Hindi Antarvasna एक अनोखा बंधन - पुन: प्रारंभ


ग्यारहवाँ अध्याय : एक ही भूल!
भाग - 5

अब तक आपने पढ़ा:

इतने में नेहा नींद में कुनमुनाई, शायद हमारी इस खुसर-फुसर से उसकी नींद में विघ्न पड़ रहा था| अब चूँकि बच्चों की बात चल रही थी तो मन में एक सवाल आया;
मैं: आपने अभी तक नेहा का दाखिला स्कूल में क्यों नहीं कराया?
ये सुन भौजी का सर झुक गया और वो बोलीं;
भौजी: सच कहूँ तो मैंने इस बारे में कभी सोचा ही नहीं! जब आप यहाँ नहीं थे तब मेरा ध्यान केवल आप पर ही था| आपके प्यार ने ही तो मुझे जीने का सहारा दिया है, अगर आप नहीं होते तो पता नहीं मेरा क्या होता?!
मैं उठ कर बैठा और भौजी की दाहिनी बाजू को दबाते हुए बोला;
मैं: मैं समझ सकता हूँ! मैं कल ही बड़के दादा से बात करता हूँ और परसों नेहा को स्कूल में दाखिल करा देंगे|
भौजी: जैसे आप ठीक समझो, आखिर आपकी लाड़ली जो है|
भौजी ने मुस्कुराते हुए कहा|

अब आगे:

इतने में पिताजी पानी पीने के लिए उठे तो मुझे और भौजी को खुसफुसा कर बातें करते हुए देखा;

पिताजी: क्यों भई सोना नहीं है तुम दोनों ने? सारी रात गप्पें लड़ानी हैं क्या?

भौजी की पीठ पिताजी की ओर थी, जैसे ही उन्होंने पिताजी की आवाज सुनी तो उन्होंने फ़ौरन घूंघट कर लिया और उठ कर खड़ी हो गईं| पिताजी की आवाज सुन मैं खुश हुआ की कम से कम पिताजी ने मुझसे बात तो की वरना जब से मैंने रसिका भाभी से बहस बाजी की थी तब से तो वो मुझसे बोल ही नहीं रहे थे| अब नेहा के बहाने से ही सही पर मुझे अब पिताजी से बात करने का मौका मिल गया था;

मैं: पिताजी आप अगर जाग ही रहे हो तो मुझे आपसे एक बात करनी थी|

पिताजी: हाँ बोल|

मैं उठ के पिताजी की चारपाई पर बैठ गया और मेरे साथ-साथ भौजी भी पिताजी की चारपाई के सिराहने घूँघट काढ़े खड़ी हो गईं;

मैं: पिताजी, मैं इनसे पूछ रहा था की इन्होने नेहा को अब तक स्कूल में दाखिल क्यों नहीं करवाया? अब चन्दर भैया का तो ध्यान ही नहीं है इस बात पर, तो क्या आप बड़के दादा से इस बारे में बात करेंगे?

मैं जानता था की पिताजी मेरी बात इतनी जल्दी नहीं मानेंगे इसलिए मैंने पिताजी की बात उन्हीं पर डाल दी;

मैं: शिक्षा कितनी जर्रुरी होती है ये मैंने आप से ही सीखा है, तो फिर हमारे ही खानदान में लड़कियाँ शिक्षा से वंचित क्यों रहें?

ये ऐसी बात थी जिसके आगे पिताजी कुछ नहीं बोलते और हुआ भी वही;

पिताजी: तू फ़िक्र ना कर, मैं कल सुबह ही भैया से बात भी कर लूँगा और उन्हें मना भी लूँगा| तू खुद जाके मास्टर साहब से बात करना और कल ही नेहा का दाखिला भी करवा देना| और सुन दाखिले के लिए तू अपनी भाभी को साथ ले जाना ठीक है?

ये सुन कर मैं ख़ुशी से फूला नहीं समाया और मन ही मन मुझे अपनी इस होशियारी पर फक्र होने लगा|

मैं: जी!!!

मैंने ख़ुशी से मसुकुराते हुए कहा|

मैं: शुभ रात्रि!

पिताजी: शुभ रात्रि बेटा! तु भी जाके सो जा, सुबह जल्दी उठना है न?

अपने बेटे के चेहरे पर मुस्कान देख आखिर पिताजी के चेहरे पर भी मुस्कान आ गई और वो मुस्कुराते हुए करवट ले कर लेट गए|

मैं और भौजी ख़ुशी-ख़ुशी वापस मेरी चारपाई पर लौट आये;

मैं: अब तो आप खुश हो ना?

भौजी: हाँ! अभी आप सो जाओ मैं आपको बाद में उठाती हूँ!

भौजी मुस्कुराते हुए बोलीं और पलट कर जाने लगीं तो मैंने उन्हें रोक दिया और कहा;

मैं: आज नहीं सुबह जल्दी भी तो उठना है|

मैं जानता था की भौजी क्या चाहतीं हैं पर पिताजी की नींद आज शायद कच्ची थी और मुझे डर था की खाएं वो रात को उठे और मुझे बिस्तर पर नहीं पाया तो बखेड़ा खड़ा होना तय है! पर ये सुनकर भौजी का तो जैसे दिल ही टूट गया;

भौजी: तो मेरा क्या? मुझे नींद कैसे आएगी? आपके बिना मुझे नींद नहीं आती!

भौजी बच्चे जैसा मुँह बनाते हुए बोलीं|

मैं: कल नेहा का दाखिला हो जाए, फिर आप जो कहोगे वो करूँगा लेकिन अभी आप मेरी बात मान लो|

भौजी: ठीक है पर अब आप कोई चिंता मत करना और आराम से सो जाना|

ऐसा नहीं था की हमारी बातों में भौजी मेरी उदासी भूल गईं हों, इसलिए उन्होंने मुझे प्यार से याद दिलाते हुए कहा और अपने घर में घुस गईं|

अब मुझे कहाँ नींद आने वाली थी, क्योंकि मेरे सर पर तो माधुरी नाम की तलवार लटक रही थी! उसे पूरी तरह से स्वस्थ होने में अधिक से अधिक दो दिन लगते और मुझे इसी बात की चिंता थी| ऐसा नहीं था की मैं नहीं चाहता था की वो स्वस्थ हो, बल्कि चिंता इस बात की थी की मैं उसका सामना कैसे करूँगा? सबसे बड़ी बात ये की मैं भौजी को धोका नहीं देना चाहता था! इस समय मुझे कोई रास्ता नहीं सूझ रहा था, अगर मैं भाग भी जाता तो भी ये समस्या हल होती हुई नहीं नजर नहीं आ रही थी! "क्या करूँ?..क्या करूँ?..." मैं बुदबुदाया| फिर मैंने एक बार अपनी जेब में रखी पर्ची निकाली और उसे पढ़ने लगा| रात के अँधेरे में कुछ दिखा नहीं बीएस कुछ काले अक्षर ही दिखे! अब मेरे पास सिवाय उसकी (माधुरी की) बात मानने के, मेरे पास कोई और चारा नहीं था|

ठीक है तो अब सबसे पहले मुझे जगह का जुगाड़ करना होगा, हमारे बड़े घर के पीछे ही एक घर था और जब से मैं आया था तब से मैंने गौर किया था की वो घर हमेशा बंद ही रहता था| अब मुझे इस घर के बारे में जानकारी निकालना जर्रुरी था| दूसरी बात ये की मुझे समय तय करना था? दिन के समय बहुत खतरा था और रात में मैं तो घर से निकल जाता पर माधुरी कैसे आती? इन सवालों को सोच मेरे दिमाग ने काम करना बंद कर दिया था और सर दिरद करने लगा था| किसी ने सही कहा है की जब किसी काम को करने की आपके दिल की इच्छा ना हो तो दिमाग भी काम करना बंद कर देता है, यही कारन था की मुझे अब ज्यादा आईडिया नहीं सूझ रहे थे!

इस परेशानी के चलते ससुरी नींद भी आँखों से कोसों दूर थी! इतने में नेहा उठ गई, उसे बाथरूम जाना था, पर अँधेरे से घबरा रही थी| मैं उठा और उसे अपनी ऊँगली पकड़ा कर जानवर बांधने वाली जगह ले गया, नेहा कुछ दूर जा कर बाथरूम कर आई और हाथ धुलवा कर मैं अपनी लाड़ली को गोद में उठा कर वापस बिस्तर पर ले आया| नेहा ने अपने दोनों हाथों को मेरी गर्दन के इर्द-गिर्द लपेट लिया| मैं पीठ के बल लेट गया और नेहा भी मेरी छाती पर लेटे हुए सो गई| अपनी लाड़ली के प्यार में मैं सारी चिंता भूल गया और उसके स्कूल में दाखिले की बात सोच कर मुस्कुराने लगा| सारी रात मैं उसके सर पर हाथ फेरता रहा और नेहा चैन से सो गई!

अगली सुबह मैं जल्दी से उठा और नेहा को संभाल कर गोद में लिए घूमने लगा| मुझे जल्दी उठा देख पिताजी को मेरा उत्साह दिखा और उन्हें अपनी रात में कही बात याद आ गई| इतने में भौजी उठ गईं और मुझे जगा हुआ देख वो कुछ परेशान हो गईं| नेहा को गोद में लेने के बहाने वो मेरे पास आईं और खुसफुसाती हुए बोलीं; "अभी 5 बजे हैं और आप इतनी जल्दी उठ गए? रात भर सोये नहीं?" भौजी ने चिंता जताते हुए कहा| अब चूँकि मैं मुँह धो चूका था तो उन्हें शक नहीं हुआ की मैं रात भर जाग रहा था! "यार आज मेरी लाड़ली का स्कूल में दाखिला है और मैं ये समय सोते हुए बर्बाद नहीं करना चाहता था!"

"अच्छा जी! इतना खुश हो तो तो मुझे आज क्या ख़ास मिलेगा?" भौजी मुस्कुराते हुई बोलीं| मैं उनका मतलब समझ गया था पर फिर भी अनजान बनते हुए बोला; "भई आपको क्या चाहिए? स्कूल में दाखिला तो नेहा का है, जो मिलने है उसे मिलेगा|" ये कहते हुए मैंने भौजी को चिढ़ाते हुए नेहा के गल्ल पर पप्पी दी| मेरी पप्पी मिलते ही नेहा मुस्कुराते हुए उठी और अध् खुली आँख से मुझे देख कर फ़ौरन मेरे गाल पर पप्पी की| "वाह जी वाह! ये क्या आसमान से टपकी है? पैदा तो मैंने किया न?" भौजी गुस्से से अपनी कमर पर हाथ रखते हुए बोलीं| ये सुन कर मुझे बहुत हँसी आई, ऐसा लगा मानो मैं एक अरसे बाद हँसा हूँ! "सब के सामने चाहिए या अकेले में?" मैंने कहा तो ये सुन कर भौजी के गाल शर्म से लाल हो गए! इतने में माँ आ गईं और भौजी ने बात बदल दी; "चाची देखो न नेहा को अपनी छाती से चिपकाए घूम रहे हैं, मैंने कहा मैं उसे तैयार कर दूँ तो दे ही नहीं रहे!" भौजी ने बड़ी चालाकी से मेरी शिकायत माँ से करते हुए कहा| "क्यों अपनी भाभी को तंग करता है?! नेहा को मुझे दे और जा कर जल्दी तैयार हो तेरे पिताजी ने मुझे सब बताया|" माँ बोलीं और मैंने नेहा को उनकी गोद में दे दिया| मैं फ्रेश हो के तैयार हो गया और छप्पर के नीचे आया जहाँ बड़के दादा और पिताजी बात कर रहे थे| मुझे देखते ही पिताजी ने मुझे अपने पास बैठने को कहा और तभी बड़के दादा बोले; "ठीक है मुन्ना (पिताजी) जैसा तू ठीक समझे!" बड़के दादा ने कहा, साफ़ था की उन्हें नेहा के स्कूल जाने से कोई सरोकार नहीं था! पिताजी ने मेरी तरफ देखते हुए मुझे नेहा के स्कूल जाने की इजाजत दे दी! इधर अजय भैया और चन्दर को जब ये बात पाता चली तो उन्हें भी कोई फर्क नहीं पड़ा, मैं सोचने लगा की ये कैसा परिवार है जिसे एक बच्ची के स्कूल जाने से कोई फर्क ही नहीं पड़ रहा?! खैर नाश्ता बना और नाश्ता कर के चन्दर और अजय भैया खेत निकल गए| घर पर केवल माँ-पिताजी, रसिका भाभी, भौजी, बड़के दादा और बड़की अम्मा ही थे|

बड़की अम्मा मेरी तारीफ करते हुए बोलीं की इस घर में केवल मैं ही हूँ जिसे नेहा की इतनी चिंता है| ये सुन कर भौजी को बड़ा गर्व महसूस हुआ| खेर अब मुझे नेहा के स्कूल जाना था तो मैंने भौजी को जल्दी से तैयार होने के लिए कहा और मैं और नेहा चारपाई पर बैठ के खेलने लगे| नेहा को मैंने अभी तक नहीं बताया था की उसका दाखिला स्कूल में होने जा रहा है| एक छोटे बच्चे को स्कूल जाने के बारे में समझना बड़ा मुश्किल होता है| जब पिताजी ने मुझे स्कूल जाने के बारे में बताया था तो मैं बड़ा परेशान हुआ था, अब कौन सा बच्चा अपने माँ-पिताजी का दुलार छोड़ कर स्कूल जाना चाहेगा? मैं बहुत रोया था और पिताजी से बड़ी मिन्नतें की पर इस सब के बावजूद मुझे जबरदस्ती स्कूल भेजा गया था! इधर भौजी ने तैयार होने में आधा घंटा लगा दिया| आजतक मैंने कभी किसी की प्रतीक्षा नहीं की थी| मेरी माँ उन गिनीं चुनी महिलाओं में से थीं जो तैयार होने में ज्यादा समय नहीं लगाती थीं| कारन था उनका पहले से ही सारी तैयारी कर के रखना, कपडे, चूड़ियाँ आदि सब वो पहले से ही निकाल कर तैयार रखती थीं|

लेकिन आधे घंटे बाद जब भौजी तैयार हो के आईं तो हाय क्या लग रहीं थी वो! पीली साडी, माँग में सिन्दूर, उँगलियों में लाल नेल पोलिश, पायल की छम-छम आवाज और सर पर पल्लू! सच में इतनी सुन्दर लग रहीं थी की उनकी ख़ूबसूरती ने तो मेरा क़त्ल ही कर दिया था! सजी-सँवरीन वो मेरे पास आके खड़ी हो गईं;
भौजी: ऐसे क्या देख रहे हो आप?

भौजी ने शर्माते हुए धीमी आवाज में पुछा|

मैं: कुछ नहीं, बस ऐसे ही आपकी सुंदरता को निहार रहा था! कसम से आज तो आप कहर ढा रहे हो!

मैंने भौजी की तारीफ करते हुए कहा जिसे सुन कर भौजी शर्म से लाल हो गईं|

भौजी: आप भी ना! चलो जल्दी, वापस आके मुझे चुलाह-चौका भी सम्भालना है| आपकी रसिका भाभी तो सुबह से ही कहीं गयब हैं|

भौजी ने प्यार भरी शिकायत की| बड़की अम्मा को बता कर हम तीनों स्कूल चल दिए| स्कूल घर से कोई 10 मिनट दूर ही होगा और इन 10 मिनटों में हम दोनों ही खामोश थे! कारन था की आज पहलीबार हम दोनों एक साथ कहीं बाहर जा रहे थे, भले ही 10 मिनट दूर जा रहे हों! मेरे मन में विवहित जोड़े वाली तरेंगे उठने लगीं थीं जिससे मेरे चेहरे पर आज एक मुस्कान थी! पूरे रास्ते मेरे पेट में तितलियाँ उड़ती रहीं, ऊपर से भौजी ने डेढ़ हाथ का घूँघट किसी दुल्हन की तरह काढ़ा हुआ था जिसे उसका दूल्हा घर ले जा रहा हो!

हम स्कूल पहुँचे तो मुझे थोड़ा अचरज हुआ क्योंकि वो स्कूल प्राथमिक विद्यालय जैसा था| तीन कमरे और कुछ नहीं, जबकि मैं उम्मीद कर रहा था की यहाँ बेंचें होंगी और खूबसारे बच्चे पढ़ते होंगे! पर न जी न वहां न ही छात्रों के बैठने के लिए बेन्चें थीं, न अध्यापक के लिए बैठने को कुर्सी-टेबल और पंखे तो भूल ही जाओ| केवल एक सीमेंट की बना तख्त था जिस पर मास्टर साहब बैठ के पढ़ा रहे थे| मैं पहली कक्षा में घुसा और हेडमास्टर साहब के लिए पूछा तो मास्टर जी ने कहा की वो आखरी वाले कमरे में हैं| हम तीनों उस कमरे की ओर बढ़ने लगे| नेहा मेरी गोद में थी और बच्चों को पढ़ते हुए देख उसके मन में उत्सुकता बढ़ने लगी थी| वो समझ गई थी की आज उसका स्कूल में दाखिला होने वाला है| हेडमास्टर साहब के कमरे के बहार पहुँच के मैंने दरवाजा खट-खटया तो मास्टर जी ने हमें अंदर बुलाया| उनके कमरे में एक मेज था जो मजबूत नहीं लग रहा था और बेंत की तीन कुर्सियां| हम उन्हीं कुर्सियों पर बैठ गए, मैंने चौधरी बनते हुए बात शुरू की;
मैं: Hello sir!

अब शहर में जब भी मैं किसी दफ्तर जाता था तो अधिकारी को 'सर' कहा करता था इसलिए मैंने यहाँ भी हेडमास्टर साहब को सर कहना ठीक समझा|

हेडमास्टर साहब: देखिये मैं आपको पहले ही बता दूँ की मेरी बदली हुए कुछ ही दिन हुए हैं और मैं हिंदी माध्यम से पढ़ा हूँ तो कृपया आप मुझसे हिंदी में ही बात करें|

हेडमास्टर साहब मेरे बात करने से ये तो समझ ही गए थे की ये लड़का शहरी है और जिस तरह माने उन्हें सर कहा था उससे तो वो बड़े खुश हुए पर वो सोचने लगे की कहीं मैं उनपर अपनी अंग्रेजी न झाड़ने लागूं इसलिए उन्होंने पहले ही सब बात साफ़ करना ठीक समझा|

मैं: जी बेहतर!

मैंने हेडमास्टर साहब की बात का सम्मान करते हुए कहा|

हेडमास्टर साहब: तो बताइये मैं आपकी क्या सहायता कर सकता हूँ?

ये सवाल सुन मैं नेहा जो की मेरी गोद में बैठी थी, उसकी तरफ देखने लगा|

हेडमास्टर साहब: ओह क्षमा कीजिये, मैं समझ गया आप अपनी बेटी के दाखिले हेतु आय हैं| ये लीजिये फॉर्म और इसे भर दीजिये|

हेडमास्टर शब् की जो बात मुझे सबसे ज्यादा प्रभावित कर गई थी वो थी उनका शुद्ध हिंदी भषा में वार्तालाप करना| परन्तु फॉर्म भरने से पहले मुझे उसने कुछ सवाल पूछने थे;
मैं: जी पर पहले मैं कुछ सवाल पूछना चाहता हूँ? इस स्कूल में केवल दो ही कमरे हैं जिन में अध्यापक पढ़ा रहे हैं! यह स्कूल कितनी कक्षा तक है और क्या ये स्कूल किसी सरकारी स्कूल या कॉलेज से मान्यता प्राप्त है? मतलब जैसे दिल्ली में स्कूल CBSE से मान्यता प्राप्त होते हैं ऐसा कुछ?

हेडमास्टर साहब: जी हमें उत्तर प्रदेश हाई स्कूल बोर्ड से मान्यता प्राप्त है| हमारे स्कूल में अभी केवल दूसरी कक्षा तक ही पढ़ाया जाता है, हमें कुछ धनराशि जल्द ही राज्य सरकार से मिलने वाली है, जिसकी मदद से इस स्कूल का निर्माण कार्य जल्द ही शुरू होगा और फिर ये स्कूल दसवीं कक्षा तक हो जायेगा|

मैं: जी ठीक है...देखिये बुरा मत मानियेगा परन्तु मैं नहीं चाहता की बच्ची का साल बर्बाद हो और फिर उसे तीसरी कक्षा के लिए हमें दूसरा स्कूल खोजना पड़े, इसलिए यदि आप मुझे कुछ कागज इत्यादि दिखा देते तो मैं तसल्ली कर लेता!

हेडमास्टर साहब: जी जर्रूर मुझे कोई आपत्ति नहीं|

और फिर हेडमास्टर साहब ने मुझे कुछ सरकारी दस्तावेज दिखाए| उन्हें देख के मुझे तसल्ली हुई, फिर मैंने फॉर्म भरा और फीस की बात वगैरह की और भरा हुआ फॉर्म मैंने हेडमास्टर साहब को दे दिया, वे तुरंत फॉर्म पढ़ने लगे;

हेडमास्टर साहब: तो चन्दर जी...

आगे वो कुछ कह पाते उससे पहले ही मैंने उनकी बात काट दी;

मैं: जी माफ़ कीजिये परन्तु मेरा नाम चन्दर नहीं है, मेरा नाम मानु है|

फिर मैंने भौजी की ओर इशारा करते हुए कहा;

मैं: चन्दर इनके पति का नाम है, मैं उनका चचेरा भाई हूँ|

हेडमास्टर साहब: ओह माफ़ कीजियेगा मुझे लगा आप दोनों पति-पत्नी हैं! खेर आप कितना पढ़े हैं?

मैं: जी मैं बारहवीं कक्षा में पढ़ रहा हूँ और अगले साल CBSE बोर्ड की परीक्षा दूँगा|

हेडमास्टर साहब: अरे वाह! वैसे मैं आपके बात करने के लहजे से ही समझ गया था की आप यहाँ के तो कतई नहीं हैं| जबसे इस गाँव में आया हूँ मैंने देखा है की बहुत कम लोग ही अपनी बेटियों के पढ़ने पर ध्यान देते हैं और मुझे जानकार ख़ुशी हुई की आप अपनी भतीजी के लिए इतना फिक्रमंद हैं|

मैं: जी इसका श्रेय मेरे माता-पिता को जाता है| उन्होंने ही मुझे ये सीख दी की लड़का हो या लड़की, शिक्षा सभी का अधिकार है!

हेडमास्टर साहब: वैसे आपके भाई चन्दर कहाँ हैं?

मैं: जी वो खेती में व्यस्त थे तो पिताजी ने कहा की मैं ही नेहा का दाखिला करा दूँ|

हेडमास्टर साहब: खेर मैं आपका ज्यादा समय नहीं लूँगा, आप समय निकाल कर आइयेगा तो हम बैठ के कुछ बातें करेंगे

मैं: जी अवश्य, वैसे मैं पूछना भूल गया की स्कूल सुबह कितने बजे खुलता है ओर छुट्टी का समय क्या है?

हेडमास्टर साहब: जी सुबह सात बजे से दोपहर डेढ़ बजे तक|

मैं: और आप कब तक होते हैं यहाँ?

ये सवाल पूछने के पीछे मेरा उद्देश्य कुछ और था!

हेडमास्टर साहब: जी दरअसल मैं दूसरे गाँव से यहाँ आता हूँ, तो मुझे तीन बजे तक हर हालत में निकलना पड़ता है| तो आप जब भी आएं तीन बजे से पहले आएं तीन बजे के बाद यहाँ कोई नहीं होता|
हेडमास्टर साहब से नमस्ते कर हम तीनों घर लौट आये और रास्ते भर नेहा कल स्कूल जाने की बात से चहक रही थी! मैं तो स्कूल जाने के नाम से हो रोटा था और नेहा थी की हँसती-खेलती हुई आगे-आगे दौड़ रही थी!

खैर हम घर आगये और मैंने ये खुश खबरी सब को सुना दी| ये सुन सब खुश हुए और नेहा तो सबसे ज्यादा खुश थी! पर नाजाने क्यों भौजी का मुँह बना हुआ था, अब मैं सबके सामने तो कारन नहीं पूछ सकता था इसलिए मेरे पास सिवाए इन्तेजार करने के और कोई चारा नही था| दोपहर का भोजन तैयार हुआ और कुछ ही देर में रसिका भाभी भी आ गई| मैं और नेहा छप्पर के नीचे बैठे थे और मैं उसे स्कूल के बारे में अपना ज्ञान दे रहा था!

रसिका भाभी: मानु ई बताओ, तुम ऐसा का कह दिहो की माधुरी मा इतना बदलाव आई गवा?! कल से ऊ खाये-पीये लागि और हँसे-बोले लागि!

मैं: मैंने कुछ ख़ास नहीं कहा, बस उसे समझाया की वो ये पागलपन छोड़ दे और मुझे जानके अच्छा लगा की वो फिर से खाना-पीना शुरू कर रही है|

बस इतना कह के मैं उठ के चल दिया, असल में मेरी फ़ट गई थी| अब मुझे जल्दी से जल्दी कुछ सोचना था, समय हाथ से फिसलता जा रहा था!

माधुरी की इच्छा पूरी करने के लिए समय और बहाना दोनों सोचने थे! जगह का इन्तेजाम तो लघभग हो ही गया था, इसीलिए तो मैंने हेडमास्टर साहब से स्कूल के समय के बारे में सवाल पुछा था! सच में इतना सोचना तो मुझे भौजी को सुहागरात वाला सरप्राइज देते हुए भी नहीं पड़ा था|

उधर भौजी का मन अब भी दुखी और उदास था! दोपहर में जैसे-तैसे सब के साथ बैठ कर खाना खाया और सोचा की उनसे बात करूँ पर आज धुप बहुत थी तो सबके सब दोपहर को घर पर ही बैठे हुए थे| अब मैं रात का इन्तेजार करने लगा ताकि सबके सोने के बाद उनसे बात कर सकूँ| पर मुझे उससे पहले ही एक मौका मिल गया, शाम को भौजी मसाला पीसने अपने घर की ओर जा रहीं थीं तब मैं चुप-चाप उनके घर के भीतर पहुँचा| भीतर जा कर देखा तो भौजी आंगन में चारपाई पर बैठीं सर झुकाये सुबक रहीं हैं| मैं भौजी की बगल में बैठा और अपना बायाँ हाथ उनके कंधे पर रख पुछा;

मैं: क्या हुआ? जब से हम स्कूल से बात कर के लौटे हैं तब से आप उदास हो? क्या आप नहीं चाहते नेहा स्कूल जाए?

मैंने बड़े प्यार से पुछा तो भौजी सुबकते हुए बोलीं;

भौजी: नहीं... ऐसी बात नहीं है| वो... हेडमास्टर साहब ने समझा की आप ओर मैं पति-पत्नी हैं तो उस बात को लेके मैं.....

मैं: तो क्या हुआ? उन्हें गलत फैमि ही तो हुई थी|

मैं एकदम से भौजी की बात काटते हुए बोला|

भौजी: इसी बात का तो दुःख है, जो भी हमें साथ देखता है वो यही समझता है की हम दोनों पति-पत्नी हैं! ...काश मैं आपकी पत्नी होती! काश हमारी शादी असल में हुई होती!

भौजी बड़े जोश से बोलीं|

मैंने भौजी का चेहरा अपने दोनों हाथों में लिया और उनकी आँखों में देखते हुए बोला;

मैं: हमारे मुकद्दर में देर से मिलना लिखा था!

ये सुन भौजी भावुक हो गईं, तो मैंने माहौल को हल्का करते हुए कहा;

मैं: फिर मैंने तो आपको पहले ही कहा था की भाग चलो मेरे साथ, पर आप ही नहीं माने!

ये सुन भौजी मुस्कुराईं और मेरे गले लग गईं| मेरे सीने से लग कर उनका मन अब हल्का हो गया था, इधर मैं उनकी पीठ सहलाता हुआ सोच रहा था की क्या मैं उन्हें सबकुछ बता दूँ? मेरा दिल इस बोझ तले दब चूका था और भौजी मेरे दिल में छुपी ये बात महसूस कर पा रहीं थीं;

भौजी: आप कुछ कहना चाहते हो?

जारी रहेगा भाग - 6 में.....
 

ग्यारहवाँ अध्याय : एक ही भूल!
भाग - 6


अब तक आपने पढ़ा:

भौजी: इसी बात का तो दुःख है, जो भी हमें साथ देखता है वो यही समझता है की हम दोनों पति-पत्नी हैं! ...काश मैं आपकी पत्नी होती! काश हमारी शादी असल में हुई होती!
भौजी बड़े जोश से बोलीं|
मैंने भौजी का चेहरा अपने दोनों हाथों में लिया और उनकी आँखों में देखते हुए बोला;
मैं: हमारे मुकद्दर में देर से मिलना लिखा था!
ये सुन भौजी भावुक हो गईं, तो मैंने माहौल को हल्का करते हुए कहा;
मैं: फिर मैंने तो आपको पहले ही कहा था की भाग चलो मेरे साथ, पर आप ही नहीं माने!
ये सुन भौजी मुस्कुराईं और मेरे गले लग गईं| मेरे सीने से लग कर उनका मन अब हल्का हो गया था, इधर मैं उनकी पीठ सहलाता हुआ सोच रहा था की क्या मैं उन्हें सबकुछ बता दूँ? मेरा दिल इस बोझ तले दब चूका था और भौजी मेरे दिल में छुपी ये बात महसूस कर पा रहीं थीं|

अब आगे:

भौजी: आप कुछ कहना चाहते हो?

भौजी ने मेरे सीने से लगे हुए पुछा|

मैं: नहीं तो|

मैंने झूठ बोला, पर ये झूठ अपने आप ही निकला था! लेकिन अब मेरे दिल में दर्द अपनी चरम सीमा पर पहुँच चूका था!

भौजी: आपकी दिल की धड़कनें बहुत तेज होती जा रही हैं!

भौजी ने आलिंगन तोडा और मेरी तरफ हैरानी से देखने लगीं| वो जान गईं थीं की मैं उनसे झूठ बोल रहा हूँ और वो मूक भाषा में मुझसे कारन जानना चाहती थीं! उनका वो चेहरा देख मुझसे खुद को रोका न गया और मेरी आँखों से आँसूँ बाह निकले;

मैं: मुझे माफ़ कर दो!

मैंने भौजी के आगे हाथ जोड़ते हुए कहा| भौजी ने तुरंत मेरे दोनों हाथ अपने हाथ में पकड़ लिए और मेरे आँसूँ पोछते हुए बोलीं;

भौजी: क्या बात है बोलो?

मैं: उसने...अपनी जिद्द के कारन खाना-पीना बंद कर दिया था! तीन दिन से वो भूखी-प्यासी थी और बहुत ज्यादा कमजोर हो गई थी! लगभग मरने की कगार पर थी, उसने मेरे आगे दो ही रास्ते छोड़े थे या तो मैं उसकी बात मान जाऊँ या फिर उसे मरने के लिए जहर ला कर दे दूँ!

मैंने रोते हुए कहा, ये सुन भौजी स्तब्ध हो गईं! भौजी ने आज जिंदगी में पहलीबार मेरे आँसुओं को नजरअंदाज किया क्योंकि इस समय भौजी का ध्यान सिर्फ और सिर्फ मेरा जवाब सुनने पर था और इधर मैं खामोश हो गया था!

भौजी: तो आप उसकी बात मान रहे हो?

भौजी ने मेरे कंधे पर हाथ रखते हुए अपना सवाल पुछा|
मैं: मैं मजबूर हूँ! मेरे पास और कोई चारा नहीं! अगर उसे कुछ हो गया, तो मैं कभी भी इस इल्जाम के साथ जी नहीं पाउँगा|

ये सुन भौजी ने अपना हाथ मेरे कंधे पर से हटा लिया और गुस्से में घूर कर मुझे देखने लगीं| अब तक तो मैं माधुरी की इस हालत का दोषी को मान रहा था पर जब भौजी ने मुझे ऐसे देखा तो मैं मन ही मन खुद को उनका दोषी भी बना बैठा! मन ने कहा की मुझे अपना पहलु भौजी के सामने रखना चाहिए, इसलिए मैंने भौजी की कोख पर हाथ रखते हुए कहा;

मैं: मैं अपने होने वाले बच्चे की कसम खता हूँ, मेरा इसमें कोई स्वार्थ नहीं है! ये सब मैं बस खुद को बचाने के लिए कर रहा हूँ!

पर भौजी को मेरी बात का जरा भी विश्वास नहीं हुआ, उन्होंने मेरा हाथ गुस्से से झटक दिया और आँखों में आँसूँ लिए बाहर चली गईं| मैं उनका गुस्सा समझ सकता था और मैंने इसके लिए उन्हें जरा भी दोष नहीं दिया, यही कारन था की मैंने उन्हें नहीं रोका! शायद अब उन्हें छूने तक का अधिकार मैं खो चूका था!

मैं कुछ देर बैठा रहा और सर खुका कर रोता रहा, आज मैंने भौजी का दिल जो तोडा था! इस हालात का मैं ही दोषी था और भौजी जो भी मुझे सजा देंगी वो मैं सर झुका कर मानने को तैयार था! मैंने अपने आँसू पोछे और बाहर आंगन में आगया| बाहर आते ही मुझे रसिका भाभी नजर आईं, मैं उनके पास गया और उनसे हमारे बड़े घर के पीछे बने घर के बारे में पूछने लगा| उन्होंने बताया की वो घर पिताजी के मित्र चौबे जी का है| वो अपने परिवार सहित अम्बाला में रहते हैं, सर्दियों में यहाँ कुछ दिन के लिए आते हैं| बातों बातों में मैंने ये भी पता लगाया की उनके घर की चाबी हमारे पास ही है, क्योंकि उनके आने से पहले घरवाले घर की सफाई करवा देते हैं| मैंने रसिका भाभी से कहा की मेरा वो घर देखने का मन है पर वो मना करने लगीं; "सांझ हो गई, कउनो भूत-प्रेत चिपट गवा तो?!" रसिका भाभी ने घबराते हुए कहा| "कुछ नहीं होगा!" मैंने कहा और उन्हें साथ इस घर के सामने ले आया| घर का ताला खोला तो वो मकड़ी के जालों का घर निकला! तभी वहाँ से एक छिपकली निकल के भागी, जिसे देख रसिका भाभी एक दम से डर के मारे चिलाईन; "हे बाबा!" और मुझसे चिपक गईं| मैंने भाभी के हाथों को अपने जिस्म से अलग किया और कहा; "गई छिपकली|" रसिका भाभी कुछ दूर हुईं और बोलीं; "एहि खातिर हम कहत रहे की हम ना जाबे!"
मैंने भाभी की बात पर कोई ध्यान नहीं दिया और गौर से घर का जायजा लिया| घर की दीवारें कुछ दस-बारह फुट ऊँची थी, आँगन में एक चारपाई थी जिस पर बहुत धुल-मिटटी जमी हुई थी| मैं बाहर आया और घर को चारों ओर से देखने लगा, दरअसल मुझे Exit Plan की भी तैयारी करनी थी ताकि आपात्कालीन स्थिति में मैं भाग सकूँ! अब मैं कोई कूदने मैं एक्सपर्ट तो नहीं था पर फिर भी मजबूरी में कुछ भी कर सकता था| आंगन में पड़ी चारपाई से मुझे कुछ तो सहारा था और बाकी का सहारा मुझे अपने जिस्म की ऊँचाई का था! आंगन की दिवार फाँदना टेढ़ी खीर था पर सिवाए उसके कोई और रास्ता नहीं था! मैंने घर के भीतर थोड़ी और जाँच-पड़ताल की तो मुझे वहाँ कुछ समान मिला जिसकी मदद से मैं आंग के एक छज्जे पर चढ़ सकता था और वहाँ से बाहर कूदना थोड़ा आसान हो जाता! जगह का जायजा लेने के बाद अब ये तो पक्का था की ये ही सबसे अच्छी जगह है, स्कूल में फिर भी खतरा था क्योंकि वो सड़क के किनारे था और तीन बजे के बाद वहाँ ताला लगा होता, वहीँ इस घर की तरफ कोई आता-जाता नहीं था! भौजी मुझे ऐसे चहल-कदमी करते हुए देख रहीं थीं, उन्होंने मुझे छेड़ते हुए पुछा; "बड़ा गौर से देखत हो?!" मेरी चोरी पकड़ी न जाए इसलिए मैंने उन्हें बड़ी चालाकी से झूठ बोला; "भाभी मैंने पिताजी को बात करते हुए सुना था की बड़े घर में कमरे कम पड़ रहे हैं, तो मैंने सोचा की अगर हम लोग ये घर खरीद लें तो?" रसिका भाभी मेरी बातों में आ गईं और वो मन ही मन इस घर को अपना मानने लगीं! उनके चेहरे पर आये लालच के भाव उनके मन की दशा साफ़ बता रहे थे| "अच्छा चलो, घर चलते हैं!" मैंने उनके ख्वाबों को तोड़ते हुए बोला| उस घर को ताला लगा कर हम दोनों बड़े घर लौट आये, मैं जानबूझ आकर उनके पीछे-पीछे रसिका भाभी के कमरे में घुसा ताकि ये देख सकूँ की ये चाभी रखी कहाँ जाती है, ताकि मैं समय आने पर मैं वो चाभी वहाँ से चाबी चुरा सकूँ|

दो ही दिनों में मैंने धोकेबाजी, जालसाजी, फरेबी और चोरी सब सीख ली थी! हलांकि मेरा मन जानता था की मैं ये सब कितनी मजबूरी में कर रहा हूँ! खैर रसिका भाभी ने चाभी मेरे सामने की दिवार पर टाँग दी, चाभी रखने की जगह मैं जान गया था पर भाभी को कोई शक न हो उसके लिए मैं कुछ देर के लिए उनके पास बैठ के इधर-उधर की बातें करने लगा| इतने में नेहा कूदती हुई आई और मेरी पीठ पर चढ़ गई| मुझे वहाँ से निकलने का मौका मिल गया और मैं उसे पीठ पर लादे वहाँ से चल दिया| कल स्कूल जाने को लेकर नेहा बहुत उत्साहित थी, मैं उसे अपनी पीठ पर लादे हुए आंगन में घूमने लगा| रात का खाना हुआ और नेहा मेरी छाती से लिपट कर सो गई| भौजी शाम से ले कर अब तक मुझसे दूर थीं, न कुछ बोल रहीं थीं और न ही मेरे आस-पास आ रहीं थीं! खैर इसमें उनकी गलती नहीं थी, मुझ जैसे धोकेबाज के पास कौन ही आना चाहेगा! कुछ ही पल में दिमाग में फिर से माधुरी की शक्ल आ गई और नाचाहते हुए भी दिमाग मेरा ध्यान उधर खींच कर ले गया| मैं चाहता था की ये काम जल्द से जल्द खत्म हो, पर मैं अपना ये उतावलापन माधुरी को नहीं दिखाना चाहता था, वरना वो सोचती की मैं उससे प्यार करता हूँ! इधर मेरी लाड़ली उठ गई थी क्योंकि उसे बाथरूम जाना था, मैं उसे कल की ही तरह ले गया और बाथरूम करवा कर हाथ-पाँव धुला कर ले आया| कुछ कल रात से ना सोने के कारण जिस्म थका हुआ था और कुछ माधुरी के बारे में सोचने से सर दर्द करने लगा था, इसलिए मुझे नींद आ गई, लेकिन चैन से ना सो सका, क्योंकि तीन बजे मेरी आँख खुल गई| मैंने उठ कर बैठना चाहा पर नेहा मेरी छाती पर ही चढ़ कर सो रही थी सो उठ नहीं पाया| सुबह 5 बजे मैं उठा और मेरे उठते ही नेहा उठी, उसने उठते ही मुझे बड़े प्यार से देखा और फिर मेरे दाहिने गाल पर पप्पी की| इतने में भौजी घर से निकलीं और जब मैंने उन्हें देखा तो उनकी आँखों ने उनका दर्द ब्यान कर दिया| उनकी दोनों आँखें लाल थीं, मतलब वो रात भर रो रहीं थीं! उन्हें देखते ही मुझे खुद से नफरत होने लगी, उस पल मेरी अंतरात्मा ने मुझे सैकड़ों गालियाँ दी! यहाँ तक की एक बार को तो मन ने कहा की जाके आत्महत्या कर ले! पर कुछ तो था जिसने मुझे वो कदम उठाने नहीं दिया! मेरी बुजदिली या भौजी का प्यार?

