Hindi Antarvasna एक अनोखा बंधन - पुन: प्रारंभ


[color=rgb(0,]बारहवाँ अध्याय: नई शुरुरात[/color]
[color=rgb(41,]भाग -5 (2)[/color]


[color=rgb(40,]अब तक आपने पढ़ा:[/color]

मैं टेबल से उठा और भौजी को कह गया की मैं अभी आता हूँ| मैं पहले काउंटर पर गया और काउंटर पर खड़े उस आदमी से बोला;
मैं: बहुत हँस रहा है?
मैंने उसे घूरते हुए कहा| ये सुन कर वो थोड़ा हड़बड़ा गया और बोला;
आदमी: क...कछु नाहीं...
मैं: काम में ध्यान दिया कर...समझा!
मैंने उसे अकड़ से डाँटते हुए कहा और मैं वहाँ से बाहर आया और इधर-उधर दूकान देखने लगा|

[color=rgb(243,]अब आगे:[/color]

अब मुझे तीसरे सरप्राइज की तैयार करनी थी! करीब बीस कदम की दुरी पर एक सुनार की दूकान थी, मैं तेजी से उसकी ओर चल पड़ा| दूकान पर एक बुजुर्ग सा आदमी था, जो कपड़ों से सेठ यानी दूकान का मालिक लग रहा था| वो मेरी ओर बड़े प्यार से देखते हुए बोला;

सेठ: आओ..आओ मुन्ना!

ये सुन कर एक पल के लिए तो मैं ठिठक गया क्योंकि मुझे लगा की कहीं ये मुझे पहचान तो नहीं गया? लेकिन मैं तो इसे नहीं जानता?! फिर समझ आया की वो दुकानदार है मुझे मुन्ना नहीं तो क्या जमाई बोलेगा? खुद को मन में ही डाँट कर मैंने उनसे कहा;

मैं: अरे काका मुझे एक "मंगलसूत्र" तो दिखाओ|

मैंने भी उन्हीं की तरह बड़े अपनेपन से बात की|

सेठ: अभी लो बेटा...ई देखो|

ये कहते हुए उन्होंने मेरे सामने मंगलसूत्र निकाल कर रख दिए| मैं बड़ी उत्सुकता से एक-एक पीस उठा कर देखने लगा, पर मेरे पास समय ज्यादा नहीं था| मैंने आखिर में पड़े एक पीस को उठाया, उसका पेन्डेन्ट दिखने में बहुत आकरशक लग रहा था क्योंकि उसमें छोटे-छोटे लाल रंग के नग जड़े थे, और मेरा मन उस परआ चूका था|

मैं: काका ये वाला दे दो, कितने का है?

मैंने थोड़ा सोचते हुए पुछा क्योंकि मैंने उन्हें अपना बजट तो बताया नहीं था!

सेठ: 500/- का|

सेठ ने मुस्कुराते हुए कहा| दरअसल गाओं देहात में कोई इतना महंगा मंगलसूत्र नहीं खरीदता, ज्यादा कर के लोग चांदी का या सोने का पानी चढ़ा ही खरीदते हैं, मुझे भी गाओं वाला समझ काका ने मुझे सस्ते मंगलसूत्र दिखाए थे| दाम सुन मैंने बिना भाव-ताव किये ही कहा;

मैं: ठीक है इसे पैक कर दो|

अब सेठ को लगा की जो आदमी भाव-तव नहीं कर रहा उसे थोड़ा महंगा मंगलसूत्र बेचा जाए;

सेठ: अरे बेटा जा पे सोने का पानी चढ़ा है, नीचे से ई चांदी का है, तुम सोने का काहे नहीं ले लेते? बहुरिया खुश हो जाई!

मैं समझ गया की काका यही सोच रहे हैं की मैं शादी-शुदा हूँ और देखा जाए तो उनका अनुमान लगाना गलत नहीं था| हमारे गाओं में मेरी उम्र के लड़के-लड़कियों का ब्याह कर दिया जाता था| मैं मुस्कुराता हुआ उनसे बोला;

मैं: अभी कमाता नहीं हूँ, जब कमाऊँगा तो आपसे ही सोने का ले जाऊँगा|

मैंने बड़े गर्व से कहा क्योंकि उस पल मुझे सच में एक पति होने का एहसास हो रहा था| एक ऐसा पति जिसके पास एक प्यारी सी बेटी भी है!

सेठ: ठीक है बेटा... ई लिओ|

काका ने मंगलसूत्र एक पतले लम्बे से लाल रंग के केस (Case) में पैक कर के दिया था| मैंने एक बार उसे खोला और चेक किया की चीज़ तो वही है न, फिर मैं तुरंत वहाँ से वापस रेस्टुरेंट आया| वहाँ आ कर देखा तो भौजी परेशान हो रहीं थी क्योंकि मुझे गए हुए करीब पंद्रह मिनट होने को आये थे! मेरे वापस आते ही परेशान भौजी पूछने लगीं;

भौजी: कहाँ रह गए थे आप?

मैं: कुछ नहीं... बस बाहर कुछ देख रहा था|

मैंने बात टालते हुए कहा|

इतने में बैरा बिल ले कर आया और बर्तन उठा कर ले गया| मैंने बिल देखा और पर्स से पैसे निकाले, बैरा पैसे लेने दुबारा आया तो मैंने उसे बिल के पैसों के साथ 10/- ऊपर से टिप (Tip) दिए! टिप (Tip) पा के वो बहुत खुश हुआ, फिर मैंने उसी बैरा को टिकी और समोसे घरवालों के लिए पैक करने को कहा और वो आर्डर पैक करवाने चला गया| बिल था 250/- का और उस पर 10/- टिप (Tip), इतने पैसे देख भौजी हैरानी से मुझे देखने लगीं| अब उन में इतनी हिम्मत नहीं थी की वो मुझसे बिल के बारे में कह सकें वरना मैं उन्हें फिर डाँट देता तो उन्होंने उस टिप (Tip) के बारे में ही पूछ लिया;

भौजी: आपने उसे 10/- अलग से क्यों दिए?

मैं: वो टिप (Tip) थी! शहर में खाना खाने के बाद बैरा को टिप देना रिवाज है|

मैंने किसी बादशाह की तरह कहा जिसे देख भौजी हँस पड़ीं| इधर नेहा जिसे ये बात समझ नहीं आई वो मेरी गोद में चढ़ गई और पूछने लगी;

नेहा: पापा Tip क्या होती है?

मैंने उसके माथे को चूमते हुए समझाया;

मैं: बेटा जब हम खाना खाने बाहर जाते हैं तो जो आदमी हमें खाना परोसता है वो कितनी मेहनत करता है| हमारा टेबल साफ़ करता है, हमारे लिए खाना लेकर आता है, हमारे जूठे बर्तन उठाता है तो हमारा भी फर्ज बनता है की हम उसे बिल के पैसे के आलावा कुछ और पैसे दें! इससे उसे बहुत ख़ुशी होती है और उसे खुश देख हमें ख़ुशी होती है!

मेरी बात सुन नेहा के चेहरे पर मुस्कान आ गई| बाप-बेटी का प्यार देख भौजी ने सोचा की मेरा मूड अच्छा है तो लगे हाथ वो मुझे पैसे खर्च करने पर थोड़ा ज्ञान दें;

भौजी: आपने इतने पैसे क्यों खर्च किये खाने पर?

अब ये सुन कर मुझे मिर्ची लग गई और मैं गुस्से में उनसे बोला;

मैं: क्यों?

अब मेरा गुस्सा देख वो दर गईं और बात बदलते हुए बोली;

भौजी: सॉरी बाबा! अब ये बताओ की बाहर आप क्या देख रहे थे?

मैं: बस वापस जाने के लिए जीप देख रहा था|

मैंने भौजी से मंगलसूत्र की बात छुपाते हुए झूठ कहा| इतने में बैरा चाट पैक करके लाया और हम तीनों जीप स्टैंड की तरर्फ चल पड़े| जीप स्टैंड पहुँच तो वहाँ जीप बस चलने को थी, इसलिए हम तीनों फटाफट बैठ गए| इस बार मैं भौजी के साथ नहीं बैठ पाया क्योंकि एक लाइन में महिलाएँ बैठी थीं और दूसरी लाइन में पुरुष यात्री| मैं ठीक भौजी के सामने बैठा और नेहा मेरी गोद में बैठी थी| भौजी ने फिर से घूँघट काढ़ा और हिलते डुलते हम घर के नजदीक वाली प्रमुख सड़क पहुँचे| अब हमें फिर से प्रमुख सड़क छोड़ के कच्ची सड़क पकड़ के घर जाना था| नेहा कूदती हुई आगे-आगे भाग रही थी और मैं और भौजी एक साथ धीमे-धीम चल रहे थे| घडी में शाम के चार बजे थे और हम घर के नजदीक वाले तिराहे पर पहुँचे| तिराहे से हमारा घर दिख रहा था, वहाँ से एक रास्ता सीधा दूसरे गाँव जाता था और उसी रास्ते पे स्कूल भी पड़ता था| दूसरा रास्ता हमारे घर की ओर जाता था, तीसरा रास्ता वो था जो मुख्य सड़क की ओर जाता था|

अब वो हुआ जिसकी आशंका मुझे तनिक भी नहीं थी, सामने स्कूल के पास हाथ बाँधे माधुरी खड़ी थी| जैसे ही माधुरी ने मुझे देखा वो हमारी ओर बढ़ी और इधर भौजी ने जैसे ही माधुरी को देखा उनका गुस्सा सातवें आसमान पर जा पहुँचा था| जब माधुरी हमारे नजदीक आई तो भौजी उस पर बरस पड़ीं;

भौजी: अब क्या लेने आई है तू यहाँ? जो तुझे चाहिए था वो तो मिल गया न! अब भी तेरा मन नहीं भरा इनसे?

भौजी की बात सुन माधुरी की नजरें नीचे झुक गईं पर भौजी का बरसना जारी रहा;

भौजी: मुझे सब पता है की कैसे तूने इन्हें 'ब्लैकमेल' किया! इनका दिल सोने का है और तुझे जरा भी शर्म नहीं आई ऐसे इंसान के साथ धोका करते? इन्होने सिर्फ तेरा भला चाहा पर तूने इनका इस्तेमाल अपने स्वार्थ के लिए किया और अब तू फिर इनके पीछे पड़ी है| छोटी (रसिका भाभी) के हाथों पैगाम भिजवाती है की मुझे स्कूल पर मिलो! क्यों? वो तेरी नौकर है? साफ़-साफ़ बता क्या चाहिए तुझे?

भौजी के बात करने के ढंग से साफ़ था की वो मुझपर कितना हक़ जताती हैं और अगर मैं उनकी जगह होता तो मैं भी यही हक़ जताता! उधर जब भौजी ने उसकी सारी पोल-पट्टी खोल दी तो माधुरी मेरी ओर शिकायत भरी नज़रों से देखते हुए बोली;

माधुरी: आपने.....

अभी उसकी बात पूरी भी नहीं हुई थी की भौजी ने उसकी बात काट दी;

भौजी: हाँ मुझे सब पता है, उसदिन जब तू इनसे बात कर रही थी तब मैंने दोनों की बात सुन ली थी!

अब माधुरी के पास कहने के लिए कुछ नहीं रह गया था, क्योंकि उसे जो चाहिए था वो भौजी के सामने तो कह नहीं सकती थी इसलिए वो बात बनाने लगी;

माधुरी: मैं वो...

वो आगे कुछ कहती उससे पहले ही भौजी एक बार फिर उस पर बरस पड़ीं;

भौजी: तू रहने दे! मुझे सब पता है तू क्या चाहती है, एक बार और चाहिए न तुझे इनका.......

इसके आगे भौजी कुछ कहतीं उससे पहले ही मैंने उनके कंधे पर हाथ रख के उन्हें वो शब्द बोलने से रोक दिया|

मैं: आप प्लीज शांत हो जाओ और यहाँ तमाशा मत खड़ा करो|

दो औरतों को इस तरह लड़ते देख आते जाते लोग अब इक्कट्ठा होने लगे थे| फिर मेरी बेटी नेहा जो अपनी माँ के गुस्से को देख डर गई थी वो मेरी बाईं टाँग पकड़ कर छुप गई थी, मैं ये कतई नहीं चाहता था की वो भौजी के मुँह से वो अपशब्द सुने!

उधर भौजी की झाड़ सुन माधुरी की आँखों से आँसुओं की धारा बह रही थी और मेरा दिल थोड़ा पसीजने लगा था| मैंने भौजी के दोनों कन्धों को पीछे से पकड़ा और उन्हें अपनी ओर मोड़ा ताकि हम घर वापस जा सकें| मैं और भौजी घर की ओर चल पड़े थे और उधर माधुरी अब भी वहीं खड़ी मुझे जाता देख रही थी| हमारे कुछ दूर आते ही जो दो-चार लोग वहाँ इकठ्ठा हुए थे वो अपने रस्ते चले गए और बस माधुरी अकेली खड़ी मुझे देखती रही| जब घर बस पाँच मिनट की दूरी पर था तो भौजी एकदम से रुकीं और मेरी ओर मुड़ीं, आँखों में आँसूँ लिए वो बोलीं;

भौजी: आप मुझसे एक वादा कर सकते हो?

मैंने उनके आँसूँ पोछे और बोला;

मैं: हाँजी बोलो|

भौजी: आप चाहे मुझे मार लो, डाँट लो, भले ही मेरे टुकड़े-टुकड़े कर दो, पर मुझसे कभी बात करना बंद मत करना, मुझसे नाराज मत होना, वरना मैं सच में मर जाऊँगी!

भौजी जानती थीं की मैं उनके माधुरी के साथ हुई बहस के लिए अवश्य डाटूँगा और फिर मैं कहीं उनसे नाराज न हो जाऊँ, इसलिए उन्होंने मुझसे ये वादा माँगा|

मैं: आप ऐसा मत बोलो, मैं वादा करता हूँ कभी आपसे नाराज़ नहीं हूँगा!

मेरे आश्वासन से आश्वस्त हो कर भौजी का रोना बंद हो गया था| अब मुझे उनका मन हल्का करना था, जहाँ हम खड़े थे वहाँ हलकी से झाड़ियाँ थी जिसका फायदा मैंने उठाया और भौजी को अपने गले लगा लिया| मेरे उन्हें गले लगाते ही भौजी ने मुझे बहुत कस के अपनी बाहों में जकड लिया जैसे मुझसे अलग ही न होना चाहती हों और मुझ में समा जाना चाहती हों! करीब पाँच मिनट तक हम ऐसे ही गले लगे रहे और इधर नेहा हमें इस तरह गले लगा देख के छटपटाने लगी, तब जा के हमारा आलिंगन टूटा| अब भौजी का गुस्सा समाप्त हो चूका था और उनके चेहरे पर फिर से वही मुस्कान आ गई थी| हम वापस घर की ओर चल दिए, नेहा मेरी ऊँगली पकडे चल रही थी और भौजी से बात करने में भी कतरा रही थी| जब भी भौजी उसे देखतीं तो वो हर बार मेरी आड़ लेके छुप जाती| मैं समझ गया था की नेहा के मन में अपनी माँ के इस रौद्र रूप के कारन उथल-पुथल शुरू हो चुकी है| उसकी जिज्ञासा तथा डर कम करने के लिए मैंने नेहा को गोद में उठा लिया, मेरी गोद में आते ही उसने मुझसे बड़े भोलेपन से पूछा;

नेहा: पापा मम्मी गुस्से में क्यों थी?

मैंने नेहा के गाल को चूमते हुए कहा;

मैं: बेटा मम्मी को माधुरी ज़रा भी अच्छी नहीं लगती और जब वो अचानक सामने आ गई तो मम्मी को गुस्सा आ गया|

तभी भौजी नेहा को हिदायत देते हुए बोलीं;

भौजी: बेटा आप भी माधुरी से दूर रहा करो और उससे कभी बात मत करना| अगर वो आपको कोई चीज दे तो कतई मत लेना! ठीक है?

भौजी की हिदायत सुन डरी हुई नेहा ने बस हाँ में सर हिलाया पर बोली कुछ नहीं| मैं भौजी से उनके इस व्यवहार के लिए बहुत कुछ पूछना चाहता था परन्तु ये समय ठीक नहीं था इसलिए में खामोश रहा|

खेर हम घर पहुँचे तो घर भरा-भरा लग रहा था| चन्दर और अजय भैया दोनों लौट आए थे, पिताजी और बड़के दादा कुएँ के पास बैठे बात कर रहे थे और बड़की अम्मा तथा माँ आचार के लिए आम इकठ्ठा कर रहे थे, रसिका भाभी घूँघट काढ़े जानवरों को पानी पिला रही थीं| मतलब सब के सब आंगन में ही मौजूद थे और हमें देखते ही सबसे पहले पिताजी ने सवाल दागा;
पिताजी: क्यों भई कहाँ से आ रहे हैं तीनों, देवर-भाभी और भतीजी?

जैसे ही भौजी की नजर घूँघट के अंदर से पिताजी और बड़के दादा पर पड़ी तो वो अपने घर में घुस गईं| अब मुझे अकेले ही पिताजी के सवालों का जवाब देना था, पर मैं तो सबकुछ पहले ही सोच चूका था इसलिए मैं उनके सवालों का जवाब फटाफट देने लगा;

मैं: जी वो, पिक्चर देखने गए थे|

पिताजी: तो नालायक घर में बताना जर्रुरी नहीं था?

पिताजी ने थोड़ा डाँटते हुए कहा|

मैं: जी पूछ के गया था|

पिताजी: हम से तो नहीं पूछा?

पिताजी ने भोयें सिकोड़ कर कहा|

मैं: जी आप छप्पर छाने गए थे|

अब पिताजी समझ गए थे की मैं उनके सारे सवालों का जवाब रट के आया हूँ, इसलिए वो मेरी चतुराई पकड़ते हुए बोले;

पिताजी: सभी सवालों के जवाब रट के आया है! अगर पिक्चर देखने जाना ही था तो अपनी दोनों भाभियों को, माँ को और अपनी बड़की अम्मा को साथ ले जाता? तुम तीनों ही क्यों गए?

मैं: जी मैं तो चाहता था की मैं सब को लेकर जाऊँ, पर अम्मा ने मना कर दिया की वो और माँ नहीं जायेंगे| अब बचे हम चार, तो (रसिका) भाभी की तबियत सुबह से खराब थी और ये बात उन्होंने ही मुझे सुबह बताई थी, वो कह रहीं थीं की आज सारा दिन उन्हें बस आराम करना है| तो मैंने अम्मा से कहा की क्यों न हम तीनों ही पिक्चर देख आयें? अम्मा ने इज्जाजत दी तभी हम गए वरना हम नहीं जाते! वैसे भी आप सभी के कहने के अनुसार, भौजी मेरी वजह से ही शादी में नहीं गई तो मैंने सोचा इसी बहाने इनका दिल बहल जायेगा|

अब बड़की अम्मा का नाम लिया तो पिताजी आगे कुछ नहीं बोले वरना आज फिर उन्हें बड़की अम्मा से डाँट पड़ती!

पिताजी: ठीक है, अगर भाभी (बड़की अम्मा) से पूछ के गए थे तो ठीक है|

अब समय था पिताजी को थोड़ा मस्का लगाने का, जिसके लिए मैं चाट लाया था!

मैं: पिताजी मैं आप सभी के खाने के लिए कुछ लाया हूँ|

ये सुनते ही पिताजी खुश हो गए और मेरी बड़ाई करते हुए बोले;

पिताजी: ये की न अकलमंदी वाली बात! शाबाश! ये खाने पीने का सामान अपनी माँ को दे दे|

मैंने चाट माँ को दी और खुद कपडे बदलने बड़े घर चल दिया| नेहा जो मेरी गोद में थी वो मेरी गोद से उतरी और माँ के पास बैठ कर उन्हें आज की पिक्चर की कहानी सुनाने लगी|

मैं अपने कपडे बदल के छप्पर के नीचे आया पर भौजी मुझे वहाँ नहीं मिलीं, आखिर मैं उनके घर में पहुँचा तो भौजी मुझे दरवाजे की ओर पीठ कर के खड़ी दिखाई दीं| मैंने चुपके से भौजी को पीछे से अपनी बाँहों में भर लिया और उनकी गर्दन पर अपने होंठ रख दिए| मेरे होठों के स्पर्श मात्र से भौजी के मुख से सिसकारी फूट पड़ी; "स्स्स्स्स्स्स्स्स!" चूँकि मैंने भौजी को पीछे से जकड़ा था इसलिए मैंने उनका मुख अभी तक नहीं देखा था, पर ये एहसास हो गया था की माधुरी की वजह से उनका मूड खराब है!

मैं: जानता हूँ आपका मूड खराब है, पर प्लीज मेरे लिए अपना मूड ठीक कर लो! अभी तो आपका आखरी तोहफा बाकी है!

मैंने भौजी का मन बदलने हेतु कहा|

भौजी: उस माधुरी ने.....

इसके आगे भौजी कुछ कहतीं उससे पहले ही मैंने उन्हें अपनी तरफ घुमाया और उनके होठों पर ऊँगली रखते हुए उन्हें चुप करा दिया|

मैं: shhhhhh... बस अब मूड मत ख़राब करो!

भौजी मेरी आँखों में देखने लगीं और बोलीं;

भौजी: तो अगला 'सरप्राइज' क्या है?

मैं: जल्दी पता चल जायेगा, पर पहले आप को मेरी एक इच्छा पूरी करनी होगी|

मैंने मुस्कुराते हुए कहा|

भौजी: हाँ बोलिए, आपका हुक्म सर आँखों पर!

भौजी ने बड़ी नजाकत से कहा|

मैं: मैं आज रात आपको आपके शादी के जोड़े में देखना चाहता हूँ|

मैंने भौजी की ठुड्डी पकड़ते हुए कहा|

भौजी: बस? इतनी सी बात! ठीक है और कुछ हुक्म करिये?

भौजी ने मुस्कुराते हुए कहा|

मैं: और कुछ नहीं! मैं रात को साढ़े ग्यारह बजे आऊँगा!

इतना कह के मैं बाहर जाने लगा तो भौजी ने मेरा हाथ थाम लिया और बोलीं;

भौजी: और मेरे 'सरप्राइज' का क्या?

मैं: वो कल मिलेगा|

मैंने भौजी को आँख मारते हुए कहा|

भौजी: कल? इतना इन्तेजार करवाओगे मुझसे?

भौजी ने उलाहना देते हुए कहा|

मैं: हाँ क्योंकि इन्तेजार करने में जो मजा है वो किसी और बात में नहीं|

भौजी: आप भी न सच्ची बहुत तड़पाते हो!

ये कहते हुए भौजी मेरे सीने से आ लगीं|

मैं: अच्छा ये तो बात हुई सरप्राइज की, अब मैं कुछ और बात भी करना चाहता हूँ|

भौजी: हाँ बोलो?

भौजी मेरे सीने से लगे हुए ही बोलीं, पर मैं अपनी बात कह कर उनका मूड फिर खराब नहीं करना चाहता था;

मैं: नहीं अभी नहीं बाद में!

मैंने भौजी के बालों में हाथ फेरते हुए कहा| भौजी ने अपना सर मेरी छाती से हटाया और मेरी आँखों में देखते हुए बोलीं;

भौजी: नहीं कहिये ना?

मैं: अभी नहीं, बड़ी मुश्किल से आपका मूड ठीक हुआ है और मैं उसे दुबारा ख़राब नहीं करूँगा|

ये कहके मैंने उनके होठों को अपने होठों से छुआ और हलकी सी kiss देके बाहर निकल आया| बाहर नेहा बहुत खुश दिख रही थी और माँ के पास बैठी उन्हें बड़े मजे से कहानी सूना रही थी| मैंने पीछे से जा कर उसे गोद में उठा लिया और उसके सर को चूमा, नेहा एकदम से मेरी तरफ पलटी और अपने दोनों हाथों को मेरी गर्दन के इर्द-गिर्द लपेटना चाहा| मैं उसे ले कर अपनी चारपाई पर आ गया, मैं लेट गया और नेहा को अपने पेट पर बिठा लिया| हम दोनों ने चिड़िया उडी खेलना शुरू कर दिया, जब भी वो गाय, बकरी, भैंस, कूकुर इत्यादि उड़ाती तो मैं उसे जोर से गुदगुदी करता और वो खिलखिलाकर हँसने लगती| हँसते-हँसते जब वो थक गई तो वो मेरी छाती पर लेट गई, इस तरह आज नेहा मुझसे कुछ ज्यादा ही दुलार कर रही थी| जब से मैं आया था तब से मैंने नेहा को चन्दर के साथ कभी नहीं देखा था और जब से वो बेल्ट वाला हादसा हुआ तबसे तो नेहा चन्दर भैया से एक दम कट गई थी| मुझे तो लगता था की वो उन्हें अपना बाप ही नहीं मानती, खेर ये मेरी अपनी सोच थी क्योंकि मैंने कभी भी नेहा से इस बारे मैं बात नहीं की|

रात को खाना भौजी ने ही बनाया और वो खाके मैं अपनी चारपाई पर लेटा था और तभ कूदती हुई नेहा भी मेरे पास आके लेट गई| मैंने नेहा को हमेशा की तरह कहानी सुनाई और वो सुनते-सुनते मुझसे लिपट कर सो गई| जैसे ही घडी में रात के साढ़े ग्यारह बजे मैं बाथरूम जाने के बहाने से उठा और चेक करने लगा की सब सो रहे है न| फिर मैं दबे पाँव सीधा भौजी के घर की ओर चल दिया| दरवाजा खुला था इसलिए मैंने धीरे से भीतर प्रवेश किया और भीतर जा कर आहिस्ते से दरवाजा बंद किया| जैसे ही दरवाजा बंद कर के मैं पलटा तो देखा भौजी आँगन में अपनी शादी का लाल जोड़ा पहने, घूँघट काढ़े मेरे सामने खड़ी हैं| आंगन में भौजी ने एक दीपक जला रखा था जिसकी रौशनी में मैं भौजी का यौवन देख सकता था| लाल रंग की वो साडी जिस पर सुनहरे रंग का बॉर्डर था, भले ही भौजी ने घूंघट काढ़ा था पर उस घूँघटे में छिपे उनके हुस्न को महसूस कर सकता था! भौजी ने अपने दाएँ हाथ से अपना घूँघट संभाल रखा था और बाएँ हाथ को अपने दाहिने हाथ की कोहनी पकड़ी हुई थी| भौजी के दोनों हाथ में लाल चूड़ियाँ थीं, जिनका रंग आज कुछ ज्यादा ही फ़ब रहा था! भौजी ने आज गले में एक चांदी का हार पहन रखा था जो हलकी चांदनी में चमक रहा था! भौजी की साडी आज उनकी नाभि से थोड़ा नीचे बँधी थी, उनकी नाभि तो मैं ठीक से देख नहीं पाया पर मेरे अंतर्मन ने उसकी बड़ी ही सूंदर कल्पना गढ़ ली थी! पाँव में उनके वही हमेशा वाली पायल थी जिसकी आवाज मुझे मोहित करती थी, लेकिन वो पायल मैं आज देख न सका क्योंकि भौजी की साडी ने उसे आज अपनी आड़ में छुपा लिया था!

करीब पाँच मिनट तक मैं हाथ बाँधे खड़ा उन्हें देखता ही रहा, उन्हें निहारता रहा और इस दौरान भौजी कुछ न बोलीं| अब मन भौजी को घूँघट के भीतर से देखना चाहता था, इसलिए मैं धीरे-धीरे उनकी ओर बढ़ा और उनके सामने हाथ बाँधे खड़ा हो गया| उनके नजदीक आने से मुझे उनके जिस्म से गुलाबजल की महक आने लगी और उस महक को सूँघ मैं मंत्रमुग्ध हो गया! आँखें बंद कर मैं उस खुशबु को सूँघने लगा, परन्तु भौजी से ये सब बर्दाश्त करना थोड़ा मुश्किल हो रहा था तो उन्होंने घूँघट के नीचे से थोड़ा खाँसा जिस कारन मेरी तन्द्रा भंग हुई! उनकी ये खाँसी दरअसल में एक प्यार भरा उलाहना था! अपनी तन्द्रा से भंग होने के बाद मैंने मुस्कुराते हुए भौजी का घूँघट उठाया, जब आँखों के सामने उनका सजा-संवरा हुस्न आया तो दिल धक् से रुक गया! उनके इस हुस्न ने तो आज मेरा क़त्ल ही कर दिया था! चाँद की रौशनी में ऐसा लग रहा था जैसे चाँद का एक टुकड़ा कट के मेरी झोली में आ गिरा हो! भौजी की ये सुंदरता देख मुझे समझ ही नहीं आया की मैं क्या कहूँ?

शर्म के मारे भौजी की आँखें झुकी हुई थीं, पर मेरी आँखें उनके चेहरे की ख़ूबसूरती को निहारने लगी थीं! आँखों में सुरमा लगा था जिससे भौजी की झुकी हुई आँखें भी बहुत बड़ी दिख रही थीं! माथे पर लाल बिंदी ऐसी लग रही थी मानो उगता हुआ सूर्य हो! नाक में सोने की नथनी चमक रही थी, मुझे खुद का यूँ दीदार करता देख भौजी के गाल शर्म से लाल होने लगे थे और वो लालिमा देख कर मेरा मन बहुत प्रसन्न हो रहा था, पेट में जैसे तितलियाँ उड़ने लगी थीं! होठों पर लगी लाल लिपस्टिक देख कर मेरा मन मचलने लगा था! दिल कहता था की उन लाल-लाल होठों को अपने होठों से छु लूँ और उनका रस धीरे-धीरे पी लूँ!

अपने मचलते मन को काबू कर अब समय था भौजी के इस सूंदर हुस्न और उनके श्रृंगार को पूरा करने का! आजतक हम जिस रिश्ते को दिल से मान चुके थे, अब उसे विधिपूर्वक पूरा करने का समय आज था! जिस मोह की डोर ने हमें बाँधा था उस डोर को चट्टान की तरह मजबूत करने का! मैंने भौजी की ठुड्डी को अपनी उँगलियों से पकड़ ऊपर उठाया और तब हमारी आँखें चार हुई!

"प्लीज अपनी आँखें बंद करो!" मैंने बड़े आहिस्ते से भौजी से कहा| ये सुन भौजी ने बड़ी नजाकत से अपनी आँखें बंद की, मैंने अपनी जेब में हाथ डाला और ट्रैक पेंट से मंगलसूत्र का केस निकाला| मंगलसूत्र हाथ में लेके मैं भौजी के पीछे खड़ा हुआ और उनके गले में उसे पहना कर गर्दन के पीछे उसे लॉक किया| अब भौजी को कुछ तो समझ आ गया था क्योंकि जैसे ही मैंने मंगलसूत्र को लॉक किया और अपने हाथ वापस खींचे तो भौजी ने अपनी आँखें उसी नजाकत से खोलीं जिस नजाकत से बंद की थी| मंगलसूत्र देखते ही वो एकदम से मेरी तरफ पलटीं और काँपती हुई जुबान से बोलीं; "ये... आपके पास....?!" इसके आगे वो कुछ बोलतीं उससे पहले ही मैंने उनके होठों पर अपनी ऊँगली रख दी|

"Shhhhh.... जब से मैं आया हूँ तब से मैंने आपको कभी मंगलसूत्र पहने नहीं देखा| आप मंगलसूत्र क्यों नहीं पहनते ये भी मैं जनता हूँ, क्योंकि वो मंगलसूत्र आपको चन्दर ने दिया था! पर ये मंगलसूत्र मेरी ओर से है, मुझे आपने अपना पति माना है न, तो आपको मंगलसूत्र पहनना मेरा फ़र्ज़ बनता है|" मैंने कहा तो भौजी की आँखें ख़ुशी से फ़ैल गईं और उनकी आँखें भर आईं| मैं जनता था की उनके मन में ये संदेह अवश्य होगा की मैंने ये कहीं से चुराया है या इसके लिए मेरे पास पैसे कहाँ से आये तो मैंने उनके संतोष के लिए उन्हें सब बताना शुरू किया; "ये मैंने कहीं से चुराया नहीं है, मुझे स्कूल जाते समय पिताजी जेब खर्ची के लिए पैसे देते हैं उन्ही पैसों से मैंने आपके लिए ये खरीदा है!" ये सुन कर भौजी के दिल को सांत्वना मिली की मैंने कोई गलत काम नहीं किया है| भौजी को मंगलसूत्र देने का एक कारन और भी था; "कल जब मैं आपसे माँ का मंगलसूत्र वापस लेने आया था तब मुझे बड़ा बुरा लगा था| तब मेरे दिल में एक ख्वाइश पैदा हुई की क्यों न मैं आपको एक मंगलसूत्र पहनाऊँ, वो मंगलसूत्र जो मैंने खरीदा हो! इसलिए आज जब आप खाना खा रहे थे तब मैं दुकाने से बहार निकल के सुनार से खरीद लाया था|" मैंने मुस्कुराते हुए कहा|

भौजी ने मेरी बातें बड़े इत्मीनान से सुनी और बातें सुन के उनकी आँखों में आँसूँ छलक आये, वो कुछ न बोल सकीं परन्तु मेरे गले लग गईं| आँखों में आये आँसुओं से उनके गले से आवाज नहीं निकल रही थी, बड़ी हिम्मत करके वो बस इतना ही बोल पाईं; "आज आपने हमारे इस रिश्ते को और मुझे पूर्ण कर दिया!" इतना कह वो रो पड़ीं!

"बस...बस... चुप हो जाओ! मैंने ये तौफा आपको रुलाने के लिए नहीं दिया!" मैंने उनकी पीठ पर हाथ फेरते हुए कहा और तब जाके भौजी चुप हुईं| मैंने उनके कंधे पर हाथ रख के उन्हें अपने से थोड़ा दूर किया और फिर उनके आँसूँ पोछे|

मैं: अब कभी मत रोना?

