सप्ताह बीता तो सरिता और दीनू की चर्चा काम होने लगी लेकिन पंडित जी के अपमान करने वालो की जीभ बंद नहीं हुई, हमारा समाज सदा से ऐसा ही रहा है, किसी की गलती पर किसी और को जिम्मेदार ठहरना, सरिता के दीनू से हुए प्रेम में ना तो पंडित जी का हाथ था और ना पंडिताइन का कोई दखल था लेकिन समाज की नज़रो में पंडित जी गुनहगार थे
ऐसा नहीं था की समाज को नहीं पता था की सारी गलती सरिता और दीनू की है लेकिन अगर किसी बेदाग़ चरित्र वाले व्यक्ति के ऊपर एक छोटा सा भी दाग लग जाये तो वो चर्चा का कारण होता है, गलती जितनी सरिता की थी उस से काम दीनू की भी नहीं थी लेकिन उपहास दीनू के परिवार का कोई नहीं उड़ा रहा था क्यूंकि उसके परिवार का कोई रुतबा तो था नहीं, उपहास उसी का उड़ाया जाता है जिसका समाज में कोई सम्मान हो या कोई रुतबा, और उपहास उड़ने वाले भी जायदातर अपनी जाती वाले हे थे, जिनको पंडित जी ने कभी मुँह न लगाया या कोई महत्व्व भी न दिया हुआ हो वो आज पंडित जी और उनके परिवार पर कटाक्ष करके अपने पुराने बदले चुकता कर रहे थे।
पंडित जी इस गांव के लिए नए नहीं थी वो हर व्यक्ति की नस नस से भलीभांति परिचित थे लेकिन वो बस चुप थे जितना अधिक वो इन बातो पर प्रतिक्रिया देते बात उतनी बढ़ती और उतना ही लोगो को मौका मिलता इस विषय पर चर्चा करने का। जो भी हो इस घटना ने पंडित जी को अंदर से रोग लगा दिया था, उसके चेरे पर नज़र आने वाला तेज़ अब मंद पद गया था और ऐसा लग रहा था मानो एक एक दिन वर्षो के बराबर हो, इस घटना के 3-४ सप्ताह में ही मानो अपनी आयु से 10-१५ साल ज़ायदा बूढ़े हो गए हो,
एक तो वैसे भी उन्होंने बहुत देरी से शादी की थी, शादी देरी सी की तो संतान भी देरी से हुई, जब सरिता पैदा हुई थी तो उनका मन उतना अधिक प्रसन्न नहीं हुआ था उनकी चाहत थी की बेटा होता लेकिन ये सब तो भगवान के हाथ था, लेकिन जैसे जैसे सरिता बड़ी होने लगी तो बेटी के प्रति उनका प्रेम बढ़ता गया, पंडित जी बहुत गंभीर और अपनी भावनाओ को अपने अंदर रखने वाले व्यक्ति थे इसलिए वो बहुत कम अपना प्रेम सरिता के प्रति प्रकट करते लेकिन जब जब पंडिताइन सरिता को पंडित जी गोद में डाल देती तो पंडित जी का मन अंदर ही अंदर फूल सा खिल उठता, वो घंटो उसके अपनी गोद में लिए निहारते रहते आखिर उनका अपना खून था भला प्रेम क्यों ना उमड़ता लेकिन प्रेम करना अलग था और प्रेम को दिखाना अलग था, इसलिए बहुत से लोगो को लगता था की शायद पंडित जी सरिता से उतना प्रेम नहीं करते जितना एक पिता को अपनी पुत्री से करना चाहिए था, इस बात का एहसास सरिता को भी हुआ जैसे जैसे वो बड़ी हुई, सारी दुनिया की तरह उसके मन में भी यही भावनाये पनपने लगी थी की शायद उसके पिता उसको नहीं मानते, इस आग में घी डालने का काम तब हुआ जब शम्भू पैदा हो गया, शम्भी सरिता के जनम के 10-११ साल के बाद पैदा हुआ था, पंडित जी की बेटे के प्रति जो चाहत थी जब वो पूरी हुई तो पंडित जी उसे छुपा नहीं पाए और अपन सारा प्यार शम्भू पर उंडेल दिया। जब सरिता ने अपने पिता को शम्भू पर प्यार लुटाते देखा तो उसका विश्वास पक्का हो गया की उसके पिता को उसकी उतनी परवाह नहीं है जितनी उसके छोटे भाई की है,
