Hindi Antarvasna एक अनोखा बंधन - पुन: प्रारंभ


[color=rgb(243,]सोलहवाँ अध्याय: पति का प्रेम![/color]
[color=rgb(41,]भाग - 1[/color]


[color=rgb(65,]अब तक आपने पढ़ा:[/color]

भौजी का मुझे अपने कामजाल में फँसा कर kiss करने का प्लान फ्लॉप हो चूका था!
खैर मैंने फटाफट कपडे पहने और मुस्कुराता हुआ बाहर आ गया, कुछ समय बाद भौजी भी कपडे पहन के बाहर आईं और खाना बनाने रसोई में घुस गईं|

[color=rgb(226,]अब आगे:[/color]

रसोई में खाना बनाते हुए समय भी उनका पूरा ध्यान बस मुझ पर लगा हुआ था| मैं छप्पर के नीचे तख्त पर उनकी तरफ मुँह करके लेटा हुआ था| भौजी रसोई में बैठे हुए ही मुझे हवा में kiss करतीं|



उनका ये बचपना देख मुझे बड़ा मजा आ रहा था और मैं उनके kiss का जवाब बस मुस्कुरा कर देता| उनका मुझे अपने होंठों को गोल बना कर चिढ़ाना जारी था, पर उनका हर एक निशाना चूक रहा था|



क्योंकि मैं पूरी सख्ती के साथ उन्हें देख रहा था, अब तो मेरी नजरें भी उन्हें उत्तेजित करने लगीं थीं! भौजी ने अपनी आँख बंद की और अपना मुँह मेरी तरफ आगे किया, अपने होंठ गोल बनाये और मुझे kiss करने का खुद निमंत्रण देने लगीं|



मन तो किया की उठ कर जाऊँ और रसोई में ही उन्हें जमीन पर गिरा कर उनपर चढ़ जाऊँ पर कोई आ जाता तो काण्ड हो जाता! "खाना भी बना लो, सारा दिन kiss ही मांगते रहोगे? बाकियों को क्या खिलाओगे?" मैंने भौजी को ताना मारा और फिर पलट कर सीधा लेट गया| भौजी उठीं और प्रात में आटा ले कर छप्पर के नीचे बैठ गईं और मुझे देख-देख कर आटा गूंदने लगीं| वो जानती थीं की मैं इतना भी कठोर नहीं की वो मेरे इतने नजदीक हों और मैं उन्हें न देखूँ| जैसे ही मैंने उन्हें देखा वो मुझे जीभ चिढ़ाने लगीं और उठ कर चलीं गईं,



मैं एकदम से उठ कर बैठ गया तो पाया की वो रसोई से सूखा आटा लेने गईं हैं| "बहुत तड़पा रहे हो न मुझे?" भौजी ने मुँह बनाते हुए कहा



और ये देख मेरी हँसी छूट गई! "बहुत मजा आ रहा है न आपको?" भौजी ने उदास होने का नाटक करते हुए कहा,



जब मैं कुछ नहीं बोला तो उन्होंने मुझे emotional blackmail करते हुए कहा; "प्लीज...प्लीज...एक kiss!!!"



लेकिन मैंने जवाब में न में सर हिला दिया|
नेहा के स्कूल की घंटी बजने का समय हो गया था तो मैं उसे लेने चल दिया, नेहा क्लास छूटते ही दौड़ी-दौड़ी बाहर आई| मैंने उसे गोद में उठा कर चूमना शुरू कर दिया, उसी समय वहाँ पर एक आइस-क्रीम वाला आया| उसे देखते ही नेहा मेरी तरफ प्यार से देखने लगी; "मेरी बेटी को आइस-क्रीम खानी है?" मैंने पुछा तो नेहा ने फ़ौरन हाँ में गर्दन हिलाई| ये आइस-क्रीम वाला शहर जैसा बिलकुल नहीं था, शहर में तो आइस-क्रीम की वो दो पहिया गाडी होती है पर यहाँ तो ये साइकिल पर आया था! पीछे करियर पर उसके एक लकड़ी की पेटी थी, जिस में बर्फ भरी हुई थी| उस पेटी के बीचों-बीच एक स्टील का एक डिब्बा था, जिसमें आइस-क्रीम राखी थी| आइस-क्रीम भी दो तरह की एक नीम्बू-पानी वाली वाली जो लकड़ी की एक डंडी पर लगी थी और दूसरी सफ़ेद रंग की वनीला फ्लेवर जिसे वो एक कोन में लगा कर देता था| दाम भी बहुत नहीं थे, दो रुपये की डंडी वाली और चार रुपये का कोन| मैंने नेहा से पुछा की वो कौन सी खायेगी तो उसने सस्ती वाली माँगी; "बेटा आपको कोने अच्छा नहीं लगता?" ये सुन वो सोच में पड़ गई, शायद वो कोन का मतलब नहीं जानती थी तो मैंने उसे समझाया; "बेटा वो जो सफ़ेद वाली है वो|" तो नेहा के चेहरे पर मुस्कान आ गई और उसने हाँ में सर हिला दिया| मैंने उस आइस-क्रीम वाले भैया को दो कोन बनाने को बोले, वहाँ कोन लेने वाला मैं अकेला ही था तो जब वो भय कोन बनाने लगा तो सब बड़े चाव से देखने लगे की ये कैसे बनता है| आइस-क्रीम वाले भैया ने एक चमचा निकाला और उससे उसने आइस क्रीम खुरच कर निकाली और कोन के ऊपर ऐसे ही लबेड दी! आज फिर ये दृश्य देख मैं हैरान था, मैं उम्मीद कर रहा था की वो scoop का इस्तेमाल करेगा और आइस-क्रीम दबा-दबा कर भरेगा और ऊपर से टूटी-फ्रूटी लगाएगा पर इसने तो ये बिना कुछ लगाए ही मेरी ओर बढ़ा दी! मैंने सोचा चलो जो मिला वही सही, मैंने दोनों आइस-क्रीम ली और एक मैंने नेहा को दे दी| "बेटा अपनी आइस-क्रीम कस कर पकड़ना क्योंकि अब हमें घर दौड़ कर जाना है वरना आपकी मम्मी की आइस-क्रीम पिघल जाएगी!" ये सुन नेहा ने मुझे और आइस-क्रीम दोनों को कस कर पकड़ लिया| मैंने स्कूल से ले कर घर तक दौड़ लगाई लेकिन फिर भी आइस-क्रीम थोड़ी पिघल गई| जैसे ही हम घर पहुंचे तो नेहा ने मम्मी-मम्मी चिल्लाना शुरू कर दिया| उसका चिल्लाना सुन भौजी घबराई हुई बाहर आईं और मेरे हाथ में आइस-क्रीम देख सब समझ गईं, पर फिर भी रूठने का नाटक करते हुए बोलीं; "मुझे नहीं खानी!" इतना कह कर वो पलट गईं, उन्हें लगा की मैं उन्हें मनाऊँगा और वो उसका फायदा उठा कर मेरे होठों को चूम लेंगी पर मैंने उन्हें मनाने के बजाए आइस-क्रीम से एक बाईट लिया| भौजी एकदम से घूमीं और मुझे आइस-क्रीम खता देख गुस्सा हो गईं, वो तेजी से मेरी तरफ आईं और मुझे उत्तेजित करते हुए उन्होंने आइस-क्रीम को कुछ इस तरह से छाता की मेरे जिस्म में चीटियाँ काटने लगीं!



आइस-क्रीम को चाटते समय उनकी आँखें मेरी आँखों में प्यास ढूँढ रहीं थीं, जब उन्हें मेरी प्यास नजर औ तो उन्होंने फिर एक बार दबी आवाज में होठों को हिलाते हुए कहा; "प्लीज..दे दो न!"



उस समय मेरी गोद में नेहा थी जो अपनी आइस-क्रीम खाने में व्यस्त थी, मैंने एकदम से नेहा को देखा और भौजी की दया याचिका अनदेखी कर दी! भौजी ने आइस-क्रीम की एक बड़ी बाईट ली और रसोई में जाते हुए मुझे एक flying kiss दी!



बची-कुछ आइस-क्रीम मैंने खाई और नेहा तो अपनी वाली पूरी आइस-क्रीम खा गई!
खाना बनने तक मैं नेहा के साथ प्रमुख आंगन में बैट-बॉल खेलता रहा, इतने में वरुण भी आ गया और हमारे साथ खेलने लगा| माँ तथा बड़की अम्मा भी बजार से लौट आईं और सीधा छप्पर के नीचे बैठ के सुस्ताने लगीं| पिताजी और बड़के दादा भी खेत से लौट आये थे, हम सब खाना खाने बैठ गए| खाना खा कर पिताजी तथा बड़के दादा कुएँ के पास चारपाई पर लेटे बात करने लगे| माँ, भौजी, बड़की अम्मा और रसिका भाभी खाना खाने बैठ गए| जब उनका खाना हुआ तो, माँ और बड़की अम्मा छप्पर के नीचे लेट गए| रसिका भाभी और वरुण भी वहीँ एक चारपाई पर लेटे हुए थे| मैं, नेहा और भौजी उनके घर के आंगन में दो चारपाई डाल कर लेट गए| एक चारपाई पर भौजी थीं और दूसरी चारपाई पर मैं और नेहा लेटे थे| नेहा मेरी छाती पर सर रख कर लेटी थी, परन्तु वो अभी तक सोइ नहीं थी| इधर भौजी ने फिर मुझे उत्तेजित करने के लिए अपनी दाहिने हाथ की ऊँगली को मुँह में ले कर चूसना शुरू कर दिया,



ये दृश्य देखते ही मेरी आँखें चौड़ी हो गईं| भौजी ने जब मेरी ये प्रतिक्रिया देखि तो वो एक कदम और आगे बढ़ीं और अपनी उसी लार से गीली ऊँगली को अपने होठों पर मलने लगीं, जिससे उनके गुलाबी होंठ दमकने लगे|



उन गुलाबी होंठों को देख मेरे प्यासे होंठ भी थर-थराने लगे!

मेरी बेटी की मेरी छाती पर मौजूदगी होने के कारन मेरा दिल काबू में था, वरना अब तक तो मैं भौजी के ऊपर चढ़ गया होता और उनके गुलाबी होंठों का रस निचोड़ रहा होता| इतने हत्कंडे अपनाने के बाद भी जब मैं तस से मस नहीं हुआ तो भौजी ने एक फिर फिर दबी हुई आवाज में मुझसे मिन्नत की; "प्लीज...प्लीज...प्लीज...प्लीज...!"



पर मैंने फिर एकबार उनकी तरफ से मुँह मोड़ा और भौजी को चिढ़ाते हुए अपनी बेटी के सर को चूमा| तभी भौजी के दिमाग में एक और आईडिया आया, उन्होंने नेहा को पुकारा और बोलीं;

भौजी: नेहा देख ना...तेरे पापा मुझे kissi नहीं देते!

भौजी ने नेहा से मेरी शिकायत की|

मैं: आपको kissi नहीं मिलेगी, पर हाँ मेरी बेटी नेहा का जर्रूर मिलेगी|

ये कहते हुए मैंने नेहा के दोनों गालों को चुम लिया| ये दृश्य देख भौजी प्यासी नजरों से बाप-बेटी को देखने लगीं, मुझे उन पर थोड़ा तरस आया तो मैंने नेहा से कहा;

मैं: बेटा आप जाके मम्मी को kiss करो, इस तरह उन तक मेरी kiss पहुँच जाएगी|

नेहा एक अच्छी बेटी की तरह उठी और जाके भौजी के गाल पर kiss किया, फिर वापस आ कर मेरी छाती पर चढ़ गई|

भौजी: बेटा kissi तो हवा में उड़ गई! आप न पापा से कहो की मुझे यहाँ आ कर kiss करें|

भौजी ने अपनी चाल चली, पर अब मेरी बारी थी उनकी शिकायत करने की;

मैं: बेटा आपको पता है, आज सुबह जब मैंने आप्पकी मम्मी से कहा की मुझे kissi दो, तो उन्होंने मना कर दिया| अब आप भी तो रोज सुबह उठ कर मुझे kissi देते हो ना?

ये सुन नेहा ने हाँ में सर हिलाया और मेरी तरफदारी करते हुए भौजी से बोली;

नेहा: मम्मी, गलत बात!

भौजी: Sorry बाबा! आजके बाद कभी मना नहीं करुँगी, अब तो दे दो?

भौजी गिड़गिड़ाने लगीं|

मैं: न

मैंने न में गर्दन हिलाते हुए कहा| अब भौजी ने नेहा को फिर से आगे करके अपनी दूसरी चाल चली;

भौजी: अच्छा नेहा अगर आप मुझे पापा से kissi दिलाओगे तो मैं आपको ये चिप्स का पैकेट दूँगी?

ये कहते हुए उन्होंने अपने तकिये के नीचे से एक चिप्स का पैकेट निकला| चिप्स का पैकेट देखते ही नेहा को लालच आ गया;

मैं: ओह तो अब आप मेरी बेटी को रिश्वत दोगे?

मैंने नेहा को उनकी ओर जाने से रोकते हुए कहा| फिर मैंने नेहा के कान में खुसफुसाया; "बेटा ये लो दस रुपये और चुप-चाप चिप्स का पैकेट खरीद लाओ|" नेहा ने चुपके से पैसे अपने हाथ में दबाये और बाहर भाग गई| उसके जाते ही भौजी हैरानी से बोलीं;

भौजी: नेहा कहाँ गई?

मैं: चिप्स लेने!!

मैंने हँसते हुए कहा, क्योंकि मैंने फिर एक बार भौजी की चाल पीट दी थी!

भौजी: हैं??

भौजी हैरानी से भोयें सिकोड़ कर बोलीं|

भौजी: ठीक है बहुत हो गया अब! सुबह से प्यार से कह रहीं हूँ लेकिन आप हो की मेरी एक नहीं सुनते! सीधी ऊँगली से घी निकालना चाहा नहीं निकला, ऊँगली टेढ़ी की पर फिर भी नहीं बात नहीं बनी तो अब तो घी का डिब्बा ही उल्टा करना होगा!!!

भौजी ने ताव में कहा|

मैं: क्या मतलब?

मैंने भोयें सिकोड़ते हुए पुछा|

भौजी: वो अभी बताती हूँ|

भौजी ने खींसें निपोरते हुए कहा|

मैं उस समय पीठ के बल लेटा हुआ था, भौजी एकदम से उठीं और मेरी चारपाई के नजदीक आके खडी हो गईं| वो एक दम से मुझपर कूद पड़ीं और जैसे मल युद्ध करते समय दो पहलवान हाथों को लॉक करते हैं, ठीक उसी तरह से हमारे लॉक हुए| भौजी ने अपना सारा वजन मुझ पर डाला हुआ था और मुझे उनकी ये हरकत देख बहुत हँसी आ रही थी;

मैं: हा..हा...हा... वाह रे मेरी जंगली बिल्ली!

मैंने हँसते हुए कहा|

भौजी: म्याऊ!

भौजी ने हँसते हुए कहा|

भौजी ने मुझे kiss करने की पूरी कोशिश की, लेकिन मैं हर बार मुँह फेर लेता और उनका हर एक शॉट टारगेट मिस करता! अब मेरी बारी थी अपना दमखम दिखाने की, मैंने अपना दाहिना हाथ छुड़ाया और अचानक से करवट ली| मेरा हमला अचानक था इसलिए भौजी अब सीधा मेरे नीचे थीं और मैं उनके ऊपर था! अगले बीस सेकंड तक मैं भौजी की आँखों में देखता रहा, उनकी आँखों में मुझे kiss करने की वो ललक साफ़ दिख रही थी| उनके होंठ थर-थरा रहे थे, एक बार को तो मन किया की उनके होंठों को चूम लूँ पर नहीं...अभी थोड़ा तड़पाना बाकी था| कहते हैं न, बिरहा के बाद मिलने का आनंद ही कुछ और होता है! हम ऐसे ही खामोश एक दूसरे की आँखों में देखते रहे की तभी वहाँ नेहा आ गई| उसके आते ही मैं कूद के उनके ऊपर से हट गया और भौजी वाली चारपाई पर बैठ हँसने लगा, पर भौजी मुझे अब भी उन प्यासी नजरों से देख रहीं थीं!

अब नेहा की मौजूदगी में तो भौजी कुछ करने से रहीं, इसलिए वो भी उठ बैठीं, नेहा जो चिप्स लाइ थी वो हम ने मिलके खाये और मैंने जानबूझ के भौजी और नेहा से आइस-क्रीम पर बात शुरू कर दी| जब मैंने उन्हें बताया की दिल्ली में माँ घर पर ही दूध की मस्त आइस-क्रीम बनाती हैं तो भौजी ने मुझसे उसकी रेसिपी पूछी जो मुझे नहीं पता थी! इन्हीं बातों-बातों में शाम हुई और भौजी चाय बनाने लगीं| चाय बनने के दौरान छप्पर के नीचे घर की सभी स्त्रियों की सभा बैठी हुई थी जिसमें माँ सब को आइस-क्रीम बनाने का फ़ॉर्मूला बता रहीं थीं! इधर मैं, नेहा और वरुण आंगन में बैट-बॉल खेल रहे थे| चाय बनी और फिर सब ने चाय पी, चाय बनाने के बाद भौजी खाना बनाने लग गईं और मैं बच्चों के साथ उंच-नीच का पापड़ा खेलने लगा! (हा..हा..हा...!!!!)

खाना बना और खाना खा कर पिताजी और बड़के दादा सोने की तैयारी करने लगे| मैं वरुण और नेहा को कहानी सुना चूका था और वो दोनों ही सो चुके थे, तो मैं उन्हें गोद में लिए बड़े घर की ओर जा रहा था| पिताजी समझ गए की मैं आज भी बड़े घर में सोऊँगा, तो उन्होंने मुझे आवाज दे आकर बुलाया;

पिताजी: मानु!

मैं: पिताजी बस एक मिनट में आया, जरा बच्चों को लिटा कर आ रहा हूँ|

मैंने दोनों बच्चों को बड़े घर में उनकी अपनी-अपनी चारपाई पर लिटाया और फिर पिताजी के पास लौट आया|

पिताजी: अरे भई कभी हमारे पास भी सोया करो|

मैं: अब पिताजी घर में तीन ही तो 'मर्द' हैं, तीनों यहाँ सो गए तो वहाँ बाकियों की रक्षा कौन करेगा?

मेरी बात सुन के बड़के दादा और पिताजी दोनों ठहाका मार के हँसने लगे| फिर मैंने जानबूझ कर वहाँ बातें बनानाना और पूछना शुरू कर दिया क्योंकि मैं जानता था की भौजी ने अभी तक खाना नहीं खाया है| उनके खाने तक अगर मैं पहले सो गया तो वो मेरे सोने का फायदा उठाएँगी और जिस kiss के लिए मैंने उन्हें इतना तड़पाया है वो सब बर्बाद जाएगा, इसलिए मैं भौजी के खाने के एक घंटे बाद तक वहीँ बैठा रहा और बातों में लगा रहा| घडी में रात के दस बजे और जब मैं पिताजी के पास से बड़े घर पहुँचा तो वहाँ सब के सब सो चुके थे| मैंने आहिस्ते से दरवाजा बंद किया और दबे पाँव अपने बिस्तर की तरफ जाने लगा| भौजी की चारपाई सब से पहले थी और उनके बगल में मेरी चारपाई बिछी थी| कल की ही तरह मेरी बगल वाली चारपाई माँ की थी| आज दिन भर भौजी को तड़पाने की गलती कर चूका था और अब समय था अपनी गलती का प्रायश्चित करने का! मैं भौजी के सिरहाने रुका और अपने घुटनों पर बैठा, भौजी उस समय बिलकुल सीधी लेटीं थी| मैंने अपने दोनों हाथों से उनका चेहरा थामा और झुक कर उनके होंठों को चूम लिया| उन गुलाबी पंखुड़ियों का रस पीने को मन बहुत व्याकुल था, इसलिए मैंने उनके नीचले होंठ को अपने मुँह में भरा और उसका रस निचोड़ने लगा| मेरे हाथ के स्पर्श से भौजी जाग चुकी थीं और अब वो मेरा इस kiss में पूर्ण सहयोग दे रहीं थीं| जिस kiss के लिए वो आज इतना व्याकुल थीं वो आखिर उन्हें मिल ही गई! दो मिनट के रसपान के बाद हम अलग हुए, भौजी के चेहरे पर एक प्यारी से संतोषजनक मुस्कान थी जिसे देख मेरा दिल धक् सा रह गया था! भौजी ने मुस्कुराते हुए दाहिनी ओर करवट ले ली और मैं धीरे से उठा, तथा अपनी चारपाई पर आ कर चुप-चाप लेट गया, मेरे लेटने के 5 सेकंड बाद ही माँ का हाथ मेरी छाती पर आ गिरा| में एकदम से डर गया, मुझे लगा की शायद माँ ने अभी सब कुछ देख लिया! परन्तु जब माँ कुछ नहीं बोलीं तो माने हिम्मत कर के उन्हें थोड़ा गौर से देखा तो पाया की माँ गहरी नींद में थीं, दरअसल उनकी और मेरी चारपाई पास-पास थीं जिस कारन नींद में उनका हाथ मेरी छाती पर आ गिरा था| मेरी जान बाल-बाल बच गई थी, इसलिए मैं चुप-चाप सो गया|

[color=rgb(147,]जारी रहेगा भाग - 2 में...[/color]
 

[color=rgb(243,]सोलहवाँ अध्याय: पति का प्रेम![/color]
[color=rgb(41,]भाग - 2[/color]


[color=rgb(65,]अब तक आपने पढ़ा:[/color]

दो मिनट के रसपान के बाद हम अलग हुए, भौजी के चेहरे पर एक प्यारी से संतोषजनक मुस्कान थी जिसे देख मेरा दिल धक् सा रह गया था! भौजी ने मुस्कुराते हुए दाहिनी ओर करवट ले ली और मैं धीरे से उठा, तथा अपनी चारपाई पर आ कर चुप-चाप लेट गया, मेरे लेटने के 5 सेकंड बाद ही माँ का हाथ मेरी छाती पर आ गिरा| में एकदम से डर गया, मुझे लगा की शायद माँ ने अभी सब कुछ देख लिया! परन्तु जब माँ कुछ नहीं बोलीं तो माने हिम्मत कर के उन्हें थोड़ा गौर से देखा तो पाया की माँ गहरी नींद में थीं, दरअसल उनकी और मेरी चारपाई पास-पास थीं जिस कारन नींद में उनका हाथ मेरी छाती पर आ गिरा था| मेरी जान बाल-बाल बच गई थी, इसलिए मैं चुप-चाप सो गया|

[color=rgb(184,]अब आगे:[/color]

सुबह पाँच बजे एक प्यारी वाली Good morning kiss के साथ भौजी ने मुझे जगाया|

भौजी: How'd you like my Good Morning Kiss?

(कैसी लगी मेरी गुड मॉर्निंग kiss?)

मैं: Awesome!!!

(बहुत बढ़िया)

कल भौजी ने बड़ा ही जर्रूरी सबक सीखा था, वो ये की कभी भी मुझे kiss के लिए नहीं तड़पाना वरना जब मैं सताने पर आता हूँ तो ऊनि हालत खराब हो जाती है! तभी तो आज सुबह-सुबह इतनी प्यारी kissi दे कर उठाया| खैर भौजी तो चली गईं और उनके जाने के बाद मैंने अपनी लाड़ली को गोद में उठाया| नेहा को अब भी नींद आ रही थी, तो मैं उसे गोद में ले कर आंगन में ही टहलने लगा| नेहा ने अपने नन्हे-नन्हे हाथ मेरी गर्दन के इर्द-गिर्द लपेट लिए तथा मेरे दाएँ कंधे पर सर रख कर फिर से सोने लगी| अब उसे स्कूल के लिए तो जगाना था, इसलिए मैंने उसके दाएँ गाल को बार-बार चूमना शुरू कर दिया| मेरे बार-बार चूमने से वो आखिर जाग गई और मेरे दोनों गालों को चूमने लगी| "सॉरी...मेरा मतलब मुझे माफ़ कर दो बेटा! पर आपको स्कूल जाना है, इसलिए आपको उठा रहा हूँ!" ये सुन नेहा के चेहरे पर मुस्कान आ गई और उसने एक बार फिर मेरे दोनों गालों को चूमा और फिर फ्रेश होने चली गई|

अब चूँकि मैं कुछ देर के लिए अकेला था तो अब समय था परसों रात के ख़याली पुलाव में तड़का लगाने का! कौन-कौन से मसाले इस्तेमाल करने हैं, घी कितना डालना है, धनिया-पुदीना सब कुछ सोच लिया था मैंने| मैं जल्दी से तैयार हुआ और रसोई पहुँचा, वहां पहुँचते ही मुझे मेरी लाड़ली तैयार मिली| मैंने उसे गोद में उठाया और उसके प्याले-प्याले गालों को चूमते हुए उसके स्कूल पहुँचा| क्लास में जाने से पहले नेहा ने मेरे माथे पर एक प्याली सी पप्पी दी और मुस्कुराती हुई क्लास में चली गई|

परसों रात को बिस्तर लगाते समय भौजी ने कहा था की काश हम दोनों एक रात साथ बिता पाते, उनकी वो बात मेरे दिमाग में घर कर गई थी और उसी पल से मैंने इस विषय पर काम करना शुरू कर दिया था| खैर जब मैं घर पहुँचा तो मुझे भौजी न तो रसोई में मिलीं और न ही बड़े घर में| तो मैं उन्हें ढूँढ़ते हुए उनके घर के भीतर घुसा| भौजी उस वक़्त अपने कमरे में खड़ीं साडी पहन रही थी| उनके दांतों तले साडी का पल्लू दबा हुआ था, वो दृश्य ऐसा था की मैं सब कुछ भूल कर उनके कमरे की चौखट से सर लगा कर उन्हें देखने लगा|

भौजी: क्या देख रहे हो आप?

भौजी ने लजाते हुए साडी का पालू खोंसते हुए कहा|

मैं: हाय! बड़े सेक्सी लग रहे हो आज, ख़ास कर आपकी नाभि.....सससससस....मन कर रहा है उसे kiss कर लूँ?

मैंने उनके नजदीक पहुँचते हुए कहा|

भौजी: तो आप पूछ क्यों रहे हो?

भौजी ने लजाते हुए नजरें झुका कर कहा|

मैं: नहीं....अभी नहीं.....!

मैंने उनकी ठुड्डी पकड़ कर ऊपर उठा कर कहा|

मैं: फिलहाल मुझे आपसे एक छोटा सा काम था?

ये सुन भौजी उत्सुक हो गईं;

भौजी: हाँ बोलिए|

भौजी फ़टाक से बोलीं|

मैं: आज जो भी बात में पिताजी के सामने आपसे पूछूँ आप बस उसमें हाँ में हाँ मिला देना!

मेरी बात सुन भौजी ने एक क्षण नहीं लिया और फ़ौरन बोलीं;

भौजी: ठीक है, पर बात क्या है?

मैं: सरप्राइज है! अभी नहीं बता सकता|

मैंने मुस्कुराते हुए कहा|

भौजी: हाय! आप फिर से अपने सरप्राइज से तड़पाओगे?

भौजी ने मिन्नत करते हुए कहा|

मैं: थोड़ा तड़प भी लो, लेकिन जब सरप्राइज पता चलेगा तो आपके सारे गीले-शिकवे दूर हो जायेंगे!

भौजी: आपका दिया हुआ हर सरप्राइज मुझे अच्छा लगता है| पर इस बार क्या चल रहा है आपे दिमाग में?

भौजी ने प्यार से पुछा|

मैं: सब अभी बता दूँ?!

मैंने भौजी के गाल खींचते हुए कहा और फिर बाहर चला आया| छप्पर के नीचे माँ और बड़की अम्मा बैठे थे, जब मैंने उनसे पिताजी के बारे में पुछा तो उन्होंने बताया की वो और बड़के दादा पास ही के गाँव में एक ठाकुर साहब के यहाँ गए थे| मैं इतना उतावला था की उन्हें ढूँढ़ते हुए वहाँ जा पहुँचा, पिताजी, बड़के दादा और ठाकुर साहब आप्मने-सामने चारपाई पर बैठ बात कर रहे थे परन्तु मुझे देखते ही सब खामोश हो गए| मेरा पहनावा देख ठाकुर साहब समझ गए की मैं मानु हूँ जिसकी अभी बात चल रही थी, इसलिए वो मुस्कुराते हुए मुझसे बोले;

ठाकुर साहब: अरे आओ मुन्ना! बैठो...अरे सुनत हो? जरा मुन्ना के लिए शरबत ले आओ|

ठाकुर साहब ने अपनी पत्नी को आवाज देते हुए कहा| तत्पश्चात पिताजी ने मेरा उनसे परिचय कराया;

पिताजी: बेटा ये अवधेश जी हैं, इस गाँव के ठाकुर!

पिताजी की बात सुन मैंने उनके पाँव छूटे हुए कहा;

मैं: पांयलागि ठाकुर साहब!

ठाकुर साहब: अरे भाईसाहब, बोली भाषा से तो मुन्ना बिल्कुले शहरी नहीं लगात! बहुत सरल, आज्ञाकारी, कउनो घमंड नाहीं.... वाह! बहुत नीक (अच्छे) संस्कार डाले हो आप|

ठाकुर साहब मेरी तारीफ करते हुए बोले और मैंने खामोश हो कर अपना सर झुका लिया| तभी बड़के दादा बोले;

बड़के दादा: बहुत मेहनती भी है ठाकुर साहब, जब एकर पिताजी नाहीं रहे तो अकेले ही आधा खेत काट डालिस! और तो और अन्याय तनिको बर्दाश्त नाहीं ईका!

ठाकुर साहब: अरे वाह भई वाह!

इतने में ठकुराइन सर पर पल्ला किये मेरे लिए शर्बत ले आईं| मैंने उनके भी पाँव छुए और उन्होंने मुझे आशीर्वाद देते हुए मेरे सर पर हाथ फेरा|

ठाकुर साहब: देखत हो? हम ना कहत रहन मुन्ना बहुत संस्कारी है! चलो मुन्ना सरबत पीयो!

ठाकुर साहब की बात मुझे अटपटी लगी, लेकिन सब मेरी ही तारीफ करने में लग गए तो मैं मजबूरन खामोश रहा| मन में जो पिताजी से बात करने का उत्साह था उसे रोके रखा वरना अभी-अभी जो तारीफ हुई थी वो सारी किरकिरी हो जाती! मैंने अपना ध्यान सरबत पीने में लगाया और इधर-उधर देखते हुए चुप-चाप बैठा रहा| इतने में ठकुराइन ने अपनी बेटी को वहाँ भेज दिया, वो सर झुका कर आई मुझे छोड़ सब को प्रणाम किया और फिर ठाकुर साहब की बगल में बैठ गई| उसके आते ही मेरे दिमाग में शक का साईरन बजने लगे, वो दृश्य था ही ऐसा की मेरा शक करना जायज था! तभी ठाकुर साहब ने उसका तार्रुफ़ हमसे कराया;

ठाकुर साहब: ई हमार बेटी सुनीता, सेहर में पढ़त है ग्यारहवीं कक्षा में|

पिताजी और बड़के दादा के चेहरे पर ख़ुशी झलक आई जो मैंने अभी तक नहीं देखि थी!

ठाकुर साहब: भाईसाहब, अगर आप बुरा ना मानो तो बच्चे तनिक टहल आयें?

ठाकुर साहब मुस्कुराते हुए बोले|

पिताजी: जी इसमें बुरा मानने वाली का बात है, जाओ बेटा!

पिताजी ने मेरी पीठ पर हाथ रख कर मुझे जाने की अनुमति दी| इधर पिताजी की बात सुन मेरी आखें बड़ी हो गईं, आखिर ये हो क्या रहा है? कहीं पिताजी यहाँ मेरा रिश्ता तो लेकर नहीं आये? लेकिन ऐसा होता तो वो मुझसे जर्रूर पूछते! इतने में सुनीता मेरे से दो कदम आगे निकल गई और मैं स्तब्ध से गर्दन झुकाये सोचने लगा|

बड़के दादा: जाओ मुन्ना, सरमाओ नाहीं!

बड़के दादा की बात सुन सारे हँस पड़े, इधर मुझे मेरे ख़याली पुलाव पर पानी फिरता नजर आ रहा था!

ठाकुर साहब: जाओ मुन्ना...ईका आपन ही घर समझो!

बेमन से मैं सुनीता के पीछे चल पड़ा, वो ख़ामोशी से मुझे अपने घर के भीतर ले गई और अपने कमरे के अंदर प्रवेश कर मुझसे बोली;

सुनीता: ये मेरा कमरा है|

मैंने गौर से देखा तो पाया की ठाकुर साहब का घर हमारे मुक़ाबले बहुत बड़ा है, अकेले सुनीता का कमरा ही भौजी के घर जितना बड़ा है| बड़ी-बड़ी खिड़कियाँ जिससे ठंडी-ठंडी हवा 24 घंटे आती थी, उसका अपना पलंग जो मैने अपने गाँव के घर में तो नहीं देखा था| खिड़की के पास एक दीवान, उसका अपना स्टडी टेबल! मैं बड़े चाव से उसका कमरा देख रहा था|

सुनीता: आपका नाम क्या है?

सुनीता ने बात शुरू करते हुए कहा|

मैं: मानु...और आपका?

मैंने हड़बड़ा कर उससे बेवकूफी भरा सवाल पुछा! जबकि उसका नाम अभी थोड़ी देर पहले ही ठाकुर साहब ने बताया था|

सुनीता: सुनीता!

ये कहते हुए वो मुस्कुराने लगी और मुझे मेरी ही बेवकूफी का एहसास हुआ!

मैं: कौन सी क्लास में पढ़ती हैं आप?

मैंने बात को संभालते हुए कहा|

सुनीता: जी ग्यारहवीं...और आप?

एक और बेवकूफी वाला सवाल! अब मैं भी क्या करता, मेरा दिमाग पहले से ही हिला पड़ा था! कहाँ तो मैं अपना ख़याली पुलाव खाना चाहता था और कहाँ मुझे एक अनजान लड़की के साथ एक आलिशान कमरे में भेज दिया गया था!

मैं: बारहवीं में...सब्जेक्ट्स क्या हैं आपके! मेरा मतलब विषय?

ये सुन सुनीता फिर से मुस्कुराई और बोली;

सुनीता: जी मैं समझ गई...कॉमर्स|

उसने मुस्कुराते हुए ही जवाब दिया| मैंने मन ही मन सोचा की इसे अंग्रेजी आती है...वाओ! जब से मैं गाँव आया था तब से सिवाए भौजी और डॉक्टर साहब के कोई मुझे नहीं मिला जो अंग्रेजी जानता हो| ऐसे में एक और शक़्स को मिल कर थोड़ा अच्छा लगा, वरना मैं तो अपना शहर भूलने ही लगा था!

मैं: cool!

मुझे नहीं पता था की मैं आगे क्या कहूँ, इसलिए मैंने छोटा सा जवाब दिया और फिर सुनीता के टेबल पर पड़ी उसकी एकाउंट्स की किताब उठा ली, इतने में सुनीता ने मुझसे पुछा;

सुनीता: और आपके?

मैं: कॉमर्स!

मैंने संक्षेप में जवाब दिया और अपना ध्यान उसकी किताब में लगा दिया| एकाउंट्स मेरा शुरू से ही मनपसंद विषय रहा है, ग्यारहवीं की T.S. Grewal मेरी मनपसंद किताब थी| आज इतने महीनों बाद उसे देख उसे फिर से पढ़ने का मन किया तो मैं उसी किताब के सुंदर पन्नों में व्यस्त हो गया| करीब 5 मिनट तक मैं उस किताब को बड़ी हसरत से देखने लगा, फिर मुझे एहसास हुआ की इस तरह मौन रहना ठीक नहीं| तो मैंने बात शुरू करने के इरादे से सुनीता से आँख से आँख मिलाते हुए पुछा:

मैं: तो कौन सा सब्जेक्ट बोरिंग लगता है आपको?

सुनीता: जो आपके हाथ में है|

मेरा ध्यान सुनीता की बात पर कम और उसके ऊपर ज्यादा था| अब जा कर मैंने उसे ठीक से देखा था, दिखने में वो बड़ी ही सीधी-सादी थी| फूलों वाला पीले रंग का सूट पहने, बालों में दो छोटी किये हुए, हसमुख सा चेहरा! खैर चूँकि मैं अवाक सा उसे देख रहा था तो उसने मेरा ध्यान भंग किया और इशारे से मेरे हाथ में रखी किताब की तरफ किया तब जा कर मुझे समझ आया|

मैं: एकाउंट्स? This is the easiest subject.

मैंने खुद को संभालते हुए कहा|

सुनीता: That's because you're good in it.

सुनीता ने अपने दोनों हाथ सामने की ओर बाँधते हुए कहा|

मैं: आपको बस Debit - Credit की चीजें पता होनी चाहिए| इसका बहुत ही आसान तरीका है, All you've to do is remember the golden rules of accounting:

1. Debit what Comes in and Credit what goes out!

2. Debit the receiver and credit the giver!

3. Debit all Expenses and Losses and Credit all Incomes and Gains!

मैंने अपना ध्यान किताब की ओर लगाते हुए कहा|

सुनीता: Easy for you to say!

उसने मुँह बनाते हुए कहा|

उसका मुँह बना देख मैं हँस पड़ा और वो भी मेरे संग हँस पड़ी| हमारी इस हँसी ने हमारे बीच में जो थोड़ी बहुत झिझक थी उसे खत्म कर दिया| अब चूँकि हम थोड़ा खुल चुके थे तो समय था अपने मन में उठ रहे सवाल का जवाब जानने का;

मैं: If you don't mind me asking, आपके पिताजी ने मुझे और आपको यहाँ अकेला भेज दिया है, कहीं यहाँ हमारी शादी की बात तो नहीं चल रही?

ये सुन सुनीता सन्न रह गई और बोली;

सुनीता: पता नहीं! पर मैं अभी शादी नहीं करना चाहती|

उसने घबराते हुए कहा|

मैं: मैं भी नहीं करना चाहता!!

