Kamukta हाए मम्मी मेरी लुल्ली

दरवाजा खुलता है और सलोनी कमरे में दाखिल होती है. राहुल का दिल ज़ोरों से धड़क रहा था की वो अब क्या करने आई होगी. सफाई तोह वो कर चुकी थी. शायद अब वो उसे समझाएगी, उसे मनायेगी लेकिन वो इतनी आसानी से नहीं मानेगा. सलोनी सीधी राहुल के पास जाती है और उसके टेबल पर एक प्लेट में जूस का गिलास रख देती है. राहुल नज़र उठाकर जूस की और देखता है. तभी सलोनी राहुल की और मुड़ती है और उसकी बगल में खड़ी होकर उसका चेहरा अपने हाथों में थाम उसे ऊपर को उठाती है और फिर तेज़ी से अपना चेहरा उसके चेहरे पर झुकाती है. अगले ही पल सलोनी के होंठ राहुल के होंठो से जूड्ड जाते हैं
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और वो उसके होंठो को अपने होंठो में भरकर चूमने लगती है. राहुल अपना सर हिलाकर चुम्बन तोड़ने की कोशिश करता है मगर सलोनी उसका चेहरा कस्स कर अपने हाथों में पकडे रखती है और उसके होंठ चूमती, चाटती उन्हें चुस्ती है. अखिरकार जब वो अपना चेहरा ऊपर उठाती है तोह राहुल उसकी और ग़ुस्से से देखता है. सलोनी अपने कंधे मासुमियत से झटकती है. राहुल उठकर बेड से वो फोल्ड किया हुआ पेपर उठाता है जो सुबह सलोनी ने उसके खाने की थाली में रखर दिया था और जिस पर लिखा था के अगर राहुल बात नहीं करना चाहता तोह सलोनी उससे बात नहीं करेगी मगर वो खाना जरूर खा ले. राहुल पेपर उठाकर सलोनी का हाथ पकड़ उसपे ज़ोर से पेपर रखता है. सलोनी पेपर को देखति है और सहसा उसके होंठो पर बड़ी ही नट्खट सी मुस्कान फैल जाती है. राहुल उसकी और कोतुहल से देखता है. सलोनी पेपर को पकडती है और उसे राहुल के सामने करती है और फिर उसे खोलती है.

राहुल ध्यान से देखता है. पेपर के अंदर भी कुछ लिख हुआ था. राहुल पढता है "लेकिन तुमसे बात करने के सिवा सब कुछ करुँगी. तुम्हे चूमुंगी भी, चूसूंगी भी, चाटूँगी भी और अगर मेरा दिल कुछ और करने का होगा तोह वो भी करुँगी. अगर तुमने खाना खा लिया तोह में समझूँगी के तुम्हे मेरी शर्त मंजूर है"

राहुल ठगा सा अपनी मम्मी को देखता है. सलोनी के चेहरे पर विजेता की मुस्कान थी. उसकी मम्मी उसके साथ इतनी बड़ी चाल करेगी वो सोच भी नहीं सकता था. उसने पेपर के अंदर लिख कर उसे चालाकी से फोल्ड कर दिया था और फिर बाहर लिख दिया था. राहुल के दिमाग में एक बार भी नहीं आया था की फोल्ड के अंदर भी कुछ लिखा हो सकता था. सलोनी मुस्कराती हुयी कमरे से बाहर चलि जाती है. राहुल हालांकि अपनी मम्मी की होशियारी पर स्तब्ध था मगर दिल ही दिल में वो खुश था और फिर उसने उसे चूमा भी तोह था. राहुल अभी भी अपने होंठो पर अपनी मम्मी के मीठे मुखरस को महसूस कर सकता था.

मुस्कराते हुए राहुल जूस पिने के लिए गिलास उठाता है. तभी वो देखता है के गिलास के निचे एक कागज़ फोल्ड करके रखा हुआ था. राहुल जूस का गिलास रखता है और कागज़ खोलता है. उसपे उसके अंदाज़े अनुसार उसकी मम्मी ने कुछ लिखा हुआ था.

