Hindi Antarvasna एक अनोखा बंधन - पुन: प्रारंभ


[color=rgb(251,]सत्रहवाँ अध्याय: दोस्ती और प्यार[/color]
[color=rgb(97,]भाग - 4[/color]


[color=rgb(44,]अब तक आपने पढ़ा:[/color]

नेहा: ममम...पापा जी आप कहाँ चले गए थे?
नेहा ने मेरी ओर देखते हुए पुछा|
मैं: बेटा..... मैं बाथरूम गया था|
मैंने झूठ बोला, अब उसे कैसे समझताकी मैं कहाँ गया था?!
मैं: क्या हुआ आपने फिर से कोई बुरा सपना देखा?
मैंने नेहा के माथे को चूमते हुए पुछा तो नेहा ने हाँ में सर हिला दिया|
मैं: सॉरी बेटा...मैंने आपको अकेला छोड़ा| आगे से मैं आपको कभी अकेला नहीं छोड़ूँगा!
मैंने नेहा के दोनों गालों की पप्पी ली और फिर उसका मन खुश करने को एक प्याली-प्याली कहानी सुनाई, जिसे सुनते-सुनते नेहा मेरी छाती से चिपकी सो गई!

[color=rgb(226,]अब आगे...[/color]

सुबह जब मेरी आँख खुली तो नेहा अब भी मुझसे चिपकी हुई सो रही थी, मैं us की पीठ थपथपाने लगा और इतने में भौजी आ गई;

भौजी: नेहा...चल उठ जा!

भौजी ने नेहा को उठाना चाहा परन्तु मैंने उन्हें रोक दिया;

मैं: रहने दो, बिचारी कल रात बहुत डर गई थी!

भौजी: क्यों?

भौजी ने भोयें सिकोड़ते हुए पुछा|

मैं: बुरा सपना देख कर उठ गई थी! मैं जब आया तो ये जाग रही थी, जैसे ही मैं लेटा, मुझसे चिपक गई और पूछने पर बताया!

भौजी को ये सुन कर थोड़ा दुःख हुआ और वो बड़े प्यार से उसे उठाने लगीं;

भौजी: ओ गुड़िया... उठो! स्कूल नहीं जाना है!

इस बार भौजी की आवाज सुन नेहा थोड़ा कुनमुनाई;

नेहा: उम्म्म्म....!

मैंने भौजी को हाथ से इशारा किया की आप जाओ मैं उठाता हूँ| मैं बड़ी सावधानी से नेहा को थामे हुए उठा और उसे अपनी छाती से चिपकाए थोड़ा टहलने लगा|

मैं: गुड़िया... ओ ...मेरी गुड़िया!! उठो...आप को स्कूल जाना है न?

मेरी प्यार-भरी आवाज सुन नेहा अपनी आँखें मलते हुए उठी, उसने फ़ौरन मेरी नाक पर kiss किया और मुस्कुरा दी! हम दोनों अपनी नाक एक दूसरे के साथ रगड़ने लगे और नेहा खिलखिला कर हँसने लगी! उधर भौजीबाप-बेटी का दुलार देख रहीं थी और मुस्कुरा रहीं थी| मैंने नेहा को अपनी गोद से उतरा और वो दौड़ती हुई जाके अपनी मम्मी के गले लगी और उनकी नाक पर मेरी ही तरह kiss किया! भौजी नेहा को गोद में लिए हुए अपने घर के भीतर चली गईं और उसे स्कूल जाने के लिए तैयार किया, इधर मैं भी फटाफट तैयार हुआ तथा नेहा को गोद में ले कर स्कूल पहुँचा| नेहा को छोड़ मैं घर लौटने ही वाला था की मुझे हेड मास्टर साहब मिल गए;

हेडमास्टर साहब: अरे भई मानु साहब! भई हमें पता चला वहाँ अयोध्या में क्या-क्या हुआ, जिस तरह आपने नेहा और अपनी भाभी की रक्षा की वो काबिल-ऐ-तारीफ है!

मुझे अपनी तारीफ सुनने का कोई शौक नहीं था सो मैंने एक डीएम से बात घुमा दी;

मैं: हेडमास्टर साहब वो सब छोड़िये! ये बताइये की मेरी गुड़िया रानी पढ़ाई में कैसी है?

हेडमास्टर साहब: भई अंग्रेजी में कहावत है 'Like Father Like Daughter!'

वो आगे कुछ कहते उससे पहले ही मैं एकदम से बोल पड़ा;

मैं: जी अपने सही कहा, नेहा अपनी मम्मी पर गई है! वो भी पढ़ाई में बहुत होशियार थीं!

हेडमास्टर साहब: अच्छा? कितना पढ़ीं हैं वो?

मैं: जी दसवीं तक, फिर उनकी शादी हो गई....और...

मैंने बात अधूरे में ही छोड़ दी! हेडमास्टर साहब समझ गए और उन्होंने बात को आगे कुरेदा नहीं|

हेडमास्टर साहब: आपकी भतीजी पढ़ाई में बहुत होशियार है!

हेडमास्टर साहब मुस्कुरा कर बोले, उनके मुँह से अपनी बेटी की बढ़ाई सुन मेरा सीना गर्व से फूल गया|

खैर मैंने हेडमास्टर साहब से विदा ली और घर पहुँचा| जैसे ही मैं कुएँ के पास वाले आंगन में दाखिल हुआ तो पाया की पिताजी परेशान हैं और दाएँ से बाएँ चक्कर काट रहे हैं| मुझे देखते ही उन्होंने कहा;

पिताजी: आ बेटा बैठ!

मैं फ़ौरन उनके साथ चारपाई पर बैठ गया|

पिताजी: मैंने अभी ठाकुर साहब को यहाँ खबर भिजवाई है, वो अभी अपनी बेटी के साथ आते ही होंगे| तू खुद उनकी बात इत्मीनान से सुन और खुद फैसला कर!

मैं: मैं? पर घर के बड़े तो आप लोग हैं, फिर भला मैं फैसला कैसे करूँ?

मैंने घबराते हुए कहा|

पिताजी: बेटा तु बड़ा हो गया है और समझदार भी, मुझे पूरा यकीन है की तु जो भी फैसला करेगा वो बिलकुल सही फैसला होगा!

पिताजी ने इतने आत्मविश्वास से कहा की मैं उनकी बात में बँध गया! वो मुझसे अपेक्षा रखते थे की मैं सही फैसला लूँ जबकि एक तरफ मेरा प्यार है और दूसरी तरफ मेरी जिंदगी| फिलहाल के लिए मैंने हाँ में सर हिला के उन्हें सहमति दी की मैं सही फैसला ही लूँगा, मैं उनके पास से बिना कुछ कहे बड़े घर आ गया और तैयार हो के आँगन में चारपाई पर बैठ गया| मैंने अपना मन शांत किया और मुझे क्या-क्या तर्क रखने हैं उनके बारे में सोचते हुए आसमान की ओर देखने लगा| अभी मैंने एक-एक कर तर्कों के बाण अपने तर्कश में रखे ही थे की रसिका भाभी आ गईं;

रसिका भाभी: मानु भैया, तुम काहे दीदी को सब कुछ बताये दिये?

वो मुझसे तुनक कर बोलीं, अब मैंने कोई गलती तो थी नहीं की मैं उनकी ये बात सुनते इसलिए मैंने भी तुनक कर जवाब दिया;

मैं: क्योंकि मैं अपने मन में मैल भर के नहीं रख सकता!

मेरी जवाब सुन रसिका भाभी मगरमछ के आँसूँ बहाने लगीं और बोलीं;

रसिका भाभी: अब तो हमार हियाँ कउनो हमदर्द ही नहीं बचा| सबजन मिलके हमका ई घर से निकाल देब!

मुझे उनके इस दिखावटी आँसुओं में जरा भी दिलचस्पी नहीं थी इसलिए मैंने बड़े रूखेमन से कहा;

मैं: ये सब आपको उस दिन सोचना चाहिए था जब आप पर हैवानियत सवार थी|

ये सुन रसिका भाभी का सर झुक गया|

मैं: खेर आप यहाँ किस लिए आय थे?

उनकी उपस्थिति मुझे चुभ रही थी सो मैंने चिढ़ते हुए कहा|

रसिका भाभी: काका बुलावत हैं|

उन्होंने ने सर झुकाये हुए कहा|

मैं: कह दो आ रहा हूँ|

इतना सुन वो फ़ौरन सर झुकाये लौट गईं| मैं उठा, मुँह अच्छे से धोया और अपने दिल को काबू में कर बड़े घर से निकला| आज मुझे मेरी जिंदगी का सबसे जर्रूरी फ़ैसला लेना था, ऐसा फ़ैसला जिसपर 4-4 जिन्दगियाँ निर्भर थीं| भौजी की, हमारे होने वाले बच्चे की, सुनीता की और मेरी! एक गलत फैसला और ये सब एकसाथ प्रभावित होते! कोई टूट जाता, कोई शायद पैदा नहीं हो पाता, कोई शायद पढ़ नहीं पाता और कोई अपना सब कुछ खो देता!

दो मिनट बाद मैं कुएँ के पास वाले आँगन में पहुँच, वहाँ दो चारपाइयाँ बिछी हुई थीं| एक पर ठाकुर साहब और सुनीता बैठे थे और एक पर पिताजी और बड़के दादा| मैं पिताजी वाली चारपाई पर उनके और बड़के दादा के बीच बैठ गया और तब मैंने सुनीता की ओर देखा, वो बहुत घबराई हुई थी और सर झुका कर बैठी हुई थी|

ठाकुर साहब: तो कहिये भाई साहब (मेरे पिताजी) का शादी की तरीक पक्की करने बुलायो है?

ठाकुर साहब ने हँसते हुए बात शुरू की|

पिताजी: नाहीं ठाकुर साहब! कछु बातें साफ़ करेक आपको कष्ट दिये हैं|

पिताजी ने थोड़ा गंभीर होते हुए कहा|

ठाकुर साहब: कइसन बात?

ठाकुर साहब ने भी थोड़ा गंभीर होते हुए पुछा|

पिताजी: आप हम से कह्यो रहे की सुनीता बिटिया ई सादी के लिए राज़ी है, पर जब मानु ऊ से पूछा रहा तो बिटिया सादी नाहीं करना चाहत रही!

पिताजी ने बिना बात गोल घुमाये सीधा पूछी|

ठाकुर साहब: नाहीं-नाहीं अइसन तो कउनो बात नाहीं! हमार बेटी ई सादी के लिए बिलकुल तैयार है!

ठाकुर साहब ने बड़े गर्व से कहा|

पिताजी: यही बात हम बिटिया के मुँह से सुना चाहित है|

पिताजी ने मुद्दे की बात कही|

ठाकुर साहब: देखिये भाई साहब, ई हमार बिटिया है| हम ई का बड़े नाजों से पलेन है, ई हमरी मर्जी के खिलाफ न जाई! हम जहाँ कहब, जिससे कहब ई चुप्पे उससे सादी कर लेइ! सहर मा जर्रूर पढ़ी है परन्तु हमार कहा कभौं न टाली!

ठाकुर साहब ने पिताजी की बात से बचते हुए कहा, पर उनकी ये बात मुझे बहुत चुभी! आज्ञाकारी तो मैं भी था परन्तु शादी जैसी बात मेरे और सुनीता के जीवन से जुडी थी और इसका फैसला हमें लेना चाहिए न की हमारे माता-पिता को!

पिताजी: ठाकुर साहब, सादी बच्चों का करेक है और इन्हीं दोनों का निभाएक भी है, तो बेहतर होई की हम इनका फ़ैसला करे दें न की आपन फैसला इन पर थोंप दें! एक बार सुनीता बिटिया आपन मन की कह देई तो हम सब का ख़ुशी होइ!

मैं हैरान पिताजी की बातें सुन रहा था, मेरे पिताजी परिवार में दब-दबा बना के रखते थे वो आज हम बच्चों पर फैसला छोड़ रहे हैं? इसकी वजह तो पूछनी बनती है ...पर अभी नहीं! उधर पिताजी की बात सुन सुनीता बेचारी सोच में पड़ गई, उसके लिए तो जैसे आगे कुआँ और पीछे खाईं! लेकिन ठाकुर साहब ने सुनीता को बोलने का मौका नहीं दिया और खुद ही हमसे सवाल पूछ लिया;

ठाकुर साहब: ठीक है...पर पहले हम ई जानना चाहित है की क्या आप सभये को हमार बिटिया पसंद है?

उनकी बात सुन पिताजी फ़ौरन बोले;

पिताजी: जी बिलकुल है! परन्तु बच्ची की बात सुनना भी तो जर्रुरी है!

अब ठाकुर साहब के पास कोई तर्क नहीं था, इसलिए वो बोले;

ठाकुर साहब: चल भई अब तुहुँ बोल दे की तोहरे मन में का है?

ठाकुर साहब ने सुनीता की पीठ थपथपाते हुए कहा, उनका ये पीठ थपथपाना सुनीता के लिए एक चेतावनी थी| ठीक ऐसी ही चेतावनियाँ मुझे बचपन में मिलती थीं जब कोई मेहमान घर पर आता था और जाते समय मुझे पैसे देता था| पिताजी की वो थपकी ऐसा डर पैदा करती थी की मैं चाहते हुए भी कभी किसी से पैसे नहीं लेता था! अब चूँकि में ठाकुर साहब की ये हरकत भाँप चूका था इसलिए मैंने डर से काँप रही सुनीता को होंसला देते हुए कहा;

मैं: डरो मत सुनीता, बोल दो सच! मैं जानता हूँ की तुम आगे पढ़ना चाहती हो....

मैं आगे कुछ बोलता उससे पहले ही ठाकुर साहब हँसते हुए बोले;

ठाकुर साहब: तो हम कहाँ पढ़ने से मना किहिन है?

मैंने ठाकुर साहब की बात पर ध्यान नहीं दिया और सुनीता के चेहरे पर नजरें टिकाये बैठा रहा, लेकिन सुनीता अब भी चुप-चाप थी| अपनी बेटी की ख़ामोशी देख ठाकुर साहब ने उसकी पीठ पर हाथ रखा और उनके हाथ रखते ही सुनीता घबरा कर बोल पड़ी;

सुनीता: जी मुझे... कोई ऐतराज नहीं!

सुनीता ने बिना नजरें उठाये कहा था, वहाँ बैठा कोई भी इंसान सुनीता का डर नहीं देख पा रहा था, लेकिन मैं उसका डर अच्छे से जानता था|

ठाकुर साहब: देखयो भाई साहब! हम कहत रहन की हमार बिटिया हमका कभौं नीरास न करी!

ठाकुर साहब ने बड़े गर्व से कहा, इधर उनकी देखा देखि पिताजी भी बड़े गर्व से मुझसे बोले;

पिताजी: चल भई अब तू भई अपना फैसला सुना दे?

पिताजी ने थोड़ा मजाक करते हुए कहा| वो उम्मीद कर रहे थे की मैं भी शादी के लिए हाँ कहूँगा पर मैं अब बड़ी गहन सोच में पड़ गया था|

अब सारी बात मुझ पर आ टिकी थी, इतने में चन्दर और अजय भैया भी मामा के घर से लौट आये थे और घर में चल रही बैठक में सीधा आके शामिल हो गए| अजय भैया पिताजी की बगल में बैठ गए जबकि चन्दर के लिए एक कुर्सी मँगा दी गई थी| दोनों ही समझ चुके थे की यहाँ मेरी शादी की ही बात चल रही है और सबकी तरह वो भी उम्मीद कर रहे थे की मैं हाँ करूँगा| ठाकुर साहब की पीठ छप्पर की ओर थी जहाँ हमारे घर की सभी स्त्रियाँ बैठीं थीं, मेरा मुँह छप्पर की ओर था और मैंने एक नजर छप्पर के नीचे देखा तो पाया की सभी स्त्रियों की तरह भौजी भी मेरी तरफ देख रहीं हैं, मेरी माँ और बड़की अम्मा मेरा जवाब जानने को व्याकुल थीं! इधर मैं मन ही मन शब्दों का चयन कर रहा था| इन शब्दों के चयन में मुझे पाँच मिनट लग गए, ठाकुर साहब से मेरी चुप्पी नहीं देखि गई तो वो अपनी अधीरता दिखाते हुए बोले;

ठाकुर साहब: मानु बेटा कउनो परेसानी है? हम तोहसे बस ई ही तो कहत हैं की सादी अभयें कर लिहो और फिर तुम दोनोंजन पढ़त रहो! फिर दुई साल बाद गोना कर लिहो|

ठाकुर साहब की बात सुन मुझे मौका और सही शब्द दोनों मिल गए थे!

मैं: क्षमा करें ठाकुर साहब पर मैं अभी ये शादी नहीं कर सकता और न ही मैं रोका करने के हक़ में हूँ| मैं अभी इतना बड़ा नहीं हुआ की दो दिन में किसी भी व्यक्ति को पूरा समझ सकूँ, उसके व्यक्तित्व को जान सकूँ| ऐसा नहीं है की सुनीता अच्छी लड़की नहीं है पर हमें उतना समय नहीं मिला की हम एक दूसरे को जान सकें| हम दोनों अभी और पढ़ना चाहते हैं और ऐसे में ये शादी-ब्याह की बातें हमारे सर पर तलवार की तरह लटक रही हैं! इस उम्र में हमारे सर पर पढ़ाई का बोझ होना चाहिए न की शादी-ब्याह की जिम्मेदारियाँ! अब अगर आपकी बात माने तो अगले दो साल में आप गोना कर देना चाहते हैं, तब तक तो सुनीता और मेरा कॉलेज भी खत्म नहीं हुआ होगा| ऐसे में शादी कर लेना और फिर अपने माँ-बाप पर बोझ बनके बैठ जाना ठीक नहीं होगा| जब तक मैं अपने पैरों पर खड़ा नहीं हो जाता, कमाने नहीं लगता मैं शादी के बारे में सोच भी नहीं सकता|

मेरी बात सुन कर बड़के दादा एकदम से बोले;

बड़के दादा: मुन्ना ई का कहत हो? बच्चे माँ-बाप पर बोझ थोड़े ही होवत हैं?

मैं: दादा शादी करने के बाद अपनी बीवी को अपनी कमाई न खिला पाऊँ तो बोझ ही हुआ न? पढ़ाई के बाद मेरा इरादा जॉब करने का है, ताकि खुद को संभाल सकूँ!

मेरी ये जॉब करने की बात पिताजी को बहुत चुभी, उस वक़्त तो वो कुछ नहीं बोले और ख़ामोशी से बात सह गए!

मैं: अगर मुझे विदेश में अच्छी जॉब मिल गई तो मैं वहाँ कैसे जा पाऊँगा?

बड़के दादा: अरे तो ई मा का बात है? तोहार माँ-पिताजी है न? बहु उनका ख्याल रखेगी!

मैं: मैं कोई महीने-दो महीने के लिए विदेश नहीं जा रहा, वहाँ जिंदगी बसाने में सालों लग जाते हैं!

बड़के दादा: तो तू विदेश में रहिओ? आपन माँ-बाप का छोड़ के?

बड़के दादा ने मेरी बात को खींचते हुए कहा|

मैं: मेरा मतलब था की अगर ऐसा मौका मिला तो! फिर मैं अकेला थोड़े ही अपनी जिंदगी वहाँ बसा लूँगा, माँ-पिताजी भी मेरे साथ ही रहेंगे, उनको थोड़े ही छोड़ दूँगा?!

मैंने बड़े आत्मविश्वास से कहा, जिसे सुन मेरी माँ का सीना गर्व से फूल गया|

मैं: लेकिन अभी शादी कर लेने से ये सारे खाब तहस-नहस हो जाएंगे!

मैंने बात को खत्म करते हुए कहा| उधर ठाकुर साहब जो ख़ामोशी से मेरी बात सुन रहे थे वो मेरी बातों से बहुत प्रभावित थे;

ठाकुर साहब: देखो बेटा तोहार जवाब बिलकुल स्पष्ट है और हम ऊ की कदर करित है! हम तोह पर कउनो जोर जबरदस्ती नाहीं करब, हम ई रिस्ता इसलिए भेजे रहे काहेकी तोहरी उम्र में हियाँ लड़कों का बियाह कर दिया जात है! खेर अब तोहार मर्जी नाहीं है तो ई मा हमारा कउनो जोर नाहीं चली सकत! पर फिर भी अगर तोहार मन बदले तो हम अब भी ई रिस्ते खतिर तैयार हैं|

ठाकुर साहब ने एक आखरी बार कोशिश करते हुए कहा|

मैं: जी मैं सोच कर फैसला करता हूँ, फैसला कर के नहीं सोचता!

मैंने बड़ी हलीमी से ज़वाब दिया|

ठाकुर साहब: जैसी तोहार मर्जी बेटा! तो भाई साहब अब चला जाये?

ठाकुर साहब ने मुस्कुरा कर कहा और उठने को हुए की पिताजी ने उन्हें एकदम से रोक दिया;

पिताजी: अरे ठाकुर साहब तनिक नास्ता-पानी हो जाये!

पिताजी की बात सुन ठाकुर साहब हँस पड़े और बोले;

ठाकुर साहब: अरे नेकी और पूछ-पूछ!

पिताजी ने फ़ौरन माँ को आवाज लगा कर नाश्ता बनाने को बोला| नाश्ते की तैयारी पहले ही की जा चुकी थी क्योंकि सबको उम्मीद थी की मैं इस शादी के लिए हाँ ही करूँगा! खैर इस बातचीत में कहीं भी कोई मन-मुटाव पैदा नहीं हुआ था, मैंने जो कुछ भी कहा उस बात में वजन था और मेरी बात करने का ढंग कहीं से भी गुस्से या उत्तेजना पूर्ण नहीं था! वहीँ दूसरी ओर मेरे लिए इस फैसले से सुनीता खुश थी और मुझे शुक्रिया अदा करना चाहती थी परन्तु सबके सामने झिझक रही थी इसलिए अपनी गर्दन झुकाये बैठी थी|

ठाकुर साहब भी बुरे आदमी नहीं थे, स्वभाव से हँसमुख थे और सभी के साथ आदर से बात करते थे, यही कारन हैं की मैंने उनसे बड़ी हलीमी से बात की थी| हाँ थोड़ा बहुत पिता होने का और अपनी बेटी के लिए खुद फैसले लेने का घमंड उनमें जर्रूर था! वहीं आज मैंने मेरे पिताजी का एक अलग ही पहलु देखा था, इस बातचीत के दौरान उन्होंने मुझे कहीं भी नहीं टोका था और न ही अपनी बात मुझ पर लादी थी! मुझे मिली इस छूट को लेके मेरे मन में अनेकों सवाल थे जिन्हें मैं उनसे पूछना चाहता था, परन्तु अभी नहीं बाद में!

खैर वहाँ बातों का सिलसिला जारी हुआ, ठाकुर साहब पॉच रहे थे की हम दिल्ली में कहाँ रहते हैं और पिताजी का क्या काम-धँधा है आदि! अब मैं इन बातों में हिस्सा नहीं लेना चाहता था इसलिए मैं चुप-चाप उठ कर बड़े घर आ गया| आँगन में खड़ा हो कर मैंने गहरी साँस ली लेकिन मन अभी भी थोड़ा व्याकुल था, ताज़ी हवा खाने मैं छत पर आ गया और मुंडेर पर बैठा दूर बने मंदिर की ओर देखने लगा| मैं जहाँ बैठा था वहाँ से बड़े घर के प्रमुख दरवाजे पर कौन खड़ा है ये साफ़ दिखता था| दस मिनट बाद भौजी मुझे नाश्ते के लिए बुलाने आईं और नीचे से ही मेरी ओर मुँह कर के बोलीं;

भौजी: चलिए नाश्ता कर लीजिये!

भौजी ने रूँधे गले से कहा|

मैं: आपको क्या हुआ?

उनकी आवाज़ सुन मुझे अचम्भा हुआ की भला अब इन्हें क्या हुआ? मैंने तो शादी के लिए साफ़ मना कर दिया फिर भौजी क्यों उदास हैं?!

भौजी: कुछ नहीं...!

भौजी ने नजरें चुराते हुए कहा|

मैं: रुको मैं नीचे आता हूँ|

इतना कह के मैं तुरंत नीचे की ओर भागा, नीचे आके मैंने उन्हें इशारे से घर के अंदर बुलाया और हम दोनों अब बरामदे में खड़े थे;

मैं: क्या हुआ? आप मेरे फैसले से खुश नहीं?

मैंने हाथ बाँधते हुए कहा|

भौजी: नहीं!

भौजी ने सर झुकाते हुए कहा|

मैं: पर क्यों?

मैंने भौजी की ठुड्डी पकड़ कर ऊपर करते हुए पुछा|

भौजी: माँ-पिताजी कितने खुश थे...उन्हें सुनीता पसंद भी थी.... फिर भी आपने मना कर दिया?

भौजी ने खुद को रोने से रोकते हुए कहा|

मैं: और आप? आपको ये शादी मंजूर थी? मुझे खोने का डर एक पल के लिए भी आपके मन में नहीं आया?

मैंने गुस्स्से से भौजी को देखते हुए कहा|

भौजी: आया था....पर मैं अब और इस सच से भाग नहीं सकती|

भौजी ने हथियार डालते हुए कहा|

मैं: जानता हूँ पर कुछ सालों तक तो हम इस सच से दूर रह ही सकते हैं ना?

मैंने उन्हें हिम्मत बँधानी चाही पर उन्होंने पलट कर मुझसे ही सवाल पूछ लिया;

भौजी: आपने ये निर्णय स्वार्थी हो के किया न?

उनका मुझे यूँ स्वार्थी कहना खल रहा था लेकिन भौजी ने फिर मेरे सर एक आरोप मढ़ दिया;

भौजी: मेरे प्रति आपके मोह ने आपसे एक गलत फैसला करा दिया?

उनके इन सवालों ने मुझे आहत कर दिया था, मैंने गुस्से में भौजी के दोनों कन्धों को पकड़ा और उन्हें तेजी से धकेलते हुए दिवार से भिड़ा दिया! मैं उनके एकदम से नजदीक सट कर खड़ा हो गया, अपने दाहिने हाथ से उनके दोनों गाल पकडे और गुस्से में उनकी आँखों में आँखे डालते हुए बड़े गर्व से बोला;

मैं: हाँ....हूँ मैं स्वार्थी....! और जब-जब आपकी बात आएगी मैं स्वार्थी बन जाऊँगा! अगर स्वार्थी ना होता तो आपको भगा ले जाने की बात ना करता! आपकी एक ख़ुशी के लिए मैं कुछ भी कर सकता हूँ...कुछ भी....!!

मैंने दाँत पीसते हुए कहा| उस वक़्त मुझे इतना गुस्सा आ रहा था की मन कर रहा था की एक खींच के लगा दूँ भौजी को पर मैं अपनी मर्यादा जानता था इसलिए भौजी को छोड़ कर बाहर निकल गया| मन तो कह रहा था की कहीं और चल ताकि अकेले में अपने गुस्से को काबू कर सकूँ, पर तभी बड़की अम्मा आ गईं और वो जोर देके मुझे नाश्ता करने के लिए अपने साथ सब के पास ले आईं|

मैं आकर वहीँ बैठ गया जहाँ सब आदमी बैठे थे, सभी स्त्रियाँ अब भी छप्पर के नीचे बैठीं थीं| माँ और बड़की अम्मा ने सबको नाश्ता परोसा, नाश्ते में पूरी और आलू की सब्जी बने थे| सब ने खाना शुरू किया और करीब पंद्रह मिनट बाद भौजी बड़े घर से घूंघट काढ़े लौटीं मैं समझ गया की वो वहाँ अकेले में जर्रूर रो रहीं थीं| मैं आधे खाने पर से उठा और अपनी थाली ले कर सीधा छप्पर के नीचे आया, भौजी वहाँ सर झुकाये तख्त पर बैठीं थीं| उनहोने घूँघट हटा दिया था और मैंने उनकी आँसुओं से नम आँखें देख ली थीं, मैंने उसी गुस्से में अपनी झूठी थाली उनकी ओर बढ़ा दी और गुस्से में बोला; "खाना खा लो!" भौजी ने दर के मारे मेरे हाथ से थाली ले ली और मुझे दिखाते हुए डरते-डरते खाना खाने लगीं| मैं बिना कुछ कहे वापस आ कर पिताजी की बगल में बैठ गया| जब खाना खत्म हुआ तो ठाकुर साहब ने चलने की इजाज़त माँगी, मैंने फ़ौरन उनके पाँव छुए और उन्होंने मुझे कस के गले लग लिया और आशीर्वाद दे कर चल दिए| वहीं सुनीता ने भी जाने से पहले सब को हाथ जोड़ कर नमस्ते की और ठाकुर साहब के पीछे सर झुकाये चल दी|

ठाकुर साहब के जाने के बाद अब बारी थी घर की बैठक में सवालों का जवाब देने की, मैं मानसिक रूप से इन सवालों की पूरी तैयारी कर चूका था| अजय भैया ने आंगन में एक और चारपाई बिछा दी, एक तरफ मैं बैठा था और मेरी अगल-बगल चन्दर और अजय भैया बैठे थे| दूसरी तरफ पिताजी और बड़के दादा बैठे थे| तीसरी तरफ माँ, बड़की अम्मा और हमेशा की तरह घूँघट काढ़े भौजी बैठीं थीं| रसिका भाभी को इस बैठक से कोई सरोकार नहीं था इसलिए उन्होंने इसमें हिस्सा लेने की नहीं सोची| लेकिन इससे पहले की बात शुरू हो, वरुण को लेने रसिका भाभी के मायके से कोई आ गया था| जाने से पहले वरुण दौड़ कर मेरे पास आया, मैंने उसे कस कर अपने गले लगा लिया और वो मुस्कुराते हुए बोला; "टाटा चाचू!" गौर करने वाली बात ये थी की उसने किसी और को कुछ नहीं कहा, न ही उसके जाने से किसी को कोई फर्क पड़ा था क्योंकि सब के सब अपनी बातों में लगे हुए थे! सब के सब ने उस छोटे से बच्चे से नजरें फेर ली थीं!

खैर वरुण के जाने के बाद पिताजी ने बात शुरू की;

पिताजी: बेटा हम तुझे यहाँ डांटने-फटकारने के लिए नहीं बैठे हैं, तु ने जो किया वो अपनी समझ से किया, ये फैसला सही था....

पिताजी आगे कुछ बोलते उससे पहले ही मैंने उनकी बात काट दी;

मैं: आपकी बात काटने के लिए क्षमा चाहता हूँ पिताजी पर मुझे आपको अपनी सफाई देनी है|

ये सुन कर पिताजी समेत सब ने मुझे सवालिया नजरों से से देखा;

पिताजी: हाँ..हाँ बोल!

पिताजी ने मुझे हिम्मत देते हुए कहा|

मैं: मेरा ये फैसला पक्षपाती था!

ये सुन के भौजी की जान हलक़ में आ गई, वो डरी-सहमी सर झुका कर बैठ गईं! जबकि मैंने ये भौजी के उस सवाल का जवाब देने के लिए कहा था जो उन्होंने मुझसे बड़े घर में पुछा था|

मैं: वो इंसान है सुनीता! वो इस शादी के लिए कतई राजी नहीं थी, केवल अपने पिताजी के दबाव में आ कर हाँ कर रही थी| वो आगे पढ़ना चाहती है और उसके पिताजी दो साल में गोना करना चाहते हैं| इसी बात को मद्दे नजर रखते हुए मैंने शादी के लिए न कहा|

मेरा निर्णय बदलने के लिए ये बात पूरी तरह सच नहीं थी, पर सच तो मैं बोल ही नहीं सकता था न!! वहीं भौजी ने जब मेरी ये बात सुनी तो उन्हें उनके सवाल का जवाब भी मिल गया और दिल को चैन भी आ गया की कम से कम मैंने हमदोनों के प्यार का राज किसी के ऊपर जाहिर नहीं किया!

पिताजी: बेटा मुझे तेरे फैसले पर कोई संदेह नहीं था, अभी तुम दोनों की पढ़ाई जर्रूरी है और मैं ये भूल गया था की शादी कर के मैं तुझ पर जिम्मेदारियों का बोझ डाल रहा हूँ!

पिताजी की बात सुन बड़के दादा अचंभित हुए, वो उम्मीद कर रहे थे की पिताजी मुझे डाटेंगे या समझायेंगे पर उन्होंने तो मेरी ही बात में हाँ में हाँ मिला दी!

बड़के दादा: चलो कउनो बात नाहीं! सादी आज नहीं तो कल होइ जाई!

उन्होंने ये बात सिर्फ और सिर्फ अपनी चिढ छुपाने को कही थी, उधर सभी उनकी बात को मजाक में ले कर हँस पड़े थे सिवाय मेरे और भौजी के!

बात ख़त्म हुई और सब अपने-अपने काम में लग गए, पर मुझे पिताजी से अपने सवाल पूछने थे| पिताजी मुझे के खेतों की तरफ जाते हुए दिखाई दिए तो मैं फ़ौरन उनके पीछे दौड़ पड़ा;

मैं: पिताजी...आपसे कुछ पूछना था|

मैंने पिताजी को रोकते हुए कहा|

पिताजी: हाँ बोल|

पिताजी एकदम से रुकते हुए बोले|

मैं: पिताजी मैं जानना चाहता था की आज से पहले तो आपने कभी मुझे इतनी छूट नहीं दी की मैं अपनी मर्जी से फैसला कर सकूँ, फिर आज क्यों?

मेरी बात सुन पिताजी मुस्कुरा दिए और मेरे कंधे पर हाथ रखते हुए बोले;

पिताजी: वो इसलिए बेटा की अब तु बड़ा हो गए है, पिछले कुछ दिनों में जिस तरह तूने एक समझदार इंसान की तरह फैसले लिए हैं उन्हें देखते हुए ही मैंने तुझे ये फैसला लेने की छूट दी थी! तूने आजतक कोई गलत काम नहीं किया, हमेशा वो किया जो मैंने तुझे कहा! तेरे जैसा आज्ञाकारी बेटा होना एक गर्व की बात है, इसीलिए मैं तुझे अब और बाँध कर रखना नहीं चाहता! लेकिन ध्यान रहे, अगर तू कोई गलत फैसला लेगा तो मैं तुझे जर्रूर रोकूँगा.और कुटूँगा भी!

ये कहते हुए पिताजी ठहाका मार के हँस पड़े|

मैं: जी!

मैंने मुस्कुराते हुए कहा| पिताजी ने मेरे सर पर हाथ फेरा और बोले;

पिताजी: अच्छा मैं चलता हूँ, भाईसाहब (बड़के दादा) के साथ कहीं जाना है|

इतना कह पिताजी चले गए| उनके जाने के बाद मैं छोटे वाले खेत में टहल रहा था और उनकी कही बातों को ही सोच रहा था| गाँव आने से मुझे में बहुत से बदलाव आये थे, मैं समझदार हो गया था, दुनियादारी देखने तथा समझने लगा था और काफी फैसले सोच-समझ कर लेने लगा था! शहर में मुझे कभी इतना कुछ सोचना नहीं पड़ता था, वहाँ मेरा काम सिर्फ पढ़ाई करना था उसके आलावा का सारा काम तो पिताजी देखते थे| इस समझदारी का श्रेय सिर्फ और सिर्फ भौजी को जाता था वरना मुझ जैसे जड़बुद्धि में इतनी समझ कहाँ!

कुछ ही देर बाद नेहा के स्कूल की घंटी बजी तो मैं उसे स्कूल लेने चल दिया, हमेशा की तरह नेहा दौड़ती हुई आई और मैंने उसे गोद में ले कर लाड करने लगा| आज तो मुझे उसपर बहुत प्यार आ रहा था और उसका कारन था सुबह हेडमास्टर साहब ने उसकी जो तारीफ की थी! मैंने नेहा को अपने हाथ की ऊँगली पकड़ाई और हम दोनों घर लौट आये| घर पहुँचते ही मैं उसे ले कर सीधा भौजी के घर में घुस गया, उसे भौजी के कमरे में पड़ी चारपाई पर खड़ा किया और उसके कपडे बदलते हुए उससे बात करने लगा;

मैं: बेरी प्याली-प्याली बेटी, आपको पता है आज सुबह न आपके हेडमास्टर साहब मिले थे| मैंने न उनसे पुछा की मेरी प्याली-प्याली बेटी पढ़ाई में कैसी है तो उन्होंने है न आपकी है न बहुत-बहुत-बहुत तारीफ की! वो बोले की आप है न पढ़ाई में बहुत अच्छे हो!

ये सुन कर नेहा शर्मा गई और अपना मुँह मेरे सीने में छुपा कर खामोश हो गई|

मैं: अरे मेरा बच्चा शर्मा रहा है?

मैंने नेहा को छेड़ते हुए कहा| फिर मैंने नेहा के सर को अनेकों बार चूमा तब जा कर नेहा की शर्म खत्म हुई! मैंने नेहा के बाल बनाने चाहे, लेकिन मुझे उसके बाल ठीक से बाँधने नहीं आते थे, तो मैं किसी अनाड़ी की तरह अलग-अलग प्रयोग करने लगा ताकि उसके बाल बाँध पाऊँ! मैं उस वक़्त दरवाजे की ओर पीठ कर के खड़ा था और नेहा मेरी ओर मुँह कर के खड़ी थी! अब अगर नेहा की पीठ मेरी ओर होती तभी तो मैं उसके बाल ठीक से बाँध पाता, पर मैं ठहरा नौसिखिया तो मैं ऐसे ही उसके बालों को कंघी से खींच कर सीधा किया और सबकी एक साथ पकड़ कर उन्हें गोल-गोल घुमाने लगा ताकि नेहा के सर पर एक bun (जुड़ा) बना सकूँ! लेकिन आता होगा तब न? उधर मेरी ये कोशिशें देख नेहा को बहुत हँसी आ रही थी;

नेहा: पापा ऐसे नहीं..ऐसे!

नेहा ने मुझे अपने हाथ के इशारे से जुड़ा बनाना सिखाया पर वो मेरे पल्ले ही नहीं पड़ा!

नेहा: ओफ्फो.पापा! आप है न वो...वो दो चोटी बना दो! वो आसान है!

नेहा ने हार मानते हुए कहा|

मैं: बेटा मुझसे एक चोटी नहीं बन रही और आप दो बनाने को बोल रहे हो?

मैंने सर पीटते हुए कहा तो ये सुन नेहा खिल-खिलाकर हँस पड़ी| उसकी ये बेबाक हँसी देख मैं भी हँस पड़ा! अब कैसे भी बेटी के बाल तो बनाने थे तो मैंने आसान रास्ता खोज निकाला, मैंने उसके सारे बाल पीछे की तरफ कँघी करने शुरू किये और जब सारे बाल पीछे की ओर कँघी हो गए तो मैंने एक हैरबंद ले कर उसके बालों में ठीक से लगा दिया|

मैं: अब मेरी प्याली-प्याली बेटी सूंदर सी परी लग रही है!

मैंने उसका माथा चूमा, अपनी तारीफ सुन नेहा के गाल लाल हो गए! लेकिन अगले ही पल वो खी... खी...खी...कर हँसने लगी!

मैं: क्या हुआ बेटा आप क्यों हँस रहे हो?

मैंने नेहा से मुस्कुराते हुए पुछा तो उसने अपने होठों पर हाथ रख कर अपनी हँसी रोकनी चाही, मैंने ध्यान दिया तो पाया की वो मेरे पीछे किसी को देख रही है और इसीलिए वो इतना मुस्कुरा रही थी! मैं पीछे मुड़ पाता उससे पहले ही दो जाने-पहचाने हाथ मेरी बगल से होते हुए मेरी छाती पर आ गए, उसके बाद वो बदन जिसकी गर्मी मैं जानता था मेरी पीठ से आ लगा और अंत में वो गर्म सांसें जो मेरे दिल की धड़कनें तेज कर दिया करती थीं वो मुझे मेरी गर्दन पर महसूस हुईं! ये शक़्स कोई और नहीं बल्कि मेरी प्रियतमा भौजी ही थीं!

भौजी: चलो खाना खा लो|

भौजी ने मुस्कुराते हुए कहा|

मैं: हम्म्म ...!

मैं अब भी भौजी की कही बात से नाराज था इसलिए मैंने बस हम्म कह कर जवाब दिया|

भौजी: मेरे साथ खाना खाओगे या अकेले?

ये सवाल उन्होंने इसलिए पूछा था ताकि उन्हें ये पता चल जाए की कहीं मैं उनसे नाराज तो नहीं?!

मैं: आपके साथ!

मैंने रूखे मन से जवाब दिया| भौजी समझ गईं थीं की मैं उनसे गुस्सा हूँ इसलिए उन्होंने मेरी गर्दन के पीछे अपने गीले होंठों से चूमा! उनका ये चुंबन मेरे जिस्म में मादक जहर की तरह फ़ैल गया!

भौजी: आप यहीं रुको, मैं हमारा खाना यहीं ले आती हूँ| फिर मुझे आपसे बहुत सी बातें करनी हैं|

मैं जानता था की बातों से उनका मतलब सफाई देना ही है, पर अपनी बेटी की मौजूदगी में मैं भौजी को डाँट कर उनकी बेइज्जती नहीं करना चाहता था| भौजी खाना हम तीनों का खाना ले आईं, मैंने अपना ध्यान नेहा को खाना खिलाने में लगा दिया, भौजी मेरी बेरुखी समझ गईं थीं और मुझे मनाने के लिए वो मुझे खाना खिलाने लगीं! इधर नेहा का मन भी मुझे खाना खिलाने का किया तो उसने अपने नन्हे-नन्हे हाथों से मुझे खाना खिलाना शुरू किया! बाप-बेटी भौजी को ख़ुशी तो हो रही थी लेकिन मेरी उनके प्रति बेरुखी उन्हें चुभने लगी थी!

[color=rgb(147,]जारी रहेगा भाग - 5 में...[/color]
 

[color=rgb(243,]सत्रहवाँ अध्याय: दोस्ती और प्यार[/color]
[color=rgb(65,]भाग - 5[/color]


[color=rgb(44,]अब तक आपने पढ़ा:[/color]

भौजी: आप यहीं रुको, मैं हमारा खाना यहीं ले आती हूँ| फिर मुझे आपसे बहुत सी बातें करनी हैं|
मैं जानता था की बातों से उनका मतलब सफाई देना ही है, पर अपनी बेटी की मौजूदगी में मैं भौजी को डाँट कर उनकी बेइज्जती नहीं करना चाहता था| भौजी खाना हम तीनों का खाना ले आईं, मैंने अपना ध्यान नेहा को खाना खिलाने में लगा दिया, भौजी मेरी बेरुखी समझ गईं थीं और मुझे मनाने के लिए वो मुझे खाना खिलाने लगीं! इधर नेहा का मन भी मुझे खाना खिलाने का किया तो उसने अपने नन्हे-नन्हे हाथों से मुझे खाना खिलाना शुरू किया! बाप-बेटी भौजी को ख़ुशी तो हो रही थी लेकिन मेरी उनके प्रति बेरुखी उन्हें चुभने लगी थी!

[color=rgb(226,]अब आगे...[/color]

खाना खत्म हुआ और हाथ-मुँह धो कर हम तीनों अलग-अलग चारपाई पर लेट गए| चूँकि आज मैं भौजी से खफा था तो मेरा मन नेहा में लगा हुआ था, मैंने उसे अपनी छाती से चिपका रखा था और बार-बार उसके सर को चूम रहा था| भौजी दूसरी चारपाई पर लेटी हुईं पिता-पुत्री के प्रेम को देख कर जल-भून रही थीं! ये जलन एक मीठी जलन थी जो उन्हें अक्सर होती थी जब वो मुझे नेहा को बेधड़क चूमते हुए देखतीं थीं| उनके मन में हमेशा से एक आस थी की काश ऐसा हो पाए की मैं सब के सामने बिना किसी से डरे, बिना किसी को झूठ बोले, एक बार गले लगाऊँ और उनके माथे को चूमूँ! लेकिन वो जानती थीं की ये एक ऐसा ख्वाब है जो कभी पूरा नहीं हो सकता, इसलिए कई बार ये सोचते हुए मायूस हो जाया करतीं थीं! खैर भौजी से ये ख़ामोशी बर्दाश्त नहीं हो रही थी इसलिए उन्होंने मुझे मनाने के लिए बात शुरू की;

भौजी: जानू ऊऊऊऊऊऊऊऊऊऊऊऊऊऊऊऊऊऊऊऊऊऊ!!!