उसकी बातों से साफ़ था की उसे इस सब के बारे में कुछ नहीं पता और ना ही वो शादी करने के पक्ष में है, ये जानकार मैंने राहत की साँस ली की ये बस मेरे मन का वहम था! मेरे इस सवाल से वो गंभीर हो गई थी तो मैंने उसका डर दूर करने के लिए इधर-उधर की बातें शुरू कर दी| मैंने उसकी हॉबी के बारे में पुछा तो उसने बताया की उसे 'गाना गाना' पसंद है| स्कूल से आ कर वो अपने घर की छत पर गाते हुए झूमती रहती है| इतने में ठकुराइन हम दोनों के लिए दूध ले आईं, मैं उस वक़्त सुनीता के स्टडी टेबल के पास खड़ा था और वो मुझसे 5 कदम दूर खिड़की के पास वाले दीवान के पास कड़ी थी| हमें खड़ा देख ठकुराइन बोलीं; "ओ लड़की, मेहमान का खड़ा रख के बतुआवा जात है? मुन्ना तुम बैठो और ई लिहो, दूध पियो|" उन्होंने मेरे सर पर हाथ फेरा और फिर बाहर चली गईं| उनके जाने के बाद हम दोनों फिर से स्कूल, सब्जेक्ट्स आदि विषयों पर पर बात करने लगे| बातों-बातों में पता चला की वो दिल्ली में ही पढ़ती है, मैंने भी उसे अपने स्कूल के बारे में बताया| उससे बातें करते हुए जो मैं उसके बारे में जान पाया वो ये था की, वो काफी हद्द तक मेरे टाइप की लड़की है| मतलब बातें काम करती है और हमारी बातों के दौरान उसने एक भी बार सेक्स, गर्लफ्रेंड, बॉयफ्रेंड आदि जैसे टॉपिक नहीं छेड़े| लेकिन मेरे दिल में उसके लिए कोई जज्बात नहीं थे और ना ही मन कुछ कह रहा था, दिल तो मैं पहले ही भौजी को दे चूका था| हाँ सुनीता से दोस्ती करने का मन जर्रूर कर रहा था, आजतक मैंने कोई भी लड़की दोस्त नहीं बनाई थी! खैर अपना दूध खत्म कर हम दोनों बाहर आ गए और वापस अपनी-अपनी जगह बैठ गए| हमारे आने के बाद भी सब अपनी बातों में लगे रहे, ये बातें खेती-पाती को ले कर थी इसलिए हम दोनों ही खामोश सर झुका कर बैठे सब सुनते रहे| करीब एक घंटे बाद पिताजी ने विदा माँगी, हालाँकि ठाकुर साहब बहुत जोर दे रहे थे की हम भोजन कर के जाएँ पर पिताजी ने क्षमा माँगते हुए 'अगली बार' का वादा कर दिया| ठाकुर साहब बातों से तो मुझे नरम दिखाई दिए, इसके आगे का मैं उनके बारे में कुछ नहीं जान सका और वैसे भी मुझे क्या करना था उन्हें जान के|

घर पहुँचे तो नेहा के स्कूल छूटने का समय हो गया था, इसलिए मैं उसे लेने चल दिया| स्कूल की घंटी बजी और नेहा भागती हुई आई, मैंने उसे गोद में ले कर खूब दुलार किया| जैसे सुबह मैं नेहा के गाल चूमते हुए उसे स्कूल छोड़कर आया था, वैसे ही उसके गाल चूमते हुए मैंने उस घर ले कर आया| मुझे नेहा को चूमते हुए देख भौजी मेरे पास आईं और प्यार भरा ताना मारते हुए बोलीं; "कभी हमें भी ऐसे प्यार कर लिया करो?" ये सुन नेहा भौजी को जीभ चिढ़ाने लगी, वो जानती थी की मैं सबसे ज्यादा उसे प्यार करता हूँ| नेहा की जीभ चिढ़ा कर भौजी को प्यार भरा गुस्सा आया और वो बोलीं; "इधर आ...तुझे बताऊँ मैं!" ये सुन नेहा छटपटाई और मैंने उसे नीचे उतार दिया, वो 7-8 कदम दूर भागी और फिर पीछे मुड़ कर भौजी को जीभ चिढ़ाने लगी| भौजी एकदम से उसके पीछे भागीं और दोनों माँ-बेटी घर में घुस गईं| कुछ देर बाद भौजी नेहा के कपडे बदल कर बाहर ले आईं, बाहर आते ही नेहा मेरी गोद में चढ़ गई| वरुण को आज रसिका भाभी ने बहुत डाँटा था, इसलिए वो मेरे पास नहीं आ रहा था बस छप्पर के नीचे तखत पर बैठा मुझे आस भरी नजरों से देख रहा था| मैंने उसे इशारे से बुलाया तो वो डर के मारे अपनी माँ को देखने लगा, मैंने नेहा को गोद से उतरा और उसे बैट-बॉल लाने को कहा| मैं छप्पर के नीचे आया और वरुण को गोद में लेने को अपने हाथ खोले तो रसिका भाभी उसे आँख दिखाते हुए बोलीं; "वरुण!" उनकी गुर्राहट सुन वो सर झुका कर बैठा रहा और मेरी गोद में नहीं आया| भौजी रसोई में घुसने ही वालीं थीं की उन्होंने रसिका भाभी का ये तमाशा देखा तो वो उन पर गुस्से चिल्लाईं; "काहे सुबह से ऊ (वरुण) का डाँटत है? वरुण जा अपने चाचा के पास, हम देखित है कौन तोहका रोकत है!" भौजी की झाड़ सुन रसिका भाभी गुस्से में उठ कर चली गईं| वरुण अपनी काकी (भौजी) की शाय पा कर तख़्त पर उठ खड़ा हुआ और मेरे सीने से लग कर रो पड़ा| मैं उसकी पीठ पर हाथ फेरने लगा ताकि वो चुप हो जाए, इतने में नेहा आ गई और जब उसने अपने छोटे भाई को रोते हुए देखा तो वो भी तख़्त पर कड़ी हो गई और उसके पीठ सहलाने लगी और बोली; "चुप हुई जाओ भैया!" मैंने दोनों बच्चों को एक साथ गोद में लिया और टहलते हुए दूकान आ गया, नेहा को चिप्स और वरुण को चॉकलेट दिलाई और फिर घर लौट आया| दोनों बच्चे पहले की तरह हँसने लगे थे और चॉकलेट तथा चिप्स बाँट कर खा रहे थे| बीच-बीच में दोनों चॉकलेट और चिप्स का एक-एक पीस मुझे भी खिला देते थे|

खाने का समय हुआ हम तीनों, पिता, पुत्री और भतीजे ने एक साथ खाना खाया| अब समय था पिताजी से अपने मतलब की बात करने का, मैंने दोनों बच्चों को चारपाई पर बिठाया और उन्हें वहीं बैठने को कहा, फिर मैंने भौजी को इशारे से अपने पास बुलाया; "याद है न सुबह मैंने क्या कहा था?" भौजी ने हाँ में सर हिलाया| "आप यहीं बच्चों के पास बैठों और यहाँ से उठ कर मत जाना, जब मैं बुलाऊँ तब भी आना| इतना कह मैं पिताजी जहाँ बैठे थे उस ओर चल दिया|

पिताजी और बड़के दादा एक चारपाई पर बैठे बातें कर रहे थे, उन्हें बीच में टोक नहीं सकता था इसलिए मैं भी वहीं बैठ गया| अब पिताजी समझ तो चुके थे की कोई बात अवश्य है पर मेरे कहने का इन्तेजार कर रहे थे| करीब पाँच मिनट बाद बड़के दादा को कोई बुलाने आया और वो चले गए, मैं और पिताजी अकेले बैठे थे इसलिए यही सही समय था बात करने का;

मैं: पिताजी....वो...आपकी मदद चाहिए थी?

मैंने संकुचाते हुए कहा|

पिताजी: हाँ बोल?

मैं: वो पिताजी....मैंने किसी को वादा कर दिया है|

ये सुन पिताजी एकदम से चौंक गए;

पिताजी: कैसा वादा? और किसको कर दिया तूने वादा?

उन्हें लगा की मैंने कहीं किसी को ऐसा-वैसा वादा तो नहीं कर दिया, इसलिए वो थोड़ा चिंतित नजर आये| मैंने फ़ौरन भौजी की तरफ ऊँगली से इशारा करते हुए कहा;

मैं: जी....मैंने उनको वादा किया है की मैं उन्हें और नेहा को अयोध्या घुमाने ले जाऊँगा, अकेले नहीं आपके और माँ के साथ|

पिताजी के सामने मुझे भौजी को भौजी न कहना पड़े, इसीलिए मैंने उन्हें आंगन में बच्चों के पास बिठाया था|

पिताजी: अच्छा तो?

पिताजी मुस्कुराते हुए बोले|

मैं: अब अकेले तो मैं जा नहीं सकता, तो आप ही प्लान बनाइये ना? प्लीज ...प्लीज.... प्लीज!!!

मैंने पिताजी को बाल्टी भर के मक्खन लगाया| पिताजी मेरे इतना मक्खन लगाने से पिघल गए ओर हँसते हुए बोले;

पिताजी: ठीक है, पर पहले अपनी भौजी को बुला, उससे पूछूँ तो सही की तू सच बोल रहा है या झूठ?

मैंने तो पहले से ही सारी तैयारी कर रखी थी, मैंने पिताजी के पास से ही बैठे हुए भौजी को हाथ के इशारे से अपने पास बुलाया| भौजी तो पहले से ही घूंघट काढ़े मुझे ही देख रही थी, जैसे ही मैंने इशारा किया वो तुरंत उठ कर आ गईं;

पिताजी: बहु मैंने सुना है की लाडसाहब ने तुम्हें वादा किया है की वो तुम दोनों माँ-बेटी को अयोध्या घुमाने ले जायेगा, ये सच है?

भौजी पिताजी की बात सुन कर हैरान हुई, वो तो घूंघट था इसलिए पिताजी उनके हाव-भाव नहीं पढ़ पाए|

भौजी: जी....पिताजी|

भौजी ने थोड़ा डरते हुए कहा| पिताजी का शक दूर हो गया था, इसलिए वो मेरी ओर देखते हुए मुस्कुरा कर बोले;

पिताजी: ठीक है बहु, हम सब कल जायेंगे| सुबह सात बजे तैयार रहना|

पिताजी की बात सुन भौजी चुप-चाप चलीं गईं| पर जाते-जाते मुड़ के मेरी ओर घूंघट काढ़े एक बार देखा जैसे पूछ रहीं हों की ये हो क्या रहा है? परन्तु ये समय उन्हें सब बताने का नहीं था, बल्कि मेरे प्लान के सबसे जर्रूरी हिस्से के लिए पिताजी को राजी करने का था|

मैं: पिताजी मैंने पता किया था की वहाँ घूमने के लिए बहुत सी जगहें हैं, कई घाट हैं और बहुत से मंदिर हैं| आप ही कहा करते थे की अयोध्या 14 कोस में फैला हुआ है, तो ऐसे में एक दिन में तो सब कुछ देख नहीं पाएंगे...तो हमें एक रात stay यानी रुकना होगा!

मैंने बड़े उत्साह से कहा|

पिताजी: ह्म्म्म्म्म... आजकल बहुत कुछ पता करने लगा है तू?

पिताजी मुझे चिढ़ाते हुए बोले| मैं झेंप गया और वहाँ से शर्मा कर भाग आया| अब सारा प्लान सेट था, हम रात वहाँ रुकेंगे, तीन कमरे बुक होंगे, एक में पिताजी और माँ, एक मेरा कमरा तथा एक कमरे में भौजी संग नेहा| रात को सब को सोने के बाद मेरा फुल चाँस भौजी के साथ रात गुजारने का| वो पूरी रात हम जी भर कर एक दूसरे को प्यार कर सकेंगे और मुझे आधी रात को उठ कर जाना भी नहीं पड़ेगा| इस तरह से भौजी की wish भी पूरी हो जाएगी और ये यादगार रात हमारे जीवन की सबसे हसीं रात होगी| लेकिन मुझे भौजी को इस रात रुकने की बात के बारे में भौजी को कुछ भी नहीं बताना था|

मैं नहीं जानता था की किस्मत को कहानी में कुछ और ही ट्विस्ट लाना है, ऐसा ट्विस्ट जो मुझे मेरी ही कमियों, मेरे अति आत्मविश्वास को मेरे सामने ला खड़ा करेगा|

मैं वापस आ कर बच्चों के पास बैठा खेल रहा था की भौजी ने मुझे इशारे से अपने घर के भीतर बुलाया| मैं सबकी नजर बचा कर उनके घर में घुसा तो देखा की भौजी आंगन में अपनी कमर पर दोनों हाथ रखे खड़ी हैं;

भौजी: आप जरा ये बताने का कष्ट करेंगे की अभी-अभी जो पिताजी ने कहा वो क्या था? आपने कब मुझसे वादा किया?

भौजी ने प्यार भरे गुस्से से पुछा;

मैं: यार मैं आपको और नेहा को घुमाना चाहता था, तो मैंने थोडा से जूठ बोला| That's it!!

भौजी ने मेरी आधी-अधूरी बात पर यक़ीन कर लिया|

भौजी: ओह्ह्ह्ह! तो ये सरप्राइज था!!! पर आपने ठीक नहीं किया, खुद भी माँ-पिताजी से जूठ बोला और मुझसे भी जूठ बुलवाया|

भौजी ने रूठते हुए कहा| मैं उनके नजदीक गया और उन्हें अपने सीने से लगाते हुए बोला;

मैं: यार कहते हैं ना, everything is fair in Love and War!!!

ये कहते हुए मैंने उन्हें कस कर अपने से चिपका लिया| मेरे जिस्म से लगते ही भौजी पिघलने लगीं पर मौके की नजाकत थी की हम इस वक़्त कुछ कर नहीं सकते थे!

दूसरी ओर पिताजी ने बड़के दादा, बड़की अम्मा और माँ से हमारे कल अयोध्या जाने की बात कर ली थी| पिताजी ने कोशिश की कि सारे चलें पर बड़के दादा और बड़की अम्मा ने मना कर दिया| इधर मैंने भौजी से थोड़ा बात घुमा कर ये कह दिया कि वो एक तौलिया और एक जोड़ी कपडे ले लें ताकि अगर घाट पर नहाना हो तो वो कपडे बदल सकें, उधर घर पर भी माँ ने हम तीनों के एक-एक जोड़ी कपडे ले लिए थे| कल का सरप्राइज खराब न हो, इसलिए मैंने भौजी को बड़े प्यार से समझाया की आज रात मैं और वो अलग-अलग सोयेंगे| ये सुन वो थोड़ा मायूस हुई पर फिर मैंने उन्हें कल मंदिर जाने का तर्क दिया तो वो जैसे-तैसे मान गईं|

शाम हुई और दोनों बच्चे मेरे साथ आँख में चोली खेलने लगे| अभी तक मैंने नेहा को जाने कि बात नहीं बताई थी, वरना वरुण भी जाने कि जिद्द करता| मुझे वरुण को साथ ले जाने में कोई दिक्कत नहीं थी, दिक्कत ये थी की उसके साथ चलने से मेरे और भौजी के प्रेम मिलन में बाधा आ जाती, इसलिए मैंने उसे न लेजाने का फैसला किया था| रात का खाना खा कर मैं आज पिताजी और बड़के दादा के पास सोया था| मेरे पास ही नेहा और वरुण दोनों लेटे थे, वरुण मेरी दाईं बगल लेटा और नेहा मेरी छाती पर सर रख कर लेटी थी| कहानी सुनते-सुनते वरुण तो सो गया पर नेहा अभी नहीं सोइ थी; "बेटा आपको पता है कल न हम अयोध्या घूमने जा रहे हैं|" ये सुन नेहा उठ कर बैठ गई, उसके चेहरे पर प्यारी सी मुस्कान और दिल में ढेर सारी खुशियों कि फुलझड़ी छूटने लगी थीं| घूमने कि बात से वो इतनी खुश हुई कि उसने मेरे दोनों गालों पर पप्पियों कि बारिश कर दी| फिर मैंने उसे वहाँ देखने लायक सभी जगह के बारे में बताया तो वो बड़े गौर से मेरी बात सुनने लगी| नेहा खुश हो कर मेरी छाती से चिपक गई और मुस्कुराते हुए सो गई|

अगली सुबह 5 बजे मैं सम्भल कर उठा, नेहा अभी तक मेरी छाती पर चढ़ सो रही थी| जब पिताजी ने ये दृश्य देखा तो वो मुस्कुराते हुए मेरे पास आये और बोले; "बेटा रातभर ऐसे ही सोया था?" मैंने नेहा के सर को चूमा और बोला; "पिताजी ये मेरी लाड़ली बिटिया मेरे सीने पर सर रख कर सो गई, फिर मन नहीं किया की इसे उठा दूँ!" ये सुन पिताजी ने मेरे सर पर हाथ फेरा और मुझे तैयार होने को कहा| मैंने नेहा को ले कर भौजी के घर जा रहा था तभी भौजी मुझे खेतों से आती हुई दिखाई दीं| मुझे जल्दी उठा हुआ देख वो मुस्कुराने लगीं| मैंने नेहा के सर को 2-3 बार चूमा और नेहा की नींद खुल गई; "बेटा उठ जाओ आज घूमने जाना है न?!" ये सुनते ही नेहा की नींद काफूर हो गई और उसने मेरे दोनों गालों पर एक-एक पप्पी दी, तथा तैयार होने चली गई| पौने सात तक सारे तैयार हो चुके थे, जैसे ही मैं अपने कपड़े पहन और बैग उठा कर भौजी के घर के बाहर आया की तभी भौजी सर पर पल्ला किये हुए बाहर निकलीं| उन्हें सजा-संवरा देख मेरी आँखें उन्हीं पर तहर गईं, मुँह खुला रह गया और दिल जोरों से धड़कने लगा| सूती नारंगी रंग की साड़ी, माथे पर लाल रंग की बिंदी, माँग में लम्बा खींचा हुआ सिन्दूर, होठों पर मैरून रंग की लिपस्टिक, गले में मेरा पहनाया हुआ वो मंगलसूत्र तथा हाथों में प्लास्टिक की दो लाल चूड़ियां जैसी अगल-बगल सोने का पानी चढ़े हुए दो कंगन|










भौजी की सुंदरता ने मुझे मोहित कर दिया था, उधर भौजी भी मुझे तैयार देख आँखें ठंडी करने में लगी थीं| मैंने एक लाल रंग की चेक शर्ट और जीन्स पहनी थी तथा पाँव में लोफ़र्स पहने थे|




"हाय!" भौजी ने ठंडी आह भरी तो मेरी तंद्रा भंग हुई| मैं आगे कुछ कहता उससे पहले ही मेरी लाड़ली दौड़ती हुई आ गई| अपनी माँ की ही तरह वो बहुत सूंदर लग रही थी, उसने आज एक सफ़ेद रंग की फ्रॉक पहनी थी जिसमें रंग-बिरंगी फूलों की पत्तियाँ बनी हुई थी| मैंने नेहा को गोद में उठाया और भौजी से बोला; "यार आप मान क्यों नहीं जाते? भाग चलो मेरे साथ, आपको इस तरह देखता हूँ तो मन बेईमान हो जाता है!" ये सुन भौजी लजाने लगीं, इतने में नेहा तपाक से बोल पड़ी; "हाँ मम्मी चलो न! आप मैं और पापा एकसाथ रहेंगे!" उसकी बात सुन मैं हँस पड़ा और भौजी ने उसकी पीठ पर प्यार से चपत लगाई और बोलीं; "चुप कर!" ये सुन नेहा भी खिलखिला कर हँसने लगी| "और आप भी इसके सामने ये सब मत बोला करो!" भौजी ने मुझे प्यार से डाँटा तो मैंने अपना एक कान पकड़ कर उन्हीं सॉरी बोला| मैंने नेहा को गोद में ले कर अभी पलटा ही था की भौजी पीछे से बोलीं; "वैसे भागने का आईडिया बुरा नहीं है!" ये सुन मैंने कदम से पलटा और हम तीनों ठहाका लगा कर हँसने लगे| "वैसे आप कुछ भूल नहीं रहे?" भौजी ने कहा और उनकी आँखों को देखते ही मैं समझ गया की उनका मतलब क्या है| "चलो भीतर!" इतना कह कर मैंने नेहा को गोद से उतारा और उसे बड़े घर भेज दिया| भौजी ने भी इधर-उधर देखा की हमें कोई अंदर जाते हुए न देख ले और फिर एकदम से अंदर आ गईं| उनके अंदर आते ही मैंने उन्हें कस कर अपने सीने से लगा लिया और उनकी आँखों में देखते हुए अपनी गुड मॉर्निंग वाली kiss की माँगी की| भौजी ने दोनों हाथों से मेरा चेहरा थामा और मेरे गाल पर एक छोटा सा kiss किया| "ये क्या? इतना छोटा सा kiss?" मैंने शिकायत करते हुए कहा| "आज मंदिर जा रहे हैं ना? कल सुबह आपको एक जबरदस्त वाली गुड मॉर्निंग वाली kiss दूँगी!" भौजी नहीं जानती थीं की कल सुबह उनकी मेरे ही पहलु में होगी!

तभी नेहा दौड़ी-दौड़ी आई और मुझे अपने साथ बड़े घर ले आई, वहाँ पहुँच माँ ने मुझे संभालने के लिए हजार रूपए दिए| दरअसल मेरी माँ कुछ ज्यादा ही सोचती हैं, जब भी हम किसी भीड़ भाड़ वाली जगह जाते हैं तो वो आधे पैसे खुद रखतीं हैं, आधे पिताजी को देती हैं और थोड़ा बहुत मुझे भी देती हैं, ताकि अगर कभी जेब कटे तो एक की कटे!! खैर अब घर से निकलने का समय हो रहा था, घडी सवा सात बजा चुकी थी तो हमने सबसे विदा ली और प्रमुख सड़क की ओर चल पड़े| माँ-पिताजी आगे-आगे थे, मैं और भौजी पीछे-पीछे थे| मेरी लाड़ली नेहा मेरी गोद में थी और सब से ज्यादा खुश वही थी| हम प्रमुख सड़क पर पहुँचे और वहाँ से जीप की जिसने हमें बाजार छोड़ा| वहाँ से दूसरी जीप की जिसने हमें अयोध्या छोड़ा, कुल मिला के हमें अयोध्या पहुँचने में दो घंटे का समय लगा| वहाँ पहुँच सब से पहले हम मंदिरों में घूमे, वहाँ बहुत भीड़-भडाका था तो मैंने नेहा को कस कर पकड़ रखा था, फिर मैंने नेहा को वहाँ की कथाओ के बारे में बताया जिसे भौजी भी बड़ी गौर से सुन रहीं थीं| जब से स्कूल में संक्षिप्त रामायण पढ़ी थी तब से ही मेरी अयोध्या घूमने में बड़ी रूचि थी|

घूमते-घूमते भोजन का समय हो गया, वहाँ एक ढंग का रेस्टुरेंट था जहाँ हम सब खाना खाने बैठ गए| टेबल पर हम इस प्रकार बैठे थे; एक तरफ माँ और पिताजी और दूसरी तरफ मैं, नेहा और भौजी| खाना आर्डर मैंने किया ओर आर्डर करते समय मैं नेहा से पूछ रहा था की उसे क्या खाना है, पिताजी मेरा बचपना देख हँस रहे थे| खाना आया और मैं नेहा को अपने हाथ से खिलाने लगा, भौजी ने घूंघट के नीचे से इशारे में मुझे कहा की वो नेहा को खाना खिला देंगी पर मैंने गदर्न न में हिला कर उन्हें मना कर दिया| घूँघट किये हुए भौजी के लिए खाना खाना बहुत मुश्किल था, इसलिए माँ उनसे बोलीं;

माँ: बहु घूंघट कर के कैसे खायेगी? सर पर पल्ला कर ले और आराम से खा|

पर भौजी पिताजी की शर्म कर रहीं थीं इसलिए कुछ बोलने से हिचक रही थीं|

पिताजी: देख बहु तू तो बेटी समान है|

पिताजी की बात को भौजी कैसे मना करतीं, उन्होंने घूंघटता लिया और सर पर पल्ला किये, नजरें झुकाये खाना खाने लगीं| अभी खाना चल ही रहा था की मैंने होटल की बात छेड़ दी;

मैं: पिताजी इस रेस्टुरेंट के सामने ही होटल है, चल के वहाँ कमरों का पता करें?

कमरों की बात सुन भौजी के दिल में तरंगे उठने लगीं, शायद वो मेरा पूरा सरप्राइज समझ चुकी थीं लेकिन फिर पिताजी ने कुछ ऐसा कहा की हम दोनों के पेट में उठ रही तितलियाँ एकदम से मर गईं!

पिताजी: नहीं बेटा हम यहाँ नहीं रुकेंगे|

पिताजी की बात सुन मैं अवाक रह गया और उनसे तर्क करने लगा;

मैं: पर क्यों? अभी तो बहुत कुछ देखना बाकी है?

परन्तु मेरे इस तर्क का उनपर कोई असर नहीं पड़ा|

पिताजी: फिर कभी आ जायेंगे!

ये कह कर उन्होंने मेरे ख़याली पुलाव वाला पतीला उल्टा कर दिया! मेरी हालत ऐसी थी मानो जैसे किसी ने मस्ती से तैरती हुई मछली को निकाल कर जलते तवे पर छोड़ दिया हो! मैं उस बेचारी मछली की भाँती मन ही मन छटपटा रहा था और पिताजी को दोष दे रहा था| अगर उन्हें रुकना ही नहीं था तो वो कल ही मुझे कह देते, कम से कम मैं इतने अरमान तो न ले कर आता यहाँ! ऐसा पहलीबार नहीं था की पिताजी ने मेरे अरमान कुचल दिए हों, पहले भी कई बार वो वादा कर के तोड़ दिया करते थे और मैं मन मसोस कर रह जाता था| मेरा सारा प्लान फ्लॉप हो चूका था, मन में बहुत गुस्सा भर आया था और मन कर रहा था की अभी भौजी को लेके भाग जाऊँ! मैंने सारा खाना अपनी बेटी को खिला दिया और खुद भूखा ही अपने गुस्से की आग में जलने लगा| वहीं भौजी मेरे चेहरे पर उड़ रहीं हवाइयाँ समझ चुकीं थीं, पर माँ-पिताजी की मौजूदगी के कारन खामोश थीं|

लेकिन मेरी किस्मत मुझे सबक सिखाने के लिए पूरी तरह तैयार थी|

खाना खा कर हम रेस्टुरेंट से निकले, धुप ज्यादा थी तो पिताजी ने कहा की चल कर घाट पर बैठते हैं| घाट की सीढ़ियों पर सारे बैठ गए, लेकिन मेरा तो मन उचाट हो गया था| अब तो मेरी ये उदासी नेहा ने पढ़ ली थी, उसने अपने नन्हे-नन्हे हाथों से मेरा चेहरा थामा और अपनी नाक मेरी नाक से रगड़ने लगी| उसका ऐसा करने से मेरे चेहरे पर मुस्कान आ गई, मैंने उसके दोनों गाल को चूम उसे प्यार किया| फिर मैं उसे गोद में ले कर उठ गया और टहलते-टहलते कुछ दूर आ गया| पिताजी ने पीछे से बहुत आवाजें दी पर मैंने गुस्से में आ कर उन्हें अनसुना कर दिया और चलते-चलते करीब 15 मिनट दूर आ गया| फिर वहाँ से चक्कर लगा कर जब लौटा तो पिताजी ने बहुत डाँटा पर उनकी इस डाँट का मुझ पर रत्ती भर फर्क नहीं पड़ा| मेरे इस आधे घंटे के टहलने से समय काफी बर्बाद हुआ था, तभी पिताजी ने एक मंदिर की ओर जाने का निर्णय लिया ओर हम सब उनके पीछे-पीछे चलने लगे| माँ-पिताजी आगे थे तो भौजी को मुझसे बात करने का मौका मिल गया; "क्यों गुस्सा हो रहे हो?" भौजी ने मेरा दायाँ हाथ पकड़ते हुए कहा| मैंने उनकी बात का कोई जवाब नहीं दिया, क्योंकि मैं गुस्से से भरा हुआ था और उनपर अपना गुस्सा नहीं निकालना चाहता था| भौजी मेरा गुस्सा महसूस कर पा रहीं थीं पर मेरा गुस्सा कम करने को कुछ कर नहीं सकती थीं| हम मंदिर पहुँचे, जूते-चप्पल उतार के हमने दर्शन किये और वापस आ कर पिताजी ने घर चलने के लिए कहा| मंदिर से बस/जीप स्टैंड करीब २० मिनट दूरी पर था, माँ-पिताजी आगे-आगे चल रहे थे और मेरे पैर मुझे वापस ले जाना ही नहीं चाहते थे| इसीलिए मेरी चाल बहुत धीमी हो गई थी, मन कह रहा था जितना टाइम भी हम बाहर रहे उतना अच्छा| अब जाहिर था की मेरी चाल धीमे होने से भौजी को भी धीरे चलना पड़ रहा था, वहीं नेहा जो मेरी गोद में थी वो अपनी गर्दन घूमा-घूमा कर आस-पास लोगों को और गाड़ियों को देख रही थी| "जल्दी चल भई, घर नहीं जाना?" पिताजी पीछे मुड़ कर बोले| उन्हें लगा था की मैं और भौजी बातें करते हुए आ रहे हैं इसलिए हम धीरे चल रहे हैं| अभी तक उन्होंने मेरा सड़ा हुआ चेहरा नहीं देखा था, वरना वो आज अच्छे से झाड़ सुनाते!

उसी दिन वाराणसी में 'संकट मोचन हनुमान मंदिर' और उसके आस-पास बम धमाका हुआ था, अयोध्या से वाराणसी की दूरी यही कोई चार घंटे के आस-पास की होगी, रेल से तो ये और भी काम है| वहाँ जब ये घटना घटी तो उसका सेंक अयोध्या तक आया, खबर फ़ैल गई की वाराणसी में बम धमाका हुआ है और इसके चलते अनेक श्रद्धालु भड़क गए जिस के चलते अयोध्या में चौकसी बढ़ा दी गई| पुलिस ने सबकी चेकिंग शुरू कर दी, भगदड़ के हालत बनने लगे, तभी किसी बेवकूफ ने बम की अफवाह फैला दी| ये अफवाह फैलते ही भीड़ को रोक पाना मुश्किल हो गया, हम जहाँ थे वहाँ भी एक मंदिर था और वहाँ के हालत पलभर में ही बेकाबू हो गए, जितने भई लोग मंदिर में थे या दर्शन कर के आये थे सब एक झुण्ड में दौड़ पड़े| हल्ला मचा, शोर मचा और इस मेरी बेटी बहुत डर गई तथा अपना चेहरा मेरे कंधे पर रख रोने लगी| "बस बेटा, घबराते नहीं! पापा है न आपके साथ!" नेहा को चुप कराने के कारन हमारे और माँ-पिताजी के बीच फासला बढ़ता चला गया| पीछे से आये भीड़ के सैलाब ने हमें अलग कर दिया, फासला इतना भी नहीं था क्योंकि मैं उन्हें कुछ दूरी पर दिक्घ पा रहा था| अगर मैं चाहता तो हम तीनों भीड़ के बीच से निकल कर माँ-पिताजी से वापस मिल सकते थे, पर नाजाने मुझ पर क्या सनक सवार हुई की मैंने भौजी का हाथ कस कर पकड़ लिया और मैं धीरे-धीरे पीछे कदम बढ़ाने लगा| पिताजी ने बड़ी मुश्किल से पीछे मुड़ कर मुझे देखा, उन्हें लगा की भीड़ के बहाव के कारन मैं उनसे दूर होता जा रहा हूँ| वो नहीं जानते थे की मेरे दिमाग में अलग ही सनक चल रही थी, मुझे बस मेरा प्लान successful करना था और कुछ नहीं| इधर भौजी परेशान हो कर मेरा मुँह ताक रहीं थीं, क्योंकि वो भी नहीं समझ पा रहीं थीं की भला मैं क्यों उन्हें आगे ले जाने के बजाए पीछे की ओर कदम बढ़ा रहा हूँ?! हमारे पीछे से भीड़ का एक बहुत बड़ा सैलाब आ रहा था, जैसे ही मैंने उस भीड़ को देखा तो मैंने भौजी का हाथ पकड़ा ओर एक संकरी सी गली में घुस गया| तेजी से चलते हुए हमने वो गली पार की, गली पार कर मैं इधर-उधर देखते हुए कुछ सोचने लगा तभी भौजी ने घबराते हुए सवाल किया;

भौजी: माँ-पिताजी तो आगे रह गए?

मैं: हाँ!

मैंने बिना उनकी तरफ देखे ही कहा| आस-पास सब घर ही थे, सिवाए आगे जाने के और कोई रास्ता नहीं था सो हम आगे बढ़ चले| कुछ दूर पर मुझे कुछ होटल और धर्मशाला के बोर्ड नजर आये तो मैंने भौजी का हाथ पकड़ कर उस ओर जाने का इशारा किया| मुझे लगा था की यहाँ हम सुरक्षित रहेंगे पर तभी एक जवान लौंडों का झुण्ड लठ ले कर उस गली में घुसा| हमारे सामने जो सबसे पहला होटल पड़ा मैंने उसका शटर पीटना शुरू कर दिया पर किसी ने नहीं खोला, मैंने एक बार पलट के उस झुण्ड को देखा तो वो काफी नजदीक आ चूका था| ये दृश्य देख मेरी हालत ख़राब हो गई, पर मैंने अपने हाथ-पैर फूलने नहीं दिए और भौजी का हाथ पकड़ के दूसरे होटल की तरफ दौड़ा| नेहा मेरी घबराहट समझने लगी थी इसलिए वो रोने लगी थी, इधर मैंने दूसरे होटल का दरवाजा पीटा पर यहाँ भी किसी ने दरवाजा नहीं खोला, मैंने वहाँ एक सेकंड और बर्बाद नहीं किया और दौड़ कर तीसरे होटल के दरवाजे को गुस्से से पीटा और चिल्ला कर बोला; "दरवाजा खोला! ...हमारी मदद करो! मेरे साथ मेरे बीवी बच्चे हैं!" मेरे इस चिल्लाने का असर हुआ और एक बुजुर्ग से अंकल जी ने दरवाजा खोला और बोले; जल्दी अंदर आओ!" मैंने भौजी का हाथ थामा और हम उस होटल में घुस गए और अंकल जी ने फटाफट दरवाजा बंद कर लिया|

मैं: Thank You अंकल जी|

मैंने फूलती हुई सांस को काबू में किया और बोला;

मैं: हम यहाँ घूमने आये थे और अचानक भगदड़ में अपने माँ-पिताजी से अलग हो गए, क्या आपके पास फ़ोन है?

मेरी घबराई हालत देख उन्होंने मुझे फ़ोन दिया, तथा अपनी पत्नी को बोल कर पानी मंगवाया| भौजी ने नेहा को अपनी गोद में लिया और उसे पानी पिलाने लगीं, इधर मैंने तुरंत पिताजी का मोबाइल नंबर मिलाया|

मैं: पिताजी...मैं मानु बोल रहा हूँ|

मैंने घबराते हुए कहा| उधर मेरी आवाज सुन उनकी जान में जान आई और वो चिंतित होते हुए बोले;

पिताजी: बेटा...कहाँ है तू बेटा? ठीक तो है ना?

मैं अब फ़ोन ले कर थोड़ा दूर आ गया था;

मैं: पिताजी हमने यहाँ एक धर्मशाला में शरण ली है| आप लोग ठीक तो हैं ना?

मैंने जान बूझ आकर उन्हीं होटल की जगह धर्मशाला कहा|

पिताजी: हम ठीक हैं बेटा...भीड़ के धक्के-मुक्के में हम टैक्सी स्टैंड तक पहुँच गए और यहाँ पुलिस वाले किसी को रुकने नहीं दे रहे| उन्होंने मुझे और तेरी माँ को जीप में बिठा कर भेज दिया है| तु भी जल्दी से वहाँ से निकल!

पिताजी ने बहुत घबरा कर कहा|

मैं: पिताजी ....पूरी कोशिश करता हूँ पर मुझे यहाँ हालत ठीक नहीं लग रहे| भगवान न करे अगर दंगे वाले हालत हो गए तो हम तीनों फँस जाएंगे?.

मेरी बात सुन पिताजी और डर गए|

पिताजी: नहीं...नहीं...नहीं..तुम वहीं रुको और जैसे ही हालत सुधरें वहाँ से निकलो|

मैं: जी|

पिताजी: लेकिन बेटा निकलने से पहले फोन करना|

मैं: जी जर्रूर|

बस इतनी ही बात हुई और फिर फ़ोन काट गया क्योंकि पिताजी के फ़ोन की बैटरी खत्म हो गई थी| मैं फ़ोन ले कर अंकल जी के पास लौटा और उनसे बोला;

मैं: अंकल जी आपका बहुत-बहुत शुक्रिया, आपने ऐसे समय पर हमारी मदद की!

मैंने हाथ जोड़ कर उनका शुर्किया अदा किया|

बुजुर्ग अंकल: अरे बेटा मुसीबत में मदद करना ही तो इंसानियत का धर्म है|

मैं: अच्छा अंकल जी, कल सुबह तक यहाँ कमरा मिलेगा?

बुजुर्ग अंकल: हाँ ..हाँ जर्रूर| ये लो रजिस्टर और अपना नाम पता भर दो|

अंकल जी ने मेरी तरफ अपने होटल का रजिस्टर बढ़ा दिया| मैंने रजिस्टर में Mr. and Mrs. मानु मौर्या लिखा और पता अपना दिल्ली वाला लिखा|

आंटी: और इस प्यारी सी गुड़िया का नाम क्या है?

उन्होंने नेहा की तरफ इशारा करते हुए पुछा|

मैं: जी नेहा!

आंटी ने नेहा के गाल को छु कर अपनी उँगलियाँ अपने होठों पर रख कर उसकी पप्पी ली, इधर मेरी प्यारी गुड़िया जो अभी तक घबराई हुई थी वो हम मुस्कुराने लगी थी| उसने मेरे पास आने के लिए अपने हाथ खोल दिए और मैंने उसे अपनी छाती से लगा कर उसके सर को चूमा| बाप-बेटी का प्यार देख बुजुर्ग अंकल जी मुस्कुरा दिए और मुझे कमरे की चाभी दी| होटल का किराया 400/- था और मेरे पास माँ के दिए हुए 1,000/- रूपए थे| हमारा कमरा सेकंड फ्लोर पर था और एक दम कोने में था| जब हम कमरे में घुसे तो कमरे में एक सोफ़ा था, AC था, TV था और एक डबल बैड था| इतने साल बाद TV देख नेहा खुश हो गई, मैंने उसे कार्टून लगा के दिया, वो सोफे पर आलथी-पालथी मार के बैठ गई और मजे से कार्टून देखने लगी| मैं भी उसकी बगल में बैठ गया और अपने घुटनों पर कोहनी रख के अपना मुँह हथेलियों में छुपा के कुछ सोचने लगा|

हर इंसान के दो व्यक्तित्व (personality) होते हैं, एक अच्छी और एक बुरी| जब हम कोई फैसला लेते हैं तो इन्हें दोनों व्यक्तित्वों में से एक व्यक्तित्व वो फैसला लेता है| जो लोग मन से साफ़ होते हैं, जिन्होंने आज तक कोई गलत काम नहीं किया होता वो जब कोई गलत फैसला लेते हैं या ये कहें की उनका गलत व्यक्तित्व उनसे गलत फैसला करवाता है तो उनका अच्छा व्यक्तित्व एक बार उन्हें टोकता है! जो इस टोकने से सम्भल जाते हैं वो गलत काम करने से बच जाते हैं परन्तु जो अनसुना करते हैं वो बाद में बहुत पछताते हैं| कुछ ऐसा ही मेरे साथ हुआ, उस समय जब भगदड़ मची थी तब यदि मैं चाहता तो भौजी को उन हालातों से निकाल कर पिताजी तक पहुँच सकता था, परन्तु मेरे निजी स्वार्थ ने मुझे ऐसा नहीं करने दिया| इस वक़्त मैं अपने उसी फैसले पर अफ़सोस कर रहा था, जिन हालातों से मैं लड़कर भौजी और नेहा को अपने साथ इस होटल के कमरे तक लाया था वो ही मेरी परेशानी का सबब बन रहा था| मैंने अपने निजी स्वार्थ के चलते चार-चार जिन्दगियाँ दाव पर लगा दी थीं, माँ, पिताजी, भौजी और नेहा इनमें से अगर किसी को कुछ हो जाता तो मैं कभी खुद को माफ़ नहीं कर सकता था! माँ-पिताजी तो सुरक्षित घर पहुँच रहे होंगे पर नेहा और भौजी का क्या? अचानक ही मेरे अंतर्मन में एक जंग छिड़ गई, मेरा अहम् मेरे दिमाग के साथ मिल कर तर्क करने लगा की मैंने जो किया वो सही किया परन्तु मेरी अंतरात्मा जानती थी की मैंने जो किया वो कितना बड़ा पाप था!

अहम: क्या गलत किया मैंने? पिताजी से कहा था न रुकने को पर उन्हें तो मेरी बात न मानने में मजा आता है| बचपन में जब भी उनसे किसी खिलोने की माँग करता था तो पहले हाँ कहते और बात में टाल देते!

अंतरात्मा: क्या बचपना कर रहा है! खिलोने और असली जिंदगी में कोई फर्क है या नहीं?

अहम: तो क्या करता? प्यार करता हूँ उनसे (भौजी से) और फिर उन्होंने ही तो कहा था|

अंतरात्मा: उन्होंने (भौजी ने) बस एक इच्छा जाहिर की थी, ये नहीं कहा था की जान का खतरा मोल ले कर मेरी (भौजी की) ख्वाइश पूरी करो!

अहम: दिक्कत क्या है? पहुँच गए न हम होटल!

अंतरात्मा: कैसे पहुँचे वो जानता है न? फटी पड़ी थी तेरी कुछ देर पहले! क्या गारंटी है की कल सुबह तक सब ठीक हो जायेगा? अगर नहीं हुआ तो क्या करेगा तू? कहाँ जाएगा? कैसे संभालेगा अपने प्यार और अपनी बेटी को? बड़ा तीसमारखाँ बनता था न की मैं आपको (भौजी को) भगा कर ले जाऊँगा, जरा सी देर में तो तेरी हालत ख़राब हो गई और जीवन भर उन्हें अपने साथ रखने की बात करता है? आज तो माँ के दिए हुए पैसे हैं पर अगर भगा कर ले जाता तो क्या खिलाता उन्हें? कहाँ रखता? है कोई इन सवालों का जवाब तेरे पास?

इन शूल से पैने शब्दों ने मेरे अहम् को खतम कर दिया था, उस दिन मुझे सच में मेरी औकात पता चली थी! बातें करने और कर्म करने में बहुत फर्क होता है, बातें करने में बस जुबान चलती है और कर्म करने में मेहनत लगती है| वो दिन मेरी जिंदगी का ऐसा दिन था जिसने मुझे असली जिम्मेदारी लेने का मतलब सिखाया था|

इन ख्यालों ने मुझे तोड़ कर रख दिया था, मेरा गर्व और आत्मविश्वास सब चकना चूर हो चूका था| उस समय मुझे एक सहारा चाहिए था, जो मुझे वापस उठ कर खड़ा होने में मदद करे और वो सहारा मेरे पास ही मौजूद था|

भौजी कब दरवाजा बंद करके मेरे सामने बैठीं मुझे पता ही नहीं चला, क्योंकि मैं अपने आप से ही लड़ने में व्यस्त था| उन्होंने मुझे 3-4 बा पुकारा पर मैं कुछ नहीं बोला, हारकर वो मेरी बगल में बैठ गईं, उन्होंने अपना दायाँ हाथ मेरे बाएं कंधे पर रखा और मुझे अपनी ओर खींचा और मैं उनकी गोद में सर रख के एक पल के लिए लेट गया| उनकी गोद में सर रखते ही परेशान दिल को थोड़ा सकून मिला| उस वक़्त मैं भौजी से अपनी ये बेवकूफी छुपाना चाहता था, इसलिए मैंने दो मिनट में उठ बैठा और बात शुरू करते हुए उनसे बोला;

मैं: आप चाय लोगे?