"अरे बेटा नेहा को तैयार होने दे!" पिताजी बोले तो मैं अपने ख्यालों से बाहर आया और नेहा को नीचे उतारा| उसने सीधा भौजी के घर तक दौड़ लगाई और अपने स्कूल के पहले दिन के लिए तैयार होने लगी| नेहा के तैयार होने तक मैं भी नाहा-धो कर आ गया| भौजी ने नेहा को तैयार किया और नेहा आ कर मेरी गोद में फिर से चढ़ गई| मैं अपनी सड़ी हुई शक्ल से नेहा का पहला दिन बर्बाद नहीं करना चाहता था, इसलिए मैंने अपने चेहरे पर मुस्कान चिपकाई और उससे बात करते हुए स्कूल पहुँचा| स्कूल पहुँचते ही मुझे हेडमास्टर साहब मिले और उनसे कुछ बात कर मैंने नेहा को उसकी क्लास में छोड़ा| जैसे ही मैं बाहर जाने को पलटा की नेहा ने मेरा हाथ पकड़ लिया| उसका स्कूल जाने का सारा जोश ठंडा पड़ गया था और अपने सामने दूसरे गाँव के अनजान बच्चे देख वो घबरा गई थी! आजतक नेहा बीएस हमारे घर के आंगन में खेली-कूदि थी और उस आंगन के बाहर वो आज तक कभी नहीं गई थी, यही कारन था की आज जब उसे अनजान चेहरे देखने पड़े तो वो घबरा गई| "क्या हुआ बेटा?" मैंने पुछा तो नेहा ने मेरी गोद में आने को अपने हाथ खोल दिए| मैंने नेहा को गोद में लिया तो वो रोने लगी; "नहीं..नहीं...नहीं...रोते नहीं!" मैंने नेहा को चुप कराना चाहा तो वो किसी तरह चुप हुई| इतने में मास्टर जी भी आ गए और मुझे नेहा को गोद में ले कर खड़ा देखने लगे| वो कुछ कहते उसके पहले ही मैंने उनसे विनती की; "सर आज नेहा का पहला दिन है तो वो थोड़ी घबराई हुई है| क्या मैं थोड़ी देर के लिए यहीं बैठ जाऊँ? उसका डर खत्म होते ही चला जाऊँगा!" ये सुन कर मास्टर जी हँस पड़े और सर हाँ में हिला कर मुझे बैठने की इजाजत दी| मैंने नेहा को गोद में ले कर बैठ गया; "बेटा ये स्कूल है यहाँ गोदी में नहीं जमीन पर बैठते हैं!" मैंने कहा तो नेहा मेरी गोद से उत्तर कर मेरी बगल में बैठ गई| फिर मास्टर जी ने अपना एक रजिस्टर निकाला और नेहा से बोले; "गुड़िया, तोहार नाम का है?" ये सुन नेहा मेरी ओर देखने लगी ताकि मैं उन्हीं नाम बताऊँ| मैंने नेहा की पीठ पर हाथ रख आकर उसे होंसला दिया तो वो बोली; "नेहा मौर्या"! उसके मुँह से ये सुनकर आज पता नहीं क्या हुआ की मेरे जिस्म के सारे रोएं खड़े हो गए, दिल में एक अजीब से हलचल हुई जो मेरे लिए व्यक्त कर पाना मुश्किल था|

मैं अपने अंदर की इन तरंगों को समझने में लगा था और उधर मास्टर जी ने बड़ी होशियारी से नेहा को बीच में उनके सामने बैठने को कहा| नेहा डरने लगी और मेरी तरफ देखने लगी पर मैं तो अपने ख्यालों में गुम था| उसने अपने नन्हे हाथों से मुझे छुआ तो मैं अपने ख्यालों से बाहर आया| "नेहा हियाँ हमरे लगे बैठो!" मास्टर जी दुबारा बोले तो मैंने गर्दन हाँ में हिलाकर उसे जाने को कहा| डरी-सहमी नेहा जा कर उनके सामने आलथी-पालथी मारकर बैठ गई| मास्टर जी ने अपनी किताब उठाई और 'मछली जल की रानी है' पढ़ने लगे| बाकी बच्चे ये पाठ अच्छे से पढ़ कर आये थे तो वो मास्टर जी के साथ बोलने लगे, बेचारी नेहा अपनी आँखें बड़ी करके उन्हें देखने लगी| जब मास्टर जी ने कहा; 'हाथ लगाओगे तो डर जायेगी!' तो नेहा के चेहरे पर मुस्कराहट आ गई| ये देख मैं चुप-चाप उठ कर जाने लगा तो वो एकदम से उठी और आ कर मेरी टांगों से लिपट कर रोने लगी| वो समझ गई थी की मैं उसे छोड़कर घर जा रहा हूँ, मैं उसके सामने घुटने मोड़ कर खड़ा हुआ और बोला; "बेटा रोना नहीं! आप कितने बहादुर हो? आप यहाँ बैठ कर पढ़ाई करो और मैं आपको लेने दोपहर को आऊँगा|" पर नेहा नहीं मानी और न में गर्दन हिलाने लगी| "अच्छा ठीक है मैं कहीं नहीं जा रहा, पर यहाँ सिर्फ बच्चे बैठते हैं तो मैं बाहर बैठता हूँ वर्ण मास्टर जी मुझे डाटेंगे! आप यहाँ पढ़ो और जब छुट्टी होगी तब हम दोनों चिप्स खाएंगे! ठीक है?" मैंने नेहा को प्रलोभन दिया तो वो किसी तरह मान गई| मैं उठ कर क्लास से बाहर गया और पेड़ के नीचे बैठ गया, नेहा क्लास में खड़ी मुझे देखती रही की कहीं मैं झूठ तो नहीं बोला रहा! जब उसे इत्मीनान हुआ की मैं कहीं नहीं जा रहा तब जा कर वो अपनी जगह बैठी| अंदर मास्टर जी ने फिर से पाठ पढ़ाना शुरू कर दिया, मैं 10 मिनट वहाँ बैठा और फिर उठ कर घर लौट आया| घर आ कर मैंने पिताजी को सब बताया तो उन्हें वो दिन याद आ गया जब वो मुझे स्कूल छोड़ने पहली बार गए थे! "मानु की माँ याद है ये कितना रोया था!" पिताजी बोले|

"रोयेगा ही, आपने जो डाँट दिया था!" माँ बोलीं| स्कूल का मेरा पहला दिन बड़ा डरावना था, अपनी माँ की गोद से उतार कर पिताजी ने 20 अनजान बच्चों के बीच छोड़ दिया था ऊपर से जब मैंने स्कूल नहीं जाने को बोला तो और डाँट दिया था! खैर माँ की बात सुन सब हँस पड़े थे सिवाए मेरे और भौजी के! मेरा बड़ा मन था भौजी को कुछ देर पहली हुई वो बात बताने का पर मौका ही नहीं मिल रहा था और जब मौका मिला भी तो भौजी मुँह फेर कर चली गईं| मैं खामोश रहा और सर झुका कर छप्पर के नीचे अकेला बैठा रहा| जैसे ही साढ़े ग्यारह बजे मैं नेहा को लेने स्कूल पहुँच गया और वापस उस पेड़ के नीचे बैठ गया, घर रह कर भौजी का दिल दुखाना मुझे अच्छा नहीं लग रहा था| बारह बजे और नेहा क्लास से बाहर दौड़ती हुई आई और मेरे गले ऐसे लग गई मानो जैसे मुझे कई सालों बाद देखा हो! मैंने भी उसे कस कर अपने गले लगाया और फिर उसे दूकान पर ले आया, वहाँ उसके मनपसंद 'अंकल चिप्स' दिलाये और खाते-खाते हम घर लौटे| घर आ कर नेहा मुझे आज सब बताने लगी की उसने आज स्कूल में कौन-कौन सी कवितायें सीखीं| उसकी मन पसंद कविता थी 'मछली जल की रानी है!' माँ छप्पर के नीचे बैठी नेहा की कविता सुन रही थी और फिर अम्मा से बोलीं; "दीदी मानु जब छोट रहा तब ऊ भी ई कविता गात रहा!" ये सुन अम्मा और माँ दोनों हँस पड़े| भौजी उस समय रसोई में थीं पर वो अब भी खामोश थीं!

दोपहर खाना खाने के बाद नेहा मेरी गोद में चढ़ कर सो गई और मैं उसके पीठ सहलाता रहा| शाम को उठते ही वो बात-बॉल ले आई और हम दोनों खेलने लगे| खेलते-खेलते 6 बजे और मुझे स्कूल के पास कोई खड़ा हुआ दिखाई दिया जो हमारे घर की तरफ देखते हुए हाथ हिला रहा था| मैं जानता था की ये शक़्स कौन है पर मैं वहाँ जाना नहीं चाहता था| इधर माधुरी बार-बार अपना हाथ हिला रही थी और मुझे बुला रही थी| मजबूरन मुझे जाना पड़ा और मैं सर झुका कर स्कूल की ओर चल दिया| वहाँ पहुँच कर मैं उससे 5 कदम की दूरी पर खड़ा हो गया|

माधुरी: मैंने आपकी पहली शर्त पूरी कर दी, मैं शारीरिक रूप से स्वस्थ हो गई हूँ| आप खुद ही देख लो, तो आप कब कर रहे हो मेरी इच्छा पूरी?

माधुरी ने उस्तुकता से पुछा| अचानक मुझे सूझा की क्यों न मैं एक चाँस ले कर देखूँ और माधुरी को मना कर दूँ, शायद वो मान जाए और वैसे भी अब वो तंदुरुस्त हो गई है तो वो अब इतनी जल्दी बीमार तो पड़ नहीं पाएगी! मैं कल ही पिताजी से शहर जाने की बात करके उन्हें मना लूँगा, इससे कम से कम भौजी का दिल तो नहीं टूटेगा!
मैं: देखो...मैंने बहुत सोचा पर मैं तुम्हारी इच्छा पूरी नहीं कर सकता, मुझे माफ़ कर दो!!!

मैंने बहुत गंभीर होते हुए कहा|

माधुरी: मुझे पता था की आप कुछ ऐसा ही कहेंगे इसलिए मैं अपने साथ ये लाई हूँ|

ये कहते हुए उसने अपने पीछे से चाक़ू निकाल कर दिखाया| चाक़ू देखते ही मैं हड़बड़ा गया!

माधुरी: मैं आपके सामने, अभी आत्महत्या कर लूँगी!

माधुरी ने मुझे धमकाया तो मेरी बुरी तरह फ़टी! इस वक्त सिर्फ मैं ही इसके पास हूँ और अगर इसे कुछ हो गया तो मैं कहीं का नहीं रहूँगा! इसलिए मैंने अपनी होशियारी छोड़ दी और उससे बोला;

मैं: रुको.. रुको.. रुको... मैं मजाक कर रहा था!

मैंने हड़बड़ी में अपनी चालाकी को मजाक का नाम दे दिया|

माधुरी: नहीं! मैं जानती हूँ आप मजाक नहीं कर रहे थे|

ये कहते हुए माधुरी ने अब चाक़ू अपनी पेट की तरफ मोड़ लिया!

माधुरी: आप मुझे धोका देने वाले हो!
मैं: नहीं..नहीं...ठीक है.... कल... कल करेंगे ... अब प्लीज इसे फेंक दो!

मैंने उसके आगे हाथ जोड़ते हुए कहा| माधुरी ने चाक़ू अपने पेट की तरफ से हटा लिया और ख़ुशी से भरते हुए बोली;

माधुरी: कल कब?

अब मुझे उस वक़्त कुछ नहीं सूझ रहा था, तो मन में जो आया वो बोल दिया;

मैं: शाम को चार बजे, तुम मुझे बड़े घर के पीछे जो घर है वहाँ मिलना|

ये सुनते ही माधुरी की बाछें खिल गईं;

माधुरी: थैंक यू!

मैंने एक लम्बी सांस ली और धीरे-धीरे उसके पास पहुँचा और उसके हाथ से चाक़ू छीन कर दूर फेंक दिया|

मैं: दुबारा कभी भी ऐसी हरकत मत करना!

मैंने माधुरी को गुस्से से चेतावनी देते हुए कहा|

माधुरी: सॉरी आइन्दा ऐसी गलती कभी नहीं करुँगी|

माधुरी हँसते हुए अपने कान पकड़ कर बोली|

मैं उसे अपनी बेरुखी दिखाते हुए बिना कुछ बोले घर लौट आया| जैसे ही आंगन में घुसा तो भौजी मिलीं और मुझे देखते ही वो समझ गईं की मैं माधुरी से मिलकर आया हूँ| चेहरे पर गुस्सा लिए वो मुझसे मुँह फेर कर चली गईं! ऐसा इंसान जिसे आप दिलों जान से चाहते हो, वो आपसे बात करना बंद कर दे तो क्या गुजरती है ये मुझे इन दिनों पता चल रहा था, पर इसमें उनका कोई दोष नहीं था, दोषी तो मैं था! तभी नेहा मेरे पास बॉल ले कर आ गए और खुद बैटिंग करने लगी| मैंने उसे धीरे-धीरे बॉल करानी शुरू कर दी और वो बॉल इधर-उधर मारने लगी| एक-एक कर सभी घरवाले लौट आये और आंगन में चारपाई बिछा कर बैठ गए| पड़ोस के गाँव के जमींदार घर आये थे तो पिताजी ने मुझे उनसे मिलने को अपने पास बुला लिया| वहाँ बातों-बातों में खाने का समय हुआ और सब खाना खाने बैठ गए, पर मैं पेट दर्द का बहाना कर के अपने बिस्तर पर लेट गया| सब को लगा की सच में मेरे पेट में दर्द है, बीएस एक भौजी जानती थीं की बात क्या है पर वो चुप रहीं! नेहा खाना खा कर मेरे पास आई और मेरे से लिपट कर कहानी सुनते-सुनते सो गई| रात जैसे-तैसे कटी और सुबह हुई, अपने दैनिक कार्य निपटा कर मैं नेहा को स्कूल छोड़ने चल दिया| आज सुबह स्कूल जाते समय नेहा उत्साहित थी, उसका स्कूल का डर आज खत्म हो चूका था| नेहा को स्कूल छोड़ कर घर आया तो सवा सात हुए थे और मैं मन ही मन ये मनाने लगा की आज ये समय रुक जाए और घडी में कभी चार बजे ही न! इतने में आसमान से एक बड़ी जोरदार आवाज आई, मैंने सर ऊपर कर के देखा तो पाया की आज तो मौसम का भी मिजाज खराब है! ऐसा लगा मानो आज तो मौसम भी मुझ पर गुस्सा निकालने को तैयार है! अचानक ही पूरे आसमान और हम दोनों (भौजी और मेरे) के रिश्तों पर काले बादल छा चुके थे!

कुछ कटाई का काम रह गया था तो घर के सब लोग वहीं चल दिए थे ताकि बारिश होने से पहले कटाई हो जाए| इधर घर पर सिर्फ मैं और भौजी ही रह गए थे, भौजी रसोई में थीं और मैं कुएं की मुंडेर पर सर झुका कर बैठा था| जैसे ही घडी में साढ़े ग्यारह बजे मैं नेहा को लेने उसके स्कूल चल दिया| बारह बजे उसकी छुट्टी हुई और नेहा को अपनी पीठ पर लादे हुए मैं घर लौटा| भोजन का समय हुआ तो मैंने खाने से मन कर दिया और चुप-चाप आंगन में लेट गया| नेहा मुझे फिर से बुलाने आई पर मैंने उसे प्यार से मना कर दिया| "अब क्या हुआ? खाना क्यों नहीं खा रहा?" पिताजी ने खाना खाते हुए पुछा| "जी वो सुबह से पेट में मरोड़ें उठ रहीं हैं!" मैंने झूठ बोला और दूसरी तरफ करवट ले कर लेटा रहा| "हजार बार मना किया है की बाहर से कुछ मत खाया कर पर ये लड़का बाज नहीं आता!" माँ गुस्से में चिल्लाईं! मैं कुछ नहीं बोला और चुप-चाप माँ की झिड़कियाँ सुनता रहा| खाना खा कर नेहा मेरे पास आ कर लेट गई और सारे घर वाले खेत पर चले गए| नेहा को थपकी देते हुए मैंने सुला दिया और इधर घडी की सुइयाँ टिक..टिक..टिक...टिक..टिक करते-करते तीन की डंडी पर पहुँच गईं!| मैं उठा और सबसे पहले रसिका भाभी के कमरे की ओर चल दिया| किस्मत से वो सो रहीं थीं, मैंने चुप-चाप दिवार से चाभी उठाई और खेतों की ओर चला गया| जल्दी से खेत पहुँच मैं वहीं टहलने लगा ताकि खेत में मौजूद सब को लगे की मैं बोर हो रहा हूँ| इससे पहले कोई कुछ कहे मैं खुद ही बोला; "बहुत बोर हो गया हूँ, मैं जरा नजदीक के गाँव तक टहल के आता हूँ|" किसी ने कुछ नहीं कहा और मैं चुप चाप वहाँ से निकल लिया और सीधा बड़े घर के पीछे वाले घर की तरफ चल पड़ा| घडी में अभी साढ़े तीन हुए थे और जैसे ही वहाँ पहुँचा तो देखा वहाँ माधुरी पहले से ही खड़ी थी!

जारी रहेगा भाग - 7 में.....
 

ग्यारहवाँ अध्याय : एक ही भूल!


भाग - 7


अब तक आपने पढ़ा:

जैसे ही घडी में साढ़े ग्यारह बजे मैं नेहा को लेने उसके स्कूल चल दिया| बारह बजे उसकी छुट्टी हुई और नेहा को अपनी पीठ पर लादे हुए मैं घर लौटा| भोजन का समय हुआ तो मैंने खाने से मन कर दिया और चुप-चाप आंगन में लेट गया| नेहा मुझे फिर से बुलाने आई पर मैंने उसे प्यार से मना कर दिया| "अब क्या हुआ? खाना क्यों नहीं खा रहा?" पिताजी ने खाना खाते हुए पुछा| "जी वो सुबह से पेट में मरोड़ें उठ रहीं हैं!" मैंने झूठ बोला और दूसरी तरफ करवट ले कर लेटा रहा| "हजार बार मना किया है की बाहर से कुछ मत खाया कर पर ये लड़का बाज नहीं आता!" माँ गुस्से में चिल्लाईं! मैं कुछ नहीं बोला और चुप-चाप माँ की झिड़कियाँ सुनता रहा| खाना खा कर नेहा मेरे पास आ कर लेट गई और सारे घर वाले खेत पर चले गए| नेहा को थपकी देते हुए मैंने सुला दिया और इधर घडी की सुइयाँ टिक..टिक..टिक...टिक..टिक करते-करते तीन की डंडी पर पहुँच गईं!| मैं उठा और सबसे पहले रसिका भाभी के कमरे की ओर चल दिया| किस्मत से वो सो रहीं थीं, मैंने चुप-चाप दिवार से चाभी उठाई और खेतों की ओर चला गया| जल्दी से खेत पहुँच मैं वहीं टहलने लगा ताकि खेत में मौजूद सब को लगे की मैं बोर हो रहा हूँ| इससे पहले कोई कुछ कहे मैं खुद ही बोला; "बहुत बोर हो गया हूँ, मैं जरा नजदीक के गाँव तक टहल के आता हूँ|" किसी ने कुछ नहीं कहा और मैं चुप चाप वहाँ से निकल लिया और सीधा बड़े घर के पीछे वाले घर की तरफ चल पड़ा| घडी में अभी साढ़े तीन हुए थे और जैसे ही वहाँ पहुँचा तो देखा वहाँ माधुरी पहले से ही खड़ी थी!

अब आगे:

नोट : क्षमा कीजिये मित्रों मैं आगे के सेक्स सीन में "चूत", "चूचे", "चोदना" आदि शब्दों का प्रयोग कर रहा हूँ| दरअसल माधुरी के साथ मेरे सेक्स को मैं अब भी एक बुरा हादसा मानता हूँ, पर आप सब की रूचि देखते हुए मैं इसका इतना डिटेल में वर्णन कर रहा हूँ|

मैं: तु? तु यहाँ क्या कर रही है? अभी तो सिर्फ साढ़े तीन हुए हैं?

मैंने हैरानी से चौंकते हुए पुछा|

माधुरी: क्या करूँ जी, सब्र ही नहीं होता| अब जल्दी से बताओ की कहाँ जाना है?

माधुरी ने उत्साह से खुश होते हुए कहा| पर मुझे उसका ये उत्साह जरा भी नहीं भाया, ऊपर से उसने जो मुझे 'जी' कहा था उसे सुन तो मेरा खून खौल गया था! किसी तरह मैं अपना गुस्सा पी गया और चुकांना हो कर इधर-उधर देखने लगा ताकि ये संतुष्टि कर लूँ की कोई हम दोनों को एक साथ न देख ले| मैंने फटाक से उस घर का ताला खोला और उसे अंदर आने को कहा| वो एकदम से धड़धड़ाती हुई अंदर घुस गई और मैंने फटाक से दरवाजा बंद कर दिया ताकि कोई हमें अंदर जाते हुए न देख ले! दरवाजा बंद कर मैं उसी से अपना सर भिड़ाये खड़ा था, दिल की धड़कनें तेज हो चली थीं और मेरी अंतरात्मा मुझे धिक्कार रही थी! अपनी आँखें बंद किये हुए मैंने ये काण्ड जल्दी निपटाने की सोची, जैसे ही मैंने अपनी आँख खोली तो देखा माधुरी बड़ी आस लिए मुझे देख रही है| उसकी शकल देखते ही जैसे मेरा शरीर सुन्न हो गया, दिमाग और दिल के बीच का कनेक्शन टूट गया| दिमाग और मन के भीतर जंद चीड़ गई थी, दिमाग कह रहा था की जल्दी से इसे चोद और निकल यहाँ से वर्ण अगर पकडे गए तो खामखा की मुसीबत गले पड़ जायेगी| पर मन था की भौजी के प्यार से बंधा था और जिस्म को आगे नहीं जाने दे रहा था| इधर मैं अपनी कश्मकश से जूझ रहा था और उधर माधुरी अपनी कामाग्नि में जल कर बेसब्र हो रही थी;

माधुरी: आप क्या सोच रहे हो?

उसने दो कदम मेरी तरफ चलते हुए कहा|

मैं: कुछ... कुछ नहीं|

मैं अपनी कश्मकश से बाहर आते हुए बोला|

माधुरी: प्लीज अब आप और मत तड़पाओ!

उसने अपनी अधीरता दिखाते हुए बोला पर मुझे उसकी ये अधीरता देख गुस्सा आने लगा और मैं उसे झिड़कते हुए बोला;

मैं: यार... थोड़ा तो सब्र कर!

माधुरी: जबसे आपको बिना टी-शर्ट के देखा है तब से मन बड़ा बेताब है आपको फिर से उसी हालत में देखने को?

माधुरी ने अपने दाँतों तले ऊँगली दबाते हुए कहा, पर ये सुन मैं एकदम से चौंक गया;

मैं: तुने मुझे बिना कपड़ों के कब देख लिया?

माधुरी: उस दिन जब आप खेतों में काम करके लौटे थे और नहाने गए थे! आप तो दरवाजा बंद करना भूल गए थे और इसी बहाने मुझे आपको छुप कर देखने का मौका मिल गया!

माधुरी ने बड़ी बेहयाई दिखाते हुए कहा|

अब मुझे काफी हद्द तक बात समझ आ गई थी, मुझे नंगे बदन देख इसकी बुर में कुलबुलाहट हुई थी तभी ये मेरे पीछे पड़ गई, शुक्र है की इसने मुझे नंगा नहीं देखा वर्ण ये तो उसी वक़्त मेरे लंड पर चढ़ जाती! मैं अभी ये सोच कर गुस्से में भरने लगा था की माधुरी ने अपनी कटीली हँसी हँसते हुए कहा; "और आज तो मैं आपको पूरा....!" माधुरी ने बात अधूरी छोड़ दी और मुझे प्यासी आँखों से देख हँसने लगी| वो उम्मीद कर रही थी की उसकी ये अटखेलियाँ देख मैं पिघल जाऊँगा पर वो भौजी के प्यार को नहीं जानती थी, ये उनका प्यार ही तो था की मैं खुद को रोके हुआ था!

इधर अचानक से मेरे दिमाग ने मुझे झटका दिया, कहीं ये भौजी के 'Love Bites' ना देख ले! मैंने सोच लिया की चाहे कुछ भी हो जाये मैं अपनी टी-शर्ट नहीं उतारूँगा| मैं दरवाजे पर खड़ा मन ही मन रणनीतियाँ बना रहा था ताकि जल्द से जल्द इस काम को अंजाम दूँ और यहाँ से निकलूँ, पर मन था की उन रणनीतियों पर अम्ल करना ही नहीं चाहता था!

उधर माधुरी की प्यास उस पर हावी हो चुकी थी, वो धीरे-धीरे मेरे पास चल कर आई और मेरी कमर के इर्द-गिर्द अपनी बाहें लपेट कर मेरे सीने से सर लगा कर खड़ी हो गई| उसके इस स्पर्श मात्र से ही मेरा जिस्म सिंहर उठा था, मैंने हाथ पीछे ले जा कर उसके हाथों को अपनी कमर से छुड़ाया, पर इस मौके का फायदा उठा कर माधुरी अपने पंजों पर खड़ी हो गई और एकदम से अपने होंठ मेरे होंठों से मिला दिए| इस अचानक हुए हमले से मैं तिलमिला गया और माधुरी के कन्धों को पकड़ मैंने उसे खुद से दूर कर दिया, लेकिन फिर भी माधुरी मेरे ऊपर वाले होंठ का स्वाद ले चुकी थी! उसने मुझे प्यासी नजरों से देखा और फिर मेरी तरफ बढ़ी;

मैं: इस सब के लिए मैंने हाँ नहीं कहा था!

मैंने अपना हाथ दिखा कर उसे रुकने का इशारा करते हुए कहा|

माधुरी: आप भी कमाल करते हो? बिना Kiss के सेक्स शुरू होता है?"

माधुरी अपनी कमर पर हाथ रख कर थोड़ा अकड़ते हुए बोली|

मैं: मुझे ये kiss-विस पसंद नहीं!

मैंने मुँह बनाते हुए कहा|

माधुरी: अच्छा जी? रितिका को Kiss नहीं करते?!

माधुरी ने मुझे छेड़ते हुए कहा, पर रितिका का नाम याद आते ही मुझे भौजी की याद आ गई और मेरे चेहरे पर दोषी होने के भाव छ गए तथा सर शर्म से झुक गया;

मैं: क्योंकि मैं उससे प्यार करता हूँ!

ये माधुरी के पूछे गए सवाल का जवाब था| वो मेरे हाव-भाव देख कर समझ गई थी की मैं कितनी मजबूरी में ये सब कर रहा हूँ और वो अगर चाहती तो मुझे मना कर सकती थी और तब मैं साड़ी उम्र उसकी पूजा करता! लेकिन वो अपनी ही वासना की आग में जल रही थी और इसी वासना के वशीभूत वो बोली;

माधुरी: अच्छा ठीक है! आपको नहीं करना Kiss तो मत करो लेकिन मुझे तो करने दो?

ये सुन कर मेरी आत्मा अंदर से बहुत रोई! मेरा वो जिस्म जिस पर आजतक सिर्फ भौजी का हक़ था उसे आज ये कामपिपासी भोगना चाहती थी!

मैं खामोश खड़ा रहा और माधुरी ने इसे ही मेरी सहमति समझी, वो फिर से मेरे नजदीक आ गई और मेरे चेहरे को थाम कर अपने होंठ मेरे होंठों पर रख कर उन्हें चूसने लगी| मेरा जिस्म इस अनचाहे स्पर्श से छूटना चाहता था इसलिए मैंने अपने हाथों को उसके कंधे पर रख उसे अपने से दूर करना चाहा पर माधुरी ने अपने जिस्म की ताक़त लगाते हुए मेरे चेहरे को थामे रखा और बारी-बारी से मेरे होंठों को चूसती रही| लेकिन मेरे होठों ने अपनी कोई प्रतिक्रिया नहीं दी, उसे ही साड़ी कोशिश करनी पड़ रही थी! माधुरी जानती थी की उसे अपनी जीभ का प्रयोग जल्दी करना पड़ेगा तभी उसे मेरी तरफ से प्यारभरी प्रतिक्रिया मिलेगी| उसने अपनी जीभ रूपी 'जैक' से मेरे मुँह को खोलना चाहा ताकि वो अपनी जीभ मेरे मुख में प्रवेश करवा सके, लेकिन मैंने उसकी एक न चलने दी और अपने दाँत और कस कर बंद कर लिए| माधुरी ने 2-4 बार और कोशिश की पर उसे नकमियाबी ही हाथ लगी! आखिर उस ने हार मान ली, मेरी ओर से कोई प्रतिक्रिया नहीं मिल पाने के कारन वो स्वयं ही रूक गई| वो वापस अपने पैरों पर खड़ी हो गई और मेरी ओर एक टक-टकी लगाए देखने लगी, उसे मेरे चेहरे पर कोई भाव नहीं दिख रहे थे!

वो मुझसे दो कदम दूर हुई और मुझे लगा की शायद उसे मुझ पर तरस आ गया, पर न जी न! उसने मेरी टी-शर्ट उतारने के लिए हाथ आगे बढ़ाये;

मैं: प्लीज ....ये मत करो!!!

मैंने थोड़ा गुस्सा दिखाते हुए कहा|

माधुरी: पर क्यों? मैं कब से आपको बिना टी-शर्ट के देखना चाहती हूँ| पहले ही आप मुझसे दूर भाग रहे हैं और अब आप तो मुझे छूने भी नहीं दे रहे?

माधुरी ने विनय की!

मैं: देख मैं तेरे आगे हाथ जोड़ता हूँ, प्लीज ये मत कर| मैं तुम्हारी इच्छा तो पूरी कर ही रहा हूँ ना!

मैंने उससे विनती करते हुए कहा|

माधुरी: आप मेरी इच्छा बड़े रूखे-सूखे तरीके से पूरी कर रहे हैं|

माधुरी ने उदास होते हुए कहा|

मैं: मेरी शर्त याद है न? मैं तुझे प्यार नहीं कर सकता, ये सब मैं सिर्फ और सिर्फ अपनी जान बचाने के लिए कर रहा हूँ! तुझे जरा भी अंदाजा नहीं है की मुझे पर क्या बीत रही है?

माधुरी: ठीक है मैं आप के साथ जोर-जबरदस्ती तो कर नहीं सकती|

एक लम्बी सांस लेते हुए, अपनी कद दिखाते हुए बोली;

माधुरी: ठीक है कम से कम आप मेरी सलवार-कमीज तो उतार दो! इतना कहके वो मेरी तरफ पीठ कर के खड़ी हो गई, अब मुझे नचाहते हुए भी उसकी कमीज उतारनी थी| मैंने अपने कांपते हुए हाथों से उसकी कमीज को कमर से पकड़ के सर के ऊपर से उतार दिया| उसने नीचे ब्रा नहीं पहनी थी इसलिए कमीज उतरते ही वो ऊपर से नंगी हो गई| माधुरी ने तुरंत अपने हथेलियों को अपनी चूचियों पर रख उन्हें ढक लिया| कुछ पल के लिए माधुरी अपनी नंगी पीठ मेरी ओर किये हुए खड़ी रही, वो शायद उम्मीद कर रही थी की मैं उसकी नंगी पीठ को चूमूँगा पर मैं तो शर्म से अपना सर झुकाये खड़ा था! मेरी कोई प्रतिक्रिया न पाकर माधुरी अपनी चूचियाँ अपनी हथेली से ढके हुए मेरी तरफ घूमी| "मेरी तरफ तो देख लो?!" माधुरी बोली तो मैंने अपनी गर्दन उठा कर उसे देखा तो पाया की उसके गाल शर्म से बिलकुल लाल हो चुके हैं! उसने मेरी आँखों में देखते हुए धीरे-धीरे अपने हाथ अपनी चूचियों पर से हटाये! माधुरी को इस तरह नग्न देख मेरी सांसें तेज हो चुकी थीं, अगर इस समय माधुरी की जगह भौजी होती तो मैं कब का उनसे लिपट जाता!

माधुरी के हाथ हटते ही मुझे उसके तोतापरी आम दिखाई दिए, पर मेरे मन में उन्हें देख कर भौजी की याद आ गई! इधर माधुरी फिर से उम्मीद कर रही थी की मैं उसे स्पर्श करूँगा, लेकिन मैं तो भौजी को याद करने लगा था! माधुरी ने मेरे दाहिने हाथ को पकड़ कर अपनी चूचियों की तरफ ले जाने लगी, लेकिन इससे पहले की मेरा हाथ उसके चूचों से स्पर्श होता मैंने अपना हाथ वापस खींच लिया| माधुरी तिलमिला उठी और बोली; आप मेरी जान ले के रहोगे! आपने अभी तक मुझे स्पर्श भी नहीं किया तो ना जाने आगे आप कैसी घास काटोगे?!" मैंने उसकी बात का कोई जवाब नहीं दिया और अपनी आँखें फेर ली| अब न जाने उसे क्या सूझी वो नीचे बैठ गई और झटके से मेरा पाजामा नीचे खींच दिया| बिना समय गंवाए उसने मेरा कच्छा भी खींच के बिलकुल नीचे कर दिया| अब उसे आगे कुछ समझ नहीं आया, उसे अपनी आँखों के सामने मेरा सोया हुआ लंड दिखाई दिया तो उसने बिना कुछ सोचे-समझे गप्प से मेरा लंड अपने मुँह में भर लिया और चूसने लगी|

एक बात तो थी उसे लंड चूसना बिलकुल नहीं आता था, वो बिलकुल नौसिखियों की तरह पेश आ रही थी और मेरे लंड को मुँह में इधर-उधर घुमा रही थी पर अपनी जीभ का इस्तेमाल बिलकुल नहीं कर रही थी! शायद लंड से आ रही महक उसे पसंद नहीं आई थी! जब की भौजी ने भी पहली बार में लगभग मेरी आत्मा को मेरे लिंग के भीतर से खींच लिया था! मैंने उसके सर पर हाथ रख कर उसे अपने लंड से दूर करते हुए रोका, माधुरी ने भी एकदम से मेरा लंड अपनी मुँह से निकल दिया और बड़ा सड़ा हुआ सा मुँह बनाया! साफ़ था उसे लंड चूसने में मजा नहीं आया, इधर माधुरी के मुँह में लंड होने के बाद भी वो शिथिल था! मैंने उसे आँगन में बिछी चारपाई की ओर इशारा किया तो अचानक उसके चेहरे पर मुस्कराहट आ गई| चारपाई के पास पहुँचते ही आसमान में काले बादलों के कारन अँधेरा छा गया! समय हुआ होगा शाम के पोन चार या चार पर बादलों के कारन ऐसा लग रहा था मानो रात हो गई हो! तभी एक्जोरदार आस्मां में बिजली चमकी, अब तो आसमान भी मुझसे खफा था!

मैंने और देर न करते हुए माधुरी को चारपाई पर लेटने का इशारा किया| ये सुन कर उसने थोड़ा गुस्से से मुझे देखा क्योंकि मैंने उसे धूलभरी चारपाई पर उसे लेटने को कहा था! उसने चारपाई को पास ही पड़े एक गंदे कपडे से साफ़ किया और फिर पीठ के बल लेट गई| लेटते ही उसके चेहरे पर फिर से मुस्कराहट आ गई, उसकी मुस्कराहट का कारन मुझे जल्द ही समझ आ गया जब उसने अपनी सलवार की तरफ ऊँगली की! वो चाहती थी की मैं उसकी सलवार उतारूँ, अब एक बार फिर बेमन से मैंने उसकी सलवार का नाडा खोला और और उसे उतार कर नीचे फेंक दिया| सलवार उतरते ही मुझे उसकी कोरी चूत नजर आई क्योंकि उसने नीचे पैंटी नहीं पहनी थी| उसकी चूत बिलकुल साफ़ थी, बालों का नामो-निशाँ नहीं था, एक दम गोरी-गोरी और मुलायम लग रही थी| मैंने उसे स्पर्श नहीं किया था पर देख कर ही लगता था की उसने आज तक कभी भी सेक्स नहीं किया था|

खैर मैंने अपना पजामा और कच्छा उतारा, तथा उसके ऊपर आ गया| "देखो पहली बार बहुत दर्द होगा!" मैंने माधुरी को आखरीबार चेतावनी दी! ये सुन माधुरी कुछ सहम सी गई पर फिर भी उसने हाँ में गर्दन हिला कर अपनी अनुमति दी| मैंने अपने लंड पर थोड़ा थूक लगाया और उसकी चूत के मुहाने पर रखा| इतने गुस्से और मजबूरी के चलते हुए भी मैं नहीं चाहता था की उसे ज्यादा दर्द हो इसलिए मैंने धीरे से अपने लंड को उसकी चूत पर दबाना शुरू किया| जैसे-जैसे मेरा लंड का दबाव उसकी चूत पर पड़ रहा था, उसका शरीर दर्द के मारे कमान की तरह ऐंठ रहा था| दर्द के तीव्रता बढ़ रही थी और कहीं उसके दर्द भरी कराह बाहर न निकले इसलिए उसने अपने होठों को दाँतों तले दबा लिया, लेकिन फिर भी उसकी सिसकारियाँ फुट निकली; "स्स्स्स्स्स्स...अह्ह्ह्हह्ह..माँ ...ह्म्म्म्म्म!!" अभी तक लंड का सुपाड़ा भी पूरी तरह से अंदर नहीं गया था और उसका ये हाल था, इसलिए उसकी सिसकारी सुन मैं एकदम से रूक गया! मैं जानता था की अगर मैं आगे बढ़ा तो ये बहुत जोर से चिल्लायेगी! धीरे-धीरे उसका शरीर कुछ सामान्य हुआ और वो पुनः अपनी पीठ के बल लेट गई| मैंने उसे डराना चाहा ताकि वो अपनी जिद्द छोड़ दे; "अभी तो मैं अंदर भी नहीं गया और तेरा दर्द से बुरा हाल है! मेरी बात मान और मत कर वरना पूरा अंदर जाने पर तु दर्द बर्दाश्त नहीं कर पाएगी!" मुझे लगा था की वो ये सुन कर डर जायेगी पर वो पूरे आत्मविश्वास से बोली; "आप मेरे दर्द की फ़िक्र मत करो, आप बस एक झटके में इसे (मेरे लंड को) अंदर कर दो!" उसकी उत्सुकता हदें पार कर रही थीं, लेकिन मैंने फिर भी उसे आखरी बार आगाह करते हुए कहा; "देख अगर मैंने ऐसा किया तो तेरी चूत फ़ट जाएगी, बहुत खून निकलेगा और..." इससे पहले की मैं कुछ कह पाता उसने मेरी बात काटते हुए कहा; "अब कुछ मत सोचिये, मैं सब सह लूँगी! प्लीज मुझे और मत तड़पाओ!"

उसका ये आत्मविश्वास मुझे गुस्सा दिला रहा था, मन तो कर रहा था की एक ही झटके में आर-पार कर दूँ और इसे इसी हालत में रोता-बिलखता छोड़ दूँ| लेकिन पता नहीं क्यों मन में कहीं न कहीं अच्छाई अब भी थी जो मुझे ऐसा करने से रोक रही थी| मैंने अपने लंड को पीछे खींचा और एक हल्का सा झटका मारा, उसकी चूत अंदर से पनिया गई थी इसलिए मेरा लंड चीरता हुआ आधा घुस गया| मेरे इस आक्रमण से उसकी दर्द के मारे आँखें फटी की फटी रह गई, ऐसा लगा मानो उसकी आँखें बाहर आ जाएँगी! वो एक दम से मुझसे लिपट गई और कराहने लगी; "हाय ....अह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह माआआअर अह्ह्ह्हह्ह अन्न्न्न्न!!!" वो मुझसे इतना जोर से लिपटी की मुझे उसके दिल की धड़कनें महसूस होने लगीं थी| उसके इस डर ने तो मेरे भी पसीने छुड़ा दिए थे, अगर मैंने पूरी जोर से अपना लंड पेला होता तो ये तो मर ही जाती ये सोचते हुए मेरे माथे पर आया पसीना बह के मेरी टी-शर्ट से मिल गया| इधर माधुरी जोर-जोर से हाँफने लगी थी और नीचे मेरा लंड उसकी चूत में साँस लेने की कोशिश कर रहा था| माधुरी की चूत ने कस कर मेरे लंड को जकड़ लिया था, मैं चाह रहा था की जल्द से जल्द ये काम खत्म हो पर उसकी दर्द भरी कराहों और उसकी चूत की जकड़न ने मेरी गति रोक दी थी!

