[color=rgb(0,]बारहवाँ अध्याय: नई शुरुरात[/color]
[color=rgb(41,]भाग -5 (2)[/color]
[color=rgb(40,]अब तक आपने पढ़ा:[/color]
मैं टेबल से उठा और भौजी को कह गया की मैं अभी आता हूँ| मैं पहले काउंटर पर गया और काउंटर पर खड़े उस आदमी से बोला;
मैं: बहुत हँस रहा है?
मैंने उसे घूरते हुए कहा| ये सुन कर वो थोड़ा हड़बड़ा गया और बोला;
आदमी: क...कछु नाहीं...
मैं: काम में ध्यान दिया कर...समझा!
मैंने उसे अकड़ से डाँटते हुए कहा और मैं वहाँ से बाहर आया और इधर-उधर दूकान देखने लगा|
[color=rgb(243,]अब आगे:[/color]
अब मुझे तीसरे सरप्राइज की तैयार करनी थी! करीब बीस कदम की दुरी पर एक सुनार की दूकान थी, मैं तेजी से उसकी ओर चल पड़ा| दूकान पर एक बुजुर्ग सा आदमी था, जो कपड़ों से सेठ यानी दूकान का मालिक लग रहा था| वो मेरी ओर बड़े प्यार से देखते हुए बोला;
सेठ: आओ..आओ मुन्ना!
ये सुन कर एक पल के लिए तो मैं ठिठक गया क्योंकि मुझे लगा की कहीं ये मुझे पहचान तो नहीं गया? लेकिन मैं तो इसे नहीं जानता?! फिर समझ आया की वो दुकानदार है मुझे मुन्ना नहीं तो क्या जमाई बोलेगा? खुद को मन में ही डाँट कर मैंने उनसे कहा;
मैं: अरे काका मुझे एक "मंगलसूत्र" तो दिखाओ|
मैंने भी उन्हीं की तरह बड़े अपनेपन से बात की|
सेठ: अभी लो बेटा...ई देखो|
ये कहते हुए उन्होंने मेरे सामने मंगलसूत्र निकाल कर रख दिए| मैं बड़ी उत्सुकता से एक-एक पीस उठा कर देखने लगा, पर मेरे पास समय ज्यादा नहीं था| मैंने आखिर में पड़े एक पीस को उठाया, उसका पेन्डेन्ट दिखने में बहुत आकरशक लग रहा था क्योंकि उसमें छोटे-छोटे लाल रंग के नग जड़े थे, और मेरा मन उस परआ चूका था|
मैं: काका ये वाला दे दो, कितने का है?
मैंने थोड़ा सोचते हुए पुछा क्योंकि मैंने उन्हें अपना बजट तो बताया नहीं था!
सेठ: 500/- का|
सेठ ने मुस्कुराते हुए कहा| दरअसल गाओं देहात में कोई इतना महंगा मंगलसूत्र नहीं खरीदता, ज्यादा कर के लोग चांदी का या सोने का पानी चढ़ा ही खरीदते हैं, मुझे भी गाओं वाला समझ काका ने मुझे सस्ते मंगलसूत्र दिखाए थे| दाम सुन मैंने बिना भाव-ताव किये ही कहा;
मैं: ठीक है इसे पैक कर दो|
अब सेठ को लगा की जो आदमी भाव-तव नहीं कर रहा उसे थोड़ा महंगा मंगलसूत्र बेचा जाए;
सेठ: अरे बेटा जा पे सोने का पानी चढ़ा है, नीचे से ई चांदी का है, तुम सोने का काहे नहीं ले लेते? बहुरिया खुश हो जाई!
मैं समझ गया की काका यही सोच रहे हैं की मैं शादी-शुदा हूँ और देखा जाए तो उनका अनुमान लगाना गलत नहीं था| हमारे गाओं में मेरी उम्र के लड़के-लड़कियों का ब्याह कर दिया जाता था| मैं मुस्कुराता हुआ उनसे बोला;
मैं: अभी कमाता नहीं हूँ, जब कमाऊँगा तो आपसे ही सोने का ले जाऊँगा|
मैंने बड़े गर्व से कहा क्योंकि उस पल मुझे सच में एक पति होने का एहसास हो रहा था| एक ऐसा पति जिसके पास एक प्यारी सी बेटी भी है!
सेठ: ठीक है बेटा... ई लिओ|
काका ने मंगलसूत्र एक पतले लम्बे से लाल रंग के केस (Case) में पैक कर के दिया था| मैंने एक बार उसे खोला और चेक किया की चीज़ तो वही है न, फिर मैं तुरंत वहाँ से वापस रेस्टुरेंट आया| वहाँ आ कर देखा तो भौजी परेशान हो रहीं थी क्योंकि मुझे गए हुए करीब पंद्रह मिनट होने को आये थे! मेरे वापस आते ही परेशान भौजी पूछने लगीं;
भौजी: कहाँ रह गए थे आप?
