Hindi Antarvasna एक अनोखा बंधन - पुन: प्रारंभ


[color=rgb(184,]चौदहवाँ अध्याय: तन की आग[/color]
[color=rgb(41,]भाग -5[/color]


[color=rgb(243,]अब तक आपने पढ़ा:[/color]

मैं छप्पर के नीचे लेटा ही था की रसिका भाभी ने अपनी घिनौनी चाल चली! "बाप्पा (पिताजी) कल रात का हम बहुत डराए गयन रहें! इतना बड़ा घर हम माँ-बेटे अकेले...बाप रे बाप! आप मानु भैया का कहो की बड़े घर में सोई जाएँ!" रसिका भाभी घूंघट काढ़े हुए बोलीं| उनकी बात सुन के मेरी आँखें खुली की खुली रह गईं, मैं तो जैसे पलक झपकना ही भूल गया! कैसी औरत है ये जो अपने ही ससुर से कह रही है की उसे मेरे साथ सोना है! निर्लज्ज!

इधर बड़के दादा को जैसे कुछ फर्क ही नहीं पड़ा और उन्होंने कहा; "ठीक है!" अब उनका जवाब सुन कर मैं अवाक रह गया! ये आखिर हो क्या रहा है मेरे साथ? साला इससे अच्छा तो मैं भौजी के साथ ही चला जाता, कम से कम इस पिशाचनी से तो बच जाता! पूरी रात एक घर में इसके साथ

[color=rgb(65,]अब आगे:[/color]

अब बड़के दादा तो रसोई के पास अपनी चारपाई पर लेट गए, परन्तु मुझे और रसिका भाभी को बड़े घर में सोना था! बड़े घर पहुँच कर मैंने अपनी चारपाई खींच कर स्नान घर के पास बिछाई और रसिका भाभी की चारपाई पंद्रह फुट दूर प्रमुख दरवाजे से कुछ बारह कदम पर बिछा दी| अपना बिस्तर लगा कर मैं लेट गया पर नींद नहीं आ रही थी| पिछले ढाई दिन से मैंने रसिका भाभी के हाथ का बना कुछ भी नहीं खाया था| एक बस चाय का सहारा था जो बड़की अम्मा सुबह-शाम बनाया करती थीं, पर अब तो वो भी नहीं मिली क्योंकि अम्मा चलीं गई थी| इसलिए मेरा पेट बिलकुल खाली था| मैं आँख बंद किये सीधा लेटा था और दायें हाथ को मोड़ कर अपनी आँखों को ढक रखा था| आँखें बंद किये मैं बस भौजी को याद कर रहा था, सोच रहा था की अगर वो यहाँ होती तो हम कितनी बातें करते! तभी नेहा का खिलखिलाता हुआ चेहरा भी याद आया, वो अभी यहाँ होती तो मैंने उसे अपने से कस कर लिपटा कर सोता|

तभी वरुण आया और मेरी बगल में लेट गया, मैंने उसके सर पर हाथ फेरा और वो मुझे अपने नाना के घर की बातें बताने लगा| उसके नाना जी के पास आम के कितने बगीचे हैं और वो वहाँ अपने दोस्तों के साथ क्या-क्या खेलता है ये सब वो बड़े चाव से बताने लगा| कुछ समय बाद जब उसे नींद आने लगी तो मैंने उससे प्यार से कहा; "बेटा आप आज अपनी मम्मी के पास सो जाओ|" मैंने ये वरुण से सिर्फ और सिर्फ इसलिए कहा ताकि रसिका भाभी उसे उठाने के बहाने फिर मुझसे छेड़खानी न कर पायें| लेकिन रसिका भाभी जो दरवाजा बंद कर के आंगन में मेरे सिरहाने खड़ीं थीं वो अचानक बोल पड़ीं; "आपन चाचा को आराम से पाहुड दे, तू आज हमरे लगे सोइहो!" रसिका भाभी ने मुझे खुश करने के लिए कहा, पर मैंने उन्हें जरा भी तूल नहीं दी और फिर से अपने ख्यालों में डूब गया! भौजी को याद करके मन थोड़ा खुश हुआ, वो उनका हर बार जिद्द करना, मुझसे नाराज होना, वो टूटी-फूटी अंग्रेजी बोलना और वो हसीन मुस्कान जिसे याद करते ही मेरे चेहरे पर मुस्कान आ गई| कल उनके आते ही मैं उनसे लिपट जाऊँगा और फिर कभी उन्हें कहीं नहीं जाने दूँगा! उनके गर्म जिस्म की कल्पना से ही मेरा जिस्म ठंडी हवा में भी गर्म होने लगा!

नींद तो आने वाली नहीं थी तो भौजी को याद करने से मेरी रात अच्छी कट रही थी| इधर घडी की सुइयाँ तेजी से भागने लगीं और रात के करीब दो बजे होंगे, जब मुझ पर उस प्यासी शेरनी ने हमला किया! मैंने एक चादर ओढ़ रखी थी और अब भी पीठ के बल चुप-चाप लेटा हुआ था| रसिका भाभी ने एक झटके में चादर खींच ली और इससे पहले मैं कोई प्रतिक्रिया करता वो मेरे ऊपर लेट गईं! उनके मुझ पर लेटते ही मैंने छटपटाना शुरू किया और तब मेरे हाथों ने उनके कन्धों को छुआ| जब मैंने उन्हें छुआ तो पता चला की वो पूरी तरह से नंगी हैं, उनके शरीर पर कपडे का एक टुकड़ा भी नहीं था! रसिका भाभी ने एक दम से मेरे दोनों हाथों की कलाई अपनी दोनों हथेलियों से कस कर पकड़ ली, पता नहीं उनमें इतनी ताकत कहाँ से आ जाती थी! मैं अपने हाथ को छुड़ाने की भरपूर कोशिश करने लगा पर कोई फायदा नहीं हुआ, क्योंकि उनके हाथों ने कुछ ज्यादा ही कस कर मेरी दोनों कलाइयाँ जकड़ रखी थीं! अब उन्होंने अपने होठों को गोल बनाया और मेरे होठों को चूमना शुरू किया, लेकिन मैंने अपनी गर्दन इधर-उधर झटकनी शुरू की जिस कारन वो मुझे चूम नहीं पाईं! तभी मेरी नजर वरुण पर पड़ी जो बड़े चैन से सो रहा था, अब अगर मैं कोई आवाज करता तो वो जाग जाता और अपनी माँ को और मुझे ऐसे देख पता नहीं क्या करता! इसलिए मैं चुप-चाप भाभी का विरोध करने लगा|

चलिए आप सब के लिए रसिका भाभी के जिस्म का वर्णन कुछ चित्रों द्वारा कर देता हूँ!


नयन


होंठ


वक्ष (साइड व्यू)


वक्ष (सम्पूर्ण दर्शन)




बुर दर्शन


गांड दर्शन


रसिका भाभी (सम्पूर्ण जिस्म के दर्शन)


ये दृश्य देखने अथवा पढ़ने में जितना आनंददायी है उतना मेरे लिए नहीं था! एक अजीब सी बेबसी महसूस हो रही थी, किसी तरह मैंने अपने आँसुओं को बहने से रोक रखा था! अगर भाभी मेरे आँसूँ देख लेती तो मुझे बेबस समझ अपने नपाक इरादे में कामयाब हो जाती| आँसुओं का क्या मोल होता है ये उस समय समझ पाया! ख़ुशी में जब ये अश्रु बहते हैं तो व्यक्ति की ख़ुशी व्यक्त करते हैं, परन्तु जब दुःख/बेबसी में बहते हैं तो व्यक्ति की कमजोरी उसके असहाय होने की दशा व्यक्त करते हैं! फिर पुरुषों का तो वैसे भी रोना उनकी कमजोरी दर्शाता है! ये कैसा समाज है, जहाँ एक इंसान रो भी नहीं सकता? सुनने में थोड़ा अजीब लगता है, परन्तु दुनिया में पुरुषों के साथ भी जबरदस्ती की जाती है और वो तो ये बात किसी से कह भी नहीं सकते, क्योंकि साला कोई विश्वास ही नहीं करता?!

खैर इधर अपने मन और तन की जंग लड़ रहा मैं किसी तरह मोर्चा संभाले हुए था और खुद को रसिका भाभी के चुम्बनों से बचा रहा था| परन्तु मेरा लंड जिसे अपने ऊपर भाभी की चूत की गर्मी मिल रही थी, वो उस गर्मी से बेहाल अपनी ताकत दिखाने को फड़फड़ा रहा था| अब उस में तो दिमाग था नहीं जो सही-गलत समझता वो तो बस गर्मी महसूस कर रहा था! रसिका भाभी को भी अपनी नंगी छूट पर मेरे पजामे के ऊपर से मेरे लंड की गर्मी मिल रही थी और मेरे पजामे में बने तम्बू पर वो अपनी छूट रख कर रगड़ने लगी थीं और बार-बार अपनी छूट मेरे लंड पर दबा रही थीं;

रसिका भाभी: हाय मानु जी! देख लिहो आपन लंड का, ऊ कितना प्यासा बा! तब से हमार बुर संगे छेड़खानी करत बा|

रसिका भाभी ने मुझे अपने कामजाल में फँसाने के लिए धीमी आवाज में कहा|

मैं: कभी नहीं! हटो मुझ पर से|

मैंने धीमी आवाज में कहा और छटपटाने लगा|

रसिका भाभी: बड़े जालिम हो! और स्वार्थी भी!

रसिका भाभी ने मेरे दोनों हाथ खोलने चाहे ताकि वो मेरे और नजदीक आ कर मेरे होंठ चूम सकें! मेरे आँसूँ अब अंगारे बन गए थे, जिसका कारन था भौजी से मेरा प्यार| यही वो समय था जब प्यार वासना पर भारी पड़ने वाला था| मैंने गुस्से में दाँत पीसते हुए धीमी आवाज में रसिका भाभी से कहा;

मैं: हटो मुझ पर से और छोडो मेरा हाथ!

पर उस कुलटा पर तो वासना हावी थी, उसकी प्यास अब हवस में तब्दील हो चुकी थी;

रसिका भाभी: ऐसे-कैसे छोड़ देइ! अब तक तीन बार तोहार थप्पड़ खाई चुकें हैं, ई का बदला तो हम तोहसे लेके रहब! वैसे एक बात तो कहेक पड़े, ससुर जान बहुत है तुम मा, पर अपनी ई ताक़त हमें चोदे मा निकालो ना की थापीडियाने में!

रसिका भाभी ने मुझे घूरते हुए कहा| उनका मुझे घूरना ये दर्शाता था की आज तो वो मुझे भोग कर ही रहेंगी, लेकिन वो नहीं जानती थीं की उनके इस डायलॉग बाजी में उनकी पकड़ कुछ ढीली हो गई जिसका मैंने भरपूर फायदा उठाया|

मैं: बहुत हो गया अब...आअह्ह्ह्ह्ह्ह!!

मैंने अपनी पूरी ताकत लगाईं और अपना सीधा हाथ घुमाया जिससे उनके हाथों से मेरी कलाई छूट गई| मैंने जोर लगा कर अपने बाईं तरफ धकेला जिससे वो धड़ाम से नीचे गिरीं! मैं फ़ौरन उठ खड़ा हुआ और वरुण के पास जा खड़ा हुआ| मैंने तुरंत नीचे पड़ी चादर उठाई और भाभी के मुँह पर फेंक के मारी|

मैं: भाभी बहुत हो गया! अब आप मेरे नजदीक आये तो कहे देता हूँ आपके लिए बहुत बुरा होगा! अब इस चादर से खुद को ढको और चुप-चाप वहीं पड़े रहो!

मैंने बहुत गुस्से में कहा| ये गुस्सा पहले के गुस्से से अलग था, पहले मैं अपने मा-पिताजी के संस्कारों में बंध कर उन्हें अपना गुस्सा दिखता था और अपने गुस्से से डराता था| लेकिन इस समय मेरा गुस्सा उस इंसान के भाँती था जो डर-सहम के एक कोने से भीड़ चूका है, उसके पास अब और पीछे जाने को जगह नहीं है और अब वो खुद को बचाने के लिए सिर्फ हमला ही करेगा| इधर मेरी आवाज में दृढ़ता देख भाभी समझ गईं की जिस मेमने को वो डरा कर भोगना चाहती थीं वो अब अपना सीना चौड़ा कर के मुक़ाबला करने को तैयार है, इसलिए उन्होंने अब त्रियाचरित्र अपनाने की सोची!

रसिका भाभी: काहे ढकूँ?

उन्होंने अपने नंगे जिस्म पर इतराते हुए कहा| हलकी चांदनी में उनका गोरा बदन चमक रहा था, पर मेरे मन पर उनके जिस्म का जादू न चल सका|

मैं: क्योंकि मुझे नहीं देखना आपको इस तरह!

मैंने फिर गुस्से में कहा|

रसिका भाभी: तो तुम आपन आखियाँ बंद कर लिहो! खुद तो कभी आपन लंड दिखातियो नहीं, और जब हम आपन बुर दिखाइत है तो ऊ भी तोह से देखत नहीं जात!

उनके मुँह से लंड-बुर जैसे शब्द सुन मेरे अंदर का गुस्सा और भड़कने लगा|

मैं: मुझे क्या अपने जितना गिरा हुआ समझा है?!

मैंने फिर गुस्से में कहा|

मेरा जवाब सुन वो फिर से मुस्कुराने लगीं|

रसिका भाभी: अच्छा ई बताओ, हमसे काहे दूर भागत हो? अइसन लागत है जैसे हमसे नफरत करत हो! हम तोहसे का माँगें हैं, एहि न की हमार प्यास बुझाई दिहो, तोहसे कउनो जायदाद तो नहीं माँगें हैं? जिस तरह तुम हमसे भागत हो, हमका लागत है की तुम अभी तक कुंवारे हो! कुंवारा मतलब जानत हो न? आज तक कउनो बुर चोदे हो?

मैं: छी! कितने गंदे हो आप! जो आप चाहते हो वो मैं कभी नहीं करूँगा, क्योंकि मैं आपसे प्यार नहीं करता! मैं ये सब उसी के साथ करूँगा जिससे मैं प्यार करता हूँ|

मैंने भौजी को याद करते हुए कहा|

रसिका भाभी: पर हम तो तोहसे प्यार करित है|

रसिका भाभी तपाक से बोलीं, पर मैं उनकी असलियत जान गया था|

मैं: सिर्फ अपने काम के लिए प्यार करने का दिखावा करते हो, बस उस नीचे वाले मुँह में कुछ डालने के लिए ये सब कर रहे हो!

मैंने बेधड़क कहा तो रसिका भाभी की आँखें खुल की खुली रह गईं! वो सोच रहीं थीं की इस मेमने को वो जैसा चाहे इस्तेमाल कर लेंगी, पर ये मेमना तो अक्ल वाला निकला!

रसिका भाभी: हाय! तुम उतने भी ना समझ नहीं जितना बनत हो|

रसिका भाभी ने मुँह टेढ़ा करते हुए कहा|

मैं पैर पटकता हुआ अपने कमरे में जा के चारपाई पर बैठ गया और सर झुका के सोचने लगा| इतने में भाभी उठ के मेरे सामने नंगी खड़ी हो गईं| चौखट पर अपना बायाँ कन्धा टिका, दाएँ हाथ को अपनी बाहर को निकली कमर पर रख वो मुझे प्यासी नजरों से देखने लगीं| मैं समझ गया था की अब ये अपने जिस्म का लोभ दे कर मुझे बरगलाने की कोशिश करेंगी पर मुझ पर इनकी एक न चलने वाली थी! आज भले ही खुद की इज्जत बचाने के लिए मुझे इनका खून करना पड़े, कर दूँगा लेकिन इनके हाथ नहीं आऊँगा! ये सोच कर मैंने गुस्से से उन्हीं देखा तो पाया वो अपने होठों पर जीभ फेर रहीं हैं, उनकी गांड का उभार साफ़ दिख रहा है, उनके चूचे आगे की ओर निकले हुए मुझे अपने पास बुलाने के लिए मानो कोई सम्मोहन क्रिया कर रहे हों! पर वो क्या जाने की ये आँखें किसी और से प्यार करती हैं, ऐसा प्यार की उसके लिए आज मरने मारने को उतारू था!

मैंने मुँह फेरा और फिर अपना तौलिया उठा के उनकी बगल से होता हुआ बाहर आंगन में आ गया| आज उन्होंने मुझे रोकने की जरा भी कोशिश नहीं की, बल्कि पूछने लगीं;

रसिका भाभी: तौलिया लेके कहाँ जात हो?

मैं कुछ नहीं बोला पर मुझे स्नान घर की ओर जाता देख वो समझ गईं की मैं कहाँ जा रहा हूँ|

रसिका भाभी: इतनी रात को नहाइओ तो ठण्ड लग जाई, पानी बहुत ठंडा है! मान जाओ!!!

रसिका भाभी मुझे समझाते हुए बोलीं पर मैं अब भी कुछ नहीं बोला और स्नान घर में घुस गया| स्नान घर में दिवार करीब चारफूट ऊँची है| तो जब कोई खड़ा हो के नहाता है तो गर्दन से ऊपर का भाग साफ़ दिखाई देता है| छत उसकी है नहीं, तो मैं उसी दिवार की आड़ लेके नहा ने लगा| मैंने अपनी टी-शर्ट उतारी, फिर पजामा उतारा और आखिर में अपना कच्छा भी उतार के उसी दिवार पर रख दिया| जैसे ही मैंने पहला लोटा पानी का डाला तो मेरी कँपकँपी छूट गई! बर्फ सा ठंडा पानी जिस्म पर पड़ते ही सारे रोंगटे खड़े हो गए थे| मैंने साबुन लगा के रगड़-रगड़ के नहाना शुरू किया, मुझे इस तरह साबुन लगता देख रसिका भाभी ने टोका;

रसिका भाभी: अब कौन सी माटी में खेल के आये हो जो इतना रगड़-रगड़ के नहात हो?

मैं: आपकी वजह से नहाना पड़ रहा है|

मैंने गुस्से में कहा|

रसिका भाभी: हम का किहिन?

रसिका भाभी हैरान होते हुए बोलीं|

मैं: जब-जब आप मुझे छूते हो तो आपकी बू मेरे शरीर में बस जाती है, उसी बू को छुड़ाने के लिए मैं इतना रगड़-रगड़ के नहा रहा हूँ|

मैंने गुस्से में कहा तो रसिका भाभी आँखें फाड़े गुस्से में मुझे देखने लगीं;

रसिका भाभी: हाय दैया! हम इतनी बड़ी अछूत हैं? अगर हमार महक इतना ही गंधात है तो जब हम खाना बनाये के देइत है तो काहे ढकेल लेट हो?

रसिका भाभी मुझे ताना मरते हुए बोलीं|

मैं: हुँह!! पिछले दो दिनों से मैंने आप के हाथ का बना कुछ भी नहीं खाया|

मैंने अपने जिस्म पर साबुन रगड़ते हुए कहा|

रसिका भाभी: तो जो खाना हम परोस के देइत है उसे बहाय डेट हो?

रसिका भाभी ने हैरान होते हुए पुछा|

मैं: मैं अन्न की इज्जत करता हूँ, जो अन्न आप मुझे परोस के देते हो उसे मैं आपके ही सपूत वरुण को खिला देता हूँ|

अब ये सुन कर उन्हीं बहुत मिर्ची लगी और जो जलन उनके सीने में थी वो बाहर आ ही गई;

रसिका भाभी: तो ई बताओ की आपन भौजी के संगे जो चिपके रहत हो, तो उनकी महक नहीं बस जाती तोहार नाक में?

रसिका भाभी ने मुँह टेढ़ा करते हुए कहा|

मैं: उनके मन में मेरे लिए वासना नहीं है, प्यार है, इज्जत है|

ये सुन कर उनकी जल गई और वो ताना मारते हुए बोलीं;

रसिका भाभी: हाँ भाई हमरे मन मा तो बस वासना ही भरी है!

इतना कहके उन्होंने फिर से अपनी ओछी हरकत की| वो मेरे सामने अपनी टांगें खोल के उकड़ूँ होक बैठ गईं और अपनी झांटों वाली चूत मुझे दिखाते हुए उस में ऊँगली करने लगी| ये देख कर मुझे बहुत घिन्न आई और मैंने अपना मुँह फेर लिया| कुछ पल बाद मैंने जब कनखी नजरों से उन्हें देखा तो पाया वो अब भी मेरी ओर देख के हस्त मैथुन कर रहीं थी| मैं उन पर ध्यान नहीं देना चाहता था, पर वो जान-बुझ के मेरा ध्यान खींचने के लिए अपने मुँह से सिसकारियाँ निकाल रहीं थी जिससे मेरा ध्यान भंग हो रहा था| मैंने जल्दी से अपना नहाना खत्म किया और नए कपडे पहन के (कुरता-पजामा) बहार आ गया, जैसे ही मैं बाहर आया तो देखा सामने जमीन पर भाभी की चूत से जो पानी निकला था वो जमीन पर फैला हुआ है! मैं नाक सिकोड़ के छत पर भाग गया, जो कुछ अभी हुआ था उससे ये बात तो साफ़ थी की मैं नीचे नहीं सो सकता वरना ये सुबह तक मुझे नोच खायेगी| मैं छत के सबसे दूर वाले कोने के पेरापेट दिवार से पीठ लगा के बैठ गया| ठंडे पानी से नहाने के कारन मुझे बहुत जोर से ठण्ड लग रही थी और मैं बुरी तरह काँप रहा था|

करीब एक घंटे बाद मैंने छत से नीचे आँगन में झाँका तो देखा भाभी चारपाई पर ब्लाउज और पेटीकोट पहने लेटी हुई हैं| मैं वापस अपनी जगह बैठ गया और उम्मीद करने लगा की अब सुबह होगी...अब सुबह होगी... और ऐसे करते-करते सुबह हो ही गई| सारी रात आँख खोले जागता रहा और जैसे ही सूरज की किरण मेरे ठन्डे पड़ चुके जिस्म पर पड़ी तो दिल ने कुछ रहत की साँस ली| लेकिन अब ठंड मेरे जिस्म पर असर दिखाने लगी थी, मेरा गाला कुछ भारी हो गया था और नाक भी बंद हो गई थी! बस भौजी से मिलने का जोश था जो मुझे बाँधे हुए था!

मैंने उठ के छत से नीचे आँगन में झाँका तो देखा भाभी उठ के चाय बनाने जा चुकीं थी| मैं उठा और नीचे आके ब्रश किया, कपडे बदले, नहा तो मैं रात को ही चूका था और ऊपर से ठण्ड इतनी लग रही थी की पानी छूने का मन नहीं कर रहा था| तैयार हो कर मैं रसोई के पास आया तो बड़के दादा नाश्ता कर रहे थे| उन्होंने मुझे भी नाश्ता करने को कहा पर मैं भला भाभी के हाथ का बना कुछ भी कैसे खा सकता था? मैंने ये कह के बात टाल दी की आज मैं फ़ाक़ा करूँगा| मैं बिना कुछ और बोले खेत चला गया और कटाई चालु कर दी| करीब आधे घंटे बाद बड़के दादा भी आ गए और मुझसे कुछ दूरी पर बैठ कटाई करने लगे| आज मैं बहुत खुश था, ढाई दिन की जुदाई के बाद आज मेरा प्यार जो वापस लौटने वाला था! फसल काटते हुए मैं खुली आँखों से हसीन सपने सजोने में लगा था| भौजी से मिलने की ख़ुशी इतनी थी की कल रात का सारा वाक्य भूल गया था, न भूख लग रही थी न ही प्यास! इस मिलने के एक एहसास ने मेरे अंदर एक नई ताकत फूँक दी थी, मन कर रहा था की अकेला ही सारा खेत काट डालूँ! इसी ख्याल से मैंने अपनी बची-कुचि ताकत झोंक दी और दोपहर तक मैं बिना रुके पूरे जोश से लगा रहा| बड़के दादा मेरा ये जोश देख के हैरान थे और बहुत खुश भी थे|

कुछ देर बाद रसिका भाभी भी आ गईं और वो भी हाथ बटाने लगीं| मैंने उन पर जरा भी ध्यान नहीं दिया और अपने काम में लगा रहा| आज मेरे चेहरे पर एक अलग ही मनुस्कान तैर रही थी, इतना खुश तो मैं तब भी नहीं हुआ था जब मैं भौजी से मिलने गाँव आया था| इधर रसिका भाभी हैरान दिख रहीं थी की आज मैं भला इतना खुश क्यों हूँ? खेर दोपहर के भोजन का समय हुआ तो हम वापस घर लौटे, बड़के दादा तो हाथ-मुँह धो कर खाना खाने बैठ गए पर मैं ख़ुशी से चहकते हुए इधर से उधर चक्कर लगाने लगा| मेरी नजरें सड़क पर बिछी हुई थीं और मैं बड़ी बेसब्री से भौजी के आने का रास्ता देख रहा था| बड़के दादा ने भोजन के लिए कहा पर मैंने अनसुना कर दिया और वहाँ से निकल कर चौक पर आ गया और वहाँ खड़ा हो कर उनके घर की तरफ देखने लगा| आधे घंटे तक मैं उस रास्ते को घूरता रहा पर वहाँ से कोई गुजरा ही नहीं! सुबह से की गई खाली पेट म्हणत अब जिस्म को कष्ट देने लगी थी, मेरा बदन दर्द करने लगा था पर दिल जिस्म की शिकायतों को अनसुना कर रहा था! जब घडी में तीन बजे तो मैं निराश खेतों में लौट आया, बड़के दादा मुझसे पहले ही पहुँच कर काम शुरू कर चुके थे| दिल अब हार मानने लगा था, शायद सासु जी और ससुर जी ने भौजी को रोक लिया होगा| ये सोच कर मेरा मन मायूस हो गया, पर दिल के कहीं एक कोने में अब भी उम्मीद थी जो कह रही थी की थोड़ा सब्र कर भौजी शाम तक जर्रूर लौट आएँगी|

मैं बड़े बेमन से खेत में काम करने लगा, मेरी ये बुझी हुई सूरत बड़के दादा से छुप न पाई और उन्होंने पूछ ही लिया;

बड़के दादा: अरे मुन्ना का बात है? भोर में तो तुम बहुत जोश से काम करत रहेओ, हमका लागत रहा की तुम्हीं सारा खेत काट डलिहो| पर अब देखो न कछु खाये हो और अब तो तोहार चेहराओ मुरझाई गवा है!

मैं: जी सुबह-सुबह फूर्ति ज्यादा होती है और अभी थोड़ा थकावट लग रही है|

मैंने बड़के दादा की खाना न खाने वाली बात का जवाब नहीं दिया|

बड़के दादा: तो अइसन करो, जाइके खाब खाये लिहो और आराम कर लिहो!

मेरा मन बिलकुल उचाट हो गया था इसलिए मैंने उनकी बात मान ली|

मैं: जी ठीक है|

जैसे ही मैं उठ के घर जाने लगा की तभी बड़के दादा के फ़ोन की घंटी बज उठी| ये फ़ोन पिताजी ने किया था, पिताजी से बात होने के बाद बड़के दादा ने बताया की माँ, पिताजी और बड़की अम्मा कुछ दिन और रुकेंगे, लेकिन बड़की अम्मा कल लौट आएँगी| अम्मा के लौटने की बात सुन कर मुझे थोड़ा ख़ुशी हुई, उनके आने से कम से कम उनके हाथ का बना खाना तो खा पाऊँगा! खेर मैं बहुत थक चूका था और कल रात से मानसिक और शारीरिक तौर पर पीड़ित था!

मैं खेत से घर आ रहा था, तो रास्ते में मुझे माधुरी खड़ी दिखी| उसे देख कर ऐसा लगा जैसे वो मेरा ही इन्तेजार कर रही हो| उसकी शक्ल देखते ही मुझे भौजी की बताई सारी बात याद आ गई, मैं उसकी तरफ बढ़ा ही नहीं बल्कि उससे कुछ दस कदम दूर ही रुक गया| दो सेकंड बाद वो ही चल के मेरे पास आई और बोली;

माधुरी: मानु जी....

उसके मुँह से अपना नाम सुनते ही मेरा चेहरा फीका पड़ गया, मैं मन ही मन बुदबुदाया; 'एक तू ही बची थी, तू भी ले ले मुझसे मजे!'

मैं: बोल

मैंने उसकी बात काटते हुए उखड़ी हुई आवाज में कहा|

माधुरी: आपकी तबियत ठीक नहीं लग रही|

माधुरी मेरा गला भारी होने से आवाज में आये बदलाव को भांपते हुए बोली|

मैं: वो सब छोड़, तू बता क्या चाहिए तुझे?

मैंने अपने उखड़े अंदाज में ही कहा|

माधुरी: आप बड़े रूखे तरीके से बात कर रहे हो|

माधुरी शिकायत करते हुए बोली|

मैं: देख मुझ में इतनी ताकत नहीं है की मैं तुझसे यहाँ खड़े रह के बात करूँ| तू साफ़-साफ़ ये बता की तुझे क्या चाहिए?