दूसरी ओर पंडिताइन थी पंडिताइन बहुत ही आदर्शवादी और धार्मिक परिवार से आयी थी इसलिए बचपन से ही वो धर्म कर्म में लींन रहती इसलिए उनका भी धयान सरिता पर उतना नहीं था जितना होना चाहिए था। शायद यही सब कारन था की सरिता दीनू के प्रति दीवानी हो गयी थी, शायद वो प्यार जो उसे चाहिए था वो प्यार उसे दीनू के रूप में मिल गया और फिर उसे किसी कोई परवाह ही ना रही।
पंडित जी ने विचार विमर्श करके सरिता की शादी का फैसला ले लिया और बिरादरी में उसके लिए सुयोग वर देखने लगे, लेकिन लड़की अगर एक बार बदनाम हो जाये तो फिर सुयोग वर मिलना तो दूर दुबियाहता और विधुर भी दूर भागते नज़र आये, किसी तरह से पंडित जी ने एक दो वर ढूंढ निकाले लेकिन सरिता ने सबके सामने मुँह पर ही इंकार कर दिया, उसकी इस हरकत ने पंडित जी रही सही कमर भी तोड़ दी।
सरिता के घर से भागने वाली घटना को तीन चार महीना होने को आया था, होली आगयी थी, पंडित जी के घर में हमेशा होली का त्यौहार खूब धूम धाम से मानता था लेकिन इस बार उतनी धूम से नहीं मना, होली की छुट्टी में दीनू अपने घर आया, सब दिवाली की मस्ती में थे पता नहीं किसके द्वारा सरिता ने दीनू तक सन्देश पहुंचाया की होली वाली रात को दीनू किसी प्रकार से सरिता के घर की छत पर पहुंच गया, तयोहार की कारन पंडिताइन ने बेटी को थोड़ी छूट दे दी थी जिसका उसने पूरा फ़ायदा उठाया था, लेकिन सरिता और दीनू की किस्मत ख़राब थी किसी पडोसी ने उनको छत पर देख लिया और चोर समझ कर हल्ला मचा दिया, जैसे तैसे दीनू भगा लेकिन गांव के 2-४ लड़को ने पकड़ लिया और दीनू की पिटाई कर दी, ये तो शुक्र था की गांव वालो ने छत पर उसके साथ सरिता को नहीं देखा वरना उस दिन दीनू का बचना मुश्किल होता ,
भले गांव वालो ने दोनों को साथ नहीं देखा लेकिन पंडित जी समझ गए की ये ज़रूर सरिता की ही हरकत है क्यूंकि उन्होंने शाम से ही सरिता को बहाने से छत आते जाते कई बार देखा था , अब पानी सर से ऊँचा हो चूका था अब उनके अंदर और बढ़नी सहने की शक्ति नहीं थी, उन्होंने सरिता को मार मार के अधमरा कर दिया था फिर भी उसके सर से दीनू का भूत नहीं उतार पाए थे, इस से आगे तो यही बचता था की या तो वो खुद अपने हाथो सरिता को गाला घोंट कर मार दे और फांसी चढ़ जाये या आत्महत्या कर ले।
