकाबू हो चूका था, इसलिए मैंने चन्दर को गुस्से से देखते हुए कस के उसका टेटुआ दबाना शुरू कर दिया!

मैं: नेहा, आयुष और अपनी मम्मी को लेके अंदर जाओ!

मैंने नेहा की तरफ देख कर चिल्लाते हुए आदेश दिया! नेहा रो रही थी मगर मेरा आदेश सुन उसने खुद को सँभाला और हिम्मत दिखाते हुए उसने आयुष और अपनी मम्मी को सहारा देके कमरे में ले गई| बच्चों को हो रही ये हिंसा नहीं देखनी चाहिए थी इसलिए मैंने बच्चों को अदंर भेजा था!

इधर चन्दर का टेटुआ मेरे हाथ में था और उसका दम घुटने लगा था, अगर वो मर जाता तो मेरा परिवार (संगीता, बच्चे और माँ-पिताजी) बिखर जाता! मैंने चन्दर को घर से बाहर की ओर धकेलते हुए उसका गला छोड़ा, चन्दर धम्म से नीचे गिरा और साँस लेने के लिए जद्दोजहद करने लगा! उसे यूँ छोड़कर मेरा गुस्से से पागल मन बोला; 'अबे छोड़ क्यों दिया तूने इसे?' मैंने चन्दर की कमीज का कालर पकड़ा और जमीन से उठा कर उसे चौतरे की दिवार से दे मारा और उस पर गरजते हुए बोला;

मैं: बहनचोद, तेरी हिम्मत कैसे हुई मेरे घर में घुस आने की और मेरे बीवी-बच्चों को छूने की?

ये कहते हुए मैंने बायें हाथ से चन्दर का गिरेबाँ पकड़ अपने दाएँ हाथ से उसके बायें गाल पर मुक्का जड़ दिया! उसे पहला मुक्का मारते ही मेरे अंदर जैसे कोई ज्वालामुखी फ़ट पड़ा और मैंने अपने दोनों हाथों से किसी boxer की तरह चन्दर पर घूसे बरसा दिए! गुस्सा सर पर इतना था की मुझे ये नहीं पता था की मैं घूसे चन्दर के मुँह पर मार रहा हूँ या उसके पेट पर!

जब मैं तीसरी class में था तब school में मैंने 'taekwondo' सीखा था, आज जा कर उसकी जर्रूरत पड़ी थी! मेरे घूसे बरसाने से चन्दर के चींखें निकलने लगी थी, उसकी चीखें सुन कर मुझे अजीब सा नशा हो रहा था...नशा उसे और पीटने का! चन्दर अपना पेट पकड़ कर ज़मीन पर गिर पड़ा था, उसके ज़मीन पर गिरते ही मैंने उसे football समझ लात मरना शुरू कर दिया! मेरी लातें कभी उसके पेट पर पड़तीं तो कभी उसके चेहरे पर, चन्दर ने खुद को बचाने के लिए अपने हाथ आगे बढाए तो मैंने उसके हाथों पर कस कर लात मारनी शुरू कर दी! जब चन्दर के दाएँ हाथ ने मेरी लातों को रोकना चाहा तो मैंने इतनी जोर से लात मारी की चन्दर का दाहिना टूट गया! दर्द के मारे चन्दर ने रोना-चिल्लाना, बिलबिलाना शुरू कर दिया था, उसकी चीखें सुन मुझे आनंद आ रहा था और मेरे चेहरे पर एक हैवानी मुस्कान आ गई थी!

वहीं आस-पड़ोस के लोग इकठ्ठा होने लगे थे, सब चन्दर को जानते थे और मुझे तो सब ने लगभग छुटपन से देखा था| हमेशा सर झुका कर आने-जाना वाला लड़का आज इतना उग्र हो गया था की वो अपने ही चचेरे भाई को यूँ कुत्ते की तरह पीट रहा था! पड़ोस के दो लड़कों ने मुझे पीछे से पकड़ कर पीछे खींचते हुए चन्दर से दूर किया ताकि चन्दर की जान बच जाए, परन्तु मेरे अंदर तो गुस्सा इतना भरा था की मैंने खुद को छुड़ाया और दोनों लड़कों को धक्का दे कर चन्दर के टूटे हुए दाएँ हाथ को अपने बायें घुटने से दबाया और अपने दाएँ हाथ से उसकी नाक पर घूसे मारने शुरू कर दिए! मेरा ये पागलपन देख उन दोनों लड़कों की हिम्मत नहीं हुई की मुझे रोकें इसलिए वो पीछे हो गए! इधर मेरे घूसे मारने से चन्दर का चेहरा खूनम-खून हो चूका था! मेरी अंतरात्मा मुझे और उकसाये जा रही थी; 'मार साले को! तब तक मार जब तक तेरे हाथों से खून न निकलने लगे!'

मैं: I'm gonna kill you.....I swear to God I'm gonna kill you!

मैं गुस्से में बड़बड़ाते जा रहा था और चन्दर के चेहरे पर घूसे बरसाते जा रहा था!

मेरे पीछे भीड़ इकठ्ठा हो चुकी थी और आस-पड़ोस के कुछ अंकल लोग आगे आये और उन्होंने मिलकर मुझे कमर से पकड़ा और पीछे खींच कर ले गए! उन्होंने मुझे समझाना शुरू किया ताकि मेरा गुस्सा शांत हो और मैं खुद को काबू कर लूँ मगर मेरा गुस्सा शांत होने का नाम नहीं ले रहा था! मैंने अपनी कमर पर से उनकी जकड़न खोली और ज़मीन पर पड़े लगभग बेहोश हो रहे चन्दर को पकड़ कर झिंझोड़ा ताकि वो होश में आये;

मैं: सुन बे भोसड़ी के, आयुष मेरा खून है....तेरा नहीं.....

अभी मेरी आधी ही बात हुई थी की चन्दर की आँखें फिर बंद होने लगीं, मैंने उसे एक बार फिर झिंझोड़ा और उसे होश में ला कर अपनी बात पूरी की;

मैं: और याद हैं वो तलाक के कागज....जिन पर तूने दस्तखत किये थे? उसमें साफ़-साफ़ लिखा था की मेरे बच्चों पर तेरा कोई हक़ नहीं है! इसलिए अगर तू दुबारा....मेरे परिवार के आस-पास भी भटका न तो मैं तुझे जिन्दा नहीं छोड़ूँगा| सुन लिया बहनचोद?!

मैंने चन्दर पर चिल्लाते हुए कहा|

चन्दर: ह...हमका...हमका....छोड़ दिहो........माफ़ ... माफ़ कर दिहो!.....हमका....माफ़...कर दिहो! ह...हम.......क..कभौं....

इसके आगे बोलने से पहले ही चन्दर बेहोश हो गया!

अंकल: छोड़ दे बेटा, मर-मरा गया तो पुलिस case बन जायेगा!

एक अंकल पीछे से बोले तब जा कर मैंने चन्दर को छोड़ा|

दिनेश हमारी कॉलोनी के guard साहब का लड़का हमारे पड़ोस में ही रहता था| मैंने उसे हाथ के इशारे से अपने पास बुलाया और बोला;

मैं: दिनेश, इसे (चन्दर को) हॉस्पिटल ले जा और इसके भाई का नंबर लिख 98XXXXXXXX! उसे कॉल कर दे, वो अपने आप इसकी तीमारदारी कर लेगा!

मैंने दिनेश को अजय भैया का नंबर दिया ताकि वो गाँव से आ कर खुद चन्दर को संभाल लें| देने को मैं बड़के दादा का नंबर भी दे सकता था मगर मुझे उनका नंबर याद नहीं था| तब मुझे ये नहीं पता था की अजय भैया तो चन्दर के साथ दिल्ली आये हुए हैं!

दिनेश: जी भैया!

दिनेश बोला और सबसे पहले अपने फ़ोन से अजय भैया को फ़ोन कर के सारा हाल बताया और ये भी बताया की वो किस अस्पताल में चन्दर को ले जा रहा है| फिर दिनेश ने अपने एक दोस्त के साथ चन्दर को कँधे से सहारा दे कर बड़ी मुश्किल से उठाया!

मैंने लम्बी-लम्बी साँसें लेते हुए अपना गुस्सा काबू में करना शुरू किया, इतने में जो भीड़ इकठ्ठा हुई थी उसने मुझसे पूछना शुरू कर दिया की मैं भला इतना उग्र क्यों हो गया था? मैंने किसी की बात का कोई जवाब नहीं दिया बल्कि संगीता को देखने के लिए घर के भीतर जाने के लिए मुड़ा तो पाया संगीता रोते हुए बदहवास हो कर मुझे देख रही है| उसने अपना दाहिना हाथ मेरी ओर बढ़ाया ही था की अचानक उसकी आँखें पीछे की ओर घूम गईं और वो गिरने को हुई| मैंने फुर्ती दिखाते हुए संगीता को गिरने से बचा लिया और उसे गोद में उठा कर अपने कमरे में ले आया|

[color=rgb(255,]जब इन्होने (मेरे पति ने) उस दरिंदे का गला पकड़ा तो एक पल के लिए मैं डर गई! मुझे लगा की कहीं ये दरिंदा इन्हें (मेरे पति को) कुछ नुक्सान न पहुँचा दे! अगर इन्हें कुछ हो गया तो मैं, माँ-पिताजी से क्या कहूँगी? कैसे उनसे कहूँगी की कि मेरी वजह से उनके बेटे....ये ख्याल मन में आते ही मेरी जान निकलने को हो गई थी! मेरी गर्दन अब भी उस दरिंदे कि पकड़ में थी और मैं लघभग मर ही जाती अगर ये अपनी पकड़ उस दरिंदे के टेंटुए पर कस न देते! अगले ही क्षण उस राक्षस की पकड़ ढीली हुई और मैं नीचे जा गिरी तथा साँस लेने की कोशिश करने लगी| नेहा अब भी आयुष का हाथ उस दरिंदे के हाथ से छुड़ाने के लिए कोशिश कर रही थी, अपने पापा को उस दरिंदे कि गर्दन पकड़े देख उसमें बहुत हिम्मत आ गई थी| फिर अगले ही पल इन्होने आयुष का हाथ भी उस दरिंदे चन्दर के हाथ से छुड़ा दिया, दोनों बच्चे अभी भी रोये जा रहे थे, रो तो मैं भी रही थी मगर मुझसे बच्चों का ये रोना नहीं देखा जा रहा था| मैंने खड़े होने कि कोशिश कि लेकिन मेरा शरीर इस वक़्त साँस लेने कि जद्दोजहद करने में व्यस्त था! मैंने हाथ बढ़ा कर दोनों बच्चों को अपने पास बुलाया, बच्चे अभी मेरे पास आये ही थे कि इन्होने नेहा को आदेश देते हुए कहा की वो मुझे और आयुष को अंदर ले जाए! मेरी छोटी सी बच्ची में बहुत साहस था, हिम्मत थी की उसने तुरंत अपने आँसूँ पोछे और आयुष का हाथ पकड़ मुझे अपने कँधे का सहारा दे कर उठाया| वो मुझे और आयुष को ले कर हमारे कमरे में आई और मुझे पलंग पर बिठाया, आयुष डर के मारे बहुत सहम गया था तथा मुझसे लिपट गया था| नेहा भी डरी हुई थी इसलिए मैंने दोनों बच्चों को अपनी दोनों बाहों के बीच भरकर उन्हें सुरक्षित महसूस कराने की कोशिश की! तभी मुझे इनके गरजने की आवाज आई, ये चन्दर को गरियाते हुए कह रहे थे की उसकी हिम्मत कैसे हुई हमें (मुझे और हमारे बच्चों को) छूने की? मैं बच्चों को छोड़ कर अपनी हिम्मत बटोर कर उठी और इन्हें रोकने के लिए बैठक में आ पहुँची|

लेकिन जब मैंने इनका वो रौद्र रूप देखा तो मैं ठिठक कर रुक गई! आज से पहले मैंने इनका ये रौद्र रूप नहीं देखा था, इनकी आँखें गुस्से से लाल थीं...एकदम सुर्ख लाल! मुझे लगा की कहीं अपने क्रोध में ये कुछ गलत न कर दें इसलिए मैंने इन्हें रोकने के लिए एक कदम बढ़ी ही थी की (शायद) इन्हें स्वयं अपने क्रोध का आभास हो गया था इसलिए इन्होने चन्दर की गर्दन छोड़ दी! लेकिन फिर अगले ही क्षण इन्होने अपना सारा क्रोध चन्दर पर बरसा दिया! इनके जिस्म में बदले की ऐसी आग लगी थी जो हर पल बढ़ती ही जा रही थी! मैंने कभी नहीं सोचा था की मेरे पति जो बाहर से इतने मुलायम दिल के हैं, जिनके दिल में मैंने आजतक बस प्यार और दया देखि है उनके भीतर बदले की ऐसी आग धधक उठी है की आज वो आग इनके अपने चचेरे भाई को जला कर राख कर देने वाली थी! इनका ये गुस्से वाला रूप देख कर तो मुझ में इनका सामना करने की ही हिम्मत नहीं हो रही थी!

मुझे इन्हें कैसे भी कर के रोकना था, मैंने अपनी सारी हिम्मत बटोरी और उन्हें रुकने के लिए बोली; "रुकिए!" मगर मेरी ये आवाज इतनी कमजोर थी जो चन्दर की दर्दभरी चीखों के नीचे दब गई! चन्दर की दर्दभरी चीखों ने मुझे मेरे बच्चों को देखने पर मजबूर कर दिया था, मैंने जब अंदर कमरे में देखा तो पाया की नेहा ने रोते हुए आयुष को अपने सीने से चिपटाया है और खुद रोते हुए भी वो अपने छोटे भाई को चुप कराने की कोशिश कर रही है! अपनी बेटी का होंसला देख मैंने अपनी पुनः हिम्मत इकट्ठी की ताकि मैं अपने पति को उस वेह्शी दरिंदे की जान लेने से रोक लूँ!

वहीं चन्दर की चीख-पुकारें सुन आस-पड़ोस वाले इकठ्ठा हो चुके थे, लेकिन इनका गुस्सा रत्ती भर कम नहीं हुआ था! आज तो ये जैसे चन्दर की जान लेने पर आमादा थे, कभी उसे मुक्के मार रहे थे तो कभी लातें| ये हिंसा...मार-पीट...चीखें मेरे दिलों-दिमाग पर बुरा असर डाल रहीं थीं! चन्दर की वो दर्द भरी चींखें मुझसे बर्दाश्त नहीं हो रहीं थीं, मैंने आँख बंद कर उन आवाजों से लड़ना शुरू कर दिया था| मन तो कह रहा था की मैं इन्हें रोकूँ ही न ताकि जो दुःख, जो तकलीफें इस शैतान ने मुझे दी उसका आज उसे (चन्दर को) दंड मिल ही जाना चाहिए| मेरा मन-मस्तिष्क, दोनों ही चाहते थे की चन्दर को सजा मिलनी ही चाहिए, लेकिन मन के किसी कोने में इंसानियत बची थी| या फिर शायद ये कहना ठीक होगा की मेरा दिल कह रहा था की ऐसे इंसान को जान से मार देना सही सजा नहीं होगी! 'चाहे जो भी हो, इसकी (चन्दर की) मौत का कारन इन्हें नहीं बनना चाहिए! मेरा मन बोला|

दिमाग मुझे प्रोत्साहन देने लगा की मैं जा कर इन्हें रोक लूँ, परन्तु चन्दर की दर्द भरी चीखों ने मेरी हिम्मत तोड़ दी थी! शरीर ने भी मेरा साथ छोड़ना शुरू कर दिया था, न मुझसे आगे बढ़ा जा रहा था और न ही कुछ कहा जा रहा था! मुझ में कुछ भी बोलने की हिम्मत थी नहीं इसलिए मैं बस चुप-चाप खड़ी अपनी आँखों के आगे ये हिंसा होते हुए देखने लगी! कुछ लड़कों और अंकलों ने मिल कर इन्हें काबू करने की कोशिश की थी लेकिन ये किसी के काबू में नहीं आ रहे थे! ये उनकी पकड़ से छूट कर चन्दर को बुरी तरह पीटने में लगे थे, उसे इतना मार रहे थे की चन्दर के चेहरे से खून निकलने लगा था जो इनके हाथों में लग रहा था! अपने गुस्से के अंतिम चरणों में इन्होने चन्दर की झिंझोड़ते हुए जो शब्द कहे थे उन्हें सुन कर मैं दहल गई थी! वो तो चन्दर बेहोश हो गया इसलिए इन्होने उसे छोड़ दिया वरना आज ये उसकी जान ही ले लेते! चन्दर को छोड़ कर जब ये खड़े हुए तो मेरी नजर इनके दाहिने हाथ से टपकते हुए खून पर गई, उन खून की बूंदों को देख कर तो जैसे मुझमें ताक़त ही नहीं बची थी! इस पूरे हिंसा काण्ड का बुरा असर मुझ पर दिखने लगा था और धीरे-धीरे मेरा होश मेरा साथ छोड़ रहा था तथा मैं बेहोश हो के गिरने लगी थी की तभी इनकी नजर मुझ पर पड़ी और इन्होने भाग के मुझे अपनी बाहों में थाम लिया जिससे मैं गिरने से बच गई! उसके बाद का मुझे कुछ याद नहीं था, मुझे होश तो तब आया जब इन्होने मेरे माथे को चूमा तथा मेरे सर पर हाथ फेरा, तब जा के कहीं मेरी आँखें खुलीं और इन्हें अपने सामने देख मेरी जान में जान आई![/color]

मैं, संगीता को गोद में उठाये सीधा अपने कमरे में ले आया और उसे पलंग पर लिटा दिया| मेरे पीछे-पीछे ही महोल्ले की कुछ औरतें अंदर आ गईं थीं, सब जानते थे की संगीता पेट से है इसलिए सभी औरतों को उस (संगीता) की चिंता हो रही थी| मैंने संगीता के मस्तक को चूमते हुए हाथ फेरा तो संगीता की आँखें खुलीं, मुझे देखते ही संगीता की आँखों से फिर से आँसूँ बहने लगे| तभी मेरी नजर बच्चों पर पड़ी तो दोनों ही मुझे रोते हुए दिखे, इधर संगीता एकदम से उठ बैठी और पलंग के किनारे खिसकते हुए आ कर मेरे पेट से अपना मुँह छुपा और मेरी कमर के इर्द-गिर्द अपनी बाहें लपेट कर फूट-फूट कर रोने लगी! मैंने बायें हाथ को संगीता के सर पर रख उसे ढाँढस बँधाया तथा दाएँ हाथ से बच्चों को अपने पास आने का इशारा किया| बच्चे पलंग के ऊपर खड़े हो कर मेरी तरफ दौड़े आये| मैंने बच्चों और संगीता को अपनी बाहों में लपेट लिया और उन्हीं पुचकारते हुए चुप कराने लगा| वहीं मोहल्ले की जो कुछ औरतें आईं थीं वो संगीता की बगल में बैठ कर उसकी पीठ थपथपाते हुए होंसला बँधाने की कोशिश कर रहीं थीं|

अपने बीवी-बच्चों को यूँ रोते हुए देख मैं कमजोर पड़ने लगा था परन्तु फिर भी मैंने खुद को मजबूत बाँधे हुए रखा हुआ था वरना कहीं अगर मैं टूट जाता तो मेरे बीवी-बच्चों का क्या होता?

मैं: बाबू...please चुप हो जाओ? देखो सब ठीक हो गया है!

मैंने संगीता के सर पर हाथ फेरते हुए उसे चुप कराने की कोशिश की|

मैं: नेहा...आयुष..... बेटा आप तो मेरे बहादुर बच्चे हो न?! Please बेटा आप दोनों चुप हो जाओ....मैंने भगा दिया उसे (चन्दर को).....please बेटा!

मैंने नेहा और आयुष के सर पर हाथ फेरते हुए कहा|बच्चों को अपने पापा की बात पर विश्वास हो चला था और उन्होंने रोना बंद कर दिया था, परन्तु उनके भीतर मौजूद डर को मैंने महसूस कर लिया था, इसलिए मैंने दोनों बच्चों को बड़े प्यार से देखा और उनके सर पर हाथ फेरना चालु रखा जिससे बच्चों को कुछ होंसला आया और उन्होंने धीरे-धीरे सुबकना शुरू किया|

इधर संगीता का रो-रो कर बुरा हाल था;

मैं: नेहा बेटा, अपनी मम्मी के लिए एक गिलास पानी लाओ|

मैंने नेहा से कहा तो वो पानी लाने रसोई में गई| मैंने संगीता को अपने हाथ से पानी पिलाया, संगीता का सर अब भी मेरे पेट से भिड़ा था| उसने रोते हुए पानी पिया जिस कारण उसे खाँसी आ गई| मैंने उसकी पीठ पर हाथ फेरा जिससे उसकी खाँसी कुछ शांत हुई| इस पूरे दौरान संगीता ने मुझे अपनी घबराहट के कारण थामे रखा था| खाँसी रुकी मगर संगीता का रोना नहीं थमा!

मैं: बाबू...please ...listen to me...everything's fine now...He won't bother us anymore ...please चुप हो जाओ!

मैंने संगीता को सँभालते हुए उसके सर पर हाथ फेरा ताकि उसके भीतर आत्मविश्वास जागे|

संगीता: नहीं........वो......आय..........

संगीता ने रोते हुए टूटी-फूटी भाषा में कहा| उसका दिल बहुत घबराया हुआ था और उसे अब भी लग रहा था की चन्दर फिर दुबारा आएगा|

मैं: नहीं बाबू! मैं हूँ न आपके पास! वो अगर फिर आया तो मैं उसे जिन्दा नहीं छोड़ूँगा!

मैं गुस्से से बोला| संगीता को यूँ घबराते हुए देख मेरा गुस्सा फिर से फूटने लगा था|

तभी माँ-पिताजी शोक सभा से लौटे, उन्होंने जब अपने घर के बाहर भीड़ का ताँता लगा देखा तो वो किसी अनहोनी के बारे में सोच कर घबरा गए| पिताजी तेजी से पहले घर में घुसा तथा माँ उनके दो कदम पीछे घुसीं| पिताजी सीधा हमारे (मेरे और संगीता वाले) कमरे में घुसे और हम दोनों को देख कर वो सन्न रह गए!

[color=rgb(41,]जारी रहेगा भाग - 2 में... [/color]
 

[color=rgb(51,]छब्बीसवाँ अध्याय[/color][color=rgb(51,]: दुखों का [/color][color=rgb(51,]ग्रहण[/color]
[color=rgb(251,]भाग - 3[/color]


[color=rgb(26,]अब तक पढ़ा:[/color]

[color=rgb(255,]उधर पिताजी बाहर dining table पर बैठे अखबार पढ़ रहे थे, मैं चाय बना कर उनके पास रखते हुए उनके पाँव छू आशीर्वाद लेने लगी| पिताजी ने मुझसे मेरा हाल-चाल पुछा मगर मैंने बिना कुछ कहे सर झुका कर और हाथजोड़ कर उनसे मूक माफ़ी माँगी! पिताजी मुझे यूँ माफ़ी माँगते देख खामोश हो गए, वो मेरी माफ़ी माँगने का कारण समझ गए थे! पिताजी ने माँ को आवाज दी और उनसे मेरा हाल-चाल पुछा| माँ भी मायूस होते हुए बोलीं; "कल से बहु एक शब्द नहीं बोली है! मुझे उसकी बहुत चिंता हो रही है!" माँ की बात सुनते ही पिताजी अपना फ़ोन उठाते हुए बोले; "मैं अभी मानु को फ़ोन करता हूँ|" लेकिन इससे पहले की पिताजी इनको फ़ोन खनकाते ये खुद ही आ गए|[/color]

[color=rgb(97,]अब आगे:[/color]

सारी रात संगीता के बारे में सोचता रहा और उसके मुख से प्यार भरे अलफ़ाज़ सुनने को तरसता रहा| आमतौर पर मैं site से सुबह 7-8 बजे तक घर लौटता था, लेकिन आज संगीता को देखने को मन इतना प्यासा था, मन में इतनी बेचैनी थी की मैं सुबह 6 बजे ही घर आ धमका! दरवाजे की घंटी बजाई और माँ दरवाजा खोलते हुए मुझे देख कर पिताजी से बोलीं;

माँ: लो, ये (मैं) तो आ गया?

मैंने माँ के पाँव छू कर आशीर्वाद लिया और भीतर आया| फिर मेरी नजर संगीता पर पड़ी, वो अब भी वैसी की वैसी खामोश थी! मुझे देखते ही वो मुझसे नजरें चुराते हुए रसोई में घुस गई और मेरे लिए चाय बनाने लगी| इधर पिताजी ने मेरा हाथ पकड़ मुझे कहा;

पिताजी: बैठ बेटा!

मैंने पिताजी के पाँव छुए और उनका आशीर्वाद ले कर उनके सामने बैठ गया|

पिताजी: बेटा, कल से बहु एकदम खामोश है! उसने अभी तक एक शब्द भी नहीं बोला है, तेरी माँ ने मुझे सुबह बताया की वो रात भर सोई भी नहीं है! तू उससे बात कर और कैसे भी उससे कुछ बुलवा क्योंकि अगर वो इसी तरह सहमी रहेगी तो उसके दिल में डर बैठ जाएगा!

पिताजी ने अपनी बात धीमी आवाज में कही ताकि कहीं संगीता न सुन ले! पिताजी की बातों से उनकी चिंता झलक रही थी|

मैं: पिताजी, मैं उससे (संगीता से) बात करूँगा| अगर जर्रूरत पड़ी तो उसे डॉक्टर सुनीता के पास भी ले जाऊँगा|

मैंने एक गहरी साँस छोड़ते हुए कहा| संगीता की ये ख़ामोशी हम सभी की चिंता का सबब बनी हुई थी! मुझे संगीता से बात करने के लिए एकांतवास चाहिए था जिसकी व्यव्य्स्था माँ ने कर दी थी;

माँ: बेटा अभी बच्चे सो कर उठेंगे तो मैं और तेरे पिताजी उन्हें लेके मंदिर चले जायेंगे, तब तू बहु से इत्मीनान से बात करिओ|

माँ ने मेरे सर पर हाथ फेरते हुए कहा|

मैं: जी|

मैंने संक्षेप में उत्तर दिया| संगीता ने चाय बनाई और dining table पर मेरे आगे रख कर जाने लगी, मैंने उसे इशारे से कहा की अपनी चाय ले कर मेरे पास बैठो| संगीता ने अपनी चाय ली और मेरे बगल में सर झुका कर बैठ गई| हम दोनों खामोशी से चाय पीने में लगे हुए थे, माँ-पिताजी से हमारी ये खामोशी सहन नहीं हो रही थी इसलिए वे उठ कर सोफे पर बैठ कर टी.वी. देखने लगे| तभी दोनों बच्चे जाग गए और आँख मलते-मलते बहार आये| मुझे देख दोनों के चेहरों पर ख़ुशी का ठिकाना नहीं रहा और दोनों दौड़ते हुए मेरे पास आ गए| मैंने दोनों बच्चों को उठाया और अपने सामने dining table पर बिठा दिया, दोनों बच्चों ने मुझे सुबह की good morning वाली पप्पी दी और मैंने उन्हें अपने सीने से चिपका लिया| बच्चों के दिल में पनपा डर कमजोर पड़ने लगा था और ये महसूस कर मुझे लग रहा था की मैं आधी जंग जीत चूका हूँ! मैंने दोनों बच्चों के सर चूमे और इससे पहले मैं कुछ कहता उससे पहले ही नेहा बोल पड़ी;

नेहा: पापा जी, मुझे आपके बिना नींद नहीं आती! दादा जी ने...

इसके आगे नेहा से कुछ भी कहना मुश्किल था| नेहा धीमी आवाज में बोली ताकि कहीं उसके दादा जी न सुन लें! मैं उसके मन की बात समझ गया की पिताजी ने नेहा को सँभालने की बहुत कोशिश की होगी मगर वो उसे सँभालने में कामयाब नहीं हुए|

मैं: बेटा, आप मेरे सबसे बाहदुर बच्चे हो! आपके दादा-दादी जी हम सभी को सँभालने की पूरी कोशिश कर रहे हैं, हमें भी अपनी कोशिश करनी चाहिए और अपने डर से लड़ना चाहिए ताकि हमारे माता-पिता को हम पर गर्व हो!

ये बात मैंने थोड़ी ऊँची आवाज में कही ताकि सभी ये बात सुन लें| ये बात मैंने नेहा की ओर देखते हुए कही थी मगर ये बात थी संगीता के लिए| संगीता ने मेरी बात सर झुका कर सुनी मगर उसने अपनी कोई प्रतिक्रिया नहीं दी| वहीं आयुष मेरी बात समझते हुए मुस्कुराया और अपनी शेखी बघारते हुए बोला;

आयुष: बिलकुल मेरी तरह न पापा जी?

आयुष का भोलापन देख मेरे चेहरे पर मुस्कान नहीं आई मगर माँ-पिताजी के चेहरे पर मुस्कान आ गई थी|

माँ: अरे मेरा पोता बहुत बहादुर है, तभी तो आज मैं अपने पोते को chocolate खिलाऊँगी|

माँ सोफे पर से बैठे हुए आयुष की तारीफ करते हुए बोलीं| फिर उन्होंने मुझे और संगीता को हँसाने के लिए पिताजी को प्यार से कोहनी मारी और बोलीं;

माँ: आज हमार मुन्ना (आयुष) खातिर एक ठो चॉक्लेट का बड़ा डब्बा लाये दिहो, हम हूँ आपन पोते संगे chocolate खाब!

ये सुन पिताजी मुस्कुराये और माँ को छेड़ते हुए बोले;

पिताजी: कहाँ से खाय पैहो, दाँत तो हैं नाहीं!

ये सुन माँ शर्मा गईं और आयुष अपनी दादी को सहारा देने के लिए पहुँच गया|

आयुष: दादी जी, मैं न चॉकलेट पिघला दूँगा तब आप चॉकलेट चम्मच से खा लेना|

आयुष का बचपना देख माँ-पिताजी ठहाका मर कर हँस पड़े! वहीं हम मियाँ-बीवी के चेहरे पर मुस्कान की एक महीन सी रेखा खींच गई!

इधर नेहा फिर से मेरे सीने से लिपट गई और मैं उसे दुलार करने में लग गया| रात भर जागने से मेरा शरीर बिलकुल थका हुआ था मगर बच्चों के प्यार के आगे मैं उस दर्द को भुला बैठा था और dining table वाली कुर्सी पर बैठा हुआ था| आखिर माँ ने ही बात शुरू की और बोलीं;

माँ: अच्छा बच्चों, चलो आप दोंनो जल्दी से तैयार हो जाओ मैं और आपके दादा जी आपको मंदिर ले जाएंगे|

मंदिर जाने के नाम से नेहा तो एकदम से तैयार हो गई क्योंकि मेरी ही तरह उसमें भी भक्ति भाव थे मगर आयुष मेरे साथ रहना चाहता था| अब माँ ने उसे लालच देते हुए कहा;

माँ: बेटा, मंदिर जाओगे तो आपको मीठा-मीठा प्रसाद मिलेगा!

प्रसाद खाने का लालच सुन आयुष भी मेरी तरह एकदम से तैयार हो गया!

माँ-पिताजी और बच्चे मंदिर जाने के लिए तैयार हुए और तब तक मैं dining table पर बैठा रहा| बच्चों ने मुझे साथ चलने को पुछा तो पिताजी ने उन्हें कह दिया की मैं थका हुआ हूँ इसलिए मुझे आराम करना है, बच्चे मान गए और अपने दादा-दादी जी का हाथ पकड़ कर चल दिए| जैसे ही सब लोग बाहर गए और दरवाजा बंद होने की आवाज आई मैंने संगीता की तरफ देखा और कहा;

मैं: Can we talk...please!

मैंने बड़े प्यार से संगीता से बात करने के लिए 'गुजारिश' की! वैसे ये पहलीबार था की मुझे संगीता से बात करने के लिए उसे 'please' कहना पड़ा हो!

खैर मैं उठ कर अपने कमरे में आ गया और संगीता भी मेरे पीछे-पीछे सर झुकाये हुए आ गई| मैंने संगीता का हाथ पकड़ा और उसे पलंग पर बिठाया तथा मैं उसके सामने अपने दोनों घुटनों पर आते हुए हुए संगीता का हाथ अपने हाथों में लिए हुए बोला:

मैं: पिछले 24 घंटे से मैं हर मिनट तुम्हारी आवाज सुनने के लिए मरा हूँ! मैं जानता हूँ तुम्हारे भीतर क्या चल रहा है, तुम किस डर से जूझ रही हो लेकिन तुम्हें अपना वो डर मुझसे बात कर के बाहर निकालना होगा! मैंने तुम्हें इतना समय बस इसीसलिए दिया था ताकि तुम खुद को सँभाल सको और अपने इस डर से बाहर आ सको, लेकिन अब मेरे सबर की इन्तहा हो चुकी है! अगर तुम अब भी कुछ नहीं बोली तो....तो इस बार मैं टूट जाऊँगा! मैं...मैं तुम्हारे बिना नहीं जी सकता!