मैंने मुस्कुराते हुए कहा तो भौजी ने हाँ में अपना सर हिला कर मेरी बात का मान रखा| उन्हें छोड़ मैं पलट के जाने लगा तो भौजी बोलीं;

भौजी: आप कहाँ जा रहे हो?

मैं: सोने

ये सुन भौजी हैरान हो गईं और बोलीं;

भौजी: क्या? पर अभी?

उनका ये उतावलापन देख मैं मुस्कुराने लगा, तो भौजी ने मुझे छेड़ते हुए कहा;

भौजी: आज तो हमारी सुहागरात है!

अब चौंकने की बारी मेरी थी!

मैं: क्या? पर सुहागरात तो उस दिन थी न?

मैंने चौंकते हुए कहा|

भौजी: पर मंगलसूत्र तो आपने आज पहनाया है न?

भौजी ने मुस्कुराते हुए तर्क किया| लेकिन आज मेरा मन पहले से ही इतना प्रसन्न था की मुझे सम्भोग की इच्छा ही नहीं थी! भौजी मेरा चेहरा पढ़ना अच्छे से जानती थीं, इससे पहले की मैं कुछ कहता उन्होंने मुझे भावनात्मक धमकी (emotional blackmail) दे डाली;

भौजी: एक तरफ तो आप मुझे रोने के लिए मना करते हो और दूसरी तरफ मुझे यूँ अकेला छोड़ के जा रहे हो? जाओ मैं आपसे बात नहीं करती!

मैंने भौजी के दोनों कंधे पड़े और उनकी आँखों में देखते हुए बोला;

मैं: मैं आपको छोड़के कहीं नहीं जा रहा, मेरा मकसद आज आपको सिर्फ मंगलसूत्र पहनाने का था बस और कुछ नहीं|

पर भौजी आज फुल मूड में थीं, इसलिए उन्होंने एक और तर्क किया;

भौजी: वाह जी वाह! आपने तो कहा था की तीसरा सरप्राइज कल दोगे और अभी तो दूसरा दिन भी लग चूका है?

मैं: वो तीसरा सरप्राइज ये ही था! मैं कभी झूठ नहीं बोलता!

भौजी समझ गईं थीं की वो तर्क से मुझे नहीं जीत पायेंगी, इसलिए उन्होंने हट करना ही ठीक समझा;

भौजी: ठीक है बाबा! आप जीते, पर मैं आज आपको नहीं जाने दूँगी!

इतना कहके भौजी तेजी से मेरी ओर चलती हुई आईं और मुझसे कस के लिपट गईं|

भौजी: आपको पता भी है की मेरा क्या हाल है? आपके बिना मैं कितना अकेला महसूस करती हूँ! आपको नेहा का अकेलापन दिखता है पर मेरा अकेलापन नहीं दिखता न? पिछले 5 - 6 दिनों से आपने मुझे छुआ भी नहीं! कल भी सारा दिन आप मेरे साथ खेल खेलते रहे और ऐसे जताया की जैसे मैं यहाँ हूँ ही नहीं! कल रात जब आप खाना ले के आये तो मुझे लगा की आपका गुस्सा शांत हो गया है और आप रात में आओगे पर आप नहीं आये! मेरा कितना मन है आप के साथ प्रेम करने का और आप हैं की....!

भौजी ये कहते हुए रूठ गईं और अपने गाल फूला लिए!

मैं: O.K. बाबा कहीं नहीं जाऊँगा! बस..खुश!

मैंने उन्हें मनाने के लिए कहा|

[color=rgb(85,]जारी रहेगा भाग - 6 में....[/color]
 

[color=rgb(0,]बारहवाँ अध्याय: नई शुरुरात[/color]
[color=rgb(41,]भाग - 6[/color]


[color=rgb(85,]अब तक आपने पढ़ा:[/color]

भौजी: ठीक है बाबा! आप जीते, पर मैं आज आपको नहीं जाने दूँगी!
इतना कहके भौजी तेजी से मेरी ओर चलती हुई आईं और मुझसे कस के लिपट गईं|
भौजी: आपको पता भी है की मेरा क्या हाल है? आपके बिना मैं कितना अकेला महसूस करती हूँ! आपको नेहा का अकेलापन दिखता है पर मेरा अकेलापन नहीं दिखता न? पिछले 5 - 6 दिनों से आपने मुझे छुआ भी नहीं! कल भी सारा दिन आप मेरे साथ खेल खेलते रहे और ऐसे जताया की जैसे मैं यहाँ हूँ ही नहीं! कल रात जब आप खाना ले के आये तो मुझे लगा की आपका गुस्सा शांत हो गया है और आप रात में आओगे पर आप नहीं आये! मेरा कितना मन है आप के साथ प्रेम करने का और आप हैं की....!
भौजी ये कहते हुए रूठ गईं और अपने गाल फूला लिए!
मैं: O.K. बाबा कहीं नहीं जाऊँगा! बस..खुश!
मैंने उन्हें मनाने के लिए कहा|

[color=rgb(243,]अब आगे:[/color]

इधर भौजी मेरी बात सुन कुछ नहीं बोलीं बस अपने नीचे वाले होंठ को अपने दाँतों तले दबाया और मुस्कुरा दीं| पता नहीं उन्हें क्या हुआ था, क्योंकि वो मुझे एक टक देखने लगीं! कुछ सोच वो एक कदम पीछे गईं और नीचे घुटने टेक के बैठ गईं| उनकी ये प्रतिक्रिया देख मुझे अजीब सा लगने लगा था, एक अलग सी अनुभूति हुई?! इधर भौजी का हाथ मेरे पजामे के ऊपर पहुँच गया था, लेकिन इससे पहले की भौजी मेरे पजामे को नीचे खींचे मैंने उन्हें कंधे से पकड़ा और वापस खड़ा किया| भौजी अपनी दोनों भोयें सिकोड़ के सवालिया नजरों से मुझे देखने लगीं, मैंने उन्हें कुछ नहीं कहा और मुस्कुरा कर बस न में सर हिला के उन्हें रोका| भौजी को मेरी बात समझ आई की मैं नहीं चाहता की वो मेरे लिंग को अपने मुँह में लें! भौजी ने मुस्कुराते हुए अपने हाथ आगे बढ़ा के मेरी टी-शर्ट उतारी और इस बार मैंने उनका जरा भी विरोध नहीं किया| भौजी ने अपने सीधे हाथ को मेरी नंगी छाती पर फिराया और उन्हें मेरे जिस्म की गर्मी का एहसास हुआ! उस गर्मी को शांत करने के लिए उन्होंने आगे बढ़ के मेरे दिल के ऊपर अपने होठों से चुम्बन किया| उनका चुंबन ये दर्शाता था की ये अब मेरा है! फिर धीरे से वो एक कदम पीछे हो गईं, अब मैं धीरे-धीरे उनकी ओर बढ़ने लगा और वो धीरे-धीरे पीछे होती गईं! आखिर हम चारपाई तक पहुँचे तो मैंने उनके कन्धों को स्पर्श कर उन्हें बिठाया और फिर उन्हें लेटने का इशारा किया| उनके लेटते ही मैं अब उनके ऊपर छा गया और उनके होठों पर अपने होंठ टिका दिया| मैंने अपना पूरा वजन उनपे नहीं डाला था, मैं बिलकुल Plank वाली स्थिति में था|

मैंने सीधा अपनी जीभ उनके मुँह में प्रवेश करा दी जिसका स्वागत भौजी ने बड़ी गर्म जोशी से किया| मेरी जीभ उनके मुँह में भ्रमण कर रही थी और इधर भौजी ने अपने दोनों हाथों से मेरी गर्दन के इर्द-गिर्द अपनी गिरफ्त बना ली थी| उन्होंने अपने हाथों के बल का उपयोग करते हुए मुझे अपने ऊपर गिराने का पर्यटन करना शुरू कर दिया था! लेकिन मेरा ध्यान अभी उनके निचले होंठ को निचोड़ने में लगा था! भौजी के मुख से आ रही वो मधुर सुगंध पागल किये जा रही थी! मैं उन्हें बेतहाशा चूमे और चूसे जा रहा था, पर अब बारी थी भौजी की!

जैसे ही मैंने अपनी जीभ उनके मुँह में दुबारा प्रवेश कराई की उन्होंने अपने मोती से सफ़ेद दाँतों से मेरी जीभ को पकड़ लिया! भौजी ने जोश में आ कर कुछ ज्यादा जोर से मेरी जीभ दबा दी थी जिससे मेरी जीभ में पीड़ा हो रही थी! अब मेरी जीभ उनके मुँह के अंदर छटपटाने लगी जैसे किसी छिपकली की पूँछ काट देने पर उसकी पूँछ कुछ देर के लिए छटपटाने लग जाती है| ये तो साफ़ था की दोनों जिस्म सम्भोग और प्यार की मिलीजुली अग्नि में झुलस रहे थे, तो थोड़ा उग्र होना नियश्चित ही था! मेरे दर्द से अनजान भौजी ने मेरी जीभ को दाँतों से दबाये हुए ही चूसना शुरू कर दिया था! उधर मेरा लिंग पाजामा फाड़ के बहार आने को तैयार था! मैंने धीरे से अपने लिंग को उनकी योनि पर दबाना शुरू कर दिया| ये मेरा उन्हें संकेत था की मेरा लिंग किस दबाव को महसूस कर रहा है, पर भौजी मेरी जीभ को अपने दाँतों की गिरफ्त से छोड़ना ही नहीं चाहती थीं और आज उसका सारा रस पी जाना चाहती थीं| अब मुझे खुद ही अपनी जीभ भौजी के चंगुल से छुड़ानी थी तो मैं वापस प्लान्क की स्थिति में उठने लगा जिससे मेरी जीभ खींचती हुई भुजी के मुँह से बाहर निकल ही आई! लेकिन भौजी कहाँ मानने वाली थीं, उन्होंने थोड़ा ऊपर उठते हुए मेरे निचले होंठ को अपने होठों में भर लिया और लगीं उसे चूसने! अब मैंने भी सोचा की चलो जो ये चाहें वही सही, इसलिए मैंने वापस अपना पूरा वजन उनपर दाल लिया और उन्हें आराम से अपने होंठ चूसने दिए! मेरी ये दरियादिली देख भौजी के चेहरे पर मुस्कान आ गई जैसे वो कह रहीं हो की आखिर मैं आपको खुद को प्यार करने के लिए मजबूर कर ही लिया! उनकी ये विजय देख मेरे चेहरे पर भी मुस्कान आ गई और मैंने भी उनके ऊपर के होठ को चूसना शुरू कर दिया! ये सिलसिला करीब पंद्रह मिनट तक चलता रहा, न तो उनका मन था मेरे होंठ छोड़ने का और न ही मेरा मन था उनके होठों को छोड़ने का!

हम दोनों के भीतर प्रेम अग्नि अब ज्वाला का रूप ले चुकी थी, भौजी ने मेरे होठों को अपने होठों की गिरफ्त से आजादा किया और मैंने भी उनके लबों को एक बार कस कर चूस कर आजाद किया! हम दोनों के ही होंठ एक दूसरे से रस पूरी तरह से गीले थे, ये दृश्य इतना मादक था की इसका बखान करने के लिए मेरे पास शब्द नहीं हैं! हमारे लब अलग तो हुए आँखें अब भी एक दूसरे से मिली हुईं थीं, जैसे अलग ही ना होना चाहती हों! इस तरह से एक दूसरे को देखने से प्रेम की ज्वाला अब प्रगाढ़ रूप धारण कर चुकी थी पर फिर भी कुछ था जिसने हमें जंगली होने से रोका हुआ था! मैंने पहल करते हुए अपनी आँखों से उनके ब्लाउज की ओर इशारा किया और दुबारा टकटकी लगाए उन्हें देखने लगा| भौजी ने भी बिना अपनी नजरें मुझ पर से हटाये अपने ब्लाउज के बटन खोलने शुरू कर दिए, जैसे ही ब्लाउज खुला मेरे सामने दूध से सफ़ेद एक दम सही गोलाकार स्तन थे! मैं थोड़ा सा नीचे खिसका और उनके बाएँ स्तन पर अपने होंठ रख दिए! ये मेरा तरीका था उन्हें बताने का की आपके दिल पर अब बस मेरा राज है! भौजी ने मेरी इस प्रतिक्रिया का जवाब अपने दोनों हाथों को मेरे सर पर रख के दबा के दिया| मैंने उनके स्तन का पान करना शुरू कर दिया, हालाँकि उनमें दूध नहीं था पर मुझे उनके स्तन से दूध की महक जर्रूर आ रही थी! मैं उनके निप्पल को अपनी जीभ से छेड़ना लगा और भाजी के मुँह से सिसकारियाँ फूटने लगीं; "स्स्स्स्स्स्स्स्स्स्स्स ...म्म्म्म्म्म्म्म....आअह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह ज़्ज़्ज़्ज़!" उधर मैंने अपने बाएँ हाथ से भौजी के दाहिने स्तन का मर्दन शुरू कर दिया था, जिस कारन भौजी ने कसमसाना शुरू कर दिया था! उनके जिस्म में उठ रही तरंगों के कारन उनके दिल की धड़कनें तेज हो चली थीं जिन्हें मैं उनके स्तनपान करने के दौरान अपने माथे पर महसूस कर पा रहा था| इधर भौजी निरंतर अपने हाथों का दबाव मेरे सर पर डाले जा रहीं थी, जैसे कह रहीं हो की खा जाओ, काट लो इन्हें!

बिना कुछ बोले सम्भोग करने में जो मजा है वो अकल्पनीय है, बशर्ते आपका साथी आपकी अनकही बात को समझ सकता हो!

खैर मैंने अपने दाँतों से भौजी के निप्पल को काटना शुरू कर दिया था, जैसे ही मेर दाँत उनके निप्पल को छूते तो वो दर्द के कारण चिहुक उठती और उनके मुंह से "आअह्ह्ह..स्स्स्स्स्स" की सीत्कार निकल पड़ती! मुझे इस तरह भौजी को मादक पीड़ा देने में बड़ा आनंद आ रहा था और मेरा उन्हें ये पीड़ा देने से रुकने का मन भी नहीं कर रहा था, पर मैं भौजी के दाहिने स्तन के साथ तो ज्यादती नहीं कर सकता था! इसलिए मैंने भौजी के बाएँ स्तन को छोड़ा और उसे एक नजर देखने लगा और फिर देखता ही रहा, वो बिलकुल लाल हो चूका था तथा उसमें मेरे दाँतों के निशान पड़ चुके थे! अब भौजी का दायाँ स्तन जैसे मेरे होठों से शिकायत कर रहा हो की आखिर मेरे साथ ही सौतेला व्यवहार क्यों?! आखिर मैंने उसे (दायें स्तन को) अपने मुँह में भर लिया और उसे भी वही प्यार दिया जो बायें वाले को दिया था! मेरे भौजी के दाएं स्तन को चूसने तथा काटने के दौरान भौजी का कसमसाना जारी था और उनके मुँह से "स्स्स्स्स्स्स्स्स्स्स्स्स्स्स्स्स्स्स्स्स......उम्म्म...अन्न्न्ह्ह्ह्ह..." की सिसकारियाँ जारी थी| दाएँ स्तन का पान करने के बाद अब समय था दोनों स्तनों को एक-एक कर प्यार करना! मैं कभी अपनी जीभ से उनके दाएँ निप्पल को बार-बार छेड़ता, तो कभी बाएँ निप्पल को अपने दांतों से कस कर दबाता और मेरा ऐसा करने से भौजी के मुँह से दर्द भरी आह निकल पड़ती; "आअह्हह्हह...म्म्म्म!!" फिर मैंने अपना मुँह जितना हो सकता था उतना खोला और उनके दाएँ स्तन को अपने मुँह में भर के काट लिया! मेरे उनके स्तन को काटने से भौजी के जिस्म में दर्द का संचार हुआ और उन्होंने अपने दोनों हाथों से मेरे सर में उँगलियाँ फिराना चालु कर दी! अब मुझे ये महसूस हो रहा था की इस मीठी-मीठी पीड़ा में भौजी को कितना आनंद आ रहा है! भौजी के दोनों स्तन मैंने चूस और काट कर लाल कर दिए थे!

मैं सीधा नीचे की ओर बढ़ा और उनकी नाभि को kiss किया! जो पल्ला भौजी ने अपनी कमर में खोंसा हुआ था, मैंने उसे निकाल दिया जिससे उनकी साडी ढीली हो गई! मैंने भौजी की साडी खोल कर उनके जिस्म से अलग कर दी, अब बचा पेटीकोट तो मैंने उसका नाडा खोल दिया और उसे नीचे न उतार के ऊपर की ओर मोड़ दिया तथा एकदम से भौजी की योनि पर अपने होंठ रख दिए| भौजी ने अपनी दोनों टांगें पूरी खोल लीं जिससे उनकी योनि और उभर के सामने आ गई| मैंने उठ कर एक नजर भौजी को देखा तो पाया की वो इन्तेजार कर यहीं हों की कब मैं अपना मुँह उनकी धधकती योनि पर लगाऊँगा! भौजी की योनि पहले से ही पनिया चुकी थी, मैंने जैसे ही अपनी जीभ उनकी योनि पर लगा के एक सुड़का मारा तो भौजी का बदन कमान की तरह हवा में खिंच गया! उनकी ये प्रतिक्रिया देख मैंने अपनी जीभ से उनकी योनि ऊपर-ऊपर से कुरेदनी शुरू कर दी! जब मैंने धीरे से भौजी के भंगनासे को अपने जीभ की नोक से छेड़ा, तो भौजी तड़प उठीं; "स्स्स्स्स्स्स्स्स...उम्म्म!!!" ये भौजी के जिस्म का वो कमजोर हिस्सा था जिसे मैं अपने मन मुताबिक छेड़ना चाहता था! मैंने उनके भगनासे को अपने होठों में भर लिया और जीभ से उसे चुभलाने लगा! इसकी प्रतिक्रिया स्वरुप भौजी विचलित होने लगीं और उनका बदन फिर से कमान की तरह खिंच गया| केवल उनकी गर्दन तकिये पर थी बाकी का सारा शरीर कमान की तरह ऊपर की ओर उठ चूका था| जब मैंने उनके भगनासे को छोड़ा तो धीरे-धीरे उनका शरीर पुनः सामान्य हो गया| मुझे महसूस हुआ की भौजी का ज्वार अभी तक शांत नहीं हुआ है, इसलिए करीब 5 - 7 सेकंड सांस लेने के बाद मैंने पुनः डुबकी लगाईं और इस बार सीधा भौजी की योनि में अपनी जीभ प्रवेश करा दी! जीभ के उनकी योनि के भीतर प्रवेश करते ही भौजी छटपटाने लगीं, उन्माद से भरने के कारन उन्होंने तकिये को दोनों हाथों से पकड़ लिया और बार-बार अपनी कमर हवा में उठाने लगीं| मैंने उनकी योनि की खुदाई जारी रखी और इधर भौजी ने अपना हाथ मेरे सर के ऊपर रखा और मेरा उत्साह बढ़ाने के लिए मेरे बालों में अपनी उँगलियाँ फिराने लगीं! उनकी उँगलियाँ मेरे बालों में जादू करने लगीं और मेरे रोंगटे खड़े हो गए! मैं और भी ज्यादा जोश से उनकी योनि को चाटने तथा चूसने लगा| अपने जोश के चलते मैं कभी-कभी भौजी की योनि के कपालों को अपने दाँतों से हल्का दबा देता और भौजी दर्द से चिहुंक उठतीं; "आह!!!" दस मिनट तक उनकी योनि को अपने मुँह से भोगने के बाद मुझे लगा की भौजी अब स्खलित होने वाली हैं इसलिए मैं पूरी तरह तैयार हो गया ताकि उनका सारा योनि रस पी सकूँ! फिर अगले दो सेकंड में भौजी ने अपनी कमर हवा में उठाई और उनकी योनि से रस मेरे मुँह में जाने लगा| बिना रुके भौजी स्खलित होती रहीं और मुझे उनका नमकीन रस अपने मुँह में भरता महसूस होने लगा! सारा रस मुझे पिलाने के दौरान उनकी योनि ने एक मादक खुशबु छोड़ी जो मेरे दिल में हलचल मचा रही थी! उस मादक खुशबु के कारन मैंने फिर से उनके भगनासे को छेड़ना जारी कर दिया! शायद इसी कारन भौजी की योनि से रस निकलना अब भी बंद नहीं हुआ, अगले बीस सेकंड तक वो स्खलित होती रहीं और मैं मन भर के उनका योनि रस पीता रहा!

इस भारी स्खलन के कारन भौजी हाँफने लगीं, मैं उन्हें और तंग नहीं करना चाहता था इसलिए में उठ कर उनकी बगल में लेट गया| करीब एक मिनट बाद जब उनकी सांसें सामान्य हुईं तो वो मेरी ओर करवट लेके लेट गईं तथा उन्होंने अपना सर मेरी छाती पर रख लिया और बायाँ हाथ मेरे पेट पर रख उसकी ऊँगली को मेरे पेट पर फिराने लगीं| मैं उनके हाव भाव से समझ गया की वो संतुष्ट हैं और ये देख मैं मन ही मन बहुत खुश था| उस समय मैं उनके साथ सम्भोग नहीं करना चाहता था क्योंकि मेरा बुद्धू मन कह रहा था की ऐसा करने से मैं उनसे दिन में दिए सभी तोहफों (surprises) के बदले में उनसे कुछ माँग रहा हूँ| मैं उनसे कोई सौदा नहीं करना चाहता था बल्कि उन्हें खुश देखना चाहता था| हालाँकि उसी बुद्धू मन के एक कोने में सम्भोग करने की इच्छा भी थी, पर फिर अंतर्-आत्मा ने भी मना कर दिया| ये मेरा भौजी के प्रति समर्पण ही था जो सिर्फ उनके साथ होने से ही खुश हो जाता था, सम्भोग मेरे लिए कभी प्रथम स्थान पर नहीं रहा! उनके साथ लिपट कर सोने को मिल जाए तो मैं उसी में खुश था!

लेकिन भौजी को हमेशा मेरे दिल की बात बिना कहे ही पता चल जाती थी! भौजी का ज्वार अब शांत हो चूका था, वो उठ के खड़ी हुईं और अपना पैटीकोट निकाल फेंका तथा पूरी तरह निर्वस्त्र होकर वापस आ के मेरे बगल में उसी तरह लेट गईं| उनका नंगा बदन मेरे अंदर शांत हो रही आग को फिर से जलाने लगा था, पर मैं अब भी झिझक रहा था! जब मैंने कोई प्रतिक्रिया नहीं दी तो उन्होंने अपनी बायीँ टाँग उठा के मेरे लिंग पर रख दी| उनकी ये शरारत देख मैं हल्का सा मुस्कुरा दिया, मेरी मुस्कराहट को अपनी जीत समझ वो अपने आप ही मेरे ऊपर चढ़ गईं! भौजी को मेरे मुँह से अपने योनि रस की महक आ रही थी, उन्होंने बिना कुछ कहे ही मेरे होठों पर kiss किया| धीरे-धीरे उनपर मदहोशी चढ़ने लगी थी और जिसके चलते वो मेरे होठों को चूसने लगीं! ये सिलसिला तब तक चलता रहा, जब तक उन्हें ये संतोष नहीं हो गया की मेरे मुख में अब उनके योनि रस की महक खत्म हो गई है! अब वो धीरे-धीरे नीचे हुईं और मेरे निप्पल्स को अपने दाँतों से बारी-बारी काट लिया! उनके काटने से मेरे मुँह से पीड़ा भरी चीख निकल पड़ी; "आह...स्स्स!!" फिर उन्होंने मेरे निप्पल्स के इर्द-गिर्द वाले भूरे हिस्से को निप्पल समेत अपने मुँह में भर लिया और उसे चूसने लगीं, शायद उन्हें लगा की इसमें से कुछ निकलेगा! पर जहाँ से निकलना था वो तो उनकी नंगी योनि और मेरे पजामे के बीच फँसा हुआ था! मेरे निप्पल चूसने का अजब असर भौजी की योनि पर पड़ा जो गर्म होने लगी तथा उसकी ये गर्मी मुझे अपने लिंग पर महसूस होने लगी! अब मेरा बेचारा लिंग बहार आके सांस लेने के लिए तड़प उठा! पर मेरे लिंग की तेदेपा से अनजान भौजी ने मेरे दोनों निप्पलों को चूसना तथा चबाना जारी रखा, इधर मैं अपने निप्पलों के चूसे तथा चबाये जाने के कारन बस सिसकियों के सागर में गोता लगता हुआ रह गया! मेरे निप्पलों को काट कर लाल कर भौजी रुकीं और मूक भाषा में अपनी शेखी बखारने लगीं, उनके चेहरे में एक मादक मुस्कान तैरने लगी जैसे उन्होंने मेरे उनके स्तनों को चूस-काटने का बदला ले लिया हो!

खैर मेरे निप्पलों को काट कर लाल करने के बाद भौजी नीचे की ओर बढ़ीं तथा मेरी नाभि को चूमा! वो सरक कर मेरी पिंडलियों पर बैठ गईं, जब उनकी नजर मेरे पाजामे पर पड़ी तो उसमें बने उस दानव उभार को वो ललचाई नजरों से देखने लगीं! चेहरे पर ललचाई मुस्कान लिए उन्होंने मेरे पजामे का नाडा खोला और उसे और कच्छे समेत पकड़ कर नीचे किया| अब उनके सामने मेरा फ़न-फनाता हुआ लिंग खड़ा था, जिसे वो प्यासी नजरों से क्षण भर देखने लगीं! इधर कपड़ों की जकड़न से आजादी पा कर मेरे लिंग ने एक तेज सांस ली! भौजी ने अपने दाहिने हाथ से उसे जड़ से पकड़ा और उसकी चमड़ी नीचे की जिससे मेरे प्री-कम से गीला सुपाड़ा बहार आया| भौजी मेरे लिंग पर झुकीं और धीरे-धीरे अपना मुँह खोला तथा उसे अपने मुँह में भर के रुक गईं! उनके गले से निकल रहीं गरम सांसें मुझे अपने लंड पे महसूस होने लगीं जिस कारण मैं जैसे हवा में उड़ने लगा!

आज भौजी मुझे तड़पाने के मूड में थीं, इसलिए उन्हें मेरे लिंग को चूसने की बजाये अपने पैने दाँत मेरे सुपाड़े पर गड़ा दिए! उनके दाँत गड़ते ही मैं दर्द से सीसिया पड़ा; "स्स्स्स्स्स्सससस...आह...हहहहह...हहहससस..!!!" मेरे लिंग को कुछ आराम देने के लिए भौजी ने एक लम्बा सुड़पा मारा और पूरा लिंग अपने मुँह के भीतर ले लिए! मेरा पूरा लिंग उनके गर्म-गर्म मुँह में था और ऊपर से उस पर धोंकनी जैसी लग रही उनकी गर्म साँसों से मेरी हालत ख़राब होने लगी थी| भौजी ने धीरे-धीरे अपना मुँह मेरे लिंग पर ऊपर-नीचे करना शुरू किया और मेरे लिंग को पूरा चूसने लगीं! मात्र दो मिनट में ही मेरे अंदर का ज्वलमुखी उबल पड़ा और बाहर आने को तैयार हो गया! इसे पहले की मेरा ज्वालामुखी फूटे, मैंने भौजी के गालों को सहला कर रुकने का इशारा किया| मैंने भौजी को ऊपर बुला लिया और अपनी बगल में लेटने का इशारा किया| क्षण भर तक हम एक दूसरे को देखते रहे जिसका फायदा ये हुआ की मेरा ज्वालामुखी शांत होने लगा| जब वो बिलकुल ठंडा हो गया तब मैं भौजी के ऊपर आ गया और अपने लिंग को उनकी योनि पर सेट किया, पर फिर मन किया की क्यों न इन्हें और तड़पाऊँ?! इसलिए मैं लंड को ऊपर-ऊपर से उनकी योनि पर रगड़ने लगा परन्तु अंदर नहीं धकेला! मैं अपने लिंक के सुपाडे से भौजी के भगनासे को छेड़ने लगा जिस कारन भौजी तड़प उठीं और अपने हाथ से मेरे लंड को पकड़ने की कोशिश करने लगीं! पर मैंने उन्हें अपना लिंग पकड़ने ही नहीं दिया नहीं दिया! आज ये तड़पाने का खेल खेलने में मुझे बहुत मज़ा आ रहा था और मैं इस खेल को और खींचना चाहता था पर फिरइस हसीन खेल के दौरान जो हुआ उसे सुन के मेरे होश उड़ गए!

"Please.... I can't take it anymore!" (प्लीज मुझसे अब और बर्दाश्त नहीं होता!)

अनायास ही भौजी के मुँह से ये बोल फूट पड़े, जिसे सुन के मेरी आँखें फटी की फटी रह गईं!
 

[color=rgb(85,]तेरवां अध्याय: सत्य[/color]
[color=rgb(0,]भाग - 1[/color]


[color=rgb(65,]अब तक आपने पढ़ा:[/color]

"Please.... I can't take it anymore!" (प्लीज मुझसे अब और बर्दाश्त नहीं होता!)
अनायास ही भौजी के मुँह से ये बोल फूट पड़े, जिसे सुन के मेरी आँखें फटी की फटी रह गईं!

[color=rgb(184,]अब आगे:[/color]

भौजी के मुख से ये शब्द सुन कर मैं स्तब्ध रह गया, मेरा दिमाग एकदम सन्न हो चूका था! मैंने सपने में भी कभी नहीं सोचा था की भौजी अंग्रेजी बोल सकती हैं! हालाँकि मुझे उनके अंग्रेजी बोलने से कोई दिक्कत नहीं थी बस एक शिकवा था की उन्होंने कभी मुझे बताया नहीं|

ये सब सोचते हुए मैं एक दम से रूक गया और भौजी को समझते देर न लगी की काम के वेग के चलते उन्होंने वो कह दिया जो उन्हें नहीं कहना चाहिए था! परन्तु भौजी का काम वेग शांत नहीं हुआ था इसलिए उन्होंने अचानक से मुझे अपने ऊपर खींचा और मुझे नीचे कर के मेरे पेट पर सवार हो गईं तथा अपने हाथों से मेरे लिंग को अपनी योनि के भीतर धकेल दिया| ये सब इतनी अचानक हुआ की मुझे कुछ कहने या सम्भलने का मौका ही नहीं मिला! वैसे भी अगर मैं कुछ करना भी चाहता तो नहीं कर सकता था, न मैं उठ कर जा सकता था और न ही उन पर गुस्सा कर सकता था क्योंकि आज शाम ही उन्हें वादा जो कर बैठा था! अपनी कामज्वाला शांत करने के लिए भौजी ने बड़ी तीव्रता से मेरे लिंग पर ऊपर-नीचे होना शुरू कर दिया!

इधर मेरे मन में विचारों का कोहराम छिड़ गया था| मैंने अपनी आँखें बंद कीं और बीते कुछ दिनों की सारी बातें याद करने लगा;

१. पिताजी ने नेहा का स्कूल में एडमिशन कराने के समय क्यों कहा की मैं भौजी को साथ ले जाऊँ?

वो इसलिए कहा क्योंकि भौजी पढ़ी-लिखी थीं, फिर वो नेहा की माँ थीं और नेहा के स्कूल का फॉर्म वो भरें न की मैं! मैं महा बुद्धू ये सोच रहा था की पिताजी को लगता है की क्योंकि मैं अंग्रेजी स्कूल में पढता हूँ तो इसलिए उन्होनें मुझे ये जिम्मेदारी दी है! पर फिर भौजी ने उस फॉर्म पर अंगूठा क्यों लगाया? आखिर क्यों वो ये बात मुझसे छुपा रहीं थीं?!

२. पिछले कुछ दिनों से भौजी ने अंग्रेजी के शब्दों को बोलने में अटकना बंद कर दिया था, जिसे मैंने अपनी बेवकूफी के चलते नजर अंदाज कर दिया था! क्या भौजी के प्यार के चलते मैं इतना मूर्ख हो गया की मैं उनकी ये होशियारी नहीं पकड़ पाया?

ये सब बातें सोच-सोच कर मेरा दिमाग खराब हो रहा था, पर एक हैरानी की बात ये भी थी की मेरा गुस्सा अभी तक शांत था! परन्तु उसकी जगह अब एक मीठा सा दर्द पैदा हो चूका था! ये दर्द इस बात का था की भौजी ने क्यों ये बात मुझसे छुपाई? क्या उन्हें मुझ पर विश्वास नहीं?

