ग्यारहवाँ अध्याय : एक ही भूल!
भाग - 5
अब तक आपने पढ़ा:
इतने में नेहा नींद में कुनमुनाई, शायद हमारी इस खुसर-फुसर से उसकी नींद में विघ्न पड़ रहा था| अब चूँकि बच्चों की बात चल रही थी तो मन में एक सवाल आया;
मैं: आपने अभी तक नेहा का दाखिला स्कूल में क्यों नहीं कराया?
ये सुन भौजी का सर झुक गया और वो बोलीं;
भौजी: सच कहूँ तो मैंने इस बारे में कभी सोचा ही नहीं! जब आप यहाँ नहीं थे तब मेरा ध्यान केवल आप पर ही था| आपके प्यार ने ही तो मुझे जीने का सहारा दिया है, अगर आप नहीं होते तो पता नहीं मेरा क्या होता?!
मैं उठ कर बैठा और भौजी की दाहिनी बाजू को दबाते हुए बोला;
मैं: मैं समझ सकता हूँ! मैं कल ही बड़के दादा से बात करता हूँ और परसों नेहा को स्कूल में दाखिल करा देंगे|
भौजी: जैसे आप ठीक समझो, आखिर आपकी लाड़ली जो है|
भौजी ने मुस्कुराते हुए कहा|
अब आगे:
इतने में पिताजी पानी पीने के लिए उठे तो मुझे और भौजी को खुसफुसा कर बातें करते हुए देखा;
पिताजी: क्यों भई सोना नहीं है तुम दोनों ने? सारी रात गप्पें लड़ानी हैं क्या?
भौजी की पीठ पिताजी की ओर थी, जैसे ही उन्होंने पिताजी की आवाज सुनी तो उन्होंने फ़ौरन घूंघट कर लिया और उठ कर खड़ी हो गईं| पिताजी की आवाज सुन मैं खुश हुआ की कम से कम पिताजी ने मुझसे बात तो की वरना जब से मैंने रसिका भाभी से बहस बाजी की थी तब से तो वो मुझसे बोल ही नहीं रहे थे| अब नेहा के बहाने से ही सही पर मुझे अब पिताजी से बात करने का मौका मिल गया था;
मैं: पिताजी आप अगर जाग ही रहे हो तो मुझे आपसे एक बात करनी थी|
पिताजी: हाँ बोल|
मैं उठ के पिताजी की चारपाई पर बैठ गया और मेरे साथ-साथ भौजी भी पिताजी की चारपाई के सिराहने घूँघट काढ़े खड़ी हो गईं;
मैं: पिताजी, मैं इनसे पूछ रहा था की इन्होने नेहा को अब तक स्कूल में दाखिल क्यों नहीं करवाया? अब चन्दर भैया का तो ध्यान ही नहीं है इस बात पर, तो क्या आप बड़के दादा से इस बारे में बात करेंगे?
मैं जानता था की पिताजी मेरी बात इतनी जल्दी नहीं मानेंगे इसलिए मैंने पिताजी की बात उन्हीं पर डाल दी;
मैं: शिक्षा कितनी जर्रुरी होती है ये मैंने आप से ही सीखा है, तो फिर हमारे ही खानदान में लड़कियाँ शिक्षा से वंचित क्यों रहें?
ये ऐसी बात थी जिसके आगे पिताजी कुछ नहीं बोलते और हुआ भी वही;
पिताजी: तू फ़िक्र ना कर, मैं कल सुबह ही भैया से बात भी कर लूँगा और उन्हें मना भी लूँगा| तू खुद जाके मास्टर साहब से बात करना और कल ही नेहा का दाखिला भी करवा देना| और सुन दाखिले के लिए तू अपनी भाभी को साथ ले जाना ठीक है?
ये सुन कर मैं ख़ुशी से फूला नहीं समाया और मन ही मन मुझे अपनी इस होशियारी पर फक्र होने लगा|
मैं: जी!!!
मैंने ख़ुशी से मसुकुराते हुए कहा|
मैं: शुभ रात्रि!
पिताजी: शुभ रात्रि बेटा! तु भी जाके सो जा, सुबह जल्दी उठना है न?
