[color=rgb(255,]सत्ताईसवाँ अध्याय: विपरीत - प्यार और जलन![/color]
[color=rgb(71,]भाग -7[/color]
[color=rgb(51,]अब तक आपने पढ़ा:[/color]
बहरहाल, माँ ने यहाँ आने से पहले मुझे समझाया था की मुझे कैसे बात करनी है इसलिए मैंने बातें शुरू करते हुए करुणा की दीदी को शुक्रिया कहा; "कल करुणा ने मेरे बेटे के जन्मदिन के लिए जो तैयारी की उस कारण से रात में उसे बहुत देर हो गई थी, इतनी रात गए करुणा का घर आना सही नहीं था इसलिए हम सब ने करुणा को रोक लिया था| आशा करती हूँ आपको इसका बुरा नहीं लगा होगा!" मेरी बात सुन करुणा की दीदी बोलीं; "अरे नहीं-नहीं! मेरी मिट्टू की मम्मी से बात हो गई थी इसलिए कोई गुस्से वाली बात नहीं| फिर मिट्टू तो करुणा का सबसे अच्छा दोस्त है, कितनी ही बार मिट्टू ने इसकी मदद की है ..." करुणा की दीदी ने भी जब इन्हें मिट्टू कहा तो मुझे बुरा तो लगा मगर साथ ही कुछ-कुछ समझ आया की ये पूरा परिवार शायद इन्हें मिट्टू के नाम से ही जानता है! करुणा की दीदी आगे भी कुछ कहतीं उससे पहले अंदर कमरे से एक लड़की दौड़ती हुई आई| ये लड़की आयुष से बड़ी थी परन्तु नेहा से छोटी थी, ये बच्ची दौड़ती हुई सीधा इनके पास पहुँची और इन्होने झट से उस बच्ची को गोदी में उठा लिया| वो बच्ची बड़ी ही प्यारी थी और इनकी गोदी में चढ़ कर इनसे लिपटी हुई थी, इन्होने उसे दुलार करते हुए पुछा; "मेरा childhood friend कैसा है?" इनके इस बचकाने सवाल पर मैं हँस पड़ी, उस पल मुझे कोई जलन महसूस नहीं हो रही थी| मेरे चेहरे पर मुस्कान थी और साथ ही एक प्रश्न भी था की इनके सवाल का मतलब क्या था? इन्होने इस छोटी सी बच्ची को 'मेरा childhood friend' क्यों कहा? क्या ये इस बच्ची का कोई पुनर्जन्म है?!
[color=rgb(44,]अब आगे:[/color]
"मिट्टू बोलते की Angel छोटी बच्ची है meaning child और मिट्टू का दोस्त है meaning friend तो इसलिए ये मिट्टू का childhood friend हुआ! ही..ही...ही...ही!!!" करुणा हँसते हुए बोली| मैं इनका बचपना जानती थी और इनके बचपने वाले विचार सुन मुझे हँसी आ गई|
![lol.gif](https://xforum.live/uploads/smilies/lol.gif)
"असल में मैं पहलीबार मैं करुणा से तब मिला था जब घर में पूजा थी और मैं करुणा को निमंत्रण देने आया था| उसी दिन मेरी भेंट Angel से हुई थी, तो इस तरह से मुझे एक dear friend के साथ-साथ मेरा childhood friend भी मिल गई!" इनकी बात सुन हम सभी हँस पड़े मगर मुझे जो बात चुभी थी वो थी करुणा को इनका 'dear friend' कहना|
करुणा की दीदी हमारे लिए पानी ले आईं, हमारे गाँव में हम किसी निचली ज़ात के यहाँ पानी भी नहीं पीते और यहाँ तो ज़ात नहीं दूसरे धर्म के घर का पानी पीना था! इधर इन्हें गाँव की बातों से कोई फर्क नहीं पड़ता था, क्योंकि ये तो शुरू से ही बागी रहे हैं! इन्होने पानी का एक गिलास उठा लिया और इधर मेरी झिझक, मेरी हिचकिचाहट मुझे रोक रही थी! परन्तु अगर मैं पानी नहीं लेती तो सभी को बुरा लगता इसलिए मैंने मजबूरी में दूसरा पानी का ग्लास उठा कर पानी पी लिया|