उन्ही दिनों रमेश जिसके घर में सरिता को मैंने छुपा कर रखा था गांव आया, जब उसको सरिता और दीनू के बारे में पता चला, रमेश सदा का लफंगा और दारुबाज था, जब उसने सरिता के बारे में सुना तो उसकी लार टपक गयी लेकिन वो शादी शुदा तो उसका कुछ हो नहीं सकता था, फिर वो कुछ दिन में गांव लौटा और इस बार उसके साथ में तेरा पिता था, दखने से ही पता चलता था की रमेश और तेरा पिता एक ही प्रजाति के है, रमेश ने तेरे पिता के बारे में सरिता से बात करने के लिए बोला लेकिन मैंने टाल दिया, लेकिन रमेश ने किसी तरह राधा की माँ को लालच दे कर पंडित जी के पास संदेसा भेज दिया।
पंडित जी के पास और कोई चारा नहीं था, तेरा बाप उनकी ना जाती का था और ना बिरादरी का और ना ही रख रखाव में उनके सामान था लेकिन वो इस गांव से बहुत दूर का रहने वाला था जहा से सरिता का वापस दीनू तक पहुंचना संभव नहीं था, पंडित जी ने ज़ायदा सोचना ठीक नहीं समझा और पंडिताइन के थोड़े बहुत विरोध को दरकिनार कर ज़बरदस्ती सरिता की शादी तेरे पिता जी से कर दी। गांव के 10-१५ लोग ही थे शादी में, सरिता ने इस विवाह का भरकस विरोध किया लेकिन पंडित जी ने एक ना सुनी, रमेश ने भी तेरे पिता को जम कर पिला राखी थी इस लिए उसे कुछ समझ नहीं आया और ऊपर से भाषा के कारन भी उसको आधी बात पल्ले नहीं पड़ती थी , वो तो बस इसी में खुश था की उसे एक कमसिन जवान लड़की मिल रही थी सरिता के रूप में। रमेश ने इस शादी के लिए पंडित जी से अच्छे खासे पैसे ऐंठे थे, सुना था की उसने तेरे बाप से भी पंडित जी के नाम पर काफी पैसे लूट लिए थे।
विदाई के समय तक सरिता मानो पत्थर हो चुकी थी शायद उसके आंसू सुख चुके थे, पंडिताइन ने सरिता को गले लगाना चाहा तो उसने झटक दिया बस जाते जाते मेरे पास कुछ पल के लिए रुकी और गंभीर लेकिन खुदरी आवाज़ में बोली " काकी मेरे माँ बाप मेरी शादी करके आज आज़ाद हो गए, आज से ना मैं इनकी ना ये मेरे, मैं तो इनके लिए उसी दिन मर गयी थी जिसदिन नदी में डूबी थी लेकिन मेरे लिए ये आज मरे है, बस एक कृपा कारना दीनू मिले तो बता देना, मैं वापस आयूंगी, जब वापस आउंगी उस दिन के बाद केवल उसी के होक रहूंगी" ।
पंडित जी और बिरादरी के कुछ लोग मेरे पीछे ही खड़े थे सब ने सरिता की बात सुनी और हैरत से मुँह खोले देखते रहे , ये बात किसी ने नहीं सोची थी, अगर सरिता शादी के बाद अपने पति से डाइवोर्स लेकर आती है तो उसे कोई माई का लाल दीनू के साथ रहने से नहीं रोक सकता,
अब तक सब इस बात को लेकर निश्चिन्त थे की चलो अब शादी के बाद ये दीनू वाला अध्याय ख़तम हुआ लेकिन ये तो अमर बेल जैसा खेल हो गया था।
सरिता बयाह कर रमेश के घर चली गयी वह २ दिन के बाद उसकी गाड़ी थी दिल्ली के लिए, अगले दिन मैं किसी काम से पंडित जी के घर गयी तो वहा उन्ही बिरादरी वालो की फिर से बैठक चल रही थी ये 4-५ वही लोग थे जो सरिता की बरामदगी वाले दिन पंडित जी से मीटिंग कर रहे थे, मैं बात पंडियाएँ से कर रही थी लेकिन मेरा धयान बार बार उसी बैठक की ओर जा रहा था, बैठक में कुछ ज़ायदा ही गंभीर मुद्दा था पंडित जी बार बार किसी बात के लिए ना बोल रहे थे लेकिन उनमे से एक जवान जोशीला लड़का बार बार कोई बात मनवाने की कोशिश कर रहा था, पता नहीं क्यों मुझे अजीब सा एहसास हो रहा था मैं वह ज़यादा देर रुक नहीं पायी और घर वापस आगयी,