अपने बेटे के चेहरे पर मुस्कान देख आखिर पिताजी के चेहरे पर भी मुस्कान आ गई और वो मुस्कुराते हुए करवट ले कर लेट गए|
मैं और भौजी ख़ुशी-ख़ुशी वापस मेरी चारपाई पर लौट आये;
मैं: अब तो आप खुश हो ना?
भौजी: हाँ! अभी आप सो जाओ मैं आपको बाद में उठाती हूँ!
भौजी मुस्कुराते हुए बोलीं और पलट कर जाने लगीं तो मैंने उन्हें रोक दिया और कहा;
मैं: आज नहीं सुबह जल्दी भी तो उठना है|
मैं जानता था की भौजी क्या चाहतीं हैं पर पिताजी की नींद आज शायद कच्ची थी और मुझे डर था की खाएं वो रात को उठे और मुझे बिस्तर पर नहीं पाया तो बखेड़ा खड़ा होना तय है! पर ये सुनकर भौजी का तो जैसे दिल ही टूट गया;
भौजी: तो मेरा क्या? मुझे नींद कैसे आएगी? आपके बिना मुझे नींद नहीं आती!
भौजी बच्चे जैसा मुँह बनाते हुए बोलीं|
मैं: कल नेहा का दाखिला हो जाए, फिर आप जो कहोगे वो करूँगा लेकिन अभी आप मेरी बात मान लो|
भौजी: ठीक है पर अब आप कोई चिंता मत करना और आराम से सो जाना|
ऐसा नहीं था की हमारी बातों में भौजी मेरी उदासी भूल गईं हों, इसलिए उन्होंने मुझे प्यार से याद दिलाते हुए कहा और अपने घर में घुस गईं|
अब मुझे कहाँ नींद आने वाली थी, क्योंकि मेरे सर पर तो माधुरी नाम की तलवार लटक रही थी! उसे पूरी तरह से स्वस्थ होने में अधिक से अधिक दो दिन लगते और मुझे इसी बात की चिंता थी| ऐसा नहीं था की मैं नहीं चाहता था की वो स्वस्थ हो, बल्कि चिंता इस बात की थी की मैं उसका सामना कैसे करूँगा? सबसे बड़ी बात ये की मैं भौजी को धोका नहीं देना चाहता था! इस समय मुझे कोई रास्ता नहीं सूझ रहा था, अगर मैं भाग भी जाता तो भी ये समस्या हल होती हुई नहीं नजर नहीं आ रही थी! "क्या करूँ?..क्या करूँ?..." मैं बुदबुदाया| फिर मैंने एक बार अपनी जेब में रखी पर्ची निकाली और उसे पढ़ने लगा| रात के अँधेरे में कुछ दिखा नहीं बीएस कुछ काले अक्षर ही दिखे! अब मेरे पास सिवाय उसकी (माधुरी की) बात मानने के, मेरे पास कोई और चारा नहीं था|
ठीक है तो अब सबसे पहले मुझे जगह का जुगाड़ करना होगा, हमारे बड़े घर के पीछे ही एक घर था और जब से मैं आया था तब से मैंने गौर किया था की वो घर हमेशा बंद ही रहता था| अब मुझे इस घर के बारे में जानकारी निकालना जर्रुरी था| दूसरी बात ये की मुझे समय तय करना था? दिन के समय बहुत खतरा था और रात में मैं तो घर से निकल जाता पर माधुरी कैसे आती? इन सवालों को सोच मेरे दिमाग ने काम करना बंद कर दिया था और सर दिरद करने लगा था| किसी ने सही कहा है की जब किसी काम को करने की आपके दिल की इच्छा ना हो तो दिमाग भी काम करना बंद कर देता है, यही कारन था की मुझे अब ज्यादा आईडिया नहीं सूझ रहे थे!