"मैं नहाने जा रही हु. कोई आधे घंटे बाद आउंगी, नारियल का तेल लेकर, तैयार रेहना
 
आब माँ-बेटे के झगडे में सुलह दोनों पक्ष चाहते थे मगर सुलह के लिए पहल कोई भी नहीं कर रहा था. सलोनी अपनी तरफ से कोई कोशिश नहीं कर रही थी और राहुल चाहते हुए भी करना नहीं चाहता था. उसकी मर्दानगी उसे झुकने से मना कर रही थी लेकिन इस तरह मम्मी से दूर भी नहीं रहा जाता था. वो करे तोह काया करे. 'सारा क़सूर उसकी मम्मी का ही है' राहुल एहि सोच रहा था. 'पहले ग़लती करो बाद में अकड दिखाओ राहुल मन ही मन अपनी मम्मी पर खीज उठा था. 'ठीक है अगर वो नहीं चाहती तोह फिर में भी उससे कोई बात नहीं कुरूँगा. वो खुद मिन्नतें करेगी फिर भी नहि बुलाऊंगा.

राहुल को गुस्सा आ रहा था. सलोनी को गए अभी मुश्किल से पांच मिनट ही हुए थे मगर उसकी बैचेनी देख कर ऐसा लगता था जैसे उसे अपनी मम्मी से बिछुड़े सालों हो गए हो. एक तरफ वो अपनी मम्मी से गुस्सा था और दूसरी तरफ वो उससे मिलने के लिए तड़फता था. एक तरफ वो उसे उसकी ग़लती की सजा देना चाहता था दूसरी तरफ वो उसके प्यार के लिए उसके साथ के लिए तडफ रहा था.

सलोनी को गए कोई पन्द्रह मिनट बीते होंगे की फिर से सीढियाँ चढ़ने की आहट सुनायी देणे लगी. राहुल का दिल धड़क उठता है. क्या वो फिरसे उसके कमरे में आ रही थी. कदमो की आहट सीढ़ियों से उसके कमरे की तरफ आने लगी. राहुल का पूरा चेहरा खील उठा. वो भाग कर अपनी कुरसी पर बैठ गया और अपने सामने किताब खोल ली. उसके अंदर ख़ुशी की लहर दौड गयी और वो पूरी तरह से भूल गया था की अभी कुछ पल पहले अपनी मम्मी पर किस तरह गुस्सा कर रहा था.सच कहा है किसीने सेक्स में आदमी दिमाग से नही अपने लंड से सोचता है.
 
सिडियोसे से आती कदमो की आहट तेज़ और तेज़ होती जाती है. आवाज़ उसके कमरे के बाहर आकर थम जाती है. राहुल अपने धडकते दिल को थाम लेता है. उसकी ऑंखे अपने सामने टेबल पर रखी किताब पर थी मगर उसका पूरा ध्यान दरवाजे की और था. दो पलों के इंतज़ार के बाद बिलकुल धीमे से हंडेल घुमता है और सलोनी कमरे का दरवाजा खोल कर अंदर देखति है. राहुल अपनी आंखों के कोने से अपनी मम्मी को पजामा-शर्ट में दरवाजे की चोकट पर खड़े देखता है. राहुल का दिल और भी ज़ोरों से धड़कने लगता है. सलोनी एक पल के लिए वहीँ खड़ी कमरे का जायजा लेती है. उसका पूरा चेहरा खिला हुआ था, होंठो पर जैसे शरारती सी मुस्कान चिपक कर रह गयी थी.