मैं: कुछ नहीं... बस बाहर कुछ देख रहा था|
मैंने बात टालते हुए कहा|
इतने में बैरा बिल ले कर आया और बर्तन उठा कर ले गया| मैंने बिल देखा और पर्स से पैसे निकाले, बैरा पैसे लेने दुबारा आया तो मैंने उसे बिल के पैसों के साथ 10/- ऊपर से टिप (Tip) दिए! टिप (Tip) पा के वो बहुत खुश हुआ, फिर मैंने उसी बैरा को टिकी और समोसे घरवालों के लिए पैक करने को कहा और वो आर्डर पैक करवाने चला गया| बिल था 250/- का और उस पर 10/- टिप (Tip), इतने पैसे देख भौजी हैरानी से मुझे देखने लगीं| अब उन में इतनी हिम्मत नहीं थी की वो मुझसे बिल के बारे में कह सकें वरना मैं उन्हें फिर डाँट देता तो उन्होंने उस टिप (Tip) के बारे में ही पूछ लिया;
भौजी: आपने उसे 10/- अलग से क्यों दिए?
मैं: वो टिप (Tip) थी! शहर में खाना खाने के बाद बैरा को टिप देना रिवाज है|
मैंने किसी बादशाह की तरह कहा जिसे देख भौजी हँस पड़ीं| इधर नेहा जिसे ये बात समझ नहीं आई वो मेरी गोद में चढ़ गई और पूछने लगी;
नेहा: पापा Tip क्या होती है?
मैंने उसके माथे को चूमते हुए समझाया;
मैं: बेटा जब हम खाना खाने बाहर जाते हैं तो जो आदमी हमें खाना परोसता है वो कितनी मेहनत करता है| हमारा टेबल साफ़ करता है, हमारे लिए खाना लेकर आता है, हमारे जूठे बर्तन उठाता है तो हमारा भी फर्ज बनता है की हम उसे बिल के पैसे के आलावा कुछ और पैसे दें! इससे उसे बहुत ख़ुशी होती है और उसे खुश देख हमें ख़ुशी होती है!
मेरी बात सुन नेहा के चेहरे पर मुस्कान आ गई| बाप-बेटी का प्यार देख भौजी ने सोचा की मेरा मूड अच्छा है तो लगे हाथ वो मुझे पैसे खर्च करने पर थोड़ा ज्ञान दें;
भौजी: आपने इतने पैसे क्यों खर्च किये खाने पर?
अब ये सुन कर मुझे मिर्ची लग गई और मैं गुस्से में उनसे बोला;
मैं: क्यों?
अब मेरा गुस्सा देख वो दर गईं और बात बदलते हुए बोली;
भौजी: सॉरी बाबा! अब ये बताओ की बाहर आप क्या देख रहे थे?
मैं: बस वापस जाने के लिए जीप देख रहा था|
मैंने भौजी से मंगलसूत्र की बात छुपाते हुए झूठ कहा| इतने में बैरा चाट पैक करके लाया और हम तीनों जीप स्टैंड की तरर्फ चल पड़े| जीप स्टैंड पहुँच तो वहाँ जीप बस चलने को थी, इसलिए हम तीनों फटाफट बैठ गए| इस बार मैं भौजी के साथ नहीं बैठ पाया क्योंकि एक लाइन में महिलाएँ बैठी थीं और दूसरी लाइन में पुरुष यात्री| मैं ठीक भौजी के सामने बैठा और नेहा मेरी गोद में बैठी थी| भौजी ने फिर से घूँघट काढ़ा और हिलते डुलते हम घर के नजदीक वाली प्रमुख सड़क पहुँचे| अब हमें फिर से प्रमुख सड़क छोड़ के कच्ची सड़क पकड़ के घर जाना था| नेहा कूदती हुई आगे-आगे भाग रही थी और मैं और भौजी एक साथ धीमे-धीम चल रहे थे| घडी में शाम के चार बजे थे और हम घर के नजदीक वाले तिराहे पर पहुँचे| तिराहे से हमारा घर दिख रहा था, वहाँ से एक रास्ता सीधा दूसरे गाँव जाता था और उसी रास्ते पे स्कूल भी पड़ता था| दूसरा रास्ता हमारे घर की ओर जाता था, तीसरा रास्ता वो था जो मुख्य सड़क की ओर जाता था|
अब वो हुआ जिसकी आशंका मुझे तनिक भी नहीं थी, सामने स्कूल के पास हाथ बाँधे माधुरी खड़ी थी| जैसे ही माधुरी ने मुझे देखा वो हमारी ओर बढ़ी और इधर भौजी ने जैसे ही माधुरी को देखा उनका गुस्सा सातवें आसमान पर जा पहुँचा था| जब माधुरी हमारे नजदीक आई तो भौजी उस पर बरस पड़ीं;
भौजी: अब क्या लेने आई है तू यहाँ? जो तुझे चाहिए था वो तो मिल गया न! अब भी तेरा मन नहीं भरा इनसे?
