पंडित रामशरण घर पर ही थे, मेरे साथ सुम्मु धोबी और दीनू को देख कर चिल्लाने लगे लेकिन इस से पहले बात बढ़ती मैंने जल्दी से बात संभाली और बताया की सुम्मु और उसके परिवार को नहीं पता था और सरिता झूट बोल कर इसके घर सिलाई सीखने जाती थी, आज मैंने इसकी घरवाली को बताया तो ये दीनू को लेकर आया है आपसे माफ़ी मगवाने, पंडिताइन भी वही दरवाजे की पीछे कड़ी सुन रही थी लेकिन सरिता का कोई पता नहीं था, सुम्मु ने हाथ जोड़ कर माफ़ी मांगी और अपने बेटे से भी मंगवाई, रात का समय हो चला था शायद पंडित जी भी अब और बखेड़ा नहीं खड़ा करना चाहते थे इसीलिए उन्होंने दीनू को सरिता से दूर रहने की चेतावनी दे कर चलता कर दिया, ये बात पंडित जी भी जानता थे की सुम्मु का परिवार सीधा है और उनकी कभी इतनी हिम्मत नहीं होगी की वो उनकी ओर आँख उठा कर देखे, अब तक जितना भी पता लगा था उस से ये तो साफ़ था की सरिता ही दीनू के प्यार में पागल है, ऐसा नहीं था की दीनू को सरिता से प्यार नहीं था लेकिन उसका प्यार सरिता के प्यार के जैसे दीवानगी की हद तक नहीं पंहुचा था।
घर वापिस आते समय सुम्मु पुरे रस्ते दीनू को समझता रहा ही सरिता से बचपने में ऐसा कुछ हो गया वो इसको प्यार ना समझे और दूर रहे, मालिक साब के बहुत उपकार है हमारे परिवार पर, दीनू हु हां में जवाब दे रहा था लेकिन फिर भी मेरे मन में आशंका थी की सरिता का जादू इस लड़के पर से इतनी आसानी से नहीं उतरेगा।
लगभग एक दो महीने तक सब कुछ ठीक चल रहा था, मुझे कही से भी भनक नहीं मिली सरिता और दीनू के मिलन की, मुझे भी लगा की मामला अब शांन्त हुआ, लेकिन होनी को कौन टाल सकता है भला, फिर वही हुआ जिसकी आशंका मेरे मन में थी, एक सुबह मैं अभी सो कर भी नहीं उठी थी की मेरे दरवाजे पर धर धर करके कोई दरवाज़ा खटखटा रहा था मैंने हड़बड़ा कर दरवाजा खोला तो देखा सामने पंडित जी २ लठैत के साथ खड़े गुस्से लाल हो रहे थे ?
मैं : क्या हुआ पंडित जी इतनी सुबह ?
रामशरण : (गुस्से से ) होना क्या है भाभी, इस रंडी ने मेरे जीवन को कलंकित कर दिया है, आज अगर मिल गयी तो जिन्दा नहीं छोडूंगा
(मैं नींद से उठी थी एक दम से समझ नहीं पायी की किसके बारे में बात हो रही थी, ऊपर से आज पहली बार पंडित जी को ऐसी गन्दी गाली देते हुए खा था ) "ओह्ह सरिता के लिए बोल रहे है क्या पंडित जी ?"
रामशरण : और कौन कुलक्षिणी होगी भाभी, इस बीता भर की कुतिया ने मेरे सारे जीवन की कमाई इज़्ज़त को अपने पैरों से रौंद कर भाग गयी उस मल्लेछ के साथ।
मैं : (हैरत से) कैसे, कब भागी ?