मुझे उससे बात करने में जरा भी दिलचप्सी नहीं थी, मेरे लिए तो वो मेरे घर जाने के रास्ते में एक बाधा थी| मुझे में इतनी ताक़त नहीं थी की मैं घूम कर घर जाऊँ, इसलिए मजबूरन मुझे उसके मुँह लगना पड़ रहा था|

माधुरी: वो.... मेरे पिताजी ने जो लड़का पसंद किया है वो 'अम्बाले' का है| लड़के वाले इस गाँव तक बरात लेके नहीं आ सकते क्योंकि पंचायत वाला किस्सा.....तो आप जानते ही हो| तो पिताजी ने ये ये तय किया है की शादी अम्बाला में मेरे मामा के घर पर ही होगी|

माधुरी ने डरते-डरते कहा|

मैं: तो?

मैंने मुँह बिदकते हुए कहा|

माधुरी: हमें कल ही निकलना है....और जाने से पहले मैं चाहती हूँ की एक बार आप अगर....

इतना कहते हुए वो रुक गई!

[color=rgb(40,]जारी रहेगा भाग - 6 में...[/color]
 

[color=rgb(184,]चौदहवाँ अध्याय: तन की आग[/color]
[color=rgb(41,]भाग -6[/color]


[color=rgb(0,]अब तक आपने पढ़ा:[/color]

माधुरी: वो.... मेरे पिताजी ने जो लड़का पसंद किया है वो 'अम्बाले' का है| लड़के वाले इस गाँव तक बरात लेके नहीं आ सकते क्योंकि पंचायत वाला किस्सा.....तो आप जानते ही हो| तो पिताजी ने ये ये तय किया है की शादी अम्बाला में मेरे मामा के घर पर ही होगी|
माधुरी ने डरते-डरते कहा|
मैं: तो?
मैंने मुँह बिदकते हुए कहा|
माधुरी: हमें कल ही निकलना है....और जाने से पहले मैं चाहती हूँ की एक बार आप अगर....
इतना कहते हुए वो रुक गई!

[color=rgb(243,]अब आगे:[/color]

उसका यूँ सस्पेंस बढ़ाते हुए चुप हो जाने से मैं झुंझुलागया और गुस्से में उस पर चीखा;

मैं: अगर क्या?

मेरा गुस्सा देख माधुरी डर गई और डरते-डरते बोली;

माधुरी: एक आखरी ...बार....मेरे साथ सेक्स कर लें तो.....

ये कहते हुए उसकी नजर झुक गई!

मैं: तेरा दिमाग ख़राब है क्या? तेरी शादी होने वाली है और तेरे अंदर अब भी सेक्स का कीड़ा कुलबुला रहा है! तुझ जैसी गिरी हुई लड़की मैंने आज तक नहीं देखि|

मैंने अपने खराब गले से उसे डाँटते हुए कहा| पर इस सनकी लड़की पर भी वही सेक्स का भूत चढ़ा हुआ था जो रसिका भाभी पर चढ़ा हुआ था|

माधुरी: उस दिन आपने बड़े rough तरीके से किया था... तो इस बार....

माधुरी ने शिकायत करते हुए कहा, पर मेरे डर के कारन वो अपनी बात पूरी नहीं कर पाई|

मैं: तूने मुझे सेक्स करने के लिए मजबूर किया था और मैं तुझसे कोई प्यार नहीं करता जो तेरे साथ प्यार से सेक्स करता! तब मैं नहीं जानता था की तेरी असलियत क्या है, अगर जानता तो मरते मर जाता पर तुझे कभी हाथ नहीं लगता|

मेरे मुँह से असलियत शब्द सुन कर माधुरी की हवा खिसक गई, लेकिन वो अनजान बनते हुए बोली;

माधुरी: कैसी असलियत?

मैं: ज्यादा बन मत! तू पुराने मास्टर साहब के लड़के को अपने साथ भगा कर ले गई थी ना?

ये सुनते ही उसकी बत्ती गुल हो गई और वो अपनी सफाई देने लगी;

माधुरी: नहीं...वो... वो मुझे भगा के ....

उसका ये हड़बड़ाना जताता था की उसके मन में चोर है और मैं उसकी ये झूठी सफाई सुनने के मूड में नहीं था!

मैं: चुप कर... मैं जानता हूँ कौन किसे भगा के ले गया| तू उस लड़के के साथ उसी के किसी दोस्त के यहाँ ठहरी थी न? इसलिए वो वहाँ वो तेरे साथ कुछ कर नहीं पाया, या शायद वो लड़का साफ़ दिल का होगा|

माधुरी: नहीं...नहीं... आप मुझे गलत समझ रहे हैं!

माधुरी ने अपनी सफाई देनी चाही पर मैंने उसकी एक न चल ने दी और उसकी परम सखी का राज खोल दिया;

मैं: मुझे ये बात तेरी ही सहेली रसिका भाभी ने बताई है! अब कह दे की वो झूठ कह रहीं थीं!

ये सुन कर माधुरी का सर शर्म से झुक गया| उसका ये सर झुकाने ही उसके दोषी होने का प्रमाण था, क्योंकि अगर वो निर्दोष होती तो वो विरोध करती!

मैं: अगर तू उससे इतना ही प्यार करती थी तो तूने उस बिचारे लड़के और उसके बाप को को क्यों फँसाया? क्यों उन्हें बेइज्जत करके गाँव से निकलवा दिया? अगर तू उससे सच्चा प्यार करती तो उससे शादी करती और जैसे मुझसे शादी करने के लिए पंचायत में बोल पड़ी थी वैसे ही अपनी जिद्द पर अड़ जाती?! उस दिन जब मैं बीमार था और तू मुझसे मिलने आई थी, तब तूने जो कुछ कहा उसे सुन के एक पल के लिए मुझे विश्वास हो गया था की तू मुझसे सच में प्यार करती है| पर जब मुझे तेरी सारी असलियत पता चली तो मुझे एहसास हुआ की तू मुझसे कोई प्यार-व्यार नहीं करती, तुझे तो बस शहरी लड़कों का चस्का है! जो आग उस लड़के से नहीं बुझी उसे बुझाने के लिए तू मेरे पास आ गई!

मेरी कड़वी बात सुन माधुरी की आँखों में आँसूँ आ गए| लेकिन कहते हैं न की भागते भूत की लंगोटी भली, तो माधुरी ने अपनी इज्जत बचाने के लिए अपना आखरी दाँव फेंका;

माधुरी: पर मैंने आपको अपना कुंवारापन सौंपा था!

उसने मुझे अपने कुंवारेपन का वास्ता दिया पर मेरे सामने तो उसकी सारी सच्चाई थी;

मैं: वो इसलिए क्योंकि तू मुझे अपने जिस्म का लोभ दे कर पाना चाहती थी! खा भगवान कसम और कह दे की मैं गलत हूँ?

ये सुन कर माधुरी खामोश हो गई और फिर से सर झुका कर रोने लगी|

मैं: तेरे लिए प्यार की परिभाषा सिर्फ सेक्स है, पर मेरे लिए प्यार की परिभाषा शादी करके साथ रहना है| सच तो ये है की तूने कभी किसी से सच्चा प्यार किया ही नहीं, अगर करती तो तुझे पता चलता की प्यार किसे कहते हैं? लोग उसके लिए कितना तड़पते हैं, कितना दुःख भोगते हैं, जैसे मैंने भोगा था जब मैंने तुझे छुआ था! तेरी जैसी लड़की की बात में आ कर मैं बेवकूफ बना और तेरे साथ ये दुष्कर्म किया, इस बात का गिला मुझे ताउम्र रहेगा!

माधुरी: आप मुझे गलत समझ रहे हो...मैं आपसे बहुत प्यार करती हूँ|

मैं: हुँह! प्यार? तेरे प्यार की हद्द सिर्फ जिस्म तक है, इसीलिए तू आज फिर मुझसे सेक्स करने के लिए यहाँ आई है!

माधुरी के पास कहने के लिए अब कुछ नहीं था और इधर मेरा जिस्म अब जवाब देने लगा था तो मैंने उससे बात खत्म करते हुए कहा;

मैं: खेर मुझे अब तुझसे कोई बात नहीं करनी और ना ही मैं तुझसे दुबारा कभी मिलूँगा| GOODBYE !!!

इतना कहके मैं वहाँ से घर चला आया, मुझे कोई फर्क नहीं पद रहा था की वो रो रही है या हँस रही है! घर आके मैं आंगन में पड़ी चारपाई पर पड़ गया और चादर ओढ़ ली| अब मेरी हालत ख़राब होनेशुरु हो चुकी थी, पेट में चूहे दौड़ रहे थे, बुखार से बदन तपने लगा था, बदन टूट रहा था और खाँसी जुखाम तो पहले से ही तंग कर रहा था| मैंने सुना था की खाली पेट कोई दवाई नहीं लेनी चाहिए पर इस वक़्त हालत ऐसे थे की अगर दवाई न लेता तो मेरी हालत ख़राब हो जाती! अब शहर होता तो मैं खुद किचन में घुस के कुछ बना लेता पर गाँव में तो तो नियम कानून इतने हैं की पूछो मत! मैं जैसे तैसे उठा और बड़े घर जाके अपने कमरे से क्रोसिन निकाली और खाली पेट ही गोली खा ली| मैंने सोचा जो होगा, देखा जायेगा!

बीमारियों को शांत करने के लिए गोली तो खा ली परन्तु पेट का क्या? जैसे-तैसे मैंने पेट को समझाया; 'यार शांत हो जा, शाम को मेरी जानेमन आएगी, वो कुछ स्वाद बनाएंगी तब तेरी भूख मिटेगी!' जानेमन के नाम से पेट ने तो जैसे-तैसे समझौता कर लिया| दवाई का असर हुआ और कुछ समय में मेरी आंख लग गई, जब आँख खुली तो रात के आठ बज रहे थे| आँख खुलते ही मैंने भौजी को ढूँढने के लिए नजरें दौड़ना शुरू किया, पर वो मुझे कहीं नहीं दिखीं! यानी अभी तक भौजी नहीं आईं! हाय! अब मेरा क्या होगा? ये सोचते ही मेरी आँखों से आँसूँ बाह निकले और उनके वापस आने की सारी उम्मीद खत्म हो गई| मेरा दिल टूट के टुकड़े-टुकड़े हो गया था और मुझे खुद पर बहुत गुस्सा आ रहा था की बड़ा आया तीसमारखाँ, लोग अपने पाँव पर कुल्हाड़ी मारते हैं लेकिन मैंने तो पाँव ही कुल्हाड़ी पर दे मारा!

इतने में रसिका भाभी मुझे खाने के लिए उठाने आईं पर मैं तो पहले ही जाग चूका था;

रसिका भाभी: चलो मानु जी, खाना खाई लो!

उनकी वो आवाज मेरे कान में चुभ रही थी, सो मैं गुस्से में बोला;

मैं: मेरा जवाब मालूम है ना? फिर क्यों पूछ रहे हो?

अब ये सुनते ही वो भुनभुना गईं और बोलीं;

रसिका भाभी: नहीं आये वाली तोहार भौजी! कमस-कम पंद्रह दिन बाद आइहैं, तब तक भूखे रहिओ?

उनकी ये बात सुन कर मेरे जिस्म में आग लग गई;

मैं: मैं खाऊँ या न खाऊँ इससे आपको क्या?

मैंने गुस्से में कहा| लेकिन वो पिशाचनी अब भी मेरे जिस्म की भूखी थी, अपने होठों पर जीभ फेरते हुए बोली;

रसिका भाभी: दीदी हमका डांटइहें की हम तोहार ख़याल नहीं रखेन!

उनकी बात सुन मैंने उन्हें आँखें तरेर कर देखा और बोला;

मैं: आपने तो हद्द से ज्यादा ख्याल रखा है! इतना ख्याल रखा की मेरी हालत ख़राब कर दी| आप जाओ यहाँ से और मुझे सोने दो|

ये कह कर मैंने दूसरी तरफ मुँह कर लिया|

रसिका भाभी: मानु जी! मान जाओ तीन दिन से कछु नाहीं खाये हो, हमार गुस्सा खाने पर न निकालो!

रसिका भाभी ने एक आखरी कोशिश करते हुए कहा|

मैं: कह दिया न मुझे नहीं खाना!!

इतना कह मैंने चादर वापस सर पर डाल ली, मेरा रूखा सा जवाब सुन रसिका भाभी पिनक के चली गईं|

अब मुझे रात की चिंता होने लगी थी की मैं आज सोऊँगा कहाँ? अगर आँगन में सोया तो यी फिर कल रात वाली हरकत दोहरायेेंगी और आज तो मुझ में इतनी ताकत भी नहीं की मैं इनका सामना कर सकूँ| तब मैंने एक आईडिया निकाला, मैं उठा और अपने कमरे में सोने के लिए चल दिया| कमरे में पहुँच मैंने दरवाजा बंद करना चाहा लेकिन दरवाजे में अंदर से चिटकनी नहीं थी! मैं गुस्से से झल्ला गया और वापस कमरे में अपनी चारपाई पर बैठ गया| 'बहनचोद! ये क्या चुतियापा है? घर में दरवाजा लगाया पर अंदर से चिटकनी नहीं लगाई?' में गुस्से में बुदबुदाया| लेकिन तभी दिमाग में बिजली कौंधी! जिस चारपाई पर मैं बैठा उसे मैंने दरवाजा बंद कर बिछा दिया जिससे दरवाजा बाहर से खुल ही न सके! मैं चारपाई पर लेट गया तो मेरे वजन से दरवाजा नहीं खुल सकता था, अपनी इस चपलता की तारीफ मैं खुद ही मन ही मन करने लगा| मेरे लेटने के करीब घण्टे भर बाद भाभी आ गईं और मुझे घर के अंदर न पा कर मुझे आवाज मारने लगीं| मैं कुछ नहीं बोला और चुप-चाप पड़ा रहा| आखिर वो मेरे कमरे के पास आईं और दरवाजा खोलने के लिए दरवाजे को धकेला| पर दरवाजा खुला नहीं क्योंकि उसके पीछे मेरी चारपाई जो अडी थी| रसिका भाभी को लगा की मैंने दरवाजा अंदर से बंद कर रखा है, तो उन्होंने कमरे की खिड़की जो दरवाजे के बगल में लगी थी उससे अंदर झाँका तो पाया की मैं चारपाई दरवाजे से अड़ा कर लेटा हुआ हूँ|

रसिका भाभी: हाय राम! बहुत उस्ताद हो?

रसिका भाभी चौंकते हुए बोलीं, पर मैं चुप रहा|

रसिका भाभी: डरात हो की हम आजहो तोहका सताब?

मैं कुछ नहीं बोला बस ऐसा जताया जैसे मैं गहरी नींद में हूँ|

रसिका भाभी: अच्छा बाबा हम वादा करित है की हम आज कछु न करब! अब तो बाहर आई जाओ, हम हियाँ अकेले कैसे सोबे?

मैं समझ गया था की ये बस मुझे उल्लू बना रही है, जैसे ही मैं बाहर गया ये कूद कर मेरे लंड पर चढ़ जाएगी| इसीलिए मैं कुछ नहीं बोला और चुप-चाप पड़ा रहा| लेकिन उस काम पिपासी औरत को कहाँ चैन पड़ता, उसने दरवाजे को कस कर अंदर की तरफ धकेला ताकि दरवाजा खुल जाए| लेकिन मेरे वजन से चारपाई के पाँव मिटटी की जमीन में धंस गए जिससे दरवाजा नहीं खुला| फिर उस पहलवान औरत ने कास कर दरवाजे को धक्का मारा जिससे चारपाई थोड़ा खिसकी और मेरी हवा टाइट हो गई! अगर मैं उठता तो दरवाजा खुल जाता, इसलिए मैं चारपाई अपने दोनों हाथों से पकड़ कर लेटा रहा| मेरी खुशकिस्मती से चारपाई मिटटी की जमीन पर रगड़ खाने से और जमीन में धंस गई और दरवाजा खुल न सका|| जो थोड़ा बहुत खुला था, उसमें से केवल एक हाथ अंदर आ सकता था और केवल एक हाथ से तो वो मुझे कुछ करने से रहीं!

आखिर भाभी हार मान के आँगन में अपनी चारपाई पर लेट गईं| उनके जाने के बाद मेरे दिल को चैन मिला| लेटे-लेटे मैं फिर भौजी को याद करने लगा और मन ही मन उनसे शिकायत करने लगा| रसिका भाभी की कही बात की अब वो 15-20 बाद आएँगी दिमाग में गूंजने लगी और मैं भौजी से किये अपने वादे में फँस गया! अगर वो इतने दिन नहीं आईं तो मैं यहाँ कैसे रहूँगा? 2-3 दिन में माँ-पिताजी आ जायेंगे और उनके कारन मैं रसिका भाभी से तो बच जाऊंगा लेकिन फिर क्या? अकेला रह कर यहाँ करूँगा क्या? ये सब सोचते-सोचते मुझे कब नींद आई और सुबह कब हुई पता ही नहीं चला| सुबह बड़के दादा ने जब दरवाजा पीटा तो मैं चौंक कर जाग गया और दरवाजा खोला| घडी सुबह के साढ़े नौ बजा रही थी और मेरा शरीर बिलकुल जवाब दे चूका था, रत्ती भर भी ताकत नहीं बची थी| बड़के दादा मेरे पास बैठे और मेरे सर पर हाथ फेरा और तब उन्हें पता चला की मुझे बुखार है|

बड़के दादा: मुन्ना तुमका तो बुखार है?

मैं: हाँ दादा....थोड़ा सा है!

बड़के दादा: थोड़ा नाहीं, बहुत है! रात में खाना खाये रहेओ?

मैं; जी वो...नींद आ गई तो सो गया!

बड़के दादा: ई ठीक बात नाहीं! हम अभी तोहार भौजी से कहित है ऊ तोहार लिए कछु बनाई देइ| तब तक तू हियाँ आराम करो!

इतना कह कर वो खेत पर चले गए| उनके जाते ही मैं वापस लेट गया, कुछ देर बाद वरुण मेरे पास आया तो मैंने उसे ये कहके खुद से दूर कर दिया की "बेटा मुझे जुखाम-खाँसी है और अगर आप मेरे पास रहोगे तो आपको भी हो जायेगा|" वो बेचारा बच्चा चुप-चाप बाहर चला गया| ऐसा नहीं है की मैं उससे नफरत करता था, पर मैं नहीं चाहता था की वो मेरी वजह से बीमार पड़ जाए|

अभी मैंने चैन की सांस ली ही थी की, इतने में रसिका भाभी आ गईं;

रसिका भाभी: मानु जी, ई गरमा-गर्म काली मिर्च वाली चाय पी लिहो, तोहार जुखाम-खांसी ठीक हो जाई!

मैं: No Thank You!

मैंने मुँह टेढ़ा कर के कहा और अपने दाहिने हाथ से आँखों को ढक सोने लगा| करीब डेढ़ बजा होगा जब किसी ने मुझे जगाया, ये कोई और नहीं बल्कि बड़की अम्मा थीं| उन्होंने भी मुझे उठाने के लिए जब मेरे माथे पर हाथ फेरा तो उन्हें मेरे बुखार का एहसास हुआ|

बड़की अम्मा: मुन्ना तोहका तो बुखार है?

अम्मा ने चिंतित होते हुए कहा|

मैं: अम्मा.... आप कब आए?

मैंने भारी गले से पुछा|

बड़की अम्मा: कुछ देर भई! पर तुम ई बताओ की ई का हाल बना रखा है? तोहार बड़के दादा तो कहत रहे की मानु ने बहुत किहिस है, अकेले आधा खेत काट डालिस है! हमका लागत है कछु ज्यादा म्हणत कर लिहो है?!

बड़की अम्मा ने मेरी बढ़ाई करते हुए कहा| पर मेरी भूख अब बेकाबू होने लगी थी तो मैंने बात बनाते हुए उनसे कहा;

मैं: अरे नहीं अम्मा! वो तो बस...... खेर एक बात कहूँ अम्मा आज आपके हाथ की अदरक वाली चाय पीने का मन कर रहा है|

मेरी चाय वाली बात सुन वो हैरान हुईं;

बड़की अम्मा: पर मुन्ना ई तो खाने का समय है!

अब खाना तो मैं खाने से रहा तो मैंने चाय पीने की जिद्द की और उसके लिए जो भई बहाना दिमाग में आया सब उन्हें बोल दिया;

मैं: अम्मा आप तो देख ही रहे हो की गाला भारी है, अदरक वाली चाय पियूँगा तो गले को आराम मिलेगा और ताकत भी आएगी| फिर अभी आधा खेत भी तो बाकी है!

मैंने मुस्कुराते हुए कहा| ये मुस्कान जुटाने के लिए मुझे कितनी ताक़त लगानी पड़ी ये बस मैं ही जानता था|

बड़की अम्मा: नहीं मुन्ना, तुम आराम करो! काम होता रही!

अम्मा ने बिलकुल माँ की तरह कहा|

मैं: अम्मा, आप देख ही रहे हो मौसम अचानक से ठंडा हो गया है| अगर बारिश हो गई तो बहुत नुक्सान होगा|

मेरी बात सुन अम्मा मैंने वाली नहीं थीं;

बड़की अम्मा: पर बेटा....

मैंने उनकी बात बीच में ही काट दी, पहले मैंने बड़ी भोली सी सूरत बनाई और बोला;

मैं: अम्मा ... प्लीज!!!

अब अम्मा को प्लीज का मतलब तो नहीं पता था, मेरी भोली सूरत देख कर ही वो पिघल गईं और बोलीं;

बड़की अम्मा: ठीक है मुन्ना, पहले हम तोहरे खातिर चाय बनाये देइत है|

बड़की अम्मा ने मुस्कुराते हुए कहा|

मैं उठा और बड़की अम्मा के पीछे-पीछे रसोई पहुँचा, दरअसल मैं ये पक्का करना चाहता था की चाय अम्मा ही बना रहीं हैं| मैं छप्पर के नीचे तख़्त पर पसर गया लेकिन मेरी नजर रसोई पर थी| अम्मा ने हाथ-मुँह धोया और चाय बनाने घुस गईं| बड़के दादा हाथ-मुँह धो कर खाना खाने बैठे और मुझे खाने के लिए कहा;

बड़के दादा: मुन्ना आओ खाई लिहो!?

मैं: नहीं दादा, खाना खाने से सुस्ती आएगी और मुझे अभी खेतों में काम करना है| वैसे भई अभी मन सिर्फ अम्मा के हाथ की चाय पीने का है, शहर में जब स्कूल के पेपर होते थे तो दिन में मैं मैं सिर्फ माँ की हाथ की चाय ही पीता हूँ, ताकि दिन में नींद ना आये और मैं मन लगा कर पढ़ सकूँ|

बड़के दादा ने बहुत समझाया की मैं घर पर रहूँ और आराम करूँ पर मैं नहीं माना| ये मेरा तरीका था खुद को सजा देने का, क्योंकि मैंने ही बेवकूफी कर भौजी को भेजा था! इधर रसिका भाभी ने मेरी शिाकायत करनी चाही;

रसिका भाभी: बाप्पा, मानु भैया चार दिन से....

इसके आगे वो कुछ बोलतीं उससे पहले ही मैंने बात छेड़ दी;

मैं: अम्मा... माँ और पिताजी कब आ रहे हैं?

बड़की अम्मा: मुन्ना ऊ दोनों प्रानी (प्राणी) परसों आइहैं|

मैं: तो आप अभी अकेले आए हो?

बड़की अम्मा: नाहीं मुन्ना! तोहार मामा का लड़िकवा छोड़ गवा रहा|

इस तरह मैंने अम्मा और दादा को बातों में ऐसा उलझाया की रसिका भाभी को बात शुरू करने का कोई मौका ही नहीं मिला| चाय बनी और चाय पीते समय भई बातें होती रहीं, आखिर मैं और बड़के दादा खेत चल दिए| बड़की अम्मा की चाय ने मुझ में जान फूँक दी थी जो मैंने खेत पहुँच कर कटाई में झौंक दी| शाम होने तक मैंने बड़ी जोर से काम किया, साँझ ढले जब हम घर लौटे तो मेरी हालत नहीं थी की मैं कुछ कर सकूँ| मैं बस अपने कमरे में गया और वहाँ चारपाई पर पसर गया| आज सारा दिन मैंने खुद को बहुत सजा दी थी, बीमार होते हुए भी कटाई जारी रखी थी और अब बस दो घंटे की कटाई बाकी रह गई थी, बाकी सब मैंने और बड़के दादा ने मिलके काट डाला था| चारपाई पर लेटते ही मैं बेसुध होके सो गया, रात में अम्मा और भाभी दोनों उठाने आईं पर मैं कुनमुनाता रहा और खाना खाने के लिए नहीं उठा| सुबह छः बजे मेरी आँख खुली तो मैंने उठने की कोशिश की पर जिस्म में बिलकुल ताकत नहीं थी! मेरी हालत बाद से बदतर हो गई थी! बुखार से बदन तप रहा था, बहुत कमजोरी थी, गले से आवाज नहीं निकल रही थी, खाँसी और बलगम ने गला चोक (choke) कर दिया था अब मूतने जाना था तो उठना तो था ही| जैसे-तैसे कर के सहारा लेते हुए मैं उठ बैठा और स्नानघर तक लड़खड़ाते हुए पहुँच गया, मूत के वापस आ ही रहा था की अम्मा दिखीं;

बड़की अम्मा: अरे मुन्ना तोहार तबियत तो बहुत खराब लागत है? तुम आराम करो हम तोहार बाप्पा से बात करित है!

मैं: अम्मा...कटाई...

मैंने बड़ी मुश्किल से कहा तो अम्मा ने मुझे डाँट दिया;

बड़की अम्मा: कउनो काम-धाम नाहीं कारक है, छुपे-चाप पाहुड रहो नाहीं तो मारब एक अभी!

उनकी इस डाँट को सुन मुझे हँसी आ गई और मुझे हँसता हुआ देख अम्मा भई हँस पड़ीं| दरअसल उन्होंने मुझे डराने के लिए डाँटा था पर मेरी हँसी देख उनका गुस्सा खत्म हो गया| मैं चुप-चाप चारपाई पर पीठ के बल लेट गया और अपने ऊपर एक चादर डाल ली| इधर मेरे दिमाग ने तो भौजी के आने की उम्मीद ही छोड़ दी थी, एक बस दिल था जो अब भी कह रहा था की नहीं तेरा प्यार जर्रूर आएगा| यही सोचते हुए मैंने अपने होश खो दिए, उसके बाद क्या हुआ मुझे कुछ पता नहीं| मेरे होश में आने तक का हाल मुझे बाद में भौजी ने सुनाया, जिसे मैं उनकी मुँह जुबानी बताता हूँ|
 

[color=rgb(65,]पन्द्रहवाँ अध्याय: पत्नी का प्रेम[/color]
[color=rgb(184,]भाग - 1[/color]


[color=rgb(243,]अब तक आपने पढ़ा:[/color]

मैं चुप-चाप चारपाई पर पीठ के बल लेट गया और अपने ऊपर एक चादर डाल ली| इधर मेरे दिमाग ने तो भौजी के आने की उम्मीद ही छोड़ दी थी, एक बस दिल था जो अब भी कह रहा था की नहीं तेरा प्यार जर्रूर आएगा| यही सोचते हुए मैंने अपने होश खो दिए, उसके बाद क्या हुआ मुझे कुछ पता नहीं| मेरे होश में आने तक का हाल मुझे बाद में भौजी ने सुनाया, जिसे मैं उनकी मुँह जुबानी बताता हूँ|

[color=rgb(85,]अब आगे ...[/color]

कुछ देर बाद बड़की अम्मा और बड़के दादा और मुझे कई आवाजें दीं, जब मैंने कोई प्रतिक्रिया नहीं दी तो बड़के दादा बोले; "लड़कवा बहुत थक गवा है, छोटी बहु से कहो की ऊ खाना बनाये फिर थोड़ी देर में आइके हम जगाइठ है और मुन्ना का खाना खिलाइत है! जर्रूरत पड़ी तो फिर डाक्टर के लेइ जाब!" इतना कह के दोनों चले गए|

ठीक दस बजे भौजी घर पहुँची, अपना बैग छप्पर के नीचे रख वो मुझे ढूँढने लगीं| रसिका भाभी, बड़की अम्मा और बड़के दादा सब खेत पर थे| भौजी को लगा की मैं खेत पर हूँगा तो वो नेहा को अपनी ऊँगली पकड़ा कर खेत पहुँची, लेकिन मैं उन्हें वहाँ भी नहीं दिखा! अब वो मेरा नाम तो ले नहीं सकती थीं इसलिए उन्होंने नेहा को आगे कर दिया;

नेहा: आजी...चाचू कहाँ..हैं?

नेहा ने मुँह बनाते हुए कहा क्योंकि उसे भी मुझे पापा कहना अच्छा लगता था न की चाचा! नेहा की आवाज सुन सब जने पीछे पलटे और भौजी को देख बड़की-अम्मा और बड़के दादा खुश हुए पर रसिका भाभी का मुँह टेढ़ा हो गया!

बड़की अम्मा: अरे बहु तू कन्हैया आयो?