इस तरह ऊ का लम्बा उच्चारण उन्होंने जानबूझ कर किया ताकि मैं पिघल जाऊँ, लेकिन मैंने कोई प्रतिक्रिया नहीं दी!

भौजी: जानू.....सुनो न???

भौजी ने फिर से प्यारभरी कोशिश की!

मैं: हम्म!

मैंने बिना उनकी तरफ देखे कहा| अब भौजी को चैन नहीं पड़ा, वो अपनी चारपाई से उठीं और मेरी बगल में लेट गईं! मेरी तरफ करवट ली तथा अपनी दाईं टाँग उठा कर मेरी जाँघ पर रख दी और मेरी जाँघ को सहलाने लगीं, पर मुझे भौजी को अभी और तड़पना था, इसलिए मैंने बिना कुछ कहे नेहा को अपनी छाती से चिपकाए दूसरी ओर करवट ले ली! भौजी को फिर भी चैन नहीं पड़ा उन्होंने अपना दाहिना हाथ मेरी बगल से होता हुआ सीने पर रख दिया और मुझसे कस कर चिपक गईं! फिर उन्होंने मेरी गर्दन पर अपने गीले होंठ रख दिए, उनकी इस प्रतिक्रिया से मेरे शरीर में झुरझुरी छूट गई! भौजी ने अपने दांत मेरी गर्दन के पीछे गड़ा दिए और जितना हिस्सा उनके मुँह में था उसे चूसने लगीं! उनके ऐसा करने से मेरा खुद पर से काबू छूटने लगा, मैंने पहले नेहा को देख जो आँखें बंद किये हुए सो चुकी थी! मैंने नेहा को अपने आलिंगन से आजाद किया और भौजी की तरफ करवट ले कर लेट गया| उनका चेहरे देखते ही मुझे उनकी कही बात याद आ गई और मैंने उन्हें गुस्से से देखा! मेरे चेहरे पर गुस्सा देख भौजी सहम गईं और उन्होंने अपनी नजरें झुका लीं! मैंने अपने बाएँ हाथ से उनका चेहरा गुस्से में पकड़ा और उनकी आँखों में देखते हुए कहा;

मैं: आज के बाद दुबारा मुझे स्वार्थी कहा न, या मेरे किसी फैसले पर सवाल उठाया न तो देख लेना!

मेरी आँखों में गुस्सा देख भौजी को दर लगने लगा और उन्होंने सर हाँ में हिला कर मेरी बात स्वीकारी! अब गुस्सा हो चूका था और अब समय था अपनी जानेमन को प्यार करने का! मैंने एकदम से उनके होठों पर अपने होंठ रख दिए, जैसे ही भौजी को एस्पर्श पता चला उन्होंने फ़ौरन अपने दोनों हाथों से मेरा चेहरा थाम लिया और हम दोनों धीरे-धीरे एक दूसरे के होठों को चूसने लगे! करीब 2 मिनट के रसपान के बाद मैंने अपने होंठ उनकी पकड़ से छुड़ाए और उनकी आँखों में प्यार से देखते हुए कहा;

मैं: बस!

भौजी के चेहरे पर मुस्कान आ गई और उन्होंने सर हाँ में हिला कर मेरी बात मानी!

मैं: अब आप जा कर अपनी चारपाई पर लेटो वरना कोई आ गया तो क्या कहेगा?

भौजी ख़ुशी-ख़ुशी उठीं और अपनी चारपाई मेरे नजदीक खींच कर उस पर मेरी ओर करवट ले कर लेट गईं| उनके होठों पर मुस्कान थी और दिल में चैन था की मैं अब उनसे नाराज नहीं हूँ!

भौजी: जानू क्या आपको मुझसे पहले कभी किसी से प्यार हुआ है?

उन्होंने मुस्कुराते हुए पुछा, लेकिन ये सुन मुझे थोड़ा अजीब सा लगा;

मैं: आज ये सवाल क्यों?

मैंने भी मुस्कुराते हुए पुछा|

भौजी: पता नहीं बस मन ने कहा!

इतना कह के भौजी खींसें निपोरने लगीं!

भौजी की बात ने मुझे आज फिर उनकी टाँग खींचने का मौका दे दिया था तो मैं पूरे रस का आनंद ले कर उन्हें सच बताने लगा;

मैं: भई कुछ हुआ तो था मुझे...अब वो प्यार था ये क्या ये नहीं पता?

ये सुन कर भौजी की जिज्ञासा और जलन दोनों एक साथ जाग गईं|

मैं: जब मैं L.K.G में था, तब मुझे एक लड़की बहुत अच्छी लगती थी| बिलकुल गुड़िया जैसी दिखती थी, गोरी-चिट्टी और गाल पर एक छोटा सा तिल....हाय !हमेशा हँसती-मुस्कुराती रहती थी! वो रहती भी मेरे घर के पास ही थी पर मई कभी उसके घर नहीं गया और न ही वो कभी मेरे घर आई| वो उस टाइम नर्सरी में थी, शुरू-शुरू में हमारी मुलाक़ात सिर्फ स्कूल की छुट्टी होने के समय होती थी! मुझे स्कूल लेने और छोड़ने माँ-पिताजी जाया करते थे, जब 3-4 बार हम ऐसे ही मिले तो उसकी मम्मी ने मेरी माँ से बात करनी शुरू की और बातों-बातों में पता चला की वो लोग हमारे ही घर के पास रहते हैं| फिर धीरे-धीरे हम दोनों भी एक-दूसरे को देख कर मुस्कुराने लगे, अब चूँकि हम छोटे थे तो क्या बात करते? इसलिए बस यही मुस्कुराना और शर्माना जारी रहा, फिर एक दिन की बात है मैं क्लास में बैठा था की वो लड़की मेरी क्लास में झाँक कर चली गई! मैंने उसे फ़ौरन देख लिया और अपनी सीट से उठते हुए टीचर से बोला की मुझे बाथरूम जाना है, टीचर ने इजाजत दे दी| मैं एकदम से क्लास से निकला और उसके पीछे दौड़ा पर वो तबतक अपनी क्लास में घुस चुकी थी, मैंने बाहर से बड़ी ताका-झाँकी की लेकिन कहीं डाँट न पड़े इसलिए वापस अपनी क्लास में लौट आया| उसी दिन जब दोपहर को छुट्टी हुई तो मैंने उससे पहलीबार बात की और पुछा की वो मेरी क्लास में क्यों आई थी? अब उसकी मम्मी साथ थीं तो वो क्या जवाब देती, बेचारी शर्मा गई! उस दिन से मेरा उसकी क्लास में ताका-झाँकी करना बढ़ गया, फिर एक दिन वो मुझे सीढ़ियों पर बैठी लंच करती हुई दिखी तो मैं उसके साथ बैठ कर लंच करने लगा| इस तरह से हमने लंच शेयर करना शुरू किया और हमारी दोस्ती पक्की होती गई! कुछ दिन बाद पिताजी के दोस्त हमारे घर आये और उन्हीं दिनों आदित्य भैया जो मेरे पिताजी के दोस्त के बड़े लड़के थे वो मुझसे मिले और उन्होंने मुझे मेरी जिंदगी में सबसे पहले 'गर्लफ्रेंड' शब्द से रूबरू कराया! उनकी बात सुन कर दिल में तितलियाँ सी उड़ने लगीं, फिर एक दिन वो कोई अंग्रेजी पिक्चर देख रहे थे और उसमें एक kissing सीन आया जिसे देख कर मेरे छोटे से दिमाग में शार्ट-सर्किट हुआ! बस फिर क्या था मेरे मन में kiss करने की लालसा जाग गई, मुझे भी देखना था की kiss कर के क्या होता है?! हमारे स्कूल में एक फिसलने वाला झूला था तो मैं उस लड़की का हाथ पकड़ कर उस झूले के नीचे ले गया और एकदम से उसके होठों को अपने होठों से छु कर भाग गया! न मुझे कुछ महसूस हुआ और न ही उसे कुछ हुआ, ऊपर से मुझे शर्मिंदगी और महसूस होने लगी! मुझे लगा बेटा आज तो तू बुरी तरह पिटा, क्योंकि अब वो लड़की अपनी मम्मी से शिकायत करेगी और मेरी आज तगड़ी कुटाई होगी! लेकिन ऐसा कुछ हुआ नहीं, जब स्कूल की छुट्टी हुई तो उसकी मम्मी और मेरी माँ हम दोनों को स्कूल लेने पहुँचे! मैंने अपनी माँ का हाथ पकड़ा हुआ था और उसने अपनी मम्मी का, मेरा घर पहले आता था और उसका घर 5-6 घर छोड़ कर था| जैसे ही मेरा घर आया माँ घर के अंदर आने को मुड़ीं और मैं भी उन्हीं के साथ मुड़ा पर उस लड़की ने एकदम से मेरा हाथ पकड़ लिया और अपनी ओर खींचने लगी! जब मैंने उसकी ओर

देखा तो उसके चेहरे पर पहले जैसी ही मुस्कान थी और उसकी ये मुस्कान देख मेरा डर गायब हो चूका था! मैंने भी उसे कस कर अपने घर की ओर खींचना शुरू कर दिया! हमारी ये खींचा तानी देख हमारी माँ हँसे जा रहीं थीं ओर जब दोनों ही ने हार नहीं मानी तो माँ ने जबरदस्ती कर के उन दोनों को घर में बुलाया| इतने में पिताजी आ गए ओर फिर काफी गप्पें लगीं, उस दिन के बाद से मैंने उसे अपनी गर्लफ्रेंड मान लिया और एक दिन भोलेपन में माँ से बोला की मुझे उसी लड़की से शादी करनी है! अब उस उम्र में मेरे लिए शादी का मतलब होता था साथ रहना तो जब माँ ने पुछा की शादी कर के उसे खिलायेगा क्या तो मैंने कहा की पिताजी है न, मेरे पिताजी और उसके पिताजी काम पर जायेंगे, मेरी माँ और उसकी मम्मी दोनों खाना बनाएंगे और हम दोनों मजे से खाएंगे! ये सुन कर माँ बहुत हँसी और रात को उन्होंने ये बात पिताजी को भी बताई! वो भी बहुत हँसे, अगले दिन ये बात उस लड़की की माँ को भी पता चली और वो भी बहुत हँसी! उधर मैं हैरान और माँ पर गुस्सा हो रहा था की भला उन्होंने ये सब उन आंटी को क्यों बताया!

मेरी इतनी बात सुन भौजी को पहले तो खूब हँसी आई और फिर वो एकदम से गंभीर हो गईं! मैं समझ गया की मैंने उन्हें जला कर राख कर दिया है और अब वो मुझसे जर्रूर लड़ेंगी;

भौजी: अच्छा तो बचपन से ही सब सोच रखा था आपने?

भौजी ने आँखें तरेर कर पुछा|

मैं: यार प्लानिंग में मैं शुरू से उस्ताद रहा हूँ!

मैंने खुद की प्रशँसा करते हुए कहा जिसे सुन भौजी ने मुँह फुला लिया! मैं अपनी चारपाई से उठा और जा कर भौजी के पास बैठ गया, पर अब भौजी मुझसे रूठ चुकीं थीं;

भौजी: आप सच बोल रहे थे की मेरी टाँग खींच रहे थे?!

भौजी ने मुँह फुलाये हुए कहा|

मैं: जान ये सच है, पर तब मैं छोटा बच्चा था!

भौजी: अच्छा? सिर्फ यही एक "गर्लफ्रेंड" थी या और भी बनाईं आपने?

भौजी ने गुस्से में पुछा|

भौजी को यूँ जलाने में बहुत मजा आ रहा था, इसलिए मैंने अपना ये महान कार्य जारी रखा;

मैं: जब मैं सातवीं में आया था तब हमारी क्लास में एक नई लड़की आई थी, गोल-मटोल सी और उस पर क्लास के सबसे कमीने तीन लड़के मरते थे| इधर मैं तो उसके लिए जैसे पागल था, उसके आते ही मेरा रंग-ढंग बदल गया| सुबह मैं बड़ा सज-धज के स्कूल जाता था, नहीं तो पहले जबरदस्ती स्कूल जाया करता था! मेरे कपडे पहनने का ढंग बदल गया, कमीज इस्त्री की हुई वो भी ऐसी की क्रीज से क्रीज मिली हुई इस्त्री, शर्ट ढंग से पैंट के अंदर की हुई, बालों में Gel और रोज-रोज अलग-अलग तरीके से बनाये हुए बाल! अब सब कुछ तो बदल लिया पर उससे बात करने की हिम्मत नहीं होती थी, फिर सोचा की आमने-सामने न सही पर कम से कम फ़ोन पर तो कर लूँगा इसलिए उसके घर के नंबर के लिए उसके दोस्त से सिफारिश की| पर उसकी दोस्त कामिनी निकली और उसे जा के साफ़ बता दिया| उसने एकदम से मेरी ओर पलट के देखा तो मेरी हालत खराब हो गई, पूरा शरीर पानी-पानी हो गया पर उसने कुछ नहीं कहा! फिर मैंने हिम्मत कर के उसकी दूसरी सहेलियों को कितना मस्का लगाया, खिलाया-पिलाया पर कोई कामयाबी नहीं मिली! आखिर एक दिन किस्मत से उसका नंबर मिल ही गया, मैं ने उसे कई बार फ़ोन किया पर कभी हिम्मत नहीं हुई की कुछ कह सकूँ| फिर एक दिन उसके साथ बैठने का मौका भी मिला पर कुछ बोल नहीं पाया, पता नहीं क्यों उसके सामने मेरी नानी मर जाती थी! वो लड़की मेरी बगल वाली कतार में बैठती थी और अक्सर पीछे मुड़ कर मेरी ओर देखा करती थी| जो लड़का मेरे साथ बैठता था उसने मुझे चढ़ाना शुरू कर दिया की बेटा आग दोनों तरफ लगी है, वो भी तुझे उतना ही प्यार करती है जितना तू करता है! अब मैं उस की बातों में आ गया ओर मेरे दिल में लड्डू फूटने लगे!

ये सुन भौजी की जलन का पारा चढ़ने लगा था अब मैं अगर और बोलता तो भौजी आज मुझे कच्चा खा जातीं इसलिए मैंने अपनी इस प्रेम कहानी का अंत बीच में ही कर दिया;

मैं: फिर एक दुखद दिन पता चला की वो मुझसे नहीं बल्कि किसी और से प्यार करती थी! वो कमबख्त 'भेंगी' थी और पीछे मुड़ कर मुझे नहीं बल्कि मेरी दूसरी बगल वाली लाइन में सबसे पीछे बैठे लड़के को देखा करती थी!

मेरा उस लड़की को भेंगी कहने पर भौजी खिल-खिला कर हँसने लगीं| उनकी ये हँसी देख मुझे भी हँसी आई पर मैंने रोनी सी सूरत बना ली जिसे देख भौजी ने अपनी हँसी रोकी और मेरी पीठ सहलाते हुए आगे बोलने का मौका दिया;

मैं: उस दिन मेरा दिल टूट गया और मैंने मन ही मन सोचा की तुझे प्यार करने के लिए ये ही छिछोरा मिला था! थोड़ा समय लगा उसे भूलने में पर आठवीं में मैं हिंदी और उसने संस्कृत ली जिस कारन हमारी क्लास अलग-अलग हो गई!

मैंने रोनी सी शक्ल बनाते हुए कहा| भौजी ने मुझे पुचकारा और मेरी टाँग खींचते हुए बोलीं;

भौजी: awwwwww.... फिर दुबारा भी किसी से दिल लगाया था?

मैं: जब दसवीं में था तो एक लड़की की तरफ आकर्षित हुआ, पर इससे पहले की उसे कुछ कह पाता बोर्ड के पेपर में एक महीना बचा था और वो स्कूल का आखरी दिन था जब मैंने उसे अपने सामने देखा था! उसके बाद एक महीने तक कोई बात नहीं, मैं पढ़ाई में इतना मशगूल हुआ की उसकी शक्ल भी भूल गया| अगली मुलाक़ात बोर्ड के पेपरों के दौरान हुई पर उससे कोई बात कह नहीं पाया, ग्यारहवीं में उसका स्कूल बदल गया और मैंने उसके बाद अपने कान पकडे की कभी प्यार-व्यार के चक्कर में नहीं पडूँगा|

इस बार मैंने 'आकर्षित' शब्द का इतेमाल किया क्योंकि अब भौजी को और जलाने का मन नहीं कर रहा था| वहीं भौजी ने फिर से मेरी पीठ पर हाथ फेरते हुए पुछा;

भौजी: awwww .... फिर किससे प्यार हुआ आपको?

भौजी ने मेरी टाँग खींचते हुए पुछा|

मैं: फिर आप मिले, एक प्यारी सी गुड़िया मिली और फिर एक नै आने वाली गुड़िया! बस अब इससे ज्यादा और कुछ नहीं चाहिए!

मैंने भौजी की ओर देखते हुए मुस्कुरा कर कहा|

भौजी: पर याद रहे इकरार पहले मैंने किया था!

भौजी ने प्यार-भरा गुस्सा दिखाते हुए कहा|

मैं: हाँ जी इसीलिए तो मर मिटा आप पर!

ये कह कर मैंने भौजी के गाल को चूम लिया! भौजी भी अब उठ कर बैठ गईं ओर अपना एक हाथ मेरी कमर के इर्द-गिर्द लपेट कर अपना सर मेरे कंधे पर टिका दिया|

भौजी: जानू आपको मुझे जलाने में बहुत मजा आता है न?

भौजी ने मसुकुरा कर पुछा, थोड़ा देर से ही पर वो समझ गईं थीं की मैं उन्हें जला रहा हूँ!

मैं: हाँ!

मैंने हँसते हुए कहा, ये सुन भौजी ने एक प्यार भरा घुसा मेरी बाजू पर मारा और बोलीं;

भौजी: क्यों?

मैं: जब आप जल-भून कर गुस्से में तमतमाती हुई लाल मिर्च हो जाते हो न तो बड़ा अच्छा लगता है!

ये सुन भौजी ने गर्दन टेढ़ी की और बोलीं;

भौजी: ठीक है! मेरा भी वक़्त आएगा....

वो आगे कुछ बोलतीं उससे पहले ही मैं बोल पड़ा;

मैं: मेरे रहते हुए यहाँ किस की हिम्मत है की आप से बात कर सके?!

मैंने अकड़ कर कहा तो भौजी हँस पड़ीं, मेरा उनके प्रति यूँ अधिकार दिखाना देख भौजी को खुद पर गर्व होने लगा! भौजी ने मुस्कुराते हुए मुझे टक-टकी बाँधे देखना शुरू कर दिया और मैंने भी उन्हें जी भर कर आँखों से प्रेम करना शुरू कर दिया|

कुछ समय बाद भौजी मुस्कुराते हुए बोलीं;

भौजी: आप अगर बुरा ना मानो तो एक बात कहूँ|

भौजी ने थोड़ा झिझकते हुए पुछा|

मैं: हाँ जी बोलो!

मैंने सवालिया नजरों से उन्हें देखते हुए कहा|

भौजी एकदम से खामोश हो गईं और अपनी ताक़त बटोर कर अपना सवाल पुछा;

भौजी: मैंने आज तक सिर्फ और सिर्फ आपसे प्यार किया है, लेकिन जब मेरी शादी हुई थी तो मेरे भी मन में बहुत हसीन सपने थे, जैसे की हर लड़की के मन में होते हैं| पर सुहागरात में जब मुझे मेरे ही पति से धोखा मिला तो मेरे सारे सपने टूट के चकना चूर हो गए! फिर उसके बाद हमारे बीच जो ये नजदीकियाँ आईं ...क्या वो गलत नहीं? नाजायज नहीं? मुझे में और आपके भैया में फर्क ही क्या रहा?!

ये कहते हुए भौजी ने अपना सर शर्म से झुका लिया| मैं उनके जज्बात समझ सकता था और उनका यूँ खुद को दोषी मानना भी समझ सकता था! मैं चाहता तो भौजी को हमारे प्यार की सच्चाई के बारे में याद दिला सकता था पर फिर उनके मन में कहीं न कहीं ये शक हमेशा रहता की हमारा प्यार पाप है, इसलिए मुझे उनके मन से ये शक हमेशा के लिए मिटाना था|

मैं: मेरी तरफ मुँह कर के बैठो|

मैंने कहा तो भौजी नजरें झुकाये हुए मेरी तरफ मुँह कर के बैठ गईं|

मैं: अब आप मेरे कुछ सवालों का जवाब हाँ या ना में देना और सोच समझ के देना!

मैंने गंभीर होते हुए कहा|

भौजी: ठीक है|

भौजी ने आस भरी नजरों से मेरी ओर देखते हुए कहा|

मैं: सबसे पहले ये बताओ की आप मुझे उतना ही चाहते हो जितना आप ने शादी से पहले सोचा था की आप अपने पति से प्रेम करोगे?

भौजी: हाँ!

मैं: आपके पति ने आपसे धोका किया ये जानने के बाद आपके दिल में आपके पति के प्रति कोई प्रेमभाव नहीं रहा?

भौजी: हाँ!

मैं: क्या आपके मन में उनसे कोई बदला लेने या सबक सिखाने की भावना जागृत हुई थी?

भौजी: नहीं!

मैं: अगला सवाल आपके लिए थोड़ा कष्ट दायक है, पर ये मैं सिर्फ और सिर्फ आपकी मन की शंका दूर करने के लिए पूछ रहा हूँ वरना मैं आप पर पूरा भरोसा करता हूँ| क्या शादी से पहले आपने कभी भी किसी के साथ सम्भोग किया था?

ये सवाल पूछने में मुझे थोड़ा डर लगा था की कहीं भौजी नाराज न हो जाएँ पर उन्होंने बड़े तपाक से जवाब दिया;

भौजी: बिलकुल नहीं!

भौजी ने बड़े गर्व से जवाब दिया|

मैं: अब सबसे अहम सवाल, इसका जवाब थोड़ा सोच समझ के देना! अगर आपका पति आपके प्रति ईमानदार होता, मतलब उसका किसी भी स्त्री के साथ कोई भी शारीरिक या मानसिक सम्बन्ध नहीं होता तो क्या फिर भी आप मुझसे प्यार करते? मेरे इतना नजदीक आते?

ये सुन कर भौजी कुछ सोच में पड़ गईं, पर मैं इसका जवाब पहले से ही जानता था!

भौजी: कभी नहीं!

उनके जवाब में दृढ़ता थी, कोई शर्म या मेरा दिल दुखाने का इरादा नहीं था, इसी जवाब की मैंने उनसे उम्मीद भी की थी! इतने दिनों में मैं जान गया था की उनका चरित्र रसिका भाभी जैसा नहीं है, वो मुझे दिल से चाहतीं थीं!

मैं: अब मैं आपको मेरे पूछे सवालों तथा आपके दिए हुए जवाबों का सारांश बताता हूँ! शादी से पहले आप बिलकुल पवित्र मन के थे, एक साधारण लड़की जिसकी शादी होने वाली होती है उसही की तरह आपके भी कुछ सपने थे| आपका एक खुशयों भरा घर होगा, प्यार करने वाला पति होगा जो सिर्फ और सिर्फ आपका होगा, परन्तु जब शादी के बाद सुहागरात में आपको सच पता चला तो आपके सारे सपने चकनाचूर हो गए! आप को वो प्यार, वो स्नेह नहीं मिला जिसकी आपने अपने पति से अपेक्षा की थी| इतना सब होने के बाद भी आपके मन में अपने पति से किसी प्रकार का बदला लेने या उसे सबक सिखाने का कोई ख़याल नहीं आया, क्योंकि शादी से पहले भी और शादी के बाद भी आपके मन में किसी गैर मर्द के प्रति कोई दुर्विचार नहीं आया| फिर हम मिले और दोनों के मन में एक दूसरे के लिए स्नेह पैदा हुआ! हमारा साथ बैठ कर घण्टों बातें करना, मेरा आपकी गोद में बैठना, आपका वो मेरे गाल काटना, मेरा रूठना और आपका मनाना...कब ये सब प्यार में बदल गया मुझे पता ही नहीं चला! फिर आप मेरे घर आये और आपने अपने प्यार का इजहार किया, उस वक़्त मेरे मन में आपके प्रति समर्पण नहीं था! मेरे मन में आपके साथ सम्भोग करने के विचार उमड़ने लगे, मेरे कौमर्य दिमाग ने मेरे प्यार को दबा कर उसे वासना का नाम दे दिया! लेकिन वो आप थे जिसने मेरे मन में दबे हुए आपके प्रति प्यार को उजागर किया! हमारे प्रेम ने हमें एक दूसरे के इतने नजदीक खींचा की हमने समजाकि मर्यादाएँ साथ-साथ लाँघी! लेकिन अब हमारे मन में एक दूसरे के लिए समर्पण है और ये कहीं से भी पाप नहीं है!

अगर अचन्देर ने आपके साथ धोका नहीं किया होता, तो आपका मेरे प्रति ये प्यार कभी नहीं पनपता और आप अपनी शादी-शुदा जिंदगी में हंसी-ख़ुशी से रह रहे होते! रही अनैतिकता की बात तो समाज में हमारे रिश्ते के बारे में कोई नहीं जानता, रसिका भाभी जर्रूर जानती हैं पर उनके जैसे लोग जिनके खुद के अंदर वासना भरी है वो हमारे इस प्यार को अनैतिक ही कहेंगे, परन्तु अगर कोई सच्चा आशिक़ इस कहानी को सुनेगा तो वो इसे 'प्रेम' ही मानेगा....क्योंकि प्यार किया नहीं जाता....उसके लिए दिमाग नहीं चाहिए होता... बस दिल चाहिए होता है और जब दो दिल मिल जाते हैं तो उस संगम को ही एक दूसरे के प्रति 'आत्मसमर्पण' कहा जाता है|

मेरी बातें सुन कर भौजी के मन में अब कोई शंका नहीं रह गई थी, वो समझ गईं थीं की हमारा प्यार बिलकुल सच्चा है| उसमें रत्ती भर भी वासना नहीं है....है तो बस प्यार!

मैं: आपको आपके सवाल का जवाब मिल गया न?

मैंने मुस्कुरा कर पुछा तो भौजी ने भी मुस्कुरा कर हाँ में सर हिलाया|

अब समय था भौजी को आगे के लिए तैयार करने का, हमारे रिश्ते का कोई भविष्य नहीं था! हम साथ रह तो सकते थे पर एक पति-पत्नी की तरह नहीं बल्कि देवर भाभी की तरह, लेकिन उससे हमारे बीच ये प्रेम कभी खत्म नहीं हो सकता था|

मैं: अब मेरी बात ध्यान से सुनो और प्लीज उसे समझने की कोशिश करो| आपको याद है जब आपने मेरे बच्चे की माँ बनने की बात कही थी, तब आपने क्या कहा था?

ये सुन भौजी सोच में पड़ गईं और उस दिन को याद करने लगीं!

मैं: आपने कहा था की एक दिन आएगा जब मेरी शादी होगी, मेरे बच्चे होंगे और तब मैं अपनी उस दुनिया में व्यस्त हो कर आपको भूल जाऊँगा! तब मैंने कहा था की मैं आपको कभी नहीं भूलूँगा और ताउम्र आपसे प्यार करूँगा, उस दिन आपने मुझे समझाया था की ऐसा करके मैं उस लड़की के साथ धोका करूँगा, क्योंकि वो भी मुझसे प्यार की उम्मीद बाँधे मुझसे शादी करेगी! मेरा आपसे प्यार करते रहने से वो भी वैसा ही महसूस करेगी जैसा आपने किया था! इस समस्या का हल आपने ही निकाला था और वो था हमारा बच्चा जो हमेशा हमें एक दूसरे से जोड़े रखेगा....मेरी शादी होने के बाद भी लेकिन केवल भावनात्मक रूप से! मेरे मन में आपके लिए सदा प्रेम रहेगा, जो जगह आपकी मेरे दिल में है उसे कभी कोई लड़की छू नहीं सकती! ये सब जानते बूझते भी आपने कल रात मुझसे वो सवाल पुछा था की क्या मैं शादी के बाद भी आपसे प्यार करूँगा?

ये सुन कर भौजी की आँखें छलछला गईं, मैंने उन्हें हिम्मत देते हुए उनके दोनों कंधे पकडे और उनकी आँखों में देखते हुए कहा;

मैं: आज आपने देखा न की कैसे मैंने बातों के जाल में ये शादी टाल दी, पर ये कभी न कभी तो होगी ही! उसके लिए आपको मजबूत होना होगा, सिर्फ मेरे लिए ही नहीं बल्कि हमारे बच्चे के लिए! मैं जानता हूँ की खो देने का डर हम दोनों बर्दाश्त नहीं कर सकते पर हमें इस डर से लड़ना होगा और जो समय भी हमारे पास है उसे प्यार-मोहब्बत से जीना होगा न की कल की चिंता में कुढ़ते हुए मरना होगा! मैं आपको खुद से दूर जाने को नहीं कह रहा, बस आपको एक सेफ्टी बेल्ट पहनने को कह रहा हूँ ताकि जब हमारे जीवन की गाडी में शादी नाम का स्पीड ब्रेकर अचानक से आये तो हम दोनों उस हादसे में कहीं मर न जाएँ! आप ये हमेशा याद रखना की मैं मरते दम तक आपसे प्यार करता रहूँगा, मेरी आत्मा का एक टुकड़ा हमेशा आपके पास रहेगा लेकिन अगर आपको कुछ हो गया तो मैं उसी पल अपनी जान दे दूँगा!

मेरी खुदखुशी की बात सुन भौजी डर गईं और एकदम से अपने आँसूँ पोछते हुए बोलीं;

भौजी: नहीं ऐसा मत कहो!

ये कहते हुए वो मेरे सीने से लग गईं, मैंने उनकी पीठ को सहला कर उन्हें शांत किया|

मैं: अच्छा अब बाबा मानु जी का प्रवचन समाप्त हुआ! अब आप हमें अदरक वाली चाय पिलायें अथवा बाबा जी क्रोधित हो जायेंगे और फिर वो क्या दंड देते हैं आपको पता है न?

मैंने मजाक करते हुए कहा, जिसे सुन भौजी हँस पड़ीं;

भौजी: ही..ही..ही.. जो आज्ञा बाबा जी! आपके दंड से बहुत डर लगता है! आप सारा दिन हमें तड़पाते हो और फिर रात में हमें बिना मांगे ही kiss का वरदान दे देते हो| हम आपको अभी एक कड़क चाय पिलाते हैं!

ये कहते हुए भौजी मुस्कुरा कर उठीं और चाय बनाने चली गईं, उनके मुख पर आई इस मुस्कराहट ने मेरी आधी चिंता दूर कर दी थी! मैंने नेहा को जगाया और पहले तो उसकी ढेर सारी पप्पियाँ ली जिससे वो खिलखिला कर हँसने लगी, फिर उसके मुँह धुलवा कर उसकी किताब खुलवाई| उसकी किताब में जितने चित्र थे सब पर उसने क्रेयॉन्स से निशान बना दिए थे, उन चित्रों को देख मुझे मेरे बचपन की याद आ गई और मैं हँस पड़ा| इतने में भौजी अदरक वाली चाय लेके आईं और मुझे हँसता हुआ देख मेरी ओर देख मुस्कुराने लगीं;

भौजी: आप हँसते हुए कितने प्यार लगते हो! प्लीज ऐसे ही मुस्कुराते रहा करो!

मैं: मेरी हँसी तो आपसे जुडी है, अगर आप उदास रहोगे तो मैं कैसे मुस्कुरा सकता हूँ?!

ये सुन भौजी ने चाय रखी और अपने कान पकड़ते हुए बोलीं;

भौजी: आज से कभी उदास नहीं हूँगी!

भौजी ने मुस्कुराते हुए कहा| अब सब सामन्य हो चूका था, हमारे जीवन में आया तूफ़ान थम चूका था और अब बस प्यार ही प्यार बाकी था!

चाय पीने के बाद मैं नेहा को साथ लेके बाग़ तक टहलने निकला, वहाँ पहुँच के देखा तो बाग़ में आम के पेड़ थे और उन पर कच्चे आम लगे थे| तभी मुझे याद आया की प्रेगनेंसी में स्त्रियों को खट्टा खाने का बहुत मन करता है, इतने में नेहा ने मेरे दाएं गाल को चूमा और बोली;

नेहा: पापा जी आम तोड़ दो न?!

मैंने जवाब में नेहे की एक मीठी-मीठी पप्पी ली और उसे अपनी गोद से उतारा| फिर मैंने पास पड़ा एक ढेला उठा के मारा पर निशाना नहीं लगा, मेरी देखा-देखि नेहा को भी जोश आ गया और उसने भी एक ढेला उठा कर फेका पर वो तो चार फुट भी नहीं गया! ये देख मैं ठहाका मार के हँस पड़ा, मेरी हँसी देख नेहा भी हँसने लगी|

मैं: बेटा आप ऐसा करो की मुझे ढेले ला-ला कर दो और मैं मारता हूँ!

नेहा अपने नन्हे-नन्हे हाथों से एक बार में बस दो ही ढेले ला पाती, इधर मैंने भी बड़ी कोशिश की पर ससुर एक भी निशाना ठीक से नहीं लगा! एक-आध लगा भी तो उससे आम नहीं गिरा बल्कि मेरा ढेला आम से टकरा कर फूट गया! मैंने थोड़ी नजर दौड़ाई तो मुझे झाडी में एक आधे फुट का डंडा दिखा| मैंने उसे उठाया और निशाना साध कर उसे फेंक के मारा, वो गोल घूमता हुआ एक आम से टकराया और लद्द से एक आम गिर गया! नेहा फ़ौरन उस आम को लेने के लिए दौड़ी, जब वो उसे उठा कर लाई तो मैंने देखा की वो आधा पका हुआ था इसीलिए टूट के गिर गया! मैंने वो आम अपनी जेब में डाला, अब चूँकि सूर्यास्त हो रहा था तो मैंने नेहा से घर चलने को कहा| पर नेहा का मन और आम तोड़ने का था, इसलिए मैंने उसे समझाते हुए कहा;

मैं: बेटा अब शाम हो रही है और शाम होने पर पेड़ सो जाते हैं, ऐसे में उन्हें पत्थर मार के जगाना नहीं चाहिए!

नेहा ने बड़े गौर से मेरी बात सुनी और बिना किसी विरोध के बात मान ली| मैंने नेहा को गोद में लिया और बाग़ से बाहर आ गया, तभी बाग़ से किसी ने मुझे पुकारा; "मानु जी!" ये सुन मैं एकदम से रुक गया और पलट के देखा तो सुनीता बाग़ के दूसरे कोने से निकल रही थी|

मैं: ओह Hi!

सुनीता: Hi!

हम दोनों ने मुस्कुराते हुए एक दूसरे को Hi किया| सुनीता ने नेहा को देखा और उसे देख कर मुस्कुराते हुए बोली;

सुनीता: Hi नेहा!

ये सुनते ही नेहा शर्मा गई और मेरे कंधे पर अपना चेहरा रख कर खुद को छुपाने लगी! लेकिन आज सुनीता को उससे बात ाकर्णी थी इसलिए वो बोली;

सुनीता: ये तो गलत बात है नेहा! जब भी मैं आपसे बात करती हूँ तो आप अपने चाचा की आड़ में छुप जाते हो!

ये कहते हुए सुनीता ने नेहा को कमर से पकड़ कर गोद लेना चाहा, पर नेहा ने अपने दोनों हाथों को मेरी गर्दन के इर्द-गिर्द लपेट लिया| अब सुनीता नेहा को अपनी ओर खींचे और नेहा मेरी गर्दन पकड़ कर मेरे से चिपकने की कोशिश करे! करीब मिनट भर ये खेल चला जिसमें हम तीनों खूब हँसे, फिर मैंने ही हँसते हुए नेहा से कहा;

मैं: बेटा देखो सुनीता आंटी आपको कितना प्यार से बुला रही हैं!

बेमन से ही सही नेहा ने मेरी बात मानी, उधर जैसे ही सुनीता ने नेहा को गोद में लिया की उसके दोनों गाल को चूमते हुए बोली;

सुनीता: Thank you बेटा!

नेहा अब भी बहुत शर्मा रही थी इसलिए वो वापस मेरे पास आने को मचलने लगी|

सुनीता: अच्छा एक शर्त पर जाने दूँगी, पहले मुझे भी एक पप्पी दो!

ये सुन नेहा मेरी ओर हैरानी से देखने लगी, मैंने हाँ में सर हिला कर उसे पप्पी देने को कहा तब जा आकर उसने सुनीता के दाहिने गाल को चूमा और फिर मेरे पास आने को छटपटाने लगी| सुनीता ने उसे मेरी गोद में दे दिया और नेहा मेरी गोद में आते ही मुझसे लिपट गई!

इतने में सुनीता ने एक थैली मेरी ओर बढ़ा दी|

मैं: ये क्या है?

मैंने सवालिया नजरों से उसे देखते हुए पुछा|

सुनीता: आम हैं|

उसने हँसते हुए कहा|

मैं: पर मुझे मिल गया...ये देखो|

मैंने मुस्कुराते हुए कहा और सुनीता को अपनी जेब से आम निकाल कर दिखाया|

सुनीता: हाँ-हाँ निशाना देखा मैंने आपका, बिलकुल अर्जुन की तरह निशाना लगाते हो!

ये कहते हुए वो ठहाका मार के हँस पड़ी!

मैं: तो आप छुप के मेरा निशाना देख रहे थे!

माने मुस्कुरा कर पुछा|

सुनीता: हाँ|

मैं: पर आप यहाँ कर क्या रहे थे?

ये सवाल पूछने के बाद मुझे मेरी मूर्खता समझ आई, दरअसल गाँव में लोग कभी खाली बाग़ में या झाडी के पीछे अपना नित्यकर्म (शौच) निपटाते हैं| मेरा ये सवाल बड़ा ही बेवकूफी भरा था तो मैंने बात को संभालते हुए हड़बड़ा कर कहा;

मैं: I mean आप जो भी कर रहे थे मैंने उसमें आपको disturb तो नहीं किया?

एक बार फिर मैंने बेवकूफी वाले शब्दों का चयन किया! मेरी ये हड़बड़ाहट देख सुनीता खूब जोर से हँसी, मैं समझ गया की उसने मेरी हड़बड़ाहट पकड़ ली है इसलिए मेरे चेहरे पर भी मुस्कान आ गई! फिर किसी तरह सुनीता ने अपनी हँसी काबू कीऔर बोली;

सुनीता: ये हमारा ही बगीचा है|

मैं: ओह सॉरी!

मुझे मेरी गलती का ज्ञान हुआ!

सुनीता: किस लिए?

सुनीता ने भोयें सिकोड़ते हुए पुछा|

मैं: बिना पूछे मैं यहाँ आम तोड़ रहा था|

मैंने अपनी गलती का खुलासा करते हुए कहा|

सुनीता: यहाँ कोई नियम/कानून नहीं है, कोई भी आम तोड़ सकता है! फिर हम तो दोस्त हैं तो आपको पूछने की भी कोई जर्रूरत नहीं थी| दरअसल पिताजी ने सब के लिए ये आम भेजे हैं और मैं इन्हें ही देने आपके घर आ रही थी की आप मुझे यहाँ मिल गए|

मैं: अरे तो आप ही चल के दे दो न?

सुनीता: ठीक है, वैसे आप घर ही जा रहे हो ना?

मैं: हाँ जी..क्यों?

सुनीता: रास्ते में बात करते हुए चलते है!

मैं: Sure!

हम दोनों घर की तरफ चल दिए|

सुनीता: मुझे आप से माफ़ी माँगनी थी और शुक्रिया भी कहना था!

सुनीता ने सर झुकाते हुए कहा|

मैं: किस लिए?

मैंने थोड़ी चिंता जताते हुए कहा|

सुनीता: मैंने आज आपको झूठा बना दिया लेकिन फिर भी आपने इस शादी के लिए मना कर दिया और मुझे बचा लिया!

मैं: मैं समझ सकता हूँ की आपने अपने पिताजी के दबाव में आ कर झूठ बोला था और विश्वास करो की मुझे उसका जरा भी बुरा नहीं लगा| हम दोनों ही ये शादी नहीं करना चाहते थे तो मुझे कैसे भी करके इस शादी के लिए मना तो करना ही था! तो आपको मुझे Sorry या Thank you कहने की कोई जर्रूरत नहीं, क्योंकि हम दोस्त है न?!

ये सुन सुनीता के चेहरे पर फिर से मुस्कान आ गई|

नेहा हम दोनों की बातें ख़ामोशी से सुन रही थी और जब हमारी बातें खत्म हुई तो उसने मुझसे मेरा तोडा हुआ आम माँगा| मैंने आप अपनी टी-शर्ट से रगड़ के साफ़ किया और उसे नेहा को दे दिया| नेहा से सब्र नहीं हुआ और उसने उसे अपने मुँह में भर के दाँतों से काटा| जैसे ही नेहा ने आम की पहली bite ली की उसे जोरदार खटास का एहसास हुआ और वो टेढ़े-मेढ़े मुँह बनाने लगी| (जैसे किसी छोटे बच्चे को आप निम्बू चटा दो तो वो कैसे मुँह बनाने लगता है!) नेहा को मुँह बनाते देख हम दोनों खिल-खिला के हँसने लगे और इसी तरह हँसते हुए घर पहुँचे| घर पहुँच के सुनीता ने बड़की अम्मा को आम दिए और सब ये देख कर बहुत खुश हुए| बड़की अम्मा ने गुड के लड्डू बनाये थे, तो उन्होंने वो लड्डू टिफ़िन में पैक कर के सुनीता को दिए| सुनीता सब को नमस्ते कर ख़ुशी-ख़ुशी अपने घर लौट गई| कछ देर बाद पिताजी और बड़के दादा जब घर लौटे और उन्हें भी इस बात का पता चला तो वो भी खुश हुए की दोनों घरों के बीच कोई गलतफैमी या मन-मुटाव नहीं है|
 

[color=rgb(184,]अठारवाँ अध्याय: प्रेम के आखरी कुछ पल....... [/color]
[color=rgb(209,]भाग - 1 (1)[/color]


[color=rgb(209,]अब तक आपने पढ़ा:[/color]

नेहा हम दोनों की बातें ख़ामोशी से सुन रही थी और जब हमारी बातें खत्म हुई तो उसने मुझसे मेरा तोडा हुआ आम माँगा| मैंने आप अपनी टी-शर्ट से रगड़ के साफ़ किया और उसे नेहा को दे दिया| नेहा से सब्र नहीं हुआ और उसने उसे अपने मुँह में भर के दाँतों से काटा| जैसे ही नेहा ने आम की पहली bite ली की उसे जोरदार खटास का एहसास हुआ और वो टेढ़े-मेढ़े मुँह बनाने लगी| (जैसे किसी छोटे बच्चे को आप निम्बू चटा दो तो वो कैसे मुँह बनाने लगता है!) नेहा को मुँह बनाते देख हम दोनों खिल-खिला के हँसने लगे और इसी तरह हँसते हुए घर पहुँचे| घर पहुँच के सुनीता ने बड़की अम्मा को आम दिए और सब ये देख कर बहुत खुश हुए| बड़की अम्मा ने गुड के लड्डू बनाये थे, तो उन्होंने वो लड्डू टिफ़िन में पैक कर के सुनीता को दिए| सुनीता सब को नमस्ते कर ख़ुशी-ख़ुशी अपने घर लौट गई| कछ देर बाद पिताजी और बड़के दादा जब घर लौटे और उन्हें भी इस बात का पता चला तो वो भी खुश हुए की दोनों घरों के बीच कोई गलतफैमी या मन-मुटाव नहीं है|

[color=rgb(226,]अब आगे....[/color]

रात होने को आई थी और खाना लगभग तैयार था, पिताजी ने बड़की अम्मा से आलू का भरता बनाने की मांग की तो बड़की अम्मा हाथ-मुँह धो कर रसोई में घुस गईं| अब भौजी चूँकि फ्री थीं तो उन्होंने मेरे से दिल्लगी करने की सोची और उन्होंने मुझे इशारे से अपने घर में बुलाया| मैं करीब 5 मिनट बाद सबसे नजरें बचा कर उनके घर में घुसा, भौजी उस वक़्त स्नानघर की दिवार से पीठ टिका कर खड़ीं थीं और उनके चेहरे पर एक नटखट मुस्कान थी! मैं धीमे-धीमे उन्हें और तड़पाते हुए बढ़ा, मुझे ऐसे धीमे-धीमे बढ़ते हुए देख भौजी की ये नटखट मुस्कान गहरी होती गई! मैं उनसे 4 कदम की दूरी पर रुक गया, तो भौजी खुद मेरे नजदीक आईं और मेरी गर्दन में बाहें डालकर बोलीं;

भौजी: आज मुझसे एक गलती हो गई!