Angel इनकी गोदी में बैठी थी और उसकी नज़र मुझ पर थी, उसे जानना था की मैं कौन हूँ इसलिए इन्होने मेरा तार्रुफ़ Angel से कराते हुए कहा; "Angel, she's my wife and since you're my childhood friend she's your friend too!" इनकी बात सुन Angel मुस्कुराने लगी, उसकी ये प्यारी सी मुस्कान देख मैं खुद को उसे गोदी में लेने से न रोक पाई और अपनी बाहें खोल कर Angel को गोदी लेना चाहा| Angel बिना कोई नखरा किये मेरी गोदी में आ गई और मेरे सीने से लिपट गई| उस पल मुझे एहसास हुआ की छोटे बच्चों को देख कर हम कभी कोई भेद-भाव नहीं करते की ये बच्चा किस धर्म का है या किस ज़ात का है क्योंकि एक छोटे बच्ची की हँसी का तो कोई धर्म नहीं होता?! जब वो बच्चा बड़ा होता है तभी हमारे भीतर ये हीन भावना जन्म लेती है! Angel को गोद में लिए हुए जहाँ मुझे एक तरफ बहुत ख़ुशी हो रही थी वहीं अपनी छोटी सोच के कारण खुद से घृणा हो रही थी| कहाँ मैं एक ईसाई परिवार के घर जाने से कतरा रही थी और कहाँ इस छोटी सी बच्ची को गोद में आते ही मैं सब भूल बैठी| सच में दोस्तों, मेरे जैसी रूढ़िवादी सोच वाले लोग अब भी इस धरती पर हैं!
Angel को गोदी में लिए हुए मैं उससे हिंदी में बातें करने लगी, मैंने उसे आयुष और नेहा के बारे में बताया तथा उसे अपने घर आने का निमंत्रण भी दिया| Angel को अपनी मौसी की ही तरह थोड़ी-थोड़ी हिंदी समझ आती थी, जो बात उसे समझ नहीं आती मैं उसे अंग्रेजी में समझा देती| इतने में करुणा की दीदी हम सब के लिए चाय ले आईं, मैंने उन्हें कहा भी की आपने इतनी तकलीफ क्यों की तो वो मुस्कुरा कर बोलीं; "इसमें तकलीफ की क्या बात है!" Angel को गोद में लेने के बाद मेरे दिल में कोई छूत-अछूत का भी नहीं था इसलिए मैंने आराम से चाय पी| उधर इन्होने हमारे लाये हुए गिफ्ट करुणा की दीदी को दिए, शुरू-शुरू में उन्होंने मना किया पर फिर इन्होने माँ-पिताजी का नाम लिया तो करुणा की दीदी मना नहीं कर पाईं|
इन सबकी बातें चल रही थीं और मैं इधर Angel को बिस्कुट और नमकीन खिलाने में लगी थी| मैंने नमकीन की प्लेट उठा ली और Angel ने खुद खाना शुरू किया| करुणा का जीजा मुझे अपनी बेटी को लाड करते देख रहा था और कुछ ज्यादा ही खुश था| उसकी नीयत में अच्छे से भाँप चुकी थी लेकिन बिना किसी सबूत के कुछ कह नहीं सकती थी| हाँ इतना ज़र्रूर था की अगर वो मुझे छूने की कोशिश करता न तो ऐसा झन्नाटेदार थप्पड़ मारती के ये साला बहरा हो जाता!
खैर चाय पी कर हम दोनों पति-पत्नी ने चलने की इजाजत माँगी तो करुणा की दीदी ने हमें खाने के लिए रुकने को कहा| "दीदी, फिर कभी फुर्सत से आएंगे!" इन्होने कहा तो मैंने राहत की साँस ली की कम से कम मुझे इस करुणा की शक्ल और तो नहीं देखनी पड़ेगी| हम चलने लगे तो करुणा और उसका पूरा परिवार हमें नीचे गाडी तक छोड़ने आया, जाने से पहले मैंने Angel को फिर एक बार गोद में लिया तथा अपने घर आने का ख़ास निमंत्रण दिया जो की Angel ने मुस्कुराते हुए स्वीकारा|
चूँकि हम घर जा रहे थे इसलिए मेरा मन अब जा कर प्रसन्न हुआ था| लेकिन फिर अगले ही पल मुझे पिछली रात को किया गया मेरा पाप याद आया, मुझे फिर से डर लगने लगा की कहीं ये कल रात का गुस्सा गाडी में मुझ पर न निकालें?! रात के बाद से अभी ही वो समय था जब हम दोनों गाडी में अकेले थे तो इनका मुझ पर अपना गुस्सा निकालने का ये सबसे सही मौका था मगर ऐसा हुआ नहीं!