अगले दिन शान शाम को दीनू को माँ यही चावल और गुड़ के लड्डू ले कर आयी, आज दीनू गांव आया था और खुशखबरी लाया था की आज से उसके बाप को पुरे होटल के कपडे धुलाई का काम मिल गया था, मैं उसकी ख़ुशी में खुश थी लेकिन मैंने साथ ही चेताया की किसी तरह अपने बेटे को संभल के रखे, कल ही सरिता की शादी हुई है और वो उसके घर से २ कदम की दुरी पर ही रह रही है, कोई ऊंच नीच ना हो जाए, भगवान ना करे अगर कुछ गड़बड़ हुई तो इस बार बात हद से ज़ायदा बिगड़ जाएगी। वैसे भी बस बीच में एक दिन की और बात है फिर तो सरिता जीवन भर के लिए चली जाएगी , मैंने उसको सरिता की चेतावनी वाली बात नहीं बताई थी, दीनू की माँ मुझसे वादा करके गयी की वो रात में अपने बेटे को घर से बहार नहीं निकलने देगी और कल सुबह मुँह अँधेरे ही शहर भेज देगी।
पता नहीं क्यों फिर भी मुझे चैन नहीं पड़ा और मैं रात में ही पंडित जी के घर पहुंच गयी , मैंने उनको दीनू के गांव में आने का बताया, साथ ही मैंने उनको समझाया की वो आज अपने बाप को काम मिलने की ख़ुशी में आया है लेकिन पंडित जी मेरी बात नहीं माने उनको पूरा विश्वास था की दीनू सरिता को भागने आया है, उन्होंने मुझ घर वापिस भेज दिया और अपने दो लठैत बुला कर मेरे साथ कर दिए, पंडित जी ने उनको रमेश के घर की रखवाली का जिम्मा दिया था, मेरे पीछे पीछे ही पंडित जी ने तीसरे लठैत को भेज कर बिरादरी वालो को बुला भेजा जिन के साथ पिछले दिन बैठक चल रही थी।
सारी रात मैं सो नहीं पायी बार बार लगता था की शायद अब कोई दुघटना हुई, राम राम करते हुए सुबह हुई लेकिन सब शांत था, मैंने ईश्वर का शुक्र मनाया और बाकी कामो में अपना दिन गुज़ार दिया, शाम होने के बाद मैं अपना खाना बना रही थी की तभी एक शोर सुंई दिया, और गांव के कुछ लड़के और मरद भागते दौरते दिखाई दिए, मेरा दिल धक् से रह गया, किसी उन्होनी की आशंका ने मेरा सर चकरा दिया, मैंने जैसे तैसे खाना उतार कर कमरे में रखा और ताला लगा कर घर से निकली,
शोर रमेश के माकन की ओर से आ रहा था, रात का समय था तो अँधेरा था, मैं अँधेरे में ही आवाज़ की दिशा की ओर चल दी, जैसे जैसे आगे बढ़ रही थी शोर बढ़ता जा रहा था, मैं रमेश के दरवाजे पर पहुंची लेकिन ये शोर रमेश के यहाँ से नहीं उसके अगले माकन यानि सुम्मु के घर से आरहा था, मैंने धड़कते दिल के साथ सुम्मु के घर की ओर भागी, देखा सुम्मु के दरवाजे पर भीड़ थी, लोग कुछ बोल रहे थे लेकिन उस समय मुझे कुछ सुनाई नहीं दे रहा था,