ये कहते हुए भौजी ने अपना निचला होंठ दाँत से काट लिया!

मैं: क्या?

मैंने अपनी बाहें उनकी कमर के इर्द-गिर्द लपेटते हुए पुछा|

भौजी: आज न..मैंने...न...आपको Good Morning Kissi नहीं दी!

ये कहते हुए भौजी ने अपने होठों को गोल बना कर मुझे ललचाया!

मैं: Hawww...आपने तो घोर पाप कर दिया! अब तो आपको दंड देना पड़ेगा!

मैंने भौजी की टाँग खींचते हुए कहा! ये सुन भौजी ने घबराने का नाटक किया और बोलीं;

भौजी: नहीं...नहीं... प्लीज! मैं अपनी गलती का प्रायश्चित करना चाहती हूँ!

भौजी ने अपनी गर्दन टेढ़ी करते हुए बड़े मादक तरीके से कहा|

मैं: कैसे?

मैंने भौजी को अपने नजदीक खींचते हुए कहा|

भौजी: आप थोड़ी देर बाद नेहा को लेने के लिए घर में आ जाना, मैं अपना प्रायश्चित तभी करुँगी| ही..ही.. ही!!

भौजी ने मेरे सीने से लगते हुए कहा| मैं समझ गया की भौजी क्या प्रायश्चित करने वालीं हैं और ये सोच कर मेरे दिल की धड़कनें तेज होने लगीं थीं!

मैं ने भौजी को अपनी पकड़ से आजाद किया और मुस्कुराते हुए बाहर आ गया, करीब पंद्रह मिनट तक मैं कुऐं के पास टहलता रहा! अब समय था भौजी से प्रेम मिलन का, मैं नेहा को आवाज देते हुए भौजी के घर में घुसा| जैसे ही मैं अंदर पहुँचा की भौजी ने एकदम से मेरा हाथ पकड़ा और झटके से मुझे अपने पास खींच लिया! भौजी दीवार और मेरे बीच में फँसी थीं, उनकी सांसें तेज हो चलीं थीं तथा उनकी आँखों में प्यास साफ़ झलक रही थी!

मैं: क्या कर रहे हो?

मैंने भौजी की आँखों में झांकते हुए पुछा, भौजी ने एकदम से मुझे दूसरी तरफ धकेला और अब मुझे अपने और दिवार के बीच में दबा दिया| भौजी ने मुझे बेतहाशा चूमना शुरू कर दिया, उनके हाथ मेरी गर्दन को पकडे हुए थे और मैं उनकी कमर थामे हुआ था| उनका ये चुंबन कुछ इस प्रकार आक्रामक था की मुझे कुछ करने का मौका ही नहीं मिल रहा था, भौजी ही बार-बार मेरे होठों को चूस रहीं थीं और फिर अचानक से उन्हें छोड़ देतीं! अगले ही पल वो फिर से मेरे होठों को अपने मुँह भर कर उन्हीं चूस्तीन और फिर खींचते हुए छोड़ देतीं!

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उनके इस खींचने और छोड़ने से मेरे लिंग ने अंगड़ाई ले ली थी और इधर मुझे डर लग रहा था की कोई आ गया तो क्या होगा?

मैं: म्म्म्म....कोई आ जाएगा!

मैंने भौजी को चेताया पर उन्होंने सुन कर भी अनसुना कर दिया! अब मुझसे भी काबू करना मुश्किल हो रहा था, मैंने उनके बालों के जुड़े को अपने हाथ से पकड़ कर पीछे की ओर खींचा, जिसकी उनकी गर्दन पीछे की ओर तन गई! मेरे सामने भौजी की गिरी-गोरी गर्दन थी, मैंने पहले तो इसे जीभ से चाटा ओर फिर उसपर अपने दाँत गड़ा दिए!

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"स्स्स्स्स्स्स...अहह!!" भौजी सीसियाने लगीं! भौजी ने फ़ौरन अपने दोनों हाथ मेरी गर्दन ओर बालों में फिराने शुरू कर दिए|

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अब मैं किसी Vampire की तरह उनकी गर्दन पर अपने दाँत गड़ाए उन्हें चूम रहा था, काट रहा था और चूस रहा था|

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जब उनकी गर्दन से मन भर गया तो मैंने उनके होठों पर अपने होंठ रख दिए! मैंने उनके निचले होंठ को अपने होठों से दबोचा, पहले उन्हें थोड़ा चूसा और फिर उसे धीरे से खींचा!

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मेरे ऐसा करने से भौजी की जीभ बाहर आ गई जिससे लड़ने के लिए मेरी जीभ पहले से ही तैयार थी! लेकिन भौजी बड़ी चालाक थीं, उन्होंने अपनी जीभ मेरे खुले में में प्रवेश तो कराई पर इससे पहले की मेरी जीभी उनकी जीभ को छू पाती उन्होंने फ़ौरन अपनी जीभ वापस अंदर खींच ली!

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इस मधुर रसपान में पाँच मिनट बीत गए, हमारे दिमाग अब भी सचेत इसीलिए हमने इस मधुर रसपान का अंत स्वयं किया! हम दोनों अब भी एक दूसरे की आँखों में प्यास देख पा रहे थे पर मजबूर थे क्योंकि इस वक़्त कुछ हो नहीं सकता था!

मैं: बस! हो गया आपका प्रायश्चित, इसके आगे बाबा अपना कंट्रोल खो देंगे|

माने बात शुरू करते हुए कहा|

भौजी: तो रोका किसने है?!

भौजी ने अपने निचले होंठ को काटते हुए मुझे खुला निमंत्रण दिया!

मैं: आज घर में सब मौजूद हैं, आज कुछ नहीं हो सकता!

मैंने मुँह बनाते हुए कहा|

भौजी: फिर मैं आपसे नाराज हो जाऊँगी!

भौजी ने मुझे एमोशनल ब्लैकमेल करते हुए कहा|

मैं: जान ऐसा जुल्म मत करो! देखो मैं कोशिश करूँगा!

मैंने भौजी को अपने आलिंगन से आजाद किया और अपने कान पकड़ते हुए कहा| ये देख भौजी के चेहरे पर मुस्कान आ गई| भौजी के प्रायश्चित के चक्कर में मैं अपनी बेटी को भूल ही गया था;

मैं: ये बताओ की नेहा कहाँ है?

मैंने थोड़ा परेशान होते हुए कहा|

भौजी: भूसे वाले कमरे में अपनी तख्ती ढूँढ रही है|

ये कहते हुए भौजी खिलखिलाकर हँसने लगीं!

मैं: क्या? पर वहाँ तख्ती रखी किसने?

मैंने सवालिया नजरों से देखते हुए पुछा|

भौजी: मैंने!

ये कहते हुए भौजी ने मुझे आँख मारी!

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मैं: पर क्यों?

मैं भौजी का प्लान तो समझ गया था पर उसके लिए नेहा की तख्ती छुपाना समझ नहीं आ रहा था|

भौजी: ताकि हमें कुछ समय अकेले मिल जाए!

भौजी ने फिर मुझे बहकाने के लिए अपना निचला होंठ चबाया!

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मैं: आप न बहुत शारती हो!

मैंने मुस्कुराते हुए कहा और नेहा को ढूँढ़ते हुए भूसे वाले कमरे में पहुँचा| भौजी ने नेहा की तख्ती ऊपर खपरेल में खोंस रखी थी और बेचारी नेहा उसे उतारने के लिए चारपाई पर कड़ी ऊपर की ओर हाथ मार रही थी! मैंने उसे वो तख्ती निकाल कर दी और नेहा को गोद में ले कर वापस लौटा! भौजी ने जब मेरे हाथ में तख्ती देखीं तो वो खिलखिलाकर हँसते हुए मेरी बगल से चली गईं, ये देख नेहा सोच में पड़ गई की भला ये हो क्या रहा है?! मैंने नेहा को लेकर छप्पर के नीचे भौजी के सामने बैठ गया;

मैं: बेटा आपको पता है यहाँ सबसे शैतान कौन है?

नेहा को लगा की मैं उसे शैतान कह रहा हूँ तो उसने ऊँगली अपनी तरफ करते हुए पुछा मूक भाषा में पुछा की क्या मैं शरारती हूँ? मैंने न में सर हिलाया और उसकी ऊँगली घुमा कर उसकी मम्मी की तरफ कर दी;

मैं: ये जो आपकी मम्मी है न, ये सबसे शरारती हैं! इन्होने ही आपकी तख्ती छुपाई थी!

ये सुन नेहा ने सवालियां नजरों से अपनी मम्मी को देखा और पुछा;

नेहा: क्यों मम्मी जी?

ये सवाल सुन भौजी फिर हँस पड़ीं और अपने दोनों हाथ खोल कर उसे अपने पास आने का न्योता दिया| नेहा मुस्कुराते हुए अपनी मम्मी के पास दौड़ गई और भौजी ने उसे गोद में ले कर खूब प्यार किया!

खैर अब खाने का समय था तो सबजने खाना खाने बैठ गए, मैं और नेहा अंत में साथ बैठे खाना खा रहे थे| बड़की अम्मा ने सबको खाना परोसा और जब आलू का भरता मिला तो मैंने अम्मा की जी भरकर तारीफ की! सभी पुरुषों का खाना हुआ और सब अपने-अपने बिस्तर में सोने चल दिए, इधर मैं नेहा को ले कर अपने बिस्तर में घुस गया| लेटते ही नेहा मेरी छाती पर चढ़ गई और अपने दोनों हाथों से मुझे थाम लिया, मैंने उसके सर को चूमते हुए कहानी सुनाई जिसे सुनते हुए वो सो गई| भौजी का खाना होने तक मैं भी सो चूका था, रात के बारह बजे भौजी दबे पाँव बाहर आईं और मेरे कान में खुसफुसाई;

भौजी: जानू...उठो ना!

उनकी आवाज सुन मैं चौंक गया और आँख खोल उनकी तरफ मुड़ते हुए कहा;

मैं: आज नहीं...नेहा डर जाती है, कल पक्का!

भौजी: जानू उसे तो सुला दिया आपने पर मुझे कौन सुलायेगा?

भौजी ने मुँह फूलते हुए कहा|

मैं: आज रात कैसे भी एडजस्ट कर लो, कल से आपको पहले सुलाऊँगा!

मैंने भौजी को प्यार से समझाते हुए कहा|

भौजी: हुँह... कट्टी!!!

ये कहते हुए भौजी नाराज हो गईं और एकदम से उठ कर चली गईं!

मैं: अरे सुनो...

मैंने उठते हुए कहा पर तबतक भौजी अपने घर में घुस चूँकि थीं और मेरी तरफ प्यार भरे गुस्से से देखते हुए दरवाजा बंद कर दिया! भौजी का ये गुस्सा दिखावटी था और मैं जनता था की कल सुबह होते ही मैं उन्हें मना लूँगा, मैं वापस पीठ के बल लेटा और नेहा की पीठ पर दोनों हाथ रखे हुए चैन की नींद सो गया|

[color=rgb(235,]जारी रहेगा भाग - 1 (2).....[/color]
 

[color=rgb(184,]अठारवाँ अध्याय: प्रेम के आखरी कुछ पल.......[/color]
[color=rgb(226,]भाग - 1 (2)[/color]


[color=rgb(235,]अब तक आपने पढ़ा:[/color]

मैं: आज रात कैसे भी एडजस्ट कर लो, कल से आपको पहले सुलाऊँगा!
मैंने भौजी को प्यार से समझाते हुए कहा|
भौजी: हुँह... कट्टी!!!
ये कहते हुए भौजी नाराज हो गईं और एकदम से उठ कर चली गईं!
मैं: अरे सुनो...
मैंने उठते हुए कहा पर तबतक भौजी अपने घर में घुस चूँकि थीं और मेरी तरफ प्यार भरे गुस्से से देखते हुए दरवाजा बंद कर दिया! भौजी का ये गुस्सा दिखावटी था और मैं जनता था की कल सुबह होते ही मैं उन्हें मना लूँगा, मैं वापस पीठ के बल लेटा और नेहा की पीठ पर दोनों हाथ रखे हुए चैन की नींद सो गया|

[color=rgb(209,]अब आगे....[/color]

अगली सुबह बड़ी रंगीन थी, जैसे ही आँख खुली तो सबसे पहले मने अपनी लाड़ली बेटी का सर चूमा| नेहा को अपने सीने से चिपकाए मैं बड़े आराम से उठा ताकि उसकी नींद न टूट जाए| आज मौसम बहुत ठंडा था, ठंडी-ठंडी हवाएँ चल रहीं थीं! काले-काले बदल आसमान पर छा चुके थे और बीच-बीच में अपनी बिजली की तलवार चमका रहे थे! हवा में मिटटी की सुगंध थी और मोर की आवाज गूँज रही थी! बारिश आना तय था इसलिए आज घर में पकोड़े बनने की तैयारी हो रही थी! मैं नेहा के सर को चूमता हुआ उठा और टहलते-टहलते बड़े घर पहुँचा, नेहा को सोता हुआ देख आज दिल को बहुत ख़ुशी हो रही थी इसलिए मैंने उसे जगाया नहीं| बारिश कभी हो सकती थी और ये ठंडी हवा महसूस कर आज दिल को बहुत सुकून मिल रहा था! मैंने नेहा को बरामदे में चारपाई पर लिटाया और उसके ऊपर एक चादर डाल दी| मैं भी उसी चारपाई पर आँगन की तरफ मुँह कर के बैठ गया और उस ठंडी हवा को मेरे चेहरे पर महसूस कर आँखें बंद कर अपने शांत मन की गहराई में उतर गया| इतने में वहाँ भौजी आ गईं;

भौजी: चलिए नहा धो लीजिये?

भौजी ने मुस्कुरा कर कहा क्योंकि कल रात का उनका गुस्सा अब खत्म हो चूका था|

मैं: पहले आप बताओ की रात कैसे गुजरी आपकी?

ये सुन भौजी ने प्यारभरा गुस्सा दिखाते हुए कहा;

भौजी: जानते हुए भी पूछ रहे हो?

मैंने अपने दोनों कान पकडे और बोला;

मैं: सॉरी यार, आज से ध्यान रखूँगा!

भौजी: कोई जर्रूरत नहीं!! आप बस अपनी बच्ची का ख़याल रखो|

भौजी ने बनावटी गुस्सा दिखाते हुए कहा|

मैं: पक्का?!

मैंने भौजी को सताते हुए कहा, जिसे सुन भौजी के चेहरे पर तड़पने के निशान आ गए!

भौजी: ज्यादा न मेरे साथ होशियारी मत दिखाओ!

ये सुन मैं हँस पड़ा और भौजी भी खिलखिलाकर हँस पड़ीं!

भौजी: अच्छा अब नाहा-धो लो और जल्दी से रसोई आओ, अम्मा पकोड़े बनाने वाली हैं! सब के सब वहाँ आप ही का इंतजार कर रहे हैं!

मैं: मतलब यहाँ बस हम दोनों हैं?

मैंने अपनी चमकती हुई आँखों से कहा|

भौजी: हाँ!

भौजी ने मुस्कुराते हुए कहा|

मैं: हाय! फिर भी आप इतनी दूर खड़े हो?!

ये कहते हुए मैंने उठ कर भौजी का हाथ पकड़ना चाहा, लेकिन भौजी दो कदम पीछे हट गईं और मुझे जीभ चिढ़ाते हुए बोलीं;

भौजी: कल रात मुझे तड़पाया न, अब खुद भी थोड़ा तड़पो!

मैं: सॉरी जान!

मैंने फिर से कान पकड़ते हुए कहा पर भौजी आज मुझे सजा देने के मूड में थीं, इसलिए उन्होंने अपनी गर्दन में न में हिलाई! उन्होंने नेहा को गोद में उठाया और मुझे ललचाते हुए नेहा के गाल को चूमा| ये दृश्य देख मैं उन्हें प्यासी नजरों से देखने लगा, पर भौजी ने नेहा के दूसरे गाल पर बड़ी लम्बी पप्पी दी;

भौजी: ummmmmmmmmmmaaaaaahhhhhhhh!!!

मैंने हाथ जोड़ते हुए मूक मिन्नत की और तभी भौजी बोलीं;

भौजी: Two can play this game!

उनका मतलब था जैसे मैं भौजी को दिखाते हुए नेहा की पप्पी लेता था वैसे ही आज वो मुझे ललचाते हुए नेहा की पप्पी ले रहीं थीं! भौजी ने एक बार फिर मुझे जीभ चिढ़ाई और नेहा को गोद में लिए हुए चली गईं| उनका यूँ मुझे ललचाना आज दिल में तरंगे पैदा कर गया था और मन आज अति प्रसन्न था!

मैंने फटाफट ब्रश किया और नहाने के लिए अपने कपडे निकाले, तभी आसमान में एक जोरदार बिजली चमकी! इस बिजली की तनखार को सुन मैं आँगन में आ गया और आसमान की ओर देखने लगा, अगले ही बल झडझड कर बादलों से पानी बरसने लगा! ऐसा लगा जैसे बादल मेरा ही इंतजार कर रहे थे की कब मैं बाहर आऊँ ओर वो मुझ पर पानी बरसाएँ! मेरा ओर बादलों का नाता था ही ऐसा, बचपन से ले कर आजतक मैंने कोई बारिश miss नहीं की थी! फिर चाहे सिर्फ हाथ ही भिगाऊँ या फिर भीग कर बीमार ही क्यों न पड़ जाऊँ, बारिश में भीगना मतलब बारिश में भीगना! बचपन की वो शरारतें जिनमें छत पर मैं कच्छा पहन कर बारिश में लोटता था, छत पर खड़े पानी को लात मार-मार के उड़ाता था तो कभी उस पानी में अपनी नाव चलाता था! जब किशोरावस्था में आया तो अब बारिश में मैं लोटता नहीं था, न ही उसमें खेलता था| बस चुपचाप उस बारिश में खड़ा हो जाता था जिससे पढ़ाई का बोझ जो सरपर चढ़ा होता था वो इस बारिश के कारन हल्का लगने लगता था! एक्साम्स की टेंशन हो या पिताजी पर आया कोई गुस्सा हो, सब इसी बारिश में भीगने से बह जाता था! अनेकों बार माँ-पिताजी की डाँट खाई क्योंकि कईबार इस बारिश में भीगने से बीमार पड़ जाता था, पर मैं अपनी इस हरककत से आजतक बाज नहीं आया! लेकिन आजकी बारिश बहुत-बहुत ख़ास थी, क्योंकि पिछलीबार की बारिश में मुझे खुद से नफरत हो रही थी वहीं आजकी बारिश ऐसी थी जो सुबह से प्रसन्न मन को आनंद के सागर में बहा कर ले जाना चाहती थी!

मैं अपने हाथ खोल दिए ओर आसमान से गिरने वाली बूंदों को अपने चेहरे से होते हुए दिल में उतारने लगा| बारिश की ये बूंदें जब चेहरे पर गिरतीं तो ऐसा लगता मानो जैसे धुप से तपती हुई धरती आज बरसों बाद अपनी प्यास मिटा रही हो और मैं आँखें मूँदे आँगन में दरवाजे की ओर पीठ किये हुए खड़ा उन मीठी बूंदों को पीने में व्यस्त था! मैं नहीं जानता था की भौजी बरामदे में खड़ीं हाथ बाँधे मुझे ही देख रही हैं!

भौजी: जानू...सर्दी हो जाएगी..अंदर आ जाओ|

भौजी मुस्कुराते हुए बोलीं, लेकिन मैं आँखें बंद किये हुए बारिश के शोर में गुम था! भौजी समझ गईं की मैं इस हसीन फ़िज़ा में खो चूका हूँ, मुझे इस तरह भीगता हुआ देख भौजी के दिल में मेरे संग पहली बारिश में भीगने का मन हुआ| भौजी भी दबे पाँव मेरे पीछे आ कर खड़ीं हुईं और अपने दोनों हाथ मेरे सीने से लपेट कर चिपक गईं, उनके दोनों हाथ मेरे निप्पलों पर थे! जैसे ही मुझे भौजी के जिस्म का एहसास हुआ मैं अपनी ख्यालों की दुनिया से धीरे-धीरे बाहर आया, मैंने उनके दोनों हाथों पर अपने हाथ रख दिए और उनसे पूछने लगा;

मैं: तो कैसा लग रहा है मेरे साथ पहली बारिश में भीग कर?

भौजी: ऐसा जैसे की जिस्म की रूह आपकी रूह में मिल जाना चाहती हो!

भौजी ने आँख बंद किये हुए मेरी पीठ से चिपके हुए कहा| उनकी ये बात मेरे दिल को छू गई! तभी आसमान ने बड़ी जोर से बारिश शुरू कर दी, जैसे भौजी की ये बात सुन वो भी आज हम दोनों को इस प्रेमरस से पूरी तरह भीगा देना चाहता हो! बारिश की बूँदें इतनी तेज थीं की जब वो बदन पर पड़ती थीं तो एक मीठे से दर्द की सीत्कार महसूस होती थी! हम दोनों ही खामोश खड़े इस सुखद पीड़ा का आनद ले रहे थे की तभी भौजी सीसियाते हुए बोलीं;

भौजी: जानू..... ससस...आज आपके साथ भीगने में बहुत मजा आरहा है!

भौजी ने अपना चेहरा मेरी पीठ में धँसाते हुए कहा|

मैं: मुझे भी! पर आप तो नेहा को स्कूल के लिए तैयार करने गए थे?

मैंने आँख मूँदे हुए कहा|

भौजी: बारिश शुरू हो गई थी तो पिताजी (मेरे) ने मना कर दिया की बारिश में स्कूल नहीं जाना|

इतना कह कर भौजी एक पल को खामोश हुईं और फिर बोलीं;

भौजी: आपको पता है आज एक बड़ी ही अजीब सी 'feeling' हुई, दिल ने कहा की आप बारिश में भीगने का मौका नहीं छोड़ोगे, तो मैंने सोचा की आज आपके साथ भी थोड़ा भीग लिया जाय!

मेरे बारिश में भीगने की आदत सिवाए मेरे माँ-पिताजी के और कोई नहीं जानता था, यहाँ तक की मैंने भौजी को भी ये बात कभी नहीं बताई थी! ये बात दिमाग में आते ही मैं भौजी की तरफ पलटा और उन्हें एकदम से अपनी बाहों में जकड़ लिया;

मैं: पर आपको कैसे पता की मुझे बारिश में भीगना अच्छा लगता है?

मैंने भौजी की आँखों में देखते हुए पुछा|

भौजी: नहीं पता था.... बस मन ने कहा!

भौजी ने मेरी आँखों में झांकते हुए कहा|

मैं: ये संजोग नहीं हो सकता की हमारा मन हमें एक दूसरे की पसंद ना पसंद और यहाँ तक की मानसिक स्थिति भी बता देता है...

मैं आगे बात पूरी करता उससे पहले ही भौजी ने मेरी बात पूरी कर दी;

भौजी: क्योंकि हम दोनों आत्मिक रूप से भी जुड़ चुके हैं!

भौजी के मुख से निकले शब्द सुन मुझे विश्वास नहीं हुआ तो मैंने प्यासी नजरों से उन्हीं देखते हुए पुछा;

मैं: सच?

भौजी ने मेरे सवाल का जवाब आँखें मूँद कर और सर हाँ में हिला कर दिया!

बारिश की बूंदों ने फ़िज़ा को मदहोश बना दिया था, ऊपर से भौजी की आँखें नशीली हो चलीं थीं| मैंने भौजी के चेहरे को अपने दोनों हाथों में थामा और उनके गुलाबी होंठ जिन पर बारिश की एक बूँद ठहर गई थी, उन्हें चूम लिया! मदहोशी भौजी पर सवार हो चुकी थी इसलिए उन्होंने भी प्रतिक्रिया देते हुए अपने दोनों हाथों से मेरी कमर थामी और अपने होठों को खोल कर अपने जीभ मेरे मुँह में प्रवेश करा दी| तभी मुझे ध्यान आया की हम अगर इसी तरह खुले में प्यार करेंगे तो कहीं पकडे न जाएँ, इस डर से मैं रुक गया और भौजी से बोला;

मैं: दरवाजा बंद कर आओ|

मैंने भौजी को प्रमुख दरवाजे की तरफ इशारा करते हुए कहा|

भौजी: वो बंद नहीं कर सकते वरना अगर कोई आ गया तो शक करेगा की ये दोनों दरवाजा बंद कर के क्या कर रहे हैं?!

भौजी मेरी आँखों में देखते हुए बोलीं|

मैं: फिर ???

मैंने भौजी से अलग होते हुए कहा, क्योंकि मुझे लगा की उनका मन प्यार करने का नहीं हो रहा है!

भौजी: पर मैंने दोनों दरवाजे आपस में चिपका दिए हैं|

भौजी मुस्कुराते हुए बोलीं और खुद मेरे नजदीक आ कर खड़ीं हो गईं|

मैं: उससे क्या होगा?

मैंने सवालिया नजरों से उनसे पुछा, क्योंकि उनकी ये दरवाजा चिपका देना पर बंद न करना मेरे पल्ले नहीं पड़ रहा था|

भौजी: जानू इतनी बारिश में कौन है जो भीगता हुआ यहाँ आये?

भौजी ने मुस्कुराते हुए कहा और अपने दोनों हाथों से मेरी कमर फिर थाम ली| भौजी के चेहरे पर बारिश की कुछ बूँदें ठहर गईं थीं, मैंने उन्हें अपने उँगलियों से हटाया और मुस्कुरा कर बोला;

मैं: जान! आप भूल रहे हो की छतरी नाम की एक चीज होती है जो भीगने से बचाती है!

भौजी: नहीं भूली जानू! पर छतरियाँ आपके कमरे में रखीं हैं तो अब यहाँ कौन आएगा भीगता हुआ?

भौजी ने मुस्कुराते हुए अपना तर्क दिया| मैं समझ गया की इतनी तेज बारिश में हमें डिस्टर्ब करने कोई नहीं आएगा!

मैं: हम्म्म...अब तो मौका भी है...दस्तूर भी...!

ये कहते हुए मैंने उन्हें बाहों में भर लिया और उन्हें बरामदे में लगे खम्बे के सहारे खड़ा कर दिया| खम्बे की चौड़ाई लगभग तीन फुट थी और वो छत तक लम्बा था| खमबा ठीक प्रमुख द्वार के सामने था, यदि उसकी आड़ में कोई खड़ा हो तो बाहर से कोई देख नहीं सकता की कौन खड़ा है| बरामदे का वो खम्बा आँगन के पास था, अचानक हवा के चलने से पानी की बौछारें हवा के साथ बहती हुई टेढ़ी हो गईं थी और हम उस खम्बे के सहारे खड़े हो कर भी बारिश में भीग रहे थे!

बारिश की बूंदों ने हम दोनों को पूरी तरह से भिगो दिया था और भौजी उस बारिश में भीगी हुईं बला की खूबसूरत लग रहीं थीं! भौजी की साडी, ब्लाउज, पेटीकोट सब उनके जिस्म से चिपक गया था, ऊपर से उन्होंने अंदर न ही ब्रा पहनी थी और ना ही पेंटी इसलिए उनके कड़क हो चुके स्तन ब्लाउज को फाड़ कर बाहर आने को आतुर थे, उनके चुचुक ब्लाउज के ऊपर उभर आ चुके थे! ये कामुक दृश्य देख मेरा खुद पर काबू नहीं रहा, मेरे पजामे में जो उभार था वो अपनी चरम सीमा पर था!

मुझसे सब्र कर पाना मुश्किल था इसलिए मैंने भौजी को खम्बे के सहारे खड़ा किया और उनकी बाईं टाँग को अपने दाएँ हाथ की मदद से उठाया| फटाफट उनकी साडी और पेटीकोट ऊपर उठाये, इधर भौजी का भी मेरे जैसा हाल था क्योंकि वो भी कल रात से मेरे प्यार के लिए प्यासी थीं| उन्होंने मेरे पजामे का नाड़ा खोल दिया चूँकि उसमें इलास्टिक भी लगी थी तो वो नीचे नहीं गिरा, भौजी ने पजामा थोड़ा नीचे खिसका के मेरे लिंग को बाहर निकाला और उसे अपनी योनि पर सेट किया| इसके आगे का काम मेरा था सो मैंने हल्का सा अपना लिंग Push किया, लिंग धीरे-धीरे भौजी की योनि में बढ़ने लगा! "ससससस...आठ..मममसस्न्नस्स.." भौजी सीसियाने लगीं क्योंकि उनकी योनि आज पनियाई हुई नहीं थी इसलिए अंदर काफी घर्षण था! भौजी के चेहरे पर दर्द की झलक देख मैं समझ गया था की उन्हें थोड़ी-ड़थोड़ी पीड़ा हो रही है इसलिए मैंने खुद को काबू की और कोई जल्दी नहीं दिखाई| धीरे-धीरे लिंग अंदर-बाहर हो रहा था परन्तु भौजी को थोड़ी तो तकलीफ हो रही थी जिसके कारन वो अपने पंजों पर कड़ी हो गईं थीं ताकि मेरे लिंग को अंदर जाने से रोक सकें| वो मुझे रोक कर मेरे आनंद में बाधा नहीं बनना चाहतीं थीं इसलिए मैं रूक गया, उनका दर्द कम करने के लिए मैंने भौजी के होठों को चूमना शुरू किया और साथ-साथ उनके स्तनों को हाथ से धीमे-धीमे मसलने लगा| मेरी इस प्रतिक्रिया से भौजी के जिस्म में फुलझड़ियाँ छूटने लगीं, उनका जिस्म इस सुख को पा कर अपनी प्रतिक्रिया देने लगा और भौजी के मुख से मादक सिसकारियाँ निकलने लगीं| "स्स्स्स्स..अह्ह्ह्ह...जाणुउउउ...उम्म्म्म्म्म ....!" उनकी ये मादक सिसकारी सुन मैं बहकने लगा और मैंने नीचे से हल्का सा और Push किया! उनकी योनि में अब घर्षण कम हो चूका था और लंड आसानी से अंदर जा रहा था| भौजी अब सामान्य ढंग से खड़ीं थीं लेकिन अब मैं पंजों पर खड़ा हो गया था ताकि अपना लिंग पूरी तरह से अंदर पहुँचा सकूँ, इसी चककर में मैंने अपने पूरे शरीर का भार उनके ऊपर डाल दिया|

भौजी को खुद को एडजस्ट करना पड़ा ताकि मैं अपने लिंग को उनकी योनि की गहराई में उतार पाऊँ, भौजी ने अपने घुटने थोड़े मोड जिससे अब मेरा पूरा लिंग उनकी योनि में बड़े आराम से गहराई तक उतर पा रहा था| घर्षण न होने के कारन मैंने अपनी रफ़्तार थोड़ी बढ़ा दी थी, इधर भौजी ने बिना कोई चिंता किये हुए जोरों से सिसियाना शुरू किया था; "ससससस....मममम...आननहहह..ममम...ननन...!" काम ज्वर ने हमारे बारिश में भीगते जिस्म पर काबू कर लिया था और हम दोनों मौजों के सागर में गोते लगा रहे थे! इधर भौजी ने अपने बाएँ हाथ से मेरी गर्दन के इर्द-गिर्द फंदा कस लिया था और अपने दायें हाथ से मेरी पीठ और कमर को सहला कर मुझे प्रोत्साहन दे रहीं थी| भौजी का प्रोत्साहन पा कर मैंने अपने धक्कों की रफ़्तार बढ़ा दी, भौजी के मुँह से मादक सीत्कारें फूटने लगीं| दस मिनट में ही भौजी अपने चरम पर पहुंच गईं थीं, उन्होंने अचानक से अपने दाँत मेरी गर्दन में धँसा दिए और इसी के साथ वो चरमोत्कर्ष पर पहुँच गईं! भौजी का स्खलन हमेशा की तरह बहुत तीव्र था इसलिए वो अपने स्खलन के बाद मेरे ऊपर गिरने लगीं, उनके रस से उनकी पूरी योनि गीली हो चुकी थी और अब मेरे हर Push के साथ लिंग फिसलता हुआ अंदर-बाहर हो रहा था| मैंने भौजी को अपने और खम्बे के बीच दबाया और पूरी ताक़त से धक्के मारने लगा, मेरी बढ़ी रफ़्तार के कारन भौजी की योनि से 'फच-फच' की आवाज आने लगी! 5 मिनट और अब मैं भी चरमोत्कर्ष पर पहुँच गया था और भरभरा कर स्खलित हो गया| स्खलित होने के बाद हम दोनों निढाल हो चुके थे और हम उसी खम्भे के सहारे खड़े थे| जब दोनों कुछ सामान्य हुए तो मैंने भौजी के भीगे होठों को चूमना शुरू कर दिया, उनके चेहरे पर जहाँ भी पानी की बूँद पड़ती मैं उसे चूम के पी जाता! करीब 5 मिनट तक मैं भौजी के चेहरे को चूमता रहा और भौजी अपने दोनों हाथों से मेरी कमर थामे खड़ीं रहीं| मेरा ध्यान जब नीचे गया तो मैंने देखा की मेरा लिंग भौजी की योनि में अब भी घुसा हुआ है और भौजी की योनि मेरे और उनके रसों से भरी हुई है! मैंने धीरे से अपने लिंग को बाहर खींचा और उसके निकलते ही भौजी के योनि में जो हमारा रस था वो उनकी जाँघों से होता हुआ बहने लगा| भौजी गर्दन झुका के इस दृश्य को देखने लगीं और लाज के मारे उनके चेहरे पर मुस्कान आ गई| मैंने उनके चेहरे को ठुड्डी पकड़ कर ऊपर उठाया, भौजी की नजरें अब भी लाज के मारे झुकी हुई थीं इसलिए मैंने उनके होठों पर एक छोटा सा kiss किया| ये kiss उस मीठे के समान था जो खाना खाने के बाद खाया जाता है! मैंने भौजी को अपनी पकड़ से आजाद किया अपना पजामा ठीक किया और वापस हाथ पसारे खुले आँगन में आ गया ताकि ठीक से बारिश में भीग सकूँ! हमारे काम ज्वर के समान बारिश भी अब धीमे हो चुकी थी, लेकिन भौजी उम्मीद कर रहीं थीं की मैं शायद एक राउंड और चाहता हूँगा इसलिए उन्होंने शिकायत भरी नजरों से मुझे देखते हुए बोलीं;

भौजी: बस?

उनका सवाल सुन मैं मुस्कुरा दिया और अपने हाथ खोलते हुए उन्हें अपने पास बुलाया| भौजी ने एक क्षण नहीं गंवाया और आ कर मेरे सीने से लग गईं|

मैं: नहीं ... अब मन couple dance करने का कर रहा है|

मैं आज अपनी सारी हसरतें पूरी कर लेना चाहता था| बारिश में भौजी के साथ भीगना, उनके साथ भीगते हुए सम्भोग और अंत में ये dance ही बचा था मेरी bucket list में! इधर couple dance का नाम सुन कर भौजी शर्मा गईं और बोलीं;

भौजी: पर मुझे dance कहाँ आता है?!

मैंने उन्हें अपने आलिंगन से आजाद किये और उनकी ठुड्डी पकड़ते हुए बोला;

मैं: तो मुझे कौन सा आता है?! मैंने TV में एक आधे step देखे थे वही करते हैं!

भौजी मेरे दिल की हर बात पढ़ लेतीं थीं, इसलिए वो बोलीं;

भौजी: क्या बात है जानू, पहले 'वो' अब डाँस? बहुत रोमांटिक हो रहे हो?!

मैंने भौजी की आँखों में प्यार से देखा और उनकी लत को अपनी उँगलियों से हटाते हुए बोला;

मैं: आज बहुत मन कर रहा है की आपको अपनी बाँहों में कसे हुए रहूँ!

मैंने भौजी को फिर से अपने सीने से लगा लिया, ये सुन कर भौजी के दिल में भी वही आनंद का सागर उमड़ने लगा जो मेरे दिल में उमड़ रहा था|

मैं: तो आप मेरे साथ किसी slow track पर couple dance करेंगी?

मैंने आँखें मूंदें हुए सवाल पुछा, जिसका जवाब मैं जानता था की हाँ ही होगा!

भौजी: हाँ जी...पर गाना किस पर बजाओगे? रेडियो तो है नहीं यहाँ?

भौजी ने मेरे सीने से लगे हुए कहा|

मैं: उसकी आप चिंता मत करो, आपके पति को गाना आता है!

मैंने भौजी की कमर की साइड पर अपना दायाँ हाथ रखा तथा उन्हें भी उनका बयान हाथ मेरी कमर के साइड पर रखने को कहा, फिर मैंने अपने बाएँ हाथ से उनका दाहिना हाथ थामा और धीमे-धीमे पैरों को आगे-पीछे करने लगा| भौजी भी नीचे मेरे पाँव की तरफ देखते हुए मेरे साथ आगे पीछे होने लगीं| मुझे इन स्टेप्स के साथ इतनी दिक्कत नहीं हुई थी और भौजी भी ये स्टेप्स जल्दी सीख गईं थीं और हम दोनों आँखों में आँखें डाले बस इन्हीं स्टेप्स को दोहरा रहे थे| बारिश में भीगते हुए ये डांस हम दोनों ही को प्रेम की अलग दुनिया में ले जा रहा था|



कुछ 5 मिनट बाद जब हमने इन स्टेप्स में महारत हासिल कर ली तो मैंने गाना शुरू किया;

"मेरे मन ये बता दे तू, किस ओर चला है तू

क्या पाया नहीं तुने, क्या ढूँढ रहा है तू

जो है अनकही, जो है अनसुनी

वो बात क्या है बता

मितवा

कहे धड़कने तुझसे क्या

मितवा

ये खुद से तो ना तू छुपा!"

मेरे मुँह से गाना सुन भौजी के चेहरे पर मुस्कान आ गई और वो अपनी प्यार भरी आँखों से मेरी आँखों में देखने लगीं|

"जीवन डगर में, प्रेम नगर में

आया नज़र में जब से कोई हैं

तू सोचता है, तू पूछता हैं

जिसकी कमी थी क्या ये वही है"

ये बोल सुन भौजी के दिल की धड़कनें तेज हो गईं थीं और उन्होंने अपना सर हाँ में हिला कर मन ही मन कहा; 'हाँ आप वही हो!' मैं उनके मन की बात पढ़ चूका था इसलिए मैंने आगे के बोल बोले;

"हाँ ये वही है, हाँ ये वही है

तू एक प्यासा और ये नदी हैं

काहे नहीं इसको तू खुलके बताये

जो है अनकही..."

ये बोल सुन भौजी ने आगे की लाइन गाई;

"जो है अनसुनी

वो बात क्या है बता

मितवा

कहे धड़कने तुझसे क्या

मितवा

ये खुद से तो ना तू छुपा"

इन बोल के जरिये उन्होंने अपने मन का हाल कहा| मैंने भौजी को अब और अपने नजदीक खींच लिया, मेरा दायाँ हाथ उनकी कमर (lower back) पर स्थिर था ठीक उसी तरह भौजी ने भी अपना हाथ मेरी कमर (lowerback) पर रखा| हम दोनों इतना सट कर खड़े थे की ऐसा लगता था मानो दोनों के दिल एकसाथ चिपक गए हों!



पोजीशन बदलने के बाद मैंने फिर गाना शुरू किया;

"तेरी निगाहें, पा गयी राहें

पर तू ये सोचे, जाऊं ना जाऊं

ये ज़िन्दगी जो, है नाचती तो

क्यूँ बेड़ियों में है तेरे पाँव

प्रीत की धुन पर, नाच ले पागल

उड़ता अगर है, उड़ने दे आँचल

काहे कोई अपने को ऐसे तरसाए

जो है अनकही..."

गाने के इन बोलों के जरिये मैंने उनसे न नाचने की शिकायत की, भौजी समझ गईं की मैं क्या कहना चाहता हूँ और जवाब देते हुए उन्होंने मेरे दाएँ कंधे को चूमा|

गाना पूरा हुआ लेकिन हम अब भी ऐसे ही एक दूसरे से लिपटे हुए धीरे-धीरे थिरक रहे थे| कुछ पल चुप रहने के बाद भौजी बोलीं;

भौजी: जानू.... I love you!

मैं: I love you too मेरी जान!

हम दोनों के दिल तेज धड़क रहे थे और हमारा प्यार छलकने लगा था, तभी भौजी मुझे छेड़ते हुए बोलीं;

भौजी: और भी कोई इच्छा है आपकी तो पूरी कर लीजिये!

ये सुन कर मैं मुस्कुराया और उन्हें खुद से अलग किया, फिर मैंने उन्हें अपनी दाएँ हाथ की ऊँगली पकड़ाई और उन्हें गोल घूमने को कहा| दो चक्कर घूमने के बाद भौजी को इसमें मजा आने लगा और वो खिलखिलाकर हँसते हुए गोल-गोल घूमने लगीं|

हम दोनों ही सब कुछ भूल चुके थे और बेवरवाह हो कर हँस रहे थे और भौजी मेरी ऊँगली पकड़ कर गोल-गोल घूम रहीं थीं| हमें ये तक नहीं पता चला की बारिश बंद हो चुकी है और घर के सभी सदस्य हमें ढूँढ़ते हुए वहाँ आ चुके हैं तथा हमारा ये प्यार-भरा डाँस देख रहे हैं| दरअसल बड़की अम्मा ने रसिका भाभी को हमें बुलाने भेजा था परन्तु उन्होंने जब हमें इस तरह बाहों में बाहें डाले नाचते हुए देखा तो वो चुप-चाप सब को बुला लाईं ताकि सब हमारी कारिस्तानी देख लें और हमें खूब झाड़ें! आग में घी डालते हुए रसिका भाभी ने ताली बजानी शुरू की, उनकी देखा-देखि बड़की अम्मा, फिर अजय भैया और अंत में माँ-पिताजी ने ताली बजानी शुरू की| सब के ताली बजाने से रसिका भाभी का प्लान फ्लॉप हो चूका था और उनका मुँह लटक चूका था!

उधर जैसे ही मैंने और भौजी ने ये तालियाँ सुनी हम दोनों पीछे की तरफ पलटे, सब को हमारी तरफ देखते हुए देख हम दोनों के पाँव तले जमीन खिसक गई और हम दोनों बुरी तरह झेंप गए! भौजी ने उस समय घूंघट नहीं काढ़ा था और पिताजी की मौजूदगी में वो बहुत घबरा गईं! उन्होंने एकदम से साड़ी का पल्ला अपने सर पर किया और अपना मुँह छुपाये हुए मुझे वहाँ अकेला छोड़ कर बाहर भाग गईं! इधर मैंने एक-एक कर सबके चेहरों को एक नजर देखा ताकि ये देख पाऊँ की कौन गुस्सा है और कौन-कौन हँस रहा है| मैंने पाया की बड़की अम्मा तथा अजय भैया को छोड़ कर सब गुस्सा हैं, मैंने फ़ौरन अपनी गर्दन झुका ली क्योंकि मैं जानता था की आज मेरी शामत है! इतने में नेहा जो अपने पापा की बेबसी समझ सकती थी वो भागती हुई मेरे पास आई और मेरी टांगों से लिपट गई| मैं उसे गोद में उठाने की गलती करता उससे पहले ही माँ ने तौलिया फेंक कर मुझे मारा और बोलीं;

माँ: ये ले और कपडे बदल|

माँ गुस्से में बोलीं| मैंने तौलिया संभाला और इशारे से नेहा को बरामदे में जाने के लिए बोला| मैं सर झुकाये हुए अपने कमरे में घुसा और खुद को पोंछा, कपडे बदल के वापस बाहर आ गया| बाहर बरामदे में सब बैठे थे, माँ-पिताजी, चन्दर, अजय भैया और बड़की अम्मा| एक बस बड़के दादा नहीं थे वरना आज महाकाण्ड होना तय था! मैं चुपचाप बरामदे के खम्बे से लग कर सर झुकाये खड़ा हो गया| अजय भैया उठे और मेरी ही बगल में खड़े हो गया और मुस्कुराने लगे, वहीं चन्दर का मुँह सड़ा हुआ था, माँ भी गुस्से में थीं, पिताजी हालाँकि जानते थे की मैं बड़ा ही शांत सौभाव का हूँ और भौजी मेरी दोस्त हैं, लेकिन गुस्सा तो उन्हें भी था| एक बस बड़की अम्मा थीं जो मुस्कुरा रहीं थी क्योंकि वो ही थीं जो की मेरी गलतियों पर पर्दा डाल दिया करती थीं और सब को चुप करा दिया करती थीं! और तो और मेरी लाड़ली बेटी गायब थी, वो होती तो मुझे थोड़ी हिम्मत मिलती!

