[color=rgb(184,]चौदहवाँ अध्याय: तन की आग[/color]
[color=rgb(41,]भाग -5[/color]
[color=rgb(243,]अब तक आपने पढ़ा:[/color]
मैं छप्पर के नीचे लेटा ही था की रसिका भाभी ने अपनी घिनौनी चाल चली! "बाप्पा (पिताजी) कल रात का हम बहुत डराए गयन रहें! इतना बड़ा घर हम माँ-बेटे अकेले...बाप रे बाप! आप मानु भैया का कहो की बड़े घर में सोई जाएँ!" रसिका भाभी घूंघट काढ़े हुए बोलीं| उनकी बात सुन के मेरी आँखें खुली की खुली रह गईं, मैं तो जैसे पलक झपकना ही भूल गया! कैसी औरत है ये जो अपने ही ससुर से कह रही है की उसे मेरे साथ सोना है! निर्लज्ज!
इधर बड़के दादा को जैसे कुछ फर्क ही नहीं पड़ा और उन्होंने कहा; "ठीक है!" अब उनका जवाब सुन कर मैं अवाक रह गया! ये आखिर हो क्या रहा है मेरे साथ? साला इससे अच्छा तो मैं भौजी के साथ ही चला जाता, कम से कम इस पिशाचनी से तो बच जाता! पूरी रात एक घर में इसके साथ
[color=rgb(65,]अब आगे:[/color]
अब बड़के दादा तो रसोई के पास अपनी चारपाई पर लेट गए, परन्तु मुझे और रसिका भाभी को बड़े घर में सोना था! बड़े घर पहुँच कर मैंने अपनी चारपाई खींच कर स्नान घर के पास बिछाई और रसिका भाभी की चारपाई पंद्रह फुट दूर प्रमुख दरवाजे से कुछ बारह कदम पर बिछा दी| अपना बिस्तर लगा कर मैं लेट गया पर नींद नहीं आ रही थी| पिछले ढाई दिन से मैंने रसिका भाभी के हाथ का बना कुछ भी नहीं खाया था| एक बस चाय का सहारा था जो बड़की अम्मा सुबह-शाम बनाया करती थीं, पर अब तो वो भी नहीं मिली क्योंकि अम्मा चलीं गई थी| इसलिए मेरा पेट बिलकुल खाली था| मैं आँख बंद किये सीधा लेटा था और दायें हाथ को मोड़ कर अपनी आँखों को ढक रखा था| आँखें बंद किये मैं बस भौजी को याद कर रहा था, सोच रहा था की अगर वो यहाँ होती तो हम कितनी बातें करते! तभी नेहा का खिलखिलाता हुआ चेहरा भी याद आया, वो अभी यहाँ होती तो मैंने उसे अपने से कस कर लिपटा कर सोता|
तभी वरुण आया और मेरी बगल में लेट गया, मैंने उसके सर पर हाथ फेरा और वो मुझे अपने नाना के घर की बातें बताने लगा| उसके नाना जी के पास आम के कितने बगीचे हैं और वो वहाँ अपने दोस्तों के साथ क्या-क्या खेलता है ये सब वो बड़े चाव से बताने लगा| कुछ समय बाद जब उसे नींद आने लगी तो मैंने उससे प्यार से कहा; "बेटा आप आज अपनी मम्मी के पास सो जाओ|" मैंने ये वरुण से सिर्फ और सिर्फ इसलिए कहा ताकि रसिका भाभी उसे उठाने के बहाने फिर मुझसे छेड़खानी न कर पायें| लेकिन रसिका भाभी जो दरवाजा बंद कर के आंगन में मेरे सिरहाने खड़ीं थीं वो अचानक बोल पड़ीं; "आपन चाचा को आराम से पाहुड दे, तू आज हमरे लगे सोइहो!" रसिका भाभी ने मुझे खुश करने के लिए कहा, पर मैंने उन्हें जरा भी तूल नहीं दी और फिर से अपने ख्यालों में डूब गया! भौजी को याद करके मन थोड़ा खुश हुआ, वो उनका हर बार जिद्द करना, मुझसे नाराज होना, वो टूटी-फूटी अंग्रेजी बोलना और वो हसीन मुस्कान जिसे याद करते ही मेरे चेहरे पर मुस्कान आ गई| कल उनके आते ही मैं उनसे लिपट जाऊँगा और फिर कभी उन्हें कहीं नहीं जाने दूँगा! उनके गर्म जिस्म की कल्पना से ही मेरा जिस्म ठंडी हवा में भी गर्म होने लगा!