मैं कुछ नहीं बोला और आँख बंद किये हुए चुप-चाप लेटा रहा| दिमाग भले ही सन्न था परन्तु लिंग भौजी की योनि के भीतर पूरे मजे ले रहा था! अब उस बेचारे को इस सब से क्या फर्क पड़ना था, उसे तो अंदर गरमा-गरम भौजी के योनि रस का गीलापन तथा भौजी के जिस्म की गर्माहट दोनों ही मिल रहे थे और वो बस अपनी प्यास बुझाना चाहता था! इधर भौजी की योनि भी कुछ ऐसा ही महसूस कर रही थी, भौजी इस वक़्त कुछ ज्यादा ही उत्साह और मस्ती में बह गईं और उन्होंने अपनी गति बढ़ा दी! आँगन में उनकी सिसकारियाँ; "स्स्स्स्स्स्स्स्स्स्स्स्स्स्स्स्स्स अह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह..... उम्म्म्म्म्म्म्म्म" और चारपाई की चर-चर गूंजने लगीं थी! मैं अब स्खलन की कगार पर आ चूका था, उधर भौजी की हालत भी कुछ ऐसी ही थी! भौजी ने अचानक ही अपनी गति में ब्रेक लगा दी और स्थिर हो गईं, फिर उन्होंने अपनी कमर को गोल-गोल घुमाना शुरू किया! उनकी योनि ने मेरे लिंग के इर्द-गिर्द अपनी माँस-पेशियों से पकड़ बना कर मेरे लिंग को दबाना चालु कर दिया! अचानक ही भौजी स्खलित हो गईं और मेरा लिंग उनके योनि रस में भीग चूका था तथा उनका अतिरिक्त योनि रस बहता हुआ मेरी गांड तक जा पहुँचा था! अपने स्खलन के बाद भी भौजी ने अपनी कमर को हिलाना बंद नहीं किया था और अंततः मैंने अपना फव्वारा उनके भीतर छोड़ दिया! जैसे ही मेरा फव्वारा छूटा, की भौजी ने अपनी गर्दन ऊँची कर के पीछे की ओर मोड़ ली| ये बड़ा ही मादक एहसास था परन्तु मेरा दिमाग अभी भी अपने सवाल पर अड़ा हुआ था! स्खलन के बाद मेरे हाथों ने भौजी को छूना चाहा पर मैंने खुद को रोकते हुए चारपाई पर बिछी चादर को पकड़ लिया|

करीब 10 सेकंड बाद हम दोनों का ज्वर शांत हुआ तथा भौजी आँखें मूंदे हुए ही मेरे ऊपर लेट गईं| हम दोनों पसीने से तरबतर थे और थक चुके थे, दोनों की सांसों की गति कुछ तेज थी, भौजी मेरी छाती पर सर रखे पड़ी थीं और मेरे धड़कते दिल की धड़कनों में बसा हुआ सवाल सुन पा रही थीं! हम अब भी नंगे थे और मेरा लिंग अब भी उनकी योनि में शिथिल पड़ा था| उनका काम वेग अब पूरी तरह शांत हो चूका था और अब उनके दिमाग में दर पनपने लगा था की आखिर क्यों मैंने उनसे उनके अंग्रेजी बोलने के बारे में कुछ क्यों नहीं कहा? हिम्मत जुटाते हुए तथा एक गहरी लम्बी सांस लेते हुए भौजी बोलीं;

भौजी: आप मुझसे नाराज हो?

मैंने आँख बंद किये हुए न में गर्दन हिलाई, पर भौजी को लगा की मैं उनसे नाराज हूँ इसलिए उन्होंने बात को और कुरेदते हुए कहा;

भौजी: तो आप ने मुझसे मेरे अंग्रेजी बोलने पर क्यों कुछ नहीं कहा?

मैंने उनकी पीठ पर दोनों हाथ रखे और करवट बदली, अब भौजी का सर मेरे दाएँ बाजू पर था, मैं उनकी आँखों में देखता हुआ बोला;

मैं: मैंने आज शाम ही को आपसे वादा किया था की मैं आपसे कभी नाराज नहीं हूँगा! हाँ मुझे बुरा लगा ये जान कर की आप मुझसे बात छुपाते हो, शायद आप मुझ पर भरोसा नहीं करते!

भौजी: नहीं ऐसा नहीं है, मैं आप पर अपने से ज्यादा भरोसा करती हूँ!

ये कहते हुए भौजी की आँखें भर आई थीं|

मैं: फिर आपने मुझे कभी क्यों नहीं बताया की आप कितना पढ़े हो?

मैंने पुछा तो भौजी की आँखें स्वतः झुक गईं|

मैं: मैं तो सोच था की आप भी चन्दर की तरह अनपढ़ हो, पर मैं तो भरम में जी रहा था!

मेरी बात भौजी को बहुत चुभी, पर मैं उनका दिल नहीं दुखाना चाहता था इसलिए मैंने सारी बात अपने ही सर ले ली;

मैं: वैसे गलती आपकी नहीं है, गलती मेरी है! मैंने भी तो कभी आपसे इस बारे में कुछ नहीं पुछा? कैसा पति हूँ मैं?!

मैंने थोड़ा मुस्कुराते हुए कहा| उस वक़्त मुझे अपने पति होने के दायित्व का एहसास हुआ! एक पति का दायित्व केवल सेक्स और अपनी पत्नी को घूमना-फिरना नहीं होता? उसका ये भी फ़र्ज़ है की वो अपनी पत्नी को बेमतलब के कष्ट न दे और उसके दुःख-तकलीफों को अपने सर भी ले लिया करे!

खैर मेरे ये कहने से भौजी न नजरें उठा कर मुझे देखा और उनके चेहरे पर फिर से वो मुस्कान लौट आई जो मुझे दीवाना बनाती थी;

भौजी: कभी-कभी तो लगता है की मैं आपको बिलकुल नहीं समझ सकती?! मैं तो डर रही थी की आप मुझसे नाराज होंगे पर आपने तो कितनी सरलता से इस बात को एक्सेप्ट (accept) कर लिया| मैं सच मैं बहुत लकी (lucky) हूँ की मुझे आप मिले| मेरा आपसे ये बात छुपाने का सिर्फ एक ही कारन था, वो था जब आप मेरी अंग्रेजी सुधारते थे तो आपके चेहरे पर जो मुस्कान आती थी उसे देख कर मुझे बहुत ख़ुशी होती थी! इसीलिए मैं जानबूझ कर टूटी-फूटी और गलत अंग्रेजी के शब्द बोलती थी!

भौजी का ये भोलापन देख और सुन मेरे चेहरे पर मुस्कान आ गई! अब जब मुझे सच पता चला तो दिल में अब कोई गिला-शिकवा नहीं बचा था, बचा था तो बस ये जानना की वो कितना पढ़ी हैं? दिमाग ने अपने आप ही अटखलें लगाना शुरू कर दिया था की हो न हो भौजी जर्रूर ग्रेजुएट हैं! ये सोच कर ही मुझे खुद पर गर्व हो रहा था की मुझे एक पढ़ी-लिखी और ग्रेजुएट बीवी मिली है| अपनी अधीरता दिखाते हुए मैंने उनसे पुछा;

मैं: अच्छा ये बताओ की आप कितने पढ़े हो?

भौजी: दरअसल बचपन से मुझे पढ़ने-लिखने का बहुत शौक था, पर पिताजी ने कभी पढ़ने नहीं दिया| उन दिनों चरण काका की बेटी शहर से आई हुई थी, वो आपकी तरह शहर में पढ़ती थी और उसी के पास मैंने जीवन में पहली बार किताबें देखीं! मैं उन्हें खोल के देखने लगी और चरण काका की बेटी मुझे वर्णमाला के कुछ अक्षर सिखाने लगी| ये सब एक दिन चरण काका ने देख लिया और पिताजी से कहा की मुझे पढ़ने दिया जाए, पर पिताजी नहीं माने| ऐसा नहीं था की हमारी माली (financial) हालत ख़राब थी पर पिताजी का मानना था की केवल लड़कों को ही शिक्षा का अधिकार है, लेकिन फिर वो चरण काका के जोर देने पर मान गए और मुझे पढ़ने के लिए मेरी मौसी के पास शहर भेज दिया| मौसी ने मेरा एडमिशन एक सरकारी स्कूल में करा दिया, पढ़ते-पढ़ते मैं दसवीं में पहुँची और अभी बस दसवीं के इम्तिहान ही दिए थे की मेरी शादी करा दी गई! उसके बाद मैंने अपने मन को मार लिया और चूल्हे-चौके में मन लगा लिया|

ये कहते हुए भौजी की आँखों से आसूँ छलक आये और उन्होंने अपना सर मेरे सीने से लगा लिया|

भौजी: फिर आप मिले और मेरी जिंदगी बदल गई, सच कहूँ तो मैं भगवान की शुक्रगुजार हूँ जो आप मेरी जिंदगी में आये| मुझे अब कोई गिला नहीं की मेरी पढ़ाई छूट गई, हाँ शुरू-शुरू में था पर अब नहीं! अब मेरे पास आप हो और आपके इलावा मुझे कुछ नहीं चाहिए|

भौजी ने अपने ऑंसू पोछते हुए कहा|

मैं: आप अब भी पढ़ना चाहते हो?

मैं पुछा ताकि मैं घर में सबसे बात कर सकूँ और बहूजी को कॉरेस्पोंडेंस के जरिये पढ़ने का मौका मिले| पर भौजी ने मेरे मन की बात पकड़ ली;

भौजी: नहीं...अब मन नहीं लगता! और ना ही आपको इसके बारे में किसी से बात करने की कोई जर्रूरत है| आप के इलावा इस घर में और कोई नहीं जानता की मैं दसवीं तक अंग्रेजी में पढ़ी हूँ| सब को लगता है की मैं हिंदी में पढ़ी हूँ!

मैं: यार कितनी शर्म की बात है की घर में अंग्रेजी पढ़ी हुई बहु है और किसी को उसकी कदर ही नहीं! इसलिए मैं कह रहा था की मेरे साथ भाग चलो!

माने भौजी को भागने का प्रलोभन देते हुए कहा पर भौजी कहाँ मानती!

भौजी: छोड़ो इस बात को!

मैं: तो promise me की अब से आप और मैं अंग्रेजी में ही बात करेंगे?

पर भौजी ने एकदम से मना कर दिया;

भौजी: नहीं! अगर किसी को पता चल गया तो बखेड़ा खड़ा हो जायेगा!

अब मेरा तो बड़ा मन था की हम अंग्रेजी में बात करें पर भौजी की बात भी सही थी की अगर हम अंग्रेजी में बाते करेंगे तो सब सोचेंगे की हम दोनों अंग्रेजी में कोई खिचड़ी पका रहे हैं|

मैं: ठीक है बाबा, वैसे भी आप कौन सी मेरी हर बात मानते हो|

मैंने भौजी को प्यारभरा उलाहना देते हुए कहा|

भौजी: आपके लिए तो जान हाजिर है, पर ....

वो आगे कुछ बोलेन उसके पहले ही मैं बोला;

मैं: ठीक है बाबा आपको कोई सफाई देने की कोई जर्रूरत नहीं, मैं समझ सकता हूँ|

ये सुन कर भौजी मुस्कुरा दीं;

भौजी: आप मेरी हर बात बिना कहे ही कैसे समझ जाते हो?

मैं: प्यार जो करता हूँ आप से!

ये कहते हुए मैंने उनके होठों को चूम लिया|

हमारे घर वालों को भौजी के पढ़े-लिखे होने से कोई फर्क नहीं पड़ता था, लेकिन अगर वो किसी बात में अपनी राय देतीं तो सब यही कहते की ये ज्यादा पढ़ी लिखी है, इसलिए अपनी धोंस दिखा रही है! जो की भौजी का आचरण बिलकुल भी नहीं था, इसीलिए वो हमेशा चुप ही रहती थीं| ये तो जब से मैं आया था तब से वो कुछ बोलने लगीं थीं वरना वो हमेशा खामोश ही रहा करती थीं!

ये कुछ पल की चुप्पी भौजी को पसंद न आई, इसलिए उन्होंने बात शुरू करए हुए पुछा;

भौजी: अच्छा आप को मुझसे कुछ बात करनी थी न?

भौजी ने अपना दायाँ हाथ मेरी छाती पर रखते हुए कहा|

मैं: हाँ वो....

इतना कह मैं कुछ सोचने लगा| दरअसल मैं उन्हें उनके माधुरी पर यूँ बरस पड़ने के लिए समझना चाहता था, लेकिन उसका नाम सुनते ही भौजी का मुँह टेढ़ा हो जाता! इसलिए मैंने इस बात को कल सुबह के लिए टालना ठीक समझा|

भौजी: बोलो ना?

भौजी ने मेरी ओर प्यार से देखते हुए कहा|

मैं: अभी नहीं, कल बात करेंगे, अभी आप सो जाओ|

मैंने उनकी नाक को चूमते हुए कहा| परन्तु ये सुन भौजी का चेहरा फीका पढ़ने लगा|

भौजी: तो आप जा रहे हो?

भौजी ने बच्चे की तरह मुँह बनाते हुए पुछा|

मैं: अरे नहीं बाबा! मैं अपनी जानेमन को छोड़ के कहाँ जाऊँगा!

मैंने मुस्कुराते हुए कहा ओर उनके माथे को चूम लिया| मैं जानता था की अगर मैं जाने की बात की तो उनका मन ख़राब हो जायेगा, इसलिए उनकी ख़ुशी के लिए मैं उनके साथ चिपका सोने लगा| पर मेरी तो नींद ही उड़ चुकी थी, मैं बस इन्तेजार कर रहा था की कब उनकी आँख लगे और मैं चुप-चाप वहाँ से सरक के बहार आ जाऊँ, क्योंकि अगर मैं वहीँ सो जाता तो सुबह तूफ़ान आना तय था| करीब आधे घंटे में भौजी मुझसे लिपटी हुई सो गईं और जब मुझे पूरा यकीन हो गया की वो सो चुकी हैं तो मैंने धीरे से अपना दायाँ हाथ उनके सर के नीचे से निकाल लिया, अपने कपडे पहने लेकिन भौजी अब भी निर्वस्त्र थीं! मैंने उनकी साडी उठाई और उनके ऊपर डाल दी और फिर ऊपर से एक चादर डाल दी| मैं दबे पाँव, चुप-चाप बाहर निकला और दरवाजा वापस बंद कर मैं अपनी चारपाई पर नेहा के बगल में लेट गया| मेरे लेटते ही नेहा ने करवट बदली और अपना बायाँ हाथ मेरी छाती पर रख दिया| उसके प्यार भरे स्पर्श से मैंने उसकी ओर करवट ली और उसके सर पर हाथ फेरने लगा| नींद तो आ नहीं रही थी, तो मैं अपने जीवन में आये इतने परिवर्तनों के बारे में सोचने लगा|

एक स्त्री जिसे पहले मैं अपना दोस्त मानता था, आज हम इतना नजदीक आ गए की एक दूसरे को पति-पत्नी मान कर रह रहे हैं| एक छोटी सी बच्ची जिसने आज मुझे दिल से अपना 'पापा' माना और न केवल माना बल्कि आज अपने प्यारे मुख से मुझे 'पापा' कह के सम्बोधित किया, जिसे सुन मेरे मन में भावनाओं का सागर उमड़ आया तथा मैंने भी उसे अपनी स्वयं की बेटी मान आपने सीने से लगा लिया| मेरी इतनी सी उम्र में मुझे इतना प्यार कैसे मिल गया? आज एक बार फिर मैंने भौजी को भगाने की बात की, क्या सच में मैं उनकी और नेहा की जिम्मेदारियाँ उठा सकता हूँ? आखिर मुझ हो क्या गया है? ये कैसा जादू है जिसने मेरे अंदर इतना बदलाव किया और मुझे इतना जिम्मेदार बना दिया!

ये सब सोचते-सोचते मैं सारी रात जागता रहा, वो पूरी रात मेरे विचारों के अनुसार पहर बदल रही थी!

सुबह मेरी आँखें खुली हुईं थी और मैं इन्तेजार कर रहा था की कब घर के सब लोग उठें और मैं भी उठ के बैठूँ| मेरा हाथ नेहा की पीठ थप-थापा रहे थे और आँखें खुलीं थी, जैसे मैं खुली आँखों से अब तक जो हुआ वो सब देख रहा हूँ! करीब पाँच बजे भौजी नेहा को जगाने आईं और मुझे जागता हुआ देख के थोड़ा परेशान हुईं!

भौजी: आप सोये नहीं रात भर?

मैं: नहीं, नींद ही नहीं आई|

ये कह कर मैं उठ बैठा|

भौजी: क्या सोच रहे थे?

भौजी ने चिंता जताते हुए कहा|

मैं: कुछ नहीं!

मैंने मुस्कुराते हुए झूठ बोला| उसका कारन ये था की मैं शायद उन्हें ये सब विचार समझा नहीं पाता और फिर पता नहीं वो इस सब का क्या अर्थ निकालतीं!

भौजी: अभी आप थोड़ा सो लो मैं आपको आठ बजे उठाऊँगी, फिर आपकी नींद पर चर्चा करेंगे| अगर इस तरह सोओगे नहीं तो बीमार हो जाओगे!

भौजी ने थोड़ी चिंता जताते हुए कहा|

मैं: नहीं अब नींद नहीं आएगी, अब सब उठ गए हैं तो मैं भी उठ के नहा धो लेता हूँ| दिन में आप के साथ सो लूँगा!

मैंने भौजी को आँख मारते हुए कहा|

भौजी: हाँ भई अब हमारी कौन सुनता है?!

भौजी शिकायत भरे लहजे में बोलीं| उन्होंने नेहा को गोद में उठाया और अपने घर के भीतर चलीं गई| इधर मैं भी अंगड़ाई लेते हुए खड़ा हुआ और नहा-धो के तैयार हो गया| भौजी ने नेहा को तैयार कर दिया तो मैं उसे खुद स्कूल छोड़ आया! आज स्कूल जाने से पहले मैंने नेहा के दोनों गालों की पप्पी ली और उसने भी पलट कर मेरे दोनों गालों की पप्पी ली! नेहा को स्कूल छोड़ के आते समय मेरा मन आज बहुत प्रसन्न था, आज बिलकुल ऐसा लग रहा था जैसे मैं अपनी बेटी को स्कूल छोड़ कर आया हूँ!

स्कूल से लौट मैं प्रमुख आँगन में बैठा चाय की चुस्की ले रहा था, पिताजी समेत सभी लोग छप्पर के नीचे बैठे थे की तभी सबसे नजर बचा कर भौजी मेरे पास आईं और बोलीं;

भौजी: मैं आपसे नाराज हूँ!

भौजी ने बड़े भोलेपन से कहा|

मैं: यार ये अच्छा है! मुझसे तो वादा ले लिया की की मैं आपसे कभी नाराज नहीं हो सकता और आप बार-बार नाराज हो जाते हो?!

मेरी शिकायत सुन भौजी मुस्कुरा दीं और बोलीं;

भौजी: आप मुझे रात में अकेला क्यों छोड़ आये?

भौजी ने प्यार से शिकायत करते हुए कहा|

मैं: यार.....

इसके आगे मेरे कुछ कहने से पहले ही भौजी को उबकाई आ गई और वो अपने मुँह पर हाथ रख कर अपने घर के भीतर भाग गईं! उन्हें इस तरह घर के भीतर दौड़ कर जाते देख मेरे प्राण सुख गए और मैं भी उनके पीछे भागा, अंदर जा के देखा तो भौजी स्नान घर में खड़ी उलटी कर रही हैं| उन्हें उलटी करते देख मैं एकदम से घबरा गया और तुरंत रसोई की ओर भागा!

[color=rgb(243,]जारी रहेगा भाग - 2 में....[/color]
 

[color=rgb(85,]तेरवां अध्याय: सत्य[/color]
[color=rgb(0,]भाग - 2[/color]


[color=rgb(184,]अब तक आपने पढ़ा:[/color]

भौजी: आप मुझे रात में अकेला क्यों छोड़ आये?
भौजी ने प्यार से शिकायत करते हुए कहा|
मैं: यार.....
इसके आगे मेरे कुछ कहने से पहले ही भौजी को उबकाई आ गई और वो अपने मुँह पर हाथ रख कर अपने घर के भीतर भाग गईं! उन्हें इस तरह घर के भीतर दौड़ कर जाते देख मेरे प्राण सुख गए और मैं भी उनके पीछे भागा, अंदर जा के देखा तो भौजी स्नान घर में खड़ी उलटी कर रही हैं| उन्हें उलटी करते देख मैं एकदम से घबरा गया और तुरंत रसोई की ओर भागा!

[color=rgb(41,]अब आगे:[/color]

रसोई
पहुँच मैंने चीखते हुए बड़की अम्मा को पुकारा, बड़की अम्मा मेरी चीख सुन हड़बड़ा कर रसोई से निकलीं और मेरी परेशानी का कारन पूछा| "अम्मा....वो...उलटी कर रहीं हैं.. आप प्लीज देखिये ने उन्हें क्या हुआ है|" मैंने हाँफते हुए कहा| मेरी चिंता मेरे चेहरे पर झलक रही थी और मेरी बात सुन छप्पर के नीचे बैठे सभी परेशान हो गए! अम्मा तुरंत भौजी के पास दौड़ीं और मैं माँ को बुलाने के लिए बड़े घर की तरफ दौड़ा| उस समय माँ कपडे तह लगा के रख रहीं थीं, जब मैंने उन्हें भौजी के बारे में सब बताया तो माँ बड़बड़ाते हुए बड़े घर से निकलीं; "कल जर्रूर तूने कुछ अटपटा खिला दिया होगा इसलिए बहु को उलटी हो रही है|" माँ की बात सुन मैं डर गया की कहीं उन्हें 'फ़ूड पोइज़निंग' तो नहीं हो गई? अगर ऐसा होता तो उस दुकानवाले की खेर नहीं थी! इधर मैंने रसियक भाभी को देखा तो वो तो घोड़े बेच के बड़े घर के आंगन में सो रहीं थी| मैं जल्दी से अपने ख्यालों से बहार आया और भौजी के घर की ओर भागा| मैं अंदर जाना चाहता था, परन्तु माँ भौजी के घर की चौखट पर कड़ी थीं और अम्मा अंदर भौजी की पीठ सहला कर उनकी उल्टियाँ रोकने की कोशिश करने में लगी थीं| मैं सर झुकाये मन में प्रार्थना करता हुआ प्रमुख आंगन में चक्कर लगाने लगा|

कुछ ही मिनटों में पूरे घर में हड़कम्प मच चूका था और ये कहना गलत नहीं होगा की वो हड़कम्प मैंने ही मचाया था! करीब 5 मिनट बाद अम्मा बाहर निकलीं और उनके मुख पर ख़ुशी साफ़ झलक रही थी| अब बाहर का सीन कुछ इस तरह था, भौजी के घर के दरवाजे के ठीक सामने मैं खड़ा था, भूसा रखने वाले कमरे के बाहर पिताजी और बड़के दादा चारपाई डाल के बैठ बतिया रहे थे, चन्दर और अजय भैया खेतों और कुऐं के पास खड़े बात कर रहे थे| अब चूँकि सब से पहले बड़की अम्मा को मैं दिखा तो वो मेरा परेशान चेहरा देख के बोलीं; "अरे मुन्ना परेशान काहे होवत हो, तुम चाचा बने वाले हो!" ये सुन के मेरी ख़ुशी का ठिकाना नहीं रहा और दिल ख़ुशी से ढोल बजाने लगा| मन किया की अंदर जाके भौजी को गले लगा लूँ, पर तभी मन में एक डर पैदा हो गया! डर उस सच के बाहर आने का जो सबकुछ उजाड़ देता! डर सब कुछ खो देने का! डर उस नन्ही सी जान के पैदा होने से पहले ही मार दिए जाने का! चाहे कोई भी नाम दूँ उस डर को पर हारता तो बस मैं! उसी डर ने मेरे पाँव बाँध दिए और मैं अंदर से काँपता हुआ अपनी जगह खड़ा रहा| इधर माँ सीधा चन्दर के पास चल दीं और उसे खुशखबरी सुनाई, लेकिन ये सुन कर उसके चेहरे पर कोई भाव ही नहीं आये! वो सर झुकाये कुछ सोचने लगा और फिर खेतों की तरफ निकल गया| अम्मा को चन्दर का ये व्यवहार बड़ा अटपटा लगा और उन्होंने चन्दर को बड़ी आवाजें दी पर उसने पलट कर कोई जवाब नहीं दिया! इधर उसकी ये प्रतिक्रिया देख मैं समझ गया की आज तो कोहराम मचना तय है! वो भौजी से जर्रूर कहेगा की जब मैंने तुम्हें छुआ नहीं तो ये बच्चा कैसे आया? मुझे बचाने के लिए भौजी चुप रहेंगी पर मैं तो खामोश नहीं रह सकता था!

कहते हैं जब आदमी डूबने लगता है तो उसकी fighting spirit बाहर आती है! कुछ ऐसा ही हाल मेरा था, मैंने कुछ ही मिनटों में सब कुछ सोच लिया था! आज रात तक मुझे कैसे भी चन्दर और भौजी का आमना-सामना होने से रोकना था, फिर जब सब सो जाते तो मैं भौजी को अपनी कसम दे कर बाँध घर से भगा लूँगा! भागने के लिए पैसे का भी जुगाड़ आज शाम तक करना होगा, पर उसके लिए पिताजी की चेकबुक तो थी ही और मेरे पास कुछ 4-5 सौ रुपये कॅश भी थे! कपडे भी २-३ जोड़ी काफी होंगे, ज्यादा समान लेकर जाना ठीक नहीं वरना उसे भी संभालना पड़ेगा! हाँ...सबसे जर्रूरी मुझेदिषु को फ़ोन करना होगा ताकि उसके जयपुर वाले मामाजी का एड्रेस ले सकूँ, लेकिन अभी मैं दिषु को कुछ नहीं बता सकता वरना वो कहीं ये बात पिताजी को न बता दे!

इधर मैं ये बातें सोच रहा था की तभी पीछे से अजय भैया आ गए जो भौजी के माँ बनने की बात से बड़े खुश थे| "अरे मानु भैया का सोचत हो?!" अजय भैया ने मेरी पीठ थपथपाते हुए कहा| अपनी चिंता छुपाते हुए मैंने उनसे झूठ बोला; "मैं सोच रहा था की लड्डू खाऊन या बर्फी?" मेरा ये भोलापन देख वो खूब जोर से हँसे, फिर उन्होंने साइकिल उठाई और मिठाई लेने निकल गए| उधर बड़की अम्मा पिताजी और बड़के दादा को ये खुशखबरी देने चली गईं! मेरी प्लानिंग हो गई थी, हालाँकि उसमें बहुत से loopholes थे जैसे की; रात में हम जायेंगे कहाँ? सुबह होने तक तो हमें कहीं रुकना पड़ेगा? अगर सड़क किनारे छुप कर रात काट भी ली तो सुबह पहले जाना कहाँ है? और चेक से पैसे कैसे निकालूँगा? क्या मेरे पास इतना समय होगा? क्योंकि सुबह होते ही सब हम तीनों को ढूँढने निकल पड़ेंगे, और अगर गलती से पकडे गए तो क्या? पर मैं उस वक़्त इतने जोश में था की मैंने उन loopholes के बारे में सोचा ही नहीं! उस समय मुझे अपने इस बचकाने प्लान पर बड़ा गर्व हो रहा था! खैर अब समय था मुझे मेरी पत्नी को मुबारकबाद देने का इसलिए मैं छाती चौड़ी कर के भौजी के घर के भीतर पहुँचा|

भीतर आ कर देखा तो भौजी और माँ आंगन में चारपाई पर बैठे थे, भौजी की माँ बनने की ख़ुशी उनके चेहरे से टप-टप टपक रही थी और खुश हों भी क्यों न, आखिर वो माँ बनने वालीं थीं... वो भी मेरे बच्चे के माँ! मुझे देख भौजी मुझे गले लगाना चाहती थीं पर फिर उन्हें एहसास हुआ की माँ उनके बराबर में बैठी हैं, इसलिए वो मन मार के बैठीं रहीं| इधर मैं उनके हाव भाव देख के समझ गया था की वो क्या चाहती हैं, इसलिए मैं उनके घर के दरवाजे पर से बड़े जोश से बोला; "आप माँ बनने वाले हो!" ये कहते हुए मैंने अपनी बाहें खोल दी और उन्हें गले लगने को बुलाया, अब भौजी का खुद को रोक पाना मुश्किल था इसलिए वो तेजी से मेरी ओर बढ़ीं और कस कर मेरे गले लग गईं| मुझे अपनी बाँहों में कैसे हुए भौजी मेरे कान में खुसफुसाईं; "और आप बाप बनने वाले हो!" उनके मुँह से ये सुन मैं अपने डर को भूल गया और जवाब में उन्हें; "थैंक यू" कहा| हमारी ये प्यार-भरी खुसर-फुसर सब माँ के सामने हो रही थी और माँ सोच रही होंगी की ये देवर-भाभी का प्यार है| खैर हम अलग हुए और भौजी वापस अपनी चारपाई पर माँ के बगल में बैठ गईं, इतने में बड़की अम्मा अंदर आ गईं और उनके हाथ में मिठाई का डिब्बा था| उन्होंने मुझे एक लड्डू खिलाया और भौजी की तरफ देखते हुए बोलीं;

बड़की अम्मा: चलो भई अब की हमार पोते का गोद में खिलायेका सपना पूरा हो जाई!

अब ये सुनके तो मेरा दिमाग ख़राब हो गया| बड़की अम्मा एक औरत हो के ऐसी दाखियानूसी बातें कैसे कर सकती हैं? मैंने जिंदगी में पहलीबार उनको आँखें तरेर कर देखा और बोला;

मैं: क्यों अम्मा अगर लड़की हुई तो?

मेरा ये सवाल सुनते ही वो तिलमिला गईं और अपनी बात पर अड़ते हुए बोलीं;

बड़की अम्मा: नाहीं! हम जानित है लड़का ही होइ!

उन्होंने मेरे बागी तेवर देख लिए थे और मैं ज्यादा न बोलूँ उसके लिए उन्होंने मिठाई का डिब्बा मेरी ओर सरका दिया और बोलीं;

बड़की अम्मा: तुम ये मिठाई खाओ!

पर मैंने वो डिब्बा अपने सामने से सरका दिया और अम्मा से बहस करते हुए बोला;

मैं: आप इतना यकीन से कैसे कह सकते हो की लड़का ही होगा? और मुझे तो हैरानी इस बात का है की आप एक औरत होके इस तरह कह रहे हो?!

मेरी ये बात बड़की अम्मा को बहुत चुभी और वो थोड़ा गुस्सा होते हुए बोलीं;

बड़की अम्मा: मुन्ना वंश चलाये खातिर लड़का तो होवे का चाहि न?

मैं: तो लड़का है नहीं क्या?

मेरा तातपर्य वरुण से था, पर उसका ख्याल आते ही बड़की अम्मा का मुँह सड़ गया|

मैं: लड़का या लड़की भगवान की मर्जी होती है इसमें माँ क्या कर सकती है?

मैंने अम्मा को ज्ञान देते हुए कहा|

बड़की अम्मा: मुन्ना तोहार बड़के दादा का पोता ही चाहि!

जब बड़की अम्मा के पास कोई तर्क न रहा तो उन्होंने साड़ी बात बड़के दादा के सर पर डाल दी, ये सोच कर की मैं उनसे तो बहस करूँगा नहीं! लेकिन वो नहीं जानती थी की ये मेरा बच्चा है और उसके लड़का या लड़की होने से जब हम दोनों को फर्क नहीं पड़ रहा तो भला वो कौन होती हैं कुछ कहने वालीं?!

मैं: ओह तो ये बात है! ठीक है उनसे भी बात करता हूँ!

भौजी: सुनो...

भौजी ने मुझे रोकना चाहा पर मैंने उनकी अनसुनी की और बड़के दादा से बहस का इरादा लिए बाहर उनके सामने खड़ा हो गया, उस वक़्त पिताजी कहीं गए थे, इसलिए बड़के दादा अकेले भूसे वाले कमरे के बाहर बैठे थे तथा बहुत खुश दिख रहे थे| ऐसा नहीं था की मुझे हीरो बनने का बहुत शौक था, परन्तु मेरी अंतर आत्मा ने कहा की मुझे इसका विरोध करना चाहिए|

मुझे देखते ही बड़के दादा ने मेरी ओर मिठाई का डिब्बा किया ओर बोले;

बड़के दादा: आओ-आओ मुन्ना बैठो! ई लिहो मुँह मीठा करो, अब तुम चाचा बने वाले हो!

एक तो मुझे उनकी दखियानुसी सोच पर पहले से ही गुस्सा आ रहा था ओर दूसरा उन्होंने जब मुझे चाचा बनने पर बधाई दी तो मेरा गुस्सा और बढ़ गया| मैं उनपर चिल्ला नहीं सकता था क्योंकि पिताजी ने मुझ में ऐसे संस्कार नहीं डाले थे, इसलिए मुझे उनसे कुछ इस तरह से बात करनी थी की उन्हें उनकी गलती का भी एहसास हो और मेरा गुस्सा भी तरीके से निकले|

मैं: दादा मुझे आपसे कुछ बात करनी है|

मैंने वो मिठाई का डिब्बा हाथ में पकडे हुए कहा|

बड़के दादा: हाँ कहो?

बड़के दादा ने अपना ध्यान मेरे ऊपर केंद्रित करते हुए कहा|

मैं: आपको पोती चाहिए या पोता?

ये सवाल सुन उन्होंने एक सेकंड नहीं लिया जवाब देने में और बड़े गर्व से बोले;

बड़के दादा: पोता!!

मैं तो उनका जवाब जानता था, इसलिए मैंने आँखें तरेर कर अपना दूसरा सवाल पुछा;

मैं: अगर पोती हुई तो?

ये सुनते ही उनकी ऐसी प्रतिक्रिया आई मानो मैंने उनकी दुम पर पेअर रख दिया हो;

बड़के दादा: अरे शुभ-शुभ कहा!

मन तो किया वो मिठाई का डिब्बा उठा कर उनके ऊपर ही फेक दूँ पर पिताजी के संस्कार के चलते मैंने वो डिब्बा उनके पास रखा और बहस करते हुए बोला;

मैं: मैंने कौन सी मनहूसियत की बात कह दी? मैं तो आपसे एक सीधा सा सवाल पूछ रहा हूँ|

मैंने बनावटी हँसी हँसते हुए कहा| पर मेरी ये बनवटी हंसी देख उन्हें बड़ी जोर से मिर्ची लगी;

बड़के दादा: अरे पोता ही होई!

उन्होंने गुस्से से कहा| अब उनका ये रवैय्या देख मैंने हाथ पीछे बाँधे, चेहरे से बनावटी हँसी पोछी और अपना अगला सवाल दोहराया;

मैं: आप इतना यकीन से कैसे कह सकते हैं?

मेरे इस सवाल का उनके पास कोई जवाब नहीं था, ऊपर से कहीं वो अपना गुस्सा मुझ पर न निकाल दें इसलिए उन्होंने पिताजी को बीच में ले आये;

बड़के दादा: अरे मुन्ना (मेरे पताजी से) देख तो तोहार लड़कवा बड़े सवाल पूछत है!