राहुल अपनी नोटबुक में कुछ लिखने का नाटक कर रहा था मगर उसके हाथ बुरी तरह से कांप रहे थे. सलोनी उसकी कुरसी के पीछे से चलति बेड के पास जाती है और उसे सँवारने लगती है. उसके बाद वो अटैच्ड बाथरूम में जाकर सफायी करती है. इसके बाद वो फिरसे कमरे में आती है और फर्श पर झाड़ू लगाती है. राहुल का पूरा ध्यान किताब में था मगर कमरे में हल्की सी सरसराहट भी उससे बचकर नहीं जा सकती थी. सलोनी पूरे रूम की सफायी करने के बाद राहुल के टेबल के पास जाकर खड़ी हो गयी. राहुल अपने मुंह पर हाथ रखे अपनी साँसों को कण्ट्रोल करने की पूरी कोशिह कर रहा था. उसे डर था उसकी बेकाबू गहरी साँसों का शोर उसकी एक्ससाइटमेंट का राज़ उसकी सलोनी के सामने न खोल दे. पहले तोह राहुल नहीं हिला मगर जब सलोनी बद्स्तूर वहीँ खड़ी रही तोह उसे उठना ही पडा. वो उठ कर बेड पर बैठ जाता है. सलोनी टेबल और फिर कुरसी साफ़ करती और फिर राहुल की बुक्स और लैपटॉप को वापस व्यबश्थित करके वहां से हट जाती है. राहुल वापस अपनी कुरसी पर बैठ जाता है. सलोनी बाथरूम से राहुल के धोने वाले कपडे लेकर वापस कमरे में आती है और दरवाजे की और बढ़ती है. वो दरवाजा खोलकर चोकट पर घुमकर राहुल को देखति है, वो सर झुकाए बैठा था. सलोनी का ध्यान उसकी कम्कम्पाती हुयी तांग पर जाता है जिसे वो अपने हाथ से दबाकर उसका कम्पन रोकने की कोशिश कर रहा था. सलोनी के होंठो पर मुस्कान आ जाती है और वो धीरे से मुड कर कमरे से बाहर चलि जाती है और अपने पीछे दरवाजा बंद कर देती है.

राहुल कुछ समय कुरसी पर बैठा रहता है जब तक के सलोनी के कदमो की आहट वापस सीढ़ियों से उतरने के समय तक आती रहती है. वो सर घुमा कर दरवाजे की और देखता है और फिर उठ कर कमरे में घुमने लगता है. वो कब से इंतज़ार कर रहा था के वो आये. और वो आई और आकर चलि गयी? क्या बस एहि करना था उसे? क्या वो बस एहि करने आई थी. सफाई करने के लिए? और उसका क्या? उसके बेटे का क्या? उसे मालूम नहीं के में कब से उसका वेट कर रहा था? अब क्या वो चाहती है के में उससे माफ़ी मांगू? गलती वो करे और माफ़ी में मांगू? राहुल के दिमाग में सवालो की जंग छिड़ी हुयी थी.
 
सलोनी सांस रोके खड़ी रहती है. कोई पांच मिनट के बाद राहुल का दरवाजा खुलने की हलकी सी आवाज़ आती है. राहुल ने बहुत धीरे से दतवाजा खोला था के कोई आवाज़ न हो मगर सलोनी की सभी इन्द्रियां उस समय राहुल के कमरे में होने वाली किसी भी हलचल पर केन्द्रीत थी. राहुल कमरे से बाहर निकालकर इधर उधर ऐसे देखता है जैसे कोई चोर चोरी करने के वक़त देखता है. सलोनी के होंठो पर मुस्कान फैल जाती है. वो राहत की सांस लेती है. राहुल पक्का करने के बाद के कोई उसे देख नहीं रहा, खाने की थाली और फ्लास्क उठता है और कमरे में घुश कर दरवाज बंद कर लेता है. सलोनी लगभग हँसति हुयी निचे जाती है. वो कमरे में जाकर लेट जाती है. वो बहुत थकान महसुस कर रही थी, सुबह से इतना काम करना पड़ा था और ऊपर से राहुल के साथ झगडा. वो एक आधा घंटा सोना चाहती थी.

राहुल खाने का सामान बेड पर रखता है. थाली से आ रही आलू के पराठे की तेज़ गंध ने उसकी भूख को कई गुणा बढा दिया था. मगर थाली में एक फोल्ड किया हुआ पेपर भी था जिसके ऊपर कुछ लिखा हुआ था. राहुल पेपर उठा कर पढता है.