मैं किसी तरह भीड़ को चीरती हुई सुम्मु के आंगन में पहुंची, लालटेन की मंद रौशनी में देखा दीनू का बेजान शरीर जमीन पर था और उसकी माँ चांदनी उसके शरीर से लिपटी दहाड़े मार मार कर रो रही है, सुम्मु दीनू के पैरो के पास बैठा एक तक अपने मुर्दा बेटे के बेजान चेहरे को तक रहा था मानो उसमे जीवन की कोई कोई लालिमा तलाश कर रहा हो। लेकिन दीनू दुनिया से बहुत दूर जा चूका था, मेरी आँखों से भी आंसू की धरा बाह चली थी, अभी कुछ साल पहले ही तो मैंने उसको उसकी माँ के कोख से निकलने के बाद सबसे पहली बार गोद में लिया था, जब कोख से निकला था तो बिलकुल ऐसे ही शिथिल था जैसे आज है, एक बार तो डर लगा था की कही मुर्दा बच्चा तो नहीं पैदा हुआ लेकिन जैसे ही मैंने उसके कोमल चूतड़ों पर चुटकी काटी थी अचानक से रो पड़ा था, रोते रोते मैं यही सोच रही थी की काश वैसा ही चमत्कार आज हो जाये मैं फिर से दीनू को चूंटी काटू और ये फिर से रो जाये फिर से ज़िंदा खड़ा हो जाये।
लेकिन ऐसे चमत्कार कहानियों में होते है हकीकत में नहीं , चांदनी का रोना नहीं थम रहा था, उसका इकलौता बेटा आज उसके सामने मुर्दा पड़ा हुआ था भला किस माँ का सीना ना फट जाता, उसका रोना देख कर वह खड़े सभी लोगो को रोना आरहा था, चांदनी की रोने की आवाज़ नयी बियाहता सरिता के कानो तक भी पहुंची और वो भी दौड़ती भागती सुम्मु के घर आपहुची, दीनू को मारा देख कर सरिता मानो काठ की हो गयी, उसके जैसे अपनी आँखों पर विश्वास ही नहीं हो रहा था, उसका वो प्यार जिसके लिए उसने घर बार, माँ बाप सब छोड़ दिया, सारे सुख चैन त्याग दिया आज वही प्यार उसको छोड़ कर दुनिया से चला गया था उसकी तो मानो दुनिया ही उजाड़ गयी थी, चांदनी सरिता को अपने पास रोते देख कर अपने सीने से लगा लिया और फिर जो उन दोने ने दहाड़े मार मार कर रोई है तो क्या मर्द क्या औरत वह खड़े हर वयक्ति की आँखों में आंसू थे,
मैंने पास खड़े लोगो से पूछा तो पता चला की आज सुबह मुँह अँधेरे ही उसकी माँ ने दीनू को घर से चलता कर दिया था, लेकिन अचानक अगले गांव से किसी ने दीनू की पानी में तैरती लाश देखी, उन्होंने उसे बहार निकला तो पहचान गए, दीनू इसी नदी के किनारे पला बढ़ा था ये नदी ही तो उसकी रोज़ी रोटी थी आज इसी नदी में उसकी जान चली गयी थी, लोगो ने कहा दीनू नदी में डूब कर मर गया लेकिन ये बात विश्वास से परे थे, वो दीनू जो बाढ़ में उफनती नदी में भी तैर सकता था, वो ही दीनू जिसने उसी उफनती नदी से सरिता को बचाया था और आज वही दीनू एक शांत नदी में डूब के मर गया, ये अविश्वसनीय बात थी लेकिन इसको मानाने के अलावा कोई चारा नहीं था , सरिता रो रही थी और साथ साथ ही अपने बाप को कोस रही थी उसको पूरा विश्वास था का की उसका दीनू डूबा नहीं है उसे डूबा कर मारा गया है,
सारी रात सब दीनू को घर जमा रहे हे फिर सुबहे में कोई दूसरे गांव से एक मुल्ला जी को ले आया और सुबह होते होते दीनू को मट्टी में दफ़न कर दिया गया, किसी ने देखा नहीं ना दीनू को डूबता न डुबाते, बहुत लोगो ने पंडित जी की ओर ऊँगली उठाई लेकिन कोई सुबूत तो था नहीं, वैसे भी उन दिनों लोग पुलिस से ज़ायदा ही डरते थे तो किसी ने पुलिस में खबर भी नहीं की, अगले दिन मैं दीनू के घर से किसी तरह से सरिता को खींच कर ले आयी, उसने अपने शादी की चूड़ियों को तोड़ डाला था माथे का सिन्दूर और बिन्दया को मिटा दिया था कोई देखता तो यही सोचता की दीनू की विधवा पत्नी है,