भौजी की बात सुन माधुरी की नजरें नीचे झुक गईं पर भौजी का बरसना जारी रहा;
भौजी: मुझे सब पता है की कैसे तूने इन्हें 'ब्लैकमेल' किया! इनका दिल सोने का है और तुझे जरा भी शर्म नहीं आई ऐसे इंसान के साथ धोका करते? इन्होने सिर्फ तेरा भला चाहा पर तूने इनका इस्तेमाल अपने स्वार्थ के लिए किया और अब तू फिर इनके पीछे पड़ी है| छोटी (रसिका भाभी) के हाथों पैगाम भिजवाती है की मुझे स्कूल पर मिलो! क्यों? वो तेरी नौकर है? साफ़-साफ़ बता क्या चाहिए तुझे?
भौजी के बात करने के ढंग से साफ़ था की वो मुझपर कितना हक़ जताती हैं और अगर मैं उनकी जगह होता तो मैं भी यही हक़ जताता! उधर जब भौजी ने उसकी सारी पोल-पट्टी खोल दी तो माधुरी मेरी ओर शिकायत भरी नज़रों से देखते हुए बोली;
माधुरी: आपने.....
अभी उसकी बात पूरी भी नहीं हुई थी की भौजी ने उसकी बात काट दी;
भौजी: हाँ मुझे सब पता है, उसदिन जब तू इनसे बात कर रही थी तब मैंने दोनों की बात सुन ली थी!
अब माधुरी के पास कहने के लिए कुछ नहीं रह गया था, क्योंकि उसे जो चाहिए था वो भौजी के सामने तो कह नहीं सकती थी इसलिए वो बात बनाने लगी;
माधुरी: मैं वो...
वो आगे कुछ कहती उससे पहले ही भौजी एक बार फिर उस पर बरस पड़ीं;
भौजी: तू रहने दे! मुझे सब पता है तू क्या चाहती है, एक बार और चाहिए न तुझे इनका.......
इसके आगे भौजी कुछ कहतीं उससे पहले ही मैंने उनके कंधे पर हाथ रख के उन्हें वो शब्द बोलने से रोक दिया|
मैं: आप प्लीज शांत हो जाओ और यहाँ तमाशा मत खड़ा करो|
दो औरतों को इस तरह लड़ते देख आते जाते लोग अब इक्कट्ठा होने लगे थे| फिर मेरी बेटी नेहा जो अपनी माँ के गुस्से को देख डर गई थी वो मेरी बाईं टाँग पकड़ कर छुप गई थी, मैं ये कतई नहीं चाहता था की वो भौजी के मुँह से वो अपशब्द सुने!
उधर भौजी की झाड़ सुन माधुरी की आँखों से आँसुओं की धारा बह रही थी और मेरा दिल थोड़ा पसीजने लगा था| मैंने भौजी के दोनों कन्धों को पीछे से पकड़ा और उन्हें अपनी ओर मोड़ा ताकि हम घर वापस जा सकें| मैं और भौजी घर की ओर चल पड़े थे और उधर माधुरी अब भी वहीं खड़ी मुझे जाता देख रही थी| हमारे कुछ दूर आते ही जो दो-चार लोग वहाँ इकठ्ठा हुए थे वो अपने रस्ते चले गए और बस माधुरी अकेली खड़ी मुझे देखती रही| जब घर बस पाँच मिनट की दूरी पर था तो भौजी एकदम से रुकीं और मेरी ओर मुड़ीं, आँखों में आँसूँ लिए वो बोलीं;
भौजी: आप मुझसे एक वादा कर सकते हो?
मैंने उनके आँसूँ पोछे और बोला;
मैं: हाँजी बोलो|
भौजी: आप चाहे मुझे मार लो, डाँट लो, भले ही मेरे टुकड़े-टुकड़े कर दो, पर मुझसे कभी बात करना बंद मत करना, मुझसे नाराज मत होना, वरना मैं सच में मर जाऊँगी!
भौजी जानती थीं की मैं उनके माधुरी के साथ हुई बहस के लिए अवश्य डाटूँगा और फिर मैं कहीं उनसे नाराज न हो जाऊँ, इसलिए उन्होंने मुझसे ये वादा माँगा|
मैं: आप ऐसा मत बोलो, मैं वादा करता हूँ कभी आपसे नाराज़ नहीं हूँगा!