नींद तो आने वाली नहीं थी तो भौजी को याद करने से मेरी रात अच्छी कट रही थी| इधर घडी की सुइयाँ तेजी से भागने लगीं और रात के करीब दो बजे होंगे, जब मुझ पर उस प्यासी शेरनी ने हमला किया! मैंने एक चादर ओढ़ रखी थी और अब भी पीठ के बल चुप-चाप लेटा हुआ था| रसिका भाभी ने एक झटके में चादर खींच ली और इससे पहले मैं कोई प्रतिक्रिया करता वो मेरे ऊपर लेट गईं! उनके मुझ पर लेटते ही मैंने छटपटाना शुरू किया और तब मेरे हाथों ने उनके कन्धों को छुआ| जब मैंने उन्हें छुआ तो पता चला की वो पूरी तरह से नंगी हैं, उनके शरीर पर कपडे का एक टुकड़ा भी नहीं था! रसिका भाभी ने एक दम से मेरे दोनों हाथों की कलाई अपनी दोनों हथेलियों से कस कर पकड़ ली, पता नहीं उनमें इतनी ताकत कहाँ से आ जाती थी! मैं अपने हाथ को छुड़ाने की भरपूर कोशिश करने लगा पर कोई फायदा नहीं हुआ, क्योंकि उनके हाथों ने कुछ ज्यादा ही कस कर मेरी दोनों कलाइयाँ जकड़ रखी थीं! अब उन्होंने अपने होठों को गोल बनाया और मेरे होठों को चूमना शुरू किया, लेकिन मैंने अपनी गर्दन इधर-उधर झटकनी शुरू की जिस कारन वो मुझे चूम नहीं पाईं! तभी मेरी नजर वरुण पर पड़ी जो बड़े चैन से सो रहा था, अब अगर मैं कोई आवाज करता तो वो जाग जाता और अपनी माँ को और मुझे ऐसे देख पता नहीं क्या करता! इसलिए मैं चुप-चाप भाभी का विरोध करने लगा|
चलिए आप सब के लिए रसिका भाभी के जिस्म का वर्णन कुछ चित्रों द्वारा कर देता हूँ!
नयन
![](https://img300.imagetwist.com/th/34740/w8yirswbiw4i.jpg)
होंठ
![](https://img300.imagetwist.com/th/34740/qo7jof3h2wqf.jpg)
वक्ष (साइड व्यू)
![](https://img300.imagetwist.com/th/34740/mb9dvpnq1gk5.jpg)
वक्ष (सम्पूर्ण दर्शन)
![](https://img300.imagetwist.com/th/34740/r8p2fvc0dek7.jpg)
![](https://img300.imagetwist.com/th/34740/dqoxe5mk6rwy.jpg)
बुर दर्शन
![](https://img300.imagetwist.com/th/34740/ozsojexvgqpd.jpg)
गांड दर्शन
![](https://img300.imagetwist.com/th/34740/ruu55kins474.jpg)
रसिका भाभी (सम्पूर्ण जिस्म के दर्शन)
![](https://img300.imagetwist.com/th/34740/6yn61zvjr02c.jpg)
ये दृश्य देखने अथवा पढ़ने में जितना आनंददायी है उतना मेरे लिए नहीं था! एक अजीब सी बेबसी महसूस हो रही थी, किसी तरह मैंने अपने आँसुओं को बहने से रोक रखा था! अगर भाभी मेरे आँसूँ देख लेती तो मुझे बेबस समझ अपने नपाक इरादे में कामयाब हो जाती| आँसुओं का क्या मोल होता है ये उस समय समझ पाया! ख़ुशी में जब ये अश्रु बहते हैं तो व्यक्ति की ख़ुशी व्यक्त करते हैं, परन्तु जब दुःख/बेबसी में बहते हैं तो व्यक्ति की कमजोरी उसके असहाय होने की दशा व्यक्त करते हैं! फिर पुरुषों का तो वैसे भी रोना उनकी कमजोरी दर्शाता है! ये कैसा समाज है, जहाँ एक इंसान रो भी नहीं सकता? सुनने में थोड़ा अजीब लगता है, परन्तु दुनिया में पुरुषों के साथ भी जबरदस्ती की जाती है और वो तो ये बात किसी से कह भी नहीं सकते, क्योंकि साला कोई विश्वास ही नहीं करता?!