गाडी चलते हुए कुछ दूर आई होगी की ये मुझसे बात शुरू करते हुए बोले; "I'm sorry यार, कल रात मैंने तुमसे बिना पूछे तुम्हारी नई वाली नाइटी करुणा को पहनने के लिए दे दी!" इनकी आवाज थोड़ी गंभीर थी मगर उसमें कोई गुसा नहीं था| वैसे तो मैं इनकी कई बातों की कायल हूँ परन्तु इनकी जो बात मुझे सबसे ज्यादा अच्छी लगती है वो ये की ये अपनी छोटी से छोटी गलती स्वीकार लेते हैं और सच्चे दिल से माफ़ी भी माँग लेते हैं| "जानू इसमें कौन सी बड़ी बात है, एक नाइटी ही तो थी! जो बात मुझे अच्छी नहीं लगी वो थी करुणा का नाइटी धो कर मुझे वापस देना, अरे मैं धो लेती नाइटी!" मेरी कही बात का पहला हिस्सा मैंने सच्चे दिल से कहा था मगर नाइटी धोने की बात मैंने बस इन्हें खुश करने को कही थी|
"यार, करुणा जानती है की आप प्रेग्नेंट हो तो वो भला आपको काम कैसे करने देती और वो भी उसके उतारे हुए कपड़े धोना?! मेरी पत्नी के पास सिर्फ यही काम थोड़े ही है?!" इन्होने मुस्कुराते हुए ये बात कही| इनके इस तरह मुझसे मुस्कुरा करा बात करने से मैं आश्वस्त हो गई थी की ये कल रात की मेरी गलती से ख़फ़ा नहीं हैं और ये सोच कर मैंने इत्मीनान की साँस ली! वहीं इनकी कही ये बात की; 'मेरी पत्नी के पास सिर्फ यही काम थोड़े ही है?!' उसे सुन तो मुझे ऐसा लगने लगा की इन्हें मेरी बहुत परवाह है| मेरा मतलब ये नहीं है की इनको मेरी परवाह नहीं थी, लेकिन जब से करुणा ने हमारे परिवार में सेंध लगाने शुरू की थी तब से मैं थोड़ा नकारात्मक सोचने लगी थी| बार-बार ऐसा लगता था की कहीं ये उस चुड़ैल की बातों में फिसल न जाएँ?!
इनका मूड अच्छा था तो मैंने Angel की बात छेड़ दी ताकि इनका मन खुश रहे और मैं अपने मन में की गई प्लानिंग को अंजाम दे सकूँ| "जानू, Angel कितनी प्यारी है न? मेरी तो उससे अच्छी दोस्ती हो गई, एक दिन उसे घर बुलाओ न तो बच्चों को भी नई दोस्त मिल जाएगी|" मैंने बात शुरू करते हुए कहा| मेरी बातों ने इन्हें थोड़ा भावुक कर दिया था और इन्होने अपनी भवनाओं में बहते हुए Angel से अपने लगाव का कारण मुझे बताया; "जब मैं पहलीबार Angel से मिला तो वो करुणा की गोद में थी और उसे देखते ही मुझे नेहा की याद आ गई| चूँकि मैं उन दिनों नेहा से दूर था और उसे बहुत याद करता था तो मैंने Angel में ही नेहा को ढूँढना शुरू कर दिया| पहलीबार जब मैंने Angel को अपनी गोद में लिया तो मानो जैसे जन्मों की प्यास मिट गई हो और मैं आँख बंद किये हुए नेहा को याद करने लगा| मैंने ये मानना शुरू कर दिया की मेरी गोद में नेहा ही है और ये सोचते हुए मेरी आँखों से आँसूँ निकल आये!" ये इस समय भाव-विभोर हो चुके थे और इनके भाव-विभोर होने से मैं भी भावुक होने लगी थी| इनकी बातों से इनका नेहा के लिए प्यार झलकता था और जिस तरह से मैंने एक बाप को उसकी बेटी से 5 साल अलग रखा था उसे याद कर मुझे फिर से ग्लानि होने लगी थी|