बड़की अम्मा ने खड़े होते हुए पुछा|

भौजी: अभी-अभी|

भौजी इतना बोल कर बेचैनी से नेहा के जवाब का इंतजार करने लगीं|

बड़के दादा: ब्याओ निपट गवा ठीक-ठाक?

भौजी: जी

भौजी ने फिर संक्षेप में जवाब दिया| उनकी बेसब्री बढ़ रही थी इसलिए उन्होंने नेहा को फिर से इशारा किया की वो मेरे बारे में पूछे|

नेहा: आजी...चाचू...

अभी वो इतना ही बोली थी की अम्मा ने उसे थोड़ा डाँट दिया;

बड़की अम्मा: का चाचू-चाचू करत है? ऊ हुआँ बड़े घर मा आराम करत है! तोहार माँ के जाये के बाद से ओहि आधा खेत काट डालिस है!

मेरा पता पाते ही भौजी फ़ौरन बड़े घर की तरफ निकल पड़ीं, वो समझ गईं थीं की जर्रूर कुछ गड़बड़ है वरना इतनी सुबह मैं कभी आराम नहीं करता| उनके पीछे-पीछे नेहा भी चल पड़ी, लेकिन भौजी की चाल बहुत तेज थी इसलिए मेरी प्यारी बेटी नेहा पीछे रह गई|

भौजी तेजी से चलते हुए बड़े घर में घुसीं और मेरे कमरे की तरफ आते हुए मुझे पुकारने लगीं; "सुनिए?..........सुनिए?" पर मैंने कोई जवाब नहीं दिया और देता भी कैसे? मैं तो बेहोश पड़ा था! जैसे ही वो कमरे की दहलीज पर पहुचंही उन्होंने मुझे बेसुध पाया, उन्हें लगा की शायद मैं गहरी नींद में हूँगा इसलिए उन्होंने एक बार और पुकारा; "सुनिए!" जब मैं कुछ नहीं बोला तो उन्हें चिंता हुई और वो कमरे के भीतर आईं और मेरे पास बैठ गईं, फिर मुझे जगाने के लिए उन्होंने मेरा हाथ पकड़ा| मेरा हाथ पकड़ते ही उन्हें पता चला की मेरा शरीर बुखार से तप रहा है! बुखार इतना ज्यादा था की उनकी चिंता और भी बढ़ गई, उन्होंने कई बार मुझे हिलाया ताकि मैं उठीं पर मैं बेसुध पड़ा रहा! मेरे न उठने से उनके मन में बुरे-बुरे ख्याल आने लगे, कहीं मेरे प्राण-पखेरू तो नहीं उड़ गए? ये ख्याल आते ही उनके हाथ-पैर फूल गए और उन्होंने बिलख-बिलख कर रोना शुरू कर दिया| इतने में नेहा भी उनका रोना सुन कमरे में आ गई, उस बेचारी बच्ची को कुछ समझ नहीं आया की उसकी माँ क्यों रो रही है और मैं क्यों सो रहा हूँ?! उसे तो बस रोती-मिलखती हुई अपनी माँ दिखी, उसके मन में शायद कुछ गलत होने का ख्याल आया इसलिए उसने भी रोना शुरू कर दिया| अपनी बेटी को रोता हुआ देख भौजी को जोश आया और उन्होंने मेरी टी-शर्ट का कालर पकड़ कर मुझे कस के झिंझोड़ा और चीखते हुए बोली; "नहीं!! आप मेरे साथ ऐसा नहीं कर सकते?! आप मुझे छोड़ कर नहीं जा सकते! .Please.. Talk to me (मुझसे बात करो)!!! Please..!" पर मेरे जिस्म ने कोई प्रतिक्रिया नहीं दी, जिस कारण वो बिलख-बिलख कर रोने लगीं! तभी अचानक उनके दिमाग में बिजली कौंधी, उन्हें नबज़ देखना तो नहीं आता था, इसलिए उन्होंने अपना बायाँ कान लगा के मेरे दिल की धड़कन चेक की, मेरा दिल अब भी उनके लिए धड़क रहा था! वो तुरंत भाग के बाहर आईं और लोटे में पानी लेके लौटीं, उन्होंने पानी की कुछ छींटें मेरे चेहरे पर मारी| पानी की ठंडी-ठंडी बूंदों ने मेरी चेतना को भंग किया और मैं बेहोशी की हालत से बाहर आया| जब आँख खुली तो शुरू-शुरू में सब धुंधला सा दिखा क्योंकि बाहर से आ रही तेज रौशनी आँखों में चुभ रहीं थीं, जिस कारन आँखें ठीक से खुल नहीं रहीं थीं| जब गर्दन घुमा के अध् खुली आँखों से भौजी को देखा तो दिल की धड़कन तेज हो गई! मुझे लगा की मैं कोई सपना तो नहीं देख रहा, जिसमें भौजी मेरे पास बैठीं हैं? फिर रोती हुई नेहा की आवाज सुनी तो होश आया और विश्वास हो गया की ये सपना नहीं है| मेरा मन तो किया की दोनों को कस के गले लगा लूँ, पर शरीर साथ नहीं दे रहा था|

फिर भौजी की सिसकियों की आवाज सुनी और मैंने उन्हें भोयें सिकोड़ कर देखा तो पाया की रोने से उनकी आँखें लाल हो गईं हैं, मुझे समझ में नहीं आया की भला वो रो क्यों रहीं हैं? मेरा गला सुख रहा था इसलिए बड़ी मुश्किल से टूटे-फूटे शब्द बाहर आये; "आप.....रो क्यों......रहे हो?" मेरी धीमी सी आवाज सुनते ही वो टूट गईं और मुझसे लिपट कर फुट-फुट के रोने लगीं| मैंने हाथ उठा कर उनकी पीठ को सहलाया और उन्हें चुप कराया| इतने में नेहा मेरे नजदीक आई और मैंने अपने बाएँ हाथ से आँसूँ पोछे;

भौजी: आपने मेरी जान ही निकाल दी थी!

भौजी अपने आँसूँ पोछते हुए बोलीं|

मैं: क्यों.....

भौजी: आप बेहोश हो गए थे, आपको पता है मैं कितना डर गई थी?

ये कहते हुए उन्होंने मेरा हाथ पकड़ कर अपनी छाती पर रखा और अपने दिल की तेज धड़कन का एहसास मुझे कराया|

मैं: हम्म्म.....

उनकी दिल की धड़कन महसूस कर मुझे चिंता हुई|

भौजी: ये क्या हालत बना ली है आपने? आपका शरीर बुखार से जल रहा है, आँखें सूजी हुई हैं, dark circles हो गए हैं, इतनी कमजोर हो गए हो!

मैं: आप...हो न...

मैंने मुस्कुराते हुए कहा|

भौजी: जब मेरे बिना रह नहीं सकते तो क्यों भेजा आपने मुझे?

भौजी असल बात से अनजान थीं और उन्हें लग रहा था की उनके मायके जाने से मेरा ये हाल हुआ है|

मैं: मैं.... भी यही... सोच रहा था....

मैं चाहता तो उस वक़्त उन्हें सब बता देता, पर नेहा की मौजूदगी में मैंने कुछ कह न सही नहीं लगा| इधर मुझे बोलने में बहुत दिक्कत हो रही थी तो भौजी ने पहले मुझे पानी पिलाया|

भौजी: पहले आप पानी पीओ|

भौजी ने मुझे सहारा दे के बैठाया और पानी पिलाया, पर सच में अब मुझ में वो शक्ति नहीं थी की मैं बैठ पाऊँ इसलिए पानी पी कर मैं पुनः लेट गया| मेरी ये हालत देख एक बार फिर उनकी आँख भर आई और वो बोलीं;

भौजी: अब मैं आपको छोड़के कहीं नहीं जाऊँगी!

इतने में रसिका भाभी आ गईं और भौजी ने उन्हें डाँट लगाते हुए कहा;

भौजी: क्यों री? तूने ध्यान क्यों नहीं रखा इनका? सारा दिन सोती रहती थी क्या?

रसिका भाभी को देखते ही मेरा मुँह फीका पड़ गया और मैंने मुँह फेर लिया| भौजी तुरंत समझ गईं की कुछ तो बात है जो मैं उनसे छुपा रहा हूँ|

भौजी: नेहा को ले जा और इसके कपडे बदल दे, मैं अभी आती हूँ|

रसिका भाभी नेहा को ले कर चलीं गईं और उनके जाते ही भौजी ने अपना सवाल दागा;

भौजी: अब आप बताओ क्या बात है?

मैं एक पल शांत रहा और शब्दों का हैं करने लगा ताकि उन्हें ठीक से सब बता सकूँ, पर भौजी बड़ी अधीर हो गईं थीं;

भौजी: आपको मेरी कसम, मुझसे कुछ मत छुपाना!

मैंने फ़ौरन उन्हें शुरू से आखिर तक सारी बात बता दी| ये सब सुन के भौजी का चेहरा देखने लायक था, गुस्से से उनका चेहरा तमतमाया गया, आँखें गुस्से से लाल हो गईं और उनकी सांसें गुस्से से तेज हो गईं| वो एकदम से मेरे पास से उठीं और बाहर आंगन में जा कर रसिका भाभी को गरज के आवाज लगाई;

भौजी: रसिका!!! रसिका!!! कहाँ मर गई हरामजादी!

शायद भौजी की आवाज रसिका भाभी तक नहीं पहुँची थी|

मैं: आप प्लीज शांत हो जाओ...सीन मत खड़ा करो!

मैंने भौजी को आगाह किया पर वो तो गुस्से से जल रहीं थीं, तो वो मुझ पर ही भड़क गईं;

भौजी: आज मैं इसे नहीं छोडूँगी! रसिका!!! रसिका!!!

भौजी आज इतना गुस्से में थी की सामने वाले को चीर दें और आज उनके गुस्से की बिजली रसिका नाम की बेल पर गिरने वाली थी जिसने उनके प्यारे से घरौंदे को अपने वष में करने की कोशिश की थी!

भौजी: रसिका!!! रसिका!!!

इतने में रसिका भाभी नेहा को लेके आ गईं और जब उन्होंने भौजी को तमतमाया हुआ देखा तो उनकी फ़ट के चार हो गई!

भौजी: तेरी हिम्मत कैसे हुई इनहें छूने की?

भौजी ने गुस्से से घूरते हुए और रसिका भाभी पर जोर से चिल्लते हुए कहा| न जाने कैसे उन्होंने अपने हाथों को रोका हुआ था, वरना मुझे तो लग रहा था की आज वो उन्हीं कहीं जान से ही न मार दें! उधर भौजी का ये रोद्र रूप देख के बेचारी नेहा सहम गई और आके मेरी चारपाई के नीचे छिप गई|

भौजी: ये सिर्फ मेरे हैं और अगर तू इनके आस पास भी भटकी या आँख उठा केभी इन्हें देखा न, तो मैं तेरी चमड़ी उधेड़ दूँगी!!

जिस तरह भौजी ने बिना डरे रसिका भाभी के सामने हमारे रिश्ते को उजागर किया था उससे मैं थोड़ा डर गया था, अगर रसिका भाभी ने जलन के मारे ये बात किसी से कह दी तो क्या होगा?

भौजी: निकल जा यहाँ से!

ये कहते हुए उन्होंने अपनी चप्पल निकाली| रसिका भाभी की सिटी-पित्ती गुल हो गई और वो मोटे-मोटे आँसूँ गिराते हुए वहाँ से चली गईं| उनके जाने के बाद भौजी को एहसास हुआ की उन्होंने गुस्से में हमारे रिश्ते को रसिका भाभी के सामने ला दिया है, अपनी इस गलती का एहसास होते ही वो करीब दो मिनट तक आँगन में सर झुकाये अकेली खड़ी कुछ सोचने लगीं| मुझे ऐसा लगा जैसे वो मन ही मन कुछ निश्चय कर चुकीं हों!

आखिर वो मेरे कमरे में वापस आईं, मैं कुछ नहीं बोला और उन्हें एकटक देखने लगा| "आपका पर्स कहाँ है?" भौजी ने धीमी आवाज में पुछा| मैंने इशारे से उन्हें बताय की दरवाजे के पीछे टंगी पैंट की जेब में है| भौजी ने पहले पिताजी की पैंट उठाई और उसकी जेब में हाथ डाल कर कागज का टुकड़ा निकला, लेकिन वो 500/- का नोट था| "ब्लू वाली) मैं बोलै तो उन्होंने मेरी ब्लू वाली पैंट उठाई और मेरा पर्स निकाल उसमें कुछ ढूँढने लगीं| उन्होंने मेरे पर्स से कागज का एक टुकड़ा निकला और पिताजी की जेब से निकले 500/- मेरे ही पर्स में रख, पर्स मुझे देकर बाहर चलीं गई|

अब मुझे याद आया की मेरी बेटी नेहा चारपाई के नीचे छुपी है, तो मैंने उसे पुकारा और उसे बहार निकलने को बोला| नेहा बाहर आई तो सहमी थी और सिसक रही थी, मैंने उसके आँसूँ पोछे तो उसने अपनी प्यारी सी आवाज में पूछा; "पापा....मम्मी चची को क्यों डाँट रही थी?" मैंने उसे कहा; " बेटा आपकी चाची ने कुछ गलत काम किया, इसलिए उन्हें झाड़ पड़ी| आप घबराओ मत और यहाँ कुर्सी पर बैठो|" मेरी बात सुन उसके चेहरे पर मुस्कान आ गई और उसने मेरी बगल में लेटना चाहा| " बेटा मुझे खाँसी-जुखाम है, इसलिए आप मुझसे थोड़ा दूर रहो नहीं तो आपको भी हो जायेगा?" मैंने नेहा के सर पर हाथ फेरते हुए कहा तो नेहा ने अच्छे बच्चे की तरह मेरी बात मान ली और सामने पड़ी कुर्सी पर पाँव लटका कर बैठ गई और वहीँ से मेरे साथ 'चिड़िया उडी' खेलने लगी|

पाँच मिनट बाद भौजी लौटीं और अब उनका गुस्सा शांत हो गया था लेकिन उन्हें देख कर नेहा फिर डर गई और मेरे पास आके बैठ गई| भौजी कुर्सी पर बैठ गई और मुझसे बोलीं;

भौजी: थोड़ी देर में डॉक्टर साहब आ रहे हैं|

भौजी ने बात शुरू करते हुए कहा| अब मैं समझा की वो मेरे पर्स में डॉक्टर की पर्ची ढूँढ रहीं थी, उसी पर्ची से उन्होंने नंबर लिया और बड़के दादा के मोबाइल से फ़ोन कर के उसे यहाँ बुलाया था|

मैं: ठीक है|

मैंने सर हाँ हिलाते हुए कहा|

भौजी: नेहा आपके हाथ-पैर गंदे कैसे होगये? चलो हाथ-मुँह धोओ और फिर पापा के पास सो जाना तब तक मैं खाना बनाती हूँ|

मैं: नहीं बेटा आप मेरे साथ मत सोना!

मैंने नेहा को प्यार से कहा, लेकिन भौजी को ये बात अच्छी नहीं लगी तो उन्होंने मुझे टोका;

भौजी: क्यों?

मैं: मुझे जुखाम-खाँसी है और मैं नहीं चाहता की नेहा भी बीमार पड़ जाए|

पर भौजी को मेरी बात मजाक लगी और वो बोलीं;

भौजी: कुछ नहीं होगा!

मैं: नहीं!

मैंने उन्हें थोड़ा गुस्सा दिखाते हुए कहा क्योंकि मुझे उनका मेरी बात को हल्के में लेना अच्छा नहीं लगा| भौजी का रसिका भाभी पर गुस्सा अभी तक शांत नहीं हुआ था, पर वो जानती थीं की अगर उन्होंने मुझसे बहस की तो बात और बिगड़ जायेगी, इसलिए वो चुप-चाप खाना बनाने चली गईं| नेहा डर के मारे कहीं नहीं गई और मेरे सामने बैठ के मुझे कंपनी देने लगी और बीच-बीच में अपने प्यारे-प्यारे सवालों से मुझे हंसाने लगी;

नेहा: पापा मैंने न आपको बहुत याद किया!

मैं: बेटा मैंने भी आपको बहुत याद किया, अच्छा ये बताओ वहाँ आपके कौन-कौन दोस्त बने|

नेहा: बस एक ही दोस्त है वहाँ, बड़ी मौसी की लड़की|

मैं: अच्छा? क्या-क्या खाया आपने वहाँ?

नेहा: बरिया-भात खाया और वो...वो...ऐसे गोल-गोल होती है न...वो...

नेहा को उस मिठाई का नाम याद नहीं आ रहा था तो मैंने एक-एक कर उसे नाम गिनाये और आखिर में वो नाम आया;

मैं: जलेबी?

नेहा: हाँ...वही...वो खाई! पर आपने जो उस दिन मिठाई खिलाई थी न...वो...जिसमें दूध जैसा पानी था?

मैं: रास मलाई!

नेहा: हाँ पापा वो मुझे फिरसे खानी है!

मैं: बेटा मैं ठीक हो जाऊँ, फिर हम बजार जा कर खाएंगे!

ये सुन नेहा खुश हो गई और मुस्कुराने लगी, उसकी यही मुस्कान तो देखने को मैं मरा जा रहा था!

नेहा: पापा...वहाँ न मैंने न...थोड़ी मस्ती की!

मैं: अच्छा? क्या किया मेरी बेटी ने?

नेहा: वहाँ न सब को पान दे राहे थे खाने को, तो मैंने न मां के पान में गूलर का फल रख दिया और जैसे ही उन्होंने वो खाया.......तो.....ही..ही..ही..ही..ही...

मैं: हा..हा..हा..हा...

नेहा की बात पूरी भी नहीं हुई थी और हम दोनों बाप-बेटी ने खिल-खिलाकर हँसना शुरू कर दिया| आज इतने दिन बाद मैं इतना हँसा था और मेरी प्यारी बेटी की हँसी मेरे अंदर नै ऊर्जा भर रही थी!

करीब आधे घंटे बाद डॉक्टर साहब आये, उन्हें देखते ही नेहा भौजी को बुलाने चली गई और डॉक्टर साहब मेरे पास कुर्सी पर बैठ गए|

[color=rgb(124,]जारी रहेगा भाग - 2 में...[/color]
 

[color=rgb(65,]पन्द्रहवाँ अध्याय: पत्नी का प्रेम[/color]
[color=rgb(184,]भाग - 2[/color]


[color=rgb(243,]अब तक आपने पढ़ा:[/color]

करीब आधे घंटे बाद डॉक्टर साहब आये, उन्हें देखते ही नेहा भौजी को बुलाने चली गई और डॉक्टर साहब मेरे पास कुर्सी पर बैठ गए|

[color=rgb(147,]अब आगे ...[/color]

डॉक्टर साहब: Hey friend! How are you feeling now?
(और दोस्त कैसे हो?)
मेरे जवाब देने से पहले ही भौजी आ गईं और हक़ जताते हुए मेरे सिरहाने आके बैठ गईं| अब मुझे भी मस्ती सूझी तो मैंने उनकी ओर देखते हुए डॉक्टर साहब की बात का जवाब दिया;

मैं: Well I'm feeling better now, cause I'm in safe hands!
(अच्छा हूँ, क्योंकि अब मैं सुरक्षित हाथों में हूँ|)
ये सुनते ही भौजी के चेहरे पर मुस्कान आ गई! डॉक्टर साहब जिन्हें पहले सिर्फ शक था, अब शायद कुछ-कुछ समझने लगे थे|

डॉक्टर साहब: Oh! Okay your bhabhi told me that you haven't eaten anything since she was gone to her mom's.
(तुम्हारी भाभी ने बताया की जबसे वो अपने मायके गईं तुमने खाना-पीना छोड़ दिया?)
मैंने फिर से भौजी की तरफ देखते हुए कहा;

मैं: Yeah... I was missing her!
(जी हाँ..मैंने बहुत याद किया|)
भौजी एक बार फिर मुस्कुराने लगीं! मेरा ये बदला हुआ रंग शायद इसलिए था क्योंकि आज भौजी ने हमारे रिश्ते का खुलासा रसिका भाभी के सामने किया था या फिर मैं बस मस्ती किये जा रहा था?! इधर भौजी के मुख पर वही प्यारी मुस्कान थी, वो जानती थीं की डॉक्टर साहब हम दोनों पर शक कर रहे हैं तो उन्होंने मेरी बात को संभालते हुए एक नया मोड़ दे दिया;

भौजी: डॉक्टर साहब दरअसल इन्हें नेहा की बहुत याद आई, इनका उसके साथ लगाव इतना है की क्या बताऊँ? वहाँ नेहा का भी यही हाल था, बार बार इनके बारे में पूछती थी और रोने लगती थी की मुझे इनके पास जाना है|

भौजी ने ठीक उस दिन की तरह बात संभाली जब अनिल उन्हीं लेने आया था, साथ ही साथ उन्होंने बड़ी चतुराई से नेहा की आड़ में अपने दिल की बात कह डाली! भौजी की बात सुन कर डॉक्टर साहब का शक कुछ कम हो गया|

डॉक्टर साहब ने अपना आला निकाल कर मुझे चेक करने लगे, साथ ही उन्होंने एक थर्मामीटर मेरी बगल में लगा दिया| इधर मेरे मन में एक अजीब सा विचार आया, एक तरफ तो भौजी खुद रसिका भाभी के सामने हमारे रिश्ते को खुलासा कर दिया और दूसरी तरफ अभी डॉक्टर साहब के सामने मेरी बात को उन्होंने बड़ी सटीकता से संभाला! मेरे मन में आये इस विचार का कारन ये था की जब भौजी ने रसिका भाभी के सामने में हमारे रिश्ते का खुलासा किया तो मैं मन ही मन ये मान चूका था की मेरे ठीक होते ही हम दोनों घर से भाग जायेंगे, जब भागना ही है तो किसी से अपने रिश्ते को छुपा कर क्या फायदा?! पर जब उन्होंने अभी मेरी बात को संभाला उससे मेरे मन का ये ख्याल गलत साबित हो रहा था जिस कारन मेरे मन में वो सवाल पैदा हुआ|

डॉक्टर साहब: बुखार 102 है, जिस कारन तुम्हें इतनी कमजोरी है! मैं तुम्हें एक इंजेक्शन दे रहा हूँ, इससे बुखार कुछ कम होगा और कमजोरी भी कम होगी, पर हाँ जरा चलने फिरने में ध्यान रखना कहीं गिर न जाओ|

मेरे बुखार के बारे में सुनकर भौजी को बहुत चिंता हुई|

भौजी: आप चिंता ना करें डॉक्टर साहब, अब मैं आ गईं हूँ, तो मैं इनका पूरा ध्यान रखूँगी|

भौजी ने मेरी देखभाल की जिम्मेदारी अपने सर ले ली|

डॉक्टर साहब: That's Good! मानु को ठन्डे पानी से नहाने मत देना, ठंडी चीजों का परहेज करना, और ये दवाइयाँ समय पर लेते रहना|

ये कहते हुए उन्होंने दवाई की पर्ची और अपने बैग से कुछ दवाइयां निकाल कर भौजी को दे दी| फिर उन्होंने इंजेक्शन निकाला और उसमें दवाई भरने लगे, इंजेक्शन देख कर आज फिर मेरी फटी! उधर नेहा ने जब इंजेक्टशन देखा तो उसने घबरा कर आँख बंद कर ली| उसकी इस हरकत से हम सारे हँस पड़े|

डॉक्टर साहब: वैसे इस इंजेक्शन से बुखार कम हो जायेगा बाकी काम ये दवाइयाँ कर देंगी, हो सकता है की रात में बुखार चढ़ जाए, ऐसे में आपको (भौजी) को थोड़ा ध्यान रखना होगा| अगर बुखार चढ़ गया तो ठन्डे पानी की पट्टियाँ बदलते रहना और मुझे कल फ़ोन करके जर्रूर बुलाना नहीं तो बिमारी बढ़ जाएगी|

इतना कह कर उन्होंने मेरे कूल्हे में वो इंजेक्शन 'घोंप' दिया और मेरे मुँह से दर्द भरी कराह निकली; "आह!" मेरी आह सुन कर भौजी को मेरे दर्द का एहसास हुआ और वो कहीं रोना न शुरू कर दें इसलिए मैंने अपने चेहरे पर थोड़ी मुस्कराहट चिपका दी, जबकि अंदर ही अंदर वो इंजेक्शन ससुर दर्द कर रहा था!

खैर अब समय था डॉक्टर साहब से अपने सवाल पूछने का;

मैं: अच्छा डॉक्टर साहब एक बात आपसे पूछनी है? आपने तो देखा ही है की मुझे जुखाम-खाँसी है, जो की एक Communicable Disease है और ऐसे में मैं नेहा को खुद से दूर रखना चाहता हूँ, तो इन्हें (भौजी को) बड़ी तकलीफ होती है| मैं कहता हूँ की बच्ची को भी ये बिमारी लग जाएगी तो ये कहतीं हैं की कुछ नहीं होगा| अब आप ही इन्हें (भौजी को) समझाइये!

इस तरह मैंने भौजी की शिकायत की|

डॉक्टर साहब: देखो ये कोई बड़ी बिमारी नहीं है पर फिर भी एक इंसान से दूसरे को बड़ी आसानी से लग जाती है|

डॉक्टर साहब ने भौजी को समझाते हुए कहा, फिर उन्होंने नेहा की तरफ देखा और उसे भी समझाते हुए बोले;

डॉक्टर साहब: जल्द ही आपके चाचा ठीक हो जायेंगे और तब आप उनके साथ खूब खेलना|

ये कहते हुए उन्होंने नेहा के सर पर हाथ फेरा| नेहा को उनका मुझे उसका चाचा कहना ठीक नहीं लगा, इसलिए वो डॉक्टर साहब के पास से उठ खड़ी हुई और भौजी के पीछे आ कर छुप गई| अब समय था डॉक्टर साहब के जाने का इसलिए मैंने मेरे सिरहाने पड़े पर्स से पिताजी वाले 500/- रूपए निकाल के डॉक्टर को दिए, तो भौजी मुझे रोकने लगीं की और बोलीं;

भौजी: आप नहीं, मैं दूँगी!

मैं: क्या फर्क पड़ता है यार|

ये कहते हुए मैंने जिद्द करके पैसे दे दिए, ये देख अब भौजी का मुँह बन गया! डॉक्टर साहब तो चले गए, पर यहाँ मेरे और भौजी में युद्ध का माहोल बन गया| खेर ये घमासान युद्ध नहीं बल्कि एक मीठी सी नोक-झोंक थी, भौजी ने शिकायती लहजे में कहा;

भौजी: आपने पैसे क्यों दिए?

मैं: तो क्या हुआ यार?

मैंने बात को सरलता लेते हुआ कहा|

भौजी: डॉक्टर साहब को मैंने बुलाया था, तो पैसे मुझे देने थे न की आपको?!

भौजी ने मुँह बनाते हुए कहा|

मैं: अरे बाबा, पैसे मैं दूँ या आप बात तो एक ही है|

भौजी: नहीं...आप मुझे कभी भी कुछ नहीं करने देते|

भौजी ने गाल फुलाते हुए कहा|

मैं: अच्छा बाबा, अगली बार आप दे देना|

भौजी: मतलब अगली बार फिर बीमार पड़ोगे?

भौजी तपाक से बोलीं और हम दोनों खिलखिला कर हँस पड़े|

इतने में बड़के दादा आ गए, उनके आते ही भौजी ने फ़ौरन घूंघट कर लिया और उठ कर खड़ी हो गईं| बड़के दादा ने डॉक्टर साहब ने क्या कहा वो पुछा और मैंने उन्हें सब बता दिया| तभी बड़की अम्मा आ गईं और भौजी पर बरस पड़ीं;

बड़की अम्मा: का बड़का? जब रसोई बनी रही तो तोहका का जर्रूरत रही दुबारा बनाये की?

(क्योंकि भौजी सबसे बड़ी बहु थीं तो बड़की अम्मा कभी-कभी उन्हें बड़का कहतीं थीं!) बड़की अम्मा की डाँट सुनते ही भौजी का सर झुक गया तो मुझे उनके बचाव में कूदना पड़ा;

मैं: अम्मा मैंने कहा था, क्या है न की मुझे सिर्फ आपका या इनके (भौजी के) हाथ का खाना ही अच्छा लगता है! भाभी (रसिका) उन्हें नहीं मालूम की मुझे कैसा खाना पसंद हैं, अब आप नहीं थे तो जैसे-तैसे खा लेता था पर आज जब ये आ गईं तो मैंने इन्हें कहा की ये दुबारा खाना बनायें!

मेरी दलील सुन बड़की अम्मा शांत हो गईं और भौजी की जान बच गई! दरअसल रसिका भाभी ने ही बड़की अम्मा को चढ़ाया था की भौजी ने दुबारा खाना बनाया है| जलकुकड़ि कहीं की!

