AntarvasnaX जवानी जानेमन

चन्द्रमा झाड़ कर एक दम शांत हो गयी थी मनो शरीर का सारा रास निकल गया हो, मैं भी चन्द्रमा के पैरों के बीच से उठ कर उसके बगल में लेट गया, मेरे होटों, ठोढ़ी और गाल पर लार और छूट रास लिसाड़ा हुआ था चन्द्रमा ने एक बार मेरे चेहरे के और देखा और अपनी ऊँगली से इशारा किया, मैं समझ गया था की वो मुझे अपना चेहरा साफ़ करने के लिए बोल रही थी, मैंने भी लेटे लेटे अपनी बनियान खींच कर अपना मुँह और ठोड़ी पोंछ लिया , मैं चाहता तो पास पड़े तौलिये से भी पोंछ सकता था लेकिन मैंने जान बुझ कर अपने बनियान से पोंछा आखिर पहलीबार उसकी चूत का पानी टेस्ट किया था, कुछ निशानी तो रखना बनता था।

चन्द्रमा अब पूरी तरह शांत हो चुकी थी और उसके चेहरे पर सुंख की एक अनोखी अनुभूति साफ़ नज़र आरही थी, मैंने हाथ आगे बढ़ा कर उसको होनी बहा में समेत लिया, चन्द्रमा भी बिना देर किये मेरे शरीर से चिपक गयी, अभी तक चद्र्मा का टॉप उसके गले में उत्का हुआ था और उसकी लेग्गिंग्स घुटनो तक मुड़ी हुई थी, ना तो चन्द्रमा ने अपनी कपडे ठीक किये थे और न मैंने, चन्द्र्मा के माथे पर एक किस किया लेकिन जैसे ही मैं उसके लिप्स पर किस करना चाहा उसने अपना मुँह घुमा लिया " गंदे पहले मुँह धो कर आओ "

मैं : अरे इसमें गन्दा क्या है ?
चन्द्रमा : आप तो पागल हो वो कौन किस करता है भला ?
मैं : सब करते है, भला इतनी प्यारी चीज़ को कौन नहीं प्यार करेगा
चन्द्रमा : आप प्यार कम और खा ज़्यदा रहे थे, लग रहा था जैसे पूरा खा जाओगे मुझे
मैं : तुम मौका तो दो फिर देखो अगर खा न जाऊ तुमको पूरा का पूरा
चन्द्रमा : एक दम जानवर हो आप, ज़रा सा टाइम नहीं लगाते, पता नहीं लगता कब क्या कर बैठोगे
मैं : अच्छा छोड़ो ये बताओ मज़ा आया की नहीं ?
चन्द्रमा : (एक दम कस कर चिपकते हुए कान में पुसफुसाई) हम्म बहुत
मैं : तो फिर करे एक बार और मज़ा आएगा
चन्द्रमा : नहीं अब बस बहुत हो गया फिर किसी और दिन, अब सोते है, मैं बुरी तरह थक गयी हूँ
मैं : जो हुकुम बेगम साहिबा

ये सुन कर चन्द्रमा ही ही करके है पड़ी, मैं भी सुबह का जाएगा हुआ था और पता नहीं कब से चन्द्रमा के जिस्म से खेलने में लगा हुआ था, टाइम का कोई अंदाज़ा ही नहीं था, जितना भी हुआ था प्लान से बहुत ज़्यदा हो गया था और अब पूरा विश्वास था की जल्द ही चन्द्रमा की चूत चोदने को मिलेगी।
चन्द्र्मा ने अपने कपडे ठीक कर लिए थे और अब करवट हो कर लेट गयी थी, मैंने भी कम्बल कंधो तक खींच कर चन्द्रमा की ओर मुँह करके लेट गया और चन्द्रमा अपने से सटा लिया। आज शाम से मैं चन्द्रमा के शरीर से खेल रहा था लेकिन अभी तक एक भी लण्ड झरा नहीं था, बार बार अकड़ कर उसकी हालत ख़राब थी, मैंने ट्रॉउज़र में हाथ दाल कर लण्ड को सेट किया और थप थापा कर उसको चूत मिलने का भरोसा दिलाया, लण्ड की हालत बुरी थी, थोड़ा थोड़ा लुंड का रस टपकने से चिप चिपा हो चूका था, मैंने लण्ड सीधा किया किया और चन्द्रमा की कमर में हाथ डाल कर अपनी ओर खिसकाया और उसकी मस्त गरम गांड को अपने लण्ड से सटा दिया । गांड की गर्मी पाकर लण्ड कुछ में देर में फिर से पूरा अकड़ गया और गांड की दरार में घुस कर चन्द्रमा की गांड करदने लगा। चन्द्रमा जो अब आराम से लेट कर हलकी नींद की आगोश में जा रही थी शायद लण्ड की ठोकर को उसने अच्छे से महसूस कर लिया, एक दो मिनट तो वो चुप रही लेकिन जब लण्ड की शैतानी ज़्यादा बढ़ने लगी तो मेरी ओर गर्दन घुमा के बोली
"सोने दो ना, बहुत तेज़ की नींद आरही है "

मैं : हाँ तो सो जाओ मैं कहा मन कर रहा हूँ
चन्द्रमा : आप सोने दो तब ना, ये शांत क्यों नहीं हो रहा है ? आपने तो बोलै था की बस ठोड़ी देर करने दो तो तब शांत हो जायेगा और आराम से सो जायेंगे।
मैं : तुमको शान्ति मिल गयी लेकिन इसको नहीं मिली है इसीलिए
चन्द्रमा : तो कैसे होगा शांत ? अभी आपने किया तो उस से शांत नहीं हुआ क्या ?
मैं : पागल अभी जो किया उस से ये और भड़क गया है इसको शांत करने के लिए और कुछ करना पड़ेगा और उसमे तुमो भी साथ देना पड़ेगा
चन्द्रमा : ना बाबा न, अब नहीं मैं थक गयी हूँ बस सोना है मेको
मैं : सो जाओ तुम इसको ऐसे ही शरारत करने दो ठोड़ी देर में शांत हो जायेगा खुद फिर मुझे भी नींद आजायेगी
चन्द्रमा : देख लो अगर आप खुद करके होना चाहो तो कर लो बाकी आज मैं कुछ हेल्प नहीं कर पाउँगाी सॉरी, प्लीज आप नाराज़ मत होना (उसकी आवाज़ में हल्का सा गिल्ट था )
मैं : अरे पागल हो क्या मैं क्यों नाराज़ होऊंगा भला, हमने जो कुछ किया मस्त किया और मुझे खूब मज़ा आया, थैंक यू फॉर सपोर्टिंग मे।, इसका तो बाद में कोई सलूशन देखेंगे।

ये सुन कर चन्द्रमा ने एक किस मेरे माथे पर कर डाला जैसे मैं अब तक उसको करता आया था और फिर वापिस करवट ले कर लेट गयी और मैं भी लण्ड उसकी गांड की गहरी दरार में डाल कर नींद के हिलोरे लेता हुआ सो गयa
 
मैं और चन्द्रमा गहरी नींद में थे की अचानक मोबाइल के शोर से आँख खुल गयी, खीजते हुए फ़ोन उठाया तो देखा अलार्म है, जो कल ट्रैन के लिए रात में लगाया था, ४ बजे गए थे और अलार्म शोर मचा रहा था, खुद पर गुस्सा आया की धयान से नहीं लगाया अलार्म, अच्छी खासी नींद का सत्यानास हो गया, अलार्म बंद करके लेता तो फील हुआ की पेशाब भी तेज़ लगा है, अब मजबूरी में उठना ही पड़ा, मैं रात में पेशाब करके सोता हूँ कल रात में चन्द्रमा की गांड की गर्मी का मज़ा लेने के चक्कर में नहीं जा पाया था। वाशरूम में जा कर पेशाब किया, पेशाब करने के बाद लण्ड को देखा जो अब सुकड़ कर छोटा हो गया था और शांत लटका हुआ था, लेकिन मैंने एक बात नोटिस करि की रात में जो थोड़ा बहुत रस लण्ड ने टपकाया था वो अब लण्ड पर चिपक कर सुख गया था पपड़ी के जैसा और अजीब लग रहा था, मुझे अपना लण्ड और लण्ड का एरिया साफ़ सुथरा रखना पसंद है, मैंने जेट चला कर लण्ड को धोया और टॉयलेट पेपर से ठीक से सूखा कर वापिस निकल आया।

अब लण्ड धोने से समस्या ये हुई की मेरी नींद भाग गयी और मैं चुपचाप आकर बिस्तर में लेट गया लेकिन नींद गायब थी, मैंने चन्द्रमा की ओर देखा तो वो बेखबर नींद की दुनिया में खोयी हुई थी मनो हर फ़िक्र से बेखबर, सोते हुए उसका चेहरा बहुत प्यारा लग रहा था बिलकुल बच्चो जैसे साफ़ सुथरी कोमल स्किन होंटो की लिपिस्टिक रात की किसेस के कारण मिट गयी थी और उसके गुलाबी होंठ बहुत प्यारे लग रहे थे, शायद सोने या रात में किये कारनामे के कारण उसकी पोनीटेल से बहुत से बाल खुल कर माथे और गालो पर चिपक गए थे, एक मोती लट उसके होंटो के बीच में दब गयी थी जिसके कारण उसका चेहरा हल्का सा छुप गया था मैं उसके बिलकुल पास चिपक के लेट गया, चन्द्रमा का चेहरे बिलकुल मेरे सामने था और मैं ख़ामोशी से उसके मासूम चेहरे को निहार रहा था, अचनाक मन में एक प्रेम की हुक सी उठी और मै हल्का सा उसके होटों पर झुक कर एक किस कर ली।

जैसे ही मेरे होंटो ने चन्द्रमा के होंटो को छुआ की चन्द्रमा ने एक ज़ोर की चीख मारी और मुझे धक्का दे दिया और बिस्तर पर लेते लेते हाथ पाओ चलते हुए चिल्लाने लगी
चन्द्रमा : नहीं!!!!!!!!!!! रुक जाओ, मत करो प्लीज
मैं हड़बाकर सीधा हुआ और हैरत से चन्द्रमा को देखने लगा, चन्द्रमा की आँखे बंद थी और वो हाथ पाव ऐसे चला रही थी मनो नींद में लड़ाई कर रही हो, मेरी कुछ समझ नहीं तो मैं उसके पास जाकर बोला
मैं : अरे कुछ नहीं हुआ सब ठीक है डरो मत
चन्द्रमा : (वैसे ही चिल्लाते हुए ) बस !!!!! मत करो प्लीज मुझे छोड़ दो, जाने दो, मुम्मा मुझे बचा लो
मैं : अरे क्या हुआ ऐसे चिल्ला रही हो? (मैं उसके गाल हलके हलके थपथपाने लगा, मेरे हाथ अभी पानी छूने के कारण ठन्डे थे जिसके कारण चन्द्रमा की आँख खुल गयी और उठ बैठी
मैं : क्या हुआ था क्यों चिल्ला रही थी इतना, मैं तो बस हल्का ऐसे ही टच किया था
चन्द्रमा : मैं डर जाती हूँ, प्लीज मुझे सोते हुए ऐसे कभी मत करना,
मैं : अच्छा ठीक है अब सो जाओ फिर
चन्द्रमा : हम्म वाशरूम से आती हूँ फिर सोऊंगी
चन्द्रमा बाथरूम चली गयी और मुझे उसके मूतने की आवाज़ सुनाई दे रही थी शायद वाशरूम का गेट उसने ठीक सेबंद नहीं किया था फिर जेट चलने की आवाज़ आयी मैं समझ गया की उसने मूतने के बाद अपनी चूत धो ली है, लेकिन इस टाइम मेरा सारा दिमाग इस उधेरबुन में लगा हुआ था की अचानक मात्र एक हलके से किस ये इतना क्यों डर गयी जबकि अबसे 5-६ घंटा पहले ही हमने कोई हद नहीं छोड़ी थी
मुझे उसके चीखने पर कुछ अजीब सा डाउट आया था और मैंने मन बना लिया था की अब जब ये वाशरूम से आएगी तब ये डाउट क्लियर करके रहूँगा। चन्द्रमा बाथरूम से बाहर आयी और आकर बिस्तर में घुस गयी , देखने से साफ़ पता चल रहा था की उसकी भी नींद उचट चुकी है और अब हम दोनो को नींद नहीं आने वाली।

मैंने कम्बल उठा कर चन्द्रमा को अपनी बांहो में समां लिया और धीरे धीरे उसकी पीठ सहलाने लगा, मैं उसके कान में धीरे से सॉरी बोला
मैं : आय ऍम सॉरी यार, मैं सुसु करके उठा था तुमको सोते देख के मुझे प्यार आया तो मैंने ऐसे ही हलकी से किस कर दी, मुझे नहीं पता था की तुम डर जाओगी,

चन्द्रमा : कोई बात नहीं लेकिन आगे ऐसा मत करना, मेरी बहुत बुरी हालत हो जाती है ?
मैं : अच्छा ऐसा क्या है जो तुम इतना डरती हो नींद में
चन्द्रमा : कुछ नहीं बस ऐसे ही (मुझे अंदाज़ा हो गया की वो बात टालना चाह रही है, लेकिन मैंने पक्का सोच लिया था इस का रीज़न पता करने का )
मैं : फिर भी कोई तो कारण होगा, बिना कारण कोई ऐसे नहीं चिल्लाता
चन्द्रमा : छोड़ो ना, बाद में बताउंगी
मैं : नहीं चन्द्रमा, नहीं छोड़ सकता, तुम हर बार ऐसा बोल के टाल देती हो लेकिन आज नहीं आज मुझे जानना है
चन्द्रमा : अरे नहीं कोई खास बात नहीं है
मैं : चाहे खास हो या आम। मुझे जानना है (मेरी आवाज़ में हलकी नाराज़गी थी जो चन्द्रमा ने महसूस कर ली)
चन्द्रमा : रहने दो प्लीज आप नहीं समझोगे, कोई नहीं समझेगा
मैं : भरोसा करो मेरा, चाहे कितनी भी अजीब बात हो मैं कोशिश करूँगा समझने की
चन्द्रमा : नहीं प्लीज, ये बात मैंने आजतक किसी को नहीं बताई, मैंने नहीं चाहती ये किसी को पता चले, पता नहीं कोई क्या समझेगा मेरे बारे में
मैं : तुमको लगता है की अगर तुम मुझे बताओगी तो मैं ये बात साड़ी दुनिया को बता दूंगा ?
चद्र्मा : हम्म नहीं लेकिन।।।।।
मैं : अच्छा तो फिर मुझसे भी सुनो अगर भरोसा हो तो बताना वरना मत बताना और बात यही खतम हो जाएगी
चन्द्रमा : मतलब ????
मैं : मतलब ये की तुमको सैलरी कितनी मिलती है ?
चन्द्रमा : अट्ठारह हज़ार, लेकिन क्यों ?
मैं : तुमको पता है तुमसे पहले इस पोस्ट पर जो गर्ल थी उसकी कितनी सैलरी थी ?
चन्द्रमा : पता नहीं क्यों ?

