Hindi Antarvasna एक अनोखा बंधन - पुन: प्रारंभ


[color=rgb(255,]सत्ताईसवाँ अध्याय: विपरीत - प्यार और जलन![/color]
[color=rgb(71,]भाग -7[/color]


[color=rgb(51,]अब तक आपने पढ़ा:[/color]

बहरहाल, माँ ने यहाँ आने से पहले मुझे समझाया था की मुझे कैसे बात करनी है इसलिए मैंने बातें शुरू करते हुए करुणा की दीदी को शुक्रिया कहा; "कल करुणा ने मेरे बेटे के जन्मदिन के लिए जो तैयारी की उस कारण से रात में उसे बहुत देर हो गई थी, इतनी रात गए करुणा का घर आना सही नहीं था इसलिए हम सब ने करुणा को रोक लिया था| आशा करती हूँ आपको इसका बुरा नहीं लगा होगा!" मेरी बात सुन करुणा की दीदी बोलीं; "अरे नहीं-नहीं! मेरी मिट्टू की मम्मी से बात हो गई थी इसलिए कोई गुस्से वाली बात नहीं| फिर मिट्टू तो करुणा का सबसे अच्छा दोस्त है, कितनी ही बार मिट्टू ने इसकी मदद की है ..." करुणा की दीदी ने भी जब इन्हें मिट्टू कहा तो मुझे बुरा तो लगा मगर साथ ही कुछ-कुछ समझ आया की ये पूरा परिवार शायद इन्हें मिट्टू के नाम से ही जानता है! करुणा की दीदी आगे भी कुछ कहतीं उससे पहले अंदर कमरे से एक लड़की दौड़ती हुई आई| ये लड़की आयुष से बड़ी थी परन्तु नेहा से छोटी थी, ये बच्ची दौड़ती हुई सीधा इनके पास पहुँची और इन्होने झट से उस बच्ची को गोदी में उठा लिया| वो बच्ची बड़ी ही प्यारी थी और इनकी गोदी में चढ़ कर इनसे लिपटी हुई थी, इन्होने उसे दुलार करते हुए पुछा; "मेरा childhood friend कैसा है?" इनके इस बचकाने सवाल पर मैं हँस पड़ी, उस पल मुझे कोई जलन महसूस नहीं हो रही थी| मेरे चेहरे पर मुस्कान थी और साथ ही एक प्रश्न भी था की इनके सवाल का मतलब क्या था? इन्होने इस छोटी सी बच्ची को 'मेरा childhood friend' क्यों कहा? क्या ये इस बच्ची का कोई पुनर्जन्म है?!

[color=rgb(44,]अब आगे:[/color]

"मिट्टू बोलते की Angel छोटी बच्ची है meaning child और मिट्टू का दोस्त है meaning friend तो इसलिए ये मिट्टू का childhood friend हुआ! ही..ही...ही...ही!!!" करुणा हँसते हुए बोली| मैं इनका बचपना जानती थी और इनके बचपने वाले विचार सुन मुझे हँसी आ गई|
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"असल में मैं पहलीबार मैं करुणा से तब मिला था जब घर में पूजा थी और मैं करुणा को निमंत्रण देने आया था| उसी दिन मेरी भेंट Angel से हुई थी, तो इस तरह से मुझे एक dear friend के साथ-साथ मेरा childhood friend भी मिल गई!" इनकी बात सुन हम सभी हँस पड़े मगर मुझे जो बात चुभी थी वो थी करुणा को इनका 'dear friend' कहना|

करुणा की दीदी हमारे लिए पानी ले आईं, हमारे गाँव में हम किसी निचली ज़ात के यहाँ पानी भी नहीं पीते और यहाँ तो ज़ात नहीं दूसरे धर्म के घर का पानी पीना था! इधर इन्हें गाँव की बातों से कोई फर्क नहीं पड़ता था, क्योंकि ये तो शुरू से ही बागी रहे हैं! इन्होने पानी का एक गिलास उठा लिया और इधर मेरी झिझक, मेरी हिचकिचाहट मुझे रोक रही थी! परन्तु अगर मैं पानी नहीं लेती तो सभी को बुरा लगता इसलिए मैंने मजबूरी में दूसरा पानी का ग्लास उठा कर पानी पी लिया|

Angel इनकी गोदी में बैठी थी और उसकी नज़र मुझ पर थी, उसे जानना था की मैं कौन हूँ इसलिए इन्होने मेरा तार्रुफ़ Angel से कराते हुए कहा; "Angel, she's my wife and since you're my childhood friend she's your friend too!" इनकी बात सुन Angel मुस्कुराने लगी, उसकी ये प्यारी सी मुस्कान देख मैं खुद को उसे गोदी में लेने से न रोक पाई और अपनी बाहें खोल कर Angel को गोदी लेना चाहा| Angel बिना कोई नखरा किये मेरी गोदी में आ गई और मेरे सीने से लिपट गई| उस पल मुझे एहसास हुआ की छोटे बच्चों को देख कर हम कभी कोई भेद-भाव नहीं करते की ये बच्चा किस धर्म का है या किस ज़ात का है क्योंकि एक छोटे बच्ची की हँसी का तो कोई धर्म नहीं होता?! जब वो बच्चा बड़ा होता है तभी हमारे भीतर ये हीन भावना जन्म लेती है! Angel को गोद में लिए हुए जहाँ मुझे एक तरफ बहुत ख़ुशी हो रही थी वहीं अपनी छोटी सोच के कारण खुद से घृणा हो रही थी| कहाँ मैं एक ईसाई परिवार के घर जाने से कतरा रही थी और कहाँ इस छोटी सी बच्ची को गोद में आते ही मैं सब भूल बैठी| सच में दोस्तों, मेरे जैसी रूढ़िवादी सोच वाले लोग अब भी इस धरती पर हैं!

Angel को गोदी में लिए हुए मैं उससे हिंदी में बातें करने लगी, मैंने उसे आयुष और नेहा के बारे में बताया तथा उसे अपने घर आने का निमंत्रण भी दिया| Angel को अपनी मौसी की ही तरह थोड़ी-थोड़ी हिंदी समझ आती थी, जो बात उसे समझ नहीं आती मैं उसे अंग्रेजी में समझा देती| इतने में करुणा की दीदी हम सब के लिए चाय ले आईं, मैंने उन्हें कहा भी की आपने इतनी तकलीफ क्यों की तो वो मुस्कुरा कर बोलीं; "इसमें तकलीफ की क्या बात है!" Angel को गोद में लेने के बाद मेरे दिल में कोई छूत-अछूत का भी नहीं था इसलिए मैंने आराम से चाय पी| उधर इन्होने हमारे लाये हुए गिफ्ट करुणा की दीदी को दिए, शुरू-शुरू में उन्होंने मना किया पर फिर इन्होने माँ-पिताजी का नाम लिया तो करुणा की दीदी मना नहीं कर पाईं|

इन सबकी बातें चल रही थीं और मैं इधर Angel को बिस्कुट और नमकीन खिलाने में लगी थी| मैंने नमकीन की प्लेट उठा ली और Angel ने खुद खाना शुरू किया| करुणा का जीजा मुझे अपनी बेटी को लाड करते देख रहा था और कुछ ज्यादा ही खुश था| उसकी नीयत में अच्छे से भाँप चुकी थी लेकिन बिना किसी सबूत के कुछ कह नहीं सकती थी| हाँ इतना ज़र्रूर था की अगर वो मुझे छूने की कोशिश करता न तो ऐसा झन्नाटेदार थप्पड़ मारती के ये साला बहरा हो जाता!

खैर चाय पी कर हम दोनों पति-पत्नी ने चलने की इजाजत माँगी तो करुणा की दीदी ने हमें खाने के लिए रुकने को कहा| "दीदी, फिर कभी फुर्सत से आएंगे!" इन्होने कहा तो मैंने राहत की साँस ली की कम से कम मुझे इस करुणा की शक्ल और तो नहीं देखनी पड़ेगी| हम चलने लगे तो करुणा और उसका पूरा परिवार हमें नीचे गाडी तक छोड़ने आया, जाने से पहले मैंने Angel को फिर एक बार गोद में लिया तथा अपने घर आने का ख़ास निमंत्रण दिया जो की Angel ने मुस्कुराते हुए स्वीकारा|

चूँकि हम घर जा रहे थे इसलिए मेरा मन अब जा कर प्रसन्न हुआ था| लेकिन फिर अगले ही पल मुझे पिछली रात को किया गया मेरा पाप याद आया, मुझे फिर से डर लगने लगा की कहीं ये कल रात का गुस्सा गाडी में मुझ पर न निकालें?! रात के बाद से अभी ही वो समय था जब हम दोनों गाडी में अकेले थे तो इनका मुझ पर अपना गुस्सा निकालने का ये सबसे सही मौका था मगर ऐसा हुआ नहीं!

गाडी चलते हुए कुछ दूर आई होगी की ये मुझसे बात शुरू करते हुए बोले; "I'm sorry यार, कल रात मैंने तुमसे बिना पूछे तुम्हारी नई वाली नाइटी करुणा को पहनने के लिए दे दी!" इनकी आवाज थोड़ी गंभीर थी मगर उसमें कोई गुसा नहीं था| वैसे तो मैं इनकी कई बातों की कायल हूँ परन्तु इनकी जो बात मुझे सबसे ज्यादा अच्छी लगती है वो ये की ये अपनी छोटी से छोटी गलती स्वीकार लेते हैं और सच्चे दिल से माफ़ी भी माँग लेते हैं| "जानू इसमें कौन सी बड़ी बात है, एक नाइटी ही तो थी! जो बात मुझे अच्छी नहीं लगी वो थी करुणा का नाइटी धो कर मुझे वापस देना, अरे मैं धो लेती नाइटी!" मेरी कही बात का पहला हिस्सा मैंने सच्चे दिल से कहा था मगर नाइटी धोने की बात मैंने बस इन्हें खुश करने को कही थी|

"यार, करुणा जानती है की आप प्रेग्नेंट हो तो वो भला आपको काम कैसे करने देती और वो भी उसके उतारे हुए कपड़े धोना?! मेरी पत्नी के पास सिर्फ यही काम थोड़े ही है?!" इन्होने मुस्कुराते हुए ये बात कही| इनके इस तरह मुझसे मुस्कुरा करा बात करने से मैं आश्वस्त हो गई थी की ये कल रात की मेरी गलती से ख़फ़ा नहीं हैं और ये सोच कर मैंने इत्मीनान की साँस ली! वहीं इनकी कही ये बात की; 'मेरी पत्नी के पास सिर्फ यही काम थोड़े ही है?!' उसे सुन तो मुझे ऐसा लगने लगा की इन्हें मेरी बहुत परवाह है| मेरा मतलब ये नहीं है की इनको मेरी परवाह नहीं थी, लेकिन जब से करुणा ने हमारे परिवार में सेंध लगाने शुरू की थी तब से मैं थोड़ा नकारात्मक सोचने लगी थी| बार-बार ऐसा लगता था की कहीं ये उस चुड़ैल की बातों में फिसल न जाएँ?!

इनका मूड अच्छा था तो मैंने Angel की बात छेड़ दी ताकि इनका मन खुश रहे और मैं अपने मन में की गई प्लानिंग को अंजाम दे सकूँ| "जानू, Angel कितनी प्यारी है न? मेरी तो उससे अच्छी दोस्ती हो गई, एक दिन उसे घर बुलाओ न तो बच्चों को भी नई दोस्त मिल जाएगी|" मैंने बात शुरू करते हुए कहा| मेरी बातों ने इन्हें थोड़ा भावुक कर दिया था और इन्होने अपनी भवनाओं में बहते हुए Angel से अपने लगाव का कारण मुझे बताया; "जब मैं पहलीबार Angel से मिला तो वो करुणा की गोद में थी और उसे देखते ही मुझे नेहा की याद आ गई| चूँकि मैं उन दिनों नेहा से दूर था और उसे बहुत याद करता था तो मैंने Angel में ही नेहा को ढूँढना शुरू कर दिया| पहलीबार जब मैंने Angel को अपनी गोद में लिया तो मानो जैसे जन्मों की प्यास मिट गई हो और मैं आँख बंद किये हुए नेहा को याद करने लगा| मैंने ये मानना शुरू कर दिया की मेरी गोद में नेहा ही है और ये सोचते हुए मेरी आँखों से आँसूँ निकल आये!" ये इस समय भाव-विभोर हो चुके थे और इनके भाव-विभोर होने से मैं भी भावुक होने लगी थी| इनकी बातों से इनका नेहा के लिए प्यार झलकता था और जिस तरह से मैंने एक बाप को उसकी बेटी से 5 साल अलग रखा था उसे याद कर मुझे फिर से ग्लानि होने लगी थी|

मैं ग्लानि के गढ्ढे में न गिर जाऊँ इसके लिए इन्होने फ़ौरन गाडी सरोजनी नगर मार्किट की ओर मोड़ ली| सरोजनी नगर पहुँचते ही ये ख़ुशी-ख़ुशी बोले; "वैसी (मेरी नई नाइटी जैसी) ही नाइटी लेनी है या उससे भी अच्छी?" इन्होने मुझसे बिलकुल बच्चों की तरह सवाल पुछा| ये सवाल इसलिए था क्योंकि ये ये नहीं चाहते थे की मैं करुणा की उतारी हुई नाइटी पहनूँ| उधर इनकी बात सुन कर मैं हैरान रह गई और साथ ही बच्चों की तरह नए कपड़े लेने के लिए उत्साहित भी हो गई! मैंने ख़ुशी से झूमते हुए कहा: "नई!!!" मेरे चेहरे पर आई ख़ुशी देख ये हँस पड़े| गाडी पार्क कर हम मेरे लिए एक नई नाइटी लेने निकले और नई नाइटी के साथ ही मैंने एक नई साडी भी ली जो की इनकी पसंद थी| इनके चेहरे पर जो ख़ुशी थी उसे देख मेरा दिल बार-बार कह रहा था की; 'शुक्र है की इनका गुस्सा ठंडा हो गया!' लेकिन ऐसा था नहीं, ये अपना गुस्सा मुझ पर इसलिए नहीं निकाल रहे थे क्योंकि ये देखना चाहते थे की मैं कब इनसे कल रात किये अपने पाप की माफ़ी माँगूँगी तथा अपनी मूर्खता का क्या कारण कहूँगी?!

वहीं दूसरी तरफ मेरा पूरा प्लान बन चूका था, मुझे आज रात उस काम को अंजाम देना था जो कल रात मेरी मूर्खता के कारण अधूरा रह गया था| इन्होने मुझे घर छोड़ा और फिर अनिल को अपने साथ ले कर चले गए, दरअसल अनिल को अपने किसी दिल्ली में रहने वाले दोस्त के माता-पिता से कुछ समान ले कर मुंबई ले जाना था इसीलिए वो इनके साथ निकला था| मैंने फटाफट आज ली हुई नाइटी धोई और सूखने डाल दी, ये नाइटी स्लीवलेस तथा खुले गले की थी और थोड़ी बहुत पारदर्शी थी| पति जब अपनी पत्नी के लिए कुछ खरीदता है तो उसकी बड़ी इच्छा होती है की पत्नी वो कपड़े या जेवर पहन कर उसे दिखाए| मुझे भी आज रात ये नाइटी पहन कर इन्हें दिखानी थी जिससे ये खुश हो जाएँ और मैं अपने प्लान के अगले पड़ाव यानी इनको बहका कर प्यार करने के लिए उकसा सकूँ! मन ही मन मैं इन्हें उकसाने की सारी तैयारी कर चुकी थी, अब तो बस एक अजब सा उतावलापन था दिल में जिस कारण मैं बेसब्री से रात होने का इंतज़ार कर रही थी|

दोपहर को पिताजी, ये और अनिल एक साथ लौटे तथा खाने के मेज़ पर बच्चों का इंतज़ार करने लगे| बच्चों को लेने माँ गई हुईं थीं, बच्चे दौड़ते हुए घर में घुसे और सीधा इनसे लिपट गए| पहले इन्होने दोनों बच्चों को खूब दुलार किया और फिर उन्हें कपड़े बदल कर आने को कहा| बच्चों को खाना खिला कर ये खाना खा रहे थे और सबकी बातें चल रही थीं| खाना खाने के बाद ये मुँह-हाथ धोने हमारे कमरे के बाथरूम में गए, अब मैं तो वैसे भी इनके प्यार पाने को उतावली हो रही थी इसलिए मैं सबसे नजरें बचा कर इनके पीछे कमरे में आ गई| मैंने फ़ट से कमरे के दरवाजे की कुण्डी बंद की, अपनी साडी को कमर के नीचे खिसकाया ताकि इन्हें मेरी गोरी कमर साफ़ नज़र आये और ये मुझे अपनी बाहों में भर लें| मैं झुक कर कपड़े तह लगाने का बहाना कर इनके बाथरूम से निकलने वाले रास्ते में खड़ी हो गई, ताकि बाथरूम से निकलते ही इनकी नज़र मुझ पर पड़े|

बाथरूम का दरवाजा खुला और मैंने ऐसे दिखाया जैसे मेरा सारा ध्यान झुक कर कपड़े तह लगाने में है| ये बाथरूम से बाहर निकले और इन्होने मुझे देखा भी मगर मुझे बिना छुए ये साइड से होते हुए कमरे के दरवाजे की ओर चल दिए| मैंने कनखी नजरों से इन्हें देखा तो पाया की ये दरवाजे पर पहुँच चुके हैं| दरवाजे की कुण्डी बंद देख ये मेरा इरादा समझ गए, मुझे लगा की अब ये मेरे पास आएंगे और मुझे अपनी बाहों में भर लेंगे मगर इन्होने दरवाजे की कुण्डी खोली तथा चुपचाप बाहर निकल गए! मैं ये दृश्य देख कर हैरान थी, मैं जान गई थी की इनके भीतर मेरे प्रति गुस्सा अभी भी है जिसका सामना मुझे जल्द ही करना होगा!

इनके साइट जाने के बाद मैंने दोनों बच्चों को दोपहर में सोने नहीं दिया और उन्हें पढ़ाने लग गई| आयुष को पढ़ने से नींद आ रही थी इसलिए वो न-नुकुर करने लगा; "अगर अभी सोया तो शाम को खेलने नहीं दूँगी, तब सिर्फ पढ़ाई करनी होगी!" मैंने आयुष को प्यार से धमकाया तो वो पढ़ने के लिए मान गया| वहीं नेहा को तो सबसे ज्यादा जोश था पढ़ने का इसलिए वो ध्यान लगा कर पढ़ रही थी| बच्चों को दोपहर में जगाये रखने का कारण ये था की वो रात को जल्दी सो जाएँ ताकि हमारे प्यार के कार्यक्रम में कोई बाधा न आये! 3 बजे मैंने जबरदस्ती दोनों बच्चों को अनिल के साथ खेलने पार्क भेज दिया, जिससे बच्चों की थकान और बढ़ जाए| थक हार कर तीनों 5 बजे घर लौटे, अनिल की ट्रैन रात की थी इसलिए ये शाम को जल्दी वापस आ गए थे| पिताजी अभी तक नहीं आये थे और मैंने चाय बनाने शुरू कर दी थी| चाय बनी तब तक ये फिर से मुँह-हाथ धोने बाथरूम में घुस गए, मैंने फिर एक बार कोशिश की और अपनी नंगी कमर दिखा कर इन्हें बहकाना चाहा, परन्तु कोई फायदा नहीं हुआ| कुछ देर में पिताजी भी आ गए, मैंने अपने कपड़े ठीक से पहने और हम सभी ने एक साथ चाय पी, सबके सामने इन्होने मुझसे पहले की ही तरह हँस कर बात की जिससे किसी को इनके भीतर बैठे गुस्से का पता नहीं चला| इनके इस तरह बात करने से मुझे लगने लगा था की ये गुस्सा नहीं हैं, मेरे ललचाने का इन पर असर इसलिए नहीं हुआ क्योंकि घर में अनिल की मौजूदगी थी| अब इनका मुँह-मीठा करने का काम चलता है लम्बा, इसीलिए ये मुझसे दूरी बना रहे हैं| 'दिल को बहलाने के लिए ग़ालिब ये ख्याल अच्छा है!' मेरे भीतर जो डर बैठा था उससे मुझे बचाने के लिए मेरा दिल ये बेतुकी बातें कह रहा था, अपने दिल की बातों में आ कर मैंने इनके दिन भर मुझे न छूने की बात को नजरअंदाज कर दिया|

अनिल की ट्रैन जल्दी की थी इसलिए उसे 7 बजे ही खाना खिला कर ये उसे छोड़ने स्टेशन के लिए चल दिए| मैंने थोड़ी होशियारी दिखाई और दोनों बच्चों को उनके पापा के साथ रेलवे स्टेशन जाने के लिए जिद्द करने को कहा| इसका कारन ये था की मैं चाहती थी की बच्चे और थक जाएँ ताकि घर लौट कर खाना खा कर जल्दी से सो जाएँ| अनिल को ट्रैन में बिठा कर आते-आते तीनों बाप-बेटा-बेटी को 9 बज गए, मैंने फटाफट खाना परोसा और खाना खा कर बच्चे थके होने के कारण अपने कमरे में जा कर सो गए| बच्चों को यूँ अपने आप सोते हुए देख हम सभी हँस पड़े वरना तो बिना कहे ये दोनों शैतान सोते नहीं थे!

मैं रसोई समेटने में लगी थी, ये हमारे कमरे में सोने के लिए जा चुके थे, माँ बैठक में बैठीं टी.वी. देख रहीं थीं और पिताजी अपने कमरे में सोने के लिए लेट चुके थे| रसोई फटाफट समेट, माँ को शुभरात्रि बोल मैं बच्चों को देखने उनके कमरे के दरवाजे पर आई, बच्चे अंदर आराम से सोये हुए थे इसलिए मैंने दरवाजा चिपका कर बंद कर दिया| अब मैंने हमारे कमरे में प्रवेश किया तो देखा की ये पीठ के बल लेटे हैं और अपना दाहिना हाथ मोड़ कर अपनी आँखों को ढके सोने की कोशिश कर रहे हैं| मैंने फटाफट कपड़े बदले और इनकी खरीदी हुई नई वाली नाइटी पहन ली| मैं जानती थी की ये अभी तक सोये नहीं हैं इसलिए मैं बिस्तर पर चढ़ी और इनके दाहिने हाथ को खोल कर अपना तकिया बना कर इनसे लिपट गई| मुझे लगा था की मेरे इनसे इस तरह लिपटने से ये तुरंत मेरी ओर करवट ले लेंगे, परन्तु ऐसा नहीं हुआ| ये अब भी पीठ के बल लेटे हुए सोने का नाटक कर रहे थे| अब मेरे भीतर लगी थी प्रेम की अगन तो मैंने अपनी प्यास प्रकट करते हुए इनके जिस्म पर हाथ फेरने शुरू कर दिए और इनसे अधिक से अधिक लिपटने की कोशिश करती रही| मेरी इतनी कोशिशों के बाद भी इन्होने कोई प्रतिक्रिया नहीं दी तो मैंने इन्हें ओर उकसाने का प्रण किया| मैं खिसकती हुई इनके और नजदीक आई तथा इनके 'दाढ़ी वाले गाल पर अपने होंठ रख दिए! अब जा कर इनके मुँह से स्वर फूटा; "उम्म्म!!!?" इनके स्वर में मुझे इनकी चिढ महसूस हुई, कुछ-कुछ वैसी ही चिढ जो कल मुझे करुणा को याद कर के महसूस हुई थी! परन्तु मुझे इनकी इस चिढ से भरी आवाज का जैसे कोई फर्क ही नहीं पड़ा, मैं तो पहले ही प्यार के समुद्र में गोता लगा चुकी थी इसलिए मैं इनकी चिढ को अनसुना कर इनके और नज़दीक पहुँची| मैंने इनके लबों को अपने लबो में कैद करना चाहा था की तभी इन्होने अपनी आँखें खोलीं और मेरे सीने पर हाथ रख मुझे रोक दिया तथा अपनी गर्दन न में हिलाने लगे! इनके चेहरे पर काफी गंभीर भाव थे जो की इनके भीतर मौजूद गुस्से को दर्शा रहे थे, मुझे समझते देर न लगी की इनका मेरे प्रति गुस्सा शांत नहीं हुआ है!

मैंने बिना कोई समय गँवायें सीधा ही इनसे माफ़ी माँगनी शुरू कर दी; "मुझे माफ़ कर दीजिये, मुझसे कल रात बहुत बड़ी भूल हो गई! कल रात मैं...वो..." मैं अपनी की गई गलती का कारण इन्हें बताना चाहती थी मगर इनको अपनी जलन के बारे में बताने से डरती थी, मैं जानती थी की मेरी जलन की बात सुन ये मुझे बहुत डाटेंगे बस इसी डर से मैं खामोश हो गई क्योंकि इनसे झूठ बोलने की हिम्मत नहीं थी|

"कल क्या?" इन्होने भोयें सिकोड़ते हुए मेरी अधूरी छोड़ी हुई बात को कुरेदते हुए गंभीर आवाज में पुछा| इनका ये रूप देख मेरा दिमाग पूरी तरह से बंद हो चूका था, झूठ बोलने की हिम्मत तो थी ही नहीं इसलिए मैंने डर के मारे अपनी आँखें नीची कर ली|

जब मैंने कोई जवाब नहीं दिया तो इन्होने इस प्रश्न को और नहीं पुछा बल्कि अपने दिल का हाल सुनाने लगे; "तुम्हें पता है कल रात मुझे कैसा लगा जब तुमने मुझे बेवजह झिड़का था?" इनके सवाल को सुन मैं खामोश रही और मन ही मन करुणा को कोसती रही|

"मैंने कभी सपने में नहीं सोचा था की तुम मेरे साथ ऐसा व्यवहार करोगी? मुझे ऐसा लग रहा था जैसे मैं तुम्हारे साथ 'जबरदस्ती' कर रहा हूँ, तुम्हारा शारीरिक शोषण कर रहा हूँ और ये सोच कर मैं खुद को कोसने लगा था| एक पल के लिए तो मुझे खुद से नफरत हो रही थी की मैं भी उस (चन्दर) जैसा बन चूका हूँ!" इनकी ये बात मेरे दिल को बहुत चुभी! मैंने कल इनसे इतना गंदा बर्ताव किया था की इनका ये सब सोचना लाज़मी था मगर मैं करती भी क्या, उस करुणा के कारण मैं जलन की आग में जो जल रही थी!

"शायद तुम भूल गई की गाँव में तुमने मुझसे एक वादा किया था, मुझे एक हक़ दिया था और कल रात तुमने न केवल अपना वादा तोडा बल्कि मुझे दिया हुआ हक़ भी मुझसे छीन लिया!" इनकी कही इस बात ने मुझे भीतर से झिंझोड़ कर रख दिया था| मैं इनकी कसूरवार थी और अपनी सफाई देना चाहती थी ताकि कहीं इनके मन में प्रति घृणा न पैदा हो जाए; "पता नहीं जी मुझे आखिर कल हो क्या गया था?!" मैंने नजरें झुकाये हुए ही अपनी बात कही मगर मुझ में अब भी इतनी हिम्मत नहीं थी की मैं अपनी जलन इन पर जाहिर कर सकूँ| "प्लीज मुझे माफ़ कर दो!" इतना कहते हुए मेरे आँसूँ बह निकले| इन्हें मनाने के लिए मैं कुछ भी कर सकती थी इसलिए मैंने रोते हुए गिड़गिड़ाना शुरू कर दिया; "प्लीज मुझे माफ़ कर दो, आगे से मैं ये गलती कभी नहीं करूँगी!"

"कारण तुम्हें पता है लेकिन तुम बताना नहीं चाहती! ठीक है, मैं भी आज के बाद तुमसे ये कारण कभी नहीं पूछूँगा|" ये बड़े रूखे स्वर में बोले और मेरे आँसूँ पोछ मुझे चुप कराया| एक पल को लगा की इन्होने मुझे माफ़ कर दिया और मेरा दिल राहत की साँस लेना लगा, परन्तु अगले ही पल ये दूसरी तरफ मुँह कर के लेट गए| ये देख कर तो मैं असमंजस की स्थिति में फँस गई, मुझे समझ ही नहीं आया की ये मुझसे गुस्सा है या इन्होने मुझे माफ़ कर दिया?! "आपने मुझे माफ़ कर दिया न?" मैंने कोतुहलवश इनसे पुछा तो इन्होने बस; "हम्म्म" कह जवाब दिया| इनके जवाब से मेरे भीतर तूफ़ान खड़ा हो गया था, मन में बैठी ग्लानि मुझे डराए जा रही थी और कह रही थी की; 'तूने इनका प्यार हमेशा-हमेशा के लिए खो दिया!'
 

[color=rgb(97,]अठाईसवाँ अध्याय: पिता-पुत्री प्रेम[/color]
[color=rgb(250,]भाग - 1[/color]


[color=rgb(26,]अब तक आपने पढ़ा:[/color]

मैंने रोते हुए गिड़गिड़ाना शुरू कर दिया; "प्लीज मुझे माफ़ कर दो, आगे से मैं ये गलती कभी नहीं करूँगी!"

"कारण तुम्हें पता है लेकिन तुम बताना नहीं चाहती! ठीक है, मैं भी आज के बाद तुमसे ये कारण कभी नहीं पूछूँगा|" ये बड़े रूखे स्वर में बोले और मेरे आँसूँ पोछ मुझे चुप कराया| एक पल को लगा की इन्होने मुझे माफ़ कर दिया और मेरा दिल राहत की साँस लेना लगा, परन्तु अगले ही पल ये दूसरी तरफ मुँह कर के लेट गए| ये देख कर तो मैं असमंजस की स्थिति में फँस गई, मुझे समझ ही नहीं आया की ये मुझसे गुस्सा है या इन्होने मुझे माफ़ कर दिया?! "आपने मुझे माफ़ कर दिया न?" मैंने कोतुहलवश इनसे पुछा तो इन्होने बस; "हम्म्म" कह जवाब दिया| इनके जवाब से मेरे भीतर तूफ़ान खड़ा हो गया था, मन में बैठी ग्लानि मुझे डराए जा रही थी और कह रही थी की; 'तूने इनका प्यार हमेशा-हमेशा के लिए खो दिया!'

[color=rgb(235,]अब आगे:[/color]

"तो क्या आप मुझे अब कभी स्पर्श नहीं करोगे?" इनके प्यार को खो देने के डर से घबराते हुए मैंने ये सवाल पुछा| मुझे जानना था की हमारा ये रिश्ता किस मोड़ पर है, क्या ये रिश्ता कभी सुधर पायेगा या फिर इसमें कोई गाँठ पड़ चुकी है जिसे हम दोनों मिल कर आजीवन सुलझा नहीं पाएंगे?! परन्तु इन्होने मेरे सवाल का कोई जवाब नहीं दिया, ये अब भी मेरी ओर पीठ किये हुए लेटे रहे| मुझ में इतनी हिम्मत नहीं थी की मैं झिंझोड़ कर उठाऊँ और इनकी आँखों में आँखें डालकर अपने सवाल का जवाब माँगूँ इसलिए मैंने भी उसी वक़्त ठान लिया की चाहे जो हो जाए, मैं इनके दिल में अपने लिए प्यार फिर से जगा कर रहूँगी!

अब हमारा प्रेम-मिलन तो होने वाला था नहीं इसलिए मैं उठी और दरवाजे की कुण्डी खोल कर वापस अपनी जगह लेट गई| मैं जानबूझ कर इनसे नहीं लिपटी क्योंकि इस समय गुस्से के कारण इनका दिमाग गरम था, मेरी की गई जबरदस्ती से ये और भड़क जाते इसीलिए मैंने इन्हें सुबह तक का समय दिया ताकि ये अपने गुस्से पर काबू पा लें तभी मैं अपने लिए प्रण पर कुछ सोचती|


[color=rgb(51,]मेरी लेखनी:[/color]

रात एक बजे नेहा रोते हुए कमरे में आई, उसके रोने की आवाज सुन मैं झट से उठ बैठा और नेहा को गोद में उठा लिया| बाकी दिनों के मुक़ाबले आज नेहा कुछ अधिक ही रो रही थी, मैंने जब नेहा को गोद लिया तो पाया की नेहा को थोड़ा बुखार चढ़ गया है! नेहा का बदन गर्म था जिस कारण मुझे चिंता हुई और मैंने फटाफट नेहा की बगल में thermometer लगा कर उसका बुखार चेक किया| नेहा बहुत घबराई हुई थी जिस कारण उसका रोना थम नहीं रहा था और उसका ये रोना मुझसे अब बर्दाश्त नहीं हो रहा था| मेरे सामने मेरी बेटी बुखार से लड़ रही थी और अपने देखे किसी बुरे सपने से घबराते हुए रो रही थी और मैं लाचार कुछ नहीं कर पा रहा था, यही सोच-सोच कर मुझे खुद पर गुस्सा आ रहा था|

मैं: बस मेरा बच्चा!...बस!...पापा हैं न आपके पास?!...बस रोना नहीं!...मेरा बहादुर बच्चा!

मैंने नेहा को कस कर अपने सीने से चिपकाए हुए उसे हिम्मत बँधाते हुए कहा|

नेहा: प...पापा...जी...मैं अकेले...न...नहीं...सो...सोऊँगी....!

नेहा ने अपने रोने पर काबू पाते हुए सिसकते हुए कहा|

मैं: ठीक है मेरा बच्चा! अब से आप रोज़ मेरे पास सोना!

मैंने नेहा को हिम्मत बँधाते हुए कहा| मेरी बात सुन नेहा को इत्मीनान हुआ और उसका रोना आखिरकर थम ही गया| मैंने thermometer देखा तो पाया की नेहा को 99 degree बुखार है! मैंने नेहा को crocin की गोली खिलाई और उसे गोदी में लिए हुए छोटे बच्चों की तरह लाड करने लगा| मेरे लाड-प्यार करने से नेहा का मन प्रसन्न हो गया था तथा उसका डर भाग चूका था इसलिए वो मुझसे लिपट कर सो गई| मैं नेहा को ले कर पलंग पर लेटा तो देखा संगीता जाग चुकी है, मैंने उसे इशारा करते हुए कहा की वो आयुष को ले आये क्योंकि नेहा के हमारे कमरे में आने से आयुष कमरे में अकेला सो रहा था| अब वो अगर जागता तो नेहा को न पा कर डर के मारे रोने लगता| संगीता आयुष को गोदी में ले कर आई और हम दोनों के बीच उसे लिटा दिया|

घर का काम करने के कारण संगीता थक गई थी इसलिए उसकी आँख लग गई परन्तु मैं सारी रात न सो सका| मैं नेहा को अपने सीने से चिपटाये उसके सर पर हाथ फेरता रहा ताकि कहीं नेहा फिर डर के न उठ जाए| मुझसे यूँ अपनी बेटी का हर रात को रोते हुए जागना नहीं देखा जा रहा था, मैं जानता था की मेरी बेटी को कोई मानसिक बिमारी नहीं है मगर उसके मन के भीतर बैठे डर को बाहर निकालना ज़र्रूरी हो गया था|

मुझे याद है जब मैं छोटा था तब मुझे भी डरावने सपने आया करते थे जिन्हें देख कर मैं डर जाया करता था| जब मैं लगभग नेहा की उम्र का था तब मैंने अपने पड़ोस में रहने वालों के घर एक दिन 'आहट' नाम का नाटक देखा था और तभी से मुझे अकेले रहने में, अँधेरे कमरे में जाने में, अकेले सोने में बहुत डर लगने लगा था| हमारे घर में तब बाथरूम पहली मंजिल पर था और जब बिजली नहीं होती थी तो मुझसे अकेले ऊपर बाथरूम नहीं जाया जाता था, मजबूरी में जब मुझे जाना होता तो मैं बहुत तेजी से दौड़ कर ऊपर जाता था ताकि कहीं कोई भूत-प्रेत मुझे पकड़ न ले! बड़ी हिम्मत कर के मैंने अपना ये डर अपने माँ-पिताजी को बताया तो माँ ने तो साफ़ कह दिया;

माँ: बेटा, तू इतना बड़ा हो गया है और ऐसी बातो से घबराता है? टी.वी. में दिखाई चीजें सच थोड़ी ही होती हैं?

एक बच्चा जो पहले से घबराया हो वो इतनी बात सुन कर थोड़े ही निडर बन जाता है मगर माँ से बहस करूँ कैसे? वहीं पिताजी ने तो मेरी बात सुन कर मुझे ही डाँट दिया;

पिताजी: तू ये भूत-प्रेत वाले नाटक देखता ही क्यों है? आज से तेरा रात को घर से बाहर जाना बंद! खाना खा कर जल्दी सोया कर ताकि सुबह जल्दी उठे!

पिताजी की डाँट सुन मैं चुप हो गया, कुछ और बोलता तो पिटाई हो जाती! लेकिन पिटाई तो फिर भी हुई मेरी, एक रात की बात है की मैं रात को अपने इसी डर के मारे सो नहीं रहा था| पिताजी ने मुझे जागते हुए पाया तो वो जान गए की डर के मारे ही मैं नहीं सो रहा, तो उन्होंने उठाई छड़ी और मुझे दौड़ा-दौड़ा कर सूत दिया!

ये बात मेरे घर के पास रहने वाले दोस्तों को पता चली तो उन्होंने मेरा खूब मज़ाक उड़ाया ये कह कर की मैं भूत-प्रेत से डरता हूँ! कुछ तो मुझे उकसाने लगे और बोले की मर्द बन मर्द तथा अपने डर का सामना कर! मैं क्या करता चुप-चाप सुनता रहा पर मेरा मन कह रहा था की सालों कहना बहुत आसान होता है और करना उतना ही मुश्किल! यूँ कहने भर से ही कोई बहादुर बन जाता तो सबकी समस्याएँ यूँ ही खत्म न हो जातीं?!

आखिरकर समय का पहिया घूमा और धीरे-धीरे मेरा ये डर मेरी बढ़ती हुई उम्र के साथ कम होने लगा| मेरा मन पूजा-पाठ में लगने लगा और भगवान जी पर हुए भरोसे ने मुझे यक़ीन दिला दिया की वो मेरे साथ कुछ गलत नहीं होने देंगे| पिताजी मेरा भक्ति-भाव देख कर खुश हुए और मुझे समझाने लगे की बेटा सब कुछ भगवान पर छोड़ दे, वो ही सही रास्ता दिखायेंगे| तो कुछ इस तरह से मैंने अपने डर से निजात पा ली थी मगर अपनी बेटी के डर को ले कर मैं बेसब्र हुआ जा रहा था| मुझे जल्द से जल्द नेहा की इस परेशानी का हल ढूँढना था मगर कैसे ये सवाल ही मेरी चिंता का कारण बना हुआ था|

मुझे जब कोई रास्ता नजर नहीं आता तो मैं सीधा भगवान जी की शरण में जाता हूँ, तब भगवान जी ही मुझे रास्ता दिखाते हैं| मैंने एक नज़र नेहा को देखा तो पाया की वो चैन से मुझसे लिपट कर सो रही है| मैंने धीरे से नेहा की पकड़ से खुद को छुड़ाया और घडी देखि, घडी में बजे थे सुबह के 3! मैं पानी गर्म कर नहाया और भगवान का नाम लेने लगा, मैं दुआ करने लगा की भगवान जी मेरी बेटी नेहा के मन से ये डर हमेशा-हमेशा के लिए निकाल दें तथा नेहा को ये डरावने सपने आने बंद हो जाएँ|

भगवान जी ने मेरी सुन ली और मुझे रास्ता याद दिला दिया, ये रास्ता कोई और नहीं बल्कि डॉक्टर सरिता थीं| डॉक्टर सरिता के पास हमें नेहा को ले कर मुन्नार से लौटने के बाद ही जाना था मगर चन्दर वाले काण्ड के कारण और मेरे कोमा में जाने के कारण हम नेहा को डॉक्टर सरिता के पास ले जाना भूल गए थे! उधर घडी में अब बजे थे 5 और मेरी बढ़ी हुई बेचैनी मुझे चैन नहीं लेने दे रही थी| मैंने फ़ोन उठाया और सीधा डॉक्टर सरिता जी को फ़ोन खड़का दिया;

मैं: हेल्लो?...सरिता जी?

मैंने थोड़ा हिचकिचाते हुए सरिता जी से बात शुरू की, इसका कारण ये था की मैं इतनी सुबह अपनी बढ़ी हुई बेचैनी के कारण डॉक्टर सरिता जी की नींद खराब कर रहा था!

डॉक्टर सरिता: हेल्लो...हाँ मानु...क्या हुआ?

डॉक्टर सरिता मेरे इतनी सुबह कॉल करने से थोड़ा चिंतित थीं|

मैं: माफ़ कीजिये सरिता जी मैंने आपको इतनी सुबह तंग किया!

मैंने डॉक्टर सरिता से माफ़ी माँगी|

डॉक्टर सरिता: अरे कोई बात नहीं मानु| तुम बताओ, सब ठीक तो है न?

सरिता जी को मेरे सुबह-सुबह फ़ोन करने से कोई दिक़्क़त नहीं थी, उनकी हमारे परिवार से बहुत नजदीकियाँ जो थीं!

मैं: जी नहीं| नेहा को लगभग हर रोज़ बुरे सपने आते हैं और वो डर के मारे आधी-आधी रात को उठ कर रोते हुए मेरे पास आती है| लेकिन जब-जब मैं उसके साथ सोता हूँ तो उसे ये डरावने सपने नहीं आते और वो आराम से सोती है| Please सरिता जी, मेरी बेटी का ये डर भगाने में मेरी मदद कीजिये!

मैंने भावुक हो कर अपनी बात कही| एक बाप आज अपनी बेटी के इलाज के लिए एक डॉक्टर से विनती कर रहा था|

डॉक्टर सरिता: देखो घबराओ मत मानु, सब ठीक हो जायेगा| मैं एक general physician हूँ, नेहा के लिए तुम्हें किसी बाल मनोवैज्ञानिक डॉक्टर से मिलना होगा| मैं तुम्हें डॉक्टर अंजलि का नंबर देती हूँ वो बच्चों की मनौवैज्ञानिक हैं| तुम, संगीता और नेहा उनसे जा कर मिलो वो तुम्हारी जर्रूर मदद करेंगी|

डॉक्टर सरिता की ये बात मेरे लिए ऐसी थी मानो अँधेरे में उम्मीद की किरण!

मैं: जी ठीक है| आपका बहुत-बहुत शुक्रिया!

मैंने सरिता जी को दिल से धन्यवाद दिया| उनकी बँधाई उम्मीद से मेरा मन अब जा कर सकारात्मक सोचने लगा था|

डॉक्टर सरिता: मैं तुम्हें अभी नंबर message करती हूँ|

डॉक्टर सरिता जी बोलीं और मैंने उन्हें पुनः धन्यवाद दिया| अगले 5 मिनट में डॉक्टर सरिता जी का message आ गया और उनके message में डॉक्टर अंजलि का नंबर और पता था| नंबर देख कर मन तो कर रहा था की अभी ही फ़ोन करूँ मगर इतनी सुबह फ़ोन उठता कौन? Clinic तो 10 बजे से पहले खुलता नहीं?! अब मुझे बस clinic खुलने का इंतज़ार करना था सो मेरी नज़र घडी पर टिकी थी और ये कमबख्त घडी आज हद्द से ज्यादा धीरे चल रही थी!

समय गुजारना था तो मैंने चाय बनाने की सोची क्योंकि अब मुझे नींद तो आने वाली नहीं थी| माँ-पिताजी जाग चुके थे तो मैं चाय बना कर उनके कमरे में चाय ले कर पहुँच गया| उधर मेरे हाथों में चाय का गिलास देख माँ-पिताजी चिंतित हो गए;

माँ: बेटा तू चाय क्यों ले कर आया, बहु की तबियत ठीक है न?

माँ चिंतित स्वर में बोलीं|

मैं: हाँ जी वो ठीक है...

मैंने अभी अपनी बात पूरी भी नहीं की थी की पिताजी भी चिंतित होते हुए बीच में बोले;

पिताजी: फिर तू चाय क्यों ले कर आया?

मैं: जी वो मैं जल्दी उठ गया था, तो सोचा की आज मैं ही चाय बना लूँ|

मैंने माँ-पिताजी को आश्वस्त करते हुए कहा| माँ-पिताजी मेरी बातों में विश्वास कर बैठे और चाय पीने लगे| मने जानबूझ कर उन्हें अपने रात भर जागने की बात नहीं बताई ताकि कहीं वो मेरी चिंता न करने लगें|

पिताजी: ठीक है बेटा| अब जा कर बहु और बच्चों को भी उठा दे|

पिताजी बोले तो मैंने उन्हें बता दिया की नेहा को कल रात हल्का बुखार था;

पिताजी: अभी नेहा का बुखार देख लिओ और अगर बुखार हो तो नेहा को आराम करने दे, आयुष को स्कूल छोड़ कर मैं नेहा को दवाई दिला लाऊँगा|

मैंने पिताजी की बात सुन हाँ में गर्दन हिलाई|

मैं अपनी और संगीता की चाय ले कर कमरे में पहुँचा तो देखा की संगीता बाथरूम से निकल रही है| मेरे हाथों में चाय देख वो भी माँ-पिताजी की तरह चिंता करने लगी;

संगीता: आपने चाय बनाई?

संगीता सकपकाते हुए बोली|

मैं: यार, सारी रात नींद नहीं आई, जब लेटे-लेटे ऊब गया तो उठ कर नहाया, फिर पूजा की और तब भी समय नहीं कटा तो सोचा चाय बना लूँ|

मैंने चाय टेबल पर रखी और नेहा के माथे पर हाथ रख उसका बुखार देखने लगा| रात में दी गई crocin के असर से नेहा का बुखार उतर चूका था| उधर मेरा जवाब सुन संगीता और चिंतित हो गई;

संगीता: नींद क्यों नहीं आई क्या अब भी मुझसे नाराज हो?

संगीता को लग रहा था की कल रात जो हमारे बीच बात हुई उसे ले कर मैं अभी तक उससे नाराज़ हूँ, जबकि मैं अपनी बेटी के स्वास्थ्य को ले कर चिंतित था;

मैं: नहीं यार, मैं नेहा के लिए परेशान हूँ|

मैंने नेहा के सर पर हाथ फेरते हुए कहा|

संगीता: उसके बुरे सपनों को ले कर न?! आप चिंता मत करो, जैसे-जैसे उसकी उम्र बढ़ेगी ये बुरे सपने आना बंद हो जायेंगे|

संगीता मेरी चिंता दूर करना चाह रही थी मगर वो एक बाप के दिल को नहीं समझ रही थी;

मैं: मैं अब और नेहा को यूँ रोते हुए नहीं देख सकता|

मैं भारी मन से बोला| संगीता मेरी बात से दुखी न हो इसलिए मैंने बात बदलते हुए उसे कहा;

मैं: तुम चाय पियो मैं बच्चों को उठाता हूँ|

ये कहते हुए मैंने नेहा को गोदी में उठाया और उसके माथे को चूमने लगा| मेरी पप्पी महसूस करते ही नेहा मुस्कुराते हुए उठी और मेरे दोनों गालों पर पप्पी दे कर फिर से मुझसे लिपट गई|

मैं: बेटा, अभी तबियत कैसी है आपकी?