मैंने ये सब बातें संगीता की आँखों में देखते हुए कहीं थीं लेकिन संगीता के भीतर मैंने कोई बदलाव महसूस नहीं किया| वो अब भी डरी हुई थी और कुछ भी कहने से खुद को रोक रही थी| अपने मन की बात साफ़ शब्दों में कह कर और संगीता के कोई प्रतिक्रिया न देने पर मैंने हार मान ली थी! मुझसे उसका वो दुखी चेहरा नहीं देखा जा रहा था, इसलिए मैं खड़ा हुआ और कमरे से बाहर निकलने को पलटा| तभी संगीता ने मुझे पीछे से अपनी बाहों में जकड़ लिया और मेरी पीठ में अपना चेहरा धँसा कर संगीता बिलख-बिलख कर रोने लगी|

[color=rgb(255,]जब इन्होने मेरी आँखों में आँखें डालकर अपनी बात कही तो मैं समझ गई की मेरे कुछ न बोलने से अब ये टूट जायेंगे और अगर ये टूट गए तो मेरे इस परिवार का क्या होगा? दिमाग में उठे इस सवाल ने मेरे शरीर में हरकत पैदा कर दी थी, मैंने खुद को कुछ बोलने के लिए सज किया और अपने आपको रोने से कोशिश करने लगी| लेकिन मेरे दिल बहुत कमजोर हो चला था, उसे बस रोना था और जैसे ही ये कमरे से बहार जाने को मुड़े मेरे जिस्म में फुर्ती आ गई और मैंने इन्हें पीछे से अपनी बाहों में जकड़ लिया और रोने लगी!

वहीं मेरा रोना सुन इनके दिल में टीस उठी जिसे मैंने भी साफ़ महसूस किया था! लेकिन इन्होने जैसे-तैसे खुद को सँभाला और मेरी तरफ मुड़े तथा मेरे माथे को चूम कर मुझे कस कर अपने गले लगा लिया! इनका वो आलिंगन मेरे लिए ऐसा था मानो मैंने मोक्ष प्राप्त कर लिया हो! कल रात से जो मैं इनके बदन के स्पर्श को पाने के लिए तड़प रही थी वो तड़प इनके सीने से लग कर खत्म होने लगी! इनके भीतर मेरी आवाज सुनने की अग्नि और तीव्र हो कर जल रही थी जिसका सेंक मुझे महसूस हो रहा था! मैंने खुद को बहुत कोसा की मैंने अपने पति को इतनी छोटी सी चीज के लिए इतना तरसाया! उस पर कल से अभी तक अपने माता-पिता (सास-ससुर जी) की मुझे कुछ काम करने से रोकने की आज्ञा की अवहेलना कर उनकी न कादरी भी की थी!

परन्तु, अभी मुझ कहना था, कुछ बोलना था जिससे मेरे पति के भीतर उनकी सब कुछ सहने की, सब कुछ सँभालने की सहनशक्ति क़ायम रहे और वो कहीं मेरी तरह टूट न जाएँ! इस वक़्त एक पत्नी का प्यार इस कदर उमड़ आया था की उसने मेरी अंतरात्मा को जगा दिया था| मेरी अंतरात्मा जाएगी और मेरे मुँह से ये बोल फूटे; "I...love...you...जानू!" मुझ में इनसे नजरें मिलाने की हिम्मत नहीं थी इसलिए मैं इनके सीने में अपना चेहरा छुपाये इनकी बाहों में सिमटी रही, इसलिए मैं इनके चेहरे पर आये भाव भी न देख पाई![/color]

24 घंटे बाद जब मैंने संगीता की आवाज सुनी तो ऐसा लगा जैसे किसी खामोश कमरे में किसी ने छन से पायल खनका दी हो! संगीता की आवाज सुन जहाँ एक तरफ मुझे ख़ुशी हुई थी, वहीं उसके भीतर छुपा हुआ डर भी मुझे महसूस हुआ था!

मैं: I love you too! अब बस और रोना नहीं है! मैं हूँ न तुम्हारे पास, फिर घबराने की क्या जर्रूरत है?

मैंने संगीता की पीठ पर हाथ फेरते हुए उसे शांत किया|

मैं: अब बताओ की तुम इतना डरी हुई क्यों हो? क्यों खुद को मुझसे काटे बैठी हो?

मेरे सवाल सुन, संगीता ने अपना रोना काबू किया| वहीं मैं बेसब्री से उसके जवाब का इंतजार करने लगा|

[color=rgb(255,]अब समय आ गया था कुछ कहने का, मुझे लग रहा था की मुझे अब इन्हें सब सच कह देना चाहिए| कल शाम से मैं जिस कवच में बंद थी, उसमें कल रात की माँ द्वारा कही बातों से दरार पड़ गई थी और अभी जब मैं इनके सीने से लिपट कर रोइ थी तो वो कवच टूट कर चकना चूर हो चूका था! मैं अब आजाद थी; 'और अब मैं इनसे कुछ नहीं छुपाऊँगी, पिछले 24 घंटों से जो भी बातें मुझे खाये जा रहीं हैं वो सब मैं इन्हें अब बता दूँगी!' मैं मन ही मन बुदबुदाई और हिम्मत कर के अपने मन की सारी बात इनकी आँखों में आँखें डाल के इनके सामने रखने लगी; "कल...जो हुआ उसे देख मैं बहुत डर गई थी, अपने लिए नहीं बल्कि आपके के लिए, हमारे बच्चों के लिए और हमारे इस परिवार के लिए! जब आपने उस जानवर की गर्दन पकड़ी हुई थी तो मुझे लग रहा था की आप गुस्से में उसकी जान ले लोगे! ये दृश्य मेरे लिए बहुत डरावना था और...और हमारे बच्चों के लिए तो और भी डरावना था, इतना डरावना की वो भी बेचारे सहम गए थे!" इतना कह मेरी आँखों में फिर से डर झलकने लगा था, वो ठंडा एहसास जिसने मेरी रूह तक को झिंझोड़ कर रख दिया था! मेरी आगे कही बात हताशा भरी थी, ऐसी काली बात जिसमें नेश मात्र भी उम्मीद की रौशनी नहीं थी; "आपने उसे पीट-पीट कर भगा तो दिया मगर मेरा दिल कहता है की खतरा अभी टला नहीं है! वो वापस आएगा...जैसे हर बार आता था...वो...आएगा...जर्रूर आएगा...आयुष के लिए...हमारे बेटे के लिए! ...और वो आयुष...आयुष को...हम से छीन लेगा...पक्का छीन लेगा...जरूर छीन लेगा...और हम...हम कुछ नहीं कर पाएंगे...कुछ भी नहीं!" इन्होने मेरी ये निराशा और भय से भरी हुई बातें अपनी भोयें सिकोड़ कर मुझे घूरते हुए सुनी| इन्हें विश्वास नहीं हो रहा था की मैं इस कदर तक हार मान चुकी हूँ की मुझ में अपने ही बेटे को अपने पास रोकने तक की ताक़त नहीं बची है![/color]

मैं: सँभालो खुद को!

मैंने संगीता के कँधे पकड़ उसे झिंझोड़ते हुए कहा| संगीता इतनी निराश, इतनी हताश, इतना हारा महसूस कर रही थी इसकी मैंने कल्पना भी नहीं की थी! मेरा काम उसे हिम्मत बँधाना था, उसे विश्वास दिलाना था की मेरे रहते हुए उसे कोई छू नहीं सकता!

मैं: वो (चन्दर) कुछ नहीं कर सकता क्योंकि मैं आयुष को कुछ नहीं होने दूँगा! वो मेरा बेटा है, मेरा खून है और मैं उसे कभी खुद से दूर नहीं जाने दूँगा! हमारा बेटा आयुष हमेशा हमारे पास रहेगा!

मैंने जोश और आत्मविश्वास से अपनी बात कही ताकि संगीता के दिलों-दिमाग में ये बात हमेशा-हमेशा के लिए घर कर जाए! लेकिन संगीता का आत्मबल बहुत कमजोर था इसलिए उसने फिर से निराशाजनक बात कही;

[color=rgb(255,]मेरे पति मुझे हिम्मत बँधा रहे थे मगर मेरा नाजुक डरा हुआ दिल मुझे मेरे पति की बात मानने से रोक रहा था! "नहीं....वो (चन्दर) उसे (आयुष को) ले जाएगा...हम सब से दूर...बहुत दूर! ये सब मेरी वजह से हुआ ...मैं ही कारण हूँ...मेरी वजह से वो (चन्दर) आपको...माँ-पिताजी को...बच्चों को...सबको...नुक्सान पहुँचायेगा! आप सब की मुसीबत का कारन मैं हूँ! न मैं आपकी जिंदगी में दुबारा आती ना ये सब होता .....please मुझे माफ़ कर दो!" मेरा दिल मुझे चन्दर के दुबारा लौटने को ले कर डरा रहा था| मेरे लिए इन सभी बातों का बस एक ही शक़्स दोषी था और वो थी मैं![/color]

संगीता रोते हुए बोली और उसको यूँ रोता देख मुझसे बर्दाश्त नहीं हो रहा था जिस कारण मेरे दिल में टीस उठ रही थी! संगीता बेवजह खुद को दोषी मान चुकी थी और उसके भीतर मौजूद ग्लानि उसे खुलकर साँस नहीं लेने दे रही थी!

मैं: बाबू...सँभालो खुद को!

मैंने बहुत प्यार से संगीता की आँखों में देखते हुए कहा| मैं जोश से संगीता को पहले समझा चूका था और अब बारी थी संगीता को प्यार से समझाने की|

मैं: क्यों इस तरह खुद को दोष दे रही हो?! तुम्हारी कोई गलती नहीं, तुमने कुछ नहीं किया!

ये कहते हुए मैंने संगीता के सर से दोष की टोकरी उतार कर अपने ऊपर रख ली;

मैं: अगर कोई कसूरवार है तो वो मैं हूँ क्योंकि शादी का प्रस्ताव तुम्हारे आगे मैंने रखा था! तुम्हारे divorce के papers गाँव मैं ले कर गया था और चन्दर को डरा-धमका कर उसके sign मैंने लिए थे इसलिए अगर कोई कसूरवार है तो वो मैं हूँ, तुम नहीं!

सच बात ये थी की मेरे लिए संगीता के सामने शादी का प्रस्ताव रखना कोई गलती नहीं थी मगर अपनी पत्नी के मन की शान्ति के लिए मैंने इसे गलती कहा था ताकि उसके भीतर से ग्लानि का भाव खत्म हो सके| इधर, मैंने जब खुद को दोषी कहा तो संगीता ने अपनी गर्दन न में हिलानी शुरू कर दी!

[color=rgb(255,]जब इन्होने खुद को दोषी कहा तो मैं जान गई की ये बस मुझे खुद को दोषी कहने से रोक रहे हैं| मैंने अपनी गर्दन न में हिलाई और खुद का रोना काबू करने लगी, कम से कम अपने रोने को काबू कर के इनके कलेजे को छलनी तो न करूँ! "नहीं...अगर मैं दुबारा आपकी जिंदगी में ही न आती तो ये सब होता ही नहीं न?" मैंने इनसे बहस करते हुए कहा|[/color]

ये संगीता के भीतर मौजूद ग्लानि बोल रही थी जो की मुझे न ग्वार थी!

मैं: जानती हो अगर तुम मेरी जिंदगी में दुबारा नहीं आती तो मैं वही शराब पीने वाला मानु बन कर रह जाता| जो न हँसता था, न खेलता था, न किसी से बात करता था, बस एक चलती-फिरती लाश के समान जीये जा रहा था| तुम्हारे बिना मैं नई शुरुआत नहीं कर पा रहा था, तुम्हें भूल नहीं पा रहा था और भूलता भी कैसे, मेरी आत्मा का एक टुकड़ा तुम्हारे पास जो रह गया था!

मेरी बातों से संगीता खामोश हो गई थी, मेरे जवाब ने संगीता के सवाल का वजूद खत्म कर दिया था! अब मुझे संगीता को हँसाना था;

मैं: तुम्हें पता है, तुम्हारे प्यार ने मुझे उस लड़की का नाम भी भुला दिया जिसके प्रति मैं आकर्षित था!

जैसे ही मैंने उस लड़की का जिक्र किया तो संगीता के चेहरे पर एक प्यारी सी मुस्कान खिल गई! संगीता के चेहरे पर आई मुस्कान ऐसी थी मानो सूरज की किरण पड़ने पर कोई नन्ही सी कली मुस्कुराई हो!

मैं संगीता को पलंग पर ले आया और दिवार से पीठ टिका कर बैठ गया तथा संगीता मेरे सीने से अपना सर टिका कर बैठ गई और हमने रजाई ओढ़ ली| संगीता को अपने पहलु में समेटे हुए मैंने उससे अपना एक डर साझा करनी की सोची, ऐसा डर जिसने मुझे कल रात बहुत सताया था;

मैं: जानती हो, कल रात मैं कितना परेशान था? तुम्हारा एकदम खामोश हो जाना, मुझसे बात न करने से मैं डर गया था, मुझे लग रहा था की कहीं तुम अपनी निराशा में कोई गलत कदम न उठा लो! याद है गाँव में जब मैं दिल्ली वापस आ रहा था तो तुम कितनी उदास थी? उस रात अगर मैं तुम्हारे पास न होता तो तुम उस दिन अनर्थ कर देती! उसी अनर्थ का डर मुझे कल रात को हो रहा था और इसीलिए मैं सुबह जल्दी घर लौट आया था!

मुझमें इतनी हिम्मत नहीं थी की मैं संगीता के सामने आत्महत्या या खुदखुशी जैसा शब्द इस्तेमाल कर सकूँ इसलिए मैंने अपनी बात थोड़ी घुमा कर कही थी, परन्तु संगीता ने जो जवाब दिया उसे सुन कर मैं अवाक रह गया!

[color=rgb(255,]जब इन्होने मुझे वो दिन याद दिलाया जब गाँव में मुझे इनके दिल्ली वापस लौटने की खबर रसिका ने मिर्च-मसाला लगा कर बताई थी, वो दिन याद कर के मुझे अपनी खुदखुशी करने की बात याद आ गई| उस रात मेरी मनोस्थिति बहुत-बहुत कमजोर थी, तभी मैंने उस रात आत्महत्या करने की कोशिश की थी! अगर उस रात ये न होते तो मैं सच में अपनी जान दे चुकी होती! लेकिन अभी मुझे इन्हें सच बताना था; "I...I'm sorry..पर कल...रात मैं इतना depressed हो गई थी की मेरे मन में खुदखुशी करने की इच्छा जन्म लेने लगी थी!" काँपते हुए होठों से मैंने अपनी मन की बात कही और बड़ी हिम्मत जुटा कर इनकी आँखों में देखने लगी|[/color]

संगीता की बात सुन के मेरी जान मेरी हलक़ में अटक गई! संगीता इस कदर निराश थी की वो अपनी हिम्मत हार चुकी थी! उसकी ख़ुदकुशी करने की बात ने मुझे बहुत डरा दिया था!

मैं: What?

मैंने काँपती हुई आवाज में संगीता को आँखें फाड़े देखते हुए कहा| मेरे चेहरे से अपनी पत्नी को खो देने का डर झलक रहा था और मेरा ये डर देख संगीता को सुई के समान चुभ रहा था!

[color=rgb(255,]मैंने इनकी आँखों में मुझे खोने का डर देख लिया था और मैं नहीं चाहती थी की इनके भीतर कोई डर रहे क्योंकि बस एक ये ही थे जो हमारे परिवार को सँभाले हुए थे इसलिए मैंने इन्हें आश्वस्त करने के लिए सच कहा; "I'm sorry! ये ख्याल मेरे दिमाग में आया था पर मैंने ऐसा-वैसा कुछ करने की नहीं सोची क्योंकि मैं जानती थी की अगर मुझे कुछ हो गया तो आप टूट जाओगे...इसलिए मैंने कुछ भी नहीं किया|" मैंने कह तो दिया मगर मेरी आवाज में वो वजन, वो अस्मिता नहीं थी जो की होनी चाहिए थी|[/color]

मैं: तुम ऐसा सोच भी कैसे सकती हो?!

मैंने संगीता को गुस्से से डाँटते हुए पुछा| लेकिन फिर मुझे एहसास हुआ की मेरे गुस्से का संगीता पर कोई असर नहीं होगा इसलिए मैंने उसे फिर प्यार से समझाते हुए कहा;

मैं: जान...तुम्हें पता है, कल जो मैंने तुम्हारी और बच्चों की हालत देखि थी उसके बाद मेरा खून खौलने लगा था! उस हरामजादे की गर्दन मेरे हाथ में थी और एक बार को मन कर रहा था की उसकी गर्दन तोड़ दूँ लेकिन मैंने उसे छोड़ दिया...जानती हो क्यों? क्योंकि मैं जानता था की अगर मैंने उस कुत्ते को जान से मार दिया तो मैं तुमसे और अपने परिवार से हमेशा-हमेशा के लिए दूर हो जाऊँगा! और तुम...तुम खुदखुशी के बारे में सोच रही थी?!

मैंने बड़े प्यार से अपनी पत्नी को भावुक करते हुए उससे बड़े प्यार से तर्क किया था| अब समय था अपनी अंतिम प्यारभरी चाल का जिससे मैं संगीता के दिल से आत्महत्या जैसे बुरे ख्याल को हमेशा-हमेशा के लिए खत्म करने वाला था;

मैं: शायद मेरे ही प्यार में कोई कमी रह गई थी इसीलिए तुम्हें ये सब सोचना पड़ा!

मेरी आवाज में हताशा भरी पड़ी थी और मैं जानता था की मेरी पत्नी मुझे हताश होते हुए कभी नहीं देख सकती|

[color=rgb(255,]इनकी कही अंतिम बात की इनके प्यार में कोई कमी रह गई थी, मुझे बहुत चुभी! इतनी चुभी की मेरा दिल रो पड़ा और मेरे दिल के साथ मैं भी रो पड़ी; "नहीं...ऐसा नहीं है! मैं...मैं जानती हूँ की मैं गलत थी! मुझे ऐसा नहीं सोचना चाहिए था, लेकिन मैं इतना डर चुकी थी की नहीं जानती थी की मैं जो (खुदखुशी की) सोच रही हूँ वो सही है या गलत! अब...अब मुझे आप पर भरोसा है..."[/color]

संगीता के शब्द उसकी आवाज से मेल नहीं खा रहे थे! मेरी कोशिशें नाकमयाब हो रहीं थीं और मुझे अब गुस्सा आने लगा था;

मैं: अगर तुम कुछ गलत कर लेतीं या तुम्हें कुछ हो जाता तो मैं उस हरामजादे (चन्दर) के टुकड़े-टुकड़े कर देता!

अगर संगीता को कभी कुछ होता तो मैंने उस बहनचोद चन्दर की जान ले लेनी थी! वहीं जब संगीता ने मेरी गुस्से से भरी बात सुनी तो वो डर के मारे काँप गई!

[color=rgb(255,]इनके मुँह से मरने-मारने की बातें सुन कर मैं घबरा गई थी, मैं जानती थी की इनके गुस्से का असली कारन मैं ही हूँ, मैं ही इन्हें अपनी बातों पर विश्वास नहीं दिल पा रही की मैं अब कभी भी खुदखुशी करने की बात नहीं सोचूँगी! जब मैं अपने पति को विश्वास न दिला पाई तो सिवाए उन्हें अपनी कसम से बाँधने के मेरे पास कोई चारा नहीं रह गया था; "नहीं...आपको मेरी कसम है! आप ऐसा कुछ भी नहीं करोगे!" मैंने इन्हें चन्दर की जान लेने से मना करते हुए अपनी कसम से बाँध दिया| "मैं पहले ही बहुत टूट चुकी हूँ अब और नहीं टूटना चाहती! इन पिछले 24 घंटों में मैंने बहुत से पाप किये हैं जिसके लिए मुझे सबसे माफ़ी माँगनी है, आप से...माँ से...पिताजी से और बच्चों से!" मेरे भीतर ग्लानि भरी पड़ी थी और वो अब बहार आने लगी थी|[/color]

संगीता की ग्लानि से भरी बातें सुन मुझे समझ नहीं आ रहा था की मैं उसे कैसे सम्भालूँ?!

मैं: क्यों खुद को इस तरह दोष दिए जा रही हो? क्यों खुद को इतना हरा हुआ महसूस कर रही हो? क्यों खुद को इस तरह बाँध कर रखे हुए हो? क्या तुमने हमारे होने वाले बच्चे के बारे में सोचा? जानती हो तुम्हारी ये मायूसी हमारे होने वाले बच्चे पर कितनी भारी पड़ सकती है?! बोलो...है तुम्हें इसका अंदाजा?

नेहा को देखो, मुझे गर्व है मेरी बेटी पर! उस नन्ही सी जान ने कल से अकेले आयुष को सँभाला हुआ है इसलिए उस छोटी सी बच्ची से सबक लो! तुम्हें आखिर किस बात की कमी है? क्या मेरे माँ-पिताजी तुमसे प्यार नहीं करते? क्या मैं तुम्हें प्यार नहीं करता? आखिर किस बात का डर है तुम्हें? हमने सीना चौड़ा कर के प्यार किया और शादी की है तो क्यों किसी से घबराना?!

मेरे सवालों ने संगीता पर गहरा प्रभाव छोड़ा था! संगीता की नजरें मुझ पर थीं और वो मेरे सवालों के जवाब मन ही मन दिए जा रही थी तथा मेरे लिए ये ऐसा था मानो संगीता एक नई शुरुआत करने जा रही हो! अब मुझे बस संगीता को आश्वस्त करना था;

मैं: रही आयुष की बात तो तुम्हें उसकी चिंता करने को कोई जर्रूरत नहीं है, माँ-पिताजी को आने दो मैं उनसे बात करता हूँ| तुम्हें बस मुझ पर भरोसा रखना है!

मैंने संगीता का दायाँ हाथ अपने हाथों में लेते हुए कहा|

[color=rgb(255,]इनके सवालों ने मुझे झिंझडो दिया था, इनकी कही बात सच्ची थी बस एक मैं ही बेवकूफ थी जो इतना डरे जा रही थी! "एक आप ही का तो सहारा है, वरना मैं कब का बह चुकी होती!" ये शब्द अनायास ही मेरे मुख से निकले थे![/color]
[color=rgb(255,]लेकिन मेरा ये जवाब सुनते ही इन्होने मुझे प्यार से डाँटा;[/color]

मैं: यार फिर वही बात?! अगर आज के बाद तुम मुझे इस तरह हताश दिखी न तो मैं ...मैं तुम से कभी बात नहीं करूँगा?!

संगीता की हताशा से भरी बात सुन मैंने उसे प्यार से धमकाया, हालाँकि मेरी धमकी पूरी तरह से बिना सर पैर की थी जो की संगीता भी जानती थी तभी उसके चेहरे पर मुस्कान की एक रेखा खिंच आई थी!

[color=rgb(255,]"Sorry! This won't happen again!"[/color] संगीता ने अपनी मुस्कान को छुपाते हुए नजरें झुकाते हुए कहा|

संगीता पिघल रही थी और खुद को सुधारने की कोशिश कर रही थी और मैं ये देख कर खुश था! मैंने संगीता को अपने सीने से लगा लिया और उसके सर को चूमने लगा| मैं जानता था की संगीता अंदर से बहुत जख्मी है और भले ही वो मुझे अपने जख्म न दिखाए मगर मुझे पूरा यक़ीन है की मैं उसके ये जख्म अपने प्यार से जल्द ही भर दूँगा|

[color=rgb(255,]इनसे दिल खोलकर बात करने से मेरा मन हल्का हो चूका था लेकिन मुझे मेरा डर अब भी सता रहा था, हाँ भीतर मौजूद ग्लानि काफी हद्द तक कम हो चुकी थी| सबसे पहले मुझे माँ-पिताजी से कल दिन भर बात न करने की और उन्हें बेस्वाद तथा बिना नमक का खिलाने की माफ़ी माँगनी थी! ये मेरी जिंदगी की पहली और आखरी भूल थी जिसका मुझे प्रायश्चित करना था![/color]

संगीता ख़ामोशी से मेरे सीने से लगी हुई कुछ सोच रही थी, वो अधिक न सोचे इसलिए मैंने चुप्पी तोड़ते हुए कहा;

मैं: अच्छा अब आप आराम करो, कल रात से आप आराम से सोये नहीं हो|

मैंने संगीता के सर को चूमते हुए बड़े प्यार से कहा|

संगीता: लेकिन, मुझे अभी खाना बनाना है!

संगीता उठते हुए बोली, मैं उसे रोकता उससे पहले ही पिताजी का फ़ोन आ गया;

मैं: जी पिताजी|

मैंने संगीता का हाथ पकड़ कर उसे रोक लिया और फ़ोन अपने कान पर लगाते हुए बोला|

पिताजी: बेटा, मैं और तेरी माँ बच्चों को 'घुम्मी' करा रहे हैं| तो हम चारों दोपहर तक आएंगे और खाना भी यहीं से लेते आएंगे, तुम लोग तब तक आराम करो|

बच्चे उदास थे और उनको खुश करने के लिए पिताजी ने घुमाने की सोची थी और उनके इस plan से हम मियाँ-बीवी को भी एक साथ समय व्यतीत करने का थोड़ा समय मिल गया था|

मैं: जी ठीक है|

मैंने फोन रखा और संगीता की तरफ देखा तो वो मुझसे नजरें चुराते हुए फिर कुछ सोच रही थी|

मैं: पिताजी का फोन था, वो, माँ और बच्चे दोपहर तक लौटेंगे तथा खाना अपने साथ लेते हुए आएंगे| तब तक हम दोनों को आराम करने का आदेश मिला है|

मैंने प्यार से संगीता को अपने सीने से लगाते हुए कहा|

संगीता: कल मैंने सब को बिना नमक का खाना खिलाया था न इसीलिए पिताजी बाहर से खाना ला रहे हैं!

संगीता निराश होते हुए बोली|

मैं: जान, ऐसा नहीं सोचते! माँ-पिताजी जानते हैं की बच्चों के यहाँ रहते हुए हमें एकांत नहीं मिलेगा इसलिए वो (माँ-पिताजी) बस हमें एक साथ गुजारने के लिए थोड़ा समय देना चाहते हैं|

मैंने संगीता के बालों में उँगलियाँ फिराते हुए कहा|

संगीता: हम्म्म!

संगीता बस इतना बोली| मैंने उसे थोड़ा हँसाना चाहा और बोला;

मैं: तो चलो रजाई में!

हम दोनों को रजाई में प्यार करने में मज़ा आता था और मैंने ये बात बस संगीता के चेहरे पर मुस्कान लाने के लिए कही थी मगर मेरी कही बात का कोई असर नहीं हुआ|

मैं उठा और कपडे बदल कर लेट गया, संगीता ने मेरे दाहिने हाथ को अपना तकिया बनाया और मेरे सीने पर हाथ रख कर मुझसे लिपट गई| मैंने भी संगीता के बालों में अपनी उँगलियाँ फिरानी शुरू कर दी ताकि वो आराम से सो जाए, लेकिन मुझे महसूस हुआ की वो सो नहीं रही बल्कि आँखें खोले फिर से दीवारें देख रहीं है|

मैं: बाबू...छो जाओ!

मैंने जानबूझ कर तुतलाते हुए कहा ताकि संगीता मुस्कुराये...पर नहीं!

मैं: आज के बाद तुम कभी उदास नहीं होओगी, वरना इसका बुरा असर हमारे बच्चे पर पड़ेगा| ठीक है?

मैंने प्यार से कहा तो संगीता दबी हुई आवाज में बोली;

संगीता: हम्म्म...मैं पूरी कोशिश करुँगी|

मैं: तो अब सो जाओ, कल रात से आप जाग रहे हो|

मैंने संगीता की पीठ थपथपाते हुए कहा| संगीता को मनाने के लिए मैंने हमारे होने वाले बच्चे का सहारा लेना शुरू कर दिया था, चलो इसी रास्ते संगीता मेरी बात तो मान रही थी| खैर, पिताजी के आने तक हम दोनों एक दूसरे की बाँहों में लिपटे हुए सोते रहे|

[color=rgb(255,]मैं इनके आगोश में समा चुकी थी और जो करार मुझे मिल रहा था उसे बता पाना मेरे लिए सम्भव नहीं था| मेरा सर इनके सीने पर था और मैं इनके दिल की धड़कन साफ़ सुन पा रही थी| आज मैंने इनके दिल में मेरे लिए, हमारे होने वाले बच्चे के लिए, नेहा के लिए, आयुष के लिए पनप रहे डर को महसूस कर लिया था| मैं जानती हूँ की इन्हें मेरी कितनी फ़िक्र है, परन्तु मैं ये सोचती थी की ये सब सह लेंगे और मुझे तथा हमारे पूरे परिवार को सँभाल लेंगे लेकिन आज जब मैंने इनकी धड़कन सुनी तो मुझे एहसास हुआ की मेरी ही तरह इनके भीतर भी एक डर पनप चूका है जिस कारन ये बहुत बेचैन हैं! और एक तरह से मैं...मैं ही इनकी इस बेचैनी का कारण हूँ! 'मुझे इनकी ताक़त बनना था न की कमजोरी?!' मेरे अंतर्मन ने ये कहते हुए मुझे झिंझोड़ा| 'जो इंसान तुझ से इतना प्यार करता है, तेरी एक ख़ुशी के लिए सब कुछ करता है, सबसे लड़ पड़ता है, तू उसकी कमजोरी बन रही है! भले ही ये तुझसे कुछ न कहें मगर तुझे तो खुद तो समझना चाहिए न? आखिर तू इनके शरीर का आधा अंग है!' मेरे अंतर्मन की कही इस बात से मैं सतर्क हो गई थी| मुझे खुद पर काबू रखना था और जल्द से जल्द सँभलना था परन्तु मेरे जज्बात मुझे मायूसी की राह से मुड़ने नहीं दे रहे थे| देखते ही देखते मेरे मन के भीतर एक जंग छिड़ गई, एक तरफ मन का वो हिस्सा था जो इन्हें बहुत प्यार करता था और दूसरी तरफ वो हिस्सा जो की कल के हादसे से डरा हुआ था! मेरे मन का डरा हुआ हिस्सा फिर से हावी होने लगा था, मेरा डर मुझे दबाये जा रहा था और मुझे लग रहा था की मैं हार जाऊँगी लेकिन कहते हैं न ऊपर वाला हमेशा हमारे साथ होता है! मेरे मन में चल रही इस जंग के बारे में ये जान चुके थे तभी इन्होने अचानक से मेरे सर को चूमा और इनके इस एक चुंबन ने मेरे मन के भीतर चल रही लड़ाई का रुख मोड़ दिया! मेरा खुद को बदलने का आत्मविश्वास लौट आया था, इनका प्यार जीत गया था और मेरा डर हार चूका था लेकिन वो (मेरा डर) जाते-जाते भी मुझे नुक्सान पहुँचा गया था| मेरा डर अपने साथ पुरानी, इनसे प्यार करने वाली संगीता को ले जा चूका था! अब यहाँ जो संगीता रह गई थी, उसकी पहली प्राथमिकता इस परिवार को सँभालने की थी! मैं दिल से इनसे अब भी प्यार करती थी लेकिन मैं अपना ये प्यार जाहिर नहीं करना चाहती थी![/color]

दोपहर के ढाई बज रहे थे और कल रात से कुछ न खाने के कारण पेट में चूहे दौड़ रहे थे, मैं उठा और मेरे उठते ही संगीता की नींद भी खुल गई! ठीक तभी दरवाजे की घंटी बजी, मैंने दरवाजा खोलने जाने लगा तो सनगीता ने मुझे रोक दिया और वो खुद दरवाजा खोलने गई| सावधानी बरतते हुए मैं भी संगीता के पीछे-पीछे बाहर आ गया| दरवाजा खुलते ही दोनों बच्चे दौड़ते हुए अंदर आये और मेरी टाँगों से लिपट गए, दोनों बच्चों के चेहरे खिले हुए थे क्योंकि अपने दादा-दादी जी के साथ घुम्मी कर के वो बहुत खुश थे! उधर संगीता ने दरवाजा खोलते ही माँ-पिताजी के पैर छुए उनसे माफ़ी माँगने लगी;

संगीता: माँ...पिताजी...मुझे माफ़ कर दीजिये! कल मैंने आपका बहुत अपमान किया आपसे बात न कर के, आपकी बातों का जवाब न दे कर, बिना नमक का खाना खिला कर आपके साथ बदसलूकी की!

संगीता ने हाथ जोड़कर अपनी नजरें शर्म से नीची करते हुए कहा|

माँ: बहु, ये तू क्या कह रही है?! हम समझ सकते हैं की तू किस दौर से गुजर रही है! और खाने में नमक जैसी छोटी सी बात पर तुझे लगा की हम तुझसे नराज हैं?! माँ-बाप कभी अपने बच्चों से इन छोटी-छोटी बातों पर नाराज होते हैं?! तू भी तो माँ है, क्या तू कभी नेहा और आयुष से इन छोटी-छोटी बातों पर नाराज हो सकती है?

माँ ने संगीता को बड़े प्यार से समझाते हुए पुछा तो संगीता ने सर न में हिला दिया|

पिताजी: बेटी, इन छोटी-मोटी बातों को अपने दिल से न लगाया कर और जो कुछ हुआ उसे भूल जा!

पिताजी मुस्कुराते हुए बोले, जिससे संगीता के ऊपर से दबाव थोड़ा कम हुआ| फिर पिताजी ने मुझे देखा और मुझे आदेश देते हुए बोले;

पिताजी: और तू लाड साहब, वहाँ खड़ा-खड़ा क्या कर रहा है, चल सबको खाना परोस?