"मैं गयारह बजे तुम्हारे रूम की सफायी करने आउंगी. दरवाजा खुला रखना. अगर तुम नहीं चाहते तो में तुमसे बात नहीं करुँगी" राहुल पेपर वापस थाली में रखकर नाश्ते में जुट जाता है. शायद उसकी भूख इतनी तेज़ थी या फिर सलोनी के हाथ का कमाल था, पराठा इतना टेस्टी था के उसका मन खुश हो जाता है. चाय की चुस्कियाँ लेता वो अब अपनी मम्मी के लिखे खत के बारे में सोचता है. वो कमरे की सफायी करने आ रही थी लेकिन वो दरवाजा नहीं खोलेगा. उसे सजा मिलनि चाहिए थी ताके वो कभी दोबारा ऐसी बात न कह सके. राहुल जिसका मन अभी कुछ समय पहले किसी काम में नहीं लग रहा था, नाश्ते के बाद उसके मूड में जबरदस्त बदलाव आ गया था वो अपनी बुक्स उठाकर पढ़ने लगता है.

सलोनी की जब आँख खुलती है तोह क्लॉक पर गयारह बजने में अभी दस् मिनट बाकि थे. वो उठकर हाथ मुंह धोती है. अब वो कुछ फ्रेश महसूस कर रही थी. वो ऊपर राहुल के कमरे की और जाती है. उसके होंठो पर मुस्कराहट थी, उसे पक्का यकीन था. उधऱ राहुल घडी पर बार बार समय देख रहा था. एक तरफ वो अपनी मम्मी से मिलना नहीं चाहता था और दूसरी तरफ उसे बेसब्री से गयारह बजने का इंतज़ार था. मगर समय जैसे उसके लिए रुका हुआ था, घडी की सुईआं जैसे जाम हो गयी थी. जब गयारह वजने में पन्द्रह मिनट रह गए तो अपने निस्चय के खिलाफ वो खुद उठता है और अपने कमरे का लॉक खोल देता है. वो वापस कुरसी पर बैठकर पढ़ने की कोशिश करने लगता है. मगर उसका धयान पढ़ाई में बिलकुल नहीं था. वो अपने कान लागए ध्यान से सीढ़ियों से आने वाली किसी आहट का इंतजार कर रहा था. गयारह बज चुके थे मगर सलोनी कमरे में नहीं आई. राहुल बेचैनी से पहलू बदल रहा था. उसे लगा सायद वाल क्लॉक सही समय नहीं दिखा रहा था शायद उसकी बैटरी ख़तम हो गयी थी. राहुल उठकर टेबल से अपना फ़ोन उठता है, मगर समय सही था. गयारह बजकर पांच मिनट हो चुके द. राहुल थाली में से पेपर उठकर पढता है के कहीं उसे पढ़ने में तोह भूल नहीं हो गई. मगर पेपर पर गयारह बजे का समय लिखा था.

"वो आ क्यों नहीं रहि" वो बेचैन होकर खुद से दोहराता है. तभी सीढ़ियों पर सैंडल की थक्क थक्क की आवाज़ आती है. राहुल मुस्कराता हुआ भाग कर अपनी कुरसी पर बैठ जाता है और अपना धयान सामने पड़ी बुक में लगा देता है. उसका दिल जोरों से धड़क रहा था.
 
तभी उसे सीढ़ियों पर कदमो की आहट सुनायी देती है. उसके दिल में सुकून की लहर दौड जाती है. वो दरवाजा खोलकर देखना चाहता था मगर किसी तरह वो खुद पर काबू रखता है.

"राहुल......बेटा...." आखिरकार राहुल के कानो में उसकी मम्मी की आवाज़ गूँजती है और वो चैन की लम्बी सांस लेता है. सलोनी की आवाज़ से मालूम चल रहा था के वो एकदम ठीक थी.