इस परेशानी के चलते ससुरी नींद भी आँखों से कोसों दूर थी! इतने में नेहा उठ गई, उसे बाथरूम जाना था, पर अँधेरे से घबरा रही थी| मैं उठा और उसे अपनी ऊँगली पकड़ा कर जानवर बांधने वाली जगह ले गया, नेहा कुछ दूर जा कर बाथरूम कर आई और हाथ धुलवा कर मैं अपनी लाड़ली को गोद में उठा कर वापस बिस्तर पर ले आया| नेहा ने अपने दोनों हाथों को मेरी गर्दन के इर्द-गिर्द लपेट लिया| मैं पीठ के बल लेट गया और नेहा भी मेरी छाती पर लेटे हुए सो गई| अपनी लाड़ली के प्यार में मैं सारी चिंता भूल गया और उसके स्कूल में दाखिले की बात सोच कर मुस्कुराने लगा| सारी रात मैं उसके सर पर हाथ फेरता रहा और नेहा चैन से सो गई!
अगली सुबह मैं जल्दी से उठा और नेहा को संभाल कर गोद में लिए घूमने लगा| मुझे जल्दी उठा देख पिताजी को मेरा उत्साह दिखा और उन्हें अपनी रात में कही बात याद आ गई| इतने में भौजी उठ गईं और मुझे जगा हुआ देख वो कुछ परेशान हो गईं| नेहा को गोद में लेने के बहाने वो मेरे पास आईं और खुसफुसाती हुए बोलीं; "अभी 5 बजे हैं और आप इतनी जल्दी उठ गए? रात भर सोये नहीं?" भौजी ने चिंता जताते हुए कहा| अब चूँकि मैं मुँह धो चूका था तो उन्हें शक नहीं हुआ की मैं रात भर जाग रहा था! "यार आज मेरी लाड़ली का स्कूल में दाखिला है और मैं ये समय सोते हुए बर्बाद नहीं करना चाहता था!"
"अच्छा जी! इतना खुश हो तो तो मुझे आज क्या ख़ास मिलेगा?" भौजी मुस्कुराते हुई बोलीं| मैं उनका मतलब समझ गया था पर फिर भी अनजान बनते हुए बोला; "भई आपको क्या चाहिए? स्कूल में दाखिला तो नेहा का है, जो मिलने है उसे मिलेगा|" ये कहते हुए मैंने भौजी को चिढ़ाते हुए नेहा के गल्ल पर पप्पी दी| मेरी पप्पी मिलते ही नेहा मुस्कुराते हुए उठी और अध् खुली आँख से मुझे देख कर फ़ौरन मेरे गाल पर पप्पी की| "वाह जी वाह! ये क्या आसमान से टपकी है? पैदा तो मैंने किया न?" भौजी गुस्से से अपनी कमर पर हाथ रखते हुए बोलीं| ये सुन कर मुझे बहुत हँसी आई, ऐसा लगा मानो मैं एक अरसे बाद हँसा हूँ! "सब के सामने चाहिए या अकेले में?" मैंने कहा तो ये सुन कर भौजी के गाल शर्म से लाल हो गए! इतने में माँ आ गईं और भौजी ने बात बदल दी; "चाची देखो न नेहा को अपनी छाती से चिपकाए घूम रहे हैं, मैंने कहा मैं उसे तैयार कर दूँ तो दे ही नहीं रहे!" भौजी ने बड़ी चालाकी से मेरी शिकायत माँ से करते हुए कहा| "क्यों अपनी भाभी को तंग करता है?! नेहा को मुझे दे और जा कर जल्दी तैयार हो तेरे पिताजी ने मुझे सब बताया|" माँ बोलीं और मैंने नेहा को उनकी गोद में दे दिया| मैं फ्रेश हो के तैयार हो गया और छप्पर के नीचे आया जहाँ बड़के दादा और पिताजी बात कर रहे थे| मुझे देखते ही पिताजी ने मुझे अपने पास बैठने को कहा और तभी बड़के दादा बोले; "ठीक है मुन्ना (पिताजी) जैसा तू ठीक समझे!" बड़के दादा ने कहा, साफ़ था की उन्हें नेहा के स्कूल जाने से कोई सरोकार