Hindi Antarvasna एक अनोखा बंधन - पुन: प्रारंभ


नौवाँ अध्याय: परीक्षा


भाग - 4

अब तक आपने पढ़ा:

अब समय था की मैं अपने बनाये प्लान को अंजाम दूँ! मैंने जल्दी-जल्दी अपने दो-चार कपडे पैक किये, अगला काम था पैसे का जुगाड़ करना| मेरे पास पर्स में करीब दो सौ रूपए थे, उस समय ATM कार्ड तो था नहीं, परन्तु पिताजी के पास MULTI CITY चेक की किताब थी और मुझे पिताजी के दस्तखत करने की नक़ल बड़े अच्छे से आती थी| मैंने किताब से एक चेक फाड़ा और उसमें एक लाख रुपये की राशि भर दी| जल्दी से नहा धो के तैयार हुआ, पूजा की और भगवान से दुआ माँगी की मुझे मानसिक शक्ति देना की मैं अपनी नई जिम्मेदारी निभा सकूँ|
अब आगे....

मैं तेजी से चलता हुआ भौजी के पास आया तो देखा अजय भैया खेत जाने के लिए निकल रहे थे;

अजय भैया: मानु भैया, अब कैसी तबियत है?

मैं: दर्द है!!!

अजय भैया: चलो फिर डॉक्टर के ले चली!

मैं: नहीं भय, ठीक हो जायेगा| पिताजी का फ़ोन आया था?

मैंने पुछा ताकि ये पता चल जाये की मेरे पास भागने के लिए कितना समय है|

अजय भैया: चाचा का फ़ोन आवा रहा, ऊ चार बजे तक आइहैं|

मैं: अच्छा....और चन्दर भैया?

मैंने मुँह बनाते हुए कहा|

अजय भैया: भैया का कउनो पता नहीं! हम मामा का फ़ोन किहिन रहे, ऊ कहीं की भैया अभय तक सोअत रहे! फिर हम कलिहं जो हुआ ऊ बताई तो मामा बहुत गुस्सा हुए रहे!

मुझे मेरे लायक सभी जानकारी मिल चुकी थी, इसलिए मैंने बात को वहीँ खत्म करते हुए भौजी से कहा;

मैं: भौजी चाय दे दो|

मैंने बड़े रूखे मन से कहा क्योंकि मुझे भौजी पर कल रात वाला गुस्सा अब भी था| अजय भैया हँसिया ले के खेत की ओर निकल गए, अब घर में केवल मैं, नेहा और भौजी ही थे| नेहा आँगन में बैठी खेल रही थी और उसने अभी तक मुझे नहीं देखा था| भौजी मेरी चाय ले कर आ गेन और इससे पहले की वो मेरे रूखे पन का कारन पूछतीं मैंने सीधा मुद्दे की बात छेड़ दी;

मैं: चलो जल्दी से तैयार हो जाओ?

ये सुनते ही भौजी एक दम से हैरान हो गईं;

भौजी: क्यों?

उनके ये हैरानी देख मुझे गुस्सा आया और मैंने नाराज होते हुए कहा;

मैं: भूल गए रात को मैंने क्या कहा था?

भौजी ने एकदम से मेरा हाथ पकड़ा और मुझे अपने घर की तरफ खींच कर ले गईं| भीतर जा कर उन्होंने मुझे चारपाई पर बैठाया और बोलीं;

भौजी: मानु तुम्हें हो क्या गया है? क्यों तुम ऐसी बातें बोल रहे हो? तुम भी जानते हो की नई जिंदगी शुरू करना इतना आसान नहीं होता? हम कहाँ रहेंगे? क्या खाएंगे? और कहाँ जायेंगे? नेहा की परवरिश का क्या? है तुम्हारे पास इन बातों का जवाब?

भौजी ने अपने सारे सवालों का पहाड़ मुझ पर गिरा दिया| हैरानी की बात ये है की उन्होंने ये सवाल उस समय नहीं सोचे जब मैं उन्हें घर से भागने के लिए मना कर रहा था!

मैं: भौजी मैंने सब सोच लिया है, हम यहाँ से सीधा दिल्ली जायेंगे, वहाँ मेरा एक भाई जैसा दोस्त है, वो हमारा कुछ दिनों के रहने का इन्तेजाम कर देगा| उसके मामा जी जयपुर में रहते हैं, वही मेरी नौकरी भी लगवा देंगे| आप, मैं और नेहा जयपुर में ही रहेंगे|

मैंने पूरे आत्मविश्वास से जवाब दिया|

भौजी: और इसके लिए कुछ पैसे भी तो चाहिए होंगे? वो कहाँ से लाओगे?! मेरे पास तो कुछ जेवर ही हैं जो मेरे माँ-बापू ने दिए थे!

मैं भौजी को घर से भगाना चाहता था पर ये नहीं चाहता था की वो अपने साथ जेवर ले कर चलें! मेरा मन कह रहा था की मैं उन्हें ये चोरी करने का पाप न करने दूँ!

मैं: उनकी जर्रूरत नहीं पड़ेगी, मेरे पास लाख रूपए का चेक है, जिसे हम भारत के किसी भी बैंक से कॅश करा सकते हैं| इतने पैसों से हमारा गुजारा हो जायेगा, फिर धीरे-धीरे मैं कमाने लगूँगा और फिर सब कुछ ठीक हो जायेगा|

भौजी: और ये पैसे आये कहाँ से तुम्हारे पास?

भौजी ने भौएं सिकोड़ते हुए कहा|

मैं: पिताजी के बैंक से! पर आप चिंता मत करो मैं ये पैसे उन्हें लौटा दूँगा|

मैंने अपनी गैरंतमंद होने का सबूत देते हुए कहा|

भौजी: मुझे तुम्हारी बात पर भरोसा है, लेकिन मेरी एक बात का जवाब दो; जब हम यहाँ से भाग जायेंगे तो तुम्हारे माँ-पिताजी का क्या होगा? वो किसी को मुँह दिखाने लायक नहीं रहेंगे! उनकी और हमारी कितनी बदनामी होगी! अगर मैं ये मान भी लूँ की तुम्हें इस बात का कोई फर्क नहीं पड़ता तो मुझे एक बात बताओ, हम जहाँ भी रहेंगे वहाँ लोग तो होंगे ही, हम जंगल में तो रहने नहीं जा रहे, तुम्हारी उम्र 16-17 साल होगी और मेरी 26 साल! तुम जमाने से क्या कहोगे? ये सच तो तुम छुपा नहीं सकते? और इसका असर नेहा की जिंदगी पर भी पड़ेगा, क्या तुम यही चाहते हो? अगर हाँ तो मैं तुम्हारे साथ चलने के लिए अभी तैयार हूँ!

इतना कह के भौजी ने जल्दी-जल्दी अपने कपडे सूटकेस में फेंकने शुरू कर दिए| मैंने भौजी के कंधे पर हाथ रख कर उन्हें अपनी तरफ घुमाया और उनकी आँखों में आँखें डाल कर कहा;

मैं: नहीं....पर मैं आपको इस नर्क में अकेला भी तो नहीं छोड़ सकता! कल तो मैं था तो मैंने आपको बचा लिया, पर जब मैं नहीं रहूँगा तब? तब आपकी रक्षा कौन करेगा?

भौजी: मानु मुझे हमारे प्यार पर पूरा भरोसा है और भगवान पर भी| वही मेरी और नेहा की रक्षा करेगा!

भौजी की बात सही थी, मैंने भागने की प्लानिंग तो कर ली थी पर ये नहीं सोचा था की उसके बाद क्या होगा?! हमारे जैसे देश में जहाँ लोग पति-पत्नी के बीच के प्यार को नहीं बल्कि उनकी उम्र, कद, काठी, रंग-रूप इत्यादि को ज्यादा मानता देते हैं, ऐसे देश में हमारे प्यार के लिए कोई जगह नहीं थी|

मेरे पास अब भौजी से करने के लिए कोई तर्क नहीं था इसलिए मैं गुम-सुम होकर बैठ गया और भौजी दूसरी चारपाई पर बैठी मुझे देख ने लगीं| मुझे ताज़ी हवा में साँस लेने का मन हुआ इसलिए जब मैं उठने को हुआ तो भौजी मेरे पास आईं और मुझे गले लगा लिया| भौजी खुद को रोने से रोक नहीं पाईं;

मैं: अब आप चुप हो जाओ हम कहीं नहीं जा रहे! ये लो...

ये कहते हुए मैंने चेक फाड़ डाला और बात घुमा दी;

मैं: कल जो आप ने मलहम लगाया था न उससे काफी आराम मिला, थोड़ा और लगा दो!

भौजी ने पहले मुझे मलहम लगाया उसके बाद मैंने भौजी को मलहम लगाया| फिर हम दोनों हाथ-मुँह धो के बाहर आ गए| भौजी खाना बना रही थी और मैं पास की चारपाई पर लेटा उन्हें निहार रहा था| मैं भौजी पर अपना डर और चिंता जाहिर नहीं करना चाहता था| कल के हादसे के बाद तो मुझे भौजी और नेहा की और ज्यादा चिंता होने लगी थी, मेरी अनुपस्थिति में भैया दोनों का क्या हाल करेंगे ये सोच के ही डर लग रहा था|

चूँकि मैं काफी देर से खामोश था तो भौजी ने बात शुरू की;

भौजी: क्या सोच रहे हो?

मैं: कुछ नहीं|

मैंने झूठ बोला ताकि भौजी फिर से उदास न हो जाएँ! लेकिन भौजी को उस वक़्त मस्ती सूझ रही थी;

भौजी: रात का अधूरा काम कब पूरा करोगे?

मैं: अभी मन नहीं कर रहा|

मैंने रूखे मन से जवाब दिया पर ये जवाब सुन कर भौजी ने मेरी चिंता भाँप ली| वो समझ गईं की मैं अब भी उनकी सुरक्षा को ले कर परेशान हूँ इसीलिए कल रात वाले 'काम' को पूरा नहीं करना चाहता|

भौजी: तुम तो मन मार लेते हो, पर मेरे मन का क्या? वो तो तब ही खुश होता है जब तुम खुश रहते हो|

भौजी ने अपने दिल की बात रखी पर मैं अब भी परेशान था और उनकी ये बात मुझे बड़ी अजीब लग रहगी थी|

मैं: (थोड़ा गुस्से में) भौजी....

इससे पहले की मैं कुछ और कहता पिताजी ने आके मुझे डरा दिया| भौजी ने अभी घूँघट हटा रखा था, पर पिताजी को देखते ही उन्होंने डेढ़ हाथ का घूँघट काड लिया|

पिताजी: और लाड़-साहब फ़ैले पड़े हो? हो गया आराम या अभी बाकी है?

इतना कहते हुए पिताजी ने मज़ाक-मज़ाक में थपकी देने के लिए मेरी पीठ पर ज़ोरदार हाथ मारा! उनका हाथ लगते ही मेरी चीख निकल पड़ी; "आअह्ह्ह!!!"

मेरी चीख सुनते ही भौजी भागती हुई मेरे पास आईं और उन्होंने पिताजी को सारा हाल सुनाया| इधर मैं दर्द से बिलबिला रहा था! पिताजी ने मेरी टी-शर्ट उठाई और मेरी पीठ का हाल देख के माँ और पिताजी ने सर पीट लिया! पीठ पर बेल्ट की छाप अच्छे से उभर के आई थी, कुछ-कुछ जगह से पस जैसा तरल निकल रहा था!

माँ: हाय राम!!! ये क्या हालत कर दी मेरे बेटे की| डॉक्टर के पास गया था?

माँ ने बेचैन होते हुए कहा| पिताजी का डर था वर्ण आज माँ जर्रूर बखेड़ा कर देतीं!

मैं: (आअह!!) नहीं... भौजी ने मलहम लगाईं थी, उससे कुछ आराम हो गया था....PAIN किलर भी ली थी|

मैंने करहाते हुए कहा, ताकि पिताजी मुझ पर बरस न पड़ें!

पिताजी: (गुस्से में) बड़े भैया कहाँ हैं?

भौजी: चाचा वो खेत गए हैं|

पिताजी का गुस्सा देख मैं समझ गया था की आज काण्ड होने वाला है!

पिताजी: मैं वहीँ जाता हूँ...तब तक तुम दोनों इसका ख्याल रखो! इसे डॉक्टर के नहीं जाना तो ना सही, मैं डॉक्टर को यहीं ले आता हूँ|

पिताजी ने फटाफट पडोसी की साइकिल उठाई और वो तेजी से खेतों की तरफ चल दिए| इधर माँ मेरे पास बैठी सर पर हाथ फेर रहीं थीं और उन्होंने भौजी को वापस रसोई भेज दिया| मेरे जख्म देख माँ की आँख भर आई थी; "मैं ठीक हूँ माँ!" मैंने कहा तो माँ अपने आँसूँ पोछते हुए बोलीं; "बेटा तुझे क्या जर्रूरत थी बीच में पड़ने की?! तू जानता है न यहाँ के लोगों को? तुझे कुछ हो जाता तो मैं क्या करती?!" माँ बोलीं|

"माँ आपने ही सिखाया था न की मुसीबत में पड़े लोगों की मदद करनी चाहिए| फिर भौजी तो मेरी सबसे अच्छी दोस्त हैं, ऊपर से वो एक औरत और उनकी गोद में नेहा थी ऐसे में मैं कैसे हाथ बाँधे उन्हें पीटते हुए देखता?!" मैंने बड़े प्यार से जवाब दिया जिसे सुन माँ चुप हो गईं और उन्हें मन ही मन मुझ पर बड़ा गर्व हुआ| उन्होंने मेरा सर चूमा और पंखे से हवा करने लगीं जिससे मेरी पीठ को ठंडी-ठंडी राहत मिलने लगीं| माँ और मेरी बात भौजी नहीं सुन पाईं थीं क्योंकि मैं और माँ बहुत धीरे-धीरे बातें कर रहे थे| इतने में कूदती हुई नेहा आ गई और मेरी ये हालत देख कर एकदम से गुमसुम हो गई| मैंने उसे इशारे से अपने पास बुलाया और मेरे गाल पर पप्पी करने को कहा| नेहा ने मेरे दोनों गालों पर पप्पी की; "माँ देखो मेरा दर्द ठीक हो गया!" मैंने माहौल हल्का करने के लिए कहा तो माँ और भौजी दोनों हँस पड़े|

"ठीक है तो मुन्नी (नेहा) अब से रोज अपने चाचा को पप्पी करते रहना|" माँ बोलीं और ये सुन कर नेहा ने फिर से मुझे पप्पी की| ये देख भौजी मन ही मन मुस्कुराये जा रहीं थीं| खाना लघभग तैयार था, दाल में छौंका लगा और खाना तैयार हो गया| भौजी ने माँ से कहा की आप नहा धो लो तब तक वो मेरे पास बैठेंगी| माँ स्नान करने चलीं गईं और भौजी मेरी पीठ पर फूँक मार रहीं थी| उनकी ठंडी-ठंडी फूँक से मुझे बहुत आराम मिला! अब चूँकि छप्पर के नीचे बस मैं, नेहा और भौजी ही थे तो मुझे उनसे बात करने का मौका मिल गया;

मैं: आज के बाद अगर मुझसे कोई भी बात छुपाई तो याद रखना, आपसे कभी बात नहीं करूँगा!

भौजी: (कान पकड़ते हुए) माफ़ कर दो, आज के बाद आपको हर बात बताऊँगी! अब तो मुझसे नाराज नहीं हो ना?

मैं: नहीं

भौजी: तो रात का बचा हुआ काम कब पूरा करोगे?

मैं: भौजी! आपका ये बार-बार कहना मुझे अच्छा नहीं लगता! ऐसा लगता है जैसे आप बदला चुकाना चाहते हो!

भौजी: नहीं..नहीं...नहीं...ऐसा कुछ नहीं है....

आगे वो कुछ कह पातीं उससे पहले ही पिताजी डॉक्टर को ले आये, साथ-साथ बड़के दादा, बड़की अम्मा और अजय भैया, सभी अपना काम काज छोड़के आ गए| डॉक्टर मेरे पास आया और मुझसे अंग्रेजी में बात करने लगा;

डॉक्टर: Hello Manu! How are you? (और मानु क्या हाल है तुम्हारा?)

मैं: In a lot of pain.. (आह!!!) (बहुत दर्द में हूँ डॉक्टर साहब!)

डॉक्टर: Oh yes, your father told me about your bravery. You seem to care a lot about your Bhabhi! (हाँ, तुम्हारे पिताजी ने मुझे रास्ते में तुम्हारी वीरता के बारे में सब बताया| शाबाश!!! तुम अपनी भाभी का ज्यादा ही ध्यान रखते हो?)

डॉक्टर मेरी बहादुरी से बहुत प्रभावित था और उसे मेरे तथा भौजी के रिश्ते के बारे में जरा भी शक नहीं हुआ था|

मैं: Yes, she's my best friend. (जी, क्योंकि ये मेरी सबसे अच्छी दोस्त हैं|)

मैंने ये बात इसलिए कही ताकि उसके मन में मेरे और भौजी के रिश्ते को ले कर कोई शक न रहे!

डॉक्टर: Okay....I can see a different bond between you two. Anyway your wound's all messed up....did you put any gel on the affected area? (मुझे ना जाने क्यों ऐसा महसूस होता है की तुम दोनों के बीच में एक अटूट रिश्ता है| खेर, तुम्हारे पीठ के जख्मों की हालत अच्छी नहीं है, क्या तुमने इसपर कोई मलहम लगाईं थी?)

मेरी अधिक चतुराई डॉक्टर ने पकड़ ली थी! पर शुक्र है की उसने इस बात को ज्यादा खींचा नहीं और तुरंत मुद्दे की बात पर आ गया| मैंने अपने चेहरे पर जरा भी चिंता के भाव नहीं आने दिया और ऐसे दिखाया जैसे मुझे उसकी बात का कोई फर्क ही नहीं पड़ा| अगर मैं कुछ कहता या कोई भी प्रतिक्रिया देता तो उसका शक पक्का हो जाता इसलिए मैं ने उसके मलहम वाले सवाल का ही जवाब देने लगा;

मैं: Yes...we used some ayurvedic ointment! (हाँ, कोई आयुर्वेदिक मलहम लगाईं थी|)

डॉक्टर: You shouldn't just apply anything without first consulting a qualified doctor! You could have phoned me?! (बिना किसी डॉक्टर की राय लिए तुम्हें कोई भी दवाई नहीं लगानी चाहिए! फिर तुम मुझे फ़ोन भी तो कर सकते थे?!)

मैं: Actually sir this all happened so fast, I almost forgot that I've your number. I'm Extremely sorry! (दरअसल ये सब इतनी अचानक हुआ की मुझे याद ही नहीं रहा की मेरे पास आपका नंबर भी है, मुझे माफ़ कर दीजिये!)

डॉक्टर: No Need to be sorry, I'll have to first clean your wound with spirit, after that I'll have to do some dressing. No doubt it'll hurt a lot. (माफ़ी मांगने की कोई आवश्यकता नहीं है| अब मुझे पहले तुम्हारे घावों को स्पिरिट से धोना होगा उसके बाद मुझे इनकी पट्टी करने होगी| इसमें कोई दो राय नहीं की इस प्रक्रिया में तुम्हें दर्द बहुत होगा| )

मैं: Okay, I think I can handle that much pain. (जी ठीक है, मैं दर्द बर्दाश्त कर लूँगा|)

जब मैं और डॉक्टर अंग्रेजी में बात कर रहे थे तो घर के सभी मुँह खोले हमें उत्सुकता से मुझे देख रहे थे| क्योंकि आज पहली बार एक डॉक्टर मरीज को चेक करने आया था, वरना हमेशा ही बीमार गाँव वालों को ही डॉक्टर के पास जाना पड़ता था ऊपर से डॉक्टर और मैं अंग्रेजी में गुफ्तगू कर रहे थे| अपने बेटे को अंग्रेजी में डॉक्टर से बात करते हुए देख पिताजी का सीना गर्व से चौड़ा हो गया था, आखिर उनके खानदान में मैं ही एक अकेला ऐसा लड़का था जो दसवीं से ज्यादा पढ़ा था और वो भी अंग्रेजी मीडियम स्कूल से! माँ जो मेरी बगल में बैठीं थी वो भी अपने बेटे पर फ़क्र महसूस कर रहीं थीं, क्योंकि आज मैं उनकी आँखों में एक चमक देख पा रहा था| उधर भौजी के चेहरे से लग रहा था की उन्हें भी मुझ पर नाज था...गर्व था..इसलिए वो भी घूँघट के नीचे हलके-हलके मुस्कुरा रहीं थी|

डॉक्टर बड़े संभाल-संभाल के अपने हाथ चला रहा था पर जब स्पिरिट घावों में लगती तो बहुत जलन होती! मैं बस दाँत पीस के रह जाता, दो मिनट की सफाई के बाद डॉक्टर ने मेरी पट्टी कर दी और मुझे एक इंजेक्शन देने लगा;

डॉक्टर: I need to give you this injection, it's got some morphine so you'll feel a bit better. Its simply to lessen your pain. (मुझे तुम्हें ये इंजेक्शन लगाना होगा, इससे तुम्हारा दर्द कुछ काम होगा|)

मैं: Okay Doc but I've a request, actually yesterday during that incident she (Bhabhi) was also hurt but she won't let you एक्सामिने! I hope you can understand! Can you gimme some pain killers for her and some spirit and bandages, I'll ask my mother and she'll do the dressing. And don't worry we'll pay you for that! Just add it in the bill and my father will pay but please don't tell him about what I just said.

(ठीक है डॉक्टर साहब, पर मेरी आपसे एक गुजारिश है| दरअसल जब वो हादसा हुआ तो भाभी को भी चोट आई थी| पर वो आपसे इसका इलाज किसी भी हालत में नहीं कराएंगी| क्या आप मुझे कुछ PAIN KILLER और थोड़ी स्पिरिट और पट्टी दे सकते हैं, मैं अपनी माँ से कह के उनकी पट्टी करवा दूँगा| आप फीस की चिंता ना करें वो हम दे देंगे, बस आप टोटल बिल में ही जोड़ देना, मेरे पिताजी आपको पैसे दे देंगे और हाँ ये बात आप प्लीज पिताजी से मत कहना|)

मैं जानता था की भौजी किसी भी मर्द डॉक्टर के सामने अपने पीठ के घाव कभी नहीं दिखाएंगी, इसलिए मैंने डॉक्टर से ये बात कही थी|

डॉक्टर: Usually I don't do this but since you've asked me so politely I'll give you the medicine. (मैं आम तौर पे ऐसा नहीं करता पर चुकी तुमने बड़े प्यार से कहा है तो इसलिए मैं दवाई दे देता हूँ|)

दो ही मुलाक़ातों में मेरा प्रवभाव डॉक्टर पर पड़ चूका था और उसके दिमाग में मेरी एक अच्छी छबि बन चुकी थी इसी लरन वो मेरी बात मान गया|

मैं: Thank You Doc. (शुक्रिया डॉक्टर साहब|)

डॉक्टर ने मुझे दवाई अलग से दी और अपने पैसे ले के चला गया| उसके जाने के बाद सभी जन मुझे घेर के बैठ गए और पूछने लगे की क्या बात हुई हम दोनों के बीच| मैंने सभी को सब बाताई सिवाय 'मेरा भौजी का ख्याल रखने के'| घर के सभी लोग बहुत खुश थे, माँ-पिताजी को भी तसल्ली थी की अब मैं जल्दी अच्छा हो जाऊँगा| तभी वहाँ माधुरी आ गई, उसने जब मेरी ऐसी हालत देखी तो अपनी चिंता जाहिर करते हुए पूछने लगी की ये सब कैसे हुआ| माँ ने उसे सारी बात बताई| माँ की बात सुन उसने कनखी नजर से भौजी को ताड़ा, जैसे उन पर बहुत गुस्सा हो और फिर चुप-चाप चली गई| मैंने उसकी ये हरकत देख ली थी पर मैंने उसे ज्यादा तवज्जो नहीं दी! दोपहर के खाने का समय हो गया था, सब ने साथ बैठ कर खाना खाया| इसी दौरान बड़की अम्मा ने मेरी तारीफ करनी शुरू कर दी, जिसे सुन मेरे माँ-पिताजी गर्व महसूस कर रहे थे| पर मैं सर झुकाये अपना खाना खाता रहा|

पिताजी: अजय तू तो बहुरिया का छोड़े गवा रहा? फिर इतना जल्दी लौट आया?

अजय भैया: चाचा ऊ हरामजादी रास्ते भर हमारा दिमाग चाटत रही, रस्ते में उसी के गाओं के दो बूढ़ा-बूढी मिल गए तो हम उन्ही के साथै पठए दिए!

चूँकि मैं वहीँ बैठा था तो पिताजी ने कुछ और नहीं पुछा| खाना खाने के उपरान्त सब के सब वापस खेत चले गए काम करने के लिए, माँ-पिताजी ने मुझे आराम करने को कहा और भौजी से कहा की वो मेरा ध्यान रखें| भौजी ने खाना खाया और मैं उनके साथ उनके घर आ गया| दरवाजा खुला था, भौजी अपनी चारपाई पर लेटी थीं और मैं अपनी चारपाई पर लेटा था बीच वाली चारपाई पर नेहा लेटी थी| जब भौजी को लगा की नेहा सो गई तब उन्होंने बात शुरू की;

भौजी: मानु सच्ची मैंने तुम्हें कितना गलत समझा! मुझे खुद से इतनी घिन्न आ रही है की मैं तुम्हें बता नहीं सकती! मैंने तुम्हारे प्यार पर शक किया और तुमने मुझे बचाने के लिए खुद की जान जोखिम में डाल दी!

मैं: देखा जाए तो गलत आप भी नहीं थे, जिस तरह की यातना आप यहाँ झेल रहे थे उससे बाहर निकलने के लिए आपने अगर मुझसे भाग चलने को कहा तो क्या गलत कहा? मैं आपकी जगह होता तो मैं भी यही कहता|

भौजी: तुम मेरी सोच को जानबूझ कर सही ठहरा रहे हो, पर क्या भागने का फैसला सही होता?

मैं: भौजी अगर मैं कमा रहा होता तो आपको सच्ची भगा के ले जाता फिर आगे जो होता सब देख लेता!

मैंने आत्मविश्वास से कहा, जिसे सुन भौजी को मेरे प्यार का अंदाजा हो गया|

भौजी: मानु मुझे गलत मत समझना, पर दिनभर मैं तुम्हें जो 'काम' के बारे में कह रही थी उसके पीछे मेरा सिर्फ और सिर्फ एक ही उद्देश्य था की तुम्हें संतुष्टि मिले! मैं कोई बदला चुकाने की कोशिश नहीं कर रही थी! मैं तुम से प्यार करती हूँ और अब तुम्हारे प्यार की कदर करती हूँ!

मैं: हम्म्म

मैंने बस इतना जवाब दिया, पर भौजी को तसल्ली नहीं हुई इसलिए वो अपनी सफाई देने लगीं;

भौजी: ये तीन दिन मैंने जो तुम्हारे साथ रुखा व्यवहार किया उसके लिए मैं शर्मिंदा हूँ और ये दिन मैंने किस तरह तड़पते हुए निकाले ये मैं ही जानती हूँ! मेरा गुस्सा ही मेरे दुःख का सबब बन गया था!

भौजी की ये बात सुन कर मुझे गुस्सा आने लगा था, क्योंकि उन्हें उन तीन दिनों का अपना दुःख सिख रहा था पर मेरा दुःख उन्होंने देखते हुए भी नजरअंदाज कर दिया था! मैं उठ के बैठा और बोला;

मैं: माफ़ करना भौजी पर आपकी ये सफाई मेरे गले नहीं उतरती! इन तीन दिनों में जिस तरह आपने मेरे साथ सलूक किया वो बर्दाश्त की सभी हदें पार कर गया था! मैं मानता हूँ की आपकी घर से भागने की बात सही थी पर उसके लिए आपने मेरे प्यार को 'खेल' का नाम दे दिया? नेहा तक को मेरे पास आने नहीं देते थे?! ऐसा कोई करता है किसी के साथ? आपको गुस्सा था तो मुझे मार लेते, गाली दे देते पर ऐसा व्यवहार?! मैंने कितनी कोशिश की आपसे बात करने की पर हर बार आप ऐसे मुँह मोड़ लेते जैसे मैं कोई अजनबी हूँ! आपको पता है मैं कितना रोया था?! कल मैं आपको एक आखरी बार समझाने आया था और अगर आप फिर भी नहीं मानते तो मैं जा दिल्ली वापस चला जाता!

मेरी बात सुन कर भौजी एकदम से उठ कर मेरे पास आईं और मेरे गले लग गईं|

मैं: इतने बुरे सलूक के बाद भी मैं आपसे प्यार करता हूँ!

मैंने भौजी के सर को चूमते हुए कहा| भौजी ने भी मेरे चेहरे को बेतहाशा चूमना शुरू कर दिया|

मेरा गुस्सा अब शांत हो चूका था और भौजी को इत्मीनान हो गया था की मैं उन्हें छोड़ कर कहीं नहीं जाऊँगा|

मैं: ये लो आपके लिए|

ये कहते हुए मैंने भौजी को डॉक्टर के द्वारा दी हुई स्पिरिट और पट्टी दी|

भौजी: ये किस लिए?

मैं: मैंने डॉक्टर से आपके लिए लिया था|

भौजी: तो क्या तुमने उसे बता दिया की ये क्यों चाहिए?

हैरान होते हुए|

मैं: हाँ

भौजी: तो उसने घाव देखने के लिए तो कहा ही नहीं?

मैं: मैंने उसे समझा दिया था की किसी भी हालत में आप उससे चेक अप नहीं करवाओगे| उससे मिन्नत करके मैंने ये दवाई आपके लिए ले ली, अब इसे लो और बड़की अम्मा से लगवा लेना|

भौजी: तुम्हीं क्यों नहीं लगा देते?

भौजी ने शरारत भरे अंदाज से कहा|

मैं: मैं लगा तो दूँ पर अगर ईमान डोल गया तो?

मैंने भी उनकी शरारत का जवाब मज़ाक करते हुए दिया|

भौजी: तो क्या? तुम्हारी पत्नी हूँ!

भौजी ने बड़े गर्व से कहा जिसे सुन मेरे पेट में तितलियाँ उड़ने लगीं|

मैं: हाय!!! पर अगर अम्मा ने पूछा की किस ने दवाई लगाईं तो क्या कहोगी?

माने थोड़ी चिंता जताई|

भौजी: कह दूँगी नेहा ने लगाईं|

भौजी का जवाब सुन मैं मुस्कुरा दिया;

मैं: बहुत होशियार होगये हो आप?

भौजी: अब तुम्हारे साथ रह-रह के कुछ तो सीखूँगी ही|

भौजी ने बड़ी अदा के साथ कहा| उनकी कही बात ने सच में मेरे अंदर एक नई जान फूँक दी थी, उनके इस प्यार भरे लहजे ने मेरी जान ले ली थी और मैं उनकी इन अदाओं का कायल हो चूका था!

भौजी ने जा कर दरवाजा बंद किया और मेरे सामने खड़े-खड़े अपने ब्लाउज के बटन खोलने लगीं| मैं हाथ बाँधे बड़े प्यार से उन्हें देख रहा था, भौजी की आंखें भी मुझपर टिकीं थी और मेरी आँखें भौजी की अदाओं को निहार रहीं थी| हमेशा की तरह भौजी ने आज भी ब्रा नहीं पहनी थी, जैसे ही उनके ब्लाउज के बटन खुले, भौजी मेरी ओर पीठ करके खड़ी हो गईं| मैंने एक नजर नेहा की ओर देखा, तो पाया वो अब भी सो रही थी| मैंने स्पिरिट में थोड़ी रुई डुबोई और भौजी के घाव पर रख दी; "स्स्स्स्स्स्स्स्स्स्स्स्स...अह्ह्ह ...मानु बहुत जल रहा है!!!" भौजी सीसियाते हुए बोलीं| "दर्द तो होगा, पर पट्टी करने के बाद ठंडा-ठंडा लगेगा|" मैंने बड़े प्यार से कहा| मैंने बहुत धीरे-धीरे भौजी के घावों को स्पिरिट से धोया उसके बाद, डॉक्टर के द्वारा दी गए पाउडर से भौजी की ड्रेसिंग की| जब मैं भौजी को पट्टी बाँध रहा था तो बार बार उनके स्तन को अपने हाथों से सहला देता! जब पट्टी बँध गई तो भौजी मेरी ओर मुड़ी ओर सवालिया नज़रों से मुझे देखने लगी| मैं समझ गया की वो क्या कहना चाहतीं हैं, दरअसल वो कल रात वाले 'काम' को पूरा करवाना चाहती थीं पर डर रहीं थी की कहीं मैं गुस्सा न हो जाऊँ!
 

दसवाँ अध्याय: सहारा और आकर्षण
भाग - 1


अब तक आपने पढ़ा:

जब मैं भौजी को पट्टी बाँध रहा था तो बार बार उनके स्तन को अपने हाथों से सहला देता! जब पट्टी बँध गई तो भौजी मेरी ओर मुड़ी ओर सवालिया नज़रों से मुझे देखने लगी| मैं समझ गया की वो क्या कहना चाहतीं हैं, दरअसल वो कल रात वाले 'काम' को पूरा करवाना चाहती थीं पर डर रहीं थी की कहीं मैं गुस्सा न हो जाऊँ!

अब आगे:

भौजी का डर महसूस कर मेरे चेहरे पर मुस्कराहट आ गई, जिसे देख भौजी एकदम से शर्मा गईं! इस रिश्ते में भले ही भौजी उम्र में बड़ी थीं पर मैं किसी समझदार वयस्क की तरह बर्ताव कर रहा था| इसका एक कारन था भौजी को खो देने का डर, ये डर मेरे मन में इस कदर बसा हुआ था की मैं खुद को बाहक जाने से रोके हुए था| पर कभी-कभी जब भौजी मुझे ऐसे देखतीं जैसे अभी देख रहीं थीं तो मैं खुद को रोक नहीं पाता और उन्हें खुल कर प्यार करने लगता|

इधर भौजी मेरी मुस्कराहट देख समझ गईं थीं की अब किसी भी समय उनपर मेरे प्यार की बरसात होगी, ये सोचकर ही उनके दिल की धड़कन तेज हो गई थी| मैंने और समय न गंवाते हुए उनके होठों को चूम लिया, मेरे चुम्बन से भौजी की आँखें बंद हो चली थीं| उन्होंने अपने होठों को थोड़ा खोल कर मेरे निचले होंठ को अपने मुख में भर के चूसने लगी थीं, अब मेरी भी आँखें बंद हो चलीं थीं और हम दोनों पर मदहोशी छा चुकी थी| दिमाग में भौजी की कही "पत्नी" वाली बात ने मुझे उनका दीवाना बना दिया था और उसे सोच-सोच कर मैं मन्त्र-मुग्ध होने लगा था| भौजी के हाथ मेरी छाती पर आ गए थे और वो मेरी टी-शर्ट के अंदर घुसना चाह रहे थे| भौजी के प्रति मेरे प्यार का पैमाना छलकने लगा था इसलिए मैं नीचे झुका और उनकी साडी पकड़ के ऊपर उठाई तथा उसे भौजी के हाथों में थमा दी| हम दोनों लेट के तो सम्भोग नहीं कर सकते थे, क्योंकि उसमें दोनों को बहुत दर्द होता| तभी दिमाग में अलग ही ढंग से सम्भोग करने के विचार ने दस्तक दी, मैंने अपना लिंग निकाला और भौजी की योनि के ऊपर रगड़ने लगा| फिर मैंने भौजी की बायीँ टांग पकड़ के चारपाई के ऊपर रख दी| इधर भौजी ने मेरे लिंग को पकड़ के अपनी योनि के भीतर प्रवेश कराया| पर अभी भी मुझे सही आसन नहीं मिला था, इस तरह खड़े रह कर भी भौजी की योनि में पूरी तरह प्रवेश नहीं कर पा रहा था| मुझे अचानक से बहुत जोश आया और मैंने एक झटके में भौजी को अपनी गोद में उठा लिया! इसे अकस्मात् झटके के कारन मेरा लिंग उनकी पहले से गीली योनि में फिसलता हुआ उनकी बच्चे दानी से टकराया, भौजी एकदम से चिहुक उठीं; "आह्ह...उम्म्म!!!!" भौजी को नेहा की मौजूदगी का भलीभांति एहसास था इसलिए उन्होंने अपनी दर्द भरी आह काफी हद्द तक दबा ली थी! इधर भौजी मेरी पकड़ से थोड़ा फिसलने लगीं तो मैंने अपने दोनों हाथ उनके कूल्हों पर रख दिए ताकि वो और नीचे न फिसल जाएँ, उधर भौजी को भी लगा की वो फिसल न जाएँ इसलिए उन्होंने अपने दोनों हाथों को मेरी गर्दन के इर्द-गिर्द कस लिया और अपनी दोनों टांगों से मेरी कमर को जकड लिया! मेरा पूरा लिंग भौजी की योनि में पैवस्त था जिस कारन भौजी के भीतर उन्माद की लहरें उठने लगीं थी और भौजी अपने होंठ दाँतों से दबा कर अपनी आवाज को अपने गले में घोंट रहीं थीं| मैंने एक नजर नेहा को देखा जो करवट ले कर सीओ रही थी| मैं भौजी को इसी हालत में लिए स्नान घर में ले आया, क्योंकि मैं नहीं चाहता था की नेहा हमारी सिसकारियाँ सुन उठ जाए और हमें सम्भोग करते हुए देखे| स्नानघर में पहुँच मैंने होले-होले झटके मारता रहा, मुझे आभास था की इस अवस्था में मेरा लिंग भौजी की बच्चे दानी से अवश्य टकरायेगा और मैं उन्हें दर्द नहीं देना चाहता था इसलिए पूरी कोशिश कर रहा था की मेरा लिंग उनकी गर्भाशय के द्वार से न टकराये! भौजी की योनि में ग्रशण इतना अधिक था की हमारा सम्भोग ज्यादा देर नहीं चला| सर्वप्रथम मैं स्खलित हुआ पर फिर भी मैंने नीचे से झटके मारना बंद नहीं किया और अगले ही पल भौजी भी स्खलित हो गईं तथा उनकी योनि में हम दोनों के प्रेमरस भरने लगा था| जब भौजी ने अपने दोनों पाँव जमीन पर रखे तब मैंने अपना लिंग बाहर निकाला, तब जैसे एक पाव खीर भौजी की योनि से निकल जमीन पे 'पचाक' कर गिरी| नजाने क्यों पर भौजी नीचे पड़े हमारे प्रेमरस को देखने लगीं और कुछ सोचने लगीं| उनके चेरे पर कुछ समय पहले जो सुकून था वो अब चिंता में बदल गया था| मैंने उनका मुख अपने हाथों से उठाया और उनके होठों को चूमा, मेरे चुंबन के कारन भौजी ने अपनी आखें बंद कर लीं| भौजी ने बड़े बेमन से पानी डाल कर मेरे लिंग को साफ़ किया, मेरे पजामे पर भी हमारे प्रेमरस की कुछ बूँदें गिरी थीं जिसे भौजी ने पानी से साफ़ किया और फिर पहले मैं बहार आया| मैंने जा के धीरे से दरवाजा खोला ताकि किसी को शक न हो, पाँच मिनट बाद भौजी भी आ गईं और वो कुछ निराश लग रहीं थी| वो आके सीधे अपनी चारपाई पर पेट के बल लेट गईं और मैं उनके सामने अपनी चारपाई पर लेट गया|

भौजी का उतरा हुआ चेहरा मुझसे देखा नहीं गया तो मैंने ही पूछ लिया;

मैं: क्या हुआ आप इस तरह गुम-सुम क्यों हो गए?

भौजी: कुछ नहीं, बस ऐसे ही|

भौजी ने बात छुपाते हुए कहा|

मैं: तो अब आप....

आगे बात पूरी होने से पहले ही माधुरी आ गई;

माधुरी: अरे मानु जी! अब आप की तबियत कैसी है?

उसे देखते ही मैंने मन ही मन कहा की इसे भी अभी आना था!

मैं: ठीक है|

मैंने बड़े रूखेमन से जवाब दिया|

भौजी: अच्छा हुआ तुम आ गई, अभी तुम्हारी ही बात हो रही थी|

भौजी ने अपने एहसासों को दबाते हुए बात को एकदम से मोड़ दिया| इधर भौजी के मुँह से अपना नाम सुनते ही माधुरी के चेहरे पर लालिमा छा गई!

माधुरी: सच? क्या बात हो रही थी?

माधुरी ने बड़ी उत्सुकता से पुछा| अब मुझे कुछ न कुछ तो कहना था इसलिए मैंने ऐसे ही बात शुरू की;

मैं: मैं पूछ रहा था की आखिर आप कल क्यों नहीं दिखाई दीं?

माधुरी: वो दरअसल कल रसिका भाभी अपने मायके जाने वाली थीं तो मैंने सोचा क्यों न मैं भी कहीं घूम आऊँ| आज दोपहर को जब घर आई तब मुझे पता चला की कल क्या-क्या हुआ?

ये कहते हुए माधुरी गंभीर हो गई उसके मन में भौजी के लिए गुस्सा था पर उसने किसी तरह अपने गुस्से को पी लिया और अपनी बात पूरी की;

माधुरी: वैसे आप दोस्ती बहुत अच्छी निभाते हो, दोस्त की खातिर अपनी जान की भी परवाह भी नहीं की?

माधुरी ने बड़े गर्व से कहा|

मैं: दोस्तों के लिए तो अपनी जान हाजिर है! वैसे ये बात क्या पूरे गाँव को पता है?