मैं ग्लानि के गढ्ढे में न गिर जाऊँ इसके लिए इन्होने फ़ौरन गाडी सरोजनी नगर मार्किट की ओर मोड़ ली| सरोजनी नगर पहुँचते ही ये ख़ुशी-ख़ुशी बोले; "वैसी (मेरी नई नाइटी जैसी) ही नाइटी लेनी है या उससे भी अच्छी?" इन्होने मुझसे बिलकुल बच्चों की तरह सवाल पुछा| ये सवाल इसलिए था क्योंकि ये ये नहीं चाहते थे की मैं करुणा की उतारी हुई नाइटी पहनूँ| उधर इनकी बात सुन कर मैं हैरान रह गई और साथ ही बच्चों की तरह नए कपड़े लेने के लिए उत्साहित भी हो गई! मैंने ख़ुशी से झूमते हुए कहा: "नई!!!" मेरे चेहरे पर आई ख़ुशी देख ये हँस पड़े| गाडी पार्क कर हम मेरे लिए एक नई नाइटी लेने निकले और नई नाइटी के साथ ही मैंने एक नई साडी भी ली जो की इनकी पसंद थी| इनके चेहरे पर जो ख़ुशी थी उसे देख मेरा दिल बार-बार कह रहा था की; 'शुक्र है की इनका गुस्सा ठंडा हो गया!' लेकिन ऐसा था नहीं, ये अपना गुस्सा मुझ पर इसलिए नहीं निकाल रहे थे क्योंकि ये देखना चाहते थे की मैं कब इनसे कल रात किये अपने पाप की माफ़ी माँगूँगी तथा अपनी मूर्खता का क्या कारण कहूँगी?!
वहीं दूसरी तरफ मेरा पूरा प्लान बन चूका था, मुझे आज रात उस काम को अंजाम देना था जो कल रात मेरी मूर्खता के कारण अधूरा रह गया था| इन्होने मुझे घर छोड़ा और फिर अनिल को अपने साथ ले कर चले गए, दरअसल अनिल को अपने किसी दिल्ली में रहने वाले दोस्त के माता-पिता से कुछ समान ले कर मुंबई ले जाना था इसीलिए वो इनके साथ निकला था| मैंने फटाफट आज ली हुई नाइटी धोई और सूखने डाल दी, ये नाइटी स्लीवलेस तथा खुले गले की थी और थोड़ी बहुत पारदर्शी थी| पति जब अपनी पत्नी के लिए कुछ खरीदता है तो उसकी बड़ी इच्छा होती है की पत्नी वो कपड़े या जेवर पहन कर उसे दिखाए| मुझे भी आज रात ये नाइटी पहन कर इन्हें दिखानी थी जिससे ये खुश हो जाएँ और मैं अपने प्लान के अगले पड़ाव यानी इनको बहका कर प्यार करने के लिए उकसा सकूँ! मन ही मन मैं इन्हें उकसाने की सारी तैयारी कर चुकी थी, अब तो बस एक अजब सा उतावलापन था दिल में जिस कारण मैं बेसब्री से रात होने का इंतज़ार कर रही थी|
दोपहर को पिताजी, ये और अनिल एक साथ लौटे तथा खाने के मेज़ पर बच्चों का इंतज़ार करने लगे| बच्चों को लेने माँ गई हुईं थीं, बच्चे दौड़ते हुए घर में घुसे और सीधा इनसे लिपट गए| पहले इन्होने दोनों बच्चों को खूब दुलार किया और फिर उन्हें कपड़े बदल कर आने को कहा| बच्चों को खाना खिला कर ये खाना खा रहे थे और सबकी बातें चल रही थीं| खाना खाने के बाद ये मुँह-हाथ धोने हमारे कमरे के बाथरूम में गए, अब मैं तो वैसे भी इनके प्यार पाने को उतावली हो रही थी इसलिए मैं सबसे नजरें बचा कर इनके पीछे कमरे में आ गई| मैंने फ़ट से कमरे के दरवाजे की कुण्डी बंद की, अपनी साडी को कमर के नीचे खिसकाया ताकि इन्हें मेरी गोरी कमर साफ़ नज़र आये और ये मुझे अपनी बाहों में भर लें| मैं झुक कर कपड़े तह लगाने का बहाना कर इनके बाथरूम से निकलने वाले रास्ते में खड़ी हो गई, ताकि बाथरूम से निकलते ही इनकी नज़र मुझ पर पड़े|