पिताजी: क्यों रे नालायक, ये क्या हो रहा था?

पिताजी ने डाँटते हुए कहा|

माँ: तुझे शर्म नहीं आती, अपनी भौजी के साथ बेशर्मी से नाच रहा था?

माँ ने भी डाँटते हुए कहा|

मैं: जी...नाच ही तो रहा था!

मैं सर झुकाये हुए बोला|

माँ: जुबान लड़ाता है?

माँ गुस्से से तमतमाते हुए बोलीं|

पिताजी: लगता है कुछ ज्यादा ही छूट दे दी इसे?

पिताजी ताना मारते हुए बोले|

बड़की अम्मा: ठीकाये तो कहत है, आपन भौजी संगे तनिक दिल्लगी कर लिहिस तो कौन पहाड़ टूट गवा? देखा नाहीं बहु आज कितना चहकत रही और भूल गया डाक्टरनी का कहीं रही की बहु का खुश रहए का चाहि!

बड़की अम्मा की बात सुन माँ-पिताजी खामोश हो गए और उनकी हिम्मत नहीं हुई की वो बड़की अम्मा की बात काटें|

बड़की अम्मा: आज है तो तनिक लाड-प्यार करता है, कल नाहीं रही तो?

अम्मा की ये बात सुन मेरे पाँव तले जमीन खिसक गई, इतने दिनों में मैं भूल ही गया था की हमें वापस भी जाना है| इस प्यार-मोहब्बत में पूरा एक महीने कैसे फुर्र हुआ पता ही नहीं चला था!

बड़की अम्मा की ये बात मेरे दिमाग में गूँज रही थी, इसे सोच-सोच मेरी शक्ल पर जो बारह बजे थे वो सब देख सकते थे और पिताजी ने जैसे ही ये बारह बजे वाली शक्ल देखि तो उन्होंने बड़ी बेरहमी से घडी ही तोड़ डाली;

पिताजी: जब से आया है तब से अपनी लाड़ली नेहा और अपनी भौजी के साथ घूम रहा है, हमारे पास बैठे तब तुझे पता चले की मैंने तेरे चन्दर भैया को लखनऊ जाते समय पैसे दिए थे ताकि वो दिल्ली की ट्रैन की टिकट ले आयें!

पिताजी को मेरे ख़्वाबों को तोड़ने में बहुत मजा आता था, अब मेरी हालत तो ऐसी थी जैसे ना साँस अंदर जाए न बाहर आये! मेरे दिमाग में जितने भी साइरन थे वो सब एक साथ बजने लगे; 'क्या करूँ? क्या करूँ? क्या करूँ?' के सवाल मन में गूँजने लगे| कल शाम को मैंने बड़ी मुश्किल से भौजी को मेरी भविष्य में होने वाली शादी की बात समझाई थी, अब उन्हें अपने जाने की बात कैसे समझाऊँ? मैं जानता था की मेरे वापस जाने की बात अगर भौजी को पता चलती तो वो रो-रो कर अपनी तबियत ख़राब कर लेतीं| पिछली बार जब वाराणसी गया था और मजाक में उनसे कहा था तो उन्होंने खाना-पीना न खाके खाट पकड़ ली थी, इस बार तो मैं सच में जा रहा हूँ ऊपर से वो मेरे बच्चे की माँ भी बनने वाली हैं ऐसे में वो कुछ गलत न कर लें, यही सोच-सोच कर मेरी जान जा रही थी! मुझे कैसे भी ये बात उनसे आज के दिन तो छुपानी थी वरना आज जो वो थोड़ा बहुत हँसी हैं उसे भुला कर वो वापस गम में डूब जाएँगी!

उधर चन्दर के मन में लड्डू फुट रहे थे, उसकी ख़ुशी छुपाये नहीं छुप रही थी! उसे देख आकर मेरे दिल में आग लग चुकी थी, मन करता था उसपर मिटटी का तेल डाल कर आग लगा दूँ| मैं जानता था ये कमबख्त ही जा कर उन्हें मजे लेते हुए सब बताएगा! मैंने मन ही मन फैसला किया था की मुझे आज का दिन बहुत सोच-समझ के बिताना होगा वरना मेरे चेहरे पर उड़ रही ये हवाइयाँ भौजी को गम में डूबा देंगी| मेरी ख़ामोशी और उदासी बड़की माँ समझ पा रहीं थीं और उनको मुझ पर तरस आ रहा था;

बड़की अम्मा: चलो मुन्ना, तोहका इतवार का जाएक है तबतक हम तोहका जी भर के तोहार मन पसंद पकवान खिलाई! लेकिन आभायें हम पकोड़े बनैत है, चलो ऊ खावा जाए!

बड़की अम्मा ने मेरे सर पर हाथ फेरते हुए कहा|

मैं: जी!

मैंने सर झुकाये हुए ही कहा| सब के सब छप्पर के नीचे बैठ गए और बातों का दौर शुरू हो गया| उधर भौजी और नेहा उनके घर में छुपे हुए थे, शर्म के कारन भौजी से बाहर ही नहीं निकला जा रहा था! इधर मन में एक ही बात खाय जा रही थी की चलो मैं खुद को तो जैसे-तैसे रोक लूँगा पर अगर कोई और भौजी के पास जाके उनसे ये कह दे की मैं वापस जा रहा हूँ तो? इसका बस एक ही तरीका था की मुझे साये की तरह आज भौजी के आस-पास रहना होगा और उन्हें इस मनहूस खबर से दूर रखना था|

[color=rgb(235,]जारी रहेगा भाग - 2.....[/color]
 

[color=rgb(184,]अठारवाँ अध्याय: प्रेम के आखरी कुछ पल.......[/color]
[color=rgb(226,]भाग - 2[/color]


[color=rgb(235,]अब तक आपने पढ़ा:[/color]

सब के सब छप्पर के नीचे बैठ गए और बातों का दौर शुरू हो गया| उधर भौजी और नेहा उनके घर में छुपे हुए थे, शर्म के कारन भौजी से बाहर ही नहीं निकला जा रहा था! इधर मन में एक ही बात खाय जा रही थी की चलो मैं खुद को तो जैसे-तैसे रोक लूँगा पर अगर कोई और भौजी के पास जाके उनसे ये कह दे की मैं वापस जा रहा हूँ तो? इसका बस एक ही तरीका था की मुझे साये की तरह आज भौजी के आस-पास रहना होगा और उन्हें इस मनहूस खबर से दूर रखना था|

[color=rgb(209,]अब आगे....[/color]

खेर बड़की अम्मा ने पकोड़े बनाने शुरू किये और सरसों के तेल की खुशबु पूरे घर में महकने लगी! इधर माँ ने गरमा-गर्म चाय बनानी शुरू की, वो अदरक की महक और चायपत्ती का कड़कपन! बारिश का मौसम हो और आपको चाय-पकोड़े मिल जाएँ तो आप से खुशकिस्मत इंसान कोई नहीं होता, पर मैं उस वक़्त अपनी सोच और ख्यालों के कारन बुझा हुआ महसूस कर रहा था| इधर चाय और पकोड़े तैयार हो चुके थे, बड़की अम्मा ने सबसे पहले मुझे पकोड़े परोस कर दिए| मैंने अपनी थाली उठाई और माँ से चाय ले कर मैं सीधा भौजी के घर में पहुँच गया| वहाँ पहुँच कर देखा तो पाया की भौजी अपने कमरे में मुँह छुपाये लेती हुई हैं, मेरी प्यारी लाड़ली भौजी की बगल में बैठी अपनी गुड़िया से खेल रही है| उन्हें (भौजी को) इस तरह देख के मेरी हँसी छूट गई, मेरी हँसी सुन के भौजी ने अपने मुख से हाथ हटाया और लजाते हुए मेरी ओर देखा;

भौजी: जानू बड़ी हँसी आ रही है आपको? पहले तो खुद मुझे dance करने में फँसा दिया और अब यहाँ खींसे फैला रहा हो! घर वाले सब क्या कहते होंगे?

भौजी ने प्यार से शिकायत करते हुए कहा|

मैं: मैंने फँसा दिया? आप मुझे वहाँ सब के सामने अकेला छोड़ के भाग आये उसका क्या?

मैंने भी पलट कर भौजी से शिकायत की, ये सुन कर भौजी एकदम से डर गईं और घबराते हुए बोलीं;

भौजी: हाय राम! क्या कहा सबने?

मैं: माँ-पिताजी बहुत गुस्सा थे, ये तो शुक्र है की बड़की अम्मा ने बात को संभाल लिया और इसे (हमारे डांस को) दिल्लगी का नाम दे दिया वरना तो....

मैं जानबूझ कर बात अधूरी छोड़ दी|

भौजी: वैसे जानू...उन्होंने सच ही तो कहा!

भौजी मुझे आँख मारते हुए बोलीं| ये देख मैं मुस्कुराने लगा और बोला;

मैं: हाँ...चलो अब ये पकोड़े खाओ|

भौजी: आप खाओ मैं और ले आती हूँ|

ये कहते हुए वो चारपाई से उठीं, मैं जानता था की अगर वो रसोई के पास अगर गईं तो कोई न कोई उन्हें सच बता देगा इसलिए मैंने उन्हें झूठ बोल कर डरा दिया;

मैं: हाँ-हाँ जाओ रसोई में, सारा घर वहीँ बैठा हुआ! अब भी जाओगे?

मेरा इतना कहना था की भौजी ठिठक कर रुक गईं और बोलीं;

भौजी: हाय राम! न बाबा न! नेहा...सुन बेटा...जाके एक प्लेट में और पकोड़े ले आ फिर हम तीनों बैठ के खाते हैं!

अपनी माँ का घबराया देख नहा हँस पड़ी और उसके साथ मैं भी हँस पड़ा और हम दोनों को हँसता देख भौजी के मुँह पर बनावटी गुस्सा आ गया;

भौजी: मेरा मजाक उड़ाती है? ठहर जा...

इतना कहते हुए भौजी ने नेहा को पकड़ना चाहा पर वो बाहर भाग गई| उसके जाते ही भौजी हँसते हुए मेरी ओर पलटीं और एकदम से मेरे जिस्म से लिपट गईं|

भौजी: जानू! आज का दिन मेरे लिए बहुत यादगार है, सच इतने प्यार को पा कर आज जी भर आया मेरा!

इतना कहते हुए वो भावुक हो गईं, मैंने भौजी के दोनों कंधे पकड़ कर उन्हें खुद से दूर किया और उनके होठों को अपने होठों से ढक दिया| उनके निचले होंठ को एक बार चूस ही पाया था की नेहा आ गई और हम दोनों अलग हो गए|

नेहा ने बड़ी मुश्किल से दो चाय के गिलास जो एक प्लेट में थे और एक प्लेट जिसमें पकोड़े और चटनी थी पकड़ रखे थे, मैंने फ़ौरन उसके हाथ से दोनों पलटें ली| फिर तीनों ने भौजी की चारपाई पर अपना-अपना स्थान ग्रहण किया, मैं आलथी-पालथी मारकार बैठा था इसलिए नेहा मेरी गोदी में बैठ गई और भौजी हम दोनों के सामने थीं| पहला आलू का पीस मैंने नेहा को खिलाया और वहीँ भौजी ने अगला प्याज वाला पीस मुझे खिलाया, फिर मैंने भौजी को एक प्याज वाला पीस खिलाया| इस तरह हम तीनों बारी-बारी के दूसरे को पकोड़े खिलाते रहे, अब पलटे में आखरी पीस बचा था| जिस पर हम तीनों ने एक साथ झप्पट्टा मारा! नेहा का हाथ छोटा था इसलिए उसने नीचे से वो आखरी पीस उठा लिया और हम दोनों को जीभ चिढ़ाने लगी! उसका ये बचपना देख हम दोनों ने भी झूठ-मूठ का मुँह बनाया, मेरी प्यारी बिटिया दिल की बहुत पाक़ थी! उसने उस पकोड़े के तीन टुकड़े किये, एक हिस्सा उसने भऊजी को दिया और एक मेरी ओर बढ़ा दिया और मुस्कुराते हुए अपना हिस्सा खा गई! नेहा की बेबाकी देख मन बहुत खुश हुआ, मैंने उसके सर को चूमा और उसके सर पर हाथ फेरते हुए अपना हिस्सा खा गया| मैंने ये भी नहीं देखा की मेरे वाले टुकड़े में हरी मिर्च थी जो जैसे ही दांतों तले आई तो मेरी जलन के मारे सीटी बज गई! मेरे मुँह से "सी..सी..सी..सी..सी.." की आवाज निकलने लगी और ये देख नेहा खिल-खिला के हँसने लगी| उधर भौजी भी शुरू-शुरू में मेरी 'सी-सी-सी' का मजा लिया पर जब उन्हें लगा की मुझे कुछ ज्यादा ही तेज मिर्ची लगी है तो नाजाने उन्हें क्या सूझी और उन्होंने फ़ौरन मेरे होठों को kiss किया तथा एकदम से अपनी जीभ मेरे मुँह में डाल दी| उनके इस हमले से मेरे जिस्म में आग लग गई और में भी नेहा की परवाह किये बिना भौजी की जीभ से अपनी जीभ लड़ा दी! जब मेरी जीभी उनकी जीभ से मिली तो एक तरफ मुझे उनके मुख से गोभी के पकोड़ी की सुगंध आ रही थीम वहीं दूसरी तरफ भौजी को मुझे लगी मिर्ची की कुछ-कुछ जलन महसूस हो रहे थी! मेरे मुख की जलन कम करने के लिए जैसे ही मैंने भौजी के मुख में अपनी जीभ प्रवेश कराई, भौजी ने उसे चूसना शुरू कर दिया| करीब दो मिनट की चुसाई के बाद मुझे लगी मिर्ची की जलन कुछ कम हुई, तब जा कर हम अलग हुए और हमने पाया की नेहा टक-टकी लगाये हमें देख रही है! उसकी आँखों में सवाल देख हम दोनों झेंप गए और दोनों ने एक दूसरे से नजरें फेर ली! मैं जानता था की नेहा जर्रूर पूछेगी की अभी क्या हो रहा था, इसलिए मैंने चाय का गिलास उठा कर उसे दिया और उसका ध्यान भटका दिया| भौजी के चेहरे पर एक नटखट मुस्कान थी जिसे देख मैं समझ गया था की भौजी को आज इस kiss में कितना मजा आया है! मैंने फटाफट चाय पी और नेहा को लेकर बाहर आंगन में आ कर बैट-बॉल खेलने लगा|

नेहा ने हाथ घुमा कर बड़ी जोर से बोल फेंकी और मैंने एक जोरदार शॉट मारा, बॉल इतनी ऊँची गई की नेहा उसे कैच करने को दौड़ी| इधर अचानक से चन्दर तेजी से भौजी के घर के भीतर घुसा, उसे देखते ही मैं डर गया क्योंकि मैं ये जानता था की ये भौजी को सब बता देगा! मैं उसे रोकने के लिए अंदर जा ही रहा था की कुएँ के पास फिसलन होने के कारन बॉल पकड़ने दौड़ी नेहा फिसल कर गिर गई! नेहा ने रोना शुरू किया तो में उसे उठाने के लिए भागा, मैंने उसे फ़ौरन गोद में उठाया और उसके सर पर हाथ फेर कर उसे शांत कराया| उसे गोद में लिए मैं जल्दी से भौजी के घर के बाहर पहुँचा लेकिन बजाए अंदर जाने के बाहर रुक कर अंदर की बातें सुनने लगा;

चन्दर: हम नाहीं जानित रहन की तू नाचा जानत हो?!

चन्दर ने भौजी को टोंट मारते हुए कहा|

चन्दर: कर लिहो ऐश जब तक.....

इससे पहले की चन्दर आगे कछ बोलता, मैंने दरवाजे पर जोरदार मुक्का मारा और धड़धड़ाते हुए अंदर घुस गया!

मैं: उनकी कोई गलती नहीं है! मैंने उन्हें आँगन में खींच था जिससे वो भीग गईं!

मेरे धड़धड़ा कर घुसने से चन्दर और भौजी चौंक गए और हैरानी से मुझे देखने लगे! चन्दर की चुभती हुई नजरें मुझे साफ़ महसूस हो रही थी, उसका कारन था मेरे और चन्दर के बीच रिश्ता जो बिलकुल ऐसा था मानो अमरीका और रूस! दोनों में से जो भी पहले हमला करे, जवाब देने को सामने वाल पूरी तरह से तैयार था| चन्दर आगे कुछ नहीं बोलै और भुनभुनाता हुआ चला गया, इधर भौजी मुझसे कुछ सवाल पूछतीं उससे पहले ही मैंने बात बनाई और उन्हीं नेहा के कपडे बदलने को कहा|

भौजी: आप दोनों मिटटी में खेल के आ रहे हो क्या?

भौजी ने हँसते हुए कहा|

मैं: वो हम दोनों है न क्रिकेट खेल रहे थे, फिर मैंने बाहत लम्बा शॉट मारा, नेहा कैच करने के लिए भागी और फिसल गई!

मैंने बड़े भोलेपन से बात बनाते हुए कहा| मेरी भोली बातें सुन भौजी खिलखिलाकर हँस पड़ीं और बोलीं;

भौजी: पर आपको इसे गोद में लेने की क्या जरुरत थी? खामखा आपने अपने कपडे भी गंदे कर लिए!

भौजी ने मुझे समझाते हुए कहा|

मैं: आप हो ना!

मैंने भौजी को आँख मारते हुए कहा| ये देख भौजी ने अपने निचले होंठ को काटा और बोलीं;

भौजी: हाँ-हाँ मैं तो हूँ ही आपके लिए!

भौजी मुस्कुराईं, उन्होंने नेहा के कपडे बदलने शुरू किये और मैंने अपने कपडे बदलने चला गया|

मैंने जानबूझ कर भौजी की दी हुई टी-शर्ट पहनी ताकि वो खुश हो जाएँ! आजका दिन मुझे उन्हीं इतनी खुशियाँ देनी थीं की वो कभी इस दिन को भूल न पाएँ और मेरे न होने पर इन्हें हसीन यादों के सहारे मुस्कुराएँ! खैर मैं भौजी की टी-शर्ट और जीन्स पहन कर फटाफट उनके घर में घुसा, मुझे देख भौजी के चेहरे पर कातिल मुस्कान आ गई और वो बोलीं;

भौजी: जानू कहीं आपको नजर न लग जाए, आओ मैं आपको कला टिका लगा दूँ!

मैं: Oh Come on यार! नजर लगी भी तो आप हो न नजर उतारने को!

मैंने मुस्कुराते हुए कहा और अपनी बाहें खोल दी, भौजी मुस्कुराते हुए मेरे नजदीक आईं और मेरे सीने से लग गईं| अपने मम्मी-पापा का ये प्रेममिलाप देख नेहा का भी मन हुआ की उसे भी प्यार मिले, तो मैंने भौजी को इशारा किया ताकि वो नेहा को गोद में उठा लें| पर नेहा उनकी गोद में नहीं बल्कि मेरी गोद में आना चाहती थी, अंततः मैंने ही उसे गोद में उठाया और हम तीनों एक साथ गले लगे| ये दृश्य इतना मनोहरम था की उसकी याद हमारे दिल में बस गई थी, कमी थी तो एक मोबाइल फ़ोन की जिससे हम फोटो ले पाते, पर न तो हमारे पास फ़ोन था और न ही कैमरा!

मैं: अच्छा जान आज खाना नहीं बनाना है?

मैंने प्यार से भौजी के सर को चूमते हुए खाना बनाने की याद दिलाई|

भौजी: हाय राम! मैं तो भूल ही गई थी, पर जाऊँ कैसे? कैसे सब से नजर मिला पाऊँगी?

भौजी घबराते हुए बोलीं|

मैं: जान मैं हूँ न! मैं सारा दिन आपके पास ही रहूँगा और अगर कोई कुछ कहेगा तो मैं संभाल लूँगा!

मैंने मुस्कुराते हुए भौजी को हिम्मत बंधाई|

भौजी: ठीक है, पर प्रॉमिस करो की आप मुझे अकेला छोड़ के कहीं नहीं जाओगे?

मैं: प्रोमिस!

मैंने मुस्कुराते हुए कहा, तब जा कर उनके दिल को चैन मिला वर्ण वो तो आज घर से बाहर ही नहीं निकलने वालीं थीं|

भौजी ने हाथ-पैर धोये और इधर मैं नेहा को लेकर छप्पर के नीचे तख्त पर लेट गया| 5 मिनट बाद भौजी आईं और सीधा रसोई में घुस गईं और खाना बनाने में व्यस्त हो गईं| इधर नेहा मेरी छाती पर सर रख कर लेट गई थी तो मैंने उसका मन बहलाने को उससे बात करनी शुरू की;

मैं: अच्छा बेटा आपकी क्लास में कितने बच्चे हैं?

ये सवाल सुन नेहा उठ कर बैठ गई और अपनी ऊँगली दिखा कर गिनने लगी, कुछ सेकंड सोच कर वो मुझे अपनी छोटी-छोटी उँगलियाँ दिखाते हुए बोली;

नेहा: 7!

उसका ये बालपन मुझे बहुत पसंद था, मैंने अगला सवाल पुछा;

मैं: और आपके दोस्त कितने हैं?

नेहा ने फ़ौरन अपनी तीन उँगलियाँ मुझे दिखा दी|

जब मैं नेहा की उम्र का था तो स्कूल में गर्लफ्रेंड-बॉयफ्रेंड होते थे तो मैंने यही बात उससे घुमा कर पूछी;

मैं: और आपके कितने दोस्त लड़के हैं?

नेहा ने कुछ सोचा और फिर अपनी दो उँगलियाँ दिखा दी| भौजी रसोई से ये सब सुन रहीं थीं, वो जान गईं थीं की मैंने क्यों पुछा की उसके कितने दोस्त लड़के हैं, इसलिए वो मुझे छेड़ते हुए बोलीं;

भौजी: मेरी बेटी बहुत सीधी-साधी है, आपकी तरह नहीं जो गर्लफ्रेंड बनाये!

मैं: अरे यार खाली बैठा था तो पूछ लिया!

माने थोड़ा नाराज होते हुए कहा|

भौजी: अरे बाबा उसके दोस्त छोटे-छोटे बच्चे हैं, कोई बॉयफ्रेंड नहीं बनाया उसने जो आप इतना परेशान हो रहे हो? ही..ही..ही!!

भौजी खींसें निपोरते हुए बोलीं|

मैं: जब नेहा की बॉयफ्रेंड बनाने की उम्र आएगी न तब तो मैं इसे अकेला ही नहीं छोड़ूँगा और आपने अगर इसे छूट दी न तो देख लेना!

मैंने भौजी को चेतावनी देते हुए कहा| अब हमारी बातें सुन नेहा के मन में भी इच्छा जाएगी की ये बॉयफ्रेंड क्या होता?!

नेहा: पापा ये बॉयफ्रेंड क्या होता है?

नेहा ने बड़ी मासूमियत से सवाल पुछा|

भौजी: हाँ..हाँ अब जवाब दो| ही...ही...ही...!!!

भौजी फिर से खी-खी करते हुए बोलीं|

मैं: बेटा आपको पाता है ना की जो बच्चे शरारती होते हैं उन्हें दाढ़ी वाला आदमी उठा के ले जाता है, वैसा ही एक आदमी होता है जिसे हम बॉयफ्रेंड कहते हैं! आप न उससे दूर रहना...हा..हा..हा...!!

मैंने हँसते हुए नेहा से कहा| मेरी ये बॉयफ्रेंड की परिभाषा सुन भौजी भी ठहाका मार कर हँसने लगीं;

भौजी: हा..हा...हा... बहुत सही definition दी है अपने हा..हा..हा...!!

मुझे लगा की कहीं नेहा भी इसे मजाक न समझे इसलिए मैंने भौजी को प्यार से डाँटते हुए कहा;

मैं: हाँ..हाँ..उड़ाओ मजाक!

लेकिन मेरी प्यारी बेटी ने मेरी बात को सच मान लिया था और उसके मन में बॉयफ्रेंड के नाम का भी बैठ चूका था| नेहा फिर से मेरे सीने पर सर रख कर लेट गई!

भौजी: क्यों डरा रहे हो उसे?!

भौजी अपनी हँसी रोकते हुए बोलीं|

मैं: मेरी बेटी बहुत बहादुर है और वो बिकुल नहीं डरती, है न बेटा?

मैंने नेहा के सर को चूम कर कहा तो वो उठ कर बैठ गई और अपनी ताक़त दिखाने के लिए अपने गाल फुला लिए| उसके चेहरे पर आई वो बेबाक मुस्कान देख कर मुझे मेरे वापस जाने की बात याद आ गई| जाने क्या होगा जब ये बात नेहा को पता चलेगी? लेकिन उससे कई ज्यादा दर्द और तकलीफ भौजी को होगी, उसी दर्द और तकलीफ को सुन मैं सिंहर उठा! जो कुछ थोड़ा समय है मेरे पास, इस समय में मैं नेहा के इस प्यारे से चेहरे को पानी आँखों में बसा लेना चाहता था इसीलिए मैं खामोश होगया और नेहा को टकटकी बाँधे देखने लगा| मेरी ख़ामोशी भौजी और नेहा को क्घूभ रही थी, इसलिए भौजी मुझे रसोई से टोकती हुई बोलीं;

भौजी: चुप क्यों हो गए?

मैं जानता था की इस वक़्त मेरा सच कहना मुनासिब नहीं है, इसलिए मैंने अपने जज्बातों को दबाया और मुस्कुराते हुए नेहा के दोनों गालों की पप्पी ली!

मैं: मेरी बेटी पर आज बहुत सारा प्यार आ रहा है!

ये सुन हमेशा की तरह भौजी को मीठी सी जलन हुई और वो बोलीं;

भौजी: सारा प्यार उसे ही दे दोगे तो मेरा क्या होगा?

उनकी बात सुन मैं हँस पड़ा और नेहा अपनी मम्मी को जीभ चिढ़ाने लगी!

दोपहर का खाना बनने तक मैं छप्पर के नीचे ही लेटा रहा और नेहा मेरे साथ खेलती रही| माँ, बड़की अम्मा और रसिका भाभी आते रहते पर किसी ने सुबह हुए काण्ड के बारे में भौजी से कुछ नहीं कहा| मैं भी बहुत सतर्क था और बार-बार बात शुरू कर के किसी को भी मेरे जाने के विषय में बात करने नहीं दे रहा था| खाना बना और फिर हमेशा की तरह बाप-बेटी ने साथ बैठ कर खाना खाया| खाना खा कर हम तीनों भौजी के घर के आंगन में लेटे हुए थे और कुछ इधर-उधर की बातें कर रहे थे|

[color=rgb(226,]जारी रहेगा भाग - 3.....[/color]
 

[color=rgb(184,]अठारवाँ अध्याय: प्रेम के आखरी कुछ पल.......[/color]
[color=rgb(226,]भाग -3[/color]


[color=rgb(235,]अब तक आपने पढ़ा:[/color]

दोपहर का खाना बनने तक मैं छप्पर के नीचे ही लेटा रहा और नेहा मेरे साथ खेलती रही| माँ, बड़की अम्मा और रसिका भाभी आते रहते पर किसी ने सुबह हुए काण्ड के बारे में भौजी से कुछ नहीं कहा| मैं भी बहुत सतर्क था और बार-बार बात शुरू कर के किसी को भी मेरे जाने के विषय में बात करने नहीं दे रहा था| खाना बना और फिर हमेशा की तरह बाप-बेटी ने साथ बैठ कर खाना खाया| खाना खा कर हम तीनों भौजी के घर के आंगन में लेटे हुए थे और कुछ इधर-उधर की बातें कर रहे थे|

[color=rgb(209,]अब आगे....[/color]

तभी
भौजी ने फिल्मों की बात छेड़ दी और मुझे कुछ याद आ गया!

मैं: यार शारुख खान की एक फिल्म है, मैं हूँ न उसमें सुष्मिता सेन टीचर होती है और एक सीन में वो रेड कलर की साड़ी पहनती है! हाय!! स्लीवलेस ब्लाउज...वाओ और जब वो अदा के साथ चलती है तो देख कर ही मजा आ जाता है! काश आपके पास भी एक प्लैन रेड कलर की साडी होती, उस पर रेड कलर की लिपस्टिक और एक ऊंची एड़ी की सैंडिल तो आप बड़े कमाल लगते!

मैंने उन्हें ये कह तो दिया पर मैं ये नहीं जानता था की ये सुन कर भौजी जल चुकी हैं! अब अपना पति अपने सामने किसी फ़िल्मी एक्ट्रेस की तारीफ कर दे तो जलन होना स्वाभाविक है| भौजी कुछ सोच में पड़ गई और बोलीं;

भौजी: हम्म्म... काश मेरे पास भी प्लैन लाल साडी होती|

मैं: कोई बात नहीं जब आप शहर आओगे न तब मैं दिल दूँगा|

भौजी: शहर क्यों? Sunday को यहाँ बाजार में खूब रौनक होती है, वहीं चल के खरीद लेंगे!

अब मैं उन्हें कैसे बताता की Sunday को ही तो मैं जा रहा हूँ, अब चूँकि मुझे ये बात छुपानी थी तो मैंने हाँ में सर हिलाया और उनसे नजरें चुराते हुए सीधा होके लेट गया| इधर भौजी के दिमाग में कुछ शुरू हो चूका था, जिसे सोचते हुए वो उठीं और अपने कमरे में सूटकेस खोल के कुछ देखने लगीं| उन्होंने कमरे के भीतर से ही नेहा को आवाज मारी और नेहा उठ कर अंदर चली गई, मैं अब भी आँगन में लेटा था तो मुझे नहीं पता चला की दोनों माँ-बेटी में क्या खुसर-फुसर हुई| मिनट भर नहीं लगा और नेहा मुस्कुराते हुए बाहर आई और वापस मुझसे लिपट कर लेट गई| करीब दो मिनट बाद भौजी वापस बाहर आईं औरअपनी चारपाई मेरे नजदीक खींच के बैठ गईं|

भौजी: आप मेरा एक काम करोगे?

भौजी ने मुस्कुराते हुए कहा|

मैं: दो बोलो?

मैंने उठ कर बैठते हुए कहा|

भौजी: नहीं बस एक, नेहा कल कह रही थी की उसे लोलीपोप चाहिए| अब चूँकि कल मेरा मूड ठीक नहीं था तो मैंने उसे टाल दिया|,तो आप प्लीज उसे लोलीपोप दिलवा दो...

अभी उनकी बात पूरी भी नहीं हुई थी और मैं एकदम से बोल पड़ा;

मैं: Ok चलो नेहा आज मैं आपको लोलीपोप दिलवाता हूँ और साथ में एक हम-दोनों के लिए भी लाता हूँ!

मैंने भौजी को आँख मारते हुए कहा|

भौजी: जानू....

भौजी ने बड़े मादक ढंग से कहा और एकदम से रुक गईं;

मैं: हाँ बोलो जान?

मैंने बड़े प्यार से उनके नजदीक जाते हुए कहा|

भौजी: मुझे strawberry वाली पसंद है!

भौजी ने अपना निचला होंठ दाँतों तले दबाते हुए कहा| हाय! उनकी ये अदा देख कर तो मेरा मन बावरा हो गया! मैं उन्हें चूमता उससे पहले ही नेहा मेरी पीठ पर चढ़ गई और अपने दोनों हाथों का लॉक मेरी ठुड्डी के सामने बना लिया|

मैं: आपको आ कर बताता हूँ!

मैंने भौजी को उल्हना देते हुए कहा और नेहा को पीठ पर लादे दूकान की ओर चल दिया|

हमारे गाँव में दो दुकाने हैं, एक जहाँ बूढ़ी अम्मा बैठती हैं और एक उससे करीब 20 मिनट दूर| मैं हमेशा अम्मा वाली दूकान पर ही जाता था और वहीं से चिप्स आदि लेता था पर नेहा ने आज जिद्द की कि आज दुसरी वाली दूकान पर चलते हैं| मैंने इसे नेहा का बचपना समझा और दूसरी वाली दूकान पर पहुँच गया, वहाँ मुझे आम तथा संतरा वाली लॉलीपॉप मिली मगर स्ट्रॉबेरी वाली नहीं मिली| नेहा को तो दोनों पसंद थी इसलिए नेहा के लिए मैंने दो संतरे वाली और दो आम वाली लॉलीपॉप ले ली| पर मेरी जानेमन को स्ट्रॉबेरी चाहिए थी तो मुझे मजबूरन वहाँ से बूढी अम्मा वाली दूकान पर जाना पड़ा| इस बार नेहा मेरी गोद में थी क्योंकि पीठ पर होते हुए वो लॉलीपॉप कैसे खाती?! गोदी में आते ही नेहा ने फ़ौरन आम वाली लॉलीपॉप खोली और मजे से चूसने लगी, तभी मैंने उसके गाल को चूमा और कहा;

मैं: आज तो मेरी बेटी कि पप्पी बहुत मीठी-मीठी है, बिकुल आम का स्वाद आ रहा है!

ये सुन कर नेहा हँस पड़ी और मेरी ओर अपनी लॉलीपॉप बढ़ा दी|

मैं: आप खाओ बेटा, आज मुझे स्ट्रॉबेरी वाली खानी!

मैंने मुस्कुराते हुए कहा और एक बार फिर नेहा कि मीठी-मीठी पप्पी ली| खैर इसी तरह पप्पियाँ लेते-लेते हम दोनों बाप-बेटी बूढी अम्मा के पास पहुँचे;

मैं: आजी हो! दुइ ठो गुलाबी वाली लालीपाप दिहो!

आजी भीतर से लॉलीपॉप ले आईं, उन्हें पैसे दे कर मैं नेहा को लेकर घर लौट आया| मतलब सिर्फ लोलीपोप खरीदने में मेरा आधा घंटा लग गया, अगर शहर में कोई लड़की मुझसे ये कहती न तो साला पलट के ऐसे जवाब देता की जिंदगी में दुबारा कभी लोलीपोप नहीं माँगती!

खेर घर पहुँचते-पहुँचते नेहा की लोलीपोप खत्म हो गई थी, हम दोनों बाप-बेटी अभी कुएँ के पास वाले आँगन में थे कि अचानक से नेहा मेरी गोद से उतरने को छटपटाने लगी! जैसे ही मैंने नेहा को गोद से उतारा कि वो बड़े घर कि ओर दौड़ गई! मुझे बिकुल समझ नहीं आया कि भला वो ऐसा क्यों करेगी, फिर दिल ने कहा अच्छा ही है कि वो चली गई अब भौजी को लॉलीपॉप देने के बहाने थोड़ा प्यार करने का मौका जो मिल जाएगा! मैंने इधर-उधर नजर दौड़ाई ओर फिर भौजी के घर कि ओर बढ़ने लगा, तभी मैंने देखा कि भौजी के घर का दरवाजा बंद है| मैं सोचने लगा की भला भौजी ने दरवाजा बंद क्यों किया? कहीं वो खेतों में (बाथरूम) तो नहीं गईं? या फिर कपडे बदल रहीं हों? या फिर शायद वो यहाँ हों ही न? सवालों के जवाब ओर अपने दिल कि तसल्ली करने को मैंने दरवाजा खटखटाया, पर अंदर से कोई जवाब नहीं आया| मुझे थोड़ी बेचैनी हुई तो मैंने दरवाजे को अंदर की ओर धकेला तो पाया की दरवाजा अंदर से बंद नहीं था, दोनों पल्ले बस आपस में चिपके हुए थे| मैं घर में घुसा तो सीधा भौजी के कमरे के अंदर घुसने लगा, पर इससे पहले की मैं अंदर घुसता भौजी ने पीछे से मेरा दाहिना हाथ पकड़ा ओर खूब जोर से पीछे की ओर खींचा! मैं संभल पाता उससे पहले ही भौजी ने मुझे दरवाजे के साथ वाली दिवार से भिड़ा दिया और तब मैंने भौजी को देखा और बस देखता ही रह गया!

डार्क रेड कलर की साड़ी जिसके बॉर्डर पर कोई डिज़ाइन बना था पर भौजी ने उस बॉर्डर को काट डाला था! डार्क रेड कलर का स्लेविलेस ब्लाउज, जो की पहले फुल स्लीव था पर भौजी ने उसे भी बेरहमी से काट कर स्लीवलेस बनाया था! होठों पर रेड लिपस्टिक जो उन्होंने आजतक नहीं लगाई थी और उस लिपस्टिक पर उन्होंने हलकी-हलकी वेसिलीन लगाई थी जिससे उनके होठों पर ग्लॉसी फिनिश आई थी!



माँग में लाल सिन्दूर, कमर ता लटके हुए उनके काले बाल और एक ख़ास चीज जिसकी मैंने कल्पना भी नहीं की थी! चांदी की कमरबंद जो उनके belly button की शोभा बढ़ा रही थी! आज पहली बार भौजी ने साडी ऐसी बाँधी थी की उनका belly button मुझे साफ़ दिख रहा था! उनको इस तरह सजा-धजा देख कर मेरी आँखें फटी की फटी रह गईं, दिल जैसे धक् सा रह गया और मुँह से बस एक शब्द निकला; "wow!!!"

मुझे खुद को यूँ अवाक देखते हुए भौजी लाज से पानी-पानी हो गईं और काँपती हुई आवाज में बोलीं;

भौजी: ऐसे क्या देख रहे हो जानू?

उनकी मीठी सी आवाज सुन मेरी सिसकारी निकल गई;

मैं: स्स्स्स....!! देख रहा हूँ की आप जूठ बहुत प्यारा बोलते हो!!! इतना प्यारा की आप पर और भी प्यार आ रहा है! मन बईमान हो रहा है....हाय ... कैसे रोकूँ खुद को?!

ये सुन भौजी मुस्कुराईं और अपनी बाहें मेरी गर्दन के इर्द-गिर्द लपेट कर बोलीं;

भौजी: क्यों रोक न है खुद को?

मैं: क्योंकि आज मैं इस खूबसूरत फूल को 'सिर्फ' जी भर के देखना चाहता हूँ!

ये सुन भौजी को लाज आ गई और उन्होंने बड़ी अदा से सर झुकाया|

मैं: सच में आपके हुस्न की तारीफ में एक शेर कहने का मन कर रहा है|

भौजी: तो कहिये ना?

भौजी ने मेरी आँखों में देखते हुए कहा|

मैं: यही तो दिक्कत है.की शेर नहीं आता मुझे! ही..ही..ही..ही..ही!!!

ये कहते हुए मैं होले से मुस्कुराया|

भौजी: आप भी ना...!

भौजी ने प्यार से शिकायत करते हुए मेरी छाती पर मुक्का मारा| पर अब मन बेकाबू हो रहा था, इसलिए मैंने भौजी से मुस्कुरा कर कहा;

मैं: मन कर रहा है आपको kiss कर लूँ?

पर भौजी को आज मुझे तड़पाना था इसलिए वो बोलीं;

भौजी: पहले मेरी लोलीपोप!

पर जिद्द तो मुझे भी करनी आती थी;

मैं: न पहले kiss फिर लोलीपोप!

भौजी: उम्म्म..आप न मुझे बहुत सताते हो! ठीक है पर kiss मेरे स्टाइल से होगी!

भौजी ने शरारत भरे अंदाज से कहा|

मैं: आपका स्टाइल? हमें भी तो पता चले की आपका स्टाइल क्या है?

मैंने जिज्ञासा वश पुछा|

भौजी: वो आपको शीशे में देख के पता चलेगा! ही...ही...ही...ही!!!

उनकी बात सुन मैं जान गया की कुछ तो मजेदार वाला होने वाला है!

भौजी ने फ़ौरन दरवाजा बंद किया और मुझसे बोलीं;

भौजी: जैसे मैं कहूँ बस वैसे करना? No cheating!

उन्होंने किसी अध्यापिका की तरह कहा|

मैं: ठीक है!

मैंने भी एक आज्ञाकारी शिष्य की तरह सर हाँ में हिला कर कहा|

भौजी: अब अपनी आँखें बंद करो|

भौजी ने आदेश देते हुए कहा| मैंने उनके हुक्म की फिरन तामील करते हुए फ़ौरन अपनी आँखें बंद कर लीं! भौजी मेरे चेहरे के बिलकुल सामने थीं, उनकी गर्म साँसें मुझे अपने चेहरे पर महसूस हो रहीं थीं| उनके साँसों की मादक खुशबु मेरे नथुनों में भरने लगी थी क्योंकि वो जानबूझ कर मुँह से साँस ले रहीं थीं! मैं जान गया की भौजी मेरे होठों को मुँह में ले कर चूसेंगी पर ऐसा बिलकुल नहीं हुआ!

मेरे होंठ सूखने लगे थे इसलिए मैंने उनर अपनी जीभ फिराई, जैसे ही मेरी जीभ वापस अंदर पहुँची भौजी ने अपने रेड लिपस्टिक वाले होठ मेरे होंठों पर रख दिए! लेकिन इससे पहले की मैं उनके होंठों को चूस पता उन्होंने एकदम से अपने होंठ हटा लिए! उनकी ये छेड़खानी से मैं तिलमिला गया और मेरे चेहरे पर शिकायत की शिकन पड़ने लगी, जिसे देख भौजी मुस्कुराते हुए बोलीं;

भौजी: जानू बस इतना ही मिलेगा!

ये कह कर वो खिलखिलाकर हँसने लगीं! मैं बेबस भौजी की लिपस्टिक के मधुर स्वाद को चखना चाहता था पर इससे पहले की मैं दुबारा अपनी जीभ अपने होठों पर फिरा पाता उससे पहले ही भौजी ने मुझे रोक दिया;

भौजी: Stay still!

उन्होंने किसी मिलिट्री के जर्नल की तरह कड़ी आवाज में हुक्म देते हुए कहा| मैं एकदम से रुक गया और इधर भौजी ने मेरे दाएँ गाल पर ऊँगली रख कर उसे बायीं तरफ घुमाया| मैं जान गया की भौजी मेरे इस गाल पर काटेंगी पर ऐसा नहीं हुआ, उन्होंने बस मेरे दाएँ गाल पर जोर से अपने होंठ दबाये जैसे की वो उस पर अपने होठों की मोहर लगा रहीं हों और फिर पीछे हट गईं! अब उन्होंने मेरे बाएँ गाल पर ऊँगली रख कर उसे दाईं तरफ घुमाया और फिर बाएँ गाल पर भी अपने होंठों की मोहर लगा दी!

मैं भौजी से शिकायत करता उससे पहले ही उन्होंने अपना अगला हुक्म सुनाया;

भौजी: अब आँखें बंद किये हुए अपनी टी-शर्ट उतारो!

मैं जान गया था की भौजी को मुझे तड़पाने में बहुत मजा आ रहा है इसलिए मैं शिकायत करते हुए बुदबुदाया;

मैं: ठीक है जान मेरा भी वक़्त आएगा, तब देखना कैसे तड़पाता हूँ!

मैंने भौजीको उल्हाना देते हुए कहा, जिसे सुन भौजी हँस पड़ीं!

भौजी ने मेरी टी-शर्ट उतार के अपने पास रख ली, अब मैं ऊपर से नंगा था जिसका फायदा उठाते हुए भौजी ने मेरी गर्दन पर अपने होठों की मोहर लगाई! फिर वो नीचे आईं और मेरे दोनों निप्पलों पर अपने लाल-लाल होठों की मोहर लगाई, उसके बाद मेरे belly button पर भी अपने होठों की मोहर लगाई! मेरा दिमाग सोच में पड़ गया की आखिर ये हो क्या रहा है? क्यों भौजी मेरे साथ ऐसा खिलवाड़ कर रहीं हैं? मेरा पूरा शरीर प्यार की आग में जलने लगा है और ये हैं की उस आग को नबुझा कर और हवा दे रहीं हैं? मैं अपने इन सवालों के जवाब चाहता था, तभी भौजी ने बिना कुछ कहे मेरी जीन्स के ऊपर हाथ रखा|

मैं: क्या कर रहे हो? दरवाजा खुला है, उसे तो बंद कर लो!