रामशरण : पता नहीं भाभी उस दिन की घटना के बाद से मैंने उसके घर से निकलना बंद करा दिया था और पंडिताइन भी साथ ही सोती थी एक ही कमरे में, लेकिन आज पता नहीं किस टाइम घर की दीवार छड़प के भाग गयी, मैंने पूरा गांव छान मारा लेकिन कहीं नहीं मिली तो हार कर आपके घर आया हूँ, आप ज़रा सुम्मु के घर जाओ और देखो अगर वो दोनो वहा है तो बस इशारा कर देना बाकी ये दोनों संभल लेंगे। मैं सीधा उसके यहाँ नहीं जाना चाहता, एक तो बात फ़ैल सकती है मुझे और इन लठैत को देख कर और दूसरी बात की कही हमारी आहट पा कर छुप ना जाये।
मैं बिना कुछ बोले जल्दी से सुम्मु के घर जा पहुंची, दरवाजा हल्का सा खुला ही हुआ था शायद सुम्मु घाट पर गया होगा,सुम्मु रोज़ मुँह अँधेरे ही कपड़ो का गट्ठर अपने गधे पर लाद कर घाट पर निकल जाता था तब तक उसकी पत्नी और दीनू सोते ही रहते थे, फिर भी दरवाज़ा खुला देख कर मैं दबे पाऊँ सुम्मु के घर के आंगन में प्रवेश कर गयी, सामने एक कमरे से हलकी रौशनी आरही थी, बाहर अभी दिन का उजाला पूरा नहीं फैला था, मैं धीरे से अंदर झाँक कर देखा, अंदर एक चारपाई पर सरिता उन्धी लेती हुई थी उसके जिस्म ऊपर से पूरा नंगा था और सुम्मु की पत्नी उसकी पीठ पर मालिश जैसा कुछ कर रही थी, मेरी समझ में कुछ नहीं आया तो मैं सीधा कमरे में घुस गयी, मुझे देख कर दोनों एक दम से चौंक कई, सुम्मु की पत्नी तो घबरा कर चारपाई से उठ खड़ी हुई और उसका देखा देखि सरिता भी सीधी हो कर चारपाई पर बैठने की कोशिश करने लगी, इस से पहले मैं पूछती की क्या चल रहा है की तभी सरिता के मुँह से दर्द भरी एक सीत्कार सी निकल पड़ी, सामने देखा तो सरिता उठ कर अजीब तरीके से बैठ गयी थी, उसकी पीठ मेरे सामने थी लेकिन वो पीठ नहीं थी वो तो ऐसा लग रहा था जी जैसे मॉस का कोई लोथड़ा हो, लाल भभोका, उसके पीठ की चमड़ी जगह जगह से उधरी पड़ी थी, गले के नीचे से लेकर कमर तक, जैसे बड़ी बेहरमी से किसी बेल्ट या चमड़े के किसी पट्टे से पीटा गया हो, पूरा शरीर उधरा हुआ था।
मुझसे देखा नही गया, मैंने सुम्मी की पत्नी से पूछा "ये क्या हुआ और किसने किया ये इसके साथ "
सरिता : इनसे क्या पूछ रही हो काकी मुझसे पूछो ना मैं बताउंगी
मैं : हाँ तो बता किसने किया तेरे साथ और तू घर से क्यों भागी, तुझे पता है न तेरा बाप ढूंढता फिर रहा है, अगर आज तू उसके हत्थे चढ़ गयी तो जान से मार देगा ?
सरिता : अच्छा है मार ही दे, मैं भी कौन सा जीना चाहती हूँ काकी, उस दिन के बाद तो तुम पलट के नहीं आयी ये भी पूछने की मैं ज़िंदा हूँ या मर गयी, अगर आती तो पता चलता की उस दिन के बाद से ये रोज़ का इनाम है मेरा, प्यार करने का, अपने बाप की इज़्ज़त मिटटी में मिलाने का इनाम है ये, जानती हो काकी रोज़ रात को मेरा बाप मुझे कमरे में बंद करके किसी कुतिया की तरह मारता है, ये एक दिन मिलने वाला इनाम नहीं है काकी, ये हर दिन मिलता है मुझे, क्युकनी मैंने दीनू से प्रेम किया, मैंने क्या गलत किया काकी मैंने दीनू से पहले अपने माँ बाप को ही अपना भगवान माना क्यकि उन्होंने मुझे जीवन दिया था फिर उस दिन दीनू ने मुझे दुबारा जीवन दिया तो मैंने उसे भी अपना भगवान मान लिया और प्रेम किया लेकिन इस प्रेम की इतना बड़ी सजा, मैंने दीनू को तो उस दिन के बाद से देखा भी नहीं फिर क्यों मुझे ये सजा ये इनाम हर दिन क्यों मिलता है काकी ?
आज रात जब मेरा बाप मुझे मार रहा था मैंने तभी फैसला कर लिया था की आज किसी भी तरह इस कैद से निकल भागुंगी और उसी नदी में कूद कर जान दे दूंगी जिसमे उस दिन डूबने से दीनू ने बचाया था। लेकिन अपनी जान देने से पहले मैं दीनू को आखिरी बार देखने यहाँ आयी थी की काकी ने रोक लिया।
मैं : (चारो और देखते हुआ) दीनू कहा है ?