मेरे आश्वासन से आश्वस्त हो कर भौजी का रोना बंद हो गया था| अब मुझे उनका मन हल्का करना था, जहाँ हम खड़े थे वहाँ हलकी से झाड़ियाँ थी जिसका फायदा मैंने उठाया और भौजी को अपने गले लगा लिया| मेरे उन्हें गले लगाते ही भौजी ने मुझे बहुत कस के अपनी बाहों में जकड लिया जैसे मुझसे अलग ही न होना चाहती हों और मुझ में समा जाना चाहती हों! करीब पाँच मिनट तक हम ऐसे ही गले लगे रहे और इधर नेहा हमें इस तरह गले लगा देख के छटपटाने लगी, तब जा के हमारा आलिंगन टूटा| अब भौजी का गुस्सा समाप्त हो चूका था और उनके चेहरे पर फिर से वही मुस्कान आ गई थी| हम वापस घर की ओर चल दिए, नेहा मेरी ऊँगली पकडे चल रही थी और भौजी से बात करने में भी कतरा रही थी| जब भी भौजी उसे देखतीं तो वो हर बार मेरी आड़ लेके छुप जाती| मैं समझ गया था की नेहा के मन में अपनी माँ के इस रौद्र रूप के कारन उथल-पुथल शुरू हो चुकी है| उसकी जिज्ञासा तथा डर कम करने के लिए मैंने नेहा को गोद में उठा लिया, मेरी गोद में आते ही उसने मुझसे बड़े भोलेपन से पूछा;
नेहा: पापा मम्मी गुस्से में क्यों थी?
मैंने नेहा के गाल को चूमते हुए कहा;
मैं: बेटा मम्मी को माधुरी ज़रा भी अच्छी नहीं लगती और जब वो अचानक सामने आ गई तो मम्मी को गुस्सा आ गया|
तभी भौजी नेहा को हिदायत देते हुए बोलीं;
भौजी: बेटा आप भी माधुरी से दूर रहा करो और उससे कभी बात मत करना| अगर वो आपको कोई चीज दे तो कतई मत लेना! ठीक है?
भौजी की हिदायत सुन डरी हुई नेहा ने बस हाँ में सर हिलाया पर बोली कुछ नहीं| मैं भौजी से उनके इस व्यवहार के लिए बहुत कुछ पूछना चाहता था परन्तु ये समय ठीक नहीं था इसलिए में खामोश रहा|
खेर हम घर पहुँचे तो घर भरा-भरा लग रहा था| चन्दर और अजय भैया दोनों लौट आए थे, पिताजी और बड़के दादा कुएँ के पास बैठे बात कर रहे थे और बड़की अम्मा तथा माँ आचार के लिए आम इकठ्ठा कर रहे थे, रसिका भाभी घूँघट काढ़े जानवरों को पानी पिला रही थीं| मतलब सब के सब आंगन में ही मौजूद थे और हमें देखते ही सबसे पहले पिताजी ने सवाल दागा;
पिताजी: क्यों भई कहाँ से आ रहे हैं तीनों, देवर-भाभी और भतीजी?
जैसे ही भौजी की नजर घूँघट के अंदर से पिताजी और बड़के दादा पर पड़ी तो वो अपने घर में घुस गईं| अब मुझे अकेले ही पिताजी के सवालों का जवाब देना था, पर मैं तो सबकुछ पहले ही सोच चूका था इसलिए मैं उनके सवालों का जवाब फटाफट देने लगा;
मैं: जी वो, पिक्चर देखने गए थे|
पिताजी: तो नालायक घर में बताना जर्रुरी नहीं था?
पिताजी ने थोड़ा डाँटते हुए कहा|
मैं: जी पूछ के गया था|
पिताजी: हम से तो नहीं पूछा?
पिताजी ने भोयें सिकोड़ कर कहा|
मैं: जी आप छप्पर छाने गए थे|
अब पिताजी समझ गए थे की मैं उनके सारे सवालों का जवाब रट के आया हूँ, इसलिए वो मेरी चतुराई पकड़ते हुए बोले;
पिताजी: सभी सवालों के जवाब रट के आया है! अगर पिक्चर देखने जाना ही था तो अपनी दोनों भाभियों को, माँ को और अपनी बड़की अम्मा को साथ ले जाता? तुम तीनों ही क्यों गए?
मैं: जी मैं तो चाहता था की मैं सब को लेकर जाऊँ, पर अम्मा ने मना कर दिया की वो और माँ नहीं जायेंगे| अब बचे हम चार, तो (रसिका) भाभी की तबियत सुबह से खराब थी और ये बात उन्होंने ही मुझे सुबह बताई थी, वो कह रहीं थीं की आज सारा दिन उन्हें बस आराम करना है| तो मैंने अम्मा से कहा की क्यों न हम तीनों ही पिक्चर देख आयें? अम्मा ने इज्जाजत दी तभी हम गए वरना हम नहीं जाते! वैसे भी आप सभी के कहने के अनुसार, भौजी मेरी वजह से ही शादी में नहीं गई तो मैंने सोचा इसी बहाने इनका दिल बहल जायेगा|
अब बड़की अम्मा का नाम लिया तो पिताजी आगे कुछ नहीं बोले वरना आज फिर उन्हें बड़की अम्मा से डाँट पड़ती!