पर भौजी ने मेरी दुखती रग पकड़ ली थी इसलिए वो मेरे झांसे में नहीं आईं और अपना सवाल किया;

भौजी: पहले आप बताओ की क्या हुआ आपको?

पर मैं वहाँ नहीं रुक सकता था, इसलिए मैं उठ खड़ा हुआ;

मैं: कुछ नहीं, मैं अभी चाय बोलके आता हूँ|

इतना कह के मैं दरवाजे की तरफ चल दिया|

भौजी: नहीं चाय रहने दो, रात को खाना खाएंगे|

मैं भौजी की ओर मुड़ा और नकली मुस्कान लिए बोला;

मैं: आप बैठो मैं अभी आया|

मैं कमरे से बाहर आया ओर लम्बी-लम्बी सांसें ली ताकि मैं अपनी ये घबराहट, ये डर भौजी से छुपा सकूँ| मेरी ये घबराहट देख मेरी पत्नी ओर बच्ची दोनों ही हिम्मत छोड़ देते और फिर मेरे लिए उन्हीं संभालना मश्किल हो जाता! मैं नीचे गया और दो कप चाय और ने के लिए एक गिलास दूध बोल आया, वापस कमरे में आके मैंने दरवाजा बंद किया और भौजी से दूर पलंग पर अकेला लेट गया|
 

[color=rgb(243,]सोलहवाँ अध्याय: पति का प्रेम![/color]
[color=rgb(41,]भाग - 3[/color]


[color=rgb(65,]अब तक आपने पढ़ा:[/color]

हम दोनों इसी तरह बात करते हुए घर पहुँचे, घर पर पहले से ही चहल-पहल मची हुई थी! पिताजी और बड़के दादा प्रमुख आंगन में ही बैठे थे और उनकी नजरें सड़क पर टिकी हुई थीं| जैसे ही भौजी ने उनको दूर से देखा, उन्होंने फ़ौरन डेढ़ हाथ का घूँघट काढ़ लिया|

[color=rgb(184,]अब आगे:[/color]

जैसे ही मैं और भौजी घर के आंगन में दाखिल हुए की पिताजी ने अपनी बाहें फैला दीं, मैंने फ़ौरन नेहा को गोद से उतारा तथा पिताजी के गले लग गया| पिताजी की मेरी पीठ पर पकड़ बहुत कठोर थी, मेरे दसवीं पास होने के बाद ये दूसरा मौका था जब पिताजी ने इतना कस कर गले लगाया हो| मेरे पिताजी बड़े ही मजबूत दिल वाले थे, इसीलिए उनकी आँखें नम नहीं हुईं थी, उधर बड़के दादा ऐसे खुश थे जैसे हम (मैं और भौजी) सरहद से लौटे हों!

पिताजी: बेटा चल पहले अपनी माँ से मिल ले, वो कल से बहुत परेशान है|

अब ये सुन के मेरे प्राण सूखने लगे, मैं, पिताजी और भौजी तुरंत बड़े घर की ओर चल दिए| वहाँ पहुँच कर देखा तो माँ कमरे में चारपाई पर बैठी मेरी ही राह देख रही है| मुझे देखते ही माँ कमरे से बाहर आई और मैं तुरंत उनके गले लग गया, तब जाके माँ के दिल को शान्ति मिली|

माँ: बेटा... तूने तो मेरी जान ही निकाल दी थी|

माँ ने मेरा माथा चूमते हुए कहा|

मैं: देखो मैं बिलकुल ठीक-ठाक हूँ|

मैंने माँ को ऐतबार दिलाया की मुझे कुछ नहीं हुआ है और मैं पूरी तरह सही सलामत हूँ| माँ और मेरा प्यार देख भौजी ने मेरी प्रशंसा करते हुए बोलीं;

भौजी: माँ... इन्होने मेरा और नेहा का बहुत ध्यान रखा|

भौजी के मुँह से अपने लिए 'माँ' शब्द सुन के माँ का मुँह फिर से फीका पड़ गया और इस बार उनकी ये नाराजगी भौजी से छुप नहीं पाई, मैंने किसी तरह बात संभाली और बात को नया मोड़ देते हुए माहोल को हल्का किया:

मैं: माँ आपके हाथ की चाय पीने का मन कर रहा है|

ये सुन माँ के चेहरे पर तुरंत मुस्कान आ गई|

माँ: मैं अभी बनाती हूँ, तू तब तक नहा धो ले|

इतना कह माँ चली गईं, तभी वहाँ कूदती हुई नेहा आ गई और पिताजी के पाँव से लिपट गई| पिताजी ने उसे फ़ौरन गोद में उठा लिया और उससे बोले;

नेहा: बेटी तू ठीक तो है न?

नेहा ने तुरंत हाँ में गर्दन हिलाई और फिर बाहर की ओर ऊँगली से इशारा कर के बताया की कोई बाहर बुला रहा है| पिताजी नेहा को गोद में ले कर बाहर चले गए| बड़े घर में अब केवल मैं और भौजी ही रह गए थे, भौजी अपना सर झुका कर खड़ीं थीं क्योंकि उनको बुरा लग रहा था की उनके कारन माँ का मुँह फीका पड़ गया था|

मैं: यार... I'm sorry, but you're a being pushy! मैं जानता हूँ की आप दिल से उन्हें अपनी माँ मानते हो, पर आपको ये बात उनसे साफ़ करनी होगी की आखिर आपके दिल में क्या है| अगर आप इसी तरह जबरदस्ती से रिश्ते बनाओगे तो बात बिगड़ सकती है, हो सकता है की माँ को या औरों को शक हो की हमारा रिश्ता क्या है?

भौजी ने गर्दन झुकाये सारी बात सुनी और बिना कुछ कहे वहाँ से चलीं गई, मैं उनका दुःख समझ सकता था पर मैं कुछ कर नहीं सकता था| कुछ समय बाद मैं, माँ और पिताजी कुएँ के पास वाले आंगन में साथ बैठे थे और मैं पिताजी को कल जो हुआ उसके बारे में बता रहा था, की इतने में वहाँ बड़के दादा, रसिका भाभी, भौजी और बड़की अम्मा भी आ गए|

मैं: जैसे ही पीछे से भगदड़ मची, तो आप दोनों तो आगे पहुँच गए थे पर हम तीनों पीछे अकेले रह गए थे| भीड़ का धक्का इतना तेज था की वो आप लोगों को आगे बहा के ले गया पर इधर हम मजधार में फँस गए थे, अगर हम उसी बहाव में बहते तो शायद हम लोगों के पैरों तले दब जाते! इसलिए हम दोनों नेहा को लेके एक छोटी सी गली में घुस गए, उस गली से होते हुए मैं एक बड़ी गली में पहुँचे फिर समझ नहीं आया की कहाँ जाएँ, मैंने बाएँ जाना ठीक समझा और कुछ ही दूर पर मैंने देखा की भीड़ ने आगे का रास्ता ब्लॉक कर दिया है, इसलिए हम टैक्सी स्टैंड वाले रास्ते की ओर नहीं बढ़ सकते थे| मुझे लगा शायद थोड़ा घूम के ही सही हम टैक्सी स्टैंड तक पहुँच जाएँ, इसलिए हम थोड़ा और पीछे की तरफ चले गए पर आगे कोई रास्ता ही नहीं था| इतने में भीड़ का एक झुण्ड हमारी ओर भागा आ रहा था, जिसके हाथ में डंडे थे ये देख मैं बहुत घबरा गया| अगर अकेला होता तो भाग निकलता पर नेहा साथ थी इसलिए मैं छुपने के लिए कोई आश्रय ढूँढने लगा| तभी वहाँ एक होटल का बोर्ड दिखा हम उसके बहार खड़े हो गए और दरवाजा भड़भड़ाने लगे पर किसी ने दरवाजा नहीं खोला| हार के एक धर्मशाला के बाहर पहुँचे और उसका दरवाजा खटखटाया पर कोई नहीं खोल रहा था, तब मैंने चिल्ला के कहा की मेरे साथ एक छोटी सी बच्ची है और नेहा ने भी अब तक रोना शुरू कर दिया था| उसकी आवाज सुन एक बुजुर्ग से अंकल ने दरवाजा खोला और हम फटा-फट अंदर घुस गए| अब वो तो शुक्र है की माँ ने मुझे कुछ पैसे पहले दिए थे जिसकी वजह से हमें वहाँ दो कमरे मिल गए वरना रात सड़क पर बितानी पड़ती|

मैंने थोड़ा सच और थोड़ा झूठ बोलै और हमेशा की तरह इस बातचीत के दौरान कहीं भी भौजी को 'भौजी' कह के सम्बोधित नहीं किया| इधर मैंने माँ की जो थोड़ी तारीफ की उसे सुन पिताजी फ़ौरन बोले;

पिताजी: भई मानना पड़ेगा तुम्हारी माँ की होशियारी आज काम आ ही गई!

ये सुन माँ को बड़ा गर्व महसूस हुआ, आज पहली बार पिताजी ने उनकी तारीफ जो की थी|

माँ: देखा आपने, जब भी मैं पैसे आधे-आधे करती थी तो सबसे ज्यादा आपको ही तकलीफ होती थी और आज मेरी ही सूझबूझ काम आई|

पिताजी ने माँ की पीठ थपथपाई;

पिताजी: शाबाश देवी जी!

ये देख सब ठहाका लगा कर हँसने लगे|

कुछ मिनटों बाद पिताजी बड़के दादा से बोले;

पिताजी: भैया आप समधी साहब को फोन कर दिहो और उनका बताये दिहो की देवर-भाभी हियाँ सब ठीक-ठाक पहुँच गए हैं|

बड़के दादा: हाँ मुन्ना, हम खबर कर दिहिन है|

मतलब हमारे वहाँ फँसे होने की खबर भौजी के मटके यानी मेरे ससुराल तक पहुँच चुकी थी| पिताजी की बात सुन मैंने एक बेवकूफी की;

मैं: आपने ससुर जी.....

भौजी की आदत मुझे भी लग गई थी और अनायास ही मेरे मुँह से ससुर जी निकल गया था! अब बात को कैसे सम्भालूँ, ये समझ नहीं आया तो मैंने सच ही बोलै;

मैं: मतलब...आपने उन्हें भी बता दिया की हमलोग वहाँ फँस गए हैं?

भगवान् का लाख-लाख शुक्र था की मैं उस पल बच गया क्योंकि पिताजी ने मेरी इस बात को ज्यादा खींचा नहीं, शायद उन दिनों मेरी किस्मत मुझ पर बहुत ज्यादा ही मेहरबान थी! या फिर हमारे गाँव में भाई के ससुराल वालों को ससुर जी, सासु जी, साली साहिबा, साले साहब आदि बोलना कोई बड़ी बात नहीं थी|

पिताजी: अरे बेटा खबर तो पहुँचानी जर्रुरी थी, तुझे नहीं पता पर तेरी माँ यहाँ कितनी परेशान थी, वो तो घर भी नहीं आना चाहती थी| बजार वाले टैक्सी स्टैंड पर जिद्द पकड़ कर बैठ गई थी की जब तक मेरा लड़का नहीं आता मैं सड़क पर रह लूँगी पर घर नहीं जाऊँगी! बड़ी मुश्किल से मैंने इसे (माँ को) समझाया-बुझाया तब जाके ये मानी| फिर तभी तुम्हारा फोन आया तो इसने मना कर दिया की मैं तुम्हें कुछ ना बताऊँ वरना तुम उसी भगदड़ में भाग आओगे|

पिताजी की बात सुन मुझे मन ही मन फिर पछतावा हुआ;

मैं: अगर आप मुझे उस वक़्त बता देते तो मैं कोई भी खतरा उठा कर, कैसे न कैसे वहाँ से भाग आता!

पिताजी: बेटा इसीलिए मैंने कुछ नहीं बताया|

पिताजी ने मेरी पीठ थपथपाते हुए कहा|

बड़के दादा: मुन्ना तोहार बात सुन के हमका तोह पर बहुत गर्व है| आपन भौजी, आपन भतीजी और इस कुल के आने वाले दीपक की रक्षा कर के तुम हम पर बहुत एहसान किहो है! हमरे लगे तोहका धन्यवाद दिए खतिर शब्द भी नाहीं!

ये कहते हुए बड़के दादा ने मेरे सामने हाथ जोड़ दिए| मुझसे ये सब देखा गया इसलिए मैं एकदम से उठ खड़ा हुआ और उनके दोनों हाथ अपनी हथेलियों के बीच पकड़ लिए;

मैं: बड़के दादा आप ये क्या कह रहे हो? मैंने कोई एहसान नहीं किया, अपने परिवार की रक्षा करना मेरा दायित्व है!

इतने में पिताजी भी उठ खड़े हुए;

पिताजी: भाईसाहब ई का कहत हो? ई तोहार लड़का है और आपन लड़के से कभौं अइसन कहा जावत है? ई जउन किहिस ऊ ई कर फर्ज रहा!

ये सुन कर बड़के दादा गदगद हो गए और मेरी पीठ थपथपाई और बोले;

बड़के दादा: शाबाश मुन्ना! समधी जी तोहका ख़ास कर के बुलाईं है, उनसे मिल लिहो और उनका प्रसाद भी दे आयो|

ये सुन कर मेरा हाल तो ऐसे था जैसे अंधे को क्या चाहिए, दो आँखें! मैं तो खुद अपने ससुर जी से मिलना चाहता था, आखिर जिस शोरूम की कार इतनी मस्त है उस शोरूम के मालिक से मिलना तो बनता ही था!

मैं: जी जर्रूर!

मैंने मुस्कुरा कर कहा| मेरी मुस्कराहट मेरे मन में फूट रहे लड्डू दर्शाते थे, उधर भौजी का भी यही हाल था लेकिन उनकी मुस्कान घूंघट के पीछे छुपी हुई थी|

खैर बात खत्म हुई और बड़के दादा तथा अम्मा उठ के भूसे वाले कमरे में सफाई करने चले गए, खाना लगभग बन चूका था, बस रोटी बननी बाकी थी इसलिए वो आटा जुड़ने चली गईं| अब बच गए पिताजी, माँ, भौजी और मैं, भौजी डेढ़ हाथ का घूँघट काढ़े चुप-चाप खड़ीं थी, ऐसा लग रहा था जैसे वो कुछ कहना चाहतीं हों| मुझे लगा की कहीं कुछ देर पहले मेरी कही बात का उन्होंने बुरा तो नहीं मान लिया, पर जब वो बोलीं तो बातें स्पष्ट हो गईं;

भौजी: पिताजी... माँ.... मुझे आपसे कुछ कहना है?

भौजी ने बड़ी हिम्मत कर के कहा|

पिताजी: बोलो बहु|

भौजी ने एक गहरी सांस ली और अपने मन के अरमान बता दिए;

भौजी: मैं आपको और माँ को अपने माँ-पिताजी ही मानती हूँ, आप लोगों के यहाँ होने से मुझे बिलकुल घर जैसा लगता है| आप के यहाँ रहते हुए मुझे कभी अपने मायके की याद नहीं आती और ना ही मन करता है मायके जाने का| कल जिस तरह से इन्होने मेरी और नेहा की रक्षा की उसके बाद तो जैसे आप सब का मेरी जिंदगी पर पूरा हक़ है, पर अगर मेरे आपको माँ-पिताजी कहने से कोई आपत्ति है तो आप बता दें, मैं आपको चाचा-चाची ही कहूँगी!

भौजी की बात पूरी हुई और अब ये सच जानकर माँ-पिताजी के मन में कोई शंका नहीं रह गई थी| माँ उठ खड़ी हुईं और भौजी को अपने सीने से लगाते हुए बोलीं;

माँ: नहीं बहु, ऐसी कोई बात नहीं है| तु हमें अपने माँ-पिताजी की तरह मानती हो ये तो अच्छी बात है, पर क्या जीजी तुझे प्यार नहीं करतीं?

भौजी: करती हैं...पर आप सब तो जानते हो की यहाँ एक लड़का होने की आस बंधी है|

भौजी का इशारा उनके माँ बनने से था, अपने पोते की आस में बड़की अम्मा और बड़के दादा अब भौजी की तरफ थोड़ा ज्यादा झुक गए थे| इसीलिए जब बड़के दादा ने मुझसे बात की थी तो उन्होंने कुल दीपक यानी अपने पोता का जिक्र किया था|

भौजी: नेहा इतनी बड़ी होगी पर आज तक बाप्पा ने उसे पुचकारा नहीं, ऐसे में मुझे वो दर्ज़ा वो प्यार कभी नहीं मिला जो आप लोग देते हैं|

भौजी की बात सुन कर पिताजी को बड़के दादा के बर्ताव पर शर्म आई और वो सर झुका कर बोले;

पिताजी: बहु देखो, अपने बड़े भाई साहब से तो मैं इस बारे में कुछ नहीं कह सकता पर यकीन मानो हमें तुम्हारा हमें माँ-पिताजी कहना बिलकुल बुरा नहीं लगा| ऐसी छोटी-छोटी बातों को दिल से ना लगाया करो|

पिताजी ने अपनी मजबूरी जाहिर की और भौजी को निश्चिन्त कर दिया की उन्हें या माँ को भौजी के माँ-पिताजी कहने से आपत्ति नहीं है|

भौजी: जी पिताजी!

भौजी ने सर हिला कर कहा| अब पिताजी ने मेरी तरफ रुख किया, क्योंकि मैं अभी तक खामोश बैठा था और तीनों की बात सुन रहा था| मैंने जानबूझ के इस बात में कोई हिस्सा नहीं लिया था, क्योंकि मैं किसी का भी पक्षपात नहीं करना चाहता था| मैं चाहता था की भौजी अपना मुददा स्वयं माँ-पिताजी के सामने रखें और अपनी दलील भी स्वयं दें, इससे उनका आत्मविश्वास बढ़ेगा और हुआ भी वही| मैं ये देख कर खुश था की भौजी ने मेरी कही बात पर अम्ल किया और मेरे माँ-पिताजी के मन में जगह बना ली थी|

पिताजी: तो लाड साहब कब जाना है अपनी भौजी के मायके?

ये सुन मैं अपने ख्यालों से बाहर आया और बोला;

मैं: जी आप कहें तो आज, नहीं तो कल!

मैंने अपने मन के लड्डूओं को समेटते हुए कहा, मैं पिताजी को अपना अत्यधिक उत्साह नहीं दिखाना चाहता था|

पिताजी: बेटा प्रसाद कभी लेट नहीं करना चाहिए, आज शाम ही चले जाना पर रात होने से पहले लौट आना!!

पिताजी की बात सुन मैं बहुत खुश हुआ, पर अभी भी एक छोटी सी दिक्कत थी! भौजी का न रहने पर खाना रसिका भाभी पकाती जो मैं खाने से रहा तो मैंने चपलता दिखाते हुए माँ से कहा;

मैं: पर माँ आज रात का खाना आप बनाना?

लेकिन भौजी मेरी बात नहीं समझीं और मुझे टोकते हुए बोलीं;

भौजी: क्यों? मेरा हाथ का खाना आपको अच्छा नहीं लगता?

भौजी के कहने का अर्थ ये था की उनके होते हुए भला माँ क्यों खाना बनायें? पर जिस तरह से उन्होंने एकदम से जवाब दिया था वो सुन माँ-पिताजी हँस पड़े|

मैं: अच्छा लगता है...पर बहुत दिन हुए माँ के हाथ का खाना खाए हुए!

मैंने किसी तरह से अपनी बात को सँभालते हुए कहा, जाने क्यों मुझे लगा की पिताजी शायद मना कर दें तो मैंने एक और चाल चली;

मैं: वैसे अगर माँ और बड़की अम्मा दोनों खाना बनायें तो स्वाद ही कुछ और होगा!

मैंने चटखारे लेते हुए कहा तो पिताजी मेरे इस झांसे में आ गए और उन्होंने तुरंत बड़की अम्मा को आवाज दे कर बुलाया और रात का खाना बनाने को कहा| अम्मा को इसमें कोई तकलीफ नहीं थी, वो तुरंत मान गईं|

माँ-पिताजी उठ कर बड़के दादा की मदद करने चले गए और मैं आंगन में बच्चों के साथ खेलने लगा| खाना बना और रसिका भाभी ने वरुण को कहा की वो सबको बुला ले, अब भौजी जानती थीं की मैं रसिका भाभी के हाथ का बना हुआ कुछ भी नहीं खाऊँगा इसलिए वो मेरे पास आईं और बोलीं;

भौजी: आप ये खाना मत खाना, मैं आपके लिए दूसरा खाना बना देती हूँ|

मैं: यार ऐसा मत करो, खामखा सबसे डाँट पड़ेगी|

भौजी: तो फिर आप क्या खाओगे?

मैं: सत्तू!

मैंने मुस्कुराते हुए कहा|

मैं: जब से आया हूँ, मैंने खाया नहीं| आप मुझे सत्तू निकाल दो और प्याज दे दो!

मैंने खुश होते हुए कहा|

भौजी: प्याज खाओगे, तो मैंने आपको kiss कैसे करूँगी?

भौजी मुझे छेड़ते हुए बोलीं|

मैं: ऐसा करो आप भी प्याज खा लो, दोनों के मुँह गंधायेंगे फिर तो कोई दिक्कत नहीं?

ये सुन भौजी हँसने लगीं|

मैं: अच्छा आप सत्तू मत खाना वर्ण सब कहेंगे की हम दोनों सत्तू क्यों खा रहे हैं! आप खाना खा लेना, शाम को मेरे ससुराल में दावत खा लेंगे!

अपने मायके की बात सुन कर भौजी खुश हो गईं|

10 मिनट में सब खाने बैठ गए और जब भौजी ने मुझे सत्तू और पानी का लोटा दिया तो पिताजी पूछने लगे;

पिताजी: क्यों भई लाड़साहब आज सत्तू क्यों खा रहे हो?

मैं: जी वो कल पूरा दिन बाहर से खाया न तो पेट खराब न हो जाए इसलिए सत्तू खा रहा हूँ|

मैंने बहाना मारा, पर माँ ने मेरे इस बहाने का दूसरा मतलब निकाला;

माँ: अरे पेट-वेट कोई खराब नहीं इसका, जब से आया है तब से इसका मन सत्तू खाने का था! आज दीदी पिसवा कर लाइन हैं तो इसी लिए आज सत्तू खाया जा रहा है!

ये सुन सब हँस पड़े| वरुण को सत्तू पसंद नहीं था तो वो अपनी थाली में अपनी माँ का बनाया खाना ले कर मेरे सामने बैठ गया और खाना खाने लगा| पर मेरी प्यारी बेटी नेहा को मेरे साथ खाने में मजा अत था, भले ही मैं कुछ भी खाऊँ उसे उससे कोई फर्क नहीं पड़ता था| मैंने सत्तू को अच्छे से साना और फिर उसकी छोटी-छोटी गोलियाँ बना दी| ये देख नेहा हँसने लगी, मैं एक गोली उसे खिलाता और एक मैं खाता| मैंने जानबूझ कर प्याज नहीं खाये और नेहा के हाथ भौजी के पास वापस भिजवा दिए, नेहा के हाथ में प्याज देख भौजी घूंघट के अंदर मुस्कुराने लगीं! भोजन के बाद मुझे और भौजी को साथ बैठने का कुछ समय मिला, हम दोनों भौजी के घर में बैठे थे;

मैं: I hope you're not angry with me!

ये सुन भौजी थोड़ा हैरानी से मुझे देखने लगीं;

भौजी: नहीं तो, आपको किसने कहा मैं आपसे खफा हूँ?

मैं: मुझे लगा शायद आपने मेरी बात का बुरा मान लिया है|

भौजी: कौन सी बात?

फिर मैंने उन्हें बड़े घर में मेरी कही बात और आखिर क्यों मैंने तब उनका पक्ष नहीं लिया जब वो माँ-पिताजी से बात कर रहीं थीं बताया|

भौजी: आपने जो कहा वो बिलकुल सही कहा था, इसमें बुरा मानने वाली बात तो थी ही नहीं|

भौजी ने मुस्कुराते हुए कहा|

मैं: तो मेरे पास बैठो!

मैंने उन्हें अपने पास बैठने का इशारा किया तो भौजी अपनी चरपाई से उठ कर मेरे पास बैठ गईं| फिर मेरे कुछ कहे बिना ही उन्होंने मुझे एक छोटा सा kiss किया|

मैं: इतना छोटा?

मैंने लालची बनते हुए पुछा|

भौजी: ये आपकी Good Morning Kiss थी, सुबह से Pending थी ना!

भौजी ने मुस्कुराते हुए कहा|

इतने में नेहा और वरुण दोनों बैट-बॉल ले कर आ गए तो मैं उनके साथ आंगन में खेलने लगा| भौजी भी उठ कर माँ के पास छप्पर के नीचे बैठ गईं और बातें करने लगीं| 4 बजे तक मैंने बच्चों के साथ खूब खेला और लम्बे-लम्बे शॉट मार-मार के उन्हें खूब दौड़ाया| सवा चार बजे पिताजी ने कहा की मैं भौजी के मायके हो आऊँ तो मैं छप्पर के नीचे आया और भौजी से बोला; "जल्दी तैयार हो जाओ!" ये सुन भौजी फ़ौरन तैयार होने चली गईं, इधर मैं बड़े घर आया और हाथ मुँह धोने लगा|

मैंने आज नेवी ब्लू शर्ट पहनी और नीचे क्रीम कलर की पैंट, काले जूते जो पोलिश से चमक रहे थे| बस एक टाई की कमी थी तो पक्का लगता की मैं इंटरव्यू देने जा रहा हूँ| अच्छे से बनठन कर जब मानीं भौजी के घर पहुँचा तो वो मुझे देखते ही बोलीं;

भौजी: Wow! You're looking dashing!

मैं: Thanks! कहते हैं ना 'First Impression is the Last Impression.'

ये कहते हुए मैंने भौजी को गोल घूमकर अपने कपडे दिखाए|

भौजी: मेरा हाथ माँगने के लिए आप कुछ लेट नहीं हो गए? ही..ही..ही...

भौजी कहि-कहि कर के हँसने लगी|

मैं: Very funny !!! अब आप भी ढंग के कपडे पहनना|

मैंने उन्हें मुँह चिढ़ाते हुए कहा|

भौजी: हाँ भई, आप dashing लग रहे हो तो मुझे तो beautiful लगना ही पड़ेगा ना! अच्छा ये बताओ कौन सी साडी पहनू?

मैं: इसे मेरे लिए सरप्राइज ही रखो बस जो भी हो मेरी शर्ट से मैचिंग हो!

ये कहते हुए मैंने उन्हें अपनी बाहों में भर लिया|

भौजी: ठीक है, आप बहार जाओ मैं तैयार हो के आती हूँ|

भौजी ने लजाते हुए कहा|

मैं: बहार जाऊँ? मेरे सामने तैयार होने में कोई हर्ज़ है?

मैंने उनकी आँखों में देखते हुए अपने होंठ आगे कर दिए|

भौजी: नहीं तो... मुझे क्या... आपने तो मुझे देखा ही है|

ये कहते हुए उन्होंने एक बार मेरे होठों को अपने होठों से छुआ और फिर पीछे हट गईं!

मैं: I was kidding!! मैं बहार जा रहा हूँ!

मैंने भौजी को अपनी पकड़ से आजाद किया, भौजी को लगा की मैं उन्हें कपडे बदलते हुए देखने से डरता हूँ तो वो हँसने लगीं!

मैं बहार आके नेहा और वरुण के साथ आंगन में खेलने लगा, तभी रसिका भाभी छप्पर के नीचे से निकलीं और मुझे इस तरह सजा धजा देख रसिका भाभी की आह निकल गई;

रसिका भाभी: हाय! नजर न लग जाए तोहका हमार! का बात है, आज तो बड़े सजे-धजे हो?

मैं: किसी और की तो नहीं पर हाँ आपकी नजर जर्रूर लग जाएगी|

मैंने उन्हें ताना मारते हुए कहा| रसिका भाभी ने आज कई दिनों बाद मुझसे बात की| पता नहीं क्यों पर मेरे मन में ये जिज्ञासा पैदा हुई की क्या सच में रसिका भाभी के मन में इतना मेल भरा है?

मैं: If you don't mind mean asking...

मैं गलती से उनसे अंग्रेजी में बात करने लगा, पर उनका अजीब सा चेहरा देख मुझे मेरी गलती समझ आई|

मैं: ओह... अगर आपको बुरा ना लगे तो मैं आपसे कुछ पूछना चाहता हूँ?

रसिका भाभी को लगा की इतने दिनों बाद मैं इनसे बात करने में दिलचस्पी ले रहा हूँ तो मौका क्यों गंवाया जाए, वो लगीं मुझे माखन लगाने;

रसिका भाभी: हुकुम करो मालिक!

उनके मुँह से ये शब्द सुन मैंने बड़ा ही सड़ा हुआ सा मुँह बनाया और बोला;

मैं: ओह प्लीज! दुबारा मुझे ये मत कहना!

इतना कह के मैं उनसे और बच्चों से 5 कदम दूर आ गया, तभी रसिका भाभी मेरे सामने आ कर खड़ी हो गईं और मेरा रास्ता रोक लिया;

रसिका भाभी: माफ़ कर दिहो! पूछो का पूछत रहेओ?

मैं: उस दिन सब जानते हुए आपने वो बात हमारे सामने इसीलिए दोहराई थी ना क्योंकि आप मेरा फायदा उठाना चाहतीं थी न?

रसिका भाभी ने बात नासमझने का नाटक किया;

रसिका भाभी: का?

मैं: क्यों अनजान बनने की कोशिश कर रहे हो?!

में हाथ बाँधते हुए कहा तो उन्होंने खुद को बचाने की सोची!

रसिका भाभी: नहीं तो... ऊ हम.......

मैं: आप रहने दो... मैं जानता हूँ आपका उद्देश्य क्या था? अब साफ़-साफ़ बता क्यों नहीं देती की क्या चाहती थीं आप?

रसिका भाभी: तोहका चाहित है!

उन्होंने धड़ल्ले से मेरी आँखों में देखते हुए कहा| ये सुन मैंने भोयें सिकोड़ीं और उनको घूरते हुए बोला;

मैं: इतने सब के बाद भी आप का मन मुझसे नहीं हटा?

रसिका भाभी: का करें....आपन भौजी की प्यास तो बुझाये देत हो, पर हमार का? हम सोचन की दीदी डर जाई और हमका 'ऊ' करे खातिर मना न करीहें! शायद हम उनका मनाओ लेइत...'ऊ' के लिए!

रसिका भाभी का ये 'ऊ' किस लिए था ये मैं नहीं समझ पाया था, मुझे लगा की उनका मतलब मेरे साथ सेक्स करने से था पर एक बार उनके मुँह से सुनना चाहता था तो मैंने उनसे पूछ ही लिए;

मैं: किसके लिए?

ये सुन रसिका भाभी के चेहरे पर एक बड़ी घिनौनी मुस्कान आ गई और वो बोलीं;
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रसिका भाभी: तुम, हम और दीदी एक साथ....सससस...चुदाई करत!

उनके मुँह से ये सुन मेरे पाँव तले जमीन खिसक गई! मैं ने कभी सपने भी नहीं सोचा था की उनके मन में इतना गंदापन भरा हुआ है! उस दिन जब उन्होंने ये बात कही थी तो मैं और भौजी यही समझे थे की रसिका भाभी हमें blackmail कर के 'मेरे' साथ सेक्स करना चाहतीं हैं, पर ये तो बहुत बड़ी वाली चिरांद निकली!
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मैं: FUCK!!! You gotta be shitting me!!!

मैंने गुस्से से झल्लाते हुए कहा| साफ़ था रसिका भाभी के पल्ले कुछ नहीं पड़ा था|

रसिका भाभी: क..क......क्या....क्या हुआ?

मैं: यकीन नहीं आता! Fuck.. man... you're...sick......! आपको कोई ..... मैं आपसे बात ही नहीं करना चाहता| इतना मैल भरा है आपके मन में!!! छी!!!

मेरे पास शब्द नहीं थे की मैं उनसे और कुछ कहूँ, उनके मन में मैल ही नहीं बल्कि उनका मन गटर के समान था जिसमें दुनिया भर की गंदगी भरी हुई थी| मुझे अब उनसे घिन्न आने लगी थी, इसलिए मैं गुस्से से तमतमाया हुआ बड़े घर की ओर जाने लगा| अब रसिका भाभी की फटी, क्योंकि वो जानती थी की मैं ये सब भौजी को बता दूँगा और फिर भौजी कुदाल ले कर उनकी गांड फाड़ देंगी! इसलिए वो भागी-भागी मेरे आगे आ कर खड़ी हो गईं और गिड़गिड़ाते हुए बोलीं;

रसिका भाभी: मानु भैया! हम हाथ जोड़ित है...ई बात दीदी को न बताया! तुम तो कछु दिन में चले जैहो...दीदी के इलावा हियाँ हमार है कौन जो हमार ध्यान रखे? हम तोहरे पाँव पडित है...उनका कछु न कहिओ!

मैं कुछ नहीं बोला, तभी नेहा कूदती हुई मेरे पाँव से लिपट गई, उसे देखते ही रसिका भाभी सर झुका कर चली गईं|

नेहा: पापा जी...क्या हुआ?

नेहा ने गर्दन ऊपर करते हुए बोला|

मैं: कुछ नहीं बेटा, आप जा के खेलो और कपडे गंदे मत करना|

नेहा वरुण के साथ खेलने चली गई और मैं हाथ बाँधे भूसा रखने वाले कमरे के बाहर अकेला खड़ा रहा| इतने में मुझे पिताजी की आवाज आई;

पिताजी: अरे वाह भई! आज तो सज-धज के अपनी भौजी के मायके जा रहे हो!

पिताजी ने मेरी तारीफ करते हुए कहा, मैंने मुस्कुरा कर उनकी सिखाई हुई बात उन्हें याद दिलाई;

मैं: पिताजी आपसे ही सीखा है की आदमी की पहचान उसके कपड़ों से होती है!

ये सुन कर पिताजी को बड़ा गर्व हुआ की उनका बेटा उनके पढ़ाये सबक याद किये हुए|

पिताजी: शाबाश बेटे! समधीजी को हमारा प्रणाम कहना और रात वहाँ मत रुकना!

मैंने हाँ में सर हिलाया, और मैं उनके साथ चलता हुआ वापस कुएँ के पास वाले आंगन में आगया| पिताजी को खेतों में कोई जाना-पहचाना दिखा तो उसे आवाज लगते हुए वो खेतों में चले गए|

इधर भौजी जब तैयार हो कर बाहर निकलीं तो उन्हें देखते ही मैं रसिका भाभी की सारी बात भूल गया| लाल रंग की शिफॉन की साडी, उस पर काले रंग का डिज़ाइनर बॉर्डर और काले रंग का ब्लाउज, बाल खुले हुए और सर पे पल्लू था| Wow!! उनकी साडी बिलकुल इस फोटो जैसी थी






बस इस फोटो में ब्लाउज डिज़ाइनर है और फूल स्लीव का है पर उनका प्लैन था और आधी स्लीव का था|

उन्हें देखते ही मेरे दिल की धड़कनें थम गईं और मैं मुँह खोले उन्हें देखता हुआ उनकी तरफ चलने लगा| जब मैं उनके नजदीक पहुँचा तो भौजी शर्माते हुए बोलीं;

भौजी: ऐसे क्या देख रहे हो?

मैं: You're looking fabulous!

मैंने बिना पलक झपके कहा|

भौजी: Awww. Thanks!!!

भौजी ने लजाते हुए कहा|

तभी वहाँ बड़की अम्मा आ गईं और उन्हीं के साथ रसिका भाभी भी आ गईं, दरअसल उन्हें डर था की कहीं मैं भौजी से उनकी शिकायत न कर दूँ| रसिका भाभी की शक्ल देखते ही मेरा मुँह फीका हो गया और मैंने बड़की अम्मा के पाँव छू कर उनसे विदा ली| हम दो कदम चले होंगे की ध्यान आया की नेहा तो यहाँ है ही नहीं!

मैं: नेहा...नेहा ....कहाँ हो बेटा?

मैंने आवाज दी तो नेहा भागती हुई आई, खेलते-खेलते उसके कपडे गंदे हो गए थे जो देख भौजी गुस्सा हो गईं;

भौजी: ये लड़की ना...मना किया था न तुझे....

भौजी उसे और डाँटती उससे पहले ही मैंने उनकी बात काट दी;

मैं: कोई बात नहीं...आओ बेटा, मैं आपको तैयार करता हूँ|

भौजी समझ गईं की मैं नाराज हूँ इसलिए वो बोलीं;

भौजी: लाइए...मैं तैयार कर देती हूँ|

मैं: रहने दो...आपकी साडी की क्रीज़ खराब हो जाएगी| वैसे भी आप नेहा पर भड़के हुए हो खामखा उसे डाँट दोगे!

मैं नेहा को भौजी के घर के भीतर लाया और उनके पलंग पर नेहा की धूलि हुई फ्रॉक थी, वो उसे पहनाई! तभी मेरी नजर भौजी के बक्से के ऊपर रखी क्रीम पर पड़ी, मैंने वो कक्रीम उठाई और ये देख नेहा एकदम से खुश हो गई| मैंने वो क्रीम नेहा को लगाई और उसकी मनमोहक खुशबु सूँघ दोनों बाप-बेटी खुश हो गए| नेहा को ये क्रीम बहुत पसंद थी और वो बार-बार मुझे अपने गाल आगे कर के ये क्रीम सूंघने को कह रही थी| जब मैं उसे गोद में लिए बाहर आया तो खुशबु सूँघ बड़की अम्मा बोलीं;

बड़की अम्मा: अरे वाह! बहुत नीक खसबू है?

ये सुन नेहा शर्मा गई और मेरे कंधे पर अपना मुँह छुपा लिया|

मैं: अम्मा मेरी लाड़ली बेटी इस क्रीम की खुशबु में और भी महकने लगी है|

तभी भौजी चिढ़ते हुए बोलीं;

भौजी: नई क्रीम की डिबिया थी, मैंने भी अभी तक नहीं लगाई थी!

मैं: मैं आपको दूसरी ला दूँगा, ये वाली मेरी बेटी लगाएगी!

मैंने नेहा की तरफदारी की और उसके गाल को सूँघ कर चूमा| खैर हमने बड़की अम्मा को बताया और भौजी के मायके के लिए चल पड़े|

[color=rgb(147,]जारी रहेगा भाग - 4 में...[/color]
 
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QUOTE="Rockstar_Rocky, post: 1396055, member: 1916"]


[color=rgb(243,]सोलहवाँ अध्याय: पति का प्रेम![/color]
[color=rgb(41,]भाग - 3[/color]


[color=rgb(65,]अब तक आपने पढ़ा:[/color]

हम दोनों इसी तरह बात करते हुए घर पहुँचे, घर पर पहले से ही चहल-पहल मची हुई थी! पिताजी और बड़के दादा प्रमुख आंगन में ही बैठे थे और उनकी नजरें सड़क पर टिकी हुई थीं| जैसे ही भौजी ने उनको दूर से देखा, उन्होंने फ़ौरन डेढ़ हाथ का घूँघट काढ़ लिया|

[color=rgb(184,]अब आगे:[/color]

जैसे ही मैं और भौजी घर के आंगन में दाखिल हुए की पिताजी ने अपनी बाहें फैला दीं, मैंने फ़ौरन नेहा को गोद से उतारा तथा पिताजी के गले लग गया| पिताजी की मेरी पीठ पर पकड़ बहुत कठोर थी, मेरे दसवीं पास होने के बाद ये दूसरा मौका था जब पिताजी ने इतना कस कर गले लगाया हो| मेरे पिताजी बड़े ही मजबूत दिल वाले थे, इसीलिए उनकी आँखें नम नहीं हुईं थी, उधर बड़के दादा ऐसे खुश थे जैसे हम (मैं और भौजी) सरहद से लौटे हों!