मुझे नहीं पता था की पिताजी भूसे वाले कमरे में काम कर रहे हैं और उन्होंने हमारी सारी बातें सुन ली हैं;

पिताजी: क्यों रे? बड़ों का लिहाज नहीं है तुझे?

पिताजी मुझे डाँटते हुए बोले|

मैं: पिताजी मैंने तो बस एक सीधा सा सवाल पूछा बस?

मैंने पिताजी से आँख से आँख मिलाते हुए कहा| आज तक मैंने कभी पिताजी से ऐसे बात नहीं की थी!

पिताजी: तो उन्होंने कह तो दिया की पोता होगा?

पिताजी मेरे बागी तेवर देख समझ गए थे और इस बगावत को कुचलने के इरादे से उन्होंने मुझे फिर से डाँट दिया|

मैं: मैं यही तो जानना चाहता हूँ की बड़के दादा इतने यकीन से कैसे कह सकते हैं?

मैंने पिताजी से बहस की, जाहिर था उनको ये कतई गंवारा नहीं था तो वो गुस्से में मुझे घूरने लगे और मेरा मनोबल तोड़ने के लिहाज से बोले;

पिताजी: तू....

उनका गुस्सा देख मैं समझ गया था की वो मुझे मेरी बात रखने नहीं देंगे| इसलिए मैंने आज पहलीबार उनकी बात काटी;

मैं: माफ़ करना पिताजी, मैं आपकी बात काट रहा हूँ परन्तु मुझे बड़के दादा का यूँ पोते के प्रति पक्षपात ठीक नहीं लगता| पिछली बार नेहा के पैदा होने से पहले भी यही बखेड़ा खड़ा हुआ था और उसका नतीजा आपने देखा था! अब जब फिर से एक नया मेहमान आ रहा है तो फिर से ये जबरदस्ती का विश्वास की पोता ही होगा?!

मेरी ये बात सुन कर पिताजी और बड़के दादा को मिर्ची लग गई थी| हालाँकि मैं जानता था की पिताजी मेरी बात से सहमत हैं पर वो अपने भाई के खिलाफ कतई नहीं जा सकते थे| अब मुझे पिताजी को ही बीच में रख कर बात करनी थी ताकि कम से कम उनका ज़मीर तो न मर जाए!

मैं: अगर मेरी जगह आपके घर लड़की पैदा होती तो क्या आप उसे उतना प्यार नहीं देते जितना आप मुझे देते हैं? क्या आप उसे वही शिक्षा नहीं देते जो आपने मुझे दी? क्या आप उसे बड़ों का आदर करना और छोटों से प्यार करना नहीं सिखाते? आपने तो कभी किसी बच्चे से कोई भेद-भाव नहीं किया तो बड़के दादा क्यों करते हैं?

मैंने इतने आत्मविश्वास से पिताजी से ये सवाल पूछे की उन्हें खुद के ऊपर संदेह होने लगा| जाहिर सी बात थी की पिताजी और बड़के दादा के पास मेरे सवालों का कोई जवाब नहीं था और न ही मैं उनसे किसी जवाब की अपेक्षा रखता था| मैंने ये विरोध दर्शा कर अपनी अंतर आत्मा को संतुष्ट कर दिया था, इसलिए मैं चुप-चाप वहाँ से चला आया और सीधा भौजी के घर में प्रवेश किया;

मैं: अम्मा मैंने जो कहना था वो बड़के दादा से कह दिया है| जानता हूँ की इसका कोई असर नहीं पड़ेगा पर अब कम से कम मेरी अंतर आत्मा तो मुझे नहीं कचोटेगी!

मैंने बड़की अम्मा से कहा तो उनकी आँखों में मुझे शर्मिंदगी नजर आई| दरअसल भूसे वाला कमरा भौजी के घर के बगल में था, इसलिए माँ, भौजी और बड़की अम्मा ने मेरी सारी बात सुन ली थी| मैं बड़की अम्मा को और कुछ कह कर शर्मिंदा नहीं करना चाहता था तो मैंने उनसे कुछ और बात करना ही ठीक समझा;

मैं: खेर यहाँ कोई लेडी डॉक्टर है, मेरा मतलब महिला डॉक्टर जो इनका (भौजी) का एक बार चेक-अप कर ले?

बड़की अम्मा ने हाँ में सर हिलाया और बोलीं;

बड़की अम्मा: हाँ हैं... एक डाक्टरनी!

मैं: आप सब तैयारी करो मैं पिताजी से कह के बैल गाडी मँगवाता हूँ|

मैं वापस भूसे वाले कमरे के पास आया और देखा तो बड़के दादा नहीं थे, वो खेत जा चुके थे और वहाँ सिर्फ पिताजी थे जो चारपाई पर लेटे हुए कुछ सोच रहे थे;

मैं: पिताजी मैं बैलगाड़ी वाले को बोल आता हूँ, एकबार डॉक्टर चेक-अप कर ले तो बढ़िया रहेगा!

मेरी बात सुन पिताजी अपने विचारों से बाहर आये और मेरी आँखों में आँखें डालते हुए बोले;

पिताजी: मैं तुझे डाँट नहीं रहा बस कुछ पूछना चाहता हूँ, तुझमें इतनी हिम्मत कैसे आ गई? कुछ दिन पहले तो तू कभी किसी बात का विरोध नहीं करता था, जो कह दो चुप-चाप करता था| पर देख रहा हूँ पिछले कुछ दिनों से, तूने जवाब देना शुरू कर दिया है, सही-गलत मैं अंतर करना सीख लिया है! है तो ये अच्छी बात पर बेटा मुझे इसकी आदत नहीं है! तूने आज जो भी कहा वो बिलकुल ठीक कहा लेकिन अभी भी बहुत सी बातें हैं जो तू नहीं जानता क्योंकि तू छोटा है! खेर मैं बड़े भैया को समझा लूँगा पर उनका बर्ताव, उनकी सोच मैं नहीं बदल सकता|

आज पहलीबार पिताजी मेरे बहस करने पर इतनी हलीमी से पेश आ रहे थे तो मैंने भी उनकी बात का जवाब हलीमी से दिया|

मैं: पिताजी आपने मुझे शिक्षा ही ऐसी दी है की मैं कुछ भी गलत होता नहीं देख सकता| उस दिन जब माधुरी ने शादी की बात कही तो पहली बार मैंने आपका विरोध किया परन्तु विरोध के पीछे जो कारन था वो भी मैंने आपको बताया अवश्य था| आज भी जो हुआ वो मैं सह नहीं पाया और अंदर का आक्रोश इस तरह बहार आ गया, खेर मैं बड़के दादा से अपने इस रूखे व्यवहार के लिए माफ़ी अवश्य माँग लूँगा, लेकिन मैंने कोई गलत बात नहीं की और उसके लिए मैं उनसे माफ़ी नहीं माँग सकता!

पिताजी: बेटा ये सब हम बाद में सोचेंगे की तू कहाँ गलत है और कहा सही, फिलहाल तू जाके बैलगाड़ी वाले को बोल आ| तबतक मैं बड़े भैया की काम में मदद कर आता हूँ|

मैं तुरंत बैलगाड़ी वाले के पास भागा और रास्ते में मैंने जो आज कहा उसके बारे में सोचने लगा| मुझे नहीं लगता की मैं कहीं गलत था, पर पिताजी की बातों से साफ़ हो गया था की ऐसी कुछ बातें जर्रूर हैं जिनके बारे मैं मैं नहीं जनता| अब ये बातें अगर मुझे कोई बता सकता था तो वो थीं सिर्फ भौजी, पर ये सही समय नहीं था उनसे कुछ पूछने का| फिर सबसे बड़ी बात ये की पिताजी आज मुझसे इतने प्यार से क्यों बात कर रहे थे? उनका मेरे प्रति रवैया हमेशा से ही सख्त मिजाज रहा है! हो सकता है की मैं अब बड़ा हो चूका हूँ इसलिए वो अब मुझ पर उतना दबाव नहीं डालते जितना पहले डालते थे?! खेर मैं बैलगाड़ी वाले को बोल आया और वापस आके भौजी और माँ को बताया की बैलगाड़ी वाला 15 मिनट में आ रहा है| अब ये सुनते ही भौजी अपनी उत्सुकतावश बोल बैठीं;

भौजी: आप भी चलोगे ना?

भौजी ने जिस धड़ल्ले से माँ की उपस्थिति में ये बोला उसे सुन मैं सन्न रह गया| लेकिन इससे पहले मैं कुछ कहता, माँ बीच में बोल पड़ीं;

माँ: बहु ये वहाँ क्या करेगा? तू (मैं) यहीं रुक और अगर हमें देर हो गई तो नेहा का ध्यान रखिओ|

मैं: जी|

मैंने सर हिलाते हुए कहा| जाना तो मैं भी चाहता था पर माँ और बड़की अम्मा के कारन चुप रहा था, फिर माँ और बड़की अम्मा तो जा ही रहीं थीं और मैं माँ पूरा विश्वास करता था| अगर मैं अपने काने की जिद्द करता तो माँ तथा बड़की अम्मा को मुझ पर शक हो जाता!

खैर मैं और माँ बहार आ गए और माँ मुझे समझाने लगीं; "बेटा देख मैं समझ सकती हूँ की तो अपनी बड़की अम्मा और अपने बदके दादा की बात से नाराज है, पर गाओं के लोगों की सोच ऐसी ही होती है! तू इस बात को छोड़ और हमारे आने तक घर का ख्याल रखिओ!" इतने में बैलगाड़ी वाला आ गया तो मैं भौजी को बुलाने अंदर घुसा, मुझे देखते ही भौजी मेरे से लिपट गईं और रुनवासीं हो गई| मैंने उन्हें प्यार से चुप कराया और डॉक्टर के भेजा| सब के जाने के बाद मैं घर में प्रमुख आंगन में अकेला बैठा था| तभी मुझे याद आया की मुझे अपने दोस्त दिषु को फ़ोन करना है, मैं तुरंत बड़े घर गया और वहाँ पिताजी का फ़ोन रखा हुआ निकाल लाया| बैटरी बचाने के लिए पिताजी ने फ़ोन बंद कर रखा था, अब उस समय स्मार्ट फ़ोन तो होते नहीं थे| पिताजी तब नोकिआ 1600 इस्तेमाल करते थे, मैंने फ़ोन से दिषु को नंबर घुमाया और उससे बात की;

मैं: हेल्लो? कैसा है यार?

दिषु: अरे बढ़िया! तू बता कैसा है? गाओं में कोई मिली या नहीं?

दिषु ने मजाक करते हुए कहा|

मैं: यार वो सब छोड़, मुझे तेरी मदद चाहिए!

दिषु: क्या हुआ? सब ठीक तो है?

मैं: यार ठीक तो नहीं है! मुझे तेरे जयपुर वाले मामा जी का एड्रेस दे दे|

मेरी बात सुन दिषु सोच में पड़ गया|

दिषु: पर क्यों?

मैं: यार है कुछ काम! मैं कल तुझे सब बता दूँगा!

दिषु: तू घबराया हुआ लग रहा है! बता क्या हुआ?

दिषु ने चिंता जताते हुए कहा|

मैं: यार I promise मैं कल तुझे सब बता दूँगा, अभी के लिए तू मुझे अपने मामा जी का एड्रेस sms कर दे|

दिषु: ठीक है पर कल तू मुझे फ़ोन कर के सब बता दिओ, वर्ण मैं वहाँ आ जाऊँगा!

मैं: पक्का भाई!

मैंने बाय बोल कर फ़ोन काटा और कुछ ही देर में उसका sms आ गया, मैंने वो एड्रेस याद कर लिया और फ़ोन से मैसेज तथा कॉल हिस्ट्री डिलीट कर फ़ोन स्विच ऑफ कर के वापस रख दिया|

[color=rgb(243,]जारी रहेगा भाग - 3 में....[/color]
 

[color=rgb(85,]तेरवां अध्याय: सत्य[/color]
[color=rgb(0,]भाग - 3[/color]


[color=rgb(41,]अब तक आपने पढ़ा:[/color]

मैंने बाय बोल कर फ़ोन काटा और कुछ ही देर में उसका sms आ गया, मैंने वो एड्रेस याद कर लिया और फ़ोन से मैसेज तथा कॉल हिस्ट्री डिलीट कर फ़ोन स्विच ऑफ कर के वापस रख दिया|

[color=rgb(85,]अब आगे:[/color]

कुछ ही देर में रसिका भाभी उठ के आ गईं और अंगड़ाई लेटे हुए मुझसे पूछने लगीं; "मानु भैया, घर मा कउनो दिखाई नाहीं देत है? सब कहाँ गए?" मैंने उन्हें सारी बात बताई और भौजी के गर्भवती होने की खुशखबरी सुन के वो कुछ ख़ास खुश नजर नहीं आईं, कारन क्या था ये मुझे बाद में पता चला! भौजी, अम्मा और माँ को आने में काफी देर लगी और अब तो नेहा के स्कूल से आने का समय हो गया था| इधर रसिका भाभी बेमन से खाना पकाने लगीं और मैं नेहा को स्कूल लेने निकल पड़ा| हमेशा की तरह आज भी मुझे देखते ही नेहा भागी-भागी मेरे पास आई और मैंने उसे गोद में उठा लिया| उसके दोनों को बारी-बारी से चूमता हुआ मैं घर पहुँचा और हाथ-मुँह धुलवा कर अपनी गोद में लिए प्रमुख आंगन में घूमने लगा| चूँकि रसोई में भौजी खाना बना रहीं थीं तो नेहा ने मेरी छाती पर सर रख कर पुछा; "पापा मम्मी कहाँ हैं?" मैंने नेहा के सर को चूमा और कहा; "बेटा आपका छोटा भाई या बहन आने वाला है, उसी के लिए उन्हें डॉक्टर के पास जाना पड़ा!" मेरा जवाब सुन नेहा का चेहरा एकदम से खिल गया और वो अपनी ख़ुशी जताने के लिए उसने अपने नन्हे-नन्हे हाथों से मुझे अपनी बाहों में भरना चाहा| मैंने भी उसे कस कर अपने सीने से लगा लिया| पर अभी तो नेहा की ख़ुशी बाकी थी, वो मेरी गोद से नीचे उतरने को छटपटाने लगी| मैंने जैसे ही उसे नीचे उतारा वो ख़ुशी से उछल पड़ी और फिर नाचने लगी! उसे नाचता हुआ देख मेरा दिल धक् सा रह गया!

लेकिन तभी दिल में छुपा हुआ वो दर्द सामने आ गया| चन्दर का शांत रहना उस चुप्पी के समान था जो तूफ़ान से पहले का सन्नाटा होता है| मैं मन ही मन इस तूफ़ान को झेलने की ताकत बटोर रहा था और अपने प्लान पर अडिग था!

इधर खाना तैयार हुआ तो रसिका भाभी ने मुझे और नेहा को खाना खाने बुलाया| मैंने उन्हें केवल नेहा का खाना परोसने को कहा, अब ये सुन कर नेहा मेरे कान में खुसफुसाई; "पापा आप नहीं खाओगे तो मैं भी नहीं खाऊँगी!" मैंने उसके सर को चूमा और कहा; "बेटा अभी तक आपकी मम्मी ने भी कुछ नहीं खाया है तो मैं कैसे खा लूँ? आप अभी छोटे हो और खाना लेट खाओगे तो जल्दी-जल्दी बड़े कैसे होगे?" नेहा ने अच्छे बच्चों की तरह मेरी बात मान ली और फिर मैंने उसे अपने हाथ से खाना खिलाया| पेट भरा होने के कारन उसे नींद आने लगी तो मैं उसे गोद में लिए हुए छप्पर के नीचे तख़्त पर लेट गया| कुछ ही देर में नेहा सो गई और मैं उसके सर को चूमता रहा|

करीब आधे घंटे बाद माँ, भौजी तथा बड़की अम्मा उसी बैलगाड़ी में लौट आये| भौजी सीधा अपने घर में घुस गईं तथा अम्मा और माँ सीधा रसोई के पास वाले छप्पर के नीचे बैठ गए| बैलगाड़ी वाले को पैसे माँ ने दे दिए थे| मैंने माँ तथा बड़की अम्मा को पानी पिलाया और फिर उन्होंने बताया की डाक्टरनी जी ने क्या कहा| बड़की अम्मा ने मेरे दाएं गाल पर हाथ फेरा और बोलीं; "बेटा चिंता की कउनो बात नाहीं, तोहार भौजी माँ बने वाली हैं! बस कछु ख़ास बातों का ध्यान रखे का कहा है| ब्लड प्रेशर, खून वगैरह चेक करत रहे एहि खातिर इतना टाइम लगा| तु जाके आपन भौजी से मिल लिओ!"

बड़की ामा की बात पूरी होते ही मैं भौजी से मिलने उनके घर पहुँचा, उन्हें आज देख के जो ख़ुशी हुई उसे मैं बयान नहीं कर सकता! भौजी एकदम से मेरे गले लगीं और फिर अलग हो कर मेरा हाथ पकड़ के चारपाई की ओर ले गईं;

भौजी: आइये मेरे पास बैठिये, सुबह से आपको मेरे पास बैठने का टाइम ही नहीं मिला!

भौजी ने प्यार से शिकायत करते हुए कहा|

भौजी: चलिए अब मुँह मीठा करिये|

भौजी ने बर्फी का एक टुकड़ा मुझे खिलाया और मैंने थोड़ा खा कर वही टुकड़ा उन्हें भी खिलाया|

मैं: वैसे मुझे पूछने की जर्रूरत तो नहीं क्योंकि आपके चेहरे की ख़ुशी सब ब्यान कर रही है!

भौजी: हाँ आज मैं बहुत खुश हूँ!

भौजी के मुख पर आज संतोष की चमक थी!

मैं: तो डॉक्टर ने क्या कहा?

भौजी: बस कुछ सवाल पूछे, जैसे की आखरी बार माहवारी कब हुई थी, ओर आखरी बार सम्भोग कब किया था?

मैं: और आपने क्या बताया?

मैंने उत्सुकतावश पुछा|

भौजी: करीब 15-20 दिन पहले|

अब सम्भोग तो हम तबसे कर रहे थे जब से मैं आया था पर चूँकि माँ और बड़की अम्मा वहाँ मौजूद थीं तो भौजी ने बात बनाते हुए कहा होगा, लेकिन इसके पीछे भौजी का तर्क कुछ और ही था जो मुझे उन्होंने बाद में बताया|

मैं: और आपको कुछ हिदायतें भी दी होंगी?

भौजी: हाँ यही की ठीक से खाना खाना है, अपना ज्यादा ध्यान रखना है और उसके लिए आप तो हो ही|

भौजी ने मुस्कुराते हुए अपनी जिम्मेदारी मुझे देते हुए कहा| अब घर से भागने के बाद तो मुझे ही उनका ख्याल रखना था इसलिए मैंने मुस्कुरा कर उनकी बात मानते हुए कहा|

मैं: बस? मैंने तो फिल्मों में देखा है की डॉक्टर कहता है की आप को खुश रहना है, कोई मेहनत वाला काम नहीं करना, ज्यादा से ज्यादा आराम करना है, पौष्टिक खाना खाना है, कोई स्ट्रेस या टेंशन नहीं लेनी...

मैं आगे और कहता उससे पहले ही भौजी मेरी बात काटते हुए बोलीं;

भौजी: आपको बड़ा इंट्रेस्ट है इन चीजों में?

भौजी ने मेरी टाँग खींचते हुए कहा|

मैं: अब भई पहली बार बाप बनने जा रहा हूँ तो अपनी पत्नी का ख्याल तो रखना ही होगा! अरे सबसे जर्रूरी बात तो मैं कहना ही भूल गया, डॉक्टर कहते हैं की इन दिनों में पति-पत्नी को थोड़ा सैयाम बरतना होता है|

ये मैंने भौजी की टांग खींचने के लिए कहा|

भौजी: ना बाबा ना ...ये मुझसे नहीं होगा! मैं आपको अपने से दूर नहीं रहने दूँगी!

भौजी का ये उतावलापन देख मैं जोर से हँस पड़ा और तब उन्हें समझ आया की मैं उनकी टाँग खींच रहा था! लेकिन भौजी के मन में शक था की कहीं मैं सच में तो उनसे दूर नहीं हो जाऊँगा? इसलिए अपने मन की तसल्ली करने के लिए वो बोलीं;

भौजी: ये बात अभी लागू नहीं होती, ये तो तब के लिए है जब चार-पाँच महीने हो जाते हैं! अभी के लिए कोई रोक टोक नहीं है!

अब भौजी को थोड़ा सताने का मौका मैं कैसे छोड़ता इसलिए मैंने इस मजाक को थोड़ा खींचना चाहा;

मैं: पर प्रिकॉशन (Precaution) लेने में क्या हर्ज है?

अब ये सुनते ही भौजी की हालत फाख्ता हो गई!

भौजी: ना बाबा ना! मैं आपके बिना नहीं रह सकती|

पर उन्हें भी मुझे लाइन पर लाना आता था;

भौजी: मुझे अगर खुश रखना है तो....

भौजी ने मुझे ब्लैकमेल करते हुए कहा और अपनी बात अधूरी छोड़ दी!

मैं: ठीक है बाबा समझ गया, पर हमें सब के सामने तो थोड़ी दूरी बनानी होगी वरना सब को शक होगा!

मैंने मजाक खत्म करते हुए कहा|

भौजी: कैसा शक?

भौजी ने भोयें सिकोड़ कर पुछा|

मैं: जब अम्मा ने ये खबर चन्दर को दी तो उसके मुख पर कोई भाव नहीं थे, जैसे उसे कोई फर्क ही नहीं पड़ा! पर अगले ही पल वो कुछ सोचने लगा और सोचते हुए खेतों की ओर चला गया| मुझे पूरा यकीन है की वो आपसे सवाल पूछेगा की ये बच्चा किसका है?

मैंने गंभीर होते हुए कहा| फिर मैंने उन्होंने चन्दर को आज का दिन उनके पास जाने से ले कर आज रात हमारे भागने तक का सारा प्लान सुना दिया| मेरा सारा प्लान सुन भौजी के पाँव तले जमीन खिसक गई और वो चौंकते हुए बोलीं;

भौजी: नहीं!!! हम ऐसा कुछ भी नहीं करेंगे! आपकी जिंदगी तबाह हो जाएगी, आप पर उम्र भर का लांछन लग जायेगा! आप मुझे प्यार करते हो न? तो मुझ पर भरोसा रखो, मैं सब संभाल लूँगी| मैंने सब सोच रखा है!

भौजी की बातों में एक अलग ही आत्मविश्वास था, मानो उन्होंने सारी तैयारी कर ली हो पर मेरा डरना भी जायज था;

मैं: कैसे संभाल लोगे? सालों से उसने आपको छुआ नहीं तो ये बच्चा...वो आपसे पूछेगा नहीं की ये कैसे हुआ?

मैं भौजी को समझाना चाहता था लेकिन तभी चन्दर आ गया! उसके चेहरे से साफ़ लग रहा था की वो बहुत गुस्से में हैं| मैंने फैसला किया की मैं यहीं रहूँगा क्योंकि मुझे अब चिंता थी की कहीं वो भौजी पर हाथ न उठा दें! हालाँकि उसने बड़की अम्मा की कसम खाई थी की वो कभी भौजी पर हाथ नहीं उठाएगा पर मैं उस पर भरोसा कैसे करता?!

वो अपनी कड़क आवाज में भौजी से बोला; "कछु बात करेक है!" भौजी कुछ नहीं बोली बस मेरी ओर देखने लगीं ताकि मैं उठ कर बाहर चला जाऊँ, मैं उनका इशारा समझ गया था पर फिर भी हिला नहीं| "मानु भैया आप बहिरे जाओ, हमका तोहार भौजी से कछु बात करे का है!" चन्दर मुझसे बड़ी हलीमी से बोला| मैं हैरान था की आखिर ये मुझसे इतनी हलिमि से बात क्यों कर रहा हैं| कहीं ऐसा तो नहीं की ये जनता ही न हो की ये बच्चा मेरा और भौजी का है?! मैं अभी ये ही सोच रहा था की भौजी ने मेरा कंधा हिला कर मेरे विचार भंग किये! अब मजबूरन मैं बहार चल दिया और कुऐं की मुंडेर पर भौजी के घर के दरवाजे की ओर मुँह करके बैठ गया| अगले 10 मिनटों तक मुझे भौजी के घर से कुछ आवाजें सुनाई दीं, जो ज्यादा कर के भौजी की थीं! कुछ देर तो मैंने अपने दिल को काबू किया, पर जब बर्दाश्त नहीं हुआ तो मैं उठ के दरवाजे की ओर चल पड़ा| लेकिन मेरे अंदर घुसने से पहले ही चन्दर बाहर निकला और अब उसके मुख पर कुछ संतोष जनक भाव थे! अब मुझे तसल्ली हो गई की चन्दर रुपी ज्वालामुखी का मुँह भौजी ने कॉर्क लगा कर बंद कर दिया है!

जैसे ही मैं भौजी के घर में घुसा तो देखा भौजी सर झुकाये चारपाई पर बैठीं है, मैं उनके पास बैठ गया और उनके ठुड्डी ऊपर करते हुए जिज्ञासा वश मैंने उनसे पूछा;

मैं: उसने आपको छुआ तो नहीं?

मैंने चिंता जताते हुए कहा|

भौजी: नहीं... आप चिंता न करो मैंने उन्हें समझा दिया|

भौजी ने मेरी आँखों में देखते हुए कहा|

मैं: क्या समझा दिया और वो मान कैसे गया?

मैंने हैरान होते हुए पुछा|

भौजी: मैंने उन्हें कह दिया की जिस दिन उन्होंने नशे मैं धुत्त हो के आपसे हाथापाई की थी उसी दिन उन्होंने मेरे साथ वो सब जबरदस्ती से किया|

ये कहते हुए भौजी बहुत गंभीर हो गईं, क्योंकि वो मन ही मन अपने आप की इस जूठ के लिए कोस रहीं थीं| अब मैं इस बात को फ़िलहाल और कुरेदना नहीं चाहता था, मेरे लिए इतना ही काफी था की हालत भौजी ने अपने काबू में कर लिए हैं!

मैं: मैं समझ सकता हूँ आप पर क्या बीत रही है|

बस मेरा इतना कहना था की भौजी टूट गईं और मुझसे लिपट के रोने लगीं|

भौजी: मुझे माफ़ कर दो! मैं चाह कर भी हमारे बच्चे को आपका नाम नहीं दे सकती, बल्कि मुझे मेरे बच्चे को उस हैवान का खून कहना पड़ा!

मैं: बस..बस..चुप हो जाओ! आप जानते हो ये मेरा बच्चा है, मैं जानता हूँ ये मेरा बच्चा है, बस हमें दुनिया में ढिंढोरा पीटने की कोई जर्रूरत नहीं है! बस अब आप चुप हो जाओ, आपको मेरी कसम!

मैंने भौजी को अपनी कसम से बाँधा तो उन्होंने रोना बंद किया| मैं उनके लिए खाना लाया और उनके साथ बैठ के ही खाना खाया| उनका मन अब कुछ शांत था पर मेरे मन में जो कल से सवाल उठ रहे थे उनका निवारण जर्रुरी था| इसलिए मैंने एक-एक कर उनसे सवाल पूछना शुरू किये;

मैं: अच्छा मैं आपसे कुछ बात करना चाहता था|

मैंने भौजी को चारपाई पर लिटाते हुए कहा और मैं उनकी बगल में बैठ गया|

भौजी: हाँजी बोलिए, कल रात से मैं भी बेचैन हूँ की आखिर आपको कौन सी बात करनी है?!

भौजी ने मेरी तरफ करवट ले कर लेटते हुए कहा|

मैं: कल शाम जब हम सिनेमा से लौटे थे और माधुरी सामने आ गई थी, तो आप उस पर बरस पड़ीं! मुझे इस बात का कतई बुरा नहीं लगा बल्कि ऐसा लगा की आप मुझ पर अपना हक़ जता रहे हो और मुझे अच्छा भी लगा, पर कभी-कभी आप ये भूल जाते हो की हमारे रिश्ते की कुछ सीमाएँ हैं जो दुनिया वालों के लिए बाँधी गईं हैं| आप अपने गुस्से में उन सीमाओं को भी लांघ जाते हो, नतीजन आपके वाले आस-पास हैरान हो जाते हैं तथा हम पर शक करने लगते हैं! जिस तरह आप कल माधुरी पर सीधा राशन-पानी लेके चढ़ गईं, उससे हमारे रिश्ते पर जर्रूर शक होगा! फिर मेरी बेटी नेहा के बारे में भी सोचो, आपको पता भी है की वो कितना सहम गई थी और आपका ये रौद्र रूप देख मेरे पीछे छुप गई थी!

हैरानी की बात थी, जो इंसान कुछ देर पहले तक भौजी को भगा ले जाना चाहता था वही अब उनको ज्ञान दे रहा था!

भौजी: मैं क्या करूँ जी? जब भी उस कलमुही को देखती हूँ तो मेरे तन-बदन में आग लग जाती है! पता नहीां क्यों पर वो मुझे अपनी 'सौत' लगती है!

भौजी की जलन आज खुलकर सामने आई थी, पर वो तो बेवजह ही जल रही थीं!

मैं: क्या?

मैंने हैरान होते हुए कहा|

भौजी: हाँ...उसे देख के मेरा खून खौल उठता है! जब वो आप पर हक़ जताने की कोशिश करती है तो मन करता है की उसका खून कर दूँ! आपको नहीं पता क्या-क्या गुल खिलाये हैं इस लड़की ने!

मैं भौजी की इस बेवजह की जलन देख मन ही मन हँस रहा था, क्योंकि ये उनका वहम था की माधुरी मुझ पर किसी तरह का हक़ जताती है! खैर भौजी ने जब कहा की माधुरी ने बहुत गुल खिलाये हैं तो मेरी जिज्ञासा बहुत बढ़ गई;

मैं: बताओ तो सही क्या गुल खिलाये इसने?

भौजी: आपको याद है, नेहा के हेड मास्टर साहब ने बताया था की उनकी हाल ही में बदली हुई है?

मैं: हाँ

मैंने दिलचस्पी जताते हुए कहा|

भौजी: पुराने हेडमास्टर साहब का लड़का शहर में पड़ता था और यहाँ अपने पिताजी के पास मिलने आया था| अब ये लड़की उसके पीछे हाथ-धो कर पड़ गई, उसे अपनी मीठी-मीठी बातों से बरगलाया और दोनों की हिम्मत इतनी बढ़ गई की दोनों घर से भाग निकले! और तो और ये भी कोई ज्यादा पुरानी बात नहीं है, यही कोई साल भर पहले की बात होगी! अब न जाने उस लड़के ने इसके साथ क्या-क्या किया होगा? कोई तीन दिन बाद हेडमास्टर साहब दोनों को पकड़ के गाँव वापस लाये और माधुरी के बाप ने सारी बात हेडमास्टर साहब के लड़के पर डाल दी, की वही उनकी लड़की को भगा कर ले गया था| बेचारे हेडमास्टर साहब इतना बदनाम हुए की गाँव छोड़के चले गए!

भौजी की बात सुन कर मेरे तोते उड़ गए! कहाँ तो मैं माधुरी पर टीआरएस खाता था और कहाँ ये तो खेली-खाई निकली!

मैं: वैसे आप को इतनी विस्तार में जानकारी किसने दी?

मैंने भौजी को छेड़ते हुए पुछा तो वो हँस पड़ीं और बोलीं;

भौजी: छोटी ने (रसिका भाभी)| उसके पेट में कोई बात नहीं पचती!

रसिका भाभी ने भौजी को बात थोड़ा बढ़ा-चढ़ा कर बताई थी, क्योंकि मैं जानता था की माधुरी नीचे से बिलकुल कोरी थी और उसका उद्घाटन मैंने ही किया था! लेकिन अगर ये बात मैं भौजी को बताता तो उनका मूड फिर ख़राब हो जाता, इसलिए मैं चुप रहा| परन्तु अभी भौजी की बात पूरी नहीं हुई थी;

भौजी: पता नहीं उसे (माधुरी) क्या हुआ जो इस तरह आपके पीछे पड़ गई और आपको इतना परेशान किया, आपका नाजायज फायदा उठाया! इसीलिए उसे देखते ही मुझे बहुत गुस्सा आता है और मैं ये भी भूल जाती हूँ की मैं कहाँ हूँ और किस्से बात कर रही हूँ! इसे आप मेरा Possessive होना कह लो या पागलपन, पर मैं खुद को नहीं रोक सकती!

भौजी ने अपनी बात साफ़ कर दी थी और मैं उनकी ये possessiveness देख कर गर्व महसूस कर रहा था!

[color=rgb(243,]जारी रहेगा भाग - 4 में....[/color]
 

[color=rgb(85,]तेरवां अध्याय: सत्य[/color]
[color=rgb(65,]भाग - 4[/color]


[color=rgb(184,]अब तक आपने पढ़ा:[/color]

भौजी: पता नहीं उसे (माधुरी) क्या हुआ जो इस तरह आपके पीछे पड़ गई और आपको इतना परेशान किया, आपका नाजायज फायदा उठाया! इसीलिए उसे देखते ही मुझे बहुत गुस्सा आता है और मैं ये भी भूल जाती हूँ की मैं कहाँ हूँ और किस्से बात कर रही हूँ! इसे आप मेरा Possessive होना कह लो या पागलपन, पर मैं खुद को नहीं रोक सकती!
भौजी ने अपनी बात साफ़ कर दी थी और मैं उनकी ये possessiveness देख कर गर्व महसूस कर रहा था!

[color=rgb(243,]अब आगे:[/color]

अपनी possessiveness मेरे सामने प्रकट कर भौजी को बहुत गर्व महसूस हो रहा था|

मैं: अच्छा आज आप क्योंकि बहुत कुछ बताने के मूड में हो तो मैं एक और बात आपसे जानना चाहता हूँ|

भौजी: पूछिये!