मैंने हैरानी से पुछा|

माधुरी: अरे इस गाँव में कोई बात छुपी है क्या? ये ही नहीं आस पास के गाँव वाले भी आपका सम्मान करने लगे हैं|

अब मुझे अपनी बढ़ाई सुनने या करवाने का कतई शौक नहीं था, मैं नहीं चाहता था की इस काण्ड के बारे में किसी को पता चले और वो मेरे तथा भौजी के रिश्ते के बारे में बातें बनाएं| पर अब ये बात फ़ैल चुकी थी और मैं अब कुछ नहीं कर सकता था|

खैर इसी तरह माधुरी सवाल पूछती रही और मैं जवाब देता रहा| हमारी बातें सुन नेहा उठ गई, वो आँख मलते-मलते बैठी और फिर मेरे पास आई, मुझे पप्पी दी फिर अपनी मम्मी को पप्पी दी| फिर बाहर खेलने चली गई, अब माधुरी का मुँह देखने लायक था, ऐसा लगा जैसे उसे भौजी से जलन होने लगी थी| नचाहते हुए भी उसकी जलन सवाल के रूप में सामने आ ही गई;

माधुरी: क्या बात है मानु जी, इन कुछ दिनों में ही आपका इतना लगाव हो गया नेहा से?

उसका सवाल सुन मैंने एक नजर भौजी को देखा जिनके चेहरे पर पहले से मुस्कराहट थी| मैंने माधुरी के सवाल का कोई जवाब नहीं दिया, बस मुस्कुराया और इससे पहले की वो और कोई सवाल पूछती मैं उठ के बाहर निकलने लगा|

माधुरी: कहाँ चल दिए?

मैं: नेहा के साथ खेलने, आप बैठो और भौजी को कंपनी दो|

मैंने बहाना बनाया और बाहर आ कर नेहा को ढूँढने लगा| नेहा छप्पर के नीचे गुड़ियों के साथ खेल रही थी, मैं भी वहीं उसके पास बैठ गया और उसके साथ खेलने लगा| इधर मेरे पीछे-पीछे माधुरी भी आ गई;

मैं: क्या हुआ भौजी के साथ मन नहीं लगा?

माधुरी: वो तो सो रहीं हैं|

इतना कह कर वो भी हमारे साथ खेलने लगी, हँसी मजाक चल रहा था और हम तीनों गुड़ियों के साथ घर-घर खेल रहे थे| खील-खेल में वो बार-बार मेरे बारे में जानने की कोशिश करती और सवाल पूछती, मैं भी उसे जवाब देता और बदले में वो प्यार से मुस्कुरा देती| करीब दो घंटे बीत गए, समय हुआ था चार बज के उन्नीस मिनट| मैं उठ के खड़ा हुआ और अंगड़ाई लेने लगा, तभी मुझे भौजी के चीखने की आवाज आई! भौजी रोती-बिलखती हुई, भागती हुई मेरी तरफ आ रही थी| मैं बड़ा हैरान था और उनकी ओर बढ़ने लगा| भौजी मुझसे कस के लिपट गई और फफक कर रोने लगीं| मैं उन्हें चुप कराने की भर-पूर कोशिश करता रहा परन्तु भौजी चुप ही नहीं हो रही थी, बस फुट-फुट के रो रहीं थी| मैं उनके सर पर हाथ फेरते हुए उन्हें चुप कराने लगा, मैंने उन्हें छप्पर के नीचे बिछी चारपाई पर नेहा के पास बैठाया| अपनी माँ को रोता हुआ देख नेहा चारपाई पर खड़ी हो गई और अपने छोटे-छोटे हाथों से उनके आँसूँ पोछने लगी पर फिर भी उनका रोना बंद नहीं हुआ| माधुरी भी उनकी दूसरी बगल बैठ गई और पीठ सहलाने लगी पर भौजी किसी के काबू में नहीं आ रही थीं|

मैं: अच्छा क्या हुआ ये बताओ?

मैंने भौजी के चेहरे को हाथ में लिया और पुछा पर भौजी कुछ नहीं बोल रही थी बस उन्होंने मेरा सीधा हाथ थाम लिया| मैंने माधुरी को पानी लाने के बहाने से भेजा;

मैं: प्लीज मत रोओ, आपको मेरी कसम!!!

मैं जानता था की उन्हें चुप कराने के यही तरीका है, अब ये सब मैं माधुरी के सामने तो नहीं कह सकता था| इतने में माधुरी पानी ले के आ गई, उसने गौर किया की भौजी ने रोना बंद कर दिया है और अब वे बस सुबक रहीं थी|

मैं: ये लो पानी पीओ| अब शांत हो जाओ!

मैंने भौजी को अपने हाथ से पानी पिलाया, चूँकि भौजी ने सुबकते हुए पानी पिया था इसलिए उन्हें खाँसी आ आई| माधुरी उनके पास ही बैठी थी, तो उसने उनकी पीठ को सहलाया ताकि उनकी खाँसी बंद हो| कुछ क्षण बाद भौजी कुछ काबू में लग रहीं थी, उनका सुबकना बंद तो नहीं पर कम हो चूका था|

मैं: अच्छा अब बताओ की हुआ क्या? आपने कुछ डरावना देख लिया...भूत, प्रेत ?

भौजी कुछ नहीं बोलीं बस न में गर्दन हिला दी|

मैं: तो क्या हुआ? आप तो सो रहे थे ना....कोई सपना देखा आपने?

मैंने इतना ही कहा था की भौजी की आँखों में फिर से आँसूँ छलक आये, मैं इस बात को और न बढ़ाते हुए उन्हें चुप कराने लगा;

मैं: अच्छा आप से अब कोई बात नहीं पूछेगा, आप बस शांत हो जाओ!

भौजी ने अब भी मेरा हाथ थामा हुआ था और उनका डर उनके चेहरे से झलकने लगा था| नेहा भी अपनी माँ को इस हालत में देख परेशान हो गई थी और लग रहा था की उसका साईरन कभी भी बज जायेगा, तो मैंने भौजी को चारपाई पे लेटने का परामर्श दिया| भौजी लेट गईं और मैं उनके पास ही बैठ गया ताकि उन्हें संतुष्टि रहे| नेहा भी आ कर मेरी गोद में बैठ गई| मैं मन ही मन सोचने लगा की हो न हो भौजी ने मेरे बारे में ही कोई सपना देखा है, पर क्या ये नहीं मालूम?

कुछ देर में घर के सभी लोग खेत से लौट आये थे, माँ हाथ-पाँव धो कर छापर के नीचे दाखिल हुईं और मुझे इस कदर भौजी के साथ बैठे हुए देखा तो परेशान होती हुईं बोलीं;

माँ: क्या हुआ बहु? अब क्या कर दिया इस नालायक ने?

माँ को लगा जर्रूर मैंने ही कुछ किया होगा, पर भौजी ने अपने चेहरे पर नकली मुस्कराहट चिपकाई और उठ कर बैठते हुए बोलीं;

भौजी: कुछ नहीं चाची|

पर माधुरी चुप न रह सकीय और सब सच बोल दिया;

माधुरी: भाभी ने कोई डरावना सपना देखा था, इसलिए डर गईं!

उसकी बात पर मुझे गुस्सा तो बहुत आया पर मैं कह कुछ नहीं पाया| इधर ये सुनने के बाद भौजी उठ के मुँह धोने चलीं गई| मैं उनके पीछे जाना चाहता था पर मेरा ऐसा करना उचित नहीं होता इसलिए मैं वहीं बैठा रहा| कुछ समय माँ से बात करने के बाद बाद माधुरी भी चली गई| भौजी ने सबके लिए चाय बनाई और सब के सब छप्पर के नीचे ही बैठ कर चाय पीने लगे| बातें होनी शुरू हुईं और मुझे ये देखकर ख़ुशी हुई की माँ-पिताजी के मन में कोई मन मुटाओ नहीं है! भौजी घूंघट काढ़े रसोई से सबकी बातें सुन रहीं थीं, मैं उम्मीद कर रहा था की भौजी उठें और अपने घर जाएँ ताकि मैं उनसे पूछ सकूँ की उन्होंने ऐसा क्या सपना देख लिया की वो एकदम से रोने लगीं पर भौजी थीं की रसोई से हिल ही नहीं रहीं थीं! मैं भी ढीठ ठहरा, मैंने टकटकी बाँध कर भौजी को देखना शुरू कर दिया ताकि शर्मा कर भौजी उठें और अपने घर में जाएँ पर ठीक तभी साईकिल की घंटी की आवाज आई| सबका ध्यान एक साथ भंग हुआ और सब उस घंटी की आवाज की तरफ देखने लगे| ये कोई और नहीं बल्कि चन्दर भैया और मामा जी थे| चन्दर भैया को देख पिताजी और बड़के दादा गुस्से से लाल हो गए;

बड़के दादा: हियाँ का लिए आयो है? निकल जा हियाँ से!!

बड़के दादा ने जोर से गरजते हुए कहा|

बड़की अम्मा: मरीकटौ मरयो नहीं!

बड़की अम्मा ने चन्दर भैया को गाली देते हुए कहा|

ये नजारा मैं सबसे पीछे खड़ा देख रहा था, इतने में भौजी रसोई से निकली और मेरी बगल में आके खड़ी हो गईं| मुझे लगा की शायद डर से वो मेरा हाथ थामेंगी पर अचानक ही उन्होंने नेहा जो मेरे साथ मेरी ऊँगली पकड़ के खड़ी थी, उसका हाथ थामा और उसे लेके रसोई के अंदर चल दीं| मैं पलट कर उनके इस व्यवहार के लिए उन्हें आस्चर्यचकित नज़रों से देखने लगा|

इधर जब गालियाँ सुन कर भी चन्दर भैया नहीं हिले तो बड़के दादा ने उन्हें मारने के लिए लट्ठ उठा लिया और चन्दर भैया की ओर दौड़े| बड़के दादा ने चन्दर भैया को मारने के लिए लट्ठ उठाया की तभी मामा जी ने बीच बचाव करने की कोशिश की, परन्तु बड़के दादा काबू में नहीं आ रहे थे| अंत में पिताजी ने उनको थामा और उनके हाथ से लट्ठ छीन के फेंक दिया|

बड़के दादा: (गुस्से में तमतमाते हुए) तोहार (चन्दर भैया की) हिम्मत कैसे भई आपन छोट भाई पर हाथ उठाए की? ऊ हमें तोहसे अधिक मोहात है!

पिताजी: भैया ई का करत हो? आपन बेटे का मार डालहिओ का? ऊ नशे में रहा! होश नहीं रहा! सजा देयेक है तो ऐसी दिओ की अगली बार शराब का हाथो न लगाए!

पिताजी का इस कदर गुस्से को पी जाना आज मैं पहलीबार देख रहा था, ये तो बड़के दादा के प्रति उनका आदर था जो वो किसी तरह अपने गुस्से को काबू में किये हुए थे| वरना ये हरकत कोई और करता तो पिताजी उसे जिन्दा नहीं छोड़ते| वहीं दूसरीं तरफ मेरी माँ को पिताजी का ये बर्ताव जरा भई अच्छा नहीं लगा और उनके चेहरे के हाव-भाव से मैं समझ गया की उन्हें चन्दर भैया पर कितना गुस्सा आ रहा है|

खैर चन्दर भैया रोते हुए बड़के दादा के पैरों में गिर गए और बोले;

चन्दर भैया: पिताजी हमका माफ़ कर दिओ, हम नशे में रहे! हमसे बहुत बड़ी गलती हो गई! हम वादा करीत है की हम आगे से कभों दारु का हाथ न लगाबे!

बड़के दादा: माफ़ी माँग आपन चाचा से, हमका तोहार सुरतो नहीं देखेक है!

ये कहते हुए बड़के दादा ने उन्हें झिड़क दिया, तो चन्दर अपनी माफ़ी का टोकरा ले कर पिताजी के पास पहुँचा और उनके पाँव पकड़ लिए;

चन्दर भैया: चाचा हमका माफ़ कर दो| हमसे बहुत बड़ी गलती होइ गई!!!!

चन्दर ने रोते हुए कहा तो पिताजी ने उसके कंधे पकड़ कर उसे उठाया और कहा;

पिताजी: ठीक है पर कसम खाओ की आज के बाद कभी शराब को हाथ न लगइहो!

चन्दर भैया: हम माँ कसम खाइत है की आज के बाद शराब का कभौं हाथ न लगाब!

अब चन्दर भैया हाथ जोड़े मेरी ओर बढ़ने लगे, उन्हें देखते ही कल सुबह हुए दृश्य आँखों के सामने आ गए, मेरा खून खौलने लगा, मन तो किया की लट्ठ से उनकी हड्डियाँ तोड़ दूँ पर पिताजी के डर के कारन चुप खड़ा रहा|

चन्दर भैया: मानु भैया, हमका माफ़ करदो!!! हमसे बहुत बड़ी गलती हो गई! तुम जो सजा दिहो ऊ हमें मंजूर है!

ये कहते हुए वो मेरे पाँव छूने लगा, मैंने उन्हें बीच में ही रोका और कहा;

मैं: भैया, चाहता तो मैं भी आप पर हाथ उठा सकता था! पर सिर्फ भौजी की वजह से मैंने कुछ नहीं करा और चुप-चाप सहता रहा| मैं आपको केवल एक ही शर्त पर माफ़ करूँगा, अगर आप कसम खाओ की आगे से कभी भी आप नेहा या भौजी पर हाथ नहीं उठाओगे!

मेरी बात सुनके सब स्तब्ध थे, पर मैं अपनी भवें सिकोड़ कर चन्दर को घूर रहा था;

चन्दर भैया: हम माँ भवानी की कसम खाइत है की हम कभों आपन बीवी-बच्चा पर हाथ न उठाब!

चन्दर ने कसम खाई तो मेरे दिल को थोड़ा सकूं मिला और मैंने हाँ में गर्दन हिला कर उन्हें माफ़ कर दिया| इधर मामा जी ने माहौल हल्का करने के लिए बात बनाई;

मामा: मुन्ना जरा देखि तोहार घाव कइसन है?!

मैं: जी अब काफी बेहतर हैं|

मैंने मामा जी को अपनी पीठ के घाव नहीं दिखाए और हाथ बाँधे वहाँ से निकल गया| उधर भौजी सहमी सी रसोई में बैठीं थीं और अपने बाप को देख नेहा भौजी के पीछे ही दुबक गई थी|

मुझे अकेला घूमता देख माँ मेरे पास आईं और मेरा हाथ पकड़ के मुझे बड़े घर ले कर आ गईं|

माँ: बेटा तुझे गुस्सा बहुत आ रहा होगा की तेरे पिताजी ने चन्दर को इतनी जल्दी माफ़ कर दिया?!

मैं: माँ शुरू से देखता आया हूँ की पिताजी का बड़के दादा के प्रति कितना आदर-भाव है| उसी के चलते वो उनके सामने चन्दर को ज्यादा कुछ नहीं कह सके! और सच मानो तो ये आपके संस्कार हैं जिस कारन मेरे मन में चन्दर के प्रति कोई द्वेष या बदला लेने की भावना नहीं है| मुझे तो बस एक डर लगा हुआ था की वो पता नहीं भौजी और नेहा का क्या हाल करता होगा? पर अब उसने कसम खाई है तो मेरे मन से वो डर भई खत्म हो गया!

मैंने मुस्कुराते हुए कहा, फिर माँ ने मेरी पीठ पर कुछ दवाई लगाई और हम दोनों वापस छप्पर के पास आ गए| माँ और बड़की अम्मा आपस में कुछ बात करने लगे, मैं अकेला इधर से उधर चक्कर लगाता रहा| मैं बस यही सोच रहा था की पता नहीं भौजी ने कौन सा सपना देखा जिस कारन वो इतना रोईं और वो क्या बात थी जिस कारन वो एकदम से नेहा को लेकर रसोई में घुस गईं थीं?!

कुछ देर में भोजन का समय हो गया, मामा जी, चन्दर भैया, अजय भैया, पिताजी और बड़के दादा सब हाथ-मुँह धो के भोजन के लिए बैठ गए| मैं कुऐं के पास अकेला घूम रहा था, तभी नेहा भागी-भागी मेरे पास आई और बोली;

नेहा: चाचू चलो खाना खा लो?

मैं: अभी नहीं मैं बाद में खाऊँगा, तुम जाओ खाना खाओ और जल्दी सो जाओ|

मैंने नेहा के सर पर हाथ फेरते हुए कहा|

नेहा: नहीं चाचू मम्मी ने कहा है की आप को साथ ले कर आऊँ|

मैंने सोचा की शायद भौजी को मुझ से कोई बात करनी होगी, इसलिए मैं नेहा के साथ चल दिया| रसोई पहुँच कर मैंने भौजी से खुसफुसा के कहा की मैं आपके साथ ही खाना खाऊँगा तो उन्होंने ना में सर हिला दिया| भौजी का ये बर्ताव मेरे समझ के परे था, पहले तो स्नानघर में भौजी का निराश होना, फिर उनका नींद से डर के उठ जाना, चन्दर के आते ही मुझसे दूर चले जाना और अब उनका मेरे साथ खाना खाने से मना कर देना| ये सारे सवाल मेरे दिमाग में एक साथ उमड़े थे पर मैंने भौजी को कुछ नहीं कहा, पर भौजी मेरे चेहरे के भावों को अच्छी तरह समझ चुकीं थीं| मैंने भौजी द्वारा परोसा हुआ खाना उठाया और बेमन से खाया और अपने बिस्तर पर लेट जमीन में कुछ कलाकारी बनाने लगा|

आज शाम को जो भी हुआ उसका एक सुखद पहलु भी था की भैया को मेरे और भौजी के रिश्ते के बारे में कुछ पता नहीं चला, क्योंकि अगर पता होता तो वो सब कुछ सच कह देते और फिर मेरी जो तुड़ाई होती उसकी कल्पना भी नहीं की जा सकती| फिर उनका कसम खाने से तो मैं पूरी तरह संतुष्ट था की मेरी गैरहाजरी में भौजी सुरक्षित रहेंगी| इन बातों को सोच मेरे चेहरे पर संतोषजनक भाव आ गए| पर फिर मुझे ख्याल आया की भौजी के अजीब बर्ताव का करना जानना तो बनता है, पर इसके लिए मुझे उनके खाना खा कर आने तक का इंतजार करना पड़ेगा| इसलिए मैं भौजी का इन्तेजार करता रहा पर नींद कब आ गई पता ही नहीं चला|

आखिर सुबह हुई और मैंने सोच लिया था की मैं किसी भी हालत में भौजी से पूछ के रहूँगा की आपने मुझसे बोल-चाल क्यों बंद कर रखी है, पर कम्भख्त मौका मिले तब ना! सुबह-सुबह का समय था तो सब घरवाले रसोई के आस-पास ही मंडरा रहे थे| इसलिए मैं नहा-धो के तैयार हो गया और चाय पीने रसोई आ गया, उस समय वहाँ मेरे, नेहा और भौजी के आलावा और कोई नहीं था;

मैं: भौजी चाय देना?

मैंने बात शुरू करते हुए कहा|

भौजी: ये लो ...नेहा बेटा सुनो तुम भी चाय पी लो|

भौजी ने बड़े रूखे ढंग से मुझसे कहा और चाय मेरे सामने रख कुछ काम से चलीं गई| मुझे ऐसा लग रहा था की वो मुझसे नजर चुरा रहीं है! इतने में वहाँ अजय भैया आ गए और उन्होंने मुझे बातों में उलझा दिया| कुछ देर में मामा सबसे विदा ले कर चले गए और नौ बजे तक सभी खेत चल दिए| अब घर पर केवल भौजी, मैं, नेहा, माँ और पिताजी थे| अब माँ-पिताजी को कैसे बीजी करूँ? ये सोचत हुआ मैं अकेला ही कुऐं के आस-पास घूमने लगा| मुझे माँ-पिताजी को बिजी करने का कोई उपाय सूझ नहीं रहा था| इतने में माँ बड़े घर में, अपने कपडे समेटने चलीं गई और पिताजी किसी से बात कर ने चल दिए| मैं कुछ देर तक और टहलता रहा ताकि कहीं माँ या पिताजी लौट आएं तो?! उधर भौजी मुझे रसोई से अकेला टहलता हुआ देख रही थीं तो उहोने नेहा को मुझे बुलाने भेजा| मैं बहुत खुश हुआ की चलो कम से कम भौजी ने मुझे बुलाया तो सही! भौजी छप्पर के नीचे बैठ गईं और मैं आ कर उनके सामने वाली चारपाई पर बैठ गया|

भौजी: मानु.... नाराज हो?

भौजी ने बड़े प्यार से पुछा| पर उनका ये अजीब सवाल सुन कर मुझे गुस्सा आने लगा;

मैं: नाराज होने का हक़ है मुझे?

भौजी: ऐसा मत कहो!!!

भौजी ने मेरे आगे हाथ जोड़ते हुए कहा|

मैं: तो बताओ की आपको कल क्या हो गया था? पहले स्नान घर में आप एकदम से उदास हो गए, फिर कुछ देर बाद आपने कोई भयानक सपना देखा जिस कारन आप मुझसे लिपट के इतनी बुरी तरह रोये और चन्दर के आने के बाद आपका मेरे से ऐसे सलूक करना जैसे मैं कोई अजनबी हूँ?

मैंने अपने गुस्से को काबू में करते हुए कहा|

भौजी: दरअसल मैं कोशिश कर रही थी की तुम से दूर रह सकूँ! कुछ घंटों के लिए ही सही परन्तु मैं तुम्हें बता नहीं सकती कल रात मैं कितना तड़पी हूँ, कितना रोइ हूँ!!!

ये सुनते ही मैं तिमिला गया और गुस्से से बोला;

मैं: मुझसे दूर रहने की कोशिश? ठीक है मैं खुद ही आपसे दूर चला जाता हूँ!

मैं उठ के जाने लगा तो भौजी ने मेरा हाथ थामा और मुझे रोक कर रोने लगीं|

भौजी: मानु मुझे छोड़ के मत जाओ!!! कुछ घंटों में तुम्हारे बिना मेरा हाल बुरा हो गया था| मैं तुम्हारे बिना नहीं जी सकती.....मैं मर जाऊँगी|

भौजी ने रोते हुए कहा|

मैं: तीन दिन मुझसे दूर रह कर आपका मन नहीं भरा जो फिर से दूर होना चाहते हो? एक बार खुल कर बोल दो, वादा करता हूँ की आपको कभी दुबारा अपनी शक्ल नहीं दिखाऊँगा!

मैंने भौजी पर गुस्से से बरसते हुए कहा और उनकी पकड़ से अपना हाथ छुड़ा लिया| ये सुन कर आखिर भौजी के मुँह से सच निकला;

भौजी: कल मैंने एक बहुत ही भयानक सपना देखा|

भौजी ने अपने आँसूँ पोछते हुए कहा|

मैं: कैसा सपना?

भौजी: की तुम मुझे छोड़के शहर चले गए और अब वापस कभी नहीं आओगे|

मैं: वो तो सिर्फ एक सपना था! मैं आपसे अलग कैसे रह सकता हूँ, साल में एक बार ही सही पर आऊँगा जर्रूर|

भौजी: तुम नहीं आओगे!

इतना कहते हुए उनकी आँख से फिर आँसूँ बह निकले|

मैं: आपको कैसे पता?

भौजी: तुम अब बड़ी क्लास में हो कल को तुम बोर्ड की परीक्षा दोगे| फिर तुम्हें कॉलेज में एडमिशन मिलेगा, अब कॉलेज में तो दो महीने की गर्मियों की छुटियाँ नहीं होती जिनमें तुम मुझे मिलने आओगे....और चलो आ भी गए तो कितने दिन? दो दिन या हद से हद तीन दिन रुकोगे और फिर पूरे एक साल बाद आओगे वो भी शायद!!! तुम्हारे नए दोस्त बनेंगे, नई लड़कियाँ मिलेंगी जो तुम्हें पसंद करेंगी और शायद तुम्हें उनसे प्यार भी हो जायेगा और तुम मुझे भूल जाओगे| फिर तुम्हारी शादी, बच्चे और धीरे-धीरे ये यादें तुम्हारे मन से भी मिट जाएँगी| पर मेरा क्या होगा? मैंने तुम्हें अपना पति माना है...अपने आप को तुम्हें समर्पित कर चुकी हूँ| मैं ये पहाड़ जैसी जिंदगी कैसे काटूँगी?

भौजी के मन में मुझे और हमारे रिश्ते को लेकर जो अस्थिरता थी वो बाहर आ गई थी| मैंने भौजी के चेहरे को अपने हाथों में थामा और उनकी आँखों में देखते हुए कहा;

मैं: नहीं भौजी ऐसा नहीं हो सकता! मैं सिर्फ आपसे प्यार करता हूँ! आपको मेरे प्यार पर विश्वास नहीं?

भौजी: विश्वास है पर चाचा-चाची कभी न कभी तो तुम्हारी शादी कराएँगे, तब क्या?

मैं: अगर मेरे बस में होता तो मैं कभी शादी नहीं करता| पर मुझे दुःख है की माँ-पिताजी के ख़ुशी के लिए मुझे कभी न कभी शादी तो करनी पड़ेगी| पर आप यकीन मानो मैं अपनी पत्नी को कभी भी वो प्यार नहीं दे पाउँगा जो मैं आपको करता हूँ| वो कभी भी आपकी जगह नहीं ले सकती!!!

भौजी: मैं जानती हूँ तुम मुझसे कितना प्यार करते हो पर क्या ये उस लड़की के साथ विश्वासघात नहीं होगा जिससे तुम शादी करोगे? वो भई मेरी तरह उमीदें ले कर तुम से प्यार करेगी और तुम मेरे कारन उससे धोका करोगे?

भौजी की बात बिकलू सही थी, मैं भौजी के लिए उसके साथ कैसे धोका कर सकता था| शादी से पहले हर लड़की के सपने होते हैं और अगर मैं शादी के बाद उससे दूर रहूँ सिर्फ इसलिए की मेरे मन में भौजी का प्यार बसा है तो फिर शायद मुझ में और चन्दर में कोई फर्क नहीं रह जायेगा!

मैं: फिर तो इस समस्या का कोई उपाय नहीं है!!!

ये सुनते ही भौजी फ़ट से बोलीं;

भौजी: उपाय तो है|

मैं: क्या?

मैंने उतसुकतावश पुछा|

भौजी: अगर मैं तुम से कुछ माँगू तो तुम मुझे दोगे?

मैं: हाँ बोलो?

भौजी की बात सुन कर मुझे मिनट नहीं लगा हाँ बोलने में!

भौजी:
मैं तुम्हारे बच्चे की माँ बनना चाहती हूँ!!!

जारी रहेगा भाग - 2 में.....
 

दसवाँ अध्याय: सहारा और आकर्षण

भाग - 2

अब तक आपने पढ़ा:

मैं: फिर तो इस समस्या का कोई उपाय नहीं है!!!
ये सुनते ही भौजी फ़ट से बोलीं;
भौजी: उपाय तो है|
मैं: क्या?
मैंने उतसुकतावश पुछा|
भौजी: अगर मैं तुम से कुछ माँगू तो तुम मुझे दोगे?
मैं: हाँ बोलो?
भौजी की बात सुन कर मुझे मिनट नहीं लगा हाँ बोलने में!
भौजी: मैं तुम्हारे बच्चे की माँ बनना चाहती हूँ!!!


अब आगे:

भौजी की बात सुनते ही मेरी आँखें फटी की फटी रह गईं, मैं आँखें फाड़े भौजी को देखने लगा पर भौजी के चेहरे पर एक शिकन तक नहीं!

भौजी: तुम्हारे जाने के बाद वही मेरे जीने का सहारा होगा, उस बच्चे में मैं तुम्हारा प्यार ढूँढ लूँगी और उसे वही प्यार दूँगी जो मैं तुम्हें देना चाहती थी| तुम्हारी कमी अब सिर्फ वही पूरी कर सकता है!!!

ये सुनते ही मेरे होश उड़ गए और मैंने अपना सर पकड़ लिया| पर भौजी को मेरी ख़ामोशी नहीं जवाब चाहिए था, इसलिए उन्होंने मेरे कंधे पर हाथ रख मुझे अपनी तरफ घुमाया;

मैं: ये आप क्या कह रहे हो? मैंने आपको पहले भी समझाया था ना? सब कुछ तबाह हो जायेगा, अभी जो हम कुछ साथ समय बिता पा रहे हैं वो भी नहीं बिता पाएँगे और आपकी बदनामी होगी सो अलग!

पर भौजी आज पूरा मन बना चुकी थी इसलिए उन्होंने मेरी बात सिरे से नकार दी|

भौजी: ऐसा कुछ नहीं होगा? मैं तुम्हारे नाम पर कोई आँच नहीं आने दूँगी!

मैं: बात यहाँ मेरे नाम की नहीं बल्कि आपकी इज्जत की है! आप सोचो जब आपके पेट से होने की बात सामने आएगी तो चन्दर भैया क्या कहेंगे?! उन्होंने तो इतने सालों से आपको हाथ भी नहीं लगाया, जब ये बात घरवाले सुनेंगे तो वो हम दोनों को ले कर तरह-तरह की बातें करेंगे| एक तरफ तो आपको मेरी इज्जत की चिंता है और दूसरी तरफ आप ही ऐसी बात कर रही हो जिसके कारन सब मुझे ले कर आपको ताने देंगे!

भौजी ने मेरे दोनों हाथ अपने हाथों में थामे और आँखों में आँसू लिए बोलीं;

भौजी: वो सब मैं सह लूँगी!

मैं: आप तो सह लोगे, पर मेरा क्या? मैं आपको ताने सुनते हुए नहीं देख सकता!

मैंने भौजी के आँसूँ पोछते हुए कहा पर उनके हाव-भाव देख कर लग रहा था की वो मेरी बात से संतुष्ट नहीं हैं, इसलिए अब मुझे भौजी के सामने तर्क करने की सोची;

मैं: अच्छा ये बताओ की अगर चन्दर ने आप से पूछा की ये बच्चा किसका है तो आप क्या कहोगे?

मेरा सवाल सुन भौजी खामोश हो गईं और अपना सर झुका लिया| मैं जानता था की वो हमारे बच्चे को चन्दर का नाम नहीं देना चाहतीं और इस तर्क के कारन वो खामोश हो गईं!

मैं: इसीलिए मैं आपको भगा के ले जाना चाहता था, अब भी देर नहीं हुई है, सोच लो!!!

पर भौजी ने जिद्द पकड़ ली थी की उन्हें किसी भी हालत में ये बच्चा चाहिए|

भौजी: मैं तुम्हारे साथ भाग के चाचा-चाची को दुःख नहीं देना चाहती, इसमें उनकी क्या गलती है? चाहे कुछ भी हो मुझे ये बच्चा चाहिए मैं तुम्हारे आगे हाथ जोड़ती हूँ| नहीं तो मेरे पास सिवाए जान देने के और कोई रास्ता नहीं है!

भौजी की जान देने की बात सुन मेरी हवा टाइट हो गई थी!

मैं: आप को हो क्या गया है?! क्यों ऐसी बात कर रहे हो? आपको कुछ हो गया तो मैं क्या करूँगा?

मैंने भौजी को झिंझोड़ते हुए कहा पर उनकी आँखों के आगे बस हमारे बच्चे की तस्वीर बन चुकी थी और सिवाय मेरे मुँह से हाँ सुनने के उन्हें और कुछ नहीं सुनना था! मेरे पास सिवाए उस एक तर्क के और कोई चारा नहीं था, इसलिए मैंने फिर से अपना सवाल दोहराया;

मैं; अच्छा आप बताओ की आप चन्दर से क्या कहोगी की ये किसका बच्चा है?

भौजी: वो सब मैं संभाल लूँगी, मैं तुम्हें ये यकीन दिलाती हूँ की तुम्हारे ऊपर कोई लाँछन नहीं लगने दूँगी!

भौजी ने बड़े आत्मविश्वास से कहा, पर उनकी ये लाँछन वाली बात मुझे चुभ गई इसलिए मैं तिलमिला उठा;

मैं: लाँछन?? वो मेरा भी बच्चा है, तो लाँछन किस बात का?!

मेरा क्रोध देख भौजी को अपने द्वारा कहे गलत शब्द का एहसास हुआ और शर्म से उनका सर झुक गया| उनकी आँखों से अब भी बिना रुके आँसूँ बाह रहे थे पर मेरा गर्म दिमाग गुस्से से बावरा होने लगा था;

मैं: जरा बताने का कष्ट करो की आप ये सब कैसे संभाल लेंगी? घर में सब जानते हैं की मैं और आप कितने नजदीक हैं, यहाँ तक की डॉक्टर को भी हमारे रिश्ते पर शक है! ये तो मैंने हमारे रिश्ते पर दोस्ती नाम की चादर ढक रखी है और आप हो की सब के सामने ये रिश्ता जाहिर करना चाहते हो?! जब घर में सब को पता चलेगा की आप गर्भवती हो तो हो न हो सबकी नजरें मेरी तरफ घूमेंगी क्योंकि जब से मैं आया हूँ तब से मैं आप ही के आस-पास तो मंडरा रहा हूँ! मैं अब 4 साल का छोटा बच्चा नहीं हूँ, जवान हो चूका हूँ और ऐसे में सब का शक करना जायज़ है!

मैं गुस्से में सब बोले जा रहा था और इसी गुस्से में मेरे मुँह से एक ऐसी बात निकली जो शायद नहीं निकलनी चाहिए थी;

मैं: एक मिनट ........कहीं सब संभालने से आपका मतलब चन्दर के साथ सम्ब......

मेरे दिमाग में अचानक ही ये ख़याल आया था की कहीं भौजी इस बच्चे की चाहत के लिए मेरे बाद चन्दर से जिस्मानी रिश्ते बनाएंगी ताकि उन्हें ये कहने का मौका मिले की ये बच्चा उनका है| पर मैं बहुत गंदा सोच रहा था क्योंकि मेरी ये बात पूरी होने से पहले ही भौजी को गुस्सा आ गाय और वो मुझ पर बिगड़ते हुए एक दम से खड़ीं हो गईं और गुस्से में बोलीं;

भौजी: छी-छी मानु!!!! तुम्हें अपनी पत्नी के बारे में ऐसा सोचते हुए भी शर्म नहीं आई! भले ही मेरी शादी उससे हुई हो पर मैंने तुम्हें अपना पति माना है| सिर्फ तुम ही हो जिसे मैंने अपन तन-मन सौंपा है, मेरी आत्मा पर सिर्फ और सिर्फ तुम्हारा अधिकार है और तुम मेरे बारे में ऐसा सोचते हो?!

भौजी की बात सुन कर मुझे एहसास हुआ की मैं गुस्से में आ कर बहुत गन्दा बोल गया! मैं भौजी के सामने अपने घुटनों पर बैठ गया और अपने कान पकड़ते हुए बोला;

मैं: I'm Sorry!!!

पर मुझे फिर एहसास हुआ की ये भौजी को समझ नहीं आएगा इसलिए मैंने अपनी बात हिंदी में दोहराई;

मैं: मुझे माफ़ कर दो!!! मैं गुस्से में बहुत गन्दा बोल गया!

भौजी ने मुझे माफ़ करते हुए खड़ा किया और एकदम से मेरे गले लग गईं| नजाने उनके इस आलिंगन से मेरे अंदर क्या हुआ की मैंने एकदम से उनके आगे हथियार डाल दिए|

मैं: भौजी मैं आपको कभी भी किसी चीज के लिए मना नहीं कर सकता! पर जब तक आपके पीठ के जख्म नहीं भर जाते तब तक कुछ नहीं!

ये सुन कर भौजी के चेहरे पर मुस्कान आ गई और वो आलिंगन तोड़ मेरे चेहरे को गौर से देखने लगीं, ये देखने के लिए की मैं कहीं उनके साथ कोई खिलवाड़ तो नहीं कर रहा! पर उन्हें मेरे चेहरे पर सच्चाई नजर आ रही थी जिस कारन उनकी चेहरे की मुस्कान अब हँसी में बदल गई! फिर भी भौजी ने थोड़ी जल्दी मचाते हुए कहा;

भौजी: नहीं मानु, आज रात....मैं अब और इन्तेजार नहीं कर सकती!

भौजी ने थोड़ा शर्माते हुए कहा|

मैं: देखो आप तो सीधा लेट भी नहीं पाते तो 'उस' (सम्भोग के) समय आपको बहुत पीड़ा होगी और मैं इस हालत में आपको प्यार नहीं कर सकता| आपको तड़पता देख के मेरा दिल टूट जाएगा, बस केवल दो दिन और फिर आपके जख्म भर जायेंगे और मैं वादा करता हूँ की मैं आपकी सारी इच्छा पूरी कर दूँगा|

मेरी बात सुन कर भौजी को विश्वास तो हो गया पर मेरा उनकी 'इच्छा पूरी' करने वाली बात उन्हें खटकने लगी, इसलिए अपने दिल की तसल्ली के लिए उन्होंने पुछा;

भौजी: ठीक है पर तुम ये सिर्फ मेरी इच्छा पूरी करने के लिए कर रहे हो??

मैं: मैं आपको खुश देखना चाहता हूँ!!! अब चलो मुस्कुराओ!!!

मैंने मुस्कुराते हुए कहा और मुझे मुस्कुराता हुआ देख भौजी भी मुस्कुराने लगीं| इतने में वहाँ नेहा आ गई और वो अपने साथ बिलैती (जंगल-जलेबी) लाई थी| मैं और नेहा एक चारपाई पर बैठ गए और भौजी सामने वाली चारपाई पर बैठ गईं| हम तीनों हँसते हुए बिलैती खाने लगे!

कुछ देर बाद नेहा भगति हुई खेलने चली गई और इधर मेरे मन में एक सवाल उमड़ रहा था;

मैं: अगर आप बुरा ना मनो तो मैं एक बात पूछूँ?

भौजी: हाँ पूछो|

मैं: मुझे गलत मत समझना पर आप कहीं लड़के की चाहत तो नहीं रखते?

भौजी: मतलब?

मैं: मतलब कहीं सिर्फ लड़के की चाह में ही तो आप....?

मैंने जानबूझ कर बात अधूरी छोड़ दी पर भौजी बात समझ गईं;

भौजी: नहीं मानु ऐसा नहीं है! लड़का हो या लड़की मेरे लिए जर्रुरी ये है की मैं उस बच्चे में तुम्हारा अक्स चाहती हूँ|

भौजी की ये बात सीधा दिल पर लगी और मैं उनके प्यार को समझने लगा|

इधर भौजी मुस्कुराती हुईं अपने काम में लग गईं, पर मुझे अब चिंता होने लगी थी| क्या होगा अगर ये बात सामने आ गई की भौजी की कोख में पल रहा बच्चा मेरा है, घरवाले कहीं अपनी इज्जत बचाने के लिए उस बच्चे को पैदा होने से पहले ही न मार दें! ये सवाल सोच कर मुझे अजीब सी बेचैनी होने लगी थी! कुछ देर वहीँ बैठने के बाद मैं उठ कर चल दिया| भौजी ने मुझे रोकना चाहा तो मैंने कह दिया की मैं थोड़ी सैर कर के आ रहा हूँ| टहलते हुए कुछ दूर आया तो ऐसा लगा मानो कुछ देर पहले जब भौजी ने मुझे आलिंगन किया था तब उनका कोई जादू मुझ पर चढ़ गया था और अब चूँकि मैं उनसे दूर आ गया था तो वो जादू टूटने लगा था और अब मुझे होश आने लगा था| जो बात सबसे पहले मेरे दिमाग में आई वो ये थी की भौजी की मौजूदगी में मैं अब कमजोर महसूस कर ने लगा था! मैंने अभी तक जो भी फैसले लिए वो बहुत सोच समझ कर लिए और मैं अपने फैसलों पर हमेशा कायम रहता था, फिर चाहे वो बचपन में भौजी से रूठ जाना हो या स्कूल में मेरे विषय चुनने का हो! पर पिछले कुछ दिनों में मैं फैसले जोश में आ कर लेने लगा था, भले ही उन फैसलों के लिए मैंने मन ही मन प्लांनिंग की हो पर मैंने उन फैसलों के परिणाम के बारे में कभी नहीं सोचा था! भौजी को घर से भगा ले जाने को तो मैं तैयार हो गया पर उस फैसले के परिणाम के बारे में मैंने क्यों नहीं सोचा? फिर अभी मेरा भौजी के आगे एकदम से हथियार डाल कर उनकी बात मान लेना! ये बात सोचते ही मेरी अंतरात्मा बोली; "अगर मैं भौजी की बात नहीं मानता हूँ, तो वो मेरी जुदाई का दुःख बर्दाश्त नहीं कर पातीं और खुद-ख़ुशी कर लेतीं ऐसे में नेहा का क्या होता?!" चलो कम से कम मुझे मेरे एक सवाल का जवाब तो मिला!