पिताजी: ठीक है, अगर भाभी (बड़की अम्मा) से पूछ के गए थे तो ठीक है|
अब समय था पिताजी को थोड़ा मस्का लगाने का, जिसके लिए मैं चाट लाया था!
मैं: पिताजी मैं आप सभी के खाने के लिए कुछ लाया हूँ|
ये सुनते ही पिताजी खुश हो गए और मेरी बड़ाई करते हुए बोले;
पिताजी: ये की न अकलमंदी वाली बात! शाबाश! ये खाने पीने का सामान अपनी माँ को दे दे|
मैंने चाट माँ को दी और खुद कपडे बदलने बड़े घर चल दिया| नेहा जो मेरी गोद में थी वो मेरी गोद से उतरी और माँ के पास बैठ कर उन्हें आज की पिक्चर की कहानी सुनाने लगी|
मैं अपने कपडे बदल के छप्पर के नीचे आया पर भौजी मुझे वहाँ नहीं मिलीं, आखिर मैं उनके घर में पहुँचा तो भौजी मुझे दरवाजे की ओर पीठ कर के खड़ी दिखाई दीं| मैंने चुपके से भौजी को पीछे से अपनी बाँहों में भर लिया और उनकी गर्दन पर अपने होंठ रख दिए| मेरे होठों के स्पर्श मात्र से भौजी के मुख से सिसकारी फूट पड़ी; "स्स्स्स्स्स्स्स्स!" चूँकि मैंने भौजी को पीछे से जकड़ा था इसलिए मैंने उनका मुख अभी तक नहीं देखा था, पर ये एहसास हो गया था की माधुरी की वजह से उनका मूड खराब है!
मैं: जानता हूँ आपका मूड खराब है, पर प्लीज मेरे लिए अपना मूड ठीक कर लो! अभी तो आपका आखरी तोहफा बाकी है!
मैंने भौजी का मन बदलने हेतु कहा|
भौजी: उस माधुरी ने.....
इसके आगे भौजी कुछ कहतीं उससे पहले ही मैंने उन्हें अपनी तरफ घुमाया और उनके होठों पर ऊँगली रखते हुए उन्हें चुप करा दिया|
मैं: shhhhhh... बस अब मूड मत ख़राब करो!
भौजी मेरी आँखों में देखने लगीं और बोलीं;
भौजी: तो अगला 'सरप्राइज' क्या है?
मैं: जल्दी पता चल जायेगा, पर पहले आप को मेरी एक इच्छा पूरी करनी होगी|
मैंने मुस्कुराते हुए कहा|
भौजी: हाँ बोलिए, आपका हुक्म सर आँखों पर!
भौजी ने बड़ी नजाकत से कहा|
मैं: मैं आज रात आपको आपके शादी के जोड़े में देखना चाहता हूँ|
मैंने भौजी की ठुड्डी पकड़ते हुए कहा|
भौजी: बस? इतनी सी बात! ठीक है और कुछ हुक्म करिये?
भौजी ने मुस्कुराते हुए कहा|
मैं: और कुछ नहीं! मैं रात को साढ़े ग्यारह बजे आऊँगा!
इतना कह के मैं बाहर जाने लगा तो भौजी ने मेरा हाथ थाम लिया और बोलीं;
भौजी: और मेरे 'सरप्राइज' का क्या?
मैं: वो कल मिलेगा|
मैंने भौजी को आँख मारते हुए कहा|
भौजी: कल? इतना इन्तेजार करवाओगे मुझसे?
भौजी ने उलाहना देते हुए कहा|
मैं: हाँ क्योंकि इन्तेजार करने में जो मजा है वो किसी और बात में नहीं|
भौजी: आप भी न सच्ची बहुत तड़पाते हो!
ये कहते हुए भौजी मेरे सीने से आ लगीं|
मैं: अच्छा ये तो बात हुई सरप्राइज की, अब मैं कुछ और बात भी करना चाहता हूँ|
भौजी: हाँ बोलो?
भौजी मेरे सीने से लगे हुए ही बोलीं, पर मैं अपनी बात कह कर उनका मूड फिर खराब नहीं करना चाहता था;
मैं: नहीं अभी नहीं बाद में!
मैंने भौजी के बालों में हाथ फेरते हुए कहा| भौजी ने अपना सर मेरी छाती से हटाया और मेरी आँखों में देखते हुए बोलीं;
भौजी: नहीं कहिये ना?