भौजी ने मेरा हाथ चूमते हुए कहा|

मैं: मैंने देखा है की घर में कोई भी रसिका भाभी पर ध्यान नहीं देता, वो देर तक सोती रहती हैं, घर के किसी भी काम में हाथ नहीं बटाती, महा सुस्त हैं और तो और उनका लड़का वरुण, उसे तो ननिहाल भेजे इतना समय हो गया? मैं जब आया था उसके अगले दिन ही वो ननिहाल चला गया था और कुछ दिन बाद गट्टू भी चला गया?

भौजी: गट्टू स्कूल में पढता है, ऐसा आपके बड़के दादा और बड़की अम्मा सोचते हैं! असल में वो वहाँ एक फैक्ट्री में काम करता है!

अब ये मेरे लिए बड़ी चौंका देने वाली बात थी|

मैं: पर पिताजी तो कहते थे की वो वहाँ पढता है? और उसने ये बात घर में क्यों नहीं बताई?

भौजी: दरअसल आपको पढता देख बड़के दादा की इच्छा हुई की गट्टू भी पढ़े और आप की तरह बने पर उसके दिमाग में पढ़ाई घुसती ही नहीं थी| उसका मन पैसा कमाने की ओर भागता था इसलिए अनिल ने उसे एक फैक्ट्री में लगवा दिया|

मैं: आपको ये बात कैसे पता?

भौजी: ये बात चारों भाइयों को पता है ओर उन्हीं के जरिये मुझे भी पता चली लेकिन आपके बड़के दादा के डर से कोई उन्हें नहीं बताता|

मैं: और ये रसिका भाभी का क्या पंगा है?

भौजी: दरअसल शादी के 7 महीने में ही उसे लड़का हो गया था!

ये सुन कर तो मैं अचंभित हो गया!

मैं: क्या? पर ये कैसे हो सकता है? क्या अजय भैया और रसिका भाभी पहले से एक साथ थे, मेरा मतलब क्या उनकी लव मैरिज थी?

भौजी: नहीं Arrange मैरिज थी| लेकिन आपकी रसिका भाभी का शादी के पहले किसी के साथ चक्कर था! उसके महीयरवाले ये बात जानते थे इसलिए उन्होंने जल्दीबाजी में ये शादी कर दी| जब ये पेट से हुई तो ये बात खुली और बड़ा हंगामा हुआ| पर क्योंकि लड़का हुआ था तो बात को धीरे-धीरे दबा दिया गया, लेकिन आपके बड़के दादा ने वरुण को कभी अपना पोता नहीं माना| उस बेचारे बच्चे को यहाँ प्यार सिर्फ आप से ही मिला, उसकी अपनी माँ तो उसे दुत्कार देती थी| दूध तक नहीं पिलाती थी, तब मैं उसे बोतल का दूध पिलाया करती थी| अजय को तो जैसे कोई फर्क ही नहीं पड़ता और वो बार-बार उससे (रसियक भाभी से) लड़ता रहता था| अब चूँकि आप शहर से आय थे और इन बातों से अनजान थे इसलिए वरुण को ननिहाल भेज दिया ताकि आपको इस बात की जरा भी भनक ना लगे!

अब मेरी समझ में पिताजी की सारी बात आ गई| चूँकि चन्दर घर का बड़ा लड़का था और बड़के दादा को अधिक प्यारा था इसलिए वो उससे एक पोते की आस रखते थे| लेकिन मैंने उन्हें कभी नेहा को वो प्यार देते नहीं देखा जो वो अपने पोते को देना चाहते थे, यही एक बात मुझे सबसे ज्यादा खल रही थी! मैं जानता था की नेहा को कभी उसके दादा का प्यार नहीं मिलेगा इसलिए मैंने सोच लिया की अब मैं नेहा को और भी ज्यादा प्यार दूँगा ताकि उसे अपने दादा के प्यार की कमी कभी न खले!

इधर अब बारी थी भौजी की मुझे समझाने की और मेरा बड़के दादा के प्रति गुस्सा शान करने की;

भौजी: अब आप एक बात बताओ, आप क्यों बड़के दादा और बड़की अम्मा से लड़ पड़े?

मैं: मैंने कोई लड़ाई नहीं की, उनका ये पोता प्रेम देख कर मैंने बस वो कहा जो मेरी अंतर-आत्मा ने मुझसे कहा| ये बच्चा मेरा है और जब मुझे और आपको उसके लड़का या लड़की होने से कोई फर्क नहीं पड़ता तो भला वो कौन होते हैं पोते की माँग करने वाले? आप कोई चिराग से निकला जिन्न थोड़े ही हो जिससे जो माँगा जाए वो इच्छा पूरी कर देगा! फिर बड़की अम्मा का खुद स्त्री हो कर ये कहना कतई जायज नहीं था! क्या माँ ने आपसे ऐसा कुछ कहा? जब वो पेट से थीं तो पिताजी ने भी उनसे कुछ नहीं कहा था तो बड़के दादा कैसे कह सकते हैं?! हाँ मैं ये बात मानता हूँ की मेरा उनसे बात करने का लहजा सही नहीं था और उसके लिए मैं उनसे माफ़ी माँग लूँगा पर अपने कहे हुए शब्दों के लिए मैं उनसे माफ़ी नहीं माँगने वाला क्योंकि मैंने कुछ भी गलत नहीं कहा!

भौजी जानती थीं की मेरी बात गलत नहीं हैं इसलिए उन्होंने मुझे आगे कुछ नहीं कहा| खैर बातों-बातों में पता ही नहीं चला की की कब शाम हो गई, घडी देखि तो पाँच बज रहे थे| इसलिए मैं भौजी को अकेला छोड़ बाहर आया, तो देखा बड़की अम्मा और बड़के दादा कुऐं के पास चारपाई डाले बैठे हैं| उन्हीं के पास एक और चारपाई बिछी थी, जिस पर माँ और पिताजी बैठे थे| मैं चुप-चाप सर झुकाये उनके पास आया और हाथ पीछे बाँधे खड़ा हो गया, इधर पीछे-पीछे भौजी भी घूँघट काढ़े खड़ी हो गईं| उन्हें डर लग रहा था की कहीं मैं फिर से बड़के दादा से बहस न करने लग जाऊँ! खैर मुझे खड़ा देख सारे मौन हो गए, अब मैंने अपनी बात आगे रखी;

मैं: दादा..अम्मा ...मैंने आज सुबह जिस लहजे में आप दोनों से बात की उसके लिए मैं आपसे माफ़ी माँगना चाहता हूँ| मुझे इस लहजे में आपसे बात नही करनी चाहिए थी!

मैंने हाथ जोड़ कर उनसे माफ़ी मांगते हुए कहा| अब चूँकि मैं उनके ही छोटे भाई का लड़का था और मेरे माँ-पिताजी भी वहीं बैठे थे तो बड़के दादा ने थोड़ा दिखावा करते हुए कहा;

बड़के दादा: आओ मुन्ना बैठो हियाँ! देखो तुम शहर मा रहे हो, पढ़े लिखे हो ऊ भी अंग्रेजी मा! तोहार सोच नए जमाने की है और हम ठहरे बुजुर्ग और पुरानी सोच वाले| तोहरी और हमरी सोच मा जमीन आसमान का अंतर है! जो हमरे लिए सही है ऊ तोहार लिए गलत! खेर तोहार पिताजी हमका बतावत रहे की तुम आपन बर्ताव के लिए क्षमा मांगीहो पर जो तुम कहे रहेओ ऊ का लिए नाहीं! चलो ठीक है! तुम भी आपन जगह सही और हम भी! तो अब ईमा कउनो गिला-शिकवा नाहीं बचा!

बड़के दादा का जवाब बहुत रुखा था और उन्होंने मेरे गलत व्यवहार के लिए मुझे माफ़ भी नहीं किया था| खैर मैं उनकी माफ़ी चाहता भी नहीं था, मैं तो केवल बस अपने मन की शान्ति के लिए उनसे माफ़ी माँग रहा था! एहि वो दिन था जबसे मेरे और बड़के दादा के बीच में एक दरार पड़ गई थी! खेर मैं उठा और छप्पर के नीचे तख़्त पर अपनी नोटि हुई बेटी नेहा के पास बैठ गया तथा भौजी भी मेरी बगल में बैठ गईं| मैंने नेहा के सर पर हाथ फेरा तो उसकी नींद खुल गई और मैंने उसे अपनी गोद में ले लिया और उसके दोनों गाल चूमने लगा| जब नेहा ने अपनी मम्मी को पास बैठे हुए देखा तो उसने अपने भोलेपन में सवाल किया;

नेहा: पापा मेरा छोटे भाई-बहन कहाँ है?

उसका ये बचपना सुन मैं और भौजी ठहाका मार के हँस पड़े| हमारी हँसी सुन रसिका भाभी रसोई से निकली और हमारी हँसी का कारन पूछने लगी| भौजी ने उन्हें नेहा की बचकानी बात कही तो रसिका भाभी भी बनावटी हँसी हँसने लगीं!

मैं: बेटा आपका भाई या बहन को आने में थोड़ा समय लगेगा, तब तक आप को मम्मी का बहुत ख्याल रखना होगा| डॉक्टर ने कहा है की आपकी मम्मी को ठीक से खाना है, खुश रहना है, ज्यादा मेहनत का काम नहीं करना, गुस्सा नहीं करना और ज्यादा से ज्यादा आराम करना है| बोलो आप रखोगे न अपनी मम्मी का ख्याल?

ये कहते हुए मैंने भौजी की जिम्मेदारी नेहा को दी तो नेहा ने बड़े गर्व से हाँ में सर हिलाया और ये जिमेदारी अपने सर ले ली| पिछली बार जब भौजी बीमार पड़ीं थीं तो नेहा ने बड़ी जिम्मेदारी से भौजी को दवाई आदि दी थी! अपनी बेटी को अपनी जिम्मेदारी उठाते देख भौजी बहुत खुश हुईं और ख़ुशी से उन्होंने नेहा के सर पर हाथ फ़िराक़े उसे पुचकारा| अब कहते हैं न लोगों से दूसरों की ख़ुशी बर्दाश्त नहीं होती तो रसिका भाभी अपनी जलन जाहिर करते हुए बीच में बोलीं;

रसिका भाभी: हाँ भई..तुम तो हियाँ रहिओ ना, तो सारा ख्याल नेहा का ही तो रखेक पड़ी!

उनका मतलब साफ़ था की मैं तो दिल्ली चला ही जाऊँगा, तो मेरी अनुपस्थिति में एक नेहा ही है जो अपनी मम्मी का ख्याल रखेगी| ये सुन कर भौजी का मन भर आया और वो उठ के चलीं गई, उस पल मुझे इतना गुस्सा आया की सुना दूँ रसिका भाभी को पर एकबार फिर पिताजी के दिए संस्कार बीच में आ गए, इसलिए मैंने कोई जवाब नहीं दिया| मैं उठ के भौजी के पीछे उनके घर की ओर चल दिया| भौजी स्नानघर के पास सर झुकाये दिवार का सहारा लिए खड़ीं थी| मैंने उनके नजदीक पहुँचा और उनका चेहरा ऊपर कर बोला;

मैं: यार आप क्यों उनकी बातों को दिल से लगा लेते हो? उनसे आपकी ख़ुशी नहीं देखी जाती, बस वो आपको जलाना चाहती हैं और आप खामखा जल रहे हो! उनकी बातों पर ध्यान मत दो और खुश रहा करो, डॉक्टर ने आपको कहा है न की खुश रहना है?

मैंने प्यार से भौजी को समझाया तो उन्होंने हाँ में सर हिलाया| पर उन्हें हँसाने के लिए मैंने कहा;

मैं: चलो gimme a kiss!

मेरा ये कहते ही भौजी मुस्कुराने लगीं और उन्होंने मेरे होठों पर एक छोटी सी kissi दी!

भौजी: बस, अभी के लिए इतना ही! बाकी रात को मिलेगा!

पर आज रात मैं उनके पास नहीं आ सकता था, इसलिए मैंने न में सर हिलाया| मेरी ये प्रतिक्रिया देख भौजी परेशान हो गईं;

मैं: आज मुझे थोड़ा डर लग रहा है, हो सकता है की चन्दर फिर आपसे मिलने रात में आये! इसलिए बस आज भर सब्र कर लो कल पक्का!!

भौजी ने चुप-चाप हाँ में सर हिलाया, मैं जैसे ही मुड़ के जाने लगा तो उन्होंने पीछे से मुझे अपनी बाहों में जकड लिया और बोलीं;

भौजी: कल पक्का ना?

भौजी ने थोड़ा चिंता जताते हुए कहा|

मैं: हाँ|

मैंने मुस्कुरा कर कहा|

बस तभी मेरी प्यारी बच्ची नेहा उछालते-कूदते हुए प्रकट हुई और उसे देखते ही हम अलग हो गए| नेहा मेरी गोद में चढ़ गई और मैं उसे प्यार करने लगा, कभी उसे पीठ पर लादे आंगन में दौड़ता तो कभी उसे गोद में उठाये उससे उसके स्कूल के बारे में पूछता| "पापा वो मेरी दोस्त है न जो उस दिन भाग गई थी, अब न वो न मुझसे बहुत डरती है!" नेहा की बात सुन कर मैं हँस पड़ा| "क्यों डरती है आपसे?" मैंने पुछा तो नेहा भोलेपन से बोली; "उस दिन आपने उसे इंग्लिश में कुछ बोला था न तो वो उससे डर गई और फिर मैंने उसे ये भी बोला की आप न मुझे रोज इंग्लिश पढ़ाते हो! तो ये सुन कर वो और भी डर गई और बोली; 'अब तो तुहुँ अंग्रेजी में गिटर-पीटर करे लागी?'" ये सुन कर हम दोनों खिलखिलाकर हँस पड़े| उधर भौजी छप्पर के नीचे बैठीं बाप-बेटी की हँसी सुन कर खुश हो रहीं थीं|

खाना बना और मैंने नेहा को अपनी गोद में बिठा कर खाना खिलाया और खुद भी खाया| खाना खा कर नेहा मेरी ऊँगली पकडे आंगन में सैर करने लगी और फिर हम दोनों बिस्तर पर लेट गए| "पापा मुझे कहानी सुननी है!" नेहा मेरे कान में खुसफुसाती हुए बोली| "बेटा फ्री मतलब मुफ्त की कहानी अब खत्म हो गईं, अब कहानी सुननी है तो दो पप्पी देनी होगी!" मैंने कहा तो नेहा झट से उठी और मेरे दोनों गालों पर अपनी पप्पी दी, फिर मैंने उसे एक कहानी बना कर सुनाई| कहानी सुनते-सुनते नेहा मेरी छाती से चिपक कर सो गई, मुझे भी आज बड़ी जोरसे नींद आ रही थी तो मैं भी जल्दी हो सो गया|

अगली सुबह मैं उठा और नेहा को स्कूल छोड़ कर घर लौटा, भौजी मेरे लिए चाय लाईं और मैं अभी वो पी ही रहा था की बड़की अम्मा मेरे पास आ गईं| "मुन्ना चाय पी कर हमरे संग चक्की चालिहो?" अम्मा ने पुछा, अब घर में कोई पुरुष नहीं था तो मैं फटाफट चाय पी कर उनके साथ ख़ुशी-ख़ुशी चल दिया| रास्ते में कल जो हुआ उसके बारे में हमारी बात चल पड़ी| अम्मा मेरी बातों से बहुत प्रभावित थीं पर संतुष्ट नहीं, क्योंकि उनके विचार अब भी बड़के दादा के जैसे थे| मैंने भी इस बात को ज्यादा तूल नहीं दी और बात बदल दी| चक्की से गेहूँ पिसा कर जब मैं और बड़की अम्मा लौटे तो प्रमुख आंगन में मुझे एक लड़का जो लगभग मेरी उम्र का था, वो भौजी से बात करता हुआ दिखा| मैं उसे नहीं जानता था, मैंने आटा रसोई में रखा और उस लड़के का परिचय जानने के इरादे से वापस प्रमुख आंगन में आया| अभी मैं उससे या भौजी से कुछ पूछता उससे पहले ही मेरी लाड़ली नेहा स्कूल ड्रेस पहने हुए, उछलती-कूदती मेरे पास आई| मेरी अनुपस्थिति में पिताजी उसे स्कूल से ले आये थे और उसे घर छोड़ सीधा खेतों में निकल गए थे| मैंने नेहा को गोद में ले लिया और भौजी की ओर देखा तो पाया की उनकी नजर पहले से ही मुझ पर टिकी हुई है| मैंने आँखों के इशारे से उनसे पुछा की क्या बात है तो वो बिना कुछ जवाब दिए ही घर में घुस गईं|
 

[color=rgb(184,]चौदहवाँ अध्याय: तन की आग[/color]
[color=rgb(85,]भाग - 1[/color]


[color=rgb(243,]अब तक आपने पढ़ा:[/color]

चक्की से गेहूँ पिसा कर जब मैं और बड़की अम्मा लौटे तो प्रमुख आंगन में मुझे एक लड़का जो लगभग मेरी उम्र का था, वो भौजी से बात करता हुआ दिखा| मैं उसे नहीं जानता था, मैंने आटा रसोई में रखा और उस लड़के का परिचय जानने के इरादे से वापस प्रमुख आंगन में आया| अभी मैं उससे या भौजी से कुछ पूछता उससे पहले ही मेरी लाड़ली नेहा स्कूल ड्रेस पहने हुए, उछलती-कूदती मेरे पास आई| मेरी अनुपस्थिति में पिताजी उसे स्कूल से ले आये थे और उसे घर छोड़ सीधा खेतों में निकल गए थे| मैंने नेहा को गोद में ले लिया और भौजी की ओर देखा तो पाया की उनकी नजर पहले से ही मुझ पर टिकी हुई है| मैंने आँखों के इशारे से उनसे पुछा की क्या बात है तो वो बिना कुछ जवाब दिए ही घर में घुस गईं|

[color=rgb(65,]अब आगे:[/color]

भौजी का यूँ बिना कुछ बोले चले जाना कुछ अनुचित घटित होने का इशारा था| मैं सोच में पड़ गया की आखिर ये बन्दा है कौन और इसने भौजी से ऐसा क्या कह दिया की वो मुझे देखते ही बिना कुछ बोले अंदर चलीं गईं| इतने में वो लड़का चन्दर की ओर चल दिया जो कुऐं की मुंडेर पर बैठे थे, उसने हाथ जोड़ के चन्दर से कोई विनती की और तभी चन्दर ने मेरी ओर इशारा करते हुए ऊँची आवाज में मुझे टोंट मारते हुए कहा; "भैया जो कहेका है, हमार मानु भैया से कहो| ऊ सिर्फ इन्हीं की बात मनिहें!" मैं चुप-चाप नेहा को गोद में लिए कुएँ के नजदीक आया तो वो लड़का मेरे पास आया और बोला; "भाई साहब, प्लीज जीजी को समझाइये की वो मेरे साथ चरण काका की बेटी की शादी में चलें|" अब उस लड़के के मुँह से 'जीजी' शब्द सुनके ये साफ़ था की वो मेरा 'साला' है! "आप यहीं रुको और नेहा को समभालो, मैं बात करता हूँ!" मैंने कहा और नेहा को अपने साले की गोद में देना चाहा, पर नेहा थी की अपने मामा की गोद में जा ही नहीं रही थी| आखिर वो मेरी गोद से छटपटा कर उतर गई और भागती हुई मेरे पिताजी के पास खेतों में चली गई| उसे भागता हुआ देख मेरा साला नेहा को पीछे से आवाजें देता रह गया पर नेहा उसकी आवाज अनसुनी कर भाग गई| इधर मैं भौजी को समझाने के मूड से उनके घर में घुसा तो देखा की भौजी आंगन में पड़ी चारपाई पर सर झुका कर बैठीं हैं|

इससे पहले की मैं कुछ बोलता, भौजी ने ही अपनी दो टूक बात मेरे सामने रख दी;

भौजी: अगर आप मुझे शादी अटेंड करने के लिए कहने आय हो, तो मैं पहले बता दूँ की मैं आपको छोड़के कहीं नहीं जा रही!

भौजी की ये बात गुस्से से भरी-पूरी थी, इसलिए मैं भी चुप-चाप हाथ बाँधे, दिवार से टेक लगा कर खड़ा हो गया| कुछ मिनटों तक सन्नाटा पसरा रहा और इन्हें कुछ मिनटों में भौजी को उनके गुस्से का एहसास हुआ;

भौजी: I'm sorry!

उन्होंने कान पकड़ते हुए कहा|

मैं: It's okay!

मैंने मुस्कुराते हुए कहा और फिर उन्हें प्यार से समझाने लगा|

मैं: आपने परसों रात को बताया था न की कैसे चरण काका की वजह से 'ससुरजी' ने आपको दसवीं तक पढ़ने के लिए शहर भेजा?! फिर उन्हीं की लड़की की शादी है और आपको स्पेशल बुलावा आया है, फिर भी आप जाने से मना कर रहे हो? क्या ये सही बात है?

भौजी: पर मैं आपके बिना नहीं रह सकती|

भौजी ने मुँह बनाते हुए कहा|

मैं: अरे बाबा! कौनसा आप हमेशा के लिए जा रहे हो? अच्छा ये बताओ शादी कब की है?

भौजी: कल

मैं: तो दिक्कत क्या है? कल शादी है, परसों विदाई तरसों आप आ जाना| सिर्फ तीन दिन की ही तो बात है!

लेकिन भौजी के मन का डर सामने आ ही गया;

भौजी: नहीं...आप मुझे छोड़के चले जाओगे?

अब उनका ये डर देख मैं मुस्कुराने लगा|

मैं: अच्छा बाबा, नहीं जाऊँगा!

पर उन्हें अब भी चैन नहीं मिला और वो हट करने लगीं|

भौजी: नहीं मैं आपके बिना एक दिन भी नहीं रह सकती!

अब मुझे उनके साथ कुछ तो तर्क करना था;

मैं: अच्छा मेरे लिए चले जाओ! प्लीज! And I promise मैं कहीं नहीं जाऊँगा, फिर इसी बहाने आप 'ससुरजी' को ये खुशखबरी दे देना की वो नाना बनने वाले हैं!

मैंने इतना प्यार से कहा की भौजी पिघल गईं पर फिर भी मुझे चेतावनी देते हुए बोलीं;

भौजी: ठीक है पर अगर मेरे आने पर आप मुझे यहाँ नहीं मिले तो आप मेरा मरा मुँह देखोगे!

भौजी की आँखों में दर्द नजर आने लगा था|

मैं: उसकी नौबत ही नहीं आएगी!

मैंने मुस्कुरा कर भौजी की आँखों में आँखें डाले कहा|

मैं: चलो अब ख़ुशी-ख़ुशी अपना सामान पैक करो, मैं 'साले साहब' को बुलाता हूँ|

मैंने बाहर जाके अनिल (साले साहब) को आवाज दी और उसे अंदर आने को कहा| अंदर आके उसने भौजी को सामान पैक करते देखा तो खुश हो गया| इतने में उछलती-कूदती हुई नेहा भी आ गई और मेरी गोद में बैठ गई|

मैं: बेटा तैयार हो जाओ आप अपने नाना जी के घर जा रहे हो!

मैंने नेहा का चेहरा अपने दोनों हाथों में लेते हुए कहा|

नाना जी के घर जाने की बात सुन नेहा खुश हो गई और तैतयार होने के लिए भौजी के पास चली गई| भौजी ने उसे नई फ्रॉक पहनाई जिसमें फूल बने हुए थे और नए सैंडल, बाल तेल से चुपड़ कर, दो चोटी बना कर नेहा मुझे अपने नए कपडे दिखाने आई; "मेरा बच्चा तो आज बहुत सूंदर लग रहा है! चलो मैं आपको काला टीका लगा दूँ वर्ण मेरी नजर न लग जाए!" मैंने नेहा को गोद मैंने उठाते हुए कहा| "इतना प्यार करते हो इसे, तो आपकी नजर कैसे लगेगी?" भौजी अपने कमरे के भीतर से बोलीं| फिर उन्होंने मुझे काजल की डिब्बी दी और मैंने नेहा के माथे पर खुद काल टीका लगाया| "अब मेरा बच्चा और भी सूंदर हो गया!" मैंने नेहा के गाल चूमते हुए कहा|

अनिल ने नेहा को गोद में लेने को अपने हाथ फैलाये पर नेहा मेरे से कस कर लिपट गई! उधर भौजी ने अपने कमरे का दरवाजा बंद किया और कपडे बदलने लगीं| इधर मैं और अनिल चारपाई पर बैठ गए, पर अनिल के मन में मुझे ले कर बहुत सारे सवाल पैदा होने लगे थे| इन सब से बेखबर मैं नेहा के साथ अपनी नाक लड़ा रहा था और उसके गाल चूम रहा था! जब भौजी तैयार हो कर बाहर आईं तो अनिल से बोलीं;

भौजी: अनिल तुने 'इनको' थैंक्स बोला?

भौजी के मुँह से इनको शब्द सुन कर मैं आँखे फाड़े उन्हें देखने लगा| शुक्र है की अनिल ने मुझे यूँ आँखें फाड़े नहीं देखा!

अनिल: ओह सॉरी जीजी, थैंक यू भाई साहब!

अनिल के मुँह से भाईसाहब सुन भौजी भोयें सिकोड़ते हुए उससे बोलीं;

भौजी: भाई साहब? ये तेरे भाई साहब थोड़े ही हैं!

अब मैंने भोएं सिकोड़ के भौजी को घूर के देखा और उन्हें आगे बोलने से रोकना चाहा, पर वो कहाँ सुनने वाली थीं;

भौजी: तू अजय को क्या कहके बुलाता है?

अनिल: जीजा जी

भौजी: तो 'ये' तेरे अजय भैया के भाई ही तो हैं, इस नाते ये तेरे क्या हुए?

भौजी ने किसी अद्यापिका की तरह अनिल से सवाल पुछा|

अनिल: ओह! जीजा जी...थैंक यू जीजा जी!

अनिल ने मुस्कुराते हुए कहा|

अनिल के मुँह से अपने लिए जीजा जी सुन, मुझे थोड़ा अजीब सा लगा क्योंकि आज तक किसी ने भी मुझे 'जीजा जी' नहीं कहा था| उधर भौजी के चेहरे पर ऐसी प्रसन्नता थी मानो उन्होंने कोई किला फ़तेह कर लिया हो! अपने भाई के मुख से मेरे लिए जीजा बुलवा कर वो मन ही मन अपनी इस जीत पर अकड़ रहीं थीं! उस दिन मुझे एहसास हुआ की भौजी को ये छोटी-छोटी खुशियाँ बहुत आनंद देती हैं| उनके चेहरे की ये ख़ुशी देख मैं भी हँस पड़ा और नेहा के गाल को चूम लिया!

आखिर कुछ देर से अपने मन में उठ रहे सवालों का जवाब जानने के लिए अनिल बोल पड़ा;

अनिल: वैसे जीजा जी, कुछ तो बात है आप में! आपने तो जैसे जीजी पर जादू कर दिया है! पिछली बार जब मैं आया था तब आप यहाँ नहीं थे, मैंने जब जीजी को चलने के लिए कहा तो उन्होंने आपकी ख़ुशी के लिए शादी अटेंड करने से मना कर दिया और मुझे लौटा दिया! आज फिर पिताजी ने बुलावा भिजवाया तो सुबह से मैंने कितनी मिन्नत की, जीजा जी (चन्दर) ने भी कहा, काका ने स्पेशल बुलावा भेजा, लेकिन जीजी ने आने से साफ़ मना कर दिया! फिर पता नहीं आपने पाँच मिनट में ऐसा क्या कहा की जीजी झट से तैयार हो गईं? और तो और नेहा को देखो, पहले मेरे पास आ जाया करती थी! पर आज जब से आया हूँ मेरे पास भटकती भी नहीं, तब से देख रहा हूँ आपसे चिपकी हुई है! बताइये ना क्या जादू किया आपने सब पर?

अनिल की बात सुन मैंने भौजी को देखा तो वो मुस्कुरा रहीं थीं और मेरे इस तरह फँसने पर खुश हो रहीं थीं!

मैं: यार...कोई जादू नहीं है बस 'प्यार है...'

ये शब्द मैंने भौजी की मुस्कान से मंत्र मुग्ध होते हुए अनायास ही कह दिए थे! जब मुझे इसका एहसास हुआ तो मैंने बात को संभालने के लिए आगे नेहा का नाम जोड़ दिया|

मैं: नेहा का मुझसे जो वो मेरे बिना नहीं रहती| मेरे साथ खेलती है, मेरे साथ खाती है, मेरे साथ सोती है और आजकल तो होमवर्क भी मेरे साथ करती है!

मैंने नेहा के मस्तक को चूमते हुए कहा| अपनी बढ़ाई सुन नेहा शर्मा गई और मेरे सीने में अपना चेहरा छुपा लिया|

मैं: और रही बात आपकी जीजी की तो हमारी अंडरस्टैंडिंग बहुत अच्छी है| ये मेरी बात झट से समझ जाती हैं!

मैंने हँसते हुए कहा| उधर भौजी ये सुन के मुस्कुरा दीं और मेरी बात में अपनी बात जोड़ दी;

भौजी: हाँ, इनका समझाने का तरीका जरा हटके है! बड़े प्यार से समझते हैं ये!

मैं जानता था की अनिल इतना बेवकूफ नहीं है जो हमारे बीच में क्या चल रहा है वो समझ न पाये इसलिए मैंने भौजी की बात को अलग ही अर्थ दे दिया;

मैं: यार अब आप मेरी टाँग मत खींचो! अनिल, तुम नहीं जानते ये मुझे इतना तंग करती हैं, हर बात पर मेरी टाँग खींचती हैं और जो तुम कह रहे हो न की ये मेरी हर बात मानती हैं, ऐसा कुछ भी नहीं है| सौ में से निन्यानवे बातें तो ये कभी नहीं मानती! पिछली बार इन्होने मेरे जिस डर से जाने को मना कर दिया था, वो आज से कुछ साल पहले की बात है| तब मैं बहुत छोटा था, तब ऐसे ही एक दीं सुबह तुम आये थे इन्हें लेने क्योंकि तब घर में हवन था| ये मुझे कह गईं की मैं जल्दी वापस आऊँगी, अब इनके अलावा तो यहाँ मेरा कोई दोस्त नहीं था, इसलिए इनका इंतजार कर-कर के बोर हो गया| मुझे लगता था की ये आज आएँगी..कल आएँगी..पर ना जी ना इन्होने तो वापस ना आने की कसम खा ली थी! इसी गुस्से में मैं तब वापस चला गया था, अब आज तुम फिर आये तो इन्हें डर लगा की मैं फिर से रूठ के वापस ना चला जाऊँ इसलिए ये जाने से मना कर रहीं थी| जब मैंने इन्हें भरोसा दिलाया की मैं नहीं जाऊँगा तब जा के मानी हैं!

मैंने अनिल को विस्तृत जानकारी दी ताकि उसे हमारे रिश्ते पर कोई शक न रहे!

अनिल: अच्छा तो ये बात है!

अनिल हँसते हुए बोला, उसके मन में अब कोई शंका नहीं रह गई थी| पर मुझे भौजी को खुद को फँसाने के लिए छेड़ना था तो मैंने उल्हाना देते हुए कहा;

मैं: वैसे मैंने कोई गारंटी नहीं दी है की मैं इनके वापस आने तक रहूँगा?

अब ये सुनते ही भौजी के मुख से साड़ी हँसी गायब हो गई और उनका मुँह उतर गया|

मैं: अरे बाबा मैं मजाक कर रहा था! I promise मैं कहीं नहीं जाऊँगा|

मैंने कान पकड़ते हुए कहा, लेकिन भौजी को तनिक भी तसल्ली नहीं हुई|

भौजी ने सामान पैक कर लिया था और वो निकलने के लिए तैयार थीं| मैंने नेहा को गोद से उतारा और ज्यों ही मैं और अनिल खड़े हुए के तभी भौजी अपने भाई के सामने मेरे गले लग गईं| अब मुझे कुछ बोलना था ताकि मैं भौजी का यूँ मेरे गले लगने को जायज ठहरा सकूँ!

मैं: यार कुछ ही दिनों की ही तो बात है! क्यों भई अनिल ज्यादा से ज्यादा तीन दिन न?

मैंने जानबूझ कर अनिल का नाम लिया ताकि भौजी को उसके होने का एहसास रहे और वो कुछ कह न दें!

अनिल: जी जीजा जी! जीजी आप चिंता ना करो मैं आपको तीन दिन बाद छोड़ जाऊँगा|

भौजी: तीन दिन बाद नहीं तीसरे दिन ही वापस आना है मुझे|

भौजी ने मेरे गले लगे हुए ही अनिल को धमकाते हुए कहा|

अनिल: हाँ वही मतलब मेरा|

अनिल को भौजी का इस तरह मेरे गले लग्न अटपटा लग रहा होगा पर उनके डर के मारे कुछ नहीं बोला| हम कुछ इस प्रकार गले लगे हुए खड़े थे की भौजी की पीठ अनिल की ओर थी, अनिल भौजी का समान उठाने कमरे में घुसा तब भौजी ने अचानक मेरा दाहिना हाथ पकड़ के अपने पेट पर रखा ओर मेरे कान में खुसफुसाई;

भौजी: खाओ अपने बच्चे की कसम की आप मुझे बिना मिले नहीं जाओगे?

उन्होंने जान बूझ कर मुझे अपनी कसम से बाँध दिया और मैं भी ख़ुशी-ख़ुशी उनके इस बँधन में बँध गया;

मैं: कसम खाता हूँ की जब तक आप नहीं आओगे मैं कहीं नहीं जाऊँगा!