मैंने आँख बंद किये हुए कहा|

भौजी: जानू वो पहले ही बंद कर दिया था मैंने! अब आप चुप-चाप आँखें बंद किये खड़े रहो!

भौजी प्यार से मुस्कुराते हुए बोलीं|

भौजी ने मेरी जीन्स की बेल्ट खोलनी चाही, जिसे खोलने के लिए उन्हें खासी मशकत करनी पड़ी क्योंकि जबसे गाँव आया था तब से भौजी के हाथ का प्यारभरा खाना खा-खा कर मैं मोटा हो गया था! फिर उन्होंने जीन्स का बटन खोला, फिर ज़िप खोली और अंत में कच्छे को नीचे खिसका कर मेरे पहले से अकड़ चुके लिंग को बाहर निकाला| मेरे लिंग को देखते ही भौजी के मुँह में पानी आ गया और वो उसकी चमड़ी को आगे-पीछे करने लगीं| उन्होंने मेरा पूरा सुपाड़ा बाहर निकाला और उसके मुख पर अपनी रेड लिपस्टिक वाले होठों की मोहर लगाई! ये ऐसा दृश्य था जिसे मैं miss नहीं करना चाहता था इसलिए मैंने आँख खोल ली और ये दृश्य देख के मेरी हालत ऐसी थी मानो किसी लौहार ने तप के लाल हुए लोहे की सलाख को पानी की ठंडी बाल्टी में डूबा दिया हो और उस लोहे से आवाज निकली हो स्स्स्स्स्स्स्स्स्स्स्स्स्स्स्स्स्स्स्स्स्स्स्स्स्स्स्स्स्स्स!!! बिलकुल ऐसी ही सिसकारी मेरे मुख से निकली; "स्स्स्स्स्स्स" जिसे सुन भौजी ने मेरी तरफ देखा और मुझे आँखे खोले देख मुझे प्यार से डाँट दिया;

भौजी: मैंने आपसे आँखें बंद करने को कहा था न? फिर आपने आँखें खोली क्यों?!

अब मुझसे भौजी का तड़पाना बर्दाश्त नहीं हो रहा था तो मैंने उनसे थोड़ा गुस्से में शिकायत की;

मैं: आपने मेरे बदन में आग लगा दी है, दिल बेकाबू चूका है! चाहे तो खुद देख लो!

ये कहते हुए मैंने भौजी का हाथ अपने दिल के ऊपर रख दिया जो फुल स्पीड में धड़क रहा था| मेरे दिल की धड़कन महसूस कर भौजी मुस्कुराईं और बोलीं;

भौजी: जानू आग तो इधर भी बरा-बर लगी है पर आपने जितना मुझे तड़पाया है उतना मैं भी तड़पाऊँगी!!! अब चुप-चाप आँखें बंद किये हुए खड़े रहो!

मैंने आँखें बंद कर ली और मन ही मन सोचने लगा की ये किस दिन का बदला लिया जा रहा है?! इधर भौजी ने मेरा लिंग अपने मुख में गपक लिया और उसे टॉफ़ी की भाँती मुँह में रखे हुए चूसने लगीं| इस एहसास से मैं तो जैसे हवा में उड़ने लगा था, वो तो भौजी ने मेरे लिंग को अपने मुँह में थामा हुआ था वरना शायद में उड़ के कहीं और पहुँच जाता!

मैं: सससस....मममम...हाय!!! आज तो आप मेरी जान ले के रहोगे!!!

मैं आनंद के सागर में गोते लगाते हुए बोला| ये सुन भौजी ने मेरे लिंग को अपने मुँह से बाहर निकाल दिया और मेरी ओर देखते हुए हँसने लगीं| अब चूँकि मेरी आँखें बंद थीं तो मैं उनकी हँसी की कल्पना करने लगा, वो रेड लिपस्टिक वाले होंठ और उनके पीछे छुप्पे वो मोतियों से सफ़ेद दाँत! लेकिन फिर अगले ही पल उन्होंने घप से मेरा लिंग

फिर से अपने मुँह में भर लिया और उसे टॉफ़ी की तरफ फिर चूसने लगीं! करीब मिनट भर बाद उन्होंने अपना अंदाज बदला और इस बार उनका मेरे लिंग को चूसना कुछ ऐसा था जैसे कोई स्ट्रॉ से पेप्सी खींचता हो! वो चाहतीं थीं की मैं जल्द से जल्द छूट जाऊँ पर मेरा लिंग इस सुख को और पाना चाहता था, इसीलिए वो चट्टान सा सख्त खड़ा था! लेकिन भौजी को सारे पेंतरे आते थे, उन्होंने अचानक से मेरे सुपाड़े पर अपने दाँत गड़ा दिए! उनके दाँत लगते ही मैं सिसिया उठा; "स्स्स्स्स्स्स...अह्ह्ह्हह्ह!!" ये मीठा-मीठा दर्द आनंद को और बढ़ा रहा था, भौजी ने अब अपने सर को आगे-पीछे करना शुरू किया, जिससे मेरा लिंग की चमड़ी उनके मुख के भीतर खुलने-बंद होने लगी! 5-7 मिनट और टिक पाया, फिर मैं भरभरा के भौजी के मुँह में स्खलित हो गया! मुझे ये देख कर जरा भी हैरानी नहीं हुई की भौजी मेरा सारा रस गटक गईं, लेकिन भौजी ने अंत में एक और शरारत की, उन्होंने मेरे लिंग को चाट के साफ़ करते समय अपनी रेड लिपस्टिक की मोहर मेरे पूरे सुपाडे पर लगा दी! फिर उन्होंने अपनी रेड साड़ी से अपना मुँह पोछा और मुस्कुराते हुए बोलीं;

भौजी: अब आँखें खोलो और चलो मेरे साथ लेकिन नीचे मत देखना!

भौजी ने हिटलरनी की तरह हुक्म देते हुए कहा! भौजी ने मेरा दायाँ हाथ पकड़ा और मुझे अपने कमरे के भीतर ले जाने लगीं| मेरी नजर भौजी के चेहरे पर जमी हुई थी, मेरा लिंग चूसने के कारन उनकी रेड लिपस्टिक उनके होठों पर फ़ैल गई थी!

हम दोनो भौजी के कमरे में पहुँचे, वहाँ दिवार पर एक लम्बा शीशा लगा हुआ था| उसके सामने पहुँचते ही भौजी ने भौजी ने उसकी तरफ ऊँगली से इशारा करते हुए मुझे उसमें अपना प्रतिबिम्ब देखने को कहा| मेरी नजर भौजी के चेहरे से हट कर जब उस शीशे पर पड़ी तो मैं खुद को आँखें फाड़े हुए देखने लगा, मेरे पूरे शरीर पर भौजी की रेड लिपस्टिक के निशान थे! मेरे होठों पर, गालों पर, गले पर, छाती पर, belly button पर और मेरा लिंग वो तो आधा लाल हो चूका था!

जब मैंने अपनी ये हालत देखि तो मुझे भौजी पर और प्यार आने लगा, मैंने मुस्कुरा कर उनकी ओर देखा| भौजी के चेहरे पर एक शरारती मुस्कान आ गई ओर वो इठला कर बोलीं;

भौजी: देख ली मेरी करनी?

मैं: हाँजी देखि! पर अब इन निशानों का क्या करें?!

मैंने भौजी को छेड़ते हुए कहा|

भौजी: पोंछ देंगे ओर क्या?!

भौजी फ़ट से बोलीं|

मैं: अगर पोछना था तो लगाय क्यों?

मैंने भौजी का हाथ पकड़ते हुए कहा|

भौजी: तो ऐसे ही रहने दूँ?!

भौजी हँसते हुए बोलीं|

मैं: रहने दो न!

मैंने भौजी की ठुड्डी पकड़ते हुए कहा|

भौजी: अच्छा? किसी ने पूछा की होंठ लाल कैसे हैं तो?

भौजी तर्क करने पर उतर आईं|

मैं: कह दूँगा की पान खाया है|

मैंने बड़े गर्व से उनके तर्क का जवाब देते हुए कहा|

भौजी: और गाल लाल क्यों हैं?

भौजी ने मेरे गालों की तरफ इशारा करते हुए कहा|

मैं: कह दूँगा की शर्म आ रही है!

मैंने फिर गर्व से जवाब दिया|

भौजी: और गर्दन पर लाल निशान कैसे?

भौजी ने अपना अगला सवाल पुछा|

मैं: वो....

मैं जवाब सोच के बोलता उससे पहले ही भौजी ने मेरी बात काट दी और मेरे चेहरे को अपने हाथ में लिए हुए बोलीं;

भौजी: बस-बस रहने दो आप! मैं इन्हें पोंछ देती हूँ!

भौजी ने हँसते हुए कहा|

मैं: सिर्फ गाल और गर्दन के पोछो|

मैंने भौजी की आँखों में देखते हुए कहा|

भौजी: और होठों के?

भौजी ने सवालिया नजरों से देखते हुए पुछा|

मैं: वो आपके होंठ पोंछ देंगे|

ये कहते हुए मैंने उनकी कमर को पकड़ कर अपने से सटा लिया| मैंने बिना देर किये भौजी के होठों को चूसना शुरू कर दिया, जब उनकी उस रेड लिपिस्टिक का स्वाद चखने को मिला तो मजा ही आ गया! मैंने फ़ौरन भौजी की होठों के इर्द-गिर्द जो लिपिस्टिक फ़ैल गई थी उसे चाट कर साफ़ किया और फिरसे उनके होठों को चूसने लगा| इधर भौजी को भी जोश आ गया था, उन्होंने पूरा सहयोग देते हुए पहले अपने होंठ चुसवाये और फिर जी भर कर मेरे होंठ चूसे! अगले पाँच मिनट तक हम एक दूसरे के होठों को चूमते रहे, चूसते रहे और उस रेड लिपस्टिक के मधुर स्वाद का भरपूर उठाते रहे! इस जबरदस्त रसपान के कारन हम दोनों के ही होंठ साफ़ हो चुके थे और उधर भौजी के जिस्म में प्रेम अगन जाग चुकी थी! वो जानती थीं की एक पल और मैं वहाँ रुका तो फिर हम दोनों बेपरवाह हो कर सम्भोग करने लगेंगे! फिर किसी के आने का खतरा हमारे सर पर मंडरा रहा था, इसलिए उन्होंने मेरे दोनों गालों को अपनी रेड साड़ी के पल्लू से से पोछा|

भौजी: चलो आपके गाल तो मैंने पोंछ दिए!

भौजी ने मुस्कुराते हुए कहा और फिर मेरे लिंग की ओर इशारा करते हुए बोलीं;

भौजी: अब ये वाला भी पोंछ देती हूँ!

ये कह के उन्होंने मेरे लिंग को छूना चाहा पर मैंने उनका हाथ पकड़ लिया ओर बोला;

मैं: न....ये नहीं....कुछ देर तो इनका एहसास बना रहें दो, रात को पोंछ देना!

मैंने भौजी को आँख मारते हुए कहा|

भौजी: जानू आप न बड़े नटखट हो!

भौजी मुस्कुराते हुए बोलीं|

मैं: नटखट तो आप हो, कुछ ही मिनटों में इतना बड़ा सरप्राइज प्लान कर लिया और बहाना क्या मारा की नेहा को लॉलीपॉप खानी है?!

भौजी: वो तो करना ही था, आप ने मेरे सामने उस सुष्मिता सेन की तारीफ जो की थी! मुझे आपको दिखाना था की मैं भी उससे कम नहीं!

भौजी ने अकड़ते हुए कहा|

मैं: अगर आप इस तरह से सरप्राइज दोगे तो कसम से मैं हर रोज कुछ न कुछ कह कर आपको जलाऊँगा!

ये सुन भौजी मुस्कुराने लगीं|

मैं: लेकिन यार अपने मेरे चक्कर में अपनी साडी बर्बाद कर दी! क्या जर्रूरत थी इसे काटने की? ब्लाउज तक आपने काट डाला!

भौजी ने मेरी नाक पकड़ ली और उसे खींचते हुए बोलीं;

मैं: अपने जानू के लिए एक साडी तो क्या कुछ भी करूँगी!

भौजी ने बड़े गर्व से कहा और मेरी छाती से लिपट गईं|

साँझ होने लगी थी और जब भौजी का ध्यान उस ओर गया तो वो बोलीं;

भौजी: अच्छा अब आप बहार जाओ वरना सब कहेंगे की दोनों दरवाजा बंद करके क्या कर रहे हैं?!

भौजी मुझसे अलग हुईं ओर मुझे टी-शर्ट पकड़ाई| मैंने टी-शर्ट पहनी और बोला;

मैं: अब तक तो सब बाहर आ गए होंगे! ऐसा करता हूँ दिवार कूद के चला जाता हूँ!

मैंने उत्साहित होते हुए कहा|

भौजी: न बाबा न! चोट लग जायेगी, आप सामने से ही जाओ| कोई देखता है तो देखने दो!

भौजी चिंतित होते हुए बोलीं|

मैं: यार दिवार फाँदने में जो मजा है वो सामने से निकल के जाने मैं नहीं! ऐसा लगता है की एक प्रेमी अपनी प्रेमिका से मिलने साड़ी दुनिया की हदें तोड़ कर आया हो! .

मैंने बड़े गर्व से कहा| दरअसल मुझे ये रोमांच बहुत पसंद आने लगा था|

भौजी: अच्छा बाबा जाओ! पर प्लीज चोटिल मत हो जाना!

भौजी हँसते हुए बोलीं|

मैं: नहीं हूँगा!

इतना कह मैं भौजी के घर की दिवार के दोनों तरफ टांगें लटका कर बैठ गया और अकड़ कर बोला;

मैं: और हाँ अगर कोई पूछे न की आप और मैं दरवाजा बंद कर के क्या कर रहे थे, तो कह देना 'प्यार' कर रहे थे!

ये कह के मैंने भौजी को एक बार आँख मारी और दिवार के दूसरी ओर कूद पड़ा|

मैं वहाँ से चक्कर लगाने के लिए चल दिया, जिससे सब को लगे की मैं घर पर था ही नहीं| जब मैं अकेला चल रहा था तब दिमाग में फिर से दिल्ली वापस जाने की बात गूँजने लगी! कल कैसे उन्हें ये बताऊंगा ये सोच कर ही मेरे चेहरे पर शिकन आ गई थी| मेरा मन जानता था की मैं कितनी बड़ी बात भौजी से छुपा रहा हूँ, लेकिन ये कहने की हिम्मत मुझे में कतई नहीं थी! दिमाग बस इस बात से भागना चाहता था लेकिन मन था जो मुझे कह रहा था की आज भर रुक जा और कल सुबह सब सच कह दिओ| दिमाग को ये बहाना अच्छा लगा और मैं घर लौट आया, मैं इस बारे में और न सोचूं इसलिए मैं नेहा को ढूँढने लगा| एक वो ही तो थी जिसकी मौजूदगी में मैं इस ख्याल को उसके प्यार से दबा सकता था, लेकिन नेहा उस वक़्त मेरे पिताजी के साथ दूसरे गाँव में घूम रही थी| जब नेहा नहीं मिली तो मैं आ कर छप्पर के नीचे अकेला बैठ गया| अकेला था तो मेर मन मुझे समझाने लगा की कल कैसे भी उन्हें ये सच बता दे, ये सब सुनकर उन्हें धक्का जर्रूर लगेगा और तब तुझे उन्हें अपने प्यार से संभालना है| कल मुझे क्या कहाँ है, कैसे कहना है, मैं यही सब सोचने लगा की 10 मिनट बाद भौजी नाहा-धो कर बाहर आईं| उनके आते ही मैंने अपनी रोनी शक्ल ठीक की और मुस्कुराते हुए उन्हें देखा, लेकिन फिर भी वो समझ गईं की मेरा मन जर्रूर उदास है वर्ण मैं छप्पर के नीचे अकेला क्यों बैठता?

भौजी: क्या हुआ? किसी ने कुछ कहा?

भौजी ने थोड़ा गंभीर होते हुए पुछा|

मैं: देखो ने मेरी बेटी पिताजी के साथ घूम रही है, उसके बिना मैं बहुत अकेला महसूस कर रहा हूँ!

मैंने एकदम से बच्चे जैसा मुँह बनाते हुए कहा| मैंने झूठ बोला था पर भौजी को इस पर विश्वास हो गया था इसलिए वो खिलखिलाकर हँसने लगीं और बोलीं;

भौजी: मैंने ही उसे कहा था की वो अपने दादाजी के पास रहे, वरना मेरे सरप्राइज का क्या होता?!

मैं: बहुत शरारती हो आप!

मैंने नकली मुस्कान चिपकाए हुए कहा|

भौजी चूँकि नहीं थी तो उनके बदन से मुझे साबुन की खुशबू आ रही थी, इधर भौजी चाय बनाने रसोई में घुस गईं| हम दोनों ही अकेले थे तो मैंने हाथ बांधे और भौजी को टकटकी बाँधे देखना शरू कर दिया, उनकी ये प्यारभरी सूरत में आज जी भर के अपने दिल में बसा लेना चाहता था| मुझे ऐसे खुद को देखते देख भौजी के चेहरे पर एक शरारती मुस्कान आ गई, पता नहीं उस मुस्कान में क्या जादू था क्योंकि अचानक से ही मेरा मन हल्का हो गया था| दिल पर से जैसे सारा बोझ उतर गया था और मेरे चेहरे पर एक निश्चिंत मुस्कान आ गई थी|

जब चाय बन गई तो वो मेरी चाय लेके आईं और चाय का गिलास मेरे हाथ में देते हुए मुझे आँख मारी!

मैं: स्स्स्सस्स्स्स...अह्ह्ह्ह!

मैंने भौजी का ध्यान अपनी तरफ खींचते हुए कहा|

भौजी: क्या हुआ?

भौजी थोड़ा चिंतित होते हुए बोलीं!

मैं: Too Hot!!!

मैंने भौजी की आँखों में शरारत भरे तरीके से कहा|

भौजी: क्या?

भौजी समझ गईं की मैं मस्ती कर रहा हूँ, फिर भी उन्होंने मुझे छेड़ते हुए कहा|

मैं: चाय...चाय बहुत गर्म है!

मैंने भौजी को आँख मारते हुए कहा|

भौजी: हाँ-हाँ सब जानती हूँ क्या गर्म है?!

भौजी उल्हना देते हुए बोलीं| इतने में वहाँ बड़की अम्मा अपनी चाय लेने आ गईं, पर उन्होंने हम दोनों की चाय गर्म होने की बात सुन ली थी!

बड़की अम्मा: का भवा बहु?!

बड़की अम्मा हँसते हुए बोलीं|

भौजी: कहत हैं की चाय बहुत गरम है!

भौजी ने मेरी शिकायत अम्मा से करते हुए कहा|

बड़की अम्मा: अरे तो ठंडा कर के देईदे, अब दो ही....

इससे पहले की बड़की अम्मा कुछ कहतीं मैंने उनकी बात काट दी और उनकी बात बदल कर उसे देवर-भाभी की छेड़खानी का रूप दे दिया!

मैं: हाँ देखो न अम्मा, मैंने कहा की चाय फूक मार के ठंडी कर दो तो कहतीं हैं की मेरे पास बहुत काम है!

अम्मा जान गईं थीं की मैंने जानबूझ कर उनकी बात काटी है, इसलिए पहले उन्होंने भौजी को पहले रसोई में बहाने से भेजा;

बड़की अम्मा: जा बहु चाय ठंडी कर दे और हमार चाय हियाँ ले आ|

जैसे ही भौजी रसोई में घुसीं तो बड़की अम्मा ने मुझसे बड़ी धीमी आवाज में मेरी बात काटने का कारन पुछा;

बड़की अम्मा: मुन्ना तू काहे हमका तोहार जाने के बारे में नाहीं बताये दिहो?

अम्मा की बात सुन मैं एक सेकंड के लिए मौन हो गया और फिर बोला;

मैं: अम्मा बस आज का दिन उन्हें कुछ मत बताना, आज जा कर उनका मन बहुत खुश हुआ है और मैं आज ही उनका दिल नहीं तोडना चाहता! कल मैं ही उन्हें सब बता दूँगा, अगर उनका दिल टूटना ही है तो मेरे ही कारन टूटे तो बेहतर होगा!

मेरी बातों में दर्द झलक रहा था, ये वही दर्द था जिससे मैं भाग रहा था| बड़की अम्मा की बात के कारन ये दर्द उभर आया और बिना बड़की अम्मा की मौजूदगी की परवाह किये हुए बाहर छलक आया था| बड़की अम्मा उम्र में बहुत बड़ी थीं और मेरा दर्द समझने लगीं थीं, उन्होंने मुझे हौंसला देने के लिए मेरे कंधे पर हाथ रख दिया| इतने में भौजी बड़की अम्मा की चाय ले आईं, उन्होंने अम्मा को चाय का गिलास दिया और अपने चाय चाय का गिलास नीचे रख दिया| फिर उन्होंने मेरी चाय का गिलास मुझे दिखा-दिखा के फूक मार के ठंडा करने लगीं|

भौजी: ये लो..ठंडी हो गई!

भौजी ने प्यार भरी नाराजगी जाहिर करते हुए कहा|

मैं: थैंक यू!

मैंने नकली मुस्कराहट के साथ कहा| मैं जानता था की भौजी मेरी ये नकली मुस्कराहट पकड़ लेंगी इसलिए मैंने बात बनाते हुए एक घूँट चाय पी और मुँह बिदका कर बोला;

मैं: उम्म्म...अम्मा चाय बिलकुल ठंडी हो गई है!

मैंने अम्मा से शिकायत करते हुए कहा|

मैं: अब इसे गर्म कर के दो!

मैं भौजी को हुक्म देते हुए कहा| ये सुन भौजी ने बच्चों जैसा मुँह बनाया और अम्मा से मेरी शिकायत करने लगीं;

भौजी: देखो न अम्मा हमका कितना सतावत हैं! पहले कहिन की ठंडी कर के दो, जब ठंडी कर दिहिन तो कहत हैं की गरम कर के दो!

हम दोनों का बचपना देख अम्मा हँस पड़ीं और बोलीं;

बड़की अम्मा: अरे बहु तू जानत नहीं का मुन्ना को?! ई तो तोहसे दिल्लगी करत है!

इतना कह के अम्मा हँस पड़ीं और हम दोनों के चेहरे पर भी एक नटखट मुस्कान आ गई, मैंने बड़की अम्मा से नजर बचा कर भौजी को आँख मारी जिससे भौजी शर्मा गईं!

अब मैं और अम्मा बैठे कुछ बात करने लगे की इतने में माँ, पिताजी और नेहा आ गए और छप्पर के नीचे बैठ गए| भौजी ने सब को चाय दी और फिर बातों का सिलसिला शुरू हुआ, लेकिन मैं हमारे जाने से जुडी कोई भी बात पिताजी को करने नहीं दे रहा था| जब भी कोई ऐसी बात शुरू होती जिसमें जाने की बात शामिल होती तो में उस बात को घुमा देता! उधर नेहा जो आँगन में दिवार पर बॉल मार्के खेल रही थी वो मेरे पास आई और मुझे खेलने के लिए बोलने लगी| अब मैं उठ के कैसे जाता तो मैंने उसे गोद में उठा लिया और उसकी पप्पियाँ लेने लगा| पिताजी ने जब मुझे नेहा को दुलार करते हुए देखा तो उनके मुँह से हमारे जाने की बात निकलने वाली थी, लेकिन मैं तुरंत समझ गया और एकदम से बोला;

मैं: पिताजी आपको पता है नेहा पढ़ाई में बहुत होशियार है, उसदिन हेडमास्टर साहब मिले थे और वो नेहा की बहुत तारीफ कर रहे थे!

अपनी तारीफ सुन नेहा शर्मा गई और मेरी छाती में अपना मुँह छुपा लिया|

पिताजी: विद्यार्थी का पढ़ाई में अच्छा होना एक अच्छे गुरु की निशानी होती है!

बड़की अम्मा ने इसी बात को थोड़ा और खींच दिया और मेरी पढ़ाई के बारे में पिताजी से पूछने लगीं|

पिताजी; भाभी अब का कही, पढ़ाई में तो तोहार लड़िकवा होशियार है पर तनिक शैतान है!

पिताजी बड़की अम्मा से मेरी शिकायत करते हुए बोले|

बड़की अम्मा: तो तू जब ई की उमर का रहेओ तो शैतानी नाहीं करात रहेओ?!

अब ये सुन सारे जने हँस पड़े, अब बड़की अम्मा ने सोचा की चलो आज पिताजी की शैतानी के सारे राज खोले जाएँ तो वो मुझसे बोलीं;

बड़की अम्मा: तोहार बाप जब तोहरे जितने भी रहे तो बहुत शतानि करत रहे! जब कभी हम खाना बनावट रहे तो ई चुपके से आये की अग्नि बाँध दियत रहे! हम चूल्हा में लकड़ी डाले जाए पर कढ़ैया गरमे न होबे करे! तब जब हम घूम के देखेन तो तोहार बाप खड़े-खड़े खींसे फैलावत रहे!

ये सुन पहले तो मैं खूब हंसा पर ये आग बाँध देने वाली बात मेरे पल्ले नहीं पड़ी तो मैंने पिताजी से सवाल पुछा;

मैं: पिताजी ये आग बाँधना क्या होता है?

पिताजी: बेटा जब मैं बहुत छोटा था तब तेरे दादाजी ने मुझे एक मन्त्र सिखाया था, सात पत्थर ले कर उस मंत्र को चुप-चाप पढ़ कर अगर चूल्हें में या किसी भी आग में डाल दो तो उससे आग बंध जाती है और वो आगे नहीं फैलती!

पिताजी का ये रहस्मयी ज्ञान सुन मैं उन्हीं आँखें फाड़े देखने लगा, मुझे तो यक़ीन ही नहीं हो रहा था की ऐसा हो भी सकता है तो मैंने पिताजी को मेरे सामने प्रयोग करने को कहा| लेकिन पिताजी टाल गए और बोले;

पिताजी: भूल गई टीम-टाम भूल गई चाखारियाँ! तीन चीज याद रह गईं; नोन, तेल, लकड़ियाँ!

मैं: दिखाओ न पिताजी!

मैंने मासूम चेहरा बना कर जिद्द करते हुए कहा तो उन्होंने कहा;

पिताजी: बेटा एक बार मजाक-मजाक में मैंने और कुछ लड़कों ने खेतों में आग लगाई थी और इस मंत्र से खेल रहे थे! तब तेरे दादाजी ने देख लिया और मुझे खूब मारा और कसम दी की मैं ये मंत्र अब कभी इस्तेमाल नहीं करूँगा|

कसम से बंधा होने के कारन पिताजी ये तजुर्बा कर के नहीं दिखा सकते थे पर मुझे तो सीखा सकते थे न?!

मैं: ठीक है, पर मुझे तो सीखा दो ये मंत्र!

तभी वहाँ बड़के दादा आ गए और पूछने लगे की क्या बात हो रही है, तो पिताजी ने उन्हीं सारी बात बताई| सारी बात सुन वो मुस्कुराये और बोले;

बड़के दादा: अरे मुन्ना ऊ दिन अलग रहे! तब तोहार दादा हम दोनों जन का एक-एक ठो मंत्र बताये रहे| हमकर झाड़ा लगाए का सिखाये रहे और तोहार बाप का अग्नि बाँधे का और जानत हो ई इतना आसान काम नाहीं है! ई सब छुटपन में सिखावा जात है और दिवाली आये से दिवाली आये से दस एक दिन पहले साधना कराई जात है तब जा कर ई मंत्र दिया जात है! अब तू हो बड़ा, तो अब ई सब तोहका नाहीं सिखाये सकत! फिर तुम सभें जवान लोग हो, कहाँ ई मंत्र-तंत्र का चक्कर में पडत हो! तोहरे पाँचों भाई में से कउनो नहीं जानत, सब के सब आपन काम मा मस्त हैं!

बड़के दादा की बात सुन मैं समझ गया की ये राज मुझे कभी पता नहीं चलेगा!

मैं: तो दादा आप झाड़ा लगाते हो?!

(झाड़ा लगाना मतलब कुछ मंत्रों को मन ही मन दोहराना और फिर बीमार इंसान के ऊपर एक लम्बी फूँक मारना|)

बड़की अम्मा: नाहीं मुन्ना, झाड़ा लगाए से तोहार बड़के दादा का सर पर ऊ सब चढ़ी जावत रहा, एहि से हम झाड़ा लगाए का मना कर दिहिन!

मेरे लिए ये सब सुनने में बड़ा अजीब था पर मैं कुछ कह कर किसी का दिल नहीं दुखाना चाहता था, इसलिए मैंने चुपचाप बात मान ली और फिर कोई सवाल नहीं पुछा|

खैर भौजी उठीं और रसोई में खाना बनाने की तैयारी करने लगीं, सब लोग उठ कर कुएँ के पास वाले आँगन में बैठ गए और अपनी-अपनी बातों में लग गए| इधर मेरा भौजी से हँसी-मजाक करना बदस्तूर जारी रहा, कभी-कभी उन्हीं जलाने के लिए मैंने नेहा के गाल पुच-पुच की आवाज निकाल कर चूमता जिससे नेहा को गुदगुदी होती और वो हँसने लगती| वहीं भौजी मुझे प्यारभरे गुस्से से घूरतीं और मन ही मन कहतीं की मैं उन्हें तड़पा कर अच्छा नहीं कर रहा! भौजी को खाने के लिए मसाला पीसना था तो वो उठीं और मुझे झीभ चिढ़ाते हुए टमाटर, अदरक, लस्सान ले कर अपने घर चली गईं| दरअसल सिल-बट्टा भौजी वाले घर में रखा हुआ था, उनके जाते ही मैं चुप-चाप उनके पीछे-पीछे चल दिया| भौजी आँगन में दरवाजे की ओर पीठ कर के मसाला पीस रहीं थीं और मैं दरवाजे से सर लगाए उन्हीं मसाला पीसते हुए देख रहा था| जैसे ही वो मसाला पीस कर उठीं मैं उन्हें छेड़ने के लिए भीतर घुसा| मैंने पीछे से भौजी की कमर को अपने दोनों हाथों से पकड़ा और झटके से पीछे खींचा, जिससे भौजी आ कर मेरी छाती से लगीं! भौजी का दायाँ हाथ मसाले से सना था और बाएँ हाथ में मसाले वाली कटोरी थी, इसलिए वो मुझे चाह कर भी नहीं छू सकती थीं!

भौजी: क्या बात है जानू, आज बड़ा प्यार आ रहा है मुझ पर?!

भौजी मुस्कुराते हुए बोलीं|

मैं: पता नहीं जान पर आज आपको एक पल के लिए भी अकेला छोड़ने का मन नहीं कर रहा!

मैंने भौजी के बालों को सूँघते हुए कहा|

भौजी: इतने भी बेसब्र ना बनो!

भौजी अपनी गर्दन लहराते हुए बोलीं|

मेरे दोनों हाथ अब भौजी की नाभि से होते हुए उनके स्तनों की तरफ बढ़ने लगे, तभी भौजी कसमसा कर बोलीं;

भौजी: जानू.....छोड़ दो ना.....स्स्स्स्स्स्स्स्स्स्स्स!

उनके कहते ही मैंने एकदम से अपने हाथ पीछे खींच लिए लेकिन भौजी अब भी अपनी पीठ मेरी छाती से भिड़ाये खड़ी रहीं| करीब दो सेकंड बाद भौजी को एहसास हुआ की मेरे हाथ अब उनके बदन पर नहीं हैं, तो वो शिकायती लहजे में बोलीं;

भौजी: ओफ्फो जानू! आपने तो सच में छोड़ दिया!

मैं: यार आपने ही तो कहा था!

मैंने मुस्कुरा कर कहा|

भौजी: आप न....थोड़े भी रोमांटिक नहीं हो!

भौजी ने गुस्से में शिकायत की और पलट कर जाने लगीं, अब वो क्या जाने मैं तो उनसे छेड़खानी कर रहा था| मैंने एकदम से उनकी कलाई थाम ली और झटका देकर उन्हें खुद से चिपका लिया तथा अपने दोनों हाथों को उनकी पीठ पर कस लिया! भौजी मेरे सीने से आ लगीं और अपना मुँह मेरी छाती में छुपाते हुए बोलीं;

भौजी: छोडो न...!!

उनकी आवाज कुछ कह रही थी और उनका दिल कुछ और कह रहा था!

मैं: सच में?

मैंने भौजी के कान में खुसफुसाती हुए पुछा|

भौजी: नहीं....!

भौजी लजाते हुए बोलीं और मेरे सीने में अपना चेहरा छुपा लिया| हम कुछ देर खामोश ऐसे ही गले लगे हुए थे की तभी अचानक नेहा आ गए और उसके आते ही हम दोनों छिटक के अलग हो गए|

नेहा: पापा आप क्या कर रहे हो?

नेहा ने उत्सुकतावश सवाल किया, उसका सवाल सुन भौजी धीमे से बुदबुदाई;

भौजी: आ गई पापा की लाड़ली!

मैं: कुछ नहीं बेटा, आपकी मम्मी को ठण्ड लग रही थी तो मैं उन्हें गर्मी दे रहा था|

मैंने भौजी की ओर देखते हुए बात बनाई|

नेहा: Oooooo!

मेरी प्यारी गुड़िया कुछ-कुछ तो समझने लगी थी तभी उसने ओ कुछ ज्यादा लम्बा खींचा! मैंने नेहा को गोद में लिया तो भौजी मेरे पास आईं ओर नेहा से बेधड़क हो कर बोलीं;

भौजी: नेहा देख तू तो हमेशा अपने पापा की गोदी में चढ़ी रहती है, इतनी पप्पियाँ लेती और देती है! मेरा भी मन करता है की मैं भी तेरे पापा की पप्पी लूँ, मुझे भी तेरी तरह प्यार मिले तो बेटा थोड़ा टाइम हम दोनों को भी दिया कर!

नेहा किसी भोले बच्चे की तरह उनकी बात सुनती रही और बड़े तपाक से बोली;

नेहा: तो मम्मी जी मैंने कब मना किया?

ये सुन भौजी झेंप गई और मुस्कुराते हुए बाहर चली गईं| उनके जाने के बाद मैंने बात संभालते हुए कहा;

मैं: बेटा आपकी मम्मी का मतलब था जब हम दोनों अकेल हों न.... तब थोड़ा देर से आया करो!

मुझ में हिम्मत नहीं थी की मैं नेहा को कहूं की जब हम दोनों अकेले हों तो हमारे पास मत आया करो, क्योंकि उससे नेहा मेरे प्रति उखड जाती, इसलिए मैंने बात बनाते हुए कहा| शुक्र है की नेहा ने मेरी बात का बुरा नहीं माना और मुस्कुराने लगी, मैं उसे गोद में लिए हुए छप्पर के नीचे आ गया और हम दोनों तख़्त पर बैठे खेलने लगे| खाना बना और दोनों बाप-बेटी आज बड़े प्यार से एक दूसरे को खिलाने लगे, ये प्यार देख बड़की अम्मा के चेहरे पर अलग ही मुस्कान थी| वो जानती थीं की अगर वो इस बारे में कुछ बोलीं तो पिताजी जाने की बात छेड़ देंगी इसलिए उन्होंने सब का मन दूसरी बातों में लगाए रखा| खाना खा कर मैं और नेहा साथ-साथ आँगन में टहलने लगे, इतने में भौजी सबकी नजर बचा कर मेरे पास आईं और बोलीं;

भौजी: अपना वादा याद है न?

उनकी बात सुन मैंने एकदम से अनजान बनने का दिखावा किया;

मैं: कौन सा वादा?

ये सुन भौजी ने अपनी कमर पर दोनों हाथ रख लिए और गुस्से में मुझे देखते हुए बोलीं;

भौजी: आज पहले मुझे सुलाओगे|

मैं: ओह ... हाँ! ऐसा करो खाना खा कर अपने घर में एक चारपाई और बिछाना|

ये सुन कर भौजी ने भोयें सिकोड़ आकर पुछा;

भौजी: किस लिए?

मैं: यार अब जब तक मेरी लाड़ली नेहा नहीं सोती तब तक आप को कैसे सुलाऊँ? और अगर उसे पहले सुलाऊँ तो फिर आपके पास कैसे आऊँ?

मैंने भौजी को नेहा का मेरे बिना सोना और डरने का उल्हना देते हुए कहा|

भौजी: चाहे कुछ भी करो, पर अगर आपने मुझे नहीं सुलाया तो....तो मैं सारी रात जागूँगी|

भौजी कहने वाली तो थीं की मुझसे बात नहीं करेंगी पर वो जानती थीं की उनकी इस खोखली धमकी से मैं नहीं डरूँगा, इसलिए उन्होंने न सोने की बात कही| उनके न सोने का असर उनकी तबियत पर पड़ता और उनका बीमार होना मुझे कतई गंवारा नहीं था!

मैं: Don't worry यार मैं आप दोनों को सुला दूँगा|

मैंने मुस्कुराते हुए कहा| भौजी खुशी-ख़ुशी खाना खाने चली गईं, नेहा जो अभी तक हमारी सारी बात सुन रही थी मैं उसके सवाल का इंतजार करने लगा|

नेहा: पापा जी मम्मी को भी रात में सोने के समय डर लगता है?

मैंने नेहा को गोद में उठाया और उसे ले कर टहलने लगा और बोला;

मैं: नहीं बेटा, वो क्या है की दिन में तो मैं और आपकी मम्मी बात नहीं कर पाते क्योंकि कोई न कोई होता है, तो रात में हम दोनों को आराम से बात करने का मौका मिल जाता है|

हमेशा की तरह नेहा ने मेरी बात का विश्वास कर लिया और मेरे दाएँ गाल पर एक प्यारी से पप्पी दी| नेहा सोना चाहती थी पर मैं उसे जानबूझ कर बातों में लगाए हुआ था और उसे गोद में ले कर पूरे घर में टहल रहा था| नेहा को बातों में लगाए रखने का कारन सबको ये दिखाना था की नेहा सो नहीं रही है, उसे सुला कर लिटाने के बहाने मैं भौजी के घर में घुसता और उन्हें आराम से सुलाता| इधर भौजी ने फटाफट खाना खाया और हाथ धोने नल पर पहुँची| मुझे नेहा के गाल चूमते देख उन्हें फिर मीठी से जलन हुई और वो मुझे जीभ चिढ़ा कर वापस छप्पर के नीचे पहुँची| दरअसल वो मुझे ये दिखाने आईं थीं की उन्होंने खाना खा लिया है और मैं अब उन्हीं जल्दी से सुलाने आ जाऊँ! लेकिन मेरा और नेहा का प्यार देख उन्हीं जो मीठी जलन हुई थी उसका गुस्सा उन्होंने रसिका भाभी पर उतारा;

भौजी: खाये के रसोई समेट दिहो!

भौजी उखड़ी हुई आवाज में बोलीं और सीधा अपने घर में घुस गईं| लेकिन मैं अभी नेहा को ले कर उनके घर में नहीं घुस सकता था, क्योंकि घर के सभी सदस्य अभी जगे हुए थे! इसलिए मैंने अपनी प्यारी बेटी को लाड करना शुरू कर दिया, कभी उसके गालों की पप्पी लेता तो कभी मुँह से 'पुरररर' की आवाजें निकाल कर उसको हँसाता| इसी तरह नेहा के साथ खेलते-खेलते नौ बज गए, घर की सभी स्त्रियां खाना खा कर अपने-अपने बिस्तर में घुस चुकीं थीं| सिर्फ एक अकेला मैं था जो अब भी नेहा को गोदी में लिए हुए टहल रहा था, पिताजी ने जब मुझे नेहा का दुलार करते हुए देखा तो वो बोले;

पिताजी: अब सो भी जाओ लाड साहब!

पिताजी मुस्कुराते हुए बोले|

मैं: ये लड़की सोने दे तब न! तीन कहानियाँ सुना चूका हूँ पर सोने का नाम ही नहीं लेती|

मैंने नेहा का बहाना बना दिया, अब नेहा इससे पहले अपनी सफाई देती मैंने उसके होठों पर ऊँगली रख कर उसे चुप रहने को कहा|

पिताजी: ठीक है, पर बेटा जल्दी सो जाना!

पिताजी प्यार से बोले|

मैं: जी अभी थोड़ी देर में नेहा को सुला आकर इसे अंदर लिटा कर सो जाऊँगा!

मैंने प्यार से जवाब दिया ओर नेहा को ले कर नल के पास आ गया| मैंने नेहा के साथ थोड़ी और मस्ती की, उसे गुदगुदी की और अंत में उसे एक कहानी सुनाई, इस सब में रात के साढ़े 10 बज गए| मैंने एक नजर सबको दूर से देखा तो सबके खरांटें मुझे सुनाई दिए, नेहा भी आप मेरे कंधे पर सर रख कर सो चुकी थी| मैं नेहा को लेकर दबे पाँव भौजी के घर में घुसा और उसे भौजी की बगल वाली चारपाई पर लिटा दिया| मुझे देखते ही भौजी गुस्से में बोली;

भौजी: आ गए आप?

उनका गुस्सा देख मैं मुस्कुराया और अपने दोनों कान पकडे|

भौजी: लोग कहते हैं की एक बच्चा होने के बाद पत्नी का प्यार बँट जाता है, पर यहाँ तो सब उलटा है! मुझसे ज्यादा तो आप नेहा से प्यार करते हो!

मैं मुस्कुराते हुए भौजी की बगल में पाँव ऊपर कर के बैठ गया, मेरा सर पीछे दिवार से लगा हुआ था और भौजी ने अपना सर मेरे दाएँ कंधे पर टिका दिया था|

मैं: जान, आप जानते हो न की मैं आपसे ज्यादा प्यार करता हूँ और आपसे थोड़ा कम नेहा से!

उस वक़्त मैं इतना परिपक्व नहीं था की अपने प्रेम को दो लोगों में बराबर बाँट सकूँ, इसलिए मैंने ऐसा कहा|

भौजी: जानती हूँ जानू! मैं तो आपको छेड़ रही थी|

भौजी मुस्कुराते हुए बोलीं| अब छेड़खानी खत्म हो चुकी थी तो मैं सीधा मुद्दे पर आया;

मैं: अच्छा तो बताओ की आपको कैसे सुलाऊँ?

ये सुन भौजी हैरान हुईं और बोलीं;

भौजी: क्या मतलब कैसे सुलाऊँ? मैं कोई छोटी बच्ची हूँ जो आप मुझे दूधधु पिला कर सुलाओगे!

ये सुन मैं हँस पड़ा और बोलै;

मैं: तो मुझे यहाँ क्या दही मथने को बुलाया है?!

ये सुन भौजी हँस पड़ीं और बोलीं;

भौजी: ये बताओ की मेरी लोलीपोप कहाँ है?

मैं: ओह! वो तो बड़े घर में रखी हुई है|

मैंने भौजी को सताते हुए कहा|

भौजी: हुँह! जाओ मैं आपसे बात नहीं करती!

भौजी नाराज हो कर बैठ गईं| तब मैंने अपने पाजामे में हाथ डाला और दोनों लोलीपोप निकाल उन्हें दिखाई|

भौजी: जानू....आप ना.... मुझे तंग करने से बाज नहीं आते!

भौजी मुस्कुराते हुए बोलीं|

भौजी: पर दो क्यों लाये? नेहा ने भी मुझे 3 लोलीपोप दी थीं और आप भी दो ले आये?

मैं: एक आप के लिए और एक मेरे लिए!

मैंने तपाक से जवाब दिया|

ये सुन भौजी शिकायती लहजे में बोलीं;

भौजी: क्यों? मेरा जूठा खाने में आपको शर्म आती है?

भौजी ने मुँह बनाते हुए कहा|

मैं: नहीं यार सारी रात दोनों एक ही लोलीपोप कैसे खाएंगे? पहले हम स्ट्रॉबेरी खाएंगे, फिर मैंगो, फिर ऑरेंज और अंत में फिर स्ट्रॉबेरी|

भौजी: सब आज ही खाओगे?! कुछ आगे आने वाले दिन के लिए भी बचाओ! चार लॉलीपॉप मतलब चार दिन!

भौजी बड़े मादक ढंग से बोलीं, पर उनकी बात सुन कर मैं सन्न रह गया! भौजी को अपने जाने की बात बताने का डर दिमाग पर हावी होने लगा और मैं एकदम से खामोश हो गया|

भौजी: क्या हुआ? क्या सोच रहे हो?