मैं: अभी नहीं, बड़ी मुश्किल से आपका मूड ठीक हुआ है और मैं उसे दुबारा ख़राब नहीं करूँगा|
ये कहके मैंने उनके होठों को अपने होठों से छुआ और हलकी सी kiss देके बाहर निकल आया| बाहर नेहा बहुत खुश दिख रही थी और माँ के पास बैठी उन्हें बड़े मजे से कहानी सूना रही थी| मैंने पीछे से जा कर उसे गोद में उठा लिया और उसके सर को चूमा, नेहा एकदम से मेरी तरफ पलटी और अपने दोनों हाथों को मेरी गर्दन के इर्द-गिर्द लपेटना चाहा| मैं उसे ले कर अपनी चारपाई पर आ गया, मैं लेट गया और नेहा को अपने पेट पर बिठा लिया| हम दोनों ने चिड़िया उडी खेलना शुरू कर दिया, जब भी वो गाय, बकरी, भैंस, कूकुर इत्यादि उड़ाती तो मैं उसे जोर से गुदगुदी करता और वो खिलखिलाकर हँसने लगती| हँसते-हँसते जब वो थक गई तो वो मेरी छाती पर लेट गई, इस तरह आज नेहा मुझसे कुछ ज्यादा ही दुलार कर रही थी| जब से मैं आया था तब से मैंने नेहा को चन्दर के साथ कभी नहीं देखा था और जब से वो बेल्ट वाला हादसा हुआ तबसे तो नेहा चन्दर भैया से एक दम कट गई थी| मुझे तो लगता था की वो उन्हें अपना बाप ही नहीं मानती, खेर ये मेरी अपनी सोच थी क्योंकि मैंने कभी भी नेहा से इस बारे मैं बात नहीं की|
रात को खाना भौजी ने ही बनाया और वो खाके मैं अपनी चारपाई पर लेटा था और तभ कूदती हुई नेहा भी मेरे पास आके लेट गई| मैंने नेहा को हमेशा की तरह कहानी सुनाई और वो सुनते-सुनते मुझसे लिपट कर सो गई| जैसे ही घडी में रात के साढ़े ग्यारह बजे मैं बाथरूम जाने के बहाने से उठा और चेक करने लगा की सब सो रहे है न| फिर मैं दबे पाँव सीधा भौजी के घर की ओर चल दिया| दरवाजा खुला था इसलिए मैंने धीरे से भीतर प्रवेश किया और भीतर जा कर आहिस्ते से दरवाजा बंद किया| जैसे ही दरवाजा बंद कर के मैं पलटा तो देखा भौजी आँगन में अपनी शादी का लाल जोड़ा पहने, घूँघट काढ़े मेरे सामने खड़ी हैं| आंगन में भौजी ने एक दीपक जला रखा था जिसकी रौशनी में मैं भौजी का यौवन देख सकता था| लाल रंग की वो साडी जिस पर सुनहरे रंग का बॉर्डर था, भले ही भौजी ने घूंघट काढ़ा था पर उस घूँघटे में छिपे उनके हुस्न को महसूस कर सकता था! भौजी ने अपने दाएँ हाथ से अपना घूँघट संभाल रखा था और बाएँ हाथ को अपने दाहिने हाथ की कोहनी पकड़ी हुई थी| भौजी के दोनों हाथ में लाल चूड़ियाँ थीं, जिनका रंग आज कुछ ज्यादा ही फ़ब रहा था! भौजी ने आज गले में एक चांदी का हार पहन रखा था जो हलकी चांदनी में चमक रहा था! भौजी की साडी आज उनकी नाभि से थोड़ा नीचे बँधी थी, उनकी नाभि तो मैं ठीक से देख नहीं पाया पर मेरे अंतर्मन ने उसकी बड़ी ही सूंदर कल्पना गढ़ ली थी! पाँव में उनके वही हमेशा वाली पायल थी जिसकी आवाज मुझे मोहित करती थी, लेकिन वो पायल मैं आज देख न सका क्योंकि भौजी की साडी ने उसे आज अपनी आड़ में छुपा लिया था!
करीब पाँच मिनट तक मैं हाथ बाँधे खड़ा उन्हें देखता ही रहा, उन्हें निहारता रहा और इस दौरान भौजी कुछ न बोलीं| अब मन भौजी को घूँघट के भीतर से देखना चाहता था, इसलिए मैं धीरे-धीरे उनकी ओर बढ़ा और उनके सामने हाथ बाँधे खड़ा हो गया| उनके नजदीक आने से मुझे उनके जिस्म से गुलाबजल की महक आने लगी और उस महक को सूँघ मैं मंत्रमुग्ध हो गया! आँखें बंद कर मैं उस खुशबु को सूँघने लगा, परन्तु भौजी से ये सब बर्दाश्त करना थोड़ा मुश्किल हो रहा था तो उन्होंने घूँघट के नीचे से थोड़ा खाँसा जिस कारन मेरी तन्द्रा भंग हुई! उनकी ये खाँसी दरअसल में एक प्यार भरा उलाहना था! अपनी तन्द्रा से भंग होने के बाद मैंने मुस्कुराते हुए भौजी का घूँघट उठाया, जब आँखों के सामने उनका सजा-संवरा हुस्न आया तो दिल धक् से रुक गया! उनके इस हुस्न ने तो आज मेरा क़त्ल ही कर दिया था! चाँद की रौशनी में ऐसा लग रहा था जैसे चाँद का एक टुकड़ा कट के मेरी झोली में आ गिरा हो! भौजी की ये सुंदरता देख मुझे समझ ही नहीं आया की मैं क्या कहूँ?