ये सुनने के बाद भौजी को तसल्ली हुई और हम अलग हुए| अब तक अनिल भौजी का एक छोटा सा बैग ले कर बाहर निकल चूका था, उसके पीछे भौजी और सबसे पीछे मैं और मेरी गोद में नेहा| अनिल के हाथ में बैग देखते ही घर के सारे सदस्य समझ गए की भौजी शादी में जाने को राज़ी हो गई हैं तथा सकीय नजर एक साथ मेरी ओर ठहर गई|

बड़के दादा: अच्छा किया बहुरिया जो तु जाए खातिर मान गई|

अनिल: जी ये सब तो जीजा जी (मेरी ओर इशारा करते हुए) का कमाल है!

अनिल अपने उत्साह में बोल गया और मेरी हालत ख़राब हो गई! अगर मुझसे कोई पूछता तो मैं क्या कहता, मैं मन ही मन इसकी तैयारी करने लगा|

बड़के दादा: हम जनते रहे मानु ही तोहका मनाई सख्त है! चलो घर जाए के समधी जी का हमार राम-राम कहेऊ!

बड़के दादा की ये बात सुन कर मैं झेंप गया और एकदम से अपना ध्यान नेहा में लगा दिया ताकि अपने मन के विचारों को छुपा सकूँ|

खैर सबसे विदा ले कर मैं भौजी और अनिल को छोड़ने के लिए चौक तक चल दिया| जब हम चौक पहुँचे तो नेहा मेरी गोद से उतरने का नाम नहीं ले रही थी| वो कस कर मुझसे लिपट गई और न ही भौजी की गोद में जा रही थी और न ही अपने मामा की गोद में|

मैं: क्या हुआ बेटा? अपने नाना जी के घर नहीं जाना?

नेहा: नहीं

नेहा मेरी आँखों में देखते हुए बोली|

मैं: बेटा ऐसा नहीं कहते, देखो आपके नाना जी आपका इन्तेजार कर रहे हैं| उनके पास बहुत अच्छी-अच्छी मिठाइयाँ है, खिलोने हैं और खाने-पीने को बहुत कुछ है!

मैंने अपनी तरफ से नेहा को हर प्रलोभन दिए ताकि वो मान जाए पर मेरी लाड़ली बच्ची मुझसे इतना प्यार करती है की उसे इन प्रलोभन से जरा भी फर्क नहीं पड़ा|

नेहा: आप भी चलो!

नेहा ने मेरी ठुड्डी पकड़ते हुए कहा|

मैं: बेटा मैं नहीं आ सकता, मुझे घर में काफी काम है| आप जाओ और खूब....

मेरी बात पीने से पहले ही नेहा बोली;

नेहा: नहीं पा...

इससे पहले की वो पापा शब्द पूरा बोल पाती, मैं उसे गोद में लिए पाँच कदम दूर हुआ और उसके कान में बोला;

मैं: बेटा जिद्द नहीं करते! देखो तीन दिन बाद हम फिर मिलेंगे और मैं आपको आपकी मनपसंद चीज खिलाऊँगा|

मैंने नेहा

नेहा: नहीं पापा मैं नहीं जाऊँगी|

पर नेहा जिद्द में अपनी माँ पर गई थी, इसलिए वो नहीं मानी| हारकर मैं वापस भौजी और अनिल के पास आगया, तभी भौजी उत्साह से बोलीं;

भौजी: आप भी चलो न हमारे साथ|

भौजी का उत्साह देख अनिल भी उनके संग हो लिया;

अनिल: हाँ जीजा जी आप भी चलो मज़ा आएगा!

पर मेरा शादी-ब्याह के माहौल में कभी मन नहीं लगता था;

मैं: यार (भौजी से) आप तो जानते ही हो मेरा मन शादी-ब्याह के फंक्शन में जरा भी नहीं लगता|

तभी भौजी तपाक से बोलीं;

भौजी: तो मेरा कौन सा लगता है, मुझे तो जबरदस्ती भेज ही रहे हो|

उन्होंने प्यार से शिकायत की|

मैं: यार मैं वहाँ किसी को नहीं जानता, बोर हो जाऊँगा|

पर भौजी के पास मेरी इस बात का जवाब पहले से ही था|

भौजी: आप मेरे साथ रहना! मैं आपको बोर नहीं होने दूँगी!

भौजी ने इतने धड़ल्ले से कहा की मैं एक पल को सकपका गया| उन्हें जरा भी फ़िक्र नहीं थी की उनका भाई खड़ा उनका ये बर्ताव देख और सुन रहा है! लेकिन मुझ में समज थी इसलिए मैंने आदमियों वाला बहाना मारा;

मैं: मतलब लेडीज के साथ! बाप रे बाप! उससे तो अच्छा है मैं यहीं रहूँ|

इस तरह हमारी बात घूम फिर के वहीँ आ कर अटक गई| मैंने मन ही मन सोचा की मैं नेहा को अपने पास रोक लेता हूँ, लेकिन मैं कुछ कह पाता उससे पहले ही वहाँ पिताजी आ गए| अब चूँकि हमें वहाँ खड़े-खड़े पंद्रह मिनट हो गए थे और पिताजी हमें दूर से देख रहे थे, इसलिए वो कारन जानने स्वयं आ गए| उन्हें देख भौजी ने तुरंत घूँघट काढ लिया;

पिताजी: क्या हुआ बेटा?

पिताजी ने मुझसे पुछा|

मैं: नेहा जाने से मना कर रही है|

ये सुन पिताजी ने नेहा के सर पर हाथ फेरा और उससे पुछा;

पिताजी: क्यों गुड़िया क्या हुआ?

नेहा कुछ नहीं बोली पर मैं बात जल्दी खत्म करना चाहता था क्योंकि अगर भौजी पिताजी से ये कह देतीं की नेहा जिद्द कर रही है की मैं भी उनके साथ चलूँ तो वो जबरदस्ती मुझे भेज देते|

मैं: देखो बेटा अगर आप नहीं गए न तो मैं आपसे कभी बात नहीं करूँगा!

मैंने नेहा को इमोशनल ब्लैकमेल किया तो वो बेमन से मान गई| मैंने उसे भौजी की गोद में देना चाहा तो पहले उसने मेरे दोनों गालों को चूमा और फिर उदास हो कर भौजी की गोद में चली गई| मैंने नेहा को बाय-बाय किया, फिर मैं और पिताजी वापस आ गए लेकिन मेरा दिल तो भौजी के साथ ही चल गया था!

[color=rgb(250,]जारी रहेगा भाग - 2 में...[/color]
 

[color=rgb(184,]चौदहवाँ अध्याय: तन की आग[/color]
[color=rgb(41,]भाग - 2[/color]


[color=rgb(65,]अब तक आपने पढ़ा:[/color]

मैं बात जल्दी खत्म करना चाहता था क्योंकि अगर भौजी पिताजी से ये कह देतीं की नेहा जिद्द कर रही है की मैं भी उनके साथ चलूँ तो वो जबरदस्ती मुझे भेज देते|

मैं: देखो बेटा अगर आप नहीं गए न तो मैं आपसे कभी बात नहीं करूँगा!

मैंने नेहा को इमोशनल ब्लैकमेल किया तो वो बेमन से मान गई| मैंने उसे भौजी की गोद में देना चाहा तो पहले उसने मेरे दोनों गालों को चूमा और फिर उदास हो कर भौजी की गोद में चली गई| मैंने नेहा को बाय-बाय किया, फिर मैं और पिताजी वापस आ गए लेकिन मेरा दिल तो भौजी के साथ ही चल गया था!

[color=rgb(243,]अब आगे:[/color]

घर लौट कर मैं छप्पर के नीचे बैठ गया, अब घर में कोई नहीं था जिससे मैं बात कर सकूँ| कुछ देर में बड़की अम्मा आ गईं और मेरा मन बहलाने लगीं| खैर खाना बना और सब ने एक साथ खाना खाया और फिर सभी खेत की ओर निकल पड़े| खेत में कटाई का काम बहुत रह गया था, इसलिए पूरा परिवार उसी में व्यस्त था| सब के जाने के बाद मैं बड़े घर के आंगन में चारपाई डाल कर लेट गया और भौजी को याद करने लगा| उनको गए अभी कुछ ही घंटे हुए थे और मेरा मन मचलने लगा था! खुली आँखों से मैं आसमान में उन्हीं का चेहरा देख रहा था, उनकी वो कातिल मुस्कान, वो शर्माना! हाय! यही सोच कर मैं अपने मचलते मन को शांत करने लगा, मैं भौजी की याद में कुछ इस कदर खो गया था की मुझे ये भी नहीं पता चला की कब रसिका भाभी मेरे पास आ कर बैठ गईं|

रसिका भाभी: अब तो तुम अकेले होई गए मानु भैया!

भौजी खिलखिलाकर हँसते हुए बोलीं जिससे मेरी तंद्रा भंग हुई और मैं भौजी के ख्याल से बाहर आया|

मैं: क्यों? बड़की अम्मा हैं, माँ हैं और......आप भी तो हो!

मैं ने सफाई देते हुए कहा और बड़े बेमन से उनका नाम लिया ताकि कहीं उन्हें हमारे रिश्ते पर शक न हो! उनका नाम लेने का मेरा कोई और उद्देश्य नहीं था, बस अपने प्यार को छुपाना चाहता था! लेकिन मई नहीं जानता था की वो तो यहाँ मेरे मजे लेने आईं हैं!

रसिका भाभी: अब भैया हम मा ऊ बात कहाँ जो तोहार भौजी मा है!

वैसे उनकी बात में तो दम था क्योंकि जो बात भौजी में थी वो उनमें तो क्या किसी में हो भी नहीं सकती थी! खैर मैं रसिका भाभी की इस बात का मतलब समझ गया था पर जानबूझ कर शांत रहा ताकि वो इस बात को और न कुरेद सकें! परन्तु इससे आगे रसिका भाभी को कुछ बोलने का मौका नहीं मिला क्योंकि अजय भैया ने अचानक आ कर एक घमासान युद्ध का बिगुल बजा दिया|

अजय भैया: तू कउनो काम की है? @#@#@#**@#*@#*@#*@#*@#*@##*#*#*#*@@@

भैया ने ऐसी-ऐसी गन्दी गालियाँ भाभी को दीं, जो मैं लिखना नहीं चाहता| डर के मारे रसिका भाभी एकदम से उठ खड़ी हुई और मैं भी एकदम से खड़ा हो गया|

मैं: भैया शांत हो जाओ! आप क्यों भड़क रहे हो भाभी पर? क्या कर दिया इन्होने?

मैंने भैया के कंधे पर हाथ रख उन्हें शांत करना चाहा, पर उनका तो पारा चढ़ा हुआ था|

अजय भैया: कछु न किहिस ई @#@#**@* ने! सारा टैम सोवत रहत ही, कछु काम कहो तो बीमार होये का बहाना करत ही! @@**##@ आज भी अम्मा कितनी बार कहिन की खाब बना ले पर ई के कान पर जूँ न रेंगी! @@#**@@

अब मैं समझ गया की खेत पर बड़की अम्मा ने ही अजय भैया से रसिका भाभी की शिकायत की है! भैया का गुस्सा इतना तेज था की आज वो रसिका भाभी को पीट देते, तो मैंने उन्हें शांत करना ठीक समझा| फिर माँ के दिए कुछ संस्कार थे की कभी भी किसी स्त्री को गालियाँ नहीं देनी चाहिए और उसकी हमेशा इज्जत करनी चाहिए, इसलिए मुझे बीच में बोलना ही पड़ा;

मैं: भैया आप ऐसे गालियाँ क्यों दे रहे हो?! आराम से बात करते हैं!

पर अजय भैया के सर पर तो आज भूत सवार था, वो गुस्से में मुझे बोले;

अजय भैया: तुम हट जाओ मानु भैया, हम आभायें ई @##@** की अक्ल ठिकाने लगैत है!

इतना कह के वो आंगन में पड़ी नीम की एक छड़ी उठाने लपके| अब घर में कोई नहीं था जो अजय भैया को रोकता, ऐसे में अपने माँ के दिए हुए संस्कारों के चलते मैंने ही आगे बढ़ कर उनके हाथ से वो छड़ी छुड़ा ली और और छप्पर के ऊपर फेंक दी| फिर जबरदस्ती उन्हें पकड़ कर रसिका भाभी से दूर ले गया और किसी तरह समझा-बुझा के वापस खेत भेजा! जब मैंने पलट कर रसिका भाभी की ओर देखा तो वो बस रोये जा रही थी!

इंसानियत के नाते मैंने उनके पास आया और उनके आँसूँ पोछे और उन्हें चुप कराया| नजाने रसिका भाभी को क्या सूझी की वो एकदम से मुझसे लिपट गई और सुबकने लगी! मुझे उनका मुझे गले लगाना कुछ अजीब सा लगा पर फिर मैने सोचा की भाभी थोड़ा भावुक हो गईं है, इसलिए मैंने उस समय कुछ नहीं कहा| जब भाभी शांत हुई तब मैंने उनसे ये सोच के बात उठाई की शायद मैं उनके विवाहित जीवन में वापस खुशियाँ ला सकूँ|

भौजी ने जो रसिका भाभी के बारे में बात बताई थी, उससे मैं उनके अतीत के बारे में तो जान गया था परन्तु मैं उनका पक्ष जानना चाहता था, इसलिए मैंने रसिका भाभी को खुद से अलग करते हुए उनका पक्ष रखने का मौका देते हुए पुछा;

मैं: भाभी अब बताओ की आखिर बात क्या है? क्यों आपका और भैया का हमेशा झगड़ा होता है? क्यों भैया को आप और आपको भैया फूटी आँख नही भाते?

रसिका भाभी: मानु भैया, अब तोहसे का छुपाई! तोहार भैया हमका खुश नाहीं कर पावत हैं, हमेसा हमका प्यासा छोड़ देत हैं!

मैं भौजी का जवाब सुन के अवाक रह गया, उनकी बात तो मैं समझ गया था पर फिर भी ऐसा दिखाया जैसे मैं कुछ नहीं समझा| क्योंकि मुझे अपनी भलेपन की ताख बचानी थी, अगर रसिका भाभी को जरा सा भी शक हो जाता या पता चल जाता की मैं सेक्स के बारे में सब जानता हूँ तो वो ये उनका मेरा और भौजी पर शक पक्का हो जाता तथा वो ये बकवास सब के सामने कर देतीं|

मैं: मैं कुछ समझा नहीं?

मैंने अनजान बनने का नाटक किया|

रसिका भाभी: मानु भैया तुम कितना भोले हो और एहि खातिर हमका इतना भावत हो!

रसिका भाभी ने हँसते हुए कहा, पर मैं अपना भोलेपन का नाटक करते हुए चुप रहा|

रसिका भाभी: चुदाई का बारे में कछु नाहीं जानत हो?

रसिका भाभी के मुँह से ये शब्द सुनते ही मेरे कान खड़े हो गए| मैं उम्मीद कर रहा था की वो अपनी बात शर्मा कर कहेंगी पर ये तो बेधड़क निकलीं और 'चुदाई' जैसे शब्द को खुले आम बोलने लगीं| अब उनके मुँह से ये शब्द सुन कर मुझे बहुत गुस्सा आया क्योंकि माँ के संस्कार के अनुसार स्त्री हमेशा शर्मीली और सब कुछ सहने वाली होती है| वो इस तरह बेशर्म होगी ये मैंने ने कभी सोचा भी नहीं था!

खैर रसिका भाभी उम्मीद कर रहीं थीं की मैं कुछ बोलूँगा पर मैं चुप रहा| मैं नहीं जानता था की ये तो बस रसिका भाभी की बेशर्मी की शुरुरात है! मुझे खामोश देख रसिका भाभी ने सोचा की चलो अपने भोले देवर को चुदाई ज्ञान दिया जाए;

रसिका भाभी: चलो हम बताइत है की चुदाई का होवत है? जब लड़का आपन ऊ (मेरे लिंग की ओर इशारा करते हुए) लड़की की ई जगह (अपनी योनि की ओर इशारा करते हुए) घुसावत है, तो ऊ का चुदाई कहत हैं!

रसिका भाभी ये बात एक साँस में बोल गईं और ये सुन कर जिंदगी में पहली बार मुझे इस बात से इतनी घिन्न आई!

मैंने अपना मुँह बिदकते हुए उनकी ओर देखा और कहा;

मैं: आप बहुत गन्दी बातें करते हो!

मेरी ये बात सुन रसिका भाभी ने जोर का ठहाका मारा और बोलीं;

रसिका भाभी: गन्दी बात? अरे ई तो तुम भी करिहो!

उनकी बातों से मैं उनका चरित्र समझ गया था, इसलिए अब मेरी उनसे बात करने की कतई इच्छा नहीं थी| मैं बड़े गुस्से में अपना मुँह मोड़ के जाने लगा तो रसिका भाभी ने मेरा दायाँ हाथ पकड़ के मुझे बैठा दिया, फिर मेरा दायाँ हाथ अपने दोनों हाथों के बीच में रख के प्यासी नजरों से बोलीं;

रसिका भाभी: मानु भैया, बस एक बार हमार प्यास बुझाई दो! बस एक बार!

उनकी ये घिनौनी बात सुन मैं गुस्से में उठ खड़ा हुआ और झटके से अपना दायाँ हाथ उनके हाथों की पकड़ से निकाल लिया;

मैं: आपका दिमाग ठीक है? आप मेरी भाभी हो और आप मुझसे ऐसी गंदी बात करते हो?

पर उस वक़्त रसिका भाभी के जिस्म में वासना आग लगी हुई थी!

रसिका भाभी: मानु जीईईईईई....

रसिका भाभी ने आज पहली बार मेरे नाम के आगे 'जी' लगाया और कुछ ऐसा लगाया की मेरे 'जी' में आग लग गई!

रसिका भाभी: तोहका देख हम बहक जाइत है! जबसे तोहका नहात हुए देखें हैं....सससस....का बताई का बीतत है हमरे ऊपर? एको बार मान जाओ!

रसिका भाभी ने अपना निचला होंठ काटते हुए कहा| उनकी ये घिनौनी हरकत देख मेरा जी मचलने लगा (उलटी आना), इसलिए मैं मुँह फेर के जाने लगा| लेकिन मुझे जरा सा भी अंदेशा नहीं था की ये छुई-मुई सी दिखने वाली स्त्री में कितनी ताक़त है! रसिका भाभी ने एकदम से मेरा हाथ पकड़ के रोक लिया और मुझे धकेल के दिवार से लगा दिया| उनका ये आक्रमण इतना तेज था की मैं सम्भल पाटा उससे पहले ही वो एकदम से मुझसे सट कर खड़ी हो गईं| उनके बिना ब्रा वाले स्तन ब्लाउज फाड़ने को तैयार थे तथा मेरे सीने में धंसे हुए थे, हम उस वक़्त इतने नजदीक थे की मुझे उनकी साँसें मेरे चेहरे पर महसूस हो रही थीं!

रसिका भाभी: मान जाओ ना! काहे तड़पावत हो? जान लेहिओ का मार? तो लै लिहो!

इतना कहके उन्होंने अपनी साडी का पल्ला गिरा दिया और मुझे उनके स्तनों के बीच की सफ़ेद खाईं साफ़ दिखने लगी| मैंने अपनी आँखें फेर लीं और दूसरी ओर मुँह करके बोला;

मैं: मुझे आपसे कोई बात नहीं करनी, आप होश में नहीं हो!

इतना कह कर मैंने उनके चंगुल से छूटने की कोशिश की पर रसिका भाभी ने अपना पूरा वजन मुझ पर डाल दिया ताकि मैं हिल न पाऊँ| अब मुझे घबराहट होने लगी थी की अगर किसी ने हमें इस हाल में देख लिया तो मेरी इज्जत की धज्जियाँ उड़ जाएँगी!

मैं: भाभी मुझे गुस्सा मत दिलाओ! हटो मुझ पर से, मैं आपके चक्कर में नहीं पड़ने वाला!

मैंने गुस्से से छटपटाते हुए कहा| पर वो अड़ी रहीं और मुझे देख कर अपने होठों को फिर से काटने लगीं| मैंने गुस्से में ताक़त लगा कर धकेला और उनके चंगुल से निकल भागा| जैसी ही मैं बड़े घर से निकल के बाहर आया तो मुझे सड़क से हमारे घर की ओर कोई आता हुआ दिखाई दिया| ये कोई और नहीं बल्कि रसिका भाभी का बेटा वरुण था जिसे छोड़ने कोई आदमी आया था| मुझसे दुआ सलाम कर वो आदमी वरुण को मेरे पास छोड़ के फटा-फट चला गया| साफ़ था की रसिका भाभी के घर और हमारे घरों के बीच सम्बन्ध भारत-पाकिस्तान जैसे थे| बस एक बात का फर्क था, रसिका भाभी के घर वाले जानते थे और मानते थे की खोट उनकी ही बेटी में है|

इधर मेरा अजय भैया और रसिका भाभी के विवाहित जीवन में सुख लाने का प्लान मेरी ही 'गाँव' में घुस गया था! इतना ही बहुत था की मेरा अपनी पत्नी के प्रति प्रेम और समर्पण ने मुझे गिरने नहीं दिया, जिस कारन मैं रसिका भाभी जैसी काम पिपासी स्त्री जो बिलकुल अपने नाम के अनुकूल आचरण वाली थीं, उनके बने जाल में फँसने से बचा लिया था!

खैर, वरुण से मैं इतना घुला-मिला नहीं था इसलिए वो मेरे साथ बिलकुल चुप-चाप खड़ा था तथा इधर-उधर देख रहा था की तभी अंदर से रसिका भाभी निकलीं और वरुण को देख खुश हो गई| मैं वहाँ से अपनी जान बचा के भागना चाहता था पर रसिका भाभी को मुझसे बात करने का नया बहाना मिल गया;

रसिका भाभी: मानु जीईईईईई! मुझे न सही पर काम से काम अपने भतीजे को ही थोड़ा प्यार दे दो!

भौजी ने वरुण को आगे कर अपने अंदर की वासना प्रकट की| उनकी घिनौनी चाल देख मुझे बड़ा गुस्सा आ रहा था, मैंने मन ही मन सोचा की वरुण को यहाँ से ले जाता हूँ वर्ण ये बेशर्म औरत अपने ही बेटे के सामने इसी तरह गन्दी-गन्दी बातें करती रहेगी!

मैं: वरुण बेटा, चलो क्रिकेट खेलते हैं?

रसिका भाभी: हाय!!! जब तुम वरुण को बीटा कहत हो तो हमार दिल पर छुरियाँ चल जात हैं! ऊ का साथे 'बैट-बॉल' खेल सख्त हो, हमरे साथे काहे नाहीं? हमरे साथे ई भेद-भाव काहे करात हो?

रसिका भाभी ने बड़ी चतुराई से हमारे हौं अंगों को बैट-बॉल का 'कोड वर्ड' दे दिया! लेकिन मुझे ये सुन कर बड़ी कोफ़्त हुई और मैं बड़े गुस्से में उनपर बरसा;

मैं: आपको जरा भी शर्म हया नहीं, अपने बेटे के सामने ऐसी बातें कर रहे हो?

लेकिन रसिका भाभी को जरा सी भी शर्म नहीं थी, मेरा गुस्सा देख कर उन्हें जरा भी डर नहीं लगा बल्कि वो तो हँसने लगीं! मैं जानता था की वहाँ और रुका तो मेरा गुस्सा आज इनपर निकल पड़ेगा इसलिए मैं वरुण को अपने साथ ले के खेतों की ओर चल दिया|

मैं खुद पर सैयाम रखना जानता था, डर मुझे इस बात का था की अगर रसिका भाभी ने मेरे साथ किसी तरह की जबरदस्ती की और किसी ने हमें देख लिया तो? उनका तो कुछ नहीं जाएगा पर मैं सारे गाँव में बदनाम हो जाऊँगा!

मैंने अपना मन रसिका भाभी से हटाया और वरुण पर लगाया ताकि मैं अपना गुस्सा काबू कर लूँ! मैंने वरुण से उसके बारे में सवाल पूछने शुरू किये, जैसे की उसे क्या पसंद है? वो कौन सी क्लास में पढता है? उसके दोस्त कितने हैं? बातें करते-करते जब हम खेत पहुँचे तो वरुण को देख के किसी के मुख पर कोई ख़ुशी नहीं दिखी, अजय भैया का तो पारा फिर से चढ़ने लगा इसलिए मैं किसी से कुछ नहीं बोला और वरुण को लेके घर की ओर चल दिया| अब मुझे बेचारे वरुण पर तरस आ रहा था क्योंकि पूरे घर में उसे प्यार करना वाला कोई नहीं था| अब चूँकि नेहा तो यहाँ थी नहीं तो मैंने सोचा की चलो थोड़ा सा प्यार वरुण के साथ भी बाँटा जाए तो मैं वरुण को लेके गाँव की छोटी सी दूकान की ओर चल दिया और वहाँ जाके उसे चॉकलेट दिलाई| चॉकलेट उसे बहुत पसंद थी और उसे चॉकलेट खता देख मुझे नेहा की याद आने लगी थी, अगर वो अभी यहाँ होती तो मैं दोनों के साथ खेल रहा होता! मैंने प्यार से वरुण के सर पर हाथ फेरा और उसे ले कर घर लौट आया| मैंने घडी देखि तो अभी तक सिर्फ तीन ही बजे थे, जबकि मैं मन ही मन सोच रहा था की अभी 5-6 बज गए होंगे! लेकिन ये दिन था की ससुरा खत्म होने का नाम ही नहीं ले रहा था बल्कि रबड़ की भाँती और खींचता जा रहा था!

मैं और वरुण हँसी-ख़ुशी घर लौट आये और इस दौरान मैं रसिका भाभी द्वारा कही हुई घिनौनी बातों को लगभग भूल चूका था| घर लौट कर मैंने एक चारपाई कुएँ के पास लगाई जहाँ पर कपडे धोये जाते थे और एक कियारी बनाई गई थी जिसके जरिये कुएँ से पानी निकल कर खेतों की ओर जाता था| वरुण मेरे पास ही बैठ गया और अपने खिलौनों से खेलने लगा| मैंने अपना दायाँ हाथ मोड़ा और सर के नीचे रख लिया तथा आँख बंद कर सोने लगा| पर नींद कहाँ आये? उल्टा मुझे भौजी की याद और जोर से आने लगी! मन कर रहा था की उनके मायके धड़धड़ाता हुआ पहुंचूँ और उन्हें गले लगा लूँ तथा सब के सामने उन्हें गोद में उठा के घर ले आऊँ! इतने में मुझे रसिका भाभी के आने की आहट सुनाई दी, तो मैं ने झट से आँखें कस कर मूँद ली और ऐसा दिखाया जैसे मैं सो रहा हूँ| भाभी मेरे पास आईं और वरुण को अपनी गोद में लेके चली गईं| उनके जाने के बाद मैंने राहत की साँस ली पर ये राहत ज्यादा देर के लिए नहीं थी| रसिका भाभी फिर लौट के आईं, पर मेरे सोने का ड्रामा जारी रहा| रसिका भाभी ने इधर-उधर नजर दौड़ाई और देखा की कोई है तो नहीं, फिर भाभी झुकी तथा मेरे लंड को पाजामे के ऊपर से पकड़ लिया| दरअसल वो मेरे लंड का नाप लेने आईं थीं, लेकिन जैसे ही उनका हाथ मेरे लंड से स्पर्श हुआ मैं चौंक के उठ खड़ा हुआ!

मैं: आपकी हिम्मत कैसे हुई मुझे छूने की?

मैंने गरजते हुए कहा|

रसिका भाभी: हाय! गुस्सा मा तो तुम और प्यारे लागत हो!

रसिका भाभी ने मुस्कुराते हुए कहा| पर उनकी ये मुस्कराहट देख मेरा खून कहुआल गया था;

मैं: भाभी अब बहुत हो गया! मैं अब और बर्दाश्त नहीं करूँगा! अगर दुबारा आपने मेरे नजदीक आने की कोशिश की तो मैं भूल जाऊँगा की मेरे पिताजी ने मुझे संस्कार दिए हैं की अपने से बड़ों पे हाथ नहीं उठाते!

मैंने रसिका भाभी को घूर कर देखते हुए, ऊँची आवाज में अपना विरोध साफ़ जता दिया की मैं ये सब आसानी से सहने वालों में से नहीं हूँ| पर वो कपटी औरत जरा भी नहीं डरी और अपना निचला होंठ दाँतों से काटते हुए बोली;

रसिका भाभी: मुझे मार लिहो, काट लिहो, चाहो तो हमार टुकड़े-टुकड़े कर लिहो! पर बस एक बार...ससस...एक बार हमार प्यास बूझा दिहो!

उनका ये जाहिलपना मुझसे नाकाबिले बर्दाश्त था इसलिए मैं बड़ी जोर से चीखा;

मैं: कभी नहीं!

इतना कह मैं भुनभुनाता हुआ वहाँ से चला आया और खेतों में सब के साथ काम करने लगा| करीब घंटे भर के अंदर सभी लोग खेत से वापस चल दिए, लेकिन जब मैं सबके साथ घर पहुँचा तो देखा की वरुण रो रहा है!

मुझे देखते ही वरुण रोता हुआ मेरी ओर दौड़ा! मैंने उसे गोद में उठाया ओर उसे प्यार से पुचकारा| वरुण अपना सर मेरे कंधे पर रख सुबकने लगा| जब मैंने रसिका भाभी की ओर देखा तो वो गुस्से में तमतमा रहीं थी, लग रहा था की जैसे मेरा सारा गुस्सा उस बेचारे पर निकाल दिया हो! मैंने वरुण को चुप कराया और उसे गोद में लेके बड़े घर आ गया, उसके कपडे जिन पर मिटटी लगी थी वो उतारे और वरुण को बरामदे में बिठा कर उसके कपडे लेने रसिका भाभी के कमरे में घुसा| वरुण के कपडे ले कर जैसे ही मैं मुड़ा तो पाया की रसिका भाभी अपनी कमर पर दोनों हाथ रख कर खड़ीं हैं! उन्हें देखते ही मेरा गुस्सा बाहर आया;

मैं: क्यों डाँटा उस बिचारे बच्चे को? मेरा गुस्सा उसी पर निकालना था?

मेरा गुस्सा देख उनके चेहरे पर फिर से मुस्कराहट आ गई;

रसिका भाभी: हाय! कितना प्यार भरा है हमरे बेटे के लिए! फिर हमसे बेरुखी काहे दिखावत हो?

मैं: आप मेरे प्यार के लायक नहीं हो!

माने उखड़ते हुए जवाब दिया और उनकी बगल से निकलना चाहा, लेकिन उन्होंने उसी दिशा में एक कदम बढ़ा कर मेरा रास्ता रोक लिया और बोलीं;

रसिका भाभी: तो किस लायक हैं हम?

मैंने उन्हें घूर कर देखा और बोला;

मैं: नफरत के!!!

पर उस औरत को मेरा जरा भी भी नहीं था;

रसिका भाभी: तो नफरत ही कर लिहो! हम ओहि को तोहार प्यार समझ लेब!

रसिका भाभी ने फिर अपना निचला होंठ मुँह में दबाया| मैंने दूसरी ओर से निकलना चाहा तो उन्होंने फिर से मेरा रास्ता रोक लिया;

मैं: अब बहुत हो गया! जाने दो मुझे|

मैंने गुस्से से कहा पर उनपर इसका कहाँ असर होने वाला था| वो दो कदम पीछे गईं और अपने दोनों हाथों को चौखट पर रख मेरा रास्ता पूरी तरह रोक लिया|

रसिका भाभी: एक सरत पर जाने देब!

रसिका भाभी ने चोरों वाली हँसी हँसते हुए कहा|

मैं: क्या?

मैंने चौंकते हुए कहा|

रसिका भाभी: हमका तोहार ऊ (मेरे लंड की ओर इशारा करते हुए) एक बार देखक है|

उनकी बात सुन मैं उन्हें और घूर कर देखने लगा|

मैं: मुझे मजबूर मत करो हाथ उठाने पर!

मैंने गरजते हुए उन्हें एक आखरी चेतावनी दी!

रसिका भाभी: तो हम ना हटब!

मैं एक पल के लिए शांत हो गया और अपने गुस्से को दबाने लगा, खुद को अंदर ही अंदर रोकता रहा की मैं उन पर हाथ न उठाऊँ| इतने में किसी के आने की आहट हुई और रसिका भाभी एकदम से पीछे घूमीं, जिससे उनका बायाँ हाथ दरवाजे की चौखट से हट गया| मैंने सोचा की मैं इसी का फायदा उठा के निकला जाता हूँ| लेकिन जैसे ही मैं उनके बाएँ हाथ की तरफ से निकलने लगा, उन्होंने अपना हाथ फिर चौखट पर रख दिया और बाईं और झुक गईं| उस समय हम दोनों बहुत ज्यादा नजदीक आ गए थे, मेरे और उनके होठों के बीच बहुत काम फासला था| रसिका भाभी की आँखों से प्यास साफ़ झलक रही थी, इसलिए माने अपनी आँखें फेर लीं और पीछे होने लगा| तन क्षण भर के लिए मेरी निगाहें भाभी के स्तनों के बीच की घाटी पर अटकी, उनके वो सफ़ेद-सफ़ेद स्तन देख के मेरा दिमाग चकरा गया! पर मैंने अपने दिमाग पर काबू किया और उनसे 4 कदम दूर खड़ा हो गया| तभी रसिका भाभी ने एकदम से मुझ पर झप्पट्टा मारा और अपने दायें हाथ से मेरे लंड को अपने हाथ में दबोचना चाहा| इस बार मैं बड़ा सतर्क था, इसलिए में एक दम से छिटक कर दूर हुआ पर फिर भी उन्होंने मेरे लंड को छू अवश्य लिया था! मेरा गुस्सा अब चरम पर था, मैं बड़ी जोर से उन पर चिल्लाया;

मैं: बहुत हो गया अब!