बाथरूम का दरवाजा खुला और मैंने ऐसे दिखाया जैसे मेरा सारा ध्यान झुक कर कपड़े तह लगाने में है| ये बाथरूम से बाहर निकले और इन्होने मुझे देखा भी मगर मुझे बिना छुए ये साइड से होते हुए कमरे के दरवाजे की ओर चल दिए| मैंने कनखी नजरों से इन्हें देखा तो पाया की ये दरवाजे पर पहुँच चुके हैं| दरवाजे की कुण्डी बंद देख ये मेरा इरादा समझ गए, मुझे लगा की अब ये मेरे पास आएंगे और मुझे अपनी बाहों में भर लेंगे मगर इन्होने दरवाजे की कुण्डी खोली तथा चुपचाप बाहर निकल गए! मैं ये दृश्य देख कर हैरान थी, मैं जान गई थी की इनके भीतर मेरे प्रति गुस्सा अभी भी है जिसका सामना मुझे जल्द ही करना होगा!
इनके साइट जाने के बाद मैंने दोनों बच्चों को दोपहर में सोने नहीं दिया और उन्हें पढ़ाने लग गई| आयुष को पढ़ने से नींद आ रही थी इसलिए वो न-नुकुर करने लगा; "अगर अभी सोया तो शाम को खेलने नहीं दूँगी, तब सिर्फ पढ़ाई करनी होगी!" मैंने आयुष को प्यार से धमकाया तो वो पढ़ने के लिए मान गया| वहीं नेहा को तो सबसे ज्यादा जोश था पढ़ने का इसलिए वो ध्यान लगा कर पढ़ रही थी| बच्चों को दोपहर में जगाये रखने का कारण ये था की वो रात को जल्दी सो जाएँ ताकि हमारे प्यार के कार्यक्रम में कोई बाधा न आये! 3 बजे मैंने जबरदस्ती दोनों बच्चों को अनिल के साथ खेलने पार्क भेज दिया, जिससे बच्चों की थकान और बढ़ जाए| थक हार कर तीनों 5 बजे घर लौटे, अनिल की ट्रैन रात की थी इसलिए ये शाम को जल्दी वापस आ गए थे| पिताजी अभी तक नहीं आये थे और मैंने चाय बनाने शुरू कर दी थी| चाय बनी तब तक ये फिर से मुँह-हाथ धोने बाथरूम में घुस गए, मैंने फिर एक बार कोशिश की और अपनी नंगी कमर दिखा कर इन्हें बहकाना चाहा, परन्तु कोई फायदा नहीं हुआ| कुछ देर में पिताजी भी आ गए, मैंने अपने कपड़े ठीक से पहने और हम सभी ने एक साथ चाय पी, सबके सामने इन्होने मुझसे पहले की ही तरह हँस कर बात की जिससे किसी को इनके भीतर बैठे गुस्से का पता नहीं चला| इनके इस तरह बात करने से मुझे लगने लगा था की ये गुस्सा नहीं हैं, मेरे ललचाने का इन पर असर इसलिए नहीं हुआ क्योंकि घर में अनिल की मौजूदगी थी| अब इनका मुँह-मीठा करने का काम चलता है लम्बा, इसीलिए ये मुझसे दूरी बना रहे हैं| 'दिल को बहलाने के लिए ग़ालिब ये ख्याल अच्छा है!' मेरे भीतर जो डर बैठा था उससे मुझे बचाने के लिए मेरा दिल ये बेतुकी बातें कह रहा था, अपने दिल की बातों में आ कर मैंने इनके दिन भर मुझे न छूने की बात को नजरअंदाज कर दिया|
अनिल की ट्रैन जल्दी की थी इसलिए उसे 7 बजे ही खाना खिला कर ये उसे छोड़ने स्टेशन के लिए चल दिए| मैंने थोड़ी होशियारी दिखाई और दोनों बच्चों को उनके पापा के साथ रेलवे स्टेशन जाने के लिए जिद्द करने को कहा| इसका कारन ये था की मैं चाहती थी की बच्चे और थक जाएँ ताकि घर लौट कर खाना खा कर जल्दी से सो जाएँ| अनिल को ट्रैन में बिठा कर आते-आते तीनों बाप-बेटा-बेटी को 9 बज गए, मैंने फटाफट खाना परोसा और खाना खा कर बच्चे थके होने के कारण अपने कमरे में जा कर सो गए| बच्चों को यूँ अपने आप सोते हुए देख हम सभी हँस पड़े वरना तो बिना कहे ये दोनों शैतान सोते नहीं थे!