शर्म के मारे भौजी की आँखें झुकी हुई थीं, पर मेरी आँखें उनके चेहरे की ख़ूबसूरती को निहारने लगी थीं! आँखों में सुरमा लगा था जिससे भौजी की झुकी हुई आँखें भी बहुत बड़ी दिख रही थीं! माथे पर लाल बिंदी ऐसी लग रही थी मानो उगता हुआ सूर्य हो! नाक में सोने की नथनी चमक रही थी, मुझे खुद का यूँ दीदार करता देख भौजी के गाल शर्म से लाल होने लगे थे और वो लालिमा देख कर मेरा मन बहुत प्रसन्न हो रहा था, पेट में जैसे तितलियाँ उड़ने लगी थीं! होठों पर लगी लाल लिपस्टिक देख कर मेरा मन मचलने लगा था! दिल कहता था की उन लाल-लाल होठों को अपने होठों से छु लूँ और उनका रस धीरे-धीरे पी लूँ!
अपने मचलते मन को काबू कर अब समय था भौजी के इस सूंदर हुस्न और उनके श्रृंगार को पूरा करने का! आजतक हम जिस रिश्ते को दिल से मान चुके थे, अब उसे विधिपूर्वक पूरा करने का समय आज था! जिस मोह की डोर ने हमें बाँधा था उस डोर को चट्टान की तरह मजबूत करने का! मैंने भौजी की ठुड्डी को अपनी उँगलियों से पकड़ ऊपर उठाया और तब हमारी आँखें चार हुई!
"प्लीज अपनी आँखें बंद करो!" मैंने बड़े आहिस्ते से भौजी से कहा| ये सुन भौजी ने बड़ी नजाकत से अपनी आँखें बंद की, मैंने अपनी जेब में हाथ डाला और ट्रैक पेंट से मंगलसूत्र का केस निकाला| मंगलसूत्र हाथ में लेके मैं भौजी के पीछे खड़ा हुआ और उनके गले में उसे पहना कर गर्दन के पीछे उसे लॉक किया| अब भौजी को कुछ तो समझ आ गया था क्योंकि जैसे ही मैंने मंगलसूत्र को लॉक किया और अपने हाथ वापस खींचे तो भौजी ने अपनी आँखें उसी नजाकत से खोलीं जिस नजाकत से बंद की थी| मंगलसूत्र देखते ही वो एकदम से मेरी तरफ पलटीं और काँपती हुई जुबान से बोलीं; "ये... आपके पास....?!" इसके आगे वो कुछ बोलतीं उससे पहले ही मैंने उनके होठों पर अपनी ऊँगली रख दी|
"Shhhhh.... जब से मैं आया हूँ तब से मैंने आपको कभी मंगलसूत्र पहने नहीं देखा| आप मंगलसूत्र क्यों नहीं पहनते ये भी मैं जनता हूँ, क्योंकि वो मंगलसूत्र आपको चन्दर ने दिया था! पर ये मंगलसूत्र मेरी ओर से है, मुझे आपने अपना पति माना है न, तो आपको मंगलसूत्र पहनना मेरा फ़र्ज़ बनता है|" मैंने कहा तो भौजी की आँखें ख़ुशी से फ़ैल गईं और उनकी आँखें भर आईं| मैं जनता था की उनके मन में ये संदेह अवश्य होगा की मैंने ये कहीं से चुराया है या इसके लिए मेरे पास पैसे कहाँ से आये तो मैंने उनके संतोष के लिए उन्हें सब बताना शुरू किया; "ये मैंने कहीं से चुराया नहीं है, मुझे स्कूल जाते समय पिताजी जेब खर्ची के लिए पैसे देते हैं उन्ही पैसों से मैंने आपके लिए ये खरीदा है!" ये सुन कर भौजी के दिल को सांत्वना मिली की मैंने कोई गलत काम नहीं किया है| भौजी को मंगलसूत्र देने का एक कारन और भी था; "कल जब मैं आपसे माँ का मंगलसूत्र वापस लेने आया था तब मुझे बड़ा बुरा लगा था| तब मेरे दिल में एक ख्वाइश पैदा हुई की क्यों न मैं आपको एक मंगलसूत्र पहनाऊँ, वो मंगलसूत्र जो मैंने खरीदा हो! इसलिए आज जब आप खाना खा रहे थे तब मैं दुकाने से बहार निकल के सुनार से खरीद लाया था|" मैंने मुस्कुराते हुए कहा|
भौजी ने मेरी बातें बड़े इत्मीनान से सुनी और बातें सुन के उनकी आँखों में आँसूँ छलक आये, वो कुछ न बोल सकीं परन्तु मेरे गले लग गईं| आँखों में आये आँसुओं से उनके गले से आवाज नहीं निकल रही थी, बड़ी हिम्मत करके वो बस इतना ही बोल पाईं; "आज आपने हमारे इस रिश्ते को और मुझे पूर्ण कर दिया!" इतना कह वो रो पड़ीं!