खैर खाने का समय हो गया था तो बड़की अम्मा और बड़के दादा खाना खाने चले गए, उन्होंने तो रसिका भाभी के हाथ का बना हुआ खाना खाया और इधर भोई मेरे लिए अपने हाथ का बना हुआ खाना ले आईं| आज इतने दिनों बाद भौजी के हाथ का खाना खाने को मिलने वाला था, यही सोच कर मेरे पेट के चूहे नाचने लगे थे! भौजी एक थाली में चावल, अरहर दाल और भिंडी की सब्जी परोस कर लाई, खाने की सुगंध जो थोड़ी बहुत सूँघ पाया उससे भूख दुगनी हो गई! भौजी ने मुझे दिवार का सहारा ले कर बिठाया और फिर मेरे नजदीक बैठ कर मुझे अपने हाथ से खिलाने लगीं| भौजी खाने का कौर मेरे मुख तक लाईं ही थीं की मैंने उनसे नेहा के बारे में पुछा;

मैं: नेहा कहाँ है?

मुझे नेहा के बिना खाना खाने की आदत नहीं थी, इसलिए मैंने उसके बारे में पुछा था|

भौजी: वो बाप्पा के पास बैठी खाना खा रही है, अच्छा नहीं लगता की हम सब यहीं बैठ जाएँ और वहां बाप्पा और अम्मा अकेले खाना खाएँ|

मैं उनकी बात समझ गया और आज इतने दिनों बाद प्यार भरा कौर खाया| लेकिन बुखार के चलते मुझे उस स्वादिष्ट खाने का कोई स्वाद नहीं आया| मेरा मुँह बनता देख भौजी बोलीं;

भौजी: बुखार उतर जाएगा तो स्वाद आने लगेगा, तब तक खाना पानी के साथ निगल जाओ!

मैंने सर हाँ में हिला कर खाना शुरू किया, पर पेट को इतने प्यार भरे खाने की आदत नहीं थी सो 6-7 कौर खाते ही पेट भर गया इसलिए मैंने और खाने से मना कर दिया|

भौजी: इस बार छोड़ देती हूँ आपको, रात से पूरा खाना होगा!

भौजी की बात सुन कर मैंने उनके आगे हाथ जोड़ दिए और बोला;

मैं: जो आज्ञा देवी!

ये सुन हम दोनों हँस पड़े| फिर भौजी बचा हुआ खाना खाने लगीं|

मैं: यार मेरा जूठा क्यों खा रहे हो? मैं बीमार हूँ....

भौजी: कुछ नहीं होगा! पति का जूठा खाने का मौका सौभाग्य आती पत्नी को मिलता है!

ये कहते हुए वो बड़े चाव से खाने लगीं| उनकी इस बात ने मेरा मन मोह लिया और मैं कुछ नहीं कह पाया| खाना खा कर भौजी ने मुझे दवाई दी और फिर मुझे लिटा कर चली गईं|

पेट भरा होने के कारन मुझे बड़ी जोरदार नींद आई और फिर मेरी नींद भौजी की पायल की आवाज सुन कर खुली| भौजी चाय ले कर आईं थीं, उन्होंने चाय कुर्सी पर रखी और मुझे उठा कर बिठाया| इतने में बड़के दादा, बड़की अम्मा, नेहा, वरुण और रसिका भाभी भी आ गए और सबजने मुझे घेर कर बैठ गए| मेरे चेहरे की ख़ुशी देख बड़की अम्मा बहुत खुश थीं, शायद वो कुछ-कुछ समझने लगी थीं!

बड़के दादा: मुन्ना वैसे हम बहुत खुश हन, जिस मेहनत से तुम काम किहो हो कोई नाहीं कह सकत की तुम सेहर में पले-बढे हो!

बड़की अम्मा: बहुत ही जुझारू है हमार मुन्ना!

बड़के दादा और बड़की अम्मा मेरे काम की तारीफ करने लगे, जिसे सुन मैं तो शर्मा रहा था परन्तु भौजी गर्व महसूस कर रहीं थीं| फिर अम्मा ने भौजी से शादी की बात शुरू की, अपने समधी-समधन का हाल-पता लिया और इस तरह वहाँ बातों का सिलिसिला शुरू हुआ| इस पूरे दौरान रसिका भाभी चुप-चाप बैठीं भौजी की बनाई हुई चाय सुर्र-सुर्र कर के पीती रहीं! उधर दोनों बच्चे आंगन में बात-बॉल खेल रहे थे, मेरा मन किया की मैं भी उठ कर जा कर उनके साथ खेलूँ पर अभी भी थोड़ी कमजोरी थी|

रात हुई और सब उठ कर रसोई के पास वाले छप्पर के नीचे बैठ गए| भौजी ने दोनों बच्चों को मेरे पास छोड़ दिया और उनसे कहा की मेरा मन बहलायें|

वरुण: चाचा चलो बात-बॉल खेलत हैं!

नेहा: नहीं! तू जानत नाहीं हो की पा....

नेहा पापा बोलने वाली थी पर फिर रुक गई, अब मुझे बात सम्भालनि थी इसलिए मैंने उसकी बात पूरी की;

मैं: बेटा मैं अभी थोड़ा थका हुआ हूँ, एक बार ठीक हो जाऊँ तब हम जम कर खेलेंगे!

वरुण मेरी बात समझ गया और फिर उसने बात छेड़ दी;

वरुण: नेहा तो जब हियाँ नाहीं रही तब चाचा हमका रोज चॉकलेट खिलवत रहे!

ये सुन कर नेहा को उससे जलन हुई और वो ठीक भौजी की तरह मुझे गुस्से से देखने लगी, उसकी जलन स्वाभाविक थी और मुझे उसकी ये जलन देख कर ख़ुशी हो रही थी! अब नेहा को साबित करना था की मैं उसे ज्यादा प्यार करता हूँ ना की वरुण को;

नेहा: हुँह! तोहका तो सिर्फ चॉक्लेट मिली, हमका तो रोज नई-नई कहानी सुने का मिळत है!

अब ये सुन कर तो वरुण को भी ताव आ गया और वो नेहा से बहस करने लगा;

वरुण: चाचा हमका ज्यादा प्यार करत हैं!

नेहा ये सुन कर भुनभुना गई;

नेहा: नाहीं! हमका करत हैं!

वरुण: हमका!

नेहा: हमका!

वरुण: नाहीं हमका!

नेहा: चुप हुई जाओ, नाहीं तो...हम....

ये कह कर वो वरुण को मारने के लिए इधर-उधर देखते हुए कुछ ढूढ़ने लगी! जब कुछ नहीं मिला तो अपनी छोटी सी चप्पल उठा कर उसे डराते हुए बोली;

नेहा: हम...तोहार मुँह तोड़ देब!

नेहा का गुस्सा देख वरुण डर के भाग गया| दरअसल वरुण नेहा से छोटा था और अपने माँ-बाप के झगडे देखते-देखते बहुत ज्यादा डरने लगा था|

मैं: बेटा ऐसा नहीं करते|

मैंने नेहा को समझाते हुए कहा|

नेहा: आप मुझे प्यार करते हो की वरुण को?

नेहा ने आँखों में आँसूँ लिए हुए कहा|

मैं: Awww मेरा बच्चा! आप मेरी बेटी हो न, तो मैं आपको सबसे ज्यादा प्यार करता हूँ|

ये सुन कर नेहा सिसकने लगी और चारपाई पर चढ़ गई और मेरे गले लग गई|

मैं: बस मेरा बच्चा रोना नहीं! पापा है न आपके पास तो रोना क्यों?

नेहा ने रोना बंद किया और मुझसे पुछा;

नेहा: आपने उसे चॉक्लेट क्यों खिलाई?

मैं: बेटा आप जब यहाँ नहीं थे तो मैं बहुत अकेला था, फिर वरुण आ गया और मैं उसके साथ खेलने लगा| आप जानते हो न आपके अजय चाचा और रसिका चाची कितना लड़ते-झगड़ते हैं? उनकी लड़ाई के चलते वरुण बहुत डरा-डरा रहता था, ऐसे में मैंने उसका मन खुश करने के लिए उसे 1-2 बार चॉक्लेट खिला दी| फिर आप ये देख की आप वरुण से बड़े हो, ऐसे में आपका फर्ज बनता है की उसका ख्याल रखो, उसके साथ खेलो-कूदो और उसे अपने छोटे भाई की तरह प्यार करो| आपको उससे मेरे प्यार के लिए कभी मुक़ाबला करने की जर्रूरत नहीं, मैं सबसे ज्यादा आप ही को प्यार करता हूँ और आप ही को प्यार करता रहूँगा| लेकिन वरुण को भी थोड़ा बहुत प्यार मिलना चाहिए न?

ये सुन कर नेहा मेरी बात समझ गई और उसने मेरे सवाल का जवाब हाँ में गर्दन हिला कर दिया|

मैं: तो बेटा जा कर उससे माफ़ी मांगो और उसके साथ प्यार से खेलो|

नेहा ने मेरे चेहरे को अपने छोटे-छोटे हाथों से पकड़ा और मेरे दोनों गालों को चूमा| मैंने भी उसके दोनों गालों को बार-बार चूमा और फिर उसे वरुण को मनाने भेज दिया| 5 मिनट में ही वो वरुण से माफ़ी माँग कर, उसका हाथ पकड़ कर मेरे पास ले आई, उसने वरुण की पीठ थपथपाई और उसे मेरे पास आने को कहा| मैंने वरुण को अभी अपने गले लगाया और उसके दोनों गालों को चूमा| वरुण बहुत खुश था और हम तीनों वहीँ बैठे हँसी-ख़ुशी चिड़िया उडी खेलने लगे|

कुछ देर बाद रात का खाना बना, बड़की अम्मा और बड़के दादा मेरे पास आ गए| भौजी और रसिका भाभी मेरा और बड़के दादा का खाना अपने साथ ले आईं| अब भौजी तो मुझे बड़के दादा के सामने खिला नहीं सकती थीं, इसलिए इस बार मैने खाना अपने हाथ से खाया| वरुण और नेहा दोनों ही बड़के दादा से डरते थे इसलिए वो आंगन में बैठे खाना खाने लगे, इधर कमरे के भीतर मैं और बड़के दादा खाना खाने लगे|

[color=rgb(124,]जारी रहेगा भाग - 3 में... [/color]
 

[color=rgb(65,]पन्द्रहवाँ अध्याय: पत्नी का प्रेम[/color]
[color=rgb(184,]भाग - 3[/color]


[color=rgb(243,]अब तक आपने पढ़ा:[/color]

कुछ देर बाद रात का खाना बना, बड़की अम्मा और बड़के दादा मेरे पास आ गए| भौजी और रसिका भाभी मेरा और बड़के दादा का खाना अपने साथ ले आईं| अब भौजी तो मुझे बड़के दादा के सामने खिला नहीं सकती थीं, इसलिए इस बार मैने खाना अपने हाथ से खाया| वरुण और नेहा दोनों ही बड़के दादा से डरते थे इसलिए वो आंगन में बैठे खाना खाने लगे, इधर कमरे के भीतर मैं और बड़के दादा खाना खाने लगे|

[color=rgb(147,]अब आगे ...[/color]

बड़के दादा: मुन्ना तोहार छुटका भौजी बतावत रहीं की जब से बड़का गईस है, तुम खाना नाहीं खात रहेओ?

बड़के दादा की बात सुन भौजी का खून खौल गया, इधर मुझे भी बहुत गुस्सा आया और खाते हुए रुक गया|

मैं: दादा...वो...नेहा से मेरा लगाव कुछ ज्यादा ही है!

मैं जानता था की सिर्फ नेहा का बहाना देने से मैं उनके सवालों से नहीं बच पाऊँगा, इसलिए मैंने भौजी की तरफ इशारा करते हुए कहा;

मैं: फिर यहाँ इनके (भौजी) आलावा मेरा कोई दोस्त भी नहीं| मेरे छुटपन से इनके साथ रहा हूँ तो....

इसके आगे मुझसे झूठ नहीं बोलै गया तो मैंने बात वहीं छोड़ दी! शुक्र है की बड़के दादा ने मेरी बात को देवर-भाभी का प्यार समझा और लगे हाथों मुझे ज्ञान दे ही दिया;

बड़के दादा: मुन्ना प्यार, मोह ठीक है.... पर अधिक हो जाए तो कष्ट अवश्य देत है| खेर ई बात तो तुम समझ ही गए होगे|

काश की बड़के दादा जानते की मैंने आखिर क्यों खाना-पीना छोड़ा था! लेकिन अगर रसिका भाभी की बात सामने आती तो फिर भौजी और मेरा राज भी खुल जाता!

खैर बड़के दादा खाना खा कर चले गए, मैंने भी धीरे-धीरे खाना खाया लेकिन जो मजा भौजी के खिलाने पर आता था वो अब नहीं आया! खाना खत्म हुआ, भौजी ने मुझे दवाई दी और दोनों बच्चों को मेरे ऊपर पहरा देने के लिए छोड़ गईं| पेट भरा था तो दोनों बच्चे मेरे दोनों तरफ आ गए और मेरी गोद में सर रख कर लेट गए|

मैं: बेटा आप दोनों मुझसे इतना न लिपटो वरना आप भी बीमार हो जाओगे!

ये सुन कर दोनों उठे और आ आकर एक साथ मेरे गले लग गए| उनके गले लगने से मैं पिघल गया और छह कर भी उन्हें अपने से दूर रहने को नहीं कह पाया|

वरुण: चाचा हम बीमार न होब!

नेहा: हम हूँ बीमार न होब!

दोनों बच्चों के आगे मैंने हथ्यार डाल दिए;

मैं: कहानी किसे सुननी है?

ये सुनते ही दोनों खुश हो गए और दोनों ने मेरे गाल पर एक-एक पप्पी की| फिर दोनों मेरे सीने पर सर रख कर लेट गए और अपने छोटे-छोटे हाथ से मुझे जकड़ लिया| मैंने भी हमेशा की तरह दोनों को एक कहानी बना कर सुनाई जिसे सुनते-सुनते दोनों सो गए| कुछ समय बाद भौजी खाना खा कर आईं और दोनों बच्चों को मेरे अगल-बगल लेटा हुआ देख मुस्कुराने लगीं| एक-एक कर उन्होंने दोनों को उठा कर बाहर ले जाना चाहा, पर नेहा ने मेरी टी-शर्ट अपनी मुठी में पकड़ रखी थी| इससे पहले भौजी उसकी मुठी से मेरी टी-शर्ट छुड़ातीं मैंने नेहा के माथे को चूमा तो उसके चेहरे पर एक मीठी सी मुस्कान आ गई और उसने मेरी टी-शर्ट छोड़ दी| ये देख भौजी के चेहरे पर गर्व का भाव आ गया! नेहा को आंगन में लिटा कर जब वो लौटीं तो मैं लेट चूका था, वो मेरे सिराहने बैठ गईं और धीरे-धीरे उन्होंने मेरे सर को सहलाना शुरू कर दिया|

भौजी: आप यहीं अंदर साओगे?

मैं: हाँ और आप भी जा के आराम कर लो, जब से आये हो मेरी ही तीमारदारी में लगे हो|

मेरी ये बात सुनते ही वो गुस्सा हो गईं और बोलीं;

भौजी: आपका ध्यान रखना मेरा फ़र्ज़ है और आप इसे तीमारदारी कहते हो? भूल गए जब आप ने दिन रात मेरा ध्यान रखा था? जाइए मैं आपसे बात नहीं करती!

ये कहते हुए वो रूठ गईं और हाथ बाँधे दूसरी ओर मुँह कर लिया|

मैं: SORRY बाबा!

मैंने कान पकड़ कर मुस्कुराते हुए कहा तो भौजी एकदम से पिघल गईं;

भौजी: ठीक है माफ़ किया!!! ही..ही..ही..ही!!!

भौजी हँसने लगीं

मैं: अच्छा यहाँ कौन-कौन सोने वाला है?

भौजी: मैं, बच्चे ओर वो कुलटा!

ये कहते हुए वो फिर से गुस्से में भड़क उठीं! मैंने उन्हें शांत करना चाहा और बात बदल दी;

मैं: अब आप जाके सो जाओ, कल सुबह उठना भी तो है और कल तो शायद माँ और पिताजी भी आ जाएँ|

भौजी: नहीं मैं तो यहीं बैठूँगी, भूल गए डॉक्टर साहब ने क्या कहा था? आपको रात को बुखार चढ़ गया तो?! मैं आपको अच्छे से जानती हूँ की अगर बुखार चढ़ गया तो आप मुझे उठाओगे भी नहीं, इसीलिए मैं यहीं सोऊँगी|

भौजी ने हट किया, जिस तरह वो बैठने से सोने तक पहुँच गईं उससे मैं थोड़ा डर गया था|

मैं: देखो मेरे साथ रहोगे तो आप भी बीमार हो जाओगे और फिर रसिका भाभी क्या कहेंगी? फिर कहीं अम्मा ने हमें एक साथ लेटे हुए देख लिया तो?

मैंने भौजी को समझना चाहा, लेकिन वो समझदार निकलीं पर फिर भी मेरी टांग खींचते हुए बोलीं;

भौजी: वो सब मैं नहीं जानती, मैं तो यहीं सोऊँगी और वो भी आपके बगल में! ही..ही..ही..ही!!

भौजी ने मजाक करते हुए कहा और मेरे बगल में लेट गईं| चलो भौजी यहाँ सोने वालीं तो नहीं थीं, पर मुझे उनके स्वास्थ्य की भी चिंता थी|

मैं: यार प्लीज जिद्द मत करो, मेरे इतना नजदीक रहोगे तो आप बीमार पड़ जाओगे?

मैंने उन्हें फिर समझना चाहा पर भौजी ने मेरी बात सिरे से नकार दी;

भौजी: कुछ नहीं होता! डॉक्टर साहब ने कहा था की ये छोटी सी बिमारी है जो एक-दो दिन में ठीक हो जाती है|

पर मैं भी कहाँ पीछे हटने वाला था, सो मैंने उनसे तर्क करना शुरू किया;

मैं: अच्छा अपना नहीं तो उस नन्ही सी जान के बारे में सोचो जो अभी इस दुनिया में आने वाली है, मैं चाहता हूँ की वो स्वस्थ पैदा हो|

लेकिन मेरी जिद्दी बीवी कहाँ मेरा कोई तर्क चलने देतीं;

भौजी: वो स्वस्थ ही होगी और अब आप बेकार की चिंता करते हो!

मैं: पर...

मैं कुछ कहता उससे पहले ही वो बोल पड़ीं;

भौजी: ऐसे बीमारियाँ एक दूसरे में नहीं फैलतीं, कितनी पत्नियाँ होती हैं जो अपने पति के बीमार होने पर उनकी सेवा करती हैं, वो तो बीमार नहीं होती, तो मैं कैसे बीमार हूँगी| अब आप मेरे साथ बहस मत करो और सो जाओ|

ये कहते हुए उन्होंने मेरा सर थपथपाना शुरू किया| उनके तर्क के आगे मेरी एक न चली, परन्तु मुझे तकलीफ इस बात से हो रही थी की मेरी वजह से वो ठीक से सो नहीं पाएँगी, जब की प्रेगनेंसी में उन्हें ज्यादा से ज्यादा आराम करना चाहिए| इसलिए मैंने एक उपाय निकाला, जिससे वो मेरे पास भी रहनेगी, आराम से लेट भी पाएँगी और मुझ पर नजर भी रख सकेंगी|

मैं: अच्छा आप एक काम करो, इस कमरे में एक चारपाई और बिछा दो|

लेकिन हाय रे मेरी जिद्दी बीवी, उसे अपने से ज्यादा मेरी चिंता थी|

भौजी: इस कमरे में एक और चारपाई नहीं घुसेगी| अब आप मेरी चिंता मत करो, अगर मुझे नींद आई तो मैं अपनी चारपाई पर जाके सो जाऊँगी|

चलो इस बहाने उन्होंने मेरी बात का मान तो रखा|

मैं: यार आप बहुत जिद्द करते हो, कभी मेरी बात नहीं मानते|

मैंने रूठते हुए कहा|

भौजी: एक बार आपकी बात मानी थी तो आपकी ये हालत हो गई| अब दुबारा कभी नहीं मानूँगी!!!

भौजी की बात बिलकुल सत्य थी और अब मैं उन्हें कुछ कह भी नहीं सकता था|

अब मुझे कैसे भी भौजी को सोने के लिए भेजना था तो मैंने उनकी कही बात का फायदा उठाया और ऐसे दिखाया जैसे मैं घोड़े बेच के सो गया हूँ| करीब 10 मिनट बाद जब भौजी को यक़ीन हुआ की मैं गहरी नींद सो चूका हूँ, तब जाके भौजी बाहर अपनी चारपाई पर सोने गईं| दिन में सोने से मुझे नींद तो आने से रही, इसलिए मैं करवटें बदलने लगा| आधे घंटे तक सोने के सभी आसान प्रयत्न करने के बाद भी मुझे नींद नहीं आई| मैं ये नहीं जानता था की भौजी मुझे करवटें बदलते हुए खिड़की से देख रहीं हैं और हँस रहीं हैं| मैंने बाईं करवट ली और सोने के कोशिश करने लगा, तभी भौजी दबे पाँव कमरे के भीतर आईं तथा मेरे पीछे लेट गईं, अब उन्होंने अपना हाथ सरका कर मेरी कमर से होते हुए मेरी छाती पर रख दिया| उनके हाथ के स्पर्श को मैं भलीं-भाँती जानता था इसलिए मेरे चेहरे पर मुस्कान आ गई जो भौजी नहीं देख पाईं! आखिर के पत्नी अपने पति की रग-रग से वाक़िफ़ होती है, मेरी चोरी पकड़ते हुए वो मेरे कान में धीरे से खुसफुसाईं;

भौजी: नींद नहीं आ रही है ना?

मैंने ना में सर हिला कर उतर दिया|

भौजी: तो फिर मुझे दूर क्यों भेजा? वो भी ड्रामा कर के की आपको बहुत जबरदस्त नींद आ रही है?

अब इसका उतर तो मुझे बोल कर देना था;

मैं: क्योंकि मैं नहीं चाहता की आप बीमार पड़ो|

भौजी: मुझे कुछ नहीं होगा!

भौजी ने मेरी पीठ को चूमते हुए कहा| टी-शर्ट के ऊपर से उनके स्पर्श से मेरी पीठ में बड़ा अजीब सी तरंग उठी जो मेरे दिल की तरफ चल पड़ी!

भौजी: आपको कोई छूत की बिमारी थोड़े ही है और भगवान न करे, अगर होती भी तो भी मैं आपके पास यूँ ही रहती!

भौजी ने दुबारा मेरी पीठ को चूमते हुए कहा|

मैं: आप नहीं सुधरोगे!!!

मैंने मुस्कुरा कर कहा और उनका हाथ जो मेरी छाती पर था उसे पकड़ के चूम लिया| उनके मेरी पीठ पर किये चुंबन से उठी तरंग मेरे दिल तक पहुँच गई थी और अब मुझे अच्छा लग रहा था|

अभी बस दो मिनट ही हुए थे और मैं अब भी करवट लिए लेटा हुए था ताकि मेरी सांसें उनकी साँसों से ना मिली वरना उन्हें इन्फेक्शन हो सकता था|

भौजी: मेरी तरफ करवट करो!

भौजी ने मुझसे बड़े प्यार से निवेदन किया, क्योंकि वो मेरा मुख देखना चाहतीं थीं|

मैं: नहीं|

मैंने बड़े संक्षेप में उतर दिया, क्योंकि मैं उनके लिए चिंतित था| परन्तु मेरी पत्नी बड़ी हटी (जिद्दी) थीं इसलिए उन्होंने मुझे अपनी कसम से बाँध दिया;

भौजी: आपको मेरी कसम!

अब मैं उनकी कसम से बँध गया था इसलिए मजबूरन मैंने उनकी तरफ करवट ली और अंततः हमारी आँखें एक दूसरे से मिलीं| वो पल बड़ा ही सुहाना था, उनकी आँखों की गहराई मैं आज बड़े दिन बाद देख रहा था! उनकी प्यारी आँखें मेरा दीदार करने को प्यासी थीं और मैं तो उनकी आँखों में डूब ही गया था! इधर मैंने अपनी साँस रोक रखी थी, क्योंकि मेरे मन में अब भी भौजी के बीमार होने का डर था| उधर भौजी ने अपना हाथ मेरे दिल पर रखा जो साँस रोकने के कारन अब तेजी से धड़कने लगा था| भौजी को समझते देर न लगी की मैंने अपनी साँस रोक रखी है;

भौजी: कब तक साँस रोकोगे? मैंने कहा न कुछ नहीं होगा!

भौजी के कहने पर मैंने धीरे-धीरे साँस छोड़ी|

भौजी: एक बात बताओ जब मैं बीमार थी, तब आप तो मुझसे दूर नहीं रहते थे?

मैं: लेकिन आप माँ बनने वाले हो और अगर बच्चा....

मैं आगे कुछ बोलता उससे पहले ही उन्होंने मेरे होठों पर अपनी ऊँगली रख दी|

भौजी: कुछ नहीं होगा उसे! आप बस मुझ से दूर मत रहा करो, आपके बिना मैं अधूरी हो जाती हूँ| इन दिनों में आपने जिस तरह अपनी पवित्रता को उस कुलटा के पंजों से से बचाया उससे आपका मेरे प्रति आपका पूर्ण समर्पण दिखता है! आपके इस पत्नीव्रत से तो मैं आपकी कायल हो गई! You're a one woman man! And I love you for that!

आज पहलीबार भौजी के मुख से अपनी प्रशंसा सुन मेरे गाल लाल हो गए!

मैं: I love you too!

भौजी ने एकदम से मेरे होंटों से अपने होंठ भिड़ा दिए, इतने दिनों से भौजी से दूर रहा तो उनके होठों का स्वाद ही भूल गया था, इसलिए मैंने एक दम से उनके निचले होंठ को अपने मुख में भर लिया और उसे चूस कर उसका रस निचोड़ने लगा| भौजी ने अपने दाहिने हाथ को मेरे बालों में फिरना शुरू कर दिया और बयान हाथ से मेरे दाएँ गाल को सहलाने लगीं! बिमारी और कमजोरी के कारन जैसे ही मैं थक कर ढीला पड़ा तो भौजी ने मोर्चा संभाला और मेरे निचले होंठ को अपने मुँह में भर चूसने लगीं! उनके दोनों हाथ मेरे दोनों गालों पर थे और अगले ही पल उन्होंने अपनी रसीली जीभ मेरे मुख में प्रवेश करा दी! उनकी जीभ का एहसास होते ही मेरी जीभ आगे आई और दोनों जीभें आपस में गुथम-गुथा हो गईं| मुझे एकदम से जोश आया और मैंने अपनी जीभ उनके मुख में प्रवेश करा दी, जैसे ही मेरी जीभ उनके मुख के भीतर प्रवेश हुई की भौजी ने अपने होठों को गोल बना कर उसे चूसना शुरू कर दिया| दोनों ही के जिस्म प्यार की अग्नि में जलने लगे थे पर फिर भी किसी तरह काबू में थे! भौजी ने मेरी जीभ छोड़ी और मेरे चेहरे को अपने हाथों में लिए हुए खुद से कुछ दूर किया, हमदोनों के होठों के बीच हमारे रस की एक पतली सी तार थी| उसे देख न तो भौजी खुद को रोक पाई और न ही मैं, हुम दोनो के होंठ एक बार फिर मिल गए| दोनों के हाथ एक दूसरे की पीठ पर थे तथा होंठ एक दूसरे को बेतहाशा चूमने में व्यस्त थे! इस चुंबन के समय ऐसा लग रहा था जैसे आज पहली बार मिलें हों! ये प्यार भरा रसों का आदान-प्रदान करीब पंद्रह मिनट चला, अब हमदोनों की ही हालत ये थी की मेरा लिंग अपना प्रगाढ़ रूप धारण कर चूका था, उधर भौजी की योनि भी गीली हो गई थी| प्रेम अग्नि में जलते हुए भौजी ने अपना हाथ मेरे लिंग पर रखा तो मेरे अंदर एक करंट दौड़ गया, मैंने भी आगे बढ़ कर उनकी योनि को छुआ तो उसकी गर्मी मुझे साड़ी के ऊपर से महसूस होने लगी! लेकिन भौजी जानती थीं की इस समय समागम करने की मुझ में शक्ति नहीं है, इसीलिए उन्होंने कोई पहल नहीं की| वहीं दूसरी ओर मैं तो वैसे भी भौजी के पहल का इंतजार करता था, जब उन्होंने ही पहल नहीं की तो मैं भी खुद को काबू कर के रह गया| भौजी उस वक़्त कहना चाहतीं थीं की मैं इस वक़्त बिमारी के कारन कमजोर हूँ, इसलिए हमें अभी समागम नहीं करना चाहिए पर वो डरतीं थीं की मैं कहीं इसे अपनी मर्दानगी की तोहीन न समझूँ! हालाँकि मैं ऐसा नहीं सोचता, पर कुछ चीजें थीं जो न मैं उन्हें और न वो मुझे कहतीं थीं! उन्होंने बिना कुछ कहे मेरा सर अपने वक्ष पर रखा ओर मेरे बालों को सहलाने लगीं ताकि मैं सो जाऊँ, मैं भी उनके ठंडे वक्ष के स्पर्श को महसूस कर खुद को ढीला छोड़ दिया| मेरा बयां हाथ उनकी बगल से होता हुआ उनकी पीठ पर चल रहा था| वो रात बड़ी अहम थीं, एक पत्नी अपने पति के जिस्म को पाने की प्यास को दबा रही थी और एक पति जो इतने दिन बाद अपनी पत्नी से मिला था, उस जाने-पहचाने जिस्म की गर्मी को आज दिनों बाद महसूस कर अपनी पत्नी की प्यास को जानते हुए खुद को जल्द से जल्द तंदुरुस्त करना चाहता था ताकि अपनी पत्नी को जी भर के प्यार कर सके!