मैं: जी|

मैंने मुस्कुराते हुए कहा और रसोई से डोंगे निकालने घुसा की तभी संगीता भी मेरे पीछे-पीछे आ गई और एकदम से बोली;

संगीता: आप बाहर बैठो, मैं खाना परोसती हूँ|

संगीता की आवाज बड़ी सूखी सी थी, जबकि आमतौर पर वो इतने प्यार से बोलती थी की मुझे उस पर बहुत प्यार आता था, लेकिन आज उसकी आवाज में बदलाव था...एक अजब सी खुश्की थी! ऐसा लगता था मानो जैसे संगीता चाहती ही नहीं की मैं डोंगे निकालने की तकलीफ करूँ! क्या डोंगे निकलना, खाना परोसना इतना मेहनत वाला काम था? मुझे समझ नहीं आ रहा था की आखिर संगीता मेरे साथ ऐसा अजीब सा सलूक क्यों कर रही है? मैं उससे कुछ पूछता उससे पहले ही बाहर से माँ बोली;

माँ: अरे ला भई, खाना परोसने में कितना टाइम लेगा?

मैंने संगीता की बात को दरगुज़र किया और बाहर आ कर dining table पर बैठ गया| संगीता ने सब को खाना परोसा और फिर वो भी अपना खाना ले कर माँ की बगल में बैठ गई|

खाना खाने के दौरान आज सब चुप थे, बच्चे भी आज चुपचाप अपनी-अपनी थाली में खाना खा रहे थे और माँ-पिताजी एक दूसरी शक़्लें देखते हुए खाना खाने में लगे थे| आमतौर पर हम सभी खाना खाते समय कुछ न कुछ बातें करते थे परन्तु आज सन्नाटा पसरा हुआ था! आखिरकर पिताजी ने ही बातचीत शुरू करते हुए कहा;

पिताजी: बेटा तुम चारों कहीं घूमने चले जाओ| बहु का और बच्चों का मन बदल जायेगा|

मैं: जी ठीक है|

मैंने संक्षेप में पिताजी की बात का जवाब दिया, लेकिन तभी संगीता मेरी बात को काटते हुए बोली;

संगीता: पर पिताजी, अभी-अभी तो हम घूम कर आये हैं, फिर घूमने चले जाएँ? इन्हें (मुझे) काम भी तो देखना है!

माँ: बेटी, तू काम की चिंता मत कर, वो तो होता रहेगा| अभी जर्रुरी ये है की तुम दोनों (मैं और संगीता) खुश रहो|

माँ ने संगीता को समझाते हुए कहा|

संगीता: लेकिन माँ, मैं बिना आप लोगों के कहीं नहीं जाऊँगी|

संगीता ने अपनी बात साफ़ कर दी थी| मैं संगीता का डर महसूस कर चूका था, उसे लगता था की हमारी गैरमौजूदगी में चन्दर दुबारा आएगा और माँ-पिताजी से लड़ाई-झगड़ा करेगा|

मैं: रहने दो माँ, हम यहीं घूम आएँगे|

मैंने बात सँभालते हुए कहा| एक बार फिर सभी खामोश हो गए थे, खाना खाने के बाद मैंने दोनों बच्चों को अपने पास बुलाया;

मैं: नेहा...आयुष, बेटा आप दोनों कमरे में जाओ और अपना holiday homework पूरा करो|

नेहा ने मेरी बात सुनी और आयुष का हाथ पकड़ कर उसे अपने साथ कमरे में ले गई|

अब समय था माँ-पिताजी के सामने संगीता का डर रखने का ताकि वो भी संगीता को प्यार से सँभाल सकें|

मैं: पिताजी, मुझे आपसे और माँ से एक बात करनी थी|

मैंने बात की शुरुआत करते हुए कहा|

माँ: हाँ बोल बेटा|

मैं: माँ, संगीता को डर है की चन्दर फिर वापस आएगा और आयुष को अपने साथ ले जायेगा|

मैंने अपनी बात सीधे शब्दों में कही| मेरी बात सुन संगीता का सर शर्म से झुक गया|

माँ: ऐसा कुछ नहीं होगा बेटी, तू ऐसा मत सोच?

माँ ने संगीता की पीठ पर हाथ रखते हुए संगीता को होंसला देते हुए कहा|

संगीता: माँ ....वो जर्रूर आएगा|

संगीता घबराते हुए सर झुका कर अपनी बात दोहराते हुए बोली| माँ ने संगीता का कंधा रगड़ते हुए उसे हिम्मत देने लगीं|

मैं: माँ...पिताजी ...संगीता के डर का निवारण करना जर्रुरी है| मैंने इसे (संगीता को) बहुत समझाया, विश्वास दिलाया की ऐसा कुछ नहीं होगा मगर संगीता के दिल को तसल्ली नहीं मिल रही है, इसलिए मैं सोच रहा था की क्यों न हम अपनी तरफ से थोड़ी सावधानी बरतें, जैसे बच्चों को स्कूल लाना-लेजाना अब से हम ही करेंगे| मैं बच्चों के स्कूल में जा कर बात कर लूँगा की वो बिना हमारी आज्ञा के बच्चों को किसी और के साथ जाने न दें|

माँ-पिताजी मेरे सुझाव से बहुत खुश हुए थे मगर संगीता के चेहरे पर मुझे अब भी चिंता की रेखाएँ दिख रहीं थीं|

पिताजी: तेरा सुझाव बिलकुल सही है, सावधानी बरतने में कोई बुराई नहीं|

पिताजी मेरे समर्थन में बोले, लेकिन तभी संगीता ने फिर मेरी बात का काट कर दिया!

संगीता: लेकिन पिताजी, आप ही बताइये की क्या बच्चों को बंदिशों में बाँधने से उनके बचपन पर असर नहीं पड़ेगा?

संगीता की कही बात ने सभी को चुप करा दिया था, तभी माँ संगीता के समर्थन में आ गई और बोलीं;

माँ: बिलकुल सही कहा बेटी, इस तरह तो बच्चे डर में जीने लगेंगे|

संगीता का डर हमें आगे बढ़ने नहीं दे रहा था और सारी बात वापस वहीं की वहीं आ चुकी थी| मुझे समझ नहीं आ रहा था की संगीता का डर खत्म कैसे करूँ? ऊपर से संगीता के बार-बार मेरी बात काटने से और उसके डर को न भगा पाने के कारण मैं झुंझुला उठा और संगीता को गुस्से से देखते हुए बोला;

मैं: You want me to kill him (Chander)? Huh? Just say the word and I promise I'll kill that bastard!

मेरी आँखों में गुस्सा था ऐसा गुस्सा जिसे देख संगीता सहम चुकी थी!

संगीता: आप ये क्या कह रहे हो?

संगीता भोयें सिकोड़ कर मेरी ओर डर के मारे देखते हुए बोली, उसका डर और भी गहराता जा रहा था| उधर चूँकि मैंने अपनी बात अंग्रेजी में कही थी इसलिए माँ-पिताजी को मेरी बात बिलकुल समझ नहीं आई थी मगर संगीता की आँखों में डर देख वो समझ गए थे की बात बहुत गंभीर है!

पिताजी: ये...क्या कह रहा है ये बहु?

पिताजी ने चिंतित होते हुए संगीता से पुछा|

संगीता: ये...ये...

संगीता से मेरे द्वारा कहे शब्द दोहराये नहीं जा रहे थे इसलिए उसकी आवाज काँपने लगी थी! वहीं मैं जोश में भरा हुआ था सो मैंने गुस्से में कही अपनी बात दोहरा दी;

मैं: मैंने कहा की मैं उसका (चन्दर का) खून कर दूँगा?

पिताजी: क्या? तेरा दिमाग खराब हो गया है?

पिताजी गुस्से में मुझ पर चीखे|

पिताजी: जानता है आस-पड़ोस वाले क्या कहते हैं?...कहते हैं की भाईसाहब आपके लड़के को क्या हो गया है? जिसने आज तक किसी को गाली नहीं दी वो कल अपने ही चचेरे भाई को इतनी बुरी तरह पीट रहा था और उसकी जान लेने पर आमादा था! अब बता, क्या जवाब दूँ मैं उन्हें?

पिताजी को मेरा गुस्सा जायज नहीं लग रहा था| वहीं संगीता के चेहरे पर अब भी डर दिख रहा था जिससे मेरा गुस्सा उबलते-उबलते बाहर आ गया और मैंने dining table पर जोर से हाथ पटकते हुए कहा;

मैं: तो क्या करूँ मैं? कल ही उसे जान से मार देता मगर मैं अपने परिवार से दूर नहीं होना चाहता था इसीलिए मैंने उसे छोड़ दिया! अब संगीता के दिल में डर बैठा हुआ है तो आप ही बताओ मैं क्या करूँ?

जब पिताजी ने मुझे एक पिता नहीं बल्कि पति की नजर से देखा तब जाकर पिताजी को मेरा गुस्सा जायज लगा|

पिताजी: बेटा, इस समस्या का हल उसकी (चन्दर की) जान लेना तो नहीं है?!

इतना कहते हुए पिताजी ने मेरे कँधे पर हाथ रखा|

मैं: जब किसी के घर में कोई जंगली जानवर घुस आता है तब इंसान पहले अपने परिवार को बचाने की सोचता है न की ये की वो एक जीव हत्या करने जा रहा है!

मैंने बड़े ही कड़े शब्दों में अपनी बात रखी थी जो सब समझ गए थे|

पिताजी: बेटा, मैं तेरा गुस्सा समझ सकता हूँ लेकिन इस वक़्त ये कोई उपाय नहीं है इसलिए बेटा ठन्डे दिमाग से काम ले!

पिताजी मेरी पीठ थपथपाते हुए बोले|

माँ: बेटा शांत हो जा, देख बहु कितना सहम गई है|

माँ ने संगीता की तरफ इशारा करते हुए कहा| संगीता को इस तरह सहमा हुआ देख मैं खामोश हो गया और अपना सर पकड़ कर बैठ गया| इस समय मुझे कुछ समझ नहीं आ रहा था की मैं क्या करूँ? संगीता को मैंने प्यार से, गुस्से से, हर तरह से समझा कर देख लिया था मगर उसका डर खत्म होने का नाम नहीं ले रहा था| मैं चाहे कुछ भी कहूँ संगीता पर कोई असर नहीं होने वाला था, इसलिए मेरे भीतर गुस्सा भभकने लगा था! मन तो मेरा संगीता पर चिल्लाने का था मगर माँ-पिताजी के सामने ऐसा कर पाना नामुमकिन था!

संगीता के आने से पहले जब भी मैं कभी दोराहे पर खड़ा होता था तो मैं दारु पीने निकल जाता था, दारु पीने से मेरा दिमाग शांत होता था और मुझे कोई रास्ता सूझ जाया करता था| लेकिन अब मैं अपने वचन से बँधा था इसलिए शराब तो पी नहीं सकता था इसलिए मैंने किसी दूसरे नशे की ओर जाने की सोची! मैं घर से निकला और सीधा पानवाले के पास पहुँच गया, मैंने आज तक कभी सिगरेट नहीं पी थी क्योंकि मुझे लगता था की सिगरेट की लत मुझसे कभी नहीं छूटेगी पर इस बार मैं बहुत हताश महसूस कर रहा था और इस (सिगरेट) बला को अपने होठों से लगाने को मजबूर था! मैंने एक छोटी gold flake ली, पहले सोचा वहीं पी लेता हूँ लेकिन फिर ख्याल आया की सिगरेट का पहला कश लेते ही मैं खाँसने लगूँगा और ये नजारा देख आस-पास के लोग हँस पड़ेंगे! सब कहेंगे की अगर झिलती नहीं है तो पीता क्यों है?! अपनी किरकिरी होने से बचाने के लिए मैं सिगरेट ले कर घर पहुँचा और छत पर आ कर सिगरेट सुलगाई मगर इससे पहले की मैं पहला कश खींचता संगीता आ गई और मेरे होठों से सिगरेट खींच कर फेंक दी!

[color=rgb(255,]"ये आप क्या कर रहे हो?" मैंने गुस्से से इनके होठों से सिगरेट खींचते हुए पुछा| सवाल तो मैंने पूछ लिया लेकिन इन्होने मुझे कोई जवाब नहीं दिया बस चुप-चाप टकटकी बाँधें मुझे देखने लगे| इनकी आँखें मुझसे सवाल कर रहीं थीं और मेरे पास उन सवालों का कोई जवाब नहीं था! आज जिंदगी में पहलीबार मुझे इनकी आँखें चुभ रहीं थीं और ये चुभन मेरे दिल में टीस बन कर उठ रही थी! आज मैंने इन्हें हताश महसूस किया था और इनकी इस हताशा का कारण मैं ही थी! मैं ही इन्हें चाह कर वो प्यार नहीं दे पा रही थी जिस पर इनका हक़ था! मेरे ही कारण आज ये इतना हताश हो गये, इतना तड़प उठे की इन्होने सिगरेट को छुआ, जबकि मैं दावे से कह सकती हूँ की इन्होने आजतक कभी सिगरेट नहीं पी और ना ही आगे कभी पीयेंगे!

आमतौर पर अगर ऐसा कुछ हुआ होता या कभी मैंने इनकी चोरी पकड़ी होती तो मैं इन्हें इनकी गलती का एहसास दिलाने के लिए इनके गले लग जाया करती और उतने भर से ही ये पिघल जाया करते तथा कान पकड़ कर बड़े प्यार से बोलते; Sorry जान, आगे से ऐसा कभी नहीं करूँगा!" लेकिन आज हालात कुछ और थे, मैं अब वो पहले वाली संगीता नहीं रही थी जो इन पर अपना प्यार जाहिर किया करती थी! मुझसे इनकी नजरों की वो चुभन बर्दाश्त नहीं हो रही थी इसलिए मैं बिना कुछ और कहे, सर झुका कर नीचे आ गई तथा बच्चों का homework कराने में खुद को व्यस्त कर लिया| कुछ देर बाद ये भी नीचे आ गए, मुझे लगा की ये मुझपर अपनी नाराजगी जाहिर करेंगे...पर नहीं, इन्होने ऐसा कुछ भी नहीं किया| बल्कि इन्होने आके मुझसे बड़े प्यार से पूछा; "जान, पिक्चर चलना है?" इनके इस मीठे से सवाल पर मैंने अपनी बर्बरता दिखते हुए सर न में हिलाया और बाहर आ कर dining table पर रात के खाने के लिए सब्जी काटने बैठ गई|[/color]

संगीता की पिक्चर जाने के लिए न सुन के मैं सोच में पड़ गया की मेरी संगीता को क्या हो गया है? मेरी उस संगीता को जिसे मैं प्यार करता हूँ, जो मेरी पत्नी है, मेरे बच्चों की माँ है, मेरे होने वाले बच्चे की माँ है; आखिर उसे हुआ क्या है? वो कहाँ चली गई? क्या मेरा प्यार कम पड़ गया है या शायद अब मेरे प्यार में वो ताकत नहीं जो उसे फिर से हँसा दे, उसका हर गम भुला दे?! मेरी हर बात मानने वाली मेरी पत्नी कहाँ चली गई? मैं ऐसा क्या करूँ की वो फिर से हँस पड़े ताकि इस घर में जो ग़म का सन्नाटा फैला है वो संगीता की हँसी सुन कर खत्म हो जाए! मेरा घर संगीता की किलकारियाँ सुनने को तरस गया था, मुझे लगा था की शायद पिक्चर जाने के बहाने संगीता थोड़ा सँभल जाए, थोड़ा romantic हो जाए या फिर मैं थोड़ा romantic हो जाऊँ मगर यहाँ भी बदनसीबी ने दरवाजा मेरे मुँह पर दे मारा! ठीक है..."ऐ किस्मत कभी तू भी मुझ पे हँस ले, बहुत दिन हुए मैं रोया नहीं!"

खैर, अब बारी थी बच्चों की जिन्हें मैंने कल से समय नहीं दिया था और मेरा मानना था की उन्हें अभी से सब पता होना चाहिए वरना आगे चल के वो मुझे तथा संगीता को गलत समझेंगे| नेहा तो लगभग सब जानती थी, समझती थी पर आयुष सब कुछ नहीं जानता था और मैं इस वक़्त इतना निराश महसूस कर रहा था की मेरा मन कर रहा था की आयुष को अभी से सब कुछ पता होना चाहिए!

मैं: आयुष...नेहा...बेटा इधर आओ, पापा को आप से कुछ बात करनी है|

बच्चों का मन पढ़ाई करने का था नहीं, मेरी बात सुनते ही दोनों ने अपनी किताब फ़ट से बंद कर दी और मेरे पास आ गए| मैं पलंग पर अपनी पीठ टिका कर बैठ गया, दोनों बच्चे मेरी अगल-बगल बैठ गए और मैंने हम तीनों पर रजाई खींच ली! नेहा मेरी दाहिनी तरफ बैठी थी और आयुष मेरी बाईं तरफ, दोनों बच्चे मुझसे सट कर बैठे थे|

मैं: बेटा, मुझे आप दोनों को कुछ बातें बतानी है|

इतना कह मैंने एक गहरी साँस ली और अपनी बात आगे बढ़ाई;

मैं: बेटा, आज जो बातें मैं आपको बताने जा रहा हूँ ये बातें आपको पता होनी चाहिए क्योंकि कल जो भी कुछ हुआ वो इन्हीं बातों के कारण हुआ|

बच्चे मेरी इतनी बात सुनकर मेरी ओर उत्सुकता से देख रहे थे|

मैं: बेटा, मैं आपकी मम्मी से बहुत प्यार करता हूँ और वो भी मुझे बहुत प्यार करती हैं| आपकी मम्मी की शादी मुझसे पहले उस आदमी (चन्दर) से हुई थी जो कल आया था!

चन्दर का ख्याल आते ही मेरा गुस्सा फिर उबलने लगा था, लेकिन तभी नेहा ने उत्सुकता से मेरी बात काट दी;

नेहा: वो...पुराने पापा?

उस आदमी को अपना पापा कहते हुए नेहा को बहुत तकलीफ हुई थी और उसके चेहरे पर दर्द झलकने लगा था|

मैं: हाँ जी बेटा|

मैंने नेहा के सर पर हाथ रखते हुए बड़े भारी मन से कहा| अब मैंने अपना ध्यान दोनों बच्चों की ओर किया और बोला;

मैं: लेकिन आपकी मम्मी उस आदमी से नहीं बल्कि मुझसे प्यार करती हैं क्योंकि वो बहुत गन्दा इंसान है!

ये सुन कर आयुष घबराने लगा था| मैंने अपना ध्यान नेहा पर केंद्रित किया और बोला;

मैं: नेहा बेटा, आप तो जानते हो?

नेहा ने मेरे सवाल का जवाब अपना सर हाँ में हिला कर दिया| मैंने वापस अपना ध्यान दोनों बच्चों पर केंद्रित किया और बोला;

मैं: बेटा वो आदमी शराब पीता है, आपकी मम्मी के साथ मार-पीट करता था इसीलिए आपकी मम्मी ने कभी उससे प्यार नहीं किया| जब आपकी मम्मी की उससे शादी हुई थी और हम दोनों (मैं और संगीता) पहलीबार मिले थे तब ही से आपकी मम्मी मुझे प्यार करने लगीं थीं मगर उन्होंने (संगीता ने) मुझे कभी बताया नहीं| मैं भी उस वक़्त कच्ची उम्र का था और प्यार क्या होता है ये नहीं जानता था|

बच्चों का डर अब मिटने लगा था| मैंने अब बारी-बारी बच्चों से बात करनी शुरू की;

मैं: फिर एक दिन आपकी मम्मी यहाँ आईं...

इतना कह मैंने आयुष की तरफ देखा और बोला;

मैं: तब नेहा बिलकुल आपकी उम्र की थी, उस दिन आपकी मम्मी ने मुझे बताया की वो मुझसे कितना प्यार करतीं हैं| उस दिन मुझे भी अपने भीतर मौजूद आपकी मम्मी के लिए प्यार का एहसास हुआ था, लेकिन उस वक़्त मैं इतना बड़ा नहीं हुआ था की मैं आपकी मम्मी से शादी कर सकूँ! हमारा प्यार इसी तरह धीरे-धीरे आगे बढ़ता रहा और फिर वो दिन आया जब मैं गाँव आया| उन दिनों में मैं और आपकी मम्मी बहुत नजदीक आ गए, इतना आजदीक आये की हम एक दूसरे के बिना रह नहीं सकते थे| हमारा प्यार सब बंधन तोड़ चूका था और तब...

इतना कह मैंने आयुष के गाल को सहलाया और अपनी बात कही;

मैं: बेटा (आयुष) आप अपनी मम्मी के पेट में आये|

मैंने आयुष के दोनों कँधे पकड़र और उसकी आँखों में देखते हुए बोला;

मैं: आयुष बेटा, आप मेरा खून हो! आप मेरे बेटे हो!

मेरी आवाज में आत्मविश्वास झलक रहा था और मेरा ये आत्मविश्वास देख कर आयुष का डर काफूर हो चूका था| चूँकि मेरा ध्यान आयुष पर था तो इस कारण नेहा अकेला महसूस करने लगी थी;

नेहा: और पापा जी, मैं?

अब मैंने अपना ध्यान नेहा की ओर केंद्रित किया और बोला;

मैं: बेटा आप को तो मैं सबसे ज्यादा प्यार करता हूँ! क्या आपको लगा की मैं आपसे प्यार नहीं करता?

मैं नेहा से ये नहीं कहना चाहता था की वो मेरा खून नहीं है इसलिए मैंने बात थोड़ा घुमा दी| नेहा ने मेरे सवाल के जवाब में सर न में हिलाया और मुस्कुराते हुए बोली;

नेहा: पापा जी, मैं जानती हूँ की आप सबसे ज्यादा मुझसे प्यार करते हो!

नेहा खुद पर गर्व करती हुई बोली| अब जा कर नेहा का चेहरा पहले की तरह खिल गया था| मैंने आयुष की ओर फिर से देखा और उसके भीतर जोश भरते हुए बोला;

मैं: बेटा उस आदमी (चन्दर) को लगता है की आप उसके बेटे हो, मगर आप तो मेरे बेटे हो इसलिए वो आपको जबरदस्ती अपने साथ ले जाना चाहता था|

इतना सुनते ही आयुष जोश से भर उठा और अपनी हिम्मत बुलंद कर बोला;

आयुष: मैं उसके साथ नहीं जाऊँगा!

मैं: बिलकुल नहीं जाओगे! आप मेरे बेटे हो और जब तक मैं आपके पास हूँ आपको मुझसे कोई अलग नहीं कर सकता!

आयुष ने मेरी बात सुनी और मुस्कुराते हुए अपने दोनों हाथ पंखों के समान खोल दिए तथा मैंने उसे अपने सीने से लगा लिया| अब समय था नेहा की बहादुरी की सराहना करने का, मैंने आयुष की ओर देखा और बोला;

मैं: बेटा, कल आपने देखा की आपकी दीदी ने अपने बड़े होने का कैसे फ़र्ज़ निभाया?! आप बहुत तंग करते हो न अपनी दीदी को और कल देखो उन्होंने (नेहा ने) न केवल आपको बल्कि आपकी मम्मी को भी अकेला संभाला!

अपनी तारीफ सुन नेहा शर्माने लगी और सर झुका कर बैठ गई! मैंने नेहा की ओर देखा और उसे अपने पास बुलाते हुए बोला;

मैं: I'm proud of you मेरा बच्चा!

ये सुनते ही नेहा मेरे सीने से लग गई, उसे आज खुद पर बहुत गर्व हो रहा था!

आयुष: I love you दीदी!

आयुष मुस्कुराते हुए नेहा से बोला और उसके जवाब में नेहा भी आयुष से मुस्कुराते हुए बोली;

नेहा: I love you too आयुष!

दोनों बच्चे मेरे सीने से कस कर चिपके हुए थे, मैंने बारी-बारी दोनों के सर को चूमते हुए उन्हें खूब प्यार किया|

अब जा कर दोनों बच्चों का मन हल्का हुआ था और वो ख़ुशी से चहकने लगे था| दोनों ने मेरे साथ pillow fight करने की पेशकश की और मैंने भी ख़ुशी-ख़ुशी हाँ कह दी| दोनों बच्चे एक ही team में हो लिए और अपने-अपने तकिये से मुझे मारने लगे| दोनों बच्चों ने मुझे पलंग पर चित्त लिटा दिया, आयुष छोटा था तो वो मेरी छाती पर चढ़ गया और नेहा मेरे सिरहाने बैठ गई| फिर दोनों बच्चों ने मुझे तकिये से मारना शुरू किया, मेरे पास तकिया नहीं था इसलिए मैंने उन्हें गुदगुदी करना शुरू कर दिया| पूरे घर में बच्चों की हँसी गूँजने लगी थी, ऐसा लगता था मानो जैसे किसी खंडर में कोई आवाजों का शोर गूँजने लगा हो! बच्चों की इस किलकारी ने मेरे भीतर एक अजब सा आत्मविश्वास जगा दिया था तथा मैंने फैसला कर लिया था की मैं सनगीता को हँसा कर रहूँगा, बस जर्रूरत थी तो एक मौके की. और कुछ ही देर में वो मौका खुद मेरे पास आ गाया!

मेरी और बच्चों की हँसी कहकहा सुन माँ मेरे कमरे में आईं और मुझे अपना फोन देते हुए बोलीं;

माँ: बेटा तेरा फ़ोन नहीं मिल रहा था इसलिए तेरे पिताजी ने मुझे कॉल किया, उनसे ज़रा बात कर ले|

मैंने पिताजी से बात की तो पता चला की वो किसी party के पास बैठे हैं तथा कल के लिए कुछ काम बता रहे हैं| उनसे बात कर मैंने फ़ोन माँ को दिया तो पाया माँ अपने चेहरे पर आस लिए हुए मुझे देख रहीं हैं| उन्होंने अपना फ़ोन लिया और बोलीं;

माँ: बेटा, आज बच्चों को यूँ हँसता-खेलता देख मेरा दिल भर आया! इन्हें (बच्चों को) तो तूने हँसा दिया, अब जरा बहु को भी हँसा दे!

माँ की आसभरी बात सुन मैंने उनके भीतर उम्मीद जगाते हुए कहा;

मैं: मैंने संगीता से पिक्चर जाने को कहा तो उसने मना कर दिया! आप उसे तैयार करो बाकी मुझ पर छोड़ दो, वादा करता हूँ की वो हँसती हुई वापस आएगी|

मैंने जोश में भरते हुए कहा|

माँ: मैं अभी बात करती हूँ|

माँ उम्मीद की रौशनी लिए हुए बाहर चली गईं| इधर मैंने बच्चों को homework करने में लगा दिया और मैं अपने laptop पर कुछ reports बनाने में लग गया|

[color=rgb(255,]कमरे से आ रही इनकी और बच्चों की हँसने की आवाज से मैं मन्त्र मुग्ध हो गई थी| वो हँसी, वो किलकारियाँ मेरे लिए किसी मधुर संगीत के समान थीं जिन्हें सुनते हुए मेरा मन प्रसन्न हो गया था! आज 24 घंटों बाद मुझे घर में फिर से हँसी- ठहाका सुनाई दिया था और मेरी ख़ामोशी से जो सन्नाटा पसरा हुआ था वो अब खत्म हो चूका था! इन्हें बच्चों के साथ मस्ती करते सुन मेरा भी मन कर रहा था की काश मैं भी वहाँ इनके साथ होती, मगर मैं ये सोच कर संतुष्ट हो गई की चलो मैं न सही लेकिन मेरे पति, मेरे बच्चे तो खुश हैं! वैसे भी मुझ में अब अपनी ख़ुशी व्यक्त करने की ताक़त नहीं रही थी!

मैंने इनके और बच्चों की किलकारियों को सुनते हुए खुद को मटर छीलने में व्यस्त कर लिया| तभी माँ मेरे पास आ कर बैठ गईं और उनके चेहरे पर भी घर में गूँज रही हँसी को सुनके मुस्कान फैली हुई थी| माँ ने बड़े प्यार से मेरे गाल को सहलाया और बोलीं; "बहु, देख बाहर जायेगी तो थोड़ी हवा-बयार लगेगी और तेरा मन बदलेगा, साथ ही मानु को भी अच्छा लगेगा|" माँ की प्यार से कही बात को मैं कैसे टालती? हलाँकि माँ चाहतीं थीं की मैं खुश रहूँ मगर मेरा मन तो बस अपने पति और अपने बच्चों की ख़ुशी चाहता था|

मैं, माँ का दिल रखने के लिए नकली मुस्कान के साथ उठी और हमारे कमरे में आई, दोनों बच्चे computer table पर बैठे हुए अपनी पढ़ाई कर रहे थे तथा ये लैपटॉप में अपना काम कर रहे थे| "क्या मैं laptop use कर सकती हूँ?" मैंने नकली मुस्कान लिए हुए कहा, मेरे पति मुझसे इतना प्रेम करते हैं की वो मेरे सारे जज्बात समझ जाते हैं इसलिए इन्होने इस वक़्त मेरी ये नकली मुस्कान भी पकड़ ली थी| इन्होने laptop मेरी ओर बढ़ाते हुए कुछ कहना चाहा, परन्तु मैंने इन्हें कहने का कोई मौका नहीं दिया, पता नहीं क्यों पर मुझ में इनका सामना करने की हिम्मत नहीं थी! खैर, laptop ले कर मैं बाहर dining table पर आ गई और माँ के सामने बैठ कर bookmyshow का page खोला और उसमें PK फिल्म की ticket book करने लगी| बीते कुछ दिनों में मैंने इनसे बहुत कुछ सीखा था, जैसे internet पर खरीदारी करना, ticket book करना, vpn चलाना आदि| बहरहाल, pk film के सारे show या तो शुरू हो चुके थे या फिर housefull थे, बस रात के shows ही बाकी थे| मेरे दिमाग के लिए ये एक बहाना था मगर मेरा मन इनकी और बच्चों की ख़ुशी चाहता था इसलिए मैंने माँ से रात के show के लिए जाने की इज्जाजत माँगी; "माँ, अभी तो सारे show booked है, बस रात के show खाली हैं?" इतना कह मैंने अपना सवाल अधूरा छोड़ दिया जो माँ ने एकदम से पकड़ लिया; "तो बेटी रात को पिक्चर चले जाओ, इसमें पूछने की क्या बात है? बच्चों की छुट्टियाँ चल रहीं हैं तो तेरे साथ-साथ उनका भी दिल बहाल जाएगा| हाँ लेकिन मानु से कहियो की गाडी ध्यान से चलाये|" माँ ने बड़े प्यार से मुस्कुराते हुए मुझे इजाजत दे दी| अच्छा ही हुआ जो माँ ने बच्चों को साथ ले जाने को कहा जिससे इनका ध्यान अब बच्चों पर ज्यादा होता और मैं अपने ख्यालों को इनके पढ़ने से बचा पाती|

"जी माँ" मैंने बड़े संक्षेप में उत्तर दिया और 4 tickets book कर दी| अब मुझे इनको बताना था की मैंने पिक्चर जाने के लिए tickets book कर दी हैं, पर मुझ में हिम्मत नहीं थी इसलिए मैंने booking page confirmation वाला page खोले हुए ही इन्हें laptop ले जा कर दे दिया| इन्होने सीधा booking conformation page देखा और मुस्कुरा उठे| मैं पलट कर कमरे से बाहर जा रही थी जब इन्होने पीछे से अपना सवाल पुछा; "जान, रात का खाना बाहर खाएँ?" इनका सवाल सुन मैं ठिठक कर रुक गई और मुड़ कर इन्हें देखा, मुझ में कुछ कहने की हिम्मत नहीं थी इसलिए बड़ो मुश्किल से मैं अपनी हिम्मत जुटाते हुए बोली; "जी"! इतना बोल मैं फिर बाहर वापस आ कर dining table पर बैठ कर मटर छीलने लगी|

"माँ हम सब रात का show देखने जाएंगे और आते-आते हमें ग्यारह बज जाएँगे|" मैंने नकली मुस्कान लिए हुए माँ को देखते हुए कहा| माँ ने मेरे चेहरे पर आई नकली मुस्कान को मेरी ख़ुशी मान लिया और मेरे सर पर हाथ फेरते हुए उठ कर चली गईं| उन्हें तसल्ली थी की मेरा मन अब दुखी नहीं है, जबकि मैं इस वक़्त अब भी इनसे सामना करने से डरी हुई थी क्योंकि इनके नजदीक होते हुए मेरे से अपना प्यार व्यक्त कर पाना मुश्किल हो जाता| ये घर से निकलते ही मुझसे अपना प्यार व्यक्त करते और मुझे सब कुछ जानते-बूझते खामोश रहना था जो की मेरे अनुसार बहुत-बहुत गलत था! फिर मैं ये भी नहीं चाहती थी की ये मेरा मन पढ़ लें क्योंकि मेरा मन पढ़ कर इन्हें मेरे मन की व्यथा समझ आ जाती तथा ये और भी टूट जाते![/color]

[color=rgb(41,]जारी रहेगा भाग - 4 में...[/color]
 

[color=rgb(51,]छब्बीसवाँ अध्याय[/color][color=rgb(51,]: दुखों का [/color][color=rgb(51,]ग्रहण[/color]
[color=rgb(251,]भाग - 4[/color]


[color=rgb(26,]अब तक पढ़ा:[/color]

[color=rgb(255,]"माँ हम सब रात का show देखने जाएंगे और आते-आते हमें ग्यारह बज जाएँगे|" मैंने नकली मुस्कान लिए हुए माँ को देखते हुए कहा| माँ ने मेरे चेहरे पर आई नकली मुस्कान को मेरी ख़ुशी मान लिया और मेरे सर पर हाथ फेरते हुए उठ कर चली गईं| उन्हें तसल्ली थी की मेरा मन अब दुखी नहीं है, जबकि मैं इस वक़्त अब भी इनसे सामना करने से डरी हुई थी क्योंकि इनके नजदीक होते हुए मेरे से अपना प्यार व्यक्त कर पाना मुश्किल हो जाता| ये घर से निकलते ही मुझसे अपना प्यार व्यक्त करते और मुझे सब कुछ जानते-बूझते खामोश रहना था जो की मेरे अनुसार बहुत-बहुत गलत था! फिर मैं ये भी नहीं चाहती थी की ये मेरा मन पढ़ लें क्योंकि मेरा मन पढ़ कर इन्हें मेरे मन की व्यथा समझ आ जाती तथा ये और भी टूट जाते![/color]

[color=rgb(97,]अब आगे:[/color]

इधर मुझे जो मौका चाहिए था वो मुझे माँ के कारण मिल चूका था| अब बारी थी संगीता का दिल जीतने की, ओह wait संगीता तो पहले से ही मुझसे बहुत प्यार करती है तो दिल जीतने की बात कहाँ से आई?! असल में तब मैं इतना परेशान था की, मैं अपनी ही पत्नी जो पहले ही मुझसे इतना प्यार करती थी उसका दिल जीतने की सोच रहा था! खैर, मैं संगीता के मन में मची हुई उथल-पुथल को महसूस कर पा रहा था| मुझे ये जान कर बहुत दुःख हो रहा था की संगीता क्यों खुद को मेरे सामने व्यक्त नहीं कर रही? मैं उसका पति हूँ कोई गैर नहीं तो मुझसे छुपाना कैसा?