जब मैंने ये सवाल पुछा तो संगीता हैरान रह गई, मैंने उसे बताया की कल रात नेहा को थोड़ा सा बुखार था| मैंने crocin दे दी थी जिससे अभी नेहा का बुखार उतर चूका है| मेरे पूछे गए सवाल के जवाब में नेहा उत्साह से बोली;

नेहा: मैं ठीक हूँ पापा जी!

मुझे नेहा की चिंता थी इसलिए मैंने उसे आज के दिन स्कूल से छुट्टी करने को कहा तो मेरी बेटी एकदम से बोली;

नेहा; पापा जी, exam शुरू होने वाले हैं और teacher जी आज कुछ notes देंगी इसलिए मैं आज स्कूल से छुट्टी नहीं कर सकती|

नेहा का कारण वाजिब था परन्तु एक पिता के दिल को इतनी जल्दी तसल्ली नहीं मिलती;

मैं: ठीक है बेटा, लेकिन अगर थोड़ी सी भी तबियत खराब लगे तो अपनी teacher जी से कह कर मुझे call कर देना, मैं उसी वक़्त आपको लेने आ जाऊँगा|

नेहा ने मेरी बात का जवाब हाँ में हिला कर दिया और school के लिए तैयार होने लगी| अब मैंने आयुष को जगाया और उसे जागने में बहुत समय लगा| वो बस मुझसे लिपटा हुआ कुनमुना रहा था, आखिर में मुझे आयुष को चॉकलेट का लालच देना पड़ा और वो झट से स्कूल के लिए तैयार होने लगा|

जब तक बच्चे तैयार हुए तब तक संगीता ने दोनों बच्चों का tiffin बना दिया था, फिर मैं खुद बच्चों को स्कूल के लिए छोड़ कर घर लौटा| अब समय था माँ-पिताजी से नेहा के बारे में बात करने का, पिताजी dining table पर बैठे अखबार पढ़ रहे थे और माँ तथा संगीता साग चुन रहीं थीं|

मैं: माँ...पिताजी आपसे कुछ बात करनी है|

मैंने गंभीर आवाज में पिताजी के नजदीक बैठते हुए कहा| मेरी बात सुन पिताजी ने अपना अखबार मोड़ कर रख दिया और माँ तथा संगीता भी अपना काम छोड़ कर मेरी बात सुनने के लिए पूर्णतः एकाग्रित हो गए|

मैं: पिताजी, मैंने आज सुबह-सुबह डॉक्टर सरिता को फ़ोन किया था...

इतना सुनना था की पिताजी चिंतित हो कर बोले;

पिताजी: पर किस लिए?

मैं: जी, कल रात को नेहा फिर से...

मैंने जानबूझ कर अपनी बात पूरी नहीं की मगर माँ-पिताजी और संगीता मेरी बात समझ गए| नेहा के रात में रोने की बात याद कर मैं मायूस हो गया था इसलिए पिताजी मुझे होंसला बँधाते हुए बोले;

पिताजी: बेटा तू क्यों इतनी चिंता करता है| बुरे सपने सब बच्चों को आते हैं और चूँकि बच्चे छोटे होते हैं इसलिए वो डर जाते हैं, लेकिन जैसे-जैसे बच्चे बड़े होते जाते हैं उनका ये डर खत्म हो जाता है| तू ज्यादा चिंता मत किया कर वरना कहीं फिर से बीमार पड़ जाये|

पिताजी को मुझे आश्वस्त करते देख संगीता को मेरी चुगली करने का मौका मिल गया;

संगीता: पिताजी, ये कल रात भर सोये भी नहीं|

संगीता मेरी ओर इशारा करते हुए बोली| जो बात मैं माँ-पिताजी से छुपा रहा था उसे संगीता ने माँ-पिताजी के सामने खोल दिया था और हुआ वही जो मैं नहीं चाहता था, माँ-पिताजी मेरी चिंता करने लगे;

माँ: बेटा एक बात बता, तू फिर से बीमार पड़ना चाहता है?

माँ को अपने बेटे की चिंता थी इसलिए वो मुझे अपने तरीके से समझा रहीं थीं की मैं इस तरह चिंता न करूँ और बीमार न पडूँ, परन्तु एक पिता का दिल अपनी बेटी को बार-बार यूँ रोता हुआ नहीं देख सकता था;

मैं: नहीं माँ| लेकिन आप एक बात बताओ, क्या आप लोग कभी मेरी आँखों में आँसूं देख पाते थे जो मैं अपनी बेटी को रोता हुआ देखूँ? और चलो एक-आध बार की बात होती तो ठीक था मगर हर दूसरे दिन नेहा का इस कदर डर जाना तथा रोना मैं कैसे बर्दाश्त करूँ? फिर कल रात तो वो इस कदर डर गई थी की उसे हल्का बुखार चढ़ गया था! मैं अब नेहा को रोते देख डरने लगा हूँ की कहीं उसे कुछ हो न जाए और अपने इसी डर के कारण मैं उससे उसके रात में देखे गए सपनों के बारे में भी नहीं पूछता की कहीं वो मुझे अपने सपनों के बारे में बताते-बताते फिर से रो न पड़े!

मेरी कही इस बात से माँ-पिताजी को एक बाप के दिल का दुःख समझ आया इसलिए वे चुप हो गए| माँ-पिताजी खामोश हुए तो संगीता ने खुद को दोषी बना कर आगे करना चाहा;

संगीता: ये सब मेरी.......

मैं जानता था की अब संगीता, नेहा के बचपन में की गई अपनी लापरवाही का राज़ खोलेगी इसलिए मैंने उसकी बात काटते हुए उसे झाड़ दिया;

मैं: [color=rgb(255,]SHUT UP संगीता!!![/color]

मेरी झाड़ सुन कर संगीता डर के मारे चुप हो गई| मेरा संगीता को चुप कराने का बस एक कारण था, वो ये की संगीता की बात सुन कर माँ-पिताजी कहीं उसे गैर-जिम्मेदार माँ न समझें| संगीता की छबि माँ-पिताजी के सामने बहुत अच्छी थी और मैं उस छबि पर दाग नहीं लगने देना चाहता था| मैं अपनी इस सोच के लिए कोई सफाई नहीं दूँगा, ये सब आप सभी पाठकों पर है की आपको मेरी ये सोच सही लगती है या गलत!

खैर, मेरा संगीता को इस कदर झाड़ने से माँ-पिताजी गुस्से से मुझे देख रहे थे, वहीं बेचारी संगीता मेरे डर के मारे सर झुकाये खामोश बैठी थी|

मैं: अगर नेहा का यूँ रात को डर के मारे रोना प्राकर्तिक भी है तो भी मैं एक बार अपने मन की तसल्ली के लिए डॉक्टर से मिलना चाहता हूँ| आज सुबह मैंने डॉक्टर सरिता से बात की थी तथा उन्होंने मुझे एक बाल मनोवैज्ञानिक डॉक्टर अंजलि का नंबर दिया है, मैं उन्हें आज फोन कर के कल की appointment ले लेता हूँ और नेहा को उन्हें एक बार दिखा देता हूँ|

मेरे संगीता को झाड़ने से माँ-पिताजी गुस्सा हो गए थे इसलिए मैंने थोड़ा हलीमी से अपनी बात कही| वहीं जैसे ही मैंने मनोवैज्ञानिक डॉक्टर का नाम लिया तो माँ-पिताजी को लगा की मुझे लगता है की नेहा में कोई दिमागी कमी है!

पिताजी: नेहा बहुत छोटी है, उसमें कोई दिमागी कमी नहीं है! वो पढ़ाई में इतनी होशियार है, इतनी समझदार है और तू उसे दिमाग के डॉक्टर के पास ले जाना चाहता है?!

पिताजी ऐतराज़ करते हुए बोले| पिताजी के बोल पड़े खुश्क थे और जो एक ख़ास शब्द वो नेहा के लिए नहीं बोलना चाहते थे वो शब्द था; 'पागल'! मैं इस शब्द को महसूस करते ही बिलबिला उठा;

मैं: मेरी बेटी पागल नहीं है!

ये कहते हुए मेरा खून उबलने लगा था, मेरा ये रूप देख पिताजी को ग्लानि हुई की उन्होंने नेहा के लिए ऐसा शब्द सोचा| मैंने खुद को शांत किया और एक गहरी साँस लेते हुए अपनी बात आगे जारी रखी;

मैं: माफ़ कीजियेगा पिताजी! नेहा के डर का इलाज़ डॉक्टर सरिता के पास नहीं है| ये इलाज़ बस एक मनोवैज्ञानिक डॉक्टर ही कर सकता है| वो डॉक्टर हमारी बच्ची नेहा को कोई बिजली के झटके नहीं देगा, वो बस नेहा से बात करेगा और उसके इस डर की वजह जान कर इसका इलाज़ हमें बताएगा|

मेरी बात इत्मीनान से सुन कर माँ-पिताजी को तसल्ली हुई की मेरा लिया फैसला ठीक है|

पिताजी: ठीक है बेटा, जैसा तुझे ठीक लगे वैसा कर, हमें तुझ पर पूरा भरोसा है| लेकिन एक बात बता, तू नेहा को क्या कह कर डॉक्टर के ले जाएगा? अगर तूने उसे कहा की तू उसे किसी मनोवैज्ञानिक डॉक्टर के पास ले जाएगा तो नेहा को ये न लगने लगे की वो दिमागी रूप से अस्वस्थ है?

पिताजी की बात सही थी मगर मैंने इसका रास्ता पहले ही निकाल लिया था| मुझे अपनी बेटी से थोड़ा झूठ बोलना था;

मैं: जी ये मैंने पहले ही सोच लिया है| मैं नेहा को कतई मानसिक रोगी नहीं बनाना चाहता इसलिए मैं नेहा से कहूँगा की हम उसे counselling यानी की आगे चल कर नेहा को commerce लेनी चाहिए या science लेनी चाहिए, इस पर सलाह लेने के लिए councilor के पास ले जा रहे हैं| इससे नेहा को ज़रा भी शक नहीं होगा की हम उसे किसी डॉक्टर के पास ले जा रहे हैं| घर पर भी हमारी हुई इस बात के बारे में नेहा या आयुष को कुछ पता नहीं चलना चाहिए, हमें नेहा से बिलकुल वैसे ही बर्ताव करना है जैसा हम करते आये हैं|

मेरा ये झूठ पिताजी को जचा और उन्होंने अपनी सहमति दे दी;

पिताजी: ठीक है बेटा, ऐसा ही होगा|

इतना कह कर पिताजी साइट पर जाने के लिए तैयार होने लगे|

[color=rgb(124,]जारी रहेगा भाग 2 में... [/color]
 

[color=rgb(97,]अठाईसवाँ अध्याय: पिता-पुत्री प्रेम[/color]
[color=rgb(251,]भाग -2[/color]


[color=rgb(26,]अब तक आपने पढ़ा:[/color]

पिताजी: ठीक है बेटा, जैसा तुझे ठीक लगे वैसा कर, हमें तुझ पर पूरा भरोसा है| लेकिन एक बात बता, तू नेहा को क्या कह कर डॉक्टर के ले जाएगा? अगर तूने उसे कहा की तू उसे किसी मनोवैज्ञानिक डॉक्टर के पास ले जाएगा तो नेहा को ये न लगने लगे की वो दिमागी रूप से अस्वस्थ है?

पिताजी की बात सही थी मगर मैंने इसका रास्ता पहले ही निकाल लिया था| मुझे अपनी बेटी से थोड़ा झूठ बोलना था;

मैं: जी ये मैंने पहले ही सोच लिया है| मैं नेहा को कतई मानसिक रोगी नहीं बनाना चाहता इसलिए मैं नेहा से कहूँगा की हम उसे counselling यानी की आगे चल कर नेहा को commerce लेनी चाहिए या science लेनी चाहिए, इस पर सलाह लेने के लिए councilor के पास ले जा रहे हैं| इससे नेहा को ज़रा भी शक नहीं होगा की हम उसे किसी डॉक्टर के पास ले जा रहे हैं| घर पर भी हमारी हुई इस बात के बारे में नेहा या आयुष को कुछ पता नहीं चलना चाहिए, हमें नेहा से बिलकुल वैसे ही बर्ताव करना है जैसा हम करते आये हैं|

मेरा ये झूठ पिताजी को जचा और उन्होंने अपनी सहमति दे दी;

पिताजी: ठीक है बेटा, ऐसा ही होगा|

इतना कह कर पिताजी साइट पर जाने के लिए तैयार होने लगे|

[color=rgb(235,]अब आगे:[/color]

नाश्ता कर पिताजी साइट पर निकल गए और मैं घर पर रुक कर डॉक्टर अंजलि के clinic में कॉल कर appointment book करने लगा| डॉक्टर सरिता ने मुझे डॉक्टर अंजलि के clinic का landline नंबर दिया था, मैंने जब पहलीबार वो नंबर मिलाया तो नंबर व्यस्त आया, मैंने घडी देखि तो सवा दस हो रहे थे| मैंने 15 मिनट रूक कर दुबारा फ़ोन किया तो इस बार भी नंबर व्यस्त आया, मैंने फिर घडी देखि और घडी में साढ़े दस हुए थे! इस समय तक तो clinic खुल जाना चाहिए था यही सोचते हुए मेरा मन व्याकुल होने लगा था| मैंने थोड़ा इंतज़ार किया और 15 मिनट बाद तीसरी बार फ़ोन भगवान जी का नाम ले कर मिलाया, इस बार नंबर मिल ही गया|

फ़ोन डॉक्टर अंजलि की secretary ने उठाया था और वो मुझे कुछ अधिक ही खड़ूस लगी! मैं उस समय उस secretary द्वारा फ़ोन न उठाने की आग में वैसे ही जल रहा था, उस पर जब उसने मुझसे अकड़ कर बात की तो मैं उसी पर बरस पड़ा;

मैं: जब clinic खुलने का समय 10 बजे है तो पिछले पौने घंटे से नंबर busy कैसे था? यहाँ एक इंसान बार-बार नंबर मिला रहा है ताकि वो डॉक्टर से बात कर सके और तुम हो की अपनी मस्ती में व्यस्त हो?! कोई इंसानियत है तुम्हारे भीतर या नहीं? मरीज़ की जान की कीमत है तुम्हारे लिए की नहीं? जानती हो अगर तुम ये फ़ोन नहीं उठाती तो मैं अभी clinic आने वाला था!

जब मैं रासन-अपनी ले कर उस लड़की पर चढ़ा तो वो बेचारी घबरा गई और sorry sir की रट लगाने लगी| अपनी इसी घबराहट में उसके मुँह से निकल गया की इतनी सुबह कोई patient कॉल नहीं करता इसलिए वो अपने boyfriend से बात कर रही थी! ये सुनते ही मैंने उस लड़की ऐसी-तैसी मार दी;

मैं: Are you out of your damn mind! मैं यहाँ अपनी बेटी के इलाज़ के लिए तुम्हें फ़ोन किये जा रहा हूँ और तुम अपने boyfriend से बात करने में व्यस्त थी!

मेरे गुस्से को देख कर वो लड़की थरथरा गई थी और मुझे एकदम से परसों की appointment दे दी मगर अब मेरे हाथ में उसकी गर्दन थी तथा मैं अपने हाथ में आई उसकी गर्दन को अपनी पसंद के अनुसार मोड़ना चाहता था;

मैं: नहीं! मुझे कल की appointment चाहिए वरना....

मैंने उस लड़की को हड़काते हुए अपनी बात अधूरी छोड़ दी| मेरे हड़काने से वो लड़की डर गई और मुझे कल सुबह की सबसे पहली appointment दे दी|

मैंने फ़ोन रखा और अपना गुस्सा काबू करने लगा| चूँकि मैं कुछ देर पहले उस लड़की पर बरस रहा था तो मेरी आवाज ऊँची हो गई थी, जब मेरी ये गुस्से से भरी आवाज मेरी बेग़म ने सुनी तो उन्हें मेरी चिंता होने लगी| संगीता मुझसे मेरे गुस्से का कारण जानने के लिए बड़ी हिम्मत कर के कमरे में आई, दरअसल कल रात जो हमारे बीच बात हुई उससे संगीता थोड़ी घबराई हुई थी, फिर आज सुबह भी मैंने उसे माँ-पिताजी के सामने झाड़ दिया था इसलिए संगीता मुझसे थोड़ी डरी हुई थी| खैर, मैंने संगीता को सारी बात विस्तार से बताई तो वो मेरे गुस्से होने के कारण से सहमत दिखी;

संगीता: जानू, आपका गुस्सा होना जायज था लेकिन अपनी सेहत का भी ख्याल रखा करो|

संगीता मुझे प्यार से समझाते हुए बोली| मैंने हाँ में सर हिलाया और उसकी बात का मान रखा, अब चूँकि हमारी बात हो रही थी तो मैंने आज सुबह के अपने व्यवहार के लिए संगीता से माफ़ी माँगी;

मैं: सुबह जो मैंने तुम्हें डाँटा उसके लिए मुझे माफ़ करना| दरअसल मैं नहीं चाहता था की तुम उन पुरानी बातों को माँ-पिताजी के सामने दोहराओ! कुछ बातें माँ-पिताजी के सामान न आएं तो ही बेहतर है!

मैंने गोल-मोल बात करते हुए संगीता को समझाया| संगीता मेरी बातों का अर्थ समझ गई की मैं क्यों उसकी छबि माँ-पिताजी के सामने बरकार रखना चाहता हूँ|

मैं: फिर वैसे भी नेहा के बचपन में जो कुछ हुआ उसमें तुम्हारी कोई गलती नहीं थी, तब तुम विश्वासघात के दर्द से जूझ रही थी और तुम्हारी जगह मैं होता तो मैं भी यही करता|

मैंने संगीता का दिल रखने के लिए उसकी नेहा के बचपन में की गई लापरवाही को सही ठहराया| दरअसल कल रात से मेरा संगीता के प्रति व्यवहार थोड़ा रुखा हो गया था जिससे संगीता घबराई हुई थी, जबकि उसकी pregnancy के दिनों में उसे खुश रहना चाहिए था; बस यही सोचते हुए मैंने उसका दिल रखने को थोड़ा झूठ बोल दिया था| परन्तु मेरी पत्नी बहुत समझदार थी, वो मेरा बच्चों के प्रति प्यार जानती थी इसलिए वो तुरंत मेरी बात को काटते हुए बोली;

संगीता: नहीं! अगर आप मेरी जगह होते तो आप नेहा के साथ कभी कोई लापरवाही नहीं बरतते और सिर्फ नेहा ही नहीं उसके स्थान पर आप किसी भी बच्चे के साथ मेरे द्वारा किया गया रूखा बर्ताव नहीं करते! मैंने जो नेहा के साथ किया वो बहुत गलत था...बहुत-बहुत गलत!

ये कहते हुए संगीता बहुत भावुक हो गई थी| कहीं संगीता ग्लानि महसूस करते हुए रो न पड़े इसलिए मैंने बात को यहीं खत्म करना चाहा;

मैं: लेकिन अब तो ऐसा नहीं है न?! अब तो हम सब एक साथ हैं...

मैं आगे कुछ और कहता उससे पहले ही संगीता मेरी बात काटते हुए बोले;

संगीता: शायद!

संगीता का कहा ये शब्द सुन मैं हैरान हुआ, परन्तु उसकी आगे कही बात से मैं संगीता के दिल की उथल-पुथल को समझने लगा था;

संगीता: सच पूछो तो अब मेरे दिल में सिवाए आपके, किसी अन्य के लिए प्यार ही नहीं बचा...हमारे बच्चों के लिए भी नहीं! मुझे उन्हें प्यार करने की जर्रूरत ही क्या है, आप जो हो उन्हें प्यार करने को, उनकी अच्छी परवरिश करने को|

संगीता के भीतर अब बस एक प्रेमिका का प्यार बचा था, एक माँ का प्यार उसने अपने भीतर कहीं दबा दिया था| मैं संगीता को समझना चाहता था की वो अपनी ममता को यूँ न दबाये मगर तभी मेरे फ़ोन की घंटी बज गई, साइट पर कुछ जर्रूरी काम था जिसके लिए मुझे अभी निकलना था| मैं फटाफट तैयार हुआ और निकलते-निकलते संगीता को अपने सीने से लगा कर उसके सर को चूम कर निकला| आयुष के जन्मदिन के बाद से ये हम दोनों मियाँ-बीवी का पहला स्पर्श था, ये आलिंगन केवल संगीता को मायूसी की राह पर अग्रसर होने से रोकने के लिए था वरना मेरे कल रात के गुस्से के कारण वो पक्का मायूस हो जाती तथा बीमार हो जाती!

गाडी चलाते समय भी मेरे दिमाग में संगीता की कही बातें गूँज रहीं थीं, मैं जनता था की संगीता मुझे कितना चाहती है और मुझे पाने के लिए वो क्या कुछ कर सकती है| परन्तु मैं चाहता था की वो हमारे बच्चों को भी प्यार दे ताकि बच्चे मेरे कारण कहीं अपनी मम्मी के प्यार से वंचित न रह जाएँ| यही बात मुझे संगीता को समझानी थी, परन्तु सही समय आने पर क्योंकि अभी मेरा ध्यान बस नेहा पर था|

साइट पर काम सँभालने के बाद मैंने करुणा को फ़ोन किया ताकि उससे भी किसी बाल मनोवैज्ञानिक का नाम-पता हासिल कर सकूँ, मुझे अपने पास एक और विकल्प रखना अच्छा लगता था ताकि यदि एक डॉक्टर से मुझे संतुष्टि न हो तो मैं दूसरे डॉक्टर के पास जा सकूँ| मैंने करुणा को नेहा के बारे में सब बताया और साथ ही डॉक्टर सरिता द्वारा मुझे सुझाया डॉक्टर अंजलि का नाम बताया तो करूणा बोली;

करुणा: मिट्टू डॉक्टर अंजलि best डॉक्टर है, वो नेहा को देख रे तो आपको किसी और का पास जाने का need (जर्रूरत) नहीं|

ये सुन कर मुझे बहुत इत्मीनान हुआ की मैं सबसे best डॉक्टर को नेहा को दिखा रहा हूँ, तो अब तो जर्रूर मेरी बेटी भली-चंगी हो जाएगी!

करुणा: मैं आज शाम को Angel को ले कर आते और नेहा से बात करते|

करुणा भी अपनी कोशिश करते हुए नेहा से बात कर उसके डर को जानना चाहती थी परन्तु मैंने उसे रोकते हुए कहा;

मैं: नहीं, please नेहा से इस बारे में कुछ बात मत करना! मैं नहीं चाहता की उसे लगे की वो कोई mental patient है, मैं खुद उसे डॉक्टर के पास ये झूठ बोल कर ले जा रहा हूँ की हम carreer counselling के लिए जा रहे हैं| आप बस Angel को ले कर आओ, बच्चे Angel से मिल लेंगे तो हँस-खेल लेंगे!

करुणा को मेरी चिंता समझ आई और वो शाम को 5 बजे आने के लिए बोली|

शाम को मैं करुणा और Angel के आने से पहले ही घर पहुँच गया था| मेरे घर आते ही नेहा सीधा मेरी गोदी में आ गई, मैंने नेहा के माथे को छू कर उसका बुखार चेक किया तो पाया की नेहा पूरी तरह स्वस्थ है| भगवान् जी की कृपा थी की नेहा को स्कूल में भी बुखार नहीं चढ़ा था| मैंने दोनों बच्चों को बताया की आज उनसे मिलने करुणा और Angel आ रहे हैं, बच्चों ने Angel का नाम करुणा के मुँह से सुन रखा था इसलिए बच्चे आज Angel से मिलने को उत्सुक थे| कुछ देर बाद दरवाजे की घंटी बजी और दरवाजा संगीता ने खोला, उसकी पहली नजर Angel पर पड़ी और उसने झट से Angel को अपनी गोद में ले लिया;

संगीता: अरे आज तो मुझसे मिलने मेरी दोस्त आई है!

संगीता, Angel को गोद में लिए हुए ख़ुशी से चहकते हुए बोली| मैंने आगे बढ़ कर Angel को गोद में लेना चाहा तो वो फ़ट से मेरी गोद में आ गई, मैंने Angel के माथे को चूमा और उसे अपने बच्चों से मिलवाते हुए बोला;

मैं: ये है नेहा दीदी और ये है आयुष भैया|

मैंने Angel को पहले नेहा और फिर आयुष से मिलवाया|

मैं: और बच्चों ये है मेरी childhood friend Angel!

मैंने मुस्कुराते हुए कहा| मेरी बात सुन नेहा बहुत हैरान हुई, तब मैंने नेहा को childhood friend का मतलब समझाया| मतलब समझ कर आयुष और Angel खिलखिला कर हँसने लगे मगर नेहा के चेहरे पर हँसी नहीं आई| मैंने गौर किया तो नेहा के बर्ताव में मैंने कुछ अजीब पाया! आयुष की प्रतिक्रिया बड़ी सामान्य थी, वो किसी नए बच्चे से मिलकर उसी तरह खुश हो रहा था जैसे वो हमेशा ख़ुशी से चहकता रहता था| परन्तु मेरी गोद में Angel को देख और मुझे Angel के माथे को चूमते देख, नेहा की आँखों में मुझे आज जलन नज़र आई! नेहा अपने पापा जी को किसी दूसरे बच्चे के साथ बाँटना नहीं चाहती थी, उसके पापा जी सिर्फ उसके पापा जी हैं! नेहा का बाल मन ये देख कर जल रहा था की; 'भला उसके पापा जी की गोदी में, जिसपर केवल उसका या उसके भाई आयुष का अधिकार था वह जगह Angel को कैसे मिल गई? मेरी प्यारी-प्यारी पप्पियाँ जो केवल आयुष और नेहा के लिए होती थीं वो आज Angel को कैसे मिल गई?' नेहा का चेहरा एकदम से फीका पड़ गया था और मैं उसके छोटे से मन में मची हुई उथल-पुथल महसूस कर चूका था| मैंने फ़ौरन Angel को गोदी से उतारा और आयुष से बोला;

मैं: आयुष, बेटा आप तीनों अंदर जा कर खेलो|

आयुष को खेलना पसंद था इसलिए उसने अपनी दीदी का हाथ पकड़ कर अपने कमरे में खींचा तथा Angel को भी अपने साथ चलने को कहा| नेहा भी कुछ सोचते-सोचते आयुष के साथ चली गई, शुक्र है उसने अपना गुस्सा काबू कर लिया था वरना क्या पता आज वो मुझ पर बरस पड़ती!

बच्चे अंदर खेलने लगे तथा संगीता बच्चों के लिए मैगी बनाने लगी, इधर मैं, माँ और करुणा बैठक में बैठ कर बात करने लगे| माँ ने बातों ही बातों में आज करुणा से उसके अचानक दिल्ली आने का कारण पूछ लिया;

माँ: करुणा, बेटी तुझे तो केरला में अच्छी खासी सरकारी नौकरी मिल गई थी, फिर तू वापस दिल्ली क्यों आई?

करुणा: मम्मा, केरला में मैं जिस hospital में काम करता था वो बंध (बंद) हो गया ता (था) क्योंकि उस hospital में बहुत corruption (बेईमानी) होता ता| मैं कुछ दिन के लिए अपना मम्मा के पास रह रहा ता मगर वो मुझसे पैसा माँगता ता और वो पैसा waste करता ता| मैंने जब पैसा देने से मना करते तो मेरे को लड़ाई करते, उधर रह कर मैं "मानसिक उत्पीड़न" में ता!

करुणा को मानसिक उत्पीड़न शब्द मैंने ही सिखाया था, जब-जब वो मुझे अपने ex-boyfriend की कहानी सुनाती थी तो मैं उसे मज़ाक में कहता था की वो मुझे ये सब बार-बार बोल कर मानसिक उत्पीड़न दे रही है| बस वहीं से करुणा ने ये शब्द पकड़ लिया और जब भी वो ये शब्द मेरे सामने बोलती तो उसकी आँखों में शरारत होती थी, एक उल्हाना होता था की आप ने मुझे ये भारी-भरकम शब्द सिखाया है|

करुणा: मैं तंग आ कर वापस दिल्ली आया, उसी वक़्त मुझे एक hospital में एक temporary post मिला| मैं आपके पास आने वाला ता मगर मुझे लगा मिट...मानु मेरे से नाराज़ होगा इसलिए मैं नहीं आया!

करुणा के मुँह से मेरे लिए 'मिट्टू' शब्द निकलने वाला था मगर उसने बात सँभाली और मुझे नाम ले कर बुलाया| करुणा मुझे मेरे माँ-पिताजी के सामने नाम से ही बुलाती थी क्योंकि वो जानती थी की उसका मुझे मिट्टू कहना मेरे माँ-पिताजी को अजीब लगेगा| हाँ संगीता के सामने मुझे मिट्टू बुलाने की इजाजत मैंने करुणा को दे दी थी, क्योंकि मैं जानता था की संगीता को इससे कोई फर्क नहीं पड़ेगा|

करुणा: जिस दिन मेरा joining ता उसी दिन मानु को hospital में देख कर मैं डर गया! पहले सोचा आप से बात करते मगर आप पहले परेशान ता, मुझे लगा मैं अचानक से सामने आ रे तो आप गुस्सा होते इसलिए मैं तोडा (थोड़ा) दूर रहा| 1-2 बार मैं आपको नमस्ते बोला और अपने भी मेरा नमस्ते का जवाब दिया पर मैं डरता ता की आप मुझे डाँट रे तो, इसलिए मैं आपसे ज्यादा कुछ नहीं बोला!

करुणा की सारी बात सुन माँ बोलीं;

माँ: बेटी मैं नाराज़ होती तो तेरी नमस्ते का जवाब थोड़े ही देती? फिर मुझे नाराज़ होने की कोई जर्रूरत थी ही नहीं? मानु ने बताया था की तुझे केरला में सरकारी नौकरी मिल गई है और तू वहाँ ख़ुशी से है|

जब माँ ने वहाँ ख़ुशी से रहने की बात कही तो करुणा एकदम से बोल पड़ी;

करुणा: मम्मा आप वहाँ रह रे तो आप बोलते कितना गंदा लोग रहते इदर (इधर)! सब लोग एक दूसरे को देख कर ऐसे जलते, ऐसे चिढ़ते की कोई किसी का help नहीं करते! एक लड़की का life तो उदर (उधर) और भी खराब, सारा आदमी लोग ऐसे घूर कर देखते जैसे खा जायेगा! न कुछ अचचा (अच्छा) खाने को न पहनने को, इदर का खाना उदर मिलते ही नहीं! अगर मिल रे तो यहाँ का खाना जैसा स्वाद नहीं! मैं तो दिल्ली वापस आने को रोता ता!

करुणा की आधी बात सुन माँ को समझ आया की केरला में रहने वाले अधिकतर पुरषों की नज़र गन्दी है, माँ एक अकेली लड़की की व्यथा जानती थीं क्योंकि उन्होंने भी ऐसे ही जीवन काटा था| हाँ जब करुणा ने खाने-पीने की बात कही तो माँ और मैं हँस पड़े थे!

माँ: बेटा; अब तेरे वहाँ के (मलयाली) लोगों का तो मैं नहीं कह सकती मगर अच्छे-बुरे लोग हर शहर में होते हैं| हो सकता है जहाँ तू रहती थी वो शहर का गंदा इलाका हो, जहाँ लोगों की सोच गन्दी हो! खैर, अच्छा है तू वापस आ गई और तुझे यहाँ काम भी मिल गया| मुझे एक बात बता, मानु बता रहा था की तेरा अपनी बहन से झगड़ा हो गया था फिर तू वापस कैसे उसके साथ रहने लगी?

माँ ने जब करुणा और उसकी दीदी के झगड़े की बात कही तो मैं बीच में बोल पड़ा;

मैं: माँ, इन दोनों बहनों के झगड़े को मत गिनों! ये दोनों भले ही एक दूसरे को कितनी गालियाँ दे दें, लड़ाई कर लें मगर जहाँ इसकी (करुणा की) दीदी ने एक कॉल किया ये (करुणा) बेवकूफ सब भूल कर पिघल जाती है!

मेरी कही बात से करुणा के चेहरे पर शरारती मुस्कान आ गई और वो माँ के सवाल का जवाब देने लगी;

करुणा: मम्मा वो क्या है न मेरा कुंज्जु (मौसी) दीदी से बात किया और उसे समझाया की वो गलत है| मेरा दीदी सिर्फ मेरा कुंज्जु का सुनते इसलिए वो मुझे फ़ोन कर के sorry बोला|

करुणा ने बस आधी बात बताई तो मैंने बाकी की आधी बात पूरी कर दी;

मैं: उन्होंने (करुणा की दीदी ने) माफ़ी इसलिए माँगी क्योंकि उन्हें करुणा का काम था! करुणा वहाँ केरला में रह रही थी तो उसके लिए जमीन-जायदाद का कागजी काम करुणा से करवाना आसान था, बस इसी काम के लिए इसकी दीदी ने माफ़ी माँगी थी!

मैंने जब सच कहा तो करुणा मुस्कुराने लगी और वहीं माँ ने बात बदल दी, हम तीनों अब नेहा को ले कर बात करने लगे| करुणा ने माँ को बताया की डॉक्टर अंजलि बहुत अच्छी डॉक्टर हैं और वो नेहा के डर का उपयुक्त निवारण करेंगी| ये सुन कर माँ के दिल को भी तसल्ली मिली की नेहा का डर जल्द ही भाग जायेगा!

उधर बच्चों के कमरे में से शोर की आवाज आने लगी थी, संगीता ने बच्चों को मैगी और पीने के लिए चॉकलेट वाला दूध बना कर दिया था| मज़े से खाते हुए तीनों बच्चे बात करने में लगे थे, सबसे ज्यादा आवाज आयुष की आ रही थी क्योंकि वो उत्साह के मारे Angel के साथ खेलने में व्यस्त था| वहीं नेहा सबसे बड़ी होने के कारण आयुष को ज्यादा मस्ती नहीं करने दे रही थी, Angel की हँसी बीच-बीच में गूँज रही थी और उसी के साथ मेरे दोनों बच्चे भी हँस रहे थे|

दो घंटे बाद Angel और करुणा के वापस जाने का समय हुआ, Angel का वापस जाने का मन नहीं था इसलिए वो कुनमुना रही थी| अब मुझे ही Angel को खुश करना था इसलिए मैं बोला;

मैं: Angel, आपने हमारा घर देख लिया न तो जब आपका मन करे चले आना, नहीं तो मुझे फ़ोन करना मैं आपको लेने आ जाऊँगा|

मेरी बात सुन जहाँ Angel फिर से खुश हो गई थी वहीं नेहा का चेहरा फिर से फीका पड़ गया था| मैं उस पल खामोश रहा और पहले करुणा और Angel को विदा किया|

Angel और करुणा के जाने के बाद मैंने नेहा को अपने पास कमरे में बुलाया. कमरे में बस हम दोनों बाप-बेटी थे तथा ये ही सही समय था नेहा को प्यार से समझाने का|

मैं: नेहा, बेटा मेरे पास आओ|

मैंने नेहा को अपने पास बुलाया तो वो अपना मुँह फुलाये, सर झुकाये मेरे सामने खड़ी हो गई| नेहा जानबूझ कर अपने गाल फुलाये हुए थी ताकि मैं उसका गुस्सा समझ जाऊँ;

मैं: मेला बच्चा मुझसे नालाज है?

मैंने तुतलाते हुए नेहा से पुछा तो वो सर झुकाये हुए ही बोली;

नेहा: आप मुझसे प्यार नहीं करते!

ये नेहा का बचपना था, उसका प्यारा सा दिल आज दूसरीबार जलन महसूस कर रहा था| पहलीबार ये जलन नेहा को तब महसूस हुई थी जब मैं गाँव में था और वरुण को थोड़ा लाड-प्यार कर रहा था| नेहा का जवाब सुन मैंने अपने दोनों हाथ खोले और मुस्कुराते हुए बोला;

मैं: Awwww मेरा बच्चा!

बस इतना सुनना था की नेहा अपना गुस्सा छोड़ कर मेरे सीने से लग गई|

मैं: मेरा बच्चा, ऐसा नहीं सोचते! भला ऐसा कभी हो सकता है की मैं अपने बच्चे से प्यार न करूँ?!

मैनें नेहा के सर को चूमते हुए कहा| नेहा बहुत भावुक हो चुकी थी और सिसकने लगी थी तथा सिसकते-सिसकते बोली;

नेहा: फ...फिर...अ...आपने...Angel को...गोदी क्यों...लिया? क्यों उसे पप्पी की?

नेहा अब भी मुँह फुला कर बोल रही थी और उसके इस तरह बोलने से मैं खुद को मुस्कुराने से नहीं रोक पाया| मुझे मुस्कुराते हुआ देख नेहा बहुत हैरान थी और उसकी हैरानी वाजिब भी थी| कहाँ वो अपनी जलन मेरे सामने प्रस्तुत कर रही थी और कहाँ मैं उसकी जलन सुन कर मुस्कुरा रहा था| मैंने नेहा को अपने सामने बिठाया और उसे प्यार से समझाते हुए बोला;

मैं: बेटा, जब आप गाँव में थे तो मैं आपको याद कर के बहुत रोया करता था| फिर एक दिन मेरी मुलाक़ात Angel से हुई, तब वो बहुत छोटी थी और आपकी करुणा आंटी की गोद में थी| Angel को पहलीबार देख मुझे आप याद आये और मैंने Angel में आपको ढूँढना शुरू कर दिया| जब मैंने उस दिन पहलीबार गोद में लिया तो लगा जैसे मैं आपको गोद ले रहा हूँ और फिर वो प्यार जो मैं आपको देना चाहता था वो Angel को मिलने लगा| मेरे लिए Angel के रूप में आप ही थे और यही सोच कर मैं आपसे हुई दूरी को बर्दाश्त कर पा रहा था| Angel और मेरा रिश्ता बस दोस्ती वाला है, बेटी वाला रिश्ता तो सिर्फ आपसे है|

मेरी बातें सु नेहा को मेरे जज़्बात समझ आये और वो बोली;

नेहा: I'm sorry पापा जी!

इतना कहते हुए नेहा उठी और मेरे सीने से लिपट गई तथा रोने लगी|

मैंने नेहा को अपनी बाहों में जकड़ लिया और उसके सर को चूमते हुए बोला;

मैं: Its okay मेरा बच्चा! अब रोना नहीं है, पापा की बहादुर बेटी हो न?!

मैंने नेहा को रोने नहीं दिया और उसके आँसूँ पोछ उसे बाहर बैठक में ले आया|

नेहा मेरी गोदी से उतरी और टी.वी. पर cartoon लगा कर मेरी बगल में बैठ गई, अब मेरी गोद खाली देख आयुष मेरी गोद में बैठ गया| हम बाप-बेटी-बेटा तीनों cartoon देखने लगे, इतने में पिताजी भी साइट से लौट आये| अपने दादा जी को देख आयुष खुद उनके लिए पानी का गिलास ले कर आया और बदले में पिताजी ने आयुष को एक चॉकलेट दी| ये दृश्य देख माँ बोलीं;

माँ: अरे वाह! दादा-पोता आजकल चोरी-छुपे काम करने लगे हैं!

माँ की बात सुन हम सभी हँस पड़े| आयुष अपनी चॉकलेट ले कर अपनी दादी जी के पास पहुँचा तो माँ ने आयुष के सर पर हाथ फेरते हुए उसे खाने को कहा|

संगीता: देख लो माँ, आपका पोता कितना 'चंट' है! वो जानता है की आप चॉकलेट नहीं खाते इसीलिए आपको चॉकलेट पूछने आया था|

संगीता की बात सुन हम सब फिर से हँसने लगे, वहीं आयुष अपनी मम्मी को जीभ चिढ़ा कर नेहा के साथ अपनी चॉक्लेट बाँट कर खाने लगा|

अब चूँकि सभी लोग मौजूद थे तो मैंने कल नेहा को डॉक्टर अंजलि के पास ले जाने की बात शुरू की;

मैं: नेहा बेटा, कल सुबह है न आपको है न मेरे और अपनी मम्मी के साथ एक councilor के पास जाना है| ये councilor आपको बताएँगी की आगे चल कर ग्यारहवीं class में आपको commerce लेनी चाहिए या science!

मैंने बिलकुल बच्चों की तरह अपनी बात कही, जिसे सुन नेहा मुस्कुराने लगी| इस समय कोई वयस्क अगर मेरी ये बात सुनता तो बहुत हँसता क्योंकि नेहा को अभी ग्यारहवीं में पहुँचने में 8 साल लगने वाले थे और मैं अभी से उसकी चिंता कर रहा था मगर मेरी बेटी मुझ पर विश्वास करती थी इसलिए वो मेरी बातों में आ गई तथा कल स्कूल न जाने के लिए तैयार हो गई| माँ-पिताजी और संगीता कुछ नहीं बोले, वो बस मेरे बच्चों के साथ बच्चे बन जाने से मुस्कुरा रहे थे| इधर कल स्कूल न जाने और घूमने की बात सुन आयुष उत्साह में बहने लगा और कल की छुट्टी करने के लिए कहने लगा;

आयुष: फिर तो मैं भी school नहीं जाऊँगा|

नेहा: चुप कर!

नेहा बड़ी बहन होने की धौंस दिखाते हुए आयुष को चुप कराते हुए बोली|

नेहा: पापा जी, इसे तो बस स्कूल न जाने का बहाना चाहिए!

नेहा ने जब आयुष की शिकायत की तो आयुष नेहा को जीभ चिढ़ा कर अंदर भाग गया और नेहा उसे सबक सिखाने उसके पीछे दौड़ी! रात के खाना खाने तक दोनों बच्चों ने धमा-चौकड़ी मचाये रखी!

[color=rgb(124,]जारी रहेगा भाग 3 में...[/color]
 

[color=rgb(97,]अठाईसवाँ अध्याय: पिता-पुत्री प्रेम[/color]
[color=rgb(251,]भाग -3[/color]


[color=rgb(26,]अब तक आपने पढ़ा:[/color]

इधर कल स्कूल न जाने और घूमने की बात सुन आयुष उत्साह में बहने लगा और कल की छुट्टी करने के लिए कहने लगा;

आयुष: फिर तो मैं भी school नहीं जाऊँगा|

नेहा: चुप कर!

नेहा बड़ी बहन होने की धौंस दिखाते हुए आयुष को चुप कराते हुए बोली|

नेहा: पापा जी, इसे तो बस स्कूल न जाने का बहाना चाहिए!

नेहा ने जब आयुष की शिकायत की तो आयुष नेहा को जीभ चिढ़ा कर अंदर भाग गया और नेहा उसे सबक सिखाने उसके पीछे दौड़ी! रात के खाना खाने तक दोनों बच्चों ने धमा-चौकड़ी मचाये रखी!