मैं : लास्ट गर्ल जो जॉब छोर कर गयी उसका नाम स्वाति था और उसको बारह हज़ार सैलरी मिलती थी। तुमको ज़ायदा से ज़ायदा चौदह हज़ार मिलती, लेकिन तुमको अट्ठारह मिलती है मेरे कारण, उनकी कंपनी में जितनी डाई आती है वो मेरी कंपनी सप्लाई करती है और जो मैनेजर है अमित वो मेरा दोस्त है और उसने तुमको मेरे कारण पर जॉब पर रखा और सैलरी का एक्स्ट्रा अमाउंट जो मिलता है वो मैं उसको डाई पर डिस्काउंट दे कर चुकता हूँ। क्या समझी इतने दिन कभी बताया तुमको या किसी ने टोका क्या ? ना कभी अहसान जताया, मैंने ये सिर्फ तुम्हारी हेल्प के लिए क्या, और रही बात और ट्रस्ट की तो मुझे मालूम है की तुम अशोक कॉलोनी में रहती हो तुम्हारा बॉयफ्रैंड दीपक डेली तुमको पिक एंड ड्राप करने आता है, उसके पास स्प्लेंडर बाइक है है जिस पर तुम उसके पीछे चिपक कर बैठती हो जैसे मेरे साथ सरोजनी नगर से आते टाइम बैठी थी।

मैं बहुत कुछ जनता हूँ तुम्हारे बारे में लेकिन मुझे इन सब से कुछ फरक नहीं पड़ता क्यूंकि मुझे तुम पसंद हो और मैं तुमको खुश देखना चाहता हूँ, रही बात ट्रस्ट की तो अगर एक पल के लिए भी तुमको मुझ पर डाउट है तो जितना हमारे बीच में हुआ है मैं उसके भूल जाऊंगा और फिर कभी हाथ नहीं लगाऊंगा और मैं ऐसे ही behave करूँगा जैसे हम अजनबी हो।
ये सब मैंने एक ही साँस में कह दिया, पता नहीं कब से भरा बैठा था जो आज मन से निकल गय।

चन्द्रमा की ओर देखा तो उसकी आँखे डबडबा आयी थी और वो मुझसे आँखे चुरा रही थी।
मैं : बताओ फिर ?
चन्द्रमा : क्या बताऊ, आप ऐसी बातें मत करो प्लीज
मैं : नहीं मुझे जानना है या फिर आज से हमारा जो भी सम्बन्ध है वो ख़तम (ये बोलकर मैं बिस्तर पर टक लगा कर बैठ गय। )
चन्द्रमा एक दम तड़प सी गयी और सर मेरी गोद में रख कर रो पड़ी, मैं उसके बालो में हाथ फेरने लगा, कुछ देर रोने के बाद उसने मेरी ओर एक क़तर दृष्टि से देखा और और अपने आंसू पोंछते हुए बैठ गयी और मेरा हाथ अपने सर पर रख कर बोली
चन्द्रमा : मेरी कसम खाओ की ये बात तुम अपने से अलावा और किसी से किसी कीमत पर डिसकस नहीं करोगे
मैं : तुम भरोसा कर सकती हो मुझ पर कसम की कोई ज़रूरत नहीं है फिर भी मैं कसम खता हूँ की ये बात मरते दम तक मेरे से बहार नहीं जाएगी

चन्द्रमा : ठीक है तो सुनो, बात देखो तो बहुत बड़ी और देखा जाये तो उतनी कोई खास भी नहीं है फिर भी मैं तुम पर भरोसा करके बता रही हूँ
मैं : बताओ फिर
चन्द्रमा : आपको हमारा घर तो पता चल ही गया है लेकिन शायद आपको नहीं पता की मैं जबसे आपने जॉब लगवाई है तब से अकेली रहती हूँ
अपने घर नहीं, जिस दिन अपने मुझे वह देखा होगा उस दिन मैं थोड़ी देर के लिए घर गयी होंगी, मैं महीने में एक दो बार अपनी मम्मी से मिलने चली जाती हूँ। अब कहेंगे जब मेरा घर है फिर मैं अकेली क्यों रहती हूँ तो उसके पीछे कहानी है और कहानी ये है की मेरे पापा बहादुर गढ़ के पास के एक गांव के रहने वाले है, मेरे पापा इकलौती संतान थे अपने माँ बाप के तो बिगड़े हुए थे शरु से ही, जैसे जैसे उम्र बढ़ी उन्होंने कमाई कम करी और शराब और सेक्स में पैसे ज़ायदा उड़ाए, दादा दादी इकलौता संतान होने के कारण ज़ायदा कुछ नहीं बोलते थे जिसके कारण उनको कोई रोक टोक नहीं थी, मेरे पापा की नौकरी फरीदाबाद में एक गोडाउन में थी जहा उनको केवल देखभाल करनी होती थी, गोडाउन बहुत बड़ा था तो वो अक्सर गार्ड के साथ मिलकल शाम में दारु पि लिए करते थे, दारु तक तो तब भी चल जाता था लेकिन असल दिक्कत उनकी रंडी बाजी के कारण थी, वो और गार्ड मिलके दारू पिटे और वही रंडीबाज़ी करते रमेश गार्ड पापा का पक्का यार था, धीरे धीरे ये बात दादा दादी तक पहुंची तो उन्होंने पापा की शादी थोड़ी दूर एक गाओ में करा दी,

(यहाँ पाठको को बता चालू की चूत चुदाई ेट्स ये शब्द मैंने आप के आन्नद के लिए लिखे है अन्यथा चन्द्रमा ने सेक्स शब्द का ही प्रयोग किया था कहानी बताने में )

बिमला एक बहुत सीढ़ी साधी देसी महिला थी उम्र भी कुछ ज़ायदा नहीं थी तो पापा उनको पाकर मनो पगला गए और काम धंधा छोर कर रात दिन घर में पड़े रहते और जहा मौका मिलता बिमला को चोद देते, चुदाई बिमलको को भी पसंद थी लेकिन वो हर समय की चुदाई से तंग आगयी और पापा से बच बच कर रहती लेकिन रात में जैसे ही रूम में आती पापा भूखे भेड़िये के जैसे उन पर टूट पड़ते, थोड़े दिन ऐसे चला लेकिन थोड़े दिन में दादा जी चल बेस तो मजबूरी में पापा को वापिस नौकरी पर जाना पड़ा, रमेश ने पापा को वही नौकरी मालिक से बोल कर दिला दी, पापा का वही फिर दारू पीना स्टार्ट हो गया, इसी बीच बिमला प्रेग्नेंट हो गयी तो दादी उनको डॉक्टर के पास ले गयी दिखाने, दादी की डॉक्टर से कुछ बात हुई फिर एक हफ्ते बाद डॉक्टर ने वापस बुलाया और जब वो दुबारा गयी थी डॉक्टर ने कुछ दवाई दी जो घर आके दादी ने बिमला को खिला दी, दवाई खाने के कुछ दिन बाद बिमला का गर्भ ख़राब हो गया, बिमला के शरीर से बहुत खून निकला, बाद में बिमला को पता चला की उसके गर्भ में लड़की थी इसलिए दादी ने डॉक्टर से बोल कर उनका गर्भ गिरवा दिय।

ये उन दिनों के बात है जब हरियाणा में लड़की पैदा होना किसी पाप के सामान था, बिमला सदमे आगयी लेकिन बेचारी कर क्या सकती थी, फिर कुछ दिन बाद जब सब समान्य हुआ तो पापा ने फिर से बिमला गाभिन कर दी, ऐसा करके ३ बार बिमला गाभिन हुई और पापा और दादी ने उसका गर्भ गिरवा दिया, तीसरी बार का दर्द और सदमा बर्दाश्त नहीं हुआ बिमला से और उसने गांव के कुंए में कूदकर जान दे दी।

पापा और दादी को कुछ खास फरक नहीं पड़ा लेकिन गांव में चर्चा का विषय बन गया तो पापा ने गांव की जमीन बेच कर फरीदाबाद में घर ले लिया एक अच्छे मोहल्ले में, बिमला के मरने के बाद पापा और रमेश की फिर ऐय्याशी स्टार्ट हो गयी, अब ना कोई टोकने वाला था और न बोलने वाला, गाओं के ज़मीन बेचने के बाद जो पैसे बचे थे पापा ने सब रंडी और दारू पर लुटा दिया, दादी ये सब देख देख कुढ़ती लेकिन वो कर भी क्या सकती थी?

लेकिन भगवान करना ये हुआ की कुछ दिनों बाद दादी को लकवा मार गया और वो चलने फिरने लायक नहीं रही, अब अकेले पापा से घर का काम और नौकरी नहीं हो पा रही थी तो ये समस्या उन्होंने रमेश को बताई, रमेश बिहार का था उसने अपनी बुद्धि लगायी और और पापा को लेकर अपने गाओ चला गया,

उन दिनों हरयाणा में बिहार व बंगाल से लड़की खरीद के शादी करने का चलन बन गया था, वहा जाकर उसने पापा की शादी मेरी माँ यानि सरिता कुमारी से करा दी, माँ फरीदाबाद आगयी और यही की होक रह गयी, बस पापा की पिछली और इस बार की शादी में फर्क इतना था की माँ पापा की टक्कर की थी, वो पापा से दबती नहीं थी और पापा भी इस लिए दब जाते थे क्यूंकि माँ पापा को कभी सेक्स की कमी नहीं होने देती थी बस पापा खुश तो घर में शांति थी, शादी के कुछ साल बाद मैं पैदा हो गयी, पापा नहीं चाहते थे की बेटी हो लेकिन माँ ने एक नहीं सुनी और अल्ट्रासाउंड करने से मना कर दिया, दादी बीमार रहती तो वो कुछ बोल नहीं पायी, पापा का मेरे साथ व्यवहार न बहुत अच्छा था न बहुत ख़राब तो मुझे कोई खास दिक्कत नहीं थी,

लेकिन वो कहंते है की भाग्य अपने अनुसार चलता है हमारे नहीं, एक दिन हमारे फरीदाबाद में एक बाबा आये जिनका दर्शन करने माँ एक पड़ोसन के साथ गयी और जब वह से वापिस आयी तो वो एक दम बदल गयी थी, आते ही माँ ने फ्रिज में से नॉन वेज उठा कर फेक दिया और पापा को बोल दिया की अब हमारे घर में नॉनवेज नहीं बनेगा और माँ हद से ज़ायदा धार्मिक हो गयी, सुबह शाम पूजा, कभी व्रत कभी कुछ कभी कुछ, कुछ दिन तो पापा ने बर्दाश किया लेकिन उनकी ठरक ने उनको पगला दिया, एक रात सोते हुए उनकी लड़ने की आवाज़ आयी, पापा सेक्स के लिए बोल रहे थे लेकिन मम्मी साफ़ मन कर रही थी की वो अब कभी सेक्स नहीं करेंगी, तब मैं नवी में पढ़ती थी और थोड़ा थोड़ा सेक्स के बारे में जानना स्टार्ट कर दिया था।

उस दिन के बाद घर में अक्सर झगड़ा होता लेकिन पता नहीं क्यों मम्मी ने कसम खा ली थी जो वो अपनी बात पर अटल रही। पापा ने वापिस से फिर वही दारू और रंडी प्रोग्राम रमेश के साथ चालू कर दिया लेकिन अब चीज़े बदल गयी थी

मालिक ने कैमरा लगवा दिया था और एक दिन मालिक ने पापा और रमेश को रंडी के चोदते रंगे हाथ पकड़ लिया, रमेश हरामी था उसने पापा को फसा दिया और खुद अपनी नौकरी बचा गया, पापा को और कोई काम नहीं आता था तो उनको कोई नौकरी मिली नहीं और अब वो करना भी नहीं चाहते थे क्यूंकि अब वो सुबह से ही दारु पीना स्टार्ट कर देते थे, फिर मम्मी ने दिमाग लगाया और हमरा पुराना माकन बेच कर ये वाला छोटा माकन ले लिया और बाकि बचे पैसे बैंक में जमा करा दिया अपने नाम से, अब जो बयाज मिलता है उस से हमरा घर चलता था, मैं दसवीं क्लास में आगयी थी और चीज़ो को समझने लगी थी, अब बयाज इतने भी ज़ायदा पैसे नहीं आते थे की पापी की दारू और रंडी का जुगाड़ हो जाये तो पापा बस दारू पि कर ही गुज़ारा कर लेते थे, एक रात गर्मी बहुत थी पापा सुबह से ही गायब थे और मम्मी अपने कमरे सो रही थी तो मैं आंगन में खाट डाल के सो गयी।

मुझे सोये कुछ ही देर हुई थी की अचानक मुझे शरीर पर कुछ रेंगता हुआ महसूस हुआ तो मेरी आँख खुल गयी, मुझे लगा दादी मेरे पास सोने आगयी है , मैंने अँधेरे में आँख गदा कर देखा तो चौंक गयी , पापा मेरी खाट पर मेरे बराबर में लेते हुए थे नशे में धुत और मेरे बदन पर हाथ फिर रहे थे, मैं दर के मारे सहम गयी, लेकिन पापा का हाथ मेरे शरीर पर घूमता रहा, कभी वो मेरी चुकी सहलाते कभी मेरी चूत को मुट्ठी में पकड़ कर भींच देते, इस से पहले कभी किसी ने मेरे शरीर का नहीं छुए था, मेरे शरीर में एक अजीब सी लहार उठ रही थी, पापा मम्मी का नाम बड़बड़ाते हुए मेरे कोमल जिस्म से खेल रहे थे और मैं छुप पड़ी थी समझ नहीं आरहा था क्या करू की तभी दादी की आवाज़ आयी " चन्द्रमा अरे उठ, चन्द्रमा मुझे प्यास लगी है मुझे पानी तो दे बेटा" , मैं एक दम अपनी तन्द्रा से जगी और वह से उठ कर दादी के पास भागी, मैंने दादी को पानी दिया, उन्होंने गिलास साइड में रख दिया और बोली " चन्द्रमा बेटा मेरे साथ यही सो जा आज अकेले सोने का मन नहीं हो रहा है, मैं भी यही चाहती थी झट से दादी की खाट में घुस के सो गयी। "
 
सुबह सो कर उठी तो सब कुछ नार्मल था, सब रूटीन जैसा, मैंने पापा की ओर देखा यो उनका भी वही रोज़ जैसा रिएक्शन, मैंने भी इस बात को इग्नोर कर दिया की रात में नशे में पापा का हाथ लग गया होगा, वैसे भी मेरी उनकी कुछ खास बनती तो थी नहीं, ऐसे ही कुछ समय गुज़रा और मेरी दसवीं कम्पलीट हो गयी और मैंने गयारहवी में एडमिशन ले लिया, घर में पैसो को तंगी अक्सर रहती थी और मैं पढाई एवरेज थी तो तो मैं मैंने सोचा की कही पार्ट टाइम जॉब कर लूँ, मेरी साथ की सहेलियों को अक्सर अच्छे कपड़ो और जूतों में देखती तो मेरा भी मन भी मचलता वैसे ही बनने सवरने को लेकिन पैसो की दिक्कत पीछा नहीं छोड़ती तब ना, मेरी आगे १८ से कम थी तो अच्छी जॉब मिलने का चांस भी कम ही था फिर भी मैंने बिना घर में बताये जॉब देखनी स्टार्ट कर दी थी, वैसे भी घर में परवा करने वाला था ही कौन, बाप को शराब से फुर्सत नहीं थी तो माँ को अपने भगवान से , दादी बेचारी शरीर से मजबूर मुश्किल से चल फिर पति थी, वैसे भी समय के साथ मेरा घर से लगाव बिलकुल ख़तम होता जा रहा था और मैं बेसब्री से वक़्त गुज़रने का इन्तिज़ार कर रही इस घर से निकल भागने का।

एक दिन माँ ने मुझे प्रॉपर्टी डीलर के पास भेजा (जिसने हमें से मकान दिलवाया था ) कुछ पेपर किसी कारन से उसी के पास रह गए थे। प्रॉपर्टी डीलर अपनी दूकान पर मौजूद नहीं थी वह एक लड़का मिला, उसने बताया की वो थोड़ी देर में आएगा, मैंने उसका अपने पेपर्स का पूछा तो उल्टा बोलै की अपना नो दे दो मैं जब भैय्या आजायेंगे तो कॉल कर दूंगा आके ले जाना, उसकी आँखे मेरे जिस्म का x-रे कर रही थी, फिर भी मन ना चाहते हुए मैंने उसको अपना नंबर दे दिया, मैंने घर आके मम्मी को बता दिया और अपनी पढाई में लग गयी,

उन्ही दिनों में हमारे पड़ोस में एक नई फॅमिली आयी, उनका भी परिवार हमारी स्तिथि में ही था, खींच खाँच कर अपनी ज़िन्दगी गुज़ार रहे थे वो भी। उनकी एक बेटी थी मुस्कान जो मेरी ही उम्र की थी और क्लास भी सेम थी तो मेरी झट से उस से दोस्ती हो गयी, दोस्त के नाम पर मेरे पास कोई नहीं था तो मुस्कान को दोस्त बना कर मुझे अच्छा लगा और हम दोनों पक्की सहेलियां बन गयी।

एक मैं किसी काम से घर के बहार निकल ही रही थी की अचानक एक लड़कने आवाज़ लगायी, मैंने देखा तो वही पार्टी डीलर वाला लड़का खड़ा था मैं उसको देख कर डर सी गयी, मैंने पूछा क्या है, कहने लगा अरे उस दिन के बाद आप आयी ही नहीं हमारी दूकान पर और जो नंबर दिया उस पर तो कोई लेडीज़ उठती है आप नही।

मैं उसको देख कर पता नहीं क्यीं चिढ सी गयी थी, लफनगा सा लड़का, मुझे बिलकुल अच्छा नहीं लग रहा था।
चन्द्रमा : हाँ तो वो मम्मी का फ़ोन है, मेरा पास फ़ोन नहीं है
लड़का : ओह्ह अच्छा कोई बात नहीं
चन्द्रमा : ठीक है मैं जा रही हूँ
लड़का : एक मं मेरी बात सुन लो
चन्द्रमा : हाँ बोलो
लड़का : आपके पेपर्स आपको मिल गए क्या ?
चन्द्रमा : नहीं। , तुम्हारा मालिक बस चक्कर कटवाता है देता नहीं है पेपर्स
लड़का : वो देगा भी नहीं
चन्द्रमा : (गुस्से से ) उसके बाप का माल है क्या घर हमारा है तो पेपर्स भी हमारे है
लड़का : वो ऐसा ही करता है, सब के साथ, उनके कुछ पपेर्स अपने पास रख लेता ताकि जब प्रॉपटी बेचना चाहो तो उसी के थ्रू भेंचो तो उसको डबल कमीशन मिलेगा बाकि वो कब्ज़ा नहीं करेगा बस
चन्द्रमा : मैं पुलिस को कम्प्लेन करूँगाी
लड़का : हाँ ये भी करके देख लो, उसका भाई है थाने में सब मिली भगत से हो रहा है

मैं रुहांसि हो गयी, ले दे कर एक ये मकान ही तो है पता नहीं कुछ गड़बड़ हो गयी तो सड़क पर आजायेंगे, फिर अचानक मेरे दिमाग में आया की आखिर ये मुझे इतना कुछ क्यों बता रहा है और ये इतना मेहरबान क्यों हो रहा है ?