मैं रसोई समेटने में लगी थी, ये हमारे कमरे में सोने के लिए जा चुके थे, माँ बैठक में बैठीं टी.वी. देख रहीं थीं और पिताजी अपने कमरे में सोने के लिए लेट चुके थे| रसोई फटाफट समेट, माँ को शुभरात्रि बोल मैं बच्चों को देखने उनके कमरे के दरवाजे पर आई, बच्चे अंदर आराम से सोये हुए थे इसलिए मैंने दरवाजा चिपका कर बंद कर दिया| अब मैंने हमारे कमरे में प्रवेश किया तो देखा की ये पीठ के बल लेटे हैं और अपना दाहिना हाथ मोड़ कर अपनी आँखों को ढके सोने की कोशिश कर रहे हैं| मैंने फटाफट कपड़े बदले और इनकी खरीदी हुई नई वाली नाइटी पहन ली| मैं जानती थी की ये अभी तक सोये नहीं हैं इसलिए मैं बिस्तर पर चढ़ी और इनके दाहिने हाथ को खोल कर अपना तकिया बना कर इनसे लिपट गई| मुझे लगा था की मेरे इनसे इस तरह लिपटने से ये तुरंत मेरी ओर करवट ले लेंगे, परन्तु ऐसा नहीं हुआ| ये अब भी पीठ के बल लेटे हुए सोने का नाटक कर रहे थे| अब मेरे भीतर लगी थी प्रेम की अगन तो मैंने अपनी प्यास प्रकट करते हुए इनके जिस्म पर हाथ फेरने शुरू कर दिए और इनसे अधिक से अधिक लिपटने की कोशिश करती रही| मेरी इतनी कोशिशों के बाद भी इन्होने कोई प्रतिक्रिया नहीं दी तो मैंने इन्हें ओर उकसाने का प्रण किया| मैं खिसकती हुई इनके और नजदीक आई तथा इनके 'दाढ़ी वाले गाल पर अपने होंठ रख दिए! अब जा कर इनके मुँह से स्वर फूटा; "उम्म्म!!!?" इनके स्वर में मुझे इनकी चिढ महसूस हुई, कुछ-कुछ वैसी ही चिढ जो कल मुझे करुणा को याद कर के महसूस हुई थी! परन्तु मुझे इनकी इस चिढ से भरी आवाज का जैसे कोई फर्क ही नहीं पड़ा, मैं तो पहले ही प्यार के समुद्र में गोता लगा चुकी थी इसलिए मैं इनकी चिढ को अनसुना कर इनके और नज़दीक पहुँची| मैंने इनके लबों को अपने लबो में कैद करना चाहा था की तभी इन्होने अपनी आँखें खोलीं और मेरे सीने पर हाथ रख मुझे रोक दिया तथा अपनी गर्दन न में हिलाने लगे! इनके चेहरे पर काफी गंभीर भाव थे जो की इनके भीतर मौजूद गुस्से को दर्शा रहे थे, मुझे समझते देर न लगी की इनका मेरे प्रति गुस्सा शांत नहीं हुआ है!