[color=rgb(235,]अब आगे:[/color]

रात में खाना खा कर आयुष मेरी गोदी में चढ़ गया तथा मेरे पास सोने की रट लगाने लगा, नेहा तो मेरे पास ही सोने वाली थी तो जब आयुष ने भी मेरे पास सोने की रट लगाई तो मैं दोनों बच्चों को ले कर अपने कमरे में आ गया| मेरे लिए एक तरह से अच्छा ही था की दोनों बच्चे मेरे पास सो रहे थे क्योंकि दोनों बच्चों के मेरे पास होने से मेरा मन संगीता के आस-पास भी नहीं भटकता| आयुष के जन्मदिन वाली रात संगीता ने जो रुखा व्यवहार मेरे साथ किया था उस से मेरे दिल को बहुत चोट पहुँची थी| उस रात संगीता द्वारा झिड़के जाने के बाद मैंने इसलिए कोई प्रतिक्रिया नहीं दी थी क्योंकि मेरा दिल संगीता को सही ठहरा रहा था तथा मुझे ये आभास कराने की कोशिश करवा रहा था की मैंने पूरे दिन में संगीता के दिल को को कब चोट पहुँचाई?! जहाँ एक तरफ मेरा दिल मुझे पूरे दिन के घटनाक्रम याद दिला रहा था वहीं मेरा मन संगीता के झिड़कने के कारण टूट सा गया था| तभी मैं ख़ामोशी से संगीता को "sorry" कह वापस बाहर आ गया था, संगीता से माफ़ी मेरे दिल ने इसलिए माँगी थी क्योंकि मुझे ऐसी ग्लानि हो रही थी मानो मैंने बिना संगीता के सहमति के जबरदस्ती उसे छुआ हो और ये ग्लानि मेरे मन पर बोझ बन चुकी थी! सब कुछ भूल कर अपने मन पर लिए इस बोझ को मैं बाहर आया, संगीता ने मुझे रोकने के लिए आवाज जर्रूर दी थी मगर मेरा मन इस वक़्त भारी हो चला था| अगर मैं उस कमरे में रुकता तो या तो संगीता से लड़ पड़ता या फिर रो पड़ता और दोनों ही सूरतों में आयुष के जन्मदिन वाले दिन घर में कलेश हो जाता! फिर एक डर ये भी था की माँ-पिताजी जब पूछेंगे की हम दोनों मियाँ-बीवी क्यों लड़ रहे थे तो न मैं कुछ जवाब दे पाउँगा और न ही संगीता, इसलिए बेहतरी इसी में थी की हम दोनों कुछ देर के लिए अलग रहें|

बाहर बैठक में आने के बाद जब मैंने अनिल को देखा तो मुझे घर में सुख शान्ति बनाये रखने के लिए हँसी का मुखौटा ओढ़ना पड़ा और मैं उससे वैसे ही बात करने लगा जैसे मैं आमतौर पर करता था| अनिल से हँसी-मज़ाक करते-करते मैंने पूरे दिन के घटनाक्रम को याद करना शुरू कर दिया| इस पूरे दिन में मैंने ऐसी कोई भी हरकत नहीं की थी जिससे की संगीता के दिल को चोट पहुँचे, मैं बच्चों के साथ बच्चा बना हुआ था परन्तु संगीता के साथ मैं उसका प्रेमी, उसका पति होने का फ़र्ज़ भी बकायदा निभा रहा था| फिर पूरा दिन संगीता खुश भी बहुत थी और एक पल के लिए भी वो मायूस नहीं हुई थी| जब हम waterpark के सामने थे और बच्चे अंदर जाने की ज़िद्द कर रहे थे तब भी मैंने संगीता के कारण waterpark में जाने से मना कर दिया था क्योंकि मैं जानता था की संगीता को swimwear पहनने में लाज आएगी| घर आ कर भी वो ख़ुशी-ख़ुशी सभी से बात कर रही थी तथा मेहमानो के साथ बात कर रही थी; 'तो फिर आखिर मैंने ऐसा किया क्या की संगीता मुझसे एकदम से खफा हो गई?' इस एक सवाल ने मेरे दिल, दिमाग और मन में गूँजना शुरू कर दिया| जब मुझे अपनी कोई गलती नहीं मिली तो बात साफ़ थी की कारण कोई और है और वो कारण क्या है ये मुझे संगीता के मुँह से सुनना था परन्तु उससे पहले मुझे संगीता को उसके मेरे साथ किये इस रूखे व्यवहार की थोड़ी सी सजा देनी थी|

5-7 मिनट में संगीता हमारे कमरे से बहार आ गई थी और उसके चेहरे पर मुझे ग्लानि साफ़ नज़र आ रही थी| संगीता के चेहरे पर ग्लानि देख मैं समझ गया की सारी गलती संगीता की है और मैं निर्दोष हूँ| अब जब ये बात साफ हुई की मैं निर्दोष हूँ तो दिमाग ने संगीता के मेरे साथ किये इस दुर्व्यवहार को 'बेइज्जती' का नाम दे दिया जिससे मेरे दिमाग में गुस्सा भरने लगा मगर संगीता के pregnant होने के कारण मैं उस पर ये गुस्सा निकालना नहीं चाहता था| अपना गुस्सा संगीता पर निकालने पर मुझे शांति नहीं मिलती बल्कि मुझे ग्लानि होती की मैंने अपनी pregnant पत्नी पर बेकार में इतना गुस्सा निकाला| उधर संगीता का मन मुझसे अकेले में बात करना चाहता था, मुझे सफाई देना चाहता था मुझे उसके (संगीता के) गुस्से का कारण बताना चाहता था| इधर मैं ये सब जानते-बूझते हुए अपने आप को शांत करने, अपने आप पर काबू पाने में लगा था की कहीं मैं संगीता की बात सुन उस पर बरस न पडूँ|

घर में शान्ति बनाये रखने का एक ही तरीका था और वो था अपने गुस्से पर काबू पाना, इसलिए मैंने संगीता को जानबूझ कर करुणा के साथ बच्चों वाले कमरे में सोने को कहा| इस उम्मीद के साथ की कल संगीता मुझसे किये अपने रूखे व्यवहार का कारण बताएगी, मैं अपने गुस्से पर काबू कर सो गया| अगली सुबह मेरा गुस्सा शांत हो चूका था जिसका सारा श्रेय जाता है मेरी बेटी नेहा को क्योंकि उसी के प्यार के कारण मैं रात में चैन से सो पाया और सुबह तक मेरा गुस्सा खत्म हो गया था| अब मेरे भीतर एक उत्सुकता थी की आखिर संगीता कल रात के लिए मुझे क्या सफाई देने वाली है, घर में सब की मौजूदगी थी इसलिए इस वक़्त तो वो कुछ कहती नहीं इसलिए मैंने थोड़ा सब्र करना ठीक समझा| जब हम करुणा को उसके घर छोड़ कर निकले तब गाडी में हम दोनों मियाँ-बीवी अकेले थे और अपनी सफाई देने के लिए संगीता के पास सबसे अच्छा अवसर था मगर उसने तो मुझसे इस विषय में कोई बात ही नहीं की?! अलबत्ता वो तो Angel की बात को ले कर बैठ गई, मैंने भी सोचा की ठीक है थोड़ा और सब्र सही|

सब्र करते-करते रात हो गई थी और उस बीच संगीता ने मुझे लुभाने की बहुत कोशिश की परन्तु मैं ज़रा भी न पिघला| जिस तरह संगीता ने मुझे कल झिड़का था उसके बाद तो मैंने ये निर्णय कर लिया था की चाहे जो हो मैं बिना संगीता के गुस्सा होने का कारण जाने उसे नहीं छूने वाला| हाँ उससे पहले जैसे बात करना मैं जारी रख रहा था वरना फिर माँ-पिताजी, बच्चों तथा अनिल को शक होने लगता की हम दोनों पति-पत्नी के बीच कोई लड़ाई-झगड़ा चल रहा है|

अनिल के जाने तक संगीता के पास बहुत से मौके थे मुझे अपनी सफाई देने के मगर वो जैसे इस मुद्दे पर कुछ कहना ही नहीं चाहती थी तथा अपने मन के विचार मुझसे छुपाने में लगी थी| मेरे उससे (संगीता से) प्यार से पेश आने को संगीता ने गलत समझा था, उसे लगता था की मैं उससे नाराज़ नहीं हूँ जबकि मैं भीतर से उसकी सफाई सुनने को, उसका मेरे साथ किये इस रूखे व्यवहार का कारण जानने को मैं मरा जा रहा था|

अंततः मेरे सब्र की इन्तहा हो गई और मैंने संगीता से किसी भी सफाई सुनने की उपेक्षा करनी छोड़ दी, संगीता के दिनभर के व्यवहार से ये साफ़ था की उसे मुझे कोई सफाई नहीं देनी वो बस चाहती है की मैं इस बात को भूल जाऊँ तथा उससे पुनः प्यार करने लगूँ, जो की मेरे लिए असम्भव था| जब तक संगीता खुद मुझसे माफ़ी नहीं माँगती, मुझे अपनी सफाई नहीं देती, मुझे अपने कल रात के गुस्से का कारण नहीं बताती, तब तक मैं संगीता को स्पर्श नहीं करने वाला था!

खाना खा कर मैं सोने की कोशिश कर रहा था जब संगीता कमरे में आई और मुझे लुभाने के लिए अपने जिस्म का सहारा लेने लगी| संगीता मेरी कमजोरी अच्छी तरह जानती थी, उसके जिस्म की गर्मी ही मेरा दिल पिघला सकती थी लेकिन जो आदमी बेइज्जती की आग में पहले से ही जल रहा हो उसे संगीता क्या पिघलाती?! आखिर जब संगीता मेरे लबों को चूमने को आगे बढ़ी तो मैंने ही उसे आगे बढ़ कर रोका और एक मूक इशारे से न कहा| मेरे न कहने से संगीता को मेरे भीतर मौजूद गुस्से का आभास हुआ और उसने रोते हुए "sorry" की रट लगाई मगर उसने 'जानबूझ' कर मुझे अपने कल किये दुर्व्यवहार का कोई कारण नहीं बताया| मन में जो गुस्सा भरा था उस वजह से मैंने संगीता को कल रात की अपने दिल की स्थिति बताई और बेशर्म बनते हुए खुद ही संगीता से उसके गुस्सा होने का कारण पुछा मगर संगीता ने ये कह कर बात टाल दी की उसे नहीं पता की उसे कल रात क्या हो गया था| अब अगर कोई इंसान खुद से कारण न बताये तो उसके पीछे नहीं पड़ना चाहिए, फिर वैसे ही संगीता pregnant थी इसलिए मैं उसे और मानसिक कष्ट नहीं देना चाहता था| मैंने संगीता के आँसूँ पोछे और चुपचाप दूसरी ओर करवट ले कर लेट गया| संगीता ने बहुत कोशिश की कि में कुछ बोलूँ, या अपना गुस्सा उस पर निकाल कर अपना मन शांत कर लूँ मगर मैंने चुप रहने में ही भलाई समझी|

हम पति-पत्नी के बीच अब शारीरिक दूरी आ गई थी, इसका मतलब ये नहीं था की मैं संगीता से नफरत करने लगा था या मैं उससे अब प्यार नहीं करता था| हमारे बीच प्यार अब भी था परन्तु वो जिस्मानी प्यार अब नहीं रह गया था, उसके अलावा सब कुछ पहले जैसा ही था.........'कम से कम मेरे लिए तो सब कुछ पहले जैसा ही था!'

डॉक्टर अंजलि से appointment वाले दिन की सुबह मैंने आयुष को स्कूल जाने के लिए जगाया तो नेहा भी जाग गई, चूँकि नेहा ने स्कूल नहीं जाना था इसलिए मैंने उसे थोड़ी देर और आराम करने को कहा| परन्तु नेहा मुझे सुबह की good morning वाली पप्पी देते हुए बोली;

नेहा: पापा जी, मेरे exams कल से शुरू हो रहे हैं तो मुझे उनकी तैयारी करनी है|

नेहा की पढ़ाई के प्रति लगन देख मुझे बहुत गर्व हुआ|

मैं: कल कौन सा exam है बेटा?

मैंने पुछा तो मुस्कुराते हुए बोली;

नेहा: Drawing and GK!

मैं: ठीक है बेटा, आप तैयार हो कर पढ़ाई करो और कुछ मदद चाहिए हो तो बताना| Drawing तो मेरी खराब है मगर general knowledge में आपकी मदद कर दूँगा|

मेरी बात सुन नेहा मुस्कुराई और तैयार होने अपने कमरे में चली गई| इधर मैंने आयुष को जगाया तो वो हर बार की तरह कुनमुनाने लगा, मैंने उसके गालों पर ढेर सारी पप्पियाँ की तब जा कर आयुष मुस्कुराते हुए जगा और मुझे good morning वाली पप्पी दे कर बाथरूम चला गया|

आयुष को तैयार कर मैं उसे उसकी school van में बिठा कर आया, फिर हम सबने नाश्ता किया| पिताजी साइट पर जाने के लिए तैयार होने लगे और मैंने संगीता को डॉक्टर के जाने के लिए तैयार होने को कहा| नेहा के लिए मैंने अपने पसंद के कपड़े निकाले और नेहा को तैयार होने को कहा| Frock पहने मेरी गुड़िया आज बहुत ज्यादा प्यारी लग रही थी, मैंने नेहा के सर को चूमा और उसे पढता हुआ छोड़ मैं तैयार होने अपने कमरे में आ गया| संगीता साडी पहन रही थी जब उसने बात शुरू करते हुए पुछा;

संगीता: जानू, डॉक्टर हम से क्या-क्या पूछेगी और मुझे उन्हीं क्या-क्या नहीं बताना है?

संगीता ने ये सवाल इसलिए पुछा था की कहीं कल की तरह वो आज भी कहीं जर्रूरत से ज्यादा न बोल दे|

मैं: पिताजी कहते हैं की वकील और डॉक्टर से कभी कोई बात नहीं छुपानी चाहिए इसलिए हमें डॉक्टर अंजलि से कुछ नहीं छुपाना, उन्हें अपने तथा नेहा के बचपन के बारे में सब कुछ बताना है| हमारी दी हुई सारी जानकारी से ही डॉक्टर अंजलि नेहा के डर का कारण जान पाएँगी और हमें सही रास्ता दिखा पाएँगी|

संगीता ने मेरी बात सुन हाँ में अपनी गर्दन हिलाई और जल्दी से तैयार हो गई|

हम मियाँ, बीवी और बेटी, डॉक्टर अंजलि के clinic के लिए घर से निकले| नेहा ने अपनी एक किताब गाडी में पढ़ने के लिए ले ली थी ताकि वो अपना समय न बर्बाद करते हुए गाडी में ही अपनी परीक्षा की तैयारी कर सके| ये आदत नेहा को अपनी स्कूल van में जाते हुए दूसरे बच्चों को देख कर लगी थी| गाडी park कर हम तीनों ने डॉक्टर अंजलि के clinic में प्रवेश किया, गौर करने वाली बात ये थी की मेरी होशियार बेटी ने बाहर लगा हुआ डॉक्टर अंजलि के clinic का board पढ़ लिया था!

चूँकि हमारी सबसे पहली appointment थी इसलिए हम तीनों सीधा डॉक्टर अंजलि से मिले, उन्होंने नेहा को बाहर बैठने को कहा ताकि वो हमसे पहले बात कर सकें| हमारी बातें बहुत लम्बी होने वाली थी इसलिए मैंने नेहा को अपना मोबाइल दे दिया ताकि वो खाली बैठी ऊब न जाए और मोबाइल पर game खेल कर अपना समय व्यतीत कर सके| मैंने बातों का आगाज़ करते हुए डॉक्टर अंजलि को सारी बात बताई, संगीता और मेरे रिश्ते की शुरुआत से ले कर नेहा को अपनी बेटी बनाने तक| मैंने उन्हें हाल ही के दिनों में जो नेहा ने मुझे अपने डरावने सपनों के बारे में बताया था, वो बात भी मैंने डॉक्टर अंजलि को विस्तार से बता दी| आधा घंटे तक हमसे बात करते हुए डॉक्टर अंजलि ने अपने notepad पर कुछ points लिखे, जिसके बारे में हमें कुछ नहीं पता था| हमारी बात खत्म हुई तो डॉक्टर अंजलि ने हमें बाहर बैठने को कहा तथा नेहा को अपने chamber में अकेले बिठा कर उससे बातें करने लगीं| नेहा से भी डॉक्टर अंजलि ने करीब-करीब आधे घंटे बात की और इस दौरान मैं बहुत बेचैन हो गया था! मुझे नहीं पता था की डॉक्टर अंजलि नेहा से क्या पूछ रही होंगी इसलिए मन अत्यधिक व्याकुल था! 'कहीं नेहा रो तो नहीं रही होगी?' ये ख्याल आते ही मैं अंदर chamber में जाने को खड़ा हुआ ही था की नेहा मुस्कुराते हुए डॉक्टर अंजलि के chamber से निकली, नेहा के पीछे ही डॉक्टर अंजलि थीं तथा उन्होंने हम दोनों पति-पत्नी को chamber में फिर से आने को कहा| में नेहा को पुनः अपना मोबाइल game खेलने के लिए दे दिया और हम दोनों (मैं और संगीता) वापस अंदर कुर्सी पर बैठ गए|


[color=rgb(255,]संगीता की लेखनी:[/color]

डॉक्टर अंजलि के चैम्बर में बैठ कर आज जो मुझे अनुभव हुआ उसकी मैंने कभी कल्पना भी नहीं की थी| मुझे आजतक यही लगता था की माँ-बाप का काम होता है बच्चे पैदा करना और अपनी क्षमता के अनुसार उन्हें अच्छी परवरिश देना परन्तु मुझे आज ये बात समझ आई थी की केवल अच्छी परवरिश देने से ही माँ-बाप का काम खत्म नहीं हो जाता, हमें बच्चों को एक अच्छा इंसान बनाने की भी जिम्मेदारी उठानी होती है तथा बच्चे को इस दुनिया के साथ कदम से कदम मिला कर चलने के लायक भी हमें ही बनाना होता है|

खैर, 'डॉक्टर साहिबा' ने नेहा से बात कर कुछ अहम् बिंदु ढूँढ निकाले थे जिन्हें उन्होंने अपने नोटपैड में लिख लिया था;

1. डॉक्टर साहिबा का मानना था की नेहा हमारी (मेरी और इनकी) शादी से खुश नहीं होगी,

2. हम दोनों (मैं और ये) अपने रोमांस में चूर हो कर अपने बच्चों पर अधिक ध्यान नहीं देते, तथा

3. नेहा और आयुष को प्यार करने में घर में पक्षपात होता होगा|

ये बिंदु तब हमें नहीं पता थे, लेकिन डॉक्टर अंजलि के सवाल इन्हीं बिंदुओं से जुड़े थे| आगे जो सवाल-जवाब हुए उससे डॉक्टर अंजलि को उनके सभी बिंदुओं का जवाब मिल गया|

डॉक्टर अंजलि: आपसे और नेहा से बात कर जो सबसे मुख्य बात सामने आई वो ये की नेहा आपसे बहुत प्यार करती है|

डॉक्टर अंजलि ने इनसे मुखातिब होते हुए कहा|

डॉक्टर अंजलि: लड़कियों का हमेशा ही अपने पापा से सबसे ज्यादा लाड-प्यार मिलता है मगर नेहा के केस में ये लाड-प्यार से कहीं ज्यादा अधिक है|

डॉक्टर अंजलि, नेहा के नाम पर बहुत अधिक जोर दे कर अपनी बात कह रहीं थीं जिससे मुझे लगने लगा था की उन्हें लगता है की ये आयुष को कम प्यार करते हैं! बस इसी ख्याल के मन में आते है मैंने अपने अतिआत्मविश्वास में कहा;

मैं: लेकिन आयुष भी इनसे नेहा की तरह ही प्यार करता है और सिर्फ आयुष ही क्या, इनका जादू तो हर बच्चे के सर पर चढ़ कर बोलता है|

मेरे अतिआत्मविश्वास में कही ये बात सुन डॉक्टर अंजलि और ये मुझे हैरानी से देखने लगे| कहाँ तो यहाँ हमारी बेटी की बात हो रही थी और कहाँ मैं सब बच्चों को अपनी बातों में ले आई! मुझे मेरी बेवकूफी का बोध हुआ तो मैं एकदम से चुप हो गई, तब इन्होने जैसे-तैसे बात सँभाली और बोले;

ये: What she meant is, that I've a good understanding with kids. बच्चों के साथ मैं पूरी तरह बच्चा बन जाता हूँ इसलिए बच्चे मेरे पास खुश रहते हैं|

इन्होने मुस्कुराते हुए मेरी बेवकूफी भरी बात को ढक दिया|

डॉक्टर अंजलि: ओह्ह...ok!

डॉक्टर अंजलि ने जबरदस्ती मुस्कुराते हुए कहा| उनके कहे ये दो शब्द मुझे मेरी मूर्खता का एहसास दिलाने के लिए और मुझे शर्मिंदा करने के लिए काफी थे|

डॉक्टर अंजलि: तो आप दोनों सबसे ज्यादा किसे प्यार करते हैं, नेहा को या आयुष को?

डॉक्टर अंजलि ने ये सवाल हम दोनों से पुछा था और हमें एक साथ जवाब देना चाहिए था मगर मैं अपनी बेवकूफी के कारन पहले से इतनी शर्मिंदा थी की सबसे पहले मैं ही बोल पड़ी;

मैं: दोनों बच्चों को!

मेरे दिए गए जवाब में न कोई जज्बात थे और न ही वो डॉक्टर अंजलि के लिए संतोषजनक था इसलिए इन्होने फिर मेरी बात सँभाली;

ये: What she meant is, हमने आज तक दोनों बच्चों को कभी ये महसूस नहीं होने दिया की हम उन्हें प्यार करने में कोई पक्षपात कर रहे हैं|

इनका जवाब सुन डॉक्टर अंजलि का ध्यान अब इन पर केंद्रित हो गया था जिसका मतलब है की उन्हें ये सुनना था की ये किसे ज्यादा प्यार करते हैं, आयुष को या नेहा को?

ये: भीतर से मैं नेहा से अधिक प्यार करता हूँ क्योंकि मेरी जिंदगी में बाप बनने का एहसास मुझे नेहा ने ही दिलाया था| फिर भी मैं पूरा ध्यान रखता हूँ की मैं आयुष के साथ कोई पक्षपात न करूँ इसलिए रात में भले ही नेहा मेरे साथ सोती है मगर दिन में मैं और आयुष एक साथ कंप्यूटर पर गेम खेलते हैं| हाल-फिलहाल में मैं अपनी पूरी कोशिश करता हूँ की मैं दोनों बच्चों से बराबर ही प्यार करूँ किसी को कम किसी को ज्यादा नहीं!

इनकी बात सुन डॉक्टर अंजलि ने फिर अपने नोटपैड में कुछ लिखा| अब डॉक्टर अंजलि मेरी तरफ देखने लगीं तथा मुझसे पूछने लगीं;

डॉक्टर अंजलि: और आप किससे ज्यादा प्यार करती हैं संगीता जी?

डॉक्टर अंजलि का सवाल सुन मैं तो सीधा कहने वाले हुई थी की मैं इनसे बहुत प्यार करती हूँ मगर ये मेरा पागलपन दिखाता! अपने पति को झूठा न बनाऊँ इसके लिए मैंने झूठ बोलते हुए कहा;

मैं: जी...मैं भी दोनों बच्चों से बराबर प्यार करती हूँ|

मेरी आवाज में जरा भी आत्मविश्वास नहीं था जिससे डॉक्टर अंजलि समझ गईं की मैं झूठ ही बोल रही हूँ| उन्हें मेरे दिल में बसा हुआ इनके लिए प्यार महसूस हो गया था इसलिए मुझसे झूठ सुनने की बजाए डॉक्टर अंजलि ने अपना सारा ध्यान इन पर केंद्रित कर दिया तथा इनसे नेहा के बारे में ऐसे सवाल-जवाब करने लगीं मानो यहाँ किसी नौकरी के लिए इंटरव्यू लिया जा रहा हो;

डॉक्टर अंजलि: तो मानु जी, ये बताइये की नेहा का फेवरेट सब्जेक्ट क्या है?

ये: Mathematics!

इन्होने फ़ट से जवाब दिया|

डॉक्टर अंजलि: नेहा की फेवरेट टीचर?

ये: माथुर मैडम और वो हिस्ट्री पढ़ाती हैं!

डॉक्टर अंजलि: नेहा को क्या खाने में अच्छा लगता है?

ये: नेहा को सबसे ज्यादा अंकल चीप्स खाना पसंद है, मीठे में नेहा को रसमलाई खाना पसंद है और नेहा का all time favorite फ़ूड मेरी ही तरह राजमा चावल है!

इन्होने पूरे आत्मविश्वास से और मुस्कुराते हुए जवाब दिया| इनके जवाब देने के ढंग से मैं और डॉक्टर अंजलि बहुत प्रभावित थे, ये सवाल-जवाब देख कर यही लगता था की इन्हें नेहा के बारे में सब कुछ पता है| जबकि मेरे पास तो डॉक्टर अंजलि के अभी तक पूछे किसी भी सवाल का जवाब नहीं था| लेकिन फिर डॉक्टर अंजलि ने ऐसा सवाल पुछा की ये एकदम से मौन हो गए;

डॉक्टर अंजलि: और नेहा की बेस्टफ्रेंड?

ये: .............

इनके पास डॉक्टर अंजलि के पूछे इस सवाल का कोई जवाब नहीं था| ये सख्ते में थे और इनके दिल के भीतर का खालीपन इनके चेहरे पर दिखने लगा था| उस समय मुझे एहसास हुआ की हमने कभी इस बात पर ध्यान ही नहीं दिया की नेहा का यहाँ कोई दोस्त ही नहीं है?! नेहा के छुटपन से मैंने उस पर जो रोक लगा रखी थी उसके चलते नेहा ने कभी किसी से गहरी दोस्ती की ही नहीं| उसके जो भी दोस्त थे वो बस थोड़ी देर साथ खेलने के लिए बने थे| जब गाँव में नेहा स्कूल में थी तब उसकी एक सहपाठी दोस्त थी मगर वो भी ज्यादा देर तक स्कूल में नहीं टिकी और उसके माँ-बाप ने उसका स्कूल छुड़वा दिया| उसके बाद से नेहा का मन आयुष के साथ लग गया, स्कूल से आ कर नेहा अपने छोटे भाई के साथ ही खेलती रहती| दिल्ली आने के बाद से नेहा हमेशा अपनी किताबों में घुसी रहती, गली-मोहल्ले के बच्चों से नेहा ने कभी दोस्ती की ही नहीं| हाँ कभी कभार वो आयुष के साथ खेलने जाती थी मगर सब बच्चे क्या खेलते थे ये मुझे नहीं पता था| सारा दिन नेहा घर में ख़ुशी से चहकती रहती थी और उसे यूँ खुश देख कर हमें यही लगता था की नेहा बहुत खुश है, किसने सोचा था की नेहा इस कदर अकेली है?!

इन्हें यूँ खामोश देख डॉक्टर अंजलि बोलीं;

डॉक्टर अंजलि: नेहा भी आप ही की तरह चुप थी| क्या आपने कभी नहीं सोचा की...

डॉक्टर अंजलि आगे कुछ कहतीं उससे पहले ही ये उनकी बात काटते हुए बोले;

ये: जी नहीं! लेकिन क्या नेहा के बुरे सपने आने का कारन उसके दोस्त न होना है?

डॉक्टर अंजलि: नहीं, सिर्फ यही कारन नहीं है| मेरे इन सवालों को पूछने का कारण ये जानना था की आप अपनी बेटी के बारे में कितना जानते हैं?! मानु जी, प्लीज बुरा मत मानियेगा मगर जिन बच्चों का उनके पिता से खून का रिश्ता नहीं होता वो पिता उन बच्चों को अपना नहीं मानते!

डॉक्टर अंजलि ने बातें थोड़ी गोल-मोल की थीं, परन्तु उनकी कही बात इन्हें बहुत चुभी थीं| डॉक्टर अंजलि का ये कहना की चूँकि नेहा का इनसे कोई खून का रिश्ता नहीं है इसलिए ये नेहा को कम प्यार करते हैं, ये सुन मुझे बहुत गुस्सा आया और मैं एकदम से इनके बचाव में बोल पड़ी;

मैं: ये आप क्या कह रहीं हैं, आपको लगता है की चूँकि नेहा इनका खून नहीं इसलिए ये नेहा से प्यार नहीं करते?! आपने अभी थोड़ी देर पहले नेहा से बात की न, क्या उसने आपसे कहा की ये उसे प्यार नहीं करते?! आपके पूछे सभी सवालों का जवाब इन्होने दिया और फिर भी आप ऐसा कह रहीं हैं?

मेरी आवाज थोड़ी ऊँची हो चली थी, जो की डॉक्टर अंजलि को अच्छा नहीं लगी;

डॉक्टर अंजलि: संगीता जी, पहली बात तो ये की मेरा ये मतलब कतई नहीं था और दूसरी बात ये की आप खुद माँ होते हुए अपनी बेटी पर ज़रा भी ध्यान नहीं देतीं! नेहा के बचपन में आपके किये रूखे बर्ताव के कारण ही नेहा इस कदर डर चुकी है की वो अपने सपनो को सच मानने लगी है| नेहा को उसके बचपन में आप से प्यार नहीं मिला, न ही उसे अपने असली पिता से कोई प्यार मिला| उसके दादा-दादी तक ने लड़की पैदा होने के कारण उससे कोई लाड-प्यार नहीं किया| वो बेचारी बस थोड़ा सा प्यार पाने की कोशिश करती रही और अंत में उसे जो प्यार मिला वो था मानु जी का प्यार, यही कारण है की नेहा पर अपने पापा के प्यार को पाने का जूनून सवार हो चूका है! वो किसी भी हालत में ये प्यार किसी और से नहीं बाँट सकती, आयुष को अपना भाई मानती है इसीलिए वो आयुष को अपने पापा की गोदी में जाने देती है| ऐसे में आप अभी प्रेग्नेंट हैं और आने वाला नया मेहमान मानु जी का ध्यान तथा प्यार चाहेगा, उस समय नेहा अपने पापा का ध्यान आकर्षित करने के लिए कुछ न कुछ करेगी| मुझे कहने की जर्रूरत तो नहीं की वो कुछ गलत भी कर सकती है, जैसे खुद को चोट पहुँचाना! शुक्र है की इस समय नेहा के पास उसके पापा यानी मानु जी के प्यार का सहारा है जिस कारण नेहा अभी तक संभली हुई है वरना अगर नेहा की अपने पापा के प्रति पोस्सेस्सिवेनेस्स (possessiveness) बढ़ गई तो कुछ अनर्थ भी हो सकता है!

डॉक्टर अंजलि की कही बातें सच थीं और बहुत कड़वी भी, उन्होंने मुझे एकदम से आइना दिखा मुझे खामोश कर दिया था| लेकिन मैं भी क्या करती, मैं चाहे कुछ भी करूँ मेरा इन पर से ध्यान हटता ही नहीं था| इन्हें दुःख पहुँचाने की ग्लानि मुझे इनके और नज़दीक धकेलती थी तथा यही नज़दीकी मेरे दिल में इन्हें पाने की प्यास को जगा देती थी| मैं अपना प्यार इन्हें पूरी तरह से समर्पित कर चुकी थी, बस इनके गुस्से के शांत होने की देरी थी!

इधर ये डॉक्टर अंजलि की बातें सुन कर बहुत चिंतित थे, इनका दिल नेहा को ले कर बहुत डरने लगा था| उधर डॉक्टर अंजलि की बात खत्म नहीं हुई थी, उन्होंने अपनी बात जारी रखते हुए इनसे कहा;

डॉक्टर अंजलि: संगीता जी के नेहा के बचपन में लगाई रोक-टोक के कारण नेहा अपने आस-पास के बच्चों से कभी जुड़ नहीं पाई| जब नेहा को आपका प्यार मिला तो नेहा की पूरी जिंदगी बस आपके इर्द-गिर्द घूमने लगी| उसके लिए आप ही सब कुछ हो और आपको फिर से खो देने का डर ही उसे सताये जा रहा है| You can call it 'Anxiety'! वो दो बार आपको लगभग खो चुकी है, एक बार आपके दिल्ली आने से और दूसरी बार आपके कोमा में जाने से, लेकिन तीसरी बार आपने पापा को खो देने का झटका नेहा बर्दाश्त नहीं कर पाएगी| आपको खो देने के डर के कारण नेहा ने खुद को सारी दुनिया से काट कर रखा हुआ है, उसे कोई फर्क नहीं पड़ता की घर से बाहर क्या हो रहा है| उसे फर्क पड़ता है तो बस आपके उससे (नेहा से) बात न करने पर, नाराज़ होने पर, बीमार होने पर| यही सब कारण है की नेहा आपको ले कर हमेशा डरी-डरी रहती है|

डॉक्टर अंजलि की बातें सुन हमें नेहा की मौजूदा मानसिक स्थिति का पता चल चूका था, हमने कभी कल्पना नहीं की थी की इतनी छोटी सी बच्ची अपने भीतर इतना सब कुछ छुपाये हुए है! नेहा के भविष्य की चिंता करते हुए आखिर इन्होने डॉक्टर अंजलि से उपाए माँगा;

ये: डॉक्टर, मुझे मेरी बेटी स्वस्थ चाहिए! मैं नेहा को इस तरह डरा-डरा नहीं देख सकता, आप ही बताइये की अब हमें क्या करना चाहिए?

ये इस समय बहुत भावुक थे और अपनी बेटी के इलाज के लिए कुछ भी करने को तैयार थे|

डॉक्टर अंजलि: देखिये मानु जी, नेहा मानसिक रूप से बीमार नहीं है की उसका इलाज हम दवाइयों से कर सकें| नेहा को बस उसके पापा यानी आप ही सँभाल सकते हो क्योंकि नेहा सबसे ज्यादा आप ही से प्यार करती है| आपको नेहा को समाजिक बनाना होगा, मतलब नेहा को दुनिया से जुड़ना सिखाना होगा| नए दोस्त बनाना, इस दुनिया में हम किस तरह से लोगों से बात करते हैं, लोगों को जानना-पहचाना की वे अच्छे लोग हैं या गलत तथा थोड़ी-थोड़ी जिम्मेदारी देते हुए नेहा को आगे बढ़ने देना| नेहा बहुत होशियार है तो आपको बस नेहा को सही दिशा दिखानी है, बाकी का रास्ता नेहा खुद तय करेगी तथा अपनी मंजिल पर खुद पहुँचेगी|

डॉक्टर अंजलि ने इन्हें सकारत्मक राह दिखाते हुए कहा| इन्होने डॉक्टर अंजलि की सारी बात बड़े ध्यान से सुनी और सर हाँ में हिला कर जवाब दिया| जबकि मुझे डॉक्टर अंजलि का सुझाया हुआ ये उपाए किसी काम का नहीं लगा! 'नेहा को अभी तक ये ही तो सँभाल रहे थे, तो ये ही सुनने के लिए हम यहाँ आये थे? ये कैसी counselling थी, जिसमें डॉक्टर ने ही अपने हाथ खड़े कर दिए तथा सब कुछ इन के सर पर छोड़ दिया? गलती सारी मेरी और चिंता सारी इनके सर आ पड़ी!' मैं मन ही मन गुस्से से बड़बड़ा रही थी|

हम दोनों डॉक्टर अंजलि के चैम्बर से बाहर निकले, बाहर वेटिंग हॉल में नेहा बैठी इनके मोबाइल में कुछ पढ़ रही थी| नेहा को देखते ही इन्होने तुरंत अपनी चिंता को छुपा लिया तथा हँसी का मुखौटा ओढ़ लिया मगर मुझसे ये अपने जज्बात कभी नहीं छुपा सकते थे, मैं जानती थी की डॉक्टर अंजलि की कही बातों से इन्हें कितना दुःख पहुँचा है| ये यहाँ कितनी आस ले कर आये थे तथा लौट और भी अधिक निराश हो कर रहे थे!

[color=rgb(124,]जारी रहेगा भाग 4 में...[/color]
 

[color=rgb(97,]अठाईसवाँ अध्याय: पिता-पुत्री प्रेम[/color]
[color=rgb(251,]भाग - 4[/color]


[color=rgb(26,]अब तक आपने पढ़ा:[/color]

हम दोनों डॉक्टर अंजलि के चैम्बर से बाहर निकले, बाहर वेटिंग हॉल में नेहा बैठी इनके मोबाइल में कुछ पढ़ रही थी| नेहा को देखते ही इन्होने तुरंत अपनी चिंता को छुपा लिया तथा हँसी का मुखौटा ओढ़ लिया मगर मुझसे ये अपने जज्बात कभी नहीं छुपा सकते थे, मैं जानती थी की डॉक्टर अंजलि की कही बातों से इन्हें कितना दुःख पहुँचा है| ये यहाँ कितनी आस ले कर आये थे तथा लौट और भी अधिक निराश हो कर रहे थे!

[color=rgb(235,]अब आगे:[/color]

1,500/-
रुपये दिए इन्होने इस बिना सर-पैर की सलाह के, मैं तो बस आँखें फाड़े इन्हें अपने पर्स से 500/- के तीन नोट निकालते हुए देख रही थी| मन तो किया था की काउंटर पर खड़ी उस लड़की को सुना दूँ की; "क्या लूट मचा रखी है तुम लोगों ने? न कुछ दवाई दी, न कोई इलाज किया, बस कह दिया की नेहा को लोगों से जुड़ना सिखाओ! इतनी सी बात के पंद्रह सौ चाहिए तुम्हें?" लेकिन फिर इनकी इज्जत का ख्याल आ गया और मैं खामोश रही वरना आज सही में लड़ ही पड़ती इस डॉक्टर से!

डॉक्टर अंजलि के क्लिनिक से निकल हम अपनी गाडी की ओर जा रहे थे, ये तो नेहा के सामने मुस्कुरा रहे थे मगर मेरे भीतर तो गुस्सा भरने लगा था| गाडी में बैठ नेहा अपनी किताब पढ़ने लगी और इधर मैं अपने गाल फुलाये हुए बैठी ये सोच रही थी की आखिर नेहा क्यों इस तरह खुद को दुनिया से काट कर रखती है? क्यों नेहा ने दिल्ली आने के बाद कोई दोस्त नहीं बनाया? हम कुछ दूर आये होंगे की मेरा गुस्सा उबल पड़ा और मैं पीछे मुड़ते हुए नेहा से बोली; "नेहा, क्या ये सच है की तूने..." मैं आगे कुछ बोलती उससे पहले ही इन्होने मेरा हाथ दबाते हुए मुझे रोका और मेरी बात काटते हुए धीमी आवाज में बोले; "let's not discuss it here!" मैं इन्हें गुस्सा नहीं दिलाना चाहती थी इसलिए मैंने इनकी बात मानी और एकदम से खामोश हो गई|

वहीं, नेहा मेरी आधी बात सुन हैरान हो कर कुछ सोचने लगी थी| वो मेरे सवाल को पूरा करने के बारे में सोच रही थी की तभी इन्होने अपनी बेटी का ध्यान भटकाते हुए कहा; "यार मुझे तो बहुत भूख लग रही है, किसे पिज़्ज़ा खाना है?" पिज़्ज़ा खाने की बात सुन नेहा का ध्यान भटक गया और वो खुश होते हुए अपना हाथ उठा कर; "me...me...me" चिल्लाने लगी| अपनी बेटी को खुश देख ये मुस्कुराने लगे मगर इनकी मुस्कान के पीछे छुपे ग़म को बस मैं जानती थी| अपने ग़म को सबके सामने छुपाने की कला इन्होने भली-भाँती सीख ली थी|

एक रेस्टोरेंट के बाहर गड़ी खड़ी कर हम तीनों उतरे, नेहा आगे-आगे फुदकती हुई चल रही थी और हम दोनों धीरे-धीरे नेहा के पीछे चल रहे थे| इसी समय इन्होने मुझसे धीमी आवाज में कहा; "आज जो हमारी डॉक्टर अंजलि से बातें हुईं हैं उन्हें पहले हम माँ-पिताजी के साथ साझा कर लें, फिर हम नेहा से बात करेंगे| तबतक प्लीज नेहा से कुछ मत कहना और पहले की ही तरह प्यार से नेहा से बात करना, नेहा को जरा सा भी शक नहीं होना चाहिए की हम आज कहाँ आये थे तथा आज क्या हुआ है?!" इनकी बात से ऐसा लगता था की ये मुझे समझा नहीं डाँट रहे हैं|

"आप ये बताओ की क्यों इतने पैसे फूँके आपने, बस यही सुनने के लिए की; 'ये सब आपको ही सँभालना होगा?' अभी भी तो नेहा को आप ही सँभाल रहे हो न?" मैंने चिढ़ते हुए कहा| मेरे भीतर जो गुस्सा भरा था वो चिढ के रूप में बाहर आया था|

"डॉक्टर के पास जाने से ये तो पता चल की मेरी बेटी का कोई दोस्त नहीं है! And correct me if I'm wrong, ये बात हमें घर पर रहते हुए अभी तक नहीं मालूम थी!" इन्होने एक चुभती हुई मुस्कान के साथ कहा| डॉक्टर अंजलि की कही बातें इन्हें भीतर ही भीतर चुभे जा रहीं थीं, नेहा की इस हालत का ये खुद को जिम्मेदार मानने लगे थे| देखा जाये तो इनकी बात कहीं तक सही थी, ऐसा नहीं था की डॉक्टर अंजलि के पास जाने से हमें नेहा के डर के बारे में जानने को मिला था मगर मुझे इस बात का एहसास नहीं हो रहा था| मेरे दिमाग में तो डॉक्टर अंजलि की कही बस एक ही बात ही गूँज रही थी की ये सब इन्हें ही सँभालना है! मुझे डर था की कहीं ये डॉक्टर की कही बात को मन से लगा कर कोई चिंता न पाल लें तथा फिर से अपनी तबियत खराब न कर लें!

हम तीनों पिज़्ज़ा खाने के लिए एक फॅमिली टेबल पर बैठ गए, इन्होने मेरी पसंद का चीज़, कैप्सिकम और अनियन वाला पिज़्ज़ा मँगवाया, पिज़्ज़ा खाते हुए इन्होने नेहा का ध्यान अपनी बचकानी बातों में लगाए रखा, एक पल के लिए भी इन्होने नेहा से डॉक्टर अंजलि की कही बात का कोई जिक्र नहीं किया| नेहा पिज़्ज़ा खाते हुए हमेशा की तरह चहक रही थी और बीच-बीच में इनसे पिज़्ज़ा बनाने से जुड़े सवाल पूछ रही थी, जबकि मेरे ऊपर दोनों बाप-बेटी का ध्यान ही नहीं था! पिज़्ज़ा खा कर हम घर के लिए निकले और रास्ते भर इन्होने नेहा का ध्यान अपनी बातों से भटकाए रखा, कभी उससे कार्टून के बारे में बात करने लगते तो कभी कहीं घूमने जाने के बारे में| कभी-कभी तो दोनों बाप-बेटी जनरल नॉलेज के सवाल-जवाब एक दूसरे से करने लगते, ये दृश्य तो ऐसा था मानो कौन बनेगा करोड़पति चल रहा हो और मैं कोई टी.वी. देख रही दर्शक हूँ!

घर पहुँच कर नेहा अपनी कल की परीक्षा के लिए पढ़ने बैठ गई, इन्होने नेहा के कमरे का दरवाजा बंद किया तथा बैठक में बैठ गए| मैंने चाय बनाई और फिर माँ, मैं और ये बैठक में बैठ कर बात करने लगे| माँ ने डॉक्टर अंजलि से हुई हमारी बात पूछी तो इन्होने सेंसर की हुई बात उन्हें बताई| मेरी डॉक्टर अंजलि के सामने की हुई बेवकूफियों भरी बात इन्होने नहीं बताई, सारी बात सुन माँ भी वही बोलीं जो मैंने कही थी; "बेटा क्या जर्रूरत थी इतने पैसे फूँकने की, मैं तो पहले ही कहती थी की नेहा को कोई बिमारी नहीं है| उसके दोस्त-मित्र नहीं हैं तो कोई बात नहीं, मैं और तेरे पिताजी आस-पास रहने वाले बच्चों से नेहा की दोस्ती करवा देंगे| तू कोई चिंता मत कर, कुछ दिन में सब ठीक हो जायेगा|" माँ की बात सुन इन्होने कोई प्रतिक्रिया नहीं दी, ये बस शान्ति से माँ की बात सुन रहे थे| मैं जानती थी की ये इतनी जल्दी हार तो मानने वाले हैं नहीं, जर्रूरत इनके दिमाग में नेहा को ले कर कुछ न कुछ चल रहा होगा|

माँ उठ कर अपने कमरे में आराम करने गईं और ये चुप चाप बैठे किसी गहन चिंता में डूब गए| मुझे इनका ध्यान भटकाना था इसलिए मैं इनके बगल में बैठ गई तथा अपनी दाहिनी बाँह इनके पीछे से होते हुए धीरे से इनके दाएँ कँधे पर रखी जिससे कहीं इन्हें मेरे इरादे न पता चल जाएँ और धीरे-धीरे इनके दाढ़ी वाले गाल को चूमने के लिए इनके करीब आने लगी| लेकिन इससे पहले की मेरे होंठ इनके गाल को छू पाते, ये एकदम से बिना कुछ बोले उठ खड़े हुए और बाहर चले गए| इनके इस तरह एकदम से उठ कर जाने से मुझे बहुत-बहुत बुरा लगा, मैं अपना मन मसोस कर उठी और अपने कमरे में आकर सोच में पड़ गई की आखिर अभी ये मुझसे क्यों उखड़े हुए थे? क्या आज जो डॉक्टर अंजलि ने बात कही उस वजह से ये चिंतित थे या फिर मैंने आयुष के जन्मदिन वाली रात जो इनके साथ बदसलूकी की थी उस कारण से ये मुझसे खफा हैं? 'इन्हें उस दिन कैसा लगा होगा जब मैंने इनके साथ इसी तरह उखड़ा हुआ व्यवहार किया था? हो न हो ये मुझे आज वही मह्सूस करवा रहे थे जो इन्होने मेरे द्वारा झिड़के जाने से महसूस किया था|' मैं मन ही मन बुदबुदाई| ये ख्याल मन में आते ही एक बार फिर उस करुणा पर गुस्सा आने लगा, उसी चुड़ैल की वजह से हम दोनों के बीच ये दूरियाँ आई थी! 'जब ये खाना खाने आएंगे तब मैं इनसे फिर से माफ़ी माँग लूँगी और इन्हें मना लूँगी|' मैं उम्मीद से भरते हुए खुद से बोली और रसोई में घुस गई|

आज दोपहर का खाना मैंने खाना खूब तड़का मार के बनाया ताकि खाने के स्वाद से इनका दिल पिघलने लगे और ये मुझे झट से माफ़ कर दें| दोपहर के खाने के समय तक ये तथा पिताजी घर लौट आये थे, तभी पीछे-पीछे माँ और आयुष भी घर पहुँचे| आयुष आते ही इनकी गोदी में चढ़ लाड पाने लगा, आयुष को लाड कर इन्होने उसे कपड़े बदलने जाने को कहा| फिर ये हाथ-मुँह धोने के लिए सीधा हमारे कमरे में चले गए, मैं भी सबसे नजरें चुराते हुए इनके पीछे-पीछे कमर में आ गई| ये बाथरूम में हाथ मुँह धो रहे थे और इधर मैं कमरे में खड़ी हुई ये सोच रही थी की इनसे बात शुरू कैसे करूँ? सीधा इन पर लपक नहीं सकती थी वरना उस रात जैसे मैंने इन्हें झिड़का था ये मुझे आज झिड़क देते| मुझे इनसे बात शुरू करते हुए थोड़ा सा लुभाना था ताकि फिर मैं इनसे लिपट सकूँ और इनके जिस्म की गर्माहट पा सकूँ|

बाथरूम से बाहर निकल ये अपना मुँह तौलिये से पौंछ रहे थे, तभी मेरी नजर इनके दाढ़ी वाले गालों पर पड़ी और मुझे बात करने का मौका मिल गया; "जानू, आप ये दाढ़ी क्यों बढ़ा रहे हो? आप मुझे क्लीन शैवेन (clean shaven) कितने प्यारे लगते थे, पता है कितने सालों से मैंने आपके नंगे गालों को नहीं चूमा?! जब भी आपको चूमो, ये कमबख्त दाढ़ी बीच में आ जाती है! मेरा कितना मन करता है की मैं आपके गालों पर अपने लव बाइट्स बनाऊँ और आप हो की ये दाढ़ी छोलते ही नहीं!" मैंने इन्हें प्यार से उल्हाना देते हुए कहा| "फिर आपको भी तो मेरे बनाये लव बाइट्स कितने पसंद हैं! याद है गाँव में उस रात जब मैंने आपके पूरे जिस्म पर लव बाइट्स बनाये थे?" मैंने इन्हें आँख मारते हुए बड़े ही मादक ढंग से अपनी बात कही| मेरी मादकता से भरी बात सुन ये मुस्कुराये और मुझे प्यार से समझाते हुए बोले; "जान, मैं दाढ़ी इसलिए रखता हूँ ताकि मैं मैच्योर (mature) लगूँ| क्लीन शेवन (clean shaven) में मैं बिलकुल बच्चा लगूँगा| अब कुछ ही महीनों में मैं तीन बच्चों का बाप बनने वाला हूँ, तो मुझे मैच्योर लगना चाहिए न की बच्चा!" इन्होने एक बड़ी ही अहम् बात गोल घुमाते हुए कही थी जो की मेरी समझ में उस पल नहीं आई थी| मैं तो इनके मुझे इतने दिनों बाद (आयुष के जन्मदिन वाली रात को मेरे इनके साथ की बदसलूकी के बाद से) 'जान' कहने से प्रफुल्लित हो गई थी| "तो क्या तीन बच्चों के बाप क्लीन शेवन (clean shaven) नहीं रख सकते?" मैंने इनकी कही बात का सही मतलब न समझते हुए बेवकूफी भरा सवाल पुछा| "यार समझा करो, मुझे तुम्हारे कम्पेटिबल (compatible) दिखना चाहिए|" इन्होने अपनी बात को थोड़ा सा स्पष्ट करते हुए कहा| अब जा कर मुझे इनकी बात समझ में आई की आखिर इनकी बात का अर्थ क्या था| दरअसल हम दोनों की उम्र में फासला साफ़ दिखता था, कहाँ ये 24 के और कहाँ मैं 34 की! फिर इनका पहनावा बिलकुल शहरी था जबकि मैं अब भी गाँव की गँवार दिखती थी| दिल्ली आने के बाद से मेरे भीतर कोई बदलाव नहीं आया था, जैसे मैं गाँव में कपड़े पहनती थी वैसे ही दिल्ली में कपड़े पहनती थी| "असल में तो मुझे आपके कम्पेटिबल (compatible) लगना चाहिए!" मैंने सर झुकाते हुए मन मसोस कर कहा| मैंने थोड़ी सी उदास होने की एक्टिंग (acting) भी की ताकि ये मुझे अपने सीने से लगा लें मगर इन जनाब ने तो मुझ ही पर पलट कर प्यार भर तंज कस दिया; "वो (मेरा इनके कम्पेटिबल दिखना) तुमसे होगा नहीं!" इतना कह ये खींसें निपोरते हुए बाहर चले गए| असल में इनके इस तंज का कारण ये था की मैंने अपने मन में बस एक अच्छी बहु बनने का इरादा पक्का कर रखा था| पति को खुश रखने का मतलब मेरे लिए बस अच्छा खाना बनाना तथा इन्हें प्यार करना था, जबकि इनका कहना था की मुझे थोड़ा बनठन कर रहना चाहिए, थोड़ा फैशनपरस्त होना चाहिए इसीलिए इन्होने शुरू-शुरू में मुझे तरह-तरह के मेक-अप (make-up) के समान ला कर दिए, जारजट (georgette) तथा सिल्क की खूब सुंदर-सुंदर साड़ियाँ मँगवा कर दीं ताकि मैं ये सब पहनूँ और साज श्रृंगार कर के इन्हें खुश रखूँ| वो करधनी जो इन्होने मुन्नार में खरीदी थी, जिसे हरदम पहने रहने का मैंने इनसे वादा किया था, वो भी मैंने दिल्ली आ कर उतार कर रख दी थी| इतनी सुंदर-सुंदर साड़ियाँ थी मेरे पास की अगर पह्नु तो लगे कहीं की कोई महारानी हूँ और एक मैं पागल थी जो उन साड़ियों को सील बंद कर, पैक कर रखती थी और इन्हें आजतक वो साड़ियाँ कभी पहन कर नहीं दिखाईं| ऑक्सिडीज़ेड (oxidized) की हुई ज्वेलरी इन्होने मुझे ला कर दी थी, जिसमें तरह-तरह के हार (necklace) थे, झुमके थे, बालियाँ थीं, उन्हें तो देखते ही मैं खुश हो जाती थी मगर कभी पहनती नहीं थीं| मेक-अप (make-up) के समान में तो इतनी चीजें थी मेरे पास; मस्कारा, आईलाइनर, फेस पाउडर, वो महंगी-महंगी क्रीम, फेस पैक, रंग-बिरंगी पेंसिल (जिसका इस्तेमाल मुझे नहीं पता), चमचमाती हुई लिपस्टिक, चमचमाती हुई नेल पोलिश; इन सभी समानों का मैंने कभी इस्तेमाल ही नहीं किया! इनकी पसंद कर लाई गई इन सभी चीजों को देख मैं बहुत खुश होती थी, सच पूछो तो मैं इनकी पसंद की शुरू से ही कायल रही हूँ लेकिन फिर भी कभी पहनती-ओढ़ती नहीं थी! इन्होने मुझे कितना समझाया की; "जान, मैं इतने प्यार से सामान लाता हूँ प्लीज मुझे तो पहन कर दिखाओ" मगर मैं बुद्धू हमेशा यही कहती की; "जानू, मुझे ये सब पहनने-ओढ़ने में शर्म आती है| माँ-पिताजी के सामने, घर के बाहर मुझसे नहीं पहना जाता! सब कहेंगे ये देखो शादी के बाद इसे जवानी चढ़ी है!" मेरी ये बेवकूफियों भरी बात सुन ये कहते; "माँ-पिताजी कुछ नहीं कहेंगे, वो जानते हैं की तुम ये साज श्रृंगार बस उनके बेटे के लिए कर रही हो! बाहर का कोई कुछ भी कहे तो कहने दो, कम से कम अपने पति को तो खुश रखो?" लेकिन मैंने अपनी लाज के आगे कभी इनकी बात नहीं मानी| ये भी बात सच है की मुझे घर में आज तक किसी ने सजने-संवरने पर नहीं टोका लेकिन मेरे भीतर की झिझक मुझे हमेशा रोकती रहती थी| आखिर में इन्होने भी हार मान ली और मुझे साज-श्रृंगार के लिए टोकना बंद कर दिया|

आप सब भी सोचेंगे की मैं भी कैसी पत्नी हूँ जो अपनी पति की ख़ुशी के लिए इतना भी नहीं कर सकती? पति इतने चाव से अच्छी-अच्छी चीजें लाता है ताकि पत्नी पहन-ओढ़ कर सुंदर लगे, लेकिन पत्नी है की उसे बस अपने पति की बस बेकद्री करनी आती है!