आधे घंटे बाद मैंने दूसरी तरफ करवट ली, भौजी का हाथ अब भी मेरी कमर पर था और मुझे दिनों बाद एक मीठी सी नींद आई! लेकिन हम दोनों ही ये भूल गए की हमारे इलावा भी एक जलन से भरी औरत और है जिसने हमारा ये प्रेम मिलाप छुप कर देखा था, जो फिलहाल तो अपनी बुर को सेहला कर रह गई लेकिन वक़्त आने पर फिर कुछ काण्ड करेगी!

[color=rgb(124,]जारी रहेगा भाग - 4 में...[/color]
 

[color=rgb(65,]पन्द्रहवाँ अध्याय: पत्नी का प्रेम[/color]
[color=rgb(184,]भाग - 4[/color]


[color=rgb(243,]अब तक आपने पढ़ा:[/color]

आधे घंटे बाद मैंने दूसरी तरफ करवट ली, भौजी का हाथ अब भी मेरी कमर पर था और मुझे दिनों बाद एक मीठी सी नींद आई! लेकिन हम दोनों ही ये भूल गए की हमारे इलावा भी एक जलन से भरी औरत और है जिसने हमारा ये प्रेम मिलाप छुप कर देखा था, जो फिलहाल तो अपनी बुर को सेहला कर रह गई लेकिन वक़्त आने पर फिर कुछ काण्ड करेगी!

[color=rgb(147,]अब आगे ...[/color]

अगला दिन चढ़ा पर सुबह नाजाने क्यों नींद ही नहीं खुली, मन कर रहा था बस सोते रहो! रात को जिस करवट सोया अब उसी करवट सो रहा था, तभी अचानक मेरे गालों पर नरम-नरम होंठ स्पर्श हुए| उन जाने-पहचाने होठों की नरमी और गीलेपन के कारन मेरी नींद खुली! मैंने आँखें खोल के देखा तो सामने भौजी खड़ीं थी, उनके चेहरे पर वो प्यारी सी मन भावन मुस्कान जिसे देख कर मेरा दिल जोरों से धड़कने लगा, मन बईमान होने लगा था, कल रात का काम जो अधूरा रह गया था!

भौजी: Good Morning जी!

भौजी ने हँसते हुए कहा|

मैं: Good Morning....आपके इस kiss ने तो वाकई में morning good कर दी|

मैंने लेटे-लेटे अंगड़ाई लेते हुए कहा| अपनी तारीफ सुन भौजी शर्माने लगीं!

भौजी: अब आप की तबियत कैसी है?

भौजी ने बड़े नटखट अंदाज में पुछा|

मैं: जी कल रात के बाद तो अच्छी है और आगे भी यही प्यार और देखभाल मिली तो 'बहुत' अच्छी हो जाएगी|

मैंने भौजी का जवाब उसी नटखट अंदाज में दिया जिसे सुन भौजी ने मुझे लुभाते हुए कहा;

भौजी: प्यार तो आपको इतना मिलेगा की आप उसे माप नहीं पाओगे!

जिस अदा से उन्होंने ये कहा था उसे देख कर मेरा दिल मचल गया;

मैं: हाय!!!!

मैंने अपने दिल को थाम कर बोला|

खेर मैं उठ कर बैठा, अब मुझे पहले से बहुत अच्छा लग रहा था| कमजोरी कम थी, बुखार बिलकुल नहीं था, जुखाम-खांसी थी पर मेरा गला अब साफ़ हो गया था| इतने में बड़की अम्मा और बड़के दादा आ गए और मेरा हाल-चाल लेने लगे| मेरी तबियत में सुधार देख वो बहुत खुश हुए, जिसका सारा श्रेय भौजी को जाता है| वो बता गए की दोपहर को भोजन के बाद वो पास वाले गाँव जाएंगे, वहाँ कोई कीर्तन है| ये सुन कर तो मेरा मन प्रफुल्लित हो गया, मतलब आज दोपहर को फुल चांस है!

बड़के दादा और बड़की अम्मा खेत चले गए क्योंकि आज गेहूं दांवा जाना था, उनके जाते ही मैंने मुँह-हाथ धोये और फ्रेश हो कर वापस अपनी चारपाई पर बैठ गया| कुछ ही देर में भौजी मेरी चाय ले आईं, मैंने उनका हाथ पकड़ लिया और उन्हें अपने पास बिठा लिया;

मैं: बैठो मेरे पास, मुझे आपसे कुछ बात करनी है|

भौजी: अच्छा जी, बताइये|

भौजी मुस्कुराते हुए बोलीं| कल से जो मन में सवाल उठ रहे थे उनका जवाब मुझे जानना था;

मैं: कल जब आप रसिका भाभी पर....

इतना सुनते ही भौजी भुनभुना गईं और मेरी बात काटते हुए बोली;

भौजी: भाभी मत बोलो उसे, नाम से बुलाओ!

उनका गुस्सा देख में थोड़ा डर गया!

मैं: ओह सॉरी! कल जब आप रसिक पर चिलाये तो आपने अपने गुस्से में उसके सामने हमारे रिश्ते को ये कह कर की; 'वो सिर्फ मेरे हैं!' उजागर कर दिया, पर जब डॉक्टर साहब आये तो आप उनके सामने हमारे रिश्ते को छुपाने क्यों लगे?

भौजी: वो छिनाल किसी को कुछ नहीं कह सकती और अगर कह भी दे तो कोई उसकी बात का विश्वास नहीं करेगा! रही डॉक्टर साहब की बात, तो बाहर के हैं और उनके सामने हमारा रिश्ता सामने नहीं आना चाहिए, मुझे अपनी नहीं बल्कि आपकी चिंता है! मैं नहीं चाहती की कल को कोई आप पर ऊँगली न उठाये!

मेरे सवाल का जवाब मुझे मिल चूका था|

मैं: मेरी चिंता मत करो, इस दुनिया में आदमी कभी गलत हो ही नहीं सकता! खेर छोडो ये सब और ये बताओ की मेरी बेटी नेहा कहाँ है?

मैंने बात बदलते हुए कहा|

भौजी: वो तो स्कूल गई|

मैं: अकेले?

भौजी: और क्या? उसका स्कूल कोई परदेस में थोड़े ही है? घर के सामने ही तो है!

मैं: यार! आज मैं अपनी बेटी को स्कूल छोड़ने नहीं जा पाया!

ये कहते हुए मुँह लटक गया|

भौजी ने मेरे दोनों गाल उमेठे और बोलीं;

भौजी: मुँह न लटकाओ, आज भर आराम कर लो और कल से उसे खुद छोड़ने चले जाना|

उन्होंने इतने प्यार से कहा की मन किया की उन्हें सीने से लगा लूँ, लेकिन तभी वहाँ वरुण आ गया और अपने साथ बॉल ले आया|

वरुण: काकी हम चाचा संगे बॉल खेली?

भौजी: ठीक है बेटा, लेकिन देख्यो की कहीं तोहार चाचा थक न जाएँ!

वरुण ने हाँ में गर्दन हिलाई और मेरी ओर बॉल फेंकी|

भौजी: मैं खाना बनाने जा रही हूँ, ज्यादा मस्ती मत करना!

भौजी ने मुझे ऐसे हिदायत दी जैसे छोटे बच्चे को दी जाती है| मैंने भी मासूम बच्चे की तरह हाँ में गर्दन हिला कर उनकी बात मान ली| भौजी खाना बनाने गईं और मैं चारपाई पर बैठे-बैठे, वरुण के साथ कैच-कैच खेलने लगा| बारह बजे तक मैं वरुण के साथ खेलता रहा और जैसे ही बारह बजे मैं वरुण को साथ ले कर नेहा को लेने स्कूल चल दिया| जैसे ही स्कूल की घंटी बजी और नेहा ने मुझे बाहर खड़े हुए देखा वो दौड़ती हुई मेरे पास आई और मैंने उसे अपनी गोद में उठा लिया| जी भर कर उसके गालों की पप्पियाँ लीं और फिर पीछे की रास्ते से उसे बड़े घर ले आया| अगर मैं रसोई के पास वाले छप्पर के नीचे जाता तो भौजी से डाँट पड़ती, बड़े घर पहुँच कर मैं नेहा और वरुण को अपनी छाती से चिपका कर बैठ गया| तभी भौजी आ गईं और उन्हें देखते ही नेहा डर के मारे भाग गई और उसी के पीछे वरुण भी भाग गया|

भौजी: अरे ये यहाँ कब आई?

मैं: स्कूल से आ गई अपने पापा के पास|

भौजी: अच्छा?

भौजी ने भोयें सिंकोड़ कर पुछा|

मैं: अरे बाबा मैं गया था उसे लेने|

भौजी: बाज नहीं आओगे न आप?

भौजी ने मुझे प्यार से डाँटते हुए कहा|

मैं: यार मैं अब बिकुल ठीक हूँ|

भौजी; सब जानती हूँ मैं की कितना ठीक हो? पुत्री मोह में आप कुछ भी करने से नहीं चूकते!

मैं: अच्छा यार सॉरी!

मैंने कान पकड़ते हुए कहा तो भौजी पिघल गईं|

मैं: अच्छा बैठो यहाँ, आपसे कुछ बात करनी है|

भौजी मेरे पास बैठ गईं तो मैंने उन्हें समझाते हुए कहा;

मैं: अपना गुस्सा सब पर निकालो, लेकिन मेरी लाड़ली के सामने नहीं! कल से बेचारी आपसे डरी हुई है! जब गुस्सा आये तो उसे मेरे पास या बाहर भेज दिया करो और फिर जी खोल कर डाँटो!

भौजी मेरी बात समझ गईं और कान पकड़ कर मुझसे माफ़ी माँगने लगीं|

कल से भौजी मेरा बहुत ख़ास ख्याल रख रहीं थीं, इतना ख्याल की मन अब ठीक होने का कर ही नहीं रहा था| दोपहर का खाना तैयार था, मैंने छप्पर के नीचे बैठ कर बड़के दादा के साथ खाना चाहा पर भौजी ने मना कर दिया और मेरा खाना परोस कर बड़े घर ले आईं| वहाँ उन्होंने कल दोपहर की ही तरह अपने हाथ से खाना खिलाया, मैं जब खुद खाने को कहा तो वो जिद्द करने लगीं और बड़े प्यार से मुझे अपने हाथ से खाना खिलाने लगीं| मुझे खाना खिलाकर, उन्होंने मुझे दवाई दी और मेरे दाएँ गाल को अपने मुँह में ले कर प्यार से काटा और हँसती हुई चली गईं| जितना असर डॉक्टर की दवाई ने नहीं दिखाया, उतना असर भौजी के इस चुंबन ने दिखाया| एक ही चुंबन में जिस्म के सारे रोएँ खड़े हो गए!

उधर खाना खाने के बाद सब कीर्तन में चले गए, अब घर पर केवल मैं, नेहा और भौजी ही बचे थे| मैं बड़े घर से निकल कर छप्पर के नीचे तखत पर लेटा गया, जबकि मैं लेटना नहीं चाहता था परन्तु भौजी के जोर देने पर मान गया| मेरे लेटते ही नेहा आ कर मेरे से लिपट गई, उसके सर को चूमते हुए मैंने उसे सुला दिया| भौजी भी छप्पर के नीचे बैठीं कुछ सीने में व्यस्त थीं| नेहा को सुलाते-सुलाते मैंने भी अपनी आँख बंद कर ली, इधर भौजी का सिलाई का काम खत्म हुआ तो उन्होंने उठ कर एक नजर मुझे देखा| उन्हें लगा की मैं गहरी नींद में सो गया हूँ, तो वो अपने धुले-हुए कपडे लेके अपने घर चलीं गईं| मैं चुप-चाप उठा और दबे पाँव उनके घर के भीतर घुसा| भौजी दरवाजे की तरफ पीठ कर के अपने कपडे तह लगा रहीं थीं| उस समय भौजी ने अपनी एक साडी दोनों हाथों को फैला कर पकड़ रखी थी और ये मेरे लिए जबरदस्त मौका था, मैंने फ़ौरन उन्हें पीछे से अपनी बाहों में भर लिया| मेरे दोनों हाथ उनकी कमर से होते हुए उनके पेट पर लॉक हो गए थे और मैंने उन्हें कस कर अपने जिस्म से चिपका लिया था| उनके इतना नजदीक आने से मुझे उनके जिस्म से एक मादक गंध आ रही थी, जिसने मेरे दिल में हल-चल पैदा कर दी| मेरा दिल अचानक ही जोर से धड़कने लगा था; 'धक-धक....धक-धक...धक-धक...धक-धक...धक-धक...धक-धक...धक-धक.!'

इधर भौजी मेरे आगोश में कसमसाने लगीं थीं, उनके दिल की धड़कन भी मेरी तरह तेज हो गई थी| भौजी के दोनों हाथों में जो साडी थी वो जमीन पर गिर गई थी, उन्होंने अपना दायाँ हाथ मेरे सर पर पहुँच गया था और वो मेरे बालों में अपनी उँगलियाँ चला रहीं थीं| उनका बयान हाथ मेरे बाएँ कूल्हे पर पहुँच गया था और वो मेरे कूल्हे को दबा रहीं थीं ताकि मैं उनसे और चिपक जाऊँ! मेरे हाथ भौजी के चिकने और ठंडे पेट पर घूमने लगे| दोनों ही के जिस्म में प्रेमाग्नि जल चुकी थी और दोनों ही सीमा लांघने को तैयार थे!

मैंने भौजी को अपनी ओर घुमाया और उनके माथे को चूमा, मेरे चूमते ही भौजी मेरे शरीर से किसी बेल की तरह लिपट गईं| उनका चेहरा मेरे गले के पास था और उनके दोनों हाथ मेरी पीठ पर थे| भौजी के कठोर हो चुके चुचुक मेरे सीने में गड़े जा रहे थे, नीचे मेरे लिंग ने पेंट में तगड़ा सा उभार बना लिया था और जिस तरह भौजी मुझसे चिपटी हुई थीं उससे मेरा लिंग उनकी योनि में गड़ा जा रहा था| भौजी मेरे लिंग के उभार को अपनी योनि में गदा हुआ साफ़ महसूस कर रहीं थीं और उनके मुँह से; 'सी....सी... सी...!' की आवाजें निकलने लगीं थी| इतने दिनों से एक दूसरे से दूर रहने के कारन हम दोनों ही बहुत प्यासे थे, पर कुछ तो कारन था की भौजी ने अब तक पहल नहीं की थी और न ही मुझे पहल करने का कोई अवसर दिया था?! ऐसा लग रहा था मानो जैसे वो खुद को रोक रहीं हो! पर क्यों? ऐसा क्या था जिसने हमें एक दूसरे से दूर कर दिया था? ये सभी सवाल मेरे दिमाग में दौड़ने लगे थे पर मन अब कह रहा था की 'कुछ कर...कुछ कर जिससे वो तेरे करीब आयें और ये सारी दूरियाँ मिट जाएँ| पर एक अदृश्य मर्यादा थी जो मुझे रोक रही थी, मैं उनके साथ कुछ भी जबरदस्ती से नहीं करना चाहता था! बल्कि मैं तो चाहता था की जैसे अब तक होता आया है, जिसमें उनकी पूरी रजामंदी होती थी, वैसे ही सब कुछ हो!

मैं जानता था की भौजी मेरे मन में उठ रही इस कश्मकश को अवश्य पढ़ रहीं हैं और मैं नहीं चाहता था की वो पहल न करने का दुःख या ग्लानि महसूस करें इसलिए मैं कोई और बात शुरू करने के बारे में सोचने लगा| तभी अचानक भौजी बात शुरू करते हुए बोलीं;

भौजी: मेरे पास आपके लिए एक गिफ्ट है, आप जरा आँखें बंद करिये!

भौजी ने आलिंगन तोड़ते हुए कहा|

मैं: ठीक है!

मैंने मुस्कुरा कर कहा| मुझे लगा था की शायद भौजी मेरे होठों को चूमेंगी, लेकिन मुझे प्लास्टिक की कचर-पचर आवाज सुनाई दी|

भौजी: अब आँखें खोलिए|

जब मैंने आँखें खोली तो देखा की भौजी के हाथों में एक सफ़ेद गोल गले की टी-शर्ट है, जिस पर 'Love' लिखा है|

मैं: वाओ !!! ये आप ...कैसे?

मैंने पूरी गर्म जोशी से उनके हाथ से टी-शर्ट ले ली|

भौजी: अनिल के साथ शहर गई थी, विदाई का सामान लेने तब वहाँ एक के बाद एक दूकान छान मारी और आखिर कर ये टी-शर्ट पसंद आई| अब इसे जल्दी से पहन के दिखाओ!

मैंने तुरंत एक झटके में अपनी टी-शर्ट उतार फेंकी और भौजी वाली टी-शर्ट पहनने लगा| टी-शर्ट बिलकुल मेरे साइज की थी, बिकुल स्किन फिट! जब मैंने टी-शर्ट पहनी तो वो मेरे शरीर से बिलकुल चिपक गई, Biceps पर तो बिलकुल टाइट थी और टी-शर्ट पे लिखा Love ठीक मेरे दोनों nipples के बीच आता था, पीछे से टी-शर्ट ने मेरी पीठ और कमर को एक दम परफेक्ट V का अकार दिया था| अगर मेरी बॉडी हीरो जैसी होती तो Biceps फुलाते ही टी-शर्ट फट जाती!

मुझे इस टाइट टी-शर्ट में देख भौजी की आँखें चमकने लगी थी! जिस प्रेम अग्नि को वो दबाना चाह रहीं थीं, वो अब फिर से दहकने लगी थी! इस सब से अनजान मैं उन्हें घूम-घूम कर टी-शर्ट की फिटिंग दिखाने लगा था!

मैं: वाओ... Awesome यार! आपको मेरा साइज कैसे पता?

भौजी: आप की वो लाल वाली टी-शर्ट में साइज का स्टीकर देखा था|

भौजी ने मुस्कुराते हुए कहा|

मैं: कितने पैसे फूके आपने?

मैंने टी-शर्ट के ऊपर लिखे Love शब्द को छूते हुए पुछा|

भौजी: कुछ ज्यादा नहीं आठ सौ|

ये सुनते ही मैं आँखें फाड़े उन्हें देखने लगा| मैंने आज तक इतनी महंगी कोई टी-शर्ट नहीं पहनी थी| उस समय 500-600 में अच्छी टी-शर्ट आ जाती थी, ब्रांडेड तो मैं पहनता ही नहीं था!

मैं: क्या? वापस कर दो ये! इतनी महंगी टी-शर्ट लेने से पहले पूछ तो लेते?

मैंने भौजी को डाँटते हुए कहा| मुझे उनका तोहफा पसंद था पर इतना महंगा जिसे लेने की उनकी या उनके परिवार की क्षमता नहीं थी, ये बात पसंद नहीं आई!

भौजी: मैं मजाक कर रही थी और आप पैसों की बात करते हो? मैंने आपको अपना दिल दे दिया, अपनी आत्मा समर्पित कर दी तब तो नहीं कहा की इतना महंगा समान क्यों दिया? खबरदार जो इसे उतार तो! आज आप बड़े सोणे लग रहे हो! My sexy husband!

भौजी की बात में डीएम तो था पर ये पैसों की बात मुझे खटक रही थी, तो मैंने फिर एक बार प्यार से पुछा;

मैं: तो बताओ न कितने में ली?

भौजी: कहा ना ज्यादा महँगी नहीं है|

भौजी मुँह टेढ़ा करते हुए बोलीं|

मैं: पक्का?

भौजी: हाँ

भौजी फिर मुँह टेढ़ा कर के बोलीं|

मैं: 400/- के अंदर थी?

भौजी: हाँ बाबा हाँ! 350/- की थी! अब खुश?

भौजी ने हार मानते हुए कहा|

मैं: अच्छा अब एक return गिफ्ट तो बनता है!

मैंने उन्हें छेड़ते हुए कहा|

भौजी: Return गिफ्ट कैसा?

भौजी ने हैरान होते हुए कहा|

मैं: अच्छा आओ, पहले गले तो लगो|

भौजी मेरी ओर बढ़ीं और मुझे कस के गले लगा लिया|

मैं: पिछले कुछ दिनों से मैं इतना नहाया हूँ की अब मेरे जिस्म में आपकी खुशबु नहीं बसती!

मैंने भौजी से अपने दिल का हाल कहा|

भौजी: ह्म्म्म्म्म!

भौजी ने मेरे सीने में सर रखे हुए कहा|

मैं जानता था की वो पहल नहीं करेंगी इसलिए मैंने सोचा की आज मैं ही पहल करूँ, लेकिन इससे पहले की मैं कुछ कर पाता उससे पहले ही भौजी मुझसे एकदम से अलग हो गईं और सामने वाली दिवार पर पीठ लगा के खड़ी हो गईं| उनकी नजरें मुझ पर टिकी थीं और सांसें तेज हो चलीं थीं!

भौजी: नहीं..... अभी नहीं! आप अभी पूरी तरह से स्वस्थ नहीं हो, आज जाके आपका बुखार उतरा है, कमजोरी कुछ कम हुई है और ऐसे में....आप थक जाओगे और आपको फिर से बुखार चढ़ जाएगा|

भौजी की तेज सांसें कुछ और चाहतीं थीं, परन्तु उनका मन मेरे स्वास्थ्य के लिए चिंतित था और यही चिंता उनकी बातों में झलक रही थी| लेकिन जिस आदमी के अंदर प्रेमाग्नि जल रही हो वो थोड़ा क्रूर बुद्धि हो ही जाता है;

मैं: ओह! तो आप मेरी कही पुरानी बात का बदला ले रहे हो?

मेरा तातपर्य उस दिन से था जब बेल्ट वाला कांड हुआ था और भौजी ने मुझसे मेरे बच्चे की माँ बनने की मांग की थी| तब मैंने भी भौजी को मना किया था और मुझे लग रहा था की भौजी उस दिन का बदला मुझसे ले रही हैं|

भौजी: नहीं-नहीं...ऐसा नहीं है|

मैं आगे कुछ नहीं बोला और न ही उनकी कोई सफाई सुनी, मैं भौजी के घर से गुस्से में निकल बड़े घर आ गया और आँगन में खड़ा होके सोचने लगा! उस समय मुझे लग रहा था जैसे मेरा KLPD हो गया हो! अब KLPD क्या होता है ये तो आप सभी जानते हैं| (खड़े लंड पे धोका)

[color=rgb(124,]जारी रहेगा भाग - 5 में...[/color]
 

[color=rgb(65,]पन्द्रहवाँ अध्याय: पत्नी का प्रेम[/color]
[color=rgb(184,]भाग - 5[/color]


[color=rgb(243,]अब तक आपने पढ़ा:[/color]

भौजी: नहीं..... अभी नहीं! आप अभी पूरी तरह से स्वस्थ नहीं हो, आज जाके आपका बुखार उतरा है, कमजोरी कुछ कम हुई है और ऐसे में....आप थक जाओगे और आपको फिर से बुखार चढ़ जाएगा|
भौजी की तेज सांसें कुछ और चाहतीं थीं, परन्तु उनका मन मेरे स्वास्थ्य के लिए चिंतित था और यही चिंता उनकी बातों में झलक रही थी| लेकिन जिस आदमी के अंदर प्रेमाग्नि जल रही हो वो थोड़ा क्रूर बुद्धि हो ही जाता है;
मैं: ओह! तो आप मेरी कही पुरानी बात का बदला ले रहे हो?
मेरा तातपर्य उस दिन से था जब बेल्ट वाला कांड हुआ था और भौजी ने मुझसे मेरे बच्चे की माँ बनने की मांग की थी| तब मैंने भी भौजी को मना किया था और मुझे लग रहा था की भौजी उस दिन का बदला मुझसे ले रही हैं|
भौजी: नहीं-नहीं...ऐसा नहीं है|
मैं आगे कुछ नहीं बोला और न ही उनकी कोई सफाई सुनी, मैं भौजी के घर से गुस्से में निकल बड़े घर आ गया और आँगन में खड़ा होके सोचने लगा! उस समय मुझे लग रहा था जैसे मेरा KLPD हो गया हो! अब KLPD क्या होता है ये तो आप सभी जानते हैं| (खड़े लंड पे धोका)

[color=rgb(147,]अब आगे ...[/color]

अपने गुस्से को नियंत्रित कर मुझे एहसास हुआ की भौजी ने जो कहा वो गलत नहीं था| अगर मैं उनकी जगह होता तो मैं भी यही करता| अपने गुस्से पर शर्मिंदा हो कर मैं सर झुका के खड़ा था और भौजी से माफ़ी मांगने की सोच रहा था की तभी मुझे किसी के आने के क़दमों की आहट सुनाई दी| मेरे लिए ये पदचाप जानी पहचानी थी इसलिए मैंने पीछे मुड़ कर नहीं देखा| भौजी सर झुका कर चलती हुई मेरे पास आईं, उन्होंने मेरा दायाँ हाथ पकड़ के मुझे अपनी तरफ घुमाया और एकदम से मेरे गले लग गईं!

भौजी: प्लीज मुझे माफ़ कर दो! मैं आपका दिल नहीं दुखाना चाहती थी, मेरे लिए आपकी सेहत सबसे जर्रूरी है| प्लीज....प्लीज....I'm sorry!

इतना कहके वो रोने लगीं!

मैं: अरे बाबा मैं आपसे नाराज नहीं हूँ, हाँ एक पल के लिए थोड़ा बुरा लगा था पर यकीन मानो मैं समझ सकता हूँ की आप क्या कह रहे हो और आपकी बात की इज्जत करता हूँ| जबतक आप नहीं कहोगे मैं आगे नहीं बढूँगा| अब ठीक है?

ये कहते हुए मैंने उन्हें अपने से दूर किया| पर भौजी फिर से मुझसे कस कर लिपट गईं और बोलीं;

भौजी: नहीं!

मैंने उनकी पीठ पर हाथ फेरा और पुछा;

मैं: तो?

पर भौजी ने मेरी बात का कोई जवाब नहीं दिया, बस मुझसे लिपटी खड़ी रहीं| मुझे लगा जैसे वो कुछ बोलना चाहतीं तो हैं पर बोलने की हिम्मत नहीं कर पा रहीं हैं, बिलकुल उस दिन की तरह जब मैं भौजी से अपने प्यार का इजहार करना चाहता था पर मेरे मुँह से बोल नहीं फूट रहे थे|

हम दोनों बड़े घर के आंगन में एक दूसरे को बाहों में भरे खड़े थे, मुझे ये डर था की कहीं कोई आ गया तो हमें ऐसे खड़ा देख बखेड़ा न खड़ा कर दे|

मैं: देखो नेहा आ गई, अब तो छोड़ दो|

मैंने जानबूझ के जूठ बोला, ताकि भौजी मुझे छोड़ दें|

भौजी: नहीं!

इतना बोल उन्होंने और कस कर मुझे अपनी बाहों में भर लिया| हम करीब पाँच मिनट तक ऐसे ही खड़े रहे, इन पाँच मिनटों में मुझे भौजी के दिल में छुपी हुई झिझक महसूस हुई| चाहती वो भी थीं की हम प्रेम मिलाप शुरू करें पर मेरी सेहत की चिंता के कारन वो अपनी इस इच्छा को दबा रहीं थीं| फिर मुझे भी जोश आगया;

मैं: तो आप ऐसे नहीं मानोगे?

भौजी ने ना में गर्दन हिलाकर जवाब दिया|

मैंने जोश में आ कर उन्हें अपनी गोद में उठा लिया और अपने कमरे में ले जाकर चारपाई पर लिटा दिया, पर अब भौजी ने अपने दोनों हाथों को मेरी गर्दन के इर्द-गिर्द लॉक कर लिया और उसे छोड़ ही नहीं रही थी| जब मैंने उनके मुख की ओर देखा तो वो बहुत गंभीर लग रहीं थीं!

मैं: क्या हुआ?