खैर इधर अपने मन और तन की जंग लड़ रहा मैं किसी तरह मोर्चा संभाले हुए था और खुद को रसिका भाभी के चुम्बनों से बचा रहा था| परन्तु मेरा लंड जिसे अपने ऊपर भाभी की चूत की गर्मी मिल रही थी, वो उस गर्मी से बेहाल अपनी ताकत दिखाने को फड़फड़ा रहा था| अब उस में तो दिमाग था नहीं जो सही-गलत समझता वो तो बस गर्मी महसूस कर रहा था! रसिका भाभी को भी अपनी नंगी छूट पर मेरे पजामे के ऊपर से मेरे लंड की गर्मी मिल रही थी और मेरे पजामे में बने तम्बू पर वो अपनी छूट रख कर रगड़ने लगी थीं और बार-बार अपनी छूट मेरे लंड पर दबा रही थीं;
रसिका भाभी: हाय मानु जी! देख लिहो आपन लंड का, ऊ कितना प्यासा बा! तब से हमार बुर संगे छेड़खानी करत बा|
रसिका भाभी ने मुझे अपने कामजाल में फँसाने के लिए धीमी आवाज में कहा|
मैं: कभी नहीं! हटो मुझ पर से|
मैंने धीमी आवाज में कहा और छटपटाने लगा|
रसिका भाभी: बड़े जालिम हो! और स्वार्थी भी!
रसिका भाभी ने मेरे दोनों हाथ खोलने चाहे ताकि वो मेरे और नजदीक आ कर मेरे होंठ चूम सकें! मेरे आँसूँ अब अंगारे बन गए थे, जिसका कारन था भौजी से मेरा प्यार| यही वो समय था जब प्यार वासना पर भारी पड़ने वाला था| मैंने गुस्से में दाँत पीसते हुए धीमी आवाज में रसिका भाभी से कहा;
मैं: हटो मुझ पर से और छोडो मेरा हाथ!
पर उस कुलटा पर तो वासना हावी थी, उसकी प्यास अब हवस में तब्दील हो चुकी थी;
रसिका भाभी: ऐसे-कैसे छोड़ देइ! अब तक तीन बार तोहार थप्पड़ खाई चुकें हैं, ई का बदला तो हम तोहसे लेके रहब! वैसे एक बात तो कहेक पड़े, ससुर जान बहुत है तुम मा, पर अपनी ई ताक़त हमें चोदे मा निकालो ना की थापीडियाने में!
रसिका भाभी ने मुझे घूरते हुए कहा| उनका मुझे घूरना ये दर्शाता था की आज तो वो मुझे भोग कर ही रहेंगी, लेकिन वो नहीं जानती थीं की उनके इस डायलॉग बाजी में उनकी पकड़ कुछ ढीली हो गई जिसका मैंने भरपूर फायदा उठाया|
मैं: बहुत हो गया अब...आअह्ह्ह्ह्ह्ह!!