परन्तु इनकी एक खासियत है, इन्होने मुझ गाँव की गँवार दिखने वाली को जैसे का तैसा ही अपना लिया| मेरे बनने-सँवरने से मना करने पर इन्होने मेरी इज्जत करना कम नहीं कर दी, बल्कि इनकी नजरों में अब भी वही गर्व था जो मुझसे पहलीबार मिलने पर हुआ था| वहीं मैं कोई ढीठ नहीं थी, दिल्ली आने के बाद से मैंने खुद को थोड़ा-बहुत बदला था मगर वो बस इसलिए की कहीं हमारे बच्चों को मेरे इस गँवारपने के कारण शर्मिंदा न होना पड़े|

खैर उस दिन मुझे एक बात समझ आई, वो ये की दुनिया की नजरों में हम मियाँ-बीवी की उम्र के बीच का अंतर् खटकता है! मेरा इनसे उम्र में बड़ा होना समाज के लिए एक चर्चा का विषय था, कोई हमारे सामने ये बातें नहीं करता था मगर पीठ पीछे सब कुछ न कुछ बोलते अवश्य थे| हमारी उम्र के बीच मौजूद इसी अंतर को छुपाने के लिए इन्होने दाढ़ी उगाने का सहारा लिया था और ये बात ये मुझसे आजतक छुपाते आये थे क्योंकि ये बात मुझे बता कर ये मुझे दुखी नहीं करना चाहते थे| अब पता चला कितना प्यार करते हैं ये मुझसे?

शाम को जब पिताजी और ये साइट से लौटे तो इन्होने पिताजी से आज डॉक्टर अंजलि से हुई सारी बात बताई| सारी बात सुन पिताजी बोले; "तू चिंता न कर बेटा, मैं बात करूँगा नेहा से और उसे प्यार से समझाऊँगा तथा उसके मन में बैठा हुआ डर मैं भगाऊँगा| रही बात नेहा के दोस्त न होने की तो मैं उसके दोस्त बनाने में मदद करूँगा, कल ही मैं नेहा को पार्क में ले जा कर उसकी दूसरे बच्चों से दोस्ती करवाता हूँ|"

"नहीं पिताजी, ये सब इतना आसान नहीं है| मैं नहीं चाहता की नेहा खुद को कोई दिमागी रोगी समझे, मुझे ही नेहा से बात करनी होगी और उसे भरोसा दिलाना होगा की मुझे कुछ नहीं होगा| आप या माँ नेहा से पहले जैसे ही बात करना, आज जो हुआ उसका जिक्र कुछ मत करना|"

इन्होने गंभीर होते हुए बात कही| माँ-पिताजी को इनपर पूरा भरोसा था इसलिए उन्होंने आगे कुछ नहीं कहा| फिर इन्होने ही नेहा का इलाज ये कैसे करने वाले हैं, इसका उपाए इन्होने ही हमें बताया| इनकी बातें सुन मैं हैरान थी की पता नहीं ये क्या-क्या सोचते रहते हैं! उसी पल से इन्होने अपने बनाये प्लान पर काम करना शुरू कर दिया था!

कल से बच्चों की परीक्षा थी इसलिए ये दोनों बच्चों को पढ़ाने लग गए, नेहा की तैयारी पूरी थी इसलिए वो इनके सवाल पूछने पर फ़ट से जवाब दे रही थी| उधर आयुष अपनी परीक्षा के कारण थोड़ा डरा हुआ था, नेहा को पढ़ा कर इन्होने आयुष को अपनी गोद में बिठाया तथा उसे लाड करते हुए समझाने लगे;

ये: बेटा, एग्जाम से डरते नहीं है| आपकी टीचर्स आपसे कुछ सवाल पूछेंगी और आपको उन सवालों का जवाब देना है| मैंने आपको जो अल्फाबेट्स लिखने सिखाये थे वो लिख कर देने हैं और हो गया आपका एग्जाम!

इनकी बात सुन आयुष को थोड़ा होंसला आने लगा|

आयुष: पापा जी, एग्जाम के बाद क्या होगा?

आयुष उत्सुक होते हुए बोला|

ये: बेटा, फिर आपका रिजल्ट आएगा और आप पास हो जाओगे|

इन्होने मुस्कुराते हुए कहा| ये सुन आयुष खुश हो गया और उसमें आत्मविश्वास जाग गया| तभी नेहा उत्साह से बोली;

नेहा: पापा जी, I promise मैं फर्स्ट आऊँगी!

नेहा की बात सुन आयुष भी जोश में बोल उठा;

आयुष: मैं भी फर्स्ट आऊँगा पापा जी!

दोनों बच्चों में प्रतिस्पर्धा चालु हो गई थी, जिसे देख माँ-पिताजी मुस्कुरा रहे थे|

माँ: अरे मेरी मुन्नी फर्स्ट आएगी, देख लेना!

माँ नेहा का पक्ष लेते हुए बोली|

पिताजी: अरे तुम रहने दो, फर्स्ट तो मेरा आयुष आएगा!

पिताजी आयुष का पक्ष लेते हुए बोले|

ये खामोश थे और इन्होने अभी तक न तो आयुष का पक्ष लिया था और न ही नेहा का पक्ष| दोनों बच्चे उत्सुकता लिए हुए अपने पापा जी को देख रहे थे की वो आखिर किसका पक्ष लेते हैं, तभी ये दोनों बच्चों को समझाते हुए बोले;

ये: बेटा, मेरे लिए आप पास हो जाओ, वो ही बहुत है| आपकी ये उम्र स्कूल में दोस्त बनाने की है, दोस्तों के साथ मस्ती करने की, खट्टी-मीठी यादें बनाने की है| जब आप बड़े हो जाओगे न तो आपको ये याद नहीं रहेगा की आपको कौनसी क्लास में कितने नम्बर आये थे, आपको याद रहेगा तो ये की आपने स्कूल के दिनों में कितनी मस्ती की! स्कूल में बनाये आपके दोस्त कई बार सारी जिंदगी साथ रहते हैं, जैसे मैं और आपके दिषु चाचू| तो बेटा, आपको एग्जाम में हमेशा अपना बेस्ट देना है और बाकी सब भगवान जी पर छोड़ देना है| वो आपकी की हुई मेहनत के आधार पर आपको पास कराएँगे|

इनकी बातें मेरे तथा माँ-पिताजी के दिलों को छू गई थी| माँ के चेहरे पर एक गर्वपूर्ण मुस्कान थी की आखिर उनके द्वारा दी गई इन्हें सीख आज ये अपने बच्चों के दे रहे हैं| दूसरी तरफ पिताजी हमेशा से ही पढ़ाई को लेकर इनपर सख्त रहे हैं मगर आज अपने बेटे को यूँ बच्चों को स्कूल के दिनों की अहमियत समझाते देख पिताजी ने एक जर्रूरी सबक सीखा था, वो ये की बच्चों पर कभी भी अव्वल आने के लिए दबाव नहीं बनाना चाहिए| उधर नेहा और आयुष के ऊपर से पढ़ाई का दबाव उतर गया था, साथ ही इन्होने बड़ी होशियारी से नेहा के दिल में दोस्ती की अहमियत की रौशनी जला दी थी| बची मैं, तो मैं इनकी सोच को सलाम कर इन पर गर्व महसूस कर रही थी|

रात को खाना खाने के बाद इनके प्लान के तहत मैंने आयुष को आज कई दिनों बाद लाड-प्यार कर के सुला दिया वरना ये काम इन्हें ही करना होता था| इधर नेहा अपने कमरे में अपना स्कूल बैग पैक कर रहे थी, इन्होने कमरे का दरवाजा खोला और नेहा से बोले; "बेटा, मुझे आपसे दो मिनट बात करनी है, फ्री हो कर आ जाना|" ये कमरे में आ कर पलंग पर अपनी पीठ टिका कर बैठ गए, नेहा ने फटाफट अपना स्कूल बैग पैक किया और हमारे कमरे में आ गई| मैं भी आयुष को लिटा कर हमारे कमरे में आ गई थी, इन्होने नेहा को हम दोनों के बीच में हमारी तरफ मुँह कर के बैठने को कहा| नेहा झट से पलंग पर चढ़ी तथा आलथी-पालथी मार कर बैठ गई, इन्होने पहले नेहा के माथे को प्यार से चूमा और फिर अपने प्लान के तहत अपनी बात शुरू की; "नेहा, बेटा क्या सच में आपका कोई बेस्ट फ्रेंड नहीं है?" इनका सवाल सुन नेहा न में गर्दन हिलाते हुए बोली; "नहीं पापा जी, मुझे किसी बेस्ट फ्रेंड की जर्रूरत नहीं है, आप जो हो मेरे पास!" नेहा ने बिलकुल साधारण ढंग से अपनी बात कही| नेहा की बात सुन ये कुछ कहते उससे पहले ही मैंने इनकी बात का समर्थन करते हुए कहा; "पर बेटा, एक friend तो सबको चाहिए होता है न? अब देखो आपके पापा जी के भी एक बेस्ट फ्रेंड हैं न, आपके दिषु चाचू!" मेरी बात सुन नेहा फ़ट से बोली; "लेकिन मुझे बेस्ट फ्रेंड क्यों चाहिए मम्मी?" नेहा के मन में जिज्ञासा कम और अपने पिता के प्रति प्यार अधिक था| बहरहाल, नेहा का मुझसे पूछे सवाल का जवाब इन्होने खुद दिया; "बेटा, आप अपने बेस्ट फ्रेंड से अपने दिल की हर बात कह सकते हो..." इतनी बता सुनते ही नेहा ने हाजिर जवाबी से जवाब दिया; "वो तो मैं करती हूँ, आप से|" नेहा की हाजिर जवाबी देख इन्होने अपनी बात आगे बढ़ाते हुए कहा; "बेटा, सिर्फ अपने दिल की बात ही नहीं बल्कि आप अपने बेस्ट फ्रेंड के साथ हँसी-मज़ाक कर सकते हो, उसके साथ कहीं घूमने-फिरने जा सकते हो, उससे अपना होमवर्क करने में मदद ले सकते हो, उसके साथ अच्छा-अच्छा खा-पी सकते हो और ढेर सारी मस्ती कर सकते हो!" इन्होने नेहा को बेस्ट फ्रेंड होने का विवरण देते हुए कहा|

इधर नेहा ने फिर से हाज़िर जवाबी दिखाते हुए कहा; "पापा जी, मैं आपके साथ हँसी-मज़ाक करती तो हूँ! आप मुझे कितनी सारी जगह घूमने ले जाते हो, मुझे अलग-अलग तरह का खाना खिलाते हो, मुझे कितना सारा एन्जॉय करवाते हो! रही बात होमवर्क करने की तो दादाजी कहते हैं की मैं बहुत होशियार हूँ इसलिए मैं अपना होमवर्क खुद कर लेती हूँ! तो फिर मुझे किसी फ्रेंड की क्या जर्रूरत है, आप जो हो उसकी कमी पूरी करने को!" नेहा को अपनी बात पर बहुत आत्मविश्वास था| अब नेहा के साथ तर्क करना इतना आसान तो था नहीं इसलिए इन्होने उसे असल बात समझानी चाही; "पर बेटा, मैं हमेशा तो नहीं रहूँगा न?" इन्होने ये बात काफी गंभीर होते हुए कही क्योंकि ये नेहा को जिंदगी कैसे जी जाती है उसके लिए तैयार करना चाहते थे और उसके लिए जर्रूरी था की उसके मन से अपने पापा को खो देने का डर निकालना| उधर नेहा इनकी बात सुन एकदम से मायूस हो गई तथा उसकी आँखें भर आईं, उसने सिसकते-सिसकते हुए अपने पापा से पुछा; "आप ऐसा क्यों कह रहे हो पापा जी?"

"बेटा, मैं सच कह रहा हूँ, आखिर एक न एक दिन तो सभी को..." ये आगे कुछ कहते उससे पहले ही मैंने इनके होठों पर अपना हाथ रख इन्हें आगे बोलने से रोक दिया| इनकी मृत्यु की बात की मैं कल्पना भी नहीं कर सकती थी, तो इनके मुँह से ये कैसे सुन लेती! "प्लीज ऐसा मत बोलो!" मैंने भावुक होते हुए कहा, क्योंकि इनकी अनकही बात को मेरे दिमाग ने पूरा कर दिया था जिससे मैं बहुत डर गई थी! उधर नेहा भी सहम गई थी और उसके आँसूँ बह निकले थे| इन्होने नेहा के आँसूँ पोछे और उसे कस कर अपने सीने से लगा कर दिवार का सहारा ले कर खामोश बैठ गए| अपने पिता के सीने की तपन पा कर नेहा का रोना थम गया और उसकी सिसकियाँ शुरू हो गईं| कुछ पल बाद कमरे में सन्नाटा छा गया जिससे नेहा को सँभलने का मौका मिल गया|

दस मिनट बाद इन्होने नेहा को होंसला देते हुए फिर अपना सवाल दुहराया; "मेरा बहादुर बच्चा है न, तो अब मेरा बच्चा रोयेगा नहीं! चलो, अब बताओ की क्या बात है, क्यों आपके कोई दोस्त नहीं?" इन्होने नेहा को छोटे से बच्चे की तरह पुचकारते हुए सवाल पुछा| नेहा पुनः हम दोनों की तरफ मुँह कर के बैठ गई तथा अपने पापा जी के सवाल से बचने के लिए सर झुका लिया| उसकी ये प्रतिक्रिया देख हम समझ गए की नेहा इस सवाल से बचना चाह रही है इसलिए मैंने बात को थोड़ा कुरेदते हुए पुछा; "बोलो बेटा!"

"आप भी यही सवाल पूछ रहे हो और उधर वो 'डॉक्टर आंटी' भी यही सवाल पूछ रहीं थीं! मेरे दोस्त न होने का मेरे रात में बुरे सपने देखने से क्या लेना-देना है?" नेहा सर झुकाये हुए ही बोली| नेहा की बात सुन मैं सन्न रह गई और अपनी हैरत भरी आँखों से इन्हें देखने लगीं, मुझे लगा था की ये भी हैरान होंगे मगर इनके चेहरे पर हैरानी की जगह मुस्कान छलक रही थी! इनकी ये मुस्कान इस बात की सूचक थी की ये सब कुछ जानते हैं! मेरी ओर देखते हुए ये धीमे आवाज में बुदबुदाते हुए बोले; "जैसी माँ, वैसी बेटी!" दरअसल जब हम डॉक्टर अंजलि के पास जाने के लिए तैयार हो रहे थे तब नेहा ने हमारी सारी बात सुन ली थी, फिर जब हम डॉक्टर अंजलि के क्लिनिक पहुँचे तब नेहा ने बाहर लगा बोर्ड भी पढ़ लिया था| अब मेरी बेटी पहले से ही बहुत होशियार थी इसलिए वो जान गई थी की हम कहाँ और क्यों गए हैं?! बहरहाल, नेहा अब भी अपना सर झुकाये हुए थी और हमारे सवाल से बचना चाह रही थी| हम दोनों पति-पत्नी को शक हो चुका था की कुछ तो है जो नेहा हमसे छुपा रही है; "नेहा..." इन्होने नेहा को पुकारा और उसका हाथ पकड़ कर अपने सर पर रख उसे अपनी कसम से बाँध दिया; "...बेटा आपको मेरी कसम है, आप मुझसे कुछ नहीं छुपाओगे! बोलो असली बात क्या है?" इनकी कसम से बँधने के कारण नेहा की आँखें फिर से छलक आईं और उसने रोते-रोते सारा सच सुनाया; "हमारे गली में एक लड़का है...वो और उसके दोस्त है न हमेशा मुझे चिढ़ाता है..." नेहा की आधी बात सुन मैं बीच में बोल पड़ी; "लेकिन क्यों बेटा! न तो आप मोटे हो, न लकड़ी जैसे पतले, न आपको चश्मा लगा है, तो फिर आखिर वो लड़का आपको क्यों चिढ़ाता है?" मेरा सवाल सुन नेहा चुप हो गई, ऐसा लगा जैसे आगे कुछ बोलने के लिए अपनी हिम्मत बटोर रही हो| इधर नेहा की ये ख़ामोशी देख ये विचलित हो रहे थे इसलिए इन्होने नेहा से प्यार से पुछा; "नेहा, बेटा अपने पापा से बात छुपाओगे?" इनकी बातें सुनते ही नेहा इनके सीने से लिपट गई तथा फफक कर रो पड़ी! "वो मुझे...कहता...है...की मैं गाँव की...गँवारन हूँ...इसलिए...मैंने गली के...बच्चों...के साथ...खेलना बंद कर दिया...! यही लड़का...मेरी क्लास में है...और वहाँ भी मुझे गँवारन...बोल कर चिढ़ाता था! फिर जब...आप दोनों...की शादी हुई तो...वो कहने लगा की..." इतना बोलते-बोलते नेहा की रोने के कारण साँस फूलने लगी| इन्होने नेहा को अपने सीने से लगाए रखा और उसकी पीठ सहलाते हुए उसका रोना काबू में करने लगे|

नेहा की आधी कही बात हम दोनों समझ गए थे, हमारी ये शादी समाज में चर्चा का मुद्दा बन चुकी थी| बड़े तो बड़े, बच्चे भी हमारी शादी को ले कर बातें करने लगे थे| इन लोगों को हमारा प्यार कभी नज़र नहीं आया, उन्हें तो बस हमारा शादी से पहले का रिश्ता और उम्र में फर्क नज़र आता है| इन सभी लोगों को बस हमें अपने फ़िज़ूल के नियम-कानूनों में बाँध कर रखना था! मैं इनसे जी-जान से प्यार करती हूँ, ये मुझसे सच्चा प्यार करते हैं, हमने बकायदा शादी की है तो दुनिया को हमसे क्या समस्या है? क्यों ये लोग हमें और हमारे प्यार को चैन से नहीं जीने देते? क्यों हमारे प्यार की सजा हमारे बच्चों को दी जा रही है?

इधर नेहा की बात पूरी नहीं हुई थी, इन्होने नेहा के मन पर बँधा हुआ बाँध तोड़ दिया था इसलिए नेहा आज अपने मन की सारी बातें कहना चाहती थीं| इन्होने प्यार से नेहा के सर को चूमा और उस लड़के का नाम पुछा; "बेटा उस लड़के का नाम क्या है जो आपको तंग करता है?"

"अ.अक्षय यादव... वो... आप दोनों की...शादी होने के बाद...वो...वो कहता है...की तेरे पापा....ने अपने से बड़ी...लड़की से शादी की...अपनी भाभी से शादी...की..." नेहा सिसकते-सिसकते हुए बोली, इसके आगे नेहा कुछ न बोल पाई क्योंकि रो-रो कर उसका बुरा हाल था| इन्होने नेहा को कस कर अपनी बाहों से जकड़ा और उसके सर को बार-बार चूम कर उसे हिम्मत देने लगे; "बस-बस मेरा बहादुर बच्चा! आई लव यू मेरा बच्चा!" लेकिन नेहा का रोना थम नहीं रहा था, उसे आज अपनी बात पूरी करनी थी; "वो...वो किसी...को मेरा दोस्त नहीं...बनने देता....मैं अगर...किसी से...बात करती हूँ...तो वो मुझे चिढ़ाने आ जाता है...और अगर कोई मुझसे बात करे तो ये (अक्षय यादव)... और उसके दोस्त...उस बच्चे को...भी चिढ़ाते हैं....इसीलिए स्कूल में...कोई मुझसे बात नहीं करता!" नेहा ने हिम्मत करते हुए अपनी बात पूरी की| नेहा को ये सब कहने में बहुत हिम्मत लगी थी| रो-रो कर ये बात कहते हुए नेहा को खाँसी आ गई| मैं फ़ौरन उठी और नेहा के लिए पानी लाई, इधर इन्होने नेहा को अपनी गोदी में बिठा लिया और अपने हाथों से उसे धीरे-धीरे पानी पिलाया| फिर नेहा को गोद में उठाये ये कमरे में टहलने लगे और उसकी पीठ सहलाते हुए उसे हिम्मत बँधाने लगे; "बस मेरा बच्चा! अब आपको कभी कोई तंग नहीं करेगा, आपके पापा है न सब ठीक कर देंगे|"

इधर नेहा की कही बातें मेरे दिल-दिमाग में घर कर गईं थीं और मुझे मेरे लिए हुए इनसे शादी के फैसले से खुद से नफरत होने लगी थी| 'मेरे एक गलत फैसले ने मेरी बच्ची को इतना दुःख दिया! सच में मैं बहुत स्वार्थी हूँ, इन्हें पाने के लिए मैंने अपने बच्चों के बारे में ज़रा भी नहीं सोचा और उनके भविष्य को दाँव पर लगा दिया! मेरे ही कारन मेरे बच्चों को दुनिया के ताने सुनने पड़ रहे हैं!' ये चुभने वाले ख्याल मुझे अंदर ही अंदर कुढ़ने के लिए मजबूर कर रहे थे! मैं अपने ख्यालों में इस कदर डूबी थी की मुझे पता ही नहीं चला की कब इन्होने नेहा को अपनी गोदी में लिए हुए सुलाया और कब उसे आयुष के पास लिटा आये|

"संगीता...संगीता...hey?" इन्होने मुझे पुकारा तो मेरी तंद्रा भंग हुई और मैं अपने दुखी ख्यालों की दुनिया से बाहर आई| मेरा चेहरा फीका पड़ चूका था इसलिए इन्हें मेरी चिंता हुई; "क्या हुआ? क्या सोच रही हो?" इनका सवाल सुन मेरे दिमाग में जो दुखद ख्याल चल रहे थे मैंने वो सब इनके सामने बक दिए; "हमारी एक गलती ने हमारे बच्चों को ज़माने के ताने सुनने पर मजबूर कर दिया!" मेरे कहे इस वाक्य में इन्हें 'गलती' शब्द बहुत चुभा, जिस कारन ये मुझ पर बरस पड़े; "गलती? हमारे प्यार को तुम गलती मानती हो? आयुष हमारी गलती का नतीजा है या फिर ये जो बच्चा तुम्हारी कोख में पल रहा है वो हमारी गलती का नतीजा है? I can't believe this; how could you say this?" इनका ये गुस्सा देख मुझे इनकी तबियत की चिंता हुई और इन्हें सॉरी बोलने ही वाली थी की इन्होने मेरे दोनों कँधे पकड़ मुझे झिंझोड़ते हुए कहा; "मुझे कोई फर्क नहीं पड़ता की ये दुनिया, ये समाज हमारे प्यार के बारे में क्या सोचता है?! फर्क पड़ता है तो बस इस बात से की तुम हमारे प्यार के बारे में क्या सोचती हो? अब अगर तुम्हें ही हमारा प्यार गलती लगता है तो सच में मुझसे बहुत बड़ी गलती हो गई, मुझे तुम्हारे नजदीक आना ही नहीं चाहिए था!" इतना कह ये गुस्से में कंबल ओढ़ दूसरी ओर करवट ले कर लेट गए|

मुझे एहसास हुआ की मैंने आज इनका दिल 'फिर' बहुत दुखाया है, हमारे पाक़ साफ़ प्यार को मैंने गलती कह गाली दी है! जिस इंसान ने मेरे साथ अपनी पूरी जिंदगी बिताने के लिए पूरे परिवार का अकेले सामना किया उसी के प्यार को गलती कह मैंने इनके दिल को बहुत दुःख पहुँचाया है| मैं फ़ौरन इनकी ओर करवट ले कर लेट गई और इनसे माफ़ी माँगने लगी; "सॉरी जानू! मेरा वो मतलब नहीं था, प्लीज मुझे माफ़ कर दो! प्लीज...प्लीज!" मैंने इनसे मिन्नत करते हुए कहा मगर इन्होने कोई जवाब नहीं दिया और मेरी ओर पीठ किये हुए ही खामोश लेटे रहे| मुझे इन्हें मनाना था इसलिए मैंने अपना पूरा दम लगा कर इनकी बाँह पकड़ कर अपनी तरफ घुमाया जिससे ये पीठ के बल लेट गए| फिर इनके दाहिने हाथ को खोल कर सीधा किया और अपना तकिया बना कर इनसे कस कर लिपट गई| इनका दिल बहुत बड़ा है, इसीलिए तो मेरे सारी बेवकूफियाँ माफ़ कर देते हैं! इनका दिल पिघल गया और इन्होने मुझे अपनी बाहों में कस लिया| सच, चाहे जितनी टेंशन हो, जितना दुःख हो, तकलीफ हो, लेकिन इनके सीने से लग कर मैं सबकुछ भूल जाती हूँ!

रात तीन बजे हमारे दरवाजे पर दस्तक हुई, मैं जानती ये दस्तक नेहा ने ही दी होगी इसलिए मैं जल्दी से उठी और दरवाजा खोला| दरवाजे के बाहर नेहा ही थी और वो सिसकते हुए अपनी आँखें मल रही थी, मैंने उसे गोद में ले कर उसके माथे को चूमा तथा इनकी बगल में लिटा दिया| फिर मैं आयुष को भी अपनी गोदी में उठा लाई और नेहा तथा अपने बीच लिटा दिया| एक तरफ बाप-बेटी लिपट कर सो गए और दूसरी तरफ हम माँ-बेटा लिपट कर सो गए|

अगली सुबह मेरी आँख जल्दी खुल गई, नहा-धो कर मैंने जल्दी से माँ-पिताजी को चाय पिलाई और फिर दोनों बच्चों को जगाने चली आई| नेहा के सर पर एक बार हाथ फेरा और वो झट से जाग गई, आज उसकी परीक्षा थी इसलिए वो आज के दिन थोड़ी सी उत्साहित थी| वहीं आयुष का जागने का मन ही नहीं था, उसे अपनी परीक्षा से डर लग रहा था इसलिए वो जाग ही नहीं रहा था| दोपहर को चाऊमीन खिलाने का लालच दे कर मैंने उसे जगाया| दोनों बच्चे तैयार होने लगे थे तो मैं इनकी चाय ले कर कमरे में आ गई| ये अब भी सो रहे थे, इन्हें यूँ सोता हुआ देख मुझे आज इन पर कुछ अधिक ही प्यार आ रहा था| ऐसा नहीं था की आज में इन्हें पहलीबार सोता हुआ देख रही थी, लेकिन आज ये सोते हुए किसी शिशु की भाँती प्यारे लग रहे थे| इनके चेहरे अपर कोई चिंता नहीं थी, बस एक शान्ति थी, जिसे देख मैं मोहित हो रही थी| मेरा खुद पर से काबू छूट रहा था, मैंने इनके लिए लाई हुई चाय टेबल पर रखी और इनके सामने उकडूँ हो कर बैठ गई| आँखें इन्हीं पर टिकी थी और मैं इन्हें प्यार से निहार रही थी, मेरी आँखें इस कदर प्यासी हो चली थीं की मुझे तृप्ति नहीं मिल रही थी| 'काश सारी उम्र इन्हें ऐसे ही निहारती रहूँ!' मेरा प्यासा मन बोला| तभी मेरी नजरें फिसलती हुई इनके अधरों तक पहुँची, उन अध्-खुले लबों को देख मेरा मन मचलने लगा और जब खुद पर से काबू छूटा तो मैंने आगे बढ़ कर इनके अधरों को अपने होठों के कब्ज़े में ले लिया! मेरे दोनों हाथ इनके दोनों गालों को थामे हुए थे और मेरे होंठ रसपान में लगे थे! चूँकि ये गहरी नींद में थे तो इन्हें कुछ होश नहीं था की इनके साथ क्या हो रहा है और न ही इनकी ओर से कोई प्रतिक्रिया मिल रही थी| वहीं मैं धीरे-धीरे इनके होठों का रसपान करने में लगी हुई थी, मेरा दिल इस समय इतना प्यासा था की मैं इनके होठों को अपनी गिरफ्त से छोड़ना ही नहीं चाहती थी!

अगले ही पल धीरे-धीरे इनके अधरों ने भी अपनी प्रतिक्रिया देनी शुरू कर दी, दरअसल ये एक सपना देख रहे थे जिसमें हम दोनों इस तरह एक दूसरे को प्यार कर रहे थे, तभी तो इनके होंठों ने धीरे-धीरे अपनी प्रतिक्रिया देनी शुरु कर दी थी| आयुष के जन्मदिन वाली रात के बाद से इन्होने मुझे 'छुआ' नहीं था, यही कारण था की मेरा मन अधिक प्यासा था| इनके अधरों के रसपान से मुझे जो सुख मिल रहा था, उसे पा कर मेरा मन अत्यधिक लालची हो चूका था और मैं नहीं चाहती थी की मुझे इतने दिनों बाद मिलने वाला ये सुख खत्म हो! लेकिन, हर अच्छी चीज कभी न कभी खत्म हो ही जाती है! वही मेरे साथ उस दिन हुआ, इधर हम पति-पत्नी एक दूसरे के अधरों का रसपान करने में मस्त थे की तभी आयुष एकदम से कूदता हुआ कमरे में आ घुसा और जोर से चिल्लाया; "पापा!" उसके अचानक आने से कमरे में जो शान्ति भंग हुई उससे हमारा चुंबन बाधित हो गया! शुक्र है की मेरी पीठ उस समय आयुष की तरफ थी जिससे वो कुछ देख नहीं पाया पर वो जान तो गया ही था की यहाँ क्या हो रहा था! आयुष की मौजूदगी के एहसास से मैं छिटक कर इनसे अलग हुई और शर्म के मारे फ़ौरन बाथरूम में घुस गई|

वहीं आयुष की आवाज सुन इनकी नींद खुल गई और ये एकदम से उठ बैठे| आयुष अपने स्कूल के कपड़े पहने हुए ही पलंग पर चढ़ा और इनके दोनों गाल चूमते हुए अपनी सुबह की गुड मॉर्निंग वाली पप्पी दी| इधर मैं लाज के मारे बाथरूम में चुपचाप खड़ी रही ताकि ये जान सकूँ की कहीं ये मेरे इस तरह बिना इन्हें पूछे-बताये चूमने से नाराज तो नहीं हो गए?!

"पापा जी, कल रात है न एक जादू हुआ?" आयुष भोलेपन से अपनी बात शुरू करते हुए बोला|

"अच्छा, बेटा जी? क्या जादू हुआ रात को?" इन्होने बिलकुल बच्चा बनते हुए आयुष से सवाल पुछा| इनका सवाल सुन आयुष बिलकुल छोटे बच्चों की तरह अपनी बात कहने लगा; "मैं है न, कल रात को अपने कमरे में सोया था| लेकिन, सुबह जब उठा तो मैं आपके कमरे में था? मैं रात को अपने कमरे से आपके कमरे में जादू से आया न?!" आयुष की बात सुन ये हँस पड़े और इनकी हँसी सुन मुझे इत्मीनान हुआ की ये मुझसे नाराज़ नहीं हैं इसलिए मैं बाथरूम से बाहर आ गई| मुझे देख इन्होने गर्दन से मेरी ओर इशारा करते हुए आयुष से कहा; "बेटा जी, ये जादू है न आपकी मम्मी जी का है!" इतना कह आयुष मेरी ओर देख कर मुस्कुराने लगा| "आपको पता है, मैंने आज क्या सपना देखा?" इन्होने आयुष से बात शुरू करते हुए पुछा तो आयुष थोड़ा आस्चर्यचकित हो कर इन्हें देखने लगा| इन्होने मेरी ओर फिर से देखा और बोले; "मैंने है न, सपना देखा की आप मैं और नेहा है न छुपन-छुपाई खेल रहे हैं| आप दोनों घर में छुपे हुए हो और मैं है न आप दोनों को ढूँढ रहा हूँ| तभी नजाने कहाँ से एक सफ़ेद-सफ़ेद परी आ गई और वो है न मुझसे बात करने लगी| हम दोनों सोफे पर बैठे बात कर रहे थे की तभी..." ये अपना पूरा सपना बता पाते उससे पहले ही आयुष उत्साह के मारे इनकी बात काटते हुए बोला; "और तभी मम्मी ने आपको kissi की! ही...ही...ही!!!!" आयुष खी-खी करता हुआ बोला| आयुष की बात सुन ये भी उसी के साथ हँसने लगे और इधर शर्म से मेरे गाल लालम-लाल हो गए| तभी नेहा कमरे में आई, उसने आयुष की बात सुन ली थी इसलिए वो उसे प्यार से डाँटते हुए बोली; "शैतान, चुप कर! तेरी जुबान बहुत चलने लगी है!" इतना कह नेहा ने आयुष को मारने के लिए झूठ-मूठ में हाथ उठाया, उधर आयुष डरने का ड्रामा करते हुए अपने पापा से लिपट गया ताकि वो उसे नेहा से बचाएँ| फिर नेहा मेरी कमर के इर्द-गिर्द अपने हाथ लपेटते हुए मेरा पक्ष लेते हुए बोली; "मम्मी, ये सब लड़के न बहुत शैतान होते हैं!" आज पहलीबार नेहा ने मेरा इस कदर पक्ष लिया था, मैंने अपना हाथ नेहा की पीठ पर रखा और उसे लाड करने लगी| उधर इन्होने नेहा को मेरा पक्ष लेता हुआ देख ये मुस्कुरा रहे थे जिस कारण मैं शर्म से लाल हुई जा रही थी|
[color=rgb(163,]जारी रहेगा भाग 5 में...[/color]
 

[color=rgb(97,]अठाईसवाँ अध्याय: पिता-पुत्री प्रेम[/color]
[color=rgb(243,]भाग -5[/color]


[color=rgb(26,]अब तक आपने पढ़ा:[/color]

"पापा जी, कल रात है न एक जादू हुआ?" आयुष भोलेपन से अपनी बात शुरू करते हुए बोला|

"अच्छा, बेटा जी? क्या जादू हुआ रात को?" इन्होने बिलकुल बच्चा बनते हुए आयुष से सवाल पुछा| इनका सवाल सुन आयुष बिलकुल छोटे बच्चों की तरह अपनी बात कहने लगा; "मैं है न, कल रात को अपने कमरे में सोया था| लेकिन, सुबह जब उठा तो मैं आपके कमरे में था? मैं रात को अपने कमरे से आपके कमरे में जादू से आया न?!" आयुष की बात सुन ये हँस पड़े और इनकी हँसी सुन मुझे इत्मीनान हुआ की ये मुझसे नाराज़ नहीं हैं इसलिए मैं बाथरूम से बाहर आ गई| मुझे देख इन्होने गर्दन से मेरी ओर इशारा करते हुए आयुष से कहा; "बेटा जी, ये जादू है न आपकी मम्मी जी का है!" इतना कह आयुष मेरी ओर देख कर मुस्कुराने लगा| "आपको पता है, मैंने आज क्या सपना देखा?" इन्होने आयुष से बात शुरू करते हुए पुछा तो आयुष थोड़ा आस्चर्यचकित हो कर इन्हें देखने लगा| इन्होने मेरी ओर फिर से देखा और बोले; "मैंने है न, सपना देखा की आप मैं और नेहा है न छुपन-छुपाई खेल रहे हैं| आप दोनों घर में छुपे हुए हो और मैं है न आप दोनों को ढूँढ रहा हूँ| तभी नजाने कहाँ से एक सफ़ेद-सफ़ेद परी आ गई और वो है न मुझसे बात करने लगी| हम दोनों सोफे पर बैठे बात कर रहे थे की तभी..." ये अपना पूरा सपना बता पाते उससे पहले ही आयुष उत्साह के मारे इनकी बात काटते हुए बोला; "और तभी मम्मी ने आपको kissi की! ही...ही...ही!!!!" आयुष खी-खी करता हुआ बोला| आयुष की बात सुन ये भी उसी के साथ हँसने लगे और इधर शर्म से मेरे गाल लालम-लाल हो गए| तभी नेहा कमरे में आई, उसने आयुष की बात सुन ली थी इसलिए वो उसे प्यार से डाँटते हुए बोली; "शैतान, चुप कर! तेरी जुबान बहुत चलने लगी है!" इतना कह नेहा ने आयुष को मारने के लिए झूठ-मूठ में हाथ उठाया, उधर आयुष डरने का ड्रामा करते हुए अपने पापा से लिपट गया ताकि वो उसे नेहा से बचाएँ| फिर नेहा मेरी कमर के इर्द-गिर्द अपने हाथ लपेटते हुए मेरा पक्ष लेते हुए बोली; "मम्मी, ये सब लड़के न बहुत शैतान होते हैं!" आज पहलीबार नेहा ने मेरा इस कदर पक्ष लिया था, मैंने अपना हाथ नेहा की पीठ पर रखा और उसे लाड करने लगी| उधर इन्होने नेहा को मेरा पक्ष लेता हुआ देख ये मुस्कुरा रहे थे जिस कारण मैं शर्म से लाल हुई जा रही थी|

[color=rgb(235,]अब आगे:[/color]

ये दोनों बच्चों को गोद में ले कर बाहर आये और उन्हें उनकी आज की परीक्षा के लिए कुछ जर्रूरी बातें समझाने लगे; "आयुष बेटा, एग्जाम देते समय आपने बिलकुल घबराना या रोना नहीं है| जब डर लगे तो अपने मन में भगवान जी का नाम लेना और कोई भी परेशानी हो या सवाल समझ में न आये तो अपनी टीचर जी से पूछना|" इन्होने पहले आयुष को प्यार से समझाया जिससे आयुष का डर कम हुआ! "नेहा बेटा, आपका पहला एग्जाम जनरल नॉलेज का होगा| यहाँ शहर में एग्जाम कुछ और तरीके से होते हैं, गाँव की तरह यहाँ आपको अपनी कॉपी में जवाब नहीं लिख कर देना होगा| आपकी क्लास में एक टीचर जी होंगी जो आपको लिखने के लिए कागज देंगी जिसे हम आंसर शीट (answer sheet) या सिर्फ शीट (sheet) कहते हैं| इस शीट पर आपको अपना नाम, क्लास, सेक्शन, रोल नंबर, सब्जेक्ट इत्यादि लिखना होगा| फिर टीचर जी बोर्ड पर जो सवाल लिखेंगी उन्हें आपने अपनी शीट में लिख कर जवाब लिखना होगा| सवाल ध्यान से पढ़ना और उसका जवाब साफ़-साफ़ अक्षरों में लिखना| बोर्ड पर लिखे सवालों में से जो सवाल आपको आसान लगे पहले उसका जवाब लिखना और जो सबसे मुश्किल सवाल हो उसका जवाब सबसे अंत में सोच-विचार कर लिखना| अगर लिखते-लिखते आपको दी हुई शीट खत्म हो जाए तो टीचर जी से और शीट माँग लेना| इधर-उधर देख कर अपना समय बर्बाद नहीं करना, सिर्फ अपने पेपर में ध्यान लगाना| कोई टेंशन नहीं लेना, बिलखुल घबराना नहीं, कुछ समझ न आये तो टीचर जी से पूछना|

आपका अगला एग्जाम ड्राइंग का होगा, तो जो भी ड्राइंग के लिए टॉपिक मिले उसे आराम से बनाना| ड्राइंग में टीचर हमेशा पास कर देती है इसलिए उसकी बिलकुल चिंता मत करना|" इन्होने नेहा को एग्जाम की विस्तृत जानकारी दी जिसे नेहा ने अपने पल्ले बाँध लिया| बच्चे पहलीबार एग्जाम दे रहे थे इसलिए थोड़ा-थोड़ा अब भी घबराये थे, लेकिन उनकी ये घबराहट इस एग्जाम रुपी चुनौती का सामना कर के ही दूर होती|

इन्होने बड़े प्यार से दोनों बच्चों को सारी बात समझाई| इतने में पिताजी बच्चों को अपनी एक सीख देते हुए बोले; "बेटा पेपर ईमानदारी से देना, कोई बेईमानी या नकल मत करना!" ये सबक पिताजी हमेशा इन्हें पेपर देने से पहले दिया करते थे| पिताजी का ये सबक सुन ये मुस्कुराने लगे, इनकी मुस्कान का सही कारण क्या था ये हम में से कोई नहीं जानता था| उधर बच्चों ने जब अपने दादा जी की बात बड़े गौर से सुनी तथा दोनों बच्चों ने अपने सर हाँ में हिलाकर बात मानते हुए हाँ कहा|

बच्चों को उनकी स्कूल वैन में बिठा, घर आ कर ये नहाने लगे, मैंने भी नाश्ता बनाने की तैयारी शुरू कर दी| नहा कर बाहर आ कर ये माँ-पिताजी के पास बैठे काम से जुडी बातें कर रहे थे, इन्होने नेहा से कल रात हुई बात का जिक्र माँ-पिताजी से जरा भी नहीं किया, क्यों इसका कारण मुझे नहीं पता था| पिताजी ने इन्हें आज के कामों की लिस्ट बना कर दी तो ये बोले; "पिताजी, एक जर्रूरी काम है, उसे निपटा कर मैं साइट पर पहुँच जाऊँगा|" पिताजी ने आगे कुछ नहीं पुछा तथा तैयार होने चले गए| ये भी उठे और कमरे में आ कर तैयार होने लगे, इधर मेरे मन में रोमाँस के कीड़े कुलबुला रहे थे इसलिए मैं भी इनके पीछे-पीछे कमरे में आ गई| ये अलमारी से अपने लिए कमीज, पैंट, ब्लैज़र और टाई निकाल रहे थे तथा मेरे लिए इनपर प्यारभरा हमला करने का यही सही समय था| ये कमीज पहन कर टाई बाँधने में व्यस्त थे जब मैंने इन्हें पीछे से जा कर अपनी बाहों से जकड़ लिया| मेरे इस तरह इन्हें अपनी बाहों में जकड़ने पर इन्होने कोई प्रतिक्रिया नहीं दी तथा अपनी टाई बाँधने में लगे रहे| मैंने इन्हें थोड़ा उकसाने के लिए इनकी पीठ में अपनी नाक रगड़ी और जोर से आवाज करते हुए इन्हें पीठ पर चूम लिया; "उम्माह!" मेरे इतना करने पर भी इन्होने अपनी कोई प्रतिक्रिया नहीं दी इसलिए मैंने ढीठ बनते हुए प्यार से इनसे सवाल किया; "इतना बन-ठन कर कहाँ जाने की तैयारी हो रही है?" मैंने बात शुरू करते हुए प्यार से इन्हें उल्हाना देते हुए पुछा| मेरे पूछे सवाल का जवाब इन्होने बड़ी गंभीरता के साथ बस एक शब्द में दिया; "स्कूल"! मैंने फ़ौरन इन्हें अपनी पकड़ से आजाद किया और शीशे में इनका प्रतिबिम्ब देखने लगी, इनके चेहरे पर गंभीरता थी तथा इनका ध्यान अपनी टाई की क्नॉट (knot) बाँधने में था| "क्यों?" मैंने भोयें सिकोड़ते हुए हैरान तथा चिंतित होते हुए पूछा जिसके जवाब में इन्होने बस एक शब्द कहा; "नेहा!" इनकी आवाज में में मुझे क्रोध महसूस हुआ, मुझे डर था की कहीं ये गुस्से में आ कर स्कूल में कुछ ऐसा-वैसा कर दिया तो?! "मैं भी चलूँगी!" नेहा की कल रात कही बातों से ये बहुत दुखी थे, किसी बच्चे को अपनी बेटी को इस तरह मानसिक रूप से प्रताड़ित करते हुए देख पाना इनके लिए नामुमकिन था| कहीं ये अपना आपा न खो दें इसलिए मेरा इनके साथ आना जर्रूरी था| "ठीक है, जल्दी तैयार हो जाओ हमें बच्चों के लंच टाइम तक पहुँचना है|" इतना कह इन्होने अपना ब्लैज़र उठाया और कमरे से बाहर चले गए| मैं भी फटाफट तैयार हुई और बाहर आ गई| इनका गुस्सा शांत करने के लिए मैं ने इनकी पसंद का नाश्ता बनाया, पेट खुश होगा तो मन तो खुश हो ही जायेगा| लेकिन मेरी इस कोशिश का भी इन पर कोई असर नहीं हुआ, इनका ध्यान अब भी नेहा पर लगा हुआ था|

उधर बच्चों की परीक्षा शुरू हो चुकी थी, आयुष की परीक्षा सबसे छोटी थी और आयुष का नाम 'A' अक्षर से होने के कारन उसका नाम लिस्ट में सबसे ऊपर भी था| टीचर के सामने आयुष घबराया हुआ था मगर उसकी टीचर ने उससे बड़े आराम से सवाल-जवाब किये तथा अच्छे नंबर देते हुए पास भी कर दिया| वहीं नेहा का पहला पेपर जनरल नॉलेज का था जिसकी नेहा ने इनके साथ कौन बनेगा करोड़पति खेलते हुए अच्छे से तैयारी कर ली थी| नेहा ने अपने दोनों पेपर मात्र 1 घंटे में पूरे कर दिए थे तथा आधा घंटा उसने आराम से बैठ कर भगवान जी का नाम लिया ताकि उसे अच्छे नंबर मिलें| परीक्षा खत्म होने के बाद भी बच्चों को स्कूल खत्म होने तक स्कूल के भीतर ही रहना था, इस बीच उनकी टीचर कल होने वाली परीक्षा की तैयार करवा रहे थे| बच्चों को जरा सी भी भनक नहीं थी की उनके मम्मी-पापा उनसे मिलने उनके स्कूल आ रहे हैं|

इधर घर में, नाश्ता करते समय माँ-पिताजी ने मुझे और इन्हें एक साथ तैयार देखा तो उन्होंने हमारे साथ जाने के बारे में पुछा, जिसके जवाब में ये बात गोल घुमाते हुए बोले; "पिताजी, नेहा की उसकी क्लास के दोस्तों से दोस्ती कराने हम दोनों बच्चों के स्कूल जा रहे हैं|" पिताजी को इनका ये निर्णय अच्छा लगा इसलिए वो और माँ बड़े प्रसन्न हुए| इधर मैं सोच रही थी की दोस्ती कराने जा रहे हैं या बच्चों पर चिल्लाने क्योंकि मैं इनके भीतर गुस्से के हाव-भाव समझ पा रही थी!