करीब दस मिनट लगे उसे वापस सामान्य होने में पर मुझसे ये सब्र नहीं हो रहा था| मैं उसके ऊपर से उठने को हुआ तो उसने मेरी टी-शर्ट का कॉलर पकड़ के मुझे रोक दिया और अपने ऊपर खींच लिया| मुझे इस हमले की कतई उम्मीद नहीं थी इसलिए मैं सीधा उसके होंठों की तरफ गिरा, इस मौके का फायदा उठाते हुए उसने अपने पैरों को मेरी कमर पर रख के लॉक कर दिया तथा मेरे होठों को बारी-बारी से चूसना शुरू कर दिया| इस दोहरे हमले से मैं सम्भल नहीं पाया था पर फिर भी मैंने उसे उसके मन की नहीं करने दी, वो भरसक कोशिश कर रही थी की मैं उसके Kiss का जवाब Kiss करके दूँ पर वो नाकामयाब रही!|

उधर अँधेरा और घना होता जा रहा था, कुछ ही समय में अँधेरा कूप हो गया| आज तो जैसे सारी फ़िज़ा ही मुझसे नाराज थी! माधुरी मुझे Kiss किये जा रही थी और मैं शिथिल पड़ा मन ही मन आसमान की तुलना भौजी से करने लगा था! भौजी की ही तरह ये आसमान भी आज मुझसे खफा था, भौजी तो खामोश थीं पर ये आसमान गरज कर अपना गुस्सा व्यक्त कर रहा था! उसका वो बड़ी-बड़ी बिजली चमकाना ये प्रतीक था की मुझे इस पाप के बाद मर जाना चाहिए! ये सब सोचते हुए मुझे गुस्सा आने लगा आखिर माधुरी की वजह से भौजी की आँखों में आँसू आये थे! मैंने गुस्से में माधुरी की पकड़ से अपने कालर छुड़ाया और अपने दोनों हाथों का सहारा ले कर मैं उठ गया, जिस कारन मेरे होंठ भी उसके होठों की गिरफ्त से आजाद हो गए| माधुरी मुझे तड़पती, प्यासी नजरों से देखने लगी पर मुझे बीएस गुस्सा ही आ रहा था| मैंने धीरे-धीरे लंड को बाहर खींचा और अबकी बार जोर से अंदर पेल दिया! इसकारण माधुरी की जोरदार चींख निकली; "आआअक़आ...अह्ह्ह्हह्ह्ह्ह..माआआ..आह्ह्ह्हह...!!!" अब मैं बस उस पर अपनी खुंदक निकालना चाहता था, इसलिए मैंने जोर-जोर से शॉट लगाना शुरू कर दिए| मेरे ताकेटर हमलों के कारन वो लघ-भग बेसुध होने लगी, पर दर्द इतना था की वो अब भी होश में लग रही थी! उसकी टांगों का लॉक जो मेरी कमर के इर्द-गिर्द था वो खुल गया था और उसकी हालत अब पतली लग रही थी|

अगले दस मिनट तक मैं बिना रहम किये दनादन उसकी चूत की कुटाई करता रहा, उसकी चूत भी उसी की तरह ढीठ निकली और दस मिनट बाद अपनी प्रतिक्रिया देनी शुरू कर दी| मेरे हर शॉट के साथ उसकी चूत ने भी नीचे से झटके मारने शुरू कर दिए थे! साफ़ था की माधुरी झड़ने के करीब पहुँच चुकी थी! उसे डर था की कहीं मैं उसके झड़ने से पहले रुक न जाऊँ इसलिए वो एकदम से मुझसे फिर लिपट गई, अपनी बाहों को उसने मेरी पीठ पर जकड़ लिया और फिर से अपनी टांगों से मेरी कमर को LOCK कर मुझे जकड लिया| इस जकड़न के कारन एकबार फिर मेरी गति रुक गई थी, मैंने माधुरी के हाथ अपनी पीठ से छुड़ाने चाहे तो उसने एक झटके में मेरी टी-शर्ट मेरे गले से निकाल फेंकी, मैं संभल पाता उससे पहले उसने जल्दी से मेरी-टी-शर्ट मेरे दोनों हाथों से भी निकाल दी| ये सब इतनी जल्दी हुआ की मैं देखता ही रह गया! अब माधुरी के ने एकपल भी नहीं गंवाया और फ़ौरन मेरे नंगी छाती से अपने नंगे चूचे चिपका दिए! मुझे उसके तोतापरी स्तन अपनी छाती पर महसूस हो रहे थे, उसके निप्पल बिलकुल सख्त हो चुके थे और वो मेरी छाती में चुभ रहे थे! उसने एकदम से मेरे दाहिने कान की लो अपने मुँह में भर ली और उसे चूसने लगी| ये तो शुक्र था की अँधेरा हो गया जिसके कारन उसे मेरी छाती पर बने भौजी के Love Bites नहीं दिखे!

उसकी ये हरकत मुझे बिलकुल पसंद नहीं आई थी और मन किया उसे एक जोरदार थप्पड़ रसीद करूँ पर मुझे अब यहाँ से जल्द से जल्द निकलना था| इधर नीचे मेरी गति रुक जाने के कारन माधुरी की चूत ने रह-रह कर मेरे लंड को चूसना शुरू कर दिया था| मैंने 'प्लन्क' (Plank) वाला पोज़ लिया और एकबार फिर जोरदार चुदाई चालु की, माधुरी को मुश्किल से दो मिनट लगे झड़ने में और वो कस कर मुझसे लिपट गई| उसने अपने नंगे हाथ मेरी पीठ पर फेरने शुरू कर दिए और उसके इस स्पर्श से मेरे जिस्म में एक अजीब से हलचल शुरू हो गई! पूरा खून पीठ से दिल की तरफ भागने लगा था! झड़ने के बाद माधुरी की चूत अंदर से बिलकुल गीली थी जिस कारन मेरा लंड अब आसानी से अंदर-बहार आ जा सकता था| मेरे शॉट तेज होते गए और अब मैं भी झड़ने को था, पर अब भी मुझे अपने ऊपर काबू था| मैंने खुद को माधुरी के चंगुल से छुड़ाया और लंड बहार निकाल के उसके स्तनों पर अपने वीर्य की धार छोड़ दी| एक गहरी सांस लेते हुए मैं झट से खड़ा हुआ क्योंकि मैं अब और समय बर्बाद नहीं करना चाहता था| घडी में देखा तो ठीक से समय नहीं देख पाया, शायद छः बज रहे थे| इतनी जल्दी समय कैसे बीता समझ ही नहीं आया? तभी अचानक से झड़-झड़ करके आसमान से पानी बरसने लगा, मानो ये सब देख के उसके आँसूं गिरने लगे और ये देख मुझे बहुत ग्लानि महसूस होने लगी!

बारिश की बूँदें जब माधुरी पर पड़ी तो वो भी उठ कर बैठ गई और बारिश की बूंदों से खुद को साफ़ करने लगी| अँधेरा बढ़ने लगा था और अब हमें वहाँ से निकलना था;"जल्दी से कपडे पहन हमें निकलना होगा|" मैंने बड़े रूखे स्वर में कहा और फ़ौरन अपने कपडे उसकी तरफ पीठ कर के पहनने लगा| जवाब में माधुरी के मुँह से कुछ नहीं निकला शायद वो कुछ बोलने की हालत में ही नहीं थी| हमने अपने-अपने कपडे पहने और बाहर निकल गए| मैंने माधुरी से और कोई बात नहीं की और चुप-चाप ताला लगा के निकल आया, मैंने पीछे मुड़ के तक नहीं देखा|

मैं सीधा घर नहीं जा सकता था इसलिए मैं जानबूझ के लम्बा चक्कर लगा के स्कूल की तरफ से घर आया| इतना लम्बा चक्कर लगा कर आने के कारन मैं पूरा भीग चूका था| मुझे घर आता हुआ देख अजय भैया छाता ले के दौड़े आये;

अजय भैया: अरे मानु भैया आप कहाँ गए थे?

अजय भैया ने मुझे छाते के नीचे लेते हुए पुछा|

मैं: यहीं टहलते-टहलते आगे निकल गया था और वापस आते-आते बारिश शुरू हो गई तो स्कूल के पास रूक गया| पर बारिश है की रुकने का नाम नहीं ले रही, मुझे लगा आप सब परेशान न हो तो ऐसे ही भीगता चला आया|

मैंने सर झुकाये हुए कहा|

अजय भैया: चलो कोई बात नहीं, जल्दी से कपडे बदल लो नहीं तो बुखार हो जायेगा|

अजय भैया ने मुझे बड़े घर तक छाते के नीचे लिफ्ट दी और वो वापस छप्पर के नीचे चले गए जहाँ सारे बैठे बातें कर रहे थे| बड़े घर पहुँच के सबसे पहले मैंने वो चाभी रसिका भाभी के कमरे में टाँगीं और फिरअपने कपडे बदले पर मुझे अचानक से ऐसा लगा जैसे मुझे अपने जिस्म से माधुरी के जिस्म की महक आ रही हो| मुझे अब नहाना था, इसलिए मैं स्नान करने वाली जगह पहुँचा और हैंडपंप से पानी भर कर नहाना चालु कर दिया| स्नान करने वाली जगह चारों ओर से खुली थी ओर देखा जाए तो मुझे पानी भरने की जर्रूरत ही नहीं थी क्योंकि आसमान से पानी अब भी बरस रहा था| पर उस वक़्त मुझ पर अजीब ही जूनून सवार हो चूका था, मैंने साबुन अपने जिस्म पर रगड़ना चालु किया ये सोच कर की साबुन की खुशबु से माधुरी के देह (शरीर) की खुशबु निकल जाएगी| मैंने कच्छा तक निकाल फेंका और अपने लिंग को अच्छे से साफ़ किया! जैसे ही नहाना समाप्त हुआ मैंने तुरंत कपडे बदले पर अब बहुत देर हो चुकी थी, सर्दी मेरी छाती में बैठ चुकी थी और मुझे छींकें आना शुरू हो गई थीं| शरीर ठंड से कांपने लगा था, शरीर गर्म करने को मैं अपने कमरे में लेट गया| पास ही रस्सी पर कम्बल टँगा हुआ था, मैंने लेटे-लेटे उसे खींचा और उसे ओढ़ कर उसकी गर्मी में मैं सो गया|

करीब एक घंट बाद अजय भैया मुझे ढूँढ़ते हुए आये और मुझे जगाया, बारिश थम चुकी थी और मैं उनके साथ रसोई घर के पास छप्पर के नीचे आके बैठ गया| छप्पर के नीचे सब बैठे थे और बातें कर रहे थे, अजय भैया कुछ बच्चों के साथ आम बिन (इकठ्ठा) कर के लाये थे तो अम्मा उन्हीं को धो रही थीं| भौजी रसोई में बैठीं खाना बना रहीं थीं, नजाने मुझे ऐसा क्यों लगा की जैसे भौजी जानती हों की मैं कहाँ था और किस के साथ था| शायद यही कारन था की वो उखड़ी हुईं अपना काम करने में व्यस्त थीं| नेहा जो अजय भैया के साथ गई थी वो मेरे पास आने ही वाली थी की भौजी ने उसे बुरी तरह झाड़ दिया; "तू बाज नहीं आएगी ना?! क्या बोला था मैंने तुझे? एक बार में समझ नहीं आती? जा अंदर चुपचाप वरना मारूँगी अभी एक खींच कर!" भौजी ने मेरा सारा गुस्सा उस बेचारी पर निकाला| नेहा बेचारी रोती हुई भौजी के घर में भाग गई, मैं समझ गया की भौजी नहीं चाहती की नेहा मेरे पास आये और मुझसे कोई बात करे| माँ ने भौजी को टोका भी की क्यों वो नेहा को इस कदर झाड़ रहीं हैं तो भौजी ने शर्म से अपना सर झुका लिया| ये सब देख मेरा मन बहुत दुखा और बेचारी नेहा को और डाँट न पड़े इसलिए मैं चुपचाप वहाँ से उठा और बड़े घर की ओर जाने लगा| पीछे से पिताजी ने मुझे भोजन के लिए पुकारा पर मैंने झूठ बोल दिया की पेट ख़राब है और इसके आगे मैं कुछ नहीं बोला और चुपचाप बड़े घर आ गया तथा अपने कमरे में कम्बल ओढ़ के सो गया| उसके बाद मुझे होश नहीं था....

जारी रहेगा भाग - 8 में.....
 

ग्यारहवाँ अध्याय : एक ही भूल!


भाग - 8

अब तक आपने पढ़ा:

करीब एक घंट बाद अजय भैया मुझे ढूँढ़ते हुए आये और मुझे जगाया, बारिश थम चुकी थी और मैं उनके साथ रसोई घर के पास छप्पर के नीचे आके बैठ गया| छप्पर के नीचे सब बैठे थे और बातें कर रहे थे, अजय भैया कुछ बच्चों के साथ आम बिन (इकठ्ठा) कर के लाये थे तो अम्मा उन्हीं को धो रही थीं| भौजी रसोई में बैठीं खाना बना रहीं थीं, नजाने मुझे ऐसा क्यों लगा की जैसे भौजी जानती हों की मैं कहाँ था और किस के साथ था| शायद यही कारन था की वो उखड़ी हुईं अपना काम करने में व्यस्त थीं| नेहा जो अजय भैया के साथ गई थी वो मेरे पास आने ही वाली थी की भौजी ने उसे बुरी तरह झाड़ दिया; "तू बाज नहीं आएगी ना?! क्या बोला था मैंने तुझे? एक बार में समझ नहीं आती? जा अंदर चुपचाप वरना मारूँगी अभी एक खींच कर!" भौजी ने मेरा सारा गुस्सा उस बेचारी पर निकाला| नेहा बेचारी रोती हुई भौजी के घर में भाग गई, मैं समझ गया की भौजी नहीं चाहती की नेहा मेरे पास आये और मुझसे कोई बात करे| माँ ने भौजी को टोका भी की क्यों वो नेहा को इस कदर झाड़ रहीं हैं तो भौजी ने शर्म से अपना सर झुका लिया| ये सब देख मेरा मन बहुत दुखा और बेचारी नेहा को और डाँट न पड़े इसलिए मैं चुपचाप वहाँ से उठा और बड़े घर की ओर जाने लगा| पीछे से पिताजी ने मुझे भोजन के लिए पुकारा पर मैंने झूठ बोल दिया की पेट ख़राब है और इसके आगे मैं कुछ नहीं बोला और चुपचाप बड़े घर आ गया तथा अपने कमरे में कम्बल ओढ़ के सो गया| उसके बाद मुझे होश नहीं था....

अब आगे:

सुबह जब आँख खुली तो माँ मुझे जगाने आई थी और काफी परेशान लग रही थी| बड़ी मुश्किल से मेरी आँख खुली और मैं कुमुनाते हुए बोला;

मैं: क्या हुआ?

मेरी बड़ी भारी भरकम आवाज निकली और तब मुझे एहसास हुआ की मेरा गला बैठ चूका है!

माँ: तेरा बदन बुखार से तप रहा है और तू पूछ रह है की क्या हुआ? कल तू बारिश में भीग गया था इसीलिए ये हुआ और तेरी आवाज इतनी भारी-भारी हो गई है... हे राम!!! रुक मैं अभी तेरे पिताजी को बुलाती हूँ|

परसों रात से मैंने कुछ नहीं खाया था, कल भी सारा दिन भूखा था और उसपर भीग गया, फिर अपनी सनक के चलते ठंडे-ठंडे पानी से भीगते हुए नहाया तो बीमार होना तो तय था! पर एक माँ अपने बच्चे को कभी इस तरह बीमार नहीं देख सकती इसलिए उनकी परेशानी जायज थी पर मैं अपनी इस हालत को मेरा प्रायश्चित समझ रहा था! माँ के जाते ही मैं वापस सो गया, करीब आधे घंटे बाद जब मैं उठा तो पिताजी मेरे पास बैठे थे और मेरे सर पर हाथ फेर रहे थे|

पिताजी: तो लाड-साहब ले लिए पहली बारिश का मजा? पड़ गए ना बीमार? अब चलो डॉक्टर के|

पिताजी ने मुझे छेड़ते हुए कहा|

मैं: नहीं पिताजी बस थोड़ा सा बुखार ही है, क्रोसिन लूँगा तो ठीक हो जाऊँगा|

मैंने अपनी हालत को हलके में लेते हुए कहा|

पिताजी: पर क्रोसिन तो ख़त्म हो गई, तू आराम कर मैं अभी बाजार से ले के आता हूँ|

पिताजी तैयार हो कर चले गए और माँ बड़की अम्मा की मदद करने में लग गईं| मैं अकेला घर में पड़ा हुआ था, नींद तो आई नहीं पर मैं गहन चिंता में डूब गया| क्या अपना प्रायश्चित करने के लिए बीमार पड़ना और माँ-पिताजी को दुःख देना सही है? भला दूसरों को दुःख दे कर प्रायश्चित करना कैसा प्रायश्चित हुआ? भले ही कुछ दिनों से मैं वयस्कों जैसी बातें कर रहा था पर सोच मेरी अब भी बच्चों वाली थी! खैर मैंने सोच लिया की अगर प्रायश्चित ही करना है तो सबसे पहले मुझे भौजी से अपने द्वारा किये हुए पाप का स्वीकार करना होगा! ये सोचते हुए मुझे फिर से नींद आ गई और जब उठा तो मुझे किसी के सुबकने की आवाज आई! मैंने अपने मुँह से कम्बल हटाया तो देखा सामने भौजी बैठी हैं, उनसे बात करने की उम्मीद लिए मैं ने उठ के बैठना चाहा| लेकिन इससे पहले की मैं बैठ पाता, भौजी बिना कुछ बोले ही उठ के चलीं गई| खेर मैं उन्हें कुछ कह नहीं सकता था इसलिए मैं चुप-चाप लेटा रहा| भौजी का इस तरह से मुझसे मुँह फेर के चले जाने से मुझे बहुत दर्द हो रहा था! मैं उनसे एक आखरी बार बात करना चाहता था, कोई सफाई नहीं देना चाहता था बस उनसे अपने किये गुनाह की माफ़ी माँगना चाहता था| लेट कर चैन नहीं मिल रहा था इसलिए मैं जैसे-तैसे हिम्मत बटोर के उठ के बैठा| कल से खाना नहीं खाया था और ऊपर से बुखार ने मुझे कुछ कमजोर कर दिया था| इतने में भौजी फिर से मेरे सामने आ गईं और इस बार उनके हाथ में दूध का गिलास था| उन्होंने वो गिलास टेबल पर रख दिया और पीछे हो के खड़ी हो गईं| टेबल चारपाई से कोई दो कदम की दूरी पर था तो मैं उठ के खड़ा हुआ और टेबल की ओर बढ़ा| मुझे अपने सामने खड़ा देख उनकी आँखों में आँसूँ छलक आये और वो मुड़ के जाने लगीं| मैंने टेबल की तरफ बढ़ने के बजाए उनकी तरफ कदम बढाए और उनके कंधे पर हाथ रख के उन्हें रोकना चाहा, तो उन्होंने बिना मूड ही मुझे जवाब दिया; "मुझे मत छुओ!!!" उनके मुँह से ये शब्द सुन के मैं टूट गया, आत्मग्लानि ने मुझे इस कदर जकड़ा की मैं वापस चारपाई पर जाके दूसरी ओर मुँह करके लेट गया|

करीब आधे घंटे बाद भौजी दुबारा आईं और टेबल पर दूध का गिलास वैसे का वैसा देख उनका गुस्सा फूट पड़ा;

भौजी: आपने दूध नहीं पिया?

उन्होंने मुझे डाँटते हुए कहा| मैंने पीठ के बल लेटा और बोला;

मैं: नहीं

भौजी: क्यों?

भौजी ने गुस्से से पुछा|

मैं: वो इंसान जिससे मैं इतना प्यार करता हूँ वो मेरी बात ही ना सुन्ना चाहता हो तो मैं जिन्दा रह के क्या करूँ?

ये सुनते ही भौजी का चरम पर पहुँच गया और वो बड़ी जोर से मुझ पर चिल्लाईं;

भौजी: क्यों सुनूँ मैं आपकी बात? अब रह ही क्या गया है हमारे बीच? आपने साबित कर दिया की एक आदमी को अपनी जिंदगी में भोगने के लिए एक कुँवारी लड़की ही चाहिए होती है और मैं तो आपको वो सुख कभी दे नहीं पाई इसीलिए कल गए थे न उसके पास?

भौजी का ये इल्जाम सरासर गलत था! लेकिन मेरे कुछ कहने से पहले ही उन्होंने गुस्से में मुझे डाँटते हुए कहा;

भौजी: चुप-चाप ये दूध पियो!

उनकी गर्जन सुन आज मैं दहल गया था, मेरी आँखों में आँसूँ भर आये थे और मुँह से कुछ नहीं निकल रहा था| इसलिए मैंने ना में गर्दन हिला कर उन्हें दूध पीने से मना कर दिया|

भौजी: क्यों नहीं पीना?

उन्होंने गुस्से से अपनी कमर पर दोनों हाथ रखते हुए कहा| मैंने अपनी हिम्मत बटोरी और रुंधे गले से कहा;

मैं: एकबार मेरी बात तो सुन लो?

वो जानती थीं की मैं बिना अपनी बात रखे दूध नहीं पीने वाला इसलिए भौजी ने हार मानते हुए कहा|

भौजी: ठीक है, मैं आपकी बात सुनने को तैयार हूँ पर उसके बाद आपको दूध पीना होगा|

मैं उठ के दिवार का सहारा लेते हुए बैठ गया और खुद को कम्बल में छुपाये हुए बोला;

मैं: मैं जानता हूँ की जो मैंने किया वो गलत था, पाप था लेकिन मैं मजबूर था! जिस हालत में मैंने माधुरी को देखा था उस हालत में आप देखती तो शायद आप मुझे समझ पातीं| मैंने किया वो बहुत गलत है, उसकी कोई माफ़ी नहीं है पर मैं अपने सर पर किसी की मौत का कारन बनने का इल्जाम नहीं सह सकता था और आपकी कसम कल जो भी कुछ हुआ उसमें मेरी कोई रजामंदी नहीं थी! आपका ये आरोप लगाना की मैं उसके पास सिर्फ इसलिए गया क्योंकि वो कुँवारी है ये गलत है! मैंने कभी ऐसा नहीं सोचा अगर यही सोचा होता तो मैं आपको क्यों सच बताता? जो कुछ भी कल हुआ वो सब मजबूरी में हुआ और मैंने उसे रत्ती भर भी पसंद नहीं किया! मेरे दिलों-दिमाग में हर पल बस आप ही का ख़याल था, एक भी पल ऐसा नहीं गुजरा जब मैंने खुद को ना कोसा हो! मैंने कुछ भी दिल से नहीं किया... सच! प्लीज मेरी बात का यकीन करो और मुझे माफ़ कर दो! मैं आपसे सच्चा प्यार करता हूँ!

मैंने भौजी के आगे हाथ जोड़ते हुए कहा, पर मेरी किसी भी बात का उनपर कोई असर नहीं पड़ा| उनकी आँखों में मुझे मेरे लिए कोफ़्त साफ़ नजर आ रही थी और मैं ये कोफ़्त देख कर तिल-तिल मरने लगा था!

भौजी: ठीक है, अब मैंने आपकी बात सुन ली अब आप दूध पी लो|

भौजी ने बड़े उखड़े हुए स्वर में कहा और दूध का गिलास उठाने लगीं

मैं: पहले आप जवाब तो दो की आपने मुझे माफ़ किया या नहीं?

ये सुन कर भौजी ने बात खत्म करने के लिए कहा;

भौजी: मुझे सोचना होगा!

उनका ये कहना था की मुझे गुस्सा आने लगा| मैंने भौजी से सब कुछ सच कहा था, उनसे आजतक कोई बात नहीं छुपाई थी और उसके बाद भी अगर वो मुझे पर विश्वास नहीं करतीं तो लानत है मुझ पर और लानत है मेरे प्यार पर!

मैं: फिर जवाब रहने दो, मेरी सब बात सुनने के बाद भी अगर आपको सोच के जवाब देना है तो जवाब मैं जानता हूँ!

मैंने गुस्से से कहा और कंबल ओढ़े फिर से लेट गया| पर भौजी नहीं मानी, उनका गुस्सा अब पूरे जोश में था, उन्होंने गुस्से में टेबल से गिलास उठाया और मुझे उठाने के लिए उन्होंने मेरे जिस्म से गुस्से में कम्बल खींच लिया;

भौजी: आपको क्या लगता है की इस तरह अनशन करने से मैं आपको माफ़ कर दूँगी?...आप में और आपके भैया में सिर्फ इतना फर्क है की उन्होंने मेरी पीठ पर छुरा मारा तो आपने सामने से बता के! अब चलो और ये दूध पियो|

भौजी ने गुस्से से मेरा हाथ पकड़ा और मुझे उठाना चाहा, लेकिन मेरा हाथ पकड़ते ही उन्हें मेरे बुखार का अंदाजा हुआ जो अब पहले से काफी बढ़ चूका था! मेरा बुखार महसूस कर भौजी बिलकुल घबरा गईं और बोलीं; "हाय राम!!! आपका बदन तो जल रहा है|" इतना कहके वो बाहर की तरफ दौड़ गईं! उनके जाने के बाद मैंने अपनी आँख से आँसू पोछे और वापस कम्बल ओढ़ कर सो गया| पिताजी को क्रोसिन लिए गए हुए भी काफी देर हो गई थी, दरअसल बजार में उन्हें बड़के दादा द्वारा दिया हुआ काम भी निपटना था| भौजी ने जा कर माँ को मेरे बुखार के बारे में बताया, माँ ने फ़ौरन पिताजी को फ़ोन कर के डॉक्टर को ले आने को बोला|

कुछ देर बाद मुझे अपने पास लोगों की आवाजें सुनाई दी और उसमें से एक आवाज जानी पहचानी थी| ये कोई और नहीं डॉक्टर साहब थे, वो मुझे उठाने की कोशिश कर रहे थे पर मैं जानबूझ के सोने का बहाना कर रहा था, क्योंकि मैं जानता था की अगर मैं उठ गया तो वो मुझसे मेरी बिमारी के बारे में पूछेंगे और फिर मैं झूठ बोलते हुए फँस न जाऊँ इसलिए मैं सोने का ड्रामा करता रहा| पूरा घरभर इकठ्ठा हो गया था और भौजी, माँ और पिताजी डॉक्टर साहब के सामने खड़े थे, बाकि के सब आंगन में चारपाई पर बैठे थे| डॉक्टर ने पहले मेरा बुखार देखा और अपने नोटपैड पर कुछ लिखने लगा|

पिताजी: डॉक्टर साहब लड़का बारिश में भीग गया था ऊपर से इसने परसों रात से कुछ खाया भी नहीं, पुछा तो कहता था की पेट खराब है|

पिताजी ने डॉक्टर साहब को मेरा मर्ज बताते हुए कहा|

डॉक्टर साहब: देखिये भाई साहब, मेरे अनुसार थोड़ा-बहुत भीगने से कोई इतना बीमार नहीं पड़ता, केवल जुखाम ही तंग करता है और ऐसा भी नहीं है की मानु शारीरिक रूप से कमजोर हो, मेरा अनुमान है की इसने उस दिन बारिश में मानु ने कुछ ज्यादा ही मस्ती की है| फिर खाना न खाने के कारन इतनी कमजोरी और बुखार चढ़ गया है| मैं सलाह दूँगा की आप मानु को ज्यादा से ज्यादा आराम दें तथा थोड़ा ख्याल रखें और ये काम तुम्हारा है बहु (भौजी)| तुम मानु की सबसे अच्छी दोस्त हैं, जब तुम बीमार पड़ीं थी तब मानु ने तुम्हारा ध्यान रखा था और अब चूँकि मानु बीमार हैं तो एक अच्छा दोस्त होने के नाते तुम्हें मानु का ख्याल रखना होगा| दवाई समय पर देना और खाने-पीने का भी ध्यान रखना| खेर अभी के लिए मैं एक इंजेक्शन लगा देता हूँ, उससे बुखार कम हो जायेगा और साथ में पेट की इन्फेक्शन के लिए कुछ दवाइयाँ लिख देता हूँ इससे अगर कोई इन्फेक्शन होगा तो ठीक हो जायेगा|

अब इंजेक्शन का नाम सुनते ही मेरी फटी, पर अगर कुछ बोलता तो डॉक्टर साहब के सवालों का जवाब देना पड़ता इसलिए चुप-चाप लेटा रहा| आखिर डॉक्टर ने सुई लगाई और नचाहते हुए भी मुँह से "आह" निकल ही गई| डॉक्टर साहब अपनी फीस ले कर चले गए और मुझे एक बार फिर नींद आ गई| कुछ देर बाद भौजी ने मेरी बाजू को हिला कर मुझे जगाया, भौजी को घूँघट काढ़े सामने देखा तो बुरा लगा ऐसा लगा मानो वो जानबूझ कर अपना मुँह मुझसे छुपा रही हों| फिर जब मैं सीधा हो कर लेटा तो देखा की कमरे में माँ-पिताजी बैठे हैं और इसी कारन से भौजी ने घूँघट किया हुआ था| चलो दिलको थोड़ा सुकून तो मिला, तभी पिताजी बोले; "बहुत मस्ती करता है न, देख क्या हालत बना ली तूने?" पिताजी ने डाँटते हुए कहा तो मैंने सर झुका लिया और पिताजी ने मुझे आगे नहीं डाँटा| भौजी ने भोजन की थाली उठाई और मुझे रोटी का एक कौर खिलने लगीं! मैं एकदम से आँखें फाड़े उन्हें देखने लगा की वो पिताजी के सामने मुझे अपने हाथ से क्यों खाना खिला रही हैं? इधर माँ ने मेरी हरकत पकड़ ली और मुझे डाँटा; "बहु को क्या घूर रहा है? एक तो बेचारी तुझे खाना खिला रही है और तू नखरे दिखा रहा है?" मैंने फिर से सर झुका लिया और वो कौर खा लिया, पिताजी को किसी का फ़ोन आया तो वो फ़ोन ले कर बाहर चले गए लेकिन भौजी ने अब भी घूँघट काढ़ा हुआ था| मैंने भौजी से खाने की थाली लेनी चाही ताकि मैं खा लूँ पर उन्होंने थाली कस कर पकड़ रखी थी| ये खींचा-तानी देख माँ बोली; "खिला लेने दे बहु को, क्या जबरदस्ती कर रहा है!" माँ की बात सुन मैंने थाली छोड़ दी और भौजी ने मुझे खाना खिलाना जारी रखा| जैसे-तैसे मैंने एक रोटी खाई क्योंकि बुखार के कारन खाने का मन नहीं कर रहा था| "चाची देख लो!" भौजी ने माँ से शिकायत की तो माँ ने ध्यान दिया की मैंने बीएस एक ही रोटी खाई है; "चुपचाप एक और रोटी खा वर्ण तेरे पिताजी को अभी बुलाती हूँ!" माँ ने मुझे डराते हुए कहा| माँ की ये धमकी हमेशा काम करती थी, इसलिए मैंने बेमन से एक और रोटी खाई| खाने के बाद भौजी ने मुझे दवाई दी और फिर बर्तन ले कर चली गईं| दवाई लेने के बाद मैं सो गया और फिर शाम को जब उठा तो मेरी लाड़ली मेरे पास बैठी थी| मैं जैसे-तैसे उठ कर दिवार का सहारा ले कर बैठा, मुझे जगा हुआ देख नेहा खुश हो गई और भौजी को बुलाने गई| भौजी और माँ चाय ले कर आ गए और मेरे पास बैठ गए| इधर बड़की अम्मा भी मेरे पास आ कर बैठ गईं और मुझसे पूछने लगीं की मेरी तबियत कैसी है| अब अगर मैं मुँह बना कर बात करता तो सब और सवाल पूछते इसलिए मैने नकली मुस्कराहट का मुखौटा ओढ़े सबसे बात की तथा किसी को जरा सा भी शक नहीं होने दिया की मेरे मन में क्या चल रहा है| इस बातचीत के दौरान भौजी खामोश रहीं और मुझसे आँखें चुराती रहीं| नेहा बेचारी मुझे चौखट पर खड़ी हो कर देख रही थी और अपनी मम्मी के डर के मारे, चेहरे पर मुस्कराहट लिए देख रही थी| उसके चेहरे की मुस्कान देख मेरे तड़पते दिल को चैन मिल रहा था, मेरा मन कर रहा था की मैं उसे गले लगा लूँ पर जानता था की ये भौजी को कतई गंवारा नहीं होगा और वो उसे फिर से न डाँट दें इसलिए खामोश रहा|

रात्रि होने तक भौजी ने मेरा बहुत ख्याल रखा, मेरे आस पास रहीं पर हमारे बीच कोई बात नहीं हुई शायद उनका गुस्सा अब भी खत्म नहीं हुआ था| खाना बना तो उन्होंने मुझे खिलाना चाहा पर मैंने उनसे प्यार से थाली ले ली और खुद खाने लगा| मेरा खाना खाने तक वो मेरे पास ही बैठीं रहीं, मैंने माँ का सहारा ले कर उन्हें खाना खाने जाने को कहा तो वो और माँ उठ कर चले गए| इतने में नेहा भागती हुई आई और मेरी चारपाई पर चढ़ गई, उस वक़्त बड़े घर में मैं अकेला था तो मैंने नेहा को फ़ौरन अपने गले लगा लिया| नेहा ने भी मुझे कस कर जकड़ना चाहा, मानो उसे कल रात से मेरी कमी खल रही हो! "चाचू! कहानी सुनाओ न?" नेहा ने पुछा तो मैंने उसके माथे को चूमा और उसे कहानी बना कर सुनाने लगा| कहानी सुनते-सुनते नेहा सो गई, अब मुझे डर लगने लगा की कहीं भौजी ने उसे मेरे साथ देख लिया तो वो गुस्सा हो जाएँगी इसलिए मैंने नेहा को बड़ी मुश्किल से गोद में उठाया और उसे आंगन में पड़ी चारपाई पर लिटा दिया| चादर ओढ़ा कर मैं जैसे-तैसे अपने कमरे में पहुँचा और औंधे मुँह बिस्तर पर पड़ गया| बुखार और कमजोरी के कारण मेरी हालत पतली हो गई थी| रात्रि में भोजन के पश्चात माँ, बड़की अम्मा और भौजी सभी बड़े घर के आँगन में सोई| मैं अकेला था जो कमरे में सो रहा था, नींद तो कोसों दूर थी क्योंकि दिन भर मैं बस सोया ही था| रात को करीब दो बजे मुझे बाथरूम जाना था इसलिए मैं उठ के बैठा, बुखार कम लग रहा था और जब ठंडी-ठंडी हवा ने मेरे गर्म शरीर को छुआ तो आनंद आ गया| इससे पहले की मैं कमरे के बाहर कदम रखता, भौजी उठ के आ गईं;

भौजी: क्या हुआ? कुछ चाहिए था आपको?

भौजी ने बड़े प्यार से कहा| उनकी आवाज सुन कर दिल प्रसन्न हो गया!

मैं: नहीं...बाथरूम जा रहा हूँ|

मैंने सर झुकाते हुए जवाब दिया, क्योंकि भौजी के इस प्यार में मुझे अपने लिए दया नज़र आ रही थी! अगर मैं बीमार नहीं पड़ा होता तो वो मुझसे बात तक नहीं करतीं| मैंने पाप किया था और उस पाप के लिए मैं सजा का प्रार्थी था न की उनकी दया का! भौजी ने मुझे सहारा देने के लिए मेरा हाथ पकड़ लिया और बोलीं;

भौजी: मैं साथ चलूँ?

ये सवाल कम और औपचारिकता ज्यादा थी, वो औपचारिकता जो शायद उन्हें डॉक्टर साहब द्वारा दी गई नसीहत के कारन दिखानी पड़ रही थी| यदि ये प्रेम होता तो वो ये सवाल नहीं पूछतीं और मेरे साथ बाहर तक चल देतीं|

मैं: नहीं, अभी इतनी ताकत तो आ ही गई है की खुद बाथरूम जा सकूँ! आप जा कर सो जाओ!

मैंने सर झुकाये हुए कहा और भौजी ने एकदम से मेरा हाथ छोड़ दिया तथा अपने बिस्तर पर जा कर लेट गईं| जो मैं सोच रहा था वो सत्य था, भौजी को बस मुझ पर दया आ रही थी, न तो उन्होंने मेरी बात का विश्वास किया था और न ही उन्होंने मेरे द्वारा किये गए पाप के लिए मुझे अभी तक माफ़ किया था| मैं सर झुकाये हुए बाहर चला गया, बाथरूम कर के हाथ धोये और फिर लेट गया पर नींद अब भी नहीं आई| सुबह होने तक हर सेकंड को गुजरते हुए मैं महसूस कर पा रहा था और उस गुजरते हुए हर एक सेकंड में मुझे बस मेरा पाप ही नज़र आ रहा था! सुबह माँ और भौजी दोनों एक साथ कमरे में घुसे तो मुझे जागता हुआ छत को देखता हुआ पाया| माँ ने आ कर मेरा बुखार देखा जो अब बस नाम मात्र का रह गया था, मैं उठ के बैठा और माँ से नहाने के लिए कहा तो भौजी बीच में बोल पड़ीं; "नहीं" बस इससे ज्यादा वो कुछ नहीं बोलीं| उनकी बात से मुझे उनकी नाराजगी साफ़ नज़र आ रही थी, इसलिए मैं मुँह-हाथ धो के वापस पलंग पर दिवार का सहारा ले कर बैठ गया| चाय पी और फिर अपने हाथ बांधे चुप-चाप बैठा रहा, कुछ देर बाद बड़की अम्मा, बड़के दादा, अजय भैया और चन्दर एक-एक कर मिलने आये और मेरे पास बैठ कर कुछ बातें करने लगे| कभी मुझे समझते की मैं इस तरह मस्ती न करूँ तो कभी नसीहत देते की बाहर से ज्यादा खाऊँ-पियूँ न! मैं सर झुकाये सबकी बातें सुनता रहा, करीब ग्यारह बजे होंगे की तभी माँ ने भौजी से कहा; "बहु तु खाना बनाने की तैयारी कर, मैं यहाँ बैठती हूँ|" पिताजी, बड़के दादा, अजय भैया और चन्दर सब खेत पर जा चुके थे, रसिका भाभी छप्पर के नीचे कपडे सिल रही थीं, नेहा स्कूल गई थी और बड़की अम्मा मिर्ची सूखा रही थीं| कुछ देर बाद बड़की अम्मा माँ को ले कर चक्की पर चली गईं और मैं चुप-चाप लेट गया पर लेटने से चैन नहीं मिल रहा था तो मैं वापस उठ कर बैठ गया, पूरे बड़े घर में मैं अकेला था क्योंकि नेहा भी अभी स्कूल गई हुई थी|

इतने में वहाँ माधुरी टपक गई, उसे देखते ही मेरे होश उड़ गए क्योंकि अब भी दोनों घरों के बीच शीत युद्ध जैसा माहोल था!

मैं: तु? तू यहाँ क्या कर रही है?

मैंने चौंकते हुए पुछा|

माधुरी: कल मुझे रसिका भाभी ने आपकी तबियत के बारे में बताया था, मैं कल भी आई थी पर तब आप सो रहे थे| आज मुझसे रहा नहीं गया तो मैं आ गई!

माधुरी ने चिंता जताते हुए कहा|

मैं: अगर किसी ने तुझे यहाँ देख लिया तो गड़बड़ हो जाएगी!

मैंने भौजी के डर के मारे घबराते हुए कहा|

माधुरी: मैं पिताजी से पूछ के आई हूँ|

मैं उसकी ये दोमुही बात भाँप न पाया इसलिए मैंने भोयें सिकोड़ते हुए पुछा;

मैं: किसके पिताजी से?

माधुरी: आपके ... मैंने उन से गुज़ारिश की और वो मान गए|

मेरे पिताजी को उसका पिताजी कहना मुझे जरा भी नहीं जचा!

मैं: वो मेरे पिताजी हैं तेरे नहीं!

मैंने उसे झिड़कते हुए कहा|

मधुरील: सॉरी!