मैंने बच्चों को बाहर पिक्चर देखने और खाना खाने के बारे में बताया तो दोंनो बच्चे बहुत खुश हुए| नेहा ने उत्साह से भरते हुए मुझे अपने कपडे ला कर दिखाने शुरू कर दिए, वो चाहती थी की मैं उसके लिए कपडे पसंद करूँ जो वो आज बाहर जाते समय पहनने वाली थी| मेरी पसंद के कपड़े पहन कर नेहा ख़ुशी से चहक रही थी, वहीं आयुष ने अपने दादाजी के पसंद के कपड़े पहने और मुझे दिखाने आया| उधर संगीता ने माँ-पिताजी को खाना खिलाया और तब जा कर वो चलने के लिए तैयार हुई| हम चारों साढ़े सात बजे के आस-पास, माँ-पिताजी का आशीर्वाद ले कर निकले| अब बच्चों ने गाडी में आगे बैठने की जिद्द की, मैंने बच्चों को समझाया और संगीता को आगे बैठने के लिए कहा तथा बड़े बेमन से संगीता आगे बैठ गई| मैंने आगे बढ़ कर उसकी seatbelt लगाई और उसे देख कर मुस्कुराया मगर संगीता के चेहरे पर बस एक नक़ली मुस्कान ही आई!

भूख लग आई थी इसलिए हम mall के parking lot में गाडी पार्क कर के सीधा Yo China पहुँचे| Chinese खाने के नाम पर संगीता और बच्चों ने बस चाऊमीन ही खाई थी, नया खाना खाने की चाह हम चारों में थी| हम चारों एक family table पर बैठ गए, जहाँ मैं menu card देखने में लगा था वहीं बच्चे और संगीता आस-पास बैठे लोगों को देखने में लगे थे| आस-पास जितने भी लोग थे सभी chopstick से खाना खा रहे थे और ये दृश्य देख बच्चे और संगीता परेशान हो रहे थे! Menu में authentic chinese food था, अब न तो मैंने authentic chinese खाया था और न ही मुझे chopstick से खाना आता था, मगर कुछ नया try करने का उत्साह मुझ में जरूर था|

मैं: बाबू, relax! मैं ऐसा कुछ भी order नहीं करूँगा जो आपको chop stick के साथ खाना पड़े|

मैंने संगीता की चिंता भाँपते हुए कहा|

संगीता: हम्म्म!

संगीता ने फिर नकली मुस्कान के साथ कहा और मुझसे नजरें चुराते हुए इधर-उधर देखने लगी| वो सोच रही थी की वो मुझसे अपने जज्बात छुपा लेगी मगर मैं उसकी सारी होशियारियाँ समझ पा रहा था| दोनों बच्चे मेरी ओर बड़ी उत्सुकता से देख रहे थे की मैं खाने के लिए क्या मँगाने वाला हूँ;

मैं: नेहा बेटा, आप को मिर्ची वाला खाना पसंद है न? तो आप के लिए...म्म्म्म्म्म...schezwan fried rice मँगाते हैं, okay?

नेहा को dish का नाम समझ में नहीं आया था इसलिए उसके चेहरे पर हवाइयाँ उड़ रही थी;

नेहा: हम्म्म्म!

नेहा ने dish के नाम से थोड़ा डरते हुए कहा| वहीं आयुष को तो dish के नाम से कुछ फर्क नहीं पड़ता था| उसे बस बिना मिर्ची वाला खाना चाहिए था;

आयुष: पापा जी मैं मिर्ची वाला खाना नहीं खाऊँगा!

जिस भोलेपन से आयुष ने कहा था उसे देख नेहा अपने मुँह पर हाथ रख कर हँसने लगी मगर संगीता उखड़ी हुई थी इसलिए वो बीच में बोल पड़ी;

संगीता: क्या सब के लिए अलग -अलग खाना माँगा रहे हो?! एक ही dish मँगा लो हम चारों खा लेंगे!

कोई और दिन होता तो मैं, संगीता को झाड़ देता क्योंकि मुझे खाना खाते समय टोका-टोकी पसंद नहीं मगर आज मैंने सबर से काम लिया तथा उसे प्यार से समझाया;

मैं: यार बच्चों को भी था enjoy कराना चाहिए न?!

ये सुन संगीता ने कोई प्रतिक्रिया नहीं दी और फिर से मुझसे नजरें चुरा कर इधर-उधर देखने लगी|

हम चारों कुछ इस प्रकार बैठे थे, संगीता मेरे सामने बैठी थी, आयुष मेरी बगल में और नेहा अपनी मम्मी की बगल में बैठी थी| मैंने सब के लिए खाना order कर दिया था, खाना आने तक मैंने दोनों बच्चों को बातों में लगा दिया और साथ ही बच्चों के जरिये संगीता को भी बातों में लगा दिया| हम चारों के लिए मैंने अलग-अलग variety के fried rice order कर दिए तथा साथ में दो gravy items भी| जब खाना आया तो हमें चम्मच की जगह fork दिया गया था| मैं चाहता तो चम्मच मँगा सकता था मगर मैंने जानबूझ कर नहीं मँगाया क्योंकि मैं आज अपने बीवी-बच्चों को एक नया अनुभव कराना चाहता था| मैंने खुद सबके लिए खाना परोसा मगर किसी ने भी तक अपनी plate को नहीं छुआ था क्योंकि fork से चावल खाना किसी को नहीं आता था| मैंने पहल करते हुए fork से चावल उठाये और बड़े प्यार से संगीता की ओर fork बढ़ाया| चावल का वो कौर अपने नजदीक देख संगीता ने झिझकना शुरू कर दिया?!

मैं: Hey? खाओ न?

मैंने भोयें सिकोड़ कर संगीता को देखते हुए कहा| मैं बहुत हैरान था की संगीता यूँ अजीब बर्ताव क्यों कर रही है? ये पहलीबार तो नहीं की मैं बाहर किसी restaurant में संगीता को अपने हाथ से खाना खिला रहा हूँ? आज पहलीबार मुझे संगीता पर खाना खाने के लिए दबाव डालना पड़ रहा था! बेमन से संगीता ने अपना मुँह खोला और मेरे हाथ से कौर खाया, बहरहाल मैंने अपने जज्बातों पर काबू किया और कोई प्रतिक्रिया नहीं दी|

अब अगलीबारी नेहा की थी, जब मैंने fork से चावल उठा कर उसे खिलाया तो नेहा ने फ़ट से चावल खा लिए| अब बारी थी आयुष की, वो मेरी बगल में बैठा था और अपना मुँह खोले प्रतीक्षा कर रहा था| उसने भी नेहा की तरह बड़े चाव से चावल खाये और ख़ुशी से अपनी गर्दन दाएँ-बाएँ हिलाने लगा! बच्चों और संगीता को fork से चवल खाना आ गया था, वहीं चूँकि संगीता मेरे हाथ से खाने में झिझक रही थी इसलिए मैंने अपनी चतुराई दिखाते हुए बच्चों को आगे कर दिया| दोनों बच्चों ने बारी-बारी से मुझे और संगीता को अपने हाथों से खिलाना शुरू कर दिया| बच्चों के लिए मुझे और संगीता को खाना खिलाना एक खेल के समान था जिसे दोनों बच्चे बड़े प्यार से खेल रहे थे| बच्चों के इस खेल के दबाव में आ कर संगीता को भी उनके साथ खेलना पड़ रहा था मगर वो मुझसे दूरी बनाये हुए थी|

संगीता अब भी मायूस थी और मैं हिम्मत नहीं हारना चाहता था| मुझे लगा चूँकि हम restaurant में हैं जहाँ हमारे अलावा बहुत से लोग हैं शायद इसलिए संगीता खुल कर अपना प्यार व्यक्त नहीं कर रही है| मैंने सोचा की theatre के अंदर अँधेरा होगा और वहाँ संगीता मुझसे अपना प्यार व्यक्त करने में नहीं शर्माएगी| खाना खा कर हम चारों theatre पहुँचे और अपनी-अपनी seats पर बैठ गए| मैं और संगीता साथ बैठे तथा दोनों बच्चे मेरी बगल में बैठे थे| Ads चल रहीं थीं और दोनों बच्चों ने अपनी मस्ती शुरू कर दी थी, जबकि मेरा ध्यान संगीता पर था| मैं उम्मीद कर रहा था की वो अब मेरा हाथ पकड़ेगी, अब मेरे कँधे पर हाथ रखेगी.लेकिन ऐसा कुछ भी नहीं हुआ| संगीता हाथ बाँधे हुए परदे पर ads देखने में व्यस्त थी! मैंने सोचा की क्यों न मैं ही पहल करूँ और शायद संगीता पिघल जाए इसलिए मैंने अपना हाथ संगीता के पीछे से ले जाते हुए कँधे पर रख दिया और उम्मीद करने लगा की शायद संगीता मेरी ओर झुक जाए, मुझसे कस कर लिपट जाए...लेकिन नहीं! संगीता बिना हिले-डुले, बिना मेरी ओर देखे चुप-चाप बैठी रही! मैंने भी हताश हो कर अपना हाथ संगीता के कँधे पर से हटा लिया और चुप-चाप बैठ गया|

[color=rgb(255,]इनके साथ आज पिक्चर देखते हुए मेरे जहन में पुरानी यादें ताज़ा हो गईं! पुरानी यादों से मेरा मतलब ये नहीं था की आज हम दोनों बहुत सालों बाद पिक्चर देखने आये थे बल्कि मुझे वो दिन याद आने लगे थे जब पिक्चर देखते समय मैं romantic हो जाया करती थी और इनके कन्धों पर अपना सर रख कर पिक्चर देखा करती थी| लेकिन आज जब मैं पिक्चर देखते समय इनसे दूर बैठी हूँ तो मुझे बहुत दुःख हो रहा था| मैं इनका प्यार महसूस कर पा रही थी मगर मैं इनका प्यार reciprocate नहीं कर पा रही थी| जब इन्होने मेरे कंधे पर हाथ रखा था वो इनका एक इशारा था की मैं इनमें सिमट जाऊँ पर मैं अब भी डरी हुई थी की कहीं ये मेरा मन न पढ़ लें तथा उदास न हो जाएँ इसीलिए मैं इनसे दूरी बनाये हुए थी...emotionally and physically! And believe me when I say, it was not easy to stay away from my own husband who I love so much! इनके लिए आज तक मेरा प्यार कभी कम नहीं हुआ लेकिन उस समय मैं अपना प्यार जता नहीं पा रही थी और जानबूझ कर बिना किसी गलती के इन्हें सज़ा दे रही थी![/color]

हमने पिक्चर देखी, पता नहीं बच्चों को दुबारा वही पिक्चर देखना अच्छा लगा या नहीं मगर वो खुश बहुत थे! चलो हम दोनों मियाँ-बीवी न सही बच्चे तो खुश थे! घर लौटते समय, गाडी में आगे बैठने के लिए दोनों भाई-बहन ने आपस में साँठ-गाँठ कर ली थी| नेहा आगे बैठी थी और आयुष पीछे बैठा था, लेकिन पीछे बैठकर भी उसे चैन नहीं था| दोनों बच्चों ने गाडी में उधम मचा रखा था मगर संगीता एकदम खामोश बैठी थी और खिड़की से बाहर देख रही थी|

घर पहुँच कर मैंने अपनी चाभी से दरवाजा खोला तो देखा की माँ-पिताजी दोनों जाग रहे हैं और बैठक में बैठे टी.वी. देख रहे हैं|

मैं: माँ...पिताजी...आप सोये नहीं?

मैंने तो आस्चर्यचकित होते हुए पुछा क्योंकि घडी में सवा ग्यारह होने को आये थे और माँ-पिताजी इतनी देर तक जागते नहीं थे|

पिताजी: नहीं बेटा, तेरी माँ को CID देखना था तो मैंने सोचा की आज मैं भी देखूँ की ACP प्रद्युमन 'कुछ तो गड़बड़ है' कैसे बोलता है? पर देखो सीरियल खत्म होने को आया पर अभी तक इसने कुछ भी नहीं कहा?!

पिताजी हँसते हुए बोले| उनकी बात सुन माँ और बच्चे हँस पड़े मगर हम दोनों मियाँ-बीवी के भाव जस के तस थे!

मैं: चलिए, अब सब सो जाते हैं|

मैंने बात बदलते हुए कहा|

आयुष: पापा जी, मैं आपके पास सोऊँगा|

आयुष उत्साह से कूदते हुए बोला|

मैं: हम्म्म्म!

मैंने नक़ली मुस्कान लिए हुए कहा|

पिताजी: क्यों भई, आज दादा की कहानी नहीं सुननी?

पिताजी मुस्कुराते हुए आयुष से बोले|

आयुष: दादा जी कहानी मैं कल सुनुँगा और वो भी दो!

आयुष तपाक से बोला|

पिताजी: पर बेटा आपको सोने के लिए जगह कम पड़ेगी?

पिताजी आयुष को प्यार से समझाते हुए बोले|

मैं: कोई बात नहीं पिताजी, हो जाएगा|

मैंने फिर नकली मुस्कान लिए हुए कहा|

पिताजी: कल carpenter को बुला के तेरा पलंग बड़ा करवा देते हैं! हा..हा..हा...हा!!!

पिताजी मज़ाक करते हुए बोले मगर मेरे चेहरे पर कोई मुस्कान नहीं आई|

मैं: जी!

मैंने दोनों बच्चों को अपने कमरे की ओर मोड़ते हुए कहा|

माँ-पिताजी को शुभरात्रि बोल हम चारों कपड़े बदल कर रजाई में घुस गए| आयुष और नेहा ने बिस्तर के बीचों-बीच अपना कब्जा जमा लिया था, आयुष मेरी तरफ लेटा था तथा नेहा अपनी मम्मी की तरफ लेटी थी लेकिन दोनों बच्चों ने मेरी ओर करवट की हुई थी| मैंने भी बच्चों की ओर करवट की मगर संगीता नजाने क्यों दूसरी ओर करवट कर के लेटी थी?

बच्चों ने कहानी सुनने की माँग की और कहानी सुनते-सुनते दोनों बच्चे मुझसे लिपट कर सो चुके थे, परन्तु मेरी नींद उड़ चुकी थी! मैं चाहता था की बच्चे आराम से सो जाएँ इसलिए मैं बच्चों की पीठ थपथपा रहा था|

भले ही संगीता दूसरी ओर मुँह कर के लेटी थी और मेरे हाथों की पहुँच से दूर थी मगर मेरा मन चाह रहा था की वो चैन से सो जाए| उस समय मेरे दिमाग में एक गाना आ रहा था;

'राम करे ऐसा हो जाये...

मेरी नींदिया तोहे मिल जाये

मैं जागूँ तू सो जाए....

मैं जागूँ तू सो जाये!!!'

दो घंटे बाद मेरे मन में गाये इस गाने का असर हुआ, मैं दबे पाँव ये देखने के लिए उठा की संगीता जाग रही है या सो रही है तो मैंने पाया की संगीता इत्मीनान से सो रही है और उसे यूँ इत्मीनान से सोते देख मेरे दिल को बहुत सुकून मिला| मैं जहाँ खड़ा था वहीं दिवार से टेक लगा कर संगीता को सोते हुए निहारने लगा| सोते हुए संगीता इतनी प्यारी लग रही थी की मन किया उसके गुलाबी होठों को चूम लूँ! लेकिन फिर मैंने खुद को रोक लिया क्योंकि मैं संगीता की नींद नहीं तोडना चाहता था! सोते हुए संगीता के मस्तक पर जो सुकून था, यही सुकून मैं हमेशा उसके चेहरे पर देखना चाहता था| "ऐ खुदा, मैंने कुछ ज्यादा तो नहीं माँगा था तुझसे?" मैं मन ही मन भगवान से संगीता की ख़ुशी माँगने लगा|

उधर आयुष की नींद कच्ची हो गई थी और वो बिस्तर पर अपने हाथ फेर कर मुझे टटोलने लगा था| मैं पुनः अपनी जगह लेट गया और आयुष के सर पर हाथ फेर कर उसे चैन की नींद सुला दिया| आधे घंटे बाद आयुष चैन से सो चूका था मगर मुझे एक पल को नींद नहीं आई| मेरा मन बार-बार यही कह रहा था की मैं कैसा पति हूँ जो अपनी पत्नी का ख्याल नहीं रख सकता? मैं ऐसा क्या करूँ की संगीता के मन से डर हमेशा-हमेशा के लिए खत्म हो जाए? 'धिक्कार है तुझ पर!' मेरी अंतरात्मा चीखते हुए बोली| मन में ग्लानि भरने लगी थी और इस ग्लानि ने मुझे खुद को दंड देने के लिए मजबूर कर दिया!

मैं टी-शर्ट और पजामा पहने सोता था और इन्हीं कपड़ों में मैं ऊपर छत पर आ गया| जनवरी का महीना था, सर्दी का मौसम था उस पर मैं इतने कम कपड़ों में मैं छत पर खड़ा था| ठंडी-ठंडी हवा जब बदन को छूती तो ऐसा लगता मानो किसी ने गर्म-गर्म गाल पर खींच कर ठंडे हाथों से तमाचा मारा हो! हाथ बाँधे हुए, ठंडी हवा के थपेड़े झेलते हुए मैं चुपचाप खड़ा अपनी छत से दूर घरों को देख रहा था| मेरे जिस्म के भीतर जितनी गर्मी थी वो मुँह से धुआँ बन कर निकल रही थी| उस समय मेरे लिए खुद को ये सजा देने का तरीका सही लग रहा था, मेरा मन बार-बार कह रहा था; 'you deserve this'! मेरे मन के भीतर और बाहर आसमान में घना कोहरा छाया हुआ था| दस मिनट हुए नहीं थे की मेरी कँप-कँपी छूटने लगी थी और मेरी हालत खराब होने लगी थी! तभी मुझे किसी के क़दमों की आहट सुनाई दी, मैंने फ़ौरन पलट कर देखा तो पता चला की कोई नहीं है! मुझे डर लग रहा था की कहीं कोई चोर तो पड़ोसियों की छत पार कर के मेरे घर में घुस तो नहीं गया? मैं फ़ौरन दबे पाँव नीचे आया और सारा घर छान मारा पर मुझे कोई नहीं मिला! मैंने रहत की साँस ली और सोचने लगा की ये जर्रूर मेरा वहम होगा! मैं अपने कमरे में लौट आया और इधर से उधर चक्कर काटने लगा, इतने में आयुष फिर से पलंग पर मेरी मौजूदगी टटोलने लगा, मैं दुबारा अपनी जगह लेट गया और आयुष की पीठ थपथपाते हुए उसे सुला दिया| धीरे-धीरे आयुष भी नेहा की तरह मेरे जिस्म की गर्मी को महसूस करने के लिए व्यकुल रहता था, उसे भी अब नेहा की तरह मेरा सारा प्यार चाहिए था!

कुछ देर बाद आयुष की नींद टूट गई और वो जागते हुए बोला;

आयुष: पापा जी...बाथरूम...जाना है!

आयुष आधी नींद में बोला| मैंने आयुष को गोदी लिया और bathroom ले गया| मैंने आयुष को bathroom के बाहर छोड़ा, जब आयुष bathroom से निकला तो मैं उसे गोदी में ले कर वापस पलंग पर आ गया| इतने में नेहा जाग गई और पलंग पर खड़ी हो गई क्योंकि उसे भी bathroom जाना था| मैंने नेहा को गोदी में लिया और bathroom के बाहर तक छोड़ा| अंत में मैं नेहा को भी गोदी में ले कर पलंग पर लौट आया| नेहा तो लेट गई मगर आयुष उठ कर बैठ गया, मेरे लेटते ही आयुष आ कर मेरी छाती पर चढ़ गया और मेरे सीने पर सर रख कर मुझसे लिपट गया| नेहा ने भी मेरी ओर करवट ली और मुझसे लिपट गई| दोनों बच्चों ने मुझे कस कर जकड़ लिया था, ऐसा लगता था मानो मेरे दोनों बच्चे मेरे दिल में उठी बेचैनी महसूस कर रहे थे, मानो जैसे वो जानते थे की मैं खुद को सज़ा दे रहा हूँ!

मैंने दोनों बच्चों को अपनी बाहों में जकड़ लिया और दोनों के सर चूमने लगा| तभी मुझे संगीता की चूड़ियों की खनक सुनाई दी, मुझे लगा की वो जाग रही है;

मैं: सोये नहीं?

मैंने संगीता की तरफ देखते हुए पुछा| संगीता अब भी मेरी ओर पीठ किये हुए थी और बिना मेरी ओर देखे ही बोली;

संगीता: आप भी तो नहीं सोये?

संगीता उखड़ी हुई आवाज में बोली| मेरे सवाल का जवाब देने की बजाए संगीता ने मुझसे सवाल पूछा था, दरअसल वो बस मुझसे बात न करने का बहाना बना रही थी| खैर, मैंने जानकर संगीता के सवाल का कोई जवाब नहीं दिया| मुझे लगा था की शायद मेरे जवाब न देने से संगीता थोड़ी नरम पड़ जाए और मेरे नजदीक खिसक आये!

संगीता ने पलट कर मुझे देखा, उसने मेरी मनोदशा देख और पढ़ ली थी मगर बजाए मेरे नजदीक खिसक आने के वो आयुष को समझाने लगी;

संगीता: आयुष, बेटा पापा को आराम से सोने दो, क्यों तंग करते हो?!

आयुष पर अपनी मम्मी की बात का कोई असर नहीं पड़ा और वो बड़े तपाक से बोला;

आयुष: नहीं मम्मी, मैं तो यहीं सोऊँगा|

आयुष की न सुन संगीता उसे घूर कर देखने लगी, अब मुझे आयुष का बचाव करना था;

मैं: सोने दो, खुद तो नजदीक आती नहीं और अब बच्चों को भी मेरे नजदीक नहीं आने दे रही हो?

मैंने प्यार से संगीता को ताना मारते हुए कहा| संगीता मेरा मतलब समझ गई और मैं एक बार फिर उम्मीद करने लगा की वो अब आकर मेरे से लिपट जाएगी पर ऐसा नहीं हुआ! संगीता ने फिर से मेरी ओर पीठ कर के करवट ली और सोने लगी|

मुझे चिंता हो रही थी की संगीता सोइ है या नहीं मगर मैं ये देखने के लिए उठ नहीं सकता था क्योंकि दोनों बच्चों ने मुझे जकड़ रखा था! बच्चों की पीठ थपथपाते हुए और बार-बार बच्चों को चूमते हुए में जागता रहा!

आज 4 तरीक थी और जो company वाला ठेका हमने (मैंने और पिताजी) ने उठाया था वो कल रात संतोष की देखरेख में पूरा हो चूका था और वो भी हमारे सोचे गए समय से एक दिन पहले! आज ठंड बहुत ज्यादा थी इसलिए पिताजी की हिदायत थी की सुबह सब अपने कमरे में रहें क्योंकि बाहर बैठक में बहुत ज्यादा ठंड थी| बच्चों ने माँ-पिताजी के कमरे में अपने खिलौनों से खेलना शुरू कर दिया और अपनी प्यारी-प्यारी बातों में अपने दादा-दादी जी का मन लगा लिया था| पिताजी की तबियत थोड़ी नासाज़ थी इसलिए माँ पिताजी के पास थीं| इधर मैं और संगीता अपने कमरे में थे, संगीता कपडे इस्त्री कर रही थी और मैं पलंग पर टेक लगा कर बैठा चाय पी रहा था| तभी मेरे फ़ोन की घंटी बजी, ये call संतोष का था;

मैं: हाँ संतोष बोल?

संतोष का call किस लिए था मैं जानता था और इस वक़्त मैं घर से बाहर नहीं जाना चाहता था इसीलिए मेरी आवाज में थोड़ी सी चिढ थी!

संतोष: Good morning भैया, वो company वाले आज काम देखने आ रहे है, अगर आप आ जाते तो अच्छा होता, आप check भी ले लेते!

संतोष ने आराम से बात की जिससे मुझे मेरी चिढ का एहसास हुआ|

मैं: Sorry यार, मैं नहीं आ पाउँगा| काम तो बढ़िया हो चूका है, तू ही मिल ले और check ले के company account में डाल दे|

मैंने बड़ी हलीमी से बात कही| संगीता ने मेरी बात सुन ली थी और उसे मेरा यूँ काम के प्रति ढीला पढ़ना अच्छा नहीं लग रहा था|

संतोष: जी ठीक है|

जैसे ही मैंने फोन काटा, संगीता ने बिना मेरी तरफ देखे उखड़े स्वर में कहा;

संगीता: कब तक मेरी वजह से अपनी रोज़ी से मुँह मोड़ के बैठे रहोगे?

संगीता की ये बात मुझे बहुत चुभी! ऐसा लगा मानो किसी ने गर्म लोहे की सलाख ने मेरे माँस को जला कर राख कर दिया हो! वो गर्म लोहे की सलाख की जलन मुझसे बर्दाश्त न हुई! यही बात अगर संगीता मुझे प्यार से समझाती तो मैं समझ जाता और मुझे इतना बुरा नहीं लगता लेकिन संगीता के बात करने का लहजा बहुत बुरा था! मैं फटाफट उठा और गुस्से से भरकर कपड़े बदले, फिर मैंने संगीता को सुनाते हुए संतोष से बात की कि मैं आ रहा हूँ| संगीता ने मेरी बात सुनी मगर कुछ नहीं कहा!

सुबह के दस बजे थे और बाहर कोहरा छट चूका था, माँ-पिताजी नाश्ते के लिए dining table पर बैठ चुके थे तथा संगीता ने भी नाश्ते कि तैयारी शुरू कर दी थी|

मैं: पिताजी, मैं company वाले ठेके का check लेने जा रहा हूँ|

मुझे तैयार देख पिताजी ने कुछ नहीं कहा और अपना मोबाइल मेरी ओर बढ़ाते हुए बोले;

पिताजी: अच्छा ये मेरा मोबाइल ले, वो राजू का फ़ोन आया था की आज check ले लेना| अब तू जा ही रहा है तो उससे check लेता आईओ|

मैं: जी ठीक है पर मैं आपके मोबाइल का क्या करूँ?

मैंने पिताजी का फ़ोन ले जाने से मना करते हुए कहा| दरअसल पिताजी का फ़ोन बहुत बजा करता था, उनके दोस्त-मित्र बहुत कॉल करते रहा करते थे और मेरा दिमाग पहले ही हिला हुआ था इसलिए मैं किसी से बात करना नहीं चाहता था|

पिताजी: अरे बेटा, तुझे तो पता है राजू का! न उसके पास तेरा नंबर है, ऊपर से वो फ़ोन कर-कर के मेरी जान खा जाता है| अब मेरी तबियत थोड़ी खराब है, नाश्ता कर के मैं सो जाऊँगा| फ़ोन तेरे पास होगा तो तू उससे अपने आप बात कर लियो|

मैंने पिताजी से फ़ोन ले लिया और नकली मुस्कान लिए बोला;

मैं: जी ठीक है, मैं दोनों check ले कर जमा करा दूँगा|

इतना कह मैं निकलने लगा मगर पिताजी मुझे टोकते हुए बोले;

पिताजी: बेटा, नाश्ता तो कर ले?!

पिताजी की बात सुनते ही संगीता मुझे देखने लगी, उसकी आँखों में मुझे तड़प दिखी मगर उसने मुझे रोकने की कोई कोशिश नहीं की!

मैं: पिताजी गुड़गाँव जाना है, नाश्ता करने बैठा तो देर हो जाएगी!

मैंने बहाना बनाते हुए कहा|

पिताजी: ठीक है बेटा पर गाडी सँभाल कर चलाइओ!

मैं: जी!

मैंने नकली मुस्कान के साथ कहा और घर से निकल गया|

मैं company वाली site पर पहुँचा और मेरी मुलाक़ात company के senior management में director Mr. John से हुई| Conference room समय से पहले और उम्मीद से बढ़िया तैयार हुआ था, Mr. John बहुत खुश हुए और मुझे उन्होंने final payment का check जिसमें 5,000/- रुपये ज्यादा थे खुद दिया! जब मुझे check मिला तो मेरा ध्यान संगीता पर था इसलिए मैं कोई भी प्रतिक्रिया नहीं दे पाया|

Mr. John: Manu are'nt you happy?

Mr. John अपनी British accent में बोले|

मैं: Oh...I'm sorry sir! Actually, I was thinking something!

मैंने नकली मुस्कान लिए हुए कहा|

Mr. John: Oh really, what were you thinking?

Mr. John हँसते हुए बोले|

मैं: That when's the next time we'll get a contract from you?

मैंने अपनी बात सँभालते हुए कहा और नकली हँसी हँसने लगा, उधर Mr. John ने भी हँसते हुए बात टाल दी|

Check लेने के बाद मैंने मैंने बहुत सोचा, कल रात से ही मैं हार मान चूका था मगर मेरा मन मुझे हार नहीं मानने दे रहा था! 'मैं हार नहीं मानने वाला! Hell, I'm gonna confront her today! HELL YEAH!!! TEAM MANU GO FOR IT!!!!' मेरा मन उत्साह से बौराते हुए बोला| ये उत्साह इसलिए था क्योंकि मेरा मन कह रहा था की संगीता का सामना कर मैं उसे समझा सकता हूँ?!

[color=rgb(255,]मेरा दिमाग खराब हो चूका था और काम करना बंद कर चूका था! मेरा अंतर्मन मुझे गाली दिए जा रहा था क मैं मैं किसी गलती के अपने पति को सजा दिए जा रही थी! मुझे खुद पर कोफ़्त हो रही थी, खुद से घिन्न आ रही थी की मैं सब कुछ जानते-बूझते इनके साथ ऐसे पेश आ रही हूँ जैसे की ये कोई अनजान आदमी हो! अरे कोई किसी अनजान आदमी से भी ऐसे पेश नहीं आता जैसे मैं इनके साथ बर्ताव कर रही थी! ये मुझे इतना चाहते हैं, इतना प्यार करते हैं, मुझे हँसाने के लिए, मुझे मनाने के लिए, मेरी ख़ुशी के लिए इतना सब कुछ करते हैं और वो भी सिर्फ इसलिए नहीं की मैं माँ बनने वाली हूँ बल्कि इसलिए क्योंकि इनका दिल बस मेरे लिए ही धड़कता है! सीधे शब्दों में कहूँ तो मुझे इनकी कोई कदर ही नहीं!