रसिका भाभी: हाय! अभी बहुत कहाँ भवा! आभाएं तो बहुत कछु बाकी है!

ये कह कर वो खी-खी कर खींसें निपोरने लगीं! उनकी ये गन्दी हँसी देख मेरे सब्र का बाँध टूट गया और मैंने एक जोरदार तमाचा उनके बाएँ गाल पर जड़ दिया| तमाचा इतना जोरदार था की उनका बैलेंस बिगड़ा और वो चारपाई का सहारा लेके नीचे बैठ गईं! आज पहली बार मैंने किसी औरत पर हाथ उठाया था, लेकिन वो इसी के लायक थी! मैंने उन्हें बड़ी सख्त आवाज में झिड़का; "खबरदार जो मेरे आस-पास भी भटके तो!" लेकिन वो निर्लज्ज स्त्री मुस्कुराने लगी, उसके माथे पर एक शिकन तक नहीं पड़ी! मैं वहाँ से गुस्से में तमतमाता हुआ बहार आ गया, वरुण जो बेचारा सहमा हुआ सा बरामदे की दिवार से चिपका खड़ा था उसे गोद में लिया और रसोई के पास वाले छप्पर के नीचे आ गया| "सॉरी बेटा! मुझे बहुत गुस्सा आ गया था!" मैंने वरुण से माफ़ी मांगी तो उसका दर कम हो गया| फिर मैंने उसके कपडे बदले, इतने में अजय भैया वहाँ आ गए और मुझे वरुण के कपडे बदलते देख वो गुस्से से तमतमा गए| वो पाँव पटकते हुए रसिका भाभी से लड़ने का इरादा लिए बड़े घर की ओर चल दिए, जहाँ शायद भाभी अब भी उसी तरह नीचे बैठी थीं| मैं ये तो समझ ही गया था की आज रसिका भाभी की कुटाई होना तय है और मेरा दिमाग कह रहा था की तुझे कोई जर्रूरत नहीं उनके बीच में पड़ने की! रसिका भाभी को उनके किये की सजा तो मिलनी ही चाहिए! लेकिन माँ के संस्कारों वाला ये मन बेचैन हो रहा था और रह-रह के कह रहा था की मैं भैया को भाभी की पिटाई करने से रोकूँ| मेरे अंतर मन ने कहा की मुझे भाभी पर हाथ नहीं उठाना चाहिए था, मुझे बस वहाँ से चले जाना चाहिए था! इस बात के कारन मैं अंदर ही अंदर घुटने लगा और बेवजह खुद को कोसने लगा| आजतक मैंने ऐसा कोई काम नहीं किया था, जिसके लिए मेरी अंतर् आत्मा गवाही न देती हो! यही कारन था की मैं खुद को दोषी मान रहा था!

कुछ ही देर में मुझे भैया-भाभी के जोर-जोर से लड़ने की आवाज आने लगी, मैं खुद को रोक नहीं पाया और वरुण को वहीं छोड़ बड़े घर की ओर भागा| मैं सीधा धड़धड़ाते हुए रसिका भाभी के कमरे में घुसा, अंदर का नजारा बहुत ही दर्दनाक था! अजय भैया के हाथ में बाँस का डंडा था, जिससे वो कम से कम एक बार तो भाभी की पीठ सेंक ही चुके थे, क्योंकि भाभी फर्श पर पड़ी अपनी कमर पकड़ का करहा रही थी और जल बिन मछली की तरह फड़-फड़ा रही थी! इससे पहले मैं भैया को रोकता उन्होंने एक और डंडा भाभी को दे मारा! मैंने लपक के भैया के हाथ से डंडा छुड़ाया और भैया को खींच के बाहर ले आया| इतने में पिताजी जिन्होंने इस बवाल की आवाज सुनी थी वो भी दौड़े आये! भाभी फर्श पर पड़ीं थी और ऐसा लग रहा था जैसे वो बेहोश हो गईं हों! ऊपर से उनके सर पर घूँघट नहीं था और उनका नंगा पेट साफ़ झलक रहा था, तो उनकी इज्जत बचाने के लिए मैंने खुद को परदे की तरह उनके सामने कर दिया ताकि पिताजी को उनका ये हाल न दिखे| हाँ पिताजी को इतना अवश्य दिख रहा था की कोई फर्श पर पड़ा है, पिताजी ने जब इतना दृश्य देखा तो वो अजय भैया को गुस्से में पकड़ के बहार ले गए| मुझे लगा की शायद माँ या बड़की अम्मा आएँगी और रसिका भाभी का हाल-चाल पूछेंगी पर कोई नहीं आया!

जिस इंसान पर थोड़ी देर पहले मुझे गुस्सा आ रहा था अब उसी पर दया आने लगी थी| मैंने उन्हें नीचे से उठा कर चारपाई पर लिटाया, सच में बहुत भारी थीं! मैंने ऊपर लिटा दिया पर वो अब भी किसी लाश की भाँती पड़ी हुईं थीं, दिमाग कह रहा था की दो डंडे खाने से कोई नहीं मरता पर फिर भी अपने मन की तसल्ली के लिए मैंने उनकी नाक के आगे ऊँगली रख के सुनिश्चित किया की वो साँस ले रहीं है या नहीं! उनकी सांसें चल रहीं थीं, फिर मैंने उन्हें हिला के होश में लाने की कोशिश की पर कोई फर्क नहीं पड़ा| मैं स्नान घर से पानी ले कर आय और उनके मुँह पर छिड़का तब जाके वो हिलीं और होश में आते ही मुझसे लिपटना चाहा, पर मैंने फुर्ती दिखाई और उनके पंजों से बचना चाहा! लेकिन उस शेरनी ने मेरा बायाँ हाथ पकड़ लिया और मुझे अपने ऊपर खींचा! उनकी ताक़त ज्यादा थी तो मेरा बैलेंस बिगड़ा और मैं सीधा उनके ऊपर जा गिरा| मैं गिरा भी कुछ इस तरह से के की मेरा मुँह सीधा उनके स्तनों के ऊपर था और भाभी ने कस कर मेरी गर्दन को अपने बाहों में जकड़ लिया! उनका दबाव मेरी गर्दन पर इतना ज्यादा था की मेरा मुँह उनके स्तनों के बीच फंस गया था और एक पल के लिए लगा मैं साँस ही नहीं ले पाउँगा| मैंने अपने दोनों हाथों को उनकी कोहनी पकड़ कर के उनका लॉक खोला और खुद को उनकी गिरफ्त से छुड़ाया तथा छिटक के दूर दिवार से लग के खड़ा हुआ और अपनी सांसें ठीक करने लगा जो तेजी से चलने लगी थीं| उनकी ताक़त का मैं अच्छे से एहसास कर चूका था, ससुर एकदम पहलवान जैसी ताक़त थी और भी हो भी क्यों न, पहलवान की बिटिया जो थीं!

अब उनका करहना और रोना-धोना शुरू हो गया| मेरा बेवकूफ दिल ये देख फिर से पिघल गया और मैं उनके लिए पेनकिलर ले आया और उनकी ओर दवाई का पत्ता बढ़ा दिया| ऐसा नहीं था की मेरे मन में उनके लिए कोई प्यार था, गुस्सा तो मैं अब भी था की उन्होंने अपने गंदे हाथों से मुझे छुआ था परन्तु एक इंसानियत थी जो माँ ने सिखाई थी, जिसके चलते मैं उन पर तरस खा रहा था! लेकिन मैं बुद्धू ये नहीं जानता था की मैं जिस पर तरस खा रहा हूँ वो दरअसल में एक नागिन है जो मुझे डसने के लिए ड्रामे किये जा रही है| कुछ पल चुप रहने के बाद भाभी बोलीं; "हमार पीठ बहुत पीरात है, कउनो दवाई लगाई दिहो!" मैं उनकी चाल भाँप गया था, इस बार मैं इनके चंगुल में नहीं फँसने वाला! मैंने अपने दिमाग के घोड़े दौड़ाये और कहा; "अभी आता हूँ|" मैं छप्पर के पास आया और वरुण को आवाज दे कर अपने साथ बड़े घर ले आया| "बेटा आपकी मम्मी को पीठ में बहुत दर्द हो रहा है, ये बाम लो और उन्हें लगा दो!" मैंने वरुण से कहा तो रसिका भाभी के चेहरे पर बनावटी गुस्सा आ गया| उनका सारा प्लान फ्लॉप कर मैं मन ही मन हँस पड़ा और अजीब से गर्व वाली फीलिंग हुई! पता नहीं कैसे रसिका भाभी मेरे मन की ख़ुशी जान गईं और चिढ़ते हुए बोलीं;

रसिका भाभी: हमका इस तरह तड़पता देख बहुत खुश होवत हो न तुम?

रसिका भाभी का तातपर्य उनके जिस्म की आग से था|

मैं: हाँ

मैंने बड़ी गंभीर आवाज में कहा और उनसे अपने मन की ख़ुशी छुपाने लगा|

रसिका भाभी: तुम चाहे कितना भी कठोर बन लिहो, पर हम जानित है की तुम अंदर से हमका चाहत हो!

अब मेरा माथा ठनका, मैं उनकी जो मदद इंसानियत के नाते कर रहा था उसे ये मेरा प्यार समझ रहीं थीं! मैंने भाभी के मन का वहम दूर करते हुए गुस्से में कहा;

मैं: ये आपका वहम् है| मैं आपसे कतई प्यार नहीं करता और न ही कभी करूँगा, आपको एक बात समझ नहीं आती! अजय भैया मेरे 'भैया' हैं और आप उनकी पत्नी, आपके मन में ये गन्दा ख्याल आया भी कैसे?

मैंने उन्हें एकदम से झिड़क दिया पर उस औरत को इन रिश्तों से कहाँ कोई मतलब था;

रसिका भाभी: पहली बात तो ई की तुम उनके चचेरे भाई हो, सगे नाहीं और अगर सगेो होवत तो हमका का फर्क पडत?! दूसरी बात ई की जब कामवासना की अगन तन-बदन में लागत है तो कउनो रिश्ते, कउनो मर्यादा नाहीं देखत!

रसिका भाभी के विचार सुन मैं स्तब्ध रह गया! मैं ये तो जानता था की उनके तन में सेक्स की आग लगी हुई है पर ये नहीं जानता था की वो उस आग में जल कर रिश्ते-नाते सब भंग करने पर तुली हैं!

मैं: छी..छी!! आप बहुत गंदे हो! मुझे आपसे कोई बात नहीं करनी|

ये कह कर मैं वहाँ से जाने लगा, तभी मुझे याद आया की ये घायल शेरनी है और ये मेरा गुस्सा फिर से अपने बच्चे पर न निकाले इसलिए मैं जाते-जाते उन्हें कड़े शब्दों में हिदायत दे गया;

मैं: वरुण बेटा आप मम्मी को दवाई लगा के वहाँ पड़ी गोली खिला देना और फिर मेरे पास आ जाना| और हाँ आप (रसिका भाभी) अगर आपने वरुण पर हाथ उठाया तो, सोच लेना!!!

मैंने उन्हें बिना सर-पैर की धमकी दे डाली थी, लेकिन वरुण को लेकर मैं अब भी डर रहा था की कहीं ये शेरनी अपने ही बच्चे को पंजा मार के घायल ना कर दे, शुक्र है भगवान का की ऐसा कुछ नहीं हुआ! अंधेरा हो रहा था और इधर फिर से मेरे सर पर वही पुराना पागलपन चढ़ने लगा था! मुझे अपने शरीर से रसिका भाभी की बू आ रही थी, बार-बार उनका मेरे लंड को पकड़ना याद आने लगा था| ऐसा लग रहा था जैसे अभी भी मेरा लंड उनकी गिरफ्त में है| अपने इस वहम् से बाहर निकलने का एक ही तरीका था की मैं नहा लूँ| लेकिन नहाने के लिए मुझे बड़े घर जाना पड़ता जहाँ मैं जा नहीं सकता था क्योंकी वहाँ रसिका भाभी जीभ निकाले मेरा लंड देखने को तैयार लेटी थीं| अगर वो ये नजारा देख लेतीं तो मुझ पर झपट पड़ती और मेरी मर्जी के खिलाफ वो सब करने की कोशिश करती| वो कुछ भी करने में सफल तो नहीं होती पर पर उनका मेरे शरीर को छूना, वो मुझे फिर से उसी मानसिक स्थिति में डाल देता जिससे भौजी ने मुझे पहले बाहर निकाला था|

पर मैंने एक तरकीब निकाली, मैं चन्दर के पास गया और उनसे बोला;

मैं: भैया मुझे नहाना है, बड़े घर में भाभी लेटी हुई हैं तो क्या मैं आपके घर में नहा लूँ?

चन्दर भैया: मानु भैया, घर तोहार है कहीं भी है लिहो! पर रात होये वाली है, पुबैया हवा चालत है, ऐसे में ठंडे पानी से नाहाबो तो बीमार पड़ी जाबो!

अब मुझे उनसे झूठ बोलना था ताकि वो मेरी शिकायत पिताजी से न कर दें, लेकिन अचानक भौजी का चेहरा आँखों के सामने आ गया और अनायास ही मेरे मुँह से ये शब्द निकले;

मैं: भैया मन थोड़ा उदास है, नहाऊँगा तो थोड़ा तरो-ताजा महसूस करूँगा|

अब शब्द तो निकल चुके थे और चन्दर ने वो शब्द पकड़ भी लिए थे;

चन्दर भैया: अपनी भौजी का याद कर के उदास हो?

जब चन्दर ने वो शब्द कहे तो मुझे होश आया और मैंने बात को संभालते हुए कहा;

मैं: नहीं...नेहा की बहुत याद आ रही है|

लेकिन चन्दर इतना बेवकूफ तो था नहीं, इसलिए उसने बात घुमाते हुए मुझे टोंट मारा;

चन्दर भैया: हमें लगा आपन भौजी का याद करके उदास हो! कउनो बात नहीं जा के नहाये लिहो!

मैं उनके टोंट समझ चूका था पर चुप रहा और इस बात को कुरेदा नहीं| खैर बाल्टी में पानी लिए मैं भौजी के घर में घुसा और स्नानघर मैं बाल्टी रख के अपने कपडे उतारने लगा| मेरी नजर आँगन में रखी चारपाई पर टिकी थी और लगता था जैसे भौजी वहीं बैठी हैं और अभी उठ के मेरे गले लग जाएँगी| जब मैंने अपनी टी-शर्ट उतारी तो अपने निप्पल देखे जिन पर भौजी ने परसों रात को खूब काटा था और चूस-चाट के उसे लाल कर दिया था| मैं आँखें बंद किये वही मंजर याद करने लगा, भले ही वो वहाँ नहीं थीं पर उन दृश्यों को याद करते ही मेरे रोंगटे खड़े हो गए! हमेशा नहाने में मुझे दस मिनट से ज्यादा समय नहीं लगता था पर आज मुझे आधा घंटा लगा, क्योंकी आज नहाते हुए मैं उन सभी हसीन लम्हों को याद करता रहा| साथ ही साथ मैंने खुद को इतना रगड़ के साफ़ किया जैसे मैं एक सदी से न नहाया हूँ! इतना रगड़ के नहाने का कारन यही था की मैं चाहता था की मेरे शरीर से रसिका भाभी की बू जल्द से जल्द निकल जाए! ठन्डे-ठन्डे पानी से नहाने के बाद अब बारी थी कुछ खाने की, लेकिन हाय रे मेरी किस्मत! नहा कर जब मैं रसोई पहुँचा तो वहाँ रसिका भाभी बैठी रोटी सेंक रहीं थीं| अब न जाने क्यों मेरे अंदर गुस्से की आग फिर भड़की और मैं मुँह बना के वापस आंगन में चारपाई पर लेट गया| पता नहीं क्यों पर मेरी इच्छा नहीं हो रही थी की उनके हाथ का बना हुआ खाना खाऊँ! अब मैं अकेला लेटा था तो वरुण मेरे पास आ कर बैठ गया और हाथ से जहाज बना के उड़ाने लगा| उसे खुश देख के मन को थोड़ी तसल्ली हुई और मैं भी उसके साथ लेटे-लेटे झूठ-मूठ की हवाई यात्रा करने लगा! जब खाना बन गया तब मैं खाना लेने रसोई गया और अपना खाना लेके वापस अपनी चारपाई पर आया| लेकिन मैंने वो खाना खुद न खाके सारा खाना वरुण को खिला दिया| घरवालों की नजर में मैंने खाना खा लिया था, मैंने बर्तन धोने की जगह रखे और भूखे पेट सोने लगा| वरुण बेचारा अपनी माँ के पास जा कर सोने से डरता था तो मैंने उसे अपने पास ही सुला लिया और वो भी लेटते ही मुझसे चिपक के सो गया| गाँव आने के बाद ये पहलीबार था जब मैं बिना कहानी सुनाये सो रहा था, लेकिन एक अजब सी ख़ुशी थी मेरे मन में! वो ये की आज दिन भर में जो भी हुआ, उससे न तो मैं रसिका भाभी के जिस्म की तरफ झुका था और न ही अब मेरे शरीर के किसी भी भाग से रसिका भाभी की कोई बू आ रही थी| मेरा मन पूरी तरह साफ़ था और खुश भी, बस कमी थी तो बस भौजी की! मैं लेटे-लेटे सोचने लगा की पता नहीं भौजी वहाँ कैसी होंगी? उनहोनेखाना खाया होगा या नहीं? और मेरी प्यारी-दुलारी बेटी नेहा, पता नहीं उसे मेरे बिना नींद आती भी थी या नहीं?

यही सब सोचते-सोचते मुझे नींद आ गई और मैं एक सुन्दर सपना देखने लगा| सपने में मेरे और भौजी के आलावा और कोई नहीं था, हम हाथ में हाथ डाले फूलों से लैह-लहाते बाग़ में घूम रहे थे| दोनों नंगे पाँव चल रहे थे, घाँस में पड़ी ओस की बूँदें पाँव को गीला कर रहीं थी| मैंने भौजी की ओर देखा तो पाया वो बहुत खुश हैं और अपनी कोख पर हाथ फेर रहीं हैं! भौजी की आँखें मुझ पर टिकी थीं इसलिए वो ये नहीं देख पाईं की आगे एक काँटा पड़ा है! अचानक से भौजी के पाँव में एक काँटा चुभ गया और वो लँगड़ाने लगीं, मैं तुरंत नीचे बैठ के उनके पाँव से काँटा निकालने लगा| काँटा निकला और भौजी फिर से मुस्कुराने लगीं तथा वहीं बैठ गईं| मैंने उनकी गोद में सर रख लिया और उन्होंने उसी स्थिति में झुक के मेरे होठों पर अपने थिरकते हुए होंठ रख दिए! वहाँ हमारे शिव और कोई नहीं था तो हम बे रोक-टोक एक दूसरे के होठों का रसपान करने लगे| हमारे चुंबन के कारन मेरा लिंग अकड़ कर सख्त हो गया| इधर भौजी मेरे होठों को चूसे जा रहीं थीं, और तभी अचानक उन्होंने अपना हाथ सरकाते हुए मेरे गले से लेकर लंड तक हाथ घुमाया, तथा उन्होंने मेरा लिंग एकदम से पकड़ लिया! जैसे ही उन्होंने मेरा लिंग पकड़ा मेरा सपना टूटा और मैं चौंक कर बैठ गया| मेरे बैठते ही मुझे मेरे सामने रसिका भाभी दिखीं जिनकी मुट्ठी में मेरा लंड था, मतलब मेरे सपने में जो कुछ हुआ वो रसिका भाभी मेरे साथ कर रहीं थी! सिवाय उस चुम्बन के जो सपने में मेरे और भौजी के बीच हुआ था! क्योंकि अगर वो चुंबन रसिका भाभी ने किया होता तो उनके होठों के एहसास से ही मैं उठ कर बैठ जाता!

अब हालत कुछ ऐसी थी की अगर मैं चिल्लाता तो शोर मचता और बवाल खड़ा होता| उस बवाल में रसिका भाभी का जो होता सो होता पर मेरा नाम बदनाम हो जाता! मैंने रसिका भाभी को आँखें दिखाते हुए डराया, पर उन्हें दिखता क्या घंटा? अगर दिख भी जाता तो कौन सा उनको कुछ फर्क पड़ता!

[color=rgb(40,]जारी रहेगा भाग - 3 में...[/color]
 

[color=rgb(184,]चौदहवाँ अध्याय: तन की आग[/color]
[color=rgb(41,]भाग - 3[/color]


[color=rgb(0,]अब तक आपने पढ़ा:[/color]

हमारे चुंबन के कारन मेरा लिंग अकड़ कर सख्त हो गया| इधर भौजी मेरे होठों को चूसे जा रहीं थीं, और तभी अचानक उन्होंने अपना हाथ सरकाते हुए मेरे गले से लेकर लंड तक हाथ घुमाया, तथा उन्होंने मेरा लिंग एकदम से पकड़ लिया! जैसे ही उन्होंने मेरा लिंग पकड़ा मेरा सपना टूटा और मैं चौंक कर बैठ गया| मेरे बैठते ही मुझे मेरे सामने रसिका भाभी दिखीं जिनकी मुट्ठी में मेरा लंड था, मतलब मेरे सपने में जो कुछ हुआ वो रसिका भाभी मेरे साथ कर रहीं थी! सिवाय उस चुम्बन के जो सपने में मेरे और भौजी के बीच हुआ था! क्योंकि अगर वो चुंबन रसिका भाभी ने किया होता तो उनके होठों के एहसास से ही मैं उठ कर बैठ जाता!

अब हालत कुछ ऐसी थी की अगर मैं चिल्लाता तो शोर मचता और बवाल खड़ा होता| उस बवाल में रसिका भाभी का जो होता सो होता पर मेरा नाम बदनाम हो जाता! मैंने रसिका भाभी को आँखें दिखाते हुए डराया, पर उन्हें दिखता क्या घंटा? अगर दिख भी जाता तो कौन सा उनको कुछ फर्क पड़ता!

[color=rgb(243,]अब आगे:[/color]

मैं: ये क्या बेहूदगी है? मैंने मना किया था न मेरे आस-पास मत भटकना?

मैंने दाँत पीसते हुए दबी आवाज में कहा|

रसिका भाभी: अब तो तुम हमका पीटो चुके हो, अब तो बुझाई दिहो हमार आग!

रसिका भाभी खुसफुसाती हुए बोलीं, उनकी आवाज से ही वासना छलक रही थी|

मैं: आप जाओ यहाँ से, कोई देख लेगा तो आपकी इज्जत का तो कुछ नहीं पर मेरी मट्टी-पलीत हो जाएगी!

मैंने उन्हें गुस्से में आदेश देते हुए कहा|

रसिका भाभी: न...हम न जाब! पाहिले हमका आपन ऊ (मेरे लंड की तरफ इशारा करते हुए) दिखाओ!

साफ़ था वो तो मेरी बात मानने से रहीं तो मैंने सोचा मैं ही यहाँ से चला जाता हूँ|

मैं: ठीक ही, आप मत जाओ मैं ही यहाँ से चला जाता हूँ!

ये कह कर जैसे ही मैं उठ के खड़ा हुआ तो देखा वरुण मेरी बगल में नहीं था, यानी पहले भाभी उसे उठा के ले गईं थीं और फिर खुद आके मेरे साथ बदतमीजी करने लगी थीं| खैर मैं अभी एक कदम ही आगे बढ़ा पाया था की भाभी ने लपक के मेरा हाथ पकड़ लिया और मुझे इतनी जोर से खींचा की मैं वापस चारपाई पर आ गिरा|

रसिका भाभी: जब तक हम तोहार लंड न देख लेइ तब तक तोहका कहीं न जाने देब!

आज पहली बार उन्होंने खुल कर लंड शब्द का प्रयोग किया था, पर मुझे ये सुन कर जरा भी हैरानी नहीं हुई! खैर अभी तो मुझे अपने हाथ को उनकी जकड़ से छुड़ाना चाहता था वो भी बिना कोई हल्ला किये!

मैं: छोड़ दो मुझे, वरना मैं चिल्लाऊँगा

मैंने भाभी को धमकी देते हुए कहा, पर उनपर कहाँ असर होने वाला था! उन्होंने अपनी कुटिल मुस्कान दिखाते हुए कहा;

रसिका भाभी: चिल्लाओ! बदनामी तोहार होइ! हम कह देब तू हमका हियाँ चोदे खातिर बुलाये रहेओ!

अब ये सुन कर तो मेरे होश उड़ गए! मैं जानता था की वो गिरी हुईं हैं पर इतनी की अपनी देह की आग के चलते मुझे बदनाम कर देंगी?

मैं: आप तो सच में बहुत कमीनी निकली! मुझ पर लांछन लगाते हुए आपको शर्म नहीं आती?

मैंने दाँत पीसते हुए कहा|

रसिका भाभी: जिस आग मा हम जालित है ऊ का बुझाये खातिर हम कछु भी कर सकित है! अब आपन लंड दिखाई हो की हम जोर से चिल्लाई?

रसिका भाभी ने अपनी चाल चल दी थी पर मैं उनकी इस चाल में फँसने वाला नहीं था!

मैं: ठीक है दिखता हूँ! पर मेरा हाथ तो छोडो और थोड़ा दूर हटो!

मैंने अपनी चाल चलते हुए कहा| मैंने सोच लिया था की चाहे जो हो जाए मैं वो कभी नहीं करूँगा जो ये चाहती हैं| मैंने भाभी को दिखाने के लिए अपना नाडा पकड़ा, भाभी को सच में लगा की मैं आज उन्हें अपना लंड दिखाने वाला हूँ! लेकिन मैं निकला उस्ताद, मैं फुर्ती से उठा झट से उनकी पहुँच से दूर निकल पिताजी की चारपाई के पास पहुँच गया| पिताजी पीठ के बल लेटे थे और मैं ठीक उनके सामने खड़ा हो गया, अगर जरा सी भी आवाज होती और पिताजी की आँख खुलती तो उन्हें सबसे पहले मैं दिखता| मेरी ये चालाकी देख भाभी का मुँह सड़ गया और मेरे दिल को इत्मीनान आया| पर भाभी इतनी ढीठ थीं की वो मेरी चारपाई पर बड़े आराम से बैठ गईं| ऐसा लग रहा था मानो मुझे चिढ़ा रहीं हो की बच्चू कभी न कभी तो आओगे ही अपनी चारपाई पर सोने| लेकिन मैं उनसे भी ढीठ था, मैंने सोचा आज पिताजी के पास ही सो जाता हूँ इसलिए मैं पिताजी की बगल में लेटने लगा| जैसे ही मैं चारपाई पर बैठा तो पिताजी की आँख खुल गई;

पिताजी: क्या हुआ?

पिताजी ने भोयें सिकोड़ कर पुछा|

मैं: जी..वो.. नींद नहीं आ रही थी... तो आपके पास सोने आ गया|

मैंने झूठ बोला| पिताजी थोड़ा साइड में खिसक गए तो मैं उस थोड़ी सी जगह में एक तरफ करवट ले कर लेट गया| जगह काम थी पर कम से कम मैंने अपनी इज्जत तो लूटने से बचा ली थी!! अब मेरे पिताजी के पास सोने से भाभी का पारा चढ़ गया, वो कुछ देर तो बैठी रहीं ये सोच कर की मैं शायद वापस आ जाऊँगा, लेकिन जब मैं पिताजी के पास ही लेटा रहा तो वो गुस्से में उठ कर चली गईं!

अगली सुबह बड़ी मुसीबतों वाली थी! सुबह मैं सब के साथ जल्दी उठा और दुबारा रगड़-रगड़ के नहाया क्योंकी मुझे अपने बदन से रसिका भाभी की बू जो छुडानी थी! पर मेरी किस्मत अब भी चैन नहीं ले रही थी और मुझे तंग किये जा रही थी| नाहा के जब आया तो देखा चाय भी रसिका भाभी ने बनाई थी जो पीना मेरे लिए मानो जहर पीना था| चाय लेके मैं खेतों की ओर गया और झाड़ियों में फेंक दी|

खैर आज का प्लान बिलकुल साफ़ था, घरवालों की आड़ में रहो तो इज्जत बची रहेगी| पिताजी और बड़के दादा खेत जाने के लिए तैयार थे मैं उन्हीं के पास बैठ गया| तभी वहाँ सर पर पल्ला किये माँ और बड़की अम्मा आ गए|

माँ: क्यों भई लाड साहब, रात को बड़ा प्यार आ रहा था अपने पिताजी पर जो उनके साथ सोया था|

माँ ने मुझे छेड़ते हुए कहा| उनके छेड़ने का कारन ये था की जब से मैं बड़ा हुआ था और पिताजी का मेरे प्रति रवैया सख्त हुआ था, तब से मैं उनसे डरा और दूर रहता था| पिताजी भी मेरा ये डर जानते थे पर कुछ कहते नहीं थे!

मैं: जी ... नींद नहीं आ रही थी इसलिए|

मैंने मुस्कुराते हुए जवाब दिया, मेरी मुस्कान देख माँ को लगा की मैं रात को डर गया हूँगा इसलिए पिताजी के पास सोने चला गया था|

माँ: हाँ..हाँ.. सब जानती हूँ|

माँ ने हँसते हुए कहा|

मैं: अब आपकी मदद खेतों में करूँगा तो नींद जबरदस्त आएगी|

मैंने बात बनाते हुए कहा|

बड़के दादा: हाँ मुन्ना, अजय और चन्दर तो आज लखनऊ जावत हैं|

मैं: किस लिए?

मैंने थोड़ा हैरान होते हुए पुछा|

बड़के दादा: वो मुन्ना, है एक ठो पुराना केस!

मैं: केस?

बड़के दादा: हाँ मुन्ना! तोहार दादा की जमीन पर केहू कब्जा कीन रहा!

खेर बातें ख़त्म हुईं और हम खेतों में चले गए, मैं हाथ में हंसिया लिए फसल काट रहा था पर ध्यान अब भी भौजी पर लगा हुआ था और नजाने कब हंसिए से मेरा हाथ काट गया मुझे पता ही नहीं चला| मेरे बाएँ हाथ की जो सबसे बड़ी रेखा थी वो कट गई और खून निकलने लगा| मैं भौजी की याद में कुछ इस कदर डूबा था की मेरा उस पर ध्यान ही नहीं गया! जब माँ घर से पानी लेके आईं तब उन्होंने खून देखा और मुझे डाँटा, तब कहीं जाके मेरा ध्यान अपने बाएँ हाथ पर गया| मैंने रुमाल निकला कर ऐसे ही बांध लिया और वापस काम पर लग गया| इस वक़्त खेत में बस पिताजी, बड़की अम्मा, मैं और माँ ही थे| चन्दर और अजय भैया लखनऊ के लिए निकल चुके थे|

कुछ समय बाद वरुण भागता हुआ मेरे पास आया;

वरुण: चाचा-चाचा, माँ बुलावत ही!

मैं जान गया था की फिर उनका मन मेरा लंड देखने को कर रहा है|

मैं: क्यों?

मैंने काम में ध्यान लगाए हुए पुछा|

वरुण: ऊ टांड से एक ठो गठरी उतारेक है|

मैं जानता था की उन्हें कोई गठरी नहीं उतरवानी, बस मेरा लंड देखना है, इसलिए मैंने वरुण से साफ़ मना कर दिया और कह दिया की बाद में उतार दूँगा| वरुण मेरा जवाब सुन दौड़ता हुआ घर चला गया और पांच मिनट में ही भागता हुआ फिर आया;

वरुण: चाचा, माँ खत ही की गठरी मा कपडे हैं जो सिलेक (सिलने) हैं!

मैं: कहा ना बाद में उतार दूँगा अभी काम करने दो!

मैंने वरुण को थोड़ा गुस्सा करते हुए कहा| पिताजी जो मेरे पास ही बैठे फसल काट रहे थे उन्होंने सब सुन लिया और मुझे डाँटते हुए बोले;

पिताजी: जाके उतार क्यों नहीं देता गठरी? क्यों बार-बार बच्चे को धुप में भगा रहा है?

अब मरते क्या न करते मैं हंसिया छोड़ कर उठा;

मैं: जी... जाता हूँ|

इतना कह कर मैं वरुण के साथ घर की ओर चल दिया|

मैं: सॉरी बेटा! मुझे गुस्सा किसी और बात का था!

मैंने वरुण से अपने बर्ताव के लिए माफ़ी माँगी और फिर उसे ले कर पहले दूकान पर चल दिया जहाँ मैंने उसे चॉकलेट दिलवाई| चकते पा कर वरुण बहुत खुश हुआ और मेरी ऊगली पकड़ कर चलने लगा| हम घर लौटे तो देखा की रसिका भाभी कुऐं के पास मेरा बेसब्री से इन्तेजार कर रही हैं| मुझे लगा की ये कल रात का बदला जर्रूर लेगी मुझसे, पर हुआ कुछ अलग ही;

रसिका भाभी: कल रात जो हुआ ऊ के लिए हमका माफ़ कर दियो!

ये कह कर रसिका भाभी हाथ जोड़ कर माफ़ी माँगने लगीं| मैं हैरान हो गया की अचानक से ये इतने प्यार से कैसे बात कर रही हैं? आखिर इतनी जल्दी इनका हृदय परिवर्तन कैसे हो गया? जर्रूर कुछ तो गड़बड़ है! ये ख्याल आते ही मैं सचेत हो गया!

रसिका भाभी: हमका माफ़ कर दियो!

भाभी ने दुबारा माफ़ी माँगी रही पर मैं कुछ भी बोलने से परहेज करने लगा| मैं जनता था की अगर मैंने जवाब दिया तो ये उसका गलत मतलब निकलेंगी और मेरे नजदीक आने की पूरी कोशिश करेंगी इसलिए मैंने बस हाँ में गर्दन हिला दी| ये देख भाभी को लगा की मैंने उन्हें माफ़ कर दिया है और वो खुश हो गईं, लेकिन मैं अब भी उसने 7-8 कदम की दूरी बनाये हुआ था, क्या पता फिर झपट्टा मार दें तो?!