पिताजी: बेटा चल पहले अपनी माँ से मिल ले, वो कल से बहुत परेशान है|

अब ये सुन के मेरे प्राण सूखने लगे, मैं, पिताजी और भौजी तुरंत बड़े घर की ओर चल दिए| वहाँ पहुँच कर देखा तो माँ कमरे में चारपाई पर बैठी मेरी ही राह देख रही है| मुझे देखते ही माँ कमरे से बाहर आई और मैं तुरंत उनके गले लग गया, तब जाके माँ के दिल को शान्ति मिली|

माँ: बेटा... तूने तो मेरी जान ही निकाल दी थी|

माँ ने मेरा माथा चूमते हुए कहा|

मैं: देखो मैं बिलकुल ठीक-ठाक हूँ|

मैंने माँ को ऐतबार दिलाया की मुझे कुछ नहीं हुआ है और मैं पूरी तरह सही सलामत हूँ| माँ और मेरा प्यार देख भौजी ने मेरी प्रशंसा करते हुए बोलीं;

भौजी: माँ... इन्होने मेरा और नेहा का बहुत ध्यान रखा|

भौजी के मुँह से अपने लिए 'माँ' शब्द सुन के माँ का मुँह फिर से फीका पड़ गया और इस बार उनकी ये नाराजगी भौजी से छुप नहीं पाई, मैंने किसी तरह बात संभाली और बात को नया मोड़ देते हुए माहोल को हल्का किया:

मैं: माँ आपके हाथ की चाय पीने का मन कर रहा है|

ये सुन माँ के चेहरे पर तुरंत मुस्कान आ गई|

माँ: मैं अभी बनाती हूँ, तू तब तक नहा धो ले|

इतना कह माँ चली गईं, तभी वहाँ कूदती हुई नेहा आ गई और पिताजी के पाँव से लिपट गई| पिताजी ने उसे फ़ौरन गोद में उठा लिया और उससे बोले;

नेहा: बेटी तू ठीक तो है न?

नेहा ने तुरंत हाँ में गर्दन हिलाई और फिर बाहर की ओर ऊँगली से इशारा कर के बताया की कोई बाहर बुला रहा है| पिताजी नेहा को गोद में ले कर बाहर चले गए| बड़े घर में अब केवल मैं और भौजी ही रह गए थे, भौजी अपना सर झुका कर खड़ीं थीं क्योंकि उनको बुरा लग रहा था की उनके कारन माँ का मुँह फीका पड़ गया था|

मैं: यार... I'm sorry, but you're a being pushy! मैं जानता हूँ की आप दिल से उन्हें अपनी माँ मानते हो, पर आपको ये बात उनसे साफ़ करनी होगी की आखिर आपके दिल में क्या है| अगर आप इसी तरह जबरदस्ती से रिश्ते बनाओगे तो बात बिगड़ सकती है, हो सकता है की माँ को या औरों को शक हो की हमारा रिश्ता क्या है?

भौजी ने गर्दन झुकाये सारी बात सुनी और बिना कुछ कहे वहाँ से चलीं गई, मैं उनका दुःख समझ सकता था पर मैं कुछ कर नहीं सकता था| कुछ समय बाद मैं, माँ और पिताजी कुएँ के पास वाले आंगन में साथ बैठे थे और मैं पिताजी को कल जो हुआ उसके बारे में बता रहा था, की इतने में वहाँ बड़के दादा, रसिका भाभी, भौजी और बड़की अम्मा भी आ गए|

मैं: जैसे ही पीछे से भगदड़ मची, तो आप दोनों तो आगे पहुँच गए थे पर हम तीनों पीछे अकेले रह गए थे| भीड़ का धक्का इतना तेज था की वो आप लोगों को आगे बहा के ले गया पर इधर हम मजधार में फँस गए थे, अगर हम उसी बहाव में बहते तो शायद हम लोगों के पैरों तले दब जाते! इसलिए हम दोनों नेहा को लेके एक छोटी सी गली में घुस गए, उस गली से होते हुए मैं एक बड़ी गली में पहुँचे फिर समझ नहीं आया की कहाँ जाएँ, मैंने बाएँ जाना ठीक समझा और कुछ ही दूर पर मैंने देखा की भीड़ ने आगे का रास्ता ब्लॉक कर दिया है, इसलिए हम टैक्सी स्टैंड वाले रास्ते की ओर नहीं बढ़ सकते थे| मुझे लगा शायद थोड़ा घूम के ही सही हम टैक्सी स्टैंड तक पहुँच जाएँ, इसलिए हम थोड़ा और पीछे की तरफ चले गए पर आगे कोई रास्ता ही नहीं था| इतने में भीड़ का एक झुण्ड हमारी ओर भागा आ रहा था, जिसके हाथ में डंडे थे ये देख मैं बहुत घबरा गया| अगर अकेला होता तो भाग निकलता पर नेहा साथ थी इसलिए मैं छुपने के लिए कोई आश्रय ढूँढने लगा| तभी वहाँ एक होटल का बोर्ड दिखा हम उसके बहार खड़े हो गए और दरवाजा भड़भड़ाने लगे पर किसी ने दरवाजा नहीं खोला| हार के एक धर्मशाला के बाहर पहुँचे और उसका दरवाजा खटखटाया पर कोई नहीं खोल रहा था, तब मैंने चिल्ला के कहा की मेरे साथ एक छोटी सी बच्ची है और नेहा ने भी अब तक रोना शुरू कर दिया था| उसकी आवाज सुन एक बुजुर्ग से अंकल ने दरवाजा खोला और हम फटा-फट अंदर घुस गए| अब वो तो शुक्र है की माँ ने मुझे कुछ पैसे पहले दिए थे जिसकी वजह से हमें वहाँ दो कमरे मिल गए वरना रात सड़क पर बितानी पड़ती|

मैंने थोड़ा सच और थोड़ा झूठ बोलै और हमेशा की तरह इस बातचीत के दौरान कहीं भी भौजी को 'भौजी' कह के सम्बोधित नहीं किया| इधर मैंने माँ की जो थोड़ी तारीफ की उसे सुन पिताजी फ़ौरन बोले;

पिताजी: भई मानना पड़ेगा तुम्हारी माँ की होशियारी आज काम आ ही गई!

ये सुन माँ को बड़ा गर्व महसूस हुआ, आज पहली बार पिताजी ने उनकी तारीफ जो की थी|

माँ: देखा आपने, जब भी मैं पैसे आधे-आधे करती थी तो सबसे ज्यादा आपको ही तकलीफ होती थी और आज मेरी ही सूझबूझ काम आई|

पिताजी ने माँ की पीठ थपथपाई;

पिताजी: शाबाश देवी जी!

ये देख सब ठहाका लगा कर हँसने लगे|

कुछ मिनटों बाद पिताजी बड़के दादा से बोले;

पिताजी: भैया आप समधी साहब को फोन कर दिहो और उनका बताये दिहो की देवर-भाभी हियाँ सब ठीक-ठाक पहुँच गए हैं|

बड़के दादा: हाँ मुन्ना, हम खबर कर दिहिन है|

मतलब हमारे वहाँ फँसे होने की खबर भौजी के मटके यानी मेरे ससुराल तक पहुँच चुकी थी| पिताजी की बात सुन मैंने एक बेवकूफी की;

मैं: आपने ससुर जी.....

भौजी की आदत मुझे भी लग गई थी और अनायास ही मेरे मुँह से ससुर जी निकल गया था! अब बात को कैसे सम्भालूँ, ये समझ नहीं आया तो मैंने सच ही बोलै;

मैं: मतलब...आपने उन्हें भी बता दिया की हमलोग वहाँ फँस गए हैं?

भगवान् का लाख-लाख शुक्र था की मैं उस पल बच गया क्योंकि पिताजी ने मेरी इस बात को ज्यादा खींचा नहीं, शायद उन दिनों मेरी किस्मत मुझ पर बहुत ज्यादा ही मेहरबान थी! या फिर हमारे गाँव में भाई के ससुराल वालों को ससुर जी, सासु जी, साली साहिबा, साले साहब आदि बोलना कोई बड़ी बात नहीं थी|

पिताजी: अरे बेटा खबर तो पहुँचानी जर्रुरी थी, तुझे नहीं पता पर तेरी माँ यहाँ कितनी परेशान थी, वो तो घर भी नहीं आना चाहती थी| बजार वाले टैक्सी स्टैंड पर जिद्द पकड़ कर बैठ गई थी की जब तक मेरा लड़का नहीं आता मैं सड़क पर रह लूँगी पर घर नहीं जाऊँगी! बड़ी मुश्किल से मैंने इसे (माँ को) समझाया-बुझाया तब जाके ये मानी| फिर तभी तुम्हारा फोन आया तो इसने मना कर दिया की मैं तुम्हें कुछ ना बताऊँ वरना तुम उसी भगदड़ में भाग आओगे|

पिताजी की बात सुन मुझे मन ही मन फिर पछतावा हुआ;

मैं: अगर आप मुझे उस वक़्त बता देते तो मैं कोई भी खतरा उठा कर, कैसे न कैसे वहाँ से भाग आता!

पिताजी: बेटा इसीलिए मैंने कुछ नहीं बताया|

पिताजी ने मेरी पीठ थपथपाते हुए कहा|

बड़के दादा: मुन्ना तोहार बात सुन के हमका तोह पर बहुत गर्व है| आपन भौजी, आपन भतीजी और इस कुल के आने वाले दीपक की रक्षा कर के तुम हम पर बहुत एहसान किहो है! हमरे लगे तोहका धन्यवाद दिए खतिर शब्द भी नाहीं!

ये कहते हुए बड़के दादा ने मेरे सामने हाथ जोड़ दिए| मुझसे ये सब देखा गया इसलिए मैं एकदम से उठ खड़ा हुआ और उनके दोनों हाथ अपनी हथेलियों के बीच पकड़ लिए;

मैं: बड़के दादा आप ये क्या कह रहे हो? मैंने कोई एहसान नहीं किया, अपने परिवार की रक्षा करना मेरा दायित्व है!

इतने में पिताजी भी उठ खड़े हुए;

पिताजी: भाईसाहब ई का कहत हो? ई तोहार लड़का है और आपन लड़के से कभौं अइसन कहा जावत है? ई जउन किहिस ऊ ई कर फर्ज रहा!

ये सुन कर बड़के दादा गदगद हो गए और मेरी पीठ थपथपाई और बोले;

बड़के दादा: शाबाश मुन्ना! समधी जी तोहका ख़ास कर के बुलाईं है, उनसे मिल लिहो और उनका प्रसाद भी दे आयो|

ये सुन कर मेरा हाल तो ऐसे था जैसे अंधे को क्या चाहिए, दो आँखें! मैं तो खुद अपने ससुर जी से मिलना चाहता था, आखिर जिस शोरूम की कार इतनी मस्त है उस शोरूम के मालिक से मिलना तो बनता ही था!

मैं: जी जर्रूर!

मैंने मुस्कुरा कर कहा| मेरी मुस्कराहट मेरे मन में फूट रहे लड्डू दर्शाते थे, उधर भौजी का भी यही हाल था लेकिन उनकी मुस्कान घूंघट के पीछे छुपी हुई थी|

खैर बात खत्म हुई और बड़के दादा तथा अम्मा उठ के भूसे वाले कमरे में सफाई करने चले गए, खाना लगभग बन चूका था, बस रोटी बननी बाकी थी इसलिए वो आटा जुड़ने चली गईं| अब बच गए पिताजी, माँ, भौजी और मैं, भौजी डेढ़ हाथ का घूँघट काढ़े चुप-चाप खड़ीं थी, ऐसा लग रहा था जैसे वो कुछ कहना चाहतीं हों| मुझे लगा की कहीं कुछ देर पहले मेरी कही बात का उन्होंने बुरा तो नहीं मान लिया, पर जब वो बोलीं तो बातें स्पष्ट हो गईं;

भौजी: पिताजी... माँ.... मुझे आपसे कुछ कहना है?

भौजी ने बड़ी हिम्मत कर के कहा|

पिताजी: बोलो बहु|

भौजी ने एक गहरी सांस ली और अपने मन के अरमान बता दिए;

भौजी: मैं आपको और माँ को अपने माँ-पिताजी ही मानती हूँ, आप लोगों के यहाँ होने से मुझे बिलकुल घर जैसा लगता है| आप के यहाँ रहते हुए मुझे कभी अपने मायके की याद नहीं आती और ना ही मन करता है मायके जाने का| कल जिस तरह से इन्होने मेरी और नेहा की रक्षा की उसके बाद तो जैसे आप सब का मेरी जिंदगी पर पूरा हक़ है, पर अगर मेरे आपको माँ-पिताजी कहने से कोई आपत्ति है तो आप बता दें, मैं आपको चाचा-चाची ही कहूँगी!

भौजी की बात पूरी हुई और अब ये सच जानकर माँ-पिताजी के मन में कोई शंका नहीं रह गई थी| माँ उठ खड़ी हुईं और भौजी को अपने सीने से लगाते हुए बोलीं;

माँ: नहीं बहु, ऐसी कोई बात नहीं है| तु हमें अपने माँ-पिताजी की तरह मानती हो ये तो अच्छी बात है, पर क्या जीजी तुझे प्यार नहीं करतीं?

भौजी: करती हैं...पर आप सब तो जानते हो की यहाँ एक लड़का होने की आस बंधी है|

भौजी का इशारा उनके माँ बनने से था, अपने पोते की आस में बड़की अम्मा और बड़के दादा अब भौजी की तरफ थोड़ा ज्यादा झुक गए थे| इसीलिए जब बड़के दादा ने मुझसे बात की थी तो उन्होंने कुल दीपक यानी अपने पोता का जिक्र किया था|

भौजी: नेहा इतनी बड़ी होगी पर आज तक बाप्पा ने उसे पुचकारा नहीं, ऐसे में मुझे वो दर्ज़ा वो प्यार कभी नहीं मिला जो आप लोग देते हैं|

भौजी की बात सुन कर पिताजी को बड़के दादा के बर्ताव पर शर्म आई और वो सर झुका कर बोले;

पिताजी: बहु देखो, अपने बड़े भाई साहब से तो मैं इस बारे में कुछ नहीं कह सकता पर यकीन मानो हमें तुम्हारा हमें माँ-पिताजी कहना बिलकुल बुरा नहीं लगा| ऐसी छोटी-छोटी बातों को दिल से ना लगाया करो|

पिताजी ने अपनी मजबूरी जाहिर की और भौजी को निश्चिन्त कर दिया की उन्हें या माँ को भौजी के माँ-पिताजी कहने से आपत्ति नहीं है|

भौजी: जी पिताजी!

भौजी ने सर हिला कर कहा| अब पिताजी ने मेरी तरफ रुख किया, क्योंकि मैं अभी तक खामोश बैठा था और तीनों की बात सुन रहा था| मैंने जानबूझ के इस बात में कोई हिस्सा नहीं लिया था, क्योंकि मैं किसी का भी पक्षपात नहीं करना चाहता था| मैं चाहता था की भौजी अपना मुददा स्वयं माँ-पिताजी के सामने रखें और अपनी दलील भी स्वयं दें, इससे उनका आत्मविश्वास बढ़ेगा और हुआ भी वही| मैं ये देख कर खुश था की भौजी ने मेरी कही बात पर अम्ल किया और मेरे माँ-पिताजी के मन में जगह बना ली थी|

पिताजी: तो लाड साहब कब जाना है अपनी भौजी के मायके?

ये सुन मैं अपने ख्यालों से बाहर आया और बोला;

मैं: जी आप कहें तो आज, नहीं तो कल!

मैंने अपने मन के लड्डूओं को समेटते हुए कहा, मैं पिताजी को अपना अत्यधिक उत्साह नहीं दिखाना चाहता था|

पिताजी: बेटा प्रसाद कभी लेट नहीं करना चाहिए, आज शाम ही चले जाना पर रात होने से पहले लौट आना!!

पिताजी की बात सुन मैं बहुत खुश हुआ, पर अभी भी एक छोटी सी दिक्कत थी! भौजी का न रहने पर खाना रसिका भाभी पकाती जो मैं खाने से रहा तो मैंने चपलता दिखाते हुए माँ से कहा;

मैं: पर माँ आज रात का खाना आप बनाना?

लेकिन भौजी मेरी बात नहीं समझीं और मुझे टोकते हुए बोलीं;

भौजी: क्यों? मेरा हाथ का खाना आपको अच्छा नहीं लगता?

भौजी के कहने का अर्थ ये था की उनके होते हुए भला माँ क्यों खाना बनायें? पर जिस तरह से उन्होंने एकदम से जवाब दिया था वो सुन माँ-पिताजी हँस पड़े|

मैं: अच्छा लगता है...पर बहुत दिन हुए माँ के हाथ का खाना खाए हुए!

मैंने किसी तरह से अपनी बात को सँभालते हुए कहा, जाने क्यों मुझे लगा की पिताजी शायद मना कर दें तो मैंने एक और चाल चली;

मैं: वैसे अगर माँ और बड़की अम्मा दोनों खाना बनायें तो स्वाद ही कुछ और होगा!

मैंने चटखारे लेते हुए कहा तो पिताजी मेरे इस झांसे में आ गए और उन्होंने तुरंत बड़की अम्मा को आवाज दे कर बुलाया और रात का खाना बनाने को कहा| अम्मा को इसमें कोई तकलीफ नहीं थी, वो तुरंत मान गईं|

माँ-पिताजी उठ कर बड़के दादा की मदद करने चले गए और मैं आंगन में बच्चों के साथ खेलने लगा| खाना बना और रसिका भाभी ने वरुण को कहा की वो सबको बुला ले, अब भौजी जानती थीं की मैं रसिका भाभी के हाथ का बना हुआ कुछ भी नहीं खाऊँगा इसलिए वो मेरे पास आईं और बोलीं;

भौजी: आप ये खाना मत खाना, मैं आपके लिए दूसरा खाना बना देती हूँ|

मैं: यार ऐसा मत करो, खामखा सबसे डाँट पड़ेगी|

भौजी: तो फिर आप क्या खाओगे?

मैं: सत्तू!

मैंने मुस्कुराते हुए कहा|

मैं: जब से आया हूँ, मैंने खाया नहीं| आप मुझे सत्तू निकाल दो और प्याज दे दो!

मैंने खुश होते हुए कहा|

भौजी: प्याज खाओगे, तो मैंने आपको kiss कैसे करूँगी?

भौजी मुझे छेड़ते हुए बोलीं|

मैं: ऐसा करो आप भी प्याज खा लो, दोनों के मुँह गंधायेंगे फिर तो कोई दिक्कत नहीं?

ये सुन भौजी हँसने लगीं|

मैं: अच्छा आप सत्तू मत खाना वर्ण सब कहेंगे की हम दोनों सत्तू क्यों खा रहे हैं! आप खाना खा लेना, शाम को मेरे ससुराल में दावत खा लेंगे!

अपने मायके की बात सुन कर भौजी खुश हो गईं|

10 मिनट में सब खाने बैठ गए और जब भौजी ने मुझे सत्तू और पानी का लोटा दिया तो पिताजी पूछने लगे;

पिताजी: क्यों भई लाड़साहब आज सत्तू क्यों खा रहे हो?

मैं: जी वो कल पूरा दिन बाहर से खाया न तो पेट खराब न हो जाए इसलिए सत्तू खा रहा हूँ|

मैंने बहाना मारा, पर माँ ने मेरे इस बहाने का दूसरा मतलब निकाला;

माँ: अरे पेट-वेट कोई खराब नहीं इसका, जब से आया है तब से इसका मन सत्तू खाने का था! आज दीदी पिसवा कर लाइन हैं तो इसी लिए आज सत्तू खाया जा रहा है!

ये सुन सब हँस पड़े| वरुण को सत्तू पसंद नहीं था तो वो अपनी थाली में अपनी माँ का बनाया खाना ले कर मेरे सामने बैठ गया और खाना खाने लगा| पर मेरी प्यारी बेटी नेहा को मेरे साथ खाने में मजा अत था, भले ही मैं कुछ भी खाऊँ उसे उससे कोई फर्क नहीं पड़ता था| मैंने सत्तू को अच्छे से साना और फिर उसकी छोटी-छोटी गोलियाँ बना दी| ये देख नेहा हँसने लगी, मैं एक गोली उसे खिलाता और एक मैं खाता| मैंने जानबूझ कर प्याज नहीं खाये और नेहा के हाथ भौजी के पास वापस भिजवा दिए, नेहा के हाथ में प्याज देख भौजी घूंघट के अंदर मुस्कुराने लगीं! भोजन के बाद मुझे और भौजी को साथ बैठने का कुछ समय मिला, हम दोनों भौजी के घर में बैठे थे;

मैं: I hope you're not angry with me!

ये सुन भौजी थोड़ा हैरानी से मुझे देखने लगीं;

भौजी: नहीं तो, आपको किसने कहा मैं आपसे खफा हूँ?

मैं: मुझे लगा शायद आपने मेरी बात का बुरा मान लिया है|

भौजी: कौन सी बात?

फिर मैंने उन्हें बड़े घर में मेरी कही बात और आखिर क्यों मैंने तब उनका पक्ष नहीं लिया जब वो माँ-पिताजी से बात कर रहीं थीं बताया|

भौजी: आपने जो कहा वो बिलकुल सही कहा था, इसमें बुरा मानने वाली बात तो थी ही नहीं|

भौजी ने मुस्कुराते हुए कहा|

मैं: तो मेरे पास बैठो!

मैंने उन्हें अपने पास बैठने का इशारा किया तो भौजी अपनी चरपाई से उठ कर मेरे पास बैठ गईं| फिर मेरे कुछ कहे बिना ही उन्होंने मुझे एक छोटा सा kiss किया|

मैं: इतना छोटा?

मैंने लालची बनते हुए पुछा|

भौजी: ये आपकी Good Morning Kiss थी, सुबह से Pending थी ना!

भौजी ने मुस्कुराते हुए कहा|

इतने में नेहा और वरुण दोनों बैट-बॉल ले कर आ गए तो मैं उनके साथ आंगन में खेलने लगा| भौजी भी उठ कर माँ के पास छप्पर के नीचे बैठ गईं और बातें करने लगीं| 4 बजे तक मैंने बच्चों के साथ खूब खेला और लम्बे-लम्बे शॉट मार-मार के उन्हें खूब दौड़ाया| सवा चार बजे पिताजी ने कहा की मैं भौजी के मायके हो आऊँ तो मैं छप्पर के नीचे आया और भौजी से बोला; "जल्दी तैयार हो जाओ!" ये सुन भौजी फ़ौरन तैयार होने चली गईं, इधर मैं बड़े घर आया और हाथ मुँह धोने लगा|

मैंने आज नेवी ब्लू शर्ट पहनी और नीचे क्रीम कलर की पैंट, काले जूते जो पोलिश से चमक रहे थे| बस एक टाई की कमी थी तो पक्का लगता की मैं इंटरव्यू देने जा रहा हूँ| अच्छे से बनठन कर जब मानीं भौजी के घर पहुँचा तो वो मुझे देखते ही बोलीं;

भौजी: Wow! You're looking dashing!

मैं: Thanks! कहते हैं ना 'First Impression is the Last Impression.'

ये कहते हुए मैंने भौजी को गोल घूमकर अपने कपडे दिखाए|

भौजी: मेरा हाथ माँगने के लिए आप कुछ लेट नहीं हो गए? ही..ही..ही...

भौजी कहि-कहि कर के हँसने लगी|

मैं: Very funny !!! अब आप भी ढंग के कपडे पहनना|

मैंने उन्हें मुँह चिढ़ाते हुए कहा|

भौजी: हाँ भई, आप dashing लग रहे हो तो मुझे तो beautiful लगना ही पड़ेगा ना! अच्छा ये बताओ कौन सी साडी पहनू?

मैं: इसे मेरे लिए सरप्राइज ही रखो बस जो भी हो मेरी शर्ट से मैचिंग हो!

ये कहते हुए मैंने उन्हें अपनी बाहों में भर लिया|

भौजी: ठीक है, आप बहार जाओ मैं तैयार हो के आती हूँ|

भौजी ने लजाते हुए कहा|

मैं: बहार जाऊँ? मेरे सामने तैयार होने में कोई हर्ज़ है?

मैंने उनकी आँखों में देखते हुए अपने होंठ आगे कर दिए|

भौजी: नहीं तो... मुझे क्या... आपने तो मुझे देखा ही है|

ये कहते हुए उन्होंने एक बार मेरे होठों को अपने होठों से छुआ और फिर पीछे हट गईं!

मैं: I was kidding!! मैं बहार जा रहा हूँ!

मैंने भौजी को अपनी पकड़ से आजाद किया, भौजी को लगा की मैं उन्हें कपडे बदलते हुए देखने से डरता हूँ तो वो हँसने लगीं!

मैं बहार आके नेहा और वरुण के साथ आंगन में खेलने लगा, तभी रसिका भाभी छप्पर के नीचे से निकलीं और मुझे इस तरह सजा धजा देख रसिका भाभी की आह निकल गई;

रसिका भाभी: हाय! नजर न लग जाए तोहका हमार! का बात है, आज तो बड़े सजे-धजे हो?

मैं: किसी और की तो नहीं पर हाँ आपकी नजर जर्रूर लग जाएगी|

मैंने उन्हें ताना मारते हुए कहा| रसिका भाभी ने आज कई दिनों बाद मुझसे बात की| पता नहीं क्यों पर मेरे मन में ये जिज्ञासा पैदा हुई की क्या सच में रसिका भाभी के मन में इतना मेल भरा है?

मैं: If you don't mind mean asking...

मैं गलती से उनसे अंग्रेजी में बात करने लगा, पर उनका अजीब सा चेहरा देख मुझे मेरी गलती समझ आई|

मैं: ओह... अगर आपको बुरा ना लगे तो मैं आपसे कुछ पूछना चाहता हूँ?

रसिका भाभी को लगा की इतने दिनों बाद मैं इनसे बात करने में दिलचस्पी ले रहा हूँ तो मौका क्यों गंवाया जाए, वो लगीं मुझे माखन लगाने;

रसिका भाभी: हुकुम करो मालिक!

उनके मुँह से ये शब्द सुन मैंने बड़ा ही सड़ा हुआ सा मुँह बनाया और बोला;

मैं: ओह प्लीज! दुबारा मुझे ये मत कहना!

इतना कह के मैं उनसे और बच्चों से 5 कदम दूर आ गया, तभी रसिका भाभी मेरे सामने आ कर खड़ी हो गईं और मेरा रास्ता रोक लिया;

रसिका भाभी: माफ़ कर दिहो! पूछो का पूछत रहेओ?

मैं: उस दिन सब जानते हुए आपने वो बात हमारे सामने इसीलिए दोहराई थी ना क्योंकि आप मेरा फायदा उठाना चाहतीं थी न?

रसिका भाभी ने बात नासमझने का नाटक किया;

रसिका भाभी: का?

मैं: क्यों अनजान बनने की कोशिश कर रहे हो?!

में हाथ बाँधते हुए कहा तो उन्होंने खुद को बचाने की सोची!

रसिका भाभी: नहीं तो... ऊ हम.......

मैं: आप रहने दो... मैं जानता हूँ आपका उद्देश्य क्या था? अब साफ़-साफ़ बता क्यों नहीं देती की क्या चाहती थीं आप?

रसिका भाभी: तोहका चाहित है!

उन्होंने धड़ल्ले से मेरी आँखों में देखते हुए कहा| ये सुन मैंने भोयें सिकोड़ीं और उनको घूरते हुए बोला;

मैं: इतने सब के बाद भी आप का मन मुझसे नहीं हटा?

रसिका भाभी: का करें....आपन भौजी की प्यास तो बुझाये देत हो, पर हमार का? हम सोचन की दीदी डर जाई और हमका 'ऊ' करे खातिर मना न करीहें! शायद हम उनका मनाओ लेइत...'ऊ' के लिए!

रसिका भाभी का ये 'ऊ' किस लिए था ये मैं नहीं समझ पाया था, मुझे लगा की उनका मतलब मेरे साथ सेक्स करने से था पर एक बार उनके मुँह से सुनना चाहता था तो मैंने उनसे पूछ ही लिए;

मैं: किसके लिए?

ये सुन रसिका भाभी के चेहरे पर एक बड़ी घिनौनी मुस्कान आ गई और वो बोलीं;
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रसिका भाभी: तुम, हम और दीदी एक साथ....सससस...चुदाई करत!

उनके मुँह से ये सुन मेरे पाँव तले जमीन खिसक गई! मैं ने कभी सपने भी नहीं सोचा था की उनके मन में इतना गंदापन भरा हुआ है! उस दिन जब उन्होंने ये बात कही थी तो मैं और भौजी यही समझे थे की रसिका भाभी हमें blackmail कर के 'मेरे' साथ सेक्स करना चाहतीं हैं, पर ये तो बहुत बड़ी वाली चिरांद निकली!
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मैं: FUCK!!! You gotta be shitting me!!!

मैंने गुस्से से झल्लाते हुए कहा| साफ़ था रसिका भाभी के पल्ले कुछ नहीं पड़ा था|

रसिका भाभी: क..क......क्या....क्या हुआ?

मैं: यकीन नहीं आता! Fuck.. man... you're...sick......! आपको कोई ..... मैं आपसे बात ही नहीं करना चाहता| इतना मैल भरा है आपके मन में!!! छी!!!

मेरे पास शब्द नहीं थे की मैं उनसे और कुछ कहूँ, उनके मन में मैल ही नहीं बल्कि उनका मन गटर के समान था जिसमें दुनिया भर की गंदगी भरी हुई थी| मुझे अब उनसे घिन्न आने लगी थी, इसलिए मैं गुस्से से तमतमाया हुआ बड़े घर की ओर जाने लगा| अब रसिका भाभी की फटी, क्योंकि वो जानती थी की मैं ये सब भौजी को बता दूँगा और फिर भौजी कुदाल ले कर उनकी गांड फाड़ देंगी! इसलिए वो भागी-भागी मेरे आगे आ कर खड़ी हो गईं और गिड़गिड़ाते हुए बोलीं;

रसिका भाभी: मानु भैया! हम हाथ जोड़ित है...ई बात दीदी को न बताया! तुम तो कछु दिन में चले जैहो...दीदी के इलावा हियाँ हमार है कौन जो हमार ध्यान रखे? हम तोहरे पाँव पडित है...उनका कछु न कहिओ!

मैं कुछ नहीं बोला, तभी नेहा कूदती हुई मेरे पाँव से लिपट गई, उसे देखते ही रसिका भाभी सर झुका कर चली गईं|

नेहा: पापा जी...क्या हुआ?

नेहा ने गर्दन ऊपर करते हुए बोला|

मैं: कुछ नहीं बेटा, आप जा के खेलो और कपडे गंदे मत करना|

नेहा वरुण के साथ खेलने चली गई और मैं हाथ बाँधे भूसा रखने वाले कमरे के बाहर अकेला खड़ा रहा| इतने में मुझे पिताजी की आवाज आई;

पिताजी: अरे वाह भई! आज तो सज-धज के अपनी भौजी के मायके जा रहे हो!

पिताजी ने मेरी तारीफ करते हुए कहा, मैंने मुस्कुरा कर उनकी सिखाई हुई बात उन्हें याद दिलाई;

मैं: पिताजी आपसे ही सीखा है की आदमी की पहचान उसके कपड़ों से होती है!

ये सुन कर पिताजी को बड़ा गर्व हुआ की उनका बेटा उनके पढ़ाये सबक याद किये हुए|

पिताजी: शाबाश बेटे! समधीजी को हमारा प्रणाम कहना और रात वहाँ मत रुकना!

मैंने हाँ में सर हिलाया, और मैं उनके साथ चलता हुआ वापस कुएँ के पास वाले आंगन में आगया| पिताजी को खेतों में कोई जाना-पहचाना दिखा तो उसे आवाज लगते हुए वो खेतों में चले गए|

इधर भौजी जब तैयार हो कर बाहर निकलीं तो उन्हें देखते ही मैं रसिका भाभी की सारी बात भूल गया| लाल रंग की शिफॉन की साडी, उस पर काले रंग का डिज़ाइनर बॉर्डर और काले रंग का ब्लाउज, बाल खुले हुए और सर पे पल्लू था| Wow!! उनकी साडी बिलकुल इस फोटो जैसी थी




बस इस फोटो में ब्लाउज डिज़ाइनर है और फूल स्लीव का है पर उनका प्लैन था और आधी स्लीव का था|

उन्हें देखते ही मेरे दिल की धड़कनें थम गईं और मैं मुँह खोले उन्हें देखता हुआ उनकी तरफ चलने लगा| जब मैं उनके नजदीक पहुँचा तो भौजी शर्माते हुए बोलीं;

भौजी: ऐसे क्या देख रहे हो?

मैं: You're looking fabulous!

मैंने बिना पलक झपके कहा|

भौजी: Awww. Thanks!!!

भौजी ने लजाते हुए कहा|

तभी वहाँ बड़की अम्मा आ गईं और उन्हीं के साथ रसिका भाभी भी आ गईं, दरअसल उन्हें डर था की कहीं मैं भौजी से उनकी शिकायत न कर दूँ| रसिका भाभी की शक्ल देखते ही मेरा मुँह फीका हो गया और मैंने बड़की अम्मा के पाँव छू कर उनसे विदा ली| हम दो कदम चले होंगे की ध्यान आया की नेहा तो यहाँ है ही नहीं!

मैं: नेहा...नेहा ....कहाँ हो बेटा?

मैंने आवाज दी तो नेहा भागती हुई आई, खेलते-खेलते उसके कपडे गंदे हो गए थे जो देख भौजी गुस्सा हो गईं;

भौजी: ये लड़की ना...मना किया था न तुझे....

भौजी उसे और डाँटती उससे पहले ही मैंने उनकी बात काट दी;

मैं: कोई बात नहीं...आओ बेटा, मैं आपको तैयार करता हूँ|

भौजी समझ गईं की मैं नाराज हूँ इसलिए वो बोलीं;

भौजी: लाइए...मैं तैयार कर देती हूँ|

मैं: रहने दो...आपकी साडी की क्रीज़ खराब हो जाएगी| वैसे भी आप नेहा पर भड़के हुए हो खामखा उसे डाँट दोगे!

मैं नेहा को भौजी के घर के भीतर लाया और उनके पलंग पर नेहा की धूलि हुई फ्रॉक थी, वो उसे पहनाई! तभी मेरी नजर भौजी के बक्से के ऊपर रखी क्रीम पर पड़ी, मैंने वो कक्रीम उठाई और ये देख नेहा एकदम से खुश हो गई| मैंने वो क्रीम नेहा को लगाई और उसकी मनमोहक खुशबु सूँघ दोनों बाप-बेटी खुश हो गए| नेहा को ये क्रीम बहुत पसंद थी और वो बार-बार मुझे अपने गाल आगे कर के ये क्रीम सूंघने को कह रही थी| जब मैं उसे गोद में लिए बाहर आया तो खुशबु सूँघ बड़की अम्मा बोलीं;

बड़की अम्मा: अरे वाह! बहुत नीक खसबू है?

ये सुन नेहा शर्मा गई और मेरे कंधे पर अपना मुँह छुपा लिया|

मैं: अम्मा मेरी लाड़ली बेटी इस क्रीम की खुशबु में और भी महकने लगी है|

तभी भौजी चिढ़ते हुए बोलीं;

भौजी: नई क्रीम की डिबिया थी, मैंने भी अभी तक नहीं लगाई थी!

मैं: मैं आपको दूसरी ला दूँगा, ये वाली मेरी बेटी लगाएगी!

मैंने नेहा की तरफदारी की और उसके गाल को सूँघ कर चूमा| खैर हमने बड़की अम्मा को बताया और भौजी के मायके के लिए चल पड़े|

[color=rgb(147,]जारी रहेगा भाग - 4 में...[/color][/QUOTE]
 

[color=rgb(251,]सोलहवाँ अध्याय: पति का प्रेम![/color]
[color=rgb(41,]भाग -4[/color]


[color=rgb(65,]अब तक आपने पढ़ा:[/color]

मैं नेहा को भौजी के घर के भीतर लाया और उनके पलंग पर नेहा की धूलि हुई फ्रॉक थी, वो उसे पहनाई! तभी मेरी नजर भौजी के बक्से के ऊपर रखी क्रीम पर पड़ी, मैंने वो कक्रीम उठाई और ये देख नेहा एकदम से खुश हो गई| मैंने वो क्रीम नेहा को लगाई और उसकी मनमोहक खुशबु सूँघ दोनों बाप-बेटी खुश हो गए| नेहा को ये क्रीम बहुत पसंद थी और वो बार-बार मुझे अपने गाल आगे कर के ये क्रीम सूंघने को कह रही थी| जब मैं उसे गोद में लिए बाहर आया तो खुशबु सूँघ बड़की अम्मा बोलीं;
बड़की अम्मा: अरे वाह! बहुत नीक खसबू है?
ये सुन नेहा शर्मा गई और मेरे कंधे पर अपना मुँह छुपा लिया|
मैं: अम्मा मेरी लाड़ली बेटी इस क्रीम की खुशबु में और भी महकने लगी है|
तभी भौजी चिढ़ते हुए बोलीं;
भौजी: नई क्रीम की डिबिया थी, मैंने भी अभी तक नहीं लगाई थी!
मैं: मैं आपको दूसरी ला दूँगा, ये वाली मेरी बेटी लगाएगी!
मैंने नेहा की तरफदारी की और उसके गाल को सूँघ कर चूमा| खैर हमने बड़की अम्मा को बताया और भौजी के मायके के लिए चल पड़े|

[color=rgb(184,]अब आगे:[/color]

हम तीनों खामोश ही कुछ दूर पहुँचे थे, मुझे भौजी का यूँ घूंघट करना पसंद नहीं था सो मैं उनसे बोला;

मैं: यार प्लीज ये घूँघट हटा दो!

भौजी ने बिना कुछ कहे घूँघट हटा दिया और उनके खुले बाल देख मेरी नजर उनसे हट ही नहीं रही थी, उन्हें इस तरह देख मुझे बीती रात वाला समय याद आने लगा था!

भौजी: क्या हुआ? क्या देख रहे हो?

भौजी ने मुस्कुराते हुए पुछा|

मैं: कुछ नहीं आपको इस तरह देख के मुझे कल की रात याद आ गई|

मेरा मतलब हमारे समागम से था, भौजी मेरी बात समझ गईं और उन्होंने मुझे प्यार से दाहिनी बाजू पर मुक्का मारा|

मैं: Oww !!!

मैंने दर्द होने का नाटक करते हुए कहा| हँसते-मुस्कुराते हुए हम अभी 10 कदम ही दूर गए थे की भौजी ने सवाल पुछा;

भौजी: अच्छा ये बताओ की उस टाइम आपको क्या हुआ था? क्यों आपने मुझे नेहा के कपडे बदलने नहीं दिए?

मैं: कुछ नहीं...छोडो!

मैंने उनकी बात को दरकिनार करते हुए कहा|

भौजी: मुझसे बात छुपाओगे?

भौजी ने बड़े प्यार से मेरे कंधे पर हाथ रखते हुए कहा|

मैं: छुपा नहीं रहा, बस अभी नहीं कहना चाहता| अभी आप खुश हो, अपने मायके जा रहे हो और मैं कोई बेकार का टॉपिक नहीं छेड़ना चाहता|

ये सुन भौजी चलते-चलते रुक गईं और जिद्द करते हुए बोलीं;

भौजी: I wanna know.नहीं तो मैं कहीं नहीं जाऊँगी|

तबतक मैंने 4 कदम आगे पहुँच गया था, पर उनकी जिद्द सुन कर रुक गया और बोला;

मैं: क्यों अपना मूड ख़राब करना चाहते हो?

मैंने उन्हें मुड़ कर देखते हुए कहा|

भौजी: आपको मेरी कसम!

भौजी ने एकदम से मुझे अपनी कसम से बाँध दिया| मैंने नेहा को गोद से उतरा और वो आगे जा कर आम के पेड़ से आम तोड़ने की कोशिश करते हुए उस पर मिटटी के ढेले मारने लगी| इधर मैंने भौजी को रसिका भाभी की सारी बात बताई, मेरी बात सुन के भौजी अपनी कमर पे हाथ धार के खड़ी हो गईं और गुस्से में अपने माथे को पीटते हुए बोलीं;

भौजी: हाय राम! ये चुडेल....

भौजी का मन रसिका को गाली देने का किया, पर मेरी मौजूदगी में वो दाँत पीस कर रह गईं!

मैं: क्यों अपना मुँह गन्दा करते हो, छोडो उसे और चलो चलते हैं माँ-पिताजी इन्तेजार कर रहे हैं|

ये कह मैंने नेहा को फिर से गोद में उठा लिया, लेकिन अब भौजी का मूड ख़राब हो चूका था;

भौजी: अब मूड नहीं है मेरा, आप ही चले जाओ!

भौजी ने गुस्से से मुँह बनाते हुए कहा|

मैं: इसीलिए नहीं बता रहा था आपको!

मैं जानता था की इस वक़्त उन्हें कैसे मनाना है|

मैं: आपका मन नहीं है तो न सही पर मेरा और नेहा का बहुत मन है माँ-पिताजी से मिलने का! हम तो जायेंगे, आप ऐसा करो घर लौट जाओ|

ये कह के मैंने भौजी के गुस्से को पूरी तरह से नजरअंदाज किया और नेहा को गोद में ले कर अपने ससुराल की ओर चल दिया| भौजी सोचे बैठीं थीं की मैं उन्हें मनाऊँगा पर जब मैं उनके पास भी नहीं आया तो वो ही तेजी से मेरे पीछे आईं ओर मेरे कंधे पर हाथ रखते हुए मुझे अपनी तरफ घुमाया;

भौजी: मुझे तो लगा की आप मुझे मनाओगे, पर आपने तो एक भी बार मुझे नहीं मनाया!