मैंने भौजी की आँखों में देखते हुए बड़े प्यार से पुछा| भौजी ने बस न में सर हिला के ये बताना चाहा की कोई बात नहीं है, पर मेरा दिल कह रहा था की उन्होंने मुझे सम्भोग करने के लिए रोक था, इसलिए उन्हें ग्लानि हो रही है| इधर भौजी ने अब तक अपने हाथों का लॉक नहीं खोला था तो मैंने बिना कुछ सोचे उनके ऊपर लेट गया और उनके वक्ष में अपना सर रख दिया| मेरे गाल के उनके सीने से स्पर्श होते ही उनकी धड़कनें तेज हो गईं! मैं उनकी तेज धड़कनें महसूस करने लगा था, उनका भी वही हाल था जो कुछ क्षण पहले मेरा था| मैंने एक फिर भौजी की आँखों में झाँका तो एक सूनापन दिखा, अपनी इच्छा को दबाने वाली पत्नी बड़ी बेबस दिखी| मेरे मन ने कहा "Kiss Her!" इसलिए मैं उनके ऊपर धीरे-धीरे झुकने लगा और फिर उनके होठों को अपने होठों की गिरफ्त में ले लिया| जो प्रेमग्न कुछ देर पहले शांत हो चुकी थी वो एक दम से भड़क उठी और मन बेकाबू हो गया| मैं भौजी के होटों को बेतहाशा चूमने लगा और भौजी भी मेरी हर kiss का जवाब देने लगीं| जल्दी-जल्दी में मैंने उनकी साडी ऊपर उठाई और अपनी पैंटकी ज़िप खोल अपना अकड़ा हुआ लिंग बाहर निकाला और भौजी की टांगों के बीच में आ गया| भौजी ने भी अपनी योनि का द्वार खोल कर मुझे आमंत्रित किया| मैं भौजी के ऊपर झुका और एक जोर दार धक्के के साथ लिंग उनकी योनि में पूर्ण प्रवेश कर गया| जैसे ही मेरा लिंग उनकी योनि में पहुंचा तो मुझे उनके गीलेपन का एहसास हुआ, मैं हैरान था की भौजी की योनि अंदर से गीली थी और वो मुझे फिर भी रोक रहीं थीं? इधर जैसे ही मेरा लिंग भौजी के योनि के भीतर दाखिल हुआ की भौजी ने अपनी गर्दन ऊपर को खींच ली और उनके मुँह से मादक 'आह!' निकली! उस समय प्रेम अग्नि इतनी प्रचंड जल उठी थी की मैंने बिना रुके जल्दी-जल्दी झटके देना शुरू कर दिया और दूसरी तरफ भौजी बड़े मजे से अपनी दोनों टांगें मेरी कमर के इर्द-गिर्द लपेट कर मेरा साथ दे रहीं थीं| हम अपने सम्भोग में इतना मशगूल हो गए की ये भी भूल गए की प्रमुख द्वार खुला हुआ है!

ये समागम ज्यादा देर न चल स्का और 10-15 मिनट के बाद हम दोनों एक-एक कर स्खलित हुए! स्खलित होने के बाद मैं भौजी के ऊपर पड़ा रहा, क्योंकि आज पहलीबार सम्भोग के उपरान्त मैं थोड़ा थक गया था! भौजी की बाहें अब भी मेरी गर्दन के इर्द-गिर्द लॉक थीं और वो अपनी बेकाबू साँसों को काबू कर रहीं थीं| उस समय भौजी की साडी उनकी जाँघों तक ऊपर थी और उनके पैर घुटनों से मुड़े हुए थे तथा मैं उनके वक्ष पर सर रख पड़ा हुआ था, हम दोनों ही मेरे कमरे के दरवाजे की ओर सर कर के पड़े थे| तभी वहाँ अचानक नेहा आ गई! उसे देख हम दोनों हड़बड़ा गए पर अगर हम हिलते तो उसे हमारे यौन अंग दिख जाते और ये अच्छा नहीं होता! इसीलिए हमदोनों ऐसे ही पड़े रहे ताकि उसे सब सामान्य लगे. लेकिन मन ही मन हम दोनों बुरी तरह डरे हुए थे| इधर नेहा ने हमें इस स्थिति में देखा और कुछ समझ ना पाई, इसलिए उसने नासमझी में मुझसे सवाल किया;

नेहा: पापा....आप ये मम्मी के साथ क्या कर रहे हो?

उसके ये सवाल सुन हम दोनों बुरी तरह झेंप गए, भौजी ने तो मुँह मोड़ कर खुद को नेहा के सवाल से बचा लिया| अब मेरे लिए जवाब देना अनिवार्य था तो मैंने जवाब कुछ इस प्रकार दिया;

मैं: बेटा मैं आपकी मम्मी को प्यार कर रहा हूँ|

मेरे पास इससे उपयुक्त कोई जवाब नहीं था| नेहा का ध्यान मेरे जवाब पर लगा तो मैंने भौजी की नंगी जाँघ को साडी से ढकने की कोशिश की और किसी तरह उसे थोड़ा बहुत ढक भी दिया| इतने में नेहा ने अपना दूसरा सवाल दागा;

नेहा: पर 'वो' (चन्दर) तो कभी मम्मी को ऐसे प्यार नहीं करते?

नेहा ने अपने पापा को 'वो' कहा जो इस बात का सबूत था की वो मन ही मन मुझे अपना पिता मान चुकी थी|

इधर भौजी ने नेहा की इस बात का जवाब बड़े गर्व से दिया;

भौजी: बेटा क्योंकि मैं उससे प्यार नहीं करती और आप भी तो इन्हें (मुझे) ही पापा कहते हो, उसे थोड़े ही कहते हो!

जब से मैं आया था तब से मैंने नेहा को कभी चन्दर के पास जाते हुए या उसे पापा कहते हुए नहीं देखा था, वो हमेशा ही चन्दर से डरी-डरी रहती थी|

बातों ही बातों में मुझे याद आया की प्रमुख दरवाजा अब भी खुला है ओर अगर कोई आगया तो आज ही सब कुछ खत्म हो जायेगा;

मैं: बेटा आप प्रमुख दरवाजा बंद करके आओ फिर हम तीनों बैठ के बातें करते हैं|

नेहा तुरंत दरवाजा बंद करने गई और उसी मौके का फायदा उठा के मैं और भौजी अलग हुए तथा अपने-अपने कपडे ठीक करके पुनः लेट गए| जब मैंने भौजी की आँखों में देखा तो उनकी आँखों में मेरे प्रति चिंता साफ़ दिख रही थी|

मैं: आपको चिंता करने की कोई जर्रूरत नहीं है और न ही खुद को दोष देने की कोई जर्रूरत है, मैं बिलकुल ठीक हूँ|

मैंने पूरे आत्मविश्वास से कहा लेकिन भौजी अब भी थोड़ी परेशान थीं, मैं भी मन ही मन ये दुआ कर रहा था की मैं बीमार न पड़ जाऊँ वरना भौजी का दिल टूट जायेगा! इतने में नेहा दरवाजा बंद कर के आ गई, मैंने माहोल को हल्का करने के लिए नेहा को हमारे बीच में सोने को कहा| नेहा मुझसे कुछ ज्यादा ही दुलार करती थी, इसलिए बजाय हमारे बीच में लेटने के वो सीधा मेरे पेट पर बैठ गई और मेरे सीने पर सर रख के लेट गई|

भौजी: नेहा बेटा ऊपर से हटो और यहाँ सो जाओ अपने पापा को आराम करने दो!

एक तो नेहा भौजी से थोड़ा डरी हुई थी और दूसरा उसे वो मुझसे प्यार करने के मामले में थोड़ी जिद्दी थी, इसलिए मुझे ही उसका पक्ष लेना पड़ा|

मैं: कोई बात नहीं सोने दो, वैसे भी बहुत दिन हुए मुझे इसको लाड किये|

मैंने नेहा के सर को चूम कर कहा|

भौजी: सर पे चढ़ा रखा है आपने इसे!

भौजी ने नराज होते हुए कहा|

मैं: तो चढाउँ नहीं, एक ही तो बेटी है मेरी!

ये सुन नेहा खुश हो गई और उसने मुझे जोश में आ कर अपनी नन्ही बाहों में कसना चाहा|

भौजी: बहुत जल्द कोई और भी आने वाला है!

भौजी ने मुस्कुराते हुए कहा, उनका इशारा हमारी आने वाली संतान से था|

मैं: जब वो आई तब दोनों को इसी तरह अपने से चिपकाए रखूँगा|

भौजी: मैं आपके लिए दूध लेके आती हूँ|

ये कहते हुए भौजी उठीं, पर मैंने उनका हाथ पकड़ कर अपनी ओर खींचा और उन्हें फिर से लिटा दिया|

मैं: नहीं रहने दो, आप मेरे पास लेटो|

लेकिन भौजी को मेरे बीमार होने की चिंता थी|

भौजी: आपको जर्रूरत है!

उन्होंने भोयें सिकोड़ते हुए कहा|

मैं: नहीं बाबा! अगर होगी तो मैं आपको बता दूँगा| अभी आप लेटो मेरे पास, इतने दिनों बाद तो तीनों को साथ लेटने का मौका मिला है|

भौजी मेरा दिल नहीं तोडना चाहतीं थीं, इसलिए वो मेरी तरफ करवट ले कर लेट गईं और अपना हाथ नेहा की पीठ पर रख दिया|

मैं: अच्छा नेहा, ये बाताओ आप अपनी मम्मी से गुच्छा (गुस्सा) हो?

मैंने थोड़ा तुतलाते हुए कहा तो नेहा ने हाँ में सर हिलाया, मैंने भौजी की तरफ झूठे गुस्से से देखा और उन्हें प्यार से डाँटते हुए बोला;

मैं: आगे से आप मेर इ बेटी के सामने किसी को नहीं डाटोगे, देखो मेरी बच्ची कितना डर गई है!

ये सुन भौजी ने डरने का नाटक किया और अपने कान पकड़ते हुए बोलीं;

भौजी: सॉरी मेरा बेटू, I promise मैं आज के बाद आपके सामने किसी से लड़ाई नहीं करुँगी! अब तो माफ़ कर दो, वरना आपके पापा भी मुझसे बात नहीं करेंगे!

ये सुन कर नेहा मुस्कुराने लगी और उसने अपनी मम्मी को एकदम से माफ़ कर दिया|

[color=rgb(124,]जारी रहेगा भाग - 6 में...[/color]
 
मित्र,

कृपया मेरी बात ध्यान से पढ़ें और पढ़ने से पहले मैं बता दूँ की मैं आप पर गुस्सा नहीं कर रहा, न ही कोई भड़ास निकाल रहा हूँ| जिस तरह आपने 'रीडर्स' की व्यथा समझाने की कोशिश की है उसी तरह मैं 'लेखकों' की व्यथा समझा रहा हूँ|

जब कोई लेखक कहानी लिखता है तो वो ये काम केवल और केवल अपनी स्वैच्छा से करता है, अपने दिल के जज्बात आप सब के साथ सजा करने के लिए लिखता है! यहाँ पर उसे लिखने के कोई पैसे नहीं मिलते और न ही कोई एक्सपीरियंस मिलता है जिससे वो अपनी नॉवेल या कहानी की किताब लिख सके| एक लेखक के लिए सिर्फ और सिर्फ उसके रीडर्स के किये like और comment मायने रखते हैं, यही वो ऊर्जा है जो प्रोत्साहन के रूम में उसकी लेखन गाडी को आगे ले जाती है| यदि आप प्रोत्साहन ही नहीं दोगे तो लेखक बेमन से लिखेगा या फिर लिखेगा ही नहीं!

अब आते है उन ख़ास बिंदुओं पर जो आपने अंकित किये;

१. रेगुलर रीडर्स: मैं अपने रेगुलर रीडर्स की बहुत कदर करता हूँ और जो थोड़े बहुत रेगुलर रीडर्स मेरे पास हैं ये उन्हीं का प्यार है जो मैं आपको रेगुलर अपडेट दे रहा हूँ| क्या आप जानते हैं की कुल मिला कर कितने रीडर्स हैं जो मेरी कहानी पढ़ रहे हैं और डेली कमेंट कर रहे हैं? आप भी उन्हें में शामिल 'थे'! अगर मैं सारे रीडर्स जोड़ूँ जो हफ्ते दस में कहानी पढ़ते हैं और लिखे करते हैं तो वो केवल 10 से 12 हैं! मैं कोई बहुत बड़ा लेखक नहीं हूँ, अभी बस अपनी बुनियाद ही बना रहा हूँ| इस फोरम के महान लेखक जैसे; डॉक्टर साहब, आशु भाई, राजेश सरहदी जी, कामदेव सर जी..इनकी तरह मुझे लिखना है! जैसे आप सब अपडेट के लिए इनकी जान खाते हैं, मैं भी वही fan following चाहता हूँ! उसके लिए मैं अपनी लेखनी को जैसे हो सके सुधार रहा हूँ और ये कहानी उसी का नतीजा है!

२. पांडेय जी का उल्लेख: मैं नहीं जानता की पांडेय जी कौन हैं और न ही मैंने कभी उनकी कोई कहानी पढ़ी है, फिर भी आपका उनका यहाँ उल्लेख करना मेरी समझ से बाहर है| आपने जो उनका उल्लेख किया उससे मैंने ये समझा की मैं भी उन्हीं की तरह चाहता हूँ की रीडर्स सिर्फ मेरी ही कहानी पढ़ें और मेरी ही कहानी पर कमेंट करें! मित्र मैंने ऐसा न तो कभी चाहा है और न ही कभी कहा है| ये आपकी गलत फैमि है की मैंने ऐसा चाहा या कहा है!

३. अपना काम कीजिये: मित्र मुझे यहाँ कहानी लिखने के पैसे नहीं मिलते, मैं शौकिया लिखता हूँ| अगर प्रोत्साहन न मिले तो मैं अपने हिसाब से लिखूंगा और फिर ऐसे में किसी का रेगुलर अपडेट माँगना जायज बात न होगी| पर चूँकि मुझे बहुत प्यार मिला है इसलिए मैं अपनी पूरी शिद्दत से लिखता हूँ और कोशिश करूँगा की आगे भी लिखता रहूँ, बशर्ते प्यार बराबर मिले!

४. कहानी बोरिंग हो रही है; मित्र आपने कई जगह ये लिखा की कहानी में मजा नहीं आ रहा, बोरिंग होती जा रही है, रोमांचक नहीं है इसलिए कमेंट काम आ रहे हैं, पिछले अपडेट सही नहीं थे फिर भी आपने कमेंट किये आदि| मित्र ये मेरी आप बीती है Christopher Nolan की फिल्म नहीं जहाँ आपको रोमांच, थ्रिलर आदि देखने को मिलेगा| ये एक लव स्टोरी है और फिलहाल मैं इसे एक-एक दिन के हिसाब से लिख रहा हूँ| अभी तक जो मैंने लिखा है वो सच में मेरे साथ घाटी हुआ है| अब अगर आपको लव स्टोरी बोरिंग लग रही है तो मित्र मैं इसमें आपकी कोई सहता नहीं कर पाउँगा| मैं केवल यही कहूंगा की अगर आप थोड़ा सब्र रखेंगे तो आपको आनंद अवश्य आएगा| सब्र का फल हमेशा मीठा होता है!

५. एक हाथ से ताली नहीं बजती: ये बात आपकी बिलकुल सही है, यदि आप ही प्रोत्साहन नहीं दोगे तो मैं अच्छा कैसे लिखूँगा!

६. बड़ी अपडेट: मैं आपकी अधीरता समझ सकता हूँ परन्तु आप ये नहीं देख रहे की मैं प्रतिदिन अपडेट दे रहा हूँ, दिनभर लिखने के आलावा भी एक लेखक को काम होते हैं, यदि न होते तो में बेशक आपको लम्बी-लम्बी अपडेट देता| Power cut, No Internet और आजकल तो वैसे भी lockdown चल रहा है, ऐसे में घर से बाहर के सारे काम मुझे अकेले ही देखने हैं, इसलिए समय बहुत कम मिलता है| फिर भी जितना समय मिलता है उसमें मैं ज्यादा से ज्यादा लिखने की कोशिश करता हूँ| कभी-कभार अपडेट छोटा होता है तो उसका कारन सिर्फ और सिर्फ समय का कम होना होता है| हाँ मैं आपकी बात का मान रखता हूँ और कोशिश करूँगा की आज की तरह कभी-कभी आपको बड़ी अपडेट दिया करूँ|

७. No Like No Comment : मित्र, ये आपका व्यक्तिगत निर्णय है, इसके लिए मैं आपको कभी भी विवश नहीं करूँगा|

आशा करता हूँ आप मेरी एक लेखक की व्यथा समझ पाएंगे!
no hard feelings! ♥
 

[color=rgb(65,]पन्द्रहवाँ अध्याय: पत्नी का प्रेम[/color]
[color=rgb(184,]भाग - 6[/color]



[color=rgb(243,]अब तक आपने पढ़ा:[/color]

मैं: अच्छा नेहा, ये बाताओ आप अपनी मम्मी से गुच्छा (गुस्सा) हो?
मैंने थोड़ा तुतलाते हुए कहा तो नेहा ने हाँ में सर हिलाया, मैंने भौजी की तरफ झूठे गुस्से से देखा और उन्हें प्यार से डाँटते हुए बोला;
मैं: आगे से आप मेर इ बेटी के सामने किसी को नहीं डाटोगे, देखो मेरी बच्ची कितना डर गई है!
ये सुन भौजी ने डरने का नाटक किया और अपने कान पकड़ते हुए बोलीं;
भौजी: सॉरी मेरा बेटू, I promise मैं आज के बाद आपके सामने किसी से लड़ाई नहीं करुँगी! अब तो माफ़ कर दो, वरना आपके पापा भी मुझसे बात नहीं करेंगे!
ये सुन कर नेहा मुस्कुराने लगी और उसने अपनी मम्मी को एकदम से माफ़ कर दिया|

[color=rgb(147,]अब आगे ...[/color]

मैं: अच्छा अब आप (नेहा) ये बताओ की क्या किया इतने दिन अपने नाना जी के घर?

भौजी: जिस दिन हम पहुँचे वो सारा दिन तो ये मेरी गोद में चढ़ी रोती रही और कहती रही की मुझे पापा के पास जाना है! किसी तरह मैंने इसे चुप कराया और कुछ बच्चों से इसकी दोस्ती कराई, शुरू-शुरू में ये उन्हें खेलते हुए देखती रहती फिर मेरी बहन के बच्चों ने खींच कर इसे अपने साथ खिलाना शुरू किया| बस फिर क्या था, इसकी उनके साथ दोस्ती हो गई और सब बच्चों ने बड़ी धूम मचाई! जब रात हुई तो ये मेरे पास आ गई और फिर पूछने लगी की हम घर कब जायेंगे? जब मैंने कहा की दो दिन बाद तोये फिर से मायूस हो गई| वो तो दिन भर की धमा-चौकड़ी मचाने के कारन इसे नींद आ गई, लेकिन नींद में भी मुझे आप समझ कर मुझसे लिपट गई| बस फिर यही चलता रहा, दिन भर बच्चों के साथ मस्ती और रात में वापस जाने का सवाल|

मैं: Aww !!! मेरे बेटे ने मुझे miss किया?

मैंने नेहा के सर को चूमते हुए कहा, पर उसे miss का मतलब समझ नहीं आया तो मैंने उसे बताया की मिस का मतलब याद करना, ये सुन कर उसके चेहरे पर मुस्कान तैरने लगी और उसने हाँ में सर हिला कर बताया की उसने मुझे बहुत miss किया| मैंने नेहा को उठा कर उसके गालों को बारी-बारी चूमना शुरू कर दिया|

नेहा को दुलार करने के बाद मैंने भौजी से पुछा;

मैं: और आप....आपने क्या किया इतने दिन?

भौजी कुछ कहती, उससे पहले ही नेहा बोल पड़ी और अपनी मम्मी की पोल-पट्टी खोल दी;

नेहा: मम्मी न छुप-छुप के बहुत रोती थी!

नेहा की बात सुन मैंने भौजी को भोयें सिकोड़ कर देखा और कहा;

मैं: मैंने आपको शादी अटेंड करने भेजा था या रोने?! क्या सोचते होंगे पिताजी (ससुर जी) और माँ (सासु जी)?

जिस तरह मैंने भौजी के माता-पिता को अपने माँ-पिताजी कहा उसे देख भौजी का मन प्रसन्न हो गया और वो मुस्कुराते हुए बोलीं;

भौजी: वो तो ये कह रहे थे की आपने कैसा जादू कर दिया उनकी लड़की पर, जो दो बार बुलाने पर नहीं आ रही थी वो बस आपके एक बार कहने से आ गई!

ये सुन मुझे भी हँसी आ गई और जानकार बड़ा अच्छा लगा की वे मेरे बारे में अच्छा सोचते हैं|

मैं: तो साले साहब ने सब कुछ बोल दिया?

भौजी: हाँ जी, माँ और पिताजी तो आपसे मिलना चाहते थे पर आप हैं की.....

भौजी ने प्यार से उलाहना देते हुए बात आधी छोड़ दी|

मैं: कोई बात नहीं, मिल लेंगे!

मैंने मुस्कुरा कर बात को टाल दिया| उधर नेहा हम दोनों को बात करते हुए देख बेचैन हो रही थी, वो चाहती थी की मैं उससे भी बात करूँ तो उसने बड़ा ही मजेदार सवाल पुछा;

नेहा: पापा....मैं एक बात पूछूँ?

नेहा ने मेरा गाल पकड़ कर मेरा ध्यान अपनी तरफ करते हुए पुछा|

मैं: हाँ बेटा पूछो?

मैंने नेहा के माथे को चूमते हुए कहा|

नेहा: पापा आप मुझसे ज्यादा प्यार करते हो या मम्मी से?

नेहा का ये बचकाना जवाब सुन मैं हँस पड़ा और नेहा को कस कर अपने सीने से लगाते हुए कहा;

मैं: आपसे!

ये सुन कर एक छोटे बच्चे के भाँती नेहा गर्व से फूली नहीं समाई और अपनी मम्मी को जीभ दिखा के चिढ़ाने लगी, वहीं भौजी भी उसे जीभ दिखा के चिढ़ाने लगी| अब बेटी का पक्ष लिया था तो पत्नी का नाराज होना स्वाभाविक था, भौजी मेरी ओर देख के अपना प्यार भरा गुस्सा दिखाने लगीं;

भौजी: अच्छा जी, तो आप इससे बहुत प्यार करते हो? और हम...हम गए तेल लेने!

भौजी ने प्यार भरी शिकायत की|

मैं: मेरी बिटिया है ही इतनी प्यारी की उससे नजर ही नहीं हटती!

मैंने नेहा के माथे को चूमते हुए कहा| पर भौजी को एक मीठी सी जलन होने लगी;

भौजी: और मैं?

मैं: अब बेटी इतनी प्यारी है तो जाहिर है की माँ भी बहुत प्यारी होगी, आखिर पैदा तो आपने ही किया है|

भौजी मुस्कुराने लगीं| हम दोनों ही कुछ पल के लिए खामोश हो गए ओर बस एक दूसरे की आँखों में देखते रहे, दूसरी ओर नेहा मेरी छाती पर सर रख हुए फिर से सो गई| अचानक ही दिल में कुछ अजीब सा महसूस हुआ, अंदर ही अंदर मुझे कुछ बुरा लग रहा था| ऐसा लग रहा था की अभी जो (सम्भोग) हुआ वो जबरदस्ती से हुआ था| ये ख्याल मन में इसलिए आया क्योंकि आज तक मैंने कभी सम्भोग के लिए पहल नहीं की थी, हमेशा ही भौजी पहल करतीं थीं ओर मैं उनकी पहल का गर्म जोशी से जवाब दिया करता था| उधर भौजी शायद मन ही मन मेरे ख्यालों को पढ़ चुकीं थीं;

भौजी: क्या हुआ? आप चुप क्यों हो? क्या छुपा रहे हो?

मैं सब कहना तो चाहता था पर हिमायत नहीं हो रही थी|

मैं: नहीं तो?

मैंने अनजान बनते हुए कहा|

भौजी: आप जानते हो ना आप मुझसे कभी जूठ नहीं बोल सकते, अभी तक आप कितना खुश थे पर अब अचानक से चुप हो गए हो? बताओ न? प्लीज!

मैं: वो......जो कुछ अभी हुआ उसे लेकर थोड़ा परेशान हूँ|

मैंने भौजी से आँखें चुराते हुए कहा|

भौजी: क्यों?

भौजी ने चिंतित हो कर पुछा|

मैं: मुझे guilty (ग्लानि) फील हो रहा है, ऐसा लग रहा है मैंने आपके साथ जबरदस्ती की! मुझे लग रहा है की आप वो (सम्भोग) सब नहीं करना चाहते थे, बस मेरा मन रखने के लिए आपने वो......

इतना कह कर मैंने बात अधूरी छोड़ दी|

भौजी: I'm sorry अगर आपको ऐसा लगा| पर मुझे सिर्फ आपकी सेहत की चिंता है, अगर आप मेरी वजह से बीमार पड़े तो मैं खुद को माफ़ नहीं कर पाऊँगी| मेरे एक दिन एक्स्ट्रा रुकने से आपकी ये हालत हुई, पर यक़ीन मानो माँ-पिताजी ने मुझे जबरदस्ती रोक लिया वरना मैं जल्दी आ जाती और तब शायद आपकी ये हालत नहीं होती| मैंने आज ये सब आपका दिल रखने के लिए कतई नहीं किया, मेरा भी बहुत मन था, इतने दिनों से मैं आपके प्यार के लिए बहुत तदपि हूँ! लेकिन आपकी सेहत का ख्याल रखना भी मेरा ही कर्तव्य है, शायद इसीलिए आप मेरी ख़ुशी नहीं देख पाये| आप ऐसा बिलकुल मत सोचना की आपने कोई जबरदस्ती की है या मेरा मन नहीं था, आपका पूरा हक़ है मुझ पर! आपकी ब्याहता हूँ! आगे से प्लीज ऐसा मत सोचा करो!

भौजी ने कह तो दिया पर मेरे लिए ये इतना आसान नहीं था, इसे डर कहूँ, संस्कार कहूँ या प्यार कहूँ पर मैं सम्भोग में पहल करने से डरता था!

खैर, आज क्योंकि मौका अच्छा था तो मुझे भौजी से जानना था की उस दिन उन्होंने चन्दर को ऐसी कौन सी पट्टी पढ़ाई की वो एकदम से सीधा हो गया ओर ये मान गया की ये उसका बच्चा है!

मैं: वैसे एक बात और है जो मैं जानने को बहुत उत्सुक हूँ?

भौजी: पूछिये?

मैं: उस दिन आपके और चन्दर के बीच में क्या बात हुई? क्योंकि जब वो अंदर आया था तो वो गुस्से में था और जब बाहर निकला तो संतुष्ट था!

ये सुन भौजी के चेहरे की ख़ुशी ओझल हो गई ओर उन्होंने उस दिन का सारा वाक्य मुझे सुनाया|

आपके बाहर जाने के बाद चन्दर मुझ पर बरस पड़ा ओर गरजते हुए बोला; "ई पाप केह्का है? हमका तो तू छुए नहीं देत हो, आपन आस-पास भटके नाहीं देत हो, तो फिर ई सब कैसे भवा?"

उसने मेरे बच्चे को पाप कह कर गाली दी थी, इसलिए मैं उस पर भड़क उठी; "खबरदार जो हमार बच्चा का कछु कह्यो तो? हमसे ओर हमार बच्चे से दूर ही रहेओ! हम तोहरे जइसन नाहीं हैं जो हियँ-हुआँ मुँह मारे फिरे! तू जोन हमार सगी बहन के साथ कीन हो....छी...छी...छी...छी! अगर हमहुँ तोहरे जइसन बाहर मुँह मारे लागे तो हमरे में ओर तोहरे में का अंतर् रह जाई?" चन्दर मेरे ये गुस्सैल तेवर देख कर थोड़ा सहम गया, ये तो आपके प्रति मेरा प्यार ओर हमारे होने वाले बच्चे के लिए माँ का रूप था जो मेरे गुस्से के रूप में बाहर आया था| आपके आने से पहले जब कभी वो मेरे साथ जबरदस्ती करने की कोशिश करता था तब मेरा उद्देश्य बस खुद को बचाने का होता था, पर उस दिन मुझे आपको और अपने होने वाले बच्चे को बचना था इसलिए मैं उस वक़्त बहुत गुस्से में थी| मेरा गुस्सा देख कर चन्दर थोड़ा सम्भल कर और अपनी झूठी अकड़ दिखाते हुए बोला; "जब हम तोहका छू बे नहीं किहिन तो ई बचा कहाँ से आवा?" ये वो सवाल था जिसका जवाब मैंने बहुत पहले से ही सोच रखा था| "भुलाये गया ऊ दिन जब दारु पीये रहेओ? ऊ दिन तुम हमरे संगे जबरदस्ती किये रहेओ, हमार बलात्कार कियो.... कछु याद आया?" मैंने गरजते हुए कहा| लेकिन उसे यक़ीन नहीं हुआ और वो मुझे घूरते हुए बोला; "ई नाहीं हो सकत! हमका अच्छे से याद है, हम कछु नाहीं किहिन रहा!"