रसिका भाभी: अच्छा तो अब हम दोस्त होगईल न?

रसिका भाभी ने बात शुरू करते हुए कहा, लेकिन मैं फिर कुछ नहीं बोला बस हाँ में सर हिला दिया| इधर वरुण अपनी चॉकलेट खाते हुए खेलने चला गया और मुझे अपनी माँ के साथ अकेला छोड़ गया| मेरा शक अब गहराता जा रहा था की इस औरत के दिम्माग में कुछ तो घिनौना पक रहा है!

रसिका भाभी: तो हमार मदद करहिओ?

मैं उस वक़्त कुछ सोच रहा था, जैसे ही भाभी ने मदद शब्द कहा की मैं हड़बड़ा गया और एकदम से बोला;

मैं: कैसी मदद?

मुझे हड़बड़ाता हुआ देख रसिका भाभी के चेहरे पर एक कटीली मुस्कान आ गई|

रसिका भाभी: हमार कमरे मा सीढ़ी लगाए के टाँड से एक ठो गठरी उतार दिहो!

ये कहते हुए उनके चेहरे के हाव भाव वैसे थे जो किसी शिकारी के होते हैं जब वो अपना जाल बिछाता है!

ये सुनते ही मेरे दिमाग ने मुझे कुछ याद दिलाया| शहर में मैंने 'सविता भाभी कॉमिक्स का एपिसोड 2' पढ़ा था| कैसे उसमें सविता भाभी दो लड़कों को अपने हुस्न के जाल में फँसा कर चुदवाती हैं ये मुझे अच्छे से याद था और कुछ वैसी ही चालाकी यहाँ रसिका बहभी करने की सोच रहीं थीं! जब मैं सीढ़ी पर गठरी उतारने के लिए चढूँगा तो ये अवश्य मेरा लंड पकड़ लेंगी, मैं उस हालत में अगर हड़बड़ाया तो उससे मेरा बैलेंस बिगड़ेगा और मैं सीधा जमीन पर गिरूँगा! इज्जत तो लुटेगी ही साथ में हड्डी भी टूटेगी| अगर कहीं मैं बेहोश हो गया तो ये मेरा फायदा उठायेंगी और मेरे लंड पर चढ़ जाएँगी! अब मुझे उनकी इस चाल का तोड़ निकालना था, कुछ एक पल सोचने के बाद मैंने एक रास्ता निकाला, वो ये की मैं सीढ़ी पर चढ़ने से पहले इन्हें कमरे से किसी काम से भगा दूँगा और फटाफट टाँड पर चढ़ जाऊँगा| टाँड पर बैठ कर मैं इनकी बताई हुई गठरी कुछ ऐसे फेकूंगा की ये उसे उठाने जाएंगी और मैं एकदम से नीचे उत्तर जाऊँगा| मेरा प्लान था तो बचकाना पर इसके आलावा और कोई रास्ता नहीं था, क्योंकि अगर मैं इन्हें काम करने से मना करता हूँ तो ये पिताजी से शिकायत कर देंगी और फिर पिताजी मुझे अच्छे से सुनाएंगे! जब से गाँव आया था तब से मैं भौजी के संग चिपका था और कुछ ज्यादा ही ऐश कर रहा था, अगर पिताजी को गुस्सा आता तो वो समान बाँध कर कल ही चल पड़ते!

रसिका भाभी: मानु...ओ मानु भैया? का सोचत हो?!

रसिका भाभी ने कहा तो मैं अपनी सोच से बाहर आया और उनसे पुछा की सीढ़ी कहाँ है? रसिका भाभी ने इशारे से बताया की सीढ़ी कहाँ रखी है| मैं सीढ़ी लेके उनके कमरे में पहुँचा और टाँड से सीढ़ी लगा दी| इतने में भाभी कमरे में आईं, मुझे लगा की अब ये कहेंगी की तुम सीढ़ी पर चढ़ो, मैं सीढ़ी पकड़ती हूँ और फिर जैसे हे मैं ऊपर चढूँगा ये मेरा लंड दबोच लेंगी| लेकिन ऐसा हुआ नहीं, भाभी मेरे पास आईं और मुझे टाँड पर रखी गठरी दिखाई और उसे उतारने के लिए कहा| बस इतना कह कर वो बाहर आँगन में चली गईं| मैं हैरान था की इतनी जल्दी ये लोमड़ी कैसे सुधर गई? हो न हो इसमें भी इसकी कोई चाल होगी?! ये सोचते हुए मैं सीढ़ी पर चढ़ा और गठरी को उतारने की कोशिश करने लगा| गठरी मेरी पहुँच से थोड़ा दूर थी और सीढ़ी थोड़ी छोटी थी| मैंने बहुत कोशिश की परन्तु मेरा हाथ उस गठरी तक नहीं पहुँचा, फिर मैंने अपनी बीच वाली ऊँगली से उसे खींचा परन्तु असफल रहा| मैं कोशिश कर रहा था और अपने दोनों हाथों को आगे बढ़ा कर उसे पकड़ने की कोशिश कर रहा था, बड़ी मुश्किल से मैंने अपने दाएँ हाथ की उँगलियों से उसे पकड़ा और खींचने लगा, तब पता चला की वो बहुत भारी है! उस गठरी के ऊपर ताम्बे की एक बाल्टी रखी थी जो मेरे गठरी खींचने से हिली और आ कर मेरे हाथ पर गिरी जिससे मेरा हाथ दब गया! अब मैं अपने बाएँ हाथ से उस बाल्टी को हटाने की कोशिश करने लगा| इधर मेरी इस जदोजहत करने के कारन मेरी टी-शर्ट ऊपर हो गई और मेर पजामे का नाडा भाभी को साफ़ दिखाई दिया| तभी अचानक वो हुआ जिसका मुझे डर था, भाभी ने झट से मेरे पजामे का नाडा खोला और वो सरसराता हुआ नीचे गिरा! उसके गिरते ही केवल एक कच्छा था जो मेरी आबरू बचाये हुआ था, भौजी ने फुर्ती दिखाते हुए अपने दोनों हाथों से उसे पकड़ कर नीचे कर दिया जिससे मेरा सोया हुआ लंड उनके सामने आ गया| मेरा हाथ दबा होने के कारन मैं बुरी तरह फँस गया था पर मेरा गुस्सा उबल चूका था! भाभी ने एकदम से अपने दाएँ हाथ से मेरा सोया हुआ लंड अपनी मुठ्ठी में जकड़ लिया, उनके स्पर्श का एहसास होते ही मैं आगबबूला हो उठा और मैंने झटके से गठरी खींची जिसके साथ बाल्टी धड़ाम से नीची आ गिरी| गठरी भी धड़ाम से नीचे गिरी और कमरे में बर्तनों की खूब आवाज हुई! उस गठरी में कोई कपडे नहीं थे, बल्कि रसिका भाभी के दहेज़ के बर्तन थे!

मैं सीढ़ी पर जहाँ खड़ा था वहीँ से नीचे कूदा, अपना पजामा और कपडे ठीक किया और फिर एक जोरदार लात सीढ़ी को मारी और वो जाके दूसरी दिवार से जा लगी| मैंने अपने बाएँ हाथ से उनके बाएँ हाथ की कलाई पकड़ी और अपने पास खींच कर लाया और एक जोरदार तमाचा उनके बाएँ गाल पर मारा, तमाचा इतनी जोरदार था की उनकी गर्दन दाईं तरफ घूम गई, लेकिन मेरा गुस्सा कहंशान्त होने वाला था! मैंने उसी गाल पर कस कर एक और तमाचा मारा और उनका दाहिना गाल पूरा लाल कर दिया!

पर हैरानी की बात ये थी की भाभी को कोई फर्क ही नहीं पड़ा था, वो बहुत तेजी से खिलखिला के हँसने लगीं! मैं हैरानी से कुछ पल उन्हें गुस्से में घूरता रहा, क्योंकि मैं जानना चाहता था की आखिर इन्हें हुआ क्या है? बजाए रोने के ये हैवानियत भरी हँसी क्यों हँस रहीं हैं? उनकी ये हँसी मेरे कानों में चुभने लगी थी इसलिए मैं मुड़ के जाने लगा तो वो पीछे से बोलीं; "मज़ा आई गवा मानु जी!!" ये सुन एक पल के लिए मेरा दिमाग सन्न रह गया, भला ये कैसी औरत है जो दो तमाचे खा के भी खुश है और कह रही है की मज़ा आ गया|

मैं वहाँ से गुस्से में वापस खेत आ गया और काम में लग गया, लेकिन अब मुझे एक अजीब सा डर लगने लगा था| आज इन्होने मेरा लंड देख लिया अब कल को ये क्या नया काण्ड करेंगी?! यही सब सोचते हुए मैं गुस्से में काम करने लगा, मैं नहीं जानता था की ये तो मेरी मुसीबतों का आगाज है!

खैर, यूँ तो मैं खेत में बैठा काम कर रहा था परन्तु दिल भौजी को याद कर रहा था और दिमाग रसिका भाभी से सहमा हुआ था| तभी अचानक पिताजी के फ़ोन की घंटी बज उठी, ये कॉल चन्दर भैया ने की थी, उन्हें कचहरी के काम के कारन कुछ दिन और लखनऊ रुकना था और उन्होंने ये बताने के लिए फ़ोन किया था| पिताजी ने सारी बात बड़के दादा को बताई और फिर सब वापस काम में जुट गए| कुछ समय बाद खाने का समय हुआ तो सब घर वापस आ गए| घर आके बड़की अम्मा ने भाभी को बताया की अजय भैया 1-2 दिन नहीं आएंगे तो उनकी तो बाँछें खिल गईं और मेरी तरफ देखते हुए उनके होठों पर वही कटीली मुस्कान लौट आई|

खाना तैयार था, रसिका भाभी ने घूंघट कुछ ऐसे काढ़ा था ताकि उनका बायाँ गाल जिस पर मेरे हाथ की उँगलियाँ छप गईं थीं वो सबसे छुपा सकें! उन्होंने मेरा खाना परोसा तो मैं वरुण को अपने साथ ले कर कुएँ की मुंडेर पर बैठ गया और सारा खाना उसे खिला दिया| खाना खाने के बाद सब वापस खेत जाने को हुए की तभी एक और बिजली गिरी! दुबारा फ़ोन बजा, परन्तु इस बार बड़के दादा का| ये कॉल मामा जी के घर से आया था और बात ख़ुशी की थी, दरअसल वो दादा बन गए थे तथा उन्होंने सब को अपने घर पर आमंत्रित किया था|

खेतों में कटाई अभी काफी बाकी थी इसलिए बड़के दादा ने कह दिया की वो नहीं जाएंगे, घर पर कम से कम दो लोगों को रहना था इसलिए बड़की अम्मा और बड़के दादा दोनों घर रुकने को तैयार थे| माँ-पिताजी का जाना तो तय था, अब रही रसिका भाभी तो वो भला क्यों रुकतीं?! क्योंकि उन्हें वहाँ फ्री का मलीदा पेलने को मिलेगा! अब बात आई मेरी तो मैं वहाँ कतई नहीं जाना चाहता था, कारन दो: पहला ये की यहाँ रह कर मुझे रसिका भाभी से छुटकारा मिलता तथा दूसरा ये की, मैं जानता था की मामा जी के घर गए तो समझो 2-4 रुक के आना होगा और इतने दिन मैं भौजी के बिना रह नहीं सकता था! फिर भौजी ने परसों तो आ ही जाना था!

इसलिए मैंने घर रहने का बहाना पहले ही सोच लिया था| "पिताजी खेत में कटाई का काम बहुत ज्यादा रह गया है तो मैं यहीं रह कर बड़के दादा और बड़की अम्मा की मदद करता हूँ|" ये सुन कर बड़के दादा ने मना किया, दरअसल वो चाहते थे की मैं थोड़ा घूमूँ-फिरूँ पर उन्हें क्या पता की मेरी मनोदशा क्या है?! इधर पिताजी ने मेरी बात मान ली और काफी जोर दे कर कहा; "रहे दिहो भैया! ई (मैं) ज्यादा लोगों से घुलात-मिलत नाहीं, हियाँ रही तो तोहार मदद कर देइ!" अब बड़के दादा क्या कहते, वो मान गए! मैं अंदर ही अंदर बहुत खुश था की कम से कम भाभी घर में नहीं होंगी तो कुछ तो चैन मिलेगा| लेकिन रसिका भाभी ने बड़ी जबरदस्त चाल चली;

रसिका भाभी: काका (मेरे पिताजी) हमार तबियत कछु ठीक नाहीं और फिर कई दिनों बाद वरुण आवा है! हम का कहित है की आप सभे अम्मा का साथ लेइ जाओ, हम हियाँ खाना-पीना देख लेब!

मैं उनकी चाल समझ गया पर मैं कुछ बोल नहीं सकता था|

बड़की अम्मा: नाहीं बहु! तु आराम कर, हम सब देख लेब!

बड़की अम्मा ने अपने जाने की बात ठुकरा दी तो मुझे थोड़ा चैन आया की कम से कम उनके सहारे ही मैं सुरक्षित रह लूँगा| पर रसिका भाभी खूब खेली-खाई थी, वो बोलीं;

रसिका भाभी: अम्मा कितना टेम हुआ आपका मामा के जाए के? सारा टेम तो आप घर में लगी रहत हो?

रसिका भाभी ने उनकी हिमायत करते हुए कहा| अब पिताजी कहाँ अपनी भाभी की हिमायत करने से परे रहते;

पिताजी: हाँ भाभी, तुहुँ चलो! बहु सब संभाल लेइ और फिर कौनसा हमेसा के लिए जात हो? 2-3 दिन में हम सब लौट आई!

अब मैं जानता था की पिताजी के दो-तीन दिन मतलब 4-5 दिन! मैं मन ही मन प्रार्थना करने लगा की अम्मा मना कर दें, लेकिन वो मान गईं और मेरे प्राण मेरे गले में पहुँच गए, क्योंकि घर में अब बस चार जने होंगे, मैं, बड़के दादा, रसिका भाभी तथा वरुण!

[color=rgb(40,]जारी रहेगा भाग - 4 में...[/color]
 

[color=rgb(184,]चौदहवाँ अध्याय: तन की आग[/color]
[color=rgb(41,]भाग -4[/color]


[color=rgb(65,]अब तक आपने पढ़ा:[/color]

बड़की अम्मा ने अपने जाने की बात ठुकरा दी तो मुझे थोड़ा चैन आया की कम से कम उनके सहारे ही मैं सुरक्षित रह लूँगा| पर रसिका भाभी खूब खेली-खाई थी, वो बोलीं;
रसिका भाभी: अम्मा कितना टेम हुआ आपका मामा के जाए के? सारा टेम तो आप घर में लगी रहत हो?
रसिका भाभी ने उनकी हिमायत करते हुए कहा| अब पिताजी कहाँ अपनी भाभी की हिमायत करने से परे रहते;
पिताजी: हाँ भाभी, तुहुँ चलो! बहु सब संभाल लेइ और फिर कौनसा हमेसा के लिए जात हो? 2-3 दिन में हम सब लौट आई!
अब मैं जानता था की पिताजी के दो-तीन दिन मतलब 4-5 दिन! मैं मन ही मन प्रार्थना करने लगा की अम्मा मना कर दें, लेकिन वो मान गईं और मेरे प्राण मेरे गले में पहुँच गए, क्योंकि घर में अब बस चार जने होंगे, मैं, बड़के दादा, रसिका भाभी तथा वरुण!

[color=rgb(243,]अब आगे:[/color]

रसिका भाभी मेरा डर भाँप गई थीं और घूंघट की आड़ में खींसें निपोर रहीं थीं! इधर मैं गुस्से से जलने लगा था, रसिका भाभी की इस चाल ने मेरे तोते उड़ा दिए थे! मैं अपनी ही होशियारी के तले दब गया था, क्योंकि अब मैं पिताजी से ये नहीं कह सकता था की में उनके साथ मामा जी के घर जाना चाहता हूँ| यही सोच-सोच कर मुझे अंदर-ही-अंदर गुस्सा आ रहा था और रसिका भाभी का डर भी लग रहा था| सभी जल्दी तैयार होने लगे की तभी पिताजी ने मुझे अपने पास बुलाया;

पिताजी: तेरे दोस्त का फ़ोन आ रहा है, ले बात कर!

तब मुझे याद आया की मुझे दिषु को फ़ोन कर के बताना था| मैंने फ़ौरन कॉल उठाया और कॉल उठाते ही उसने मुझे गालियां देनी शुरू कर दीं;

दिषु: @@##@#$$@$*&*&* **@@#@#*&#$# बोला था न कॉल करिओ!

मैं: अरे भाई सुन तो ले!

दिषु: क्या सुनु @@#@#@&@*#&@*##

उसकी गालियाँ सुन कर मुझे हँसी आ रही थी! क्योंकि ये नफरत में दी हुई गालियां नहीं थीं बल्कि दो दोस्त के बीच प्यार और गहरी दोस्ती होने का सबूत था! अगले दो मिनट तक गालियाँ देने के बाद जब उसने साँस लेने को ब्रेक लगाई तो मैंने उसे कहा;

मैं: भाई बात सुन ले, उसके बाद जी भर का बोलिओ!

दिषु: (गुस्से में) बोल!

मैं फ़ोन ले कर थोड़ा दूर चला गया और धीमी आवाज में उससे बोला;

मैं: यार मुझे यहाँ किसी से प्यार हो गया है और मैं उसी के साथ भागना चाहता था...

अभी मैंने इतना ही कहा था की वो गुस्से में बरस पड़ा;

दिषु: तेरा दिमाग ख़राब है क्या? @@#@#@**!

मैं: भाई उसी ने समझाया की मैं गलत करने जा रहा था, इसीलिए तो कुछ नहीं किया और तुझे कॉल इसलिए नहीं कर पाया क्योंकि यहाँ बिजली तो है नहीं तो पिताजी फ़ोन स्विच ऑफ कर के रखते हैं|

मेरी बात सुन उसे इत्मीनान हुआ|

दिषु: शुक्र है! वैसे है कौन वो?

दिषु ने दिलचस्पी लेते हुए कहा| ये कोई आम दिलचस्पी नहीं बल्कि वो वाली दिलचस्पी थी जो लड़कों में अपने दोस्त की बंदी को भाभी कह कर चिढ़ाने वाली मानसिकता होती है! अब मैं उसे क्या बताता की जिससे प्यार हुआ है वो रिश्ते में मेरी भाभी है! इतना बड़ा झटका मैं उसे फ़ोन पर नहीं दे सकता था, उससे मिल कर उसे समझना ज्यादा आसान था!

मैं: जब चलती है गुलशन में बहार आती है

बातों में जादू और मुस्कराहट बेमिसाल है

उसके अंग अंग की खुश्बू मेरे दिल को लुभाती है

यार यही लड़की मेरे सपनो की रानी है|

मेरी टूटी-फूटी शायरी सुन दिषु फ़ोन पर सीटियाँ मारने लगा|

दिषु: लिखना तुझे ना आता था

उसने सीखा दिया

उस पहली नज़र ने

तुझे शायर बना दिया|

दिषु की बात सुन मैं शर्मा गया और हँस पड़ा| ये शायरी हमारे जमाने की वो SMS शायरी थी जिसे हम एक दूसरे को फॉरवर्ड किया करते थे! तभी पिताजी जो तैयार हो गए थे उन्होंने मुझसे मोबाइल माँगा तो मैंने दिषु से बात खत्म करते हुए कहा;

मैं: यार पिताजी जा रहे हैं तो मैं तुझे बाद में कॉल करता हूँ और इस बार मत बिगाड़िओ, यहाँ बिजली नहीं तो कई बार फ़ोन चार्ज नहीं होता!

दिषु: ठीक है, तू तब तक मेरी भाभी के साथ मौज ले!

इतना कह कर बात खत्म हुई| अब भौजी यहाँ होती तो मौज लेता न? यहाँ तो मेरे सर पर मौत नाच रही थी!

खैर माँ, पिताजी और बड़की अम्मा तैयार हो कर निकल गए| मैं बड़के दादा के साथ खेतों पर कटाई में जुट गया, कुछ देर बाद रसिका भाभी भी घूंघट काढ़े आ गईं और मेरे पास ही बैठ के कटाई करने लगी| मैंने अभी तक पीछे मुड़ कर नहीं देखा था की तभी वरुण भी मदद करने के लिए अपने नन्हे-नन्हे हाथों से फसल पकड़ कर खींचने लगा| उसका ये उत्साह देख कर मेरा मन बड़ा खुश हुआ और मुझे कुछ दिन पहले का अपना नौसीखियापन याद आया! उधर बड़के दादा के चेहरे पर कोई भाव नहीं थे, वो वरुण को नजर अंदाज कर के अपने काम में लगे थे! इधर रसिका भाभी धीरे-धीरे मेरे नजदीक आ रहीं थीं| जब वो मेरे से बस एक कदम दूर रह गईं तो मुझे उनकी मौजूदगी का एहसास हुआ और मैं तेजी से काटते हुए उनसे दूर चला गया| पर उस औरत की बुर में लगी थी आग सो वो फिर से खिसकते-खिसकते मेरे नजदीक आ गई, मैं उठ के दूसरी तरफ जाने लगा तो उसने जानबूझ के मुझे छेड़ते हुए पूछा; "मानु जी, कहाँ जात हो?" मैंने पलट कर गुस्से में उसे घूरा और बिना बोले जाने लगा तो बड़के दादा ने पुछा; "अरे मुन्ना हुआँ कहाँ जात हो?" अब वो चूँकि मेरे बड़े थे तो उनकी बात का जवाब देना जर्रुरी था; "जी मैं बाथरूम जा रहा हूँ|" मैंने आराम सेजवाब दिया तो बड़के दादा कुछ नहीं बोले| अब बाथरूम किसे आया था? मैं कुछ दूरी पर दूसरे खेत की ओर मुँह करके खड़ा हो गया जैसे मूत आ रहा हो| कुछ देर बाद वापस आया और बड़के दादा के पास ही बैठ के कटाई चालु कर दी| अब बड़के दादा के पास था तो डर के मारे रसिका भाभी नजदीक नहीं आईं|

साँझ होने तक सारे कटाई में लगे रहे, जब अँधेरा थोड़ा बढ़ गया तो हम वापस घर की ओर चल दिए| मैं बड़के दादा के साथ-साथ चलता रहा और उनसे खेतों के बारे में पूछता रहा| वरुण जो अपनी मम्मी के साथ चल रहा था वो मेरे पास आ गया और मेरी ऊँगली पकड़ कर चलने लगा| घर लौट के सबसे पहले तो मेरा मन नहाने का था, क्योंकि रसिका भाभी ने मुझे सुबह जो छुआ था! लेकिन दिक्कत ये थी की चन्दर भैया के घर पर टाला लगा था और उसकी चाभी रसिका भाभी के पास थी| अब मैं उनके सामने नहीं जान चाहता था इसलिए मैंने बड़े घर में नहाने का फैसला किया| नहाने के लिए मैंने पानी भरा और बड़े घर की ओर जा ही रहा था की बड़के दादा ने पानी ले जाते हुए देखा तो पूछा;
बड़के दादा: मुन्ना ई पानी का का करबो?

मैं: जी नहाने जा रहा हूँ|

बड़के दादा: अरे मुन्ना बीमार पड़ जैहो! मौसम ठंडा है और ऊपर से पानीओ बहुत ठंडा है!

बड़के दादा ने चिंता जताते हुए कहा|

मैं: नहीं दादा थकावट उतर जाएगी|

मैंने प्यार से जिद्द करते हुए कहा|

बड़के दादा: मुन्ना इसीलिए हम कहत रहें की तुम चलेजाओ, अब खेतन मा काम करहिओ तो थक तो जाइहो!

मैं: दादा धीरे-धीरे आदत पड़ जाएगी|

मैंने मुस्कुराते हुए कहा और नहाने चल दिए|
बड़े घर पहुँचते ही मैंने प्रमुख दरवाजा बंद किया और फिर स्नान घर पहुँच कर बाल्टी रखी| इस बार मैं कोई भी मूर्खता पूर्ण कार्य नहीं करना चाहता था जिससे वो लोमड़ी फिर से मेरे नजदीक आ जाए! सारे कपडे उतार फेंके तो हवा का ठंडा-ठंडा थपेड़ा जिस्म पर पड़ा, थपेड़ा पड़ते ही सारे रोंगटे खड़े हो गए! एक पल को तो मन किया की रहने देता हूँ पर फिर ऐसा लगने लगा जैसे मेरा जिस्म अपवित्र है इसलिए नहाना आवश्यक था| जैसे ही मैंने पहला लोटा पानी का डाला तो मेरी कँपकँपी छूट गई कँपकँपी के साथ ही मेरे मन में रसिका भाभी के प्रति नफरत की आग ज्वाला के रूप में जलने लगी! आखिर उन्हें के कारन ही तो मुझे इस ठन्डे पानी से नहाना पड़ रहा था, न वो मुझे छूतीं न मुझे नहाना पड़ता! ठंड से काँपते हुए मैं किसी तरह रगड़-रगड़ के नहाया ताकि रसिका भाभी की बू छुड़ा सकूँ! नहा कर काँपते हुए मैं ने फटाफट कपडे पहने और बड़े घर में ताला लगा कर छप्पर के नीचे चादर लेके लेट गया| मुझे वहाँ देख वरुण पाने खिलोने ले कर आ गया और मेरे साथ खेलने लगा| क्योंकि रसिका भाभी भी खेत में काम कर रहीं थीं तो खाना बनने में समय लगा| खाना बना और उन्होंने मुझे और वरुण को एक ही थाली में खाना परोस दिया| चूँकि बड़के दादा को वरुण रत्ती भर पसंद नहीं था इसलिए वरुण उनके सामने नहीं रहता था| मैं कल की ही तरह वरुण को ले कर कुएं की मुंडेर पर बैठ गया और सारा खाना उसे अपने हाथ से खिला दिया| "चाचा तुहुँ खाओ?" वरुण बोला तो मैंने उसके सर पर हाथ फेरते हुए मुस्कुरा कर कहा; "आप ने खा लिया न तो मेरा पेट भर गया!" ये सुन वरुण के चेहरे पर मुस्कान आ गई| बर्तन धोने के लिए रख मैं हाथ धो कर अपनी चारपाई पर लेट गया| भूख बड़ी जोर से लगी थी पर रसिका भाभी के हाथ का खाना तो मैं खाने से रहा, कल सुबह चिप्स वगैरह खा लूँगा! ये सोचते हुए मैंने अपनी आँख मूंदी, तभी बड़के दादा ने मुझे अपने पास बुलाया|

"मुन्ना तू हियाँ छप्पर के नीचे सोइ जाओ, हम हियाँ रसोई के पास सोइ जाइत है! तोहार भौजाई और उनका लड़कवा हुआँ बड़े घर में सोइहें!" बड़के दादा की बात सुन मेरे दिल को बहुत चैन मिला, क्योंकि मैं तो भूल ही गया था की रात को ये चुड़ैल मेरे लंड को सूंघती हुई जर्रूर आएगी और आज तो पिताजी भी नहीं जिनके पास जा कर मैं सो जाता?! भला हो बड़के दादा का जिन्होंने मेरी इज्जत बचा ली! बड़के दादा की बात सुन रसिका भाभी का मुँह फीका हो गया और वो तुनक कर बड़े घर चली गईं| बड़के दादा की नींद बड़ी कच्ची थी और जरा सी आवाज में खुल जाती थी| फिर मेरे और उनकी चारपाई कुछ इस तरह पड़ी थी की बीच का फैसला यही कोई 8-10 फुट का होगा और अगर रसिका भाभी आज मेरा शिकार करने आतीं तो उनकी जरा सी आवाज से बड़के दादा उठ जाते| खैर आज थकावट बहुत थी इसलिए जल्दी ही आँख लग गई और सुबह जब उठा तो भूख से बेहाल था! सुबह उठ कर नित्य क्रिया निपटा कर आया तो चाय तैयार थी, अपनी चाय ले कर मैं थोड़ी दूर टहलने लगा और फिर कुछ दूर जा आकर चाय फेंक दी! जब वापस आया तो देखा वरुण बासी खा रहा था, बड़के दादा खेत जाने को तैयार थे और मैं उन्हीं के साथ चल दिया| खेत पहुँच कर मैं कटाई में लग गया पर भूख बढ़ने लगी थी, मैंने बड़के दादा से बाथरूम जाने का बहाना बनाया और दूकान पर आ गया| वहाँ बैठ कर मैंने एक चिप्स का पैकेट खाया, भूख कुछ शांत हुई तो वापस खेत लौट आया और काम में लग गया| दोपहर को खाने के समय पर मैं बड़के दादा के साथ लौटा और फिर वही अपना खाना वरुण को खिलाना| मैंने सोचा की दूकान से एक और चिप्स का पैकेट ले लेता हूँ लेकिन जब पर्स देखा तो वो खाली था! ये जिंदगी वो एक पल था जिसने मुझे एक बहुत जर्रूरी सबक सिखाया और वो था इमरजेंसी के लिए पैसे बचाना! मैंने पैसे जोड़ना तो सीख लिया था पर बचाने और सद उपयोग करने के मामले में थोड़ा कच्चा था! हाँ चाहता तो बड़के दादा से पैसे माँग सकता था, परन्तु वो पूछते की पैसे क्यों चाहिए तो मुझे उन्हें बताना पड़ता की मुझे बाहर से कुछ खाना है! जब माधुरी वाला काण्ड हुआ था और मैं बीमार हुआ था तब मैंने बाहर से कुछ खाने तथा पेट ख़राब होने का बहाना किया था, यही वो झूठ था जिसके चलते मैं बड़के दादा से पैसे नहीं माँग सकता था!

अब मरता क्या न करता, मैंने ये सोच कर ही संतोष कर लिया की कल तो भौजी ने आ ही जाना है फिर उनसे छप्पन भोग बनवा कर खाऊँगा! यही वो सोच थी जिसने मुझे भूखे रहने में मदद की, लेकिन मैं ये नहीं जानता था की मेरे जन्म के समय हुई माँ की लापरवाही के कारन मेरा metabolism कमजोर था| दोपहर के खाने के बाद मैं बड़के दादा के साथ फिर कटाई में जुट गया, कुछ देर बाद रसिका भाभी भी आ गईं और मेरे नजदीक बैठ कर काम करने लगीं| वरुण जो उनकी बगल में था उसने मुझे पीछे से आवाज दे कर बुलाया तो मैंने पीछे मुड़ कर देखा| वरुण ने केचुएँ का घर ढूंढा था और वो मिटटी का डेढ़ा-मेढ़ा घर देखने में उसे बड़ा मजा आ रहा था| उसका ये बालपन देख मुझे हँसी आ गई, लेकिन तभी मेरी नजर रसिका भाभी पर पड़ी जो अपने होठों पर जीभ फेर कर मुझे चिढ़ा रहीं थीं! उनकी ये हरकत देख मेरा खून जलने लगा और मैं उठ कर बड़के दादा की बगल में बैठ कर काम करने लगा| "अरे मुन्ना, एक जगह से काटो, बार-बार हियँ-हुआँ न भागा करो!" बड़के दादा ने मुझे टोका, अब मैं उन्हीं क्या बताता की मैं क्यों उनके पास आया हूँ तो मैंने उनको बहाना मारते हुए कहा; "दादा वो मुझे सीखना था की आप इतनी तेजी से कैसे काट लेते हो!" ये सुन कर बड़के दादा हँस पड़े और फिर अपना तरीका समझाने लगे| जहाँ मैं नौसिखिया होने के कारन थोड़ी-थोड़ी फसल काटता था, वहीँ बड़के दादा मंझे हुए होने के कारन एक बार में काफी फसल पकड़ कर काट लिया करते थे|

अब मुझे कहाँ सीखना था, थोड़ी बहुत कोशिश की उनके तरीके से करने की फिर वापस अपने तरीके से काटने लगा| साँझ हुई और सब घर को चल दिए, घर आ कर रसिका भाभी खाना बनाने में लग गईं और मैं वरुण के साथ खेलने लगा| आज मौसम बहुत ज्यादा ठंडा था और पछियाव की हवा चल रही थी| आज का पूरा दिन रसिका भाभी न तो मुझे छू पाईं थीं और न ही मेरे साथ कुछ कर पाईं थीं, इसीलिए मुझे आज नहाने की जर्रूरत नहीं थी| रात को जब खाना खाने का समय हुआ तो मैंने फिर वही खुद न खा कर वरुण को खिला देने का काम किया| खाना खा कर मैं छप्पर के नीचे लेटा ही था की रसिका भाभी ने अपनी घिनौनी चाल चली! "बाप्पा (पिताजी) कल रात का हम बहुत डराए गयन रहें! इतना बड़ा घर हम माँ-बेटे अकेले...बाप रे बाप! आप मानु भैया का कहो की बड़े घर में सोई जाएँ!" रसिका भाभी घूंघट काढ़े हुए बोलीं| उनकी बात सुन के मेरी आँखें खुली की खुली रह गईं, मैं तो जैसे पलक झपकना ही भूल गया! कैसी औरत है ये जो अपने ही ससुर से कह रही है की उसे मेरे साथ सोना है! निर्लज्ज!

इधर बड़के दादा को जैसे कुछ फर्क ही नहीं पड़ा और उन्होंने कहा; "ठीक है!" अब उनका जवाब सुन कर मैं अवाक रह गया! ये आखिर हो क्या रहा है मेरे साथ? साला इससे अच्छा तो मैं भौजी के साथ ही चला जाता, कम से कम इस पिशाचनी से तो बच जाता! पूरी रात एक घर में इसके साथ बंद रह कर अपनी इज्जत कैसे बचाऊँगा? यही सोच कर मेरा 'गाँव' फ़ट गया!

[color=rgb(40,]जारी रहेगा भाग - 5 में...[/color]
 
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