भौजी ने शिकायत करते हुए कहा|

मैं: क्योंकि मैं जानता हूँ की आप मेरे बिना वापस जाओगे ही नहीं, अब चलो वापस भी आना है!

मैंने हँसते हुए कहा|

मेरी हँसी सुन भौजी का मन हल्का हुआ और गुस्सा काबू में आ गया, तथा हम बातें करते हुए भौजी के घर यानी मेरे ससुराल पहुँचे| भौजी का घर सड़क के किनारे पर ही था, सबसे पहले एक पान की गुमटी थी जिसे चरण काका चलाया करते थे| सड़क के ठीक सामने मिटटी का एक बड़ा सा घर था जो भौजी का घर था, दाहिनी बगल पानी का नल (हैंडपंप) था, बायीं तरफ जानवर बंधे थे और एक छप्पर था जिसके नीचे रसोई और लोग बैठा करते थे| हमारे आने की खबर बड़के दादा ने पहले ही कर दी थी इसलिए जैसे ही हम घर पहुँचे तो घर के आँगन में ही भौजी के माँ-पिताजी अर्थात मेरे सास-ससुर चारपाई डाले बैठे थे| अब मैं मन ही मन पूरी तैयारी कर के आया था की मुझे अपने सास-ससुर पर अपना अच्छा इम्प्रैशन जमाना है| हमें देख के ससुर जी खड़े हुए, मैंने जा कर उनके पाँव छुए और कहा; "पांयें लागि पिताजी|" ससुर जी ने मेरे सर पर हाथ रख कर आशीर्वाद दिया और मुझे अपने गले लगा लिया, उनके गले लग कर मुझे ठीक वैसा ही एहसास हुआ जैसे अपने पिताजी के गले लग कर होता था| फिर मैं सासु जी के पास गया और उनके पाँव छू कर "पायें लागि माँ" कहा| माँ ने मुझे आशीर्वाद दिया और मेरा माथा तथा गाल चूमने लगीं| उनका प्यार बिलकुल माँ और बड़की अम्मा जैसा था, ये दृश्य ऐसा था जिसे देख भौजी को ठीक वैसा ही महसूस हो रहा था जैसा आज मुझे हुआ था जब माँ-पिताजी ने भौजी से बात की थी| उधर नेहा जो मेरी गोद में थी वो मुझे माँ (सासु माँ) द्वारा चूमे जाने से बहुत खुश थी और उनके चूमने के बाद उसने भी मुझे पप्पियाँ देनी शुरू कर दीं| ये दृश्य देख सब खिलखिलाकर हँस पड़े, मैंने नेहा को गोद से उतरा तो उसने माँ-पिताजी के पाँव छुए और फिर वापस मेरे पाँव से लिपट कर खड़ी हो गई| माँ-पिताजी ने हमें बिठाया और शर्बत अदि बनवाना शुरू किया गया| मैंने नेहा को गोद में उठाया और चारपाई पर बैठ गया, ससुर जी की नजरें मेरे पहनावे पर थीं और उनके चेहरे की मुस्कान बता रही थी की वो मेरे पहनावे से बहुत खुश हैं|

ससुर जी: मुन्ना, बोली भासा से तो तुम तनिको सहरी नाहीं लागत हो?!

ससुर जी मुस्कुराते हुए कहा|

मैं: पिताजी....

इतना कह कर मैं रुक गया|

मैं: आपको बुरा तो नहीं लगा मैंने आपको पिताजी कहा?

मैंने थोड़ा झिझकते हुए पुछा|

ससुर जी: अरे नाहीं-नाहीं मुन्ना! तुम हमका पिताजी ही कहो!

मैं: जी तो पिताजी मेरा मानना है की जैसा देस वैसा भेस, भले ही मई शहर में रहता हूँ पर आखिर जुड़ा तो यहीं की मिटटी से हूँ|

ये सुन कर ससुर जी बड़े प्रभावित हुए और उनके चेहरे पर गर्वपूर्ण मुस्कान आ गई| इतने में सासु माँ सरबत ले कर आईं, मैंने सरबत का गिलास लिया और ससुर जी ने भी एक गिलास उठाया| वो मुड़ कर जाने लगीं तो मैंने उन्हें रोक लिया;

मैं: माँ आप भी तो बैठिये|

ये सुन वो थोड़ा हैरान हुईं और पिताजी को देखने लगीं, पिताजी ने सर हाँ में हिला कर उन्हें बैठने की इजाजत दी तो वो मेरे ही पास बैठ गईं| भौजी जो घर के भीतर बैठीं थीं वो ये दृश्य देख कर मुस्कुराती हुईं आईं और पिताजी के दाएँ तरफ खड़ीं हो गईं| अनिल जो चरण काका के साथ बाहर गया था, वो लौट आया था, इसलिए वो और चरण काका पिताजी के साथ बैठ गए| भौजी की एक बहन जिसको मैं नहीं जानता था वो पड़ोस में ही थी, कुछ देर में वो भी आ गई और घर की दहलीज पर घूंघट काढ़े खड़ी हो कर मुझे देखने लगी| जब मेरी नजर उसपर पड़ी तो भौजी ने मेरी नजर का पीछा करते हुए पलट कर देखा, नजाने क्यों पर उसे देखते ही भौजी के जिस्म में आग लग गई और गुस्से से उनकी सांसें तेज हो गईं! इधर पिताजी उस लड़की से गुस्से में बोले;

ससुर जी: अरे हुआँ का खड़ी है, जाके चाय बनाते नहीं बनता है?

ये सुन वो फटाफट घर के भीतर घुस गई;

सासु माँ: हुआँ का घुसत है, जा के रसोई में चाय बना और दुइ ठो थाली ले कर आ| ई लड़की भी न, बिलकुलए गधी है!

वो हड़बड़ा कर बाहर आई और हाथ-पैर धो कर चाय बनाने चली गई| इधर चरण काका की बेटी जिसकी शादी हुई थी वो भी आ गई| घर पर अच्छा जमावड़ा लगा हुआ था;

चरण काका: अरे मुन्ना हम तोहका भेटाये खतिर व्याकुल रहन! तुम्हीं मुन्नी का भेज्यो रहेओ, नाहीं तो मुन्नी हमसे रिसियाई रहे!

मैं: काका जी ऐसा नहीं है!

मैंने भौजी का बचाव करते हुए कहा, इतने में भौजी की बहन दो थालियाँ ले आई और इस बार उसने घूंघट नहीं किया था| माँ ने काका द्वारा लाये हुए समोसे परोसे और पिताजी ने मुझे शुरू कर ने को कहा| मैंने एक समोसा उठाया और उसे तोड़ कर एक टुकड़ा नेहा को खिलाया, ये देख माँ बोलीं;

सासु माँ: देखत हो मुन्नी (नेहा) का, जबसे आई है एक्को बार हमरे पास नाहीं आई! तब से आपन चाचा संगे बैठी है!

माँ ने शिकायत की, तभी भौजी पीछे से बोल पड़ीं;

भौजी: माँ ई सारा दिन इन्हीं की गोद में रहत है, इन्हीं की संगे खात है, इन्हीं के संगे खेलत है और तो और इन्हीं के संगे सोवत भी है!

ये सुन सब हँस पड़े| अब समय था पिताजी का भौजी की शिकायत करने का;

ससुर जी: मुन्ना वैसे कहेक पड़ी, तुम कछु तो जादू कर दिहो है! नाहीं तो जब से ई का बियाह हुआ है ई बस आपन मनमानी करत है! जब छोट रही तब बिलकुल बकरी जइसन रही, जहाँ हाँक दिहो हुआँ चली जात रही, पर चार किताब का पढीस हमसे जुबान लड़ाई लागि है! अब तुम्ही बताओ ई कौन बात है की आपन चरण काका की बिटिया की सादी में नाहीं आवत रही, हम अनिल का दो चककर दौड़ाएं तभाओं नाहीं मानी, पर नजाने तुम का कहेऊ की ऊ झट से मान गई!

पिताजी की शिकायत सुन भौजी का सर शर्म से झुक गया, अब मुझे उन्हें बेक़सूर साबित करना था ताकि उनकी वो गरिमा वो मान-सम्मान उन्हें लौटा सकूँ;

मैं: पिताजी मेरे बचपन से ही हम दोनों अच्छे दोस्त रहे हैं, दोनों ही पढ़े लिखे हैं ऐसे में हमारा तालमेल बहुत अच्छा है| फिर दोस्ती में दोस्त की कही बात तो माननी ही पड़ती है न?! रही इनके बहस करने की बात तो, कतिपय बुरा मत मानियेगा परन्तु मैंने यहाँ गाँव में देखा है की स्त्रियों को हमेशा दबा कर रखा जाता है| जब इंसान पढ़-लिख जाता है तो उसमें अन्याय से लड़ने और फर्क करने की समझ-बूझ आ जाती है और वो किसी के भी विरुद्ध खड़ा हो जाता है| लेकिन इसका मतलब ये कतई नहीं की अपने माँ-पिताजी की आज्ञा की अवहेलना की जाए! इनका शादी में ना आना बहुत गलत था परन्तु इसके लिए भी मैं ही दोषी हूँ! पता नहीं आपको याद होगा या नहीं, परन्तु कुछ साल पहले आप ने एक हवं का आयोजन किया था और उसमें सम्मिलित होने इन्हें आना पड़ा था| मुझे ये वडा कर गईं थीं की जल्दी लौट आएँगी परन्तु इन्हें यहाँ अधिक समय लग गया, अब वहाँ इनके आलावा मेरा कोई दोस्त नहीं था तो मैं इनसे बहुत नाराज हो गया| इतना नाराज की मैंने दिल्ली वापस जाने की जिद्द पकड़ ली और तो और जाते समय हमसब यहीं से गुजरे थे और माँ-पिताजी आपसे मिलने भी आये थे, परन्तु मैं अपने गुस्से में मग्न रिक्शे से उतरा तक नहीं| फिर कई साल तक न मैंने इनसे कोई बात की और न ही दुबारा गाँव आया, इसी डर से की कहीं मैं इस बार भी गुस्सा न हो जाऊँ इन्होने यहाँ आने से मना कर दिया! पर ये भूल गईं की अब मैं छोटा नहीं रहा!

मेरी बात सुन सब को तसल्ली हो गई की मैंने भौजी पर कोई जादू-वादु नहीं किया और सभी के मन से हमारे रिश्ते के प्रति शक का बीज अंकुरित होने से पहले ही नष्ट हो गया| परन्तु मेरे स्त्रियों को दबाने की बात पिताजी को लग चुकी थी, क्योंकि उनका स्वभाव भी बिलकुल वैसा ही था इसलिए उन्होंने अपनी सफाई देते हुए कहा;

ससुर जी: हियाँ गाँव देहात में नियम-कानून हम जइसन अनपढ़ और कम पढ़े लिखे लोग बनावत हैं| हम मानित है की जउन तुम कहत हो ऊ सही बात है पर जब तक तोहरे जइसन पढ़े-लिखे लोग हियाँ रही के हमका शिक्षित करीहें तो ई सोच बदल सकत है! लेकिन ई बीहड़ में के आना चाहि?

मैं: जी आपने बिलकुल सही कहा, पर जब यहाँ भी विकास होगा तो पढ़े-लिखे लोग यहाँ अवश्य आएंगे और ये सोच अवश्य बदलेगी|

तभी भौजी की बहन चाय के गिलास ले आई और एक-एक कर सबको देने लगी| जब वो मेरे पास आई तो मैंने उसे ठीक से देखा, भूरी आँखें, मोटी भवें, मोठे-मोठे होंठ, साधारण सी साड़ी पहने तथा चेहरे पर बत्तीसी लिए वो मेरे पास आई








और मुझे चाय दी| मुझे उसे देखते हुए पा कर भौजी के तन-बदन में आग लग गई! वो मुझे चाय दे कर वो वहाँ से चली गई और हम सब चाय पीने लगे|

ससुर जी: वैसे मुन्ना कहेक पड़ी तोहरा बात करे का ढंग बिकुल पंडित जइसन है!

ये सुन कर सब ठहाका लगा कर हँसने लगे| दरअसल मैं पिताजी से शुद्ध हिंदी में बात कर रहा था तो उन्होंने मेरी बात का ये अर्थ निकाला| लेकिन तभी भौजी मेरी प्रशंसा करते हुए बोलीं;

भौजी: पिताजी यहाँ आपके आठ बैठे हैं न इसीलिए इतनी शुद्ध हिंदी में बात कर आहे हैं वहाँ घर पर एक बार डॉक्टर आया था तो उससे इन्होने शुद्ध अंग्रेजी में बात की थी|

हमारे गाँव में केवल मरीज ही डॉक्टर के जाता था, जब भौजी ने कहा की डॉक्टर घर आया था तो सब ने उत्सुकतावश उनसे पुछा की ऐसा क्या हुआ था की डॉक्टर को घर आना पड़ा? तब भौजी ने उन्हें बेल्ट काण्ड के बारे में सब बताया, ये सुन कर पिताजी गंभीर हो गए और बोले;

ससुर जी: मुन्ना..तुम आपन भौजी का बचाय खातिर आपन जान दाँव पर लगाए दिहो? आज हो समधी जी बतावत रहे की कल तुम्ही हमार बेटी का उस भगदड़ से बचाये रहेओ! मुन्ना.हम तोहार ऋणी हैं!

पिताजी अपने दामाद चन्दर को तो कोस नहीं सकते थे इसलिए उन्होंने मुझे धन्यवाद देते हुए मेरे आगे हाथ जोड़ दिए| मैंने फ़ौरन उनके हाथ अपने दोनों हाथों के बीच थाम लिए और बोला;

मैं: पिताजी ऐसा न कहिये! मैंने आप पर या किसी पर कोई एहसान नहीं किया मैंने बस अपना फ़र्ज़ निभाया है!

अनिल: जीजा जी ये तो आपका बड़प्पन है!

मैं: यार प्लीज ऐसा मत कहो!

चरण काका: नाहीं मुन्ना हम बहुत से शहरी लड़िकवा देखेन है, तुम उनका जइसन तनिको नाहीं हो! कउनो घमंड नाहीं करत हो, आराम से बातुआत हो, आपन बात बहुत नीक ढंग से रखत हो! भले ही तुम न मानो पर हम सब तोहार कर्जदार हैं!

मैं: काका जी अब आप मुझे शर्मिंदा कर रहे हैं!

वहाँ सब मेरी और बड़ाई न करें इसलिए मैंने फ़ौरन प्रसाद निकाला और सब को दिया| प्रसाद पा कर सब बहुत खुश हुए, क्योंकि हमारे वहाँ से बहुत कम लोग ही अयोध्या जाया करते थे| खैर चाय-पानी-नाश्ता अच्छे से हो गया था तो समय था चलने का|

मैं: अच्छा पिताजी अब विदा चाहूँगा|

ये कह कर मैंने हाथ जोड़े|

पिताजी: अरे मुन्ना तनिक आज की रात हियाँ रुक जातेओ! तोहार भौजी की बहन और ऊ का पति भी हियाँ आये भये हैं!

चरण काका: ऊ बगल गाँव गवा है, साइकिल बनवाये खातिर!

मैं: पिताजी अवश्य रुकता परन्तु कल क्या हुआ वो आप तो जानते ही हैं, ऐसे में माँ-पिताजी कल घबरा गए थे| तो उन्होंने कहा था की बेटा रात होने से पहले लौट आना| मैं फिर कभी अवश्य आऊँगा!

मैंने हथजोड़ कर उनसे निवेदन किया| तभी भौजी की बहन आ कर भौजी के बगल में खड़ी हो गई और मुझसे मुस्कुराते हुए बोली;

भौजी की बहन: जीजा कमसकम आज रात तो रुक जाओ, हमहुँ का तोहसे बतुआवे का मौका मिल जाई!

मैं: हम यहाँ बैठे बात ही तो कर रहे थे, आप ही यहाँ नहीं आये?

मैंने मुस्कुराते हुए कहा|

भौजी की बहन: हम तो हुआँ रतिया खातिर खाब बनावत रहन!

उसने बड़ी चपलता से जवाब दिया|

मैं: अगलीबार आऊँगा तब अपना समान ले कर आऊँगा और यहीं रहूँगा!

मैंने हँसते हुए कहा|

भौजी की बहन: तब हम हियाँ न होब तो?

मैं: तो क्या हुआ? पिताजी फ़ोन कर के आपको बुला लेंगे!

ये सुन सब ठहाका मार के हँसे, लेकिन भौजी को ये हँसी जरा भी नहीं जचि! वो हमारी बातें सुन भौजी मन ही मन जली जा रहीं थीं| मेरा रुकना तो नामुमकिन था तो वो भौजी से बोली;

भौजी की बहन: दीदी तुहुँ 1-2 दिन रुक जाओ!

मैं भौजी के मन में भर रहे गुस्से से अनजान था इसलिए बीच में बोल पड़ा;

मैं: आप एक-दो दिन रुक जाओ, सबसे मिल लो! मैं घर निकलता हूँ|

पर भौजी ने मुझे आँखें दिखाते हुए कहा;

भौजी: नहीं... कल नेहा का स्कूल है|

उन्होंने बहाना मारा, जिस तरह से उन्होंने मुझे घूरा था उससे मैं समझ गया की उनका मन रसिका भाभी की कही बात की वजह से अब भी नराज है| मैंने भौजी को थोड़ा हँसाना चाहा और मुस्कुराते हुए बोला;

मैं: कल तो Sunday है|

ये सुन कर भौजी ने मुझे फिर घूरा और बोलीं;

भौजी: पर नेहा का होमवर्क भी तो है, पहले ही दो दिन छुट्टी मार चुकी है ये|

मैं समझ गया की भौजी जानबूझ कर बहाना मार रहीं हैं, कारन था मुझे वहाँ फिर से रसिका के साथ न रहना न पड़े!

पिताजी: मुन्नी अब तो तोहार 'मानु जी' औ कहत हैं, अब तो रुक जा!

पिताजी ने मेरा नाम ले कर मेरी टाँग खिंची और भौजी से कहा|

भौजी: नहीं पिताजी...आपको तो पता ही है की वहाँ भी सब मुझे ही सम्भालना है| छोटी (रसिका भाभी) तो कुछ काम-धाम करती नहीं! मेरे आलावा माँ-पिताजी को किसी के हाथ खाना अच्छा नहीं लगता, तो उनका ख्याल भी मुझे ही रखना है|

भौजी ने बड़े गर्व से अपनी जिम्मेदारी बताते हुए कहा|

पिताजी: मुन्नी रूक जाती तो अच्छा रहा|

पिताजी ने बहुत प्यार से कहा, उनकी बात सुन मुझे एक बाप-बेटी के प्यार का एहसास हुआ और कल जिस तरह से मेरे माँ-पिताजी मेरे न होने से व्याकुल थे, वही दर्द मैंने आज फिर महसूस की| इसलिए मैंने भौजी के गुस्से की परवाह किये बिना उनसे फिर से मिन्नत की;

मैं: रूक जाओ न प्लीज!

मैंने प्यार से कहा| लेकिन भौजी पर मेरे इस प्यार का कोई असर नहीं पड़ा और वो उखड़ते हुए बोलीं;

भौजी: बोला ना नहीं|

उनका यूँ मुझसे बेवजह उखड़ना मुझे बिलकुल अच्छा नहीं लगा, गुस्सा तो बहुत आया पर जैसे तैसे मैंने उसे दबा दिया| कहीं माँ-पिताजी भौजी का न झाड़ दें इसलिए मैंने बात संभाली और नकली मुस्कान लिए हुए बोला;

मैं: ये नहीं मानने वाली पिताजी, हम चलते हैं! पायलागि!!! पायलागि माँ! पायलागि काका जी!

मैंने सबके पाँव छुए और नेहा ने भी मेरी तरह सबके पाँव छुए, सब ने हम बाप-बेटी को बहुत प्यार दिया| उधर भौजी का मुँह बिलकुल सड़ा हुआ था, जब उनकी बहन ने उन्हें गले मिलना चाहा तो भौजी ने उसकी छाती पर हाथ रख कर उसे अपने नजदीक ही नहीं आने दिया, नेहा ने भी जब अपनी मौसी के पास जाना चाहा तो भौजी ने उसे आधे रस्ते में ही रोक लिया और उसका हाथ पकड़ कर अपने माँ-पिताजी का आशीर्वाद ले कर मेरे पीछे चल पड़ीं| नेहा ने अपना हाथ छुड़ाया और मेरे पास भाग आई, मैंने उसे गोद में उठाया और सबको आखरी बार हाथ जोड़ कर नमस्ते की, फिर मैं आगे-आगे और भौजी सर झुकाये हुए पीछे-पीछे चल पड़े| हम तीनों चुपचाप चलते हुए चौक पर पहुँचे, नेहा मेरी गोद में चढ़ी हुई इधर-उधर देख रही तह और बहुत खुश थी| जैसे चौक पार हुआ, तो भौजी बोलीं;

भौजी: मुझे माफ़ कर दो|

भौजी सर झुकाये हुए बोलीं और एकदम से जहाँ थीं वहीं रुक कर जम गईं|

मैं: ठीक है!

मैंने चलते हुए कहा और दो कदम आगे बढ़ गया|

भौजी: नहीं आपने मुझे माफ़ नहीं किया|

भौजी ने वहीँ से खड़े-खड़े कहा पर मैं तबतक और दो कदम आगे चल चूका था|

मैं: कर दिया|

मैंने बिना उनकी तरफ मुड़े कहा और दो कदम और आगे बढ़ गया|

भौजी: नहीं किया!

भौजी ने जिद्द करते हुए कहा|

उनकी ये जिद्द देख मुझे बहुत गुस्सा आया और मैं एकदम से पलटा और उन्हें डाँटते हुए बोला;

मैं: ये सब क्या हो रहा था? रसिका का गुस्सा अपने घरवालों पर क्यों उतार रहे थे? यहाँ तक की मेरी बात भी अनसुनी कर दी और मुझे ही झिड़क दिया?

मेरा गुस्सा देख भौजी का सर शर्म से झुक गया| जब मैं गलत होता हूँ तो कोई मुझे 40 बातें सुना दे मैं कुछ नहीं कहूँगा, पर अगर बिना कोई गलती के मुझे सुनाये तो वो मुझे नाक़ाबिले बर्दाश्त था|

भौजी: मैं उस बात से परेशान नहीं थी!

भौजी ने सर झुकाये हुए कहा|

मैं: तो किस बात से आपका मुँह फीका पड़ गया?

मैंने भोयें सिकोड़ कर पुछा| ये सवाल सुन भौजी की आँखों में आँसू छलक आये, उनकी आँखों में आँसूँ देख मैं डर गया! मैंने तुरंत नेहा को गोद से उतरा और जाके उन्हें गले से लगा लिया, भौजी मेरी छाती से लिपट कर रोने लगीं;

मैं: क्या हुआ? बताओ न प्लीज?

मैंने उनके सर को सहलाते हुए पुछा|

भौजी: उसे देखते....ही वो सब......बातें याद.....आ गईं?

भौजी रोते हुए बोलीं|

मैं: किसे?

मैंने भौजी को खुद से दूर करते हुए उनके दोनों कन्धों को पकड़ कर पुछा|

भौजी: शगुन...मेरी छोटी बहन!

भौजी ने अपना रोना रोकते हुए कहा| तब मुझे भौजी की सारी बात याद आई, ये उनकी वही बहन है जिसके साथ चन्दर ने शादी से पहले मुँह काला किया था!

मैं: ओह्ह! बस...चुप हो जाओ! मुझे नहीं पता था की ये वही है...| समझ सकता हूँ की उसे देखते ही आपके सारे जख्म हरे हो गए होंगे और इसीलिए आपका व्यवहार उखड़ा हुआ था|

मैंने भौजी को फिर से अपने गले लगा लिया और उनकी पीठ सहलाते हुए उन्हें शांत करने लगा| करीब 5 मिनट लगे उन्हें शांत होने में और उनके हाथों ने मेरी पीठ पर चलना शुरू कर दिया| हम दोनों एक दूसरे की बाहों में लिपटे हुए सड़क के एक किनारे पर खड़े थे, तभी कुछ दूर से एक साइकल सवार की घंटी की आवाज सुनाई दी हमलोग सड़क के मोड़ पर थे इसलिए वो हमें नहीं देख पाया था, उसकी साइकिल की घंटी की आवाज ने हमें सचेत कर दिया और हम दोनों अलग हो गए| उस आदमी के जाने तक हम दोनों दूर-दूर खामोश खड़े रहे, जब वो चला गया तो मैंने भौजी से कहा;

मैं: अच्छा अब मेरी तरफ देखो और भूल जाओ उन बातों को, जो हो गया सो हो गया| मैं हूँ ना आपके लिए यहाँ, तो फिर?

मैंने भौजी का चेहरा अपने हाथों में लेते हुए कहा|

भौजी: जी...अब आप ही का तो सहारा है वरना मैं तो कब की मर चुकी होती|

भौजी ने हताश होते हुए कहा, पर उनका यूँ हताश होना मुझे बिलकुल पसंद नहीं था इसलिए मैंने उन्हें थोड़ा डाँटते हुए कहा;

मैं: यार आप फिरसे मरने की बात कर रहे हो? मेरा नहीं तो हमारे बच्चों के बारे में तो सोचो?!

मेरी डाँट सुन भौजी ने अपने कान पकडे और सर झुकाये हुए बोलीं;

भौजी: सॉरी!

भौजी का मन अब हल्का हो चूका था, उधर नेहा हमसे 10 कदम आगे एक खुले खेत में एक चरवाहे को बकरियों को हाँकते हुए देख रही थी, मैंने नेहा को अपने पास बुलाया और उसे गोद में ले लिया|

[color=rgb(147,]जारी रहेगा भाग - 5 में...[/color]
 

[color=rgb(251,]सोलहवाँ अध्याय: पति का प्रेम![/color]
[color=rgb(44,]भाग - 5[/color]


[color=rgb(0,]अब तक आपने पढ़ा:[/color]

मैं: यार आप फिरसे मरने की बात कर रहे हो? मेरा नहीं तो हमारे बच्चों के बारे में तो सोचो?!
मेरी डाँट सुन भौजी ने अपने कान पकडे और सर झुकाये हुए बोलीं;
भौजी: सॉरी!

भौजी का मन अब हल्का हो चूका था, उधर नेहा हमसे 10 कदम आगे एक खुले खेत में एक चरवाहे को बकरियों को हाँकते हुए देख रही थी, मैंने नेहा को अपने पास बुलाया और उसे गोद में ले लिया|

[color=rgb(226,]अब आगे:[/color]

हम तीनों घर की ओर चल दिए और चलते-चलते हमारी बातें शुरू हुईं;

भौजी: पिताजी (ससुर जी) ने आपको इतना कहा पर आप रुके क्यों नहीं मेरे घर?

मैंने सोचा की चलो भौजी के साथ थोड़ी दिल्लगी की जाए;

मैं: वहाँ रुकते तो रात को हम मिलते कैसे? कल रात के बाद तो हाल ये है की बिना आपसे मिले चैन नहीं आता! देख लेना आज रात को मेरा सोना दुश्वार हो जायेगा!

मैं नहीं जानता था की भौजी का भी वही हाल है जो मेरा है;

भौजी: मेरा भी कुछ ऐसा ही हाल है, वो दिन जब आपने मुझे शादी में भेजा था मैंने कैसे निकाले ये मैं ही जानती हूँ| रातभर तकिये को अपने सीने से चिपका के सोती थी, ये मान लेती थी की आप मेरे साथ सो रहे हो| जब आँख खुलती तो तकिये को ही kiss कर लेती पर वो कभी सामने से जवाब नहीं देता था!

भौजी ने मुझसे शिकायत की|

मैं: कम से कम आप सो तो रहे थे! मेरा तो हाल ही बुरा था, ऐसा था मानो मुझे एक जानवर के साथ एक कमरे में बंद कर दिया हो, वो भी ऐसा जनवार जो मुझे नोच के खाने को तैयार हो! इधर मेरी आँख बंद हुई और वो जानवर मेरी छाती पर बैठ मुझे खाने लगा!

भौजी: जानती हूँ, अगर मैं आपकी जगह होती तो मर ही जाती!

भौजी के मुँह से फिर मरने की बात निकली तो मैंने उन्हें गुस्से से घूरा और डाँटते हुए कहा;

मैं: फिर आपने.....

अभी इतना ही बोला था की भौजी ने अपने दोनों कान पकड़ लिए और बोलीं;

भौजी: सॉरी..सॉरी... अब कभी नहीं बोलूँगी!

मेरा गुस्सा शांत करने को भौजी ने ठंडी आह भरी और बोलीं;

भौजी: हाय! कल रात के बाद तो अब जैसे आज आपके बिना नींद ही नहीं आने वाली!

मैंने भौजी के दाएँ गाल को खींचा और कहा;

मैं: Same here.

हमारे घर से भौजी के घर का रास्ता हद्द से हद्द बीस मिनट का होगा, जिसे हमने दिल्लगी करते-करते आधे घंटे का बना दिया| हम घर पहुँचे, कपडे बदले और मैंने पिताजी को सारा हाल सुनाया| सब बातें खत्म हुईं और हम सब खाना खाने बैठ गए, खाने के दौरान भी कल की ही बातें चलती रहीं| खाना अम्मा और माँ ने मिलके बनाया था और खाना बहुत स्वादिष्ट था, सब ने माँ और अम्मा की बहुत तारीफ की, खास कर मैंने! खाने के बाद सोने का प्रोग्राम वही था जो परसों था, सभी स्त्रियाँ बड़े घर में सोने वाली थीं| पर मैंने आज जानबूझ के अपनी पुरानी जगह सोना चाहता था, लेकिन भौजी नहीं मान रही थीं| हम दोनों मेरी चारपाई जो भौजी के घर के बाहर थी वहाँ खड़े थे;

मैं: यार प्लीज मान जाओ, जब से आया हूँ आपके साथ ही सो रहा हूँ और ऐसा नहीं है की मेरा मन आपके पास रहने का नहीं है, परन्तु घर में लोग क्या सोचते होंगे की मैं हमेशा आपके पास ही रहता हूँ?!

बेमन से ही सही भौजी मान गईं और बोलीं;

भौजी: ठीक है पर एक शर्त है!

मैं: बोलो!

मैंने अपने हाथ बाँधते हुए कहा|

भौजी: आप मुझे सुलाने के बाद सोने जाओगे वरना मैं सारी रात यूँ ही तड़पती रहूँगी!

भौजी ने मुँह बनाते हुए कहा|

मैं: ठीक है, इतना तो मैं अपनी जानेमन के लिए कर ही सकता हूँ|

मैंने मुस्कुराते हुए कहा| मेरे मुँह से ये शब्द अनायास ही निकला था और मेरा भौजी को जानेमन कहना उनके दिल को छू गया;

भौजी: क्या कहा आपने?

मैं: जानेमन!

मैंने मुस्कुराते हुए फिर वही शब्द दोहराया|

भौजी: हाय!!! सच्ची मैं बहुत दिनों से सोच रही थी की अकेले में आप को क्या कह कर बुलाऊँ? आपके मुँह से जानेमन शब्द सुन मैं बता नहीं सकती मुझे कितनी ख़ुशी हुई है, अब से मैं भी आपको जानू कह के बुलाऊँगी|

भौजी ने बड़े अरमानो से कहा| मैं मुस्कुरा दिया और बोला;

मैं: ठीक है पर सब के सामने नहीं|

मैं जानता था की भौजी कई बार भावनाओं में बह जातीं हैं और उन्हीं भावनाओं में बहते हुए कहीं वो मुझे सबके सामने जानू कह देतीं तो अनर्थ हो जाता!

भौजी: Done!

भौजी ने मुस्कुराते हुए कहा|

भौजी: अच्छा जानू, अब मुझे सुलाओ!

भौजी ने मसखरी करते हुए कहा|

मैं: सुलाऊँ? अब क्या आपको गोदी में लेके सुलाऊँ?

मैंने हँसते हुए कहा|

भौजी: वो मैं नहीं जानती, जबतक आप मुझे सुलाओगे नहीं मैं आपको कहीं नहीं जाने दूँगी!

भौजी ने बचपना दिखाते हुए जिद्द की|

मैं: अच्छा बाबा!

वरुण और नेहा दोनों ही जाग रहे थे और आपस में खेल रहे थे क्योंकि मैंने अभी तक दोनों को कहानी नहीं सुनाई थी| इतने में रसिका भाभी खाना खा कर निकलीं और वरुण को अपने साथ ले गईं| उधर मैंने नेहा को आवाज मारी और दौड़ी-दौड़ी मेरे पास आई|

नेहा: जी पापाजी!

नेहा मुस्कुराते हुए खुसफुसा कर बोली;

मैं: बेटा आपको कहानी सुननी है?

नेहा ख़ुशी से हाँ में सर हिलाया, मैंने भौजी को बड़े घर जाने का इशारा किया और भौजी किसी बच्चे की तरह हँसते हुए बड़े घर चल दीं|

मैं: चलो आप मेरी गोदी में आ जाओ|

मैंने नेहा को गोदी में लिया और भौजी के पीछे-पीछे बड़े घर चल दिया|

बड़े घर पहुँच कर देखा तो रसिका भाभी गायब थीं, वरुण उनकी चारपाई पर दूसरी तरफ मुँह कर के लेटा हुआ था| भौजी की चारपाई सबसे पहले थी और वो उस पर लेटी हुई मेरा ही इंतजार कर रहीं थीं| मैं नेहा को गोद में लिए हुए ही लेट गया, मेरी सीधे हाथ की बाजू पर नेहा का सर था और मैंने उसी टांगें अपने बाएं हाथ से पकड़ रखीं थीं| मैं बिकुल सीधा पेट के बल लेटा था, नेहा का ध्यान मेरी कहानी पर और उसका मुँह स्नान घर की तरफ था| मैंने उसे कहानी सुनना शुरू किया तो भौजी की मस्तियाँ चाली हो गईं| उन्होंने अपने बाएँ हाथ को सरका कर मेरे सर के नीचे से मेरे बाएँ हाथ की तरफ बढ़ा दिया| मैंने उनके हाथ को अपना तकिया बना लिया और भौजी ने उसी हाथ से मेरी बाईं बाजु पकड़ उसे मींजने लगी| भौजी चूँकि मेरी तरफ करवट ले कर लेटी थीं तो उन्होंने अपना दायां हाथ रखा कर मेरे लिंग पर रख दिया और पजामे के ऊपर से उसे धीमे-धीमे दबाने लगीं| ये दोहरा हमला मेरे लिए बड़ा आनंदायी था और मेरा लिंग धीमे-धीमे अपना अकार लेने लगा था की तभी माँ बड़की अम्मा से बातें करतीं हुई बड़े घर की तरफ आईं| उनकी आवाज हमें कुछ दूर से ही आ गई थी तो भौजी ने धीरे से अपना हाथ वापस पीछे सरका लिया, रसिका भाभी जो गायब थीं वो सबसे पहले घर में घुसीं, भौजी ने जैसे ही उन्हें देखा तो ऐसे गुर्राईं जैसे अभी रसिका भाभी का खा जाएंगी! रसिका भाभी सहमी सी अपने बिस्तर पर लेट गईं और फ़ौरन दूसरी तरफ मुँह करके लेट गईं| माँ और बड़की अम्मा घर में घुसीं और मुझे नेहा को ऐसे गोद में लिए हुए लेटे देखा;

माँ: तू सोया नहीं अभी तक?

में ने प्यार से डाँटते हुए कहा|

मैं: जी नेहा को कहानी सुना रहा था|

मैंने बहाना मारा, भौजी के पास होते हुए मेरा मन कहाँ सोने दे रहा था!

माँ: चल जल्दी सो जा, सुबह बिना किसी के उठाये उठता नहीं है|

माँ ने बिलकुल वैसे ही ताना मारा जैसा वो मुझे बचपन में मारा करतीं थीं, जबकि अब तो मैं खुद ही जल्दी उठने लगा था पर माँ से बहस कौन करे!

मैं: जी पर मैं आज पिताजी के पास सोऊँगा|

ये सुनते ही भौजी ने मुझे आँख बड़ी कर के दिखाई और बिना आवाज निकाले होठों को हिलाते हे कहा; "पहले मुझे तो सुला दो|" मैं कुछ नहीं बोला बस हाँ में सर हिलाया| माँ और बड़की अम्मा लेट चुके थे और आपस में कुछ बात कर रहे थे, रसिका भाभी तो चादर सर तक ओढ़े भौजी के डर के मारे सो गईं थीं| अब हम दोनों बातें तो नहीं कर सकते थे इसलिए हम बस खुसफुसा रहे थे;

भौजी: बहुत मन कर रहा है!

भौजी ने बड़ी आस लिए हुए कहा|

मैं: मेरा भी...पर जगह कहाँ है?

मैंने अपनी मजबूरी बताई|

भौजी: आप ही कुछ सोचो?....घर के पीछे चलें?

भौजी ने अपनी बेचैनी व्यक्त करते हुए कहा|

मैं: माँ और अम्मा से क्या कहोगे की हम कहाँ जा रहे हैं?

लेकिन मैंने उनके सुझाव पर सवाल खड़ा कर दिया|

भौजी:प्लीज!

भौजी मिन्नत करने लगीं, पर मैं भी मजबूर था| इस वक़्त कुछ भी करना जोखम का काम था!

मैं: अभी कुछ नहीं हो सकता! आप सो जाओ!

मैंने उन्हें प्यार से समझाते हुए कहा|

भौजी: ठीक है| तो मेरी Good Night Kiss?

भौजी मस्ती करते हुए बोलीं|

मैं: कैसी Good Night Kiss? ये तो कभी तय नहीं हुआ हमारे बीच?

मैंने थोड़ा हैरान होते हुए कहा|

भौजी: तो अब हो गया|

भौजी हँसते हुए बोलीं|

मैं: आप न बहुत बदमाश हो! सो जाओ! Good Night!

माने भौजी की नाक पकड़ कर खींचते हुए कहा|

ये कह कर मैंने नेहा को उनकी बगल में सुलाया और मैं दरवाजे की तरफ चल दिया| मैं अभी दो कदम ही चला हूँगा की भौजी एकदम से उठीं और मेरे पीछे-पीछे आने लगीं, मुझे लगा की उनका इरादा कुछ 'और' है इसलिए मैंने खुसफुसाया;

मैं: आप कहाँ जा रहे हो?

ये सुन कर भौजी ने मुँह फुला लिया और बोलीं;

भौजी: दरवाजा बंद करने!

उनका यूँ मुँह बना देख मैं मुस्कुरा दिया और हम दोनों दरवाजे के पास पहुँचे, जैसे ही भौजी ने दरवाजा बंद करने को दोनों हाथ दरवाजे के पल्ले पर रखे मैंने मौके का फायदा उठाया और अपने दोनों हाथों से उनका चेहरा थाम उनके होठों पर अपने होंठ रख दिए| भौजी ने फ़ौरन अपने हाथ दरवाजे से हटा लिए, पर हमारे पास ज्यादा समय नहीं था सो मैंने एक-एक बार भौजी के दोनों होठों को चूसा और अचानक से उन्हें अपनी पकड़ से छोड़ दिया| मेरे ऐसा करने से भौजी थोड़ा नाराज हुईं क्योंकि उन्हें मेरे होठों का रसपान करने का मौका नहीं मिला था|

मैं: Good Night जानेमन!

मैंने प्यार से मुस्कुराते हुए कहा| ये सुन भौजी के चेहरे पर मुस्कान आ गई;

भौजी: Good Night जानू!!!

मैंने हाथ हिला कर उन्हें बाय कहा और उनके घर के बाहर पड़ी अपनी चारपाई पर आ कर लेट गया, मैंने घडी देखि तो अभी बस 9 ही बजे थे| आँख तो बंद कर ली पर नींद तनिक भी नहीं आई, बार-बार कल रात की याद आ रही थी और मन कर रहा था की धड़धड़ाता हुआ बड़े घर में घुसून और भौजी को अपने सीने से लगा कर कल की ही तरह प्यार करूँ!

रात के दस बजे थे और मैं अब भी पीठ के बल लेटा हुआ था, नींद तो आ नहीं रही थी! इतने में ऐसा लगा जैसे कोई मुझे देख रहा है और मैंने एकदम से अपनी आँखें खोलीं तो देखा भौजी नेहा को अपनी गोद में लिए खड़ीं मुझे टकटकी बाँधे देख रहीं हैं! नेहा भौजी के कंधे पर सर रखे दबी आवाज में सुबक रही थी और दोनों को देखते ही मैं व्याकुल हो कर उठ बैठा;

मैं: क्या हुआ? सब ठीक तो है ना?