कई बार जब आपके पास कोई जवाब न हो तो सब कुछ किस्मत के सहारे छोड़ देना चाहिए| यही सोचते हुए मैंने सब भगवान के ऊपर छोड़ दिया और चुप-चाप घर लौट आया| कुछ देर बाद मैं घर लौट आया, तभी नेहा मुझे कूदती हुई मिली और आ कर मेरी गोद में चढ़ गई! खाना खा कर माँ ने मेरी पीठ पर दवाई लगाई और फिर मैं नेहा के साथ ही छप्पर के नीचे लेट गया| लेटते समय मैं करवट ले कर लेता था क्योंकि पीठ के बल लेटने पर अब भी थोड़ा दर्द होता था| छप्पर के नीचे माँ, बाकि अम्मा, भौजी बैठे थे की इतने में माधुरी भी आ गई और सभी औरतों की बातें शुरू हो गईं| मैं भी कुछ देर ये बात सुनता रहा और फिर सो गया| शाम हुई और सारे लोग खेत से लौट आये और मैंने उन्हीं के बीच बैठ कर चाय पी| माने जानबूझ कर भौजी से थोड़ी दूरी बनाई थी ताकि कहीं कोई शक न करने लगे| रात हुई तो भौजी चाहतीं थीं की मैं खाना उनके साथ खाऊँ पर मैंने न में सर हिला कर उन्हें मना कर दिया| मैंने अपना और नेहा का खाना एक साथ लिया और दोनों चाचा-भतीजी साथ-साथ खाना खाने लगे| खाने के बाद नेहा मेरे साथ ही सो गई, पर मैं पूरी रात जागता रहा और आज जो कुछ हुआ उसे सोचता रहा| अगले दिन से तो मैं जैसे हँसना ही भूल गया था, उधर भौजी भी मेरे अंदर आये इस बदलाव को महसूस कर रहीं थी| मैं उनके आस-पास तो होता पर कुछ ना कुछ सोचता रहता| ज्यादा कर के मैं भौजी के पास तभी जाता जब वहां पर माँ या बड़की अम्मा मौजूद होतीं| जब भौजी अकेली होतीं तो मैं उनसे कुछ दूरी बनाये रहता और अपना ध्यान नेहा में लगा देता| कभी उसके साथ खेलता तो कभी नेहा को साथ ले कर टहलने निकल जाता| अगर नेहा कहीं खेलने चली जाती तो मैं जेब में हाथ डाले खेत चला जाता और वहाँ सब को फसल काटते देखता| ये दो दिन कैसे बीते पता ही नहीं चला, इधर अब मेरे जिस्मानी घाव काफी हद तक भर चुके थे, उन पर एक पपड़ी बन चुकी थी जिस कारन अब मुझे दर्द नहीं था| उधर भौजी के घाव बिलकुल भर चुके थे|

तीसरे दिन दोपहर का समय था, घर के सभी लोग खेत में थे और मैं भी खेत में अकेला टहल रहा था| घर पर केवल भौजी और नेहा थे, कुछ देर बाद उन्होंने मुझे बुलाने के लिए नेहा को भेजा| नेहा मेरे पास भागती हुई आई और मेरा हाथ पकड़ के मुझे अपनी ओर खींचा और मेरे कान में खुस-फुसाई; "चाचू मम्मी की तबियत ठीक नहीं है, उन्होंने आपको जल्दी बुलाया है!" ये सुनते ही मैं भागता हुआ घर पहुँचा, आँगन, रसोई, बड़े घर कहीं भी मुझे भौजी नहीं दिखीं तो मैं भागता हुआ उनके घर घर में दाखिल हुआ और उनके कमरे में झाँका तो वहाँ भी कोई नहीं था! तभी भौजी ने मुझे पीछे से आके जकड़ लिया, उनकी गर्म सांसें मेरी पीठ पर पड़ीं तो मैं सिंहर उठा! आज दो दिन बाद भौजी ने मुझे स्पर्श किया था और उनका ये स्पर्श पा कर मेरा जिस्म प्रफुल्लित हो गया था| मैंने पलट कर भौजी को अपनी बाँहों में जकड लिया और उनके माथे को चूमा| भौजी ने आज लाल रंग की साडी पहनी थी, बालों का गोल जुड़ा, होठों पर लाली, माँग में सिन्दूर, पाँव में पायल, नाखूनों पर नेल पोलिश और तो और आज उनके शरीर से भीनी-भीनी इत्र की खुशबु भीआ रही थी, जो मुझे उनकी और आकर्षित कर रही थी!!!! हाय आज तो सच में मेरा क़त्ल होने वाला था!!!

भौजी का ये श्रृंगार देख मैं समझ गया की उन्होंने बड़ा प्यारा झूठ बोला है;

मैं: आप की तो तबियत ख़राब थी ना?

मैंने मुस्कुराते हुए कहा|

भौजी: वो तो तुम्हें यहाँ बुलाने का बहाना था|

भौजी ने बड़ी अदा से मुस्कुराते हुए कहा|

मैं: अब तक तो नेहा ने सबको बता दिया होगा और सभी यहीं आते होंगे|

मैंने थोड़ा चिंता जताते हुए कहा|

भौजी: मैंने उसे कहा था की मुझे तुमसे कुछ बात करनी है और तुम्हें बुलाने के लिए झूठ बोलने के लिए मैंने ही कहा था| वो ये बात किसी को नहीं कहेगी और मजे से चिप्स खा रही होगी!

भौजी ने मेरी चिंता दूर कर दी पर मुझे उनका यूँ नेहा से झूठ बुलवाना ठीक नहीं लगा|

मैं: आप बड़े शैतान हो!!! पर आगे से नेहा को इस सब में मत डाला करो, मुझे अच्छा नहीं लगता! वो बेचारी अबोध बच्ची क्या जाने?!

भौजी: ठीक है मैं उसे इस सब से परे रखूँगी!

भौजी ने मुस्कुराते हुए कहा| मैंने भौजी को अपने आलिंगन से आजाद किया तो वो गोल घूम के मुझे अपनी सुंदरता का दीदार कराने लगीं! मैं तो जैसे आज जी भर के उनके हुस्न का दीदार कर लेना चाहता था, इसलिए हाथ बांधे मैं चुपचाप मुस्कुराते हुए भौजी को देखता रहा| फिर एकदम से मेरे नजदीक आईं और मेरी आँखों में आँखें डालते हुए बोलीं;

भौजी: अब बताओ की आखिर ऐसी क्या बात है, जो पिछले दो दिन से तुम कुछ अलग लग रहे हो? मेरे पास हो के भी मुझसे दूर हो? कौन सी बात है जो तुम्हें खाय जा रही हो?

भौजी का ये सवाल सुन कर मेरे चेहरे से मुस्कान गायब हो गई|

मैं: नहीं तो .... कुछ भी तो नहीं|

मैंने झूठ बोलते हुए कहा पर भौजी ने मेरा झूठ महसूस कर लिया था|

भौजी: झूठ मत बोलो, अगर तुम्हारा मन नहीं है तो मत बताओ, पर मैं जानती हूँ की तुम क्यों परेशान हो? तुम मेरी उस बात से परेशान हो न?!

भले ही मेरा झूठ पकड़ा जा चूका था पर मेरा मन भौजी को और दुखी करने का नहीं था, इसलिए मैं अपने झूठ पर क़ायम रहा;

मैं: नहीं.... आपकी ख़ुशी में ही मेरी ख़ुशी है!

ये सुन कर भौजी को जैसे मेरी बात पर विश्वास हो गया और वो मुस्कुरा दीं| अब मुझे बात पलटनी थी तो मैंने कहा;

मैं: वैसे क्या बात है आज तो बहुत सजे-सँवरे हो?....ओह!!! याद आया...तो इसलिए आपने मुझे बुलाया था|

मुझे याद आ गया की मैंने भौजी से कहा था की ऊनि 'इच्छा पूर्ती' का शुभ महूरत दो दिन बाद होगा! मैं एकदम से बाहर की ओर जाने लगा, जिसे देख भौजी एकदम से डर गईं;

भौजी: कहाँ जा रहे हो? मुझसे कोई गलती हो गई?

भौजी ने डरते हुए कहा!

मैं: दरवाजा तो बंद कर दूँ|

मैंने मुस्कुराते हुए कहा तो भौजी अपने दाँतों तले ऊँगली दबा के हँस दी! मैंने जल्दी से दरवाजा बंद किया और उनके पास आ गया| ये 'कार्य' अब रात में होना मुश्किल था, कारन था कुछ दिन पहले हुआ वो दर्दनाक काण्ड! मैं जानता था की दिनदहाड़े हमारे पास समय कम है क्योंकि कभी भी कोई भी परिवार का सदस्य टपक सकता है! इसलिए मैंने एकदम से भौजी का चेहरा अपने दोनों हाथों में थाम लिया और बिना रुके भौजी के मुख को चूमना शुरू कर दिया| कभी माथे पर, कभी आँखों पर, कभी गाल पर, कभी उनकी नाक पर और अंत में उनके होंठों पर!!! भौजी नहीं चाहती थीं की मैं रुकूँ इसलिए भौजी आँख मूंदें मेरा पूरा सहयोग दे रहीं थीं! मैंने उनके ब्लाउज के बटन खोलने चाहे परन्तु खोल नहीं पाया, इसलिए उन्होंने स्वयं अपने ब्लाउज के बटन खोले| अब आग दोनों ओर लग चुकी थी और इस आग में दोनों के जिस्म देहक रहे थे! जैसे ही भौजी के स्तन ब्लाउज की कैद से आजाद हुए, मैंने उन्हें कस के गले लगा लिया| हालाँकि मैंने टी-शर्ट पहनी हुई थी पर फिर भी उनके चुचुक मुझे अपनी छाती पर चुभते महसूस हो रहे थे, लेकिन इससे पहले की हम आगे बढ़ते दरवाजे पर दस्तक हुई| पर भौजी ने उस दस्तक को अनसुना कर दिया और वो कसमसा के मुझसे लिपटी रहीं, पर बाहर से दस्तक अब भी चालु थी| मैंने भौजी को अपने से अलग किया और उन्हें होश में लाने के लिए झिंझोड़ा तब जाके वो होश में आईं! अब उनके मुख पर गुस्से के भाव थे, ऐसे भाव जो मैंने कभी उनके चेहरे पर कभी नहीं देखे थे| अगर अभी उनके हाथ में पिस्तौल होती तो आज दस्तक देने वाले का मरना तय था! भौजी ने फटाफट ब्लाउज के बटन बंद किये और मुझे इशारे से रुकने को कहा| वो चिल्लाती हुई दरवाजा खोलने गईं, मुझे डर था की अगर किसी ने मुझे यहाँ देख लिया तो आफत हो जाएगी इसलिए मैं ने आँगन ने पड़ी चारपाई खींची और उस पर चढ़ गया| फिर मैंने लपक के दिवार फाँदी और बहार कूद गया, कूदते समय थोड़ा पाँव ऊँचा-नीचे होने के कारन मोच आ गई| अपने दर्द भरी आह को मुँह में दबाते हुए, मैं लंगड़ाते हुए किसी तरह घूम के भौजी के घर के मुख्य द्वार पर आया तो देखा वहाँ कोई नहीं था| जब मैं भौजी के घर में दाखिल हुआ तो देखा भौजी आंगन में खड़ी माधुरी पर बड़े जोर से चिल्ला रहीं है;

भौजी: क्या चाहिए तुझे? जब देखो मानु...मानु...क्यों पड़ी है उसके पीछे? क्या चाहिए तुझे उससे? वो तुझे पसंद नहीं करते क्यों उसके आगे-पीछे घूमती रहती है?! वो वैसा लड़का नहीं है जैसा तू सोच रही! उससे दूर रह वरना मैं तेरे माँ-पिताजी से तेरी शिकायत कर दूँगी!

भौजी ने गुस्से से झल्लाते हुए कहा|

माधुरी: मैं तो....

माधुरी सहमी हुई सी बोली पर भौजी ने उसकी बात पूरी ही नहीं होने दी;

भौजी: और तेरी हिम्मत कैसे हुई यहाँ घुस आने की? तुझे मैंने दरवाजे पर ही बोला न की यहाँ कोई नहीं है! बड़ी मुश्किल से मेरी आँख लगी थी और तूने मेरी नींद खराब कर दी!!!

भौजी ने बड़े तपाक से झूठ बोला था की वो सो रहीं थीं!

भौजी: निकल जा यहाँ से!!!

आज तो भौजी का गुस्सा चरम पर था, मैंने सच में उन्हें इतना गुस्से में कभी नहीं देखा था! मैंने लंगड़ाते हुए आंगन में प्रवेश किया और बोला;

मैं: क्या हो रहा है?

मेरी आवाज सुन भौजी और माधुरी ने मेरी तरफ देखा, मुझे लंगड़ाते हुए देख के दोनों एक आवाज में बोलीं; "तुम्हें क्या हुआ?" कोरस में दोनों की आवाज सुन के मैं हैरान हो गया और बोला;

मैं: कुछ नहीं पाँव-ऊँचा नीचे पड़ गया इसलिए मोच आ गई|

भौजी को समझते देर न लगी की दिवार फांदते समय ही ये हुआ होगा|

भौजी: हाय राम! इधर आओ देखूँ तो|

भौजी घबरा गईं और मुझे सहारा दे कर बिठाया| माधुरी भी मेरी मोच की जगह देखने के लिए नजदीक आई तो भौजी उस पर फिर चिल्लाईं;

भौजी: तू क्या देख रही है?! निकल यहाँ से और खबरदार जो 'इनके' आस-पास भी भटकी तो! 'ये' तुझे कुछ नहीं कहते तो तू सर पे चढ़ी जा रही है!

भौजी की झाड़ सुन माधुरी बेचारी रोती-बिलखती बहार चली गई!

भौजी: तुम मेरी वजह से खुद को कितनी मुसीबत में डालते हो!

भौजी ने तेल की शीशी उठाते हुए कहा| पर भौजी की बात सुन मैं मुस्कुरा दिया;

मैं: प्यार किया तो डरना क्या?!

मैंने गर्व से कहा तो भौजी मुस्कुराने लगी|

मैं: वैसे क्यों आपने उस 'बेचारी' की क्लास लगा दी?!

मैंने थोड़ा मजाक में कहा तो भौजी घूर के मुझे देखने लगीं" इससे पहले की वो कुछ कहतीं मैंने अपने कान पकडे और मूक भाषा में उन्हें 'सॉरी' कहा! ये देख भौजी हँस पड़ीं क्योंकि वो समझ गईं थीं की मैं उनसे मजाक कर रहा था|

मैं: मैंने आपको आज से पहले कभी इतना गुस्से में नहीं देखा!

माने भौजी के गुस्से की वजह पूछी|

भौजी: गुस्से वाली बात ही है, जब देखो तुम्हारे पास आने की कोशिश करती है| सोचो मुझे कैसा लगता होगा जब ये तुम से हँस-हँस के बातें करती है? मेरे दिल पर तो लाखों छुरियाँ चल जाती है! आज कितने दिनों बाद तुम मुझे प्यार कर रहे थे और ये कलमुही बीच में आ गई! मैं इसे अपना पति छीनने नहीं दे सकती|

भौजी की जलन आज खुलकर सामने आई थी, ऐसी जलन जिसे देख मुझे भौजी पर और भी प्यार आने लगा था!

मैं: देखो आप अपना गुस्सा शांत करो वरना इस आग में कहीं मैं न जल जाऊँ!

मेरी बात सुन भौजी थोड़ा शांत हुईं, उन्होंने बहुत अच्छे से मेरी एड़ी पर तेल की मालिश की और पट्टी बाँध दी| मैं बहार आ गया और आँगन में चारपाई पर बैठ गया|

हमारे घर का एक नियम है जिसे रसोइये को हर हालत में मानना पड़ता है| वो नियम ये है की, रसोइया नहा-धो के भोजन बनाने बैठता है और एक बार वो रसोई में घुस गया तो वो भोजन बना के सब को खिलाने के बाद ही बाहर निकलता है| इस दौरान अगर उसे बाथरूम जाना पड़ा तो वो बिना नहाये-धोये रसोई में नहीं घुस सकता| ये नियम इतना कड़ा है की इसका पालन हर हाल में करना जर्रुरी है, वरना घर के बड़े उस भोजन को हाथ तक नहीं लगाते! हालाँकि मेरे और भौजी के बीच में जो शुरू हुआ था वो भले ही बीच में रह गया था परन्तु भौजी की आत्मा अशुद्ध थी! अब रसोई में घुसने के लिए उन्हें नहाना आवश्यक था| भौजी अपने घर में नहा रही होंगी ये सोच कर मैं बाहर आंगन में बैठा हुआ था| तभी भौजी की घर के अंदर से आवाज आई; "मानु... जरा सुनो तो?"

जारी रहेगा भाग - 4 में.....
 

दसवाँ अध्याय: सहारा और आकर्षण

भाग - 3

अब तक आपने पढ़ा:

हमारे घर का एक नियम है जिसे रसोइये को हर हालत में मानना पड़ता है| वो नियम ये है की, रसोइया नहा-धो के भोजन बनाने बैठता है और एक बार वो रसोई में घुस गया तो वो भोजन बना के सब को खिलाने के बाद ही बाहर निकलता है| इस दौरान अगर उसे बाथरूम जाना पड़ा तो वो बिना नहाये-धोये रसोई में नहीं घुस सकता| ये नियम इतना कड़ा है की इसका पालन हर हाल में करना जर्रुरी है, वरना घर के बड़े उस भोजन को हाथ तक नहीं लगाते! हालाँकि मेरे और भौजी के बीच में जो शुरू हुआ था वो भले ही बीच में रह गया था परन्तु भौजी की आत्मा अशुद्ध थी! अब रसोई में घुसने के लिए उन्हें नहाना आवश्यक था| भौजी अपने घर में नहा रही होंगी ये सोच कर मैं बाहर आंगन में बैठा हुआ था| तभी भौजी की घर के अंदर से आवाज आई; "मानु... जरा सुनो तो?"

अब आगे:

"हाँ बोलो?" ये बोल कर जैसे ही मैं पलटा तो जो दृश्य मेरे समाने था उसे देख मेरी आँखें फटी की फटी रह गईं! उनका दाहिना हाथ दरवाजे के एक पल्ले पर था और दूसरा हाथ उन्होंने मोड़ कर अपनी कमर पर रखा था, इस वक़्त भौजी ने केवल ब्रा और पैंटी पहन रखी थी! फिर मेरी नजर उनके होंठों की लाली और माँग के सिन्दूर पर पड़ी जो उनकी सुंदरता पर चार चाँद लगा रहे थे! कहीं कोई देख न ले इसलिए मैं भाग के भौजी के घर के भीतर घुसा और एकदम से दरवाजा बंद कर दिया|

"हाय!!!! आज तो आप गजब ढा रहे हो! अब अगर मेरा ईमान डोल गया तो इसमें क्या कसूर!!!" मैंने भौजी को निहारते हुए कहा|

"अब ये औपचारिकता छोडो! अपनी 'पत्नी' के पास आने के लिए तुम्हें बहाने की जर्रूरत नहीं!" भौजी ने बड़े प्यार से मुझे डाँटते हुए कहा| भौजी की बात सुन मैं मुस्कुरा दिया और उनके चहरे को थाम, उनके होठों पर अपने होंठ रख दिए| आज पहलीबार मुझे उनकी लिपस्टिक का मधुर स्वाद अपने मुँह में घुलता हुआ महसूस होने लगा था| मैं उनके होठों को बारी-बारी चूस रहा था, कभी-कभी भौजी भी अपनी जीभ मेरे मुख में प्रवेश करा देती और मेरी जीभ के साथ खेलतीं! मैं धीरे-धीरे भौजी को चारपाई तक ले गया और उन्हें लिटा दिया| सफ़ेद ब्रा और पैंटी में भौजी आज क़यामत लग रहीं थीं! उन्हें ऐसा देखने की मैंने कभी कल्पना भी नहीं की थी! मैं उनके ऊपर आ गया और फिर उन्हें बेतहाशा चूमने लगा! भौजी मेरे हर एक चुम्बन का जवाब देने लगी थी, साफ़ था की प्रेम अगन हम दोनों के जिस्म में जल रही थी! मैं अपने हाथ उनकी ब्रा का हुक खोलने के लिए उनकी पीठ के नीचे ले गया, तो भौजी ने अपनी पीठ उठा के सहयोग दिया| उनकी ब्रा का हुक खोल के मैंने उनकी ब्रा खींच के निकाली और सिराहने रख दी| मैं जानता था की आज मेरे पास सम्‍भोग पूर्व आपसी लैंगिक उत्तेजना एवं आनंददायक कार्य (Foreplay) के लिए समय नहीं है, इसलिए मैं सीधा नीचे की ओर बढ़ा और भौजी की पैंटी निकाल दी| उनके योनि के पटल बंद थे और मुझे एक भीनी-भीनी सी मदहोश करने वाली महक आने लगी थी| ये महक भौजी की योनि की थी! मैंने झुक के जैसे ही भौजी की योनि को अपनी जीभ की नोक से छुआ तो भौजी तड़प उठीं| मैंने अपनी एक ऊँगली धीरे से भौजी की योनि के भीतर डाली तो पता चल की उनकी योनि अंदर से गीली है! मैंने फ़ौरन अपना पजामा नीचे किया और अपना लिंग निकाल के तैयार हो गया| मैं उनके ऊपर पुनः झुक गया और अपने लिंग को उनकी योनि के ऊपर रख धीरे से अंदर प्रवेश करा दिया| लिंग उनकी योनि में प्रवेश होते ही भौजी की गर्दन तन गई और एक मादक दर्द की लहर उनके जिस्म में दौड़ गई! इधर मुझे थोड़ा ज्यादा जोश आ गया और मैंने अपने दोनों हाथों से भौजी के दोनों हाथ पकड़ लिए, उधर भौजी आनंद के सागर में गोते लगाने को हुईं तो उन्होंने अपनी टांगों से मेरी कमर को लॉक कर लिया! मैंने धक्के लगाने की शुरुआत धीरे-धीरे की, घर्षण कम होने के कारन मुझे अपनी गति बढ़ाने में कोई दिक्कत नहीं हुई| समय बीतता जा रहा था और अगर इस समय हमें कोई परेशान करता तो आज खून-खराबा होना तय था!

उनके होठों की लाली फ़ैल चुकी थी और मुझे उन्हें इस तरह देख के बहुत आनंद आ रहा था| मेरे हर धक्के के साथ भौजी के स्तन ऊपर नीचे हो रहे थे और भौजी के मुख के भावों को देख के लग रहा था की किसी भी समय वो स्खलित हो जाएँगी| पर भौजी ने जैसे-तैसे अपने अंदर उठ रहे सैलाब को रोक लिया था, करीब बीस मिनट तक मैं बिना रुके लय बद्ध तरीके से धक्के देता रहा| गति तेज होने के कारन मेरा पूरा शरीर पसीने से तरबातर हो चूका था, चेहरे पर आया पसीना बह के भौजी के मुख पर गिरने लगा था| तब भौजी ने अपनी ब्रा से मेरे मुँह पर से पसीना पोछा| अंदर से भौजी की योनि पनिया गई थी, शायद इस बार भौजी कुछ ज्यादा ही उत्साहित थीं! पिछली बार जब हमने सम्भोग किया था तब उनकी योनि ने मेरे लिंग को जकड रखा था| परन्तु इस बार तो मेरा लिंग आसानी से फिसल रहा था!

अब समय आ चूका था जब मैं चरम पर पहुँचने वाला था, मेरे हाव-भाव बिलकुल वैसे थे जैसे की चरम पर पहुँचते वक़्त होते हैं! भौजी को एकदम से जोश आ गया और उन्होंने अपने दोनों हाथ छुड़ाए, मेरे सर को अपने मुख पर झुकाया और मेरे होठों को एकदम से चूसने लगीं! इधर मैंने मन ही मन निर्णय कर लिया था की आज तो मैं भौजी की इच्छा पूरी कर के रहूँगा! इसलिए मैंने भौजी की इस प्रतिक्रिया का कोई जवाब नहीं दिया और नीचे से अपना पूरा जोर लगाता रहा| भौजी का जिस्म एकदम से अकड़ कर गया और उन्होंने अपने योनि रस को बहाना शुरू कर दिया! उनके योनि रस की गर्माहट पा कर मेरा लिंग भी अब वीर्य की बौछार करने को उत्सुक हो गया| अंततः मैं स्खलित होने वाला था! आखिर के चार धक्के कुछ इस प्रकार थे की जैसे ही मैं अपने लिंग को अंदर की ओर धकेलता तो उसमें से वीर्य की धार निकल के भौजी की योनि में गिरती, फिर जैसे ही मैं उसे बहार खींचता वो चुप हो जाता| फिर दूसरे धक्के में जब मैं उसे अंदर धकेलता तो फिर उसमें से वीर्य की लम्बी धार निकलती, इसी प्रकार आखरी के चार धक्कों में मैंने उनकी योनि को अपने वीर्य से भर दिया और हाँफते हुए उनके ऊपर गिर गया! कुछ पलों में जब मेरी सांसें दुरुस्त हुईं तो मैंने भौजी से पुछा;

मैं: ARE YOU HAPPY NOW?

भौजी: मतलब???

चूँकि मैंने अंग्रेजी में पुछा था तो भौजी वो समझ न पाईं इसलिए मैंने अपना सवाल हिंदी में दोहराया;

मैं: मतलब आप खुश तो हो ना?

ये सुनते ही भौजी के चहरे पर मुस्कान दौड़ गई;

भौजी: हाँ... बहुत खुश!!!

ये कहते हुए उन्होंने मेरे होठों को चूम लिया और मैंने भी उनके चुम्बन का जवाब उनके होंठों को आखरी बार चूस के दिया| मैं उठ के खड़ा हुआ और स्नान घर की ओर जाने लगा, ताकि अपने हाथ-मुँह और लिंग धो सकूँ| तभी भौजी ने मुझे पीछे से पुकारा;

"मानु, इधर आना!" मैं उनके पास आया तो उन्होंने मेरे लटके हुए लिंग को हाथ से पकड़ा और हिलाते हुए अपने मुँह में भर लिया| "स्स्स्स्स्स्स्स्स्स्स्स्स्स .....!!!!" मैंने एक लम्बी सिसकारी ली! भौजी ने अपनी जीभ से मेरे लिंग को जड़ तक छाता और उसे मुँह में रख अपने होठों के बीच दबा कर रगड़ना शुरू कर दिया| भौजी ने अपनी जीभ से चाट कर मेरे लिंग को अच्छे से साफ़ किया, ऐसा लगा मानो वो हमारे रस को पोंछ के साफ़ कर यहीं हो! जब उन्होंने मेरे लिंग को अच्छे से चूस लिया तब मैंने उनसे कहा: "आप बड़े शरारती हो!!!" भौजी कुछ नहीं बोलीं बस मुस्कुराके मुझे देखती रहीं और चुप-चाप लेटी रहीं| मुझे महसूस हुआ जैसे आज उनकी एक बहुत बड़ी ख्वाइश पूरी हो गई है! मैं अपने हाथ-मुँह धो के उनके पास आया और बोला; "अब आप जल्दी से नहा लो... घर के सब लोग अभी खेत से लौटते होंगे|" मेरी बात सुन भौजी मुस्कुराते हुए बोलीं; "ठीक है, तुम बहार ही बैठना|"

मैं बाहर चारपाई पर बैठ गया और कुछ सोचने लगा, तभी भौजी नहा के बहार आईं| उनके बाल भीगे हुए थे तथा चमक रहे थे, उनके बदन से खुशबूदार गुलाबी LUX साबुन की महक आ रही थी और बालों से शैम्पू की महक...."ह्म्म्म्म्म!!!" मैंने आँख बंद करते हुए कहा तो भौजी मुझे देख कर मुस्कुरा दीं| फिर भौजी सीधा मेरे पास आके बैठ गईं और मेरा हाथ पकड़ लिया| वो आगे कुछ कहतीं उसके पहले ही नेहा दबे पाँव पीछे से आई और जोर से चिल्लाई जिस कारन भौजी डर गईं तथा छिटक के उठ खड़ी हुईं| ये देख के मेरी हँसी छूट गई; "हा..हा..हा..हा..हा!!!" मुझे हँसता हुआ देख भौजी भी हँस पड़ी और हँसते हुए रसोई की ओर चल दीं| इधर नेहा मेरी गोद में आके बैठ गई और मैं उसके सर को चूम प्यार करने लगा| तभी एक-एक कर बाकी के घर वाले आने लगे, सभी हैंडपंप पर हाथ-मुँह धोने लगे और चाय के लिए आंगन में बैठ गए| उधर जैसे ही माँ ने मेरे पाँव में पट्टी बँधी देखि वो तुरंत मेरे पास आईं और बोलीं;

माँ: हाय राम! अब क्या मार लिया तूने?

माँ ने अपना सर पीटते हुए कहा|

मैं: कुछ नहीं माँ, वो पैर ऊँचा-नीचा पड़ गया था तो थोड़ी मोच आ गई|

माँ ज्यादा चिंतित न हों इसलिए मैंने बात को हलके में कहा|

माँ: बेटा देख के चला कर, ज्यादा दर्द तो नहीं हो रहा?

माँ ने थोड़ी चिंता जताई|

मैं: नहीं...

मैं आगे कुछ कहता उससे पहले भौजी चाय ले के आ गईं;

भौजी: चाची मैंने तेल से मालिश करके पट्टी बाँध दी है, कल सुबह तक ठीक हो 'जायेंगे'|

भौजी ने आज माँ के सामने मेरे लिए पहली बार 'जाएंगे' शब्द का इस्तेमाल किया| माँ तो ये बात नहीं पकड़ पाईं पर मैंने पकड़ ली और मेरे चहरे पर मुस्कान आ गई जो भौजी ने देख ली|

माँ: अच्छा किया बहु, शुक्र यहाँ तू है जो इसका इतना ध्यान रखती है वरना शहर में तो ये खुद ही कुछ न कुछ कर लेता था, मुझे बताता भी नहीं था|

माँ ने चाय का गिलास उठाते हुए कहा| माँ की बात सुन भौजी को बहुत गर्व महसूस हुआ की वो मेरा इतना ध्यान रखती हैं! इतने में वहाँ बड़की अम्मा भी आ गईं और वो भी मेरे पाँव में पट्टी देख के हैरान थी| भौजी ने आगे बढ़ कर खुद उन्हें सारी बात बताई तो बड़की अम्मा बोलीं; "मानु की अम्मा, देखत हो देवर-भौजी का मोह! चोट मानु का लागत है तो दर्द बहु को होत है! बीमार बहु होवत है तो दवा-दारु मानु करत है! बिलकुल ऐसा ही ईके पिताजी रहे जब ऊ छोट रहे| कउनो ऊ का अगर मारे या केऊ से लड़ाई करीहें तो सीधा हमरे पास दौड़ आत रहे और हमेशा हमार मदद करत रहे! जबों चौटाया जाते तो हमरे पास भागे-भागे आवत रहे!" बड़की अम्मा की बात सुन माँ के चहरे पर एक मीठी सी मुस्कराहट आ गई! ऐसा लगा की माँ सोच रही हों की बाप की गुण बेटे में आ गए हैं! इधर शायद भौजी भी ये सोच मंद-मंद मुस्कुराने लगीं|

अँधेरा हो रहा था और एक मुसीबत अभी बाकी थी| गाँव का ठाकुर (माधुरी का बाप) तमतमाता हुआ बड़ी तेजी से चलता हुआ आया और मेरे पिताजी के पास आके बैठ गया;

ठाकुर: बाबूजी, हम तोहरे पास एक शिकायत लेके आयन है!

पिताजी: शिकायत? का भवा?

ठाकुर: तोहार बड़ी बहु हमार बेटी का बहुत बुरी तरह झाडिस है!

पिताजी: बड़ी बहु?

ठाकुर: हाँ और जानत हो काहे?

पिताजी: काहे?

ठाकुर: काहे की ऊ तोहार बिटुआ से मिलत है, बतुआत है! ऐसा कौन सा पाप कर दीस हमार बिटिया?!

ये सुन पिताजी ने भौजी को आवाज लगाईं, मैंने ठाकुर को बैठे हुए देख लिया था और मैं समझ गया था की माजरा क्या है इसलिए मैं भी भौजी के साथ चल दिया| मेरे पीछे-पीछे माँ और बड़की अम्मा भी आ कर वहीँ खड़े हो गए| अब चूँकि मैं वहाँ खड़ा था तो पिताजी ने भौजी से हिंदी में ही कहा;

पिताजी: बहु क्या ये सच है, तुमने ठाकुर साहब की बेटी को डाँटा?

ठाकुर: बाबूजी, डाँटा नाहीं झाडिस है!!!! और ऐसा झाडिस की ऊ उहाँ रोये जात है!

भौजी: जी|

भौजी ने सर झुका कर जवाब दिया पर मैं उनका बचाव करने के लिए कूद पड़ा;

मैं: मेरे कहने पर!

मेरी बात सुन भौजी और सभी लोग मेरी तरफ देखने लगे| मैं: जी मैंने ही भौजी से कहा था की माधुरी बार-बार मुझसे बात करने की कोशिश करती है, जबकि मेरी उसमें कोई दिलचस्पी ही नहीं! मैं जितना उससे दूर भागता हूँ वो उतना ही मेरे पास आने की कोशिश करती है| यहाँ तक की उसने तो मुझसे शादी के बारे में भी पूछा था| उस दिन जब हम वाराणसी के लिए निकल रहे थे तो शाम को वो मुझसे कह रही थी की 'अब आप दुबारा कब आओगे?' और जब मैंने कहा की एक साल बाद तो कहने लगी 'हाय राम!!! इतने देर लगाओगे?' अब आप ही बताइये पिताजी मैं और क्या करता? इसलिए मैंने भौजी से शिकायत की कि आप उसे समझा दो| पर आज दोपहर में जब मैं आप सबके साथ खेत पर था तब माधुरी घर आई और बड़े जोर से दरवाजा पीटने लगी, आप को तो पता ही है की सारे घर का काम कर भौजी तक जातीं हैं तो वो उस टाइम सो रहीं थी| माधुरी के दरवाजा भड़भड़ाने से उनकी नींद टूट गई और उन्होंने गुस्से में उसे सुना दिया|

मैंने भौजी के झूठ को ही ढाल बना कर उनका बचाव बड़े सलीके से किया| इसी बहाने मैंने वो सच भी बोल दिया जो मुझे बीते कुछ दिनों से महसूस हो रहा था| पर ये सच ठाकुर के गले नहीं उतरा और वो अपनी बेटी का बचाव करते हुए बोला;

ठाकुर: तुम झूठ कहत हो, हमार बिटिया ऐसी नाहीं है!

मैं: आप उसे यहाँ बुला क्यों नहीं लेते? दूध का दूध और पानी का पानी हो जायेगा!

ठाकुर का मुझे झूठा कहने पर मुझे गुस्सा तो बहुत आया पर पिताजी सामने थे इसलिए मैंने उस कसूरवार को ही सामने बुलाने को कहा| इधर पिताजी ने अजय भैया को माधुरी को बुलाने भेजा और इतनी देर में सारे घरवाले मेरी तरफ हो गए| सब का मानना था कि मैं झूठ नहीं बोलूँगा| कुछ ही देर में माधुरी और उसकी माँ आ गए| माधुरी गर्दन झुकाये खड़ी हो गई और पिताजी मुखिया कि तरह बात सुलझाने लग गए;

पिताजी: बेटा मानु का कहना है कि तुम जबरदस्ती उसे बातें करने कि कोशिश करती हो और तुमने उससे शादी के लिए भी पूछा था?

ये सुन कर माधुरी ने बड़े आत्मविश्वास से कहा;

माधुरी: पूछा था|

उसका आत्मविश्वास देख मैं हैरान था, क्योंकि मुझे लग रहा था की वो झूठ बोलेगी पर ये तो सामने से सच बोलने लगी!

पिताजी: क्यों?

माधुरी: क्योंकि मैं "उनसे" प्यार करती हूँ!!!

माधुरी ने मेरी तरफ देखते हुए बड़े गर्व से कहा| पर ये सुनते ही मेरे होश उड़ गए और उधर भौजी का मुँह खुला का खुला रह गया! मैं जिंदगी में पहलीबार पिताजी के सामने बड़ी जोर से चिल्लाया;

मैं: Are you mad!!! तेरा दिमाग तो नहीं ख़राब हो गया?

मेरी गुस्से भरी चिल्लाहट सुन ठाकुर घबराते हुए अपनी ही बेटी से सवाल करने लगा;

ठाकुर: ई का बकत है?

इधर पिताजी ने उसकी बात पर एकदम से विश्वास कर लिया और बोले;

पिताजी: मानु, तू शांत हो जा! बेटी ये कब से चल रहा है?

पिताजी का सवाल सुन माधुरी तपाक से बोली;

माधुरी: जब मैं पहली बार 'इनसे' मिली थी, मैं ने तभी फैसला कर लिया था की मैं इन्ही से शादी करुँगी!

माधुरी की बातों से आत्मविश्वास साफ़ झलक रहा था, पर मेरे पिताजी के कुछ सपने थे| वो चाहते थे की मैं पढ़-लिख कर कुछ बन जाऊँ और अपने पैरों पर खड़ा हो जाऊँ इसीलिए उन्होंने शादी के लिए साफ़ मना कर दिया;

पिताजी: ये नहीं हो सकता बेटी, मेरा लड़का अभी पढ़ रहा है और...

आगे वो कुछ बोलते इससे पहले ही माधुरी बीच में बोल पड़ी;

माधुरी: मैं इन्तेजार करने के लिए तैयार हूँ!

ये सुनते ही भौजी कि आँखें भर आईं और वो मुँह फेर के चली गईं| उधर माधुरी के चहरे पर मुझे जीत की एक मुस्कान दिखी जो मेरे लिए बर्दाश्त कर पाना मुश्किल था, इसलिए मैं फिर गुस्से में बोला;

मैं: You're out of your mind! मैं तुझ से प्यार नहीं करता, तो शादी कैसे करूँगा? ठाकुर साहब आप अपनी बेटी को समझाओ या इसे डॉक्टर के पास ले जाओ!

मेरा गुस्सा पिताजी के लिए बर्दाश्त कर पाना बहुत मुश्किल था इसलिए उन्होंने मुझे ही डाँट दिया;

पिताजी: मैंने कहा ना तू चुप रह! मैं बात कर रहा हूँ न?

इतने में माँ जो अभी तक चुप थीं वो मुझे डाँटते हुए बोलीं;

माँ: तू जा यहाँ से, यहाँ सब बड़े बात कर रहे हैं|

माँ की ये बात मुझे बड़ी अजीब सी लगी क्योंकि ये मेरी जिंदगी का सवाल था और माँ को अब भी लग रहा था की मैं एक छोटा बच्चा हूँ! पर मेरे मन में तो गुस्से का तूफ़ान आया हुआ था, इसलिए मैंने पिताजी को एक चेतावनी दी;

मैं: पिताजी, आपको जो फैसला करना है कर लो पर मैं इससे शादी नहीं करने वाला!

पता नहीं कैसे पर पिताजी ने ये बात सुन ली, इधर बड़की अम्मा ने अजय भैया को चुप-चाप इशारा किया| अजय भैया मुझे अपने साथ खींच के कुछ दूर ले गए और चारपाई पर बिठा दिया; "भैया शांत हुई जाओ! चाचा बात करत हैं!" इतना कह कर वो वापस लौट गए| मेरा दिमाग इस वक़्त बहुत गरम हो गया था, दिल एकदम से भौजी के लिए बेकरार हो गया था| मैंने आस पास नजर दौड़ाई पर भौजी कहीं नजर नहीं आई, मैं खुद तो उन्हें ढूँढने नहीं जा सकता था इसलिए मैंने नेहा को बुलाया जो छप्पर के नीचे चुप-चाप बैठी थी| "बेटा आप अपनी मम्मी को बुला कर लाओ|" मैंने नेहा को कहा तो वो दौड़ती हुई भौजी के घर में घुस गई, पाँच मिनट बीते पर नेहा अब तक नहीं लौटी तो मुझे खुद ही उन्हें ढूँढने जाना पड़ा| भीतर जाते हुए अचानक ही मेरे मन में बुरे-बुरे विचार आने लगे थे| कहीं भौजी ने कुछ गलत कदम न उठा लिया है? यही सोचते हुए मैंने उनके घर के भीतर प्रवेश किया तो देखा भौजी आंगन में खड़ी नेहा से लिपटी हुई रो रही हैं| मैंने भौजी के कंधे पे हाथ रखा और उन्हें अपनी ओर घुमाया, भौजी एकदम से मेरे सीने से लग के रोने लगी;

मैं: आप क्यों रो रहे हो? मैं उससे शादी थोड़े ही करने वाला हूँ| मैंने सबके सामने साफ़-साफ़ कह दिया कि मैं उससे शादी नहीं करूँगा, कभी नहीं करूँगा!!!

मैंने भौजी के बालों में हाथ फेरते हुए कहा ताकि भौजी रोना बंद कर दें|

भौजी: ये सब मेरी वजह से हुआ...

भौजी रोते हुए बोलीं पर मैंने उनकी बात बीच में ही काट दी;

मैं: किसने कहा आपसे? इसमें आपकी कोई गलती नहीं!

मैंने भौजी की बात सिरे से ही खारिज कर दी|

भौजी: पर चाचा नहीं मानेंगे ...वो तुम्हारी उसके साथ तय कर देंगे! मुझे इस बात कि चिंता है कि वो लड़की तुम्हारे लिए सही नहीं है|

मैं भौजी का डर समझ सकता था, मैंने उनके आँसू पोछे और पूरे आत्मविश्वास से कहा;

मैं: पिताजी ऐसा कुछ नहीं करेंगे और शादी तय कर भी दी तो करनी तो मुझे है! जब मैं ही नहीं मानूँगा, तो शादी कैसी? आप बस चुप हो जाओ, देखो किसी ने आपको मुझसे ऐसे लिपटे देख लिया तो क्या सोचेगा? मैं बाहर जा रहा हूँ, आप भी मुँह धो लो और बाहर आ जाओ!

मैंने भौजी को पुचकारते हुए कहा| मेरा आत्मविश्वास देख भौजी को मुझ पर भरोसा हो गया था| मैंने नेहा को गोद में उठाया और बाहर आ गया, मेरी नजर अब भी दूर हो रही बैठक पर जमी थी| मन में तरह-तरह सवाल उठ रहे थे की पता नहीं क्या होगा? अगर पिताजी ने वाकई में मेरी शादी तय कर दी तो?

कुछ ही मिनटों में भौजी भी बाहर आ गईं और मेरे पास ही खड़ी हो गईं, उनका ध्यान भी बैठक की ओर था| तभी बड़के दादा कहीं से लौट आये और उन्होंने भी हो रही बैठक में हिस्सा लिया, पिताजी ने उन्हें सब बताया और वो भी बात सुलझाने लगे|

कुछ समय बाद बैठक खत्म हुई, ठाकुर, माधुरी और उसकी माँ उठ कर अपने घर की ओर चल दिए| मन में उत्सुकता बढ़ रही थी की पता नहीं सब ने क्या फैसला किया है? मैं उठा और जहाँ बैठक हो रही थी वहाँ जाके हाथ बाँधे खड़ा हो गया, भौजी भी घूंघट काढ़े मेरे साथ खड़ी हो गईं;

बड़के दादा: बैठो मुन्ना|

मैं चुप-चाप बैठ गया, पर मेरे तेवर बागी हो चले थे जो मेरी शक्ल से साफ़ झलक रहे थे!

पिताजी: देखो बेटा, बात थोड़ी सी गंभीर है| माधुरी मानने को तैयार नहीं है, वो जिद्द पर अड़ी है की वो शादी तुम से ही करेगी| इसलिए हमने उनसे थोड़ा समय माँगा है...

पिताजी की बात पूरी होने से पहले ही मैं गुस्से में बोल पड़ा;

मैं: समय? किस लिए? आपको जवाब तो मालुम है!