भौजी ने गंभीर होते हुए पुछा, मुझ में जरा भी हिम्मत नहीं थी की मैं इस वक़्त उन्हें मेरे वापस जाने की बात बता सकूँ इसलिए मैंने बात बनाई;

मैं: सोच रहा हूँ की आप बात ही करोगे या लोलीपोप खोलोगे भी!

मैंने नकली मुस्कराहट ओढ़ कर कहा| भौजी मेरी बातों में आ गईं और जल्दी से तीन लोलीपोप अपने तकिये के नीचे रख स्ट्रॉबेरी वाली लोलीपोप खोली| उन्होंने फटेक से उसे अपने मुँह में भर लिया और मेरी ओर देख के हँसने लगीं, कुछ तो बात थी उनकी हँसी में जिसे देख मेरा डर शांत होने लगा!

इधर भौजी ने दस सेकंड तक उस लॉलीपॉप को चूसा और फिर मेरी ओर बढ़ा दिया! जब मैंने उस लोलीपोप को चूसा तो मुझे उसमें से भौजी के मुख की सुगंध और स्ट्रॉबेरी का स्वाद दोनों आ रहे थे! भौजी मेरी ओर मुस्कुरा कर देख रहीं थीं, उन्होंने एकदम से मेरे मुँह से लॉलीपॉप खींच ली और हँसते हुए बोलीं;

भौजी: मुझे भी तो taste करने दो?

भौजी मुस्कुराते हुए उठीं और दरवाजा बंद कर के आईं, और सीधा आ कर मेरे लिंग पर बैठ गईं| वो मुस्कान ऐसी थी जो हरपल मादक होती जा रही थी, इतनी मादक की मैं सब कुछ भूलता जा रहा था! मेरी सारी चिंताएँ उस मुस्कान के आगे हार चुकी थीं, मन में बस तरंगें उठ रहीं थीं जो दिल को सुकून दे रहीं थीं! ये प्यार...ये लोभ...मुझे मौजों की लहरों के साथ बहा कर भौजी के पास ले जा रही थीं और मैं बुद्धू उनमें बहता हुआ जा रहा था! पर अंतरात्मा को अब भी डर लग रहा था या फिर ये कहूँ की वो मुझे भौजी की तरफ बहने से रोक रही थी और सच बोलने के लिए उकसा रही थी| लेकिन दिमाग ससुरा इस सच से भागना चाहता था और कल सब सच बोलने का बहाना दे रहा था!

मैं: सोना नहीं है?

मैंने कुछ गंभीर होते हुए कहा| ये गंभीर होना मेरे अंतर्मन का संकेत था, लेकिन मेरी ही तरह भौजी भी उन मौजों की लहरों में बह चकी थीं इसी कारन वो मेरे अंतर्मन के संकेत को पकड़ न पाईं और बड़े मादक ढंग से मेरी ओर देखते हुए बोलीं;

भौजी: पहले अपनी रेड लिपस्टिक के निशान तो मिटा दूँ, वरना कल नहाते हुए अगर किसी ने देख लिया तो क्या सोचेगा?!

ये कह कर भौजी लजाने लगीं|

मैं: मैं तो साफ़ कह दूँगा की आपने बनाये हैं!

मैंने भौजी को छेड़ते हुए कहा|

भौजी: ठीक है, बोल देना!

भौजी एकदम से बोलीं, ये सुन मैं हँस पड़ा और बोला;

मैं: आप न बहुत शरारती हो!

भौजी ने मुझे मेरी टी-शर्ट उतारने को कहा, मैंने फ़ौरन अपनी टी-शर्ट उतारी और उन्हें दे दी| भौजी ने मेरी टी-शर्ट नेहा वाली चारपाई पर फेंक दी और लोलीपोप मेरे मुँह में डाल दी! इधर मैं मजे से लॉलीपॉप चूसने लगा और उधर भौजी ने मेरे दोनों निप्पलों को चूसना शुरू कर दिया| अगले 5 मिनट तक भौजी ने मेरे दोनों निप्पलों को खूब जोर से चूसा, उनकी उत्तेजना इतनी तेज थी की वो बीच-बीच में मेरे निप्पलों को काट भी लेतीं! चूँकि मेरे मुँह में लॉलीपॉप थी इसलिए मैं उस मादक दर्द के कारन कराह भी नहीं पा रहा था, बस कभी-कभार सिसकी निकल जाती जिसे सुन भौजी की उत्तेजना और भी अधिक बढ़ जाती!

जब भौजी का दिल मेरे निप्पलों से भर गया तो वो नीचे की ओर खिसक गईं और मेरी नाभि में अपनी जीभ घुसेड़ दी! उनके इस अचानक हमले के कारन मुझे तेज गुदगुदी हुई और मैं उठ बैठा! मेरे अचानक से उठने के कारन भौजी का बैलेंस डगमगाया और वो गिरने लगीं, लेकिन मैंने फुर्ती दिखाते हुए उन्हें संभाल लिया!

मैं: जान क्या कर रही हो, गुद-गुदी हो रही है!

मैंने हँसते हुए कहा|

भौजी: अच्छा जी! तो मेरे जानू को यहाँ गुद-गुदी होती है!

भौजी मुस्कुराते हुए बोलीं जैसे की उन्होंने मेरी कोई कमजोरी पकड़ ली हो! भौजी ने जोश में आकर मेरे सीने को जोर लगा के पीछे की ओर धकेला, मैं वापस तकिये सर रख के लेट गया| भौजी चारपाई से नीचे उतरीं और मेरा पजामा तथा कच्छा निकाल कर नेहा वाली चारपाई पर फेंक दिया! इधर मैं लोलीपोप चूसने में बीजी था, उधर भौजी चारपाई पर चढ़ गईं और मेरी पिंडलियों पर बैठ मेरे लिंग को मुँह में भर लॉलीपॉप की तरह चूसने लगीं! परन्तु आज उनका संभोग पूर्व क्रीड़ा (foreplay) करने का मन नहीं था, वो चारपाई पर खड़ी हो गईं और अपनी साडी तथा पेटीकोट को निकाल फेंका और अपनी योनि को धीरे-धीरे मेरे लिंग के ऊपर लाई! कुछ सेकण्ड्स के लिए उन्होंने अपने योनि कपालों को मेरे लिंग के सुपाडे संग घिसा और फिर धीरे-धीरे मेरे लिंग पर बैठने लगीं जिससे मेरा लिंग फिसलता हुआ उनकी योनि में समाने लगा! पूरा लिंग अंदर जाते ही भौजी ने अपनी गर्दन पीछे की ओर तान दी और दो मिनट कर मेरे लिंग को अपनी योनि में सेट करने लगीं! दो मिनट बाद जब उनकी योनि ने अंदर से कुछ रस छोड़ा तब जाके भौजी समान्य हुईं| अब वो मेरे ऊपर झुकीं और मेरे मुँह से लोलीपोप निकाल अपने मुँह में रख कर चूसने लगीं! भौजी के जिस्म में खुमारी चढ़ने लगी थी, उन्होंने लॉलीपॉप की टॉफी को दांतों से काट के चबाना शुरू किया और स्ट्रॉ के टुकड़े को दूर फेंक दिया| उनके दोनों हाथ फ्री थे, तो उन्होंने दोनों हाथ मेरी छाती पर रखे और अपनी कमर को धीरे-धीरे ऊपर-नीचे करना शुरू किया! भौजी की दोनों आँखें इस समागम के मधुर एहसास से बंद हो चुकीं थीं और नीचे उनकी योनि मेरे लिंग को अपनी गिरफ्त में जकड लिया था तथा वो अब किसी भी हालत में मेरे लिंग को छोड़ने वाली नहीं थी! वहीं मेरी हालत तो आज कुछ ज्यादा ही विकट थी, जब से मैं आया था हमने बहुत तरीके से सम्भोग किया था पर आज भौजी के सर पर जो खुमारी थी, जो जूनून था उसे देख मेरा खुद पर से काबू छूटने लगा था! आमतौर पर हम दोनों सम्भोग के दौरान खामोश रहते थे पर आज बोलने का मन कर रहा था;

मैं: स्स्स्स्स्स्स....अब मैं समझा...मम्म... मेरे 'उसपर' (लिंग) पर बने निशान आप अपनी 'इससे' (योनि) से पोंछना चाहते थे!

ये सुन भौजी के चेह्ररे पर गर्वपूर्ण मुस्कान आ गई और वो सीसियाते हुए बोलीं;

भौजी: स्स्स्स्स.....म्म्म्म्म्म्म हाँजी!

चूँकि हम दोनों भौजी के लॉलीपॉप वाले सरप्राइज के समय से ही उत्तेजित थे इसलिए इस सम्भोग को ज्यादा लम्बा नहीं खींच पा रहे थे! मैंने भौजी को अपने ऊपर खींचा और नीचे से ताबड़तोड़ धक्के लगाए, मेरे तीव्र धक्कों के कारन भौजी कुछ ही मिनटों में चरम पर पहुँच गईं थीं! वहीं मैं अभी अपने चरम से कुछ पल दूर था! भौजी जानती थीं की वो मेरा साथ ज्यादा नहीं दे पाएंगी, इसलिए उन्होंने मेरे मुख में अपनी जीभ प्रवेश करा दी! उनकी लपलपाती जीभ मेरे मुख की गहराई नापने लगी और मैं एकदम से अपने चरम पर पहुँच गया, एक जबर्दस्त लहर के साथ हम दोनों साथ-साथ स्खलित हुए! भौजी पस्त हो कर मेरे ऊपर ही पड़ीं रहीं, उधर मेरा हाल ये था की मैं सुबह से तीसरी बार स्खलित हुआ था और कुछ-कुछ थकावट महसूस करने लगा था, लेकिन मन ससुरा अब भी प्यासा था!

दस मिनट बाद जब दोनों की सांसें सामान्य हुईं तो मैंने भौजी के समक्ष अपनी एक ख्वाइश प्रस्तुत की;

मैं: जान! दूध पीने का मन कर रहा है!

मैंने मुस्कुराते हुए कहा|

भौजी: मैं अभी बना के लाती हूँ|

ये कह कर भौजी उठने को हुईं तो मैंने उनका हाथ पकड़ कर उन्हें रोक लिया और उनके स्तन की ओर इशारा करते हुए बोला;

मैं: मुझे वो दूध नहीं पीना! ये वाला पीना है|

भौजी: पर मुझे अब दूध नहीं आता, बच्चा होगा तब आएगा तब पी लेना|

भौजी ने बड़े भोलेपन से मुस्कुराते हुए कहा|

मैं: Let me try once!

मैंने भी उसी भोलेपन से कोशिश करने की गुजारिश की तो भौजी हँस पड़ीं और बोलीं;

भौजी: तो कर लीजिये!

हम दोनों ने आसान बदला, अब भौजी पीठ के बल लेटीं थीं और मैं उनके ऊपर लेट गया| भौजी ने अभी तक अपना ब्लाउज पहन रखा था, तो जैसे ही उन्होंने अपने स्तन ब्लाउज आजाद किये मेरी नजर उनके मखमली स्तनों से चिपक गई!

भौजी: क्या देख रहे हो?

भौजी लजाते हुए बोलीं|

मैं: कुछ नहीं!

मैंने मुस्कुरा कर कहा, लेकिन तभी दिमाग में ख्याल आया की, कल जब मैंने इन्हें अपने जाने की बात बताऊँगा तो इनका क्या हाल होगा?! मेरे दो पल खामोश रहने से भौजी को चुभन महसूस हुई और उन्होंने अपने दोनों हाथों से मेरा चेहरा थाम कर पुछा;

भौजी: क्या सोच रहे हो?

उनकी आवाज में कुछ गंभीरता थी, मैंने उनके सवाल का जवाब देने को झुक कर उनके होठों को चूम लिया| मेरे चुंबन से भौजी का ध्यान हमारे प्रेम की ओर भंग हो गया और मैंने उनका ध्यान वहीं लगाने को उनके स्तनों को एक एक कर चूसना शुरू कर दिया| भौजी के स्तनों में दूध तो था नहीं, पर एक भीनी सी मधुर सुगंध अवश्य आ रही थी, उस मनमोहक सुगंध के कारन मैं उनके स्तनों को बेतहाशा चूस रहा था| मेरे उनके स्तन चूसने से भौजी के मुख से आनंददायी सीत्कार फूटने लगी; "सससस...सससस....!" मैं उस वक़्त भौजी के बाएँ स्तन को चूस रहा था और अपने बाएँ हाथ से उनके दाएँ स्तन को मसल रहा था| उधर भौजी ने अपने दोनों हाथों से मेरा सर अपने स्तनों पर दबाये सीसिया रहीं थीं; "सससस...आह...ह्ह्हम्म्म्म....!!!" भौजी के स्तनों को चूसने का कार्य 20 मिनट तक चला और इस दौरान मैंने भौजी के चुहुकों को एक भी बार कटा नहीं, बस उन्हें चूसता ही रहा| जब मैंने उनके स्तन चूसना छोड़े तो वो दोनों लाल हो चुके थे और भौजी के चेहरे पर एक भीनी सी मुस्कान थी;

भौजी: स्स्स्स्स...निकल आय दूध?

मैं: नहीं जान, पर टेस्ट बहुत अच्छा था! चलो अब आप सो जाओ!

मैंने मुस्कुराते हुए कहा|

भौजी: Good Night!

मैं: Good Night!

दोनों ने मुस्कुराते हुए एक दूसरे को good night कहा, मैंने एक आखरी बार भौजी के होठों को चूमा और चुप-चाप बाहर आके अपने बिस्तर पर लेट गया|
 

[color=rgb(243,]उन्नीसवाँ अध्याय: बिछड़न![/color]
[color=rgb(184,]भाग - 1 [/color]


[color=rgb(65,]अब तक आपने पढ़ा....[/color]

जब मैंने उनके स्तन चूसना छोड़े तो वो दोनों लाल हो चुके थे और भौजी के चेहरे पर एक भीनी सी मुस्कान थी;
भौजी: स्स्स्स्स...निकल आय दूध?
मैं: नहीं जान, पर टेस्ट बहुत अच्छा था! चलो अब आप सो जाओ!
मैंने मुस्कुराते हुए कहा|
भौजी: Good Night!
मैं: Good Night!
दोनों ने मुस्कुराते हुए एक दूसरे को good night कहा, मैंने एक आखरी बार भौजी के होठों को चूमा और चुप-चाप बाहर आके अपने बिस्तर पर लेट गया|

[color=rgb(44,]अब आगे...[/color]

भौजी के घर से जल्दी निकल आने का कारन था की मुझसे अब ये बात और छुपाई नहीं जा रही थी! दिल में सुई से चुभ रही थी और अगर ज्यादा देर रुकता तो मैं ये सच उगल देता! बाहर आ कर मैं अपने बिस्तर पर चुप-चाप लेटा हुआ था, पर नींद नहीं आ रही थी| बार-बार वही बात दिमाग में गूँज रही थी की कल कैसे मैं उन्हें (भौजी को) अपने वापस जाने की बात बताऊँगा?! आँखें खोले मैं आसमान में तारे देखते हुए मैं अपने सवाल का जवाब ढूँढ रहा था, पर कोई जवाब नहीं मिल रहा था| यहाँ तक की शब्दों का कैसे चयन करना है वो भी नहीं सूझ रहा था, इसी कश्मकश में रात के बारह बज गए थे और मैं अब भी आँखें खोले आसमान को ताके जा रहा था| तभी वहाँ भौजी आ गईं और उनकी गोद में मेरी लाड़ली नेहा थी, भौजी ने मुझे आँखें खोले आसमान को देखते हुए देख लिया था| वो धीरे से मेरे सिरहाने बैठ गईं और खुसफुसाते हुए बोलीं;

भौजी: जानू! सोये नहीं अभी तक?

उनकी आवाज में सवाल और चिंता दोनों झलक रहे थे, इधर उनकी खुसफुसाहट सुन कर मैं चौंक कर बैठ गया और फिर से उनसे झूठ बोला;

मैं: वो मेरी लाड़ली नेहा नहीं है न, इसलिए नींद नहीं आ रही थी!

तभी मेरी नजर नेहा पर पड़ी जिसकी आँखों में आँसूँ थे;

मैं: अरे क्या हुआ मेरी गुड़िया को?

मैंने नेहा के गाल को सहलाते हुए पुछा|

भौजी: फिर से डर गई थी!!!

भौजी ने नेहा को मेरे पास आने का इशारा किया तो नेहा ने अपने दोनों हाथ खोल दिए| मैंने कस कर नेहा को अपने गले लगा लिया और उसे पुचकारते हुए बोला;

मैं: Awwww मेरी बेटी! क्या हुआ? फिर से बुरा सपना देखा?

नेहा ने हाँ में सर हिलाया|

मैं: पापा आप को एक प्याली-प्याली कहानी सुनाएंगे और फिर आपको डर नहीं लगेगा|

मैंने नेहा की पीठ थपथपाई और उसे ले कर मैं बिस्तर पर लेट गया|

भौजी: Good Night जानू! और बेटा पापा को तंग मत करना|

भौजी ने नेहा के माथे को चूमते हुए कहा|

मैं: मेरी बेटी मुझे तंग थोड़े ही करती है, आप जाओ और सो जाओ!

मैंने नेहा का पक्ष लिया, ये देख भौजी के चेहरे पर मुस्कान आ गई और वो चुप-चाप अंदर चली गईं| मैंने नेहा को एक प्यार सी कहानी सुनाई तो वो सुनते हुए मुझसे लिपट कर सो गई! अभी तक मैं सिर्फ भौजी को ले कर परेशान था, की वो कैसे मेरी जाने की बात पर रियेक्ट करेंगी पर मेरी प्यारी बेटी के बारे में तो मैं सोच ही नहीं रहा था| दिमाग कहता था की नेहा बच्ची है तो समझ जायेगी और शायद मेरे बिना रह भी ले, लेकिन भौजी का मेरे बिना बुरा हाल हो जाएगा! एक अजीब से दर ने मुझे जकड लिया था, ऐसा डर जो मुझे अब खाये जा रहा था! धड़कनें डर के मारे तेज हो गईं थीं और माथे पर पसीना भी आने लगा था| इसी डर के साये में जागते हुए मैंने पूरी रात काटी, मुझ में जरा भी हिम्मत नहीं थी की मैं कल सुबह भौजी से अपने जाने की बात कह सकूँ!

घडी देखि तो सुबह के तेन बजे थे, डर के मारे मेरा बुरा हाल था! मैंने धीरे से उठना चाहा ताकि पानी से अपना मुँह धो सकूँ जिससे डर शायद कम हो पर नेहा मुझसे कस कर लिपटी हुई थी| मैंने नेहा की पकड़ से खुद को छुड़ाया तो नेहा की नींद कच्ची होने लगी, उसके चेहरे पर शिकन की एक रेखा देख कर मैं डर गया और वापस उसे अपनी छाती से चिपका लिया| मेरे ऐसा करते ही नेहा के चेरे पर से वो शिकन की रेखा चली गई, मेरे जरा सा उठने से नेहा के चेहरे पर शिकन आ गई, क्या होगा जब मैं यहाँ नहीं हूँगा?! मैंने नेहा के सर को चूमा और मन ही मन उसे समझाने लगा, ये समझना नेहा के लिए नहीं था बल्कि एक बाप खुद को समझा रहा था! भौजी को बताने के डर के साथ अब अपनी बेटी को समझाने का दोहरा डर मेरे सर पर नाचने लगा था, मैं एक किशोर लड़का था कोई परिपक्व वयस्क नहीं जो इन बातों को आसानी से संभाल लेता?! मैं अपनी इस जिम्मेदारी से भागना नहीं चाहता था, पर मेरा दिमाग इस दबाव को बर्दाश्त नहीं कर रहा था| पर अपनी पत्नी और बेटी से धोका नहीं कर सकता था, वरना मुझ में जिन्दा रहने की हिम्मत नहीं रहती!

खैर इसी कश्मकश से जूझते हुए सुबह के चार बजे, मैंने नेहा के सर को चूमा और खुद को उसकी पकड़ से आराम से छुड़ाया| इस बार उसकी नींद नहीं खुली सो मैं आराम से उठ कर बैठ गया, रात भर से जाग रहा था तो उसका असर चेहरे पर दिखने लगा था| उधर बड़के दादा चार बजे तक उठ जाते थे और आज मुझे इतनी जल्दी उठा देख के वो मुस्कुराते हुए मेरे पास आये| मैंने उठ कर उनके पाँव हाथ लगाये तो वो मेरे सर पर हाथ रखते हुए बोले;

बड़के दादा: जुग-जुग जियो मुन्ना! इतना भोर काहे उठ गयो? एक घंटा और सोये लिहो!

मैं: नहीं दादा, अब लेटा तो फिर देर से उठूँगा, फिर माँ-पिताजी डाटेंगे| मैं नहा धो के तैयार हो जाता हूँ|

मैंने नकली मुस्कान मुस्कुराते हुए सुबह-सुबह झूठ बोला|

बड़के दादा: ठीक है मुन्ना, जाओ नाहा लिहो!

बड़के दादा ने मेरी पीठ थपथपाते हुए कहा|

बड़के दादा: तोहार बाप का तो हम सीधा कर देब!

बड़के दादा ये कह कर हँस पड़े और उनका साथ देने को मैं नकली हँसी हँसने लगा|

अभी तक घर में माँ-पिताजी नहीं उठे थे, बड़की अम्मा उठ गईं थीं और वो खेतों से लौट रहीं थीं की उन्होंने मुझे और बड़के दादा को बात करते हुए देखा तो वो भी हाथ-धो कर आ गईं| मैंने उनके पाँव छुए तो अम्मा ने मेरा चेहरा ठीक से देखा और वो सब समझ गईं, लेकिन बड़के दादा की मौजूदगी में उस बारे में कुछ नहीं बोलीं;

बड़की अम्मा: खुश रहो मुन्ना! इतनी जल्दी काहे उठ गए?

बड़की अम्मा ने मुझे आशीर्वाद देते हुए मेरे सर पर हाथ फेरा|

मैं: जी आज आँख जल्दी खुल गई|

मैंने उनसे भी झूठ बोला, पर बड़की अम्मा सब भलीं-भाँती समझ चुकीं थी| मैं शौच का बहाना ले कर वहाँ से निकला वरना अम्मा जर्रूर पूछतीं, कुछ देर घर से थोड़े दूर यूँहीं टहलने और शौच से निपट कर मैं बड़े घर लौटा| रसिका भाभी आँगन में सो रहीं थीं, मैंने उनकी परवाह किये बिना ही अपने कपडे लिए और स्नानघर में नहाने लगा| पानी गिरने की आवाज से रसिका भाभी जागी और मुझे नहाता हुआ देख कर उनकी 'सुलग' गई! वो कुछ बुदबुदाते हुए अपने कमरे में जा आकर लेट गईं, इधर ठन्डे पानी से नहाने से मुझ में फुर्ती आ गई|

घडी में बजे थे 5 और अब तक घर में सब जाग चुके थे, सिवाय नेहा के क्योंकि उसकी नींद मेरी पप्पी से ही खुलती थी! भौजी जब उठीं तो बाहर मुझे सोता हुआ न देख मुझे ढूँढ़ते हुए बड़े घर आ पहुँची, इधर मैं तैयार हो कर रसोई की तरफ जा ही रहा था की भौजी मुझे दरवाजे पर ही मिल गईं| मुझे नहाया हुआ देख वो खुद को पूछने से रोक नहीं पाईं;

भौजी: आप इतनी जल्दी कैसे उठ गए, रात भर सोये नहीं थे क्या?

भौजी ने भोयें सिकोड़ते हुए चिंता प्रकट की|

मैं: नहीं जान...आँख थोड़ा जल्दी खुल गई|

मैंने भौजी के सवाल से बचना चाहा, पर वो मुझे छोड़ दें ऐसा कैसे हो सकता था;

भौजी: सुबह-सुबह जूठ मत बोलो! नेहा ने सोने नहीं दिया होगा, नींद में उसे होश नहीं रहता! लात मारी होगी इस लिए आप जल्दी उठ गए|

भौजी ने पिनकते हुए कहा|

मैं: ख़बरदार मेरी बेटी के बारे में कुछ कहा तो! आपको मारती होगी लात, मुझे तो वो बस प्यार करती है!

मैंने भौजी को थोड़ा गुस्से से चेताया, इतने में वहाँ माँ-पिताजी आ गए| उन्हें आता देख भौजी ने फ़ट से घूँघट काढ लिया और दोनों के पाँव छुए|

पिताजी: सदा सुहागन रहो बहु!

पिताजी ने भौजी का आशीर्वाद दिया और फिर मुझसे बोले;

पिताजी: अरे मानु की माँ लगता है आज सूरज पश्चिम से निकला है!

पिताजी ने प्यारभरा तंज कैसा|

माँ: हाँ वरना ये लाड-साहब तो 7 बजे के पहले बिस्तर नहीं छोड़ते थे! पर जब से गाँव आयें हैं जल्दी उठने लगे हैं और आज तो हद्द ही हो गई, कितने बजे उठे हो जनाब?

माँ ने प्यार से मेरा कान पकड़ा, अब मैं जवाब देता उससे पहले ही बड़की अम्मा आ गईं और दरवाजे पर से ही चिल्ला कर माँ के सवाल का जवाब देते हुए बोलीं;

बड़की अम्मा: सुबह चार बजे!

ये सुनते ही माँ-पिताजी दंग रह गए!

पिताजी: हैं? क्या बात है लाड-साहब, रात में नींद नहीं आई क्या?

पिताजी ने हँसते हुए पुछा|

मैं: जी वो आँख जल्दी खुल गई|

मैंने नकली मुस्कान के साथ कहा, जिस तरह बड़की अम्मा ने माँ के सवाल का जवाब दिया था मुझे, डर था की कहीं वो भौजी के सामने सब सच न बोल दें इसलिए मैंने बात बदल दी;

मैं: अम्मा...चाय बन गई?

सुबह से बड़की अम्मा मेरा चेहरा अच्छे से पढ़ पा रही थीं, मेरे इस तरह बात बदलने को भले ही कोई न पकड़ पाया हो पर बड़की अम्मा ने साफ़ पकड़ ली थी|

बड़की अम्मा: ओ बड़का तु आपन चाची संगे जाए के तनिक उपला पाथी आओ, तौलिक हम मुन्ना संगे चाय बनैत है|

बड़की अम्मा की बात सुन कर पिताजी बोले;

पिताजी: ई भेद-भाव काहे? चाय का सिर्फ मानु खातिर बनी?!

ये सुन कर सब हँस पड़े और मैं फिर अपनी नकली हँसी हँसने लगा|

बड़की अम्मा: हमार मुन्ना आज जल्दी उठिस है और तू सुन लिहो कान खोल कर, आज के बाद जो तू हमार मुन्ना का तनिको डांटयो तो तोहार खाट खड़ी कर देब!

बड़की अम्मा ने मुझे अपने गले लगाते हुए पिताजी को चेताया|

बड़की अम्मा: अब जाए के आपन भैया संगे जाके दतुइन तोड़ लाओ, नाहीं तो चाय न देब!

बड़की अम्मा ने सबको बड़ी चतुराई से काम पकड़ा दिए और मुझे ले कर रसोई आ गईं, हाथ-पैर धो कर वो चाय बनाने बैठ गईं|

बड़की अम्मा: मुन्ना हमरे लगे बैठो तनिक|

मैं रसोई के बहार अम्मा के पास बैठ गया|

बड़की अम्मा: सच-सच कहो, काहे तू रात भर नहीं सोयो?!

मैं: जी...मैं तो...

मैं आगे झूठ बोलता उससे पहले ही अम्मा बोल पड़ीं;

बड़की अम्मा: देखो मुन्ना हम तोहार बड़की अम्मा हन, तोहार माँ से भी बड़ी तो हम सेझूठ न बोल्यो!

बड़की अम्मा की बात सुन कर मुझ में हिम्मत नहीं हुई की मैं उसने झूठ बोल सकूँ| मैंने सर झुका कर उन्हें सच बताना ही ठीक समझा;

मैं: रात भर सोच रहा था की उन्हें कैसे बताऊँगा की हम रविवार को जा रहे हैं?!

ये कहते हुए मेरी आँखें नम हो गईं, इतने में मैंने छप्पर के नीचे किसी का साया देखा| मुझे डर लगा की कहीं भौजी तो नहीं इसलिए मैं छप्पर के नीचे पहुँचा तो देखा वहाँ कोई नहीं है, इस मौके का फायदा उठा कर मैंने अपनी आँखें पोंछीं और वापस अम्मा के पास आया|

बड़की अम्मा: का हुआ मुन्ना? हुआ का देखत रहेओ?

बड़की अम्मा ने चाय में चीनी डालते हुए पुछा|

मैं: मुझे लगा कोई है....

लेकिन अम्मा की दिलचस्पी मेरी रात में न सो पाने की बात में थी;

बड़की अम्मा: मुन्ना तो काहे चिंता कर्त है, तू कुछ न कहो आपन भौजी से हम ही बताई देब!

मैं: नहीं अम्मा! वो माँ बनने वालीं हैं और आप ऐसे में ये बात अगर आप कहोगे तो उनका दिल टूट जाएगा! मैं ही उन्हें प्यार से समझा दूँगा.....

मेरी बात पूरी हो पाती उससे पहले ही भौजी वहाँ आ गईं और मैंने अम्मा को इशारे से बात ख़त्म करने को कहा| मैं भौजी से नजर चुराते हुए उठ कर जाने लगा तो उन्होंने अम्मा के सामने ही मेरा हाथ पकड़ लिया और मेरी आँखों में देखते हुए बोलीं;

भौजी: कहाँ जा रहे हो आप?

मैंने भौजी को इशारे से याद दिलाया की यहाँ बड़की अम्मा भी मौजूद हैं, पर उन्हें कोई फर्क ही नहीं पड़ा तो हारकर मैंने उन्हीं बहाना मारा;

मैं: नेहा को उठाने|

मेरी ये दो शब्दों की बात सुन भौजी समझ गईं की कुछ तो गड़बड़ है पर वो अभी ये पूछ नहीं सकती थीं| फिर भी अपना प्यारा गुस्सा दिखाते हुए वो बोलीं;

भौजी: वो उठ गई है और तैयार हो रही है, आप चुप-चाप बैठो यहाँ!

भौजी ने मुझे हुक्म देते हुए तख़्त पर बिठा दिया| चाय तैयार हो गई थी तो भौजी सबको चाय देने चली गईं, उनकी इस गैरमौजूदगी में मैंने सोचा की क्यों न उन्हें अभी सब बता दूँ! लेकिन सुबह-सुबह ऐसी खबर देना जिससे वो टूट जाएँ, ये सोच कर मुझे फिर डर लगने लगा! इतने में भौजी हम दोनों की चाय ले कर तख्त पर बैठ गईं, अंत में अम्मा अपनी चाय लेके चल पड़ीं और जाते-जाते मुझे इशारा कर गईं की मैं भौजी को अभी सब बता दूँ| पर मुझ में हिम्मत नहीं थी उनसे सच कहने की, इसीलिए मैं उनसे नजरें चुरा रहा था| मेरी ये अजीब हरकतें देख भौजी को भी लगने लगा था की मैं उनसे कुछ छुपा रहा हूँ, इसलिए उन्होंने सीधे-सीधे अपना सवाल दागा;

भौजी: जानू! क्या बात है? आप मुझसे क्या छुपा रहे हो?

भौजी ने मेरा दायाँ हाथ अपने हाथों में लेते हुए कहा|

मैं: कुछ भी तो नहीं.....

उस प्यारे से चेहरे पर मैं आँसूँ नहीं देखना चाहता था, इसलिए मैंने झूठ बोला पर मैं ये भी जानता था की मेरे इतने से बात से उनको चैन नहीं मिलेगा सो मैंने बात बनाई;

मैं: मैं आपसे नाराज हूँ!

मेरी नाराजगी वाली बात सुन भौजी मुझ पर विश्वास कर बैठीं और बड़े भलेपन से बोलीं;

भौजी: क्यों?

मैं: आज की good morning kissi नहीं दी आपने इसलिए!

मेरा झूठन बहाना सुन भौजी के चेहरे पर मुस्कान आ गई और वो एकदम से बोलीं;

भौजी: आओ अभी दे देती हूँ!

भौजी ने मुझे अपने पास खींचा|

मैं: घर में सब मौजूद हैं, कोई आ गया तो?!

मैंने आँख बड़ी करते हुए कहा|

भौजी: हाँ तो आने दो!

भौजी ने बड़ी अदा से कहा और मैं ये देख अंदर से रोने लगा!

मैं: अभी नहीं... बाद में दे देना|

नकली मुस्कान चिपकाए मैंने भौजी से नजरें चुराईं और चाय पीने लगा|

इतने में नेहा तैयार हो के अपना झोला टाँगे आ गई, उसने सबसे पहले मेरे गाल पर अपनी प्याली-प्याली मीठी-मीठी पप्पी दी! बाप-बेटी का ये प्यार देख भौजी को आज फिर प्यारी सी जलन हुई, मैंने भौजी को नेहा के लिए दूध लाने को कहा और तब तक मैंने नेहा को पानी गोद में उठा कर दुलार करना शुरू कर दिया था| नेहा का दूध बनने तक मैंने उसकी ढेर सारी पप्पियाँ ली और भौजी रसोई से मुझे देख कर हँसे जा रही थीं| खैर नेहा ने दूध पिया और मैं उसे स्कूल छोड़ कर लौटा तो बड़की अम्मा मुझे छोटे खेत से कुछ सब्जियाँ ले कर आते हुए देखा| उन्होंने इशारे से मुझसे पुछा की क्या मैंने भौजी को सब बता दिया तो मैंने न में सर हिलाया और बिना कुछ और कहे बड़े घर की ओर सर झुका कर चल दिया| बड़े घर जाते हुए मैंने देखा की भौजी कहाँ हैं, तो मैंने उन्हें छप्पर के नीचे बैठे हुए सब्जी काटते हुए पाया| मुझ में जरा भी हिम्मत नहीं थी की मैं भौजी से कुछ कहूँ, इसलिए मैं चुपचाप बड़े घर आ कर आँगन में प्रमुख दरवाजे के सामने सर झुकाये बैठ गया| बहुत हिम्मत की...बहुत कसमें खाईं...बहुत तर्क किये...पर सब व्यर्थ! दिल मनाये नहीं मान रहा था और दिमाग ने काम करना बंद कर दिया था!

लेकिन नियति को कुछ और मंजूर था....

पंद्रह मिनट बाद भौजी बहुत तेजी से बड़े घर में घुसीं, उनकी आँखों में आँसूँ थे और सांसें तेजी से चल रहीं थीं! उन्हें इस प्रकार देखते ही मैं डर गया और समझ गया की किसी ने उन्हें सब बता दिया है, पर कौन ये मैं नहीं जानता था!

[color=rgb(147,]जारी रहेगा भाग 2 में...[/color]
 

[color=rgb(243,]उन्नीसवाँ अध्याय: बिछड़न![/color]
[color=rgb(184,]भाग - 2[/color]


[color=rgb(65,]अब तक आपने पढ़ा....[/color]

नेहा ने दूध पिया और मैं उसे स्कूल छोड़ कर लौटा तो बड़की अम्मा मुझे छोटे खेत से कुछ सब्जियाँ ले कर आते हुए देखा| उन्होंने इशारे से मुझसे पुछा की क्या मैंने भौजी को सब बता दिया तो मैंने न में सर हिलाया और बिना कुछ और कहे बड़े घर की ओर सर झुका कर चल दिया| बड़े घर जाते हुए मैंने देखा की भौजी कहाँ हैं, तो मैंने उन्हें छप्पर के नीचे बैठे हुए सब्जी काटते हुए पाया| मुझ में जरा भी हिम्मत नहीं थी की मैं भौजी से कुछ कहूँ, इसलिए मैं चुपचाप बड़े घर आ कर आँगन में प्रमुख दरवाजे के सामने सर झुकाये बैठ गया| बहुत हिम्मत की...बहुत कसमें खाईं...बहुत तर्क किये...पर सब व्यर्थ! दिल मनाये नहीं मान रहा था और दिमाग ने काम करना बंद कर दिया था!

लेकिन नियति को कुछ और मंजूर था....

पंद्रह मिनट बाद भौजी बहुत तेजी से बड़े घर में घुसीं, उनकी आँखों में आँसूँ थे और सांसें तेजी से चल रहीं थीं! उन्हें इस प्रकार देखते ही मैं डर गया और समझ गया की किसी ने उन्हें सब बता दिया है, पर कौन ये मैं नहीं जानता था!

[color=rgb(44,]अब आगे...[/color]

भौजी मेरे सामने दो कदम की दूरी पर कड़ी हो गईं और मेरी आँखों में देखते हुए सवाल पुछा;

भौजी: आप परसों दिल्ली वापस जा रहे हो?

उनका ये सवाल सुनकर मेरा सर झुक गया, शब्द तो जैसे बचे ही नहीं थे मेरे पास| मेरा झुका सर देख कर भौजी का कलेजा मुँह को आ गया और उन्होंने गुस्से में मेरी टी-शर्ट का कालर पकड़ लिया तथा मुझसे झिंझोड़ते हुए पुछा;

भौजी: मुझसे इतनी बड़ी बात क्यों छुपाई? सब जानते हुए ....आपने मुझे क्यों कुछ नहीं बताया... क्यों? आप सब पहले से ही जानते थे ना....?

मेरे पास भौजी के पूछे किसी भी सवाल का जवाब नहीं था, इसलिए मैं सर झुकाये खामोश बैठ था|

भौजी: क्यों मुझे अपने शादी के शोक से बाहर निकाला...पड़े रहने देते मुझे उसी दुःख में की आपकी शादी हो रही है.... उस दुःख में थोड़ा और दुःख जुड़ जाता न...बस...सह लेती पर ...पहले खुद आपने मुझे उस दुःख से निकला ये कह के की भविष्य के बारे में मत सोचो और ....फिर इतनी बात छुपा कर ये दुखों का पहाड़ मुझे पे क्यों गिरा दिया!!!

मुझ में भौजी का सामना करने की हिम्मत नहीं थी इसलिए मेरी नजरें झुक ही रहीं, उधर मेरी झुकीं नजरों का भौजी ने गलत मतलब निकाला| उन्होंने मेरी टी-शर्ट का कालर छोड़ा और मुझ पर रोते हुए गरजीं;

भौजी: मुझे ...बिना बताये चले जाना चाहते थे न? क्यों....क्यों नहीं बताया की आप मुझे छोड़ के जा रहे हो? मन भार गया क्या मुझसे?

भौजी के गलत आरोप सुन मैं दहल गया और अपनी आँखें उनसे मिलाई, पर हिम्मत नहीं हुई की कुछ कह सकूँ! लेकिन मेरी ख़ामोशी भौजी को घायल कर गई थी, वो बड़ी जोर से मुझ पर चींखीं;

भौजी: Answer ME!!!

उनकी गर्जन सुन मैं कुछ न बोल पाया, बस आँखों में आँसूँ आ गए जो मेरे बेगुनाह होने का सबूत थे, पर भौजी मेरे आँसुओं को न समझ पाईं क्योंकि उनके सर पर गुस्सा और शायद थोड़ी नफरत सवार थी;

भौजी: ओह समझी.....इसीलिए कल आपको इतना प्यार आ रहा था न मुझ पे?... है ना? क्योंकि मुझे छोड़ के जा रहे हो...तो जाने से पहले आपको अपनी सारी हसरतें पूरी करनी थीं...! मैं ही पागल थी......जो उसे आपका प्यार समझ बैठी... आपको अपना समझ बैठी!!! लेकिन आप....आप मुझसे जरा भी प्यार नहीं करते..... बस खेल रहे थे मेरे साथ...मेरे जज्बातों का मजाक उड़ा रहे थे और मैं पागल ...आपको अपना जीवन साथी समझ बैठी!!!! हाय रे मेरी फूटी किस्मत! मुझे बस दग़ा ही मिला हर बार...पहले आपके भाई से....फिर आप से.... जाओ...नहीं रोकूँगी मैं आपको.. और वैसे भी मेरे रोकने से आप कौन सा रूक जाओगे!

भौजी के आँसुओं से लिपटे हुए ये बाण मेरे बेक़सूर दिल को छलनी कर गए थे!

भौजी रोती हुईं पलट कर जाने लगीं, मैं हिम्मत कर उठ खड़ा हुआ और उन्हें अपनी सफाई देनी चाहि, इसलिए मैंने उनके कन्धों को पकड़ कर अपनी ओर घुमाया, लेकिन भौजी ने गुस्से से मेरे दोनों हाथ झटक दिए ओर मुझ पर बहुत जोर से चिल्लाईं;

भौजी: मत छुओ मुझे!

भौजी की दोनों आँखें आँसुओं और गुस्से से सुर्ख लाल थी और हों भी क्यों न, मैंने दिल जो तोडा था उनका| पर जो इल्जाम वो मुझ पर लगा रहीं थीं वो झूठे थे, मैं उसने सच्चा प्यार करता हूँ, लेकिन भौजी कुछ नहीं सुनना चाहतीं थीं इसलिए वो गुस्से में पाँव पटक कर बाहर जाने लगीं| फिर भी मैंने उन्हें रुकने के लिए पुकारा;

मैं: जान प्लीज मेरी बात तो सुन लो!

मैंने रूंधे गले से कहा पर वो नहीं रुकीं| वो पाँव पटकते हुए तीन-चार कदम चलीं होंगी की उन्हें चक्कर आ गया और वो लड़खड़ा कर गिरने को हुईं! मैंने दौड़ कर उन्हें अपनी बाँहों का सहारा देते हुए संभाला, जब नजर उनके चेहरे पर गई तो देखा की वो बेहोश हो गईं थीं! भौजी को बेहोश देख कर मेरा दिल जोरों से धड़कनें लगा, बुरे-बुरे ख्याल आने लगे की कहीं भौजी को कुछ हो तो नहीं गया?! मैंने फ़ौरन भौजी को अपनी गोद में उठाया और उन्हीं आँगन में पड़ी चारपाई पर लिटाया| सबसे पहले मैंने भौजी की नाक के आगे ऊँगली लगा कर देखा की उन्हीं साँस आ रहा है या नहीं, शुक्र है की उन्हीं साँस आ रहा था! फिर मैंने भौजी को पुकारते हुए उनका बायाँ गाल थप-थपाने लगा; "जान...जान उठो!...प्लीज...मुझे माफ़ कर दो....प्लीज ...!!!" लेकिन भौजी ने कोई प्रतिक्रिया नहीं दी, घबराते हुए मैंने उनके सीने पर सर रखा की उनकी दिल की धड़कन सुन सकूँ| उनका दिल अब भी धड़क रहा था! अपनी न समझी में मैंने उनकी हथेली रगड़नी शुरू की, पर वो तो पहले से ही गर्म थी| अब आखरी उपचार था C.P.R.! पर फिर दिम्माग में बिजली सी कौंधी, मैं स्नान घर भागा और वहाँ से एक लोटे में पानी ले कर आया| मैंने पानी के कुछ छींटें भौजी के मुख पर मारी, पर भौजी के मुख पर कोई प्रतिक्रिया नहीं हुई| मैंने दुबारा छीटें मारी, अब भी कुछ नहीं! तीसरी बार मैंने रोते हुए छीटें मारे तब जाके भौजी की पलकें हिलीं और मेरी जान में जान आई! भौजी ने आहिस्ते-आहिस्ते आँखें खोलीं और कुछ सेकण्ड्स तक मुझे देखने लगीं, फिर जैसे उन्हें सबकुछ याद आगया हो इसलिए एकदम से उनकी आँखें छलछला गईं! उधर मेरी सांसें घबराहट के मारे तेज थीं और धड़कनें बेकाबू;

मैं: आप ठीक तो हो ना?

मैंने घबराते हुए आँखों में आँसूँ लिए उनसे पुछा, पर भौजी कुछ नहीं बोलीं|

मैं: प्लीज मेरी बात सुन लो ...बस एक बार...उसके बाद आपका जो भी फैसला हो ग मुझे मंजूर है!