"बेटा में तुम्हारे लिए नाश्ता लायी हुं......यहां बाहर रखा है.........मुझे मालूम है तुम मुझसे बहुत नराज़ हो........अगर तुम मुझसे बात नहीं करना चाहते तो ठीक है में निचे जा रही हु मगर प्लीज खाना खा लो........." सलोनी इतना बोलकर खाने की थाली और चाय की फ्लास्क डोर के सामने मगर उससे काफी दूर रख देती है. फिर वो जानबूझकर अपनी सैंडल्स की ऐड़ियों से ऊँची आवाज करती निचे जाने लगती है. सिढ़ियों के निचे पहुंचकर वो अपनी सैंडल्स उतरती है और वापस ऊपर जाती है. वो पंजो के बल हलके हलके पैर रखती बिना कोई आवाज़ किये गेस्ट बैडरूम में जाती है और धीरे से दरवाजा खोल कर अंदर घुस जाती है. अपने पीछे वो दरवाजा बंद नहीं करती बल्कि उसमे हल्का सा ग्याप रखती है. मगर उस ग्याप से वो राहुल के कमरे के सामने फर्श पर रखी थाली देख सकती थी
 
सलोनी निचे जाकर अपने कपडे पहनती है और फिर बैडरूम की हालत सुधारती है. पूरा बैडरूम उनकी काम क्रीड़ा की सुगंध में डुबा हुआ था. वो बेड की चादर बदलती है और कमरे की खिड़कियाँ खोल देती है. एक पल के लिए उसे यकीन नहीं होता के वो अभी चंद मिनट पहले उस बेड पर अपने बेटे से चुद रही थी, पिछली आधी रात तक जिस तरह उसके बेटे ने उसे चोदा था उसके बाद वो उसकी बात पे ऐसे गुस्सा करेगा उसने सपने में भी नहीं सोचा था. वो बेड की चादर और कुछ कपडे वाशिंग मशीन में धुलने के लिए डाल देती है और फिर घर की थोड़ी बहुत सफाई करने लगी है. अखिरकार वो फ्री होकर बाथरूम जाती है और ब्रश करके हाथ मुंह धोती है और फिर किचन का रुख करती है.

सलोनी राहुल के लिए स्पेशल आलू के परांठे बनाती है जो उसका सबसे फेवरेट नाश्ता था. पराठे और फिर एक फ्लास्क में चाय डालकर वो ऊपर लेकर जाती है. राहुल का दरवाजा अभी भी बंद था. दो घंटे गुज़र चुके थे

राहुल अपनी मम्मी के जाने के काफी समय बाद तक रोता रहा. मगर अंत-तहा उसके आंसू सुख गये. उसके दिल का उबाल निकल गया. अखिरकार फर्श पर बैठे बैठे वो इतना थक गया की उसे उठना पड़ा. उसके पूरे जिस्म पर रात की जबरदस्त चुदाई के सबूत थे, उसके और उसकी मम्मी के कामरस के सबूत. और फिर सुबह की चुदाई और फिर उसके बाद इतना रोने से उसका पूरा हुलिया बिगड़ा हुआ था. वो उठकर बाथरूम में जाता है और नहाने लगता है. नहा धोकर वो कपडे पहनता है और अपने बेड पर लेट जाता है. अब वो दुःखी नहीं था मगर अभी भी उसके दिल में अपनी मम्मी के लिए जबरदस्त गुस्सा था. वो आखिर ऐसी बात सोच भी कैसे सकती है. वो यह स्वीकार नहीं कर पा रहा था की सलोनी ने उसके साथ मज़ाक़ किया था.

राहुल टीवी लगाता है मगर फिर बंद कर देता है. वो उठ कर कमरे में टहलने लगता है. उसका दिल किसी काम में नहीं लग रहा था. असल में उसे बेहद्द तेज़ भूख लगी थी. रात की जबरदस्त चुदाई और फिर सुबह के किस्से के बाद उसका नाश्ता वैसे ही बहुत लेट हो चुका था मगर अब उसकी माँ को गए भी तो कितना समय हो चुका था. वो कह कर गयी थी की वो उसके लिए नाश्ता बनाकर ला रही है फिर अभी तक आई क्यों नही, यह सोचकर राहुल को हैरानी हो रही थी. उसका दिल किसी अनहोनी के लिए भी धड़क रहा था. आज उसने अपनी मम्मी के साथ बहुत बुरा बर्ताव किया था. वो कैसे बार बार उसकी मिन्नतें कर रही थी. मालूम नहीं उसकी कैसी हालत होगी. राहुल को सलोनी की चिंता भी हो रही थी और उसका दिल कह रहा है की वो जाकर एक बार उसे देख कर आये मगर वो खुद को अपनी मम्मी के सामने कमज़ोर भी साबित नहीं करना चाहता था. लेकिन वो कर क्या रही थी, नाश्ता बनाने में कोई दो घंटे थोड़े न लगते है. राहुल की चिंता बढ़ती जा रही थी, ऊपर से उसे भूख सता रही थी. बैचैनी से वो कमरे में इधर से उधर चक्कर काट रहा था और फैसला करने की कोशिश कर रहा था की उसे निचे जाना चाहिए या नहि. कहीं न कहीं उसका गर्व उसे निचे जाने से रोक रहा था मगर अपनी मम्मी की चिंता भी उसके मन को अशांत किये हुए थी.
 