मेरे गर्म तेवर देख भौजी जानती थी की पिताजी का गुस्सा कभी न कभी मुझ पर फुट पड़ेगा इसलिए उन्होंने मेरे कंधे पर हाथ रख के मुझे शांत होने का इशारा किया इसलिए मैं एकदम से चुप हो गया;

पिताजी: देखो बेटा हम कल शादी नहीं कर रहे, हमने केवल सोचने के लिए समय माँगा है|

पिताजी की ये बाद मुझे कतई स्वीकार नहीं थी इसलिए मैंने इस बार आराम से उनकी बात का विरोध करते हुए कहा;

मैं: पिताजी आप मेरा जवाब जानते हो, मैं उससे शादी कभी नहीं करूँगा!

पर मेरी बात का उनपर वो प्रभाव नहीं पड़ा जो पड़ना चाहिए था, मुझे अब पिताजी को कैसी भी अपनी बात के लिए मनवाना था तो इसबार मैंने बड़ी हलीमी से अपनी बात आगे रखी;

मैं: पिताजी आप मेरे एक सवाल का जवाब दो, कल को शादी के बाद भी वो इसी तरह कि जिद्द करेगी तो मैं क्या करूँगा? हर बार उसकी जिद्द के आगे झुकता रहूँ? फिर आप लोगों का क्या? मैं और आप तो काम धंधे में लगे रहेंगे और वो घर में माँ को इसी तरह तंग करेगी तो माँ क्या करेंगी? आगे चल कर ऐसी जिद्दी लड़की तो मुझे आपसे भी अलग करना चाहेगी और तब बात तलाक पर आएगी, क्या आप यही चाहते हो? मैं ये नहीं कह रहा कि लड़की मेरी पसंद की हो, परन्तु वो कम से कम आप लोगों को तो खुश रख सके! आपने मुझे इतने प्यार से पाल-पोस कर बड़ा किया और आज आपका एक गलत फैसला हमारे पूरे परिवार को तोड़ देगा!

कहते हैं की कई बार जोश से नहीं बल्कि होश से काम लेना चाहिए, ये वो जर्रूरी सबक था जो मैंने उस दिन सीखा था| मेरे हलीमी से बात करने का प्रभाव पिताजी पर पड़ा और वहाँ मौजूद हर एक इंसान मेरी बात सुन भावुक हो गया;

पिताजी: बेटा तू इतना जल्दी बड़ा हो गया? तू हमारे बारे में इतना सोचता है, इससे ज्यादा हमें और क्या चाहिए?

पिताजी की आवाज में आज नरमी देख मुझे खुद पर फक्र होने लगा था|

बड़के दादा: मुन्ना (पिताजी) बहुत नीक संस्कार डालिओ है आपन लड़िकवा में तुम! मानु तुम तनिको चिंता न करो, काल्हिआं हम जाइके ठाकुर साहब का समझा देब| अगर फिर भी ऊ ना माना तो हम पंचायत इक्कट्ठा कर लेब| बहुरिया चलो खाना परोसो, अब सब कुछ ठीक हो जाई| अब चिंता की कउनो बात नहीं!

बड़के दादा की बात सुन सब को इत्मीनान हो गया, जैसे ही मैं उठ के खड़ा हुआ तो बड़की अम्मा ने सबसे पहले मेरा माथा चूमा और आशीर्वाद दिया| माँ ने भी आ कर मुझे अपने गले लगा लिया और आशीर्वाद दिया| अगर किसी का मुँह देखने लायक था तो वो था अजय भैया और चन्दर भैया का, दोनों के दोनों हैरान थे! इधर मैं मन ही मन सोच रहा था कि बेटा तू राजनीति में चला जा अच्छा भविष्य है तेरा, क्या स्पीच दी है, सबके सब खुश हो गये! ये सोच मैं मन ही मन खुद को शाबाशी देने लगा|

रात्रि भोज का समय था, सभी पुरुष सदस्य एक कतार में बैठे थे और मेरा नंबर सबसे आखरी था| भौजी ने एक-एक कर के सब को भोजन परोसा| उधर नेहा खाना खा चुकी थी और आँगन में खेल रही थी, इधर सब लोग अब भी शाम को हुई घटना के बारे में बात कर रहे थे| पर भौजी अभी भी खामोश थीं, उनकी ये ख़ामोशी मेरे पल्ले नहीं पड़ रही थी लेकिन मैं अभी कुछ कह नहीं सकता था इसीलिए मैं चुप-चाप अपना भोजन कर रहा था| इतने में नेहा भागते-भागते गिर गई और रोने लगी, मैंने सोचा कि शायद चन्दर उसे उठाने जाएगा पर उसने तो बैठ-बैठे ही भौजी को हुक्म दे दिया; "जरा देख, नेहा गिर गई है!" ये सुन कर मुझे बड़ा गुस्सा आया, इसलिए मैं खुद भागता हुआ गया और नेहा को गोद में उठाया| मुझे खाने से उठता देख चन्दर बोला;

चन्दर: अरे मानु भैया, रहए दिहो! तोहार भौजी देख लेइ!

पर मैंने उनकी बात को ज्यादा तवज्जो नहीं दी और बात टालते हुए कहा;

मैं: अभी आता हूँ|

मैंने फ़ौरन नेहा को गोद में उठा लिया और उसे पुचकारते हुए बोला;

मैं: अव्व ले ले मेरे बेटा....चोट लग गई आपको?

मैंने थोड़ा तुतलाते हुए कहा और नेहा को गोद में लिए हुए हैंडपंप के पास आया| पहले अपने हाथ धोये फिर उसके हाथ-पाँव धोये| अपने रुमाल से उसके चोट वाली जगह को धीरे-धीरे पोंछा और इतने में भौजी वहाँ भागती हुई आ गईं;

भौजी: लाओ मैं देखती हूँ मेरी लाड़ली को क्या हो गया?

भौजी ने बड़े प्यार से कहा|

मैं: नहीं आप अभी इसे छू नहीं सकते, आपने बाकियों को भी भोजन परोसना है| आप जाओ मैं नेहा को दवाई लगा के अभी लाता हूँ|

मैं ने नेहा को फिर से गोद में लिया और पुचकारते हुए अपने साथ बड़े घर ले आया| उसके चोट को डेटोल से साफ़ किया फिर दवाई लगाई| ज्यादा गंभीर चोट नहीं थी पर बच्चे तो आखिर बच्चे होते है न| करीब पंद्रह मिनट बाद मैं वापस आया तो देखा सब खाना खा के उठ चुके थे| मैंने नेहा को गोद से उतरा और अपनी चारपाई पर बिठा दिया;

मैं: आप यहीं बैठो, मैं खाना खा के आता हूँ और फिर आपको एक नई कहानी सुनाऊँगा|

मैं वापस छप्पर के नीचे आया तो देखा की मेरे खाने की थाली गायब है, जब भौजी से पूछा कि मेरी थाली कहाँ है तो उन्होंने उसमें और भोजन परोस के दे दिया| मैं उनकी ओर हैरानी से देखने लगा तो वो बोलीं;

भौजी: सभी बर्तन जूठे हैं इसलिए मैं भी तुम्हारे साथ ही खाऊँगी|

भौजी ने बड़े प्यार से कहा तो मैं उनके आने का इंतजार करने लगा| इतने में माँ और बड़की अम्मा भी आ कर बैठ गईं| सबको खाना परोस भौजी मेरे साथ खाने बैठ गईं| मैंने बस एक रोटी खाई और उठने लगा तो भौजी ने मेरा हाथ पकड़ के बैठा दिया और कहा;

भौजी: एक रोटी मेरी ओर से|

ये सुन मैंने न में सर हिलाया तो वो बनावटी गुस्से में बोलीं;

भौजी: ठीक है तो फिर मैं भी नहीं खाऊँगी|

अब मैंने जबरदस्ती एक और रोटी खा ली और हाथ-मुँह धो के नेहा के पास आ गया| नेहा मेरा इन्तेजार करते हुए अब भी जाग रही थी, मैंने नेहा को अपनी गोद में उठाया और कहानी सुनाते हुए टहलने लगा| कहानी सुनते-सुनाते मैं उसकी पीठ पर हाथ फेर रहा था ताकि वो सो जाए, इधर सभी अपने-अपने बिस्तर में घुस चुके थे| मैं जब टहलते हुए पिताजी के पास पहुँचा तो उन्होंने मुझे अपने पास बैठने को कहा, तभी भौजी वहाँ बड़के दादा के लिए लोटे में पानी लेके आ गईं ताकि अगर उन्हें रात में प्यास लगे तो पानी पी सकें|

पिताजी: क्या हुआ चक्कर क्यों काट रहा है?

मैं: अपनी लाड़ली को कहनी सुना रहा हूँ|

मेरे मुँह से 'मेरी लाड़ली' सुनते ही भौजी के मुख पर छत्तीस इंच कि मुस्कराहट फ़ैल गई| भौजी मुझे छेड़ते हुए बोलीं;

भौजी: कभी हमें भी कहानी सुना दिया करो, जब देखो 'अपनी लाड़ली' को गोद में लिए घूमते रहते हो|

मैं भौजी की बात समझ गया और उन्हें अपने ख़ास अंदाज में जवाब देते हुए बोला;

मैं: सुना देता पर नेहा तो आधी कहनी सुनते ही सो जाती है, आपको सुलाने के लिए कम से कम तीन कहनियाँ लगेंगी| तीन कहनी सुनते-सुनते आधी रात हो जाएगी और आप तो सो जाओगे अपने बिस्तर पर लेकिन मुझे आँखें मलते हुए अपने बिस्तर पर आके सोना होगा|

मेरी बात सुनके पिताजी हँस पड़े| भौजी की हँसी मैंने घूंघट के नीचे से महसूस की|

खेर मैं करीब आधे घंटे तक नेहा को अपनी गोद में लिए घूमता रहा और कहनी सुनाता रहा| जब मुझे लगा की नेहा सो गई है तब मैं उसे लेके भौजी की घर की ओर चल दिया| हमेशा की तरह आँगन में दो चारपाइयाँ लगीं थी, एक पर भौजी लेटी थी और दूसरी नेहा के लिए खाली थी| मैंने नेहा को चारपाई पर लिटाया;

भौजी: सो गई नेहा?

मैं: हाँ बड़ी मुश्किल से!

भौजी: आओ मेरे पास बैठो|

भौजी ने अपने पास बैठने का इशारा किया तो मैं भौजी के पास बैठ गया|

मैं: (गहरी सांस लेते हुए|) बताओ क्या हुक्म है मेरे लिए?

भौजी: आप जब मेरे पास होते हो तो मुझे नींद बहुत अच्छी आती है|

मैं: आप तो सो जाते हो पर मुझे आधी रात को अपने बिस्तर पर जाना पड़ता है|

मैंने प्यार-भरी शिकायत की|

भौजी: अच्छा जी! खेर मैं 'आपको' एक बात बताना चाहती थी, कल मेरा व्रत है|

मैं: व्रत, किस लिए?

मैंने थोड़ा हैरान होते हुए कहा|

भौजी: कल XXXXXX का व्रत है जो हर पत्नी अपने पति की खुशाली के लिए रखती है, तो मैं भी ये व्रत आपके लिए रखूँगी|

मैं: ठीक है.... तो इसका मतलब कल मैं आपको नहीं छू सकता!

मैंने भौजी को छेड़ते हुए कहा|

भौजी: सिर्फ शाम तक, शाम को पूजा के बाद मैं खुद आपके पास आऊँगी|

मैं: ठीक है, अब मैं चलता हूँ|

में उठ कर खड़ा हुआ तो भौजी नाराज हो गईं;

भौजी: मेरे पास बैठने के लिए तो आपके पास टाइम ही नहीं है?

भौजी ने रूठते हुए शिकायत की|

मैं: यार दरवाजा खुला है, घर के सभी लोग अभी जगे हैं, अब किसी ने मुझे आपके साथ देख लिया तो?

मैंने सफाई दी पर भौजी को अब गुस्सा आ चका था;

भौजी: ठीक है जाओ सोने!!! मैं अकेले यहाँ जागती रहूँगी!!!

भौजी के इस प्यारभरे गुस्से पर मुझे प्यार आ रहा था, मन तो किया की उन्हें अपनी बाहों में ले कर चूम लूँ पर वक़्त की नजाकत थी इसलिए चुप-चाप बाहर आ गया और अपने बिस्तर पर आके लेट गया| अभी दस मिनट ही हुए होंगे की भौजी नेहा को गोद में ले के आईं और उसे मेरे पास लिटाते हुए बोलीं: "लो सम्भालो अपनी लाड़ली को!" मैं कुछ कहता इससे पहले ही वो अपना प्यारभरा गुस्सा दिखा कर चलीं गई! मैं करवट लेके लेट गया और नेहा की छाती थपथपाने लगा, कुछ ही देर में नेहा भी मुझसे लिपट के सो गई|

जारी रहेगा भाग - 5 में.....
 

दसवाँ अध्याय: सहारा और आकर्षण

भाग - 4

अब तक आपने पढ़ा:

अभी दस मिनट ही हुए होंगे की भौजी नेहा को गोद में ले के आईं और उसे मेरे पास लिटाते हुए बोलीं: "लो सम्भालो अपनी लाड़ली को!" मैं कुछ कहता इससे पहले ही वो अपना प्यारभरा गुस्सा दिखा कर चलीं गई! मैं करवट लेके लेट गया और नेहा की छाती थपथपाने लगा, कुछ ही देर में नेहा भी मुझसे लिपट के सो गई|

अब आगे:

अगली सुबह मैं नहा धो के फ्रेश हो कर बैठ गया, कुछ ही देर में बड़के दादा और पिताजी ठाकुर से बात करने जाने वाले थे| इधर घर की सभी औरतें मंदिर जा चुकीं थी और घर पर बीएस मैं, नेहा, अजय भैया, चन्दर, पिताजी और बड़के दादा थे| चन्दर और अजय भैया उठ कर खेत चले गए और पिताजी बड़के दादा को बुलाने लगे|

मैं: पिताजी आप और बड़के दादा बात करने जा रहे हो ना?

पिताजी: हाँ बेटा|

मैं: तो आप क्यों जा रहे हो, उन्हें यहाँ बुलवा लो|

पिताजी: नहीं बेटा हमें ही जाके बात करनी चाहिए|

इतने में बड़के दादा आ गए और फिर पिताजी उनके साथ बात करने चले गए| मैं उत्सुकता से आँगन में टहल रहा था की पता नहीं वहाँ क्या होगा? अगर माधुरी फिर से ड्रामे करने लगी तो? में टहलते हुए ये सोच रहा था की नेहा से मेरी ये ख़ामोशी नहीं देखि गई| वो भागते हुए भौजी के घर में घुसी और बैट-बॉल ले आई| अभी नेहा ने पहली बॉल ही फेंकी थी की पिताजी और बड़के दादा लौट आये| उन्हें इतना जल्दी लौटा देख मैं हैरान हुआ और उनके पास चल दिया;

मैं: क्या हुआ? आप इतनी जल्दी मना कर के आ गए?

बड़के दादा: नहीं मुन्ना, ठाकुर साहब घरे नाहीं हैं, कलिहाँ आइहैं!

इतना बोल के पिताजी और बड़के दादा भी खेत चले गए| मैं चाहता था की आज के आज ही ये फैसला हो जाए ताकि मुझे चैन मिले पर अब ये बात एक दिन और खींच गई थी! मैं खड़ा हुआ सोच में पद गया था की तभी नेहा ने मेरा हाथ पकड़ के खींचा और मुझे खेलने को बोला| कुछ देर खेलने के बाद मैं ऊब ने लगा था, घर छोड़ के कहीं टहलने भी नहीं जा सकता था| इसलिए मैं और नेहा छप्पर के नीचे बैठ गए, समय अभी करीब बारह बज रहे थे, घडी में भी और मेरे चेहरे पर भी! आज मैंने सुबह से सिर्फ चाय ही पी थी वो भी ठंडी और अब पेट में चूहे कूद रहे थे| मैंने नेहा को दस रूपए दिए और उसे चिप्स लाने भेज दिया| 5 मिनट में नेहा चिप्स ले आई और हम दोनों बैठ के चिप्स खाने लगे की तभी सभी औरतें लौट आईं| मुझे चिप्स खाता हुआ देख बड़की अम्मा बोलीं;

बड़की अम्मा: मुन्ना चिप्स काहे खात हो?

मैं: जी भूख लगी थी, घर पर कोई नहीं था तो नेहा को भेज के चिप्स ही मँगवा लिए|

मेरी बात सुन माँ मुझे प्यार से ताना मारते हुए बोलीं;

माँ: हाँ भई शहर में होते तो अब तक खाने का आर्डर दे दिया होता|

माँ की बात सुन भौजी खी-खी कर के हँसने लगीं;

मैं: आप क्यों हँस रहे हो?

मैंने प्यार से भौजी को डाँटते हुए कहा;

भौजी: क्यों मैं हँस भी नहीं सकती|

भौजी ने बड़े तपाक से जवाब दिया जिसे सुन हम दोनों एक साथ खिल-खिलाकर हँस पड़े| भौजी ने फिर मेरे और नेहा के लिए पोहा बनाया जिसे खा कर भूख शांत हुई! पोहा खा के बाद मैं खेत की ओर चल दिया, इतने दिनों से घर पर जो बैठ था, सोचा चलो आज थोड़ी मेहनत मजदूरी ही कर लूँ! पर हँसिये से फसल काटना आये तब तो कुछ करूँ, मुझे तो हंसिया पकड़ना ही नहीं आता था! अब कलम पकड़ने वाला क्या जाने हँसिया कैसे पकड़ते हैं? फिर भी एक कोशिश तो करनी ही थी, मैंने पिताजी से हँसिया लिया और फसल काटने के लिए बैठ गया| हँसिया तो ठीक-ठाक पकड़ लिया पर काटते कैसे हैं ये मुझे नहीं आत था| इधर-उधर हँसिया घुमाने के बाद मैंने हार मान ली|

पिताजी: बस?! थक गए? बेटा तुम्हारा काम पेन चलना है हँसिया नहीं! जाओ घर जाओ और औरतों को कंपनी दो!

पिताजी ने बात बड़ी सीढ़ी की थी पर मैंने ये बात दिल पर ले ली, अब तो बात इज्जत पर आ गई थी! मैंने आव देखा न ताव फसल को जड़ से पकड़ के खींच निकला| पहली बार से ही मैं जोश से भर चूका था, इसलिए एक बार में जितनी फसल हाथ में आती उसे पकड़ के खींच निकालता| इधर मेरा ये जोश देख के पिताजी हँस रहे थे, अजय भैया और चन्दर जो कुछ दूरी पर फसल काट रहे थे वो भी ये तमाशा देखने आ गए|
बड़के दादा: अरे मुन्ना राहे दिहो| तुम शहर से हियाँ ई सब किये थोड़े ही आये हो!

उधर पिताजी अब भी हँसे जा रहे थे और उनकी हँसी मुझे जोश से भर रही थी इसलिए मैं रुकने का नाम नहीं ले रहा था|

बड़के दादा: तु (पिताजी) का खींसे निपोरत है? हमार मुन्ना खेत में मजदूरी म करि!

बड़के दादा ने पिताजी को डाँट कर चुप करा दिया|

मैं: दादा ..आखिर मैं हूँ तो एक किसान का ही पोता! ये सब तो खून में होना चाहिए, ये तो शहर में रहने से इस काम की आदत नहीं पड़ी| ये भी तजुर्बा कर लेने दीजिये, कम से कम स्कूल जाके अपने दोस्तों से कह तो सकूँगा की मैंने भी एक दिन खेत में काम किया है|

मेरे जोश को देखते हुए बड़के दादा ने मुझे हँसिया ठीक से चलाना सिखाया, मैं उनकी तरह माहिर तो नहीं हुआ पर फिर भी धीमी रफ़्तार से फसल काट रहा था| समय बीता और दोपहर के दो बज गए थे, नेहा भगति हुई आई और मेरी पीठ पर सवार होते हुए बोली; "चाचू चलो खाना खालो!" मैं ऐसे ही उठा और उसे पीठ पर लादे हुए सब के साथ घर लौट आया| सब हाथ-पैर धो कर खाना खाने बैठ गए, खाना खाते समय बड़के दादा मेरे खेत में किये काम के लिए शाबाशी देते नहीं थक रहे थे| खेर भोजन के उपरान्त सब खेत की ओर चल दिए, जब मैं जाने के लिए निकलने लगा तो भौजी ने मुझे रोकते हुए कहा;

भौजी: कहाँ जा रहे हो 'आप'?

मैं: खेत पर|

मैंने थोड़ा हैरान होते हुए कहा|

भौजी: 'आपको' काम करने की क्या जर्रूरत है? 'आप' घर पर ही रहो, मेरे पास! 'आप' शहर से यहाँ काम करने थोड़े ही आये हो, मेरे पास बैठो हम कुछ बातें करते हैं!

मैं: मेरा भी मन आपके पास बैठने को है पर आज आपका व्रत है और अगर मैं आपके पास बैठा तो मेरा मन आपको छूने का करेगा, इसलिए अपने आपको व्यस्त रख रहा हूँ!

मैंने मुस्कुराते हुए कहा पर भौजी थोड़ा नाराज हो गईं| मैं जानता था की मुझे भौजी को कैसे मनाना है इसलिए मैं भौजी की तरफ देख कर मुस्कुराया और खेत की ओर चल दिया| घर से खेत करीब पंद्रह मिनट की दूरी पर था, जब मैं आखिर में खेत पहुँचा तो पिताजी, बड़के दादा समेत सभी मुझे वापस भेजना चाहते थे| लेकिन वापस जा के मैं क्या करता इसलिए जबरदस्ती कटाई में लग गया|

अजय भैया के पास शादी का निमंत्रण आया था तो उन्हें चार बजे निकलना था और चन्दर भी उनके साथ जाने वाला था| अभी साढ़े तीन ही बजे थे की दोनों भाई तैयार होने के लिए घर की ओर चल दिए| वो मुझे भी साथ ले जाना चाहते थे परन्तु मैं नहीं माना| शाम के पाँच बजे थे, मौसम का मिज़ाज बदलने लगा था और काले बदल आसमान में छा चुके थे, बरसात होने की पूरी सम्भावना थी! इधर खेत में बहुत सा भूसा पड़ा था, अगर बरसात होती तो सारा भूसा नष्ट हो जाता| दोनों भैया तो पहले ही जा चुके थे, अब इस भूसे को कौन घर तक ले जाए? इस समय खेत में केवल मैं, पिताजी और बड़के दादा थे| मैं उठ खड़ा हुआ और बड़के दादा से बोला; "दादा आप बोरों में भूसा भरो मैं इसे घर पहुँचता हूँ|" ये सुन बड़के दादा मना करने लगे पर पिताजी के जोर देने पर वो मान गए|

मैंने आज से पहले कभी इस तरह सामान नहीं ढोया था, पर उस समय मैं बहुत जोश में था| पिताजी भी भूसा ढोने में जुट गए, सबसे पहले पिताजी और बड़के दादा ने मिल कर बोरोन में भूसा भरना चालु किया| इधर मैं पहला बोरा लाद कर घर लाया तो भौजी आँखें फाड़े मुझे देखने लगीं| शुरू-शुरू में थोड़ी दिक्कत हुई पर फिर मैं बोर ठीक से उठाने का तरीक सीख गया| मैं एक-एक कर बोरों को लाद के घर ला रहा था, पसीने से मेरा बुरा हाल था| उस समय मैंने गोल गले की लाल टी-शर्ट पहनी थी, जो पसीने के कारण मेरे शरीर से चिपक गई थी| अब मेरी बॉडी सलमान जैसी तो थी नहीं पर भौजी के अनुसार मैं 'कामुक' लग रहा था| जब मैं बोरे उठा के ला रहा था तो बाजुओं की मसल अकड़ जातीं और टी-शर्ट में से मसल साफ़ दिखती, जिसे देख भौजी आहें भरने लगी थीं| मैं काम में इतना मशरूफ था की मेरा भौजी पर ध्यान ही नहीं गया|

अब केवल तीन ही बोरियाँ शेष रह गई थीं| जब मैं पहली बोरी लेके आ रहा था तभी माधुरी मेरे सामने आ कर खड़ी हो गई| मैंने उसकी ओर गुस्से से देखा, फिर नज़र फेर ली और बोरी रखने चला गया| गुस्सा मेरे दिमाग पर हावी होने लगा था, मैं मन ही मन सोच रहा था की अब ये यहाँ क्या लेने आई है? इधर जब मैं खाली बोरी लेके लौटा तो माधुरी ने मेरा रास्ता रोक लिया और बोली; "तो अब आप मुझसे बात भी नहीं करोगे?" मैंने उसकी बात का कोई जवाब नहीं दिया और दूसरी बोरी उठाने चला गया| मैंने बड़ी मुश्किल से अपने गुस्से को काबू किया था, वर्ण मैं आज पहलीबार किसी लड़की पर हाथ उठा देता! मेरे अगली बोरी ले कर लौटने तक माधुरी हाथ बाँधे प्यार भरी नजरों से मेरा इंतजार कर रही थी|

माधुरी: मेरी बात तो सुन लो?

माधुरी ने अपने दोनों हाथ मेरे सामने इस कदर खोले की मैं आगे न जा सकूँ| मैंने कंधे पर लादी हुई बोरी नीचे पटकी और बड़े उखड़े हुए अंदाज में उससे बोला;

मैं: हाँ बोल!

मेरा उखड़ापन देख एक पल को माधुरी रुक गई पर आज उसे अपनी सफाई देनी थी, इसलिए वो बोली;

माधुरी: कल मैं आपसे I love you कहने आई थी, पर भाभी बीच में आ गई और मुझे बेमतलब झाड़ दिया|

माधुरी के मुँह से I love you सुन मुझे बहुत गुस्सा आया और मैं उस पर चीखते हुए बोला;

मैं: मैंने कल भी तुझ से कहा था, मैं तुझसे प्यार नहीं करता! तुम क्यों मेरे पीछे पड़ी है?!

मेरी आवाज में कठोरता झलक रही थी और आवाज भी ऊँची थी, जिसे सुन के भौजी भागी-भागी आईं| मैंने उन्हें हाथ के इशारे से रोक दिया क्योंकि मैं नहीं चाहता था की खामा-खा वो इस पचड़े में फिर पड़ें| इतने में पीछे से पिताजी भी आखरी बोरी ले के आ गए और उनके पीछे ही बड़के दादा आ गए|

पिताजी: क्या हुआ बेटा यहाँ क्यों खड़ा है?

पिताजी ने पुछा क्योंकि उन्होंने अभी तक माधुरी को नहीं देखा था| जैसे ही उनकी नजर माधुरी पर पड़ी, वो बोले;

पिताजी: अरे माधुरी बेटा, तुम यहाँ क्या कर रहे हो?

माधुरी: जी मैं....

माधुरी आगे कुछ बोलती उससे पहले ही मैं थोड़ा गुस्से में बोला;

मैं: ये फिर से कल का राग अलाप रही थी!

इतना कह के मैंने बोरी कंधे पर लादी और भूसा रखने वाले कमरे की ओर चल पड़ा| मेरे जाते ही पिताजी और बड़के दादा माधुरी को समझाने लगे, मैं भूसा रख कर वापस आया और आंगन में पड़ी चारपाई पर बैठ के दम लेने लगा| भौजी फ़ौरन मेरे लिए पानी लाईं और माधुरी के बारे में पूछने लगीं;

भौजी: क्यों आई थी ये?

भौजी ने उससे चिढ़ते हुए पुछा|

मैं: कल वाली बात दोहरा रही थी|

मैंने बात को दरगुजर करते हुए कहा|

भौजी: 'आपने' कुछ कहा नहीं उसे?

मैं: नहीं, जो कहना है कल पिताजी और बड़के दादा कह देंगे|

मैं नहीं चाहता था की भौजी फिर कल वाली बातें सोचें और अपना मन खराब करें इसलिए मैंने बात बनाते हुए कहा;

मैं: छोडो इन बातों को, आप तो पूजा के लिए जा रहे होगे?! मौसम ख़राब है तो छाता ले जाना|

लेकिन भौजी का मूड अब खराब हो चूका था, पर फिर भी उन्होंने मेरी ख़ुशी के लिए अपने चेहरे पर एक नकली मुस्कराहट चिपकाई और मंदिर जाने की तैयारी करने चली गईं| मैं थोड़ी देर चारपाई पर लेट के आराम करने लगा| कुछ पल बाद पिताजी और बड़के दादा मेरे पास आ कर बैठ गए;

मैं: आपने उसे कुछ कहा तो नहीं?

माने भोएं सिकोड़ते हुए कहा|

पिताजी: नहीं, बस कह दिया की कल हम आके बात करेंगे|

बड़के दादा: मुन्ना तु चिंता न कर, कल ई मामला हम निपटाई देंब| तू जा के तनी मुँह-हाथ धोओ, तरो-तजा महसूस करिहो!

मैं उठ कर बड़े घर की ओर जाने लगा की मैंने देखा की घर की सभी औरतें पूजा के लिए जा रही हैं| बड़े घर पहुँच कर मैं आंगन में थोड़ी देर बैठ गया, ताकि पसीना सूख जाये| पसीना सुखाने के चक्कर में मैं बड़े घर का दरवाजा बंद करना भूल गया, जो आगे चल कर मेरी गलती साबित हुई!

इधर मैंने बैग से अपने नए कपडे निकाले, हैंडपंप से पानी भरा और पसीने वाले कपडे निकाल नहाने लगा| शाम का समय था इसलिए पानी बहुत ठंडा था, ऊपर से मौसम भी ठंडा था| नहाने के बाद मैं बहुत काँप रहा था इसलिए मैंने जल्दी से कपडे बदले| मैं कमरे में खड़ा अपने बाल बना रहा था की तभी भौजी अंदर आ गईं| उन्हें अपने सामने देख तब मुझे याद आया की मैं दरवाजा बंद करना तो भूल गया| इधर भौजी के हाथ में पूजा की थाली थी और उनके चेहरे पर मुस्कराहट जिसे देख मैं मंत्र-मुग्ध सा उन्हें देखने लगा| भौजी ने पूजा की थाली चारपाई पर राखी और धीरे-धीरे मेरे पास आईं| इससे पहले की मैं कुछ बोलता उन्होंने आगे बढ़ के मेरे पाँव छुए, मैं हैरान था की भला वो मेरे पाँव क्यों छू रही हैं? आम तोर पर अगर कोई मेरे पैर छूता है तो मैं छिटक के दूर हो जाता हूँ, क्यों की मुझे किसी से भी अपने स्पर्श करवाना पसंद नहीं| परन्तु आजकी बात कुछ और ही थी, मैं नाजाने क्यों नहीं हिला, मैंने भौजी को कंधे से पकड़ के उठाया;

मैं: आपको पता है न मुझे ये सब पसंद नहीं|

मैंने बड़े प्यार से भौजी की आँखों में देखते हुए कहा|

भौजी: पूजा के बाद पंडित जी ने कहा था की सभी स्त्रियों को अपने पति के पैर छूने चाहिए| मैंने तो 'आपको' ही अपना पति माना है इसलिए मैंने 'आपके' पैर छुए|

भौजी ने बड़ी नजाकत से ये बात कही जो मेरे दिल को छू गई| उनकी बात सुन के मेरे कान सुर्ख लाल हो गए! अब मैं उन्हें आशीर्वाद तो नहीं दे सकता था, इसलिए मैंने उन्हें कस के गले लगा लिया| भौजी को गले लगाते ही मुझे ऐसा लग रहा था मानो ये समां थम सा गया हो और मेरा मन नहीं कर रहा था की मैं उन्हें खुद से दूर करूँ, इसलिए मैं आँख मूंदें इस आनंद को महसूस करने लगा|

भौजी: अच्छा अब मुझे छोडो, मुझे खाना बनाना है|

भौजी ने विनती करते हुए कहा|

मैं: मन नहीं कर रहा आपको छोड़ने का|

मैं आँखें बंद किये हुए कहा|

भौजी: अच्छा जी.......

इतना कह कर भौजी एक पल को शांत हो गईं और फिर अचानक से बोलीं;

भौजी: कोई आ रहा है!

ये सुन मैं चौंक गया और आननफानन में मैंने एक दम से भौजी को अपनी गिरफ्त से आजाद कर दिया| भौजी मेरी गिरफ्त से छूट कर दो कदम दूर गईं और खिलखिला कर हँसने लगी, क्योंकि कोई नहीं आया था| जब मुझे ये एहसास हुआ तो मैं भी अपने बालों में हाथ फेरते हुए हँसने लगा| उनकी इस दिल्लगी पर मुझे बहुत प्यार आ रहा था;

मैं: बहुत शैतान हो गए हो आप! खाना खाने के बाद मेरे पास बैठना कुछ पूछना है|

भौजी: बताओ?

भौजी ने उत्सुकता दिखते हुए कहा|

मैं: अभी नहीं, देर हो रही होगी आपको|

इतना कह कर मैंने टाला उठाया और फिर हम दोनों साथ-साथ बाहर आये| मैंने बड़े घर में ताला लगाया और हम रसोई की ओर चल दिए| वहाँ पहुँच के देखा की, माँ पिताजी के पाँव छू रही है और बड़की अम्मा बड़के दादा के पाँव छू रही हैं तथा पिताजी और बड़के दादा उन्हें आशीर्वाद दे रहे थे| ये दृश्य मेरे लिए अनोखा था, जिसे देख अचानक मन में एक इच्छा पैदा हुई की कभी भौजी भी सबके सामने मेरे पैर छुएँ और मैं उन्हीं आशीर्वाद दूँ! पर ये एक ऐसी इच्छा थी जो कभी पूरी नहीं जो सकती थी! इधर भौजी मेरे इस ख्याल से अनजान थी, उन्होंने हाथ-मुँह धोये और रसोई पकाने के लिए चली गईं|

इधर मैं बड़के दादा और पिताजी के पास आ कर लेट गया, मुझे देख नेहा भगति हुई मेरे पास आई और गोद में बैठ गई| मेरा पिताजी और बड़के दादा के पास बैठने का कारन ये था की उन्हें मेरा बर्ताव सामान्य लगे, क्योंकि जब से मैं आया था मैं सिर्फ भौजी के आस-पास मंडराता रहता था| ख़ास तोर पर जब वो बीमार पड़ीं, तब तो मैंने उन्हें एक पल के लिए भी अकेला नहीं छोड़ा था| खाना बना और मैंने और नेहा ने एक साथ खाना खाया| खाने के पश्चात पिताजी और बड़के दादा तो अपनी चारपाई पर लेट चुके थे और मेरी चारपाई हमेशा की तरह सबसे दूर भौजी के घर के पास बिछी थी| नेहा को मैं पहले से ही सुला चूका था| जब माँ और बड़की अम्मा खाना खा कर अपने बिस्तर पर लेट गईं तब भौजी मेरे पास आके बैठ गईं;

भौजी: तो अब बताओ की 'आपने' क्या बात करनी थी?

में एकदम से उठ बैठा और बोला;

मैं: मैंने एक चीज़ गौर की है, पिछले एक-दो दिनों से आपने मेरे लिए "आप, आपने, आपको, इन्हें" जैसे शब्दों का इस्तेमाल करना शुरू कर दिया है?

मैंने पुछा तो भौजी मुस्कुराने लगीं और बोलीं;

भौजी: 'आपने' भी तो मुझे 'भौजी' कहना बंद कर दिया?

बजाए मेरे सवाल का सीधा जवाब देने के उन्होंने मेरे से ही सवाल पूछ लिया|

मैं: वो इसलिए क्योंकि अब हमारे बीच में 'देवर-भाभी' वाला प्यार नहीं रहा| आप मुझे अपना पति मान चुके हो और मैं आपको अपनी पत्नी तो मेरा आपको भौजी कहना मुझे ठीक नहीं लगता|

मेरा जवाब सुन भौजी के चहरे पर गर्वपूर्ण मुस्कराहट आ गई|

भौजी: मुझे आगे बोलने की जरुरत है?

मैं: नहीं... मैं समझ गया!

भौजी ने मेरे मुँह से मेरे ही सवाल का जवाब उगलवा दिया था और उनकी इस अदा पर मुझे हँसी आ गई!

भौजी: वैसे आज आप बहुत 'कामुक' लग रहे थे!!!

भौजी ने बहुत शर्माते हुए कहा|

मैं: अच्छा जी?

मैं भौजी की बात ठीक से मझ नहीं पाया इसलिए मेरे चहरे पर थोड़े सवालिया निशान थे|

भौजी: पसीने के कारन आपकी लाल टी-शर्ट आपके बदन से चिपकी हुई थी, वो देख कर मेरा तो मन कर रहा था की आके आपसे लिपट जाऊँ! पर घर पर सभी थे, इसलिए जैसे-तैसे खुद को रोक लिया! आपके पास और ऐसी टी-शर्ट हैं जो आपके बदन से चिपकी रहे?

भौजी ने हसरत भरी निगाहों से पुछा|

मैं: नहीं, मुझे ढीले-ढाले कपडे पहनना अच्छा लगता है|

मेरी बात सुन भौजी ने एकदम से मुँह बना लिया और बोलीं;

भौजी: तो मतलब मुझे फिर से आपको ऐसे देखने का मौका कभी नहीं मिलेगा?

मैं: अगर आप मेरे साथ बाजार चलो तो मैं ऐसी टी-शर्ट खरीद लेता, मुझे तो यहाँ का ज्यादा पता भी नहीं|

मेरी बात सुन भौजी एकदम से उत्साह से भर गईं;

भौजी: ठीक है, पर घर में क्या बोल के निकलेंगे?

मैं: मुझे क्या पता? आप सोचो?

मैंने थोड़ा भौजी को तड़पाते हुए कहा|

भौजी: आपके पास ही सारे जुगाड़ होते हैं, आप ही कोई रास्ता निकालो|

मैं: चलो सोचता हूँ|

मैं कुछ आईडिया सोचने लगा पर भौजी के मन में एक जिज्ञासा थी;

भौजी: अगर आप बुरा ना मनो तो मैं आपसे एक बात पूछूँ?

मैं: हाँजी बोलिये!

मैंने मुस्कुराते हुए कहा|

भौजी: आपने ये सब कहाँ से सीखा?

भौजी की बात मेरे पल्ले नहीं पड़ी|

मैं: क्या मतलब सब सीखा?

भौजी: मेरा मतलब....हमने जब भी सम्भोग किया तो आपको सब पता होता है| आपको पता है की स्त्री के कौन से अंग को कैसे सहलाया जाता है? कैसे उसे खुश किया जाता है......

इतना कहते हुए वो झेंप गईं! अब शर्म तो मुझे भी आ रही थी की उन्हें सच कैसे बताऊं, कहीं ये सुन वो मुझे गलत समझने लगीं तो? फिर भी मैंने थोड़ी हिम्मत दिखाई और बोला;

मैं: दरअसल मैंने ये सब Porn movie से सीखा!

भौजी: ये 'परन मोबि' क्या होता है?

भौजी से वो शब्द बोला ही नहीं गया तो उन्हें जैसे समझ आया उन्होंने वैसे ही कह दिया|

मैं: 'परन मोबि' नहीं Porn Movie मतलब 'ब्लू फिल्म'!

पर भौजी को ये शब्द भी समज नहीं आया, दरअसल उनकी गलती नहीं थी| ब्लू फिल्म उन दिनों CD में मिलती थी और बहुत मुश्किल से मिलती थी! गाओं तक तो ये 'तकनीक' उन दिनों पहुँची ही नहीं थी|

मैं: ब्लू फिल्म मतलब एक ऐसी फिल्म जिसमें एक आदमी और एक औरत सम्भोग करते हैं| उस सम्भोग को रिकॉर्ड कर के दूसरे लोग देखते हैं!

भौजी ये सुनते ही एकदम से चौंक पड़ीं और अपने होठों पर हाथ रखते हुए बोलीं;

भौजी: हाय!!!! उन्हें शर्म नहीं आती?

भौजी की ये बात सुन मुझे हँसी आ गई|

मैं: उस आदमी और औरत को इस काम के लिए पैसे मिलते हैं इसलिए वो ये फिल्म बनाने देते हैं|

भौजी: ये तो विअश्यावृत्ति है!

मैं: कुछ ऐसा ही समझ लो!

मैं उस समय उनसे इस विषय पर बहस नहीं कर सकता था और वैसे भी वो इतनी जानकारी ले कर क्या करतीं!

भौजी: और ये बाकी लोग क्यों देखते हैं?

मैं: यार...अब हर कोई तो सम्भोग नहीं कर सकता ना? तो लोग ये देख कर ....खुद को जिस्मानी रूप से संतुष्ट करते हैं!

मैंने थोड़ा शर्माते हुए कहा क्योंकि मैं उनके सामने 'हस्तमैथुन' शब्द का प्रयोग नहीं करना चाहता था| भले ही मैं और भौजी सम्भोग कर चुके थे पर मैं अब भी उनके सामने इस तरह के खुले शब्दों का इस्तेमाल करने से शर्माता था| शुक्र है की भौजी मेरा इशारा समझ गईं वर्ण मुझे उन्हें और समझना पड़ता;

भौजी: तो आप भी ये देख कर 'संतुष्ट' होते थे?!

भौजी ने मेरे द्वारा कहे 'संतुष्ट' शब्द का ही प्रयोग करते हुए कहा|

मैं: हाँ

मैंने शर्म से सर झुकाते हुए कहा|

भौजी: पर आज के बाद आप ऐसा नहीं करोगे!

भौजी ने मुझे चेतावनी दी और मैंने हाँ में सर हिला कर उन्हें वादा किया| फिर मैंने उन्हें अपनी किशोरावस्था की कहानी सुनाई|

मैं: मैंने आपको अपने एक दोस्त के बारे में बताया था न, जिसके मामा जी हमें घर से भागने पर मदद करते, उसी के घर मैंने पहली बार Porn Movie देखि थी! उस दिन उसके पिताजी शहर से बाहर थे और उसकी माँ पड़ोस में किसी के घर गईं थी| मेरे दोस्त ने मुझे अपने घर पढ़ने के बहाने से बुलाया और हम उसके DVD प्लेयर पर वो मूवी देखने लगे|

भौजी की रूचि उस मूवी की कहनी सुनने में थी, सो मैं उन्हें पूरी कहानी सुनाने लगा| एक-एक दृश्य उन्हें ऐसे बता रहा था जैसे मैं उनके साथ वो दृश्य कर रहा हूँ| पर मैंने आज तक उस मूवी में देखे एक भी सीने को भौजी के साथ नहीं किया था और ना ही करने का कोई इरादा था| वो मूवी एक Bondage Theme पर थी! भौजी बड़े गौर से मेरी बातें सुन रही थी, ऐसा लगा जैसे वो मन ही मन उस कहानी की कल्पना कर रहीं हों| अंततः कहानी पूरी हुई और मैंने भौजी को सोने जाने को बोला, लेकिन इस कहानी सुनाने के दौरान मैं उत्तेजित हो चूका था! मेरा मन अब भौजी के बदन को स्पर्श करने को कर रहा था, पर चूँकि आज सारा दिन व्रत के कारन भौजी ने कुछ खाया-पिया नहीं था इसलिए मेरा कुछ करना मुझे उचित नहीं लगा| अपना मन मार कर मैं लेट गया और चूँकि आज मुझे थकावट इतनी थी की मैं लेटते ही सो गया|
 

ग्यारहवाँ अध्याय : एक ही भूल!