चन्द्रमा : तो भैय्या तुम मुझे ये सब क्यों बता रहे हो ?
लड़का : सबसे पहले तो मुझे भैय्या मत बोलो, दूसरी बात ये की मैं एक दिन में ये नौकरी छोड़ना वाला हूँ
चन्द्रमा : अच्छा फिर ?
लड़का : फिर ये की मैं तुमको तुम्हारे पेपर निकल के दे सकता हूँ , मैंने तुम्हारे पेपर्स देखे है
चन्द्रमा : ठीक है आप दिला दो मैं मम्मी को बोलके आपको पैसा दिला दूंगी कुछ ना कुछ
लड़का : ना ना ना ,,,,,मुझे पैसे नहीं चाहिए
चन्द्रमा : फिर क्या चाहिए ?
लड़का : मैं पेपर्स केवल एक शर्त पर और केवल तुमको दूंगा, और वो शर्त है की मैं तुमसे फ्रैंडशिप करना चाहता हूँ
चन्द्रमा : जी नहीं मैं ऐसे किसी से फ्रैंडशिप नहीं कर सकती सॉरी
लड़का : फिर ठीक है, ये भी सोंच लो पेपर नहीं मिलेंगे,

मैं मन ही मन कोसने लगी की ये क्या नयी मुसीबत है, लेकिन ये लड़का जो भी बोल रहा था सच बोल रहा था, क्यूंकि मैं और मम्मी पता नहीं कितनी बार जा चुके थे उस प्रॉपर्टी वाले के पास लेकिन हर बार वो कुछ न कुछ बहाना बना कर टाल देता था, और यही काम उसने मुस्कान के परिवार के साथ किया था तो जो भी था इस लड़के की बात में झूठ नहीं था, मेरे पास भी कोई चारा था और मैंने कहा ठीक है मैं फ्रैंडशिप के तैयार हूँ लेकिन ओनली फ्रैंडशिप और कुछ नहीं।

वो झट से खुश हो गया बोला ठीक है, अब जल्दी से अपना नंबर दो मैं जब कॉल करूँगा तब मिलने आजाना, मैंने उसको बताया की मेरे पास फ़ोन नहीं है तो वो थोड़ा मेस हुआ, फिर मुझे याद आया की मुस्कान के पास है उसका अपना पर्सनल फ़ोन तो मैंने उसको मुस्कान का नो दे दिया और बताया की हम दोनों अक्सर दोपहर में साथ होते है और पढाई करते है। वो नंबर लेकर चला गया और जाते जाते अपना नाम दीपक बताया।

उस दिन के बाद दीपक अक्सर मुस्कान के नंबर पर कॉल करके बात करता था, कुछ दिन बात करके पता चला की वो रोहतक का रहने वाला है और यहाँ अपनी माँ और सिस्टर के साथ रहता है, माँ एक पार्लर में काम करके गुज़ारा करती है, उसकी पिता की डेथ हो गयी थी काफी पहले और उनकी पेंशन आती है, डबल इनकम होने के कारन उसकी आर्थिक स्तिथि ठीक थी।

एक दिन मैं और मुस्कान पढाई कर रहे थे की उसका फ़ोन आये की वो आज मिलेगा, मैंने मन कर दिया की फ्रैंडशिप केवल फ़ोन पर और मिलना जुलना बिलकुल नहीं, लेकिन जब उसने कहा की वो आज पेपर्स लेकर आएगा तो भला मैं मना कैसे करती, मैंने झट से हाँ कर दी, उसने घर से थोड़ी दूर एक होटल का नाम बताया और वह पहुंचने के लिए बोला, मैं शाम में मम्मी से बहाना बना कर दीपक से मिलने पहुंच गयी,

आज दीपक बन सवार कर परफ्यूम वारफूमे लगा कर आया था, हम दोनों वह एक टेबल पर बैठ आगये और हाल चाल पूछने लगे, फिर उसने कुछ खाने का मांगा लिया, मैंने बहुत दिनों बाद बहार का कुछ खाया था, मुझे अच्छा लगा फिर जब उसने मुझे पेपर्स दिए तो मेरी ख़ुशी का ठिकाना नहीं रहा और मैं किसी बच्चों जैसे खुश हो कर दीपक के गले लग गयी , दीपक की मनो लोटरी लग गयी, लेकिन मुझे झट से अपनी गलती का एहसास हुआ और मैं अलग हो कर बैठ गयी,

दीपक : वाह बहुत गर्म हो यार तुम
मैं : पागल हो क्या जो ऐसी बात कर रहे हो
दीपक : बात सुनो धयान से, मैंने ये बहुत बड़ा रिस्क लेके ये पेपर्स चोरी किये है, अगर मालिक को पता लगा न तो मुझे यही अरेस्ट करा देगा और ये सब केवल मैंने तुम्हारे लिए किये किया है समझी ना और अगर बात समझ नहीं आयी तो मैं ये पेपर्स वापिस ले रहा हूँ,

मैं : नहीं ठीक है मैं समझ गयी
दीपक : गुड ! तो अभी जो तुमने हुग किया ये मुझे मिलती रहनी चाहिए, और अभी जब हम यहाँ से चलेंगे तो बाइक पर मेरे पीछे चिपक कर बैठना हुग करके और अगर मेरी बात मंज़ूर नहीं है तो पेपर छोड़ो और घर जाओ

मैं : नहीं नहीं जो तुम बोलोगे वो मैं करुँगी बस ये पेपर्स नहीं दे सकती
दीपक : गुड ! और हाँ ये मत सोचना की पेपर्स मिलने के बाद मेरा फ़ोन उठाना बंद कर दो, अगर मुझे लगा की तुम मेरा चूतिया काट रही हो तो मैं तो भले मैं जेल चला जाऊंगा तुम्हारी प्रॉपर्टी के भी साथ जाएगी जब मैं भैय्या का बताऊंगा की तुमने मुझसे पेपर्स चोरी करवाए था
मैं : नहीं दीपक प्लीज ऐसा कुछ नहीं होगा, तुम जब बोलोगे मैं तुमसेमिलने आउंगी और तुमसे चिपक कर बैठूंगी बाइक पर
दीपक : बहुत अच्छा, चलो फिर चलते है

मेरा सारा मज़ा ख़राब हो गया था, कुछ मिनट पहले जो बहार का खा पि कर और पेपर्स मिलने की ख़ुशी थी और जो मेरे मन में दीपक की एक अच्छी इमेज बानी थी सब बर्बाद हो गयी, शायद दीपक ऐसा ओछापन नहीं दिखता तो क्या पता मैं खुद उसको हुग कर लेती जो मैंने गलती से कर भी दिया था, आखिर उसने इतना बाद काम जो क्या था मेरे लिए।

बहार निकल कर दीपक ने बाइक स्टार्ट की और मैं उसके पीछे हुग करके बैठ गयी, ये मैंने पहली बार ऐसा किया था और मुझे अजीब लग रहा था, दीपक तो मारे ख़ुशी के निहाल था आखिर मुझ जैसी गोरी चिट्टी और सुन्दर लड़की उससे चिपक कर बैठी थी, वो बार बार ब्रेक मार कर अपनी पीठ मेरी छोटी छोटी मासूम चूचियों पर घिस रहा था, ये मेरे लिए एक नयी अनुभूति थी, मज़े का कुछ खास पता नहीं था लेकिन जब भी वो ऐसा करता तो मेरे शरीर में एक कर्रूँट जैसा दौड़ जाता

खैर मैंने घर आकर मम्मी को पेपर्स दिए तो उनकी ख़ुशी का ठिकाना नहीं रहा लेकिन मैंने उनको दीपक का नहीं बता कुछ बस इतना बोला की एक लड़के ने मेरी हेल्प की बदले में तीन हज़ार देने होंगे, ये प्लान दीपक ने ही बताया था मुझे माँ से झूट बोलना अच्छा नहीं लग रहा था आखिर मुझसे घरकी आर्थिक हालत छुपी तो नहीं थी , लेकिन माँ ने झट से तीन हज़ार रूपये दे दिए जो मैंने दीपक के हाथ पर रख दिए

अगले दिन दीपक उन पैसो से मेरे लिए एक सेकंड हैंड फ़ोन ले आया और उसमे सिम भी लगा हुआ था, अब मुझे और दीपक को बात करने में आसानी हो गयी, मैं घरवालों से नज़रे बचा कर दीपक से घंटो बाते करती थी, फिर एक दिन मैंने मैंने अपने जॉब करने के बारे में बताया तो एक दम खुश हो गया और उसने मुझे अपनी कंपनी में जहा वो क्रेडिट कार्ड का काम होता था वह जॉब दिला दी, दीपक ने प्रॉपर्टी डीलर के यहाँ काम कर चूका था तो फर्जी पेपर्स बनवाने में एक्सपर्ट था, वो लोगो के फर्जी पेपर्स बनवा के कार्ड्स बनवा देता था तो कंपनी वाले उस से बहुत खुश थे, मैं भी खुश थी की अब मेरी जॉब लग गयी थी बिना किसी डाक्यूमेंट्स के और मैं किसी पर डिपेंड नहीं थी।

हम एक ही ऑफिस में काम करते थे साथ ही आना जान होता था, एक दिन हमने कंपनी में टारगेट पूरा कर लिया तो कम्पनी हम सबको वाटर पार्क लेके गयी, मैं पहली बार ऐसी जगह आयी तो मैंने खूब मस्ती की, थोड़ी देर में मैंने देखा तो हमारे साथ के सारे इधर उधर गायब हो गए

मैंने ढूँढा तो दीपक दिख गया जो मेरे पास ही आ रहा था, मैंने पूछा सब कहा है तो उसने एक ओर इशारा किया और हम उधर चले गए।
वहा कुछ केबिन्स बने हुए थे दीपक ने एक केबिन की ओर इशारा किया के इसके अंदर जाकर बैठ जाओ, मुझे अजीब लगा लेकिन मैं बिना कुछ बोले अंदर चली गयी, अंदर एक छोटी से सेट्टी पड़ी हुई थी और अजीब सी स्मेल आरही थी, दीपक मेरे पीछे अंदर आया लेकिन अगले ही पल वो एक मिनट रुको बोल के बहार भागा, मैं उल्लू की तरह बैठी उधर देखने लगी, तभी अचानक मुझे किसी लड़की के कराहने की आवाज आने लगी और वो आवाज़ मैं पहचान ली वो हमारे साथ काम करने वाली लड़की दीपा की थी, फिर मैंने धयान लगाया तो वो आवाज़ बराबर वाले केबिन से आरही थी, उसकी कराह के साथ साथ थापा थप की आवाज ताल से ताल मिला रही थी, मैं फ़ौरन समझ गयी की ये काबेन्स चुदाई करने के लिए बने है और दीपा अपने यार से चुदवा रही थी, मेरे पुरे शरीर में एक सिहरन सी दौड़ गयी, अमिन समझ गयी की दीपक मुझे इस केबिन में छोड़ने के लिए लाया था, मैंने झांक कर देखा दीपक वह एक लड़के से कुछ ले रहा था शायद कंडोम जो वो साथ लाना भूल गया था, मेरी उम्र कम थी लेकिन मैं इतनी भी बेवक़ूफ़ नहीं थी मैंने मुस्कान के साथ चुदाई की कुछ विडोज़ देखि थी और क्लास की लड़कियों से चुदाई के बारे में सुन रखा था,

मैं बिना देर किये केबिन से बहार निकली लेकिन तभी दीपक ने पीछे आकर पकड़ लिया और केबिन के अंदर घसीट लाया,
कहा भाग रही हो चन्द्रमा ? अभी तो कुछ हुआ ही नहीं है है मेरी जान, बस एक बार करने दे फिर उसके बाद चाहे कभी मत करना
मैं : मैं नहीं दीपक मैं ये नहीं कर सकती किसी भी कीमत पर
दीपक : अरे कुछ नहीं होता, बस मज़ा आएगा बहुत, फिर रोज़ करवाएगी

मैं : नहीं दीपक : प्लीज ये मत कर मेरे साथ, (लेकिन दीपक कहा मैंने वाला था उसने मुझे उस सेट्टी पर गिरा दिया और मेरी गीली टीशर्ट के ऊपर से ही मेरी चूचियां रगड़ने लगा, वो इतनी बेदर्दी से चूचियां मसल रहा था की मैं दर्द से चिल्ला उठी, मैंने उसको धक्का दिया और चिल्ला कर बोला " दीपक अगर तूने अगर कुछ और किया तो मैं चिला दूंगी की तू मेरा रेप कर रहा है, और तुझे पता नहीं है तो बता दू की मैं अभी अट्ठारह की नहीं हुई साड़ी उम्र झेल में कट जाएगी तेरी ये सुन कर दीपक की गांड फैट गयी, वो फिर मुझसे अलग हुआ और धमकियाँ देने लगा की वो जॉब से निकलवा सेगा और वही प्रोपेर्टी वाली धमकी।

मैं जॉब छोड़ना नहीं चाहती थी और न ही पेपर्स का बवाल खड़ा करना चाहती थी और मुझे पता था की दीपक से पन्गा करके कोई फ़ायदा नहीं तो मुझे कुछ रास्ता निकना था, अचानक मेरे दिमाग में विचार आया और मैंने दीपक को बोला

मैं : देख दीपक तू मुझे चोदना चाहता है ना, तो मैं चुदवाने के लिए तैयार हूँ तुझसे लेकिन शादी के बाद ?
तुम मुझसे अट्ठारह के बाद शादी कर ले फिर रात दिन चोदना, मैं जानती हूँ की तुझे मुझ जैसी गोरी चिट्टी लड़की पसंद है और यहाँ हमारे मोहल्ले में सब मेरे से कम ही है तो तो मुझसे शादी कर ले और जितना मर्जी उतना चोद मैं तुझे कभी मना नहीं करुँगी।

मेरी बात सुन कर दीपक भी एक मं के सोच में पड़ गया, उसे मेरी माइनर वाली बात ने ज़ायदा डरा दिया था और ये ऑफर भी उनको ठीक लगा, उसने कहा थी है अब तुझे शादी के बाद ही छोडूंगा बहिन की लौड़ी, साली तुझे चोद चोद के रंडी न बनाया तो मेरा नाम भी दीपक नहीं।