नहीं था! पिताजी ने मेरी तरफ देखते हुए मुझे नेहा के स्कूल जाने की इजाजत दे दी! इधर अजय भैया और चन्दर को जब ये बात पाता चली तो उन्हें भी कोई फर्क नहीं पड़ा, मैं सोचने लगा की ये कैसा परिवार है जिसे एक बच्ची के स्कूल जाने से कोई फर्क ही नहीं पड़ रहा?! खैर नाश्ता बना और नाश्ता कर के चन्दर और अजय भैया खेत निकल गए| घर पर केवल माँ-पिताजी, रसिका भाभी, भौजी, बड़के दादा और बड़की अम्मा ही थे|
बड़की अम्मा मेरी तारीफ करते हुए बोलीं की इस घर में केवल मैं ही हूँ जिसे नेहा की इतनी चिंता है| ये सुन कर भौजी को बड़ा गर्व महसूस हुआ| खेर अब मुझे नेहा के स्कूल जाना था तो मैंने भौजी को जल्दी से तैयार होने के लिए कहा और मैं और नेहा चारपाई पर बैठ के खेलने लगे| नेहा को मैंने अभी तक नहीं बताया था की उसका दाखिला स्कूल में होने जा रहा है| एक छोटे बच्चे को स्कूल जाने के बारे में समझना बड़ा मुश्किल होता है| जब पिताजी ने मुझे स्कूल जाने के बारे में बताया था तो मैं बड़ा परेशान हुआ था, अब कौन सा बच्चा अपने माँ-पिताजी का दुलार छोड़ कर स्कूल जाना चाहेगा? मैं बहुत रोया था और पिताजी से बड़ी मिन्नतें की पर इस सब के बावजूद मुझे जबरदस्ती स्कूल भेजा गया था! इधर भौजी ने तैयार होने में आधा घंटा लगा दिया| आजतक मैंने कभी किसी की प्रतीक्षा नहीं की थी| मेरी माँ उन गिनीं चुनी महिलाओं में से थीं जो तैयार होने में ज्यादा समय नहीं लगाती थीं| कारन था उनका पहले से ही सारी तैयारी कर के रखना, कपडे, चूड़ियाँ आदि सब वो पहले से ही निकाल कर तैयार रखती थीं|
लेकिन आधे घंटे बाद जब भौजी तैयार हो के आईं तो हाय क्या लग रहीं थी वो! पीली साडी, माँग में सिन्दूर, उँगलियों में लाल नेल पोलिश, पायल की छम-छम आवाज और सर पर पल्लू! सच में इतनी सुन्दर लग रहीं थी की उनकी ख़ूबसूरती ने तो मेरा क़त्ल ही कर दिया था! सजी-सँवरीन वो मेरे पास आके खड़ी हो गईं;
भौजी: ऐसे क्या देख रहे हो आप?
भौजी ने शर्माते हुए धीमी आवाज में पुछा|
मैं: कुछ नहीं, बस ऐसे ही आपकी सुंदरता को निहार रहा था! कसम से आज तो आप कहर ढा रहे हो!
मैंने भौजी की तारीफ करते हुए कहा जिसे सुन कर भौजी शर्म से लाल हो गईं|
भौजी: आप भी ना! चलो जल्दी, वापस आके मुझे चुलाह-चौका भी सम्भालना है| आपकी रसिका भाभी तो सुबह से ही कहीं गयब हैं|
भौजी ने प्यार भरी शिकायत की| बड़की अम्मा को बता कर हम तीनों स्कूल चल दिए| स्कूल घर से कोई 10 मिनट दूर ही होगा और इन 10 मिनटों में हम दोनों ही खामोश थे! कारन था की आज पहलीबार हम दोनों एक साथ कहीं बाहर जा रहे थे, भले ही 10 मिनट दूर जा रहे हों! मेरे मन में विवहित जोड़े वाली तरेंगे उठने लगीं थीं जिससे मेरे चेहरे पर आज एक मुस्कान थी! पूरे रास्ते मेरे पेट में तितलियाँ उड़ती रहीं, ऊपर से भौजी ने डेढ़ हाथ का घूँघट किसी दुल्हन की तरह काढ़ा हुआ था जिसे उसका दूल्हा घर ले जा रहा हो!