सुम्मु की पत्नी : दीनू यहाँ नहीं है शहर में ही है, उस दिन की घटना के बाद इसके बापू ने उसको गांव आने से माना कर दिया, जब वो गांव में रहेगा ही नहीं तो छोटी मालकिन से मिलेगा कैसे?
मैं : तो तू अभी कर क्या रही थी इसके साथ ?
सुम्मु की पत्नी : ये यहाँ लड़खड़ी हुई आयी थी थो थोड़ी देर पहले, मैंने इसको संभाला तो देखा इसके सारे कपड़ो में खून लगा हुआ था, मैं इसके घाव साफ़ कर रही थी दीदी।
मैंने सरिता के शरीर का निरक्षण किया, उसका शरीर बहुत कमजोर हो गया था, जगह जगह चोट के निशान थे, चेहरा बिलकुल पीला हो रहा था मनो शरीर में खून ही ना हो, पीठ का तो बुरा हाल था ही लेकिन सामने पेट और चूचियों का हाल भी बहुत अच्छा नहीं था, चूचिया भी मार के कारण नीली हुई पड़ी थी, सरिता ने बताया की पीठ जैसा हाल ही उसके कमर और चूतड़ों का है, मैंने जल्दी जल्दी सुम्मु की पत्नी के समान में से कुछ जड़ी बूटी निकल कर दिया और उनका उपाए बताया, उसको समझाया की बिना आवाज़ किये यहाँ पड़ी रहे जब तक मैं ना वापिस आऊं, मुझे सरिता का हाल देख कर दया आगयी थी, आखिर उम्र ही कितनी थी, माना की उस से गलती हुई थी, ये उम्र थी ही ऐसी।
मैंने वापिस जा कर पंडित जी को साफ़ झूट बोल दिया की सरिता वहा नहीं है, अपनी बात को सही साबित करने के लिए मैंने पंडित जी को घाट पर भेज दिया की वो जा कर सुम्मु से पूछ ले, सुम्मु को तो कुछ पता था नहीं क्यंकि वो सरिता के घर में आने से पहले ही निकल चूका था।
मैंने पंडित जी को ये भी बता दिया की दीनू अब गांव में नहीं रहता वो शहर में रहने लगा है इसलिए उसके साथ भागने की सम्भावना कम ही है। पंडित जी ने सुम्मु से पूछ ताछ की लेकिन कोई नतीजा नहीं निकला, फिर किसी से कहने से वो दीनू के होटल का पता लेकर शहर चले गए।
इधर तब तक मैंने जल्दी से कुछ दवाइयों का प्रबंध किया और चुपके से सुम्मु की पत्नी को दे आयी, लेकिन समस्या रात की थी रात में सुम्मु घर आता तो सरिता को घर में देख कर शायद हंगामा कर सकता था या फिर मालिकों के नमक का हक़ चुकाने के चक्कर में पंडित जी को जाकर सब बता सकता था, मैं बहुत देर तक सोंचती रही लेकिन कोई हल नहीं समझ नहीं आ रहा था,
शाम होने को आयी थी मैंने अपनी घर की चाभी उठायी सुम्मु के घर जाने के लिए की तभी मुझे याद आया की रमेश का घर तो खाली पड़ा है कई साल से, और उसकी चाभी मेरे पास ही थी, रमेश का मकान मेरे और सुम्मु के माकन के बीच में ही था, बंद रहने से उसके आंगन के सामने काफी झार झंकार उग आयी थी, अगर कोई उसके माकन में रहता तो जल्दी से पता नहीं चलता, मैं जल्दी से सुम्मु के घर पहुंची, देखा तो सरिता सो रही थी और सुम्मु की पत्नी चूल्हे पर खाना पका रही थी, मैंने उस से सरिता का हाल मालूम किया, उसने बताया की उसकी मेरी दवाई से उसको काफी आराम लगा है, उसने उसको 2-३ बार थोड़ा थोड़ा खाना खिला दिया है और वो दोपहर से सो रही है, मैंने उसको जल्दी जल्दी रमेश के मकान के बारे में बताया और समझाया की वो सुम्मु को कुछ ना बताये और किसी भी तरह सरिता को एक दो घंटे के लिए कही छुपा दे, मैं जैसे ही रात का अँधेरा होगा चुपके से सरिता को ले जाउंगी और सरिता को छुपा दूंगी।