मैंने रमेश के घर पंहुचा कर रमेश को सरिता का धयान रखने के लिए बोल दिया था, रमेश को सब पता था इसलिए सतर्क था, शाम के टाइम पंडित जी रमेश के घर आये पंडिताइन के साथ लेकिन सरिता ने घर बंद कर लिया और उनके लाख आवाज़ देने पर भी उसने दरवाज़ा नहीं खोला, पंडिताइन को वही छोड़ कर पंडित जी दीनू के घर गए शोक सवेदना के लिए लेकिन वहा का माहौल देख कर बहार ही रुक गए, तब तक मैं भी वह जा पहुंची थी, पंडित जी ने सुम्मु से कुछ कहाँ चाहा लेकिन सुम्मु ने उनके हाथ जोड़ लिए, पंडित जी सुम्मु के हाथ पकड़ने की कोशिश की तो सुम्मु एक कदम पीछे हैट गया, आज से पहले उसकी कभी हिम्मत नहीं हुई पंडित जी की ओर देखने तक की लेकिन आज उसने अपना हाथ जोड़ कर सर के ऊपर उठाया और भर्रायी आवाज़ में पंडित जी की ओर देखते हुए बोला " बस मालिक माफ़ कर दीजिये, अब कुछ नहीं बचा मेरे पास आपकी सेवा के लिए "। इतना कह कर दीनू वापिस अपने घर में चला गया और पंडित जी उलटे पैर अपने घर चले आये , अगले दिन मैंने किसी तरह समझा बुझा कर सरिता को तेरे बाप के साथ भेजा, वो जाने के लिए तैयार नहीं थी लेकिन अब उसका गांव में था ही कौन, मन मार कर तेरी माँ उस दिन तेरे बाप के साथ चली गयी और आज तक नहीं लौटी, उस घटना के बाद आज तू आयी है।
इतना कह कर काकी ने कहानी पूरी की, हम दोनों की आँखों में आंसू थे, मैंने कभी सपने में भी नहीं सोचा था की मेरी माँ की कहानी इतनी दुःखदायी होगी, कहा अबतक मैं अपने जीवन की घटनाओ से परेशान था और कहा मेरी माँ का दुःख।
मैंने काकी से पूछा : क्या नाना जी ने दीनू को मरवाया था ?
काकी : पता नहीं बिटिया, कभी किसी ने इस बारे में बात नहीं की और ना कभी किसी ने पंडित जी के मुँह से सुना, बहुत से लोग मानते है की पंडित जी ने ही करवाया है लेकिन मुझे ऐसा लगता है की इसके पीछे उन बिरादरी वालो का हाथ है जो बार बार सरिता के विषय में बैठक कर रहे थे , मैंने उस बैठक के बारे में कभी किसी को नहीं बताया क्यूंकि मैंने खुद उनकी बात नहीं सुनी थी, केवल शक के आधार पर मैं इतनी बड़ी बात किसी से कह नहीं सकती थी,
मैं : सुम्मु काकी का नाम चांदनी है ?
काकी : हाँ, लेकिन बहुत कम लोग ही उसे चांदनी बुलाते है
मैं : और मैं चन्द्रमा, क्या माँ ने मेरा नाम चांदनी काकी के नाम पर रखा है ?
काकी : अब ये तो तेरी माँ को ही पता होगा बिटिया उसी से पूछना।
हम अभी बात कर ही रहे थे की इतने में राधा आती नज़र आयी, जल्दी से हम दोनों ने अपने आंसू पोंछे और ठीक हो कर बैठ गए , हम तीनो ने ठंढा पिया और फिर मैं मामा के घर वापिस आगयी।