लेकिन वाक़ई में क्या मैं ऐसी हूँ? या इन बीते कुछ दिनों के हालातों ने मुझे ऐसा बना दिया है? मुझे आज अपनी कोई सफाई नहीं देनी क्योंकि इस सब के लिए मैं ही जिम्मेदार हूँ! मैंने खुद को अलग-थलग कर लिया था, मुझे किसी से भी कुछ कहने का मन नहीं था| शायद इसीलिए मैंने अपने पिताजी को फ़ोन कर के यहाँ आने से मना किया था|

इस वक़्त मुझे मेरे किये इनपर सभी अत्याचार एक-एक कर याद आ रहे थे;
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  • [color=rgb(255,]चार साल पहले का मेरा इनसे दूर रहने का फैसला और पिछले 48 घंटों से जो मैं इनका तिरस्कार कर रही थी इसके लिए मैं कभी खुद को माफ़ नहीं कर सकती! कभी नहीं![/color]
  • [color=rgb(255,]मेरे इस उखड़े बर्ताव के कारन आज ये बिना कुछ खाये, घर से खाली पेट चले गए और अभी दो बजने को आ रहे हैं लेकिन इनका कोई अता-पता नहीं| मैं जानती हूँ की मेरे इस रूखे बर्ताव के कारण इन्होने अभी तक कुछ खाया भी नहीं होगा|[/color]
  • [color=rgb(255,]कल रात भी मेरे इसी उखड़ेपन के कारण ये सर्दी में छत पर खड़े थे और मुझे कभी पता न चलता अगर मैं इन्हें ढूँढती हुई ऊपर छत पर न जाती तथा इन्हें सिगरेट पीते हुए न देखती! मेरे ही कारण इन्हें सिगरेट पीने की लत पड़ चुकी थी, पहले मैंने इन्हें खुद से दूर कर शराब पीने की लत लगाई थी और अब इनसे बात न कर के, अपना प्यार व्यक्त न कर के सिगरेट की भी लत लगा दी थी! कैसी पत्नी हूँ मैं?![/color]
  • [color=rgb(255,]इनके भीतर मैंने खुद को सजा देने की भावना महसूस की थी मगर सब कुछ जानते हुए भी मैं पत्थर बनी हुई इन्हें ठंड में ठिठुरता हुआ देख रही थी! उस वक़्त मैं खुद को बेबस और लाचार महसूस कर रही थी![/color]
  • [color=rgb(255,]इस सब की कसूरवार, बस मैं थी! बस खुद को दोष देने के अलावा मैं कुछ नहीं कर सकती थी|[/color]

[color=rgb(255,]

मैंने बड़ी मुश्किल से अपनी हिम्मत इकठा की और फैसला किया की मैं इन्हें फ़ोन कर सबसे पहले इनसे माफ़ी माँग लूँ और इन्हें कुछ खाने के लिए अपनी कसम से बाँध दूँ मगर एक पापी इंसान की खुदा भी नहीं सुनता इसलिए मेरे लगातार 5 बार फ़ोन मिलाने पर भी इन्होने फ़ोन नहीं उठाया! इस वक़्त मेरा मन घबराने लगा था, मुझे डर लग रहा था की कहीं कुछ गलत तो नहीं हो गया?!

{QUOTE} मेरा दिमाग खराब हो चूका था.....काम ही नहीं कर रहा था| बिना किसी गलती के उनको सजा दिए जा रही थी| खुद से घिन्न आ रही थी..... एक ऐसा इंसान जो मुझे इतना चाहता है.....मैं उसके साथ ऐसा पेश आ रही थी की जैसे वो कोई ......stranger हो..... अरे कोई ऐसे Stranger से भी पेश नहीं आता...एक इंसान जो आपको प्यार करता हो....आपको हँसाने के लिए....आपके दिल को खुश करने के लिए.....और सिर्फ इसलिए नहीं की मैं प्रेग्नेंट हूँ बल्कि इसलिए क्योंकि वो मुझे प्यार करते हैं| सीधे शब्दों में कहें तो "मुझे उनकी कदर ही नहीं थी|" पर वाकई में क्या मैं ऐसी ही हूँ? या हालात ने मुझे ऐसा बना दिया? मैं अपनी सफाई में कुछ नहीं कहूँगी क्योंकि मैं खुद को GUILTY मानती हूँ| आठ साल पीला का मेरा इनसे दूर रहने का फैसला और पिछले 48 घंटों से जो मैं इनके साथ कर रही थी ये....इससब के लिए मैं खुद को कभी माफ़ नहीं कर सकती| मेरे इस बर्ताव के कारन ये बिना नाश्ता खाए घर से चले गए और अभी दो बजने को आ रहे थे पर इनका कोई पता नहीं था.और जहाँ तक मैं जानती हूँ इन्होने मेरी वजह से दोपहाक का lunch भी नहीं खाया होगा| कल रात भी ये छत पे cigarette पीने गए थे और ठण्ड में खड़े रह कर खुद को सजा दे रहे थे| सबकुछ जानते हुए भी मैं पत्थर की तरह कड़ी उन्हें ठण्ड में ठिठुरता देख रही थी...बेबस और लाचार......मेरे कारन इन्हें cigarette की लत पद चुकी थी और ये सब मेरी वजह से ...सिर्फ और सिर्फ मेरी वजह से! मैंने फोन उठाया और इनको मिलाया की कम से कम SORRY बोल दूँ और उन्हें कुछ खाने को बोल दूँ| पर लगातार 5 बार फ़ोन मिलाने पर भी इन्होने फोन नहीं उठाया! मन घबराने लगा की कहीं कुछ गलत तो नहीं होगया? {/QUOTE}[/color]

दोनों पार्टियों से check ले कर मैं bank में जमा कर रहा था जब संगीता के call आने लगे, मैं चूँकि बैंक के भीतर था इसलिए मैं उसका फ़ोन नहीं उठा सकता था| Check जमा कर जैसे ही मैं bank से बाहर निकला की तभी पिताजी के फ़ोन पर call आया| मैंने बिना देखे फ़ोन उठाया ही था की एक भारी भरकम आवाज मेरे कानों में पड़ी, ये आवाज जानी-पहचानी थी;

बड़के दादा: हेल्लो!

बड़के दादा की भारी-भरकम आवाज सुन मैं दंग रह गया!

मैं: पाँयलागी दादा!

मेरी आवाज सुन बड़के दादा एक पल के लिए खामोश हुए, फिर उन्होंने सीधे मुद्दे की बात की;

बड़के दादा: तोहार पिताजी कहाँ हैं?

बड़के दादा ने कड़क आवाज में पुछा|

मैं: जी वो घर पर हैं और मैं bank आया हूँ|

मैंने सादी सी आवाज में जवाब दिया|

बड़के दादा: कलिहाँ हम पंचायत बैठाये हन और तू दुनो जन का आयेक है!

बस इतना कह बड़के दादा ने फ़ोन काट दिया|

अब ये तो मैं जानता ही था की ये पंचायत क्यों बिठाई गई है मगर मैं इस सब में पिताजी को नहीं खींचना चाहता था| पंचायत में जा कर छीछालेदर होना था और मैं अपनी पिताजी की बेइज्जती नहीं होने देना चाहता था इसलिए मैंने झूठ बोलने की सोची| पिताजी वाली site पर architect के साथ मेरी meeting थी इसलिए मैं सीधा site पर पहुँचा| चूँकि मैं संगीता का फ़ोन नहीं उठा रहा था इसलिए उसने माँ का सहारा लिया और मुझे फ़ोन करके खाने पर आने को कहा| मैंने busy होने का बहाना बनाया और काम में व्यस्त हो गया|

शाम 5 बजे मैं घर पहुँचा और गाँव में पंचायत वाली बात सभी से छुपाई| मैंने अपनी चपलता दिखाते हुए झूठा बहाना बनाया;

मैं: पिताजी, मुझे कल कानपुर जाना है|

मैंने सोफे पर बैठते हुए अपनी बात शुरू की|

पिताजी: कानपुर? पर किस लिए बेटा?

मैं: मेरा एक दोस्त है उसने मुझे एक ठेके के बारे में बताया है, उसी के सिलसिले में मैं जा रहा हूँ|

मैंने अपने झूठ को पुख्ता करते हुए कहा|

पिताजी: दोस्त?

पिताजी मुझे भोयें सिकोड़ कर देखते हुए बोले|

पिताजी: लेकिन बेटा, बहु को इस हालत में छोड़ कर तू जाने की कैसे सोच सकता है?

पिताजी के सवाल का मेरे पास कोई जवाब नहीं था इसलिए मैं खामोश हो गया और कोई बहाना सोचने लगा|

पिताजी: ऐसा कर बच्चों को हम (माँ-पिताजी) सँभाल लेंगे और तुम दोनों (मैं और संगीता) कानपुर हो आओ|

पिताजी की बात सही थी मगर मेरे झूठ के तहत संगीता को साथ ले जाना नामुमकिन था|

मैं: नहीं पिताजी, बच्चे नहीं मानेंगे और संगीता भी नहीं मानेगी| फिर मुझे तो बस एक दिन का काम है, कल रात तक मैं वापस आ जाऊँगा|

बच्चे हमारे (मेरे और संगीता के) अकेले जाने के लिए कभी नहीं मानते, हाँ मैंने संगीता के जाने से मना कर देने की बात झूठ कही थी क्योंकि मैं जानता था की वो शायद मान जाती|

पिताजी: जैसा तुझे ठीक लगे बेटा, लेकिन अगर बहु को साथ ले जाता तो उसका मन बहल जाता|

पिताजी ने आखरी कोशिश करते हुए कहा|

मैं: फिर कभी अच्छी जगह चले जाएँगे पिताजी|

मैंने नकली मुस्कान के साथ कहा|

[color=rgb(255,]इनकी वो नकली मुस्कान मैं पढ़ चुकी थी, भले ही माँ-पिताजी कुछ न समझ पाएँ हों पर मैं तो इनकी अर्धांग्नी हूँ, मैं तो इनके दिल के दर्द को साफ़ महसूस कर सकती हूँ! 'ये सब मेरी वजह से हो रहा है, मेरी ही वजह से ये घर से दूर जा रहे हैं! मैंने खुद को इस कदर अलग-थलग कर लिया की इनका मन उचाट हो गया है! मेरी कड़वी बातों को इन्होने अपने दिल से लगा लिया है! मुझे इनसे माफ़ी माँगनी होगी मगर पहले मैं इन्हें कुछ खिला दूँ क्योंकि सुबह से अभी तक इन्होने कुछ खाया नहीं होगा!' ये सब सोचते हुए मेरे मन फिर से ग्लानि भरने लगी थी|

मैंने फटाफट परांठें सेंके और प्लेट में परोस कर कमरे में पहुँची| ये उस समय दरवाजे की ओर पीठ कर के अपने कपड़े बदल रहे थे, मैंने खाने की प्लेट टेबल पर रखी जिससे ये पलट कर मेरी ओर देखने लगे| इनसे नजरें मिलते ही मेरी हिम्मत जवाब दे गई, मन बुज़दिल हो चला था मगर मुझे माफ़ी तो माँगनी ही थी इसलिए मन ने मुझे इनसे गले लग कर दिल ही दिल अपनी माफ़ी माँगने की बात कही लेकिन अभी भी कोई अदृश्य शक्ति थी जो मुझे इनके नजदीक जाने से रोक रही थी| मैंने एक बार फिर हिम्मत बटोरी लेकिन मैं कुछ कुछ कह पाती उससे पहले ही मुझे महसूस हुआ की ये कुछ कहना चाहते हैं| मेरे डरे हुए मन के लिए ये मौका एक बहाने के समान था जो मुझे बोलने नहीं दे रहा था| मैं इतनी क्रूर नहीं थी, दिल में इनके लिए बैठे प्यार ने गुहार लगाई और मुझे गलत रास्ते पर भटकने नहीं दिया| मुझे इन्हें और low feel नहीं कराना था इसीलिए मुझे आज कैसे भी इनसे माफ़ी माँगनी थी!

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मैं: बैठो|

मैंने संगीता को पलंग पर बैठने का इशारा करते हुए कहा| उसकी आँखों में मैं ग्लानि देख रहा था और मुझे वो ग्लानि चुभ रही थी!

संगीता: आप पहले कुछ खा लो, सुबह से आपने कुछ नहीं खाया!!!

संगीता की बात में मेरे लिए चिंता झलक रही थी, परन्तु मुझे इस वक़्त संगीता का सामना करना था;

मैं: वो बाद में, पहले तुम बैठो मुझे तुमसे कुछ बात करनी है|

मैंने जबरदस्ती संगीता का हाथ पकड़ा और उसे अपने सामने बिठाया तथा मैं कुर्सी ले कर संगीता के सामने बैठ गया| मैं उस वक़्त संगीता से ये सब कहना चाहता था;

'जान, तुम्हें क्या हो गया है? क्यों तुम मुझसे ऐसे पेश आ रही हो जैसे तुम मुझसे प्यार नहीं करती? क्यों मुझसे तुम किसी अनजान आदमी की तरह पेश आ रही हो? मैं जानता हूँ की तुम आयुष को ले कर डरी हुई हो लेकिन अगर तुमने मेरे प्रति अपना प्यार व्यक्त करना बंद कर दिया तो मैं तुमसे वादा करता हूँ की मैं उस हरामजादे को (चन्दर) जान से मार दूँगा!

मैंने आज तक तुमसे कुछ नहीं माँगा मगर आज मैं तुमसे कुछ माँगना चाहता हूँ| मुझे नहीं पता की तुम ये सब कैसे करोगी मगर मुझे मेरी पुरानी संगीता वापस चाहिए! मुझे बस मुझसे प्यार करने वाली संगीता वापस चाहिए! मुझे किसी की कोई परवाह नहीं, मुझे बस तुम्हारी परवाह है और अगर मुझे मेरी पुरानी वाली संगीता नहीं मिली तो तुम मुझे खो दोगी...हमेशा-हमेशा के लिए!'

मेरा मन ये सब बातें संगीता से कहना चाहता था, परन्तु मैंने ये बातें संगीता से नहीं कही क्योंकि आज मेरे खाना न खाने से उसे तकलीफ हुई थी! वैसे पति के खाना न खाने पर पत्नी को तकलीफ होना वाज़िब बात थी मगर मेरे लिए ये पिछले 48 घंटों में एक नई उपलब्धि के समान थी| संगीता ने अपने प्यार को मेरे प्रति व्यक्त करने से रोका हुआ था ऐसे में उसे अभी तकलीफ होना मेरे लिए एक शुभ संकेत था| मेरा मन कह रहा था की जब संगीता को मेरी इतनी चिंता होने लगी है तो जल्द ही मेरी पुरानी संगीता वापस आ जाएगी, बेकार में अगर मैंने उसके साथ अपनी बातों से कोई जबरदस्ती की तो कहीं बात न बिगड़ जाए?! इस वक़्त मैं संगीता के साथ बिलकुल नई शुरुआत करने को तैयार था इसीलिए मैं खामोश रहा!

[color=rgb(255,]ये मुझे बस टकटकी बाँधे देख रहे थे, मुझे लगा की ये कुछ कहेंगे परन्तु ये खामोश रहे| अपने पति की ये ख़ामोशी देख मेरा मन अंदर से कचोटने लगा था, मेरे ही कारन आज ये इस तरह चुप हो गए थे| ये दृश्य देख मेरे भीतर इनसे प्यार करने वाली संगीता ने आज साँस ली, मेरे मन में जो इनके प्रति चिंता थी आज वो बाहर आ ही गई| मैंने हिम्मत कर के प्लेट उठाई और एक कौर इन्हें खिलाया, इन्होने भी बड़े प्यार से कौर खाया| इनको अपने हाथ से खाना खिला कर दिल में प्रसन्नत्ता भरने लगी और मैंने बड़ी हिम्मत कर के इनसे पूछ लिया; "मैं...भी...कानपुर...चलूँ?" मेरा कहीं जाने का बिलकुल मन नहीं था, मैं तो बस इनकी ख़ुशी के लिए जाना चाहती थी| मेरा सवाल सुन ये धीमे से मुस्कुराये और बोले; "जान, मैं बस एक दिन के लिए ही जा रहा हूँ| एक दिन में तुम वहाँ कुछ भी नहीं देख पाओगी, वापस आ कर मैं कहीं घूमने जाने का plan बनाता हूँ फिर हम दोनों कहीं अच्छी जगह घूम कर आएंगे| Okay?" इनकी मुस्कान देख मैंने रहत की साँस ली की ये मुझसे नाराज नहीं हैं| मन में भरी ग्लानि जाती रही और इनसे माफ़ी माँगने की हिम्मत जवाब दे गई, बड़ी मुश्किल से मैंने मुस्कुराते हुए "हम्म" कह बात खत्म की|[/color]

मैंने संगीता के मेरे साथ कानपुर जाने की बात हँस कर टाल दी, शायद संगीता को बुरा लगा हो मगर मैं उसे अपने साथ नहीं ले जा सकता था| मुझे एक बात की ख़ुशी थी और वो ये की संगीता के जिस प्यार को मैं महसूस करना चाहता था वो आज मुझे महसूस हुआ था क्योंकि संगीता मुझे आज बड़े प्यार से अपने हाथों से खाना खिला रही थी| मैं जानता था की संगीता ने भी अभी तक कुछ नहीं खाया होगा इसलिए मैंने भी उसे बड़े प्यार से अपने हाथों से खाना खिलाया| वैसे एक बात तो है, संगीता के हाथ से आज खाना खाने में आज अलग ही मज़ा आ रहा था!

थोड़ी देर में बच्चे उठ गए और मुझे ढूँढ़ते हुए, फुदकते हुए कमरे में आ गए| दोनों बच्चों ने मुझे अपनी बाहों में जकड़ लिया और ख़ुशी से कहकहाने लगे! नेहा ने मुझे खींच कर बिस्तर पर गिराया और फिर आयुष ने मुझे गुदगुदी करना शुरू कर दिया| मैंने भी दोनों बच्चों को गुदगुदी करना शुरू कर दिया| बच्चों के साथ थोड़ी मस्ती करने के बाद मैंने उन्हें पढ़ने में लगा दिया और मैंने चुपचाप लखनऊ आने-जाने की plane की ticket book कर दी|

बच्चों को मेरे कानपुर जाने का पता चला तो दोनों ने फिर मुझे घेर लिया;

मैं: बेटा मुझे कुछ काम से जाना है और तबतक है न आप दोनों को यहाँ सब का ध्यान रखना है|

बच्चों ने सर हाँ में हिलाया और बड़े गर्व से मेरे द्वारा दी गई जिम्मेदारी ले ली| मेरी flight कल सुबह की थी और रात बच्चों को मेरे साथ गुजारनी थी| खाना खा कर सोते समय दोनों बच्चों ने मुझे कल रात की तरह अपनी बाहों से जकड़ लिया और कहानी सुनते-सुनते सो गए| संगीता आज भी कल रात की ही तरह मुझसे दूर सोई, मुझे बुरा तो लगा मगर उतना नहीं जितना कल लग रहा था| मैं धीरे-धीरे नई शुरुआत करने के लिए राज़ी था|

अगली सुबह घर से निकलते समय नेहा ने अपने दोनों हाथों से मेरा चेहरा थामा और मुझे हिदायत देती हुई बोली;

नेहा: पापा जी, अपना ख्याल रखना| किसी अनजान आदमी से बात मत करना, मुझे कानपूर पहुँच कर फ़ोन करना, lunch में मुझे फ़ोन करना और रात को flight में बैठने से पहले फ़ोन करना और दवाई लेना मत भूलना|

नेहा को मुझे यूँ हिदायतें देता देख माँ मुस्कुराते हुए बोलीं;

माँ: अरे वाह मेरी बिटिया! तू तो बिलकुल मेरी तरह अपने पापा को सीखा-पढ़ा रही है!

माँ ने हँसते हुए कहा और उनकी बात सुन सब हँस पड़े, संगीता भी मुस्कुराना चाह रही थी मगर उसकी ये मुस्कान घुटी हुई थी|

मैं: बेटा, सारी हिदायतें आप ही दोगे या फिर कुछ अपनी मम्मी के लिए भी छोड़ोगे?!

मैंने कुटिल मुस्कान लिए हुए संगीता की ओर देखते हुए कहा|

संगीता: बेटी ने अपनी मम्मी के मन की कह ही दी तो अब क्या मैं दुबारा सारी बातें दोहराऊँ?!

संगीता ने कुटिलता से नकली मुस्कान लिए हुए जवाब दिया| संगीता की कुटिलता देख मैं भी मुस्कुरा दिया और उसे कमरे में जाने का इशारा किया| कमरे में आ कर मैंने संगीता को अपना ख्याल रखने को कहा ओर संगीता ने भी अपना सर हाँ में हिलाते हुए संक्षेप में जवाब दिया|

[color=rgb(44,]जारी रहेगा भाग - 5 में...[/color]
 

[color=rgb(51,]छब्बीसवाँ अध्याय[/color][color=rgb(51,]: दुखों का [/color][color=rgb(51,]ग्रहण[/color]
[color=rgb(251,]भाग - 5[/color]


[color=rgb(26,]अब तक पढ़ा:[/color]

अगली सुबह घर से निकलते समय नेहा ने अपने दोनों हाथों से मेरा चेहरा थामा और मुझे हिदायत देती हुई बोली;

नेहा: पापा जी, अपना ख्याल रखना| किसी अनजान आदमी से बात मत करना, मुझे कानपूर पहुँच कर फ़ोन करना, lunch में मुझे फ़ोन करना और रात को flight में बैठने से पहले फ़ोन करना और दवाई लेना मत भूलना|

नेहा को मुझे यूँ हिदायतें देता देख माँ मुस्कुराते हुए बोलीं;

माँ: अरे वाह मेरी बिटिया! तू तो बिलकुल मेरी तरह अपने पापा को सीखा-पढ़ा रही है!

माँ ने हँसते हुए कहा और उनकी बात सुन सब हँस पड़े, संगीता भी मुस्कुराना चाह रही थी मगर उसकी ये मुस्कान घुटी हुई थी|

मैं: बेटा, सारी हिदायतें आप ही दोगे या फिर कुछ अपनी मम्मी के लिए भी छोड़ोगे?!

मैंने कुटिल मुस्कान लिए हुए संगीता की ओर देखते हुए कहा|

संगीता: बेटी ने अपनी मम्मी के मन की कह ही दी तो अब क्या मैं दुबारा सारी बातें दोहराऊँ?!

संगीता ने कुटिलता से नकली मुस्कान लिए हुए जवाब दिया| संगीता की कुटिलता देख मैं भी मुस्कुरा दिया और उसे कमरे में जाने का इशारा किया| कमरे में आ कर मैंने संगीता को अपना ख्याल रखने को कहा ओर संगीता ने भी अपना सर हाँ में हिलाते हुए संक्षेप में जवाब दिया|

[color=rgb(97,]अब आगे:[/color]

दोपहर
बारह बजे मैं लखनऊ पहुँचा और तभी नेहा का फ़ोन आ गया;

नेहा: पापा जी, आप कहाँ हो?

नेहा चिंतित होते हुए बोली|

मैं: बेटा, मैं अभी-अभी कानपूर पहुँचा हूँ, आपको call करने वाला ही था की आपका call आ गया|

मैंने नेहा को निश्चिन्त करते हुए झूठ कहा|

नेहा: आपने कुछ खाया? पहले कुछ खाओ और दवाई लो!

नेहा मुझे माँ की तरह हुक्म देते हुए बोली| उसका यूँ माँ बन कर मुझे हुक्म देना मुझे मजाकिया लग रहा था इसलिए मैं हँस पड़ा और बोला;

मैं: अच्छा मेरी मम्मी जी, अभी मैं कुछ खाता हूँ और दवाई लेता हूँ!

नेहा ने फ़ोन स्पीकर पर कर रखा था और जैसे ही मैंने उसे मम्मी जी कहा मुझे पीछे से माँ, आयुष और पिताजी के हँसने की आवाज आई| नेहा को भी मेरे उसे मम्मी जी कहने पर बड़ा मज़ा आया और वो भी ठहाका लगा कर हँसने लगी|

मैंने फ़ोन रखा और बजाए खाना खाने के सीधा गाँव के लिए निकल पड़ा| लखनऊ से गाँव पहुँचते-पहुँचते मुझे दोपहर के दो बज गए| मैं जानता था की गाँव में मेरा कोई भव्य स्वागत नहीं होगा इसलिए मैं अपने लिए पीने का पानी और खाने के लिए चॉकलेट ले कर आया था| पंचायत बैठनी थी 5 बजे और मैं 2 बजे ही घर पहुँच चूका था| मुझे घर में कोई नहीं दिखा क्योंकि बड़की अम्मा पड़ोस के गाँव में गई थीं, चन्दर अपने घर में पड़ा था, अजय भैया और बड़के दादा कहीं गए हुए थे| जब मैंने किसी को नहीं देखा तो मैं सड़क किनारे एक पेड़ के किनारे बैठ गया क्योंकि इस घर से (बड़के दादा के घर से) अब मेरा कोई नाता नहीं रह गया था| पिछलीबार जब मैं चन्दर के sign लेने गाँव आया था तब ही बड़के दादा ने हमारे परिवार का हुक्का-पानी बंद कर दिया था, इसलिए आज मुझे यहाँ पानी पूछने वाला भी कोई नहीं था| 15 मिनट बाद रसिका भाभी छप्पर की ओर निकलीं तब उन्होंने मुझे देखा मगर बिना कुछ कहे वो चली गईं, फिर अजय भैया बाहर से लौटे और मुझे बैठा देख वो भी बिना कुछ बोले बड़के दादा को बुलाने चले गए| फिर निकला चन्दर, हाथ में प्लास्टर लपेटे हुए, उसने मुझे देखा और मुझे देखते ही उसकी आँखों में खून उतर आया मगर उसमें कुछ कहने की हिम्मत नहीं हुई| अजय भैया, बदके दादा को मेरे आगमन के बारे में बता कर लौट आये थे और चन्दर के साथ खड़े हो कर कुछ खुसर-फुसर करने लगे| कहीं मैं उनकी खुसर-फुसर न सुन लून इसलिए चन्दर, अजय भैया को अपने साथ बड़े घर ले गया| दरअसल चन्दर इस समय अजय भैया को पढ़ा रहा था की उन्हें पंचों के सामने क्या-क्या बोलना है|

तभी वरुण फुदकता हुआ खेल कर घर लौटा, मुझे देखते ही उसके चेहरे पर प्यारी सी मुस्कान फ़ैल गई| वो मेरे गले लगना चाहता था मगर घर में जो बातें उसने सुनी थीं उन बातों के डर से वो मेरे नजदीक नहीं आ रहा था| मैंने अपनी जेब में हाथ डाला और चॉक्लेट निकाल कर उसकी ओर बढ़ाई, वरुण के चेहरे की मुस्कान बड़ी हो गई थी मगर वो अब भी झिझक रहा था| उसने एक नजर अपनी मम्मी को छप्पर के नीचे बैठे देखा और उनके पास दौड़ गया, रसिका भाभी तब मुझे ही देख रहीं थीं| उन्होंने वरुण की पीठ पर हाथ रख मेरी ओर धकेला तो वरुण मुस्कुराता हुआ धीरे-धीरे चल कर मेरे पास आया| उसने झुक कर मेरे पाँव छूने चाहे तो मैंने उसे रोका और उसके सर पर प्यार से हाथ फेरने लगा| वरुण अब बड़ा हो चूका था और लगभग नेहा की उम्र का हो चूका था मगर दिल से वो अब भी पहले की ही तरह बच्चा था|

वरुण: चाचू, हमका भुलाये तो नाहीं गयो?!

वरुण मुस्कुराता हुआ बोला|

मैं: नहीं बेटा, मुझे आप याद हो और ये भी याद है की आपको चॉकलेट बहुत पसंद है|

मैंने मुस्कुराते हुए कहा ओर वरुण ने चॉकलेट ले ली|

वरुण: थे..थैंक्यू चाचू!

वरुण खुश होते हुए बोला| फिर उसने वो सवाल पुछा जो उसकी माँ ने उसे पढ़ाया था;

वरुण: चाची कइसन हैं? और...और...आयुष कइसन है? नेहा दीदी कइसन हैं?

मैं: सब अच्छे हैं और आपको याद करते हैं|

मैंने संक्षेप में जवाब दिया|

इतने में बड़के दादा और बड़की अम्मा साथ घर लौट आये, मुझे वरुण से बात करता देख बड़के दादा एकदम से वरुण को डाँटने लगे| मैंने आयुष को मूक इशारा किया और उसने मेरी दी हुई चॉकलेट छुपा ली तथा बड़े घर की ओर दौड़ गया| बड़के दादा ओर बड़की अम्मा ने मुझे देखा परन्तु वो खामोश खड़े रहे| बड़के दादा की आँखों में मेरे लिए गुस्सा था मगर बड़की अम्मा की आँखों में मैंने अपने लिए ममता देखीं, लेकिन वो बड़के दादा के डर के मारे खामोश थीं और मुझे अपने गले नहीं लगा पा रहीं थीं| मैं ही आगे बढ़ा और उनके (बड़के दादा और बड़की अम्मा के) पाँव छूने के लिए झुका, बड़के दादा तो एकदम से मेरी ओर पीठ कर के खड़े हो गए तथा मुझे अपने पाँव छूने नहीं दिए| जबकि बड़की अम्मा अडिग खड़ी रहीं, मैंने उनके पाँव छुए और बड़की अम्मा ने मेरे सर पर हाथ रख कर मुझे आशीर्वाद देना चाहा परन्तु बड़के दादा की मौजूदगी के कारण वो कुछ कह न पाईं| उन्होंने मुझे मूक आशीर्वाद दिया और मेरे लिए वही काफी था|

बड़के दादा: तोहार पिताजी कहाँ हैं?

बड़के दादा गुस्से में मेरी ओर पीठ किये हुए बोले|

मैं: जी मैंने उन्हें इस पंचायत के बारे में नहीं बताया|

मैंने हाथ पीछे बाँधे हुए हलीमी से जवाब दिया|

बड़के दादा: काहे?

बड़के दादा ने मेरी ओर पलटते हुए पुछा| उनके चेहरे पर गुस्सा झलक रहा था|

मैं: शिकायत आपको मुझ से है उनसे नहीं, तो मेरा आना जर्रुरी था उनका नहीं|

मैंने बड़े तपाक से जवाब दिया| मेरे जवाब से बड़के दादा को बहुत गुसा आया और उन्होंने गरजते हुए अजय भैया से कहा;

बड़के दादा: अजय! जाओ जाइके पंचों का बुलाये लाओ, हम चाहित है की बात आभायें हो!

अजय भैया पंचों को बुलाने के लिए साइकल से निकल गएvइधर बड़के दादा और बड़की अम्मा छप्पर के नीचे जा कर बैठ गए| मेरे लिए न तो उन्होंने पीने के लिए पानी भेजा और न ही खाने के लिए भेली (गुड़)! शुक्र है की मेरे पास पानी की बोतल थी, तो मैं उसी बोतल से पानी पीने लगा|

अगले एक घंटे में पंचायत बैठ चुकी थी, बीचों बीच दो चारपाई बिछी थीं जिनपर पंच बैठे थे| पंचों के दाएं तरफ बड़के दादा कि चारपाई थी जिस पर वो, चन्दर और अजय भैया बैठे थे| पंचों के बाईं तरफ एक चारपाई बिछी थी जिसपर मैं अकेला बैठा था| पंचों ने बड़के दादा को पहले बोलने का हक़ दिया;

पंच: पाहिले तुम कहो, फिर ई लड़िकवा (मेरा) का पक्ष सूना जाई|

बड़के दादा: ई लड़िकवा हमार चन्दर का बहुत बुरी तरह कुटिस (पीटा) है, ओकरा हाथ तोड़ दिहिस! ऊपर से हमका पोलिस-थाने और वकील की धमकी देत है! तनिक पूछो ई (मैं) से की ई सब काहे किहिस? हम से एकरे कौन दुश्मनी है? हम ई (मेरा) का का बिगाडन है?

बड़के दादा मेरी ओर ऊँगली से इशारा करते हुए गुस्से से बोले| पंचों ने बड़के दादा को शांत रहने को कहा और मेरी ओर देखते हुए बोले;

पंच: बोलो मुन्ना (मैं)!

मैं: मेरी अपने बड़के दादा से कोई दुश्मनी नहीं है, न ही कभी रही है| मैं तब भी इनका आदर करता था और अब भी इनका आदर करता हूँ|

मैंने बड़ी हलीमी से बड़के दादा की ओर देखते हुए कहा| फिर मैंने चन्दर की तरफ ऊँगली की और गुस्से से बोला;

मैं: परन्तु ये (चन्दर)...ये शक्स 2 जनवरी को मेरी पत्नी की हत्या करने के मकसद से मेरे घर में घुस आया| संगीता का गला दबा कर उसकी जान लेने के बाद ये आयुष को अपने साथ ले जाना चाहता था, वो तो क़िस्मत से मैं घर पर था और जब मैंने इसके (चन्दर के) संगीता पर गरजने की आवाज सुनी तो मैंने वही किया जो एक पति को करना चाहिए था| अगर मुझे बड़की अम्मा का ख्याल न होता क्योंकि बदक़िस्मती से ये उनका बेटा है, तो मैं इसका टेटुआ दबा कर तभी इसकी जान ले लेता!

मैंने गुस्से से दाँत पीसते हुए कहा|

मेरी बात सुन बड़के दादा सख्ते में थे! उनके चेहरे पर आये ये अस्चर्य के भाव साफ़ बता रहे थे की उन्हें सच पता ही नहीं!

बड़के दादा: ई लड़िकवा (मैं) झूठ कहत है! चन्दर अकेला दिल्ली नाहीं गवा रहा, अजयो (अजय भी) साथ गवा रहा| ई दुनो भाई (अजय भैया और चन्दर) एकरे (मेरे) हियाँ बात करे खातिर गए रहे ताकि ई (मैं) और ई के (मेरे) पिताजी हमार पोता जेका ये सभाएं जोर जबरदस्ती से दबाये हैं, ऊ हमरे पास लौट आये! लेकिन बात करेका छोड़ ई लड़िकवा (मैं) हमार बेटा (चन्दर) का बुरी तरह मारिस और ओकरा हाथ तोड़ दिहिस! हमार बेटा अजय ई सब का गवाह है!