मैंने खुसफुसाती हुए अपनी चिंता प्रकट की, इधर नेहा ने जैसे ही मेरी आवाज सुनी वो फ़ौरन मेरी तरफ देखने लगी और मेरे पास आने को अपने दोनों हाथ खोल दिए| उधर बड़के दादा भी मेरी खुसफुसाहट से जाग गए थे;

बड़के दादा: के है हुआँ??

बड़के दादा चिढ़ते हुए बोले| उनकी आवाज सुन भौजी ने तुरंत घूँघट काढ़ा और मेरी चारपाई से एक कदम दूर हो गईं | नेहा बेचारी मेरी गोदी में आने को मचल रही थी पर भौजी थीं की उसे मुझे दे ही नहीं रहीं थीं|

भौजी: मैं हूँ बप्पा|

बड़के दादा: का हुआ? और ई लड़की काहे रोवत है|

बड़के दादा की आवाज में उनकी चिड़चिड़ाहट साफ़ दिख रही थी|

भौजी: वो बप्पा.... नेहा रो रही थी और इनके (मेरे) पास आन के जिद्द कर रही थी तो मैंने उसे यहाँ ले आई|

ये सुनते ही बाप्पा भौजी पर बरस पड़े;

बड़के दादा: कम से कम रतिया का तो मुन्ना को सोये लिए दिहो, जब देखो दोनों माँ-बेटीं ऊ का पीछे पड़े रहत हो!

भौजी को बड़के दादा की ये बात चुभी, मुझे गाँव रहते हुए महीने से ऊपर हो रहा था और इन दिनों में हम दोनो पति-पत्नी के भाँती एक दूसरे से व्यवहार कर रहे थे| बड़के दादा का यूँ भौजी को झिड़कना हम दोनों के लिए असलियत का वो तमाचा था जिससे हम दोनों ही रूबरू नहीं होना चाहते थे!खैर मैंने नेहा को गोद में लेने के लिए हाथ आगे बढाए और नेहा भी मेरी गोद में आना चाहती थी परन्तु भौजी उसे जाने नहीं दे रही थीं| वहीं पिताजी की भी नींद खुल चुकी थी और वो लेटे-लेटे ही बोले;

पिताजी: सो जा बेटा!

मैं: जी|

पिताजी: भैया रहय दिहो दोनों देवर-भौजी का मजाक चलत रहत है!

पिताजी की बात सुन बड़के दादा लेट गए और पिताजी भी अपने बिस्तर पर दूसरी ओर मुँह कर के सोने लगे|

मैं: Awww मेरा बच्चा!!!

कहते हुए मैं उठ कर खड़ा हो गया और भौजी के नजदीक आ आया, पर भौजी एकदम से दूसरी ओर मुड़ कर जाने लगीं ओर बोलीं;

भौजी: नहीं रहने दो, मैं इसे सुला दूँगी| आप सो जाओ!

भौजी खुसफुसाती हुए बोलीं, पर मैं जानता था की नेहा मेरे बिना नहीं सोयेगी और फिर भौजी उसे डाँट-डपट देंगी! इसलिए मैंने उनके कंधे पर हाथ रख उन्हें अपनी तरफ घुमाया और हक़ जताते हुए बोला;

मैं: दो!

मेरी आवाज में बड़के दादा के भौजी को झिड़कने के कारन गुस्सा था| मैंने जबरदस्ती भौजी से नेहा को लिया और उसकी पीठ थप-थपाने लगा| भौजी उदास और गुमसुम बड़े घर चली गईं, पिताजी और बड़के दादा की नींद कच्ची थी इसी कारन मैं भौजी के पीछे नहीं जा सकता था|

इधर मेरी बेटी नेहा का सुबकना जारी था, मैं उसे अपनी छाती से चिपकाए ही लेट गया|

मैं: Aww मेरी गुड़िया ने बुरा सपना देखा?

नेहा ने हाँ में सर हिला कर जवाब दिया|

मैं: बेटा...सपने तो सपने होते हैं, वो सच थोड़े ही होते हैं| चलो छोडो उन बातों को, आप कहानी सुनोगे?

ये सुनते ही नेहा के मासूम चेहरे पर मुस्कान आ गई और उसने फ़ौरन हाँ में सर हिलाया| मैंने उसे 'कढ़ी-फ़्लोरी' वाली कहानी सुनाई और वो हँसते-हँसते सो गई| कुछ देर तक मैं नेहा के बालों को सहलाता रहा ताकि वो चैन से सो सके, फिर जब नींद आने लगी तो सोचा की एक बार मूत आऊँ| मैं मूत के हाथ धो के लौटा तो लेटने से पहले मन बेचैन होने लगा, बड़ा ही अजीब लग रहा था! मेरी ये बेचैनी केवल और केवल भौजी के लिए थी, मन कहने लगा था की भौजी ने बड़के दादा की बात को दिल से लगा लिया है और वो आज रात नहीं सोने वालीं| मैंने सोचा एक बार देख आता हूँ, अगर दरवाजा खुला हुआ होगा तो उनको एक प्यारी सी kissi दे दूँगा जिससे वो चैन से सो जाएँगी! मैं उठा और दबे पाँव बड़े घर की ओर चल दिया, वहाँ पहुँच के देखा तो भौजी प्रमुख दरवाजे की दहलीज पर मुँह झुकाये बैठी हुईं थीं| उन्हें ऐसे देख मुझे बहुत दुःख हुआ और मैं दौड़ कर उनके सामने घुटने टेक कर बैठ गया और उनकी ठुड्डी पकड़ के ऊपर की ओर उठाई;

मैं: Hey! आप सोये क्यों नहीं अभी तक?

मैंने पुछा तो भौजी ने अपनी नजरें झुका लीं|

मैं: छोडो न बड़के दादा की बातों को, क्यों अपना मन खराब करते हो?!

भौजी अब भी कुछ नहीं बोलीं|

मैं: अच्छा बाबा अब मैं ऐसा क्या करूँ की आप खुश हो जाओ|

मैंने भौजी से थोड़ी दिल्लगी करते हुए कहा, पर वो मायूस हो चुकीं थीं!

भौजी: कुछ नहीं...आप सो जाओ... मैं भी जाती हूँ|

भौजी ने नजरें झुकाये हुए ही बोला| भौजी के शब्दों में उनका दर्द झलक रहा था, साथ ही मुझे ऐसा महसूस हो रहा था जैसे वो मेरी नींद तोड़ने के लिए खुद को मन ही मन कोस रहीं हैं|

भौजी उठीं और पलट के घर के अंदर जाने लगीं, मैंने एकदम से उनका दायाँ हाथ थाम लिया और उन्हें अपनी ओर खींचा| भौजी इस आकस्मित हमले के कारन मुझसे सट कर खड़ीं हो गईं, मैंने उनकी कमर को अपने दोनों हाथों से थामा और उनकी आँखों में देखते हुए कहा;

मैं: बड़के दादा ने जो कहा उसे दिल से मत लगाओ, वो नहीं जानते की मेरी रूह पर सिर्फ और सिर्फ आपका ही हक़ है|

मैंने भौजी को उनके हक़ के बारे में याद दिलाते हुए कहा, लेकिन उनका मन मेरी नींद तोड़ने पर अटका हुआ था;

भौजी: नहीं...मुझे आपको नहीं उठाना चाहिए था|

भौजी ने नजरें झुकाते हुए कहा|

मैं: हमारे बीच में कब से फॉर्मेल्टी आ गई?

मैंने उन्हें थोड़ा गुस्से से डाँटते हुए कहा, पर उसका उनपर कोई असर नहीं हुआ|

मैं: तो इसका मतलब की अगर मुझे रात को कुछ हो जाए तो मैं आपको उठाऊँ नहीं, क्योंकि आपकी नींद टूट जायेगी?

मैंने भौजी से सवाल किया तो उन्होंने तुरंत मेरी आँखों में देखा और कहा;

भौजी: नहीं-नहीं! आपको जरा सी भी तकलीफ हो तो आप मुझे आधी रात को भी उठा सकते हो!

मैं: वाह! मैं आपको आधी रात को भी उठा सकता हूँ और आप मुझे रात दस बजे भी नहीं उठा सकते? ये गाँव की दकियानूसी सोच मुझे नहीं सुननी!

भौजी को मेरी बात समझ आ चुकी थी, उन्होंने आगे बढ़ के मुझे kiss किया लेकिन ये kiss बहुत छोटा था| मेरा मन जानता था की उनका मन अभी भी शांत नहीं है, वो बस खुश होने का नाटक कर रहीं हैं! मैंने उनका हाथ पकड़ा और एक बार अंदर झाँक कर देखा की कोई हमारी बातें सुन तो नहीं रहा| पर अंदर सब सो चुके थे, मैं भौजी का हाथ पकडे उन्हें खींच के बड़े घर के पीछे ले आया| चूँकि कुछ देर पहले हमारा मन प्यार करने का था, इसलिए ये ही सही समय था! मैंने भौजी को दिवार के सहारे खड़ा किया और उनपर अपना वजन डाल कर उन्हें ताबड़तोड़ तरीके से चूमने लगा| उनके चेहरे के हर हिस्से को मन चूम चूका था, इधर भौजी की सांसें तेज हो चलीं थीं और उनके हाथ मेरी पीठ पर अपना दबाव डाल कर मुझे उन के जिस्म में समा जाने को उकसा रहे थे! उन्हें चूमने के बाद मैं नीचे बैठा, उनकी साडी उठाई और मैं उसके अंदर घुस के उनकी योनि द्वार को अपनी जीभ से कुरेदने लगा| जैसे ही मेरी जीभ की नोक ने उनकी योनि के कपालों को छुआ, भौजी के मुँह से लम्बी सी सिसकारी छूट गई; "स्स्स्स्स्स्स्स्स्स्स्स्स्स्स्स्स्स्स....अह्ह्हह्ह्ह्ह!!!" भौजी का ज्यादा से ज्यादा मजा आये इसलिए मैंने अपने हाथों का प्रयोग न करते हुए मैंने उनकी योनि के द्वारों को अपनी जीभ की मदद से कुरेद के खोला और फिर उनकी योनि में अपनी जीभ घुसा दी| भौजी की योनि अंदर से गर्म थी और उनका नमकीन रस जीभ पर रिसने लगा था, मैं बिना जीभ को हिलाय ऐसे ही उनकी योनि में जीभ डाले मिनट भर बैठा रहा| मेरे ऐसा करने से भौजी तड़पा उठीं और अपनी कमर हिलाके मेरी जीभ को अपनी योनि में अंदर बाहर करना शुरू का दिया तथा "अह्ह्ह...अह्ह्ह..अंह्ह्ह" का शोर मचा दिया! परन्तु भौजी जल्द ही थक गईं और ज्यादा देर तक कमर न हिला सकीं तथा फिर से दिवार की टेक लेके खड़ी हो गईं! मुझे भौजी पर तरस आया, मैंने उन्हें ज्यादा न तड़पाते हुए अपनी जीभ को जितना अंदर डाल सकता था उतना अंदर डाला और जीभ को रोल करके बाहर लाया| मेरा ऐसा करने से भौजी के जिस्म में चिंगारियाँ छूटने लगीं, वो एकदम से अपने पंजों पर खड़ी हो गईं और अपने दोनों हाथों को मेरे सर पर रख मेरा मुँह अपनी योनि पर दबाने लगीं! भौजी को कितना आनंद आ रहा है ये मैं समझ चूका था, इसलिए मैंने उसी प्रकार उनकी योनि के रस को पीना शुरू कर दिया| मैं अपनी जीभ को रोल करके खोलता हुआ उनकी योनि में प्रवेश करा देता और फिर से अंदर से बाहर की ओर रोल करता हुआ बाहर ले आता| भौजी की उत्तेजना इस कदर बढ़ गई थी की वो बार-बार अपने पंजों पर उछलने लगीं थीं, इधर मेरे पास अब ज्यादा समय नहीं था, वरना आज रात काण्ड हो जाता! मैंने ये खेल छोड़ अपनी जीभ को तेजी से अंदर बाहर करना शुरू किया, लेकिन भौजी की उत्तेजना अब कम होने लगी थी सो मैंने एक दूसरा उपाय सोचा उनकी उत्तेजना बढ़ाने का! मैंने भौजी के भगनासे (clit) को निशाना बनाया, मैंने उसे अपने मुँह में भरा और अपने हलके-हलके दाँतों से दबाने लगा| मेरा ऐसा करने से भौजी की शांत हो रही उत्तेजना फिर से बढ़ने लगी और भौजी ने अपने भगनासे को मेरे मुख से छुड़ाना चाहा| मैंने भौजी के भगनासे को छोड़ दिया और उनकी योनि के कपालों को मुँह में भर के खींचने लगा| मैंने भौजी के दोनों कपालों को धीरे से अपने दाँतों से चुभलाया जिससे भौजी लगभग चरमोत्कर्ष पर पहुँच चुकीं थीं| उनके मुँह से आनंदमयी सिसकार तेज हो गई थी; "ससससस...आअह्ह्ह्ह ...स्स्स्साआ...मममम!!" मैंने तुरंत अपनी जीभ उनकी योनि में फिर से प्रवेश करा दी और उनकी योनि की दीवारों को अपनी जीभ से कुरेदने लगा| उधर भौजी ने पूरी कोशिश की कि वो अपनी योनि से मेरी जीभ पकड़ लें पर जीभ इतनी मोटी नहीं थी की उनकी योनि की पकड़ में आ जाए! भौजी के लिए अब और बर्दाश्त कर पाना नामुमकिन था, उन्होंने अपने गोन हाथों से मेरे मुँह को अपनी योनि पर फिर दबाया और कलकल करते हुए अपनी कमर हिलाते हुए स्खलित हो गईं! मैंने अपना मुँह उनकी योनि पर लगा रखा था, भौजी ने अपने रस को बिना रोके छोड़ दिया और वो मेरे मुँह में समाने लगा! हमेशा की तरह आज भी उनका रस अधिक मात्रा में था इसलिए काफी कुछ मेरे होठों से बाहर छलक के नीचे गिरने लगा| जब उनका झरना बहना बंद हुआ तब मैं उनकी साडी के अंदर से निकला और वापस खड़ा हुआ| मेरे होठों के इर्द-गिर्द भौजी के रस कि लकीरें बनी हुई थीं जिसे भौजी ने अपने पल्लू से साफ किया| लगभग 10 मिनट से मुँह खोले उनकी योनि का रस पीने के कारन मेरा मुँह दर्द कर रहा था, मैंने एक लम्बी साँस छोड़ी और भौजी की ओर देखा तो वो संतुष्ट लग रहीं थीं! भौजी का मन अब शांत हो चूका था, उनके मन में अब तनिक भी शिकवा-गिला नहीं था| भौजी की सांसें दुरुस्त होने में करीब 2 मिनट का समय लगा और उन दो मिनटों में मैं इधर-उधर देख कर ये सुनिश्चित कर रहा था की कहीं कोई आ तो नहीं रहा?!

मैं: अब तो मेरी जान खुश है?

मैंने भौजी की ठुड्डी पकड़ते हुए कहा|

भौजी: हाँ!

भौजी ने लजाते हुए आँखें नीचे करते हुए कहा|

मैं: तो चलें?

भौजी: कहाँ?

भौजी एकदम से मेरी ओर देखते हुए बोलीं|

मैं: सोने और कहाँ|

मैंने मुस्कुराते हुए कहा|

भौजी: नहीं...अभी आपकी बारी है!!

भौजी ने फिर लजाते हुए कहा|

मैं: आप खुश तो मैं खुश! अब चलो जल्दी वरना कोई हमें ढूंढता हुआ यहाँ आ जायेगा!

ये कहते हुए मैंने एक कदम आगे बढ़ा| लेकिन भौजी ने मेरा हाथ पकड़ कर मुझे रोक लिया और गंभीर होते हुए बोलीं;

भौजी: आप हमेशा ऐसा क्यों करते हो! मेरी ख़ुशी पहले देखते हो पर मेरा भी तो कुछ फर्ज बनता है आपके प्रति?

मैं: जर्रूर बनता है, पर इस समय आपको प्यार की ज्यादा जर्रूरत थी| आपका मन उदास था...

भौजी एकदम से मेरे लिंग की ओर इशारा करते हुए बीच में बोल पड़ीं;

भौजी: पर इन जनाब का क्या?

मेरा लिंग फूल कर कुप्पा हो चूका था और पजामे के ऊपर से अपना गुस्सा प्रकट कर रहा था|

मैं: ये थोड़ी देर में शांत हो जायेगा|

मैंने मुस्कुराते हुए कहा|

भौजी: पर मुझे ये अच्छा नहीं लगता की आप मेरी ख़ुशी के लिए इतना कुछ करते हो और बदले में अगर मैं आपको कुछ देना चाहूँ तो आप कुछ भी नहीं लेते?!

भौजी ने नराज होते हुए कहा|

मैं: जान मैं आपका पति हूँ और पत्नी को खुश रखना एक पति का दायित्व होता है| फिर मैं कोई सौदागर नहीं हूँ जो आपकी ख़ुशी के बदले आपसे कुछ माँगू!

ये सुन कर भौजी मेरी तरफ मुड़ी और उनके चेहरे पर गर्वपूर्ण मुस्कान थी|

भौजी: हाय! कितनी खुश नसीब हूँ मैं जिसे आप जैसा पति मिला| और एक बात कहूँ जानू, जब आप इस तरह से बात करते हो न तो मन करता है की आपके साथ कहीं भाग जाऊँ|

भौजी की ये बात सुन कर मैं थोड़ा डर गया! अगर यही बात उन्होंने अयोध्या जाने से पहले कही होती तो मुझे बहुत ख़ुशी होती, उत्साह होता पर लेकिन आज मुझे उस जिम्मेदारी के बारे में सोच कर डर लग रहा था! मैं अपना ये डर भौजी पर जाहिर नहीं करना चाहता था इसलिए मैंने बात बनाते हुए बेमन से कहा;

मैं: मैं तो कब से तैयार हूँ, आप ही नहीं मानते| खेर अब चलो रात बहुत हो रही है और सुबह आपको उठना भी है|

मैंने भौजी का हाथ पकड़ लिया और चलने का इशारा किया|

भौजी: पर प्लीज let me try once!

लेकिन भौजी को मेरी संतुष्टि की चिंता थी!

मैं: देखो अभी हमारे पास समय नहीं है, इतनी जल्दी आपसे कुछ नहीं हो पायेगा!

मैंने भौजी को समझाया|

भौजी: मैं कर लूँगी

इतना कह कर उन्होंने पजामे के ऊपर से मेरा लिंग पकड़ लिया|

मैं: अगर नेहा जाग गई और मुझे अपने पास नहीं पाया तो फिर से रोने लग जाएगी|

मैंने आखरी तर्क किया, जिसके आगे भौजी की एक न चली|

भौजी: Next time आपने ऐसा किया ना तो मैं आपसे कभी बात नहीं करुँगी|

भौजी ने नराज होते हुए कहा|

मैं: ठीक है बाबा, अब जल्दी से मुस्कुरा दो ताकि मैं चैन से सो सकूँ|

भौजी मुस्कुराईं और आगे बढ़ के मेरे होठों को अपने मुँह भर के चूसने लगीं, करीब एक मिनट बाद उन्होंने मेरे होठों को छोड़ा| फिर मैंने उन्हें बड़े घर के दरवाजे पर छोड़ा और वहीँ खड़ा रहा जबतक उन्होंने दरवाजा अंदर से बंद नहीं कर लिया| मैं दबे पाँव नल पर आया और हाथ-मुँह धो कर नेहा के पास लेट गया| मेरे लेटते ही नेहा ने मेरी तरफ पलटी और अध्खुली आँखों से मुझे एकबार देखा और फिर अपने छोटे हाथ से मुझे जकड़ना चाहा| मैंने उसे उठा कर अपनी छाती पर लिटा लिया और उसे कस कर अपनी बाहों में भर लिया|
 

[color=rgb(243,]सत्रहवाँ अध्याय: दोस्ती और प्यार[/color]
[color=rgb(97,]भाग - 1[/color]


[color=rgb(44,]अब तक आपने पढ़ा:[/color]

मैं: ठीक है बाबा, अब जल्दी से मुस्कुरा दो ताकि मैं चैन से सो सकूँ|
भौजी मुस्कुराईं और आगे बढ़ के मेरे होठों को अपने मुँह भर के चूसने लगीं, करीब एक मिनट बाद उन्होंने मेरे होठों को छोड़ा| फिर मैंने उन्हें बड़े घर के दरवाजे पर छोड़ा और वहीँ खड़ा रहा जबतक उन्होंने दरवाजा अंदर से बंद नहीं कर लिया| मैं दबे पाँव नल पर आया और हाथ-मुँह धो कर नेहा के पास लेट गया| मेरे लेटते ही नेहा ने मेरी तरफ पलटी और अध्खुली आँखों से मुझे एकबार देखा और फिर अपने छोटे हाथ से मुझे जकड़ना चाहा| मैंने उसे उठा कर अपनी छाती पर लिटा लिया और उसे कस कर अपनी बाहों में भर लिया|

[color=rgb(184,]अब आगे...[/color]

अगली सुबह मैं जानबुझ के जल्दी उठ गया वरना बड़के दादा भौजी को मेरी नींद तोड़ने के लिए फिर से डाँटते| मेरी आँखें भी ठीक से नहीं खुल रही थी और बड़ी जोरदार नींद आ रही थी! भौजी ने जब मुझे उठा हुआ देखा तो वो मेरे पास आईं;

भौजी: आप इतनी जल्दी क्यों उठ गए?

ये सुन कर मैंने घडी देखि तो अभी 5 बजे थे, मन तो किया की सो जाऊं पर अगर सो जाता तो सीधा 8 बजे उठता!

मैं: ऐसे ही...माँ कह रहीं थी की जल्दी उठना चाहिए|

मैंने अंगड़ाई लेते हुए झूठ बोला, पर भौजी ने मेरा झूठ पकड़ लिया था;

भौजी: जानती हूँ आप जल्दी क्यों उठे हो, ताकि मुझे पिताजी से डाँट न पड़े! आप सो जाओ, कोई कुछ नहीं कहेगा|

मैं: नहीं...अब नींद नहीं आएगी|

भौजी: क्यों जूठ बोल रहे हो, आपकी आँखें ठीक से खुल भी नहीं रही|

मैं: वो नहाऊँगा तो अपने आप खुल जाएगी और रही बात नींद पूरी करने की तो वो मैं दोपहर में कर लूँगा|

मैंने मुस्कुराते हुए कहा| भौजी आगे कुछ कहतीं उससे पहले ही माँ आ गईं और मुझे जागता हुआ देख बहुत खुश हुईं;

माँ: अच्छा हुआ तो जल्दी जाग गया, जा अपने पिताजी के साथ खेतों में थोड़ी मदद कर दे!

मैं बिना कुछ बोले ही खेतों की तरफ चल दिया, बड़के दादा और पिताजी खेतों में पानी लगा रहे थे और उन्हें 'मेढ़' बाँधने के लिए मदद चाहिए थी| अब कुएँ से पानी खींचने का काम तो मैं कर नहीं सकता था क्योंकि पिताजी कहते थे उसमें बहुत खतरा है तो मैं पिताजी से मेढ़ बाँधना सीख उनकी मदद करने लगा| पानी खींचने का काम पिताजी और बड़के दादा मिल कर रहे थे और जब एक क्यारी पानी से भर जाती तो मैं दूसरी क्यारी में मेढ़ खोल देता| ये खेत छोटा था और इसमें केवल घर के खाने लायक सब्जियाँ ही उगाई जातीं थीं, काम ज्यादा मुश्किल नहीं था और मुझे इसमें बहुत मजा आ रहा था|

अभी बस आधा ही खेत सींचा गया था की नेहा दौड़ती हुई मेरे पास आ गई, मैंने उसे फ़ौरन गोद में उठाया और उसने मेरे दोनों गालों पर अपनी मीठी-मीठी पप्पी दी!

मैं: बेटा आप क्यों उठ गए?

नेहा: पापा मैं न आपकी मदद करने आई हूँ!

नेहा का बचपना सुन मैं हँस पड़ा|

मैं: बेटा आप मेढ़ बाँधोगे तो अपने कपडे गंदे कर लोगे! आप जा कर मुँह-हाथ धोओ|

ये सुन नेहा ने न में गर्दन हिलाई और बोली;

नेहा: मम्मी ने कहा है की आपकी मदद करूँ|

मैं: Awww मेरा बच्चा!

ये कहते हुए मैंने नेहा के दोनों गालों की पप्पी ली! इतने में बड़की अम्मा घर से चिलाते हुए बोलीं;

बड़की अम्मा: ओ मुन्ना! तनिक 4-5 ठो टमटरवा लिहाँ आयो!

मैं: जी अम्मा!

इतने में एक क्यारी और भर गई तो मैंने दूसरी क्यारी में मेढ़ बाँधी| दोनों बाप-बेटी टमाटर के खेत में घुस गए, अब मुझे ठीक से टमाटर चुनने नहीं आते थे, मैंने गलती से एक हरे रंग का टमाटर तोड़ लिया तो नेहा मुझे सिखाने लगी;

नेहा: नहीं पापा! हरे रंग का नहीं सिर्फ लाल रंग वाला जैसे ये!

नेहा ने मुझे एक लाल टमाटर तोड़ कर दिखाया|

मैं: अरे वाह! मेर बेटी तो बहुत समझदार है?!

मैंने नेहा की तारीफ की तो वो खुश हो गई| टमाटर तोड़ कर उसने अपनी फ्रॉक को झोली बना कर रखे और ख़ुशी-ख़ुशी घर चली गई| पूरे खेत की सिंचाई करते-करते 7 बज गए, सिंचाई पूरी कर के मैं घर लौटा| आज का दिन कुछ अलग था, सुबह से ही घर में बहुत चहल कदमी थी| आज किसी नए पकवान बनने की तैयारी हो रही थी, मैंने जब माँ से पुछा तो उन्होंने मुझे नहाने जाने को बोला| मैंने भौजी की तरफ देखा तो वो भी हैरान थीं क्योंकि मेरी तरह उन्हें भी कुछ नहीं बताया गया था| खैर मैं बड़े घर नहाने चला गया, नाहा-धो कर तैयार हुआ तो नेहा अपना बस्ता ले कर आ गई| मैंने बड़े घर के आंगन में एक चारपाई बिछाई और मैं दरवाजे की तरफ पीठ कर के बैठ गया और नेहा ठीक मेरे सामने बैठ गई| फिर उसने अपने बैग में से अपनी किताब निकाली, उसकी किताब में बहुत से रंग-बिरंगे चित्र थे जैसे की छोटे बच्चों की किताबों में होते हैं| उसकी alphabets (वर्णमाला) की किताब सबसे ज्यादा रंगीन थी, मैंने नेहा को A B C D पढ़ाना शुरू किया| इतने में भौजी चाय ले के आईं और मेरी ओर चाय का ग्लास बढ़ाते हुए बड़ी उखड़ी आवाज में बोलीं;

भौजी: आपसे मिलने कोई आया है!

भौजी की उखड़ी हुई आवाज सुन मैं थोड़ा परेशान हुआ और आँखों के इशारे से उनसे पुछा की कौन है? उन्होंने भी मुझे आँखों के इशारे से पीछे मुड़ने को कहा, जब मैं पीछे मुड़ा तो देखा सुनीता दरवाजे पर खड़ी है| उसे देख मैं थोड़ा हैरान हुआ की ये भला यहाँ क्यों आई है? तभी वो चलते हुए आंगन में आई, आज उसने पीले रंग का सूट पहना था और हाथों में accounts की किताब है| मेरे नजदीक आ कर वो बोली;

सुनीता: जब मेरे घर आये थे तो मुझे पढ़ा रहे थे और यहाँ इस छोटी सी बच्ची को पढ़ा रहे हो! क्या पढ़ाना आपकी हॉबी है?

इतना कह कर वो हँसने लगी, उसकी ये हँसी देख भौजी जल भून कर राख हो गईं! मैंने आज तक भौजी को जलाया नहीं था तो ये स्वर्णिम मौका मैं अपने हाथ से कैसे जाने देता?!

मैं: यही समझ लो! अब आपकी हॉबी है गाना और गाना किसे पसंद नहीं, पर पढ़ाना सब को पसंद नहीं है आखिर कुछ तो चीज uncommon हो हम में!

इतने कह कर हमदोनों हँसने लगे| उधर भौजी ने भौं चाढ़ाते हुए मुझे देखा जैसे पूछ रही हो की ये सब क्या चल रहा है? मैं भला सुनीता को कैसे जानता हूँ और उसकी ये हॉबी मुझे कैसे पता?!

मैं: ओह... मैं तो आप दोनों का परिचय कराना ही भूल गया| ये हैं ....

मैं दोनों का परिचय कराता उससे पहले ही सुनीता एकदम से बोल पड़ी;

सुनीता: आपकी प्यारी भौजी! हम मिल चुके हैं, यही तो मुझे यहाँ लाईं!

सुनीता मुस्कुराते हुए बोली|

मैं: ओह!

मैंने अपनी मूर्खता को छुपाते हुए कहा| सुनीता से आज दूसरी बार मिला था, अब भी उसके सामने हड़बड़ा जाता था और इसी हड़बड़ी में मूर्खता पूर्ण बात कर बैठा था! मेरी इस हड़बड़ी और मूर्खता देख कर उसे खूब हँसी आती थी!

मैं: तो बताइये कैसे याद आई हमारी?

इसके जवाब में सुनीता ने अपनी एकाउंट्स की किताब उठा के मुझे दिखा दी| मैं समझ गया की वो यहाँ सिर्फ पढ़ने आई है, तो मैंने सोचा की क्यों न आग में थोड़ा घी डाला जाए;

मैं: इनके लिए भी चाय लो दो!

मैंने भौजी को छेड़ते हुए हुक्म दिया| ये सुन भौजी ने मुझे घूर के देखा जैसे कह रहीं हो की क्या मैं इसकी नौकर हूँ! उनके इस घूरने से मेरे चेहरे पर मुस्कान आ गई, मुझे मुस्कुराते हुए देख वो मुझे जीभ चिढ़ा के चली गईं|

सुनीता मेरे सामने कुर्सी कर के बैठ गई और नेहा तो अपनी किताब के पन्ने पलट के देखने में लगी थी, वो सुनीता से थोड़ा डरी हुई थी इसलिए उससे नजरें चुरा रही थी| सुनीता ने आगे बढ़ के उसके गालों को प्यार से सहलाया और बोली;

सुनीता: So sweet!

ये सुन नेहा शर्म से लाल हो गई और मुझसे लिपट कर सुनीता से छुपने लगी!

मैं: बेटा मैंने आपको क्या सिखाया था? चलो हेल्लो बोलो?

नेहा ने आँखें चुराते हुए सुनीता को हेल्लो कहा और फिर मुझसे लिपट गई|

मैं: She's very shy!

मैंने नेहा का बचाव करते हुए कहा|

सुनीता: Yeah...I can understand.

सुनीता को Bill of exchange में प्रॉब्लम थी, तो मैं उसे वही पढ़ाने लगा| मुझे सुनीता को पढ़ाते हुए देख नेहा की भी रूचि बढ़ गई और वो बड़े गौर से मुझे देखने लगी और जो मैं बोल रहा था उसे समझने की कोशिश करने लगी! कुछ देर बाद भौजी आ गईं और सुनीता को चाय देके जाने लगीं, तभी उन्होंने देखा की हम पढ़ रहे हैं और नेहा बड़े गौर से एकाउंट्स समझने की कोशिश कर रही है| उन्होंने नेहा को टोकते हुए कहा;

भौजी: ओ छोटी मुनीम जी! A B C D पढ़ी नहीं और हिसाब-किताब पहले सीखना है!

ये सुन नेहा फिर से शर्मा गई और मेरे सीने से लग कर छुप गई! भौजी ने नेहा का हाथ पकड़ कर मुझसे अलग किया और अपने साथ ले जाने लगीं, तो मैंने उनसे थोड़ी और मस्ती की;

मैं: कहाँ ले जा रहे हो नेहा को?

मैंने जानबूझ कर ऐसा बोलै क्योंकि मैं जानता था की ये सवाल सुन कर भौजी चिढ जाएंगी!

भौजी: खाना पकाने!

भौजी ने चिढ़ते हुए जवाब दिया|

मैं: क्यों? बैठे रहने दो यहाँ, आपके पास होगी तो खेलती रहेगी|

ये सुन भौजी एकदम से बोलीं;

भौजी: और यहाँ रहेगी तो आप दोनों को 'अकेले' में पढ़ने नहीं देगी!

भौजी ने 'अकेले' शब्द पर कुछ ज्यादा ही जोर डाला था, ये भौजी की जलन थी जो बाहर आ रही थी! इधर सुनीता, भौजी के अकेले शब्द पर जोर देने पर उसे देवर-भाभी का मस्ती समझ हँस पड़ी! उसकी हँसी देख भौजी जल-भून कर राख हो गईं और मुँह टेढ़ा कर के चली गईं!

हम दोनों वापस पढ़ाई में लग गए, कुछ देर बाद बड़की अम्मा और माँ आ गए| बड़की अम्मा मेरे पीछे खड़ी हो गईं और माँ सुनीता के पीछे खड़ी हो गईं|

माँ: अरे गुड़िया (नेहा) भी तुम्हारे साथ पढ़ रही है!

माँ ने हँसते हुए कहा|

मैं: नेहा कह रही थी की मुझे भी हिसाब-किताब सीखना है, तो मैंने सोचा इसे भी पढ़ा दूँ!

मैं ने मजाक करते हुए कहा|

बड़की अम्मा: फिर तो चाचा-भतीजी मिल के घर मा हिसाब किताब करीहें!

ये सुन कर सब हँस पड़े और नेहा भी खी-खी कर हँसने लगी!

कुछ देर हँसने के बाद बड़की अम्मा सुनीता से बोलीं;

बड़की अम्मा: मुन्नी खाना खा के जायो!

सुनीता: आंटी...मतलब अम्मा...वो मैं...

सुनीता नहीं जानती थी की वो बड़की अम्मा को क्या कह कर सम्बोधित करे इसलिए उसने हड़बड़ा कर आंटी कहा, पर फिर उसे अम्मा शब्द याद आया इसलिए उसने अम्मा कहते हुए न-नुकुर करनी चाही, पर माँ ने उसके सर पर हाथ फेरते हुए कहा;

माँ: नहीं बेटा, खाना खा के ही जाना|

माँ ने इतने प्यार से बोला की सुनीता न नहीं कह पाई और बोली;

सुनीता: जी!

इतना कह माँ और बड़की अम्मा कुछ बात करती हुईं चली गईं और हम तीनों फिर से पढ़ने लगे|

खाने का समय होने तक हम दोनों ने खूब मन लगा कर पढ़ाई की, सुनीता के काफी doubts clear हो गए थे और वो मेरे पढ़ाने के ढंग से काफी प्रभावित भी थी| उधर बड़की अम्मा ने हम दोनों का खाना परोस कर बड़े घर भेज दिया और सबसे बड़ी की बात खाना परोस के कौन लाया; "भौजी!!!" भौजी अंदर से जल के कोयला हो रहीं थीं और अब मुझे भी बहुत अटपटा सा लग रहा था की आखिर मेरे घरवाले सुनीता की इतनी खातिर-दारी क्यों कर रहे हैं?!

सुनीता: अरे भाभी आप क्यों खाना ले आईं? हम वहीं आ जाते|

सुनीता की बात से मैं अपनी सोच से बाहर आया और इस बार मैंने भौजी को जलाने के लिए कुछ नहीं कहा| मैं जानता था की अब अगर मैंने आग में घी डाला तो मेरा तंदूरी बनना पक्का है!

भौजी: आप हमारी मेहमान हैं और मेहमान की खातिरदारी की जाती है|

भौजी बनावटी मुस्कान के साथ कहा, उनकी ये बनवटी मुस्कान सिवाए मेरे और कोई नहीं पकड़ सकता| सुनीता उनकी बातों पर जरा भी शक नहीं हुआ और वो जा कर हाथ धोने लगी, मैंने उसकी गैरहाजरी का फायदा उठा कर भौजी से मूक भाषा में जानना चाहा की ये सब हो क्या रहा है पर उन्होंने सर ना में हिला दिया तथा मुँह मोड़ कर चली गईं! उनके यूँ जाने से मेरे दिमाग में हजारों सवाल खड़े हो गए थे, एक सवाल का जवाब सिर्फ और सिर्फ एक ही जवाब था! ऐसा जवाब जिसे मैं सुनना नहीं चाहता था! खैर मैं उठा और हाथ-मुँह धो कर खाना खाने बैठ गया| अब चूँकि नेहा मेरे साथ ही खाना खाती थी तो वो हमेशा की तरह मेरे सामने बैठ गई, सुनीता कुर्सी पर बैठी खाना खा रही थी और मैं एक कौर नेहा को खिलता और एक कौर मैं खाता| इतने में भौजी पानी का लोटा और गिलास ले कर आईं और मुझे यूँ नेहा को खिलाते देख नेहा को आँख दिखा कर डराने लगीं तथा इशारे से उसे मेरे साथ खाना खाने से मना करने लगीं| नेहा बेचारी अपनी मम्मी का गुस्सा देख सहम गई और सर झुका कर बैठ गई| मैंने जब नेहा को अगला कौर खिलाना चाहा तो उसने सर झुकाये हुए मना कर दिया, मुझे उसका ये बर्ताव बड़ा ही अटपटा लगा;

मैं: क्या हुआ बेटा?

मैं पुछा तो नेहा ने सर उठा कर अपनी मम्मी की बिना कुछ बोले ही शिकायत कर दी| मैंने जब भौजी को पीछे देखा तो मैं सब समझ गया की क्या माजरा है!

मैं: क्यों डरा रहे हो मेरी बेटी को?

मैंने भौजी को थोड़ा गुस्से से घूरते हुए कहा|

भौजी: नहीं तो...आप खाना खाओ, इसे मैं खिला दूँगी|

मेहमान के सामने लड़ाई-झगड़ा न हो इसलिए भौजी झूठ बोलीं|

मैं: कल तक तो ये मेरे साथ खाती आई है तो आज आप इसे खिलाओगे? आओ बेटा...चलो मुँह खोलो... और मम्मी की तरफ मत देखो|

मैंने नेहा को खाने का कौर खिलाते हुए कहा|

भौजी: क्यों बिगाड़ रहे हो इसे?

भौजी की ये बात मुझे बहुत चुभी, कुछ वैसे ही जैसे कल रात भौजी को बड़के दादा की बात चुभी थी!

मैं: मैं इसे बिगाड़ूँ या कुछ भी करूँ, आपको इससे क्या?

मैंने भौजी को झिड़क दिया| भौजी मेरी झिड़की सुन चुप हो गईं और सर झुका कर खड़ी हो गईं, लेकिन सुनीता को हमारी बातें सुन कर कुछ शक होने लगा था तो उसने सीधा भौजी से ही सवाल पूछ लिया;

सुनीता: भाभी आप बुरा ना मानो तो मैं एक बात पूछूँ?

भौजी: हाँ पूछो!

भौजी ने सर उठा कर उसकी ओर देखते हुए कहा|

सुनीता: प्लीज मुझे गलत मत समझना, मैं कोई शिकायत नहीं कर रही बस पूछ रही हूँ| नेहा बेटी तो आपकी है और दुलार इसे मानु जी करते हैं, वो भी शायद इस परिवार में सबसे ज्यादा! जब से आई हूँ मैं देख रही हूँ की नेहा इन से बहत घुल-मिल गई है, मतलब मैंने कभी नहीं देखा की बच्चे चाचा से या किसी से इतना घुल्ते-मिल्ते हों जितना नेहा घुली-मिली है?

भौजी: दरअसल....

भौजी ने जवाब देने के लिए मुँह खोला ही था की मैंने उनकी बात काट दी|

मैं: Please leave this topic here! I don't want to you guys to chit-chat on it!

मैं नहीं चाहता था की भौजी सुनीता को नेहा के सामने वो सब बताएं, क्योंकि भौजी की बातें सुन कर सुनीता को लगता की मैं नेहा पर दया दिखा रहा हूँ, जबकि मैं उसे अपनी बेटी मानता था और उससे वैसा ही प्यार करता था जैसे कोई बाप अपनी बेटी से प्यार करता है!