ये सुन कर मेरे मन को राहत मिली की चलो थोड़ी दिनों के लिए जान छूटी बाकि बाद की बाद में देखंगे, हम बहार निकल आये केबिन से, बाकि सब अभी तक अपने अपने केबिन में चुदाई में लगे हुए थे शायद, बहार निकल कर दीपक ने पानी में चलने का इशारा किया और हम पानी में खेलने लगे, पानी में नहाते हुए दीपक बार बार मेरे जिस्म को रगड़ रहा था मैंने विरोध किया तो गुररया, बेहेन की लोड़ी मान जा चुप चाप, एक तो तूने चुदाई का सारा मूड सत्यानास कर दिया और हाथ भी मत लगाने दे, चुपचाप जो कर रहा हूँ करने दे, मैं भी चुप हो गया मुझे भी पता था ओपन पूल में ज़्यादा कुछ कर नहीं पायेगा और लोग भी थे पूल में तो तसल्ली थी, वैसे भी दीपक के खड़े लुंड पर धोखा हुआ था तो इतना तो बनता था, फिर मैंने उसको मना नहीं किया लेकिन मुझे कुछ खास मज़ा नहीं आ रहा था शायद ज़बरदति में मज़ा नहीं आता है।
 
उस दिन वाटर पार्क वाली घटना के बाद से मैं दीपू से खींची खींची रहने लगी थी, मूड बहुत ख़राब था, पता नहीं क्यों जब भी दीपक मेरे शरीर को छूता तो एक अजीब सी घृणा होती थी मैंने ब्लू फ्लिम में देखा हुआ था की कैसे जब लड़का लड़की एक दूसरे को चूमते या छूते हुए तो कितना मज़ा आता है, मुस्कान ने भी यही बताया था की मर्द जब प्यार करता है या कही छूता है तोह बड़ा मज़ा आता है, बातो बातो में बताया था की यहाँ आने से पहले वो जिस मोहल्ले में रहते थे वहा के एक लड़के से उसका चक्कर था और वो चुपके से रात में वो गली के रस्ते उसकी छत पर आजाता था और और मुस्कान छत के कोने में अपना कमसिन बदन उस लड़के से रगड़वा कर मज़ा पा लेती थी, मुस्कान की सेक्सी बातें सुन कर मेरा भी मचल उठता था की काश मुझे भी कोई ऐसे ही प्यार करे जिसमे मज़ा आये घिन्न नही। खैर सब की इतनी अछि किस्मत कहाँ होती है।

दीपू मेरी इस नाराज़गी से चिढ़ गया था, एक दिन उसने ऑफिस से जल्दी छुट्टी की और मेरी भी छुट्टी करा दी मेरा मन खिन्न हो रहा था लेकिन मैं चुपचाप उसकी बाइक के पीछे बैठ गयी, मैंने पूछा की हम कहा जा रहे है लेकिन उसने कोई जवाब नहीं दिया, वो मुझे गलियों से घूमता हुआ एक मकान के आगे रुक गया और मुझे उतरने के लिए बोला तो मैंने मना कर दिया, मैं ऐसे अनजान घर में जाने से कतरा रही थी, तभी घर का गेट खुला और लगभग मेरी उम्र की एक सांवली लेकिन आकर्षक लड़की सामने कड़ी थी, लड़की ने साफ़ सुथरे कपडे डाल रखे थे और हल्का सा मेकअप किया हुआ था जिस से वो बड़ी प्यारी लग रही थी। उसने दरवाज़ा खोल कर जोश से हेलो कहा और और हमे अंदर आने का इशारा किया, दीपू चुपचाप घर के अंदर चला गया मजबूरी में मैं भी उसके पीछे पीछे अंदर आगयी, मैं वह कोई ड्रमा नहीं करना चाहती थी बिना जाने के ये किसका घर है लेकिन जिस कॉन्फिडेंस से दीपू अंदर आगे था उस से लगा की ये उसी घर है ,

अंदर जाकर मैं चुपचाप सोफे पर बैठ गयी वो लड़की झट से गिलास में पानी ले आयी और हाथ बढ़ा कर हेलो किया और बोली " मेरा नाम कोमल है भाभी "
मैं भाभी सुन कर चौंक गयी,,,, तो कोमल खिलखिला कर बोली " भाभी भैया ने मुझे सब बता दिया है, आप बहुत प्यारी है, मेरे भैय्या की चॉइस बड़ी अच्छे है " ये सुन कर मैं शर्मा गयी, दीपू ने कभी इतना खुल कर अपने परिवार के बारे में नहीं बताया था, आज अचानक लेकर आगया था वो मेरा झिझकना सवाभाविक था।

थोड़ी देर में दीपू कपडे चेंज करके आगया और वो भी वही एक सोफे पर बैठ गया, कोमल जल्दी से नास्ते का सामान और कोल्डड्रिंक उठा लायी, हम तीनो ने साथ नाश्ता किया और इधर उधर की बातें की, कोमल मुझसे एक क्लास नीचे थी यानि दसवीं में पढ़ती थी, और बहुत चंचल सवभाव की थी, मुझे उस से मिलकर अच्छा लगा, अभी हम इधर उधर की बातें कर ही रहे थे की अचानक किसी ने गेट खटखटाया दीपू ने उठ कर खोला सामने एक चालीस पैंतालीस साल की महिला खड़ी थी जो सीधा अंदर आयी , मुझे सोफे में बैठा देख कर एक मिनट के लिए ठिठकी और फिर मुस्कुराकर पूछा " ये कौन है ? "''''''

इस से पहले मैं कुछ बोलती, कोमल झट से बोल पड़ी, मम्मी ये चन्द्रमा दी है मेरे स्कूल में पढ़ती है लेकिन अब हम दोस्त है, मैं कोमल के साफ़ झूट बोलते देख कर दंग रह गयी, दीपू की माँ ने हमे बैठने का इशारा किया और अंदर चली गयी, अपनी मम्मी के अंदर जाते ही मेरे कान में फुसफुसाई, भैय्या ने अभी केवल मुझे बताया है अपने अफेयर के बारे में मम्मी को नहीं पता तो आगे से मैं आपको चंदू दी ही बुलया करुँगी , ठीक है ना ? मैंने हाँ में गर्दन हिला दी, अभी मेरी उम्र ही क्या थी भाभी सुनना बड़ा अजीब लगा रहा था, कुछ देर कोमल मुझे घर दिखने ले गयी, छोटा सा माकन था लेकिन साफ़ सुथरा और तरीके से बना हुआ, नीचे दो कमरे एक छोटा सा ड्रिंगरूम और किचेन, ऊपर दो कमरे और एक छोटा किचेन था थोड़ा सा खुला एरिया था, कुल मिला कर ठीक ठाक खाती पीती फॅमिली थी।

कुछ देर बैठ कर मैंने घर चलने का बोला तो कोमल माँ के सामने दीपू से बोली की भैय्या चंदू दी को उनके घर ड्राप कर दो, उसकी मम्मी ने भी बोल दिया की हाँ छोड़ आओ आने में रात हो जाएगी कोमल को तो दिक्कत हो सकती है

थड़ी देर में मैं दीपू के साथ उसके घर से निकल गयी, रस्ते में दीपू ने गाडी एक सुनसान जगह में रोकी और साइड में खड़ा हो कर मुझसे बोला
अब हुई तेरी तसल्ली या नहीं, अब तूने मेरा घर देख लिया मेरी मा और सिस्टर से भी मिल लिया, बस थोड़े दिन में मम्मी को तेरे बारे में बता कर शादी कर लूंगा तुझसे। अब अगर मेरे पर विस्वास हो तो मूड ठीक कर और मेरी बात का ढंग से जवाब दिया कर नहीं तो किसी दिन मेरा माथा ख़राब हुआ तो तेरे मुँह पर तेज़ाब फेक दूंगा फिर किसी के सामने भी नहीं आ पायेग। मैं उसकी धमकी सुन कर डर गयी, मैंने जल्दी से कहा की नहीं अब मुझे ट्रस्ट है, और मैं उस से ढग से बात करुँगी।

उस दिन के बाद से मैं दीपू से ठीक से बात करने लगी और चारा भी क्या था मेरे पास, कुछ दिन ठीक गुज़रे, अब सैलरी मिलने लगी थी तो मैंने अपने लिए कुछ कपडे अच्छे कपडे और नया फ़ोन ले लिया था, घर में बताया की टूशन देने लगी हूँ स्कूल के बाद, किसी को खास पवाह तो थी नहीं बस दादी खुश थी मुझे खुश देख कर, कभी कभी मैं दादी के लिए उनकी पसंद की कुछ चीज़े ला देती थी, उस रात वाली घटना के बाद से दादी से मेरा लगाव बढ़ गया था, मैं अपनी सैलरी में से माँ को भी थोड़े पैसे दे देती थी ताकि घर के खर्चो में मदद हो सके, मुझे अच्छा लगने लगा था की चलो घर की कुछ तो स्तिथि ठीक हुई।

एक संडे मैं घर पर थी की अचानक गेट बजा मैने भाग कर खोला तो एक अजनबी खड़ा था, चालीस बयालीस की उम्र का, देखने से लगा रहा था की कोई सभ्य व्यक्ति है, मैंने पूछा क्या काम है तो उसने उसने उल्टा पूछा की क्या ये सविता कुमारी यही रहती है ? हाँ मेरी मम्मी है सविता कुमारी। आप कौन ? ये सुन कर उस आदमी के मुँह से एक चैन की साँस निकली, उसने फिर मुझसे पूछा क्या तुम सरिता की बेटी हो ? मैं तो और क्या ?

ये सुन कर उस व्यक्ति के चेहरे पर मुस्कान दौड़ गयी फिर उसने प्यार से मेरे सर हाथ रखा और बोला, जा कर मम्मी को बता दे की तेरा मामा आया है। मैं मामा सुन कर एक दम शोकेड रह गयी और फिर झट से उनके गले लग गयी। जीवन में पहली बार कोई नानी की साइड से हमारे घर आया था या मैं मिली थी , पापा जबसे से मम्मी को बिहार से बियाह के लाये थे तब से न कभी मम्मी अपने गांव गयी और ना वहा से कोई आया था , मैं मामा का हाथ पकडे पकडे घर के अंदर ले आयी, मैंने मामा को चारपाई पर बिठाया और मम्मी को बुला लायी,
मम्मी मामा को देख कर ठिठकी और फिर उनके गले लग गयी, दोनों एक दूसरे के गले लग कर रो रहे थे, थोड़ी देर में जब सब शांत हुए तो मामा ने बताया की नाना की डेथ हो गयी है और नानी बहुत बीमार है और उनका समय नज़दीक है वो जाने से पहले एक बार अपनी बेटी को देखना चाहती है,

ये सुन कर पता नहीं क्यों मम्मी भड़क गयी और मामा के साथ जाने के लिए साफ़ मना कर दिया और चिल्ला कर बोली जब उन्होंने बिना मेरी मर्ज़ी के एक बुड्ढे दूबयाहता से मेरी शादी कर दी तब सोचना था ना अब बेकार का प्रेम किस लिए, मैंने तो कसम खा ली है की मैं मरे मु भी ना देखु उनमे से किसी को और अच्छा हुआ बुड्ढा मर गया अगर मेरे सामने आता तो कही मैं ही ना मार देती उसको, अपनी माँ के ये रूप देख कर मैं डर गयी, मामा ने बहुत हाथ पैर जोड़ा पर मम्मी नहीं मानी, आखिर थोड़ी देर बाद मामा मायूस हो कर जाने लगे, जाते जाते उन्होंने मुझे अपने पास बुलाया और गले से लगा कर बोले, दीदी नाराज़ है शायद माँ बाउजी ने उनके साथ गलत किया लेकिन बेटा मैं तब खुद छोटा था तो कुछ नहीं कर पाया, तेरी माँ न सही लेकिन तू कभी एक बार अपने ननिहाल ज़रूर आना, पहले हमारे आर्थिक हालत भी कुछ खास नहीं थे लेकिन अब मेरी शहर में २ कपडे की दूकान है और ईश्वर की खूब किरपा है कह कर उन्होंने अपनी जेब से पांच सौ के कुछ नोट निकले और मेरी मुट्ठी में रख कर चले गए।

उस दिन मुझे अपनी मम्मी से बड़ी नफरत हुई, बेचारे मामा पता नहीं कहा कहाँ धक्के खा कर यहाँ पहुंचे थे और मम्मी ने पानी तक नहीं पूछा था, मुझे मामा बहुत अच्छे लगे थे पढ़े लिखे और समझदार, जाते जाते मैंने उनको अपना नंबर दे दिया था। पापा रात में जब घर आये तो मम्मी ने बतया की उनका भाई शम्भू आया था बिहार से तो पापा ने बहुत गलियां दी मामा को "अब आये साले पहले तो पूरा जीवन पूछा नहीं" , फिर जब पता चला की मुझे पैसे पकड़ा के गए है तो झट से वो पैसे मुझसे छीन लिए, उनके दारु के खर्चे का इंतिज़ाम जो हो गया था।

कुछ दिन बाद नवरात्रे आगये , मम्मी व्रत रखती थी लेकिन मैं नहीं, जीवन में इतने दुःख देख लिए थे की अब भगवान पर से विश्वास उठ गया था, लेकिन समस्या ये थी की मैंने जॉब का नहीं बता रखा था और दशरे से पहले सब स्कूल बंद थे तो मैंने दीपू को ये समस्या बताई तो उसने मुझे छुट्टी दिला दी ऑफिस से, छठे नवरात्रे को मम्मी ने सुबह ही बता दिया की वो आज शाम में जगराते में और अष्ठमी पूजने के बाद ही घर आएँगी, वो उसी बाबा के आश्रम में रुकेंगी, ये अब हमारे लिए कोई नयी बात नहीं थी , जब से मम्मी इस बाबा के चक्कर में पड़ी थी तब से वो अक्सर आश्रम में रुक जाती थी जिस दिन कोई स्पेशल प्रोग्राम होता था। मेरा ऑफिस का ऑफ था तो मैं मुस्कान और कोमल के साथ मेला घूमने चली गयी , जब से दीपू ने कोमल से मिलवाया था तब से मेरी उस से खूब दोस्ती हो गयी थी और हम अक्सर फ़ोन पर घंटो बातें करती थी, दीपू भी नहीं टोकता था और मैं दीपक की बकवास और वही सेक्स करनी की रोज़ रोज़ की डिमांड से बच जाती थी।

मेला घूमने के बाद जब हल्का धुंधला होने लगा तब हम घर लौट आये, कोमल रिक्शे से अपने घर चली गयी और मुस्कान मेरी साथ वापिस आयी, उसका घर मेरे घर से थोड़ा पहले पड़ता था तो वो अपने घर में घुस गयी।

मैं घर पहुंची घर का दरवाज़ा खुला हुआ था और सामने चारपाई पर पापा बैठे हुए थे और उनके सामने टेबल पर शराब की बोतल और दो गिलास रखे हुए थे। पापा मुझे देख कर चिल्लाये कहा मर रही थी सुबह से कब से तेरा इन्तिज़ार कर रहा हूँ, मैं उनके चिल्लाने से सहम गयी और बिना कुछ बोले दादी के रूम में भाग गयी, पीछे से पापा की फिर आवाज़ आयी भाग कहा रही है ये ले और इसको जल्दी से पका दे बहुत भूख लग रही है, मैंने दादी की ओर देखा बेचारी दादी क्या बोलती मुझे इशारे से बाला की जा जो कह रहा कर दे , मैं वापस पापा के पास गयी तो उन्होंने एक पन्नी मुझे पकड़ा दी , पन्नी में मुर्गे का मीट था, मैंने पापा की ओर हैरत से देखा ,,,,, "पापा हां मीट ही तो है, आज तेरी माँ नहीं है घर में जा जल्दी से अच्छे ढंग से मीट बना ला", मैं मीट खाती थी लेकिन जब से मम्मी ने पूजा पाठ स्टार्ट करि थी तब से छूट गया था और फिर आज पापा लाये वो भी नवरात्रे में, मैंने बिना कुछ बोले किचन में चली गयी और खाना बनाने लगी, मैंने जैसे ही खाना चढ़या था की दरवाज़े से मुझे वही हरामखोर रमेश आता दिखाई दिया, हरामी की शकल ही ऐसी थी की मेरी आत्मा जल जाती थी, मैं दादी के पास आयी की वो क्या खाएंगी घर में कुछ खास था नहीं अब पापा कुछ लाने बहार नहीं भेजंगे, दादी ने बोलै की दिन की थोड़ी दाल बची है वो उसी को खा लेंगी और अगर मेरी इच्छा है तो मैं चिकन खा लू भूखी सोने से तो अच्छा ही है,