मैंने अपनी पूरी ताकत लगाईं और अपना सीधा हाथ घुमाया जिससे उनके हाथों से मेरी कलाई छूट गई| मैंने जोर लगा कर अपने बाईं तरफ धकेला जिससे वो धड़ाम से नीचे गिरीं! मैं फ़ौरन उठ खड़ा हुआ और वरुण के पास जा खड़ा हुआ| मैंने तुरंत नीचे पड़ी चादर उठाई और भाभी के मुँह पर फेंक के मारी|
मैं: भाभी बहुत हो गया! अब आप मेरे नजदीक आये तो कहे देता हूँ आपके लिए बहुत बुरा होगा! अब इस चादर से खुद को ढको और चुप-चाप वहीं पड़े रहो!
मैंने बहुत गुस्से में कहा| ये गुस्सा पहले के गुस्से से अलग था, पहले मैं अपने मा-पिताजी के संस्कारों में बंध कर उन्हें अपना गुस्सा दिखता था और अपने गुस्से से डराता था| लेकिन इस समय मेरा गुस्सा उस इंसान के भाँती था जो डर-सहम के एक कोने से भीड़ चूका है, उसके पास अब और पीछे जाने को जगह नहीं है और अब वो खुद को बचाने के लिए सिर्फ हमला ही करेगा| इधर मेरी आवाज में दृढ़ता देख भाभी समझ गईं की जिस मेमने को वो डरा कर भोगना चाहती थीं वो अब अपना सीना चौड़ा कर के मुक़ाबला करने को तैयार है, इसलिए उन्होंने अब त्रियाचरित्र अपनाने की सोची!
रसिका भाभी: काहे ढकूँ?
उन्होंने अपने नंगे जिस्म पर इतराते हुए कहा| हलकी चांदनी में उनका गोरा बदन चमक रहा था, पर मेरे मन पर उनके जिस्म का जादू न चल सका|
मैं: क्योंकि मुझे नहीं देखना आपको इस तरह!
मैंने फिर गुस्से में कहा|
रसिका भाभी: तो तुम आपन आखियाँ बंद कर लिहो! खुद तो कभी आपन लंड दिखातियो नहीं, और जब हम आपन बुर दिखाइत है तो ऊ भी तोह से देखत नहीं जात!
उनके मुँह से लंड-बुर जैसे शब्द सुन मेरे अंदर का गुस्सा और भड़कने लगा|
मैं: मुझे क्या अपने जितना गिरा हुआ समझा है?!
मैंने फिर गुस्से में कहा|
मेरा जवाब सुन वो फिर से मुस्कुराने लगीं|
रसिका भाभी: अच्छा ई बताओ, हमसे काहे दूर भागत हो? अइसन लागत है जैसे हमसे नफरत करत हो! हम तोहसे का माँगें हैं, एहि न की हमार प्यास बुझाई दिहो, तोहसे कउनो जायदाद तो नहीं माँगें हैं? जिस तरह तुम हमसे भागत हो, हमका लागत है की तुम अभी तक कुंवारे हो! कुंवारा मतलब जानत हो न? आज तक कउनो बुर चोदे हो?
मैं: छी! कितने गंदे हो आप! जो आप चाहते हो वो मैं कभी नहीं करूँगा, क्योंकि मैं आपसे प्यार नहीं करता! मैं ये सब उसी के साथ करूँगा जिससे मैं प्यार करता हूँ|
मैंने भौजी को याद करते हुए कहा|
रसिका भाभी: पर हम तो तोहसे प्यार करित है|
रसिका भाभी तपाक से बोलीं, पर मैं उनकी असलियत जान गया था|
मैं: सिर्फ अपने काम के लिए प्यार करने का दिखावा करते हो, बस उस नीचे वाले मुँह में कुछ डालने के लिए ये सब कर रहे हो!
मैंने बेधड़क कहा तो रसिका भाभी की आँखें खुल की खुली रह गईं! वो सोच रहीं थीं की इस मेमने को वो जैसा चाहे इस्तेमाल कर लेंगी, पर ये मेमना तो अक्ल वाला निकला!