मैंने बिना कोई समय गँवायें सीधा ही इनसे माफ़ी माँगनी शुरू कर दी; "मुझे माफ़ कर दीजिये, मुझसे कल रात बहुत बड़ी भूल हो गई! कल रात मैं...वो..." मैं अपनी की गई गलती का कारण इन्हें बताना चाहती थी मगर इनको अपनी जलन के बारे में बताने से डरती थी, मैं जानती थी की मेरी जलन की बात सुन ये मुझे बहुत डाटेंगे बस इसी डर से मैं खामोश हो गई क्योंकि इनसे झूठ बोलने की हिम्मत नहीं थी|
"कल क्या?" इन्होने भोयें सिकोड़ते हुए मेरी अधूरी छोड़ी हुई बात को कुरेदते हुए गंभीर आवाज में पुछा| इनका ये रूप देख मेरा दिमाग पूरी तरह से बंद हो चूका था, झूठ बोलने की हिम्मत तो थी ही नहीं इसलिए मैंने डर के मारे अपनी आँखें नीची कर ली|
जब मैंने कोई जवाब नहीं दिया तो इन्होने इस प्रश्न को और नहीं पुछा बल्कि अपने दिल का हाल सुनाने लगे; "तुम्हें पता है कल रात मुझे कैसा लगा जब तुमने मुझे बेवजह झिड़का था?" इनके सवाल को सुन मैं खामोश रही और मन ही मन करुणा को कोसती रही|
"मैंने कभी सपने में नहीं सोचा था की तुम मेरे साथ ऐसा व्यवहार करोगी? मुझे ऐसा लग रहा था जैसे मैं तुम्हारे साथ 'जबरदस्ती' कर रहा हूँ, तुम्हारा शारीरिक शोषण कर रहा हूँ और ये सोच कर मैं खुद को कोसने लगा था| एक पल के लिए तो मुझे खुद से नफरत हो रही थी की मैं भी उस (चन्दर) जैसा बन चूका हूँ!" इनकी ये बात मेरे दिल को बहुत चुभी! मैंने कल इनसे इतना गंदा बर्ताव किया था की इनका ये सब सोचना लाज़मी था मगर मैं करती भी क्या, उस करुणा के कारण मैं जलन की आग में जो जल रही थी!
"शायद तुम भूल गई की गाँव में तुमने मुझसे एक वादा किया था, मुझे एक हक़ दिया था और कल रात तुमने न केवल अपना वादा तोडा बल्कि मुझे दिया हुआ हक़ भी मुझसे छीन लिया!" इनकी कही इस बात ने मुझे भीतर से झिंझोड़ कर रख दिया था| मैं इनकी कसूरवार थी और अपनी सफाई देना चाहती थी ताकि कहीं इनके मन में प्रति घृणा न पैदा हो जाए; "पता नहीं जी मुझे आखिर कल हो क्या गया था?!" मैंने नजरें झुकाये हुए ही अपनी बात कही मगर मुझ में अब भी इतनी हिम्मत नहीं थी की मैं अपनी जलन इन पर जाहिर कर सकूँ| "प्लीज मुझे माफ़ कर दो!" इतना कहते हुए मेरे आँसूँ बह निकले| इन्हें मनाने के लिए मैं कुछ भी कर सकती थी इसलिए मैंने रोते हुए गिड़गिड़ाना शुरू कर दिया; "प्लीज मुझे माफ़ कर दो, आगे से मैं ये गलती कभी नहीं करूँगी!"
"कारण तुम्हें पता है लेकिन तुम बताना नहीं चाहती! ठीक है, मैं भी आज के बाद तुमसे ये कारण कभी नहीं पूछूँगा|" ये बड़े रूखे स्वर में बोले और मेरे आँसूँ पोछ मुझे चुप कराया| एक पल को लगा की इन्होने मुझे माफ़ कर दिया और मेरा दिल राहत की साँस लेना लगा, परन्तु अगले ही पल ये दूसरी तरफ मुँह कर के लेट गए| ये देख कर तो मैं असमंजस की स्थिति में फँस गई, मुझे समझ ही नहीं आया की ये मुझसे गुस्सा है या इन्होने मुझे माफ़ कर दिया?! "आपने मुझे माफ़ कर दिया न?" मैंने कोतुहलवश इनसे पुछा तो इन्होने बस; "हम्म्म" कह जवाब दिया| इनके जवाब से मेरे भीतर तूफ़ान खड़ा हो गया था, मन में बैठी ग्लानि मुझे डराए जा रही थी और कह रही थी की; 'तूने इनका प्यार हमेशा-हमेशा के लिए खो दिया!'