मैंने जल्दी जल्दी चिकेन बनाया और रोटी सेंक दी जब तक खाना तैयार हुआ तबतक आठ बजे चुके थे मैंने पापा को बताय की खाना रेडी है तो उन्होंने बोलै की सब यही उठा ला। मैं चिकेन की कढ़ाई और रोटी का डिब्बा दे आयी , फिर पापा ने आवाज़ लगायी की चंदू अपना खान तो ले जा, पापा ने दो रोटी और थोड़ा चिकेन एक कटोरी दाल के मुझे दे दिया और फिर वो रमेश के साथ के साथ दारू पिने लगे, जब मैं खाना ले रही तब रमेश मेंरे जिस्म को घूर घूर कर अजीब सी हसी है रहा था, जब मैंने खाना ले कर पलटी तो उसने पता नहीं पापा से क्या कहा की दोनों है है है करके भद्दी हसी हसने लगे , मैंने अपने कमरे में आकर दादी को खाना खिलाया और उनको दवाई खिला कर सुला दिया, मैं थोड़ी देर पहले बहार से घूम फिर कर आयी थी और बहार सहेलियों के साथ कुछ खा लिया था इसलिए मैंने खाना साइड में रख दिया, तभी दीपू की कॉल आगयी और मैं उस से बात करने लगी, दादी गहरी नींद में थी तो उनसे कोई डर नहीं था, मैंने एक डेढ़ घंटा बात करने के बाद फ़ोन रख दिया की इतनी देर में पापा ने आवाज़ दी मैं भाग कर उनके पास पहुंची तो देखा उन्होंने नई बोत्तोल खोल ली थी, पापा ने ठंडा पानी लाने के लिए बोला , मैंने पानी ला कर दे दिया फिर पापा ने पूछा खाना खा लिया ? मैंने कहा नहीं बस अब खाने जा रही हूँ

मैंने कमरे में वापस आके खाना खाया और फिर बर्तन एक साइड करके मोबाइल चलने लगी, कोई 10-१५ मं बीते होनेगे की मुझे बहुत तीज नींद आयी और मैं फ़ोन साइड में रख कर सो गयी।

सोते सोते अजीब सा सपना आने लगा जैसे हवा में उड़ रही हूँ लेकिन चारो ओर अँधेरा है और फिर इस अँधेरे के आगे हल्का उजाला, अजीब सा सपना ऐसा सपना कभी नहीं आया, मेरे हाथ पैर बिलकुल सुन्न लटके हुए मनो इनमे जान ही ना हो, आँख खोलने की कोशिश की आँख अभी नहीं खुल पा रही, आँख की झिरी से हल्का हल्का एक साया जैसा दिख रहा था फिर वो साया मेरे पास आया और मेरे जिस्म पर हाथ फेरने लगा, उसके जिस्म से बड़ी अजीब बदबू आरही थी मनो शराब पि राखी हो, मेरा दिमाग बिकुल धुंधलाया हुआ था फिर भी मैंने अपनी आँख की झिरी से देख के जान लिया था वो मादरचोद रमेश था, रमेश एक हाथ से मेरा शरीर सहला रहा था तो दूसरे हाथ से मेरे गाल को सहला रहा था, मनो पक्का कर रहा हो की मैं नींद में हूँ की नहीं, पता नहीं कैसी अजीब नींद थी की मैं चाह कर भी न चिल्ला पा रही थी और ना अपने हाथ पाओ हिला प् रही थी,

एक बार रमेश ने जो ज़ोर से मेरा सर हिलाया तो मैंने देखा पापा उसके बगल में खड़े थे और रमेश उनके सामने उनकी कुवारी बेटी के जिस्म से खेल रहा था, रमेश को जब पक्का हो गया की मैं नींद में हूँ तो उसने मेरे टॉप को मेरे जिस्म से नोच फेका फिर मेरे अधनंगे जिस्म से खेलने लगा, रात में घर में मैं ब्रा नहीं पहनती थी इसलिए मैंने ब्रा नहीं डाली थी, मेरी कच्ची चूचियों के देख के रमेश पागल से हो गया और मेरी चूचियों पर टूट पड़ा, मेरा मन कर रहा था की मैं उस हरामी रमेश का मुँह नोच लू लेकिन मेरे शरीर को तो जैसे लकवा मार गया था तभी चूचियां पीते रमेश को पापा ने एक धक्का दिया और उसे मेरे जिस्म से अलग कर दिया, मुझे लगा की अब मैं बच गयी लेकिन कितना गलत थी मैं, पापा रमेश को हटा कर बड़बड़ाये, बहनचोद मेरी बेटी है इस कच्चे माल को तो सबसे पहले मैं चखूँगा और वो खुद मेरी चूचियां अपने मुँह में लेकर चूसने लगे, मेरा दिमाग पहले से ही बोझिल था पता नहीं इन हरामियों ने कौन सी नशे की दवाई खिलाई थी की मैं हाथ पैर भी नहीं हिला पा रही थी,

पापा मेरी एक चुकी को चूस रहे थे और और दूसरी को अपने कठोर हाथ से बेदर्दी से रगड़ रहे थे की तभी रमेश ने उनका हाथ खींच कर अलग किया और बड़बड़ाया, साले मैंने तुझे सरिता जैसी चुड़क्कड़ दिलाई, साले मेरा एहसान भूल गया ? चल एक चूची तू पि दूसरी मैं पियूँगा, हाय हम जैसो को तो भगवान जीवन में कभी कभार ऐसा कुंवारा माल देता है, आज नहीं छोडूंगा बहनचाओद क्या कड़क माल है, बहनचोद अगर आज इसको चोद दिया तो जीवन सफल हो जायेगा, फिर वो मेरी दूसरी चूची पर टूट पड़ा, कभी मेरी चूची पीता और कभी मेरी चूची का निप्पल दांत से काटता, अजीब सा नशा था ना कुछ फील हो रहा था और ना आवाज़ निकल रही थी । मेरी दोनों चूचियों पर दोनों किसी जानवर के जैस लगे पड़े थे की अचानक रमेश ने मेरी लेग्गिंग्स खींच के एक झटके में मुझे नंगा कर दिया, मेरे जिस्म से लेगिंग्स हट्टे ही पता नहीं कहा से मेरे शरीर में इतनी ताकत आयी की मैंने अपनी टांग से रमेश को धक्का दे दिया, रमेश बेड से गिर पड़ा और उसका सर दीवार से ज़ोर से टकराया,

दीवार से सर टकराते ही रमेश के मुँह से एक ज़ोर की कराह निकली और वो चिल्ला कर गालीदेने लगा, बहनचोद, बहिन की लौड़ी ने मार दिया बहनचोद, पापा भी घबरा गए और मेरी चूची छोड कर रमेश को सँभालने के लिए उठे, फिर दोनी गलियां देते हुए मेरे जिस्म पर टूट पड़े की तभी पता नहीं कहा से एक डंडा रमेश के सर पर पड़ा और फिर वो डंडा दुबारा हवा में उठा और पापा के कंधे की चमड़ी उधेर गया, बड़ी मुश्किल से मैंने गर्दन घुमाई तो देखा दरवाजे पर दादी डंडा लिए खड़ी है और बिना सोचे समझे रमेश और पापा पर वार कर रही है, दादी बूढी हो चुकी थी चला फिर भी नहीं जाता था लेकिन आज अपनी पोती की इज़्ज़त लूटने से बचने आगयी थी, दादी के लट्ठ से बच कर दोनों आंगन में भागे मुझे बहार से उनके भागने की फिर दरवाज़ा खुलने की आवाज़ आयी फिर बंद होने की, थोड़ी देर में दादी लंगड़ाते हुए कमरे में आयी और मेरे सर को अपनी गोद में ले कर फुट फुट कर रोने लगी, बार बार मुझसे माफ़ी मांग रही थी की ये सब उनकी गलती है, काश की मैंने बचपन में ही इसे मार दिया होता, मैंने बेटे की चाह में अपनी बेटियों को पैदा होने से पहले मार दिया फिर पोतियों की जान ले ली शायद इसीलिए भगवान मुझे सजा दी है ऐसी नर पिशाच जैसी संतान दे कर । दादी मेरे सर सहलाती रही और रोती रही, मेरे दिमाग पर फिर से नशा सा छाने लगा और मैं गहरी नींद में सो गयी।
 
अगले दिन मैं दोपहर तक सोती रही, जब उठी तो दिन चढ़ आया था, देखा तो मैं मम्मी के कमरे में सोई हुई थी और मेरे शरीर पर लेग्गिंग्स उलटी सीडी चड्डी हुई तो और मैं ऊपर से नंगी थी बस एक चादर से ढकी हुई, मैंने जल्दी से पास पड़ा टॉप पहना और हड़बड़ा कर कमरे बहार आयी , दादी कमरे के बहार ही बैठी हुई थी, मुझे देख कर हाल चाल पूछा, एक बल्टोइ में चाय थी उसमे से एक कप में ढाल के मुझे पिने के लिए दिया, मेरा सर चकरा रहा था और एक टीस सी उठ रही थी सर में जैसी कोई दिमाग के अंदर हथोड़ा मार रहा हो, मैंने चाय का कप लेकर स्जल्दी जल्दी चाय पि, चाय पीने से थोड़ी रहत मिली फिर दादी ने मुझे अपनी बाँहों में समेत लिया और रोने लगी, मैं भी उनसे गले लग कर खूब रोई, जब दिन कुछ हल्का हुआ तो दादी ने हाथ मुँह दुला कर खाना खिलाया, शायद दादी ने किसी पडोसी से खाना मंगवाया था, घर में अभी तक न मम्मी का पता था और न पापा का। जैसे तैसे खाना खाने के बाद मैं और दादी अपने कमरे आके बिस्तर पर लेट गए , रात की बात याद करके मुझे रोना आरहा था,
रोते रोते सोच रही थी की कैसी अजीब किस्मत है, इसी दुनियां में ऐसे लोग है जो अगर कोई उनके परिवार पर ऊँगली भी उठा दे तो जान लेने के लिए तैयार है और एक मेरा बाप है जो अपने शराबी यार से नींद की गोली दे कर मेरा रेप करा रहा था, दूसरे से कराना तो तब की तब हरामी खुद अपनी कमसिन बेटी को चोद कर बेटीचोद बनने में लगा हुआ था।
मैं रात की बात सोंच सोंच कर रो रही थी की तभी दादी ने आवाज़ लगायी " चंदू सो गया क्या बेटा " नहीं दादी जाग रही हूँ !
" ठीक है फिर मेरे बिस्तर में आजा " मैं दादी के बिस्तर पर चली गयी और उनसे लिपट कर लेट गयी, एक यही तो थी जिसने एक नहीं दो दो बार मेरी जान बचायी थी। दादी ने भी मुझे कास कर अपने से सत्ता लिए और मुझसे पूछा

दादी : उस लड़के के क्या नाम है चंदू ?
मैं : कौन लड़का दादी ?
दादी : वही जिस से तू रोज़ रात में बात करती है , दर मत मुझे सब सच सच बता की कौन है क्या करता है
मैं क्या बोलती फिर मैंने दादी को सब बता दिया ये भी बता दिया की मैं जॉब करने लगी हूँ

दादी : मुझे थोड़ा थोड़ा अंदाज़ा था, मैंने तुझे टोका नहीं कभी ये सोच के की तेरे जीवन में पहले ही बहुत दुःख है अगर इस लड़के से बात करके तू खुश है तो तुझे भी खुश होने का पूरा अधिकार है।

मैंने तुझे इस लिए आज पूछा है क्यूंकि एक डेढ़ साल में तू शादी लायक हो जाएगी अगर तू इस लड़के से प्यार करती है तो मैं इस से तेरा बयाह करा दूंगी, मेरे जीवन का अब कोई ठिकना नहीं है और मैं चाहती हूँ की जल्दी से जल्दी तू इस घर से चली जाये और अपने संसार में सुखी रहे। इस परिवार पर बिमला और उसकी पैदा न हुई बेटियों का श्राप है इस घर में कोई सुखी नहीं रह सकता इस लिए तू जल्दी से या तो कहीं और शिफ्ट हो जा या किसी से शादी कर के सुखी जीवन बिता।

मैंने दादी से पूछा की कौन बिमला फिर दादी ने मुझे बिमला और अबॉर्शन की कहानी बताई। मैंने भी दादी को बता दिया की दीपक से मैं मन से प्यार नहीं करती बस मजबूरी है, लेकिन फिर भी अगर वाक़ई शादी के लिए तैयार है तो मैं शादी कर सकती हूँ केवल इसलिए की मुझे इस घर से छुटकारा मिल सके, उसका घर परिवार अच्छा है और बहुत अमीर तो नहीं लेकिन एक अच्छा जीवन जीने लायक पैसे है बस ये और बात है की जब जब दीपक मुझे छूता या प्यार करता है तो मुझे पता नहीं क्यों कुछ भी फील नहीं होता शायद मैं ऐसी ही हूँ जिसको सेक्स का फील नहीं आता। मैंने दादी को विश्वास दिलाया की वो चिंता न करे जिस दिन भी मुझे लगेगा की अब मुझे इस घर में नहीं रहना चाहिए मैं दीपक के घर चली जाउंगी फिर चाहे उसकी ख़ुशी के लिए बिना फील के ही क्यों न सेक्स करना पड़े।

रात ऐसी ही खमोशी से गुज़री, हमने दिन का बचा खुचा खा कर गुज़ारा कर लिया था, सुभह मम्मी घर आगयी, उनका चेहरा खिला खिला और खुश था आखिर होता भी क्यों ना वो बाबा के आश्रम से आयी थी और प्रसाद में ढेर साड़ी पूरी सब्जी और हलुआ लायी थी, उन्होंने मुझे नहाने के बोलै और और जब मैं नाहा कर वापिस आयी तो जल्दी से प्रसाद थाली में लगा कर परोस दिया, मैं अपने दुःख में भूल ही गयी थी की आज दुर्गा अष्टमी थी आज के दिन कंजिका पूजी जाती है , हाय रे किस्मत जहा बेटियों को देवी मान कर पूजा जाता है वही एक कलयुगी बाप अपनी खुद की बेटी को छोड़ने की धुन में लगा हुआ था, मैंने चुपचाप खाना खाया और दादी को भी खिलाया, माँ ने दादी से पापा का पूछा तो दादी ने बोल दिया की रात में उसने हद से ज़्यदा शराब पि ली थी और चन्द्रमा से जबरदस्ती चिकन बनवा के खाया था तो मैंने लट्ठ मार कर घर से निकल दिया, दादी ने मेरे साथ हुई घटना माँ को नहीं बताई, शायद उनको डर था की कही घर में माँ कोई कलेश न कर दे, वैसे भी बूढ़ा इंसान कलेश से डरता है,

दीपक का कल से कई बार कॉल आया लेकिन मैंने कॉल नहीं उठाया, फिर कोमल का फोन आया तो मैंने फ़ोन उठा के बोल दिया की मेरी तबियत ख़राब है प्लीज मुझे डिस्टब न करे कोई, शाम में फिर एक अनजान नंबर से कॉल आया तो मैंने फ़ोन काट दिया लेकिन जब 2-३ बार आया तो मैंने गुस्से से झल्ला कर बोला " जब एक बार कॉल काट दिया तो समझ नहीं आता क्या फ़ोन रखो चुपचाप " लेकिन तभी उधेर से आती आवाज़ सुन कर मैं चौंक गयी। "क्या हुआ चंदू बेटा क्या मेरा कॉल करना अच्छा नहीं लगा ? तुमने ही नंबर दिया था तो सोचा आज तुमको कॉल आकर लूँ "