बड़के दादा ने अजय भैया को आगे करते हुए गवाह बना दिया| उनकी बात सुन कर मुझे पता चला की चन्दर ने घर आ कर उलटी कहानी सुनाई है|

मैं: अच्छा?

ये कह मैंने अजय भैया की आँखों में देखते हुए उनसे पुछा:

मैं: अजय भैया कह दीजिये की यही हुआ था? क्या आप आये थे बात करने?

मैंने भोयें सिकोड़ कर अजय भैया को देखा, मुझसे नजर मिला कर अजय भैया का सर शर्म से झुक गया| हमारे बीच भाइयों का रिश्ता ऐसा था की वो कभी मेरे सामने झूठ नहीं बोलते थे| जब अजय भैया सर झुका कर निरुत्तर हो गए तो मैंने अपनी बात आगे बढ़ाई;

मैं: देख लीजिये पंचों, ये मेरे अजय भैया कभी मुझसे झूठ नहीं बोल सकते| आप खुद ही इनसे पूछ लीजिये की आखिर हुआ क्या था, क्या ये मेरे घर बात करने चन्दर के साथ आये थे?

मैंने पंचों की तरफ देखते हुए कहा तो सभी पंचों की जिज्ञासा जाग गई और वे अजय भैया से बोले;

पंच: अजय, कहो मुन्ना? तनिको घबराओ नाहीं, जउन सच है तउन कह दिहो!

अजय भैया का सर झुका देख कर बड़के दादा को भी जिज्ञासा हो रही थी की आखिर सच क्या है, इसलिए वो भी भोयें सिकोड़ कर अजय भैया को देख रहे थे| आखिर कर अजय भैया ने अपना मुँह खोला और हिम्मत करते हुए सच बोलने लगे;

अजय भैया: ऊ...हम चन्दर भैया संगे मानु भैया के घरे नाहीं गयन रहन! (चन्दर) भैया हमका ननकऊ लगे छोड़ दिहिन और कहिन की हम बात करके आईथ है| फिर जब हम अस्पताल पहुँचेन तब भैया हमसे कही दिहिन की हम ई झूठ बोल देइ की हम दुनो बात करे खातिर मानु भैया घरे गयन रहन और मानु भैया उनका (चन्दर को) बिना कोई गलती के मारिस है!

अजय भैया का सच सुन चन्दर की फटी की कहीं बड़के दादा उस पर हाथ न छोड़ दें इसलिए उसने अपना सर शर्म से झुका लिया| इधर बड़के दादा को अजय की बात सुन कर विश्वास ही नहीं हो रहा था की सारा दोष उनके लड़के चन्दर का है;

बड़के दादा: चलो मान लेइत है की अजय हमसे झूठ बोलिस की ई दुनो (अजय भैया और चन्दर) बात करे खातिर साथ गए रहे मगर हम ई कभौं न मानब की चन्दर कछु अइसन करिस की ई लड़िकवा (मैं) का ऊ पर (चन्दर पर) हाथ छोड़े का मौका मिला हो!

बड़के दादा ने चन्दर का पक्ष लेते हुए कहा| उनके लिए उनका अपना खून सही था मगर मैं गलत! बड़के दादा इस वक़्त मुझे धीतराष्ट्र की तरह लग रहे थे जो अपने क्रूर बुद्धि वाले पुत्र चन्दर उर्फ़ दुर्योधन का पक्ष ले रहे थे|

मैं: मैं जूठ बोल रहा हूँ? ठीक है, मेरे पास अपनी बेगुनाही साबित करने के लिए कोई सबूत नहीं है इसलिए मैं भवानी माँ की कसम खाने को तैयार हूँ!

भवानी माँ हमारे गाँव की इष्ट देवी हैं, माँ इतनी दयालु हैं की उनकी शरण में आये हर भक्त की वो मदद करती हैं| कितनी ही बार जब किसी व्यक्ति पर भूत-पिश्चाच चिपक जाता है, तब वो व्यक्ति किसी भी तरह माँ तक पहुँच जाए तो उस व्यक्ति की जान बच जाती है| ये भी कहते हैं की भवानी माँ की कसम खा कर झूठ बोलने वाला कभी जिन्दा नहीं बचता| मैंने माँ के प्यार का सहारा लेते हुए बड़के दादा से कहा;

मैं: दादा, आप भी चन्दर से कहिये की अगर वो बेगुनाह है तो वो भी मेरे साथ चले और माँ की कसम खाये और कह दे की उसके बिना कुछ किये ही मैंने उसे पीटा है|

इतना कह मुझे लगा की कहीं ये शराबी (चन्दर) कसम खा कर झूठ न बोल दे इसलिए मैंने उसे थोड़ा डराते हुए कहा;

मैं: ये याद रहे चन्दर की अगर तूने जूठ बोला तो तू भी जानता है की भवानी माँ तुझे नहीं छोड़ेंगी!

मैंने बड़े आत्मविश्वास से कहा| मैं तो फ़ौरन मंदिर चल कर कसम खाने के लिए उठ कर खड़ा हो गया मगर चन्दर सर झुकाये ही बैठा रहा|

बड़के दादा: चल चन्दर?!

बड़के दादा ने कई बार चन्दर को मंदिर चलने को कहा मगर वो अपनी जगह से नहीं हिला, हिलता भी कैसे मन में चोर जो था उसके!

मैं: देख लीजिये दादा! आपका अपना खून आपसे कितना जूठ बोलता है और आप उसका विश्वास कर के मुझे दोषी मान रहे हैं|

मेरी बात सुन बड़के दादा का सर शर्म से झुक गया, उस समय मुझे उनके लिए बहुत बुरा लगा| अब बड़के दादा झूठे साबित हो चुके थे मगर उन्हें अब भी अपना पोता चाहिए था, वो पोता जो उनके अनुसार उनकी वंश बेल था!

बड़के दादा: ठीक है पंचों, हम मानित है की हमरे सिक्का खोटा है!

बड़के दादा को अपनी गलती मानने में बड़ी तकलीफ हुई थी|

बड़के दादा: लेकिन अब ई लड़िकवा (मैं) हियाँ आ ही गवा है तो ई से कह दिहो की ई आयुष का हमका सौंप दे, काहे से की ऊ चन्दर का खून है और ई का (मेरा) आयुष पर कउनो हक़ नाहीं!

बड़के दादा बड़े हक़ से आयुष को माँग रहे थे|

मैं: बिलकुल नहीं!

मैं छटपटाते हुए बोला| बड़के दादा ने आयुष को चन्दर का खून कहा तो मेरा खून खौल गया| मैंने फटाफट अपने बैग से संगीता के तलाक के कागज निकाले और पंचों के आगे कर दिए;

मैं: ये देखिये तलाक के कागज़|

पंचों ने कागज देखे और बोले;

पंच: ई कागज तो सही हैं! ई मा लिखा है की चन्दर आयुष की हिरासत मानु का देत है और ऊ का (चन्दर का) आयुष पर अब कउनो हक़ नाहीं!

ये सच सुन बड़के दादा के पाँव के नीचे से जमीन खिसक गई!

बड़के दादा: नाहीं ई नाहीं हुई सकत! ई झूठ है! ई लड़िकवा हम सभाएं का धोका दिहिस है, तलाक के कागजों पर दतख्ते लेते समय हमसे ई बात छुपाइस है!

बड़के दादा तिलमिला कर मुझ पर आरोप लगाते हुए बोले| मैंने ये बात बड़के दादा से नहीं छुपाई थी, वो तो उस दिन जब मैं पिताजी के साथ तलाक के कागजों पर चन्दर के दस्तखत कराने आया था तब मुझे आयुष के बारे में कोई बात कहने का मौका ही नहीं मिला था| खैर इस वक़्त मैं अपनी उस गलती को मान नहीं सकता था इसलिए मैंने चन्दर के सर पर दोष मढ़ दिया;

मैं: दादा, मैंने आपसे कोई बात नहीं छुपाई| उस दिन जब मैं तलाक के कागज़ ले कर आया था तब मैंने कागज चन्दर को दिए थे उसने अगर पढ़ा नहीं तो इसमें मेरा क्या कसूर?!

मैंने एकदम से अपना पल्ला झाड़ते हुए बड़के दादा से कहा| परन्तु बड़के दादा अपनी बात पर अड़ गए;

बड़के दादा: अगर चन्दर नाहीं पढीस तभऊँ तोहार आयुष पर कउनो हक़ नाहीं बनत! ऊ चन्दर का खून है...

इतना सुनना था की मेरे अंदर का पिता बाहर आ गया और मैंने गर्व से अपनी छाती ठोंकते हुए कहा;

मैं: जी नहीं, आयुष मेरा खून है इसका (चन्दर) नहीं!

मैंने चन्दर की ओर ऊँगली से इशारा करते हुए कहा| मेरा ये आत्मविश्वास देख बड़के दादा सन्न रह गए और बहस करने लगे;

बड़के दादा: तू काहे झूठ पर झूठ बोलत जात है? भगवान का कउनो डर नाहीं तोहका?

बड़के दादा मुझे भगवान के नाम से डरा रहे थे पर वो सच्चाई से अनजान थे!

मैं: मैंने कुछ भी जूठ नहीं कहा, चाहे तो आप लोग मेरा और आयुष का DNA test करा लो|

मैंने पूरे आत्मविश्वास से कहा| किसी को DNA Test का मतलब तो समझ नहीं आया मगर मेरा आत्मविश्वास देख सभी दहल गए थे!

मैं: आयुष मेरे और संगीता के प्यार की निशानी है!

मैंने फिर पूरे आत्मविश्वास से कहा| मेरी बात में वजन था, ये वजन कभी किसी झूठे की बात में नहीं हो सकता था इसलिए बड़के दादा को और पंचों को विश्वास हो चूका था की आयुष मेरा ही बेटा है|

बड़के दादा: अरे दादा! ई का मतबल की तू और ऊ (संगीता)... छी...छी...छी!

बड़के दादा नाक सिकोड़ कर बोले मानो उन्हें मेरी बात सुन बहुत घिन्न आ रही हो! उनकी ये प्रतिक्रिया देख मेरे भीतर गुस्से की आग भड़क उठी और मैं गुस्से से चिल्लाते हुए बोला;

मैं: बस! मैं अब और नहीं सुनूँगा! आयुष मेरे बेटा है और इस बात को कोई जुठला नहीं सकता, न ही यहाँ किसी को हक़ है की वो मेरे और संगीता के प्यार पर ऊँगली उठाये| इस सब में सारी गलती आपकी है बड़के दादा, आपने अपने बेटे की सारी हरकतें जानते-बूझते उसकी शादी संगीता से की! आपको पता था की शादी से पहले आपका बेटा जो गुल खिलाता था, शादी के बाद भी वो वही गुल खिला रहा है और आप ये सब अच्छे से जानते हो लेकिन फिर भी आपने एक ऐसी लड़की (संगीता) की जिंदगी बर्बाद कर दी जिसने आपका कभी कुछ नहीं बिगाड़ा था! कह दीजिये की आपको नहीं पता की क्यों आपका लड़का (चन्दर) आये दिन मामा के घर भाग जाता था? वहाँ जा कर ये क्या-क्या करता है, क्या ये आपको नहीं पता? कह दीजिये? जब संगीता की शादी इस दरिंदे से हुई तो उसी रात को संगीता को इसके ओछे चरित्र के बारे में पता लग गया था इसीलिए संगीता ने इसे कभी खुद को छूने नहीं दिया! अब अगर ऐसे में संगीता को मुझसे प्यार हो गया तो इसमें क्या गलत था? हमने पूरे रीति रिवाजों से शादी की इस (चन्दर) की तरह हमने कोई नाजायज़ रिश्ते नहीं बनाये! हमारा रिश्ता पूरी तरह से पाक-साफ़ है!

मैं पंचों के सामने बड़के दादा की बेइज्जती नहीं करना चाहता था इसलिए मैंने सब बातों का खुलासा नहीं किया| लेकिन मैंने आज सबके सामने मेरे और संगीता के रिश्ते को पाक-साफ़ घोषित कर दिया था! उधर मेरी बातों से चन्दर की गांड सुलग चुकी थी, मैंने अपनी बातों में उसे बहुत नीचा दिखाया था, जाहिर था की चन्दर ने अपनी तीखी प्रतिक्रिया देनी थी| वो गुस्से से खड़ा हुआ और मुझ पर चिल्लाते हुए बोला;

चन्दर: @@@@ (अपशब्द) बहुत सुन लिहिन तोहार? एको शब्द और कहेऊ तो...

चन्दर मुझे गाली देता हुआ बोला| मैं तो पहले ही गुस्से में जल रहा था और उस पर चन्दर की इस तीखी प्रतिक्रिया ने मेरे गुस्से की आग में घी का काम किया! मैं भी गुस्से में उठ खड़ा हुआ और चन्दर की आँखों में आँखें डालते हुए उसकी बात काटे हुए चिल्लाया;

मैं: ओये!

मेरा मन गाली देना का था मगर पंचों और बड़के दादा का मान रख के मैंने दाँत पीसते हुए खुद को गाली देने से रोक लिया तथा अपनी बात आगे कही;

मैं: भूल गया उस दिन मैंने कैसे तुझे पीटा था?! कितना गिड़गिड़ाया था तू मेरे सामने की मैं तुझे और न पीटूँ? तू कहे तो दुबारा, यहीं सब के सामने तुझे फिर पीटूँ? तेरा दूसरा हाथ भी तोड़ दूँ? साले तुझे भगा-भगा कर मारूँगा और यहाँ तो कोई थाना भी नहीं जहाँ तू मुझ पर case करेगा! उस दिन तो तुझे जिन्दा छोड़ दिया था और आजतक एक पल ऐसा नहीं गुजरा जब मुझे मेरे फैसले पर पछतावा न हुआ हो, लेकिन इस बार तुझे ज़िंदा नहीं छोड़ूँगा!

मेरी गर्जन सुन चन्दर को 2 जनवरी की उसकी हुई पिटाई याद आई और डर के मारे उसकी (चन्दर की) फ़ट गई! वो खामोश हो कर बैठ गया, उसके चेहरे से उसका डर झलक रहा था और शायद कहीं न कहीं बड़के दादा भी घबरा गए थे! पंच ये सब देख-सुन रहे थे और मेरे गुस्सैल तेवर देख कर उन्होंने मुझे रोकते हुए कहा;

पंच: शांत हुई जाओ मुन्ना! ई लड़ाई-झगड़ा से कउनो हल न निकली!

मैं: आप बस इस आदमी (चन्दर) से कह दीजिये की अगर आज के बाद ये मेरे परिवार के आस-पास भी भटका तो मैं इसे जिन्दा नहीं छोड़ूँगा|

मैंने चन्दर की ओर इशारा करते हुए दो टूक बात कही मगर बड़के दादा चन्दर की ओर से बोले;

बड़के दादा: बेटा! हम तोहका वचन देइत है की आज के बाद न हम न चन्दर...आयुष के लिए कउनो....

बड़के दादा मुझसे नजरें चुराते हुए बोले ओर अपनी बात अधूरी छोड़ दी| उनकी आवाज में शर्म और मायूसी झलक रही थी और मुझे बड़के दादा के लिए बुरा लग रहा था| इधर पंचों ने जोर दे कर बड़के दादा से उनकी बात पूरी कराई;

बड़के दादा: हम वचन देइत है की आज के बाद न हम न हमरे परिवार का कउनो आदमी तोहरे परिवार के रास्ते न आई! हम सभाएँ आयुष का भूल जाबे और ऊ की हिरासत लिए खातिर कउनो दावा न करब!

बड़के दादा ने मायूस होते हुए अपनी बात कही, इस वक़्त चन्दर के कारण उनके सभी सपने टूट चुके थे| वहीं बड़के दादा के मुँह से ये बात सुन मुझे चैन मिल गया था, मुझे इत्मीनान हो गया था की आज के बाद चन्दर अब कभी हमें परेशान करने दिल्ली नहीं आएगा| मेरे दिल को मिले इस चैन को पंचों की आगे कही बात ने पुख्ता रूप दे दिया;

पंच: तो ई बात तय रही की आज से तोहरे (मेरे) बड़के दादा की ओर से तोहका कउनो परेशानी न हुई और न ही आयुष खातिर कउनो दावा किया जाई!

पंचों ने मेरी तरफ देखते हुए कहा| फिर उन्होंने बड़के दादा की तरफ देखा और बोले;

पंच: भविष्य में अगर चन्दर फिर कभौं अइसन हरकत करत है जे से मानु का या मानु का परिवार का कउनो हानि होत है तो हम तोहार और तोहार पूरे परिवार का हुक्का-पानी बंद कर देब! और तब मानु का पूरा हक़ हुई हैं की ऊ तोहरा (बड़के दादा) और चन्दर पर कानूनी कारवाही कर सकत है और हियाँ से हम पंच भी कानूनी कारवाही कर देब!

पंचों ने अपना फैसला सुना दिया था और उनका ये फैसला सुन मैं थोड़ा सा हैरान था| दरअसल हमारे छोटे से गाँव में कोई भी कानूनी चक्करों में नहीं पड़ना चाहता था इसीलिए सारे मसले पंचायत से सुलझाये जाते थे| पंचों ने मेरे हक़ में फैसला इसलिए किया था क्योंकि मैं शहर में रहता था और मेरे पास कानूनी रूप से मदद लेने का सहारा था| खैर, अपना फैसला सुनाने के बाद पंच चलने को उठ खड़े हुए, मेरा दिल चैन की साँस ले रहा था और इसी पल मेरे मन में एक लालच पैदा हुआ, अपने लिए नहीं बल्कि अपने पिताजी के लिए| मैंने पंचों को रोका और उनके सामने अपना लालच प्रकट किया;

मैं: पंचों मैं आप सभी से कुछ पूछना चाहता हूँ|

मैंने बड़ी हलीमी से अपनी बात शुरू करते हुए कहा|

पंच: पूछो?

सभी एक साथ बोले|

मैंने पंचों के आगे हाथ जोड़ते हुए अपनी बात शुरू की;

मैं: मैंने देखा है की आजतक माँ-बाप के किये गलत कामों की सजा उनके बच्चों को मिलती है मगर मैंने ये कभी नहीं देखा की बच्चों के किये की सजा उनके माँ-बाप को दी जाती हो! मेरे अनुसार मैंने कोई गलती नहीं की, कोई पाप नहीं किया, संगीता से प्यार किया और जायज रूप से शादी की और अगर आपको ये गलती लगती है, पाप लगता है तो ये ही सही मगर आप इसकी सजा मेरे माँ-पिताजी को क्यों दे रहे हो, उनका इस गाँव से हुक्का-पानी क्यों बंद किया गया है? अगर आपको किसी का हुक्का-पानी बंद करना है तो आप मेरा हुक्का-पानी बंद कीजिये, मैं वादा करता हूँ की न मैं, न मेरी पत्नी और न ही मेरे बच्चे इस गाँव में कदम रखेंगे! लेकिन मेरे पिताजी...वो तो इसी मिटटी से जन्में हैं और इसी मिटटी में मिलना चाहेंगे, परन्तु आपका लिया हुआ ये फैसला मेरे पिताजी के लिए कितना दुखदाई साबित हुआ है ये आप नहीं समझ पाएँगे! इस गाँव में मेरे पिताजी के पिता समान भाई हैं, माँ समान भाभी हैं कृपया उन्हें (मेरे पिताजी को) उनके इस परिवार से दूर मत कीजिये! मैं आज आपसे बस एक ही गुजारिश करना चाहता हूँ और वो ये की आप मेरे माता-पिता को गाँव आने की इजाजत दे दीजिये! ये गुजारिश मेरे पिताजी की तरफ से नहीं बल्कि मेरी, एक बेटे की तरफ से है!

एक बेटे ने अपने पिता के लिए आज पंचों के आगे हाथ जोड़े थे और ये देख कर पंच हैरान थे;

पंच: देखो मुन्ना, जब तोहरे बड़के दादा ही आपन छोट भाई (मेरे पिताजी) से कउनो रिस्ता नाहीं रखा चाहत हैं तो ई सब मा हम का कही सकित है? ई तोहार बड़के दादा की मर्जी है, लेकिन...

इतना कह पंचों ने अपनी बात अधूरी छोड़ दी| पंचों ने जब अपनी बात में लेकिन शब्द का इस्तेमाल किया तो मैं जान गया की कोई न कोई रास्ता जर्रूर है;

मैं: लेकिन क्या?

मैंने अधीर होते हुए बात को कुरेदते हुए पुछा|

पंच: एक रास्ता है और वो ऊ की अगर तोहरे पिताजी तोहसे सारे नाते-रिश्ते तोड़ देत हैं तो ऊ ई गाँव मा रही सकत हैं!

पंचों की ये बात मुझे बहुत चुभी, ऐसा लगा जैसे ये बात बड़के दादा के मुँह से निकली हो! ये एक बेतुकी बात थी और मुझे पंचों की इस बात का जवाब अपने अंदाज में देना था;

मैं: कोई माँ-बाप अपने ही खून से रिश्ता कैसे तोड़ सकते हैं? आपने अभी खुद देखा न की बड़के दादा अपने बेटे के गलत होने पर भी उसका साथ दे रहे थे, फिर मैं तो बिलकुल सही रास्ते पर हूँ तो ऐसे में भला मेरे माँ-पिताजी मेरा पक्ष क्यों नहीं लेंगे और मुझसे कैसे रिश्ता तोड़ लेंगे?

अब मैंने बड़के दादा की ओर देखा और बोला;

मैं: रही बात बड़के दादा के गुस्से की, तो किसी भी इंसान का गुस्सा उसकी उम्र से लम्बा नहीं होता|

मैंने ये बात पंचों से कही थी मगर मैं देख बड़के दादा की तरफ देख रहा था| पंचों ने मेरी पूरी बात सुनी मगर उनका मन पहले से ही बना हुआ था तो वो मेरी मदद क्यों करते? मैंने संगीता से शादी कर के इस गाँव के रीति-रिवाज पलट दिए थे इसलिए किसी को भी मेरे प्रति सहानुभूति नहीं थी| वो तो सबको सतीश जी के बनाये तलाक के कागज देख कर कानूनी दाव-पेंचों का डर था इसीलिए पंचों ने आज फैसला मेरे हक़ में किया था वरना कहीं अगर मैं आज बिना कागज-पत्तर के आया होता तो पंच मुझे जेल पहुँचा देते!

पंच: फिर हम सभाएँ कछु नाहीं कर सकित!

इतना कह पंच चले गए, मेरा भी अब इस घर में रुकने का कोई तुक नहीं बचा था इसलिए मैंने भी अपना बैग उठाया और वापस चल दिया|

चूँकि मैं गाँव आया था तो मैंने सोचा की क्यों न मैं अपने ससुर जी से भी मिलता चलूँ?! उनका घर रास्ते में ही था, मुझे देखते ही पिताजी ने मुझे गले लगा लिया| मैंने उनसे पुछा की वो दिल्ली क्यों नहीं आये, तब उन्होंने बताया की संगीता ने ही उन्हें दिल्ली आने से मना कर दिया था| मुझे हैरानी हुई क्योंकि इसके बारे में संगीता ने किसी को नहीं बताया था, हम सभी को यही लग रहा था की पिताजी (मेरे ससुर जी) को कोई जर्रूरी काम आन पड़ा होगा|

मुझे ये भी पता चला की मेरी सासु माँ मुंबई गई हुईं हैं, मुझे ये जान कर हैरानी हुई की सासु माँ अकेले मुंबई क्यों गईं? मेरे ससुर जी ने मुझे बताया की अनिल ने दोनों को मुंबई घूमने बुलाया था मगर अपनी खेती-बाड़ी के काम के कारण वो (ससुर जी) जा नहीं पाए| अनिल के कॉलेज का एक दोस्त लखनऊ में रहता था और सासु माँ उसी के साथ मुंबई गईं हैं| मुझे जानकार ख़ुशी हुई की सासु माँ को अब जा कर घूमने का मौका मिल रहा है|

बहरहाल मुझे मेरे ससुर जी चिंतित दिखे, मैंने उनसे उनकी चिंता का कारण जाना तथा अपनी यथाशक्ति से उस चिंता का निवारण कर उन्हें चिंता मुक्त कर दिया|

अपने ससुर जी से विदा ले कर मैं निकला तो मुझे चौराहे पर अजय भैया, रसिका भाभी और वरुण खड़े हुए मिले| उन्हें अपना इंतजार करता देख मैं थोड़ा अचरज में पड़ गया, मुझे लगा कहीं वो मुझे वापस बुलाने तो नहीं आये?

अजय भैया: मानु भैया हमका माफ़ कर दिहो!

अजय भैया मेरे आगे हाथ जोड़ते हुए बोले| मैंने फ़ौरन उनके दोनों हाथ अपने हाथों के बीच पकड़ लिए और बड़े प्यार से बोला;

मैं: भैया, ऐसा मत बोलो! मैं जानता हूँ की आपने जो भी किया वो अपने मन से नहीं बलिक बड़के दादा और चन्दर के दबाव में आ कर किया| आप यक़ीन मानो भैया मेरे मन में न आपके प्रति और न घर के किसी भी व्यक्ति के प्रति कोई मलाल नहीं है, नफरत है तो बस उस चन्दर के लिए! अगर वो फिर कभी मेरे परिवार के आस-पास भी भटका न तो ये उसके लिए कतई अच्छा नहीं होगा! आपने नहीं जानते की उसने मेरे परिवार को कितनी क्षति पहुँचाई है, इस बार तो मैं सह गया लेकिन आगे मैं नहीं सहूंगा और उसकी जान ले लूँगा!

मैंने अपनी अंत की बात बहुत गुस्से से कही, उस वक़्त मैं ये भी भूल गया की पास ही वरुण भी खड़ा है जो मेरी बातों से थोड़ा सहम गया है|

अजय भैया: शांत हुई जाओ मानु भैया! हम पूरी कोशिश करब की भैया कभौं सहर ना आये पाएं और आपके तनिकों आस-पास न आवें! आप चिंता नाहीं करो!

अजय भैया की बात सुन मैंने अपना गुस्सा शांत किया| तभी आज सालों बाद रसिका भाभी हिम्मत कर के मुझसे बोलीं;

रसिका भाभी: मानु भैया...हमसे रिसियाए हो?!

आज रसिका भाभी की बात करने के अंदाज में फर्क था, मुझे उनकी आवाज में वासना महसूस नहीं हुई बल्कि देवर-भाभी के रिश्ते का खट्टा-मीठा एहसास हुआ|

मैं: नहीं तो!

मैंने नक़ली मुस्कान के साथ कहा|

रसिका भाभी: हम जो भी पाप करेन ओहके लिए हमका माफ़ कर दिहो!

रसिका भाभी ने 5 साल पहले मेरे साथ sex के लिए जबरदस्ती करने की माफ़ी माँगी|

मैं: वो सब मैं भुला चूका हूँ भाभी और आप भी भूल जाओ! मैं बस आप दोनों (अजय भैया और रसिका भाभी) को एक साथ ख़ुशी-ख़ुशी देखना चाहता था और आप दोनों को एक साथ देख कर मुझे बहुत ख़ुशी हो रही है|

मैंने रसिका भाभी को दिल से माफ़ करते हुए कहा| अब जब मैं रसिका भाभी से बात करने लगा तो उन्होंने भी मुझसे खुल कर बात करनी शुरू कर दी;

रसिका भाभी: मानु भैया, दीदी (संगीता) कइसन हैं?

मैं: उस दिन के हादसे काफी सहमी हुई है!

संगीता का ख्याल आते ही मुझे उसका उदास चेहरा याद आ गया|

रसिका भाभी: उनका कहो की सब भुलाये खातिर कोशिश करें, फिर आप तो उनका अच्छे से ख्याल रखत हुईहो?! बहुत जल्द सब ठीक हुई जाई!

मैं: मैं भी यही उम्मीद करता हूँ की जल्दी से सब ठीक हो जाए!

मैंने अपनी निराशा भगाते हुए कहा| फिर मैंने अजय भैया से घर के हालात ठीक करने की बात कही;

मैं: भैया, मैं तो अपनी तरफ से तो पूरी कोशिश कर ही रहा हूँ, आप भी यहाँ अपनी कोशिश करो की बड़के दादा का मन बदले और हमारा पूरा परिवार एक हो जाए|

मेरी ही तरह अजय भैया भी चाहते थे की हमारा ये परिवार बिखरे न बल्कि एकजुट हो कर खड़ा रहे इसीलिए मैंने उन्हें हिम्मत बँधाई थी!

अजय भैया: हमहुँ हियाँ कोशिश करीत है, थोड़ा समय लागि लेकिन ई पूरा परिवार फिर से एक साथ बैठ के खाना खाई!

अजय भैया मुस्कुराते हुए अपने होंसले बुलंद कर बोले|

अजय भैया: वइसन भैया, अम्मा तोहका खूब याद करत ही!

अजय भैया ने बड़की अम्मा की बात कही तो मैं पिघल गया और आज कई सालों बाद अम्मा से बात करने का दिल किया;

मैं: मैं भी उन्हें बहुत याद करता हूँ भैया! किसी दिन बड़की अम्मा से फ़ोन पर बात करवा देना|

तभी मुझे याद आया की मैं अजय भैया और रसिका भाभी के साथ संगीता के माँ बनने की ख़ुशी बाँट लेता हूँ;

मैं: अरे, एक बात तो मैं आप सब को बताना ही भूल गया, संगीता माँ बनने वाली है!

ये खबर सुन कर तीनों के चेहरे पर ख़ुशी चहकने लगी;

रसिक भाभी: का? सच कहत हो?

रसिका भाभी ख़ुशी से भरते हुए बोलीं और ठीक वैसी ही मुस्कान अजय भैया के चेहरे पर आ गई!

मैं: हाँ जी! कुछ दिनों में संगीता को pregnant हुए दो महीने हो जाएंगे|

ये सुन रसिका भाभी मुझे मेरी जिम्मेदारी याद दिलाते हुए बोलीं;

रसिका भाभी: भैया, फिर तो तोहका दीदी का और ज्यादा ख्याल रखेका चाहि!

मैं: हाँ जी!

मैंने सर हाँ में हिलाते हुए कहा|

अजय भैया: भैया, ई तो बड़ी ख़ुशी का बात है! हम ई खबर अम्मा का जर्रूर देब...

अजय भैया ख़ुशी से चहकते हुए बोले|

मैं: जरूर भैया और छुप कर ही सही बस एक बार मेरी उनसे (बड़की अम्मा से) बात करा देना, उनकी आवाज सुनने को मेरे कान तरस गए हैं!

मैंने बड़की अम्मा से बात करने की अपनी इच्छा दुबारा प्रकट की|

अजय भैया: बिलकुल भैया, हम अम्मा से जरूर तोहार बात कराब|

इतने में वरुण ने मेरा हाथ पकड़ मेरा ध्यान अपनी ओर खींचा, आखिर मैं उसे अनदेखा कर उसके माता-पिता से बात करने में व्यस्त जो था|

मैं: ओरे, छोट साहब! आप school जाते हो न?

मैंने वरुण से बात शुरू करते हुए पुछा|

वरुण: हम्म्म!

इतना कह वरुण लड़कियों की तरह शर्माने लगा और उसे यूँ शर्माता देख हम तीनों हँस पड़े|

वरुण: चाचू...आपकी...कहानियाँ...बहुत...याद...आती...हैं!

5 साल पहले जब मैं गाँव आया था तब नेहा मुझसे हिंदी में बात करने की कोशिश में शब्दों को थोड़ा सा खींच-खींच कर बोलती थी, आज वरुण भी ठीक उसी तरह बोल रहा था| उसको यूँ हिंदी बोलने का प्रयास करते देख मुझे उस पर बहुत प्यार आया;

मैं: Awwwwwww! बेटा आप अपने मम्मी पापा के साथ दिल्ली में मेरे घर आना फिर मैं आपको रोज कहानी सुनाऊँगा, ठीक है?

मेरी बात सुन वरुण खुश हो गया, नए शहर जाने का मन किस बच्चे का नहीं करता|

वरुण: हम्म्म!

वरुण सर हाँ में हिलाते हुए बोला| उधर अजय भैया के चेहरे पर हैरत थी की इतना सब होने के बाद भी मैं उन्हें अपने घर आने का न्योता कैसे दे सकता हूँ?!

अजय भैया: लेकिन मानु भैया चाचा का काहिऐं?

मैं: भैया, पिताजी किसी से नाराज नहीं हैं! अब जब भी दिल्ली आओ तो हमारे पास ही रहना और अगर दिल करे तो हमारे साथ ही काम भी करना|

मैंने ये बात अपने दिल से कही थी, पिताजी को अब भी अजय भैया पर गुस्सा था क्योंकि उन्होंने बिना कुछ पूछे-बताये मुझ पर police case कर दिया था| लेकिन मैंने फिर भी ये बात कही क्योंकि मैं पिताजी को मना सकता था की जो भी हुआ उसमें अजय भैया का कोई दोष नहीं था| खैर, अजय भैया मेरी बात सुन भावुक हो गए, उन्हें जैसे विश्वास ही नहीं हुआ की पिताजी ने उन्हें इतनी जल्दी कैसे माफ़ कर दिया?

अजय भैया: सच भैया?

मैं: मैं झूठ क्यों बोलूँगा!