"प्लीज् बेटा...मान जाओ......क्यों इतना सता रहे हो.......मा हु तुम्हारी............मा को इस तरह कोई दुःख देता है क्या...........प्लीज् दरवाजा खोल दो बेटा......." मगर दरवाजा नहीं खुलता.

"बेटा अगर तुम्हे लगता है के मैंने ग़लती की है तोह मुझे जो चाहे सजा दे दो........मगर दरवाजा खोल दो......दरवाजा खोल दो बेटा......प्लीज् बेटा......प्लीस....." सलोनी रुआँसे स्वर में बोली. राहुल अपना चेहरा उठकर दरवाजे की और देखता है. वो अपनी मम्मी को यूँ मिन्नतें करते देख बहुत दुखी था. वो तोह कभी सपने में भी उसे दुखी नहीं देख सकता था मगर उसकी मम्मी ने जो कहा था वो उसके लिए असहनीय था. राहुल की आत्मा तड़प उठि थी. लेकिन वो इस तरह अपनी माँ को रोते बिलखते भी दरवाजे के बाहर नहीं सुन सकता था.

"आप जायिये यहाँसे .........मुझे कुछ समय के लिए अकेला छोड़ दीजिये" राहुल आखिरकार अपनी माँ को जवाब देता है. सलोनी कुछ पल चुप रहती है. फिर उसे लगता है के यही ठीक रहेगा के उसे कुछ समय के लिए अकेला छोड़ दिया जाये तब तक उसका गुस्सा कुछ शांत हो जायेगा बाकि वो खुद संभाल लेगी.

"ठीक है बेटा.......में जा रही हु........में तुम्हारे लिए नाश्ता बनाकर लाती हु.........." सलोनी दरवाजे से हट जाती है.

"मुझे आपका नाश्ता वाश्ता नहीं चाहिए......आप मेरे दोस्तों को जाकर नाश्ता खिलाइये जिनके साथ आपने मस्ती करनी है, अपना मन बहलाना है"
राहुल के लफ़ज़ जहर बुझे तीर की तरह सलोनी के दिल में चुभ जाते है. वो कुछ कहने के लिए अपना मुंह खोलती है मगर फिर कुछ सोचकर न बोलने का फैसला करती है. उसका बेटा अभी बहुत ग़ुस्से में था, उसे उस समय कुछ कहना आग में घी ड़ालने के बराबर था सही एहि था के उसे कुछ समय के लिए अकेला छोड़ दिया जाये. सलोनी ठण्डी आह भरती निचे की और जाने लगती है.
 
सलोनी जब कमरे से बाहर निकल राहुल की तरफ भागती है तोह वो सीढ़ियों के उपरी हिस्से तक्क पहुँच चुका था. राहुल -राहुल पुकारती सलोनी अभी सीढियाँ चढ़ रही थी के राहुल के कमरे का दरवाजा भड़क की ज़ोरदार आवाज़ के साथ बंद हो जाता है. सलोनी हाँफती हुयी राहुल के दरवाजे को खोलने की कोशिश करती है मगर वो अंदर से बंद था. वो दरवाजा खटखटती है.