मैं एक डैम से हड़बड़ा गयी ये तो मामा जी की आवाज़ थी, हम हरयाणा के और वो बिहार के तो मुझे झट से उनके टोन से पहचान हो गयी
मैं : सॉरी मामा जी वो कोई परेशां कर रहा था तो उसी को दांत रही थी, आप कैसे है
मामा : मैं ठीक हूँ बेटा , अच्छा सुनो दिन पहले तुम्हारी नानी गुज़र गयी, मैंने सोचा की तुमको या तुम्हारी माँ को कल करू फिर हिम्मत नहीं हुई बेटा, माँ की आखिरी ख़ाहिश थी तुम्हारी माँ से मिलने की जो पूरी नहीं हो सकी , तुम अपनी माँ को बता देना और एक बात, अगर वो ना आना चाहे तो तुम आ जाओ तेरहवी से पहले क्या तुम भी पूजा में शामिल हो जाओ तो शायद माँ की आत्मा को शांति मिल जाये। वो इतनी बुरी नहीं थी जितना तुम्हारी माँ समझती है, वो ख़राब नहीं थी बस हालत ख़राब थे।

मैं मामा की बात सुन कर रोने लगी और उनसे वडा किया की मैं नानी की तेरहवी में ज़रूर आउंगी।
 
खुद पर विश्वास करना चाहिए और सतत परिश्रम करते रहना चाहिए। कामयाबी कभी न कभी मिल ही जाती है। आप बढ़िया लिख रहे है , किरदारों के चरित्र का सटीक वर्णन कर रहे है , जहां इमोशंस की जरूरत है वहां इमोशंस और जहां इरोटिका की जरूरत है वहां इरोटिक भी लिखने का प्रयास कर रहे है , देश , काल , परिवेश और विषय वस्तु का भी ख्याल रखा है आपने। और क्या चाहिए एक राइटर को !
एक बहुत ही बड़े इंग्लिश विद्वान से पुछा गया कि सर , एक अच्छे राइटर बनने के लिए इंसान को क्या करना चाहिए ? उनका जबाव था - " Read , Read , Read , Write , Write & Write ".
मैने बहुत सारे ऐसे उपन्यासकार को पढ़ा है जो शुरुआत मे किसी न किसी फेमस राइटर का नकल कर के लिखना प्रारंभ किए थे । और सच कहूं तो उन्होने बहुत ही बकवास लिखा था लेकिन जैसे जैसे आगे लिखते गए , हार्ड वर्क करते गए , एक्सपीरियंस प्राप्त करते गए वैसे वैसे उनके लेखनी मे निखार आता गया और वो बहुत बड़े लेखक बन गए।

चन्द्रमा की कहानी बहुत ही दुखद भरी , इमोशनल कर देने वाली है। और यह मै दावे के साथ कहता हूं कि चन्द्रमा की कहानी कोई काल्पनिक या सिर्फ एक लड़की की कहानी नही है। यह सच्चाई है । यह रिएलिटी है ।

चन्द्रमा की दादी जी और विमला जी की कहानी कोई झूठ नही है। ये बिल्कुल सत्य है जब घर मे किसी लड़की का जन्म होता था तो मर्द से ज्यादा महिलाएं मातम मनाना शुरू कर देती थी। यह भी हंड्रेड पर्सेंट सच है कि भ्रूण परिक्षण के बाद लाखों कन्याओं को गर्भ मे ही मार दिया गया।

चन्द्रमा के फादर की परवरिश ही गलत हुई थी और उसका परिणाम उसके कृत्य से जाहिर हो रहा है। ऐसे लोग परिवार के नाम पर , समाज के नाम पर एक बहुत बड़ा धब्बा है । अभिशाप होते हैं ऐसे लोग । ऐसे लोग शरीर का वह फोड़ा है जिसे काटकर तुरंत ही निकाल देना चाहिए। अगर समय पर इनका उपचार नही हुआ तो ये कैंसर का रूप इख्तियार कर लेंगे।
अगर कुता पागल हो जाए तो उसे गोली मार देना ही बेहतर उपाय है।

सरिता देवी मजबूरन ब्याही गई और वो अबतक इसे लेकर अपने मां-बाप को माफ ना कर सकी। मुझे नही पता उस वक्त उनके परिवार की माली हालात कैसी रही होगी या ऐसा क्या कारण हुआ होगा जिस की वजह से उनकी शादी उनके मर्जी के वगैर कर दी गई लेकिन जबरदस्ती की शादी से किसी का भला नही होता। उनके मां-बाप ने अपनी लड़की के अच्छे भविष्य को ध्यान मे रखकर यह फैसला लिया होगा पर सरिता देवी का भविष्य कैसा हुआ , हमे साफ दिखाई दे रहा है ।
उनके पूजा-पाठ से किसी को आपति नही। घर मे , बाहर मे वो कहीं भी पूजा-पाठ करें लेकिन एक जवान होती लड़की को पुरी तरह से अवहेलना कर , घर की जिम्मेदारी से मुंह मोड़कर यह सब करना मुझे उचित नही लगता।
अपने भाई की उपेक्षा करना , मां की बीमारी पर परवाह न करना भी इनके चरित्र को अच्छा नही बनाता।

दीपक कुमार जैसे लड़के हर शहर मे आपको मिल जाएंगे। ऐसे लड़के प्रेम का मतलब नही समझते। इन्हे किसी भी कीमत पर उनकी मनपसंद लड़की चाहिए ही चाहिए। और अगर न मिले तो लड़की की बेरहमी से हत्या कर देंगे , लड़की के चेहरे पर तेजाब डाल देंगे , लड़की का बलात्कार कर देंगे ।

मै यही कामना करता हूं कि हमारे नायक साहब चन्द्रमा के साथ सिर्फ शरीर का रिश्ता न रखें बल्कि आत्मा का भी रिश्ता कायम करें। अपने दिल मे उसे आश्रय दें। अपने घर की गृहलक्ष्मी बनाएं।

बहुत ही खूबसूरत अपडेट भाई ।
आउटस्टैंडिंग एंड अमेजिंग अपडेट।
 
चन्द्रमा बोलते बोलते रुक गयी , आवाज़ कुछ अजीब सी हुई मनो गाला सुख गया हो बोलते बोलते, ऐसा होना सवाभाविक भी था, उसने अपने जीवन के उस अध्याय से पर्दा हटाया था जो उसको कपड़ो के होते हुए भी वस्त्रहीन कर रहा था, मैंने हाथ बढ़ा कर साइड टेबल से पानी की बोतल उसे पकड़ाया, उसने पानी की बोतल होंटो से लगा कर दो घूंट पानी पि लिया, चन्द्रमा मुझे अपनी आप बीती सुनते सुनते बिलकुल मेरी गॉड में सिमट आयी थी, उसके उसका डायन गाल मेरी छाती पर टिका हुआ था और उसके शरीर का पूरा बोझ मेरे लुण्ड और जांघो पर था , पानी पीते हुए पानी की कुछ बूंदे चन्द्रमा के रसभरे होटो से छलक आयी थी जो उसने नहीं पोंछी थी, अगर यही कुछ अबसे कुछ घंटों पहले हो रहा होता तो शायद अबतक मैं चन्द्रमा को बाँहों में लपेट चूका होता और उसके शराबी होंटो से सारा रास चूस जाता लेकिन अब पैसा पलट गया था,

जो दिल और दिमाग मैंने २ दिन से चन्द्रमा को चोदने और और उसके शरीर को भोगने के प्लान में लगाया था और जो प्लान लगभग पूरा हो गया था, अब वही दिमाग और दिल कही अंतरात्मा को कचोट रहे थे, मैं ३५ साल का अविवाहिक व्यक्ति हूँ, जीवन में २ बार प्यार हुआ और मैंने पूरी ईमानदारी के साथ प्यार किया और शादी करने के मन से उसके सात सम्भन्ध बनाया लेकिन नयति को कुछ और ही मंज़ूर था दोनों किन्ही कारणो से बिछड़ गयी, जब चन्द्रमा मिली तो लगा की उम्र का अंतर ही सही शायद प्यार फिर से वापिस आजाये जीवन में ये मेरा लालच था, लेकिन जब मुझे ऐसा लगा की चन्द्रमा गेम कर रही है मेरे साथ तब मैंने उसको चोदने का छल किया कर यही चहल मेरे दिल और दिमाग में हलचल मचा रहा था।

बार बार मेरे दिमाग उथल पुथल मच रही थी की मैंने कितना गलत सोचा चन्द्रमा के बारे में, पहले ही उसके जीवन में राक्छ्सो की कमी नहीं है, उसका सागा बाप किसी रावण से कम नहीं और उसनका नाममात्र का प्रेमी जो उसको पाने के लिए नित नए खेल खेलता है, और इन सबसे ऊपर उसका नसीब जो जो न जाने कैसे खेल खेल रहा था, और एक मैं जो उसके जिस्म से खेलने के लिए इतनी दूर ले आया, क्या मैं इन रक्चासो से कम हूँ ? शायद नहीं, लेकिन मैं भी इंसान था खुद को सही साबित करने में लगा हुआ था, बार मन ये कह उठता की पहल मैंने नहीं की, उसने शुरुवात की तभी तो मैंने ये हिम्मत करने की ठानी वरना मैं ऐसा व्यक्ति तो नहीं हूँ, माना की मैं मर्यादा पुरुषोत्तम राम जैसा मर्यादित पुरुष नहीं सही लेकिन मैंने आजीवन कोशिश की है की मेरे कारण किसी को कोई तकलीफ न पहुंचे या जान बुझ कर ये प्रयास नहीं किया की किसी का दिल टूटे, फिर आज ये क्यों।

चन्द्रमा ने पानी पी कर बोतल मुझे पकड़ाई तो मेरा धयान इस सोंचो से हटा और मैंने बोतल साइड टेबल पर वापस रख दी, चन्द्रमा ने वापिस अपना गाल मेरे सीने पर रख लिया, कुछ पल चन्द्रमा खामोश रही और फिर धीरे से अपनी आंसुओं से बोझिल आँखे उठा कर एक नजार मुझ पर डाली और फिर झट से नज़रें नीची कर ली। मैंने हाथ बढ़ा कर रुमाल से उसके ाँसों को पूछा और फिर हल्का सा उसके सर पर हाथ रख कर धीमी आवाज़ में पूछा " फिर उसके बाद क्या जुआ ? क्या तुम मामा जी के यहाँ गयी तेरहवी की पूजा में ?"

चन्द्रमा : हुण्णं गयी थी फिर, मामा का फ़ोन दादी के सामने ही आया था और उन्होंने लगभग साड़ी बातें सुन ली थी, दादी कभी नानी से नहीं मिली थी लेकिन फिर भी उन्होंने नानी की डेथ का सुन के दुःख जताया, मैंने अपनी नानी को कभी देखा नहीं था और न ही कभी उनकी आवाज़ सुनी थी लेकिन फिर भी नानी के दुनिया से चले जाने का सुन कर बहुत दुःख हुआ, जो मैं उस रात हुई घटना से अभी कुछ देर पहले तक उबार नहीं पायी थी वो अभी नानी के चले जाने का सुन के सब भूल भाल गयी, मैं लगभग दौड़ती हुई मम्मी के रूम में गयी और एक सांस में मम्मी को बता दिया जो भी मामा ने फ़ोन पर बोला था, मम्मी बिस्तर पर लेती हुई थी, मेरे मुँह से नानी के मरने की खबर सुन के बिस्तर से तक लगा कर बैठ गयी। मैं कुछ देर वह कड़ी मम्मी के बोलने का वेट करती रही लेकिन उनके मुँह से एक शब्द भी नहीं फूटा, बस हवा में टकटकी लगाए घूम सी हो गयी, मैंने पास जा कर मम्मी के हाथ रखा था जैसे मम्मी नींद से जाएगी और मेरा हाथ झटक कर बोली "ठीक है तू जा अपने कमरे में " मैं बुझे मन से वापिस आगयी। मुझे मम्मी से ऐसी उम्मीद नहीं थी, कम से कम माँ की मौत पर दो आंसू तो बहा सकती थी लेकिन शायद मेरी माँ का दिल पत्थर का था जो उनको किसी बात की परवाह ही नहीं थी।

मैंने रात में ही सारी तैयारी कर ली मामा के यहाँ जाने की मैंने दीपक को बता दिया की मेरी नानी की डेथ हुई है और मैं गांव जा रही हो वो छुट्टी का देख लेगा क्यूंकि लगभग एक सप्ताह मैं ऑफिस नहीं आसकुंगी । पहले तो उसे विश्वास ही नहीं हुआ क्यूंकि उसने कभी मेरे मुँह से कुछ नहीं सुना था नानी के परिवार के बारे में और जब मैंने उसे बताया की मैं अकेली जाउंगी मामा के पास तो बिलकुल यक़ीन नहीं किया लेकिन मुझे इस टाइम किसी की कोई परवाह नहीं थी, मैंने मां को फ़ोन करके बता दिया और उन्होंने छोड़ी देर में तत्काल टिकट की कॉपी मुझे व्हाट्सप्प कर दी। टिकट अगले दिन सुबह ११ बजे की नयी दिल्ली से थी तो मैं सारी पैकिंग रात में करके ही सोई, पापा का अभी तक कोई अता पता नहीं था लेकिन मुझे अब कोई चिंता नहीं थी दादी ने मुझे कुछ पैसे थमाना चाहा तो मैंने उनको बता दिया की मेरे पास है वो चिंता ना करे उन बेचारी के पास कहा से आते पैसे, थोड़े पहुंच छुपा के रखे थे अपने खर्च से उसी पैसे को मुझे दे रही थी, मैंने दादी के तसल्ली के लिए अपने पास रखे पैसे दिखाए तब उनको तसल्ली हुई।

रात ऐसे ही गुज़री, जब भी आँख लगती तो रमेश का गन्दा चेहरा दीखता या कभी नानी दिखती, नानी को देखा नहीं था फिर भी एक अनजान चेहरा दिख जाता मानो अपने पास बुला रही हो। जैसे तैसे सुबह हुई, मैं कमरे से बहार आयी थी देखा मम्मी आंगन में एक सफ़ेद साडी में लिपटी सूर्यदेव को अर्ध दे रही थी, मैंने कदम वापिस खींच लिए और थोड़ी दूर से मान को देखती रही, सूरज की किरणे माँ के चेहरे पर पद रही थी, मा की आँखे बंद थी, जल चढ़ा कर मान ने लोटा नीचे रखा और सूर्यदेव की ओर हाथ जोड़ कर कुछ बुदबुदाने लगे फिर से मान की आँख बंद थी और वो बिना रुके कुछ बुदबुदा रही थी, शायद कोई श्लोक पढ़ रही थी या सूर्यदेव की आरती। मैं एक तक लगाए मम्मी को देख रही थी की तभी आँख के कोने से आंसुओं की एक लाइन निकल कर उनके कानो की ओर फिसलने लगी, जब तक मम्मी बिदबिदती रही तब तक मम्मी के आंसू निकलते रहे, उस टाइम मम्मी हर दिन जैसी मम्मी नहीं लग रही थी उस दिन ऐसा लग रहा था मनो मम्मी के अंदर सूर्य की किरणे प्रवेश कर गयी हो और उनका सारा गुस्सा, सारी अकड़ जला गयी हो। कुछ देर बाद मम्मी का ध्यान टूटा और उन्होंने साडी के पुल्लू से अपने आंसू साफ़ किये और लोटा उठा कर अपने कमरे में चली गयी।