मैंने मुस्कुराते हुए झूठ बोला| मैंने घडी देखि तो मेरी flight का समय हो रहा था इसलिए मैंने बात खत्म करते हुए अजय भैया से कहा;

मैं: अच्छा भैया, मैं अब चलता हूँ वरना मेरी flight छूट जायेगी!

Flight का नाम सुन वो तीनों हैरान हुए! तभी रसिका भाभी बोलीं;

रसिका भाभी: मानु भैया, दीदी का हमार याद दिहो!

अजय भैया: और चाचा-चाची का हमार प्रणाम कहेऊ!!

मैं: जी जर्रूर!

मैंने मुस्कुराते हुए कहा और वरुण को bye बोलते हुए लखनऊ के लिए निकल पड़ा|

लखनऊ पहुँचते-पहुँचते मुझे दो घंटे लग गए और मेरी flight छूट गई! मैं सोच ही रहा था की क्या करूँ की तभी संगीता का फ़ोन आया;

मैं: Hello!

मैंने खुश होते हुए संगीता का फ़ोन उठाया की चलो अब संगीता की आवाज सुनने को मिलेगी लेकिन कॉल नेहा ने किया था;

नेहा: Muuuuuuaaaaaaaahhhhhhhh!

नेहा ने मुझे फ़ोन पर ही बहुत बड़ी सी पप्पी दी और तब मुझे एहसास हुआ की ये फ़ोन नेहा ने किया है|

मैं: मेरे बच्चे ने मुझे इतना बड़ा 'उम्मम्मा' (पप्पी) दी?!

नेहा की फ़ोन पर मिली पप्पी ने मुझे मुस्कुराने पर मजबूर कर दिया था| उधर नेहा फ़ोन पर ख़ुशी से खिलखिला रही थी|

नेहा: पापा जी, आपने खाना खाया? दवाई ली? और आप कितने बजे पहुँच रहे हो?

नेहा ने एक साथ अपने सारे सवाल पूछ डाले|

मैं: Sorry बेटा, मुझे थोड़ा time और लगेगा!

इतना सुनना था की नेहा नाराज हो गई;

नेहा: क्या? लेकिन पापा जी, आपने कहा था की आप रात तक आ जाओगे?! मैं आपसे बात नहीं करूँगी! कट्टी!!!

नेहा नाराज होते हुए बोली|

मैं: Awwwwwww मेरा बच्चा! बेटा मैं कल सुबह तक आ जाऊँगा...

नेहा ने इतना सुना और नाराज हो कर फ़ोन काट दिया! नेहा भी बिलकुल अपनी मम्मी पर गई थी, मैंने उसे मनाने के लिए दुबारा फ़ोन किया और उसे प्यार से समझाया| लेकिन बिटिया हमारी थोड़ी जिद्दी थी इसलिए वो नहीं मानी! परन्तु एक बात की मुझे बहुत ख़ुशी थी और वो ये की मेरे बच्चे अब पहले की तरह चहकने लगे थे और खुल कर पहले की तरह मुझसे बात करने लगे थे| एक बस संगीता थी जो अब भी खुद को अपने डर से बाँधे हुए मुझसे दूर रह रही थी! एक दिन खाना न खा कर जो मैंने संगीता को थोड़ा पिघलाया था, वही संगीता मेरे घर न रहने से वापस सख्त हो गई थी!

खैर, अब flight miss हो चुकी थी तो अब मुझे घर लौटने के लिए बस या फिर रेल यात्रा करनी थी| मैंने रेल यात्रा चुनी और तत्काल का टिकट कटा कर लखनऊ मेल से सुबह दिल्ली पहुँचा| सुबह-सुबह घर में घुसा तो नेहा सोफे पर बैठी मेरा इंतजार कर रही थी, मुझे देखते ही वो अपना गुस्सा भूल मेरे गले लग गई| तभी आयुष भी आया और वो भी मेरी गोदी में चढ़ गया, पता नहीं क्यों संगीता को मेरा और बच्चों का गले मिलना पसंद नहीं आया और वो चिढ़ते हुए दोनों बच्चों को झिड़कने लगी;

संगीता: चैन नहीं है न तुम दोनों को?

बच्चे चूँकि मेरे गले लगे थे तो उन्हें अपनी मम्मी की झिड़की का कोई फर्क नहीं पड़ा! मैंने खुद उन्हें किसी बहाने से भेजा और संगीता को देखा| वही उखड़ा हुआ, उदास, मायूस, निराश चेहरा! संगीता को ऐसे देख कर तो मेरा दिल ही बैठ गया! मैंने संगीता को इशारा कर उससे अकेले में बात करनी चाही मगर संगीता मुझे सूनी आँखों से देखने लगी और फिर अपने काम में लग गई| इधर दोनों बच्चों ने मुझे फिर से घेर लिया और मुझे अपनी बातों में लगा लिया|

अभी तक किसी को नहीं पता था की मैं गाँव में पंचायत में बैठ कर लौटा हूँ और मैं भी ये राज़ बनाये रखना चाहता था| कल बच्चों का school खुल रहा था और इसलिए दोनों बच्चे आज मुझसे कुछ ज्यादा ही लाड कर रहे थे| एक तरह से बच्चों का यूँ मेरे से लाड करना ठीक ही था क्योंकि मेरा ध्यान बँटा हुआ था वरना मैं शायद इस वक़्त संगीता से इस तरह सड़ा हुआ मुँह बनाने के लिए लड़ पड़ता! वहीं मेरा दिल बार-बार कह रहा था की संगीता को अब भी चैन नहीं मिला है, उसका दिल अब भी बहुत डरा हुआ है तभी तो उसका मेरे लिए प्यार खुल कर बाहर नहीं आ पा रहा! आयुष को खो देने का उसका डर उसे अंदर ही अंदर खाये जा रहा था! मुझे कैसे भी ये डर संगीता के ज़हन से मिटाना था मगर करूँ क्या ये समझ नहीं आ रहा था?! कोर्ट में case नहीं कर सकता था क्योंकि court में संगीता के divorce की बात खुलती और फिर बिना divorce final होने के हमारे इतनी जल्दी शादी करने से सारा मामला उल्टा पड़ जाता! Police में इसलिए नहीं जा सकता क्योंकि वहाँ भी संगीता के divorce की बात खुलती, वो तो शुक्र है की पिछलीबार SI ने कागज पूरे नहीं देखे थे वरना वो भी पैसे खाये बिना नहीं छोड़ता! अब मुझे ऐसा कुछ सोचना था जिससे कोई कानूनी पचड़ा न हो और मैं संगीता को उसके डर के जंगल से सही सलामत बाहर भी निकाल लूँ?!

मुझे एक रास्ता सूझा, जो था तो बेसर-पैर का था परन्तु उसके अलावा मेरे पास कोई और रास्ता नहीं रह गया था| वो रास्ता था भारत से बाहर नई ज़िन्दगी शुरू करना! सुनने में जितना आसान था उतना ही ये काम टेढ़ा था मगर इससे संगीता को उसके भय से हमेशा-हमेशा के लिए मुक्ति मिल जाती| मैं उस वक़्त इतना हताश हो चूका था की बिना कुछ सोचे-समझे मैं बस वो करना चाहता था जिससे संगीता पहले की तरह मुझ से प्यार करने लगे, तभी तो ये ऊल-जुलूल तरकीब ढूँढी थी मैंने!

तरकीब तो मैंने ढूँढ निकाली मगर इस सब में मैं अपने माँ-पिताजी के बारे में कुछ फैसला नहीं ले पाया था! उन्हें यहाँ अकेला छोड़ने का मन नहीं था इसलिए मैंने पिताजी से बात घूमा-फिरा कर पूछी| नाश्ता कर के माँ-पिताजी बैठक में बैठे थे, बच्चे अपनी पढ़ाई करने में व्यस्त थे और संगीता मुझसे छुपते हुए रसोई में घुसी हुई थी| मैंने माँ-पिताजी से बात शुरू करते हुए कहा;

मैं: पिताजी, मेरी एक college के दोस्त से बात हो रही थी| उसने बताया की वो अपने माँ-पिताजी और बीवी-बच्चों समेत विदेश में बस गया है| वहाँ उसकी अच्छी सी नौकरी है, घर है और सब एक साथ खुश रहते हैं| वो मुझे सपरिवार घूमने बुला रहा था, तो आप और माँ चलेंगे?

मैंने बात गोल घुमा कर कही जो माँ-पिताजी समझ न पाए और माँ ने जवाब देने की पहल करते हुए कहा;

माँ: बेटा ये तो अच्छी बात है की तेरा दोस्त अपने पूरे परिवार को अपने साथ विदेश ले गया, वरना आजकल के बच्चे कहाँ अपने बूढ़े माँ-बाप को इतनी तवज्जो देते हैं|रही हमारे घूमने की बात तो हम में अब इतनी ताक़त नहीं रही की बाहर देश घूमें, तुम सब जाओ!

तभी पिताजी माँ की बात में अपनी बात जोड़ते हुए बोले;

पिताजी: देख बेटा, नए देश में बसना आसान नहीं होता! फिर हम दोनों मियाँ-बीवी अब बूढ़े हो चुके हैं, नए देश में जा कर वहाँ के तौर-तरीके अपनाने की हम में हिम्मत नहीं!

पिताजी की बात सुन कर एक पल के लिए तो लगा जैसे पिताजी ने मेरी सारी बात समझ ली हो मगर ऐसा नहीं था| वो तो केवल नए देश में बसने पर अपनी राय दे रहे थे| माँ-पिताजी की न ने मुझे अजब दोराहे पर खड़ा कर दिया था, एक तरफ माँ-पिताजी थे तो दूसरी और संगीता को उसको डर से आजाद करने का रास्ता| मजबूरन मुझे संगीता और बच्चों को साथ ले कर कुछ सालों तक विदेश में रहने का फैसला करना पड़ा| मैं हमेशा -हमेशा के लिए अपने माँ-बाप को छोड़ कर विदेश बसने नहीं जा रहा था, ये फासला बस कुछ सालों के लिए था क्योंकि कुछ सालों में आयुष बड़ा हो जाता और फिर हम चारों वापस आ जाते| अब चूँकि आयुष के बचपने के दौरान हम विदेश में होते तो वहाँ चन्दर का आकर आयुष को हमसे अलग करना नामुमकिन था, तो इस तरह संगीता के मन से अपने बेटे को खो देने का डर हमेशा-हमेशा के लिए निकल जाता|

शुरुआत में मेरी योजना थी की यहाँ सब कुछ बेच-बाच कर बाहर विदेश में बस जाओ मगर माँ-पिताजी के न करने से अब मुझे बाहर कोई नौकरी तलाशनी थी ताकि वहाँ मैं एक नई शुरुआत कर सकूँ| अब नौकरी कहीं पेड़ पर तो लगती नहीं इसलिए मैंने अपने पुराने जान-पहचानवालों के नाम याद करने शुरू कर दिए| याद करते-करते मुझे मेरे college के दिनों के एक दोस्त का नाम याद आया जो मुंबई में रहता था और एक MNC में अच्छी position पर job करता था| मैंने उसे फ़ोन मिलाया और उससे बात करते हुए मिलने की इच्छा जाहिर की, उसने मुझे मिलने के लिए बुला लिया तथा अपना पता दिया| पता मुंबई का ही था तो मैंने फटाफट मुंबई की टिकट कटाई और रात को पिताजी से मेरे मुंबई जाने की बात करने की सोची|

इधर मैंने संगीता से बात करने की अपनी कोशिश जारी रखी, लेकिन संगीता बहुत 'चालाक' थी वो कुछ न कुछ बहाना कर के मेरे नजदीक आने से बच जाती थी! दोपहर को खाने का समय हुआ तो मैंने संगीता को blackmail करने की सोची और रसोई में उससे खुसफुसाते हुए बोला;

मैं: मुझे तुमसे बात करनी है, वरना मैं खाना नहीं खाऊँगा!

मैंने प्यार से संगीता को हड़काते हुए कहा| ये सुन संगीता दंग रह गई और मुझे आँखें बड़ी कर के देखने लगी, मुझे लगा वो कुछ कहेगी मगर उसने फिर से सर झुकाया और अपने काम में लग गई| मैं भी वापस कमरे में आ आकर बैठ गया और संगीता का इंतज़ार करने लगा की कब वो आये और मैं उससे बात कर सकूँ| लेकिन संगीता बहुत 'चंट' निकली उसने दोनों बच्चों को खाने की थाली ले कर मेरे पास भेज दिया| दोनों बच्चों ने थाली एक साथ पकड़ी हुई थी, ये मनमोहक दृश्य देख मैं पिघलने लगा| थाली बिस्तर पर रख दोनों बच्चों ने अपने छोटे-छोटे हाथों से एक-एक कौर उठाया और मेरे मुँह के आगे ले आये| अब इस वक़्त मैं बच्चों को मना करने की हालत में नहीं था, बच्चों की मासूमियत के आगे मैंने अपने घुटने टेक दिए और अपना मुँह खोल दिया| दोनों बच्चों ने एक-एक कर मुझे खाना खिलाना शुरू किया, मैंने उन्हें खाना खिलाना चाहा तो दोनों ने मना कर दिया और बोले की वो खाना अपने दादा-दादी जी के साथ खाएंगे! बच्चों के भोलेपन को देख मैं मोहित हो गया और उनके हाथ से खाना खा लिया|

रात होने तक संगीता मुझसे बचती फिर रही थी, कभी माँ के साथ बैठ कर उन्हें बातों में लगा लेती तो कभी सोने का नाटक करने लगती| शुरू-शुरू में तो मैं इसे संगीता का बचकाना खेल समझ रहा था मगर अब मेरे लिए ये खेल सह पाना मसुहकिल हो रहा था| रात को खाने के समय मैंने पिताजी से मुंबई जाने की बात कही मगर एक झूठ के रूप में;

मैं: पिताजी एक project के सिलसिले में मुझे कल मुंबई जाना है|

मेरे मुंबई जाने की बात सुन कर सभी हैरान थे सिवाए संगीता के, उसे तो जैसे मेरे कहीं आने-जाने से कोई फर्क ही नहीं पड़ रहा था| दोनों बच्चे मुँह बाए मुझे देख रहे थे, माँ खाते हुए रुक चुकीं थीं और पिताजी की जुबान पर सवाल था;

पिताजी: बेटा, अभी तो तू आया है और कल फिर जा रहा है? देख बेटा तेरा घर रहना जरूरी है!

पिताजी मुझे समझाते हुए बोले| इतने में माँ बोल पड़ीं;

माँ: बेटा, इतनी भगा-दौड़ी अच्छी नहीं! कुछ दिन सब्र कर, सब कुछ ठीक-ठाक होने दे फिर चला जाइयो!

माँ ने भी मुझे प्यार से समझाया|

मैं: माँ, कबतक अपनी रोज़ी से मुँह मोड़ कर बैठूँगा!

मैंने संगीता की ओर देखते हुए उसे taunt मारा| यही taunt कुछ दिन पहले संगीता ने मुझे मारा था| संगीता ने मुझे देखा और शर्म के मारे उसकी नजरें नीची हो गईं| माँ-पिताजी भी आगे कुछ नहीं बोले, शायद वो मेरे और संगीता के रिश्तों के बीच पैदा हो रहे तनाव से रूबरू हो रहे थे| खैर, माँ-पिताजी तो चुप हो गए मगर बच्चों को चैन नहीं था, दोनों बच्चे खाना छोड़कर मेरे इर्द-गिर्द खड़े हो गए| मैंने दोनों के सर पर हाथ फेरा और दोनों को बहलाने लगा;

मैं: बेटा, मैं बस एक दिन के लिए जा रहा हूँ, कल रात पक्का मैं घर वापस आ जाऊँगा और आप दोनों को प्यारी-प्यारी कहानी सुनाऊँगा|

बच्चे मासूम होते हैं इसलिए दोनों मेरे कहानी के दिए हुए प्रलोभन से संतुष्ट हो गए और फिर से चहकने लगे|

खाना खाने के बाद पिताजी तो सीधा सोने चले गए, इधर कल बच्चों का स्कूल था इसलिए दोनों बच्चों ने मेरे साथ सोने की जिद्द पकड़ ली| इस मौके का फायदा उठा कर संगीता ने अपनी चालाकी दिखाई और मुझसे नजर बचाते हुए माँ के साथ टी.वी. देखने बैठ गई| बच्चों को कहानी सूना कर मैंने संगीता का काफी इंतजार किया मगर वो जानती थी की कल सफर के कारण मैं थका हुआ हूँ इसलिए वो जानबूझ कर माँ के साथ देर तक टी.वी. देखती रही ताकि मैं थकावट के मारे सो जाऊँ| हुआ भी वही जो संगीता चाहती थी, बच्चों की उपस्थिति और थकावट के कारण मेरी आंख बंद हो गई और मैं सो गया, उसके बाद संगीता कब सोने के लिए आई मुझे कुछ खबर नहीं रही|

अगली सुबह 6 बजे मेरी नींद खुली और मैंने दोनों बच्चों को पप्पी करते हुए उठाया| नेहा तो झट से उठ गई मगर आयुष मेरी गोदी में कुनमुनाता रहा, बड़ी मेहनत से मैंने आयुष को लाड-प्यार कर के जगाया और स्कूल के लिए तैयार किया| एक बस मेरे बच्चे ही तो थे जिनके कारण मेरा दिल खुश रहता था वरना संगीता का उखड़ा हुआ चेहरा देख मुझ में तो जैसे जान ही नहीं बची थी! बच्चों को स्कूल के लिए तैयार कर मैं उन्हें खुद स्कूल छोड़ने चल पड़ा, रास्ते में मुझे van वाले भैया मिले तो मैंने उन्हें कुछ दिनों के लिए बच्चों को लाने-लेजाने के लिए मना कर दिया| स्कूल पहुँच कर मैंने principal madam से सारी बात कही और उन्होंने मेरे सामने ही चौकीदार को बुलाया, फिर मैंने चौकीदार को अपने पूरे परिवार अर्थात मेरी, माँ की, पिताजी की और संगीता की तस्वीर दिखाई ताकि चौकीदार हम चारों के आलावा किसी और के साथ बच्चों को जाने न दे| बच्चों को भी मैंने principal madam के सामने समझाया;

मैं: बेटा, अपनी मम्मी, मेरे या आपके दादा-दादी जी के अलावा आप किसी के साथ कहीं मत जाना! कोई अगर ये भी कहे की मैंने किसी को भेजा है तब भी आप किसी के साथ नहीं जाओगे| Okay?

मेरी बात बच्चों ने इत्मीनान से सुनी और गर्दन हाँ में हिलाई| उनके छोटे से मस्तिष्क में कई सवाल थे मगर ये सवाल उन्होंने फिलहाल मुझसे नहीं पूछे बल्कि घर लौट कर उन्होंने ये सवाल अपनी दादी जी से पूछे| माँ ने उन्हें प्यार से बात समझा दी की ये एहतियात सभी माँ-बाप को बरतनी होती है ताकि बच्चे कहीं गुम न हो जाएँ| बच्चों ने अपनी दादी जी की बात अपने पल्ले बाँध ली और कभी किसी अनजान आदमी के साथ कहीं नहीं गए|

बहरहाल बच्चों को स्कूल छोड़ मैं सीधा airport निकल पड़ा और flight पकड़ कर मुंबई पहुँचा| मैं सीधा अपने दोस्त से मिला और उसने मुझे आश्वासन दिया की वो मुझे दुबई में एक posting दिलवा देगा, अब उसे चाहिए थे मेरे, संगीता और बच्चों के passport ताकि वो कागजी कारवाही शुरू कर सके| मेरा passport तो तैयार था क्योंकि 18 साल का होते ही मैंने passport बनवा लिया था, वो बात और है की आजतक कभी देश से बाहर जाने का मौका नहीं मिला! खैर, संगीता और बच्चों के passport अभी बने नहीं थे| मैंने तीनों के passport बनाने का समय लिया और एयरपोर्ट की ओर निकलने लगा| तभी मुझे याद आया की जब मुंबई आया हूँ तो अनिल और माँ (मेरी सासु माँ) से मिल लेता हूँ| मैंने अनिल को फ़ोन मिलाया तो उसका फ़ोन नहीं मिल रहा था इसलिए मैंने सुमन को फ़ोन किया और उसने मुझे आखिर अनिल और माँ से मिलवाया| सब से मिल कर मैं घर के लिए निकला और flight पकड़ कर दिल्ली पहुँचा| घर पहुँचते-पहुँचते मुझे देर हो गई थी मगर सब अभी भी जाग रहे थे| मुझे देखते ही आयुष दौड़ता हुआ आया और मेरी टाँगो से लिपट गया मगर नेहा हाथ बाँधे हुए, अपना निचला होंठ फुला कर मुझे प्यार भरे गुस्से से देख रही थी! आयुष के सर को चूम कर मैं दोनों घुटने टेक कर खड़ा हुआ और नेहा की ओर देखते हुए अपने दोनों हाथ खोलकर उसे गले लगने का निमंत्रण दिया तब जा कर नेहा पिघली तथा मेरे सीने से लग कर सुबकने लगी| मैंने नेहा को बाहों में कसते हुए उसे बहुत पुचकारा, तब जा कर वो चुप हुई|

माँ: बेटा, तेरा फ़ोन नहीं मिल रहा था इसलिए नेहा बहुत परेशान हो गई थी| वो तो तेरे पिताजी जब शाम को घर लौटे तब उन्होंने बताया की तूने उन्हें फ़ोन कर के बताया था की तू ठीक-ठाक है| तूने नेहा को फ़ोन कर बात नहीं की इसीलिए नेहा तुझसे नाराज हो गई थी!

माँ से नेहा की नाराजगी का कारण जान मैं थोड़ा हैरान हुआ;

मैं: लेकिन माँ मैंने संगीता के नंबर पर कॉल किया था मगर उसका फ़ोन बंद था, इसीलिए मैंने उसे मैसेज भी किया था की मैं ठीक-ठाक पहुँच गया हूँ|

ये सुनते ही नेहा गुस्से से अपनी मम्मी को घूरने लगी, नेहा आज इतना गुस्सा थी मानो वो आज अपनी मम्मी पर चिल्ला ही पड़े! वहीं माँ-पिताजी भी दंग थे की भला ये घर में हो क्या रहा है? उधर संगीता शर्म के मारे अपना सर झुकाये हुए खड़ी थी| संगीता को नेहा से डाँट न पड़े इसके लिए मैंने नेहा को फिर से अपने गले लगाया और उसके मस्तक को चूमते हुए बोला;

मैं: बेटा ऐसे परेशान नहीं हुआ करते! मैं कभी कहीं काम में फँस जाऊँ और आपका फ़ोन न उठा पाऊँ या मेरा नंबर न मिले तो आपको चिंता नहीं करनी, बल्कि पूरे घर का ख्याल रखना है| इस घर में एक आप ही तो सबसे समझदार हो, बहादुर हो तो आपको सब का ध्यान रखना होगा न?

मैंने नेहा को बहलाते हुए कहा, तब कहीं जा कर उसका गुस्सा शांत हुआ|

संगीता ने अपने ही बेटी के डर के मारे मेरे लिए खाना परोसा, दोनों बच्चों ने मुझे अपने हाथों से खाना खिलाना शुरू किया| जब मैंने उन्हें खिलाना चाहा तो नेहा ने बताया की;

नेहा: हम सब ने खाना खा लिया और दादी जी ने मुझे तथा आयुष को खाना खिलाया था|

तभी माँ बीच में मुझसे बोलीं;

माँ: तेरी लाड़ली नेहा गुस्से में खाना नहीं खा रही थी, वो तो तेरे पिताजी ने तो समझाया तब जा कर मानी वो|

माँ की बात सुन मैं मुस्कुराया और नेहा और आयुष को समझाने लगा;

मैं: बेटा, गुस्सा कभी खाने पर नहीं निकालते, क्योंकि अगर आप खाना नहीं खाओगे तो जल्दी-जल्दी बड़े कैसे होओगे?

नेहा ने अपने कान पकड़ कर मुझे "sorry" कहा और फिर मुझे मुस्कुराते हुए खाना खिलाने लगी| अब पिताजी ने मुझसे मुंबई के बारे में पुछा तो मैंने थकावट का बहाना करते हुए बात टाल दी| रात को मैंने संगीता से कोई बात नहीं की और दोनों बच्चों को खुद से लपेटे हुए सो गया|

अगले दिन बच्चों को स्कूल छोड़कर घर लौटा और अपना laptop ले कर संगीता तथा बच्चों के passport का online form भरने लगा| Form जमा करने के बाद अब समय था सारे राज़ पर से पर्दा उठाने का, मैंने माँ-पिताजी और संगीता को अपने सामने बिठाया तथा पंचायत से ले कर मेरे दुबई जा कर बसने की सारी बात बताई| माँ, पिताजी और संगीता ने मेरी सारी बात सुनी और सब मेरी बात सुन कर सख्ते में थे! किसी को मुझसे इतनी बड़ी बात छुपाने की उम्मीद नहीं थी इसलिए सब आँखें फाड़े मुझे देख रहे थे! मिनट भर की चुप्पी के बाद पिताजी ने ही बात शुरू की;

पिताजी: बेटा, तूने हमें पंचायत के बारे में कुछ बताया क्यों नहीं? और तू अकेला क्यों गया था जबकि मेरा तेरे साथ जाना जरूरी था!

पिताजी ने मुझे भोयें सिकोड़ कर देखते हुए पुछा| अब देखा जाए तो उनका चिंतित होना जायज था, वो नहीं चाहते थे की मैं पंचायत में अकेला पडूँ|

मैं: पिताजी, पहले ही मेरी वजह से आपको इतनी तकलीफें उठानी पड़ रही हैं, फिर वहाँ पंचायत में आपको घसीट कर मैं आपकी मट्टी-पलीत नहीं करवाना चाहता था| मैंने पंचों के सामने अच्छे से अपनी बात रखी और उन्होंने फैसला भी हमारे हक़ में सुनाया, अब चन्दर चाह कर भी कुछ नहीं कर सकता वरना वो सीधा जेल जाएगा|

पिताजी की तकलीफों से मेरा तातपर्य था की जो उन्हें मेरे कारण बड़के दादा द्वारा घर निकाला मिला था, ऐसे में मैं पंचायत में उनके ऊपर फिर से कीचड़ कैसे उछलने देता?!

पिताजी: बेटा ऐसा नहीं बोलते! तेरे कारण मुझे कोई तकलीफ उठानी नहीं पड़ी, तू मेरा बेटा है और तेरा फैसला मेरा फैसला है! ये तो मेरे भाई साहब का गुस्सा है जो जब शांत होगा उन्हें मेरी याद अवश्य आएगी|

पिताजी मुझे प्यार से समझाते हुए बोले|

पिताजी: खैर, इस बार मैं तुझे माफ़ कर देता हूँ, लेकिन फिर कभी तूने हमसे झूठ बोला या हमसे कोई बात छुपाई तो तुझे कूट-पीट कर ठीक कर दूँगा!

पिताजी ने मुझे बात न बताने के लिए मजाकिया ढंग से हड़काया ताकि उनकी बात सुन मैं हँस पडूँ मगर मेरे चेहरे पर कोई मुस्कान नहीं आई| अब माँ-पिताजी दोनों गंभीर हो गए और मेरे दुबई में कुछ सालों के लिए बसने को ले कर मेरे लिए फैसले का समर्थन करने लगे;

पिताजी; बेटा, तू बहुत जिम्मेदार हो गया है और जो तूने बहु का डर मिटाने के लिए दुबई जा कर रहने के फैसले का हम समर्थन करते हैं, बल्कि ये तो अच्छा है की इसी बहाने तू खुद अपनी गृहस्ती बसा लेगा|

माँ ने भी पिताजी की बात में अपनी बात जोड़ते हुए कहा;

माँ: तेरे पिताजी ठीक कह रहे हैं बेटा, बहु को खुश रखना तेरी जिम्मेदारी है| एक तू है जो इस परिवार को सँभाल सकता है, ख़ास कर बहु को जो इस वक़्त मानसिक तनाव से गुजर रही है|

माँ-पिताजी की इच्छा मुझे अपने से दूर एक पराये देश में भेजने की कतई नहीं थी मगर फिर भी वो संगीता की ख़ुशी के लिए इतनी बड़ी कुर्बानी ख़ुशी-ख़ुशी दे रहे थे|

मैं: जी माँ!

मैंने सर हिलाते हुए बात को खत्म किया|

उधर संगीता जो अभी तक ख़ामोशी से सबकी बात सुन रही थी उसके भीतर गुस्से का ज्वालामुखी उबलने लगा था और उसके इस गुस्से का करण क्या था ये अभी पता चलने वाला था;

संगीता: मैं कुछ बोलूँ?

संगीता मुझे गुस्से से घूरते हुए अपने दाँत पीसते हुए बोली|

माँ: हाँ-हाँ बहु बोल!

माँ-पिताजी ने संगीता का गुस्सा नहीं देखा था, उन्हें लगा की संगीता अपनी कोई राय देना चाहती है इसलिए उन्होंने बड़े प्यार से संगीता को अपनी बात रखने को कहा| लेकिन संगीता ने अपने भीतर उबल रहे गुस्से के लावा को मेरे ऊपर उड़ेल दिया;

संगीता: आपने (मैं) ये सब सोच भी कैसे लिया की मैं माँ-पिताजी से अलग रहने को तैयार हो जाऊँगी और शहर नहीं जिला नहीं बल्कि अलग देश में जा के आपके साथ रहूँगी? ये फैसला लेने से पहले आपने मुझसे पुछा? कोई सलाह-मशवरा किया? बस थोप दिया अपना फैसला मेरे माथे!

संगीता गुस्से से चिल्लाते हुए बोली| कोई और दिन होता तो शायद मैं संगीता को प्यार से समझता मगर आजकल मेरा दिमाग बहुत गर्म था, ऊपर से जिस तरह संगीता मुझ पर बरस पड़ी थी उससे मेरे दिमाग का fuse उड़ गया और मैं भी उस पर गुस्से से बरस पड़ा;

मैं: हाँ, नहीं पुछा मैंने तुमसे कुछ क्योंकि मुझसे तुम्हें इस तरह डरा-डरा नहीं देखा जाता! चौबीसों घंटे तुम्हें बस एक ही डर सताता रहता है की चन्दर आयुष को ले जाएगा! बीते कुछ दिनों से जितना तुम अंदर ही अंदर कितना तड़प रही हो, तुम्हें क्या लगता है की मैं तुम्हारी तड़प महसूस नहीं करता? तुम्हारे इस डर ने तुम्हारे चेहरे से हँसी छीन ली, यहाँ तक की हमारे घर से खुशियाँ छीन ली! अरे मैं तुम्हारे मुँह से प्यार भरे चंद बोल सुनने को तरस गया! जिस संगीता से मैंने प्यार किया, जिसे मैं बियाह के अपने घर लाया था वो तो जैसे बची ही नहीं?! जो मेरे सामने रह गई उसके भीतर तो जैसे मेरे लिए प्यार ही नहीं है, अगर प्यार है भी तो वो उस प्यार को बाहर नहीं आने देती!

उस रात को तुम्ही आई थी न मुझे छत पर ठंड में ठिठुरता हुआ खुद को सज़ा देता हुआ देखने? मुझे काँपते हुए देख तुम्हारे मन में ज़रा सी भी दया नहीं आई की तुम्हारा पति ठंड में काँप रहा है, ये नहीं की कम से कम उसे गले लगा कर उसके अंदर से ग्लानि मिटा दो?! मैं पूछता हूँ की बीते कुछ दिनों में कितने दिन तुमने मुझसे प्यार से बात की? बोलो है कोई जवाब?

मेरा गुस्सा देख संगीता सहम गई थी, अब उसे और गुस्से करने का मन नहीं था इसलिए मैंने अपनी बात को विराम देते हुए कहा;

मैं: तुम्हारे इसी डर को भगाने के लिए मैं ये सब कर रहा हूँ!

संगीता अब टूट कर रोने लगी थी, इसलिए नहीं की मैंने उसे डाँटा था बल्कि इसलिए की उसे आज अपने पति की तड़प महसूस हुई थी! संगीता को रोता हुआ देख मेरा दिल पसीजा और मेरी आँखें भी छलछला गईं| जब संगीता ने मेरी आँखों में आँसूँ देखे तो उसने जैसे-तैसे खुद को सँभाला और बोली;

संगीता: आप...आप सही कहते हो की...मैं घबराई हुई हूँ! लेकिन मैं इतनी स्वार्थी नहीं हूँ की अपने डर की वजह से आपको और बच्चों को माँ-पिताजी से दूर कर दूँ! इन पिछले कुछ दिनों में मैंने आपको जो भी दुःख पहुँचाया, आपको तड़पाया उसके लिए मैं आपसे माफ़ी माँगती हूँ और वादा करती हूँ की मैं अब नहीं डरूँगी! अब जब पंचायत में सब बात साफ़ हो ही चुकी है तो मुझे भी अब सँभलना होगा, लेकिन please मुझे और बच्चों को माँ-पिताजी से दूर मत करो?!

संगीता गिड़गिड़ाते हुए बोली और एक बार फिर फफक कर रो पड़ी| माँ ने तुरंत संगीता को अपने सीने से लगाया और उसके सर पर हाथ फेरते हुए उसे चुप कराने लगी|

माँ: ठीक है बहु, तुझे नहीं जाना तो न जा, कोई जबरदस्ती थोड़े ही है!