साढ़े दस बजे हम दोनों मियाँ-बीवी नाश्ता कर के बच्चों के स्कूल जाने के लिए घर से निकले| इनके चेहरे पर अब भी गंभीर भाव थे, गाडी में बैठे हुए भी इन्होने मुझसे कोई बात नहीं की, ये बस ख़ामोशी से गाडी चलाने में मगन रहे| इन्हें यूँ खामोश देख मेरी हिम्मत नहीं हुई की मैं इनसे कुछ पूछ सकूँ, डरती थी की कहीं कुछ पुछा और इन्होने मुझे डाँट दिया तो?! कुछ देर बाद इन्होने गाडी एक जगह रोकी और ये कुछ समान लेने के लिए अकेले निकले तथा मुझे गाडी में अकेले बैठे रहने को कहा, जब ये वापस आये तो इनके दोनों हाथों में दो पॉलीथीन थी| इन्होने दोनों पॉलीथीन गाडी की पिछली सीट पर रखी और गाडी फिर से बच्चों के स्कूल की ओर चल पड़ी| गाडी में पीछे रखी उन पॉलीथीन में से खाने की बहुत जोरदार खुशबु आ रही थी, मैं चुपचाप बैठी यही सोचने में लगी थी की आखिर उन पॉलीथीन में कौन सी खाने की चीज है और उसे ये क्यों बच्चों के स्कूल ले जा रहे हैं?

इधर इन्होने मेरे चेहरे पर आई डर की लकीरें देख ली थीं और ये जान गए थे की मेरे मन में कौन सा डर बैठा है; "Don't worry, मैं स्कूल में किसी से लड़ाई करने नहीं जा रहा|" इन्होने एक नकली मुस्कान लिए हुए कहा जिससे मुझे थोड़ी तसल्ली मिली और मेरे दिल में मची हलचल शांत हुई| आख़िरकार हम स्कूल पहुँचे, जैसे ही हम नेहा की क्लास के बाहर पहुँचे की तभी लंच टाइम की घंटी बज गई| नेहा की क्लास में जो टीचर थीं वो बाहर निकलीं, वो इन्हें पहले से ही जानती थीं क्योंकि नेहा के स्कूल में पहले दिन ये उनसे मिले थे| इन्होने मुस्कुराते हुए टीचर जी से hi-hello की तथा मेरा तार्रुफ़ उनसे कराया; "मैम, ये संगीता हैं, नेहा और उसके भाई आयुष की मम्मी|" मैंने मुस्कुराते हुए हाथ जोड़कर टीचर जी से नमस्ते की तथा उन्होंने भी हाथ जोड़कर मुझसे नमस्ते की| "मैम, एक्चुअली (actually) हम नेहा से मिलने आये थे!" इन्होने मुस्कुराते हुए कहा तो टीचर जी मुस्कुराते हुए बोलीं;"ओह! नो प्रॉब्लम!" इतना कह वो चली गईं तथा हम दोनों ने क्लास के भीतर प्रवेश किया|

चूँकि टीचर जी अभी-अभी क्लास से निकली थीं इसलिए अभी तक कोई भी बच्चा क्लास से बाहर नहीं गया था, कुछ बच्चे अपने स्कूल बैग से अपना टिफ़िन निकाल रहे थे तो कुछ बच्चे अपने-अपने टिफ़िन ले कर क्लास से बाहर जाने वाले थे| "Hey guys!" ये मुस्कुराते हुए सभी बच्चों का ध्यान अपनी ओर आकर्षित करने के लिए बोले| सभी बच्चे इन्हें हैरान हो कर देखने लगे, मैं खामोश चेहरे पर मुस्कान लिए और हाथों में दोनों पॉलीथीन पकडे इनके साथ खड़ी थी| "I'm Neha's father..." इन्होने इतना कहा ही था की नेहा अपनी सीट से उठी और इनकी बगल में आ कर खड़ी हो गई| "बच्चों, आप में से अक्षय यादव एंड पार्टी कौन हैं?" इन्होने मुस्कुराते हुए सभी बच्चों से पुछा| ये चाहते तो ये सवाल ये सीधा नेहा से पूछ सकते थे मगर नहीं, इन्होने जानबूझ कर क्लास के सभी बच्चों से अक्षय यादव के बारे में पुछा क्योंकि ये नहीं चाहहते थे की बच्चों को लगे की नेहा घर में दूसरे बच्चों की शिकायत करती है|

खैर इनके अक्षय यादव के बारे में बच्चों से पूछने पर सभी बच्चों की नजर तीसरी लाइन में आखरी बेंच पर बैठे लड़के की तरफ घूम गई| "ओह्ह्ह! There you are!" इन्होने मुस्कुराते हुए कहा तथा प्यार से उस बच्चे को अपने पास बुलाते हुए बोले; "Come here." इन्हें देख कर उस बच्चे की सिट्टी- पिट्टी गुल हो गई थी और वो बेचारा लड़का हिचकिचाता हुआ इनके सामने आ कर हाथ पीछे बाँधे खड़ा हो गया| "आप राम यादव जी के सुपुत्र हो न?" इन्होने अक्षय से सवाल किया, जिसके जवाब में अक्षय डर के मारे सर हाँ में हिलाते हुए "हाँ" बोला| "तो बताओ की आपको नेहा से क्या प्रॉब्लम है?" इन्होने अक्षय से सीधा सवाल पुछा| गौर करने वाली बात ये थी की इनकी आवाज में कोई गुस्सा नहीं था, ये बस साधारण ढंग से अक्षय से बात कर रहे थे| "आ...अंकल..व्...वो...मतलब...कु...कुछ नहीं!" अक्षय डर के मारे हकलाते हुए बोला| अक्षय की शक्ल पर डर के मारे बारह बारह बजे हुए थे|

"पक्का कोई प्रॉब्लम नहीं आपको नेहा से?" इन्होने फिर से अपना सवाल पुछा तो अक्षय न में अपनी गर्दन हिलाने लगा| "तो फिर आप नेहा को क्यों चिढ़ाते हो?" इन्होने बिना सख्ती दिखाये अपना सवाल पुछा| "स...सॉरी..अंकल!" अक्षय घबराते हुए बोला| अब उसकी सॉरी सुन कर इनका मकसद पूरा नहीं होता इसलिए इन्होने अक्षय को उसी की भाषा में सबक सिखाते हुए कहा; "क्या कह कर चिढ़ाते हो आप नेहा को?" इन्होने फिर अपना सवाल पुछा मगर अक्षय चुप रहा| "यही न की नेहा गाँव की गँवार है और उसकी मम्मी भी गाँव की गँवार है!" इनकी बात सुन अक्षय के प्राण सूखने लगे थे| "अगर गाँव में रहने से, गाँव के स्कूल में पढ़ने से नेहा और उसकी मम्मी गँवार हो गए तो बेटा आपके मम्मी-पापा भी तो गाँव के रहने वाले हैं, फिर तो आप भी गाँव के गँवार हुए न?" इनकी बात सुन क्लास में सन्नाटा पसर गया था, उधर अक्षय शर्मिंदा हो चूका था| "जो सहूलतें आपके पास हैं वो सहूलतें नेहा के पास नहीं थी मगर फिर भी नेहा गाँव में अपने स्कूल में हमेशा फर्स्ट आती थी और यहाँ भी जब नेहा क्लास में फर्स्ट आएगी, तब भी आप नेहा को गाँव की गँवार कहोगे?" इनके पूछे सवाल से अक्षय शर्म से पानी-पानी हो चला था|

"और क्या कह कर चिढ़ाते हो आप नेहा को?" इन्होने बात को और कुरेदते हुए पुछा मगर अक्षय चुपचाप इनसे नज़र चुराता रहा| इन्हें अक्षय की हालत देख कर कतई दया नहीं आ रही थी, ये तो आज उस बच्चे को शर्मिंदा करने पर अड़े थे; "वो..क्या था...हाँ...की तेरे पापा ने अपने से बड़ी उम्र वाली लड़की से शादी की!" ये कहते हुए इन्होने क्लास के सभी बच्चों की तरफ देखा और बोले; "बच्चों. आपको पता है ऐसी बातें कौन करता है?" इन्होने मुस्कुराते हुए क्लास के बच्चों से पुछा मगर सभी बच्चे अचरज भरी आँखों से इन्हें देख रहे थे: "गाँव देहात में जो बूढी 'जनानियाँ' होती हैं न, जिन्हें कोई काम धाम नहीं होता बस दूसरे लोगों की चुगली करनी होती हैं, वही 'जनानियाँ' ऐसी बातें करती हैं|" इन्होने अक्षय की तुलना 'जनानियों' से करते हुए ये बात इस तरह मज़ाक में कही की क्लास के सभी बच्चों ने जोर से ठहाका लगा कर अक्षय पर हँसना शुरू कर दिया| छोटे लड़कों को अगर लड़की कहा जाए तो वो हमेशा गुस्सा हो जाते हैं और यहाँ तो इन्होने अक्षय को 'जनानी' कहा था, तो बेचारे को गुस्सा आना तय था मगर सभी बच्चों को अपने ऊपर हँसता हुआ देख अक्षय का गुस्सा खत्म हो चूका था तथा शर्म ने उसे जमीन में गड़ने पर मजबूर कर दिया था| "आपके पापा, जिन्हें अपने घर लड़का पैदा होने का इतना गुरूर है, उन्हें जब पता चलेगा की आप 'जनानियों' जैसी हरकत करते हो तो सोचो उन्हें कैसा लगेगा?" इन्होने अक्षय के कँधे पर हाथ रखते हुए कहा| एक बार फिर इनकी बात सुन क्लास के सभी बच्चे अक्षय पर दहाड़ें मार कर हँसने लगे, सभी बच्चों को यूँ हँसता हुआ देख आखिर मेरी भी हँसी छूट गई! वहीं ये बाप-बेटी हँस तो नहीं रहे थे मगर दोनों के चेहरे पर मुस्कान जर्रूर थी| उधर, सभी को अपने ऊपर हँसता हुआ देख अक्षय की बैंड बज चुकी थी और उसने अब रोना शुरू कर दिया था; "सॉरी अंकल!" अक्षय रोते हुए इनसे बोला तो इन्होने प्यार से अक्षय को समझाया; "बेटा, कैसा लगा जब खुद का मज़ाक बनता है?" अक्षय को उसका सबक मिल गया था इसलिए इन्होने उसे प्यार से समझाते हुए कहा; "अगर आप नेहा के मोटे होने पर उसे चिढ़ाते तो मैं इसे आपका बचपना समझ कर कुछ नहीं कहता मगर आपने न केवल नेहा के गाँव से होने का मज़ाक उड़ाया बल्कि आपने उसकी मम्मी का भी मज़ाक उड़ाया, हमारे (मेरे और इनके) रिश्ते का मज़ाक उड़ाया! आपको पता नहीं की नेहा के दिल को कितनी चोट पहुँचती थी जब आप उसे इस तरह बोल कर चिढ़ाते थे और किसी को उसका दोस्त नहीं बनने देते थे| नेहा हमसे, अपने मम्मी-पापा से ये बात छुपाती थी और अकेली रोती थी| वो तो हमने उससे जोर दे कर पुछा तब जा कर उसने ये सारी बात बताई| अगर आपको सॉरी बोलना ही है तो नेहा से कहो क्योंकि आपने उसके दिल को बहुत दुखाया है|" अक्षय ने इनकी बात सुन फ़ौरन अपने कान पकडे और सिसकते हुए नेहा से बोला; "I'm sorry नेहा! आ...आगे से मैं...ऐसा कोई मज़ाक...नहीं करूँगा! I'm really really sorry!" अक्षय की सॉरी सुन नेहा ने उसे तुरंत माफ़ कर दिया और मुस्कुराते हुए बोली; "Its okay, I forgive you!" नेहा का मन उमंगों से भर उठा था की अब उसे कोई बच्चा नहीं चिढ़ाएगा और सब बच्चे उसके दोस्त बनेंगे, यही कारण था की उसके चेहरे पर सुकून की मुस्कान खिल गई थी| वहीं क्लास के सभी बच्चे नेहा के अक्षय को माफ़ कर देने से खुश हो गए थे और उनकी इसी ख़ुशी में इन्होने चार चाँद लगा दिए; "बच्चों, मैं और आपकी आंटी (यानी मैं) आप सभी के लिए कुछ लाये हैं|" ये कहते हुए इन्होने मुझसे एक पॉलीथीन ले ली, अब मैंने गौर से देखा तो पाया की इनके पास जो पॉलीथीन थी उसमें समोसे तथा मेरे पास जो पॉलीथीन थी उसमें कपकेक्स (cupcakes) थे! हमने मिलकर बारी-बार सभी बच्चों को दो-दो समोसे तथा एक-एक कपकेक बाँटा, अंत में जो थोड़े समोसे और कपकेक बच गए थे उन्हें इन्होने टेबल पर रखा, ये कुछ बोलते उससे पहले ही मैं बोल पड़ी; "बच्चों अगर आपको और चाहिए तो यहाँ से ले लेना, बिलकुल शर्माना नहीं|" मैंने मुस्कुराते हुए कहा|

सभी बच्चों को समोसे और कपकेक खाते देख हम दोनों को बहुत मज़ा आ रहा था, तभी इन्होने एक आखरी बार बच्चों का ध्यान अपनी ओर आकर्षित करते हुए पुछा; "तो बच्चों, अब तो आपको नेहा से दोस्ती करने में कोई प्रॉब्लम नहीं है न?" इनके पूछे इस सवाल के जवाब में सभी बच्चे ख़ुशी से सर न में हिलाते हुए एक साथ बोले; "नहीं अंकल जी!" बच्चों की बात सुन ये मुस्कुराये और हाथ जोड़ कर सभी बच्चों को थैंक यू कहा|

सभी बच्चे इनके आचरण से बहुत प्रभावित हुए थे और मुस्कुरा रहे थे| वहीं नेहा को आज अपने पापा पर इतना गर्व हो रहा था की वो गर्व से फूली नहीं समा रही थी| नेहा को ख़ुशी से यूँ मुस्कुराते देख इन्होने नेहा से कहा; "बेटा, हम घर जा रहे हैं| आप जा कर अपने दोस्तों के साथ खाना खाओ और आयुष को भी अपने दोस्तों से मिलवाओ|" इनकी बात सुन नेहा आयुष को बुलाने के लिए भागी और हम दोनों ख़ुशी-ख़ुशी क्लास से बाहर आ गए|

आयुष के मुँह से मैंने स्कूल की कैंटीन के प्रसिद्ध छोले कुलचों के बारे में सुन रखा था की यहाँ पर सभी बच्चे वही खाते हैं, वो बात और है की नेहा और आयुष ने कभी छोले कुलचे नहीं खाये क्योंकि नेहा हमेशा ही आयुष को बाहर का ज्यादा खाने से मना कर देती थी| खैर, मुझे आज छोले-कुलचे खाने थे इसलिए मैंने इनसे थोड़ी जिद्द करते हुए कहा; "जानू, मुझे स्कूल वाले छोले-कुलचे खाने हैं!" मेरी बात सुन ये मुस्कुराये और हम दोनों स्कूल की कैंटीन पहुँचे, कैंटीन में बच्चों के बैठने के लिए सीढ़ियाँ बनी हुई थी तो मुझे सीढ़ी पर बैठने को कह ये मेरे लिए एक प्लेट छोले-कुलचे ले आये| इतने में वहाँ आयुष दौड़ता हुआ आ पहुँचा, दरअसल नेहा ने आयुष को हमारे आने के बारे में बता दिया था और आयुष हमें ही खोजता हुआ कैंटीन आ पहुँचा था| आयुष यहाँ अकेला नहीं आया था बल्कि अपनी प्यारी सी दोस्त यानी अपनी गर्लफ्रेंड को भी साथ ले कर आया था| उस छोटी सी प्यारी सी गुड़िया को देख मेरे मुँह से अपने आप निकला; "awwwww!!!"

उस छोटी सी बच्ची ने आ कर मुझे और इनको नमस्ते बोला, उस बच्ची की मीठी सी आवाज सुन मेरे मन में एक शैतानी जागी; "ओह्ह! तो ये है तेरी गर्लफ्रेंड?!" मैंने आयुष की टाँग खींचते हुए कहा| मेरी बात सुन आयुष शर्म के मारे लालम-लाल हो गया, ठीक वैसे ही जैसे मैं सुबह आयुष के कारण शर्म के मारे लाल हो गई थी! उधर वो प्यारी सी गुड़िया, यानी आयुष की गर्लफ्रेंड शर्मा रही थी और शर्म से उसके गोर-गोर गाल लाल हो रहे थे| अपनी गर्लफ्रेंड को शर्माते देख आयुष मुझ पर प्यार से गुस्सा होते हुए, अपने दाँत गुस्से से पीसते हुए बोला; "मम्मी!!!" मैंने जब आयुष की ओर देखा तो पाया की वो मुझे आँखें दिखा कर चुप होने को कह रहा है| आयुष की हवा टाइट होते देख मुझे हँसी आ गई, मुझे हँसता हुआ देख आयुष शर्मा गया और जा कर अपने पापा जी की टाँगों से लिपट गया| अब सारी बात इन्हें सँभालनी थी लेकिन पहले इन्हें अपनी हँसी छुपानी थी! बड़ी मुश्किल से इन्होने अपनी हँसी छुपाई और उस छोटी सी, नन्ही सी बच्ची से बोले; "सॉरी बेटा, आयुष और उसकी मम्मी हैं न बहुत मज़ाक करते हैं!" फिर इन्होने एकदम से बात बदली और आयुष से बोले; "बेटा, अपने फ्रेंड को कुछ खिलाओगे नहीं? ये लो पैसे और जा कर एक प्लेट छोले-कुलचे ले आओ|" आयुष इनसे पैसे ले कर जाने ही वाला था की मैंने इनकी बात पर चुटकी लेते हुए कहा; "अरे, एक प्लेट में दो लोग कैसे खाएँगे?" मैंने हँसते हुए कहा| जब इन्होने उस बच्ची से कह ही दिया की कह ही दिया की मैं आयुष से बहुत मज़ाक करती हूँ तो भला मैं क्यों पीछे रहूँ?! वहीं, मेरी बात सुन आयुष की हालत देखने लायक थी, वो मुझे आँख दिखा कर डरा रहा था की मैं उसकी गर्लफ्रेंड के सामने उसकी बेइज्जती न करूँ और अपना मुँह बंद रखूँ! लेकिन आयुष का चेहरा देख कर मुझे और भी हँसी आ रही थी और मैं हँसे जा रही थी| ये भी अपनी हँसी नैन रोक पा रहे थे और हम सभी से मुँह फेर कर हँस रहे थे!

आखिर आयुष मुझसे नाराज हो कर अपनी दोस्त मतलब गर्लफ्रेंड के लिए छोले कुलचे लेने चला गया| उसके जाते ही मैंने उस बच्ची को अपने पास बिठा लिया और उससे उसके मम्मी-पापा, भाई-बहन, दादा-दादी सभी के हाल पूछने लगी| मुझे उस बच्ची से इतनी दिलचस्पी ले कर बात करते देख ये मुस्कुराये जा रहे थे, इनकी मुस्कान का कारण ये था की मैं उस बच्ची से ऐसे बात कर रही थी मानो मैं आयुष के रिश्ते की बात कर रही हूँ| :lotpo1:

खैर, आयुष छोले-कुलचे ले आया था और अपनी गर्लफ्रेंड के साथ बाँट कर खा रहा था| वहीं मैं और ये छोले-कुलचे खा रहे थे, तभी नेहा हमें ढूँढती हुई कैंटीन आ पहुँची तथा इनकी टाँगों से लिपट गई! नेहा की आँखें भीगी हुई थीं और अपनी बेटी को इस तरह भावुक देख ये अचम्भे में थे; "मेरा बच्चा...क्या हुआ?" इन्होने हाथ में पकड़ा हुआ कुलचा मुझे थमाया और हाथ रूमाल से पोंछ नेहा के आँसूँ पोछते हुए बोले; "क्या हुआ बेटा? किसी ने कुछ कहा आपसे?" इन्होने चिंतित होते हुए नेहा से पुछा| नेहा ने अपना रोना काबू किया और सिसकते हुए बोली; "थ..थैंक यू...प्...पापा जी!" नेहा को यूँ रोता हुआ देख ये भावुक हो गए थे मगर ये रोये नहीं बल्कि नेहा को प्यार से समझाते हुए बोले; "मेरा प्यारा बच्चा है न?! मेरा बहादुर बच्चा, आज से बिलकुल रोना नहीं हैं! आज से मेरे बच्चे को बहादुर बनना होगा, मम्मी-पापा हर जगह नहीं होते हैं इसलिए आपको अब खुद अपने लिए स्टैंड लेना होगा, फाइट करना होगा ताकि आप किसी भी मुसीबत का सामना डट के कर सको! You're my strong girl and I'm very proud of you!" ये कहते हुए इन्होने नेहा के भीतर जमाने से लड़ने की ताक़त फूँक दी थी| रास्ता इन्होने नेहा को दिखा दिया था अब आगे की लड़ाई उसे अपने बल-बूते पर लड़नी थी| इनकी जोश से भरी बात सुन नेहा ने हाँ में सर हिलाया तथा इनके गाल पर अपनी मीठी सी पप्पी दी| इन्होने नेहा को अपनी बगल में बिठाया तथा उसे अपने हाथ से छोले-कुलचे खिलाने लगे|

बच्चों के साथ उन्हीं के स्कूल में लंच कर के आज खूब आनंद आया था| वहीं नेहा को उसकी जिंदगी की सही राह दिखाने में आज ये कामयाब हुए थे इसलिए आज इनके चहेरे पर सुकून भरी मुस्कान फैली हुई थी| इन्हें यूँ खुश देख मैंने मन ही मन सोच रहे थी की क्यों न आज इनपर फिर से 'चान्स' मारूँ?! इन्होने अभी जो कपड़े पहने थे उन्हें पहन कर ये साइट पर नहीं जा सकते थे, इसलिए कपड़े बदलने के लिए इन्हें मेरे साथ घर चलना था और वहीं मुझे इन्हें अपने प्यार से बहकाना था|

घर पहुँच कर माँ ने पुछा की हम दोनों कहाँ गए थे तो इन्होने माँ को सारी बात बता दी, सारी बात जानकर जहाँ एक तरफ माँ को बहुत ख़ुशी हुई की इन्होने बहुत बुद्धिमती के साथ नेहा को सही रास्ता दिखाया वहीं नेहा की कल रात बताई बातों से माँ को बहुत दुःख हुआ था| बहरहाल, माँ ने अपने दुःख को हम पर जायज़ नहीं किया था| माँ से बात कर ये कपड़े बदलने बाथरूम में घुस गए, वहीं मैं भी माँ से नजरें बचाती हुई कमरे में आ गई और कमरे का दरवाजा बंद कर बाथरूम के दरवाजे के सामने कुछ कदम की दूरी पर अपनी कमर पर दोनों हाथ रखे हुए इनके बाथरूम से बाहर निकलने का इंतज़ार करने लगी| जैसे ही इन्होने बाथरूम के दरवाजे की कुण्डी खोली मैं दो कदम चलते हुए ठीक बाथरूम के दरवाजे के सामने आ गई, ये बाथरूम से बाहर निकले ही थे की मैं एकदम से इनके सीने से कस कर लिपट गई!

हाय!!! इनके जिस्म की वो गर्माहट जो इनके सीने से निकल कर मेरे बदन में प्यार की आग लगाने लगी थी, मैं तो आँख मूँदें उस गर्माहट से पिघलने में व्यस्त हो गई थी! 5 मिनट बाद इनके बोलने से मेरी तंद्रा भंग हुई, लेकिन इन 5 मिनटों में मेरा जिस्म इनके प्यार को पाने के लिए लालहित हो चूका था! "यार, अब छोडो भी! मुझे साइट पर जाना है!" इन्होने मुस्कुराते हुए कहा| ऐसा नहीं था की ये मेरे जिस्म में उठी इन्हें पाने की प्यास को नहीं समझ पा रहे थे, ये तो बस इनकी मेरे प्रति नाराजगी थी जो इन्हें मेरे नजदीक नहीं आने दे रही थी| खैर, मैं भी बड़ी ढीठ हूँ, इनके बोलने से मैंने इन्हें अपनी बाहों से आजाद कर आलिंगन तो तोड़ दिया मगर कस कर इनकी दाहिने हाथ की कलाई को थाम लिया! "न जाओ साइयाँ, छुड़ा कर बाइयाँ! कसम तुम्हारी मैं रो पड़ूँगी!" मैंने गाने के बोल गुनगुनाते हुए इन्हें उल्हाना दिया की मुझे इस तरह प्यार की आग में जलता हुआ छोड़कर न जाओ| मेरे उल्हाना देने का जवाब इन्होने भी गाने के बोल गुनगुनाते हुए दिया; "जाने दो, जाने दो मुझे जाना है! वादा जो किया है वो निभाना है|" वादे से इनका मतलब था पिताजी द्वारा दिए गए काम इन्हें पूरे करने थे| अब मेरा जवाब भी गाने के रूप में था; "तू न जा मेरे बादशाह, बादशाह! एक वादे के लिए एक वादा तोड़ के!" मेरे कहे इन गानों के बोलों से ये मुस्कुरा दिए और बोले; "अच्छा जी, बोलो क्या काम है?"

"अजी काम तो कुछ नहीं है, हमें तो बस आपका साथ चाहिए!" मैंने इन्हें अपने और दिवार के बीच दबाते हुए आँखें नचा कर कहा| ये मेरी बात का मतलब समझ गए और मुझे सताते हुए बोले; "आज कुछ ज्यादा ही रोमांटिक नहीं हो रही तुम?"

"अजी हमें तो आपको देखते ही रोमाँस छूटने लगता है!" मैंने अपना निचला होंठ दबाते हुए इन्हें उकसाते हुए कहा| लेकिन मेरे इतने उकसाने भर से कहाँ काम चलना था इसलिए ये हाजिर जवाब देते हुए बोले; "आज का तुम्हारा रोमाँस का कोटा पूरा हो गया! अब छोडो मुझे और जाने दो!" इतना कह इन्होने धीरे से मुझे दूर धकेलने की कोशिश की| रोमाँस का कोटा पूरा होने से इनका तातपर्य था जो आज सुबह मैंने चोरी से इनके लबों को अपने लबों में कैद कर लिया था! बहरहाल इन्होने मुझे धीरे से खुद से दूर धकेलने की कोशिश की थी मगर मैं अड़ी रही और इन्हें अपने तथा दिवार के बीच दबाये रखा| "अरे ऐसे कैसे छोड़ दें!" मैंने पुरानी फिल्मों के विलन के अंदाज में अपनी बात को भारी करते हुए कहा| इस समय ये पुरानी फिल्म की हेरोइन थे और मैं विलन जो की आज इनकी इज्जत लूटने वाली थी!
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लेकिन, इन्हें बहलाने-फुसलाने की इतनी मेहनत करने पर भी मेरे हाथ कुछ नहीं लगा, वैसे एक तरह से अच्छी ही था की ये इतनी आसानी से फिसलते नहीं थे वरना क्या पता कोई और लड़की इन्हें फिसला लेती तो?! खैर, मेरे इस विलन के अंदाज को देख, बजाए रोमांटिक होने के ये थोड़े से चिड़चिड़े हो गए थे; "पहले ही आज सुबह तुमने मुझे धोके से kiss कर लिया न?!" इनके चिड़चिड़ेपन को समझने की बजाए मैं इनसे थोड़ी तर्क करने लगी; "तो? क्या पहले मैंने कभी आपको धोके से kiss नहीं किया?" मैं इस समय कुछ सोच नहीं रही थी, मेरे लिए अपने पति को धोके से या बिना बताये चूमना गलत नहीं था इसलिए मैं इनकी बात को हल्के में ले रही थी| "बिलकुल किया है (अर्थात धोके से इन्हें चूमना) मगर तब मुझे तुम्हें छूने की छूट थी, लेकिन अब नहीं इसलिए..." इन्होने जानबूझ कर अपनी बात अधूरी छोड़ दी| इनकी आवाज में मुझे इनका गुस्सा, इनकी नाराजगी साफ़ महसूस हुई| मेरे आयुष के जन्मदिन वाली रात किये इनसे दुर्व्यवहार से ये अब भी गुस्सा थे, अब सिवाए माफ़ी माँगने के मैं कुछ कर नहीं सकती थी इसलिए मैंने रुनवासी आवाज में कहा; "I'm really sorry जी! अब तो माफ़ कर दो मुझे! वादा करती हूँ की आगे से फिर कभी ऐसी गलती नहीं करुँगी! प्लीज!!!" मेरे इस तरह गिड़गिड़ाने पर भी इन्होने मुझे माफ़ नहीं किया और बिना कुछ कहे साइट पर चले गए|

उस पल मैंने खुद को सैकड़ों गालियाँ दी, मैं अच्छी तरह से जानती थी की ये मुझसे क्या चाहते हैं, मुझे इन्हें बस अपने बदसलूकी करने का कारण बताना था मगर मैं जानबूझ कर इन्हें वो कारण बता नहीं पा रही थी| मेरा मन कहता था की वो कारण जान कर हमारे बीच दूरियाँ आ जाएँगी और मैं इन्हें खुद से दूर नहीं कर सकती थी| मैंने खुद को बहुत कोसा की आखिर मैंने क्यों उस दिन इनका दिल इस कदर तोड़ दिया?! वो अधिकार (मुझे प्यार करने का अधिकार) जो मैंने अपनी ख़ुशी से इन्हें दिया था वो मैंने अपने गुस्से के चलते न चाहते हुए भी इनसे क्यों छीन लिया?! मैं इनकी नाराजगी को जायज ठहरा रही थी, क्योंकि अगर इन्होने मेरे साथ इस तरह व्यवहार किया होता तो मैं इनसे बात तक न करती, जबकि ये तो मुझसे अच्छे से बात कर रहे थे|

लेकिन अब पछताय होत क्या जब चिड़िया चुग गई खेत! मुझे कैसे भी कर के इन्हें मनाना था, मेरी बातों से तो ये मानने से रहे, इसलिए सिवाए इन्हें अपने जिस्म से लुभाने के मेरे पास कोई चारा नहीं था; "I'll seduce him by hook or by crok! तभी ये पिघलेंगे और पुरानी बातें भूलेंगे!" मैं जोश से भर कर बुदबुदाई| 'लेकिन इन्हें सिद्दूस (seduce) करेंगी कैसे, ये सोचा तूने?' मेरा दिमाग बोला और मेरा सारा जोश हवा होने लगा| अब मेरा दिमाग इनकी तरह तेज तो चलता नहीं की मैं कोई न कोई जुगाड़ लगा लूँ या फिर कोई बहाना बना लूँ, इसलिए कोई तरकीब सूझने तक मुझे शांत रहना था|

दोपहर को बच्चे स्कूल से लौटे और आते ही पापा-पापा की रट लगाने लगे| इन्हें आज काम बहुत था इसलिए ये दोपहर को खाना खाने नहीं आने वाले थे| उधर नेहा में आज गज़ब का आत्मविश्वास देखने को मिल रहा था, वो बाकी दिनों के मुक़ाबले आज कुछ अधिक ही चहक रही थी| इतना खुश तो मैंने अपनी गुड़िया को शायद ही कभी देखा था, नेहा के इस चहकने का कारण था की आज उसकी क्लास के सभी बच्चों ने उसके पापा की बहुत तारीफ की थी जिस कारण मेरी बिटिया ख़ुशी के मारे गदगद हो गई थी!
 

[color=rgb(51,]उनत्तीसवाँ अध्याय[/color][color=rgb(51,]: मुश्किलों भरी [/color][color=rgb(51,]शुरुआत[/color]
[color=rgb(255,]भाग - 1[/color]


[color=rgb(251,]अब तक आपने पढ़ा:[/color]

दोपहर को बच्चे स्कूल से लौटे और आते ही पापा-पापा की रट लगाने लगे| इन्हें आज काम बहुत था इसलिए ये दोपहर को खाना खाने नहीं आने वाले थे| उधर नेहा में आज गज़ब का आत्मविश्वास देखने को मिल रहा था, वो बाकी दिनों के मुक़ाबले आज कुछ अधिक ही चहक रही थी| इतना खुश तो मैंने अपनी गुड़िया को शायद ही कभी देखा था, नेहा के इस चहकने का कारण था की आज उसकी क्लास के सभी बच्चों ने उसके पापा की बहुत तारीफ की थी जिस कारण मेरी बिटिया ख़ुशी के मारे गदगद हो गई थी!

[color=rgb(97,]अब आगे:[/color]


दोपहर दो बजे मैंने इन्हें इस बहाने से फ़ोन किया की ये खाना खाने घर आ रहे हैं या नहीं, जबकि मेरा असल मकसद था की मैं ये जान सकूँ की ये मुझसे नाराज़ तो नहीं?! इन्होने फ़ोन उठा कर मुझसे बड़े प्यार से बात की, जिससे मुझे संतुष्टि हो गई की ये मुझसे नाराज नहीं हैं; "सॉरी यार, काम बहुत है इसलिए दोपहर को खाने पर नहीं आ पाउँगा|" फिर इन्होने मुझे बच्चों से बात कराने को कहा तो मैंने दोनों बच्चों को आवाज दे कर बुलाया और फ़ोन स्पीकर पर डाल दिया; "आयुष, एग्जाम कैसा था बेटा?" इन्होने आयुष से सवाल किया तो आयुष ने अपने डरने से ले कर टीचर के सवालों का जवाब देने तक की सारी कहानी सुनाई; "पापा जी, टीचर जी ने मुझे हैं न सबसे पहले बुलाया क्योंकि मेरा रोल नंबर सबसे पहले था| फिर है न टीचर जी ने मुझसे सवाल पूछे, पहले तो मैं डरा हुआ था, तब मुझे याद आया की आपने कहा था की डरना नहीं है और भगवान जी का नाम लेना है| तो मैंने भगवान जी को याद किया और टीचर जी के पूछे सवालों का जवाब आराम से दिया, टीचर जी बहुत खुश हुईं और मुझे है न एक 'स्टार' दिया!" आयुष की बात सुन ये बोले; "I'm so proud of you बेटा! शाबाश! अब है न बेटा, कल के एग्जाम के लिए पढ़ाई करना, मैं शाम को आपके लिए चॉकलेट लाऊँगा|" चॉकलेट का नाम सुन आयुष खुश हो गया और नाचने लगा! आयुष को यूँ नाचते देख मैं और नेहा हँस पड़े, इन्होने जब हमें हँसते हुए सुना तो इन्होने कारण पुछा| जब मैंने आयुष के नाचने की बात बताई तो ये आयुष को नाचते हुए कल्पना कर हँसने लगे| इधर आयुष चॉकलेट पाने के लालच में बहुत उत्साहित हो उठा था इसलिए वो बिना खाना खाये ही पढ़ाई करने चला गया|

अब नेहा की बारी थी और इन्होने नेहा से उसके एग्जाम के बारे में पुछा; "कैसा था एग्जाम नेहा बेटा?" इनके पूछे सवाल का जवाब नेहा ने केवल एक शब्द में और बड़े जोश से दिया; "AWESOME!!!" नेहा का जोश देख ये बहुत खुश हुए और बोले; "शाबाश मेरा बच्चा!" अपने पापा से शाबाशी पा कर नेहा बहुत खुश हुई और उसका चेहरा दमकने लगा| "और ये बताओ की आज का दिन कैसा था आपका स्कूल में?" इन्होने नेहा से ये सवाल इसलिए किया क्योंकि इन्हें जानना था की कहीं हमारे स्कूल से आने के बाद नेहा की क्लास के बच्चों ने नेहा से दोस्ती की या नहीं?! इनके पूछे सवाल के जवाब में नेहा फिर से जोश में भरते हुए बोली; "Super awesome पापा जी! मेरे सारे क्लासमेट बस आप ही की बात कर रहे थे| आप ब्लैज़र में बहुत हैंडसम लग रहे थे और आपके कपड़े देख कर तो सारे बच्चे इम्प्रेस्सेड (impressed) थे! और...और वो जो आप कपकेक लाये थे न वो तो सभी को बहुत पसंद आये, मेरी दोस्त रेखा ने तो सबसे छीन-छीन कर खाये! ही...ही...ही...!!!" नेहा चहकते हुए बोली| गौर करने वाली बात ये थी की नेहा ने आज जा कर अपनी एक दोस्त का नाम लिया; 'रेखा'|

"सच बेटा?" इन्होने हँसते हुए पुछा तो नेहा एकदम से बोली; "थैंक यू पापा जी!" इतना कह नेहा भावुक हो थोड़ी रुनवासी हो गई| इन्होने नेहा को फ़ोन पर ही सँभालते हुए कहा; "Heyyy मेरा बच्चा! रोते नहीं हैं, आप तो पापा की ब्रेव गर्ल (brave girl) हो न?" इन्होने नेहा को होंसला देते हुए कहा| अपने पापा की बात सुन नेहा ने तुरंत अपने आँसूँ पोछे और फिर से मुस्कुराने लगी| नेहा ने फ़ोन मुझे दिया और मेरे गले लग कर मुझे भी थैंक यू कहा तथा कल के एग्जाम की तैयारी करने के लिए फुदकती हुई अपने कमरे में भाग गई|

"थैंक यू जी, आपने मेरी बेटी के चेहरे पर हँसी लौटा दी! उम्मम्मम्मम्हाआअह्हह्ह्ह्ह!!!!" मैंने धन्यवाद के स्वरुप में इन्हें फ़ोन पर जोरदार kiss दी मगर इन्होने मेरी फ़ोन पर दी हुई kissi का कोई जवाब नहीं दिया और फ़ोन काट कर अपने काम में लग गए| इनके इस तरह से बिना कोई जवाब दिए फ़ोन रखने से मुझे बहुत बुरा लगा तथा मेरे भीतर इन्हें रिझाने की, बहलाने-फुसलाने की इच्छा प्रबल हो गई क्योंकि मुझे किसी भी तरह से हम दोनों के बीच रिश्ते पहले जैसे समान्य करने थे| इन्हें रिझाने के लिए मुझे इनके साथ अकेले में समय बिताना था ताकि मैं अकेले में इन्हें सीदूस (seduce) कर सकूँ| अब ये सब घर में कर पाना नामुमकिन था क्योंकि यहाँ बच्चों तथा माँ-पिताजी की मौजूदगी थी और ये कुछ न कुछ बहाना बनाकर मुझसे बच निकलते, परन्तु मेरी मजबूरी ये थी की बाहर जाने के लिए मेरे पास कोई कारण या बहाना नहीं था!

दोपहर को पिताजी खाना खाने घर पर आये और बच्चों से उनकी परीक्षा के बारे में पूछने लगे| दोनों बच्चों ने मिलकर अपनी-अपनी परीक्षा का विवरण तथा आज की गई स्कूल में मस्ती के बारे में अपने दादा जी को चटखारे लगा कर बताया| पिताजी को बच्चों की परीक्षा अच्छे होने की ख़ुशी तो थी ही मगर उन्हें सबसे ज्यादा ख़ुशी नेहा के चहकते हुए आज स्कूल में हुई अपनी दिनचर्या बताने की थी| हम सब डाइनिंग टेबल पर बैठे खाना खा रहे थे जब आयुष अपने दादा जी से मेरी शिकायत करते हुए बोला; "दादा जी, मम्मी है न मेरे दोस्तों के सामने मेरा मज़ाक उड़ाती हैं!" आयुष की बात सुन माँ-पिताजी दोनों हँस पड़े; "बेटा, अपने बच्चों का मज़ाक तो सारी मम्मियाँ उड़ाती हैं! ये जो तुम दोनों की दादी है न, ये भी तुम्हारे पापा का मज़ाक उड़ाती थीं!" पिताजी की बात पर दोनों बच्चे अपनी दादी जी को ताकने लगे और इधर मैं, माँ तथा पिताजी हँसने लगे! बच्चे बिचारे सोच रहे थे की भला वो कौन सी बात है जिसपर माँ इनका मज़ाक उड़ाती थीं तो माँ खुद ही बच्चों की जिज्ञासा शांत करते हुए बोलीं; "जब तुम्हारा पापा आयुष की उम्र का था, तो स्कूल में उसकी एक दोस्त थी| दोनों के बीच इतनी गहरी दोस्ती थी की तुम्हारा पापा कहता था की मैं इसी से शादी करूँगा, उस लड़की के पापा और मेरे पिताजी काम पर जायेंगे, उस लड़की की मम्मी और मेरी माँ खाना बनाएंगी और हम दोनों घर पर रह कर खूब खेलेंगे! मैंने ये बात तुम्हारे दादा जी और उस लड़की की मम्मी से कही तो तुम्हारा पापा भी ऐसे ही मेरी शिकायत अपने पिताजी से करता था!" इनकी गर्लफ्रेंड होने की बात सुन आयुष को बहुत गर्व हो रहा था की उसके पापा की भी बचपन में गर्लफ्रेंड थी, वहीं नेहा को ये जानकार बहुत हँसी आ रही थी की उसके पापा बचपन में कितने मासूम थे! बची मैं, तो मैंने ये बात इनसे गाँव में सुनी थी और आज माँ के मुँह से ये बात जानकार मुझे न जाने क्यों मीठी-मीठी जलन होने लगी!

खाना खाने के बाद बच्चे पढ़ाई करने कमरे में बैठ गए, बाहर बैठक में मैं, माँ और पिताजी बैठे थे की तभी माँ ने पिताजी को आज स्कूल में हुई सारी घटना सुनाई| अक्षय का नेहा और मुझे गँवार कह कर चिढ़ाना तथा मेरे और इनकी शादी को ले कर नेहा को ताने मारने के बारे में सुन कर पिताजी को बहुत गुस्सा आया| पिताजी ने अपना फ़ोन उठाया और सीधा अक्षय के दादा जी, जो की पिताजी के मित्र थे उन्हें फ़ोन खड़काया; "रमेश, आज शाम को तुम सहपरिवार हमारे यहाँ चाय पर आना, कुछ बात करनी है! और हाँ अपने पोते को साथ जर्रूर लाना|" पिताजी ने खुश्क आवाज में कहा| रमेश अंकल ने पुछा की कोई जर्रूरी कारण है की पिताजी ने अक्षय को साथ बुलाया है तो पिताजी ने ये कह कर बात खत्म कर दी की; "कुछ बात करनी है!" फ़ोन रख पिताजी मुझसे बोले; "बहु, तुम दोनों (मैं और ये) आजकल हमसे बातें छुपाने लगे हो ये अच्छी बात नहीं है!" पिताजी की आवाज में नाराजगी थी, शादी के बाद ये पहला मौका था की पिताजी मुझसे नाराज हुए हों|
पिताजी का गुस्सा होना जायज था, उनकी लाड़ली पोती को एक बच्चा इस तरह मानिसक तौर पर उत्पीड़न दे रहा था और उन्हें इस बात का पता ही नहीं था?! इधर पिताजी का गुस्सा देख मैं जान गई थी की आज पिताजी का गुस्सा फट पड़ेगा और लड़ाई-झगड़ा होना तय है इसलिए मैंने चुपके से इन्हें फ़ोन कर के सारी बात बता दी तथा इन्हें जल्दी घर आने को कहा|

शाम 5 बजे रमेश अंकल अपने सहकुटुम्भ हमारे घर आये और पिताजी ने सभी को बैठक में बिठाया| पिताजी के चेहरे पर गुस्सा साफ़ नज़र आ रहा था और उनके इस गुस्से को देख रमेश अंकल तथा उनके परिवार जन हैरत में थे| ठीक तभी ये घर आ पहुँचे और पिताजी ने इन्हें अपने साथ बिठा लिया| मैं और माँ, पिताजी की दाहिनी तरफ कुर्सी ले कर बैठे थे| ये और पिताजी सोफे पर बैठे थे तथा इनके सामने रमेश अंकल, उनका बेटा राम अवध भैया, अंकल की बहु और अक्षय बैठे थे| पिताजी ने बात शुरू करते हुए कहा;

पिताजी: रमेश भैया, तोहार हमार कतना दिन की जान-पहचान भई?