मैंने भी टाइम ना गवाते हुए जल्दी से नहाने भागी और जल्दी से तैयार हो कर अपना बैग उठा और आँगन में आ गयी, तब तक दादी भी आंगन में चुकी थी और मम्मी किचन में चाय बना रही थी, अभी तक मैंने अपने जाने का नहीं बताया था, थोड़ी देर में मम्मी चाय लेकर आयी और चाय का कप दादी को देने बाद मुझे भी चाय पकड़ाई और फिर किचन में घुस गयी, कोई १० मं में हमने चाय पि, तब तक मैंने दीपक को मैसेज कर दिया था बहार मिलने का, मैं जानती थी की वो बेकार में मेरे पीछे कलेश करेगा इसलिए मैंने रात में ही सोच लिया था की अगर वो मुझे रेलवे स्टेशन छोडने जायेगा तो उसके मन में ज़्यदा कुछ रहेगा नहीं शक करने के लिए। मैंने टाइम देखा 8.३० हो चुके थे, मुझे ज़्यदा देर नहीं करनी थी, मैंने मम्मी को आवाज़ दी "मुम्मा मैं जा रही हूँ " मम्मी एक दो मं में बहार आयी उनके हाथ में एक टिफ़िन था , उन्होंने वो टिफ़िन मेरी ओर भद्दा दिया, " ये रख ले, रास्ते का कुछ मत खाना " मैंने जैसे ही टिफ़िन पकड़ा मम्मी ने मुझे अपने सीने से लगा लिया, उनके सीने से लगते ही मैं जैसे पिघल सी गयी, मान की ममता ऐसी ही होती है, मैंने भी उनसे गले लग कर खूब रोई, फिर दादी ने अलग किया, लेट हो रहा था मैं भी अलग हो कर जल्दी से घर से निकलने लगी, तभी मम्मी ने फिर पीछे से आवाज़ दी, मैंने पलट कर देखा वो एक कॉटन की चुन्नी लिए कड़ी थी।
मम्मी ने चुन्नी देते हुए कहा, वह ये दाल कर रखना वह का माहौल यहाँ से थोड़ा अलग है। मैंने वो चुन्नी मम्मी के हाथ से ले और अपने बैग में ठूंस कर रिक्शे में बैठ गयी।
 
रिक्शे से मैं मैं रोड पर पहुंची, दीपक वहा मेरा इंतज़ार कर रहा था, मैं रिक्शे से उतर कर दीपक की बाइक पर बैठ गयी, सामान कुछ ज़्यादा नहीं था इस लिए मैं बैग अपने और दीपक के बीच में रख कर बैठी थी, दीपक मेरे बैठते ही बाइक लेके उड़ गया, मैं उस से चिपक तो बैठ नहीं सकती थी तो वो भी बाइक चलने पर ज़्यदा धयान दे रहा था ना की बार बार ब्रेक लगाने पर, डेढ़ घंटे का रास्ता दीपक ने १ घंटे में पूरा कर किया और मुझे १० बजे स्टेशन पंहुचा दिया, स्टेशन के सामने बाइक रोक कर दीपक ने मुझे उतरने का इशारा किया, मैंने बाइक से उतर कर बैग एक साइड में रखा और दीपक के सामने आकर खड़ी हो गयी, दीपक अभी बाइक पर ही बैठा था उसने मेरा हाथ पकड़ लिया और ज़ोर से दबा दिया, मैंने एक आह भर कर रह गयी, उसने मेरी आँखों में आंखे डाल कर कहा, " बहनचोद भरोसा करके तुझे जाने दे रहा हूँ, मेरे साथ धोका मत करियो, अगर गलती से भी तूने कोई हरकत करि या मुझे छोड़ कर किसी और के संग सेट हुई तो माँ कसम तेरी माँ चोद दूंगा "

मैं उसकी धमकी से खुश खास घबराई नहीं, मुझे उस से इसी प्रकार की भाषा की उम्मीद थी, मैंने भी साफ़ जॉब दिया की " अगर कुछ हरकत करनी ही थी तो तुझे क्यों लाती, चुपचाप भी आसक्ति थी, मुझे कोई कलेश नहीं करना है, मैं बस नानी की तेरहवी में जा रही हूँ बस तू मेरी जॉब का धयान रखना, मुझे वापसी में ये जॉब चाहिए, "

दीपक ये सुन कर खुश हो गया " अरे तू चिंता ना कर, साले मेरे रहते तुझे किसी कीमत पर नहीं निहि निकल सकते, सालो की गांड मार लूंगा अगर तुझे कुछ कहा उन्होंने तो " आज दीपक कुछ ज़्यदा ही गालिया निकाल रहा था, शायद मुझ पर धौंस ज़माने के लिए, लेकिन मुझे कुछ खास फरक नहीं पड़ रहा था, उसने साथ प्लेटफार्म तक आने का बोला लेकिन भीड़ बहुत थी तो प्लेटफार्म टिकट की बहुत लम्बी लाइन थी, मैंने मना कर दिया और बैग उठा कर प्लैटफॉर्म पर चली गयी, ट्रैन प्लेटफार्म पर खड़ी थी, किस्मत अच्छी थी मुझे वही टिकट चेकर मिल गया जब मैंने बताया की मैं अकेली हूँ तो उसने मुझे मेरी सीट तक पहुंचाया और चला गया, मैंने अपना बैग अपनी सीट पर रख के चुपचाप बैठ गयी, मेरी सीट खिड़की के साइड वाली अप्पर बर्थ थी, थोड़ी देर में लोग आ कर अपनी सीट पर बैठ गए और ठीक ११ बजे ट्रैन स्टेशन से चल पड़ी, थोड़ी देर में मैंने देखा की लोग अपने ब्लॅंकेटस और चादर सीट पर बिछा रहे है और कुछ लोग तो उप्पर बर्थ वाले तो आराम से लेट भी गए, मैं पहली बार ट्रैन के एयर कंडिशन्ड बॉगी में सफर कर रही थी,मैंने भी अपनी चादर बिछाई और आराम से लेट कर कम्बल ओढ़ लिया, थोड़ी देर में मामा का फ़ोन आया तो मैंने उनको बता दिया की मैं ट्रैन में हूँ और चिंता की कोई बात नहीं है। मामा के कॉल से मुझे माँ की याद आयी और उनका आज का व्यवहार बिलकुल अलग था, मैंने माँ को कॉल करके बता दिया की मैं ठीक थक ट्रैन में सवार हो गयी चिंता किकोई बात नहीं है।

रास्ता सोते जागता गुज़रा, मैं सुबह ६ बजे मामा के बताये हुए सोनपुर स्टेशन पर पहुंच गयी, स्टेशन बहुत बड़ा था लेकिन दिल्ली की तरह कोई भीड़ भाड़ नहीं थी मैं अपना बैग उठा कर थोड़ा आगे बढ़ी ही थी की एक तीस पैंतीस साल का आदमी मेरे पास आया और बोला " तोहरा नाम चन्द्रमा भइल का " मुझे ठीक से समझ नहीं आया लेकिन मैं अपना नाम सुन कर समझ गयी की इस आदमी को मामा ने भेजा है, मैंने मामा को कॉल किया तो उन्होंने बताया की ये आदमी उनकी ही दूकान पर काम करता है और ये मुझे उनके पास पंहुचा देगा। मैं उस आदमी के साथ चल पड़ी, उसने मेरा बैग उठा कर सर पर रख लिया था और तेज़ चलते हुए स्टेशन से बहार निकल आया, बहार एक ऑटो खड़ा था उसने सामान उस ऑटो में रखा और खुद ड्राइविंग सीट में बैठ कर ऑटोचालने लगा, मामा का घर वह से कोई 10-१२ किलोमीटर दूर था, लगभग आधा घंटे में हम एक गाँव के पास पहुंचे, गाओं के बहार कुछ खपरैल मकान बने हुए थे, इसे मकान मैंने फरीदाबाद या दिल्ली में नहीं देखे थे,
ऑटो थोड़ा आगे बढ़ा तो कुछ पक्के मकान नज़र आये फिर थोड़ा आके चल कर ऑटो एक मकान के पास जाकर रुक गया, ये मकान काफी बड़ा था गांव से थोड़ा सा हटके बना हुआ था लेकिन बहार से पता लग रहा था की मकान काफी बड़े प्लाट पर बना हुआ है, ऑटो से उतर कर उस उस आदमी ने जैसे ही दरवाज़ा खटखटया की दरवाजा झट से खुल गया और सामने मामा खड़े दिखाई दिए, मामा के सर के बाल उतरे हुए थे फिर भी मैंने उनको झट से पहचान लिया, मामा ने भी मुझे देखते ही अपनी बांहो में ले लिया और मुझे घर के अंदर ले आये, कमरे में मामा मामी और उनको २ बच्चे भी थे, मामा ने मुझे सब से मिलवाया, घर में गमी का माहौल था फिर भी सब मिलकर बहुत खुश हुए और मुझे भी अपनापन महसूस हो रहा था, सूरज अब निकलाया था मामी मुझे एक रूम में लेकर गयी और मुझसे फ्रेश होने के लिए कहा, मेरा बैग मामा ने वही रखवा दिया था, मामी ने बताया के यही मेरा कमरा है और मैं आराम से फ्रेश हो कर उसी कमरे में जाना जहा अभी मामा मिले थे, खूब बड़ा रूम था, एक तरफ बाथरूम था, दूसरी तरफ बेड लगा हुआ था और एक साइड अलमीरा थी, मैंने अपना सामान खोल कर अलमारी में ढंग से रख दिया और एक जोड़ी सलवार सूट निकल कर नहाने चली गयी, जब मैं नाहा धो कर तैयार हुई तो खुद को आईने में देखा, आज बहुत दिनों के बाद मैंने खुद को ठीक से देखा था, वरना उस रात के बाद से खुद को देखने में भी घृणा आती थी, तभी मुझे माँ की दी हुई चुन्नी याद आयी तो मैंने जल्दी से बैग से निकल कर गले में डाल ली।

कुछ देर बाद मैं मां के रूम में थी, देखा तो वहा चटाई पर नाश्ता लगा हुआ था और सब बैठे मेरा इन्तिज़ार कर रहे थे, मैं चुपचाप जा कर मामी के पास बैठ गयी, मामा जी वही बैठे कुछ मंद मंद बुदबुदा रहे थे, फिर मामी ने एक थाली सजाई और वो थाली मामा के आगे रख दी, मामा कोई जाप कर रहे थे, जाप पूरा करके मामा ने थाली उठायी और कमरे से बाहर निकल गए ? मैंने आजतक ऐसा कुछ नहीं देखा था तो मैंने मामी से पूछ लिया , मामी ने बताया की मामा ने नानी की अग्नि दी है तो हमारे यहाँ ऐसी रीति रिवाज है की जो बेटा अग्नि देता है वो बेटा सबसे पहले भोजन करता है, और तुम्हारे मामा पहले पीपल के पेड़ पर जा कर कौव्वे को खाना देंगे फिर वो खाएंगे उसके बाद हम सब अपना नाश्ता खाएंगे, थोड़ी देर में मामा लौट आये फिर उन्होंने अपना नाश्ता चुपचाप हमारे सामने बैठ कर किया और जब वो अपना खाना ख़तम करने वाले थे तब उन्होंने एक पूरी अपनी प्लेट में से उठा कर मुझे खिला दिया, मामी ने टोका "अरे ये क्या किया? ये ठीक नहीं है "

मामा ने थोड़ा तीखे स्वर में मामी को कहा की सब ठीक है,ये मेरी बड़ी बहन की बेटी है और माँ पर इसका भी उतना ही अधिकार है जितना मेरा , तुम चिंता ना करो इस से माँ की आत्मा प्रसन्न ही होगी।

खैर थोड़ी देर में हम सब ने नाश्ता किया और फिर पंडित जी आगये तो मामा उनके साथ बिजी हो गए, कल नानी की तेरहवी थी तो मामा जी को उनसे बात करनी थी, मैं भी अपने कमरे में आगयी और मामी भी कुछ गांव की औरतो के साथ बिजी हो गयी, मेरी कई दिन से नींद नहीं आयी थी लेकिन पता नहीं क्यों अब बहुत तेज़ नींद आरही थी तो मैं बेड पर लेट गयी और पता नहीं चला कब गहरी नींद में सो गयी।

जब सो कर उठी तो दिन का लगभग ४ बज रहा था घर में थोड़ी चहलपहल सी लग रही थी और कुछ नए चेहरे भी नज़र आरहे थे
 
मैं सीधी उठकर मामा के रूम चली गयी, मैं वहा किसी और को तो जानती नहीं थी इसलिए मुझे थोड़ा अजीब लग रहा था, दूसरा थोड़ा भाषा की भी समस्या थी, हम दिल्ली हरियाणा वालो ने सदा ऐसी भाषा सुन कर मुँह ही बनाया था, मम्मी भी इतने साल रह कर हरयाणवी टोन में ही बात करने लगी थी लेकिन एक बात साफ़ थी जब भी यहाँ के लोग बात करते हुए कीजियेगा , नहइयेगा जैसे शब्द बोलते थे एक अपनापैन और सम्मानजनक महसूस होता था और यही कारण था की मैं बात करते हुए बच रही थी, कही ना कही मन में डर था की मेरे मुँह से अपनी हरियाणवी टोन कुछ निकल जाये और किसी को बुरा ना लग जाये।

मामा अपने रूम में बैठे थे और साथ में कुछ लोग और भी थे, मामा ने मुझे अपने पास बिठाया और वहा बैठे लोगों को बताया की ये मेरी भांजी है और दिल्ली से आयी है, मेरी बड़ी बहन की बिटिया है, मैंने वहा बैठे लोगो को नमस्ते की, फिर मामा मुझे रूम के एक ओर ले गए, ये काफी बड़ा रूम था, अब मैंने धयान दिया तो गलती का एहसास हुआ, ये मामा का बैडरूम नहीं था ये मामा ने बैठक बना रखी थी घर में, एक तरफ साफ़ सुथरा बिस्तर लगा हुआ था, उसके साइड में बैठने के लिए तिपाई जैसी कोई चीज़ थी और दूसरी तरफ जहा लोग बैठे थे वह सेवन सीटर सोफे पड़ा था, साथ में लगी दीवार में शोकेस बना हुआ था और मामा मुझे उसी शोकेस के सामने लेकर आये थे।

शोकेस में बहुत सारी फोटोज छोटे बड़े फ्रेम में लगी हुई थी और जिसमे कुछ फोटोस में मामा और ममी की फोटोज भी थी, एक फ्रेम में उनके दोनों बच्चों की, लेकिन मामा ने मेरा धयान खींचा था सबसे ऊपर के रैक में रखी फोटो की ओर, पहली फोटो में एक व्यक्ति कुरता धोती पहने खड़ा था, हाथ में एक छाता पकडे हुए, माथे पर चन्दन लगा हुआ था और साइड से उनकी छोटी दिखाई दे रही थी, जैसे मामा ने अभी छोड़ राखी थी सर मुंडवाने के बाद, मामा ने फोटो के ओर इशारा करते हुए कहा "चंदा बेटा इनको प्रणाम करो, यही तुम्हारे नाना पंडित रामशरण है "
मैंने झट से हाथ जोड़ कर नाना जी की फोटो को प्रणाम किया, तस्वीर बहुत पुरानी थी ब्लक एंड वाइट इसलिए कुछ खास पता नहीं चल रहा था फिर भी देख कर अंदाज़ा हो रहा था की नानाजी कोई सज्जन व्यक्ति रहे होंगे, फिर मामा ने अगली तस्वीर की ओर इशारा किया, ये तस्वीर अभी हाल की ही लग रही थी क्यूंकि ये फोटो रंगीन थी, इस फोटो एक महिला की थी, सांवला रंग, साडी का पल्लू सर तक ओढ़े हुए, माथे पर चन्दन का लेप, मामा कुछ बोलते इस से पहले मैं झट से बोल पड़ी, ये नानी है ना, मामा ने गर्दन हिलायी तो मैंने हाथ जोड़ कर नानी को भी नमस्कार किया। मामा मेरी ओर ही देख रहे थे फिर बोले "कैसे पहचाना नानी को ? "

मैंने मुस्कुराकर "बिलकुल मम्मी जैसी है देखने में " मामा "हाँ दीदी बिलकुल माँ जैसी है दिखने में, अब तो और भी हो गयी है, जब मैंने दीदी को देखा था दिल्ली में तुम्हारे घर पर तो एक बारी तो मैं चौंक ही गया था " मैं " हाँ सच में बहुत मिलती है दोनों की शकल, और आप भी तो नानाजी जैसे है देखने में " ये सुनकर मामा जी के चेहरे पर मुस्कान दौड़ गयी, शायद ही कोई बेटा होगा जो अपने पिता जैसा न दिखना चाहता हो, फिर मामा ने एक और फोटो की ओर इशारा किया "इसे देखो ये कौन है ?" फोटो थोड़ी धुंधली थी पर मैंने अंदाज़ा लगाया ये माँ होगी क्यूंकि फोटो में एक 15-१६ साल की लड़की एक ५-६ साल के लड़के का हाथ पकडे कड़ी थी, देख कर अंदाज़ा हो रहा था की दोनों भाई बहन ही होंगे, मैं " ये आप और मम्मी है क्या मामाजी ?"