"राहुल.......राहुल....... बेटा........दरवाजा खोलो.........में मजाक कर रही थी........." सलोनी राहुल को समझाने की कोशिश करती है. मगर राहुल दरवाजा नहीं खोलता.

"आप जायिये यहाँसे .....मुझे आपसे कोई बात नहीं करनी है........" राहुल का तीखा कठोर स्वर सुनायी पढता है.

"बेटा सुनो........अखिर तुम्हे यकीन क्यों नहीं होता........मैने कल सब्जी मंडी में भी तुम्हे बताया था न के आज तक मैंने तुम्हारे पापा के सिवा किसी के साथ सम्बन्ध नहीं बनाया........सिर्फ एक तुम हो........में तोह तुम्हे छेड रही थी बेटा........में मजाक कर रही थी............." सलोनी नंगी बेटे के दरवाजे के बाहर खड़ी उसे बार बार पुकार रही थी, समझा रही थी मगर राहुल कोई बात सुनने के लिए तैयार नहीं था.
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"बेटा दरवाजा खोलो.........खोलों भी........देखो मैं तुमसे बार बार कह रही हुण........तुम मेरा यकीन क्यों नहीं करते.........प्लीज् दरवाजा खोलों बेटा........" मगर दरवाजा नहीं खुलता. सलोनी इतने समय से खड़ी खड़ी थक्क चुकी थी. वो नंगी ही ठन्डे फर्श पर बैठ जाती है.

अंदर राहुल अपने हातों में सर दबाये रो रहा था. उसकी आँखों से आंसू बह रहे थे. उसकी माँ को कोई और छुये वो यह विचार भी बर्दाशत नहीं कर सकता था. वो तो कभी अपने घर पर अपने दोस्तों तक को नहीं लाता था क्योंके वो उसकी माँ को गंदि, घिनोनी नज़र से देखते थे. और वो कैसे बर्दाशत करता उसके दोस्त उसकी माँ के नंगे बदन को छूएँ, उसकी माँ के पवित्र देह से खिलवाड करे. नहीं वो यह कभी बर्दाश्त नहीं कर सकता था.

"बेटा दरवाजा खोलो.........देखो में तुम्हे कब से कह रही हु......मैने मज़ाक़ किया था........तुम क्यों बात को इतना बढा रहे हो...........में कोई बाज़ारू रंडी हु...........जो हर किसी के सामने........." सलोनी थोड़ा सा भावुक होते कहती है. मगर दरवाजा नहीं खुलता.
 
"उम्..........में सोच रही थी अगर तुम्हारे दोस्त आ आयेंगे तोह हम दोनों का मन बहाल जाएगा........घर के माहोल में नयापन सा आ जाएगा............तुम भी उनके साथ मस्ती करके अपना दिल खुश कर लेना.......में भी तुम्हारे दोस्तों के साथ थोड़ी बहुत मस्ती करके अपना मन बहला लूँगी ...............थोडा टेस्ट बदल जाएगा........" सलोनी बहुत ही शरारती और रहसयमयी ढंग से मुस्करा रही थी.
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"कैसी......केसी मस्ती........" राहुल के सीने में उसका दिल ज़ोरों से धड़क रहा था, साथ ही साथ उसे अपने दिल में एक चीज की लहर सी दौडती महसूस हो रही थी. उसका का दिल जैसे जल रहा था.

"मस्ती कैसी?........जैसी हम दोनों करते है.........तुमहारे दोस्त भी खुश हो जाएंगे..........." सलोनी राहुल को आँख मरती है.

राहुल एक पल के लिए अपनी मम्मी को देखता है जैसे उसे उसकी बात समज ही न आई हो. फिर वो तुरुंत ज़ोर से झटका मारकर सलोनी के ऊपर से उतर जाता है. वो इतने बल से सलोनी के ऊपर से हटा था के सलोनी की टांगो और उसकी बाँहों के जोड़ एक ही झटके से खुल गए थे

राहुल बेड से निचे उतर अपनी मम्मी की और देख रहा था. उसके चेहरे पर घोर अविश्वास के भाव थे. उसे जैसे यकीन नहीं हो रहा था. फिर यकायक उसके चेहरे के भाव बदल जाते है, उसका चेहरा ग़ुस्से से लाल हो जाता है लेकिन फिर अचानक से उसका चेहरा पीला पढ़ जाता है. उसके होंठ कांप रहे थे. उसके चेहरे पर तीव्र असहनीय पीड़ा के ऐसे भाव थे जैसे कोई उसका दिल अपनी मुट्ठि में भरकर निचोड़ रहा था. सलोनी को अपनी ग़लती का एहसास हो चुका था.