रसिका भाभी: हाय! तुम उतने भी ना समझ नहीं जितना बनत हो|
रसिका भाभी ने मुँह टेढ़ा करते हुए कहा|
मैं पैर पटकता हुआ अपने कमरे में जा के चारपाई पर बैठ गया और सर झुका के सोचने लगा| इतने में भाभी उठ के मेरे सामने नंगी खड़ी हो गईं| चौखट पर अपना बायाँ कन्धा टिका, दाएँ हाथ को अपनी बाहर को निकली कमर पर रख वो मुझे प्यासी नजरों से देखने लगीं| मैं समझ गया था की अब ये अपने जिस्म का लोभ दे कर मुझे बरगलाने की कोशिश करेंगी पर मुझ पर इनकी एक न चलने वाली थी! आज भले ही खुद की इज्जत बचाने के लिए मुझे इनका खून करना पड़े, कर दूँगा लेकिन इनके हाथ नहीं आऊँगा! ये सोच कर मैंने गुस्से से उन्हीं देखा तो पाया वो अपने होठों पर जीभ फेर रहीं हैं, उनकी गांड का उभार साफ़ दिख रहा है, उनके चूचे आगे की ओर निकले हुए मुझे अपने पास बुलाने के लिए मानो कोई सम्मोहन क्रिया कर रहे हों! पर वो क्या जाने की ये आँखें किसी और से प्यार करती हैं, ऐसा प्यार की उसके लिए आज मरने मारने को उतारू था!
मैंने मुँह फेरा और फिर अपना तौलिया उठा के उनकी बगल से होता हुआ बाहर आंगन में आ गया| आज उन्होंने मुझे रोकने की जरा भी कोशिश नहीं की, बल्कि पूछने लगीं;
रसिका भाभी: तौलिया लेके कहाँ जात हो?
मैं कुछ नहीं बोला पर मुझे स्नान घर की ओर जाता देख वो समझ गईं की मैं कहाँ जा रहा हूँ|
रसिका भाभी: इतनी रात को नहाइओ तो ठण्ड लग जाई, पानी बहुत ठंडा है! मान जाओ!!!
रसिका भाभी मुझे समझाते हुए बोलीं पर मैं अब भी कुछ नहीं बोला और स्नान घर में घुस गया| स्नान घर में दिवार करीब चारफूट ऊँची है| तो जब कोई खड़ा हो के नहाता है तो गर्दन से ऊपर का भाग साफ़ दिखाई देता है| छत उसकी है नहीं, तो मैं उसी दिवार की आड़ लेके नहा ने लगा| मैंने अपनी टी-शर्ट उतारी, फिर पजामा उतारा और आखिर में अपना कच्छा भी उतार के उसी दिवार पर रख दिया| जैसे ही मैंने पहला लोटा पानी का डाला तो मेरी कँपकँपी छूट गई! बर्फ सा ठंडा पानी जिस्म पर पड़ते ही सारे रोंगटे खड़े हो गए थे| मैंने साबुन लगा के रगड़-रगड़ के नहाना शुरू किया, मुझे इस तरह साबुन लगता देख रसिका भाभी ने टोका;
रसिका भाभी: अब कौन सी माटी में खेल के आये हो जो इतना रगड़-रगड़ के नहात हो?
मैं: आपकी वजह से नहाना पड़ रहा है|
मैंने गुस्से में कहा|
रसिका भाभी: हम का किहिन?
रसिका भाभी हैरान होते हुए बोलीं|
मैं: जब-जब आप मुझे छूते हो तो आपकी बू मेरे शरीर में बस जाती है, उसी बू को छुड़ाने के लिए मैं इतना रगड़-रगड़ के नहा रहा हूँ|
मैंने गुस्से में कहा तो रसिका भाभी आँखें फाड़े गुस्से में मुझे देखने लगीं;
रसिका भाभी: हाय दैया! हम इतनी बड़ी अछूत हैं? अगर हमार महक इतना ही गंधात है तो जब हम खाना बनाये के देइत है तो काहे ढकेल लेट हो?