हम स्कूल पहुँचे तो मुझे थोड़ा अचरज हुआ क्योंकि वो स्कूल प्राथमिक विद्यालय जैसा था| तीन कमरे और कुछ नहीं, जबकि मैं उम्मीद कर रहा था की यहाँ बेंचें होंगी और खूबसारे बच्चे पढ़ते होंगे! पर न जी न वहां न ही छात्रों के बैठने के लिए बेन्चें थीं, न अध्यापक के लिए बैठने को कुर्सी-टेबल और पंखे तो भूल ही जाओ| केवल एक सीमेंट की बना तख्त था जिस पर मास्टर साहब बैठ के पढ़ा रहे थे| मैं पहली कक्षा में घुसा और हेडमास्टर साहब के लिए पूछा तो मास्टर जी ने कहा की वो आखरी वाले कमरे में हैं| हम तीनों उस कमरे की ओर बढ़ने लगे| नेहा मेरी गोद में थी और बच्चों को पढ़ते हुए देख उसके मन में उत्सुकता बढ़ने लगी थी| वो समझ गई थी की आज उसका स्कूल में दाखिला होने वाला है| हेडमास्टर साहब के कमरे के बहार पहुँच के मैंने दरवाजा खट-खटया तो मास्टर जी ने हमें अंदर बुलाया| उनके कमरे में एक मेज था जो मजबूत नहीं लग रहा था और बेंत की तीन कुर्सियां| हम उन्हीं कुर्सियों पर बैठ गए, मैंने चौधरी बनते हुए बात शुरू की;
मैं: Hello sir!
अब शहर में जब भी मैं किसी दफ्तर जाता था तो अधिकारी को 'सर' कहा करता था इसलिए मैंने यहाँ भी हेडमास्टर साहब को सर कहना ठीक समझा|
हेडमास्टर साहब: देखिये मैं आपको पहले ही बता दूँ की मेरी बदली हुए कुछ ही दिन हुए हैं और मैं हिंदी माध्यम से पढ़ा हूँ तो कृपया आप मुझसे हिंदी में ही बात करें|
हेडमास्टर साहब मेरे बात करने से ये तो समझ ही गए थे की ये लड़का शहरी है और जिस तरह माने उन्हें सर कहा था उससे तो वो बड़े खुश हुए पर वो सोचने लगे की कहीं मैं उनपर अपनी अंग्रेजी न झाड़ने लागूं इसलिए उन्होंने पहले ही सब बात साफ़ करना ठीक समझा|
मैं: जी बेहतर!
मैंने हेडमास्टर साहब की बात का सम्मान करते हुए कहा|
हेडमास्टर साहब: तो बताइये मैं आपकी क्या सहायता कर सकता हूँ?
ये सवाल सुन मैं नेहा जो की मेरी गोद में बैठी थी, उसकी तरफ देखने लगा|
हेडमास्टर साहब: ओह क्षमा कीजिये, मैं समझ गया आप अपनी बेटी के दाखिले हेतु आय हैं| ये लीजिये फॉर्म और इसे भर दीजिये|
हेडमास्टर शब् की जो बात मुझे सबसे ज्यादा प्रभावित कर गई थी वो थी उनका शुद्ध हिंदी भषा में वार्तालाप करना| परन्तु फॉर्म भरने से पहले मुझे उसने कुछ सवाल पूछने थे;
मैं: जी पर पहले मैं कुछ सवाल पूछना चाहता हूँ? इस स्कूल में केवल दो ही कमरे हैं जिन में अध्यापक पढ़ा रहे हैं! यह स्कूल कितनी कक्षा तक है और क्या ये स्कूल किसी सरकारी स्कूल या कॉलेज से मान्यता प्राप्त है? मतलब जैसे दिल्ली में स्कूल CBSE से मान्यता प्राप्त होते हैं ऐसा कुछ?
हेडमास्टर साहब: जी हमें उत्तर प्रदेश हाई स्कूल बोर्ड से मान्यता प्राप्त है| हमारे स्कूल में अभी केवल दूसरी कक्षा तक ही पढ़ाया जाता है, हमें कुछ धनराशि जल्द ही राज्य सरकार से मिलने वाली है, जिसकी मदद से इस स्कूल का निर्माण कार्य जल्द ही शुरू होगा और फिर ये स्कूल दसवीं कक्षा तक हो जायेगा|
मैं: जी ठीक है...देखिये बुरा मत मानियेगा परन्तु मैं नहीं चाहता की बच्ची का साल बर्बाद हो और फिर उसे तीसरी कक्षा के लिए हमें दूसरा स्कूल खोजना पड़े, इसलिए यदि आप मुझे कुछ कागज इत्यादि दिखा देते तो मैं तसल्ली कर लेता!