उसने सर झुका कर कहा| पर मुझे उसकी बातों पर बिलकुल विश्वास नहीं था, वो बड़ी आसानी से झूठ बोल सकती थी की वो पिताजी से पूछ कर आई है, इसलिए मैं उसे गुस्से से घूरने लगा| कहीं मैं उसे फिर से न झिड़क दूँ इसलिए वो खुद ही बोली;

माधुरी: मैं खेतों में आपके पिताजी की अनुमति से यहाँ आई हूँ, फिर भी यकीन ना आये तो आप अजय भैया से पूछ लेना|

अब मुझे कुछ संतुष्टि हुई पर मन फिर भी घबरा रहा था की अगर भौजी ने इसे यहाँ देख लिया तो उनका दिल दुखेगा| पर वो तो अपना रोना ले कर आई थी;

माधुरी: उस दिन के बाद तो आपको आना चाहिए था मेरा हाल पूछने के लिए? पर कुदरत का कानून तो देखो, मुझे आपका हाल चाल पूछने आना पड़ा| आखिर क्यों भीगे आप इतना?

माधुरी ने शिकायत करते हुए कहा| मैं उसकी बात समझ चूका था, उसका तात्पर्य उसके कौमार्य भंग होने से था, इसलिए मैंने उसकी बात का कोई जवाब नहीं दिया और खामोश रहा|

माधुरी: लगता है की आपका गुस्सा अब भी शांत नहीं हुआ? मुझे तो लगा की उस दिन अपना सारा गुस्सा आपने मेरे मर्दन (चुदाई) पर निकाल दिया होगा!

अब ये सुन कर मैं फिर से चौंका, भला इसे कैसे पता की मैं अपना गुस्सा निकाल रहा था?

मैं: तुझे कैसे पता मैं अपना गुस्सा निकाल रहा था?

माधुरी: भले ही आप मुझसे प्यार ना करते हों पर मैं तो करती हूँ| मैं जानती हूँ आपने वो सब कितना मजबूर हो कर किया, आपकी शक्ल से पता लग रहा था की आप का सेक्स करने का बिलकुल भी मन नहीं था| सारा समय आप कहीं खोये हुए थे, शायद रितिका को याद कर रहे थे! काश आपने वो सब मन से किया होता? पता है उस दिन कितना खून निकला था? अब भी मैं ठीक से चल नहीं पाती!

मैं: अगर मन से ही करना होता तो मैं तुझे कभी नहीं छूता! पर तेरी जिद्द ने मेरी जिंदगी हराम कर दी! मैं तुझसे हाथ जोड़कर रिक्वेस्ट करता हूँ, प्लीज इन बातों को मेरे सामने मत दोहरा, मैं पहले ही बहुत परेशान हूँ!

माधुरी: मुझे माफ़ कर दो!

इतना कह कर वो खामोश हो गई और फिर खुद को संभालते हुए बोली;

माधुरी: खेर जैसा की आपने अपनी शर्त में कहा था की मुझे इसकी आदत नहीं डालनी है तो अब हमारा मिलना नहीं हो पायेगा! अगलीबार जब मैं आपसे मिलूँगी तो मेरे हाथ में मेरी शादी का कार्ड होगा|

मैं: देख मैं झूठ नहीं बोलूँगा पर मैं तेरी शादी में नहीं आ पाउँगा| तू तो जानती ही है की दोनों घरों के हालात कैसे हैं और वैसे भी तबतक मेरे स्कूल शुरू हो जायेंगे, इसलिए मेरी तरफ से अभी से शुभकामनायें!

ये शुभकामनाएं मैंने बिना किसी घृणा या द्वेष के दी थीं, इसमें कोई प्यार नहीं था बस उसके अच्छे जीवन की शुभकामनाएं भर थीं|

माधुरी: तो मुझे तो अपनी शादी में बुलाओगे?

मेरा जवाब सुन माधुरी कुछ उदास हो गई थी क्योंकि मन ही मन वो मुझसे प्यार की उम्मीद अब भी लगाए हुए थी पर मेरे मन में उसके लिए कभी प्यार था ही नहीं! फिर भी उसने एक दोस्ती का रिश्ता रखने की कोशिश करते हुए मुझसे ये सवाल पुछा|

मैं: मेरी शादी होने तक कौन कहाँ होगा ये कोई नहीं जानता!

दो दिन पहले जो हुआ था वो मेरे लिए एक दर्दनाक हादसा था, ऐसा हादसा जिसे मैं भूलना चाहता था और किसी भी हालत में माधुरी से कोई रिश्ता नहीं रखना चाहता था वरना वो जख्म मुझे उससे मिला था वो कभी नहीं भरता और साड़ी उम्र मेरी तरह नासूर बना रहता|

माधुरी और कुछ नहीं बोली बस एक प्यारी सी मुस्कान दी, मैं जानता था की वो अपनी मुस्कान के पीछे अपने दर्द को छुपाने की कोशिश कर रही है, पर मैं उसके जख्मों को कुरेदना नहीं चाहता था इसलिए मैं कुछ नहीं बोला| आखिर वो चली गई और उसके जाते ही भौजी कमरे के भीतर घुसीं! भौजी को अचानक देख मैं सकपका गया और मेरी गर्दन फिर से झुक गई| अगले एक मिनट तक जब वो कुछ नहीं बोलीं तो मैंने बड़ी हिम्मत कर के उनकी ओर देखा और पाया की उनकी आँखें आँसुओं से भरी हुई हैं! मैं समझ गया की भौजी को माधुरी के यहाँ आने से बहुत दुःख हुआ है, पर बात कुछ और निकली!

भौजी रूंधे गले से बोलीं;

भौजी: मैंने आप दोनों की सारी बातें सुन ली! मुझे माफ़ कर दो! मैंने आपको बहुत गलत समझा! मैंने आपके प्यार पर शक किया.....

इतना कह कर भौजी फूट-फूट कर रोने लगीं| मैंने अपनी बाहें खोल दीं और भौजी एकदम से आ कर मेरे गले लग गईं, पर उनका रोना अब भी जारी रहा| मुझसे ाहतक भौजी के आँसू बर्दाश्त नहीं होते इसलिए मैं उन्हें चुप कराने के लिए उनके बालों में हाथ फेरता रहा;

मैं: बस..बस..बस.. चुप हो जाओ! आपको माफ़ी मांगने की कोई जर्रूरत नहीं|, पाप मैंने किया था आपने नहीं!

भौजी: आपने कोई पाप नहीं किया! उसने आप के मासूम दिल का गलत फायदा उठाया!

मैं: लेकिन आप तो खाना बंनाने गए थे तो वापस क्यों आये?

भौजी: अम्मा चाहती थीं की आपके पसंद का खाना बने इसलिए उन्होंने कहा की मैंने आपसे पूछ लूँ की आप खाने में क्या खाओगे| मैं आपसे पूछने आ रही थी की तभी मुझे माधुरी घर में घुसती हुई नज़र आई, इसलिए मैं दबे पाँव अंदर आई और दिवार से टेक लगाए आपकी बातें सुनने लगी|

भौजी ने सुबकते हुए कहा| मैंने पहले उनके आँसूँ पोछे और बोला;

मैं: बस...अब रोना नहीं है! आप रोते हुए कतई अच्छे नहीं लगते!

भौजी ये सुन कर थोड़ा मुस्कुराईं और फिर बोलीं;

भौजी: अब चलिए बहार बैठिये, दो दिनों से आपने खुद को इस कमरे में बंद कर रखा है| अब सब ठीक होगा और अब कोई नाराजगी नहीं!

भौजी ने मेरा हाथ पकड़ा और मुझे बाहर आंगन में ले आईं| आँगन में एक किनारे पर चारपाई डाल के भौजी ने मुझे वहाँ बैठा दिया और फिर मुझसे खाने के बारे में पुछा| "दाल-चावल और करेले की सब्जी बना दो!" मैंने कहा तो भौजी मुस्कुराती हुई खाना बनाने चली गईं| ये वो मुस्कराहट थी जिसे मैं पिछले तीन दिन से देखना चाहता था! भौजी का मुस्कुराता हुआ चेहरा याद करते हुए मैं सो गया, लेकिन पौने घंटे में ही चौंक कर उठ गया, मेरा पूरा जिस्म पसीने-पसीने हो गया था और मैं अपने पूरे जिस्म को छू-छू कर देख रहा था! शरीर थका हुआ था पर मुझे अब नींद आने से डर लग रहा था!
 

[color=rgb(65,]बारहवाँ अध्याय: नई शुरुरात[/color]
[color=rgb(41,]भाग - 1 (1)[/color]


[color=rgb(209,]अब तक आपने पढ़ा:[/color]

भौजी ने मेरा हाथ पकड़ा और मुझे बाहर आंगन में ले आईं| आँगन में एक किनारे पर चारपाई डाल के भौजी ने मुझे वहाँ बैठा दिया और फिर मुझसे खाने के बारे में पुछा| "दाल-चावल और करेले की सब्जी बना दो!" मैंने कहा तो भौजी मुस्कुराती हुई खाना बनाने चली गईं| ये वो मुस्कराहट थी जिसे मैं पिछले तीन दिन से देखना चाहता था! भौजी का मुस्कुराता हुआ चेहरा याद करते हुए मैं सो गया, लेकिन पौने घंटे में ही चौंक कर उठ गया, मेरा पूरा जिस्म पसीने-पसीने हो गया था और मैं अपने पूरे जिस्म को छू-छू कर देख रहा था! शरीर थका हुआ था पर मुझे अब नींद आने से डर लग रहा था!

[color=rgb(243,]अब आगे:[/color]

मैंने न सोने का फैसला किया और चारपाई पर पाँव लटका कर बैठ गया, लेकिन कुछ ही पलों में मुझे फिर से नींद का झौंका आया और झौंका आते ही मैं फिर से घबरा गया! आँख बंद करते ही ऐसा लगता जैसे की कोई चीज मेरे जिस्म को इर्द-गिर्द घूम रही है, मैं अकेला बैठा था फिर भी ऐसा लगता था की कोई मेरे जिस्म को छू रहा है और सहला रहा है! ये अनजाना स्पर्श मुझे डरा रहा था! दो बार चौंक जाने से मेरे चेहरे पर सदमे के भाव थे! मेरा दिमाग कह रहा था की एक अजीब सा विध मेरे जिस्म में घुल चूका है जो अब सब तरफ फैलता जा रहा है| मैं उस कमरे से तो बाहर आ गया था पर बाहर आते ही इस डर ने मुझे जकड़ लिया था!

मैं उठा और नल पर जा कर अपना मुँह धोया और वापस आ कर चारपाई पर बैठ गया| रात भर जागने से मेरे जिस्म को नींद की जर्रूरत थी पर सोऊँ तो सोऊँ कैसे? इतने में माँ और बड़की अम्मा दोनों मेरे पास आ कर बैठ गए| मेरी ये हालत दोनों से छुप नहीं पाई और जब उन्होंने इसका कारन पुछा तो मुझे मजबूरन झूठ बोलना पड़ा| "बुरा सपना देखा था, इसलिए चौंक कर उठ गया!" मैंने कहा और फिर माँ और बड़की अम्मा से बात करने लगा| बातें कुछ ख़ास नहीं थीं बस बड़की अम्मा को शहर के बारे में बता रहा था| आजतक अम्मा ने जिले के बाहर पाँव नहीं रखा था उनके लिए मेरी बातें अचंभित करने वाली थीं! इन बातों के चलते मेरा भी ध्यान अपने डर से हट गया, माँ नहाने चली गईं और उनकी जगह बड़की अम्मा बैठ गईं| मैं उनकी गोद में सर रख लेट गया और अचानक से आँख लग गई, पर शुक्र था की इस बार मुझे डर नहीं लगा और मैं कुछ पल के लिए सो गया| दोपहर को खाने के लिए भौजी मुझे उठाने आईं, मैं उठ के बैठा ही था की नेहा स्कूल से भागती हुई आई और आ कर अपनी माँ के डर की चिंता किये बिना मेरे गले लग गई| मैंने उसके सर को कई बार चूमा और उसे कस कर अपनी छाती से लगाए रखा| "अच्छा बीएस! अब खाना खा लो!" भौजी ने मुस्कुराते हुए कहा क्योंकि उन्हें नेहा से एक मीठी सी जलन होने लगी थी! मैंने नेहा को अपनी छाती से अलग किया तो उसे अपनी मम्मी का गुस्सा आया और उनसे नजरें चुराती हुई फिर से मेरे गले लग गई| उसका डर जायज था पर मैं अपनी लाड़ली को डरा हुआ कैसे रहने देता| "बेटा आपकी मम्मी अब आपको कुछ नहीं कहेंगी!" मेरी बात सुन नेहा हैरान मुझे देखने लगी और फिर अपनी मम्मी की तरफ देखा जो अब उसे प्यार से देख रहीं थी| "हाँ मेरी माँ! अब नहीं डाटूँगी, चल जल्दी से हाथ-मुँह धो कर आ और खाना खा ले|" भौजी ने हँसते हुए कहा तब जा कर नेहा का डर खत्म हुआ| तभी बड़की-अम्मा और माँ आ गए और उनके सामने नेहा मुझे पप्पी दे कर हाथ-मुँह धोने चली गई| ये देख कर भौजी को एकबार फिर एक मीठी सी जलन हुई!

नेहा हाथ-मुँह धो कर मेरे सामने अपने हाथ पीछे बांधे खड़ी हो गई, मैंने भौजी से थाली ली और उसे खाना खिलाने लगा| "ये खाना आपके लिए लाइ थी, इसका (नेहा) खाना अलग थाली में आ रहा है!" भौजी ने थोड़ा डाँटते हुए कहा| इतने में रसिका भाभी नेहा का खाना ले कर आ गई| बड़े घर में सारी स्त्रियां जमा हो गई थीं| रसिका भाभी ने वो थाली नेहा को दे दी, मैंने नेहा को आँख मारी और वो मेरा मतलब तुरंत समझ गई! नेहा ने अपने छोटे-छोटे हाथों से मुझे एक कौर खिलाया और फिर मैंने उसे भी एक कौर खिलाया| इस तरह हम दोनों बारी-बारी एक दूसरे को खिलाने लगे| हमारा ये प्यार देख सब के चेहरों पर मुस्कान छलक आई सिवाए भौजी के जिन्हें अब भी वो मीठी-मीठी जलन हो रही थी! वो गुस्सा नहीं थीं, उनके चेहरे पर ख़ुशी और मीठी जलन के मिले-जुले भाव थे! खान खा कर भौजी ने मुझे दवाई दी और सबके साथ खाना खाने चली गईं| अब बड़े घर में सिर्फ मैं और नेहा रह गए थे, नेहा को सोना था तो मेरे साथ लेट गई| उसे अपनी छाती से लिपटाये मुझे नींद का झौंका आ गया| करीब आधा घंटा हुआ था की मैंने सपना देखा की एक काला साया पीछे से आया और मेरी पीठ से चिपक गया| देखते ही देखते वो काला साया किसी गाढ़े तरल की तरह मेरे जिस्म से लिपटता चला गया| फिर अचानक से मुझे लगा जैसे किसी ने मेरी छाती को सहलाया हो और ये एहसास होते ही मैं बुरी तरह डर गया और सकपका कर उठ बैठा| मेरी सांसें धौकनी सी हो चली थीं और दिल धाड़-धाड़ बज रहा था| उठ कर बैठते ही मैंने अपनी छाती को छू कर देखा की कहीं किसी ने मुझे छुआ तो नहीं?

मैं अपना चेहरा अपने हाथों में छुपा सर झुका कर बैठ गया| कुछ देर बाद भौजी आईं और मुझे ऐसे बैठा देख उन्हें बेचैनी हुई, वो मेरे सामने आ कर जमीन पर उकडून हो कर बैठीं और मेरे हाथों को हटा कर मुझे देखने लगीं| वो कुछ कहतीं उससे पहले ही माँ आ गईं और मैंने अपने चेहरे पर झूठी मुस्कान ओढ़ ली, भौजी जान गई की कुछ तो बात है जो मैं उनसे छुपा रहा हूँ| उन्हें लगा की बड़े घर में अकेले रहने से शायद मैं उदास हो गया हूँ इसलिए उन्होंने माँ के सामने जिद्द की कि मैं बड़े घर से बहार निकलूँ और पहले कि तरह खेलूं, हँसूँ, चहकूँ पर कहीं तो कुछ था जो बदल चूका था| मैं कुएँ के पास वाले आंगन में आ कर बैठ गया पर अब भी बड़ा खामोश था, अजय भैया मेरा मन बहलाने के लिए आये और मैंने उनसे बात वैसे ही की जैसे मैं पहले किया करता था जिससे उन्हें कोई शक न हुआ| पिताजी, बड़के दादा, चन्दर, बड़की अम्मा, माँ सब मेरे पास आते रहे और मैं सब के साथ बड़े सामान्य ढंग से पेश आता रहा जैसे पहले आता था, जिससे किसी को कोई शक नहीं हुआ की मेरी मानसिक स्थिति क्या है? पर जब सब बातें कर के चले गए तो मैं फिर से उदास और खामोश हो गया, भौजी को समझते देर न लगी की कुछ तो है जिसने मेरे अंदर इतना बदलाव पैदा कर दिया है, क्योंकि अचानक से एक हँसता खेलता हुआ इंसान गुम-सुम हो गया था| इतने में नेहा अंगड़ाई लेती हुई उठी और मेरे दोनों गालों पर पप्पी कर मेरी गोद में चढ़ गई| भौजी चाय ले कर आईं पर तभी माँ भी अपनी चाय ले कर मेरे पास बैठ गईं| उनकी मौजूदगी थी इसलिए भौजी मुझसे कुछ कह नहीं पाईं और माँ की बातों में वो भी शामिल हो गईं|

बातें चलती रहीं और मेरा ध्यान एक बार फिर अपने डर से हट गया, रात होने को आई थी और खाना रसिका भाभी ने बनाया था| दोपहर की ही तरह मैंने और नेहा ने साथ बैठ कर खाना खाया| सभी पुरुष सदस्य तो खा कर अपने-अपने बिस्तर में घुस गए पर मैं और नेहा सभी स्त्रियों के खाने का इंतजार करने लगे| खाना खा कर मैं, माँ, बड़की अम्मा और नेहा बड़े घर आ गए| मैं अपने कमरे में घुस साया और नेहा भी मेरी पीछे-पीछे आ गई| मैंने नेहा को कहानी सुनाई और वो मुझसे लिपट कर सो गई, कुछ देर बाद भौजी आईं और वो नेहा को गोद में उठाकर बाहर ले आईं ताकि मैं आराम से सो सकूँ! कुछ देर तो मैं चैन से सोया फिर अचानक मैंने सपना देखा की मैं अकेला खड़ा हूँ और कोई आ कर मेरी पीठ पर हाथ फेर रहा है! ये एहसास होते ही मैं चौंक कर उठ बैठा और इधर-उधर देखने लगा की कहीं कोई घर में घुस तो नहीं आया? पर चारों तरफ सन्नाटा पसरा हुआ था, मैं कमरे से बाहर निकला तो देखा आंगन में माँ, रसिका भाभी, बड़की अम्मा, नेहा और भौजी सब अपनी-अपनी चरपाई पर लेटे हुए दो रहे थे! मैं वापस आ कर बैठ गया, घडी देखि तो रात के दो बजे थे, मैंने पानी पीया और फिर से लेट गया| सुबह के तीन बजे तक मैं बस करवटें बदलता रहा और एक पल के लिए भी सो न सका| सवा तीन बजे मेरी आँख आखिर लग ही गई और इस बार सपने में माधुरी दिखाई दी जो मेरे लंड पर बैठी उछल रही थी और अपने हाथों को मेरी पीठ पर फेर रही थी! ये दृश्य देखते ही मैं चौंक कर उठ बैठा और तेजी से हाँफने लगा!

समय हुआ था सुबह के 7 और मैं अकेला बड़े घर में था, मैं उठ कर आया और मुँह-हाथ धो कर फ्रेश हुआ| इतने में माँ और भौजी चाय ले कर आ गए और मुझसे मेरा हालचाल पूछने लगे| माँ को देख मैंने खुद को संभाल लिया और ऐसे दिखाया जैसे मैं सामन्य हूँ| अब चूँकि मैं बीमार था इसलिए सब मुझे घेरे रहते और बातों में लगाए रखते इस कारन भौजी को मुझसे बात करने का मौका ही नहीं मिला रहा था| ऐसे करते-करते दोपहर हुई और नेहा स्कूल से लौटी, आते ही वो मेरी गोद में चढ़ गई और अपनी प्यारी-प्यारी बातों से मेरा मन लगाए रखा| खाना खा कर वो मेरे साथ लेट गई और मुझसे चिपक कर सो गई| मैं उसके बालों में हाथ फेरता रहा और सुबह आये सपने के बारे में सोचता रहा, वो काला साया माधुरी का ही था न? मेरे दिमाग ने सवाल पुछा तो अंतरात्मा से आवाज आई की उसके आलावा और कौन सा व्यक्ति हो सकता है? फिर एक बार को मन में ये भी ख्याल आया की उस बंद घर में तो कोई आत्मा नहीं थी जो मुझसे चिपक गई? नहीं ऐसा कैसे हो सकता है? भला आत्मा-वात्मा का मुझसे क्या लेन-देन? हो न हो ये माधुरी का ही काला साया था, क्योंकि उसके आलावा किसी दूसरे ने मुझे आजतक नहीं छुआ? उस दिन वो अपने हाथ मेरी पीठ पर फेर रही थी, ये वही एहसास होगा! ये सोचते हुए मैं एक बार फिर नींद की आगोश में चला गया| नींद आते ही कुछ पलों बाद फिर वही दृश्य सामने आने लगा जिसमें माधुरी मुझे खुद से चिपकाए हुए नीचे से धक्के मार रही थी और मेरी पीठ पर हाथ फेर रही थी! ये सपना देखते ही मैं फिर हड़बड़ा कर उठ गया और मेरे साथ ही नेहा भी जाग गई! आँखों में नीड लिए वो हैरानी से मुझे देखने लगी तो मैंने उसका माथा चूम कर कहा; "बीटा मैंने सपना देखा था!' इतना कह कर मैंने उसे फिर से अपने सीने से लगा लिया और हाथ फेरते-फेरते उसे सुला दिया|

शाम को पांच बजे भौजी मुझे उठाने आईं तो मुझे जागते हुए आसमान को घूरते हुए पाया| उस समय बड़े घर में कोई नहीं था तो मौका देख वो वो मेरे बगल में आ कर बैठ गईं और मुझसे पूछने लगीं;

भौजी: पिछले दो दिनों से मैं देख रही हूँ आप बिलकुल बदल गए हो! आखिर बात क्या है? आप ठीक से सो भी नहीं रहे हो, दिन भर उंघते रहते हो?! कई बार मैंने आपके चेहरे पर अजीब सा डर देखा है जो आप सब से छुपाते हो और सबके सामने जानबूझ कर सामान्य होने का दिखावा करते हो! क्या मैं आपके दर्द को नहीं जानती? क्यों आप इस तरह से अंदर ही अंदर घुट रहे हो?

मैं: कैसे कहूँ.......

इतना बोल कर मैं चुप हो गया और फिर हिम्मत बटोरते हुए बोला;

मैं: जब भी मैं सोने के लिए आँख बंद करता हूँ तो बार-बार 'वो' सब याद आता है| रह-रह कर लगता है जैसे की अब भी उसके हाथ मेरे जिस्म को छू रहे हैं और ये एहसास पाते ही मैं चौंक जाता हूँ! ऐसा लगता है जैसे कोई जहर मेरे जिस्म में घुल रहा हो!

मुझ में हिम्मत नहीं थी की मैं भौजी के सामने 'सेक्स' कह सकूँ इसलिए मैंने उस शब्द को 'वो' कहा, शुक्र है की भौजी समझ गईं! मेरी बात पूरी होते ही भौजी तपाक से बोलीं;

भौजी: आपने ये सब मुझे पहले क्यों नहीं बताया? क्यों आप इतने दिन तक तड़पते रहे?! खेर अब चूँकि आपका बुखार उतर चूका है तो आपकी इस परेशानी का भी इलाज मैं करुँगी|

भौजी ने बड़े आत्मविश्वास से कहा और उनका ये आत्मविश्वास देख मेरे चेहरे पर मुस्कराहट आ गई|

मैं: तो डॉक्टर साहिबा क्या इलाज करेंगी आप?

मैंने माहोल को हल्का करने के लिए थोड़ा मजाक किया|

भौजी: वो तो आज रात आपको पता चलेगा|

भौजी ने बड़ी कटीली मुस्कान के साथ कहा| भौजी का मतलब मैं समझ चूका था, लेकिन मेरी अंतरात्मा ने मुझे भौजी का दोषी करार दे दिया था, इसलिए मैंने उन्हें मना करते हुए कहा;

मैं: देखो आपने पहले ही बहुत कुछ किया है मेरे लिए, अब और....

पर भौजी ने एकदम से मेरी बात काटते हुए मेरे होठों पर अपनी ऊँगली रखते हुए कहा;

भौजी: श..श..श..श....मैं आपकी पत्नी हूँ, ये मेरा फ़र्ज़ भी है और अधिकार भी!

भौजी की इस चतुराई का मेरे पास कोई जवाब नहीं था, इसलिए मैं बस मुस्कुरा दिया!

इतने में नेहा उठ गई और उठते ही उसने मेरे दाएँ गाल पर अपनी मीठी-मीठी पप्पी दी| ये देखते ही भौजी के चेहरे पर फिर से एक मीठी-मीठी जलन उभर आई| इतने में बड़की अम्मा और अजय भैया आ गए और मैं उनके साथ कुएँ के पास वाले आंगन में आ गया| रसिका भाभी चाय ले कर आईं और उनके साथ भौजी भी मेरे पास आ कर बैठ गईं| इतने में नेहा एक नया खेल सोच कर आई और आते ही मेरे बाएँ गाल पर पप्पी की और फिर दौड़ती हुई छप्पर तक गई| छप्पर को छू कर वो फिर से भगति हुई मेरे पास आई और दाएँ गाल पर पप्पी की| बस इसी तरह उसने दौड़ना शुरू कर दिया, ये खेल देख भौजी फिर से जल-भुन गईं और नेहा को प्यार से डाँटते हुए बोली; "बदमाश लड़की, सारी पप्पी तू ही ले ले!" भौजी को ये भी होश नहीं रहा की वहाँ रसिका भाभी भी बैठी हैं| अब उन्हें किसी तरह बात सम्भालनि थी तो वो बोलीं; "कुछ वरुण के लिए भी छोड़ दे!" नेहा पर इसका कोई असर नहीं पड़ा और वो अपना ये खेल खेलती रही| लेकिन रसिका भाभी को शक हो गया था तो वो प्यार भरा ताना मारते हुए बोलीं; "वरुण कहाँ मानु भैया का प्यार पाइस है, कितने दिन हुए ऊ का नानी घर जाई के! हम का लागत है तुहिं मानु भैया की पप्पी खातिर मरी जात हो!" इतना कह कर वो जोर से हँस पड़ीं! अब ये सुन कर भौजी बुरी तरह झेंप गईं पर मैंने उनका पक्ष लेते हुए कहा; "कहाँ भाभी, जब छोटा था तब मुझे पप्पियाँ मिलती थीं अब तो बस एक नेहा ही है जो पप्पियाँ देती है!" ये सुन कर भौजी ने प्यार भरी शिकायत करते हुए कहा; "अब आपको नेहा से फुर्सत मिले तब तो हम आपको पप्पी दें!"

"का दीदी, जब से मानु भैया आये रहे तब से तोहरे संगे तो रहत हैं और तुम कहत हो की ऊ नेहा संगे खेलत हैं?" रसिका भाभी ने भौजी को टौंट मारा| पर भौजी ने इसे ज्यादा गंभीरता से नहीं लिया और बोलीं; "हाय! सही कहा छोटी पर पिछले चार दिन से तो नेहा ही चिपकी हुई है!" ये सुन कर मेरे चेहरे पर मुस्कराहट आ गई और रसिका भाभी हैरानी से भौजी को देखने लगीं| सच में आज भौजी के दिल की बातें एक-एक कर सामने आ रही थीं और मैं डरने लगा था की कहीं रसिका भाभी को शक न हो जाए!

"अरे बहुरिया खाब के बनावत है?" बड़की अम्मा की आवाज आई तो दोनों जन खाना बनाने चले गए| इधर मैंने नेहा को अपनी गोद में उठा लिया और चारपाई पर लेट गया| नेहा अपना सर मेरी छाती पर रख कर लेट गई, इतने में पिताजी आ गए और मेरे पास बैठ गए| "अब कैसी है तबियत?" पिताजी ने पुछा|

"जी अब पहले से बहुत बेहतर हूँ!" मैंने हलीमी से जवाब दिया| फिर अजय भैया ने बातों का सिलसिला चालु किया की खाना खाने के समय तक बातें चलती रहीं| खाना खा कर आज मैं वापस अपनी पुरानी जगह पर ही सोने वाला था, वही भौजी के घर के पास वाली जगह! कुछ देर बाद माँ खाना खा कर आईं और मेरे पास बैठ के मेरा हल-चाल पूछने लगीं| आप कितना भी छुपाओ पर माँ आपके हर दुःख को भाँप लेती है| मेरी माँ ने भी मेरे अंदर छुपी उदासी को ढूंढ लिया था और वो इसका कारन जानना चाहती थीं, पर मैं उन्हें कुछ नहीं बता सकता था| वो तो शुक्र है की भौजी वहाँ आ गईं; "चाची आप चिंता मत करो, मैं हूँ ना!" भौजी ने इतना अपनेपन से कहा की माँ निश्चिन्त हो गईं और भौजी को कह गईं, "बहु, एक तु ही है जिसे ये सब बताता है| कैसे भी मेरे लाल को पहले की तरह हँसने बोलने वाला बना दे|" भौजी ने हाँ में सर हिलाया और माँ उठ के सोने चली गईं| "देखा आपने, चाची को कितनी चिंता है आपकी? खेर आज के बाद आप कभी उदास नहीं होओगे! अभी आप आराम करो, मैं कुछ देर बाद आपको उठाने आऊँगी!" भौजी बोलीं और मुस्कुराते हुए अपने घर के भीतर चली गईं और मुझे उनके किवाड़ बंद करने की आवाज आई|

[color=rgb(85,]जारी रहेगा भाग - 1 (2) [/color]
 

[color=rgb(65,]बारहवाँ अध्याय: नई शुरुरात[/color]
[color=rgb(41,]भाग - 1 (2)[/color]


[color=rgb(226,]अब तक आपने पढ़ा:[/color]

फिर अजय भैया ने बातों का सिलसिला चालु किया की खाना खाने के समय तक बातें चलती रहीं| खाना खा कर आज मैं वापस अपनी पुरानी जगह पर ही सोने वाला था, वही भौजी के घर के पास वाली जगह! कुछ देर बाद माँ खाना खा कर आईं और मेरे पास बैठ के मेरा हल-चाल पूछने लगीं| आप कितना भी छुपाओ पर माँ आपके हर दुःख को भाँप लेती है| मेरी माँ ने भी मेरे अंदर छुपी उदासी को ढूंढ लिया था और वो इसका कारन जानना चाहती थीं, पर मैं उन्हें कुछ नहीं बता सकता था| वो तो शुक्र है की भौजी वहाँ आ गईं; "चाची आप चिंता मत करो, मैं हूँ ना!" भौजी ने इतना अपनेपन से कहा की माँ निश्चिन्त हो गईं और भौजी को कह गईं, "बहु, एक तु ही है जिसे ये सब बताता है| कैसे भी मेरे लाल को पहले की तरह हँसने बोलने वाला बना दे|" भौजी ने हाँ में सर हिलाया और माँ उठ के सोने चली गईं| "देखा आपने, चाची को कितनी चिंता है आपकी? खेर आज के बाद आप कभी उदास नहीं होओगे! अभी आप आराम करो, मैं कुछ देर बाद आपको उठाने आऊँगी!" भौजी बोलीं और मुस्कुराते हुए अपने घर के भीतर चली गईं और मुझे उनके किवाड़ बंद करने की आवाज आई|

[color=rgb(124,]अब आगे:[/color]

नेहा मुझसे लिपट कर सो चुकी थी तो मैंने सोच की क्यों न मैं फिर से सोने की कोशिश करूँ, शायद कामयाबी मिल जाए| पर कहाँ जी?! जैसे ही आँख बंद करता बार-बार ऐसा लगता जैसे माधुरी मेरे जिस्म से चिपकी हुई मेरी पीठ सहला रही है, अगले ही पल ऐसा लगता की वो मेरे लंड पर सवार है और उसके हाथ मेरी छाती पर धीरे-धीरे रेंगते हुए मेरी नाभि तक जा रहे हैं| ये ऐसा भयानक पल था जो खत्म होने का नाम ही नहीं ले रहा था की तभी अचानक भौजी ने मुझे जगाने को मेरे कंधे पर हाथ रखा और मैं सकपका के उठ बैठा| मेरे दिल की धड़कनें तेज हो चलीं थीं, चेहरे पर डर के भाव थे, माथे पर हल्का सा पसीना था जबकि मौसम कुछ ठंडा था और धीमी-धीमी सर्द हवाएँ चल रहीं थी| मेरी ये हालत देख के एक पल के लिए तो भौजी के चेहरे पर भी चिंता के भाव आ गए| उन्होंने मेरा दाहिना हाथ पकड़ा और मुझे अपने घर के भीतर ले आईं| मैं आँगन में खड़ा, अपनी कमर पर दोनों हाथ रखे लम्बी-लम्बी सांसें ले रहा था ताकि अपने तेज धड़कते दिल पर काबू पा सकूँ! भौजी ने धीरे से दरवाजा बंद किया और ठीक मेरे पीछे आके खड़ी हो गईं, धीरे से उन्होंने मेरी कमर में हाथ डाला और मुझसे लिपट गईं| उनकी सांसें मुझे अपनी पीठ पर महसूस होने लगीं तो मैं सिंहर उठा!

भौजी ने अपना तथाकथित उपचार शुरू करते हुए मेरी टी-शर्ट को नीचे से पकड़ा और धीरे-धीरे ऊपर की ओर बढ़ाते हुए उतार दिया| अब मैं ऊपर से बिलकुल नग्न अवस्था में था| ठंडी हवा का स्पर्श नंगी पीठ पर होते ही मैंने अपनी आँखें बंद कर ली! भौजी ने अपने दहकते होठों को जैसे ही मेरी पीठ पर रखा की एक अजीब से एहसास ने मुझे झिंझोड़ दिया! ऐसा लगा जैसे गर्म लोहे की सलाख को किसी ने ठन्डे पानी में डाल दिया और उसमें से आवाज आई हो 'स्स्स्सस्स्स्स!!!' मेरे लिए ये चुम्बन कोई आम चुम्बन नहीं था क्योंकि भौजी ने अब भी अपने होंठ वहीं टिका रखे थे, जैसे की वो मेरी पीठ से जहर चूस रहीं हों! कुछ सेकंड बाद उन्होंने मेरी पीठ पर दूसरी जगह को अपने होठों से चूम लिया और फिर कुछ सेकंड बाद तीसरी जगह! एक-एक कर भौजी मेरी पीठ पर हर जगह चूमती जा रहीं थीं और मैं आँखें बंद किये महसूस करने लगा

जैसे माधुरी का 'विष' अब मेरी पीठ से मेरी छाती की ओर भाग रहा हो! मेरे पूरे जिस्म के रोंगटे खड़े हो गए थे, सांसें तेज हो गई थीं और दिल की गाती इस कदर बढ़ गई थी की वो धक-धक की जगह ढोल की तरह बजने लगा था, इतना तेज की मुझे अपनी धड़कनें कानों में सुनाई देने लगीं थीं! रात के कीड़ों की आवाज हो, या हवा की सायें-सायें आवाज कुछ भी मेरे जिस्म को महसूस नहीं हो रहा था! फिर से मेरे माथे पर पसीना बहने लगा था, गला सूखने लगा था, कान लाल हो गए थे, हाथ कांपने लगे थे और मन विचलित हो चूका था!

पूरी पीठ को अपने होठों से नाप भौजी मेरी पथ से चिपक गईं और मेरे कान में खुसफुसाई; "आप लेट जाओ!" मैं बिना कुछ कहे, बिना कुछ समझे, मन्त्र मुग्ध सा आँखें बंद किये चारपाई पर पीठ के बल लेट गया| कुछ ही पलों में मुझे भौजी की चूड़ियों के खनकने की आवाज आने लगी, अब चूँकि आँखें बंद थीं तो मुझे पता नहीं था की ये आवाज क्यों आ रही है! फिर धीरे-धीरे मुझे भौजी के पायल की छम-छम आवाज सुनाई दी, आवाज से मैंने इतना अंदाजा तो लगा लिया की वो मेरे पैरों के पास खड़ी हैं! भौजी मेरी तरफ झुकीं और उन्होंने मेरे पाजामे का नाडा खोलना शुरू कर दिया, फिर उन्होंने धीरे से मेरे पजामे को नीचे खींचा परन्तु पूरी तरह उतारा नहीं| फिर उनके हाथ मेरे मेरे कच्छे की इलास्टिक पर पहुँचे और उन्होंने इलास्टिक में अपनी ऊँगली फँसाई और उसे खींच कर घुटने तक कर दिया| वो बड़े धीमे-धीमे रेंगते हुए मेरे ऊपर आईं, मानो कोई सांप किसी पेड़ पर चढ़ रहा हो! अगले ही पल मुझे अपनी छाती पर उनके नंगे स्तन रगड़ते हुए महसूस हुए| भौजी का मुख अब ठीक मेरे चेहरे के सामने था क्योंकि मुझे अपने चेहरे पर उनकी गर्म सांसें महसूस हो रहीं थी| पर भौजी ने कोई जल्दी नहीं दिखाई बल्कि टकटकी बांधे मुझे देखने लगीं, इधर मुझे उनकी आँखों की चुभन मेरी बंद आँखों पर होने लगी थी!

कुछ पल बाद भौजी ने सबसे पहले अपने हाथो से मेरे माथे का पसीना पोंछा, फिर उन्होंने झुक के मेरे माथे को चूमा| इसबार उनका ये चुंबन बहुत गहरा था, वो करीब पाँच सेकंड तक अपने होठों को मेरे मस्तक पर रखे हुई थीं| ये एहसास मेरे लिए बहुत ठंडा था और मैंने अपने जिस्म को ढीला छोड़ दिया था| मुझे लगने लगा जैसे जो विश मेरे मस्तिष्क में भरा हुआ था वो अब नीचे उतारने लगा है! पाँच सेकंड बाद भौजी धीरे-धीरे मेरे मस्तक से नीचे आने लगीं| उन्होंने मेरी नाक को चूमा और अपनी नाक को मेरी नाक से लड़ाने लगीं! उनकी इस हरकत से मेरे चेहरे पर मुस्कान आ गई! मेरे चेहरे पर मुस्कान देख कर भौजी के दिल को बड़ा सुकून मिला था| उधर जैसे ही उनकी नजर मेरे बाएं गाल पर पड़ी तो उन्हें लालच आ गया, लेकिन अपने उपचार पर ध्यान केंद्रित करते हुए उन्होंने अपने लालच को काबू में किया और उस पर अपने थिरकते होंठ रख कर चूमा| पाँच सेकंड बाद उन्होंने मेरे दायें गाल को चूमा और ऐसा लगा मानो वो विष मेरी गर्दन तक नीचे उतर चूका हो| फिर उन्होंने मेरे कंठ को चूमा, उनके होंठों का दबाव मेरे कंठ पर कुछ ज्यादा था जिससे मुझे एक पल के लिए लगा जैसे मेरी सांस ही रूक गई हो! पाँच सेकंड बाद वो थोड़ा निचे खिसक कर मेरे लिंग के ऊपर बैठ गईं लेकिन भौजी के जिस्म की गर्माहट पा कर भी मेरा लिंग शांत था! अब उन्होंने मेरे दायें हाथ को उठा के अपने होठों के पास लाईं और मेरी हथेली को चूम लिया, ऐसा लगा मानो विष कुछ ऊपर को चढ़ा हो! भौजी मेरे ऊपर झुनकी और धीरे-धीरे मेरे पूरे हाथ को चूमते हुए ऊपर की ओर बढ़ीं, मेरी कोहनी को चूम वो मेरे कंधे तक पहुँची और फिर उसे चूम एकबार फिर टकटकी बांधे मेरी ओर देखने लगीं| एकबार फिर मुझे उनकी नजरें अपने चेहरे पर चुभती हुई महसूस हुई पर ये ऐसी चुभन थी जो मुझे सुकून दे रही थी! अब भौजी ने मेरे बाएँ हाथ को उठाया और उसे अपने होठों के पास लाईं तथा मेरी हथेली को चूमा, एकबार फिर मुझे लगा मानो विष वहाँ से भी ऊपर की ओर भागने लगा है| धीरे-धीरे वो कलाई से होते होते हुए मेरी कोहनी तक पहुँची और फिर मेरे कंधे को चूम एक बार फिर मुझे टकटकी बांधे देखने लगीं| इधर मुझे लगने लगा था जैसे सारा विष मेरी दोनों बाहों से होता हुआ मेरी छाती में इकठ्ठा हो चूका है! लेकिन वो कम्बख्त विष वापस मेरे पूरे शरीर में फ़ैल जाना चाहता था, पर चूँकि भौजी ने मेरी पीठ, मस्तक, गले और हाथों को अपने चुमबन से चिन्हित (Marked) कर दिया था इसलिए उस विष को कहीं भी भागने की जगह नहीं मिल रही थी!