मैंने रोते हुए भौजी से कहा, पर इस बार भी भौजी कुछ नहीं बोलीं और दूसरी ओर मुँह फेर लिया! भौजी की ये बेरुखी मुझसे बर्दाश्त नहीं हो रही थी तो मैंने उनके सामने सब सच खोल कर रख दिया;

मैं: मैं आपसे बहुत प्यार करता हूँ...आपके लिए जान दे सकता हूँ, मुझे वापस जाने के बारे मैं कुछ नहीं पता था| कल जब सब ने हमें dance करते हुए देख लिया और आप मुझे अकेला छोड़ के चले गए तब बातों-बातों में पिताजी से पता चला की हमें sunday को जाना है| मुझे नहीं पता था की पिताजी ने चन्दर को लखनऊ जाते समय टिकट लाने के लिए पैसे दिए थे| कल मैंने आपको ये बात इसीलिए नहीं बताया क्योंकि मैं नहीं चाहता था की जिस दुःख से मैंने आपको एक दिन पहले बाहर निकाला था वापस आपको उसी दुःख में झोंक दूँ! कल आप कितना खुश थे, ऐसे में मेरा मन आपको कल के दिन दुःख के सागर में धकेलना नहीं चाहता था, बस इसीलिए मैंने कल के दिन आपसे ये बात छुपाई! कल जब शाम को आप चाय बना रहे थे तब बड़की अम्मा आपको ये बात बताने वाली थीं पर मैंने उन्हें रोक दिया, क्योंकि ये बुरिखबर मैं ही आपको देना चाहता था! मैं सच कहता हूँ ...मैं आज खुद आपको ये सब बताने वाल था, पर नजाने आपने ये बात किस से ये सुन ली! प्लीज मेरी बात का यकीन करो...प्लीज....!

मैंने भौजी की बड़ी मिन्नतें कीं पर वो नहीं मानी, उन्होंने मेरी सारी बातें मुँह मोड हुए ही बेमन से सुनी! उनका मन मेरी ओर से फट चूका था और इसीलिए उन्हें मेरी किसी बात पर विश्वास नहीं हो रहा था|

मैंने भी हार मान ली, क्योंकि अब मेरे पास ऐसा कोई रास्ता नहीं था जिससे मैं भौजी को अपनी बात का यकीन दिल सकूँ| मैं वापस सर झुका कर दूसरी ओर मुँह करके बैठ गया, मेरा मन रह-रह कर अंदर से कचोटने लगा था! मुझे नहीं पता था की हमारा प्यार जुदाई से नहीं बल्कि भौजी के मन में मेरे लिए पनपी नफरत के कारन खत्म होगा!

पर हम दोनों की किस्मत में इस कदर दूर होना नहीं लिखा था, इसीलिए उसने वहाँ बड़की अम्मा को भेज दिया!

बड़की अम्मा: मुन्ना सही कहत है बहु!

बड़की अम्मा की आवाज सुन हम दोनों ने मुड़ कर उन्हें देखा, वो बरामदे में खड़ीं थीं ओर उन्होंने मेरी सारी बातें सुन ली थीं!

बड़की अम्मा: कलिहं हम मुन्ना से कहन रहा की जाए के आपन भौजी का सब बताये दिहो और अगर खुद न बताय पैहो तो हम बताई देई! पर ऊ हमका मना कर दिहिस, काहे की कलिहाँ तुम दोनों जन बहुत खुस रहेओ और मुन्ना तोहार दिल नाहीं दुखाये चाहत रहा| हम कहन की हम ही बताये देइत है तो मुन्ना हमका रोक दिहिस और कहिस की अगर भौजी का दिल टूटेक है तो हमरे हाथे टूटे तो ही अच्छा! मुन्ना कल पूरी रात नाहीं सोहिस, ई सोच-सोच के की आज ऊ कैसे तोहका बताइस! तोहार दिल दुखाये से ऊ बहुत घबड़ात रहा, ऊ मा तनिको हिम्मत नाहीं रही! फिर आज सुबह से हम दो बार मुन्ना को कहन की ऊ तोहका सब बताये दे पर मुन्ना तोहार दिल तोड़े से डरात रहा!

बड़की अम्मा के बातें सुन भौजी एकदम से उठ के बैठ गईं और अम्मा के सामने ही मुझसे लिपट के रोने लगीं| उस समय हम दोनों इतने भावुक थे की हमें किसी की भी मौजूदगी का कोई एहसास नहीं था, बस बेकरार दिल था जो चैन चाहता था और वो चैन हमें एक दूसरे से गले लग कर मिल रहा था|

भौजी का रोना बदस्तूर जारी था और मैं उनके रोने में घुली उनकी ग्लानि महसूस कर रहा था| अपने प्यार पर शक करने और उस पर गंदे आरोप लगाने का दर्द भौजी के दिल को खाये जा रहा था, मैंने भौजी के बालों में हाथ फिराया और उन्हें चुप कराने की कोशिश करने लगा! लेकिन भौजी के सीने में दर्द का गुबार था को उन्हें शांत होने नहीं दे रहा था!

भौजी: I'm.....sorry! मैंने....आपको...बहुत गलत.....समझा!

भौजी ने रोते हुए कहा|

मैं: Its alright! मैं समझ सकता हूँ की आप पर क्या बीती होगी! अब आप चुप हो जाओ...

आगे मैं कुछ कहता उससे पहले ही बड़की अम्मा बोलीं;

बड़की अम्मा: हाँ बहु चुप होइ जाओ!

बड़की अम्मा की आवाज सुन के हम दोनों को होश आया की वो हमारा ये प्रेम-मिलाप देख रहीं हैं! हम दोनों अलग हुए और दोनों का सर शर्म से झुक गया! अम्मा की बात का मान रखते हुए भौजी ने अपना रोना रोक लिया और सिसकते हुए उठने लगीं;

भौजी: मैं ...खाना बनती हूँ!

भौजी मुझसे आँखें चुराते हुए बोलीं| इधर मैंने एकदम से भौजी की कलाई पकड़ ली, मैं जानता था की मेरे रोकने से वो रुकेंगी नहीं तो मैंने बड़की अम्मा से उनकी शिकायत कर दी;

मैं: नहीं! आप खाना नहीं बनाओगे! अम्मा अभी-अभी ये बेहोश हो गईं थीं और मेरी जान निकल गई थी!

ये सुन कर बड़की अम्मा की घबरा गईं;

बड़की अम्मा: हाय राम! मुन्ना डॉक्टर का....

बड़की अम्मा की बात पूरी होने से पहले ही भौजी ने काट दी;

भौजी: नहीं अम्मा मैं अब ठीक हूँ|

लेकिन बड़की अम्मा अब भी चिंतित थीं;

बड़की अम्मा: पर बहु...

लेकिन भौजी जिद्द पर अड़ गईं और बोलीं;

भौजी: नहीं अम्मा! अगर मुझे तबियत ठीक नहीं लगी तो मैं आपको खुद बता दूँगी| मेरे लिए भी ये बच्चा उतना ही जर्रुरी है जितना आप सब के लिए!

भौजी ने फिर मुझसे नजर चुराते हुए कहा| वहीं बड़की अम्मा भौजी की बात से आश्वस्त हो गईं और बोलीं;

बड़की अम्मा: ठीक है बहु, हम रसिका से कह देइत है ऊ खाब बना लेइ!

भौजी: नहीं अम्मा...मैं अब ठीक हूँ!

भौजी ने अपना हाथ मेरी पकड़ से छुड़ाते हुए कहा, भौजी का ये अजीब बर्ताव देख मुझे गुस्सा आ गया और मैंने उन्हें डाँटते हुए कहा;

मैं: मैंने कह दिया न आप खाना नहीं बनाओगे!

बड़की अम्मा: हाँ बहु तो आराम कर!

बड़की अम्मा ने भी मेरी बात में हाँमी भरी, लेकिन भौजी इतनी जल्दी कहाँ मानती?!

भौजी: पर ये (मैं) उसकी हाथ की रसोई छुएँगे भी नहीं!

भौजी ने बड़की अम्मा के सामने एकदम से सच कह दिया, मैंने फ़ौरन भौजी को आँख बड़ी कर के दिखाई और खामोश रहने को कहा|

मैं: नहीं मैं खा लूँगा!

मैंने भौजी को घूरते हुए कहा, पर वो तो पहले से ही मुझसे नजरें चुराए सर झुका कर बैठी थीं|

बड़की अम्मा: काहे? का भवा?! दोनों मा कउनो लड़ाई भई?!

बड़की अम्मा ने मुझे भौजी को घूरते हुए देख लिया था, इसलिए उन्होंने भौजी से ये सवाल पुछा|

मैं: वो अम्मा मैं आपको बाद में बता दूँगा, आप रसिका भाभी से कह दो वो खाना बना लें|

मैंने बात को खत्म करते हुए ाखा, ताकि बड़की अम्मा यहाँ से जाएँ और मुझे भौजी से बात करने का कुछ समय मिले|

बड़की अम्मा: मुन्ना, अगर तोहका ऊ का खाना बना नाहीं पसंद तो हम बनाये देइत है!

मैं: नहीं अम्मा...ऐसी कोई बात नहीं! मैं बाद में आपको सब डिटेल मतलब विस्तार से में बता दूँगा|

मैं नहीं चाहता था की बड़की अम्मा तकलीफ करें इसलिए मैं रसिका भाभी के हाथ का खाना खाने को तैयार हो गया|

बड़की अम्मा: ठीक है मुन्ना, तू तौलिक हियाँ बैठो और आपने भौजी का ख्याल रखो, तोहार माँ-पिताजी बड़के दादा संगे मंदिर गए हैं|

इतना कह कर अम्मा चली गईं और अब बड़े घर में बस हम दोनों अकेले रह गए|

भौजी चारपाई पर लेटी हुई थीं और बड़ी हिम्मत कर के मुझे देख रहीं थीं, मैं उनकी बगल में ही बैठा था और इससे पहले मैं कुछ पूछता या कहता वो खुद ही सिसकते हुए बोलीं;

भौजी: मैं आप...पर इल्जाम पर इल्जाम...लगाती रही और आपने कुछ...नहीं कहा?!

मैंने भौजी के दाहिने गाल को प्यार से सहलाया और उनका मन हल्का करने को मुस्कुरा कर बोला;

मैं: आपने मौका ही नहीं दिया कुछ कहने का!

भौजी: I'm terribly sorry!

भौजी ने हथजोड़ कर माफ़ी माँगी|

मैं: It's okay! आज शुक्रवार है, ता आज और कल दोनों दिन पूरे 48 घंटे मैं सिर्फ और सिर्फ आपके साथ रहूँगा!

मैंने भौजी के दोनों हाथों को चूमते हुए कहा|

भौजी: सच?

भौजी ने अपनी चमकती हुई आँखों से पुछा|

मैं: बिलकुल सच! इन 48 घंटों में हम कल की तरह खूब प्यारी-प्यारी यागें बनाएंगे, पर मेरी आपसे एक इल्तिजा है?

भौजी: हाँ बोलिए?

मैं: Sunday को आप एक बूँद आँसू नहीं गिराओगे?

मैंने कह तो दिया पर मैं जानता था की ये हम दोनों के लिए नामुमकिन है, लेकिन फिर भी भौजी ने मेरे लिए हाँ में गर्दन हिला दी|

मैं: चलो अब मुस्कुराओ?

भौजी ने हलकी सी मुस्कान दी, जो मैं जानता था की नकली है पर मैंने ये सोच कर संतोष कर लिया की कम से कम वो मेरी बात मान तो रहीं हैं| बाहर से वो पूरी कोशिश कर रहें थीं की सहज दिखें पर अंदर ही अंदर घुट रहीं थीं, जो की अच्छी बात नहीं थी! चाहे जो भी बन पड़े मुझे उन्हें उनकी इस घुटन से आजाद करना था!

भौजी मुझे टक-टकी बंधे देख रहीं थीं, उनकी ये ख़ामोशी उनका दर्द ब्यान कर रही थी जो अंदर ही अंदर उन्हें खाये जा रहा था| भौजी के दिल को सुकून मिले उसके लिए मैं उनकी बगल में लेट गया, मेरे लेटते ही भौजी मेरे सीने से चिपक गईं और उनके आँसूँ बह निकले|

मैं: जान! रोना नहीं है, मैं आपके पास ही हूँ न!?

मैंने ये कहा तो भौजी के दिल को चैन आया| आधे घंटे तक वो मुझसे लिपटी रहीं और जब उनके दिल को चैन आया तो उन्होंने मेरे आगोश से खुद को छुड़ाना चाहा, पर मेरे कसे हुए हाथों की गिरफ्त उन्हीं मुझसे दूर नहीं जाने दे रही थी|

भौजी: जानू.....कोई आ जाएगा!

भौजी ने बेमन से कहा, पर इसके जवाब में मैंने उनके सर को चूमा और कहा;

मैं: आने दो! अपनी बीवी को प्यार करने के समय मुझे किसी का डर नहीं!

मैंने बेधड़क होक कहा, जिसे सुन भौजी के चेहरे पर एक पल को मुस्कान आ गई पर मैं उस मुस्कान को नहीं देख पाया था| हम दोनों मियाँ-बीवी खामोश ऐसे ही लिपटे लेटे रहे, उस वक़्त दोनों को किसी का कोई डर नहीं था! एक घंटे की ये ख़ामोशी अब मुझे चुभने लगी थी तो माने बात शुरू करते हुए कहा;

मैं: जान! कुछ बोलते क्यों नहीं? कुछ बात छेड़ो?

मेरी बात सुन भौजी टूट गईं और उनका दर्द कुछ बाहर आया;

भौजी: क्या बोलूँ! अब तो अलफ़ाज़ ही कम पड़ने लगे हैं मेरी बदनसीबी सुनाने को! दिल बस इतना ही चाहता है की इसी तरह आपके पहलु में पड़ी रहूँ और आपके जिस्म की इस गर्मी को अपने सीने में बसा लूँ! आँखें आपको जी भर के देखना चाहतीं हैं ताकि आपकी ये सूरत अपने मन में बसा लूँ! क्या पता आपसे मिलने का मौका फिर कब मिले?!

भौजी की ये बातें दिल को छू गईं, मैंने उन्हें अपनी गिरफ्त से आजाद किया और उठ कर बैठ गया| उनके दोनों हाथ अपने हाथों में ले कर बोला;

मैं: ऐसा क्यों कह रहे हो आप? अभी तो हमारी पूरी जिंदगी पड़ी है और मैं कौन सा विदेश जा रहा हूँ? बस एक दिन ही तो लगता है यहाँ पहुँचने में, जब मन करेगा आ जाया करूँगा?!

मैंने भौजी को हिम्मत बँधाते हुए कहा| लेकिन भौजी को कोई झूठा दिलासा नहीं चाहिए था, इसलिए वो नकली मुस्कान के साथ बोलीं;

भौजी: नहीं आ पाओगे!

उनका यूँ हिम्मत छोड़ देना मेरे लिए नाकाबिले बर्दाश्त था|

मैं: आपको क्यों ऐसा लगता है?!

मैंने भौजी के दाहिने गाल पर हाथ फेरते हुए कहा, पर वो जवाब दे पातीं उससे पहले ही बड़की अम्मा हम दोनों का खाना एक ही थाली में परोस लाईं थीं|

[color=rgb(147,]जारी रहेगा भाग 3 में...[/color]
 

[color=rgb(243,]उन्नीसवाँ अध्याय: बिछड़न![/color]
[color=rgb(184,]भाग -3[/color]


[color=rgb(65,]अब तक आपने पढ़ा....[/color]

मैं: ऐसा क्यों कह रहे हो आप? अभी तो हमारी पूरी जिंदगी पड़ी है और मैं कौन सा विदेश जा रहा हूँ? बस एक दिन ही तो लगता है यहाँ पहुँचने में, जब मन करेगा आ जाया करूँगा?!
मैंने भौजी को हिम्मत बँधाते हुए कहा| लेकिन भौजी को कोई झूठा दिलासा नहीं चाहिए था, इसलिए वो नकली मुस्कान के साथ बोलीं;
भौजी: नहीं आ पाओगे!
उनका यूँ हिम्मत छोड़ देना मेरे लिए नाकाबिले बर्दाश्त था|
मैं: आपको क्यों ऐसा लगता है?!
मैंने भौजी के दाहिने गाल पर हाथ फेरते हुए कहा, पर वो जवाब दे पातीं उससे पहले ही बड़की अम्मा हम दोनों का खाना एक ही थाली में परोस लाईं थीं|

[color=rgb(44,]अब आगे...[/color]

मैं: अम्मा इतनी जल्दी खाना भी बन गया?! और आप ने क्यों तकलीफ की, मुझे बुला लिया होता?!

बड़की अम्मा: बहु की तबियत खराब रही एहि से हम खाना जल्दी ले आएं और हमार तकलीफ की कउनो चिंता नाहीं करो, तुम हियाँ बैठ के आपन भौजी का ख्याल रखो काहे की एक तुहुं ही हो जीकी ई बात मानत है!

बड़की अम्मा ने थाली रखते हुए कहा| फिर वो हम दोनों के सामने ही बैठ गईं और कुछ देर पहले की बात पूछने लगीं;

बड़की अम्मा: अच्छा ई बताओ की आखिर ऐसी कौन बात है की तुम रसिका के हाथ का कछु नाहीं खात हो?!

मैं: जी वो....

मैंने अम्मा से नजरें चुराईं क्योंकि उनसे सच कहने में मैं झिझक रहा था और देखा जाए तो मेरी झिझक जायज भी थी, भला मैं बड़की अम्मा से सेक्स सम्बन्धी बात कैसे कह सकता था! मेरी झिझक देख बड़की अम्मा बोलीं;

बड़की अम्मा: मुन्ना हमसे कछु न छुपाओ, काहेकी हम सब जानित है! ई जाऊँन तोहार अपना भौजी का लिए लगाव है, प्रेम है ई भले ही कोई न जानी, पर हम सब जानित है! हम जानित है की तोहार दिल बहुत साफ़ है, एहि से तुम कभौं आपन भौजी का कउनो गलत फायदा ना उठाइयो! हम यहु जानित है की तोहार भौजी भी तोहसे बहुत प्रेम करत ही, ऊ प्यार जो हम कभौं आपन बेटे चन्दर के लिए नहीं देखेन! ऊ सब के लिए हम ही जिम्मेदार हन, आपन नालायक बेटा के कारन हम ऊ (भौजी) की जिंदगी ख़राब कर दिहिन! सादी से पाहिले तोहार भाई चन्दर की आदत ख़राब रही, ऊ का आपन मामा क हियाँ एक गलत औरत संगे......

इतना कहते हुए अम्मा रुक गईं, उनकी आँखें भर आईं और ऐसे में मैंने उन्हें खुद संभाला| उनके आँसूँ पोछे और उन्हें आगे बोलने से रोकना चाहा पर वो नहीं मानी और अपनी बात पूरी की;

बड़की अम्मा: हम जानित है ई सब एक माँ के लिए कहेक बहुत सर्मिन्दा वाली बात है, पर हम बहु का कसूरवार हन! आपन गन्दी आदतों के चलते ऊ बहु की बहन संगे....सब गलत किहिस! ई के लिए हम तोहार कसूरवार हन बहु!

ये अख्ते हुए बड़की अम्मा ने भौजी के आगे हाथ जोड़ दिए, भौजी ने फ़ौरन अम्मा के दोनों हाथ पकड़ लिए|

बड़की अम्मा: मुन्ना अब तू छोट नाहीं हो, बड़े होइ गए हो एहि के लिए हम तोहका ई सब बतायन| काहे का हम जानित है की तुम दोनों के बीच जउन प्रेम है ऊ अब सबके आगे आय लागा है| तोहरे न होने पर बहु जैसे खाना-पीना छोड़ दिहिस, फिर जब ऊ हियाँ नाहीं रही तब तू खाना पीना छोड़ दिहो रहा, ई सब जान कर कोई ई घर पर मट्टी ना लगाए पाए! ई बात दबी है तो दबी ही रहे दिहो!

अम्मा के मुँह से सब सुन कर मैं हैरान था, जहाँ मुझे चन्दर के बारे में बहुत जानने को मिला वहीं ये जानकार शर्मिंदा भी हुआ की बड़की अम्मा मेरे और भौजी के प्रेम के बारे में जान चुकी हैं| लेकिन उन्होंने अभी तक कुछ भी खुल कर नहीं कहा था, पर जितना मैं समझ पाया था उससे थोड़ा घबरा रहा था, अपने लिए नहीं बल्कि हमारे बच्चे और भौजी के लिए! मैं सर झुकाये बैठा था की बड़की अम्मा ने मेरे कंधे पर हाथ रखते हुए मुझे हिम्मत दी;

बड़की अम्मा: मुन्ना कउनो घबड़ाये की बात नाहीं है! हम तोहार बड़की अम्मा हन और हम ई सब केहुक न बताबे! अब तो बताओ की काहे तू रसिका से रिसियाए हो!

अम्मा की बात सुन मैंने बड़ी हिम्मत की और संकुचाते हुए उन्हें सब सच बताने लगा;

मैं: अम्मा वो....जब ये (भाजी) अपने मायके गईं थीं तब...रसिका भाभी मेरे पीछे पड़ीं थीं....वो चाहती थीं की मैं उनके साथ हमबिस्तर हो जाऊँ ....मतलब..उनके साथ वो सब करूँ....पर मैंने उन्हें मना कर दिया...उसके बाद आये दिन वो मुझे अकेला पा कर मेरे यौन अंगों...को छूतीं तो कभी मुझे चूमने की गन्दी कोशिश करती रहतीं....फिर एक रात जब हम दोनों यहाँ सोये थे तब वो नंगी हो कर.....मेरे ऊपर चढ़ गईं थीं....मैंने बड़ी मुश्किल से खुद को छुड़ाया....गुस्से में मैंने उन्हीं दो-तीन बार उन्हें थप्पड़ भी मारे पर वो नहीं मानी...उनके छूने के बाद मुझे घिन्न होती थी इसलिए मैं रात बे रात ठन्डे पानी से नहाता था! इसलिए मैंने अपने कमरे में दरवाजा बंद कर के सोना शुरू कर दिया था...मुझे उनसे इतनी नफरत हो गई थी की मैं उनके हाथ की बनी रसोई तक नहीं खता था...इसीलिए तो मैं बीमार पड़ गया था और इन्होने डॉक्टर को बुलाया था|

मेरी बात सुन बड़की अम्मा ने अपना सर पीट लिया और बड़ी जोर से रसिका भाभी को गालियाँ देने लगीं;

बड़की अम्मा: हाय दैय्या! ई छिनाल..कुतिया...हरामजादी...हमार पूरा घर बर्बाद करत रही!! हम ई का ना छोड़ब, मुन्ना तुम दोनों जन ई खाब खाओ, ई हम बनायें हन! हम तौलील ऊ छिनाल की आग ठंडा कर देई!

इतना कह कर अम्मा उठ के चलीं गईं, मुझे लगा की आज तो रसिका की गई काम से पर उसकी किस्मत आज उस पर मेहरबान थी| घर पर कोई मेहमान आ गया था जिसके चलते वो बड़की अम्मा के गुस्से से बच गई|

इधर मैंने पहल करते हुए पहला कौर भौजी को खिलाया, फिर भौजी ने दूसरा कौर मुझे खिलाया| भौजी मुस्कुरा जर्रूर रहीं थीं पर उनकी वो ख़ुशी कहीं गायब थी, अब भी कुछ था जो नहीं था! खेर हमने खाना खाया और दोंनो जन हाथ में हाथ डाले खामोश आँगन में कुछ देर टहलने लगे| मैंने भौजी को आराम करने को कहा और वो चारपाई पर लेट गईं, मैं उन्हीं की बगल में बैठ गया तथा उनके बालों में हाथ फेरने लगा| भौजी की ये ख़ामोशी मुझे कतई बर्दाश्त नहीं थी, सो मैंने ही बात शुरू की;

मैं: क्या बात है जान, अब भी नाराज हो मुझसे?!

मैंने बड़े प्यार से पुछा तो भौजी नकली मुस्कराहट लिए बोलीं;

भौजी: आपसे नाराज हो के मैं कहाँ जाऊँगी?!

मैं: तो फिर आप मुझसे बात क्यों नहीं कर रहे? क्यों ये झूठी हँसी-हँस रहे हो? क्यों अंदर ही अंदर घुट रहे हो? निकाल दो बाहर जो भी चीज आप को अंदर ही अंदर खाय जा रही है, आप हल्का महसूस करोगे!

भौजी कुछ नहीं बोलीं बस चुप-चाप मुझे देखती रहीं और मैं भी उनकी आँखों में आँखें डाले अपने सवाल का जवाब ढूँढने लगा| इतने में भौजी ने मेरा हाथ थामा और बोलीं;

भौजी: मेरे कारन आप सारी रात से जगे हो, आप लेट जाओ और थोड़ा आराम कर लो|

मैं लेटने जा ही रहा था की मेरा ध्यान घडी पर गया, नेहा का स्कूल खत्म हुए पंद्रह मिनट हो गए थे और वो अभी तक घर नहीं आई थी! अपने इस दुःख में हम दोनों में से किसी को भी याद नहीं रहा की उसे स्कूल से लाना भी है!

मैं: आप लेटो मैं बीएस दो मिनट में आया!

इतने कह कर मैं दरवाजे की तरफ जाने लगा, तो भौजी ने परेशान होते हुए मुझे रोकना चाहा;

भौजी: पर आप जा कहा रहे हो?

मैं: बस अभी आया!

मैंने बस इतना कहा और मैं नेहा के स्कूल की तरफ दौड़ा| स्कूल पहुँच कर देखा तो नेहा अकेली खड़ी मेरा इंतजार कर रही है, मैंने उसे झट से गोद में उठा लिया और उसके माथे को बार-बार चूमने लगा;

मैं: I'm sorry!!! बेटा मैं भूल गया था की आपके स्कूल की छुट्टी हो गई है! प्लीज मुझे माफ़ कर दो!

जहाँ मेरे चेहरे पर ग्लानि के भाव थे वहीं नेहा के चेहरे पर हमेशा की तरह एक प्यारी सी मुस्कान थी|

नेहा: कोई बात नहीं पापा!

ये कहते हुए नेहा ने मेरी नाक की पप्पी ली|

मैं: Awwww मेरा बच्चा! चलो अब मेरे साथ भागो, मैं पहले आपको चिप्स दिलाता हूँ!

दोनों बाप-बेटी दौड़ते हुए बूढी अम्मा की दूकान पर आये और मैंने नेहा को चिप्स का पैकेट दिलाया| फिर हम दोनों वापस बड़े घर पहुँचे जहाँ भौजी चिंतित हो उठ कर बैठीं थीं| जैसे ही उन्होंने नेहा को देखा तो उन्हें याद आय की आज उसे स्कूल से लाने के बारे में हम दोनों भूल गए| भौजी ने अपनी दोनों बाहें खोल दी और नेहा को गले लगने का आमंत्रण दिया| नेहा मेरी गोद से उतरी और जाके अपनी मम्मी के गले लग गई| भौजी के बेचैन मन को जैसे ठंडक पहुँची;

भौजी: Sorry बेटा आज मुझे याद ही नहीं रहा की तुझे स्कूल से लाना भी है| Sorry!!!

भौजी ने कान पकड़ते हुए नेहा से माफ़ी मांगी, पर मेरी प्यारी बेटी चिप्स खाने में बीजी थी और उसे हमारे उसे स्कूल से लाना भूल जाने से कोई शिकायत नहीं थी| वो चिप्स खाते हुए मुस्कुराई और बोली;

नेहा: कोई बात नहीं मम्मी! देखो पापा ने मुझे चिप्स का बड़ा पैकेट दिलाया|

ऐसा कहते हुए उसने एक चिप्स का टुकड़ा भौजी को खिलाया| नेहा तो चिप्स खाने में मगन हो गई और इधर भौजी मुझसे बोलीं;

भौजी: तो इसलिए आप इतनी तेज भागे थे?

मैं: हाँ sorry मैं नेहा को स्कूल से लाना भूल गया!

मैंने अपनी गलती काबुल करते हुए कहा|

भौजी: गलती आपकी नहीं, मेरी है! मेरी वजह से आप....

आगे भौजी कुछ बोल पाती इससे पहले ही नेहा ने अपना सवाल दाग दिया;

नेहा: मम्मी...आप की तबियत खराब है?

नेहा ने बड़ी मासूमियत से पुछा| दरअसल सुबह से हुए बवाल के कारन भौजी का हाल बेहाल था, उनके बाल बिखरे हुए थे, कपडे अस्त-व्यस्त थे और रो-रो कर आँखें लाल हो चुकी थीं! ये सब देख कर बेचारी नेहा को लगा की उसकी माँ बीमार हैं!

भौजी: हाँ बेटा, इसीलिए आपके पापा आपको लाना भूल गए|

भौजी ने मेरी जाने की बात छुपाते हुए कहा|

नेहा: आपको क्या हुआ मम्मी?

नेहा ने चिप्स का पैकेट छोड़ दिया और भौजी के चेहरे को अपने छोटे-छोटे हाथों में लेते हुए पुछा|

भौजी: बेटा आपके पापा...

पता नहीं क्यों भौजी नेहा को सब सच बताना चाहती थीं, जबकि अभी वो इस बात को छुपा रही थीं| लेकिन उनकी बात पूरी होने से पहले ही मैंने उनकी बात काट दी क्योंकि मैं नहीं चाहता था की मेरी बच्ची जो अभी-अभी स्कूल से बिना कुछ खाय-पीये लौटी है वो रोने लगे|

मैं: बेटा पहले आप कुछ खा लो फिर बैठ के बात करते हैं|

मैंने नेहा को गोद में लेने को अपने दोनों हाथ खोले, लेकिन तभी भौजी बोलीं;

भौजी: आप आराम करो, मैं इसे खाना खिला देती हूँ|

ये कहते हुए भौजी ने उठना चाहा|

मैं: नहीं, आप आराम करो| मैं हूँ न?!

मैं नेहा को गोद में लेने को आगे बढ़ा, की तभी भौजी ने बड़ी चुभती हुई बात कही;

भौजी: पर Monday से तो मुझे ही करना है, तो अभी क्यों नहीं|

ये सुन कर मुझे गुस्सा आया और मैंने उन्हें घूरते हुए देखा और गुस्से से बोला;

मैं: क्योंकि अभी मैं यहाँ मौजूद हूँ!

मैंने नेहा को गोद में उठाया और उसकी पप्पियाँ लेते हुए उसे भौजी के घर ले कर आया, वहाँ उसके कपडे बदले और फिर उसे ले कर छप्पर के नीचे आ गया| वहाँ सिवाए बड़की अम्मा के और कोई नहीं था, रसिका भाभी आज मंदिर गई हुईं थीं! खैर मुझे देख बड़की अम्मा ने भौजी का हाल पुछा तो मैंने उन्हें बता दिया की वो आराम कर रहीं हैं| बड़की अम्मा ने नेहा का खाना परोसा और मैंने नेहा को अपनी गोद में बिठा कर खाना खिलाया| नेहा ने भी मुझे एक-दो कौर खिलाये, फिर मैंने उसे बताया की मैंने खाना खा लिया है तो नेहा पहले तो थोड़ा नाराज हुई पर फिर एकदम से हँसने लगी, क्योंकि वो मुझसे नाराज नहीं रह सकती थी! खाना खा कर दोनों बाप-बेटी बड़े घर लौटे तो देखा भौजी सो चुकीं थीं, पर हमारी गैर हाजरी में वो फिर रोईं थीं तभी उनके चेहरे पर आँसुओं की सूखी लकीर बानी हुई थी| हम दोनों बिना कोई आवाज किये भौजी की बगल वाली चारपाई पर लेट गए, हमेशा की तरह नेहा मुझसे कस कर लिपट गई और मैंने उसकी पीठ थपथपा कर उसे सुला दिया|

मेरा दिल बहुत बेचैन हो रहा था, एक तरफ भौजी थीं जो सुबह से गुम-सुम थीं और दूसरी तरफ नेहा जिसे अभी तक पता ही नहीं की मैं परसों वापस जा रहा हूँ| जब भौजी का ये हाल है तो पता नहीं नेहा ये बात जानकर कितना रोयेगी! अपनी पत्नी और बच्ची की चिंता में मैं खुद को तो भूल ही गया था, मुझे खुद पर जर्रूरत से ज्यादा होंसला था की मैं खुद को संभाल लूँगा और अयोध्या वाले काण्ड की ही तरह मुझे भी मेरे इस झूठे होंसले का सच जल्द ही पता चलने वाला था| करीब आधे घंटे बाद माँ-पिताजी और बड़के दादा घर लौटे, बड़के दादा तो सीधा हाथ-मुँह धोने कुएँ के पास चल दिए पर माँ-पिताजी बड़े घर आ पहुँचे| उन्होंने मुझे भौजी और नेहा के पास सर झुकाये बैठा देखा तो उन्हें कुछ शक होने लगा, हाउजी कभी भी दोपहर में इतनी जल्दी नहीं सोती थीं और मैं जाग रहा हूँ तो इसका मतलब कुछ तो गड़बड़ है! इससे पहले की वो अपने सवाल की बौछार करते, बड़की अम्मा भागी-भागी वहाँ आईं और इशारे से माँ-पिताजी को अपने साथ चुप-चाप ले गईं| बड़की अम्मा ने माँ-पिताजी को सब भौजी के बेहोश होने और मेरा उनका ध्यान रखने की ही बात उन्हें बताई, रसिका भाभी का मचाया हुआ छीछालेदर और हम दोनों की नजदीकियों वाली बात को वो फिलहाल के लिए गोल कर गईं! सब सुनने के बाद तीनों बड़े घर आये और मुझे इशारे से बाहर बुलाया गया;

माँ: बेटा मैंने तुझे उस दिन कहा था ना की तुझे अपनी भौजी और नेहा से दूरी बनानी होगी, वरना जाते समय वो बहुत उदास होंगे?

माँ ने मुझे उस दिन की हुई बात बताई जब मैं भौजी के मायके जाने के बाद बीमार पड़ा था|

मैं: जी!

मैंने सर झुकाते हुए कहा|

माँ: फिर? अब कैसे संभालेगा तू उन्हें? आज जो हुआ उसके बाद हम कैसे वापस जायेंगे? या फिर यहीं बसने का इरादा है?!

मेरे पास कुछ कहने को शब्द नहीं थे, सो मैं सर हुकाये खुद को रोने से रोकता रहा|

बड़की अम्मा: हमार मुन्ना बहुत समझदार है, ऊ आपन भौजी का समझा देइ और नेहा तो छोट है और थोड़ा बहुत रोइ पर फिर भूल जाई!

बड़की अम्मा ने मेरी तरफदारी करते हुए कहा|

माँ: दीदी आपने इसे बड़ी शय दी है|

माँ ने बड़े प्यार से बड़की अम्मा से शिकायत की, जिसे सुन पिताजी भी माँ के साथ हो लिए और मेरी गलती निकालते हुए बोले;

पिताजी: भाभी तुहुँ ई का बहुत सर चढ़ाय हो, ई की माया की बजह से कउनो ऊँच-नीच भई तो?

पिताजी का तातपर्य भौजी के माँ बनने से था, परसों भई अगर वो आज ही की तरह बेहोश हो गईं या फिर कुछ ऐसा हुआ जिससे उनकी प्रेगनेंसी खतरे में आई तो?!

बड़की अम्मा: कछु न होइ, हमार मुन्ना बहुत समझदार है! जा मुन्ना तू अंदर जाए के सोइ ले, कल से बहुत परेशान रह्यो!

बड़की अम्मा ने बात को संभालते हुए मुझे वहाँ से भेज दिया, लेकिन उनका ये मुझे समझदार कहना मेरे लिए तकलीफ दायक साबित हुआ| भौजी की हालत देख के मुझे भी पिताजी द्वारा दिखाया हुआ दर साफ़ दिखने लगा था, मेरे न होने पर भौजी के माँ बनने पर ग्रहण लगना तय था! जब वो (भौजी) मेरा वाराणसी जाते समय किया हुआ मजाक बर्दाश्त नहीं कर पाईं तो ये सब कैसे बर्दाश्त कैसे करतीं?!

मैं सर झुकाये हुए वापस अंदर आ गया और वापस चारपाई पर सर झुकाये बैठ गया, सोने की या लेटने की बिलकुल इच्छा नहीं थी, आँखों से नींद उड़ जो चुकी थी! सर झुका के मैं Sunday के बारे में सोचने लगा, परसों अगर यही सब फिर हुआ तो मैं कहीं नहीं जाऊँगा, लेकिन फिर घर में जो कोहराम मचेगा उसका क्या? ये प्यार सब से कैसे छुपेगा? सब हम दोनों को ले कर गन्दी-गन्दी बातें करने लगेंगे और अगर मैं फिर भी चला जाऊँ तो यहाँ भौजी का क्या हाल होगा?! वो रोर-रो कर फिर बीमार पड़ गईं तो? इन सवालों का बीएस एक ही हल था, वो ये की मैं भौजी से बात करूँ उन्हीं समझाऊँ! लेकिन नेहा का क्या?! उस छोटी बच्ची को मैं कैसे समझाऊँगा, वो तो छोटी बच्ची है वो दिमाग से नहीं दिल से सोचती है!

कल रात मैं आसमान में देखते हुए अपनी परेशानी का हल ढूँढ रहा था और आज जमीन को देखते हुए अपने सवालों का जवाब ढूँढ रहा हूँ! तभी दिमाग बोला; 'जब आसमान ने तेरी परेशानी का हल नहीं दिया तो जमीन क्या हल देगी तेरी परेशानियों का?' ये ख्याल आते ही चेहरे पर एक चिढ पैदा हो गई, इधर मैं इस उधेड़-बुन में लगा था की भौजी उठ गईं और उन्होंने मुझे सर झुका कर बैठे देखा तो बोलीं;

भौजी: आप सोये नहीं? कब तक इस तरह खुद को कष्ट देते रहोगे?!

भौजी ने उठ के बैठते हुए कहा|

मैं: जब तक आप एक Smile नहीं देते!

मैंने भौजी से थोड़ी दिल्लगी करनी चाही ताकि वो थोड़ा मुस्कुराएँ, पर उनका दिल अंदर से बहुत दुखी था इसलिए वो खीजते हुए बोलीं;

भौजी: Smile??? आप Sunday को 'जा' रहे हो, 'वापस' आ नहीं रहे जो मैं हँसूँ, मुस्कुराऊँ!

ये सुन कर मेरा सर फिर से झुक गया|

भौजी: आपने मुझे नेहा को उस वक़्त कुछ बताने क्यों नहीं दिया?

भौजी ने अपना अगला सवाल दागा|

मैं: वो बेचारी स्कूल से खाली पेट, थकी-हारी आई थी और से में आप उसे ये खबर देते तो वो रोने लगती! जब वो उठेगी तो मैं उसे सब बता दूँगा|

मेरी बात सुन उन्हें मेरा नेहा के प्रति प्यार दिखा इसलिए उन्होंने थोड़ा नरम रुख इख्तियार किया;

भौजी: ठीक है! आप थोड़ी देर सो जाओ थकान आपके चेहरे से झलक रही है|

मैं: नहीं! मैं Sunday को 'जा' रहा हूँ, 'वापस' आ नहीं रहा जो चैन से सो जाऊँ|

मैंने भौजी को उन्हीं की कही बात का उल्हना देते हुए कहा, ताकि वो मुस्कुराएँ पर हाय रे मेरी किस्मत! भौजी वैसी की वैसी, गुम-सुम और उदास!

दो मिनट तक दोनों खामोश रहे, मेरी नजरें झुकी हुईं थी और भौजी की नजरें मुझ पर गड़ी हुईं थी| तभी मुझे कुछ याद आया;

मैं: वैसे एक बात तो बताना, आपको मेरे जाने की ये ये खबर दी किसने?

मैंने भौजी को पैनी नजरों से देखते हुए पुछा|

भौजी: रसिका ने!

भौजी ने नजरें चुराते हुए कहा, इधर रसिका नाम सुनते ही मेरा गुस्सा धधक उठा और मैंने आँखें तर्रेर कर भौजी से पुछा;

मैं: और Exactly क्या कहा उसने?

फिर भौजी ने मुझे बताया की सुबह मेरे नेहा को स्कूल छोड़ कर आने के बाद आखिर हुआ क्या था|

मैं छप्पर के नीचे बैठी सब्जी काट रही थी जब रसिका मेरे पास आई और बोली;

रसिका भाभी: दीदी मानु भैया परसों जावत हैं और तू हियाँ बैठी मुस्कुराहट हो?! हमका तो लागत रहा तू रोत-रोत पागल हुई जाइहो, आखिर मानु भैया से इतना प्यार जउन करत हो!

उसकी ये बात सुनते ही मेरे जिस्म में मिर्ची लग गई और मैं उस पर बरस पड़ी;

भौजी: का बक्त है?! ऊ हमका छोड़ के कहीं न जइहें!

रसिका भाभी: हाय दैय्या! तू नाहीं जानत हो का? सारा घरभर जानत है की काका-काकी रविवार का जावत हैं| का तोहार ऊ देवर (मैं) तोहका नाहीं बताईं?

रसिका ने अपनी गन्दी चाल चलते हुए हमारे रिश्ते में आग लगा दी|

भौजी: देख हमसे बकवास ना कर वरना एहि लागे तोहार टुकड़े-टुकड़े कर देब!

मैंने रसिका को हँसिया दिखाते हुए गुस्से से कहा|

रसिका भाभी: जाये के आपन ऊ देवर से पूछ तो लिहो की काहे तोहसे आपन जाए की बात छुपावत हैं?!

रसिका ने गंभीर होते हुए कहा, पर मेरा आप पर इतना कठोर विश्वास था की मैं उसी पर गरजते हुए बोली;

भौजी: ऊ हम से कछु नाहीं छुपावत हैं, तू बीएस हियाँ ठहर हम वापस आये के तोहार चमड़ी उधेड़ देब!

ये कहते हुए मैं गुस्से कड़ी हुई की तभी उसने कुछ ऐसा कहा जिसने मेरे मन में आपके लिए शक पैदा कर दिया;

रसिका भाभी: हाँ-हाँ जाओ और रट हुए हियाँ आइहो तब पता चली! ऊ सहरी लड़िकवा तोहसे कउनो प्यार-व्यार नाहीं करत, ऊ का जो चाही ऊके लिए तोहका आपने बातों में फाँस लिहिस तोहका, वरना ऊ काहे तोहसे आपन जाए की बात छुपावत है?! अरे और तो और अम्मा आज भोर रसोई में बैठीं कहत रहीं की हम तोहार (मेरी) जाने की बात बहु से बता देइत है, तो ई ससुर उनका भी रोक दिहिस! ई तो हम मुरहा निकलन जो तोहका आपने मान के सब बता दिहिन और तू हम हीं का गरियात हो?! बहुत पछतैहो!!!

(रसिका की बात सुन कर मैं समझ गया की सुबह जब बड़की अम्मा चाय बना रहीं थीं तो जो काला साया मैंने देखा था वो रसिका का ही था, वो ही कलमुही छुप कर हमारी साड़ी बात सुन रही थी और उसी ने ये शातिर चाल चली थी| एक तीर से मेरा बच्चा और भौजी का मेरे प्रति प्यार खत्म हो जाता है!)

"उसकी बात सुन कर मुझे कल की सारी बातें याद आ गईं, वो आपका सारा दिन मेरे साथ बिताना, मेरा आपकी इच्छाएँ पूरी करना और मैं आपको गलत समझ बैठी| जब मैंने आपसे पुछा की आप परसों वापस जा रहे हो तो आपने बिना कुछ कहे अपना सर झुका लिया और मेरे मन के सारे गंदे ख्याल सच साबित हो गए और मैंने आपको वो सब गुस्से में आ कर कहा| मुझे माफ़ कर दो...." भौजी आगे कुछ कहतीं उससे पहले ही मैं जोश में उठ खड़ा हुआ| भौजी की सारी बातें सुनने के बाद मेरे तन बदन में आग लग गई और अब ये आग रसिका को भस्म करने के बाद ही बुझती|

मैं: मैं अभी आया!

मैंने गुस्से से लाल होते हुए कहा| मेरा गुस्सा देख भौजी चिंतित हो गईं;

भौजी: कहाँ जा रहे हो आप?

मैं: बस अभी आया और आपको मेरी कसम है जो आप यहाँ से हिले भी तो!

मैंने भौजी को अपनी कसम से बाँधा और तेजी से बाहर निकला, भौजी ने मुझे पीछे से पुकारा;

भौजी: नहीं रुको...