रसिका भाभी मुझे ताना मरते हुए बोलीं|
मैं: हुँह!! पिछले दो दिनों से मैंने आप के हाथ का बना कुछ भी नहीं खाया|
मैंने अपने जिस्म पर साबुन रगड़ते हुए कहा|
रसिका भाभी: तो जो खाना हम परोस के देइत है उसे बहाय डेट हो?
रसिका भाभी ने हैरान होते हुए पुछा|
मैं: मैं अन्न की इज्जत करता हूँ, जो अन्न आप मुझे परोस के देते हो उसे मैं आपके ही सपूत वरुण को खिला देता हूँ|
अब ये सुन कर उन्हीं बहुत मिर्ची लगी और जो जलन उनके सीने में थी वो बाहर आ ही गई;
रसिका भाभी: तो ई बताओ की आपन भौजी के संगे जो चिपके रहत हो, तो उनकी महक नहीं बस जाती तोहार नाक में?
रसिका भाभी ने मुँह टेढ़ा करते हुए कहा|
मैं: उनके मन में मेरे लिए वासना नहीं है, प्यार है, इज्जत है|
ये सुन कर उनकी जल गई और वो ताना मारते हुए बोलीं;
रसिका भाभी: हाँ भाई हमरे मन मा तो बस वासना ही भरी है!
इतना कहके उन्होंने फिर से अपनी ओछी हरकत की| वो मेरे सामने अपनी टांगें खोल के उकड़ूँ होक बैठ गईं और अपनी झांटों वाली चूत मुझे दिखाते हुए उस में ऊँगली करने लगी| ये देख कर मुझे बहुत घिन्न आई और मैंने अपना मुँह फेर लिया| कुछ पल बाद मैंने जब कनखी नजरों से उन्हें देखा तो पाया वो अब भी मेरी ओर देख के हस्त मैथुन कर रहीं थी| मैं उन पर ध्यान नहीं देना चाहता था, पर वो जान-बुझ के मेरा ध्यान खींचने के लिए अपने मुँह से सिसकारियाँ निकाल रहीं थी जिससे मेरा ध्यान भंग हो रहा था| मैंने जल्दी से अपना नहाना खत्म किया और नए कपडे पहन के (कुरता-पजामा) बहार आ गया, जैसे ही मैं बाहर आया तो देखा सामने जमीन पर भाभी की चूत से जो पानी निकला था वो जमीन पर फैला हुआ है! मैं नाक सिकोड़ के छत पर भाग गया, जो कुछ अभी हुआ था उससे ये बात तो साफ़ थी की मैं नीचे नहीं सो सकता वरना ये सुबह तक मुझे नोच खायेगी| मैं छत के सबसे दूर वाले कोने के पेरापेट दिवार से पीठ लगा के बैठ गया| ठंडे पानी से नहाने के कारन मुझे बहुत जोर से ठण्ड लग रही थी और मैं बुरी तरह काँप रहा था|
करीब एक घंटे बाद मैंने छत से नीचे आँगन में झाँका तो देखा भाभी चारपाई पर ब्लाउज और पेटीकोट पहने लेटी हुई हैं| मैं वापस अपनी जगह बैठ गया और उम्मीद करने लगा की अब सुबह होगी...अब सुबह होगी... और ऐसे करते-करते सुबह हो ही गई| सारी रात आँख खोले जागता रहा और जैसे ही सूरज की किरण मेरे ठन्डे पड़ चुके जिस्म पर पड़ी तो दिल ने कुछ रहत की साँस ली| लेकिन अब ठंड मेरे जिस्म पर असर दिखाने लगी थी, मेरा गाला कुछ भारी हो गया था और नाक भी बंद हो गई थी! बस भौजी से मिलने का जोश था जो मुझे बाँधे हुए था!