"अच्छा? तो हमरी पीठ पर निसान (निशान) कैसे पड़े? हमार बुर पर तोहरे गंदे हाथों की खरोचें, काटने और नोचने के कइसन पड़ीं? जानत हो ऊ दिन हमका कितना गाली बाकियो रहेओ?" मैंने उसे शर्मिंदा करने के लिए कहा, पर वो मेरी बात सुन कर सोच में पड़ गया| अब इससे पहले की वो कुछ और पूछता या कहता मैंने उसे ये कह के डरा दिया की; "जउन जबरदस्ती तुम हमरे साथ किये हो और हमार बहन के संगे किये हो, कर देइ ऊ की पुलिस थाने में रपट?" मेरी पुलिस की धमकी सुन वो घबरा गया और मुझिसे पूछने लगा; "तु आपन पति के खिलाफ रपट करिहो?" उसका डर देख मुझे उसे काबू करने की सोची; "अगर तुम हमपा ई गंदा इल्जाम लगैहौ तो हम हूँ तोहरे खिलाफ रपट कर सकित है!" मैंने फिर उसी गुस्से से कहा, जिसे देख और सुन अब उसे पूरा विश्वास हो गया था की ये बच्चा उसी का है|

ये सब बता के भौजी रो पड़ीं!

मैं: I'm sorry! मुझे ये बात नहीं करनी चाहिए थी|

मैंने भौजी के आँसूँ पोछते हुए कहा|

भौजी: मुझे आपके बात पूछने का दुःख नहीं है, दुःख है तो बस इस बात का की मैं हमारे बच्चे को आपका नाम नहीं दे सकती!

ये कहते हुए भौजी की आँखें फिर भर आईं|

मैं: यक़ीन मानो चाहता तो मैं भी हूँ पर हमारे हालत ऐसे हैं की हम करीब होते हुए भी बहुत दूर हैं! आप जानते हो ये हमारा बच्चा है, मैं जानता हूँ ये हमारा बच्चा है, हमारे लिए यही काफी है! वैसे इसका दूसरा रास्ता था की आप मेरे साथ भाग चलो, पर वो आपके हिसाब से अनुचित है तो मैं आपको उस बात के लिए दुबारा जोर नहीं दूँगा|

मेरे सर से भौजी को भगाने का भूत उतर गया था और ये देख भौजी के दिल को तसल्ली मिली थी| भौजी ने मेरे दाहिने हाथ को खोल कर अपना तकिया बनाया और मुझसे लिपट गईं| इस समय वो बहुत भावुक थीं और ऐसे में उन्हें एक कन्धा चाहिए था जिस पर वो अपना सर रख के रो सकें, अगले ही पल उनकी आँखों में आये आँसूँ मुझे टी-शर्ट के ऊपर से महसूस होने लगे|

मैं: I love you!

मैंने भौजी की आँखों में देखते हुए कहा|

भौजी: I love you too!

भौजी सुबकते हुए बोलीं| भौजी ने अपने आँसूँ पोछे और प्यार से मुस्कुराईं, फिर मेरे दाएँ गाल को चूम वापस मेरे कंधे पर सर रख कर लेट गईं| उनकी ये प्यारी मुस्कान ये दिखाती थी की उनका मन अब शांत है और अब वो खुश हैं|

हम तीनों ऐसे ही लिपटे हुए मीठी सी नींद में सो गए! कुछ देर बाद जब मेरी आँख खुली तो भौजी वहाँ नहीं थी, नेहा अब भी मेरी छाती पर लेटी हुई थी और मेरा हाथ अब भी उसकी पीठ पर था| मैं बहुत सावधानी से उठा ताकि नेहा कहीं गिर ना जाए और नेहा को वापस चारपाई पर लिटा दिया| फिर मैंने हाथ-मुँह धोया और नेहा को जगाने आया, नेहा को गोद में उठा के उसकी आँखें धोई तब जाके नेहा जागी| मैं उसे लेके रसोई घर की ओर जा ही रहा था की तभी भौजी आ गईं, उनके एक हाथ में चाय थी और एक हाथ में दूध था| साफ़ था की दूध मेरे लिए था, मैंने दूध का कप लिया और नेहा को पिलाने लगा;

भौजी: ये आपके लिए है, नेहा के लिए नहीं|

पर मैं कहाँ सुनने वाला था, मैंने नेहा को अपने हाथ से दूध पिलाना शुरू किया;

मैं: बच्चे चाय नहीं पीते दूध पीते हैं, अब से नेहा को सुबह-शाम दूध ही देना!

जब से मैं आया था मैंने कभी-कभार ही नेहा को दूध पीते हुए देखा था| जब कभी बड़की अम्मा दूध निकालतीं और वो ज्यादा निकलता तो वो एक्स्ट्रा दूध नेहा और वरुण को मिलता| ऐसा नहीं था की हमारे घर में दूध नहीं होता था, लेकिन वहाँ बच्चों को दूध पीने की आदत नहीं थी| अब मैं शहर में पला-बढ़ा था तो मुझे दूध पीने की आदत मेरे माता-पिता द्वारा डाली गई थी और मैं ये ही आदत अपनी बेटी नेहा में डालना चाहता था लेकिन मेरी पत्नी को मेरी कुछ ज्यादा ही चिंता थी;

भौजी: ठीक है कल से दे दूँगी, अभी तो आप दूध पी लो...आपको ज्यादा जर्रूरत है!

ये कहते हुए उन्होंने मेरे हाथ से दूध कप लेना चाहा, उनकी इस हरकत से मैं चिढ गया और उन्हें थोड़ा झिड़क दिया;

मैं: मुझे कुछ नहीं हुआ है, मैं बिलकुल ठीक हूँ! Stop treating me like a patient!

मेरी झिड़की सुन भौजी का मुँह उतर गया और वो चाय का कप रखते हुए बोलीं;

भौजी: ओह..सॉरी!

इतना कह भौजी मुड़कर जाने लगीं, मैंने जल्दी से नेहा को गोद से उतारा और भौजी के कंधे पर हाथ रख के उन्हें रोका तथा अपनी ओर पलटा| बिना देर किये मैंने अपने दोनों हाथों से उनका चेहरा थामा और उनके होठों पर अपने होंठ रख दिए, मेरे होंठ स्पर्श होते ही भौजी ने अपने दोनों हाथों को मेरे सर के पीछे रख दिया और बड़ी जोर से मेरे होंठ चूसने लगीं| ये एक बड़ी ही अनोखी प्यास थी जो कभी खत्म ही नहीं होती थी, दोनों का मन करता था की हम बस इसी तरह एक दूसरे से लिपटे रहे और एक दूसरे को जी भर कर, बिना किसी रोक-टोक के प्यार कर सकें! अगले एक मिनट तक हम यूँ ही एक दूसरे के होठों को चूसते रहे और हम ये भी भूल गए की नेहा भी वहीं मौजूद है| मेरी बेटी नेहा कुछ समझदार थी, जब हम एक दूसरे को kiss करने में व्यस्त थे तो नेहा ने अपना ध्यान दूध पीने पर लगा दिया था| खैर जब हमारा चुंबन खत्म हुआ तो मैंने भौजी से; "I'm sorry" कहा| ये सुन वो कुछ नहीं बोलीं बस मेरे गले लग गईं| हमार ये प्रेम मिलाप अभी चलता, इतने में वहाँ रसिका भाभी आ गईं और उनके आते ही मैं भौजी से अलग हो गया लेकिन तब तक रसिका भाभी ने हमारा पूरा प्रेम मिलाप देख लिया था|

मैं जानता था उसे देखते ही भौजी का पारा फिर चढ़ जायेगा, इसलिए मैंने नेहा को इशारे से बाहर भेज दिया| अभी नेहा दरवाजे तक भी नहीं पहुँची थी की भौजी रसिका भाभी पर बरस पड़ीं;

भौजी: तोहार हिम्मत कैसे भई हियाँ आये की?

भौजी का गुस्सा देख रसिका भाभी ने उनके हाथ जोड़ दिए और बोलीं;

रसिका भाभी: दीदी...एक बार हमार बात तो सुन लिहो!

भौजी: माद....

भौजी रसिका भाभी को बड़ी गन्दी गाली देने वालीं थीं, मैंने उनके कंधे पर हाथ रख उन्हें शांत किया और गाली देने से रोक लिया;

मैं: बोलने दो इसे!

भौजी ने गाली तो रोक ली पर उन्हें लगा की मैं रसिका भाभी की तरफदारी कर रहा हूँ, इसलिए उन्होंने मेरी ओर देखते हुए गुस्से से कहा;

भौजी: बोल!

एक पल को तो रसिका भाभी के मन में आया की वो अपने मन की बात दबा दें पर उनकी बुर की आग ने उन्हें जला रखा था, इसलिए वो बोलीं;

रसिका भाभी: दीदी हम बहक गेन रहें, हमका माफ़ कर दिहो! तुम तो जनते हो की ऊ (अजय भैया) हमका छूते तक नाहीं, तुहुँ हियाँ नाहीं रहेओ एहि करके हम मानु भैया की ओर आकर्षित होइ गेन! हम भूल गेन की ऊ दिन मानु भैया ही हमका उनसे (अजय भैया से) बचाये रहे, पर हम वासना की आग मा जलत रहन और मानु भैया संगे जबरदस्ती करे का पाप किहिन! हम तोहसे हाथ जोड़ कर माफ़ी मांगित है, किरपा कर के हमका माफ़ कर दिहो! हम फिर कभऊँ अइसन गलती न करब!

रसिका भाभी जानती थी की अगर भौजी ने ये सच किसी को बता दिया तो उनका हाल धोबी के कुत्ते जैसा हो जायेगा, न वो अपने घर की रहेंगी और न ही ससुराल की! इसीलिए वो यहाँ माफ़ी माँगने आईं थीं, लेकिन वो यहाँ कुछ और सोच कर भी आईं थीं!

रसिका भाभी: कल रात हम और अभय हम सभी देख लिहिन है और हम जानी गयन हैं की तुम मानु भैया का कितना प्रेम करत हो, तभईं तो मानु भैया हमका नाही छुईं! तोहका तो मन का मीत मिल गवा पर हम तो प्यासे रह गेन!

रसिका भाभी ने हमार प्रेम मिलाप देख लिया है, ये सोच कर हम दोनों डर गए थे! फिर जिस तरह से रसिका भाभी ने अपनी अंतिम बात कही थी वो उनका हमें ब्लैकमेल करने का प्लान साफ़ बता रहा था, लेकिन भौजी छाती तान कर रसिका भाभी पर गरज पड़ीं;

भौजी: हमार बात आपन कान खोल कर सुन, जउन तो सोच कर हियाँ आई है ऊ तो होवे से रहा! हम दोनों प्राणी का खिलाफ अगर तूने चू तक की तो हम सबका बताये देब की तू कैसे काम पिपासी होये के इनके पीछे पड़ी रही! फिर तू ई न भूल की ई घर मा सब जानत हैं की तू का-का काण्ड किहो है? इसलिए कोई तुझ जैसी छिनाल की बात तो माने से रहा! पर हमार बात सब मानिहैं और हम तोहका इस घर से निकलवा देब!

भौजी की धमकी सुन रसिका भाभी की आँखें झुक गईं, उनका हमें ब्लैकमेल करने का प्लान फ्लॉप हो चूका था! वो आगे कुछ नहीं बोलीं बस चुप-चाप चलीं गई, उनके जाते ही भौजी ने मुझसे गुस्से में पूछा;

भौजी: सुन लिया आपने?

मैं: हाँ...अब ही इनके अंदर वो कीड़ा कुलबुला रहा है, लेकिन आपकी धमकी ने उनकी बोलती बंद कर दी|

मैंने मुस्कुरा कर कहा|

भौजी: और आप उसी की तरफदारी कर रहे थे!

भौजी ने मुझ पर आरोप लगाते हुए कहा|

मैं: मैंने कोई तरफदारी नहीं की, अगर उसे बोलने का मौका नहीं देते तो कैसे पता चलता की उसके दिमाग में क्या चल रहा है?

तब जा कर भौजी को मेरी बात समझ में आई| अभी हमारी बातें चल ही रहीं थी की माँ और पिताजी भी आ गए, उनके आते ही भौजी ने तुरंत घूँघट काढ़ लिया और उनके लिए पानी लेने चली गईं| इधर बड़के-दादा और बड़की अम्मा भी कीर्तन से लौट आये| हम सभी बड़े घर के आंगन में बैठे थे और मामा जी के घर के हाल सुन रहे थे| तभी पिताजी ने बताया की चन्दर और अजय भैया भी वहाँ पहुँचे हुए हैं और मामा जी ने पाठ रखवाया है तो उसी में सहायता कर रहे हैं| कुछ देर में चाय भी आ गई और बातों का सिलसिला शुरू हुआ, इन्हीं बातों-बातों में बड़के दादा ने मेरे खेतों में किये गए से ले कर भौजी के न होने पर खाना न खाने तक का सारा हाल सुना दिया| मेरा सारा समाचार प्राप्त कर पिताजी को गुस्सा आया पर बड़की अम्मा के डर से कुछ नहीं बोले, माँ-पिताजी की डाँट का प्रसाद तो मुझे मिलना ही था, अभी नहीं तो कुछ देर बाद सही!

रात हुई और भौजी खाना बनाने में लग गईं, हम सारे लोग कुएँ के पास वाले आंगन में बैठे थे, एक बस रसिका भाभी थीं जो अकेली बड़े घर में पड़ी हुईं थीं| पिताजी और बड़के दादा अपनी-अपनी चारपाई पर लेटे बात कर रहे थे, वहीं दूसरी तरफ माँ और बड़की अम्मा आंगन में दूसरे कोने पर चारपाई डाले बात कर रहे थे, बचे मैं, नेहा और वरुण तो हम तीनों छप्पर के नीचे तख्त पर बैठे खेल रहे थे| कुछ देर बाद जब बड़की अम्मा खेतों की ओर (बाथरूम) गईं तो माँ ने मुझे आवाज दे कर बुलाया;

माँ: मानु इधर आ|

मैं बच्चों को तख्त पर खेलता हुआ छोड़ माँ के पास आया| दरअसल मेरे भूख हड़ताल की बात सुन पिताजी बहुत गुस्सा थे ओर मुझे पिताजी के गुस्से से बचाने के लिए माँ ने मुझसे बात कर मुझे समझाने का वादा पिताजी से किया था| खैर इस बात से अनजान मैं माँ के पास हाथ पीछे बाँधे खड़ा हो गया|

माँ: बैठ मेरे पास, मुझे कुछ बात करनी है|

मैं तुरंत उनके पास बैठ गया ओर बोला;

मैं: जी बोलिए|

माँ: बेटा तू इतना होशियार है, समझदार है, फिर तू ऐसा क्यों कर रहा है? आखिर क्यों तू बात को नहीं समझता? तू जानता है की आज नहीं तो कल हमने चले जाना है, फिर तू अपनी भौजी से इतना क्यों मोह बढ़ा रहा है? क्यों उसे तकलीफ देना चाहता है?

मेरे पास माँ के सवालों का कोई जवाब नहीं था, सो मैं सर नीचे झुका के बैठ गया| माँ की बात जायज थी परन्तु मैं खुद को कैसे रोकता? कैसे खुद को भौजी के करीब जाने से मना करता? खासकर तब जब वो हमेशा मेरे सामने रहती हैं, ऐसे में मैं कैसे अपने दिल को काबू करता? मेरे वापस जाने के एक छोटे से मजाक ने उनका क्या हाल किया था ये मैं भलीं-भाँती जानता था और माँ के सवालों ने तो मुझे अजब दुविधा में डाल दिया था! उस समय मैं बहुत उदास और परेशान था की मैं क्या करूँ कैसे खुद को भौजी के नजदीक जाने से रोकूँ, उधर माँ मुझसे अपने पूछे गए सवाल का जवाब जानना चाहतीं थीं|

मैं: माँ आपका कहना ठीक है की मुझे इतना मोह नहीं बढ़ाना चाहिए पर यहाँ पर मेरा कोई दोस्त नहीं है, एक बस वही हैं जिनसे मेरी इतनी बनती है| फिर नेहा के साथ तो जैसे मैं खुद बिलकुल बच्चा बन जाता हूँ|

मेरे पास बस यही एक जवाब था लेकिन माँ मुझसे इस जवाब की अपेक्षा नहीं कर रहीं थीं|

मैं: ..ठीक है माँ...मैं ऐसी गलती फिर नहीं करूँगा|

मैंने वो जवाब दिया जो वो सुनना चाहती थीं| मेरा जवाब सुन, माँ का दिल प्रसन्न हो गया और वो मेरे सर पर हाथ फेर रसोई की ओर चली गईं|

मैंने माँ से कह तो दिया था, पर मैं जानता था की मैं उस पर अमल नहीं कर पाउँगा| इसलिए मैंने सब समय पर छोड़ दिया और शायद यही मेरी गलती थी....या शायद अब समय पर सब कुछ छोड़ने के लिए भी बहुत देर हो चुकी थी!

मैं अकेला आंगन बैठा माँ की कही हुई बात को सोच रहा था की तभी दोनों बच्चे आ गए और चारपाई पर चढ़ कर मुझसे लिपट गए| दोनों ने मिल कर मेरे गालों को इतना चूमा की मैं माँ की कही बात को भूल गया और उनके प्यार में बहते हुए उन्हीं के साथ खेलने लगा| इसी तरह हँसते-खेलते हुए रात के खाने का समय हुआ| मैं, पिताजी और बड़के दादा हकैपर के नीचे खाना खाने बैठ गए, वरुण और नेहा दोनों मेरे सामने आलथी-पालथी मार के बैठ गए और हम तीनों एक ही थाली से खाना खाने लगे| खाने के बाद मैं दोनों को गोद में उठाकर अपनी चारपाई पर ले आया और कहानी सुनाने लगा| कहानी सुनते-सुनते दोनों सो गए और तभी भौजी आ गईं और मुझसे बोलीं;

भौजी: सुनिए? आप कहाँ सोने वाले हो?

मैं: यहाँ आँगन में|

मैंने अपनी चारपाई की ओर इशारा करते हुए कहा|

भौजी: ठीक है फिर मैं भी अपने घर के आंगन में ही सोऊँगी|

ये बोल कर वो खाना खाने जाने लगीं|

मैं: एक मिनट, माँ और बड़की अम्मा कहाँ सो रहे हैं?

भौजी: वो सब बड़े घर के आंगन में सोयेंगी|

मैं: देखो फिर ऐसे ठीक नहीं लगेगा, सभी औरतें वहाँ सोएँगी और आप यहाँ सोओगे तो बड़की अम्मा क्या कहेंगी?

मैंने भौजी को समझाते हुए कहा| उस समय मेरे दिमाग में माँ की कही बात घूम रही थी, अगर भौजी यहाँ सोती तो कल माँ फिर मुझे समझातीं और मैं तो फिर भी सुन लेता पर अगर वो ये बात भौजी से कहतीं तो उनका दिल टूट जाता|

भौजी: वो सब मुझे नहीं पता, मैं तो अपने घर में ही सोऊँगी| रात को अगर आपकी तबियत ख़राब हो गई तो? आप तो किसी को उठाओगे नहीं, क्योंकि उससे सबकी 'नींद डिस्टर्ब' हो जाएगी| मैं यहाँ हूँगी तो कम से कम रात को उठ के आपकी तबियत चेक तो कर लिया करुँगी|

भौजी ने मुँह फूलते हुए कहा|

मैं: ऑफ-ओह मुझे कुछ नहीं हुआ है| I'm fit and fine....

मैंने उन्हें समझना चाहा पर भौजी ने मेरी बात बीच में ही काट दी;

भौजी: वो सब मैं कुछ नहीं जानती, मैं तो यहीं सोऊँगी and that's final!

भौजी जिद्द पर अड़ गईं तो मुझे ही इसका कोई हल निकालना था|

मैं: ऐसा करो, आप खाना खा कर आओ फिर देखते हैं|

भौजी खाना खाने गईं और इधर मैं पिताजी और बड़के दादा के पास जा बैठा और उनसे बातें करने लगा| उधर भौजी ने फटाफट खाना खाने लगीं, इस डर से की मैं की कहीं पिताजी के पास न सो जाऊँ| क्योंकि अगर मैं पिताजी के पास सो जाता तो वो रात को मेरा बुखार चेक कैसे करतीं?

भौजी खाना खा कर छप्पर के नीचे से निकलीं और मुझे इशारे से बुलाया| मैं भौजी को लेके बड़े घर पहुँचा तो वहाँ जाके देखा की सोने का व्यवस्था क्या है? बड़े घर के आँगन में चार चारपाइयाँ बिछीं थीं, सबसे दूर वाली रसिका भाभी की, उसके बाद बड़की अम्मा की, उसके बाद माँ की और उसके बाद भौजी की|

मैं: ऐसा करो एक चारपाई यहाँ आपकी और माँ की चारपाई के बीच में डाल देते हैं, उस पर मैं सो जाऊँगा| इस तरह मैं आपके सामने भी हूँगा और आपको ज्यादा चिंता भी नहीं रहेगी|

ये सुन भौजी खुश हो गईं|

भौजी: ठीक है!

चारपाई बिछा कर मैंने भौजी को कहा की वो वरुण और नेहा को यहाँ ले आयें| भौजी बच्चों को लेने गईं और यहाँ मैंने अपनी और उनकी चारपाई के बेच चार फुट का फासला रख छोड़ा क्योंकि बाकी जो चारपाइयाँ बिछी थीं वो भी कुछ ऐसे ही बिछीं थीं| जब भौजी दोनों बच्चों को ले कर आईं तो हमारी चारपाई के बीच फासला देख मुझसे नाराज होते हुए बोलीं;

भौजी: आपने अपनी चारपाई इतनी दूर क्यों रखी है|

ये सुन मैंने भौजी को प्यार भरा ताना मारा;

मैं: ऐसा करते हैं मैं आपके साथ ही सो जाता हूँ!

ये सुन भौजी ने ठंडी आह भरते हुए कहा;

भौजी: हाय!! मेरी ऐसी किस्मत कहाँ, आप अभी सो जाओगे और आधी रात को छोड़ कर चले जाओगे! मजा तो तब आये जब आप रात भर मेरे साथ रहो और हम एक दूसरे के पहलु में समाये रहे!

भौजी की ये बात मुझे लग गई, लेकिन मैंने उन्हें कुछ नहीं जताया|

मैं: अच्छा अब अपनी ख्यालों की दुनिया से बहार आओ और इस चारपाई पर बिस्तर लगवाओ|

मैंने फिलहाल के लिए बात ताल दी थी, लेकिन मेरे मन में खिचड़ी पकनी शुरू हो गई थी| बिस्तर बिछा और भौजी रसोई चली गईं ताकि साफ़-सफाई कर लें, इधर मैं चारपाई पर लेट गया और मन की खिचड़ी को उबालने लगा, उबाल-उबाल कर मैंने उस खिचड़ी से ख्याली पुलाव बना दिया! ये पुलाव सोच कर ही इतना स्वाद लग राहत अगर ये सच्ची में खाने को मिलता तो मजा ही आ जाता!

खैर करीब आधे घंटे बाद माँ, बड़की अम्मा और रसिका भाभी बड़े घर आ गए और मुझे चारपाई पर लेटा हुआ देख माँ ने सवाल किया;

माँ: तू यहाँ क्या कर रहा है?

मैं माँ के इस सवाल का जवाब पहले से ही सोचे बैठा था;

मैं: माँ आपकी बहुत याद आ रही थी तो सोचा आज आपके पास सो जाऊँ| अब आपकी चारपाई है छोटी और मैं हूँ बड़ा, छोटा होता तो आप मुझे गोदी में ले आकर सो जाते, तो मैंने सोचा की गोद में न सही कम से कम आपकी बगल में चारपाई डाल कर तो सो सी सकता हूँ!

मैंने बात इस कदर बनाई की सारे ठहाका लगा कर हँस पड़े| हँसते-हँसते सब अपनी-अपनी चारपाई पर लेट गए|

करीब एक घंटा बीता होगा, मुझे थोड़ी झपकी लगी ही थी की तभी अचानक किसी ने मेरे माथे को छुआ! मैंने एकदम से आँख खोली तो देखा भौजी हैं, फिर मैंने तुरंत आँख बंद कर ली और ऐसे दिखाया जैसे मैं सो रहा हूँ| अगर भौजी को पता चल जाता की मैं जाग रहा हूँ तो वो खुद को नेरी नींद तोड़ने का दोष देतीं, जबकि वो तो बीएस मेरा बुखार चेक कर रहीं थीं| उस समय रात के नौ बजे थे, फिर दस बजे दुबारा वो मेरा बुखार चेक करने उठीं, फिर ग्यारह बजे, फिर बारह बजे! अब मुझसे उनका यूँ बार-बार खुद को तकलीफ देना बर्दाश्त नहीं हुआ, मैं नहीं चाहता था की वो मेरी वजह से परेशान हो! इसलिए जैसे ही भौजी मेरा बुखार चेक कर के लेटीं, मैं उठा और जाके उनके पीछे लेट गया| उस समय भौजी ने दाईं और करवट ले रखी थी, मैं भी दाईं ओर करवट ले कर लेटा, उनकी बगल से होते हुए अपना बायाँ हाथ उनके पेट पर रखा और उनके कान में होले से फुसफुसाया;

मैं: कब तक मेरा बुखार चेक करने के लिए बार-बार उठते रहोगे|

मेरे स्पर्श और मेरी आवाज सुन भौजी थोड़ा हैरान हुईं, क्योंकि वो ये सोच रहीं थीं की मैं सो रहा हूँ|

भौजी: आप सोये नहीं अभी तक?

भौजी ने भी खुसफुसा कर कहा|

मैं: जिसकी पत्नी बार-बार उठ के उसका बुखार चेक कर रही हो, वो भला सो कैसे सकता है? अब प्लीज सो जाओ, मैं बिलकुल ठीक हूँ| मैं वादा करता हूँ की अगर मुझे जरा सी भी तबियत ख़राब लगेगी तो मैं आपको उठा दूँगा|

मेरे वाडे पर उन्होंने ऐतबार तो कर लिया, लेकिन मेरे इतने नजदीक होने से उनके जिस्म में प्रेम की चिंगारी जल उठी!

भौजी: पर मुझे नींद नहीं आ रही|

भौजी ने बड़े नटखट अंदाज में कहा|

मैं: तो आपको मैं सुला देता हूँ|

ये कह मैंने उनकी गर्दन पर पीछे से kiss किया, मेरे गीले होठों के स्पर्श से भौजी के मुख से "सीईईइ ..." की आवाज निकली| इधर मेरा लिंग एकदम से फूल गया और भौजी के पीछे अपनी दस्तक देने लगा| उस वक़्त हम दोनों कुछ नहीं कर सकते थे, पर भौजी के दिल में प्रेम की चिंगारी सुलगने लगी थी और उन्होंने अपने कूल्हे तथा कमर ऊपर-नीचे करने शुरू कर दिए थे| दरअसल भौजी मुझे उत्तेजित करना चाहतीं थीं ताकि मैं कुछ उपाए करूँ, लेकिन मैं डर रहा था की अगर किसी ने हमें ऐसे देख लिया तो काण्ड हो जायेगा! मैंने भौजी को रोकते हुए उनके कान में फुसफुसाया;

मैं: बस! अभी नहीं!

ये सुन भौजी रुक गईं और कहीं उनका मन न ख़राब हो इसलिए मैंने उनकी गर्दन पर धीमे से काट लिया|

भौजी: ससस...आह!

भौजी कराहिं और किसी तरह अपनी प्रेम अगन को दबा लिया| कुछ देर मैं उनकी कमर में बाँह डाले लेटा रहा और जब मुझे यकीन हुआ की वो सो गईं हैं तब मैं अपनी चारपाई पर वापस आके लेट गया|

सुबह पोन पाँच बजे भौजी फिर उठीं और मेरा बुखार चेक करने लगीं, जैसे ही उनके हाथ का स्पर्श मेरे माथे पर हुआ की मैं चौंक कर उठ बैठा|

भौजी: सॉरी मैंने आपको उठा दिया|

भौजी ने कान पकड़ते हुए कहा|

मैं: कोई बात नहीं, मैं वैसे भी उठने वाला था|

मैंने अंगड़ाई लेते हुए मुस्कुरा कर कहा|

भौजी: अभी पौने पाँच हुए हैं, आप थोड़ी देर और सो जाओ|

मैं: अरे बाबा मैं बहुत तारो-ताजा महसूस कर रहा हूँ|

ये सुन भौजी ने मुँह फुला लिया और शिकायत करते हुए बोलीं;

भौजी: आप मेरी बात कभी नहीं मानते!

मैं: क्या करें! वैसे आप कुछ भूल नहीं रहे?

मैंने बात बदलते हुए कहा|

भौजी: क्या?

भौजी थोड़ा सोच में पड़ गईं, फिर जैसे ही उन्हें याद आया वो बोलीं;

भौजी: ओह! आपकी Good morning kiss ना? वो अभी नहीं मिलेगी|

भौजी मुझे चिढ़ाते हुए बोलीं|

मैं: क्यों?

मैंने हैरान होते हुए पुछा|

भौजी: आप मेरी बात जो नहीं मानते|

ये भौजी का तरीका था मुझे ब्लैकमेल करने का|

मैं: हाय तो आपकी good morning kiss के लिए वापस सो जाएँ?

ये सुन भौजी मुस्कुराईं और बोलीं;

भौजी: हाँ..तब दो kiss मिलेंगी|

पर मैं भी हटी (जिद्दी) था;

मैं: चलो ठीक है, ना तो ना सही पर देख लो अगर अभी नहीं दी तो सारे दिन ना kiss लूँगा और ना ही लेने दूँगा?