उधर अभी भी भौजी का उपचार खत्म नहीं हुआ था, अब भौजी खिसक कर मेरे घुटनो पर बैठ गईं और मेरी छाती पर हर जगह अपने चुम्बनों की बौछार कर दी| परन्तु वो ये जल्दी-जल्दी नहीं कर रहीं थीं, अब भी उनका वो पाँच सेकंड तक चूमने का टोटका बरकरार था! मेरे निप्पल, मेरी नाभि कुछ भी उन्होंने नहीं छोड़ी थी! इधर वो विष अब नीचे की ओर भागने लगा था| भौजी और नीचे खिसक कर मेरे पाँव के पास आ गईं! अपने इस तथाकथित उपचार के अंतिम पड़ाव में पहुँच उन्होंने अपने दोनों हाथों से मेरे लिंग को पकड़ा और उनके स्पर्श मात्र से उसमें जान आने लगी तथा वो अकड़ कर अपना पूर्ण अकार ले कर भौजी की ओर देखने लगा| भौजी ने उसकी चमड़ी को धीरे-धीरे नीचे किया जिससे अब सुपाड़ा बहार आ चूका था| फिर भौजी झुकीं तथा उन्होंने मेरे लिंग के छिद्र पर अपने होंठ रख दिए और इस एहसास से मेरा कमर से ऊपर का बदन कमान की तरह अकड़ गया! पूरे जिस्म में जैसे झुनझुनी छूट गई और सारा का सारा खून मेरे लिंग की तरफ भागने लगा| इधर भौजी ने धीरे-धीरे सुपाड़े को अपने मुँह में भरना शुरू किया, मुझे लग की भौजी उसे अपने मुँह के अंदर-बहार करेंगी पर नहीं वो बस सुपाड़े को अपने मुँह में भरे स्थिर थीं!

भौजी का ये उपचार मुझे बेचैन करने लगा था, उनकी गर्म-गर्म सांसें मेरे सुपाडे पर पड़ रही थीं जिस कारन उसमें कसावट बढ़ने लगी थी| अब मेरी कमर से नीचे के हिस्से में कुछ होने लगा था, जैसे कोई चीज बहार निकलने को बेताब हो! वो क्या थी ये मैं नहीं जानता पर मैं उसे बाहर निकलते हुए अवश्य महसूस करा पा रहा था, जबकि असल में कुछ हो भी नहीं रहा था! धीरे-धीरे मेरा शरीर ऐठने लगा और लगा की अब मैं इस विष से मुक्त हो जाऊँगा! ये ऐठन बस कुछ पल की थी और धीरे-धीरे...धीरे-धीरे मेरा बदन सामान्य होने लगा| मैं अब शिथिल पड़ने लगा था, शरीर ने कोई भी प्रतिक्रिया देनी बंद कर दी थी, सांसें सामन्य होने लगी थीं तथा ह्रदय की गति भी सामान्य हो गई थी|

भौजी अब निश्चिन्त थीं क्योंकि उनका पति अब चिंतामुक्त हो चूका था, इसलिए भौजी मेरे ऊपर आ कर लेट गईं| उनके नंगे स्तन मेरी छाती में धंसे हुए थे और उनके हाथों ने मुझे मेरी गर्दन के इर्द-गिर्द अपनी पकड़ बना चुके थे| भौजी के नंगे ठंडे स्तनों का एहसास पा कर मैंने भी उन्हें अपनी बाहों में भर लिया| कुछ पल के लिए हम ऐसे ही एक दूसरे से लिपटे रहे, लेकिन अगले ही पल भौजी को न जाने क्या सूझी की उन्होंने मेरे लिंग को अपने हाथ से पकड़ कर अपनी योनि में प्रवेश करा दिया| मुझे लगा शायद भौजी का मन सम्भोग करने का है पर वो वैसे ही मेरे ऊपर बिना हिले-डुले लेटी रहीं|उनकी योनि अंदर से पनिया चुकी थी और मुझे अपने लिंग पर इस गर्मी और गीलेपन का एहसास होने लगा था| लेकिन मेरा मन बिलकुल शांत था और ये सुकून मेरे लिए बहुत आवश्यक था इसलिए मैंने नीचे से कोई भी हरकत नहीं की|

पिछले कई दिनों से मैं ठीक तरह से सो नहीं पाया था और आज भौजी के इस तथाकथित उपचार के बाद मुझे मीठी-मीठी नींद आने लगी थी| नजाने कब मेरी आँखें बंद हुई मुझे पता ही नहीं चला और जब आँख खुली तो सर पर सूरज चमक रहा था| मैं जल्दी से उठ के बैठा तो पाया की मैं रात को भौजी के घर में ही सो गया था और मैं अब भी अर्ध नग्न हालत में था| मैंने जल्दी से पास पड़ी मेरी टी-शर्ट उठाई और पहन के बहार आ गया, मेरी बुरी तरह फटी हुई थी क्योंकि मैं और भौजी रात भर अंदर अकेले सोये थे और अब तक तो सारे घर-भर में बात फ़ैल चुकी होगी! आज तो शामत थी मेरी!!!

[color=rgb(85,]जारी रहेगा भाग - 2 में....[/color]
 

[color=rgb(65,]बारहवाँ अध्याय: नई शुरुरात[/color]
[color=rgb(41,]भाग -2[/color]


[color=rgb(250,]अब तक आपने पढ़ा:[/color]

पिछले कई दिनों से मैं ठीक तरह से सो नहीं पाया था और आज भौजी के इस तथाकथित उपचार के बाद मुझे मीठी-मीठी नींद आने लगी थी| नजाने कब मेरी आँखें बंद हुई मुझे पता ही नहीं चला और जब आँख खुली तो सर पर सूरज चमक रहा था| मैं जल्दी से उठ के बैठा तो पाया की मैं रात को भौजी के घर में ही सो गया था और मैं अब भी अर्ध नग्न हालत में था| मैंने जल्दी से पास पड़ी मेरी टी-शर्ट उठाई और पहन के बहार आ गया, मेरी बुरी तरह फटी हुई थी क्योंकि मैं और भौजी रात भर अंदर अकेले सोये थे और अब तक तो सारे घर-भर में बात फ़ैल चुकी होगी! आज तो शामत थी मेरी!!!

[color=rgb(251,]अब आगे:[/color]

जैसे ही मैं भौजी के घर से निकला की सामने से पिताजी आते हुए दिखाई दिए| मैंने नजर बचा कर वहां से निकलना चाहा तो वो गरजते हुए बोले; "क्यों लाड-साहब उठ गए? नींद पूरी हो गई या अभी और सोना है?" पिताजी की आवाज सुन मैं ठिठक कर सर झुकाये खड़ा हो गया| "कहाँ गुजारी सारी रात? तु तो आँगन में सोया था, फिर अंदर कैसे पहुँच गया?" मेरे पास पिताजी की किसी बात का कोई जवाब नहीं था इसलिए सर झुकाये खड़ा रहा, पर फिर मुझे किसी के खांसने की हलकी सी आवाज आई, ये वाज मैं जानता था! मैंने कनखी नजरों से छप्पर के नीचे देखा तो पाया भौजी मुझे कुछ इशारे कर के समझना छह रही हैं| लेकिन मुझे कुछ समझ नहीं आ रहा था की वो क्या समझना छह रहीं थीं, वो बस बार-बार अपने माथे पर हाथ फेर रहीं थीं! मैंने थोड़ा सा अंदाजा लगाया और पिताजी के सवालों का जवाब देने लगा;

मैं: जी वो रात को सर दर्द कर रहा था तो मैं दवाई लेने गया था, फिर उन्होंने मेरा सर दबाना शुरू किया तो मुझे वहीँ नींद आ गई|

मैं भौजी को भौजी नहीं कह सकता था इसलिए डरते हुए मैंने बात कही और ये उम्मीद करने लगा की पिताजी मेरी बात न पकड़ लें!

पिताजी: सर में दर्द था तो माँ को बताता अपनी भाभी को क्यों तंग करता रहता है?

पिताजी की बात बिलकुल सही थी लेकिन उन्हें नहीं पता था की कल रात मेरा ख़ास उपचार हो रहा था! लेकिन मुझे कुछ जवाब तो देना था ताकि पिताजी कोई शक न करें इसलिए मैं बात बनाते हुए पूरे आत्मविश्वास से सर उठा कर बोला;

मैं: जी, माँ को उठाने जाता तो बड़की अम्मा भी जाग जाती और मैं नहीं चाहता था की बड़की अम्मा या माँ परेशान हों....

आगे मैं कुछ बोल पाटा उससे पहले ही पिताजी ने मुझे झाड़ दिया;

पिताजी: तो इसलिए तू बहु को परेशान करने पहुँच गया? सारा दिन वो काम करती है और तू उसे तंग करने से बाज नहीं आता?! पता भी है की तेरी वजह से तेरी प्यारी भाभी रात भर कहाँ सोई? सारी रात बेचारी तख़्त पर सोई वो भी बिना बिस्तर के? कुछ शर्म है या नहीं?!

पिताजी की बात सुन मेरा सर शर्म से झुक गया और मुझे ग्लानि होने लगी की मेरे कारन भौजी को सारी रात तख्त पर सोना पड़ा! मैंने कनखी नजरों से भौजी को देखा और उनसे मन ही मन माफ़ी मांगने लगा, इतने में माँ रसोई से निकली और बीच में बोल पड़ीं;

माँ: अजी छोड़िये इसे, इसकी तो आदत है| आप लोग तो खेत चले जाते हो और ये बस सारा दिन भौजी-भौजी करता रहता है, ये नहीं सुधरेगा! आप जाइये भाई साहब (बड़के दादा) खेत में आपका इन्तेजार करते होंगे|

फिर माँ ने मुझे डाँटते हुए कहा;

माँ: और तू चल जा जल्दी से नहा-धो कर जल्दी से चाय पी| तेरी भौजी को और भी काम हैं सिर्फ तेरी तीमारदारी ही नहीं करनी, जा जल्दी|

मैं जल्दी से फ्रेश हो के आया और भौजी से माफ़ी माँगने के लिए उन्हें ढूँढने लगा, उस समय माँ, बड़की अम्मा, भौजी और रसिका भाभी सभी छप्पर के नीचे मौजूद थे इसलिए मैं कुछ कह नहीं पाया| मैं कुएं की मुंडेर पर सर झुकाये बैठ गया और इंतजार करने लगा की शायद सब इधर-उधर ताकि मैं भौजी से अकेले में माफ़ी मांग सकूँ! पर वहाँ तो सभी औरतें बैठ कर गप्पें लगाने में लगी थीं| कुछ देर इंतजार करने के बाद मैंने अपनी हिम्मत बटोरी और सब के सामने ही भौजी से माफ़ी माँगने की ठान ली| मैं बड़े आत्मविश्वास से उठा और छप्पर के नीचे आ गया, उस समय माँ और बड़की अम्मा दाल-चावल साफ़ करने में लगे थे और रसिका भाभी बटन टांखने में लगी थीं| भौजी ने जैसे ही मुझे छप्पर के नीचे देखा तो वो मेरी ओर देखने लगीं| उनकी नजर मुझ पर पड़ते ही मेरा आत्मविश्वास फुर्रर हो गया ओर मैं थोड़ा हकलाते हुए बोला;

मैं: म..मु..मुझे....मुझे माफ़ कर दो! मेरी वजह से आपको कल रात तख़्त पर बिना बिस्तर के सोना पड़ा| I'M Sorry!!

ये सुन कर भोज हंस पड़ीं ओर बड़की अम्मा का सहारा ले कर बोलीं;

भौजी: देख लिहो अम्मा, एक दिन हम तख़्त पर का सोये का पड़ा की ये हमसे माफ़ी माँगत हैं! अरे अगर एक रात हम तख्त पर सोये लीन तो कौनसा पहाड़ टूट गवा? इतने दिन से ठीक से सोवत नाहीं रहेओ एहि का खातिर हम आपका नाहीं जगाये और इहाँ सोये लीन!

भौजी ने मेरी गलती मानने से इंकार करते हुए कहा| अब ये सुन अम्मा भी समझ गईं की मुझे भौजी के तख्त पर सोने का कितना बुरा लगा है, इसलिए वो भी मेरा पक्ष लेते हुए बोलीं;

बड़की अम्मा: अरे मुन्ना एक दिन तख्त पर सोये लीन तो कउनो बात नाहीं, तू इन छोटी-छोटी बातों का दिल से न लगाए करो! ऊ दिन तूहों तो आपन भौजी खातिर सारी रात जागत रहेओ?! तुम दोनों जन एक दूसरे का कितना मोहात हो हम जानित है, भूल जाओ ई सब और आये दियो तोहार पिताजी का उनका हम डाँटब की हमार बच्चा का काहे डाँट दिहिन?!

अम्मा ने प्यार भरे गुस्से से कहा जिसे सुन सब हँस पड़े और फिर पुनः अपने-अपने काम में लग गए| मेरा मन अब कुछ हल्का हो गया था, परन्तु अब मन में कल रात को जो हुआ उसे ले कर विचार उमड़ने लगे थे| वो सब क्या था और मुझे ये सब अजीब एहसास क्यों हो रहा था? हालाँकि मैं भूत-प्रेत, आत्मा पर विशवाास नहीं करता था, परन्तु कल रात हुए उस एहसास ने मुझे थोड़ा चिंतित कर दिया था| अब अगर कोई मेरी चिंता दूर कर सकता था तो वो थीं 'भौजी', पर सब के सामने मैं उनसे इस बारे में नहीं पूछ सकता था, इसलिए मैं शाम का इंतजार करने लगा| खाना खाने के बाद मैं भौजी से इत्मीनान से बात कर सकता था|

कुछ समय बाद अम्मा ने मुझे बैलों को पानी पिलाने को कहा और मैंने ख़ुशी-ख़ुशी उनकी आज्ञा का पालन किया| दोपहर के बारह बजे और मैं नेहा को लेने उसके स्कूल चल दिया| मुझे स्कूल के बाहर देख नेहा दौड़ती हुई आई और मैंने उसे गोद में उठा कर खूब दुलार किया| आज सुबह से मैंने उसे नहीं देखा था तो उसे देखते ही दिल में प्यार उमड़ पड़ा| नेहा के गाल चूमते हुए मैं उसे घर लाया और फिर उसके कपडे बदल खेलने लगा| सारे घर में हम दोनों का शोर गूंजने लगा, जिसे देख भौजी समेत सभी खुश थे| "छुटका (माँ) सच कहित है, दो दिन मानु बीमार का पड़ा घर बिलकुल सुनसान लागत रहा!" बड़की अम्मा से बोलीं| इतने में बड़के दादा, पिताजी, चन्दर और अजय भैया खेत से लौट आये| खाने का समय हो रहा था तो सब हाथ-पैर धो कर खाना खाने बैठ गए, मैं और नेहा सबसे आखिर में एक साथ बैठे थे| भौजी ने सबको खाना परोसा और तभी बड़की अम्मा ने पिताजी को डाँट लगाते हुए कहा;

बड़की अम्मा: काहे डाँटत हो हमार मुन्ना का?

बड़की अम्मा को मेरी हिमायत करता देख पिताजी मुझे घूर कर देखने लगे, उन्हें लगा की मैंने उनकी शिकायत की है|

बड़की अम्मा: काहे घूरत हो हमार मुन्ना का? ऊ हमका कछु नाहीं कहिस है, तोहरे डाँट से बेचारा इतना सकपकाई गवा की आपन भौजी से माफ़ी माँगत रहा!

पिताजी: भाभी झाड़ जैसा बड़ा होये जात है पर अक्ल तनिको नाहीं इस्मा! काहे जा के अपना भौजी का परेशान करात है? ऊ भी रात में? ई कउनो ठीक बात है?

फिर पिताजी ने मुझे डाँटते हुए कहा;

पिताजी: ये दिल्ली नहीं है, गाँव देहात है! यहाँ कुछ नियम कानून हैं, ऐसे ही नहीं मुँह उठा कर कहीं भी घुस जाते?

पिताजी की डाँट सुन मैं जो कौर खुद खाने जा रहा था वो वापस थाली में रख दिया| ये देख बड़की अम्मा पिताजी पर बरस पड़ीं;

बड़की अम्मा: ऊ हियाँ नाहीं पला-बढ़ा है, सेहर में पला बढ़ा है! जबतक ऊ का हियाँ की तौर-तरीका न सिखाइओ तबतक ऊ कैसे सीखी? कल रात का ऊ का मूड (सिर) पीरात (दर्द) रहा, अगर अपनी भौजी से ऊ दवाई लेने गवा तो कौन सा पाप कर दिहिस? बहुरिया ने ऊ का मूड मींज दिहिस और ऊ चैन से सो गवा तो ई मा कौन पहाड़ टूट गवा? जानत नाहीं हो जब बहु बीमार रही तब ऊ सारी रात जाग कर बहुरिया की कितनी देखभाल किहिस? तब तो तू कछु नाहीं कहेऔ? एक रात बहुरिया तख्त पर का सो गई तो बड़ा पाप हो गवा? खबरदार जो आज के बाद हमार मुन्ना का डांटेऔ!

ये सुन पिताजी और बड़के दादा हँस पड़े और उनकी हँसी देख माहौल हल्का हुआ|

बड़की अम्मा: मुन्ना तू खाना खाओ और अगर तोहार पिताजी तोहका कभौं डाँटे तो हमका बतायो|

ये सुन कर पिताजी मजाक करते हुए बोले;

पिताजी: बेटा दिल्ली चल फिर देखता हूँ तुझे कौन बचाएगा?

पिताजी ने मुस्कुराते हुए कहा और मैं उनका मजाक समझ गया पर फिर भी मैंने बड़की अम्मा को मासूम से शक्ल बनाते हुए देखा, मेरी मासूम शक्ल देख अम्मा प्यार भरे गुस्से में पिताजी को डाँटते हुए बोलीं;

बड़की अम्मा: तो घबराओ न मुन्ना हमका बस एक टेलीफ़ोन कर दिहो हम टिरेन से आ कर ई का बहुत डाँटब!

बड़की अम्मा ने बिलकुल वैसे कहा जैसे हम किसी छोटे बच्चे का डर भगाते हुए कहते हैं जिसे सुन सब ठहाका मारके हँस पड़े|

खाना खाने के बाद पिताजी और बड़के दादा चारपाई पर लेटे हुए आराम कर रहे थे| पिताजी ने मुझे इशारे से अपने पास बुलाया और अपनी बगल में बिठाते हुए बोले; "बेटा देख मुझे जानकार ख़ुशी हुई की तूझे अपनी गलती का एहसास है और तूने अपनी भौजी से माफ़ी भी माँगी| बेटा ये गाँव है, फिर अब तू बच्चा नहीं है बड़ा हो चूका है तो थोड़ा ध्यान रखा कर, इस तरह यूँ रात बे रात अपनी भौजी के पास जाना ठीक बात नहीं है! मैं जनता हूँ तेरा और तेरी भौजी के बीच गहरी दोस्ती है पर बाहर के लोग ये सब नहीं जानते! अब तू समझदार हो चूका है तो थोड़ा सयम रखा कर!" इसके आगे उन्होंने कुछ नहीं कहा और मैं छुओ-चाप उठ कर छप्पर के नीचे आ गया| भले ही पिताजी ने मुझे ये बात बड़े प्यार से बोली पर मेरे लिए ये किसी चेतावनी से कम न थी!

इतने में नेहा मेरे लिए गुड़ ले आई और मेरी तरफ गुड़ वाला दोना बढ़ाया, फिर वो मेरी ही बगल में बैठ गई| "शैतान सो जा!" भौजी छप्पर के नीचे आते हुए बोलीं और नेहा तुरंत मेरी गोद में सर रख कर लेट गई| मैंने उसके सर को थपथपाना शुरू कर दिया और जल्द ही नेहा ने अपनी आँखें बंद कर ली| मैं कुछ बात शुरू करता उसके पहले रसिका भाभी भी छप्पर के नीचे आ कर लेट गईं| अब साफ़ था मैं और भौजी वहाँ बात नहीं कर सकते थे| उधर भोजन के बाद सभी पुरुष सदस्य आँगन में ही चारपाई डाल के बैठे थे| मौसम कुछ शांत था, ठंडी-ठंडी हवाएँ चल रहीं थी, आसमान में बादल थे और धुप का नामो निशान नहीं था| मैं छप्पर से निकल कर आँगन में अपनी चारपाई पर बैठा गया और कुछ ही देर में भौजी भी वहाँ आ गईं तथा मेरे सामने ही नीचे बैठ गईं|

मैं: अरे, आप नीचे क्यों बैठे हो? ऊपर बैठो!

मैंने हैरान होते हुए कहा|

भौजी: नहीं सभी घर पर हैं और उनके सामने मैं कैसे...

बीच में बात काटते हुए;

मैं: मैं नहीं जानता कोई क्या सोचेगा आप बस ऊपर बैठो! मुझे आप से कुछ पूछना है?

मैंने भौजी को हुक्म देते हुए कहा तो भौजी मेरी बात मानते हुए चारपाई पर कुछ दूरी पर बैठ गईं| दरअसल हमारे गाँव में कुछ रीति रिवाज ऐसे हैं जिन्होंने औरत को बहुत सीमित कर रखा है| यूँ तो अकेले में भौजी मेरे बराबर बैठ जाया करती थी परन्तु जब घर के बड़े पुरुष घर में मौजूद हों तब वो मुझसे दूर ही रहती थीं, उनके सामने हमेशा मुझसे गज भर की दूरी रखती थीं और कभी भी मेरे बराबर नहीं बैठती थीं| हाँ मा, रसिका भाभी, बड़की अम्मा या किसी भी दूसरी स्त्री की मौजूदगी में वो मेरे पास बैठ जाया करती थीं|

भौजी: अच्छा जी, पूछिये क्या पूछना है आपको?

भौजी ने मुस्कुराते हुए कहा| इस वक़्त भौजी की पीठ कुएँ की तरफ थी जहाँ सब पुरुष सदस्य अपनी बातें कर रहे थे| मैंने भौजी को रात में मुझे जो भी महसूस हुआ वो सब सुना दिया और फिर अंत में उनसे पूछा;

मैं: कल रात को मुझे क्या हुआ था? क्यों मैं ऐसा अजीब सा बर्ताव क्यों कर रहा था?

मेरा सवाल सुन भौजी होले से मुस्कुराईं और बोलीं;

भौजी: मैं कोई डॉक्टर नहीं, न ही कोई ओझा या तांत्रिक हूँ! कल दोपहर में जब आपने अपने अंदर आये बदलावों को बताया तो मैं समझ गई थी की आपको क्या तकलीफ है| ये आपका मेरे प्रति समर्पण था जो आपको तय सब सोचने पर मजबूर कर रहा था!

लेकिन में क्रूर बुद्धि अब भी उनकी बात नहीं समझा था|

भौजी: ये एक तरह का संकेत था की आप मुझसे कितना प्यार करते हो! आपका वो बारिश में भीगना, आपको ऐसा लगना की उसके शरीर की महक आपके शरीर से आ रही है इसलिए ठन्डे पानी से रात को बारिश में साबुन लगा-लगा के नहाना, बार-बार ऐसा लगना की माधुरी के हाथ आपके शरीर से खेल रहे हैं और इसलिए चैन से ना सो पाना, ये सब आप के दिमाग की सोच थी| आप अंदर ही अंदर अपने आपको कसूरवार ठहरा चुके थे और अनजाने में ही खुद को तकलीफ दे रहे थे| आपका दिल आपके दिमाग पर हावी हो गया था और धीरे-धीरे आपको ये सब भ्रम होने लगे थे! मैंने कोई उपचार नहीं किया, कोई जहर आपके शरीर से नहीं निकाला, बस आप ये समझ लो की मैंने आपको अपने प्यार से पुनः 'चिन्हित' किया! ये आपका मेरे प्रति प्यार था जिससे आपको इतना तड़पना पड़ा और मैंने बस आपकी तकलीफ को ख़त्म कर दिया|

भौजी का ये सरल जवाब मेरे दिल को छू गया और मैं समझ गया की वो सब मेरा भ्रम था|

मैं: (मुस्कुराते हुए) तो ये मेरे दिम्माग की उपज थी! आपने सच में मेरी जान बचा ली, वरना मैं पागल हो जाता!

भौजी: (शर्माते हुए) मैं ऐसा कभी होने ही नहीं देती!

मैं: अच्छा ये बताओ, आपने ये उपचार कौन सी पिक्चर में सीखा?

इतना कह कर मैं हँसने लगा|

भौजी: पिक्चर, आखरी बार पिक्चर मैंने आपके ही घर में देखी थी| मैंने तो बस वही किया जो मेरे दिल ने कहा!

मैंने मुस्कुराते हुए भौजी की बात पर विश्वास कर लिया|

भौजी: अच्छा मुझे भी आप से माफ़ी मांगनी है, मेरी वजह से आपको चाचा से सुबह-सुबह इतना सुन्ना पड़ा!

मैं: ये तो चलता रहता है, फिर उन्होंने कुछ गलत भी तो नहीं कहा| गलती मेरी ही थी, मेरे कारन आपको बाहर सोना पड़ा|

मैं जानता था की भौजी मेरी गलती मानने वाली नहीं इसलिए इससे पहले वो कुछ कहतीं मैंने बात को घुमा दिया;

मैं: मेरे सोने के बाद आखिर हुआ क्या था? और आप बहार कब आके सो गए?

भौजी: दरअसल मैं आपके पास रात दो बजे तक लेटी रही, फिर मुझे लगा की अगर सुबह किसी को पता चला की आप और मैं एक ही घर में अकेले सोये थे तो लोग बातें बनाएंगे, इसलिए मैं कपडे पहन के चुप-चाप बाहर आ गई|

भौजी ने एकदम से बच्चों जैसा मुँह बनाया और बोलीं;

भौजी: सच कहूँ तो मेरा मन बिल्क्कुल नहीं था की मैं आपको अकेला सोता छोड़ के जाऊँ| आपके साथ इस तरह सोने में मुझे बहुत आनंद आ रहा था पर क्या करूँ!

फिर वो एकदम से खामोश हो गईं और सर झुकाते हुए बोलीं;

भौजी: और रात में हमारे बीच कुछ नहीं हुआ! हालाँकि मेरा मन तो था पर आप सो चुके थे इसलिए मैं....

भौजी की प्यास उनकी बातों से झलक रही थी और मैं उनको कभी भी ऐसे नहीं देख सकता था|

मैं: ओह सॉरी! पर आप मुझे उठा देते?

ये सुन कर भौजी बड़े गर्व से बोलीं;

भौजी: मैं इतनी भी स्वार्थी नहीं की अपनी जर्रूरत के लिए आपकी नींद खराब कर दूँ! कल रात न सही तो आज सही!

भौजी ने एक नटखट मुस्कराहट के साथ कहा|

मैं: आज रात तो कोई मौका ही नहीं, कल रात जो हुआ उसके बाद कुछ देर पहले पिताजी ने बड़के दादा के सामने मुझे बहुत समझाया|

ये सुन भौजी का चेहरा उतर गया और उनके मुख पर परेशानी के भाव थे, बुरा तो मुझे भी लग रहा था पर कुछ देर पहले ही पिताजी ने मुझे चेतावनी दी थी तो मुझे हर चीज सोच-समझ कर करनी थी| मैंने चुप्पी तोड़ते हुए कहा;

मैं: मुझ पर भरोसा रखो, भले ही कितना सख्त पहरा हो पर मैं आज रात जर्रूर आऊँगा| पहले ही मैं आपको बहुत दुःख दे चूका हूँ लेकिन अब और नहीं!

मैंने जोश दिखाते हुए कहा पर ये सुन भौजी को मेरी चिंता हुई तो वो बोलीं;

भौजी: नहीं, आप कुछ ऐसा मत करना! धीरे-धीरे सब शांत हो जाएगा और सभी भूल जायेंगे, तब तक आप कुछ भी गलत मत करना|

भौजी बहुत बुझा हुआ महसूस कर रहीं थीं, उस वक़्त मैं भौजी से कोई बहस नहीं करना चाहता था तो मैंने सोचा की आज रात उन्हें एक छोटा सा सरप्राइज दूँगा! यही सोच मैं चुप रहा और भौजी का मन हल्का करने के लिए उन्हें वो बात बताई जो कई दिनों से मैं उनसे करना चाहता था;

मैं: अच्छा बाबा, आप जैसे कहोगे वैसा करूँगा| अब एक बात सुनो, ये बात मैं आपको बहुत दिन से कहना चाहता था|

ये सुन कर भौजी के चेहरे पर उत्सुकता छलक आई और वो मुझ पर ध्यान केंद्रित करते हुए सुनने लगीं;

मैं: जिस दिन मैं पहलीबार नेहा को स्कूल ले कर गया था न तो मास्टर जी ने उससे उसका नाम पुछा, जैसे ही नेहा बोली 'नेहा मौर्या' तो मेरे दिल में एक अजीब सी हलचल हुई! उसकी आवाज में जो आत्मविश्वास था, जो जोश था उसे सुन कर मेरा दिल बड़ी जोरों से धड़कने लगा! मैं आपको बता नहीं सकता की मुझे उस वक़्त कितनी ख़ुशी हुई! उस ख़ुशी को मैं नाम देना चाहता था पर समझ ही नहीं आय की क्या नाम दूँ?

मेरी बात सुन भौजी के चेहरे पर ख़ुशी झलकने लगी, वो ख़ुशी ऐसी थी की भौजी की आँखें भर आईं थीं! मैंने भौजी का हाथ पकड़ कर दबा दिया, तो भौजी ने अपनी साडी के पल्लू से अपने आँसूँ पोछे और मुस्कुराते हुए बोलीं;

भौजी: [color=rgb(209,]बेटी!!![/color]

[color=rgb(85,]जारी रहेगा भाग - 3 में....[/color]
 

[color=rgb(65,]बारहवाँ अध्याय: नई शुरुरात[/color]
[color=rgb(41,]भाग -3[/color]


[color=rgb(251,]अब तक आपने पढ़ा:[/color]

मैं: जिस दिन मैं पहलीबार नेहा को स्कूल ले कर गया था न तो मास्टर जी ने उससे उसका नाम पुछा, जैसे ही नेहा बोली 'नेहा मौर्या' तो मेरे दिल में एक अजीब सी हलचल हुई! उसकी आवाज में जो आत्मविश्वास था, जो जोश था उसे सुन कर मेरा दिल बड़ी जोरों से धड़कने लगा! मैं आपको बता नहीं सकता की मुझे उस वक़्त कितनी ख़ुशी हुई! उस ख़ुशी को मैं नाम देना चाहता था पर समझ ही नहीं आय की क्या नाम दूँ?

मेरी बात सुन भौजी के चेहरे पर ख़ुशी झलकने लगी, वो ख़ुशी ऐसी थी की भौजी की आँखें भर आईं थीं! मैंने भौजी का हाथ पकड़ कर दबा दिया, तो भौजी ने अपनी साडी के पल्लू से अपने आँसूँ पोछे और मुस्कुराते हुए बोलीं;

भौजी: बेटी!!!

[color=rgb(250,]अब आगे:[/color]

ये शब्द मेरे कानों से होता हुआ सीधा मेरे दिल में उतर गया और आँखें अपने आप ही छलछला गईं! इन कुछ ही दिनों मेरा ये लगाव अब प्यार का रूप ले चूका था, कोई भी पल ऐसा नहीं बीता था जब नेहा मेरे पास न हो! भले ही भौजी मुझसे रूठ गईं हों पर नेहा हमेशा मेरे पास ही रहती थी और अपने प्यार से मुझे गाओं में रोके रखती थी! मैं खामोश ये सब सोच रहा था और भौजी ने मेरी ख़ामोशी का गलत मतलब निकाला;

भौजी: जानती हूँ वो आपका खून नहीं....

भौजी को लगा की क्योंकि वो मेरा खून नहीं इसलिए मैं शायद अपनी बेटी की तरह प्यार नहीं करता!

मैं: खबरदार जो ये बोला तो!

मैंने भौजी को दाँत पीसते हुए दबी आवाज में डाँट दिया|

मैं: आपके बाद अगर मैंने किसी को प्यार किया है तो वो है नेहा| मैं ही बुद्धू था जो कभी ऐसा सोच ही नहीं पाया की मेरा ये प्यार वही है जो एक बाप को अपनी बेटी से होता है! वरना आप ही सोचो जब उसने स्कूल में अपना नाम नेहा मौर्या बताया तो मुझे वो अजीब सी ख़ुशी क्यों हुई?

ये बोल कर मैं कुछ पल के लिए खामोश हो गया, फिर बोला;

मैं: हो न हो वो अजीब सी ख़ुशी एक बच्ची का बाप होने की ही थी! उसका वो नेहा मौर्या बोलना मेरे दिल को छु गया था! थैंक यू!

मैंने मुस्कुराते हुए कहा और ख़ुशी-ख़ुशी अपने आँसूँ पोछे| इधर भौजी के चेहरे पर आज वही ख़ुशी थी जो उस दिन स्कूल में मेरे चेहरे पर थी!

इतने में नेहा सो कर उठ गई थी और दौड़ती हुई मेरे पास आई| उस का ये आगमन बिलकुल सही समय पर हुआ, मैंने उसे कस कर अपने सीने से लगा लिया और बेतहाशा उसके माथे और गालों पर पप्पियों की बारिश करने लगा| उसे पप्पियाँ देते हुए मेरी आँखें फिर से भर आईं जिसे देख भौजी ने मेरी पीठ पर हाथ फेरा ताकि मैं अपना रोना रोक सकूँ| मुझे हँसाने के उद्देश्य से भौजी ने कहा; "सारी पप्पियाँ इसे ही दे दोगे की मुझे भी कुछ दोगे?" भौजी की इस बात में वो मीठी सी जलन छुपी हुई थी जिसे मैं अबतक महसूस नहीं कर पाया था| उधर नेहा अपनी मम्मी को जीभ चिढ़ाने लगी जैसे कह रही हो की इन पप्पियों पर सिर्फ उसी का हक़ है! "बदमाश!" भौजी ने हँसते हुए कहा| इतने में पडोसी गाँव से कोई आया जिनके साथ दो छोटी बच्चियाँ थीं जो लगभग नेहा की उम्र की थीं| नेहा उन बच्चियों को जानती थी इसलिए वो मेरी गोद से उतर कर उनके साथ खेलने चली गई| "ये कौन हैं?" मैंने भौजी से पुछा तो उन्होंने बताया की ये पडोसी गाओं के कालू काका हैं, बड़के दादा के मित्र! सारे पुरुष सदस्य उनके साथ बातें करते हुए खेतों की तरफ चले गए क्योंकि वहाँ कुछ खेतों की खरीदने-बेचने की बात हो रही थी| भौजी उठीं और चुप-चाप अपने घर में घुस गईं, मैं जानता था की रात में हमारे न मिलपाने से वो उदास हैं| लेकिन मैं आज रात कोई भी खतरा उठाने को तैयार था और भौजी की ये 'ख्वाइश' आज किसी भी हालत में पूरी करनी थी| भौजी के जाने के बाद मेरा दिमाग फिर से प्लानिंग में लग गया था| एक छोटा सा मौका तो मेरी आँखों के सामने था, मैं सबकी नजर बचाते हुए भौजी के घर में घुस गया| भौजी अंदर कमरे के एक कोने पर सर झुकाये खड़ी थी| मैं भौजी के एकदम करीब खड़ा हो गया, फिर उनकी ठुड्डी पकड़ कर ऊपर उठाई और उनकी आँखों में देखने लगा| उनकी प्यासी आँखें देख मेरा दिल पिघल गया, मैंने उनके होठों को चूमा और फिर उन्हें कस कर गले लगा लिया! आह! क्या ठंडक पड़ी कलेजे में! भौजी ने भी मुझे इतना कस के गले लगाया की एक पल के लिए तो लगा जैसे मैं उन्हें दुबारा मिलूँगा ही नहीं! इस आलिंगन में आज वोही तपिश थी जैसे की दो प्रेमी एक सदी के बाद मिले हों!

मैं जानता था की कुछ भी करने के लिए ये समय ठीक नहीं है, इसलिए मैं आगे नहीं बढ़ा और दो मिनट तक हम एक दूसरे की बाहों में सिमटे हुए खड़े रहे| हम जब अलग हुए तभी मुझे किसी के आने की आहट आई और मैंने फ़ौरन भौजी से ऊँची आवाज में बात करनी शुरू कर दी;

मैं: मैं बैटिंग करता हूँ और आप बॉल करो|

ये सुन भौजी भौएं सिकोड़ते हुए मुझे देखने लगीं की मुझे अचानक क्या हो गया? मैंने अपनी आँखें बड़ी कर के उन्हीं बाहर की तरफ इशारा किया तो वो समझ गईं की कोई आ रहा है इसलिए वो मेरी बात का जवाब देते हुए बोलीं;

भौजी: आपको क्रिकेट खेलना है तो नेहा के साथ खेलो, आप हर बार मेरी बॉल बहुत जोर से पीटते हो!

भौजी ने कहा और एक 'दुष्ट' हँसी हंस पड़ी| मैं उनकी ये दो मुहि बात समझ गया और मुझे उनका ये अंदाज कतई पसंद नहीं आया, इसलिए मैंने मुँह बनाते हुए कहा;

मैं: आप रहने दो, मैं नेहा को ढूँढ कर उसी के साथ खेलता हूँ|

भौजी को मेरी नाराजगी समझ आ गई और इससे पहले की भौजी मुझे रोकतीं, रसिका भाभी आ गईं| उन्होंने दरवाजे पर खड़े हो कर हमारी ये बातें सुन ली थीं!

रसिका भाभी: मानु भैया, हमका कछु कहेक रहा|

मैं उनकी बात सुन कर ठहर गया और बोला;

मैं: हाँ जी बोलिये|

मैंने बड़ी तमीज से कहा ताकि भौजी को उनकी कही बात के लिए शर्मिंदा कर सकूँ|
रसिका भाभी बोलने में थोड़ा झिझक रहीं थी और मुझे समझने में देर नहीं लगी की उन्हें अकेले में माधुरी के बारे में बात करनी है| अब चूँकि माधुरी के नाम से ही घर के सभी सदस्य चिढ़ते थे इसलिए रसिका भाभी भूल से भी उसका जिक्र किसी के सामने नहीं करती थीं| रसिका भाभी की झिझक देख भौजी बीच में ही बोल पड़ीं;

भौजी: अरे ऐसी कौन सी बात है जो तुम दोनों को मुझसे छुपानी पड़ रही है|

फिर भौजी ने मेरी तरफ अपनी गर्दन से इशारा करते हुए बड़े गर्व से कहा;

भौजी: वैसे भी ये मुझसे कोई बात नहीं छुपाते, तो तुझे मेरे सामने बात करने में क्या हर्ज है?

कई बार भौजी नचाहते हुए भी लोगों को हम पर शक करने पर मजबूर कर देती थीं| इस वक़्त उनका मुझे 'ये' कहना और वो भी उस नजाकत के साथ जिस नजाकत के साथ पत्नियां अपने पति को कहतीं हैं वो रसिका भाभी के मन में शक़ पैदा कर चूका था! लेकिन रसिका भाभी में इतनी हिम्मत नहीं थी की वो भौजी को कुछ कह सकें या उनसे कुछ पूछ सकें!

रसिका भाभी: जीजी अइसन कउनो बात नाहीं, ऊ माधुरी के बारे में कछु कहेक रहा....

रसिका भाभी ने जैसे-तैसे डरते हुए अपनी बात कही, पर भौजी ने उनकी बात काट दी;

भौजी: तो इसमें मुझसे कैसा पर्दा? आज से पहले तो तु मुझे सब बात बताया करती थी और अगर तुझे लग रहा है की मैं अम्मा को बता दूँगी तो निश्चिंत हो जा, मैं किसी को कुछ नहीं बताऊँगी| अब बता क्या बात है? अब क्या चाहिए उसे?