मामाजी : हां हां पहचान गयी
मैं : हाँ अंदाज़ा लगा लिया था मैंने
मामाजी : हाँ बड़ी मुश्किल से ये फोटो हाथ लगी, ये हम किसी के शादी में गए थे वहा ली गयी थी, उस टाइम फोटो खिचवाने का कोई खास चलन तो था नहीं, कुछ साल पहले मुझे किसी ने बताया की दीदी और मेरी फोटो उनके पास है है तो बड़ी मिन्नत करके उनसे ली, माँ ये फोटो देख कर बहुत रोई थी , शायद यही फोटो कारण बानी की माँ ने मुझे दीदी को ढूंढने के लिए कसम दी, बस मुझसे गलती ये हुई की मैंने थोड़ा लेट ढूंढा नहीं तो शायद माँ दीदी को आखरी बार देख कर दुनिया से जाती।

मामा बोलते बोलते रुहाँसे हो गए, मैं समझ नहीं पायी की क्या बोलू, इतने में पीछे से मामी ने आवाज़ लगयी की चाय रेडी है चाय पीने चलो, मामा ने मामी को बोलै की नहीं चंदा मेरे साथ ही चाय पीयेगी तूम यही ले आओ, इतने में जो लोग बैठे थे वो उठ कर जाने लगे, मामा ने उनको चाय के लिए रोका लेकिन फिर अगले दिन का आने का बोल कर चले गए।

मामा मामी और मैंने वही चाय पी, कमाल की बात थी की मामी काली चाय बना कर लायी थी, जिसमे हल्का सा नीबू मिला हुआ था, मैंने आजतक काली चाय नहीं पि थी, मामा समझ गए फिर मुस्कुरा कर बोले " यहाँ शाम में यही चाय चलता है " फिर मामी की ओर मुड़ कर बोले " जब तक चंदा है उसके लिए दूध वाला चाय बना देना, अभी बच्चा है ये, इ सब का आदत नहीं लग पायेगा "

मैं झेप गयी लेकिन जल्दी से बोली " नहीं मामा जी ये भी अच्छा लग रहा है, मेरे लिए स्पेशल मत करो आप " जीवन में कभी मेरे लिए कुछ स्पेशल नहीं हुआ था तो आज अपने लिए स्पेशल होते देखना सुनना अजीब लग रहा था। खैर चाय ख़तम करके जैसे ही मैं उठने लगी तो मामा रोक कर पूछा " तुमने पूरा घर देखा ?" मैंने ना में सर हिला दिया

मामा : आओ मैं दिखता हूँ तुमको, वैसे तो पंडित लोग लोग मना करते है इधर उधर निकलने से तेरहवी तक लेकिन मैं घर में घूम फिर लेता हूँ, कहकर मां जी ने मेरा हाथ पकड़ा और मुझे घर के एक ओर लेके चले, मामा के हाथ में एक अजीब से गर्माहट थी, हाथ पकड़ते हुए बहुत अच्छा सा लग रहा था, मैं किसी छोटी बच्ची के जैसी मामा का हाथ पकड़ उनके साथ चल दी, पापा ने कभी ऐसे मेरा हाथ नहीं पकड़ा था, दूसरे बच्चों को जब भी देखती अपने पापा का हाथ या ऊँगली पकड़ कर चलते तो मेरा भी मन करता ऐसे ही पकड़ने का लेकिन पापा ने शायद मुझे कभी बेटी मना ही नहीं था,

मामा मुझे एक एक कर सारा घर दिखा रहे थे, खूब बड़ा घर था, हमारे घर जैसे 10-१५ घर इसमें समां जाये, घर ऐसे बना हुआ था जैसे २ हिस्सों में बना हुआ हो, एक साइड नया आजकल के हिसाब से कंक्रीट का बना हुआ मकान था बीच में खूब बड़ा आंगन था जिसमे एक ओर नलका लगा हुआ था और दिवार के सहारे 3-४ अमरुद और नीम के पेड़ लगे हुए थे, दूसरी साइड में बड़ा बड़ा हाल टाइप का था, जिस पर छप्पर डाला हुआ था खपरैल वाला, वही नल के ओप्पोसित साइड वाले में वो बैठक नुमा कमरा था जो गली से कनेक्टेड थे, मामा यहाँ जायदातर बैठा करते थे और यही वो लोगो से मिला जुला करते थे क्यंकि यहाँ से गली सीधा रोड से मिलती थी इसलिए लोगो को आना जान आसान लगता था,

जो खपरैल वाला हिस्सा था वो नाना जी के पिताजी ने बनवाया था, जमीन खूब थी इसलिए मामाजी ने नया मकान दूसरी ओर बनाया और इसको जस का तस रहने दिया था, इसी में एक कमरा नानी का था जिसमे वो अपने देहांत से पहले तक रहती थी, मामा ने दिखाया, मिटटी की दिवार से बना कमरा जिसमे एक ओर दिवार से लगा बेड था और दीवार के दोनों ओर अलमारी बानी हुई थी जिसमे नानी का सामान रखा हुआ था, हम कमरे से बहार निकले तो मामा गेट बंद करने लगे तो मैंने दरवाजे पर एक हाथ के पंजे का निशान देख कर मामा से पूछा के ये क्या है ? मामा ने बताया की बचपन में घर कुछ रंगाई पुताई का काम हो रहा था, तब एक दिन दीदी ने शरारत में अपने हाथ का पंजा अपने दरवाज़े पर छाप दिया था, असल में दीदी का कमरा है, पिताजी के देहांत के बाद से माँ दीदी के कमरे में ही रहने लगी थी और बाउजी वाला कमरा मैंने ले लिया था, तब तक ये नया वाला मकान नहीं बना था। बाद में बहुत बार रंगाई पुताई का काम हुआ लेकिन माँ ने इस दरवाज़े को कभी पोतने नहीं दिया, शायद वो दीदी की निशानी को नहीं मिटाना चाहती थी।

मैंने जेब से अपना फ़ोन निकला और दरवाजे की एक फोटो ले ली , मामा मुझ हर बात डिटेल में बता रहे थे, मेरा कई बार मन हुआ की मामा से पुछु के जब सब कुछ ठीक था परिवार में, ना गरीबी थी ना और कोई समस्या फिर नाना और नानी क्यों मम्मी की शादी इतनी दूर एक पियक्कड़ और विधुर व्यक्ति से क्यों कर दी, और ऊपर से दोनों में आयु का इतना अंतर, लेकिन मैं पूछ नहीं पायी, आज वैसे भी पहला दिन था लेकिन मैंने पक्का इरादा कर लिया था की यहाँ से जाने से पहले ये जान कर रहूंगी।

अगला दिन तेरहवी और लोगो के सेवा सत्कार में निकल गया, मामा ने अपना वचन निभाया और मुझे अपने साथ पूजा में ले कर बैठे, एक दो बूढी औरतों को थोड़ी दिक्कत हुई लेकिन मामा ने एक ना सुनी , पूजा से निपट कर मोहल्ले पड़ोस वालो को और ब्राह्मण को खाना खिलाया गया और फिर सबने धीरे धीरे विदा ली। मैंने माँ की बात मानते हुए बाकि गांव की लड़कियों और औरतो के जैसे चुन्नी लपेटे रही।

जब शाम में लगभग सब चले गए मैं मामा जी के बच्चों के साथ गप्पे मार रही थी, मेरी उन बच्चों के साथ खूब बनने लगी थी, तब अचानक एक बुढ़िया लाठी टेकते हुए आँगन में आयी, मामी उसको देख के झट से उठी और उनके पैर छू लिए, बुढ़िया मामी से कह रही थी "सब को बुलाया और मुझे भूल गयी, तेरी सास के मरते ही अपने पराये सबको भूल गयी ?" मामी झेप गयी और हकलाते हुए बोली " नहीं काकी मैंने भेजा था बिल्लू को आपके घर लेकिन आप नहीं थी, आप सुधीर के यहाँ गयी थी उसका लड़का को देखने , आज भी सवेरे भेजा था लेकिन आप तब तक आयी नहीं थी और आपका घर बंद था "

काकी : हां फिर तू ठीक बोल रही है बहु , मुझे लगा तूने मुझे जानकर नहीं बुलाया
मामी : कैसी बात करती हो काकी भला इस गांव में कौन ऐसा है जो आपके मरने जीने में ना बुलाता हो, आपके बिना इस गांव में ना कोई शादी हो सकती है , ना कोई बच्चा और ना किसी के तेरहवी, रुकिए आप का खाना मैंने संभल के रखा है ले के जायेगा, तब तक आप बैठिये ना।

मेरा धयान अब इस बुढ़िया काकी पर ही था, कम से कम ७० साल की होगी बुढ़िया मेरी दादी से भी बड़ी उम्र की लेकिन शरीर में अभी भी जान दिखाई दे रही थी और आवाज़ भी टन टन निकल रही थी, बुढ़िया काकी ने अब इधर उधर नज़र दौड़ाई तो मैं भी उठ के उसके नज़दीक गयी और जैसे ही नमस्ते करके पैर छूने लगी की बुढ़िया ने एक हाथ से पकड़ कर मुझे सीधा किया और एक अचरज भरे स्वर ने बोली " अरे तू सविता की बेटी है ना ? "

इतने में मामी ने पीछे से कहा " अरे किसने बताया आप को काकी ?"
काकी : ऐ लो अब ये भी बताने वाली बात है, मेरे सामने जन्मी थी सविता, उसकी नाल मैंने अपने हाथ से ही काटी थी भला मैं न पहचानोगी, अभी तक मेरी आँख ठीक है अगर अंधी भी हो जाओ तो सविता को छू के पहचान लुंगी"
मैं : हाँ काकी मैं सविता की ही बेटी हूँ
काकी : कब आयी तू ? और तेरी माँ कहा है ?
मैं : कल आयी हूँ काकी, माँ नहीं आयी, दादी ज़्यदा बीमार थी इसलिए छोड़ के नहीं आसक्ति थी" मैंने झूट बोला

काकी : बिलकुल अपनी माँ पर गयी है बुर बाप का रंग ले लिया है इसलिए गोरी हो गयी है बाकि सब कुछ वैसे ही है बस थोड़ा शरीर नहीं भरा माँ जैसा, तेरी माँ का तो तेरी उम्र से 3-४ साल पहले ही भर गया था बिलकुल

अभी काकी कुछ और बोलती की मामी ने जल्दी से काकी को टोका "काकी खाना चिमकी में दाल दिया है, घर ले के जाएंगी या थोड़ा यही लगा दू। "

काकी को मामी का टोकना अच्छा नहीं लगा शायद, बुरा सा मुँह बना कर बोली "नहीं बहु चिमकी ही दे दे अब घर जा कर ही खाउंगी, अब तो तेरी सास के बाद तो ये घर पराया ही हो गया समझो " मामी ने भी झट से पिन्नी में बंधा खाना काकी को पकड़ाया और जल्दी से उनके पैर छू लिए, मनो मामी जल्दी से पीछा छूटना चाह रही हो "
 
काकी के जाते ही मामी ने रहत की सांस ली, बहुत खतरनाक बुढ़िया है ये, इस से बच कर रहना, ये बुढ़िया इस गांव का पूरा इतिहास जानती है, अगर इस गांव में पत्ता भी हिलता है तो इस बुढ़िया को पता चल जाता है, तुम्हारे आने का भी भनक इस बुढ़िया को लग गयी होगी तभी आयी है यहाँ, वर्ण ये सुधीर के यहाँ से इतनी जल्दी नहीं आती , छत्ती नहला के आती ये वहा से।

मैं : लेकिन ये है कौन ?
मामी : हमारी ही रिश्तेदार है, इसके पति सरकारी नौकरी में थे, एक ही बेटा था, शहर में रख कर खूब पढ़ाया लिखाया, लेकिन बहार रहने के कारण परिवार से कभी आत्ताच नहीं हुआ, काकी अपने पति से लड़ती थी की बेटे को घर में रख कर पढ़ाओ लेकिन काका नहीं माने और उसका नतीजा ये हुआ की एक दिन वो विदेश चला गया बिना बताये, अब वही सपरिवार रहता है, बस एक बार आया था काका के मरने के बाद उसके बाद फिर नहीं आया वापिस। अब काकी काका के पेंशन पर जी रही है। जब अकेली थी तभी लोगो के मरने जीने में जाने लगी, गांव की आधी महिलाये जो गरीब है उनके बच्चों की डिलीवरी काकी के हाथो ही हुई है, आज भी गांव में कोई भी काम होता है उसमे काकी की उपस्तिथि ज़रूर होती है, आज वो सवेरे से यही होती लेकिन सुधीर के यहाँ कल बच्चा हुआ है तो काकी वही वयस्थ थी इसलिए अब आयी है।

जैसे जैसे मामी मुझे काकी के बारे में बता रही थी वैसे वैसे मेरा दिमाग चल रहा था, मुझे माँ की शादी के बारे में काकी से अच्छा कौन बता सकता था, मामा और मामी शायद बताते हुए झिझकते लेकिन ये बुढ़िया तो मुंहफट मालूम होती है, मुझे सही जानकारी इसी बुढ़िया से मिल सकती थी। मामी के मना करने के बावजूद मैंने ठान लिया था की जैसे ही मौका लगेगा मैं इस बुढ़िया से ज़रूर मिलूंगी।

अगले दो दिन परिवार में ही व्यस्त रही, तेरहवी हो चुकी थी तो मामा भी अपनी दूकान पर हो आये और मेरे और बच्चों के लिए खाने पिने की बहुत सी मिठयां और चॉकलेट लाये, मामा मुझे बिलकुल बच्चो के जैसे ट्रीट कर रहे थे और मुझे भी अच्छा लग लग रहा था अपने पिता सामान मामा के साथ समय बिता कर। यहाँ आकर मैं सब भूल भाल गयी थी, यहाँ ना पापा थे, न वो नशेड़ी रमेश था और नहीं वो गुंडा दीपक जीवन शायद ही इतना अच्छा रहा हो मेरे लिए, मैं खूब खुश थी, एक दो रिश्तेदार से भी मिली, लेकिन मामा ने ज़्यदा इधर उधर जाने नहीं दिया।

इतवार का दिन था मामा आज जल्दी चले गए थे दूकान पर क्यंकि संडे को दूकान पर भीड़ ज़्यदा रहती थी, बाकि दिन लड़के संभल लेते थे लेकिन संडे के कारण मामा को जाना पड़ा, वैसे भी दिवाली आने वाली थी तो दूकान पर भीड बहुत रहने वाली थी।
उस दिन सब देर से सो कर उठे, नास्ता करके मैं तैयार हुई की तभी मामा के यहाँ काम करने वाली लड़की राधा आगयी। राधा मेरे से 3-४ साल छोटी रही होगी लेकिन शरीर से अभी से जवान दिखने लगी थी, उसका शरीर मुझसे भी अधिक भरा हुआ था लेकिन बात बिलकुल बच्चों वाली करती थी। राधा मामी के काम हाथ बताती थी, उसकी माँ दिन में आकर बर्तन मांज जाती थी। आज कुछ ज़्यदा काम था नहीं क्यूंकि मामा ने बोला था की शाम में वो लिट्टी चोखा ले कर आएंगे। वो मेरे लिए ही लाने वाले थे क्यूंकि मैंने आज तक लिट्टी चोखा खाया नहीं था,

राधा थोड़ी ही देर में काम से फ्री हो गयी और बच्चे टीवी देखने लगे, मामी भी मोबाइल पर वीडियो कॉल पर अपनी घरवालों से बात करने में बिजी थी। मैंने राधा को पकड़ा " राधा मुझे गांव आये इतने दिन हो गए लेकिन तुमने अब तक मुझे गांव नहीं दिखाया ?"
राधा : का बात करती है मालकिन, आप बोलिये अभी दिखा दूंगी
मैं : तो चलो आज दिखा दो मुझे अपना गांव
राधा : ठीक है, अभी चलिए
मैं मामी के रूम के पास खड़ी होकर बोली " मामी मैं राधा के साथ घूमने जा रही हूँ, थोड़ी देर में आती हूँ घूम के" मामी शायद काल में ज़्यदा भी बिजी थी उन्होंने बस गर्दन हाँ में हिला दी तो मैं झट से राधा का हाथ पकड़ के घर से निकल पड़ी
 
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