सुम्मु की पत्नी को समझा कर मैं जल्दी से रमेश के बंद पड़े माकन में आयी और ताला खोल कर उसको जल्दी जल्दी रहने लायक ठीक किया, पानी और लालटेन आदि को जला कर मैं अँधेरा होने का इन्तिज़ार करने लगी, हलकी सर्दी शरू हो चुकी थी इसलिए जल्दी ही अँधेरा हो गया और कुछ देर में गांव में सन्नाटा छाने लगा, मैं भी दबे पाऊँ सुम्मु के घर पहुंची देखा तो सुम्मु कमरे में उसी चारपाई पर बैठा हुक्का पी रहा था जिसपर आज दिन में सरिता सो रही थी, मैंने उसकी पत्नी को चारो ओर देखा लेकिन वो नज़र नहीं आयी और ना ही सरिता का कुछ पता था, मेरे समझ नहीं आया की क्या करू की तभी अँधेरे में एक साया मेरे पास आके खड़ा हो गया, उसके बदन से आती दवाई की महक से पहचान गयी ये सरिता ही थी, तभी मुझे अंदर से सुम्मु और उसके पत्नी की आवाज़ आयी, शायद सुम्मु अपनी पत्नी को आज हुई घटना के बारे में बता रहा था ओर डांट रहा था की उसकी लापरवाही से ये सब हुआ, अगर उसने शरू में ही सरिता को घर में नहीं आने दिया होता तो आज इतना सब कुछ नहीं होता।
मैंने सरिता को सम्भाला और और धीरे धीरे सहारा दे कर अपने साथ रमेश के घर ले आयी, वह बिस्तर पर लिटा दिया, पीठ पर चोट ज़ायदा थी इसलिए मैंने उसे उल्टा लिटाया था, यहाँ रौशनी में देखा उसने एक बहुत पतले कपडे का एक सलवार सूट पहना हुआ था, उसने बताया की सुम्मु की पत्नी ने जल्दी जल्दी में अपनी एक साडी फार कर उसके लिए सिया है क्यूंकि ज़खम पर मोटा कपडा खरोंच मार रहा था। उसने बगल में साडी का बचा हुआ कपडा भी दबा रखा था, हम दोनों बहुत देर तक बात करती और मैं उसको दिलासा दे रही थी की चिंता ना करे सब ठीक जो जायेगा, मैं दिलासा तो दे रही थी लेकिन मुझे खुद समझ नहीं आरहा था की आखिर सब ठीक होगा कैसे।
तभी दरवाज़े पर बहुत हल्का सा खटखटाया किसी ने मैंने झाँक कर देखा सुम्मु की पत्नी बाहर खड़ी थी, मैंने उसे अंदर बुला कर दरवाज़ा बंद कर लिया, सुम्मु की पत्नी खाना लायी थी सरिता के लिए और मेरे लिए भी, हम दोनों ने मिलके सरिता को खाना खिलाया और थोड़ा मैंने खुद भी खाया, आज दिन भर की भागदौड़ में खाना खाने का समय ही नहीं मिला था , कुछ देर बाद हम तीनो ने फैसला किया की रात में मैं सरिता के साथ ही सोऊंगी, और जब ३ बजे के अस्स पास सुम्मु घाट पर जायेगा तब सुम्मु की पत्नी यहाँ आजायेगी और मैं अपने घर चली जयुंगी। मुझे डर था की कही पंडित जी ढूंढते हुए फिर मेरे घर ना आजायें। दिन में सरिता अकेली रह सकती थी, बीच बीच में मौका देख कर हम उसके लिए खाना पंहुचा देंगी। सब कुछ वैसे ही हुआ और मैं सुबह आकर अपने घर सो गयी।
लगभग सुबह ७ बजे देखा तो पंडित जी फिर मेरे दरवाज़े पर खड़े थे, मैंने हाल पूछा तो उन्होंने बताया की वो शहर गए थे दीनू के होटल में, दीनू वही मिला और उसने साफ़ माना कर दिया की उसको नहीं पता सरिता के बारे में, उसके मालिक ने भी बताया की वो महीनो से गांव नहीं गया, वही काम करता है और होटल में ही बने सर्वेंट कवाटर में रहता है। बात करते करते वो बार बार मेरे कमरे की ओर देख रहा था, मैं समझ गयी की पंडित जी को मेरे पर भी शक है तो मैंने पंडित जी एक एक कर अपने सारे कमरे दिखा दिए, सरिता वह होती तब न कुछ मिलता