हेडमास्टर साहब: जी जर्रूर मुझे कोई आपत्ति नहीं|
और फिर हेडमास्टर साहब ने मुझे कुछ सरकारी दस्तावेज दिखाए| उन्हें देख के मुझे तसल्ली हुई, फिर मैंने फॉर्म भरा और फीस की बात वगैरह की और भरा हुआ फॉर्म मैंने हेडमास्टर साहब को दे दिया, वे तुरंत फॉर्म पढ़ने लगे;
हेडमास्टर साहब: तो चन्दर जी...
आगे वो कुछ कह पाते उससे पहले ही मैंने उनकी बात काट दी;
मैं: जी माफ़ कीजिये परन्तु मेरा नाम चन्दर नहीं है, मेरा नाम मानु है|
फिर मैंने भौजी की ओर इशारा करते हुए कहा;
मैं: चन्दर इनके पति का नाम है, मैं उनका चचेरा भाई हूँ|
हेडमास्टर साहब: ओह माफ़ कीजियेगा मुझे लगा आप दोनों पति-पत्नी हैं! खेर आप कितना पढ़े हैं?
मैं: जी मैं बारहवीं कक्षा में पढ़ रहा हूँ और अगले साल CBSE बोर्ड की परीक्षा दूँगा|
हेडमास्टर साहब: अरे वाह! वैसे मैं आपके बात करने के लहजे से ही समझ गया था की आप यहाँ के तो कतई नहीं हैं| जबसे इस गाँव में आया हूँ मैंने देखा है की बहुत कम लोग ही अपनी बेटियों के पढ़ने पर ध्यान देते हैं और मुझे जानकार ख़ुशी हुई की आप अपनी भतीजी के लिए इतना फिक्रमंद हैं|
मैं: जी इसका श्रेय मेरे माता-पिता को जाता है| उन्होंने ही मुझे ये सीख दी की लड़का हो या लड़की, शिक्षा सभी का अधिकार है!
हेडमास्टर साहब: वैसे आपके भाई चन्दर कहाँ हैं?
मैं: जी वो खेती में व्यस्त थे तो पिताजी ने कहा की मैं ही नेहा का दाखिला करा दूँ|
हेडमास्टर साहब: खेर मैं आपका ज्यादा समय नहीं लूँगा, आप समय निकाल कर आइयेगा तो हम बैठ के कुछ बातें करेंगे
मैं: जी अवश्य, वैसे मैं पूछना भूल गया की स्कूल सुबह कितने बजे खुलता है ओर छुट्टी का समय क्या है?
हेडमास्टर साहब: जी सुबह सात बजे से दोपहर डेढ़ बजे तक|
मैं: और आप कब तक होते हैं यहाँ?
ये सवाल पूछने के पीछे मेरा उद्देश्य कुछ और था!
हेडमास्टर साहब: जी दरअसल मैं दूसरे गाँव से यहाँ आता हूँ, तो मुझे तीन बजे तक हर हालत में निकलना पड़ता है| तो आप जब भी आएं तीन बजे से पहले आएं तीन बजे के बाद यहाँ कोई नहीं होता|
हेडमास्टर साहब से नमस्ते कर हम तीनों घर लौट आये और रास्ते भर नेहा कल स्कूल जाने की बात से चहक रही थी! मैं तो स्कूल जाने के नाम से हो रोटा था और नेहा थी की हँसती-खेलती हुई आगे-आगे दौड़ रही थी!
खैर हम घर आगये और मैंने ये खुश खबरी सब को सुना दी| ये सुन सब खुश हुए और नेहा तो सबसे ज्यादा खुश थी! पर नाजाने क्यों भौजी का मुँह बना हुआ था, अब मैं सबके सामने तो कारन नहीं पूछ सकता था इसलिए मेरे पास सिवाए इन्तेजार करने के और कोई चारा नही था| दोपहर का भोजन तैयार हुआ और कुछ ही देर में रसिका भाभी भी आ गई| मैं और नेहा छप्पर के नीचे बैठे थे और मैं उसे स्कूल के बारे में अपना ज्ञान दे रहा था!