पिताजी का सवाल रमेश अंकल को अटपटा लगा मगर फिर भी वे जवाब देते हुए बोले;

रमेश अंकल: जान-पहचान कहत हो, अरे तू तो हमार मुँह-बोला साला हो! भूलाये गया हमार मेहरारू (पत्नी) तोहका राखी बाँधत रही?!

रमेश अंकल ने बात को थोड़ा हलके ढंग से लेते हुए जवाब दिया|

पिताजी: नाहीं हम दीदी का तनिको नाहीं भुलायन, ऊ हमार माँ जइसन रही और मानु के पैदा भय टाइम पर मानु की माँ का बहुत ख्याल राखिस| पर इतना प्यार, इतना मेल-जोल होये के बाद भी अगर दुइ परिवारन के बीच मन-मुटाव रहे तो का ई ठीक बात है?

पिताजी का प्रश्न सुन रमेश अंकल सोच में पड़ गए थे|

पिताजी: तोहार पोता अक्षय हमार पोती नेहा का गाँव की गँवार कही के चिढ़ावत है!

ये सुन कर रमेश अंकल कुछ कहने को हुए थे की पिताजी अपनी बात आगे बढ़ाते हुए बोले;

पिताजी: हम जनित है की बचपने में सभी बच्चा शरारती होवत हैं और अइसन एक दूसरा का चिढ़ावत हैं, लड़ाई झगड़ा करत हैं मगर जब बच्चा बड़ों जइसन ताने मारे लागत हैं तो बहुत गुस्सा आवत है! तोहार पोता न केवल नेहा का गँवार कहत है बल्कि ओकरी माँ यानी तोहार बहु संगीता का भी गँवार कहत है! का ई ही संस्कार डालियो है तू आपन पोता मा? अरे और तो और जानत हो तोहार लाडला और का-का कहत है? कहत है की मानु आपन से 10 साल बड़ी लड़की से सादी किहिस है! का ई नीक बात है? का एहि से हम तोहका आपन परिवार की सारी बात बताएं रहन? तू जानत हो हम कितना खूँखार आदमी हन, अक्षय बच्चा है और तोहार पोता है एहि से हम कछु नाहीं कहन नाहीं तो तू जानत हो की हमार बुद्धि जब घूमत है तब हम का करित है?!

पिताजी की गुस्से में कही ये बातें सुन कर रमेश अंकल तथा उनका परिवार सख्ते में था| वहीं मैं और ये सख्ते में थे क्योंकि पिताजी ने आज अपने लिए 'खूँखार' शब्द का प्रयोग किया था, जबकि हमारे लिए तो हमारे पिताजी बहुत ही शांत स्वभाव के थे!

खैर, पिताजी की बात सुन रमेश अंकल को बहुत गुस्सा आया और वो अक्षय पर जोर से चिल्लाये;

रमेश अंकल: इधर आ लड़के! बहुत जुबान चले लागि है तोहरी!

अपने दादा जी का गुस्सा देख अक्षय बेचारा डर के मारे थरथरा रहा था| तभी भाभी (राम अवध भैया की पत्नी) ने अक्षय का हाथ पकड़ कर उसे अपने पास खींचा और जोर से उस पर चिल्लाईं;

भाभी: कुत्ते!! संगीता को गँवार कहता है, तेरी माँ ने कौन से डबल बी.ऐ. कर रखी है! काला अक्षर भैंस बराबर है मेरे लिए और तू....

भाभी आगे कुछ कहतीं उससे पहले ही राम अवध भैया ने अक्षय के कान पकड़ लिए और उसे एक जोरदार झापड़ मरने वाले थे की तभी इन्होने बीच में पड़ कर उनका हाथ पकड़ लिया;

ये: नहीं भैया, बच्चे पर हाथ नहीं उठाते! थप्पड़ ही मारना होता तो मैं आज स्कूल में अक्षय को मार चूका होता मगर मुझे उसे उसकी गलती का एहसास करना था जो की मैं अक्षय को करा चूका हूँ| फिर देखा जाए बच्चा ये सब बातें अपने घर में ही सीखता है...

ये आगे कुछ कहते उससे पहले ही रमेश अंकल बोल पड़े;

रमेश अंकल: नाहीं मुन्ना, अइसन नाहीं कहो! हमार घरे मा तोहार परिवार के बारे में अइसन कउनो बात नाहीं होवत!

पिताजी: अगर तोहार घर मा बच्चा ई सब नाहीं सीखिस तो कहाँ सिखिस?

पिताजी रमेश अंकल की बात पर सवाल उठाते हुए बोले तो इस पर रमेश अंकल ने गरज कर अक्षय से पुछा;

रमेश अंकल: बोल कहाँ से सीखा ये सब वरना अभी तेरी हड्डियाँ तोड़ दूँगा!

अपने दादा जी का गुस्सा देख अक्षय रोते हुए बोला;

अक्षय: वो...वो...ऊपर वाले....भैया कह रहे थे....!

इतना सुन्ना था की रमेश अंकल ने फ़ोन निकाला और सीधा उस लड़के को फ़ोन कर चिल्लाये;

रमेश अंकल: सुन जीवा! कल सुबह 11 बजे तक मेरा घर खाली हो जाना चाहिए वरना...

अभी रमेश अंकल इतना बोले थे की पिताजी बीच में बोले;

पिताजी: उसे यहाँ बुलाओ!

रमेश अंकल ने ठीक वैसा ही किया और जीवा को हमारे घर बुलाया| जीवा सहपरिवार रमेश अंकल के यहाँ किराए पर रहता था, हमारी उससे कोई ख़ास बोलचाल नहीं थी, उसका यूँ हमारे परिवार के बारे में फ़ालतू बोलना इन्हें तथा पिताजी को बहुत खटका था यही कारण है की पिताजी ने उसे यहाँ बुलाया था| 5 मिनट बाद जीवा हमारे घर आया, रमेश अंकल के फ़ोन पर गुस्से से भरि आवाज सुन वो समझ गया था की बात जर्रूर गंभीर हैं| वहीं जीवा को देख पिताजी का गुस्सा उबल पड़ा और वो गुस्से से बोले;

पिताजी: तू न हमारे घर का है, न हमारी बिरादरी का है, न हमारे रिश्ते का है फिर तुझे मेरे बहु-बेटे के बारे में फ़ालतू बोलने का हक़ किसने दिया?

पिताजी का गुस्सा देख जीवा कुछ घबरा गया और झूठ बोलने लगे;

जीवा: अ..अरे अंकल...मैंने ऐसा कुछ नहीं कहा!

जैसे ही जीवा ने ये कहा राम अवध भैया ने तुरंत अक्षय को आगे कर दिया और बोले;

राम अवध भैया: तो अक्षय झूठ बोल रहा है?

अक्षय को देख जीवा सब समझ गया की उसकी पोल-पट्टी अक्षय ने ही खोली है मगर उसने फिर भी बेक़सूर बनने का नाटक किया;

जीवा: भैया, मैंने ऐसा कुछ नहीं कहा! अक्षय तो बच्चा है कहा किसी और ने होगा और वो नाम मेरा लगा रहा है!

जीवा ने जब अक्षय को बलि का बकरा बनाया तो अक्षय को बहुत गुस्सा आया और वो गुस्से से उस पर ऊँगली उठाते हुए बोला;

अक्षय: झूठ कह रहा है ये पापा! इसी ने मुझे सब बताया था और कहा था की मैं नेहा को चिढाऊँ!

अक्षय के जीवा पर आरोप लगाने से सारी बात साफ़ हो चुकी थी तथा सभी उस पर और भी गुस्सा हो चुके थे|

राम अवध भैया: क्यों सिखाता था तू अक्षय को ये सब?

राम अवध भैया ने गुस्से से पुछा तो जीवा अब भी झूठ बोलने लगा की उसने अक्षय को ऐसा कुछ भी सिखाया-पढ़ाया नहीं| तभी रमेश अंकल ने उसके कान पर एक झापड़ धर दिया और तब जा कर जीवा के मुँह से सच फूटा;

जीवा: मैं...मैं तो बस मज़ाक मैं कहता था....

ये सुनते ही पिताजी जीवा के कान पर एक झापड़ धरने वाले थे की राम अवध भैया ने उन्हें रोक दिया और खुद जीवा का गिरेबान पकड़ कर गुस्से से बोले;

राम अवध भैया: सुन बे कुत्ते! कल सुबह बारह बजे से पहले-पहले ये गली, ये मोहल्ला छोड़ कर कहीं दूर चला जाइयो वरना मैं खुद तुझे और तेरे समान को उठा कर बाहर फेंक दूँगा!

जीवा की डर के मारे हालत खराब थी और वो रोता हुआ अपने घर चला गया|

जीवा के जाने के बाद रमेश अंकल, राम अवध भैया और भाभी हाथ जोड़ कर पिताजी से माफ़ी माँगने लगे, तो पिताजी ने उन्हें माफ़ कर दिया तथा रमेश अंकल को अपने गले लगा लिया| इधर भाभी ने अक्षय का कान मरोड़ते हुए कहा;

भाभी: सुन ले मेरी बात ध्यान से, आज के बाद तूने कभी नेहा को चिढ़ाया या कुछ बुरा भला कहा न तो तुझे गाँव भेज दूँगी!

भाभी गुस्से से अक्षय से बोलीं|

राम अवध भैया: नेहा तेरी बहन जैसी है, खबरदार उसके साथ तूने कोई लड़ाई झगड़ा किया तो!

राम अवध भैया ने भी अक्षय के कान मरोड़ते हुए कहा|

रमेश अंकल: तेरी दादी मानु के पापा की बड़ी दीदी थीं, उसी तरह नेहा भी तेरी दीदी है| आज के बाद अपनी दीदी के साथ खेलना और कोई उससे लडे तो उसकी रक्षा करना| आज के बाद तेरी कोई शिकायत आई न तो पहले तो मैं तुझे कूटूंगा फिर तुझे खुद गाँव छोड़ आऊँगा!

रमेश अंकल ने भी अक्षय को अच्छे से डरा दिया था| एक बच्चे पर कहीं अधिक दबाव न बने इसलिए इन्होने प्यार से अक्षय को समझाया;

ये: बेटा, जो हो गया उसे भूल जाओ और इस तरह बेकार की बातों को सुन कर किसी के दिल को ठेस पहुँचे ऐसी बात मत कहा करो| इतना कह इन्होने जेब से चॉकलेट निकाली और अक्षय को दे उसके सर पर प्यार से हाथ फेरा|

चलो सारी बात सुलझ गई थी और अब दोनों परिवारों के बीच हालात सामान्य हो गए थे| अक्षय नेहा के साथ पढ़ने लगा था और यहाँ बैठक में पिताजी ने सभी को बिना चाय पिये जाने ही नहीं दिया| सब के जाने के बाद पिताजी ने इन्हें अपने पास बिठा कर समझाया;

पिताजी: बेटा, मुझसे और अपनी माँ से बातें मत छुपाया कर| तू जानता है जब तेरी माँ ने मुझे बताया की किस तरह तूने आज स्कूल में कैसे अक्षय को सब समझाया तो मुझे तुझ पर कितना गर्व हुआ| लेकिन जब मुझे नेहा की पीड़ा के बारे में पता चला तो मेरा दिल फ़ट गया, तभी मैंने रमेश भैया को बुलाया|

पिताजी की बात सुन ये मुस्कुराये और बोले;

ये: पिताजी, मैंने आपको सारी बात इसीलिए नहीं बताई क्योंकि आप अपने गुस्से को काबू नहीं रख पाते| नेहा के मुँह से उसके दुःख का कारन जानकर मुझे भी बहुत गुस्सा आया था मगर अक्षय छोटा बच्चा था और उस पर हाथ उठा कर मैं उसके दिल में नेहा के प्रति नफरत नहीं भरना चाहता था| क्लास में अगर मैं अक्षय पर हाथ उठा देता तो सारे बच्चे डर जाते और नेहा से कभी दोस्ती नहीं करते इसीलिए सुबह स्कूल में मैंने ठंडे दिमाग से काम लिया| लेकिन अभी आप बहुत गुस्से में आ गए थे, आप तो उस लड़के जीवा पर हाथ उठाने वाले थे और उसका नतीज़ा हमारे या बच्चों के लिए खतरनाक साबित हो सकता था|

इनकी बात सुन पिताजी खामोश हो गए और दो पल के लिए सोचने लगे|

पिताजी: बेटा, मुझे फक्र है तुझ पर की तू अब ठंडे दिमाग से अपने परिवार के बारे में सोच कर कदम उठाने लगा है| हाँ मैं आज अपने गुस्से के कारन आपे से बाहर हो गया था मगर बेटा, मैं अपने बच्चों को दुखी नहीं देख सकता!

पिताजी का हमारे लिए चिंतित होना जायज था, आखिर वो एक पिता थे और पिता अपने बच्चों को कैसे दुखी देख सकता था|

शाम होने पर डॉक्टर सरिता, नेहा का हालचाल पूछने हमारे घर आईं| माँ-पिताजी बाहर सैर के लिए गए थे इसलिए मैंने सरिता जी को सारी बात बताई, जिसे सुन उन्हें ख़ुशी हुई की नेहा को सही रास्ता दिखाने के लिए ये सच्चे मन से प्रयास कर रहे हैं| अब जब डॉक्टर सरिता घर आईं थीं तो इन्होने लगे हाथ उन्हें मेरा चेक-अप करने को कह दिया| सरिता जी ने मुझसे खाने-पीने तथा मेरी दिनचर्या के बारे में पुछा, तो मैं बोली; "जी मैं अपना पूरा ध्यान रख रही हूँ, न कोई भारी समान उठाने का काम करती हूँ, न ही कोई झुक कर करने वाला कोई काम| खाना भी मैं घर का ही खा रही हूँ..." मैं आगे कुछ कहती की तभी पीछे से आयुष बोल पड़ा; "मम्मी झूठ कह रहीं हैं, आज ही मम्मी ने स्कूल में छोले कुलचे खाये थे!" आयुष के इस तरह मेरी चुगली करने से ये और सरिता जी खिलखिलाकर हँसने लगे! वहीं मैं आयुष को आँखें बड़ी कर के देखने लगी, कुछ वैसी ही जैसे सुबह आयुष मुझे अपनी गर्लफ्रेंड के सामने उसे शर्मिंदा करने पर आँखें बड़ी कर के देख रहा था|

आखिर आयुष ने आज सुबह का बदला मुझसे ले ही लिया था और उसके चेहरे पर शैतानी मुस्कान झलक रही थी! "बाहर से ये अटपटा खाना बंद कर दो संगीता, कहीं पेट खराब हो गया तो मानु परेशान हो जायेगा और आधी रात को मुझे फ़ोन खड़का देगा!" सरिता जी ने इनके नेहा को लेकर सुबह-सुबह किये फ़ोन पर टाँग खींचते हुए कहा जिस पर ये उन्हें सॉरी कहते हुए मुस्कुराने लगे|

[color=rgb(128,]जारी रहेगा भाग - 2 में...[/color]
 

[color=rgb(51,]उनत्तीसवाँ अध्याय[/color][color=rgb(51,]: मुश्किलों भरी [/color][color=rgb(51,]शुरुआत[/color]
[color=rgb(255,]भाग - 2[/color]


[color=rgb(251,]अब तक आपने पढ़ा:[/color]

शाम होने पर डॉक्टर सरिता, नेहा का हालचाल पूछने हमारे घर आईं| माँ-पिताजी बाहर सैर के लिए गए थे इसलिए मैंने सरिता जी को सारी बात बताई, जिसे सुन उन्हें ख़ुशी हुई की नेहा को सही रास्ता दिखाने के लिए ये सच्चे मन से प्रयास कर रहे हैं| अब जब डॉक्टर सरिता घर आईं थीं तो इन्होने लगे हाथ उन्हें मेरा चेक-अप करने को कह दिया| सरिता जी ने मुझसे खाने-पीने तथा मेरी दिनचर्या के बारे में पुछा, तो मैं बोली; "जी मैं अपना पूरा ध्यान रख रही हूँ, न कोई भारी समान उठाने का काम करती हूँ, न ही कोई झुक कर करने वाला कोई काम| खाना भी मैं घर का ही खा रही हूँ..." मैं आगे कुछ कहती की तभी पीछे से आयुष बोल पड़ा; "मम्मी झूठ कह रहीं हैं, आज ही मम्मी ने स्कूल में छोले कुलचे खाये थे!" आयुष के इस तरह मेरी चुगली करने से ये और सरिता जी खिलखिलाकर हँसने लगे! वहीं मैं आयुष को आँखें बड़ी कर के देखने लगी, कुछ वैसी ही जैसे सुबह आयुष मुझे अपनी गर्लफ्रेंड के सामने उसे शर्मिंदा करने पर आँखें बड़ी कर के देख रहा था|

आखिर आयुष ने आज सुबह का बदला मुझसे ले ही लिया था और उसके चेहरे पर शैतानी मुस्कान झलक रही थी! "बाहर से ये अटपटा खाना बंद कर दो संगीता, कहीं पेट खराब हो गया तो मानु परेशान हो जायेगा और आधी रात को मुझे फ़ोन खड़का देगा!" सरिता जी ने इनके नेहा को लेकर सुबह-सुबह किये फ़ोन पर टाँग खींचते हुए कहा जिस पर ये उन्हें सॉरी कहते हुए मुस्कुराने लगे|

[color=rgb(97,]अब आगे:[/color]


रात में खाना खा कर आयुष अपनी स्कूल की डायरी ले आया जिसमें टीचर जी ने एक नोट लिखा था| दरअसल सभी लालची प्राइवेट स्कूलों की तरह हमारे बच्चों के स्कूल वाले भी पैसे ऐंठने के लिए बच्चों को जबरदस्ती एक्स्ट्रा करिकुलर एक्टिविटीज (extra curricular activities) में बच्चों को डाल रहे थे| आयुष के एग्जाम होने के बाद स्कूल में छोटे बच्चों के लिए पेंटिंग कम्पटीशन और रेल म्यूजियम ले जाने का प्रोग्राम रखा गया था| आयुष के सारे दोस्त जा रहे थे इसलिए वो भी जाना चाहता था, उधर पिताजी का कहना था की ये सब चीजें बस समय और पैसा बर्बाद करने की हैं इसलिए वो आयुष के जाने के लिए मना कर रहे थे|

ये: पिताजी, अगर आयुष नहीं जाएगा तो उसके दोस्त उसे कंजूस कह कर चिढ़ाएँगे!

इन्होने जानबूझकर ये बात कही क्योंकि इस बात के आगे पिताजी का कोई तर्क नहीं चलता और हुआ भी वही, पिताजी फ़ट से मान गए;

पिताजी: ठीक है बेटा! लेकिन सारी परीक्षा अच्छे से देनी होगी और बाहर जा कर कोई शरारत मत करना, वरना टीचर से डाँट पड़ेगी तथा मेरे से मार!

पिताजी ने प्यार से आयुष को डराते हुए कहा| आयुष शरारती अवश्य था मगर मैंने उसे घर से बाहर निकलने पर दूसरों के सामने कैसे बर्ताव करना है ये अच्छे से सिखाया था| अपने दादा जी से आज्ञा मिलने पर आयुष ख़ुशी से नाचने लगा और उसे यूँ नाचते देख हम सभी ने हँसना शुरू कर दिया|

सोने का समय हुआ तो आयुष झट से सोने के लिए हमारे पलंग के बीचों-बीच लेट गया| वहीं नेहा अपनी किताब ले कर अब भी पढ़ रही थी, ये नेहा को बुलाने के लिए कमरे में गए और उसे गोदी ले कर बहलाते हुए आ गए|कहानी सुनाते हुए इन्होने दोनों बच्चों को सुला दिया था, मैं बाथरूम जाने के बहाने से उठी और चोरी से इनके गालों की पप्पी ले कर बाथरूम में घुस गई! ये मुस्कुराते हुए मेरा ये नटखटपना देख रहे थे, यानी ये गुस्सा नहीं हुए थे|

अगले दिन बच्चे स्कूल गए और उनकी परीक्षा बहुत अच्छे से हुई| दोनों बच्चे चहकते हुए घर लौटे और अपने पापा को फ़ोन कर अपनी-अपनी दिनचर्या सुनाने लगे| काम की वजह से ये आज फिर दोपहर को खाने पर घर नहीं आये, जब ये शाम को घर लौटे तो मेरे लिए एक शानदार मौका ले कर लौटे! ये पिताजी के साथ बैठे काम के सिलसिले में अकेले आगरा जाने की बात कर रहे थे, दरअसल ये अपना अलग बिज़नेस शुरू करना चाहते थे, इन्होने लेदर शूज (leather shoes) में अपना ब्रैंड बना कर बेचने के बारे में सोचा था| इनके इस प्लान के बारे में फिलहाल किसी को नहीं पता था| वहीं इनके घर से बाहर जाने की बात सुनते ही मैं मन ही मन बहुत खुश हुई और भगवान को मन ही मन धन्यवाद करने लगी| इन्हें रिझाने का जो मौका मुझे चाहिए था वो कुदरत ने खुद ही मेरी झोली में डाल दिया था!

रात को बच्चों के सोने के बाद मैंने इन्हें मस्का लगाते हुए इनसे बात शुरू की; "मैं भी आगरा चलूँ? थोड़ा घूम लूँगी, ताजमहल देख लूँगी!" मैंने मासूमियत भरे लहजे में कहा, मानो की मैं कोई नई-नवेली बहुरिया हूँ! "यार मैं सुबह तड़के निकलूँगा और रात को वापस आ जाऊँगा, तो इतने कम समय में मैं काम करूँगा या फिर हम आगरा घूमेंगे? फिर मुझे सारी दोपहरी एक जगह से दूसरी जगह भागना है और आगरा कौनसा अच्छा शहर है?! तुम माँ बनने वाली हो और मेरे साथ इस खामखा की भगा-दौड़ी में थक जाओगी|" ये अपना तर्क देते हुए बोले| अब देखा जाए, कर तो ये बहाना ही रहे थे मगर इनकी बातें काफी हद्द तक सही थीं| लेकिन मेरा ध्यान तो इन्हें रिझाने, बहलाने-फुसलाने में लगा था इसलिए मैं प्यार से नाराज़ होते हुए बोली; "अच्छा जी, मैं कोई मोम की बनी हुई हूँ की जरा सी गर्मी में पिघल जाऊँगी?! आपको अपना काम करना हैं न, तो आप एक दिन अपना काम निपटा लो और एक दिन वहाँ मेरे साथ रुक कर मुझे घुमा दो!" मैंने अपने निचले होंठ को दाँतों तले दबाते हुए इन्हें सीडूस (seduce) करने की कोशिश करते हुए बोली| मेरी बात सुन ये भोयें सिकोड़ कर मुझे देखते हुए बोले; "आगरा में रुकना और वो भी एक दिन?" ये मेरा मकसद समझ गए थे इसलिए इनके दिमाग ने तुरंत तर्क सोच लिया; "आगरा जाने का सुन कर दोनों बच्चे साथ चलने की जिद्द करेंगे..." ये इनका आखरी तर्क था, इनकी बात पूरी होती उससे पहले ही मैंने इनकी बात काटते हुए कहा; "बच्चों को मैं समझा लूँगी, आप तो बस हमारे जाने की तैयारी करो!" मैंने उत्साह और उमंग से भरते हुए फटाफट जवाब दिया| मेरा ये उत्साह देख ये मुस्कुराये, मुझे लगा की ये मान गए मगर इन्होने मेरे आगरा जाने की बात खत्म करते हुए कहा; "आगरा जा कर क्या करोगी, कहीं अच्छी जगह चलेंगे! फिर इन दिनों में तुम्हारे लिए इतनी एक्सेरशन (exertion) ठीक नहीं|" ये कह इन्होने दूसरी तरफ करवट ली और सो गए| इन्होने ये बात मुस्कुराते हुए कही थी ताकि मुझे बुरा न लगे मगर मैं जानती थी की ये मेरे मंसूबे जानते हैं और जानबूझकर मुझे अपने साथ ले जाने से मना कर रहे हैं| उस समय मैं जानबूझकर कुछ नहीं बोली और अपना हाथ बच्चों के ऊपर से होते हुए इनकी कमर पर रख दिया| इन्हें लगा की मैंने आगरा जाने की जिद्द छोड़ दी है जिस कारण ये निश्चिन्त हो गए थे, लेकिन इन्हें क्या पता की मैं तो अपना मन पहले ही बना चुकी थी| ये मेरी बात तो मानने वाले नहीं थे इसलिए अब मुझे अपना 'ब्रह्मास्त्र' चलाना था!

अगली सुबह जब ये बच्चों को स्कूल वैन में बिठाने गए तब मैंने माँ से अर्थात मेरे ब्रह्मास्त्र से इनके साथ आगरा जाने की बात की, माँ मुझे कभी मना नहीं करती थीं इसलिए उन्होंने मेरी अर्जी तुरंत पिताजी तक पहुँचा दी| "मानु को आने दे बहु, मैं बात करता हूँ उससे|" पिताजी मुझसे बोले| मैं जानती थी की ये पिताजी की बात टाल दें, ये तो हो ही नहीं सकता इसलिए मेरी जीत पक्की थी! बच्चों को छोड़ ये घर लौटे तथा डाइनिंग टेबल पर कुर्सी खींच कर चाय पीने बैठे, तभी पिताजी ने इन्हें अपना फरमान सुना दिया; "बेटा तू आगरा जा रहा है तो बहु को भी अपने साथ ले जा, ये बेचारी भी थोड़ा घूम लेगी!" पिताजी का फरमान सुन ये हैरानी से मुझे देखने लगे, मेरे चेहरे पर आई जीत की मुस्कराहट इनसे छुप नहीं पाई और ये सब समझ गए की ये सब मेरी ही लगाई-बुझाई है!

अब पिताजी को ये सीधे मुँह तो मना कर नहीं सकते थे इसलिए ये बहाना बनाने लगे; "पिताजी, मुझे वहाँ गलियों-कूचों में घूमना है, वहाँ मैं संगीता को कहाँ ले कर घूमूँगा?! फिर मुझे सारा दिन धुप में घूमना है..." ये आगे कुछ कहते उससे पहले ही पिताजी बोल पड़े; "तुझे गलियों-कूचों में क्यों घूमना है?"

"पिताजी, वो सब बातें मैं आपको काम पूरा होने पर बताऊँगा|" इन्होने अपनी बात को राज़ रखते हुए कहा| पिताजी इन पर भरोसा करते थे इसलिए उन्होंने इनके आगरा जाने का कारण नहीं पुछा, लेकिन उन्होंने मेरे आगरा भेजने का दबाव इन पर बनाये रखा; "ठीक है बेटा मैं तुझसे तेरे आगरा जाने का कारण नहीं पूछता मगर बेटा, थोड़ा टाइम बहु को भी दे! पहले ही बच्चों की जिद्द के कारन तुम्हारा हनीमून तूने हम सब के साथ छुट्टियों की तरह बिताया, एक दिन अगर तू आगरा में रुक कर बहु को थोड़ा घूमा देगा तो तेरा क्या जाएगा?!

बजाये धुप में घूमने के, आगरा में दिनभर के लिए एक ऑटो बुक कर लियो और उसी में बैठ कर दोनों काम के साथ-साथ आगरा भी घूम लेना! अगर तेरे पास पैसों की कमी है तो मैं दे देता हूँ!" पिताजी ने इन्हें प्यार से समझाते हुए कहा| अब जनाब निरुत्तर हो गए थे क्योंकि पिताजी ने इनके सारे तर्क का जवाब दे दिया था| "नहीं..नहीं पिताजी, पैसों की कोई बात नहीं!" इतना कह इनके चेहरे पर मुस्कान आ गई और इन्होने गहरी साँस छोड़ते हुए हार मान ली; "ठीक है मैं दो टिकट बुक करवा देता हूँ!" इन्होने अपना फ़ोन उठाया और पिताजी के सामने ही कल सुबह की ताज एक्सप्रेस की दो टिकट बुक करा दी| टिकट बुक करवा ये मुझसे बोले; "कल सुबह की दो टिकट बुक हो गई हैं, लेकिन बच्चों को मनाना तुम्हारा काम है उसमें मेरे से मदद की कोई उम्मीद मत रखना!" इन्होने बच्चों को समझाने से अपना पल्ला झाड़ लिया था, देखा जाए तो ये ठीक भी था क्योंकि ये तो बच्चों के आगे पिघल जाते हैं और तब या तो हमारा जाना कैंसिल हो जाता या फिर दोनों शैतान साथ जाते, दोनों ही हालातों में मेरा बनाया प्लान मिटटी में मिल जाता! इनकी बात सुन मैंने ख़ुशी-ख़ुशी आयुष की तरह सर हाँ में हिलाया
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तथा चहकते हुए माँ के गले लग गई! मेरा ये बचपना देख माँ-पिताजी और ये हँसने लगे!

नाश्ता करने के बाद जब ये कमरे में साइट पर जाने के लिए तैयार हो रहे थे, तब मैंने पीछे से जा कर अचानक इन्हें अपनी बाहों में कैद कर लिया| "मेरी जानेमन अब बहुत चालाक हो गई है!" इन्होने मुझे प्यार से उल्हाना देते हुए कहा| इनका मुझे इतने दिनों बाद जानेमन कहना मेरे दिल को छू गया और मैंने इन्हें अपनी ओर घुमाया, इनकी कमर को थामे हुए मैंने उचक कर इनके होंठ चूमने चाहे मगर ये इस बार पहले से ही चौकन्ना थे इसलिए इन्होने तुरंत अपना मुँह फेर लिया जिस कारन मैं इनके होठों का ना चूम पाई| अपने चेहरे पर नकली मुस्कराहट लिए, ये साइट पर जाने के लिए निकलने ही लगे थे की मैंने इनका दाहिना हाथ थाम इन्हें रोक लिया और अपनी शेखी बघारते हुए अकड़ कर बोली; "मैं भी देखती हूँ की कब तक यूँ तड़पाओगे मुझे? मैंने भी अपने दिल की न कर ली तो कहना!" मुझे यूँ खुद पर अकड़ते हुए देख ये कुछ नहीं बोले, बस मुस्कुरा कर मुझे देखने लगे जैसे मन ही मन कह रहे हों; 'मैं भी देखता हूँ कैसे करती हो तुम अपने दिल की?!' परन्तु मैं भी ठान चुकी थी की चाहे कुछ भी हो, आगरा जा के मैं इनके दिल में अपने लिए प्यार जगा कर रहूँगी|

शाम को जब ये साइट से लौटे तो दोनों बच्चों ने इनकी गोदी में चढ़ते हुए इनपर अपना कब्ज़ा जमा लिया| इन्होने दोनों बच्चों से उनके आज की परीक्षा के बारे में पुछा तो दोनों बच्चे अपनी-अपनी परीक्षा के बारे में बड़े चाव से बताने लगे| माँ-पिताजी बाहर सैर करने गए थे इसलिए घर पर बस हम चार लोग ही थे| मैंने इनके और अपने लिए चाय बनाई तथा बच्चों के लिए दूध बनाया| ये सोफे पर आलथी-पालथी मारकर बैठे थे और दोनों बच्चे इन्हीं की गोदी में बैठे दूध पी रहे थे| अब मुझे बच्चों से कल हमारे (मेरे और इनके) आगरा जाने की बात करनी थी, लेकिन बात शुरू कैसे करूँ ये समझ नहीं आ रहा था?! मुझे डर इस बात का था की आगरा जाने के नाम से ही बच्चे उत्साह में आ कर कूदने लगेंगे और मेरे अकेले इनके साथ आगरा जाने का प्लान ठप हो जायेगा! मैंने इनकी ओर देखते हुए आँखों ही आँखों में विनती की कि ये ही बच्चों को समझाएँ मगर इन्होने अपनी आँखों के इशारे से साफ़ कह दिया; 'मैंने पहले ही कहा था की बच्चों को मनाना तुम्हारा काम है|' मरते क्या न करते मैंने बात शुरू की; "बेटा...अम्म...वो..." इतना कह मैं खामोश हो गई क्योंकि इसके आगे मुझसे कुछ बोला नहीं गया| वहीं बच्चे बड़ी उत्सुकता से मुझे देख रहे थे की आखिर मैं क्या कहना चाहती हूँ मगर मुझे खामोश देख बच्चे सोच में पड़ गए थे| इधर बच्चों के आगे मेरी बोलती बंद देख इन्हें बड़ा मज़ा आया और ये ठहाका मारकर हँसने लगे| अपने पापा को मुझ पर हँसता हुआ देख बच्चों को भी हँसी आ गई और इन दोनों शैतानों ने भी मेरे ऊपर हँसना शुरू कर दिया! अपना मज़ाक उड़ता देख मैं इन्हें और दोनों बच्चों को आँख बड़ी कर के अपना झूठ-मूठ का गुस्सा दिखाने लगी, लेकिन मेरा ये झूठ-मूठ का गुस्सा देख तो इन तीनों ने और जोर से हँसना शुरू कर दिया!

ठीक उसी समय माँ-पिताजी घर लौटे और सीधा बैठक में बैठ गए| ये तीनों हँस रहे थे और मैं खामोश बैठी इनसे आँखों के जरिये विनती कर रही थी, ये दृश्य देख माँ-पिताजी थोड़ा सोच में पड़ गए| माँ मेरी बगल में बैठीं थीं तो मैंने धीमी आवाज में उन्हें सारी बात बताई की मैं बच्चों को कल हम दोनों मियाँ-बीवी को अकेले आगरा जाने देने के लिए मनाना चाहती थीं मगर बच्चों के दिए जाने वाले तर्क के डर से मुझसे बात शुरू नहीं की जा रही| मेरी बात सुन माँ ने खुसफुसा कर पिताजी को सारी बात बताई| पिताजी को सारी बात पता चली तो मैंने उनसे इनकी और बच्चों की प्यार-भरी शिकायत कर दी; "पिताजी, देख लीजिये इन तीनों को! ये तीनों बाप-बेटा-बेटी मेरा मज़ाक उड़ा रहे हैं!" मेरी प्यारभरी शिकायत सुन सभी हँस पड़े| पिताजी ने बच्चों को समझाने के लिए अपने पास बुलाया; "बच्चों इधर आओ!" अपने दादा जी के बुलाने पर दोनों बच्चे इनकी गोदी से उतरे और दोनों अपने दादा जी के पास आ गए| "बेटा, कल है न आपके मम्मी-पापा दो दिन के लिए आगरा जा रहे हैं..." इतना सुनना था की दोनों बच्चों ने ख़ुशी से कूदना शुरू कर दिया| दोनों बच्चे अपने दादा जी की आधी बात सुन कर ये समझ बैठे थे की वो भी हमारे साथ आगरा जा रहे हैं! "दादा जी, मैं है न ताजमहल देखूँगा और...और..." आयुष ख़ुशी से चहकते हुए बोला| उसे ताजमहल के अलावा आगरा में देखने लायक किसी दूसरी चीज का नाम नहीं पता था इसलिए वो नाम सोच रहा था की तभी नेहा उसकी बात पूरी करती हुई ख़ुशी से चहकते हुए बोली; "आगरे का किला देखेंगे!" दोनों बच्चों की उत्साह से भरी बातें सुन ये मेरी तरफ देख कर मुस्कुरा रहे थे तथा आँखों ही आँखों में मुझे तड़पाते हुए बोल रहे थे; 'गया तुम्हारा सारा प्लान पानी में!' उस वक़्त मुझे इनकी चाल समझ में आई, इन्होने जानबूझ कर बच्चों को मनाने का काम मुझे दिया था क्योंकि ये जानते थे की बच्चे कभी भी हम दोनों को अकेले कहीं घूमने जाने देंगे ही नहीं! "नहीं बेटा...." पिताजी ने बच्चों को समझाने की लिए अपनी बात पूरी करनी चाहि मगर बच्चे अपने उत्साह में कूद रहे थे और अपने दादा जी को उनकी बात पूरी ही नहीं करने दे रहे थे| "बच्चों, तुम दोनों नहीं जाओगे...." माँ ने भी अपनी तरफ से बच्चों को समझाने की कोशिश की मगर दोनों बच्चों ने उत्साह में कूदते हुए जिद्द पकड़ ली; "हम भी जाएंगे...हम भी जाएंगे!" दोनों बच्चे उत्साह से एक साथ बोले| बच्चों का उत्साह हर पल बढ़ता जा रहा था और इनके चेहरे पर मुझे आगरा साथ न ले जाने की शैतानी मुस्कान हर पल गहरी होती जा रही थी| इन्हें लग रहा था की जीत इनकी होगी, परन्तु ये मेरी ताक़त, मेरे ब्रह्मास्त्र के बारे में नहीं जानते थे!

मैंने अपने बगल में बैठी माँ के कंधे पर अपना सर रख दिया और उदास होने की थोड़ी सी नौटंकी की! मेरी उदास होने की गई नौटंकी, माँ को असली लगी और उन्हें बच्चों के जिद्द करने पर गुस्सा आ गया| उन्होंने आज पहलीबार दोनों बच्चों को डाँट दिया; "बस! तुम दोनों कहीं नहीं जाओगे, यहीं रह कर अपने पेपर दोगे! पिछले साल मुन्नार जाने की जिद्द की थी तो हमने तुम दोनों की बात मानी थी न, अब खबरदार जो जिद्द की तो, मार पड़ेगी!" माँ ने बच्चों को मारने के लिए हाथ उठाया मगर अपनी ममता के चलते उन्होंने बच्चों को मारा नहीं| वहीं अपनी दादी जी को पहलीबार गुस्से में देख बेचारे बच्चे सहम गए और दोनों ने डर के मारे अपनी गर्दन झुका ली!

बच्चों को यूँ सहमा हुआ देख इनका दिल पिघल गया और इन्होने अपने दोनों हाथ खोलते हुए दोनों बच्चों को अपने पास बुलाया| दोनों बच्चे सर झुकाये इनके गले से लग गए, माँ का गुस्सा देख बच्चे घबराये हुए थे इसलिए दोनों ने सुबकना शुरू कर दिया था| इन्होने दोनों बच्चों को एक साथ गोद में उठाया और छत पर चले गए| इधर बैठक में एकदम से सन्नाटा छा गया था, माँ-पिताजी खामोश थे और मुझे अपनी इस नौटंकी पर शर्म आ रही थी! मेरी इस बेकार की नौटंकी के कारण बच्चों को माँ की डाँट खानी पड़ी थी| मैं सर झुकाये हुए उठी और इनके पीछे-पीछे छत पर आ गई|

ये दोनों बच्चों को गोदी में ले कर उन्हें प्यार से समझा रहे थे; "बेटा, आपकी दादी जी को गुस्सा आया क्योंकि आप अपने दादा जी की आधी बात सुन कर ही आगरा जाने के लिए जिद्द कर रहे थे| इस तरह अगर आप हरबार जिद्द करोगे तो अच्छा थोड़े ही लगता है?! फिर आप जानते हो न आपकी दादी जी आप दोनों से कितना प्यार करती हैं, आप जो माँगते हो वो आपको ला कर देती हैं, फिर उनके सामने यूँ जिद्द करना अच्छी बात नहीं है न?!" इनकी बात सुन बच्चों ने अपने आँसूँ पोछे और इन्हें सॉरी कहने लगे, इन्होने भी मुस्कुराते हुए दोनों बच्चों की पप्पी ले कर उन्हें माफ़ कर दिया|

ये दोनों बच्चों को गोदी में लिए हुए छत पर टहलने के लिए पलटे, तभी इनकी और बच्चों की नजर मुझ पर पड़ी| मुझे देखते ही दोनों बच्चे मुझे अपनी नाराज़गी दिखाते हुए मुझसे मुँह फेर कर इनके कंधे पर रख अपना चेहरा छिपाने लगे| बच्चे मुझसे इसलिए नाराज़ थे क्योंकि एक तो मैं उनके बिना इनके साथ घूमने जा रही थी और दूसरा मेरी ही वजह से दोनों को आज अपनी दादी जी की डाँट सुननी पड़ी थी| मैंने अपनी दोनों बाहें खोल कर बच्चों को अपने गले लगने को बुलाया मगर बच्चे मुझे अनदेखा कर इन्ही से लिपटे रहे| तभी इन्होने खुसफुसाते हुए बच्चों के कान में कुछ कहा जिसे मैं नहीं सुन पाई थी मगर जानती थी की क्या कहा होगा; "बेटा, मम्मी से गुस्सा नहीं होते, वो आपसे बहुत प्यार करती है|" इनकी बात सुन बच्चे इनकी गोदी से उतरे और मेरे सामने सर झुकाये हुए खामोश खड़े हो गए| बच्चों की मेरे प्रति नाराजगी खत्म नहीं हुई थी, वो तो बस अपने पापा की बात का मान रखने के लिए मेरे पास आये थे| बच्चों को मनाने की लिए मैंने इनकी तरह दोनों बच्चों को एक साथ गोदी में उठाना चाहा मगर दोनों बच्चे एक साथ इतने भारी थे की मैं उन्हें गोद में नहीं उठा पाई! मेरी इस विफल कोशिश को देख आखिर बच्चे तथा ये हँस पड़े| बच्चों को पुनः हँसते हुए देख मेरे दिल को सुकून मिला|

मैंने दोनों बच्चों को अपने दोनों हाथ की एक-एक ऊँगली पकड़ाई और उन्हें छत के दूसरे कोने पर इनसे दूर ले आई| ये अपनी जगह खड़े मुझे बच्चों को मनाते हुए देख कर मुस्कुरा रहे थे| "बेटा, I'm so sorry की मेरी वजह से आज आपको आपकी दादी जी की डाँट पड़ी| बेटा मैं आपके पापा के साथ अकेली आगरा इसलिए जाना चाहती हूँ क्योंकि मैंने आयुष के जन्मदिन वाली रात को आपके पापा को बहुत नाराज़ कर दिया था| मैंने आपके पापा जी से बहुत माफियाँ माँगीं मगर अभी तक मुझे आपके पापा ने मुझे माफ़ नहीं किया, इसलिए मैंने प्लान बनाया की मैं उनके साथ कहीं अकेले जाऊँ और उन्हें मना सकूँ|" मैंने बच्चों को असली बात बताई तो दोनों बच्चों ने उत्साह में भरते हुए कहा की वो अपने पापा से मेरी सिफारिश करेंगे ताकि वो मुझे माफ़ कर दें; "बेटा, मैंने आपके पापा को नाराज़ किया है न, तो माफ़ी भी मुझे माँगनी चाहिए| आप प्लीज मुझे माफ़ कर दो और हमें कल अकेले आगरा जाने दो, आगे से हम जब भी कहीं घूमने जायेंगे आप दोनों को साथ ले जाया करेंगे|" बच्चे मेरी बात तुरंत मान गए और मुझे माफ़ करते हुए मेरे दोनों गालों पर अपनी पप्पी दी! "बेटा हमारी ये बात किसी को मत बताना, बदले में मैं आज आप दोनों को पिज़्ज़ा खिलाऊँगी| रात को खाने के समय अपने दादा-दादी जी के सामने आप दोनों एक-एक रोटी खा लेना, बाद में कमरे में आप पिज़्ज़ा खा लेना|" पिज़्ज़ा खाने की बात पर तो दोनों बच्चे इतने खुश हुए की आ कर मेरी कमर से लिपट गए!

दरअसल मैं माँ-पिताजी की चोरी बच्चों को पिज़्ज़ा इसलिए खिला रही थी क्योंकि मुझे डर था की एक तो माँ पहले से ही बच्चों के जिद्द करने से नाराज़ हैं, उस पर अगर उन्हें पता चला की मैं उन्हें पिज़्ज़ा खिला रही हूँ तो शायद वो और नाराज होतीं|

खैर, मैंने दोनों बच्चों को अपने दोनों हाथ की एक-एक ऊँगली पकड़ाई तथा नीचे ले जाने के लिए सीढ़ियों के दरवाजे तक चल पड़ी, ये पीछे छत पर अकेले खड़े रह गए थे, हम तीनों को यूँ जाते हुए देख ये प्यार से उल्हाना देते हुए बोले; "Hello Mrs. Maurya and party? बच्चों को रोते हुए से चुप कराया मैंने और तुम दोनों को अपने साथ लिए जा रही हो?" हम तीनों रुके और इन्हें देख कर मुस्कुरा दिए| "अच्छा बेटा, अब आना मेरे पास?!" इन्होने प्यार भरा गुस्सा दिखाते हुए बच्चों से कहा जिस पर बच्चों को हँसी आ गई|

हम चारों नीचे आ गए, कमरे में लौट कर ये अपना कुछ काम ले कर डेस्कटॉप पर बैठ गए और बच्चे अपनी कल की परीक्षा के लिए पढ़ाई करने लग गए| कुछ देर बाद आयुष इनके साथ कंप्यूटर पर गेम खेलने के लिए पहुँचा, ये उस समय डेस्कटॉप पर किसी को मेल कर रहे थे| "पापा जी" आयुष ने इनकी टी-शर्ट खींचते हुए कहा तो इन्होने प्यार से रूठते हुए कहा; "जा कर अपनी मम्मी को बोलो!" इन्होने प्यार से उल्हना दिया था मगर आयुष को लगा की ये छत पर हुई बात से बच्चों से नाराज़ हैं इसलिए वो सीधा अपनी दीदी के पास पहुँचा और नेहा को सारी बात बताई| आयुष की बात सुन नेहा उसके साथ इनके पास दौड़ी-दौड़ी आई, दोनों बच्चे इनकी अगल-बगल खड़े हो गए थे| दोनों बच्चे जानते थे की उन्हें अपने पापा जी को कैसे मनाना है! नेहा इनकी दाहिन तरफ खड़ी थी और आयुष इनकी बाईं तरफ, दोनों बच्चों ने एक साथ कस कर इन्हें अपनी बाहों में भर लिया| आयुष कद में छोटा था इसलिए उसने इनकी कमर के इर्द-गिर्द अपने दोनों हाथ लपेट रखे थे, नेहा कद में बड़ी थी इसलिए उसके दोनों हाथ इनकी सीने के इर्द-गिर्द लिपटे हुए थे| बच्चों की इस प्यार भरी झप्पी के आगे इनका प्यार भरा गुस्सा हार गया और इन्होने दोनों बच्चों को एक साथ अपनी दोनों बाहों में भर लिया तथा उनके सर को चूमते हुए बोले; "मैं अपने बच्चों से कभी नाराज़ थोड़े ही हो सकता हूँ?!" इनकी बात सुन दोनों बच्चे खिलखिलाकर हँस पड़े और एक साथ बोले; "I love you पापा जी!"