भाग - 1

अगली सुबह मुझे उठने में काफी देर हो गई क्योंकि सूरज सर पर चढ़ चूका था|मैंने घडी में समय देखा तो सवा 9 बजे थे, बड़के दादा, बड़की अम्मा और पिताजी खेत जा चुके थे| घर में केवल मैं, माँ, नेहा और भौजी ही रह गए थे| मैं एक दम से उठ के बैठा और आँखें मलते हुए भौजी को ढूँढने लगा की तभी भौजी मुझे मटकी में दूध ले के आती हुई दिखाई दीं| मैं अंगड़ाई ले कर उनके पास पहुँचा;

मैं: आपने मुझे उठाया क्यों नहीं?

मैंने भौजी से शिकायत करते हुए कहा|

भौजी: कल आप बहुत थक गए थे इसलिए पिताजी ने कहा था की आपको सोने दिया जाए और वैसे भी जल्दी उठ के आपने कहाँ जाना था?

मैं: खेत

मेरी बात सुनते ही भौजी नराज हो गईं और बोलीं;

भौजी: आपको मेरी कसम, आप खेत नहीं जाओगे! कल की बात और थी, कल व्रत के कारन आप मुझसे दूर थे पर आज तो कोई व्रत नहीं है| अब चलो जल्दी से नहा धो लो, मैं चाय बनाती हूँ|

ये भौजी का मेरे प्रति प्यार था जो वो मुझे खुद से दूर नहीं जाने देना चाहती थीं| पर अगले ही पल मुझे माधुरी रुपी मुसीबत का ख्याल आया और मेरा चेहरा फीका पड़ गया;

मैं: अच्छा एक बात बताओ, पिताजी और बड़के दादा गए थे बात करने?

मेरा सवाल सुन भौजी का चेहरा भी फीका पड़ गया और उन्होंने बात टालते हुए कहा;

भौजी: आप नहा धो के आओ, फिर बताती हूँ|

मैं कुछ-कुछ तो समझ गया था की मामला गड़बड़ है पर उस समय भौजी से बहस नहीं करना चाहता था| इसलिए मैं बड़े घर की ओर चल दिया और नहा धो के जल्दी से वापस आया| भौजी रसोई में थीं और मुझे देखते ही माँ ने मुझे छप्पर के नीचे बैठने को बुला लिया| "बहु ज़रा मानु के लिए चाय ले आ|" माँ बोली और भौजी जल्दी से चाय ले आईं| "तेरे पिताजी और बड़के दादा गए थे ठाकुर से बात करने, पर माधुरी अब भी अपनी जिद्द पर अड़ी है! कहती है की वो अपनी जान दे देगी, अगर तुने शादी के लिए हाँ नहीं बोला तो! अब पंचायत में जाने के सिवाए हमारे पास कोई और चारा नहीं है! बदकिस्मती से तुझे भी पंचायत में आना होगा|" माँ की बात सुन मेरा खून खौल गया, मुझे जरा भी उम्मीद नहीं थी की मुझे उस लड़की वजह से पंचायत तक में अपनी बत्ती लगवानी होगी! मैं गुस्से में उठा और तेजी से माधुरी के घर की और चल पड़ा, अभी कुछ ही दूर गया था की पीछे से माँ की आवाज आई: "बेटा, उस लड़की से दूर रहना! वरना वो तेरे ऊपर कोई गलत इलज़ाम न लगा दे!" ये मेरे लिए एक चेतावनी थी की कहीं माधुरी ने मेरे ऊपर कोई घिनोना इल्जाम लगा दिया तो मैं बुरी तरह फँस जाऊँगा| मैं एकदम से वहीँ ठिठक के खड़ा हो गया! माँ के चेतावनी के कारन मेरे दिमाग ने मुझे माधुरी के घर जाने नहीं दियाम, मैं वापस मुड़ा और कुऐं की मुंडेर पर सर झुकाये बैठ गया| मैंने आँख बंद की और अपना गुस्सा शांत किया, उसके बाद मैं सोचने लगा की कैसे मैं अपना पक्ष पँचों के सामने रखूँगा| भौजी मुझे रसोई से देख रहीं थीं, उन्होंने मुझे थोड़ा समय अकेले रहने दिया ताकि मैं थोड़ा सामान्य हो जाऊँ! दोपहर हुई और खेत से सब लौट आये और सब ने मुझे कुएं की मुंडेर पर इस तरह बैठे हुए देखा| सभी जन मुझे घेर के खड़े होगये और मुझ से सवाल करने लगे, इतने में माँ पीछे से आईं और उन्होंने सब को मेरा गुस्सा होने का कारन बताया|

पिताजी: बेटा तू चिंता मत कर, हम सब पंचायत में बात सुलझा देंगे!

पिताजी मेरे कंधे पर हाथ रखते हुए बोले|

बड़के दादा: हाँ मुन्ना...चलो खाना खाओ और तनिको चिंता न करो!

मैं: पिताजी मैं थोड़ी देर अकेला रहना चाहता हूँ, आप सब खाना खाइये!

पता नहीं कैसे पर पिताजी मेरी बात मान गए, वरना वो हमेशा प्यार से या जोर जबरदस्ती कर के अपनी बात मनवा ही लेते थे! सब छप्पर के नीचे बैठ गए और आपस में बातें करने लगे| मैं कुछ दूर पर ही बैठा था पर मेरे कान उन आवाजों को सुन ही नहीं रहे थे! बस एक गुस्सा था जो दिल में उबल रहा था! कुछ देर बाद भौजी मुझे भोजन के लिए बुलाने आईं;

भौजी: चलिए भोजन कर लीजिये|

भौजी ने बड़े प्यार से कहा|

मैं: आप जाओ यार, मेरा मूड ठीक नहीं है|

मैंने बड़े रूखे अंदाज में कहा पर भौजी नहीं मानी;

भौजी: तो फिर मैं भी नहीं खाऊँगी|

भौजी ने मुझे ब्लैकमेल करते हुए कहा| ये उनका ऐसा ब्लैकमेल था जिसके आगे मैं पिघल जाया करता था पर आज नहीं;

मैं: ठीक है, एक बार ये मसला निपट जाए फिर दोनों साथ खाना खाएंगे|

मैंने फिर रूखे मन से कहा|

भौजी: पर मुझे भूख लगी है!

भौजी ने बच्चे की तरह मुँह बनाते हुए कहा|

मैं: तो आप खा लो|

भौजी का यूँ बच्चे जैसा मुँह देख मैं पिघल गया और इस बार मैंने उन्हें प्यार से कहा|

भौजी: बिना आपके खाए मेरे गले से निवाला नहीं उतरेगा!

भौजी ने फिर से जिद्द की तो मुझे थोड़ा गुस्सा आ गया;

मैं: प्लीज यार! मुझे थोड़ी देर के लिए अकेला छोड़ दो और आप जा के खाना खाओ!

ये सुन भौजी बेचारी मायूस हो कर चली गईं| मुझे ये नहीं मालूम था की माँ ने ही भौजी को मुझे मनाने को भेजा था|

मैं अकेला कुऐं पर बैठा रहा की कुछ ही देर में अजय भैया शादी से लौट आये, पर चन्दर शादी से सीधा मामा के घर चला गया था| अजय भैया को भी जब सब पता चला तो वो मुझे मनाने आये पर मैंने उन्हें भी प्यार से मना कर दिया| मेरे कारन घर के किसी भी व्यक्ति ने खाना नहीं खाया, सब मेरा गुस्सा समझ सकते थे और शायद यही कारन था की कोई मुझे कुछ नहीं कह रहा था| खानदान का इतना फर्माबरदार लड़का होने के बाद भी आज पंचायत मेरी जिंदगी का फैसला करने जा रही थी| ये बात सोच कर कितनी कोफ़्त होती है उसे ब्यान करना आसान नहीं और यही वो बात थी जिसके कारण घर के सब लोग गुस्से में बैठे थे|

पाँच बजे पंचायत बैठी, सभी पंच एक साथ दो चारपाइयों पर बैठे| उनके दाहिने हाथ पर माधुरी और उसका परिवार बैठा और बायीँ तरफमेरा परिवार बैठा| सबसे पहले पंचों ने माधुरी के घरवालों को बात कहने का मौका दिया और हमें चुप-चाप शान्ति से बात सुनने को कहा| उनके घर से बात करने की कोई हिम्मत नहीं जुटा पा रहा था, इसलिए माधुरी स्वयं खड़ी हो गई;

माधुरी: (मेरी ओर ऊँगली करते हुए) मैं इनसे बहुत प्यार करती हूँ और इनसे शादी करना चाहती हूँ! पर ये मुझसे शादी नहीं करना चाहते, मैं इनके बिना जिन्दा नहीं रह सकती और अगर इन्होने मुझसे शादी नहीं की तो मैं आत्महत्या कर लूँगी!!!

इतना कह के वो फूट-फूट के रोने लगी! माधुरी के पिता ने उसे अपने पास बैठाया ओर उसके आँसू पोछने लगे| उसकी बात सुन कर मुझे इतना गुस्सा आया की एक पल को तो मन किया की उठ कर उसके एक तमाचा जड़ दूँ पर मेरा कुछ भी करना मेरे पक्ष को कमजोर कर देता इसलिए मैं दाँत पीसते हुए बैठा रहा|

ठाकुर: पंचों आखिर का कमी है हमार लड़की मा? सुन्दर है...सुशील है...पढ़त भी है...हमसे नीक परिवार गाओं में है कोई दूसर? हम कउनो गलत काम नहीं करत... सब हमार इज्जत करत हैं! ई जनते हुए भी की ई लड़का हमार 'ज़ात' का नहीं, हम शादी के लिए तैयार हैं| और तो और हम अच्छा खासा दहेज़ देने खतिर तैयार हैं, जो माँगिहैं ऊ हम देब, तो आखिर इन्हें काहे का ऐतराज है? क्यों हमार बेटी की जिंदगी खाये खतिर बैठे हैं?

ठाकुर की कही हर एक बात मुझे और मेरे परिवार को चुभी थी, पर सब किसी तरह खामोश बैठे थे!

पंच: ठाकुर साहब आपन पक्ष रख दिए है, अब हम तोहार (हमारा) पक्ष सुनब, और जब तक इनकी बात पूरी नहीं होत कउनो बीच में न बोलब|

अब बारी थी हमारे पक्ष से बात करने की तो पिताजी उठ खड़े हुए पर मैंने उनसे विनती की कि मुझे बोलने दिया जाए| पिताजी ने मेरी पीठ पर हाथ रख का मुझे मूक अनुमति दी और वो चुप-चाप बैठ गए| पिछले 7-8 घंटों से जो मैंने सोचा था था मैं उसे अब बड़े अच्छे तरीके से रखने जा रहा था|

मैं: सादर प्रणाम पंचों! मुझे मेरे पिताजी ने सीख दी है की 'पंच परमेश्वर होते हैं', इसलिए हमें उनके आगे कभी झूठ नहीं बोलना चाहिए, तो मैं आपसे सब सच-सच कहूँगा!

मेरी ये पहली लाइन पांचों को खूह कर गई और उनका पूरा ध्यान अब मेरी बातों पर था|
मैं: सालों बाद मैं अपने गाँव अपने परिवार से मिलने आया हूँ न कि शादी-व्याह के चक्करों में पड़ने! जिस दिन मैं आया था उस दिन सबसे पहले ठाकुर साहब ने अपनी बेटी के रिश्ते की बात मुझसे की और मैंने उस समय भी इन्हें खुले शब्दों में कह दिया था की मैं शादी नहीं करना चाहता| मैं इस समय पढ़ रहा हूँ, अभी और आगे पढ़ने का विचार है| सिर्फ मैं ही नहीं मेरे परिवार वाले भी नहीं चाहते की मैं अभी शादी न करूँ| रही बात इस लड़की की, तो मैं आपको बता दूँ कि मैं इससे प्यार नहीं करता, न ही मैंने इसे कभी प्यार का वादा किया! मैं इससे प्यार करता हूँ, ये इसके दिमाग कि उपज है! इस जैसी जिद्दी लड़की से मैं कभी भी शादी नहीं करूँगा! जिस लड़की के कारन मेरा परिवार पंचायत तक घसीटा गया, वो कल को मुझे अपने माता-पिता से अलग करने के लिए कोर्ट तक चली जाएगी! इसीलिए मैं इससे कभी शादी नहीं कर सकता!
मैं गुस्से से बोला तो पंच मुझे शांत करते हुए बोले;

पंच: शांत होइ जाओ मुन्ना! माधुरी, बिटिया तुम्हार ई जिद्द पकड़ के बैठ जाना ठीक नाहीं है! का मानु कभी तोह से कहिस की ऊ तोहसे प्रेम करत है?

पँचों ने बड़ा सीधा सा सवाल पुछा|

माधुरी: नहीं.... पर....

माधुरी कुछ कहते हुए रुक गई पर फिर आँखों में आँसूँ लिए मेरी ओर देखते हुए बोली;

माधुरी: मुझे एक मौका तो दो! आपके लिए मैं अपने आप को बदल दूँगी! प्लीज मेरे साथ ऐसा मत करो!

मैं: तुझे अपने आपको बदलने कि कोई जर्रूरत नहीं, तु मुझे भूल जा और प्लीज मेरा पीछा छोड़ दे! मैं जूझ से प्यार नहीं करता!

मैंने बड़े उखड़े हुए स्वर से जवाब दिया जिसे सुन माधुरी फूट-फूट के रोने लगी|

पंच: बस दोनों जन शांत हुई जाओ! अब हमका फैसला सुनाने दो!

पंचों कि बात सुन हम दोनों चुप-चाप बैठ गए| एक ओर जहाँ माधुरी बड़ी उमीदें ले कर बैठी थी की उसके आँसूँ देख फैसला उसके हक़ में आएगा वहीँ दूसरी ओर मेरे मन में उथल-पुथल मची हुई थी की अगर पंचों का फैसला मेरे हक़ में नहीं हुआ तो? ये तो तय था की मैं उससे शादी नहीं करूँगा फिर चाहे मुझे कोर्ट तक ही क्यों न जाना पड़े!

पंच: दोनों पक्षों कि बात सुनके हमसब ने ई फैसला लिया है, की ई एक तरफ़ा प्यार का मामला है! इसलिए हम इसका फैसला माधुरी के हक़ में नहीं दे सकते क्योंकि मानु इस शादी के लिए तैयार नहीं है और जोर जबरदस्ती से कि हुई शादी कभी सफल नहीं होती! इसलिए ये पंचायत मानु के हक़ में फैसला देती है| ठाकुर साहब, ये पंचायत आपको हिदायत देती है की आप अपनी बेटी को समझाएं और उसकी शादी जल्द से जल्द कोई सुशील लड़का देख के कर दें| आप या आपका परिवार का कोई भी सदस्य मानु या उसके परिवार के किसी भी परिवार वाले पर शादी कि बात का दबाव नहीं डालेगा| इसी फैसले के साथ ये सभा यहीं स्थगित कि जाती है!

पंचायत खत्म होते ही ठाकुर गुस्से में माधुरी का हाथ पकड़ के उसे खींचता हुआ घर ले जा रहा था| माधुरी की आँखों में आँसूँ थे और उसकी नजर मुझ पर टिकी थी| उसका वो रोता हुआ चेहरा मेरे दिमाग में बस गया था और मुझे रह-रह के माधुरी पर दया आ रही थी| ऐसा नहीं था कि मेरे मन में उसके लिए प्यार कि भावना थी बल्कि मुझे उस पर तरस आ रहा था| मैं उस समय कुछ नहीं कर सकता था, अगर मैं उसे भाग के चुप कराता तो इसका अर्थ कुछ और ही निकाला जाता और फिर बात बिगड़ जाती|

इधर पंचों का फैसला सुन मेरे परिवार वाले सब खुश थे और मुझे आशीर्वाद दे रहे थे, जैसे आज मैंने जंग जीत ली हो ऐसी जंग जिसकी कीमत बेचारी माधुरी को चुकानी पड़ी थी| आज घरवालों को मुझ पर बहुत गर्व हो रहा था, जिस तरह मैंने अपनी बात को पंचों के समक्ष रखा और जिस इज्जत से मैंने पंचों से बात की उसे ले कर सभी पिताजी की प्रशंसा करते नहीं थक रहे थे| मैं भी वहीँ बैठा था और चुप-चाप मुस्कुराते हुए उनकी बात सुन रहा था, लेकिन मेरा ध्यान अब भी माधुरी के उदास चेहरे पर था|

चूँकि सुबह से किसी ने कुछ नहीं खाया था तो बड़की अम्मा ने भौजी को खाना गर्म करने को कहा| फिर जल्दी से खाना परोसा गया, पर अब भी पंचायत की बातें चल रही थीं जो मेरे लिए सुन पाना मुश्किल था इसलिए मैंने जल्दी से खाना खाया और आँगन में टहलने लगा| घरवालों का मेरी यूँ बड़ाई करना मुझे अजीब लग रहा था, ऊपर से बार-बार वो बातें मुझे माधुरी का चेहरा याद दिलाती थीं| आंगन में टहलते हुए मैं अपना दिमाग शांत करने लगा की तभी नेहा मेरे पास भागती हुई आई और मैं उसे गोद में ले के कहानी सुनाने लगा| नेहा की मौजूदगी में मेरा मन शांत हो गया और उसकी प्यारे चेहरे को देखते हुए मैं माधुरी का दर्द भरा चेहरा भूल गया| मुझे लगा की नेहा एक कहानी सुन कर सो जायेगी पर आज उसे सुलाने के लिए एक कहानी काफी नहीं थी| पिछले आधे घंटे से नेहा को गोद में ले कर टहलने से मैं थकने लगा था तो मैं उसे भौजी के घर ले गया, वहाँ आँगन में एक चारपाई बिछाई और उसे लिटाया| पर नेहा ने मेरा हाथ नहीं छोड़ा इसलिए मैं भी उसके पास लेट गया और एक नई कहानी सुनाने लगा| कहानी सुनाते-सुनाते न जाने कब मेरी आँख लग गई और मैं नेहा से लिप्त कर वहीं सो गया| जब मेरी आँख खुली तो देखा भौजी नेहा को अपनी गोद में उठा के दूसरी चारपाई, जो अंदर कमरे में बिछी थी उस पर लिटाने जा रही थीं| मैं जल्दी से उठा और बाहर जाने लगा, भौजी ने एकदम से मेरा हाथ पकड़ कर मुझे रोका और बोलीं;

भौजी: आप कहाँ जा रहे हो?

मैं: बाहर सोने|

भौजी: बाहर आपकी चारपाई नहीं बिछी! खाने के बाद घर में सब आपको ढूँढ रहे थे, पर आप तो यहाँ अपनी लाड़ली के साथ सो रहे थे| तो आपकी बड़की अम्मा ने कहा की आप को यहीं सोने दें, दिन भर वैसे ही बहुत परेशान थे आप!

ये सुन मैं कुछ नहीं बोला और बायीँ करवट ले कर लेट गया, पाँच मिनट बाद भौजी भी मेरे बगल में लेट गई| मेरी पथ भौजी की तरफ थी और होटों पर ख़ामोशी, भौजी समझ गईं की मेरे दिल में दर्द हो रहा है पर क्यों ये वो नहीं जानती थी| इस दर्द का इलाज वो जानती थीं, उन्होंने मेरे दाएँ कंधे पर हाथ रख अपनी तरफ खींचा और मुझे अपनी ओर करवट लेने को कहा| अब दृश्य ऐसा था की एक तकिये पर मैं ओर भौजी दोनों सर रखे लेटे एक दूसरे की आँखों में देख रहे थे| लेकिन मुझे रह-रह के माधुरी का रोता हुआ चेहरा याद आ रहा था इसलिए मैंने अपनी आँखें बंद कर लीं| भौजी ने धीरे से अपना बायाँ हाथ मेरी गर्दन के नीचे सरकाया और मेरे चेहरे को अपने स्तनों की तरफ दबाया| मैं उनका इशारा समझ गया और अपना मुँह उनके ठंडे-ठंडे स्तनों पर रख दिया| भौजी ने बड़े प्यार से मुझे अपने आलिंगन में जकड़ लिया और मेरे बालों में अपनी उँगलियाँ चलाने लगीं| मेरे दिल की बेचैनी को आराम मिला और मैं चिंता मुक्त हो गया| फिर मुझे कब नींद आई, कुछ पता नहीं! उसके बाद मेरी आँख सीधा सुबह के तीन बजे खुली जब भौजी अपना हाथ मेरी गर्दन के नीचे से निकाल रहीं थी| सुबह होने को थी और भौजी के घर का मुख्य दरवाजा बंद था, ऐसे में घर के लोगों को शक हो सकता था! इसलिए भौजी दरवाजा खोलने के लिए उठीं थी| लेकिन मुझे जगा देख उन्होंने मेरे सर पर हाथ फेरा और मेरे होठों को चूमा! अब सुबह की इससे अच्छी शुरुआत क्या हो सकती थी? मैं तुरंत उठ के बैठ गया;

पर उठ के बैठते ही फिर कल का वाक्या याद आया, वही रोनी सूरत देख दिल को फिर से बुरा लगा|

भौजी: क्या हुआ?

भौजी का तातपर्य मेरी उतरी हुई सूरत से था पर मैंने बात को घुमा दिया;

मैं: नींद पूरी हो गई तो सोचा बाहर चलता हूँ|

पर भौजी मुझे अच्छे से समझती थीं इसलिए उन्होंने मेरी बात पर ही सवाल खड़ा कर दिया;

भौजी: अभी तो सब उठे भी नहीं तो बाहर अकेले में क्या करोगे?

भौजी का सवाल सुन मेरे पास कोई बहाना नहीं बचा था;

मैं: कुछ नहीं|

भौजी मेरे पास आईं और अपने घुटनों के बल बैठ मेरे दोनों हाथों को अपने हाथ में लेके पूछने लगी;

भौजी: आप मुझे अपनी पत्नी मानते हो ना? तो बताओ की क्या बात है जो आपको अंदर ही अंदर खाए जा रही है?

भौजी की बात सुन मैंने उन्हें सब सच बताना ठीक समझा;

मैं: आप प्लीज मुझे गलत मत समझना! कल पंचायत के बाद जब ठाकुर साहब माधुरी को घर ले जा रहे थे, तो उसकी आँखें भीगी हुई थीं और वो मुझे टकटकी लगाए देख रही थी| जैसे कह रही हो 'मेरी इच्छाएँ, मेरी जिंदगी सब ख़त्म हो गई!' मैं उससे कतई प्यार नहीं करता, पर मैं नहीं चाहता था की उसका दिल टूटे! उसने जो भी किया वो सब गलत था, मेरे प्रति उसके आकर्षण को वो प्यार समझ बैठी और.....

मैं आगे कुछ बोल पाता इससे पहले ही भौजी ने मेरी बात काट दी|

भौजी: पर इसमें आपकी कोई गलती नहीं, आपने उसे नहीं कहा था की वो आपसे प्यार करे! इंसान जिससे प्यार करता है, ये जर्रूरी तो नहीं की वो भी उससे प्यार करे?

मैं: जब आपने मुझसे पहली बार अपने प्यार का इजहार किया था तब अगर मैंने इंकार कर दिया होता तो आप पर क्या बीतती?

मेरा सवाल सुन भौजी एकदम से बोलीं;

भौजी: मैं उसी छत से छलांग लगा देती!

ये सुन मैं आँखें फाड़े उन्हें देखने लगा क्योंकि ये ही वो डर था जो मुझे उस दिन महसूस हुआ था जब भौजी ने मुझे अपने प्यार का इजहार किया था| भौजी को खो देने के डर के कारन ही मेरे दिल में उनके लिए दबा हुआ प्यार बाहर आया था|

मैं: और उस सब का दोषी मैं होता!

मैंने सर झुकाते हुए कहा क्योंकि भौजी ने मेरी माधुरी के प्यार को ठुकरा देने की सोच को सही साबित कर दिया था| भौजी ने मेरी ठुड्डी पकड़ कर ऊपर उठाई और मेरी आँखों में आँखें डालते हुए बोलीं;

भौजी: नहीं....बिलकुल नहीं! अगर आप मुझे ये एहसास दिलाते की आप मुझसे प्यार करते हो, मेरा जिस्मानी रूप से फायदा उठाते और जब मैं अपने प्यार का इजहार करती तब आप मुकर जाते, तब आप दोषी होते| पर यहाँ तो ऐसा कुछ नहीं हुआ, आपने उसके साथ ऐसा कुछ भी नहीं किया! आपको बुरा इसलिए लग रहा है क्योंकि आपने कभी किसी का दिल नहीं दुखाया| कल जब माधुरी का दिल टुटा तो उसे आपने अपना दोष मान लिया!

भौजी की बात बिलकुल सही थी, मैंने आज तक कभी किसी का दिल नहीं तोडा था| माधुरी का दिल टूटने का कारन मैं नहीं बल्कि उसकी नासमझी थी! अगर उसने ये बात मुझसे अकेले में की होती तो मैं उसे प्यार से समझा देता और फिर ये बखेड़ा खड़ा नहीं होता| भौजी की बात सुन मेरे बेकरार मन को शान्ति मिली थी और जिस प्यार से भौजी ने मुझे बात समझाई थी उसे सुन मेरा दिल भर आया था और इससे पहले की मेरी आँखों से आँसूँ का कतरा गिरता भौजी बोलीं;
भौजी: बस....अब आप अपनी आँखें बंद करो?

मैंने अचरज भरी आँखों से पुछा;

मैं: क्यों?

भौजी: मेरे पास एक ऐसा टोटका है जिससे आप सब भूल जाओगे|

भौजी ने मुस्कुराते हुए कहा| भौजी ने मुझ पर कुछ ऐसा जादू किया था की मैं उनसे जरा भी बहस नहीं करता था| इसलिए उनके कहते ही मैंने अपनी आँखें मूँद ली!

भौजी धीरे-धीरे मेरे नजदीक आईं, उनका चेहरा मेरे ठीक सामने था क्योंकि मुझे उनकी गर्म सांसें अपने चेहरे पर महसूस हो रहीं थी| उन्होंने मेरे बाएँ गाल पर अपने होंठ रख दिए, उनके होठों के एहसास से ही मेरे रोंगटे खड़े हो गए| मैंने सोचा की मैं भौजी को अपनी बाहों में भर लूँ, पर इससे पहले मैं कुछ कर पाता उन्होंने अगले ही पल मेरे गाल पर अपने दाँत गड़ा दिए!| मेरे बाएँ गाल को आने मुँह में भर उन्होंने उसे धीरे-धीरे चूसना शुरू कर दिया| मेरे मन में उनको अपनी बाँहों में भर लेने का ख़याल वहीं रुक गया और मैं इस चरम आनंद को महसूस करने लगा| करीब मिनट भर उन्होंने मेरे बाएँ गाल को अच्छे से चूसा और चुभलाया और जब उनका बाएँ गाल से भर गया, तो उन्होंने मेरे दाएँ गाल को भी इसी तरह काटा और चूसा| ये तो शुक्र है की भौजी के दाँतों की छाप ज्यादा गहरी नहीं थी वरना सुबह सब को पता चल जाता! मेरे दाएँ गाल को अभी अचे से चूसने के बाद भौजी मुस्कुराते हुए मेरी तरफ देखने लगीं और बोलीं;

भौजी: तो उस दिन आपने मुझसे अंग्रेजी में क्या पूछा था....अम्म्म्म .....हाँ याद आया; हॅपी (Happy)?

भौजी के इस तरह टूटी-फूटी अंग्रेजी बोलने पर मुझे हँसी आ गई;

मैं: (मुस्कुराते हुए) हॅपी नहीं Happy! Yes I'm very happy!

सच में ये टोटका काम कर गया था और मेरे चेहरे पर आई मुस्कराहट देख भौजी का दिल खुश हो गया|

भौजी ने मुझे और सोने की हिदायत दी और मैं भी उनकी बात मानते हुए फिर से लेट गया| भौजी अपने कमरे में घुसीं और वहाँ से नेहा को अपनी गोद में ले कर आईं| नेहा को देखते ही मैंने फ़ौरन उसे गोद में लेने को अपने हाथ खोल दिए| मैंने नेहा को अपनी छाती पर सुला लिया, ये देख भौजी के दिल में एक अजीब सी ख़ुशी हुई, ऐसी ख़ुशी जो उनके चेहरे से झलक रही थी| फिर भौजी ने धीरे से दरवाजा खोला और खेत (झाड़े-फिरे) चली गईं| मैंने अपनी आँखें बंद कर ली और कुछ ही देर में सो गया| कुछ ही पलों में नेहा को मेरा एहसास हुआ तो उसने मुझे अपनी बाहों में भरना चाहा और मुस्कुराते हुए लापनी नींद में मस्त हो गई| पाँच बजे पिताजी और बड़की अम्मा मुझे देखने आये और मुझे नेहा से ऐसे लिपटा देख पिताजी के चेहरे पर मुस्कराहट आ गई| बड़की अम्मा ने धीरे से मेरे बालों में हाथ फेरा तो मेरी आँख खुल गई| मैं बड़ा संभाल कर उठा ताकि कहीं नेहा न गिर जाए, मैंने नेहा को आराम से चारपाई पर लिटाया और बड़की अम्मा और पिताजी के साथ बाहर आ गया| बाहर आते ही सब मेरा हाल-चाल पूछने लगे, जैसे मैं बहुत दोनों से बीमार हूँ| नहा-धो के आते-आते नेहा भी उठ चुकी थी, दोनों ने साथ-साथ चाय पी| चाय पीते ही नेहा अपनी खिलौने ले कर मेरे पास आ गई, मेरा हाथ पकड़ कर उसने मुझे तखत पर बिठा लिया| उसके पास मिटटी के छोटे-छोटे बर्तन थे, वो बिलकुल अपनी मम्मी की तरह हाथ-मुँह धो कर बैठ गई और मुझसे बोली;

नेहा: चाचू ...मैं आपके लिए खाना बनाती हूँ!

ये सुन वहाँ बैठे मेरे पिताजी, माँ और भौजी जोर से हँस पड़े| उसका बचपना देख मुझे मेरा बचपन याद आ गया पर मैं कुछ कहता उससे पहले ही माँ बोल पड़ीं;

माँ: मानु जब छोटा था तब वो भी अपने पिताजी के लिए छोटी-छोटी रोटियाँ बनाता था|

मैं: वो बात अलग है की कभी किसी देश का नक्शा बनता था तो कभी किसी देश का!

ये सुन भौजी, माँ और पिताजी हँस पड़े|

पिताजी: बेटा का बनावत हो?

पिताजी ने नेहा से पुछा तो वो कुछ सोच में पड़ गई|

मैं: बेटा आप है ना...मेरे लिए...उम्ममम...दाल चावल बनाओ!

मैंने नेहा की मदद करते हुए कहा तो वो एकदम से खुश हो गई और अपने छोटे-छोटे हाथों से झूठ-मूठ का खाना बनाने लगी| जब मैंने उसकी मदद करनी चाही तो वो अपनी मम्मी की तरह बोली;

नेहा: नहीं...पहले जा के हाथ-मुँह धो कर आओ!

उसका ये डाँटना देख मैं भौजी की ओर देखने लगा और उन्हें वो दिन याद दिलाया जब उन्होंने एक बार मुझे प्यार से डाँट दिया था! तब मैं नेहा से उम्र में कुछ बड़ा था और घर के नियम-कानून नहीं जानता था| भौजी को जैसे ही वो दिन याद आया, उनके चेहरे पर मुस्कराहट आ गई जो मैं उनके घूंघट के नीचे से नहीं देख पाया था|

माँ: चलो भाई! मानु का तो खाना यहाँ बन रहा है तो बहु इस के लिए लिए कुछ मत बनाना!

ये सुन कर भौजी हँस पड़ीं ओर बोलीं;

भौजी: जी चाची!

कुछ ही मिनटों में नेहा का झूठ-मूठ का खाना बन गया और उसने मुझे एक मिटटी की थाली में खाना परोस दिया| मैं भी नेहा के इस प्यार भरे खेल में शामिल होते हुए बड़े चाव से खाना खाने का दिखावा करने लगा| मेरे चेहरे पर अपने झूठ-मूठ के खाने के स्वाद होने की ख़ुशी देख नेहा कूदने लगी और उसकी ख़ुशी देख हम सब बहुत खुश थे! जैसे ही मैंने वो थाली नीचे रखी की नेहा मेरे पास कूदते हुए आ गई और दूसरा खेल खेलने की जिद्द करने लगी| कभी हम पकड़ा-पकड़ी खेलते तो कभी आँख में चोली| मुझे ऐसा लग रहा था जैसे भौजी ने उसे मुझे व्यस्त रखने के लिए मेरे पीछे लगा दिया है| आखिर में नेहा बैट और बॉल ले आई, मुझे बैट दे खुद बॉल फेकने लगी| मैं ने एक नजर छप्पर के नीचे डाली तो पाया की भौजी मुझे सब्जी काटते हुए देख रहीं हैं और मुस्कुराये जा रहीं हैं| पिताजी उठे और खेतों में मदद करने चले गए, उनके जाने के पाँच मिनट बाद भौजी भी खेलने आ गईं और नेहा से बॉल लेके फेंकने लगी| उनकी पहली ही बॉल पे मैंने इतना लम्बा शोट मार की बॉल खेतों के अंदर जा गिरी| भौजी अपनी कमर पर दोनों हाथ रख के मुझे प्यार-भरे गुस्से से देखने लगी और उधर नेहा बॉल लेने के लिए भागी| भौजी मेरे पास आईं और बड़े शरारती ढंग से बोलीं; "आज रात तैयार रहना, आपके लिए एक तोहफा है!" मैंने आँखें मटकते हुए उन्हें देखा और कहा; "अच्छा जी... देखते हैं क्या तोहफा है?" और हम क दूसरे को प्यासी नजरों से देखने लगे|

नेहा को बॉल ढूँढने गए हुए पाँच मिनट होने आये थे, खेत बिलकुल खाली था इसलिए उसे अब तक बॉल मिल जानी चाहिए थी| मैं उत्सुकता वश नेहा के पीछे खेत में पहुँच गया, पर वहाँ जाके देखा तो नेहा बॉल लिए विपरीत दिशा से आ रही है| भौजी और मेरे बीच में करीब 50 कदम की दूरी थी, जिससे वो देख सकती थीं की मैं वहाँ खड़ा क्या कर रहा हूँ| इधर नेहा मेरे पास आई और बोली; "चाचू.. ये कागज़ उसने दिया है|" नेहा ने अपनी ऊँगली से दूर बानी एक ईमारत के पास खड़ी एक लड़की की ओर की| मुझे ये समझते देर ना लगी की वो लड़की कोई और नहीं बल्कि माधुरी ही है| उसे देखते ही मेरा सारा मूड फीका हो गया, फिर भी मैंने वो कागज का टुकड़ा खोल कर देखा तो उसमें लिखा था: 'प्लीज मुझे एक आखरी बार मिल लो!' मैंने वो पर्ची जेब में वापस डाली, नेहा को बैट थमाया और कहा; "बेटा आप घर चलो, मैं अभी आया|" आगे बढ़ने से पहले मैंने पलट के देखा तो भौजी इस सब से अनजान खड़ी थी और उनकी नजरें मुझ पर टिकी थीं|

माधुरी की दिशा में बढ़ते हुए मेरे दिमाग में माँ की दी हुई चेतावनी गूँज रही थी| जब मैं माधुरी के नजदीक पहुंचा तो पाया की जिस ईमारत के पास वो खड़ी है वो गाँव का स्कूल है और अंदर पाठशाला अभी भी लगी हुई थी क्योंकि मुझे अंदर से अध्यापक द्वारा पाठ पढ़ाये जाने की आवाजें आ रहीं थी| मैं उससे करीब छः फुट की दूरी परहाथ बाँधे खड़ा हो गया और सरल शब्दों में उससे पूछा;

मैं: बोलो क्यों बुलाया मुझे यहाँ?

माधुरी: आपको जान के ख़ुशी होगी की मेरे पिताजी ने आनन-फानन में मेरी शादी तय कर दी है| लड़का कौन है? कैसा दीखता है? क्या करता है? मुझे कुछ नही पता!

मैं: तो तुम इसका जिम्मेदार मुझे मानती हो?

माधुरी: नहीं...गलती मेरी थी! मैं आपकी ओर आकर्षित थी और जाने कब ये आकर्षण प्यार में बदल गया, मुझे पता ही नहीं चला| खेर मैं आपसे प्यार करती हूँ और हमेशा करती रहूँगी!

माधुरी ने बड़े गर्व से कहा| उसकी बात सुन मैं चुप रहा क्योंकि आप किसी को खुद से प्यार करने से कैसे रोक सकते हो?!

माधुरी: दरअसल मैं आपसे कुछ पूछना चाहती हूँ?

मैं: पूछो|

माधुरी: आप प्लीज मुझसे झूठ मत बोलना, मैं जानती हूँ की आपने शादी से इंकार क्यों किया? आप किसी और से प्यार करते होना?

माधुरी ने मेरी शादी के लिए न कहने का सही मतलब निकाला था, लेकिन मैं इस सवाल का जवाब नहीं देना चाहता था, इसलिए मैंने बात घुमाई;

मैं: क्या इस बात से अब कोई फर्क पड़ता है?

माधुरी: नहीं पर मैं एक बार उसका नाम जानना चाहती हूँ?

मैं: नाम जानके क्या होगा?
माधुरी: कम से कम उस खुशनसीब को दुआ तो दे सकूँगी, जिसे आप जैसा चाहने वाला मिला! मैं ख़ुदा से प्रार्थना करुँगी की वो आप दोनों को हमेशा खुश रखे!

न जाने क्यों पर मुझे उसकी बात में सच्छाई दिखी, पर मैं भावुक हो के उसे सब सच नहीं बताना चाहता था| इसलिए मैं नाम की कल्पना करने लगा और जो नाम दिमाग में आया वो बोल दिया;

मैं: रीतिका

माधुरी: नाम बताने के लिए शुक्रिया!

नाम सुन के उसके चेहरे पर ज्यादा कुछ ख़ुशी नहीं आई, दरअसल उसे तो बात शुरू करने का बहाना चाहिए था;

माधुरी: अगर मैं आपसे कुछ माँगूँ तो आप मुझे मना तो नहीं करेंगे?

उसका ये सवाल मुझे बड़ा अटपटा सा लगा पर मैंने उसके इस सवाल को उसके पहले सवाल से जोड़ दिया और सोचा ज्यादा से ज्यादा कहेगी की उसकी फोटो दिखाओ या फिर ये बताओ की आपको उससे प्यार कैसे हुआ| यही सोच कर मैंने हाँमी भरी;

मैं: मेरे पास तुम्हें देने के लिए कुछ नहीं, पर फिर भी माँगो, अगर बस में होगा तो मना नहीं करूँगा|

मैंने किसी बादशाह की तरह कहा!

माधुरी: जब मैंने किशोरावस्था में पैर रखा तो स्कूल में मेरी कुछ लड़कियाँ दोस्त बनी| उसे आप अच्छी संगत कहो या बुरी पर मुझे उनसे "सेक्स" के बारे में पता चला| वो आये दिन खेतों में, बागों में इधर-उधर सेक्स करती थी, पर मैंने ये सब कभी नहीं किया| मेरी सहेलियाँ मुझ पर हँसतीं थी की तू ये दौलत बचा के क्या करेगी? पर मैंने सोचा था की जब मुझे किसी से प्यार होगा तो उसी को मैं ये दौलत सौपूँगी| सीधे शब्दों में कहूँ तो, मैं अभी तक कुँवारी हूँ और मैं ये चाहती हूँ की मैं आप को अपना ये कुँवारापन भेंट करूँ|

माधुरी की ये बात सुन अचानक से मेरा खून खौल उठा, मेरा चेहरा गुस्से से तमतमा गया! मैं अगर जोर से चिल्लाता तो स्कूल के अध्यापक और बाकी बच्चे वहाँ इकठ्ठा हो जाते, इसलिए मैं दाँत पीसते हुए गुस्से में बोला;

मैं: तु पागल हो गई है? तुने मुझे समझ के क्या रखा है? तु जानती है न मैं किसी और से प्यार करता हूँ और फिर भी तू चाहती है की मैं तेरे साथ........ छी-छी!!! तुझे जरा भी लाज़ नहीं आती ये सब कहते हुए?

कुछ देर पहले जहाँ मैं उसे थोड़ी इज्जत दे रहा था क्योंकि कल उसका दिल टूटा था, अब वही इज्जत खत्म हो चुकी थी और उसके लिए अब मेरे मन में फिर से कठोरता भरने लगी थी| अचानक से मुझे माँ की दी हुई चेतावनी याद आई और मुझे समझ आया की उसका असली उद्देश्य क्या है!

मैं: ओह!!! अब मुझे समझ आया! तु चाहती है की हम 'सेक्स' करें और फिर तु इस बात का ढिंढ़ोरा पूरे गाँव में पीटे ताकि मुझे मजबूरन तुझसे शादी करनी पड़े!

अब मुझे वहाँ रुकना ठीक नहीं लग रहा था, दिमाग कह रहा था की ये लड़की कभी भी चिल्ला देगी की तू यहाँ इसके साथ जोर-जबरदस्ती कर रहा है! इसलिए मैं घर की ओर मुड़ा और चल दिया| पर माधुरी इतनी आसानी से हार नहीं मानने वाली थी, वो भी मेरे पीछे-पीछे चल पड़ी और अपनी सफाई देने लगी;

माधुरी: मैं जानती हूँ आप ऐसे नहीं हो, वरना कबका मेरा फायदा उठा लेते| मेरा इरादा वो बिलकुल नहीं है जो आप सोच रहे हो| प्लीज!!! मैं आपके आगे हाथ जोड़ती हूँ| कम से कम मेरी ये ख्वाइश तो पूरी कर दीजिये!!!