रसिका भाभी: मानु ई बताओ, तुम ऐसा का कह दिहो की माधुरी मा इतना बदलाव आई गवा?! कल से ऊ खाये-पीये लागि और हँसे-बोले लागि!
मैं: मैंने कुछ ख़ास नहीं कहा, बस उसे समझाया की वो ये पागलपन छोड़ दे और मुझे जानके अच्छा लगा की वो फिर से खाना-पीना शुरू कर रही है|
बस इतना कह के मैं उठ के चल दिया, असल में मेरी फ़ट गई थी| अब मुझे जल्दी से जल्दी कुछ सोचना था, समय हाथ से फिसलता जा रहा था!
माधुरी की इच्छा पूरी करने के लिए समय और बहाना दोनों सोचने थे! जगह का इन्तेजाम तो लघभग हो ही गया था, इसीलिए तो मैंने हेडमास्टर साहब से स्कूल के समय के बारे में सवाल पुछा था! सच में इतना सोचना तो मुझे भौजी को सुहागरात वाला सरप्राइज देते हुए भी नहीं पड़ा था|
उधर भौजी का मन अब भी दुखी और उदास था! दोपहर में जैसे-तैसे सब के साथ बैठ कर खाना खाया और सोचा की उनसे बात करूँ पर आज धुप बहुत थी तो सबके सब दोपहर को घर पर ही बैठे हुए थे| अब मैं रात का इन्तेजार करने लगा ताकि सबके सोने के बाद उनसे बात कर सकूँ| पर मुझे उससे पहले ही एक मौका मिल गया, शाम को भौजी मसाला पीसने अपने घर की ओर जा रहीं थीं तब मैं चुप-चाप उनके घर के भीतर पहुँचा| भीतर जा कर देखा तो भौजी आंगन में चारपाई पर बैठीं सर झुकाये सुबक रहीं हैं| मैं भौजी की बगल में बैठा और अपना बायाँ हाथ उनके कंधे पर रख पुछा;
मैं: क्या हुआ? जब से हम स्कूल से बात कर के लौटे हैं तब से आप उदास हो? क्या आप नहीं चाहते नेहा स्कूल जाए?
मैंने बड़े प्यार से पुछा तो भौजी सुबकते हुए बोलीं;
भौजी: नहीं... ऐसी बात नहीं है| वो... हेडमास्टर साहब ने समझा की आप ओर मैं पति-पत्नी हैं तो उस बात को लेके मैं.....
मैं: तो क्या हुआ? उन्हें गलत फैमि ही तो हुई थी|
मैं एकदम से भौजी की बात काटते हुए बोला|
भौजी: इसी बात का तो दुःख है, जो भी हमें साथ देखता है वो यही समझता है की हम दोनों पति-पत्नी हैं! ...काश मैं आपकी पत्नी होती! काश हमारी शादी असल में हुई होती!
भौजी बड़े जोश से बोलीं|
मैंने भौजी का चेहरा अपने दोनों हाथों में लिया और उनकी आँखों में देखते हुए बोला;
मैं: हमारे मुकद्दर में देर से मिलना लिखा था!
ये सुन भौजी भावुक हो गईं, तो मैंने माहौल को हल्का करते हुए कहा;
मैं: फिर मैंने तो आपको पहले ही कहा था की भाग चलो मेरे साथ, पर आप ही नहीं माने!
ये सुन भौजी मुस्कुराईं और मेरे गले लग गईं| मेरे सीने से लग कर उनका मन अब हल्का हो गया था, इधर मैं उनकी पीठ सहलाता हुआ सोच रहा था की क्या मैं उन्हें सबकुछ बता दूँ? मेरा दिल इस बोझ तले दब चूका था और भौजी मेरे दिल में छुपी ये बात महसूस कर पा रहीं थीं;
भौजी: आप कुछ कहना चाहते हो?
जारी रहेगा भाग - 6 में.....