पता नहीं मुझे इतनी मिर्ची क्यों लगी की मैं खाने पर से उठ गया, भौजी और सुनीता दोनों ने बहुत मानाने की कोशिश की पर मन नहीं माना! मैं गुस्से में सीधा कुएँ के पास वाले आँगन में पहुँच गया, हाथ-मुँह धो कुएँ की मुंडेर पर बैठ गया| घरवाले सब खाना खा चुके थे, रसिका भाभी वरुण के साथ छप्पर के नीचे बैठीं खाना खा रहीं थी| वरुण ने जब मुझे देखा तो मेरे पास आना चाहा लेकिन रसिका भाभी ने उसे डाँट दिया और खाना खाने में व्यस्त कर दिया| माँ-पिताजी और बड़के दादा-बड़की अम्मा सब खेत जा चुके थे क्योंकि वहाँ गेहूँ दाँवा जाना था| मैं अकेला कुएँ की मुंडेर पर बैठा अपने दिमाग को शांत करने में लगा था, दिमाग में सुनीता को ये special treatment दिया जाना खटक रहा था और ऊपर से सुनीता का नेहा के विषय में वो सवाल पूछना मुझे बहुत चुभ रहा था! अचानक ही मुझे भौजी को खो देने का डर सताने लगा था, मैं इस डर से लड़ता उससे पहले ही नेहा, भौजी और सुनीता तीनों मेरी तरफ आने लगे| मेरे पीछे भौजी ने सुनीता से क्या कहा और उसने क्या समझा ये मैं नहीं जानता, मैं बस कुछ देर अकेला रहना चाहता था इसलिए मैं उठा और खेतों की तरफ चल दिया| हमारे छोटे वाले खेत में मुंडेर पर एक आम का पेड़ था, मैं उसी पेड़ के नीचे पीठ टिका कर खड़ा हो गया| तभी वहाँ सुनीता आ गई, उसके चेहरे पर मुस्कान थी जो मैं समझ नहीं पा रहा था! क्या भौजी ने उसे सच बता दिया? या फिर उन्होंने कोई नया झूठ बोला है? मैं इन्ही सवालों से घिरा था की सुनीता मेरे सामने खड़ी हो गई और हैरानी से बोली;

सुनीता: Wow! You actually Love her!

सुनीता का तातपर्य नेहा से था परन्तु मैं उसकी बात सुन कर सोच में पद गया की वो किसके बारे में बोल रही है; भौजी के या नेहा के!

मैं: What?

मैंने अनजान बनते हुए भौएं चढ़ा कर उससे पुछा|

सुनीता: आपकी भाभी ने मुझे सब बता दिया है|

ये सुन कर मेरी हवा खिसक गई और मुझे लगा की भौजी ने उसे सब सच बता दिया है!

मैं: सब?

मैंने अनजान बनने का नाटक किया, इसके आलावा मैं कर भी क्या सकता था!

सुनीता: हाँ की आप नेहा को कितना प्यार करते हो! घर में कोई नहीं जो उसे प्यार करता हो, यहाँ तक की उसके अपने पापा भी उसे वो प्यार नहीं देते जो आप देते हो| इसीलिए वो आपसे वही दुलार पाती है जो उसके पापा को करना चाहिए था|

मैं: वो (भौजी) पागल हैं! उनकी बातों में मत आओ, मैं नेहा से कोई तरस खा कर प्यार नहीं करता! मैं उससे सच में बहुत प्यार करता हूँ! लड़के की आस में नेहा संग भेद-भाव किया जाता है, अब इसे अपना परिवार की छोटी सोच कहूँ या फिर हमारे गाँव की, पर भुगतना नेहा को पड़ रहा है!

सुनीता मेरी बात सुन भाव विभोर हो गई!

मैं: खैर चलो घर चलते हैं, यहाँ किसी ने देख लिया तो पता नैन क्या सोचेगा|

इतना कहते हुए हम घर की ओर चल पड़े और चलते-चलते सुनीता बोली;

सुनीता: परसों रात जब मुझे पता चला की आप, नेहा और भाभी अयोध्या की भगदड़ में फँस गए हैं तो मुझे आपकी बहुत चिंता हुई थी! फिर कल शाम को मैं और पिताजी आये थे हाल-खबर लेने पर तब आप प्रसाद देने भाभी के मायके गए थे, आपके पिताजी ने बताया की कैसे आपने भाभी को संभाला और उन्हें सही सलामत घर ले कर आये! ये सुन कर मुझे आप पर बहुत proud (गर्व) हुआ!

मैं: Proud? किस लिए? मैंने बाद वही किया जो मुझे करना चाहिए था!

सुनीता: जब आपका दोस्त कुछ अच्छा काम करे तो आपको उस पर गर्व नहीं होता?

सुनीता ने बहुत जल्दी मुझे अपना दोस्त मान लिया था, पर मैं अभी उस पर इतना विश्वास नहीं करता था की उसे अपना दोस्त मान लूँ!

लेकिन सुनीता का मन मेरी बधाई करने से भरा नहीं था;

सुनीता: बिकुल हीरो की तरह आपने भाभी की रक्षा की!

ये सुन कर मुझे हँसी आ गई और मैं बोला;

मैं: मैं कोई हीरो-विरो नहीं हूँ! आम आदमी हूँ जो गलतियां, बेवकूफियाँ, मनमानियाँ करता रहता है!

सुनीता: आप में यही तो खूबी है की आप अपनी बड़ाई नहीं सुनना चाहते!

सुनीता की मेरी बड़ाई करने से मुझे बड़ा अजीब सा लग रहा था और मैं बात खत्म करना चाहता था इसलिए मैंने बात बदलते हुए उससे पुछा;

मैं: ये सब छोड़ो, आप ने खाना खाया?

सुनीता: आप ने नहीं खाया तो मैं कैसे खाती?

हम दोनों कुएँ के पास पहुँच गए थे और नेहा आँगन में चारपाई पर बैठी मेरा इंतजार कर रही थी| मुझे देखते ही वो उठ के मेरे पास दौड़ी-दौड़ी आई;

मैं: बेटा आपने खाना खाया?

नेहा ने ना में सर हिलाया|

मैं: चलो आप है न सुनियता आंटी के साथ जा कर खाना खाओ और जब मैं आऊँ तो सारा खाना खत्म होना चाहिए! समझे?

नेहा ने फ़ौरन हाँ में गर्दन हिलाई, मैंने उसे नीचे उतारा तो उसने सुनीता का हाथ पकड़ा और उसे बड़े घर ले जाने लगी|

सुनीता: आप भी चलो न?

मैं: आप खाना खाओ, मैं थोड़ी देर में आया|

आगे सुनीता कुछ पूछ पाती उससे पहले ही नेहा ने सुनीता को बड़े घर की ओर खींच कर ले गई, सुनीता ने नेहा को गोद में उठाया और उसके गाल चूमते हुए चली गई|

मैं धड़धड़ाते हुए भौजी के घर में घुसा, भौजी आँगन में चारपाई पर आसमान की ओर मुँह कर के लेटीं थीं|

मैं: आपने खाना खाया?

भौजी ने मेरा सवाल तो सुना पर बिना मेरी तरफ देखे ही सर न में हिला दिया|

मैं: क्यों?

अब भौजी ने मेरी तरफ देखा और उदास मन से बोलीं;

भौजी: क्योंकि आपने नहीं खाया|

उनकी ये उदासी देख मुझ दुःख हुआ और मैं उनसे माफ़ी माँगते हुए बोला;

मैं: ओके मुझे माफ़ कर दो! दरअसल मैं नहीं चाहता ता की आप सुनीता की बात का कोई जवाब दो, लेकिन फिर फिर भी आपने उसे सारी बात दी!

भौजी: हाँ पर आपके और मेरे रिश्ते के बारे में कुछ नहीं बताया?

भौजी ने बड़े उखड़े मन से कहा|

मैं: पर आपको उसे कुछ बताने की क्या जर्रूरत थी? मैं नहीं चाहता की कोई मेरी बेटी पर तरस खाये! और आप उसे नहीं जानते, वो गाँव की भोली-भाली लड़की नहीं है, शहर में पढ़ी है और जर्रूरत से ज्यादा समझदार भी! ऐसे में आपका उसे ये सब कहना ठीक नहीं था, पता नहीं वो क्या-क्या सोच रही होगी!

मैंने भौजी को समझाते हुए कहा, परन्तु उनपर कोई असर नहीं पड़ा|

भौजी: मैंने कुछ गलत तो नहीं कहा|

भौजी ने बड़े रूखे मन से जवाब दिया|

मैं एक पल को चुप हो गया और मन ही मन उनके उखड़े होने का कारन सोचने लगा, तभी मुझे याद आया की सुबह जो मैंने भौजी को जलाने की कोशिश की थी, हो न हो उसी कारन से उन का मन उदास है!

मैं: आपका मूड क्यों खराब है? मैं आपसे बस थोड़ा मजाक कर रहा था, आपको जल रहा था बस! हम दोनों के बीच में ऐसा कछ भी नहीं है जैसा आप सोच रहे हो!

मैंने भौजी के पास बैठते हुए कहा|

भौजी: जानती हूँ! इतना तो भरोसा है मुझे आप पर| लेकिन....

भौजी ने बिना मेरी तरफ देखे जवाब दिया, उनका यूँ बात अधूरा छोड़ देना मुझे चुभने लगा और कुछ देर पहले जो मुझे डर सता रहा था वो सच साबित हुआ|

मैं: Oh No..No..No. ये सब मेरी शादी का चक्कर है न?

मैंने भौजी को झिंझोड़ते हुए पुछा, लेकिन उन्होंने कोई जवाब नहीं दिया बल्कि उनकी आँखों से आँसुओं की एक धारा बाह कर उनके कान तक जा पहुँची! उनके आँसुओं ने मेरे डर को सच साबित कर दिया था|

मैं एकदम से गुस्से में उठा और बोला;

मैं: मैं अभी पिताजी से बात करता हूँ|

ये कह मैं अभी दो कदम ही चला हूँगा की भौजी उठ कर बैठ गईं और सुबकते हुए बोलीं;

भौजी: नहीं...प्लीज आपको ....

भौजी ने मुझे अपनी कसम से बांधना चाहा पर मैंने उनकी बात पूरी होने ही नहीं दी;

मैं: आपको पता है ना क्या होने जा रहा है और आप मुझे कसम देके रोक रहे हो?

मैंने गुस्से से उन्हें डाँटा!

भौजी: ये कभी न कभी तो होना ही था ना!

भौजी ने आँखों से आँसूँ बहाते हुए कहा|

मैं: कभी होना था न, अभी तो नहीं?!

मैंने उनके आँसूँ पोछते हुए कहा|

भौजी: क्या कहोगे पिताजी से की मैं अपनी भौजी से प्यार करता हूँ और उनसे शादी करना चाहता हूँ?

भौजी ने मेरे दोनों हाथ अपने हाथों में थामते हुए कहा|

मैं: हाँ!

मैंने जोश में बिना कुछ सोचे-समझे कहा|

भौजी: और उसका अंजाम जानते हो ना?

भौजी ने मेरी आँख में आँख डालते हुए सवाल पुछा|

मैं: हाँ ... वो हमें अलग कर देंगे|

मैंने भौजी से आँख चुराते हुए कहा, क्योंकि मुझ में उन्होंने खोने की हिम्मत नहीं थी और मैं अपना ये डर उनसे छुपाना चाहता था|

भौजी: यही चाहते हो?

उन्होंने अपना अगला सवाल दागा|

मैं: नहीं... पर अगर मैं उनसे सच नहीं बोल सकता तो कम से कम इस शादी को कुछ सालों के लिए टाल जर्रूर सकता हूँ! प्लीज मुझे अपनी कसम मत देना, आप नहीं जानते सुनीता भी ये शादी नहीं करना चाहती|

मैंने भौजी के चेहरे को अपने हाथों से थाम उनकी आँखों में आँख डालते हुए कहा| भौजी सुनीता की शादी न करने की बात सुन कर चौंक गईं;

भौजी: क्या?

फिर मैंने भौजी को सुनीता के घर में हुई हमारी मुलाक़ात के बारे में सब सच बता दिया| भौजी मेरी बात सुन कुछ शांत हुई, मेरी शादी नहीं होगी ये सोच उनके दिल को इत्मीनान हुआ और उन्होंने रोना बंद किया| कुछ पल के लिए भौजी के घर में ख़ामोशी छा गई, उस ख़ामोशी के पलों में मैंने फिलहाल पिताजी से इस मामले के बारे में बात नहीं करने का फैसला लिया| अभी मामला बहुत गर्म था और इस गर्मागर्मी में अगर मैं जोश से काम लेता तो बात बिगड़ जाती! फिलहाल के लिए मुझे भौजी को खाना खिलाना था, क्योंकि वो मेरे बच्चे की माँ बनने वाली थीं और मुझे उनका ख़ास ख्याल रखना था!

मैं: अच्छा बाबा मैं अभी पिताजी से कुछ बात नहीं कर रहा, अब तो खुश?

ये सुन भौजी ने हाँ में सर हिलाया|

मैं: तो खाना खाएँ?

भौजी को पता था की मैं उन्हें खाने के लिए अवश्य बोलने आऊँगा, इसलिए उन्होंने पहले से ही खाना परोसा कर थाली में रखा हुआ था| भौजी ने खिड़की की तरफ इशारा किया जहाँ एक थाली ढक कर राखी हुई थी, मैंने वो थाली उठाई और उन्हें खाना खिलने लगा| भौजी ने भी मुझे खाना अपने हाथ से खिलाया और हमारा खाना खत्म होने ही जा रहा था की वहाँ नेहा और सुनीता आ गए!

सुनीता: हम्म्म. I knew there was something between you guys!

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सुनीता इतने आत्मविश्वास से बोली जैसे की उसने हम दोनों की चोरी पकड़ ली हो| मैं कुछ बोलता उसके पहले ही भौजी बड़े आत्मविश्वास से बोलीं;

भौजी: Maybe you're right, there IS something between us! But that depends on who's commenting on it, if you're self obsessed jealous person you'll call it an extra marital affair and you'll go out screaming that these two are in a love relationship. But if you're a true friend, which I think you're then you'll call this pure and pious relationship FRIENDSHIP!

भौजी की बात सुन के सुनीता का मुँह खुला का खुला रह गया,

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वहीं नेहा एकदम सदमे थी की उसकी देहाती माँ इतनी अच्छी अंग्रेजी कैसे बोल लेती है?! वो दौड़ती हुई आई और अपनी मम्मी के पाँव से लिपट गई| इधर सुनीता सोच में पड़ गई की जो स्त्री साडी पहनती है और पहनावे में बिलकुल गाँव की गावरान लगती है वो इतनी फर्राटेदार अंग्रेजी कैसे बोल सकती है?!

मैं ये तो जानता था की भौजी पढ़ी-लिखीं हैं, अंग्रेजी जानती हैं पर उनके मुँह से अंग्रेजी सुन कर मुझे बहुत मजा आया था, इतना मजा की मैं एक पल के लिए सारी टेंशन भूल गया था!

सुनीता: क्या आपने (मैं) इन्हें अंग्रेजी बोलना.....

सुनीता को लगा की मैंने भौजी को अंग्रेजी बोलना सिखाया है, पर मैंने उसकी बात पूरी होने से पहले ही काट दी;

मैं: नहीं...ये दसवीं तक पढ़ीं हैं उसके आगे नहीं पढ़ पाईं क्योंकि इनकी पढ़ाई छुड़ा दी गई|

भौजी की पढ़ाई छूटने का दुःख सुनीता के चेहरे पर भी दिखा पर उसे भौजी के मुँह से ये फर्रार्टेदार अंग्रेजी सुन कर बहुत अच्छा लगा था|

सुनीता: भाभी I gotta say, I'm impressed!

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सुनीता ने मुस्कुरा कर बड़े गर्व से कहा|

भौजी: Thank You!

भौजी ने लजाते हुए कहा|

सुनीता: मैं वादा करती हूँ ये बात किसी को पता नहीं चलेगी|

सुनीता ने मुस्कुराते हुए कहा|

भौजी: Appreciated!!!

भौजी ने भी उसकी बात का जवाब मुस्कुरा कर दिया|

बात खत्म हुई, मैं और सुनीता बड़े घर आ कर पढ़ाई में लग गए, Chapter के कुछ last points discuss करने रह गए थे| कुछ देर बाद भौजी भी वहाँ आ कर बैठ गईं, नेहा और वरुण जहाँ गेहूँ दाँवा जा रहा था वहाँ चले गए| भौजी ने जब मुझे सुनीता को पढ़ाते हुए देखा तो वो बहुत खुश हुईं और उन्हें मेरा पढ़ाने का ढंग बहुत पसंद आया| पढ़ाई पूरी होने के बाद सुनीता ने अपनी किताब और रजिस्टर समेटा और बोली;

सुनीता: वैसे एक बात बताना मानु जी, आप मुझसे बात करते समय हड़बड़ा क्यों जाते थे?

ये सुन कर भौजी और सुनीता ने बड़ा जोरदार ठहाका मारा, इधर मैं बेचारा शर्म से लाल हो गया|

मैं: वो..मैंने कभी कोई लड़की दोस्त नहीं बनाई, पिताजी इन मामलों में मुझ पर बड़ी लगाम लगा कर रखते थे!

मैंने शर्माते हुए कहा|

सुनीता: चलो अब तो बन गई न?!

सुनीता मुस्कुराते हुए बोली, मैंने हाँ में सर हिला कर उसकी बात को स्वीकृति दी| सुनीता ने एकदम से मुझसे हाथ मिलाने को अपना दायाँ हाथ आगे बढ़ाया| मैंने एक नजर भौजी की तरफ देख उनकी इजाजत माँगी तो हाँ में सर हिला कर अपनी इजाजत दी| तब जा आकर मैंने सुनीता से हाथ मिलाया! उसके बाद वो हमें बाय बोल कर अपने घर चली गई|

[color=rgb(147,]जारी रहेगा भाग - 2 में...[/color]
 

[color=rgb(251,]सत्रहवाँ अध्याय: दोस्ती और प्यार[/color]
[color=rgb(97,]भाग - 2 (1)[/color]


[color=rgb(44,]अब तक आपने पढ़ा:[/color]

मैं: वो..मैंने कभी कोई लड़की दोस्त नहीं बनाई, पिताजी इन मामलों में मुझ पर बड़ी लगाम लगा कर रखते थे!
मैंने शर्माते हुए कहा|
सुनीता: चलो अब तो बन गई न?!
सुनीता मुस्कुराते हुए बोली, मैंने हाँ में सर हिला कर उसकी बात को स्वीकृति दी| सुनीता ने एकदम से मुझसे हाथ मिलाने को अपना दायाँ हाथ आगे बढ़ाया| मैंने एक नजर भौजी की तरफ देख उनकी इजाजत माँगी तो हाँ में सर हिला कर अपनी इजाजत दी| तब जा आकर मैंने सुनीता से हाथ मिलाया! उसके बाद वो हमें बाय बोल कर अपने घर चली गई|

[color=rgb(184,]अब आगे...[/color]

सुनीता के जाने के बाद हम दोनों अब भी बड़े घर में बैठे थे, भौजी उठ कर मेरे सामने चारपाई पर बैठ गईं और मुझसे बात करने लगीं;

भौजी: पहले मुझे कभी-कभी चिंता होती थी की पता नहीं आप पढ़ाई में कैसे होंगे, पर आज जब मैंने आपको सुनीता को पढ़ाते देखा तो मन में कोई शंका नहीं रह गई|

मैं: पढ़ाई के मामले में पिताजी बहुत सख्त हैं, जब छोटा था तो पिताजी डाँट-डपट कर पढ़ाते थे फिर जैसे-जैसे बड़ा होने लगा मैं पढ़ाई में serious हो गया और पूरी कोशिश करता हूँ की उन्हें नाराज होने का कोई मौका न दूँ|

ये सुन भौजी को बहुत तसल्ली हुई की मैं पढ़ाई के मामले में कोई कोताही नहीं बरतता!

इधर मैं अब भी थोड़ा डरा हुआ था और न चाहते हुए भी मेरा डर छलकने लगा था जो भौजी ने पकड़ लिया था| उन्होंने आगे बढ़ कर मेरा दाहिना हाथ पकड़ा और बोलीं;

भौजी: क्या हुआ?

मैं: वो...आपको लगता है की...सुनीता किसी को.....

मेरी बात पूरी हो पाती उससे पहले ही भौजी बोल पड़ीं;

भौजी: उसकी चिंता मत करो, उसके मन में आपके प्रति कोई छल-कपट नहीं है! वो बस आपको अपना दोस्त मानती है, इसके आलावा उसके मन में आपके लिए सिर्फ इज्जत है!

भौजी ने बड़े आत्मविश्वास से कहा|

मैं: ये आप इतना यक़ीन से कैसे कह सकती हो?

मैंने मुस्कुरा कर पुछा|

भौजी: ये आप नहीं समझ पाओगे, स्त्रियों में ये ख़ास शक्ति होती है!

भौजी ने ये बात हँसी में टाल दी! चलो कम से कम वो थोड़ा हँसी तो थीं! मैंने जानबूझ कर उनसे इस बारे में और कोई बात नहीं की, मैंने संतोष कर लिया था की सुनीता विश्वास की पात्र है!

भौजी: अच्छा ये बताइये, जब वो handshake करना चाहती थी तो आप मुझे क्यों देख रहे थे?

मैं: भई पत्नीव्रता पुरुष हूँ, पराई स्त्री को बिना आपकी आज्ञा के कैसे छू सकता हूँ?!

ये सुन कर भौजी खिलखिलाकर हँस पड़ीं और हम दोनों पर जो हालातों का दबाव था वो कम हो गया!

शाम के 5 बज गए थे, घर वाले सब खेत से लौट आये थे और चूँकि भौजी मेरे पास बैठीं थीं तो चाय रसिका भाभी को बनानी पड़ी| वो भौजी और मेरी चाय ले कर बड़े घर आ पहुँची और उन्हें देखते ही, भौजी का गुस्सा जिसे मैंने अपने प्यार से दबा रखा था फूट पड़ा;

भौजी: तू....

भौजी गरजते हुए बोलीं, लेकिन वो आगे कुछ बोलतीं मैंने उनकी बात काट दी;

मैं: प्लीज शांत हो जाओ, आपको मेरी कसम!

भौजी मेरी कसम के कारन शांत हो गईं और डाँट पीसते हुए गुस्से में बोलीं;

भौजी: निकल जा और ले जा ये चाय! इन्होने अपनी कसम दे दी वरना आज तेरी खेर नहीं थी!

भौजी के गुस्सैल तेवर देख रसिका भाभी की फ़ट के चार हो गई और वो दुम दबा कर वहाँ से भाग गईं!

रसिका भाभी के जाने के बाद मैं सर झुका कर मायूस हो कर बैठ गया और मुझे मायूस देख भौजी मेरे से सट कर बैठ गईं और मेरे कंधे पर अपना दाहिना हाथ रख मेरे मोढ़े को दबाया;

भौजी: आप क्यों सर खुका के बैठे हो?

मैं: मैं एक अच्छा पति नहीं साबित हो सका|

मेरी संजीदा आवाज सुन भौजी हैरान हुईं और बोलीं;

भौजी: क्या? ये आप क्या कह रहे हो?

मैं: मेरा फ़र्ज़ है की मैं आपको खुश रखूँ, हँसाऊँ-बुलाऊँ पर आज दिन भर मेरे कारन आप तनाव में घिरे रहे!

भौजी: नहीं-नहीं ऐसा बिलकुल नहीं है! आपने आज तक हमेशा मेरा भरोसा कायम रखा है, मुझसे कोई बात नहीं छुपाई यहाँ तक की उस कुलटा के गंदे हाथों से खुद को बचाते रहे! आपके जैसा पति मिलना तो नसीब की बात है!

ये कह कर उन्होंने मेरे बाएँ गाल को चूमा| भौजी की चुम्मी से मैं बहुत खुश था और बात खत्म करना चाहता था;

मैं: छोडो इस बात को क्योंकि आप कभी भी नहीं मानोगे|

लेकिन भौजी ने बात और खींच दी;

भौजी: इसलिए नहीं मानती क्योंकि आप गलत कह रहे हो! मेरी नजर में आप सिर्फ best husband ही नहीं बल्कि best father भी हो! नेहा आपका खून नहीं फिर भी उसे आप अपने बच्चे के जैसा ही चाहते हो!

भौजी की आखरी बात सुन कर मुझे थोड़ा गुस्सा आ गया;

मैं: यार बस करो ये बोलना की नेहा मेरी बेटी नहीं है, जब मैंने ये नहीं सोचा तो आप बार-बार क्यों ये बात दोहराते हो?

ये सुन कर भौजी ने तुरंत अपने कान पकड़ लिए और बोलीं;

भौजी: सॉरी!

मैं: बहुत प्यार करता हूँ मैं अपनी बेटी नेहा से!

मैंने मुस्कुराते हुए कहा, ये मुस्कुराना इसलिए था क्योंकि मैं नहीं चाहता था की भौजी का मन उदास हो जाए| उधर मेरी ये बात सुन भौजी ने नकली गुस्सा दिखाते हुए पुछा;

भौजी: मुझसे भी ज्यादा?

उनका ये झूठा गुस्सा देख मैं मुस्कुरा दिया और बोला;

मैं: नहीं...आपसे थोड़ा कम!

ये सुन कर भौजी को बहुत गर्व महसूस हुआ और उनके चेहरे पर पहले जैसी ही मुस्कान आ गई|

भौजी: जानू....एक बात कहूँ?!

भौजी ने लजाते हुए मुझसे नजरें चुराईं!

मैं: हाँ जी बोलो!

मैंने मुस्कुरा कर कहा|

भौजी: लोगों को न...मुझसे जलन होती है!

भौजी ने किसी नादान बच्चे जैसे भोलेपन से कहा|

मैं: अच्छा? सिवाए रसिका के और कौन है जो आपसे जलता है?

मैंने मुस्कुराते हुए पुछा|

भौजी: शगुन!

भौजी ने बड़े गर्व से मेरी ओर देखते हुए कहा|

मैं: शगुन? वो कैसे?

मैंने थोड़ा हैरान होते हुए पुछा|

भौजी: पहले जब मैं घर जाती थी तो बुझी-बुझी सी रहती थी, खामोश रहती थी| हम दोनों कोई बात नहीं किया करतीं थीं, हालाँकि वो माँ-पिताजी के सामने मुझसे हिलने-मिलने की कोशिश करती थी पर मैं उससे हमेशा दूर रहती थी क्योंकि मुझे उससे घिन्न आती थी!

मैं: तो आपने उसे कभी पुछा/बताया नहीं की आप उसके और चन्दर के बारे में सब जानते हो?

भौजी: मैंने उस खींच के झापड़ मारा था जब गौने के बाद पहली बार मैं मायके गई थी! उस कुलटा ने मेरी जिंदगी में आग लगाई थी और ये बात उसके आलावा मेरी बीच वाली बहन जानकी भी जानती है!

ये कहते हुए भौजी थोड़ा उदास हो गईं, मैंने उनके कंधे पर हाथ रखा और उन्हें अपने सीने से लगा लिया!

भौजी: वैसे उसने जो किया वो अच्छा किया! अगर वो ये न करती तो हम दोनों इतने नजदीक कैसे आते?!

भौजी मुस्कुराते हुए बोलीं|

मैं: फिर तो मुझे उसे धन्यवाद देना चाहिए!

मैंने भौजी को छेड़ते हुए कहा|

भौजी: कोई जर्रूरत नहीं! उस दिन आप दोनों की बात मैंने जैसे-तैसे बर्दाश्त कर ली, दुबारा उससे बात की न तो देख लेना?

भौजी ने मुझे चेतावनी दी! मैंने तुरंत अपने हाथ हवा में उठा लिए और अपनी सफाई दी;

मैं: यार उस समय मैं थोड़े ही जानता था की वो शगुन है!

भौजी: इसीलिए आपको माफ़ किया!

भौजी का प्यार भरा गुस्सा शांत हो चूका था तो मैंने उनसे आगे पुछा;

मैं: अच्छा ये बताओ की आप शगुन की जलन के बारे में क्या कह रहे थे?

तब भौजी ने अपनी बात आगे बढ़ाई;

भौजी: शुरू-शुरू में वो अपने किये पर शर्मिंदा होने का नाटक करती थी, फिर धीरे-धीरे वो ऐसे जताने लगी जैसे उसे कोई फर्क ही नहीं पड़ता! मैं भी उससे माफ़ी की कोई उम्मीद नहीं करती थी, बस मुझे उससे कोफ़्त होती थी! लेकिन इस बार जब आपने मुझे मायके शादी attend करने भेजा तो मेरे चेहरा पर मुस्कान थी, होंसला था की मेरे पास आप हो! ये ख़ुशी उससे देखि न गई और उसने मुझसे नकली मुस्कान के साथ सवाल पुछा; 'दीदी आज तो बड़ी खिली-खिली लग रही हो?' तो मैंने भी उसे जला कर राख करने के लिए मैंने उसके हलके से आँख मारी और ऐसे मुस्कुराई की उसकी शक्ल देखने लायक थी!

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उसके तनबदन में आग लग गई थी और उसकी शकल एकदम से उतर गई थी! फिर शाम को अनिल ने जब पिताजी को आपकी बात बताई तो शगुन मेरी मुस्कान का कारन जान गई| बाद में जब मैं अकेली बैठी आपको याद कर रही थी तो शगुन मेरे पास आई और मुझे चिढ़ाते हुए बोली; 'तो ये आपके मानु जी का जादू है!' अब मुझे उसे जला कर खाक करना था सो मैंने बड़े ही मादक ढंग से अंगड़ाई ली और उसे ऐसे दिखाया जैसे मैं आपके साथ सेक्स कर-कर के मेरा जोड़-जोड़ दुःख रहा है! ये देख कर भो भोंचक्की रह गई और आँखें फाड़े मुझे घूरने लगी! मैंने उसकी बात का कोई जवाब नहीं दिया और उठ कर बाहर आ गई! उसके बाद वो पूरा दिन वो मुझे देख कर मन ही मन कुढ़ती रही की आखिर मानु जी है कौन जिन्होंने मुझे ऐसी 'संतुष्टि' दी के मैं मारे ख़ुशी के झूम रही हूँ!

भौजी हँसते हुए बोलीं|

मैं: यार सच में आप तो बड़े उस्ताद हो, बिना कुछ कहे ही उसकी हालत ख़राब कर दी, कहीं आप उसे विस्तार से बता देते तो बेचारी खड़े-खड़े ही....

मैंने हँसते हुए बात अधूरी छोड़ दी| मेरा तात्पर्य शगुन के खड़े-खड़े स्खलित होने से था!

भौजी: तभी तो जब आप आये तो वो आपसे घुलने-मिलने की कोशिश कर रही थी!

मैं: अच्छा हुआ वहाँ रात नहीं रुके वरना रात में.....

मैं बोलते हुए रुक गया!

भौजी: वो अगर कुछ करि न तो उसे कच्चा खा जाती!

भौजी ने बागी तेवर दिखाते हुए कहा| अब मुझे माहौल थोड़ा हल्का करना था तो मैंने भौजी को छेड़ते हुए कहा;

मैं: वैसे आज पता चल गया की आपको मेरे जरिये लोगों को जलाना अच्छा लगता है!

मैंने हँसते हुए कहा तो भौजी का ध्यान बँट गया और वो बोलीं;

भौजी: हाँ कभी-कभी!!! ही..ही..ही...

भौजी खी-खी कर हँसने लगी!

भौजी: लोगों को लगता है की कैसे मुझे कोई मुझे इतना प्यार करने वाला मिल गया!

आग भौजी के कुछ कहने से पहले ही मैंने उनके होठों को चूम लिया|

भौजी: उम्म्म ...

कहते हुए उन्होंने मुझे चारपाई पर गिरना चाहा ताकि वो मेरे ऊपर आ आकर अच्छे से kiss कर सकें! लेकिन मैंने उन्हें रोक दिया;

मैं: अच्छा बस! अब मुझे पिताजी से बात करने जाने दो|

ये सुन भौजी थोड़ा गंभीर हो गईं|

भौजी: प्लीज सम्भल के बात करना! कुछ ऐसा-वैसा मत बोलना और अगर वो शादी के लिए जोर दें तो बात मन लेना!

भौजी ने बुझे मन से कहा|

मैं: वो तो हो नहीं सकता|

मैंने भौजी को अपने बागी तेवर दिखाते हुए कहा, ये देख भौजी को डर लगने लगीं की कहीं आज मेरे कारन पिताजी घर में घमासान न खड़ा कर दें! उनका ये डर जायज भी था, भले ही मुझे पिताजी कुछ आजादी दे दी थी पर इतनी नहीं की मैं उनके खिलाफ खड़ा हो जाऊँ!

खैर मैं बाहर आके पिताजी को ढूँढने लगा....

[color=rgb(147,]जारी रहेगा भाग - 2(2) में...[/color]
 

[color=rgb(251,]सत्रहवाँ अध्याय: दोस्ती और प्यार[/color]
[color=rgb(97,]भाग - 2 (2)[/color]


[color=rgb(44,]अब तक आपने पढ़ा:[/color]

उन्होंने मुझे चारपाई पर गिरना चाहा ताकि वो मेरे ऊपर आ आकर अच्छे से kiss कर सकें! लेकिन मैंने उन्हें रोक दिया;
मैं: अच्छा बस! अब मुझे पिताजी से बात करने जाने दो|
ये सुन भौजी थोड़ा गंभीर हो गईं|
भौजी: प्लीज सम्भल के बात करना! कुछ ऐसा-वैसा मत बोलना और अगर वो शादी के लिए जोर दें तो बात मन लेना!
भौजी ने बुझे मन से कहा|
मैं: वो तो हो नहीं सकता|
मैंने भौजी को अपने बागी तेवर दिखाते हुए कहा, ये देख भौजी को डर लगने लगीं की कहीं आज मेरे कारन पिताजी घर में घमासान न खड़ा कर दें! उनका ये डर जायज भी था, भले ही मुझे पिताजी कुछ आजादी दे दी थी पर इतनी नहीं की मैं उनके खिलाफ खड़ा हो जाऊँ!

खैर मैं बाहर आके पिताजी को ढूँढने लगा....

[color=rgb(184,]अब आगे...[/color]

पिताजी मुझे भूसे वाले कमरे के बाहर चारपाई पर अकेले बैठे हुए मिले| जब मैंने पिताजी का चेहरा देखा तो पाया की वो बहुत खुश हैं, उनका चेहरा दमक रहा था और अगर मैं गलत नहीं तो ये ख़ुशी उनके बेटे की शादी होने की थी! पिताजी का मुस्कुराता हुआ चेहरा देख मन नहीं कर रहा था की मैं उनके चेहरे से हँसी छीनूँ, लेकिन खामोश रह कर भौजी के साथ धोका भी नहीं कर सकता था! नजाने क्यों पर उस पल मुझे ऐसा लगा जैसे ये बात न कर के मैं भौजी के साथ धोका करूँगा, आखिर उन्होंने मुझे अपना पति माना था और मैंने उन्हें अपनी पत्नी, ऐसे में मैं भला कैसे दूसरी शादी कर सकता था?!

खैर पिताजी ने मुझे खामोश अपने विचारों में गुम देखा तो उन्होंने ही बात शुरू की;

पिताजी: अरे भई लाड-साहब? आओ-आओ बैठो!

पिताजी की आवाज सुन मैं अपने ख्यालों से बाहर आया और उनके पास बैठ गया|

मैं: जी आपसे कुछ पूछना था|

मैंने बेमन से उनसे कहा, क्योंकि मैं मन ही मन उनकी ख़ुशी छीनने के लिए खुद को कोस रहा था|

पिताजी: यही ना की आज सुनीता आई थी और.....

पिताजी जानते थे की मैं यहाँ उनसे क्या पूछने आया था, लेकिन मैं थोड़ा सा हैरान था की उन्हें कैसे पता की मैं यहाँ क्या बात करने आया हूँ? फिर मेरा ध्यान पिताजी की अधूरी छोड़ी हुई बात पर गया और मैंने उनकी अधूरी बात खुद पूरी की;

मैं: क्या आप लोग मेरी शादी की सोच रहे हैं?

पिताजी: हाँ बेटा!

पिताजी ने मेरे सर पर हाथ फेरते हुए कहा|

पिताजी: माधुरी के कारन हमने जो पंचायत बुलाई थी उसकी बात पूरे गाँव में फ़ैल चुकी है| ठाकुर साहब ने जब ये सुना की कैसे तुमने पंचायत में अपना पक्ष रखा तो बड़े खुश हुए और उन्होंने ही सुनीता से तुम्हारे रिश्ते की पहल की, उस दिन जब तु उनके घर मुझे बुलाने आया था तब उन्होंने हमें इसी बात के लिए बुलाया था| फिर कल तेरी गैरहाजरी में वो सुनीता संग आये थे, इसी बहाने कल तेरी माँ और तेरी बड़की अम्मा भी सुनीता से मिल लिए| हमने ही उसे आज घर आने को कहा था ताकि तुम दोनों को जान-पहचान के लिए कुछ समय मिल जाए, हम सबको तो लड़की बहुत पसंद है, ये बिकलू वैसी ही लड़की है जैसी हम तेरे लिए चाहते थे और तुम दोनों की जोड़ी बहुत अच्छी लगेगी!

पिताजी की बात सुन कर मेरा शक तो पक्का हुआ पर उनका यूँ सुनीता को मेरे लिए पसंद कर लेना मेरे गले की फाँस साबित हुआ!

मैं: पर आप जानते हैं ना की मैं अभी और पढ़ना चाहता हूँ?!

मैंने पिताजी से तर्क किया|

पिताजी: हाँ बेटा और सुनीता भी अभी और पढ़ना चाहती है, इसीलिए ठाकुर साहब का कहना है की अभी रोका कर देते हैं, शादी जब दोनों की पढ़ाई पूरी हो जाएगी तब करेंगे|

रोके की बात सुन मैं सन्न रह गया क्योंकि मैं पिताजी से शादी के लिए मना करने की तैयारी कर के आया था, रोके के लिए मेरे पास कोई तर्क, कोई उपाय नहीं था! मुझे कैसे भी इस शादी से अपनी गर्दन बचानी थी इसलिए मैंने सुनीता को आगे कर दिया;

मैं: पर आप जानते हैं की सुनीता भी मुझसे शादी नहीं करना चाहती|

ये सुनते ही पिताजी अवाक रह गए!

पिताजी: क्या?

उन्होंने चौंकते हुए कहा|

मैं: उस दिन जब ठाकुर साहब ने हम दोनों को अकेले घूमने को कहा तब मुझे शक हो गया था, इसलिए मैंने सोचा की एक बार सुनीता से पूछूँ की उसके मन में क्या है, कहीं वो भी तो माधुरी जैसी नहीं?! तब उसने बताया की उसे अभी शादी नहीं करनी क्योंकि उसे अभी और पढ़ना है!

ये सच सुन पिताजी के सपने चकना चूर हो गए, मुझे दुःख तो बहुत हुआ परन्तु मैं मजबूर था!

पिताजी: पर ठाकुर साहब ने तो हमें ये कहा की सुनीता इस शादी के लिए तैयार है और जब तक मानु हाँ नहीं कहता ये शादी नहीं होगी|

पिताजी की बात सुन अब मुझे शब्द मिल गए थे;

मैं: पिताजी आप खुद सोचिये की वो बिना अपनी बेटी से कुछ पूछे ये रिश्ता भेज दिया वो भी ये कह कर की सुनीता तैयार है, अब आप ही बताइये क्या ये जबरदस्ती ठीक है?

ये सुन पिताजी सोच में पड़ गए! अब अगर यही बात मैंने बड़के दादा से कही होती तो वो सोच में नहीं पड़ते, वो सीधा कहते की ये तो पिता का हक़ है की वो अपनी बेटी की शादी जिससे चाहे कर दे! लेकिन मेरे पिताजी जोर-जबरदस्ती पसंद नहीं करते थे, आखिर उन्होंने मेरी माँ से प्रेम किया था और उनकी रजामंदी से ही शादी की थी! खैर पिताजी ख़ामोशी में कहीं कुछ और न सोचने लग जाएँ इसलिए मैंने ख़ामोशी तोड़ते हुए उनसे सवाल पूछ लिया, जिससे उनका ध्यान भंग हो गया;

मैं: आप ये बताइये की आप उनके घर क्यों गए थे?

पिताजी: बेटा उन्होंने हमें एक खेत बेचने के लिए बुलाया था, बातों-बातों में उन्होंने शादी की बात छेड़ दी पर हमने साफ़ कह दिया की लड़का अभी पढ़ रहा है और उसकी मर्जी के खिलाफ हम कुछ नहीं कर सकते, उन्होंने हमारी बात का मान रखा और रोके की बात कही! लेकिन इन दिनों में जो कुछ हुआ उससे मुझे यकीन था की तु कोई गलत फैसला नहीं लेगा, खेर अब तूने मुझे सब सच बता दिया है तो मैं भाईसहाब से इस मुद्दे पर बात करता हूँ|

पिताजी इतना कह के बड़के दादा से बात करने चले गए|

पिताजी से अपने दिल की बात कह कर मेरा मन हल्का हो गया था, लेकिन भौजी का मन बहुत दुखी था! उनकी वो हँसी, वो ख़ुशी जो पिछले दिनों उनके चेहरे पर झलकती थी वो अब गायब हो चुकी थी! आखिर किस की नजर लग गई थी हमारे प्यार को? और मैं ऐसा क्या करूँ की वो पहले की तरह खुश रहे, हँसे, बोलें और मुझसे प्यार करें?!