पर मैं उनकी अनसुनी कर के तेजी से रसोई की तरफ चल दिया| भूसे वाले कमरे के बाहर मुझे लकड़ी की एक छड़ी दिखी, उसे देखते ही रसिका से बदला लेने की सूझी और मैंने वो छड़ी उठा ली| माँ-पिताजी, बड़के दादा, चन्दर और अम्मा उस वक़्त हमारे छोटे वाले खेत में आम का पेड़ के तले बैठ हुए थे| यहाँ मैं पाँव पटकते हुए मैं छप्पर के नीचे जा पहुँचा और वहाँ पहुँच कर देखा तो रसिका चारपाई पर पड़ी हुई है, उसे देखते ही मेरी गुस्से की आग और भड़क उठी| गुस्से से सुर्ख लाल आँखें, दिल जल रही नफरत की आग से गरजते हुए मैं बोला;

मैं: रसिका!!!

रसिका के पैर चारपाई के बाहर लटके हुए थे, मैंने गरजते ही उन पर खींच का छड़ी मारी, पर मेरे गरजने के कारन रसिका ने फ़ौरन अपने पाँव हटा लिए जिससे वो बच गई| मेरा गुस्सा देख उसकी हालत बुरी थी, सेकंड नहीं लगा और उसकी आँखों से गंगा-जमुना बहने लगी|

मैं: पड़ गई तेरे कलेजे को ठंडक कुतिया? लगा दी ना तूने हम दोनों के बीच आग? क्या खुजली मची थी तुझे जो तूने उन्हें (भौजी) को मेरे जाने की बात बताई?

मैंने जोर से चिल्लाते हुए एक बार छड़ी उठा के रसिका की सुताई करनी चाहि पर तभी बड़की अम्मा दौड़ी-दौड़ी आईं और मेरा हाथ रोक लिया पर वो मेरे हाथ से वो छड़ी नहीं ले पाईं| घर में मौजूद हर एक शक़्स ने मेरी गर्जन सुनी थी और सभी घर की ओर आ रहे थे, इधर बड़की अम्मा ने मुझसे मेरे घुसे का कारन पुछा;

बड़की अम्मा: का हुआ मुन्ना? काहे इतना आग बबूला होवत हो?!

मैं: अम्मा...इसी औरत ने उनको (भौजी को) मेरे जाने की बात बताई थी! उनकी हालत देखि है न आपने? सुबह से वो बस रोये जा रहीं हैं, सब इसी कुतिया के करना हुई है! आज सुबह जब आप चाय बना रहे थे और मैं आपसे बात कर रहा था, तब ये छप्पर के नीचे छुपी हमारी बातें सुन रही थी और सब जानते हुए भी इसी ने आग लगाई!

मेरी बात सुन बड़की अम्मा ने गुस्से से रसिका को देखा, पर तभी रसिका अपनी सफाई देते हुए बोली;

रसिका भाभी: अम्मा तुहिं बताओ हम काहे आग लगाबे?!

बड़की अम्मा: छिनाल हमें न सीखा, जान्यो! हम सब जानित है की तू हमार नाहीं रहते पीछे से का-का किहो है? बहुत गर्मी चढ़ी है न तोहार बुर मा!

बड़की अम्मा ने बिना मेरी परवाह करते हुए रसिका से गुस्से में कहा, पर रसिका ने मेरे ओर भौजी के ऊपर ही कीचड उछाला;

रसिका भाभी: तो ई बड़ा दूध का धुला है, ई भी तो आपने भौजी के ऊपर.....

रसिका की आधी बात सुनते ही मैंने फिर उसे मारने को छड़ी उठाई पर अम्मा ने पहल करते हुए उसकी अधूरी बात सुनते ही उसे खींच के थप्पड़ मारा!

बड़की अम्मा: चुप कर जा राँड! आपन नाम धोये खातिर मुन्ना का बदनाम करत है! तू तो सुरु से ही आपन मर्वात आई है, सादी से पहले आपन यार संगे मुँह काले किहो ओर अब हमार घर गंदा करा चाहत है! निकल जा हियाँ से वरना तोहका काट डालब!

रसिका अपने टेसुएं बहाते हुए जाने लगी की तभी पिताजी ने पीछे से मेरे बाएँ कंधे पर हाथ रख मुझे अपनी तरफ झटके से घुमाया ओर एक खींच कर थप्पड़ मेरे दाएँ गाल पर मारा| हमला अचानक हुआ था इसलिए मैं लड़खड़ा गया, पिताजी समेत सभी घरवालों ने सारी बातें सुन ली थीं, रही सही कसर जो मेरे हाथ में छड़ी थी उसे देख कर पिताजी ने ये समझा की मैंने रसिका भाभी पर हाथ उठाया है| इसीलिए आज मुझे जिंदगी में पहलीबार पिताजी का झन्नाटे दार तमाचा नसीब हुआ था! बचपन में मुझे डराया जाता था, पीठ पर जोर से मारा था या फिर डंडे से तुड़ाई की थी पर थप्पड़ खाने लायक मैंने आजतक कोई काम नहीं किया था! लेकिन पिताजी का तमाचा खा कर भी मेरी आँखों में आँसूँ का एक कतरा नहीं आया क्योंकि आँखों में अब भी रसिका की पिटाई न करने का गुस्सा था|

पिताजी: अपने से बड़ों पर हाथ उठायगा, गाली बकेगा यही संस्कार दिए मैंने तुझे?!

पिताजी ने जोर से चिल्लाते हुए कहा|

मैं: ये इसी लायक है!

मैंने तुनक कर कहा तो पिताजी ने उलटे हाथ का जोरदार तमाचा मारा| ये तमाचा इतनी तेज था की उनकी पाँचों उँगलियाँ मेरे गाल पर छप गईं और मेरा निचला होंठ काटने से दो बूँद खून बह निकला|

पिताजी: बद्तमीज कुत्ते! तूने आज मेरी मट्टी पलीत कर दी! बड़ा गर्व था मुझे तुझ पर और तूने सारा नास कर दिया!

पिताजी ने गुस्से से कहा, पर मेरे चेहरे पर कोई ग्लानि या डर न देख उनका गुस्सा और भड़क गया तथा उन्होंने मुझे मारने के लिए फिर से हाथ उठाया| लेकिन इस बार बड़की अम्मा सामने आ गईं और पिताजी से गुस्से में बोलीं;

बड़की अम्मा: पगला गए हो का मुन्ना (पिताजी)?! ई का करत हो, जवान लड़िकवा पर हाथ उठावा जात है?! ऊ कछु नहीं करिस है, सब ई (रसिका भाभी) कुलटा, कुलनासनी करिस ही!

लेकिन पिताजी का गुस्सा शांत नहीं हो रहा था, तो बड़की अम्मा ने मुझसे बोलीं;

बड़की अम्मा: मुन्ना तू जा हियाँ से, हम बात करित है!

इधर अब भी मेरे अंदर का गुस्सा शांत नहीं हुआ, मैं बस रसिका को उस डंडे से सूतना चाहता था| एकबार को तो मनकिया की रसिका को ये डंडा रसीद कर ही दूँ पर फिर पिताजी के संस्कार बीच में आ गए, इसलिए मैंने पिताजी को अपना गुस्सा जाहिर करते हुए डंडे को अपने दाहिने पैर के घुटने से मोड़ के तोड़ दिया और ये देख के पिताजी का गुस्सा चरम पर पहुँच गया! वो मुझे मारने को लपके, लेकिन तभी अम्मा और माँ ने मिल के उन्हें रोक लिया| वहीं घर के बाकी सभी मर्द हाथ बाँधे ये तमाशा देख रहे थे, बड़के दादा हालाँकि उम्र में बड़े थे और चाहते तो पिताजी को एक बार में रोक सकते थे पर वो शायद इसलिए बीच में नहीं पड़े क्योंकि पिताजी की ही तरह वो भी मुझे ही गलत समझ रहे थे| जबकि चन्दर खड़ा हुआ मुस्कुरा रहा था| मुझे पड़े वो दो थप्पड़ उसके जलते हुए सीने पर बर्फ के समान थे!

मुझे पिताजी के थप्पड़ खाने से कोई फर्क नहीं पड़ा था, बुरा बस रसिका की सुताई न कर पाने का लग रहा था| खैर मैं बड़े घर वापस पहुँचा तो पाया की भौजी दरवाजे पर नजरें गाड़े बैठीं हैं| जब मैं उनके कुछ नजदीक पहुँचा तो उनकी नजर मेरे दोनों गालों पर पड़ीं जिन पर पिताजी की उँगलियाँ छपी हुई थीं, निचला होंठ जो थोड़ा कट गया था और मेरे होठों के किनारे से जो दो बूँद खून निकला था उसे देख कर भौजी की जान ही निकल गई!

[color=rgb(147,]जारी रहेगा भाग 4 में...[/color]
 

[color=rgb(243,]उन्नीसवाँ अध्याय: बिछड़न![/color]
[color=rgb(184,]भाग -4[/color]


[color=rgb(65,]अब तक आपने पढ़ा....[/color]

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घर के बाकी सभी मर्द हाथ बाँधे ये तमाशा देख रहे थे, बड़के दादा हालाँकि उम्र में बड़े थे और चाहते तो पिताजी को एक बार में रोक सकते थे पर वो शायद इसलिए बीच में नहीं पड़े क्योंकि पिताजी की ही तरह वो भी मुझे ही गलत समझ रहे थे| जबकि चन्दर खड़ा हुआ मुस्कुरा रहा था| मुझे पड़े वो दो थप्पड़ उसके जलते हुए सीने पर बर्फ के समान थे!

मुझे पिताजी के थप्पड़ खाने से कोई फर्क नहीं पड़ा था, बुरा बस रसिका की सुताई न कर पाने का लग रहा था| खैर मैं बड़े घर वापस पहुँचा तो पाया की भौजी दरवाजे पर नजरें गाड़े बैठीं हैं| जब मैं उनके कुछ नजदीक पहुँचा तो उनकी नजर मेरे दोनों गालों पर पड़ीं जिन पर पिताजी की उँगलियाँ छपी हुई थीं, निचला होंठ जो थोड़ा कट गया था और मेरे होठों के किनारे से जो दो बूँद खून निकला था उसे देख कर भौजी की जान ही निकल गई!
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[color=rgb(41,]अब आगे...[/color]
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भौजी की आँखें छलछला गईं थीं और उनके लिए कुछ कह पाना मुश्किल था| उन्होंने रोते हुए अपनी बाहें खोल के मुझे अपने पास बुलया और मैं जाके उनके गले लग गया| भौजी के गले लगने के बाद मैंने उन्हें भरोसा दिलाना चाहा की मैं ठीक हूँ;

मैं: Hey जान! मुझे कुछ नहीं हुआ, I'm Fine! देखो!

पर उनकी नजरें मेरे लाल गाल और कटे हुए होंठ पर थी!

भौजी: आपकी ये हालत कैसे हुई?

भौजी ने रोते हुए पुछा|

मैं: उस हरामजादी को सबक सिखाने गया था, लेकिन पिताजी बीच में आ गए!

भौजी ने अपनी साडी के पल्लू से मेरे होठों पर लगा हुआ खून पोछा और बोलीं;

भौजी: अब तो मुझे अपनी कसम से मुक्त कर दो?

मैं: क्यों? कहाँ जाना है आपको?

मैंने थोड़ा चिंतित होते हुए पुछा|

भौजी: अपने घर से दवाई ले आऊँ!

मैं: उसकी कोई जर्रूरत नहीं, आप बस मेरे पास बैठो| ये तो छोटा सा जख्म है, ठीक हो जायगा|

ये कहते हुए मैंने भौजी को वापस चारपाई पर बिठा दिया और मैं उन्हीं की बगल में बैठ गया, भौजी ने अपना सर मेरे दाएँ कंधे पर रख लिया| वो जी तोड़ कोशिश कर रहीं थीं की वो अपने इस दर्द भरे गुबार को अपने दिल में दबा सकें और मेरे सामने न रोएं, पर वो ये नहीं जानती थीं की मैं उनका दर्द महसूस कर पा रहा हूँ| उदास सी सूरत, आँखों में आँसूँ, बाल बिखरे हुए पर फिर भी चेहरे पर नकली हँसी लिए हुए वो खुद को सहज दिखाने की कोशिश कर रहीं थीं| तभी वहाँ अजय भैया आ गए, मैं फ़ौरन भौजी की बगल से उठ कर नेहा वाली चारपाई पर बैठ गया| वो सुबह से बाहर गए थे और उनके घर आकर उन्हीं सब बातें पता चली थीं, इसलिए वो भौजी का हाल-चाल पूछने आये थे|

अजय भैया: का हाल है भौजी?! हम सुनेन तुम बेहोश होइ गयो रहे?!

भौजी ये सुन कर थोड़ा असहज महसूस करने लगीं, फिर किसी तरह बात को संभालते हुए बोलीं;

भौजी: हाँ ऊ गर्मी बहुत है, तो तनिक जी घबड़ावत रहा|

अजय भैया: ऊ तो है भौजी! और मानु भैया का हल है? अम्मा बतावत रही की साड़ी रात नाहीं सोयो!

मैं: हाँ भैया....वो नींद नहीं आई....

मैंने उनसे नजरें चुराते हुए कहा| अजय भैया हम दोनों की असहजता देख समझ गए और उठ कर जाने लगे तो मैं भी उनके पीछे-पीछे हो लिया| हम दोनों प्रमुख दरवाजे के बहार खड़े थे और भौजी अंदर बैठीं हम दोनों को देख पा रहीं थीं, लेकिन बात नहीं सुन सकती थीं|

मैं: भैया वो....

मैं आगे कुछ कहता उससे पहले ही वो मेरी बात काटते हुए बोल पड़े;

अजय भैया: मानु भैया तू काहे हमका आपन भाभी के बारे में कछु नहीं बतायो?!

मैं: आप घर पर थे ही नहीं!

मैंने फटाक से जवाब दिया|

अजय भैया: ई सब ऊ छिनार की बजह से होत है, ससुरी हराम की जनि की बात सुन चाचा का दिल बहुत दुखा है! ऊ तोहसे बहुत रिसियाए हैं, अम्मा बड़ा समझाईं पर चाचा केहू की बात नाहीं सुनत रहे! तब अम्मा चाचा और बप्पा का मंदिर भेजिन वरना चाचा आज खून खराबा करे वाले रहे!

मैं पिताजी के इस गुस्से से वाक़िफ़ था और ये भी जानता था की जब तक उनका गुस्सा मुझ पर निकलेगा नहीं, तबतक उन्हें चैन नहीं आएगा| खैर मेरी चिंता इस समय मेरी बेटी और मेरी पत्नी तक ही सिमित थी, उनके लिए मैं आज मरने को भी तैयार था|

मैं: भैया जब तक पिताजी मुझे कूट नहीं लेते, तब तक वो शांत होने वाले नहीं! अभी के लिए मुझे उनकी (भौजी की) तबियत की बहुत चिंता है|

मैं भौजी को भौजी तो कह नहीं सकता था इसलिए मैंने उनकी तरफ इशारा करते हुए अपनी बात कही|

मैं: अब आप तो जानते ही हैं की उनका (भौजी का) मन बड़ा दुखी है, तो मैं सोच रहा था की अगर आप बाजार से कुछ खाने को ले आओ तो शायद उनका (भौजी का) मन खुश हो जाए|

बहार से खाने को मंगाने का तर्क ये था की नेहा कुछ देर में उठती और उसका मेरी जाने की बात सुनकर रोना तय था, ऐसे में बहार से खाने को कुछ होता तो उसका मन थोड़ा बहल जाता| भौजी का मन तो मैं अच्छी तरह से जानता था, वो किसी हाल में नहीं बदलने वाला था!

अजय भैया: सही कहेयो, चाट खाये के शायद सब का मूड ठीक हुई जाए! का लाइ?!

मैं: मेरे और उनके (भौजी) लिए दही-भल्ले, नेहा के लिए टिक्की, बाकी सब से पूछ लो वो क्या खाएंगे और पैसे पिताजी से ले लेना ये कह कर की बड़की अम्मा ने चाट मँगाई है!

पिताजी खाने पीने के मामले में कभी मन नहीं करते थे, फिर मैंने बड़की अम्मा का नाम इसलिए लिया, क्योंकि अगर उन्हें पता चलता की खाने-पीने की माँग मैंने की है तो पिताजी कस कर कूटते!

अजय भैया: ठीक है भैया, हम अभय जाइत है!

अब चाट तो अजय भैया को भी पसंद थी, तभी तो जाने को तैयार हो गए|

खैर मैं वापस आके भौजी के सामने बैठ गया, भौजी ने मेरी और अजय भैया की बात के बारे में कुछ नहीं पूछा| हम दोनों खामोश बैठे थे, भौजी की नजरें मुझ पर थीं और वो मुझे खो देने से डरी हुई थीं| मैं खुद को संभाले हुए बैठा था और उन्हीं देख रहा था, लेकिन बीच-बीच में मैं नेहा को सोते हुए भी देख रहा था| वो बेचारी ख़ामोशी से, बिना किसी चिंता के सो रही थी, उसके चेहरे की वो बेबाकी देख मुझे कुछ देर बाद उसका दिल तोड़ने का मलाल अभी से हो रहा था! आधे घंटे तक बरामदे में खामोशी छाई रही. पंद्रह मिनट और बीते की नेहा छोटे बच्चे की तरह अंगड़ाई लेते हुए उठ गई| उसने अपनी आँखें मलते हुए अपने मम्मी-पापा को देखा और इससे पहले की वो हमारी उदासी का कारन पूछती भौजी ने उसे पुकारा;

भौजी: नेहा ..बेटा इधर आओ|

नेहा मेरे पास से उठ के उनके पास अपनी आँख मलते-मलते पहुँच गई|

भौजी: बैठो बेटा.... मुझे आप को एक बात बतानी है|

भौजी ने बड़े भारी मन से बात कहनी चाही, पर मैंने उन्हें रोक दिया;

मैं: नहीं अभी नहीं!

मेरे रोकने से वो चिढ गईं;

भौजी: क्यों?

मैं: कहा ना अभी नहीं, अभी-अभी उठी है पहले इसे कुछ खा लेने दो|

मैंने भी थोड़ा चिढ़ते हुए कहा|

भौजी: आप क्यों टाइम बर्बाद कर रहे हो?!

भौजी ने तुनक कर कहा| मैंने भौजी को एक बार घूर कर देखा और नेहा से बोला;

मैं: नेहा बेटा आप मेरे पास आओ!

मैंने अपने दोनों हाथ खोले तो नेहा मेरे पास आने को उठी, पर भौजी ने उसका हाथ पकड़ लिया और उसे मेरे पास नहीं जाने दे रही थीं, लेकिन मेरी बिटिया मेरे पास आने को छटपटाई| इतने में अजय भैया चाट ले के आ गए और भौजी ने नेहा का हाथ एकदम से छोड़ दिया, नेहा मेरी बगल में आ कर बैठ गई| अजय भैया के दूँ हाथों में चाट के तेन पत्तल थे, चाट देख कर मेरी बेटी खुश हो गई! अजय भैया ने दही-भल्ले वाली पत्तल भौजी की ओर बढ़ाई;

अजय भैया: लो भौजी चाट खाओ! फिर देख्यो मूड खुश हुई जाई!

अजय भैया ने जोश में कहा|

भौजी: नहीं भैया मन नहीं है|

भौजी ने बिना देखे कहा|

मैं: क्यों मन नहीं है? ठीक है, मैं भी नहीं खाऊँगा!

मैंने उनसे रूठते हुए कहा, मेरी देखा-देखि नेहा भी फ़ट से बोली;

नेहा: मैं भी नहीं खाऊँगी!

नेहा ने जिस भोलेपन से मना किया था, उसे देख अजय भैया की हँसी छूट गई, पर हम दोनों अब भी एक दूसरे की आँखों में देखते हुए सवाल-जवाब कर रहे थे|

'जब जा ही रहे हो तो क्यों ये सब कर रहे हो, क्यों मुझे हँसाना-बुलाना चाहते हो, रहने क्यों नहीं देते मुझे इस तरह रोते-बिलखते, क्या हासिल होगा आपको?!' भौजी की आँखों ने मुझसे सवाल किया|

'मैं वापस आने के लिए जा रहा हूँ, आपकी जिंदगी से दूर थोड़े ही जा रहा हूँ?! ये तो बस भूगोलिक फासला है, मन तो मेरा हमेशा आपके पास ही रहेगा!' मेरी नजरों ने जवाब दिया|

वहीं इस सवाल-जवाब से बेखबर अजय भैया ने हमारी नजरों की बातें काटते हुए कहा;

अजय भैया: खाये लिहो भौजी, नहीं तो केउ न खाई!

आखिर भौजी ने अजय भय के हाथ से पत्तल लिया और मुझे दिखाते हुए पहला चम्मच खाया| फिर भैया ने दूसरी प्लेट मुझे और नेहा को दी, मैं भी भौजी को दिखाते हुए खाने लगा| नेहा किसी भोले से बच्चे की तरह टिक्की खाने में मग्न हो गई, इधर अजय भैया जाने लगे तो मैं उनके साथ बाहर आया और पुछा;

मैं: भैया पिताजी ने कुछ खाया?

मैंने थोड़ा चिंतित होते हुए पुछा|

अजय भैया: चाचा अभी बप्पा लगे बैठे हैं और चाट खावत हैं! बाप्पा और चाचा आज रतिया का मंदिर में रहियें, कहेकी हुआ भागवत बैठी है| अम्मा कहत रहीं की जब तक ऊ (पिताजी) चले नाहीं जाते, तू उनका सामने ना पड़्यो!

भैया ने मुझे आगाह किया|

मैं: ठीक है भैया|

मैंने सर हिला कर उनकी बात मानी और वापस अंदर आ गया| नेहा को टिक्की में मिर्ची लग रही थी तो उसने आधा खा कर मुझे पत्तल दे दिया और मुझसे दही-भल्ले वाला दोना ले लिया| मैंने टिक्की कएक चम्मच भौजी को खिलाना चाहा, पहले तो उन्होंने मना किया पर फिर मेरा दिल रखने को खा लिया| उधर नेहा बड़े मजे से दही-भल्ले खा रही थी, इस बात से अनजान की अभी थोड़ी देर में उसका प्यारा सा दिल टूटने वाला है|

खाना-पीना हुआ और अब समय था नेहा को सच बताने का| मैंने नेहा को गोद में लिया और बड़े भारी मन से उसे सच बताने लगा;

मैं: बेटा.....मैं आपसे कुछ कहना चाहता हूँ.....आपक दुःख तो होगा...पर ....

इसके आगे बोलने की मेरी हिम्मत नहीं थी और न ही मेरे पास शब्द थे! कैसे मैं उस फूल जैसी नाजुक सी बच्ची को समझाऊँ की मैं उसे छोड़ के जा रहा हूँ| वहीं भौजी की नजरें मुझ पर टिकीं थीं और वो उम्मीद कर रहीं थीं की मैं ये कड़वी बात नेहा के सामने हर हालत में रखूँ|

मैं: बेटा... परसों ...मैं दिल्ली वापस जा रहा हूँ!

मैंने जैसे-तैसे नेहा से सच कहा, पर नेहा ने फट से सवाल पुछा;

नेहा: तो आप वापस कब आओगे?

नेहा का ये भोला सा सवाल सुन कर मैं स्तब्ध रहा गया, मैं जानता था की जैसे ही मैं साल बोलूँगा वो रोने लगेगी! पर सच तो उसे बताना था;

मैं: बेटा...

मैं आगे बोलता उससे पहले ही भौजी ने मेरी बात काट दी;

भौजी: कभी नहीं आएंगे|

अपनी मम्मी की बात सुनते ही नेहा ने कस कर अपने हाथों को मेरे गले के इर्द-गिर्द लपेटा और रोने लगी| भौजी की बात सुन कर मुझे बहुत गुस्सा आया और मैंने उन्हीं दाँत पीसते हुए घूर कर देखा, मेरी आँखों में गुस्सा देख कर भी भौजी को कोई फर्क नहीं पड़ा! वहीं मेरी बेटी बस रोये जा रही थी, उसका रोना मेरे लिए बर्दाश्त करना नमुमकिन था, तब एक बाप का दिल बाहर आया और उसने अपनी बेटी को कस कर अपने से चिपका लिया| अपना गुस्सा बाहर निकालते हुए मैंने भौजी को झाड़ा;

मैं: क्यों बकवास कर रहे हो! आपसे किसने कहा की मैं कभी नहीं आऊँगा?

फिर मैंने अपना ध्यान नेहा पर केंद्रित किया और उसके सर और पीठ को सहलाते हुए बोला;

मैं: मैं जर्रूर आऊँगा बेटा, अब चुप हो जाओ...मैं आऊँगा...मेरी प्यारी बेटी के लिए मैं जर्रूर आऊँगा!

माँ-बाप कभी बच्चों से झूठ नहीं बोलते, यही करना था की नेहा ने अपनी मम्मी की बात को सच मान लिया था| उधर नेहा का कोमल दिल मेरी बातों को मान नहीं रहा था, अपने पापा से जुदा होने के दर्द के कारन वो चुप होने का नाम ही नहीं ले रही थी| उसके नन्हे-नन्हे हाथों का फंदा जो उसने मेरे गले के इर्द-गिर्द बनाया था वो कसने लगा था, क्योंकि उसे लग रहा था की मैं अभी उसे छोड़ के जा रहा हूँ|

मैं: बेटा बस...बस...चुप हो जाओ...मम्मी पागल है...वो झूठ बोल रही हैं ...मैं आऊँगा...अपनी लाड़ली बेटी को ऐसे ही थोड़े छोड़ दूँगा!

मैंने नेहा के दाएँ गाल को चूमते हुए कहा|

मैं: आप जानते हो न सबसे ज्यादा मैं आपको प्यार करता हूँ, फिर आपके बिना मैं कैसे रहूँगा?!

मैंने नेहा से तर्क किया, पर कोई फायदा नहीं हुआ!

मैं: मेरा बच्चा...मैं जब आऊँगा ना तो आपके लिए ढेर सारी फ्रॉक्स लाऊँगा... और चिप्स....और खिलोने...और ...और.... barbie doll लाऊँगा| फिर हम मिलके खूब खेलेंगे..खूब घूमेंगे...खूब रस मलाई खाएंगे!

मैंने नेहा को ढेरों प्रलोभन दिए पर मेरी बेटी टस से मस न हुई, उसे सिर्फ अपने पापा चाहिए थे और कुछ नहीं!

नेहा का रोना देख कर मुझे भौजी पर गुस्सा आने लगा था, इसलिए मैंने उन्हें डाँटते हुए कहा;

मैं: क्या जर्रूरत थी ये बोलने की?

मेरी डाँट सुन भौजी फ़ट से बोलीं;

भौजी: और आपको क्या जर्रूरत है उसे जूठा दिलासा देने की?

भौजी की आवाज में उनका गुस्सा साफ़ दिख रहा था|

मैं: मैंने कब कहा की मैं अब कभी नहीं आऊँगा!

मैंने पिंकटे हुए कहा और फिर इन चंद मिनटों में, नेहा का रोना देख कर जो बाप का दिल सोच रहा था वो बोलने लगा;

मैं: तीन महीने बाद दसहरे की छुटियाँ हैं, मैं अपनी लाड़ली को मिलने उन छुट्टियों में आऊँगा! उसके बाद दिसम्बर में सर्दियों की छुटियाँ आएँगी, तब फिर मैं अपनी बेटी को मिलने आऊँगा, फिर अगले साल फरवरी का पूरा महीना छुट्टी है, तो मैं और नेहा फिर मिलेंगे!

मैंने नेहा के बालों को चूमते हुए कहा| लेकिन भौजी ने मेरे सारे प्लान चकना चूर कर दिए;

भौजी: अच्छा? दसहरे की छुट्टियाँ होती हैं 10 दिन की, उसमें से दो दिन आने जाने में लग जायेंगे तो यहाँ बस 8 दिन के लिए आ पाओगे या फिर पिताजी आने देंगे?! सर्दियों की छुट्टी के बाद प्री-बोर्ड्स होंगे, उसके लिए नहीं पढ़ना?! फरवरी महीना छुट्टी है, पर उसके अगले महीने बोर्ड्स हैं तो पढ़ाई करोगे या अपनी बेटी से प्यार करोगे? दोनों करना आपके बस की बात है?!

भौजी की बात सही थी पर वो एक बाप के दिल को नहीं समझ रहीं थीं, जब बेटी रोती है तो दिमाग सही-गलत नहीं सोचता! जिस बात से मेरी बेटी रोना बंद कर दे वो सही और जिससे वो रोये वो गलत!

भौजी की ये बात सुन नेहा और जोर से रोने लगी, मैं उसे गोद में लेकर भौजी से दूर आ गया और उसे समझाने लगा;

मैं: मेरा बच्चा, रोना नहीं! आप पापा से प्यार करते हो न?

मेरा सवाल सुन नेहा ने अपने हाथों की पकड़ ढीली की और मेरी आँखों में देखते हुए हाँ में सर हिलाया| मैंने नेहा की आँखों से आँसूँ पोछे और उसके मस्तक को चूमते हुए बोला;

मैं: बेटा आप जानते हो न मैं आपसे कभी कोई झूठा वादा नहीं करता?!

नेहा ने सर हाँ में हिलाया|

मैं: I promise ...मतलब मैं आपसे वादा करता हूँ की मैं दसहरे की छुट्टी में आऊँगा और अपनी प्यारी बेटी के लिए फ्रॉक लाऊँगा....और चिप्स...ठीक है?

ये सुन कर नेहा के चेहरे पर एक मुस्कान आ गई|

मैं: और मैं सिर्फ आपके लिए आऊँगा, आपके साथ खेलूँगा, आपको प्यारी करूँगा....आपकी मम्मी गई तेल लेने!

ये सुन कर नेहा हँस पड़ी और अपनी मम्मी को ठेंगा दिखा कर चिढ़ाने लगी| ये देख कर भौजी बहुत हैरान हुईं, चूँकि वो हमसे दूर बैठीं थीं तो बात सुन नहीं पाइन थीं| खैर मैं नेहा को गोदी में ले कर टहलने लगा और उसे बताने लगा की मेरे वापस आने पर हम दोनों कितना मजा करेंगे, ये सब सुनते-सुनते नेहा मेरे कंधे पर सर रख कर सो गई|

कुछ देर बाद माँ आ गईं और भौजी से उनका हाल-चाल पूछने लगीं;

माँ: क्या हाल है तेरा बहु?

भौजी: ठीक हूँ माँ!

भौजी ने माँ से नजरें चुराते हुए जवाब दिया ताकि माँ उनकी बिगड़ी हुई हालत न देख लें! अब सुबह से जो बस रोये जा रहा हो, उसकी हालत सामन्य तो होती नहीं, भौजी बस इसी को छुपाना चाहती थीं| उधर माँ की नजर मुझ पर पड़ी, मैं आँगन में टहलते हुए नेहा की पीठ थपथपा कर उसे सुला रहा था|

माँ: तू वहाँ क्या चक्कर लगा रहा है? और नेहा सो गई क्या? अभी तो उसने कुछ खाया भी नहीं और तू उसे सुला रहा है?!

माँ ने मुझे डाँटते हुए कहा|

भौजी: माँ...वो नेहा बहुत रो रही थी...और अभी रोते-रोते सो गई!

भौजी ने मेरी शिकायत करते हुए कहा|

माँ: रो रही थी?

माँ ने हैरान होते हुए पुछा तो मैंने उन्हें सच बताया;

मैं: मैंने उसे अपने जाने की बात बताई तो वो रो पड़ी!

माँ: तू पागल है क्या?! दे इधर बच्ची को|

ये कहते हुए उन्होंने नेहा को मेरी गोद से ले लिया और मुझे फिर डाँटते हुए बोलीं;

माँ: क्या जर्रूरत थी तुझे इसे कुछ बताने की, अपने आप एक दो दिन बाद सब भूल जाती|

अब मैं माँ को कैसे बताता की ये वो रिश्ता नहीं जो एक-दो दिन में भुलाया जा सके!

फिर माँ ने मुझे इशारे से घर के बाहर बुलाया और बोलीं;

माँ: देख बेटा, मैं जानती हूँ तू गलत नहीं है! मुझे मेरे खून पर पूरा यक़ीन है, पर तेरे पिताजी कान के कच्चे हैं और इसीलिए उन्होंने अभी तक दीदी (बड़की अम्मा) की पूरी बात नहीं सुनी| दीदी ने मुझे सब बताया की कैसे वो गन्दी औरत तेरे पीछे पड़ी थी और कैसे तूने वो सब झेला है!

फिर माँ ने मेरे गाल पर धीमे से एक थप्पड़ मारा और बोलीं;

माँ: तूने मुझे क्यों नहीं बताया, मैं तेरी माँ हूँ न?!

मैं: माँ शर्म आती थी की कैसे ये सब आपको कहता, फिर ये भी डर था की आप मेरी बात मानोगे या नहीं!

मैंने सर झुकाये हुए कहा तो माँ ने मेरे सर पर हाथ फेरा और बोलीं;

माँ: कोई विश्वास करे चाहे न करे, मैं अपने खून पर कभी शक़ नहीं करती! आगे से मुझसे कुछ छुपाया तो मारूँगी खींच के!

माँ ने प्यार से मुझे डराते हुए कहा, जबकि आज तक उन्होंने मुझे कभी नहीं मारा, हाँ डाँटती खूब हैं पर फिर प्यार भी खूब करती हैं|

माँ: अब बेटा अपनी भौजी को समझा ताकि हमारे जाने के बाद वो अपना ख़याल रखे और बीमार न पड़े! और हाँ अपने पिताजी की चिंता मत कर, तेरी माँ अभी जिन्दा है और मेरे होते हुए वो तुझे कुछ नहीं कर सकते|

इतना कह कर माँ नेहा को लेकर चली गईं, अब बड़े घर में बस मैं और भौजी रह गए थे| जैसे ही मैंने भौजी से बात शुरू की, वो एकदम से उखड़ते हुए बोलीं;

भौजी: मुझे अपनी कसम से आजाद कर दो!

ये सुन कर मैं चौंक गया;

मैं: कर दिया| अ...

मैं आगे कुछ बोलता उससे पहले ही वो उठीं और अपने घर चली गईं| मैं कुछ देर अकेला बड़े घर में बैठा रहा और अपने अंदर उठ रहे दर्द को दबाने लगा, मेरे कारन मेरे पिताजी का सर शर्म से नीचे हुआ था, मेरी प्यारी बेटी आज इतना रोइ थी और हम दोनों के पाक रिश्ते के बीच दरार आने लगी थी| भौजी का यूँ उखड़ना मुझसे बर्दाश्त नहीं हो रहा था और मैं मन ही मन रो रहा था, बस आसुओं को बाहर आने नहीं दे रहा था|

खैर कुछ देर बाद मैं भी बड़े घर में टाला लगा कर कुएँ के पास वाले आँगन में आ गया, रात हो चुकी थी और माँ तथा बड़की अम्मा खाना बना रही थीं| बड़के दादा और पिताजी मंदिर भागवत सुनने रुके थे और वहीं पर प्रसाद तथा खाने-पीने का प्रबंध था, भागवत साड़ी रात चलनी थी तो वे वहीं रुकने वाले थे| अजय भैया और चन्दर दोनों चारपाई पर बैठे थे, मुझे देखते ही चन्दर का मुँह सड़ गया| अजय भैया ने मुझे अपने पास बुलाया, पर मैंने नकली मुस्कान के साथ उन्हीं मना कर दिया और सीधा भौजी के घर में घुस गया| भौजी आँगन में चारपाई पर लेटी हुई थीं, उनकी आँखें आसमान पर टिकी थीं और आँखें नम थीं| भौजी की ये हालत मुझसे देखि नहीं जा रही थी और मेरे मन में गंदे-गंदे ख़याल आने लगे थे, एक अजीब सा डर मुझे सताने लगा था की मैं भौजी को खो दूँगा! मैंने भौजी को समझाने को जैसे ही मुँह खोला की बड़की अम्मा खाने को बोलने आईं, मैं उन्हीं के साथ बाहर आ गया और आँगन में अलग खड़े हो कर उनसे घबड़ाते हुए बोला;

मैं: अम्मा ...मुझे एक बात करनी थी आपसे| आज दिनभर इन्होने (भौजी ने) मुझसे ठीक से बात नहीं की, मैं जब भी इन्हें समझाने की कोशिश करता तो ये नहीं सुनती या फिर उठ कर चली जातीं! मेरा मन बहुत घबरा रहा है, इसलिए मैं आपसे विनती करता हूँ की आज रात मैं इनके घर में सो जाऊँ?!

मैंने बड़की अम्मा के आगे हाथ जोड़ते हुए कहा|

बड़की अम्मा: ठीक है मुन्ना, कउनो बात नाहीं!

बड़की अम्मा ने मुस्कुराते हुए मेरे सर पर हाथ फेरते हुए कहा| फिर मैं अम्मा के साथ भोजन लेने रसोई पहुँचा और बड़की अम्मा ने हम तीनों का खाना परोस दिया| मैंने उनसे नेहा के बारे में पुछा तो वो बोलीं की नेहा माँ के साथ खेत (बाथरूम) गई है| फिर मैंने आस-पास नजर दौड़ाई तो देखा की रसिका छप्पर के नीचे चारपाई पर पड़ी है| मैंने उसे कुछ नहीं कहा और चुपचाप थाली ले कर भौजी के घर आ गया|

मैं: चलो खाना खा लो?

मैंने भौजी से बड़े प्यार से कहा, पर भौजी ने दूसरी तरफ मुँह कर लिया और बोलीं;

भौजी: पर मुझे भूख नहीं है!

मैं: जानता हूँ, मुझे भी नहीं है पर अगर हम दोनों ही नहीं खाएंगे तो नेहा भी नहीं खायेगी|

मैंने नेहा का तर्क दिया, इतने में माँ नेहा को ले कर आ गईं और नेहा को मेरी गोद में देने लगीं| मैंने खाने की थाली दूसरी चारपाई पर रखी और नेहा को गोद में लिया|

माँ: ले संभाल अपनी लाड़ली को, जब से उठी है तब से तेरे पास आने को मचल रही है| ठीक से बाथरूम भी नहीं जाने दिया!

माँ ने नेहा के गाल पर प्यार से एक चपत लगाई और नेहा मुझसे लिपट कर हँसने लगी| मैंने नेहा का माथा चूमा और उसे प्यार से समझाते हुए कहा;

मैं: बेटा दादी जी को तंग नहीं करना चाहिए, वरना वो बहुत मारती हैं!

ये सुन कर नेहा हँस पड़ी, क्योंकि वो जानती थी की मेरी माँ यानी उसकी दादी जी उसे बहुत प्यार करती हैं|

नेहा: दादी जी मुझे बहुत प्यार करती हैं, वो मुझे कभी नहीं मारेंगी!

ये सुन कर माँ ने नेहा के सर पर हाथ फेरा, अब माँ का ध्यान भौजी पर गया जो दूसरी ओर मुँह कर के लेटी थीं| उन्होंने पहले मुझसे इशारे से पुछा की क्या हुआ तो मैंने खाने की थाली की तरफ इशारा कर दिया| माँ समझ गईं और भौजी से बोलीं;

माँ: बहु ऐसी हालत में कभी भूखे नहीं रहना चाहिए, इसलिए खाना जर्रूर खा लेना वरना ये नालायक (मैं) भी नहीं खायेगा|

भौजी माँ की बात सुन कर एकदम से उठ बैठीं और सर हाँ में हिला कर बोलीं;

भौजी: जी माँ!

भौजी माँ को कभी न नहीं कहतीं इसलिए मैंने माँ को आगे किया था!

खैर माँ चली गईं और हम तीनों खाना खाने बैठ गए, नेहा ने अपना मुँह खोला की मैं उसे पहला कौर खिलाऊँ पर मैंने मैंने पहला कौर भौजी को खिलाया और दूसरा नेहा को! मेरी प्यारी बच्ची मेरा ऐसा करने से बिलकुल नाराज नहीं हुई, इधर भौजी ने पहला कौर मुझे खिलाया और जैसे ही उन्होंने मेरी आँखों में देखा तो उन्हें मेरे दबे हुए दर्द का एहसास हुआ तथा उनकी आँखें फिर छलछला गई| मैंने फ़ौरन अपने बाएँ हाथ से उनके आँसूँ पोछे और उन्हें आगे रोने से मन किया, हम तीनों ने खाना खत्म किया| भौजी उठीं, हाथ मुँह धोया, मैंने जूठी थाली धोने को रखी और भौजी के घर में वापस पहुँच गया| मैंने आँगन में दो चारपाइयाँ दूर-दूर कर बिछाई, एक पर भौजी लेट गई और दूसरी पर मैं नेहा को अपनी छाती से चिपटा कर लेट गया| भौजी को लगा की मैं बस नेहा के सोने भर तक यहाँ सोऊँगा, पर मैं तो आज यहाँ सोने की इजाजत ले कर आया था| इतने में वहाँ चन्दर आ गया और मुझे लेटा हुआ देख कर आँखें तर्रेर कर बोला;

चन्दर: तो आज मानु भैया हियाँ सोइहें?

मैं: क्यों? पहली बार सो रहा हूँ क्या?! जब ये बीमार थीं तब भी तो रात भर मैं यहाँ था!

मैंने पिंकटे हुए जवाब दिया|

चन्दर: तब ई बीमार रही, अब कौन रोग है ई का?!

चन्दर भी तुनकते हुए बोला|

मैं: जा कर बड़की अम्मा से पूछो!

मैंने रुखा सा जवाब दिया और नेहा को अपने से चिपकाए भौजी की तरफ करवट ले ली| मेरा सीधा जवाब सुन चन्दर अपना इतना सा मुँह लेके चला गए| इधर भौजी हैरान होके मेरी ओर देखने लगीं और बोलीं;

भौजी: आप बहार ही सो जाओ वरना सब बातें करेंगे?

अब वो क्या जाने की बातें तो बहुत हो रही हैं, पर मैंने उन्हें बस इतना कहा;

मैं: करने दो बातें, अम्मा को सब पता है|

मेरा जवाब सुन कर भौजी खामोश हो गईं, आज दोपहर से वो मेरा बहुत तिरस्कार कर चुकी थीं और मेरी आँखों में मेरा दर्द देख कर अब फिर मुझसे भिड़ने की उनमें ताक़त बिलकुल नहीं थी| भौजी चुप-चाप दूसरी ओर करवट ले कर सो गईं, मैंने नेहा को कहानी सुनाई जिसे सुनते-सुनते वो जल्दी से सो गई| मैं कल रात से उल्लू की तरह जाग रहा था, इसलिए मुझे भी जल्दी नींद आना सौभाविक था| रात के दो बजे मेरा मन बेचैन होने लगा था इसलिए मेरी आँख अचानक खुली| मैंने सबसे पहले नेहा को देखा तो वो मुझसे चिपकी हुई चैन से सो रही थी| आँखों में कुछ नींद थी और कुछ अमावस की रात होने के कारन अँधेरा ज्यादा था सो मैं ठीक से भौजी की चारपाई की ओर ठीक से देख नहीं पा रहा था| मैं उठ कर बैठा तो पाया की भौजी चारपाई पर नहीं हैं, मैंने बैठे-बैठे उनके कमरे के अंदर झाँका तो पाया वो वहाँ भी नहीं हैं! अब मेरी हवा गुल हो गई की इतनी रात गए वो गईं कहाँ?! घर का प्रमुख दरवाजा खुला था, जैसा की मैंने सोने से पहले खुला छोड़ा था, ताकि घर में कोई शक़ न करे!

मैं एकदम से उठ कहा हुआ और बहार जाने ही वाला था की मैंने एक बार पीछे पलट कर देखा तो भौजी को स्नानघर के पास मेरी ओर पीठ कर के खड़ा पाया! मैं उनकी ओर बढ़ा तो मुझे उनके सिसकने की आवाज सुनाई दी, मैं समझ गया की वो यहाँ कड़ी होकर रो रहीं हैं, चारपाई पर लेटी हुई रोती तो मैं उठ जाता| मैंने भौजी के दाएँ कँधे पर हाथ रख कर उन्हें अपनी ओर घुमाया, आगे जो दृश्य मैंने देखा उसे देख कर मेरी जान मेरे मुँह को आ गई! भौजी के दाहिने हाथ में उनका वही खंजर था और वो भौजी की बाईं कलाई की नस पर था, भौजी अपनी नस काटने जा रहीं थीं!

[color=rgb(147,]जारी रहेगा भाग 5 में... [/color]
 
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