भौजी रसिका भाभी की संतुष्टि के लिए कहा|

रसिका भाभी: वो.. माधुरी हमरे हाथे मानु भैया खातिर संदेसा भेजिस है की शाम का 6 बजे ऊ का स्कूल मिल लिओ!

ये सुनते ही मेरे जिस्म में आग लग गई और मैं गुस्से में बोला;

मैं: उसे कह दो की न मुझे उससे कोई बात करनी है और न ही उसकी कोई बात सुननी है, इसलिए मैं कहीं नहीं जाने वाला!

मैं इतना कह के मैं गुस्से में बाहर आ गया, बाहर आते ही मुझे अजय भैया ने पकड़ लिया और जबरदस्ती पिताजी के पास ले गए| कोई ख़ास बात नहीं थी दरअसल पिताजी चाह रहे थे की आज मौसम बहुत अच्छा है तो मैं अजय भैया के साथ बाजार से सब के लिए कुछ खाने को लाऊँ| मैं जल्दी से तैयार हुआ और अजय भैया के साथ बाजार चला गया| बाजार पहुँच के मैं दुकानों का मुआयना करने लगा और मैंने सब के लिए खाने के लिए जलेबी, आलू की टिक्की, भल्ले पापड़ी और कोल्ड ड्रिंक्स लीं| अजय भैया हैरान थे की मैं इतनी खोजबीन कर-कर के खरीदारी कर रहा हूँ!करीब दो घंटे की खोज-बीन के बाद सामान लेके हम घर पहुँचे| हमारे घर के रास्ते में स्कूल पड़ता था और वहाँ हमें माधुरी खदु हुई मिली, उसने मेरे साथ अजय भैया को देखा तो हैरान हो गई और चुप-चाप सर झुका कर चली गई| इधर उसे देख अजय भैया के मुँह परगुस्सा उमड़ आया, गुस्सा तो मुझे भी आया था पर मैं फिर भी जैसे-तैसे अपना गुस्सा पी गया और भैया को घर की ओर चलने का इशारा किया| :भैया अपना मूड मत खजराब करो और चलो जल्दी वरना सब खाना ठंडा हो जायेगा!" मैंने कहा और भैया और मैं तेजी से साइकिल के पेडल मारते हुए घर पहुँच गए| मैंने खाने का सामान भौजी को जल्दी से परोस कर लाने को कहा और मैं जा कर पिताजी के पास बैठ गया| नेहा मुझे देखते ही दौड़ कर आई और मेरी पीठ पर चढ़ गई, पिताजी, बड़के दादा और चन्दर भैया आपस में बातें कर रहे थे और इधर नेहा मेरी पीठ पर चढ़े हुए धीमे से बोली; "चाचू, मेरे लिए बजार से क्या लाये?" मैंने फ़ौरन नेहा को पीठ से उतारा और उसे अपनी गोद में लेते हुए छप्पर की तरफ चलते हुए बोला; "मेरी बेटी के लिए मैं ना टिक्की लाया हूँ, जलेबी लाया हूँ और न दही भल्ले लाया हूँ!" ये सुनते ही नेहा के चेहरे पर ख़ुशी उमड़ आई और उसने मेरी नाक पर पप्पी की!

अजय भैया ने पिताजी, चन्दर, और बड़के दादा को चाट के दोने पकड़ाए और उन्होंने बड़े घर के आंगन में बैठ कर बड़े चाव से खाये| इधर छप्पर के नीचे मैं, नेहा, भौजी, रसिका भाभी, माँ और बड़की अम्मा बैठे थे और बड़े चटखारे ले कर खा रहे थे| रसिका भाभी ने तो दबा के टिक्की खाई, जैसे कभी खाई ही ना हो और सबसे ज्यादा मेरी तारीफ भी उन्होंने ही की! चाट खाने के दौरान बातों-बातों में पता चला की मेरी गैर मौजूदगी में भौजी का भाई (अनिल) आया था| अब ये सुनते ही मैं समझ गया की फिर से भौजी के घर में कोई हवन या कोई समारोह होगा और वो भौजी को कल सुबह ले जाएगा| मेरा मन बहुत खराब हुआ और मैं अपने हिस्से की टिक्की और जलेबी नेहा को दे कर चुप-चाप उठ कुऐं की मुंडेर पर बैठ गया| भौजी समझ गईं की मैं खफा हो गया हूँ, हलाँकि मेरे चेहरे पर अब भी नकली मुस्कान चिपकी थी पर भौजी मेरे भावों को भलीं-भांति जानती थी, इसलिए भौजी भी सबसे नजर बचा के मेरे पास आईं;

भौजी: क्या हुआ?

भौजी ने अनजान बनते हुए पुछा|

मैं: कुछ भी तो नहीं|

मैंने वही नकली मुस्कराहट के साथ जवाब दिया|

भौजी: तो आप यहाँ अकेले में क्यों बैठे हो, जानते हो ना आप मुझसे कोई बात नहीं छुपा सकते?!

अब मैंने सोचा की उनसे झूठ कैसे बोलूँ जो मेरे दिल का हाल जानती हैं, इसलिए मैंने एक ठंडी आह भरते हुए कहा;

मैं: आज आपका भाई आया था ना आपको लेने, तो कब जा रहे हो आप?

ये सुन कर भौजी प्यार भरे गुस्से में अपनी कमर पर हाथ रख कर खड़ी हो गईं और बोलीं;

भौजी: सबसे पहली बात, मेरा भाई यानी आपका 'साला' और दूसरी बात वो आज इसलिए आया था की मेरे पिताजी यानी आपके 'ससुरजी' के दोस्त (चरण काका) की लड़की की शादी है|

भौजी ने मुझे प्यारभरी डाँट लगाते हुए कहा| भौजी का यूँ अनिल को मेरा साला कहना मुझे अच्छा लगा था!

मैं: ठीक है बाबा साले साहब आपको लेने आये थे ना, कितने दिन के लिए जा रहे हो?

मैंने फिर वही नकली मुस्कराहट के साथ कहा| ऐसा नहीं था की वो मेरी ये नकली मुस्कराहट न पकड़ पाईं हों पर उन्होंने आज मेरे साथ मजाक करने की सोची और बेबसी का नाटक करते हुए बोलीं;

भौजी: अब शादी ब्याह का घर है तो कम से कम एक हफ्ता तो लगेगा ही|

एक हफ्ता सुन के मैं मन ही मन उदास हो गया और मुझे फैसला करने में एक सेकंड भी नहीं लगा की कल जब भौजी निकलेंगी तभी मैं उन्हें अलविदा कह अगले दिन ही वापस चला जाऊँगा| पर फिर भी मैं अपने मुँह पर वही नकली हँसी चिपकाए बोला;

मैं: ठीक है...आप जर्रूर जाओ| आखिर आपके काका की लड़की की शादी है!

पर भौजी ने फिर मजाक करते हुए कहा;

भौजी: दिल से कह रहे हो?

मैं: हाँ|

मैंने जूठ बोला, क्योंकि मैं नहीं चाहता था की भौजी शादी में मेरी वजह से न जाएँ|

पर मेरे जज्बातों को समझ उन्होंने बड़ी अदा से गर्दन गोल घुमाते हुए कहा;

भौजी: वैसे आपसे किसने कहा की मैं जा रही हूँ? मैंने अनिल को मना कर दिया! मैंने उसे कह दिया की मेरा मन नहीं है!

जिस अदा से उन्होंने कहा था उसे देख मुझे यक़ीन नहीं हुआ की उन्होंने अपने भाई को मना कर दिया!

मैं: अच्छा? और वो मान भी गया?

भौजी: नहीं...

ये बोलते हुए उनके चेहरे पर एक नटखट मुस्कान आ गई|

भौजी: मैंने थोड़ा झूठ और थोड़ा सच बोला| मैंने कहा की शहर से चाचा-चाची यानी मेरे 'सास-ससुर' आये हैं और ख़ास तौर पर अगर मैं आपको छोड़ के गयी तो आप नाराज हो जाओगे!

ये सुनते ही मेरी आँखें बड़ी हो गईं और मैं बोला;

मैं: क्या? किसने कहा की में नाराज हो जाता?

भौजी मेरा झूठ पकड़ते हुए बोलीं;

भौजी: अच्छा जी? पिछली बार जब मैं हवन के लिए मायके गई थी तो जनाब ने सालों तक कोई बात नहीं की थी| इस बार अगर जाती तो आप तो मेरी शकल भी दुबारा नहीं देखते|

मैं: ऐसा नहीं है!

मैंने थोड़ा शर्माते हुए कहा|

मैं: आप को जर्रूर जाना चाहिए, हमने इतने दिन तो एक साथ गुजारे हैं!

ये सुन कर भौजी को प्यार भरा गुस्सा आ गया;

भौजी: मैं इतने भी बुद्धू नहीं की अपनी बकरी (मैं) को दो शेरनियों (रसिका भाभी और माधुरी) के पास अकेला छोड़ जाऊँ!

ये सुन कर हम दोनों हँस पड़े|

भौजी: सच में मेरा मन आपको छोड़ कर कहीं जाने का नहीं है|

भौजी ने थोड़ा शर्माते हुए कहा|

मैं: ठीक है, जैसी आपकी मर्जी! पर मैं ये जानने के लिए उत्सुक हूँ की आपने साले साहब से आखिर बोला क्या?

भौजी: (हँसते हुए) मैंने कहा की, सालों बाद शहर से चाचा-चाची आये हैं तो मुझे उनकी देख-भाल करने के लिए यहीं रुकना होगा और ख़ास कर के तुम्हारे (अनिल के) जीजा जी (चन्दर भैया) का भाई जो दिल्ली से आया है! वो सिर्फ और सिर्फ मुझसे मिलने यहाँ आये हैं| याद है पिछली बार जब मैं हवन के लिए घर आई थी तो वापस जाते हुए उन्होंने (मैंने) मुझसे बात भी नहीं की थी और वैसे भी मेरा मन इस शादी में जाने का नहीं है, फिर अभी-अभी नेहा का स्कूल भी शुरू हुआ है, मैं नहीं चाहती की उसका स्कूल छूटे! अब मेरे मन में सच और जितने भी बहाने आये मैंने वो सब उसे कह दिए तब जाके वो माना|

आह भौजी ने पहली बार मेरे माता-पता को अपने सास-ससुर कहा और ये सुन कर मेरे पेट में तितलियाँ उड़ने लगीं| एक पल के लिए तो लगा जैसे की ये सच हो और इसी कारन मेरे चेहरे पर मुस्कान आ गई| अब मुझे भौजी के शादी पर न जाने पर थोड़ा बुरा तो लगा पर उनके न जाने की ख़ुशी सबसे ज्यादा थी! अब क्या करें थोड़ा स्वार्थी हो गया था!

मैं: तो मतलब की साले साहब को पता चल गया की आपके और मेरे बीच में कुछ पक रहा है, और अब वो यही बात जाके मेरे 'सास-सासुर' को भी बता देंगे! क्या इज्जत रह जाएगी मेरी?

मैंने भौजी को छेड़ते हुए पुछा|

भौजी: तो बताने दो न कोई कुछ नहीं कहेगा क्योंकि सब जानते हैं की हमारे बीच में केवल देवर-भाभी का रिश्ता है| ये तो सिर्फ हम दोनों जानते हैं की हमारा रिश्ता उस रिश्ते से कहीं अधिक पवित्र है! अब छोडो इन बातों को और चलो सब के पास वरना फिर सब कहेंगे की दोनों क्या खिचड़ी पका रहे हैं|

भौजी का हमारे रिश्ते को पवित्र कहना मेरे दिल को छु गया था! लेकिन मुझे अब भी एक डर तो था की अगर अनिल ने ये सब भौजी के घर में बता दिया तो वो हमारे रिश्ते को गंदी नजर से देखेंगे और अगर उन्होंने कुछ बुरा-भला कह दिया तो मैं खुद को कुछ भी बोलने से नहीं रोक पाऊँगा! फिलहाल के लिए मैंने इस बात पर ज्यादा ध्यान नहीं दिया और वापस सब के साथ घुल-मिल कर बैठ बातें करना लगा|

चूँकि शाम को सब ने डट कर चाट खाई थी तो रात का खाना बनने में बहुत देर हो गई| जब सभी पुरुष सदस्य भोजन के लिए बैठे तब भौजी के मायके जाने की बातें शुरू हो गईं;

पिताजी: बहु तुम गई क्यों नहीं अपने भाई के साथ? आखिर तुम्हारे चरण काका की लड़की की शादी थी, तुम्हें तो जाना चाहिए था?

पिताजी की बात सुन भौजी घूँघट किये हुए रसोई से बोलीं;

भौजी: चाचा मेरा मन नहीं था जाने का और फिर नेहा का स्कूल भी तो है|

भौजी ने झूठ बोलते हुए कहा|

पिताजी: बहु, नेहा को तो तुम्हारा लाडला देवर संभाल लेता अब सारा दिन नेहा उसी के तो पास रहती है|

लेकिन माँ ने भौजी का झूठ पकड़ लिया था इसलिए वो बीच में बोल पड़ीं;

माँ: अजी जाती कैसे?! आपके लाड़-साहब जो नाराज हो जाते! याद है पिछली बार जब बहु मायके गई थी तो लाड़ साहब ने उससे बात करना बंद कर दिया था!

ये सुनते ही पिताजी गुस्से से मेरी तरफ देखने लगे और बोले;

पिताजी: क्यों रे?

अब मै पिताजी का गुस्सा देख हड़बड़ा गया और जैसे तैसे बोला;

मैं: जी मैंने कब मना किया...मैं तो खुद इन्हें ससुराल छोड़ आता हूँ|

अचानक ही मेरे मुँह से ससुराल शब्द निकल गया और मुझे इसका एहसास होते ही मैं सामन्य दिखने को कोशिश करने लगा, मन ही मन मैं ये प्रार्थना करने लगा की पिताजी उस शब्द पर ध्यान न दें! शुक्र है की पिताजी ने उस शब्द पर इतना ध्यान नहीं दिया और बोले;

पिताजी: तू रहने दे! पहले बहु को मायके छोड़के आएगा और अगले दिन ही यहाँ से चलने के लिए बोलेगा|

पिताजी की बात सुनते ही भौजी मुझे देखने लगीं और उनकी हैरानी से बड़ी हो चुकी आँखें मैं घूंघट के नीचे से महसूस कर पा रहा था| खैर पिताजी ने बिलकुल सही समझा था, आखिर वो मेरे बाप हैं! पर चन्दर को मुझे ताना मारने का मौका मिल गया और वो आग में घी डालते हुए बोला;

चन्दर: मानु भैया, तुम नाहीं जानत हो पर चरण काका हमार शादी में बहुत मदद किये रहे! हमार ससुर का पैर में मोच आये रही तो सारा काम ओ ही संभाले रहे! एहि खातिर हम कहित है की तोहार भौजी का जाने दिहो!

अब मेरे पास बोलने के लिए कुछ नहीं था तो मैंने बस हाँ में सर हिला दिया और मैं चुप-चाप खाना खाने लगा|

पिताजी: बहु तू चली जा, इस बुद्धू (मेरी) की चिंता मत कर|

भौजी ने कोई जवाब नहीं दिया बस सर झुका कर पिताजी की बात का मान रख लिया| उसके बाद किसी ने कुछ नहीं कहा और सब चुप-चाप अपना खाना खाने लगे| खाना खा कर मैं नेहा को अपनी ऊँगली पकड़ा कर आंगन में टहलने लगा और फिर उसे गोद में लेकर कहानी सुनाई| कहानी सुनते-सुनते वो मुझसे लिपट कर सो गई| इसी बीच भौजी सहित सभी महिलाओं ने खाना खा लिया था तो भौजी नेहा को लेने के लिए मेरे पास आईं;

मैं: आप चले जाओ शादी में, मेरे लिए|

मैंने अपना मन मारते हुए कहा|

भौजी: मैं आपकी कोई भी बात मान सकती हूँ, पर मैं सच में इस शादी में नहीं जाना चाहती| मैं आपसे अलग नहीं रह सकती, कृपा कर मुझे जाने के लिए मत कहिये, मैं आपके आगे हाथ जोड़ती हूँ|

भौजी ने मेरे आगे हाथ जोड़ दिए| वो जानती थीं की मुझे चन्दर की बात सुन कर बुरा लगा है इसलिए वो बड़े ताव में आते हुए बोलीं;

भौजी: और रही बात आपको दोष देने की तो मैं देखती हूँ कौन आपसे कुछ कहता है?!

बड़े बेमन से मैंने भौजी के साथ तर्क करते हुए कहा;

मैं ठीक है, पर वादा करो की मुझे लेके आप किसी से लड़ाई नहीं करोगे? अगर इस बारे में कोई कुछ कहे भी तो भी आप चुप रहोगे? बोलो मंजूर है?

अगर मैं यही तर्क सही ढंग से करता तो भौजी मेरी बात मान जाती पर मैं तो चाहता ही नहीं था की वो जाएँ!

भौजी: आपने मुझे गजब दुविधा में डाल दिया! पर ठीक है आपसे अलग रहने से तो अच्छा है की मैं चुप रहूँ! लेकिन अगर बात हद्द से बढ़ गई तो मैं आपकी भी नहीं सुनुँगी!

भौजी ने मुझे प्यार से चेतावनी देते हुए कहा! वैसे ये पहली बार था की मैंने भौजी के ऐसे बागी तेवर देखे थे!

मैं: अच्छा बाबा ठीक है! मुझे आप से एक और बात कहनी है, मुझे आपका ये डबल मीनिंग वाली बातें करना बिलकुल पसंद नहीं, इसलिए आइन्दा ये डबल मीनिंग वाली बातें मुझसे मत करना!

भौजी: डबल मीनिंग बात?

भौजी को समझ नहीं आया तो मैंने उन्हें समझाते हुए कहा;

मैं: डबल मीनिंग वाली बातें मतलब= दो अर्थ वाली बातें| आज शाम को जब हम दोनों क्रिकेट की बात कर रहे थे तब आपने जो कहा था, उसके लिए आपको समझा रहा हूँ| इस तरह की बातें आपको शोभा नहीं देती, आपका चरित्र ऐसा नहीं है इसलिए आइन्दा कभी भी मुझसे ऐसी बातें मत करना!

मेरी बात समझते हुए उन्होंने अपने कान पकडे और बोलीं;

भौजी: मैं तो बस थोड़ा मजाक कर रही थी, आगे से इस बात का ध्यान रखूँगी!

ये सुन कर मैं थोड़ा मुस्कुराया और बात वहीं खत्म हुई| भौजी ने नेहा को मेरी गोद से लिया और अपने घर के भीतर घुस गईं! मैं भी लेट गया पर अब भी मैं भौजी की 'ख्वाइश' पूरी करने के बारे में सोच रहा था| जैसे ही घडी में रात के एक बजे मैं उठा और भौजी के घर की ओर चल दिया| उस एक पल के लिए मैंने पिताजी की चेतावनी को दरगुजर कर दिया था! भौजी के घर का दरवाजा खुला था, इसलिए मैं चुप-चाप अंदर घुस गया लेकिन अंदर जा कर देखा तो आंगन में एक चारपाई पर नेहा सो रही थी और दूसरी चारपाई पर भौजी सो रहीं थी!

आज जब उन्हें सोते हुए देखा तो बस देखता ही रह गया! आज वो बहुत-बहुत प्यारी लग रही थीं! मैंने चौखट का सहारा लिया और चुपचाप उन्हें निहारने लगा, मन ही नहीं किया की उन्हें जगाऊँ या वहाँ से जाऊँ! दिल में आज एक अजीब सी हूक उठी उन्हीं चूमने की, इसलिए मैं धीरे से भौजी के पास पहुँचा और झुक के उनके होठों को चूमा| शायद भौजी को बहुत गहरी नींद आ रही थी, इसलिए उन्होंने कोई प्रतिक्रिया नहीं दी! मैं चुप-चाप मुड़ा और जैसे ही बाहर जाने को हुआ की नेहा उठ गई और उसने मेरी टी-शर्ट पकड़ ली| मुझे लगा की शायद भौजी जाग गईं हैं तो मैंने पलट के देखा, तो पाया की नेहा आँखें मलते हुए मेरी तरफ देख रही है| मैंने नेहा को गोद में उठाया और वो मेरे कंधे पर सर रख कर सो गई| धीरे से भौजी के घर का दरवाजा बंद किया और वापस अपनी चारपाई पर लेट गया| करवट ले कर नेहा को आराम से अपनी बगल में लिटाया और फिर ऐसी नींद आई की सीधा सुबह नींद खुली!

[color=rgb(85,]जारी रहेगा भाग - 4 में....[/color]
 

[color=rgb(65,]बारहवाँ अध्याय: नई शुरुरात[/color]
[color=rgb(41,]भाग -4[/color]


[color=rgb(184,]अब तक आपने पढ़ा:[/color]

आज जब उन्हें सोते हुए देखा तो बस देखता ही रह गया! आज वो बहुत-बहुत प्यारी लग रही थीं! मैंने चौखट का सहारा लिया और चुपचाप उन्हें निहारने लगा, मन ही नहीं किया की उन्हें जगाऊँ या वहाँ से जाऊँ! दिल में आज एक अजीब सी हूक उठी उन्हीं चूमने की, इसलिए मैं धीरे से भौजी के पास पहुँचा और झुक के उनके होठों को चूमा| शायद भौजी को बहुत गहरी नींद आ रही थी, इसलिए उन्होंने कोई प्रतिक्रिया नहीं दी! मैं चुप-चाप मुड़ा और जैसे ही बाहर जाने को हुआ की नेहा उठ गई और उसने मेरी टी-शर्ट पकड़ ली| मुझे लगा की शायद भौजी जाग गईं हैं तो मैंने पलट के देखा, तो पाया की नेहा आँखें मलते हुए मेरी तरफ देख रही है| मैंने नेहा को गोद में उठाया और वो मेरे कंधे पर सर रख कर सो गई| धीरे से भौजी के घर का दरवाजा बंद किया और वापस अपनी चारपाई पर लेट गया| करवट ले कर नेहा को आराम से अपनी बगल में लिटाया और फिर ऐसी नींद आई की सीधा सुबह नींद खुली!

[color=rgb(251,]अब आगे:[/color]

नई सुबह...नया दिन.....पर आज कुछ तो ख़ास बात थी! जब मेरी आँख खुली तो मुझे 'चक्की' चलने की आवाज आई| कुछ ही देर में मुझे माँ और बड़की अम्मा आते हुए दिखाई दिए| "जल्दी से हाथ-मुंह धो के तैयार हो जा और हाँ नहाना मत!" माँ ने कहा| मैंने न नहाने का करना पूछा तो पता चला की आज मुझे 'बुकवा' लगेगा|

हमारे गाँव में स्त्रियाँ घर की चक्की पर सरसों को पीसती हैं और फिर उस मिश्रण में सरसों का तेल मिलाया जाता है| कहते हैं की इस मिश्रण को बदन पर लगाने से निखार और तमाम खाज-खुजली की तकलीफें ठीक हो जाती हैं| इसे घर की स्त्रियाँ ही लगाती हैं पर हाँ ये सिर्फ और सिर्फ घर के पुरुषों के लिए होता है| घर के बड़े जैसे मेरे पिताजी या बड़के दादा को बुकवा केवल और केवल बड़की अम्मा ही लगाती हैं| चन्दर और अजय भैया को बुकवा या तो बड़की अम्मा अथवा उनकी पत्नियाँ ही लगा सकती हैं| सबसे छोटे देवर अर्थात मैं, जिससे चाहे बुकवा लगा सकता हूँ| सरल शब्दों में कहें तो स्त्रियाँ अपने से छोटे पुरूषों को बुक्वा लगा सकती हैं, परन्तु अपने से बड़ों को नहीं| किसी भी बाहर के पुरुष को ये सेवा किसी भी हाल में उपलब्ध नहीं होती न ही वो इसे लगाते हुए देख सकते है| इसे लगाने के विधि कुछ ख़ास नहीं है, बस इस मिश्रण को हाथों से लेप की तरह लगाया जाता है और कुछ समय बाद (तकरीबन 1 - 2 घंटे) इसे पानी से धोके उतार दिया जाता है, फिर साबुन से नहा के ये काम पूरा होता है| चूँकि मैं छोटा था तो मुझे बुक्वा लगाने की जिम्मेदारी भाभियों की थी, अब मेरी प्यारी भौजी से अच्छा विकल्प क्या हो सकता था!

जब मैं छोटा था तो मैंने कभी बुकवा नहीं लगवाया, हमेशा उस समय मैं कहीं भाग जाता था! कारन था की मुझे बचपन से सबके सामने कपडे उतारने में शर्म आती थी! पर आज बुकवा लगने की बात सुन के मैं खुश हो गया पर फिर ख्याल आया की चन्दर को बुकवा भौजी लगाएंगी, ये ख़याल आते ही मन ख़राब हो गया! मन में जिज्ञासा हुई की क्या भौजी चन्दर को बुकवा लगाएँगी?! इसी जिज्ञासा के चलते मैं मुँह-हाथ धो के भौजी को ढूँढता हुआ उनके घर पहुँचा, वहाँ पहुँच के देखा तो भौजी चक्की चला रहीं थी और सरसों पीस रहीं थीं, मैंने उन्हें देखा परन्तु बोला कुछ नहीं| उन्हें चक्की चलाते हुए देख मेरा मन किया की उन्हें आदेश देते हुए कहूँ; "आप चन्दर को बुकवा नहीं लगाओगे!" पर ये कहने में थोड़ा अजीब सा लग रहा था! उधर शायद भौजी मेरी परेशानी भाँप गई और उनके मुख पर भी बिलकुल वैसे ही भाव थे जैसे मेरे मुख पर थे| आज मुझे ठीक वैसा ही लगा था जैसे उस दिन भौजी को लगा था जब मैंने माधुरी की 'बात' मानी थी! मैं उन्हें बिना कुछ बोले वापस आ गया और अपनी बारी का इन्तेजार बड़े घर में करने लगा|

पिताजी और बड़के दादा छप्पर के नीचे बैठे बड़की अम्मा से बुकवा लगवा रहे थे, अजय भैया खेतों में पानी लगा रहे थे और चन्दर आंगन में चारपाई पर लेटा हुआ था| चूँकि भौजी चक्की चला रहीं थीं तो आज खाना बनाने की जिम्मेदारी रसिका भाभी को दी गई थी और वो रसोई में बेमन से खाना बनाने की तैयारी कर रहीं थीं| मैं अकेला बड़े घर के बरामदे में चारपाई पर सर झुका कर बैठा था और भौजी के बारे में सोच रहा था| भौजी का कल यूँ रिश्ते जोड़ना मुझे बहुत अच्छा लगने लगा था, कभी अपने पिताजी को मेरा ससुर कहना, मेरे पिताजी को अपना ससुर मानना, अपने भाई को मेरा साला कहना, मेरी माँ को चाची ना कह के माँ कहना ये सब बातें मेरे दिल को छू गई थीं और मुझे उनका सच का पति होने का एहसास कराने लगी थीं| उनकी इन बातों में मैं इतना बहक चूका था की रात को बातों-बातों में भौजी के मायके को मैंने ससुराल कह दिया, वो तो शुक्र है की पिताजी ने इस बात को तवज्जो नहीं दी वरना कल तो मेरी ठुकाई पक्की थी|

करीब एक घंटे बाद भौजी आई और उनके पास एक डोंगे जैसा ताम्बे का बर्तन था| चूँकि मेरी पीठ दरवाजे की ओर थी तो मुझे केवल भौजी के पायल की आवाज सुनाई दी थी| भौजी बर्तन लिए मेरे सामने खड़ी हो गईं और सवालिया नज़रों से मुझे देखने लगी| इससे पहले की वो कुछ पूछें मैं स्वयं ही चुप्पी तोड़ते हुए बोला;

मैं: लगा दिया आपने चन्दर भैया को बुक्वा?

ये सवाल कम और ताना ज्यादा था! इस ताने का कारन था की आज भौजी का पति बोल रहा था!

भौजी: मैंने नहीं अम्मा ने लगाया, मैं तो चक्की चलाने में व्यस्त थी!

भौजी ने मुस्कुराते हुए कहा| ये सुन मैं कुछ नहीं बोला, बस एक ठंडी साँस छोड़ी क्योंकि मुझे भौजी के चन्दर को बुकवा न लगाने से बहुत ख़ुशी हुई थी! अब मेरे मन में भौजी से पहलीबार बुकवा लगवाने की फुलझड़ी जलने लगी थी, इसलिए मैंने फटाफट टी-शर्ट उतार दी| मेरे चेहरे पर मुस्कराहट देख भौजी हँस पड़ीं, फिर उन्होंने ऊँगली से मेरे पजामे की ओर इशारा किया और उसे भी उतारने को कहा| अब मैं केवल कच्छा पहने उनके सामने बैठा था, भौजी ने मुस्कुराते हुए बुकवा लगाना शुरू किया| सबसे पहले उन्होंने मेरी छाती पर बुकवा लगाया और बोलीं;

भौजी: तो आप का मूड इसलिए खराब था की मैं आपके भैया को उबटन लगाऊँगी?

मैं: वो मेरा भाई नहीं है!

मैंने थोड़ा अकड़ते हुए कहा, क्योंकि उनका चन्दर को भाई कहने से उनको मेरी भाभी बना देता और हम दोनों अब एक दूसरे को पति-अपत्नी मान चुके थे!

भौजी: माफ़ कर दो!

भौजी मेरी बात समझ गईं थीं इसलिए डर के कारन उन्होंने सर झुकाते हुए कहा|

मैं: जिस दिन उसने मुझ पर हाथ उठाया था उसी दिन से मैंने उसे अपना भाई मानना बंद कर दिया| ये तो पिताजी का मान रखने को मैं उसे कभी-कभार भैया कह देता हूँ वरना आपने कभी देजखा है मुझे उससे बात करते हुए?

पता नहीं क्यों पर मुझ में हिम्मत नहीं थी की मैं भौजी से ये कह सकूँ की उसे भैया बोलना मतलब आपको फिर से भौजी के रूप में देखना होगा! इसलिए मैंने होनी बात को नया रूप दे दिया, लेकिन भौजी समझ गई थीं की मैं उसे क्यों भैया नहीं कहता| भौजी ने न में सर हिलाया और मूक भाषा में जवाब दिया की उन्होंने कभी मुझे चन्दर के पास जा कर बात करते हुए नहीं देखा| खैर अब भौजी चुप हो गई थीं तो मैंने उनके सवाल का जवाब थोड़ा मुस्कुराते हुए दिया;

मैं: आप चन्दर को बुकवा लगाओगे, ये सोच कर ही मेरे शरीर पर चींटे काट रहे थे!

मैंने भौजी के सामने अपनी जलन प्रस्तुत करते हुए कहा| मेरी जलन देख भौजी के चेहरे पर मुस्कान आ गई और वो बड़े गर्व से बोलीं;

भौजी: पर मैं तो सिर्फ आपकी हूँ और मैं किसी पराये मर्द को कैसे स्पर्श कर सकती हूँ?

भौजी का जवाब सुन मैंने उनसे परीक्षा लेने की सोची;

मैं: जानता हूँ! पर अगर बड़की अम्मा ने आपसे भैया को उबटन लगाने को कहा होता तो? आप उन्हें कैसे मना करते?

पर भौजी का जवाब पहले से ही तैयार था;

भौजी: बड़ा आसान है, मैं अपना हाथ जख्मी कर लेती!

मुझे इस जवाब की कतई उम्मीद नहीं थी और उनकी बात सुन कर मुझे उनकी चिंता हुई और मैंने उन्हें गुस्से में डाँटते हुए कहा;

मैं: आपका दिमाग खराब है?

भौजी: हाँ!!! आपसे प्यार जो किया है, निभाना तो पड़ेगा ही!

भौजी ने मुस्कुराते हुए बड़े गर्व से कहा!

मैं: यार आप सच में पागल हो! अगर आप उन्हें उबटन लगा भी देते तो क्या होता? दुनिया के सामने तो वो आपका पति हैं|

मैंने अपनी जलन को एक तरफ रख उन्हें समझाते हुए कहा, पर भौजी बड़े गुस्से में मेरी बात का जवाब देते हुए बोलीं;

भौजी: आपको क्या हुआ था जब आपने माधुरी के साथ वो मजबूरी में किया था?

इतना कह कर भौजी गुस्से से मेरी आँखों में देखने लगीं और मुझे मेरी उस हालात से दुबारा अवगत कराया| कुछ सेकंड बाद उन्होंने अपनी बात पूरी की;

भौजी: वही हाल मेरा भी होता!

मैं भौजी की बात समझ चूका था की उनपर और मुझ पर क्या बीतती| कुछ पल के लिए हम शांत रहे. पर भौजी ने मुझे बुकवा लगाना बंद नहीं किया| मेरी छाती से होते हुए वो मेरी पीठ पर पहुँच चुकी थीं| ये चुप्पी माहौल को संगीन कर रही थी तो मैंने बात शुरू करते हुए कहा;

मैं: एक बात कहूँ, आप सोते हुए बहुत प्यारे लगते हो?

ये सुन कर भौजी हैरानी से मुझे देखने लगीं!

भौजी: आपने कब मुझे सोते हुए देख लिया?

मैं: कल रात को मैं आपको प्यार करने आया था पर देखा कीआप सो रहे हो! दस मिनट तक दरवाजे पर खड़ा आपको निहारता रहा, फिर आपके होठों को चूम कर चला गया!

मैंने भीनी सी मुस्कराहट के साथ कहा तो भौजी नाराज होते हुए बोलीं;

भौजी: तो मुझे उठाया क्यों नहीं?

मैं: ऐसे ही! मन तो कर रहा था की वहीं खड़ा सारी रात आपको सोता हुआ देखता रहूँ!

मैंने उसी भीनी मुस्कराहट के साथ उन्हें छेड़ते हुए कहा| पर पिछले कुछ दिनों से उनके मन में जो मीठी सी जलन थी वो बाहर आ ही गई;

भौजी: आप भी ना..... सारा टाइम नेहा को प्यार करते रहते हो? मुझे जरा भी प्यार नहीं करते!

ये भौजी की जलन रूपी शिकायत थी!

भौजी: कभी-कभी तो लगता है की आप जानबूझ कर उसे मुझे दिखा-दिखा कर पप्पियाँ करते हो? आपको जरा भी तरस नहीं आता न मेरे ऊपर? सिर्फ एक बेटी ही नहीं एक पत्नी भी है आपकी, उसके प्रति भी आपकी कुछ जिम्मेदारियाँ हैं! सारा-सारा टाइम नेहा को गोद में लिए घूमते रहते हो, कभी मुझे भी गोद में उठा लिया करो? या आपकी गोद में आने को मैं फिरसे बीमार पड़ जाऊँ?! काश मैं उसकी उम्र की होती तो अच्छा था, सारा टाइम आपकी गोद में चढ़ी रहती!

भौजी ने ये बातें बड़े प्यार से शिकायत करते हुए कहीं, जैसी की एक पत्नी अपने पति से शिकायत करती हो! अपनी ही बेटी से उनकी मीठी जलन देख मेरे पेट में तितलियाँ उठ रहीं थीं!

मैं: अच्छा बाबा! माफ़ कर दो!

ये कहते हुए मैंने अपने दोनों कान पकडे और मुझे कान पकडे देख भौजी के चेहरे पर पहली जैसी मुस्कान आ गई|

अब तक भौजी मेरे पूरे बदन पर बुकवा लगा चुकीं थी, पर मैंने उनसे थोड़ी दिल्लगी करने की सोची इसलिए मैंने अपना कच्छा सामने की ओर खींचा ओर उसमें सोये मेरे लिंग की तरफ इशारा कर के कहा;

मैं: इस पर भी थोड़ा बुकवा लगा दो, ताकि इसमें भी थोड़ी चमक आ जाए और ये भी गोरा हो जाए!

ये सुन कर भौजी शर्मा गईं और बोलीं;

भौजी: ना जी ना, अगर ये गोरा हो गया तो फिर यहाँ-वहाँ मुँह मारेगा!

अब ये सुन के तो मेरे तन-बदन में आग लग गई! मैं गुस्से से तमतमा उठा, मेरा गुस्सा मेरी शक्ल से झलक रहा था| मैं तेजी से अपने कमरे की ओर बढ़ा और अंदर जाके बैग में अपने कपडे भरने लगा| मुझे ऐसा करता देख भौजी के प्राण सूख गए ओर वो बोलीं;

भौजी: ये आप क्या कर रहे हो? मेरे साथ ऐसा मत करो, मुझे छोड़ के मत जाओ!!!

भौजी ने घबराते हुए अपने हाथ जोड़ कर कहा|

मैं: नहीं...आप को अब भी मुझ पर विशवास नहीं| आप को अंदर ही अंदर अब भी लगता है की मैंने आपके साथ दग़ा किया है!

मैंने बिना उनकी तरफ मुड़े कहा और अपने कपडे बैग में भरता रहा| भौजी ने मुझे रोकने के लिए मेरे कंधे को पकड़ा और बोलीं;

भौजी: नहीं, वो तो मैं बस आपसे थोड़ा मजाक कर रही थी! मुझे इस तरह छोड़ के मत जाओ, मैं मर जाऊँगी!!!

इतना कह कर वो रो पड़ीं, उनका रोना सुन मुझे बहुत जोर से गुस्सा आया और मैं बड़े गुस्से में उनकी तरफ मुड़ा और उन्हीं डाँटते हुए बोला;
मैं: मजाक! आपको हर-बार यही विषय मिलता है मजाक करने के लिए? कल शाम भी आपने माधुरी के नाम से मजाक किया और मैं कुछ नहीं बोला, आज फिर आपने उसके नाम से मजाक किया?! आपको पता है न की मुझे इस बात से कितनी तकलीफ होती है? बार-बार आपका इस विषय को छेड़ने से मुझे ग्लानि महसूस होती है, खुद को कोसता हूँ पर फिर भी..... मैं तो कभी आपसे इस विषय में मजाक नहीं करता?!

मैंने गुस्से से कहा, भौजी सर झुकाये डरी-सहमी मेरी डाँट सुनती रहीं! उनके आँसूँ टप-टप नीचे गिर रहे थे और मैं उन्हें कभी रोटा हुआ नहीं देख सकता था इसलिए मैं उनके नजदीक आया| गुस्स्सा तो अब भी अंदर था पर फिर भी मैंने भौजी के आँसूँ पोछे और बैग वैसे ही छोड़ मैं बड़े घर से निकल आया|

भौजी ने बैग से सारे कपडे निकाले और तह लगा कर रखे और फिर मुझे ढूंढती हुई बाहर आईं तो मुझे कुऐं की मुंडेर जो की मेरी पसंदीदा जगह बन चुकी थी वहाँ पर अकेले बैठे पाया| अकेला बैठा मैं सोच ने लगा की क्या मैंने भौजी को इस तरह डाँट के सही किया? 'पर उन्हें भी तो पता होना चाहिए की मुझे कितना बुरा लगता होगा?' मेरे गुस्से से गर्म दिमाग बोला| 'लेकिन ये बात तू प्यार से भी समझा सकता था न?' मेरी अंतरात्मा ने कहा| मुझे अपने गुस्से को काबू करना सीखना था ताकि मैं फिर यूँ बेवजह भौजी के ऊपर न बरस पडूँ! ये सब सोचते-सोचते मैं ये भी भूल चूका था की मैं केवल कच्छे में हूँ! उधर भौजी छप्पर के नीचे बैठीं टकटकी लगाए मुझे ही देखे जा रही थीं, इस आस में की मैं कुछ बोलूँगा! अगले डेढ़ घंटे तक मैं वहीं बैठा रहा और अपने दिमाग को शांत करने लगा| इतने में भौजी वहाँ आईं और मुझे नहाने के लिए कहा| मैं बिना उनसे कुछ कहे वापस बड़े घर आ गया और नहाने के लिए बाल्टी भरने लगा| जैसे ही मैं बाल्टी ले के स्नान घर की ओर बढ़ा की भौजी ने मेरे हाथ से बाल्टी ले ली| साफ़ जाहिर था की भौजी ही मुझे नहलाने चाहती हैं! उनके मुख पर मुझे शर्मिंदगी साफ़ दिख रही थी|

भौजी: आई ...ऍम....सॉरी जी!!!

भौजी ने अपनी टूटी-फूटी भाषा में कहा जिसे सुन कर मुझे बहुत हँसी आई पर फिर भी अपनी हँसी रोक कर मैं कुछ नहीं बोला और अपने मुख पर गंभीर भाव बनाये रखे!