थोड़ी देर में पंडित जी चले गए, मैंने सरिता और अपने लिए खाने के लिए कुछ बनाया और जल्दी जल्दी लेकर कर रमेश के घर आगयी, सरिता सो रही थी और सुम्मु की पत्नी वह चारपाई के किनारे बैठी हाथ के पंखे से मखियों को उड़ा रही थी जो बार बार सरिता के अधखुले ज़ख्मो पर बैठ जाती थी, मैंने जल्दी से सरिता को उठा कर चाय नास्ता कराया और सुम्मो की पत्नी को भी ककुछ खिला पीला आकर उसके घर भेज दिया, मुझे पूरा विश्वास था की जल्द ही कोई आएगा पंडित जी के यहाँ से सुम्मु के घर को फिर से तलाशी लेने, मैंने जाते जाते सुम्मु की पत्नी को समजा दिया था सरिता के कपडे जो वो पहन के आयी थी को ठिकाने लगाने के लिए।
मैंने बचा खाने पिने का सामान पानी और कुछ दवाई सरिता के बिस्तर के किनारे रख कर बाहर से ताला लगा कर वापिस अपने घर आगयी, वापिस आते टाइम मैंने चाभी वही आंगन में रखे पत्थर के नीचे छुपा दी, मैंने इस जगह के बारे में सुम्मु की पत्नी और सरिता को रात में ही बता दिया था, साथ में मैंने सुम्मु की पत्नी को भी समझा दिया था की जब तक बहुत बड़ी बात ना हो मेरे घर ना आये और ना सबके सामने मुझसे बात करे। मैं दिन भर यही इसी पेड़ के नीचे बैठी आते जाते लोगो को देखती रही, लगभग दिन के ११ बजे मैंने राधा की मा को एकऔर काम वाली के साथ सुम्मु के घर जाते देखा उसके हाथ में गठड़ी थी, मैं समझ गयी की उन दोनों को पंडित जी ने कपडे देने के बहाने सुम्मु के घर भेजा है।
खैर ये सिलसिला लगभग १० दिन तक चला, सुम्मु की पत्नी ने सरिता की खूब सेवा, मुझे टाइम काम मिल पता था क्यंकि पंडित जी रोज़ किसी ना किसी बहाने से या तो मेरे घर आजाते थे या मुझे अपने घर बुला लेते थे, धीरे धीरे सरिता के ज़ख़्म भरने लगे, पंडित जी ने भी अब आना जाना कम कर दिया था, एक रात हम तीनो फिर साथ बैठे ये विचार करने के लिए की अब सरिता का क्या होगा, सरिता ने साफ़ माना कर दिया था की वो अब पंडित जी के पास किसी हाल में नहीं जाएगी, उसकी तो एक ही ज़िद्द थी की जैसे भी हो उसकी शादी दीनू से करा दो और वो बियाह के सुम्मु के घर आजाये वो फिर बदले में इतनी सेवा करे की शायद कोई बेटी भी न कर पाए, आखिर सुम्मु की पत्नी ने सरिता की इतनी देखभाल जो की थी, लेकिन ये संभव नहीं था
बहुत सोंच विचार के बाद आखिर ये फैसला हुआ की सरिता को कुछ समय के लिए दीनू के मामा के गांव भेज देते है, कुछ दिन बाद अगर बात संभल जाती है तो सरिता की इच्छा अनुसार दीनू से शादी का सोच सकते है या किसी प्रकार से मैं सरिता के नाना नानी के गांव का पता करके देखती हूँ उनके क्या विचार है हो सकता है की वो सरिता को अपने पास रख ले, कम से कम पंडित जी की रोज़ की मार तो नहीं खानी पड़ेगी सरिता को। सरिता इस फैसले से राज़ी थी, सुम्मु की पत्नी ने अपने भाई के पास संदेसा भेज दिया और ये तय हो गया की सरिता को २ दिन बाद चुपके से दीनू के मामा के घर पंहुचा देंगे। लेकिन इस विचार में एक समस्या थी की आखिर सरिता को लेकर जायेगा कौन। हम दोनों में से किसी का जाना भी संभव नहीं था, मैंने उनको तैयार रहने के लिए बोला और मैं तब तक मैं एक ऐसे व्यक्ति की तलाश में लग गयी जो सरिता को दीनू के मां के गांव पंहुचा दे।