रात होने लगी थी और भौजी रात्रि भोज बनाने में लगीं थीं, उनके चेहरे पर सन्नाटा पसरा हुआ था| इधर नेहा और वरुण दोनों मेरे पीछे पड़ गए थे तो मैं उन्हें ले कर अपनी चारपाई पर लेट गया, वो दोनों तो अपनी बातों में लग गए लेकिन मैं बस आँखें खोले आसमान को देख रहा था| जब खाना बना तो माँ ने खाना खाने के लिए बुलाया, मैंने नेहा और वरुण को समझा-बुझा कर खाना खाने को भेज दिया पर मैं चारपाई पर ही पड़ा रहा| मेरे नहीं आने पर पिताजी ने मुझे आवाज दे कर बुलाया और अपने पास बिठा कर खाने की थाली मेरे आगे कर दी| मैंने बेमन से खाना शुरू किया, इतने में नेहा अपनी थाली ले कर मेरे पास आ गई और मेरा मुँह ताकने लगी| मैं समझ गया की वो चाहती है की मैं उसे खाना खिलाऊँ तो मैंने उसे खाना खिलाना शुरू किया और उसके चेहरे पर प्यारी से मुस्कान आ गई| अब उसकी देखा-देखि वरुण भी आ गया तो मैंने उसे भी खाना खिलाना शुरू कर दिया| मेरा ध्यान अभी दोनों बच्चों को खिलाने में ही लगा था की पिताजी ने फिर शादी की बात छेड़ दी और जो मैंने उन्हें बताया था वो सबको सुना दिया|

बड़की अम्मा: मुन्ना, आभयें तोहार ब्याह नाहीं होत है, अभयें तो बस रोका होत है! सादी तब होइ जब तू पढ़-लिख जैहो!

बड़के दादा: देखा मुन्ना, ठाकुर साहब खुद रिस्ता भेजे रहे! जानत हो ऊ का पास कतना जमीन है? 50 बीघा! फिर अभयें तो सादी नाहीं होत है!

बड़के दादा और बड़की अम्मा की बातें अलग-अलग थीं! बड़की अम्मा की बातों में पुत्र प्रेम था और बड़के दादा की बातों में लालच!

मैं: मैं न तो ये रोका करना चाहता हूँ और न ही शादी! इस जिम्मेदारी के लिए मैं बहुत छोटा हूँ, जब इसके लायक हो जाऊँगा तो शादी का लूँगा! फिर सुनीता भी तो ये शादी नहीं चाहती तो क्या फायदा जबरदस्ती के रिश्ते जोड़ने का?!

मेरी बात सुन के बड़के दादा को बहुत मिर्ची लगी और उन्होंने ऐसी बात कही जिसे सुन कर सबको दुःख हुआ;

बड़के दादा: हाँ भाई! अब दिल्ली जाए के सबका आपन-आपन मन बनी जात है!

बड़के दादा का इशारा पिताजी की ओर था, मुझे उनकी बात सुन कर बहुत गुस्सा आया और मैंने जैसे ही उन्हें जवाब देने के लिए अपनी गर्दन उठाई की पिताजी ने मुझे घूर कर देखा तथा खामोश रहने का इशारा किया! जैसे-तैसे मैं अपना गुस्सा पी गया और वापस खाना खाने लगा|

पिताजी: कल मैं ठाकुर साहब को यहाँ बुलाऊँगा, एक बार उनकी साड़ी बात इत्मीनान से सुन और फिर सुनीता की मर्जी जान कर फैसला करेंगे!

मैंने जल्दी से खाना खत्म किया और हाथ-मुँह धो कर अपनी चारपाई पर बैठ गया| नेहा मेरे पास लेटी हुई थी और वरुण बड़े घर अपनी माँ के पास सोने के लिए जा चूका था| मैं जानता था की भौजी खाना नहीं खाने वालीं, इसलिए मैं उठ कर वापस छप्पर के नीचे आ गया और तख्त पर बैठ गया| भौजी ने माँ, रसिका भाभी, और बड़की अम्मा को खाना परोसा, तथा मुँह मोड़ कर अपने घर जाने लगीं;

बड़की अम्मा: अरे बहु तू न खाबो?

अम्मा ने चिंता जताते हुए पुछा तो भौजी ने उनसे आँखें चुराते हुए कहा;

भौजी: हम बाद में खा लेब!

इतना कह वो सीधा अपने घर चली गईं!

अब मुझे उनको कैसे भी खाना खिलाना था तो मैं उनके पीछे-पीछे ही पहुँच गया, मैंने उनका मन हल्का करने को उनसे बड़े प्यार से बात शुरू की;

मैं: तो मलिकाय हुस्न, आज खाना नहीं खाना है?!

मुझे लगा ये सुन कर भौजी मुस्कराएंगी पर वो बुझे मन से बोलीं;

भौजी: भूख नहीं है!

उनका जवाब सुन मैं तेजी से उनके नजदीक गया और उनके दोनों हाथ पकड़ कर बोला;

मैं: अब आप क्यों दुखी हो, मैं शादी नहीं कर रहा न?!

मैंने भौजी से मिन्नत करते हुए कहा|

भौजी: आज नहीं तो कल तो करोगे ही!

भौजी ने मायूस होते हुए दूसरी ओर मुँह फेरते हुए कहा!

मैं: कल की चिंता में आप अपना आज खराब करना चाहते हो? कम से कम हम आज तो खुश हैं...

मैंने भौजी को समझना चाहा परन्तु उन्होंने मेरी बात काट दी;

भौजी: पर कल का क्या?

भौजी ने आँखों में आँसू लिए हुए मेरी आँखों में देखते हुए कहा| मैं सब कुछ बर्दाश्त कर सकता था पर उनकी आँखों में आँसूँ नहीं, इसलिए मैंने उनके दोनों कंधे पकडे ओर उन्हें झिंझोड़ते हुए उन पर बरस पड़ा;

मैं: अगर आपको कल की ही चिंता करनी थी तो क्यों नजदीक आय मेरे? आप शुरू से जानते थे न की हमारे रिश्ते में हम कल के बारे में नहीं सोच सकते? फिर क्यों आने दिया मुझे खुद के इतना नजदीक की आपके उदास होने से, नाराज होने से, खाना ना खाने से मुझ पर क़यामत टूट पड़ती है!

मैंने अपने सवालों के जरिये भौजी का हृदय छलनी कर दिया था, ये ऐसे सवाल थे जिनके बारे में न तो कभी उन्होंने सोचा था और न ही कभी मैंने! अगर हमने इन सवालों को पहले सोचा होता तो शायद हम नजदीक ही नहीं आते! खैर मैं भौजी से इन सवालों की अपेक्षा नहीं कर रहा था, मैं तो बस केवल इतना चाहता था की वो बस खाना खाने को राजी हो जायें! लेकिन भौजी खामोश खड़ीं थीं, उनकी गर्दन झुकी हुई थी, उनकी ये ख़ामोशी देख मुझे और गुस्सा आया| मैंने उनके कंधे छोड़ दिए और उनसे दो कदम दूर होते हुए उन्हें चेतावनी दे दी;

मैं: ठीक है, जैसी आपकी मर्जी हो वैसा करो! पर ये याद रखना की आपसे एक जिंदगी और भी जुडी है, अगर उसे कुछ हुआ तो मैं आपको कभी माफ़ नहीं करूँगा!

मैं चाहता तो भौजी को अपनी कसम से बाँध कर खाना खाने पर मजबूर कर देता, लेकिन फिर मुझे उनके चेहरे पर वो ख़ुशी देखने को नहीं मिलती! मेरा दिल जानता था की भौजी खाना खा लेंगी, इसलिए मैं सीधा रसोई आया और अम्मा से कहा;

मैं: अम्मा...आप खाना परोस दो! मैं रख आता हूँ, अगर मन किया तो खा लेंगी|

बड़की अम्मा: मुन्ना... तुम बोलिहो तो बहुरिया तोहार बात माँ लेइ!

अम्मा अपना खाना छोड़ कर उठते हुए बोलीं|

मैं: जानता हूँ अम्मा पर मुझे नहीं पता की आखिर उन्हें दुःख क्या है? मेरे कहने से वो खाना खा लेंगी पर खुश नहीं रहेंगी और इस समय उनका खुश रहना ज्यादा जर्रुरी है!

अम्मा ने आगे मुझे कुछ नहीं कहा और हाथ-मुँह धो कर खाना परोस दिया, मैंने थाली ढकी और उसे भौजी के कमरे में स्टूल के ऊपर रख चुप-चाप वापस आ गया, मैंने ये तक नहीं देखा की भौजी उस वक़्त मुझे ही देख रहीं हैं!

बाहर नेहा मेरी चारपाई पर लेटी मेरा ही इंतजार कर रही थी, मैं उसकी बगल में लेट गया और वो तुरंत मेरे से लिपट गई| फिर मैंने उसे एक कहानी सुनाई जिसे सुनते-सुनते वो चैन की नींद सो गई| मैं उसके सर को चूमता रहा पर एक भी सेकंड को मेरी आँखें बंद नहीं हुई| मेरा दिल बड़ा बेचैन होने लगा था, बार-बार दिल मुझे झिंझोड़ रहा था की बिना भौजी की खाये मैंने क्यों खाना खाया? जब चैन नहीं पड़ा तो मैंने करवट लेने की सोची, नेहा को खुद से अलग कर मैंने दूसरी ओर करवट ले ली! कुछ सेकंड बीते पर दिल को चैन नहीं आया, फिर मैंने एक के बाद अनेकों करवटें बदलीं पर न तो दिल को चैन मिला और न ही दिमाग शांत हुआ! हार के मैं उठ के बैठ गया और गंभीर मुद्रा में सर झुका के सोचने लगा, उस समय मेरे दिमाग में केवल भौजी की तस्वीर थी! उदास...गमगीन...मायूस तस्वीर!!!

[color=rgb(147,]जारी रहेगा भाग - 3 में...[/color]
 

[color=rgb(251,]सत्रहवाँ अध्याय: दोस्ती और प्यार[/color]
[color=rgb(65,]भाग - 3[/color]


[color=rgb(41,]अब तक आपने पढ़ा:[/color]

बाहर नेहा मेरी चारपाई पर लेटी मेरा ही इंतजार कर रही थी, मैं उसकी बगल में लेट गया और वो तुरंत मेरे से लिपट गई| फिर मैंने उसे एक कहानी सुनाई जिसे सुनते-सुनते वो चैन की नींद सो गई| मैं उसके सर को चूमता रहा पर एक भी सेकंड को मेरी आँखें बंद नहीं हुई| मेरा दिल बड़ा बेचैन होने लगा था, बार-बार दिल मुझे झिंझोड़ रहा था की बिना भौजी की खाये मैंने क्यों खाना खाया? जब चैन नहीं पड़ा तो मैंने करवट लेने की सोची, नेहा को खुद से अलग कर मैंने दूसरी ओर करवट ले ली! कुछ सेकंड बीते पर दिल को चैन नहीं आया, फिर मैंने एक के बाद अनेकों करवटें बदलीं पर न तो दिल को चैन मिला और न ही दिमाग शांत हुआ! हार के मैं उठ के बैठ गया और गंभीर मुद्रा में सर झुका के सोचने लगा, उस समय मेरे दिमाग में केवल भौजी की तस्वीर थी! उदास...गमगीन...मायूस तस्वीर!!!

[color=rgb(226,]अब आगे...[/color]

करीब साढ़े दस बजे भौजी के घर का दरवाजा खुला और भौजी बाहर निकलीं, उनके हाथ में थाली थी को अब खाली थी| मतलब उन्होंने खाना तो खा लिया था, भौजी थाली रख के मेरे पास आईं और किसी विद्यार्थी की तरह सर झुकाये और हाथ बाँधे बोलीं;

भौजी: मैंने खाना खा लिया!

मैं: Good!

मैंने बिना उनकी तरफ देखे हुए कहा और सर झुकाये ही बैठा रहा| मेरी उदासी भौजी से बर्दाश्त नहीं हुई और वो बोलीं;

भौजी: अब आप क्यों उदास हो?

उनका ये सवाल सुन मैंने उनकी ओर सर उठा कर देखा और कहा;

मैं: बाहार ने फूल से पूछा की; तू क्यों खामोश है? जवाब में फूल ने बाहार से कहा क्योंकि फ़िज़ा उदास है!

ये पंक्तियाँ सुन भौजी को मेरी व्यथा समझ आई, कुछ क्षण के लिए हम दोनों खामोश एक दूसरे को देखते रहे, ये आँखों की आँखों से बातें बड़ी ही भावनात्मक थी! हमारी उस खुसर-फुसर से तो कहीं ज्यादा अच्छी जो हमें सब के डर से करनी पड़ रही थी! 'आपका उदास होना ही मेरी उदासी का कारन है!' मेरी आँखों ने कहा और जवाब में भौजी की आँखों ने पलके झुका कर मुझसे माफ़ी माँगी! माफ़ी का आदान-प्रदान हो चूका था इसलिए अब हम दोनों का मन कुछ हल्का था, भौजी ने मेरी ओर अपना दाहिना हाथ बढ़ाया जिसे मैंने प्रेमपूर्वक पकड़ लिया! भौजी ने मुझे अपने घर की ओर खींचना शुरू कर दिया और मैं भी बिना कुछ सोचे-समझे उनके पीछे चल पड़ा| घर के भीतर पहुँचते ही भौजी ने जल्दी से दरवाजा बंद कर दिया और मेरी तरफ मुड़ीं;

भौजी: जानू आप मुझसे इतना प्यार करते हो की मेरे खाना ना खाने से, खामोश रहने से आप उखड जाते हो?

भौजी ने मुस्कुराते हुए दरवाजे के पास खड़े हुए पुछा| मैं तब आंगन में खड़ा था और मने वहीं से खड़े हुए जवाब दिया;

मैं: मैं खुद नहीं जानता की मैं आपको इतना टूट के क्यों प्यार करता हूँ!

उस समय मेरे पास भौजी के इस सवाल का उपयुक्त जवाब नहीं था, भला मैं अपने प्यार की परिभाषा कैसे दे सकता था?!

मैंने अपनी बाहें फैला के उन्हें गले लगने का निमंत्रण दिया और भौजी एकदम से मुझसे लिपट के मेरे सीने में सिमट गईं| इस आलिंगन से जो एहसास उतपन्न हुआ उसे व्यक्त करना संभव नहीं है! मुझे एक संतुष्टि अवश्य मिलीं की अब उनके मन में कोई चिंता या डर नहीं है| मैंने उनके सर को चूमा और उन्हें खुद से अलग किया तथा लेटने को कहा| भौजी लेट गईं और मैं भी उनकी बगल में उनकी तरफ करवट ले कर लेट गया, उन्होंने मेरे दाहिने हाथ को अपना तकिया बनाया और मुझसे लिपट के बोलीं;

भौजी: आज मैं आपकी वजह से उदास नहीं थी, उदास थी तो इस वजह से की मैं आपको खो दूँगी!

ये कहते हुए उनकी आँखें फिर नम हो गईं! लेकिन इस बार वो रोईं नहीं बल्कि खुद को संभाल कर अपना सवाल पुछा;

भौजी: आपका कहना की हमें कल की चिंता नहीं करनी चाहिए, क्या इसका मतलब ये है की आपकी शादी के बाद भी आप मुझे उतना ही प्यार करोगे जितना अभी करते हो?

मैं: अगर शादी के बाद भी मैं आपको उतना ही प्यार करूँगा तो क्या ये उस लड़की जिसके साथ मैं शादी करूँगा उससे धोका नहीं होगा? फिर भला मुझ में और चन्दर में क्या फर्क रह जायेगा? मेरे दिल में जो आपके लिए जगह है वो हमेशा बरक़रार रहेगी, जितना प्यार मैं नेहा से करता हूँ हमेशा करूँगा पर आप और मैं तब उतना नजदीक नहीं होंगे जितना अभी हैं|

ये वो बात थी जो दिल से निकली थी और इसे बोलने के लिए मैंने जरा भी दिमाग का इस्तेमाल नहीं किया था! मुझे लगा था की ये सुन कर भौजी को धक्का लगेगा और वो फिर से उदास हो जाएंगी, इसलिए मन में ग्लानि होने लगी की मेरे कारन वो उदास होंगी इसी कारन मेरी नजरें झुक गईं! भौजी ने मेरी ठुड्डी पकड़ के ऊपर उठाई और मेरी आँखों में देखते हुए मुस्कुरा कर बोलीं;

भौजी: आपकी ये ईमानदारी मुझे पसंद आई और सच कहूँ तो मुझे आपसे इसी जवाब की अपेक्षा थी|

इतना कह भौजी ने अपना सर मेरे सीने में छुपा लिया, उनकी मनोदशा ठीक नहीं थी| उनके सीने में अब भी दर्द था पर वो उसे छुपाने की कोशिश कर रहीं थीं ताकि उनका ये दर्द देख में भी उदास न हो जाऊँ! वहीं भौजी के पूछे सवाल और मेरे दिए जवाब ने मेरे अंदर तूफ़ान खड़ा कर दिया था! शादी के बाद में उस लड़की के साथ कैसे एडजस्ट करूँगा? कैसे भूल पाउँगा की भौजी अब भी मेरा इन्तेजार कर रहीं हैं? भले ही भौजी अपने मुँह से न बोलें पर मैं तो जानता ही हूँ की उनका मन क्या चाहता है? भौजी के सामने होते हुए मैं कैसे ये शादी निभा पाउँगा? क्या ये भौजी और उस लड़की के साथ धोका नहीं होगा? ये सभी सवाल मेरे दिल को चुभते जा रहे थे और मेरे पास इन सवालों का बस एक ही जवाब था! वो जवाब जो मेरा अनाड़ी दिल मेरी हर समस्या के लिए देता था; 'भौजी को भगा कर ले जा!' लेकिन अयोध्या में फँसने के बाद मुझे आंटे-दाल का भाव पता चल गया था! मैं अभी इस लायक नहीं था की मैं भौजी और बच्चों की जिम्मेदारी उठा सकूँ! मैं बस अपनी इसी उधेड़-बुन में लगा भौजी के सर पर हाथ फेरे जा रहा था, सच ये समय बड़ा ही अजीब था, कुछ कहना मुनासिब नहीं था और ख़ामोशी हम दोनों को खाये जा रही थी| सिवाए नींद के आगोश में जाने के और कोई चारा नहीं था, सो मैंने भौजी के बालों में हाथ फेरना शुरू कर दिया ताकि भौजी आराम से सो जाएँ!

करीब आधे घंटे बाद मुझे लगा की भौजी सो चुकीं हैं तो मैंने धीरे से अपना दाहिना हाथ उनकी गर्दन के नीचे से निकाला और जैसे ही उठने वाला था की भौजी ने मेरी दाहिनी बाँह पकड़ ली;

भौजी: जा रहे हो?

भौजी ने आस भरी नजरों से देखते हुए कहा|

मैं: हाँ!

मैंने सर झुका कर कहा|

भौजी: आप कुछ भूल नहीं रहे?

भौजी ने धीमे से मुस्कुराते हुए कहा|

मैं: याद है!

मैंने उनकी मुस्कराहट का जवाब देते हुए मुस्कुराया| दरअसल उनका इशारा Good Night Kiss से था, मैंने झुक कर उनके होठों को चूमा और फिर उठके खड़ा हुआ|

भौजी: नहीं ये नहीं और भी कुछ था!

भौजी ने अपने दाँतों तले अपनी ऊँगली दबाते हुए कहा!

मैं: क्या?

मैंने सवालिया नजरों से उन्हें देखा|

भौजी: कल रात जब मेरा मन खराब था तो आपने मेरा ख़याल रखा था न? हालाँकि मेरी उदासी का कारन आप नहीं थे पर फिर भी आपने मेरा ख़याल रखा| तो आज आप उदास हो तो ऐसे में मेरा भी फ़र्ज़ बनता है की मैं आपकी इस उदासी का इलाज करूँ!

मैं भौजी की बात समझ गया था, पर इस वक़्त मेरा मन सम्भोग के लिए बिकुल नहीं था इसलिए मैंने झूठ बोलते हुए कहा;

मैं: पर मैं उदास नहीं हूँ|

मैंने नकली मुस्कान से जवाब दिया, लेकिन भौजी मेरी रग-रग से वाक़िफ़ थीं! वो फटेक से बोलीं;

भौजी: खाओ अपने बच्चे की कसम|

ऐसा कहते हुए उन्होंने मेरा हाथ खींच कर अपनी कोख पर रख दिया| मैं झूठी कसम नहीं खा सकता था इसलिए चुप था, मैं उदास था लेकिन मैं अपनी ये उदासी का कारन भौजी को बता कर उन्हें मायूस नहीं कर सकता था;

मैं: हाँ मैं उदास हूँ!

मैंने हाथ भौजी की कोख से अपना उठाया और भौजी से अपनी उधेड़-बुन छुपाते हुए झूठ बोला;

मैं: मेरी उदासी का कारन है आपके चेहरे पर वो मुस्कान न होना जिसे देख कर मेरे दिल में सितार बजने लगता था!

ये सुन भौजी के चेहरे पर क भीनी सी मुस्कान आ गई, उन्होंने मेरा हाथ पकड़ा और बोलीं;

भौजी: अब आपकी उदासी का कारन मैं हूँ, तो मेरा फ़र्ज़ है की मैं आपका ख़याल रखूँ|

भौजी का इशारा किस ओर था ये मैं जानता था, इसलिए एक बार फिर मैंने बात बनाते हुए कहा;

मैं: नहीं उसकी कोई जर्रूरत नहीं है! आपकी एक मुस्कान मेरी उदासी गायब करने के लिए काफी है|

लेकिन भौजी जिद्द पर अड़ गईं;

भौजी: क्यों जर्रूरत नहीं? आप मेरी इतनी चिंता करते हो, मेरे लिए इतना कुछ करते हो तो क्या मेरा मन यहीं करता की मैं भी आपको उतना ही प्यार दूँ|

मैं: पर मैंने कब कहा की...

मैंने उन्हें समझना चाहा पर भौजी ने एकदम से मेरी बात काट दी और गुस्से में उठ का बैठ गईं;

भौजी: पर वर कुछ नहीं| मैंने आपसे आपकी इज्जाजत नहीं माँगी है, चलिए आप मेरे पास लेटिए?

भौजी ने हक़ जताते हुए मुझे डाँटा!

भौजी ने जैसे अध्यपिका की तरह डाँटा हो, उनकी ये डाँट सुन मेरे होठों पर मुस्कान आ गई और मैं उनके निर्देश अनुसार चारपाई पर लेट गया| मैं जानता था की आगे क्या होने वाला है, इसलिए मैंने खुद को भौजी के हवाले छोड़ दिया| इधर भौजी मेरी ओर करवट ले कर लेट गईं, उन्होंने अपना सर मेरे कंधे पर रखा, अपनी बाईं टांग उठा कर मेरे लिंग पर रख उसे अपने घुटने से सहलाने लगीं! उन्होंने अपने बाएं हाथ को मेरे बाएं गाल पर रख मुझे अपनी ओर मुँह करने को कहा और एकदम से मेरे होठों को अपने होठों से ढक दिया! करीब मिनट भर मेरे निचले होंठो को चूसने के बाद भौजी बोलीं;

भौजी: जानू आप मुझसे उसके (सम्भोग) लिए कहने में क्यों संकुचाते हो?

भौजी का सवाल सुन मैं थोड़ा असहज महसूस करने लगा था, मुझे लगता था की भौजी शायद कभी ये बात नहीं जान पाएंगी परन्तु वो मुझसे बहुत प्यार करती थीं और मेरी शर्म, ये झिझक जान गईं थीं|

मैं: वो मैं...

मैं थोड़ा सोच में पद गया की उनसे कैसे कहूँ!

भौजी: बोलो ना?

भौजी ने अधीरता दिखते हुए कहा|

मैं: संकोच इसलिए करता हूँ की मेरे लिए प्यार के मायने बदल चुके हैं! आप से मिलने से पहले sex ही को प्यार मानता था पर आपको मिल कर जाना की प्यार साथ रहने में है, प्यार इस तरह एक दूसरे के पहलु में cuddle करते हुए सोने में है, प्यार वो सुबह वाली गुड मॉर्निंग kiss में है, सुबह हर रात वाली गुड नाईट वाली kiss में है, प्यार संग खाने में है, प्यार आपको घुमाने में है, प्यार आपको सताने और जलाने में है! सच कहता हूँ आपको मिल कर मेरा खुद पर कण्ट्रोल बढ़ चूका है!

मेरी कण्ट्रोल रखने की बात सुन भौजी बोलीं;

भौजी: जानू sex प्यार ही का तो हिस्सा है, फिर हम दोनों एक दूसरे को कितना प्यार करते हैं तो ऐसे में आपको कण्ट्रोल करने की क्या जर्रूरत है?

मैं: जिस दिन मैं गाँव आया था तब याद है क्या हुआ था? चन्दर इसके लिए आपके पीछे पड़ा था न? मैं भी अगर आपके पीछे पड़ जाऊँ तो भला मुझ में और चन्दर में अंतर् ही क्या रहा?

ये सुन कर भौजी थोड़ा गंभीर हो गईं और बोलीं;

भौजी: आप में और 'उसमें' बहुत फर्क है, मैं आपसे प्यार करती हूँ और आपकी ख़ुशी के लिए जान हाजिर है! मैंने आपको अपना पति माना है और आपका पूरा हक़ है मुझ पर! आप जब कहो, जहाँ कहो मैं आपको कभी मना नहीं करुँगी!

भौजी का यूँ मुझे अधिकार देना मुझे बहुत अच्छा लगा और इसी ख़ुशी में एक सच बाहर आया;

मैं: सच कहूँ तो मुझे अच्छा तब लगता है जब आप उसके (sex के) लिए कहते हो!

मैंने मुस्कुराते हुए कहा| ये सुन भौजी के चेहरे पर लाज और ख़ुशी के मिले-जुले भाव आ गए|

भौजी ने अपना बाएँ हाथ से मेरे पजामे का नाडा खोला और वो उठ कर बैठ गईं| फिर उन्होंने अपने दोनों हाथों की मदद से मेरा पजामा और कच्छा नीचे की ओर सरकाया| कच्छा नीचे सरकने से मेरा पहले से ही तैयार लिंग फन फैलाये उन्हें खड़ा हुआ दिखा|भौजी ने मेरे लिंग को जड़ से पकड़ा और उसकी चमड़ी धीरे से नीचे खिसकाई, चमड़ी नीचे खिसकते ही मेरा सुपाड़ा भौजी को दिखा जिसने अपनी तेज महक आंगन में फैला दी! भौजी ने धीरे-धीरे मेरे लिंग को हाथ ऊपर-नीचे हिला कर जोश दिलाया और फिर वो मेरे ऊपर आ गईं| उनका दाहिना हाथ अभी भी मेरे लिंग को ऊपर-नीचे करते हुए छेड़ रहा था और इधर भौजी ने मेरे होठों को अपने मुँह में भर का चूसना शुरू कर दिया था| मेरे दोनों हाथ भौजी की पीठ पर आ चुके थे और मैं उनकी पीठ सहला रहा था| भौजी के हाथ की रफ़्तार तेज हो चुकी थी और उनके मेरे होंठ चूसने से मैं अपने चरम पर पहुँच चूका था! हालत ऐसी थी की मैं अब झड़ा, अब झडा! इसलिए मैंने अपने बाएँ हाथ को उनके दाएँ हाथ पर रख के उन्हें रुकने को इशारा किया, भौजी मेरी हालत समझ गईं की मैं स्खलित होने की कगार पर हूँ! वो उठीं, अपनी साडी जाँघों तक चढ़ाई और अपना एक घुटना मोड़ के मेरे लिंग पर बैठने लगीं| मैंने उन्हें इशारे से कहा की अभी आपकी योनि गीली नहीं है तो वो बोलीं;

भौजी: 'ये' (उनकी योनि) आपको देखते ही गीली हो जाती है!

ये कहते हुए भौजी शर्मा गईं और अपना सर झुका लिया|

मैं: आप शिकायत कर रहे हो या compliment दे रहे हो?

मैंने भौजी को छेड़ते हुए कहा|

भौजी: Compliment!

इतना कह भौजी ने मेरे लिंग को अपनी योनि में प्रवेश करा लिया, अभी केवल मेरा सुपाड़ा ही भीतर पहुँचा था और भौजी इतने में ही रुक गईं थीं, क्योंकि उन्हें आगे अपनी बात पूरी करनी थी;

भौजी: इसी लिए तो आपकी 'रसिका भाभी' आपके पीछे पड़ी हुई है| उस कलमुही को मौका मिला तो आपको रस्सी से बाँध कर अपना मकसद पूरा कर ले!

भौजी ने जलन की आग में जलते हुए कहा|

मैं: अच्छा जी! इतनी जलन होती है आपको उससे!

मैंने भौजी को फिर छेड़ते हुए कहा तथा नीचे से एक छोटा सा धक्का मारा जिससे मेरा आधा लिंग उनकी योनि में प्रवेश हो गया| भौजी ने मेरे आधे लिंग को ही अंदर लिए हुए ऊपर-नीचे होना शुरू कर दिया, उनकी योनि इतनी गीली नहीं थी जितनी मैं अपने मुख से चूस के कर दिया करता था इसीलिए जब मेरा लिंग अंदर जाता तो वो गर्दन पीछे झटक के अपनी योनि में हो रही रगड़ के बारे में बतातीं! उधर मेरे पूछे सवाल के कारन भौजी को कुछ ज्यादा ही जोश आ गया और उसी जोश-जोश में उन्होंने मेरा पूरा लिंग अपनी योनि में धारण कर लिया! मेरा लिंग सरसराता हुआ उनकी योनि में समा गया जिस कारन भौजी को चरम यौनानंद महसूस हुआ वो सीसियाते हुए बोलीं;

भौजी: स्स्स्स्स्स्स....अह्ह्ह्हह्ह स्स्स्स्स्स्स...अह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह.... सिर्फ रसिका से ही नहीं बल्कि उस दिन सिनेमा हॉल में भी एक लड़की थी जो आपको घूर रही थी!

भौजी ने अपनी गर्दन पीछे की तरफ खीचंते हुए मेरे लिंग पर शांत बैठते हुए कहा| उनकी योनि मेरे लिंग के इर्द-गिर्द एडजस्ट कर रही थी इसलिए उन्होंने ये अलप विराम ले लिया था!

मैं: अच्छा जी इसीलिए आप मुझसे चिपक के बैठ थे!

मैंने भौजी को अपनी बातों में लगाए रखा|

भौजी: हाँ...आअह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह.......स्स्स्स्स्स्स्स्स्स्स्स्स ........ जब भी कोई लड़की आपको देखती है तो मैं जल-भून के राख हो जाती हूँ!..अन्न्न्ह्ह्ह्ह्ह..ममम..!!!

भौजी ने मेरी ओर झुकते हुए कहा, मैंने उनकी आँखों में गौर से देखा तो वो एक अलग ही नशे में मदहोश हो रही थीं!

मैं: तभी आप मुझसे इतना चिपक जाते हो जैसे बता रहे हो की इस प्लाट पर आपने कब्ज़ा कर लिया है!!

ये सुन भौजी की हँसी छूट गई;

भौजी: ही..ही..ही..ही ... स्स्सह्ह्ह अह्ह्ह्ह्हन्न्न्ह्ह्ह्ह!!!

अब भौजी की योनि मेरे लिंग के अनुसार अपने आप को फैला चुकी थी, इसलिए भौजी ने मेरे लिंग पर ऊपर-नीचे होना शुरू कर दिया था| शुरू-शुरू में उनकी रफ़्तार बड़ी धीमी थी लेकिन उससे उन्हें कोई आनंद नहीं आ रहा था, इसलिए उन्होंने एकदम से अपनी रफ़्तार बढ़ा दी थी! इस तेज रफ़्तार से उनकी योनि में हो रहा घर्षण कम हो गया था, मेरा लिंग बड़ी आसानी से अंदर फिसल जाता था| दस मिनट में ही मुझे भौजी के चेहरे के भावों को देख के लगा की अब वो किसी भी समय स्खलित होने वाली हैं, अब मुझे डर इस बात का था की अगर भौजी स्खलित हो गईं, तो उनका रस बहता हुआ मेरे पजामे को गीला कर देगा और उसकी महक बाकियों को हम पर शक करने को मजबूर कर देगी और अगर इतनी रात गए अगर मैं कुऐं पर पजामा साफ़ करने गया तो कोई भी पूछेगा की इतनी रात को पजामे धोने की क्यों सूझी?

मैं: जान...प्लीज...रुको!!

मैंने खुद को काबू करते हुए भौजी को रोकना चाहा| लेकिन भौजी ने जैसे सुना ही नहीं या फिर जान के अनसुना कर दिया|

मैं: प्लीज....

मैंने भौजी के हाथ पकड़ लिए| भौजी एकदम से डर के मारे रुक गईं| उन्हें चिंता होने लगी की कहीं उनके इस तरह तेज झटके देने से कोई कष्ट तो नहीं हो रहा?!

भौजी: क..क...क्या हुआ? दर्द हो रहा है?

भौजी ने झुक कर मेरे दाएँ गाल पर अपनी उँगलियाँ फिराते हुए कहा|

मैं: नहीं पर आप स्खलित होने वाले थे ना?

मैंने मुस्कुरा कर पुछा ताकि भौजी को डर न लगे;

भौजी: हाँ ...तो?

भौजी ने सवालिया नजरों से मुझे देखा|

मैं: आपका वो रस मेरे पजामे को भिगो देगा और......

मैं आगे कुछ बोलता उससे पहले ही उन्होंने मुझे प्यार से डाँट दिया;

भौजी: तो क्या हुआ? आप भी ना..... खमा खा रोक दिया!

ये कहते हुए भौजी ने फिर धीरे-धीरे ऊपर-नीचे होना शुरू कर दिया!

मैं: जान बात को समझो! आपके योनि रस को सूंघते हुए आपकी छोटी बहन रसिका आ जाएगी और वो कहीं हंगामा ना खड़ा कर दे!

मैंने भौजी को समझना चाहा पर रसिका का नाम सुन उन्हीं और जोश आ गया!

भौजी: वो मैं नहीं जानती....!

भौजी ने थोड़ा गुस्से से कहा और अपने काम में लग गईं!

देखा जाए तो भौजी का गुस्सा जायज ही था, मैं अपने कपड़ों की चिंता करने लगा था जबकि भौजी अपने यौनसुख की ओर बढ़ रहीं थीं!

लेकिन मेरी चिंता भी जायज थी, मेरे कपडे माँ ही धोती थीं और उन्हें ये निशान देख कर सब पता चल जाता! अब मुझे कुछ तो करना ही था तो मैंने भौजी की कमर थामी, और अचानक से करवट ली! भौजी कुछ समझ पाएं उससे पहले ही मैं उन के ऊपर छा गया और काम क्रीड़ा में अपना सहयोग देते हुए तेजी से धक्के लगाने लगा! इस समय मेरे पास पूरा कण्ट्रोल था और मेरी गति बी हाउजी के मुक़ाबले ज्यादा थी! लगभग बीस धक्के और हम दोनों एक साथ स्खलित होने लगे, भौजी की उत्तेजना इस कदर बढ़ गई की उन्होंने मेरी टी-शर्ट के कॉलर पकड़ मुझे अपने मुँह से सटा लिया और मेरे गप्प से मेरे होठों को अपने मुँह में भर चूसने लगीं| इधर मैं अपने स्खलन के बाद आखरी कुछ धक्के मारता हुआ अपने वीर्य की आखरी बूँद तक उनकी योनि छोड़ कर उनपर ही पसर गया! जबतक हम दोनों की धड़कनें सामन्य नहीं हुईं तब तक भौजी ने मेरी टी-शर्ट के कॉलर नहीं छोड़े! करीब 2-3 मिनट बाद जब हमारा ज्वर शांत हुआ तो भौजी ने मेरी टी-शर्ट के कॉलर छोड़े और मैं पीछे हो कर अपने घुटने मोड़े भौजी की जाँघों पर बैठ गया! मैंने जब नीचे देखा तो पाया की मेरा लिंग सिकुड़ चूका है परन्तु अब भी भौजी की योनि में बैठा हुआ है, हम दोनों का यौन रस धीरे-धीरे रिस्ता हुआ नीचे की ओर बह रहा है! मैंने भौजी से थोड़ी दिल्लगी करते हुए कहा;

मैं: देखो 'इसे' (मेरे लिंग को) भी आपकी 'इसकी' (भौजी की योनि की) आदत हो गई है|

ये सुन भौजी थोड़ा शर्मा गईं ओर मुस्कुराते हुए बोलीं;

भौजी: Likewise!!!

भौजी अब मुस्कुराने लगीं थी और मेरी उदासी उनकी ये मुस्कान देख कर गायब हो चुकी थी|

मैंने एक बार घडी देखि तो साढ़े बारह हो रहे थे;

मैं: तो अब मैं जाऊँ?

मैंने भौजी से जाने की अनुमति माँगी तो भौजी ने जवाब में मुझसे ही सवाल पूछ लिया;

भौजी: आपका मन कर रहा है जाने का?

मैं: नहीं!

मैंने एकदम से उत्तर दिया|

भौजी: तो फिर आज मेरे साथ ही सो जाओ!

भौजी ने मुस्कुराते हुए मुझे अपने पास लेटने का इशारा लिया|

मैं: और सुबह क्या होगा?

भौजी: वो सुबह देखेंगे|

भौजी ने फटेक से जवाब दिया|

मैं: अगर अपने बच्चे का ख़याल नहीं होता तो शायद सो जाता पर मैं नहीं चाहता की मेरी वजह से आप पर कोई लाँछन लगाये|

ये सुन कर भौजी कुछ नहीं बोलीं बस थोड़ा मायूस हो गईं| अब उन्हें उदास कैसे करता इसलिए मैं भी ताव में आ गया और बोला;

मैं: भाड़ में जाए दुनिया दारी आज तो मैं अपनी जानेमन के पास ही सोऊँगा|

ये कहते हुए मैं धीरे से उनकी जाँघों पर से उठा जिससे मेरा लिंग फिसल कर उनकी योनि से बाहर आ गया! उधर भौजी के चेहरे पर फिर से मुस्कान लौट आई थी| उनकी इसी मुस्कान के लिए मैं किसी से भी लड़ने को तैयार था और देखा जाए तो कल मुझे ठाकुर साहब से लड़ना ही था....जुबानी जंग!

खैर मेरा लिंग भौजी और मेरे रस से सना हुआ था तो मैंने भौजी को दिखाते हुए उन्ही के पेटीकोट से अपना लिंग पोंछा, मुझे ऐसा करते देख वो खिलखिला कर हँसने लगीं| मैंने अपना पजामा ठीक किया और भौजी की साडी ठीक कर मैं उनकी बगल में लेट गया, पर इस बार मैंने भौजी को अपना दाहिना हाथ तकिया नहीं बनाने दिया वरना रात में मैं निकल कैसे पाता?! मैंने भौजी की ओर करवट ली, अपना बायाँ हाथ उनके ब्लाउज में कैद स्तनों पर रख दिया, भौजी ने मेरे बाएँ हाथ को अपने दोनों हाथों से थाम लिया और हम दोनों चैन की नींद सो गए| रात के दो बजे मुझे मूत आया तो मैं बड़ी सावधानी से उठा ताकि कहीं भौजी जाग ना जायें| अगर मैं सामने के दरवाजे से निकलता तो दरवाजे की आहट से भौजी जाग जातीं और मुझे जाता देख उनको दुःख होता, इसलिए मैंने दिवार फाँदने का निर्णय किया| मैंने दिवार फाँदी और मूत कर, हाथ-मुँह धो कर अपने बिस्तर पर लेट गया| जैसे ही मैं लेटा की नेहा ने फ़ौरन मेरी ओर करवट ली और मेरी कमर पर अपना हाथ रख कर मुझे झप्पी डाल के लिपट गई| मैं समझ गया की मेरे न होने से नेहा जाग गई थी, इसलिए मैंने फ़ौरन उसकी ओर करवट ली और उसे अपनी छाती पर चढ़ा लिया|

मैं: मेरी गुड़िया रानी जाग रही है?

मैंने नेहा को पुचकारते हुए पुछा|

नेहा: ममम...पापा जी आप कहाँ चले गए थे?

नेहा ने मेरी ओर देखते हुए पुछा|

मैं: बेटा..... मैं बाथरूम गया था|

माने झूठ बोला, अब उसे कैसे समझताकी मैं कहाँ गया था?!

मैं: क्या हुआ आपने फिर से कोई बुरा सपना देखा?

मैंने नेहा के माथे को चूमते हुए पुछा तो नेहा ने हाँ में सर हिला दिया|

मैं: सॉरी बेटा...मैंने आपको अकेला छोड़ा| आगे से मैं आपको कभी अकेला नहीं छोड़ूँगा!

मैंने नेहा के दोनों गालों की पप्पी ली और फिर उसका मन खुश करने को एक प्याली-प्याली कहानी सुनाई, जिसे सुनते-सुनते नेहा मेरी छाती से चिपकी सो गई!

[color=rgb(147,]जारी रहेगा भाग - 4 में...[/color]
 
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