मैं: सॉरी मैडम! मैं वैसा लड़का बिलकुल भी नहीं हूँ!

मैंने बिना पीछे मुड़े हुए कहा और घर की दिशा में चलता रहा|

माधुरी: प्लीज रुक जाओ!!!

इतना कह के वो सुबकने लगी और फिर फूट-फूट के रोने लगी| पर मैंने चलते हुए ही जवाब दिया;

मैं: नहीं!

माधुरी: अगर आपके दिल में मेरे लिए जरा सी भी दया है तो प्लीज!!!

मैं अब भी नहीं रुका|

माधुरी: ठीक है! मैं रोज शाम छः बजे, इसी जगह आपका इन्तेजार करुँगी!

मैंने उसकी बात को सुन कर भी अनसुना कर दिया और घर पहुँच गया| घर पहुँच कर देखा तो भौजी अब भी उसी जगह खड़ी थीं और मेरी ओर गुस्से से देख रही थीं;

भौजी: अब क्या लेने आई थी यहाँ? और आप उससे मिलने क्यों गए थे?

मैं: अभी नहीं... दोपहर के खाने के बाद बात करता हूँ|

मुझे डर था की कहीं असल बात सुनते ही भौजी गुस्से में न चिल्लाने लगें|

भौजी: नहीं! मुझे अभी जवाब चाहिए?

भौजी ने गुस्से में मेरा बाजू पकड़ते हुए कहा|

मैं: (गहरी सांस लेते हुए) उसने नेहा के हाथ पर्ची भेजी थी, उसमें लिखा था की वो मुझसे एक आखरी अबार मिलना चाहती है, बस इसलिए गया था|

आधा जवाब सुन उन्हें सतुष्टि नहीं मिली थी तो उन्होंने अपना पहला सवाल फिर दोहराया;

भौजी: अब क्या चाहिए उसे?

मैं जानता था की ये जवाब सुन कर भौजी को बहुत गुस्सा आएगा और खामखा का बखेड़ा खड़ा हो जायेगा|

मैं: ये मैं आपको दोपहर के खाने के बाद बताऊँगा|

पर उन्हें मेरी बाय सुन कर चैन नहीं पड़ा| उन्होंने आँखें तरेर कर कहा;

भौजी: ऐसा क्या कह दिया उसने?

मेरा दिमाग पहले ही माधुरी की बात से ख़राब था और ऊपर से भौजी मेरे पीछे हाथ-धो कर पड़ गई थीं, इसलिए मैंने थोड़ा चिढ़ते हुए कहा;

मैं: प्लीज!

इतना कह कर मैं कुऐं की मुंडेर पर सर झुका के बैठ गया ताकि अपना मूड ठीक कर सकूँ|

इधर भौजी गुस्से में लाल-पीली हो गईं और अपना गुस्सा नेहा पर निकाला| उन्होंने बड़े गुस्से से नेहा को आवाज लगाई, जिसे सुन नेहा सहमी हुई सी आई| जैसे ही भौजी ने उसे मारने के लिए हाथ उठाया तो मैंने उनका हाथ रोक दिया और गुस्से से उन पर बिगड़ पड़ा;

मैं: आप फिर इस बच्ची पर गुस्सा निकाल रहे हो?

मेरे गुस्से का जवाब भी उन्होंने गुस्से से दिया;

भौजी: इतनी मुश्किल से मैंने आपको हँसाया था और इस लड़की ने एक पल में सब बर्बाद कर दिया, तो गुस्सा नहीं आएगा?

मैं: इसे क्या पता की पर्ची में क्या लिखा है?

मैंने नेहा का बचाव करते हुए कहा|

मैं: अगर आपने फिर कभी इस पर गुस्सा निकलने की गलती की तो मैं आपसे बात नहीं करूँगा!

मैंने भौजी को चेतावनी दी और नेहा को गोद में उठा कर चल दिया| मेरी गोद में आते ही नेहा ने अपना चेहरा मेरे कंधे पर रख दिया और सुबकना शुरू कर दिया, मैंने प्यार से उसके सर पर हाथ फेरा ताकि वो रो न पड़े|

अचानक से दिल को लगा की नेहा को तो मैंने गोद में उठा कर संभाल लिया पर भौजी का क्या? मैंने पलट के देखा तो भौजी मेरी ओर देख के मुस्कुरा रही थीं| ये मुस्कराहट इसलिए थी की मैं नेहा को कितना प्यार करता हूँ| भौजी के चेहरे पर मुस्कराहट देख मैं भी मुस्कुरा दिया| मैं नेहा को गोद में लिए यहाँ-वहाँ घूमता रहा, फिर उसे उसके पसंदीदा चिप्स खिलाये| इस दौरान जो बात मुझे समझ आई थी वो था भौजी का व्यवहार| उन्होंने मुझे जानबूझ कर बुलवाने के लिए नेहा को डाँटा था, क्योंकि उनके डाँटते ही मैं नेहा की हिमायत करने से पीछे नहीं रहूँगा| ये सोच कर मेरे चेहरे पर मुस्कान आ गई|

मैं और नेहा टहलते हुए दोपहर के भोजन के समय पहुँच गए और फिर दोनों ने एक साथ खाना खाया| खाने के बाद नेहा मेरी गोद में चढ़ गई ओर सो गई| मैं उसे भौजी के कमरे में लिटाने गया तो देखा भौजी चारपाई पर बैठी कुछ सोच रहीं हैं| मैंने नेहा को दूसरी चारपाई पर लिटाया और भौजी के सामने बैठ गया| भौजी ने मुझसे मेरे और माधुरी के बीच हुई बात के बारे में पूछा, तो मैंने उन्हें सब कुछ बता दिया|

जारी रहेगा भाग - 2 में.....
 

ग्यारहवाँ अध्याय : एक ही भूल!

भाग - 2 (1)

अब तक आपने पढ़ा:

मैं और नेहा टहलते हुए दोपहर के भोजन के समय पहुँच गए और फिर दोनों ने एक साथ खाना खाया| खाने के बाद नेहा मेरी गोद में चढ़ गई ओर सो गई| मैं उसे भौजी के कमरे में लिटाने गया तो देखा भौजी चारपाई पर बैठी कुछ सोच रहीं हैं| मैंने नेहा को दूसरी चारपाई पर लिटाया और भौजी के सामने बैठ गया| भौजी ने मुझसे मेरे और माधुरी के बीच हुई बात के बारे में पूछा, तो मैंने उन्हें सब कुछ बता दिया|

अब आगे:


मैं: उसे शक हो रहा था की मैं किसी और से प्यार करता हूँ, इसीलिए उससे शादी करने से मना कर रहा हूँ| तो मैंने उसे कह दिया की हाँ मैं किसी और से प्यार करता हूँ|

भौजी: उसने आपसे उस लड़की का नाम नहीं पूछा?

मैं: हाँ पुछा था, उस समय दिमाग में 'रीतिका' नाम आया तो मैंने वही बता दिया|

ये सुन कर भौजी को कुछ शक हुआ तो उन्होंने पुछा;

भौजी: पक्का दिमाग से नाम लिया न? या कोई और थी इस नाम की?

मैं: आज तक मुझे सच्चा प्यार सिर्फ आपसे हुआ है! इस नाम की किसी भी लड़की को मैं नहीं जानता, आपकी कसम!

मैं जानता था की भौजी इतनी जल्दी मेरी बात का विश्वास नहीं करेंगी इसलिए मैंने बिना उनके कहे ही उनकी कसम खा ली|

भौजी: आपको कसम खाने की कोई जर्रूरत नहीं, मैं जानती हूँ की आप सिर्फ मुझसे ही प्यार करते हो! इतने दिन से आपका प्यार देख कर भी आप पर शक करूँ तो लानत है मुझ पर!

भौजी के चेहरे पर एक गर्वपूर्ण मुस्कराहट आ गई|

भौजी: अच्छा बस इतना पूछने आई थी?

मैं: नहीं

इतना कह कर मैं खामोश हो गया| मेरा दिमाग कह रहा था की आगे की बात सुन कर भौजी को बहुत गुस्सा आएगा इसलिए मैं चुप रहा|

भौजी: तो?

मैं: यार आप गुस्सा हो जाओगे!

मैंने कहा तो भौजी आँखें फाड़ कर मुझे देखने लगीं, पर फिर अपने जज्बातों को दबाते हुए बोलीं;

भौजी: नहीं होऊँगी!!!

भौजी ने एकदम से मेरा हाथ कस कर पकड़ लिया तो मैंने उन्हीं सब सच बताना ही ठीक समझा|

मैं: कह रही थी की वो मुझे अपना.....

आगे मुझे बोलने में बड़ी शर्म आ रही थी, इसलिए नहीं की वो शब्द 'कुंवारापन' था बल्कि भौजी और मेरे रिश्ते में अब भी कुछ ऐसे तार जुड़े थे जो दो व्यक्तियों में होती है जो किसी तरह के सामजिक रिश्ते में बंधे होते हैं! अगर भौजी मेरी हम उम्र होती तो शायद मैं उन्हें खुल कर कह भी देता पर हम दोनों के बीच वो सामजिक रिश्ता मुझे ठीक से खुल कर बात नहीं करने देता था| यही कारन था की मैंने उन्हें कभी 'सम्भोग' के लिए नहीं कहा था| हमेशा मैं ये ही उम्मीद करता था की वो पहल करें, मेरा उन्हें 'इसके' लिए कुछ कहना मुझे कुछ अजीब लगता था|

भौजी: बोलो न?

भौजी ने मुझे थोड़ा झिंझोड़ते हुए कहा|

मैं: वो कह रही थी की.....वो मुझसे प्यार करती है और करती रहेगी....और....वो मुझे अपना.....कु....कुंवारापन भेंट करना चाहती है!

मैंने बड़ी मुश्किल से हकलाते हुए कहा, जिसे सुन भौजी ने जो कुछ देर पहले मेरा हाथ पकड़ रखा था उसे एकदम से छोड़ दिया| हम ऐसे समाज में रहते हैं जो की एक पुरुष प्रधान है! यहाँ एक पुरुष को ज्यादा महत्व दिया जाता है, उसकी जर्रूरतें, उसकी ख्वाइशें ये सब ही जर्रूरी होती हैं! इस समाज में एक बड़ी ही विकृत उपलब्धि है, जिसे पुरुषों में बड़ा महान कार्य माना जाता है और वो है एक 'कुंवारी' लड़की को 'भोगना'! शादी के बाद अगर पति को ये पता चल जाए की उसकी पत्नी कुँवारी नहीं है तो वो उसके चरित्र को आंकने लग जाता है! एकदम से उस लड़की को चरित्रहीन होने का बिल्ला दे दिया जाता है, जबकि पुरुष चाहे जितने मर्जी कुकर्म कर ले उससे उसके कुंवारे होने के बारे में कभी नहीं पुछा जाता| अगर पूछने पर वो ये बोल दे की वो कुंवारा है तो उसके दोस्त-मित्र उसे नकारा आंकते हैं! खैर ये एक सामजिक मानसिकता है जिसे हम बदल नहीं सकते!

इधर जब मैंने भौजी को माधुरी की ये बात बताई तो उनकी आँखों में आँसू भर आये और अब उन्हें ये जानना था की मैंने उसे क्या जवाब दिया?
भौजी: तो....तुमने उसकी बात का क्या जवाब दिया?

भौजी ने बड़ी मुश्किल से खुद को रोने से रोकते हुए कहा| वो नहीं चाहती थीं की मैं उनका रोना देख कर अपना जवाब बदल दूँ और उनका दिल रखने को झूठ कहूँ|

मैं: मैंने उससे साफ़ कह दिया की मैं उस लड़की से बहुत प्यार करता हूँ और उसके साथ धोका नहीं कर सकता| वो फिर भी मुझे उकसाती रही पर मैं समझ गया था की उसका असली मकसद क्या है?! वो चाहती थी की सेक्स के जरिये मुझे अपने चंगुल में फँसा ले और फिर गाँव भर में मेरे नाम का ढिंढोरा पीट दे!

मेरा जवाब सुन भौजी के दिल को इत्मीनान हो गया| उनका विश्वास जीत गया था पर उन्हें अब भी एक गिला था जो उन्होंने उस वक़्त मुझ पर जाहिर नहीं होने दिया|

भौजी: पता नहीं उस लड़की के दिमाग में क्या चल रहा है? वो क्यों आपको बदनाम करने पे तुली है, आप उससे दूर ही रहना!

मैं: जानता हूँ! वैसे वो कह रही थी की वो रोज छः बजे मेरा स्कूल के पास इन्तेजार करेगी|

मैंने उसका मेरे लिए इंतजार करने की बात को हलके में लेते हुए कहा|

भौजी: तो आप उसे दुबारा मिलने जाओगे?

मैं: कभी नहीं!!! मुझे क्या पड़ी है उससे मिलने जाने की?! अब आप अपना मूड ख़राब मत करो, मैं कहीं नहीं जा रहा!

मैं ने उठ के भौजी के माथे को चूमा और मुस्कुराता हुआ बाहर आ गया| इस समय मुझे खुद पर बहुत गर्व महसूस हो रहा था, ऐसा लग रहा था मानो माधुरी को मना कर के मैंने अपने प्रेम की परीक्षा दे दी हो! मैं बाहर आ कर छप्पर के नीचे लेटा था, इस समय वहां कोई नहीं था, सब के सब खेतों में थे| कुछ देर बाद भौजी भी आ गईं पर उनके चेहरे पर अब भी एक उदासी थी| मेरा दिमाग कहने लगा की मैंने तो ऐसा कुछ भी नहीं किया जिससे भौजी का दिल दुख हो तो वो भला उदास क्यों हैं? मैं फ़ौरन उठ बैठा और भौजी के सामने घुटने तक कर बैठ गया;

मैं: आप उदास क्यों हो?

मेरा ये सवाल पूछते ही भौजी बिफर पड़ीं और रट हुए अपनी बात कही;

भौजी: आप मुझे इतना प्यार करते हो, मेरी हर बात मानते हो भले ही वो जायज हो या नाजायज, लेकिन बदले में मैं आपको वो सुख नहीं दे सकती जो एक लड़की दे सकती है!

भौजी का तातपर्य उनके कौमार्य से था, पर मैं जड़ बुद्धि उनकी बात ठीक से नहीं समझा और बेवकूफी में उनसे पूछ बैठा;

मैं: मैं कुछ समझा नहीं?

मैंने भौएँ सिकोड़ कर पुछा|

भौजी: मैं....जब हम ने पहली बार.....किया तो......मैं .....कुँवारी नहीं थी!

भौजी ने सर झुकाते हुए कहा|

मैं: आप पागल हो गए हो क्या? मुझे 'उससे' कोई फर्क नहीं पड़ता! मेरे लिए जर्रूरी ये है की आप मुझसे कितना प्यार करते हो?!

भौजी मेरा जवाब सुन अवाक रह गई और सर उठा कर मेरी आँखों में देखते हुए बोली;

भौजी: पर आपने तो मुझे अपना कौमर्य ....मतलब....वो....आप तो.....थे ना....

भौजी ने आँसू भरी आँखों से मेरी तरफ देखते हुए कहा|

मैं: आप वो पहले और आखरी शक़्स हो जिसे मैंने इतनी शिद्दत से चाहा है, जब हम नजदीक आये तो मेरा....कुंवारा होना जायज था! पर आपके हालत अलग थे....आपकी शादी एक गैर जिम्मेदार और धोकेबाज से हुई! इसलिए खुद को blame ....मेरा मतलब है खुद को दोष देना बंद करो!

मैंने बड़े प्यार से भौजी को समझाया पर शायद उनके मन में अब भी कोई शंका रह गई थी;

भौजी: पर....

मैंने एकदम से भौजी की बात काट दी;

मैं: ये उसकी चाल थी! वो मुझे अपने कुंवारेपन के लालच में फँसाना चाहती थी! वो मुझसे कोई प्यार-व्यार नहीं करती! मैंने उसे साफ़ मना कर दिया!

मैंने थोड़ा गुस्से में भौजी की आँखों में देखते हुए कहा तो भौजी की सारी शंका मिट गई| मैं उठ के खड़ा हुआ तो भौजी ने अपना चेहरा मेरे पेट पर रख मुझे कस कर अपनी बाहों में जकड़ लिया|

भौजी: मुझे माफ़ कर दो!

भौजी ने बच्चे की तरह कहा तो मैंने उनके सर पर हाथ फेरा| अब भौजी ने अपना और मेरा मूड हल्का करने के लिए बात शुरू की;

भौजी: आज के 'तोहफे' के लिए तैयार हो न?

मैं: हाँ जी! देखते हैं क्या तोहफा है मेरे लिए!

मैंने मुस्कुराते हुए कहा और हम दोनों आमने-सामने बैठे गए ताकि अगर कोई अचानक आ जाये तो कोई शक न करे|

तभी अचानक से रसिका भाभी अपना बैग लिए टपक पड़ीं! उन्होंने फटाफटअपना बैग रखा और भौजी के घर की ओर भागीं, दरअसल उन्हें बाथरूम जाना था!

उन्हें देखते ही मैं भौजी को छेड़ते हुए बोला;

मैं: लो...गया आपका "तोहफा" पानी में! ही ही ही ही !!!

ये कहते हुए मैं खीसे निपोरने लगा|

भौजी: हँस लो... पर सरप्राइज तो आज रात आप को मिल के रहेगा|

भौजी ने बड़े गर्व से कहा|

मैं जानता था की उनका मुझे तोहफा देने का काम मुश्किल हो गया है पर मैं उनका मनोबल नहीं तोडना चाहता था, इसलिए चुप रहा| इधर रसिका भाभी बाथरूम हो कर आ गईं ओर बातों का सिलसिला शुरू हो गया| माधुरी और रसिका भाभी की अच्छी जमती थी, जब उन्हें पंचायत का पता चला तो उनका चेहरा एकदम से उतर गया, लेकिन उन्होंने उस समय कुछ नहीं कहा पर उनकी शकल से साफ़ लग रहा था की मेरी वजह से माधुरी और उनकी दोस्ती में दर्रार आ गई है| एक माधुरी ही तो थी जिससे उनकी गहरी दोस्ती थी!

शाम के पांच बजे और सबके घर लौटने का समय हुआ तो भौजी उठ के चाय बनाने के लिए गईं, उनके जाते ही रसिका भाभी मुझे ताना मारते हुए बोलीं;

रसिका भाभी: तुम्हें नाहीं लागत की ई सब तोहार गलती है?

मैं: कैसी गलती? वो मुझसे प्यार करती थी पर मैं नहीं!

मैंने उन्हें दो तुक जवाब देते हुए कहा|

रसिका भाभी: अब तोहका आपन 'भौजी' से समय मिले तब तो किसी से बात करिहो? ऊ तुम्हें सच्चा प्यार करत रही और ई बात ऊ सिर्फ हमें बताई रही| ऊ चाहत रही की हम तोहसे बात करि, पर हमका अचानक जाय पड़ा और ई सब....

भाभी इतना कहते हुए रुक गई, पर इनकी इस बात ने ही मेरे अंदर गुस्से की ज्वाला भड़का दी| मैं बड़े गुस्से से खड़ा हुआ और भौजी की तरफ ऊँगली करते हुए बोला;

मैं: हाँ सारा टाइम मैं इनके आगे-पीछे घूमता हूँ, क्योंकि घर में एक ये ही हैं जो मुझे बचपन से अच्छी तरह जानती हैं|

मेरी आवाज ऊँची हो गई थी और मेरे गुस्से को देख भौजी चाय बनाना छोड़ मेरे पास आईं| वो मेरा हाथ पकड़ कर मुझे दूर लेजाने लगीं की कहीं मैं रसिका भाभी पर हाथ न उठा दूँ;

मैं: नहीं...आप छोडो मुझे ...

ये कहते हुए मैंने भौजी के हाथों से अपना हाथ छुड़ाया और रसिका भाभी पर बरसते हुए कहा;

मैं: इनका कहना है की माधुरी के साथ जो भी हुआ उसका जिम्मेदार मैं हूँ! कैसे? मैंने उसे कभी नहीं कहा की मैं उससे प्यार करता हूँ और ये कह रहीं है की मुझे आपसे फुर्सत मिले तो मैं किसी से बात करूँ!

मैंने भौजी को सब बात बताते हुए कहा|

मैं; आप (रसिका भाभी) तो यहाँ थी भी नहीं, इन्होने (भौजी) ने उसे ज़रा सा डाँट क्या दिया उसने अपने बाप से शिकायत कर दी! मैंने...मैंने भौजी से कहा था की उसे समझा दो की मुझसे दूर रहे और उसका बाप हमारे घर आके मेरे पिताजी से भौजी की शिकायत करता है! कहता है की 'आपकी बहु की हिम्मत कैसे हुई मेरी बच्ची को डाँटने की?' अरे मैं पूछता हूँ उस ठाकुर की हिम्मत कैसे हुई इनकी (भौजी) शिकायत करने की! जब पिताजी ने उसकी बेटी को बुलाया तो वो और भी बड़ी तुरम खान निकली! सब घर वालों के सामने कहती है की 'मैं आपसे (मुझसे) प्यार करती हूँ!' उसको शर्म नहीं आई ऐसा कहते हुए? तब भी पिताजी उस लड़की की बात मान के मेरी शादी उससे करने के लिए तैयार थे! पर आप उसका जिद्द करना तो देखो, वो सही था? जो लड़की शादी से पहले इतनी जिद्दी हो वो तो शादी के बाद मेरा घर बर्बाद कर देगी! मुझे अपने ही माँ-बाप से अलग कर देगी!

और तो और जब पिताजी उसके बाप को समझाने गए तो उसका बाप हमें धमकी दे रहा है, जिस कारन हमें पंचायत बिठानी पड़ी! मेरी उम्र जानते हो न? इस उम्र में उस लड़की की वजह से मुझे पंचायत में बैठना पड़ा ये सब सही था? उसका बाप हमें भीख मँगा समझता है और कहता है मैं जितना चाहे उतना दहेज़ देने को तैयार हूँ, ये सही था? बिना गलती के एक दिन तक मेरा परिवार परेशान और भूखा रहा, इसमें गलती मेरी है?

मेरे मन की भड़ास रसिका भाभी पर निकली तो वो सर झुका कर चुप हो गई| भौजी ने फिर मेरा हाथ पकड़ा और मुझे खींचते हुए दूर ले गईं; "आप शांत हो जाओ!" भौजी ने मिन्नत करते हुए कहा| मैं वहाँ रुकता तो मेरे मुंह से शायद और कुछ निकल जाता, इसलिए मैं बिना कुछ बोले खेत की और चला गया|

जब मैं खेत में टहल रहा था तब माँ जिन्होंने छुप कर मेरा गुस्सा सुना था उन्होंने ये बात पिताजी को बता दी और मेरे घर लौटते समय तक पूरे घर भर में बात फ़ैल चुकी थी| जैसे ही मैं आंगन में दाखिल हुआ तो सबसे पहले पिताजी से मेरा सामना हुआ;

पिताजी: तो बड़े पर निकल आयें हैं तेरे? अपनी भाभी से जुबान लड़ाता है? यही संस्कार दिए हैं मैंने?

पिताजी ने डाँटते हुए कहा| मैंने तुरंत अपना सर झुका लिया और चुप खड़ा रहा| मैंने आज तक कभी किसी से जुबान नहीं लड़ाई थी, लेकिन बीते कुछ दिनों में जो हुआ उससे ये साबित हो चूका था की मैं अब उम्र में बड़ा होने लगा हूँ| हमेशा खामोश रहने वाले लड़के के मुँह में जुबान उग आई है!

अजय भैया: चाचा राहय दियो! मानु भैया की कउनो गलती नाहीं| हम जानित है ऊ बिना केहू के उक्साय कछु नहीं कर्त हैं! ई हमरे बीवी की लगाई है!

अजय भैया ने मेरा बचाव करते हुए कहा| रसिका भाभी जो छप्पर के नीचे बैठी सब सुन रही थीं वो सामने आई और घूँघट किये हुए बोलीं;

रसिका भाभी: हाँ चाचा ई हमरे गलती है| आप मानु भैया का ना डाँटो! हम बिना पूरी बात सुने ऊ का कहेन की माधुरी के साथ ऊ गलत किये! हम नाहीं जानत रहे की माधुरी का बवाल खड़ा किहिस है! ऊ हमार दोस्त है एहि कर के हम भावुक हो गइल और मानु भैया को दोषी कह दीं!

पिताजी: बहु भले ही तुमने ऐसा कहा, पर इसे तो समझ होनी चाहिए की अपने से बड़ों के साथ जुबान नहीं लड़ाते| आज तुम से लड़ा है कल हम से भी बहंस करेगा| चल माफ़ी माँग अपनी भाभी से!

पिताजी न हुक्म चलाते हुए कहा| उनकी बात गलत नहीं थी, मुझे रसिका भाभी से इस तरह बात नहीं करनी चाहिए थी!

मैं: I'm sorry bhabhi! मुझे आपसे बहंस नहीं करनी चाहिए थी और आपको भी sorry पिताजी, आगे से मैं ऐसी गलती नहीं दोहराऊँगा|

मैंने सर झुकाये हुए कहा पर पिताजी कुछ नहीं बोले बस आँखों में गुस्सा लिए मुझे देखते रहे| इतने में बड़के दादा आ गए और पिताजी को शांत करवा कर अपने साथ ले गए| इस पूरे समय भौजी मुझे रसोई से देख रहीं थी और जब सब शांत हो गए तब वो मेरे पास आईं;

भौजी: तो अब जनाब का मूड कैसा है?

भौजी ने प्यार से कहा ताकि मेरा मूड हल्का हो जाए| मैंने चारपाई पर बैठा और बोला;

मैं: ठीक है|

भौजी: आपको माफ़ी माँगने पर गुस्सा तो नहीं आया?

मैं: गुस्सा कैसा? मेरी गलती थी, मुझे रसिका भाभी से इस लहजे में बात नहीं करनी चाहिए थी|

भौजी जानबूझ कर मुझे अपनी बातों में लगा कर बैठ गईं ताकि मैं फिर से गुस्सा न हो जाऊँ| तभी चन्दर की साइकल की घंटी सुनाई दी और जब भौजी की नजर उनपर पड़ी तो उनका मुँह देखने लायक था! कुछ देर पहले जो इंसान खुश था वो अचानक से मायूस हो गया था| मैंने भौजी को फिर छेड़ते हुए कहा;

मैं: लो एक और मुसीबत! मेरी बात मानो तो ये तोहफा-वोह्फ़ा भूल जाओ! एक-एक कर घर में लोग आते जा रहे हैं और इनकी मौजूदगी में तो मुझे तोहफा मिलने से रहा!

पर भौजी का विश्वास अडिग था!

भौजी: नहीं! आज चाहे आसमान नीचे क्यों ना आ जाये पर तोहफा तो आपको मिल के रहेगा, पर आपको मेरी मदद करनी होगी?

इससे पहले भौजी कुछ बोलतीं, मैंने अपने हाथ खड़े कर दिए|

मैं: न.. तोहफा आपका, सारी सरदर्दी आपकी! जब मैंने आपको सुहागरात वाला तोहफा दिया था तो आपसे मदद तो नहीं ली थी न? आप ही सुलझाओ 'इन समस्याओं' को|

इतने में चन्दर अपनी चाय ले कर मेरे पास आ गया, उसके आते ही भौजी रसोई में चली गईं| हमारी बातें हो पाती उससे पहले नेहा कूदती हुई और मेरी गोद में चढ़ गई| "नीनी कर ली?!" मैंने नेहा का माथा चूमते हुए कहा तो नेहा मुस्कुराने लगी| चन्दर को शायद ये ठीक नहीं लगा तो वो उठ कर पिताजी के पास चला गया और उनसे बात करने लगा| इधर नेहा मुझसे दुलार करने लगी और मेरी पीठ पर चढ़ गई| भौजी ने मुझे चाय और नमकीन ला कर दी तो मैंने नेहा को पीठ से उतारा और अपनी गोद में बिठा कर नमकीन खिलाई| उधर भौजी के दिमाग में उथल-पुथल मच गई थी और वो तिकड़म लगाने लगी थीं ताकि उनका तोहफा खराब न हो जाये! जैसे ही चन्दर को सब बातें पता चली तो वो फिर मेरे पास आ गया और कोशिश करने लगा की मेरा ध्यान इधर उधर भटका सके| पंचायत में जिस तरह मैंने अपना पक्ष रखा था उसके लिए भी वो मेरी तारीफ करने लगा और मैं सर झुकाये सुनता रहा| उधर भौजी मुझसे बात करना चाहती थीं तो उन्होंने नेहा को आवाज दे कर बुलाया| इससे मुझे चन्दर के पास से जाने का मौका मिल गया| मैं नेहा को पीठ में लादे हुए छप्पर के नीचे आ गया, मुझे देखते ही भौजी मुस्कुरा दी| वो जानती थी की मेरा चन्दर के साथ बैठने का जरा बह मन नहीं है इसलिए उन्होंने जानबूझ कर नेहा को आवाज मारी थी| अपनी चालाकी दिखा कर उन्होंने फिर से मुझसे मदद माँगी; "कर दो न मदद!" भौजी हाथ जोड़ते हुए बोलीं तो मैंने शरारत भरी हँसी हँसते हुए कहा; "बिलकुल नहीं!" तभी अजय भैया आ गए और मुझे अपने साथ उनके किसी दोस्त के यहाँ ले कर चल दिए| उनके दोस्त के यहाँ ज्यादा कुछ नहीं हुआ, बस पंचायत वाला काण्ड पूरे गाँव में फ़ैल चूका था और जो कोई भी मिलता वो बस मेरी ही सराहना करता| इसी कारन से अजय भय मुझे अपने साथ ले गए थे और उनके दोस्त के यहाँ भी वो मेरी बड़ाई करते नहीं थके| हम दोनों रात के खाने के समय लौट आये, हमने सब के साथ खाना खाया और फिर सब अपने-अपने बिस्तरे में घुस गए| शाम से ले कर अभी तक पिताजी मुझसे बात नहीं कर रहे थे, साफ़ था उनका गुस्सा शांत नहीं हुआ था| खैर मैं भी अपने बिस्तर में घुस गया, पर अब मन में भौजी के तोहफे की ललक थी और मैं सोचने लगा की क्या भौजी ने कोई रास्ता निकाला होगा? मैं उठा और टहलने के बहाने संतुष्टि करना चाहता था की सब कहाँ-कहाँ सोये हैं| माँ, भौजी, रसिका भाभी और बड़की अम्मा अभी खाना खा रहे थे| भौजी ने मुझे टहलते हुए देखा तो वो मुस्कुराये बिना राह नहीं पाई! सबसे पहले मैं अजय भैया को ढूँढने लगा, पर वे मुझे कहीं नहीं नजर आये| चन्दर भी कहीं नजर नहीं आया, शायद दोनों आज छत पर सोये थे?! फिर मैंने सोचा की ज्यादा ताँका-झाँकी करने से कोई फायदा नहीं और मैं अपने बिस्तर पर आके लेट गया| इतने में नेहा भौजी के घर से निकली और मेरी बगल में लेट गई| मैं समझ गया की उसे कहानी सुन्नी है, तो मैंने उसे कहानी बना कर सुनाई जिसे सुन नेहा हँसते हुए मुझसे लिप्त कर सो गई| नेहा के सोते ही मुझे भी नींद आ गई और मैं भी उस से लिपट कर सो गया|

जारी रहेगा भाग - 2 (2) में.....
 

ग्यारहवाँ अध्याय : एक ही भूल!

भाग - 2 (2)

अब तक आपने पढ़ा:

हम दोनों रात के खाने के समय लौट आये, हमने सब के साथ खाना खाया और फिर सब अपने-अपने बिस्तरे में घुस गए| शाम से ले कर अभी तक पिताजी मुझसे बात नहीं कर रहे थे, साफ़ था उनका गुस्सा शांत नहीं हुआ था| खैर मैं भी अपने बिस्तर में घुस गया, पर अब मन में भौजी के तोहफे की ललक थी और मैं सोचने लगा की क्या भौजी ने कोई रास्ता निकाला होगा? मैं उठा और टहलने के बहाने संतुष्टि करना चाहता था की सब कहाँ-कहाँ सोये हैं| माँ, भौजी, रसिका भाभी और बड़की अम्मा अभी खाना खा रहे थे| भौजी ने मुझे टहलते हुए देखा तो वो मुस्कुराये बिना राह नहीं पाई! सबसे पहले मैं अजय भैया को ढूँढने लगा, पर वे मुझे कहीं नहीं नजर आये| चन्दर भी कहीं नजर नहीं आया, शायद दोनों आज छत पर सोये थे?! फिर मैंने सोचा की ज्यादा ताँका-झाँकी करने से कोई फायदा नहीं और मैं अपने बिस्तर पर आके लेट गया| इतने में नेहा भौजी के घर से निकली और मेरी बगल में लेट गई| मैं समझ गया की उसे कहानी सुन्नी है, तो मैंने उसे कहानी बना कर सुनाई जिसे सुन नेहा हँसते हुए मुझसे लिप्त कर सो गई| नेहा के सोते ही मुझे भी नींद आ गई और मैं भी उस से लिपट कर सो गया|
अब आगे:
कुछ देर बाद मुझे अचानक ऐसा लगा जैसे कोई मेरे होंठों को चूम रहा हो! मेरे लिए तो वो एक सुखद सपना था जिसे मैं अच्छे से महसूस कर रहा था| मेरी कोई प्रतिक्रिया होती उससे पहले ही उस शख्स ने मेरे लबों को अपने मुंह में भर लिया और उन्हें चूसने लगा| मेरे दिमाग ने इसे सपना ही समझा और मैं भी लेटे-लेटे उस शक़्स के होठों को चूम ने की कोशिश करने लगा| इधर उस शख्स ने कोतुहल वश अपनी जीभ मेरी जीभ से स्पर्श कराई तो मुझे एक अजीब सी मिठास का अनुभव हुआ! ये मिठास पेपरमिंट की थी जिसकी ठंडक मेरे मुँह में महसूस करते ही मैंने तुरंत अपनी आँखें खोलीं और देखा तो वो शक़्स कोई और नहीं बल्कि भौजी ही थीं| वो मेरे सिराहने झुक के अपने होठों से मेरे होंठ जकड़े झुकी थीं| मेरी आँखें खुली देख भौजी ने मेरे लबों को आजाद किया और मुझे मूक इशारे से अंदर आने को कहा| मैं उठा और एक नजर घर में सोये बाकी लोगों की चारपाई पर डाली| सब के सब गहरी नींद में सोये थे, समय देखा तो साढ़े बारह बजे थे! मतलब मैदान साफ़ था! मैं दबे पाँव भौजी के घर में घुसा तो वो स्नानघर के पास खड़ी मुस्कुरा रही थी| मैं दरवाजा बंद करना भूल गया था क्योंकि मेरा ध्यान भौजी की उस कातिलाना मुस्कान पर था! मैं हाथ बाँधे उनके सामने खड़ा हो गया और उन्हें देख मुस्कुराने लगा| भौजी धीरे-धीरे मेरी ओर चल के आईं पर मेरे गले लगने के बजाए वो मेरे बगल से होती हुई दरवाजे की ओर चल दीं| वहाँ पहुँच उन्होंने दरवाजा बड़े आराम से बंद किया ताकि कोई आवाज ना हो ओर फिर मेरी तरफ पलटीं| भौजी बड़े धीरे-धीरे मेरी ओर बढ़ने लगी, ऐसा लगा जैसे वो जानबूझ कर मुझे तड़पना चाहती हों! इतना तड़पाना की उन्हें मेरे पास पहुँचने में पूरा एक मिनट लगा| हर एक कदम के बाद रुक जातीं और फिर प्यासी नजरों से मुझे देखतीं, भौजी का ये अजीब बर्ताव मेरी समझ से परे था! भौजी मेरे सामने कड़ी हो गईं और उनके मेरे बीच अब जरा भी दूरी नहीं थी, लेकिन मैंने अभी तक उन्हें स्पर्श नहीं किया था| भौजी फिरसे अपनी प्यासी नजरों से मुझे देख रहीं थीं और अब वही प्यास उन्होंने मेरी आँखों में भी जगा दी थी| भौजी को जाने क्या सूझी की उन्होंने एकदम से मेरे होठों को अपने होठों की गिरफ्त में ले लिए! बड़ी बेदर्दी के साथ उन्होंने मेरे होठों को अपने होठों से खींचना और चूसना शुरू कर दिया! भौजी का ये जंगली रूप मैं आज पहली बार देख रहा था और इस रूप में भी एक अजब से कसक थी! भौजी ने अपने दोनों हाथों से मेरा चेहरा थाम लिया और इसका मौके का फायदा उठाते हुए मैंने भौजी पर हावी होना चाहा! पर भौजी ने मुझे कोई मौका नहीं दिया और मेरे होठों को चूसती रहीं! एक-आध बार वो मुझे अपने होठों को चूसने का मौका देतीं तो मैं उस मौके का भरपूर फायदा उठाता! अब हाल ये था की हम दोनों बेसब्री से एक दूसरे को होठों का रसपान कर रहे थे! अगले पाँच मिनट तक कभी वो तो कभी मैं उनके होठों को चूसता! एक बात जो मैंने महसूस की वो ये थी की भौजी के मुख से मुझे पेपरमिंट की खुशबु और स्वाद आ रहा था| ये मेरी मन पसंद चीज थी, क्योंकि बचपन से ही च्युइंग गम का शौक़ीन था! इस खुशु और स्वाद के कारन मेरी जीभ भौजी के मुख में विचरण करने लगी थी! भौजी इतनी उग्र हो गईं थी की कभी कभी तो भौजी मेरी जीभ को अपने दाँतों से काट लेती और मेरी दर्दभरी कराह उनके मुँह में घुट कर रह जाती|

धीरे-धीरे उनके हाथ मेरे कन्धों तक आ पहुँचे और उन्होंने एक झटके में मुझे अपने से दूर किया! मैं हैरान भौजी को अवाक देख रहा था की भला वो मुझे इस तरह अपने से दूर क्यों कर रहीं है, क्योंकि आजतक उन्होंने ऐसा नहीं किया था! कहीं उन्हें ये सब बुरा तो नहीं लग रहा? ये सब सोचते हुए मेरे चेहरे पर शिकन की रेखा आ गई| पर भौजी के चेहरे पर एक कटीली मुस्कान आ गई जैसे मुझे इस सोच में डालकर उन्हीं बड़ा मजा आ या हो! उन्होंने मुझे बड़ी जोर से धक्का दिया और मैं पीठ के बल चारपाई पर गिरा! वो तो शुक्र था की चारपाई पर तकिया था, वरना मेरा सर सीधा लकड़ी से जा लगता! भौजी का ये अजीब बर्ताव देख अब मुझे कुछ-कुछ शक सा होने लगा था! मैं असमंजस की स्थिति में था की तभी भौजी ने अपनी साडी उतारनी चालु कर दी| साड़ी उतारके उन्होंने मेरे ऊपर फेंकी और पेटीकोट-ब्लाउज पहने मेरी छाती पर आके बैठ गईं| अब तो मेरी धड़कनें तेज होने लगीं थीं ये सोच-सोच कर की आगे क्या होगा? लेकिन भौजी आज अलग ही मूड में थीं, उन्होंने अपनी उतारी साडी के एक सिरे से मेरा दाहिना हाथ चारपाई के एक पाये से बाँधना चाहा तो मैंने रोकते हुए कहा; "ये क्या कर रहे हो?" मैंने धीमी आवाज में कहा तो भौजी भोएं सिकोड़ कर मेरी ओर देखने लगीं, फिर अपने होठों पर अपनी ऊँगली रखते हुए खुसफुसाईं; "श्श्श्श! कोई जाग जाएगा!" भौजी की बात सुन मैं आँखें फाड़े उन्हें देखने लगा? मेरा शक़ अब यक़ीन में बदलने लगा था! मैं उनसे लगातार पूछ रहा था की आपको हो क्या गया है और ये आप क्या कर रहे हो? पर उन्होंने कोई जवाब नहीं दिया बस मुस्कुराये जा रहीं थीं| उनकी ये मुस्कराहट देख के मुझे बहुत अजीब लग रहा था, कुछ तो गड़बड़ है! भौजी की वो मुस्कराहट देख के मेरा ध्यान ही नहीं रहा और उन्होंने देखते ही देखते मेरा बायाँ हाथ भी अपनी साडी के दूसरे छोर के साथ चारपाई के दूसरे पाय से बांद दिया| मेरे दोनों हाथ बाँध भौजी के चेहरे पर एक शरारत भरी मुस्कान आ गई! भौजी मेरे पेट पर बैठे हुए नागिन की तरह बलखाने लगी, मुझे ललचाने के लिए उन्होंने अपना ब्लाउज उतार के फेंक दिया! मुझे उनके गोर-गोर स्तन दिख रहे थे, मैं उन्हें छूना चाहता था परन्तु हाथ बंधे होने के कारन छू नही सकता था| इधर मुझे और तड़पाने के लिए भौजी अपने सर पर हाथ रख के अपनी कमर मटका रही थीं, उनकी कमर के मटकने के साथ ही उनके स्तन भी हिल रहे थे और ये देख के मुझे बड़ा मजा आ रहा था| भौजी का जंगलीपन अब बढ़ने लगा था, उन्होंने मेरी टी-शर्ट के 3 बटन खोले पर क्योंकि मेरे दोनों हाथ बंधे थे तो टी-शर्ट उतरने से रही! तैश में आ कर, भौजी ने मेरी टी-शर्ट फाड़ डाली! अब इसकी उम्मीद तो मुझे कतई नहीं थी! लेकिन जब भौजी का ये रूप देखा तो ना जाने मुझे पर एक सुरुर्र सा छाने लगा| पता नहीं क्यों पार आज उनका ये जंगलीपन मुझे बड़ा अच्छा लग रहा था!