माँ ने संगीता को बहलाते हुए कहा| अब माँ सिर्फ संगीता की तरफदारी करे ये तो हो नहीं सकता था इसीलिए माँ संगीता को मेरा पक्ष समझाते हुए बोलीं;

माँ: बेटा, मानु तुझे दुखी नहीं देख सकता इसलिए वो दुबई जाने की कह रहा था| तू जानती है न तुझे एक काँटा भी चुभ जाता है तो मानु कितना तड़प उठता है, तो तुझे वो यूँ तड़पता हुआ कैसे देखता? तेरी तबियत ठीक रहे, तेरे होने वाले बच्चे पर कोई बुरा असर न हो इसी के लिए मानु इतना चिंतित है!

संगीता ने माँ की बात चुपचाप सुनी और अपना रोना रोका|

मैं: ठीक है...कोई कहीं नहीं जा रहा!

मैं गहरी साँस छोड़ते हुए बोला और अपने कमरे में लौट आया, laptop table पर रखा तथा कुर्सी का सहारा ले कर खड़ा हो गया| भले ही संगीता आज फफक कर रोइ थी मगर मैंने उसके भीतर कोई बदलाव नहीं देखा था, उसका दिल जैसे मेरे लिए धड़कता ही नहीं था! मैं कुर्सी का सहारा ले कर खड़ा यही सोच रहा था की तभी संगीता पीछे से कमरे में दाखिल हुई और घबराते हुए बोली;

संगीता: मैं...मैं जानती हूँ की आप मुझसे कितना प्यार करते हो, लेकिन आपने ये सोच भी कैसे लिया की मैं अपने परिवार से अलग रह के खुश रहूँगी? मैं ये कतई नहीं चाहती की मेरे कारण आप माँ-पिताजी से दूर हों और हमारे बच्चे अपने दादा-दादी के प्यार से वंचित हों!

संगीता सर झुकाये हुए बोली, आज उसकी बातों में बेरुखी खुल कर नजर आई| उसकी ये बेरुखी देख मैं खुद को रोक न सका और संगीता पर बरस पड़ा;

मैं: जानना चाहती हो न की क्यों मैं तुम्हें सब से दूर ले जाना चाहता था? तो सुनो, मैं बहुत खुदगर्ज़ इंसान हूँ! इतना खुदगर्ज़ की मुझे सिर्फ और सिर्फ तुम्हारी ख़ुशी चाहिए, इसके अलावा कुछ नहीं, अब इसके लिए मुझे जो करना पड़ेगा मैं करूँगा! नहीं देखा जाता मुझसे तुम्हें यूँ घुटते हुए, तुम्हें समझा-समझा के थक गया की कम से कम हमारे होने वाले बच्चे के लिए उस हादसे को भूलने की कोशिश करो मगर तुम कोशिश ही नहीं करना चाहती! हर पल अपने उसी डर को, की वो (चन्दर) फिर से लौट कर आएगा, को अपने सीने से लगाए बैठी हो! अब अगर हम इस देश में रहेंगे ही नहीं तो वो (चन्दर) आएगा कैसे?!

मैं कोई पागल नहीं हूँ जो मैंने ऐसे ही इतनी बड़ी बात सोच ली, मैंने पहले माँ-पिताजी से बात की थी और तब ये फैसला लिया| मैं यहाँ सब कुछ बेच-बाच कर उन्हें (माँ-पिताजी को) हमारे साथ चलने को कहा मगर माँ-पिताजी ने कहा की उनमें अब वो शक्ति नहीं की वो गैर मुल्क में जा कर वहाँ के तौर-तरीके अपना सकें| तुम्हारे लिए वो इतना बड़ा त्याग करने को राज़ी हुए ताकि तुम और हमारी आने वाली संतान को अच्छा भविष्य मिले!

मेरे गुस्से से भरी बातें सुन संगीता को बहुत ग्लानि हुई| फिर भी उसने मुझे आश्वस्त करने के लिए झूठे मुँह कहा;

संगीता: मुझे...थोड़ा समय लगेगा!

संगीता सर झुकाये हुए बोली| उसका ये आश्वासन बिल्कुल खोखला था, उसकी बात में कोई वजन नहीं था और साफ़ पता चलता था की वो बदलना ही नहीं चाहती! संगीता का ये रवैय्या देख मैं झुंझुला उठा और उस पर फिर बरस पड़ा;

मैं: और कितना समय चाहिए तुम्हें? अरे कम से कम मेरे लिए न सही तो हमारे बच्चों के लिए ही मुस्कुराओ, कुछ नहीं तो झूठ-मुठ का ही मुस्कुरा दो!

मैं इस वक़्त इतना हताश था की मैं संगीता की नक़ली मुस्कान देखने के लिए भी तैयार था! उधर संगीता के चेहरे पर हवाइयाँ उड़ रहीं थीं!

मैं: इस घर में हर शक़्स तुम्हें मुस्कुराते हुए देखने को तरस रहा है|

ये कहते हुए मैंने संगीता को सभी के नाम गिनाने शुरू कर दिए;

मैं: पहले हैं पिताजी, जिन्होंने तुम्हारा कन्यादान किया! क्या बीतती होगी उन पर जब वो तुम्हें यूँ बुझा हुआ देखते होंगे? क्या वो नहीं चाहेंगे की उनकी बेटी सामान बहु खुश रहे?

दूसरी हैं माँ, तुम बहु हो उनकी और माँ बनने वाली हो कैसा लगता होगा माँ को तुम्हारा ये लटका हुआ चेहरा देख कर?

तीसरा है हमारा बेटा आयुष, उस छोटे से बच्चे ने इस उम्र में वो सब देखा जो उसे नहीं देखना चाहिए था| पिछले कई दिनों से मैं उसका और नेहा का मन बहलाने में लगा हूँ लेकिन अपनी माँ के चेहरे पर उदासी देख के कौन सा बच्चा खुश होता है?

चौथी है हमारी बेटी नेहा, हमारे घर की जान, जिसने इस कठिन समय में आयुष को जिस तरह संभाला है उसकी तारीफ करने के लिए मेरे पास लव्ज़ नहीं हैं| कम से कम उसके लिए ही मुस्कुराओ!

इतने लोग तुम्हारी हँसी की दुआ कर रहे हैं तो तुम्हें और क्या चाहिए?

मैंने जानबूझ कर अपना नाम नहीं गिनाया था क्योंकि मुझे लग रहा था की संगीता के दिल में शायद अब मेरे लिए कोई जगह नहीं रही!

खैर, संगीता ने मेरी पूरी बात सर झुका कर सुनी और बिना कोई प्रतिक्रिया दिए, बिना कोई शब्द कहे वो चुपचाप मुझे पानी पीठ दिखा कर कमरे से बाहर चली गई! मुझे ऐसा लगा की जैसे संगीता पर मेरी कही बात का कोई फर्क ही नहीं पड़ा तभी तो वो बिना कुछ कहे चली गई! आज जिंदगी में पहलीबार संगीता ने मेरी इस कदर तौहीन की थी! मुझे अपनी ये बेइज्जती बर्दाश्त नहीं हुई और मेरे भीतर गुस्सा फूटने लगा| एकबार को तो मन किया की संगीता को रोकूँ और कठोररटा पूर्वक उससे जवाब माँगूँ लेकिन मेरे कदम आगे ही नहीं बढे! अब गुस्सा कहीं न कहीं तो निकालना था तो मैं जल्दी से तैयार हुआ और बिना कुछ खाये-पीये site पर निकल गया| माँ-पिताजी ने पीछे से मुझे रोकने के लिए बहुत आवाजें दी मगर मैंने उनकी आवाजें अनसुनी कर दी और चलते-चलते जोर से चिल्लाया;

मैं: Late हो रहा हूँ|

मेरा दिल नहीं कर रहा था की मैं घर पर रुकूँ और संगीता का वही मायूस चेहरा देखूँ| गाडी भगाते हुए मैं नॉएडा पहुँचा मगर काम में एक पल के लिए भी मन न लगा| बार-बार नजरें mobile पर जा रही थीं, दिल कहता था की संगीता मुझे जरूर फ़ोन करेगी लेकिन, कोई फ़ोन नहीं आया!

उधर घर पर माँ-पिताजी पति-पत्नी की ये कहा-सुनी सुन कर हैरान थे, उन्हें समझ नहीं आ रहा था की वो किस का समर्थन करें और किसे गलत कहें?! अपनी इस उलझन में वो शांत रहे और उम्मीद करने लगे की हम मियाँ-बीवी ही बात कर के बात सुलझा लें|

इधर अपना दिल बहलाने के लिए मैंने एक दर्द भरा गाना चला दिया; 'भरी दुनिया में आखिर दिल को समझाने कहाँ जाएँ, मोहब्बत हो गई जिनकी वो दीवाने कहाँ जाएँ?!' इस गाने को सुनते हुए मेरे दिल में टीस उठी, इस टीस ने मुझे कुछ महसूस करवाया! इंसान के भीतर जो दुःख-दर्द होता है उसे बाहर निकालना पड़ता है| कुछ लोग दूसरों से बात कर के अपना दुःख-दर्द बाँट लेते हैं मगर यहाँ संगीता अपने इस दुःख को अपने सीने से लगाए बैठी थी और उसका ये दुःख डर बन कर संगीता का गला घोंटें जा रहा है| अगर मुझे संगीता को हँसाना-बुलाना था तो पहले मुझे उसके भीतर का दुःख बाहर निकालना था| मैंने प्यार से कोशिश कर ली थी, समझा-बुझा कर कोशिश कर ली थी, बच्चों का वास्ता दे कर भी कोशिश कर ली थी अरे और तो और मैंने गुस्से से कोशिश कर ली थी मगर कोई फायदा नहीं हुआ था|

उन दिनों में ही मैंने ये कहानी लिखना शुरू किया था, मैं अपना दुःख दर्द इन्हीं अल्फ़ाज़ों में लिख कर समेट लिया करता था, तभी मैंने सोचा की क्यों न मैं संगीता से भी उसका दुःख-दर्द लिखने को कहूँ? शब्दों का सहारा ले कर संगीता अपने दुःख को व्यक्त कर अपने डर से हमेशा-हमेशा के लिए मुक्त हो जाती और उसके मन पर से ये भार उतर जाता| यही बात सोचते हुए मैं नरम पड़ने लगा और एक बार फिर उम्मीद करने लगा की मैं संगीता को अब भी सँभाल सकता हूँ, बस उसे एक बार अपना दुख लिखने के लिए मना लूँ|

रात को ग्यारह बजे जब मैं घर पहुँचा तो सब लोग खाना खा कर लेट चुके थे| आयुष अपने दादा-दादी जी के पास सोया था, एक बस नेहा और संगीता ही जाग रहे थे| मेरी बिटिया नेहा, मेरा इंतजार करते हुए अभी तक जाग रही थी और उसी ने मेरे आने पर दरवाजा खोला था|

मैं: मेरा बच्चा सोया नहीं?

मैंने नेहा के सर पर हाथ फेरते हुए पुछा|

नेहा: पापा जी, कल मेरा class test है तो मैं जाग कर उसी की पढ़ाई कर रही थी|

नेहा का भोलेपन से भरा जवाब सुन मैं मुस्कुराया, मेरी बेटी पढ़ाई को ले कर बहुत गंभीर थी| लेकिन उसकी बात में आज एक प्यारा सा झूठ छुपा हुआ था!

मैं: बेटा, आपने खाना खाया?

मेरे सवाल पूछते ही नेहा ने तुरंत अपनी गर्दन हाँ में हिलाई और बोली;

नेहा: हाँ जी!

मैं: और आपकी मम्मी ने?

मेरे इस सवाल पर नेहा खी-खी कर बोली;

नेहा: दादी जी ने मम्मी को जबरदस्ती खिलाया! ही..ही..ही...ही!!!

नेहा का जवाब सुन मेरे चेहरे पर भी शरारती मुस्कान आ गई क्योंकि मैं कल्पना करने लगा था की माँ ने कैसे जबरदस्ती से संगीता को खाना खिलाया होगा! हालात कुछ भी हो बचपना भरपूर था मुझ में!

मैंने नेहा को गोदी लिया और अपने कमरे में आ गया| कमरे की light चालु थी और संगीता पलंग पर बैठी हुई आयुष की कमीज में बटन टाँक रही थी| ऐसा नहीं था की वो सो रही थी मगर जब मैंने अभी दरवाजा खटखटाया तो उसने जानबूझ कर नेहा को दरवाजा खोलने भेजा था ताकि कहीं मैं उससे कोई सवाल न पूछने लगूँ| खैर, मुझे देखते ही संगीता उठ खड़ी हुई और बिना मुझे कुछ कहे मेरी बगल से होती हुई रसोई में चली गई| आज सुबह जो मैंने दुबई जा कर बसने की बात कही थी उसी बात के कारण संगीता का मेरे प्रति व्यवहार अब भी उखड़ा हुआ था| संगीता का ये रूखा व्यवहार देख मुझे गुस्सा तो बहुत आया मगर मैं फिर भी अपना गुस्सा पी गया, मैंने नेहा को गोदी से उतारा और वो अपनी पढ़ाई करने लगी| फिर मैं dining टेबल पर खाना खाने के लिए बैठ गया, सुबह से बस एक कप चाय पी थी और इस समय पेट में चूहे कूद रहे थे!

आम तौर पर जब मैं देर रात घर आता था तो संगीता मेरे पास बैठ के खाना परोसती थी और जब तक मैं खा नहीं लेता था वो वहीं बैठ के मुझसे बातें किया करती थी| लेकिन, पिछले कछ दिनों से संगीता एकदम से उखड़ चुकी थी, संगीता की इस बेरुखी का जिम्मेदार चन्दर को मानते हुए मेरा उस आदमी पर गुस्सा बढ़ता ही जा रहा था| आज भी संगीता मुझे खाना परोस कर हमारे कमरे में जाने लगी तो मैंने उसे रोकते हुए कहा;

मैं: सुनो?

संगीता मेरी ओर पीठ किये हुए ही रुक गई|

मैं: I need to talk to you.

मैंने संगीता से बात शुरू करते हुए कहा तो वो सर झुकाये हुए मुड़ी और मेरे सामने कुर्सी खींच कर बैठ गई|

मैं: I need you to write how you felt that day...

इतना सुनना था की संगीता अस्चर्य से मुझे आँखें बड़ी कर देखने लगी| उसकी हैरानी जायज भी थी, जहाँ संगीता मुझसे बात नहीं कर रही थी ऐसे में वो लिखती कहाँ से?!

मैं: अपने दर्द को लिखोगी तो तुम्हारा मन हलका होगा!

संगीता ने फिर सर झुका लिया और बिना अपनी कोई प्रतक्रिया दिए वो उठ कर चली गई| मैं जानता था की संगीता नहीं लिखने वाली और जिस तरह का सलूक संगीता मेरे साथ कर रही थी उससे मेरा खाना खाने की भी इच्छा नहीं हो रही थी| मैंने खाना ढक कर रखा और मैं भी कमरे में लौट आया, कमरे में सन्नाटा पसरा हुआ था, lights बंद थीं मगर नेहा table lamp जला कर अभी भी पढ़ रही थी|

मैं: बेटा रात के बारह बज रहे हैं और आप अभी तक पढ़ रहे हो? आपका board का paper थोड़े ही है जो आप इतनी देर तक जाग कर पढ़ रहे हो?! चलो सो जाओ!

मैंने नेहा के सर पर हाथ फेरते हुए कहा तो नेहा मुस्कुराते हुए बोली;

नेहा: जी पापा!

फिर उसने अपनी किताब बंद की और अपने दोनों हाथ खोलते हुए मुझे गोदी लेने को कहा| नेहा को गोदी ले कर मैं लेट गया और उसके सर को चूमते हुए बोला;

मैं: बेटा आप इतनी देर तक जाग कर मेरा ही इंतजार कर रहे थे न?

मेरा सवाल सुन नेहा प्यार से मुस्कुराई और सर हाँ में हिलाने लगी| मैंने नेहा को कस कर अपने सीने से लगा लिया, मेरी बिटिया मुझे इतना प्यार करती थी की मेरे बिना उसके छोटे से दिल को चैन नहीं मिलता था, ऊपर से आज उसने मुझे site पर phone भी नहीं किया था इसीलिए वो मेरे घर लौटने तक अपने class test का बहाना कर के जाग रही थी|

नेहा के सर पर हाथ फेरते हुए मैंने उसे तो सुला दिया मगर मैं सो ना पाया| एक तो पेट खाली था और दूसरा संगीता की बेरुखी मुझे शूल की तरह चुभ रही थी! सुबह ठीक पाँच बजे मैं उठा और नेहा को सोता हुआ छोड़ के नहाने चला गया, जब मैं नहा कर बाहर निकला तो देखा की संगीता उठ चुकी है मगर उसके चेहरे पर मेरे लिए गुस्सा अब भी क़ायम था| मेरे पास कहने के लिए अब कुछ नहीं बचा था, हाँ एक गुस्सा जर्रूर भीतर छुपा था मगर उसे बाहर निकाल कर मैं बात और बिगाड़ना नहीं चाहता था| किसी इंसान के पीछे लाठी- भाला ले कर पड़ जाओ की तू हँस-बोल तो एक समय बाद वो इंसान भी बिदक जाता है, यही सोच कर मैंने संगीता के पीछे पड़ना बंद कर दिया| सोचा कुछ समय बाद वो समान्य हो जाएगी और तब तक मैं भी उसके साथ ये 'चुप रहने वाले खेल' खेलता हूँ!

बच्चों के स्कूल जाने के बाद सभी लोग dining table पर बैठे चाय पी रहे थे मगर कोई भी कुछ नहीं बोल रहा था| माँ और पिताजी हम दोनों मियाँ-बीवी के चेहरे अच्छे से पढ़ पा रहे थे और हम दोनों के बीच पैदा हुए तनाव को महसूस कर परेशान थे| आखिर माँ ने ही बात शुरू कर घर में मौजूद चुप्पी भंग की;

माँ: बेटा, तू रात को कब आया?

मैं: जी करीब साढ़े ग्यारह बजे|

मैंने बिना माँ की तरफ देखे हुए जवाब दिया|

पिताजी: ओ यार, तू इतनी देर रात तक बाहर न रहा कर यहाँ सब परेशान हो जाते हैं|

पिताजी थोड़ा मजाकिया ढंग से बोले ताकि मैं हँस पडूँ मगर मेरी नजरें अखबार में घुसी हुईं थीं|

मैं: पिताजी काम ज्यादा है आजकल, project deadline से पहले निपट जाए तो नया काम उठाएं|

ये कहते हुए मैंने अखबार का पन्ना पलटा और वो पन्ना देखने लगा जिसमें नौकरी और tenders छपे होते हैं| मैं इतनी देर से माँ-पिताजी से नजर चुरा रहा था ताकि उनके पूछे सवालों का सही जवाब न दूँ क्योंकि अगर मैं सच बता देता की मैं घर पर संगीता के उखड़ेपन के कारण नहीं रहता तो उन्हें (माँ-पिताजी को) बहुत दुःख होता| वहीं पिताजी ने जब मुझे अखबार में घुसे हुए देखा तो उन्होंने मेरे हाथ से अखबार छीन लिया और बोले;

पिताजी: अब इसमें (अखबार में) क्या तू नौकरी का इश्तेहार पढ़ रहा है?

जैसे ही पिताजी ने नौकरी की बात कही तो संगीता की जान हलक में आ गई, उसे लगा की मेरे सर से बाहर देश में बसने का भूत नहीं उतरा है और मैं बाहर देश में कोई नौकरी ढूँढ रहा हूँ!

मैं: नहीं पिताजी, ये देखिये अखबार मैं एक tender निकला है बस उसी को पढ़ रहा था|

मैंने पिताजी को अखबार में छापा वो tender दिखाते हुए कहा| अब जा कर संगीता के दिल को राहत मिली!

पिताजी: बेटा, क्या जर्रूरत है बेकार का पंगा लेने की? हमारा काम अच्छा चल रहा है कोई जररुररत नहीं सरकारी tender उठाने की!

पिताजी मना करते हुए बोले|

मैं: पिताजी, फायदे का सौदा है|

मैंने tender को एक बहाने के रूप में इस्तेमाल किया था ताकि मैं पिताजी के सवालों से बच सकूँ, मगर माँ के आगे मेरी सारी होशियारी धरी की धरी रह गई;

माँ: अच्छा बस, अब और काम-धाम की बात नहीं होगी!

माँ बीच में बोलीं और उनकी बात सुन हम बाप-बेटा खामोश हो गए| अब माँ ने संगीता को बड़े प्यार से कहा;

माँ: बहु, तू ऐसा कर आज नाश्ते में पोहा बना मानु को बहुत पसंद है|

माँ ने बड़ी होशियारी से मुझे और संगीता को नजदीक लाना शुरू कर दिया था| अब माँ से बेहतर कौन जाने की पति के दिल का रास्ता पेट से हो कर गुजरता है| लेकिन संगीता, मुझे कल कही मेरी बातों के लिए माफ़ करने को तैयार नहीं थी, वो अपने उदास मुखड़े से बोली;

संगीता: जी माँ|

संगीता का वो ग़मगीन चेहरा देख कर मेरी भूख फिर मर गई थी!

सच कहूँ तो संगीता के कारण घर का जो माहोल था वो देख मेरा मन नहीं कर रहा था की मैं घर एक पल भी ठहरूँ इसलिए मैं उठा और फटाफट तैयार हो कर बाहर आया| पोहा लघभग बन ही चूका था, मुझे तैयार देख माँ जिद्द करने लगीं की मैं नाश्ता कर के जाऊँ, परन्तु संगीता ने मुझे रुकने के लिए एक बार भी नहीं कहा| ऐसा लगता था मानो मेरे घर रुकने से संगीता को अजीब सा लग रहा है और वो चाहती ही नहीं की मैं घर रुकूँ| मेरा भी मन अब घर रुकने का नहीं था इसलिए मैंने अपने दूसरे फ़ोन से पहले फ़ोन पर नंबर मिलाया और झूठमूठ की बात करते हुए घर से निकल गया|

Site पहुँच कर मैंने कामकाज संभाला ही था की की ठीक घंटे भर बाद पिताजी site पर आ पहुँचे और मुझे अकेले एक तरफ ले जा कर समझाने लगे;

पिताजी: बेटा, तुम दोनों (मुझे और संगीता) को क्या हो गया है? आखिर तूने ऐसा क्या कह दिया बहु को की न वो हँसती है न कुछ बोलती है और तो और तुम दोनों तो आपस में बात तक नहीं करते|

मैं: जी मैंने उसे कुछ नहीं कहा|

मैंने पिताजी से नजरें चुराते हुए झूठ बोला, अगर उन्हें कहता की मेरे डाँटने और दुबई जाने की बात के कारण संगीता मुझसे बात नहीं कर रही तो पिताजी मुझे झाड़ देते|

पिताजी: फिर क्या हुआ है? तू तो बहु से बहुत प्यार करता था न फिर उसे ऐसे खामोश कैसे देख सकता है तू?

पिताजी बात को कुरेदते हुए बोले|

मैं: मैं उस पागल से (संगीता से) अब भी प्यार करता हूँ...

मैंने जोश में आते हुए कहा, तभी पिताजी ने मेरी बात काट दी;

पिताजी: फिर संगीता इस कदर मायूस क्यों है? तू जानता है न वो माँ बनने वाली है?

पिताजी थोड़ा गुस्से से बोले|

मैं: जानता हूँ पिताजी और इसीलिए मैंने उसे (संगीता को) बहुत समझाया मगर वो समझना ही नहीं चाहती, अभी तक उस हादसे को अपने सीने से लगाए बैठी है!

मैंने चिढ़ते हुए कहा| मुझे चिढ हो रही थी क्योंकि पिताजी बिना मेरी कोई गलती के मुझसे सवाल-जवाब कर रहे थे|

पिताजी: देख बेटा, तू संगीता से प्यार से और आराम से बात कर, चाहे तो तुम दोनों कुछ दिन के लिए कहीं बाहर चले जाओ, बच्चों को हम यहाँ सँभाल लेंगे...

पिताजी नरमी से मुझे समझाते हुए बोले| उन्हें मेरे चिढने का कारण समझ आ रहा था|

मैं: वो (संगीता) नहीं मानेगी|

मैंने झुंझलाते हुए कहा क्योंकि मैं जानता था की संगीता बाहर जा क्र भी यूँ ही मायूस रहने वाली है और तब मैं उस पर फिर बरस पड़ता| जहाँ एक तरफ माँ-पिताजी मेरे और संगीता के बीच रिश्तों को सुलझाने में लगे थे वहीं हम दोनों मियाँ-बीवी अपनी-अपनी अकड़ पर अड़े थे!

पिताजी: वो सब मैं नहीं जानता, अगर तू उसे कहीं बाहर नहीं ले के गया तो मैं और तेरी माँ तुझसे बात नहीं करेंगे!

पिताजी गुस्से से मुझे डाँटते हुए बोले|

मैं: पिताजी, आप दोनों (माँ-पिताजी) संगीता को भी तो समझाओ| वो मेरी तरफ एक कदम बढ़ाएगी तो मैं दस बढ़ाऊँगा| उसे (संगीता को) कहो की कम से कम मुझसे ढंग से बात तो किया करे?

मैंने आखिर अपना दुखड़ा पिताजी के सामने रो ही दिया|

पिताजी: बेटा हम बहु को भी समझा रहे हैं, लेकिन तू अपनी इस अकड़ पर काबू रख और खबरदार जो बहु को ये अकड़ दिखाई तो...

पिताजी मुझे हड़काते हुए बोले| कमाल की बात थी, माँ-बाप मेरे और वो मुझे ही 'हूल' दे रहे थे! लेकिन, शायद मैं ही गलत था!

बहरहाल, पिताजी तो मुझे 'हूल' रुपी 'हल' दे कर चले गए और इधर मैं सोच में पड़ गया की आखिर मेरी गलती कहाँ थी? करीब दो घंटे बाद मेरे फ़ोन पर email का notification आया, मैंने email खोल कर देखा तो पाया की ये email संगीता ने किया है| Email में संगीता का नाम देख कर मुझे थोड़ी हैरानी हुई, फिर मैंने email खोला तो उसमें एक word file की attachment थी| ये attachment देख कर मेरा दिल बैठने लगा, मुझे लगा कहीं संगीता ने मुझे तलाक का notice तो नहीं भेज दिया?! घबराते हुए मैंने वो attachment download किया और जब file open हुई तो मैंने पाया की संगीता ने मेरी बात मानते हुए अपने दर्द को शब्दों के रूप में ब्यान किया था| मैंने इसकी कतई उम्मीद नहीं की थी की संगीता मेरी बात मान कर अपना दर्द लिख कर मुझे भेजेगी! पहले तो मैंने चैन की साँस ली की कम से कम संगीता ने तलाक का notice तो नहीं भेजा था और फिर गौर से संगीता के लिखे शब्दों को पढ़ने लगा|

(संगीता ने जो मुझे अपना दर्द लिख कर भेजा था उसे मैंने पहले ही लिख दिया है|)

संगीता के लेख में भले ही शब्द टूटे-फूटे थे मगर उनमें छिपा संगीता की पीड़ा मुझे अब जा कर महसूस हुई थी| अभी तक मैंने बस संगीता के दुःख को ऊपर से महसूस किया था मगर उसके लिखे शब्दों को पढ़ कर मुझे उसके अंदरूनी दर्द का एहसास हुआ था| पूरा एक घंटा ले कर मैंने संगीता का सारा लेख पढ़ा और अब मेरा हाल बुरा था! मैंने एक माँ के दर्द को महसूस किया, एक पत्नी के डर को महसूस किया, एक बहु के दुःख को महसूस किया और इतने दर्द को महसूस कर मेरी आत्मा कचोटने लगी! मैंने कभी उम्मीद नहीं की थी की संगीता अपने भीतर इतना दुःख समेटे हुए है! मैं तो आजतक केवल संगीता के दुःख-दर्द को महसूस कर रहा था, वहीं संगीता तो अपने इस दुःख-दर्द से घिरी बैठी थी! मैं अपनी पत्नी को इस तरह दुःख में सड़ते हुए नहीं देख सकता था इसलिए मैंने निस्चय किया की मैं संगीता को कैसे भी उसके दर्द से बाहर निकाल कर रहूँगा|

संतोष को काम समझा कर मैं घर के लिए निकल पड़ा, रास्ते भर मैं बस संगीता के लेख को याद कर-कर के मायूस होता जा रहा था और मेरी आँखें नम हो चली थीं| घर पहुँचते-पहुँचते पौने दो हो गए थे, पिताजी बच्चों को घर छोड़ कर गुड़गाँव वाली site पर निकल गए थे और माँ पड़ोस में गई हुईं थीं| गाडी parking में खड़ी कर मैं दनदनाता हुआ घर में घुसा, मैंने सोच लिया था की आज मैं संगीता को प्यार से समझाऊँगा मगर जब नजर संगीता के मायूस चेहरे पर पड़ी तो सारी हिम्मत जवाब दे गई! तभी आयुष दौड़ता हुआ मेरी ओर आया ओर मेरी टांगों से लिपट गया| मैंने आयुष को गोदी में उठाया और उसने अपनी स्कूल की बातें बतानी शुरू कर दी| आयुष को गोद लिए हुए मैं अपने कमरे में आया, आयुष अपनी पटर-पटर करने में व्यस्त था परन्तु मेरा ध्यान आयुष की बातों में नहीं था| मैंने आयुष को गोद से उतारा और उसे खेलने जाने को बोला, तभी संगीता एक गिलास में पानी ले कर आ गई| मैंने पानी का गिलास उठाया और हिम्मत जुटाते हुए बोला;

मैं: मैंने तुम्हारा लेख पढ़ा!

मैंने एक गहरी साँस लेते हुए कहा और तभी हम दोनों मियाँ-बीवी की आँखें मिलीं|

मैं: तुम क्यों इतना दर्द अपने दिल में समेटे हुए हो? क्या मेरे लिए तुम्हारे दिल में ज़रा सी भी जगह नहीं?

मैंने भावुक होते हुए संगीता से सवाल पुछा| मेरी कोशिश थी की संगीता कुछ बोले ताकि मैं आगे बढ़ाते हुए उसे समझा सकूँ| वहीं संगीता की आँखों से उसका दर्द झलकने लगा था, उसके होंठ कुछ कहने के लिए कँपकँपाने लगे थे मगर संगीता खुद को कुछ भी कहने से रोक रही थी, वो जानती थी की अगर उसने कुछ कहने के लिए मुँह खोला तो वो टूट जायेगी! मैं संगीता के जज्बात समझ पा रहा था इसलिए मैंने भी उस पर कोई दबाव नहीं डाला और उठ कर बाहर बैठक में बैठ गया तथा संगीता की मनोदशा को महसूस कर मायूसी की दलदल में उतरने लगा|

घर में शान्ति पसरी हुई थी, नेहा नहा रही थी, आयुष अपने कमरे में खेल रहा था और संगीता हमारे कमरे में बैठी कुछ सोचने में व्यस्त थी| माँ घर लौट आईं थीं और नहाने चली गईं थीं, खाना तैयार था बस माँ के नहा कर आते ही परोसा जाना था|

जब से ये काण्ड हुआ था तभी से मैं अपनी सेहत के प्रति पूरी तरह से लापरवाह हो चूका था| मुंबई से आने के बाद जो मेरी संगीता से कहा-सुनी हुई थी उसके बाद से मैंने खाना-पीना छोड़ रखा था, अब जब खाना नहीं खा रहा था तो जाहिर था की मैंने अपनी BP की दवाइयाँ भी बंद कर रखी थीं| एक बस नेहा थी जो मुझे दवाई लेने के बारे में कभी-कभी याद दिलाती रहती थी मगर मैं उस छोटी सी बच्ची के साथ झूठ बोल कर छल किये जाए रहा था, हरबार मैं उसका ध्यान भटका देता और अपने लाड-प्यार से उसे बाँध लिया करता था| लेकिन आज मुझे तथा मेरे परिवार को मेरी इस लापरवाही का फल भुगतना था!

मैं आँखें बंद किये हुए, सोफे पर बैठा हुआ संगीता के लेख में लिखे हुए शब्दों को पुनः याद कर रहा था| वो दर्द भरे शब्द मेरे दिल में सुई के समान चुभे जा रहे थे और ये चुभन मेरी जान लिए जा रही थी| 2 तरीक को जब चन्दर मेरे घर में घुस आया था, उस दिन का एक-एक दृश्य मेरी आँखों के आगे घूम रहा था| आज मैं उन दृश्यों को संगीता की नजरों से देख रहा था और खुद को संगीता की जगह रख कर उसकी (संगीता की) पीड़ा को महसूस कर रहा था| चन्दर ने जिस प्रकार संगीता की गर्दन दबोच रखी थी उसे याद कर के मेरा खून गुस्से के मारे उबलने लगा था! मेरे भीतर गुस्सा पूरे उफान पर था, मेरी पत्नी को इस कदर मानसिक रूप से तोड़ने के लिए मैं चन्दर की जान लेना चाहता था| इसी गुस्से में बौखलाया हुआ मैं एकदम से उठ खड़ा हुआ, लेकिन अगले ही पल मेरी आँखों के आगे अँधेरा छा गया तथा मैं चक्कर खा कर धम्म से नीचे गिर पड़ा और फिर मुझे कुछ होश नहीं रहा की आगे क्या हुआ?!

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