भौजी उम्मीद कर रहीं थीं की उनकी टूटी-फूटी अंग्रेजी सुन कर मैं पहले की तरह हँस पडूँगा लेकिन मेरा गंभीर चेहरा देख वो सहम गई;

भौजी: तो आप मुझसे बात नहीं करोगे? 'पीलीज़' मुझे माफ़ कर दो न! आगे से ऐसा मज़ाक कभी नहीं करुँगी| 'प्लीज'...

भौजी ने एक बार मुझे हँसाने के लिए अपनी टूटी फूटी भाषा में 'पीलीज़' कहा लेकिन आगे वो कुछ बोल पातीं उससे पहले ही रसिका भाभी आ गईं;

रसिका भाभी: तो मानु भैया, नहावत हो?

मैं: जी नहाने ही जा रहा था|

इतना कह के मैंने भौजी के हाथ से बाल्टी लेने के लिए हाथ बढ़ाया, परन्तु भौजी ने बाल्टी पीछे खींच ली|

भौजी: आप रहने दो, मैं नहला देती हूँ|

भौजी ने मुझे रिझाते हुए कहा, लेकिन रसिका भाभी को इसपर चुटकी लेने का मौका मिल गया;

रसिका भाभी: का बात है? आज तो भौजी आपन देवर का नेहलावत है!

मैं अर्ध नग्न हालत में क्या कहता? लेकिन भौजी के चेहरे पर एक गर्वपूर्ण मुस्कान आ गई थी, अपने पति को किसी तीसरे के सामने नहलाने की ख़ुशी! मेरी चुप्पी का फायदा उठाते हुए भौजी मुझे नहलाने लगी, पहले उन्होंने पानी की मदद से सारी उबटन छुड़ाई और फिर साबुन लगने लगीं| सारा मैल छुड़ाने के बाद भौजी ने पीछे मुड़ीं और रसिका भाभी को देखा, लेकिन रसिका भाभी तो अपने कमरे में जा चुकी थीं| इस मौके का फायदा उठा के भौजी ने मेरे कच्छे की इलास्टिक को पकड़ के सामने की ओर खींचा, जिससे उन्हें मेरा सोया हुआ लिंग दिख गया| उन्होंने उसे छूना चाहा परन्तु मैंने झट से उनके हाथ से कच्छे की इलास्टिक छुड़ा ली और जल्दी से भाग के अपने कमरे में गया| तौलिया लपेट कर मैंने कपडे बदले, तेल कंघी कर के बाहर आ गया| जब मैं बाहर आया तो भौजी अब भी स्नान घर के पास खड़ीं मेरी ओर देख रहीं थीं|

ऐसा नहीं था की मैं कोई अकड़ दिखा रहा था या उनसे अब भी नाराज था, माफ़ तो मैं उन्हें पहले ही कर चूका था, अब तो मैं बस उन्हें थोड़ा तड़पा रहा था, क्योंकि आगे के लिए मैंने जो सोचा था उसके लिए थोड़ा गुस्सा दिखाना जर्रुरी था|

मैं आँगन में पड़ी चारपाई पर बैठ गया और अपने गुस्सा होने का ड्रामा चालु रखा! बेचारी भौजी सर झुकाये खुद को मन ही मन कोस रहीं थीं की उन्होंने मेरा दिल दुख दिया है! खेर अम्मा और माँ एक साथ बड़े घर में दाखिल हुईं तथा अम्मा ने भौजी से कहा की वे माँ को भी बुकवा लगा दें| इतना कहके बड़की अम्मा रसिका भाभी को अपने साथ किसी काम के लिए ले गईं| अब बड़े घर में केवल मैं, माँ ओर भौजी रह गए थे, माँ नीचे बैठ गईं ओर भौजी ठीक उनके पीछे बैठी उनकी पीठ पर बुकवा लगा रहीं थी| मेरी ओर भौजी की पीठ थी, यानी मैं सबसे पीछे बैठा था| तभी भौजी ने माँ से उनका मंगलसूत्र उतारने को कहा, नहीं तो उसमें भी बुकवा लग जाता| माँ ने मेरे हाथ में अपना मंगल सूत्र दिया और कहा की मैं इसे संभाल के रख दूँ| लेकिन मुझे न जाने क्या सूझी और मैंने मंगलसूत्र भौजी को पहना दिया! भौजी एक दम से स्तब्ध हो कर मुझे देखने लगीं जैसे कुछ पूछना चाहतीं हों! मैंने माँ से कहा की उनका मंगलसूत्र भौजी के पास है और मैं नेहा को लेने स्कूल जा रहा हूँ| मैं मुस्कुराता हुआ नेहा के स्कूल पहुँचा तो देखा की वो अपनी किसी दोस्त के साथ खड़ी कुछ बात कर रही है| वो उसे कुछ बताने में इतनी व्यस्त थी की उसे मेरे आने का पता ही नहीं चला;

नेहा: जानत हो हमार चाचू दिल्ली मा पढ़त हैं! ऊ बतावत रहे की दिल्ली में स्कूल इससे बहुत बड़वार होवत है!

ये कहते हुए नेहा ने अपने दोनों हाथ खोल दिया और स्कूल का साइज बताना चाहा!

नेहा: हुआँ बहुत बड़वार-बड़वार बस चलत है और सभी बच्चे उसी बस से स्कूल जावत हैं!

ये सुन नेहा की दोस्त की आँखें फटी की फटी रह गईं!

नेहा: और जानत हो, हमार चाचू का फटाफट अंग्रेजी बोलत हैं!

नेहा ने बड़े गर्व से कहा तो उसकी दोस्त को लगा की वो झूठ बोल रही है|

नेहा की दोस्त: झूठी! हम तो तोहार चाचा का कभौं केहू से अंग्रेजी में बतुआते नहीं देखेन!

नेहा की दोस्त बोली तो नेहा उस पर गुस्से में बरस पड़ी;

नेहा: तोहका का लागत है, हमार चाचू हर केहू से भी अंग्रेजी में बतुआई? जानत हो एक बार हमार चाचू का चोट लगी रही तो हमार 'दादा जी' बजार से डॉक्टर को बुलाइस रहे और हमार चाचू ओ से अंग्रेजी में बतुआत रहे!

पर उसकी दोस्त को यक़ीन नहीं हुआ तो वो नेहा का मज़ाक उड़ाते हुए बोली;

नेहा की दोस्त: चल झूठी! हमेसा हियाँ-हुआँ की हाँकत रहत है! तोहार चाचा का देहाती तो आवत नाहीं, ऊ का अंग्रेजी बोलिहैं?

ये सुन कर नेहा को बड़ा गुस्सा आया और वो उसे मारने को लपकी;

नेहा: हमार चाचू का बारे में कछु बोल्यो न, नहीं तो अइसन माराब की भक्क से फूट जाइहो!

ये कहते हुए नेहा तो उसकी पीठ में एक घुसा धर दिया! मैं एकदम से आगे गया और नेहा को पीछे से अपनी गोद में उठा लिया और उसे शांत करवाते हुए बोला;

मैं: बेटा, लड़ाई नहीं करते!

नेहा थोड़ा छटपटाई और बोली;

नेहा: चाचू ये कहती है की आपको अंग्रेजी नहीं आती, एक बार सुनाओ तो इसे जरा!

ये सुन कर मेरे चेहरे पर मुस्कराहट आ गई और मैंने नेहा का हुक्म मानते हुए बोला;

मैं: Dear, why are you fighting with my daughter?

ये शब्द अनायास ही मेरे मुँह से निकले थे, शायद दिल में कहीं एक पिता का प्यार बाहर आने को बेताब था और आज मौका पा कर वो बाहर आ ही गया था!

खैर ये शब्द सुनते ही नेहा की दोस्त आँखें फाड़े और मुँह खोले मुझे देखने लगी और उधर नेहा का सीना गर्व से फूल गया और वो उसे बच्ची को चीढाते हुए बोली;

नेहा: देख्यो, हम कहीं रहा न की हमार चाचू फटाफट अंग्रेजी बोलत हैं!

ये सुन वो बेचारी बच्ची डर के मारे भाग गई और नेहा उसे पीछे से जीभ चिढ़ाने लगी!

मैं: अच्छा बस मेरी माँ! चलो घर चलते हैं!

ये सुन नेहा खिलखिलाकर हँसी और फिर मैं और नेहा दौड़ते हुए घर पहुँचे|

मैं नेहा को लेकर सीधा बड़े घर आया जहाँ पर माँ, बड़की अम्मा, और भौजी बैठे थे| वहाँ पहुँच कर नेहा ने उन्हें सारी बात बताई तो ये सुन सभी जोर से हँस पड़े, मैंने भौजी को उल्हना देते हुए कहा; "बड़ी लड़ाकी है नेहा! लगता है माँ पर गई है!" ये सुनते ही माँ भौजी के बचाव में आ गईं और मुझे घूरते हुए बोलीं; "तूने कब देख लिया बहु को लड़ते हुए? बेचारी चुप-चाप रहती है, तेरा इतना ख्याल रखती है और तू उसी की गलती निकाल रहा?" ये सुन मेरे चेहरे पर एक नटखट मुस्कान आ गई जो भौजी समझ गई थीं| भौजी का गुस्सा क्या होता है ये कुछ दिन पहले मैं देख चूका था ओरसी का तो मैंने उल्हना दिया था!

खैर माँ का भौजी का यूँ पक्ष लेना मेरे दिल को छू गया था और मेरी मन में एक प्यारी सी गुदगुदी होने लगी थी! उधर भौजी मेरी मुस्कान देख ये तय नहीं कर पा रही थीं की मैं उनसे नाराज हूँ या उनसे मज़ाक कर रहा हूँ?!

खैर मैं नेहा को अपने साथ ले कर बाहर आ गया, कुछ देर बाद बड़की-अम्मा और भौजी भी आंगन में आ गए| मैं और नेहा बात-बॉल खेल रहे थे, बड़की अम्मा छप्पर के नीचे कुछ काम करने में लग गईं और भौजी अपने घर में कपडे तह लगाने चली गईं|

दोपहर के भोजन के समय माँ ने मुझे बुलाया और कहा की मैं उनका मंगलसूत्र भौजी से ले आऊँ| माँ की बात सुन का मैं स्तब्ध था क्योंकि मैं भौजी से मंगलसूत्र वापस लेना नहीं चाहता था, परन्तु क्या करता वो मंगलसूत्र 22000/- का था! मैं बुझे हुए मन से भौजी के पास गया और बेमन से उनसे माँ का मंगलसूत्र माँगा| भौजी ने वो मंगलसूत्र संभाल के अपनी अटैची में रखा था, उन्होंने मंगलसूत्र मेरे हाथ में देते हुए मुस्कुरा कर मुझसे पूछा; "आपको मालुम है मंगलसूत्र पहनना क्या होता है?"

"हाँ" बस इसके आगे मैंने उनसे कुछ नहीं कहा और वहाँ से माँ के पास मंगलसूत्र लेकर लौट आया| मैं जानता था की मंगलसूत्र पहनाने का अर्थ क्या होता है और मुझे इसमें कुछ भी गलत नहीं लगा था| जब हम एक दूसरे को मन ही मन पति-पत्नी मान चुके हैं तो मेरा उन्हें मंगलसूत्र पहनना तो इस बात को पक्का करता था!

दोपहर का भोजन करने के बाद मैंने अपना ध्यान नेहा में लगा दिया और भौजी को ऐसा दिखाया जैसे मुझे उनकी कोई परवाह ही नहीं| मैं नेहा को अपनी छाती से चिपकाए छप्पर के नीचे तख्त पर लेटा हुआ था| उस वक़्त छप्पर के नीचे कोई नहीं था, सब या तो बड़े घर में थे या फिर खेतों में थे! इधर भौजी ने मुझे मनाने के लिए कोशिश करते हुए मेरे पास ही दूसरी चारपाई बिछा कर लेट गईं| अब उन्हें मुझसे बात शुरू करनी थी तो वो बोलीं; "नेहा, पापा से कहो की कहानी सुनायें!" उस वक़्त भौजी को बस मुझसे कुछ बुलवाना था इसलिए उन्हें होश नहीं था की वो क्या कह रहीं हैं! मैं भी उस वक़्त पता नहीं क्या सोच रहा था की उनकी बात ठीक से सुने बगैर ही जवाब भी दे दिया; "बेटा मम्मी से कहो की कहानी रात में सुनाई जाती है, दिन में नहीं|" जवाब देके मुझे मेरी और भौजी की बात का एहसास हुआ तो मैंने अपनी जबान दाँतों तले दबा ली और इसे देख भौजी खिल-खिला के हँस दीं, लेकिन मैं ने किसी तरह अपनी हँसी रोक ली! इधर नेहा आँखें बड़ी कर के मुझे देखे जा रही थी? उसकी हैरानी लाजमी थी क्योंकि जिस इंसान को वो चाचू कहती है उसे आज उसकी मम्मी उसका पापा कह रही थीं!

इससे पहले नेहा कोई सवाल पूछे मैंने उसका ध्यान बात-बॉल खेलने में लगा दिया; "चलो बेटा हम बात-बॉल खेलते हैं!" बच्चों का मन बड़ा चंचल होता है और वो उनकी पसंद की बात सुन कर भटक जाता है, नेहा उस बात को भुला कर मेरे साथ आंगन में बात-बॉल खलेने लगी| इधर भौजी चारपाई पर लेटीं मुझे देख रही थी और तरह-तरह के मुँह बनाके मुझे हँसाने की कोशिश कर रही थीं| लेकिन मेरे लिए अपनी हँसी रोक पाना मुश्किल होता जा रहा था, अंततः मैं बैट छोड़के खेत की ओर भाग गया और कुछ दूर पहुँच के भौजी के द्वारा बनाये गए उन चेहरों को याद कर के बहुत हँसा! कुछ देर बाद मैं खेतों का चक्कर लगा कर लौटा तो देखा देखा चन्दर और अजय भैया तैयार हो रहे हैं| मैंने जब अजय भैया से पूछा तो उन्होंने बताया की वो मामा के घर किसी काम से जा रहे हैं और कल शाम तक लौटेंगे| अकस्मात् ही मेरी किस्मत मुझ पर इतना मेहरबान हो गई थी! कल के लिए मेरा जो प्लान था उसके लिए मेरा रास्ता लघभग साफ़ था बस एक ही अड़चन थी, वो थी रसिका भाभी! खेर अगर किस्मत को मंजूर होगा तो उनका भी कोई न कोई उपाय मुझे सूझ ही जाएगा!

अब मुझे अपने प्लान को अम्ल में लाना था, पर दिक्कत ये थी की मुझे हमला ठीक समय और अकस्मात् करना था, वरना सब कुछ ख़राब हो जाता| खेर मेरा भौजी से बातचीत न करने का ड्रामा चालु था और काफी हद्द तक मैंने भौजी को दुविधा में डाल दिया था की क्या मैं वाकई में उनसे नाराज हूँ या मजाक कर रहा हूँ| मेरी ये बेरुखी देख मुझे लगा की भौजी उदास हैं और उन्हें यकीन हो गया की मैं उनसे नाराज हूँ| मन तो किया उन्हें सब सच कहूँ पर मैं उन्हें खुश देखना चाहता था और अगर मैं उन्हें सब बता देता तो ये रोमांच ख़त्म हो जाता! रात्रि भोज के समय भौजी ने मुझसे बात करने के लिए एक और पहल की, पर इस बार उन्होंने नेहा का सहारा लिया| मैं अजय भैया के साथ आंगन में बैठा था की नेहा मेरे पास आई और बोली;

नेहा: चाचू चलो मेरे साथ!

मैं: कहाँ बेटा?

मैंने पुछा तो नेहा कुछ नहीं बोली बस मेरी ऊँगली पकड़ कर मुझे छप्पर की तरफ खींचने लगी| आखिर मैं उठा और उसके साथ चल दिया, छप्पर के नीचे भौजी औंधी लेटी हुई थीं और नेहा ने मुझे उनके सामने पड़ी चारपाई पर बैठने को कहा;

नेहा: बैठो चाचू|

नेहा ने कहा तो मैं बैठ गया|

मैं: बोलो क्या चाहिए मेरी लाड़ली को?

मैंने भौजी को चिढ़ाने के लिए नेहा से कहा|

नेहा: कुछ नहीं चाचू, आप बैठो!

इतना कह कर वो भौजी की ओर देखने लगी, फिर जो भौजी ने उसे पढ़ाया था उसे याद करते हुए बोली;

नेहा: चाचू आप मम्मी से नाराज हो?

नेहा ने बड़े भोलेपन से कहा|

मैं: आप ऐसा क्यों पूछ रहे हो?

मैंने नेहा को अपने पास बुलाते हुए कहा|

नेहा: आप मम्मी से बात नहीं कर रहे हो? आप तो मम्मी के बहुत अच्छे दोस्त हो न?

नेहा ने मेरे दोनों गाल पकड़ते हुए कहा| मैं समझ गया की ये जज्बात भौजी के हैं, बस बोल नेहा रही है| उधर नेहा की मासूमियत वाला सवाल सुन माँ आ गईं और बोलीं;

माँ: क्या हुआ मुन्नी? मुझे बताओ!

माँ ने नेहा को अपने पास बुलाते हुए कहा| नेहा मा के पास गई और बोली;

नेहा: दादी देखो ना चाचू मम्मी से बात नहीं कर रहे हैं|

अब ये सुनते ही माँ ने मुझे प्यार भरी डाँट लगाते हुए कहा;

माँ: क्या हुआ, अब क्या किया तेरी भौजी ने? क्यों नाराज है?

माँ के सवाल का कुछ तो जवाब देना था तो मैंने बात बनाते हुए कहा;

मैं: जी कुछ भी तो नहीं, मैं तो बस नेहा के साथ खेलने में व्यस्त था|

लेकिन दिल ने भौजी से थोड़ी मस्ती करने की सोची, इसलिए उन्हें सुनाने के लिए मैं बोला;

मैं: अगर मैं नाराज होता तो दिल्ली वापस नहीं चला जाता?

मैंने ये बात कुछ इस ढंग से कही थी जिसे सुन माँ जोर से हँसने लगीं और मुझे ही आखिर हंसी आ ही गई! लेकिन भाजी का मुँह देखने लायक था, ऐसा लगता था मनो उन्हें साँप सूँघ गया हो!

खैर मैं वहाँ से उठा और अपनी चारपाई पर लेटा आसमान में तारे देखने लगा| दोपहर की ही तरह भोजन रसिका भाभी ने पकाया था, क्योंकि चक्की चलाने की वजह से भौजी थक गईं थीं| जब बड़के दादा और पिताजी को भोजन परोसा गया तो मैं अपनी थाली ले के अपनी चारपाई पर बैठ गया, चूँकि नेहा मेरे साथ ही खाना खाती थी तो मैंने सारा सारा खाना उसे खिला दिया| ये मेरा खुद को सजा देने का तरीका था क्योंकि आज सारा दिन मैंने भौजी को बहुत सताया था! मुझे और नेहा को अकेला खाना खता देख भौजी समझ गईं थीं की मैं उनसे अब भी नाराज हूँ! इसलिए जब पिताजी और बड़के दादा का खाना हो गया तो वो मेरे पास आईं और मुझे मनाने की आखरी कोशिश करते हुए बोलीं; "अगर आप मुझसे बात नहीं करोगे तो मैं खाना नहीं खाऊँगी!" लेकिन मैं अब भी कुछ नहीं बोला, कुछ 5 मिनट मेरे बोलने का इंतजार कर भौजी अपने घर के भीतर चलीं गईं| मैं जानता था की वो खाना नहीं खाने वालीं, इसलिए मैं बड़की अम्मा के पास गया और उनसे भौजी के लिए भोजन परोसने के लिए कहा|

बड़की अम्मा: पता नाहीं भाई! तुम दोनों का का चलत रहत है? कभौं तू नाराज हुई हो, कभौं तोहार भौजी! पता नाहीं का हुआ बहुरिया का, केहू से बोलत नाहीं रही, जब हम खाब खाये खातिर कहेंन तो कहत ही की नींद आवत ही! मुन्ना तुहिन जा के ऊ का खिलाई दियो!

बड़की अम्मा ने मायूस होते हुए कहा|

मैं: आप चिंता ना करो अम्मा, मैं उन्हें भोजन करा देता हूँ|

मैंने अम्मा को दिलासा देते हुए कहा तो रसिका भाभी इस बात पर चुटकी लेने से नहीं चूकिं और बोलीं;

रसिका भाभी: हाँ भाई दीदी तो सिर्फ तोहार सुनत हैं! खी...खी..खी...!!!

ये कहते हुए रसिका भाभी खींसे निपोरने लगीं|

खाना ले कर मैं भौजी के घर के भीतर पहुँचा तो देखा की भौजी आंगन में चारपाई पर आँख मूंदें हुए लेटी हुई हैं, पर भूखे पेट किसे नींद आई है जो उन्हें आती! मैंने अपने रूखेपन का नाटक जारी रखते हुए कहा;

मैं: चलो उठो, खाना खा लो|

मेरी आवाज सुनते ही भौजी उठ क्र बैठ गईं और बड़ी आस लिए हुए फिर से अपनी बात दोहराई;

भौजी: अगर आप मुझसे बात नहीं करोगे तो मैं नहीं खाऊँगी!

भौजी को उम्मीद थी की मैं पिघल जाऊंगा पर मेरी सख्ती अब भी बरकरार थी;

मैं: खाना मैंने भी नहीं खाया है, अपने हिस्स का खाना मैंने नेहा को खिला दिया था| अगर आपको नहीं खाना तो मत खाओ, मैं थाली यहीं रख के जा रहा हूँ|

मैंने बड़े उखड़े हुए स्वर में कहा| लेकिन भौजी ने फिर भी एक प्यारभरी कोशिश करते हुए कहा;

भौजी: रुकिए, आप मेरे साथ ही खा लीजिये|

भौजी ने बड़े प्यार से कहा और एक पल के लिए की खा लेता हूँ, पर फिर कल का सरप्राइज याद आ गया तो मैंने फिर से रूखे मन से कहा;

मैं: नहीं.... रसिका भाभी आजकल हम पर ज्यादा ही नजर रख रहीं है, मैं जा रहा हूँ आप खाना खा लो|

ये कह कर मैं बाहर आ गया पर मुझे संदेह था की भौजी खाना नहीं खाने वालीं इसलिए मैं पानी देने के बहाने से वापस गया तो देखा भौजी गर्दन झुकाये बेमन से खाना खा रहीं थी| मैं पानी का गिलास रख के वापस जाने लगा तो भौजी बोलीं; "देख लो मैं खाना खा रहीं हूँ, आप भी खाना खा लो|" मैंने उनकी बात का जवाब नहीं दिया बस गर्दन हाँ में हिलाई और बहार चला आया|

बड़की अम्मा, माँ और रसिका खाना खा रहे थे तथा पिताजी और बड़के दादा अपनी-अपनी चारपाई पर लेते झपकी ले रहे थे! इधर मैं नेहा को अपनी छाती से चिपकाए उसे कहानी सुना रहा था| दस मिनट में ही उसे नींद आ गई और वो मेरी छाती से चिपकी सो गई, मैं बड़े ध्यान से पीठ के बल लेटा ताकि कहीं नेहा न जाग जाए| करीब 5 मिनट बाद भौजी अपनी खाली थाली ले कर निकलीं तो मुझे लेटा हुआ देखा| उन्हें समझते देर न लगी की मैंने खाना नहीं खाया है| मैं अपनी अध् खुली नजरों से उन्हें रसोई की ओर जाते हुए देख रहा था| रसोई में सारे बर्तन खाली रखे हुए थे, भौजी ने अपनी थाली बर्तन धोने की जगह रखी और हाथ धो कर पाँव पटकते हुए मेरे पास आईं| उन्हें अपनी ओर आता देख मैंने अपनी आँख बंद कर ली और ऐसे जताया जैसे मैं सो रहा हूँ| भौजी मेरे सिरहाने जमीन पर बैठ गईं और मेरे कान में खुस-फुसाई; "आपने खाना नहीं खाया न?" परन्तु मैं कुछ नहीं बोला| "चलिए उठिए मैं कुछ बना देती हूँ!" ये कहते हुए उन्होंने ने मेरा हाथ पकड़ उठाना चाहा पर मैंने अपना हाथ बिलकुल ढीला छोड़ रख था जिससे उन्हीं लगे की मैं गहरी नींद में सो रहा हूँ! भौजी ने जानती थी की उन्हें मुझे कैसे उठाना है, वो उठ कर खड़ी हुईं और नेहा को अपने साथ ले जाने के लिए उठाने लगी| अब में अपनी लाड़ली को कैसे खुद से दूर होने देता? इसलिए मैंने नेहा को और कसके अपनी छाती से जकड लिया| मेरी चोरी पकड़ी गई थी! उन्होंने नेहा को मेरी छाती पर ही छोड़ दिया और झुक कर खुसफुसाती हुए बोलीं; "सोने का नाटक हो गया हो तो, चलिए कुछ खा लीजिये! अच्छा कुछ नहीं तो नमकीन वगैरह ही खा लो|...प्लीज उठिए ना...प्लीज ..... प्लीज ..... अगर खाना नहीं था तो मुझे क्यों खाने को कहा? प्लीज चलिए ना, मैं आपके आगे हाथ जोड़ती हूँ...प्लीज!" भौजी ने बड़ी मिन्नतें की पर मैं कुछ नहीं बोला| उनकी बेचैनी और तड़प मैं साफ़ महसूस कर पा रहा था, पर मैं फिर भी शिथिल पड़ा रहा|

मैंने न सही पर पिताजी ने जर्रूर भौजी की खुसफुसाहट सुन ली थी, इसलिए वे अपनी चारपाई से मेरी चारपाई की ओर देखते हुए बोले; "क्या हुआ बहु? क्या ये नालायक फिर तंग कर रहा है?" पिताजी की आवाज बड़ी कड़क थी अगर मैं कुछ नहीं बोलता तो भौजी पिताजी से कह देती की मैंने कुछ नहीं खाया| इसलिए मैं बातें बनाते हुए बोला; "पिताजी, नेहा मेरे साथ सो रही है और भौजी उसे लेने आईं है, पर नेहा ने मेरी टी-शर्ट पकड़ रखी है| मैं इन्हें कह रहा हूँ की नेहा को यहीं सोने दो पर ये मान ही नहीं रही!" मैंने सारी बात भौजी के ऊपर डाल दी| अब भौजी मुझे सच बोल कर मुझे झूठा बना नहीं सकती थीं| इधर पिताजी मेरी बात सुन मेरा ही पक्ष लेते हुए बोले; "बहु, दोनों चाचा-भतीजी को एक साथ सोने दो और तुम भी जाके सो जाओ रात बहुत हो रही है|" अब पिताजी का हुक्म था तो भौजी मना कैसे करतीं?! पिताजी तो इतना बोल कर लेट गए और दूसरी तरफ करवट ले ली पर इधर भौजी ने घूंघट हटाया और मुझे भौजी शिकायत भरी नजरों से देखते हुए चुप-चाप चलीं गई! में जानता था की उन्हें बहुत बुरा लग रहा होगा पर मैं कल का सरप्राइज ख़राब नहीं करना चाहता था| उनके जाने के बाद मैं नेहा को कस कर अपनी बाहों में जकड़े सो गया|

एक नई सुबह और आज मैं जल्दी उठ गया, खाली पेट सोने कहाँ देता है! दैनिक दिनचर्या निपटा कर मैं सही समय का इंतेजआर करने लगा| आज चूँकि रविवार था तो नेहा के स्कूल की छुट्टी थी, इसलिए मैं नेहा के साथ आंगन में खेलने लगा| उधर भौजी सुबह से ही बड़ी गुम-सुम थीं पर आज जो मैं सरप्राइज उन्हीं देने वाला था वो उन्हें बहुत पसंद आने वाला था!

[color=rgb(85,]जारी रहेगा भाग - 5 में....[/color]
 

[color=rgb(65,]बारहवाँ अध्याय: नई शुरुरात[/color]
[color=rgb(41,]भाग -5 (1)[/color]


[color=rgb(40,]अब तक आपने पढ़ा:[/color]

एक नई सुबह और आज मैं जल्दी उठ गया, खाली पेट सोने कहाँ देता है! दैनिक दिनचर्या निपटा कर मैं सही समय का इंतेजआर करने लगा| आज चूँकि रविवार था तो नेहा के स्कूल की छुट्टी थी, इसलिए मैं नेहा के साथ आंगन में खेलने लगा| उधर भौजी सुबह से ही बड़ी गुम-सुम थीं पर आज जो मैं सरप्राइज उन्हीं देने वाला था वो उन्हें बहुत पसंद आने वाला था!

[color=rgb(243,]अब आगे:[/color]

आज पिताजी और बड़के दादा को किसी के यहाँ छप्पर छाने जाना था, जैसे ही वो निकले मैं नेहा को अपने साथ ले कर रसिका भाभी को ढूँढता हुआ बड़े घर पहुँचा| कल रसिका भाभी ने दो जून चूल्हा फूंका था तो आज उनका बीमार होने का नाटक करना पक्का था! जैसे ही मैं बड़े घर पहुँचा तो देखा की वो अपने कमरे में बुखार का बहाना करके चारपाई पर पड़ी हैं| नेहा को अपनी पीठ में लादे मैं उनके पास बैठ गया और उनका हाल-चाल पूछने लगा, तो वो बोलीं; "कल रतिया से हमका ताप (बुखार) है, हमका बस आजभर पहुडेका है!" ये सुन कर मेरा रास्ता साफ हो गया था, मैं नेहा को पीठ पर लादे हुए बड़की अम्मा और माँ के पास छप्पर के नीचे पहुँचा तो देखा की वो दोनों आम धो के काट रहे थे, आचार बनाने के लिए|

मैं: अम्मा मुझे आपसे कुछ बात करनी थी|

मैंने कुछ सोचते हुए कहा|

बड़की अम्मा: हाँ कहो मुन्ना|

अम्मा ने आप धोते हुए कहा|

मैं: मैं सोच रहा था की पिताजी और बड़के दादा को छोड़ कर, हमसब आज पिक्चर देखने चलें?

बड़की अम्मा के लिए ये बड़ी अटपटी बात थी, इसलिए वो हैरानी से भोयें सिकोड़ कर मुझे देखने लगीं|

बड़की अम्मा: देखो मुन्ना हम दोनों प्राणी (माँ और बड़की अम्मा) का तो कउनो पिक्चर का शौक है नाहीं! तू अइसन करो की आपन दोनों भौजाई का लेइ जाओ!

माँ: हाँ बेटा तूम लोग हो आओ, इसी बहाने तेरी भौजी का भी मन बहल जायेगा|

बस यही तो मैं सुनना चाहता था, लेकिन अभी रसिका भाभी को मुझे हटाना था पर बड़ी सावधानी से! मैं वहाँ से रसिका भाभी के पास दुबारा भागा, पर तबतक रसिका भाभी घोड़े बेच के सो चुकी थीं, इसलिए मैं दुबारा अम्मा के पास आया और उन्हें बताया;

मैं: अम्मा, रसिका भाभी तो घोड़े बेच के सो रहीं हैं! सुबह जब मैंने उनसे हाल-चाल पूछा था तो उन्होंने कहा था की उनका बदन टूट रहा है और बुखार भी है, इसलिए वो सारा दिन आराम करेंगी!

ये सुनके बड़की अम्मा को कोई फर्क ही नहीं पड़ा और वो अपना काम करने में लगी रहीं, अब मुझे कुछ तो कहना था इसलिए मैंने भोली सी सूरत बनाई और नेहा की तरफ देखते हुए कहा;

मैं: अम्मा अगर आप कहो तो हम तीनों पिक्चर देख आएं?

मैं भौजी को भौजी नहीं कहना चाहता था इसलिए मैंने इस तरह बात बनाई!

बड़की अम्मा: ठीक है ले जाओ आपन भौजी का!

अम्मा ने कुछ ख़ास उत्साह से नहीं कहा|

मैं: पर अम्मा घर में सब का खाना कौन बनाएगा?

मैंने थोड़ा दिखावा करते हुए पुछा|

बड़की अम्मा: मुन्ना तुम चिंता नाही करो, खाब हम बनाई लेब!

माँ: तुम तीनों हो आओ, इसी बहाने बहु का मन भी बहल जायेगा|

माँ को सच में भौजी की बड़ी चिंता थी, जब से मैं आया था तो मैंने सिर्फ माँ को ही भौजी के लिए परेशान होते देखा था| बड़की अम्मा कुछ ख़ास चिंता नहीं किया करती थीं, लेकिन उनका ये बर्ताव सिर्फ भौजी की तरफ नहीं था, बल्कि रसिका भाभी की तरफ भी उनका यही बर्ताव था|

खैर मैं ख़ुशी-ख़ुशी भौजी के घर में घुसा तो देखा भौजी आंगन में जमीन पर बैठी, सर झुकाये सुबक रहीं थी क्योंकि आज सुबह से मैंने उन्हें अपनी शक्ल नहीं दिखाई थी और कल से मैंने उनसे बोल-चाल बंद कर रखी थी फिर कल रात को मेरे खाये बिना उन्होंने खाना खा लिया था तो उस कारन भी उन्हें ग्लानि हो रही थी! उन्हें इस तरह रोता हुआ देख दिल तो बहुत दुख पर मैं उन्हें सब समझाने में समय बर्बाद नहीं कर सकता था| मैंने सोचा जब कल से मैं बेरुखी का नाटक कर रहा हूँ तो थोड़ा और कर लेता हूँ, इसलिए मैंने भौजी से फिर से उखड़े हुए स्वर में बात की; "चलो जल्दी से तैयार हो जाओ, हम फिल्म देखने जा रहे हैं|" मैंने उन्हें आदेश देते हुए कहा| मेरी आवाज उनके कान में पड़ते ही वो एक दम से चौंक गईं और आँखों में आँसूँ भरे मुझे देखने लगी| उनके सवालिया नजरें मुझसे मेरे इस आदेश के बारे में पूछना चाहती थीं, इधर उनकी आँखों में आँसूँ देख मैं एकदम से पिघल गया! मैंने बड़े प्यार से उन्हें कहा; "बाकी बातें रास्ते में करेंगे, अभी आप जल्दी करो दोपहर का शो है और सिर्फ हम तीनों ही जा रहे हैं| अगर पिताजी और बड़के दादा आ गए तो जबरदस्ती रसिका भाभी को भी ले जाना पड़ेगा!" मेरी आवाज से भौजी समझ गईं की मेरा गुस्सा शांत हो चूका है इसलिए वो फटाफट से खड़ी हुईं, अपने आँसूँ पोछे और मुझे गले लगने को मेरी तरफ बढ़ीं| लेकिन मैंने अपना हाथ दिखा कर उन्हें रोक दिया और फिर भाग के बड़े घर आया और तैयार होने लगा| मुझे तो तैयार होने में पाँच मिनट लगे पर भौजी ने पूरा आधा घंटा ले लिया और लें भी क्यों ना औरत जो हैं! माँ ने मुझे खर्चे के लिए कुछ पैसे दिए और उनकी चोरी मैंने अपनी जमा की हुई जेब खर्ची भी ले ली! पैसे पर्स में रख मैं बड़े आंगन में चक्कर काटने लगा, ये इंतजार मेरे लिए बड़ा कष्टदाई था क्योंकि मुझे दर था की अगर पिताजी लौट आये तो मुझे रसिका भाभी को भी साथ ले जाना पड़ेगा! इतने में भौजी के घर का दरवाजा खुला, मुझे लगा की भौजी तैयार हो गई हैं पर अभी तक सिर्फ नेहा तैयार हुई थी| गुलाबी फ्रॉक पहने, बालों में दो चोटी और पाँव में सैंडल पहने नेहा भागते हुए आई और मैंने उसे गोद में उठा लिया| "मेरी बेटी तो आज बहुत सुंदर लग रही है!" ये शब्द मेरे मुँह से अनायास ही निकले और मैंने नेहा के माथे को चूम लिया, जवाब में नेहा ने भी मेरे दोनों गालों पर पप्पी की!

इतने में भौजी तैयार हो कर घर से निकलीं और मुझे नेहा के साथ दुलार करते हुए धीमे से बोलीं; "बाप-बेटी का प्यार हो गया हो तो जरा हमका भी एक नजर देख लिहो!" कुएँ के पास वाले आंगन में कोई नहीं था इसलिए किसी ने उनकी बात नहीं सुनी, यहाँ तक की नेहा ने भी उनकी बात पर गौर नहीं किया! खैर भौजी की आवाज सुन जब मैंने उन्हें देखा तो बस देखता ही रह गया! पीतांबरी साडी में भौजी बहुत सुन्दर लग रहीं थी! उस पर पीले और नारंगी रंग की मिली जुली बिंदी! उन्होंने लिपस्टिक नहीं लगाईं थी परन्तु उसे उनकी सुंदरता में कोई कमी नहीं आई थी! सर पर पल्लू और साडी में बने फूल का डिज़ाइन जिसे की बड़े प्यार से काढ़ा हुआ था वो उनके सर पर किसी असली फूल की तरह दिख रहा था! उँगलियों पर लाल नेलपॉलिश और उनके बदन से आ रही गुलाब की सुगंध ने आंगन में फ़ैल गई थी, जिसे सूँघ मैं मन्त्र मुग्ध हो चूका था| हाय..हाय.हाय..!!! गजब!!! मन तो किया की भौजी को अभी भगा के ले जाऊँ! अब मुझे ये आधे घंटे का इन्तेजार व्यर्थ नहीं लग रहा था! भौजी बड़े इठलाते हुए मेरे पास आईं और शर्माते हुए बोलीं; "चलना नहीं है क्या? पिक्चर छूट जायेगी!" उनके कोकिल कंठ से निकले शब्दों ने मुझे तंद्रा से जगाया| मैंने उन्हें और नेहा को आगे चलने को कहा तथा मैं माँ को बता कर निकला| हमारे घर से मुख्य सड़क करीब पंद्रह मिनट दूर थी और हम घर से करीब दस मिनट की दूरी पर आ चुके थे| चूँकि पूरे रास्ते हमें कोई न कोई मिल रहा था इसलिए मैंने अभी तक उनसे कोई बात शुरू नहीं की थी| लेकिन अब भौजी की बेचैनी उनपर हावी हो गई थी इसलिए वो अपनी चुप्पी तोड़ते हुए बोलीं;

भौजी: आज आप बहुत हङ्सुम लग रहे हो|

भौजी के इस तरह हड़बड़ा कर अंग्रेजी में हैंडसम बोलने पे मुझे हँसी आ गई!

मैं: आप का मतलब हैंडसम! हा..हा...हा...हा...

ये कहते हुए मैं हँसने लगा|

भौजी: हाँ-हाँ..वही हैंडसम लग रहे हो!

भौजी ने अपनी अंग्रेजी दुरुस्त करते हुए कह|

मैं: थैंक यू|

मैंने थोड़ा शर्मा कर उनका शुक्रिया अदा किया|

पर भौजी मुझे अब भी बड़ी प्यारभरी नजरों से देख रहीं थीं! उनका मुझे इस कदर देखने का कारन था की मैंने आज नेवी ब्लू कलर की पोलो टी-शर्ट पहन रखी थी जिसके ऊपर क दो बटन खुले थे और कालर खड़े थे| नीचे मैंने स्काई ब्लू जीन्स पहनी थी और ब्राउन लोफ़र्स| चूँकि नेहा आगे-आगे चल रही थी तो मैंने अपने दोनों हाथ जीन्स के आगे की दोनों पॉकेट में डाले थे|

मैं: वैसे क़यामत तो आज आप ढा रहे हो! बस अपना ये घूँघट थोड़ा कम करो, सर पर पल्ला केवल अपने बालों के जुड़े तक ही रखो|

अपनी तारीफ सुन के भौजी थोड़ा मुस्कुराईं, फिर उन्होंने तुरंत मेरा सुझाव मान लिया और पल्लू को अपने बालों के जूड़े तक कर लिया| हमलोग अब मुख्य सड़क पर सवारी का इंतजार करते हुए अकेले खड़े थे, नेहा कहीं इधर-उधर न भाग जाए इसलिए मैंने उसका हाथ पकड़ रखा था| नेहा के लिए आज पहलीबार था की वो घर से बाहर निकली हो इसलिए वो बड़े उत्साह से इधर-उधर देख रही थी| जब भी कोई टाटा बस गुजरती तो वो कूदने लगती, कभी कोई बैलगाड़ी जाती तो वो बड़े गौर से उसे देखती! इधर भौजी अचानक से बहुत गंभीर होते हुए बोलीं;

भौजी: आई ऍम सॉरी! (I'm sorry!)