इधर भौजी अपनी मस्ती में मस्त थीं और मेरी फटी हुई टी-शर्ट उन्होंने आंगन के एक कोने में फेंक दी थी! मैं कमर से ऊपर नग्न अवस्था में था और मुझे ऐसा देख भौजी के मुँह में पानी आने लगा था, वो मेरी छाती पर बैठे-बैठे ही झुक के मुझे बेतहाशा चूमने लगीं| मेरी आँखें, माथा, भौएं, नाक, गाल और होठों पर उन्होंने चुम्मियों की झड़ी लगा दी! भौजी ऐसे बर्ताव कर रहीं थीं मानो रेगिस्तान के प्यासे के सामने किसी ने बाल्टी भर पानी रख दिया हो और वो प्यासा उस बाल्टी में ही डुबकी लगाना चाहता हो! मेरी गर्दन छोड़ उन्होंने सब कुछ चूम लिया था, पर मेरी गर्दन उन्हें आज कुछ ज्यादा ही आकर्षक लग रही थी! भौजी ने एकदम से मेरी गर्दन पर अपने दांत गड़ा दिए और जोर से काट लिया! उन्होंने इतनी जोर से काटा था की की मेरी गर्दन पर उनके दांतों के निशान छप गए थे| दर्द के मारे मेरे मुंह से बस सिसकारियाँ निकल रहीं थी; "स्स्स्स्स स्स्स्स्स्स्स्स्सह्ह्ह!!!" मुझे लग रहा था मानो आज वो मेरे गले से गोश्त का एक टुकड़ा फाड़ ही लेंगी! भौजी अपने कूल्हों को मेरे पेट से रगड़ते हुए नीचे की तरफ आईं और ठीक मेरे लिंग पर बैठ गईं! उनकी योनि से निकल रही आँच मुझे अपने पजामे पर महसूस हो रही थी और धीरे-धीरे उनकी योनि का रस अब मेरे पजामे पर अपनी छाप छोड़ रहा था| भौजी मेरे ऊपर झुकीं और उन्होंने धीरे से मेरे बाएँ निप्पल को प्यार से चूमा, उनके होठों के स्पर्श से ही मेरे जिस्म में सिहरन दौड़ गई लेकिन अगले ही पल उन्होंने उस पर अपने दाँत गड़ा दिए! इस बार भौजी ने बड़ी जोर से काटा था, इतना जोर से की मैं दर्द से छटपटाने लगा, पर अगर चिल्लाता तो घर के सब लोग इकठ्ठा हो जाते और हमें इस हालत में देख सबके सब सदमें में चले जाते! मैं बस दर्द के मारे छटपटा के रह गया और मुँह से बस एक दबी सी आवाज ही निकाल पाया; "अह्ह्ह्ह उम्म्म्म!!!" लेकिन आज भौजी को मेरे ऊपर जरा भी दया नहीं आ रही थी, उनपर तो आज जैसे कोई भूत सवार हो गया था! अब उनका अगला निशाना था मेरा बायाँ निप्पल, पहले उसे एक बार चूमा और फिर एकदम से अपने दाँत उस पर गड़ा दिए तथा बड़ी जोर से काट खाया! मैं बस तड़प के रह गया और दर्द से करहाता रहा! लेकिन उनका मन अब भी नहीं भरा था, उन्होंने मेरी पूरी छाती पर यहाँ-वहाँ काटना शुरू कर दिया, जैसे की वो मेरे शरीर से गोश्त का हर टुकड़ा नोच लेना चाहती हो! माथे से लेके मेरे Belly button तक पूरा जिस्म लाल था और हर जगह दांतों के निशान बने हुए थे| उन्होंने अपने 'लव बाइट्स' मेरे पूरे जिस्म पर छोड़े थे! पता नहीं कैसे पर भौजी को मुझे ये प्यार भरी यातना देने में मजा आ रहा था और मैं भी इससे मिले वाले आनंद को महसूस कर के खुश हो रहा था!

भौजी चारपाई से निचे उतरीं और दाँतों तले अपनी ऊँगली दबाते हुए मुझे देखने लगीं! उन्होंने झुक के मेरे पजामे को पाँव की तरफ से पकड़ा और एक झटके में खींच निकाला| मेरे पजामे को उन्होंने बड़े गुस्से से आंगन के दूसरे कोने में फेंका, पर अभी तो मेरा कच्छा बाकी था! भौजी ने बड़े जोर से अपने दाँत पीसे और गुस्से में उसे भी नोच डाला! अब भौजी के सामने मेरा तना हुआ लिंग था, उन्होंने आव देखा न ताव और गप्प से मेरा लिंग अपने मुँह में भर लिया! कुछ सेकंड तो उन्होंने मेरे लिंग को टॉफ़ी की तरह चूसा पर फिर उन्हें एकदम से जोश आया और उन्होंने मेरे लिंग को अपने मुँह के अंदर-बाहर करना शुरू कर दिया| जब वो अपना मुँह नीचे लाती तो लिंग का सुपाड़ाबाहर आके उनके गालों और दांतों से टकराता और जब वो मुँह ऊपर उठातीं तो सुपाड़ा वापस चमड़ी के अंदर चला जाता| भौजी द्वारा की जा रही इस प्रकार की चुसाई से अब मैं बेचैन होने लगा था! मेरे दिमाग ने काम करना बंद कर दिया था और मैं बस तकिये पर अपना मुँह इधर-उधर पटक रहा था| मैंने अब पहली बार कोशिश की, कि कैसे भी मैं अपने हाथों को छुड़ा सकूँ पर नाकामयाब रहा क्योंकि भौजी ने मेरे हाथ जकड़ के बांधे थे!

इधर भौजी का मन जैसे चूसने से भर गया था, वो मेरी ओर अपने हाथों और घुटनों के बल मचलती हुई, किसी शेरनी की तरह बढ़ने लगीं! ये देख कर मुझे लगा की आज तो मेरा शिकार पक्का हैभौजी मेरे मुख के सामने आके रुकीं और अपनी प्यासी नजरों से मुझे देखने लगीं| उधर नीचे उनकी योनि ठीक मेरे लिंग के ऊपर थी और अपने प्रियतम को अपने पास बुला रही थी! भौजी ने अपने दायें हाथ को नीचे ले जा कर मेरे लिंग को पकड़ा और अपनी योनि के द्वार पर रखा| फिर वो सीढ़ी हो कर बैठ गईं और पूरा का पूरा लिंग एक ही बार में जड़ तक उनकी योनि में स्थापित हो गया! मेरा लिंग उनकी योनि में प्रविष्ट होते ही भौजी के मुँह से मादक सीत्कार निकली; "स्स्स्स्स्स...आआह्हह्हह्ह....हुम्म्म्म!!!" ये मादक सीत्कार भौजी के घर के आंगन में गूंजने लगी! इधर मेरे लिंग को भौजी की योनि की तपिश और गीलापन महसूस होने लगा था जिस कारन मेरे लिंग में तनाव बढ़ता ही जा रहा था| भौजी ने अपने घुटने मोड और वो उकड़ूं हो कर मेरे लिंग पर बैठ गईं तथा धीरे-धीरे मेरे लिंग पर उछलना शुरू कर दिया| शुरू-शुरू में तो भौजी थोड़ा सम्भल कर ऊपर-नीचे हो रहीं थीं पर फिर उन्हें अचानक से जोश चढ़ा और वो एकदम से मेरे लिंग पर बैठ गईं, जिस कारन मेरा लिंग सरसराता हुआ उनकी बच्चेदानी से जा टकराया! ये टक्कर होते ही भौजी एकदम से चिहुँकि; "आह..ममम...!!" मुझे लगा की भौजी को इसमें दर्द हुआ होगा पर उन्हें ये दर्द आनंद दे रहा था! अब तो वो जानबूझ कर इतना नीचे आतीं की मेरा लिंग उनकी बच्चेदानी से टकराता और वो चिंहुक जातीं! भौजी की योनि ने मेरे लिंग को भीतर से कस के जकड रखा था, जैसे ही वो ऊपर उठती तो सुपाड़ा चमड़ी में कैद हो जाता और जब वो नीचे आतीं तो सुपाड़ा सीधा उनकी बच्चे दाने से टकराता! भौजी की रफ़्तार हर पल तेज होती जा रही थी और एक पल के लिए तो मुझे लगा की कहीं मेरा लिंग उनकी बच्चेदानी के आर-पार ना हो जाये! अगले १० मिनट तक उन्होंने मेरे ऊपर बड़ी जबरदस्त घुड़सवारी की पर अब उनके लिए ये घुड़सवारी नाकाबिले बर्दाश्त थी, नतीजन अगले पंद्रह मिनट में ही वो स्खलित हो गईं! उनके स्खलित होते ही भौजी की योनि की गर्मी और गीलेपन के कारन मेरे लिंग ने भी जवाब दे दिया और अंदर एक जबरदस्त फव्वारा छोड़ा! स्खलन के बाद हम हम दोनों ही हाँफने लगे थे पर भौजी का हाल मुझसे बुरा था, वो एकदम से पस्त हो कर मेरे ऊपर ही गिर गईं| पिछले आधे घंटे से सिर्फ वो ही तो मेहनत किये जा रही थीं तो उनका थकना लाजमी था! इधर मैंने आज तक ऐसे सम्भोग की कभी कल्पना नहीं की थी, आज सच में मुझे बहुत मजा आया था! कुछ समय बाद जब सांसें काबू में आईं और दिल की धड़कन सामन्य हुई तो मेरा सारा बदन भौजी के काटे जाने से दुःख रहा था!

भौजी का ज्वार शांत होने में थोड़ा समय लगा, जब उनकी धोकनी सी चलती सांसें सामन्य हुईं तो मैंने भौजी को उठाना चाहा| पर वो तो मेरी छाती पर अपना सर रखे नींद की आगोश में जा रही थीं, अब हाथ तो बंधे थे इसलिए मैंने अपने कमर से ऊपर के जिस्म को हिलाया जिससे भौजी का सर हिलने लगा पर वो बस नींद में कुनमुनाने लगीं| मुझे कैसे भी कर के भौजी से अपने हाथ खुलवाने थे वरना अगर सुबह तक मैं इसी हालत में रहता तो बवाल होना तय था!

मैं: उम्म्म... उठो? उठो ना?

मैंने लगातार अपने ऊपर के जिस्म को हिलाते हुए कहा|

भौजी: उम्म्म्म ... रहने दो न....!

भौजी कुनमुनाती हुई बोलीं|

मैं: उठो और मेरे हाथ खोलो, अगर मैं बाहर नहीं गया तो सुबह बवाल हो जायेगा|

मैंने थोड़ा जोर से हिलते हुए कहा जिससे भौजी की नींद टूट गई|

भौजी: कुछ नहीं होगा...कह देना...रात को मेरी तबियत खराब थी इसलिए सारी रात जाग के आप पहरेदारी कर रहे थे|

भौजी ने ढीठ बने हुए बहाना सुझाया| मैं जानता था की भौजी ऐसे नहीं मानने वालीं, इसलिए मुझे उनके साथ तर्क करना पड़ा;

मैं: ठीक है बाबा! मैं कहीं नहीं जा रहा, पर कम से कम मेरे हाथ तो खोल दो!

मैंने प्यार से कहा तो भौजी मेरी बात मान गई| भौजी मेरी छाती पर सर रखे हुए ही पड़ी रहीं और अपने हाथ ऊपर की ओर बढ़ा के दाहिने हाथ की गाँठ खोल दी| गाँठ खुलते ही मेरा दायाँ हाथ फ्री हो गया, फिर मैंने अपने दायें हाथ से किसी तरह अपना बायें हाथ कि गाँठ खोली| दोनों हाथ फ्री होते ही मैंने उठना चाहा पर भौजी मुझसे कस कर लिपट गईं, वो नहीं चाहती थीं की मैं उठ कर बाहर जाऊँ! मैं मजबूरन लेटा रहा ओर उनके बालों में हाथ फेरने लगा| मैंने समय देखा तो पौने दो हो रहे थे और अब मुझे कैसे भी बाहर जाना था, पर जाऊँ तो जाऊँ कैसे? भौजी मेरे ऊपर बिलकुल नंगी पड़ी थीं! हम दोनों के सारे कपडे इधर-उधर फेंके हुए थे और मेरी हालत ऐसी थी जैसे किसी ने नोच-नोच के मेरी छाती लाल कर दी हो! उधर नीचे की हालत तो और भी ख़राब थी! मेरा लिंग अब भी भौजी की योनि में सिकुड़ा पड़ा था, मानो भौजी की योनि ने उसे अपने अंदर समां लिया हो! अगले पंद्रह मिनट मैं सोचने लगा की मैं उठूं कैसे ताकि भौजी जाग ना जाएँ?! पंद्रह मिनट बाद जब मुझे संतोष हुआ की भौजी गहरी नींद में सो गई हैं तो मैंने उन्हें धीरे से अपने ऊपर से हटाया और सीधा लिटा दिया| मैं उठा और स्नानघर से पानी लेके अपने लिंग को साफ़ किया, अपना पजामा और कच्छा पहना, लेकिन अब ऊपर क्या पहनू? टी-शर्ट तो भौजी ने फाड़ दी! मेरे कपडे बड़े घर में रखे थे और वहाँ सोये थे अजय भैया और चन्दर! हारकर मैंने भौजी के कमरे से एक चादर निकाली और बाहर जाने लगा, फिर याद आय की भौजी तो एक दम नंगी पड़ी हैं! मैंने एक और चादर निकाली और उन्हें अच्छी तरह से उढ़ा दी| भौजी के कपडे जो इधर-उधर फैले थे उन्हें भी समेट के तह लगा के उनके बिस्तर के एक कोने पे रख दिया| धीरे-धीरे दरवाजा खोला और दुबारा से बंद कर मैं चुप-चाप बाहर आके अपनी चारपाई पर लेट गया| मेरे लेटते ही नेहा को नींद में मेरी मौजूदगी का एहसास हुआ और वो मुझसे लिपट कर लेट गई| कुछ देर बाद मैंने उसकी पकड़ से खुद को छुड़ाया और चादर गले तक ओढ़ ली|

लेटे-लेटे मैं सोचता रहा की आखिर आज जो हुआ वो क्या था? "हम ने सम्भोग तो कई बार किया पर फिर आज उन्होंने मेरे हाथ क्यों बाँधे?" मैंने बुदबुदाते हुए खुद से सवाल पुछा| इस सवाल के साथ ही मुझे कुछ समय पहले हुआ एहसास याद आ गया और मेरे चेहरे पर एक मुस्कान आ गई! मैंने मुस्कुराते हुए अपने दोनों हाथ मोड़ कर अपने सर के नीचे रखे और फिर से बुदबुदाया; "असल जिंदगी में bondage sex में इतना मजा आता है किसने सोचा था?" ये बोलते ही मेरा माथा ठनका और मैं उठ कर बैठ गया! "मतलब अभी जो हुआ वो सब......उसदिन मैंने जो CD की कहानी सुनाई थी....वो....सब....!" मेरी आँखें फटी की फटी रह गईं और दिमाग एकदम से सन्न हो गया! भौजी ने आज मेरे साथ वही किया जो मैंने उन्हें उसदिन कहानी के रूप में बताया था! वो हर एक सीन जो मैंने उन्हें बताया था ठीक वही उन्होंने मेरे साथ किया! अब मैंने अपना सर पीटा की हाय! उन्होंने मेरी ख़ुशी के लिए इतना सब कुछ किया? पूरी की पूरी CD की कहानी उन्हें याद थी, वो एक-एक विवरण जो मैंने उन्हें दिया था वो सब उन्हें याद था!

वो जानती थीं की माधुरी वाले कांड के बाद मैं मानसिक रूप से थोड़ा उदास था, तो मुझे खुश करने के लिए उन्होंने इतना कुछ किया! ये बात तो माननी पड़ेगी की भौजी का तोहफा वाकई में जबरदस्त था! मैं मन ही मन भौजी की बड़ाई करने लगा, पर फिर दिमाग में एक बिजली कौंधी!

जारी रहेगा भाग - 3 में.....
 

ग्यारहवाँ अध्याय : एक ही भूल!
भाग - 3

अब तक आपने पढ़ा:


ये बात तो माननी पड़ेगी की भौजी का तोहफा वाकई में जबरदस्त था! मैं मन ही मन भौजी की बड़ाई करने लगा, पर फिर दिमाग में एक बिजली कौंधी!

अब आगे:

भले ही भौजी मुझसे बहुत प्यार करती हैं, पर वो इस तरह खुल कर ये सब करेंगी ये नहीं हो सकता! हो न हो उन्होंने ये सब किसी नशे के आवेश में आके किया है! फिर दुबारा मेरे दिमाग में शार्ट-सर्किट हुआ; "इसीलिए उनके मुँह से पेपरमिंट की महक आ रही थी!" मैं बुदबुदाया| अब सब बात साफ़ हो गई थी, भौजी ने जर्रूर कोई नशा किया था वर्ण ये सब करने की उनकी हिम्मत नहीं है! वो नशा क्या था ये जानने के लिए मुझे सुबह होने का इंतजार करना था, ताकि मैं उनसे इत्मीनान से पूछ सकूँ! मैं चुप-चाप लेट गया और एकबार फिर से खुद को चादर से ढक लिया, लेकिन मेरे लेटते ही एक बार फिर नेहा ने नींद में मुझे पर अपना हाथ रख दिया| मैंने उसके मस्तक को चूमा और सोने लगा| सोते समय भी मुझे ध्यान था की मुझे सबसे पहले उठना है और फटाफट टी-शर्ट का जुगाड़ करना है! लेकिन फिर ऐसी जोरदार नींद आई की मैं जल्दी उठ ही नहीं पाया और जब सुबह आँख खुली तो सात बज रहे थे! माँ मेरी तरफ चल कर आ रहीं थीं और उन्हें देखते ही मैंने अपनी आँखें मूँद ली;

माँ: चल उठ भी जा, सारी रात जाग के क्या हवन कर रहा था! सारे लोग उठ के खेत चले गए और तू अब भी चादर ओढ़े पड़ा है!

माँ ने मुझे डाँट लगाते हुए कहा| मैं जानबूझ कर उनको ऐसे दिखाने लगा जैसे मैं गहरी नींद में हूँ और कुनमुनाते हुए बोला;

मैं: उठ रहा हूँ!

डर के मारे मैं अंगड़ाई भी नहीं ले सकता था क्योंकि मैंने खुद को चादर में लपेट रखा था, अब चादर हटाता भी कैसे, माँ जो सामने बैठी थीं! तभी भौजी आ गईं उनके हाथ में कुछ था जो उन्होंने अपने पीछे छुपा रखा था, वो ठीक मेरी बगल में माँ के सामने खड़ी हुई और वो कपडा मेरी ओर फेंका| अब दिक्कत ये थी की मैं उसे पहनू कैसे? माँ ये लेन-देन नहीं देख पाई थीं, भौजी ने कुछ बात शुरू करते हुए माँ का ध्यान अपनी बातों में लगाया और मैंने वो कपडा खोल कर देखा तो वो मेरी गन्दी टी-शर्ट थी जिसे मैंने कल धोने डाला था| मैं एक झटके में उठा और भौजी की आड़ में खड़ा हो कर वही टी-शर्ट पहन ली! अब माँ ने मुझे टी-शर्ट पहनते पीछे से देख लिया था पर उन्हें लगा की मैंने रात को गर्मी के कारन उतार दी होगी|

माँ: ये कौन सी टी-शर्ट पहनी है तूने? कल रात तो हरी वाली पहनी थी, अब काली पहनी हुई है?

माँ ने हैरान होते हुए पुछा|

मैं: नहीं तो मैंने काली ही पहनी थी, अँधेरे में रंग एक जैसे ही दिखते हैं| खेर मैं फ्रेश होक आता हूँ|

मैंने झूठ बोला और वहाँ से निकल भागा वरना माँ कहीं कुछ और न पूछ लें!

मैं फटा-फट बड़े घर से फ्रेश हो कर लौटा, बड़की अम्मा और माँ तो खेत जा चुके थे| भौजी नजरें झुकाये हुए मेरे पास आईं और मुझे चाय दे कर फिर से रसोई में घुस गईं! मैंने चाय पीते हुए गौर किया की भौजी मुझसे नजर नहीं मिला पा रहीं| वो अपना सर झुकाये हुए काम करने में लगीं थीं और इधर मेरे अंदर भौजी से अपने प्रश्नों के जवाब जानने की उत्सुकता बढ़ने लगी थी, पर मैं सही मौके की तलाश कर रहा था क्योंकि अब तो घर में रसिका भाभी भी थीं| मैंने नजर बचा के भौजी को मिलने का इशारा किया और जा के कुऐं की मुंडेर पर बैठ गया| भौजी रसोई से निकलीं और मुझे आवाज लगाते हुए कहा; "आप मेरी चारा काटने में मदद कर दोगे?" मैंने हाँ में सर हिलाया और उनके पीछे जानवरो का चारा काटने वाले कमरे की ओर चल दिया| वहाँ पहुँच के भौजी और मैं मशीन चलाने लगे जिससे की चारा कट के नीचे गिर रहा था| भौजी शर्म के मारे जमीन की ओर देख रहीं थीं तो मैंने ही बात शुरू करते हुए कहा;

मैं: पहले आप ये बताओ की आप मुझसे नजरें क्यों चुरा रहे हो?

भौजी: वो... कल रात.... मैंने....

भौजी को बोलने बड़ी झिझक हो रही थी|

मैं: प्लीज बताओ!

मैंने बड़े प्यार से कहा तो भौजी ने हिम्मत बटोरते हुए कहा;

भौजी: मैंने कल रात को नशे की हालत में वो सब किया!

मैं: वो सब मैं जानता हूँ, पर क्यों किया? और क्या नशा किया था, शराब पी थी या भाँग खाई थी?

भौजी ये सुन कर थोड़ा हैरान हुई क्योंकि उन्हें लग रहा था की मुझे कुछ पता नहीं चला नहीं होगा|

भौजी: वो आपके चन्दर भैया ने शराब छुपा के रखी थी.... उसमें से.....पी थी! बहुत कड़वी थी और इतनी गर्म, की पेट तक जला दिया!

भौजी ने मुँह बिदकते हुए कहा, उन्हें लगा की उनके मुँह बनाने से मैं हँस पड़ूँगा पर ये सुन कर मैंने मशीन के हैंडल पर से अपने हाथ हटा दिया और हाथ बाँधे उन्हें देखने लगा| ये देख भौजी का सर एकबार फिर से शर्म से झुक गया|

मैं: पर क्यों पी? भला आपको शराब पीने की क्या जर्रूरत थी|

मैंने अब भी बड़े प्यार से पुछा|

भौजी: वो आपने उस दिन मुझे उस फिल्म की सारी कहानी सुनाई थी... सुन के लगा की आपको वो फिल्म बहुत अच्छी लगी थी| मैंने सोचा क्यों ना मैं उस फिल्म हेरोइन की तरह आपके साथ वो सब....पर मुझ में इतनी हिम्मत नहीं थी.. की उस हेरोइन की तरह आपको पलंग पर धक्का दूँ....

भौजी ने डर के मारे अटकते हुए कहा और अपनी बात अधूरी छोड़ दी| मुझे भौजी की बात पर गुस्सा नहीं आ रहा था और इसीलिए मैं उनसे प्यार से बात कर रहा था| उनकी इसी शर्म का ही तो मैं दीवाना था, ये वो भौजी थीं जिन्हें मैं इतना प्यार करता था!

मैं: पर आपको ये सब करने के लिए मैंने तो नहीं कहा था? फिर क्या जर्रूरत थी आपको ये सब करने की?

मैंने बड़े प्यार से उनसे कहा तो भौजी के अंदर हिम्मत आई और उन्होंने अपनी गर्दन उठाई और मेरी आँखों में देखते हुए बोलीं;

भौजी: पिछले कई दिनों से आपका मन खराब था और उस दिन सुबह जब मैंने आपको परेशान देखा तो मुझसे रहा नहीं गया इसलिए मैंने ये सब आपको खुश करने के लिए किया!

मैं: आप सच में मुझसे बहुत प्यार करते हो! लेकिन आज के बाद आप कभी भी किसी भी तरह को नशा नहीं करोगे! आप हमारे बच्चे को आप यही गुण देना चाहते हो?

मैंने भौजी को थोड़ा प्यार से डाँटा|

भौजी: आपकी कसम मैं कभी भी कोई भी नशा नहीं करुँगी|

भौजी ने बड़ी भोली सी सूरत बनाते हुए कहा| उनका ये भोलापन देख मेरा मन तो कर रहा था की उन्हें गोद में उठा के चूम लूँ पर मौके की नजाकत कुछ और कह रही थी| रसिका भाभी घर में ही मौजूद थीं और अगर वो मुझे भौजी को गोद में उठाये देख लेटिन तो पता नहीं क्या होता!

खैर अभी तो मेरे पास बड़ा स्वर्णिम मौका आया था भौजी को छेड़ने का;

मैं: वैसे कल रात आपको होश भी है की आपने मेरे साथ क्या-क्या किया?

ये सुन कर भौजी के गाल लाल हो गए और उनका सर शर्म से झुक गया;

भौजी: थोड़ा बहुत होश है, सुबह मैंने आपकी फटी हुई टी-शर्ट देखि थी!

भौजी ने शर्माते हुए कहा पर उन्हें अब मेरे मुँह से सुन्ना था की क्या हुआ था;

भौजी: सुबह उठने के बाद मेरा सर घूम रहा था| वैसे कल रात हुआ क्या था?

भौजी ने मसुकुराते हुए पुछा! अब मैं भौजी की टांग खींचने से कैसे पीछे रहता, इसलिए मैंने अपनी टी-शर्ट ऊपर कर के दिखाई| टी-शर्ट ऊपर होते ही भौजी को मेरी छाती पर अपने काटने के निशान दिखे, जिन्हें देख भौजी का मुँह खुला का खुला रह गया! जहाँ-जहाँ भौजी ने जोर से काटा था वहाँ-वहाँ अब लाल निशान हो गए थे! ये सब देख कुछ सेकंड बाद भौजी के गाल और कान दोनों लाल हो गए और वो अपने मुँह पर हाथ रखते हुए बोलीं;

भौजी: हाय राम!!! ये मेरी करनी है?

ये सवाल बड़ा अजीब था;

मैं: अभी तक तो सिर्फ आपने ही मुझे छुआ है!

मेरा जवाब सुन भौजी ने अपना सर पीट लिया;

भौजी: मुझे माफ़ कर दो! ये सब मैंने जान-बुझ के नहीं किया! मुझे आखिर हो क्या गया था कल रात? ये मैंने क्या कर दिया! चलो मैं मलहम लगा देती हूँ|

मैंने फिर से भौजी की टांग खीचंते हुए कहा;

मैं: नहीं रहने दो, कहीं अकेले में फिर से आपके अंदर की शेरनी जाग गई तो मेरी शामत आ जाएगी|

ये सुन कर भौजी एकबार फिर से शर्मा गईं;

भौजी: आप भी ना! चलो मैं मलहम लगा दूँ वरना किसी ने देख लिया तो क्या कहेगा?

मैं: नहीं रहने दो, ये आपके Love Bites हैं! कुछ दिन में चले जायेंगे तब तक इन्हें रहने दो|

मैंने बड़े प्यार से कहा पर भौजी को Love Bites का मतलब नहीं पता था तो वो हैरानी से मुझे देखने लगीं;

मैं: Love Bites यानी जब्कोई प्यार से आपके जिस्म पर काट ले तो उसे अंग्रेजी में Love Bite कहते हैं!

मेरी बात सुन कर भौजी मुस्कुरा दीं और हम चारा काटने में लग गए|

भौजी: पर आपकी गर्दन वाला 'लू बैट' किसी ने देख लिया तो?

भौजी ने जिस तरह से Love Bite को लू बैट कहा था उसे सुन कर मैं हँस पड़ा, फिर उन्हीं सही करते हुए बोला;

मैं: लू बैट नहीं Love Bite! और अपनी गर्दन पर बने Love Bite को छुपाने के लिए मैंने अपनी टी-शर्ट के कालर ऊँचे कर रखे हैं, तो अब वो किसी को दिखाई नहीं देंगे|

दरअसल तब मैं हमेशा Polo टी-शर्ट पहनता था और इसे मेरा फैशन सेंस समझिये या बेवकूफी मैं अपनी टी-शर्ट के कालर हमेशा खड़े रखता था! पिताजी ने कई बार मना किया की तू इससे छिछोरा लगता है पर मैं उन्हें 'ये आज कल का नया फैशन है|' कह कर चुप करा दिया करता था| पिताजी काम में व्यस्त रहते थे और चूँकि मैं पढ़ाई में अच्छा-खासा था तो उन्होंने बात को दरगुजर किया| चारा कटने तक मैं भौजी को अपने स्कूल के बारे में बताने लगा| इधर मेरी लाड़ली नेहा जो सुबह से माँ और बड़की अम्मा के साथ घूम रही थी वो मुझे ढूँढ़ते हुए आ गई| हम दोनों को मशीन चलाते हुए देख उसने भी मदद करनी चाही पर वो हैंडल पकड़ने लायक ऊँची नहीं थी तो वो दूर खड़े हो कर मेरी मशीन चलाते हुए नकल करने लगी और बार-बार 'हईशा' बोल कर जोर लगाती| उसका ये बचपना देख मैं और भौजी खिल-खिला कर हँसने लगे| नेहा को भी इसमें मजा आने लगा था, जब चारा काट गया तो नेहा मेरी पीठ पर सवार हो गई और हम दोनों चारा एक डलिया (टोकरी) में डाल कर गाय और बैल को डालने चले गए| भौजी हाथ-मुँह धोकर रसोई में घुस गईं, चारा डालते समय नेहा मेरी पीठ पर चढ़ी हुई मुझे बता रही थी की किसे कहाँ चारा डालना है| वो जहाँ-जहाँ बोलती मैं वहाँ-वहाँ चारा डालता रहा| आखिर में हाथ-मुँह धो कर हम दोनों छप्पर के नीचे बैठ गए| नेहा ने मुझे अपने साथ लेटने को कहा और फिर वो मेरी छाती पर सर रख कर लेट गई| मैं उसकी पीठ पर हाथ फेर रहा था की नेहा ने मेरी गर्दन पर भौजी के बनाये हुए Love bites देख लिए और पूछने लगी; "चाचू! ये क्या हो गया?" उसने गर्दन पर बने लाल निशान की तरफ ऊँगली करते हुए कहा तो ये सुन भौजी झेंप गई और मैं हँसने लगा| "बेटा ये न....एक शेरनी ने काटा है!" ये सुनते ही भौजी रसोई में बैठीं हँसने लगी| पर नेहा मेरे जवाब को समझ नहीं आई तो वो बोली; "चाचू शेरनी तो जंगल में होती है|" अब ये सुन मैं और भौजी फिर हँसने लगे|

"बेटा कल रात वो शेरनी हमारे घर आई थी....और फिर है न ...उसने मुझे ....जोर से काट लिया!" मैंने भौजी की टाँग खींचते हुए कहा|

"पर कल रात तो मैं आपके साथ सोई थी, आपने मुझे क्यों नहीं जगाया?!" नेहा ने ताव में आते हुए कहा और उसका ये जोश देख हम दोनों ठहाका लगा कर हँसने लगे|

"आप मेरी रक्षा करते उस शेरनी से?" मैंने हँसते हुए कहा तो नेहा ने बड़े गर्व से हाँ में सर हिलाया|

"अच्छा? तू रक्षा करती? रात में खुद तो डर के उठ जाती है!" भौजी ने नेहा का मजाक उड़ाते हुए कहा तो नेहा उन्हें गुस्से से देखने लगी मनो कह रही हो की आप मेरी पोल-पट्टी चाचू के सामने क्यों खोल रहे हो! हँसी-ठहाका सुन रसिका भाभी वहाँ आ पहुँचीं अब उनके सामने हम इस मुद्दे पर बात नहीं कर सकते थे, इसलिए मैंने बात बदलते हुए कहा; "नेहा आज मुझे खाना बना कर नहीं खिलाओगे?" ये सुनते ही नेहा खुश हो गई और वो अपने बर्तन लेने चली गई| उसके जाते ही रसिका भाभी ने मुझसे बात करनी शुरू की;

रसिका भाभी: मानु का हमसे अब भी रिसियाए (नाराज) हो?

मैं: नहीं तो भाभी|

मेरा जवाब सुन रसिका भाभी के चेहरे पर मुस्कान आ गई| इतने में नेहा अपने छोटे-छोटे बर्तन-भांडे ले कर आ गई और मेरे पास बैठ झूठ-मूठ का खाना बनाने लगी|

रसिका भाभी: अरे मुन्नी आपन चाचा खातिर का बनावत हो?

नेहा: दाल-चावल

नेहा ने ख़ुशी चहकते हुए कहा|

रसिका भाभी: तो हमार खतिरो बना दिहो!

नेहा: ना!

नेहा ने एकदम से जवाब दिया तो सारे लोग हँस पड़े! भौजी भी रसोई से हँसने लगीं और मुझे मौका मिल गया उनकी टाँग खींचने का|

मैं: भाभी (रसिका भाभी) जब मैं छोटा था तो माँ कहती थीं की यहाँ गाँव में 'सियार' आता है और कभी किसी को काट लेता है तो किसी बच्चे को ले जाता है, क्या ये सच है?

ये सुन कर नेहा डर के मारे मुझे देखने लगी, मैंने उसे एकदम से अपनी गोद में बिठा लिया और उसने भी अपना सर मेरी छाती में छुपा लिया| मैंने भौजी की तरफ देखा तो वो हैरानी से मुझे देख रहीं थीं की मैं भला ये अजीब सा सवाल क्यों पूछ रहा हूँ?!

रसिका भाभी: अरे हाँ! कुछ महीने पहले ऊ मिश्राइन चाची के हियाँ घुस आवा रहा और उनका पोता को लेजावत रहा, सभय ऊ का घेर लीस और डंडे से मार-मार के खदेड़ दिहिस! तुम काहे पूछत हो?

मैं भौजी की ओर देखने लगा और बोला;

मैं: कुछ नहीं, कल एक 'सियारनी' देखि थी मैंने!

भौजी ये सुनते ही प्यार भरे गुस्से से मुझे घूरने लगीं! उनकी आँखें इतनी बड़ी हो गईं थी की उन्हें देख कर मुझे हँसी आ गई और मैं नेहा को ले कर टहलने चल दिया| नेहा अब भी डरी हुई थी, भौजी की टाँग खींचने के चक्कर में मैंने अपनी लाड़ली को डरा दिया था!

मैं: बेटा डरते नहीं, मैं हूँ न आपके पास! मेरे होते हुए आपको कुछ नहीं होगा!

मैंने नेहा के सर को चूमते हुए कहा तो उसके चेहरे पर मुस्कान आ गई| फिर मैं उसे ले कर दूकान चल दिया और वहाँ उसे चिप्स दिलाये और वो खाते हुए हम घर पहुँचे! घर पहुँचते ही भौजी रसोई से निकलीं और मेरा हाथ पकड़ के खींच कर अपने घर में ले गईं, उन्होंने नेहा को मेरी गोद से उतरा और उसे बाहर खेलने जाने को कहा| भौजी का चेहरे पर अब भी वही प्यार-भरा गुस्सा था जिसे देख मुझे फिर से हँसी आ गई;

भौजी: तो मैं सियारनी हूँ?!

भौजी शिकायत करते हुए प्यार भरे गुस्से में बोलीं;

मैं: और नहीं तो क्या!

ये सुन आकर भौजी ने मुझे धक्का दे कर दिवार से लगा दिया और मेरी टी-शर्ट का कालर हटा कर फिर से मेरी गर्दन पर काट लिया! लेकिन इस बार उन्होंने जोर से नहीं काटा, बल्कि मेरी गर्दन पर अपने होंठ रख चूसने लगीं!

भौजी के स्पर्श से ही मेरे जिस्म में आग लग गई थी और मेरा मन मचलने लगा था, पर घर में रसिका भाभी मौजूद थीं और वो कभी भी आ धमक सकती थीं!

मैं: ससस....यार! रसिका भाभी घर पर हैं!

मैंने कहा पर भौजी पर इसका कोई असर नहीं पड़ा, उन्होंने अपने दोनों हाथो को मेरी कमर के इर्द-गिर्द लपेट लिया|

मैं: ससस....मेरी जंगली बिल्ली! अब छोड़ दो मुझे वरना कोई आ जायेगा!

मैंने भौजी के सर पर हाथ फेरते हुए कहा| इस बार उन्होंने थोड़ी जोर से काट लिया और मुँह से सीत्कार निकली;

मैं: आह!...

आगे मैं कुछ कहता उसके पहले ही नेहा आ गई और उसके आते ही भौजी ने मुझे एकदम से छोड़ दिया और बाहर जाने लगीं| पर मैंने उनका हाथ पकड़ कर रोक लिया और ठीक उसी समय नेहा ने अपना प्यार-भरा सवाल दागा;

नेहा: मम्मी आप चाचू को क्या कर रहे थे?

ये सुनते ही भौजी झेंप गईं और शर्म से उन्होंने अपनी गर्दन झुका ली|

मैं: अब बोलो?

मैंने भी भौजी की इस हालत का रस लेते हुए कहा|

भौजी: वो...वो...आपके चाचू के गर्दन में शेरनी के काटने से घाव हो गया था ना? तो मैं उसका उपचार कर रही थी!

ये सुन कर मैं हँस दिया और बोला;

मैं: अरे वाह रे मेरी डॉक्टरनी साहिबा!

भौजी ने नेहा को गोद में उठा लिया और बड़े प्यार से बोलीं;

भौजी: जब आप खेलते-खेलते गिर जाते हो तो चाचू कैसे आपकी चोट को चूमते हैं और आपका दर्द गायब हो जाता है?! मैं भी वैसे ही आपके चाचू के जख्म को चूम कर उनका दर्द कम कर रही थी|

नेहा ठहरी बच्ची, इसलिए वो इस प्यार भरे उपचार को सही समझ बैठी और अपनी मम्मी की बात पर विश्वास कर बैठी|

इतने में वहाँ रसिका भाभी भौजी को ढूँढ़ते हुए आ गईं और मैंने फ़ौरन अपने टी-शर्ट के कालर को ऊपर उठा लिया ताकि मैं भौजी के Love bites छुपा सकूँ! खाना बन कर तैयार था और भौजी को नहाना था तो मैं और नेहा बाहर चले गए| बाहर आ कर हम खेलने लगे और कुछ देर बाद रसिका भाभी नहा कर बाहर आईं और हम दोनों के साथ बैट-बॉल खेलने लगीं| नेहा उन्हें बॉल करवा रही थी और जैसे ही उसने बॉल फेंकी की रसिका भाभी ने बॉल जोर से उठा कर मारी जो मैंने लपक कर पकड़ ली| नेहा खुश होकर कूदने लगी और फिर मेरी बैटिंग आई, नेहा और रसिका भाभी मुझे बारी-बारी बॉल कराने लगे और मैं इधर-उधर बॉल मार कर दोनों को भगाता रहा| इतने में अजय भैया खेत से लौटे और उनके आते ही रसिका भाभी डर के मारे चली गईं| अब अजय भैया और मैंने जम के बैट-बॉल खेला और इस चक्कर में बेचारी नेहा को ना तो बोलिंग मिली और न ही बैटिंग! सारे लोग खेत से लौट आये थे और हम तीनों को बैट-बॉल खेलते हुए देख रहे थे| कुछ देर में भौजी भी नहा कर आ गईं थीं और चूँकि खाना खाने का समय हो गया था तो उन्होंने एक-एक कर सब का खाना परोसा| मैं और नेहा हमेशा की तरह एकसाथ बैठ कर खा रहे थे|

खाना खाने के बाद सब आराम करने लगे और कुछ देर बाद खेतों में चले गए| घर पर रह गए मैं, नेहा, रसिका भाभी और भौजी| हम चारों छप्पर के नीचे अलग-अलग चारपाइयों पर लेटे हुए थे और घर की बातें कर रहे थे की तभी रसिका भाभी ने पुछा;

रसिका भाभी: ई बताओ ऊ सियारनी कहाँ देखेयो रहा?

अब मुझे कुछ तो झूठ बोलना था तो मैंने बात बनाते हुए कहा;

मैं: वो क्या है भाभी, कल रात को खाना खा कर मैं और नेहा जल्दी सो गए थे| जब भौजी सबसे आखिर में खाना खा कर अपने घर सोने जा रहीं थीं तो उनके पैरों की आहट से मैं जाग गया| अब कल अंधेरिया रात थी तो ऐसे में मुझे एक काला साया नजर आया जो भौजी का था तो उसे देख कर मैं डर गया और मुझे डरा हुआ देख भौजी हँस पड़ीं!

मेरा झूठ सुन भौजी को फिर से हँसी आ गई|

रसिका भाभी: तो एही खातिर तुम आपन भौजी का 'सियारनी' कहत रहे?

मैं: अब रात को तो सियार ही घुमते हैं!

ये सुन कर रसिका भाभी जोर से हँसने लगीं और भौजी फिर से प्यार भरे गुस्से से मुझे घूरने लगीं|

रसिका भाभी: अच्छा....तभय तुम हँसते हुए चल गए रहो!

इस तरह वहाँ हँसी-ख़ुशी का माहौल बना हुआ था| बातें करते-करते शाम हुई और सब लोग खेत से लौट आये| भौजी ने मुँह-हाथ धो कर सब के लिए चाय बनाई| नेहा मेरी पीठ पर चढ़ी हुई थी और मैं उसके साथ सवारी-सवारी खेल रहा था| उसे अपनी पीठ पर बिठाये एक चारपाई से दूसरी चारपाई पर छोड़ता और वो हरबार किराए के रूप में Kissi देती! शाम के छह बजे और नेहा मेरे साथ पकड़म-पकड़ाई खलेने लगी| खेल-खेल में मेरा ध्यान स्कूल पर गया लेकिन वहाँ कोई नहीं था| अब मुझे यकीन हो गया था की माधुरी मुझे बरगलाने के लिए वो सब कह रही थी, वो सच में थोड़े ही वहाँ मेरा इन्तेजार करने वाली थी! ये सोचते हुए मैं वापस नेहा के साथ खेलने में व्यस्त हो गया| रात हुई और खाने के बाद मैं और नेहा टहल रहे थे| नेहा मेरी गोद में थी और मैं उसे एक प्यारी-प्यारी कहानी सुना रहा था| तभी भौजी ने नेहा को आवाज मारी और उसे कुछ समझाया, नेहा दौड़ती हुई मेरे पास आई और मेरे कान में खुसफुसाई; "चाचू मम्मी ने कहा है की उन्हें आपसे कुछ बात करनी है तो आप अभी मत सोना!" नेहा की बात सुन मैं आँखें बड़ी करके भौजी को देखने लगा| मैं समझ तो गया ही था की भौजी को क्या बात करनी है पर उनका नेहा से इस तरह कहना मुझे ठीक नहीं लगा| मैंने नेहा को कहानी सुनाई और उसे सुला दिया| घंटे भर बाद भौसजी खाना खा कर आईं और मेरी चारपाई के पास आ कर खड़ी हो कर धीमी आवाज में बोलीं;

भौजी: मुझे न आपसे न कुछ बात करनी है!