"बेटा......में मज़ाक़ कर रही थी..........में सच में मज़ाक़ कर रही थी......." सलोनी बेड पर उठकर बेटे की और बढ़ती है.

मगर राहुल ने जैसे उसकी बात सुनि ही नहीं थी. उसके गाल आंसूयों से भीगने लगे थे. जैसे ही सलोनी ने बेड से उतरना चाहा, वो तेज़ी से पलटा और कमरे से बाहर निकल गया. अपने पीछे उसने भड़क से दरवाजा बंद कर दिया.

सलोनी झटके से बेड से निचे उतरती है. बेटे की ऐसी प्रतिकीया की उसने सपने में भी उम्मीद नहीं की थी.

"राहुल सुनो......सूनो बेटा......रुको में सच कहती हुन में मज़ाक़ कर रही थी......." सलोनी नंगी ही बेटे के पीछे भागती है.
 
"उह.....कया करू मुम्मी.........तुम हो ही ऐसी..........तुम्हरी कैसे भी लूँ मगर हर बार पहले से भी ज्यादा मज़ा आता है..................." राहुल मुस्कराता हुआ अपनी मम्मी के होंठ चूम लेता है.

"मगर आज बहुत...........ओह..........आज बहुत धीरे धीरे ले रहा है............... अपनी मम्मी को चोद रहा है या प्यार कर रहा है........हुँठ्हः..." सलोनी चुंबन का जवाब देती है.
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"प्यार तोह में हमेशा करता हुन मम्मी............. चाहे आपकी कैसे भी लू.........मगर आज नजाने क्यों दिल कर रहा था के ऐसे ही धीरे धीरे आपकी लेता रहुं.............घंटो ऐसे ही धीरे धीरे आपके अंदर अपना डालता रहुं...........बस आज मन कुछ नया करने को कर रहा था.............." राहुल सलोनी के होंठो पर लगातार चुम्बन अंकित करता उसे चोदे जा रहा था.

"यह तोह आज साहब का मूड कुछ नया करने का है...............उम..........मेरे पास एक आईडिया है.......आह्ह्ह्हह......हम दोनों का दिल भी बहाल जायेगा..............और मज़ा भी बहुत आएगा......." सलोनी सिस्कियों के बिच चुदवाते हुए कहती है.

"केसा आईडिया मुम्मी............." राहुल एकदम धक्के रोककर कोतुहल से पूछता है.

"उम्........बताती हुं.......मगर तू रुक क्यों गया..........हाईए अपना लौडा पेलना जरी रख........." सलोनी चुदाई रुक जाने पर तूरुंत राहुल को बोल उठती है. उसे इतना मीठा सा मज़ा आ रहा था के चुदाई रुकना उसे बिलकुल भी अच्चा नहीं लगा.

"अब बतायो भी मुम्मी........." राहुल व्यग्रता से पूछता है

"देख तोह मज़े लेने के नए आईडिया को सुन्ने के लिए किस तरह तड़प रहा है ........... बताती हुन .........बताती हुण............में सोच रही थी तुम इतने दिनों से घर पर हो..........ना ही बाहर गए हो........ना ही अपने दोस्तों से मिले हो............तो मैंने सोचा क्यों न उन्हें यहाँ बुला लूँ........" सलोनी मुस्कराती है.

"किस लिए?????..........कीस लिए???........राहुल चुदाई रोककर एकदम गम्भीर स्वर में अपनी मम्मी से पूछता है. राहुल की चुदाई रोक देणे और यकायक इतने गम्भीर हो जाने से सलोनी के होंठो की मुस्कराहट गहरी हो जाती है.
 
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