भौजी ने कल जो मुझसे मजाक किया था उसके लिए माफ़ी माँगी!

मैं: आपको सॉरी कहने की कोई जर्रूरत नहीं, मैं आपसे नाराज नहीं हूँ! मैंने तो आपको कल ही माफ़ कर दिया था!

मैंने मुस्कुराते हुए कहा| ये सुन कर भौजी भोयें सिकोड़ आकर मुझे देखने लगीं|

मैं: दरअसल मैं थोड़ा ज्यादा ही सेंसिटिव (sensitive) मतलव संवेदनशील हूँ| मैं जल्दी ही बातों को दिल पर ले लेता हूँ, आपने जरा सा मजाक ही तो किया था | लेकिन मैं बेकार में इतना भड़क गया और आपको डाँट दिया! इसलिए I'm sorry!! वादा करता हूँ की मैं अपने इस व्यवहार को सुधारूँगा|

भौजी: आप जानते हो की आपकी एक ख़ास बात जिसने मुझे प्रभावित किया वो क्या है?

मैं: क्या?

भौजी: आप अपनी गलती मानने में कभी नहीं झिझकते!

भौजी ने मुस्कुराते हुए कहा|

मैं: लेकिन मुझ में एक बुराई भी है, मैं बहुत जल्दी पिघल जाता हूँ| उस दिन जब माधुरी को बीमार देखा तो मैं खुद को उसकी बिमारी का दोषी बना बैठा था और उसी कारन मैंने....

मैं आगे कुछ कहता उससे पहले ही भौजी ने मेरे मुँह पर हाथ रख दिया क्योंकि वो नहीं चाहती थीं की मैं उन बातों को फिर से याद करूँ!

भौजी: ये बुराई नहीं है, आप किसी को भी दुखी नहीं देख सकते फिर चाहे वो इंसान कितना ही नीच क्यों ना हो|

मेरा मूड और ख़राब न हो इसलिए भौजी ने मुझे हँसाने के लिए अपने दोनों हाथ अपनी कमर पर रखे और प्यार भरा गुस्सा अपने चेहरे पर लिए मुझे देखने लगीं;

भौजी: खेर मैं आपसे नाराज हूँ!

भौजी का ये प्यार भरा गुस्सा देख मैं थोड़ा हैरान हुआ और बोलै;

मैं: क्यों?

भौजी: कल रात आपने खुद कुछ नहीं खाया और जबरदस्ती मुझे खाना खिला दिया! ऐसा क्यों किया आपने? जानते हैं आपने मुझे पाप का भागी बना दिया!

भौजी ने भोयें सिकोड़ते हुए कहा|

मैं: दरअसल मैं खाना ना खा कर प्रायश्चित कर रहा था|

अब ये सुनते ही भौजी चौंक गेन और उनकी आखें बड़ी-बड़ी हो गई!

भौजी: कैसा प्रायश्चित?

मैं: कल सारा दिन मैंने अपना झूठा गुस्सा दिखा के आपको बहुत तंग किया न! मैं आपसे बात नहीं कर रहा था, आपके आस-पास होक भी आपसे दूर था| मैं जानता हूँ आप मेरे इस बर्ताव से कितना उदास और बुझे हुए थे, इसलिए खाना न खा कर मैं प्रायश्चित कर रहा था|

मैंने कान पकड़ते हुए उनसे कहा|

भौजी: तो वो सब आप दिखाव कर रहे थे?! हाय राम! आपने तो मेरी जान ही निकाल दी थी| अब बड़े वो हैं!

भौजी ने गुस्सा होते हुए कहा और मेरी छाती पर धीरे से मुक्का मारा! उनके प्यार भरे मुक्के से दर्द तो नहीं हुआ पर फिर भी मैंने करहाने का दिखावा किया, जिसे देख भौजी और मैं हँस पड़े|

भौजी: अच्छा ये तो बताओ की ये अचानक फिल्म का प्लान कैसे बनाया आपने?

मैं: उस दिन आपने कहा था ना की आपने आखरी बार पिक्चर दिल्ली में हमारे घर पर देखि थी, तो मैंने सोचा की क्यों ना आपको एक पिक्चर दिखा ही दूँ| आखिर आपका पति हूँ और इसी बहाने मैं आपकी फीस भी चूका दूँगा!

मैंने भौजी के उस तथाकथित उपचार की फीस चुकाने के लिए कहा|

भौजी: अच्छा जी! मतलब आगे से आप से कुछ भी कहूँ तो मुझे सोच-समझ के कहना होगा वरना आप मेरी अनजाने में कही हर बात पूरी कर दोगे?!

भौजी ने अपने दोनों हाथ कमर पर रखते हुए कहा|

भौजी: और रही बात फीस की तो वो अब भी अधूरी है!

भौजी ने नटखट अंदाज से कहा|

मैं: चिंता ना करो आज के दिन मैं आपकी फीस तो अवश्य दे दूँगा!

मैंने भौजी की नटखट बात समझते हुए कहा|

भौजी: अच्छा ये तो बताओ की पिक्चर कौन सी है?

मैं: तारा रम पम पम|

इस पिक्चर का पोस्टर मैंने कुछ दिन पहले जब मैं अजय भैया के साथ बाजार आया था तब देखा था और तभी मैंने उस पर लिखा प्रतिदिन 3 शो भी पढ़ लिया था|

अब जब की सभी गलतफैमियाँ दूर हो चुकी थीं तो भौजी का मन रोमांच से भर उठा था, उन्होंने मेरा हाथ थाम लिया जैसे कोई नव विवाहित जोड़ा एक दूसरे का हाथ पकड़ चलता है! भौजी की खुश उनके चेहरे से साफ़ झलक रही थी और उनकी ख़ुशी देख मेरा सीना गर्व से फूल चूका था| इतने में एक जीप आ गई और हम तीनों उसमें बैठ गए| मैं भौजी के साथ एक दम चिपक के बैठा था और मेरा हाथ उनके कंधे पर था| जीप में बैठते ही भौजी ने घूँघट कर लिया था और वो कसमसा कर मेरी छाती से चिपकी हुई थीं, तथा नेहा मेरी गोद में बैठी चहक रही थी|

आखिर हम थिएटर पहुँचे और थिएटर की हालत देख के मैंने अपना सर पीट लिया! एकदम थर्ड क्लास थिएटर, बेंत की कुर्सियाँ जिनपर आराम से बैठना तो भूल ही जाओ! न कोई AC न कुछ, बस बगल में लगे पंखे जो इतने बूढ़े थे की चलते समय काँपते थे और इतनी आवाज़ करते थे की बिचारा हीरो अपना डायलाग बोलना भूल जाये! न फर्श पर कालीन न दीवारों पर पैंट और खाने पीने के नाम पर पॉपकॉर्न और कोल्ड ड्रिंक की तो बात ही मत पूछो, क्योंकि खाने के लिए वहाँ कुछ नहीं था! वहाँ आने वाले ज्यादातर लौंडे थे जो अपनी-अपनी आइटम लेके आते थे, मेरे हिसाब से शायद ही ये थिएटर कभी हाउस फुल रहा हो! अगर मैं B Grade मूवी दिखाने वाले थिएटर से तुलना करूँ तो वो थिएटर इस पुराने थिएटर के सामने शीश महल लगेंगे| मैंने आज तक अपने दोस्तों को कभी इस बारे में नहीं बताया वरना वो बहुत मजाक उड़ाते!

खेर अब पिक्चर दिखाने लाया था तो पिक्चर तो दिखानी पड़ी! मैंने काउंटर से टिकट खरीदी और अंदर हॉल में घुसा, किस्मत से हॉल में ज्यादा लोग नहीं थे| कुल मिला कर मुझे वहाँ पंद्रह-बीस लोग दिखे| टिकट तो हमारी ऊपर से चौथी लाइन में कोने की थीं, परन्तु हॉल पूरा खाली था तो मैंने बीच की सीट में ही बैठने का फैसला किया| पर भौजी ने वहाँ बैठने से मना कर दिया, इसलिए हम ऊपर से चौथी वाली लाइन में ही बैठने चल दिए| मैंने नेहा को गोद में ले रखा था इसलिए सबसे पहले उसे बिठाया और फिर उसकी बगल में मैं बैठ गया और भौजी को नेहा की दूसरी बगल बैठने को कहा| लेकिन भौजी को कहाँ चैन मिलना था, उन्होंने नेहा को गोद में उठाया और मेरी बगल में बैठ गयीं और नेहा को अपनी बगल में बिठाया| "ध्यान रखना उसका कहीं उठ के भाग ना जाए!" मैंने कहा तो भौजी ने गर्दन हिला के हाँ कहा| अब भौजी ने मेरा हाथ अपने हाथ से लॉक किया और अपना सर मेरे कंधे से टिका कर बैठ गईं| पिक्चर शुरू होने से पहले जो Advertisements होते हैं वो दिखाए जा रहे थे, पर भौजी को रोमांस छूट रहा था;

मैं: आप बड़े रोमांटिक हो रहे हो!

मैंने भौजी को छेड़ते हुए कहा|

भौजी: हमें तो आपको देखते ही रोमांस छूटने लगता है!

भौजी बड़ी अदा से बोलीं| मैंने पीछे मुड़ के देखा की कोई हमारे पीछे तो नहीं बैठा, तो देख के हैरान हुआ की हॉल का एक कर्मचारी पीछे खड़ा हमें ही देख रहा था| चूँकि अभी तक लाइट्स बंद नहीं हुई थी और हलकी सी रौशनी थी इसलिए वो हमें साफ़ देख रहा था और मुस्कुरा रहा था| शायद वो सोच रहा होगा की हम दोनों पति-पत्नी हैं! भौजी और मैं इतना बन-ठन कर आये थे की किसी का भी ये सोचना गलत नहीं था!

मैं: यार पीछे वो आदमी हमें ही देख रहा है और मुस्कुरा रहा है|

मैंने भौजी से शिकायत करते हुए कहा ताकि वो थोड़ा दूर हो कर बैठें पर वो बड़े तपाक से बोलीं;

भौजी: तो मुस्कुराने दो!

उनका ये बेपरवाह होना मेरे अंदर रोमांच पैदा कर रहा था|

भौजी: छोडो उसे, ये बताओ की मेरी फीस कब दोगे?

भले ही मन में रोमांच भरने लगा था पर इस तरह अपनी प्रियतमा संग बाहर आना और इस तरह खुल कर रोमांस करने से डर भी लग रह था!

मैं: यहाँ नहीं, ये सार्वजानिक जगह है!

मैंने थोड़ा घबड़ाते हुए कहा पर आज तो भौजी फूल मूड में थीं, इसलिए वो जिद्द पर अड़ गईं;

भौजी: न मैं कुछ नहीं जानती, मुझे एक Kiss अभी चाहिए!

भौजी ने हुक्म देते हुए कहा, पर ये सुन मैं आँखें फाड़े उन्हें देखने लगा और बोला;

मैं: अभी? नेहा ने देख लिया तो?

मैंने भौजी को नेहा के नाम से डराया पर उन्होंने अपने गाल घुप्पे जैसे फुला लिए!

मैं: अच्छा कम से कम लाइट्स तो बंद होने दो|

मैंने हार मानते हुए कहा पर भौजी कहाँ मानने वालीं थी, उन्होंने बिना कुछ कहे ही मेरे गाल पर अपने होंठ रख दिए| अब डर और शर्म के चलते मैंने अपनी गर्दन उनसे थोड़ा दूर की और उनकी तरफ देखने लगा| उनकी आँखों में मुझे तड़प ओर प्यास साफ़ नज़र आ रही थी, वो कशिश जिसने मुझे पागल बना रखा था! मैंने अपना हाथ उनके कंधे पर रखा और उनके नजदीक आते हुए उनके माथे को चूम लिया|

मैं: अब तो खुश?

भौजी: न! ये तो ब्याज था असल तो अभी बाकी है|

भौजी ने फिरसे नटखट हँसी हँसते हुए कहा|

मैं: पहले लाइट बंद होने दो फिर असल भी दे दूँगा|

मैंने मुस्कराते हुए कहा|

इतने में नेहा बेचारी जो अकेली बैठी परदे पर ads देख रही थी वो बोर होने लगी और मेरे पास आने को छटपटाने लगी| वो उठ कर मेरे पास आना चाहती थी इसलिए भौजी उसे वहीँ बिठाये हुए प्यार से समझने लगी लेकिन वो फिर भी नहीं मानी| मन उसे कैसे नाराज करता, इसलिए मैंने नेहा को अपनी गोद में बिठा लिया और पिक्चर देखने को कहा| ये देख भौजी एक पल के लिए थोड़ा नाराज हुईं और बोलीं;

भौजी: इसी के साथ देख लो आप पिक्चर, मैं चली|

ये कहते हुए भौजी गुस्से में उठीं, मैंने एकदम से उनका हाथ पकड़ के उन्हें वापस अपनी तरफ खींच लिया|

मैं: यार आप ही बताओ इस बेचारी को अकेलापन नहीं लगेगा?

मैंने कहा और भौजी को थोड़ा सताने के लिए मैंने नेहा से भी पूछ लिया;

मैं: नेहा बेटा आपको अकेलापन लग रहा था न?

नेहा: हाँ चाचू! मैं अब यहीं बैठ के पिक्चर देखूँगी|

नेहा ने बड़े भोलेपन से कहा| उसका भोलेपन देख भौजी मुस्कुरा दी और बोलीं;

भौजी: शैतान! अब चल यहाँ हम दोनों के बीच बैठ वरना पापा की टांगें दुखेंगी|

भौजी के मुँह से पापा शब्द अनायास ही निकला था, इसका कारन ये था की हम दोनों ही नेहा को अपनी बेटी मान चुके थे और भौजी जानती थीं की मेरा कितना मन है नेहा के मुँह से अपने लिए पापा सुनना पर न तो मैं उसे खुद को पापा कहने के लिए कह सकता था और न ही चाहता था की भौजी उसे कुछ कहें! इसलिए मैंने भौजी की तरफ घूर कर देखा और उन्हें आँखों ही आँखों में कहा की ये आप क्या कह रहे हो? भौजी को मेरी बात समझ आई इसलिए उन्होंने बात संभालते हुए कहा;

भौजी: बेटा पिक्चर ढाई घंटे की है, तबतक तू अगर गोद में बैठेगी तो चाचा के पाँव में खून रूक जायेगा और फिर उन्हें चलने में दिक्कत होगी| चल अब उतर नीचे शैतान और अपनी कुर्सी पर बैठ|

पर नेहा ने भौजी की बात पकड़ ली थी, इसलिए उसने पलट कर भौजी से आखिर सवाल पूछ ही लिया;

नेहा: मम्मी ये (मैं) तो चाचू हैं, पापा तो घर पर हैं! फिर आपने चाचू को पापा क्यों कहा?

भौजी के पास उसकी इस बात का जवाब तो था पर वो नेहा को समझा पाना मुश्किल था, इसलिए उनका मुँह बन गया| वो नेहा से सब सच कहना छह रही थीं पर मुझसे डरती थीं, क्योंकि फिर मैं बिगड़ जाता, इसलिए वो सर झुका कर एकदम से खामोश हो गईं| अब मुझे ही बात संभालनी थी, तो मैंने बात बनाते हुए कहा;

मैं: बेटा आपकी मम्मी का मतलब था चाचू की गोद से उतरो| अब आप हमेशा अपने पापा के साथ ही घूमने जाते हो न तो इसलिए उन्हें एक पल के लिए लगा होगा की मेरी जगह आपके पापा ही बैठे हैं|

ये बोल्ये हुए मेरी आत्मा कितनी दुखी ये बस मई और भौजी जानते थे| पर कई बार छोटे बच्चों को बातों में फँसाना इतना आसान नहीं होता, मेरी बात सुन नेहा को जरा भी तसल्ली नहीं हुई और उसने तपाक से दूसरा सवाल किया;

नेहा: पर पापा तो हमें कहीं ले जाते ही नहीं?

अब मेरे पास भी उसके इस सवाल का कोई जवाब नहीं था, इसलिए मेरी बोलती बंद हो गई| लेकिन भौजी को जोश आ गया और उन्होंने आज नेहा को बात समझाने की सोची;

भौजी: बेटा मुझे ये बताओ की आपको सबसे ज्यादा प्यार कौन करता है? कौन आपको अच्छी-अच्छी कहानियाँ सुनाता है? किसके साथ आप रोज खाना खाते हो? आपके चाचू न?! कभी आपके पापा ने आपको गोद में लिया? नहीं न? आपके चाचू हमारा कितना ख्याल रखते हैं, हमसे कितना प्यार करते हैं तो क्या ये तुम्हारे पापा नहीं हुए? इसीलिए ये आपके पापा ही हैं! अब चलो एक बार 'पापा' कहो?

भौजी की बातें मैं बड़ी आस लिए सुन रहा था, मैं चाहता तो उन्हें रोक सकता था पर मेरे दिल ने मुझे ऐसा नहीं करने दिया क्योंकि आज मेरे मन में नेहा के मुख से अपने लिए 'पापा' सुनने की लालसा पैदा हो चुकी थी! जब भौजी ने नेहा को मुझे पापा कहने के लिए कहा तो नेहा को सेकंड नहीं लगा भौजी की बात ख़ुशी-ख़ुशी मानने में और उसने बड़े ही भोलेपन से कहा;

नेहा: पापा!

नेहा के मुँह से 'पापा' शब्द सुन सुन कर मेरे दिल की धड़कन रुक गई थी! कानों को जैसे विश्वास ही नहीं हो रहा था की उन्होंने आज एक ऐसा शब्द सुना है जिसे सुनने को मन इतने दिनों से तड़प रहा था! आँखें नीर से भर गईं और मेरे मुख से वो शब्द निकले जो मैंने सोच रखे थे की मैं अपने बच्चे से कहूँगा;

मैं: मेरा बच्चा!

इतना कह मैंने नेहा को कस कर अपनी छाती से लगा लिया और आँखें बंद किये उस अविस्मरणीय सूख को महसूस करने लगा| मेरे जिस्म के सारे रोएं खड़े हो गए थे और दिल में अतः प्यार उमड़ने लगा था! उस दिन मुझे पता चला की किसी बच्चे के मुख से 'पापा' सुन के कितनी ख़ुशी मिलती है|

उधर नेहा ने दिल से मुझे अपना पिता मान कर अपने छोटे-छोटे हाथों से मेरी पीठ के इर्द-गिर्द पकड़ बनानी शुरू कर दी थी| एक पिता-पुत्री का प्रेम देख भौजी की आखें भी छलछला गईं और उन्होंने अपना हाथ नेहा के सर पर बड़े ही गर्व से फेरना शुरू कर दिया था| आज भौजी की वजह से मुझे मेरी बेटी के मुँह से पापा सुनने को मिला था और मैं उन्हीं इसके लिए शुक्रिया अदा करना चाहता था|

तभी थिएटर की लाइट्स बंद हुई और घुप्प अँधेरा हो गया| मैंने नेहा को अपनी गिरफ्त से आजाद किया और उससे बड़े प्यार से कहा;

मैं: बेटा जब हम अकेले में हों तब ही आप मुझे पापा कहना, कभी भी भूल से सब के सामने मुझे पापा मत कहना, ठीक है?

ये बात मैंने बड़े भारी मन से कही थी क्योंकि समाज की मर्यादायें इस रिश्ते की इजाजत नहीं देती थीं! उधर पता नहीं नेहा मेरी बात समझी भी या नहीं पर उसने फिर भी हाँ में सर हिलाया| मैं उस वक़्त इस हालत में नहीं था की उसे सब कुछ समझा सकूँ, इसलिए मैंने नेहा के माथे को चूमा और उसे गोद में ठीक से बिठाया जिससे नेहा का मुँह परदे (स्क्रीन) की ओर रहे| इधर पिक्चर शुरू हो चुकी थी परन्तु भौजी का ध्यान अब भी नेहा के 'पापा' कहने पर लगा हुआ था| मैंने भौजी की ठुड्डी को पकड़ा और उन्हें उनके ख्यालों से बाहर निकाला| फिर मैंने खुसफुसाते हुए उनसे कहा;

मैं: थैंक यू!

भौजी: किस लिए?

भौजी हैरान होते हुए पुछा|

मैं: आज आपने मुझे एक अनमोल सुख दिया है! नेहा के मुँह से 'पापा' सुन के देखो मेरे रोंगटे तक खड़े हो गए हैं!

ये सुन भौजी ने मेरा हाथ पकड़ लिया और थोड़ा भावुक होते हुए बोली;

भौजी: ऐसा लगता है आज, मानो मेरी एक हसरत मेरी प्यारी बेटी ने पूरी कर दी!

मुझे भौजी की बात अधूरी लगी तो मैंने उसे दुरुस्त करते हुए कहा;

मैं: हमारी बेटी! अब चलो पिक्चर देखो|

ये कहते हुए मैंने उनका ध्यान परदे की तरफ करना चाहा पर भौजी को तो पहले अपनी फीस चाहिए थी;

भौजी: नहीं पहले मेरी फीस?

अब वादा कर चूका था तो फीस तो देनी ही थी;

मैं: अच्छा बाबा ये लो!

इतना कह के मैं भौजी की ओर मुड़ा और उनके होंठों पर Kiss किया| मुझे लगा था की ये बस छोटा सा Kiss होगा परन्तु भौजी बेकाबू होने लगीं और उन्होंने झट से मेरे निचले होंठ को अपने होठों में दबा कर चूसने लगीं| अब मुझे थोड़ी जिझक हो रही थी क्योंकि नेहा मेरी गोद में बैठी थी परन्तु उसका ध्यान फिल्म पर था| मैंने कनखी आँखों से उसे देखा, जब मुझे लगा की उसका ध्यान आगे की ओर है तब मैंने अपना दायाँ हाथ भौजी के दायें गाल पे रखा ओर उन्हें पूरी भावना से (Passionately) Kiss करने लगा| कभी मैं उनके होंठ चूसता तो कभी वो मेरे होंठ चूसतीं| उनके मुख से आ रही मीठी सुगंध से मैं बेकाबू होने लगा था| मैंने एक बार फिर से नेहा की ओर कनखी नजरों से देखा तो ऐसा लगा जैसे वो कुछ कहने वाली है, मैं तुरंत भौजी से अलग हो गया और एक पल के लिए पीछे खड़े उस कर्मचारी की ओर देखा, वो साला अब भी हमें ही देख रहा था!

उस आदमी के हमें देखने से मुझे बड़ा अजीब लग रहा था, भौजी के कंधे पर हाथ रखते हुए मैं उनके कान में खुसफुसाया;

मैं: वो आदमीं पीछे से हमें Kiss करते हुए देख रहा था|

ये सुन कर भौजी को जैसे कुछ फर्क ही नहीं पड़ा और वो बोलीं;

भौजी: तो क्या हुआ?

अब मैं उन्हें कैसे बताता की मुझे बड़ा अजीब सा लग रहा है? इसलिए मैंने बात को वहीँ छोड़ दिया;

मैं: कुछ नहीं ... छोडो और फिल्म देखो|

पर मेरे Kiss तोड़ने से उनका मुँह फिर से बन गया;

भौजी: मैं आपसे अब भी नाराज हूँ, आपने मेरी फीस ठीक से नहीं दी|

भौजी ने नाराज होते हुए कहा तो मैंने उन्हें मनाने के लिए अपने प्लान के बारे में थोड़ा सा बताया;

मैं: अरे बाबा, फिल्म दिखाना फीस की पहली किश्त थी, अभी दो किश्तें और बाकी हैं| ये वाली Kiss आप दवाइयों का खर्च समझ लो! अब चैन से फिल्म देखो|

ये सुन कर भौजी केचेहरे पर छतीस इंची की मुस्कान आ गई|

भौजी: आपने तो मेरी उत्सुकता और भी बढ़ा दी|

भौजी मुस्कुराते हुए बोलीं, थिएटर के अन्धकार में उनके मोतियों से सफ़ेद दाँत देख कर मेरा भी दिल मचल गया! पर मैं ज्यादा कुछ नहीं बोला वरना भौजी फिर शुरू हो जातीं!

इसके बाद भौजी ने और कुछ नहीं कहा, उन्होंने अपना सर मेरे कंधे पर रख के फिल्म देखने लगी| लेकिन मेरा मन फिल्म में बिलकुल भी नहीं लग रहा था, पंखों के शोर ने और इस तंग कुर्सी ने मेरा बुरा हाल कर दिया था, फिर भी अपना मन मार के भौजी के लिए वहीं बैठा रहा| भौजी ने अपने दोनों हाथों से मेरे दायें हाथ को पकड़ा हुआ था और बहुत ही दिलचस्पी के साथ फिल्म देख रहीं थी| बीच-बीच में मैं उन्हें फिल्म के कुछ पहलुओं के बारे में भी बताता था जिसे भौजी बड़े गौर से सुनती थीं| घंटेभर बाद इंटरवल हुआ तो नेहा मेरी ओर मुड़ी और मेरी छाती से चिपक गई| मैंने उसके सर को चूमा और अपने दोनों हाथों से उसे कस कर खुद से चिपका लिया| एक घंटे से बेंत वाली कुर्सी पर बैठे-बैठे मेरी हालत बुरी हो गई थी इसलिए मैं उठा और भौजी से बोला; "आप नेहा को सम्भालो मैं बाथरूम हो के आता हूँ|" जब मैं चलने लगा तो ऐसा लगा जैसे पूरे पिछवाड़े में बेंत छप गई हो! उस गंदे और बदबूदार बाथरूम से हो के आया और साथ में बाहर से नेहा के लिए चिप्स ले आया| चिप्स देख के नेहा बहुत खुश हो गई और फिर से मेरी गोद में आने के लिए जिद्द करने लगी| अब जाहिर था की उसके मेरी गोद में होने से भौजी को मेरे साथ मस्ती करने को नहीं मिलती इसलिए वो उसे समझाने लगीं पर नेहा नहीं मानी! मैंने मुस्कुराते हुए नेहा को अपनी गोद में बिठा लिया और उसे चिप्स का पैकेट दे दिया| दूसरा पैकेट चिप्स का मैंने भौजी को दिया था, नेहा बड़े चाव से चिप्स खाने लगी और बीच-बीच में एक आध चिप्स मुझे भी खिलाती| आज उसके चेहरे पर मुझे अलग ही ख़ुशी नजर आ रही थी, जैसे उसे आज सब कुछ मिल गया था| कुछ ही देर में इंटरवल ख़त्म हुआ और फिल्म चालु हुई|

कुछ 5 मिनट बीते होंगे की मैं बोर होकर इधर-उधर देखने लगा जिससे भौजी समझ गईं थी की मेरा फिल्म देखने का जरा भी मन नहीं है, इसलिए उन्होंने शरारत करना शुरू कर दिया| वो अपने बाएँ हाथ की उँगलियों मेरी गर्दन, कान और होठों पर घुमाने लगीं| मैंने जब उनकी ओर देखा तो उनकी आँखें परदे (स्क्रीन) पे टिकी थीं और वो ऐसे दिखा रहीं थी जैसे उनकी उँगलियाँ अपने आप ही मेरे साथ खेल रहीं हो! अब शरारत करने की बारी मेरी थी तो जैसे ही उन्होंने अपनी ऊँगली मेरे होठों पर फिर से फेरी मैंने गप से उनकी ऊँगली अपने मुँह में भर लीं और चूसने लगा| उनकी उँगलियों से मुझे अभी-अभी खाए चिप्स का स्वाद आ रहा था, मैं जब उनकी उँगलियाँ चूस रहा था उस दौरान भौजी ने कोई भी प्रतिक्रिया करना बंद कर दिया, मेरे उनकी ऊँगली चूसने जैसे उन्हीं मजा आ रहा था! कुछ देर बाद मैंने उनकी उँगलियाँ चूसना बंद कर दिया और अपने दाएँ हाथ से उनकी उँगलियों को पकड़ अपने मुँह से बाहर निकाला, पर भौजी की शरत खत्म नहीं हुईं और उन्होंने अपने दायें हाथ से मेरा दायाँ हाथ पकड़ा और मेरी बीच वाली ऊँगली अपने मुँह में लेके चूसने लगीं| वो मेरी ऊँगली ऐसे चूस रहीं थी जैसे उनके मुँह में मेरा लिंग हो, बीच-बीच में भौजी मेरी ऊँगली को हलके से काट भी लेती थीं और मैं दबी सी आवाज में सीसिया के रह जाता| भौजी की इस हरकत ने मेरी हालत ख़राब कर दी थी, उत्तेजना मुझ पर सवार हो चुकी थी पर नेहा के गोद में बैठे होने और हमारे एक सार्वजानिक स्थान में होने से मैं कुछ नहीं कर सकता था| अगर हम घर में होते तो मैं भौजी के जिस्म से अभी खेल रहा होता! नेहा मेरी गोद में बैठी थी और नीचे मेरा लिंग पेंट में तम्बू बनाने लगा था| मैंने अपनी ऊँगली छुड़ाने की कोशिश की पर भौजी ने मेरी ऊँगली को नहीं छोड़ा और उल्टा अपने बाएँ हाथ को मेरे गले पे रखा और उँगलियों को चालते हुए नीचे की ओर बढ़ने लगीं| मेरी पैंट की जीप के ऊपर पहुँच कर वो अपनी उँगलियों से मेरे लिंग को पकड़ने की कोशिश करने लगीं| अब चूँकि मैंने जीन्स पहनी थी इसलिए वो मेरे लिंग को पकड़ नहीं पा रहीं थी| मैंने अपने बाएँ हाथ से उनका हाथ हटाया और धीरे से अपनी ऊँगली उनके मुँह के गिरफ्त से छुड़ाई| भौजी चेहरे पर वही नटखट मुस्कान लिए हुए मुझे देखने लगीं; "आप बहुत शरारती हो, मेरी हालत खराब कर दी आपने! वो (मेरा लिंग) बुरी तरह से फूल चूका है! अब प्लीज चुप-चाप पिक्चर देखो, कोई शैतानी नहीं!" मैंने भौजी को प्यार से डाँटते हुए कहा| मेरी डाँट सुन भौजी अपनी ऊँगली को दाँतों तले दबाते हुए दुबारा पिक्चर देखने लगीं| उनके चेहरे पर आई वो नटखट मुस्कान उनकी शैतानी और प्यार को ब्यान कर रही थी! इधर मेरी आवाज सुनके नेहा पलट के हमें देखने लगी, अब उसका ध्यान मैंने वापस पिक्चर में लगाने को कहा; "बेटा कुछ नहीं हुआ, आप पिक्चर देखो|" ये सुन कर नेहा पिक्चर देखने लगी| पिक्चर में जब कभी भी कोई हँसी-मजाक का सीन आता तो उसे देख भौजी और नेहा खूब हँसते| उन्हें हँसता देख मेरे दिल को अजीब सा सुकून मिलता और मैं भी उनके साथ हँस पड़ता|

कुछ देर में पिक्चर खत्म हुई और हम उठ के खड़े हुए, काफी देर से नेहा मेरी ही गोद में थी तो भौजी ने उसे अपनी गोद में ले लिया| मैं आगे -आगे चल रहा था और भौजी और नेहा पीछे थे, मैंने मुड़ के देखा तो पाया भौजी नेहा को कुछ समझा रहीं थी| मैं समझ गया की माजरा क्या है और मैंने फिर से नेहा को अपनी गोद में ले लिया और हम चौक पर आ गए|

मैं: चलो लगे हाथ आपको दूसरी किश्त, भी दे दूँ|

मैंने नेहा के गाल को चूमते हुए कहा|

भौजी: यहाँ?

भौजी ने खुश होते हुए कहा, वो उम्मीद कर रहीं थीं की मैं उन्हें बीच बजार kiss करूँगा!

मैं: हाँ.. अब हम लंच करेंगे!

मैंने एक होटल की तरफ इशारा करते हुए कहा|

भौजी: क्या? पर क्यों?

भौजी ने चौंकते हुए कहा| जब मैं पिछली बार अजय भैया के साथ चाट लेने बाजार आया था तभी मैंने ये दूकान देखी थी इसलिए मैं उसी दूकान की ओर बढ़ने लगा| बाजार में ज्यादातर दुकानें ढाबे जैसी थीं, जहाँ खाने में आलू परमल, भिन्डी की सब्जी, समोसे, सीताफल और पूड़ी मिलते थे और मुझे इनमें से एक भी चीज पसंद नहीं थी! वो एक अकेली ऐसी दूकान थी जिसमें बैठने के लिए टेबल कुर्सियाँ थी और खाने में शहर जैसी चीजें थीं! गाओं के लोगों के अनुसार सोचें तो वो दूकान महँगी थी परन्तु माँ ने मुझे जो चीज बचपन से सिखाई थी वो थी की जब खाना खाने की बात आये तो सबसे अच्छी दूकान देखो!

इधर भौजी के चेहरे से झिझक साफ़ नजर आ रही थी, पर मैं अपनी जिद्द में नेहा को गोद में लिए आगे बढे जा रहा था| दूकान के बाहर पहुँच के भौजी रूक गईं और बोलीं;

भौजी: सुनिए न?! ये तो बड़ी महँगी दूकान है, हम...चाट खाते हैं न?!

भौजी ने मेरा हाथ पकड़ के रोकते हुए कहा|

मैं: मेरी बेटी को भूख लगी है और आप उसे चाट खिला के भूखा रखोगी?! चलो चुप-चाप अंदर नहीं तो मैं फिर से आप से बात नहीं करूँगा!

मैंने भौजी को थोड़ा डाँटते हुए कहा| मजबूरी में भौजी मेरे साथ चल दीं, मैंने भी बिना डरे उनका हाथ पकड़ा और दूकान में घुस गया| कोने की टेबल पर हम तीनों बैठ गए, भौजी मेरे सामने बैठीं थी और नेहा मेरे बगल में| आर्डर लेने के लिए मैंने इशारे से एक बैरा को बुलाया;

मैं: दो प्लेट चना मसाला,

दो प्लेट दाल तड़का,

दो प्लेट चावल,

छः तंदूरी रोटी और अंत में दो रस मलाई|

जब भौजी ने ये आर्डर सुना तो वो मेरी ओर आँखें फाड़े देखने लगीं| भौजी ने आजतक ये चीजें न तो देखि थी और न ही कभी खाई थीं तो जब उन्होंने मेरे मुँह से चना मसाला, दाल तड़का और तंदूरी रोटी जैसे शब्द सुने तो उनका हैरान होना लाज़मी था|

भौजी: आप क्यों इतने पैसे खर्च कर रहे हो? इतना खाना कौन खायेगा?

भौजी ने मुँह बनाते हुए कहा|

मैं: पहली बात आप पैसों की चिंता क्यों करते हो? स्कूल जाने के समय पिताजी मुझे कुछ जेब-खर्ची दिया करते हैं, वही जोड़-जोड़ के मैंने पैसे इकट्ठे किये थे| आप बताओ क्या मैं रोज आपको लंच या डिनर के लिए ले जाता हूँ? नहीं ना, तो फिर? अगर रोज ले जा सकता तो भी आपको चिंता करने की कोई जर्रूरत नहीं थी|

मैंने अकड़ दिखाते हुए भौजी से कहा, जिसे सुन भौजी के मन गदगद हो गया था| जब कभी मैं उन पर इस तरह हुक्म चलाता या अकड़ दिखता तो उन्हें बहुत अच्छा लगता था| मेरी ये अकड़ पैसों की नहीं थी, खाने-पीने के मामले में मेरा हाथ हमेशा से ही खुला रहा है| जब खाने की बातआती है तो मैं कोई नई चीज try करने से कभी नहीं चिहकता, अगर जेब में उतने पैसे हैं तो फिर मैं वो चीज try करके ही रहता हूँ!

मैं: और रही बात खाना आर्डर करने की तो ये बहुत ज्यादा नहीं है, हमारे लिए काफी है, क्यों हैं न नेहा बेटा|

मैंने जैसे ही नेहा से पुछा वो तपाक से अपनी गर्दन हाँ में हिलाते हुए बोली;

नेहा: जी पापा!

उसके मुँह से पापा जी सुनते ही मेरा दिल प्रफुल्लित हो उठा और मैंने उसके गाल चूमते हुए कहा;

मैं: Awww मेरा बच्चा!

बाप-बेटी का प्यार देख भौजी की ख़ुशी उनके चेहरे पर साफ़ दिख रही थी| खाना आने तक मैं नेहा और भौजी से फिल्म के बारे में बात करता रहा और उन्हें मैंने शहर के सिनेमा हॉल के बारे में बताया| उसके बारे में सुन दोनों ही हैरान हुए और पूरी दिलचस्पी से मेरी बात सुनने लगे| आखिर बैरा आर्डर लेके आ गया, उसने एक-एक कर में खाना परोस दिया और चला गया| टेबल जरा ऊँचा था इसलिए नेहा बैठ-बैठे नहीं खा सकती थी इसलिए उसे खड़ा होना पड़ता|

भौजी: बेटा मेरे पास आओ|

भौजी ने नेहा को अपने पास बिठा कर खिलाना चाहा क्योंकि गाओं में ऐसा ही होता है, पर मुझे तो आज ही अपनी बेटी मिली थी तो मेरा उसे आज ज्यादा लाड करना बनता था;

मैं: नहीं आप रहने दो, आप खाना शुरू करो मैं नेहा को खिला दूँगा|

पहले तो भौजी ने थोड़ी सी जिद्द की पर मैं उनकी जिद्द को अनसुना कर नेहा को अपने हाथों से खाना खिलाने लगा|

ऐसा नहीं था की नेहा खुद नहीं खा सकती थी, मैं चाहता तो उसे टेबल पर बिठा देता और फिर वो अपने हाथों से खुद खाना खाती पर आज मुझे नेहा पर कुछ ज्यादा ही प्यार आ रहा था| मैं उसे रोटी के छोटे-छोटे कौर बना के खिलाने लगा, नेहा भी बड़े चाव से खा रही थी और मुझे देख कर मुस्कुराये जा रही थी| मुझे आज उसे खिलाने में बहुत मज़ा आ रहा था और इधर भौजी को मुझे इस तरह खाना खिलाते देख के बहुत मज़ा आ रह था| अचानक भौजी ने मुझे खिलाने के लिए चमच से चावल उठाये और मेरी ओर चमच बढ़ा दी| मैं एक दम से हैरान था क्योंकि ऐसा नहीं था की मैं उनके हाथ से नहीं खाना चाहता था, चूँकि वो एक सार्वजानिक स्थान था तो मैं थोड़ा संकुचा रह था| हमारे आलावा वहाँ दो परिवार और बैठे थे और वो भी बीच-बेच में हमें देख रहे थे| मैंने भौजी से दबी आवाज में कहा; "आप खाओ मैं खा लूँगा|" पर भौजी अपनी जिद्द पर अड़ीं थीं; "नहीं मेरे हाथ से खाओ!" अब मैं उनके इसी भोलेपन का ही तो कायल था| मैंने आखिर उनके हाथ से खा लिया और फिर से नेहा को खिलाने लगा| इधर भौजी एक कौर खुद खाती तो दूसरा कौर मुझे खिलाती| मैं अब भी बीच-बीच में बाकी लोगों की ओर देखता, तो उन्हें हमें देख के जलते-भूनते पाता| होटल के काउंटर पर जो आदमी था वो भी हमें देख कर मुस्कुराये जा रहा था, उसकी ये मुस्कराहट मेरी आँखों में खटक रही थी| उस वक़्त तो मैं कुछ नहीं बोला और अपना ध्यान नेहा को खिलाने में लगाए रखा| खैर खाना खत्म हुआ और बैरा रस मलाई ले कर आ गया, मैंने अपनी आधी रस-मलाई भौजी को दे दी और बाकी की एक ही बार में खा गया| नेहा को मैंने उसकी रास-मलाई की कटोरी दे दी ताकि वो खुद खा सके| मैं टेबल से उठा और भौजी को कह गया की मैं अभी आता हूँ| मैं पहले काउंटर पर गया और काउंटर पर खड़े उस आदमी से बोला;

मैं: बहुत हँस रहा है?

मैंने उसे घूरते हुए कहा| ये सुन कर वो थोड़ा हड़बड़ा गया और बोला;

आदमी: क...कछु नाहीं...

मैं: काम में ध्यान दिया कर...समझा!

मैंने उसे अकड़ से डाँटते हुए कहा और मैं वहाँ से बाहर आया और इधर-उधर दूकान देखने लगा|

[color=rgb(85,]जारी रहेगा भाग - 5(2) में....[/color]
 
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