मैंने भौजी को प्यारभरी धमकी देते हुए कहा|

भौजी: ठीक है! देखते हैं!

भौजी ने मेरी धमकी को हलके में लिया, वो नहीं जानती थी की मैं उन्हें तड़पाने में माहिर हूँ!

खैर मैं उठा, ब्रश, कुल्ला, sponge bath लिया और कपडे बदल के तैयार हो गया| फिर नेहा को उसके स्कूल छोड़ा और वापस बड़े घर आ कर चाय पीरहा था, माँ उस समय कमरे में कपडे ठीक कर रहीं थीं की तभी उन्होंने भौजी की दी-हुई टी-शर्ट देख ली;

माँ: ये टी-शर्ट किसकी है?

माँ ने मुझे टी-शर्ट दिखाते हुए पुछा|

मैं: जी मेरी|

माँ: तूने कब ली ये टी-शर्ट?

अब ये सुन मेरी हवा खिसक गई, अब अगर उन्हें कहता की ये भौजी ने दी है तो फिर डाँट पड़ती|

मैं: जी ...वो.....

मैं सोचने लगा की क्या बहाना करूँ की तभी भौजी नाश्ता लेके आ गईं;

भौजी: माँ....वो मैंने दी है|

आज पहली बार भौजी ने मेरे सामने उन्हें माँ कहा था| उधर भौजी के मुँह से 'माँ' शब्द सुन के माँ को थोड़ा अजीब लगा, पर उन्होंने कुछ नहीं कहा लेकिन उनके चेहरे पर अलग भाव देख मैं उनके मन के विचार समझ गया| माँ ने कभी उम्मीद नहीं थी की भौजी उन्हें माँ कह के पुकारेंगी, शायद इसी कारन उन्हें अजीब लगा था|

माँ: बहु तू क्यों लाइ इसके लिए टी-शर्ट? जर्रूर इसी नालायक ने माँगी होगी, क्यों रे लाडसाहब?

ये कहते हुए माँ ने मेरे कान खींचे|

भौजी: नहीं माँ!

भौजी हँसते हुए बोलीं, उन्हें माँ को मेरे कान खींचते देख बहुत मजा आ रहा था|

भौजी: वो घर में माँ और पिताजी इनसे मिलना चाहते थे, आखिर इनके कहने पर ही तो मैं मायके गई थी| अब इनसे मिलना तो हो नहीं पाया इसलिए माँ-पिताजी ने मुझे कहा की मैं एक अच्छी सी टी-शर्ट गिफ्ट कर दूँ| तो उस दिन मैं अपने भाई के साथ बाजार गई थी, वहाँ मुझे ये टी-शर्ट पसंद आई तो मैं ले आई|

माँ: तू झूठ तो नहीं बोल रही ना?

माँ को लगा की भौजी मुझे बचाने के लिए झूठ बोल रहीं हैं|

भौजी: नहीं माँ!

भौजी ने मुस्कुराते हुए कहा, तब जा कर माँ को यक़ीन हुआ और उन्होंने मेरा कान छोड़ा|

माँ: बेटा क्या जर्रूरत थी पैसे खर्च करने की|

माँ की बात सुन भौजी भावनाओं में बह गईं और वो बोल गईं जो उन्हें नहीं बोलना चाहिए था;

भौजी: माँ ये तो प्यार है......

परन्तु ये कह कर उन्हें एहसास हुआ की वो अपने दिल की बात बोल गईं, तो उन्होंने बात को जैसे-तैसे संभाला और बोलीं;

भौजी: अम्म्म... माँ-पिताजी का!

मुझे नहीं पता की माँ के दिल में उस वक़्त क्या चल रहा था, पर हाँ एक बात तो तय थी की भौजी का यूँ उन्हें माँ कह के बुलाना उनके दिल में कहीं न कहीं लग चूका था| माँ अपने कामों में लग गई और इस बात को फिलहाल तवज्जो नहीं दी, उधर भौजी नाश्ता रख कर रसोई जा चुकी थीं, वो माँ के दिल में क्या चल रहा है उससे अनजान थीं| मैं भी इस मामले में खामोश रहा, क्योंकि मैं माँ को नहीं समझा सकता था, भौजी को अगर समझता तो उनका दिल टूट जाता है|

दस बजे बड़की अम्मा आईं उन्हें बाजार जाना था किसी काम से तो वो माँ को अपने साथ ले गईं| पिताजी और बड़के दादा तो पहले से ही खेत पर थे| घर पर अब बस मैं, भौजी, वरुण और रसिका भाभी ही बचे थे| वरुण तो खेलने अपने दोस्तों के पास जा चूका था वो चाहता था की मैं भी उसके साथ जाऊँ पर मेरा मन अभी खेलने का नहीं था| मैं बड़े घर से निकल कर रसोई के पास छप्पर के नीचे तख़्त पर बैठा था, मुझे अकेला बैठा देख भौजी मेरे पास आ कर बैठ गईं| चूँकि रसिका भाभी नहाने गईं थी तो उस मौके का फायदा उठा कर भौजी को मस्ती सूझी, वो मेरे नजदीक आ कर बैठ गईं| उन्होंने अपने बाहों का हार मेरे गले में डाला और मुझे अपनी ओर खींचने लगीं ताकि मेरे गाल को चूम सकें, लेकिन मैं उन्हें खुद को kiss करने से बचाने लगा आखिर उन्होंने मुझे सुबह kiss जो नहीं दी थी! इतने में रसिका भाभी नहा कर भौजी के घर से निकलीं ओर बाल सुखाने लगीं, उन्हें देखते ही भौजी मुझसे दूर हो गईं| भले ही हम दोनों को रसिका भाभी का कोई डर नहीं था, लेकिन उनके सामने हम अपनी मर्यादा बनाये रखना चाहते थे| वो अपने बाल सूखा कर बड़े घर की ओर चली गईं और तब तक भौजी ने एक मुझे चूमने का जबरदस्त प्लान बना लिया था|

[color=rgb(124,]जारी रहेगा भाग - 7 में...[/color]
 

[color=rgb(65,]पन्द्रहवाँ अध्याय: पत्नी का प्रेम[/color]
[color=rgb(184,]भाग - 7[/color]


[color=rgb(243,]अब तक आपने पढ़ा:[/color]

दस बजे बड़की अम्मा आईं उन्हें बाजार जाना था किसी काम से तो वो माँ को अपने साथ ले गईं| पिताजी और बड़के दादा तो पहले से ही खेत पर थे| घर पर अब बस मैं, भौजी, वरुण और रसिका भाभी ही बचे थे| वरुण तो खेलने अपने दोस्तों के पास जा चूका था वो चाहता था की मैं भी उसके साथ जाऊँ पर मेरा मन अभी खेलने का नहीं था| मैं बड़े घर से निकल कर रसोई के पास छप्पर के नीचे तख़्त पर बैठा था, मुझे अकेला बैठा देख भौजी मेरे पास आ कर बैठ गईं| चूँकि रसिका भाभी नहाने गईं थी तो उस मौके का फायदा उठा कर भौजी को मस्ती सूझी, वो मेरे नजदीक आ कर बैठ गईं| उन्होंने अपने बाहों का हार मेरे गले में डाला और मुझे अपनी ओर खींचने लगीं ताकि मेरे गाल को चूम सकें, लेकिन मैं उन्हें खुद को kiss करने से बचाने लगा आखिर उन्होंने मुझे सुबह kiss जो नहीं दी थी! इतने में रसिका भाभी नहा कर भौजी के घर से निकलीं ओर बाल सुखाने लगीं, उन्हें देखते ही भौजी मुझसे दूर हो गईं| भले ही हम दोनों को रसिका भाभी का कोई डर नहीं था, लेकिन उनके सामने हम अपनी मर्यादा बनाये रखना चाहते थे| वो अपने बाल सूखा कर बड़े घर की ओर चली गईं और तब तक भौजी ने एक मुझे चूमने का जबरदस्त प्लान बना लिया था|

[color=rgb(147,]अब आगे ...[/color]

मैं और भौजी फटा-फ़ट उनके घर में घुस गए, भौजी ने जल्दी से किवाड़ फटेक से बंद कर दिया| आज इतने दिनों बाद भौजी के घर के अँगने में खड़े हो कर अचानक दिल में तरंगे उठने लगीं, मन उतावला हो रहा था और नहाने की बजाए अब भौजी को प्यार करने को जी चाह रहा था! पर मैं हाथ बाँधे खुद को समेटे हुए चुप-चाप खड़ा था, पहल करने से जो डरता था! मैं भौजी की तरफ पीठ कर के खड़ा था, इधर भौजी दरवाजा लगा के आईं और मेरे सामने खड़ी हो गईं| फिर उन्होंने अपने दोनों हाथ मेरे कन्धों पर रख दिए और इस तरह हमारी आँखें एक दूसरे से मिलीं! मैंने अपने दाहिने हाथ से भौजी के बाएँ गाल को सहलाया| जैसे ही मेरे हाथ ने उन गाल को छुआ तो उनकी गर्दन उसी ओर झुक गई जिधर मेरा हाथ था| उसी पल मुझे याद आया की भौजी ने मुझे सुबह kiss के लिए तड़पाया था, अब समय था भौजी को थोड़ा तड़पाने का इसलिए मैंने सीधे हाथ से उनकी गर्दन को पकड़ा और उन्हें अपनी ओर खींचा| मेरे नजदीक आते ही उनके तन बदन में आग लग गई, उन्होंने अपने दोनों हाथों से मेरा चेहरा थाम भौजी ने मुझे kiss करना चाहा और अपने होठों से मेरे होठों को छूने की कोशिश की, परन्तु मैंने उनके तथा अपने होठों के बीच ऊँगली रख दी|

भौजी: क्या हुआ?

भौजी ने अनजान बनते हुए कहा, जबकि वो जानती थीं की मैंने उन्हीं क्यों kiss नहीं करने दिया|

मैं: कुछ भी तो नहीं|

मैंने भी अनजान बनने का नाटक किया, अब वो समझ गईं की उनकी चोरी पकड़ी गई है तो वो बड़े प्यार से मुझसे मिन्नत करते हुए बोलीं;

भौजी: ऑफ ओह्ह !!! Please lemme kiss naa!!!
(Please मुझे kiss karne दो न!)



मैं: न!

मैंने सख्ती दिखाते हुए प्यार से कहा|

भौजी: awww!!! प्लीज!!! आगे से कभी नहीं मना करुँगी|



भौजी प्यार से गिड़गिड़ाने लगीं, पर मैंने सख्ती बरकरार राखी क्योंकि उन्हें तड़पाने में बड़ा मजा आने लगा था|

मैं: न!

अब भौजी को ताव आ गया और वो बोलीं;



भौजी: कहते हैं जब घी सीधी ऊँगली से न निकले तो ऊँगली टेढ़ी करनी पड़ती है! Kiss तो मैं ले कर रहूँगी|

भौजी की बात सुन मुझे भी ताव आ गया;



मैं: Oh really? Give it your best shot!
(अच्छा, पूरी कोशिश आकर लो!)

मैंने भौजी को चुनौती देते हुए कहा|

भौजी: Oh I will!!
(वो तो मैं करूँगी!)



भौजी ने भी ताव में आ कर मेरी चुनौती स्वीकारी|

भौजी ने आवेश में कर मेरी टी-शर्ट पकड़ के मुझे अपनी ओर खींचा, पर उनके kiss करने से पहले ही मैंने अपनी गर्दन घुमा ली| वो समझ गईं की इतनी आसानी से तो वो मुझे kiss नहीं कर सकतीं तो उन्होंने दूसरा रास्ता इख्तियार किया| उन्होंने मेरी टी-शर्ट के अंदर हाथ डाले और मेरी छाती पर फिराने लगीं, उनके ठंडे-ठंडे हाथ मेरी गर्म छाती पर लगते ही मेरे बदन के सारे रोएं खड़े हो गए! इधर भौजी अपने हाथों को मेरी छाती पर फेरते हुए ऊपर गले तक ले गईं और मेरी टी-शर्ट गर्दन से निकाल फेंकी| मेरी नंगी छाती देख भौजी ने अपना निचला होंठ काटा और एक बार फिर अपना हाथ मेरी चिकनी छाती पर हाथ फेरा| अब उनका ध्यान नीचे गया जहाँ मैंने जीन्स पहनी हुई थी, भौजी ने मेरी जीन्स का बटन खोला, फिर जीप खोली और हाथ अंदर डाल के मेरे लिंग को कच्छे के ऊपर से पकड़ लिया, उसे पकड़ के वो धीमे-धीमे कच्छे के ऊपर से ही सहलाने लगीं| मेरी नजर उनके चेहरे पर टिकी थी क्योंकि मैं समझ गया था की ये भौजी की चाल है, मेरा ध्यान भंग होगा और ये मेरे होठों को अपने होठों की गिरफ्त में ले लेंगी! मुझे उत्तेजित करने के लिए भौजी बड़े ही सेक्सी तरह से अपने होठों को काटने लगीं,



कभी अपने होठों को सिकोड़ कर O की आकृति बनातीं और मुझे तडपातीं!



उनकी ये सारी कोशिशें कुछ तो असर दिखा रहीं थीं वरना मेरा लिंग यूँ अकड़ना शुरू न करता| भौजी ने भी जब ये अकड़न अपने हाथों में महसूस की तो उनका प्लान उन्हें कामयाब होता हुआ दिखा, वो उकड़ूँ हो कर नीचे बैठ गईं तथा मेरी जीन्स नीचे खिसका दी, मैंने एक-एक कर अपने पाँव बाहर निकाले और भौजी ने मेरी जीन्स चारपाई पर फेंक दी| अब मैं सिर्फ कच्छे में रह गया था, जिस तरह से भौजी मुझे तड़पा रहीं थीं, उससे मेरा मन बेकाबू होने लगा था| भौजी ने बैठे-बैठ ही मेरा कच्छा निकाल फेंका और अब मैं पूर्ण नग्न था| मुझे लगा की वो मेरे लिंग को अपने मुख में भर लेंगी, परन्तु वो तो उठ खड़ी हुईं और मुझे प्यासी नजरों से निहारने लगीं| ऐसा लगा जैसे आज उन्होंने मुझे पहली बार ऐसे देखा हो! भौजी मेरे एक दम से नजदीक आ गईं और मेरी आँखों में देखते हुए अपने होठों पर अपनी गीली जीभ फेरने लगीं|



उनके इतने नजदीक आने से मुझे उनके गुलाबी होंठ साफ़ दिखने लगे| उन गुलाबी होठों पर जब भौजी अपनी जीभ फेरतीं तो वो गीले हो कर चमकने लगते, मेरी उत्तेजना बढ़ाने के लिए भौजी ने अपने गुलाबी होठों को अपने मोतियों से सफ़ेद दाँतों से काटना शुरू कर दिया|



ये दृश्य देख मेरा हाल बुरा था, मन कर रहा था की उन्हें कस कर चूम लूँ! अब मेरे मन में भौजी को निर्वस्त्र देखने की इच्छा जागृत हुई, तो मैंने आँखों के इशारे से उन्हें बताया की आपने अभी तक कपडे पहने हुए हैं| लेकिन भौजी का ध्यान केवल अपने लक्ष्य यानी मेरे होठों थे, इसलिए उन्होंने मेरी बात को अनदेखा कर दिया! मैंने भौजी को धीरे से खुद से दूर किया और उनकी साडी के पल्लू को खींचा, जिससे मुझे उनका क्लीवेज दिखा| भौजी मेरी नजरों को और मेरी प्यास को अच्छे से पढ़ पा रहीं थीं, उन्होंने मुझे उकसाने को मुझे आँख मारी जो मेरे लिए खुला निमंत्रण था!



मेरा मन तो किया की आज भौजी के सारे कपडे खींच के फाड़ डालूँ, पर वो जंगलीपना होता और मैं जंगली कतई नहीं था!

भौजी उम्मीद कर रहीं थीं की इतना कातिल दृश्य देख मैं बहक जाऊँगा



और अपना आपा खो कर उन पर टूट पडूँगा, पर मैं अपने आप को काबू किये हुए सहज खड़ा उनके स्तनों को देखे जा रहा था| कुछ क्षण जब भौजी हिली नहीं तो मैंने उनकी आँखों की ओर देखा तो पाया की वो मुझे देखे जा रहीं हैं;

मैं: क्या देख रहे हो?

मैंने भौजी की ठुड्डी पकड़ते हुए कहा|

भौजी: हैरान हूँ की कैसे कंट्रोल कर लेते हो खुद को? मेरा तो मन कर रहा है की खा जाऊँ आपको!

भौजी ने मेरे सीने से लगते हुए मेरी आँखों में देखते हुए कहा|

मैं: आपसे प्यार करता हूँ, जंगली नहीं जो टूट पडूँ आप पर!

मैंने मुस्कुराते हुए कहा|

भौजी: हाय!! आपकी इसी अदा के तो कायल हैं हम|

भौजी ने शर्माते हुए कहा|

मैं: अच्छा, हमारे पास सारा दिन नहीं है, मैं जा रहा हूँ नहाने|

मैंने भौजी को छेड़ते हुए कहा| मैं ने उन्हें खुद से दूर किया ओर स्नान घर की तरफ बढ़ा|

भौजी: हैं? आप यहाँ नहाने आये हो?

भौजी ने कमर पर हाथ रखते हुए प्यार भरे गुस्से से कहा|

मैं: तो और किस लिए आया हूँ मैं? मैं नहाऊँगा और आप मेरी पीठ मलोगे!

मैंने भौजी को सताने का नाटक जारी रखते हुए कहा|

भौजी: हुँह! जाओ मैं बात नहीं करती आपसे|

भौजी ने मुँह फुलाते हुए कहा और मुँह मोड़ के खड़ी हो गईं|

मैं जानता था की उनका गुस्सा झूठा है, लेकिन उन्हें मनाना तो था इसलिए मैं उनके पीछे एक दम से सट के खड़ा हो गया| मेरा कठोर लिंग उनकी साडी के ऊपर से उनके नितम्बों के बीच घुसना चाह रहा था, मैंने थोड़ा सा दबाव डाला और वो धीरे से भौजी के दोनों नितम्बों के बीच साडी समेत समा गया! मेरे लिंग का एहसास होते ही भौजी का गुस्सा काफूर हो गया, अब मैंने अपने हाथों को उनकी कमर से होते हुए पेट पर ले जाके लॉक कर दिया| हम दोनों एक दूसरे से चिपक कर खड़े थे और मेरे लिंग की तपिश के कारन भौजी के मुँह से सिसकारियाँ फूट रहीं थीं; "ससस...स.स.स.!!" मैंने अपने हाथ उनके पेट से ऊपर की ओर ले जाने शुरू किये और सीधा उनके ब्लाउज के अंदर घुसा दिए| हमेशा की तरह भौजी ने आज भी ब्रा नहीं पहनी थी, उनके ठंडे-ठंडे स्तन मेरे हाथों में थे और मैं उन्हें बड़े प्यार से मसल रहा था| भौजी के मुँह से प्यार भरी सीत्कारें फूटने लगीं थीं; "ममम..ससस...आह!" अब भौजी से बर्दाश्त कर पाना मुश्किल था, उन्होंने स्वयं अपने ब्लाउज के बटन खोल दिए ताकि मैं आसानी से उनके स्तनों का मर्दन कर सकूँ| ब्लाउज सामने की ओर से खुला तो मुझे भौजी के स्तनों को कस कर अपनी मुट्ठी में भरने कामौका मिला, लेकिन उनकी पीठ का हिस्सा मेरी नंगी छाती को भौजी की पीठ से मिलने नहीं दे रहा था इसलिए मैंने भौजी के स्तनों को एक पल के लिए छोड़ा और स्वयं उनके ब्लाउज को उनके शरीर से जुदा कर दिया| मैंने एक बार फिर उनके दोनों स्तन अपने हाथों से दबोच लिए ओर उनका मर्दन करने लगा, मैंने अपनी ठुड्डी भौजी के कंधे पर राखी ओर उनकी गर्दन के बायीं तरफ kiss की! मेरे गीले होठों के एहसास से भौजी का हाथ अपने आप मेरे सर पर आ गया और वो मेरे बालों में अपनी उँगलियाँ चला कर प्रोत्साहन देने लगीं| मैंने अपना बायाँ हाथ उनकी नाभि से होते हुए जहाँ साडी बंधी थी उसी रास्ते से अंदर सरका दिया| अंदर पहुँचते ही मेरी उँगलियाँ भौजी की योनि से स्पर्श हुईं, भौजी समझ गईं की मैं चाहता हूँ की वे अपनी साडी उतार दें इसलिए उन्होंने अपने साडी जल्दी-जल्दी में खींचना शुरू कर दी| देखते ही देखते उनकी साडी जमीन पर पड़ी थी| मैंने अपने दोनों हाथों से भौजी के पेटीकोट का नाडा खोला और वो सरक के नीचे जा गिर| पूरी तरह निर्वस्त्र हो कर भौजी मेरी ओर पलटी और मुझे एक बार फिर kiss करना चाहा, पर मैंने फिर से अपनी गर्दन को उनके होठों की पहुँच से दूर कर दिया|

भौजी: प्लीज...प्लीज ...एक kiss दे दो|



भौजी मुझसे विनती करते हुए बोलीं, पर इतनी जल्दी तो मैं पिघलने से रहा!

मैं: दे देता, पर एक दिन late आने की सजा तो मिलनी चाहिए न?

ये सुन भौजी की जान ही निकल गई;

भौजी: आपकी ये सजा मेरी जान ले लेगी! आप चाहे खाना न दो, पानी मत दो पर आपकी ये kiss ना देने की बात....हाय!!!

भौजी ने ठंडी आह भरते हुए कहा|

इससे पहले की भौजी तीसरी बार मुझे kiss करने की कोशिश करतीं, मैं स्वयं नीचे बैठ गया और उनकी नंगी योनि कपाटों पर अपने होंठ रख दिए| भौजी ने एकदम से मेरा सर पकड़ लिया और बालों में अपनी उँगलियाँ फिराने लगी| मैंने भी बिना देर किये उनकी योनि में अपनी जीभ प्रवेश करा दी और उनकी योनि से रस की एक एक बूँद को अपनी जीभ से बटोरने लगा| इधर मेरी जीभी का खेल शुर होते ही भौजी के मुँह से "सी..सी...सी....सी..!!" की आवाजें निकलने लगीं| मैं जोश में आ गया और अपना मुँह जितना खोल सकता था उतना खोला तथा अपना मुँह से उनकी योनि ढक दी| फिर मैंने अपनी जीभ उनकी योनि के अंदर-बाहर करनी शुरू कर दी जिससे भौजी की हालत ख़राब होने लगी| उन्होंने खड़े-खड़े ही अपनी दाईं टाँग उठा के मेरे बाएँ कंधे पर रख दी, इस आसन में मैं उनकी योनि को अपनी जीभ से समूची गहराई तक नाप सकता था! मैंने अपनी जीभ भौजी की योनि के भीतर ही गोल-गोल घुमानी शुरू कर दी, पाँच मिनट.....बस इतना देर ही भौजी टिक पाईं और अंततः उन्हें बहुत तीव्र स्खलन हुआ जिसकी एक-एक बूँद मेरे मुँह में समा गई| इतने तीव्र स्खलन के बाद भौजी एक पल के लिए लड़खड़ा गईं और उन्हें लड़खड़ाता हुआ देख मेरी जान मुँह को आ गई;

मैं: क...क्या हुआ? तबियत तो ठीक है ना?

में चिंतित स्वर में कहा|

भौजी: उम्म्म्म.... मुझे जरा एक पल के लिए बैठने दो|

मैंने भौजी को गोद में उठाया और उन्हें आंगन में पड़ी चारपाई पर लिटाया|

भौजी: आज बहुत दिनों बाद इतना बड़ा Orgasm हुआ की... चक्कर सा आ गया|

भौजी ने लजाते हुए कहा|

मैं: यार आपने तो मेरी जान ही निकाल दी थी, चलो आप लेट जाओ और थोड़ा आराम करो तब तक मैं जल्दी से नहा लेता हूँ|

भौजी को छोड़ मैं स्नान घर में भौजी की ओर पीठ कर के खड़ा था, जैसे ही मैंने पानी का लोटा सर पर डाला तो मेरी कँप-कँपी छूट गई| मैंने फटाफट साबुन लगाना शुरू किया, इतने में भौजी ने पीछे से आ कर अपनी बाहों में भर लिया| उनके नंगे स्तन मेरी पीठ में धंसे हुए थे और उनका हाथ मेरे पेट पर लॉक था| मेरी पीठ पर थोड़ा साबुन लगा था और भौजी ने उसी साबुन के झाग पर अपने स्तन रखे थे| भौजी ने अपने स्तनों को मेरी पीठ पर ऊपर-नीचे रगड़ना शुरू कर दिया और उनके इस रगड़ने से मेरी पीठ पर साबुन अच्छे से मल रहा था|

मैं: यार आप थोड़ा आराम कर लो|

मैंने थोड़ा चिंतित स्वर में कहा|

भौजी: हाय! कितनी चिंता है आप को मेरी! पर इतना सेक्सी सीन का फायदा उठाने का मुका कैसे छोड़ दूँ!

ये कहते हुए उन्होंने मुझे अपनी तरफ घुमाया और नीचे बैठ के मेरे लिंग को जो की सिकुड़ गया था उसे घप्प से अपने मुँह में भर लिया| जैसे ही भौजी की जीभ ने मेरे लिंग को छुआ, वो एकदम से कड़क हो गया मनो कोई inflatable raft तैयार हो गई हो! भौजी ने मेरे लिंग को अपने होठों से पकड़ा और सुपाडे को अपनी जीभ से चाटने लगीं| थोड़ी देर और अगर भौजी ऐसी ही मेरे लिंग को चाटती तो मैं स्खलित हो जाता, इसलिए मैंने उन्हें कन्धों से पकड़ खड़ा किया| मैंने उन्हें उल्टा घुमाया और खड़े-खड़े ही पीछे से अपने लिंग को पकड़ उनकी योनि के भीतर प्रवेश करा दिया| परन्तु मेरा लिंग अभी पूरी तरह अंदर नहीं गया था सो मैंने उनकी दाईं टाँग को पकड़ के अपने हाथ में उठा लिया और पीछे से लम्बे-लम्बे धक्के लगाना शुरू कर दिया| ये आसन हम दोनों के लिए नया था और आरामदायक तो कतई नहीं था, प्रेम मिलाप जल्दी खत्म करने के लिए मैंने अपनी तेजी बढ़ा दी और दस मिनट की धकम-पेली के बाद मैं उनके भीतर ही स्खलित हो गया| जैसे ही मेरे वीर्य की आखरी बूँद उनकी योनि में समाई, भौजी भी भरभरा कर दुबारा स्खलित हो गईं|

भौजी: हाय!! आज तो आपने थका दिया!

भौजी हाँफते हुए बोलीं|

मैं: चलो आज मैं आपको नहला देता हूँ|

मैंने मुस्कुराते हुए कहा और उन्हें पटरे पर बिठाया| जैसे ही पहला लोटा पानी का डाला तो भौजी की भी कँप-कँपी छूट गई! फिर मैंने भौजी के हर एक अंग पर अच्छे से साबुन लगाया| साबुन लगाते समय मैं जानबुझ के उनके अंगों को कभी सहला देता तो कभी प्यार से नोच देता| मेरे ऐसा करने पर भौजी मुस्कुरा देतीं या हलके से सिसिया देतीं| खैर भौजी का नहाना हुआ तो मैंने भी खुद को अच्छे से साबुन लगाया क्योंकि पिछली बार ठीक से साबुन नहीं लगा पाया था| खैर मेरे नहाने तक भौजी भीगे बदन मुझे नहाते हुए देख रहीं थीं| जब मेरा नहाना खत्म हुआ तो मैंने ही कहा;

मैं: खड़े क्यों हो? नाहा तो लिए, अब पानी पोछो और कपडे बदलो|

भौजी: नहलाया आपने तो पोछोगे भी आप!

भौजी ने हुक्म देते हुए कहा|

मैंने हँसते हुए उनके शरीर से पानी पोछा, तब भौजी ने एक और बार मुझे kiss करने की कोशिश की, परन्तु इस बार मैंने हम दोनों के होठों के बीच तौलिया रख दिया|

भौजी: अब मान भी जाओ न! प्लीज!!!

भौजी ने हाथ जोड़ते हुए कहा|

मैं: न!!! अभी तो आधा दिन बाकी है|

मैंने भौजी को छेड़ते हुए कहा|

भौजी: सरे किये-कराये पर पानी फेर दिया!

भौजी बुदबुदाईन!

मैं: क्या? क्या कहा?

भौजी: कुछ नहीं!

भौजी का मुझे अपने कामजाल में फँसा कर kiss करने का प्लान फ्लॉप हो चूका था!

खैर मैंने फटाफट कपडे पहने और मुस्कुराता हुआ बाहर आ गया, कुछ समय बाद भौजी भी कपडे पहन के बाहर आईं और खाना बनाने रसोई में घुस गईं|
 
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