मैंने उठ के छत से नीचे आँगन में झाँका तो देखा भाभी उठ के चाय बनाने जा चुकीं थी| मैं उठा और नीचे आके ब्रश किया, कपडे बदले, नहा तो मैं रात को ही चूका था और ऊपर से ठण्ड इतनी लग रही थी की पानी छूने का मन नहीं कर रहा था| तैयार हो कर मैं रसोई के पास आया तो बड़के दादा नाश्ता कर रहे थे| उन्होंने मुझे भी नाश्ता करने को कहा पर मैं भला भाभी के हाथ का बना कुछ भी कैसे खा सकता था? मैंने ये कह के बात टाल दी की आज मैं फ़ाक़ा करूँगा| मैं बिना कुछ और बोले खेत चला गया और कटाई चालु कर दी| करीब आधे घंटे बाद बड़के दादा भी आ गए और मुझसे कुछ दूरी पर बैठ कटाई करने लगे| आज मैं बहुत खुश था, ढाई दिन की जुदाई के बाद आज मेरा प्यार जो वापस लौटने वाला था! फसल काटते हुए मैं खुली आँखों से हसीन सपने सजोने में लगा था| भौजी से मिलने की ख़ुशी इतनी थी की कल रात का सारा वाक्य भूल गया था, न भूख लग रही थी न ही प्यास! इस मिलने के एक एहसास ने मेरे अंदर एक नई ताकत फूँक दी थी, मन कर रहा था की अकेला ही सारा खेत काट डालूँ! इसी ख्याल से मैंने अपनी बची-कुचि ताकत झोंक दी और दोपहर तक मैं बिना रुके पूरे जोश से लगा रहा| बड़के दादा मेरा ये जोश देख के हैरान थे और बहुत खुश भी थे|
कुछ देर बाद रसिका भाभी भी आ गईं और वो भी हाथ बटाने लगीं| मैंने उन पर जरा भी ध्यान नहीं दिया और अपने काम में लगा रहा| आज मेरे चेहरे पर एक अलग ही मनुस्कान तैर रही थी, इतना खुश तो मैं तब भी नहीं हुआ था जब मैं भौजी से मिलने गाँव आया था| इधर रसिका भाभी हैरान दिख रहीं थी की आज मैं भला इतना खुश क्यों हूँ? खेर दोपहर के भोजन का समय हुआ तो हम वापस घर लौटे, बड़के दादा तो हाथ-मुँह धो कर खाना खाने बैठ गए पर मैं ख़ुशी से चहकते हुए इधर से उधर चक्कर लगाने लगा| मेरी नजरें सड़क पर बिछी हुई थीं और मैं बड़ी बेसब्री से भौजी के आने का रास्ता देख रहा था| बड़के दादा ने भोजन के लिए कहा पर मैंने अनसुना कर दिया और वहाँ से निकल कर चौक पर आ गया और वहाँ खड़ा हो कर उनके घर की तरफ देखने लगा| आधे घंटे तक मैं उस रास्ते को घूरता रहा पर वहाँ से कोई गुजरा ही नहीं! सुबह से की गई खाली पेट म्हणत अब जिस्म को कष्ट देने लगी थी, मेरा बदन दर्द करने लगा था पर दिल जिस्म की शिकायतों को अनसुना कर रहा था! जब घडी में तीन बजे तो मैं निराश खेतों में लौट आया, बड़के दादा मुझसे पहले ही पहुँच कर काम शुरू कर चुके थे| दिल अब हार मानने लगा था, शायद सासु जी और ससुर जी ने भौजी को रोक लिया होगा| ये सोच कर मेरा मन मायूस हो गया, पर दिल के कहीं एक कोने में अब भी उम्मीद थी जो कह रही थी की थोड़ा सब्र कर भौजी शाम तक जर्रूर लौट आएँगी|
मैं बड़े बेमन से खेत में काम करने लगा, मेरी ये बुझी हुई सूरत बड़के दादा से छुप न पाई और उन्होंने पूछ ही लिया;
बड़के दादा: अरे मुन्ना का बात है? भोर में तो तुम बहुत जोश से काम करत रहेओ, हमका लागत रहा की तुम्हीं सारा खेत काट डलिहो| पर अब देखो न कछु खाये हो और अब तो तोहार चेहराओ मुरझाई गवा है!