भौजी ने बच्चों की तरह बात की जिसे सुन मेरा दिल पिघल गया|

मैं: आप चलो मैं नेहा को लेकर आता हूँ|

भौजी चुप-चाप अंदर चली गईं और मैं नेहा को गोद में लेकर अंदर घुसा|

मैं: मैंने आपको कहा था न की नेहा को मेरे पास सन्देश ले कर मत भेजा करो! अगर किसी दिन उसने सबके सामने कुछ कह दिया न तो बवाल हो जायेगा!

भौजी: माफ़ कर दो! आगे से फिर कभी ऐसा कुछ नहीं करुँगी!

भौजी ने कान पकड़ कर माफ़ी मांगी!

मैं: अच्छा बताओ क्या बात करनी थी आपको?

भौजी: ऐसे रूखे-सूखे?

मैं: आज की रात कुछ नहीं, आज सब के सब आंगन में सोये हैं!

ये सुन कर भौजी ने बच्चों जैसा मुँह बना लिया तो मुझे फिर से शक हुआ की कहीं फिर से उन्होंने चन्दर की शराब तो नहीं पी ली?

मैं: आज आपको बड़ा बड़ा प्यार आ रहा है मुझ पर? कहीं फिर से तो नहीं चढ़ा ली?

ये सुन कर भौजी ने मेरे सर पर हाथ रखा और बोलीं;

भौजी: आपकी कसम मैंने कोई नशा नहीं किया! वो तो आज...है न....बड़ा मन कर रहा है!

अब मुझे तसल्ली हो गई थी की उन्होंने पी नहीं है इसलिए मैंने उन्हें प्यार से समझाया;

मैं: यार आज रात सब्र कर लो! कल दिन में मैं कोई जुगत लगाता हूँ!

पर भौजी कहाँ मानने वालीं थीं उन्होंने घुप्पा सा मुँह फुलाया और सर झुका कर अपनी नाराजगी जाहिर की| मैंने एक नजर बाहर डाली की कोई यहाँ आ तो नहीं रहा और फिर तेजी से भाग कर भौजी को अपनी बाहों में भर लिया| मैंने उनकी ठुड्डी ऊपर की और उनके कांपते हुए अधरों को अपने मुँह से ढक दिया| एक बार अच्छे से भौजी के होठों को चूस मैं अलग होने लगा की भौजी ने अपनी बाहें मेरे गले में डाल दिन और कस कर अपने होठों पर जकड़े रखा| हमार प्रेम मिलाप अगले चरण पर पहुँचता उससे पहले ही नेहा कुनमुनाते हुए उठ बैठी| भौजी ने एकदम से मुझे अपनी बाहों से आजाद किया और मैं ये देख कर हँस पड़ा| शुक्र था की नेहा ने कुछ देखा नहीं था वरना उसके सवाल का जवाब देना मुश्किल हो जाता! मैंने नेहा को गोद में उठाया और बाहर आ कर अपने बिस्तर पर लेट गया| लेटते ही नेहा मेरी छाती पर चढ़ गई और सो गई| मैं भी उसकी पीठ पर हाथ फेरता रहा और कुछ समय बाद मुझे भी नींद आ गई|

जारी रहेगा भाग - 4 में.....
 

ग्यारहवाँ अध्याय : एक ही भूल!


भाग - 4

अब तक आपने पढ़ा:

हमार प्रेम मिलाप अगले चरण पर पहुँचता उससे पहले ही नेहा कुनमुनाते हुए उठ बैठी| भौजी ने एकदम से मुझे अपनी बाहों से आजाद किया और मैं ये देख कर हँस पड़ा| शुक्र था की नेहा ने कुछ देखा नहीं था वरना उसके सवाल का जवाब देना मुश्किल हो जाता! मैंने नेहा को गोद में उठाया और बाहर आ कर अपने बिस्तर पर लेट गया| लेटते ही नेहा मेरी छाती पर चढ़ गई और सो गई| मैं भी उसकी पीठ पर हाथ फेरता रहा और कुछ समय बाद मुझे भी नींद आ गई|

अब आगे:

अगले दिन सुबह भौजी उठ कर बाहर आईं तो नेहा को मेरी छाती पर सोता हुआ देख उनके चेहरे पर मुस्कान आ गई| उन्होंने बड़ी सावधानी से नेहा को उठाना चाहा पर उनका हाथ लगते ही मेरी नींद खुल गई और मैंने नेहा को अपनी बाहों में कस लिया| इतने में माँ वहां आ गई और मुझे और नेहा को देख उन्होंने पिताजी को आवाज दे कर बुलाया;

पिताजी: अरे वाह! चाचा-भतीजी बड़े प्यार से सोये हुए हैं!

मैं पिताजी की बात पर मुस्कुरा दिया और नेहा के सर को चूमा| फिर बड़ी सावधानी से नेहा को अपने सीने से चिपकाये हुए ही मैं उठा| तभी नेहा जाग गई और उसने मेरे दाहिने गाल पर पप्पी की| चाचा-भतीजी का ये प्यार देख माँ-पिताजी और भौजी बहुत खुश थे! मैंने नेहा को नीचे उतारा और वो फ्रेश होने चली गई| मैं भी खड़ा हो कर अंगड़ाई लेने लगा, माँ-पिताजी आपस में बात करते हुए चले गए और अब बस मैं और भौजी ही अकेले खड़े रह गए थे|

भौजी: बड़ी अच्छी नींद आई आपको?

मैं: यार अपनी लाड़ली के साथ चिपक कर सोया था तो नींद तो बढ़िया आणि ही थी!

ये सुन भौजी ने गुस्से से मुझे देखा और बोलीं;

भौजी: जा के उसी के पास रहो!

इतना कह कर वो गुस्से में चली गईं| खैर ये नाराजगी बस दो पल की थी, मैं फ्रेश हो कर चाय पीने आया तो भौजी अब भी मुझसे नाराज थीं| मैं चुप-चाप छप्पर के नीचे बैठ गया, वहाँ उस वक़्त माँ, बड़की अम्मा और रसिका भाभी बैठे थे| भौजी मेरी चाय ले कर आईं और मेरे सामने रख आकर चली गईं, तो अब मुझे बात शुरू करनी थी;

मैं: माँ पहले तो चाय मेरे हाथ में दी जाती थी और अब देखो?

मैंने भौजी को प्यार-भरा ताना मरा तो भौजी रसोई से बोलीं;

भौजी: तब हमरे पास बैठत रहेओ! हमरे संगे खात रहेओ! हमरे संगे खेलत रहेओ! पर अब आपन लाड़ली संगे खावत हो, अपनी लाड़ली संगे खेलत हो और तो और उसी के संगे सोवत हो तो आपन लाड़ली से काहे नहीं कहतेउ की चाय बनाये दे!

आज भौजी ने जिंदगी में पहली बार मुझसे भोजपुरी में बात की थी और उनकी बात सुन कर सारे हँस पड़े!

मैं: ठीक है न दिहौ, हमार लाड़ली हमरे लिए चाय बनाई!

मेरी बात सुन भौजी मुँह बनाते हुए बोलीं;

भौजी: ठीक है, एक दिन हमका भी चूल्हा-चौका से छुट्टी मिली!

ये कहते हुए वो रसोई से निकल आईं और छप्पर के नीचे सब के साथ बैठ चाय पीने लगीं|

मैं: नेहा

मैंने नेहा को एक आवाज मारी और वो एकदम से भागी हुई आई|

मैं: बेटा आज आपको खाना बनाना है, बना लोगे न?

मैंने नेहा से मजाक करते हुए कहा तो वो उत्साह से भर गई और हाँ में गर्दन हिलाने लगी| फिर बिना आगे कुछ कहे वो वहाँ से चली गई;

भौजी: देख लो अपनी लाड़ली को, काम करने की बारी आई तो भाग गई!

पर इतने में नेहा हाथ-मुँह धो कर लौट आई और उसे देख सब समझ गए की वो रसोई में घुसने से पहले अपने हाथ-मुँह धोने गई थी|

मैं: मेरी लाड़ली भागी नहीं थी, हाथ-मुँह धोने गई थी! खामखा मेरी लाड़ली पर आरोप लगाते हो!

अपनी तरफदारी सुन नेहा खुश हो गई और मुझसे बोली;

नेहा: चाचू बताओ मैं क्या खाना बनाऊँ?

पता नहीं क्यों पर रसिका भाभी बीच में बोल पड़ीं;

रसिका भाभी: बड़ी आई खाना बनाने वाली, सब्जी काटना भी आवत है?

ये सुन कर नेहा मायूस हो गई और ये मुझे कतई गंवारा नहीं था तो मैं उसकी तरफदारी करते हुए बोला;

मैं: ये सब कोई माँ के पेट से सीख कर नहीं आता! आपने भी यहीं आकर सीखा न?

मैंने थोड़े रूखेपन से कहा और नेहा को अपने पास बुलाया| इधर माँ भी उसके बचाव में उतर गईं;

माँ: मुन्नी आज तू ही खाना बना, मैं तुझे सिखाती हूँ! तेरा चाचा भी जब तेरे जितना था तो मुझे खाना बनाते हुए देखता था|

माँ ने नेहा का हाथ पकड़ा और उसे ले कर सब्जी काटने बैठ गईं| नेहा बड़े गौर से उन्हें सब्जी काटते हुए देखने लगी, इधर रसिका भाभी का चेहरा शर्म से झुक गया| मैं भी माँ के पास बैठ गया और नेहा को गोद में बिठाते हुए बोला;

मैं: मैंने भी रोटी बनाना माँ को देखते हुए सीखा, हाँ कभी गोल नहीं बना पाया!

ये सुन कर नेहा हँस पड़ी और वहाँ का माहौल फिरसे खुशनुमा हो गया|

कुछ देर बाद बड़की अम्मा माँ को अपने साथ कुछ काम से ले गईं और अब घर में हम चार लोग रह गए थे, बाकी सब खेतों में थे! भौजी अब भी मुझसे नाराज थीं और मुझे उन्हीं मनाना था| भौजी कुछ मसाला पीसने अपने घर गईं तो मैं भी उनके पीछे चल दिया| भौजी मसाला पीसने बैठने वाली थीं की मैंने उन्हें पीछे से अपनी बाहों में जकड़ लिया| मेरे छूटे ही भौजी के मुँह से सिसकी निकली पर उन्होंने अपना नाराज होना जारी रखा और बोलीं;

भौजी: जा कर अपनी लाड़ली को प्यार करो!

मैं: अच्छा बाबा! माफ़ कर दो! मैं तो आपसे मसखरी कर रहा था!

मैंने भौजी को अपनी बाहों में जकड़े हुए कहा पर वो नहीं मानी और अपनी नाराजगी जारी रखते हुए बोलीं;

भौजी: मैं जानती हूँ आप नेहा को ही प्यार करते हो! मुझे थोड़े ही करते हो!

भौजी ने बच्चे की तरह मुँह बनाते हुए कहा|

मैं: अच्छा बाबा! मैं अपने इस छोटे से बच्चे को खुश करने के लिए क्या करूँ?

मैंने भौजी को अपनी तरफ घुमाते हुए कहा|

भौजी: हम्म्म....सोचना पड़ेगा!

मैं: ठीक है सोचो पर तबतक तो मुझे एक पप्पी दे दो!

भौजी; ना पप्पी जा कर अपनी लाड़ली की लो, मेरी पप्पी फ्री की नहीं है!

इतना कह कर भौजी बाहर भाग गईं, वो जानती थीं की अगर वो अंदर रुकीं तो खुद को मुझे चूमने से रोक नहीं पाएंगी| मैं भी भौजी के पीछे बाहर आया और अपनी कमर पर हाथ रख कर उन्हें देखने लगा| मुझे ऐसे देखते ही भौजी हँस पड़ीं, तभी रसिका भाभी बड़े घर से आईं और मैं नेहा को बुलाने का बहाना कर छप्पर नीचे घुसा| नेहा माँ द्वारा बताये हुए तरीके से साग चुन रही थी और व्यस्त थी| मैंने पीछे से आ कर उसे अपनी गोद में उठा लिया और भौजी को दिखाते हुए उसके गालों पर पप्पी करने लगा| ये देख भौजी के मन में लालच पैदा हुआ पर बेचारी उस समय कुछ नहीं कर सकती थीं| नेहा भी अब मुझे पप्पी देने को आतुर थी और उसने भी मुझे बड़ी साड़ी पप्पियाँ दी! ये देख कर भौजी को लगा जैसे उनके चुंबन की कमी नेहा की पप्पियों ने पूरी कर दी हो! मैंने नेहा को बात-बॉल लाने को कहा और मैंने पलट कर भौजी से कहा;

"एक सिर्फ तेरा ही प्यार नहीं इस दुनिया में...

मुझे मेरी लाड़ली भी प्यार दे सकती है!"

ये सुन कर भौजी मुझे जीभ चिढ़ाने लगीं! ये सब रसिका भाभी के सामने हुआ और वो बस मुँह बाये हमें देखती रही| इतने में नेहा बात-बॉल ले आई तो मैं उसके साथ आंगन में खेलने लगा|

कुछ देर बाद माधुरी की माँ हमारे घर आईं ओर रसिका भाभी को पूछने लगी| पता नहीं उनकी रसिका भाभी से क्या बात हुई और वो जल्दी-जल्दी में माधुरी के घर निकल गईं| मुझे ये देख थोड़ा अट-पटा तो लगा पर मैंने ज्यादा ध्यान नहीं दिया और नेहा के साथ खेलता रहा| करीब एक घंटे बाद रसिका भाभी लौटी, उस समय मैं छप्पर के नीचे नेहा के साथ बैठा खेल रहा था और भौजी रसोई में आँटा गूँद रहीं थी| रसिका भाभी भौजी की तरफ पीठ कर के खड़ी हो गईं और धीमी आवाज में मुझसे बोलीं;

रसिका भाभी: मानु तनिक हमरे साथे चलो!

उनकी आवाज से बेचैनी झलक रही थी|

मैं: पर कहाँ?

मैंने हैरान होते हुए पुछा|

रसिका भाभी: माधुरी तोहसे मिला चाहित है!

रसिका भाभी के चेहरे पर अब बहुत गंभीर रेखाएँ थीं, पर मेरे दिमाग में अब भी माँ की दी हुई चेतावनी थी इसलिए मैं ने सावधान होते हुए पुछा;

मैं: पर क्यों?

ये सुन कर रसिका भाभी ने मेरे आगे हाथ जोड़ दिए और मिन्नत करते हुए बोलीं;

रसिका भाभी: हम तोहरे आगे हाथ जोडित है! बस एक आखरी बार ऊ से मिल लिओ, पिछले तीन दिनों से ऊ कछु नहीं खाइस है, बस तोहसे कुछ कहा चाहित है! उसके लिए ना सही काम से काम हमरे लिए ही एक बार चलो!

जिस तरह से रसिका भाभी ने हाथ जोड़े उससे साफ़ था की वो झूठ नहीं बोल रहीं, इसलिए मैंने उनकी बात पर विश्वास कर लिया| उधर भौजी इस सब से अनजान अपना काम करने में व्यस्त थीं, मैं चुप-चाप उठा और माधुरी के घर की तरफ चल दिया और मेरे पीछे-पीछे रसिका भाभी भी आ गईं| हम दोनों 5 कदम की दूरी पर चल रहे थे, उनका तो पता नहीं पर मेरे मन में बहुत से सवाल थे की आखिर माधुरी ने मुझे क्यों बुलाया है? क्या मुझसे शादी करने के लिए वो फिर से मुझ पर दबाव बनाना चाहती है? अगर ऐसा है तो मैं एक पल वहाँ नहीं रुकूँगा! मैं अभी ये सोच रहा था की रसिका भाभी पीछे से बोलीं;

रसिका भाभी: मानु, माधुरी की माहताहरी बाजार गई हैं और ऊ हमका हियाँ बिठा के गई रहीं! तुम घर में किसी का कछु ना कहना वरना आज हमार शामत है!

रसिका भाभी ने अपनी सफाई देते हुए कहा| अब मुझे उनकी चुगली करने का शौक नहीं था जो मैं सब को बताता फिरता|

मैं: मैं कुछ नहीं कहूँगा पर उसके पिताजी कहाँ हैं?

रसिका भाभी: ऊ शादी के सिल-सिले में बनारस गए हैं| उनका तो पता भी नाहीं की माधुरी हियाँ बीमार है! घर में केवल उसकी माहताहरी है और कउनो नाहीं जो ऊ का ध्यान रखे|

मैं: क्यों आप हो ना?!

ये सुन रसिका बहभी को लगा की मैं उन्हें ताना मार रहा हूँ|

मैं: चिंता मत करो मैं घर में सब को समझा दूँगा, आप यहीं रह के उसका ख्याल रखा करो और अगर किसी चीज की जर्रूरत हो तो मुझे कहना मैं अजय भैया से कह दूँगा|

हम माधुरी के घर पहुँच गए थे, आज सालों बाद मैं इस तरफ आया था| तीन कमरों का पक्का बना हुआ घर, आगे एक बड़ा सा आंगन जिसमें एक ट्रेक्टर खड़ा था, दाहिनी तरफ एक कुआँ और बायीँ तरफ कुछ जानवर बंधे थे! मैं ये सब देखने में व्यस्त था की रसिका भाभी ने मुझे घर के भीतर चलने को कहा| पर मैंने उन्हें आगे चलने को कहा, भीतर जा कर देखा तो माधुरी एक चारपाई पर पड़ी थी और उसकी हालत बहुत ख़राब लग रही थी| पिछले तीन दिन से उसने कुछ खाया-पीया नहीं था इसलिए काफी कमजोर दिख रही थी! मैं उसे देख कर चुप-चाप खड़ा रहा, समझ ही नहीं आया की उसे क्या कहूं? मैंने सोचा की इसने ही मुझे बुलाया है तो ये ही बात शुरू करे तो बेहतर है, खामखा अगर मैंने अपनी दिलचस्पी दिखाई तो ये जाने उसका क्या अर्थ निकाले?! रसिका भाभी उसके बगल में बैठ गईं और उसे जगाते हुए बोलीं;

रसिका भाभी: माधुरी ...उठ...!

माधुरी ने बड़ी मुश्किल से आँख खोली और उसकी नजर सबसे पहले मुझ पर पड़ी और मुझे देखते ही उसके चेहरे पर मुस्कान आ गई| मैं अब भी खामोश हाथ बाँधे उसे देख रहा था|

माधुरी: भाभी मुझे इनसे कुछ बात करनी है...अकेले में|

माधुरी ने अपनी ताक़त बटोरते हुए कहा तो भाभी चुप-चाप उठ के बहार चली गईं!

जिस हालत में मैं उसे देख रहा था उसमें उसे देख मुझे दया आ रही थी, मैं जानता था की ये उसकी सिर्फ जिद्द है और अपनी जिद्द के चलते वो अपनी जान देने पर तुली है! पता नहीं क्यों पर शायद वो ये समझना ही नहीं चाहती की मैं किसी और का हूँ तो इस तरह खुद को यातनाएं देने से मैं उसका कैसे हो सकता हूँ?! मैंने सोचा की उसे एक बार फिर प्यार से समझाता हूँ शायद समझ जाए;

मैं: आखिर तु क्यों अपनी जान देने पर तुली है?

माधुरी किसी तरह से उठी और दिवार का सहारा ले कर बैठ गई|

माधुरी: सब से पहले तो मुझे माफ़ कर दो, मैं दो दिन स्कूल आके आपका इन्तेजार नहीं कर पाई| तबियत अचानक इतनी जल्दी ख़राब हो जाएगी मुझे इसकी उम्मीद नहीं थी! आप भी सोच रहे होगे की कैसी लड़की है जो....

नजाने क्यों उसकी बात में मुझे सच्चाई झलक रही थी, इसलिए मैंने उसकी बात काट दी;

मैं: प्लीज!!! ऐसा मत करो!!! क्यों मुझे पाप का भागी बना रही हो? ये कैसी जिद्द है, तुम्हें लगता है की मैं इस सब से पिघल जाऊँगा? मैं किसी और का हो चूका हूँ तो तुम्हारे इस तरह जिद्द करने का कोई फायदा नहीं होगा!

माधुरी: मेरी तो बस एक छोटी सी जिद्द है, जिसे आप बड़ी आसानी से पूरा कर सकते हो पर करना नहीं चाहते!

माधुरी ने सारी बात मेरे सर पर डाल दी|

मैं: वो छोटी सी जिद्द मेरी जिंदगी तबाह कर देगी, मैं जानता हूँ की तेरे दिमाग में क्या चल रहा है! तु उस जिद्द के जरिये मुझे पूरे गाँव में बदनाम करना चाहती है!

ये सुन कर माधुरी ने अपने तकिये के नीचे से एक पर्ची निकाली और मेरी तरफ बढ़ा दी|

माधुरी: ये लो इसे पढ़ लो!

उसने बड़े आत्मविश्वास से कहा| मैंने वो पर्ची खोल के देखि तो उसमें लिखा था:

'आप मुझगे गलत मत समझिए, मेरा इरादा आपको बदनाम करने का बिलकुल नहीं है| मैं सिर्फ आपको आपने कौमार्य भेंट करना चाहती हूँ! इसके आलावा मेरा कोई और उद्देश्य नहीं है! अगर उस दौरान मैं गर्भवती भी हो गई तो इसमें आपकी कोई गलती नहीं होगी, मैं उस बच्चे के लिए आप पर किसी भी तरह का कोई दबाव नहीं बनाऊँगी! लेकिन अगर आपने मेरी बात नहीं मानी तो मैं अपनी जान दे दूँगी!'

पर्ची पढ़ कर मैं हैरानी से उसकी तरफ देखने लगा और तब माधुरी बोली;

माधुरी: मैं ये लिखित में आपको इसलिए दे रही हूँ ताकि आपको तसल्ली रहे की मैं आपको आगे चल के ब्लैकमेल नहीं करुँगी! इससे ज्यादा मैं आपको और संतुष्ट नहीं कर सकती| प्लीज मैं अब और इस तरह जिन्दा नहीं रह सकती! अगर अब भी आपका फैसला नहीं बदला तो आप मुझे थोड़ा सा ज़हर ला दो, उसे खा के मैं आत्मा हत्या कर लूँगी| आप पर कोई नाम नहीं आएगा और मुझे भी इस जिंदगी से छुट्टी मिल जाएगी! कम से कम आप इतना तो आप कर ही सकते हो?!

उसके शब्द मुझे बहुत चुभे इसलिए मैं उस पर चिलाते हुए बोला;

मैं: तु पागल हो गई है? या बिमारी में तुने अपने होश खो दिए हैं? तेरे लिए मैं उस लड़की से धोका कैसे कर सकता हूँ?

माधुरी: धोका कैसा? आपको रीतिका को ये बात बताने की क्या जर्रूरत है?

मैं: मैं तेरी तरह नहीं हूँ जो किसी से धोका कर के उसे अँधेरे में रखूँ! और मेरी मैं अपनी अंतरात्मा को क्या जवाब दूँ?

मैंने माधुरी से सवाल पुछा तो उसके चेहरे से साफ़ था की उसे इस सब से कोई फर्क नहीं है! मेरे पास सिवाए उसे समझाने के और कोई चारा नहीं था;

मैं: प्लीज मुझे ऐसी हालत में मत डाल की न तो मैं जी सकूँ और न मर सकूँ!

मैंने सोचा की थोड़ा उसे emotional blackmail करके देखूं शायद वो पिघल जाए! पर वो अपनी बात पर अड़ी थी;

माधुरी: फैसला आपका है, या तो मेरी इच्छा पूरी करो या मुझे मरने दो?

उसने दो टूक में अपनी बात कही और सारी बात मेरे सर मढ़ दी! अब मुझे कैसे भी इस फैसले को टालना था तो उसका सबसे आसान रास्ता था समय माँगना;

मैं: अच्छा मुझे कुछ सोचने का समय तो दे?

पर नहीं जी, उसने तो मुझ पर मानसिक दबाव बनाने की पूरी तैयारी कर रखी थी!

माधुरी: समय ही तो नहीं है मेरे पास देने के लिए! रेत की तरह समय आपकी और मेरी मुट्ठी से फिसलता जा रहा है!

ये माधुरी के आखरी शब्द थे जिनके आगे अब मेरा कोई भी तर्क चलने वाला नहीं था! एक सत्रह साल के लड़के के सर पर किसी दूसरे ने अपनी मौत की तलवार लटका दी थी! पंचायत में उसके आँसूँ देख मैंने खुद को उसके दिल टूटने का दोषी मान लिया था तो आज जब वो जान देने की बात कर रही थी तो मैं कैसे न पिघलता? भले ही मैं उससे प्यार नहीं करता था पर फिर भी मैं उसकी मौत का जिम्मेदार नहीं बनना चाहता था!

अब मेरे पास सिवाए उसकी इच्छा पूरी करने के कोई चारा नहीं था, लेकिन मैं उसकी अधीरता जानता था| मेरे हाँ कहते ही वो मेरे पीछे हाथ-धो कर पद जाती की मैं उसकी इच्छा जल्दी पूरी करूँ पर मुझे अभी थोड़ा समय चाहिए था! भले ही मैं एक 'पाप' करने जा रहा था पर मैं कतई पकड़ा जाना नहीं चाहता था|

मैं: ठीक है, पर मेरी कुछ शर्तें हैं|

इतना सुनते ही माधुरी के चेहरे पर विजयी मुस्कान आ गई!

मैं: सबसे पहली शर्त; तुम्हें शारीरिक रूप से स्वस्थ होना होगा, क्योंकि अभी तुम्हारी हालत ठीक नहीं है, तुमने पिछले तीन दिनों से कुछ खाया नहीं है और तुम काफी कमजोर भी लग रही हो|

माधुरी: मंजूर है|

माधुरी एकदम से बोली|

मैं: दूसरी शर्त, मैं ये सब सिर्फ और सिर्फ मजबूरी में कर रहा हूँ! ये सिर्फ एक बार के लिए है और तुम दुबारा मेरे पीछे इस सब के लिए नहीं पड़ोगी?

माधुरी: मंजूर है|

बेमन से ही सही पर उसने हामी भरी|

मैं: और आखरी शर्त, जगह और दिन मैं चुनुँगा?

माधुरी: मंजूर है|

तीनों शर्तें माधुरी ने मान ली थीं पर अब भी उससे एक बात साफ़ करना रह गया था;

मैं: और हाँ मुझसे प्यार की उम्मीद मत करना! मैं तुम्हें प्यार नहीं करता और न कभी करूँगा| ये सब इसीलिए है की तुने जो आत्महत्या की तलवार मेरे सर पर लटका रखी है उससे मैं अपनी गर्दन बचा सकूँ|

प्यार न पाने की बात से माधुरी कुछ मायूस तो हुई पर उसकी फिलहाल हालत ये थी की उसे जो मिल रहा है वही उसके लिए काफी है|

मैं: बाकी रसिका भाभी को तुम क्या बोलोगी की हम अभी क्या बात कर रहे थे?

माधुरी: आप उन्हें अंदर बुला दो|

माधुरी मुस्कुराते हुए बोली| मैंने बहार झाँका तो रसिका भाभी दूर कुएँ के पास खड़ी बिलायती (जंगल जलेबी) तोड़ रही थीं, चलो शुक्र है की उन्होंने कुछ नहीं सुना! मैंने दरवाजे से ही भाभी को आवाज मारी तो भाभी घर के भीतर आईं;

रसिका भाभी: हाँ बोलो, क्या हुआ? मेरा मतलब की क्या बात हुई तुम दोनों के बीच?

रसिका भाभी बिलायती खाते हुए बोलीं|

माधुरी: मैं बस इन्हें अपने दिल का हाल सुनाना चाहती थी|

माधुरी की ये बात बड़ी दो मुहि थी! मैं जानता था की रसिका भाभी इसका उल्टा ही मतलब निकलेंगी और घर जा कर सबसे कह देंगी की हम दोनों के बीच प्रेम पनपने लगा है| इसलिए मैंने माधुरी की बात को पूरा करते हुए कहा;
मैं: और मैं माधुरी को समझा रहा था की वो इस तरह से खुद को और अपने परिवार को परेशान करना बंद कर दे| वैसे भी इसकी शादी जल्द ही होने वाली है तो ये सब करने का क्या फायदा?
मेरी ये बात माधुरी को जर्रूर खली पर फिलहाल तो उसकी सबसे बड़ी इच्छा पूरी होने वाली थी, इसलिए वो चुप रही| मैं आगे कुछ नहीं बोला और बाहर चल दिया, मेरे पीछे दोनों के बीच क्या बात हुई मुझे नहीं पता| मैं घर की ओर चल दिया पर जानबूझ कर मैंने लम्बा रास्ता चुना, मेरा दिमाग अब घूमने लगा था, ये सोच-सोच कर की मैं भौजी को क्या कहूँ? अगर मैं उन्हें ये ना बताऊँ तो ये उनके साथ विश्वासघात होगा और अगर सच बोलूँ तो वो ये बात कभी बर्दाश्त नहीं करेंगी! अपनी इसी कश्मकश में मैं दो किलोमीटर घूम लिया था पर जवाब अब भी नहीं मिला था! इसी कारन मेरी शकल पर बारह बजे थे! आज गर्मी बहुत ज्यादा थी और मैं पसीने से तरबतर था! मैं घर पहुँचा और लड़खड़ाते हुए क़दमों से छप्पर की ओर बढ़ा की तभी मुझे अचानक चक्कर आया और मैं आंगन में गिर पड़ा| भौजी ने रसोई से मुझे गिरते हुए देखा तो वो भागती हुई मेरे पास आईं, बड़ी मुश्किल से उन्होंने मुझे उठा कर चारपाई पर लिटाया| मुझे बेहोश हुए करीब आधा घंटा हुआ था, जब मेरी आँख खुली तो मेरा सर भौजी की गोद में था और वो पंखे से मुझे हवा कर रहीं थी| भौजी की आँखों में आँसूँ थे और मुझे होश में आया देख उनके चेहरे पर से परेशानी की लकीरें धुल गईं! मैं आँखें मींचते हुए उठा और भौजी से पानी माँगा| पानी पीने के बाद मुझे कुछ होश आया;
भौजी: आप ठीक तो हो?

भौजी ने घबराते हुए पुछा|

मैं: कुछ नहीं... चक्कर आ गया था|

मैंने भौजी से माधुरी और मेरे बीच हुई बात छुपाई!

भौजी: आप ने तो मेरी जान ही निकाल दी थी! डॉक्टर के जाना है?

मैं: नहीं, मैं अब ठीक महसूस कर रहा हूँ|

आगे भौजी कुछ पूछतीं उससे पहले ही रसिका भाभी आ गईं, उनके आते ही मैं उठ खड़ा हुआ;

भौजी: आप कहाँ जा रहे हो?

मैं: नहाने....बहुत गर्मी लग रही है!

मैंने बहाना बनाया और बड़े घर आ कर लेट गया| भौजी को कुछ शक होने लगा था तो उन्होंने मेरे पीछे नेहा को भेज दिया| जब नेहा ने मुझे लेटा हुआ देखा तो वो भी आ कर मेरी बगल में लेट गई| पर आज मेरा जी उचाट हो गया था! उसके लेटते ही मैं उठ खड़ा हुआ और आंग में नल (हैंडपंप) से पानी भरने लगा| ठन्डे-ठन्डे पानी से नहाया तो जिस्म की गर्मी तो खत्म हो गई पर मन की खलबली शांत नहीं हुई! भौजी से यूँ बात छुपाना मुझे ठीक नहीं लग रहा था पर उनसे ये कहने की भी हिम्मत नहीं जुटा पा रहा था की मैं माधुरी की अच्छा पूरी करने जा रहा हूँ! खाना बनने तक मैं बड़े घर में ही अकेला बैठा रहा और सोचता रहा की आगे क्या करूँ! कुछ देर बाद भौजी नेहा को मुझे बुलाने भेजा, नेहा मेरा हाथ पकड़ कर मुझे खींचते हुए छप्पर के नीचे लाइ जहाँ सब बैठे थे| मैंने सबके साथ खाना खाया पर किसी को भी माधुरी और मेरे मिलने की बात नहीं बताई| खाना खा कर सब आराम करने लगे और मैं भी आंगन में पेड़ तले चारपाई बिछा कर लेट गया| नेहा आ कर मुझे खेलने को बुलाने आई; "अभी बहुत गर्मी है! चलो सो जाओ!" मैंने कहा और दूसरी तरफ करवट ले कर लेट गया| नेहा भी मेरी बगल में लेट गई पर वो मुझसे कुछ न कुछ बात करने लगी पर चुप लेटा रहा| कुछ देर में मेरी आँख लग गई और जब मैं उठा तो शाम हो चुकी थी| अजय भैया ने मुझे ऐकले बैठा देखा तो वो मेरे पास आ कर बैठ गए और दिल्ली की बात करने लगे| इसी बीच भौजी चाय ले कर आईं और वो भी मेरी बातें सुनने लगीं| मैं जानबूझ कर भौजी से नजरें चुरा रहा था और उम्मीद कर रहा था की भौजी मेरी ये चोरी न पकड़ लें! पर जब दो लोग प्यार में होते हैं तो बर्ताव में जरा भी फर्क आने पर आप उसे तुरंत पकड़ लेते हो! जहाँ एक तरफ मुझे दोषी होने की अनुभूति हो रही थी क्योंकि मैंने बिना भौजी से पूछे माधुरी को हाँ कर दी थी तो वहीँ दूसरी तरफ भौजी आज बहुत खुश थीं! उन्हें खुश देख दिल को सुकून हो रहा था पर दर भी लग रहा था की क्या होगा जब उन्हीं सच पता चलेगा?! भौजी मेरी उदासी पकड़ चुकी थीं, वो बस सही मौके का इंतजार कर रहीं थीं ताकि मुझसे बात कर सकें! रात के खाने के बाद मैं अपनी चारपाई पर लेटा हुआ था की नेहा मेरे पास आई और मेरी बगल में लेट गई| "चाचू कहानी सुनाओ न|" अब मैं उसकी बात कैसे टालता, इसलिए मैं उसे कहानी सुनाने लगा| धीरे-धीरे वो कहानी सुनते हुए सो गई लेकिन मेरी नींद अब भी गायब थी| रह-रह के मन में माधुरी की इच्छा पूरी करने की बात घूम रही थी| मैंने दूसरी ओर करवट लेनी चाही पर नेहा ने मुझे अपने छोटे-छोटे हाथों से जकड़ रखा था, अगर मैं करवट लेता तो वो जाग जाती इसलिए मैं सीधा ही लेटा रहा| कुछ समय बाद भौजी खाना खा कर, रसोई समेत कर मेरे पास आके बैठ गईं और मेरी उदासी का कारन पूछने लगी;

भौजी: क्या हुआ आपको? क्यों आप मेरे साथ ऐसा बर्ताव कर रहे हो? जर्रूर आपके और माधुरी के बीच कुछ हुआ है?

माधुरी का नाम सुनते ही मैं हैरानी से उन्हें देखने लगा, क्योंकि मैंने तो उन्हें नहीं बताया की मैं माधुरी से मिलने गया था!

भौजी: छोटी (रसिका भाभी) बता रही थी की आपने माधुरी को समझा दिया और उसने खाना पीना शुरू कर दिया है| बताओ ना क्या बात हुई आप दोनों के बीच?

जो बात मुझे अच्छी लगी वो ये थी की भौजी ने मेरा उन्हें बिना बताये माधुरी से मिलने जाने पर उन्हें जरा भी शक नहीं हुआ| अब मेरा दिल मुझे झूठ नहीं बोलने दे रहा था इसलिए मैंने सच बोलना ही ठीक समझा|

मैं: कुछ ख़ास नहीं, वही उसका जिद्द करना|

भौजी: वो फिर उसी बात के लिए जिद्द कर रही है न?

मैं: हाँ ...

पर तभी मेरी अंतरात्मा ने मुझे आगे कुछ बोलने से रोक दिया| ये सच सुन भौजी का मन खराब हो जाता, आज सुबह से उनकी ख़ुशी उनके चेहरे से झलक रही थी और मैं उस ख़ुशी को मटियामेल नहीं करना चाहता था, इसलिए मैं आगे कुछ नहीं बोला|

भौजी: तो आपने क्या कहा?

भौजी की बात सुन मैं फिर दुविधा में पद गया की सच कहूँ या झूठ? दिमाग कह रहा था की झूठ बोल दे पर अंतरात्मा सच बोलना चाहती थी, इसलिए मैंने सच बोला बस थोड़ा घुमा कर बोला!

मैं: मन अब भी ना ही कहता है|

इससे पहले की भौजी कोई दूसरा सवाल करतीं मैंने बात बदल दी;

मैं: खेर छोडो इन बातों को, आप ये बताओ की आज सुबह से आप बहुत खुश दिख रहे हो?

भौजी मुझ पर इतना विश्वास करती थीं की उन्होंने आगे कुछ नहीं पुछा और मेरे पूछे सवाल का जवाब मुस्कुराते हुए दिया;

भौजी: (अपने पेट पे हाथ रखते हुए) वो मुझे....लगता है की....मैं माँ बनने वाली हूँ!

भौजी ने शर्माते हुए कहा! ये सुन कर मेरे दिमाग ने जैसे मेरी ही अंतरात्मा को लताड़ते हुए कहा; 'अगर मानु सच बोल देता तो इस ख़ुशी को तेरी (अंतरात्मा) ही नजर लग जाती!' ये सुन अंतरात्मा शांत हो गई|

मैं: अच्छा बताओ की अगर लड़का हुआ तो?

भौजी की बात सुन मेरे मन में जिज्ञासा उतपन हुई की आखिर उन्हें क्या चाहिए, बेटा या बेटी?

भौजी: (मुस्कुराते हुए) तो मैं खुश हूँगी!

मैं: और अगर लड़की हुई तो ?

भौजी: मैं ज्यादा खुश हूँगी, क्योंकि मैं लड़की ही चाहती हूँ! आप क्या चाहते हो?

मैं: लड़की...बिलकुल नेहा जैसी!

मैंने खुश होते हुए कहा|

भौजी: देखा हम दोनों के दिल इतने मिले हुए हैं की दोनों को ही लड़की चाहिए! अच्छा ये बताओ की उसका नाम क्या रखेंगे?

मैं: स्तुति!

ये नाम सुन भौजी आँखें फाड़े मुझे देखने लगीं!

भौजी: इतना पवित्र नाम! आपने ये नाम पहले ही सोच रखा था?

मैं: हाँजी!

मैंने बड़े गर्व से कहा|

भौजी: और अगर लड़का हुआ तो?

मैं: आयुष!

ये नाम सुन भौजी फिर से मुझे आँखें फाड़े देखने लगीं!

भौजी: आपको इतना अच्छे नाम कैसे सूझ जाते हैं?!

मैं: अगर आप मेरे बच्चे बनने की माँ बनने का ख्याल पाले हुए थे तो क्या मैं हमारे बच्चों के नाम तक नहीं सोच सकता?

भौजी: मैंने कभी इतने अच्छे नाम की कल्पना तक नहीं की थी! मेरे दिमाग में तो बस वही राकेश, राजेश, पूनम जैसे नाम थे पर आपके सुझाये नाम बड़े पावन हैं!

मैं: पावन नाम के साथ उनमें अच्छे संस्कार डालना भी हमारी ही जिम्मेदारी है|

ये सुन भौजी ने जिम्मेदारी लेते हुआ कहा;

भौजी: उसकी आप चिंता न करो! बच्चे में सिर्फ आपके ही गुण होंगे|

मैं: और आपका प्यार!

ये सुन भौजी एकदम से शर्मा गईं, अब मुझे उनसे थोड़ी मस्ती करने की सूझी;

मैं: अच्छा एक बात बताओ, अगर जुड़वाँ हुए तो?

भौजी: हाय राम!!! मैं तो ख़ुशी से ही मर जाऊँगी!

ये कह कर भौजी ने रंग में भंग डाल दिया था!

मैं: (गुस्सा दिखाते हुए) आपने फिर मरने मारने की बात की?

भौजी: (कान पकड़ते हुए) माफ़ कर दो जी! आज से फिर कभी ऐसा कुछ नहीं बोलूँगी!

खैर उस वक़्त मैंने उन्हें माफ़ कर दिया| इतने में नेहा नींद में कुनमुनाई, शायद हमारी इस खुसर-फुसर से उसकी नींद में विघ्न पड़ रहा था| अब चूँकि बच्चों की बात चल रही थी तो मन में एक सवाल आया;

मैं: आपने अभी तक नेहा का दाखिला स्कूल में क्यों नहीं कराया?

ये सुन भौजी का सर झुक गया और वो बोलीं;

भौजी: सच कहूँ तो मैंने इस बारे में कभी सोचा ही नहीं! जब आप यहाँ नहीं थे तब मेरा ध्यान केवल आप पर ही था| आपके प्यार ने ही तो मुझे जीने का सहारा दिया है, अगर आप नहीं होते तो पता नहीं मेरा क्या होता?!

मैं उठ कर बैठा और भौजी की दाहिनी बाजू को दबाते हुए बोला;

मैं: मैं समझ सकता हूँ! मैं कल ही बड़के दादा से बात करता हूँ और परसों नेहा को स्कूल में दाखिल करा देंगे|

भौजी: जैसे आप ठीक समझो, आखिर आपकी लाड़ली जो है|

भौजी ने मुस्कुराते हुए कहा|

जारी रहेगा भाग - 5 में.....
 
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