"I love you too मेरे बच्चों!" इन्होने दोनों बच्चों के सर को चूमते हुए कहा|

उधर माँ और पिताजी अपने कमरे में बैठे दुखी थे, अपने पोता-पोती को डाँटने से माँ को बहुत बुरा लग रहा था| माँ ने दोनों बच्चों को आवाज दी, दोनों बच्चे सर झुकाये और हाथ पीछे बाँधे उनके सामने खड़े हो गए| लेकिन इससे पहले माँ कुछ कहतीं दोनों बच्चों ने अपने कान पकडे और दोनों बारी-बारी बोले;

आयुष: सॉरी दादी जी!

नेहा: सॉरी दादी जी, आगे से हम दोनों कभी जिद्द नहीं करेंगे!

जैसे ही दोनों बच्चों ने अपनी बात कही की माँ अपनी जगह से थोड़ा उठीं और दोनों के हाथ पकड़ कर दोनों को अपने गले लगा लिया| अपने गले से लगाए हुए माँ ने दोनों बच्चों के सर को चूमा और मुस्कुराते हुए बोलीं; "मेरे प्यारे-प्यारे बच्चे!" माँ ने प्यार से बच्चों को लाड किया| पिताजी चुपचाप बैठे दादी-पोता-पोती का ये प्यार देख रहे थे और उनके चेहरे पर आई गर्वपूर्ण मुस्कान बता रही थी की उन्हें ये दृश्य देख कर कितना आनंद आ रहा है| "अच्छा ये बताओ, पिज्जा खाओगे?" माँ के पूछे इस सवाल पर दोनों बच्चे ख़ुशी से नाचने लगे और उनका ये नाच देख माँ-पिताजी हँस पड़े|

माँ ने मुझे आवाज दे कर बुलाया; "बहु, आज रात हम तीनों दादी-पोता-पोती का खाना मत बनाना|" माँ की बात सुन मैंने थोड़ा आश्चर्य करते हुए कहा; "क्यों माँ?"

"अरे बहु, दादी-पोता-पोती आज पिज्जा खाने वाले हैं!" पिताजी हँसते हुए बोले| पिताजी ने ये बात माँ को प्यार से उल्हाना देते हुए कही थी जिस पर मुझे हँसी आ गई|पिताजी बच्चों को रोज-रोज बाहर से खाने के लिए मना करते थे मगर जब माँ ने ही कह दिया की आज वो बच्चों को पिज़्ज़ा खिलाएंगी तो पिताजी कुछ नहीं बोले| मेरे द्वारा बच्चों को पिज़्ज़ा खाने वाली रिश्वत माँ ने ही अनजाने में दे दी, तो मैं भी झूठ बोलने से बच गई!

रात का खाना बना और खाना आज माँ-पिताजी वाले कमरे में खाया जाना था, दरअसल दोनों बच्चे डाइनिंग टेबल पर बैठ कर खाना नहीं खाते थे क्योंकि उन्हें अपने पापा के हाथ से खाना होता था| खाना खाते समय दोनों बच्चे हमेशा इनके सामने चिड़िया के बच्चों की तरह मुँह खोले खड़े रहते थे ताकि ये उन्हें अपने हाथों से खिलायें इसीलिए डाइनिंग टेबल पर बैठ कर हमारा खाना खाने का कोई लाभ नहीं था|

माँ और बच्चों के लिए इन्होने दो पिज़्ज़ा मँगाए थे, माँ के लिए वीट बेस (wheat base) वाला पिज़्ज़ा तथा बच्चों के लिए एक्स्ट्रा चीज़ वाला पिज़्ज़ा| मैं, ये, और पिताजी घर का बना हुआ खाना खा रहे थे| लेकिन बच्चों का पेट तबतक नहीं भरता था जब तक वो अपने पापा के हाथ से दो निवाले न खा लें| आयुष और नेहा ने अपना पिज़्ज़ा डिब्बे में छोड़ा और इनके सामने अपना मुँह खोल कर खड़े हो गए ताकि ये उन्हें बारी-बारी खाना खिला सकें| बच्चों का ये बचपना देख हमारे चेहरे पर मुस्कान आ गई थी, इन्होने बारी-बारी से दोनों बच्चों को एक-एक निवाला खिलाया और दोनों बच्चे एक साथ अपनी गर्दन दाएँ-बाएँ हिलाने लगे! दोनों बच्चों को इस तरह खुश देख कर लगता था की पिज़्ज़ा से ज्यादा स्वाद उन्हें अपने पापा जी के हाथ से घर का खाना खाने में आया है!

"जितना लाड तू बच्चों को करता है, उतना तो मैंने तुझे लाड नहीं किया!" पिताजी मुस्कुराते हुए इनसे बोले| पिताजी की कही बात सुन ये भी मुस्कुराये और बोले; "पिताजी लाड तो आपने भी मुझे बहुत किया है, जैसे-जैसे मैं बड़ा होने लगा आपका लाड-प्यार, डाँट-डपट में बदल गया| आपका वो डाँटना ही था जो मैं आज अपने पाँव पर खड़ा हो पाया और किसी गलत रास्ते नहीं भटका!" इनकी बात सुन पिताजी को इनपर बहुत गर्व हो रहा था| तभी इन्होने दोनों बच्चों को प्यार से समझाते हुए कहा; "बेटा, अगर मम्मी-पापा या दादा-दादी जी कभी डाँट दें तो उसका बुरा नहीं मानना, क्योंकि हमारी डाँट में आपके लिए भलाई छुपी होती है| अगर आपके दादा-दादी जी मुझे मेरे बचपन में डाँटते नहीं तो क्या मैं इतना समझदार बन पाता? फिर आपके दादा जी मुझे जितना डाँटते थे उससे ज्यादा प्यार भी करते थे|" बच्चों ने इनकी बात बड़े ध्यान से सुनी, उधर माँ-पिताजी का सीना गर्व से फूला नहीं समा रहा था क्योंकि उनका बेटा आज उनके लाड-प्यार का बखान अपने बच्चों से बड़े गर्व से कर रहा था|

कुछ देर बाद, आयुष अपने पिज़्ज़ा में से एक स्लाइस ले कर अपने दादा जी के पास उन्हें खिलाने पहुँचा; "बेटा तुम खाओ, तुमने खा लिया तो मेरा पेट भर गया समझो|" पिताजी आयुष से बोले| दरअसल पिताजी को पिज़्ज़ा पसंद नहीं था इसीलिए उन्होंने खाने से मना किया था| पिताजी ने पिज़्ज़ा का वो स्लाइस आयुष को अपने हाथ से खिलाया और उसके सर पर हाथ रख उसे आशीर्वाद दिया| आयुष ने पिज़्ज़ा का दूसरा स्लाइस उठाया और इन्हें खिलाने के लिए इनके पास आया, इन्होने उस स्लाइस में से एक छोटा टुकड़ा तोडा और मुझे खाने को दिया| मैं हैरान सी मुँह बाये इन्हें देखने लगी क्योंकि डॉक्टर सरिता ने मुझे ज्यादा बाहर का खाने-पीने को मना किया था इसलिए मैंने जानकार अपने लिए पिज़्ज़ा नहीं मँगवाया था|

"अब अगले दो दिन तो तुमने बाहर से ही खाना है, तो आज एक बाईट तो खा ही सकती हो!" इन्होने प्यार भरा उल्हना देते हुए कहा| ये अपने पिता बनने को ले कर बहुत उत्साहित और सतर्क थे इसीलिए मेरा इतना ख्याल रखते थे| उधर माँ ने जब इनका प्यारभरा उल्हाना सुना तो उन्हें लगा की ये मुझे प्यार से ताना मार रहे हैं जिस कारण माँ मेरे बचाव में आईं; "खा ले बहु!" माँ ने मुझसे कहा और इन्हें घूर कर देखने लगीं| माँ के घूरने पर ये मुस्कुरा दिए और अपना खाना खाने लगे, इन्हें माँ का मेरा पक्ष लेना बहुत अच्छा लगता था|

इन्हें पिज़्ज़ा खाना बहुत पसंद था, लेकिन चूँकि मुझे बाहर से खाने की मनाही थी इसलिए इन्होने मेरे लिए खुद भी बाहर से खाना बंद कर दिया था| "आप भी खा लो न!" मैंने दबी आवाज में इनसे कहा, माँ ने मुझे इनसे दबी हुई आवाज में बात करते सुन लिया था इसलिए वो जान गईं की मैं क्या कह रही हूँ| "तू तो खा ही सकता है|" माँ ने इन्हें हुक्म देते हुए कहा, माँ की बात सुन ये मुस्कुरा कर बोले; "माँ मेरे परहेज के कारन ही संगीता काबू में है, अगर मैंने बाहर का खाना शुरू कर दिया तो ये भी नहीं मानेगी|" इन्होने मुझे छोटी बच्ची समझ रखा था जिसे परहेज करना नहीं आता!
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"बेटा, कभी-कभार बाहर से खा लेने से कुछ नहीं होता!" माँ इन्हें प्यार से समझाते हुए बोलीं| माँ को अपने बच्चों को किसी भी चीज के लिए तरसाना पसंद नहीं था इसलिए उनकी बात सही थी| अब उन्हें क्या पता की मैंने कल ही स्कूल में छोले-कुलचे खाये थे!

माँ को यूँ मेरे प्रति ढील देते देख पिताजी एकदम से बोले; "जैसे तुम खा लिया करती थीं?" पिताजी ने माँ को प्यार से डाँटते हुए कहा| पिताजी की इस बात ने माँ को उनकी प्रेगनेंसी के समय की गई लापरवाही याद दिला दी जिस कारण माँ एकदम से खामोश हो गईं|

"पिताजी, आप तो सारा समय काम में व्यस्त रहते थे, घर पर माँ अकेली क्या करतीं? हो गई गलती, छोडो पुरानी बातों को!" इन्होने माँ का बचाव करते हुए कहा| "तू जानता है न तेरी माँ की की इसी गलती के कारण ही तू कितना कमजोर पैदा हुआ था?! फिर तेरी ये B.P. की बिमारी भी इसी की करनी है!" पिताजी ने थोड़ा सख्ती से माँ को दोष देते हुए कहा| "अगर माँ वो गलतियाँ नहीं करतीं तो मैं संगीता की प्रेगनेंसी के समय कैसे सावधानी बरतता?" इन्होने अपनी चतुराई से पिताजी से तर्क किया जिसे सुन पिताजी आगे कुछ नहीं बोले| इन्होने बात को आगे बढ़ने नहीं दिया और बच्चों से बातें शुरू कर माहौल को गमगीन नहीं होने दिया|

खाना खा कर पिताजी छत पर टहल रहे थे तभी ये भी उनसे बात करने के लिए ऊपर जा पहुँचे; "पिताजी, प्लीज माँ को वो पुरानी बातें याद न दिलाया करो, उन बातों को याद कर माँ बहुत दुखी होतीं हैं! जो होना था सो हो गया, उसे न आप बदल सकते हो न मैं और फिर अब तो सब कुछ ठीक है|" इनकी बात सुन पिताजी ने इनके सर पर हाथ रखा और आशीर्वाद दिया|

इतने में मैं, माँ को ले कर छत पर टहलने के लिए आ गई| माँ को देख पिताजी माँ के पास आये और बोले; "मानु की माँ, मुझे माफ़ कर दो! मेरा मकसद तुम्हें पुरानी बातें याद दिलाना नहीं था| गलती हम दोनों की थी, मैं काम पर इतना व्यस्त हो गया था की मैंने तुम्हारे ऊपर ध्यान ही नहीं दिया, जिस कारण तुम थोड़ी लापरवाह हो गई!" जैसे ये मेरी गलतियों को मेरे साथ बाँट लेते थे वैसे ही पिताजी ने माँ की गलती को माँ के साथ साझा कर लिया था|

इधर पिताजी की बातें सुन माँ थोड़ा भावुक हो गईं, इन्होने फ़ौरन माँ को कस कर अपने गले लगा लिया| माँ ने खुद को सँभाला और बोलीं; "बेटा मेरी लापरवाही से तुझे ये (B.P. की) बिमारी हुई!"

"माँ....छोडो उन बातों को!" इन्होने मुस्कुराते हुए माँ से कहा| इनके लिए वो पुरानी बातें मायने नहीं रखतीं थीं, मायने रखती थीं तो इस परिवार का प्यार| माँ ने इनके सर को चूमा और खूब आशीर्वाद दिया, इतने में मैं भी पीछे से आ गई तथा माँ को पीछे से गले लगा लिया| माँ एकदम से मेरी तरफ पलटीं और मुझे प्यार से समझाते हुए बोलीं; "बेटी, देख तू कोई लापरवाही मत बरतना वरना ये (मेरे पति) पागल खुद को कभी माफ़ नहीं करेगा|" माँ ने मुझे प्यार से आगाह कर दिया था और मैंने उनकी बातें गाँठ बाँध ली थीं; "जी माँ! वादा करतीं हूँ की मैं कोई लापरवाही नहीं बरतूँगी|" इतना कह मैंने इनकी ओर देखा ओर नजरों से इशारा करते हुए इनसे बोलीं; "...और जैसे 'आप' कहोगे वैसे करुँगी!" मैंने इन्हें प्यार से उल्हाना देते हुए कहा, मेरी बात का मतलब समझ ये बस मुस्कुरा कर रह गए!

बहरहाल, सोने का समय हो रहा था और आज बच्चे अपने कमरे में सोने वाले थे| बच्चों को कहानी सुना कर ये हमारे कमरे में आये, भले ही हमारे बीच में जिस्मानी दूरियाँ थीं पर दिल अब भी जुड़े हुए थे| इनके बिस्तर पर लेटते ही मुझे कहाँ चैन पड़ने वाला था, मैं इनकी ओर खुद सरक कर लेट गई और अपना बायाँ हाथ इनके सीने पर रख दिया| इन्होने अभी भी कोई प्रतिक्रिया नहीं दी, सुबह जल्दी उठना था इसलिए हम दोनों जल्दी सो गए| सुबह ठीक पाँच बजे इन्होने मुझे जगाया|

[color=rgb(128,]जारी रहेगा भाग - 3 में...[/color]
 

[color=rgb(51,]उनत्तीसवाँ अध्याय[/color][color=rgb(51,]: मुश्किलों भरी [/color][color=rgb(51,]शुरुआत[/color]
[color=rgb(255,]भाग -3[/color]


[color=rgb(251,]अब तक आपने पढ़ा:[/color]

बहरहाल, सोने का समय हो रहा था और आज बच्चे अपने कमरे में सोने वाले थे| बच्चों को कहानी सुना कर ये हमारे कमरे में आये, भले ही हमारे बीच में जिस्मानी दूरियाँ थीं पर दिल अब भी जुड़े हुए थे| इनके बिस्तर पर लेटते ही मुझे कहाँ चैन पड़ने वाला था, मैं इनकी ओर खुद सरक कर लेट गई और अपना बायाँ हाथ इनके सीने पर रख दिया| इन्होने अभी भी कोई प्रतिक्रिया नहीं दी, सुबह जल्दी उठना था इसलिए हम दोनों जल्दी सो गए| सुबह ठीक पाँच बजे इन्होने मुझे जगाया|

[color=rgb(97,]अब आगे:[/color]

हमारी ट्रैन 7 बजे छूटनी थी इसलिए हम फटाफट तैयार हुए तथा मैंने माँ-पिताजी के लिए चाय बनाई| मैंने हमारे दो जोड़ी कपड़े पहले से ही बैग में पैक कर के रख दिए थे, इन कपड़ों में मैंने इनके लिए दो जबरदस्त सरप्राइज पैक कर रखे थे| इधर मैं चाय ले कर माँ-पिताजी को देने गई तो माँ बोलीं; "बहु, चाय-वाय हम बना लेते तुम दोनों निकलो जल्दी वरना ट्रैन छूट जाएगी|" लेकिन माँ-पिताजी को सुबह की चाय बना कर पिलाना मेरा धर्म था और मैं इस धर्म से चूकना नहीं चाहती थी| उधर ये जाने से पहले बच्चों को उनकी सुबह की प्यारी-प्यारी kissi देने पहुँचे| दोनों बच्चे अभी भी सोये हुए थे, उन्हें सोता हुआ देख इनका उन्हें जगाने का मन नहीं हुआ इसलिए इन्होने झुक कर दोनों बच्चों के सर को चूमा तथा बाहर आने को मुड़े, लेकिन मेरी ही तरह नेहा को भी इनकी मौजूदगी का एहसास हो गया था इसलिए वो तुरंत जाग गई| नेहा तुरंत उठ बैठी और इनके दाहिने हाथ की ऊँगली पकड़ कर इन्हें रोक लिया| "अरे, मेरा बच्चा उठ गया?!" ये कहते हुए इन्होने नेहा को गोदी में उठा लिया| इनकी गोदी में आते ही नेहा ने इन्हें सुबह की अपनी गुड मॉर्निंग वाली पप्पी दी तथा मुस्कुराते हुए बोली; "bye पापा जी!" इन्होने भी नेहा के माथे को चूमते हुए bye बोला और उसे पुनः लिटा दिया, अभी घडी में बस पौने 6 हुए थे तो नेहा इतनी जल्दी उठ कर क्या करती|

हम दोनों ने माँ-पिताजी का आशीर्वाद लिया और स्टेशन के लिए निकले, हम समय से निजामुद्दीन रेलवे स्टेशन पहुँच गए थे इसलिए वहाँ बाहर से ही इन्होने मुझे कॉफ़ी पिलाई| आज मैं पहलीबार इनके साथ अकेली कहीं बाहर आई थी और मैं इन पलों का पूरा फायदा उठाने की फिराक में थी! मेरे जिस्म में पता नहीं क्या बदलाव आये की मेरी इनके प्रति प्यास आज कुछ अधिक ही बढ़ गई थी! मैंने इनका दाहिना हाथ कस कर पकड़ा हुआ था, मेरे भीतर इन्हें पाने की ललक जाग चुकी थी और जब वो ललक उबाल मारती तो मैं इनकी हथेली को मींज दिया करती थी| ये मेरे जिस्म में उठे इस प्यार के तूफ़ान को भाँप गए थे और मुझे मुस्कुरा कर देख रहे थे| इनकी ये मुस्कान मेरी जिस्म की आग में घी का काम करती थी और मैं इनका हाथ और कस कर मींज दिया करती!

कुछ समय बाद ताज एक्सप्रेस आ कर प्लेटफार्म पर लगी और ये मेरा हाथ थामे हुए मुझे executive car तक ले आये| फिर मेरा हाथ पकड़ इन्होने मुझे ट्रैन में ठीक से चढ़ने में साहयता की, शीशे का दरवाजा खोल जब हम अपनी बोगी में अंदर पहुँचे तो अंदर का नज़ारा देख मुझे बहुत आनंद आया| गद्देदार और आरामदायक कुर्सियाँ को देख कर तो लग रहा था की इस पर बैठने के बाद उठूँ ही नहीं! हमारे आसपास गिने-चुने यात्री ही थे तथा वे सब के सब अंग्रेज थे| यात्री कम होने की वजह से हमारी ये बोगी बहुत बड़ी लग रही थी| हमारी सीट खिड़की वाली थी और खिड़की पर बैठने के बारे में सोच मेरे भीतर का बच्चा जाग गया था| अपनी सीट पर बैठ मैंने अपनी गर्दन इधर-उधर घुमा कर हर चीज का जायजा लेना शुरू कर दिया था| पाँव रखने के लिए जो फुट रेस्ट था उसे मैंने अपनी जर्रूरत के अनुसार पाँव से ऊपर उठा लिया था, मेरे सामने लगी कुर्सी की पीठ पर ट्रे को मैंने खोल लिया था और उस पर अपना हैंडबैग रख दिया था| बोतल होल्डर में पानी की बोतल रख दी थी| वहीं ये मेरा बचपना देख कर मुस्कुरा रहे थे, मेरा यूँ ट्रैन की हर चीज को इस्तेमाल करना वैसा ही था जैसे कोई कंजूस अपने किये गए खर्चे से पूरे पैसे वसूल रहा हो!

ट्रैन की इस बोगी में इतनी सहूलतें देख मुझे एहसास हुआ की इस बोगी की टिकट बहुत महँगी होगी, यदि मैं साथ न होती तो ये अवश्य ही चेयर कार से जाते परन्तु केवल मेरे आराम के लिए इन्होने इतना पैसा खर्चा था!

ट्रैन अभी चली नहीं थी मगर मेरे मन में रोमांस की ट्रैन चल पड़ी थी! मैंने एकदम से इनकी दाईं बाजू को अपने दोनों हाथों से पकड़ लिया और उसे चूमते हुए बोली; "थैंक यू!" मेरे थैंक यू के जवाब में इन्होने अपनी हमेशा वाली मुस्कुराहट दी जिसे देख मेरा ईमान डोल गया| मैंने इनके चेहरे को अपने दोनों हाथों के बीच थामा और इनके होठों पर अपने होंठ रख दिए! ये हमला इतना आकस्मिक था की इन्हें सम्भलने का मौका ही नहीं मिला! इधर मेरे पास ज्यादा समय नहीं था इसलिए मैं बस इनके एक ही होंठ को रस पी पाई और दूसरे होंठ का रस पी पाती उससे पहले ही इन्होने हमारा चुंबन तोड़ दिया! चूँकि हम ट्रैन में थे इसीलिए इन्होने वहाँ मुझे कुछ नहीं कहा और एक झूठी मुस्कान के साथ मुझसे नजरें फेर लीं, लेकिन मैं समझ गई थी की इन्हें मेरी ये हरकत पसंद नहीं आई!

उधर हमारा ये छोटा सा चुंबन कुछ अंग्रेज किशोर लड़कियों ने देख लिया, ये दृश्य देख कर उन्हें पता नहीं क्या ख़ुशी हुई की उन्होंने हमें देखते हुए तालियाँ बजानी शुरू कर दी! तालियों की आवाज सुन इन्होने जब उन लड़कियों को देखा तो ये जान गए की हमारा इस चुंबन का सीधा प्रसारण सब ने देख लिया है! वहीं इधर मुझे उम्मीद नहीं थी की मुझे इन्हें kiss करता हुआ कोई देख सकता था इसलिए तालियों की आवाज सुन मैं बुरी तरह झेंप गई थी! मुझे यूँ शर्माते हुए देख इन्हें बहुत मज़ा आया था, इनके चेहरे पर जो नक़ली हँसी थी वो अब जा कर असली मुस्कान में बदल गई थी!

तो इस तरह हमारा सफर प्यार और हँसी-ख़ुशी के साथ शुरू हुआ| ट्रैन चल पड़ी और मुझे आज बहुत ही गजब की अनुभूति हो रही थी, आज मैं अकेली पहलीबार जो इनके साथ कहीं जा रही थी! असली मायने में आज हम हनीमून पर जा रहे थे, क्योंकि पिछलीबार तो सारा परिवार साथ था| ट्रैन में हिलते-डुलते मैं खिड़की से बाहर देखने में व्यस्त हो गई, इन्हें अचानक चूमने की जो गुस्ताखी मैंने की थी उस डर से मैं इनसे कुछ भी कहने से कतरा रही थी| कुछ देर बाद एक चिप्स वाला आया और उसकी आवाज सुन मैं किसी छोटे बच्चे की तरह चिप्स के पैकेट को देखने लगी| इन्होने मुझे चिप्स के पैकेट को देखते हुए देखा तो इन्होने चिप्स वाले को रोका और मेरे लिए चिप्स के पैकेट खरीद कर मुझे दिए| मैं किसी छोटे बच्चे की तरह खुश हुई और मेरे चेहरे पर आई ये मुस्कान देख इनका दिल पिघल गया| खिड़की से बाहर देखते हुए मैं चिप्स खाने में व्यस्त हो गई, मैंने इनसे चिप्स खाने तक को नहीं पुछा!

वहीं ये आज जिन लोगों से मिलने वाले थे उनसे व्हाट्स अप्प (what's app) पर मिलने का समय तय करने लगे| वहीं मैं खिड़की से बाहर के दृश्य देखने में व्यस्त थी, रास्ते में पड़ने वाले खेतों, जानवरों, गाँव के घर, गुजरती हुई ट्रैन देखने में मुझे आनंद आ रहा था| वैसे भी कुछ देर पहले इनको बिना पूछे ट्रैन में सबके सामने kiss करने की गुस्ताखी के चलते इनसे कुछ भी बात करने में डर लग रहा था, तो खिड़की के बाहर के नज़ारों को देख कर मैं इनके गुस्से के शांत होने का इंतज़ार कर रही थी|

दो घंटे बाद मथुरा स्टेशन आया तो मुझे इनसे बात करने का मौका मिल गया था| "मुझे मथुरा भी घूमना है!" मैंने छोटे बच्चे की तरह इनसे माँग की| इस वक़्त मुझे इनसे कुछ बुलवाना था, भले ही ये मुझे डाँट दें मगर मुझसे बात तो करें इसीलिए मैं ये बच्चों वाली हरकत जानबूझ कर रही थी| "अगली बार घूम लेना, तब हम सहपरिवार आएंगे|" इन्होने मुस्कुराते हुए मुझे बड़े प्यार से समझाया, जैसे ये बच्चों को समझाते हैं| इनके चेहरे पर आई ये मुस्कान देख मुझे तसल्ली हो गई की इनका गुस्सा शांत हो गया है| इनके बोलने से अब मुझे इनसे पेट भरकर बातें करने का मौका मिल गया था| मैंने इनका ध्यान इनके मोबाइल से हटाने के लिए अपनी बातों में लगा दिया;

मैं: जानू, अभी हम कहाँ उतरेंगे और कहाँ-कहाँ जायेंगे?

ये: वैसे मुझे तो 'राजा की मंडी' स्टेशन उतरना था क्योंकि वहाँ से शाहगंज नजदीक है, लेकिन आज मैंने सारी मीटिंग कल के लिए पोस्टपोन कर दी है इसलिए अभी हम सीधा 'आगरा कैंट' उतरेंगे और वहाँ से पहले होटल जायेंगे, फिर फ्रेश हो कर पहले 'आगरा फोर्ट' जायेंगे तथा हमारा अंतिम पड़ाव 'ताजमहल' होगा!

ताजमहल का नाम सुन मेरी आँखें चमक उठीं थी, क्योंकि आज से पहले मैंने बस ताजमहल का नाम ही सुना था|

मैं: थैंक यू एंड सॉरी, मेरी वजह से आपको मीटिंग पोस्टपोन करनी पड़ी!

मैंने इनसे माफ़ी माँगी, मगर इन्हें kiss करने के लिए नहीं बल्कि मेरे कारन जो आज इन्होने अपनी मीटिंग कैंसिल की थीं|

ये: Its ok!

इन्होने मुस्कुराते हुए कहा| अगला एक घंटा मैंने अपनी चपड़-चपड़ से इनका ध्यान अपने ऊपर बनाये रखा, कभी अलग-अलग स्टेशन के बारे में पूछती तो कभी ताजमहल के बारे में बातें करने लगती| वो पूरा एक घंटा मैंने इन्हें अच्छे से पका दिया था, जिसके लिए इन्होने मुझसे कोई शिकायत नहीं की!

आखिर आगरा कैंट स्टेशन आया और हम वहाँ उतर गए| स्टेशन में खाने-पीने की अच्छी व्यवस्था थी, तो जैसे ही इन्होने नाश्ते के लिए पुछा तो मैंने तुरंत आयुष की तरह गर्दन हाँ में हिलानी शुरू कर दी!
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मेरा ये बचपना देख ये हँस पड़े! वहीं मैंने इनका हाथ थाम लिया और इनके साथ नाश्ता करने बैठ गई| नाश्ता कर हम स्टेशन से बाहर आये, स्टेशन से बाहर आते ही हमें ऑटो वालों ने घेर लिया| इन्होने एक ऑटो वाले से पैसे तय किये और उसने हमें ताजगंज के एक होटल में छोड़ा जहाँ इन्होने पहले से ही एक कमरे की बुकिंग कर रखी थी| कमरे में पहुँच इन्होने बैग रखा और मुझे कपड़े बदलने को कहा| मैंने कल रात ही इन्हें सरप्राइज देने की तैयारी कर ली थी| मैंने इन्हें मुँह हाथ धोने के बहाने से बाथरूम भेजा, जैसे ही ये बाथरूम में घुसे मैंने बाहर से दरवाजा बंद कर दिया| इन्हें मेरे दरवाजा बंद करने की आवाज आ गई थी तो ये अंदर से बोले; "यार, क्या बचपना है ये?" ये गुस्सा नहीं थे बस मेरे इस बचपने से थोड़े से चिढ गए थे| "मैं कपड़े बदल रही हूँ, आप देख न लो इसलिए दरवाजा बंद किया है मैंने!" मैंने बात बनाते हुए कहा| मेरी बात सुन ये बाथरूम में खड़े-खड़े हँस पड़े, क्योंकि ऐसी कोई बात नहीं थी की मैं इनके सामने कपड़े नहीं बदल सकती थी!

मैंने ऑनलाइन अपने लिए रेड टी-शर्ट, ब्लैकब्लैज़र और ब्लू जीन्स मँगवाई थी| मैंने फटाफट वो कपड़े पहने तथा बाथरूम के दरवाजे की कुण्डी खोल दी, बाथरूम से बाहर निकल जब इन्होने मुझे इन कपड़ों में देखा तो इनका मुँह खुला का खुला रह गया! इन्हें लुभाने के लिए मैं अपना निचला होंठ दबाते हुए किसी मॉडल की तरह पोज़ ले कर इन्हें देखने लगी!

"तेरे हुस्न पर तारीफ भरी किताब लिख देता...

काश के तेरी वफ़ा तेरे हुस्न के बराबर होती..." इन्होने मुझे देखते हुए ये शेर पढ़ा| शेर का पूरा मतलब तो मैं समझ नहीं पाई मगर जितना समझ पाई थी उसे अपनी तारीफ ही समझा! अपनी तारीफ में ये शेर सुन मैं मुस्कुरा दी और बड़ी नज़ाक़त से इनकी ओर बढ़ी| इनके नजदीक आ कर मैंने अपनी बाहें इनकी गर्दन में पहना दीं तथा इनकी आँखों से आँखें मिला कर उम्मीद करने लगी की ये मेरे लबों को चूमेंगे, परन्तु मेरे भोले पति के मन में तो सवाल था?! "ये कपड़े कब खरीदे?" इनका सवाल सुन कर मेरे चेहरे पर प्यार भरा गुस्सा आ गया; " दूकान से!" मैंने थोड़ा नाराज़ होते हुए कहा| मुझे यूँ नाराज़ होते हुये देख ये हँस पड़े और बोले; "मेरी जानेमन आजकल अपना पहनावा बदल रही है.अच्छा है!" इनके मुँह से अपने लिए जानेमन शब्द सुन मेरी नाराज़गी काफूर हो गई| मैंने मॉडल की तरह अलग-अलग पोज़ बनाकर इन्हें अपने पहने हुए कपड़े दिखाए| टी-शर्ट और जीन्स में मैं सुन्दर लग रही थी तथा मुझे यूँ बना-सँवरा देख बहुत खुश थे|

मैंने थोड़ा इतराते हुए इन्हें इनके कपड़े दिए, इनके लिए मैंने एक टाइट फिट की सफ़ेद रंग की टी-शर्ट, ब्लैज़र और जीन्स लाई थी| जब ये तैयार हुए तो हमारी जोड़ी देखते ही बनती थी, ये तो वैसे भी हैंडसम लगते थे मगर इन वेस्टर्न कपड़ों में मैं भी पटाखा लग रही थी! अपना कमरा बंद कर हम होटल के रिसेप्शन पर पहुँचे तो आस-पास खड़े आदमियों ने मुझे घूर कर देखना शुरू कर दिया| उस समय मुझे एहसास हुआ की इन्हें खुश करने के चक्कर में पहने ये कपड़े मेरे जिस्म को कुछ ज्यादा ही एक्सपोज़ कर रहे हैं! आजतक मैंने कभी ऐसे कपड़े नहीं पहने थे की कोई मुझे घूर कर देखे इसीलिए मुझे इस समय बहुत ही असहज महसूस हो रहा था| इन्होने मेरी ये असहजता महसूस कर ली थी और मुझे होंसला मिले इसके लिए इन्होने मेरे हाथ सख्ती से पकड़ लिया था| इनके हाथ की ये सख्ती मेरे लिए हिम्मत का काम कर गई थी और मुझे खुद पर भरोसा होने लगा| अब मुझे कोई डर नहीं था, सो मैंने अपना सारा ध्यान इन्हीं पर लगा दिया तथा इनसे सट कर चलने लगी| इन्होने होटल से बाहर निकल कर आगरा फोर्ट जाने के लिए ऑटो किया, रास्त बस 10 मिनट का था और इस पूरे दौरान मैं सट कर इनसे बैठी रही| मेरे भीतर आगरा फोर्ट देखने की लालसा कम और इनके साथ वक़्त गुजारने की लालसा अधिक थी|

आगरा फोर्ट पहुँच ये टिकट लेने जा रहे थे, इन्होने शेड्स (काले रंग का स्टाइलिश चश्मा) पहन रखा था, मैंने इनसे वो शेड ले लिया और खुद पहन लिया| अब तो मैं पूरी 'मेम' लग रही थी! आस-पास जितने लोग थे सबकी नजर मुझ पर थी और मुझे फिर से असहज महसूस हो रहा था! ये हमारी टिकट ले कर लौटे तो मैंने झट से इनका हाथ कस कर थाम लिया, इनके साथ होने के एहसास से मैं अब असहज महसूस नहीं कर रही थी!

हम आगरा फोर्ट के भीतर दाखिल हुए और बड़े आराम से घूमने लगे| मैंने अपना फ़ोन निकाला और हमारी बहुत सारी तसवीरें खींचीं, कुछ तसवीरें इन्होने मेरी अकेली की खींची जिससे मुझे थोड़ा-थोड़ा खुद पर विश्वास होता जा रहा था| मुझे अब दूसरे लोगों का मुझे देखना नहीं खटक रहा था, जिससे मेरा ध्यान अब पूरी तरह से इन पर था तथा मेरे भीतर इनके लिए फिर से प्यार उमड़ने लगा था| "जानू, मुझे एक सेल्फी आपको kiss करते हुए लेनी है!" ये सुन ये मुस्कुराने लगे और मना करने लगे; "तुम्हें ये जीन्स और टी-शर्ट सबके सामने पहनने में इतनी शर्म आ रही थी और अब तुम्हें मुझे kiss करते हुए फोटो खींचनी है?" ये प्यार से मेरे साथ तर्क करते हुए बोले| " जानू, होटों पर थोड़े ही kiss करुँगी, गाल पर करुँगी! प्लीज...प्लीज...प्लीज!!!" मैंने अपना बचपना दिखाते हुए इनसे मिन्नत की तो ये मुस्कुराते हुए मान गए! मैंने इनके दाएँ दाएँ गाल पर kiss करते हुए एक सेल्फी खींची, मेरे चेहरे पर जो बचकानी ख़ुशी थी उसे देख ये हँस पड़े तथा अपना दायाँ हाथ मेरे बाएँ कँधे पर रख मुझे अपने से सटा कर आगे चल दिए! सच कहूँ तो मेरा मन इनके गाल पर नहीं बल्कि होठों पर kiss करते हुए सेल्फी खींचने का था मगर मैंने अपने इस प्लान को ताज महल के लिए रोक लिया था!

आगरा फोर्ट में घूमते-घुमते हम उस स्थान पहुँचे जहाँ शाह जहाँ कैद था और अपने अंतिम दिनों में ताज महल को देखा करता था| इन्होने उस स्थान से मुझे ताज महल दिखाया, परन्तु अधिक दूरी और हवा में प्रदुषण होने के कारण वहाँ से ताजमहल धुँधला सा दिख रहा था इसलिए मैं उसकी सुंदरता को ठीक से समझ न पाई| इतनी दूर से ताज महल को देख मुझे वो कुछ ख़ास आकर्षक नहीं लगा था!

आगरा फोर्ट से निकल हम सीधा ताज महल पहुँचे, वहाँ पहुँच कर इन्होने मुझे एक जगह खड़ा रहने को कहा और खुद टिकट लेने लाइन में लग गए| टिकट ले कर, सिक्योरिटी चेक पॉइंट से अपनी चेकिंग करवा कर हम परिसर में दाखिल हुए| परन्तु अभी तक मुझे ताज महल दिखाई नहीं दिया था तो मैंने थोड़ा बेचैन होते हुए इनसे पुछा; "ताजमहल कहाँ है?" मेरा सवाल सुन कर ये हँस पड़े और बोले; "जान थोड़ा सब्र करो!" मेरा उतावलापन जायज था क्योंकि मैंने आजतक बस किताबों में ताजमहल को देखा था और आज मैं पहलीबार ताज महल देखने जा रही थी|
कुछ कदम चलने के बाद हम एक बड़े से दरवाजे के पास पहुँचे, इतना बड़ा दरवाजा आज मैं पहलीबार देख रही थी जिस कारण मेरी आँखें बड़ी हो गईं थीं! दरवाजे से पहले कुछ सीढ़ियाँ बनी थीं, इनका हाथ थामे मैं उन सीढ़ियों पर धीरे-धीरे चढ़ने लगी| कुछ सीढ़ियाँ चढ़ने के बाद मुझे ताजमहल की एक झलक देखने को मिली, उस सफ़ेद संगेमरमर के ढांचें को देख मेरे दिल की धड़कनें तेज हो गईं और मैंने इनका हाथ कस कर दबा दिया| मेरा इनका हाथा दबाने से ये मेरी बेचैनी समझ गए तथा जवाब में इन्होने भी मेरी हथेली हल्के से मींज दी! हम दोनों मियाँ-बीवी तेजी से सीढ़ियाँ चढ़ने लगे, जब हम अंतिम सीढ़ी पर पहुँचे तो जो नज़ारा मुझे देखने को मिला उसे देख कर तो मेरी आँखें फटने की हद्द तक बड़ी हो गईं! उस विशालकाय प्यार की मूरत को देखा तो दिल में प्यार उमड़ आया! वो सफ़ेद इमारत जैसे आँखों से होते हुए दिल के अंदर बस गई और आँखों से ख़ुशी के आँसुओं की एक बूँद छलक आई! ये दृश्य मेरी कल्पन से परे था, मैंने कभी नहीं सोचा था की मैं ताज महल देख पाऊँगी, आज इनके साथ ताज महल देखने का मौका मिला तो आँखें ख़ुशी के मारे नम हो गईं!
हमेशा पटर-पटर करने वाली मैं एकदम से खामोश हो गई थी इसलिए ये हैरान होते हुए मुझे देखने लगे, मेरी आँखों में आँसूँ देख ये मेरे जज्बातों को समझने की कोशिश करने लगे थे| इन्होने मेरे आँसूँ पोछे और मुझसे प्यार से बोले; "जान, क्या हुआ?" इनके सवाल में मेरे लिए इनकी चिंता झलक रही थी, वहीं मैं इस समय इस स्थिति में नहीं थी की कुछ बोल पाऊँ इसलिए मैं एकदम से इनके सीने से लिपट गई| "बस मेरी जान, रोना नहीं! अरे अभी तो मुझे तुम्हें बहुत जगह घुमाना है, इस तरह हर जगह जा कर रोओगी तो तुम्हारे आँसूँ कम पड़ेंगे!" इन्होने प्यार से मेरे बालों में हाथ फेरते हुए कहा| इन्होने मुझे खुद से अलग किया क्योंकि आस-पास लोग हमें देखने लगे थे तथा मेरी ठुड्डी पकड़ कर प्यार से दाएँ-बाएँ हिलाई|

सीढ़ियों से उतरते हुए ताज महल की तरफ बाग़ के बीच से जाते हुए हमने कई तसवीरें खींचीं| ये मुझे पहले मियूज़ियम ले गए जहाँ हमने ताज महल के बारे में और मुग़लों के बारे में पढ़ा| वहाँ मैंने मुमताज़ महल की तस्वीर भी देखि मगर मुझे वो इतनी तो सुन्दर नहीं लगी की उसके लिए ताज महल बनवाना पड़े?!
खैर, हम मियूज़ियम से निकल कर सीधा ताज महल की ओर चल दिए| पहले हमने शू-कवर पहने और फिर कुछ सीढ़ियाँ चढ़ हमने ताज महल के भीतर प्रवेश किया, बीचों-बीच बने शाहजहाँ और मुमताज महल के मक़बरे को देख इन्होने मुझसे कहा; "ये असली मकबरा नहीं है, असली मकबरा नीचे बेसमेंट में है मगर वहाँ जाना वर्जित है! पिताजी कहते थे की वो जब माँ के साथ ताज महल देखने आये थे तब नीचे बनी मजारें देखने जाने दिया जाता था मगर फिर आंतकवादियों के डर के कारण किसी को भी नीचे जाने नहीं दिया जाता|" इनसे मिली ये जानकारी सुन मुझे बहुत जिज्ञासा हुई की नीचे कैसा कमरा होगा और मजारें कैसी होंगी? मेरे चेहरे पर आई उत्सुकता देख ये बोले; "ऊपर बना ये मजारों वाला कमरा जहाँ हम खड़े हैं, ये हूबहू नीचे बने कमरे की नकल है!" इन्होने मेरी जिज्ञासा काफी हद्द तक शांत कर दी थी, परन्तु दिल में एक इच्छा नीचे जा कर घूमने की अवश्य थी!

बहरहाल, मज़ार वाले कमरे से बाहर निकल कर हम ताज महल के चबूतरे पर, हाथ में हाथ डाले घूम रहे थे| ये मुझे ताज महल की दीवारों पर हुई नक़्क़ाशी दिखा रहे थे, ये नक़्क़ाशी कुछ और नहीं बल्कि अरबी में लिखी आयतें थीं| समझ तो हमें कुछ नहीं आया मगर हम अंदाजा लगा रहे थे की हो न हो ये कोई कविता ही होंगी| फिर इन्होने मुझे ताज महल के चारों तरफ बनी मीनारें दिखाईं; "शुरू-शुरू में लोगों को इन मीनारों में जाने दिया जाता था, परन्तु फिर एक बार भगदड़ मची जिस कारण लोगों का भीतर जाने पर प्रतिबंध लगा दिया गया|" वो मीनारें इतनी ऊँची थीं की मैं उनके शिखर पर जाने के नाम से ही डर गई थी!

हम दोनों धीरे-धीरे चलते-चलते हुए ताज महल के पीछे, जहाँ की यमुना नदी बहती है वहाँ पहुँच गए| ताज महल के पीछे की तरफ बहुत कम लोग थे, मेरे भीतर जगी प्रेम की अगन के कारण आस-पास मौजूद लोगों की मौजूदगी से मुझे कोई फर्क नहीं पड़ रहा था| मेरे लिए इनसे kissi माँगने और हमारी इस यात्रा को हमेशा-हमेशा के लिए यादगार बनाने का यही सही समय था! "जानू!...अगर मैं आपसे कुछ माँगूँ तो आप मना तो नहीं करोगे?" मैंने इठलाते हुए इनका हाथ पकड़ इन्हें ताज महल की पैरापेट वॉल के पास लाते हुए पुछा| मेरे इस तरह इठलाने से ये समझ तो गए ही होंगे की मैं क्या माँगने वाली हूँ मगर फिर भी इन्होने बिना कुछ सोचे कहा; "माँगो बेगम साहिबा!" ये बिलकुल किसी बादशाह की तरह मुस्कुराते हुए गर्व से बोले|
"जानू!....मुझे न...यहाँ पर आपके साथ एक kiss करते हुए सेल्फी खींचनी है!" मैंने थोड़ा शर्माते हुए कहा| मेरा ये शर्माना बस इन्हें लुभाने के लिए था, क्योंकि मैं जानती थी मेरी यही शर्म इन्हें बहका देती है| मेरी बात सुन ये हैरत भरी नजरों से मुझे देखने लगे और बोले; "क्या? पागल-वागल तो नहीं हो गई?! ये पब्लिक प्लेस है, यहाँ इतने सारे लोग है कोई क्या कहेगा?" इन्होने मुझे थोड़ा प्यार से डाँटते हुए कहा|
"जानू! हम मियाँ-बीवी है कोई छिछोरे थोड़े ही हैं..." मैंने तर्क करते हुए कहा, परन्तु मेरी बात पूरी होने से पहले ही ये बोल पड़े; "Exactly! हम शादीशुदा हैं, ये सब हमें घर पर करना चाहिए न की पब्लिक प्लेस में!" इन्होने मेरे तर्क का जवाब देते हुए कहा| लेकिन मैं अपना मन पहले से ही बना चुकी थी की मुझे हमारी ये यात्रा हमेशा-हमेशा के लिए यादगार बनानी है इसलिए मैंने kissi की जिद्द पकड़ ली और एकदम से अपने गाल फुला लिए!
"अच्छा ये बताओ की तुम्हें ये यहाँ सबके सामने ही क्यों kiss करनी है?" इन्होने मुस्कुराते हुए मुझसे सवाल पुछा| हैरानी की बात ये थी की ये मुझसे बड़े प्यार से पेश आ रहे थे, जबकि मेरी इस माँग पर तो अभी तक इन्हें मुझे प्रवचन देना शुरू कर देना चाहिए था!

खैर, इनके पूछे सवाल पर मैं अपने गाल फुला कर इन्हें घूर रही थी| मेरे ये हाव-भाव देख इन्हें हँसी आ गई और उसी के साथ मैं एकदम से इनपर चढ़ बैठी; "क्योंकि मुझे एक बोरिंग दादी नहीं बनना! मैं चाहती हूँ की जब मैं बुड्ढी हो जाऊँ और मेरे पोता-पोती मुझसे पूछें की दादी जी आपने अपनी जिंदगी में क्या अडवेंचरस (adventurous) किया है तो मैं उन्हें बता सकूँ की मैंने तुम्हारे दादा जी को ताजमहल में kiss किया था और फिर मैं उन्हें हमारी ली हुई सेल्फी सबूत के तौर पर दिखा सकूँ!" मैंने बड़े गर्व से सीना चौड़ा करते हुए कहा| मेरी बात सुन कर ये खिलखिलाकर हँस पड़े और हँसते हुए ही मुझसे कुछ दूर चले गए, इनकी हँसी थी की थमने का ना ही नहीं ले रही थी! इधर मैं अपनी कमर पर दोनों हाथ रखे हुए भोयें सिकोड़ कर इन्हें देखे जा रही थी की मैंने ऐसा कौन सा चुटकुला सुना दिया की जनाब हँसे जा रहे हैं?!