मैं: जी सुबह-सुबह फूर्ति ज्यादा होती है और अभी थोड़ा थकावट लग रही है|
मैंने बड़के दादा की खाना न खाने वाली बात का जवाब नहीं दिया|
बड़के दादा: तो अइसन करो, जाइके खाब खाये लिहो और आराम कर लिहो!
मेरा मन बिलकुल उचाट हो गया था इसलिए मैंने उनकी बात मान ली|
मैं: जी ठीक है|
जैसे ही मैं उठ के घर जाने लगा की तभी बड़के दादा के फ़ोन की घंटी बज उठी| ये फ़ोन पिताजी ने किया था, पिताजी से बात होने के बाद बड़के दादा ने बताया की माँ, पिताजी और बड़की अम्मा कुछ दिन और रुकेंगे, लेकिन बड़की अम्मा कल लौट आएँगी| अम्मा के लौटने की बात सुन कर मुझे थोड़ा ख़ुशी हुई, उनके आने से कम से कम उनके हाथ का बना खाना तो खा पाऊँगा! खेर मैं बहुत थक चूका था और कल रात से मानसिक और शारीरिक तौर पर पीड़ित था!
मैं खेत से घर आ रहा था, तो रास्ते में मुझे माधुरी खड़ी दिखी| उसे देख कर ऐसा लगा जैसे वो मेरा ही इन्तेजार कर रही हो| उसकी शक्ल देखते ही मुझे भौजी की बताई सारी बात याद आ गई, मैं उसकी तरफ बढ़ा ही नहीं बल्कि उससे कुछ दस कदम दूर ही रुक गया| दो सेकंड बाद वो ही चल के मेरे पास आई और बोली;
माधुरी: मानु जी....
उसके मुँह से अपना नाम सुनते ही मेरा चेहरा फीका पड़ गया, मैं मन ही मन बुदबुदाया; 'एक तू ही बची थी, तू भी ले ले मुझसे मजे!'
मैं: बोल
मैंने उसकी बात काटते हुए उखड़ी हुई आवाज में कहा|
माधुरी: आपकी तबियत ठीक नहीं लग रही|
माधुरी मेरा गला भारी होने से आवाज में आये बदलाव को भांपते हुए बोली|
मैं: वो सब छोड़, तू बता क्या चाहिए तुझे?
मैंने अपने उखड़े अंदाज में ही कहा|
माधुरी: आप बड़े रूखे तरीके से बात कर रहे हो|
माधुरी शिकायत करते हुए बोली|
मैं: देख मुझ में इतनी ताकत नहीं है की मैं तुझसे यहाँ खड़े रह के बात करूँ| तू साफ़-साफ़ ये बता की तुझे क्या चाहिए?
मुझे उससे बात करने में जरा भी दिलचप्सी नहीं थी, मेरे लिए तो वो मेरे घर जाने के रास्ते में एक बाधा थी| मुझे में इतनी ताक़त नहीं थी की मैं घूम कर घर जाऊँ, इसलिए मजबूरन मुझे उसके मुँह लगना पड़ रहा था|
माधुरी: वो.... मेरे पिताजी ने जो लड़का पसंद किया है वो 'अम्बाले' का है| लड़के वाले इस गाँव तक बरात लेके नहीं आ सकते क्योंकि पंचायत वाला किस्सा.....तो आप जानते ही हो| तो पिताजी ने ये ये तय किया है की शादी अम्बाला में मेरे मामा के घर पर ही होगी|
माधुरी ने डरते-डरते कहा|
मैं: तो?
मैंने मुँह बिदकते हुए कहा|
माधुरी: हमें कल ही निकलना है....और जाने से पहले मैं चाहती हूँ की एक बार आप अगर....
इतना कहते हुए वो रुक गई!
[color=rgb(40,]जारी रहेगा भाग - 6 में...[/color]