"बस...बस... चुप हो जाओ! मैंने ये तौफा आपको रुलाने के लिए नहीं दिया!" मैंने उनकी पीठ पर हाथ फेरते हुए कहा और तब जाके भौजी चुप हुईं| मैंने उनके कंधे पर हाथ रख के उन्हें अपने से थोड़ा दूर किया और फिर उनके आँसूँ पोछे|
मैं: अब कभी मत रोना?
मैंने मुस्कुराते हुए कहा तो भौजी ने हाँ में अपना सर हिला कर मेरी बात का मान रखा| उन्हें छोड़ मैं पलट के जाने लगा तो भौजी बोलीं;
भौजी: आप कहाँ जा रहे हो?
मैं: सोने
ये सुन भौजी हैरान हो गईं और बोलीं;
भौजी: क्या? पर अभी?
उनका ये उतावलापन देख मैं मुस्कुराने लगा, तो भौजी ने मुझे छेड़ते हुए कहा;
भौजी: आज तो हमारी सुहागरात है!
अब चौंकने की बारी मेरी थी!
मैं: क्या? पर सुहागरात तो उस दिन थी न?
मैंने चौंकते हुए कहा|
भौजी: पर मंगलसूत्र तो आपने आज पहनाया है न?
भौजी ने मुस्कुराते हुए तर्क किया| लेकिन आज मेरा मन पहले से ही इतना प्रसन्न था की मुझे सम्भोग की इच्छा ही नहीं थी! भौजी मेरा चेहरा पढ़ना अच्छे से जानती थीं, इससे पहले की मैं कुछ कहता उन्होंने मुझे भावनात्मक धमकी (emotional blackmail) दे डाली;
भौजी: एक तरफ तो आप मुझे रोने के लिए मना करते हो और दूसरी तरफ मुझे यूँ अकेला छोड़ के जा रहे हो? जाओ मैं आपसे बात नहीं करती!
मैंने भौजी के दोनों कंधे पड़े और उनकी आँखों में देखते हुए बोला;
मैं: मैं आपको छोड़के कहीं नहीं जा रहा, मेरा मकसद आज आपको सिर्फ मंगलसूत्र पहनाने का था बस और कुछ नहीं|
पर भौजी आज फुल मूड में थीं, इसलिए उन्होंने एक और तर्क किया;
भौजी: वाह जी वाह! आपने तो कहा था की तीसरा सरप्राइज कल दोगे और अभी तो दूसरा दिन भी लग चूका है?
मैं: वो तीसरा सरप्राइज ये ही था! मैं कभी झूठ नहीं बोलता!
भौजी समझ गईं थीं की वो तर्क से मुझे नहीं जीत पायेंगी, इसलिए उन्होंने हट करना ही ठीक समझा;
भौजी: ठीक है बाबा! आप जीते, पर मैं आज आपको नहीं जाने दूँगी!
इतना कहके भौजी तेजी से मेरी ओर चलती हुई आईं और मुझसे कस के लिपट गईं|
भौजी: आपको पता भी है की मेरा क्या हाल है? आपके बिना मैं कितना अकेला महसूस करती हूँ! आपको नेहा का अकेलापन दिखता है पर मेरा अकेलापन नहीं दिखता न? पिछले 5 - 6 दिनों से आपने मुझे छुआ भी नहीं! कल भी सारा दिन आप मेरे साथ खेल खेलते रहे और ऐसे जताया की जैसे मैं यहाँ हूँ ही नहीं! कल रात जब आप खाना ले के आये तो मुझे लगा की आपका गुस्सा शांत हो गया है और आप रात में आओगे पर आप नहीं आये! मेरा कितना मन है आप के साथ प्रेम करने का और आप हैं की....!
भौजी ये कहते हुए रूठ गईं और अपने गाल फूला लिए!
मैं: O.K. बाबा कहीं नहीं जाऊँगा! बस..खुश!
मैंने उन्हें मनाने के लिए कहा|
[color=rgb(85,]जारी रहेगा भाग - 6 में....[/color]