ये मुझसे कोई दस कदम की दूरी पर खड़े थे और इनकी यूँ मुझसे दूरी बनाने को मैं अच्छी तरह से समझती थी! दरअसल ये मुझे टरकाने के चक्कर में थे, इन्हें लग रहा था की मेरा मज़ाक उड़ा कर ये मेरा kiss लेने का इरादा बदल देंगे मगर मैं भी बहुत होशियार थी! मैंने अपने हाथ बाँधे और मुँह मोड़ कर गुस्से में दूसरी ओर देखने लगी, मैंने इन्हें अपना गुस्सा स्पष्ट कर दिया था| मुझे पता था की हम दोनों घर से पहलीबार बाहर आये हैं और ये मुझे आज किसी भी सूरत में नाराज़ नहीं करेंगे तथा मुझे मनाने अवश्य आएंगे|

अब बिलकुल वही हुआ जो मैं चाहती थी, ये मुझे मनाने के लिए मेरे पास आये तथा मेरे कँधे पर हाथ रख मुझे अपनी ओर घुमाया और मेरी आँखों में देखते हुए बोले; "आज इतना रोमांटिक होने का कारण?" इन्होने बड़े प्यार से पुछा| इनकी आँखों में प्यार देख मैं बुद्धू अपनी नाराजगी छोड़ एकदम से पिघल गई और इनकी बातों में आ इनके पूछे सवाल का जवाब देने लगी; "आज हम मोहब्बत की सबसे बड़ी निशानी देखने आये हैं और यहाँ आ कर भी मैं रोमांटिक न हो जाऊँ तो क्या ख़ाक प्यार करती हूँ आपसे!" मैंने जोश से भरते हुए कहा| ये आगे कुछ कहते उससे पहले ही इनका फ़ोन बज उठा और ये बिना कुछ कहे फ़ोन कान से लगा कर मुझसे कुछ दूर जा कर बात करने लगे| यही वो समय था जब मुझे इनकी होशियारी समझ आ गई, ये जानबूझकर मेरा kissi वाला प्रोग्राम टरका रहे थे! मैं तेजी से इनके पीछे पहुँची और झट से इनके हाथ से फ़ोन खींच लिया, मुझे नहीं पता था की फ़ोन पर कौन है इसलिए मैंने आराम से बात करते हुए कहा; "सॉरी सर, मेरे पति आपको बस 10 मिनट में कॉल करेंगे!" इतना कह कर मैंने फ़ोन काट दिया|

फ़ोन काट कर जब मैंने इनकी ओर देखा तो पाया की ये अपना गुस्सा काबू करते हुए मुझे देख रहे हैं! वैसे देखा जाए तो बात गुस्से वाली ही थी, मैं आज कुछ ज्यादा ही हवा में उड़ने लगी थी और इनकी दी गई छूट का कुछ ज्यादा ही फायदा उठा रही थी! "यार, ये क्या तरीका है? वो बिज़नेस कॉल था!" इन्होने भोयें सिकोड़ते हुए मुझे टोका| इनके गुस्से से बचने के लिए मैंने फ़ौरन अपने कान पकड़ लिए और अपनी जीभ दाँतों तले दबाते हुए इन्हें सॉरी कहा| मैंने बिलकुल ऐसे जताया जैसे ये सब मुझसे गलती से हुआ हो, जबकि मैंने ये सब जानते-बूझते हुए किया था|

मेरे कान पकड़ने से इनका गुस्सा गायब हो चूका था, दरअसल ये मुझे डाँट कर हमारी इस यात्रा को खराब नहीं करना चाहते थे| खैर, अब इनकी नाराजगी खत्म हो गई थी तो मैं इनके नज़दीक पहुँची और इनका हाथ पकड़ कर इन्हें वापस उस तरफ ले आई जहाँ कम लोग मौजूद थे| फिर इनकी आँखों में देखते हुए मैंने इनकी गर्दन में अपनी बाहों का हार पहना दिया, मेरी आँखों में लाल डोरे तैरने लगे थे और मैं अपने होठों को इनके होठों से मिलाने को तैयार थी| लेकिन ये थे की मेरी आँखों में देखते हुए मेरे मोहपाश से छूटने की कोशिश कर रहे थे और न में गर्दन हिलाते हुए "no" कह रहे थे! इनके चेहरे पर मुस्कान थी और मेरे चेहरे पर शैतानी भरी मुस्कान थी!

अब मुझे अपना आखिर दाँव चलना था यानी इन्हें इमोशनल ब्लेकमेल करना! मैंने अपना निचला होंठ फुलाते हुए बचकानी आवाज में तुतलाते हुए कहा; "आपतो (आपको) पता है, अपनी प्रेग्नेंट बीवी की हर ख्वाइश पूरी करनी चाहिए, उसे नाराज़ नहीं करना चाहिए!" मेरे इस तरह तुतलाने का इनपर असर हुआ और इनके चेहरे पर वही मुस्कान खिल गई जिसकी मैं दीवानी हूँ!

मेरा दाँव कामयाब था क्यों की इन्होने मेरी जिद्द के आगे प्यार से हार मान ली थी, इन्होने गर्दन इधर-उधर घुमाते हुए देखा की कोई हमें देख तो नहीं रहा?! फिर इन्होने अपने दोनों हाथों से मेरी कमर थामी और मुझे अपने से सटा लिया! मैंने कोई समय गंवाए बिना इनके फ़ोन में कैमरा चालु कर सेल्फी मोड ऑन कर लिया| मुझे कैमरा ऑन करते देख ये हँस पड़े थे मगर मुझे डर था की कहीं इनका मूड बदल न जाए इसलिए मैंने थोड़ी जल्दीबाजी दिखाते हुए इनके होठों को अपने होठों की गिरफ्त में ले लिया| एक सार्वजानिक स्थल पर बिना डरे इन्हें kiss करने का रोमांच कुछ और ही था! मुझे इस वक़्त बस दो ही बातें याद थीं, एक थी कैमरा के बटन को बार-बार दबाना ताकि हमारी ढेर सारी फोटो खींचें और दूसरी इनके होठों का जी भर कर रसपान करना| मेरा इनका प्यार पाने का उतावलापन मेरे सर पर सवार हो गया था, मैंने कुछ अत्यधिक जोश इनके होठों पर दिखाना शुरू कर दिया था, जबकि ये बहुत धीमे-धीमे मेरा साथ दे रहे थे| अब इन्हें अपने ऊपर काबू रखने की आदत है मगर मुझे नहीं, जहाँ एक ओर में पूरी तरह बहक गई थी वहीं ये हमारे चुंबन को अंतिम पड़ाव पर ले आये थे| हमारा ये चुंबन भले ही 10 सेकंड का था मगर मेरे लिए ये 10 सेकंड 10 मिनट के बराबर थे! हमारे इस चुंबन के दौरान मैंने एक बात गौर की, सार्वजनिक स्थान पर kiss करने में जितना रोमांच मुझे महसूस हुआ था उतना ही रोमांच इन्होने महसूस किया था! प्यार के मामले में ये मुझसे अधिक रोमांच खोजते हैं, तभी तो मुन्नार में ये मुझे उस पार्क में kiss माँग रहे थे! वो तो मैंने आयुष के जन्मदिन पर इनका दिल दुखाया था जिस कारन ये इस वक़्त मुझे kissi देने के लिए इतना तड़पा रहे थे, वरना अगर मैंने उस दिन (आयुष के जन्मदिन वाली रात) बेवकूफी न की होती तो आज ये kissi करते हुए खुद अच् डी (HD) में वीडियो बनाते!

बहरहाल, मुझे जो चाहिए था वो मुझे मिल गया था, एक तो मैंने हमारी ये यात्रा हम-दोनों के लिए हमेशा-हमेशा के लिए यादगार बना ली थी और दूसरी बात ये की इनके दिल में मैंने अपने लिए प्यार फिर से जगा दिया था तथा आज रात मैंने इनके दिल पर काबू कर ही लेना था! वैसे ये मेरा अतिआत्मविश्वास बोल रहा था, इनके दिल पर जमी बर्फ अभी पूरी तरह नहीं पिघली थी!

हमारा kiss खत्म होते ही हम दोनों को होश आया, हमने नजरें घुमा कर इधर-उधर देखा तो पाया की काफी लोग हमें kiss करते हुए देख रहे थे और कुछ न कुछ बोल रहे थे| न तो मुझे उन लोगों की बात सुनाई दी थी और न ही मुझे कोई शर्म आ रही थी| मैंने इनका हाथ पकड़ा और बोली; "जानू, मुझे भूख लगी है!"

"चलो आज मैं तुम्हें आगरा की मशहूर बेड़मी पूरी और आलू की सब्जी खिलाता हूँ!" ये मुस्कुराते हुए बोले| इन्हें आँखों में हमारे kiss से पैदा हुआ रोमांच साफ़ दिखाई दे रहा था| हम दोनों बाहों में बाहें डाले बाहर आये, बाहर आ कर इन्होने एक ऑटो किया और हम दोनों पहुँचे आगरा की मशहूर सत्तोलाला की दूकान पर| दूकान कोई हाई-फाई नहीं थी, आम सी दूकान थी| हम एक खाली टेबल पर आमने-सामने बैठ गए, इन्होने दो प्लेट बेड़मी पूरी और जलेबी का आर्डर दिया| खाना आने तक मैंने इनके फ़ोन में हमारी kiss करते हुए खींची तसवीरें देखनी शुरू की, जो सबसे अच्छी तस्वीर थी मैंने इन्हें दिखाई और वो तस्वीर देख ये हँसते हुए मुझसे बोले; "तुम बहुत शैतान हो गई हो!" ये सुन मेरे चेहरे पर शरारती मुस्कान आ गई|

आखिर हमारा खाना आया, दो-दो बेड़मी पूरी और आलू की सब्जी, साथ में जलेबी| "आप मुझे खिलाओ!" मैंने प्यार से इनसे कहा तो इन्होने मुझे पहला कौर खिलाया| बेड़मी पूरी का स्वाद अच्छा था परन्तु आलू की सब्जी में मिर्ची बहुत थी इसलिए मेरी "सी-सी" सीटी बज गई! मैं पानी की बोतल उठाने जा रही थी की तभी इन्होने मुझे गरमा-गर्म जलेबी खिला दी! जलेबी थोड़ी गर्म थी मगर उसकी मिठास ने मेरी जुबान पर लगी मिर्ची को शांत कर दिया था! मीठे और मिर्ची का ये मेल मुझे बहुत अच्छा लगा तथा मेरे चेहरे पर आई स्वाद खाने की ख़ुशी देख ये मुस्कुराने लगे थे| कुछ भी कहो बेड़मी पूरी बहुत स्वाद थी!

[color=rgb(163,]जारी रहेगा भाग - 4 में...[/color]
 

[color=rgb(51,]उनत्तीसवाँ अध्याय[/color][color=rgb(51,]: मुश्किलों भरी [/color][color=rgb(51,]शुरुआत[/color]
[color=rgb(255,]भाग -4[/color]


[color=rgb(251,]अब तक आपने पढ़ा:[/color]

आखिर हमारा खाना आया, दो-दो बेड़मी पूरी और आलू की सब्जी, साथ में जलेबी| "आप मुझे खिलाओ!" मैंने प्यार से इनसे कहा तो इन्होने मुझे पहला कौर खिलाया| बेड़मी पूरी का स्वाद अच्छा था परन्तु आलू की सब्जी में मिर्ची बहुत थी इसलिए मेरी "सी-सी" सीटी बज गई! मैं पानी की बोतल उठाने जा रही थी की तभी इन्होने मुझे गरमा-गर्म जलेबी खिला दी! जलेबी थोड़ी गर्म थी मगर उसकी मिठास ने मेरी जुबान पर लगी मिर्ची को शांत कर दिया था! मीठे और मिर्ची का ये मेल मुझे बहुत अच्छा लगा तथा मेरे चेहरे पर आई स्वाद खाने की ख़ुशी देख ये मुस्कुराने लगे थे| कुछ भी कहो बेड़मी पूरी बहुत स्वाद थी!

[color=rgb(97,]अब आगे:[/color]

घूम
-घाम कर हम शाम 5 बजे होटल वापस पहुँचे, मैं फ्रेश होने लगी और ये जनाब बच्चों से फ़ोन पर बातें करने लगे| दरअसल आज दिनभर बच्चों का फ़ोन नहीं आया था इसलिए ये बच्चों से बात करने के लिए थोड़ा बेचैन थे| वहीं बच्चों में भी इनसे बात करने का कम उत्साह नहीं था, तभी तो उन्होंने वीडियो कॉल चालु कर दी थी! मैं जब तक फ्रेश हो कर आई ये बच्चों से उनकी परीक्षा के बारे में पूछ रहे थे| आयुष की आज अंतिम परीक्षा थी इसलिए वो आज कुछ ज्यादा ही खुश था, वहीं नेहा की अभी कुछ परीक्षायें बाकी थीं|

ये बच्चों से बात करने में व्यस्त थे और इधर मुझे रोमांस छूट रहा था| ये पलंग पर अपनी पीठ टिका कर बैठे थे, इनके बाएँ हाथ में फ़ोन था जिसे इन्होने अपने चेहरे के सामन पकड़ा था| मैं पलंग पर चढ़ी और इनकी दाईं जाँघ पर सर रख कर लेट गई| इनकी नजरें फ़ोन पर गड़ी थीं मगर इन्होने अपना दायाँ हाथ प्यार से मेरे सर पर फेरना चालु कर दिया था| मैंने अपना फ़ोन उठाया और उसमें आज खींची गई तसवीरें देखने लगी, वहीं इनकी बच्चों से बातें जारी थीं;

नेहा: I missed you so much पापा!

नेहा फ़ोन पर इन्हें पप्पी देते हुए बोली|

ये: I missed you too मेरा बच्चा! काश आप दोनों यहाँ होते तो आज बहुत सारा मज़ा आता|

तभी पीछे से आयुष दौड़ता हुआ आ गया और नेहा से फ़ोन छीन कर नेहा से नाराज़ होते हुए बोला;

आयुष: दीदी! मुझे क्यों नहीं बुलाया पापा जी से बात करने को?

दरअसल आयुष माँ के साथ उनके कमरे में खेल रहा था, जब उसने अपने पापा जी की आवाज सुनी तो वो दौड़ता हुआ आ गया| नेहा ने कान पकड़ कर आयुष को सॉरी बोला तो आयुष पुनः मुस्कुराने लगा| अब उसने फ़ोन में देखते हुए इनसे पुछा;

आयुष: क्या-क्या देखा आपने पापा जी?

आयुष उत्सुकता से भरा हुआ बोला|

ये: बेटा हमने आज आगरा फोर्ट देखा और फिर ताजमहल देखा|

इन्होने जानबूझ कर बच्चों से मेरे द्वारा की गई शरारतों का जिक्र नहीं किया|

आयुष: और...मम्मी कहाँ है?

एक बस आयुष ही था जिसे मैं याद थी वरना नेहा ने तो मेरे बारे में अभी तक कुछ पुछा ही नहीं था, पापा की चमची कहीं की!
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इधर आयुष का सवाल सुन मैं उठी और इनकी छाती पर सर रख कर मोबाइल के कैमरे की तरफ मुँह कर के लेट गई|

मैं: Hi आयुष बेटा!

मैंने बाकायदा हाथ हिलाते हुए आयुष से कहा| चूँकि मैंने आयुष से "hi" कहा था इसलिए नेहा जान गई की मैं उससे नाराज़ हूँ इसीलिए वो आयुष के जवाब देने से पहले बोल उठी;

नेहा: Hi मम्मी!

नेहा मुझे मस्का लगाने की कोशिश कर रही थी और मैं उसकी ये कोशिश भली भाँती समझती थी!

मैं: अब याद आई तुझे मम्मी की?

मैंने नेहा को प्यार से डाँटा तो दोनों बाप-बेटी हँस पड़े| वहीं, आयुष को अपने मुद्दे की बात करनी थी इसलिए वो उत्साह में बहते हुए मुझसे बोला;

आयुष: मम्मी मेरे लिए वहाँ से (आगरा से) क्या लाओगे?

मैं: मुझे क्या पता, अपने पापा जी से पूछो?!

मैंने इन्हें एकदम से आगे किया|

ये: बेटा यहाँ पर न एक चीज बहुत फेमस है...

ये कहते हुए इन्होने बच्चों के लिए थोड़ा सस्पेंस बनाया|

आयुष: क्या पापा जी?

आयुष उत्साहित होते हुए बोला|

ये: डोडा पेठा!

नेहा और आयुष ने आज तक गाँव में बस सफ़ेद सादा पेठा खाया था, जो की उन्हें बिलकुल पसंद नहीं था इसीलिए जब इन्होने पेठे का नाम लिया तो दोनों बच्चों के मुँह बन गए!

ये: बेटा, इस पेठे का स्वाद सादे पेठे जैसा नहीं होता, एक बार खा कर देखना बहुत स्वाद लगेगा!

बच्चों ने इनकी बात सुन ली मगर बच्चों के मन में वही सादे बेस्वाद पेठे की तस्वीर ही बनी थी!

नेहा: और क्या लाओगे पापा?

नेहा ने बात आगे बढ़ाते हुए पुछा|

ये: बेटा एक और चीज है जो यहाँ बहुत फेमस है!

इन्होने फिर सस्पेंस बनाते हुए कहा|

आयुष: क्या पापा जी?

आयुष फिर उत्साहित से बोला| दरअसल पेठा खाने में बच्चों की कोई दिलचस्पी नहीं थी, उन्हें तो अब इस दूसरी चीज में दिलचस्पी थी!

ये: बेटा ये तो सरप्राइज है!

इन्होने बच्चों को चिढ़ाते हुए कहा| बच्चों ने बहुत पुछा की वो क्या चीज है जो ये ले कर आने वाले हैं मगर इन्होने राज़ को राज़ ही रखा!

नेहा: अच्छा पापा जी, आपको पता है दादा जी ने आज हमें बाहर से खाना मँगा कर खिलाया|

नेहा ने आयुष से फ़ोन छीनते हुए कहा|

मैं: अच्छा? क्या-क्या खाया आप दोनों ने?

मैंने उत्सुकता से पुछा| मेरी उत्सुकता का कारण ये था की पिताजी बाहर से अधिक खाने-पीने से मना करते थे, उन्हें डर रहता था की कहीं बच्चे बीमार न पड़ जाएँ| जब नेहा ने कहा की आज पिताजी ने बाहर से खाना मँगाया है तो मेरी उत्सुकता जाग गई थी!

आयुष: मम्मी मैंने और दीदी ने चाऊमीन खाई!

आयुष जीभ होठों पर फिराते हुए जबरदस्ती कैमरे के आगे आते हुए बोला| उसकी इस हरकत पर हम दोनों मियाँ-बीवी हँस पड़े!

मैं: बहुत शैतान हो गए हो दोनों! आने दो वापस मुझे, फिर तुम्हें रोज करेले खिलाऊँगी!

मैंने बच्चों को थोड़ा डाँटते हुए कहा, मेरी डाँट सुनकर दोनों मुँह बिदकाने लगे!

ये: अच्छा बेटा हम कल रात को घर पहुँचेंगे, तब तक आप दोनों अपने दादा जी और दादी जी को तंग मत करना!

इन्होने बच्चों का ध्यान अपनी ओर खींचते हुए प्यार से समझाया|

नेहा: ओके पापा जी!

नेहा ने बड़ी बहन बनते हुए अपनी जिम्मेदारी ली| इतने में आयुष नेहा की पीठ पर चढ़ गया और बोला;

आयुष: पापा आपने खाना खाया?

आयुष की सुई घूम फिर कर खाने पर आती थी| उसे जानना था की हमने दिनभर क्या खाया और अभी क्या खाने वाले हैं, अब ये बच्चों को सब बता कर तरसाना नहीं चाहते थे इसीलिए इन्होने संक्षेप में जवाब दिया;

ये: अभी नहीं बेटा|

नेहा: तो पापा जी आप और मम्मी आराम करो, तब तक हम दोनों दादा-दादी जी के साथ खेलते हैं| लेकिन आप आज खाना जल्दी खा लेना, मैं आपको 9 बजे कॉल करती हूँ, तब तक आप हमारे लिए नई कहानी तैयार रखना!

मुझे पता था की बच्चे बिना कहानी सुने नहीं सोने वाले और अगर ये कहानी सुनाने लगे तो आधे से पोना घंटा लगेगा, उस बीच अगर मैं थकावट के मारे सो गई तो मेरा सारा का सारा प्लान चौपट हो जायेगा! अपने प्लान को बचाने के लिए मैंने एक तरकीब निकाली;

मैं: बेटा आपको पता है आपकी दादी जी हैं न बहुत अच्छी-अच्छी कहानी सुनाती हैं!

मेरी बात सुन कर तीनों बाप- बेटा-बेटी मुझे हैरानी से देखने लगे| जहाँ बच्चे मेरी इस चालाकी को समझ नहीं पाए थे, वहीं ये समझ गए की मेरी इस चालाकी के पीछे क्या मकसद है!

नेहा: आपको कैसे पता?

नेहा ने थोड़ा नाराज होते हुए कहा, क्योंकि उसे मुझ पर शक होने लगा था! दरअसल माँ ने आजतक बच्चों को कोई कहानी नहीं सुनाई थी, वो बच्चों को सुलाते समय अलग-अलग नामों से बुलाती थीं और उनकी छाती थपथपाते हुए सुला देतीं थीं; हाँ पिताजी कभी-कभी जर्रूर कहानी सुनाते थे इसीलिए नेहा को मेरी बात पर शक हो रहा था|

मैं: बेटा, आपकी दादी जी आपके पापा जी को जो कहानी सुनाती थीं वही कहानी उन्होंने मुझे एक बार सुनाई थी! वो कहानी इतनी अच्छी थी...इतनी अच्छी थी की क्या बताऊँ! तो आज रात आप अपनी दादी जी से वही कहानी सुनना|

मैंने बात बनाते हुए कहा| बच्चों के मन में अपनी दादी जी से कहानी सुनने की चिंगारी मैंने जला दी थी| इसके आगे मेरा कुछ भी कहना मतलब था की बच्चे और ये मेरा झूठ पकड़ लेते इसीलिए मैं बच्चों को बॉय कह कर उठ गई!

अब नेहा को बस अपने पापा जी से कहानी सुनने में सुख मिलता था, जबकि आयुष को नई कहानियाँ सुनने का शौक था और आज तो उसे अपनी दादी जी से कहानी सुननी थी इसलिए वो नेहा को भी जबरदस्ती अपने साथ ले कर कहानी सुनने वाला था|

इधर बच्चों द्वारा मेरा झूठ पकड़ा न जाए इसलिए मैंने अपना फ़ोन उठाया और दूर खिड़की पर खड़ी हो कर माँ को फ़ोन मिला दिया| मेरा फ़ोन देख माँ ने सबसे पहले मेरा हाल-चाल पुछा, फिर मैंने माँ को सारी बात बताई; "माँ, दोनों शैतान हैं न रात को इनसे फ़ोन पर कहानी सुनने की जिद्द कर रहे थे, तो मैंने थोड़ा सा झूठ कह दिया| मैंने बच्चों से ये कहा है की इनके बचपन में आप जो कहानी सुनाते थे वही कहनी आपने मुझे सुनाई थी और आज वही कहानी आप बच्चों को भी सुनाओगे| आप मेरे इस झूठ की लाज रख लेना माँ, वरना ये दोनों शैतान रात में बिना कहानी सुने सोने नहीं देंगे!" मेरी बात सुन माँ हँस पड़ीं और बोलीं; "तू चिंता न कर बहु, एक कहानी है जो मैं मानु को सुनाया करती थी| आज वही दोनों को सुना दूँगी| फिर भी दोनों बच्चे नहीं माने तो तेरे ससुर जी आज सारा दिन घर पर ही हैं, वो दोनों को अपनी कोई कहानी बना कर सुना देंगे|" माँ की बात सुने मैंने चैन की साँस ली की अब मेरा प्लान चौपट नहीं होगा| फिर मैंने माँ से उनका, पिताजी का और दोनों शैतानों का हाल-चाल लिया तथा अपनी आज की हमारी सारी दिनचर्या बताई, सिवाए मेरे उस kissi वाले काण्ड के!

इधर मैं माँ से बात कर रही थी और उधर इन्होने रात के खाने का आर्डर दे दिया था| खैर, मेरे इस छोटे से स्वार्थी झूठ दोनों बाप-बेटी का दिल दुखा दिया था| जहाँ एक तरफ नेहा को इनसे आज रात को कहानी सुनने को नहीं मिलने वाली थी, वहीं इन्हें भी मैंने दोनों बच्चों को कहानी सुनाते हुए सुलाने के सुख से वंचित कर दिया था!

अब मुझे इनका मन बहलाना था क्योंकि इनके इस दुखी मन के साथ मेरा प्लान कामयाब होना नामुमकिन था| मैंने इनसे दिल्लगी शुरू कर दी, मैं इनके सीने पर सर रख कर इनसे लिपट गई| ये मेरे बालों में अपनी उँगलियाँ चलाते रहे, फिर इन्होने टी.वी. चालु कर दिया और कुछ गाने लगा दिए| गाने सुन मेरा दिल मचलने लगा और मैंने जबरदस्ती इनका हाथ पकड़ इन्हें खड़ा किया तथा खुद को इनके सीने से लगाए हुए धीरे-धीरे थिरकने लगी| मेरी इस दिल्लगी से इनके चेहरे पर फिर से मुस्कान आ गई थी और मुझे इनसे बात करने का मौका मिल गया था; "जानू, याद है इस तरह पहलीबार हम गाँव में बारिश में भीगते हुए थिरक रहे थे!" मेरी बात सुन इन्होने बस; "हम्म्म" कह कर जवाब दिया तथा मेरे सर को धीरे से चूम लिया| उस पुरानी याद ने इनके दिल में प्रसनत्ता भर दी थी|

कुछ देर बाद खाना आया, खाने में इन्होने दाल-चावल मँगाए थे| अब दिनभर बाहर से खाना खाया था, ऐसे में दाल-चावल खाने में हल्के थे तथा पेट खराब नहीं करते| हम दोनों आलथी-पालथी मार कर आमने-सामने बैठ गए, मुझे तो आज सुबह से ही रोमांस छूट रहा था सो मैंने अपने हाथ से इन्हें दाल-चावल का कौर खिलाया| वहीं इनका ध्यान इस वक़्त बच्चों पर था, अगर ये आज घर पर होते तो बच्चों को अपने हाथ से खाना खिला रहे होते| मैंने इनका ध्यान अपनी ओर खींचते हुए अगला निवाला इनके होठों के आगे पहुँचाया तो इन्होने अपना मुँह खोल कर खा लिया| मैंने इन्हें दो निवाले खिला दिए थे मगर इन्होने अभी तक मुझे एक भी निवाला नहीं खिलाया था इसलिए मैंने बच्ची बनते हुए खुद ही अपना मुँह खोल कर इनके आगे किया, तब जा कर इन्होने मुझे खाना खिलाया| वैसे ये आज पहलीबार था की मुझे इनके हाथ से खाना खाने के लिए पहल करनी पड़ी हो क्योंकि जब भी हम साथ खाना खाते थे तो ये मेरे बिना कहे ही मुझे अपने हाथ से खाना खिलाने लगते थे!

दरअसल आज सुबह से मैं जो इनके भोलेपन का नाज़ायज़ फायदा उठा रही थी, उसी के कारण ही ये इस वक़्त किसी सोच में डूबे हुए थे| परन्तु, मैंने भी सोच लिया था की आज रात के बाद से मैं इनके मन में बैठी मेरे प्रति सारी नाराजगी दूर कर दूँगी!

खाना खा कर इन्होने झूठे बर्तन कमरे के बाहर रख दिये तथा कमरे में टहलने लगे| मैंने भी हाथ-मुँह धोये और इनके लिए प्लान किया हुआ दूसरे सरप्राइज की तैयारी करने लगी| मैंने आज की रात की तैयारी अच्छे से की थी, साटिन की 3 पीस की लाल रंग की नाइटी जो मैंने आज के लिए ख़ास खरीदी थी| मैंने इनकी चोरी से वही नाइटी निकाली और चुपचाप बाथरूम में घुस गई, थोड़ा समय ले कर मैंने अच्छे से साज-श्रृंगार किया| होठों पर इनकी मन पसंद लाल लिपस्टिक लगाई, बालों का गोल जुड़ा बाँधा मगर जब मैं तैयार हो कर बाहर निकली तो देखती क्या हूँ, की ये जनाब तो कमरे की लाइट बंद कर लेट चुके हैं! इनकी ये प्रतिक्रिया देख मुझे हैरानी नहीं हुई, ये सब तो इनकी चाल थी!

ये पलंग पर पीठ के बल लेटे थे, इनका दायाँ हाथ इनके माथे पर था और बायाँ हाथ इनकी छाती पर था| मैं जानती थी की ये सोये नहीं हैं क्योंकि इस समय तो ये बच्चों को कहानी सुनाते थे, ये तो बस इनकी चाल थी मेरे मोहपाष से बचने की!

मुझे मेरा मिशन पूरा करना था इसलिए मैं बिना कुछ बोले पलंग पर चढ़ गई| अब मैं किसी भूखी शेरनी की तरह इन पर झपट तो सकती नहीं थी वरना आज ये मेरा शिकार अवश्य कर देते इसलिए मैंने पहले इन्हें अपनी बातों से फुसलाना शुरू किया! हाय! क्या क़िस्मत है मेरी, अपने ही पति को प्यार करने के लिए फुसलाना पड़ रहा है!

पहले मैंने इनके बाएँ हाथ को खोल कर अपना तकिया बनाया और फिर उसी हाथ पर सर रख कर लेटते हुए इनसे बात शुरू की; "जानू...आपको याद है वो दिन जब आप मैं और नेहा अयोध्या में एक रात रुके थे?" मैंने शर्माते हुए इनसे बात शुरू करते हुए कहा| "हम्म्म" ये बिना आँखें खोले बस इतना ही बोले| इधर अयोध्या में इनके साथ बिताई वो रात याद कर मेरे जिस्म में आग लग गई थी!

"याद है, उस रात आपने मुझे कितना प्यार किया था?" मैंने थोड़ी शरारत भरी हँसी हँसते हुए इनसे पुछा मगर मेरे पूछे सवाल के जवाब में ये फिर से "हम्मम" बोले|

"तो आज रात...हम दोनों...अकेले हैं...तो आज मुझे आप उस दिन की तरह प्यार नहीं करोगे?" मैंने बड़ी मासूम से शक्ल बनाते हुए इनसे पुछा, लेकिन इस बार ये कुछ नहीं बोले और ऐसे जताया जैसे ये गहरी नींद में सो रहे हों| परन्तु मैं कहाँ मानने वाली थी इसलिए मैंने इनके जिस्म को स्पर्श करना शुरू कर दिया| मेरा दाहिना हाथ जो इनकी छाती पर था वो फिसलते हुए नीचे की ओर बढ़ने लगा, लेकिन इससे पहले की मैं इनके 'उसको' स्पर्श कर पाती इन्होने अपना बायाँ हाथ मेरे हाथ पर रख उसे नीचे फिसलने से रोक दिया| इन्होने अपना दायाँ हाथ जो की मेरे लिए तकिया था उसे मेरी गर्दन के नीचे से निकाल लिया और बाईं तरफ करवट ले कर लेट गए|

मेरी सुबह से की गई सारी मेहनत पर पानी फिर गया था और ये मैं कतई बर्दाश्त नहीं कर सकती थी! मैंने इन्हें मनाने की एक और कोशिश करते हुए अपना दाहिना हाथ इनके इनके कँधे पर रखते हुए इन्हें अपनी तरफ पलटाना चाहा मगर इस बार इन्होने अपने जिस्म को कठोर बना लिया जिससे मैं इन्हें अपनी तरफ नहीं पलट पाई! "जानू! प्लीज ना!" मैंने बड़े प्यार से कहा तो ये बोले; "आज दिनभर तुमने अपने दिल कर ली ना?" इनकी आवाज में उल्हाना नहीं शिकायत थी!

अब जा कर मुझे इनका ये गुस्सा समझ आया, आज सारा दिन ये जो मेरे बचकाने व्यवहार को देख मुस्कुरा कर बर्दाश्त कर रहे थे वो सब बस मेरी ख़ुशी के लिए था| जबकि इन्होने मुझे अभी तक उस रात की गलती के लिए दिल से माफ़ नहीं किया था|

मुझे इन्हें मनाना था और इनके दिल में मौजूद गुस्से को मिटाना था इसलिए मैं उठ कर बैठ गई और कमरे की लाइट जला दी| अपने हाथ जोड़ कर मैं इनसे बोली; "जानू! प्लीज मुझे उस रात के लिए माफ़ कर दो! प्लीज!!!!" मैंने गिड़गिड़ाते हुए इनसे माफ़ी माँगी| मेरी रुनवासी आवाज सुन ये उठ बैठे और बोले; "अब क्या हो गया तुम्हें?" इनकी आवाज थोड़ी उखड़ी हुई थी|

मैंने बड़ी हिम्मत कर के इनकी आँखों में देखा और पुनः गिड़गिड़ाते हुए बोली; "प्लीज जानू! I'm really sorry जानू! मैं...मैं पागल थी....उस वक़्त नजाने मुझे क्या हो गया था?!" मैंने जानबूझ कर झूठ बोला की मुझे याद नहीं की उस रात मुझे क्या हो गया था, जबकि असल में मैं इन्हें अपने उस रात के गुस्से का कारण नहीं बताना चाहती थी|

इधर इन्हें तो बस मेरे मुँह से उस रात की इनसे की बदसलूकी का कारण जानना था| ये हाथ बाँधे हुए पलंग के बेडपोस्ट का सहारा ले कर बैठ गए और मुझसे बोले; "यार अगर सच नहीं बोलना तो मत बोलो पर कम से कम मुझसे झूठ तो मत बोलो? तुम कारण अच्छे से जानती हो बस मुझे बताना नहीं चाहती! ठीक है, मैंने भी तुम्हारी बात का मान रखा और इतने दिनों में तुमसे कुछ नहीं पुछा न? फिर क्यों तुम जबरदस्ती जिस्मानी रूप से मेरे नज़दीक आने की कोशिश कर रही हो? मैं तुम्हारे साथ प्यार से रहता हूँ, प्यार से से बात करता हूँ, तुम्हारा अच्छे से ध्यान रखता हूँ फिर तुम्हें और क्या चाहिए?" इनकी आवाज में खुश्की और नाराज़गी थी जिसे महसूस कर मुझे बहुत दुःख हुआ था| वहीं इनके पूछे इस सवाल का जवाब मैंने बड़े तपाक से दिया; "मुझे आपका प्यार चाहिए!" प्यार से मेरा तातपर्य था इनके जिस्म का वो स्पर्श जिसके कारण मेरे मचलते मन को शान्ति मिलती थी| परन्तु इन्होने जो आगे कहा उसे सुन मैं स्तब्ध हो गई; "[color=rgb(255,]वो[/color][color=rgb(255,] तो तुमने खो दिया न[/color][color=rgb(255,]?![/color]" इनके कहे ये शब्द मेरे दिल को भेदते हुए निकल गए और मैं एकदम से खामोश हो गई| मेरा दिल एकदम से टूट कर चकना चूर हो गया था, 'मैंने इनका वो प्यार खो दिया तो अब मेरे जीवन का क्या होगा?' ये ख्याल सोच कर मैं बेचैन होने लगी थी| बेचैनी मेरे सर पर सवार हुई तो मुझे उस रात अपने बर्ताव का कारण याद आया और करुणा के प्रति बदले की आग मेरे दिल में धधक उठी! उस लड़की के कारण ही हम दोनों पति-पत्नी के बीच ये दूरियाँ आईं थीं!

जब आप किसी इंसान को सच्चे दिल से चाहो और कोई उस इंसान को आपसे छीन ले तो आपके पास बस दो ही रास्ते रह जाते हैं: पहला रास्ता ये की आप हार मान कर बैठ जाते हो या फिर दूसरा रास्ता चुन आप उस इंसान को पाने के लिए किसी से भी लड़ पड़ते हो! हार तो मैंने अपने जीवन में बहुत बार मानी थी इसलिए इस बार मुझे लड़ाई का रास्ता चुनना था| दिल्ली वापस जा कर मुझे करुणा का सामना करना था और उसे हमेशा-हमेशा के लिए इनकी जिंदगी से निकाल कर बाहर फेंकना था, लेकिन फिलहाल मुझे इनसे सच कह कर इन्हें अपने दिल में जल रही करुणा से नफरत की आग का कारण बताना था; "आपको जानना है न की क्यों मैंने उस रात आपको खुद को छूने नहीं दिया?" आँखों में आँसूँ लिए गुस्से में मैं इनसे बोली| मेरी आँखों में ये गुस्सा इनके लिए नहीं बल्कि करुणा के लिए था| उधर मेरा सवाल सुन इन्होने मेरी आँखों में देखते हुए पूरे आत्मविश्वास से हाँ में गर्दन हिलाई|

"[color=rgb(255,]I HATE KARUNA![/color]" मैंने बड़े गुस्से से चिलाते हुए कहा| मेरा गुस्सा देख ये भोयें सिकोड़ कर मुझे घूरने लगे, इन्हें मेरी बात सुन कर हैरानी थी की भला मैं क्यों करुणा से नफरत करती हूँ? इधर मेरी भड़ास अभी खत्म नहीं हुई थी; "उसका आपसे घंटों बात करना, 'मेरे घर' में आ कर 'मेरी रसोई' में घुस कर आपके लिए ऑमलेट बनाना, 'मेरी माँ' (सासु माँ) के साथ बैठ कर बात करना, 'मेरे बच्चों' के साथ खेलना, ये सब मुझे कतई नहीं पसंद! [color=rgb(255,]I JUST....HATE HER![/color]" मैंने गुस्से से दाँत पीसते हुए इन पर चिलाते हुए कहा| "और एक बात बताओ आप, क्यों दी आपने उसे मेरी नाइटी? आपने पुछा मुझसे की मैं तुम्हारी नाइटी उसे पहनने को दे दूँ? आखिर क्या सोच कर आपने उसे 'मेरे बेटे' के जन्मदिन की तैयारी करने की जिम्मेदारी दी? मुझसे पुछा आपने इस बारे में?! इतना भी क्या सरप्राइज प्लान करना था आपने की मुझे.अपनी धर्मपत्नी को ही आपने पूछना लाजमी नहीं समझा? आखिर रिश्ता क्या है आपका उससे?" मेरा दिमाग इस वक़्त गुस्से से पागल था इसलिए आज इतने सालों बाद मैं इन पर यूँ चीखी थी!

वहीं पता नहीं कैसे ये अपना गुस्सा अभी तक दबाये हुए थे, वरना अभी तक तो इन्होने मुझ पर हाथ छोड़ दिया होता! मेरे पूछे सवालों का जवाब इन्होने बड़े संक्षेप में दिया; "वो बस मेरी दोस्त है!" इनका ये संक्षेप में दिया जवाब मुझे इनका बातें गोल-मोल करना लगा इसलिए ये जवाब मेरे गले नहीं उतरा! "एक लड़का और एक लड़की कभी दोस्त नहीं हो सकते!" मैंने गुस्से में इन्हें दो टूक जवाब देते हुए कहा|

पति-पत्नी का पवित्र रिश्ता विश्वास की नीव पर टिका होता है, जब इस नीव में शक की दीमक लगती है तो प्यार की ये इमारत डगमगाने लगती है| अपने गुस्से में जलते हुए मुझे पता ही नहीं चला की कब मेरे दिल ने इनके और करुणा के बीच दोस्ती के रिश्ते को शक की नज़र से देखना शुरू कर दिया?!

"तुम....तुम मुझ पर शक कर रही हो? तुम्हें लगता है की मेरा और करुणा के बीच कुछ चल रहा है?" इन्होने भोयें सिकोड़ते हुए मुझसे सीधा सवाल किया| इनके इस सवाल को पूछने का कारण था की ये पक्का करना चाहते थे की मेरे मन में इनके प्रति शक पनप चूका है या नहीं?!

मैं इनके सवाल का मतलब समझ गई थी मगर मैं इनके रौद्र रूप से डरती थी इसीलिए हिम्मत नहीं कर पा रही थी की हाँ कह सकूँ|"आप तो मुझे हर बात बताया करते थे, फिर शादी से पहले आपने मुझे क्यों करुणा के बारे में कुछ नहीं बताया?" मैं इनके सवाल से बचना चाहती थी इसलिए मैंने जवाब में इनसे ही सवाल पूछ लिया|

"वो (करुणा) तब यहाँ थी ही नहीं तो मैं तुम्हें उसके बारे में क्या बताता?!" इन्होने झुँझलाते हुए गुस्से से जवाब दिया| इनका दिया जवाब एक बार फिर मुझ गोल-मोल लगा और बजाए इनके गुस्से से डरने के मैं भोयें सिकोड़ कर इन्हें देखने लगी इस उम्मीद में की ये अपनी बात विस्तार से रखें!

वहीं इन्होने मेरी आँखों में शक का कीड़ा देलख लिया था और इन्हें अब अपने दिल की तसल्ली करनी थी की क्या सच में मैं इनपर शक करती हूँ? "Now answer my question, तुम्हें लगता है की मेरे और करुणा का चक्कर चल रहा है?" इन्होने मुझे घूर कर देखते हुए पुछा| जब इन्होने 'चक्कर' शब्द का प्रयोग किया तो मेरा गुस्सा उबाल मार गया और मैं गुस्से में जलते हुए चिल्लाई; "हाँ!" ये सुन कर इनके तन बदन में आग लग गई और ये गुस्से में उठ कर मेरे नजदीक आते हुए मेरी आँखों में आँखें गाड़े बोले; [color=rgb(255,]"तुम्हें इतना प्यार करने के बाद भी अगर तुम्हें मुझ पर इतना ही 'विश्वास' रह गया है तो सुनो, कई बार मैं और करुणा मेडिकल वाले पर्क में रात को बैठ कर शराब पीया करते थे, नशे में धुत्त मैंने कई बार उसे रात को घर छोड़ा! यही नहीं, जयपुर में करुणा की नौकरी लगवाने के लिए मैं घर में झूठ बोलकर गया था और वहाँ हम दोनों एक ही होटल के, एक ही कमरे के एक ही बेड पर 2-3 रात सोये थे[/color][color=rgb(255,]![/color]" इनकी ये बातें मेरे लिए ऐसीं थीं की मानों किसी ने परमाणु बम मेरी आँखों के आगे फोड़ दिया हो और उस धमाके ने मेरी सारी दुनिया उजाड़ कर रख दी हो! इनकी बातें सुन कर मेरी आँखें फ़ैल गईं, मुझे मेरे कानों पर विश्वास नहीं हो रहा था की ये ऐसा भी कर सकते हैं?! 'मेरे पति...नहीं...ऐसा नहीं हो सकता! ये....ये झूठ बोल रहे हैं....बस मुझे जलाने के लिए....I know....!' मेरे मन में बसा इनके प्रति प्यार मुझे इन बातों को मानने नहीं दे रहा था लेकिन दिमाग में जो शक़ का कीड़ा था वो कुलबुलाते हुए हर पल अपना आकार बढ़ाता जा रहा था| इनकी कही बात ने मेरे रोम-रोम को सुलगा दिया था, मेरे भीतर का गुस्सा आज अपने प्रगाढ़ रूप में था| अपने इसी गुस्से में मैंने इनकी टी-शर्ट का कॉलर पकड़ इनकी आँखों में देखते हुए पुछा; "आप झूठ कह रहे हो न?" मुझे बस इनके मुँह से 'न' सुनना था और इस 'न' के लिए मैं कुछ भी करने को तैयार थी| वहीं दूसरी ओर इनकी आँखों में मुझे सच्चाई नज़र आ रही थई, ऐसी सच्चाई जिसे देख कर मैं डर गई थी!

अगले ही पल इन्होने मेरे दोनों हाथों से अपनी टी-शर्ट के कॉलर छुड़ाए और मेरी आँखों में देखते हुए गुस्से से बोले; "तुम्हें लगता है मैं झूठ बोलूँगा?" इनकी कही ये अंतिम बात को सुन मेरा पूरा जिस्म जलन की आग में जलने लगा, साथ ही इनके प्रति मेरा प्यार भी जलन की आग के परवान चढ़ गया था| गुस्से का ऐसा जबरदस्त बिस्फोट मेरे दिमाग में हुआ की मैंने अपने आँसूँ पोछे और घूर कर इन्हें ऐसे देखा जैसे मैं इन्हें खा ही जाऊँगी| इनसे कुछ कहने की गुस्सा करने की मुझे इच्छा नहीं हो रही थी, बल्कि मेरा दिमाग इस वक़्त गंदी-गंदी कल्पनायें करने लगा था, ऐसी कल्पनायें जिसमें करुणा और ये नंगे बदन एक दूसरे में समाये हुए थे! इन घिनौनी कल्पनाओं के कारण मुझे इनसे घिन्न आ रही थी, इसलिए मैं बिना कुछ बोले दूसरी तरफ करवट ले कर लेट गई| मेरे लेटने के बाद ये खामोश बैठे रहे, पूरे कमरे में सन्नाटा छा गया था|

लेट तो मैं गई मगर मेरा दिमाग अशांत था, रह-रहकर मेरा दिमाग घिनौनी कल्पनाओं को बुनने लगा था और उन कल्पनाओं को किसी चलचित्र की तरह मेरी आँखों के आगे दोहरा रहा था! मेरे शक्की दिमाग ने उस होटल के कमरे की कल्पना कर ली थी, उस कमरे में बिछे बिस्तर की कल्पना कर ली थी और उस बिस्तर पर वो करुणा इनके जिस्म पर हक़ जमा कर बैठी थी! वासना के बवंडर ने कैसे इन दोनों को एक दूसरे से लिपटाया-चिपटाया होगा, ये सोच-सोच कर मेरा खून खौलने लगा था! अगर करुणा इस समय मेरे सामने होती तो सच्ची मैं आज उसका खून पी जाती!

गुस्से और नफरत से अंधे मेरे दिमाग ने इनके अभी तक के प्यार को धोके का नाम दे दिया था! मुझे इस समय ऐसा लग रहा था जैसे की मेरे साथ बहुत बड़ा विश्वासघात हुआ हो, खुद को निसहाय महसूस करने की बजाए मेरे सर पर बदले का भूत सवार हो चूका था| जलन की आग मेरे जिस्म में इस कदर भड़क चुकी थी की मुझे धीरे-धीरे भीतर से जलाती जा रही थी| अपनी इसी जलन की आग के चलते मैंने मन ही मन सोच लिया था की वापस जा कर मैं माँ से सब कुछ कह दूँगी, फिर चाहे जो हो इनके साथ, मेरी बला से! अब बस मुझे घर पहुँचने तक अपने गुस्से को काबू में रखना था ताकि कहीं मैं कुछ गलत न कह दूँ जिससे माँ के आगे मेरा पलड़ा हल्का न पड़ जाए!

वो पूरी रात मैं सो न सकी, मेरे दिल में इनकी बातें चुभती रहीं और जहन में गुस्से और जलन की आग जलती रही| ये भी रात भर बेडपोस्ट से पीठ लगाए खामोश बैठे रहे, न ही रात में इन्होने मुझसे कोई बात करने की कोशिश की और न ही मैंने पलट कर इन्हें देखा की ये जाग रहे हैं या सो रहे हैं|

अगली सुबह ये तैयार हुए मगर मैं अब भी उसी करवट लेटी थी जिस करवट कल रात लेटी थी|

[color=rgb(163,]जारी रहेगा भाग - 5 में...[/color]
 
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